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*हम पंछी ऊ गगन के ऊ र*

1.

हर तरह सुख सु धाएँ पाकर भी प ज बंद न रहना चाहते ?

उ र-

हर कार सुख सु धाएँ पाकर भी प ज बंद न रहना चाहते, उ
वहाँ उ ने आजादी न । वे तो खुले आसमान ऊँची उ न भरना, नदी-झर का
बहता जल पीना, क वी बौ याँ खाना, पे ऊँची डाली पर लना, कूदना,
फुदकना अपनी पसंद के अनुसार अलग-अलग ऋतुओ ं फ के दाने चुगना और
ज लन करना ही पसंद । यही कारण हर तरह सुख-सु धाओं को
पाकर भी प ज बंद न रहना चाहते।

2.

प उ रहकर अपनी कौन-कौन सी इ एँ पूरी करना चाहते ?

उ र-

प उ रहकर अपनी इन इ ओं को पूरा करना चाहते 

(क) वे खुले आसमान उ ना चाहते ।

(ख) वे अपनी ग से उ न भरना चाहते ।

(ग) नदी-झर का बहता जल पीना चाहते ।

(घ) नीम के पे क वी बौ याँ खाना चाहते ।

(ङ) पे सब ऊँची फुनगी पर लना चाहते ।

वे आसमान ऊँची उ न भरकर अनार के दा पी ता को चुगना चाहते । ज
लन करना चाहते ।

3.

भाव ए-

या तो ज लन बन जाता या तनती साँ डोरी।

उ र

पिं
पिं
पिं
प्र
क्षि
प्र
मि
प्र
त्त
त्त
त्त
क्षी
क्षी
श्न
श्न
श्न
ति
प्र
स्प
ड़
ड़
क्षि
न्मु
न्मु
ष्ट
मि
की
की
क्त
क्त
ति
की
की
की
क्षी
में
नों
जि
ड़
मि
ति
की
न्मु
वि
हैं
रे
ड़
क्त
वि
ड़ा
में
में
ड़
ड़ा
हीं
नि
ड़
नि
है
रि
हीं
है
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च्छा
झू
हैं
क्षी
प्र
क्षी
हैं
श्न
च्छा
हैं
ड़
सों
नों
की
है
रे
हैं
रू
की
रे
कि
में
त्त
हैं
में
में
में
क्यों
रों
हीं
लों
ड़ा
की
हैं
हीं
हैं
झू
वि
क्यों
हैं
कि
क्षि
नों
ति
न्हें
इस पं क प के मा म से कहना चाहता य तं होता तो उस
असीम ज से मेरी हो हो जाती। इन छो -छो पं से उ कर या तो उस
ज से जाकर ल जाता या र मेरा णांत हो जाता।

क ता से आगे

1.

कई लोग प पालते 

(क) प को पालना उ त अथवा न ? अपने चार ए।

(ख) आपने या आप जानकारी सी ने कभी कोई प पाला ? उस
ख ख स कार जाती होगी, ए।

उ र-

(क) हमा कोण से प को पालना उ त न , इससे हम उन आजादी पर
रोक लगा ते । उन इ ओं, सप तथा अरमा पर पाबंदी लग जाता । अतः
प को पालना सही न ।उ कृ द चरण करने ना चा ए। उ
व स ता लती ।

(ख) हमा एक प सी ने तोता पाला था। उस प सी ने उसे मेले से खरीदकर लाया
था। उसके प वार के सभी सद मन से उस ख ख या करते थे। न उसके
ज स ई या करते थे। एक कटोरी पानी पीने के ए तथा खाने के ए
चना या जाता था। इसके अलावे तोते को मौसमी फल तथा भी खाने को या
जाता था। मेरा पडोसी घं उस तोते से बा या करता था और उसे लेकर उसे घुमाने
पा जाया करता था। तोते ने घर के सभी सद के नाम रट ए थे, ले न तोता
खाना भारी मन से खाता था। जब प सी के घर ज के पास जाता था तो वह
हमारी ओर आशा भरी से खता था।

2.

प को ज बंद करने से केवल उन आ दी का हनन ही न होता, अ तु
प वरण भी भा त होता । इस षय पर दस पं अपने चार ए।

उ र

पिं
पिं
पिं
क्षि
प्र
दे
प्र
त्त
त्त
हीं
क्षि
क्षि
र्या
श्न
श्न
वि
र्क
ति
रे
रे
यों
यों
प्र
दि
क्या
में
क्ति
की
क्षि
क्षि
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न्न
रे
रे
यों
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क्षी
फ़ा
ष्टि
रि
प्र
मि
प्र
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वि
रे
ड़ो
वि
कि
मि
में
क्षी
की
की
है
हैं
दृ
ष्टि
की
टों
ड़
चि
हीं
क्षि
च्छा
है
है
यों
ध्य
है
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चि
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स्व
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ड़ो
स्यों
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ज़ा
हीं
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ति
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हि
है
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खि
की
दि
लि
पि
न्हें
प को ज बंद करके उन आजादी का हनन होता ही उन
कृ ‘उ ना। ज बंद करके हम उ पराधीन बना लेते । ससे उन
आ दी तो समा हो ही जाती साथ ही प वरण भी भा त होता
प वरण को संतु त करने भी प का सहयोग रहता । प आहार खला को
य त करते । जैसे-घास को खाता , को प खाते और य प न
तो सं अ क हो जाएगी जो फस को न कर गे। य न
तो घास इतनी ब जाएगी मनु प शान हो जाएगा।

अनुमान और क ना

1.

आपको लगता मानव व मान जीवन-शैली और शहरीकरण से जु
योजनाएँ प के ए घातक ? प से र त वातावरण अनेक सम एँ
उ हो सकती । इन सम ओं से बचने के एह करना चा ए? उ
षय पर वाद- वाद यो ता का आयोजन ए।

उ र

यह कहना गलत न मानव व मान जीवन-शैली और शहरीकरण से जु
योजनाएँ प के ए घातक शह औ गीकरण के कारण षैली
गै और त जल प के ए हा कारक होता । सरी ओर अ क-से-
अ क भवन ण के कारण व व ह याली वाले इला को काटकर ब -ब भवन
बना ए जाते , ससे प का आ य ल समा हो जाता । साथ ही वृ से
खा पदा , फल-फूल आ उ न ल पाते। ऐसा होने पर उ ब त
मु का सामना करना प ता ।

प से र त वातावरण आहार खला भा त हो जाएगी। प वरण संतु त


न र गा। इसके ए ह अ क-से-अ क वृ लगाने चा ए व बाग-बगी का
ण करना चा ए। फै को भी शह से र लगाकर धुएँ व त जल तु
उ त बंध करने चा ए। (नोट-इ चा के आधार वाद- वाद ए)।
पिं
पिं
प्र
नि
हों
हों
प्र
क्या
वि
प्रा
नि
त्प
त्त
चि
हीं
सें
क्षि
र्या
क्षि
श्कि
श्न
धि
र्मा
प्त
ज़ा
न्न
ति
मि
यों
यों
दि
हे
लों
टि
प्र
है
ड्डों
द्य
प्र
क्षि
क्षि
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हि
दू
षि
नि
यों
यों
हैं
हैं
वि
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र्थ
र्मा
रे
प्त
हि
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ख्या
जि
में
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ढ़
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हि
कि
रे
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क्षि
में
त्य
में
क्ट
यों
में
क्षि
धि
में
रि
स्या
गि
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कि
धि
यों
यों
की
है
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की
टि
नों
हैं
हैं
लि
है
न्हीं
की
ड्डा
क्यों
क्षि
ष्य
श्रृं
न्हें
र्त
वि
र्त
क्षि
यों
कि
रि
श्र
धि
नि
यों
हीं
रे
न्हें
रों
रों
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मि
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प्र
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टि
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क्ष
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दू
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लों
में
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में
प्र
क्या
कों
क्षी
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हि
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ष्ट
हैं
वि
में
है
क्षी
जि
क्यों
हैं
र्या
है
प्र
दें
की
है
न्हें
दू
कि
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षि
धि
क्यों
जि
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हु
ड़े
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चों
श्रृं
वि
स्या
कि
की
की
ड़ी
टि
क्त
ड़ी
लि
ड़े
क्षी
ड्डे
हे
क्षों
2.

य आपके घर के सी न पर सी प ने अपना आवास बनाया और सी
कारणवश आपको अपना घर बदलना प रहा तो आप उस प के ए स तरह
के बंध करना आव क सम गे? ए।

उ र-

य हमा घर सी प ने अपना सला बनाया हो और सी कारणवश ह घर
बदलना प रहा हो, तो हम यास क गे जब तक स रखे अं से ब न
कल जाएँ और प उ उ ना न खा ले तब तब घोस को न जाए। य
र भी घर छो ना अ वा आ तो उस घर जाने वाले नए प वार से लकर यह
अनुरोध क गे वे घोस को यथावत रहने और न तथा उनका नर ।

भाषा बात

1.

- खला और लाल रण-सी खां तश गुणवाचक शेषण । क ता से
कर इस कार के तीन और उदाहरण ए।

उ र-

(क) कनक- याँ,

(ख) क क- बौरी,

(ग) तारक-अनार

2.

