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Hindi A

4th semester 2nd Year


Unit 2 Part 4

नाटक

हदी ग म नाटक भी एक मह वपूण थान रखते ह ।


हदी सािह य म नाटक का िवकास आधुिनक युग म ही
आ है। इससे पहले ाचीन इितहास म जो भी नाटक
िमलते ह वह केवल नाम के नाटक है।

रिव नरेश िव नाथ सह का आनंद रघुनंदन नाटक हदी


का थम मौिलक नाटक माना जाता है जो लगभग
1700ई म िलखा गया था इस नाटक म ज भाषा का
योग कया गया था तथा यह रामलीला क प ित पर
है।

आधुिनक युग म हदी नाटक का संपक अं ेज से थािपत


आ अं ेज लोग नाटक कला तथा मनोरंजन म अिधक
िच रखते थे और और नाटक क रचना भी हो चुक थी।

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भारत के कई भाग म अं ेज ने अपने मनोरंजन के िलए
नाटक शाला का िनमाण कया िजसम शे सिपयर तथा
अ य अं ेजी नाटककार के नाटक का
अिभनय होता था। सन 1859 म भारतदू ह र ं के िपता
बाबू गोपाल चं ने न ष नाटक िलखा और उसको रंगमंच पर
तुत कया।
वह दूसरी तरफ पारसी नाटक कंपिनयां अपने नाटक को बड़े
धूम धड़ाके से तुत कर रही थी। इन चीज से बाबू गोपाल
चं ने अिधक से अिधक नाटक िलख िजससे क जनता नाटक
को ो सािहत कर।

हदी नाटक कला के िवकास को 4 काल म बांटा गया है

● भारतदु युगीन नाटक 1850 से 1900ई


● ि वेदी युगीन नाटक 1901 से 1920ई
● साद युगीन नाटक 1921 से 1936ई
● सादो उ र युगीन नाटक 1937 से अब तक

भारतदु युगीन नाटक 1850 से 1900 ई:- हदी म नाटक


सािह य क परंपरा का वतन भारतदु युग से आ है भारतदु
समाज क सभी बुरी दशा को जानते रहता था वह सािह य
के मा यम से समाज को जाग क करना चाहते थे समाज म

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जाग कता फैलाने का नाटक एक सबसे मह वपूण और
लाभकारी रा ता था।

भारतदु ने कुल िमलाकर 17 नाटक क रचना क जो


िन िलिखत ह :-

भारतदु क मौिलक कृितय म हसा हसा के बारे म तथा


समाज क कुरीितय के बारे म ा या क गई है तथा
धा मक ढ़यां और धा मक िवडंबनाऔ के बारे म बताया
गया है।

भारतदु ने भारत जननी और भारत दुदशा ने भारत क


त कालीन ि थित क ा या क है िजसम भारत क ि थित
ब त ही यादा दयनीय और खराब है।

भारतदु ने संघष क पृ भूिम पर नौकरशाही क अ छी


आलोचना करते ए अंधेर नगरी िलखा है अंधेर नगरी चौपट
राजा को फांसी दला कर नाटककार कामना करता है क इस
अयो य राजा क तरह नौकरशाही भी समा हो जाएगी।

भारतदु ने अं ेजी बां ला तथा सं कृत के हदी नाटक म हदी


अनुवाद कया है इसके कुछ उदाहरण है र ावली ना टका

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खंड िवखंडन बोध चं ोदय धनंजय िवजय कपूर मंजरी
मु ा रा स तथा दुलभ बंधु आ द।अं ेजी से कए गए अनुवाद
म भारतदु ने भारतीय वातावरण एवं प का समावेश कया
है तथा नाटक को कुछ बेहतर बनाने का यास कया है।
भारतदु ने सामािजक एवं रा ीय सम या को लेकर अनेक
पौरािणक ऐितहािसक और मौिलक नाटक के िववेचना ही
नह क अभी तो उ ह रंगमंच पर खेलकर भी जनता को
तुत कया है।
भारतदु क लेखन शैली सरलता रोचकता एवं शोभा िवकता
के गुण से प रपूण है।
इस युग म िलखे गए मु य नाटक क धाराएं : पौरािणक
धारा- इसक तीन उप धाराएं है :- रामच रत संबंध
कृ णच रत् संबंधी और अ य पौरािणक संबंधी।

