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स ु

अ धती सु म यम
तावना
य ह पु तक एक य क जीवन या ा या यह कहना अिधक उपयु होगा िक जीवन या ा का आ मिन वणन
ह। यह व तुतः जीवनी नह ह, जैसािक इस श द (जीवनी) से ितिथय , समय और घटना क ामािणक सूची क
उ मीद का आभास होता ह। यह उस य (स ु ) से, उनक प रिचत से मेरी बातचीत एवं ईश योग क कोयंबतूर
क पुरालेखागार म सं हीत साम ी पर आधा रत ह।
जब य आ या मक हो तो आप अप रहाय प से उ आ मिन ता क े म वेश कर जाते ह। मेरा
अिधकतर वृ ांत स ु क जीवन क ारिभक काल से जुड़ी आंत रक एवं बा घटना पर आधा रत ह। तदुपरांत
उनक िमशन से जुड़, उनक इद-िगद रहनेवाले लोग क ि कोण एवं राय पर भरोसा िकया ह।
मने कहानी म िज ासु क तौर पर अपनी वयं क या ा को भी ासंिगक यु क प म शािमल करने का िनणय
िलया। वयं को एक िम या सव कथाकार मान लेन े क थान पर यही उिचत तीत आ िक म पाठक को अपनी
हिसयत (स िहत पूवा ह एवं सीमा क साथ) का जायजा दू।ँ
कथानक क आगे बढ़ने क साथ ही यह उ रो र प होता गया िक अ य प क तौर पर भूिमका िनभाना असंभव
ही होगा। प रणाम व प कहानी क कछ िन त िबंदु पर मने जान-बूझकर वयं को अपने िह से क न एवं ित-
न पूछने क िलए थान िदया ह, िजनसे मेरा मानना ह िक अनेक पाठक भी लाभा वत ह गे।
म ईश योग क से जुड़ उन लोग क भी आभारी , िज ह ने अपनी य गत मृितय क आधार पर अपने जीवन
क गहनतम अनुभव मेर साथ बाँट। उनक उदारता, उनक ईमानदारी, उनक अंत ान क िबना इस पु तक का अ त व
म आना संभव न होता।
स ु क िवषय म तो उतने ही मत ह, िजतने लोग उ ह जानते ह और इस राह पर मेरा सामना अनेक स म
जीवनीकार से भी आ। यह पु तक स ु क जीवन एवं ईश क उदय क वृ ांत से अिधक और कछ नह ह।
संभवतः इसी िवषय पर कछ अ य पु तक भी ह गी।
म िवशेष ध यवाद ािपत करना चा गी ईश पुरालेखागार से जुड़ी माँ नाना क ित िज ह ने पूण शांतिच एवं
वाभािवक मुसकान क साथ मेर ब त से िविवध अनुरोध को लेकर सहयोगा मक ख अपनाया; वामी िचतरग एवं
वामी देवास व क ित, िज ह ने पु तक का आवरण पृ िडजाइन िकया।
सव प र म स ु क आभारी , िज ह ने इस पांडिलिप हतु मुझे पूण वतं होकर काय करने क अनुमित दी,
िववरण को िनजी तौर पर खुलकर उपल ध कराया एवं लगभग र गट खड़ कर देनेवाली सजीवता क ित िजससे वह
अपने जीवन को खुली िकताब सा छोड़ देत े ह, तािक सभी धारणा क पाठक अपने वयं क िन कष पर प च सक।
प रचय

म सोचती थी िक गु कछ और ही तरह क लोग क िलए होते ह। म अपने दंभ को अिवलंब वीकार कर लूँ। म
सोचती थी िक वे कछ िवशेष तरह क सफारी सूट पहननेवाले भारतीय पु ष एवं उनक आ ाका रणी िवन प नय क
िलए होते ह।
म सोचती थी िक वे उनक िलए होते ह, जो कमकांड क बारीिकय एवं पंिडत क औपचा रक िश ाचार क
जानकारी रखते ह, उ ह, िज ह पिव चरण म नतम तक होने और स संग म अित स नजर आने क गुर मालूम ह।
एक तर पर यह स य भी ह, िकतु म यह वीकार करती िक यह तर कछ हा या पद सा ह। म यह भी कह लूँ
िक बतौर अ वेषक (यातना और इ छा क मेर िह से क साथ) मने इस बात का पया अ ययन िकया था िक गु तभी
कट होते ह जब चेल े तैयार ह । िकतु िकसी गु क मुंबई लोकल न क सबसे यादा भीड़वाले समय म कट होने क
िकतने संयोग ह? या किवता पाठन क दौरान? या िकसी शहरी बुक टॉल या िथएटर या कफ पर उनक कट होने क
या संयोग ह? और इन बात क िकतने संयोग हो सकते ह िक एक गु मेरी खास भाषा बोले, मेर जिटल, आंत रक
भूगोल का अनुमान लगा ले— एक ही समय म मेरी मागदशन क आव यकता और मागदशक क ित घृणा, ऐसी
श दावली क मेरी आव यकता जो पिव होने क अलावा धमिनरपे भी हो? और मेरी संर क को यातनादायक म
बदल देने क िविश ता?
नह , गु आज क शहरी औरत क िलए नह होता। उनक िलए मनोिचिक सक होते ह। पु तक एवं वा ालाप होते
ह। िवटजसटीन िककगाद एवं क णमूित का दशन बघारनेवाले िम आ करते ह। गु का संबंध दूसर युग से, दूसरी
दुिनया से होता ह— एक अपे ाकत यादा साधारण दुिनया जहाँ नेतृ वकता और अनुयाियय क म य अपे ाकत
साधारण मतभेद या दू रयाँ होती ह।
तब एकमा गु िजसक छिव म िदमाग म उतार सक , वह था सफद दाढ़ीधारी और संक ण उदारता का भाव िलए
ए बी ेड क िकसी भारतीय पौरािणक िफ म म नजर आनेवाला।
मृितशेष गु अ छ होते थे। वे अपने पीछ ऐसी बात छोड़ जाते थे, जो हम उ े रत करती एवं चुनौती देती थ । यह
एक सँभालने यो य उ रदान था, िकतु जीिवत गु िवचार से पर थे या यिद दूसरी तरह से कहा जाए तो मेर पास उनक
लायक सामािजक, सां कितक एवं ऐितहािसक यो यता नह थी।
...अ त वा मक यो यताएँ? म सोचती थी िक मुझम कछ थ , बशत यिद उनका अथ अभाव था। बेचैनी, अ त-
य तता क अनुभूित, इन सबसे या होता ह जैस े न, मृ यु का अचानक होनेवाला भय जैसी बात मुझम थ और उन
अ िचकर ण म से कछ को िकसी प या यौनि या, या ा या एक िकताब या चॉकलेट क मा यम से टाला जा
सकता ह, लेिकन म जानती थी िक कछ ऐसे भी थे, िजनका समाधान नह था।
और योगी? म सोचती थी िक वे रह यमय एक ंिगय क तरह थे। लगभग पौरािणक। म सोचती थी िक वे सुदूर
िहमालय क कदरा म या आ या मक सािह य (जैसे परमहस योगानंद क ‘आटोबायो ाफ ऑफ ए योगी’) म पाए
जाते ह। म तो मा उन योिगय को जानती थी, जो तनाव कम करने एवं मधुमेह से लड़ने क बार म स ाह म दो िदन
क वचन आयोिजत करते थे।
तभी मेरी मुलाकात स ु से ई। छह वष पूव ई इस मुलाकात क बाद से मेर जीवन म अनेक प रवतन आए। एक
ऐसा ही प रवतन यह था िक योिगय का अ त व होता ह। मेरा ता पय वा तिवक योिगय से ह। मुझ े ात आ िक वे
मा शरीर को िविभ थितय म रखकर खेल-तमाशा िदखानेवाले नट नह ह या नए युग क यह दावा करनेवाले िक
उनक पास पांतरण हतु समय क कसौटी पर खरी उतरनेवाली नवीनतम तकनीक ह, िजसम साधक को
आ मसा ा कार क राह पर आमूल-चूल श दान करने क मता ह।
मने जाना िक िनवाण बु या ईसा मसीह या अ ा महादेवी या रामक ण या वे कोई भी; िज ह आराम से अंितम
साँस लेन े क प ा समािध दे दी गई—का पूण एकािधकार नह ह। मने यह जाना िक एक ऐसे य का िमलना
संभव ह, जो पूण अिधकार क साथ जीवन-मृ यु से जुड़ मु पर चचा कर सकता ह, साथ ही भोले-भाले उ साही
य क तरह मोटरसाइिकल, सलमान दी क उप यास या गो फ खेल क िवषय म बात भी कर सकता ह। एक
ऐसा य जो मन क बात जान ले, आरो य दान कर, भूत और भिव य क जीवन क िवषय म बात कर, िफर भी
तािकक, वै ािनक, जमीन से जुड़ा आ बना रह। एक ऐसा य जो कम, िनवाण एवं ाचीन आ या मक परपरा
क िवषय म तक-िवतक कर सक िफर भी उदार, ेरक एवं समकालीन बना रह।
एक वेबसाइट पर उ ह ‘ व-अनुभूित ा योगी’ एवं हमार युग क गूढ़ रह यवादी, युग ा, मानवतावादी एवं मुख
आ या मक नेता िन िपत िकया गया ह। वह सबकछ होने क अलावा और भी ब त कछ ह। स ु ईश फाउडशन
कोयंबतूर क सं थापक ह, िजसक देशभर एवं िव क अ य िह स म 100 से अिधक क ह। आज इन क म देश
क िविभ भाग , यू.एस.ए., यू.क. एवं यूरोप म करोड़ लोग ईश योग का अ यास कर रह ह। अपनी पैनी बु म ा,
व रत वा ातुय, आधुिनक श द भंडार एवं िविवध सामािजक उ े य क ित ितब ता क कारण एक अंतररा ीय
व ा क प म उनक माँग बढ़ती जा रही ह।
वह हर समारोह म अनौपचा रक बने रहते ह, चाह भारत म यान-स संग म जुड़ा हजार का जन-समूह हो या देवोस
व ड इकोनॉिमक फोरम हो। वह तिमल िकसान या बंिदय क बीच भी उतने ही सहज देख े जाते ह, िजतने संयु रा
संघ क सह ा दी शांित िशखर स मेलन म।
िकतु ये तो उनक वैय क वणन ह। इससे उनक वयं य क िवषय म ब त कम जानकारी िमलती ह। एक ऐसा
य जो रह यवादी, िकतु पराभौितकवादी नह ह। एक ानी ह िव ान नह । एक गु ह तांि क नह , एक उ िसत,
जीवंत मनु य ह, चेहर पर चमक का आवरणधारी संत नह ।
यह पु तक इस तरह क य क िवषय म ह, िजनसे िमलने क मुझ े कभी उ मीद नह थी। एक ऐसा य िज ह
म गु मानती , य िक मेरी जानकारीवाले अ य िक ही वग म उ ह नह रखा जा सकता, इसिलए मने इस संबंध को
कोई नाम देन े क कोिशश क तो िम ता को ही िनकटतम पाया, िकतु यह कवल िम ता भी नह ह।
म साधारणतः आदर, ा क भावना जािहर करने क अ य त नह , दीघकाल से म एक यथा से पीिड़त रही,
िजसे म अनाधीनता का नाम देती —सभी तरह क अिधकारी गण एवं ारपाल से असहजता और इसी से जुड़ी ह
कमजोर भावुकता एवं बड़ाई- शंसा, भाट क तरह े तम श द क योग और चरण-कमल जैसी आलंका रक भाषा
क योग क ित मेरी नापसंदगी, जो सामंती गु वादी था से संबंिधत ह। म धम क तािकक समी ा करते ए बड़ी ई
और य िप कला क ित ेम क कारण उस तािककता क हठधम पहलू नरम पड़ गए, तथािप म अभी भी अनेक मु
पर यवहार बु क बल समथक ।
उन बात क अलावा म यह वीकार कर लूँ िक उनक ित मुझम स मान जागता ह, जो मा इसिलए नह िक वह
बु मान ह ब क इसिलए िक िकतनी सहजता से वह उस बु म ा को धारण िकए ए ह। मा इसिलए नह िक
उनम स दयता ह— और वह अपने समय, देख-रख और ऊजा क ित िफजूल खच रह। अिपतु इसिलए िक वे िबना
सर क बने, िहत ाही को हीनता महसूस कराए बगैर दान करते ह। मा इसिलए नह िक उनका एक िविश
य व ह ब क इसिलए िक वह सा य से, उस बात से ब त यादा कट होता ह िजसे समकालीन सं कित
क र मा कहकर सराहती ह। इसिलए नह िक उ ह ‘मा टर’ ( वामी) माना जाता ह ब क िकसी पदवी क िलए उनसे
य होती अ वीकित क कारण इस श द (मा टर) क ित दीघकाल से चली आ रही मेरी खीझ समा हो गई।
सामा य तौर पर अभी तक म िजतने लोग से िमली , उनम वह सवािधक जीवंत मानव ह। वह सवािधक उदार भी ह
और णभर म ताकतवर को प र कत, ऊजावान को धैयशील, थूल को सू म म पांत रत कर देन े क मता रखते ह।
इससे वह मेर िलए सवािधक िविश य ह।
किवता मेर िलए मह व रखती ह। म इसक भाषा-िव यास व प रचना क क करती । यह मुझ े िव ापन क घर
म वेश करनेवाली यूह रचना से सतक करती ह, िकतु इस मामले म यह कहना कदािप गलत न होगा िक म अपने
जीवन को दो िविश चरण म बाँट सकती —स ु क पहले और स ु क बाद। म ‘बाद’ को य मह व देती
? इस िवषय म अपने िवचार य करने से पूव ‘पहले’ क िवषय म कछ बताना साथक होगा।
अ य कई लोग क तरह मने अपना ब त सा जीवन जानने क चाह रखते ए यतीत िकया और इसका अिभ ाय
िबलकल आधारभूत खोज थी—एक गु क खोज। म ऐसा कदािप नह सोचती िक मने कभी ब त यादा माँगा ह।
सव ता? नह । व तुतः मुझ े पहले ही यह भान हो चुका था िक जो सभी उ र क जानकारी रखनेवाले लगते ह वे ढ ग
करते ह। ाचार एक सश श द ह, िकतु मुझ े इसका सबसे ारिभक अनुभव िश क क बीच ही आ। कल और
िव िव ालय क ब त से िश क िज ह म जानती थी, वे इसी तर क थे। सं ेप म, िजतने भी ध स जमानेवाले मुझे
िमले वे सबसे पहले थे। िन संदेह मने भी यह खेल सीख िलया। मने उलटा खेलने क अपे ा चतुराई पूवक खेलना
सीख िलया; फ त िकतु हठी नह । य िप मने शांत या िवनीत होने का िदखावा िकया, िकतु मेरा सामना दस साल
क उ से ही कई ध िसया िक म क बहन से हो चुका था, िजससे मुझम जातं क सू मतर अथ क गहरी समझ
िवकिसत ई।
मेरा थम यवसाय—महािव ालयीन िश ण, िजससे मने दो महीने म पीछा छड़ा िलया— मुझ े उस जातं को
संचािलत करने क चुनौितय को महसूस कराने म मददगार िस आ। अपनी क रधिमता—उसक िवषय-व तु चाह
िजतनी भी उदार हो—से क ा को सं िमत करना िकतना सरल होता ह। ऐसे म म महसूस करती िक छा क िलए
एकमा यु यही ह िक वह अपनी कठोरता से ितवाद कर, तािक जीवन का शेष समय अपनी क रधिमता को
भुलाते ए िजए।
वे सव े िश क जो कभी मेरी जानकारी म आए ह, उ ह ने (और वे ब त कम थे) मुझ े य व क अनुप थित
से भािवत िकया ह (य िप तब मुझ े इसका भान नह था।) वे मागदशक एवं संर क बनने क ज ोजहद म नह थे।
ब क उ ह ने एक प , लोचदार आयाम िनिमत िकया िजसम हम यास कर सकते थे, हाथ-पैर चला सकते थे,
लड़खड़ा सकते थे और अंततः वयं को थािपत कर सकते थे।
लेिकन व तुतः म जानना या चाहती थी? वही आम बात। मृ यु, ज म, क , ांड— और सभी रह य और
आतंक को। ऐसे न िजनक कारण बु से पूव और बु क बाद से येक युवा अपनी या ा शु कर तब तक
चलता रहा जब तक िक औपचा रक और सांस रक ान (िश ा) ने उसका यान भंग नह कर िदया। जो कछ भी मने
कल और िव िव ालय से सीखा उनम से कछ भी उन न को संबोिधत करता तीत नह आ ब क इस िश ा ने
तो ऐसे ब त से अ य न खड़ कर िदए। और इ ह न ने ब त लंब े समय तक मुझ े उलझाकर य त रखा।
िकतु कह न कह पुराने न यथाव बने रह और मुझ े करदते रह और यही न ह, िज ह ने शायद ब त से अ य
लोग क तरह मुझ े मानवीय िव ान और आगे चलकर िवशेष प से सािह य क अ ययन हतु े रत िकया। कला ही
एक ऐसा े था, िजसम जीवन क अथ क िवषय म भटकना सुिवधाजनक तीत आ। अ य हर े म न से स से
यादा ितबंिधत महसूस ए। बड़ी िविच बात ह िक जहाँ से स चचा उदारतावाद को दशाती थी, वह न क चचा
लगभग पातक या अधािमक क य म प रवितत हो गई थी।
अ त वा मक या ा या तो राख-लपेट कभ मेल े म िवराजे साधु (मेज पर सजनेवाली सिच पु तक म जो सदा से
पाए जाते ह) का पयाय लगने लगती ह या चमचमाती लंबी कार म सवार रोले स घड़ी चमकानेवाले तांि क का।
अपने मा टस से संबंध िव छद करने तक मने महसूस िकया िक जहाँ कमकांड मन को भटकानेवाले थे, वह मेर िदमाग
म अभी भी ऐसे न मँडराते थे, िजनक उ र मा िश ा-शा से ा नह िकए जा सकते। मने महसूस िकया िक
वा तिवक बात से संघष करने हतु रचना मक लेखन हमेशा से ही मेर यादा करीब रहा। मेरी वजात वृि मुझे इसका
आभास िदलाती थी।
आकषक ान वा ा (िजसे एक अिभलाषी युवा िश ाशा ी क प म म तेजी से अपनाना सीख रही थी।) पर मेरा
अिव ास करना सही था। कम से कम किवता म बौ कता क अपे ा कछ अिधक स िहत ह। ऐसा लगता था िक
इससे मन का अपे ाकत अिधक िव तार य होता था एवं सव प र प से अटकने क िलए, संदेह क िलए, कने क
िलए, मौन क िलए, आयाम िनिमत करती थी।
लंब े समय तक मने यह महसूस िकया िक इस मनोभाव ने मुझ े िटकाऊ आधार िदया। मने जादू इस तरह देखा, जैसे
पक यथाथ होकर, संपूण हो गया, जैसे अमूत और मूत, िवचार और मनोभाव, करीब आकर अपृथक हो गए ह । मुझे
महसूस आ िक यह सब और दशन म मेरी िच पया ह। एक लेखक क हिसयत से भीड़भाड़ वाले शहर म
रचना मक िम से िघरकर रहना, कला क िवषय पर लेखन कर अपनी आजीिवका कमाना चुनौती भरा जीवन था।
म जानती थी िक जैसी िजंदगी म चाहती था (रोमांचकारी, अिन त, सं कित-िवरोधी) वैसी िजंदगी मेरी थी, िकतु यही
पया नह था।
1997 म कछ िनणया मक सा घिटत आ—कछ शांत िकतु अपने आप म अ यंत मह वपूण। म नेपाल से स ाह भर
क आरामदायक छ ी िबताकर न से लौट रही थी। दुिनया भी अपनी पटरी पर चल रही थी या ायः िजतना पाया
जाता ह उसक अपे ा कछ भी बुरा महसूस नह हो रहा था। और तभी एक ि या शु ई जो कई िदन तक चलती
रही। म मरने लगी—शारी रक प से नह । म िकसी बीमारी से उबर नह रही थी, न ही बीमार हो रही थी, मानिसक
प से भी नह । म अवसाद त नह थी और मने अपने िह से क िवपरीत प र थितयाँ भी झेली ह, िजससे म जानती
थी िक यह िचरप रिचत उतार-चढ़ाव क थित भी नह ह। िकतु मुझ े मालूम था िक मेरी मौत हो रही थी। यह प था।
घर लौटकर मने अपने साथी और अपनी िब य को परछाई क तरह असार प म प रवितत होते ए देखा। मने उन
सभी ल ह िज ह मने मू यवान आँका था—िवजय, उ ास, यहाँ तक िक ोध भी—को खोखला होते ए देखा। मने
धीर-धीर वयं को आशाहीन होते ए देखा। मुझ े अपने िदन- ितिदन क जीवन क लालसा ई—भुला दी गई
िख ता क पुराने हार क भी। म इस आशा क साथ िब तर पर लेट जाती थी िक अगली सुबह थितयाँ बदल
जाएँगी, और जागकर पाती थी िक मेरा शरीर मुरदे जैसी अि मता से कठोर पड़ा आ ह। िफर भी म इतनी जीवंत थी
िजतनी पहले कभी नह थी और जो कछ हो रहा था, उसे भयंकर रह यमयता से िनहारती रहती।
सबसे बुरी थित यह थी िक भाषा मेरा साथ छोड़ रही थी। जो चल रहा था उसे य करने क िलए म श द क
तलाश करती, िकतु वे मेर बोध से दूर जा िछटकते। म अपनी सामा य अव था म लौटने हतु ाथना करने क अित र
कछ नह कर सकती थी, िकतु ऐसा करते ए भी मुझ े हलक सी जानकारी थी िक जो कछ चल रहा था, वह उससे भी
यादा वा तिवक ह जो मने कभी जाना था। अपने ास- छवास को आते-जाते देखना अब कोई किठन आ या मक
तप महसूस नह आ; यह एक ण से दूसर ण म जाने क एकमा िविध थी।
यह अनुभव िटकाऊ नह रहा। जब मने उस चरण से बाहर आना ारभ िकया तो एक तरह क शांित थी। यह लंबी
बीमारी क प ा पुनः वा य ा क शांित थी। सबकछ खो चुकने एवं यह जानने िक अब खोने को कछ रहा नह
क बाद क शांित थी। भले ही मने बड़ आराम से इस अनुभव को घटते ए देखा, िकतु म जानती थी िक जो मुझे याद
था वह मह वपूण था। मौत से इस िविच मुठभेड़ क साथ उस चीज क एक प तसवीर उभरी, जो िक सचमुच
मह वपूण थी।
पु तक, ेम, या ा एवं कला सभी कछ ब त अ छ थे, िकतु जो सचमुच पते क बात थी, जो अब म जानती थी,
वह यही हो सकती थी; मृ यु का अथ समझना और इसी ि या म संभवतः जीवन क अथ को भी समझना।
म बेशक भूल गई। वह अनुभव मेरी मृित म िछप गया और इसक ती ता को मने असहजता क यव थत तर तक
सँभालकर रख िलया। यह जब-तब मुझ े छड़ता रहता ह, िकतु पहले क तरह इसने कभी भी मेर जीवन को अ त- य त
नह िकया। मने िनरतर गलती करना जारी रखा, उतनी ही मा ा म म रोज, ई या, अपया ता और दुःख क भाव म
रही। िकतु इस राह पर एक िन त बदलाव आया। मेरी ाथिमक तौर पर वयं क प रभाषा या पहचान किव क जगह
साधक हो गई और इसीिलए मेर अ ययन म एक नई उ ेजना आ गई। पराभौितक अब पया नह रही। अब मुझे
रह यवािदय क आवाज क खोज रहने लगी। सूली क संत जॉन से लेकर रामक ण तक, क णमूित से रमण महिष
तक, िनसगद महाराज से लेकर मेइ टर ए हाट एवं अ य तक। मुझे कथानक दुब ध लगने लगे, इसिलए उप यास को
मने ठड ब ते म डाल िदया। किवता अहम रही, िकतु सीिमत महसूस ई। मने तय िकया िक यिद यह मुझ े वयं को
जानने का गहन माग था तो यह पया गहन नह था। र क, टीव स और ने दा िकसी िन त िबंद ु तक तु ह ले जा
सकते ह, िकतु अपने सभी गुण व सदाचार क कारण वे एक ही राह क अ वेषक थे। मुझ े िकसी आ तक क अंधी
िन तता क आव यकता नह थी। न ही मुझ े िकसी किटब संशयवादी क सुिवधाजनक अिन तता क
आव यकता थी। मुझ े िकसी जानकार क सुबोधता क आव यकता थी। मुझ े कोई िद गज (प र थितय क साँचे म
ढला, दबंग) ही चािहए था। एक समय क बाद अ ययन भी अपया लगने लगा।
मने महसूस िकया िक िजसक मुझे आव यकता थी वह था एक जीता-जागता मागदशक, िजसे यह जानकारी हो िक
या ा पर चल पड़ना कसा होता ह। या ा जो य ही अचानक होने क अपे ा होशो-हवास म जीते-जागते तािकक मन क
पर क िठकान वाले गंत य क हो। वह कोई ऐसा होता िजसे अंदर क आयाम क िवषय म िकसी िच कार या
वै ािनक से यादा ान हो। मुझ े मालूम था िक मेर अनुभव को य करनेवाले दजन िविभ तािकक समाधान थे।
िकतु म जानती थी िक उस घटना क रह य को न तो तक छ सकता था न ही कला। वे (तक एवं कला) खालीपन क
उस नीरव आयाम म वेश भी नह कर सकते थे। कवल वे ही लोग जो उस मायावी िवधान क मेरी समझ क मुतािबक
या या कर पाते, वे रह यवादी ही होते िकतु या ऐसे लोग का अ त व मेरी दुिनया म था?
म दि ण मुंबई म रहनेवाले एक थानीय वेदांती (एक सेवािनवृत बक कमचारी) क घर िनयिमत जाने लगी। उसने
बड़-बड़ दावे करने क बजाए कवल एक साधारण अनुभव क खोज क बार म बताया िक उसे य ही अ यासपूवक
ा ई थी। ‘म कता नह ।’ उसक साथ ई मुलाकात सहायक िस ई। म उस य का अ यिधक स मान
करती थी। उसक ि कोण क सुबोधता िनतांत प थी। लेिकन अब मेरी अपनी या ा का सवाल था। हरक बात जो
उसने कही, बौ क तर पर खरी उतरती थी िकतु मने यह महसूस करना शु कर िदया था िक मेर वयं क िव तृत
छोर थे, जो बौ क तर से पर थे।
अनेक आधुिनक साधक क तरह मने भी बौ धम क ित लंब े समय तक िनकटता महसूस क और िवपासना
यान आजमाने का िनणय िलया। मने दस िदन क मौन पा य म को तीन िदन म ही छोड़ िदया। जहाँ आ म-
अवलोकन हतु साँस पर यान कि त करने क धारणा सही लगी वह मने महसूस िकया िक म इस तर क तप या हतु
तैयार नह थी। म यह समझकर इससे अलग हो गई िक कमी पा य म म नह ब क वयं मुझ म थी। जो िदमाग म
था, वह अभी भी गले नह उतरा था। इसक प ा मने लोकि य ि यायोग भी शु िकया। यह भी मददगार िस
आ। इससे ऊजा क नए तर एवं व थता का संचार आ, िकतु शी ही एक गितरोध उप थत हो गया।
मुझ े वह मागदशन नह िमला िजसक मुझे तलाश थी। यह िवरोधाभासी था। मुझ े ेणीब सं था (अिध म) क ित
वयं क अिव ास का भान था, जो िक मेरी कठोर बौ क धृ ता थी। साथ ही मुझ े िकसी ऐसे य से मागदशन
क आव यकता थी िजसका म िव ास कर सकती। यह दोहरा बंधन था। साथ ही मने तय िकया िक अब ब त हो
गया। म अपनी िवपरीत इ छा म खुद को उलझा रही थी। इसक समाधान यिद कोई थे (और म तथा अ य य ,
इसे जानते थे) तो वे मेर अंदर ही पाए जाने थे। हाँ, अ छा ही होता यिद यह आ म ( व) कम य त और जीण-शीण
रहता, यिद यह अिधक शांत थान होता। िकतु अपने अंतरमन म इलेवेटर यूिजक एवं एयर शनर क खोज िनरथक
थी। म सुरब होने नह जा रही थी। म प र थित क अनु प समायोिजत नह हो पाती थी और न ही कभी होऊगी। म
अिड़यल थी, बस। यह अपनी किमय को वीकार करक समझौता करने का समय था।
तभी, मई 2004 म म स ु क स संग म शािमल ई।
उस शाम, जब मने दि ण िद ी म ोताकथा म वेश िकया तो मुझे कछ खास उ मीद नह थ । िकतु म उ सुक
थी। मने पहली ही पं म, आ स सटर (जहाँ म कायरत थी) क अपने कछ सहकिमय क साथ थान हण िकया।
कछ वष पूव मने पूर चे ई म लगे उस य क पो टर देख े थे िजसम सफद दाढ़ी लहराते ए उस य को
बड़ आकषक अंदाज म आकाश क ओर िनहारते िदखाया गया था। उसक शी बाद मेरी माँ ने स संग म भाग िलया
था और उ ह ने मुझे बताया िक वह काफ भािवत ई थ । िकतु उनक (माँ) ारा अनुमोिदत क ई उनक (स ु )
पु तक ‘इनकाउटर द इनलाइटड’ मने पढ़ी तो म इस िन कष पर प ची िक वे इतने खे और दंभी ह िक म उ ह पसंद
नह कर सकती। रिववार क समाचार-प क पूरक पि का (स लीमट) म छपी मोटरसाइिकल पर सवार उनक तसवीर
देखकर मुझ े यक न हो गया था िक वह ब त पु षोिचत (िदखावेवाले) य ह।
मने वयं से कहा िक मेर आ या मक िश क म तो ये कछ योिचत िवशेषता होनी चािहए, भले ही वह संयोगवश
पु ष क प म ज मा हो।
उस शाम क स संग का यादा संग तो मुझे याद नह ह, िकतु म मं मु ध थी। उनक बात बड़ी अथपूण थ । वे बात
सीधे उस तर से संबंिधत थ जहाँ म थी। िजस ढग से वे बात कही गई उनसे म और यादा आक ई।
उनक शैली औपचा रकता, संकोच क अभाव क साथ-साथ ंथ क उ रण से मु थी। यह बोधग य, गंभीर
िकतु िवनोदि य व भावुकताहीन शैली थी। यह प था िक व ा पंथानुगामी नह था और ा व अनुयाियय क
माँग नह कर रहा था।
माइक क सामने सहजतापूवक बैठ इस य से उसक ढ़ प वािदता, उसक शु क िवनोदि यता व मानवीय
सहानुभूित क सम वय, जोिक उसक अिभ य से कट होता था; से म हत भ रह गई थी। उसक बार म कछ बात
िचर-प रिचत सी लग । मुझ े याद ह िक तब म सोचने लगी थी िक उनसे जुड़ सकती । मुझ े पता ह िक वह कहाँ से
आते ह। वह मेर िम भी हो सकते ह। एक ऐसे िम , िजनसे म ब त कछ सीख सकती और शायद इसी कारण वह
एक िश क भी बन पड़ते ह, जो समानतावाद को समझते ह, जो दंभी नजर नह आते और सबसे मह वपूण बात यह ह
िक जो एक ऐसे य क तरह नजर आते ह िजनका म िव ास कर सकती ।
मुझ े उनक संबोधन का जातांि क ख, रह यपूण को रह यमय बनाने से उनका इनकार, भौितक और आ या मक,
अपिव और पिव म कोई भेद देखने से उनका इनकार िवशेष प से पसंद आया।
‘‘ येक मानव आ या मक ह। तु हार सम एकमा िवक प यही ह िक तुम जान-बूझकर या िबना जाने-समझे
आ या मक बनो। तुम अपनी आँख खोलकर चलना चाहते हो या मूँदकर? न यही ह।’’
और एक ऐसा ढग था उनक पास िजससे वह हमारा यान हमार रोजमरा क जीवन क जादुई प रवतन क ओर
ख चते थे। वह ि या, उदाहरण क िलए, िजसक मा यम से य कला खाकर उसे अपने वयं का भाग बना लेन े म
स म था। िकतु यह चम कार जैसा िक उ ह ने बताया, अब भी अचेतन था। यिद तुम सचेत होकर कले को मनु य बना
देते हो तो तुम वयं सृि कता बन जाते हो। वह हम ऐसी राह क ओर ले जाने का आमं ण दे रह थे जो मजबूरी से
पसंद, आदतन से सचेत, गैर-जाग कता से जाग कता क ओर ले जाती ह। इसम िखंचाव था। यादा मह वपूण बात
यह ह िक जो वह बोलते उसक वह जानकार तीत हो रह थे।
बाद म मने िस टर िनवेिदता क वामी िववेकानंद से ई ारिभक मुलाकात क िवषय म िलखी गई पं को याद
िकया... ‘‘मने देखा िक उनम तुत करने क िलए एक िवचार णाली थी, िफर भी यिद वह पाते िक स य का माग
कह और जाता था तो एक ण म ही वह उस िवचार णाली से अपृथक हो जाते थे।’’
उनका ता पय या था यह म जानती थी। अपने संशयवाद क कारण, स यिन ता जब मेरी राह पर आई तो मने उसे
पहचान िलया। उस स ाहांत म मने दो िदवसीय इनर इजीिनय रग ो ाम हतु अपना नामांकन करा िलया।
दो िदवसीय काय म क अंत म मने वयं को इस िविच आकित (जो िक पगड़ी-शॉल धारणकर, दाढ़ी लहराते ए
समय क घुमड़ती धुंध से बाहर आते से लगे।) क ओर चलकर जाता आ पाया, और कछ बेढगे तौर से मने उनसे
पूछा िक या हम कॉफ पीने क िलए िमल सकते ह? उ ह ने मेरी ओर भावहीनतापूवक देखा और सुझाया िक िसतंबर
म म आ म आकर उनसे िमलूँ।
उस शाम मने अपनी माँ को फोन पर बताया, ‘‘मुझ े गु िमल गया ह।’’ श द का प अभी भी प रवितत था, मेरा
ि कोण अब भी बहका-सा था।
चार महीने बाद म आ म प ची। कॉफ तो नह ई, वा ालाप आ। अगले कछ महीन क दौरान वही बातचीत
गहराती गई। पाँच वष एवं कई काय म क प ा वह (बातचीत) और गहरी हो गई।
उ ह स ु कहते अभी भी मुझे परशानी होती ह। समारोहा मक नामकरण से म असहज महसूस करती । िकतु मेर
मन म उनक गु होने क ित तिनक भी संदेह नह ह। एक बात और ह िक उस श द से मुझे कोई परशानी नह ह। यह
एक िववरण से अिधक नह जान पड़ता; एक ऐसा य िजसे आंत रक जीवन क ि यािविधय का गूढ़ ान हो और
जो यह जानता हो िक कसे और कब दूसर क आंत रक जीवन म भी ज री श यि या संबंधी छड़छाड़ करनी ह। यह
ान सै ांितक नह ह। स ु यह वीकारने म िबलकल नह िझझकते िक आ या मक तौर पर वह एक अिशि त
वामी (मा टर) ह, िज ह ने योग पर आधा रत कोई ंथ पूणता से नह पढ़ा। उ ह अपने अंत ान क िलए ंथ क
स यापन क ज रत नह ह। वह कहते ह िक उनक अपने आंत रक अनुभव ने उ ह कभी असफल नह िकया ह।
म हमेशा से ही भावुक बात एवं उ साह, अिभवादन इ यािद, जो िश य होने क अंग माने जाते ह, क ित असहज
रही । िकतु मने यह भी महसूस िकया ह िक इसका कछ भाग स ी भावना से े रत होता ह। वयं गु ने ऐसे िकसी
समपण क माँग कभी नह क । ब क वह व-सश करण क राह िदखाते ह, जो िक समय क कसौटी पर खरी
उतरी राह ह, (और वह समय-समय पर यही दुहराते ह) जो तु ह तु हार भा य का वामी बना सकती ह। एक बार जब
मने उनसे पूछा िक उ ह ने व- ितबंध क क य (जो मुझ े अभी भी यादा ही महसूस होते ह) को सहन य िकया जैसे
िक कछ यानी पादुकाएँ पहनाने म उनक मदद करते ह तो उ ह ने जवाब िदया िक कवल देत े ही रहना और ा न
करना अभ ता ह। कछ लोग क िलए यह पारप रक सां कितक अिभ य ह। इसम आभार का ब त गहरा भाव ह
िजसे वे य करना चाहते ह। दान करनेवाले क िलए इसका अपना एक अिभ ाय ह और इसे म हटाना नह चाहता।
ईश योग म भावुकता बाहरी थान रखती ह और मने वे तरीक देख े ह िजनम भावुक लचीलेपन को ो सािहत िकया
जाता ह। गु क ित ेम सदा प और आ या मक चम कार का श शाली ोत होता ह। िकतु ईश योग क
अ यािसय को भ न कहकर यानी कहा जाना अथहीन नह ह। कभी-कभी वयं उ ह ने ही िश य ारा गु क ित
रखी गई अितरिजत भावाना क िवषय म सामा य श द म कहा ह, ‘‘यह एक पौधे क तरह ह जो भावना मक एवं
मानिसक प से जल क इ छा नह करता। यिद वहाँ एक बूँद भी पानी ह तो जड़ इस तक अपनी प च बना लेती ह।
इसम कोई भावुकता नह ह। इसम कोई मन नह ह। यह एक अलग िक म क बौ कता ह...यह तो जीवन क वयं
क ित लालसा ह।’’
योग साधना का माग ह िजसम सम वत एवं अ यवसायी अ यास ह, इसम िफर भी कोई आ म-अितरजन नह होता
ह।
स ु यह वीकार करते ह िक िकसी जीवंत गु क उप थित म ब त कछ हो सकता ह। सही तर क ा ता ही
इसक एक मा आव यकता ह।
उनक सा य म वतः होनेवाले पांतरण क सा ी होने और उनक अनुभूित क बाद अब मुझ े उनक स यता क
ित संदेह नह ह। एक बार उ ह ने गु को जीता जागता— माग का मानिच िन िपत िकया था और उसी छिव से म
सबसे यादा जुड़ी ई । वह न तो कोई उ रािधकार ा पैतृक मसीहा ह, न िकसी आ या मक संगठन क चुनाव म
चयिनत काड धारक ब क वह एक मानिच , एक रा ता ह िजस पर अपनी मंिजल ा करने क उ सुक हजार या ी
या ा करक अपने पदिच छोड़ सकते ह।
म अब भी वयं को िवषम चतुभुज सा महसूस करती । िकतु अपनी िवषमता से अब म यादा परशान नह ।
अब ऐसा लगता ह िक जीने क और भी आयाम ह। और इस दुिनया म इन किमय क िलए अपे ाकत यादा थान ह
और मुझे मालूम ह िक अपने मन क आरामदायक, िकतु सीिमत थान से बाहर िनकलकर अपने दय क समीप यादा
खुलेपनवाले थान क ओर या ा शु करने क िलए मुझ े वयं म पया ऊजा महसूस होती ह (य िप वयं स ु मेर
इस मन से दय क या ा माग को अ यिधक िघसी-िपटी बात कहकर खा रज कर देत े ह।) िफर भी वहाँ प चने से म
काफ दूर । िकतु इस मंिजल क िदशा म यास करना साथक महसूस होता ह और संभवतः यह िठकाना तो ह, िकतु
यह अपे ाकत अिधक ामािणक महसूस होता ह। अभी भी िदमाग (मन) वह जगह ह, जहाँ म अपना ब त सा जीवन
यतीत करती लेिकन मुझ े आशा ह िक इसम उ िठकाने म िनवास करने से अपे ाकत ब त कम िनिहत वाथ ह।
मुझ े अभी भी गलतफहिमयाँ ह, जो उठती ह, समा हो जाती ह और पुनः उठ जाती ह। उदाहरण क िलए सं थागत
आ या मकता क ित म असहज रहती । ऐसे वयंसेवी जन जो नए-नए धमातरण करक आए लोग जैसा ं ालु
होने का उ साह कट करते ह, मुझ े उनसे असहजता महसूस होती ह। बाजारीकरण क तरक ब (य िप य अ य कह
क अपे ा ईश म ब त कम ह।) से मुझ े असहजता महसूस होती ह। िकतु हर बार जब म गु जी से िमलती तो मेरी
दोहरी मानिसकता समा हो जाती ह। भले ही ईश क से नए-नए जुड़नेवाले और यानी (म भी) सतत िवकास ि या
म ह, लेिकन समय-समय पर मौिलकतापूवक वह मुझ े े रत करते ह। इस ि या म कोई शोर-गुल नह ह, कोई
सहानुभूित कट करनेवाले तिकयाकलाम नह ह, कोई भीड़भाड़ वाली यावसाियक आ या मकता नह ह। उनक
उप थित क गितशीलता एवं नीरवता ही ह िजस पर म वाभािवक प से भरोसा करती ।
एक बार उ ह ने मुझ े बताया, ‘‘यह िबलकल गलत धारणा ह िक कछ करने क िलए जोश और उ ेजना चािहए। मा
ु चीज ही मुकाम पाने क िलए गरम (उ सािहत) हो उठती ह। म तो एक ठडी आग । अ त व इसी तरह काय
करता ह। यह ठडा िकतु रचना मक होता ह।
अ त व म पाई जानेवाली वा तिवक बड़ी चीज कभी भी गरम नह होत । तुम सृजनकता का ही उदाहरण ले लो। तुम
ज मते हो, तुम मरते हो, वह दोन म से िकसी भी अव था म सू म ही बना रहता ह।’’
िकतु उनसे बातचीत क दौरान म हमेशा ही काफ उ सािहत रहती । म जानती िक दूसर यह महसूस करते ह।
ऐसा महसूस होता ह िक उनक ती ता सं ामक ह। िकसी ने एक बार कहा, ‘‘वह फा ट फॉवड गु ह।’’ मुझ े तो ऐसा
महसूस होता ह िक वह एक श - ोत से सीधे संबंध का ितिनिध व करते ह, िजसम जुड़ने से बड़ा साथक भाव
उ प होता ह।
या मेरा यह िव ास ह िक गु का िद यता (दैव ता) से हाटलाइनवाला सीधा संपक होता ह? यह बात बड़ी
हा या पद लगती ह िक आ या मक जीवन कछ चुिनंदा लोग का पूव संचय धन ह। स ु ने भी कभी ऐसा कोई दावा
नह िकया।
व तु थित इसक ठीक िवपरीत ह। ऐसे म जुड़ने क (गु से) आव यकता ही या ह? मने हमेशा से ही ‘स ु
सं मण’ का िव ेषण करने का यास िकया ह। स ु क करीब होने पर मुझ े एवं अ य लोग को जीवंतता क
पराका ा जो महसूस होती ह, उसक या वजह ह?
या इसे म उनका य व समझू?ँ िकतु िजन य व से म प रिचत रही , उनसे उनक अह क बू आती ह,
िजससे म एक अंतराल क बाद उनसे ऊब जाती तो या यह उनक बु म ा ह? िकतु म तो उनसे (स ु से)
यादा त य क सं ह िकए ए एवं उनसे बड़ बौ क िद गज से िमल चुक और कदािच ऐसे कई और लोग से
िमलना चाहती रही। अंततः म इस िन कष पर प ची िक साधारणतः यह उनक उप थित ही ह—एक नैसिगक, घनीभूत
एवं अबािधत सबकछ वही होने का भाव। हम इसे एक ऐसी उप थित क प म पहचानते ह जो तब कट होती ह जब
हम अपने सभी आवरण , अपनी कायसूिचय , अपनी वयं क दुबलता क ित पुरातनकालीन भय से छटकारा पा
लेते ह।
जैसािक रमण महिष क एक प मी िश य ने उनक िवषय म कहा था, ‘‘एक ऐसा शरीर िजससे ई र चंडता
पूवक कट हो रहा ह।’’ इसका या अथ ह, यक नन मुझ े नह मालूम था िकतु वष पूव जब मने इसे पढ़ा तो यह स य
महसूस होता था। मेरा ऐसा अनुमान था िक ऐसा य मेर सम उप थत होगा तो म उसे पहचान लूँगी। और जब
समय आया तो मेरा अनुमान सही िस आ। मुझे लगता ह िक ऐसे समय ही मौिलक भाव कट होता ह। आप जानते
ह, तभी आपको वा तिवक चीज ा होती ह, भले ही इसका अिभ ाय आपने पहले ही समझ िलया हो।
यह पु तक उस आ य क भाव को आपस म बाँटने का यास ह, जो इन वष क दौरान स ु क सा य म
ा होता रहा। यादा आधारभूत प से कह तो यह एक ब त ही असाधारण य क कहानी सुनाने का यास ह।
ऐसा ब त कछ ह जो उ ह ‘असाधारण’ िन िपत करता ह। उदाहरण क तौर पर उनक जीवन गाथा को ही ल जो
ायः िव ास करने क हद ही पार कर देती ह। (यिद कोई िव ास करता ह तो इसिलए िक वह य (स ु ) वयं
ही इस िवषय म उदासीन ह।) उ ह ने बड़ा अ ुत एवं श शाली ऊजा प— यानिलंग—िनिमत िकया ह जो
ितिदन दुिनयाभर क हजार साधक क आकषण का क बन गया ह। उ ह ने पांतरण यान पा य म का लेखन
िकया ह जो दुिनयाभर क अ यािसय क जीवन म हलचल उ प करता ह, उ ह िबखेरता ह एवं लगभग गहराई तक ले
जाता ह और गूढ़तम तरीक से उसम (जीवन म) बदलाव लाता ह।
अ य कई लोग क तरह मेर िलए भी वह गु ह, िकतु मुझ समेत उन सभी लोग क िलए िज ह ने इस श द (गु )
क ित पूणतः य संशय सँजोकर रखा ह, यह पु तक एक लुभावने, समकालीन रह यवादी एवं जो यादा मह वपूण
ह—एक िनतांत मानवीय पु ष का िच ण तुत करगी।
एक िदन िकसी ने मुझसे पूछा, ‘गु िमल गया ह।’ का व तुतः ता पय या होता ह? मने उसे बताया िक म तो अभी
भी यह जानने का यास कर रही । िकतु कछ-कछ यह जानने जैसा ह िक अथ हतु मनु य क चीखने क उ र म—
जैसा कमस ने कहा—दुिनया क चु पी अनुिचत नह ह।
मने एक और खोज क ह िक य क जीवन म गु का थान अिधकारी क तरह नह होना चािहए। म जानती
िक कई लोग गु -िश य क संबंध को लगभग म यकालीन युग क पदानु िमक प म समझते ह, जबिक गु क ित
गहन आदर और ेम से वाभािवक प से एक िव ास उ प होता ह जो िक सीखने क िकसी भी ि या हतु
मह वपूण ह। मेर िलए यह जानना भी मनोहारी था िक य गु क साथ अनौपचा रक संबंध, उनक ित स मान को
थोड़ा भी खोए बगैर रख सकता ह!
जो वह कहते ह, या म उन सबसे सहमत होती ? आ या मक मु पर तो म कतक नह करती। िकतु अ य
मु पर उ ह छड़ने म मुझे मजा आता ह। उ ह ने मुझ े मुंबई का तीका मक बौ क एवं ‘कला क दुिनया का एक
आदशवादी’ संबोिधत िकया ह, िजससे उनका ता पय, जैसा िक मुझ े मालूम ह, ण या कमजोर उदारतावादी ह। कभी-
कभी तो वह इस बात को इतने अ छ तरीक से भी नह कहते। मुझ े लगता ह िक मेरा यवहार अपे ाकत कम ही खा
रहा ह, य िप मने उ ह ायः यह बताया ह िक वह प रवतनीय एवं िनरकश ह। िकतु मुझ े तक अ छ लगते ह और म
एक ऐसे मागदशक को पाकर कत जो इतने स म ह िक अपने ित अ वीकित क अनुमित भी देते ह। गैर-
आलोचना मक आ ापालन या हामी भरना मेर िलए सहज नह ह और इसक िबना म िकतना भी यास क ; िनरतर
हष मत रहनेवाल क वग म म शािमल नह हो सकती थी।
एक बार मने स ु से बाइबल क इस गूढ़ पं क िवषय म पूछा—‘िकतु ब त से लोग बुलाए जाते ह और ब त
कम लोग को चुना नह जाता।’ मने तक िदया िक यह तो ब त अनुिचत और गैर- जातंि क ह। वयं क ित
रह यवादी ान कछक लोग तक सीिमत य रहना चािहए? हर िकसी को य नह चुना जाना चािहए? मुझ े उनका
उ र प प से याद ह। उ ह ने जवाब िदया—‘‘ऐसा कहा जाना यादा सही ह, ब त से लोग बुलाए जाते ह िकतु
ब त कम लोग चुनते ह।’’
और ऐसे सभी लोग, जो गु को करोड़ मूख लोग पर शासन करनेवाला समझते ह, उ ह यह मरण कर लेना
उपयोगी होगा िक यह य , अपने से पूव अनेक रह यवािदय क तरह, आपसे अनुसरण करने क िलए नह कहता।
वह आपसे ती ा करने क िलए नह कहता। वह आपसे आपक तािककता का याग करने क िलए नह कहता। वह
आ ापालन क िलए नह कहता। वह मा यता या िव ास क िलए नह कहता। वह सामा य प से आपको चुनने क
िलए कहता ह।
माग का जीवंत मानिच अब भी उपल ध ह और पसंद अभी भी मौजूद ह।
‘शु जाग कता एवं उ म ता’
या ा का आरभ
य िद आप कोयंबतूर एयरपोट क ‘बैगेज मे ’ से अपना असबाब ले रह ह तो आपको दाई ओर ‘ईश’ िलखा आ
एक ट सी काउटर नजर आएगा। वहाँ से तीस िकलोमीटर क या ा क िलए आप ट सी िकराए पर ले सकते ह, जो िक
डढ़ घंट म आपको आपक गंत य तक प चा देगी। हालाँिक कोयंबतूर क कछ यादा िनभ क ट सी ाइवर उससे पहले
भी आपको वहाँ प चा सकते ह।
ट सी या ा क थम भाग म आप शहर क दुकान और साइिकल सवार , ल जरी कार और इधर-उधर घूमती गाय
क हलचल क बीच से गुजरते ह। कोयंबतूर एक समृ शहर होने क साथ-साथ दि ण का एक मुख औ ोिगक क
ह और वािण यक कारोबार क यहाँ ब त भरमार ह। नोयल नदी क तट पर थत उ र और प म िदशा से पवत
से िघरा, नम जलवायु क उपल धता क साथ (य िप भीड़भाड़ का तर बढ़ रहा ह) यह अब भी आकषक शहर ह।
लेिकन शनैः-शनैः आप पाएँगे िक आपक ट सी शहर क सड़क से अलग बढ़ रही ह। अब आप प म क ओर
बढ़ रह ह। अब आप ामीण दि ण भारतीय े म वेश कर रह ह। अब आप गाँव क म य से गुजर रह ह। रा ते
अपे ाकत संकर, भू-भाग हर-भर होते जाते ह और अचानक सामने क ओर आगे पवत—वेलािगरी पवत, िज ह ‘ ेत’
और ‘ पहले’ पवत भी कहते ह, भी आपको नजर आने लगते ह, जो वना छािदत, रह यमय और बादल को छते से
लगते ह। अचानक नीरवता महसूस होती ह।
अब कार का इिजन पहले क अपे ा अिधक शोरगुल करता महसूस होता ह। आपको कल से घर लौटते ए
ामीण ब े का िच ाना, बकरी का िमिमयाना, नजदीक से गुजरती मोटर-कार क भ पू क आवाज सुनाई पड़ती ह।
नीरवता पवतीय हवा क एकमा सुगंध क तरह बोधग य बनी रहती ह। तभी आप एक बोड क करीब से गुजरते ह जो
आपको बताता ह िक अब आप अपने गंत य से कछ ही िकलोमीटर क फासले पर ह।
कार एक धूल-धूस रत गली म वेश करती ह। यहाँ इसक गित िहचकोले लेत े ए धीमी रहती ह। िनरतर वषा क
वजह से िनिमत बड़-बड़ ग वाला रा ता एवं सूखे कठोर क चड़ क पं याँ पीछ छटती जाती ह। ट सी ाइवर
धीर-धीर सीटी बजाता रहता ह, लेिकन परशान नजर नह आता। कार क यूिजक िस टम पर बजता िफ मी भ मय
गीत अपने पूर उ साह म चलता रहता ह। अंततः आप अपनी मंिजल पर आ प चते ह।
एक सुर ा गाड आपसे आपक आने का उ े य पूछते ए आपको आगंतुक का लेबल पकड़ाता ह। यिद आप
भारत म अ य आ म म जा चुक ह तो उनक और इस आ म क बनावट क अंतर से आ यचिकत रह जाते ह। यहाँ
तप ह िकतु अका पिनक कमकांड का अभाव ह। स दय िवषयक चीज म खूबसूरती से जमे प थर, लकिड़याँ अ य
सामान ह, िजन पर िविभ िववरण अंिकत ह। आप पाते ह िक हरक च ान, झाड़ी और वृ अपनी नैसिगक थित म
ह। कछ भी फालतू सा नह ह, कछ भी कि म नह ह। इस छलहीनता म कोई छल नह ह। येक मोड़ पर पवत
आपको मरण कराते ह िक आप नीरव अर य से िकतनी कम दूरी पर ह।
यिद आपने अपना कॉटज आरि त करा रखा ह तो संभव ह, सबसे पहले आप वहाँ जाकर, अपने बैग जमाकर, या ा
क थकावट िमटाएँगे। िकतु शायद आप अधीर ह। ब तेर क तरह आपक या ा का उ े य भी वही रह यमय पूजा
थल ह िजसक िवषय म आपने इतना कछ सुन रखा ह। शायद आपक िम ने आपको इसक िवषय म बताया हो।
शायद इटरनेट म आपको यह य ही िमल गया हो। शायद ब तेर क तरह आपने भी इसे पहले कभी व न म देखा हो।
िकतु आपको यह मालूम ह िक आपको वहाँ जाने क आव यकता ह और ाथिमकता क आधार पर शी ही।
आपको अपने ल य तक प चने क पूव कमकांड से जुड़ी एक प र मा पूरी करनी पड़ती ह। आप अपने जूते-च पल
एक टॉल म रख देते ह और तभी आपक भट एक वयंसेवी से होती ह जो आपको आगे होनेवाले अनुभव क िवषय म
जानकारी देता ह। आप पूजा थल क चार ओर घूमना शु कर देते ह।
लेिकन वेश से पूव आपक यिद इ छा हो तो आप मंिदर क तालाब म कमकांडी ान कर सकते ह। िकतु आपको
यह बताया जाता ह िक यह मा आनु ािनक सफाई नह ह। तीथ कड जमीन क 35 फट नीचे एक भूिमगत तालाब ह
िजसका जल ठोस िकए गए पार (िजसे प तौर पर रास वै यौिगक ि या से संभव बनाया गया ह) से ऊजातरिगत
िकया जाता ह। इसका प रणाम मनोवै ािनक एवं शारी रक तौर पर उतना ही लाभप होता ह िजतना ा ता क एक
उ अव था से। य ही आप बाहर आते ह आप तरिगत एवं ऊजाशील महसूस करते ह। लेिकन यिद आप इसक ित
सशंिकत ह तो आप ठड जल से ान क प ा क भाव से यादा कछ भी महसूस नह करते। िफर भी यह थल
वातावरणीय ह। ाकितक रग से िनिमत िवशाल िभि िच , आंत रक छत व चार ओर क सुस त दीवार से ित ा
व मौन वैभव का भाव िनिमत होता ह। याशा का दाव जा होने लगता ह।
आपका अगला पड़ाव हाल ही म िनिमत िलंग भैरवी क मंिदर पर होता ह। वह वह िनवास करनेवाली देवी ह िजनक
िवषय म आपको पता चलता ह िक वह चंड संवेदनामय और उ ह। वह एक छोट एवं जीवंत थल पर िनवासरत ह,
जोिक प र मा क दि ण-पूव म ह। उनका िनवास थल अंतरग, उनका रग आग क लपट सा लाल, सुलगते कोयले
सा काला ह। इस थल का पूण बंधन िसंदूरी रग क साड़ी पहने पुजा रन क हाथ म होता ह, वहाँ पु ष प रचारक
प तौर पर अनुप थत रहते ह। मूितपूजा क त धकारी दशन से आप वयं को असहज महसूस कर सकते ह। यहाँ
िन य ही गायन एवं ना रयल फोड़ने का म जारी रहता ह। िकतु आपका यान इस बात पर जाए िबना नह रह
सकता िक इन कमकांड म प रसीमन एवं उ क ता ह। हर तरफ आकषण व लुभावनेपन क सा य ह— दीवार पर,
कपड़ पर, मूित क सामा य सुडौलता पर और आपक ारा इसक खूबसूरती क सराहना िकया जाना संभव ह, भले
ही आप इसक िलए वा तिवक उ साह न जुटा पाएँ। चुपक से आप वयं को अपनी कोई म त माँगते ए पा सकते ह
(आिखर वह एक वरदान देनेवाली देवी क प म जानी जाती ह और आपको ऐसी देिवय क नजर म अ छा बने रहना
उिचत तीत हो सकता ह, जो सभी आ या मक परपरा क अनुसार चंचलिच बताई जाती ह।) य ही आप वहाँ से
जाते ह, देवी क हीराजिड़त आँख जो आपक ओर टकटक लगाकर देख रही थ , आपक पीछ आती महसूस होती ह।
आप आगे बढ़ते ह और वयं को मु य मंिदर क दरवाजे क ओर बढ़ता पाते ह। देखने म यह एक नाटक य ण
महसूस होता ह। आप अंडाकार गुंबद को धुंध से ढक, वेिलआंिगरी पवत क सामने पाते ह। बाद म आपको मालूम होता
ह िक यह गुंबद पूरी तरह से ईट एवं गार से (सीमट, छड़ व क ट क योग िबना) िनिमत ह। वेश ार पर एक
सवधम तंभ थािपत ह, िजस पर िविवध आ था क ंथीय तीक िनिमत ह। यह याद िदलाता ह—अनुपािलत मौन
क अलावा िक जहाँ आप वेश करने जा रह ह वह सामा य िहदू मंिदर जैसा नह ह। आप तीन खड़ी िचकनी सीिढ़याँ
चढ़ते ह। अब आप कछ दूरी तक खुल े थल पर चलते ह िजसम दोन ओर प थर क पैनल ह, िजन पर दि ण भारतीय
रह यवादी संत क जीवन क य उ क ण ह। यह पैदल पथ प तौर पर, यह उ सुकता बढ़ाने क िलए परपरागत
पिव थाप यकला क अनु प िनिमत ह। यह उ े य पूरा भी होता ह।
अब यह आपक ऊपर ह। दीपक क िहलते-डलते काश से ि गत यह थल बाहर से िजतना महसूस होता ह,
उससे भी बड़ा ह। आप अपने सामने 13 फट ऊचे ठोस ेनाइट का कॉलम खड़ा पाते ह, इसक एकदम काली सतह
पर ताँबे क साथ वलय समिमता पूवक लगाए गए ह। इसका ( तंभ का) आधार थल सात कडिलय वाले प थर क
िवशाल सप का प धारण कर लेता ह। इसक चार ओर सामा य जल क सीमा ह, िजस पर तेल क दीपक से िघर
पु प नीरवता पूवक लािवत ह। यिद आप आधुिनक भारत क पूजा थल म कभी गए ह तो आप यहाँ क िदखावे क
अभाव से आ य चिकत रह जाएँग।े यह थान शांत, आडबररिहत, िबलकल गभ सरीखा; म ययुगीन काल जैसा ह।
आप छायादार आल म से एक क नजदीक से गुजरते ए यान िलंग क ा ता हतु बैठ जाते ह।
यान िलंग का ता पय अलग-अलग लोग क िलए अलग-अलग ह। कछ लोग क िलए यह भु क सा ा अवतरण
से कह कम नह ह। वे िककत यिवमूढ़ एवं उ म होकर बाहर आते ह। कछ लोग क िलए यह एक थल न होकर
एक ि या ह—गहनकारी, सुबोधकारी, घनीभूतकारी। वे िजस तरह िव ए थे, उसक अपे ा प तौर पर िभ
महसूस करते ए बाहर आते ह। उनक चार ओर शांत और मन एवं शरीर क ि याकलाप क ित अपे ाकत अिधक
जाग कता उनम पाई जाती ह। कछ कहते ह िक उ ह ने सबकछ सामा य ही महसूस िकया और िफर भी उनक कछ
िमनट क आभास बाहर आने पर घंट म प रवितत हो जाते ह। लगभग सभी यह वीकारते ह िक उ ह ने प र कत एवं
िविश अनुभव िकया।
शा ीय संगीत गाियका सुधा रघुनाथन कहती ह, ‘‘यह अनुभव मेर िलए मेर ज री समय पर ई र क आशीवाद क
तरह ा आ।’’ िमिशगन से आए एक आगंतुक का कहना ह, ‘व तुतः म अ यासपूण यान म चला गया था, यान
िजसे म वष से करना चाह रहा था लेिकन मुझ े मालूम ही नह था िक कसे िकया जाए।’’ पंजाब क एक सेवािनवृत
यवसायी का कहना ह, ‘‘यहाँ मुझ े अभी तक का सबसे िविच अनुभव आ। देशभर म म ब त से श थल म जा
चुका , िकतु एक भी ऐसा नह िमला जहाँ इस तरह क ऊजा तरिगत होती ह।’’ जमनी क एक आगंतुक ने कहा, ‘‘म
मन म िचंता का भंवरजाल िलए अंदर गया। िकतु जब म अंदर प चा तो वे िचंताएँ काफर हो गई। ऐसा लगा िक
कोई उ ह (िचंता को) मुझसे दूर ले जा रहा ह और म चैन क साँस ले रहा था।’’ एक लेबनानी यानकता ने बताया,
‘‘मुझे ऐसा लगा मानो मेरा गु मुझ े िमल गया हो, जो हमेशा मेर साथ रहगा, जो खुलकर ेम से और िबना प पात क
मुझ े कपा दान करता रहगा।’’ कनाडा क एक कल िश क ने कहा, ‘‘म ायः मन म ऐसी शंकाएँ िलए इस थान म
वेश करता िक म कर या रहा ? कह म यहाँ आकर अपनी भौितक िज मेदा रय से तो क ी नह काट रहा?
िकतु हर बार जब म यानिलंग क उप थित म बैठता तो वे शंकाएँ ख म हो जाती ह। म समझता िक य म यहाँ
।’’ एक युवती इस बात को यादा प ता क साथ य करती ह, ‘‘यह मेरा सबसे स ा िम बन चुका ह।’’
कछ ऐसे भी ह जो यह वीकार करते ह िक उनक आने क पूव ही ि या ारभ हो जाती ह। उ ह यानिलंग क
तसवीर का आक मक दीदार हो जाता ह िजससे भावना मक रोमांच व बा यकारी उ सुकता पैदा होती ह। ऐसा कभी-
कभी उनक साथ भी आ लगता ह िज ह पहले आ या मक जीवन का कोई अनुभव नह था।
या उस ितमा से कछ पूवज कि क फिटत होता ह? या उससे अचेतन मन म िचरतन व प का यु र
उ प होता ह? या यह सम त अनुभव क िनिम तैयार िकया गया नाटक मा ह, िजससे चालबाजी क जाती ह?
आिखर यानिलंग ह या?
