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Laghu Katha
Laghu Katha
ककसी गााँव में एक ककसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे चारों अक्सर लड़ते रहते थे। अपने बेटों के
स्वभाव से ककसान मन-ही मन बहुत दुःु खी रहता था। सोचते-सोचते वह एक कदन बीमार पड़ गया। अपने
बेटों को सुधारने का उसने एक उपाय सोचा। एक कदन जब वह बबस्तर पर लेटा था, तो उसने अपने चारों
बेटों को पास बुलाया और उन्हें एक-एक लकड़ी दे कर कहा – “ इन्हें तोडों।“ एक-एक कर उन चारों ने
अपनी-अपनी लकड़ी तोड़ दी। ककसान ने मुस्कुराते हुए चारों को दे खा। बपता की मुस्कान का अथथ उन चारों
की समझ में नहीं आया। अब ककसान ने अपने पास से चार दस
ू री साबुत लककड़यााँ और एक रस्सी ननकाली।
उसने अपने बड़े बेटे को पास बुलाकर चारों लककड़यों को रस्सी से बााँधने के नलए कहा। अब ककसान ने उन
चारों से उसे तोड़ने को कहा। उन सभी ने बारी-बारी से उस लककड़यों के गट्ठर को तोड़ने की कोनिि की,
लेककन कोई तोड़ न सका। ककसान ने कहा – “ संगठन में बहुत िबि होती है । यकद तुम लोग आपस में
नमलकर रहोगे तो संसार में तुम्हें कोई हरा नहीं पाएगा। यकद आपस में झगड़ा करते हुए अलग-अलग रहोगे
तो कोई भी तुम्हारी आपस की फूट का फायदा उठा लेगा। “ चारों बेटों ने अपने बपता से यह वादा कक वे
अब कभी भी आपस में झगड़ा नहीं करें गे और इन लककड़यों की गट्ठर की तरह हमेिा संगकठत होकर रहें गे।
सीख :- हमें एकजुट होकर रहना चाकहए। या संगठन में बड़ी ताकत होती है ।
प्रनतभा आज स्कूल में बहुत उदास थी। उसका पढाई में मन नहीं लग रहा था।…………….
प्रनतभा आज स्कूल में बहुत उदास थी। उसका पढाई में मन नहीं लग रहा था। उसकी सहे ली आराध्या ने
उससे कारण पूछा तो उसने बताया कक मुझसे एक बड़ी गलती हो गई है , मैंने अपने माता-बपता का कहना
नहीं माना...। आराध्या ने कहा पूरी बात बताओ? प्रनतभा ने बताया कक अधथवाबषथक परीक्षा होने वाली है
लेककन मैंने पढाई पर ध्यान नहीं कदया। माता-बपता ने कई बार मुझे समझाया था कक पढाई पर ध्यान दो,
पढाई करो। लेककन मैंने पढाई पर ध्यान नहीं कदया, समय नष्ट ककया। इस कारण से मैंने अपने पाठ को
ठीक ढं ग से याद भी नहीं ककया है । मैं अनुतीणथ हो जाऊाँगी। आराध्य ने कहा, "तुम नचंता मत करो। ककठन
पररश्रम करो। अच्छे अंको से पास हो जाओगी। मैं तुम्हारी मदद कराँगी। मैं तुम्हें अपना नोट्स भी दे रही
हूाँ, तुम इसे नलखकर पूरा करो। मैं िाम को ५:०० बजे तुम्हारे यहााँ आऊाँगी और हम दोनों नमलकर एक घंटा
पढें गे।" इतना सुनते ही प्रनतभा खुि हो गई। आराध्या की मदद से प्रनतभा ने अपना पाठ्यक्रम पूरा कर
नलया। पढने में मन लगाने लगी। यह पररवतथन दे खकर उसके माता-बपता बहुत खुि थे। परीक्षा हुई तो
प्रनतभा और आराध्या दोनों प्रथम श्रेणी में उत्तीणथ हुईं। प्रनतभा ने आराध्या से कहा “ तुम मेरी सच्ची सहे ली
हो तुम्हारे ही वजह से मेरे अंदर साहस आया और मैंने पररश्रम ककया।“ आराध्या ने कहा “एक अच्छा दोस्त
ही दस
ू रे दोस्त की मदद करता है । धन्यवाद दे ने की बात नहीं है , तुमने मेहनत ककया और तुम्हें सफलता
नमली। “ प्रनतभा के माता-बपता भी बहुत खुि थे।
सीख: मेहनत का फल मीठा होता है । या
मुश्ककल समय में ही सच्चे नमत्र की पहचान होती है ।