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१.

विविध जजतनी अटूट मातभ


ृ जतत,
वही लड़का हो उतना कृतत।
वन्दे परू
ु षोत्तमम! (३) टका पराया मानुष अपना,
परम प्रेममय श्री श्री ठाकुर जजतना भी हो मानुष धरना।
अनुकूलचन्र जी की जय! (३) शशक्षक को नहीं इष्ट में टान,
सत्संग की जय! (३) कौन जगाए छात्र प्राण।।

पपता में श्रद्धा मााँ में टान,


वही लड़का हो साम्य प्राण।
सबको बचाना अपने बचना,
इसको ही तू धमम समझना।
धमम में सभी बचते बढ़ते,
सम्प्रदाय को धमम ना कहते।
धरना प्रेररत वतममान,
अन्धकार में करे प्रयाण।।

यजन याजन इष्टभत


ृ ी,
करने से काटे महाभीतत।
इष्ट नहीं है जजस नेता को,
यम दलाल ही समझो उसको।
एक आदे श में चलते जो,
उनसे ही समाज हो।
आयमस्थान पपतस्
ृ थान,
उच्च सभी से पुयम
म ाण।।
२. धर्म समन्वय से बढ़ता जाए,
उसको ही तो धमम समझना,
धमम वही कहलाए, धमम कहां इसके शसवाय।।
अपना बचना बढ़ना सबको,
सदा बचाए बढ़ाए।। धमम जजतना प्रकट होगा रे ,
तनष्ठा नीतत व्यवहार में ,
सबको बचाना, अपने बचना, प्रततष्ठा भी आएगी वैसे,
इसको ही तो धमम समझना, कोई नहीं जो उसको रोके।
धमम से जीवन दीप्त होता, जीवनवाद का वाद शलए तू,
धमम जानो एक ही रहता। (सत चलन) तडड़त वेग से
राह खोजते समय गंवाए, चलता चल,
अनुष्ठान तो खूब चलाए, अमर जीवन पाने के पथ पे,
अनुष्ठान ही सार हो गया, रखना वही कृततबल।
पाने को भी नष्ट कराए।। चलना करना दे ना जैसा,
इष्टदे व के शलए,
कोलाहल तो ये जीवन है ,
होना पाना जीना वैसा,
पीछा करे हलाहल,
प्रसाद स्वरूप पाए।।
बटोर ले तू अमर चलन,
मलय नील में बहता चल।
(थोड़ा सा) जान सन
ु बझ
ू के
चलना,
ककससे तया होता है ,
उस पथ पर ही चलते रहना,
करना जीवन जय।
जो करने से बचना बढ़ना,
३. आदर्म प्राण जाए पर ना छोड़ना,
सब पापों से त्रान पाओगे,
इष्ट चलन रहे ही यदद, ऋपषयों की वाणी नहीं भूलना।
रोकेगी नहीं दग
ु तम त, सत व श्रेष्ठ आश्रय जजसका,
दग
ु तम त सब दग
ु म होकर, उन्नयन भी अबाध उसका,
लाएगी जय में उन्नतत।। श्रेष्ठ में रखके तनज आनतत,
बढ़ाते चल चलन की गतत।।
माता पपता श्रेष्ठ जन में ,
श्रद्धा भजतत जो भी रखना,
इष्टानग
ु नहीं होने से,
लाएगी नहीं संबधमना।
पवपाक पथ पे हाथ धरके जो,
चलन का रीत शसखलाए,
उनको ही तो गुरू समझो,
अभय पथ पे जो लेेे जाए।
सत्दीक्षा तुम अभी लेलो,
इष्ट में रखो सम्प्रीतत,
मरण तरण यह नाम जपने से,
काटती अकाल यम भीतत।।