इनक उ र न पूछनेवाल क अनु प िविवध होते ह। इशा क क तािकक य व से ‘यही उ र ा होगा िक
यह यान हतु एक उपकरण ह।’ कछ अपे ाकत यादा भ मय लोग इसे ‘िशव’ कहगे।
अंततः आपको कछ ऐसा ही प रणाम िमलेगा। आपको मालूम होगा िक संपूण पृ वी पर यह यानिलंग अपने आप म
एकमा ही ह। आप जानगे िक इसक ती ऊजा े म बैठना िकसी जीवंत गु क सा य म बैठने जैसा ह। आपको
ात होगा िक यह ऊजा का िचरतन, अिवनाशी, अन र एवं पृ वी क न होने क बावजूद अ त वान रहनेवाला ोत
ह। ऐसे म यानिलंग एक जीवंत, पंदनशील उप थित ह, न िक िशला क एक संरचना मा । वेश ार पर एक
वयंसेवी आपको बताता ह िक यिद आप इसक ेनाइट रचना को समा भी कर द तो िलंग क भावका रता बरकरार
रहती ह। िकतु यिद इस संरचना को रखा गया ह तो इसक एकमा वजह यह ह िक यादातर साधक को वयं को उस
ऊजा से जोड़ने क िलए मूत प क आव यकता पड़ती ह।
म य देश क भोजपुर म ऐसे ही यानिलंग क एक म यकालीन ितमूित ह जो आप देख सकते ह, िकतु इसक
संपूण होने से पहले ही इसे िव िपत कर िदया गया। और इसी कारण यह यानिलंग (इशा क ) अपने आप म एक
महािस , एक उपल ध ह िजसे आसानी से उनक ारा नह परखा जा सकता जो आ या मक िव ान क इितहास से
अनिभ ह।
और आप यह सोच सकते ह िक आिखर िलंग ही य ? िन संदेह िलंग िहदु व क िलंग पूजा से करीब से संबंिधत ह।
यक नन ऐसा ही ह, और इसक ित कोई मा ाथ होने का भाव वयंसेवी (आपको जानकारी देनेवाला) म नह ह।
िकतु वह आपको बतलाता ह िक यह उस (िलंग पूजा) से कह बढ़कर ह। अंडाकार आकित व तुतः एक आधारभूत
प ह। आधुिनक िव ान भी यही बतलाता ह िक येक आकाशगंगा (गैले सी) का क ीय भाग अंडाकित म ह।
िविभ परपरा से जुड ़ आ या मक ािनय को हमेशा से यह ान रहा ह िक यह िनराकार (या शू य, या ारिभक
अव था को आप जो भी कह) से कट होनेवाला थम व प ह। एवं समा क पूव का अंितम प भी यही ह।
और इसिलए िलंग-रचना क तकनीक काफ ाचीन ह, जो दुिनया क कई सं कितय म प र करण क अनेक तर
पर पाई जाती ह। इसम उ तर क आ या मक िविश ता क आव यकता होती ह। िकतु यानिलंग िनिमत करने क
िव ान म एक तरीय शौय क आव यकता होती ह, जो िक कह यादा िवचारणीय ह। इसम सदाचारी या कलामय
होने से भी अिधक क आव यकता होती ह। आपको यह बताया जाता ह िक इसक िलए चंड किटब ता एवं
दु साहस क आव यकता होती ह। इस ( यानिलंग िनमाण) क मामले म अपने जीवन को एक से अिधक बार दाँव पर
लगाने क शत वीकारनी पड़ी।
यानिलंग क जीवन गाथा बताने क कई तरीक ह। िकतु इनम से िकसी भी तरीक म इसक रचियता क जीवन को
अलग नह िकया जा सकता। उनक जीवन गाथा का वणन करने क भी कई तरीक ह। उनम से एक ब त ही खा
वणन ह िजससे िकसी भी शंकालु को असहजता महसूस हो सकती ह। दूसरा तरीका अपे ाकत अिधक उदार
समसामियक ह िजसम त य अस यापनीय ह, िकतु इनम ानवधक िववरण ह।
यानिलंग क रचियता पक ेमी ह। एक बार जब एक ब े ने उनसे पूछा िक जीवन स य ह या व न, तो उ ह ने
बड़ी सहजता से िवरोधाभासपूवक जवाब िदया, ‘‘जीवन एक व न ह, िकतु व न स ा ह।’’ वह किवता पाठ एवं
रचना करते ह िकतु मा यानिलंग ही पया सबूत ह िक वह किव ह। वह त य एवं स य क म य भेद क ओर बार-
बार यान आकिषत करते ह। यह ऐसा भेद ह िजसे येक कला ेमी ब त अ छी तरह जानता ह। बेहतरीन उप यास एवं
किवता प प से का य का े ह। यह इस कहानी से गैरतािकक को बिह कत करने क िहसा मक क य क तरह
महसूस होता ह।
इसक अलावा यानिलंग क रचियता संशयवादी भी ह। उनक तािककता अ यंत कट एवं आ या मक माग पर
उनक छल क ित अमा यता खरी एवं ती ण हो सकती ह। इससे उनक कहानी क अपे ाकत अिधक अिव सनीय
पहलु पर िव ास करना यादा सरल हो जाता ह। यिद पाठक व तु थित क लय, िजसक मा यम से इनम से कई
घटनाएँ बताई गई ह, को सुन सकते ह तो शायद उ ह वीकारना अपे ाकत आसान हो जाएगा।
आइए, इस कहानी क शु आत एक िवक प से क जाए। अगला अ याय इस कहानी क संभािवत शु आत ह।
िकतु एकमा नह । जो इसे पचाने म किठनाई महसूस करते ह, वे सामा य प से उसक बाद वाले अ याय म बढ़
सकते ह और वहाँ से कथानक चुन सकते ह।
स य या त य। वा तिवक या ऐितहािसक। पसंद आपक ह। िकतु एक चेतावनी ह। कहानी क अनेक मोड़ म दोन
कदािप िभ नह ह। इस गूढ़ सम वय (एक कजी भी िजसक पाठक इस कहानी से अपे ा कर सकता ह) म, एक
अंत ान क ा उसी तरह करनी ह जैसा िक एक बार यानिलंग क रचियता ने अपनी रचना म बताया। उ ह ने कहा,
‘‘यह शु जाग कता एवं िवि ता का सम वय ह।’’
और शायद यह उतना ही सही िववरण ह, िजतना आप वयं स ु से ा कर सकते ह।

‘ऊपर िगरना’
तीन जीवन
िन निलिखत कहानी स ु ने कई बार सुनाई ह।
लगभग 400 वष पूव रायगढ़ िजला (अब म य देश) म िब वा नामक एक य रहता था। वह ऊची कद-
काठीवाला गठीले शरीर का य था। वह िनभ क था एवं अपने जीवन से ब त यार करता था। उसक सपेरा
जनजाित क लोग उसे िविच एवं अपरपरावादी मानते थे। वह िशव का भ होने क साथ-साथ िव ोही एवं िनयम को
तोड़नेवाला था। जब वह चलता था तो इतना गव झलकता था मानो धरती उसे उ रािधकार म िमली हो। इससे कई लोग
को ब त बुरा लगता था। इस उ म उसका यह रौब सभी को िचढ़ पैदा करनेवाला एवं अटपटा लगता था। अपने एक
खास अंदाज म म त उसे ऐसा लगता था िक िजस दुिनया म वह रह रहा ह, वह उसक अनुकल नह ह।
उसने शांभवी नामक एक ा ण लड़क से ेम कर जाित िनयम क ध याँ उड़ा द । यह एक अपशकनकारी
थित थी। त कालीन जाित यव था का कानून कठोर एवं अ य था। लेिकन िब वा म होश क अपे ा जोश अिधक
था। ितबंिधत ेम क दु प रणाम से अपने वंश क र ा करने क िलए उसने उ ह संबलपुर (आज उड़ीसा) ले जाना तय
िकया। सुर ा कारण क अित र उस क बे क िनकट थत मु े र देवता क ित अगाध ा भी इस िनणय क
पीछ एक कारण थी।
दोन ेमी लुक-िछपकर िब वा क जानकारीवाले खेत एवं जंगल म िमला करते थे। िकतु उनक संबंध यादा समय
तक िछपे नह रह सक। शांभवी क िबरादरी वाल को शी ही इस बात का पता चल गया और पहाड़ टट पड़ा। गाली-
गलौज व धमिकय का िब वा पर कोई असर नह आ। वह अपनी ेयसी क साथ भाग जाने क सािजश रचने लगा।
उसक आयु मा 27 वष क थी, जब य अपने जीवन क उ साह काल म होता ह, और उसे कोई भय नह
यापता।
अंततः शांभवी क प रजन ने उसक चाचा क नेतृ व म व थानीय शासक क मदद लेकर उस युवा को
पकड़ने क िलए जाल िबछाया। पूणमासी क चाँदनी रात थी। दोन ेिमय ने जंगल म चोरी-िछपे मुलाकात क योजना
बना रखी थी। अनजाने म िब वा उनक जाल म फस गया। इसक पहले िक कछ समझ पाता, वह चार ओर से िघर
गया और उसे बंदी बना िलया गया।
उसे एक पेड़ से बाँधकर एक साँप को उस पर छोड़ िदया गया। साँप का जहर उसक नस म दौड़ा और उसका खून
जमने लगा। दद बढ़ता गया। उसक फफड़ िसकड़ते गए। िकतु अपने ताड़क को अपनी शमसार करनेवाली मौत का
नजारा देखकर खुश न होने देन े का िन य करक, िब वा ने अपनी साँस पर नजर रखना शु कर िदया। साँस भारी
होने पर भी वह उ ह आते-जाते देखता रहा और उसक अंितम साँस क बारी आ गई। िकतु जो मौत बबरतापूवक
होनेवाली थी, वह एक सुखद िनगमन हो गई। उसने पूर होशो-हवास म अपना शरीर याग िदया था।
वही जाग कता अगले ज म म उसे एक आ या मक अिभलाषी क प म वापस ले आई। उसक आ या मक
साधना जहर क भाव म आ गई थी। उस जहर से उसक आ या मक अ यास को पैनापन, लगभग-िवि सी
अ यमन कता ा ई जो उससे कभी भी अलग होनेवाली नह थी। िशवयोगी किठन तप क मा यम से उ तरीय
यौिगक वीणता हािसल करते थे। उसने एक तेलुगुभाषी प रवार से आकर, अपने जीवन म एक मणशील साधु क प
म दूर-दूर तक या ा क । देश म किटब साधक क समयिन परपरा क अंतगत उ ह ने भयंकर भुखमरी और
किठनाई का जीवन िजया। उनका अिधकतर समय वेिलयांिगरी पवत म बीता, जहाँ दि ण क अनेक ानी रह। उनक
यौिगक कला क कारण उ ह समिपत अनुयायी िमले। बड़ी-बड़ी िस य पर उनका अिधकार था, िकतु उ ह वयं
क किमय का अहसास था।
इस बात से वह शिमदा थे िक जैसा लोग ने उ ह समझ रखा था, वह वैस े नह थे। वह जानते थे िक जब तक उ ह
अंितम ल य ा नह हो जाता, तब तक वह छ वेशी से यादा कछ नह थे। स ु इस दौर को क दायी व
दयिवदारक तप बतलाते ह।
एक िदन जब योगी पवत म अपनी धूनी रमाए थे, एक घूमता-िफरता साधु आकर उनक बगल म क गया। यह ी
पलानी वामी थे, कोयंबतूर क दि ण पहाड़ी म रहनेवाले महा ानी संत। उनका यह नाम इसिलए था, य िक उ ह ने
पलाना क बे म ढाई साल समािध थ अव था म िबताए थे। तभी से उ ह ने तिमल क ामीण े म मण कर ब त से
आ या मक साधक को मागदशन देत े ए अपना समय िबताया था। पलानी वामी ने शी ही िशवयोगी क लालसा क
चंडता एवं यथा पहचान ली। अगले कदम पर गु ारा छड़छाड़ िकए जाने क ही आव यकता थी। वह जानते थे
िक यह अगला कदम ही िन कषकारी िस होगा; यु क अंतहीन प रमंडल म सीधा िगरना।
िकतु िशवयोगी िशव क भ एवं वयं पर गव करनेवाले य थे। वह जानते थे िक िशव को छोड़ िकसी और क
हाथ से आ या मक छड़छाड़ िकए जाने को वह वीकार नह करगे, इसिलए पलानी वामी स दयतापूवक आिद योगी
क प म उनक सम कट ए। िशव योगी ने वयं को उ ह समिपत कर िदया, तदुपरांत पलानी वामी ने अपना
स टा उठाया और साधक क माथे पर रख िदया। त ण िशवयोगी उस अव था को ा हो गए िजसक जीवनभर उ ह
तलाश रही। आ म ान का ादुभाव आ।
गु चुपचाप अपने रा ते चल पड़। गु और िश य क म य एक श द भी बातचीत नह ई। कोई शपथ नह ली गई,
जीवनभर वफादारी क कसम नह खाई गई। उस सि मुलाकात क बाद उ ह कभी नह िमलना था। िकतु िशवयोगी
उस मुलाकात क वसीयत को कभी नह भूल।े पलानी वामी क स ट क पश से वह मु हो गए थे। िकतु अपने वयं
क िविच ढग से, इस पश से वे बंधन म भी आ गए थे। इससे एक साधक क प म वे अपने अंितम गंत य तक
प च गए थे। िकतु इसी ण उनम एक बीज पड़ गया था, जो उ ह बतौर गु उनक या ा क शु आत को दशाता ह।
इससे उ ह यह िज मेदारी िमल गई िजसे वह अपने जीवन काल म पूरी करते रहगे।
वह बीज उनक पूव क असं य योिगय का व न था। यह एक ऐसे पिव प क िनमाण का फॉमूला था िजससे न
कवल ऊचे तर क आ या मक ब क मानवता क ब त बड़ वग मु ह गे। यह सभी को मु िदलाने का सू था।
यानिलंग क कहानी यह से ारभ होती ह।
जहाँ एक ओर इस िवशाल काय क िलए चुना जाना एक स मान था, वह दूसरी ओर यह एक साहिसक याशा थी।
कई अ य लोग इस पर अपने हाथ आजमाकर असफल हो चुक थे। यानिलंग एक यौिगक उप म था जो ऐितहािसक
प से दुःखद प रणामवाला महसूस होता था। इसक िनमाण म आदिमय और औरत ारा दीघ एवं घनीभूत
आ या मक अ यास म भागीदारी करना शािमल था—एक ऐसी थित जो सदा से इतनी अपारप रक ह िक सामािजक
समझ या अनुमित क अनुकल नह हो सकती। वे िज ह ने ज दबाजी म यह काय करने का यास िकया ह, दुःखांत क
िशकार ए ह। िकतु पलानी वामी क अनु ह क कारण िशवयोगी क असफलता का न ही नह उठता था। वह
जानते थे िक यिद वह असफल होते ह तो उ ह पुनः शु आत करनी पड़गी। इस िमशन को यागना इसका िवक प नह
था।
अपने जीवनकाल म अपने गु क व न को साकार करने का िशवयोगी का िमशन असफल हो गया। स ावन वष
क आयु म उनका देहावसान हो गया। िफर भी वह िमशन िटका रहा।
बीसव शता दी क ारिभक काल म िशवयोगी वापस आ गए। अब वह दि ण भारतीय रह यवादी स ु ी ा
थे। वह भी तेलुगुभाषी प रवार से थे और अपने िचढ़ानेवाले तौर-तरीक एवं अ यिधक समवेदना क िलए िव यात थे।
दि णी भारत भर म अनेकानेक आ म आम आदमी क ा क तौर पर इस उ वभाववाले िकतु आ यजनक प
से ि य रह यवादी क िलए बने ए ह।
एक समय जब स ु कनूर क आ म (आज भी िस कॉरडाइट फ टरी क सामने) म रहते थे, तब उ ह ने
ि िटश शासन क उन ितबंध क िखलाफत क िजद क थी िजसक तहत नजदीक क रलवे टशन म रलपटरी पार
करना ितबंिधत था। यह िनयम खासतौर पर तीय िव यु क दौरान कठोर था। िकतु वे इससे डगमगाए नह । जब
उ ह इस अपराध क िलए िगर तार िकया गया तो वे सीधे जेल क ार से बाहर आकर वापस अपने आ म लौट गए।
उसक बाद कछ खास नह िकया जा सका। खबर फल गई और नीलिग रज े देखते-ही-देखते उनक सवािधक
िन ावान िश य से भर गया।
एक अ य अवसर पर, ऊटी लेक क पास उ ह सुनने को जुटी भीड़ उनक कछ खरी िट पणी क कारण उ हो उठी।
उनक िचढ़ानेवाली खरी-खोटी बात (जो िक उनक ारा उतने ही खुल े िदल से देवता क िलए योग क जाती ह
िजतनी उनक आसपास जुट लोग क िलए) क कारण स ु ी ा को ायः धृ एवं धम-िव य क प म
जाना जाता था। जब थित िहसा भड़कने क कगार पर जा प ची तो स ु ठहर गए और यारह वष क एक बालक
को अपने पास बुलाया। उ ह ने लड़क क िसर पर हाथ रखा और उसे झील पर चलने क िलए कहा। बालक यह करने
क िलए चल पड़ा। उ भीड़ अचानक शांत हो गई। स ु इस तरह तड़क-भड़क, यानाकषणवाला चम कार करना
जानते थे, िकतु कवल अ यंत चरम थितय म।
स ु ी ा ने यानिलंग क थापना करने क पुरजोर कोिशश क । िकतु इस आ या मक ि या हतु सामािजक
िवरोध ब त अिधक था। ऐसा यह कौन-सा िविच यौिगक अ यास था िजसम पु ष और य का अ यिधक िनकट
दशा म स मिलत होना समािहत था। इस िवचार से दि ण भारत क पुरातनपंथ क सवािधक कठोरता से पालन िकए
जानेवाले िनयम-कानून क भावना को चोट लगती थी। स ु को कोयंबतूर से बाहर िनकाल िदया गया।
गु से से आगबबूला होकर यह योगी कई िदन तक चलता रहा। उनक िन ावान िश य िवभूित क िलए उनक
बराबरी से चलते रहना सरल नह था। िजन गाँव से वे गुजरते, वहाँ क थानीय लोग से रसद जुटाना, भोजन तैयार
करना और गु क चल पड़ने से पहले उनक साथ हो लेनेवाली ि या क कारण थित और बदतर होती गई।
इसका आशय था गु क गहर यान म रहने तक इतजार करना, त प ा चुपचाप उनक सामने भोजन रखना। िश य
तब कह से िछपकर गु को भोजन करते ए देखता रहता। यादा खुलकर बाधा उ प करने से पहले से ही ोध क
आग म जलते गु और भड़क उठते।
गु और िश य तेज चाल से चलते रह। अंततः वे कड पा (आज आं देश म) प च गए। यहाँ वे सोमे र क छोट
से मंिदर म ठहर। वहाँ वे िशव क मदो म करनेवाले प को समिपत ए। मंिदर का पुजारी एवं अ य अिधकारी उनक
उप थित क झुलसाकर रख देनेवाली ती ता को सहन न कर सकने क कारण पीछ हट गए। इस मंिदर को चुनने का
कारण भी था। ी पलानी वामी अपने जीवनकाल क दौरान यहाँ रह थे।
कड पा क इस धूलभर क बे क एक सामा य मंिदर म अगले छह माह क िलए गु और िश य ने एक योजना बनाई।
यह ऐसी योजना थी िजसम दो दजन से अिधक लोग क भा य का फसला िकया गया, वह प रवार एवं गभ जहाँ उ ह
ज म लेना था, वे कौशल जो उ ह सीखने थे, और ऐसा जीवन जो उ ह जीना था। यह भिव य म एक ऐसा वातावरण
िनिमत करने का यास था जो यानिलंग क रचना हतु सौहा पूण होता। इितहास क दौरान यानिलंग क पूणता ा
करने म आए अवरोध का एक कारण सामािजक था। गुणी सदाचारी योिगय क माग म चिलत िनयम-कायद क
कारण बाधाएँ खड़ी क जाती रह । स ु ने बड़ी सूझबूझ से काम लेते ए अपने िव सनीय िश य म से कछ को ऐसे
प रवार म रखने का िनणय िलया जहाँ से उ ह सवािधक िवरोध क उ मीद थी। इसक पीछ तक यह था िक संिल होने
क कारण, वे उनक योजना को समा करने म परशानी महसूस करगे। लेिकन यह बात तय थी िक िवरोध अव यंभावी
था। यानिलंग क िनमाण म हमेशा क र िवरोिधय का सामना आ करता।
अंितम मंचन क िलए अब मंच तैयार था। सावधानी पूवक आलेख िलखे जाने क प ा , अगले काय म क िलए
सौदेबाजी होनी थी। िकतु इस िवशाल कथानक क काय प म प रणत िकए जाने क पूव, स ु ने अपना ल य पूरा
करने का एक और यास िकया। उ ह ने प म भारत थत व े री आ म क सदानंद नामक एक बालयोगी का
शरीर योग िकया। यारह वष क आयु म िनवाण ा कर सदानंद ने तीन वष समािध थ अव था म िबताए और 26
वष क आयु म अपना शरीर याग िदया था। य िप इसक अभाव म उनक एक योजना थी, िकतु जब स ु ने
सावधानी से सुस त करक रखे गए शरीर क प म यह वैक पक अवसर देखा, तो उ ह ने इसे हाथ से नह जाने
िदया।
कछ महीन तक वह दो शरीर म रह। वह जानते थे िक उनका जीवनकाल सीिमत ह, इसिलए उ ह ने यु तर पर
कछ ऐसे िश य बनाने का काय िकया जो उनक िमशन को पूरा कर सकते थे। िकतु उ ह िनराशा ही हाथ लगी।
यानिलंग क िनमाण क िदशा म जो थितयाँ उ ह व े री म िमल , वह कोयंबतूर क थितय से िकसी भी तरह
कम नह थ । वह बालयोगी क शरीर को छोड़ अपने शरीर म समा गए और अपने थान क तैयारी कर ली। दूसरा
जीवनकाल असफल हो चुका था। ऐसा लगने लगा िक पलानी वामी का व न इतने तक ही रह जाएगा। एक िवशाल
संभावना िजसका वरण करने को संसार तैयार ही नह था।
अब स ु वेिलयािग र पवत लौट गए। वह सातव पहाड़ी पर चढ़ गए। हवा क वाह से व छ एक जंगली भू-
भाग, जहाँ क नीरवता उस य क िवषय म ब त कछ कहती ह िजसने इसे अपने अंितम याण क िलए चुना; यहाँ
उ ह ने अपना शरीर सभी सात च क मा यम से याग िदया, यह काय इसक पूव वयं च र ने िकया था जो िशव
ही थे। वह मानव इितहास म दज पहले योगी थे।
िकतु 42 वष क उ म शरीर यागने से पूव स ु ा ने घोषणा क , ‘म वापस आऊगा।’

‘यह मानवीय वभाव को चराएगा’
काली भेड़ से बना गड़ रया
‘दू सर चरवाह भेड़ चराते ह; यह चरवाहा मनु य को चराएगा!’ यह सांकितक िट पणी एक (भिव यदश ) ने क थी
िजससे वसुदेव प रवार म ज मे नवजात िशशु क कडली बाँचने क िलए कहा गया था। उसने ब े क कडली पर
िलखा, ‘इसे भा यशाली जीवन का आशीष ा ह।’
जगदीश का ज म 3 िसतंबर, 1957 को 11 बजकर 54 िमनट, आधी रात क 6 िमनट पूव सुशीला व उनक पित
वसुदेव क पु क प म आ था। वह मैसूर म ज मे थे, जो ऐितहािसक एवं सां कितक गितिविधय का मारक शहर
ह, पूव क शाही राजधानी, महल एवं सुस त बगीच क क पना का पयाय। इस आगमन म िवलंब रहा। िचंतातुर
होकर िजसक ती ा क जा रही थी, उस ब े ने 23 िदन देर से अपनी उप थित दी। शायद उसम ज म क प ा
क चुनौितय का कोई िवचार सं हीत था।
जगदीश प रवार म सबसे छोट थे। उनक पहले एक भाई और दो बहन थ । वसुदेव क प रवार म ब क नामकरण
क समय एक सां का रक तनाव आ करता था। दादा-दादी पारप रक नाम को ाथिमकता देते थे जबिक माता-िपता
क पसंद समकालीन िवक प म थी। हर बार अंततः वे एक समझौते पर प चते। जहाँ दादा-दादी ने एक नवजात ब ी
क िलए पप मा नाम सुझाया, वह माता-िपता पु पलता पर राजी ए। जब पहले पु क िलए प रवार म राघव नाम
उिचत महसूस िकया गया, माता-िपता ने रव नाम का िवक प चुना।
िकतु इस मामले म आगंतुक भिव यदश ने बात ही ख म कर दी। उ ह ने अपना वयं का नाम िशशु को दान कर
िदया। उसने िनणय िलया िक जगदीश—या ांड का वामी—इसका नाम होगा। आगे चलकर उनका उपनाम ज गी
हो गया।
ज गी क ज म क एक वष पहले, वसुदेव प रवार म एक िशशु का ज म आ था जो अपनी शैशवा था क दौरान ही
चल बसा था। वह एक खूबसूरत ब ा था, एवं भिव य म उसक महानता क सभी योितषीय िच मौजूद थे। िकतु
वह िशशु कछ िदन ही जी पाया। जैसा िक ज गी—अब स ु — अपने अंदाज म बताते ह, ‘‘उसने ( वयं को) 1956
म ही आने का यास िकया। िकतु पहली बार म जब उसे सफलता नह िमली तो एक वष बाद उसने पुनः कोिशश क ।
दूसरी बार वह सफल आ।’’
वसुदेव प रवार कनाटक का तेलुगु भाषी प रवार था। िव यात ने रोग िवशेष , डा टर वसुदेव बंगलोर क एक
समृ शाली प रवार से थे। बचपन म ही उनक माँ य रोग से पीिड़त होकर चल बस और वह डॉ टर बनने क
अपनी मरणास माँ क सपने को पूरा करने क िन य क साथ बड़ ए। य िप यह उनक िपता क इ छा क िखलाफ
था जो यह चाहते थे िक वह प रवार क यवसाय म हाथ बँटाएँ। अपने मामा का ो साहन पाकर युवक वसुदेव ने मैसूर
मेिडकल कॉलेज से ने रोग म िवशेष ता का अ ययन िकया। वह प िस ांतवादी एवं वािभमानी युवक थे। उ ह ने
अपनी पढ़ाई का अिधकांश खच छा वृि से पूरा िकया। वह देर रात तक ीटलप क नीचे बैठकर अ ययन िकया
करते थे।
समय आने पर वसुदेव का िववाह एक धनी, सं ांत कल, जो वयं को िवजयनगर सा ा य क िव यात शासक
क णदेव राय का वंशज मानते ह, क बेटी सुशीला से कर िदया गया। सुशीला िवन और मृदुभाषी मिहला थी, िजसे
घर-गृह थी और प रवार क देखभाल करना पसंद था। िकतु वह उतनी सरल भी नह थी। उसक सभी ब —खासकर
आदतन शरारती ज गी—को यह मालूम था िक समय आने पर वह कठोरता अपना सकती ह।
ज गी क ज म क समय नाल (नािभ नाड़ी) उसक कधे पर िलपटी ई थी, िजसे पारप रक अंधिव ास क अनु प
प रवार क िलए अशुभकारी जाता ह। वह कहते ह, ‘‘इसक ित ऐसी मा यता थी िक इससे मामा का जीवन जोिखम म
आ जाता ह।’’ इस खतर को दूर करने क िविवध सावधािनय म एक थी—ब े को पाँच साल क आयु तक नाई से
दूर रखना। ‘‘इसका प रणाम यह आ िक मेर बाल बड़ व घुँघराले हो गए, िजनक दो चोिटयाँ बाँध दी जाती थ ।’’ वह
कहते ह, ‘‘ ितिदन म कल म िकसी-न-िकसी ब े को मेर बाल को लेकर िट पणी करने पर पीट देता था।’’
डॉ टर वसुदेव भारतीय रलवे म ने रोग िवशेष थे, िजसक वजह से बार-बार उनका थानांतरण होता रहता था।
प रणाम व प ज गी को अनेक बार कल बदलने पड़। 1969 म मैसूर लौटने से पूव प रवार िशमोगा, िच ा बालपुर
और गुटकाल क बीच घूमता रहा।
सजीव क पना, अ यिधक उ सुकता, ऊचे ऊजा ोत एवं उ ािधका रय क खुशी-खुशी उपे ा जैसे गुण से ल ध
ज गी ऐसा ब ा था, िजसे देखकर वय क उससे भािवत रहते। वह कहते ह, ‘‘मेर िलए क ा म बैठ रहना असंभव
था य िक जब िश क बोल रह होते तो म जान जाता िक वे कछ ऐसी बात कर रह ह, िजसका मेर जीवन से कोई
सरोकार नह । जो वे कर रह थे वह उनका पेशा था, इसिलए म सुनना नह चाहता था। म जानता था िक वे जो कछ भी
कह रह थे, म पु तक म पढ़कर बड़ी आसानी से समझ सकता था।’’
यह बात साफ थी िक कछ कल क बदले जाने क थित आंिशक प म ही सही, इस कारण भी बनी िक वह
िनतांत अिड़यल था—िजसे दबाया जाना संभव नह , गैर िज मेदार, उ छखल। वह कब, या कर बैठ, कोई नह जानता
था। लगता था िक उसे िकसी का डर नह था। वह र गट खड़ कर देनेवाले कारनामे करने पर उता रहता, वह भी खुद
क सुर ा क परवाह िकए बगैर। उसक माता-िपता उससे परशान होकर पूछा करते, ‘‘ या तु ह िकसी से डर नह
लगता?’’ उ ह कोई जवाब नह िमलता।
ज गी अ पभाषी वभाव का था। इससे यह भाँप पाना मु कल हो जाता था िक अगली कौन सी शरारत उसक
योजना म ह और जवाब अपने-आप म ही प था। यिद कोई उस पर कछ अंकश रख सकता तो कम-से-कम वह
डर तो नह था।
क ा म लैकबोड पर कछ शरारती बात िलख देने क कारण िश क ने उ ह क ा से िनकल जाने को कहा। इस
आदेश को मानने से इनकार करने पर भड़ककर उनक मुँह से िनकला, ‘‘या तो तुम देवता हो या शैतान।’’ छा का
प ातापहीन हावभाव देखकर िश क ने ोध म लाल-पीला होते ए कहा, ‘‘और म जानता िक तुम शैतान ही
हो।’’
बालक ज गी क दु य यवहार क असं य िक से ह। उसने कल से भागने का मजा चखा था। उसे पेड़ क ऊपर क
शाखा पर चढ़कर िदन िबताना गिणत क प म खोए रहने क अपे ा अिधक समझदारी का काम लगता था।
उसका कहना था िक िश क को भी यह मालूम नह होता था िक वह या बोल रहा था।
वे ऑटो पायलट क िड टाफोन मा ह। उनक िभनिभनाहट तु ह परी ा पास करा सकती ह या अिन ा से छटकारा
िदलाने क गारटी दे सकती ह, लेिकन और कछ नह । उ क ारिभक दौर म ही, ज गी ने अपनी एक ऐसी आदत का
सा य तुत िकया जो आगे ब त समय तक बनी रहनेवाली थी। मूख को खुशी-खुशी बदा त न करना। उसने कभी भी
गंभीरता से परी ा नह दी ब क िश क क गंभीर भिव यवाणी क बावजूद हमेशा मा उ ीण हो जाया करता था।
अकाल प रप आतंककारी होने क िस उपयोगी थी। जब हर कोई आपको न सुधरने लायक समझकर छोड़ दे
तो इसका ता पय कम से कम यह ह िक आपको अपने वयं क तौर तरीक पर छोड़ िदया गया ह।
जब वह पेड़ पर चढ़कर बैठा होता तो उसे लंच बॉ स व पानी क बोतल क ही बतौर साथी ज रत पड़ती। वह िदन
का अिधकतर समय हलक बयार क लोरी सुनने, िदवा व न म लीन रहकर गुजारता। बाद म उ ह ने इसे उनक यान
क अव था क पहले अनुभव क प म बताया। बालक क पास घड़ी नह थी। उसे बीतते समय का आभास नह रहता
था। जब वह दूसर छा को क ा से बाहर आते देखता तो वह समझ जाता िक कल क छ ी हो गई। तब वह
उतरता और साइिकल चलाते घर चला जाता। ‘‘म पेड़ क सबसे ऊची शाखा पर चढ़ जाया करता और वहाँ बैठा
रहता। वह डोलती रहती। कछ समय क बाद इसी थित म अपने भीतर अलग तरह क अनुभव म चला जाता, एक
मू छा क अव था, जहाँ मुझ े समय का होश ही नह रहा करता। म सुबह नौ बजे से शाम साढ़ चार बजे छ ी क
समय तक वह पेड़ पर बैठा रहता। ब त बाद म जब मने यान करना शु िकया तो मने महसूस िकया िक अनजाने म
म यानाव था म ही रहता था। िन संदेह मने पहले कभी इस श द को नह सुना था। पेड़ क चोटी पर बैठ रहने से जो
आभास मुझ े आ करता, वही मुझ े अ छा लगता था।’’
िकतु कल से भागना, वृ क चोिटय तक प चने तक ही सीिमत नह था। ज गी चुपक से िपकिनक क िलए
सामान (िजसम यादातर उबले अंड और रोिटयाँ होती थी।) पैक करना भी पसंद करता था। वह अपने माता-िपता क
िलए एक िलिखत संदेश छोड़ देता और पूर िदन क िलए नदारद। इस साहिसक अिभयान म वह या करता था? जंगल
म घूमता-िफरता, साँप, मछली पकड़ता और पेड़ पर चढ़ जाता। उसे बाहर क िजंदगी पसंद थी और कित क िनयम
उसे घर या कल क बनावटी िजंदगी से यादा भाते थे। जब उसका भोजन समा हो जाता तो वह घर लौट आता।
उसका अनुमान था िक उसक माता-िपता को परशान होने क आव यकता नह थी। वह अपने जाने क जानकारी हमेशा
कागज पर िलखकर छोड़ जाता था (य िप गंत य नह ) और अंततः वह हमेशा लौट आता। खूब खाने क आदत क
कारण, उसक भूख े रहने का न ही न उठता। सुशीला क रसोई क आकषण से एक बात तय थी िक उसक
आवारागद हमेशा िनयं ण म रहती।
िफर भी कल क कछ यादगार ण थे। ज गी को क ा एवं कल क िविभ टीम म िलए जाने क मजबूरी थी;
हॉक , कब ी, फटबॉल, वालीबॉल, बॉ संग, ि कट एवं बैडिमंटन। जब कभी वह क ा म आने क दया करता तो
उसे भूगोल क अ याय काफ रोचक लगते थे। इसम दी गई अ य देश , जलवायु, सं कित क झलक पाकर वह
आनंिदत होता। वह कल वाचनालय म नेशनल िजओ ािफक क अ ययन का उ सुक पाठक था। उसे इसक खड़कते
पृ क महक एवं इसक िचकने पृ पर दशाई गई सुदूर दुिनया ब त भाती थी। उसे अपनी वयं क ित ा करने
क इ छा रहती थी, हालाँिक ऐसा तब तक संभव नह हो सका जब तक िक वह िबल अदा करने म स म नह हो
सक। वह हसते ए कहते ह, ‘‘इसक एक ित ा करने म मुझ े 25 साल लग गए। आज भी म नेशनल
िजओ ािफक क अपनी ित लेता ।’’
भूगोल क ित उनका लगाव, अपने आस-पास क भौितक िवशेषता को जानने क गहरी उ सुकता से जुड़ा था।
उनक अवलोकन मता बड़ी पैनी थी। ‘‘दुिनया क सरचना, भू-भाग और लोग का जनजीवन मुझे काफ रोचक
लगता था। म गाँव क पगडिडय पर साइिकल पर िनकल पड़ता और ितिदन कम-से-कम तीस-से-पतीस िकलोमीटर
साइिकल सवारी करता। घर लौटने तक म क चड़, धूल से लथपथ हो जाता। घर म अकले बैठकर, जो भी भू-भाग मने
देख े थे, उ ह पुनः पेपर पर उतारता। हर च ान, च ान शैल, वृ । िभ -िभ ऋतुएँ, जुताई करने पर जमीन म
प रवतन। फसल क आने का समय मुझ े बड़ा लुभावना लगता ह। इसी कारण मने थॉमस हाड को पढ़ना शु िकया,
य िक वह इ ल तानी भू-भाग का वणन कई पृ म करता ह।
‘‘म भी मन म वही कर रहा था। मन म भू-भाग घूम रह थे। आज भी ये मेर मनोम त क म वीिडयो क तरह अंिकत ह।
यिद म चा तो म सभी कछ पुनः बना सकता — वह सब जो उन वष क दौरान मने देखा। मेर उस जीवन क अंितम
तीन या चार साल उतने प नह ह। लेिकन उसक पहले वह हर थान जहाँ म गया—खासकर भू-भाग, ढलान और
ाकितक परखा अभी भी मेर िदमाग म ताजे ह।’’
उनक अ ययन िच सवहारी थी। एक म यमवग य भारतीय ब े क तरह उ ह ने भी अपने िह से क ‘इिनड
लाइटन’ पढ़ी िकतु यह उ ह ब त रोमांचकारी नह लगी। उ ह ने सी सािह य को खूब पढ़ा जो िक 1970 क दशक
क भारत म कौिड़य क दाम उपल ध था। 12 वष क उ क प ा उ ेजना मक स पस ि लर क भूख रही।
एिल टयर मैकलीन, लुईस एल एयूर व ड रक फॉरसाइड से लेकर लीयन यू रस, िव बर मथ और जे स हडली
चेस तक। वह और उनक भाई कॉिम स का आनंद भी उठाते थे। फटम व टाजन से आिच और मेन क तक। िकतु
ए ट र स उनक पसंदीदा थी, उनक भाई रव कहते ह, ‘‘जो मुझे कभी भी अ छी नह लगी।’’
दोन भाइय म मा एक साल का ही फक था, इसिलए वे ायः एक-दूसर क कपड़ बदल-बदलकर पहनते थे।
रव एक घटना का मरण करते ए कहते ह, ‘‘एक बार मुझ े याद ह, एक चोर ने रात क समय, िखड़क से हमारी
सभी कमीज चुरा ल । जब हम जागे तो हम िबना कमीज क रहने को मजबूर हो गए। य िक हमारी अपनी कमीज रही
ही नह । अंततः हमने पड़ोिसय से कमीज उधार माँग और थाने प चे।’’ हालाँिक चोर कभी पकड़ा ही नह गया। दोन
भाइय को अपने कपड़ क आलमारी पुनः भरनी पड़ी।
शिनवार क शाम को िफ म देखने जाना वसुदेव प रवार का सा ािहक समारोह आ करता था। माता-िपता तो िहदी
िफ म देखा करते थे, िकतु ब को अं ेजी िफ म पसंद थ । ‘बेनहर’, ‘रोमन हॉलीड’, ‘मैक ाज गो ड’ एवं
‘कासा लांका’ ज गी क िवशेष पसंदीदा िफ म थ । सात साल क उ म ‘साइको’ को देखने आना उ ह अभी भी याद
ह। उसक बहन तो डरकर िथएटर छोड़कर भाग गई, पर सात वष य यह िज ी बालक िफ म क खतरनाक अंत तक
अपनी सीट पर िचपककर बैठा रहा। वह कहते ह, ‘‘मेर पास िटकट थी तो म भला य िथएटर छोड़कर जाता, मेरी
बहन बाहर इतजार करती रह ।’’
मैसूर िसटी म अं ेजी िफ म क दो िथएटर थे और कछ वष तक ज गी स ाह म दो िफ म देखा करता। छ य
म अपने दादा-दादी क घर वह और उसक चचेर भाई-बहन कभी-कभी तेलुगु िफ म देखने जाया करते। ‘‘िसनेमाघर
पूरी तरह हमार अपने थे। हम जब चाह अंदर-बाहर आ-जा सकते थे। िटकट क ज रत नह थी। उस समय हमने
एन.टी. रामाराव क ब त-सी िफ म देख ।’’
ज गी क िसनेमा क अनुभव का उसक जीवन गाथा पर कोई भाव नह पड़ा। ‘‘िफ म िजस तरह से बनाई जाती थ
मेरी उसी म यादा िच थी। मने ब त पहले ही महसूस कर िलया था िक य तो अिभनय मा ह। उ ह देखकर म
उनक सराहना कर सकता था। िफ म देखते व िकसी समय आँसू भी आ जाते थे, िकतु िकसी दुःखभरी कहानी क
िलए नह । यिद वा तव म कछ अ छा होता— ेम क महा ण या खुशी— तो मेरी आँख म आँस ू आ जाते। अब भी
म ऐसा कर सकता और करता । लेिकन यिद मेरी इ छा होती तो म ढग से संपूण िफ म समी ा मक ि से देख
सकता था। म दोन तरीक से िफ म का लु फ उठाने म स म था।’’
एक क ा सहपाठी था जो बाद क वष म उनका प ा िम रहा। उसका नाम सोम ा था, वह कग से था। ‘‘हम
दोन म पढ़ने क आदत समान थ । दोन संयोगवश कल क हॉक टीम म भी थे। सोम ा ‘सटर फारवड’ और म
‘ले ट आउट’ खेलता था।’’ उनक एक अ य समीपता िकसी झंझट म पड़ जाने और एक-दूसर को बचा लेने म थी।
एक बार एक सहपाठी को िश क को दोबारा ‘ लीिपंग लेडी’ (क ा क छा सामािजक िव ान क ऊघने क
आदतवाले िश क क िलए यह गु नाम योग करते थे।) कहने पर िश क ने पास बुलाया। गु से म िश क ने क ा
से उसक िलए उिचत दंड पूछा। ‘‘उसे माफ कर दो’’, ज गी ने जोर से कहा। इस पर ज गी को तुरत ख चकर
हडमा टर तक ले जाया गया। िश क ने ज गी को कछ धूत लड़क क समूह का ‘ रग लीडर’ बताया और ि ंिसपल ने
15 िदन क िलए क ा से िनलंिबत कर िदया।
क ा से िनलंिबत होना दुःख क बात कभी नह रही। गाँव का और सैर-सपाट का खुशहाली भरा पखवाड़ा था।
‘‘ कल क सबसे अ छ छा को अित र अवकाश िमलता ही ह।’’ हसते ए वह कहते ह, ‘‘और मने कभी भी
िशकायत नह क । ये अवकाश कभी-कभार वाले नह थे। क ा म सीिलंग पंख े क िकसी एक लेड पर मर साँप या
मेढक को रख देना, ऐसा क य कदािप नह होता था िजससे िश क को खुशी होती। न ही िश क को यह बताना ही
उिचत होता िक परी ा दो साल म दो बार आती ह, िकतु आम क ऋतु कवल एक बार।’’ उनक बात सचमुच
तकसंगत थी—आम चुनना पूरी तरह मौसमी ि याकलाप था जबिक परी ा उसी नीरसता क साथ पुनः आ खड़ी होती
—‘‘लेिकन िश क अपने नीरस तक क सहार रहना ही पसंद करते से लगते थे।’’
हडमा टर ज गी क माता-िपता को इन अवकाश क सूचना प ारा भेजा करते थे। यह मामला जरा पेचीदा था।
लेिकन थानीय पो टमा टर क पु सोम ा जैसा िम उसक िलए वरदान िस आ। प को वसुदेव प रवार म
प चने से पहले ही पो ट ऑिफस से ही रफा-दफा कर िदया जाता।
वह बताते ह, ‘‘ कल क चपरासी से िम वत यवहार रखकर हम यह पता कर लेत े थे िक प कब ेिषत िकया
जानेवाला ह। जैसे ही हम मालूम पड़ जाता, म रात को सोम ा क घर प चता, गुलमोहर क पेड़ से चढ़कर उसक सोने
क कमर म प च जाता। सोम ा का भाई मुझ े पसंद नह करता था, य िक वह हम चोर समझता था। इसिलए मुझे
उसक सो जाने तक इतजार करना पड़ता, और तब चुपक से म बेड म म प चता। उसक बाद हम प को छाँटते-
बीनते, रात िबताते और पो ट मा टर क मदद करते। कछ अवसर पर जब ऐसे प व तुतः ज गी क िपता क हाथ लग
जाते तो परशानी म हाथ ऊपर उठाते वह कहते, ‘‘वे तु ह ध मारकर िनकाल द।’’
चूँिक िश क उ ह नापसंद करते थे, िफर भी कम-से-कम एक मौक पर ज गी खुशी से आ य चिकत रह गए। उ ह
न वी क ा म वेश करते ए एक िशि का क याद ह। वह अं ेजी क नई िशि का थी। वह युवा होने क साथ-साथ
अपने नए काय (िश ण) क ित काफ उ सािहत थी। वह कहते ह, ‘‘मुझ े उसका क ा म घूमना याद ह। उनका कद
ऊचा था। वह क फ क ई सफद साड़ी पहने ए थी। वह आकर मेरी मेज क पास खड़ी हो गई। जब वह कह और
देख रही थी, तभी मने अपने फाउटन पेन से उनक साड़ी पर याही िछड़क दी। सो ता कागज क तरह याही साड़ी क
कपड़ ने सोख ली। उस िदन भोजन अवकाश पर, मुझ े उस िशि का क ऑिफस म बुलाया गया। मेर वेश करने पर,
उ ह ने मेरा पेन माँगा। मने उ ह दे िदया। उ ह ने एक श द भी नह कहा। उ ह ने एक दवात िनकाली और पेन म याही
भरकर मुझ े वापस कर िदया। मने ध यवाद कहा और चला आया। यह बड़ा जोरदार जवाब था, िजसे म कभी नह
भूला। उसक बाद वह मेरी पसंदीदा क िशि का बन गई। यह घटना हम दोन क बीच एक बड़ा भाव बंधन िस ई।
ब त बाद म वह कल क ि ंिसपल बन गई।’’
हाल ही म मैसूर म एक स संग क बाद उनक एक पुरानी अं ेजी िश का से मुलाकात ई। अपने पूव छा से ई
मुलाकात से रोमांिचत होकर उसने उ ह (स ु ) गले से लगा िलया और बताया िक वह अपने इस िश य क राबट
ॉ ट क ित नापसंदी को नह भूली थ । िशि का ने उ ह याद िदलाया, ‘‘तु ह यह पं िबलकल पसंद नह थी,
‘वू स आर लवली डाक ऐंड डीप’ तुम कहा करते, ‘लकड़ी ही य ? पेड़ म लकड़ी क अलावा और भी ब त कछ
ह।’’’ हसते ए स ु अब यह कहते ह, ‘‘यह सच ह। पेड़ को देखकर मने हमेशा यही सोचा ह िक वह कछ फहड़
सा लगता ह। िबलकल उसी तरह जैसे जानवर को देखकर मा उसक मांस क बार म सोचना। या औरत को देखकर
मा कामुकतापूण िवचार लाना।’’
पिहय क ित आकषण, ज गी म ब त पहले से था। रव को याद ह िक कसे दोन (रव और ज गी) को ‘रॉिबन
ड’ साइिकल, जो उनक िपता को इनाम म िमली थी, क चाहत थी। वह बताते ह, ‘‘उसक बाद वे पा पीजो कटर
आया िजससे हर कोई हमसे जलता था। हम बारी-बारी से कटर पर सवारी िकया करते थे। मेर िपता इसम ताला
लगाकर चाबी छपा िदया करते थे। वह पीडोमीटर पर दशाई ई िकलोमीटर दूरी को िलख िलया करते थे। िकतु मने
उनसे छपाकर एक ड लीकट चाबी बनवा रखी थी। और जब वह गुसलखाने म होते या सो रह होते, तब म इस पर
सवारी िकया करता। हम पीडोमीटर क तार को अलग करक सवारी िकया करते थे। इस तरह उ ह इसक चलाए जाने
क जानकारी नह हो पाती थी। जब उ ह इस चोरी-िछपे कटर चलाने क बात पता चली तो वह यदा-कदा इसक इजन
को छकर देखते िक कह यह हमार चलाने से गरम तो नह ह। लेिकन सावधानी बरतने क िलए उनक आने से पूव हम
इस पर ठडा पानी उड़ल देत े थे। इसम हम ब त मजा आता था।’’
योग ने ज गी क जीवन म चुपक से वेश िकया। गरिमय क छ य क बात ह। तब वह तेरह वष का था। वह करीब
उन 35 पोते-पोितय म एक थे, जो उनक दादा-दादी क घर छ याँ मनाने क िलए एक ए थे। घर क िपछवाड़ म
एक कआँ था, िजसक गहराई 150 फट थी। यह िवशेषकर लड़क क आकषण का क था। लड़िकयाँ तो लुका-िछपी
का खेल खेलती थ िकतु लड़क कएँ म कदकर इसक खड़ी-सीधी दीवार पर लगे फट हो ड (पैर रखने का आ य)
का योग करते ए हाँफते ए बाहर आने का खेल खेलते थे। यही उनका समय िबताने का पसंदीदा मा यम था। ऊपर
आने पर िफर से कदकर उसी ि या को दुहराने का िवचार बन जाता। वह कहते ह, ‘‘सामा यतः हम गरिमय क
समय ही वहाँ रहते थे इसिलए कएँ का जल तर जमीन तर से लगभग 60-70 फट नीचे रहा करता था। कएँ म कदना
और चढ़कर ऊपर आना चुनौती भरा कारनामा था। यिद आप सही तरीक से नह कदे तो आपका िसर कएँ से टकराकर
चकनाचूर हो सकता था और चढ़ते समय न तो कोई सीढ़ी थी, न नसेनी। कछ भी नह । आपको दीवार पर लगी च ान
क सहार ऊपर आना होता। आपक ऊपर आने तक तो आपक उगिलय क नाखून से उन पर दबाव पड़ने से खून
िनकलने लगता। कछ ही लड़क यह कारनामा कर पाते थे, उनम म भी एक था और ब त अ छी तरह म यह कर
िदखाता।
‘‘एक िदन लगभग 70 साल क उ का एक वृ वहाँ प चा। वह सीधा-सादा य लगता था। लड़क ने उसक
उप थित को नजर अंदाज कर िदया। वे उस वृ य क ओर से िबलकल बेखबर अपने काम म लगे थे। िकतु
जब वह वृ चुपचाप आसानी से कएँ म कदा और उनम सबसे पहले चढ़कर बाहर आ गया तो हम सभी भौच रह
गए। मेर मन म यह न उभरा, ‘कसे?’ उस आदमी ने उ र िदया, ‘आओ, और योग सीखो।’
‘‘ यादा सोचने क बात ही नह थी। शारी रक तंदु ती और चंचलता मेरी सबसे बड़ी ाथिमकता थी। यिद योग से इस
तर क श और पु ता िमलती ह तो म इसक िलए इ छक छा था। इस तरह मने म ािदहाली वामी (यह ी
राघव राव का लोकि य नाम था जो पवतारोहण म कशल थे) से योग सीखने क शु आत क ।
‘‘म िप े क तरह इस आदमी क पीछ-पीछ घूमता। म यह सब आपको इसिलए बता रहा िक आप जान सक—भले
ही आप गलत कारण से शु कर, िकतु िफर भी योग जीवन म कारगर होता ह।’’
वह कछ साधारण योगासन सीखकर ितिदन अ यास करते थे। योग म उनक िनयिमतता से वह वयं आ यचिकत
थे य िक अनुशासन उनक गुण म कभी भी शािमल नह था। िफर भी योगा यास वष अनवरत जारी रहा। ‘‘जब म
ितिदन सुबह जागता, योग साधारण तौर पर हो ही जाता, चाह म जहाँ भी, िजस भी थित म होता। अगले बारह या
तेरह वष िबला-नागा यह जारी रहा। मुझे साधारण योग िसखाया गया था। इससे बाद मुझे अपे ाकत ब त अिधक गहराई
का अनुभव आ। उस अनुभव से पहले मुझ े यह पता ही नह था िक म आ या मक ि या म रत था। मुझ े कवल
इतना भान था िक इस योग से िन य ही म शारी रक और मानिसक प से कई लोग से अलग हो गया । कवल
इतना ही मने सोचा।’’
लंब े अंतराल क बाद उ ह ने जाना िक उनक गु व तुतः योग अ यास क महारथी थे। म ािदहाली वामी क
उपल धय क वणन से तो शायद कई पृ भर जाएँगे। य िप वह म ािदहाली गाँव (कनाटक का िच दुगा िजला) से
और कह नह गए, िकतु वह योग और आयुवद क महा िश क और िचिक सक थे एवं अपने जीवनकाल म यह नर
उ ह ने हजार छा को िसखाया। वह एक आयुविदक िचिक सालय, व ड योगा ट एवं गैर-लाभ आधार पर कई
सं थाएँ चलाते थे। उ ह ने ब त से रा य व क सरकार क पुर कार को हण करने से इस आधार पर इनकार कर
िदया िक उनका उ े य पुर कार एक करने क अपे ा ज रतमंद व िपछड़ कमजोर लोग क िलए िव जुटाना ह।
वह अपनी यौिगक मता क कमी चचा नह करते थे। उनका ढ़ िव ास था िक योग दशन क िलए या ितयोगी
खेल म प रवितत करने क िलए कतई नह ह। लेिकन ज गी ने यह जानकारी हािसल क िक उनक अ ुत िश क एक
िदन म चार हजार आठ सूय नम कार करते थे। वह शरीर-सौ व एवं परपरागत माशल आट म कशल थे। कई वष
प ा , आठ साल िज नेिजयम म िबता देन े क बाद भी ज गी अपने गु को क ती म परािजत नह कर पाते थे।
‘‘वह एक महा पहलवान थे। उस समय म इस कला म वीण एवं अ यिधक फत ला था। और भी लड़क थे जो
मुझसे भी यादा ताकतवर थे। यिद हम अखाड़ म उनक साथ उतरते तो वह हमेशा अकले और हम तीन आ करते थे।
लेिकन हम उनक सामने एक िमनट भी नह ठहरते थे। ितरासी साल क वृ ाव था म भी वह िमनट भर म हम तीन
को पछाड़ देत े थे।’’
एक कहानी वह हमेशा सुनाया करते थे िक िकसी तरह एक बार उनक गु अपने कछ िम क साथ एक टशन पर
इतजार कर रह थे। रिववार क िदन शाम क समय वामी को अपने आ म लौटने क ज दी थी, जहाँ अगली सुबह उ ह
कई मरीज क जाँच करनी थी। कछ देर क बाद, वे यह खबर पाकर हताश हो गए िक वहाँ रलवे क हड़ताल चल रही
थी। इतजार करने क अलावा और कोई चारा नह था। वामी ने इस बेचारगी से दो-दो हाथ करने का फसला िलया।
उनक िम ने देखा िक वह रलवे पटरी पर कदे और घर क ओर दौड़ पड़।
उ ह ने रात भर म 70 िक.मी. क दूरी दौड़कर तय क और पौ फटते ही वह अपने िनक म अपने थम मरीज
क जाँच करने क िलए हािजर थे। आ म म उनक राि कालीन या ा क जानकारी िकसी को भी नह थी। काफ देर
क बाद जब उनक दो साथी वहाँ प चे तो उ ह ने जो कछ आ था, आ म क लोग को उसक जानकारी दी।
स ु कहते ह, ‘‘वह तकरीबन महामानव ही थे। आप िव ास नह कर सकगे िक कोई इसान ऐसा हो सकता ह।
जब वह अपनी आयु क न वे दशक म थे हम उनसे िमलने जाते और उ ह छड़ िदया करते थे। हम मजाक करते और
कहते, ‘तो आप थान कब करगे वृ वर! लगता तो ऐसा ह िक आप से पहले हम ही िवदा ले लगे।’ वह जवाब
िदया करते, ‘मेर सामने अगले चालीस वष क काययोजना ह। म उ ह पूरा करक चला जाऊगा।’ िजस ढग से वह चल
रह थे, उससे तो यही लगता था िक वह आसानी से अपना वादा पूरा करगे।’’
स ु कहते ह िक म ािदहाली वामी अपने जीवन क अंितम िदन तक योग िसखाते रह। एक सौ छह वष क
आयु म मैसूर शहर म या यान देते ए वे िगर पड़। उ ह अ पताल म भरती िकया गया जहाँ पता चला िक उ ह
मामूली दयाघात आ था। रात म जब उ ह होश आया तो उ ह ने वयं को आइ.सी.यू. म पाया, जहाँ उनक शरीर म
कई सुइयाँ और यूब लगे ए थे। अधीर गु ने उ ह वयं ख च-ख चकर हटाया और पहली मंिजल से कदकर घर
लौट गए। अपने आ म म ही तीन महीने क बाद शांितपूवक उनक मृ यु हो गई। इस तरह अपने जीवन काल क अंितम
समय तक उ ह ने सि य जीवन िजया।
काफ समय क प ा स ु ने बताया िक म ािदहाली वामी कोई और नह ब क उनक पहले जीवन क गु
ी पलानी वामी क एक िश य थे। जब पहली बार मने यह सुना तो यह उलझन मुझे बड़ी मनोहारी लगी। मने उनसे
पूछा िक या इसका ता पय यह ह िक इस जीवनकाल म आपक गु ने ही आपको योग िश क से िमलवाया। स ु ने
असमंजस सा जािहर िकया। वह बहक से लगे जैसािक ायः अपने गु क बात करने पर उनका हावभाव कट होता
ह। उ ह ने धीर से कहा, ‘‘गु क क णा और गु क कायशैली कई तरह से कट होती ह। गु तो दो लोग क बीच
कोई भेद भी नह जानता। उसक जो भी धुन होती ह, वह संसार म कट होती ह। शायद म भी उनक योजना का एक
छोटा सा भाग था। इसक ित मेरा ऐसा ही नज रया ह।’’
इस बात क ब त कम सा य ह िक िनरतर अ यिधक ऊजाशील होने क दशा म ज गी िकसी अ य कली ब े से
िभ था। वह शायद अिधकतर लोग क अपे ा िज ी िकतु मूल प से अ यिधक शैतान ब ा था। कछ अ य संकत
भी थे, जो उसक िनकटवत लोग से छपे नह रह सक। जब वह मा कछ ही िदन या महीन क थे, उस दौरान घर म
ई घटनाएँ और बातचीत मरण करने क उनक मता से उनक माँ ह -ब रह जाती थी। उनक ारा याद क
जानेवाली बात इतनी सामा य आ करत —जैसे उनक माँ क साड़ी का रग या िकसी खास मौक पर िकसी ने या
कहा—िक लोग भौच रह जाते। इसक अलावा िकसी य को एक ही नजर म पहचान लेन े क उनक मता,
िकसी नवागंतुक य व, उसक आम िजंदगी क बात का मू यांकन करने क उनक मता।
इन िनिहत यो यता से उ ह अपनी उ से कह अिधक प रप ता हािसल ई। ‘‘शायद यही वह बात ह िक अ य
ब क तरह प रवार म कोई भी मुझे लाड़-दुलार नह करता था।’’ वह कहते ह, ‘‘मेरी उप थित ही ऐसी थी। अपनी
इस मता क कारण म एक सामा य ब े क तरह नह रह पाता था। अतः इसी कारण कोई भी मुझे गोद नह ले
सकता था, कोई भी मुझ े पुचकार नह सकता था, कोई भी मुझ े लेकर चल नह सकता था।’’ लड़खड़ाकर चलने क
अव था क दौरान भी उसे यह नह आता िक कोई उसे उठाकर यहाँ-वहाँ ले गया हो। जब वह अपने प रवार क साथ
बाहर जाता, तो वह वयं चलना पसंद करता, जबिक उनक बड़ भाई को हमेशा माता-िपता म से कोई एक लेकर
चलता था। वह हसते ए कहते ह, ‘‘मुझे पकड़ना या गले लगाना किठन था। अभी भी वही बात ह...’’
एक ऐसी मता, िजसक िवषय म िकसी को जानकारी नह थी, वह थी पाँच वष क उ म लोग को न नाव था म
देख पाने क मता। यह ि कोण कामुकता से कोस दूर था। सामा य प से यह मता उन लोग को दो बजे तक
सीिमत क थी जो उसक आस-पास उप थत रहते थे। कछ समय बाद वह उ ह वायु क झकोर क प म पहचानने
लगे (िजसक बार म काफ बाद म उ ह मालूम आ िक इसे योग क भाषा म ‘ ाणमय कोष’ ऊजा या कािमक शरीर
कहा जाता ह। जहाँ तक उनक बात ह, िविच बात उनक िलए असामा य नह थ )। वह साधारण प से यही मानते थे
िक हर िकसी को दुिनया ऐसी ही नजर आती थी। ौढ़ाव था आने पर उ ह मालूम आ िक पांत रत बोध क ये बात
या थ ।
वह कहते ह, ‘‘यह तब होता था जब म पाँच-छह वष या उससे अिधक उ का था। यह मेर िलए आम बात थी।
यिद म घर क बैठक म बैठ ए लोग —मेरी माँ, िपता, भाई, बहन—क ओर देखता तो वे मुझ े धुँधले से नजर आते थे।
वे िबलकल ेत क तरह यहाँ-वहाँ मँडराते से नजर आया करते। मुझ े हमेशा बड़ा आ य होता िक आिखर वे कर या
रह ह। जब म इधर-उधर घूमता या बात करता तभी वे मुझ े य नजर आते थे। िकतु यिद म बैठ जाता तो वे मुझ े धुएँ
जैसे इधर-उधर मँडराते से नजर आते। एक बार आप उ ह अ -ठोस, धुमवत य य क प म देखते ह तो पूरा खेल
(सांसा रक) अथहीन हो जाता ह। अचानक मेर िपताजी आते और पूछते, ‘तु हारी गिणत क तैयारी का या आ?
तु हारी ितमाही परी ा कब ह?’ यह सब बड़ा िविच लगा करता। मुझ े समझ ही नह आता था िक वे या बात कर रह
होते थे। यह सबकछ ऐसा ही होता मानो मूक ( यूट) बटन दबाकर आप टलीिवजन देख रह ह। अचानक सारा नाटक
बड़ा हा यपद सा हो जाता।’’
उस समय उनक शू य भाव को गूढ़ बु नह समझा जाता था ब क इससे उनक प रवार क लोग खीझ उठते। वह
बताते ह, ‘‘बात इस हद तक प च गई िक मेर िपता ने यह सोचना शु कर िदया िक मुझे मनोवै ािनक मदद क
आव यकता ह। ब त पहले ही मने महसूस कर िलया था िक मुझ े कछ मालूम नह था। इसी कारण आसपास क हर
चीज पर मुझ े ब त यान देना पड़ता था। िकसी प ी या एक िगलास पानी को ही म अंतहीन प से देखता रहता। सारी
रात म अँधेर म घूरता रहता। यिद एक ककड़ भी मुझ े िदख जाता तो वह ब त देर तक मेर मन म घूमता रहता। ऐसा
नह था िक म इसक बार म ही सोच रहा होता। ब क ऐसा होता िक वह छिव लाख बार मेर िदमाग म छाई रहती। मुझे
इसक हर कण, हर कोण क जानकारी हो जाती। यिद कोई बोलता तो मुझे महसूस होता िक वे मा विन उ प कर
रह थे और म उनक अथ िनकाल रहा था। इसिलए मने अथ िनकालना छोड़ िदया और विन बड़ी हा यापद बन गई।
मुझ े उनक मुँह से साँचे िनकलते िदख रह होते। यिद म घूरता रहता तो य िवघिटत होकर ेतवत हो जाया करता।
त प ा जो कछ भी बचता वह मा साँचे ही आ करते।’’
चीज को देख लेन े क उनक मता से कभी-कभी बड़ बेढगे िकतु मजेदार ण उप थत हो जाते। जब वह क ा
एक म थे तो उ ह ने बड़ भोलेपन से अपनी िशि का से पूछा िक वह लाल रग क अंडरिवयर य पहने ए थ । उ ह
याद ह िक वह बुरी तरह भड़क उठ । िन संदेह यह यूनो ही ह।
आगे चलकर उनक िकशोराव था क दौरान बोध क ित उनक इस उ भाव क वजह से, एक बार जब वह अपने
िम क कमर म वेश कर रह थे तभी वह पूछ बैठ, ‘‘अर भई अंदर कौन लड़क ह?’’ न ब त वाभािवक था।
व तुतः इस त य क बावजूद िक कमर म िकसी क होने क कछ प संकत थे, उ ह ने िकसी मिहला क उप थित
को भाँप िलया था। वातावरण म इ क महक भी नह थी। उसने कछ परशानी सी महसूस करते ए बताया िक उसक
बहन आई ई थी जो िक तब गुसल खाने म थी।
‘‘वह एकदम उठ खड़ा आ, य िक मने उसक बहन को भाँप िलया था’’, हसते ए स ु ने बताया। वह आगे
बताते ह िक उनक भाँप लेन े क मता से कई बार जंगल म खतरा आने से पूव उसे जानकर सावधान हो जाने क
कारण उनक जीवन क र ा ई ह। ‘‘और इससे कई तरह से मेर जीवन क अनुभव म वृ भी ई ह। मुझ े दुिनया का
अनुभव अपे ाकत यादा पूणता से हो जाता ह, य िक म गंध को पहचान लेता ।’’ उनक क पना करने क
ारिभक मता भी िविच थी। जब दस साल क आयु म उनसे िमलने र ते का एक भाई आया तो उ ह ने उस लड़क
को अपने घर क छत पर अपनी िनजी क पनातीत दुिनया से प रिचत कराया। यह एक ऐसी दुिनया थी; जो बड़ी
सूझबूझ से तैयार क गई थी। ‘‘म ायः तीसरी मंिजल क छत पर जहाँ सीिढ़याँ नह थ , चढ़ जाया करता था, तािक
कोई मुझ तक प च न सक। उस थान तक मा मेरी ही प च थी। वहाँ और कोई चढ़ नह सकता था। मने एक घर
बनाया, मेरी अपनी दुिनया, बड़ी सू मता धारण िकए ए एक दूसरी दुिनया। इसे समझना लोग क िलए बड़ा किठन ह।
मान लो, म एक पु प क रचना करना चाहता , तो म इसक कोिशका-दर-कोिशका आगे बढ़ता। तो आप सोच सकते
ह िक एक पु प क रचना करने म मानिसक तौर पर िकतना समय लगता। म इसी तरह पाँच-छह घंट िबना िहले-डले
बैठकर इसक एक भाग क बाद दूसरा भाग बनाता रहता। कभी-कभी म अपने र तेदार को घुमाने ले जाया करता। और
वह लड़का इतना उ म हो जाता िक वह ितिदन वहाँ जाना चाहता। यिद म उसे नह ले जाता तो वह रोना शु कर
देता!’’
व तुतः यह दुिनया थी या? िबना महल का एक जनाड। वह कहते ह, ‘‘जंगली जानवर से भरा आ एक
वन थल। वहाँ बाघ और एक गडा था। गडा मेरा पसंदीदा जानवर था।’’
इस आ यान से उनक युग ा होने क ारिभक मता तीत होती ह। िवशाल एवं तु छ दोन को एक समय ही
सोच लेन े क मता। स ु कहते ह, ‘‘हर मनु य म यह मता होती ह। यिद हम ऐसे सपने देखना सीख लेत े ह
िजसक हम धान पा होने क मजबूरी को महसूस नह करते। आप जो कछ कर रह ह यिद उनम से वयं को हटा देने
का आव यक थािय व आप म ह, जो कछ भी आप कर यिद उसम से वयं को पूरी तरह िमटा देन े क मता आप म
ह, तो अचानक आप अपने ि याकलाप क ऊचाई एक अलग ही आयाम म ले जाएँग।े लेिकन सामा यतया लोग को
यह पता ही नह होता िक कछ ऐसा िकस तरह से कर जो उनसे संबंिधत नह ह या कछ िजससे वयं वे ही पहचान नह
रखते और यही सीमा ह। यही वह भयंकर बा यकारी सीमा ह जो मनु य ने वयं पर लाद रखी ह। वह काय िजसम वह
या उसका अपना कछ नह ह, उसे करना वह पसंद नह करता।’’
वह छत ज गी क िनजी एवं उसक िवल ण योजना क जगह थी। वहाँ वही प च सकता था जो खेलकद म
िनपुण या मेहनती हो। जो पाइप, पेड़ या िखड़क क छड़ क सहार भी ऊपर चढ़ सक। इसिलए प रवार का कोई सद य
वहाँ नह प चता था। इसक एक वजह ज गी क एक दूसरी भयंकर सनक थी िजसक िलए छत ही ज री जगह थी।
वह थी साँप क ित उसक धुन। इसी धुन क वजह से वसुदेव प रवार एकजुट होकर उनका िवरोध करता था। प ी व
सरीसृप क ित उसका ान वभावगत था। चार वष क उ से ही वह अपनी क ा म वा यकर िनज वता क
अपे ा कल क बाहर क गटर क गंदगी पसंद करता था। ‘‘मेरी नौकरानी ितिदन सुबह मुझ े कल ले जाकर छोड़
देती और िफर दोपहर को आकर मुझे ले जाया करती। म हमेशा उससे यह सौदा तय कर लेता िक वह कल म अंदर
आने क बजाए मुझ े कल क गेट तक छोड़ दे। उसक वापस जाते ही, म बाहर आ जाता और गटर क बगल म बैठ
जाता। मुझ े क ा कभी भी अ छी नह लगी।’’
उसे मालूम था िक गटर म कभी भी ठहराव सा नह रहता। उसक उ क िहसाब से तो यह अपने आप म ही िवशाल
घाटी से कम नह था—नई-नई संभावना से यु चकाच ध कर देनेवाली सप क जाितयाँ इसम थ —पानी साँप,
बगीचे म पाए जानेवाले साँप, छोट साँप, बड़ साँप, जहरीले साँप एवं िबना जहरवाले साँप। ‘‘मुझ े कभी भी साँप से डर
महसूस नह आ। मुझ े नह मालूम, य । शायद इसिलए िक म अ य लोग को झ सा लगता था। लेिकन िजतना
सहज म दूसरी चीज से था उतना ही म सप से सहज था। उनसे मुझे कभी िव मय नह आ।’’
वह अपने िपता से िमली खाली दवाई क बोतल म मेढक व उनक ब े एक कर िलया करता। दुभा यवश सप
उतनी आसानी से इन बोतल म नह रखे जा सकते थे। िफर भी ब त समय तक असुिवधा उसे नह रोक सक । प रवार
म सबसे पहले रव ने छत पर एक छोट सरीसृप फाम क खोज क । ‘‘मने देखा िक ज गी ने काँच क जार म साँप
को भरकर रखा ह। यह मुझ े बड़ा िविच लगा िकतु मने माता-िपता को इस िवषय म नह बताया। म जानता था िक
िपताजी पहाड़ िसर पर उठा लगे।’’
कछ आने क बाद ज गी का आसपास क इलाक म साँप पकड़नेवाले क प म काफ नाम हो गया। इस सेवा क
िलए उसे अ छ पैस े भी िदए जाते थे। ‘‘सामा यतः लोग को साँप से उनक तेज चाल क कारण डर लगता ह। लेिकन
मेर साथ यह बात कभी नह रही य िक म जान चुका था िक मनु य अपे ाकत यादा तेजी से चल सकता ह। जब म
सप पकड़ने जाया करता तो म िबना डड क जाता, उनक क जाने तक इतजार करता। तब उ ह पकड़ने से पहले उ ह
का रहने देता। यही तो सप पकड़नेवाले करते ह। म तो गु से से फफकारते कोबरा क िनकट जाकर उसे सीधे पकड़
लेता था। यह कारनामा म कई वष तक करता रहा। म नह कह सकता िक आज ऐसा करने क मुझम गित व सम वय
ह। लेिकन तब इसे म बड़ िव ास क साथ िकया करता था।’’
वह अंत ान से साँप क उप थित भी भाँप िलया करते थे। ‘‘मुझम ब त ही ती भाव उ प हो गया था जो अ यास
क अभाव म अब मुझसे दूर हो गया ह।’’
‘‘म जंगल म बड़ी आसानी से साँप का पीछा कर लेता था। म सूँघकर उसका पता लगाता था और उसे पकड़ लेता।
यिद ‘चामुंडी िहल’ पर िकसी थल म म जाता, तो त ण म यह जान जाता िक िकस प थर क नीचे साँप होगा। अब
वह इि य ान मुझम ख म हो गया ह। चूँिक म ब त से लोग एवं ब त सी शहरी चीज से िघरा रहता ।’’
यह बड़ा लाभदायी नर िस आ। बचपन से ही मने अपने माता-िपता से एक पया भी बतौर जेब खच नह
िलया। छठव -सातव क ा म पढ़ने क दौरान भी म अपने खचभर को कमा िलया करता था। नजदीक ही एक ‘स ल
इ टी यूट’ था िजसक िवशाल प रसर म ब त-से साँप थे। वहाँ एक िनयम था िक यिद कोई वहाँ एक छोटा साँप
पकड़ता तो उसे 25 पए का भुगतान िकया जाता। बड़ा साँप—लगभग साढ़ तीन फट लंबा—पकड़ने पर पचास पए
िदए जाते थे। उन िदन पचास पए एक बड़ी रकम कहलाती थी। इसिलए यिद शिनवार क दोपहर म वहाँ प च जाता
तो दोपहर भर म म तीन या चार साँप पकड़ िलया करता था, िजससे मुझ े डढ़-दो सौ पए िमल जाते थे। अपना जेब
खच कमाने का मेरा यह भी एक तरीका था।’’
एक िदन उ ह ने एक थानीय यूब लाइट कारखाने म घुसे साँप को पकड़ा। इससे कारखाने क कमचा रय ने बड़ी
राहत क साँस ली। वे यह ब मू य पुर कार (सप) िकसी और को न देकर या कह और न छोड़कर चुपक से अपने
घर ले आए और उसे अपने िब तर क नीचे िछपा िदया। ज द ही वह इनका घिन साथी हो गया।
कछ समय बाद िपता ने उनक हम िब तर िम को खोज िनकाला। ऐसा उ ह ने भयंकर फफकार का कारण पता
लगाने क िलए िकया था। ‘‘जब मेर िपता ने यह िविच आवाज सुनी तो घुटन क बल चलते ए वे नीचे आए और
देखा िक यह ह या? मने उस साँप को एक बड़ काँच क िड बे म रखा आ था। उस यूबलाइट फ टरी ने मुझे एक
भारी-सा लेबोरटरी जार मु त िदया था, िजसे म आंिशक प से बंद कर सकता था। इसम म साँप को रख सकता था।
म िदनभर उसे जार म रखता और शाम को जब म कल से लौटता तो उसे बाहर कह ले जाता और कछ यायाम
कराकर (घुमा-िफराकर) वापस उसम डाल देता। मेर िपता ने साँप क ओर देखा और दंग रह गए। जब म घर लौटा तो
वह गु से से पागल हो गए थे। बेशक वह भी डर ए थे। घर म हर कोई करसी या सोफ पर खड़ा आ था।’’
ज गी यह नह समझ पाया िक यह िकस बात का हो-ह ा था। यह सच था िक उसका साँप बारह फट लंबा कोबरा
था। कहना न होगा िक यह खूबसूरत ाणी उसका िम था। उसने दुःखी होकर साँप का थान बदल िदया। उसे बाहर
फक िदए जाने क प रवार क कठोर आदेश का उ ंघन करते ए, उसने एक बड़ा िपंजरा बनाया और उसम रखकर
उसे अपनी छत पर ले गया। यह साँप तीन साल तक उसक साथ रहा। सौभा यवश इस बीच प रवार का कोई सद य पर
नह गया।
आगे चलकर उसे साँप क साथ इस गहर संबंध क जानकारी ई। उसने महसूस िकया िक यह उसक पूव जीवन
काल क िवरासत थी। लेिकन बात इतनी ही नह थी। वह ायः कहते ह िक भारत म साँप और गाय क ित परपरागत
आदरभाव अंधिव ास मा नह ह। स ु का कहना ह िक हर मनु य अपने आ त वक िवकासवाद क या ा क
दौरान सप और गाय का जीवन जी चुका ह। ‘‘इसका एक पहलू कडिलनी ऊजा और इसक कित का तीक ह—
गित एवं िन त धता मापने म सप क साथ इसक समानता। एक और मह वपूण पहलू यह ह िक िकसी अ त व क
िवकास म सप एक अिनवाय और मह वपूण कदम ह। जैसा िक शरीर क िवकासवाद ि या म बंदर एक आव यक
चरण ह, वैस े ही िकसी जीव क िवकासवाद ि या म सप एक आव यक कदम ह। यही बात गाय क मामले म भी ह।
इसीिलए इस सं कित म यह माना जाता ह िक आप दोन म से िकसी क ह या नह कर सकते। यिद भारत म आपको
एक मृत साँप िमल जाए या आपको इसे मारना पड़ तो आप उसका उिचत अंितम सं कार कर द। सप हमेशा उिचत
अंितम सं कार ा करता ह, य िक अ त व क मामले म यह मनु य क काफ िनकट ह। सप मारने को हमेशा से
ह या माना गया ह।’’
सरीसृप से ज गी क मुठभेड़ हमेशा ही इतनी सौहादपूण नह रही। एक बार पहाड़ी पर जाते ए उसने जब धीर से
च ान क दरार से एक कोबरा को ख चा तो एक क जगह दो िलपट ए सप को देखकर वह दंग रह गया। इसक
पहले िक वह कछ समझ पाता, दूसर कोबरा ने आ मण कर िदया। इसक जहरीले दाँत तीन बार उसक पैर म चुभ गए।
अंितम बार तो खतरनाक ढग से, य िक इस बार पैर क उगिलय क म य मांसल थान पर दाँत चुभे थे। वह कहते ह,
‘‘जब जहर आप म वेश करता ह तो आपको अलग तरह का दद महसूस होता ह। यह इजे शन सरीखा होता ह। म
जान गया था िक यह मेर शरीर म वेश कर गया ह। लेिकन िकतना, यह मुझ े पता नह था। कोबरा क काटने से
संबंिधत जो जानकारी मुझ े थी वह यह थी िक इससे आपका खून जमने लगता ह, दय क खून पंप करने क यो यता
किठन होने लगती ह और आमतौर पर गुदा िन कासन इस किठनाई क वजह से फट जाता ह। इस ि या को धीमा
करने क मेरी जानकारी म जो तरक ब थी वह ह काली चाय।’’
वह और िवलंब नह कर सकता था, उसने प रवार म िकसी को सूिचत नह िकया। ‘‘पहले मने सोचा िक म अपने
िपता को इसक जानकारी दे दूँ। बतौर डॉ टर वह मुझ े अ पताल ले जा सकते थे या कछ कर सकते थे। तभी मने सोचा
छोड़ो। मेरी पलक कछ भारी और झुक ई थ । मने सोचा म जरा देख ूँ होता या ह।’’ ज गी ने कछ योगासन िकए,
ज दी से खाना खाया और सो गया। बारह घंट बाद जागा। काली चाय उनक िलए काफ कारगर िस ई थी।
प रवार म एक ऐसा य था िजससे लगता था िक ज गी ने ऐसे खतरनाक एवं मनमौजी तरीक िवरासत म ा
िकए थे। पा रवा रक छ याँ माँ क नानीजी क घर िबताई जाती थ । औरत क प म उसे शैतान माना जाता था। वह
प रवार क असली िव ोही थी। एक ऐसी मिहला जो अपने समय क रीित रवाज को िबना आ म लािन क ितर कत
करती थी। उनक धनवान पित क पास कई एकड़ जमीन थी िकतु मंिदर बनाने क िलए उसने हठ करक दूसर क जमीन
चुनी। स ु कहते ह, ‘‘वह मानती थी िक कोई भी जमीन का मािलक नह हो सकता। तेलुगु म एक कहावत ह िक—
मा 3 फट चौड़ी और 6 फट लंबी जमीन पर ही आपका अिधकार ह। जहाँ आपका अंितम सं कार िकया जाता ह या
दफनाया जाता ह।’’
उसका यवहार प रवार क िलए गंभीर िचंता का िवषय था िकतु वह खुश रहकर इसक ित तट थ रहा करती थी।
‘‘वह प रवार क िलए कलंक थी। सबक िलए परशानी का िवषय’’, वह कहते ह, ‘‘आप उसे न तो भूल सकते थे न
टाल सकते थे, य िक उसक चार ओर लोग इक रहते थे। यिद वह कह दूर चली जाती तो लोग उसे भूल सकते थे
और हम यह कह सकते थे िक वह मर गई। लेिकन वह तो वह रहकर अपना शासन चलाती थी।’’
उसक िज ीपन क चच दूसर े म भी फल गए। वह एक सौ तेरह साल क आयु तक जीिवत रही, उसने अपने
ब और नाती-पोत क मौत देख । यिद उसक मौत पहले ही हो जाती तो यह वयं उसक एवं उसक प रवार क िलए
राहत क बात होती। िकतु अपने जीवन क ित अ यिधक ेम क चलते उसक रवैये से छटकारा नह पाया जा सका।
स ु कहते ह, ‘‘िन या वे साल क उ तक उसक पूर दाँत थे, वह चबाकर खा सकती थी। और एक सौ यारह वष
क आयु म वह गले क कसर से पीिड़त हो गई। इलाज क िलए उसने स त मना कर िदया इसिलए दो वष बाद िबना
िकसी इलाज क उसक मौत हो गई। ब त-से लोग तो उसका नाम ही नह जानते थे। बूढ़ी होने पर वह शाइिटका से
पीिड़त हो गई, िजसक कारण वह लँगड़ा कर चला करती थी। इसीिलए लोग उसे ‘कट मा’ अथा ‘लँगड़ी औरत’ कहा
करते थे। िकसी को उसका नाम मालूम नह था य िक एक सौ तेरह साल क बाद आपका नाम भला कौन याद
रखेगा?’’
स ु क अपने िविच और स प रवार क लोग से जुड़ सं मरण बड़ सजीव ह। ‘‘मने अपने परदादा को देखा ही
नह , वह ब त पहले ही वग िसधार गए थे। िकतु मेर दादाजी शहर क सबसे धना य य थे। िकसी ने उ ह बता
िदया होगा, ‘यिद आप गरीब को भोजन कराएँगे तो आप सीधे वग जाएँगे।’ इसिलए ितिदन सुबह वह उप थित
रिज टर िनकालते। शहर क सभी िभखारी, लगभग दो सौ— वहाँ आकर एक समय का भोजन करक संतृ हो सकते
थे। उ ह रिज टर म अपना नाम िलखवाना पड़ता था अ यथा उ ह भोजन नह िदया जाता था। ितिदन सुबह मेर दादा
घर क सामने बैठकर यह सब देखा करते थे, य िक वह भोजन कर चुक लोग क सं या क जानकारी चाहते थे। यह
सबकछ बतौर रकॉड रखा जाता था। और लोग भी उनक पास आते रहते थे य िक शहर म लगभग सभी लोग उनक
कजदार थे। वे याज चुकाने या कज का िनबटारा करने आया करते थे। मुझ े पूरा यक न ह िक यिद उनक पास पैसा
नह होता तो लोग उसक पास नह आते।
‘‘वे वतः उनक पास आया करते थे य िक परदादा क पास पैसा और ताकत थी। यह सबकछ सामनेवाले दरवाजे पर
आ करता था। अपना काम िनबटाने क बाद वे सामा यतः िपछले दरवाजे क ओर चले जाते थे। वहाँ मेरी परदादी का
शासन चलता था। वह अपने खास अंदाज म बैठने क चलते लोग को कछ घमंडी लगती थ । हालाँिक उ ह ने कभी
िकसी से अ खड़पन से बात नह क पर वे बैठना उसी ढग से पसंद करती थ ।
‘‘जहाँ सामने क दरवाजे पर जात-पाँत अपनी अहिमयत रखते थे, वह िपछले दरवाजे पर सद यता क िनयम िबलकल
िभ थे। सामने क दरवाजे पर यिद आप सही जाित क ह तो आपको बड़ उदार हावभाव क साथ पैसा िदया जाता और
यिद आप िन न या ओछी जाित क ह तो आपको फककर पैसा िदया जाता। लेिकन जो भी लोग िपछले दरवाजे पर
प चते थे उ ह वह बूढ़ी मिहला िबना कोई भेद-भाव िकए गले लगाती।’’
स ु को याद ह िक परदादी क भयंकर हसी िकस तरह समूची गली म गूँजती थी। ‘‘त कालीन समय म, जब
औरत का हसना तो ब त बड़ी बात ह, बोलने क भी आजादी नह थी, यह िकसी कलंक से कम नह था। और वह
जीवन को इतनी गहराई से देखती थ िजसक कोई क पना भी नह कर सकता, इसिलए वह इस तरह से हस सकती
थ । उनक आसपास मौजूद हर कोई मूख सा नजर आता था।’’
ज गी क िलए उस जगह (दादा-दादी क घर) छ ी िबताना बड़ा रोमांचकारी होता था। वह अपनी परदादी को एक
महा कहानी सुनानेवाली क प म याद करते ह। ‘‘जब हम गरिमय क छ य म वहाँ जाते और यिद हम तीस या
चालीस िदन क िलए वहाँ रहते तो वह एक ही कहानी को इस पूरी अविध क िलए ख च-तान िदया करत । हर िदन
सुबह हम कहानी सुनने क िलए एक आ करते। वह कहा करत , ‘एक िदन एक राजकमारी आई...’ और धीर-धीर
अपने बाल पर कघी फरते शु हो जात । वह एक कहानी पूर महीने या उससे यादा िखंच जाती थी।
‘‘उनका पूजा का तरीका रीित रवाज क एकदम िव था। अपने पूजाक म वह कमकांड क िबना म त होकर पूजा
म लगी रहत जो िक परपरागत प से अधािमक या धमिवरोधी समझा जाता था। कभी-कभी ज गी उनक पूजा क म
उनक पास बैठ जाया करता था िकतु इस सीमा को पार करने क बदले उसे कभी भी डाँट नह खानी पड़ी। वह ायः
उ ह रोते-हसते, नाचते-गाते, देवता को िम व संबोिधत करते और उनक ओर पैर से फल उछालते देखते रहते।
वह कहते ह, ‘‘मने उ ह पूण उ म एवं त ीन थितय म देखा ह। वह पूजा क म चली जात , जहाँ भारतीय
प रवार क समृ क साथ-साथ देवी-देवता क सं या बढ़ती जाती ह। यह काफ समृ प रवार था इसिलए
हमार पास दजन देवी-देवता थे— चाँदी क, सोने क, हर तरह क। उनक कश काफ लंब े ठीक िनतंब क नीचे तक थे
और वह अपने बाल को खुला छोड़ िदया करती थ । वे गाती-नाचती रहत , उनक आँख से आँसू बहकर चेहर पर
लुढ़कते रहते। वे िवि क तरह हसते ए पैर क अंगूठ से फल को उठाकर देवी-देवता क ओर उछालत । म
नह जानता था िक वह यह सब य िकया करती थ लेिकन हर कोई उनक आसपास रहना पसंद करता था, य िक वह
जोश िदलाती थ । सबसे बड़ी बात यह थी िक वह खूब हसती थ ।’’
स ु ने परदादी का मरण करते ए आगे िव ेषण िकया िक वह िकतनी िविच मिहला थ । ‘‘वह ब त अस
या अनुिचत लगती थ िक आप नह चाहगे िक उनक जैसा कोई आपक प रवार म हो। वह एक मुसीबत थ । चूँिक वह
अंतमुखी थ इसिलए वह ऐसी बात जानती थ िजनका कोई अनुमान भी नह लगा सकता था। न ही वह इन बात को
िकसी को बता सकती थ , य िक ऐसा कोई य था ही नह िजसे वे कछ बता पात । इसिलए वे हसकर रह जात ।
सभी उ ह िनर मूख नजर आते थे य िक जो वह देख सकती थ , वे नह देख पाते थे।’’ एक बार मने उनसे पूछा, ‘भला
आप कर या रही ह?’ तब उस बुिढ़या ने कहा, ‘छोड़ो भी, एक िदन तुम समझ जाओगे।’’
स ु ने लंब े अंतराल क बाद यह जाना। इस अ पायु म तो उ ह उनक रवैय े से दंग रह जाने क अपे ा आनंद
िमलता था। उ ह ने पहले भी अपनी परपरा िवरोधी भावना क चचा हमसे क ह। समारोह क ित स ु म काफ
य ता रहती थी। वह प संशयवादी थे। वह प रवार क साथ थानीय मंिदर म जाने से इनकार कर देते थे और बाहर
जूते-च पल क देखरख करनेवाले क साथ खड़ रहते। इन बात से उ ह यह भरोसा हो गया िक पारप रक पूजा-पाठ क
काम म कोई बड़ा खोट ह। ‘‘म ऐसी िकसी बात पर यक न नह करता जो मुझ े नजर नह आती। यह िकशोराव था क
सम या नह थी। यह बचपन क सम या थी। अपनी शैशवा था से ही अपने आसपास होनेवाली बात पर म तब तक
िव ास नह करता था जब तक म उ ह देख और समझ न लेता। इसिलए चार या पाँच वष क उ म भी म अपने
माता-िपता क साथ मंिदर जाने से मना कर देता था। वे ब त धािमक वृि क नह थे। वे साल म एक या दो बार ही
मंिदर जाते थे। इस पर भी म मना कर देता था। मेर मन म सवाल थे। वे मेर उन सवाल का जवाब देन े क िलए कभी
तैयार नह ए, इसिलए मने कभी मंिदर म वेश नह िकया। मुझ े हमेशा च पलवाले क सुर ा म छोड़ िदया जाता था।
वे अपने जूत-े च पल स पने क साथ ही मुझ े भी उसक िनगरानी म छोड़ देत।े वे कहा करते, ‘इसका यान रखना, वरना
यह कह भाग जाएगा।’ इसिलए च पलवाला एक हाथ म मुझ े उठाए रहता और दूसर हाथ से अपना काम करता था।
वह जानता था िक यिद उसने कह और देखा तो म चंपत हो जाऊगा। उसक संगित म मने भारतीय चरण पादुका क
सम या क िवषय म ब त कछ जाना। वष बाद इशा सटर पर सबसे पहले मने िजस काम क सुचा यव था क वह
यही था िक हर कोई अपने जूते-च पल कसे रखे।’’
िखलिखलाते ए वह आगे कहते ह, ‘‘आज बड़ गव से हम कह सकते ह िक आठ से दस लाख लोग हमार
समारोह म आते ह लेिकन एक लीपर भी कभी गुम नह होता। म हमेशा कहता , ‘यह एक ऐसा काम ह िजसे मने
बचपन म सीखा।’ मुझ े ब त पहले से ही जूते-च पल क सम या क िवषय म पता ह।’’
जूते-च पल क टॉल पर बैठकर ज गी ने दूसरी बात पर गौर करना शु िकया। ‘‘जब म आठ-नौ साल का हो
गया, मुझ े आभास आ िक लोग ई र से बात करने क िलए मंिदर म जाते थे। म यह जानना चाहता था िक उससे
िमलने क बाद वे कसे हो जाते ह। इसिलए उ ह ने एक मुख मंिदर क बाहर बैठकर उनका बारीक से अवलोकन करने
क ठानी। ‘‘जब वे बाहर आते तो मने ायः यही पाया िक सामा यतः वे िकसी ऐसी चीज क िवषय म बात कर रह होते
थे जो उ ह ने मंिदर म देखी थी। जब उ ह यह पता लगता था िक उनक जूते-च पल कोई और पहनकर चला गया ह तो
वे सृि कता और उसक सृि को कोसने लगते। कोई भी कभी ऐसा नह सोचता था िक उसक जूते-च पल कोई
इसिलए ले गया होगा चूँिक उसे वे ज री रह ह गे। नह , लोग पूरी दुिनया को कोसते। मने ायः देखा िक र टोटट से
बाहर आते ए लोग, मंिदर से बाहर आनेवाले लोग क अपे ा यादा शांत और खुश नजर आते थे। देवी-देवता बनाम
दोसा ितयोिगता म दोसा िनिववाद िवजेता था।’’
ज गी को जाितगत भेदभाव से नफरत थी। इसी वजह से जब कोई पंिडत पा रवा रक पूजा-अनु ान संप कराने
आता तो वह खासतौर पर भड़क उठता। बाद म वह मनन करता िक या उसक कछ भ सनाएँ अनाव यक प से
दुःख प चाने वाली थ । िफर भी वह वयं को रोक भी नह पाता था। ऊच-नीच का खुला या दबा-ढका आचरण देखते
ही उनका खून खौलने लगता। वह यह भी साफ-साफ जानता था िक ये कमकांड आ या मक उ कठा से यादा मानव
सुर ा से जुड़ ए ह। ‘‘मने देखा िक जो कछ हो रहा था वह भय या लालच पर आधा रत था। म तब भी जानता था िक
उसे आ या मकता नह कहा जा सकता। यह वग म जीवन का रा ता िदखलाता था, और वह भी कारगर नह था। यह
एक ऐसा देश ह जो यह दशाता ह िक यह कारगर नह आ ह। हमार पास लगभग ततीस करोड़ देवता, हर कार क
कमकांड और हर तरह क ाथनाएँ ह िजसक जानकारी इस धरती पर िकसी और को नह ह लेिकन िफर भी यहाँ क
तकरीबन आधे लोग भरपेट भोजन नह पाते। कवल वही लोग िज ह ने समझदारी से अपने जीवन को सँभाला ह, िजंदा
बचे ह। इसिलए मने पाया िक अ त वान रहने क िलए तु ह अपने हाथ-पैर और कछ िदमागी कोिशका क योग
सीखने क ज रत ह। जीिवत रहने क िलए तु ह ई र क आव यकता नह ह, तु ह अपने जीवन म भगवा क
ज रत अपने काम या पैसा या ब को सँभालने क िलए नह ह।’’
एक अ य ारिभक ल ण िवराग का एक तर था िजसका असर उनक िनकटतम संबंध पर पड़ा। ज गी ती
पा रवा रक भावना एवं िकसी भारी लगाव से असाधारण प से अछता रहता था। वह अपने प रवार क ित ेम तो
रखता था िकतु ऐसे संबंध क कित क िवषय म ऐसी प ता थी िजससे एक बार तो उसक माँ भी आ यचिकत रह
गई। ‘‘मेरी माँ एक ब त ही समिपत कित क मिहला थ । उनक िलए उनक पित और चार ब े ही उनका संपूण
जीवन थे। उ ह ने वयं क िवषय म कभी नह सोचा; उ ह ने अपना जीवन हम पर ही योछावर कर िदया। इसिलए उ ह
कभी यह कहने क ज रत नह ई, ‘म तुमसे ेम करती ।’ या कछ और ऐसी बात क कोई याशा नह थी। मने
उनक साथ ऐसा संबंध बना िलया िक य िप म प रवार म सबसे छोटा था िकतु कई मायन म म उनका बड़ा भाई था।
वह मुझसे ऐसी बात करती थ जो वह िकसी और से नह करत । और जब म इनका फायदा उठाकर उनसे मजाक
करता तो वह हमेशा कहत , ‘म इन बात को तु ह य बता रही ।’ इस तरह एक िदन, कछ आपसी बातचीत क
कारण वह कछ भावुक हो गई और मेर ित अपना ेम य िकया। वह व तुतः यह नह कह रही थ , ‘म तुम से ेम
करती ।’ ब क उ ह ने िकसी तरह अपनी गहनतम भावनाएँ य क । मेर िलए यह बड़ मह व क बात थी। मने
उनसे पूछा, ‘यिद मेरा ज म िकसी और घर म आ होता तो या तब भी तु हारी भावना मेर िलए ऐसी ही होती?’ इससे
वह ब त दुःखी हो गई। वह रोते ए वहाँ से चली गई। मेरा मकसद उ ह दुःखी करने का नह था। मने तो एक
साधारण-सा न ही पूछा था। ऐसे न हर िकसी चीज क िवषय म िनरतर मेर िदमाग म मँडराते रहते थे।’’
ज गी का इरादा जीतने का नह था। िकतु सुशीला क चौदह वष य बेट क न ने उनक िलए अंत ान का एक अहम
ण उ प कर िदया था। कछ देर बाद वह लौट आई। वह बताते ह, ‘‘वह आ गई, अब भी उनक आँख म आँस ू थे।
उ ह ने मेर चरण छए और चली गई। उनक भीतर एक तरह का आ म अनुभव आ। और यह उनक िलए अ छा था।
हम िजन चीज से जुड़ ए होते ह—हमारा शरीर, हमार माता-िपता, हमार ब ,े हमारी प नयाँ, हमार पित, हमारा घर
इ यािद—उनक ित हमार िवचार और भावनाएँ काफ गहराई से अपनी पहचान बना लेती ह।’’
ज गी क िवषय म सबसे आ यजनक बात—जो उसक प रवार और िम को अभी भी नह मालूम ह— शायद
मृ यु से उसक त मयता थी। आधी रात को वह चुपक से अपने घर से िनकलकर मैसूर क थानीय मशान म प च
जाता। अ य समय वह अपने क ( बी, वाटर पेिनयल और बाद म सीजार, एक जमन शेफड) को घुमाने क बहाने
चुपक से मशान प च जाता। भूत- ेत को लेकर उनम कली छा जैसा रोमांच या उ साह रहा करता। िकतु उससे भी
यादा गहराई म मृ यु क ि या क ित एक आकषण, िखंचाव था। वह जली ई लाश , खोपिड़य , अलग-अलग हो
गए अंग- यंग , अंितम सं कार क कमकांड क भयावह अनु ान को घंट िनहारता रहता था। कभी-कभी वह अलग
हो गए लाश क िह से को उठाकर सुलगती िचता पर फक िदया करता। शवया ा म दुःख कट करने आए लोग क
चले जाने क ब त देर बाद तक, ज गी वह आसपास बना रहता और िनभाव से सभी बात का अवलोकन करता।
जब वह न वी क ा म थे, तब छ य क िदन म सुच रता नाम क एक सहपाठी क मौत िनमोिनया से हो गई। शु
म तो, जो आ उसक बार म सहपािठय को पता ही नह चला। सुच रता दशहर क छ य क बाद नह लौटी थी।
ज गी और उसक िम उसका नाम पुकार जाने पर उसक आवाज क नकल करते ए उप थित दज करा िदया करते
थे। बीस िदन बाद उ ह पता चला िक वह मर तो चुक ह। तब ज गी ने जो महसूस िकया वह दुःख कतई नह था
य िक उनक उस लड़क क साथ िनकट संबंध नह थे (हालाँिक कभी ज गी ने उसक लंच-बॉ स पर छापा मारा था।)
िकतु उसम यह जानने क उ सुकता ज गी िक कई वष क सहपाठी सुच रता को ऐसा या आ िक अब वह नह ह, न
हो सकती ह। सुच रता क भाई से उसे मालूम आ िक अपने जीवन क अंितम िदन म मू छा क दौरान वह ायः ज गी
नाम लेती रहती थी। इससे उसक उ सुकता और बढ़ गई। सुच रता को आिखर आ या था? वह कहाँ िवलु हो गई?
अब वह कहाँ ह?
पता लगाने का मा एक ही तरीका था। एक िदन उसने अपने िपताजी क दवाघर से गािडनल सोिडयम क 98
गोिलयाँ चुरा ल । िफर सावधानी से एक योजना बनाई, उसने कोई िलिखत नोट (लेख) नह छोड़ा। ऐसे भावुक िदखाव
क कोई आव यकता नह समझी। अपनी सभी चीज अपने िम म, कछ सहपािठय क नजर म बाँट द । वह ब त
साधन संप था। उनम म कइय म उसक बराबरी करने क और उसक संपि क लालसा रहा रहती थी। ज गी क
िलए यह उसक याग का शानदार ण था। उसने अपना मू यवान गुलेल और साँप पकड़ने से िमली रकम (एक सौ
बारह पए क बड़ी रकम) बाँट दी। उसक पालतू कोबरा और दूसर साँप चामुंडी िह स पर छोड़ िदए गए और पालतू
कछआ क करराह ी वाटर टक म। सम त भौितक संपि से छटकारा पाने क बाद शाम क भोजन का यागकर िदया।
इसक बाद बोतल क दवाई पी ली, लेट गया और इस ती ा म बना रहा िक आगे या होगा।
तीन िदन क बाद उसक न द उनक िपता क अ पताल म खुली। वह सामूिहक दौड़धूप, अ पताल प चने क
आपातकालीन आपा-धापी, पेट क धुलाई क दौरान सोया रहा। जब माता-िपता ने पूछा िक वह या सोच रहा था, उसने
बड़बड़ाते ए गलती से नागफनी (क टस) का फल खाए होने क बात कही। िकसी को कभी भी सच का पता नह
चला। ज गी क िलए खीझनेवाली बात यह थी िक उसे भी मृ यु क िवषय म कछ मालूम नह हो पाया था। एक मा
यानाकिषत करनेवाली बात यह पता लगी िक अगले तीन महीने तक जब कभी भी वह हसता तो उसक खुशी
अिनयंि त होती थी। उसने सोचा िक यह बोतल भर जहरीली दवा पीने क बाद का भाव होगा। एक अ य बात का
भाव यह था िक वह पहले क अपे ा काफ िवप था। अपनी उदारता क भावना म बहकर जो कछ िम को स प
िदया था, वह सब उसे लौटाने म वे आनाकानी कर रह थे। उसने कछ धमिकयाँ देकर और उनम से कछ को ि या वत
करक आधी रकम तो वसूल ही ली थी।
इस घटना क तीन दशा दय से भी अिधक समयाविध क बाद, जब उनक जीवन म कई नाटक य मोड़ आ चुक ह,
स ु पुनः अपनी कली िम से िमले। वह कहते ह, ‘‘वह िबलकल वैसी ही िदखती ह। वही ऊचाई, वही बनावट।
वह आ म भी आई ह। वह उनम से कछ श द का योग भी करती ह जो आरिभक जीवनकाल म योग म लाती
थी।’’ नई सुच रता अब उनक उ से आधी उ क ह। उ ह ने उसे पहचाना कसे? प ह, उसक कािमक शरीर से।
वह कहते ह, ‘‘कािमक शरीर को पहचानना इतना सरल ह िजतना एयरपोट क बैगेज ेम से हम अपना सामान
पहचान लेते ह। येक इतना वाभािवक होता ह िक हम िकसी और क होने क उलझन म नह पड़ सकते।’’
जब ज गी चौदह साल का िकशोर था तो एक नया िखंचाव शु आ। ज गी राजनीित हो गया। ऐसा होते ही उसक
अत ि य बोध घटने लगे। उनका पुनरागमन आ उ क प ीसव साल म। तब बाहरी दुिनया से ही सरोकार आ करता
था। सामािजक याय सबसे बड़ी िचंता का िवषय हो गया। ांित उसका िस ांत हो गया। इसने उसक सम िवरोध क
भावना को आक िकया और इससे उ प चंड िवचार ि या क पुकार पर गरीबी और भेदभाव जैसे मु पर
संबोधन क ितब ता पनपी।
ारिभक प से, यह सहानुभूित अपने से एक वष व र कल सहपाठी क िपता ोफसर रामिलंग क भाषण से
े रत थी। उसक कछ िम उनक झान से े रत ए। यह समूह आगे चलकर देवानुर महादेव क ेरणा पद उप थित
से भािवत आ। वह मैसूर िव िव ालय क यश वी बौ क य , लेखक एवं ांितकारी थे। महादेव ने एक लघु
िकतु भावशाली उ वादी पि का बंदाया ( ांित) क शु आत क थी। बाद म इसका नाम नारा बंदाया (मानव ांित)
कर िदया गया।
दो साल तक ज गी न सली समूह को अपना समथन देत े रह। वह िविभ आंदोलनकारी पि का क ाहक बन
गए और उ ह आ ोपांत पढ़ने लगे। जब िव िव ालय प रसर म, एक लड़क क साथ िकसी ोफसर क दु यवहार क
कारण आंदोलन फट पड़ा तो वह उसम कद पड़। छा िहसा भड़क उठी, पुिलस को बुलाया गया। ज गी ने यव था
िवरोधी तीखे पो टर पूर शहर म लगवाए, यहाँ तक िक कछ पुिलस वैन म भी लगाने का दु साहस िकया। इसम िह मत
क ज रत थी िजसक ज गी को कभी कमी महसूस नह ई। इसक चलते वह अपने सािथय से बाजी भी जीत गए।
एक पो टर िचपकाने का मतलब 20 पए क कमाई और ज गी ने पूर 100 पए कमाए। ‘‘ऊघते बात करते, धू पान
करते ए पुिलसवाले वैन क अंदर थे। ‘‘शाम क आठ से दस बजे क बीच का समय रहा होगा। चाल यह अपनानी थी
िक चुपक से जाकर एक पो टर िचपकाओ और चलते बनो, कह ठहरकर कछ देर इतजार करो। बाद म दूसरी िदशा से
पुनः आओ, दूसरा पो टर िचपकाओ और चलते बनो। म वैन पर पाँच पो टर िचपकाने म कामयाब रहा। उनम से आधे
िवंडशी ड (सामने क काँच) और आधे बोनट पर। म तो सब क सब िवंडशी ड पर िचपकाना चाहता था पर ऊपर तक
प च नह सका। खैर, मने पाँच पो टर िचपकाए और सौ पए कमा िलए।’’
सोलह वष क आयु तक उनका इससे मोहभंग हो गया। उ ह अपने सािथय क बीच वयं का छलावा खलने लगा।
उनम से अनेक उनक ांित ारी राजनीित एवं उनक य गत सुर ा क थित क बीच क खाई क ित जान-
बूझकर आँख मूँदे ए लगते थे। ज गी लगातार मा स को पढ़ते रह और चे गुएवारा क शंसा करते रह, िकतु वयं को
वामपंथ से पूरी तरह अलग करने का िनणय ले िलया। वह महसूस करते थे िक िकसी रचना मक िवक प क गैर
मौजूदगी क चलते इसम काफ रोष और घृणा थी। कई वष बाद उनक िलए एक मह वपूण ण तब आया जब उनक
ांितकारी समय क हीरो और स ु से उ म बड़ देवातुर महादेव ने सप रवार उनक (स ु ) एक यान िशिवर म
िह सा िलया।
अपने जीवन क राजनीितक चरण का मरण करते ए वह कहते ह, ‘‘म किमय को नजरअंदाज नह कर सका।
जीवन क इस चरण से मुझ े कछ मू यवान चीज तो ा ई, िकतु इससे मुझ े ब त समय तक ेरणा नह िमल सक ।
मुझम हर चीज म सि य एवं गितशील बने रहने क िलए पया उ साह एवं जीवंतता थी। लेिकन कछ ेरणा पद िस
न हो सका— कोई य , कोई खास घटना (ऐितहािसक या अ य)। शायद म ब त धृ था। मुझ े नह मालूम।’’
मनन करने पर वे इसक वजह िकसी बात पर अपने नज रए क खरपन को देते ह, िजसम िनिहत वाथ का समावेश
नह ह। ‘‘संदेह कभी भी मेरा गुण नह रहा। म सोचता िक मेरा सबसे मह वपूण पहलू प ता ह, सभी बात म पूण
प ता। इसिलए मने किमयाँ देख , य िक किमयाँ उसम थ । म उ ह खोजकर िनकाल नह रहा था। मने अपने जीवन
म कभी भी िकसी चीज क खोज नह क ह। म तो मा देखता । और यही म लोग को िसखा रहा । यिद तुम
सचमुच आ या मकता का ान ा करना चाहते हो, तो कछ भी मत खोजो। लोग सोचते ह िक यह ई र क खोज
करने जैसा ह। म उ ह बताता िक कछ भी मत खोजो। मा पूवधारणा रिहत ढग से देखना सीख लो, तभी तु ह मालूम
होगा िक वा तिवकता या ह। एक साधक िकसी चीज क खोज नह करता, वह मा देखता ह। यिद साधारण देखने
का यह गुण आपम िवकिसत नह होता ह तो आपको वा तिवकता क अलावा, बाक सबकछ नजर आ जाएगा।’’
लगभग इसी समय एक घुमंत ू योितषी उनक घर क पास से गुजरा। अपनी पहली बेटी क िववाह क संभावना को
जानने क उ सुकता क चलते, ज गी क माँ ने उसे घर बुलाया। िकतु िकसी अजनबी से लड़िकय को सीधे बात करने
देन े क ित सावधानी बरतते ए माँ ने अपने बेट, ज गी को उससे िमलने क िलए कहा। िवरोध सिहत वह तैयार हो
गया, हालाँिक इस तरह क बात म उसे िबलकल िदलच पी नह थी। उस य ने प रवार से जुड़ी बड़ी खास बात
को धारा वाह बताते ए उ ह आ यचिकत कर िदया। उसने ज गी क बड़ी बहन क िवषय म कछ भी कहने से
इनकार कर िदया िकतु दूसरी बहन क बार म उसने बताया िक उसका िववाह अगली मई तक होगा। जब ज गी क
िवषय म पूछा गया तो िवशेष क नजर से ऊपर से नीचे तक देखने क बाद उसने बताया िक यह लड़का सतीस वष
क आयु तक मंिदर का िनमाण शु कर देगा।
खानदान का ना तक और मंिदर? जािहर था िक उस य क भिव य ान क मता आधी-अधूरी थी।
प रवारवाल ने इसे हसकर उड़ा िदया। ज गी ने तो सबसे बड़ा ठहाका लगाया। िफर भी उनक बहन का िववाह अगले
वष क 25 मई को संप आ। दूसरी बहन आ या मक रा ता अ तयार कर रामक ण िमशन क शारदा मठ से जुड़
गयी। िकतु ज गी मंिदर से लगातार दूर ही रह।
उनक सबसे बड़ी बहन ारा मठ का आ मवासी जीवन अपनाने का िनणय प रवार क गले नह उतरा। मंजू सदा
से खुल े िवचार क , कछ फशन पर त युवती थी। उसक सांस रक जीवन क ित झुकाव को कम करने क यास म
डॉ टर वसुदेव उसे अपने साथ थानीय रामक ण मठ ले जाया करते थे। थित बड़ी तेजी से बदलती गई। देखते ही
देखते मंजू क कपड़ क आलमारी म ठसाठस भरी आधुिनक पोशाक क जगह सलीक से पहनी जानेवाली सािड़य ने
ले ली। वह बार-बार रामक ण िमशन जाने लगी। घटना म क इस अ यािशत मोड़ से िचंितत होकर डॉ. वसुदेव और
उनक प नी ने अपनी सबसे बड़ी बेटी क िलए िववाह संबंध तलाशने शु कर िदए। िकतु मंज ू इस बात पर डटी ई थी
िक शादी से उसका कोई सरोकार नह ह। उसक ाथिमकताएँ कह और ह।
एक बार, जब ज गी क माता-िपता बंगलोर जा रह थे, तो ज गी ने मंजू को चुपक से घर क आलमारी से अपना
कल छोड़ने का माण प और अंक सूिचय को िनकालते देखा। वह तुरत भाँप गया िक कछ चल रहा ह। ज गी, जो
ायः घर से भागने क योजना बनाता रहता था, तुरत समझ गया िक घर छोड़ने वाले क पास ये पहचान क मह वपूण
लेख होने ही चािहए। उस िदन सुबह जब मंज ू िदखावे क तौर पर टाईिपंग ास जाने क िलए घर से िनकली तो ज गी
ने उसक आलमारी देखी। उसक चार सािड़याँ उसम नह थ । उसने मंज ू क िनिम कोई खास लगाव महसूस नह
िकया। उसका मानना था िक रामक ण क बदले उसका बदलाव क मुिहम से जुड़ना बेहतर होता। लेिकन घर से भागने
क इ छा रखनेवाल से उसक सहानुभूित हो गई। उसने भागने क ि या म उसे सहयोग िदया। त प ा उसी िदन
शाम को पाँच बजे उसने अपने माता-िपता को बंगलोर म फोन पर सबकछ बताया। वसुदेव प रवार उलट पाँव लौट
आया। जोर-शोर से क गई खोजबीन क प ा मंजू क ि चूर क शारदा मठ म होने क जानकारी िमली। अब यह
प रवार क ित ा बचाने और पथ लड़क क समय रहते सुर ा करने क बात थी। उ ह उस भवन (मठ) म
वेश नह करने िदया गया सो वे लौट आए। वे भयंकर ोिधत िकतु परािजत थे। ज गी को याद ह िक उनक िपता उस
घटना से टटकर तीन िदन तक रोते रह।
एक महीने बाद ोध शांत आ और उसका थान मौन वीकित ने ले िलया। तब वसुदेव प रवार मंजू से िमला। वह
अब अपनी नई िजंदगी से संतु , चा रणी थी, माता-िपता क सामने इस थित से समझौता करने क अलावा कोई
िवक प न था।
आिखरकार प रवार म हमेशा से आ या मक असर रहा ह, उ ह ने इसक पूव परदादी क बार म सोचते ए इसे
तकसंगत पाया। इसक अलावा प रवार म तीन अ य ब े तो थे ही िजनसे उ ह सांसा रक े म गौरग वत होने क
उ मीद थी। लेिकन उनक भा य म या िलखा था इसक उ ह िबलकल जानकारी नह थी।
एक नए चरण का ारभ आ। घर पर ज गी क क रयर क िवक प पर चचा होने लगी। तभी एक सुबह ज गी ने
सेना म शािमल होने क योजना बनाई। जब उसने नेशनल िडफस एकडमी क परी ा दी, उस समय उसे बारहव क ा
क परी ा उ ीण करनी थी। इसका अित र लाभ प था। उसे लगा िक इससे जीवन म वह सब िमल जाएगा, जो
वह चाहता था, हग लाइिडग, पवतारोहण, िकग, हॉक । जैसा िक उसने बाद म कहा, ‘‘मने तो बस यही सोचा िक
मेर साहिसक कारनाम क िलए पैसा िमल जाएगा।’’
शारी रक एवं अिभ मता परी ण म वे आसानी से उ ीण हो गए और इसक उपरांत उ ह सा ा कार क िलए भोपाल
बुलाया गया। सा ा कारवाले कमर म वेश करने पर उ ह ने तीन ि गेडयर को बैठ ए देखा। सभी चमकते ए तमगे
लगाए थे, और उन सभी क बड़ी-बड़ी मूँछ थ । बैठते ही उ ह याद िदलाया गया िक उ ह बैठने क अनुमित तो दी ही
नह गई थी। सा ा कार क शु आत ही िबगड़ गई थी। आगे बात और तेजी से िबगड़ती गई। यह जानकर िक भूगोल
उ ह अ छा लगता ह, एक ने काटलड का वह थान पूछा जो मछली पकड़ने क िलए िव यात ह। ज गी ने
नकारा मक उ र िदया, िकतु अपनी वा पलता से यह कह िदया िक तीन महीने क अंदर वह उ ह भूगोल क कछ
चीज पढ़ाने लायक हो जाएगा। इसम हरानी क कोई बात नह िक यह जवाब उनक सा ा कारकता क गले नह
उतरा। ज गी ने यादा खेद महसूस िकए िबना अपने सै य सेवा क सपन को याग िदया।
डॉ टर वसुदेव ज गी क ढलमुल रवैये से िनराश रहने लगे थे। अपने बेट को वह डॉ टर बनाना चाहते थे। स ु
कहते ह, ‘‘इसक िलए वह इतने उ सुक थे िक जब कभी भी संभव होता तो हमसे बातचीत क दौरान वह अपने सभी
पुराने नो स, िनकाल लेत।े अपने समय म वह कॉलेज म थम आए थे। उ ह ने न कवल अपनी पा य पु तक
सँभालकर रखी थ ब क, उ ह ने अपने सभी य गत नो स अपने सभी मरीज क कस िह ी भी रखी थी। सबकछ
उनक छोटी-छोटी साफ िलखावट म िलखा आ था। वह हम बताया करते थे, ‘‘मने यह सब इसिलए रखा ह िक तुमम
से कोई एक डॉ टरी पढ़गा।’’
जब डॉ टरी क बात ही समा हो गई तो इजीिनय रग अगला सव म िवक प महसूस आ। पर ज गी को उससे
भी अ िच थी। जब िव ान और कॉमस क बात रखनेवाली िडि याँ भी अमा य कर दी गई तो उसक िपता को कछ भी
नह सूझा। या यह लड़का कभी भी समझदार नह होगा, कभी भी अपना रवैया नह सुधारगा?