ऐितहािसक धारा : इस धारा म ऐितहािसक नाटक को तुत


कया गया है ऐितहािसक नाटक धारा 'नील देवी' से ारंभ
होती है।

सम या धान धारा : इस धारा म भारतदु ने समाज से जुड़े


सम या को तुत कया है तथा नारी सम या को िजस ढंग
से उठाया था। भारतदु ने इस धारा म और भी कई कार के
समाज कुरीितय को उठाया है जैसे बाल िववाह िनषेध
िवधवा िववाह तथा ी िश ा का समथन कया है।

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ेम धान धारा : इस धारा म ेम धान नाटक को तुत
कया गया थाइन नाटक क िवशेष व तु तथा सभी ि य
रोमां टक है।
शा ीय दृि से भरे तदू काली नाटक सं कृित नाटक शा क
मयादा क र ा करते ए देखे गए ह।
इस युग म सं कृत बां ला तथा अं ेजी के सु िस नाटक को
हदी म अनुवाद करके िलखा गया था था मंच पर तुत
कया गया।

ि वेदी युगीन : भारतदु युग के बाद ि वेदी युग का आरंभ


होता है। िह दी नाटक के ऐितहािसक िवकास म म पं .
महावीर साद ि वेदी का योगदान भारते दु म इतना नग य
है क नाटक के े म ि वेदी युग को अलग से वीकार करना
पड़ा।

अपने युग क सम या को ना प दान करने का जो


अद य साहस भारते दु युग के लेखक म दखाई पड़ा था
उसके दशन ि वेदी युग म नह होते ।
मौिलक नाटक म सािह य क दो धाराएँ मुख ह ( 1 )
सािहि यक नाटक ( शौ कया रंगमंच ) , ( 2 ) मनोरंजन
धान नाटक ( ावसाियक पारसी रंगमंच )।

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सािह य नाटक के िवकास के साथ-साथ भारत म कई नाटक
मंडिलय का िनमाण भी आ वह नाटक म दया िन िलिखत
ह:
● याग क ' िह दी नाटक म डली '
● कलक े क ' नागरी नाटक मंडल '
● मुज़ फरनगर क ' नवयुवक सिमित ' आ द ।
● इनम ' िह दी ना - सिमित ' सबसे अिधक पुरानी थी
। सन् 1893 ई . म यह ' रामलीला नाटक मंडली ' के प
म थािपत ई थी ।

अ ययन क सुिवधा के िलए आलो य युग के नाटक को


िन िलिखत वग म िवभािजत कया जा सकता है --
पौरािणक , ऐितहािसक , सामािजक उपादान पर रिचत
नाटक , रोमांचकारी नाटक , हसन और अनू दत नाटका।

पौरािणक नाटक के तीन वग देखने को िमलते ह -


कृ णच रत स ब धी , रामच रत स ब धी तथा अ य
पौरािणक पा एवं घटना से स बि धत । कृ ण च रत
स ब धी नाटक म राधाचरण गो वामी कृत ' ीदामा ' (
1904 ) , ज न दन सहाय - कृत ' उ व ' ( 1909 ) ,
नारायण िम - कृत ' कंसवध ' ( 1910 ) िशव न दन सहाय।

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रामच रत - स ब धी नाटक म रामनारायण िम - कृत '
जनक बड़ा ' ( 1906 ) िगरधर लाल - कृत ' रामवन या ा ' (
1910 ) और गंगा साद - कृत ' रामािभषेक ' ( 1910 ) ,
नारायण सहाय - कृत ' रामलीला ' ( 1911 ) . और राम
गुलाम लाल - कृत ' धनुषय लीला ' ( 1912 ) उ लेखनीय
ह।