‘भूखे- से’ समास । इन दो श के बीच लगे को सामा क (-)
कहते । इस से ‘और’ का संकेत लता , जैसे-भूखे- से = भूखे और से।

इस कार के दस अ उदाहरण खोजकर ए।

उ र-

दाल-रोटी – दाल और रोटी

अ -जल – अ और जल

सुबह-शाम – सुबह और शाम

प्र
नि
फि
प्र
स्व
हूँ
प्र
त्त
त्त
त्त
ढ़
श्न
श्न
श्न
दि
दि
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प्र
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प्र
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घों
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क्षी
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खि
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घों
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ड़े
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लों
लों
प्या
ह्न
कि
में
क्षी
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डों
ध्या
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मि
हैं
कि
प्या
चि
च्चे
खें
वि
कि
ह्न
में
दि
पाप-पु – पाप और पु 

राम-ल ण – राम और ल ण

सुख- ख – सुख और ख

तन-मन – तन और मन

न-रात – न और रात

ध-दही – ध और दही

क -प –क और प
दि
दू
च्चा
ण्य
क्ष्म
दु
क्का
दि
दू
च्चा
दु
ण्य
क्ष्म
क्का
दादी मॅां उ र

कहानी से

1.

लेखक को अपनी दादी माँ याद के साथ-साथ बचपन और न- न बा
याद आ जाती ?

उ र

जब लेखक को मालूम आ दादी माँ मृ हो गई तो उसके सामने दादी माँ
सभी या सजीव हो उ । साथ ही उसे अपने बचपन याँ-गंधपू झागभ
जलाश कूदना, बीमार होने पर दादी का न-रात सेवा करना, शन भैया
शादी पर और रा गाए जाने वाले गीत और अ नय के समय चादर ओ कर सोना
और पक जाना, रामी चाची घटना आ भी याद आ जाती ।

2.

दादा मृ के बाद लेखक के घर आ क खराब हो गई थी?

उ र-

दादा मृ के बाद लेखक के घर आ क खराब हो गई, कपटी
एवं शुभ त बा आ गई । इन गलत संग ने सारा धन न कर
डाला। इसके अलावा दादा के भी दादी माँ के मना करने के बावजूद लेखक के
ता जी ने बे साब दौलत । यह संप घर न थी, क ली गई थी।
दादी माँ के मना करने के बावजूद उ ने न माना ससे घर माली हालत
डाँवाडोल हो गई।

3.

दादी माँ के भाव का कौन-सा प आपको सबसे अ लगता और ?

उ र-

दादी माँ के भाव अनेक प थे, जो ह अ लगते थे, मसलन दादी माँ का सेवा,
संर णी, परोपकारी व सरस भाव आ का प ह सबसे अ लगता ,
चिं
प्र
प्र
मि
पि
प्र
त्त
त्त
त्त
श्न
श्न
श्न
त्रों
क्ष
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स्व
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त्त
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कि
स्व
की
क्ष
र्थ
श्रा
की
द्ध
क्ष
न्हों
में
की
की
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की
में
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र्थि
र्थि
दि
त्ति
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स्थि
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भि
मि
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त्रों
की
में
ति
ति
की
च्छा
की
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है
की
हीं
ति
की
क्यों
ति
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च्छा
है
कि
कि
र्ज
र्ण
क्यों
में
कि
क्यों
ढ़
कि
है
क्यों
तों
की
ष्ट
रे
की
कि
की
इ के कारण ही वे स का मन जीतने स व सफल रही।लेखक के बीमार होने पर
दादी रा उस सेवा करना, रामी चाची बेटी शादी पर उसके घर जाकर उस
सहायता करना व छला बकाया ऋण मा करना, ता जी आ क तंगी खकर
दादी शानी सोने का कंगन उ ना आ द ता स मदद करना ही
उनके जीवन का मुख उ था। मुझे दादी स दयता और कोमलता वाला प
सबसे अ लगता ।

कहानी से आगे

1.

आपने इस कहानी मही के नाम प , जैसे- र, आषा , माघ। इन मही मौसम
कैसा रहता , ए।

उ र

1. र – न अ क गरमी न अ क सरदी।
2. आषा – भयानके गरमी व कभी-कभी कुछ व ।
3. माघ – अ क सरदी।

2.

अपने-अपने मौसम अपनी-अपनी बा होती ’-लेखक के इस कथन के अनुसार, यह
बताइए से मौसम कौन-कौन सी ची शेष प से लती ?

उ र-

मौसम तीन होते -सरदी, गरमी और बरसात

सरदी-

सरदी के मौसम अ क ठं ड प ती । लोग ग पेय पीना पसंद करते । फ
सेब, अम द, केले व अंगूर तथा स पालक, बथुआ, सर , मटर, फूलगोभी व
मूली अ क मा लते ।
प्र
क्वा
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त्त
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नों
में
दे
लों
क्ष
में
की
गरमी-

गरमी के मौसम आम, लीची, खरबूजा, तरबूज, खीरा, कक , अंगूर जैसे फल पाए
जाते । स डी, डा, तोरई, घीया, कटहल, खीरा, कक आ अ क
लते ।

बरसात-

बरसात के मौसम अ कव होती । फ कई कार के आम, आ बुखारा,
खुरमानी के अलावे इस मौसम के स गन, क ले, परवल, फ याँ आ
का मा पाए जाते ।

अनुमान और क ना

1.

इस कहानी कई बार ऋण लेने बात आपने प । अनुमान लगाइए, न- न
पा वा क प गाँव के लो को ऋण लेना प ता होगा और यह उ कहाँ
से लता होगा? ब से बातचीत कर इस षय ए।

उ र-

गाँव के लोग यः आ क तंगी से प शान रहते । कई बार ऐसी प याँ आ
जाती जब लोग ऋण शादी- वाह के ख के ए मकान बनवाने के ए, ब
स जमा करने के ए, फस बुआई के ए, ब प ई के ए, पशु
खरीदने के ए, सी पा वा क सद मृ के बाद उसके अं म सं र के
ए, यः लोग ऋण या करते ।

यह ऋण उ गाँव के मीदा व सा का से लता । इसके अलावे यह ऋण


सहकारी क, रा यकृत क, सरकार के भा , डाकघर से तथा सहकारी स
से लो को योज के ए ऋण लने लगा ।

2.

घर पर होनेवाले उ /समारो ब - करते ? अपने और अपने के
भिं
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फ़ी
लि
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लों
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ति
स्का
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कि
मि
न्हें
धि
दि
च्चों
मि
त्रों
ति
की
यों
अनुभ के आधार पर ए।

उ र

घर पर होनेवाले उ /समारो ब नए-नए कप पहनकर, नाना कार के ज
का आनंद लेकर व नाच-गाकर खूब म करते ।

इसके अ से भी इस षय बातचीत ए।

भाषा बात

1.

नीचे दी गई पं पर न दी ए

जरा-सी क नाई प ते

अनमना-सा हो जाता ।

सन-से स द

• समानता का बोध कराने के ए सा, सी, से का योग या जाता । ऐसे पाँच और
श ए और उनका वा योग ए।

उ र-

1. फूल-सी कोमल ब सो रही ।


2. कोयल -सी गीत ब आनंददायक होती ।
3. यह फल शहद-सा मीठा ।
4. वह प र-सा कठोर ।
5. ब का गाल सेब-सा लाल ।

2.

कहानी - कर र का अनुमान कर , पूछ-पूछकर घरवा को प शान कर ’-
जैसे वा आए । सी या को जोर कर कहने के ए एक से अ क बार एक
ही श का योग होता । जैसे वहाँ थक गया, उ ढ- कर ख या। इस कार
के पाँच वा बनाइए।

उ र
प्र
प्र
त्त
त्त
त्त
च्चे
श्न
श्न
ब्द
ब्द
वों
लि
त्थ
की
क्य
में
की
खि
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क्य
ठि
रि
छू
मि
प्र
क्त
क्ति
श्री
छू
हैं
मि
यों
त्स
च्ची
ज्व
त्रों
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है
है
ध्या
खि
क्रि
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जि
वि
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स्ती
च्चे
तीं
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ढूं
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कि
ढूँ
लि
ढ़
लों
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लि
है
प्र
रे
धि
व्यं
प्र
दे
तीं
नों
1. सागर के ना र- र तक कोई न था।
2. माँ न जाने जोर-जोर से रही थी।
3. जीवन कदम-कदम पर परी नी प ती ।
4. मे बार-बार मना करने पर भी वह घर छो कर चला गया।
5. चो ने घर के मा क को मार-मार कर अधमरा कर या।

3.

बोलचाल योग होनेवाले श और वा श ‘दादी माँ’ कहानी । इन श और
वा से पता चलता यह कहानी सी शेष से संबं त । ऐसे श
और वा य बोलचाल खू याँ होती । उदाहरण के ए- कसार,
बर , उ न, उ , कइ श को खा जा सकता । इन श का
उ रण अ य बो अलग ढंग से होता ; जैसे- उ को वा, चू ,
पोहा और इसी तरह का को क, त का भी कहा जाता । कसार, उ न और
बर श मशः कास, उऋण और श का य प । इस कार के
दस श को बोलचाल उपयोग होनेवाली भाषा/बोली से एक ए और क
खकर खाइए।

उ र-

बोलचाल भाषा च तश व इनका दी पांतर

-माटी, म । घासलेट- का तेल । घना-अ क। बंदा- । चादर-च र ।


र- लार। प पंछी। नाटक-नौटं । कौआकागा। वाह- ह, वाह, शादी।
कृ - शन। घ -मटका, गगरी, घइली। न-नहान।।
हिं
प्र
लि
मि
प्या
च्चा
त्त
रे
श्न
ष्ण
क्यां
ट्टी
रों
ह्मा
ह्मा
कि
ब्दों
शों
में
दु
क्यां
ब्द
रि
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कि
में
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क्यों
शों
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प्र
चि
ट्टी
रे
क्षे
क्षी
में
ड़ा
त्री
लि
क्षे
दू
ड़ा
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नि
त्री
छौं
दू
छौं
प्र
लि
में
है
लि
यों
कि
मि
चि
क्षा
त्या
ट्टी
ब्द
में
छौं
ल्ला
दि
दे
ब्द
की
की
ब्दों
ड़
ड़
ब्र
ड़
बि
क्यां
ह्मा
कि
स्ना
है
दे
ब्द
वि
रू
धि
है
हैं
दि
वि
क्षे
क्षे
त्री
त्र
है
चि
ब्या
रू
है
नि
व्य
त्र
ड़ा
में
की
क्ति
हैं
धि
वि
हैं
लि
जि
चि
ब्दों
है
नि
ड़
रि
प्र
ब्दों
द्द
क्षा
ड़
ब्दों
त्र
में
मालय बे याँ -उ र |
-अ स

लेख से
1. न को माँ मानने परंपरा हमा यहाँ का पुरानी । ले न लेखक
नागा न उ और न खते ?