ज गी का अगला िनणय माता-िपता क िचंता को कम करनेवाला नह था। उसने औपचा रक िश ा को यागकर
मैसूर यूिनविसटी लाय ेरी म वा याय ारभ करने का िनणय िलया। वह सुबह नौ बजे घर से िनकल जाता और प ा
इरादा कर लेता िक वह शाम 8 बजे तक नह लौटगा। ऐसे घर म समय िबताना उसे बेवजह ही लगता था जहाँ उसे
नाकारा समझा जाता था। भोजन क ित अित र िच और अपने घायल वािभमान क कारण, उसे उस साल
अिधकतर समय भूखा रहना पड़ा। ना ते और रात क भोजन क बीच पु तक ही उसका एकमा सहारा आ करत । वह
िवषद अ ययन िकया करता था िजसम होमर, थॉमस मूट, प मी दशन और लोकि य यं िव ा भी स मिलत थे।
यं िव ा क अ ययन से उसे हग लाइडर बनाने क ेरणा िमली। ‘‘मने इसे बाँस और कह से हाथ लगे पैराशूट िस क
से िनिमत िकया। इसक बाद नंदी िह स से उड़ान भरने क कोिशश क ।’’ उड़ान तो भरी लेिकन िजतनी उ मीद थी
उससे काफ पहले उतरना पड़ा। इस ि या म दोन टखने टट गए। वष बाद एक ि िटश पायलट से हग लाइिडग का
िश ण िलया और उड़ान भरने म सफलता पाई।
पैसा कोई सम या नह थी। ज गी हमेशा ही साधन संप था। उसने अपनी धुन क िकसी भी काम पर खच करने क
िलए अपने माता-िपता का आ य नह िलया। उसक िविवधतापूण गैरपुरातनवादी कौशल —कबूतर पालना, िपछवाड़ से
पानी क टिकय पर चढ़ना, ऊटी से लाई ई गाय को बेचना—से काफ कमाई हो जाया करती थी। एक ऐसा भी समय
था जब उसक पास नकद पसठ पए रहा करते थे—एक िकशोर क िलए एक अ छी रकम। उसक पैस े ब धा
सामूिहक साइिकल अिभयान एवं अपनी साइिकल को साफ-सुथरा व आकषक बनाए रखने म खच होते थे। अित र
पैस े एक अपे ाकत अिधक मह वाकां ी भिव य क योजना क िलए रख िलये जाते थे (साइिकल से मा को या ा)।
एक साल क सुखद वा याय क बाद ज गी कॉलेज जाने को सहमत हो गया अंततः उसक माँ क आँख क
आँसु ने उसे हरा िदया था न िक घर म हर िकसी क ातक होने क माता-िपता क चाह ने। लेिकन जो करना था
उसक बार म वह अिडग ही रहा। और यह िजद थी अं ेजी सािह य क । ‘‘भला किवताएँ पढ़कर तुम अपनी आजीिवका
कसे जुटा पाओगे?’’ सदा अड़गा डालने क आदत से मजबूर िपता ने पूछा। लेिकन एक ऐसा य िजसक पास पैसा
कमाने क योजना क कभी कमी न रही हो, आजीिवका क सवाल उसक िदमाग म फटकते ही न थे। ज गी ने कहा,
‘‘या तो सािह य या लाय ेरी को वापसी।’’ यह सुनते ही उसक िपता को सािह य म कम बुराई नजर आई।
ज गी ने अगले तीन वष िदखावे क तौर पर एक छा क हिसयत से मैसूर िव िव ालय म िबताए। उ ह ने यह
साफ कर िदया था िक वह सं याकालीन क ा म जाएँग।े ‘‘ ितिदन म शाम छह बजे से छह बजकर तीस िमनट तक
य त रहता। मने िदन का समय अपने वयं क िलए और शाम का समय माता-िपता क िलए तय कर िलया था।’’ एक
बार पुनः उनका यादातर समय क ा म होने क अपे ा बाहर रहने म बीतने लगा। उ ह ने अपने या याता म से
एक को तब नाराज कर िदया जब क ा म खड़ होकर उ ह ने उसक नो स फोटोकॉपी करा लेने क िलए माँगे। इससे
या याता का िड टशन देने का क कम हो जाता और ज गी का क ा म रहने का क कम हो जाता। उ ह ने कहा,
‘‘मने यह पाया िक क ा म कवल िड टशन ही तो चल रहा था। और मेरा इरादा टनो ाफर बनने का कतई नह था।
मेर िदमाग म हर समय लाख न आ करते थे। म हमेशा उनक तलाश म रहता था जो इन न का उ र दे सक।
इसिलए मने कहा, ‘मेरी इ छा नो स िलखने क नह ह। ब क मेर पास तो न ह, या आप उनका उ र दे सकते
ह?’’’
इसम अचरज क बात नह ह, उनक ोफसर ने खुशी से अगले तीन साल क िलए वतं उप थित क अनुमित दे
दी। क ा म उनक उप थित से वातावरण ितकल हो जाया करता था। ‘‘इसिलए मने सभी िश क से एक समझौता
िकया। महीने क येक िदन वे मुझ े देखते। महीने क अंितम िदन उप थित दज हो जाया करती। उस िदन म क ा म
वेश करता और यह सुिन त करता िक वे अपने समझौते का पालन कर रह थे।’’
इसक आव यकता उ ह परी ा म शािमल होने क िलए पड़ती थी। जब कभी संभव होता तो वह यह सुिन त कर
लेत।े िकतु कभी-कभी ऐसा जािहर तौर पर संभव न होता। ‘‘म ातक क तीय वष म था। अंतरिव िव ालयीन
फटबॉल मैच चल रह थे। मने सोचा िक तकरीबन आधे घंट म मैच देख लूँ, िफर परी ा देने चला जाऊगा। म इसक
िलए पूरी तरह तैयार था। वहाँ बैठकर म मैच देखने लगा। और देखते-देखते म इतना खो गया िक मैच क ख म होने
तक म का रहा। तभी मुझे मालूम आ िक परी ा का समय भी समा हो चुका था।’’
कछ िश क ऐसे थे, िजनक क ाएँ उ ह ेरणा पद लगती थ । वह उनक या यान सुनते और बािकय को टाल
जाते। ‘‘जब मने अं ेजी सािह य चुना तो इसका कारण मने यह सोचा िक यह सबसे कम बा यकारी होगा’’, वह हसते
ह, ‘‘मने सोचा कोई अ य िवषय मेर जीवन म ब त ही बा यकारी होता। म सोचता था िक सािह य का अिभ ाय यह ह
िक म ब त-सी कहािनयाँ और किवताएँ पढ़ सकता था। िकतु सािह य क साथ मुझे भूगोल और समाजशा भी पढ़ने
पड़। भूगोल मुझ े पसंद था— यह उस ह क िवषय म था जहाँ हम चलते ह। िकतु समाजशा तो पूरी तरह लोग क
मत से जुड़ा था और मुझे इतना तु छ लगता था िक म क ा म उप थत रहने से ही इनकार कर िदया करता। आप तो
जानते ह िक उप थित कसे दज क जाती ह? चूँिक मेरा नाम ‘जे’ से शु होता ह तो यह पहले तीन िमनट क दौरान ही
पुकार िलया जाता। वे तीन िमनट भी ब त भारी पड़ते थे। उसक बाद म िखड़क से िनकलकर चला जाया करता।
िखड़िकयाँ काफ बड़ी, दरवाजे से भी बड़ी आ करती थ । समाज शा क िश क ने मुझे बताया िक यह बड़ा
अटपटा तरीका ह। मेर िलए तो िखड़क अटपटा नह ब क सुिवधाजनक थी। लेिकन उस िदन से मने दरवाजे का
योग करना शु कर िदया।’’
ज गी खुशी से बगीचे म चले जाते। इसी दौरान सम या क समाधानकता, एक अनौपचा रक मनोिचिक सक क प
म उनक माँग होने लगी। उ ह यह काफ सहज लगता। वह एक अ छ ोता थे और ि कोण क सुबोधता से िविभ
मसल पर वह सटीक सलाह िदया करते। वह मरण करते ए कहते ह, ‘‘मेर सहपाठी छा मेर पास हर तरह क मु े
लेकर प चते। िश ा सम याएँ, संगठन सम याएँ, वाय ड/गल ड से जुड़ी सम याएँ एवं पा रवा रक सम याएँ।
युवक-युवितयाँ इतनी यादा सम या से िघर रहते ह, अिव सनीय ह। ऐसा नह िक बड़ लोग को ही सम या त
होने का अिधकार ह, ब क जब आप छोट होते ह आप यह अपे ा करते ह िक बड़ मूख रह और छोट जीवन क ित
सजग रह। वे अपनी सम याएँ लेकर आते रह तो वहाँ बैठकर म इन धुए ँ से लहराते लोग को आकर अपनी सम याएँ
बताते देखता रहता। म ही एक ऐसा झ था, िजसक पास कोई सम या नह थी। म हर सम या क िलये उ छखल
सुझाव अपने तरीक से देता।’’
और िफर भी, उन उ छखल सुझाव म से कछ क प तः मानवीय प भी आ करते थे। उस समय तक, म लोग
क मूखता से ोिधत हो उठता था। लेिकन जब इन धुँधले से नजर आनेवाले लोग , इन ेत ारा तुत क गई लोग
क िविवध सम या को जब म सुनता तो धीर-धीर म उनसे स दय होता गया। म उन तक प चने लगा। म जानता था
िक यह मूखतापूण ह। जो मुझे करना था, उनक िदमाग म द तक देना और उ ह बताना िक आप मूख ह, िकतु िकसी
कारणवश मेरा गु सा सहानुभूित म प रवितत होने लगा।’’
इसी समय ज गी ने अपने जैसे मोटर साइिकल क सािथय का समूह खोज िलया। ‘‘हम अपनी मोटरसाइिकल पर
रहा करते थे। हम इनक िलए पागल हो गए थे। हम हर समय इससे िचपट रहते थे। हम अपना सारा समय इिजन से
छड़छाड़ करने म यह सोचते ए िबताते थे िक इस मशीन को कछ और तेज कसे िकया जा सकता था। कपस ाउड म
एक िवशाल बरगद क पेड़ क नीचे एक वाभािवक फोरम तैयार हो गया। िकसी ने इसका नाम बनयन ी ब दे िदया
और एक लेबल िचपका िदया। िकसी और ने एक जनल क काशन का ताव रखा और देखते ही देखते यह मािसक
काशन हो गया। ब का एक सामा य िस ांत था; हम यह मौज-म ती क िलए करते ह। इसने उन सभी को
आकिषत िकया जो िविवध तक-िवतक म िह सा लेना चाहते थे; जावा मोटर साइिकल से शु होकर, दुिनया को एक
बेहतर थान कसे बनाएँ। ‘हम सब इस वृ क नीचे अपनी मोटर साइिकल पर बैठ ए एक हो जाया करते।’ स ु
कहते ह ‘‘और घंट बात िकया करते। बेशक हम अपनी मोटर साइिकल से कभी भी अलग नह होते थे। यह धम-
िव रहा होगा।’’
यह अनौपचा रक सभा िकसी क ा से यादा साथक लगी। वह कहते ह, ‘‘म सचमुच धृ नह था। शायद म अपने
यवहार क अपे ा अपने ि कोण म था। यह िकसी और से मुझे मािणत कराने जैसा ह, य िक जीवन का मेर िलए
कोई अथ नह था। म जानता था िक अपनी मोटर साइिकल चलाने या पैसा कमाने क िलए मुझ े िकसी माणप क
ज रत नह ह। यिद कछ और कारगर नह आ होता, तो मने एक मोटरसाइिकल गैरज शु कर िदया होता।’’ हाल ही
म उ ह ने इस बात को पुनः िकसी स संग म उठाया। ‘‘मने हमेशा यही माना ह िक दरवाजे आपक िलए आपक
यो यता क कारण नह ब क आप या ह, इसक िलए खुलने चािहए।’’
ज गी का जीवन क ित ि कोण इतना खा िबलकल नह था, िजतना बनयन ी ब का चपलतापूण िस ांत
बताता ह। एक बार कोई िम िकसी क से टकरा गया और बुरी तरह घायल हो गया। उसका भेजा फटकर बाहर आ
गया और उसक खोपड़ी क टकड़ रा ते म िबखर पड़ थे। ज गी ने सभी टकड़ को उठाया और अपने िम को लेकर
अ पताल प चे। ‘‘उसका िसर फटकर बाहर आ गया था और उसक खोपड़ी क टकड़ उस जगह पर िबखर पड़ थे।
मने उन सबको उठाकर अपनी जेब म रखा, इस आदमी को उठाया और आक मक वाड म ले गया। वहाँ ब त शोर-
शराबा था।’’ ज गी ने पाया िक उ ह इस दुघटना म कई अिनवाय शासिनक औपचा रकता का सामना करना पड़ा।
उ ह िनयम-कानून से जुड़ कई न क झूठ उ र देत े ए आगे बढ़ना पड़ा, तािक ि या को गित दे सक। त प ा
आपातकालीन ऑपरशन हतु खून क यव था करने म उ ह ने जमीन-आसमान एक कर िदया। उनका िम उस रात तो
जीिवत िकतु गंभीर हालत म था। ‘‘अगली सुबह म बुरी तरह थका आ घर प चा और नहाने ही जा रहा था तभी मने
अपना पॉकट छआ और मने पाया िक उसक खोपड़ी क सभी टकड़ मेर पॉकट म थे। म उ ह डॉ टर को देना भूल गया
था। मने वापस लौटकर डॉ टर को बताया, उसक खोपड़ी क टकड़ मेर पास ह। उसने कहा, कोई बात नह , उसने
उसक प ी कर दी ह। उसे सामा य होने दो, हम देखगे? खैर, जो मेर पास था वह उसने ले िलया, मेर पॉकट म तीन
टकड़ थे। उ ह ने उस लड़क को बंगलोर क एक अ पताल म भेजने क कोिशश क , िकतु रा ते म उसक मौत हो
गई।’’
इस अनुभव से ज गी और उनक युवा िम क समूह को आपातकालीन वाड बंधन दल बनाने क ेरणा िमली।
इसक तहत शहर क मुख अ पताल क आपातकालीन वाड म कम-से-कम एक वयंसेवी क लगातार उप थत रहने
क यव था क गई। य ही िकसी दुघटना क िशकार य को अ पताल म दािखल िकया जाता, तो वह वयंसेवी
उस मरीज क ित उससे प रिचत होने और िकसी भी ा सूचना क आधार पर उसक प रवार से संपक साधने क
भूिमका िनभाता। यह दल लगभग डढ़ साल तक सि य रहा। ज गी को वयं पाँच दुघटना क िशकार लोग को
अ पताल म दािखल करना याद ह। िजनम से दो क मौत हो गई और तीन क जान बच गई।
और ऐसे ही उनक महािव ालयीन वष म भी अराजकता और सामािजक िज मेदा रय म लगे रहने का अनोखा
सम वय ह। ज गी क ि कोण से दोन क म य कोई वा तिवक भेद नह ह। (आज भी वह स दयता या दया क िलए
िकसी आचार संिहता क ज रत पर िव ास नह करते।)
उनक िदन य त रहा करते थे। उ ह िम क कभी कमी नह रही। उनक िकग वाले िम थे, कॉलेज क िम थे,
मोटरसाइिकल पर सवारी करनेवाले िम थे। ‘‘िभ -िभ ि या-कलाप क िलए मेर िभ -िभ तरह क िम थे। जब
म शहर म मोटर साइिकल पर सवारी करने िनकलता तो मेर िम अलग तरह क आ करते थे। इनम येक समूह म म
एक अलग िक म का य था। सामा यतः कई थान म लोग मुझे ब त ही अ पभाषी िक म का य समझते थे।
िकतु कछ समूह म, ऐसा ऊधमी य जो ब त कछ बोलता ह और ब त कछ करता ह। कछ जगह पर लोग मुझे
अपने आप म ब त ही िसमट य क प म जानते थे तो कछ थान पर लोग मुझे खुल े तौर पर सि य रहनेवाले
य क प मे जानते थे। िजस तरह क समूह क साथ म होता, यह उस पर िनभर करता।’’
लेिकन उ ह अहसास था िक यह िम ता िकसी गहरी भावना मक आव यकता क बदले मौज-म ती क िलए ही थी।
उ ह मरण आता ह िक एका तता व संगित दोन उनक िलए अ छी थी। वह जानते थे िक उनक कछ िम बौ क
तर पर उनसे यादा तेज थे। िकतु उ ह ने काफ पहले ही यह महसूस कर िलया था िक सुबोधता या प ता क ि
से वह उनम िकसी से भी बढ़कर थे। इसम े ता का भाव कतई नह था और वह यह इिगत करते ह िक उनम िवर
वेदांती जैसी कोई बात कभी नह रही। कवल इतना ही होता िक जब वह अपने आस-पास क लोग क साथ होते तो
उ ह उनसे कोई िवशेष उ मीद नह होती थ । यही बात उनक प रवार क लोग से वा ालाप करने क दौरान भी लागू
होती ह। ‘‘मेर आसपास ब त-से लोग आ करते थे। उनम से ब त-से लोग मुझ े ि य थे, िकतु भावना मक सहार क
िलए मने उनम से िकसी से िम ता नह क । ऐसी ज रत मुझे कभी महसूस भी नह ई। मेर जीवन म शायद हमेशा दो
तर रह ह। एक तर पर म अपनी उ क अनु प रहना चाहता था। दूसर तर पर म इतना बूढ़ा था, इतना बूढ़ा...’’
वह लीक से हट जाते ह, जािहर तौर पर, वयं को ब त यादा आँकने क ित अिन छक होने क कारण। कछ देर
कने क बाद वह कहते ह, ‘‘अिधकतर समय म उ ह छाया सा, अ काशयु , अ परछाई क आकितय क
तरह यहाँ वहाँ आते-जाते देखा करता। म यह नह कहना चाहता िक मेरा उनसे कोई लगाव ही नह था, य िक ऐसा
होना आ या मक तीत होता ह, िकतु म िकसी भी तरह आ या मक नह था। वे मुझसे संबंिधत थे, िकतु म उनसे
संबंिधत नह था। उस थित को समझाने क िलए यही िनकटतम भाव म य कर सकता ।’’
शायद इसम कोई आ य नह िक पाठक क तौर पर वह यूरोपीय सािह य क ित आकिषत ए। ‘‘मुझ े चौदह वष
क आयु म ‘कमस िद आउटसाइडर’ पढ़ना याद ह, और यह काफ अंतरग लगी। िजस तरह से इसका नायक उदाहरण
क िलए, अपनी माँ क मृ यु पर िति या जािहर करता ह, उससे वह ब त ज दी समझ म आ गया। यिद माँ मर ही
जाती ह, जैसािक होता भी ह—तो इससे दुिनया तो ख म हो नह जाती। अिधकतर लोग दुःख क अपे ा अ यिधक
अपराध बोध से पीिड़त होते ह। थित को सँभालने क ि से िहदू प ित म शोक संत को मृ यु क तुरत बाद
ब त से ि याकलाप म लगा देन े का तरीका मुझ े इसी कारण हमेशा काफ चतुराई भरा लगा।’’
सात वष क आयु म भी अपने दादाजी क मृ यु पर अंितम सं कार क दौरान सभी ि याकलाप का स िच
रहकर अवलोकन करने से उ ह ने शोकाकल लोग को अचंभ े म डाल िदया था; ‘‘लेिकन वह एक वृ य ह, उसे
मरना ही ह।’’ या यह एक असंवेदनशील या अपवाद व प बु मानीपूण िट पणी थी? यह कोई भी तय नह कर
सका। एक बैचेनी भरा स ाटा छा गया।
अपनी वाभािवक संवेदनशीलता क अित र ज गी क जीवन क ित ि कोण म कछ भी कायरतापूण नह था।
जहाँ एक ओर वह शांिति य वभाव क थे वह दूसरी ओर िन यता उ ह पसंद नह थी। एक बार शाम क समय जब
वह अपने पुराने मरफ रिडयो पर रिडयो ऑ िलया टशन म प मी संगीत सुनने का यास कर रह थे, उ ह कछ
परदे क छ े िगरने से उ प खनकने क विन सुनाई पड़ी। एक चोर जो चुपक से घर म घुस आया था, उनसे बारह
फट से भी कम दूरी पर खड़ा आ था। परदे धोने क िलए िनकाल िलए गए थे और जब चोर ने दरवाजे क चौखट को
पकड़ा तो कॉइल वायर से विन उ प ई। ‘‘मुझे याद ह, वह कद म बड़ा था, उसक पतलून घुटने तक मुड़ ए
थे।’’ ज गी क िति याएँ उस चोर से भी व रत थ ।
वह टील का एक गमला उठाकर उसक पास प चे और जोर से उसक िसर पर दे मारा। चोर एक ण क िलए
जमीन पर बैठा और खड़ा आ। फश पर उसक जाने क बाद, ब त-सा खून पड़ा आ था। ज गी ने पड़ोसी क मकान
से अपनी माँ को पुकारा और धीर-से उसे उनक अ यािशत आगंतुक क िवषय म बताया। जहाँ एक ओर इस समाचार
से उनक माँ त ध रह गई वह दूसरी ओर यारह वष य बालक अपने काम से संतु ऐसा नजर आ रहा था मानो कछ
आ ही न हो। ‘‘मेर ि कट क अ यास का यह कमाल था।’’
जीवन से जो भी सीख उ ह ने ली सभी यावहा रक अनुभव पर आधा रत ह, न िक िकसी से उधार ली ई। उ ह 17
वष क उ म अपनी छत पर खाली हाथ से एक बंदर को मार डालने का कारनामा याद आता ह। छड़खानी? व तुतः
बंदर ने उन पर आ मण कर िदया था। ‘‘यह घटना मेरी माँ क मायक, िच ाब ापुर क ह। म छत पर था और यह
बंदर एक िबजली क खंभे पर बैठा आ था। वह मेरी ओर देखकर मुँह िबरा रहा था। मने भी उसे यु र म मुँह िबरा
िदया। अगले ही ण वह जानवर हवा म उछलकर सीधा मेरी ओर झपटा। यह सीधा आ मण था। मने उसका गला
पकड़ िलया और कसकर तब तक पकड़ रहा जब तक मेरा अंगूठा वहाँ धँस नह गया। म उसी थित म तब तक उसे
पकड़ रहा जब तक वह पूरी तरह ढीला नह पड़ गया। बाद म मने उसे बगीचे म दफन कर िदया।’’ प रवार म एक
लड़क ारा हनुमान को मार डालने क चचा चल रही थी। लेिकन ज गी क िलए इसम कोई भी नैितक उलझन नह
थी। उसने वही िकया था जो िकया जाना था।
आठ साल क छोटी आयु म भी उनक दादा क घर म जब उ ह दोपहर क भोजन क िलए एक मुगा मारने क िलए
कहा गया तो इस आदेश का पालन करने म उ ह जरा भी िझझक नह ई। ‘‘मेर िपता क घर म िचकन बाजार से
खरीदा जाता था। लेिकन मेर दादाजी क घर म प रवार क छोकर से मुग को मार डालने क अपे ा क जाती थी।
इसिलए मुझे एक मुगा मारने क िलए बाहर भेजा गया था। यह काय सरल था। आप जानवर क िन ंत होने का इतजार
करते ह और िफर अचानक उसक गरदन मरोड़ देते ह। आप यह इतनी फरती से करते ह िक मुग को अहसास ही नह
होता िक वह मर गया। यह ि या आशा से अिधक दु कर थी। इस ह या क समय अचानक उ प होनेवाली ऊजा से
भर जाना उ ह याद ह। इसक बाद जाकर वह कछ देर क िलए अ व थ से बैठ ह। अब यह प हो गया िक िकसी
क जान लेने क काम म जैसा वह सोचते थे उससे भी अिधक क आव यकता होती ह। ‘‘यह कोई नैितक यु र नह
था।’’ वह कहते ह, ‘‘यह मा इतनी सी बात थी िक जीवन क इतने बड़ िव फोट क िलए म तैयार नह था। इससे मेरा
िसर चकराने लगा। यिद आपको िकसी जानवर को मारकर खाना ह तो मुझे लगता ह िक ब त कम मांसाहारी लोग रह
जाएँगे।’’
उनक असंवेदनशील ि कोण क साथ ही जानवर क ित वा तिवक संवेदना भी उनम िव मान थी, य िक िज ह ने
उ ह उनक पालतू क क साथ देखा ह, वे इस बात को स यािपत करगे। जब उनक बचपन क समय का क ा, बी
(जो िक उनका था, न िक नसी िजसक साथ वे चार िहले-िमले थे।) एक ददनाक चमड़ी क रोग से िसत हो गया, तो
ज गी िपता क इस राय से सहमत नह ए िक उससे छटकारा पा िलया जाए। उ ह ने एक संभािवत जड़ी-बूटी क
िचिक सा सीख ली। ितिदन वह नजदीक क एक पहाड़ी से जड़ी-बूिटयाँ तोड़ लाते, पीसकर उसका पे ट तैयार कर
लेत े और उसक शरीर पर लगा देत।े वह क ा अंततः मर गया, िकतु उसक मौत आव यक देख-रख और इलाज क
बगैर नह ई। कई वष बाद जब वह एक खेत क मािलक ए, तो उनक पास एक जोड़ी बैल थे जो खेत जोतने म
उनक मददगार थे।
‘‘मने बैल क पैर म नाल न ठोकने का िनणय िलया। म इस खे रवैये से घृणा करता था, उ ह िगराकर, उलटा
करक, पैर म नाल ठोकना।’’ लेिकन यह संवेदना उ ह महगी पड़ी। उ ह ने पाया क बैल क एिड़याँ िघस गई थ और
वे काफ क म थे। ‘‘मेर पास दो लँगड़ बैल थे जो काम नह कर पाते थे, िकतु मने उनक पैर पर नाल ठोककर उ ह
रख िलया। अंततः मने बैल और खेत बेच िदए। मने अपने बैल को कसाईघर कभी नह भेजा। उनक बूढ़ और अयो य
हो जाने पर भी मने उ ह अपने पास रखा।’’
बढ़ती उ म वह रोमांस म भी संिल रह। उ ीस वष क उ म उ ह पड़ोस क एक मुसिलम लड़क से ेम हो
गया। वे चोरी-िछपे अपने जादुई ण किवताएँ सुनाकर एक-दूसर क हाथ म हाथ डाले िबताते थे। यह संबंध और तेजी
से बढ़ता गया और कछ वष िटका रहा। िकतु यह गु ही रहा और अ य कई िकशोर वय क संबंध क तरह यह भी
नह िटका। जब उसक शादी कह और तय कर दी गई तो यह भी एकदम से समा हो गया।
इससे उनक जीवन म िजतना वह जानते थे, उससे कह बड़ा मोड़ आया। जहाँ इस घटना से उनक अंदर क या ा म
गित आई, वह उस समय यह एक िदल टटने वाली बात थी िजसम िनराशा और खोने का भयंकर अहसास था। ‘‘म
मा दुःखी नह आ था, म तो बरबाद हो गया था। सबकछ ख म हो गया था। इससे म अपने भीतर एकदम नए
आयाम म प च गया था। यिद आप आंिशक प से टट जाते ह तो इससे आपको दुःख प चता ह। अवशेष से दुःख
प चता ह। िकतु यिद आपको पूरी तरह धराशायी कर िदया जाए, तो आप वयं को एक खालीपन या शू य म पाते ह।
तभी तु ह आभास होता ह िक यह खालीपन नह ह; यह तो तु हार ही िवचार ह, तु हारी ही क पना ह, जो िक टट चुक
ह।’’
इस अलगाव क बाद उ ह ने वयं को संकिचत कर िलया। स ाह भर घर म चुपचाप रह। िकसी से बातचीत तक
नह क , माँ क िलए उनका यह यवहार एक बड़ी िचंता का िवषय बन गया। बाद म उ ह ने एक क बाद दूसरी कई
अ य युवितय से रोमांस िकया (िजनम से कई उनक ेयसी क िम रह )। मने कहा िक यह तो कछ बदले क भावना
सरीखा ह। वह इस बात से सहमत नह ए। ‘‘कोई बदले क भावना नह थी। मने तु छता म िल हो जाने को चुन
िलया था। मने सोचा िक वयं को हर तरीक से य नकार रहा ? म वयं को उस चीज क िलए य नकार रहा था
जो अब रही ही नह ? यिद मेरा यह र ता नह चल रहा होता तो म ऐसा ही तो रहा होता। म ब त घनीभूत हो गया था
और यह शी ही गुजर गया। जब यह समा हो गया तो म संवेदनहीन व गितहीन-सा रह गया। सबकछ ढह गया।
शायद म कह यह महसूस करने लगा िक अपना जीवन िकसी क या वयं क इद-िगद जीना यथ ह। आप और दूसरा
दोन ही आपक क पना क बात ह। म हमेशा सोचता था िक अपने वयं क इद-िगद जीवन खड़ा करना यथ था।
और िकसी और क चार ओर जीवन खड़ा करना कछ समय तक काफ सुखद लगा। िकतु अब मने देखा िक जीवन
को जैसा होना चािहए, यह ऐसा नह ह। जीवन जीने क िलए ह, न िक बनाने क िलए। इस अनुभूित से कोई िनराशा या
कठा नह ई। मने पाया िक जीवन तो जारी ह; आप िजतना हो सकता ह, उतना इसम भाग लीिजए। िकतु ‘मेरा जीवन’
और ‘तु हारा जीवन’ क हमारी धारणा आपसे सभी चीज क चार ओर ऐसी संरचनाएँ तैयार करवाती ह िजनका
अ त व ही नह होता।’’
जब ज गी अपने ेम संग क बाढ़ से बाहर आ गए, तो उनम ेम क कह यादा गहरी एवं यादा प रप समझ
थी—ऐसा बोध जो िक न तो असंभव था, न पुरातनवादी। अब उनका अपना असफल ेम भी उनक िलए िछपे प म
वरदान िस आ। ‘‘िजतना ज दी उसने ( ेयसी) यह संबंध तोड़ िदया उसक िलए म ई र को ध यवाद देता । नह
तो मने अपना संपूण जीवन इसी तरह िबताया होता। बाद म मने अपने संबंध म ेम, जुड़ाव और ितब ता बनाए रखी
िकतु उनक इदिगद अपना जीवन कभी भी नह बनाया।’’
एक बार देर रात तक आराम से चलनेवाली बातचीत क दौरान उ ह ने मुझे बताया िक उनक पहली मिहला िम
(गल ड) का परग िकसी एक ऐसी औरत से िबलकल िमलता-जुलता था िजसे वह तीन ज म पूव काफ करीब से
जानते थे। काफ बाद म उ ह महसूस आ िक उसक ऊचाई और बनावट िबलकल शांभवी जैसी थी, जो सपेरा िब वा
क जीवन म आई थी। मने उनसे पूछा िक या, िकसी तर पर, इस संयोग ने िकसी ऊजा तर पर उ ह उलझन म डाल
िदया था? या यही वजह थी िक इस जीवनकाल म भी वह उसक ित िखंचाव रखते थे? एक ण क िलए वह क
और इसे पुनज म का रसभरा रोमांस न समझने क िलए सचेत िकया। ‘‘उस समय यह संबंध ही मेर िलए सबकछ था’’,
उ ह ने धीर से कहा, ‘‘म इससे दूर नह जाना चाहता। आइए िपछले जीवनकाल क बात न कर।’’
वह वीकारते ह िक अब उ ह मैसूर क कॉलेज क समय क पुराने िम से िमलकर बड़ा अटपटा लगता ह। कछ
लोग अपने क रयर म सफल रह ह, जबिक कछ उतने सफल नह हो सक। लेिकन जो बात उ ह खटकती ह वह यह ह
िक वे सभी दुिनयादारी से िकतने थिकत और िकतने िनज व से जान पड़ते ह।
वह उन सभी को काफ फत ले युवक क प म याद करते ह। कछ क तो खूबसूरत लड़िकय पर नजर रहती थी।
िकतु अब काम क बोध से, पा रवा रक िज मेदा रय से व वय कता क साज-सामान क कारण ऐसा लगता ह जैसे
जीवन क ित उनका उ साह ही समा हो गया हो। जहाँ तक उनक (िम ) बात ह, वे उनक (ज गी) स मान क ित
काफ सजग ह। िम से आ या मक वामी बने य से िमलकर, बात करक वे उनक (ज गी) जीवन क ित म ती
को देखकर िवचिलत हो जाते ह। यह िकसी भी तरह उनक गु क ित धारणा से मेल खाता महसूस नह होता। इस
ि या म वे बीते समय क सहज िम ता को पुनज िवत करने म अ मता महसूस करते ह। स ु कहते ह, ‘‘मजे क
बात यह िक इसम म तो नह बदला लेिकन वे बदल गए।’’
वह कहते ह, ‘‘जब हमारी मुलाकात होती ह तो वे काफ असहज हो जाते ह। म तो िबलकल ठीक , पहले से भी
यादा जीवंत । लेिकन वे सामा यतः ब त गंभीर हो गए ह। उनक पास प रवार, ब े, काम-धंध े और आप समझ
लीिजए, वह सब ह िजसे वे खुशी का साधन समझते थे, िकतु वही सब आज बोझ बन गए ह।’’ वह हसते ए आगे
कहते ह, ‘‘और उ ह िव ास नह होता िक म अब भी हसता और मजाक करता और बात करता । ऐसे समय वे
अपनी िसगटर िनकाल लेत े ह और पूछते ह— या तुम िसगरट पीते हो?’’
‘‘म कहता , ‘नह ।’
‘अर, तो तुम िसगरट नह पीते। ठीक ह।’
‘‘तब उ ह थोड़ा िझझक-सी होती ह िक वे िसगरट पीएँ या न पीएँ। और म कहता , ‘आप लोग शु क िजए। इससे
मुझे कोई फक नह पड़ता।’
‘तुम िसगरट नह पीते और शराब भी नह लेत।े ’
‘नह , मुझे कभी इनक आव यकता महसूस ई ही नह ।’
‘ओह तो तुमने सबकछ छोड़ िदया ह।’’’
वह पुनः हसते ह। ‘‘जरा इस बोध को देिखए; लोग वा तव म यही मानते ह िक यिद आप िसगरट नह पीते, यिद
आप शराब नह पीते, तो आपने सबकछ छोड़ िदया ह।’’
अपनी अिनयिमत उप थित व िश ा क ित असंगत ि कोण क बावजूद ज गी ातक हो गए। उ ह ने मैसूर
िव िव ालय म अं ेजी सािह य म दूसरा थान भी हािसल कर िलया। यह कछ ऐसा था िक जो उ ह जानते थे वे
हत भ रह गए, वह वयं हत भ थे। अिनवाय प से अब ‘आगे या’ वाली बात प रवार म उठी। इसम मा टर िड ी
लेन े क चचा हो रही थी। लेिकन ज गी ऐसा नह चाहते थे। उ ह ने अपने माता-िपता को बता िदया िक पा य म म
स मिलत सभी पु तक वह पहले ही पढ़ चुक थे। अब वह अपनी आजीिवका कमाएँग े और मोटरसाइिकल पर
िव मण का लंबे समय से सँजोया सपना पूरा करगे। ‘‘लेिकन आजीिवका कमाने क या योजना ह?’’ उनक माता-
िपता ने सावधानी से पूछा। वे ज गी क िव फोटक जवाब क लंबे समय से आदी हो गए थे। लेिकन इस िव फोटक
जवाब क िलए वे िबलकल तैयार नह थे। ‘‘मुग पालन’’, उनक बेट ने संि उ र िदया।
और उनका अिभ ाय भी यही था। ‘‘तब तक मने पूर देश म मण कर िलया था। जब म नेपाल सीमा पर प चा तो
मुझे मालूम आ िक आगे जाने क िलए मुझे कागजात (द तावेज ) क ज रत थी। तब तक मुझ े यही लगता था िक
अपनी मोटर साइिकल से म कह भी प च सकता था। लेिकन सीमा पर तैनात य य ने कहा, ‘नह , जब तक आपक
पास ये कागजात नह ह, आप नह जा सकते।’ वे कौन-से कागजात क माँग कर रह थे, मुझ े मालूम नह था। मेर पास
मेरी मोटरसाइिकल का पंजीयन और मेरा लाइसस था, लेिकन उतना पया नह था। तभी मने सोचा, ठीक ह, जहाँ मुझे
जाना ह वहाँ प चने क िलये मुझ े िकसी और चीज क आव यकता ह। तभी से म इसका वाब देखता रहा। मने कहा,
एक बार यिद मेर पास पया पैसा हो जाए तो म ऐसी जगह सवारी क गा जहाँ लोग मुझ े रोक न सक। मुझ े ज दी म
कछ पैसे कमाकर जाना था। उस समय पो ी कािमक का बड़ा बोलबाला था इसिलए म इसम कद पड़ा। मेर िपता ने
कहा, ‘म लोग को या बताऊगा िक मेरा बेटा मुग पाल रहा ह?’ मने कहा, ‘यह आपक सम या ह।’ मने वयं
अपना पो ी फाम तैयार िकया, बड़ी मेहनत से।’’
यह ढाई एकड़ का फाम मैसूर क सुदूर भाग म 12 िकलोमीटर क दूरी पर था। ज गी क काम क शु आत पौ फटते
आ करती और देर रात तक ख म होती। कई ऐसे भी मौक आए िक देर हो जाने क कारण उ ह मजबूरन रात घर से
बाहर िबतानी पड़ी, य िक वह घरवाल को परशान नह करना चाहता था। थम छह महीने किठन प र म क थे और
वह इसक िलए तैयार था। उ ह ने बड़ी मेहनत से 3,200 मुिगय क िलए िपंजर बनाए। इस काम क दौरान उसक हाथ
से खून भी बहने लगता था। पैसा बचाने क िलए वह िदनभर कले खाकर ही रह जाते। उ ह ने पूरक आमदनी क िलए
एक चतुराई क जुगत िभड़ाई। वह सुबह-सुबह शहर म सड़क क िकनार लगे पेड़ क िगरी लकिड़याँ इक ी कर लेते
और ईट बनाना शु कर देते। इससे वे उस दौर म मैसूर शहर क काफ सफल ईट िनमाता बन गए थे। यह पैसा कमाने
का सहज तरीका लगा। उ ह काफ िव मय आ िक यह योजना िकसी और क िदमाग म य नह आई। इससे उनक
िदमाग म ब त समय से चली आ रही अटकल पूरी ई िक जनसमूह यिद पूरी तरह मूख नह ह तो कद तो ह ही।
शी ही यह यवसाय चल पड़ा। मुनाफा बढ़ने लगा। वसुदेव प रवार को िव ास ही नह आ िक उनका िबगड़ल
ब ा रातो-रात सफल यवसायी बन गया ह। जीवन बड़ सरल तरीक से चल रहा था। ज गी ितिदन सुबह क चार घंट
पो ी यवसाय म िबताते थे। शेष िदन किवताएँ िलखने और पढ़ने, कएँ म तैरने, पेड़ पर चढ़कर िदवा व न देखने,
अपने खेत म िनिमत िकए ामीण प रवेश का मजा लेने म बीत जाता। ‘‘तेरह वष क उ से म आसन और ाणायाम
कर रहा था। अब मेर जीवन म यान भी समािहत हो गया था। इसिलए म या तो यानम न रहता था या पढ़ाई-िलखाई
िकया करता था। पो ी फाम म अंड का उ पादन होता जा रहा था, पैसे आते जा रह थे। सुबह क काम से िनबटने क
बाद म जाकर बरगद क पेड़ पर सबसे ऊपर चढ़कर बैठ जाया करता था। आँख बंद करक यिद म वहाँ बैठ जाता, तो
मुझे पता ही न रहता िक या आ। म घंट उस पेड़ क आसपास ही रहा करता था। पो ी फाम यवसाय क िदन बड़
खूबसूरत थे। म जी भरकर पढ़ सकता था। म ब त-सी किवताएँ िलख रहा था। कोई भी मेर पास आकर मुझे परशान
नह करता था। कई िदन तक मने एक या दो िमक क अलावा िकसी आदमी का चेहरा नह देखा। यह एक अ छी
िजंदगी थी।’’
उनका िठकाना दूर था इसिलए कछ ही लोग उनसे िमलने आते थे। इस वजह से यह सरीसृप क रख-रखाव हतु एक
आदश थान था। ब त ज द ही उ ह ने एक फलती-फलती सप कॉलोनी तैयार कर ली। हर सुबह उठना एक धीमी
ि या हो गई। उ ह इस बात क ित सावधान रहना पड़ता था िक उनक िब तर पर या आसपास होनेवाले लगभग दो
दजन कोबरा और वाइपर को कोई परशानी न हो। वह कहते ह िक सप क साथ रहकर उ ह ने योग क ब त-सी
जानका रयाँ हािसल क । उनक उप थित का मतलब यह सीखना होता था िक िब कल थर एवं पूण सचेत कसे रह।
‘‘मेर सोने क कमर म लगभग बीस से प ीस सप थे।’’ वह कहते ह, ‘‘जहाँ म सोता था, भोजन बनाता था और अपनी
कछ पु तक रखता था, वह काफ बड़ा कमरा था। खेत म वही एकमा कमरा मेर रहने क जगह थी। और ये सप वहाँ
हर जगह रहा करते थे। सबक सब जहरीले सप थे, सामा यतः कोबरा। कभी-कभी वाइपर से म कोबरा क अपे ा
यादा सतक रहता था य िक कोबरा क काटने क बाद आपक पास पया समय रहता ह। यह लगभग छह घंट का
समय आपको देता ह। जबिक वाइपर क काटने पर आपक पास मा ढाई से तीन घंट का समय होता ह। कोबरा क
काटने पर तो आपका शरीर कछ देर काम कर सकता ह, िकतु वाइपर क काटने पर आप देखते ही देखते लकवा त-
से हो जाते ह। मेर पास दोन थे, िकतु यादातर कोबरा ही थे, य िक कोबरा अपे ाकत यादा खूबसूरत सप होता ह।
यह कछ गव ला, कछ अपने आप म शानदार होता ह। तो जब आपक कमर म कई सप ह तो आपको यह पता ही नह
होता िक वे कहाँ ह गे। साँप सवािधक असंभव लगनेवाली छोटी-सी दरार म भी वेश कर सकता ह। ायः जब म सो
जाता तो वे मेर कबल क नीचे भी घुस जाते थे। और यिद म सुबह ज दी या आधी रात को सोकर उठता तो अपने
कबल पर एक-न-एक साँप चलते ए पाता था। इसका ता पय यह था िक मुझे काफ सावधान रहना पड़ता था, एक भी
गलत कदम उठता िक वह काट लेता। आप यह नह जान पाते िक उसका िसर कहाँ ह और उसक पूँछ कहाँ ह। वह
कपड़ म ढका रहता। तो मेर जाग क बने रहने क संदभ म यह बड़ा यायाम था। मुझ े पूण जाग कता या सतकता म
िहलना-डलना सीखना पड़ा। सावधान रहना पड़ता था िक यिद मुझसे हलका सा झटका भी लग गया तो वह मेर िलए
घातक हो सकता था।’’
यह जंगलीपन चलता रहा। यह, जैसा िक वह हमेशा कहते ह, ‘‘नीली ज स और ‘बीट स’ का युग था।’’ अब ज गी
अपनी वयं क मोटरसाइिकल क मािलक थे। िजस पर सवारी करने क दौरान उनक ारा िकए जानेवाले क र मे
लगभग र गट खड़ कर देनेवाले होते थे। चुनौती वीकारने म सदा आगे रहनेवाले ज गी मैसूर-हसूर हाइवे पर िटबर क
क पिहय क बीच खतरनाक ढग से सवारी करते थे। इन िटबर क क साइड बॉडी नह होती ह, मा िटबर ही होता ह
और घूमते ए सामने और पीछ क दो पिहय क बीच र थान होता ह। ‘‘तो म दोन क बीच अपनी मोटर साइिकल
ले जाता था और बाहर आ जाता था। यिद आपसे थोड़ी भी चूक ई तो आप सड़क पर ही पल तर क तरह िचपक रह
जाएँगे। िकतु म और मेर िम िबना यास क अनेक बार इसक अंदर जाकर बाहर आ जाते थे।’’
नजदीक क चामुंडी िहल इनक पसंद क जगह थी जहाँ ये बार-बार जाया करते थे। ‘‘चामुंडी पर मोटरसाइिकल
चलाना मानो हमारा धम था। रात को हम मोटरसाइिकल पर ऊपर चले जाते और रातभर पहाड़ी पर ऊपर-नीचे मोटर-
साइिकल पर सवारी िकया करते थे। एक िदन मने सोचा िक सड़क पर सवारी ही य ? म पवत क सड़क से हटकर
भी सवारी क गा।’’ उ ह ने तय िकया िक चामुंडी िहल से नीचे का रा ता सबसे तेज और सवािधक मजेदार होगा।
इसका ता पय रा ते से दूर रहना था। और इसका ता पय पूरी गित से पेड़, झािड़य और वृ क नीचे उगी ई ब त सी
झािड़य क बीच से सवारी करना था। एक बार तो उनक इस या ा म भयंकर और अचानक अवरोध तब खड़ा हो गया
जब उनक मोटरसाइिकल एक शाखा से जा टकराई, िकतु उ ह ने वयं को सँभाला और अपने िमशन को, पूरा िकया।
जब वह बाहर आए तो खून से लथपथ िकतु िवजेता थे। टटी ई अनािमका (अँगुली) इस उ ासो माद का एक तु छ
पुर कार तीत ई।
िकसी समय उनक मोटरसाइिकल सवार िम को हो- ड़ म ही एक क यून थािपत करने क सूझी। इस ोजे ट
क सपने को पूरा करने क िलए उ ह ने सौ एकड़ े फल का एक भू-खंड तलाशना शु कर िदया। ‘‘हमने इमारती
लकड़ी का यापार करनेवाले अपने एक िम क जमीन देखी, जो जंगली े था। यह दो या तीन सौ पए ित एकड़
क दर से िमल रही थी। हमने एक समुदाय शु करने क योजना बनाई—जहाँ सभी युवा लोग जाकर साथ रहगे।’’
इसक काय योजना जान-बूझकर कछ अराजकतापूण बनाई गई। कोई िनयम-कानून नह ह गे, बाहरी तौर पर कोई भी
बला अनुशासन नह होगा। यह अपने आप म एक सं ांत और ऊची सोचवाला कदम था। िकतु ऊचे इराद और
यावहा रक ि से शू य रहनेवाली सभी अ य योजना क तरह यह योजना भी मूत प नह ले सक । इसक अनेक
सद य म से—बाद क जीवन क म ेनजर कछ का जीवन िविभ तरह क दु पयोग क कारण न हो गया। स ु
िनराशा क भाव से कहते ह, ‘‘कछ सपन का साकार न होना भी वरदान ही ह।’’
उ ह मरण आता ह, ‘‘दस म से लगभग एक तो हर समय शराब क नशे म रहता था। अ य पाँच से दस ितशत
गाँजा या कछ और िपया करते थे। वे अ छ लोग थे, िकतु िकसी तरह उ ह इस तरह क लत लग चुक थ । म उनक
संगित म ब त रहा लेिकन मुझ े इस तरह क क य म शािमल होने क कभी इ छा भी नह ई। न तो मने इ ह
नजरअंदाज िकया, न ही कभी इनक पीछ गया। ऐसा भी नह ह िक िकसी नैितक भय से मने अपने आपको रोक रखा।
न ही मने यह सब करने क कभी सोची। इसक वजह शायद यह थी िक म अपने आप म ही इतना खोया आ था िक
इनम से कछ करने क मुझ े ज रत ही महसूस नह ई। यिद मने इन सभी लोग का एक समुदाय बना िदया होता तो म
क पना कर सकता िक वे इसे कहाँ ले जाकर खड़ा कर देते।’’
अपने े म िमली सफलता से ज गी और यादा साहसी बन गए। उ ह ने इसक िव तार का िनणय िलया। वह
वीकार करते ह िक लगभग इस समय उ ह ने अपने जीवन क पसंद को कछ सामािजक अपे ा क अनु प िनधा रत
करना चाहा। ‘‘मा यही समय था जब मने सामािजक थित क ित अपनी िति या दी और थोड़ा जीवन क साथ
जुड़ गया। मेर िपता हमेशा इसी बात का रोना रोते थे िक हर िकसी क बेट, कछ न कछ बन गए—कोई इजीिनयर, कोई
उ ोगपित, कोई आई.ए.एस., कोई अमे रका चला गया। और हर कह , िजस िकसी से भी मेर िम , सगे-संबंधी, कल
व कॉलेज क मेर पुराने िश क—म िमलता, वे कहते, ‘अर हम तो सोचते थे िक तुम अपने जीवन म कछ बनोगे,
करोगे, लेिकन तुम तो इसे य ही न कर रह हो।’ धीर-धीर यह बात मुझ े चुभने लगी। मने तय िकया—ठीक ह, म कछ
करता ।’’
अपने एक िसिवल इजीिनयर िम क साथ साझेदारी म उ ह ने भवन िनमाण यवसाय म वेश िकया। प रवार ने इस
पर अपना अिव ास य िकया। अब या? या यह नई योजना कारगर होगी? यह सफल ई। ‘‘पाँच वष म ही हम
मैसूर क अ णी िनजी ठकदार क बीच एक बड़ी िनमाण कपनी क प म उभर। हम एक छोट पैमाने का उ ोग चला
रह थे। हम मा दो युवक थे, और हर कोई हमसे रोमांिचत था। अब, हम अ छा पैसा कमा रह थे। मेर िपता ब त खुश
थे। आप डॉ टर ह या नह , इससे कोई फक नह पड़ता। आप अ छा कर रह ह, इसी क क मत ह। और, अ छा कर
रह ह का ता पय ह आप अ छी कमाई कर रह ह।’’
अब लगा िक मोटरसाइिकल पर िव मण का ज गी का सपना साकार होने को ह। जीवन इतने आराम से चल रहा
था, वह ायः बड़ उ साह से कहते ह िक कभी-कभी तो उ ह लगता िक धरती सूय क बदले उ ह क चार ओर
प र मा कर रही ह। ऐसा महसूस होता था िक कछ भी गलत नह होगा।
और तभी, कछ आ। एक िदन ज गी क योजनाएँ िखड़क से उड़कर बाहर चली गई।

‘जो कभी िनचले पायदान क ओर नह लौटा’
फटफिटया चालक से रह वादी तक
व ह िदन भी अ य िकसी िदन क तरह था, कोई शकन सूचक अ ुत घटना नह ई, देवदूत या फ र त वाले कोई
व न नह आए। 23 िसतंबर, 1982 का िदन ज गी क जीवन का एक य त िदन था। उ ह ने अपना उपमा का िनयिमत
ना ता (उ ह ने मेर यह पूछने पर मरण िकया िक ऐसे मह वपूण िदन क छट-पुट बात उ ह याद ह या नह ।) िकया
और कामकाज क मीिटग क िलए िनकल पड़। कछ ही िदन पहले एक बड़ ठक पर ह ता र िकए गए थे। उ ह एवं
उनक यावसाियक साझीदार को ब त कछ िवचार िवमश करना था। दोपहर को अपने साझेदार को आराम करने क
िलए छोड़कर, ज गी भोजन करने घर चले गए। उस िदन क मुख यंजन उ ह अभी भी याद ह; बसीदा-सा , कनाटक
का िवशेष यंजन, िजसका एक कार आं म भी ह (िजसे तैयार करने म उनक माँ को महारत हािसल थी।)। अभी दो
बजकर तीस िमनट ही ए थे। अगली मीिटग होने काफ देर बाद होनी थी।
मोटरसाइिकल क सवारी ज गी क अिनवाय पसंद थी। उ ह ने अपनी पहली मोटरसाइिकल कछ वष पहले ही ली
थी। कल क िदन म साइिकल चलाने, चोरी-िछपे जब-तब अपने िपता का कटर चलाने और अपने कल व कॉलेज
क िदन म भाई क मोटर साइिकल चलाने क बाद, यजदी मोटरसाइिकल उनक पसंदीदा चीज थी। वह इसका रख-
रखाव बड़ उ साह से करक इसे अ छी थित म रखते थे। अब उनक ब त से िम आ करते थे जो मोटरसाइिकल क
शैतान थे और उनम भी उनक (ज गी) उ म साहिसक काय का जोश था। लेिकन उनम से कोई और अपने साहिसक
कारनाम को अंत तक ले जाने का इतना िन यी नजर नह आता था। यिद िकसी रात ज गी गोवा जाना तय कर लेत े तो
वह तुरत िनकल पड़ते। अपने साथ जानेवाल क राह देखने का सवाल ही नह था। ज गी जानते थे िक योजना बनाने
का अथ अंतहीन हील-हवाला ही होता, और इसक िलए उनम धैय नह था। ‘‘लोग आपक साथ कवल उतनी दूर चलने
को राजी होते ह िजतना उनक िलए सुिवधाजनक ह। जब उनक आराम क सीमा ख म हो जाती ह, वे साथ छोड़ देते ह।
ब त कम लोग ही पूरा साथ िनभाते ह। िकतु म सदा से ऐसे लोग म से जो एक बार किटब ए तो सार सफर
तक साथ रहते ह।’’
उनक साँप और मोटरसाइिकल क ित धुन क साथ उनक दु साहसी िमजाज क कारण अपने िम क बीच उ ह
डडली ज गी का उपनाम िमला था। वह कहते ह, ‘‘ऐसा नह ह िक म आवेगशील वृि का था, म मा जीवन क ित
झुकाव रखता था। म अपने कम क प रणाम क नापतौल कर लेता था। और वे िजतने खतरनाक होते, मुझे उतना ही
अपनी ओर ख चते थे। एक बार िकसी ने मुझे कहा िक मेर अिभभावक देवदूत ब त अ छ ह गे और िनरतर काय करते
ह गे। मुझम हमेशा से सीमा को आजमाने और छोर (अंत) से आगे िनकल जाने क लालसा रही ह। ‘ या’ और
‘ य ’ मेर िलए कभी भी सवाल नह रह। ‘कसे’ ही एकमा न था। अब जब म पीछ मुड़कर देखता , मुझ े महसूस
होता ह िक मने जीवन म यह कभी नह सोचा िक मुझ े या बनना ह। मने कवल इतना सोचा िक मुझ े अपना जीवन कसे
जीना ह। और म जानता था िक कसे का िनधारण आपक वयं क भीतर और आपक वयं क ारा ही हो सकता ह।’’
चामुंडी िह स, युवा मैसूरवािसय का पसंदीदा गंत य था, जो िक येक पयटक या ा का अिनवाय पड़ाव व शहर क
प र या मक नजार व मनोरम चामुंड री (मैसूर महाराजा क रयासत क देवी) श मंिदर क िलए िस ह।
ज गी इस पहाड़ी से भलीभाँित प रिचत थे। वह वहाँ बचपन से मौज म ती म मण करने जाते थे। कई वष पूव यह
उ ह एक जहरीले सप ने काटा था। इ ह ढलान क नीचे उ ह ने अपनी मोटरसाइिकल पर सवारी क थी। हाल ही म
उ ह ने पहाड़ी पर यावसाियक बैठक का संचालन िकया था। देर रात क सवारी व पािटयाँ रोजाना क बात थ । िकसी
अ ात कारण से पवत क ओर हमेशा से ज गी का िखंचाव रहा था। ारिभक अव था से ही उनक नजर क आगे
पवत रहा करते थे। एक िवशेष पवत ने उनक ि कोण पर काफ भाव डाला। इसक बार म वह ब त िवचार नह
करते थे। वह सामा यतः यह मान लेते थे िक दूसर को भी वैसा ही भू-भाग नजर आता था।
अभी ज गी क अगली मीिटग शु होने म एक घंटा शेष था इसिलए वह पुनः चामुंडी क ओर मुड़ गए। ‘‘मैसूर म
एक रवाज ह। यिद आपक पास कछ करने को ह तो चामुंडी िहल जाइए, यिद आपक पास कछ करने को नह ह, तो
चामुंडी िहल जाइए। यिद आपको ेम हो जाए तो चामुंडी िहल जाइए, यिद आपका ेम असफल हो जाए, तो चामुंडी
िहल जाइए। हाल ही म म अपने ेम म असफल हो गया था, और मेर पास करने क िलए कछ नह था, इसिलए म
चामुंडी िहल चला गया।’’
आगे या आ उसका सार वह इस तरह बताते ह; ‘‘म ऊपर चढ़ा और नीचे नह उतरा।’’ जब अंततः वह लौट भी तो
पाँच घंट बाद। ऊपर चढ़ तो एक युवा-खुशिमजाज मोटरसाइिकल ेमी थे और लौट तो, एक रह यवादी संत।
‘‘म इस िवशेष च ान पर बैठा आ था’’, उ ह ने वष बाद बताया, ‘मेरी आँख खुली ई थ , बराबर बंद नह थ । मने
देखा दस िमनट ही ए ह गे, िक मुझ े कछ होने लगा। अपने संपूण जीवन म मने सोचा था, यह म ( वयं क ओर
इशारा करते ए।)। यकायक मुझे मालूम ही नह था, कौन म था, और कौन म नह था। िजस हवा म म साँस ले रहा
था, िजस च ान पर म बैठा आ था, मेर चार ओर का वातावरण सबकछ म हो गया था। म िजतना क गा, उतना ही
सनक लगूँगा, य िक जो हो रहा था, उसका वणन म नह कर सकता। जो म था वह काफ िवशाल हो चुका था, वह
हर कह था। मुझे लगता ह िक यह थित िमनट तक कायम रही िकतु जब म अपने सामा य होश म आया तो शाम क
साढ़ सात बज चुक थे। मेरी आँख खुली थ , सूय अ त हो चुका था, और अँधेरा हो चुका था। म पूरी तरह होशो-हवास
म था लेिकन उस ण तक मने वयं को जो समझा था, िवलु हो गया था। जब म आठ साल क आयु का था—मुझे
वह घटना अ छी तरह याद ह, कछ आ था। और म रोने लगा था—उसी िदन मने यह संक प िकया था िक म कभी
रोऊगा नह । म वयं को इस तरह (बँधी ई मु ी िदखाते ए) थामे रहा, और जो भी थितयाँ आई, मने एक भी आँसू
नह बहाया, आठ वष से प ीस वष क उ तक। और यहाँ म बैठा आ , आँसू वहाँ तक बह रह ह जहाँ मेरी
कमीज गीली ह और म हष माद म । म नह जानता या हो रहा ह। म सदा शांत और खुश रहा यह कोई मु ा ही
नह रहा ह। मने जैसा चाहा वैसा जीवन िजया। लेिकन यहाँ म एकदम नए कार क सुखद अनुभूित कर रहा । जब म
अपने तािकक िदमाग का योग करता तो मुझे यही बात ात होती ह िक म अपना संतुलन खो रहा । बस इतना ही
मेरा िदमाग मुझ े बता सकता ह। लेिकन यह इतना सुखद ह िक म इसे खोना नह चाहता।’’
स ु चामुंडी िहल क उस दोपहर क िवषय म इससे यादा कछ नह कहते। उस अनुभव को श द म य नह
िकया जा सकता। ऐसे श द ही नह ह। िफर भी थोड़ा दबाव डालने पर उ ह ने उस अनुभव क िवषय म परो प से
संकत िकया। ‘‘यह कछ इस तरह ह िक एक बूँद शराब िपए बगैर कोई हर समय शराब क नशे म रह।’’ उ ह ने एक
बार कहा था। एक अ य अवसर पर उ ह ने कहा, ‘‘जीवन वही ह, जो यहाँ ह। न कोई पवत ह, न फल, न बादल, कछ
भी नह । यह ऊजा मा ह—ऊजा का एक अप रप पंदनशील िपंड। आप इसे सृि कता या सृि कह सकते ह। या
आप इसे वयं कह सकते ह। कोई फक नह पड़ता।’’ एक अ य मौक पर उ ह ने कहा, ‘‘िनवाण कोई उपल ध नह
ह। यह घर लौटने क तरह ह। पूरी तरह घर लौटना, यही िनवाण ह।’’
एक अ य मौक पर उ ह ने कहा, ‘‘इसका ता पय ह जीवन जैसा ह उसे वैसा देखो। तुम सबकछ हटा दो—सभी
का य, सभी िविनयोग—और आप जीवन को वैसा देखते ह, जैसा यह ह। आप महसूस करते ह िक यह ब आयामी ह।
आप महसूस करते ह िक यिद आप जीवन क पूर े का आनंद नह लेते ह, तो यह जीने का मूखतापूण तरीका ह।
इसम कोई, ‘यह ह, वह ह,’ नह ह। इसम कोई यह या वह नह ह। इसम कोई हाँ या ना नह ह। कवल हाँ और हाँ
ह।’’
एक अ य अवसर पर उस ऐितहािसक दोपहर क बाद से उनक अंतमन क अव था क िवषय म पूछा गया तो
उ ह ने कहा, ‘‘अब म पूरी तरह नकली । आप कवल आधे नकली ह। मेरा य व पूरी तरह विनिमत ह। यह एक
अिभनय जैसा ह।’’ और या झूठ क पीछ झूठ बोलनेवाला भी ह? उ ह ने कहा, ‘‘नह , कवल झूठ ह, झूठ बोलनेवाला
नह ।’’ ‘तो इस अिभनय क पीछ या ह’ मने पूछा। तो उनका रह यमय उ र था; ‘‘अिनयंि त खालीपन।’’
उनक पूव क वे सभी य व िज ह ने सांसा रक और पारलौिकक क बीच क योढ़ी पार क ह, उनक िलए उस
अनुभव क िलए तािकक श द का योग असंभव रहा ह। इसक अलावा उनक जागृित क समय ज गी क िलए यह
िन त नह था िक इसका वणन कसे कर। कवल एक बात उस पवत से नीचे उतरनेवाले युवक क िलए साफ थी;
जीवन वैसा कभी नह होगा।
ज गी जब ऑिफस प चे तो रात क आठ बज चुक थे। वह िठठक। िखड़क से वह अपने साझीदार को मेज पर बैठा
देख रह थे। उनक साझीदार ने आशापूवक उनक ओर देखते ए सोचा िक वह अंदर आकर पाँच घंट क िवलंब का
कारण बताएँग े और उस िदन क काररवाई क जानकारी हािसल करगे।
यजदी का इजन चालू था। ज गी लगभग दस िमनट तक मोटरसाइिकल पर िबना उतर बैठ रह। उसक प ा वह
मुड़ और चले गए। उनक साझीदार िम यह सब देखकर घबरा गए। वह शहर क िचरप रिचत सड़क पर कछ देर
धीमी गित से सवारी करते रह। सबकछ वैसा ही लग रहा था। रात तक मैसूर म कोई बदलाव नह आया था। वह रात क
साढ़ दस बजे घर प चे। उ ह ने हलक -फलक बात क , बेमन से भोजन िकया। उस रात वह तीन बजे तक िब तर पर
पड़ जागते रह।
एक स ाह प ा उसी अनुभव क पुनरावृि ई। जब ऐसा आ, तब वह अपने प रवार क साथ डाइिनंग टबल
पर थे। अचानक उनका िसर चकराने लगा। उ ह ने सोचा िक यह मा कछ िमनट क िलए होगा, िकतु इसी हालत म
सात घंट बीत गए। एक और अवसर पर तेरह िदन बीत गए थे। ‘‘म पूर तेरह िदन बैठा ही रहा’’, वह कहते ह, ‘‘इन
तेरह िदन तक मने न तो खाया, न सोया, न संडास का योग िकया। म कवल बैठा ही रहता। व तुतः मेर अनुभव म
यह अविध मा 15 या 20 िमनट क थी। इस तरह मेर अनुभव म समय का आयाम िवलु होता जा रहा था। इस
हालत को थर करने एवं इसे जीिवत वा तिवकता म बदलने म मुझ े लगभग छह स ाह का समय लगा। और अपने
भीतर इस अनुभूित को थर करने म मुझ े कछ और समय लगा।’’ जो हो रहा था, उसका कोई भी योजन नह था।
उनका प रवार भी उतना ही य था िजतने वह वयं थे। उ ह ने कछ िम को िव ास म िलया जो उतने ही
िककत यिवमूढ़ थे। कछ लोग ने पूछा िक या वह िकसी मित म का िशकार थे?
थितयाँ तेजी से बदलने लग । उनक िपता क रलवे हॉ पटल से आई एक नस अचानक उनक पैर पर िगर पड़ी।
दूसर भी िबना सोचे-समझे वैसा ही करने लगे। कोई ऐसा य िजसने अपने जीवन म िकसी का पैर नह छआ था,
उसक (ज गी) िलए यह बड़ा भ ा अनुभव था। उससे भी यादा अजीबोगरीब तब लगा जब लोग उनसे उनक आगत
क भिव यवािणयाँ करने क िलए कहने लगे। एक ने तो उनसे अपनी बेटी क िववाह क तारीख बताने क गुजा रश क ।
और इधर ज गी को भी यह आभास था िक वह अब पहले जैसे नह ह। एक य क नजर म तो उनक वेशभूषा ही
व तुतः बदलने लगी थी। उनक चेहर क हावभाव पहले जैसे नह थे, उनक वा तिवक शारी रक िवशेषताएँ, आँख क
बनावट, आवाज और यहाँ तक िक शारी रक संरचना म भी बदलाव झलक रहा था। और ने ये प रवतन देखने शु कर
िदए थे। वह कहते ह, ‘‘मेरी आवाज बदल गई, मेरी आँख अपे ाकत बड़ी व यादा चमक िलए ए थ ।’’
इस शारी रक पांतरण का कारण या था? वह कहते ह, ‘‘जो भी आ था, वह सब आंत रक संरचना का पुनगठन
था। योग करते ए िबताए गए तेरह िविच वष का फल अभी िमला। योग शरीर क पुनिनमाण का एक तरीका ह तािक
यह यादा ऊचा उ े य पूरा कर सक। इसीिलए यह णाली काय करती ह। च थर शारी रक कटीकरण नह ह,
वे गितवान ह और हम उ ह अपने शरीर क अंदर और बाहर गितशील कर सकते ह। देवी-देवता उ प करने का
िव ान यही ह। मानव को देव म पांत रत करने क यह पूरी तकनीक ह। मानव शरीर खून-मांस क टकड़ क प म
काय कर सकता ह या सृि क ोत क प म मानव का मे दंड ह य का मा अटपटा िव यास ही नह ह; यह
ांड क धुरी ह। यह आप पर िनभर करता ह िक आप अपने शरीर तं को िकस तरह पहचानते ह। अपने मामले म
शारी रक तौर पर एक घनीभूत य होने से लेकर मने अपने शरीर को इस तरह ले चलना सीख िलया मानो यह हो ही
नह । मेरा देहपन ब त ही आरामदायक व शांत हो चुका ह। पहले यह संपूण घनीभूतता मेर शरीर म आ करती थी।
लोग यह महसूस कर सकते थे; यिद म िकसी कमर म वेश करता, इस का अथ काय या क य होता था। िकतु अब
मने अलग ढग से ही अपने शरीर को ले जाना सीख िलया ह। मेर च क पुनसगठन का ता पय भी यही ह िक एक
थित से दूसरी थित म म िभ हो सकता । यह थित आज भी यथाव ह। म थित क आव यकता क अनु प
पूणतः िभ कछ लोग क पहचान म न आनेवाला य हो सकता ।’’
और उनक आंत रक अनुभूित का अका य सा य भी था। जीवन सदा से रोमांचक रहा। लेिकन अब यह समृ ,
घनीभूत था एवं उ -ऊजा तर क आंत रक खोज से दहक रहा था, जो उ ह कभी महसूस नह ई थी। इस िबंद ु क
आगे ज गी का आंत रक जीवन उनक बा जीवन क अपे ा अिधक रोमांचक था। ‘‘अब म अपने भीतर एक ही ण
म लाख िभ -िभ बात क घिटत होने क ित जाग क था। ऐसा ही म अभी भी । िकसी से बातचीत करते ए भी
इसी ण भीतर चलनेवाली असं य बात क जानकारी मुझ े ह। यह कलाइडो कोप क तरह ही ह। और उसी से लोग
का िदमाग चकरा जाता ह। उ ह तु हारी बात का अथ िनकालना ही नह आता।’’ उनक िपता अपने इस िवल ण बेट
से लगातार परशान थे, िजसका जीवन बड़ी तेजी से यान और मोटरसाइिकल क जोश क बीच प रवितत हो गया था।
अपनी माँ क िलए, ज गी तो पहले ही बेट क बजाए बड़ भाई यादा थे।
इस अनुभूित का एक और भाव था—उनक आसपास क लोग क भावना क ित उनक उ संवेदनशीलता।
ज गी को यह बड़ा अिवचारणीय लगता िक उनक आसपास क लोग असंतुि क दशा म ह जबिक उनका अपना
जीवन आनंदाितरक से लबलबा रहा ह। ऐसा भी समय था जब दुःखी हालत म रा ते पर जाते ए एक अनजान य
को देखकर ही उनक आँख भर आती थ । बाद म उ ह ने अपनी िति या को साधना सीख िलया। दुःख क ित
भावना मक यु र क िलए वह कभी-कभार ही वयं को तैयार करते ह। ‘‘जब म िकसी पेड़ क टटी ई शाखा को
देखता तो इसका यु र मेरी भावना क बदले मेरी ऊजा देती ह। कभी-कभार भावुकतापूण यु र क िलए म
वयं को तैयार करता , लेिकन मेर िलए यह एक िवलािसता जैसा ही ह। य अब भी क क ित अ यिधक खुला
आ ह िकतु यह मनोवै ािनक और भावना मक यु र कतई नह ह।’’
चामुंडी िहल क दोपहर क 6 स ाह प ा ज गी अपने यवसाय से बाहर आ गए। िकसी ऐसी चीज का िह सा
बने रहना अनुिचत जान पड़ता था िजससे उनक नए ा ए बोध क मदद से अपने प म फायदा उठाया जा सकता
था। यह िनणय िकसी नैितक मु े से े रत नह था, ब क िजसे वह ‘जीवन भाव’ कहते ह, उससे े रत था। अब वह
अपने अनुभव से जान गए थे िक नैितक आचार संिहताएँ जीवन अनुकरण मा थ । अब उ ह पहले क अपे ा यादा
प था िक उ ह नैितकता से े रत होकर काय करने क ज रत नह थी, ब क उनक अपनी मा मानवता से।
‘‘अब मेर िलए दूसर क मन क बात जान लेना और िकसी से अपनी इ छानुसार काय कराना सरल था, अब भी म
ऐसा कर सकता । लेिकन इसम रखा या ह? यह तो िकसी पाँच साल क ब े क साथ गो फ खेलने जैसा ह। ऐसा
करना म पसंद नह करता। म िकसी नैितकता क बात नह कर रहा । यह मा स दय क बात ह।’’ आज भी इशा क
िविभ यावसायियक े म वेश क बाद, वह बैठक म वयं जाने क बदले अपने ितिनिध ही भेजते ह।
जब वह थरता ा करने लगे, उसक बाद उ ह ने महसूस िकया िक जो उनक साथ घटा था, ‘‘वह साधारण प
से िकसी य क साथ होनेवाली सवािधक सुंदर बात थी। अभी लोग बचपन का गुणगान इसीिलए करते ह य िक
ब ा हस सकता ह, इधर-उधर उछल-कद कर सकता ह, िबलकल अकारण खुश हो सकता ह। लेिकन मने पाया ह
िक वय कता म भी अकारण ही वाभािवक प से हष मादी होना संभव ह। और जब मने देखा िक यह सभी क िलए
संभव ह तो वाभािवक प से म इसे बाँटना चाहता था। तभी से मेरा पूरा यास यह रहा ह िक िकसी तरह म इस
अनुभूित को और पर भी लुटाऊ।’’
अब उ ह यह समझ म आना शु हो रहा था िक चामुंडी िहल पर उस दोपहर जो कछ इतना अ यािशत आ था
यह कछ रह यमय था। चूँिक उ ह ने वयं कोई आ या मक सािह य नह पढ़ा था, इसिलए उनक पास ऐसा कोई
उदाहरण भी नह था िजसक साथ वह इस अनुभूित क तुलना कर सकते। िकतु बाद म वह ायः पछताते ए से कहते
ह िक उनक अपनी जागृित म सिदय पूव गौतम बु क िनवाण जैसी पौरािणक बात नह जुड़ी ह। न तो चमकता आ
पूण चं मा था, न पीपल क आ यदायी छाँव। इनक जगह उनक आसपास दोपहर क झुलसानेवाली धूप और ऊबड़-
खाबड़ डकन च ान थी। िफर भी प रणाम वैसा ही था— य गत प से उतना ही मह वपूण, उतना ही जीवन-
प रवतनकारी।
यिद बु ने उसक बाद क स ाह को अपने प रशोिधत अंत ान का आनंद लेते ए एवं अपने वष चलनेवाले
िमशन क तैयारी करते ए िबताया था, तो ज गी ने भी वही िकया। ‘‘म अपनी आँख मूँद िलया करता, िकसी च ान
पर या िकसी पेड़ क नीचे बैठ जाया करता और बस। मेरा जीवन साथक हो चुका था। कछ िदन क बाद मने सचमुच
यही सोचा—यही तो ह। अब और कछ करने को ह ही नह । उसक समा हो चुक ह। यह मेर बिहगमन क योजना
बनानेवाली बात थी। मने सोचा िक कछ समय क िलए म आसपास ही र गा, इसक पूण सुंदरता का रसा वादन क गा
और िफर अपनी शैली से िनगमन क गा। उस समय जो लोग मुझ े जानते थे वे हमेशा ही मुझ े योजना बनाते और म कब
जाऊगा इसक योजना बनाते ए सुनते थे। वे समझ नह सक। वे कहते थे, ‘तुम िकसी ऐसे य क तरह नह लगते
जो आ मह या करगा,’ म कहता था, ‘‘िन त ही आ मह या नह । म बाहर चला जाऊगा। म चार य य को
मशान ले जाए जाने क िलए तकलीफ नह दूँगा, म इसम चलकर जाऊगा।’’
और िफर भी वह यह महसूस करने लगे िक उनक खोज ही अकली य गत नह थी। उसक भूिमका एक संसार
से िवर बैरागी क तरह नह हो सकती थी, हालाँिक उसम ऐसा लोभन तो था ही। अब तक का उनका जीवन इस
ण क तैयारी ही रही। अनुभूित ई थी, िकतु यह मा वा तिवकता का मरण करानेवाली थी और कछ भी नह । यह
पहले भी आ था लेिकन उससे कह िवशाल, यानिलंग-अभी होना बाक था। यह हड़बड़ी म उन तक वापस लौट
आया—एक न िनभाए गए वचन क करदते दद क तरह। जो कछ भी आ था, वह खेल का ारभ मा था। अपे ाकत
िवशाल, यादा अिभ ायपूण कथानक आगे आनेवाला था।
अब उ ह महसूस भी आ िक य उनका ज म अपने इस िवशेष प रवार म आ ह। इसम कोई िविश कािमक
संबंध भी नह थे, िकतु यह प रवार ऐसा था िजसने उनक जीवन क िमशन म नह क बराबर रोड़ अटकाए। ‘‘ब त से
लोग क िलए उनक माता-िपता उनक जीवन को िदशा देन े म मह वपूण भूिमका िनभाते थे... मने यहाँ ज म लेने को
इसिलए चुना था, य िक इस प रवार म ब त कम बाधाएँ खड़ी क जाती थ । मेरी माँ म आ या मक आकां ा थी।
उ ह नौ वष क उ म एक योगी ारा सं का रत िकया गया था। और उ ह ने मेर जीवन म िकसी तरह का िव न खड़ा
नह िकया। और जब तक म अपनी परी ा म उ ीण होता रहता, तब तक मेर िपता भी मुझसे कोई सवाल नह करते
थे।’’
उ ह ने यह भी महसूस िकया िक उनक जीवन क इस सू म समय म यह मरण िदलानेवाली घटना य घटी।
यानिलंग म ऊजा पर एक तय तर का अिधकार भी आव यक होता ह। यह अिधकार शारी रक या बौ क तर का
नह था ब क ऊजा का बोध और उसक संभावनाएँ थ । प ीस वष क अव था म ज गी अपने जीवन क चरम पर
थे, और अपनी ऊजा का बंधन करने क उनक यो यता ब त पैनी थी। इस यो यता क बगैर भौितक शरीर धारण
करने क मता बुरी तरह लड़खड़ा जाती। आप अपने शरीर म अ ानता क िबना अ त वान नह रह सकते। आगे
उ ह ने कहा था, ‘‘एक जागे ए य को उन णािलय क जानकारी होनी चािहए अ यथा वह भौितक शरीर म नह
रह सकता। इस ि कोण से इस ह म कोई भी िनवाण ा या जागे ए लोग नह ह। अिधकतर लोग मजबूरी म
अ ानी बने ए ह और कछ ही लोग जान-बूझकर अ ानी ह।’’
जहाँ तक यानिलंग का न ह, इसे कसे हािसल िकया जाना था? इसक तकनीक तब तक उनसे नह जुड़ी थी। वह
जानते थे िक यह वहाँ थी, और यह िक एक बार िदमाग लगाते ही इससे जुड़ िववरण उभर आएँगे। उ ह ने कई वष
बाद इसे पु िकया, ‘‘इसी तरीक से यह मेर साथ रही। म जो भी जानकारी रखता वह णभर म ही मुझ े हो जाती ह।
जब म सड़क पर चल रहा होता , म इस ान का बोझ लेकर नह चल रहा होता। लोग सामा यतः ान क कारण
भारी और गंभीर हो जाते ह। िकतु जब ान ऊजा क प म ेिषत होता ह (न िक मृित क प म) तो ान का बोझ
आप पर नह होता। जब मेर गु पलानी वामी ने मुझे छड़ी से छआ, तब जो कई जीवनकाल म नह सीखा जा सकता
था वह एक ण म ही ेिषत हो गया।’’
यह व रत पुनः ा णाली ह। जैसा िक ब त-से लोग ने लि त िकया ह, इसने उनको ान का एक अनोखा
जीता-जागता िव तृत िकतु िफर भी िविच प से सं हालय बना िदया ह।
ज गी जानते थे िक स ाव समय क भारी ज रत ह। ब त से योगी िज ह ने यास िकया था और असफल रह गए
थे, उनक मृित तेजी से वापस आने लगी। िपछले तीन जीवनकाल क दौरान उनक अ यिधक, िकतु यथ यास क
मृित उ ह पुनः सताने लगी। वह जानते थे िक सामािजक वीकित क िबना कछ भी संभव नह था। उ ह सबसे पहले
अपने उन चुिनंदा िव ासपा क समूह से िमलना आव यक था, िज ह एक जीवनकाल पूव उ ह ने तैयार िकया था।
इसक प ा उनक िमशन को यह सुिन त करना था िक उनक गु का सपना पुनः मानवीय अ ानता और संदेह से
धराशायी न हो जाए। और इस बार इसक िलए कोई भी मू य ब त यादा नह था। इस बार वह तैयार थे, जैसा िक एक
बार उ ह ने कहा, ‘‘कछ भी करने क िलए, जो िक आदमी को करना चािहए या नह करना चािहए।’’
और इसिलए लगा िक भयंकर ना तक ज गी आिखर मंिदर बनाने जा रह ह। लेिकन उ ह मालूम था िक उस समय
िकसी को भी यह बात बताने का कोई औिच य नह था। ऐसा नह िक समय क चुरता थी, िकतु ज गी को कछ और
भी पता था। कछ और, िजससे उनक योजना को अित र गित ा होती। वह जानते थे िक वह बयालीस (42) वष
क उ म शरीर याग दगे। इसका अिभ ाय था अपने जीवन क बचे 17 वष म पूरी गित से काय करना। इसका यह भी
अिभ ाय था िक सभी उलझन को ब त ही यूनतम कर लेना। उ ह हलक होकर या ा करनी थी।
और तब 1984 म उनक मुलाकात िव ी से ई।
एक बार स ु ने एक वा ालाप क दौरान कहा, ‘‘मेरी सम या यह ह िक म एक अ यिधक जातांि क रह यवादी
संत ।’’
उस समय वह उस तरीक क ओर संकत कर रह थे िजससे वह अपने आसपास क लोग को कभी-कभी अपने
जीवन क घटना म को आदेिशत करने देत े थे, भले ही उनका अपना बोध यह कट करता था िक वह काय
अनाव यक या अवांछनीय ह।
यह िट पणी एक ऐसे य का प र ान तुत करती ह िजसने अपना जीवन िनयं ण और लापरवाही, अितसजग
सोच एवं िदखावटी कामचलाऊ यव था क िविच सम वय क साथ िजया ह। यानिलंग क िलए अपनी एक
जीवनकाल क अि म दूर ि पूण योजना बनाने क कारण ज गी जैसा सधा िव ोही, िजसने अपना जीवन दु साहसपूण
अंदाज म िजया, कभी भी परािजत नह रहा और इसी तरह क जाग कता और उ माद क साथ उ ह ने कभी यानिलंग
का सू िनिमत िकया था। और इसम अ थर और अिन त सम वय समािहत ह।
इस प र य म देखने पर, शायद उनक िनवाण क प ा क घटना म पूरी तरह से च कानेवाले नह ह। सबसे
पहले एक साल क अलगाव, यान और या ा क प ा ज गी ने योग िश ण देना तय िकया। अपनी अनुभूित क
प रणाम को िकसी तरह बाँटने का उनम जुनून था। ‘‘जब मने पाया िक आप अपने वय क काल म भी अकारण
हष मािदत हो सकते ह—तो वाभािवक प से म इसे लोग क साथ िमलकर बाँटना चाहता था। तब से ही यही मेरा
यास रहा ह। मने योग का चुनाव इसिलए िकया, य िक अपनी युवाव था से ही म इसका अ यास करता रहा और
मेर भीतर जो चल रहा था, उसे य करने क मा यम क प म मने इसे पाया।’’ अपने िमशन हतु लोग से पुनः
जुड़ने क ज रत क िलए उनक संपक म आने का यह उपयु तरीका लगा।
उनक थम क ा क िलए लोग को आकिषत करना सरल नह था। एक जोशीले मोटरसाइिकल सवार और सफल
यवसायी क प म मैसूर म उ ह लोग अ छी तरह जानते थे। लेिकन ब तेर ऐसे लोग थे िज ह यह संदेह था िक उ ह ने
अपना काम-धंधा छोड़कर यह आरामतलब महसूस होनेवाली जीवनशैली अपना ली ह। स ु मरण करते ह, ‘‘पूर
साल भर म बैठा रहा, य िक साधारण बैठ रहना मेर िलए सवािधक मह वपूण अनुभव था। िकतु इससे मुझे एक
खतरनाक य होने क याित िमली। अ यािधक समझाने-बुझाने, पुचकारने और डराने-धमकाने क बाद सात लोग
मेर काय म म आए।’’
पहला काय म दो घंट ितिदन क िहसाब से चार िदन क िलए तय िकया गया। दूसर िदन, क ा पाँच घंट तक
चलती रही और ऐसे ही तीसर िदन क क ा चली। अंततः उन सात क सामूिहक माँग पर काय म को 6 िदन म
त दील कर िदया गया। इसक बाद पीछ मुड़कर नह देखना पड़ा। आगे चलकर काय म क परखा या िनधारण,
संपादन एवं प रशोधन इशा योग क वतमान प म िकया जाना ारभ आ िकतु इसक शु आत वे सात छा ही थे
िज ह ने अपनी िन ा एक अ ात गु पर रखी और अ ात क आयाम म कद पड़। यह जोिखम उठाने क कारण ज गी
उनक आभारी थे। वह िसखा सकते थे यह त य उनक (ज गी) िलए भी उतना बड़ा कटीकरण था, िजतना उनक सात
छा क िलए।
एक तर पर इसे िच प रवतन क प म देखा जा सकता ह—मोटरसाइिकल रखरखाव से आंत रक रखरखाव—
िकतु इससे उनका और िन त प से कई अ य लोग का जीवन बदलनेवाला था। स ु कहते ह, ‘‘तब से पीछ
मुड़कर देखने क ज रत नह पड़ी। इन काय म म लाख लोग भाग ले चुक ह। यह िवकास क िविवध चरण से
गुजर चुका ह, और अब हमने इसे इस तरह िनिमत िकया ह िक यह हर तरह क लोग क िलए कारगर ह। उस समय
इसका कोई प-आकार नह था। मुझ े जैसा अ छा लगता था वैस े ही म िसखाता था। मै आ या मक वातावरण म कभी
नह रहा; न ही मने कछ पढ़ा था। अभी भी म आ या मक प से िशि त नह , इसीिलए लोग मुझ े स ु कहते ह।
िजसका अथ ह एक अिशि त गु ।’’ हसते ए वह आगे कहते ह, ‘‘इसका शा दक अथ होता ह, ‘वह जो अंदर से
कट होता ह’ जो शा या पिव पु तक या ऐसे ही कछ भी से अनिभ होता ह।’’
एक िन त समय तक ज गी ने अपनी वयं क क ा संचािलत क , त प ा उ ह ने समान उ े य वाले अ य
योग संगठन क तहत काय करने का िनणय िलया। आकां ाएँ भले ही समान रही ह , उ ह शु से यह ात था, िक
िजनक साथ वह जुड़ थे उनम से कोई भी उनक जैसी अनुभूित से ल ध नह था। िकतु एकजुटता से काय करने क
अपने अलग लाभ थे। इससे वह इतने हलक रह िजतना वह चाहते थे। ‘‘मेर देखने म आया िक हर िकसी क पास सभी
तरह क यु याँ, िविधयाँ और तकनीक थ , लेिकन मेरी अपनी न कोई यु थी, न िविध और न ही तकनीक। इसिलए
दूसर क अवलोकन से मुझे मदद िमली, य िक कम से कम इससे मने साफ तौर पर वह सीखा िक मुझ े या नह
करना चािहए। यह एक मू यवान योगदान था। यह महसूस करना िक या नह िकया जाना चािहए, जो िक समूह क
कछ ऐसे लोग क अवलोकन मा से ात आ जो िविवध तर क आ या मक अ यास म लगे थे। जाने-अनजाने
उ ह कछ ऐसी चीज िमल गई थी िजसका मू य वह नह जानते थे। वही बात मने भी चुन और आगे चलकर उ ह
एकदम िभ प म प रवितत कर िदया। जो हम इशा योग म करते ह, वह कई तरह से अ तीय ह। धरती म कह
और योग क तुित इस तरह नह क जाती जैसी यहाँ क जाती ह। िवषय साम ी समान हो सकती ह िकतु जैसी
इसक तुित क जाती ह—इसक तुित का आयाम और गहराई—वह जहाँ तक मुझ े मालूम ह कह और नह क
जाती।’’
उ ह ने अपने पो ी फाम क िकराए क आय पर रहकर साधारण भोजन करक और तीन जोड़ ज स पहनकर िनवाह
िकया। उ ह ने योग ि या हतु भुगतान हण करने से इनकार कर िदया। अपनी क ा से ा सं ह (धन, मु ा) को वह
सावजिनक प से अनाथालय, वृ ा म या अ य परोपकार से जुड़ी सं था को काय म क अंितम स म दान कर
देत े थे। त प ा मोटरसाइिकल पर सवार होकर एक महीने क िलए िवलु हो जाते थे। अपने काय क ित
किटब ता उनक वतं भावना पर रोक नह लगा सक ।
और अभी उनक आ या मक जागरण को दो वष ही बीते ह गे िक उनका िववाह हो गया। इसक छह वष बाद उ ह
एक संतान ा ई। इस व छद रह यवादी संत को प रवार बनाने क या आव यकता थी? या वह भूल गए थे िक
बयालीस (42) वष क उ म उ ह अपना शरीर छोड़ना था? या यह एक ऐसे य क िलए बुरी तरह बेतुका कदम
नह था िजसे यह ान था िक उसक जीवन का एकांगी िमशन ह?
