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बुद्ध पर कविताएं- महेश आलोक

यशोधरा का दुख एक कविता है

बुद्ध को जाने बिना भी कविता को पता है


मुझे भी पता है दुख और करुणा से पैदा होती हैं
अच्छी कविताएं

पता नहीं यशोधरा ने शिशु राहुल को अपने पिता के


पद-चिह्नों पर चलने के लिए प्रेरित किया या नहीं
इतिहास में इसका कोई उल्लेख नहीं है

बिना पिता के प्रेम के जीवन जीने का दुख


तथागत ने इसके बारे में भी जरूर सोचा होगा
हो सकता है यह भी सोचा हो कि दुख की पराकाष्ठा
दुख से उबरने की सबसे बड़ी दवा है

क्या सिद्धार्थ के लिए जुटाए गए अतिशय सुखों की अति


उन्हे बुद्ध बना गई ऐसा सोचना इतिहास के साथ
अन्याय करना नही है

बुद्ध के दुख में अब दुख नहीं है


दर्शन है

यशोधरा का दुख आज भी एक कविता है


जिसकी पीठ पर
बुद्ध के पैरों के निशान हैं

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हे महाबुद्ध-1

तुम्हे दुख पर इतना विश्वास था


जितना हमें ईश्वर पर
हे महाबुद्ध!
हमने तुम्हे दुख का ईश्वर बना दिया
और अब मांगते हैं रोज मन्नतें
हमें सुख देना प्रभु

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हे महाबुद्ध-2

लगता है तुम्हारे दुख के दरवाजे में


पृथ्वी जितना बड़ा छेद हो गया है
और वह बिकने लगा है दुनिया के हाट-बाजार में
वस्तु की तरह।नास्तिकों ने उसे
शृँगार का टीका बना लिया है

हे महाबुद्ध!
मेरे अनुभव में जितना दुख है
वह एक जगह बैठे-बैठे इतना थक गया है
कि मुझे मुक्त कर रहा है

कि मैं सूरज बन जाऊँ


और पृथ्वी जितने बड़े छेद पर दरवाजा बनकर
चिपक जाऊँ
कि फिर कोई दुख हाट-बाजार में
वस्तु की तरह न बिके

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हे महाबुद्ध-3

मेरे पास दुख की पाठशाला है


दुख का शब्दकोश है

मेरे दुख में समूची पृथ्वी है


और वह आज रजस्वला है
मुझे तीन-चार दिन का समय चाहिए प्रभु!

अपने दुख को पुनः


जागृत करने के लिए

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हे महाबुद्ध- कु छ प्रश्न-1

ज्ञानी-ध्यानी सब यही बताते हैं


अनन्त आकाश के समान अनन्त ज्ञान
यही तुम्हारे नाम का सही अर्थ है

हे महाबुद्ध।
हम सिर्फ अन्त के बारे में जानते हैं
हमारे लिए दुखों से मुक्ति
यहीं है

मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा हूँ


कि गृहस्थ होते हुए भी दुखों से
मुक्ति सँभव है

मैं मानता हूँ कि इस तरह का प्रश्न बेमानी है


फिर भी कर रहा हूँ कि क्या
गृहस्थ होते हुए तुम यह अनुभव
नहीं कर सकते थे

बुरा मत मानना बस ऐसे ही पूछ रहा हूँ


क्या दुख के दर्शन के लिए
दुख के बाहर खड़े होकर दुख को देखना
सही स्थिति है

बस ऐसे ही पूछ रहा हूँ

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हे महाबुद्ध- कु छ प्रश्न-2

तुम्हारे समस्त जीवन में यही एक चिन्ता थी


कि मनुष्य इतना दुखी क्यों है?

यह एक अबोध बालक का प्रश्न है


जिस समय तुमने घर त्यागा
बस एक बार अपनी पत्नी और बेटे को
जी भरकर देख लिए होते

इस उत्तर के लिए किसी बोधि-वृक्ष के नीचे


बैठने की जरुरत ही नहीं पड़ती

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