उ र– पू श न को माँ के प माना जाता , यह परंपरा का पुराने समय से


चलती चली आ रही ले न इस पाठ लेखक नागा न ने न को बेटी, यसी व
बहन के प भी खते ।

2. धु और पु शेषताएँ बताई गई ?

उ र- इस पाठ लेखक ने धु और पु को दो महान के प बताया । इन


दो बड़ी न का नाम सुनते ही मालय से कलने वाली सभी छोटी-ब न याँ
त र आँ के सामने आ जाती । ये दो महान याँ मालय के घले ल से
कले एक-एक बूँद से बनी । यह समु तना सौभा शाली से मालय इन
दो बे का हाथ पकड़ने का य ला ।

3. काका कालेलकर ने न को लोकमाता कहा ?

उ र- काका कालेलकर ने न को लोकमाता इस ए कहा ये न याँ ही


जो यु -यु से हम सभी का भरण-पोषण करती आ रही । ये न याँ ही जो हम सभी
को पीने के ये जल ती और को उपजाऊ बनाने सहायक होती । स
कार कई तरह के ख सहने के बाद भी माता अपने संतान का भला चाहती उसी कार
ये न याँ भी मानव रा त ये जाने के बाद भी जगत का क ण करती रहती ।
सिं
सिं
हि
प्र
प्र
नि
प्र
प्र
प्र
त्त
त्त
त्त
स्वी
श्न
श्न
श्न
श्न
दि
र्जु
टि
गों
यों
रू
रे
दि
खों
न्हें
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गों
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दि
यों
लि
में
यों
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में
की
कि
दे
दि
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ब्र
दु
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यों
ह्म
दे
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है
दू
षि
कि
पों
त्र

टि
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श्रे
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दि
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जि
है
की
है

4. मालय या लेखक ने न- न शंसा ?

उ र- मालय या लेखक ने वहाँ पर उप त न , प , ब से


ढ ई पहा , हरी-भरी घा तथा महासाग शंसा , साथ ही
लेखक ने वदार, चीड़, सरो, नार, सफ़ेदा, कैल भी संशा ।

1. न और मालय पर अनेक क ने क ताएँ खी । उन क ताओं


का चयन कर उन तुलना पाठ तन के व न से ए।

उ र– यं पु कालय सहायता से क ।

2. गोपाल ह नेपाली क ता ‘ मालय और हम’, रामधारी ह ‘ नकर’


क ता ‘ मालय’ तथा जयशंकर साद क ता ‘ मालय के आँ गन ’ प ए
और तुलना ए।

उ र- यं पु कालय सहायता से क ।

3. यह लेख 1947 खा गया था। तब से मालय से कलनेवाली न


- बदलाव आए ?

उ र- 1947 से लेकर आजतक मालय से न याँ उसी कार बह रही जैसे पहले बहा
करती थी, ले न अब मालय से कलने वाली न का जल षण का कार हो
चु । अभी के समय तेजी से बढ़ती जनसं के कारण न के जल गुणव
भी भारी कमी आई । सभी जग पर लगातार षण ब ता जा रहा । जगह-जगह
बाँध बनाने के कारण जल- वाह कमी हो गई जो मानव के त के ये सही न
। गंगा जल प ता समा हो रही ।

4. अपने सं त क से पू ए का दास ने मालय को वा


कहा ?
सिं
सिं
प्र
प्र
प्र
की
प्र
में
में
है
प्र
त्त
त्त
त्त
त्त
की
श्न
श्न
श्न
श्न
श्न
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क्या
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हि
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स्व
स्व
यों
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वि
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त्र
स्त
स्त
है
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में
शि
त्रा
में
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प्र
क्ष
में
में
चि

प्त
की
लि
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की
में
हि
में
हों
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टि
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हि
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प्र
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है
की
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दि
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वि

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यों
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हि
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वि
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दि
हि
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यों
की
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हि
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दि
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की
यों
प्र
हि
प्र
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नि
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दू

हैं
र्व

हैं
तों
की
है
लि
दे
की
की
है
शि
में
त्मा
दि
वि
र्फ
दि
क्यों
ढ़ि
यों
त्ता
हीं
उ र- मालय प त पर ही वताओं का वास माना जाता । दातर ऋ -मु ने
यहाँ तप और वरदान भी पाए इस ए का दास ने मालय को वा कहा

अनुमान और क ना
1. लेखक ने मालय से कलनेवाली न को ममता भरी आँ से खते ए
उ मालय बे याँ कहा । आप उ कहना चा गे? न सुर के
ए कौन-कौन से का हो र ? जानकारी क और अपना सुझाव ।

उ र- लेखक ने न को मालय बे याँ कहा , वह न का उ म ल


। परंतु हम इन सभी न को माँ का न ना चा गे, वे ह और धरती दो
को जल दान करती । ये न याँ हमारी स तो बुझाती ही साथ ही खे भी
स बुझाती ।

न सुर के ए सरकार यास तो कर रही , ले न अभी तक उन रने वाले


कारखाने के कच को रोका न जा सका । र भी न सुर के ए हमा
श कई योजनाएँ बनाई जाती रही , जो -

न के जल को षण से बचाना, जल का कटाव रोकना, न सफाई


उ त व करना आ ।न के स ई उ त व जाए। उन कच
कने पर रोक लगाई जाए, कल-कारखा से कलने वाले त जल, रसायन तथा
शव वा त करने पर रोक लगाई जाए। अतः न प ता बनाए रखने के ए
जन-चेतना जगानी होगी। सरकार को भी क उपाय करने गे।

2. न से होनेवाले ला के षय च ए और इस षय पर बीस
पं का एक बंध ए।

उ र– न याँ हमा जीवन का आधार । ब ले पहा से कलकर धरती के धरातल


पर बहती ई न याँ अपनी मीठी रस पी जल से असं को जीवन दान
है
प्र
लि
है
प्या
दे
फें
प्र
चि
त्त
न्हें
त्त
त्त
दि
दि
क्ति
श्न
श्न

यों
यों
में
प्र
हि
यों
व्य
हि
की
स्या
हि
दि
प्र
स्था
हु
दि
की
यों
हैं
क्षा
की
दि
हैं

रे
नि
दि
र्व
रे
हि
यों
टि
प्र
लि
ल्प
र्य
हैं
दू
दि
लि
दि
यों
खि
हि
है
हे
दे
हीं
दि
हैं
है
नि
भों
दि

प्र
यों
की
हैं
है
हैं
वि
रू
स्था
टि
नों
ड़े
न्हें
फ़ा
प्या
है
नि
र्फी
लि
प्रा
म्न
में
क्या
दे
फि
दि
प्त
की
नि
दि
हैं
यों
र्चा
यों

है
है
लि
हें
चि
रें
ड़ों
की
की
क्यों
हों
जि
कि
दि
ख्य
क्यों
व्य
कि
है
यों
वि
नि
हें

कि
प्रा
स्था
हि
त्र
की
ज्या
दू
है
षि
णि
दि
की
यों
दि
दि
यों
में
क्षा
यों
यों
खों
वि
की
की
दें
में
षि
दे

लि
गि
तों
दे
द्ग
त्मा
में
नि
की
क्षा
प्र
यों
स्थ
लि
हु
की
नों
रे
रे
करती । ये न याँ लो सन बुझाती ब न याँ धरती को उपजाऊ
भी बनाती । लो के आवागमन का साधन भी । इन पर बाँध बनाकर जली उ
जाती । हमा दातर ती ल भी न के ना ही बसे इसी कारण न याँ
पूजनीय भी । न से ह धरती तु उपजाऊ पदा होते । ये व को चती
। व लाने सहायक होती । अन नत जीव इन न का जल पीकर जीवन पाते
।न के ना गाँ का बसेरा पाया जाता । गाँव के लोग अपनी छोटी-ब सभी
आव कताएँ जैसे चाई करने, पानी पीने, कप धोने, नहाने, जानव तु न का
जल ही योग करते ।हम यह कह सकते न याँ ही हमारी सं पहचान ।
इ तन करना चा ए हमारा जीवन इ पर र ।

भाषा बात
1. अपनी बात कहते ए लेखक ने अनेक समानताएँ त । ऐसी तुलना से
अ अ क एवं सुंदर बन जाता । उदाहरण-

क) सं त म ला भाँ वे तीत होती ।

(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी गोद तरह उन धारा ब याँ लगाया
करता।

• अ पा से ऐसे पाँच तुलना क योग कालकर क सुनाइए और उन


सुंदर यो को कॉपी भी ए।
उ र- (अ पा से)

• लाल रण-सी च खोल, चुगते तारक अनार के दाने।

• उ ने सं क खोलकर एक चमकती-सी ची काली।

• सागर लो भाँ उसका यह मादक र गलीभर के मका उस ओर


तक लहराता आ प चता और लौने वाला आगे ब जाता ।
सिं
की
हैं
हैं
प्र
न्हों
त्त
न्हें
श्न
र्थ
न्य
श्य
दि
र्षा
प्र
कि
दू
षि
की
भ्रां
हैं
धि