पर के इष्ट की तनन्दा करके,


हुआ इष्ट तनष्ठ,
तोड़े पैर खद
ु ही अपना,
समझाना पापपष्ठ।
इष्ट गरू
ु की स्वाथम रक्षा,
४. व्यिहार प्रायः शुभ ही आए,
अशुभ के थोड़ा आघात से,
अपनी त्रदु ट ख़्याल करे ना, वही चूर हो जाए।।
पर के ऊपर दोष लगाए,
अहं मत्त मूखम वही, योगी हो कक तू ध्यानी हो,
धीरे धीरे नष्ट हो जाए।। गोसाईं गोपवंद जो कुछ हो,
यजन याजन इष्टभत
ृ ी,
इष्ट स्वाथम प्रततष्ठा तेरी, ककया नहीं तो कुछ न हो।
जहां दे खो डूब रे जाए, शसद्ध नहीं मंत्र दे ,
मत्ृ यु पवपाक आकर तझ
ु े, मरे मारे क्षय करे ।
उसी पथ पर ले जाए। बात करोगे गुड़ समान,
पवकृततयां बटोर करके, तन में शलपट जाए,
पवषातत तयों सबको करे , मीठी बात भी सख़्त होने से,
पवष सभी को नष्ट करके, उल्टी तरफ़ जाए।।
अमर धारा में बहाए।।