ऐसा लगता तो था; िकतु िफर, शायद नह भी। य िक स ु का जीवन क ित ेम सदा से ही इतना ती ,
िवषयास भी रहा ह िक वह उसे शतरज क खेल मा म प रवितत नह कर सकते। उनक जीवन क अिधकतर िनणय,
बड़ या छोट, एक े रत संतुलन तय कर लेन े क उनक यो यता से ज मे लगते ह। एक ऐसा अ यिधक गितशील और
खतरनाक संतुलन जो कभी-कभी भारतीय िमथक क चंड नतक िशव का मरण कराता-सा महसूस होता ह। यह
िवरोधाभास ; रचना मकता और अनुमान; जोश और सू मता; लापरवाही और तक क म य संतुलन ह। कछ ऐसे समय
भी रह ह जब संतुलन िबलकल कारगर नह रहा ह, जब सबकछ ढह गया और उनका वयं का जीवन अ त य त हो
गया। िकतु इस जातांिजक रह यवादी संत क िलए शायद यही सामा य ह।
उ ह वह समय याद ह जब वह पहली बार िवजी से िमले। यह मुलाकात मैसूर म एक योग काय म क बाद ई।
िवजी, इ स वष या चंचल युवती (असफल िववाह क बाद तलाकशुदा) बंगलोर से काय म म शािमल होने आई
थी। यह काय म अ यिधक मनोवै ािनक िच का था और इसम भाग लेनेवाल क भावनाएँ उफान पर थ । ज गी इस
काय म का संचालन नह कर रह थे अिपतु उ ह दोपहर क भोजन पर आमंि त िकया गया था। चार बजे दोपहर का
भोजन परोसा गया। वह भोजन करने बैठ, य ही कमर म नजर फरी और उस (िवजी) पर उनक ि पड़ी। कोई सुदूर
क मृित जाग गई।
चामुंडी िहल क अ यंत मह वपूण अनुभूित क प ा , ज गी क अपने अचेतन से मृित जगा लेने क मता और
ती हो गई थी। णांश म अनुभूित ई िक यह मिहला एक जीवनकाल पूव उनक बहन रही ह। उसका अपने भाई
(ज गी पूव ज म म) क ित गहरा अनुराग था िकतु स ु ी ा ने पहले ही घर छोड़ िदया था और शेष जीवन एक
साधु क तरह गुजारा। एक बहन क प म भी उन तक प चना अभ और किठन लगता था, और उसक ेम को पूण
अिभ य कभी नह िमली। शायद, तब यह कोई आ य क बात नह थी िक वह उनक जीवन म पुनः वेश कर
जाती। ‘‘स ु जैसा भाई होना सहज नह था। उ ह ने बारह वष क उ म घर छोड़ िदया था। कभी-कभार वह उसक
जीवन म आते लेिकन हमेशा चले जाते। और वह अिधकतर न न रहनेवाले साधु थे। कभी-कभार वह व पहन लेत े थे,
लेिकन यादातर समय वह कछ नह पहनते थे। इसिलए सम याएँ आती थ । उनक नजदीक रहने क उसम इ छा होती
थी लेिकन, लेिकन वह ऐसा नह कर सकती थी य िक वह एक मिहला और उनक बहन थी। इसिलए उसम ऐसी
भावनाएँ थ जो पूरी नह हो सक थ और वही उसे मेर जीवन म पुनः वापस ले आई।’’ िकतु एक अलग तरीक से
ज गी को अब कछ अिधक महसूस आ। वह जानते थे िक इस बार उ ह उसे अपने साथ रखना ह। वह उनक जीवन
क िमशन क िलए मह वपूण थी।
िवजी ने उ ह अपनी ओर अपलक देखते ए पाया। िकसी अ य कारण से उसने वयं को उनक बगल तक
चलकर जाते ए पाया। उससे भी यादा अ य कारण इस बात का था िक वह रोने लगी। भावना मक प से यह
एक उ -ऊजा का काय म था और िकसी को यह असहज महसूस नह आ। ज गी पूरी तरह म त होकर भोजन
करते रह। भोजन से िनवृ होते ही वह उठ और चल पड़। य िप उस शाम का समापन उस काय म क प ा हो
चुका था, िकतु वह ितभािगय क एक समूह क साथ जलपान म शािमल ए। वह उनक पहली बातचीत ई।
एक िदन क बाद िवजी ने बंगलोर से उ ह प िलखा। मजे क बात यह ह िक उसने उ ह ‘ि य भाई’ कहकर
संबोिधत िकया था। स ु कहते ह, ‘‘वह इस बात से अनिभ थी िक उसने ऐसा िलखा था। यह उसका मेर िलए
पहला प था और वह ‘ि य ज गी’ िलखना चाहती थी। िकतु ‘ि य भाई’ िलखकर ही छ ी पा ली। मेरी उससे मा
एक िदन क ही मुलाकात थी; वह एक जवान लड़क थी और उस समय मने उससे कछ नह कहा। ब त समय तक
वह प मने अपने पास रखा। एक अंतराल क बाद मने उससे पूछा, ‘‘ या तुम जानती थी िक तुमने यह िलखा?’’ उसने
कहा, ‘म आपको भाई संबोिधत य करने लगी?’ जब मने उसे प िदखाया तो वह अवाक रह गई। उसे महसूस भी
नह आ िक उसने यह िलखा था।’’
प म िवजी ने उनक संपक म रहने क ती इ छा य क थी। िखंचाव व रत व पार प रक था। यिद िवजी ज गी
क ऊजाशीलता, उनक जीवन क ित ेम और साहस से आकिषत ई तो िन संदेह वह उसक ब े जैसे उ ास,
णभर म स ता और दुःख क म य मण करने क यो यता से आकिषत ए। वह म य क अव था म कभी नह
रही। वह या तो ऊपर होती थी या नीचे; िकसी ण हसती तो िकसी ण रोती।
मननकारी िमजाज म वह वीकार करते ह, ‘‘यह सच ह िक वह मेर जीवन म कछ पहले आ गई। यिद ऐसा बाद म
आ होता तो शायद मुझ े शादी करने क ज रत भी महसूस नह ई होती। आज मेर जीवन म ऐसे ब त लोग ह िजनक
साथ म बड़ी िनकटता से काम करता और उनसे मेर गहर आ या मक संबंध ह। शादी क आव यकता इस बात क
िलए नह रही ह।’’ िकतु उस समय, दोन युवा लोग क िलए साथ-साथ समय िबताने क िलए िववाह से ही सारयु
संग िमलता सा लगा। न ही यह कछ ऐसा था िजसक ित ज गी को खेद रहा हो। यह उ ेजना मक रोमांस िन त ही
एक युवा य क उ साह क वजह था न िक भिव य म मंिदर िनमाण करनेवाले क षड़यं कारी योजना क कारण।
इस घटना क एक स ाह बाद क बात ह। िवजी िजस बक म वह कायरत थी ज गी ने एक दोपहर वहाँ आकर उसे
च का िदया। ‘‘आओ चल’’, उ ह ने अपनी वभावगत ज दबाजी म कहा। वह संकोच म पड़ गई। अभी साढ़ तीन ही
बजे थे और बेलस अभी बंद िकया जाना था। एक अकली युवती जो असफल शादी से अभी उबरी थी, उसक िलये
बक क नौकरी ब त मायने रखती थी; इससे उसे वयं म वाय ता, आिथक वतं ता, और घर से बाहर क दुिनया म
प च हािसल थी। उस समय तो उसे ज गी का पूरा नाम भी नह मालूम था। िफर भी उसने बंधक से येन-कन- कारण
अनुमित हािसल कर ली और दोन ने साथ िमलकर शाम िबताई।
कई शाम इसी तरह साथ बीतती रह । िवजी बतौर वयंसेवक ज गी क एक योग काय म म शािमल ई। संबंध
गहराते गए। एक िदन ज गी ने िवजी को बंगलोर बुलाया और उसी शाम उसक स मुख वयं से जुड़ने क पेशकश क ।
इस बार िवजी को कोई संकोच नह आ। वह घर गई, अपने बैग पैक िकए और शाम क बस से मैसूर आ गई। बड़
मजे क बात ह िक उसक प रवार को भी हरानी नह ई। उस रात ज गी ने उसक ठहरने क यव था एक नौकरीपेशा
मिहला क हॉ टल क कमर म कर दी। अगले िदन उसने (िवजी) वैक पक आवास क िलए जोर िदया। अगली कछ
रात युवा जोड़ ने पहले चामुंडी िहल, िफर बी.आर. िहल पर कप लगाकर िबताई।
इसी दौरान ज गी को गो मटिगरी म एक काय म संचािलत करना था। काय म क म य ही दोन ने मैसूर से एक
सौ पचास िकलोमीटर क दूरी पर, नयनािभराम झरना थल इ पु म दो िदन का अवकाश िबताने का िनणय िलया।
ज गी यहाँ ायः आते थे और झरने क पास िशिवर भी लगाया था। यह महािशव-राि का समय था और परपरागत
ामीण मेला चल रहा था। गोधूिल बेला म दोन एक छोट व शांत धािमक थल, रामे रा मंिदर गए। यह एक आदश
यव था थी, धीमा काश, मनोरम वातावरण था और दोन ने िववाह करने का िन य िकया। िहदू पंचांग क अनुसार
इससे यादा मांगिलक समय और कभी नह हो सकता था, इसी िवशेष िदन िशव और पावती िववाह सू म बँधे थे।
भले ही उस समय वे इस बात से अनिभ थे, ज गी और िवजी महा संगित म थे। वे कहते ह िक िशव उनक िनणय क
एकमा सा ी थे।
इस घटना क शी बाद, ज गी ने अपने प रवार क िनवास थल से लगी सड़क पर एक मकान िकराए पर ले िलया।
तीन िदन क बाद वे इसम िव ए। उस थान पर एक ना रयल का पेड़ और एक रत का ढर था। इस य को पूण
करने म मा समु क कमी थी। यह एक छोटी-सी कमी थी। इस र ता को पूरा करने क िलए इस युवा जोड़ क
बीच समुिचत क पना और रोमांस था। दो ला टक क बा टय , कछ बरतन, और जीण-शीण फन चर क साथ ज गी
और िवजी ने सा ा य िनमाणक क िवजय भाव क साथ इस नए मकान म वेश िकया। दोन क बीच अथाह ेम क
कारण भौितक थितय क यूनता कोई मानी नह रखती थी।
एक बार मने उनसे पूछा िक उनक िलए शादी का अिभ ाय या था? या इससे उ ह कोई बंधन महसूस आ? या
अपने पहले क असफल ेम संबंध से इस र ते तक प चने का माग श त आ? उ ह ने उ र िदया, ‘‘इस र ते तक
मेरी प च एक अलग तर क प रप ता से ई। मने अपनी प नी को एक खूँटी क तरह कभी नह देखा। मेरा िववाह
मेर चार ओर िनिमत था, िकतु मने अपना जीवन इसक चार ओर कभी नह बनाया। इसका मतलब यह नह िक म
िवजी को ेम नह करता। मने हर संभव अपने जीवन म उसे एक पु प क तरह वीकार िकया, न िक एक खूँटी क
तरह िजस पर लटकते रहा जाए।’’
एक अ य अवसर पर जब मने उनसे पूछा िक एक संत क जीवन म, जो िक चीज को जैसी ह वैसी ही देखता ह,
रोमांस या ेम संग क या भूिमका हो सकती ह? तो उ ह ने उ र िदया, ‘‘म सूय दय क ओर देख सकता , म इसे
िछ -िभ करक परख सकता , साथ ही इसका आनंद ले सकता । यिद म िकसी मिहला क ओर देख ूँ और चा
तो म उसक चीर-फाड़कर उसका गुरदा, यकत, लीहा और उसक अंदर क चीज देख सकता । िकतु म उसे वैस े भी
देख सकता जैसी वह अभी ह। कई आ या मक गु ने शरीर को मल क खान बताया ह, य िक यह र ,
बलगम, नाशवान अंग - यंग से िमलकर बना ह। म जानता िक यह इतना ही ह। और यह तब भी मेर िलए अ छा
ह। इससे इसक सुंदरता तो ख म नह हो जाती। आप यह सुझाव दे रही ह िक संसार क खूबसूरती क ित आँख मूँद
ली जाएँ। मेरा नज रया ऐसा नह ह।’’
ज गी क माता-िपता शु -शु म इस संबंध को लेकर ब त सतक थे। उनक िपता ने िवजी क वंशावली, जाित और
उसक पूव िववाह को लेकर सवाल खड़ िकए। ज गी ने जवाब िदया िक इन बात का उनक िलए कोई सरोकार ही नह
ह। वह न तो उसक (िवजी) िपता से िववाह कर रह थे, न उसक पूव पित से। और जाित व सामािजक तर उनक िलए
कभी मह वपूण नह रहा। कछ ही स ाह क बाद उनक माता-िपता का मन िपघलने लगे। समय क साथ ही सुशीला
िवजी क ित मधुर हो गई। दोन क बीच काफ घिन संबंध थािपत हो गए जो सुशीला क जीवन पयत कायम रह।
िवजी क माता-िपता भी अपनी ओर से आ त थे िक उनक बेटी ने दूसरा िववाह कर िलया ह। वे बतौर योग िश क
ज गी क पेशे का भी स मान करने लगे। इस स मान म तब और यादा वृ ई जब प ाघात से पीिड़त होने क बाद
िवजी क िपता उनक एक योग काय म म शिमल होकर पूरी तरह व थ हो गए।
िवजी ने अपने बक क मैसूर शाखा म थानांतरण क िलए आवेदन िकया था। आवेदन मा य होने पर वह पुनः
नौकरी पर जाने लगी। ज गी का योग िश ण जारी रहा। उनक फाम से िमलनेवाली िकराए क रकम से उनक
मोटरसाइिकल का खच चलता रहा, इसक पे ोल टक भरी रहती थी, उसी तरह उनक दय भी। थोड़ और क ज रत
थी, ज गी ने अपने र त क शु आत म ही िवजी को िकसी भी ज रत क व या ा क िलए तैयार रहने को कहा था।
वह तैयार थी। ज गी पर उसका ढ़ िव ास था। उसक िम ने हमेशा यही पाया िक उसक मुँह से ऐसा कोई भी वा य
नह िनकलता, िजसम उनका (ज गी) नाम कम से कम तीन बार न आता हो। और इसिलए दोन फ त व बनजार -
सा जीवन जी रह थे। कई-कई िदन मोटरसाइिकल पर या ा करते ए, बगैर िकसी तय गंत य क, कभी सड़क क
िकनार, तो कभी जंगल म, कभी समु तट पर सो जाते। एक ऐसा भी समय था जब ज गी क मोटरसाइिकल ने एक
कलडर वष क अविध म ही छ पन हजार िकलोमीटर क या ा दज क ।
ज गी ने अपने र ते क शु आत क समय िवजी क स मुख एक और बात का खुलासा िकया था; यह त य िक वह
42 साल से यादा जीिवत नह रहगे। उनका िववाह होने तक वह पूविनधा रत ितिथ आ गई। िवजी ने जो ज गी को
धािमक होने क उ साह तक ेम करती थी, इससे कोई अवरोध महसूस नह िकया।
एक युवा कॉलेज छा को, जो उन िदन ायः ज गी क पास आता था और उ ह अपना गु मानता था, िवजी का
अपने पित क ित समपण कभी-कभी उलझन म डालनेवाला लगता। उसे याद ह िक िकस तरह एक बार िवजी ने उसे
चपाती बनाने म हाथ बँटाने को कहा था। ज गी को चपाती पसंद थी और िवजी खास तौर पर वैसी ही चपाती बनाती
जैसी उ ह पसंद थी। इस ि या म युवक से चपाती जल गई और वह यह देखकर घबरा गया िक िवजी सुबकने लगी
थी। उसे समझ नह आ रहा था िक इसम रोने जैसी या बात ह। लेिकन िवजी ऐसी ही थी। चंचल और अ यिधक नवस
वभाववाली िवजी का अपने पित क ित ेम चंड और सबकछ समािहत करनेवाला, शायद ख ती भी था। लेिकन
कछ इससे भी बढ़कर था। अपनी य गत सुर ा क ित पूण लापरवाह, वह शायद वयं ज गी से ब त यादा िभ
नह थी। दोन ही वयं क ित लापरवाह थे। ज गी क मामले म उनक वाभािवक वृि तक और पूव ान,
दीघकालीन ल य क िनमाण और मू यांकन क छ गु क यो यता से मु थी। िवजी क भावना मक गमजोशी
वाभािवक थी।
अपनी शादी क एक वष बाद ज गी ने आव यकतानुसार और यादा पैसा कमाने का िनणय िलया। शहर क
कायालय म बैठकर लोग से िमलते-जुलते ए, हर समय पैस े क िवषय म सोचते ए, हर समय यह सोचते ए िक
आप उनसे और अिधक कसे ा कर सकते ह; ‘‘यह कछ ऐसा था िजसक साथ म नह रह सकता था। इसिलए मने
अपना यवसाय छोड़ िदया और एक दूसरा फाम ारभ करने का िवचार िकया। पहले से ही मेर पास एक फाम था
लेिकन मुझ े कछ यादा क ज रत थी। म हग लाइडर उड़ाया करता था। इसिलए मुझ े ढलावदार थान क तलाश थी।
िकसी न िकसी तरह से पवत क ित यह पागलपन मुझम हमेशा से रहा।’’
उ ह ने मैसूर से लगभग 32 िक.मी. दूर 14 एकड़ का एक भू-खंड खरीद िलया। यह एक पवतीय ढलाव पर थत
था, और इसक िवपरीत तरफ भगवान िशव का एक मंिदर था और सामने एक झील थी। यह जमीन पथरीली और किष
यो य नह थी, उसम खेती क िलए िविनयोग करना नादानी थी—या ऐसा माना जाता था। ‘‘लोग इसे मेरा झ पन
समझ रह थे और गाँव म यह बड़ मखौल का िवषय था। गाँव क लोग हसा करते थे। ितिदन म कछ नया करता और
वे सोचते, ‘अर, यह बु ू एक और मूखतापूण काम कर रहा ह।’ िकतु ज गी ने ना रयल, गोभी, आम, और कभी-
कभी, कपास का वृ ारोपण शु िकया। उ ह ने आसपास क झािड़याँ साफ कर द ; ि प िसंचाई क साधारण, िकतु
सरल णाली ईजाद क , मैसूर िचिड़याघर से मंगाई ई खाद का योग िकया, और भारी तादाद म उगी पाथिनयम घास
को काटकर इसका उपयोग पतवार क तरह िकया। प रणाम एक लहलहाती फसल क प म सामने आया।
ाकितक संसार से ज गी क िनकटता दीघकालीन रही ह, और इस र ते क वाभािवक भाव का िव तार था उनका
कषक क प म जीवन। आज भी उनक काय क ित उनका ि कोण हमेशा क तरह यावहा रक और सहज रहा ह।
उ ह ने उन ‘नीचे क ओर देखनेवाली और आकाश क ओर देखनेवाली िन ा ’ क बीच भेद क बात हमेशा क ह।
वह कहते ह िक नीचे क ओर देखनेवाली िन ा िकसी अ य दुिनया क अपे ा धरती क िलए यादा स मानजनक ह।
वह कहते ह िक वे धम जो यह देखते ह िक ई र धरती पर ही ह, कह अंदर गहराई म, वे इस ह पर यादा
सं ांततापूवक चलते ह। वे जो यह िव ास करते ह िक ई र ऊपर ह, वे आ ामक प से चलते ह। यह ह (धरती)
उनक िलए उतना मू यवान नह ह, य िक वे सोचते ह िक वे वग जा रह ह। यिद आप इस जीवन से अपने आपको
ब त यादा आँककर गुजर रह ह तो आप िव वंसकारी ह। यिद आप अपने जीवन का येक कदम आभारपूवक उठाते
ह, यिद आप यह देखते ह िक आप िकतने ु ह, तो आप धरती पर बड़ी स नता से, तीथया ी क तरह चलते ह; यह
जीवन आपक िलए तीथ हो सकता ह।
एक िदन उ ह ने अपने फामहाउस का रग-रोगन करना तय िकया। इस हाथ से िकए जानेवाले साधारण काय से भी
उनका अपना रह यवादी अंत ान कट आ। वह याद करते ह, ‘‘म अपने फाम क भवन क पुताई कर रहा था, और
आपको बताऊ, म पुताई का यादा सरल तरीका ईजाद करना चाहता था। मेर पास समय कम था य िक सार फाम क
पुताई म अकला कर रहा था। इसिलए ुश डबोकर म एक छोर से चलकर दूसर छोर जाता था; िफर म पुनः ुश
डबोकर एक छोर से दूसर छोर को जाता। इसिलए पहली पुताई क िलए मने ुश डबोई और चल पड़ा। जब म यह कर
रहा था तब यह पुताई गाढ़ी लगी, लेिकन इसक बाद यह फ क होते-होते िबलकल िवलु हो गई। म वहाँ बैठ गया
और यह देखकर मुझ े िदमाग म करारा झटका लगा य िक मेर िलए संपूण अ त व ही यह था। यही तो अ त व ह।
कछ भी जो थूल ह, यह सू मतर होता आ अभौितक हो जाता ह। जब यह अभौितक हो जाता ह तो आप इसे दैवीय
कहते ह। जब यह अ यिधक थूल होता ह आप इसे च ान या पदाथ कहते ह। सू मता और थूलता क म य अनेक
तर ह। यही तो अ त व ह।’’
उ ह ने कछ मजदूर क मदद से जमीन पर एक कआँ भी खोदा। यहाँ भी उ ह ने ढलान क िन नतम तर क थान
पर इसक ऊपरी भाग को खोदते ए, चिलत उपाय पर यं य कसा। इस खोज म च ान क िनमाण से वे िव त हो
गए िक वह उिचत थल होगा। यह िनचले तर क जमीन पर टक बनाने क अपे ा यादा सुिवधाजनक था िजससे
जल िवतरण क णाली शेष फाम क िलए कारगर होती। अपने तरीक से कआँ खोदने क ि या उ ह ने खोज िनकाली
—धरती क अंदर गहराई से खोदते जाओ, जल क अिन त याशा क साथ। यह एक गहन आ या मक अनुभूित
थी। जब उ ह अ ारह फट क गहराई म जल ोत िमल गया तो ामीण ने यह देखकर दाँतो तले उगिलयाँ दबा ल ।
इसे चम कार से कम नही आँका गया।
कछ समय क बाद वह सहकारी किष क संभावना पर िवचार करने लगे। यह ामीण उ थान क ित उनक दशन से
मेल खाता था। यह िवचार िनजी वािम व का याग कर सामूिहक वािम ववाली सैकड़ एकड़ जमीन का आधुिनक
फाम तैयार करने और संसाधन को एक कर लाभदायक यापा रक फसल क खेती करने का था। उ ह ने कई छोट
िकसान म इस िवचार क ित िच जगाई और प रयोजना छोट-छोट चरण म ारभ हो गई।
‘‘मने सोचा िक हम एक हजार एकड़ का फाम किष ातक क सहयोग से िनिमत करगे। बक ऋण लेकर नलकप व
ि प िसंचाई क यव था कर सात-आठ तरह क िविभ वग क फसल लगे, (िजसम यिद एक फसल सफल नह
भी रही तो दूसरी फसल से इसक ितपूित हो जाएगी।) और भूिम का िवभाजन उसक उपजाऊपन व गुणव ा क आधार
पर करगे। जहाँ तक लाभ-िवभाजन क बात थी, तो सभी को इसका बराबर िह सा ा होता। मने इस अवधारणा पर
काय करने का यास िकया। मने इन फसल को नव वतनकारी िविधय से उगाने क िवषय म लेख तैयार करना शु
कर िदया। मने वहाँ उगनेवाली हर फसल क िवषय म लगभग आठ सौ पेज का िववरण िलखकर तैयार कर डाला।
मूलभूत प से मेरा िव ास था िक यिद हम खेत का एक करण करते तो जो भी हम करते, वह आिथक प से उिचत
होता। दो या तीन एकड़ क खेत म आप जो कछ भी करने क कोिशश करते ह, वह कारगर नह होता। और यिद आप
मा एक फसल उगाते ह, और वह यिद (बाजार म) असफल हो गई तो आप बबाद हो जाते ह। आप पुनः ऋण लेते
ह, आ मह या करते ह, इ यािद। लेिकन यिद आठ फसल ली जा रही ह और एक फसल कामयाब नह होती ह तो
उसक ितपूित आप दूसरी से कर सकते ह। और इस फसल को सभी लोग क बीच बाँट िदया जाएगा।’’
लेिकन उ ह इस बात का भी भान था िक आिथक सुधार कभी भी पया नह होगा। उ ह मालूम था िक वा तिवक
पांतरण का ोत येक मानव क गहनतम ायः बंजर अंतरमन म ह जहाँ ायः आकाश का सुदूर टकड़ा भी नजर
नह आता था। मा भौितक क याण क प च वहाँ तक नह हो पाती।
जब शहतूत फािमग का योग अपनाया गया तो थितयाँ वाभािवक ठहराव पर आ खड़ी ई। ज गी क योजना
शहतूत क पि याँ रशम क क ड़ पालनेवाल को बेचने क थी। फसल अ छी ई। फसल पकने क समय म मा एक
महीना रह गया था। एक िदन ज गी ने अपनी टीम क एक य से चचा छड़ दी िक उसक फाम क आसपास सूखी
जंगली घास को सावधानी से जलाकर ख म करने का समय आ गया ह। कछ िदन क बाद वापसी क दौरान पहाड़ी क
चोटी पर अपनी मोटरसाइिकल खड़ी कर वहाँ हमेशा क तरह ठहर। वहाँ से वह अपने फाम और आसपास क ामीण
े का प र या मक िनरी ण करना चाहते थे। इस बार उ ह झुलसकर काली पड़ गई जमीन ही नजर आई। जब वह
सवारी करते ए परशान से आगे बढ़, तो उ ह ने ामीण को शांत, परशान भाव से अपनी ओर देखते पाया। इस तरह
क अिभ य कोई बरबादी क थित म ही य करता ह। वह कहते ह, ‘‘हर कोई मेरी ओर इस भाव से देख रहा
था जैसे यह आदमी तो बरबाद हो गया।’’
जब वह अपनी जमीन पर लौटकर आए तो उ ह ने देखा िक सारा का सारा फाम आग क लपेट म था। उनका
आदमी उनक आने क दस िमनट पहले ही गायब हो गया था। िकतु उसक भया ांत प नी इस िवषय म कछ बताने क
िलए छट गई थी। रो-धोकर वह िववरण उ ह सुनाया गया और ज गी ने अंततः कछ त य एक कर िलए। उस उ साही
कमचारी ने अपने मािलक क अनुप थित म ही झािड़य म आग लगाने का फसला ले िलया था। िकतु िमनट म ही
आग अिनयंि त हो गई। उसने थित पर िनयं ण पाने का पुरजोर यास िकया िकतु सारा थान उसक आँख क सामने
आग क लपेट म आ गया। कहने को कछ रहा ही नह , ‘‘मोटरसाइिकल क आवाज सुनते ही मेरा सहायक पहाड़ क
तरह चंपत हो गया। उसने सोचा होगा िक म उसे मार डालूँगा। उसने अपनी प नी को मुझे जानकारी देने क िलए वह
छोड़ िदया था य िक म उसक िपटाई तो कर नह सकता था—कम से कम उसे इतना यक न था। इसिलए वह काँपते
ए वहाँ खड़ी थी, और अपने आपको बचाने क िलए उसने अपने िशशु का सहारा ले रखा था।’’ हसते ए वह आगे
कहते ह, ‘‘शायद उसे यक न था िक यिद वह अकली होती तो म उसका गला घ ट देता या ऐसा ही कछ करता। मने
चार ओर देखा और पाया िक सबकछ जलकर खाक हो चुका था। वह सारा का सारा बक ऋण जो मने ले रखा था,
वह सारा पैसा जो हािसल होने का मुझ े भरोसा था, सबकछ िबलकल ख म। म िबलिखलाकर हसने से वयं को रोक न
सका, लेिकन िफर म यह भी जानता था िक वह यह सोच लेती िक म पागल हो गया था या ऐसा ही कछ। मने उसक
तरफ मानो या आ, पूछने क िलए देखा। उसने कहा, ‘नह , नह , हमने यहाँ कछ नह िकया, वह तो मा झाड़ी म
आग लगाने क कोिशश कर रह थे, और हम नह पता या आ। अचानक हर जगह आग फल गई।’’’
उसक कहानी सुनकर ज गी को समझ म आया िक अब करने क िलए कछ रहा ही नह । वह कहते ह, ‘‘म यहाँ
कछ िदन तक ठहरने क पूरी तैयारी से आया था। लेिकन अब फाम म कछ काम रहा ही नह । फाम था ही नह । अब
म पूरी तरह वतं था। म वापस मुड़ा और मैसूर लौट गया।’’
वह बक म लंच ेक पर िवजी से िमले और बाहर चलकर भोजन करने का ताव रखा। उसने पूछा, ‘‘भला आप
वापस कसे आ गए? आप तो दो या तीन िदन तक आनेवाले ही नह थे।’’
मने कहा, ‘‘सारा फाम जलकर ख म हो चुका ह और अब म आजाद ।’’ उसक तो साँस ही क गई।
मने कहा, ‘‘म तुमसे भोजन क िलए बाहर चलने को कह रहा । तुम या िशकायत कर रही हो?’’
उसने कहा, ‘‘लेिकन फाम?’’
मने कहा, ‘‘वह जल गया। अब हम इसक और िचंता नह करनी ह। रोज-रोज फाम को लेकर कई सम याएँ रहा
करती थ । अब सारी परशानी ही ख म हो गई।’’
वह परशान हो उठी थी। उसने कहा, ‘‘लेिकन जो कजा ले रखा ह उसका या होगा?’’
मने कहा, ‘‘अभी तो हम आजाद ह। बाद म सोचगे िक कज का या करना ह।’’
उसने कहा, ‘‘इस तरह क थित म भी आपको हसी कसे आ रही ह?’’
मने कहा, ‘‘ठीक ह, यिद तुम रोना चाहती हो तो रोओ। म िकसी और क साथ लंच कर लूँगा।’’
तब उसने अंततः कहा, ‘‘ठीक ह, यिद आपको कोई तकलीफ नह ह, तो मुझे या?’’
और मने कहा, ‘‘अब तुम कह चल रही हो।’’
संकट क ित उनक शांत िति या का अथ भया ांत साथी को मनाना या समझाना नह था। स ु हमेशा इस बात
पर अिडग रहते ह िक, ‘‘ ितकलता कसी भी आ जाए, खुशी का दामन कभी नह छोड़ना चािहए। उस फाम क
जलकर न हो जाने का अिभ ाय यह था िक म अगले तीन-चार महीने या ा करक िश ण ारभ कर सकता था।
और आप जानते ह, मने एक दूसरी फसल उगाई। शहतूत क फसल म म कई साल तक उलझा रहता। मने तीन महीने
क अविधवाली कपास क फसल उगाई, अ छ पैस े कमाए और कज चुका िदया। उसक बाद, िन संदेह मने अपना
फाम बेच िदया, िकतु ऐसा मने िकसी िव ीय संकट क कारण नह िकया ब क समयाभाव ही इसक मुख वजह थी।
देिखए आपको कवल तभी खुश नह रहना ह जब सबकछ ठीक-ठाक चल रहा ह। यिद आप खुश ह तो िन य ही
आप अपनी पूरी मता का योग करगे। अतः चूँिक आप पूरा यास करते ह इसिलए सबकछ िकसी और क बदले
आपक िलए बेहतर होता जाता ह।’’
इस दौरान योग क ाएँ जमकर चल रही थ । ज गी ने अपने अंत ान से यह महसूस िकया था िक उनक जीवन ल य
क सहार का एक अहम ोत तेलुग ु भाषी े से ा हो सकता ह। उ ह ने हदराबाद म क ाएँ संचािलत क थ , जो
िक सफल रह थ । िकतु उनक य गत खोज क नज रए से कछ भी फलदायी नह रहा था।
और िफर कछ पवत थे— वे िजनक छाप बचपन से ही उनक मानस पर अंिकत थी। पवत क हमेशा से वह —
धैयशील, वैभवशाली, अिमट— थत होने क कारण उ ह यह िव ास हो गया था िक ये उनक जीवनकाल क कम थल
ह। वह अब भी उ ह साफ-साफ देख सकते थे। लेिकन वे थे कहाँ? या वे सचमुच अ त वान ह? िक ह कारण वश
ज गी को िव ास था िक उनका अ त व ह। उ ह ने करीब सात बार अपनी मोटरसाइिकल से प मी घाट क ऊपर-
नीचे, गोवा से करल क मालाबार तट तक या ाएँ क । अपनी या ा क दौरान, उ ह ने बड़ शानदार व ऐ ययु भू-
भाग देख।े लेिकन उ ह कह भी ये पवत (उनक पवत) नजर नह आए।
तभी एक िदन वे कोयंबतूर (तिमलनाड) अपने िम से िमलने क िलए गए। यह 1987 क बात ह। वह बस टड पर
उतर। बस काफ पहले आ गई थी और िम से भट हतु िनधा रत समय म भी कछ घंट का समय था। उ ह ने बस
िडपो म बैठकर ती ा करने का िनणय िलया। अभी चार बजे थे, अँधेरा अभी भी पसरा आ था। हवा शीतल और
ऊजादायी थी। ज गी अपने सूटकस पर बैठ गए। कछ ही ण म वह गहर यान क थित म आ गए।
उ ह ने अपने पूव जीवनकाल (ज म ) क मृित, चामुंडी जागृित क ठीक बाद, पाँच वष पूव ा क थी। िकतु
उनक याद क कछ िह से तब भी धुंधले थे। अपने ल य क िदशा म उनक कई अटकल थ िकतु वे तब भी अ प
नह थ । अब तो िव मृित क अंितम िनशान भी िवलु हो चुक थे। दो घंट बाद जब उ ह ने उठकर अपने िम का
वागत िकया, तब तक िकसी भी संदेह क गुंजाइश नह रह गई थी।
अब उ ह मालूम था िक उ ह अपने जीवन क काय क तलाश कहाँ करनी ह, और कहाँ उ ह अपने िन ावान साथी
िमलगे। वे यह तो थे। यहाँ इन पहले पवत क शहर म। यह , उस भूिम पर जहाँ स ु ी ा ने अपने जीवनकाल
क दौरान िव तृत या ा क थी। यह कोयंबतूर ही तो था।

‘ष यं क प म क णा’
फसल काटने क तैयारी
‘‘ज ब आप एक फसल उगाते ह, तो आप जानते ह िक इसम िनराई (खरपतवार िनकालने) क आव यकता होती
ह।’’ एक बार स ु ने मुझे बतलाया, ‘‘इसे सही समय से करना मह वपूण होता ह।’’
अपने ल य से संबंिधत ि याकलाप क थल क प म कोयंबतूर क खोज कर लेन े क बावजूद ज गी ने वयं को
अिवलंब वहाँ थािपत नह िकया। उ ह ने अगले वष का अिधकांश समय अपने फाम म सापेि क एकांतवास क तौर
पर िबताया। उ ह ने अपने अ य ि याकलाप म कटौती कर, यादा-से- यादा समय यान को समिपत िकया। िकतु वह
आलसी िबलकल नह थे। एक रह यवादी संत क ि कोण से यह काफ य ततम समय था। ज गी िनराई काय म
य त थे।
यह आ या मक उ ान िव ा का अिभ ाय या था? वह कहते ह िक अपने काय क अगले चरण का आव यक
माग श त करना। इसका अिभ ाय उन लोग क जीवन को अना यक कचर (कम बंधन) से रिहत करना था िजनक
साथ वह संबंध साधगे। वह उन सभी क अपे ाकत िवशाल ल य म ितभािगता क िलए सुचालक थित िनिमत कर
रह थे। वह रह यो ाटन करते ए कहते ह, ‘‘म जानता था िक कोयंबतूर क कई िह स से मेरी योजना का वाभािवक
िवरोध होगा। मने इ ह आते ए देखा था। और म, िम ी क सफाई करते ए, िजतना संभव था, पौध क उतनी काट-
छाँट करते ए, इसी क तैयारी कर रहा था।’’
1989 म उ ह ने कोयंबतूर म अपनी थम क ा (काय म) संप क । इसम दस लोग ने भाग िलया। राजा नामक
एक इजीिनयर थे जो मा उ सुकतावश एवं साइनॉसाइिटस बीमारी से छटकारा पाने क दबी इ छा से े रत थे।
वामीनाथन, जो ित पुर म जीविव ान क ोफसर थे, िज ह उ मीद थी िक योग से वह माइ ेन बीमारी से राहत पा
जाएँगे। पु ु वामी, चावल िमल क मािलक, जोड़ क दद से पीिड़त थे और इससे िनजात चाहते थे। गीता, एक
इजीिनयर युवती िपछले कछ समय से अवसाद त थी और इसक वजह से अनिभ थी। ये उन थोड़ लोग म थे जो
ज गी क ओर शु म िहचिकचाहट और बाद म आभार व भलाई क भाव से आकिषत ए। ित पुर क एक यानी
साधक को उनक (ज गी) पहले काय म क दौरान काय म थल क बाहर एक प रचारक क िनगरानी म अपने जूते
रखना याद ह। हाल म वेश करने पर उ ह ने पाया िक वह जूत-े च पल वाला प रचारक वयं एक िश क था, जो अब
भावकारी व ा म प रवितत हो गया था। ऐसे ही एक अ य यानी साधक क दय को यह देखकर बड़ी तस ी ई
िक उनका योग िश क ितभािगय क साथ भोजन करने क अलावा ायः भोजन क िलए स जी काटता भी नजर आता
था।
उ ह ने पाया िक यह क ा मा योगासन िसखाने क िलए नह थी। देह कचन हठ योग को ज गी ने ‘कोलंबस योग’
का नाम िदया, जोिक प म से ित ेिपत था। उनक ारा िसखाया जानेवाला योग आसन , ाणायाम एवं यान क
अ यास का िम ण आ करता था। उनका िसखाने का तरीका काफ सहज एवं वै ािनक था। उनक िनदश बोधग य,
उनक या यान खर एवं मजेदार आ करते थे।
िकतु यान क अ यास म दीि त करने क ि या िव फोटक रहा करती थी। यह पहले क अ पभाषी ज गी नह
आ करते थे। 1982 से ज गी एक से अिधक मायन म बदल चुक थे। उनक उप थित से ेहमयता एवं तेज वता
झलकती थी। उनक बु ती ण एवं िवनोदपूण, उनक ऊजा समािहत करनेवाली व क णामय आ करती थी। उनका
आसपास उप थत होना ही िचकर होता। वह एक अ छ वणकता थे। सं ेप म कहा जाए तो वह भावशाली थे।
जब वह कोयंबतूर म अपनी कार चलाकर सवारी करते तो पूरी गित पर। जब वह पवत पर िकग करते तो उनक
गित क बराबरी करना मु कल होता था। लेिकन इसक अलावा भी कछ और था। उनम िविवध िमजाज एवं िचय वाले
य य को—चाह वे भ ह या संशय करनेवाले, भावुक ह या बौ क, सहज ह या आधुिनक, ामीण हो या
शहरी—अपनी ओर ख चने क रह यमय यो यता थी।
उनक उप थित क आभा अभी भी िव मान ह िजससे गु से भय-भाव रखनेवाले कछ दोषदिशय का म
लगातार टट रहा ह। उनक वाभािवकता, श द क अ यासपूण िमत यियता व हावभाव और पंदनशील जीवन क
मौज िविवध िचय वाले लोग को उनक ओर ख चती ह। मूडी, सनक , िफर भी ीितकर मनु य क वभाव क साथ
वह मौका िमलते ही दिकयानूस गु क छिव का प रहास करते से लगते ह। ‘‘म टलीिवजन क आ या मक चैनल क
उन मूख जैसा होने से इनकार करता ।’’ यह िट पणी उ ह ने हालाँिक कोयंबतूर क युवा क साथ मोटरसाइिकल रस
म शािमल होने पर िवचार करते ए क थी, लेिकन उ ह जानने वाले यह मानते ह िक वह बड़ ही िमलनसार व मृद ु ह।
इसक अलावा उनक सहज तौर-तरीक म वैभव क ऐसी झलक ह िजसे भू ओझल नह िकया जा सकता। इसम कछ भी
नकलीपन-सा नह ह। यह उनक हसी सा ही वाभािवक ह। और इसी से उनक ित स मान जाग उठता ह, उनक
अनौपचा रक ढग से हम शी ही सहजता महसूस करते ह।
लोग क भावना मक आव यकता क साथ गहराई से संग जोड़ने क यो यता और वैसी ही यो यता उनक
िन प और गैरसमझौतावादी िव ेषण म भी झलकती ह। अपने इस असामा य सम वय क कारण ही शायद वह, जैसा
िक उ ह ने ायः कहा ह, ऐसे गु संभव ए ह, िजनसे ान और भ दोन पंथ क लोग जुड़ सकते ह। दोन ही पंथ
माग म झुकाव रखनेवाले लोग उनक ओर िखचे चले आते ह।
इशा (या सहज थित, जैसा िक तब इसे जाना जाता था।) योग क क ा ायः य क शरीर, मन, भावना और
ऊजा क िम ण क ि कोण पर आधा रत रही ह। ज गी काय म क ारभ म ायः कहते थे िक कोई भी य पूरी
तरह भावना या पूरी तरह मन नह ह। हर कोई इनका िम ण ह और ऐसी योग िविध तैयार करना संभव ह जो हर तरह
क य क िलए उपयु हो। इस िश ण पा य म म साधारण आसन , ाणायान ि या और यान को सम वत
िकया जाता ह। जािहर तौर पर यह काफ सरल ह। लेिकन ब त से लोग जो अ य योग क ा म स मिलत ए ह, वे
इस योग क काफ िभ होने का दावा करते ह।
तब यह कारगर कसे आ? यह अब कारगर कसे ह? इसक जानकारी िकसी को ह, ऐसा लगता नह ह। ब त से
उन योग िश क को भी नह जो साल साल इसे संसार क अनेक भाग म ले गए ह। लेिकन एक बात िन त लगती ह;
इशा योग काय म म जो सतही तौर पर होता िदखाई पड़ता ह, उससे भी अिधक कछ होता रहता ह। इसक सहजता
ामक ह। जो धीर-धीर उनपर प होता ह जो योग म पकने क ज रत महसूस करते ह लेिकन उ ह इसका कारण
समझ म नह आता। यह एक त य ह िक साधारणतया येक काय म गु क ऊजा और उनक उप थित से प रपूण
होता ह। इसक िलए वातावरण श द का योग िकया जाता ह। वातावरण वा तव म एक ब त अ छा श द ह।
वातावरण क कारण ही कोई बार-बार काय म म लौटकर आता रहता ह। या व तुतः आ म या स ु क पास।
वातावरण इतना मौिलक ह िजतना घंटी का बजना, िजतनी गहन आंत रक धड़कन, एक थर, बराबर पंदन। आप इसे
अपने गु क प म पहचानते ह। आप िनरतर इसे अपने वयं क प म पहचानते ह।
1989 म य िप वह अभी स ु नह थे, वह फ क ज स और टी-शट पहने, दाढ़ी और लंब े बाल बढ़ाए, आकषक
युवक थे। लेिकन थितयाँ उनक आसपास िनिमत हो रही थ , िज ह कोई समझ ही नह पाया। यह उनक योग िश ण
से िवलु होनेवाली शारी रक और मानिसक बीमा रय क ही बात नह ह। इससे िन त प से उ ह िव सनीयता
हािसल करने म मदद िमली। लेिकन िजस तरह वह लोग को अपनी तरफ ख चते थे, यह उससे संबंिधत थी। अ पकाल
म ही ऐसा लगता था िक वह उनक जीवन क िलए अिनवाय हो गए ह। ये अलग-अलग उ , वग और अलग-अलग
े से जुड़ लोग थे, िकतु वे समान प से समिपत लगते थे। उ ह मालूम ही नह था िक यह सब कसे और य
आ। लेिकन ज गी क ित उनक आ था गहरी और वाभािवक थी। कनाटक से कोयंबतूर प चे साधक यह देखकर
आ यचिकत रह गए िक िकस तरह ज गी ने कोयंबतूर क साधक को अपने वश म कर रखा था। इससे वसुदेव क घर
ज गी क ज म िदवस पर प चे उस भिव यव ा क भिव यवाणी याद आती थी; ‘यह मनु य को चराएगा।’
एक वयंसेवी और आगे चलकर िश क क तौर पर उनक साथ करीब से जुड़कर काय करनेवाले राजा कहते ह िक
उ ह ने ज गी म जो सवािधक ेरणा पद गुण देख े वे ह उनक सहजता, उनका खुलापन, उनक स दयता और उनका
अनंत धैय। ‘‘लोग से यवहार करना उ ह से सीखा। टीचस िनंग काय म म भी, िजसका मकसद लोग क अह को
कचलना ह, मने देखा िक वह काफ सावधानी से िबना िकसी को चोट प चाए यह काय करते थे। ऐसा लगता था मानो
उ ह हर िकसी म इ छा उ प करने क यु मालूम ह। इसक बाद िकसी क भावना को चोट प चने का न ही
नह उठता था। इस ि कोण का सू स ु क हाल ही म िदए गए एक व य से कट होता ह; इससे यह मरण
करने म मदद िमलती ह िक कोई भी दबाव म आना नह चाहता। ब क हर िकसी क लालसा स मिलत िकए जाने क
होती ह।’’
ज गी ने िजस ढग से कई तरह क उकसानेवाली थितय म अपनी िति या दी, राजा उससे भी काफ भािवत ए।
‘‘उनका िमजाज कभी भी गरम नह आ। एक बार म उनक कछ आमं ण प मैसूर म रहनेवाले उनक प रवार और
िम को डाक से ेिषत करना भूल गया। वह जब-तब मुझसे पूछते रह िक मने उनका यह काय िकया या नह । म उ ह
आ ासन देता रहा िक कर िदया ह। मने उ ह बताया िक डाक क िवलंब क वजह से उ ह नह िमला होगा। लगभग
एक स ाह क बाद मने पाया िक आमं ण प तब भी मेर ही पास पड़ थे। मने अपनी योजना क मुतािबक उ ह डाक
म नह छोड़ा था। मुझ े इस बात का काफ बुरा लगा। जब मने उनसे अपनी गलती क िलए माफ माँगी तो मेरी आँख म
आँसू थे। लेिकन वह ब त न थे। उ ह ने कहा िक उ ह लगा िक म भूल गया था, िकतु उ ह ने मुझ े फटकार नह
लगाई।’’
माच 1990 म ज गी क बेटी क ज म क साथ ही उनका जीवन एक नए चरण म िव आ। एक ऐसा य ,
िजसे यह ात ह िक वह दशक भर से अिधक जीिवत नह रहगा, उसका ऐ छक प से िपता बनना एक असामा य
िनणय लगता ह। वह वीकार करते ह, ‘‘हाँ शायद यह सच ह, लेिकन िवजी एक ब े क िलए काफ उ सुक थी।
उसक िम ने उसे इस बात क ित िव त कर रखा था िक एक औरत क िलए मातृ व ब त अहम अनुभव ह। और
म उसक इ छा क आगे हार मान गया। य िक यिद म बयालीस वष क उ म उसका साथ छोड़ देता तो कोई तो
उसक जीवन म रहता। यह उसक जीने का सहारा होता।’’
समय कम होने का पूवाभास होने से, उनका जीवन और यादा य त हो गया। उ ह ने अपना समय बंगलोर (जहाँ
िवजी का तबादला आ था) और तिमलनाड क िविभ े (कोयंबतूर क अित र ) म बाँट िदया था। िजसम
ित पुर, इरोड और क र शािमल थे, जहाँ वह सुबह से रात तक काय म को संचािलत करने म य त थे। या ा क
दौरान वह अपनी बेटी को भी साथ ले जाते, िजससे उसे (बेटी) अपने ारिभक जीवन का बड़ा भाग िविभ साधक क
प रवार क देखरख म िबताना पड़ा। हर दूसर स ाहांत िवजी और वह या तो कोयंबतूर म िमला करते या बंगलोर म।
आइए व र इशो साधक म से कछ क ांत से जानते ह िक वयं को स ु म पांत रत करने क पूव क िदन
म ज गी अपने नवोिदत िश य को कसे महसूस होते थे।
इ ा (अब माँ करपूरी) बताती ह : ‘‘अपने पित क िजद पर अिन छा-पूवक म मा ारिभक वा ालाप क िलए जाने
को तैयार ई। ज गी क वेश करते ही, मुझम िज ासु भाव जगे। मने ऐसा महसूस िकया िक मेर संपूण जीवन का
सरोकार कह और से नह ह। मने हर जगह तलाश क थी—मंिदर म, िग रजाघर म और िविवध आ या मक
परपरा म और हमेशा मतांधता और ढ ग पाकर अलग हो गई। और यहाँ क ा म वेश करनेवाला योग िश क था।
म उनक पैर को ही देख पाई थी। और मेरी आँख से आँसू झरकर मेर चेहर म समाने लगे। मुझ े याद ह िक यह िविच
अतािकक िवचार मेर मन म आया; ‘कब तक आपने मुझसे इतजार कराया।’ और एक सेकड क बाद िवचार आया;
‘यिद जीसस धरती पर होते, तो उ ह िवचरण करते देखकर ऐसा ही लगता।’’’
इसी तरह भारती, दो ब क माँ (जो िववाह क बाद िवशाखाप नम से कोयंबतूर आ गई।) क ा म स मिलत
ई। एक प वादी सोच, संतुिलत िदमाग क इस मिहला का ज गी क ित- यु र िबलकल भावुक नह था।
‘‘कोयंबतूर आने क यही कोई पाँच-छह महीने बाद मेरी ननद ने मेर पित को एक नई योग क ा क िवषय म बतलाया।
उसे बताया गया था िक यह उसक तनाव को िनयंि त करने म मददगार िस होगा। और उसने सोचा िक इससे मेर
पित क दीघकाल से चली आ रही पेट क तकलीफ का शमन होगा।’
वयं भारती का काय म म स मिलत होने का इरादा कतई नह था। ‘‘मने सोचा िक मेरा जीवन हर तरह से
यव थत ह। वा य और तंदु ती क सम या नह ह; मेर ब े थे, पया पैसा था, या ा क अवसर थे और
िवशेष प से तनाव त भी नह थी। इसिलए मुझे लगा िक म य अपना नाम दज कराऊ। लेिकन प रचय वा ा क
िदन, मने अपनी ननद को काय म थल पर छोड़ा और उसने मुझसे भी या यान म स मिलत होने क िलए कहा। म
कभी भी तांि क या गु क पास नह गई। मने कभी भी िकसी वामीजी क पैर नह छए। लेिकन मने मा यह
सोचकर क जाने का फसला िलया िक वह चचा योग क भौितक पहलु पर आधा रत होगी। अंदर जाकर मने सफद
धोती-कता पहने एक दाढ़ीवाले य को देखा। वह ब त आकषक नह िदख रह थे। वह कद म कछ छोट भी लगे,
कछ शंकरन िप ै क तरह!’’ वह स ु क महा आ मा बनने क ओर संकत करते ए, उनक चुटीली बात को
याद करते ए, हसती ह।
जहाँ एक ओर वह इस नए योग िश क क य व से ब त यादा भािवत नह ई, वह दूसरी ओर उ ह ने
वीकारा िक जो कछ भी स ु ने कहा, वह सारगिभत था। ‘‘उ ह ने बताया िक यिद हम चाह तो कसे जीवन, िजतना
ह उसक अपे ा यादा खुशनुमा हो सकता ह। यह ब त यादा अटपटा नह लगा, इसिलए उ सुकतावश मने इसम
स मिलत होने का िनणय िलया। काय म क समापन तक म इस योग क ित पूरी तरह समिपत हो चुक थी। शू य
यान क िविध म अ य त होना तो िनणायक मोड़ था। तभी म यह पहली बार समझी िक जीवन का दूसरा आयाम भी ह
—अपे ाकत गहरा आयाम, अ वेषण यो य आयाम, जीवनकाल म इससे ितब होने यो य। यह या था मुझ े मालूम
नह था। लेिकन म जान गई थी िक योग क ा इस थित क शु आत थी; िक यह आदमी कछ जानता ह, और हम देने
क िलये इसक पास काफ कछ ह—और म इसका वाद चखना चाहती थी।’’
काय म क कछ स ाह बाद भारती स ु और अपने प रवार क कछ सद य क साथ दोपहर क भोजन म शािमल
ई। ‘‘म चुपचाप बैठी ई थी। िकसी खास चीज पर मेरा यान नह था। तभी धीर से एक अनचाहा-सा कपन मेर मन
और शरीर म होने लगा। शरीर का कपन इतना प था िक वयं को हरान करना न चाहते ए, म कमर से बाहर
िनकल आई। यह कपन एक घंट तक नह का। म तो क गी िक स ु क ऊजा और वा तिवकता क यह पहली
झलक थी।’’
एकाएक वह साधारण-से योग िश क कछ ऐसी बात क शु आत करते लगे जो उसक (भारती) क पना से भी
वृह र था। ‘‘वह काफ िवन , सादे लगते ह, लेिकन यिद आप छड़ते ह, तो उनक ऊजा आपक भीतर जो तुम ह, उसे
न करने क िलए तु हार भीतर आ मण करती ह, और उस वा तिवकता को उजागर करती ह जो तुम हो। मेर अपने
मामले म मेर ितरोध क बावजूद वे आ मण ए। अचानक मेर जीवन म असंतुि और संघष उप थत हो गए जो
पहले अनुप थत थे। मुझ े लगा िक जीवन अब जीवन नह रहा। िजसे म क याण समझती थी, वह अब क याण नह
रहा। िजसे म खुशी समझती थी, वह एक छलावा मा था। अंततः यह प हो गया िक जीवन म मेर पास जो कछ था,
यह सबकछ नह था।’’
भारती ने अपने योग िश क से दूरी बना रखी थी जबिक वह उनक प रवार क मह वपूण उप थित बन गई थी।
उनक ननद उनक कोयंबतूर म होने क दौरान उ ह बार-बार आमंि त िकया करती थ , और उनसे वा ालाप करने क
अवसर बढ़ते गए।
वह कहती ह, ‘‘य िप पहले िदन से ही मेरी ऊजा एक अलग भाषा बोलती थी, िफर भी मेरा तक उ ह मेर िनजीपन
क सीमा लाँघने नह देता था।’’
भले ही वह उ ह औपचा रक प से ‘सर’ कहकर पुकारती थ , लेिकन उ ह वयं को उनक तरफ असहाय-सी
िखंची चली आने का अहसास था। साथ ही भारती क यान का अनुभव उनक उप थित म गहरा होता गया। ‘‘जीवन
म रोमांच था। उ ह ने मुझम काफ उ सुकता जगा दी। और सव प र म उनका िव ास करने लगी। पता नह य ,
लेिकन म जानती थी िक म जीवनभर उनका िव ास कर सकती थी।’’
कछ ही िदन म इिदरा को अपना जीवन खोखला और िज ासावश िवरल लगने लगा। ‘‘जब प रचय वा ा क बाद म
लौटी, तो मेरा घर भी मुझ े िविच लगने लगा। मेर पित और मेरा काम मुझ े अनजान से लगने लगे। म इतनी पृथक हो
चुक थी। ज गी क साथ मेर संबंध का बटन ही चालू था। क ा क चौथे िदन क प ा म उनक पास गई। मेर मुँह
खोलने से पहले ही उ ह ने कहा, ‘जो तु हार साथ हो रहा ह, उसका अहसास मुझे ह। हड़बड़ाओ नह ।’ वह मुझे
वभावतः जानते थे और िविच बात ह िक मुझे भी उनका तुरत यक न हो गया।’’
ज गी क भ ता और हािदकता क अलावा, उनक य व का एक और गुण था जो इन शु आती साधक ने तुरत
पहचाना; शी ता। इिदरा कहती ह, ‘‘वह ज दबाज थे, यह तो प था। य िप हम पूरी तरह उनपर आस थे, िफर
भी हम यह भी अंदर से मालूम था िक यह य हमारा नह ह। मने अपने अंत ान से यह जान िलया िक वह मेर
जीवन म कछ ऐसा करने आया था िजसे कोई और करने का साहस नह कर सकता था। मने महसूस िकया िक वह मेरा
हाथ नह थामगे। मुझ े भान था िक वह र हो सकते ह। लेिकन वापस लौटने म तो पहले ही काफ देर हो गई थी। अब
मेरी अपनी पसंद का न भी नह रह गया था। मेरी दुिनया अलग सी होती जा रही थी। मुझ े भय-सा अधर म लटका
महसूस होता साथ ही मुझ े लगता िक यह सही था। मुझ े अपने दय क धड़कन सुनाई देन े लगी, अपने ास- छवास
का आभास होने लगा, जैसा पहले कभी नह आ था।’’
उसे वह ण याद ह जब ज गी ने उसे और भारती को अपनी तसवीर भट क । अपने पित क नाराजगी से बचने क
िलए उसने इसे आलमारी म सािड़य क बीच रख िदया। एक िदन उसे मैसूर से ज गी का फोन िमला। ‘‘मेरी फोटो
तु हारी आलमारी म उलटी य रखी ई ह?’’ उ ह ने तुरत और खेपन से पूछा। वह इतनी याकल हो गई िक जवाब
भी नह दे सक ।
एक अ य अवसर पर जब उनक अपने पित क साथ गरमा-गरमी चल रही थी, तभी उनक फोन क घंटी बज उठी।
आधी रात का समय था। फोन उठाते ही उ ह उनक योग िश क क रौबीली आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘तुम लड़ य रह
हो? चुप रहो और जाकर सो जाओ!’’ िब तर क ओर बढ़ते ए उसने अपने पित से कहा, ‘रांग नंबर’ और ब ी बुझा
दी।
सोनू (अब वामी गु िभ ा) एक यवसायी ह, और उनक मुतािबक वह प सा कार चेि यार प रवार से ता ुक
रखते ह। पहले काय म म शािमल होने क शी बाद ही वह उलझन म पड़ गए। एक ओर तो वह व रत प से
मजबूर से ज गी क ओर िखंच े चले जा रह थे, दूसरी ओर उनक प रवार क ा ित अ ामलई क िव यात
रह यवादी संत योगी रामसूरत कमार क ित थी। िन त तौर पर एक य ारा दो गु क सा य म रहना
धमिन नह ह। इस गितरोध को समा करने का एक ही तरीका था िक ज गी को योग िश क और रामसूरत कमार
को ाथिमक मागदशक माना जाए। कई वष तक, ज गी क ित आ था बढ़ते रहने क बाद भी, वह उलझन म रह।
‘‘अंततः जब म 1993 म अपने गृहनगर (करकडी क नजदीक) जाने क योजना बना रहा था तब यह सम या भी िनबट
गई। तब ज गी ने मुझे बताया िक मेर गृहनगर म दो य उससे उनक िवषय म पूछगे; उ ह ने मुझ े उनक ओर से उ ह
नम कार कहने क िलए कहा। जब म वहाँ प चा तो िबलकल वैसा ही आ। तब तक म शायद अपने मन क गहराई म
यह जान रहा था िक ज गी मेर गु ह, लेिकन इस घटना से यह बात पु हो गई। मने महसूस िकया िक ज गी अ य
प से मुझ े बता रह थे िक मेरा गु कौन था।’’
क ाएँ यादा तेजी से बढ़ती गई और लोकि य होती गई। 1990 म, पहली बार ज गी ने भाव पंदन ो ाम
(बी.एस.पी.) कोयंबतूर म िकया। िछपी भावना को जागृत करने और पांत रत करने व मनोवै ािनक रोड़ हटाने क
िलए एक पा य म तैयार िकया गया। काय म म भाग लेनेवाल पर इसका गहरा असर आ। राजा इसे ‘भावना मक
उ ता’ िन िपत करते ह। 1991 म जब इस पा य म को इिदरा ने िकया, तब उ ह ने पाया िक वा तव म मृ यु- यान
क दौरान उ ह ने अपना शरीर याग िदया था। ‘‘पहली बार मने मृत पड़ी अपनी देह क िसर पर म खयाँ िभनिभनाते ए
देखा।’’ भारती को यह काय म भावना मक प से अ यिधक तरिगत और अलग सा लगा। उ ह िबलकल िव ास
नह आ िक इस ती भावना ने अपने आपको इतना भयंकर विनयु कसे कर िलया िकतु वह एक दशक क तरह
बैठकर इसक सा ी बनी रह । ‘‘यह मेर िलए अ यंत भावुक था। हर कोई या तो रो रहा था या हस रहा था िकतु मुझे
पता नह था, य ? तीसर िदन क आिखर म और का साथ देन े क िलए मुझ े थोड़ आँसू बहाने पड़। लेिकन इस
काय म से म िनराश नह थी।’’
पहले ही रोमांच और अनुसंधान क कट होने क ती या ा का भाव था ही। कछ िविच अनुभव भी इस युवा योग
िश क क चार ओर होते रहने सा महसूस आ। भारती को इनम से िकसी भी घटना का कारण ात नह था। लेिकन
इस दौरान िदमाग को संतुिलत बनाए रखने का िन य िकए ए, उ ह ने इन घटना क अतािकक या या क आगे
घुटने टकने से इनकार कर िदया। कभी-कभी ज गी उसे बताते िक िदन क खास समय म वह उनक साथ रहगे। ठीक
उ ह ण म जब य िप वह िकसी पूण पेण असंब ि याकलाप म रत रहती, िफर भी भारती को अपने गु क
उप थित क महक अचानक िमल जाती। हालाँिक, उसने इसे यादा मह व देन े से इनकार कर िदया।
उ ह ने उससे एक बार एक िगलास पानी माँगा। जब वह ले आयी, उ ह ने उसे वयं पी लेन े को कहा। भारती कहती
ह, ‘‘मने पानी पी िलया, लेिकन इसक पीने का मुझ े आभास भी न आ। म िनगल रही थी लेिकन मेरी यास बुझ ही
नह रही थी। यह बड़ा िविच अनुभव था।’’ तभी उ ह ने कहा, ‘‘यह मुझम जा रहा ह। म इसे (पानी) पी रहा ।’’
इिदरा को एक ऐसा ही अनुभव याद ह।
एक अ य अवसर पर जब भारती अपने जीवन म हो रही िविच घटना क ंखला क िविदत होने से सशंिकत थी,
तब ज गी ने शािल ाम क माला अपने गले म से िनकालकर, उसक हथेली पर रख दी। अचानक वे मोती उनक
हथेली म सप जैसी चाल म िखसकने लगे। उसे अपना डर क मार चीख पड़ना अभी भी याद ह। बाद म उसने उनसे
इसका अिभ ाय पूछा। उ ह ने संि उ र िदया; ‘गदन पर सप कौन लपेटता ह?’ उ र प था! िशव। लेिकन भला
िशव पहले योगी, पहले गु का मैसूर से आए ए युवा योग िश क से या सरोकार?
इस समय तक भारती को एक आभास हो गया जो आनेवाले वष म पु होना था; उसक गु क रह यमय व
साहसी योजना िजसम उसे और कई अ य को एक भूिमका अदा करनी थी। उसे इस बात का सुराग नह था िक वह
योजना या थी। (वष बाद, वह समझती ह िक वह योजना अभी भी िव ता रत हो रही ह।) लेिकन उसने महसूस िकया
िक वह िकसी कशल षड़यं कारी से कम नह ह। वह कहती ह, ‘‘उनक तािकक जोड़-तोड़ करने क त य से उस
समय मुझ े खुशी ई और अब भी होती ह। तब मुझ े मालूम था िक यह मौका िकसी ऐसे क ारा िदशा-िनदिशत होने
का ह िजसे वा तव म इस बात क जानकारी ह िक जीवन का यवसाय कसे संचािलत करते ह।’’
मई 1991 म ज गी ने पहली बार ‘स यप’ नामक मूक काय म संचािलत िकया। वह मरण करते ह, ‘‘पहले यह
काय म मने य -िवशेष क िलए संचािलत िकया था। लेिकन यह पहला मौका था जब म इसे समूह क िलए कर
रहा था। इसम लगभग ब ीस लोग स मिलत थे और यह ऐसा था मानो र सी पर संतुलन बनाकर चलनेवाले ब ीस
नट क िनयं ण म होना।’’ या समूह क थित म यह काफ खतरनाक हो सकता था? वह िझझकते ए कहते ह,
‘‘भाग लेनेवाल क िलए नह । हर िकसी का अपनी ाथिमकता पर कि त रहना मह वपूण ह, बस। यिद कोई िगरता
ह तो उसका सुर ा जाल म ।’’ आज इस काय म म हजार क सं या म भाग लेनेवाले िखंच े चले आते ह, और हम
गु क ित होनेवाली िज मेदारी क क पना कर सकते ह। िकतु सुर ा जाल कमजोर पड़ता महसूस नह होता।
ज गी अब महसूस करते ह िक उ ह अभी तक िसखाई गई वा य-कि त ‘श चालन ि या’, म आ या मक
पहलू शािमल करक िव ता रत करना था। ऐसा करने क बाद, उ ह ने उसी समूह क िलए िदसंबर म पुनः ‘स यम’ का
संचालन िकया। उस समय काय म क कामचलाऊ कित उ ह याद ह। काय म म यु संगीत उनक य गत
पसंद का था और सारण का तरीका अ तीय था; वह इसे वॉकमेन पर बजाते थे, जो पीकार क पास रख िदया जाता
था। वह मुसकराते ए कहते थे, ‘‘अब हमारा साउड िस टम ज रत क मुतािबक ह— इन वष म हम काफ आगे आ
चुक ह।’’
एक ऊचे तर क काय म स यम म सात िदन का मौन और गहन यान आव यक होता ह। इसक प रणाम अ थर
थे। ऊजा तर क बढ़ने क कारण, साधक को ब त ही िविच चीज घिटत होने का अनुभव होता था। कछ तो ऐसी
घटना क मृित से अिभभूत हो जाते थे जो व तुतः उनक जीवन म घिटत ई ही नह । शेष अ य म कोई लकड़ब घे
जैसी आवाज िनकालता, कोई िब य क तरह याऊ- याऊ करता, कोई साँप क तरह फफकारता या हाल म चार
ओर िखसककर चलता, कछ अपनी सीट से उछल जाते, कछ िसर क बल खड़ हो जाया करते। एक स न तो ज गी
क गोद म ही जा िगर! ीिनवास नाम क एक ारिभक तर क साधक का कहना ह, ‘‘ येक यान स क अंत म
जहाँ म ारभ म होता वहाँ से कई फट दूर रहा करता।’’
जब वे काय म से बाहर आते तो उ ह लगता मानो कपड़ -सी धुलाई करने क बाद, उ ह िनचोड़ िदया गया ह।
अपने पारप रक जीवन-कम से छटकारा पाकर उ ह ऐसा महसूस होता िक जो कछ भी बचा होता था वह उनम िनिहत
शांित थी, और ब त-सी ऐसी तु छ बात को वे बड़ हलक से लेत े िजन पर उ ह ने बीते समय म ब त यादा समय
और मन क ऊजा झ क दी थी। ब तेर कहते िक ऐसा लगता था मानो काय म क पूव म वे िजस तरह क य थे,
काय म क बाद वे कचुली छोड़नेवाले सप क तरह पांत रत हो जाते थे। साँप क शौक न गु ारा ऐसी पांतरण
क दी ा िदया जाना इतना आ यजनक नह था। धीर-धीर इस युवा योग िश क पर लोग का यान जाने लगा।
साधक को गहन यान क ि या म ले जानेवाले यान क ित गहन एवं जीवन-प रवतनकारी य ुर ा होना
िनरतर जारी ह। य ही ऊजा का तर बढ़ता ह, स ु कहते ह िक अचेतन क अनुभव भी बारबार कट होते ह।
ारिभक काय म म िपछले जीवनकाल क आनेवाली मृितयाँ ायः सजीव और उ ेजक होती थ । िकतु बाद क
काय म से उ ह ने इस घटक को अलग कर िदया य िक ऐसी मृितय से लोग मु य उ े य से भटक जाते ह। वह
कहते ह िक मुख उ े य ऊजा तर पर अपने कम से छटकारा पाना ह। इसे सचेत मृित हतु ि याशील करना
अनाव यक ह।
मई 1992 म संप अपने स यम काय म क दौरान भारती ने यान क समय वयं को अपने शरीर से बाहर होते ए
पाया और िकसी अ य थान व समय क आयाम म या ा करने का प अनुभव िकया। उ ह ने वयं को जमीन पर
लेटी एक आकित क बगल म ामीण भू-भाग म पाया। उसक आसपास काफ शोर-शराबा था और वयं को उसने
दुःख से पीिड़त महसूस िकया। वह जानती थी िक इस प र य म वह वयं ही ह और महसूस िकया िक उनक सामने
पड़ा य सपदंश से मर चुका ह। एक ही झटक म उसे लगा िक यह मृत आदमी कोई और नह , ब क उनक अपने
गु ज गी उनक पहले क जीवनकाल म ह। वह यह भी जान गई िक इस जीवनकाल म वह उनक िश या होने क िलए
ज मी थी।
उसी समय भारती को अपने वयं क होने का भी भान था। य अव था म लगातार उसक आँख से आँस ू बह रह
थे और वह यान काय म म अचेत पड़ी ई थी। एक ही समय वह भूतकाल और वतमान काल क अनुभव क सा ी
थी। उसे काय म म भाग लेनेवाल से िघर होने, ज गी ारा उसक म तक पर थपक देत े ए, उसक च को
िनयंि त करने और उसे होश म लाए जाने का आभास था। वहाँ एकि त जनसमूह म बढ़ती िचंता से मजा-सा आ रहा
था। लगभग चालीस िमनट क बाद उसने आँख खोलकर अपने गु क ओर देखा। ‘‘म जानती िक यह अनुभव
मित म-सा नह था। इस थित से बाहर आने पर मुझ े ात था िक इस य से मेरा संबंध कह और से था, िकसी
पहले क थान और समय से।’’ अब उसे उनक साथ गहर संबंध क भाव होने का कारण समझ आ गया था। िकतु
उसका िनहारना िबलकल भावहीन था। यह एक िविच -सी भावहीन सुबोधता थी। बाद म उसे महसूस आ िक इस
पूवज म क मृित क बाद उसका सप से काफ समय से बना रहनेवाला डर समा हो चुका था।
आगे चलकर एक ‘स यम’ काय म म उसे तेजी से चलते ए दो न न साधु क एक िणक झलक िमली। इस
य को देखते ए उसे अपने वयं क अंत ान से यह ात आ िक इन दो साधु म एक वह वयं ह, जो साथवाले
साधु से उ म छोटा ह। और साथवाला साधु कोई और नह , वयं ज गी ह। गु तेज कदम से चले जा रह थे और
भावुकता क आवेश म थे। भारती को शी ही आभास आ िक साधु क िलए वह बड़ा क मय समय आ करता
था। णभर म ही स ु ी ा क िनकटतम िश या और साथी िवभूती क प म िपछला ज म उसे याद आ गया।
उसक इन अनुभव से बाहर आने क बाद, ऐसा लगता था िक ज गी को इन सारी बात क जानकारी थी। उ ह ने
उससे पूछा िक इन अनुभव से उसे या समझ आता था, उसने कहा, ‘‘म आपको पहले से जानती रही िकतु इस
ज म म इसका कोई मतलब नह ह।’’ आज भी वह यही बात कहती ह। ‘‘इस अनुभव से मेरी आस उन पर और
यादा नह बढ़ी। म जानती थी िक जो भी उनका चेला होगा, वे उसे इस तरह क अनुभव कराएँग।े जब कभी लोग उनसे
पूछते ह िक वे उ ह पूव ज म म कभी जानते थे, तो मुझ े उनक उ सुकता पर आ य होता ह। मेरा न हः इससे या
फक पड़ता ह? वह अब यहाँ ह। यह यादा मह वपूण ह। उ ह पूव म जान चुक होने से वा तव म कोई फक नह
पड़ता।’’
लेिकन उ अनुभव से एक न उ सुकतावश पैदा होता ह, ‘‘अब म जान गई थी िक म कम से कम दो ज म म
उनसे जुड़ी रही। मेरा न था : ‘ज म-ज मांतर तक जीवन दो लोग को साथ-साथ य अ त व म लाता ह? िकस
उ े य क िलए? जीवन को लेकर यह संपूण नाटक ह या?’ न अब भी बरकरार ह।’’ यह न उसने एक बार
स ु से पूछा। उनका उ र उनक तट थ अंदाज म था, ‘‘इस नाटक को इसक अंत या िन कष तक देखते चलो।’’
इस काय म से उ ह वयं क वतं ता और सुबोधता क बढ़ते भाव का ान आ। ‘‘स यम क बाद मने महसूस
िकया िक म पूरी तौर पर अलग जीवन जी रही थी। म पहले क तरह सभी काय िकया करती थी, िकतु म उ ह करने म
अब आनंिदत महसूस िकया करती थी। मेरी अब भी ब त प िच और अ िच थी िकतु वे अब मेर जीवन को
भािवत नह करती थ । अब िनवाण या समािध ा करने क मेरी कोई लंत इ छा नह ह। लेिकन इस य
(स ु ) क िलए मेर मन म स मान मा इसिलए ह िक वह सचमुच िकसी का जीवन पांत रत कर सकते ह। वह मेर
साथ घिटत आ ह। और अब भी घट रहा ह। अब भी रोमांच बरकरार ह।’’
स यम यान क बाद ज गी ने भारती से कछ कहा िजससे वह िव मत रह गई। उसे उनक बात याद ह, ‘‘उ ह ने
मुझसे कहा िक मेर घुटने क नीचे एक ज मजात िनशान ह। उ ह ने मुझ े इसक आकार और प क िवषय म भी
बतलाया। मने कहा िक वह सही कह रह थे। उ ह ने कहा िक ऐसा ही िच उनक कधे पर भी था।’’ यह सपदंश का
िनशान था। उस जीवनकाल क िवरासत िजसम दोन को ये दाग िमले थे। भारती कहती ह, ‘‘एक कहानी अचानक
सामने आ गई।’’ वह कहती ह िक जब से उसने यानिलंग का सं कार ा िकया, यह िनशान फ का पड़ने लगा।
1992 म पहली बार स यम करनेवाली िवजी का यह िव ास पुनः पु हो गया िक वह यान नह कर सकती।
उसने काय म क समा पर शेष साधक को बताया, ‘‘म ज गी को छोड़कर यान नह कर सकती। यिद म अपनी
आँख बंद करती तो मुझ े ज गी नजर आते ह। यिद म अपनी आँख खोलती तो मुझ े ज गी नजर आते ह।’ उसक इस
व य क दौरान उसक आँख से झरझर आँसू झर रह थे।
थम स यम काय म क शी प ा ही इ स िदन का िश क िश ण िशिवर ारभ आ। इसम आठ लोग ने
भाग िलया। इस समय तक इशा फाडडशन ट थािपत हो चुका था। कोयंबतूर क किटब साधक क बढ़ते समूह
को यह लगातार प होता जा रहा था िक उ ह एक ऐसे थान क आव यकता थी जहाँ वे अपने गु का सा य
ा कर अपने समान ल य क ा क िदशा म यासरत रह सक। उनक जीवन तो पहले ही आमूलचूल पांत रत
हो चुक थे। अब उनक यावसाियक या पा रवा रक जीवन क भी उतनी अहिमयत नह थी, और गु क िबना उनक
जीवन क याशा खोखली जान पड़ती थी। उनक अिनवाय उप थित और उ ह अपने बीच ही बनाए रखना सुिन त
करने क िलए आ म क थापना आव यक लगी।
इसक अलावा उनक जीवन से जुड़ा कोई और य िबलकल समझ नह पा रहा था िक आिखर हो या रहा था।
कोयंबतूर म ब तेर ऐसे थे जो इस नए युवा योग गु और उनक बढ़ती िश य सं या क ित संदेहा पद एवं वैमन य
भरा ि कोण रखते थे। आशंका क अनु प उनक िव अफवाह फलाने का काय शु हो गया : यह युवा य
कौन ह िजसने घर -प रवार को तोड़ रख िदया ह? उसक ारा ितपािदत योग म या कछ गलत सा-नह ह?
और िफर भी नए इशा साधक को वा तव म इन अफवाह से कोई फक नह पड़ा। जो उ ह (साधक को)जानते थे
उ ह तो यह बड़ा आवेगपूण और आ मघाती-सा कदम लगा, लेिकन वे (साधक) इस युवा योगी पर अपना सव व
लुटाने को तैयार थे। एक साधन और संसाधन िवहीन आदमी, लेिकन ऐसा आदमी िजसे सवस मित नेतृ वकता मान
िलया गया था। यह एक जोिखम भी था लेिकन पहले ही उ ह महसूस हो चुका था िक इस संदभ म उनक अपनी
पसंदगी नह थी।
राजा (िश क िश ण काय म भारी) क िलए 1991 शायद शता दी का सवािधक मह वपूण वष था। इसी वष
उनका िववाह आ, उनक बेटी का ज म आ, उ ह ने पहले स यम और िश क िश ण काय म म िह सा िलया
और वयं को पूणकािलक तौर पर इशा म समिपत करने क िलए अपनी नौकरी छोड़ दी। ‘‘एक िदन ित पुर म ज गी ने
मुझसे मेरी योजना क िवषय म पूछा। मने उनसे कहा िक मुझ े नह मालूम। उ ह ने मुझसे पूछा िक म कोई यवसाय
करना चाहता था। मने वही बात दुहरा दी िक मुझ े नह मालूम। उ ह ने कहा, ‘योग क िवषय म तु हारी या राय ह? या
तुम इसे लोग क बीच ले जाना चाहोगे?’ मने कहा, वह कसे? उ ह ने कहा, ‘अब तुम िशि त हो चुक हो, इसिलए
तुम जगह-जगह जाकर इसे िसखा सकते हो।’ मने उनसे पूछा िक या म अपनी नौकरी से इ तीफा दे दू।ँ उ ह ने कहा
िक यह शायद अ छा ही होगा। एक महीने बाद म उनसे िमलने मैसूर गया और उ ह बताया िक म नौकरी छोड़ चुका
। िजस ुत गित से मने यह कदम उठाया था उससे वह अचंिभत रह गए।’’ राजा को अब भी याद ह िक जब उ ह ने
यह बात बतलाई थी तो िकस तरह िवजी क आँख म आँसू आ गए थे। अपनी उदारता क वाभािवक भंिगमा म उसने
कहा, ‘‘अब मुझ े दो प रवार का खयाल रखना पड़गा।’’ राजा को याद ह िक िवजी सदा उनक प नी, ब और उसे
अपने आंत रक प रवार का िह सा ही महसूस करती थी।
अपने इस िनणय का मरण करते ए, वह इस बात से सहमत होता ह िक यह एक तरह का जुनून था। ‘‘इसम
सोच-िवचार था ही नह । हमने कभी भी भिव य क िचंता नह क । हम ज गी को यह कहते सुना करते थे िक वह
बयालीस साल से यादा जीिवत नह रहगे। लेिकन इन बात से कोई फक नह पड़ा। हम उन बात से आ त थे जो
वह कहा करते थे। और हम उनसे यार करते थे। इसक बाद तो डर का न ही नह उठता।’’
ज गी क भाव क उसक ारा शंसा क अलावा, राजा को अपने गु क सा य म गहन अनुभव ा ए थे
िजससे वह अिभभूत रहा। एक अवसर पर ज गी ने उसे ित पुर जाकर क ा संचािलत करने क िलए कहा। इस क ा म
न बे लोग ने भाग िलया था। राजा ने अब तक मा ज गी क सहायक क तौर पर काय िकया था और वतं प से
उसे क ा संचािलत करने का अनुभव नह था, इसिलए संकोचवश उसने इसक िलए हामी नह भरी। ज गी ने उसे
मरण कराया िक वह बतौर िश क िशि त हो चुका ह, लेिकन राजा अपने िनणय पर अिडग था। अंततः ज गी ने उसे
सुझाव िदया िक वह मा प रचय वा ा संचािलत कर और इसक शी बाद वयं आकर काय म संचािलत करने का
वचन िदया। राजा ने ित पित जानेवाली बस पकड़ ली, इस उ मीद क साथ िक ज गी अपनी कार से आएँग।े ‘‘उस
शाम मैने प रचय वा ा संप क । अगले िदन सुबह ज गी क आने क कोई आसार िदखाई नह िदए। मने कोयंबतूर
कायालय म फोन िकया। मुझ े बताया गया िक वह मैसूर चले गए ह। मने वहाँ भी उनसे संपक साधने क कोिशश क
लेिकन उनका कह पता ना था। वह तो गायब ही हो गए थे।’’ नवस और मन म खीझ िलए, राजा ने सारा काय म
वयं संचािलत िकया। कछ िदन क बाद, ज गी क ा क शु होने क िबलकल पहले मुसकराते ए उप थत ए।
पूछताछ करने पर राजा को मालूम आ िक ज गी इस दौरान कोयंबतूर म ही थे। लेिकन उ ह ने जान-बूझकर राजा क
हड़बड़ाए ए फोन का जवाब नह िदया था। जब कछ वयंसेिवय ने उनसे पूछा िक वह राजा को इस तरह परशान
य कर रह थे तो उनका जवाब था िक राजा से वयं क ा संचािलत कराने का यही एक तरीका ह। उ ह ने कहा,
‘‘राजा सोचता ह िक क ा वह संचािलत कर रहा ह। वह मूख यह नह जानता िक म हर िदन उसक साथ ।’’ कई
िदन क बाद जब ज गी ने कछ ऐसे ण उसे याद िदलाए जहाँ उस काय म संचालन म उसने गलितयाँ क थ तो वह
हरान रह गया।
उसे एक और अवसर याद ह जब वह स यम काय म क दौरान ज गी क साथ दोपहर का भोजन कर रहा था।
उसक पूव राि म राजा ने इसम भागलेनेवाली युवती को देखा था जो चेतना क प रवितत दशा म लग रही थी। ज गी ने
भी इस बात को ताड़ िलया था और उस (युवती) पर करीब से नजर रखने क िलए कहा था। भोजन क म य म ही,
ज गी अचानक उठ और झट से हाल म प च गए। वह युवती मंच क पास अचेत पड़ी ई थी। ज गी का दायाँ हाथ
अचानक अश -सा हो गया, उ ह ने थोड़ा-सा तेल माँगा, और उस युवती क च को ब त देर तक िनयंि त िकया।
अंततः वह होश म आ गयी। बाद म ज गी ने राजा को हसते ए बताया िक वह युवती न कवल अपना शरीर छोड़कर
बाहर चली गई थी, ब क भोजन क म य म वह ाण प म उनक स मुख चली आई थी। इसी कारण वह झपटकर
हाल म चले गए थे। वह जान गए थे िक यह तो मरने-जीने क थित थी। राजा कहता ह, ‘‘ऐसी बात उनक इद-िगद
ायः होती रहती थ ।’’
ऐसे ही एक बार ज गी एक समूह क साथ कनाटक क कमार पवत पर िकग क िलए गए। िकग शु होने क
ठीक पहले, पु तक (िजसे वह तब पढ़ रह थे।) से नजर उठाकर उ ह ने उस समूह को बताया िक भगवान काितकय या
मु गा (छह भुजाधारी िवण क वीर-यो ा देवता जो िक भगवान िशव क थम पु थे) ने इसी पहाड़ी क ऊपर अपना
शरीर छोड़ा था। चढ़ाई क लगभग एक चौथाई भाग पर ही, ज गी का शरीर काँपने लगा। वह ऊबड़-खाबड़ जमीन पर
िगरकर बेबस-से छटपटाने लगे। प नजर आ रहा था िक वह अपने शरीर पर पकड़ बनाए रखने का यास कर रह
थे। साधक ने पहले भी उ ह ऐसी समािध क दशा म देखा था। वे उनक पैर को रगड़ने लगे जोिक ऐसे समय ठड और
संवेदनहीन पड़ जाते थे। उ ह ने (ज गी) एक प थर का टकड़ा माँगकर कई बार अपने माथे क अजना च पर रगड़ा।
इस थित से उबरने क बाद वह िबलकल प रवितत य लग रह थे। उसक बाद वह मौन रहकर आगे क या ा
करते रह। उस रात जब इस दल ने पवत क आधे रा ते पर ही अपना िशिवर डाला, ज गी ने उनसे कछ िवशेष यान
करवाए। राजा कहता ह, ‘‘बड़ी िविच बात हो रही थ । कछ सुबक रह थे, कछ काँप रह थे, यान क बीच म
ीिनवास तो खड़ा ही रहा, िजससे खेमा (टट) नीचे िगर गया।’’ अगले िदन ज गी ने वयं क िबना सभी को ऊपर आगे
बढ़ने क िलए कहा। जब वह चोटी पर एक गहनतम यान क प ा लौट तो वे अपने साथ एक िविच आकित का
प थर लेकर लौट थे िजसे ‘स मुख िलंगम’ बताया गया। ज गी कछ देर तक उस प थर को पकड़ रह, त प ा इसे
समूह क अ य सद य को दे िदया। राजा ने जब इसे छआ तो यह काफ गरम महसूस आ, जबिक इसक संपक म
आते ही बाक कछ लोग म से कोई लुढ़कने और कोई काँपने लगा। बाद म उस रात ज गी ने बताया िक िकसी महा
योगी—संभवतः वयं काितकय—ने इस पवत पर अपना शरीर छोड़ा था। यही वजह ह िक उस थान पर इतनी
श शाली ऊजा िनिहत थी। इस घटना से राजा को यह बात पूरी तरह समझ आ गई थी िक उनक गु क आसपास
जीवन और कछ नह ब क अ यािशत ही हो सकता था।
शु -शु म, उनक िश य क उ सुकता क बावजूद, ज गी िकसी भी तरह क सं थाकरण क िवचार क िखलाफ थे।
‘‘म िकसी एक थान पर बँधकर नह रहना चाहता। देश म पहले ही कई आ म ह। हम एक और य शु करना
चाहते ह?’’ लेिकन वह धीर-धीर तैयार होने लगे। अपने िनणय पर पुनिवचार करते ए उ ह ने कहा िक ‘‘ यानिलंग क
िलए मुझ े समथन और उपयु थल क आव यकता ह। इसक िलए एक यास बनाना आव यक होगा। मने भी
महसूस िकया िक म साधना क िलए उ सुक लोग क बढ़ती सं या को सहारा दूँ। इसिलए आ म ही ठीक रहगा।’’
बढ़ती ई िज मेदा रय से या अपनी वतं ता को दबाकर रखना पड़ा? ‘‘व तुतः नह , य िक इसे मने काम नह
ब क खेल समझा ह। हाँ, इससे म य थता क तर बढ़ ह। इसक कारण म जब-तब खीझ भी उठता ।’’ कछ देर
कने क बाद वह कहते ह, ‘‘कभी-कभी, ऐसा भी लगता ह िक आ म और योग क का बंधन संभालने से अ छा
तो यह ह िक म पवत पर घूमता र , लेिकन व तुतः ऐसी कोई बात नह ह। म अब भी सं यासी । म अब भी िचरतन
मौन म ।’’ और या कभी आंत रक मौन म कावट आई ह? वह हसते ए कहते ह, ‘‘वे कावट भी पूण
जाग कता म आती ह। और इस तरह 1993 म, इशा योग क का बीज बोया गया। इस क क थल क जानकारी
पाकर सभी लोग अचंिभत रह गए। इस िवषय म साधक क अपनी अलग राय थी। उ ह ने कोयंबतूर क आसपास
अनेक संभािवत थल का सुझाव तुत िकया। भारती को याद ह िक िकस तरह थानीय साधक ारा ज गी को
करल और कनाटक क कई मनोरम यवाले थल म ले जाया गया। एक िदन ि ची म तीन साधक ने बड़ उ साह से
ज गी को नवामाले नामक एक थल क जानकारी दी जो आ म िनमाण हतु एक आदश थान लगता था। िकतु उनक
उ साह क बावजूद, उ ह याद ह िक ज गी संतु नह लगे।
स ु इस थल क खोज क िवषय म मरण करते ए कहते ह, ‘‘बचपन से ही म जो कछ भी देखता था, उसक
पृ भूिम म मुझ े पवत िदखाई पड़ते थे। 16 वष क आयु तक, म सोचा करता था िक हर िकसी क य बोध म पवत
ही ह। जब मने अपने िम से इसक चचा क , तो उ ह ने च कते ए कहा, ‘तुम सनक हो या? कहाँ ह पवत।’
लेिकन वे मेरी नजर क सामने हमेशा होते थे। इसिलए सोलह साल क बाद, म जान गया िक मुझ े इन थान क तलाश
करनी होगी, लेिकन िफर मने इसक िवषय म सोचना छोड़ िदया य िक मेरी ि म तो ये हमेशा रहते थे। यिद कोई भी
चीज हमेशा बरकरार रहती ह तो आप इसक आदी हो जाते ह।... जब यानिलंग पर काम शु करने का समय आया तो
मने इन पवत क खोज करनी शु कर दी। म पागल क तरह जगह-जगह भटका। अपनी मोटरसाइिकल लेकर गोवा
से क याकमारी यहाँ-वहाँ आ-जाकर इन पवत को खोज म या ाएँ क । मने कहा था, ‘पवत’ और हर जगह लोग सही
पवत क खोज कर रह थे। लेिकन वे हम नजर नह आए। लोग लगभग किठत होने क कगार पर प च चुक थे। तभी
एक िदन, जब हम िकसी क ारा सुझाए थल क ओर बढ़ रह थे, और रा ते पर ही हम एक मोड़ पर प चे। वहाँ से
म सातव पहाड़ी को देख रहा था। मने कने को कहा। और म फफककर रोने लगा।’’
यह वेिलयांिगरी पवत क तराइय पर, शहर क सीमा से बाहर पूंडी नामक े म थत तेरह एकड़ का भूखंड था।
इसक नजदीक ही िव यात ित मु गन मंिदर था िजसक चचा ाचीन तिमल सािह य म ह और िश वानी जल पात भी
यहाँ से अिधक दूर नह ह।
ज गी का संि िनदश िमला; खरीद लो इसे।
इसम कई आशंकाएँ थ । यह थान दुग य और जंगली-सा लगता था, और हािथय , भालु क बार-बार प चने क
िलए िव यात था। इसक अलावा सूया त क बाद लोग क आवाजाही ही बंद हो जाती थी। लेिकन ज गी ने इन िचंता
को हसकर उड़ा िदया, उ ह ने पूछा, ‘‘तुम सभी साधक हो? या इसक बावजूद तु हार मन म डर ह?’’ तब उ ह ने
उ ह आ त िकया िक उ थल उनक मकसद क िलए िबलकल आदश था और सबकछ अंततः सही हो जाएगा।
उ ह ने रह यमय ढग से कहा, ‘‘तुम अपनी मानिसकता इशा से जुड़ने क बना लो, और देखो होता या ह।’’
उस थान क िवषय म ई चचा क यारह िदन बाद ही यह थल खरीद िलया गया। जंगल क बीचोबीच थत,
दोन ओर पवत से िघरा आ, यह थान एक जंगली िकतु अ यिधक खूबसूरत जायदाद का िह सा था। िज ह ने भी इसे
उस समय देखा वे इसक िपछले एक दशक म इतनी तेजी से िवकिसत होने क ित आज भी आ य करते ह। शु म
यहाँ मा एक कआँ, एक छ पर (शेड) और पेड़ पर लकड़ी का मचान-सा था (संभवतः जानवर क िशकार हतु)।
आज उस थल पर एक यान क (हाल), ब धम पूजा थल, एक देवी का मंिदर, एक मंिदर-तालाब, एक कल,
एक वा य लाभ क , कई कायालय और कॉलेज ह िजसम तीन सौ रहवािसय और अितिथय क आ य क मता
ह। कई एकड़ जमीन और खरीद ली गई ह और इसक िव तार क योजना अभी िवचाराधीन ह। हरानी क बात ह िक
तेजी से बढ़ते मानव आवास क बावजूद इस थान क रमणीयता म कमी नह आई ह। थाप यकला क ि से यह
देश क िचकर आ म म एक ह, इसक साधारण, उ क वातावरण क अनुकल िडजाइन, इसक उ े य म
लािल यपूण नजर आती ह।
1994 तक यह आ म अपनी ाथिमक अव था म था। साधक का एकजुट व अ यिधक किटब समूह व नवोिदत
इशा योग आंदोलन शनैः-शनैः तिमलनाड रा य म अपनी उप थित महसूस करा रहा था। मंच तैयार हो चुका था। गु
जानते थे िक काय ारभ करने का समय आ गया था। उ ह ने न बे िदवसीय िनवास पूणता काय म क घोषणा कर दी।
कोयंबतूर, ित पुर और इरोड यापार-वािण य क य त क ह और यादातर साधक का जीवन यावसाियक तौर पर
य त था। अ य लोग को प रवार और गृह थय क देखभाल करनी थी। इस काय म म उनक ओर से चालीस िदन
अि म तैयारी क अपे ा थी। आ म क सुिवधाएँ व यव थाएँ यवहारोपयोगी नह थ । एकमा संरचना, िजसे आज
ायंगुलर लॉक क नाम से जाना जाता ह, तब मौजूद थी—वह भी तब पूरी तरह िनिमत नह ई थी। काय म म भाग
लेनेवाल को घास-फस क छ पर और िम ी क फश पर कामचलाऊ यान क म ही खाना, सोना और यान करना
पड़ता था।
संडास ाथिमक थित म थे। मूलभूत भोजन—राजमा, सलाद, चावल और अचार— क ही यव था थी। बाहरी
दुिनया से संपक रहता ही नह । काय म क एक िदन पहले कोयंबतूर म इतनी भारी वषा ई िक आ म प चने का
रा ता जाम हो गया था और जल तर लगातार बढ़ता ही जा रहा था। लोग का इतने दीघकािलक और क मय काय म
हतु पंजीयन कराना पागलपन और अवा तिवक महसूस हो रहा था।
पचास लोग क नाम पंजीकत ए। सभी लोग आए। अड़तालीस, जैसा िक ज गी ने भिव यवाणी क थी, काय म क
समापन तक रह।
भारती कहती ह, ‘‘यह काय म व तुतः िछपे तौर पर वरदान ही था। हम सभी पहले ही एक तरह क सामूिहक
उ साह क पकड़ म थे। हमार प रवारवाले, हमार िम गण हम समझ नह पा रह थे। कछ लोग को यक न हो गया था
िक हम िकसी काले जादू क िशकार हो गए थे। वे यह भी सोचते थे िक हमार भोजन म कछ नशीले पदाथ ( स)
िमलाए गए थे। इस तरह अपनी रोजमरा क दुिनया से कछ समय अलग रहकर वयं को उसम समिपत करक, जो
हमार िलए सारगिभत था, हम काफ राहत महसूस कर रह थे। हमने कभी भी प रणाम क िवषय म नह सोचा। अपने
गु क सा य म रहना ही पया था।’’
वह सीधे अपने ससुरजी क पास प ची जो प रवार क मुख थे। उ ह बताया िक वह काय म म भाग लेना चाहती
थ और सोच रखा था िक ब को अपनी अनुप थित क दौरान वह अपनी माँ क पास छोड़ देगी। उसक तीन महीने
घर से दूर रहने क बात सुनकर ससुरजी क यो रयाँ चढ़ गई। लेिकन उसने उ ह िव ास िदलाया िक योग काय म म
जाना अ ययन या कामकाज म जाने से अलग था।
अपनी प नी क साथ काय म म स मिलत ए राजा ने भी अपनी तीन माह क बेटी को अपने माता-िपता क पास
छोड़ िदया था। ‘‘हमने िकसिलए पंजीयन कराया था यह हम मालूम नह था। लेिकन हम इतना तो जानते थे िक एकमा
काय म से ज गी ने हम लोग म गहन प रवतन ला िदया था। वह ायः कहा करते थे िक तीन महीने क काय म म
वह हम पूण पेण पांत रत कर दगे। यह एक चुनौती थी।’’
िकरन (अब वामी देवस व) को याद ह िक आसपास क लोग क चेतावनी क बावजूद ज गी िकस तरह काय म
क एक िदन पहले अपनी मा ित 800 तेजी से बढ़ते जल तर क बीच चलाकर ले गए थे। काय म को यिद एक िदन
क िलए थिगत कर िदया जाता, तो यह पूणत; उिचत रहा होता, लेिकन ज गी अपने िन य पर अड़ रह। ‘‘ क ाइवर
भी अपना भा य आजमाने क िलए तैयार नह थे। और उनक गुजरने क शी बाद ही, उनम से एक फसकर रह गया।
लेिकन वह आगे िनकल गए।’’
बाद म या ा क दौरान उनक कार भी क चड़ म धँस गई। वयंसेिवय ने पहली बार ध ा देकर बाहर िनकाला।
राजा को याद ह िक दूसरी बार जब उनक कार धँस गई तो ज गी बीच जंगल म अपनी कार छोड़कर पैदल आ म चले
गए। एक साधक क अनुसार पानी कार म भर गया था। यह टीय रग हील तक प च गया था। हमने ज गी क बेटी
को कार से बाहर िनकाला और हमम से कछ लोग को िमलकर कार को बाहर करना पड़ा। अंततः पाँच साधक क
एक समूह ने ध ा देकर कार को आ म प चाया और शेष दूरी ज गी ने चलकर तय क ।
उतने ही अचरज क बात यह थी िक भाग लेनेवाले सभी 50 लोग 13 जुलाई तक काय म म प च चुक थे।
काय म क दौरान वषा भी पूरी अविध तक िटक रही और उस रह यमय खेल का साथ देती रही जो भाग लेनेवाल क
जीवन म कट होगा।
साधक क िदनचया सुबह पाँच बजे से शु होती थी और उ ह ाणायाम , आसन और यौिगक ि या क किठन व
उ तरीय ि या से गुजरना पड़ता था। दोपहर म दो घंट क िवराम क प ा वे शाम चार बजे पुनः ारभ हो जाते
थे। उनक यान आधी रात को पूण होते थे। ितिदन 14 से 15 घंट क साधना या अ यास आ करता था। ज गी ने
प कर िदया था िक ये ऐसे अ यास थे, जो एक गु क उप थित एवं िनयंि त वातावरण म ही संप िकए जाने थे।
उ ह बताया गया था िक काय म का मु य ल य उनक सात च को ि याशील करना और चेतना क उ तर पर
जीवन का अनुभव कराना था। कछ अ यास से उ ह शरीर क िविभ भाग म पाँच त व क भूिमका का बोध कराया
गया। अ य ि या से उ ह शरीर क बाएँ और दाएँ भाग म ऊजा क गुण क अथ म सू म भेद का बोध कराया गया।
उ ह ने सुषु ना या म य माग क उप थित का भी बोध िकया।
भारती कहती ह, ‘‘वह कहते थे िक वह हम आग क हवाले करना चाहते थे। और यही उ ह ने िकया भी। यान क
म जो भी आ वह काफ उ क था। मुझे नह लगता िक इसे पुनिनिमत िकया जा सकता ह। वहाँ हम सभी एक ऐसे
य क सा य म रहने क अलावा और कछ नह चाहते थे, िजसे हम चाहते थे, और जो हमेशा ऊजा से प रपूण
लगते थे। उन िदन वह कछ िभ थे। वह अपने िमशन को लेकर चल रह थे। हम यह देख सकते थे, भले ही हम
मालूम नह था िक यह या था। वह एक िविच ऊजा और उ साह से दहकता आ आग का गोला था। उनका
सा य ही उनक जैसा ऊजावान होने क िलए काफ था।’’
राजा को मरण आता ह िक यह चुनौतीभरा कटकाक ण मागवाला जीवन था। लेिकन किटब ता क उ साह ने
सबको बाँध े रखा था। ज गी सभी क क थे और इससे वहाँ क असुिवधाएँ भी सभी को महा साहिसक अिभयान का
िह सा-सी लगने लग ।
काय म म वयंसेवी िकरण का कहना ह, ‘‘यह एकदम सनक-सा लगता ह िकतु मेर जैसा बाहर रहनेवाला भी
यान क क अंदर और बाहर क बीच का फक बता सकता ह। हर बार जब म यान क म वेश करता, तो वहाँ
का ऊजा का तर मुझसे टकराता, मेरी आँख बंद हो जात और मुझे िबलकल नशा-सा महसूस होता। य ही म वहाँ से
जाता, म पुनः ठीक हो जाता। यान क क अंदर और बाहर का अंतर अिव सनीय था।’’
ीिनवास एक ितभागी, िजन पर काय म क रकािडग क भी िज मेदारी थी, अपनी सहमित कट करते ए कहते
ह, ‘‘ यादातर समय म शराब िपया आ महसूस करता था। मुझ े िव ास नह होता िक ज गी जो कर रह होते, उसे मने
सुना भी। म मा उस थान क ऊजा को आ मसा कर रहा था और वह थान इस ऊजा से सराबोर था। ऐसे भी ण
आए जब हमने यह महसूस िकया िक हम उनक उप थित म वा तव म जी रह थे।’’ भारती इस बात क पुि करती
ह, ‘‘वह ऊजा लगभग ठोस ही थी। कभी-कभी मेरी इससे बाहर आने क भी इ छा होती थी पर िकसी को एक ण को
भी शांित या आराम नह िमलता था।’’
ज गी ने एक शाम यह घोषणा क िक काय म उनक तरफ से पूव िनधा रत या तैयारी िकया आ नह ह और संपूण
ि याएँ उनक मा यम से वाभािवक प से चल रही थ । उ ह ने बताया, यहाँ कई गु उप थत ह, जो यह देखकर
अ यिधक खुश ह िक इतने सार लोग आ या मक िवकास क िलए यासरत ह। वे तुम सभी पर अपना ेम और ान
लुटा रह ह।
सभी बात बड़ लयब तरीक से चल रही थ । पा य म पूण पेण िनिमत और सुिनयोिजत लगता था। बावजूद
ज गी क इस घोषणा क, िक यह सबकछ वाभािवक था। भाग लेनेवाल क अ यवसाय तर भी ऊचाइय पर थे। िकतु
िफर भी यह सरल नह था। लगातार एक-सा भोजन करते-करते सभी ऊब चुक थे। एक िदन एक ितभागी, सुमन रसम
क कप और चुकदर क टकड़ को देखकर अपने आँसु को िनयंि त नह कर सक । ज गी ने उसक दुःख का कारण
जानने क बाद अगले िदन शाकाहारी िबरयानी परोसे जाने का इतजाम कराया। िब रयानी पहले कभी इससे यादा
वािद नह लगी थी। सुमन (अब माँ गंभीरी) क अनुसार यह पाट -सा लगा। ‘‘अ य लोग ने मुझ े और भी रोने क
िलए कहा।’’
वषा भी मददगार नह थी। फश क चड़ यु था। जगह-जगह काई लगी थी। क ड़-मकोड़ और साँप आते िदखाई
देत े थे। बाहर खूँटी पर टगे धुल े कपड़ सूख ही नह रह थे। जंगली और झ कदार हवा लगातार हाल से होती ई चल रही
थी िजससे डर था िक घास-फस का छ पर कह उड़ न जाए। िकरण याद करती ह िक ज गी सारी रात व ा मंच क
पास बैठ ए अपनी सीट पर पीछ कछ झपिकयाँ लेन े क िलए िटक जाते थे। लेिकन हर आधे घंट म उठकर बाहर आते
और उस तार को हथौड़ से ठोककर ठीक करते िजसक सहार छ पर िटका आ था। ‘‘िकसी भी रात वह डढ़ घंट से
यादा नह सोए ह गे।’’
स ु उस य को चटखार लेकर याद करते ह, ‘‘यह हमार जीवन का सबसे जबरद त तूफान था। तीसर या चौथे
िदन घास-फस क समूची झ पड़ी धीर-धीर एक ओर झुकने लगी। रात का समय था। हवा म गित आ गई थी। हवाएँ
120 िक.मी. ित घंट क र तार से चल रही थ । मने पास ही एक छोटा-सा कमरा बनवाया था। लेिकन जब मुझे
सनसनाती ई हवा सुनाई पड़ती थी, तो दो बजे रात को बाहर आकर, म देखता िक सबकछ ठीक-ठाक ह या नह । मने
देखा िक झ पड़ी को कसे ए तार धीर-धीर छटने लगे थे। कछ ही िमनट म सबकछ उजड़ सकता था। मने लगभग
पं ह लोग को जगाया और हमने छत को सही िकया। शेष लोग आराम से सो रह थे। उ ह पता ही नह था िक या हो
रहा था। इसका मतलब था िक िदन क समय हमने उनसे अ छी मेहनत कराई थी!’’