अ य पौरािणक घटना से स बि धत नाटक म महावीर


सह का ' नल दमय ती ' ( 1905 ) , सुदशनाचाय का '
अनाथ नल च रत ' ( 1906 ) , बांके िबहारी लाल का '
सािव ी ना टका ' ( 1908 ) . बालकृ ण भ का ' बेणुसंहार
'।
सामािजक - राजनैितक सम यापरक ि वेदी युग म भारते दु -
युग क सामािजक - राजनीितक सम यापरक नाटक क
वृि का अनुसरण भी होता रहा है । इस धारा के नाटक म
ताप नारायण िम - कुत ' भारत दुदशा ' ( 1903 )
भगवती साद - कृत ' वृ िववाह ' ( 1905 ) , जीवान द
शमा - कृत ' भारत िवजय 'यह नाटक समाज म सुधार क
दृि से ब त ही मह वपूण है तथा नैितकता वादी क दृि से
भी मह वपूण है।

इस युग म मनोरंजक काली नाटक धा मक नाटक तथा ेम


योग नाटक का िवकास बड़ी तेजी से आ है।

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इस काल म ' ओ रिजनल िथये कल क पनी ' , ' िव टो रया
िथये कल क पनी ' , ' ए फेड िथये कल क पनी ' , '
शे सपीयर िथटे कल क पनी ' , ' जुिबली क पनी ' आ द
कई क पिनयाँ ' गुलबकावली ' , ' कनकतारा ' , ' इ दर सभा '
, ' दलफरोश ' , ' गुल फरोश ' , ' य दी क लड़क ' , जैसे
रोमांचकारी नाटक खेलती थ ।

कुछ थोड़े उदा वादी पर परा के लोग का यान सं कृत


नाटक क ओर गया , पर तु अिधकांश का अ ययन बंगला
तथा पा ा य नाटक क ओर ही अिधक था ।

इस युग म भी कई अलग-अलग भाषा के नाटक का


अनुवाद हदी भाषा म कया गया था तथा वह जनता के बीच
ब त ही लोकि य थे।
ांस के िस नाटककार ' ओिलवर ' के नाटक को
ल ली साद पांडेय और गंगा साद ीवा तव ने अं ेजी के
मा यम से अनू दत कया । बंगला नाटक का अनुवाद तुत
करने वाल म गोपालराम गहमरी मरणीय ह । उ ह ने '
बनवीर ' ' ब ुवाहन ' , ' देश दशा ' , ' िव ािवनोद ' , '
िच ांगदा ' आ द बगला नाटक के अनुवाद कये ।

ि वेदी युग म िह दी रंगमंच िवशेष स य नह रहा । इस


युग म ब ीनाथ भ ही अपवाद व प एक ऐसे नाटककार थे
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, िज ह ने नाटक य मता का प रचय दया है क तु इनके
नाटक भी पारसी क पिनय के भाव से अछूते नह ह ।
साद क आरि भक ना कृितयाँ - स न ( 1910 ) ,
क याणी प रणय ( 1912 ) . ायि त ( 1912 ) .
क णालय ( 1913 ) और रा य ी ( 1918 ) . ि वेदी - युग
क सीमा के अंतगत आती ह ।

इनका कथानक साधारण होते ए भी देश क त कालीन


राजनैितक , धा मक और सामािजक सम या क
अिभ ि से ओत ोत है य िप साद के अिधकांश नाटक
ऐितहािसक ही है।
साद युग के बाद का योग : सादयुगीन नाटक क मूलधारा
भी रा ीय एवं सां कृितक आदश चेतना से स बि धत थी
ल मीनारायण िम ने अपने नाटक का लेखन साद - युग म
ही ार भ कया था । उनके ' अशोक ' ( 1927 ) , ' सं यासी
' ( 1829 ) , ' मुि का रह य ' ( 1932 ) , ' रा स का
मि दर ' ( 1932 ) . ' राजयोग ' ( 1934 ) , ' िस दूर क
होली ' ( 1934 ) , ' आधी रात ' ( 1934 ) आ द नाटक इसी
काल के ह ।

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