यों
की
प्र
ठों
दू
गों
न्य
है
हि
है
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हीं
स्प
हु
हि
कि
में
दि
रों
ष्ट
ठों
चों
दि
गों
रे
की
की
रे
यों
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हुँ
सि
हैं

र्फ
में
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हि
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ति
में
हु
गों
क्यों
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खि
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र्थ
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दि
नि
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यों
स्व

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हैं
है
ड़े
दि
न्हीं
ढ़

र्थ
कि

है

प्रा
दि
रे
प्त
क्षा
यों
ल्कि
नि
प्र
की
है
स्तु
र्भ
में

है
दि
हैं
की
स्कृ

नों
हैं
में
हैं
ति
में
रों
डु
की
हे
बि
नों
कि
दि
ड़ी
सीं
यों
दि
त्प
हैं
न्न
• इ खकर तो ऐसा लग रहा मानो ब त-सी छोटी-छोटी बालूशाही रख दी गई
हो।

• ब ऐसे सुंदर थे जैसे सोने के सजीव लौने।


2. वव ओं को मानव-संबंधी नाम ने से वव एँ भी मानो जी त हो
उठती । लेखक ने इस पाठ कई पर ऐसे योग ए , जैसे-

(क) परंतु इस बार जब मालय के कंधे पर च तो वे कुछ और प सामने ।

(ख) काका कालेलकर ने न को लोकमाता कहा ।

• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ए।


उ र- पाठ से या गया अ उदाहरण-

• सं त म ला भाँ तीत होती ।

• इनका उछलना और कूदना, ल लाकर हँ सते जाना, इन भाव-भंगी, इनका


यह उ स कहाँ गायब हो जाता ।

• माँ-बाप गोद नंग-धड़ंग होकर खेलनेवाली इन बा काओं का प पहाड़ी


आद के ये आक क भले न हो।

• ता का राट म पाकर भी अगर इनका मन अतृ ही तो कौन होगा जो


इन स टा सकेगा।

• बू मालय गोद ब याँ बनकर ये कैसे खेला करती ।

• मालय को ससुर और समु को उसका दामाद कहने कुछ भी झक न होती


3. छली क आप शेषण और उसके भे से प चय कर चुके ।


नीचे ए गए शेषण और शे (सं ) का लान ए-
प्र
पि
हि
है
प्र
त्त
न्हें
च्चे
ढ़े
श्न
श्न
भ्रां

की

हि
मि
दे
दि
ल्ला
हैं
यों
प्या
हि
की
नि
पि
वि
र्जी
मि
लि
की
वि
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लि
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में
स्तु
क्षा
ति
में
र्ष
प्र
में
मैं
च्चि

न्य
द्र
हि
वि
दि
खि
में
यों
है
ष्य
वि
है
खि
थीं
ढूँ

स्था
ढ़ि
खि

ज्ञा

नों
हु

दे
मि
ढ़ा
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में
है
नि
दों
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र्जी
कि
जि
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की
है

रि
हैं
स्तु
झि

रू
प्रा
रू
प्त

में
हीं
वि
थीं
हैं

4. समास के दो पद धान होते । इस समास ‘और’ श का लोप हो


जाता , जैसे- राजा-रानी समास सका अ राजा और रानी। पाठ कई
पर समा का योग या गया । इ खोजकर व माला म
(श कोश-शैली) ए।
प्र
स्था
श्न
ब्द
नों
है
द्वं
द्व
द्वं
द्व
में
सों
लि
खि
नों
द्वं
द्व

प्र
प्र
कि
है
जि
हैं
है
र्थ
है
न्हें
में
ब्द
र्ण
में
क्र

उ र-

छोटी – ब

भाव – भंगी

माँ – बाप

5. नदी को उलटा खने से दीन होता सका अ होता गरीब। आप भी


पाँच ऐसे श ए से उलटा खने पर सा क श बन जाए। क श के
आगे सं का नाम भी ए, जैसे- नदी-दीन ( भाववाचक सं )।

उ र- राज-जरा ( भाववाचक सं )

राम-मरा ( भाववाचक सं )

राही-हीरा ( वाचक सं )

नव-वन ( जा वाचक सं )

नमी-मीन ( जा वाचक सं )

6. समय के साथ भाषा बदलती , श बदलते और उनके प बदलते ,


जैसे-बेतवा नदी के नाम का सरा प ‘वे वती’ । नीचे ए गए श से कर
इन ना के अ प ए-

सतलुज रोप

झेलम नाब
प्र
प्र
त्त
त्त
श्न
श्न

मों
ज्ञा

ड़ी

ब्द

द्र
ति
व्य
न्य
ति
लि
रू
खि
लि
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जि
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
खि
लि
खि
ज्ञा
चि

ड़

दू

ज्ञा

रू

लि
है
त्र
ब्द
है
जि
है
र्थ
ब्द
हैं
दि
र्थ
ज्ञा
है

ब्दों
रू
प्र
त्ये
में
ढूँ
ब्द
ढ़
हैं
अजमेर बनारस

पाशा त

पपुर शत म

अजयमे वाराणसी

उ र-

सतलुज – शत म

रोप – पपुर

झेलम – त

नाब – पाशा

अजमेर – अजयमे

बनारस – वाराणसी

7. ‘उनके खयाल शायद ही यह बात आ सके बू मालय गोद


ब याँ बनकर ये कैसे खेला करती ।’

• उप पं ‘ही’ के योग ओर न दी ए। ‘ही’ वाला वा


नकारा क अ रहा । इसी ए ‘ही’ वाले वा कही गई बात को हम
ऐसे भी कह सकते -उनके खयाल शायद यह बात न आ सके।
वि
रू
चि
प्र

त्त
च्चि
श्न
र्यु
ड़
क्त

त्म
रु
क्ति
र्थ
में
दे
हैं
है
में
वि
रू
वि
वि
प्र
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द्रु

स्ता

लि
द्रु

रु

में

हैं

की

ध्या
क्य
जि
में
कि
ढ़े

हि
की
क्य
में
• इसी कार नकारा क वाचक वा कई बार ‘न ’ के अ इ माल न
होते , जैसे-महा गांधी को कौन न जानता? दो कार के वा के
समान तीन-तीन उदाहरण सो ए और इस से उनका षण ए।
उ र-

वा षण

वह शायद ही पहली बार ब ई


वह शायद ब ई न गया हो।
गया होगा।

शायद ही उस कान ड ले। शायद उस कान डन ले।

रो त शायद ही उधर खेल रहा हो। रो त शायद उधर न खेल रहा हो।

न मोदी को कौन न जानता? हर कोई न मोदी को जानता ।

अदरक के गु से कौन प त अदरक के गु से सभी प त


न ? ।
के उपयो ता को कौन न के उपयो ता को सभी
जानता? जानते ।
वि
शि
है
शि
त्त
रें
हीं
हि
हि
क्य
श्ले
द्र
क्षा
क्षा
है
प्र
हैं

हैं
रें
द्र
म्ब
णों
णों
दु
गि
गि
दु
में
त्म
त्मा
ब्रे
में
हीं
ब्रे
प्र
श्न
रि
रि
म्ब
मि
मि
चि
चि
चि
है
हीं
क्य
हीं
दृ
ष्टि
हीं
नों
वि
श्ले
प्र
र्थ
में
की
स्ते
जि
क्यों

हीं
4 कठपुतली
पा पु क के -अ स

क ता से 

1.

कठपुतली को गु आया?

उ र-

कठपुतली को गु इस ए आया उसे स व स के इशा पर नाचना प ता
और वह लंबे अ से धागे बँधी । वह अपने पाँ पर ख होकर आ र बनना
चाहती । धागे बँधना उसे पराधीनता लगता , इसी ए उसे गु आता ।

2.

कठपुतली को अपने पाँ पर ख होने इ , ले न वह न ख होती?
[Imp.]

उ र

कठपुतली तं होकर अपने पाँ पर ख होना चाहती ले नख न होती
जब उस पर सभी कठपुत तं ता दारी आती तो वह डर
जाती । उसे ऐसा लगता क उसका उठाया गया कदम सबको मु ल न
डाल ।

3.

पहली कठपुतली बात सरी कठपुत को अ ल ?

उ र-

पहली कठपुतली बात सरी कठपुत को ब त अ लगी, वे भी
तं होना चाहती और अपनी पाँव । पर ख होना चाहती थी। अपने मनम के
अनुसार चलना चाहती । पराधीन रहना सी को पसंद न । यही कारण था वह
पहली कठपुतली बात से सहमत थी।
प्र
है
प्र
क्यों
प्र
स्व
त्त
त्त
त्त
श्न
श्न
श्न
वि
ठ्य
कि
त्र
दे
है
है
स्त
स्व
त्र
में
स्सा
स्सा
प्र
की
की
की
र्से
श्न
थीं
क्यों
थीं
वों
भ्या
लि
है
दू
दू
में
कि
ड़ी
वों
लि
हीं
यों
है
क्यों
की
लि
लि
की
कि
ड़ी
कि
यों
यों
स्व
च्छा
है
त्र
ड़ी
क्यों
है
दै
हु
वों
की
लि
कि
दू
जि
च्छी
च्छी
है
रों
म्मे
हीं
ड़ी
कि
गीं
क्यों
स्सा
रों
क्यों
ड़ी
हीं
श्कि
कि
है
त्म
हीं
नि
ड़ी
है
र्भ
र्जी
में
कि
ड़
4.