कवल छत क ही िगर जाने का डर नह था। ‘‘लोग भी उसी थान पर यान कर रह थे एवं सो रह थे। लगभग सात
िदन क बाद हम ात आ िक उनक अिधकतर िब तर को नीचे से दीमक चाट गई थी। जब हम बैठ ए होते थे तो
दीमक अपने काम म य त रहती थ । या कर।’’ सदगु हसते ए कहते ह, ‘‘हमने जंगल जाने का िनणय िलया।’’
एक मर मत करनेवाली टीम आ गई और ज गी चार िदन क िलए अपने समूह का नेतृ व करते ए वेिलयांिगरी िहल
चले गए। साधक क िलए यह उ ेगपूण िकतु चौक ा रखनेवाला अनुभव था। गोधूिल बेला क समय एक मनोर म
जल पात क बगल म उ ह ने अपना िशिवर लगाया। वहाँ क च ान गीली और िफसलन भरी थ िजससे उ ह सारी
रात सावधान रहना था। वहाँ सभी 48 लोग क बैठने क जगह भी नह थी। इसिलए कछ लोग ने खड़ रहकर रात
गुजारी। एक ने तो एक गुफा देखी और वह रात गुजार दी, लेिकन दूसर िदन मालूम आ िक वह थान सप क माँद
था। वषा कने का नाम ही नह ले रही थी। ब त-से लोग बुरी तरह भीग गए थे। इन परशािनय क बाद भी कोई
भयभीत नह था। बड़ी िविच बात ह िक ज गी क उप थित मा से ही डर वहाँ ठहरता ही नह था।
स ु कहते ह, ‘‘िव ास करना तो किठन ह लेिकन िकसी भी तरह का िबगाड़ नह आ। ितिदन साढ़ पाँच बजे
सुबह हर कोई साधना म जुट जाया करता। क ा म एक िमनट क िलए भी अवरोध उ प नह होता था। वही चया
पवत क ऊपर भी जारी रही। मेरी बेटी क कपड़ बार-बार गीले हो जाया करते थे इसिलए उसे कपड़ पहनाने क ज रत
ही नह रही। हमने उसे ऐसे ही छोड़ िदया था। कोई भी बीमार नह पड़ा और जब छ पर (शेड) तैयार हो गया, हम लौट
आए और साधना करने लगे। िजन लोग ने इस न बे िदवसीय काय म म भाग िलया था, वे भारत म इशा फाउडशन क
वा तिवक तंभ बन गए। उ ह जीवन को एक पूणतः अलग तरीक से देखने का अवसर िमला और उन न बे िदन म वे
पूण पेण प रवितत हो गए।’’
लगभग इसी समय िवजी भी बंगलोर से लौटकर आ गई। यह उसक िलए बड़ा दु कर समय था। अचानक उसक
पित सामूिहक स मान क पा बन गए थे। उनक वैवािहक जीवन म ए इस ह त ेप का सामना करना बड़ा चुनौतीपूण
था। कछ लोग उसे अपने पित क ित काफ कािबज मनोवृि क समझते थे। भारती उन लोग म से थी जो िवजी क
काय म म शािमल होने क अिन छा का कारण समझ न सक थे। ‘‘यह मुझ े बड़ा रह यमय महसूस आ। वह दूर
रहना य चाहगी? जो कछ स ु थे, और जो वह कर रह थे, या उसक िवशालता वह नह देख सकती थी?’’
िकतु िवजी क भावना मक उथल-पुथल क दौरान ज गी का रवैया सदा सकारा मक व भ रहा। उनक चार वष क
बेटी ने अभी कल जाना शु नह िकया था। उसक देखरख वयंसेिवय ारा क जा रही थी और उसका समय
आ म क आसपास उछलते-कदते, अंतराल क दौरान ितभािगय क साथ खेलकर या यानकथा म ज गी क बारह
घंट क स म उनक बगल म बैठ ए बीतता था। एक ितभागी को याद ह िक िकस तरह वह व ा-मंच क पास सो
जाया करती थी और आधी रात क बाद ज गी उसे उठाकर वापस कमर म ले जाते थे।
जहाँ एक ओर ज गी एक अ छ िपता थे, वह दूसरी ओर वे अपनी बेटी क देखरख को लेकर कोई बवाल भी खड़ा
नह करते थे। एक बार उनक बेटी को तेज खाँसी हो गई। एक ितभागी इस कारण उसक वा य क ित काफ
िचंितत लगा। लेिकन ज गी िबलकल परशान नजर नह आए। लेिकन दूसर िदन उस ितभागी ने देखा िक खाँसी पूरी
तरह से ठीक हो गई थी। चूँिक िपछली रात को ही खाँसी ब त तेज थी, इसिलए इसका अचानक गायब हो जाना उसक
समझ म न आ सका; उस समय ितभागी को बड़ा आ य आ लेिकन आनेवाले िदन म ई इससे भी बड़ी रह यमय
घटना से उसे यह घटना बड़ी छ लगी।
ऐसी सभी घटना म सवािधक हत भ कर देनेवाली घटना थी वयं ज गी म आया पांतरण। य - य काय म
आगे बढ़ता गया, वैस-े वैस े काय म म भाग लेनेवाल ने महसूस िकया िक ज गी का वभाव पहले क तरह एक िम
और संर क-सा नह रह गया था। उनक सम अब यह कोई नया य ही था और उ ह वयं ात नह था िक वे
इस प रवतन को पसंद करते थे या नह । न तो अब उनक चेहर पर मुसकराहट होती थी, न ही वह सभी का िम व
हाल-चाल जानने क कोिशश करते थे। उनका हावभाव गंभीर, आ म थ और भयावह-सा लगता था, उनक बात बड़ी
संि , और उनक उप थित ही दखलकारी तीत होती। जो लोग कछ िदन पहले तक उनक आसपास उ ह घेरकर
खड़ रहते थे, अब उनसे कट-कट रहते थे। एकाएक वह एक अप रिचत से हो गए थे। ठीक इसी समय ज गी ने अपने
वयं क भीतर क गु को कट िकया। िकरण कहता ह, ‘‘अचानक हमने उ ह वैसा ही देखा जैसे वह थे। हमने महसूस
िकया िक यह सार त व था िजसम सार सामािजक भेदभाव ख म हो गए थे—अनगढ़, ती , तरल। उनक साथ रहना ही
परशानी भरा लगता, िकतु उनक िबना रहना भी डरावना सा ही लगता। वह अब कोई य नह ब क एक उ हीन
उप थित थे। और उस क म कछ ऐसे य देखे गए िजसक कोई क पना भी नह कर सकता।’’
1994 वह साल था जब नेलसन मंडला को रा पित चुना गया था; रवांडा ह याकांड इसी साल आ था; इसी साल
संयु रा य अमे रका ने अपनी सेना फारस क खाड़ी म भेजी; इसी साल क यात ओ.जे. िसंपसन कांड आ। इन
अंतररा ीय घटना म को मरण कराना इसिलए रोचक ह, य िक उस यान क क काररवाइयाँ िकसी समयहीन
े म घिटत ई लगती थ । वयं साधक क िलए समय और तारीख अथहीन हो चुक थे। जीवन म उ सुकतापूण
पौरािणक भाव आ गया था। उ ह हमेशा अहसास रहता था िक उनक योग गु से उनका संबंध इतना यादा ासंिगक
और बा यकर था िजसक कोई क पना भी नह कर सकता। लेिकन अब उ ह इस बात का पहला संकत िमलना शु
हो गया था, ऐसा य था। इसका कथानक उनक क पना से वृह र और चिकत कर देनेवाला था। उनक जीवन क
कमबंधन समा हो चुक थे, और वे अपने िदन- ितिदन क जीवन क पा नह थे। अचानक उ ह ने महसूस िकया िक
वे अपने गीित ना य क नायक क नायक नह थे ब क एक िवशाल नाटक क िह से थे िजसम उ ह दी गई भूिमकाएँ
अदा करने थ । इसक पटकथा भी उनक अपनी नह थी। यह िनरतर िकसी और हाथ से िलखी जा रही थी।
यह अनुभूित धीर-धीर समझ म आई। दस िदन क प ा ज गी ने मौन अविध क घोषणा कर दी और साधक को
िनदश िदया िक वे अपने अ यास जारी रख। मौन क अिन त अविध से साधक य ता महसूस करने लगे। सुमन को
घबराहट और िद ांित महसूस होने लगी। ‘‘म उनक आकषक पहलू को सदा से जानती रही । अब उनक इस दूसर
पहलू को वीकारने म बड़ी मु कल होती ह। वह ब त कम बोलते थे और सभी क सामने आपक औकात उजागर
करने म उ ह देर न लगती। यह एक िबलकल अलग य व था। मौन क घोषणा करने क बाद वह वापस अपने
कमर म चले गए। हमसे िमलने क िलए वह ब त कम आते थे। ितिदन सुबह हमार जागने से पहले त ती पर िनदश
िलख िदए जाते थे।
‘‘यह शरीर को तोड़कर रख देनेवाली चया थी। हम चार घंट से यादा क न द नह लेत े थे। िकतु यह भावना मक और
शारी रक तौर पर टटने जैसा ही था। कोई समझ ही नह पा रहा था िक चल या रहा था। मुझे उलझन, खीझ और
ितरोध महसूस होता था।
‘‘काय म क दौरान िनयिमत प से सप देखे जाते थे और उ ह कछ िशि त वयंसेिवय ारा उठाकर जंगल म
छोड़ िदया जाता था। लेिकन इस समय तक हमार समूह को िदशाहीनता-सी महसूस होने लगी थी, और जब कोई साँप
सरकते ए प च जाता तो हमारा यान अपनी मानिसक थित से हट जाता। राजा ने साँप को ज गी क कमर क पास
से गुजरते देखा और दरवाजा खटखटाकर उसे सावधान कर िदया। उस समय उसे मालूम नह था िक उनक गु िकसी
संपेर से बढ़कर ह।
‘‘ज गी बाहर आकर साँप को पकड़कर जंगल क ओर छोड़ आए। लौटने पर वह िबजली क तरह गरजनेवाले बादल
जैसे नजर आ रह थे। उ ह ने मौन तोड़नेवाल को हाथ उठाने क िलए कहा। लगभग आधे साधक ने सावधानी से हाथ
उठा िदए। इन सभी को पूव क ओर मुड़ने का िनदश दे िदया गया और उ ह अपे ाकत ऊचे तर क अ यास से बाहर
कर िदया गया। गु पहले से यादा कठोर और दयहीन लग रह थे। बेचैनी बढ़ती गई। िज ह बाहर िकया गया था,
उनक िलए यह अविध और यादा परशानी क हो गई। लेिकन ज गी को इस बात से कोई सहानुभूित नह थी। ‘‘यिद म
तु हार बीच से चुनता , तो तु हारी भावना को चोट प चेगी। लेिकन कित का चुनने का अपना तरीका ह। जो िकसी
काम क लायक नह रहते, वे वयं अलग हो जाते ह।’’
जो अगले चरण तक अ यास म बने रह उ ह एक श शाली अ यास कराया गया जो लगभग तीन घंट जारी रहा
और उसका समापन एक छोटी-सी ि या से आ। एक साधक को याद ह िक िकस तरह ि या क दौरान उसका मन
पूरी तरह खाली हो गया था। एक थित जो पं ह िमनट तक अ त वान रहती ह। ‘‘ या यह थित सचमुच इतनी देर
तक बनी रही?’’ उसे आ य आ और यह पहला िवचार था जो इस थित क प ा उसक मन म िव आ।
उसक प ा जो भी िवचार उसक मन म आते गए उनक ित वह पूरी तरह सचेत था। ‘‘पहली बार मुझे महसूस आ
िक म एक ऐसे काय म का िह सा िजसका अवसर हजार ज म म एक बार आता ह। अचानक मुझे यह भी याद
आया िक म एक ब त ही स म, श शाली गु क उप थित म बैठा । य िक, जैसा िक काय म से जािहर हो रहा
था, ज गी एक ेरणा पद मागदशक ही नह थे, िज ह छोटी-मोटी मानिसक श याँ ा थ । यह य एक योगी,
िनपुण, एक ऐसा य िजसका आंत रक मौसम सूचनातं क उतार-चढ़ाव से लड़खड़ाता आ और असीम लगता
था। िकरण क अनुसार, ‘‘हम एक गहन तर पर इसक जानकारी हो गई थी। लेिकन अब यह खुलकर सामने आ गया
था। और यह भयावह भी था।’’
कई और बात खुलकर सामने आ रही थ । वे भी डर का शमन करनेवाली नह थ । चूँिक उस समूह म या
वातावरण अपे ाकत अिधक घनीभूत और सू म हो गया, व न और यादा सजीव व भयंकर होते गए। एक साधक ने
पाया िक उसक सपने हर रात वह से शु होते थे जहाँ वे िपछली रात म बािधत हो जाते थे। ज गी ने साधक को सपने
सू मता से देखने क सलाह दी। उ ह ने समझाया िक उनक अचेतन मन क नकारा मक पहलू—उनक कम—इस ती
साधना से हटते जा रह थे। और हाल म कोहर क तरह अब भी छाए ए थे। यही दुः व न क कारक थे। लेिकन उ ह ने
आ ासन िदया िक ये िनयिमत और अ यास से पूरी तरह समा हो जाएँगे।
लेिकन कछ ऐसा था जो इन दुः व न से भी यादा िचंताजनक था। कछ साधक को अपने समूह म एक अित र
सद य िदखाई पड़ने लगा। उसक दाढ़ी बढ़ी ई थी, मोटा कबल ओढ़ ए, हाल म हर रात आकर घूमता था। लेिकन
वह उसी तरह िवलु हो जाया करता था, जैसे वह आया था। लगभग इसी समय, एक वयंसेवी ने पाया िक ायः
ायंगुलर लॉक क एक कमर म लगा आ ज गी का िब तर, अचानक कमर क बीच म आ गया था। उसे पुनः कोने
म कर िदया गया और अगले िदन यह पुनः बीच म आ गया।
ज गी ने बताया िक उस थान म ब त से शरीरहीन अ त व थे जो उनक सामूिहक अ यास क ती ता से आकिषत
होकर वहाँ प च गए थे। उ ह ने बताया, ‘‘वे हर जगह मेरा अनुसरण करते ह। रात को वे मेर िब तर क आसपास रहते
ह। कभी-कभी कमरा ठसाठस भर जाता ह और म िब तर उनक िलए छोड़कर फश पर सो जाता । और कभी-कभी तो
म अपना िब तर बीच म ले जाता तािक उ ह अिधकािधक थान ा हो सक। वे ब त ही संवेदनशील ह। यिद कोई
कदम क जोर क आहट करता आ आता ह, तो वे गायब हो जाते ह।’’
लेिकन ऐसी जगह, जहाँ का वातावरण पूरी तरह आ या मक ह, ेत बार-बार य आते ह? गु ने बताया िक ये
िद य अ त व ह िजनक कछ कम कटने शेष रह गए थे। अतः वे वाभािवक प से एक िनवाण ा य क
उप थित म िखंचे चले आते ह, य िक वह मु क संभावना का ितिनिध व करता ह। ‘‘वे अपने कम काटना चाहते
ह, तािक उ ह दुबारा ज म न लेना पड़। अतः वे मेरी उप थित क ओर आकिषत ह जो िक ामािणक ह।’’
इस समझाइश से ब त यादा सां वना नह िमली। अचानक ये शरीरहीन अ त व हर जगह मँडराने लगे। एक िदन
सुबह पाँच बजे, सबसे पहले जागकर सुमन बाथ म जा रही थी। अचानक उसने एक आकित को देखा जो उसे िनमाण
मजदूर लगा। त ण, वह आकित पलटी और उसक तरफ आने लगी। तभी उसे लगा िक यह न तो कोई वयंसेवी ह
और न ही कोई मजदूर ब क िजसक काफ चचा ई थी, वही कबलधारी य था। वह वहाँ से भागी और एक
अ य साधक से टकरा गई। अपने च क जाने से परशान होकर, उसने सामा य बने रहने क कोिशश क । लेिकन य ही
वह पीछ मुड़ी, उसने वही आकित अपनी ओर आते ए देखी। अपने उस साधक िम का हाथ पकड़ते ए उसने धीर
से कहा, ‘‘कबलधारी आदमी!’’ लेिकन उस साधक िम को कछ नजर नह आया।
बाद म काय म क दौरान, एक दाढ़ीवाली औरत वह च र लगाने लगी। सुमन क बहन (जोिक एक साधक भी
थी।) ने सबसे पहले उसे देखा और ज गी से इसक चचा क । उ ह ने इस बात क पुि करते ए कहा, ‘‘वह उस
काल क औरत ह जब औरत को आ या मकता का अनुगमन करने का ो साहन नह िदया जाता था। लेिकन मो
पाने क उसक ती इ छा थी। मो ा उसक ती इ छा से ही संभव थी लेिकन कह न कह उसक मन क िकसी
कोने म यह िवचार था िक इस राह म चलने क िलए उसे पु ष होना चािहए था। यही वजह ह िक उसक दाढ़ी उग
आई। यिद वह देख सकती िक इस काय म म इतनी मिहलाएँ ह तो उसक सोच ही अलग होती या उसे कछ अलग ही
महसूस होता। लेिकन वह देख नह सकती।’’
यान स क दौरान बीच-बीच म िविच य नजर आते। उदाहरण क िलए सुमन को जंगल म एक ऊचे कद का,
काला तरकशधारी युवक नजर आया। उस य क उप थित से उसे ऐसा लगा िक कित से उसका बड़ा घिन
संबंध रहा होगा, इसीिलए वह जंगल क वातावरण से सरोकार रखता था।
एक अ य साधक ने वयं को एक िशव मंिदर क पुजारी क प म देखा, जो एक आ या मक गु क सेवा म भी
लगा आ था। ऐसे ही एक अ य साधक ने देखा िक वह पाँच लोग क समूह म एक ह जो एक य क चार ओर
खड़ ए ह, िजसक पहचान उसने अपने गु क प म क । लेिकन यह गु ज गी से िभ नजर आ रह थे। उनक
ऊचाई ज गी से कह अिधक थी, उनक हाथ म एक सटका था और उनक वेशभूषा भावशाली और डरावनी थी।
उसने देखा िक एक उ भीड़ ने उस समूह पर आ मण कर िदया। कछ चेले घायल हो गए थे और वह समूह िततर-
िबतर हो चुका था। वह साधक भागकर कह छप गया। दूसर य म उसने हड़बड़ाहट म अपने गु को खोजते ए
पाया िजसे उसने जंगल म खोज िनकाला जो पुनः अपने िश य क एक छोट से समूह से िघरा आ था। वह अपने गु
को बार-बार कह रहा था, ‘‘आप हम कसे छोड़ सकते ह? आपने हम छोड़ िदया ह।’’
उसी शाम ज गी ने एक आदमी क िवषय म बात क जो 360 साल पहले म य देश म रहता था। वह िशव का
बल भ था। वह घुमंतू सपेरा जाित का था जो कभी-कभी लोग को अपने अंत ान क गहराई से प रिचत कराते थे।
उसका एक ा ण लड़क से ेम हो गया, और उसी ण से उसक जीवन म काले बादल मँडराने लगे। लड़क क
र तेदार ने उसका पीछा करक उसे घेरकर पकड़ िलया और उसका ही एक साँप उस पर छोड़ िदया। ‘‘आज भी उसे
सपदंश का िनशान उसक शरीर पर ह,’’ कहते ए ज गी ने सभी साधक को अपने कधे पर प सपदंश का िनशान
िदखलाया। णभर क िलए वहाँ चु पी छा गई। इसक बाद भारती समेत ब त से साधक ने िब वा नामक उस सपेर से
जुड़ अपने व न क िवषय म बतलाया।
ज गी ने एक अ य ज म क बार म बतलाना शु कर िदया। उ ह ने एक ोधी वभाव क श शाली योगी, स ु
ी ा क िवषय म बात क । उ ह ने बतलाया िक िकसी तरह उस योगी ने अपने जीवन क असंभव से िमशन क िलए
जी-तोड़ यास िकया। य िप इस काय क िलए आव यक तकनीक ान उनक पास य ही उपल ध था, िफर भी
ितकल सामािजक थित क कारण यह काय धरा का धरा रह गया। सामािजक तौर-तरीक क ित उनक वयं क
अनिभ ता क कारण भी वह अपने िव उठनेवाले िवरोध का शमन न कर सक। त प ा उ ह ने कट िकया िक
िकस तरह एकमा पु ष िश य स ु ा क साथ उ ह ने कोयंबतूर से क ापह मंिदर तक साथ-साथ रा ता तय
िकया। वह िश य, उ ह ने कहा, उस समय उनक साधक क बीच मौजूद था। वह भारती थी।
चुपचाप यह सब सुन रही भारती इस रह यो ाटन से जरा भी नह च क । उसे उसक दूसर स यम क दौरान यह
पहले ही ात हो चुका था जब उसने वयं को एक साधु क प म अपने गु क साथ एक लंबी और दु ह या ा पर
देखा था।
ज गी ने बताया िक अपना शरीर यागने से पूव स ु ी ा ने अपनी ऊजा का एक िन त आयाम अपनी िश या
इडा (अपने सू म शरीर का चं या ी प ) पर छोड़ िदया था। प रणाम व प भारती का ज म दो िपंगला (सूय या
पु ष आयाम) क साथ आ था। इससे यह सुिन त आ िक उसका जीवन भावना मक उतार-चढ़ाव या क से
मु था, और आ या मक जीवन म वेश करने क िलए उसे यूनतम बाधा का सामना करना पड़ा। त प ा
भारती ने अपने भूतकाल क िविभ घटनाएँ सुनाई और कछ यान ि या क समय अपने शरीर क िविभ अनुभव
का वणन िकया।
अंततः ज गी ने यानिलंग क िवषय म बतलाया। इसक पहले कछ िश य से उ ह ने इस श द क चचा क थी।
उनम से कछ ने कछ िव ान से इस िवषय पर चचा भी क थी लेिकन िकसी िन कष पर नह प च सक थे। िव ान
ने आ मिलंग क िवषय म सुन रखा था लेिकन यानिलंग क िवषय म कोई भी जानकारी नह रखता था। इिदरा को याद
ह, िकस तरह वह और कछ साथी िश य ि िच क एक मंिदर म वहाँ क पुजारी से िमलने गए थे िजसे भिव यवाणी का
ान था। जब उ ह ने उससे यानिलंग क चचा क तो, उस वृ य ने िवचारम न होकर कहा िक उसने िकसी एक
वेद म इसक िवषय म पढ़ा था। वह पुजारी क बात याद करता ह, ‘‘इसक थापना कोई गृह थ योगी ही कर सकता
ह।’’
लेिकन ‘पूणता काय म’ म ज गी ने इस उ म क िव तृतता का रह यो ाटन िकया। उ ह ने बतलाया िक उनक
इस ज म का एकमा कारण यानिलंग ही ह। समय कम था और उनका एक ही सपना था, अपने गु क िमशन को
पूरा करना। यह पहला मौका था जब उ ह ने अपने गु क चचा क थी। उनक साधक क मन म यह िवचार उठ ही
जाता था िक उनक िश क ज गी इतने वतं थे िक वह िकसी गु क अनुशासन क ित समिपत नह रह ह गे। लेिकन
गु का अिभ ाय वंश, परपरा थी, िजसे भारतीय आ या मक संदभ म भी, िव सनीयता ा ह। वामी िनसग
(िज ह ने कछ महीने बाद आ म आने पर इसक िवषय म सुना) िलखते ह, ‘‘यह एक बीमा पॉिलसी क तरह था। मुझे
सोचते ए याद आता ह, अपने सभी उ म तौर-तरीक क िलए व तुतः यह य िज मेदार ह।’’
ज गी ने अब अपने िशवयोगीवाले ज म क िवषय म बतलाया िजसक मो का माग पलानी वामी क ह त ेप से
श त आ। आ म ान हतु िकए गए उसी ह त ेप से उनक िलए एक िमशन भी िनधा रत हो गया। यह िमशन समय-
समय पर बािधत होता रहा था। इस बार यह काय चाह िजतना भी िवशाल था, ज गी इसे पूरा करने क िलए कत
संक पत थे। उ ह ने कहा िक वह न कवल यानिलंग क िनमाण हतु कत संक पत थे ब क एक ऐसा वातावरण भी
िनिमत करना चाहते थे िजससे लोग इसक िवशाल पांतरणकारी संभावना से लाभ उठाने म स म हो सक।
इस घोषणा क िमली-जुली िति याएँ सामने आई। स ु को इस बात का अहसास था िक इससे कई लोग घबराए
ए व परशान थे। वह मरण करते ए कहते ह, ‘‘खासकर मेरी प नी िव ी, उसने यह कहते ए िवरोध िकया,
‘िबलकल नह ! तुम यह कसे कर सकते हो?’ उसे इसका योजन और साथकता बताकर िव ास म लेन े म लगभग
छह से आठ महीने लग गए। म उसे सां वना न दे सका। वह रो पड़ती। उसने कहा, ‘तुम यह िकसी क मत पर नह
करोगे! तु ही ने हम िसखाया ह िक प थर और सीमट से बने भवन क ओर देखने क अपे ा हम अपने अंदर झाँकना
चािहए। आप ही वह ह िज ह ने मेर सार देवी-देवता से मुझे अलग कर िदया। और अब म खुश । अब आप एक
देवता को मेर जीवन म लाना चाहते ह। म इसे हरिगज वीकार नह क गी।’ आगे चलकर इसक िलए हमने यादा
चतुराईपूण श द योग िकए—ब -सं दाय मंिदर ‘‘ यान मूित...’ लेिकन य ही मने ‘मंिदर’ का नाम िलया तो यह
िवशाल ितकार सामने आया। कछ अ य लोग ने कहा, ‘नह , ब क हम कल बनाना चािहए, अ पताल बनाना
चािहए।’ मने कहा, ‘नह , ये सभी-योग तो कवल याित यवसाय ह। म तो यानिलंग मंिदर ही बनाना चाहता ।
इसीिलए म यहाँ भी।’’
यह ण एक अ य य ताकारी, गहर आंत रक संघष का ण था जो पुनः उसी त य क ओर संकत करता था िक
िजस आदमी क िवषय म वे सोचते थे िक वे उसे जानते ह, वह ऐसा नह था जैसा िक वह लगता था। वा तव म स ु
ने उ ह एक वष पहले ही चेतावनी दे दी थी िक वे िनकट भिव य म प रवतन हतु तैयार रह। वह कहते ह, ‘‘िजस िदन
हम इशा फाउडशन का पंजीकरण कराना चाहते थे, उस िदन मेर साथ मा छह लोग ही थे। वे सभी बड़ अ छ लोग
थे। लेिकन मने उनसे कहा, ‘देिखए, अब आप सभी इसम सं थागत प से स मिलत हो रह ह। म आपक अनु ह से
आपको बतलाता िक मेरा यह असली वेश नह ह। जब म अपने असली प म आऊगा, या तब भी आप मेर साथ
रहोगे?’ कछ िवरोध सामने आए।’’ एक साधक ने कहा िक वह अ थमा से मु हो चुका था, दूसर ने मधुमेह से
छटकारा पा िलया था, तब उनक िन ा ज गी पर कसे डगमगा सकती थी? धीर-धीर उनक साधक को यह मालूम
होना था िक कई मुखौट वाले य क साथ रहने क चुनौितयाँ या थ ! उनक बेचैनीपूण उप थित से य ता ब क
भय भी महसूस होता था। उनक अगले कदम, अगली भूिमका, उनक अगले काय म क भिव यवाणी करना असंभव
था। आज भी उनक िमजाज का अचानक बदलाव ब तेर क िलए यह न खड़ा कर देता ह; वा तिवक स ु कौन
ह?
भारती क िनराशा क उफान का अनुभव उसे अभी भी याद ह। ‘‘यही वह य थे िज ह ने मंिदर जाने क िखलाफ
अपनी दलील दी थ , और अब वही मंिदर बनाने क बात कर रह थे! लेिकन अब यह बात साफ थी िक वह इसक ित
गंभीर थे। यह भी प था िक वे ज दी म थे। वह कहती ह, ‘‘उ ह ने हम याद िदलाया िक वह बयालीस वष से यादा
नह िजएँग।े समय बीतता जा रहा था। हम यह करना ही था।’’
उसे कई बार य गत प से ऐसे अनुभव ए िजनम ज गी क िव फोटक यानाव था म वह खतरनाक ढग से
मौत क करीब प च गए थे। ‘‘चूँिक वह यान क अपे ाकत गहन अव था म जाते थे, इसिलए कभी-कभी उनक
पैर ठड पड़ जाते थे और ऐसा महसूस होता मानो वह शरीर छोड़नेवाले थे। ऐसे समय पर उ ह होश म लाने क िलए हम
ज दी-ज दी िवभूती रगड़नी पड़ती थी। ऐसे समय पर शरीर क साथ उनका संपक इतना नाजुक होता था िक साधक यह
देख रह होते िक उनक गु और यादा उस शरीर म नह बने रहगे।’’
भारती कहती ह, ‘‘अब म देखती िक वह एक बड़ योजनाकार ह, वह वयं म एक िवरोधाभास ह। एक ओर तो
वह आग क िवशाल गोले ह, लेिकन वह अ यिधक धैयशील भी ह। वह अपना ल य बड़ आराम से हािसल करते ह।
जब उ ह ने यानिलंग क िवषय म बताया िक यह िबना िकसी पूजा या मं क एक ऊजा प िनमाण क ि या ह, तो
धीर से हम यह महसूस होने लगा िक इस संपूण काय म का उ े य एक आ म क थापना नह ह। इसका उ े य
कछ और था, ब त कछ और था।’’
साधक को यह भी समझ म आना शु हो रहा था िक वे वहाँ अक मात ही एक नह ए थे, ब क इस अचानक-
सी तीत होनेवाली सभा का उ े य काफ िवशाल था। और उनक सामने एक ऐसा य था िजस पर उनक आ था
शु से ही अकारण नह थी। उनक जीवन का उ े य उसक अपने जीवन ल य क साथ पूरी तरह जुड़ा आ था। तीन
महीने बाद एक स संग म वयं ज गी ने इसका िन कष यह कहते ए िनकाला, ‘‘वही थान, वही लोग, वही काम।’’
अग त म महीनेभर चली साधना समा हो गई। अगले दो महीने उन लोग क सघन िश ण काय म हतु थे जो
रहवासी और िश क बनना चाहते थे। इसक िलए मा चौबीस लोग रह गए, जबिक शेष घर लौट गए।
एक िदन ज गी वेिलयांिगरी िहल पर िकग क िलए गए। जाते समय वह अपनी सामा य क प स पहने ए थे। जब
वह लौट तो सफद रग क लंगोटी और पगड़ी भर लपेट ए थे। िजन लोग ने उ ह लंबे-लंबे कदम से अंदर आकर
अपनी सीट पर बैठते देखा, वे देख सकते थे िक वह पूरी तरह से अलग य थे। िपछले महीने क अनुभव र गट खड़
कर देनेवाले रह थे। लेिकन इस य क िलए वे िबलकल तैयार नह थे। इसी समय एक साधक ने उ ह वाभािवक प
से स ु कहकर संबोिधत िकया। ज गी ने इस उपािध को मा यता दे दी। उसने धीर से कहा, ‘‘अब म आपका ज गी
नह । म स ु ।’’ यह पुि अनाव यक महसूस ई। उनक रौब क वाभािवकता प थी। जहाँ एक ओर उनम
से कछ लोग एक िम खो देन े से परशान और उदास थे, वह दूसरी ओर उ ह ने महसूस िकया िक उ ह उनक याशा
से काफ यादा ा हो गया था। उनक सामने उप थत य िकसी योगी से बढ़कर था। वह गु था।
राजा को याद ह िक िकस तरह उसने और िवजी ने उनक पास प चकर उ सुकतावश उनक पगड़ी को छआ। िवजी
ने पगड़ी हटाने क कोिशश क लेिकन उ ह ने मुड़कर हम देखा। बस इतना ही आ और हम तुरत लौट आए। काय म
क आगे क भाग म स ु सभी साधक को सातव वेिलयांिगरी पहाड़ी ले गए। उ ह ने बताया िक वह पर स ु
ी ा ने अपना शरीर याग िकया था। और इसी थान पर उ ह ने वचन िदया था; ‘‘म वापस आऊगा।’’
स ु ने कहा, ‘‘उ ह ने अपना वचन िनभा ही िदया। लेिकन यह उनका अंितम ज म होगा। एक बार यानिलंग क
थापना हो जाए, तो वह कभी भी वापस नह आएँगे। वह पुनः इसी सातव पहाड़ी पर चढ़कर अंितम बार अपना शरीर
छोड़गे।’’
एक समूह उस घटना क िबलकल उसी थल क खोज म चल पड़ा। स ु उस समूह क अगुआई कर रह थे।
जब एक जलधारा क िनकट सातव पहाड़ी क पूव थोड़ा िव ाम क िलए वह समूह का, स ु वयं ही आगे िनकल
गए। जब वह लौट तो वह साफ तौर पर िकसी बल भावना मक उ ेग क वशीभूत थे। उ ह ने इस संि िट पणी क
साथ उस समूह को आगे भेजा, ‘‘तु ह िबना िकसी किठनाई क वह थान िमल जाएगा।’’
वही आ। वह एक च ान का भयंकर व वायु क संपकवाला जमीन से उठा आ िह सा था। उस थान तक
प चने का रा ता किठन नह था। यह थान वैसी ही चंड और िव फोटक ऊजा से पंदनशील था जैसी ऊजा उनक
गु क थी। ीिनवास कहता ह, ‘‘हम शी ही यानाव था म वेश कर गए। जबिक कछ लड़खड़ाने लगे, दूसर रोने
लगे। और कछ तो अपनी आँख ही नह खोल पा रह थे। सघन यान म जाते ए ीिनवास को याद ह, ‘मेर आसपास
होनेवाली येक थित से म प रिचत था। मने लोग को यह गाते सुना, ‘श भो’ लेिकन म अपनी आँख नह खोल
सका। म वहाँ लगभग एक घंट रहा और अपने अनुभव म तो म साँस भी नह ले रहा था। जब हम ास लेत े तो
छवास शी ही, झट हाँफने क ि या म बाहर आ जाता। मने अपने शरीर म ढीलापन महसूस िकया, मानो यह
मुझसे अलग हो रहा था। स ु ने बताया िक यिद मुझे अकला छोड़ िदया जाता तो म अपना शरीर ही याग देता।’’
ीिनवास को वह समय भी याद ह जब वह एक छोट-से समूह क साथ (िजसम स ु और भारती भी थे,) उन
पवतीय गुफा म गया था, िज ह स ु ी ा यान क िलए उपयोग म लाते थे। उस समूह ने वहाँ चार िदन िबताने
का िनणय िलया। उसे याद ह, ‘‘उस थान क ऊजा इतनी श शाली थी िक हवा भी व तुतः ठोस महसूस होती थी।
आप इसे चाक से काट सकते थे।’’ उ ह ने वहाँ भोजन िकया, तैराक क और देर रात तक यान िकया। वह कहता ह,
‘‘म पूर समय नशे म रहता था। स ु पूछते, ‘पाट मनाई जाए या?’ वह हवा म मा फक मारते और णभर म हम
एक दूसर ही आयाम म प च जाते। बाद म वह मुझे िहलाकर कहते, ‘अर मूख, जाग जाओ।’’’
तीन िसतंबर को स ु क ज म िदन क याशा म, समूह ने सर ाइज पाट देन े क योजना बनाई। आ म को फल
से सजाया गया। स ु को साधक ारा मंिचत नाटक म काफ आनंद आया, िजसम साधक ने भूतकाल और भिव य
क िविभ पा क भूिमकाएँ क जो इशा क बंधन हतु अपना आशीवाद दान करते ए उदारता से अपना योगदान
दगे। इस ना य ि या से वीभूत होकर स ु ने उनम से येक को गले से लगा िलया और दी ा ा करने का
ताव रखा। उसक बाद पाट शु ई। लेिकन अचानक ही ीिनवास ने महसूस िकया िक उसे खड़ रहने म किठनाई
महसूस हो रही थी। जब दूसर उसे नृ य क िलए ख चते तो वह ितरछा होकर मा िहलता रहता। वह कहता ह, ‘‘यह
एक ऐसी हालत थी जैसी मने पहले कभी भी महसूस नह क थी। यह थित लगभग डढ़ घंट तक बनी रही। बाद म
स ु ने भारती से मेर अजना च म हाथ लगाकर मुझे सामा य थित म लाने क िलए कहा।’’ इिदरा इस बात को
पु करती ह। उसे स ु क उ म अव था याद ह—‘‘उनक आँख म आँस ू थे।’’
इस घटना क िवषय म स ु सामा य ढग से बतलाते ह, ‘‘उस काय म म ही सभी काम होने लगे। फल िखलने
लगे।’’ लेिकन जािहर तौर पर इतना ही पया नह था। स ु ने सदा ही कहा ह, ‘‘यिद कछ लोग को काय म म
शािमल कराने क बात ह, तो यह मेर िलए िबलकल सरल बात ह। लेिकन म इस संभावना को अनेक लोग को
उपल ध कराना चाहता ।’’
उनक िश य इस त य को महसूस करने ही लगे थे िक एक माली क प म स ु क मह वाकां ा कोई िवशेष
साधारण नह थी।

‘दैव ता का आरोहण अपने म ढाल लेता ह’
गहराता आ तीथ, काली होती रात
िज ह ने उ ह अंतरगतापूवक जान िलया था, उनक िलए यह सहज नह था। जब ज गी स ु बन गए, तो ऐसा लगा
मानो रातोरात कोई य एक भाव बन गया हो। पूणता काय म ने एक िम और मागदशक को एक अ यै क
अ त व, एक िनषेधा मक य व म प रिणत कर िदया था। एक व र चा रणी का कहना ह, ‘‘दीघकाल तक
मने इस राह पर संघष िकया। मेर मामले म गु -िश य संबंध आसान नह रहा ह। ब त से संदेह, िव ोह, न और
अिधकािधक न उठते रह ह। म समझ गई थी िक वह वयं को सामािजक कारण से एक िवशेष अंदाज म तुत
करना चाहते थे तािक उ ह यानिलंग और आ म हतु वीकित िमल सक। लेिकन हमम से कछ ऐसे थे जो इस छिव
प रवतन से संघष कर रह थे। िजस तरह वह थे उससे लगता था िक वह तीक बन चुक थे। यह सभी म प रलि त था
—उनक प रधान म बदलाव से लेकर आ म क िनरतर प रविधत होते िनयम व शत तक।’’
एक अ य रहवासी को उसका पहली बार आ म जाना याद ह। सबकछ बड़ी तेजी से औपचा रक होता जान पड़ा।
हर कह क ट क संरचनाएँ नजर आनी ारभ हो गई थ । उसक पुराने समय क िम को अचानक ‘स ु ’ संबोिधत
िकया जा रहा था। उसक आस-पास रहनेवाले लोग अचानक सफद व धारण िकए ए थे। उस पर संशय क
आ मण होने लग गए। परपरा िवरोधी ज गी को, जो संगिठत आ या मकता का अगली पं का िवरोधी था, आ या
था? या वह अपने िस ांत बेच चुका था?
यिद ये आशंकाएँ उस समय थ , और जब ज गी ने यह घोषणा क िक वह लोग को चय क दी ा दगे, तो यह
िकतने आ य क बात थी, इसक क पना कोई भी कर सकता ह। एक सामा य िश य का िवक प बना रहा। लेिकन
चय ऐसे लोग क पसंदगी पर छोड़ िदया गया था जो इस ओर वृत थे, कछ लोग भौच रह गए। और िफर भी
दूसर लोग को यह उतना हा यापद नह लगा। िकरण कहती ह, ‘‘यह उनक साथ होने का एक तरीका लगा। और इससे
यादा कछ और म चाहती भी नह थी। उ ह ने कहा िक यह एक साथ रहने का, एक साधक क प म अपनी ऊजा
कि त करने का एक तरीका था। यह तो समझ आता था। लेिकन उनक शिगदगी म रहने क िलए म कछ भी करने क
िलए तैयार हो गई होती।’’
िज ह इसम िच थी, उ ह इसे आजमाने क िलए कहा गया। नौ लोग तैयार ए। इिदरा इनम से एक थी। उस समय
यह करना उतना भयावह नह था, य िक यह सब इतनी नई बात थी। ‘‘उ ह ने कहा िक हम साथ-साथ आगे बढ़कर
सामूिहक प से मागदशन तय करगे। उ ह ने उस समय मुझे अपने क यूटर ित ान म िनरतर काय करने क अनुमित
दे दी, िजसे दो वष तक चारी क प म म करती रही। जब क रयर क चुनौितयाँ अथहीन महसूस होने लग गई,
तब म यह काय छोड़कर पूणकािलक तौर पर आ म से जुड़ गई। उ ह ने दोन िनणय म मेरा साथ िदया।’’
लेिकन यह सब िकसिलए था? एक ऐसा समकालीन रह यवादी संत पारप रक आ या मक यव था क थापना
य करने चला? इस न से उस समय कई लोग हत भ रह गए और आज भी वे हत भ ह। ‘‘शु -शु म म भी इस
उलझन म फसकर रह गई। वह एक ऐसे य ह िजनम जीवन क ित अगाध अिभ सा ह, िजसका आ या मकता क
ित ि कोण जीवनदायक और पे्ररणा पद ह। वह भला य और को तप और आ म प र याग हतु े रत करने चला?
यह पूरी तरह बेतुका महसूस आ।’’
जब मने कछ वष पूव स ु से यह न िकया तो वह हसने लगे। उ ह ने जवाब िदया, ‘‘ऐसा इसिलए िक
समकालीन होना या ह, इसक ित तु हार िवचार सीिमत ह।’’ उ ह ने समझाया िक चय स े वतं ता ेिमय क
िलए आजमाया आ रा ता ह। का अथ ह ‘अंितम’, ‘दैव ता’, चया का अथ ह ‘पथ।’ येक मनु य को जाने-
अनजाने क ही तलाश ह। चूँिक आप आनंद ा नह कर सक, इसिलए आप सुख क िलए तैयार हो गए। सुख तो
आनंद क छाया मा ह—खूबसूरत तो ह लेिकन ब त सीिमत ह। अब यिद तु ह सुख क तलाश ह, और कोई चीज
िजससे तु ह सुख िमलता ह तुमसे छीन ली जाए, तो तुम टट जाते हो। इसका अथ ह िक तु हारा अ त व भारी
दासतावाला ह, ह या नह ? अब कोई भी दासता पसंद नह करता, हर िकसी म सीमा से वतं ता क गहरी इ छा ह,
लेिकन तुम उ ह तोड़ नह सकते। ब त-से लोग ने अपनी बेिड़य म आभूषण क तरह सोने का मुल मा चढ़ा रखा ह,
वे सामा य प से उसका समारोह मना रह ह। लेिकन चय—ई र का पथ— का अथ ह िक तुम अपनी कित से
आनंिदत थे। इसका ता पय ह िक तु हारा आनंद वतः फत ह, बटन-दबाकर फतकारी नह ह। और खैर, यिद खुशी
का ोत तुमम ह, तो इसे बाहर खोजना िबलकल मूखतापूण काय ह।
वह हमेशा बु क एक पं का ांत देते ह—‘‘गौतम ने कहा बुरी सोहबत म चलने से अ छा अकले चलना।
यिद आप अकले ह, तो आप धीमे चल या तेज चल लेिकन कम-से-कम आप एक तय िदशा म तो चलते ह। यह पीछ
ख चे जाने से तो बेहतर ह।’’ वह कहते ह िक ‘‘पारप रक वैिदक समाज म भी लगभग स र ितशत लोग ने गृह थ म
वेश िकया। सं यास क पथ का िवक प शेष ऐसे तीस ितशत लोग क िलए था जो इस तरह क गृह थ जीवन क
थितय क आव यकता महसूस नह करते थे। संसार म ऐसे कछ लोग सदा रहगे जो व-संर ण और नो पित हतु
एक से अिधक जीवन चाहते ह। चय उनक िलए ह। मनु य अकला ज म लेता ह। ये ऐसे लोग ह जो समान प से
अपने जीवन का आचरण करते ह। वे कछ भी याग नह करते। वह तो समाज क दूसर लोग ह, जो यौनाचार और
आस क सम या से त होकर संग पाने क िलए अपनी वतं ता का याग करते ह।’’
वह अपनी बात को प करने क िलए इसक तुलना िम ी क पा से करते ह। ‘‘आप वयं को कम का पा
(बरतन) मान ल। जीवन क ि या क साथ कछ कम और भाव क वशीभूत आप अपनी तरह क एक य बन
गए ह। बचपन म यह य गीली िम ी क तरह था। समय क अंतराल म आप पूण पेण वय क हो गए, यह (पा )
िबलकल कठोर हो गया। इस तरह यह बरतन जीवन क ि या म धीर-धीर तपकर पक रहा ह। आपक वृ ाव था
आने तक, यिद आप इस पा का प बदलना चाह, तो यह टट जाएगा। लेिकन जब यह तपाकर पकाया नह गया था
तो बड़ी आसानी से आप अपनी इ छानुसार इसे ढाल सकते थे। यही तो हम चय क मामले म कर रह ह। हम लोग
को उस दशा म तपकर पकने से दूर रख रह ह जहाँ उनक ऊजाय िबलकल तरल, िकसी प म गढ़ने यो य हो जाती
ह, तािक उ ह हम वांछनीय प या आकार दे सक। चय इसी िदशा म काम कर रहा ह। यह एक बड़ी साधना ह।’’
एक बार उ ह ने मुझसे पूछा िक या मेर िवचार से चारी मूढ़मित से लगते ह? उस समय तो मने जवाब िदया िक
यह िवचार मेर िदमाग से पर ही चला गया। आ म म कछक बार जाने क बाद उनक ( चा रय क ) उप थित
परछाई-सी और वयं को िमटा देन े क हद तक अपने आपको नकारनेवाली लगी। आगे चलकर मुझ े यह अहसास आ
िक वयं को लोग क यान या आकषण ा (िजसे आज का समाज सामा य समझता ह) क इ छा से रिहत बनने
क िलए िकतनी प रप ता क आव यकता होती ह। उ ह ने मुझ े आ त िकया िक ‘‘वे मूढ़मित नह ह। वे अ यिधक
बु मान लोग ह। होशोहवास म वयं को िकसी भी प-आकार क पा म ढलने यो य बनाने क िलए तैयार होना—
या ऐसी वतं ता ा करना अ छा नह ह? म दस चा रय को िमलाकर उनक ऊजा से एक िवशाल मानव
तैयार कर सकता —जो एक चंड श हो सकती ह।’’ कछ ठहरकर उ ह ने कहा, ‘‘हम सभी ने आम खाए ह,
लेिकन हमम से िकतने लोग ने आम क वृ रोिपत िकए ह? ऐसा मा इसिलए ह िक हर पीढ़ी म मा दस लोग आम
क वृ रोिपत करते ह िजससे हर कोई आम खा पाता ह। इसिलए आ या मक पथ को इसक अखंडता म आगे बढ़ाते
रहने क िलए चय क आव यकता होती ह। यह बात बड़ी अहिमयत रखती ह िक कछ ऐसे लोग ह िजनक िलये
स य का मह व उनक जीवन से भी बढ़कर होता ह। जब आप एक आ या मक माग श त करने का यास कर रह
ह, जो आपक बाद पीिढ़य तक अ त वान रहगा, तो यह चय क ठोस परपरा क िबना संभव नह ह।’’
वह संकत करते ह िक कौमाय त तो इस तसवीर का एक छ भाग ह। ‘‘ चय समािहत करने का जीवन ह,
िनषेध करने का नह , जैसा िक लोग इसे समझते ह। चारी ‘तुम-म’ क संबंध से हटकर देखता ह य िक वह वयं
क भीतर सव व-समािहत होने का भाव थािपत करना चाहता ह। चारी ऐसे लोग ह िज ह ने यह िन य कर रखा ह
िक वे िकसी चीज या िकसी य से कोई खुशी हािसल करना नह चाहते। वे अपने अंदर क खुशी का ोत तैयार
करना चाहते ह। इस भाव से सम त संसार को आंत रक प से चय क ओर मुड़ना होगा। यह कोई अ यास, कोई
शपथ, कोई बा जीवन शैली से सरोकार नह रखता। शादीशुदा होकर भी चारी हो सकते ह। इसका ता पय ह िक
आप अपनी कित से ही अ यंत स िच हो सकते ह और ऐसा ही होना चािहए।’’
एक बार उ ह ने िकसी सूफ संत जलाउ ीन मी क कहानी सुनाई।
जब मी ने अपनी ेयसी क घर जाकर दरवाजा खटखटाया तो उसक ेयसी ने पूछा, ‘‘कौन ह?’’
मी ने जवाब िदया, ‘‘म ।’’
दरवाजा नह खुला। मी उससे इतना ेम करता था िक कई िदन तक वह रोता रहा। बार-बार वह दरवाजे क पास
जाता। हर बार यही आवाज आती, ‘‘कौन ह?’’
मी ने कहा, ‘‘म, मी, और म तु हार िलए जान देन े को भी तैयार ।’’
दरवाजा बंद ही रहा। एक िदन इस सब बखेड़ और परशानी क बाद, उसक भीतर एक दूसरी अव था जा हो गई।
वह एक बार िफर अपनी ेयसी क दरवाजे पर प चा।
अंदर से आवाज आई, ‘‘कौन ह?’’
मी ने जवाब िदया, ‘‘तु ही तो हो।’’ और दरवाजा खुल गया।
स ु ने एक प कथावाचक क तरह ठहराव िलया और कहा, ‘‘संपूण ि या यही ह। यिद आ या मक
अ यास आपक जीवन का अंग ह, तो यह कारगर नह होता। यिद यह वमेव हो गया ह या आपम समािहत हो गया ह
तो भी यह पया नह ह। इसे तो आपसे भी बढ़कर होना होगा, आपक जीवन से भी बढ़कर। यही तो चय ह।’’
एक सं यासी, िजसे 1996 क दूसर बैच म चय क दी ा दी गई थी, अपनी इस दी ा क पीछ एक जोरदार
घटना का वृ ांत सुनाता ह। वह तब भी अपने िम और संर क क अचानक स ु होने क बखेड ़ से जूझ रहा था।
िफर भी उसक मन म ज गी क ित गहरा िव ास अभी भी बरकरार था। एक िदन स ु ने उसे बुलाया और पूछा िक
उसने दि ण भारतीय िसने- ेिमय क धड़कन, रजनीकांत क िफ म देखी थ । जब उसने ‘नह ’ म जवाब िदया तो
स ु ने कहा िक चय रजनीकांत क िफ म देखना छोड़ देन े से बढ़कर नह ह। यह पर बात बन गई। युवक का
चय दी ा हतु पंजीयन हो गया।
और सामुदाियक जीवन क झंझट का या; िनयम और िवधान, गु क िनदश क अनुसार जीवन जीना, सं थागत
आदेश अधीनता? वह वीकार करता ह, ‘‘बेशक कछ समय कठा क रह ह। लेिकन चय को म एक ि या क
प म देखता , ऐसी ि या भी नह िजसे तोड़ा न जा सक। इससे मदद िमलती ह। इसक अलावा इस जीवन का बड़ा
लाभ यह ह िक आपक आ या मक ि या, आपक आंत रकता का यान पूरी तरह स ु ारा रखा जाता ह। कोई
सही िमजाज का य भला यह सब य छोड़ने चला?’’ या ऐसी आ ाका रता का जीवन िजसम हम कोई न न
उठा सक, उसक अधीन रहने म खीझ नह होती? वह बड़ा तािकक जवाब तुत करता ह, ‘‘म स ु पर इसी त य
क कारण आ था रखता िक वह एक ऐसे य ह जो अपनी वतं ता का मू य जानते ह। इसीिलए मुझ े िव ास ह
िक वह ऐसा कोई काय नह करगे िजससे मुझ े अपनी वतं ता से समझौता करना पड़।’’
‘संपूणता काय म’ क दौरान आ म क िनयम क तेजी से बढ़ती सूची से सोमू घबरा गया था। ‘‘यह देखकर म डर-
सा गया। एक िदन म स ु क पीछ-पीछ उनक कमर म चला गया। वहाँ अँधेरा था और मुझ े याद ह, उनक हाथ म
एक टाच थी। हम दरवाजे क पास क गए।’’
उ ह ने मेरी ओर देखा और िबना कछ सोचे-समझे मने उनसे कहा, ‘‘ज गी, मुझ े कोई िनयम-कानून नह चािहए।’’
उ ह ने मेर चेहर पर टॉच क रोशनी डाली। उ ह ने मेरी आँख म आँसू देखे ह गे। उ ह ने धीर-से कहा, ब त धीर-से,
‘‘ठीक ह, तु हार िलए कोई िनयम-कानून नह ह।’’
सोमू क िलए वह ण इसिलए यादगार बन गया, य िक स ु कभी अपने वचन से िडगे नह । सोमू (अब वामी
गु िभ ा) कहता ह, ‘‘आज भी स ु सभा म नए दी ा लेनेवाल से कहते ह िक उ ह ने वचन िदया ह िक उन पर
कोई भी िनयम बा यकारी नह होगा।’’ सोमू कहता ह िक आ म यव था म बा क अपे ा आंत रक दल का
जातं चलता ह। स ु अब भी कहते ह, ‘‘जो भी िदशा-िनदश तु ह अनुिचत लगते ह, उ ह उिचत मंच पर बयान
कर, हम उ ह बदल दगे।’’ अब म उन पर और यादा िव ास करता य िक म देखता िक वह अपने वचन से
िडगते नह ह।
किवता, एक युवती, िजसने हाल ही म चय म वेश िकया ह, उसक िलए यह ितब ता नए अनुभव क राह
ह न िक िनयम-कायद का संक ण बंधन। यह पैनी धार पर संभलकर चलने क तरह ह। इससे आपको हर ण सचेत
रहने क चुनौती िमलती ह। ‘‘मने सदा ऐसी थित क वाब देख े ह, जहाँ हर िकसी म अित उ साह हो और वे अपने
य व क सीमा को समा करने क िलए, समिपत ह । और ऐसी थित यहाँ ह।’’
स ु क साथ यू.एस. म कछ कोस करने क प ा , अरकांसास क कल िशि का किवता ने कछ समय आ म
म रहकर िबताने का िन य िकया ह। ‘‘मुझ े पहले से ही ऊजा सुबोधता और पंदन का उ तर महसूस हो रहा था।
और मुझ े लगता था िक म वयं को अितमानव म बदलकर वापस लौट जाऊगी। यहाँ वयं-सेिवय को देखकर म
भौच रह गई— उनक ित ा, सादगी और भ ता। स ु क बराबरी म आने क चे ा मह वाकां ी लगी।
लेिकन इन लोग क बराबरी म आने का यास तो ेरणादायी याशा महसूस ई।’’
उसने टीचस िनंग ो ाम क िवषय म जाने िबना, इसम अपना पंजीयन करा िलया था, लेिकन उसक उ ाकां ा
धराशायी हो गई। ‘‘यह ब त दीन-हीन सा महसूस आ।
‘‘मने ऊपर उठने, जीतने और सव क होने क िवषय म सोच रखा था। लेिकन िश क बनने का ता पय ह, ात को
छोड़ना, वीभूत होना, वािहत होना। पहले म वयं को यो य य बनाना चाहती थी। अब म वयं को जो उसे
िमटाना चाहती तािक यो यता क झलक मुझम आ सक।’’
स ु ने सदा कहा ह, ‘‘म िजतना अनौपचा रक लगता , उतना ही यादा गंभीर होता ।’’ िज ह ने उनसे
वा ालाप करने क प ा जीवन-प रवतनकारी िनणय िलया ह, वे इस कसौटी पर वयं को जाँचते ह। एक अ य िश य
(अब चारी) िजसने हाल ही म दी ा ली ह, उसने बताया िक कसे स ु ने अक मा उससे पूछ िलया िक या
उसका चय का इरादा था? िश य ने जवाब िदया ‘‘नह ’’। ‘‘ य ’’? स ु ने पूछा, ‘‘अभी भी खूबसूरत बीवी क
तलाश ह?’’ िश य ने िझझकते ए जवाब िदया िक उसे अपनी सुबह क चाय क चु कय म इतना मजा आता ह िक
वह इसे छोड़ने क नह सोच सकता। इस पर उसक गु ने धीर से कहा, ‘‘ओह, तब तो हम तु हार िलए बेहतर शराब
तैयार करगे।’’ इतना काफ था, और वह शािमल हो गया। यह चारी वीकार करता ह िक उसे ायः गरमागरम
मसाला चाय क याद आती ह लेिकन इसक चाहत क ती ता िबलकल समा हो गई।
यिद उनक पहले क िश य क िलए िम से स ु पांतर म ढलना किठन रहा ह, िवजी पर जािहर तौर पर इसका
भाव कह यादा था। एक सामा य मह वाकां ी मिहला— मा प नी और माँ बनने क — क िलए उसक बड़ ेम से
संजोई इ छा क िलए उसे बड़ खतर का सामना करना पड़ा।
एक भावुक और आवेगयु और अपने पित पर अ यिधक अिधकार समझने वाली मिहला ने अचानक अपने ि य
पित को एक सामूिहक संपि क प म बदलते देखा। इसक अलावा उसे वयं िवशेष तौर पर आ या मक कभी नह
माना। साधना क ित िवशेष भाव कभी नह रखा। और य िप वह अपने पित को पूजती थी, िफर भी उसे यह बड़ा
िविच लगा िक दूसर उसे गु क प म देख। उनका एक ारिभक िश य कहता ह, ‘‘हमम से कई लोग को लगा िक
वह उनक राह म सबसे बड़ी बाधा, और सबसे बड़ी सीमा ह। हम प तौर पर जान गए थे िक वह गु ह, लेिकन
िवजी क िलए वह अभी भी पित ही थे और वह उन पर एकािधकार मानती थी। हमम से कछ को महसूस आ िक वह
उनक इस नई भूिमका म ब त सहायक नह हो रही थी।’’
भारती जैसी यावहा रक और समझदार मिहला क िलए िवजी का िमजाज समझ से पर था। वह अपने गु क प नी
क साथ वयं को असहज पाती। ‘‘एक बार मने िवजी से पूछा, तुम बक म सांसा रक काय करक पैसा य कमा रही
हो? तुम यहाँ कोयंबतूर म रहकर अपने पित क महा काय म िह सा य नह लेती?’’ जब िवजी ने उ र िदया िक वह
अपने पित क िव ीय अिन तता वाले जीवन क कारण अपनी नौकरी से यागप नह दे पाएगी तो भारती िनराश हो
गई। ‘‘मेर िलए यह इतना प था िक इस आदमी क पास जो कछ था वह अंितम और सव म संभावना थी। लेिकन
मुझ े यह जानकर बड़ा दुःख आ िक वह यह सब नह देख सकती थी। उसने कहा िक, इस िमशन को हाथ म लेने से
पूव, अपने पित क इसक पहले क जीवन म वह साथ नह रही। लेिकन म हमेशा सोचती थी; िन त ही यह संपूण
अिभयान उससे काफ िवशाल ह जो हमम से कोई कछ जाना ह। वह इसम उ साह क साथ िह सा य नह लेती?’’