लेकर घणृ णत अशभमान तम


ु ,
हुए कपव वैज्ञातनक,
अहं की ही सेना बने,
नहीं बने तम
ु दे श प्रेशमक।
वही ण़िदमत ककये बहुत,
शमट न पाया ज्वाल,
इष्ट स्वाथम करते अगर,
जाता रे जंजाल।
चाल चलन में शभ
ु रहे तो,
५. शर्क्षा पवद्यालय में लड़का लड़की,
सीखे चाहे जो कुछ भी,
शलखाई पढ़ाई में पटुता ही, घर की पवद्या सुष्ठ नहीं तो,
शशक्षा नहीं कहलाती, स्वभाव में शशष्टता नहीं
अभ्यास व्यवहार सहज ज्ञान आती।।
बबन,
शशक्षा नहीं हो पाती।। गरू
ु अगर अपमान करे तो,
बढ़े शशष्य का मान,
सीख शलया तू लाख लाख पर, ताड़न पीड़न भत्समना से हुए,
बोध में कुछ भी नहीं णखला, ज्ञान पर अशभयान।
स्मतृ त का बैल बना केवल, भूल पर जजसे शमली न धमकी,
मुट्ठी भर अन्न नहीं शमला। शमली न कोई लांछना,
पुस्तक पढ़कर बना रे पुस्तक, भूल उसे भुलावा दे कर,
तनदान उसका शलया नहीं, करती ज्ञान से वंचना।
शलए ककए चले बबना तया, अनक
ु ं पा ही बोध का वाहक,
ज्ञान बोध में जागे कहीं।। बोध से पवद्या आती,
ऐसा आवेग जहां नहीं हो,
दीक्षा लेकर शशक्षा धरो,
पवद्या वहां पछताती।।
आचायम को करके सार,
आचरणी बोध चयन से,
ज्ञान का सागर हो रे पार।
रहे छात्र को इष्ट पर टान,
तब ही आए कमम प्राण,
शशक्षक को नहीं इष्ट पर टान,
तो कौन जगाए छात्र प्राण।
६. कपट टान सोच के इसे दे ख न पाए,
इष्ट स्वाथी प्राणना में तुम,
दद
ु म शा जब काबू करे , अपने को तुम बांध न पाए।।
वपृ त्त नत हो जाए,
जीेेने की टान लेकर मनष्ु य, भंड-तनष्ठा, वाचक-भजतत,
पवधध पथ पे जाए।। कहां शजतत सार,
अपने में ही मत्त है वह,
पवधध पथ पर पजु ष्ट पाकर, सब ही अहं कार।
धचत्त सबल जभी, तनष्ठा-हारा उड़े पंछी,
वपृ त्त धंधा स्वाथम लेकर, स्वाथम लोभ में घूरे किरे ,
पुनः चले तभी। भजतत ज्ञान बहाना लेकर,
इस तरह ही धगरते पड़ते, केवल लोगों को ठगता रे ।
मत्ृ यु मुख में जाए, स्वाथी कसाई कामुक साधू,
इष्ट में उत्सजमन से, जानो कैसा स्वरूप पाए,
सब ही पलट जाए।। गगन में जो धगद्ध चले,
नीचे मुद्मदा दे खे हाय।।
ठाकुर दे खो दे वता दे खो,
पवभूतत लाख महान,
तया हुआ यदद न बदलती,
वपृ त्त रं गीन टान।
ककए साधन ककए रे योग,
शब्द ज्योतत दे खे बहुत,
इतरमय का चररत्र सभी,
रहे ककं तु स्वभाव गत।
ऐसा तयों हुआ रे मरु ख,
७. चररत्र ऐसा संग अगर होगा,
सवमहारा बन जाओगे,
करने का चलन हो जैसा, तनश्चय सवमनाश होगा।।
जैसा हो आवेग जजसका,
भले बुरे का तगमा लेकर, मत माथा में एक रहे जो,
वैसा ही पाना उसका। दो जन भी यदद इष्ट नशा,
लेकर चले दक्ष ताल में ,
अजमन में पटु काज में साश्रई रोके तया सारी दतु नया।
सुन्दर समाजप्त, काज कथन में प्रेष्ठ स्वाथी,
यही दे खकर पहचानोगे, उद्दे श्य में अमोघ गतत,
दक्षता कैसी। साश्रई तनपुण अजमन पटु,
नाम बड़ा होने से ही, स्वाथम में शशधथल रती,
सत्ता बड़ी हुए ना, ये सब तो है दे व लक्षण,
अभ्यास व्यवहार दक्षता में ही, दे खोगे चररत में जजनका,
बढ़ा दे ना मदहमा।। वही तो है स्वभाव मानष
ु ,
वीर का हृदय उनका।।
चररत्र जजसका ठीक चलन में ,
उन्नतत में आगुआन,
दररर वह हो जजतना भी,
मानष
ु ठीक ही लक्ष्मी मान।
तोड़कर सद्गुरु में तनष्ठा,
अकृतज्ञ जो होता है ,
जजतना भी बड़ा हो चाहे ,
होता है क्रमशः ही क्षय।
गरू
ु के प्रतत टान काम जाए,
८. नारी छटपटाए न मन,
हृदय अपपमत कर उसमें ,
सतीत्व जहां स्वभाव शसद्ध, उनकी स्वाथम प्रततष्ठा में ,
चयाम पटू मन, ददल दे कर जो नहीं करे ,
जगद्धात्री मूतम नारी, स्वामी का सम्परू ण,
संसार का जीवन। ऐसी नारी जजस घर में ,
लाख कामों में व्यस्त तब भी, आपद कभी नहीं तरे ,
स्वामी आदर करे , नष्ट भ्रष्ट होकर चले,
जैसे भी हो समय लेकर, हताश हो जाए मन।।
पतत ण़िदमत करे ।।
बात के जोर से घरणी बनी,
ससुराल पर जजस नारी का, काम तो नहीं ककया,
अगाध अटूट टान, कायम जो तू नहीं ददखाई
वही तो है लक्ष्मी नारी, नष्ट ही कर ददया।
सेवा पवपल
ु प्राण। पतत का दोष नहीं दे खना,
पतत प्राणा दक्ष नारी का, आघात दे कर नहीं बोलना,
सेवा सुंदर तप्ृ त चलन, तजृ प्त दे कर ददल में उनके,
लोक हृदय में दीजप्त लाए, सुधार लेना सब संभाल के।
भें ट दे ती है बद्
ु धध रतन।। पतत सेवा जो न करे ,
जजसके अन्य हो स्वजन,
पुरुष मांगे नारी प्रणय,
तछन्न शभन्न प्रेम उसका,
नारी मांगे टांका,
दरररता ही उसका लक्षण।।
ऐसे ही चलता है जगत,
बचना बढ़ना िांका।
स्वामी व्यथा से प्राण रोएना,
९. राजनीति पर का स्वाथम न अपना है ,
इष्ट-स्वाथी कोई न होगे,
अबाध मंगल सबका करना, इसमें भी तया स्वराज है ?।।
स्वाधीनता है ,
उच्छृंखल का प्रश्रय पाना, युग-गरू
ु व पूवत
म न पर,
स्वराज नहीं है ।। जजनकी श्रद्धा नतत मशलन,
उनको जन प्रतततनधध बनाना,
आदशम को तुम करके घायल, कभी न होता समीचीन।
समझौता कर बनाने दल, शासन यदद तुजष्ट न दे ,
जाओगे जब आएगा संकट, तजृ प्त न दे जीवन को,
हाथों हाथ पाओगे िल। उस शासन से तया होगा रे ,
पथ
ृ क पथ
ृ क दल जहां पर, मरोगे तष्ृ णाथम हो।
सभी स्वाथी होते हैं, राजशजतत हाथ में पाकर,
इष्ट-हारा मख
ू म जैसा, सत का पीड़क जो भी है ,
एक दज
ू े का करे क्षय।। दे श को मारे खद
ु भी मरे ,
राष्र को भी करे क्षय।।
मानष
ु को जो सह न पाए,
वहन जो जन न करे ,
चाहे जजतना डडंग हांके,
नेता न कहलाए।
हृदय से शासन करो और,
पोषण भी करो वैसा,
जैसा होगा शासन तोषण,
िल भी होए तैसा।
लोगों के दख
ु में हं सते तम
ु हो,
१०. संिान चयाम संतानों की श्रद्धा नती,
जैसे बढ़े करना वैसा,
नारी से ही जन्मे जाती, उच्छल इससे हो संततत।।
बचे जातक तब तो जाती,
स्वामी में हो जैसी रती, ससुर भैसुर दे वर ननद,
संतान भी पाए वैसी मती।। इनके प्रतत जैसा,
बात चीत सेवा तौर तरीका,
तोतली बोली के समय से, प्रसारण हृदय का,
खुद करके जो शसखाओगी, जैसा तुम करोगी अपना,
शशशु में बस वही होगा, अभ्यास व्यवहार,
बुझके चलना तो पछताओगी। संतान का भी हृदय जानो,
धरने बोलने करने में तुम, होगा उस प्रकार।
दे खोगी रे जो शुभ कुछ भी, शासन ही करोगी यदद
ऐसे ही आग्रह से उसकी, सुधारने को तनज संततत,
बढ़ा दे ना जीवन गतत।। तोषण बबना शासन ककन्तु,
लाएगी नहीं उद्गती।।
स्वामी स्त्री झगड़ा करे ,
संततत सब दे खें,
सवमनाश के सदर द्वार पर,
ही बच्चों को रखे।
जजस स्थल पर जजस तरह से,
जैसे बेशमल बाप और मां में,
सद्इच्छा से आकुल हो तो भी
वही बेशमल रहे बच्चों में ।
मां को उधचत बाप के प्रतत,
११. पुरुषोत्तर्
दहन्द ू मुजस्लम बौद्ध ईसाई,