पहली कठपुतली ने यं कहा -‘ये धागे / मे पी -आगे? / इ तो दो; /
मुझे मे पाँ पर छो दो।’ -तो र वह त ई -‘ये कैसी इ / मे मन
जगी ?’ नीचे ए वा सहायता से अपने चार ए

• उसे सरी कठपुत दारी महससू होने लगी।


• उसे शी तं होने ता होने लगी।
• वह तं ता इ को साकार करने और तं ता को हमेशा बनाए रखने के
उपाय सोचने लगी।
• वह डर गई, उस उ कम थी।
उ र-

पहली कठपुतली गुलामी का जीवन जीते-जीते खी हो गई थी। धा बँधी
कठपुत याँ स के इशा पर नाचना ही अपना जीवन मानती ले न एक बार एक
कठपुतली ने ह कर या। उसके मन शी ही तं होने लालसा जा त ई,
अतः उसने आजादी के ए अपनी इ जताई, ले न सारी कठपुत याँ उसके हाँ
हाँ लाने लगी और उनके नेतृ ह के ए तैयार होने लगी, ले न जब उसे
अपने ऊपर सरी कठपुत दारी का अहसास आ तो वह डर गई, उसे
ऐसा लगने लगा न जाने तं ता का जीवन भी कैसा होगा? यही कारण था पहली
कठपुतली त होकर अपने फैसले के षय सोचने लगी।

क ता से आगे

1.

‘ब त न ए / ह अपने मन के छं द ए।’-इस पं का अ और हो सकता ?
नीचे ए ए वा सहायता से सो ए और अ ए-

(क)ब त न हो गए, मन कोई उमंग न आई।

(ख) ब त न हो गए, मन के भीतर क ता-सी कोई बात न उठी, स छं द हो, लय
हो।

(ग) ब त न हो गए, गाने-गुनगुनाने का मन न आ।

चिं
चिं
चिं
प्र
प्र
त्त
श्न
श्न
वि
हु
मि
स्व
दि
दू
हु
हु
दि
रे
हु
घ्र
लि
त्र
हु
स्व
दि
दि
दि
हु
वों
क्यों
दू
वि
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दि
ति
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दू
द्रो
क्यों
कि
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च्छा
स्व
ड़
क्यों
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स्व
दि
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में
रे
जि
यों
त्र
म्र
त्व
म्मे
कि
की
फि
में
जि
वि
च्छा
म्मे
द्रो
वि
छु
चि
वि
हीं
में
ति
क्यों
स्व
लि
हीं
घ्र
वि
में
दु
क्यों
हु
हैं
त्र
क्ति
कि
र्थ
स्व
हु
रे
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व्य
क्त
खि
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त्र
छे
हु
हीं
र्थ
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हैं
जि
की
गों
जि
कि
क्या
लि
कि
में
न्हें
च्छा
में
कि
ड़
ग्र
रे
हु
है
में
में
(घ) ब त न हो गए, मन का ख र न आ और न मन खुशी आई।

उ र

ब त न ए ह अपने मन के छं द ए’ इसका यह अ ब त न हो गए मन का
ख रन आ और न मन खुशी आई अ त् कठपुत याँ परतं ता से अ क
खी । उ ऐसा लगता जैसे वे अपने मन चाह को जान ही न पा । पहली
कठपुतली के कहने से उनके मन आजादी उमंग जागी।

2.

नीचे दो तं ता आं दोल के व ए गए । इन दो आं दोल के दो-दो तं ता
सेना के नाम ए

(क) सन् 1857 ____ ____

(ख) सन् 1942 ____ ____

उ र-

(क) 1857 – 1. महारानी ल बाई, 2. मंगल पां 

(ख) 1942 – 1. महा गांधी, 2. जवाहर लाल नेह

अनुमान और क ना

1.

तं होने ल ई कठपुत याँ कैसे ल गी और तं होने के बाद वलंबी
होने के ए - य ए गे? य उ र से धागे बाँधकर नचाने के
यास ए गे तब उ ने अपनी र स तरह के उपा से होगी?

उ र-

तं होने के ए कठपुत याँ ल ई आपस लकर ल गी, सब
प शानी एक जैसी थी और सबको एक जैसे धा से तं ता चा ए थी। पहले सभी
कठपुत से चार- म या होगा। तं होने के बाद वलंबी बनने के ए
उ ने का संघ या होगा। अपने पाँव पर ख होने के एब तप म या
होगा। रहने, खाने, पीने, जीवन-यापन अ आव कताओं को पूरा करने के ए
न-रात एक या होगा।
प्र
प्र
स्व
प्र
स्व
दि
त्त
त्त
त्त
न्हों
दु
दु
रे
हु
श्न
श्न
नि
त्र
त्र
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दि
दू
हु
यों
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लि
स्व
हीं
फ़ी
यों
दि
हु
न्हें
हों
की
त्र
हु
क्या
कि
लि
ल्प
में
वि
ड़ा
र्ष
लि
क्या
कि
खि
न्हों
त्मा
प्र
वि
नों
है
त्न
लि
र्श
क्ष्मी
में
लि
कि
कि
दु
र्ष
में
क्षा
दि
हों
ड़ा
दू
छु
की
कि
हीं
ड़ी
दि
हु
हैं
स्व
न्य
की
र्था
की
हों
गों
में
न्हें
त्र
मि
ड़े
डे
फि
श्य
रू
स्व
नों
र्थ
यों
स्व
है
लि
त्र
कि
में
लि
त्र
ड़ी
की
स्वा
में
हों
नों
हु
हि
हु
हीं
त्र
दि
क्यों
रि
तीं
कि
श्र
स्वा
स्व
त्य
कि
धि
लि
त्र
की
लि
य र भी उ धागे बाँधकर नचाने का यास या गया होगा तो उ ने एकजुट
होकर इसका रोध या होगा गुलामी सा सुख होने के बावजूद आजाद
रहना ही सबको अ लगता । उ ने सामू क यास से ही श ओं हर चाल को
नाकाम या होगा। इस तरह उ ने अपनी आजादी कायम रखी होगी।

भाषा बात

1.

कई बार जब दो श आपस जु ते तो उनके मूल प प व न हो जाता ।
कठपुतली श भी इस कार का सामा प व न आ । जब काठ और पुतली
दो श एक साथ ए कठपुतली श बन गया और इससे बोलने सरलता आ गई।
इस कार के कुछ श बनाइए जैसे-काठ (कठ) से बना-कठगुलाब, कठफो 

उ र-

• हाथ और करघा = हथकरघा,


• हाथ और क = हथक ,
• सोन और परी = सोनपरी,
• और कोड = मटकोड, मटमैला,
• हाथ और गोला = हथगोला,
• सोन और जुही = सोनजुही।
2.

क ता भाषा लय या तालमेल बनाने के ए च तश और वा
बदलाव होता । जैस-े आगे-पी अ क च ते श जो , ले न क ता
‘पी -आगे’ का योग आ । यहाँ ‘आगे’ का ‘…बोली ये धागे’ से का तालमेल
। इस कार के श जो आप भी प व न ए- बला-पतला, इधर-
उधर, ऊपर-नीचे, दाएँ -बाएँ , गोरा-काला, लाल-पीला आ ।

उ र-

पतला- बला, इधर-उधर, नीचे-ऊपर, काला-गोरा, बाएँ -दाएँ , उधर-इधर आ
प्र
मि
प्र
है
त्त
त्त
श्न
श्न
दि
वि
ट्टी
छे
प्र
फि
ब्द
की
कि
की
प्र
दु
ड़ी
ब्द
वि
है
न्हें
प्र
में
में
च्छा
हु
ब्द
ब्दों
कि
ब्द
हु
में
ड़ी
की
प्र
है
में
है
छे
ड़ि
न्हों
क्यों
यों
ड़
न्हों
ब्द
धि
में
कि
हैं
प्र
न्य
प्र
लि
हि
लि
रि
में
रि
प्र
र्त
कि
प्र
ब्दों
र्त
रे
रू
हु
लि
दि
की
की
में
जि
है
ब्दों
रि
ड़ी
त्रु
में
है
र्त
दु
ध्व
नि
की
कि
न्हों
क्यों
दि
ड़ा
में
वि
है
में
महाभारत

1.

र का पहला नाम था?

उ र:

र का पहला नाम ध व था।

2.

सूरसेन कौन थे?

उ र:

सूरसेन य वंश के लोक य राजा और कृ के तामह थे।

3.

पृथा स बेटी थी?

उ र:

पृथा य वंश के राजा सूरसेन पु थी।

4.

ध व का ज स कोख से आ था?

उ र:

ध व का ज वी रानी अंबा का दासी कोख से आ था।

5.

क का पालन-पोषण सने या था?

उ र:

क का लालन-पालन अ रथ नाम के सारथी ने या था।
प्र
वि
वि
प्र
प्र
प्र
प्र
त्त
त्त
त्त
त्त
त्त
श्न
श्न
श्न
श्न
श्न
र्म
र्म
र्ण
र्ण
दे
दे
दु
दु
कि
दु
की
दु
न्म
न्म
प्र
कि
वि
सि
चि
द्ध
क्या
की
त्र
र्म
कि
प्रि
दे
धि
र्य
की
कि
हु
की
श्री
लि
त्री
ष्ण
की
कि
पि
की
हु
6.

पृथा का नाम कुंती कैसे प ?

उ र:

पृथा के ता सूरसेन ने अपने फूफे भाई कुं भोज को वचन या था अपनी पहली
संतान उसे गोद गा। जब कुं भोज ने पृथा को गोद या तब उ ने पृथा का नाम
प व त कर कुंती रख या। इस कार पृथा का नाम कुंती हो गया।

7.

धृतरा ने र को बनाया?

उ र:

धृतरा ने र को अपना धानमं बनाया।

8.

पां के प का नाम बताएँ ।

उ र:

पां दो प याँ – कुंती व मा ।

9.

पां को शाप ला?

उ र:

जंगल रण का प धारण कर दो ऋ दंप चरण कर र थे। जाने-अनजाने
कार खेलते ए पां के तीर उन दंप से एक को जा लगी, ससे उन से एक
मृ हो गई। ऋ ने मरते-मरते पां को शाप या था।

10.