दूसरी ओर स ु वष पूव ही िवजी क मानिसक गड़बड़ी क इस दौर को भाँप गए थे। पहले क एक मुलाकात म
उ ह ने उसक हथेली देखकर कहा था िक यारह वष बाद वह भावना मक परशािनय क दौर से गुजरगी। वह यह भी
समझ गए थे िक यह नया प र य उनक प नी क िलए सहज नह होगा। ‘‘वह हमार जीवन म आए बदलाव क
ती ता से घबराई ई थी। म उसे हमेशा चेतावनी देता रहता िक प र थितयाँ बदलगी, और जब ये बदलाव शु ह तो
उसे अपना मानिसक संतुलन बनाए रखना होगा। लेिकन वह इसक िलए िबलकल तैयार नह हो सक । हमार संबंध क
िनकटता इतनी थी िक एक समय तो उसने यह सोचना शु कर िदया था ‘यह मेरा आदमी ह।’ प रवतन क गित, या ा
का तर, एक ब े को रखकर महीन बेघरबार रहने क थित से वह तंग आ चुक थी। और क घर म गु क प नी
क प म रहना सरल काम नह था; और म जानता था िक उसक वभाव से हटकर, मेर साथ लोग का बरताव आ
करता था। िफर उसे यह भी मालूम था िक मेरा समय करीब आता जा रहा था, और मेर साथ उसका समय ब त कम
रह गया था। यह अ यिधक दबाव क थित म थी। मने उसे किठन प र थितय म अपने साथ रखा। लेिकन आगे
चलकर जब वह यानिलंग क सं कारीकरण क िलए आँख बंद करक बैठी तो, उसम सकारा मक प रवतन आए।’’
िवजी म धीर-धीर बदलाव आया। 1996 क ारभ तक उसने बंगलोर म अपनी बक क नौकरी से यागप देकर
कोयंबतूर आने का िनणय ले िलया था। लगभग इसी समय, स ु ने अपने माता-िपता क संपि म अपना िह सा छोड़
िदया। उनक िनकट िम को ये दोन िनणय अ यावहा रक और असंसा रक लगे। लेिकन उनक िदमाग म कछ और
बात चल रही थ ।
कोयंबतूर आने क बाद, अपने दैिनक अ यास म िवजी क किटब ता और बढ़ गई। वह सुमन क साथ यान क
म सुबह चार बजे सबसे पहले वेश करती थी। वह यादा शांत, अपने पित क ित कम य रहने लगी और प नी, माँ
और िश य क प म अपे ाकत अिधक सहजतापूवक अपनी भूिमकाएँ िनभाने लगी। ऐसा लगने लगा िक एक बचकानी
प नी से वय क तक का सं मण हो चुका था। यह पूरी तरह अ यािशत नह था। इसी दौरान उसक जीवन क
सवािधक अ घटना म एक घटना सामने आने लगी। वह स ु क िमशन म अपनी भूिमका क क ीयता महसूस
करने लगी।
िवजी और भारती का सहयोग ही था िक स ु ने यानिलंग क थापना हतु अपने ज म क उ े य का ताव
रखा। एक तरह से इन दोन का चुनाव बड़ा प था। उनक (भारती और िवजी) जीवन एक ज म पूव कडा पा क एक
छोट मंिदर म तय हो गए थे। स ु कहते ह, ‘‘उनक जीवन तय हो चुक थे। उनक अपनी िजंदिगयाँ नह थ , कभी भी
नह थ —बचपन म भी नह । य िप वे कई बात से जुड़ ए थे, िफर भी उनका एक भाग कभी भी स मिलत नह था।
उनका एक भाग पूरी तरह कह और था। और जब यानिलंग क संभावना उनक सम आई, वे समझ ही गए िक उ ह
पूरी तरह अपने जीवन से हटना पड़गा।’’
तीन ज म क तैया रय क बाद, उ ह (स ु ) जो िकया जाना था, उसक ित संदेह नह था। उ ह ने बड़ी सहजता
से बड़ी उ त यौिगक ि या समझा दी, ‘‘संपूण ि या म यानिलंग क ऊजा को इतना सू म बनाना था िक
उसक पर कोई और प ही न हो। सू मता क एक िबंद ु से पर ऊजा का कोई भी प नह रह पाएगा इसिलए ऊजा को
सू मता क उस अंितम िबंद ु पर ले जाने का िवचार था और एक िन त तरीक से इसक अंदर बंद करक रखना था
तािक यह सदा वहाँ क रह। इसे एक िवशेष िविध से बंद िकया जाता ह। इस सं कारीकरण क ि या म िक ह मं
या कमकांड क ज रत नह रहती। यह शु प म ऊजा ि या ह िजसम लोग को शािमल िकया जाता ह...। यह
आपक जीवन को ऊजा म ढालने से संबंिधत ह। अभी यह एक य क प म थािपत ह। इसिलए इस ि या म
जुट लोग को िवकिसत करना, उ ह वष क साधना म लगाना, उ ह गढ़ने यो य बनाना, और इन ऊजा का योग
करक ही हमने एक थित तैयार क ; जहाँ उस थान पर कछ अपे ाकत यादा िवशाल, आमंि त िकया गया। इसी
तरह से सं कारीकरण िकया गया।’’
जून 1996 म स ु ने एक घनीभूत अ यास हतु िवजी और भारती को दी ा दी—एक ऐसी दी ा जो ऊजा तर पर
दोन क बीच क सीमा को धुँधला कर दे। ‘‘समय! समय क ही तो बात थी। इसिलए मने एक यादा भावी कदम
उठाने क बात सोची—तीन लोग क साथ अ यास शु करने क । यह अ यिधक जोिखम भरी ि या थी, लेिकन दो
लोग को िनयं ण म रखना चौदह लोग को पूण िनयं ण म रखने क अपे ा सरल ि या थी।’’
उनक ऊजा क ि कोण िनिमत करने का िवचार था; िवजी और भारती दो िबंद ु होने थे और स ु शीषत िबंदु।
सं या क सुिवधा क अित र दोन िभ -िभ और एक-दूसर क पूरक िमजाज का ितिनिध व करते थे, जहाँ
एक ओर िवजी अ थर और भावुक थी, वह भारती उदासीन और तािकक थी। िवजी को ी ऊजा का ितिनिध व
करना था, भारती को पु ष ऊजा का। उन दोन क ऊजा को पूव ज म म थािपत करक, उ ह उनक कारगर होने म
कोई संदेह नह रह गया था। भारती क ऊजाएँ पहले ही एक िवशेष तरीक से अ यारोिपत क जा चुक थ , इसिलए
उसक पास दो िपंगलाएँ थ , चूँिक उ ह ने याशा कर रखी थी िक यानिलंग क सं कारीकरण म एक ऐसी मिहला क
आव यकता पड़गी जो आदमी क तरह काय कर सक।
‘‘शु -शु म मने सोचा िक म इस अ यास क ि या चौदह लोग क साथ क गा—सात मिहलाएँ, सात पु ष। न बे
िदन क संपूणता काय म का यही उ े य था। लोग को ब त घनीभूत ि या और अ य कार क साधना का
अ यास कराया गया। हम कछ कम को करने, कराने क ज दी थी, हमार पास इन बात को उनक जीवन म घिटत
होने तक इतजार करने का समय नह था, इसिलए उनक िलए सबकछ फा ट फावड िविध से रखा गया। ऐसे चौदह
लोग को िनिमत करने का यास—जो ऐसी दशा म रह िक शरीर क साथ उनक संबंध यूनतम ह , िफर भी वहाँ बैठने
क िलए थर रह, और िजसक ज रत ह वह कर—भारी यास क बाद भी सफल न हो सका। ऐसे चौदह लोग को
तैयार करना, जो शरीर, मन और भावना से एक ह और जो त परता क चुर दशा म ह , सरल काम नह था। मने
शायद एक साल से अिधक समय तक इसका यास िकया। मने इन लोग को पहचान तो िलया लेिकन ये कौन ह,
िकसी को नह बतलाया। मने उनक साथ ि या शु करने का यास िकया लेिकन महसूस िकया िक इसम किठनाई
आएगी। या तो उनक पास ऊजा होती लेिकन िदमाग नह होता। या िदमाग होता, यह ि या इसम भाग लेनेवाले सभी
लोग क िलए जोिखम भरी हो सकती थी।’’ स ु वीकारते ह, ‘‘जब आप उस तरह क कठोरता से गुजरते ह तो
आपका ऊजा शरीर आपसे अलग हट सकता ह। आप जानते ह यिद म उनसे यान करवाने क िलए बैठाता था, तो यह
अविध छह घंट, सात घंट या आठ घंट क होती थी। िबना िहले-डले वे रातभर बैठ रहते थे। हर िदन यह ि या शाम
क छह या सात बजे शु होती और सुबह तीन या चार बजे तक अिवराम चला करती। ऐसा हर कोई िबना आव यक
साधना क नह सहन कर सकता। ये ऐसे लोग थे, िज ह ने आरामतलब िजंदगी जी थी। उनक पूव क साधना क कारण
वे आगे चलते रह, लेिकन िफर भी बड़ा जोिखम था।’’
इस योजना क ित िवजी क ारिभक िति या आशंका और गहर ितरोध क थी। लेिकन धीर-धीर वह सहमत हो
गई। भारती कहती ह, ‘‘शायद तब तक वह यह देखने लगी थी िक यिद आप स ु क जीवन क भाग बनना चाहते ह,
तो आपको उनक काय का िह सा भी बनना पड़गा।’’ िवजी ने स ु को बतलाया िक बचपन म उसे तीन लोग क
ि कोण आकार म बैठकर िकसी ि याकलाप म जुट रहने क सपने बार-बार आते थे। सारी योजना और इसम उसक
भूिमका पूव िनधा रत महसूस होती थी। इसका ितरोध करना यथ जान पड़ता था।
भारती को इस सं कारीकरण क ि या का िह सा बनने क िलए औपचा रक तौर पर कहा जाना प तौर पर याद
नह ह। उसे मा यही याद ह िक एक पूणमासी क शाम को स ु और िवजी क साथ यान ि या म शािमल होने
क िलए कहा गया। वह कहती ह, ‘‘शु म अपनी भूिमका क ित आशंिकत होकर म यान म बैठ गई। लेिकन स ु
क उप थित म, एक बार मने आँख बंद क तो कोई भी आशंका या संदेह नह रह गया। कोई और श जो मेरी
अपनी नह लगती, मुझ पर हावी हो जाती और म लगभग तुरत यान म चली जाती। वैसा ही या उससे भी कछ अिधक
उस पूणमासी को आ। एक अद य श और ऊजा का उफान-सा महसूस आ, एक ऐसी श िजसे म धा रत नह
कर सक । मेरा पूरा शरीर ऐंठने-मुड़ने लगा, और शारी रक संवेदना पर मेरा िनयं ण समा हो गया। हालाँिक म
ब त सचेत थी। यह ि या सफल रही और मने अपने अंदर व छता महसूस क और ब त सी अनाव यक आंत रक
उठापटक से छटकारा िमल गया। शरीर इतना संवेदनशील हो गया और अंत-अंत म मने एक ऊजा प धारण कर िलया
िजससे म प रिचत नह थी। ऊजा का जो गहरा संपक मने अनुभव िकया, उससे मेरा शरीर इतना अश हो गया िक
मुझ े खड़ होने और चलने क िलए िवजी क मदद क ज रत पड़ी।’’
जब स ु ने िवजी और भारती को इस ि या को सुचा बनाने क िलए एक-दूसर क साथ और समय िबताने क
िलए कहा, तो िकसी म भी उ साह नह था। ‘‘मेर िलए तो िवजी हमेशा स ु क प नी थी।’’ प वादी भारती कहती
ह। ‘‘हमने सावजिनक तौर पर कभी बात नह क । म भावुक लोग क साथ कभी भी सहज नह रही ।’’ इन
मिहला क मन म एक-दूसर क िखलाफ कछ भी नह था। लेिकन स ु क ित उनक ा क अलावा, दोन म
कोई समानता नह थी। शु म क- ककर बातचीत ई। ऐसे भी अवसर आए जब मतभेद ए और िमजाज भड़क
गए। य िक िजस चीज का ताव रखा जा रहा था, व तुतः वह अ यिधक साधारण और साथ ही भारी चुनौतीपूण थी,
एक अ त व क रचना को सुचा बनाने क िलए िनजी य व का वै छक याग। व तुतः य गत पहचान क
ह या ही करनी थी।
स ु कहते ह, ‘‘लोग म ितरोध क अनेकानेक गहरी परत होती ह।’’ मने उनक कम को अ रशः काटकर एक
ओर रखकर दोन को िमला िदया, अ यथा िकसी तरह ये लोग साथ नह आ पाते। वे िम बनने क इ छक हो रह थे,
इसक पर वे साथ नह रह पाते। या कोई ऐसा ह, िजसक साथ आपक िवलय होकर एक होने क इ छा ह? ऐसा नह
ह। कछ िन त ण म आप ऐसा करने म यक न रखते ह, लेिकन ऐसा नह ह। यह सरल नह था। य व क
वै छक याग क बावजूद, तीन लोग क बीच सीमा क िमटने का अथ य गत गोपनीयता को खोना और तमाम
िवचार और याद क िवरासत का अचानक अिध हण था। स ु कहते ह, ‘‘दो लोग को मेर क िबंदु पर ि कोण
िनमाण करने क िलए तैयार करने क बाद, उनका मन, भावना और ऊजा से एक होना ज री था। अब यिद यह य
(स ु ) अपने बाएँ घुटने पर कछ महसूस करता वे अ य दोन भी उनक बाएँ घुटने पर कछ महसूस करते, चाह वे
जहाँ भी होते। जो तु हारा जीवन था और जो उनका जीवन था, वह सब तु हार िदमाग म िमि त हो गया था। हम यह
कह सकते ह िक तुम, म व कोई और इसी समय एक ि भुज थित म ह। दस वष पहले मेर जीवन म या आ था,
यह तु ह नह मालूम लेिकन अचानक अब तुम जानते हो। और बीस साल पहले जो तु हार जीवन म आ था, वह मुझे
नह मालूम था, लेिकन अचानक अब म जानता । यह सबकछ ब त िमि त सा हो गया; हम नह जानते थे कौन सी
मृित िकसक थी। िदमाग एक हो गया, भावनाएँ एक हो गई। ऊजा शरीर भी एक हो गया...।’’
जैसे-जैसे ि या गहराई, भारती को अचानक िवजी क जीवन क ऐसी बात मालूम हो गई जो उसे कभी नह बताई
गई थ । िवजी िकसी समय िवशेष पर जो कछ सोच रही होती वह उसे यादा प ता क साथ मालूम हो जाता। ‘‘जब
म कोयंबतूर म अपने घर म भी होती तो, मुझ े ायः सही-सही यह मालूम रहता िक वह कब खा रही थी, या वह कब
नहा रही थी। लेिकन चूँिक तब तक हम कछ ि या म िबलकल जुट चुक थे, इसिलए वा तव म मुझे आ य नह
आ।’’
वह ि या िजसम स ु ने उ ह सं का रत िकया था, वह उ ह क अनुसार काफ भावी थी। ‘‘यह दैव ता को
आमं ण क तौर पर ऊजा का ि कोण िनिमत करने जैसा था। एक बार यिद आप ि कोण तैयार कर लेत े ह, तो यह एक
बवंडर क तरह हो जाता ह। यह िन त ही एक भयंकर संभावना ह, यह सबकछ अपने भीतर सोख लेती ह।’’
उनक सामूिहक ऊजा क उफान म सीखने क ि या म ितभािगय ने िजतना तय िकया था उससे यादा अपनी
ओर ख च िलया। एक िदन भारती और िवजी, यान क दौरान अपने आस-पास ककश आवाज सुनकर घबरा गई।
‘‘पूिणमा और अमाव या, यानिलंग क सं कारीकरण से संबंिधत मह वपूण िदन होते ह,’’ भारती बताती ह। ‘‘एक
अमाव या को जब म स ु और िवजी क साथ पूजा थल पर यान कर रही थी, तो मुझे कानाफसी सुनाई दी और
अपने चार ओर ध ा-मु महसूस ई। म यह सोचकर िव त नह थी िक यह मेरी ती क पना होगी। लेिकन ये
दबी ई आवाज जारी रह । कछ िदन क बाद जब ये कानाफसी सी आवाज बढ़ गई तो मुझे अपने कधे पर एक हाथ
का आभास आ और दूसरा शरीर उसक शरीर को धकल रहा था। मने अपनी आँख खोल और साफ-साफ देखा िक
आकितय क एक समूह का मेरी बगल म जमावड़ा लगा आ था।’’
तब स ु ने बतलाया, ‘‘ये ‘शरीरहीन आकितयाँ’ ह, जो अपनी मु क संभावना से (जो अचानक िनिमत हो गई
थी) इस थान पर िखंची चली आई थ । ये ऊचाई तक उठ ए लोग थे लेिकन उनम कछ कम क संरचनाएँ अब भी
शेष थ । कम क संपूण समा अभी नह ई थी। तो एक बार यिद आप ऊजा क उस आयाम तक उठ जाते ह तो
आपको उनक कम क सरचनाएँ टप रकॉड म बजती ई-सी सुनाई देन े लगती ह। दोन (िवजी और भारती) अनेक
लोग को एक ही समय बात करते ए प प से सुन रही थ । कोई भी मनु य भयभीत हो सकता था लेिकन उस
थित म यह बड़ा वाभािवक-सा लगा, य िक दोन ऊजा क अपे ाकत ऊचे तर तक उठ चुक थ । मुझे उनसे इतना
अ छा करने क कभी उ मीद नह थी। वे पूण चेतनाव था म इस तरह क अनुभव से गुजर । वे मित म क िशकार
नह थ , वे स मोिहत नह थ , और वे िक ह नशीली व तु क भाव म नह थ । वे पूण चेतना क अव था म थ ।
सामा य प से िजतनी चेतना म कोई हो सकता ह उससे अिधक।’’
भारती क िलए, उनक चार ओर श शाली ऊजा े का होना एक ऐसा वा तिवक अनुभव था िक कोई भी
तािकक दलील अब तु छ और असंब ही लगती। ‘‘मने हमेशा ही तक से पर क बात को हसी म उड़ाया ह। लेिकन
धीर-धीर मने मन को एक ओर रखना शु कर िदया और वयं को सं कारीकरण ि या को समिपत कर िदया।’’
अपनी पूण सतकता से भारती और िवजी दोन अपने तु छ मतभेद से ऊपर उठकर एक अहम उप म म हाथ बँटाने क
िलए आतुर थ । यह ि या स ु क उ मीद से कह यादा व रत प म होनी शु हो गई। अ ूबर तक, गित इस
सीमा तक बढ़ चुक थी िक उ ह यक न हो गया था िक तीन ज म का ल य अब दूर नह था। ‘‘म नह जानता था िक
ि या िकतनी तेज या िकतनी धीमी होगी। लेिकन एक बार हमने उ ह साथ रखा, तो सबकछ मेरी याशा से पर
होना शु हो गया। वे अब दो िवपरीत ुव क तरह ह। एक य पूरी तरह तक था, तो दूसरा पूरी तरह ेम था...।
‘‘जब ये दोन गुण साथ िमले तो इससे सवगुण संप एक खूबसूरत य व का िनमाण हो गया; वे एक पूण मनु य
क तरह हो गई...। लेिकन तब यह काफ ती हो गया। इन दोन को उनक शरीर म थर रखना किठन हो गया।
इसिलए हम कछ समय क िलए ि या रोकनी पड़ी...। एक बात यह थी िक इन दोन को अपने प रवार और अपने
िदन- ितिदन क काय क देख-रख भी करनी होती थी िजसम उ ह पूरी तरह शािमल होना पड़ता था। दूसरी बात यह थी
िक उ ह ऊजा का उ तर बनाकर रखना होता था, और पूरी तरह से वयं को सं कारीकरण क ि या म समिपत
करना होता था। इसिलए दोन को अपने भीतर आव यक प रप ता, संतुलन और वतं ता हािसल करने क ज रत
थी, तािक वे इस काय को संभाल सक।’’
किठनाइयाँ समा नह ई लेिकन अब वे िनयं ण म थ । स ु कहते ह, ‘‘ये दोन पूणतः िवपरीत थ । सामा य
प से दोन साथ-साथ बैठ भी नह सकती थ , य िक दोन क दो िबलकल अलग दुिनयाएँ थ । अब आपको दोन का
एक म िवलय करना ह। एक तो शु तक था, दूसरा शु भावुकता। हालाँिक उ ह ने एक साथ सं कारीकरण क
ि या म अ छा साथ िदया, िकतु इसे सहज करने क िलए वे अपने रवैय े से नह हट । मने इस बात का आनंद भी
िलया, यह एक बड़ी चुनौती थी।’’
भारती को िवजी म प प रवतन तब नजर आया जब बड़ प र य म वह अपनी भूिमका महसूस करने लगी। वह
कहती ह िक ‘‘िवजी क आ यजनक बात यह थी िक यिद एक बार उसने सहयोग देन े का िन य कर िलया तो वह
पूरी तरह इन ि या म जुट जाती। शायद वह उतनी ही एकांगी हो चुक थी िजतनी म थी। मुझ े नह पता। शायद
उसम अब भी अपनी असुर ा क भावना रह गई थी। लेिकन जब हम साथ बैठते, तो हम दोन पूरी तरह शािमल होते
थे। कई मायन म वह मुझसे यादा समिपत थी। मुझ े यक न ह िक कछ ऐसे भी ण होते थे जब वह मुझसे भयभीत
रहती और घृणा करती। लेिकन वह मुझ े पसंद भी करती थी। शायद िवजी क तरह भावुक होने का फायदा यह ह िक
आप ेम को अपने िदल म उतार सकते ह और तब शायद काम होने लगे।’’
साथ ही, तािककता-पसंद भारती को भी आभास था िक उसक भीतर भी एक प रवतन आ रहा था। वह वीकारती ह
िक ‘‘उस समय तक मुझम िवजी क ित सदा ितर कार भाव रहता था। ऐसा लगता था िक जैसे शादीशुदा होने क
कारण मेर गु ने वयं को िकसी ऐसे क अधीन कर रखा था, जो बेतुका था। लेिकन इस ि या से ि कोण म सू म
प रवतन आ, वह अपनी तरफ से न ई। हम दोन िभ -िभ तरह से गु क ित अिधकार भाव रखती थ । जब
हम इस ि या क िलए बैठ जाती थ तो हमार य व बाधक नह रह जाते थे। स ु क मा यम से हमार बीच गहन
तर क संबंध बढ़ने लग गए। एक-दूसर क ित ेम-भाव जाग गया। इसक अित र ये ि याएँ इतनी श शाली थ
िक िवजी मुझ े मनु य कम और एक िवशेष तरह क ऊजा यादा नजर आती थी। मने हमेशा वयं को स ु क िलए
एक यं क तरह परखा ह। इसम िकसी तरह क य गत पसंदगी नह थी। मेर अह और झ पन क बाद भी,
ि या क दौरान म वयं को खाली करक वहाँ बैठा करती और जो ज री होता, उ ह करने देती। और िवजी भी वैसा
ही करती। मेर मन म इसी कारण उसक ित एक स मान था।’’
िफर भी, यह सब इतना यादा सहज और संगतपूण लगता िक यह स ा नह हो सकता था। स ु कहते ह, ‘‘म
जानता था िक कोई न कोई ुिट होगी। मुझ े मालूम था िक यानिलंग क थापना जैसा िवशाल काय कह , िबना िकसी
ुिट क संप िकया ही नह जा सकता था।’’ यह यािशत बाधा सामािजक बाधा थी। पूव ज म म भी यह पर बात
िबगड़ गई थ । स ु ने अपने िश य को बाहरी दुिनया से संपक क िवषय म सावधानी बरतने क िनदश दे रखे थे। इस
उप म क िलए सामािजक याित आव यक थी। उ ह आभास भी नह था िक इस सम या क बीज घर क काफ
करीब ही पड़ ए थे।
लगभग दो दशक पहले, जब ज गी कॉलेज क िबंदास छा थे, तब वह अपनी मोटरसाइिकल पर कनाटक क
पहािड़य क सैर पर िनकल पड़। उनक पास खाने-पीने क चीज समा हो गई, लेिकन यह उनक िलए कोई नई बात
नह थी। वह पहले भी ऐसी थितय से गुजर चुक थे। लेिकन लगभग पाँच िदन तक भूखा मरने जैसी थित क बाद,
उ ह ने अपने िलए भोजन क यव था करने का िन य िकया। इसी समय उनक नजर एक पहाड़ी पर बनी आ म
जैसी संरचना पर पड़ी। उ ह ने तुरत अपनी मोटरसाइिकल उसी िदशा म दौड़ा दी। जब वह उस भवन क नजदीक प चे
तो, मोटरसाइिकल से उतरने क बदले, उ ह ने करीब पं ह सीिढ़याँ ऊपर तक इसे चढ़ा िदया। यह अशोभन वेश था।
इतने िदन तक वीराने म रहने क बाद उनक मैल-े कचैले, िबना धुले ए कपड़, िसकड़ व धूल-धूस रत हो गए थे। ज गी
कोई िवशेष िच ाकषक नह लग रह थे।
आ म क गु , वामी िनमलानंद (िज ह उन े म संत क तरह आदर िदया जाता था।) सीिढ़य क ऊपरी िह से म
खड़ थे। अपनी ता कािलक थित म ज गी को िवशेष स मान क अपे ा नह थी। लेिकन उ ह तब बड़ा ता ुब आ
जब वामीजी मुसकराकर उन तक चलकर आए और ज गी तब भौच रह गए जब वामीजी ने उनक पैर छए। यह
देखकर ज गी क मुँह से एक श द न िनकला। वे इसक यु र म िककत यिवमूढ़ से खड़ रह गए। उस समय उनक
भीतर कछ मरोड़ सी महसूस ई। उ ह पता ही नह था िक हो या रहा था। लेिकन वह जान गए िक िकसी अबो य
कारण से उनका वागत इस संत पु ष ारा िकया गया था, िजससे वह अिभभूत हो उठ।
वह मरण करते ए कहते ह, ‘‘जब तक ब त ज री न होता, म मोटर साइिकल से उतरता ही न था। इसिलए म
सीिढ़य पर ऊपर क ओर गाड़ी चलाता उनक िनवास क पास प च गया। म िसर से पैर तक क चड़ म लथपथ। यह
आदमी लगभग साठ साल क उ का था, और म लगभग बीस साल का। वह महा ानी संत माने जाते थे। मुझे साधु-
संत म कोई िच न थी। मुझ े तो जमकर भूख लगी थी, और भोजन क अलावा म और या चाहता भला। कोई और
जगह ही न थी, जहाँ म चला जाता। आसपास कोई र टोरट नह था। मने कहा, ‘मुझ े ब त भूख लगी ह, मुझ े कछ खाने
को चािहए।’ मेरी जेब म कछ पैस े थे, म भुगतान कर सकता था। वह मेरी ओर देखकर हस पड़, और उनक आँख से
आँसू झलक आए। और अगले ही ण वह मेर पैर पर िगर पड़। यह देखकर म िहल गया। म अपने जीवन म िकसी क
आगे नह झुका था। अब तो म िकसी चीज क आगे झुक सकता , एक च टी क आगे भी। लेिकन उस समय म िकसी
क आगे नह झुकता था, और इस आदमी ारा मेर क चड़ भर जूत को छने से, म थोड़ा परशान हो गया। लेिकन मने
झट से इस बात को झाड़ िदया और कहा, ‘ठीक ह, मुझ े भूख लगी ह, कछ खाने को ह?’ उ ह ने कहा, ‘आइए’ और
मुझ े बैठाया। वह मेर जूते क तसमे खोलना चाहते थे। मने कहा, ‘ऐसा मत करो।’ वे गंदे थे। उ ह ने मेर िलए रोिटयाँ
सेक , ब त अ छी रोटी तो नह थी, लेिकन कछ और था भी तो नह उनक पास। मने सारी रोिटयाँ खा ल । वह वहाँ
बैठ ए एक छोट ब े क तरह मेरी देखभाल कर रह थे। मने इन सब बात को नजरअंदाज िकया और वहाँ से चला
आया।’’
वामी िनमलानंद मौन संत थे। उ ह ने कई वष मौन रहकर िबताए थे और िलखकर िवचार का आदान- दान करते थे।
इस मुलाकात क बाद, ज गी कई बार उनक पास गए, हमेशा अपने साथ फल क भट ले जाया करते। चूँिक उ ह ने
वयं को एक आ या मक साधक क प म नह देखा था, इसिलए उ ह ने कभी भी उनसे कोई िदशा िनदश नह िलया।
लेिकन उनक संबंध बढ़ते गए और दोन ने काफ मधुर समय साथ िबताया।
‘‘मुझे याद ह कभी-कभी वह मुझसे बात करते थे। लेिकन अिधकतर समय वह कागज पर िलखकर मुझसे वा ालाप
करते थे। वह हमेशा खुश रहते थे और म भी उ ह खुश रखता था। मने उ ह यह पूछकर कभी परशान नह िकया िक
वह िनवाण ा थे या नह । इस बात से मेरा कोई सरोकार न था। म यह वीकारने क िलए तैयार नह था िक म िकसी
आ या मक य क पास जा रहा था य िक आ या मकता और म दोन साथ नह रह सकते थे। लेिकन यह श स
मुझ े अ छा लगने लगा। यह एक तरह का मौन ेम संबंध था। वह एक अ ुत इनसान थे। वह स नतापूवक रहते थे।
यिद उ ह अपनी दैिनक पूजा क िलए फल क ज रत पड़ती तो फल क िगरने क ती ा िकया करते थे। वह पौध से
फल कभी नह तोड़ते थे। कवल िगर ए फल ही उठाकर खाया करते थे। पेड़ से फल कभी नह तोड़ते थे। इस तरह
क य थे वह।’’
स ु का आ या मक जीवन ारभ होने क बाद, वह इतने य त हो गए िक वह वामी जी से संबंध कायम नह
रख सक। लेिकन अपने िववाह क शी बाद वह िवजी को वामी जी क बी.आर. िहल आ म ले गए। वामी जी ने
मौन रहते ए उनका वागत िकया। शु म वह स ु को पहचान नह सक; य िक उनक वेशभूषा िपछले दशक क
दौरान काफ कछ बदल चुक थी। ‘‘मेरी दाढ़ी अब पूरी बढ़ी ई थी। िवजी मेर साथ थी। म अब अपे ाकत स न
कित का हो गया था। जोशीले वभाव क युवक क जगह अब म थोड़ा िनयंि त-सा हो गया था।’’ स ु ने
रह यमय ढग से कहा।
लेिकन जब स ु ने वयं को ज गी कहकर प रिचत कराया, तो वामीजी क आँख अचानक चमक उठ । ‘‘मोटर
साइिकल मैन।’’ उ ह ने कहा। स ु ने हाँ म िसर िहलाया। त प ा वामी ने कागज क टकड़ पर कछ िलखा और
उ ह दे िदया। इसम िलखा था, ‘मने तु हारी मुसकराहट पहचान ली।’ ( वामीजी, मु कराहट को िकसी य क
य व और उसक आ या मक िवकास का मह वपूण पैमाना मानते थे।) स ु कहते ह, ‘‘उ ह ने हमारा वागत
िकया और बैठाया। इसक बाद, जब कभी भी म उनक पास गया, पहले भी जब म गया, तो आप जानते ह, वह मुझे
एक िटन शहद िदया करते थे। यही एक ऐसी चीज थी, जो वह मेर िलए उपहार व प रखे रहते थे। वह हमेशा मुझ े दो
या तीन िलटर शहद घर ले जाने क िलए देत े थे। हमारी वा ा लंबी चला करती थी— वह अपने न िलख देते थे और
म बोलकर पूछा करता। ितिदन वह कम-से-कम अ सी से सौ क बीच प िलखते थे। इसी तरह वह लोग क संपक
म रहते थे। उस मुलाकात क बाद उ ह ने मुझ े प िलखना शु कर िदया। यादातर समय म घूमता रहता था इसिलए
ायः म उनक प का ब त कम जवाब िदया करता था। मेरी अपनी मेज नह थी—न घर, चू हा, कछ भी नह । उस
समय म या ा ब त यादा कर रहा था। एक बार य ही मने उ ह जवाब िलखा। वह कभी भी या ा नह करते थे।
उ ह ने लगभग बीस वष से या ा नह क थी। वह उस दो एकड़ े वाले आ म से बाहर कदम नह रखते थे। वह
उसी सीमा म ही रहा करते थे।
‘‘उनका आ म एक खड़ी च ान क ऊपर बना आ था। कभी-कभी वह िकनार जाकर पवत व घािटय को िनहारते
और वापस आ जाते! बस।
‘‘यह मुलाकात कई तरह से मह वपूण थी। यह िवजी क एक ऐसे य से मुलाकात थी जो उसक जीवन क ल य
को इस तरह बदल देता था; िजसक उसने क पना भी नह क थी। वह एक ही बार म उ ह पसंद करने लगी और जब
कभी हम मैसूर म होते तो उनसे िमलने क िलए उ सुक रहा करती थी। यह मुलाकात उनक वहाँ से लौटते समय रा ते म
ई एक खतरनाक घटना क कारण भी एक यादगार ह। जब हम जंगल से होकर मोटरसाइिकल पर तेजी से घर क ओर
लौट रह थे, तभी अचानक एक जंगली हाथी क करीब प च गए। डरकर िवजी मुझसे िचपक गई। हमार और उस
जानवर क बीच तीन फट से भी कम दूरी रह गई थी। हाथी कछ पेड़ क ओर मुँह करक खड़ा आ था, और अभी
तक उसने हम नह देखा था। ठीक पीछ एक छोटा सा ढालदार रा ता था। हाथी मानव उप थित को भाँपकर घूमा। यह,
अभी नह तो कभी नह वाली थित थी। मने अपनी बाइक हाथी क ठीक बगल से सनसनाते ए पहाड़ी क ढाल पर
उतार दी।
‘‘हाथी ने तेज िचंघाड़ लगाई और हमारी ही िदशा म बढ़ता-सा लगा। िवजी को इस तरह मुड़ने क उ मीद नह थी, वह
मेर दु साहस पर हरान रह गई। उसे ब त गु सा आया और वह रो पड़ी। और मुझ े पीटते ए कह रही थी, ‘पागल हो
गए हो या, ऐसा तुमने य िकया?’ वह इतनी डर गई थी िक उसने अपनी पट म पेशाब तक कर िदया था!’’ हसते
ए स ु ने कहा। उ ह ने उस अवसर पर भी इस बात को हसकर उड़ा िदया था।
जून 1996 म स ु और िवजी अपनी बेटी क साथ एक बार िफर वामी िनमलानंद से िमलने गए। अब वह यादा
बूढ़ हो गए थे और कछ थक ए व सु त लग रह थे। वह अपने मौन क अव था से बाहर आ गए थे। उ ह ने स ु
को बताया िक वह एक योगी क तरह िजए थे और योगी क तरह ही मरना चाहते थे। अपंग क तरह जीते रहने क
अिन छा य करते ए उ ह ने बताया िक अगले ी म तक वह अपना जजर होता शरीर यागने क इ छक थे। उ ह ने
पहले ही अपने िलए एक छोटी सी समािध बना रखी थी। मुलाकात क दौरान, उ ह ने स ु से महासमािध दशा क
िवषय म कई न पूछ। उनक मुख अिभ िच यह थी िक िबना क या दुःख-दद क शरीर कसे यागा जाए। सदगु
कहते ह, ‘‘उ ह ने बताया िक वह ितह र वष क हो गए थे और एक योगी क तरह मरना चाहते थे, न िक एक रोगी या
अपंग क तरह।’’ वह जानना चाहते थे िक या ऐसा हो सकता ह, व तुतः ह गे या इससे जुड़ हर तरह क िववरण।
पहली बार मने इस िवषय पर खुलकर बात क , और उ ह एक पूणतः अलग आयाम क िवषय म बतलाया— वह या
ह जो िकसी य को जाने (शरीर छोड़ने) से रोकता ह, और इन बाधा से कसे िनबटा जाए। म कछ िववरण पर
गया।
जब स ु वामीजी क शंका का समाधन कर रह थे, िवजी बड़ यान से उनक बात सुन रही थी। वह इस
अ यिधक ऊचे दज क गु वा ालाप क योजनहीन गवाह बन गई थी—एक ऐसा वा ालाप जो िकसी नए िश य क
सामने कभी नह िकया गया था। स ु को मरण आता ह, ‘‘यह सबकछ सुनते ए वह रोने लगी। वह रोती गई, और
रोना बंद ही न िकया। म उसे नजरअंदाज करक, लगातार बोलता गया, य िक िवजी िकसी भी कारण से रो सकती थी
—खुशी, या कछ और भी। जो म कह रहा था, वह उससे इतनी अिभभूत हो गई िक वह क ही नह । िनमलानंद भी
बीच-बीच म रो पड़ते थे। और वह लगातार मुझसे न पूछते जाते। उन बात क िवषय म, िज ह मने कह भी नह
बोला, हम ब त िव तार म चचा करते रह।’’
वापसी क या ा पर िवजी असामा य तौर पर शांत थी। उसका मन बहलाने क िलए स ु ने कार रोक दी और उसे
िपछली या ा क दौरान हाथी से बाल-बाल बचने क याद िदलाई। लेिकन उसक चेहर पर मुसकान नह आई। ‘‘म उन
बात से उसका यान हटाकर उसका मन ह का करना चाहता था लेिकन वह एक अलग तरह क िमजाज म थी। म
रा ते पर खड़ा था। मेर सामने यह अिव सनीय य था। मेरी बेटी पास ही खेल रही थी। अचानक िवजी मेर पैर पर
िगर पड़ी। उसने कहा, ‘म भी उ ह क तरह जाना (मरना) चाहती ।’
‘‘मने कहा, ‘तुम जाना (मरना) चाहती हो? पहाड़ी से कद जाओ; तु हारी ऐसी या सम या ह?’ म मजाक म सबकछ
उड़ा देना चाहता था। उसने कहा, ‘नह , नह । म उ ह क तरह मरना चाहती —सचेत रहते ए। म उसी तरह जाना
चाहती ।’
‘‘मने कहा, ‘अ छा, तो कब जा रही ह आप? यह खुशी का समाचार मुझे भी तो बताओ।’ म अभी भी उससे मजाक
कर रहा था। लेिकन वह अित भावुक थी और उसक आँख से आँसू झर रह थे। उसने कहा, ‘नह , म सचमुच गंभीर
। आपको मेरी मदद करनी होगी।’’
तभी ऐसा आ िक खतर क घंटी बजने लगी। यानिलंग क सं कारीकरण म िवजी क क ीय भूिमका थी।
महासमािध क इ छा इससे यादा असामियक नह हो सकती थी। स ु जानते थे िक इसे (महासमािध क इ छा)
िनयं ण से बाहर जाने नह िदया जा सकता लेिकन यह तो शु आत ही थी। तदुपरांत िवजी महासमािध क िवषय पर
अपने पित से ायः चचा करती रहती थी। वह देखते िक वह पूरी तरह गंभीर रहा करती थी और यान भटकाने से
इनकार कर देती थी। यह बा यकारी था, लेिकन स ु जानते थे िक वह अब भी आ या मक नौिसिखया थी। उसम
अपने ल य को ा करने क न तो प रप ता थी, न ही ती ता। यह एक ऐसी ि या थी िजसम साधना क
आव यकता थी और िवजी ने कभी भी सतत अ यास क िलए अपना झान य नह िकया था। सौभा य से वह अभी
भी अप रप और अत पर थी।
िकतु िजस चीज क उ ह ने सौदेबाजी नह क थी, वह था उसका िन य य िक उस िदन क बाद, िवजी म बदलाव
लि त आ था। उसक चेहर पर नई चमक थी, उसका जीवन एक नए उ े य क भाव से िमि त था। ‘‘उस िदन से
वह पूरी तरह एक अलग य थी। जो लोग उसे जानते थे, वे यही जानते थे िक वह िकतनी हलक िमजाज क थी,
यादातर समय वह एक छह साल क ब ी क तरह हरकत करती रहती थी। लेिकन अचानक िपछले आठ-नौ महीने
म वह पूरी तरह कि त हो गई। यह सब उसी िदन से शु आ। मने कहा, ‘ठीक ह, तो या तुम कछ साधना करने क
इ छक हो? देखते ह, तुम िकतनी गंभीरतापूवक यह करती हो।’ मने कभी नह सोचा था िक उसम हमेशा क िलए इसम
डट जाने क ढ़ता होगी। इसम चौबीस घंट का मनोयोग और ितब ता आव यक ह।’’
स ु पहले ही यानिलंग क िलए वा तु योजना म इतने य त थे िक िकसी तरह क चेतावनी संकत पर यान नह
दे सकते थे। िवजी का िन य भाव बढ़ने पर, वह इस प रवतन क ित ऊपरी तौर पर ही सजग ए। िकसी भी थित
म, उ ह िव ास था िक वह ऐसा चम कार अपने से नह कर सकती। ‘‘म सोचता था िक यिद कोई ऐसा था जो यह
कर सकता था तो वह थी भारती, य िक उसम उसक ित कछ उदासीनता थी। लेिकन िवजी हमेशा मुझसे िचपक
रहती, मने कभी नह सोचा िक वह इसक िलए स म थी।’’ उ ह ने अपने आसपास क कछ लोग से इसक चचा भी
क , लेिकन उ ह ने इसे हसी म उड़ा िदया। यिद एक भी कोई महासमािध क िलए अस म लगता था, तो वह थी िवजी।
यह (महासमािध) सवािधक एक ि कोणीय आ या मक साधक क िलए खा और अ ा य ल य महसूस होता था।
अपनी नई-नई हािसल क गई प रप ता क साथ भी िवजी इतनी सनक और ुिटपूण लगती थी िक वह एक अ यथ
क प म आहता भी ा नह कर सकती थी।
वह कहते ह, ‘‘मने उसे कछ िबलकल साधारण साधना करने क िलए िदया, लेिकन उसने इसम काफ एका ता से
वेश िकया। कछ ही महीन म मने देखा वह सचमुच काफ आगे जा रही थी। वह अगले छह या आठ महीन म जाने
(मरने) क िवषय म बड़ िव ास से बात करने लगी। तभी मने उसे िन सािहत करना शु कर िदया, उसक र तार
थोड़ी धीमी कर दी। मने उसे याद िदलाया िक आिखर इन बारह महीन तक सड़क पर रहने क िलए एक थान था।
पहली बार उसक पास कोई जगह थी िजसे वह अपना कह सकती थी। वह भोजन तैयार करना और घर सँभालना
जानती थी। म जानता था िक ये बात उसक िलए बड़ी अहिमयत रखती थ ।
‘‘हमारी बेटी सात वष क होने जा रही थी। और िवजी वयं भी िखलती जा रही थी। उसक भीतर क अप रप ता,
सम या और संघष क लंब े चरण क बाद उसक िलए प र थितयाँ बदलती जा रही थ । इसिलए मने कहा, अब
य ? ज दी या ह?
‘‘उसने कहा, ‘अभी तो अंदर से म पूरी तरह खूबसूरत महसूस कर रही और बाहर से हर कोई मुझ े अ ुत नजर आ
रहा ह। मुझ े नह मालूम, म िकतने समय तक यह कायम रख पाऊगी। जीवनभर तो म उलझन म रही ; म उठा-पटक
म रही, भावना मक उतार-चढ़ाव आए। अब म उस मुकाम पर , जहाँ म रहना चाहती । यिद कल मेर ब े को या
तु ह कछ हो गया, तो म पुनः उसी दशा म लौट जाऊगी। लेिकन अभी मुझे िकसी से कोई फक नह पड़ता। म ऐसी
थित म । यह मेर जाने का समय ह।’
‘‘मने इस पर कोई बहस नह क , य िक म जानता था िक यह सच था। मने कहा, ‘कछ साल इतजार करो, इसका
आनंद लो, िफर जाओ।’
‘‘लेिकन उसने कहा, ‘अभी तुम नह चाहते िक म जाऊ। लेिकन कछ वष बाद शायद तुम चाहोगे।’’’
इसे मरण करक स ु हस पड़ते ह। ‘‘ऐसे ान क िव मेर पास कोई तक नह था! इसिलए एक पित क प
म मने उसे िन सािहत करने का यास िकया। लेिकन गु क प म म उसे रोक नह सका।’’
सं कारीकरण क अ यास ने िवजी क िन य को और बल देन े म अपनी भूिमका िनभायी और उसक सपने उसक
प च तक आ गए। स ु कहते ह, ‘‘ यानिलंग म स मिलत लोग से म चाहता था िक वे समािध क कछ अव था
म रह। समािध का एक पहलू यह ह िक आपका शरीर क साथ संबंध िबलकल यूनतम हो जाए। इसे एकल िबंदु संपक
तक लाया जा सकता ह। हम इसे िनिवक प समािध क नाम से जानते ह। इसका ता पय यह ह िक आपक शरीर क
साथ आपका संबंध यूनतम ह, एक धागे क तरह। यिद आप वह धागा भी तोड़ देत े ह तो यह महासमािध हो जाती ह।
लेिकन एक धागे को पकड़ ए जीिवत बने रहना अ छा ह य िक ऐसी थित म आप लगभग शरीर से मु और
जीिवत रहते ह। तु ह कछ चीज करनी होती ह, तु ह अब भी थोड़ा भोजन करना होता ह, संडास जाना होता ह। लेिकन
अ य हर तरीक से आप शारी रक ि या से मु रहते ह। जीने का यह अ छा तरीका ह। सामा यतः जब लोग इस
थित म होते ह तो हम उ ह अि यता और सुर ा क िन त तर पर रखते ह। हम उ ह संरि त वातावरण म रखते
ह। हम उ ह बाहरी थितय क संपक म नह आने देत,े य िक हलक बाधा आने पर वे अपना शरीर हमेशा क िलए
छोड़ सकते ह। लेिकन जब हम यानिलंग का सं कारीकरण कर रह थे, तब म जो लोग समािध दशा म थे, उ ह भी
शारी रक प से सि य थित म चाहता था। यह जोिखमपूण था। लेिकन इस ि या म यह ज री था। इसिलए म
उ ह सि य रहना िसखा रहा था। इससे िवजी को एक िन त मता िवकिसत करने का बड़ा अवसर िमला। वह पूरी
तरह इसम जुट गई।’’
अ ूबर 1996 म, स ु जनवरी क िलए अपने काय म तय कर रह थे। उसी समय उ ह अचानक अंत ान से
आभास आ िक तािवत क ाएँ संभव नह हो सकगी। उ ह ने उ ह र करने का िनणय ले िलया। ‘‘मने राजा से
कहा, ‘मुझे लगता ह िक जनवरी क अंितम स ाह म काय म नह ह गे। मुझ े यह पसंद नह ह। इ ह बढ़ाकर फरवरी
क पहले स ाह म कर दो।’ राजा ने मुझसे पूछा िक कह मेरी कोई य गत य तता तो नह थी। मने कहा, ‘नह ,
मुझ े ऐसा लगता ह िक उस समय म िनधा रत काय म को थिगत करना पड़ सकता ह।’ उसक आस-पास क अ य
लोग ने इसका कारण पूछा, लेिकन वह कोई जवाब न दे सका।’’
नवंबर क अंत तक, िलंगम क संरचना आ म म आ चुक थी। स ु ने संबलपुर (उड़ीसा) क या ा क । उ ह
वहाँ मु े र मंिदर का नवीकरण सं कार करना था। वह िवजी को अपने साथ ले गए। यह बड़ी िविच या ा िस
ई। एक व र िश य को मरण आता ह िक मंिदर जाने क बाद, स ु आसपास क जंगल से बड़ी तेज गित से
चलकर गुजरने लगे। रात का समय था और कछ लोग ने उनका अनुसरण िकया। जब वह एक छोट-से जलाशय
(िजसम महानदी का जल आता ह) क िनकट प चे, िठठककर क गए। उ ह ने और को कने का संकत िदया और
वयं चलते गए। वह जलाशय क चार ओर घूम े और बेतुकपन क साथ एक पुराने वृ क सामने क गए। ब त देर
तक वह इसे घूरते रह, उनक आँख से लगातार आँसू बह रह थे। तभी अचानक एक झटक से उ ह ने अपने गले से
माला िनकाली और पेड़ पर डाल दी। इस क य से वहाँ खड़ लोग भी भावुक हो उठ। कछ रोने लगे, दूसर जमीन पर
िगरकर लोटने लगे, मानो उन पर कोई ेत इ यािद का साया हो।
जब वह कोयंबतूर लौट तो स ु ने कट िकया िक व तुतः वह एक ऐसे मंिदर म आए थे, िजसे वह िकसी ज म म
ब त करीब से जानते थे।
िब वा अपनी जाित क एक बड़ समूह को संबलपुर लाने का ही यास कर रहा था, और ायः अपने प रवार क
साथ इसी पेड़ क नीचे िशिवर लगाता था।
बड़ आ य क बात ह िक यह वृ इतनी शता दय से कसे बरकरार ह। िकसी ने इसे काटकर िगराया नह । पुराना
वृ ख म हो गया था और उसक छाल मा ही रह गई थी। इसक संतित पुराने वृ क खोल म ही उग गई थी, तो
एक तरह से यह वही वृ था।
िदसंबर 1996 म, स ु िवजी और आ म क अनेक रहवािसय को वामी िनमलानंद क आ म ले गए। वह
( वामी) शारी रक प से कमजोर लगते थे और यह प था िक उनक महासमािध का िदन दूर नह था। वह वयं म
शांत य थे, और उनक उप थित उनक आगंतुक को पिव लगी। कछ क आँख म भावुकतावश आँसू आ गए।
वामी ने उ ह सां वना दी। उ ह ने धीर-से कहा, ‘‘अगली बार जब तुम यहाँ आओ तो संभव ह, म ना िमलू।ँ लेिकन तुम
मेरी उप थित हर जगह महसूस कर सकोगे।’’ उ ह ने उ ह आ त िकया िक उनक साथ एक गु ह जो उ ह सव
आ या मक उपल धय तक िदशा िनदशन करने म स म ह। ‘‘उनका िव ास करो और अपनी साधना क ित स े
रहो। बाक सबकछ वह वयं ही कर लगे।’’ उ ह ने कहा।
वामी क िलए अंितम कछ महीने किठनाई भर रह। उनक महासमािध क घोषणा से िववाद उ प हो गया था।
कनाटक क रशनेिल स समूह ने इसे आ मह या का यास बतलाया और उनक इस कदम क िखलाफ जोर-शोर से
िवरोध क अगुआई क । आ म म पुिलस जाँच भी ई। स ु कहते ह, ‘‘जब हम वहाँ प चे, उस समय आ म म दो
पुिलस कां टबल थे। वामी मुझे पकड़कर रोने लगे। उ ह ने कहा, ‘जरा देखो, मने इस आ म म जीवनभर एक फल
भी नह तोड़ा ह, लेिकन यहाँ मेर आ म म पुिलस लगा दी गई ह।’
‘‘मने कहा, ‘आप य परशान होते ह? यहाँ बैठ ये दो आदमी, आपका या िबगाड़गे?’ उ ह ने कहा, ‘लेिकन वे
सोचते ह िक म आ मह या करने जा रहा ।’
‘‘मने कहा, ‘आप परशान न ह , आप तो जानते ह, जो आपको करना ह।’ और जो िकए जाने क आव यकता थी, म
उसक िववरण पर चला गया। लेिकन वह परशान थे, य िक पुिलस हर समय उन पर नजर रखे ए थी, तािक वह
अपना जीवन न समा कर ल।’’
वामी ने अंततः एक बयान जारी िकया िजसम उ ह ने प िकया िक एक ऐसा य िजसने दीघकािलक व
आ या मक प से अपना फलदायी जीवन जी िलया, उसक िलए शरीर छोड़ने का िनणय इतना वाभािवक ह िजतना
एक पुराने प े का पेड़ से िगर जाना। उ ह ने कहा िक एक आ म ान ा िकए ए य क िलए शरीर एक
असहनीय बोझ बन जाता ह, दूसर इस बात को नह जान सकते िक ऐसे य क िलए अपने शरीर को धारण िकए
रहना िकतना क दायी ह। उ ह ने कहा िक इस अिहसा मक और सचेत थित म शरीर यागने क देश क आ या मक
िवरासत म कई स मानजनक उदाहरण ह। उ ह ने आंदोलनका रय से लोग क िदमाग म कोई अनाव यक उलझन
िनिमत न करने क िलए कहा और अपनी अंितम या ा को शांितपूवक संप होने देन े क िलए कहा। ितह र वष य
वामी ने अंततः 10 जनवरी, 1997 को अपने शरीर का याग िकया। स ु कहते ह, ‘‘जनवरी क एक शुभ दोपहर क
समय वह आए और अपनी समािध म बैठ। बतौर सा ी लगभग पचपन लोग क उप थित म उ ह ने शरीर छोड़ िदया।
पुिलस उ ह िगर तार नह कर सक । रशनिल स लोग ने तक िदया, उ ह ने कोई जहर खा िलया होगा, उनका
पो टमाटम िकया जाना चािहए। लेिकन जहर खाया आ य कसे समािध तक जाएगा, पालथी मोड़कर बैठगा और
मुसकराता आ इस तरह चला जाएगा।’’
वामी से अंितम मुलाकात का इशा साधक पर गहरा भाव पड़ा। यह अ दशन (तिमल उ सव िजसम िशव क
तांडव नृ य का समारोह मनाया जाता ह और यह साल क सबसे लंबी रात मानी जाती ह) का िदन था। उस अवसर पर
उ ह साथ देखने से उसका मह व और बढ़ गया, यह सूय और चं मा को साथ-साथ देखने जैसा था।
िदसंबर क तीसर स ाह म स ु ने भारती को फोन िकया। उ ह ने उससे पूछा, या वह पं ह िदन क कार या ा
पर िवजी, उनक बेटी और उनक साथ जाना चाहगी? इसे पा रवा रक अवकाश समझकर अिन छक होने क बावजूद
वह तैयार हो गई। इसका मतलब उसे िफर से अपने प रवार क यव था करनी थी। वह मुसकराकर कहती ह, ‘‘लेिकन
तब तक म यु िनकालना सीख गई थी। चूँिक यह ि समस-प गल का समय था, मेर ब क कल क छ याँ थ ,
इसिलए मने उ ह हदराबाद अपने भाई क घर भेज िदया था।’’ वह 26 िदसंबर को स ु और उनक प रवार क साथ
चली गई। िकसी को भी इस या ा क उ े य क जानकारी नह थी और िकसी को भी अंदाज नह था िक यह मील का
प थर सािबत होनेवाली थी।
य िप यानिलंग का काय तेजी से चल रहा था, िकतु स ु को अहसास था िक कम क बाधाएँ बची ई थ जो
िक दो ितभािगय क पूण खंड क माग म दखल दे रही थ । जहाँ िवजी और भारती सहयोग देन े क िलए िबलकल
इ छक थ , कछ अचेतन े क बाधा थी िजसे ठीक िकया जाना ज री था। गहराई म पड़ी इन गाँठ को खोलने का
आदश तरीका एक साथ उन थान क या ा करना था, जो उनक पूव ज म म मह व क थे।
भारती, िजसे िवजी क तरह ही उ े य क कोई जानकारी नह थी, या ा क दौरान का समय याद कर यह महसूस
करती ह िक यिद वह उनक साथ नह जाती तो यह यादा सरल रहा होता। ‘‘मुझे यह बात साफ होती जा रही थी िक
िवजी अपने पित क ित एकािधकार वभाव क थी, और िजस तरह युवा वग उ ह भगवान जैसा मान रहा था और
उनक िलए उनम सनक थी, इससे वह वयं को असुरि त महसूस कर रही थी। वह स ु से महासमािध लेन े जैसी,
िजसे म मूखतापूण हरकत समझती , बात करती थी। मुझे महसूस होता मानो कोई ब ा बॉबी डॉल क िवषय म बात
कर रहा हो, और मने उससे पूछा, ‘महासमािध य ? मरना य ? जीिवत रहकर उनक मदद य नह करना?’ जब म
ऐसी बात करती तो वह वयं म संकिचत हो जाती। उस समय मुझे उस पर ोध आता। ोध इसिलए य िक मेर गु
िकसी ऐसी ी से शादीशुदा ह, जो उनक जीवन क िमशन क िवशालता को समझ नह सकती थी। अब म सोचती
िक म उसक ित कछ सहज रह सकती थी। एक मिहला क प म म उसका दद कभी नह समझ सक और व र
जैसा यवहार करती रही। लेिकन ऐसा इसिलए िक म यह नह समझ सक िक वह उ ह मा एक पित तक ही सीिमत
य करना चाहती थी जबिक वह प तः उससे कह अिधक हो सकते थे।’’
या ा का पहला पड़ाव उड़ीसा क प मी सीमा पर थत संबलपुर था। आिदवासी (जनजाित) जनसं या क
अिधकता वाला यह शहर हीराकड बाँध से सोलह िकलोमीटर क दूरी पर ह। यह हीरा यापार का पुराना क था और
वतमान म व उ ोग क िलए िव यात ह। यह व यान बौ का िस क भी ह। यह समूह संबलपुर से एक घंट
क या ा क दूरी पर थत मु े र मंिदर क ओर बढ़ गया।
उनक इस ाचीन मंिदर प चते ही भारती को यह प आभास हो गया िक वह थान उसक िलए नया नह था। इस
जगह ने उसक मन म अिभलाषा और दुःख का िमला-जुला भाव उ प कर िदया जो असहनीय ती ता क साथ बढ़ता
गया। इस गहर आभास से वह मौन होकर वयं म िसमट गई। ‘‘या ा क दौरान स ु ने िवजी को कई बात समझाई—
मसलन हम िजन थान पर जा रह थे, उनका मह व इ यािद। मेर मन म ब त यादा न नह थे। स यम काय म क
दौरान मुझे पहले ही कई झलक िमल चुक थ , िजससे कई य से म तुरत ही प रिचत हो गई थी। तीन ने तीन िदन
तक उस मंिदर म यान िकया। भारती आसानी से अपने यान अ यास म वेश कर जाती थी। उसे वह थान ऊजा से
सराबोर लगा और यहाँ यान स क बाद वह ायः खड़ी नह हो पाती थी।
एक व र िश य ने, िजसने संबलपुर क दोन या ा (पहले क और अभी क ) का इतजाम िकया था, पाया िक
पं ह िदन पूव जब िवजी यहाँ आई थी तब और इस बार म उसम काफ बदलाव था। अब स ु क ित उसका
ि कोण बदल चुका था। उनक ित अब गु क ि से स मान था। और उसक उप थित म ऐसी कछ अवणनीय-
सी बात थी िजसक कारण उसक ित स मान जागता था।
अब स ु ने िब वा क जीवन क िदशा का अनुगमन करने का िनणय िलया। वह जानते थे िक उस सपेर का
गृहशहर कह आसपास ही होने क संभावना थी। लेिकन उ ह उस क बे का नाम या वह िकस िदशा म था, याद नह
था। इन बात से परशान ए िबना वे चार अ ात िठकाने क अिन त खोज म जुट गए। उनक पास इसक िलए न तो
कोई न शा था, न सुराग था, न मागदशन। यह ऐसा या ा अिभयान था िजसक संप होने म उ ह महीन लग सकते थे।
िफर भी उ ह िकसी बंद गली का सामना नह करना पड़ा। वे जीप पर सवारी कर रह थे, स ु ाइवर को पूरी तरह
अपने अंत ान क आधार पर िदशा िनदश दे रह थे। अपने वाहन को वे म य देश (अब छ ीसगढ़) क शहर रायगढ़ ले
आए, जो िक उड़ीसा क सीमा क दूसरी ओर था।
जीप क यहाँ वेश करते ही भारती को बेचैनी महसूस होने लगी। यह थान जाना-पहचाना-सा था। उसे तिनक संदेह
नह था िक उसका कोई ब त ि य यहाँ रहा करता था। वे सीधे एक छोट-से िशव मंिदर क ओर बढ़। जैसे ही उसने
मंिदर म कदम रखा भारती जान गई िक यह वही मंिदर था िजसे उसने अपनी स यम साधना क दौरान उभर य म
देखा था। जब वह छोटी ब ी थी तब मंिदर क घंट क आवाज उसक व न म बार-बार आती थी। इस मंिदर क घंट
क टनटनाहट िबलकल वैसी ही थी िजसक वह अ य त थी। उसे याद आता ह, ‘‘बचपन से ही मेर व न म दूर कह
एक छोटा-सा मंिदर नजर आता रहा ह। इस िशव मंिदर को देखते ही म जान गई िक पहले जीवनकाल म म यहाँ बचपन
म पूजा करने आया करती थी।’’
स ु क िलए तो उनका अनुभव जीिवत जैसा ही था। ‘‘रायगढ़ क वह सड़क वैसी ही थी। हर कछ वैसा ही था
जैसा उ ह याद था—वही ा ण कॉलोनी, मंिदर, सबकछ। इसक शी बाद ही इस मंिदर का जीण ार िकया गया।
लेिकन उस समय तो सबकछ समय क अंतराल म जस का तस थत था मानो उ ह हमार पुनः आने और पहचाने जाने
का इतजार रहा हो।’’
इस मंिदर म यान करने क बाद स ु अपने दल को मंिदर से बाहर एक पेड़ क पास ले गए। यह एक नाले क
सामने थत था, और हालाँिक यह दूसर कई पेड़ क बीच थत था िफर भी यह उनसे कछ अलग था। यह तब भी
अप रप ऊजा से पंिदत था और आगंतुक ने इसे शी ही पहचान िलया। चार सौ साल क बाद भी यह उन आगंतुक
को समय और थान क एक अ य आयाम म ले जा सकता था। यह पर एक नौजवान ने अपने जीवन क अंितम चंद
साँस ली थ । स ु कहते ह, ‘‘जब िब वा िगरा था तो उसका चेहरा नीचे (मुँह क बल) था। जब हम उस पेड़ क
नजदीक प चे तो उस शरीर क ऊजा तब भी य क य थी। कछ भी बदला नह था।’’ स ु ने बताया िक िब वा
क जीवन क वे अंितम कछ िमनट, िकसी दैवीय कपा क ह त ेप से पूण चेतना म बीते थे। इसीिलए इशा म साँस को
देखना जहर यु -सा लगता ह।’’ स ु ायः कहते ह, ‘‘अ य कह यह ि या काफ शीतल होती ह। इशा म यह
अ यिधक तपनभरी ह। यहाँ बैठकर यिद तुम अपनी साँस पर नजर रखोगे, तो यह तुमम पागलपन-सा उ माद पैदा कर
देगा। ऐसा लगेगा मानो तुम जीवन और मौत क िकनार पर हो। ऐसा इसिलए था, य िक इस आदमी ने अपनी मृ यु क
पूव अपनी समा हो रही साँस पर नजर िटकाए रखी थी। उसक चेतना का ान आसान नह था। यह तब आया जब
उसक साँस लगभग समा हो चुक थी।’’
अपनी वापसी या ा क दौरान यह दल आं देश क िवशाखाप नम शहर से होता आ बढ़ा। यहाँ भी स ु ने कछ
अ वेषण करने का िनणय िलया। भा य पुनः उनक साथ था। हर घुमावदार रा ता, बड़ करीब से मु य माग से जुड़ा
आ था, येक िवषयांतर ल य क िदशा क तरफ जानेवाला रा ता िस आ। स ु ायः भारती से आं देश क
रायलसीमा े क बात करते थे, उसक िवषय म पूछते थे। उ ह इसका नाम मालूम नह था। चूँिक वह रा य क तटीय
े क रहनेवाली थी, इसिलए वह उनक मदद नह कर पाती थी। अब इस दल ने िफर से अपनी योजना से हटने का
िन य िकया। बंगलोर होकर कोयंबतूर लौटने क बदले उ ह ने हदराबाद जाने का िनणय िलया। एक रात वहाँ िबताने
क बाद उ ह ने पुनः या ा आरभ क । चार घंट क बाद वे कड पा नामक छोट से क बे म आ गए। पुनः स ु से
अंत ान क राडार से मागदशन ा करते ए वे सीधे िशव मंिदर प च गए।
मंिदर क नजदीक प चने पर स ु पर मौन उतर आया। इसक भीतर वेश करते ही भारती को िचरप रिचत ऊजा
का उफान महसूस आ। वह तुरत जान गई िक यही वह थान ह जहाँ पर अपने पूव ज म म उसने अपने गु क साथ
समय िबताया था। यह पर स ु ी ा और उनक िश य ने यानिलंग क िलए लूि ंट तैयार िकया था, उ ह ने
भिव य क िश य क जीवन, यहाँ तक िक उन गभ तक को िन त कर िदया था िजनसे उ ह ज म लेना था। इन
याि य ने कछ देर तक यहाँ यान िकया। िजस थान को वे जानते थे, वह कई वष से वीरान पड़ा आ था और हाल
ही उसका जीण ार आ था।
िकसी कारणवश, िवजी को लगा िक उनक मंिदर म रहने क दौरान वह भारती से आँख नह िमला पा रही थी। य िप
भारती इस बात को लेकर हरान थी, िफर भी उसे अपने अंतमन क िकसी कोने म इसक वजह का अहसास था। मंिदर
म उसक हाव-भाव म िविश प रवतन िदखाई पड़ा। ‘‘म जानती थी िक यहाँ मेर और स ु क बीच ब त कछ आ
था, और म अचानक उनक ित र ा मक रवैया महसूस कर रही थी। मुझे आभास था िक मने अपने गु को पहले भी
दा ण दशा और पराजय म देखा था, और म उ ह िफर से असफल नह देखना चाहती थी। मने चंड िन य का भाव
महसूस िकया, और जो कोई भी मेर रा ते म आया, वह तु छ ही लगा। एक खीझ भी मन म थी, मेर वामी, मेर गु ,
स ाट क स ा ने इस ज म म िववाह करने क य सोची?’’
यह तो उसने बाद म महसूस िकया िक पूव ज म म स ु ी ा क साथ मंिदर म यतीत िकया गया समय दोन
क िलए काफ किठनाई भरा था। इस समय उसका ि कोण अपने वामी क िलए लड़ाक होने क सीमा तक
र ा मक था। मंिदर क श शाली ऊजा से उसक मन क गहराई म िछपी यह भयंकरता और यादा उ ेिजत हो गई
थी। इस अवणनीय प रवितत मनोवृि से िवजी सहम गई थी। जब वे मंिदर से बाहर गए, तो आ मकता का उफान
िजस तेजी से उठा था, उतनी ही तेजी से शांत पड़ गया।
इस या ा का व रत भाव भारती क िलए यह था िक ु -सी कछ सुखद आस याँ, जो उसक संबंध और
घटना से जुड़ी थ , उनसे वह पूणतः मु हो गई। इस या ा से उसक और िवजी क बीच का तनाव ब त हद तक
समा हो गया। यह समा मा मनोवै ािनक तर पर ही नह ई थी ब क कछ यादा गहर तर पर ई थी। और
स ु क बेटी ने बतौर सा ी इसे पु िकया था। जब वे एक मंिदर म लंबे यान से बाहर आए तो वह वाभािवक
प से भारती क ओर, उसे ‘अ मा’ संबोिधत करती ई दौड़ी गई। एक सेकड क बाद उसे अपनी गलती समझ म
आई। यह घटना सू म थी। लेिकन इस त य क सा ी थी िक अब दोन ऐसी ऊजा उ सिजत कर रही थ जो पहले से
यादा सामंज यपूण थी।
यह बड़ी य त या ा थी। उ ह ने छह रा य और पाँच हजार िकलोमीटर क िवषम दूरी बारह िदन म पूरी क थी,
कई रात तो गाड़ी चलाते ए यतीत ई थ , और कई रात तो गाड़ी म ही िबतानी पड़ी थ । लेिकन इन याि य क िलए
इस या ा का मह व कछ और ही था। व तुतः वे कई ज म क टढ़-मेढ़ रा त पर चले थे। उनक या ा से उ ह छोट-
छोट वृ ांत िमलते गए िजनसे िमलकर उनक जीवन क एक खूबसूरत कहानी बनती ह। स ु ने यिद इसे ‘कमया ा’
कहा तो इसम कोई आ य क बात नह ह। यह िकसी तीथ से कम नह था। अचेतन मन क गहराई म िछपे कम को
अपने बीते काल क इितहास म जाकर काटने का एक अवसर था।
उनक वापसी या ा क दौरान यानिलंग क थापना का काय अब यादा दूर और किठन नह लग रहा था। स ु
मरण करते ए कहते ह, ‘‘जब हम लौट रह थे, मने िवजी और भारती से ित ा कराई िक अगली पूणभासी (फरवरी
क ) तक, हम सं कारीकरण का काय समा कर लगे। मने कहा िक चाह जो भी पा रवा रक मजबू रयाँ ह , चाह कछ
भी करना पड़, हम इसे पूण कर लगे। वे तैयार हो गई। मने कहा, इतना ही पया नह ह, तु ह सचमुच शपथ लेनी
पड़गी। इसिलए मने उनसे तीन बार जोर-जोर से शपथ कहलवाई। और उ ह ने कहा भी।’’
हालाँिक स ु थक ए थे िफर भी उ ह ने शी ही एक स संग आयोिजत िकया। वह अपने िश य को इस या ा क
प रणाम बताने को उ सुक थे। ‘‘मुझ े तु ह कछ भी नह िदखाना ह, लेिकन इतना तय ह िक हम आपक िलए एक बड़ा
उपहार लाए ह,’’ उ ह ने घोषणा क । उ ह ने कम या ा को इतनी परशािनय से रिहत िन िपत िकया मानो सारा
अ त व ही इसे सफल बनाने क िलए हमारा इतजार कर रहा था। उ ह ने िवजी और भारती को हाल क एक-एक कोने
म बैठकर ि कोण आकार बनाने क िलए कहा। इसक बाद उ ह ने एक सामूिहक यान का नेतृ व िकया, िजसे उनक
साधक ने ब त समय तक एक श शाली यान क प म याद िकया।
उ ह ने बाद म बताया, ‘‘यह एक श शाली अनुभव था। ये दोन लगातार एक क बाद दूसर...जीवन से व रत गित
म गुजरती गई। उनक पूव क जीवन क कई घटनाएँ घिटत ई...म शहर म वेश करने से पहले ही संबंिधत थान को
िबलकल सही-सही बतला देता था, तािक इन दोन क मन म भी तिनक संदेह ना आ सक। उ ह यह न लगे िक वे
इसक क पना मा कर रही ह। म उ ह बता देता था िक ऊजा का पंदन कसा रहगा, जब तुम उस थान पर जाओगी
तो कौन-सा च जा होगा...और उनक अनुभव म भी ठीक यही आ करता; यह उससे अलग हो भी नह सकता
था... चाह वह कड या हो या संबलपुर, हम जहाँ जाना होता था उसक यथाथ जानकारी हम होती थी, य िक य ही
हम उस थान को प चने लगते तो पंदन ऐसे होते ह िक भूतकाल क संबंध तु ह वहाँ ख चकर ले जाते ह। हम ऐसे
कई थान चुन सकते थे जहाँ दोन क भूतकाल जुड़ थे, जहाँ दोन क भूतकाल अलग-अलग जुड़ थे। लेिकन हम उन
थान पर जाना चाहते थे जो आ या मक तौर पर मह वपूण थे। जब हम वहाँ प चे, तो उन दोन क िलए आ या मक
आयाम एक जीता-जागता अनुभव हो गया। इसिलए जब वे इन ि या से गुजर , तो वे सभी संरचनाएँ जो उ ह रोक
ए थ , िहलकर चरमरा गई। इसक बाद सं कारीकरण काफ सरल हो गया। इसक पहले भी कम क परत को खोलने
क ेरणा रहा करती थी; इसक िलए साधना तो थी, लेिकन इससे अित र जोर लग गया।’’
इसिलए ल य पहले कभी क अपे ा यादा करीब महसूस होने लगा। लेिकन परशािनय क संकत पहले से ही
वातावरण म थे। कमया ा क शी बाद भारती अपने प रवार क साथ प गल मनाने िवशाखाप नम चली गई। अपने
िपता क गृह ाम क पु तैनी मकान से लौटते समय उसक एक ननद ने वक ा बाबू नामक एक थानीय संत से िमलने
जाने का सुझाव िदया। यह संत गोदावरी नदी क िकनार रहते थे।
तांि क और मंिदर क ित उसक मन म लंबे समय से चले आ रह अिव ास क कारण भारती उनक साथ नह
जाना चाहती थी। चूँिक उस संत का घर रा ते म ही पड़ता था, इसिलए इनकार करना कछ अिश -सा जान पड़ा।
वक ा बाबू को उस े म पिव आ मा माना जाता था, और लोग उ ह पूव ान क श य से ल ध मानते थे। वह
हर शिनवार क शाम को आगंतुक क एक छोटी सभा आयोिजत करते थे। वह काफ देर तक ाथना करते और उसक
बाद सभा म लोग से िमलते। वह उनक सामने आँख बंद करक और हाथ म चाँदी क बाँसुरी लेकर खड़ हो जाते,
उनक न सुनते और सलाह िदया करते। भारती और उसक ननद क टोली ने उनक साधारण-से घर म वेश िकया।
आगंतुक उनक सामने फश पर एक पं म बैठ गए। येक य को एक न पूछने का मौका िदया जाता था। जब
उसक बारी आई, तो भारती चुप रही। लेिकन उसक एक ननद ने कोहनी से उसे इशारा िकया तो ‘‘मेर गु कछ
थािपत करना चाहते ह,’’ उसने अनमने ढग से कहा। ‘‘आपक इस िवषय म या राय ह? या ऐसा होगा?’’
वहाँ चु पी छाई रही। वक ा बाबू क आँख कछ समय तक बंद रह । त प ा उ ह ने बोलना शु िकया। उ ह ने
कहा, ‘‘स ु कछ थािपत करना चाहते ह, लेिकन यह काम इतनी ज दी नह होगा िजतनी उनक इ छा ह। कछ
किठनाइयाँ आएँगी, कछ िवलंब होगा।’’ वह थोड़ा क, िफर कहना शु िकया, ‘‘तु हार गु कोई सामा य य नह
ह। वह तो सागर से भी िवराट ह। लेिकन वतमान प र थितयाँ ितकल ह और इनका भाव उनक वा य पर पड़गा।’’
उनक अंितम श द पुनरा सन क थे, ‘‘तुम एक िन त रा ते पर चल रही हो, और यह सही ह।’’
उस रात जब भारती िवशाखाप नम प ची, तो उसने तुरत िवजी और स ु को फोन िकया। उ ह िन सािहत न
करने क ित िचंितत होने क बाद भी उसने वक ा बाबू से ई अपनी मुलाकात क िवषय म बतलाया। ‘‘मने स ु
को बताया िक उ ह ने कहा था िक इस ि या म कछ बाधाएँ आएँगी। मने उनसे उनक वा य क ित सावधान रहने
क िलए भी कहा। िवजी ने मुझे बताया िक स ु पहले ही कछ िवलंब क याशा कर रह ह। जब िवजी ने
सं कारीकरण क शी होने क िवषय म पूछा था तो स ु मौन हो गए थे। उसने कहा, ऐसा लगता था उ ह मालूम था
िक कछ गलत हो जाएगा। इससे वह िचंितत हो गई।’’ भारती वक ा बाबू क भिव यवाणी से यथ ही िचंितत नह थी।
स ु थित को िनयं ण म रखे ए-से लगते थे; सं कारीकरण लगभग पूण ही होता लग रहा था, और उसे उ मीद
नह थी िक ऐसी थित म अनायास या गलत हो जाएगा। िफर भी वक ा बाबू ने स ु क िवषय म िजस तरह
स मानपूण बात कही थ , वह उससे हरान थी, जबिक वह कभी उनसे िमले भी नह थे।
इसी बीच स ु िवजी को एक शादी म शािमल होने क िलए बंगलोर ले गए। ‘‘हमारी शादी क बारह वष क दौरान
हम इतने य त रह थे िक मेर र तेदार (मेर अपने िनजी प रवार क अलावा) म कोई भी अभी तक मेरी प नी से नह
िमला था। म कभी भी िकसी पा रवा रक काय म म शािमल होने नह जा पाया था। म िकसी से िमलने भी नह जा सका
य िक हर समय म या ा म होता या िश ण दे रहा होता, एक तरह से पूर नए प रवार का गठन करते ए। इसिलए
मने जाने का िनणय िलया य िक म चाहता था िक प रवार का हर सद य िवजी से िमले। अब तक, कमया ा क
प ा वह पूिणमा क चाँद क तरह चमक रही थी। जो भी उसे उन अंितम स ाह क दौरान देखता, वह इस फक को
प बता सकता था। हर कोई उससे िमला और सभी ने यही कहा, ‘ओह, बड़ी खूबसूरत प नी ह, तु हारी। इसम कोई
ता ुब नह िक तुम हमसे पहले िमलने य नह आए!’ इसी तरह क बात।’’
लेिकन यह प रवा रक समारोह एक अवकाश हण भी था। हालाँिक स ु और िवजी क अलावा िकसी को भी
इसका आभास नह था। ‘‘म जानता था िक वह वयं क महासमािध क िलए तैयारी कर रही थी और फरवरी-माच तक
सं कारीकरण समा होने क बाद, वह जाना (मरना) चाहती थी।’’ उसने इस ओर इशारा भी िकया लेिकन िकसी ने इसे
गंभीरता से नह िलया। वे इस बात का यक न ही नह करते थे। वे कहते थे, ‘‘ या बकवास ह! वह इतनी खूबसूरत और
खुश ह। वह अचानक चली (मर) य जाएगी?’’ दोन (स ु और िवजी) मैसूर म िवजी और स ु क प रवार म
भी गए। (उनक माँ क महा याण सालिगरह उसी महीने अठारह तारीख को थी) ‘‘मने प रवार क दोन प को बता
िदया िक िवजी जाने (मरने) क बात करती रही ह और वह ब त समय तक जीिवत नह रहगी।’’ स ु कहते ह,
‘‘मेर िपता ने इसे यथ क बात समझकर उड़ा िदया जबिक दूसर तो एकदम चकरा से गए।’’
बाइस जनवरी 1997 का िदन भारती को अ छी तरह याद ह। तब तक वह िवशाखाप नम से लौट चुक थी। रात को
दरवाजे क घंटी बजी। दरवाजे पर िवजी थी। उसने कहा िक वह स संग करने क िलए कोयंबतूर आई थी और उसने
भारती क पास िबना बताए प चने का िनणय िलया था। भारती ने उसे अंदर बुलाकर भोजन कराया। िवजी ने बंगलोर से
लाया आ प गल का साद भी उसे िदया। भारती कहती ह, ‘‘मुझे याद ह, उस शाम वह ब त खूबसूरत लग रही थी,
और यह मने उससे कहा भी। वह कछ तनावमु भी लग रही थी। वह अपने आप क ित काफ सहज भी लगी।’’
तेइस जनवरी, पूणमासी का िदन था। स ु ने उ ह बता रखा था िक वह यानिलंग का सं कारीकरण या तो उसी
िदन या अगली पूणमासी को चाहते थे। लेिकन उस िदन भारती को अपनी बेटी क कल का नाटक काय म देखने
जाना था। हालाँिक उसने इस बात क चचा स ु या िवजी से नह क थी, िकतु उसे उस िदन आ म प चने को
लेकर संदेह था। िवजी ने मुझसे यह नह पूछा िक म पूणमासी को आ रही थी या नह और मैने उसे अपनी बेटी क
कल ो ाम म जाने क योजना क िवषय म भी नह बतलाया। बाद म मुझे पछतावा भी आ। यिद उस िदन म आ म
चली गई होती तो संभव ह िक थितयाँ कछ और रही होत ।
उस समय हालाँिक िकसी को नह मालूम था िक तेईस तारीख को या होनेवाला था। शायद उस य को भी नह
िजसने घटना क नाटक य मोड़ को गित दी। उसक िलए, यह तब भी एक योजना ही थी। लेिकन योजनाएँ, जो वह
और कोई और भी जानते थे, बुरी तरह अिव सनीय होती ह।
उस िदन क घटनाएँ बड़ सामा य तरीक से घिटत ई। माँ गंभीरी को याद ह िक िवजी ने उस िदन सुबह ज दी ही
उसे एक डायरी थमाकर उसम स ु क काय म िच हत करने को कहा। इससे उसे कछ अटपटा-सा भी लगा य िक
हमेशा िवजी ही उनक काय म को तय करने क भार म रहती थी और पहले कभी ऐसी डायरी क ज रत भी नह
होती थी। लेिकन इस बात को उसने अपने िदमाग से िनकालकर वयं को रसोई क काय म य त कर िलया। स ु ने
देखा िक िवजी ने उस सुबह ज दी उठकर अपनी साधना कर ली थी। कछ घंट क प ा उसने ान िकया और पुनः
साधना क । इस ि या को उसने कई बार दुहराया। दस बजे उसने उनक साथ भोजन िकया। उस िदन िश क से
मािसक तौर पर िमलने का िदन था और ितभािगय को याद ह िक िवजी ने ऐसे कछ िश क क पैरवी क थी िज ह
आलोचना हतु अलग रखा गया था। इसम कछ खास बात नह थी। िवजी ायः आ म क वयंसेिवय और िश क क
प म वर मुखर रखती थी। राजा कहता ह, ‘‘मुझ े याद ह िक िकसी बात पर म स ु का समथन कर रहा था और
वह इसका तीखा िवरोध कर रही थ ।’’
उस िदन दोपहर बाद साढ़ चार बजे वह अपने घर चली गई। पूणमासी का िवशेष यान गोधूिल बेला म शु हो गया।
वामी देवास वा कहते ह, ‘‘कछ महीन से यह िवजी क साधना का िह सा था िक वह पूणमासी को भोजन तैयार कर
चा रय और चा रिणय को अपने हाथ से परोसा करती थ ।’’ हम स ु क घर क मंिदर म एक हो जाया
करते और वे दोन हम मु ी भर क िबसी-बेले-भात िखलाते थे। उसक बाद दही और चावल परोसा जाता था। लेिकन
पहले यान क ि याएँ चलती थ ।’’
स ु को याद ह िक िवजी यान क दौरान अचानक उठकर चली गई। वह परशान से हो गए, य िक िकसी का भी
इस तरह यान म बाधा डालना उिचत नह माना जाता था।
वह बताते ह, ‘‘मने अपनी आँख बंद कर रखी थ लेिकन मुझ े मालूम था िक वह कब खड़ी ई और चली गई। मुझे
थोड़ी खीझ भी उठी। कोई भी यान क दौरान उठकर जाने का साहस नह करता। एक बार बैठ गए, मतलब बैठ गए।
आठ-दस िमनट म वह उठकर चली गई और पाँच िमनट बाद आकर वह िफर बैठ गई। उसने बाथ म म जाकर अपने
पैर क उगली से लेकर नाक क नथ तक सभी गहने उतारकर वह रख िदए थे। ये ऐसी चीज ह िज ह भारतीय मिहलाएँ
सामा यतया कभी नह हटाती ह। ये ऐसी चीज ह िजनक िवषय म बोला या िलखा नह जाता, लेिकन यिद आपक शरीर
क िवशेष भाग म कोई धातु ह तो आप अपना शरीर आक मक प से याग नह कर सकते। इसिलए जब कभी भी
कोई आ म आता ह, और यिद हम उससे कोई ती साधना कराते ह, तो सबसे पहले हम एक साधारण ताँबे क अँगुठी
उसे पहनने क िलए देते ह। काफ देर क बाद जब सबकछ समा हो गया और म बाथ म गया तो मने िवजी क सार
गहन को वॉश-बेिसन क पास रखे ए देखा। वह उ ह उतारने क बाद आकर बैठ गई थी। जब वह बैठ गई तो उसने
महसूस िकया होगा िक धातु क गहन क कारण उसक रा ते म बाधा आ रही थी। ऊजा का अचानक िव फोट आ
और सात िमनट क अंदर वह चली गई।’’
वामी देवास व को वह य प प से याद ह, ‘‘वह स ु क करसी पर बैठी थी। वह हम सभी क साथ
गायन कर रही थी। अगले ही ण वह एक ओर लुढ़क गई। मुझ े याद ह, पर उसक चेहर पर मुसकान थी।’’
एकबारगी शोर-गुल मच गया। िकसी ने स ु को बताया िक िवजी जाग नह रही थी। णभर म वह उसक िनकट
आ गए। वह लगातार उसक च पर यास करते रह, जबिक दूसर यह सब देख रह थे, उ ह कछ समझ नह आ रहा
था। यह पूण पेण असामा य नह था। लोग पहले भी यान क समय अपने शरीर से अलग हो चुक थे लेिकन ायः वे
लौट आते थे। एक घंट बाद स ु ने ऊपर देखा। उनक आँख भीग चुक थ । ‘‘वह गई’’ उ ह ने कहा। ‘‘वह उसक
अनहद (च ) से िनकल गई।’’
जब भारती कल काय म म थी, तभी यह खबर उसे िमली। ‘‘ य ही मने यह सुना तो मेरा पहला िवचार यही था,
ह भगवा , इस औरत ने वही िकया। मेर मन म उसक िलए िशकायती भाव म शंसा उठी। त प ा गु सा आया, उसे
यह सब अभी य करना था? हम ि या पूरी कसे करगे?’’
स ु क बेटी, जो उस समय सात वष क थी, उस घटना का िच ण बड़ी नाटक य सुबोधता क साथ करती ह।
उसक बोिडग कल म यह संदेश प चा िक उसक माँ अ व थ ह। उसक आ म प चने तक, उसे मालूम हो गया था
िक कछ गड़बड़ ह। ‘‘जब म अंदर आई, लोग चीख िच ा रह थे। मने िपताजी को रोते देखा। मेरी माँ फल क सेज
पर पड़ी ई थी। शाम क तीन बजे थे। म थक ई थी। म अपने डड से िलपट गई। मुझ े याद ह, मने कहा था, ‘मुझे
न द आ रही ह।’ ‘‘वह कहती ह िक जो, आ था वह उसे महसूस हो गया था लेिकन नह , उसका अपना कोई न
नह था। वह कहती ह, ‘‘मेर माता-िपता क आसपास असामा य बात हमेशा होती रहती थ । खैर, म इनक आदी हो
चुक थी।’’
व ा मंच पर अपने िपता क िनकट संपूणता काय म एवं अनेक भाव पंदन काय म क दौरान बैठकर वह लोग
क बदली ई चेतना क दशा म उ ह रोते, लड़खड़ाते या अ य हरकत को देखने क आदी हो चुक थी। वह कहती
ह, ‘‘अगले िदन मने देखा िक लोग िचता से राख िनकाल रह थे। मुझे आ य आ उ ह ह य और लकड़ी ल ढ
म भेद कसे मालूम ह?’’
एक तर पर, उसक माँ ने उसे इसक िलए तैयार कर िदया था। इस घटना क कछ िदन पहले ही जब वे उसे उसक
ऊटी थत बोिडग कल ले जा रह थे, िवजी ने उससे कहा था िक माच म वह उसक ज म िदन पर नह रहगी। बेटी
चुपचाप यह सुन रही थी। उसे याद ह िक स ु उसक इस रवैये पर एतराज करते ए कह रह थे िक वह (िवजी) उसे
अनाव यक िचंता म डाल रही थी। िवजी ने उ र िदया था िक वह दो पूिणमा से यादा अपने शरीर म नह रहगी। यह
वा ालाप स ु को भी याद ह। ‘‘वह बेटी को बता रही थी िक वह माच क पहले ही याण कर जाएगी इसिलए
उसक जगह म आकर उससे िमलूँगा। वे दोन काफ यथाथता क साथ बातचीत कर रह थे। मने कहा, ‘तुम लड़क से
ऐसी बात य कर रही हो? उसे जरा अकला छोड़ दो। तुम जाओगी या नह , तु ह कछ नह पता’, लेिकन उसने कहा,
‘नह , नह , मुझे उसे बताना ह। म िन त प से चली जाऊगी।’ उसने आठ महीने पहले ही घोषणा कर दी थी िक वह
पूिणमा क शाम को चली जाएगी। और इस िदशा म उसने यास करना भी शु कर िदया था। हम ऊटी से इ सीस क
शाम को लौट आए। तेईस क शाम को वह चली गई। यह प रय क कहानी-सी लगती ह। लेिकन यही वा तिवकता
ह।’’
स ु क बेटी िवजी को माँ क ित प छिव से कछ अिधक मानती ह। उसे अपनी माँ ारा उसक बाल को
मदार क पि य और सफद फल से सजाना याद आता ह। वह अपने बाएँ हाथ से उसक छ ी का गृहकाय कर देती
थी (तािक कोई जान न सक िक उसने मेर बदले इसे िकया था।)
पैर स मीिटग क दौरान वह उसक िलए घर म तैयार िकया आ भोजन लेकर आती थी। वह कहती ह, ‘‘मुझे
सचमुच यह नह मालूम था िक वह कौन थी लेिकन वह अंत ान से जान लेती थी िक मुझे या पसंद या नापसंद ह।’’
हाल ही म िवजी क दसव पु यितिथ पर, उसक माँ क पहचान का एक अ य पहलू उसक सामने कट िकया
गया। ‘‘लोग क यु र सुनते ए, मने सोचा, ह भगवान, शायद वह मेरी माँ या मेर िपता क प नी ही नह थ , मने
अचानक महसूस िकया िक वह इससे काफ बढ़कर रह ।’’
ब त-से लोग ने यह महसूस नह िकया ह िक िवजी िकतनी बढ़कर थी। उसक महासमािध से यह बात िबलकल
साफ हो गई। एक सं यासी का कहना ह, ‘‘उसक भावना क पीछ, एक ऐसी ती ता ह िजसका अनुमान हमम से
िकसी को नह था। मने उसे हमेशा ही एक िवचारवान य क प म देखा। मुझे याद ह, उसने मुझ े स ु क एक
गरम ऊनी कमीज दी थी, य िक िबना जाड़ क कपड़ लाए मने आ म म वेश िलया था। मुझ े याद ह, कसे वह
िलिटल हा स िब कट क पैकट स ु क हाथ , जब वह बंगलोर से लौटते थे, भेजा करती थी, लेिकन वह बड़ी
अ थर कित क भी थी। हमम से कई सोचते थे िक अपने पित क ित उसका ेम उसक आ या मक िवकास म
सबसे बड़ी बाधा थी। लेिकन सं कारीकरण काय ारभ होने क बाद उसम प रवतन आ गया था। और अंत म जो उसे
चािहए था, वह िमल गया इससे पहले िक हमम से कोई उसे पा सकता।’’ अ य लोग को उसक हािदकता और
अनुराग क महा मता याद आती ह। ीिनवास कहता ह, ‘‘जब कभी स ु मुझ े डाँटते थे—और ायः ऐसा होता—
वह मेर बचाव क िलए कद पड़ती।’’ ‘‘उसने स ाह भर पहले ही मुझसे महासमािध क िवषय म बात क थी,’’ राजा
कहता ह, ‘‘हम हमेशा इस िवषय पर बात करते थे। म वामी िनमलानंद क आ म भी गया था और उस मुलाकात से
म भावुक हो उठा था। म उसे बताया करता था िक म भी यही ा करना चाहता ।’’ जहाँ एक ओर उसने कभी सोचा
नह था िक वह इतनी ज दी चली जाएगी, वह उसे ब त आ य भी नह था। उन िदन वातावरण अलग-सा था।
स ु कह यादा चंड, और ती तर लगते थे। हम छोट थे। अ यािशत घटना से हम आ य नह होता था। हम
सभी आशा और िव ास से भर ए थे। सबकछ संभव लगता था।’’
िवजी क अं योि या ा म लगभग एक हजार लोग शािमल ए। इस कमकांड क बाद स ु लगभग दस िदन तक
अपने घर म रह। आ म क रहवािसय को याद ह िक वह बरामदे म तेजी से टहलते रहते थे। उनक चेहर से दुःख
झलकता था। यारहव िदन उ ह ने िवशेष आराधना और मृित काय म रखा। लगभग तीन हजार लोग इसम शािमल
ए।
‘‘मेर िलए लोग को यह बताना हमेशा किठन रहा ह िक िवजी या ह।’’ उ ह ने सभा को एक संि िकतु मम पश
संबोधन म बतलाया, ‘‘जब म िवजी कहता तो म उसे न तो अपनी प नी, न एक औरत ब क एक ाणी क प म
संदिभत करता । एक ाणी क प म, वह मेर अनुभव म हमेशा अ ुत रही। लेिकन जैसा िक आप म से कई जानते
ह, वह अ यंत भावक कित क मिहला थी। अपने भोलेपन म वह िबलकल जानती ही नह थी िक लोग क सामने या
बोला जाना चािहए और या रोककर रखना चािहए। उसक भीतर जो भी भावनाएँ होत , थितय क परवाह िकए िबना
वह उ ह य कर डालती।’’
एक पित क नुकसान ने गु क गव से संघष िकया। ‘‘यह ब का खेल नह ह,’’ उ ह ने सभा को याद िदलाया।
‘‘स म योिगय को भी इस ा क िलए संघष करते देखा गया ह जैसा िक आप म से कछ लोग अब वामी
िनमलानंद को जानते ह, अपना जीवन आ या मक साधना म िबताया। अपनी महासमािध क अंितम कछ िदन क दौरान
उ ह इस िवषय म संदेह था िक ऐसा होगा या नह और जब अंितम बार हम उनसे िमलने गए तो उ ह ने यही बात मुझसे
य क । दैवीय कपा से उ ह ने महासमािध ा क । एक ानी भी िजसने अपना सारा जीवन आ या मक साधना म
िबताया होता, उसे इस उपल ध क िलए संघष करना पड़ता। इस शरीर से, िबना इसे क या चोट प चाए जीवन को
इससे िनकाल लेने म कछ और चीज क आव यकता होती ह। हम ऊजा क चंड मा ा उ प करनी पड़ती ह
िजसक िलए सघन साधना क ज रत पड़ती ह। िवजी को इसे हािसल करने क तरक ब मालूम थी। लेिकन इस सोपान
म, हमने कभी क पना भी नह क थी िक िबना मेरी सहायता क वह आव यक ऊजा उ प कर पाएगी। िजस त परता
क साथ उसने यह उपल ध हािसल क ह, वह उसक ेम (शायद यही एक चीज जो उसक पास थी) क कारण संभव
ई ह। जब म घटना क तमाम ंखला पर नजर डालता , तो यह िबलकल साफ ह िक इसम दैवीय श का
सीधा ह त ेप था। लगता ह शंभो (िजनक िलए उसका दय तड़प रहा था।) उसका हाथ पकड़कर अपने साथ ले गए।
कवल ेम क कारण ही उसने इसे संभव कर िदखाया।’’
उनका दद पंदनशील था। लेिकन वह यह बताने का अवसर नह खोना चाहते थे िक िवजी क महासमािध कवल
एक य क िवजय नह थी ब क कई लोग क िलए ेरणा थी। ‘‘सभी आ या मक साधक क िलए महासमािध
अंितम ल य ह, उनक साधना क पराका ा, ई र से एकाकार होने का अवसर। जब कभी भी आपको अवसर िमलता
ह, तो लोग जान ल िक इस तरह क अवसर इनसान को िमलते ह, िक ज म और मृ यु क ि या पर आिधप य हमार
हाथ म ही ह। सामा यतः लोग मानते ह िक ये सभी बात ाचीन ािनय और ऋिषय क साथ समा हो गई। लेिकन
आ या मकता अपनी उ तम संभावना म अब भी जीिवत ह। आम लोग इस िन कष पर प चे ह िक असली संत का
युग समा हो गया। लेिकन वतमान थित इस बात का प सा य ह िक यह युग समा नह आ ह। और यह
कभी भी समा नह होगा। मेरी यह इ छा नह थी िक इस अव था पर कोई भी शरीर छोड़कर जाए। लेिकन वह इसक
िलए लालाियत थी और वह महामं ‘शंभो’ म समा गई। मेरा या िकसी और का यह पूछना गलत ह िक यह सही ह या
गलत। ‘‘उ ह ने शांत होकर आगे कहा, ‘म इतना बड़ा नह िक उससे न कर सक।’’
उ ह ने समपण को एक साधक क िलए ती तम एवं सवािधक बु म ापूण रा ता बतलाया ह। ालु शेष दुिनया
को मूख का एक समूह नजर आते ह, लेिकन सबसे बु मान लोग हमेशा ालु ही होते ह। यह एक अलग तरह
क बु मानी ह िजसे तकशील मन कभी समझ ही नह सकते।’’
यह प था िक जहाँ एक ओर स ु को मालूम था िक िवजी अपना शरीर यागनेवाली थी, वह दूसरी ओर वह
यह नह जानते थे िक ऐसा इतनी ज दी होगा। वह कहते ह, ‘‘वह जाने को िलए ढ़ संक पत थी। म उसे हमेशा
बताता था िक बारह वष बाद अंततः हमारा अपना घर हो गया, एक बड़ी होती ई ब ी, हमार जीवन म कछ थरता
थी। लेिकन वह जाने पर ही अड़ी थी। और म जानता था िक म उसे रोक नह पाता। आिखर क कछ महीने म उसक
साँस ही ‘शंभो’ हो गई थी। लेिकन मने सोचा शायद वह एक महीना बाद जाएगी। मुझ े िव ास था िक तब तक
सं कारीकरण हो चुका होगा।’’
उ ह याद ह िक उसक महासमािध क कछ िदन पहले जब वे ऊटी से लौट रह थे, िवजी, जो हमेशा क तरह ‘शंभो’
जप रही थी, अचानक रोने लगी। उसने उनका हाथ पकड़ िलया और कार रोकने क िलए कहा। जब उ ह ने कार रोक
दी तो उसने कहा िक उसक जीवन म वही एक शंभो थे, िज ह वह जानती थी, और उनसे अपने सपने को सच करने म
मदद क गुजा रश क । स ु ने ऊपरी तौर पर जवाब िदया िक भले ही वह शंभो को नह जानती थी, लेिकन शंभो
िन त प से उसे जानते थे। ‘‘तुम जो कर रह हो, यिद तुम उसक ित िन ावान रहो तो िन त ही तु ह उसका
अनुभव होगा और तुम उसे मेर प से पर भी जान लोगे।’’ उ ह ने बताया िक कोई भी उसक ल य को नकार नह
सकता था। यह सुनकर उसे राहत सी िमली। ऊटी से आने क बाद वह अपने अ यास म यादा उ साहपूवक जुट गई।
लेिकन शायद िवजी क महासमािध लेने क िन य क पीछ एक और उ े य था, अपने पित से यादा जीिवत रहने
का डर। भारती कहती ह, ‘‘वह इस बात से भयभीत थी िक वह बयालीस वष क उ म मर जाएँग।े मने उसे यह कहते
ए सुना था िक वह उनक बाद जीना नह चाहती थी।’’
िकसी को यह आ य ए िबना नह रह सकता िक स ु क तर का योगी िवजी क इतनी ज दी चले जाने क ित
अनिभ था। वह कहते ह, ‘‘मुझ े िकसी बाधा क आशंका तो थी, लेिकन मने सोचा िक यह सामािजक बाधा होगी।’’
वह इस बात क ओर इशारा करते ह िक सिदय से सामािजक िनयम-कायदे यानिलंग क थापना क राह म पारप रक
बाधा रह ह। ‘‘इसिलए मने अपने आ म से जुड़ सभी लोग को कह िकसी तरह क झंझट म न पड़ने क िलए सावधान
रहने, िकसी का िवरोध न करने क प चेतावनी दे रखी थी, य िक म जानता था िक कछ बाधा आने को ह। मने
सोचा िक मने अपने आसपास क थितय को िनयंि त कर रखा था...य िप िकसी तर से म जानता था िक बाधा आ
रही थी। मेर आसपास क प र थितय , और उस समय मुझसे जो बात यािशत थ , उनसे मेरा सचेत बोध बािधत हो
गया था।’’ इसक अलावा, वह कहते ह, ‘‘िवजी एक सधी ई योगी नह थी, और उसका जाना उतना पूव िनधा रत नह
था िजतना यह संभव रहा होता। य िप उसका जाना उसक सचेत इ छा थी िकतु जीवन ऊजा पर उसका ित ण
िनयं ण नह था। लेिकन उसक जाने क अंितम कछ िमनट म वह सतक थी और वयं का िवसजन गहने क प म
पड़ी ई सभी धातु को हटाकर कर िदया। जब दैव ता उतरती ह तो आप उसे हण ही करते ह।’’
भले ही उसक पित को घटना क म का सुराग न िमला हो, लेिकन ऐसा लगता ह िक ई र ने उसक एकांगी
अिभलाषा क साथ साठगाँठ कर ली थी। स ु कहते ह, ‘‘उस िदन िजस तरह ऊजाएँ इस ह पर गितमान थ , उस
नज रए से यह एक िवशेष िदन था। उस िदन ह का अ यिधक दुलभ पं ब जमावड़ा था। आकाश म णभर क
िलए पूण ष कोणीय तार क अिभ य ई थी। यह रचना ठीक उसी िदन आती ह, जहाँ तीन वा ह गु , यूरनस
और व ण पर पर संयु हो जाते ह। ऐसा योग दो सौ साल म एक बार िनिमत होता ह। 23 जनवरी को ह का यह
जमावड़ा कभ क पहली िड ी पर आ, िजसम सूय भी स मिलत हो गया और उन सबक िवपरीत िदशा म पूिणमा का
चं मा आ गया। ह-न क इस रचना को लंबे समय से चले आ रह कभ क युग का उदय होने क तीका मक
ितिनिध व क प म भी देखा जा सकता ह। यह थैपूसम भी ह, एक ऐसा िदन, िजसे भूतकाल म ब त से संत ने वयं
अपनी महासमािध लेने क िलए चुना ह।’’
स ु क वाणी म अपने सवािधक असंभािवत िश य क ित परम हष का पुट िमलता ह, ‘‘बतौर पित म सदमे और
दुःख म था। बारह वष तक वह मेरी परछाई बनकर रही। एक ण भी ऐसा नह होता था जब वह मुझसे अलग रहा
करती। लेिकन बतौर गु , मुझ े गव था। उसने अपनी मह वाकां ा अपनी भावना क सघनता क मा यम से फलीभूत
कर ली। वह अपने ेम म समा गई और अपने शरीर को कोई हािन प चाए िबना वह चली गई, अपने शरीर को पुराने
व क तरह उसने छोड़ िदया। जब कोई य पूण चेतना म शरीर को िबना नुकसान प चाए ाण यागता ह, वह
य सही अथ म मृ यु को ा होता ह। अब वह ाणी प म अ त वान नह ह। इसका अथ ह वह सामा य प
से िवलीन हो गई ह। खेल ख म हो गया—पूरी तरह।’’ एक िवशेष मह वपूण बात यह थी िक िवजी ने कोई त या तप
अपने जाने से पूव नह िकया। स ु वीकार करते ह, ‘‘भले ही मुझे अपना ही शरीर यागना होता तो म इसक िलए
तैयारी करता। म कम-से-कम चौबीस घंट पहले से अ -जल याग देता। लेिकन उसने यह काय िबना यास क, िबना
िकसी तैयारी क कर िदखाया। मने उसे साधना क इतनी सरल ि या दान क , लेिकन वह इसे इतनी ऊचाईय तक ले
गई। यह ब त दुलभ काय ह।’’
एक तैतीस वष या, पूणतः व थ मिहला का यासहीन शरीर याग, ब तेर क िलए हरानी क बात थी। लेिकन एक
वा तिवक दुःख भी था। अ पभाषी ीिनवास उनक याद म ांजिल देते ए कहता ह, ‘‘ ेम क असामा य मा ा क
मतावान िवजी एक सामा य मिहला थी।’’ वह उन कई लोग म एक ह, जो उसे याद करते ह। माँ कपूरी कहती ह,
‘‘वह सवािधक ाकितक व वाभािवक मिहला थी। शु म उसक जाने पर मुझे ोध आया। मुझ े आ य आ िक
स ु ने उसे रोका य नह । अब मुझ े महसूस होता ह िक शायद उसक महासमािध संभवतः सव क समय पर ई।
उसे आगे किठनाइय का सामना करना पड़ सकता था, य िक स ु क ि याकलाप का पैमाना और मह व काय बढ़
सकता था। लेिकन हमार सभी क िलए उसक जाने से एक अपूरणीय ित ई ह।’’ राजा कहता ह, ‘‘अब मुझे लगता ह
िक म एक महा संगठन का िह सा , लेिकन उसने मुझे यह महसूस कराया िक म एक प रवार का िह सा था।’’
िवजी क अ थयाँ उसक घर से सट मंिदर म दफना दी गई। ब त से साधक अभी भी इस छोट से सामा य थल को
अपना शांित का समय यतीत करने क िलए चुनते ह। एक आ म रहवासी होडा कहता ह, ‘‘एक गुण ह जो िवशेष
होता ह। म उसे जानता ही नह था। लेिकन जब म वहाँ बैठता तो मुझ े महसूस होता ह िक म उसे जानता । वहाँ एक
भ ता ह, कछ न और शांित का महा भाव ह।’’
इस बात को वयं स ु ने स यािपत िकया ह। हालाँिक महासमािध क धारणा का अथ व तुतः यह नह ह िक
य अवशेषहीन हो जाता ह। वह कहते ह िक िकसी य क अ छाइय को भुलाया नह जा सकता। इस य क
िलए अब शारी रक दासता नह रही। उसका नाम िवजया कमारी ह िजसका अथ ह, ‘‘िवजय क बेटी—िकसी भी ाणी
क संभवत, उ तम िवजय उसी क ह। लेिकन भले ही फल न रह, लेिकन िफर भी महक बनी रह सकती ह। और इस
फल क महक तो सदा क िलए ह। यह कभी समा नह होगी। भौितक महक समा हो सकती ह, लेिकन ऊजा क
महक िजसक हम बात कर रह ह, कभी भी समा नह हो सकती। आ म क उस कोने म पूरी तरह अलग ऊजा
पोिषत ह। यह अ यिधक नम, अ यिधक सू म, अ यिधक सुखकारी और खूबसूरत ह। यिद आप कछ ही देर क िलए
वहाँ बैठ, तो आप एक तरह का शरीरहीन आभास पा सकते ह। वह थान आधारभूत प से अनहद ह। यह आपको
धीर-धीर सू म कर सकता ह।’’
एक अ य अवसर पर, जब हम उनक घर क चार ओर िनिमत आ म म घूम रह थे, तभी उ ह ने कहा, ‘‘उस
मिहला को आ या मक जीवन क िवषय म कछ भी पता नह था। उसक पास बड़ी उपल धयाँ भी नह थ । वह ज रत
से यादा सामा य थी। जीवनभर वह समपण और उलझन, उलझन और समपण क झ क से गुजरती रही। जब कछ देर
क िलए उसने समपण क जादू पर अपनी पकड़ बनाई तो इसे इस तरह पूण िकया।’’
उ ह ने य ही फल क एक कली उसक समािध क ओर उछाल दी। ‘‘उसने मेरा घर तो खाली कर िदया, लेिकन
हमार िदल भर िदए।’’

‘ वे छा से फल यागना प थर क आघात कराना ह’
समयाभाव, संकट, समा
िव जी क महासमािध एक िविच िवडबना ह—उसक पित क िलए दुःख और उसक गु क िलए िवजय। और
भा य-च से, गु और जीवन साथी एक ही आदमी थे। गु क िलए भी यह अिमि त िवजय नह थी य िक जहाँ एक
ओर िवजी एक आदश िश य क तरह चली गई, वह दूसरी ओर इस घटना का समय इससे अिधक असुिवधाजनक नह
हो सकता था। उसक य गत सपने क ा , उससे बड़ ल य क िलए बाधक िस ई। यानिलंग क थापना म
अड़चन आ चुक थी, जो उ साह या किटब ता क अभाव क कारण नह थी ब क इनक अिधकता क कारण थी,
सामािजक अप रप ता नह ब क आ या मक प रप ता का अितरक इसक वजह थी। फल याशा से पूव ही पक
चुका था और उसक िगर जाने क अलावा दूसरा िवक प भी नह रह गया था।
स ु क िलए इसका अिभ ाय य गत हािन क गहर भाव को एक ओर रखकर, कई ज म क ल य- ा पर
पुनः जुटना था। उ ह ने कहा, ‘‘िवजी क महासमािध ा करते ही हम िफर जहाँ क तहाँ आ गए। प ानवे ितशत
काय संप हो गया था। एक स ाह म हम थोड़ा और काम करते, तो हम सं कारीकरण पूण कर लेत।े लेिकन अब
हम अटक गए।’’ एक और घटक था, िजसक कारण यह कमी और बढ़-चढ़कर सामने आई। समय िनकलता जा रहा
था। उनतालीसव वष म स ु को मालूम था िक उ ह और यादा नह जीना था।
उ ह ने इस संभावना क िलए अपनी बेटी को पहले ही तैयार करना शु कर िदया था। उसक शांित, वीकित और
समझ क अपवादजनक तर से वयं का भौचका रह जाना उ ह याद ह। ‘‘उसक माँ गुजर ही गई थी। म उसे घर
वापस ले आया और कछ िदन तक अपने साथ रखा। जब तीन या चार िदन बाद म उसे अपने साथ वापस कल ले
जा रहा था, मने देखा िक वह सहज थी। मने सोचा, जो आ ह, शायद उसे इसक समझ नह थी। शायद उसने इस
बात को हण नह िकया था। मने उससे पूछा, ‘ या यह अ छा ह िक िवजी चली गई?’
‘‘उसने कहा, ‘म जानती वह चली गई। उसने मुझ े बताया था िक वह चली जाएगी।’
‘‘मने कहा, ‘ या तुम जानती हो िक तुम उसे दुबारा नह देख पाओगी?’
‘‘उसने कहा, ‘ज गी, या मर ए लोग वापस आते ह? म जानती वह वापस नह आएँगी।’
‘‘तब मने पूछा, ‘ या तुम ठीक हो?’
‘‘उसने कहा, ‘म ठीक ।’
‘‘मने कहा, ‘अगर म भी चला जाऊ, तो ठीक ह?’
