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कौन तुम्हारी इन झील सी आंखों में झांककर अपना होने का एहसास दिलाएगा?
तम्
ु हारी सच्ची मस् ु ाएगा?
ु कान पर कौन अपनी हं सी लट
कौन तुम्हारे फूल सी कोमल वक्ष पर अपना सर टिका कर तुम्हारी धड़कने महसूस कर तुम्हीं में खो जाएगा?
ु े डर लगता है , तम्
मैं नहीं कर पाऊंगा ये सब मझ ु हें खोने से।
परियों की दनि
ु याँ से आई ये परी मुझसे दरू ना हो जाए।
-आनंद राज