पां मृ कैसे ई ?

उ र:

वसंत ऋतु पां अपनी प मा के साथ वन- हार कर र थे। ऋतु मादकता
प्र
प्र
प्र
प्र
शि
की
प्र
त्त
त्त
त्त
त्त
त्त
रि
श्न
श्न
श्न
श्न
श्न
डु
डु
डु
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की
र्ति
ष्ट्र
ष्ट्र
त्यु
में
पि
हि
त्नि
त्यु
में
वि
वि
यों
त्नि
क्यों
हु
दु
दु
दे
डु
हु
मि
रू
षि
थीं
क्या
डु
दि
ड़ा
त्नी
प्र
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द्री
रे
त्री
प्र
द्री
ति
डु
षि
में
ति
ति
वि
वि
दि
लि
दि
हे
हे
न्हों
जि
कि
की
में
में
और प सुंदरता को खकर आक त हो गए। उन वासना भावना जगी। वे
शाप को भूल गए। मा के समीप आते ही उन मृ हो गई।

दी उ रीय

1.

र का सं जीवन प चय दी ए।

उ र:

वी प अंबा का दासी कोख से ध व का ज आ। यही
बालक ब होकर र के नाम से आ। र को ध -शा और राजनी का
का न था। उ धन आता था। उनके वेक और न के कारण ही उ बाद
रा का धानमं बनाया गया था।

2.

मु सा कुंती से स थे? उ ने स होकर उसे वरदान या?

उ र:

कुंती ने मु सा एक व तक ब लगन के साथ सेवा थी। उन सेवा
भावना से खुश होकर उ ने उसे वरदान या जब तुम सी भी वता का न
करोगी, तो वह अपने समान तेज पु दान क गा।

3.

मा प के साथ सती हो गई?

उ र:

मा प के साथ सती इस ए हो गई वह यं को प मृ का कारण
मानती थी, इस ए वह प के साथ सती हो गई।

4.

कुंती ने प मृ के बाद या?

उ र:

प्र
वि
वि
में
प्र
प्र
प्र
त्त
त्त
त्त
त्त
नि
श्न
श्न
श्न
श्न
र्घ
चि
द्री
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फ़ी
दु
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दुर्वा
त्त
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ड़ा
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क्षि
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प्र
दुर्वा
श्न
प्त
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त्नी
त्यु
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त्री
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क्यों
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द्री
दु
न्हों
क्यों
प्र
लि
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लि
हीं
न्न
क्या
र्ष
स्वी
की
कि
जि
प्र
सि
न्हों
त्र
ड़ी
र्षि
द्ध
दि
क्यों
प्र
की
हु
प्र
कि
कि
की
न्न
वि
रे
वि
त्यु
स्व
दु
में
र्म
कि
दे
ज्ञा
क्या
र्म
की
ति
की
की
स्त्र
दे
न्म
त्यु
हु
दि
की
ध्या
न्हें
ति
कुंती अपने प मृ के बाद अपने पाँ पु के साथ ह नापुर चली गई और
अपने पु को भी तामह को प या।

5.

पां मृ का स वती पर भाव प ?

उ र:

पां मृ खबर सुनकर स वती अपनी धवा पु वधुओ ं को लेकर वन चली
गई और कुछ न बाद इन ती धवाओं मृ हो गई।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 5

एक बार कुं भोज के घर ऋ सा पधा । ऋ ने स होकर कुंती को वरदान


या तुम स वता का न करोगी, तो वह अपने समान तेज पु दान
क गा।

कुंती ने ऋ के वरदान परी लेने के ए एक न सू व का न या।


सू व के संयोग से ज जात कवच और कुंड से यु एक बालक को ज या।
कुंती अभी अ वा त थी। अतः लोक दा के डर से उसने ब को एक पेटी
सावधानीपू क बंद करके गंगा बहा या। अ रथ नाम के सारथी न र उस
बालक पर प । वह तान था। वह इस बालक को पाकर ब त खुश आ। इस
तरह से सू पु क एक सारथी के घर पलने लगा। यह बालक आगे चलकर
श धा क कहलाया।

वाह यो होने पर कुंती ने यंवर पां का वरण या। इस कार पां का सरा
वाह म राज क मा से आ। एक न महाराज पां वन कार खेलने
गए। वहाँ एक ऋ द रण के प चरण कर र थे। पां उस न मा के
साथ वहाँ कृ का आनंद ले र थे। उ इस बात का पता न था रण जो
ऋ ।उ ने रण को मार राया। मरते-मरते ऋ ने शाप या तुम भी जब
अपनी प के साथ हार करोगे तो तु री मृ हो जाएगी।
निं
प्र
दि
वि
वि
त्त
श्न
र्य
स्त्र
रे
षि
दे
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ग्य
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प्र
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त्यु
त्यु
न्हों
र्व
ति
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त्र
ति
की
श्रे
हि
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ष्ठ
ष्म
हि
र्ण
दे
त्य
पि
वि
नि
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त्यु
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न्म
र्ण
स्सं
की
ति
हि
द्री
षि
स्व
नों
ध्या
क्या
गि
में
क्षा
हे
वि
दुर्वा
त्य
सौं
हु
प्र
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म्हा
न्हें
चों
में
लि
की
रे
डु
ड़ा
वि
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लों
त्यु
त्रों
धि
वि
त्यु
षि
दि
षि
क्त
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प्र
त्र
हे
न्न
र्य
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स्ति
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हीं
डु
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हु
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दि
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स्वी
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ज़
कि
प्र
न्म
डु
में
में
दि
द्री
ड़ी
दू
श :

पृ सं -10

ज जात – पैदा होते ही, उ होने के समय ही। त– , महसूर। लोक –
दा-समाज होने वाली बुराई। न र – । तान – सको संतान न हो।
था – परंपरा।

पृ सं -11

सलाह – राय, ह – शादी, दंप –प -प , – खी, लालसा – अ लाषा,
– व न, सुषमा द , सुंदरता, हारना – खना, असर – भाव, त ल–
तुरत
ं , छल – पंच-धोखा, संभवतः – शायद।
निं
प्र
ज़ि
ष्ठ
ष्ठ
ब्दा
न्म
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र्थ
ख्या
ख्या
र्ण
में
प्र
ब्या
सौं
र्य
त्प
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ति
नि
दे
खि
स्सं
वि
न्न
ख्या
दु
जि
प्र
सि
प्र
द्ध
त्का
भि
CBSE Class 7 Hindi Grammar सं
सश के रा सी ,व , न अथवा भाव के नाम का बोध हो, उसे
सं कहते ।

सं के भेद 

मु प से सं के तीन भेद माने जाते - पर कुछ न इसके दो भेद और मानते ।
इस तरह इनके पाँच भेद होते ।

1. वाचक
2. जा वाचक
3. भाववाचक
4. समूहवाचक
5. वाचक
1. वाचक सं – सी शेष णी, व या न के नाम को वाचक
सं कहते ; जैस-े आगरा, रामच मानस, राम, गांधी इ ।

2. जा वाचक सं – स सं श से पूरी जा , व या समुदाय का बोध
होता , उसे जा वाचक सं कहते ; जैसे नदी, सेना, अ पक, सान,
सागर, झरना आ ।

3. भाववाचक सं – स भाव, गुण, अव या या के पार का बोध
कराने वाले श भाववाचक सं कहलाते ;

जैसे- ठास, थकान, क वापन, बु पा, गरीबी, सजावट, शीतलता आ । दी
भाषा अं जी के भाव से सं के दो और भेद कृत कर ए गए । ये

• वाचक
• समूहवाचक सं
4. वाचक सं – न सं श से सी या पदा का बोध होता , उ
वाचक सं कहते ; जैसे- ध, पानी, चाँदी, तेल, चावल।

हिं
जि
व्य
द्र
व्य
द्र
द्र
व्य
व्य
व्य
ख्य
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
क्ति
क्ति
ति
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में
मि
रू
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कि
कि
जि
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वि
हैं
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
दू
रि
ढ़ा
प्रा
ब्दों
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त्र
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हैं
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स्वी
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ति
स्था
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वि
द्वा
र्ग
ध्या
त्या
व्या
लि
र्थ
दि
कि
व्य
हैं
दि
क्ति
हैं
ज्ञा
है
न्हें
हैं
5. समूहवाचक सं – न सं श से एक ही जा के के समूह का
बोध होता , उ समूहवाचक सं कहते ; जैसे- मेला, सभा, सेना, भी , ड, रोह
आ ।

भाववाचक सं बनाना 

भाववाचक सं एँ जा वाचक सं , स नाम, शेषण, या तथा अ य श से
बनती । भाववाचक सं बनाते समय श के अंत यः पन, , ता आ श
का योग या जाता ।

ब क

1. सं कहते 

(i) व न के नाम को

(ii) णीवाचक व अ णीवाचक को

(iii) शेष , न या व के नाम को ।

(iv) सी णी, व , न, भाव या गुण के नाम को

2. सं के भेद होते 

(i) दो

हु
दि
वि
व्य
प्र
प्रा
वि
कि
ज्ञा
ज्ञा
क्ति
हैं
ल्पी
कि
है
प्रा
व्य
प्र
स्था
ज्ञा
ज्ञा
श्न
क्ति
हैं
न्हें
ज्ञा
स्था
स्तु
हैं
प्रा
ति
है
ज्ञा
जि
स्था
ज्ञा
स्तु
ज्ञा
ज्ञा
ब्दों
र्व
ब्दों
हैं
वि
में
ति
प्रा
क्रि
व्य
क्ति
त्व
यों
व्य
ड़
झुं
दि
ब्दों
गि
ब्दों
(ii) तीन

(iii) चार

(iv) पाँच

न सं ओं को केवल महसूस या जाता ?