‘‘उसने कहा, ‘मेर बड़ होने तक ठहर जाओ, िफर चले जाना।’
‘तभी मने सोचा, ‘अ छा, मेर पास कोई सचमुच खूबसूरत िनिध ह।’’’
अगले डढ़ साल म, भारती ने अपने गु को किठन दौर से गुजरते देखा। वह कहती ह, ‘‘जो संघष उ ह ने िकया म
उसे भूल नह सकती।’’ सबसे बड़ी ज रत िवजी का थानाप ा करने क थी। स ु ने कई साधक पर योग
िकए, लेिकन कछ हािसल नह आ। भारती को मरण आता ह, ‘‘उ ह ने कई लोग को आजमाया, लेिकन वैसा कोई
नह था। म यह भी जानती थी। म इसे महसूस कर सकती थी।’’
तभी स ु को एक कठोर िनणय लेना पड़ा। िजन तैया रय से िवजी गुजरी थी, िकसी तीसर य को उन से
गुजारने का समय नह था।
उनक पास इस भूिमका को वयं िनभाने क अलावा कोई और चारा नह था। वह कहते ह, ‘‘समय कम था। मुझसे
जुड़ ए ब त से लोग उ ऊजा क दशा म थे, लेिकन वह ऊजा क समुिचत मानिसक प रप ता का आधार न था।
सं कारीकरण क िलए हम तरल ऊजा क आव यकता थी। इससे आप या ह, इसक िनधा रत सीमाएँ समा हो जाती
ह। यिद आप िकसी य क ऊजा को तरल कर सकते ह, तो वह परमाणु बम हो जाता ह। लेिकन य ही आप यह
करते ह, तो लोग अप रप हरकत करने लग जाते ह। वे अपनी गोपनीयता क ित र ा मक हो जाते ह, वे अपने
य व क पहलु को संरि त करना चाहते ह। यिद इसे कारगर करना ह तो आपको अपने आपसे और अपनी
िवचार ि या क बीच दूरी बनाकर रखनी होती ह। मेर साथ कई अ छ लोग थे (ऊजा क अनुसार) लेिकन उनक
िदमाग समुिचत प से प रप नह थे। अब भी वही बात ह।’’
िवजी क भूिमका िनभाने का ता पय था उसक ऊजा शरीर को अपने शरीर म पुनिनिमत करना। यह पुनिनमाण इतना
िव तृत और पूण था िक आनेवाले महीन म कई लोग ने िवजी क उप थित आ म क आसपास महसूस क थी।
भारती इस बात को पु करते ए कहती ह, ‘‘कई बार मुझ े ऐसा लगा िक मानो िवजी हमार साथ थी। हम उसक शरीर
और ऊजा क िचरप रिचत महक सूंघ रह थे। लेिकन इसम ऊजा क चंड मा ा क आव यकता थी, और ऐसा तब
तक नह िकया जाता जब तक यह पूरी तरह आव यक न हो। स ु क चरण म बैठकर, कछ भी असंभव नह लगता
था।’’
लेिकन ि या म हजाना भुगतना पड़ा। पाँच घंट क सं कारीकरण ि या क बाद स ु ऊजाहीन और िशिथल
होकर बाहर आते थे। एक य क ऊजा से दो लोग क शरीर को सँभालने से उनक संसाधन र हो जाते थे।
‘‘ यारह महीने क समय म मने प ीस से तीस वष का समय िबताया।’’ वह कहते ह, ‘‘म बूढ़ा और बीमार हो गया।
हर तरह क भयंकर बीमा रयाँ मेर शरीर म थ । जब अमे रका म मेरा खून जाँच क िलये िलया गया, तो उ ह िव ास ही
न आ...प रणाम ऐसे थे मानो मेर शरीर म भयंकर बीमा रयाँ थ ।’’
जब भारती क गु ि या समा करने क िलए अवरोध से आगे बढ़ तो भारती को किठनतम य गत ि या
णाली से गुजरना पड़ा। ‘‘मने बड़ी साधना क । हम नह चाहते थे िक हमार ारा िनिमत ऊजा ीण हो जाए। साथ
ही, म उनका िगरता आ वा य देख रही थी। यह िगरावट म देख रही थी। वह कमजोर और अ म हो जाएँग।े उनक
गुद फल हो रह थे, उनका यकत ित त हो रहा था। उनक शरीर पर गाँठ हो गई थ , उनका खून खराब हो चुका
था।’’
उस समय ली गई स ु क तसवीर से यह साफ नजर आता ह िक वह अचानक बूढ़ हो गए। ‘‘उन अठारह महीन
म मने अपने जीवन क 20 से 25 साल खो िदए। आपको िव ास ही न होगा। इस समय म िबलकल ठीक होता,
लेिकन यिद आप मुझ े एक घंट बाद देखते, म पूरी तरह िचिक सीय तौर पर बीमार होता। कवल थका आ भर नह ।
िचिक सीय तौर पर बीमार। आप मेर खून का नमूना ले सकते थे और देखते िक सबकछ गड़बड़ था। वे बताते िक मुझे
कसर था। पं ह िदन क बाद वे जाँच करक पाते िक सबकछ ठीक-ठाक था। यिद एक ि या क िलए म यहाँ बैठता
तो मेर शरीर म बड़ी-बड़ी गाँठ आ जात । अगले तीन घंट बाद आप देखते िक वे समा हो जात । वह बड़ा
अिव सनीय था। आपसे इस बात का यक न करने क अपे ा नह ह।’’
इन शारी रक णता से उ ह एक बात संभाले ए थी, वह यह िक सं कारीकरण क पूण होते ही वह शरीर याग
दगे। उनक िश य क िलए यह तनावपूण व किठन दौर था। उ ह मालूम था िक कोई बड़ा काय करने का यास िकया
जा रहा था। लेिकन उ ह यह भी मालूम था िक उनका अपने गु क साथ समय ब त कम था। उनक आँख क सामने
जब उनक शारी रक दशा तेजी से िबगड़ती तो वे देखते, चुप और अ भावी रहते। भारती कहती ह, ‘‘गड़बड़ी उनक
िदन- ितिदन क काय, उनक हरकत और पूरी तरह से शरीर पर नजर आती थी। कई बार असहाय-सी म उनक पास
खड़ी रहती थी। कछ स क बाद जब म उ ह शारी रक प से टटी ई हालत म पाती तो मुझ े करने को कछ सूझता ही
नह था। कभी-कभी काफ किठन प र थितय म मुझे लगता िक यानिलंग को पूण करने क िलए स ु को जाना पड़
सकता ह। लेिकन ऐसे िवचार ब त देर तक नह िटकते थे। मेर अंदर कह से वह आवाज आती थी िक हमार साथ
स ु और यानिलंग दोन रहगे।’’
लेिकन अगले अठारह माह म कछ अपे ाकत मन स और यादा याकल कर देनेवाली बात से आ म क रहवासी
और कोयंबतूर क िनवािसय का यान इसी ओर लगा रहनेवाला था—कछ ऐसा िजसने इशा फाउडशन क न व तक
िहलाकर रख दी। िवजी क जाने क बाद एक और संकट आ गया, लेिकन इस समय इसक उ मीद िकसी को नह थी।
ब तीि त सामािजक िवरोध जो िक िजतना उपेि त था, उससे कह अिधक बबर और उ था। महीन पहले वकया
बाबू ने इसक भिव यवाणी कर दी थी। स ु को भी इसका आभास था। ‘‘मुझ े अंत ानवश यह मालूम था िक यह
होनेवाला था, लेिकन मुझ े यह नह मालूम था िक यह कब और कहाँ से शु होगा।’’
िवजी क महासमािध क समय उ ह ने संभािवत सम या क ओर इशारा िकया था। उ ह ने अपने साधक को बताया
था, ‘‘यहाँ हम अलग वातावरण म रह रह ह। हमार िलए यह थित काफ वाभािवक ह। लेिकन बाहर समाज म इस
संपूण घटना पर ब त से संदेह और शक खड़ ह गे।’’
वह सही कह रह थे। इसक शु आत तब ई जब एक साधक क चाचा, िकराये क गुंड-बदमाश क साथ िमलकर
आ म पर टट पड़ और उस युवक को जबरद ती घर ले गए। यह कहानी बड़ी िदलच प ह; वह साधक आ म म
रहना चाहता था; उसका प रवार इसक िखलाफ था। यह अपने आप म कोई नई घटना नह थी। नए साधक एवं दी ा
लेनेवाल क प रवार ायः िवरोध म ही रहते थे। इसम एक कोयंबतूर सोसाइटी का भी हाथ था। स ु क तेजी से
बढ़ती िश य क सं या क ित संदेह था। स ु ने उस प रवार को साधक (एक 32 वष य युवक) से िवचार िवमश
कर उसक सहमित से उसे घर ले जाने क िलए कहा था। लेिकन जब दलील और धमिकय से फक न पड़ा, तो उस
प रवार ने ताकत का सहारा लेने का िन य िकया।
बाद म उस साधक ने कट िकया िक कई महीन तक उसे नशीली दवाएँ देकर रखा गया और उसे कछ पता नह था
िक उसक आसपास या हो रहा था। जब पुनः आ म म रहने क िलए उस साधक का िन य टस से मस न आ तो
प रवार ने आ मक रवैया अपनाने का िनणय ले िलया। उसक चाचा ने एक भावशाली प रवार क मदद से च र
ह या अिभयान शु कर िदया। अपनी बेटी क अचानक मौत से हरान और सदमे म िवजी क माता-िपता भी उस य
क भाव आ गए। घटनाएँ ती म म जारी रह । पुिलस म स ु क िखलाफ अपनी प नी क ह या करने क
िशकायत दज कराई गई। (िवडबना क बात ह िक उसक मौत को आठ महीने बीत चुक थे।) दहज ताड़ना क आरोप
लगाए गए। अिभयान ती और ठीक-ठीक िनशाने पर था। इस लड़ाई म मीिडया भी कद पड़ा, एक तिमल पि का ने
इस आंदोलन का नेतृ व िकया।
इस उप व क दौरान स ु िवदेश म थे। लेिकन उ ह तिनक संदेह नह था िक इशा क इितहास का सबसे काला
समय आ गया था। िपछले दशक क सावधानी से िनिमत क गई याित, लगता था, कछ ही स ाह म तहस-नहस हो
जाएगी। वह कहते ह िक य गत तौर पर उ ह बदनामी क कतई िचंता नह थी। लेिकन िफर भी दहज ह या क
आरोप से उनक जैसा अ यिधक वतं य , िजसे अपनी प नी क काल-कविलत हो जाने का गम था, भी अछता न
रहा सका। लेिकन उनका यान एक ही िबंद ु पर कि त रहता था। और वह जानते थे िक यानिलंग क िलए इससे यादा
बुरा समय और कभी नह हो सकता था। ‘‘हम परशानी क आशंका तो थी, लेिकन यह हर तरह से, हर िदशा से आ
रही थी। हमने एक साल या अठारह महीने का समय ितिदन क संकट बंधन म िबताया। जब म संकट कहता तो
मेरा मतलब यह ह िक इन लोग ने ऐसी थित िनिमत कर दी थी िजससे हमारा अ त व ही दाँव पर लगा आ था।’’
कदम उठाने का समय आ गया था। स ु कहते ह िक वह आ म लौट आए और उस काय म जुट गए, िजसे
करने क िलए वह ायः अिन छक रहते ह। ‘‘मने उ ह िनबटाया’’, वह बड़ रह या मक तरीक से कहते ह। एक ऐसा
योगी िजसक ि यािविध म अ य और गु दोन स मिलत ह, िकसी को िबलकल पता नह िक इसका या मतलब
ह। लेिकन इससे एक संकत तो िमलता ही ह िक उ ह ने इस ष यं म इस तरह ह त ेप िकया, िजसे वह सामा य
प र थितय म कभी न अपनाते। थोड़ समय म ही िनिहत वाथ (जो रोष भड़काने और बदला लेने म लगे थे।) वाल
को अपने वयं क जीवन म अ यािशत िवनाशकारी थितय का सामना करना पड़ा। िशकायत वापस ले ली गई और
यह अिभयान अपनी वाभािवक मौत मर गया। ‘‘और आज दस वष से कम समय म’’ सदगु अपनी आँख म खुशी
क चमक िलए ए कहते ह, ‘‘हम तिमलनाड क धड़कन ह। हमार काय क एका ता इसी रा य म ह, और जो िनिहत
वाथ थे, वे शांत पड़ गए ह।’’
जहाँ एक ओर स ु को मानव मनोवृि य का गूढ़ ान ह, वह दूसरी ओर उ ह कछ ऐसे बा यकारी क य पर
आ य होता ह िजसक मता मानव जाित म ह। वह कहते ह, ‘‘ई या एक ऐसा भाव ह, िजसे म कभी नह समझ
सका। यह एक ऐसा भाव ह िजसे मने कई ज म क दौरान ब त यादा आकिषत िकया ह।’’ उनक आ मक ण का
भाव और दूसर क धारणा क परवाह न करने क भाव क कारण ही लोग को भय और ोध आता ह। लेिकन बड़
करीब से इस भाव का सामना करने क बाद, वह कहते ह िक इसका उनक िलए कोई अिभ ाय नह ह। ‘‘यह (ई या)
मुझ े अंतरग नह ह। म कभी नह समझ पाया िक लोग ई या को अपने जीवन म इतना बड़ा थान कसे दे देत े ह िक वे
इसक कारण िकसी क िवनाश पर उतर आएँ।’’
इशा आ या मक ि या म कछ भी उबाऊ-सा नह ह और वह जानते ह िक इससे उ ह अ यिधक खतरा हो सकता
ह जो स ाहांत म अपे ाकत िव ामवाली आ या मकता को ाथिमकता देते ह। ‘‘म सां वना देनेवाले यवसाय से नह
जुड़ा िजसे हमेशा दुिनया म शंसा िमलती ह। जब आप जीवन म आधारभूत पांतरण क बात करते ह, तो दुिनया म
भारी ितरोध िमलता ह। यिद आप कठोर आ या मकता का पालन करना चाहते ह तो यह ब त किठन ह, य िक यह
मनु य म आमूलचूल पांतरण पर आधा रत ह। यह आ या मकता ऐसे लोग क िलए नह ह जो कवल अ छा महसूस
करना चाहते ह, यह तो ऐसे लोग क िलए ह जो सचमुच एक आयाम से दूसर आयाम म जाने क इ छा रखते ह।
इसिलए सामा यतः यह लोकि य नह होती। ब त से महा गु ने बड़ आंदोलन इसीिलए नह िकए य िक जब
आप एक िवशाल आंदोलन शु करते ह, तो आपको समझौता करना पड़ता ह। जब िशव यहाँ थे, या जब अग य यहाँ
थे, तो इस तरह का आ या मक पांतरण बड़ पैमाने पर होता था। लेिकन िपछले कछ हजार वष म ऐसी कठोर
आ या मक ि या ने गित नह पकड़ी। िकसी तरह समपण, चालाक और कपा क बड़ी मा ा से हमने इतना हािसल
िकया ह। लेिकन यह ब त दुलभ ह।’’
इशा क वयंसेिवय क िलए यह खासतौर पर कसौटी पर कसे जाने का समय था। उनम से कई ने तो माता-िपता क
इ छा को नकार िदया और इस आंदोलन से पूणकािलक तौर पर जुड़ने क िलए पा रवा रक दािय व से प ा झाड़
िलया। लेिकन अब उनक पसंद का सावजिनक जाँच परी ण कराया जा रहा ह। पंथवाद, दुराचारी जीवनशैली और
नशीली चीज क योग क आरोप लगाए जा रह ह। राजा को मरण ह, ‘‘तभी हमने आ ामक होने का फसला िलया।
अभी तक तो हमने साधना और आ या मक िवकास पर यान कि त िकया था। अब हमने लोग तक प चकर यह
बताने क िलए िक हमार पास या ह, सम वत यास करने का फसला िकया। हम लोग क संपक म आना चाहते थे,
हम या थे, हमार पास उनक िलए या ह, हम या कर सकते थे, यह उ ह बताना चाहते थे। इसक िवक प को जड़
से समा िकया जाना था।’’
राजा और उसक इशा िश क क िलए यह णाली पहले क अपे ा यादा मसा य थी। येक िश क क ारा
तीन घंट ित क ा क दर से तीन क ाएँ संप क जाती थ । संपूण तिमलनाड म ित साठ िकलोमीटर म एक क ा
संप क जाती थी। येक काय म तेरह िदन का होता था। ‘‘कछ रात क दौरान हम मा दो या तीन घंट ही सोने
को िमलता था। और जब एक क बाद दूसर म म चार काय म होते थे, तो म दो-दो महीने घर नह आता था।’’
काय म म भाग लेनेवाल क संदेह का सामना करना सरल नह था। पचास लोग क क ा म दो लोग ऐसे होते
थे जो न िकया करते थे। राजा कहता ह, ‘‘वे सभी न गु क िव सनीयता और नशीली दवा व से स क
अफवाह क होते थे। यह बड़ी चालाक का काम था।’’ वह कहता ह, ‘‘दो उप वी ितभािगय का मतलब यह हो
सकता था िक आपको शेष अड़तालीस क खोना पड़। लेिकन िश क िन यी तौर पर शांत करते और हर न का
उ र वाभािवक स ाई क साथ देत।े ’’
िश क क किटब ता उनक स मान का कारण बन जाती। वे थानीय साधक क प रवार क साथ रहते और
उनक अखंडता उ ह प होती जाती जो उनसे करीब से बात करते। धीर-धीर यह बात फल गई िक इशा क साधक
व तुतः जो कहते ह, वह करते ह। राजा कहता ह, ‘‘हम तीन से चार िदन लगे लेिकन धारणा का उफान बदल
गया।’’
वह बताता ह िक कसे एक नाटक य प रवतन क कारण इशा का टग ऑपरशन करनेवाल म एक प कार ने कई
वष क बाद यान काय म म िह सा िलया। यह वाकया 2001 म चे ई म आ। ‘‘मुझ े बताया गया िक वह भाग
लेनेवाल म शािमल था। म उसक उप थित क ित सचेत था लेिकन मने उस पर कोई खास यान नह िदया। तेरह
िदवसीय काय म क अंत म जब म चे ई से न म सवार होने जा रहा था, वह मेर पास प चा, ब त मा- ाथना
करक रोने लगा। मेरी आँख म भी आँसू आ गए। आज वष बाद हम अ छ िम ह।’’
इसी समय स ु और दो सौ साधक कड पा क सोमे र मंिदर प चे। उस समूह को मालूम था िक उस मंिदर का
उनक गु से िवशेष संबंध था। ी पािलनी वामी वहाँ थे। स ु ी ा ने अपने जीवन क अंितम महीने वह िबताए
थे। इस या ा का प प से गहरा मह व था। उनम से कई लोग ने अनुमान लगाया िक इसका उ े य उनक या ा
क दौरान जुड़ गए कम को काटना भी था। माँ कपूरी कहती ह, ‘‘मंिदर म िशविलंग को अिपत करने क िलए स ु
एक सोने का सप भी ले गए थे।’’ वह बताती ह िक कड पा म थानीय लोग ारा भावमय व हािदक वागत िकया
गया।
लेिकन अब एक और चुनौती सामने आ गई। जब स ु मंिदर क पूजा थल पर प चे तो वहाँ का पुजारी अचानक
उनक िव हो गया। आपि य क एक ंखला तुत क गई। ‘‘वे कहते थे, म ा ण नह था, वे अचानक जाित,
गो , कल इ यािद क िवषय म बात करने लगे और कहा िक यिद म वेश करता तो िलंग समा हो जाता’’, स ु
कहते ह, ‘‘मंिदर क यासधारी ने उनसे तक-िवतक करने क कोिशश क । उसने कहा, देिखए यह आदमी एक चढ़ावा
लेकर आया ह, उसका इस मंिदर से पुराना संबंध ह, उसे अंदर आने दो। उसने यह भी कहा िक मेरा गो िशव ह।
लेिकन ा ण लोग अिडग थे। तो यह भारी तक-िवतक वहाँ चल रहा था। म यह सब देख रहा था, मेर ह ठ पर
मुसकान थी। एक ओर यहाँ यह मंिदर और इसक मेर िलए अहिमयत थी, दूसरी ओर ये लोग थे जो वेतन क िलए काय
करते थे, और मुझ े बता रह थे िक मंिदर म वेश करने का मेरा कोई अिधकार नह था। यह सब ढ ग-तमाशा देखते ए
म वहाँ खड़ा रहा लेिकन म कमजोर भी नह पड़ रहा था। और तभी अचानक भारती ोध से तमतमा गई और उन लोग
क समूह को चीरती ई अंदर चली गई।’’
माँ कपूरी को वह य बड़ी प तापूवक याद ह, ‘‘भारती को मने इस तेवर म पहले कभी नह देखा। उसने
पुजा रय को कह िदया यिद वे आड़ आए तो उ ह इसक प रणाम भुगतने पड़गे। वह व तुतः यह कह रही थी िक अब
उ ह आने दो वरना! सभी पुजारी भाग खड़ ए। अब यह िकसी को नह मालूम िक वे डर क भागे या िकसी और कारण
से। यह मंिदर स ु और उनक साधक को ऊजा से ओत ोत तीन िदन क िलए उपल ध रहा।’’ स ु कहते ह,
‘‘हमने िशव क पूजा क । और थित िबलकल िव फोटक थी। वे अलग से िदन थे। म िफर कभी थित को इतना
लंत नह बनाऊगा।’’
अंततः नाराज पुजा रय को यासधारी और कले टर ारा मनाया गया और बहला-फसलाकर मंिदर क भीतर लाया
गया िक उ ह अशु कर िदए गए िशविलंग क शु करण कमकांड का खच बतौर ितपूित िदया जाएगा। जहाँ एक
ओर साधक क समूह को वह िदन भारती क ोध क कारण याद ह, वह दूसरी ओर स ु उसे िक ही और कारण से
भी याद रखते ह। वह कहते ह, ‘‘वह एक ब त बड़ा मजाक था य िक एक ज म पहले िबलकल ऐसा ही आ, जब
स ु ी ा और िवभूित ने मंिदर क भीतर वेश िकया था। तब भी ा ण को आपि ई थी। लेिकन जब उन दो
आदिमय ने जो उस समय ोध से जल रह थे—उनक ओर देखा तो वे भाग खड़ ए। और यहाँ वही बात भारती पुनः
कर रही थी। मुझे जोर क हसी आई। वही थित पुनः दुहरायी जा रही थी।’’
िकसी को भी पूरी तरह मालूम नह ह िक ऐसा सोमे र मंिदर जाने क कारण आ था। लेिकन माँ कपूरी कहती ह
िक यानिलंग क माग म आनेवाली बाधाएँ ब त हद तक समा हो गई। ‘‘ य गत तर पर भी हमारी आ या मक
या ाएँ अपे ाकत सरल लग । थितयाँ सामा य होने लग गई।’’
इशा आंदोलन क पहले य ततापूण दशक का मरण करते ए स ु कहते ह, ‘‘हमार अ त व क थम दस वष
म, लोग ने हम पर प थर फक। लेिकन लोग प थर इसिलए फकते ह य िक अचेतन म उ ह ात होता ह िक आपक
प रणाम मू यवान ह।’’ वह आगे कहते ह, ‘‘फल देना प थर फक जाने से यादा मह वपूण ह। य िक फल पि य ,
जानवर और लोग को भी आकिषत करते ह, कवल प थर को नह । जो लोग प थर फकते ह वे आपको कम नह
आँकते। वे वही करते ह, जो वे सबसे अ छा जानते ह—प थर फकना।’’ कछ ठहरने क बाद वह कहते ह, ‘‘और यिद
आप अपने फल जान-बूझकर िगरा देते ह, तो प थर क सं या कम-से-कम हो जाती ह।’’
शायद यही बात थी। एक ऐसा वाब िजसका ल य सभी को व- पांतरण क उपल ध कराना था, िजसे थिगत
तो िकया जा सकता था, लेिकन ख म नह । सिदय से इसक फिलत होने का इतजार कर चुकने क बाद, इसे अब और
नकारा नह जा सकता था। प थर तो या ा क िह से थे। लेिकन ये ऐसे वृ क िलए कोई अहिमयत नह रखते जो अपने
फल बाँटना चाहता ह, रोकना नह । िकसी क साथ भेदभाव नह िकया जाना था। हर िकसी को बुलाया गया, हर िकसी
को चुना गया। यानिलंग का समय आ गया- सा लगता था।
िज ह ने इस ि या को देखा, वे जान गए िक वे िफर वैस े ही नह रहगे। एक चा रणी कहती ह, ‘‘यह
आनंददायक ण था।’’ उसक आँख इसका मरण करने से चमक उठती ह और वह कहती ह, ‘‘ऊजा का तर
क पना से पर था। हम मालूम नह था िक हो या रहा था, लेिकन हम जानते थे िक हम िकसी िवशाल काय म िह सा
ले रह थे।’’
शायद इस उपल ध क िवशालता तभी प होती ह, जब हम स ु को इसक पूव क यास क िवषय म बताते ए
सुनते ह, जो आपदाकारी और यथ िस ए। तीन ज म क उनक अपने सम वत यास क अलावा एक और
नाटक य व ती ण कहानी उस यानिलंग क ह जो लगभग एक हजार वष पहले क घटना ह। यह म य देश रा य क
भोपाल शहर क करीब थत भोजपुर क ह। चौदह लोग —सात पु ष, सात ी—को इस मह वाकां ी योजना क िलए
कई वष म तैयार िकया गया था। िफर भी सं कारीकरण क अंितम चरण म, इसक पूण होने क एक शाम पहले िवजी
क शता दय बाद क महासमािध क तरह ही एक ी ने अपना शरीर याग िदया। सदगु ने बताया, ‘‘शरीर यागने
क आकां ा ब त अिधक होती ह। इस थित म अपने शरीर को छोड़ने क त परता अ यिधक होती ह, य िक ऐसे म
आपक पास एक ऐसा अवसर होता ह िजसम शरीर क साथ संपक इतना यनूतम रहता ह िक थोड़ ही यास से आप
शरीर छोड़ सकते ह। यह पूण पेण िवलयन ह। शायद इसम अंत देखने का सुखद अहसास भी था। उस औरत का
यास िशिथल पड़ गया, उसक एका ता अंितम छण म डगमगा गई और ल य चूक गया।
‘‘इस ि या का नेतृ व करनेवाला योगी िनराश हो गया, लेिकन उसने हार नह मानी।’’ सदगु कहते ह, ‘‘उसने इडा
और िपंगला का योग करते ए पु ष और ी क भूिमका वयं िनभाने क सोची िजससे इस शरीर े पर िवकट
दबाव पड़ता ह। उसने यह भूिमका िनभाई और उसने ि या पूरी कर ली होती लेिकन थोड़ा काम ही रह गया था।’’
यहाँ पुनः इशा जैसा ही प र य था। ल य लगभग नजर आ रहा था, तभी एक थानीय आ मण आ। आगे ई िभड़त
म उस योगी का बायाँ पैर कटकर अलग हो गया। अब उसक इडा बेकार हो चुक थी और संपूण ि या एक बार
िफर पूरी होते-होते रह गई।
यह थित बड़ी िनराशाजनक थी। इस काय क िलए बड़ी ुत गित से एक अ य औरत को िशि त िकया गया। अब
यह िन य िकया गया िक योगी और वह औरत अपने-अपने शरीर यागकर िलंग म समािहत हो जाएँग,े िजससे
सं कारीकरण पूण हो जाएगा। इसक अलावा कोई िवक प ही नह था। उनक ऊजा से उ सिजत रहने क दौरान च
को बंद करने का काय िकसी एक िश य को दे िदया गया। यह एक मह वपूण काय था, च को बंद िकए िबना ऊजा
िततर-िबतर हो जाती।
य तैयार कर िदया गया। इसम भाग लेनेवाले पूरी तरह से तैयार थे और तभी िफर चूक हो गई। च बंद करने क
भारवाला िश य इस थित से अिभभूत हो उठा। उसक ेही गु जी को शरीर छोड़ते देखकर सामा य और सतक बने
रहना आसान न था। स ु कहते ह, ‘‘यह थित ब त ही अिभभूत करनेवाली और बल थी। तु हार गु , तु हार
वामी, तु हार जीवन और तु हारी साँस ने अपना शरीर छोड़ िदया। तुम यह सब देखते ए वहाँ बैठ हो। यह तो अित ही
थी। वह ऐसा न कर सका। और इसिलए िश य िहचिकचा गया, च को समय पर बंद न िकया जा सका और बड़
दुःख क बात ह, िलंग का सं कारीकरण अधूरा ही रह गया।’’ स ु कहते ह, ‘‘देखते ही देखते िलंग म लंबव दरार
पड़ गई...सारी योजना धरी रह गई। यह पचानवे ितशत पूरी हो चुक थी, िकतु यह इसका दुःखद प ह। दो लोग ने
अपनी जान गवाँ द । उ ह ने इस पर काफ काय कर रखा था, लेिकन यह संप न हो सका...िलंग वैसा ही ह जैसा था,
काफ श शाली, लेिकन इसका प कछ िवकत हो गया ह। इससे ऊजा समा नह हो रही।’’
यिद अिभमंि त करक इसका सं कारीकरण िकया गया होता तो यह समा हो चुक होती। एक हजार साल का
समय ब त होता ह, लेिकन यह (ऊजा) समा नह ई ह। िलंग अभी भी अपूण और खंिडत पड़ा आ ह।
यानिलंग क सं कारीकरण क समय जब स ु भारती क साथ भोजपुर प चे तो उ ह ने कहा िक उनक मे दंड म
भयंकर दद हो रहा था, जबिक उस समय वह उस मंिदर से लगभग आठ िकलोमीटर दूर थे। जब वे मंिदर प चे तो
उनका बायाँ पैर अचानक सु पड़ गया, और उ ह कार से बाहर िनकलने म किठनाई हो रही थी। भारती क िलए िलंग
इतना श शाली अनुभव था िक उसने तो लगभग अपना शरीर ही छोड़ िदया था। उसने सोचा िक वह कछ ही िमनट
से यानाव था म ह, िकतु पौन घंटा बीत चुका था। स ु को उसक आ ा च पर यास करक उसे वापस लाना
पड़ा। दोन ने अपने-अपने तरीक से इस खंिडत और अपूण िलंग क दुःखद इितहास का अनुभव िकया।
स ु ने बताया िक भोजपुर क िलंग क ुिटय को दूर करने का काय एक नया िलंग तैयार करने से भी यादा
चुनौती भरा रहा होता। इसक अलावा यह मंिदर पुरात व िवभाग क क जे म था। इसम िकसी तरह क छड़छाड़ पर भारी
आपि याँ हो सकती थ । स ु और भारती को वहाँ से जाते समय यह अहसास बड़ा बेचैन कर रहा था िक भोजपुर क
िवकत िलंग क कहानी अपने आपको पुनः दुहरा सकती ह। इसने लगभग दुहराया ही था।
दज इितहास म अिव सनीय प से दुब ध यौिगक ि या क संबंध म स ु का यानिलंग का उ ेख सवािधक
बोधग य ह।
वह बताते ह िक इसका उ े य एक ऊजा प िनमाण करना था िजसम सात च अपनी-अपनी सव दशा म
ि याशील ह।
मानव क भीतर च उनक कािमक त व से यथा थान म कायम रहते ह। िकतु यानिलंग क िलए उ ह ने प कर
रखा था िक िकसी भी कािमक त व का योग नह िकया जाना था। और िफर भी इसक िबना च बंद नह िकए जा
सकते थे, िजसका ता पय यह होता िक संपूण ऊजा िबखर जाती। इसिलए इसम तीन ितभािगय क ाण त व क योग
से च को बंद करने क चुनौती थी, हालाँिक इसम कािमक त व क ढ़ता का अभाव था।
उ ह ने बाद म बताया, ‘‘यिद सं कारीकरण म स मिलत अ य दो लोग मेर साथ होते तो मने इ ह काफ सहजता से
बंद कर िदया होता। चूँिक एक य का अभाव था इसिलए तीन अलग-अलग शरीर से िबना कािमक त व का योग
िकए ाण त व क तीन धागे िनिमत कर उ ह लेकर बुनना और एक िन त तरीक से बाँधना किठन था... व तुत, ये
तीन धागे नािड़याँ थ , एक भारती क , एक मेरी और एक अ य जो मेरी ही थी लेिकन िवजी क प म तैयार क गई
थी। िकसी क शरीर (सू म) तं से नाड़ी लेना ितकारक हो सकता था। इसे सावधानी से िकया जाना था और ित को
सीिमत करने क िलए िदशा-िनदश का पालन करना था।’’
उनक वयं क एक से अिधक भूिमका क कारण, ित को पूरी तरह टालना सरल नह था। इसका प रणाम यह
था िक उनका शरीर ब त-सी छोटी और बड़ी यािधय से पीिड़त हो गया। वह धीर से कहते ह, ‘‘मुझ े संगीत बजाने क
इ छा नह होती थी। शु -शु म मने सोचा िक इसम चौदह लोग क आव यकता होगी और म इसका संचालन
क गा। लेिकन यहाँ तो संगीत बजाकर ही मने इसे समा कर िदया। और िवजी क जाने क बाद मुझ े दोहरा संगीत
बजाना पड़ता था। एक ही समय म दो वा यं ।’’
ऊजा को जोड़ने क वा तिवक क य क अित र िजसम कछ कम क मा ा ज री थी, यानिलंग म िकसी अ य
य गत कम का योग नह िकया गया ह। येक च को थािपत करक इ ह बंद कर िदया गया ह, जो यव थत
प से ऊपर से नीचे घूम रह ह। य िप ऊचे च को बंद करने क ि या अिधक सू म थी, िफर भी नीचे क च
म अिधक भौितक मेहनत लगी। स ु ने बताया, ‘‘ मुख चुनौती नीचे क च क वािध ान और मूलाधार म थी।
चूँिक एक य क कमी थी, इसिलए इस ि या म मेर शरीर पर िवषम भाव पड़ा, और मेर मूलाधार और
वािध ान कमजोर पड़ गए। अनुभव ऐसा लगता था िक म िकसी भी ण जा सकता था।’’ राजा उनक साथ चे ई
गया जहाँ उ ह ने एक िवशेष कार क प थर को िलंग क िलए चुना। सं कारीकरण का अिधकतर काय ताँब े क स रय
से िकया गया, िज ह स ु ने अपने घर म रखा था। राजा कहता ह, ‘‘वहाँ खड़ लोग को मालूम ही नह था िक या
हो रहा था। हम यहाँ-वहाँ बैठकर उ ह प थर क िलंग क थापना का िनरी ण करते ए देखते थे। लेिकन जब ि या
ारभ ई—जो सामा यतया देर रात म होती थी—हम जानने म देर न लगी। ऊजा काफ उ होगी। उ ह ने उस समय
वयं को एक सैिनक क भूिमका म होना बताया, िव ासपा ले टनट, िजसे होनेवाले काय क पूरी जानकारी नह थी,
लेिकन उसे श ुवत दुिनया से अपने गु क िमशन क र ा क िलए जान लड़ा देनी थी।’’
इस ि या म सि य प से शािमल, भारती को भी इससे जुड़ी तकनीिकय का सुराग नह मालूम था। जो कछ वह
देख रही थी वह इतना ही था िक वह संचालक क भार म थी। ‘‘मुझ े याद ह िक िलंगर म—ताँबे क यूब िजसम
पारा भरा आ था और िजसे सात च क गुण से ऊजायु िकया गया—िजसे िलंगम म वेश कराकर,
सं कारीकरण पूण होने क पहले बंद िकया जाना था। यह एक बड़ा कदम था। येक च को सघन साधना से
ऊजावान िकया गया, जो कई िदन चलती थी। हम रात और िदन क ित िव मृत भाव धारण िकए ए थे य िक ऐसी
अवणनीय ऊजा क थितयाँ घिटत होती थ । िविवध ऊजाएँ मेर च और नािड़य म उछलती और नृ य करती थ
िजससे मेरा शरीर फटा जा रहा था। येक च को ऊजाशील करने क बाद स ु उस ि या क बार म चा रय
और आ मवािसय को बतलाते थे। इन स संग म शु आनंद क भावना होती थी। कई िदन क साधना क िवषय म
उ ह थोड़ समय म ही बताया जाता था।’’
िज ह ने यह ि या देखी उनक अनुसार िवशु च (श आसन) को बंद करने क ि या सबसे जिटल थी।
स ु बताते ह िक िवशु यान ब त कम ो सािहत िकया जाता ह य िक इससे अनाव यक प से श शाली
लोग िनिमत हो जाते ह िजनम उस श को सँभालने क िज मेदारी और संतुलन का अभाव होता ह। चूँिक समय कम
था और िवशु को ऊजाशील िकए जाने क आव यकता थी इसिलए स ु ने अंततः िकसी समय क योगी रह
य का इ तेमाल इस ि या म िकया। ‘‘वह एक शरीरहीन ाणी था और व-िवसजन क तलाश म था’’, उ ह ने
बताया।’’ ‘‘यह अमाव या क देर राि का समय था और लगभग पाँच या छह सौ लोग इस ि या क सा ी होने को
थे... हमने एक ना रयल क योग से इस य (शरीरहीन योगी) को पकड़ने और जो िकया जाना था, वह करने का
यास िकया। वह अपनी इ छा से ही, अिन छा नह , पकड़ा जा रहा था। एक बार उसे यह महसूस हो गया िक उसे
कसे योग िकया जानेवाला था, तो वह और यादा इ छक हो गया... इस तरह व तुतः हमने योगी को बस म कर
िलया, उसे शु ऊजा म प रवितत करक िवशु च म रख िदया। वह यानिलंग का िह सा बन गया।’’
एक चारी को मरण आता ह िक जब ना रयल को एक िनयत थान म रख िदया गया तभी तुरत एक छोटा-सा
साँप इस पर चढ़ गया। स ु ने बाद म बताया िक सप एक िवशेष कार क ऊजा क ओर हमेशा आकिषत होते ह।
यह आ यजनक बात नह थी। उस चारी ने बताया िक उस रात ऊजा चंड प से श शाली थी।
जब शरीरहीन य को पकड़ने क नैितकता क िवषय म पूछा गया तो उ ह ने खेपन से उ र िदया, ‘‘जब तक
िकसी भी चीज से लोग को मु करने का योजन हल होता ह, मेर िलए सबकछ उिचत ह। म कोई ऐसा नह जो
िकसी मू य संरचना या नैितक बंधन से सरोकार रखता ह। जो म कह रहा , वह आपको खतरनाक लग सकता ह,
लेिकन कोई भी जो इस राह पर ह, वह ऐसा ही होता ह।’’
उ ह ने यह भी कहा िक िकसी भी आ या मक आकां ा क िलए साधना क सारी ि या िकसी भी शारी रक,
मानिसक और सां कितक पहचान क सीिमत िनधारण से हटने से जुड़ी ह। य गत िवसजन क इस ि या म, पृथक
होने क िवचार को पूरी तरह ख म िकये जाने का ल य होता ह। जब हमने उसे पकड़ा तब ‘वह’ था लेिकन जब हमने
उसे वहाँ रख िदया, जब िवशु का सं कारीकरण कर िदया गया, तब ‘‘वह रह ही नह गया। यह कछ ऐसा ह जैसे
कोई य बरतन बना रहा था, एक िम ी का बरतन। यह बरतन बना िलया गया लेिकन अभी पकाया नह गया था।
मने इसे िलया अैर िफर से इसे िम ी बना िदया और िफर इससे िलंग बना िदया। आप ‘ओह!’ क अथ म सोच रह ह।
वह य या वहाँ बंद ह? उसका या होगा? उसक आगे क िवकास का या होगा? अब ‘वह’ रह ही नह गया।
अब मने उसे यानिलंग म बदल िदया ह। हमने उसक ऊजा, जो िवि क तरह यहाँ-वहाँ भटक रही थी, को एक
य म बदल िदया ह। मने उसक पहचान को समा करक उसे यानिलंग म समािहत कर िदया ह। इसिलए वा तव
म ‘वह’ नह ह।’’ लेिकन भाषा कवल इतनी दूर ही आ सकती ह। और उस शरीरहीन य क कम का या आ?
उसने उनसे छटकारा कसे पाया? उसने इसे वयं पर ले िलया। स ु ने संि उ र िदया, ‘‘इसे और कहाँ ले जाना
ह?’’
सम त सं कारीकरण का सवािधक िविश िह सा यह था िक इसम िक ह कमकांड या िक ह मं का योग नह
आ। स ु ने ायः यह इशारा िकया ह िक यह अग य ऋिष से संबंिधत योग क दि ण भारतीय परपरा ह। इसम
सबकछ शु ऊजा से िकया जाता ह। ‘‘हम मं क योग क परवाह नह करते। हम साधारणतः ऊजा का योग
करते ह। सामा यतया यह एक सीधी ऊजा ह। यह पूरी तरह अलग रा ता और ि कोण ह। यह एक पूण पेण िभ
आयाम ह।’’
िज ह ने संपूण यानिलंग क ि या देखी ह, उ ह सबसे यादा िजस बात ने भािवत िकया, वह थी स ु क
प ता। िनरतर बदलती ई प र थितय म भी वह न तो घबराए, न उ ेिजत ए। और उ ह ने अ यंत सू म और
प र कत ि या म भी कोई संशय या िहचक नह िदखाई। दो ज म पहले उनक गु ारा अपने सटक से उनक
म तक को छने से उ प आ ान था। वह कहते ह, ‘‘जब कभी भी जीवन क िकसी आयाम को जानने क
आव यकता तुत होती ह, उस समय उ र सदा मेर अंदर ही आ करते थे। मेर िलए जीवन सदा ऐसा ही रहा ह।’’
जैसा िक उ ह ने हाल ही क एक स संग म कहा, ‘‘एक ही बात िजसम म वा तव म अ छा , वह यह ह िक अपने
आसपास क हवा को म ऊजा से तंरिगत कर देता । म कोई महा िश क नह । म करता तो कवल वही , लेिकन
हर समय मूख सी बात िकए िबना दुिनया म काम नह चलता।’’ उस समय जो वहाँ उप थत थे, वे इसक पुि करते
ह िक जो कछ उ ह ने देखा था, वह व तुतः ऐसा था मानो कोई वातावरण क थितय का कांड जानकार अपने काय
म रत था। ऊजा क तरग वहाँ अ यिधक िव मान थ ।
दूसरा नाटक य ण तब उप थत आ जब स ु ने िलंग क संरचना म कवल ताली क थपथपाहट से एक अ यंत
बारीक दरार पैदा कर दी। वहाँ उप थत ा हरान रह गए। उन सभी को मालूम था िक िलंग उ घन व क ेनाइट से
िनिमत था (लगभग चार हजार दो सौ से अिधक यूिनट का), लेिकन इस चरण म ऐसा आक मक चम कार मामूली ही
जान पड़ा। स ु ने बाद म उ ह बताया, ‘‘सं कारीकरण क ि या क दौरान यिद म शरीर छोड़ देता तो हम जानते थे
िक ऊजा को बंद करना एक बड़ी सम या होगी। हम नह चाहते थे िक ऐसी कोई बात हो...मने इसे एक संभावना क
प म हमेशा रखा ह िक यिद सं कारीकरण योजना क अनुसार नह होता ह तो मेर िलए इसम समािहत हो जाने का ही
रा ता बच रहता, और िकसी और को ऊजा को बंद करने क िज मेदारी िनभानी पड़ती; यह भी ब त हद तक संभव
रहता िक ऊजा को समािहत न कर पाने क कारण िलंग खुल जाता। इसिलए एहितयात क तौर पर मने िलंग पर एक
बारीक लंबव दरार पैदा कर दी।’’
कछ लोग को वािध ान बंद करने क चुनौतीभर काय क दौरान स ु का िगर पड़ना याद ह। उस समय तो ऐसा
लगा मानो उनका अंत ही आ गया था। भारती कहती ह, ‘‘ येक च बंद कर िदय गया था। मने इसे अपने ऊजा शरीर
म प महसूस िकया। जब वािध ान क बारी आई— इस ि या का सवािधक किठन भाग—तो चूँिक उनका
भौितक शरीर काफ अ थर था, उ ह अ यिधक शारी रक क आ।’’
इसम जुड़ ए जोिखम से स ु अनिभ नह थे, ‘‘इस बात क पूरी संभावना थी िक उस समय म अपना शरीर खो
बैठता। मने सबकछ तैयार कर रखा था, यहाँ तक िक मेरी बेटी क वैधािनक द कता, आ म का रखरखाव कसे िकया
जाए, सबकछ िलिखत म था। मने समािध तैयार करा रखी थी और एक वाहन भी बाहर खड़ा करने को कह रखा था,
यिद म पूरी तरह शरीर खो देता, उ ह मालूम था, इसे कसे सँभालना था। लेिकन मान लो यिद म अस म हो जाता और
मुझ े अंदर लाए जाने क आव यकता होती तो वाहन—एक पुरानी टाटा िसएरा-वहाँ मौजूद थी।’’
राजा बताता ह िक चा रय को िलंग क िदशा म उसका सामना करते ए बैठने क िलए कहा गया था, जबिक
गृह थ िश य को इसक िवपरीत िदशा म बैठना था। कछ यान ि या क बाद स ु िलंग क आधार पर चढ़ गए।
उ ह ने सभा को आँख बंद कर लेने क िलए कहा। उ ह ने दम साधकर बात का अनुपालन िकया। कछ देर बाद उ ह ने
कछ िगरने क आवाज सुनी। जब उ ह ने अपनी आँख खोल तो पाया िक वह िगर गए थे। सं कारीकरण समा हो
गया था। लेिकन, ऐसा लगा िक इसक क मत स ु को चुकानी पड़ी थी।
रहवािसय ने हमचा रय क एक दल को उनक िन य शरीर को बाहर कार क ओर ले जाते देखा। वह जीिवत
लगे। लेिकन उ ह मालूम था िक थित बड़ी नाजुक थी। तीन िदन तक तो वह खड़ नह हो सक। वह अपनी बोलने क
श खो बैठ थे और कवल िलखकर अपनी बात कहते थे। वह कहते ह, ‘‘मेरा शरीर इतनी बुरी तरह टट चुका था िक
इसक मर मत भी नह क जा सकती थी। िचिक सीय तौर पर इसे िन त ही ठीक नह िकया जा सकता था। पुनः
ठीक होना लगभग नए जीवन का िनमाण करने जैसा था।’’
भारती ने उनक िबगड़ी शारी रक दशा को ठीक करने क पूरी कोिशश क लेिकन कोई उ मीद नह लगती थी। वह
मौन, कमजोर और यु रहीन ही रह। एक बार जब उसे कछ न सूझा तो उसने उनसे पूछा, ‘‘ या हम सवारी करने
चल?’’ यह अँधेर म तीर क तरह था। यिद ऐसी कोई चीज थी िजससे उनक जीवन का उ साह पुनः लौट आता तो यह
उनका घुमंतूपन था। ‘‘तभी उनक आँख म चमक लौट आई’’ वह मरण करते ए मुसकराती ह।
एक ऐसा आदमी िजसने िपछले स ह वष से बयालीस साल क उ म जाने क तैयारी कर रखी थी, उसने अचानक
कने का िवचार कसे बना िलया? वह यं या मक लहजे म कहते ह, ‘‘इसिलए नह िक म जीने को आतुर था। थित
िजतनी भी भयंकर एवं गंभीर होती ह, यह मेर िलए उतना ही बड़ा मजाक होता ह। जब भारती ने मुझसे यह न पूछा तो
मने सोचा, ठीक ह, देखते ह, मजाक म ही अगर म अपने शरीर को िफर से सही कर सक। बाद म यह एक चुनौती बन
गई।’’
उनक जीने क ित मजािकया अंदाज क अलावा शरीर तं को ठीक करने का उनका िनणय इस त य पर भी
आधा रत था िक उनक िश य क समूह क िलए ‘स ु ’ का मतलब जीवन क साँस से कम नह था। शायद उनको
यह भी अहसास था िक उनक लगातार उप थित से यानिलंग को सामािजक वीकित िमलने म यादा सरलता होगी।
वह वीकारते ह, ‘‘इसम सामािजक कारण भी था। लेिकन सव प र यह था िक मेर साथ ब त से लोग जुड़ गए थे जो
ऐसे मुकाम पर थे जहाँ उ ह मेर िदशा-िनदश क आव यकता होती। इन लोग ने मेरा साथ, िजतना लोग समझते ह,
उससे भी अिधक तरह से िदया ह। वे च ान क तरह मेर िलए अिडग रह। कछ ऐसे भी लोग रह ह जो मेरा साथ
भावना मक प से देत े रह ह। म इसे कम नह आँक रहा । लेिकन आप भावना क िलए मृ यु म ह त ेप नह
करते। ये अलग तरह क लोग थे। ये लोग मेर िलए जीने या मरने को तैयार थे। ऊजा तर पर वे इतने अिधक जुड़ गए
िक वे मुझम और वयं म कोई अंतर नह समझते थे। वे मेरी जीवन ि या क साथ ही घुल-िमल गए ह। मेरा पीछ हट
जाना उनक िलए था, उ ह ल य तक प चते-देखने क िलए।’’
जहाँ अब उनका वा य ब त बेहतर ह, वह वे यह कहते ह, िक वह अब भी ‘लाइफ सपोट’ पर ह। ‘‘मने
सं कारीकरण ि या म अपनी इतनी यादा ऊजा लगा दी िक इससे मेर शरीर तं को गंभीर ित ई ह। मेरा ऊजा तं
बुरी तरह अपंग हो गया। तभी से जीिवत रहने क िलए मुझ े कछ लोग पर आि त रहना पड़ता ह। म अभी भी सौ
फ सदी ठीक नह आ । अभी ऐसा लग सकता ह िक म पूणतः व थ और अगले ही ण म म गंभीर प से
बीमार हो सकता —िचिक सीय प से बीमार। लेिकन ब त हद तक म उस थित से बाहर आ चुका ।’’
उनसे हमेशा उस सप क आकार क तांब े क कड़ क िवषय म पूछा जाता ह जो वह अपने बाएँ पैर क टखने पर
पहनते ह। बताते ह, ‘‘बेड़ी यह मुझे शरीर से बाँधे रखता ह। इस शरीर क पुनरचना एक बड़ी चुनौती रही ह। कई लोग
ने सचमुच मेर िलए अपना जीवन योछावर कर िदया इसिलए म उनक ऊजा का योग करक धीर-धीर इस शरीर क
पुनरचना कर रहा । अब म लगभग अ सी ितशत िबलकल ठीक और बाक म ठीक कर सकता यिद मुझे मा
एक महीने का अंतराल िमल जाए। लेिकन मुझ े समय ही नह िमलता। चूँिक मेर वा य म उतार-चढ़ाव होता रहता ह,
इसिलए मेर आसपास क लोग डर रहते ह। म कह चला न जाऊ। इसिलए उ ह ने यह बेड़ी मुझ े पहना दी ह। इससे
शरीर व ऊजा तं थर होता ह। यह मुझे अचानक चले जाने क अनुमित नह देता।’’
और लगातार ‘लाइफ सपोट’ पर रहने से आपको कसा लगता ह? एक बार मने उनसे पूछा। वह हसने लगे, ‘‘इसका
मतलब अ यिधक वतं ता ह। लेिकन इसका अथ गुलामी भी ह।’’ उ ह ने आगे कहा, ‘‘िजस िदन म इसे हटा दूँगा, तो
तुम जान लो िक मेर पास ब त कम समय रह जाएगा। चालीस िदन क अंदर म चला जाऊगा।’’
यानिलंग का सं कारीकरण 23 जून 1999 को पूरा हो गया था। यह मंिदर उसी वष नवंबर म लोग क िलए खोल
िदया गया। सह ा दी क अंितम वष को स ु क जीवन का सबसे काला अ याय कहा जा सकता ह उसक अंत क
प म सामने आया और इशा क इितहास का यौवनकाल। जहाँ एक ओर इशा का िमजाज हष म था, वह दूसरी ओर
दुिनया अभी भी इस उपल ध क ऐितहािसक मह व से अप रिचत व अनिभ थी। स ु ने ायः इस बात को कहा ह
िक ‘आम मानवता क िलए यानिलंग’ या ह, यह समझने म संसार क कछ पीिढ़याँ लग जाएँगी।
और यानिलंग व तुतः ह या? यह उनक िलए भी एक पहली ह जो इससे गहनतम प से िवत और प रवितत ए
ह। येक दशक को यह एक भावशाली काले रग का दीघ वृ ज महसूस होता ह। लेिकन स ु ने हमेशा कहा ह
िक िबना इस प क भी काम चल सकता ह, इसक अ त व का एकमा कारण यह ह िक अिधकतर लोग को यान
करने क िलए य क क आव यकता होती ह। वा तिवक िलंग तो एक पूण सि य सू म शरीर ह, जोिक पूरी तरह
अ य ह और िजसक सभी सात च पूण गित से ि याशील ह। इसक कायिविध मु यतः याना मक ह। जहाँ देश क
िविभ भाग म िव यात योितिलग वा य और भौितक सुख-सुिवधा क कारक ह, वह यानिलंग एकमा िलंग
ह जो एक साथ सभी सात च का कारक ह। इसक दीघा म बैठना िकसी जीिवत गु क उिप थित म बैठने जैसा ह
— जो अपनी कपा िनरतर वतं प से, िबना प पात क, चुपचाप बरसाता रहता ह। स ु कहते ह, ‘‘यह दैव ता
का सव म कटीकरण ह। यह एक जीिवत य क तरह ह, िजसक सभी सात च वयं को उनक चरमो कष पर
कट करते ह। यह जीिवत ह।’’
िलंग क िवषय म बार-बार कछ न आते ह िजनक उ र स ु बड़ धैय क साथ देत े ह, मानो वे उनक साथ
पहली बार समझौता वा ा कर रह ह । िशविलंग प ही य ? इस न को बारबार पूछा जाता ह। वह जवाब म कहते
ह िक यानिलंग क सघन प से तरिगत थान म बैठने से िकसी िवशेष मा यता णाली क आव यकता नह होती।
‘‘तु ह िकसी मा यता क आव यकता नह ह। तु ह कवल वयं को खुला रखने क ज रत ह, बस। जैसे मान लेते ह
िक कोई ना तक कार चलाता ह। या यह चलेगी? यही तो तुम पूछ रह हो। या कोई ना तक यहाँ बैठ जाता ह तो या
इस काश से तब भी उसे िदखाई देगा? न उसक कित का ह। इससे िबलकल फक नह पड़ता िक तुम आ तक
हो या ना तक। य ही तुम िबजली का काश चालू करते हो, तो इससे सबको उजाला िमलता ह। आ तक को कोई
अित र काश तो नह िमलता।’’ वह कहते ह िक थम मौिलक ऊजा का प अनाकार या दीघ वृ ज ह। िवसजन
क पूव अंितम ऊजा का प भी इसी आकार को धारण करता ह। इसीिलए िलंग भी इसी आकार म ह। भारतीय सं कित
अ त व क आयाम क गहन समझ का ितिनिध व करने क िलए िशव क आकित को सामने लाती ह। िशव जैसा िक
स ु दुहराते ह, का अथ वह जो नह ह, होता ह—एक य कर देनीवाली धारणा और उससे यादा भयकारी
वा तिवकता। जब कोई इसे अपने जीवन म थान देता ह। ‘‘हम िशव का योग करते ह य िक उससे आस होना
बड़ा किठन ह। तिमलनाड म तो तु ह बताया जाता ह िक िशव का प घर म नह रखना चािहए... यिद वह वहाँ ह, तो
उसका प ही ऐसा ह िक तु हारी सारी आस याँ समा हो जाएँगी और तुम वह चाहते नह हो। आपने अपनी
आस य म काफ िविनयोग कर रखा ह, और भले ही उनसे तु ह बड़ ददनाक लाभांश िमलते ह, िफर भी तुम उ ह
फक नह सकते। ये िविनयोग तु हार यह जाने िबना ही िपघलकर ख म हो जाएँग,े िक हो या रहा ह। इसीिलए वे तु ह
अपने घर से िशव को िनकालने क िलए कहते ह।’’
यानिलंग एक ऐसी योजना ह जो भारतीय देवी-देवता क था म सवािधक ांितकारी, सवािधक भयावह और
काशमय दैव ता ह। यह एक ऐसी योजना ह जो ‘वह तो नह ह’ को ‘वह तो ह’ म बदलती ह— उस सीमा तक जहाँ
ऐसा िवरोधभास संभव ह। स ु कहते ह, ‘‘ यानिलंग लगभग िशव को पकड़कर उसे वह िनयत रखने क तरह ह।
वह आसानी से नह आता ह। वह अपनी क मत अपने तरीक से माँगता ह। यह ब त गहरा िव ान ह।’’
या िलंग एक िलंग पूजन का तीक ह? यह एक अ य ायः पूछा जानेवाला न ह। स ु बताते ह िक िलंग
ीिलंग व पु ंग का सम वय ह—जो िक पूव आ या मक सं कित का सवािधक अनुपम िवचार ह। ‘‘जब ीिलंग
और पु ंग िन नतम तर पर िमलते ह तो इसका अिभ ाय िशव और श का एक करण होता ह। इस मेल म िशव
प ह और श शू य। िशव पु ष ह, श कित ह, जो कित क अभेदकारी ऊजा ह। िशव-श क कटीकरण
क िस ांत क प म िलंग-योिन सभी िवपरीत जोड़ क ढ़ता दशाती ह। इस दुिनया म कछ भी िबना इसक िवपरीत
या उलटा क अ त वान नह हो सकता।’’
िलंग भैरवी क हाल ही म िकए गए सं कारीकरण क दौरान उ ह ने इसे आगे भी समझाया, ‘‘ यानिलंग मंिदर एक
गभ क तरह ह; यह देवी क योिन ह। जब हम योिन कहते ह तो हमारा अिभ ाय गभ से ह जो िक एक पिव थान क
प म माना गया। जहाँ हम अपने रचनाकाल क जिटल अव था म रहते ह... जहाँ कह श और िशव ह िलंग और
योिन को हमेशा तुत िकया जाता ह। आप जो देख रह ह वह गभ क अंदर का भाग ह, बाहर का नह । इसिलए जब
आप यानिलंग क थान पर वेश करते ह, तो योिन या गभ क अंदर होते ह।’’
और यानिलंग िक ह कमकांड से य नह जुड़ा ह? या यह उन लोग क संवेदना को संतु करने क िलए ह जो
इसे ब -धािमक मंिदर समझकर यहाँ आते ह? स ु बताते ह िक कमकांड एक पिव थल क ऊजा क नवीनीकरण
का एक पारप रक ोत ह। लेिकन यानिलंग का सं कारीकरण िवशु ऊजा काय क प म आ ह और इसक
रखरखाव या पुनज िवत करने क आव यकता नह होती। िकसी भी कमकांड को संपािदत िकया जाना पूणतः अथहीन
होगा य िक यानिलंग ाण ित ा से होकर गुजरा ह। यह सभी प म उ तम तर क सघनता से िनिमत ह।
‘‘यिद आप ऊजा को इससे यादा घनीभूत करते ह तो यह िनराकार हो जाएगी... यह ऊजा क पूण णाली ह...इस
तरह क थान पर कमकांड का कोई मह व नह होगा और वे योजनहीन िस ह गे।’’
अग य ऋिष से संबंिधत योग क दि ण भारतीय परपरा, इस तरह क ाण से जुड़ी िव ा क िविश ीकरण क
िलए प तौर पर जानी जाती ह। स ऋिषय म सात ऋिष जो िशव क िश य थे और िज ह ने योग ारभ िकया—
अग य ऋिष ि या योग म पूणतः िनपुण थे। स ु कहते ह, ‘‘जब आप ि या कहते ह तो इसका अिभ ाय अग य
होता ह। वह सबकछ जो मानव ऊजा क तर पर हो सकता ह उसे इस य क ारा क र माई तरीक से बताया और
िकया गया ह। इसिलए जो भी ि या क परपरा से जुड़ा ह, वाभािवक प से वह अपने को अग य का वंशज
बतलाता ह— वह अपने वंशज होने का दावा नह करता ब क एक ऐसे य क ित आभार य करता ह जो
जीवन से काफ िव तृत था। माना जाता ह िक वह चार हजार वष तक जीिवत रह थे। हम इन सबक िवषय म नह
जानते। लेिकन वह िन त ही असामा य अविध तक जीिवत रह ह गे तािक आ या मक ि या को दि णी पठार पर
रहनेवाले सभी मानव क िलए वा तिवक प से सुलभ बना सक। उ ह ने योग को लोग क जीवन म िबना िकसी छाप,
िबना िकसी ा प क िदन- ितिदन क साधारण जीवन ि या क प म तुत िकया। भारत का दि ण भाग अब भी
उनक कित का लाभ ले रहा ह।’’
स ु इस मंिदर को गंभीर लेखक य गव क अंदाज म ‘अिभयांि क चम कार’ िन िपत करते ह। ‘‘ यानिलंग क
मंिदर क अंडाकार गुबंद को हमने िछह र फट यास का और ततीस फट ऊचा िनिमत िकया। इसम लोहा, सीमट और
ककरीट का उपयोग नह आ ह, कवल ईट और गार क साथ थरता देन े क िलए चूना, रत, िफटिकरी और वन पित
से संबंिधत चीज यु क गई ह। धरती पर अपनी तरह क यह एकमा संरचना ह। यह यु ई साधारण तकनीक
इस तरह ह िक सभी ईट एक समय पर ही िगरने का यास करती ह लेिकन िजस िविध से गुंबद बना ह, उससे वे कभी
भी नह िगर सकत । इस िडजाइन क कित से यह सुिन त होता ह िक यह गुंबद कम-से-कम पाँच हजार वष
िटकाऊ रहगा। और इसे रत क न व पर खड़ा िकया गया ह जो यह सुिन त करता ह िक यह भू-गभ य हलचल से
अ भािवत रहगा।’’
एक बात आगंतुक को शी ही ात नह ही पाती। वह यह ह िक एक औसत इशा वयंसेवी ने इस मंिदर क िलए
िकतना योगदान िदया ह। माँ कपूरी कहती ह, ‘‘मंिदर क िनमाण का काय तक वयंसेिवय ने अपने िज मे ले रखा था।
दो सौ पचास िमक और एक हजार हमारी सं या थी; और हमने ईट-ईट करक संरचना पर काम िकया ह। वे जानते थे
िक हरक ईट कड़ी मेहनत क कमाई से आई ह, य िक इसक पूव क महीन म जोशपूण िव सं ह म वे बराबरी से
शािमल थे। स ु का काय उनका काय बन गया था, और उनक सभी िश य अपना योगदान देन े क ित ढ़संक पत
थे। इसम एक कल क छा ा भी शािमल थी जो अपने घर से पैदल कल जाकर बस का िकराया बचाती और उस
रािश को इस िनमाण हतु समिपत करती थी।’’ माँ कपूरी अपने साथी वयंसेवी भारती और लिलत क साथ ितिदन एक
दुकान से दूसरी दुकान जाकर तरह-तरह क यापा रय -परचून दुकान से लेकर चाय दुकानवाले—को इस उ े य का
मह व समझात और पाँच पए क रािश भी यिद उ ह ा हो जाती तो उनम िवजय भाव का उफान-सा महसूस होता।
एक ऊजा क प म स ु ने यानिलंग को शु चेतना और उ माद का िनचोड़ कहा ह। ‘‘भिव य म, यिद िकसी
िदन कछ जागृत संवेदनशील लोग उस थान पर यानिलंग क समीप जाएँगे तो वे उ म होकर हसने लगगे...यह एक
तर पर तो ब त यादा गंभीर ह और दूसर तर पर उतना ही चुलबुला...इसे धीर-धीर इसी तरह से बनाया गया था।
एक तरह से यह जीवनधारक ह। दूसर तर पर यह जीवनहता भी ह।’’
िज ह ने स ु को गु क प म अनुभव िकया ह उ ह यानिलंग और उनम कोई भेद ही नजर नह आता। एक
खून-माँस का बना ह तो दूसरा प थर का। लेिकन उप थित क गुणव ा—योिगक श द म सू म शरीर— िबलकल
वैसी ही महसूस होती ह। दोन म अंतर या ह? (जो स ु से ायः पूछा जाता ह) यह एक अलग बात ह। इसक
जवाब म स ु बड़ प तौर पर ‘कछ नह ’ कहते ह। वह कहते ह, ‘‘यह अंतर कवल इतना ह िक मुझ े अभी भी
खाना और सोना पड़ता ह, लेिकन उसे ( यानिलंग) नह ... एक दूसरा अंतर यह ह इस तरह बनने म मुझ े तीन ज म
लगे। उसे तीन साल ही लगे...सव प र, यिद आप भौितक शरीर धारण िकए ह, तो इसक पर क बात को महसूस करने
क आपक यो यता कम हो जाएगी। य िक जब आप िकसी य को देखगे आप उसे समझना शु कर दगे— िक
उसम सही या ह, और गलत या ह। आपको या अ छा लगता ह, या नह । ये सभी िनणय (समझ) आपको उस
ाणी को समझने क यो यता से दूर कर दगे... जब आप जीिवत गु क सम बैठते ह, तो आपक कई सुझाव, िनणय
पसंद-नापसंद आ करते ह य िक आप हमेशा उनक य क ओर देखकर अपना काम पूरा कर लेते हो... यानिलंग
क सम बैठकर आपक सामने ये सम याएँ नह रहती ह, य िक उसका कोई शारी रक या मानिसक प नह ह। यिद
एक बार आपको यह अनुभव हो जाए, तो हर बार जब आप बैठगे, आप स मानपूवक उसक ओर देखगे। यिद उसका
भौितक व प होता तो एक बार आप उसक ओर स मानजनक ढग से देखते और िफर अगले ण आप उ ह समझने
लगते और िकसी बात क िलए उसक िनंदा करने लगते... इसिलए इसका एक अित र लाभ ह।’’
और यह इस भेद का एक िवडबनापूण और शु सार ह। वे लोग जो उ ह जानते ह और उनसे अिभभूत ए ह—
भौितक शरीरधारी गु —वह चाह िकतने ही भावशील, िकतने ही चुनौतीपूण ह —वह सू म शरीरधारी गु जैसे
िनिवकार नह लगगे। यानिलंग इशा क साधक अपनी पीढ़ी को सौभा यशाली मानते ह िक उनक पास एक ही ज म म
दो गु को जानने और उनका सा य ा करने का िवशेषािधकार ह।

‘जीवन क घाटी म चरना’
गु , मनु य और उनका संदेश
स ु से मेरी मुलाकात का सबसे लुभावना पहलू शायद, उ ह ण- ित ण क आधार पर य और आदश,
आदमी और गु क बीच रहते ए देखना था। हमार तक म मने ायः उ ह िवरोधाभासी माना ह। लेिकन एक अ य तर
पर उ ह िवरोधाभास को मने एक ही समय म मकारी और पहली-सा गूढ़ पाया ह।
एक सघन िवचार-िवमश क बीच म ही ककर वह मेरा यान कह धूप क व छता क ओर ख चते या दोपहर को
हवा म नीचे िगरती िकसी पंखुड़ी क ओर। एक बार हम उनक पूव क ज म पर बात कर रह थे जब अचानक वह बीच
वा य म ही बगीचे म एक पेड़ पर अ िछपी थित म बैठ उ ू क ओर इशारा करने क िलए क गए। म उनक
साथ लंबी पैदल सैर पर थी, िनिवक प समािध क बार म बात कर रह थे, और बीच म ही उ ह ने एक िविच -सा
चुटकला सुनाया, बादल क प रवितत होते रग क ओर मेरा यान आक िकया और एक आिदवासी मिहला से बड़
लगाव क साथ उसक काय क कित क िवषय म चचा क । यह सबकछ ही िमनट क म म आ। एक अ य
अवसर पर जब हम उनक कार म थे और िकसी मु े पर बात कर रह थे तभी, अचानक अपनी बात क बीच म ही
उ ह ने कार क िपछले भाग म दो सप क होने क बात कही। मेरी तक करने क मता सहसा कमजोर पड़ गई।
उनक साथ िबताया जानेवाला समय बड़ा िविच लोचदार गुण रखता ह। ब तेर यह महसूस करते ह। उनक साथ ई
पाँच िमनट क मुलाकात भी अंतदिशता वाले गुण से ओत- ोत और उसम भिव य म मनन करने यो य ब त-सी बात
हो सकती ह। जैसा िक एक बार उ ह ने बताया, ‘‘म येक श द होशोहवास म बोलता , आदतन नह । इससे उन
श द को श िमलती ह। आ या मकता का अिभ ाय ह िकसी भी बात या घटना को अपने साथ बेसुध अव था म न
होने देना।’’ यह जीवंतता का उ तम तर ही ह, जो हर ण उनक साथ रहता ह और जो उनसे ई येक मुलाकात
को ऐसा काय बना देता ह िजसक बार म पहले से कछ कहा नह जा सकता।
आप अंदर िकसी पु तक क िवषय म िवचार-िवमश करने जा रह ह— जैसा एक बार मेर साथ आ— और वयं
को यान करता आ पाएँ।
इशा योग कोस म, िवशेष प से उ तर क स यम काय म म तो वह पूरी तरह गु ही होते ह। िकसी सावजिनक
या यान या िकसी स संग म वह आकषक व ा होते ह और हर तरह क न का उ र देते ह। एक अनौपचा रक
य गत वा ा म, वह शरारती, खीझ पैदा करनेवाले और लुभावने अंदाज म िकसी लड़क-से हावभाव म हो सकते ह।
िकसी गंभीर िवषय से जीवन क िकसी चुलबुली बात पर प च जाने क उनक मता उनक य क आकषक
िवशेषता म एक ह। मुझे बड़ा आ य होता ह िक एक चारी से मोबाइल क ‘कालर टोन’ क िवषय म बात
करता य वही य हो सकता ह िजसने मुझ े जब म मुबई म अपने जीवन क बुर दौर से गुजर रही थी, उससे
बाहर िनकाला और मुझ े अपने वयं क साथ ऐसा न करने क सलाह दी। या ऐसा य िजसने एक िदन दोपहर को
मुझ े फोन िकया (जब पूव राि मने क गई बात क िचंता म बड़ी बेचैनी से िबताई थी) और कहा िक मने उनक गो फ
खेलने म बाधा य प चाई। मुझे आ य होता ह िक अपनी कार को एक िकशोरवय बालक क तरह ब त तेज गित से
चलानेवाला य वही हो सकता ह िजसने मेरी िब ी क मौत पर मुझ े फोन करक मम पश संवेदना दी (यह ऐसी
घटना थी िजससे हमेशा-हमेशा क िलए मेर गु क ित सभी संदेह समा हो गए।)।
वह िकसी अपनी कही बात क ित इतने प हो सकते ह िक वह घमंडी से लगने का जोिखम भी उठा सकते ह।
उ ह ने अपनी तानाशाही क भाव को वीकार भी िकया ह। ‘‘हाँ, म अिधनायकवादी य िक म िकसी क नह सुनता।
जीवन क साधारण बात क िलए यिद एक ब ा भी बोलेगा तो म बड़ स मानपूवक सुनूँगा। लेिकन बात यिद जीवन क
कछ पहलु पर आती ह, तो भले ही भगवा य न आ जाए, म उसक भी नह सुनूँगा य िक मुझ े बेहतर जानकारी
ह। यह पूणत अहवादी और मूखतापूण जान पड़ता ह... लेिकन म कर या सकता ? यह सच ह। आप मेर सामने ंथ
का ांत दगे तो म इसे नकार दूँगा। आप अपने पंिड य को मेर पास लाएँग,े म उसे नकार दूँगा। आप बु को उनक
क से उठाकर मेर पास लाएँगे तो म उ ह भी नकार दूँगा, जब तक िक वह मुझसे सहमत न ह । तो बात जब जीवन क
आधारभूत िस ांत पर आती ह तो म पूण अिधनायकवादी हो जाता ।’’
और जब इन वे छाचारी रवैय े से आप खीझने-से लगते ह तो अपनी असाधारण िवन ता से वह आपको शांत कर
देते ह। हाल ही क एक स संग म उ ह ने कहा, ‘‘यह कहने म मुझ े िझझक होती ह य िक बात फलेगी और मेरी
ित ा पर आँच आएगी! लेिकन म एक भ । आप कहगे, ‘अर स ु , रहने भी दो, आप और भ ? आप घमंडी
ह।’ म आपको बता सकता िक घमंडी िदखना आसान नह होता। तो आप पूछगे, ‘आप िकस तरह क भ ह?
अ छा तो आप िशव क भ ह गे।’ नह , िशव तो मेर साझेदार ह। इसे पचाना आपक िलए बड़ा किठन होगा, लेिकन म
आपका भ ...भ का अथ यह नह िक म आपका अिभवादन क या आपक पैर छऊ या आपका गुणगान क ।
हर नज रए से म आपक िलए ही रहता । यही भ ह। मने यह ज म आपक िलए ही िलया ह और यही भ ह।’’
उ ह ायः इस घोषणा क िलए जाना जाता रहा ह, ‘‘उन सभी लोग क िलए जो इ छक ह, म उन सब तरीक से
उपल ध जो उनक तािकक समझ क पर ह।’’ लगभग येक िश य ने इस सहानुभूितपूण उपल धता को िकसी न
िकसी तरह महसूस िकया ह।
मंज ू क िपता, िज ह ने कभी भी स ु को नह देखा था, इस बात पर अड़ रह िक पगड़ी पहने ए यही वह य
था जो िक रात म, जब वह मुंबई अ पताल म ब त बीमार थे, ब त देर तक उनक िब तर क पास बैठा आ था। उस
रात क बाद मंज ू क िपता ने ब त तेजी से वा य लाभ ा िकया।
शहनाज को वह समय याद ह जब उसे अपने तन पर गाँठ देखने को िमली। उसने ब त िनराश थित म इस बात
क चचा पहले ही अवसर पर क । उनका उ र जैसा िक उ मीद थी, िछछोरा सा ही था। ‘‘तु ह तन क ज रत ह
िकसिलए?’’ लेिकन अगले िदन जब उ ह ने उसे बुलाया, तो उ ह गाँठ का पता सही-सही मालूम था। उ ह ने उसे क ा
िबना पका आ भोजन शु करने क सलाह दी और कोयंबतूर म एक िव सनीय िवशेष भी तलाश िदया। िदन बीतते
गए। वह या ा म लगे ए थे और शहनाज क उनसे कोई बात नह ई। लेिकन िफर भी उसने पाया िक वह गाँठ धीर-
धीर िदन- ितिदन छोटी होती जा रही थी और पूरी तरह गायब हो गई। पं ह िदन बाद या ा से लौटकर उ ह ने उसे
बुलवाया। उ ह ने सामा य लहजे म कहा, ‘‘अब तो डॉ टर क कोई ज रत ही नह ह न?’’
एक अमे रक डॉ टर, िजसे दय क बीमारी थी, साधक क साथ वािषक या ा पर िहमालय जाने को ब त उ सुक
थी, लेिकन वह जानती थी िक यह संभव नह था। उसक इस हालत क अित र , उसे ास यं क सहायता क
ज रत थी और िबना विटलेटर क वह काय करने म स म नह थी। जब उसने स ु को अपनी इ छा बतलाई तो
उ ह ने उसे या ा पर चलने को कहा। कछ िदन क बाद वह आ म म आई, तो उसने विटलेटर हटा रखा था। आ म म
एक स ाह रहने क बाद वह िहमालय या ा क समूह क साथ शािमल हो गई।
उसने न कवल अ सी िकलोमीटर क सारी दूरी चलकर तय क ब क 14,000 फट क ऊचाई क दशा का भी
सामना िकया।
एक अ य साधक िजसे िवशेष ारा शी से शी फटी ई उपा थ क कारण घुटने क सजरी कराने का सुझाव
िदया गया था, उसे सदगु ारा कहा गया, ‘‘अपना पैर छोड़ो और चले आओ।’’ वह दद से छटपटा रहा था और
सशंिकत था। लेिकन अंततः उसने सावधानी को दरिकनार कर िदया। वह िहमालय क िकग दल क साथ शािमल हो
गया और बारह िदन म उसने पूरा अ सी िकलोमीटर का रा ता तय िकया। और-तो-और उसने स ु क साथ कदम से
कदम िमलाया। स ु ने बाद म मजािकया लहजे म कहा, ‘‘तो म सबको यह बतलाता रहा िक इस आदमी ने मुझसे
दस हजार डॉलर ठगने क कोिशश क ।’’ बाद म स ु ने मजाक म ही कहा, ‘‘अब तुम चाहो तो इसे क र मा कह
सकते हो। म इसे एक अलग तरह का िव ान कहता , बस तु हारी इस जीवन ऊजा ने तु हार सार शरीर का िनमाण
िकया ह। ये ह याँ, यह माँस, यह िदल, ये गुद, और सबकछ, या यह एक टकड़ा उपा थ पैदा नह कर सकती?