ईश्वर एक, धमम एक, सभी मतों का एक कथन,

और प्रेररत पुरुष उनके वाताम वाही, साधन करो सद्गुरु ग्रहण कर,

मत जजतने भी हों, पथ है एक, चलो नहीं उलटे चलन,

साधना का पथ कभी दो नहीं। इसका व्यत्यय जब होता,


पवभेद अनल में जलते सभी,
बुद्ध ईसा में पवभेद ककया, मत जजतने भी हों, पथ है एक,
श्री चैतन्य रसूल कृष्ण में , साधना का पथ कभी दो नहीं।
जीवोद्धारी आपवभत
ूम हो,
I am the way,
जानो नहीं एक है वे, I am the truth,
उनके चलन, उनके कथन, I am the life,
उनके करम में भेद नहीं, None can come to the Father,
but through me,
मत जजतने भी हों, पथ है एक,
उनके चलन, उनके कथन,
साधना का पथ कभी दो नहीं।
उनके करम में भेद नहीं,
मत जजतने भी हों, पथ है एक,
बचने बढ़ने का ममम है जो,
साधना का पथ कभी दो नहीं।
धमम तो इसको ही जानो,
संप्रदाय तो धमम नहीं,
बद्
ु धं शरणं गच्छाशम।
तनजश्चत मन में ये मानो,
धमं शरणं गच्छाशम।
Being and Becoming,
संघं शरणं गच्छाशम।
परमपपता सबके पपता,
ददन दतु नया में बादशाही, उनके चलन, उनके कथन,

मत जजतने भी हों, पथ है एक, उनके करम में भेद नहीं,

साधना का पथ कभी दो नहीं। मत जजतने भी हों, पथ है एक,


साधना का पथ कभी दो नहीं।

भाषा भेद में प्रभेद है जो,


जैसे जल पानी water,
प्रभेद वैसा ही ठीक जानो,
अवतार prophet पैंगम्बर,
जो हैं वेद के ईश्वर,
बाइबल के भी God हैं वो,
और कुरान के हैं अल इल्लाही,
मत जजतने भी हों, पथ है एक,
साधना का पथ कभी दो नहीं।

You are for the Lord,


Not for others,
You are for the Lord,
And so for others,
God is One,
Dharm is One,
And Prophets are the same.

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