(i) जा वाचक

(ii) वाचक

(iii) भाववाचक

(iv) जा वाचक

4. सं के कारक प ?

(i) ग, वचन, कारक।

(ii) ग, वचन, काल

(iii) ग, वचन, या

(iv) ग, वचन, क

5. ‘मीठा’ श से बना भाववाचक सं श वाला क कौन-सा ?



(i) वाचक सं 

(ii) भाववाचक सं 

(iii) वाचक सं 

(iv) जा वाचक सं

6. ‘सुंदर’ श भाववाचक सं होगी



(i) सुंदरी

(ii) सुंदर

(iii) द 

(iv) सुंदरता
लिं
लिं
लिं
लिं
जि
व्य
द्र
द्र
सौं
ज्ञा
व्य
क्ति
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ज्ञा
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ब्द
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ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
र्म
रू
क्या
हैं
कि
ज्ञा
ज्ञा
ब्द
है
वि
ल्प
है
7. हँ सना श भाववाचक सं 

(i) सा

(ii) हँ सी

(iii) सक

(iv) हँ स

8. ‘चालाक’ भाववाचक सं बनेगी



(i) चाल

(ii) चाला 

(iii) चमन

(iv) चलन

उ र

1. (iv)

2. (iv)

3. (iii)

4. (ii)

5. (ii)

6. (iv)

7. (ii)

8. (ii)
हिं
हिं
त्त
की
ब्द
की
की
ज्ञा
ज्ञा
है
CBSE Class 7 Hindi Grammar ग
जो श सं कार या प व न लाते , वे कारी त कहलाते । ग, वचन
तथा कारक के कारण सं का प बदल जाता ।

श के स प से या पु ष जा का बोध हो, वह ग कहलाता ।

तथा पु ष जा का बोध कराने के आधार पर ग के दो भेद -

1. पु ग
2. ग
1. पु ग – पु ष जा को बोध कराने वाले श पु ग कहलाते ; जैसे- ता,
नौकर, घो , शन, अखबार, पे आ ।

2. ग– जा का बोध कराने वाले श ग कहलाते ; जैस-े माँ,
सेठानी, घो , या, मेज, कुरसी, च च, ल , शेरनी, टोकरी आ ।

पु गश पहचान 

के नाम

मही के नाम

पहा के नाम

पे के नाम (इमली को छो कर)

के नाम (पृ को छो कर)

के नाम

समु के नाम

कुछ श नर तथा मादा लगाकर पु ग या गश बनाया जाता ।



नर भालू, मादा भालू, नर कौआ, मादा कौआ।।

पु ग पहचान – नश के पी ‘आ’ पन, ‘पा’ ‘अक’ तथा ‘न’ आता हो। वे


पु गश होते ; जैस-े ल का, बचपन, बु पा, गायक।

लिं
ल्लिं
ल्लिं
ल्लिं
ल्लिं
लिं
ल्लिं
लिं
ल्लिं
लिं
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ड़
ड़
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ब्दों
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ड़
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स्त्री
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ब्द
की
स्त्री
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ब्द
हैं
हैं
है
हैं
दि
है
है
पि
कुछ सं श तथा पु ष के ए समान प योग ए जाते ; जैसे-
धानमं , मं , डॉ र, इं जी यर, ला , रा प आ ।

कुछ अ नाम 

-ता के नाम, धातुओ ं के नाम, शरीर अंग, भाववाचक सं , आकारांत श ।

गश पहचान 

जो नाम ग होते , वे इस कार -भाषा के नाम, न के नाम, के नाम
कोमल भा के नाम (दया, क णा, ममता), श सूचक नाम (पु स, सेना, स ),
बो के नाम, के नाम ( वनागरी, फारसी)।

कुछ श स व ग रहते ; जैसे-म , कोयल, मछली, पकली आ ।

ग पहचान – नश के पी , ई या आवट आनी’ ‘आइन’ ‘ता’ ‘इन’ आ


लगा होता , वे ग होते - बोली या, थकावट, महारानी, पं ताइन, ता,
धो न आ । के ग समझने व बताने क नाई न होती । ईकारांत
श , आकारांत श , उकारांत श ।

पु ग य ग
ल्लिं
लिं
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लिं
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हों
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रू
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क्खी
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ड़ी
रू
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यों
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हीं
छि
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त्र
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दि
पु ई
ल का ई
नर ई
कटोरा ई
बेटा ई
सुत आ पु
छा आ ल
आचा आ
खाट ईया
बंदर ईया
चूहा ईया
बू ईया

आइन या आनी लगाकर

पु ग ग

पं त पं ताइन
ठाकुर ठकुराइन
चौधरी चौधराइन
चौबे चौबाइन

कुछ स व अलग प 

माता – ता

भाई – बहने

गाय – बैल

वर – वधू

ल्लिं
लिं
स्त्री
त्र
त्री
डि
डि
ढ़ा
ड़
ड़
त्र
की
र्य
दै
पि
रू
ससुर – सास

न– षी।

ब क

1. ग कारक त 

(i) सं का

(ii) भाषा का

(iii) शेषण का

(iv) या का

2. ग के तने कार होते 



(i) तीन

(ii) दो

(iii) चार

(iv) इन से कोई न

इन से पु गश 

(i) बकरी

(ii) गाय

(iii) स

(iv) शेर

4. बाबू का गश 

(i) बाबूआनी

(ii) बबुआइन

(iii) बाबूनी

(iv) बनूआइन
लिं
लिं
ल्लिं
लिं
वि
हु
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में
वि
वि
भैं
क्रि
ज्ञा
ल्पी
में
वि
वि
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स्त्री
प्र
दु
श्न
प्र
ब्द
त्व
हीं
है
ब्द
है
है
हैं
5. ‘शीशा’ और ‘प त’ श उदाहरण 

(i) ग के

(ii) पु ग के

(iii) नपुंसक ग के

(iv) इन से कोई न

6. ग तथा पु ग एक समान रहता 



(i) 

(ii) ता

(iii) धानमं 

(iv) गधा

7. डॉ रश आता 

(i) ग प 

(ii) पु ग प 

(iii) दो समान प 

(iv) इन से कोई न

रा प श 

(i) पु ग

(ii) ग

(iii) उभय ग

(iv) इन से कोई न

उ र-

1. (i)

2. (ii)

3. (iv)

4. (ii)

5. (ii)

ल्लिं
ल्लिं
ल्लिं
लिं
लिं
लिं
लिं
लिं
लिं
ल्लिं
त्त
ष्ट्र
स्त्री
स्त्री
चि
स्त्री
पि
स्त्री
प्र
क्ट
ति
ड़ा
नों
में
में
में
में
ब्द
रू
त्री
रू
ब्द
है
में
में
र्व
रू
हीं
हीं
हीं
है
में
ब्द
में
हैं
है
6. (iii)

7. (ii)

8. (iii)
CBSE Class 7 Hindi Grammar मुहाव
एवं
जो वा श अपने सामा अ को छो कर सी शेष अ को कट करता , वह
मुहावरा कहलाता ।

दी भाषा मुहाव का योग भाषा को सुंदर, भावशाली, सं तथा सरल बनाने
के ए या जाता । वे वा श होते । इनका योग करते समय इनका शा क
अ न लेकर शेष अ या जाता । ये ग, वचन और या के अनुसार वा
यु होते ।

नीचे कुछ च त मुहाव ए जा र

1. आँ ख का तारा ( ब त रा) – ओज अपने माता- ता आँ का तारा ।


2. आकाश-पाताल एक करना ( ब त अ क य करना) – णव ने
आई०ए०एस० परी सफलता पाने के ए आकाश-पाताल एक कर
या।
3. अंधे लक (असहाय का एकमा सहारा) – वण कुमार अपने
माता- ता अंधे लक थे।
4. आग-बबूला होना ( अ त होना) – पे का जाने खबर सुनकर आग-
बबूला हो गए।
5. ट से ट बजाना (न - करना) – भारतीय वायु सेना ने श ट से ट
बजा दी।
6. ईद का चाँद होना ( ब त के बाद लना) – नेहा तो आजकल न र न
आती वह तो ईद का चाँद हो गई ।
7. कलई खुलना (रह खुलना) – पु स ने जब सेठ धनीराम के पार पर छापा
मारा तो उसके कारोबार कलई खुल गई।
8. कान भरना (चुगली करना) – मंथरा हमेशा कैकेयी के कान भरती रहती थी।
हिं
लिं
प्र
दि
ईं
र्थ
लि
क्त
की
पि
क्यां
ईं
कि
प्र
में
की
हैं
ड़ी
वि
लि
की
स्य
है
हु
रों
की
ष्ट
है
हु
ति
क्षा
प्या
र्थ
भ्र
क्रो
की
रे
न्य
लि
दि
ष्ट
में
प्र
व्य
दि
धि
नों
ड़ी
क्ति
क्यां
र्थ
हु
है
लि
हे
स्व
धि
है
हैं
मि
ड़
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ड़
प्र
त्र
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लि
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टे
प्र
प्र
वि
पि
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की
प्र
क्रि
र्थ
त्रु
व्या
क्षि
की
खों
प्त
प्र
ईं
ज़
ईं
हीं
है
है
ब्दि
क्यों
रे
में
9. खून का सा ( जान लेने पर उता ) – संप बँटवा सम ने दो
भाइ को एक- स के खून का सा बना या।
10. नौ-दो रह होना ( भाग जाना) – गाँववा को खते ही चोर नौ-दो रह हो
गए।
11. कानाफूसी करना ( धी -धी बात करना) – अ का जी के क से बाहर
जाते ही ब ने आपस कानाफूसी शु कर दी।
12. चंपत होना ( भाग जाना) – सारा ध पीकर चंपत हो गई।
13. ए -चोटी का जोर लगाना ( पूरा जोर लगाना) – क थम आने के ए
ए -चोटी का जोर लगा रहा ।
14. मुँह पानी आना ( लालच पैदा होना) – रसगु को खकर मे मुँह पानी
भर आता ।
15. हवा से बा करना ( ब त ते दौ ना) – बाबा भारती का घो हवा से बा
करता था।
16. अगर-मगर करना (टाल-मटोल करना) – माँ ने आयुष से प ने के ए कहा तो
वह अगर-मगर करने लगा।
17. काम तमाम करना ( मार डालना) – शेर ने कुछ ही प रन का काम तमाम
कर या।
18. बाट खना ( ती करना) – हम सब मु अ बाट ख र ।
19. ल खाना (क ना) – ह कभी भी अप का लन खाना चा ए।
20. बाल बाँका न होना (जरा भी नुकसान न होना) – इतनी ब टना के बाद भी
चालक का बाल भी बाँका न आ।
21. कान पकना (ऊब जाना) – पलक बा सुन-सुनकर मे कान पक गए ।
22. लोहा लेना (डटकर मुकाबला करना) – राणा ताप ने अकबर से डटकर लोहा
या।
23. कमर कसना ( तैयार होना) – भारतीय सेना हर संकट के ए कमर कसे रहती