यिद तु हारी ऊजा को पूण वाह और उिचत संतुलन म रखा जाए, तो िन त प से वे शरीर क पुनसरचना कर
सकती ह।’’
एक नाटक य मोड़ तब आया जब 2007 म देश-िवदेश क कई डॉ टर को हरान करते ए और उनक मेिडकल
रपोट क खतरनाक प रणाम क भिव यवािणय को ठगा िदखाते ए, स ु ने वयं को व थ कर िलया। इसक
शु आत उस समय ई जब अ ैल म लॉस एंिज स म एक काय म क दौरान उ ह बुखार महसूस आ। यह बुखार
लंदन म काय म क दौरान (पैरािसटामोल क कई खुराक क बावजूद) भी नह उतरा। उनक भारत लौटने और
तदुपरांत ऑ िलया या ा, और लौटने पर आ म म य त टिलिवजन शूिटग क समय भी बुखार जस का तस बरकरार
था। िपछले ढाई दशक म िकसी काय म क ितिथ र न करनेवाले स ु का इरादा इसे करने का नह था। ‘‘मेरा
तापमान लगातार 104 और 105 चल रहा था। मुझ े इतनी बुरी तरह पसीना आ रहा था िक हर दो घंट म मुझ े अपने
कपड़ बदलने पड़ते थे। एक िदन आ म म मुझ े ऐसा लगा िक मेरा िसर फटनेवाला था; मने अपना तापमान जाँचा और
पाया िक यह 107 था। म तुरत गया और ठड फ वार क नीचे जैसा था, वैसे ही खड़ा हो गया, कपड़ और पगड़ी पहने
ए’’, वह हसते ह, ‘‘बाद म यू.एस.ए. क एक डॉ टर ने मुझ े बताया िक उस समय क िलए यही सबसे बड़ी
बु मानी का काम था। इस तरह क बुखार से तो म िकसी भी ण चला गया होता।’’
उनक बीमारी से हर जगह िचिक सक परशान हो गए। उ ह ने पाया िक उनका एक तरह क मले रया—डगू और
टाइफाइड क िलए इलाज िकया जा रहा था। वह वापस यू.एस.ए. लौट गए और किलफोिनया म एक स संग क बीच म
ही एक सद य, एक डॉ टर ने, िजसने उ ह अ यिधक पसीना आते ए और कमजोर-सी हालत म पाया—ऊपर हाथ
उठाया और कहा िक उ ह तुरत इमरजसी वाड मे ले जाया जाना चािहए। स ु राजी हो गए। उ ह अितशी अ पताल
ले जाया गया। अगले कई स ाह उ ह ने एक मोबाइल इ ावेनस पोट से जुड़कर िबताए, और इसक साथ ही वे लगातार
किलफोिनया, अटलांटा, टनेसी और नाथ करोिलना म अिवराम काय म संप करते रह। ‘‘इस तरह क या ाएँ व
काय म को करते-करते, िजस दौरान म भोजन भी नह कर पा रहा था और सात ह त क लगातार बुखार क बाद
उ री करोिलना प चते-प चते म लगभग बेहोश-सा ही हो गया। म अपने शरीर तं को खराब होता आ महसूस कर
रहा था और काफ तेजी से साँस ले रहा था। वहाँ क डा टर ने मेरी खून जाँच क रपोट को सं कारीकत करार िदया।’’
वह हसते ह, ‘‘और मुझ े अटलांटा और त प ा यूयॉक अ पताल भेज िदया गया। तब तक मेरी सोलह खून जाँच
और चार एमआईआर जाँच हो चुक थ और मने हर तरह क िविच खून जाँच रपोट क एक मोटी फाइल तैयार कर
रखी थी।’’
यूयॉक प चते तक उ ह ने पाया िक उनक गरदन सूजी ई ह और उ ह असहय दद हो रहा था। इस गरदन क दद
क िलए उ ह ने मजािकया अंदाज म कहा, ‘‘सभी लोग मेर चार ओर ह गे। डॉ टर ने कहा िक मेरी लसीका गाँठ
(िल फ नो स) िवषा हो चुक थ । धीर-धीर मेरा सारा शरीर तं खराब और ढह रहा था और उ ह (डॉ टर को) पता
ही नह था िक ऐसा य था। वे कहते थे, ‘तु हार पास दो स ाह का समय हो सकता ह।’ और बेहतर होगा िक म
अपने प रवार को सूिचत कर दू।ँ मेरी लसीका गाँठ का ऑपरशन होना था और मुझे बेहोशी जाँच क िलए ले जाया जा
रहा था। अभी म इतजार क म ही बैठा आ था, िक तभी मने अपने शरीर क तरफ देखा। म जानता था िक कछ ऐसी
गड़बड़ी थी िजसे वे सजरी से भी ठीक नह कर पाते। तकलीफ और कह थी। और मने सोचा, ‘म नह चाहता िक यह
आदमी मेरी चीर-फाड़ करक मेर भीतर झाँक।’ मने कहा, ब त हो गया। म घर जाना चाहता । यू.एस. म यह बात
बड़ी अ छी ह, यिद आप डॉ टर को बता द िक आप घर जाना चाहते ह, तो वे कने क िलए जोर नह दगे। उ ह ने
मुझसे कई जगह ह ता र कराए तािक वे वयं को सुरि त रख और कहा, अब सबकछ आप पर ह।’’
वह कछ िदन तक यूयॉक अपाटमट म ठहर। वयं अपने ऊपर ‘ यास’ िकया और शी ही सभी िचिक सक य
रपोट क सामूिहक बु म ा को चुनौती देन े क िलए अपनी िवशेष सं कारीकत बु म ा को अपनाया। दो स ाह
क अविध म ही वह कहते ह, ‘‘म ठीक हो गया। और लगभग प ीस िदन म ही म कलास पर था। म काठमांड से
कलास तक कार म गया और िफर िकग क ।’’ इस नाटक य थित प रवतन क बाद वह उस समय भी देखने म
कमजोर लगते थे। लेिकन आिखर वह िजसे ायः धरती का सबसे महा रह यमय वाचनालय कहते ह, क समीप प च
गए थे। ‘‘मने कलास क ओर देखा और पाया िक जानकारी देन े क िलए कई सूचनाएँ वहाँ हमार इतजार म थ । म उन
सूचना क एक पहलू क संपक म आया और एक िन त तरीक से इसे अपने ऊपर योग िकया। उसक बाद तो म
उछल पड़ा। म अपे ाकत युवा नजर आने लगा, और मेरी आवाज तक बदल गई— मा एक घंट क समय म।
प रणाम सबक आँख क सामने थे। वहाँ मौजूद लगभग दो सौ लोग ने इसे देखा।’’
एक ोता क प म ऐसी कहानी को मौन म सुनना ही संभव ह। ‘‘यह इस तरह क कहानी ह िजसे आपक नानी क
माँ भी बताने म झप जाएँगी; य िक यह ब त ह।’’ लेिकन म पूछती िफर वयं क ह त ेप से अपने को ठीक
करने से पहले आपने तमाम िचिक सीय बकवास को य होने िदया? ‘‘ य िक मेरी चया (काय म) इसक अनुमित
नह देती थी।
‘‘म लगातार या ा कर रहा था और इसक िलए समय क ज रत थी। और िकसी भी थित म एक बार यिद म वयं
को डॉ टर क हाथ म स प देता , तो म उसे नह बताता िक या करना ह। लेिकन एक बार डॉ टर ने इसे अ ात
उ पि का बुखार िन िपत करक बताया िक यह लाइलाज था जबिक म जानता था िक मुझ े अंदर झाँककर इसे ठीक
करना होगा।’’
इसक पहले िक आप अपनी बात दुिनया क रह यमय पुरालेखागार तक उनक प च और उ ह जान पाने क उनक
मता क ओर मोड़ते लगते ह, उ ह ने बड़ी कशलता से बातचीत का क िबंद ु कलास क आ यजनक बात क ओर
मोड़ िदया। ‘‘इसका वणन करने क िलए सचमुच श द ही नह ह। यिद धरती पर कोई पूरी तरह ‘अनुिचत’ थान ह, तो
वह यह पवत ह, यह काले ेनाइट क च ान ह। यह तक से पर ह। यह आपक चंड क पना से भी पर ह। बचपन
से ही मने कई थान क या ाएँ क ह, भयंकर और आ यजनक थान। लेिकन मुझ े कहना पड़ता ह िक संभावना
और यहाँ जो चीज ह उसक िवशालता म मने अब तक कलास जैसा कछ भी नह देखा। यिद इस अ त व म कोई
भैितक व प ऐसा ह जो िशव क सबसे करीब हो सकता ह तो वह यही ह।’’
जहाँ िचिक सीय परशानी क थितय म वह खुल े तौर पर ब त-से लोग (डॉ टर ) क पास गए, वह स ु वयं
क क र मा िदखानेवाले क भ ी छिव न बनने देन े क ित काफ सावधान रह। हमेशा क तकवादी क तरह, उ ह ने
वा य लाभ करने क ि या को ‘ऊजा शरीर म काय ि या क जानकारी’ कहकर उसे अरह य बना िदया। ‘‘म
इसे क र मा नह कहने देना चाहता, य िक इसका ता पय ह िक आप एक संपूण िव ान, एक संपूण बु म ा, जीवन
क संपूण समझ को ही समा कर दे रह ह।’’ आइए सं ामक बीमारी और िचरकािलक बीमारी म भेद समझ ल।
सं मण से आपको सावधान रहना व वयं को बचाना होता ह। लेिकन बात जब िचरकािलक बीमारी क आती ह, चाह
वह कोई भी हो, इसका मूल कारण ऊजा शरीर म ही होता ह। जब यह बािधत हो जाती ह तो मानिसक शरीर और
भौितक शरीर बािधत होना ही ह। यिद लोग अपने ाणायाम कोष या ऊजा शरीर को ि याशील करने क िलए कछ
साधना करने को तैयार ह, तो िन त ही वह सभी िचरकािलक बीमा रय से दूर हो सकते ह।’’
उनक पास चुर संवेदना ह, लेिकन अंदर क लोग (आ म म रहनेवाले) यह जानते ह िक यह कठोरता से रिहत नह
ह। इशा मंडली म एक जानी-पहचानी कहावत ह, जब आप स ु क िनकट जाते ह, तो सावधान रह। माँ कपूरी कहती
ह, ‘‘उ ह ने िम क तरह शु आत क , बाद म गु बन गए और तभी मने महसूस िकया िक वह िकतने कठोर काम
लेनेवाले ह। जब उ ह ने मुझ े मौन क अविध (जो तीन साल चली) म रखा तो मने उनक उप थित को च वात क
तरह मुझम वेश करते ए महसूस िकया। ऐसा लगा िक म अपने िनयं ण म ही नह थी। मने वयं को पूणतः अिभभूत
गला धा और अंदर से िनचोड़ी ई-सी महसूस िकया। मुझे मृ यु-सा महसूस आ। लेिकन महीन बीतने क बाद इतना
पूण पेण साफ-सुथरा महसूस आ िक ऐसा लगा िक वह िकसी दूसर िकनार पर मुझे ले गए थे। मेरा चय एक
यु भूिम और संघष से भरा रहा ह। लेिकन जब मने अंततः तीन वष क मौन अविध क प ा सं यास ले िलया तो म
सहज हो गई। आज म महसूस करती िक म अंततः घर (ल य) क करीब । मेरा घर कािशत ह। म इसे देख
सकती और म संतु ।’’ उसका मानना ह िक गु क कठोर संवेदना—िजसने उसे उनसे िम ता यागकर यादा
गहरा संबंध खोजने पर िववश कर िदया—क उसक आ या मक या ा म गहरी भूिमका ह।
गु क खरीदारी साफ तौर पर एक भ ा यवसाय ह और स ु ने ायः इसक खतर क बात क ह। लेिकन कोई
कसे जाने िक झटक म सही चीज िमल गई ह? उसक संकत या ह? स ु ढ़तापूवक कहते ह, ‘‘आप अपने गु
क तलाश नह करते। आपको तो गु क िलए अपनी अिभलाषा गहरी करनी होती ह। जब आपको अ ानता का स ा
दुःख महसूस हो तो गु घिटत हो जाएगा। आपको देखना नह ह। यिद आप उनक साथ बैठते हो, तो आपक अंदर क
हर चीज िहलकर रह जाएगी। आप भाग जाना चाहोगे लेिकन आपक भीतर कछ ऐसा रहगा जो आपको ख चकर उनक
पास लाता रहता ह। आप मान सकते हो िक वह आपक गु ह। यिद आप उनक सोहबत म बड़ा सहज महसूस करते
ह, तो वह गु नह ह। शायद वह आपक िम ह, शायद वह ब त अ छ इनसान ह। शायद आपको उनसे आशीष लेना
चािहए। लेिकन अ छ इरादे और सुखद वभाव से गु नह बनते। एक गु का इरादा आपको जगाने का होता ह, न िक
आपको सुला देने का। वह ऐसा य ह जो आपक ारा िनकाले गए सार िन कष को नकार देता ह। वह घूम-
घूमकर सहानुभूित बेचनेवाला नह होता। वह आपक मु क िदशा म आपका साथ देता ह।’’
वह वीकार करते ह िक एक गंभीर आपे ी क िलए भी संभव ह िक वह चमक-दमक और िदखावे म पड़कर गलत
य क प े बंध जाए। ‘‘हाँ, यह एक किठन काय ह, य िक कभी-कभी नकली भी असली से यादा अ छा नजर
आता ह। सबसे पहले आपको देखना होता ह िक यह आपक िलए कर या रहा ह। शायद आपने ई र को देखा हो। तो
या बवंडर ह? इसने तु हार िलए या िकया ह? इसने तुम पर कौन-सा पांतरण उ प िकया ह? यही बात ह। या
इसने िकसी तरह तु ह यादा खुश, यादा सघन मानव क प म पांत रत िकया ह? या तु हारा जीवन बेहतर हो गया
ह? बेहतर, नैितकता क अथ म नह , ब क जीवन क तौर पर। या तुमने अपने अंदर क ओर कदम उठाया ह? यिद
ऐसा ह तो भले ही गु नकली ह, तो सम या या ह? उसका योग करो। वह तुम से चाह या रहा ह। यिद वह तु हारा
पैसा या तु हारी संपि माँग रहा ह, तो वह इस लायक नह ह। तु ह मा उसी जगह जाना चािहए जहाँ वे आपक जीवन
क माँग कर।’’
यह बेशक आ यजनक लगता ह लेिकन स ु क शैली भी तो ब त यादा उदार नह ह। कोई जो तु हारा जीवन
माँग रहा ह, आिखर वह इसका करगा या? वह पूछते ह। ‘‘लेिकन म तो जीवन क माँग ही करता । उससे कछ भी
कम नह । यिद तुम यह दे देते हो, तो म इसे नह पाता । लेिकन स य तो यही ह िक तुम अपना जीवन बाँट देन े क
इ छक हो-यही बात तु ह बदलती ह। यह तु हार जीवन को पांत रत कर देती ह। यिद ये गु तुमसे तु हार जीवन से
कछ भी कम माँग रह ह तो तुम िन कष िनकाल सकते हो िक वे नकली ह। लेिकन सबसे पहले यह देख लो िक यह
कोई पांतरण उ प कर रहा ह। एक धूत य भी सबसे पहले तु ह एक नमूना देता ह, बाद म शायद वह तु ह
ठगने क कोिशश करता ह। लेिकन शु म जब तुम कोई माल लेन े जाते हो, तो वे तु ह िकसी चीज का मु त नमूना देते
ह। इसे खाकर देखो। तु हारी सम या या ह? वे तु ह जहर नह दगे— जहर देना खैर भिव य म िब क िलए ठीक
नह रहता।’’
सदगु म जो बात मुझे हमेशा लुभावनी लगी ह वह ह उनका जीवन क िविवध पहलु क संबंध म ान और उस
ान को य करने का उनका यासहीन तरीका। चाह यह माउट कलास या मानसरोवर झील क रह य पर त काल
भािखत या यान हो या िविभ पिव थल क सं कारीकरण क िवषय म िव तार से बात करने क यो यता हो,
येक य से जुड़ अंतरग िववरण, उनक ान क सीमा वा तव म आ यजनक लगती ह। वह जानते कसे ह? वह
सचमुच इतना कसे जानते ह? मने यह ात करने क हमेशा कोिशश क ह। एक बार उ ह ने कहा, ‘‘जब आप अपनी
तािकक सोच क आयाम क िबना देखते ह, तब कोई समय और थान नह होता। यिद सामा य प से आप देखना
जानते ह तो सबकछ हर समय यह ह। यह ण ही िनरतरता ह, यह पर हर कह ह।’’
उ ह इस िवषय पर लापरवाह होने पर हमेशा खराब लगता ह, लेिकन अरह यमयकरण क ित उनक सभी यास क
अित र वह इस ि या को एक िबंदु सीमा क पर नह समझा पाते। जैसे इटरनेट ह वैस े ही एक ‘इनरनेट’ भी ह। एक
बार उ ह ने मुझ े बताया। ‘‘ येक काय िज ह हमेशा चेतना क तर पर िकया जाता ह, जीिवत रहते ह। और उन पर
प चा जा सकता ह।’’
जहाँ इसम कोई भी पारप रक तक नह ह, वह इसम एक मूलभूत तक काम करता ह। वह कहते ह, ‘‘सम त
रह यमय ान उस आयाम से आता ह जहाँ लोग अपनी ानि य से प च ही नह पाते। यह बोध का पूणतः अलग
आयाम ह। जो तुम देखना, सुनना, सूँघना, वाद लेना और पश करना कर सकते हो वह सीिमत ह। ऐसी भी सूचनाएँ ह
िजनका बोध तुम आँख, कान, नाक, जीभ और वचा से नह कर सकते। जरा एक कमरा या पे र कोप क िवषय म
सोचो िजनसे तुम अलग तरीक से देखने का काय करते हो। जरा अ ासोिनक या सबसोिनक विन क िवषय म सोचो।
तु हार कान आवाज को नह सुन सकते लेिकन यह अ त वान ह। इसी तरह ए सर वह सब देख सकता ह जो तु हारी
आँख नह देख सकत । इसी तरह रह या मक ान से ऐसी सूचना को ा िकया जाता ह जो ानि य ारा बोध म
नह आ सकत । यह बोध का एक अ य आयाम ह।’’
एक बार मने उनसे पूछ िलया िक वे इतने सार और हमेशा नए-नए चुटकले कहाँ से लेकर आते ह। हर स संग म
ऐसा लगता ह जैसे उनक पास नए-नए चुटकले होते ह। उनक जवाब क िलए म जरा भी तैयार नह थी। उ ह ने कहा,
‘‘म उन साथी याि य , जो अंतहीन उड़ान म रहते ह, क मन से िनकाल लेता ।’’ एक ण उ ह ने मेरी ओर देखा
मानो मेरी श का मू यांकन कर रह ह और तब खेद म िसर िहलाते ए कहा, ‘‘इसम चुटकले ह ही नह ।’’
अपनी िवदेश या ा क दौरान अंतररा ीय सेिमनार म भी वह लोग क िदमाग से बात जान लेते ह। ‘‘एक
मेिडकल कॉ स म लोग मेर आधुिनक दवा क ान पर आ यचिकत थे।’’ वह अपनी इस बौ क चोरी पर
िबना माभाव क हसने लगते ह। एक बार कार सवारी क दौरान मने उनसे पूछा िक ऐसा कछ ह िजसे वह अपने
वातावरण म तुरत जान सकते ह। उ ह ने उ र िदया, ‘‘यिद म िकसी ऐसे थान से गुजर रहा तो िकसी तरह से
सं कारीकत ह तो म तुरत जान जाऊगा। और यिद कोई अभी हाल ही म मृत आ ह म उसे भी जान जाऊगा।’’
ऐसा प प से उनक माँ क मृ यु क मामले म आ। सुशीला लूपस (एक चम रोग) बीमारी से िसत और
िकडनी फल क ओर तेजी से अ सर थ । यह प था िक अंत िनकट था। ‘‘मने हदराबाद म एक काय म तय कर
रखा था। मेर िपता मेर ऊपर भड़क ए थे, य िक मने इस काय म को र नह िकया था।’’ स ु कहते ह, ‘‘सारा
प रवार पूरी तरह त ध था।’’ जाने क पूव उ ह ने अपनी माँ से बात क थी और माँ ने भी उ ह अपना काम जारी रखने
क िलए कहा था। ‘‘म जानता था िक वह ज द ही चली जाएगी, लेिकन मने अपने काय म तय कर रखे थे। िपछले
छ बीस वष क दौरान मने एक भी काय म र नह िकया ह। इसिलए य िप मुझ े मालूम था िक वह अपनी साँस
िगन रही थी, िफर भी मने उससे कहा, देखो न, मुझ े जाना होगा। उसने कहा, हाँ, ठीक ह, जाओ।’’
स ु को एक शु वार को प रचय काय म संचािलत करना याद ह। ‘‘काय म क िलए ब त-से नामांकन ए थे।
पंजीयन क बीच म ही, अचानक मुझ े मालूम हो गया। मने घोषणा कर दी िक काय म क संचालन हतु म उपल ध
नह र गा और इसे पं ह िदन क प ा पुनः िनधा रत कर िदया। मने अपनी मोटरसाइिकल उठाई और वापस लौट
गया। म पेनुक डा म एक टिलफोन बूथ क सामने का। उस समय एक बजा था। घर फोन िकया। मने कहा जो आ
था वह म जान गया, और म वापस लौट रहा था। म सुबह 6:30 पर प च गया। अं येि दोपहर को होनेवाली थी।’’
लोग क य व को जाँचने एवं उनक िवचार पढ़ने क उनक यो यता ब त िव यात ह। कई लोग ने यह बात
उनम देखी ह ( ायः वे परशान ही हो जाते ह।) कछ तु छ, लेिकन उपयोगी िववरण को भी वे जान लेते ह। वह तेज
सवारी करने क िलए जाने जाते ह और सड़क पर ब त-से जोिखम इसिलए उठाते ह, य िक वह रा त का मू यांकन
करना जानते ह, कौन-से रा ते पर जाना ह, कौन-से रा ते पर नह जाना ह, रा ते म पड़नेवाली बाधा व गितरोध क
जानकारी उ ह होती ह। एक जमन साधक को उनक जमनी से ांस क भयंकर तेज सवारी हमेशा याद आती ह,
िजसक दौरान स ु को अपने अंत ान से मालूम हो जाता था िक कहाँ-कहाँ िफक जाम होने क संभावनाएँ थ । वह
कहता ह, ‘‘उ ह ने उन सभी रा त को िबना सोचे-समझे छोड़ िदया और अपने गंत य पर रकॉड समय पर प च
गए।’’
जहाँ एक तरफ भौितक दुिनया क उ ह आ यजनक जानकारी ह, वह दूसरी ओर वह दूसर े (अलौिकक) म
अपने ारा िकए जा रह काम क जानकारी भी देते ह। एक बार उ ह ने ए पालिशयन माउटन पर घूमने का एक
िविच वृ ांत कह सुनाया। बात वष 2000 क ह। ‘‘म अकला था और जंगल क बीच से गुजर रहा था। अचानक मुझे
एक आदमी िदखाई पड़ा। वह अकला शांत खड़ा आ, िनराशा और शम क थित म था। वह अमे रका क थानीय
जनजाित क वेषभूषा म था। वह वह , िबना िहले-डले खड़ा आ था, और मने पाया िक उस थित म वह लगभग तीन
सौ साल से खड़ा आ था।’’
हालाँिक उसका भौितक शरीर नह रह गया था िफर भी उसक ऊजाएँ वह अप रवितत पड़ी ई थ । उ सुकतावश
स ु ने उस आदमी क जीवनी ा कर ली। ‘‘यिद कोई अंितम गित या अंितम शांित क थित म ह तो म शी ही
वयं को स मिलत कर देता । इन दोन क बीच क तर क गितय का कोई अथ नह होता। लेिकन अंितम गित या
शांित क थित क लोग— म उनसे दूर नह रह सकता, य िक वह मेरा ड़ा थल ह। मने पाया िक इस आदमी पर
अपने बड़ भाई क र ा क िज मेदारी थी, जो अपने समुदाय म एक तरह का अगुआ था। वह अपने बड़ भाई का
काफ स मान करता था और उसक बगल म चलकर उसक र ा करने को अपना िवशेषािधकार समझता था। तभी एक
ऐसी थित िनिमत ई िजसम दोन क साथ धोखा आ और बड़ा भाई मारा गया। इसिलए अब यह आदमी वहाँ पूरी
तरह असफल और दुःखी खड़ा रह गया। ये ऐसी चरम भावनाएँ थ िक वह इसी तरह लगभग तीन सौ साल तक खड़ा
रह गया! बेशक, शरीर धरती पर िगर गया, लेिकन उसका शेष भाग वैसा ही खड़ा रहा जैसे वह उस समय था। मने
सोचा िक अब उसक चलने-िफरने का समय आ गया था। शम और पराजय म ब त समय तक रहना अ छा नह होता।
इसिलए मने उस थित से आगे बढ़ने म उसक मदद क ।’’ जैसा िक हमेशा होता ह, उसका अपना ह त ेप बड़
आक मक भाव से तुत िकया जाता ह। स ु उन कथावाचक म से ह जो यह जानते ह िक िकसी पं को कसे
हटाना ह, और कसे िकसी िबंद ु पर जोर नह देना ह। इससे उनक ोता बार-बार रह य म पड़ जाते ह। लेिकन प
तौर पर यही तरीका ह।
उनक काय म क चचाएँ साल दर साल ब त बढ़ जाती ह। साल क कई महीने अपने काय म और स संग क
कारण वह देश से बाहर रहते ह। जब वह आ म म होते ह तब वह हर रात तीन या चार घंट से यादा नह सोते। जब
उनक य गत काय णाली क िवषय म पूछा गया तो वह कहते ह िक उनका ितिदन रखरखाव क अ यास म एक
सूय नम कार (िजस पर वह कहते ह िक उ ह चालीस िमनट लगते ह) और बीस सेकड का योग शािमल ह। ‘‘इतना
ही, अंदर क सृजनकता को जगाने क िलए लगता ह,’’ वह बड़ गूढ़ भाव से कहते ह।
मने पूछा िक या गु को कठोर साधना से छट िमली होती ह। वह हसकर कहते ह, ‘‘ि या न तो शरीर क िलए
होती ह, न साँस क िलए। तु ह ऊजा शरीर को ि याशील करना नह आता ह, इसिलए आप अपनी साँस और शरीर को
मा यम बनाकर योग करते ह। लेिकन यिद आप उस सीमा म नह रहते तो ब त कम समय म आप इसे ि याशील
कर सकते ह।’’
वह कभी भी िकसी भी अथ म क र नैितकतावादी नह रह ह और यही बात उनक भोजन क आदत म भी
प रलि त होती ह। वह िदन म दो बार भोजन करते ह। एक बार िदन क साढ़- यारह बजे, िफर शाम को साढ़ सात
बजे। वह शाकाहारी ह, उनक भोजन म हमेशा अनाज क अपे ा स जयाँ यादा रहती ह। जब शाकाहार का िवक प
आसानी से उपल ध नह होता, खासकर या ा क दौरान तो वह समु ी मछिलय का वाद लेना पसंद करते ह। इस
सवहारी भोजन से एक शाकाहारी अमे रकन क समूह ने अपनी आ म क तािवत या ा ही र कर दी थी। वह
सं यासी िजसक संपक म यह समूह था, उसने कहा िक िकसी िन कष पर प चने से पूव वे वहाँ जाकर उस थान का
अनुभव तो ले ल, लेिकन इस खुलासे से वे ऊपरी तौर पर बुरी तरह िहलकर रह गए थे।
जीवन क ित उनका ेम अ य े म भी िव तीण होता ह। जब उनक पास समय होता ह तो उ ह भोजन तैयार
करने म काफ आनंद आता ह। वह दुिनया का सबसे छोटा मसाला दोसा बनाने का दावा करते ह। उनक बेटी इस बात
का समथन करती ह (और बड़ी खुशी क साथ वह बताती ह िक वह दुिनया क सव म रसोईए ह।) वे खेल-कद क
शौक न ह और इस ओर उनका उ साह देखते ही बनता ह। जब वह आ म म होते ह तब आ मवािसय क साथ शाम
को उ ह वॉलीबॉल खेलते देखा जा सकता ह। गो फ एक ऐसा खेल ह िजसक ित वे काफ किटब ह। जब कभी
उ ह अपने य त काय म से कछ िदन िमल जाते ह, तो वह गो फ खेलने म म त हो जाते ह। इसक प ा उनका
संगीत क ित ेम (जब कभी उ ह समय िमलता ह, वह शा ीय संगीत सीखते ह, और उनक संगीत िश क उ ह
उ सुक छा बताते ए कहते ह िक कभी-कभी उनका यान भटक जाता ह।) साथ ही उ ह किवता से बड़ा लगाव ह
(वे हमेशा ही पो ी फामवाले वष क बात करते ह जब उनक पास घंट का समय उनक लेखन को समिपत था।
तेज कार क ित उनका ेम अभी भी बरकरार ह और उनका जाना-माना उ साह ह। ‘‘म लोग क साथ स संग म
मदम त होकर भावावेश म रो सकता । अगले ही ण अपनी कार म सवार होकर सवािधक जोशीला ाइवर भी हो
सकता ।’’ यह बात उ ह ने बड़ गव से तब बताई जब वह िकसी योगी ारा उसक भीतर इडा और िपंगला—चं
और सूय त व —नािड़य को िनयंि त करने क बात कर रह थे।
‘‘इस बार कलास क या ा पर, म चीन म सबसे जोशीला ाइवर था। ित बती ाइवर मानते ह िक कवल वही ाइिवंग
कर सकते ह। लेिकन जो अिधकतर लोग तीन िदन म करते थे, म एक ही िदन म कर लेता था। जब म प च गया और
अपनी कार से उतरा, ित बती ाइवर ने अपनी िसगरट फक और हाथ जोड़कर मेर सामने खड़ हो गए। इसिलए नह
िक म गु और कछ और ब क मेरी ाइिवंग क कारण! जब आपको अपने भीतर क दोन पहलु का िनयं ण
मालूम होता ह तो आप यानशील या वा गामी— हो सकते ह— थित क अनुसार।’’
हसते ए उ ह ने आगे कहा, ‘‘िशव ने हर िकसी क िलए दो लक र ख च लेिकन मेर िलए मा एक लक र।’’ मने
कहा ऐसा प पात य ? ‘‘अर, वह मेर साझेदार ह, वह प पाती ह।’’ वह हसे और समझाने लगे; ‘‘एक जागृत य
क िलए सूय और चं मा का अ त व नह होता। ैत रहता ही नह । दोन लक र एक म ही िमल जाती ह।’’
प ह, कोई भी जो सूय और चं त व को संतुलन म संचािलत कर लेता ह, उसक पास इ छानुसार थितय का
यु र देन े क वतं ता होती ह। ‘‘कभी जब मेर पास समय होता ह तो म रोता ।’’ वह कहते ह, ‘‘म इसम स म
। म हसने से रोने म आ सकता , णभर म ही। ऐसा इसिलए िक जो अंदर चल रहा ह वह चेतन ह। इस दुिनया म
ब त-सी चीज ऐसी ह िजनक िलए आँसू बहाए जा सकते ह। और ब त-सी चीज ऐसी ह िजनक िलए हसा जा सकता
ह, ह ना? यिद म चा तो एक फल क तरफ देखकर रो सकता । म एक प ी या बादल को देखकर रो सकता । म
भावना मक प से अपािहज नह , म भावना म स म , लेिकन म थितय म िववश हो जाने को बा य नह
होता।’’
उनक खी व संि बात क मता और ती ण बु क बावजूद स ु को जाननेवाला कोई भी, उनक
भावना मक प क ित संदेहा पद नह हो सकता। जैसा िक एक आ म रहवासी का मानना ह, ‘‘मेरा अनुमान ह हमम
से सभी को िकसी-न-िकसी तरह उनक मम व और कोमलता क अनुभूित ई ह, जो स ु क िवशेषता ह। िबलकल
सहज प से वह हमार िलए सवािधक दयावान य ह। यही बात हम किठन ण म संभाले रहती ह।’’
लगभग येक महास संग क अंत म ायः उनक आँख म आँसू होते ह। एक बार मने उनसे पूछा िक या वे आँसू
ेम या संवेदन क होते ह? उ ह ने बेिझझक सहज उ र िदया, ‘‘सघनता और समािहतता क।’’
िलंग भैरवी मंिदर क हाल ही म संप सं कारीकरण क दौरान स ु क आँसू खुलकर बह। उ ह ने वीकार िकया
िक इसक वजह देवी क ऊजा और पांच हजार साधक क भारी श थी िजससे वह अिभभूत हो उठ। उ ह ने बड़ी
रह यमयता से कहा, ‘‘म दो क बीच दबकर रह जाता । देवी क श से मुझ े आशीष िमल रहा ह। इसिलए यिद म
इस तरह देखता तो म रोता और यिद म दूसरी तरह से देखता तो रोता ।’’
उ ह ने यह बात वीकार क िक िजस िकसी ने भी उ ह सड़क पर देखा होगा, वह उ ह भावुक य नह मान
सकता। लेिकन जीवन को पूणता म जानने क िलए य को न तो पूरी तरह आदमी होने क आव यकता ह और न
पूरी तरह औरत। ‘‘यिद पूण आदमी होने क ज रत पड़, यिद पूण शैतान होने क ज रत पड़, और पूण भगवान भी
होने क ज रत यिद पड़— तो मानव चेतना म यह संभावना उपल ध ह। संभावना क जानकारी येक मनु य को होनी
चािहए।’’
लोग और प र थितय क ित उनक खुलेपन से उनक जाननेवाले लोग म र ा मक भाव आ जाते ह। कछ ऐसे ह
जो यह बताते ह िक स ु क समािहतता क भावना कभी-कभी अिववेकपूण हो जाती ह। ‘‘िशव को भोलेनाथ कहा
जाता ह, ह ना?’’ एक बार एक साधक ने मुझसे पूछा था। उसका इशारा साफ था; शायद स ु अपनी अ छाई क
िलए अ यिधक िव ासी थे।
वयं स ु अपने शुभाकां ी र क से खुशी और ओपचा रक यवहार करते से लगते ह। हाल ही म उ ह ने अपने
जीवन क िबंदास रवैय े क िवषय म रोचक ि कोण तुत िकया, ‘‘म एक ऐसा जीवन जीता जो पूरी तरह
चौकसहीन ह। कोई भी मुझे धोखा दे सकता ह। यह बड़ा सहज ह। इसिलए नह िक मुझम वयं क र ा करने क
बु नह ह, ब क मा इसिलए िक जो मेर पास ह उसे चोरी नह िकया जा सकता। यिद कोई इसे ले लेता ह तो मुझे
ब त खुशी होगी। आप मुझ े धोखा देकर अ छी तरह रहने क िवषय म नह सोच सकते। ऐसा कभी नह होगा। यह कोई
धमक या अिभशाप नह ह। यह तो जीवन का तरीका ह। आप आकाश क ओर थूककर, अपने थूक का छ टा वयं
पर न पड़ने क कभी नह सोच सकते।’’
एक बार एक खुशिमजाज प कार ने उनसे पूछा िक यिद उ ह कोई आतंकवादी िमल जाए तो वह या करगे। इस पर
उ ह ने जवाब िदया, ‘‘सबसे पहली बात तो यह ह िक म िकसी को आतंकवादी क प म नह देखता, हर िकसी को म
संभािवत आतंकवादी क प म देखता । यिद आप िकसी को ज रत से यादा छड़ते ह तो हर िकसी क आतंकवादी
होने क संभावना ह। लेिकन यिद कोई आतंकवादी गितिविधय म शािमल रहा य मेर पास आता ह, तो शायद म
उसे गले से लगा लूँगा। यह तरीका कारगर होने म कभी चूक ही नह सकता—यिद वह वयं क अंदर एक सुखद
अहसास महसूस करता ह, यिद उसका ोध और घृणा कछ समय क िलए समा हो जाते ह, तो वह िकसी क िलए
आतंक नह रह जाता।’’ यहाँ तक तो एक गु क जुबान से िनकला आ यह उ र वीकाय था। लेिकन इसक बाद
स ु ही तो ह, और वह ऐसा कहने से वयं को रोक न सक, ‘‘लेिकन यिद म िकसी ऐसे य से िमलू ँ जब वह
आतंक काय को अंजाम दे रहा ह, तब म उसक ह या कर दूँगा।’’ वह प कार एकदम से सहमा-सा िदखा, और कहा,
‘‘यक नन आप उसक ह या कर दगे?’’ स ु ने जवाब िदया, ‘‘अर जब वह आदमी गोिलयाँ बरसा रहा ह तो भला
आप मुझसे या करने क अपे ा रखते ह? या यह कहने क —‘असतो मा स मयः।’’
और बेशक, यही स ु का उ र ह। कछ भी—अिहसा भी नह —उनक धािमक मा यताएँ नह ह। िजस य को
आव यकता ह उसक िलए वह अपने वयं म ही संवेदना ह, अगले ही ण ज रत पड़ तो वह ज रत क अनुसार
नृशंस बन सकते ह। आपको सचेत रहना ह और जो ज री हो, वह करना ह। यही बु ह, यही चेतना ह और यही
जीवन ह। जब आप म चेतना होती ह तो आपको नैितकता क ढाँच े क ज रत नह पड़ती। इस सं कित क हमेशा से
यही ज रत रही ह। जब कभी भी चेतना म गोते लगाए गए, सही तरह क लोग सामने आते रह, इस पर काय िकया
और इसे प िवत िकया। अब दुभा यवश हम एक ऐसे खतरनाक िबंद ु क ओर बढ़ रह ह जहाँ न नैितकता ह और न
चेतना। यिद हम मनु य क चेतना को ऊपर उठाने क िलए तुरत कछ नह करते तो हम नैितकता क भयंकर जाल म
फस जाएँग।े और यिद हम यह भी नह करते ह, तो हम घोर अ यव था म पड़ जाएंग।े ’’
कछ वष क दौरान उनम प प से काफ बदलाव आया ह। भारती कहती ह स ु अब वह य नह ह
िज ह वह कभी जानती थी। ‘‘जब म पहली बार उनसे िमली तो वह आग क गोले क तरह थे। अब वह यादा मधुर हो
गए ह। उनक उप थित क भौितक भयंकरता लगभग समा हो चुक ह।’’ माँ कपूरी इस बात से सहमत होते ए
कहती ह, ‘‘वह अब कभी-कभी इतने खूबसूरत-िश और चालाक लगते ह िक मुझ े उ ह उस प रप , सघन य
िज ह म कभी जानती थी, से जोड़ने म किठनाई महसूस होती ह। लेिकन अब म उनसे सामािजक प से जुड़ी नह —
कवल आंत रक संबंध रह गए ह— इसिलए यवहार संबंधी प रवतन का कम भाव पड़ता ह।’’
स ु इस बात क पुि करते ह िक उ ह ने कछ प रवतन वयं म िकया ह। ‘‘सं कारीकरण क बाद मने एक
किवता िलखी िजसम मने कहा—‘िशखर म ब त समय रह चुका। अब जीवन क घाटी म चरने का समय ह...’ अब म
यही तो कर रहा —घाटी म चर रहा । पहले म एक आ मघाती द ता था। कवल एक ही काम म करना चाहता था
और जब उसक बाद शरीर टट भी गया तो मने तिनक परवाह नह क । मेरी ऊजाएँ मा एक ही उ े य क ओर घूम-
घूमकर जाती थ और कछ भी नह । वह था इन सभी लोग को एक ही िदशा म ले जाना—जीवन म िविभ ितरोधी,
नासमझ और उलझे तर क लोग को। इसम कछ जोर-जबरद ती क ज रत थी। लेिकन यानिलंग क सं कारीकरण
क बाद, मने वयं को अपने संपूण य व क बदलाव क िलए तैयार कर िलया।’’
जहाँ कछ साल क दौरान ब त-से लोग उनक भूिमका और तौर-तरीक म एकदम से आए प रवतन क कारण
िव ु ध रह ह, वह स ु एक यथाथवादी ल य क ित जरा भी नह बदले—जो िकए जाने क ज रत ह, उसे करने
का मह व। उनक िश य ने उ ह यानिलंग क रचना करनेवाले उदासीन संत और िलंग भैरवी का सं कारीकरण
करनेवाले हष मादी भ क बीच दोलन करती ई थित म पाया ह। इसिलए समय-समय पर उनक िश य ारा ये
न उठते रह ह िक स ु और ा ड इशा व तुतः ह या? ‘‘म वा तव म िकसी ा ड से मतलब नह रखता। मेरा
मतलब मा इस बात से ह िक आप कहाँ ह। या आप संभावना का सामना करते ए खड़ ह या आप िकसी और क
सामने खड़ ए ह? मेरा यास िसफ यही ह िक आप दरवाजे क ओर मुँह करक खड़ ह । अचेतन थित म भी यिद
आप सही िदशा क ओर ह, तो ठीक ह। भले ही आप न द म चल, तो भी ठीक ह; तब भी आप पार हो जाएँग।े म
सोचता िक आव यक ा ड भी हमेशा से यथ नह रह ह— जो कारगर हो उसे करते रहना। यही मेरा ा ड ह।
अब यह ंथ म िलखा ह या नह , इससे कोई फक नह पड़ता। यह कारगर ह—यही मेरा ा ड ह, और अब भी यही
ा ड ह। ‘शायद’ वह हसते ए वीकारते ह, ‘‘आजकल यह यादा जिटल होता जा रहा ह...।’’
ज रत तो िन त ही ह, लेिकन शायद यह यादा मूक ह। िन संदेह अब उनक पास यादा से यादा लोग प च
रखते ह, और वह यादा सामािजकता पसंद भी ह। उनका काय े अंतररा ीय ह, और िविवधता एवं पेचीदगीपूण
थितय म खेलने को लेकर वह अनिभ भी नह ह। एक योग क क मुख होने क साथ-साथ ब त-सी ऐसी
सामािजक प रयोजना म प च रखना, कारपोरट क िद गज को और सरकारी अिधका रय को संतु रखना और
अपना संगठन किठन राजनीितक थितय म आगे ले जाने क िलए यवहार कशलता, चालाक व कठोरता क ज रत
तो पड़ती ही ह। और प ह िक इस काम म वह िनपुण ह।
उनक एक पहलू को म अंदर से अभी भी समझने क कोिशश कर रही । एक ऐसा य जो इतने िवशाल
आ या मक समुदाय का संचालन कर रहा ह, उसक िलए कछ हद तक राजनीितक जाग कता को म समझ सकती ।
म यह भी जानती िक यिद वह कछ आव कता क तर पर हद पार करने म नह लगे होते, तो कई लोग को, मुझे भी
उनक अ त व का पता ही नह रहता। लेिकन मेरा िवचार ह िक म एक ऐसे िवनीत भाव क आ या मक गु क ित
यादा सहज रहती जो चचा म रहने से दूर रहता, यान-मनन का शांत जीवन जीता, किटब साधक क छोट-से समूह
को उपल ध रहता, आ या मक िवषय पर अपनी राय देता और अ य मु पर टीका-िट पणी करने से बचता। लेिकन
ऐसे िकसी गु क थान पर यह दु साहसी, हष मादी य ह जो मेरा गु बन गया, जो साउथ अ का म इिडयन
ीिमयर लीग मैच का मु य अितिथ रहता ह, उ तरीय आिथक सभा क शोभा बढ़ाता ह, रशमी शाल धारण करता
ह, नारीवाद से लेकर समलिगकता तक क न पर िट पणी करता ह।
एक बार मने उनक व ड इकॉनॉिमक फोरम पर जाने क पूव सं या पर उनसे पूछा, ‘‘इस संगठन क साथ समझौता
कर रह ह, या?’’ ‘‘यह समझौता करने क बात नह ह,’’ उ ह ने धैयपूवक उ र िदया, ‘‘यह अपने संसाधन और
ऊजा को वहाँ लगाना ह जहाँ इससे अिधकतम प रणाम ा होता ह। आप अपने बीज प थर म नह बोते, आप इसे
उपजाऊ िम ी म बोते ह। वा तिवकता यह ह िक अब तक आ या मक लोग अपनी िज मेदा रय से बचकर भागते रह
ह। िज मेदा रय से भागना योगदान नह ह। यिद लोग, समाज, यहाँ तक िक ाचार आपका काय े ह तो
इकॉनॉिमक फोरम भी आपका काय े ह। इस देश म गु हमेशा राजा क पास जाया करते थे, इसिलए नह िक उ ह
पैस क ज रत थी, ब क इसिलए िक यिद आप अपनी कछ सलाह उस य (राजा) को दगे, तो लोग अमन से
रहगे। यिद आप एक गाँव म जाकर एकांत म रहते ह, तो राजा एक िदन म ही आपका काम व त कर देता ह।
आ या मक काय करने क िलए मुझे िकसी िव ापन या चार क ज रत नह ह। थम पं ह वष तक मने कभी भी
ेस कॉ स नह क , कभी टलीिवजन पर नह आया; कोई बैनर-पो टर नह थे। लेिकन म सदा य त रहा।
आ या मक काय क िलए मुझ े चार क ज रत नह ह, लेिकन अपने काय क सामािजक िह से क िलए, मुझ े चार
क ब त यादा आव यकता ह।’’
तो या एकांतवासी, भगवा व -धारी ऋिषय क िदन लद गए, आज क गु तो साहसी व वायुयान म या ा
करनेवाले, बाजार क माँग का सुराग रखनेवाले ह, या इस सं मण क दौरान कछ खो नह गया? उ ह ने हसते ए
कहा, ‘‘योगी हमेशा से ही साहसी रह ह।’’ उ ह ने हािजर जवाब िदया, ‘‘वे हमेशा ही उ साही लोग रह ह। रह यवादी
भी रगीन तरह क लोग थे। कवल ऐसे लोग जो उनक तरह बनने का यास कर रह ह, वे ही लंगोटी धारी ह। यह
महसूस करने म कछ समय लगता ह िक कोई लंगोटी धारी तु ह आ या मक नह बना सकता। ब क सभी ने भगवा
व क चरण से गुजरकर यह जाना होगा। यिद तुम अपने जीवन म लंगोटी धारी क चरण से गुजरते हो, तो तुम इसे
(उ ह ने अपने कपड़ क ओर इशारा िकया।) एक अलग तबे से पहन सकते हो।’’
एक अ य अवसर पर, उ ह ने कहा, ‘‘लोग कहते ह, िक म जाज बुश से यान करा सकता । अब वह जो िनणय
लेगा वे गुणा मक प से िभ रहगे। यिद उसने इराक पर आ मण क पहले यान कर िलया होता तो वह अलग तरह
का िनणय लेता। म बुश को एक आिदवासी मिहला से अिधक नह आँक रहा । इन दोन म कोई अंतर नह ह। लेिकन
क पैदा करक िफर उसक राहत का यास करने क बदले, हम उन तक प चकर, जो सामािजक िज मेदा रय क
थितय म ह, हम उन क को टाल सकते ह जो जारी ह।’’
चाह वह कोई राजनीित हो या पॉप टार, उनम से िकसी को भी योग िश ण देन े म उ ह कोई गुरज नह ह।
लेिकन, एक बार मने उनसे पूछा, या समािहतकता और भेदभाव न करने क थित क बीच बारीक-सा अंतर नह
होता? लेिकन पेज ी तर क आ या मक साधक को उ प करने क खतर या ह? उ ह ने उ र िदया, ‘‘जो म कर
रहा उसको लेकर म कोई समझौता नह कर सकता। ब क म िकसी माइकल जै सन क िलए िन त ही काय म
क गा, यिद वह सभी क िलए इसे उिचत बताता ह। अब सही बात तो यह ह िक िकसी माइकल जै सन जैसे का यान
करने से उसक करोड़ अनुयायी अपनी आँख बंद करक उसक जैसा होने क कोिशश करगे। यह बुरी बात नह ह। वह
मुझसे यादा भावशाली रहगा। मेरा उससे कछ सरोकार नह ह। तु ह यावसाियक लगता ह? म तो इसे समझदारी
समझता ।’’
एक लंब े समय से जुड़ वयंसेवी ने इशारा िकया िक इशा फाउडशन क साथ अपनी या ा क दौरान अपने िह से क ,
इसम बने रहने या छोड़ने क उलझन से उबरने क बाद, जो बात उ ह इसम जुड़ रहने क िलए उ सािहत करती ह, वह
यह ह िक यह मौिलक प से एक उपयु संगठन ह। इसम ा णवाद, सामंतवाद, भाई-भतीजावाद को
सावधानीपूवक अलग रखा गया ह। ‘‘इस देश क अ य आ या मक संगठन क िवपरीत जाित, पंथ और प रवार यहाँ क
िनयं क घटक नह ह,’’ उनका कहना ह, ‘‘यिद यहाँ प रवार क सद य ह जो अपनी भूिमका िनभाना चाहते ह, तो उ ह
अ य लोग क तरह संगठन क साथ आगे बढ़ना होगा। उ ह कोई िवशेषािधकार नह िदया जाता। भारत क ब त-से
दूसर आ या मक संगठन म आ या मक ि या तो समिपत वयंसेिवय ारा दी जाती ह, लेिकन जब पैस े और
संपि क बात आती ह तो इसम बड़ करीब से गु क प रवारवाल का एकािधकार रखा जाता ह। इससे इन संगठन क
िवषय म या मालूम होता ह?’’
य िप स ु सावजिनक भूिमका िनभाने का वाद चखते ह, िफर भी उनक अनुसार वह ‘जान-बूझकर अस य’ बने
रहने को ाथिमकता देत े ह। इसिलए जहाँ उनका तौर-तरीका सामािजक प से ब त कम अनुपयु रहता ह, वह
दूसरी ओर वह दुिनया क कोई सवािधक चतुर कटनीित भी नह ह। पहले वष जब वह व ड इकानॉिमक फोरम म
शािमल ए, तब उ ह ने अपने ती ण भाषण और प वादी सोच से ब त से ितभािगय को धराशायी कर िदया।
लेिकन, िफर शाम क नृ य काय म म उ साहपूवक भाग लेकर उ ह ने इसे उड़ा िदया। ऐसा बरताव एक संत क िलए
वीकाय नह था। इससे कई उ ोगपित और उनक प नयाँ िहलकर रह गए। वे सभी शराब पी रह थे और नाचने म
संकोच कर रह थे। ‘‘ य िक वैस े तो म हर समय नशे म ही रहता , म गया और नाचने लगा!’’ कछ तो इस नतक
योगी क ित ेमास हो गए और दूसर यह सब पचा नह पाए।
एक बार स ु ने कहा, ‘‘एक गु का काम सं ेिषत करना होता ह। सं ेषण अ यापन से कह यादा मह वपूण
होता ह, अ यापन तो मा दरवाजे पर द तक देना ह।’’
वह ऐसे य ह जो मा यता को आ मखोज क राह का रोड़ा, या भार व प मानते ह। ऐसी थित म यहाँ कोई
आ य क बात नह ह िक स ु क िश ा क कोई सै ांितक णाली नह ह िजसे ‘स ु िश ा’ कहा जा सक।
वह कहते ह िक उनका उ े य सभी िनिमत मा यता को ख म करना ह, इसम अपना योगदान देना नह ह।
इशा योग काय म म काफ गैर तारत य बात ह, ज द ही यह प होता ह िक िकसी बात का मु य िबंद ु कह और
ह।
‘‘म आपक तक को आकिषत करता य िक यही एक तरीका ह िजससे म आपको अपने साथ बैठा सकता ।’’ वह
ायः कहते ह, ‘‘ य ही म तािकक होने से हटगा, आप खड़ ह गे और चले जाएँग।े इसिलए म तािकक , लेिकन एक
सीमा तक। यिद म िनवाण क बात क तो जहाँ तक आपक बात ह, यह एक ब त बड़ी बात होगी। और यिद म
वयं को कट करता तो आप कल वापस नह आएँग।े हर थित म तािकक िदमाग, इसक अपनी प रभाषा से ही,
हर चीज को दो भाग म बाँट देता ह। लेिकन िनवाण का अिभ ाय कवल एक ही ह। इसिलए आप िनवाण क चचा नह
कर सकते आप इसक आसपास क बात कर सकते ह।’’ और वह इसक आसपास क बात करने म ब त अ छ ह।
और इसक पीछ उनक यह सोच ह िक उनक ोता लौटकर आते रहते ह। अ य ब त से रह यवादी संत क तरह
स ु भी िवरोधाभासी हो सकते ह।
एक बार मने उनसे पूछा, ‘‘रह यवादी होने का ता पय—सही अथ म या होता ह?’’ उ ह ने उ र िदया, ‘‘दो गाय एक
चरागाह म चर रही थ । एक ने दूसरी से कहा, ‘मैड काऊ’ रोग क बार म तु हारी या राय ह? दूसरी ने कहा, ‘म इन
बात से मतलब नह रखती। खैर म तो हिलकॉ टर ।’’
‘‘यिद एक गाय महसूस कर ले िक वह गाय ह तो वह सेिलि टी—एक पिव गाय-बन जाएगी। यह उतना ही सरल ह।
यह आ मबोध का न ह। भारत म हमने रह यवादी संत को ‘आ मबोध’ ा ाणी कहा ह। यह िकसी चीज का
आिव कार या खोज करने का काम नह ह, यह तो मा इतना महसूस या बोध कर लेना ह िक आप ह कौन। यिद कछ
ऐसा ह िजसे तुम समझ नह पा रह हो तो यह तु हार िलए रह यय ह। वह, िजसक बार म सोचा जाता ह िक उसे वह
सबकछ मालूम ह, जो दूसर को नह मालूम, वही रह यवादी संत कहलाता ह। लेिकन रह यवादी संत वह य ह
िजसने यह बोध कर िलया ह िक वा तिवकता या ह। दूसर नह जानते य िक वे इतने खोये ए ह िक जीवन या ह,
इस बात पर यान नह दे पाते।’’
िफर इस ान म इतना िवशेष या ह? इसम इतनी बड़ी बात या ह िक एक गाय को अपना गाय होना मालूम हो
जाए? उ र म वह कहते ह, ‘‘यिद तुम जीवन को जान लो, यिद तुम स य को जान लो, तो तुम जान जाओगे िक कसे
सभी चीज चलती ह। तब यिद तु ह ेम या हष माद या आनंद चािहए, तो यह तु ह हािसल ह। मनु य क गहनतम
इ छा वतं ता ह। और यह भी तु ह उपल ध ह। चामुंडी िहल म मेर अनुभव क बाद समय और थान मुझम ही िमलना
शु हो गए। अचानक—जो वहाँ था वह यहाँ हो गया; जो तब था वह अब हो गया। म हर िकसी का भूत, वतमान और
भिव य एक समय ही, एक साथ देख सकता था। यह सब एक शानदार उलझन थी। लेिकन यह पूणतः खूबसूरत भी
थी। तब मने महसूस िकया िक सभी मानवीय अनुभव विनिमत ह। हालाँिक अिधकतर मनु य यह समझते ह िक उनक
अनुभव उनक आस-पास क घटना से िनिमत ह लेिकन मने महसूस िकया िक ये सौ फ सदी विनिमत ह। आप
अपने अनुभव को जैसा चाह बना सकते ह। एक ण क खुशी अपने भीतर महसूस करने क िलए, हर आदमी िकतना
ितर कार सहन करता ह। णभर पूणता को महसूस करने क िलए, लोग ने अपने जीवन को या सकस बना रखा ह।
और वह भी कभी पया नह होगा। आदमी म हमेशा कछ और पाने क इ छा बनी रहगी। मजबूरी क पर जाने क यह
मजबूरी ही आधारभूत मानवीय आव यकता ह।’’
स ु क एक चुटकले से लगता ह िक उनक मनु य क ित राय चापलूसीपूण नह ह। दो मगरम छ क मुलाकात
ई। उनम से एक खूबसूरत और मोटा-ताजा िदखाई दे रहा था, दूसरा एक वष क स यम काय म क तरह िदखाई दे
रहा था (सात िदन क अि म इशा काय म क ओर इशारा ह िजसम भोजन को सादा कहना एक यूनो होता।) वह
झील जहाँ वे रहते थे, वह अदालत क करीब थी।
दुबले-पतले मगर ने कहा, ‘‘अर िम तुम इतने मोट-ताजे कसे हो गए? हम दोन तो एक जैसा ही भोजन कर रह ह,
लेिकन तुम तो बड़ अ छ लगते हो। जरा मुझ े देखो। म तो ह य का ढाँचा और चमड़ी मा ।’’
मोट मगर ने कहा, ‘‘तुम अपना िशकार कसे पकड़ते हो?’’
दुबले-पतले मगर ने कहा, ‘‘म पािकग थल क पास जाकर, जहाँ वक ल अपनी कार खड़ी करते ह, ताकता रहता
। और जब वे अपनी कार का दरवाजा खोल रह होते ह, म कार क नीचे से जाकर, उ ह पकड़ लेता , कार क नीचे
ख च लेता , उ ह िहलाकर सारी गंदगी बाहर करने क बाद उ ह खा जाता ।’’
दूसर मगर ने कहा, ‘‘यही तो गलती ह। यिद तुम सारी गंदगी बाहर िनकाल दोगे तो जो बच रहता ह, वह तो ीफकस
मा ह।’’
‘‘तो यिद हम तु ह िहलाकर सार कम बाहर िनकाल देत े ह,’’ सदगु कहते ह, ‘‘तो या रह जाता ह? यादा कछ
नह ।’’
लेिकन िफर वही धुरीय िवरोधाभास। यिद मनु य गंदगी क ढर और एक ीफकस से यादा कछ नह ह तो िफर गु का
अपना सारा जीवन मानवीय दशा को समझाते ए य बीत जाता ह, इसक तािककता या ह? ेरणा या ह? एक बार
स ु ने मुझ े बताया, ‘‘यह िबलकल गलत बात ह िक तु ह कछ करने क िलए अित उ सािहत हो जाना चािहए।’’ मने
पूछा, ‘‘ या िबना फल क िचंता िकए ए पूण संिल ता होनी चािहए?’’ उ ह ने, िन काम कम जैसी िघसी-िपटी बात
क संभावना क ित सचेत रहते ए तुरत कहा, ‘‘म ब त संिल । लेिकन यिद यह नह होता, तो म टट तो नह
जाऊगा। हमार लोग क साथ म ब त गहराई और उ साहपूवक संिल । यिद आप क क भय से मु ह, तो या
आप वयं को जीवन म संिल करने से डरगे? अभी तो आप सामा य प से क क डर से िहचिकचा रह ह। यिद
क का भय समा कर िदया जाए तो या आप अपने आसपास क चीज म वयं को पूरी तरह संिल नह करगे?
‘‘ या आप वयं को जीवन म नह झ क दगे? या आप कम क अपे ा यादा ेम नह करगे? यह आ म, ये भवन-
इमारत, जो कछ भी हम कर रह ह, य गत तौर पर मेरा इनसे जरा भी सरोकार नह ह। य ही म यह बात कहता
लोग सकते म आ आते ह। या वे पूछ बैठते ह, ‘यिद इनका आपसे कोई सरोकार नह ह, तो आप यह सब कर य रह
ह?’ इसी बात को आपको समझने क आव यकता ह। हालाँिक य गत प से मेर िलए ये सब कोई सरोकार नह
रखते, िफर भी, म अपना जीवन यह सब करते ए गुजार देना चाहता । म यह सब इसिलए नह कर रहा िक इनका
मेर िलए कोई िवशेष मह व ह, म इसिलए करता िक इनक ज रत ह, बस।’’
शु से ही स ु क जो बात मुझ े अ छी लगी, वह यह िक वह िन ा और तक, आ या मकता और िव ान,
पिव और भौितक म कोई िवभाजन करने से इनकार कर देत े ह। वह ायः इस बात को दुहराते ह, आप भौितक चीज
म हलक -फलक िच रखते ए आ या मक य ह, हालाँिक आप सोचते ह िक यह इसका उलटा ह। ‘‘मु मेरा
िवचार नह ह, यह तो येक तरह क जीवन क मूलभूत आकां ा ह। येक मानव म समािहतता और िव तार, आ म
प रर ण और असीमता क एक ही समय आव यकता ह। शरीर क अिभलाषा क साथ, वयं क अिभलाषाएँ एक
साथ जुड़ी होती ह। भौितक कित इसे संरि त करने का यास कर रही ह तो आ या मक कित इसका िव तार कर
रही ह। इसक पर सुरि त और संरि त करना कारावास ह। आ या मक ललक ज मजात होती ह, लेिकन ज रत से
यादा िश ण- िश ण क कारण लोग को लगता ह िक यह बाहर से आ रही ह। आप सव-समािहत करने क इ छा
को रोक नह सकते। आदमी म ऐसा कछ ह िक वह सीमाएँ पसंद नह करता। असीम होने क यह यास आप िनिमत
नह करते, यह तो जीवन क वयं को ा करने क अिभलाषा ह। आप चाह तो आप िक त म इसे अदा कर सकते
ह। लेिकन आधारभूत अिभलाषा तो कछ असीम जैसा ही हण करने क ह, तब तक यह अिभ सा बनी रहगी। सचेत
भाव से आ या मक होना, समझदारी ह।’’
अपनी बात समझाने क िलए वह लावा क िततली बनने और बीज क पेड़ बनने क काफ पुराने उदाहरण देत े ह।
इनक ि या म अिनरतरता महसूस होने क बाद भी, ये िनरतर ाकितक ि याएँ ह। यिद कोई बीज न फट तो एक
नया अंकरण कभी न हो। कभी कोई संभावना ही न हो, यिद आप इसक आवरण को सुरि त करने का यास करते ह।
बीज वृ बनने क ि या म वयं को खो देन े का भारी संघष करता ह—यह अपनी सुर ा, अखंडता खोकर और
आसपास क थितय क ित वयं को खुला रखकर अपनी पूणता हािसल करता ह। लेिकन इन प र थितय से गुजर
िबना जीवन अंक रत नह होगा।
जीवन क इस अंकरण म िकन बात क आव यकता होती ह? प ह, ‘‘जैसी प र थितयाँ ह, उनक अनु प ढलते
जाना या काय करना, न िक इस ि या क अिनवायता क िखलाफ संघष करना। िवकास तो खैर होता ही ह। पसंद
तु हारी अपनी इ छापूवक या अिन छापूवक ह। यिद आप इ छक ह तो यह ेम ह और यिद आप अिन छक ह तो यह
बला कार ह।’’
स ु क एक और बात जो अ छी लगती ह वह यह िक वह कम क कोई िनधा रत-सी प रभाषा नह देत।े वह
ायः यही कहते ह, ‘‘यिद आप सचेत रहकर अपनी जीवन ि या संचािलत करने क इ छक ह तो आपक िलए भा य
क कोई बात ही नह ह। भा य तो सौ फ सदी आपका सृजन ह। अब भी ऐसा ही ह। फक िसफ इतना ह िक आप इसे
िबना सचेत ए, भूलवश िनिमत कर रह ह। योग तो यह िसखलाता ह िक आप अपने भा य क िवधाता इस तरह बन
जाएँ िक आपका जीवन, मृ यु और ज म ही आपक हाथ म आ जाए।’’ वह िठठोली करते ए कहते ह, ‘‘अिधकतर
लोग अपनी सफलता का ेय तो वयं लेना चाहते ह लेिकन अपनी असफलता का कारण अपने कम या दैवीय
इ छा को बताते ह।’’
िकसी ंथ, आदश, धारणा, दशन, पूणधारणा या मा यता से गहरा तादा य इस या ा म रोड़ा बन जाता ह। स ु
कहते ह, ‘‘ य ही आप िकसी चीज म िव ास करते ह, वैस े ही इसक िवपरीत ि कोण से संघष ारभ होना
अव यंभावी ह। आप हलक -फलक बात करक इस संघष को मा थिगत कर देते ह। लेिकन यिद आप मानवीय मन
को झंझट म ना डाल तो मनु य का खोज करना या साधना करना वाभािवक ह। जो यह सोचता ह िक वह जानता ह
ऐसे आ तक क िवपरीत एक खोजनेवाला या साधक ‘म नह जानता’ से शु करता ह। य ही आप ‘म नह जानता’
क थित म आ जाते ह, आपका जीवन िवशाल प र े य म ारभ हो जाता ह।’’
इस े म िकसी भी तरह क आ म-धािमकता खतरनाक हो सकती ह। स ु कहते ह, ‘‘अ छाई भी िकसी तर
तक पूवा ह ह। माता-िपता क बाद कल िश क अपने अ छ इराद क कारण, शायद िहटलर से यादा सामूिहक बुराई
म शािमल रह ह। उसने तो कवल क को संगिठत िकया था। यिद आप मु क खोज म ह, तो आप बेहतर कम
करने क कोिशश नह कर रह ह। आप तो पूरी तरह कम क बोझ को छोड़ने क कोिशश कर रह ह। ऐसे कछ िश क
या गु ह, जो अ छाई या बुराई का पाठ पढ़ाते ह। और कछ मेरी तरह ह जो दोन को न करने क कोिशश करते
ह।’’
यिद वह िघसे-िपट िवचार क ित शंका पद ह तो वे क र िवचार को भी य नह देत।े एक बार उ ह ने बड़ी
सू मता से कहा था, ‘‘आ था एक प रप तक ह, आ तकता अप रप त य ह। इस ि कोण से आ था का
मा यता से कोई सरोकार नह ह। यह कवल ईधन क समान ह जो साधक को हमेशा रा त म ही रखता ह जो िक ायः
बंद गली म समा होते ह।’’ शक आ था क या ा म एक अहम और अिनवाय कदम ह, लेिकन संदेह को वह एक
बीमारी मानते ह। वह ायः इसी संदभ म एक बौ कथा सुनाते ह, जब एक समिपत भ ने बु से ई र क
अ त व क िवषय म न िकया, तो उन महा गु ने इसे नकार िदया। जब एक किटब संदेही य ने बु से
वही न िकया तो गु ने इसे सही ठहराया। इस कहानी का प आशय यही ह िक स य िन त तौर पर मा यता या
अमा यता से पर ह। और आ या मक या ा म साधक क आव यकता होती ह, मा यतावािदय क नह ।
तो व तुतः स य ह या? बु क तरह स ु भी इस न पर मूक रहते ह। यह कोई गंत य, कोई िन कष या कोई
पराभौितक अनुमान नह ह। ब क, उनका कहना ह, एक जीता-जागता अनुभव ही सबकछ ह। इसे बोलकर य नह
िकया जा सकता, कवल इसक अनुभूित क जा सकती ह। लेिकन इस अनुभव क िलए िकसी खास तरह क लोग का
होना ज री नह ह। इस अनुभव क संभावना सभी को उपल ध ह। यह तो लोग क त परता क तर ह िजसम फक हो
सकता ह। और इ ह सुधारा जा सकता ह, ‘‘यह शरीर खून, माँस, और ह ी का ढर मा हो सकता ह या इस शरीर
को एक श शाली यं म प रवितत िकया जा सकता ह। जब यह एक िवशु जैिवक अ त व ह, आ मर ण और
संतानो पि क ि या हतु ही श कायरत होती ह। लेिकन यिद आप इसक साथ कछ यास करते ह, तो आप इस
िम ी क एक टकड़ को वयं दैव ता म प रवितत कर सकते ह। आप इसे वंदनीय देव व प प म प रवितत कर
सकते ह। मनु य क कित का अिभ ाय ह िक यह आपक अपने िववेक पर िनभर ह िक ई र आपक भीतर िकस तरह
काय कर।’’
यही थोड़ से काय का नाम योग ह—आंत रक रसायन िवशेष ता का रा ता िजससे एक जैिवक अ त व अपना वयं
का पांतरण आ या मक व प म करता ह। यह मनु य क प म अपनी गहनतम श को महसूस करने क िलए
शरीर, मन, और भावना को एक पता म लाने का आंत रक िव ान ह। स ु कहते ह, ‘‘जहाँ मा िश ा का अ त व
ह वहाँ तुित और आराधना ही होगी। लेिकन जहाँ िविध होगी वहाँ पांतरण होगा।’’
एक वा ा क दौरान उ ह ने इस िविध को एक अलग भाव म विणत िकया, ‘‘योग म हम अचानक िनवाण या जागृित
म िव ास नह करते। हम िनवाण को एक ि या बना देते ह। जेन ( ZEN ) क अंतगत एक िखलते फल क तरह िनवाण
क घिटत होने का इतजार िकया जाता ह। एक अचानक िनवाण क तरह ही। लेिकन योग म हम इसे शनैः शनैः घिटत
होने देते ह, य िक यिद यह अचानक घिटत हो जाएगा, तो आप शरीर छोड़ सकते ह। हम ऐसा होने देना नह चाहते।
हम चाहते ह िक आप चरणब आगे बढ़। जब आपक समझ एक तर तक आ जाती ह, तो आप अगले तर क
अनुभूित क िदशा म कदम रखते ह। कछ अचानक-सा नह होगा। कछ सदमा-सा नह होता।’’
लेिकन या इसका ता पय यह ह िक इसम जादुई आकषण कम होता ह? यह कम रोमांचक होता ह? इसम कम
नाटक होता ह?
वह वीकारते ह िक यह संभव ह। ‘‘शायद िकसी सीमा तक इसम मनोरमता कम होती ह। जब कोई फल अचानक
पु पत होता ह, यह खूबसूरत या मनोरम होता ह। लेिकन यह (योग) एक धीमी ि या ह। फल िखलगे लेिकन योग म
हम फल क िचंता नह होती। यहाँ तो हम माली क तरह होते ह। यह काम नीरस-सा लगता ह। हम बीज बोते ह।
हमारा काम कवल िम ी तक ही ह। हम पौध क िचंता नह होती। हम फल या फल क िचंता नह होती। हमार हाथ
सदा िम ी म सने रहते ह। हम बागवानी से एक णाली तैयार करते ह। आप िखलते फल से िव ान तैयार नह कर
सकते, लेिकन आप बागवानी से एक िव ान िनिमत कर सकते ह। यिद आप बागवानी म मन लगाते ह तो फल तो
पु पत ह गे ही। यही योग का िव ान ह। यह कह भी सवािधक गहन-गहनतम बोध ह। आप जब इसम आगे बढ़ते जाते
ह तो अंतहीन परत आपक सामने आती ह। आप समझ क एक क बाद दूसरी परत िनकालते जाते ह। मान लो, यिद म
एक लाख पेड़ लगाता और मा एक पेड़ ही पु पत होता ह, तो या म वयं को माली कह सकता ? म नह भी
होता तो वह एक पेड़ तो वयंमेव तैयार हो जाता, होता या नह ? लेिकन यिद कम-से-कम पचास हजार पेड़ पु पत
होते, तो म वयं को माली कह सकता । यही तो फक ह। और यह णाली मेर जाने क बाद भी कारगर रहती ह।’’
लेिकन उनक इस कषक/माली िम ी क ि या क बाद भी स ु िजस िविध से आ या मकता तुत करते ह
वह नीरसता से कोस दूर ह। य िप इसम समपण तो लगता ह लेिकन यह कठोर तप-साधना जैसी होने क अपे ा
उ सव क तरह ह। इसम जीवन को नकारने जैसा कछ नह ह। वा तव म कई बार उनक वणन सौ फ सदी सकारा मक
तौर पर मौज-म ती क तरह ह। ‘‘म सौ फ सदी नशे का समथन करता । म शराब नह पीता, न ही कोई बा नशीली
औषिध लेता । लेिकन पीने का मने एक तरीका सीख िलया ह। हर समय म ती िजसम कोई दाम नह लगता न
हगओवर होता ह। िफर भी हर समय पूरी तरह संतुिलत रहना। और यह आपक वा य क िलए भी िहतकर ह। या
पीने का यह बेहतर तरीका नह ह? शराब से दैव ता तक क मंिजल।’’
या िफर, ‘‘आप अपना शरीर ऐसा आनंदमय बना ल िक यहाँ बैठकर साँस लेना मा ही अभी तक जो आपने जाना
ह उसक अपे ा लाख गुना हो जाए। और साँस तो िदन म चौबीसो घंट चलती रहती ह। यिद साँस इतनी सुखदायी हो
जाए, तो आप भला सुख क िलए कछ और य करगे?’’
स ु का ि कोण स मिलत होने या करने पर जोर देता ह न िक अलगाव पर। यिद आप जीवन से जुड़ते नह ह,
तो, जैसा िक वह हमेशा कहते ह, ‘‘आप मृत ह। चुनौती यह ह िक िबना फसे या उलझे ए ही जीवन से जुड़ाव रखना।
हमारा जीवन खूबसूरत इसिलए बनता ह य िक हम जो करते ह, उसम अपना िदल लगा देते ह। यिद आप गहराई से
जीवन से नह जुड़ते ह, तो आपको जीवन क खूबसूरती, उसक लाव यता का अहसास कभी नह होगा। इसक अलावा
यिद आप आस भाव रखते ह तो आपको जुड़ाव क खूबसूरती का अहसास कभी भी नह होगा। यिद यह सू म भेद
आपको समझ नह आता तो आपको क भुगतना पड़गा।’’
आ या मक जीवन क परपरा िनषेध— कामुकता और कामास भी पुरातनपंिथय क तरह नह िलए जाते। ‘‘से स
और पैसा सम याएँ नह ह। ये सम या तभी बनते ह जब ये मन म वेश कर जाते ह। यह स य ह िक उ ह ने इशा म
चा रय और सं यािसय क एक समूह को सं का रत कर रखा ह, लेिकन इसम वह िकसी तरह नैितक तािककता
तुत नह करते। ‘ चय’ वह सहजता से कहते ह, ‘‘इस तरह से अपनी ऊजाओ को संगिठत करना ह िक तु हारी
शांित और तु हारी खुशी सब तु हारी अपनी ही हो। यह आपक य गत काय म क िह स को यागने और मजबूरी से
पसंदगी क ओर बढ़ने का तरीका ह। यिद आप अिन छापूवक इसे करते ह तो यह पूरी तरह यातना ह। लेिकन यिद
आप इसे वे छापूवक करते ह तो यह बड़ी खूबसूरत ह। दूसरी ओर चय (कौमाय त) एक भ ा श द ह जो उस
ाकितक उकसाव को रोकने पर जोर देता ह जो शरीर म ह और उससे यादा िदमाग म ह।’’
आ म- ा क इस पूण या ा म, ल य शांित नह अिपतु यह अचानक उ प होता उप-उ पाद ह। ‘‘शांित जीवन
क अंितम उपल ध नह ह, ब क जीवन क बुिनयाद ह, सभी मनु य का ज मिस अिधकार ह।’’ तक ब त सहज
ह। समािहतकता होने क ि या—दुिनया को बा न समझकर अपने वयं क िह से क प म देखना—ही अलगाव
क बीज को न कर देती ह। ‘‘जो कछ भी आप अपने वयं क भाग क प म अनुभव करते ह, उसक साथ आपका
कोई ं नह हो सकता। खुशी भी इसी का िह सा ह। और गहन होती स मिलत होने या जुड़ने क ि या म, हमारा
जीवन खुशी क अिभ य हो जाता ह न िक इसका अनुगमन। खुशी सदा ही आंत रक थित रही ह। आपक खुशी
का ोत आपक भीतर ही होता ह। लेिकन इस व , य िप यह आपक भीतर ह, िकतु इसका बटन िकसी और क हाथ
म ह। इसका टाटर बटन कह और ह। यह या तो टॉक माकट म ह या आपक प नी क हाथ म ह या ब क हाथ
म ह या आपक पड़ोसी क हाथ म ह। आपने इस बटन को िसवा अपने सभी को दे रखा ह। कोई खुश ह या दुःखी ह
इसका कारण यह नह ह िक उनक जीवन म या हो रहा ह। आप अपने अंदर क जलवायु का िनयं ण करना जानते ह
या नह , बस इतना ही।’’
यिद शांित और खुशी इस ि या क िह से मा ह, तो या संपूण मानवता क िलए या ात से अ ात क तरफ जाने
म ही कोई और बड़ी उपल ध ह? अंत म होता या ह? या इसम कछ यादा िव तृत योजना ह, खगोलीय योजना ह,
या कोई सावभौिमक सोच ह?
जो महसूस होता ह वह कछ भी नह । स ु कहते ह, ‘‘दैव ता सबकछ िबना ल य या उ े य क ही करती ह।
ल यपूणता या उ े यपूणता मन का म ह। ांड एक खाली खोल ह िजसम आपका मन अनंत प से उछलता-
कदता रहता ह। और आपको इसका ान तभी होता ह जब आप भूिमका िनभा सकते ह, यिद आप िबलकल गंभीर ह,
तो जो यहाँ उपल ध ह आप उसे खो देते ह। और यिद आप सघन ह गे तो आप जीवन क ित ा रहगे। और यिद
आप अ यिधक गंभीर रहगे तो आप इसे खो दगे।’’
ऐसी थित म स ु हम मरण कराते ह िक आ म ान का ता पय कह जाना नह ह ब क यह महसूस करना ह
िक कह जाने क जगह ही नह ह। इसम कोई ान ा संबंिधत नह ह ब क हािसल िकए गए ान को खोना ह।
उ ह ने एक बार इस संदभ म कहा था, ‘‘जो सीिमत ान था वह असीिमत न जानना हो गया। यह मेर िलए ब त ही
आ यजनक था। अिधकतर लोग आंिशक ान और आंिशक अ ान क थित म ह। लेिकन िनवाण या आ म ान एक
सीमाहीन अ ान क दशा ह। जब आप सचमुच ही नह जानते तो आप सृि क सीमा से बँधे नह होते। आप
सृि कता क वतं ता क धारक होते ह।’’
लेिकन आ म ान क ण या उस असीम अ ान क बोध क प ा या बच रहता ह? और हमार सम उप थत
य (स ु ) क अनुसार इसका उ र ह जीवंतता—बंधनहीन, चंड जीवंतता। और स ु कहते ह, ‘‘वह जीवंतता
कोई तु छ चीज नह ह। यह धरती क महानतम थित ह।’’
जैसा िक एक बार उ ह ने ोता क एक समूह म ससंदेह पूछा, ‘‘सृि कता ही आपक भीतर ह, आप िकस िवषय
म सोच रह ह? सृि का ोत ही आपक भीतर पंदनशील ह। आप इससे यादा मह वपूण और या सोच रह ह?’’

‘बाल गेम’ और उससे पर
मुख योजना
उ नका जीवन सावजिनक तौर पर खुलकर बीता ह। यानिलंग क सं कारीकरण क बाद से दस वष म स ु क
काय म और वचन क दर म भारी वृ ई ह, और उनक पासपोट पर कई और िविवध टप िकए ए पृ जुड़
ह। जहाँ एक ओर वह धनी और ऊची हिसयतवाल क साथ िद ी क बैठक क म और यूरोप क सभा भवन मे
िदखाई पड़ते ह, वह दूसरी ओर उनक जमीन से जुड़ी प रयोजनाएँ— ामीण उ थान काय (ए शन फॉर रल
रजुवैनेशन) से आंचिलक जनसं या हतु सामुदाियक वा य सेवाएँ उनक दय क नजदीक होती ह। तिमलनाड म
उनक वतनकारी वृ ारोपण प रयोजना क कारण वह रा य क आदश य व बन चुक ह। इस काय क िलए उ ह
हाल ही म इिदरा गांधी पयावरण पुर कार से स मािनत िकया गया। और स संग म उमड़ती भीड़ क आधार पर कहा जा
सकता ह िक वह िकसी रॉक- टार से कम नह ह।
भीड़ पर जो वयं क ित भाव ह, वह उसे ब त हलका कर देते ह। कोटािगरी म भारी उ साह क साथ संप ए
एक स संग क अंत म उ ह ने कहा था, ‘‘यह ब त उ सािहत महसूस करने क बात नह ह। ब क यह घर ( वयं
तक) प चना ह—ता पय यह िक लोग आपको इस प म पहचान जो आप व तुतः ह। यह िबलकल ऐसा ही ह जैसा
कोई पौधा वयं को उपजाऊ भूिम पर पाता ह।’’
य िप उनक काय म क सं या उनक िलए अ यिधक या क कारक-सी लगती ह िफर भी उनक आंत रक जीवन
का आयाम प तौर पर अब भी सि य ह। उ ह ने हमेशा इस बात को कहा ह िक आ या मक पथ पर िजन लोग से
वह िमले ह, उनक अपे ा उन लोग को यादा सं का रत िकया ह िजनसे वह नह िमले ह। इससे उनक आ या मक
ि याकलाप का एक समानांतर तर ात होता ह। यानिलंग क बाद से अ य सं कारीकरण भी ए ह, िजसम टनेसी
इशा क का मिहला हाल और कोयंबतूर का िलंग भैरवी शािमल ह।
योजनाएँ और प रयोजनाएँ िदन- ितिदन िदन-दूनी-रात-चौगुनी गित से बढ़ती महसूस होती ह। कोयंबतूर क इशा क
म िनरतर िनमाण गितिविधय क हलचल बनी रहती ह। कायिविधय क गित से रहवासी और आगंतुक बेचैन हो उठते
ह। अपने आसपास नजर डालते ए िवशाल पांडा हाल, होम कल और तेजी से बढ़ते ए रहवासी कमर क ओर
देखते ए एक रहवासी कहता ह, ‘‘कौन यक न कर सकता ह िक हमने अपनी शु आत यहाँ एक छोटी सी कॉटज और
घास-फस क छ परवाले यानक से, मा 15 वष पहले क थी।
इशा क िलए स ु क योजनाएँ या ह? वह इन िवषय का कोई िववरण कदािचत ही देत े ह। लेिकन िकसी को भी
इस बात का संदेह नह ह िक एक अ कट मा टर लान अ त व म ह। वह बड़ रह यमय अंदाज म कहते ह, ‘‘वह
हर मा टर लान िजसे गौतम बु ने अपनाया, म भी अपनाता । गौतम बु ऐसे गु ह जो अपनी िश ा का प रणाम
ब त अ छी तरह जानते थे। और म भी अपनी िश ा का प रणाम अ छी तरह जानता । म कछ भी आवेगपूवक नह
िसखा रहा । यिद म आपको अपने जीवन क िविभ पहलु को बतलाऊ, वे असंभव जिटलताएँ, और िजस भयंकर
यथाथता क साथ म इ ह थामे ए , तो शायद आप मुझे ब त कठोर अनुभव करगे या शायद आप सोचगे िक म
भगवान क भूिमका िनभा रहा । लेिकन सभी बात क प रणाम होते ह, िजसम उपदेश या िश ण भी स मिलत ह।
य िक िश ण भी कम होता ह। खासकर जब आप आ या मक ि याकलाप म संल न होते ह, और इसका प रणाम
काफ िवशाल प म सामने आता ह। इसिलए अगले सौ से पाँच सौ वष म आप जो प रणाम िनिमत करगे वह या ह?
यह ऐसा कछ ह िजसे येक गु को देखना होता ह।’’
तो िफर वह इशा क भिव य का मानिच कसे िनधा रत करते ह? ‘‘इशा क संदभ म अगले छह सौ से सात सौ साल
म ि या काफ सि य प से जारी रहगी। त प ा यह यून तर पर जारी रहगी। लेिकन इसका ऊजा भाग
अिवनाशी ही रहगा। य िप इस समय िश ा ही मुख िह सा तीत होता ह, िकतु व तुतः यह मेर जीवन का ब त छोटा
िह सा ह। वा तिवक काय जो म करता वह उसम नह ह, जो दुिनयाभर म म कह रहा या कर रहा । वा तिवक
काय उन ‘अंड ’ म ह, िज ह म िनिमत करता , िज ह न नह िकया जा सकता और जो िचरकालीन रहगे।’’ िन त
प से ‘अंड ’ से ता पय कछ ऊजा संभावना से ह— उनक आंत रक अनुभूित का शा त व—जो िक, वह कहते ह,
येक गु भावी साधक क िलए छोड़ जाता ह। यह अ य िकतु तरिगत प से जीिवत वसीयत ही येक गु क
िवरासत होती ह।
एक बार उ ह ने कहा िक वह अपना कोई एक आ या मक उ रािधकारी छोड़ना नह चाहते। यानिलंग ही ाथिमक
गु होगा एवं अ य आ या मक संभावनाएँ भी िविवध लोग ारा उपल ध करायी जाएँगी। यह प ह िक िनयम-
कायदे अिधक ह गे और आ म का जीवन उनक जीवनकाल क अपे ा अिधक िनयम-कायद वाला हो जाएगा। इस
समय यह बड़ी सावधानी से अराजकता और उ साह क िनिमत थित ह, िजसे हर िकसी को उलझन म रखने क िलए
कायम रखा जाता ह। यहाँ आपको साधना या खोज कराते रहने और आपको च काते रहने क िलए समुिचत उलझन भरी
थित ह।’’ या यह उिचत ह? लेिकन कभी भी इतनी यादा उलझन न हो जाएँ। इस संतुलन को कायम रखना ब त
बड़ा चम कार ह। इसम काफ यास लगता ह। यिद लोग अ यिधक थर हो जाएँ, यिद वे अ यिधक संगिठत हो जाएँ
तो आ या मक खोज ही समा हो जाएगी। और आ म एक कॉरपोरशन का प ले लेगा। लेिकन िफर आप िकतनी
अराजकता वीकार कर सकते ह। वह प रवतन को अिनवाय प म देखते ह। जब कोई गु उप थत हो तो एक
िन त तर पर िनयं ण रहता ह, लेिकन वह कहते ह िक उनक बाद संगठन क िलए एक अपे ाकत िवशाल कदम
आव यक होगा।
एक ओर तो स ु इशा क िव तार काय म को लेकर ब से उ सािहत तीत हो सकते ह, लेिकन िफर भी वह
हमेशा इस बात को दुहराते रहते ह िक एक अ य तर पर यह उनक िलए कछ भी नह ह। ‘‘म चाहता ही िक
प र थितयाँ सुधर। यिद आव यक अवसर और संसाधन उपल ध ह, तो मेरा िमशन इस ह (पृ वी) का सं कारीकरण
करने का ह। यही म करना चा गा। कोई भी पु ष, ी, ब ा, जानवर या क ड़ा-मकोड़ा ऐसा नह होगा जो
असं का रत हो। कोई भी बंजर थान पर ज म लेन े और मरने यो य नह ह। यिद हम पैसा, संसाधन और तकनीक क
यव था कर ल, तो दुिनया म गरीबी-भुखमरी बीमारी कम करने क िलए ब त कछ िकया जा सकता ह। एक मनु य क
प म म थितय को सुधारने क यवसाय म लगा और जीिवत रहकर अपना जीवन इसी उ े य क िलए दाँव पर
लगाना चाहता । लेिकन एक गु क प म व तुतः फक नह पड़ता। यिद आप कल ही खेल समा करना चाहते ह,
तो म तैयार । यिद यह कारगर होता ह तो ठीक ह। यिद नह भी होता तो भी ठीक ह। शायद तब मेरी आँख म आँसू
और ह ठ पर मुसकराहट होगी। अिधकतर समय म ऐसा ही रहता ।’’
एक ओर तो उ ह ने अपने जाने का समय कट नह िकया ह वह दूसरी ओर स ु ने हमेशा कहा ह िक उनका
इरादा समय और ितिथ सुिन त करने का ह। ‘‘जब तक म अपने आसपास आँख म यास देखता , म बना र गा।
िजस ण म आँख म यास नह पाऊगा, म चला जाऊगा। म अपनी क म चला जाऊगा। िकसी को भी मुझ े वहाँ नह
ले जाना पड़गा, इस बात का म आप से वादा करता । यिद आप म समुिचत कांडता ह, यिद आप अपना शरीर सचेत
रहते छोड़ने म स म ह तो आपको तभी जाना चािहए जब सबकछ ठीक-ठाक हो। मुझ े ज दी नह ह। लेिकन म तभी
जाऊगा जब म अ छा र गा। म अपने भीतर िबलकल िविच जीवन जीता , भले ही यह यादातर लोग को प न
हो। और िजस तरह म अंितम सांस लूँगा वह िदखने म िविच होगा, एक ह ता र क तरह।’’
वह इससे यादा कछ कहने से इनकार कर देत े ह। वह सहज भाव से हसते ए कहते ह, ‘‘लेिकन ऐसा तभी ह जब
सभी अनुमान सही हो जाएँ। कछ और भी हो सकता ह— मेरी कार कह टकरा जाए या कछ भी। लेिकन यह भी
िविच ही होगा, तो म काफ तेज गित से टकराऊगा!’’
उ ह ने घोषणा क ह िक अपनी मृ यु क बाद अ सी वष तक वह अपने सू म शरीर म रहगे। ऐसा वह उन िश य क
िलए करगे जो उनक बाद बचे रहगे। जब म उनसे यह बात समझाने क िलए कहती तो वह बड़ शांत भाव से कहते
ह, ‘‘जब कोई य चेतन अव था म अपना शरीर छोड़ता ह तो इसका ता पय िवलय हो जाना होता ह। िकसी य
का मूलभूत प िवलय हो जाता ह। लेिकन यिद आव यकता हो तो आप उसम िवलंब कर सकते ह। जब आप शरीर
छोड़ते ह तो आप यह सुिन त कर सकते ह िक एक तरह का िववेक उसम छटा रह जाए। ऐसी कोई य गत
उप थित नह रहती िजसे भौितक प से देखा जा सक, लेिकन आप तब भी आस-पास बने रहते ह। यिद ज रत पड़
तो आप स संग भी आयोिजत कर सकते ह। परावतन जारी रहगा, कवल बोलना बंद रहगा।’’
िकसी थित म भी, वह अपनी आँख म चमक िलए ए इशारा करते ह िक इस बात का कोई सबूत ही नह ह िक
वह अभी भी यहाँ ह। िहमालय क तपोवन म एक बंगाली माँ नाम क एक वृ मिहला संत ने एक बार उनक तसवीर
का बारीक िनरी ण िकया और जोर-शोर से यह घोषणा कर दी िक वह मृत हो चुक थे। जब भौच हो गए साधक ने
स ु को यह बात बतलाई तो उ ह ने हसते ए कहा, ‘‘जहाँ तक अ त व क बात ह, म अिभलेख से बाहर । मने
आप सभी लोग को मूख बनाया ह, लेिकन यह मिहला ऐसी ह, िजसे मूख नह बनाया जा सकता।’’ एक अ य अवसर
पर जब उनक कछ जाँच क गई, वै ािनक को उनक म त क म गामा िकरण िदख और वे भौच रह गए।
‘‘उ ह ने मुझ े बताया, या तो आप मृत ह या आपका म त क मृत ह। मने कहा िक म त क का मृत होना बड़ा
अपमानजनक ह, इसिलए म वयं मृत होने तक मान सकता ।’’
और अपनी मृ यु क अ सी साल बाद तक अपने सू म शरीर म बने रहकर वह या हािसल करना चाहते ह? वह
संि उ र देते ह, ‘‘अपने काय क सफाई। उन लोग क देखभाल क गा जो िकसी न िकसी तरह इशा से जुड़ ए
ह और मेर बाद जीिवत रहगे। उन सभी लोग क देखभाल िज ह ने एक ण क िलए भी मेर साथ बैठने क गलती क
ह।’’
‘‘और उनका या होता ह’’, मने पूछा, ‘‘ या आप उनक मु सुिन त करते ह।’’
‘मु ’ उ ह जो इ छक ह, वह उ र देते ह, ‘‘मृ यु क समय यादातर लोग क यही इ छा होती ह। और शेष लोग
क िलए अगला बेहतर जीवन िजसम उनका आ या मक िवकास तेज होगा।’’
म सोचती िक या कभी वह भौितक शरीर म लौटने क िवषय म सोचगे? इस िवषय पर समझौते क कोई गुंजाइश ही
नह ह।
‘‘िफर नह । मने तीन बार ऐसा कर िलया ह। एक बार यिद आप अनुभूित कर ल, तो आप क पना नह कर सकते िक
शरीर धारण करना और िफर से ज म लेना िकतना मूखतापूण महसूस होता ह। भौितक शरीर म होने का आशय ह िक
आपको दुिनयादारी से िभड़ना पड़गा। यह बाल गेम अव यंभावी ह। और एक बार यिद आप अनुभूित-धारी हो जाते ह,
तो यह खेल ब क साथ खेलने जैसा लगता ह। अब आप इसे तट थ रहकर खेल या ेम से। लेिकन इसम कोई
चुनौती नह ह। आप एक सीमा िबंद ु से अिधक कछ चीज को बंद अव था म नह रख सकते। म बड़ी सहजता से
कहता । िफर से कभी नह ।’’

अनुलेख
व ह बातचीत आ म क आसपास भोर क सैर क समय ई। मुझे याद ह, सुबह का ही समय था। हमार चार ओर का
जंगल वयं को ह रयाली क दजन बोिलय म बड़ उ साहपूवक य कर रहा ह, ओस क बूँद से पं ब जल क
रग, िजस पर काश छाया आ ह, से लेकर तैल-िच कला क मनोहारी िच ण तक। सुआपंखी नजर आनेवाली चंचल
ह रयाली से लेकर जेड सी गहरी ह रयाली क रह यमयता तक। ातः समीर सँभावना को संदेश देती सी। पवत छाँह
म खड़ ए, िनगरानी करते से, बादल म िलपट ए रात क कड़कड़ाती ठड क याद समेट नजर आ रह ह, सूय क
उदय से उनक न द अभी भी नह खुली तीत होती ह।
िफर भी मेर साथ सैर कर रह साथी थोड़ भी िन ास नह ह। वह संभवतः पूरी तरह जगे ए ह। उनक बातचीत
ती ण, उनका मन िवचार क ओर झपटता आ, उनक गितिविधयाँ पेड़ क नीचे उग आई वन पित क ितय और
उनक छाया क िलए उतनी ही सजग ह िजतनी उनक ान क कलाबािजय और मेरी मनोवै ािनक आबोहवा म
हलक प रवतन क ित ह। मुझ े भोर क यह सैर ब त अ छी लगती ह, यह सीखने क उस आदश थित क छिव क
अनूकल ह िजसक मेर मन म सदा से चाहना रही ह। म ायः अपने िम और िश क क साथ उनक बात सुनते, न
करते और मनन करते ए मैदान म और घुमावदार जंगली गिलय म घूमने क क पना करती थी। इस घूमते-िफरते
िश ण ा करने का मेर जीवन म गहरा अथ ह। मुझ े बात, हसी, तक क हलचल पसंद ह लेिकन सव प र मुझे
मालूम ह िक म सबसे अ छी तरह कोई बात तभी सीखती , जब म िबलकल िव ाम क थित म रहती , जब म
एक वातावरण को हण कर सक, वतमान म भीगकर तरबतर हो जाऊ।
हम पुनः आ म ार म वेश करते ह। हमारी सैर क दौरान बार-बार ठहराव आता ह, जब वह य य का
अिभनंदन करते ह और साधक क समूह को आशीष देत े ह। वे उ ह अिभलाषापूवक और उ साह से देखते ए उनक
आसपास एक हो जाते ह, िजससे मुझम उतना ही िवनीत भाव जागता ह, िजतना भय। म उस िव ास क सघनता से
िव मत हो उठती और िफर भी यह मेर िलए नया तो नह ह। मने भी उ ह शायद उतनी ही ती ण सघनता से देखा ह।
मुझ े आ य ह िक वह इससे कसे िनबटते ह, कसे वे उन सभी लोग क जीवन क साथ समायोजन करते ह जो उ ह
समिपत ह। वह ायः येक उस य क ित, िजससे वह बात करते ह, पूरी तरह समिपत होते ह और िफर अगले
ही ण वह बड़ी सहजता से अपनी बातचीत मुझसे शु करते ए आगे बढ़ते ह।
हमारी बातचीत िबना तक-िवतक क िकसी िन कष पर नह प चती। म उस बात क ित बड़ी बेचैन जो उ ह ने
प कार से कही ह। वह कहते ह िक उनक बात को गलत तरीक से तुत िकया गया ह। लेिकन िफर आधे घंट का
समय वह उसी गलत कही गई बात का औिच य बताते ए यतीत करते ह। यह उस य का अपना अंदाज ही ह।
इस बातचीत से हमेशा क तरह ऊजा से ओत- ोत होकर म आ म से उस शाम बाहर िनकलती । साथ ही म धीर-
धीर उनक उस ि कोण क बार म बड़बड़ाती रहती िजससे म वयं को सहमत नह कर सकती। ‘यह आदमी मेरा
गु कसे ह?’ उनक महसूस होनेवाली संपूण उदारता क कारण वह पूरी तरह िति या मक हो सकते ह। म कई मु
पर उनसे असहमत रहती । वह बेतुक, बेस और बेमेल हो सकते ह। और िकसी तक को पूरा न कर पाना खीझ भरा
होता ह।’
िवचार का आवत च वापस लौट आता ह। मुझ े बड़ा आ य होता ह िक आ या मक पथ- दशक उस सीमा
तक सांसा रक मामल म िल हो सकते ह। मुझ े लगता ह िक वह ब त िवशाल तो नह होते जा रह ह? इशा क
मह वाकां ा काफ ऊची तो नह होती जा रही ह? म सोचती िक कह , अ य कई लोग क तरह वह भी अिधकार व
स ा क कारण तो नह हो रह ह? म उनक इस कठोरता और िजद क िवषय म सोचती । म सोचती िक या
म कभी उनक य व से समझौता कर सकगी? और उनक एक ही समय म सभी से जुड़ होने और सभी से अलग
होने क यो यता को समझ सकगी?
घर लौटकर म अपने िम क िवषय म सोचती । मुझ े यह सोचते ए बड़ा आ य होता ह िक म उ ह एक गु क
िवडबना क िवषय म कसे बता सकगी। मुझ े उनक िवन ता भर उ सुक चेहर याद आ जाते ह, जब म उनक सुबोधता
क उस ऊजा क सं ेषण, उनक िपछले ज म क आ या मक पूणता क िवषय म बात करती । म खुद क समय-
समय पर आ म म चले जाने क बात उनक समझ म न आने, मेर एक नए पंथ म डब जाने, ‘वा तिवक दुिनया’ और
इसक वा तिवक मु को संगिठत आ या मक सुखद अनुभव म बदलने क ित उनक िचंता क िवषय म सोचती
। या वे कभी समझ पाएँगे िक इस य और इस या ा म या ऐसा ह िजससे मेरा जीवन इतना मह वपूण हो
जाएगा? या म पूरी ईमानदारी से यह कह सकती िक म वयं इस बात को समझती ?
पाँच वष पहले मने उन (स ु ) पर िलखे अपने लेख म जो बात िलख , वे मुझे अभी भी याद ह। ‘‘चलो यह कह
द िक हम उनक योग क कांडता और िनवाण क सभी बात पर यक न नह करते। िफर भी एक रोचक बात हमार
िलए छट जाती ह। उनक ती ण बु म ा, उनका धमिन ा का अभाव...समकालीन श द भंडार, एक ऐसी यान
ि या का िश ण िजसम िकसी िन ा क बदले कवल किटब अ यास क आव यकता ह। स ु ज गी ऐसे
य का भाव धारण िकए रहते ह िज ह ने यह जान िलया ह िक बु क थरता म जीवन कसे िजएँ। शायद यह
समुिचत ह।’’
या यह समुिचत ह? यिद अ य सभी चीज ले ली जाएँ और मुझ े मा अ यास क साथ ही छोड़ िदया जाए, तो या
यह सचमुच समुिचत होगा? चूँिक म बड़ थािपत गु क ित ा को धराशायी होते ए और उनक सं यातीत
िश य को दुःख और ंद क थित म देखती , तो म वयं से पूछती िक या म ऐसा धोखा सहन कर सकगी?
मुझ े िव ास ह िक ऐसी थित नह आएगी। और यिद ऐसा होता ह तो मेरी भावना को ठस लगेगी और अ यिधक
वा तिवक क होगा। लेिकन मुझे िव ास ह— और यह यु र माना जाता ह— िक उ र हाँ ह। म नह चाहती िक
मेरा िव ास टट लेिकन इससे मुझे समय-समय पर थित का सामना करने म मदद िमलती ह। म तो सोचती िक यह
अ यास एक सारयु उपहार रहा ह और यह बढ़ती ई गहनता इसका अपना पुर कार ह। और, इससे बेशक यह न
उठता ह, या ऐसे उपहार का दाता सचमुच मुझ े धोखा दे सकता ह?
कछ समय क िलए अंत क जाता ह। मन अपे ाकत यादा शांत हो जाता ह। मुझ े 1977 का मृ यु क िनकट
होने का अनुभव याद आता ह। मुझ े वह आतंक याद आता ह। अिभलाषा और िनराशा क वष याद आते ह। शु कता क
वष याद आते ह। मुझ े आकाश क ओर, उसका मौन हािसल करने क िलए, मु ी भ चना याद आता ह। सात साल
बाद पथ दशक िमला। वे ब त लंब े सात साल रह ह। और उनका आना मेरी क पना से बढ़कर ह।
वष पहले तीस क होने पर मने एक किवता िलखी थी। इसक समा इस पं से ई : ‘‘तीस तक तुम जानते हो
िक तुम उ सािहत व न क िवनाश हो चुक सा ा य से िवशाल और अका पिनक थान क ओर दूर चले जाना चाहते
हो, जहाँ आगे का हर कदम साहिसक अिभयान ह और हर आगे का कदम एक लंगर या ठहराव ह।’’
म महसूस करती िक स ु यही बात मेर जीवन म ले आए ह—साहिसक अिभयान और लंगर। और उ ह ने उ ह
एक साथ, एक समय पर ही समािहत कर िदया, जैसा म जानती थी। अंदर क या ा क संभावना िजतनी मने क पना
क थी मेर िलए उससे यादा रोमांचक हो गई। साथ ही मुझे अपने वयं से जुड़ जाने का पहले से यादा गहरा अहसास
ह। उ ह ने िवरोधाभास को जीिवत कर िदया ह।
जब म प और िवप क सार तक को हटा लेती , तो िव ास क एक गाँठ ही मेर पास बच रहती ह। कछ लोग
इसका िवरोध करते ए इसे एक अनुिचत िव ास ठहराएँग।े लेिकन म सोचती , यह पूरी तरह ढ़ ह लेिकन यह तक
से पोिषत और संदेह से ढ़ ह। अ न परी ा यह ह िक मेरा मानना ह िक स ु क साथ मेर इतने वष ने उनक
य व पर मेरी िनभरता समा कर दी ह। म पूण सुबोधता क साथ देख सकती िक म पहले से यादा अपने जीवन
म भाग लेने लगी । यह स य क कसौटी पर इशा क मेर सािथय क िलए खरा भी उतरता ह— और मा गहनता और
सघनता म अंतर आता ह। कछ कारगर तो ह। और इसिलए िव ास िटका भी रहता ह। म आ य से बार-बार यह
महसूस कर क जाती िक उनक पास उनक अलावा कोई एजडा नह ह जो वह खुलकर कहते ह— लोग को
उनक मु क िदशा म पथ दशन क किटब ता। या यह स य हो सकता ह? ऐसा तीत होता तो ह। वह
िवल ण य ह—िबलकल िवल ण लेिकन मेरा मानना ह—वा तिवकता क िलए।
मुझ े उनसे सहमत नह होना ह, वीकित नह देनी ह, या पसंद नह करना ह। लेिकन मेरा िव ास ह िक जब यह
टिनसन क ‘अवरोध पार करने क’ ण क बात होती ह, जब साँस अटक-अटककर कने को होती ह, जब वह
दुिनया, िजसे म जानती , ढहती ह, जब सुबह तीन बजे क िव मतता वा तिवकता म िझंझोड़कर आ जाती ह, तब वह
वहाँ होते ह। मुझ े संदेह ह िक उनक पास कोई िवक प ही नह ह। वह हमेशा क तरह भावुकताहीन िकतु गितवान,
सू म और िनणया मक ह गे।
म यह बात िकसी और, िज ह म जानती , उनक िलए नह कह सकती। मुझे पता भी नह ह िक इसका अिभ ाय
या ह। लेिकन मुझ े यक न ह िक जब अंत आता ह, तो जो उ ह करना होगा, वह करगे। वह उस काय को करगे िजसम
उ ह महारत हािसल ह। जब अंत आएगा, तो स ु मेरी नैया पार करगे—उ ह करनी होगी— ब क वह कर ही दगे।
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