24. आँ धूल कना ( धोखा ना) – पु स आँ धूल क चोर भाग
गया।
दि
लि
है
ड़ी
ड़ी
खों
में
यों
दि
दे
ग्या
दु
में
प्या
है
तें
च्चों
प्र
झों
ष्ट
क्षा
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रे
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ध्या
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मैं
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पि
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लों
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खों
रे
क्षा
दे
की
में
ड़ी
रे
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हीं
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ढ़
हि
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दुर्घ
दे
दु
स्या
झों
रे
लि
क्षा
हे
ग्या
हैं
में
हि
नों
हैं
तें
लि
25. घो बेचकर सोना ( त होकर सोना) – परी ओं के बाद घो
बेचकर सोते ।
26. छ ना ( बुरी तरह हराना) – भारतीय सै ने यु के मैदान श के
छ ए।
27. क न र पर बाँधना ( मृ के ए तैयार रहना) – शभ श र के
ए हमेशा क न र बाँधे रहते ।
28. कुआँ खोदना ( हा प चाना) – जो स के ए कुआँ खोदता वह उस
यं ब जाता ।
29. गु -गोबर करना ( बना बनाया काम गा ना) – तुमने आकर बने-बनाए काम
को गु गोबर कर या ।
30.
31. छठी का ध याद आना (घबरा जाना) – इस महँ गाई ने लो को छठी का ध
याद करवा रखा ।
32. खीर होना ( क न काम करना) – आठ थम आना खीर ।
33. आकाश से बा करना ( ब त ऊँचा होना) – प आकाश से बा करते ।
34. अँगुली पर नचाना ( वश करना) – आजकल याँ अपने म को अँगुली पर
नचाती ।
35. आँ खुलना (होश आना) – परी कट आते ही छा आँ खुल जाती

लोको याँ

लोक अ त् सामा जन रा कही गई उ लोको कहलाती । लोको का


शा कअ -लोक उ या कथन। इसे ‘कहावत’ भी कहते । ये तं
वा होते ।

1. अ ब या स ( काम बु से होता , ताकत से न ) – एक पहलवान इस


सम को हल न कर सका, परंतु उस कम र ने तनी आसानी से
हल कर या।
लि
स्व
टे
हैं
ढ़ी
ड़
क्के
क्के
क्ल
फ़
क्य
ड़े
ब्दि
खें
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दू
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क्षा
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क्ति
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खें
द्या
है
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क्षा
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ड़े
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दू
स्व
क्ति
त्र
2. अब पछताए होत , जब याँ चुग ग खेत (समय गु रने पर पछताना
) – खा फेल होने पर ब त पछताई य मेहनत कर लेती तो अव
पास हो जाती। पर अब पछताए होत जब याँ चुग गई खेत ।
3. अं काना राजा ( मू थो नी) – पू गाँव मदन ही थो प खा
, बस वही अं काना राजा ।
4. आँ ख का अंधा नाम नयन सुख ( अ के परीत नाम) – उसका नाम तो भोला
ले न वह ब -ब का कान काटता । इस ए कहा गया – आँ ख का अंधा
नाम नयन सुख।
5. उलटा चोर कोतवाल को डाँ ( यं अपराध करके स पर दोष म ना) – मेरी
ताब गंदी करने पर राम मुझे ही डाँटने लगा। ने, कहा उलटा चोर कोतवाल
को डाँ ।
6. ऊँची कान का पकवान (ऊपरी खावा) – शो केस रजत कान ब
सुंदर सामान लगे ए , मगर अंदर सभी केट माल भरा । न ऊँची कान
का पकवान वाली बात।।
7. अंत भला तो सब भला ( स काम का प णाम अ हो, वही ठीक ।) – मेरी
नौकरी तो छोटी-सी थी, अब तर हो जाने पर सब ठीक हो गया,
कहावत भी अंत भला तो सब भला।।
8. साँप भी मर जाए और लाठी भी न ( आसानी से काम हो जाना ) – के और
ज दार के झग पंच को ऐसा फैसला सुनाना चा ए साँप भी मर जाए
और लाठी भी न ।
9. एक पंथ दो काज (एक काम से दोहरा लाभ) – मुझे द र के काम से लखनऊ
जाना , वहाँ भाई साहब से भी लता जाऊँगा। एक पंथ दो काज हो जाएँ गे।
10. अंधी पीसे कु खाय ( मेहनत कोई क लाभ सी और को ले) – सुभाष
कमाई उसका बेटा जुए उ ता । इसे कहते अंधी पीसे कु खाए।
11. कंगाली आटा गीला (गरीबी और मुसीबत आना) – ह साद ने अपनी
क के वाह के एब मु ल से समान जो था। वही कल चोरी हो
गया। इसे कहते , कंगाली आटा गीला।
व्य
है
कि
फी
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धों
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में
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दु
श्य
की
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12. जाको राखे साइयाँ मा सकै न कोय ( भगवान स र करता , उसे कोई
नुकसान न प चा सकता) – ब छत से रकर भी बच गया। सच जाको
राखे साइयाँ मा सके न कोय।
13. जैसा श वैसा भेष (वातावरण के मुता क ढलना) – इस बार रोहन को नगर
जाना , ने कहा नगर सरदी ब त , वहाँ तु सूट पहनना ही प गा,
जैसा श वैसा भेष रखना प ता ।
ब क

ए गए मुहाव के उ त अ पर सही का लगाइए-



1. ब का खेल’ का अ 

(i) आसान काम

(ii) ब का खेलना

(iii) ब शैतानी

(iv) केट खेलना

2. ‘रो अटकाना’ का अ 

(i) प र कना

(ii) प र तो ना

(iii) बाधा डालना

(iv) स क बंद करना

3. हाथ मलना का अ 

(i) शोक मनाना

(ii) ब त पछताना

(iii) भाग जाना

(iv) सरल काम

4. ‘आँ खुलना’ मुहाव का अ 



(i) बेहोश होना

क्यों
दि
हु
वि
कि
क्रि
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त्थ
त्थ
च्चों
हु
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ड़े
है
च्चों
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श्री
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रे
है
र्थ
र्थ
में
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है
र्थ
र्थ
च्चा
है
ड़
हु
बि
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है
चि
गि
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जि
म्हें
र्की
क्षा
है
ड़े
है
श्री
(ii) डराना

(iii) होश आना

(iv) तैयार होना

5. ‘कान भरना’ मुहाव का अ 



(i) चुगली करना

(ii) धोखा ना

(iii) चालाक होना

(iv) शोर करना

6. ‘खरी-खोटी सुनाना’ मुहाव का अ होगा



(i) अ कहानी

(ii) नाश करना

(iii) याद रखना

(iv) भला-बुरा कहना

7. गाँठ बाँधना मुहाव का अ 



(i) भूल जाना

(ii) याद रखना

(iii) घबरा जाना

(iv) वश करना

उ र-

1. (i)

2. (iii)

3. (ii)

4. (iii)

5. (i)

6. (iv)

7. (ii)
त्त
वि
च्छी
में
दे
रे
रे
रे
र्थ
र्थ
है
है
र्थ
लाको

ब क

नीचे खी लोको के सही अ छाँटकर उन पर सही का लगाइए



1. आ बैल मुझे मार

(i) यं मुसीबत मोल लेना

(ii) बैल को अपने पास बुलाना

(iii) सी से ट जाना

(iv) इन से कोई न

2. अब पछताए होत जब याँ चुग ग खेत ,



(i) या के खेत चुनने पर अ सल न होती

(ii) सी का लन खाना चा ए

(iii) समय बीत जाने पर पछताना ।

(iv) इन से कोई न ।

3. ऊँची कान का पकवान



(i) ब कान के पकवान

(ii) कान ऊँची और पकवान कम होना

(iii) नाम अ क गुणव कम

(iv) ठाइयाँ घी होना

4. एक पंथ दो काज

(i) एक रा पर दो स 

(ii) दो लो का एक काम करने जाना

(iii) एक का से दो लाभ

(iv) इन से कोई न
हु
वि
स्व
चि
कि
कि
मि
लि
ड़े
दु
क्ति
ड़ि
ल्पी
में
में
में
दु
स्ते
गों
दु
धि
प्र
र्य
श्न
पि
दि
फी
क्ति
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हीं
हीं
हीं
क्या
हीं
यों
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त्ता
कें
दु
चि
च्छी
ड़ि
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हि
र्थ
फ़
र्थ
है
हीं
ईं
चि
ह्न
उ र-

1. (i)

2. (iii)

3. (iii)

4. (iii)
त्त

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