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कारणम्

ननु साधकं कारणमिति पर्यायस्तदेव न ज्ञायते| कितत्कारणमिति ।


उच्यते । यस्य कार्यात् पूर्वभावो नियतोऽनन्यथासिद्धश्च तत्कारणम् ।
यथा तन्तुवेमादिकं पटस्य कारणम् ।
[ प्रश्न – ] ( साधकम् ) साधक [ और ] ( कारणमिति ) कारण ये तो
-

( पर्यायः ) पर्यायवाचक हैं । ( तदेव ) यही ( न ज्ञायते ) ज्ञात नहीं है कि


( तत्कारणम् ) वह कारण ( किम् इति ) क्या है ?
[ उत्तर - ] ( उच्यते ) कहते हैं । ( यस्य ) जिसका ( कार्यात् ) कार्य
से ( पूर्वभावः ) पहले होना ( भावः = सत्ता ) ( नियत : ) नियत हो [ अर्थात्
कार्य अर्थात उत्पन्न होने वाले घट आदि पदार्थ से पूर्व सत्ता निश्चित हो ]
( च ) और जो ( अनन्यथासिद्धः ) अन्यथासिद्ध न हो ( तत् ) वह ( कार
यथा तन्तुवेमादिकम् ) [ धागा
णम् ) ' कारण ' कहलात ा है । ( ) जैसे ( तन्तु ,
का साधनरूप विशेष ] इत्यादि ( पटस्य ]
डोरा ] तथा वेमा [ वस्त्र बुनने दण्ड
पट [ वस्त्र ] के ( कारणम् ) कारण हैं ।
[ इस भाँति यह ' कारण ' का सामान्य लक्षण हुआ , अर्थात् “ यस्य

में
यद्यपि पटोत्पत्तौ दैवादागतस्य रासभादे : पूर्वभावो विद्यते , तथापि
नासौ नियतः ।
( यद्यपि ) यद्यपि ( पटोत्पत्तौ ) पट [ वस्त्र ] की उत्पत्ति [ के समय ] में
( दैवात् ) दैवयोग से ( आग त स ् य ) आये हुये ( रासमादेः ) गर्दम आदि का
( पूर्वभावो ) पूर्वभाव [ पहले विद्यमान होना ] ( विद्यते ) हो सकता है
( तथापि ) फिर भी ( असौ ) वह ( नियतः न ) निश्चित नहीं है [ अर्थात्
जब जब- भी जहाँ - जहाँ भी कपड़ा बने तब -तब रासभ [ गर्दभ ] की उपस्थिति
अवश्य ही विद्यमान रहे यह बात अनिवार्य नहीं है । ]
अब कारण "
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के उक्त लक्षण में विद्यमान अनन्यथा सिद्ध " पद की उप


योगिता पर विचार करते हैं -[ पट ( )
वस्त्र की उत्पत्ति में ] ( तन्तुरूपस्य )
तन्तुरूप का ( नियतः ) नियत ( पूर्वभावः ) पूर्वभाव ( अस्ति एव ) तो है
ही ( किन्तु ) किन्तु [ वह ] ( अन्यथासिद्धः ) अन्यथासिद्ध [ होने से पट के
प्रति कारण नहीं हो सकता ] है । ( पटरूपजननोपक्षीणत्वात् ) पट के रूप के
उत्पादन में ही उसकी [ उपयोगिता अथवा शक्ति की ] समाप्ति हो जाने से ।
( परं प्रति अपि ) [ अतः ] पट के प्रति भी [ तन्तुरूप के ] ( कारणत्वे )
कारणत्व स्वीकार करने में ( कल्पनागौरवप्रसङ्गात् ) कल्पना- गौरव का प्रसङ्ग
आ जाने से ।
तेन ) इस [ कारण ] से ( अनन्यथासिद्धनियतपूर्वभावित्वम् ) अनन्यथा
(
सिद्ध नियतपूर्वभावित्व [ यह ] ( कारणत्वम् ) कारणत्व अर्थात् कारण का
लक्षण है और (

अनन्यथासिद्ध नियतपश्चाद् भावित्वम् ) अनन्यथासिद्ध नियत
कार्यत्वम् ) का अर्थात् कार्य का लक्षण है
पश्चाद् भावित्व [ ही ] ( कार्यत्व
कारण के प्रकार
-

तच्च कारणं त्रिविधम् समवाय


। - असमवाय- निमित्त भेदात् ।
तत्र यत्सभवेतं तत्समवायिकारणम्
कार्यमुत्पद्यते
| यथा तन्तवः पटस्य
समवायिकारणम् । यतस्तन्तुष्वेव पटः समवेतो जायते ,न तुर्यादिषु ।
तर्कभाषाकार स्वाभिमत कारण के लक्षण को स्पष्टकर तथा दूसरों द्वारा
किये गये कारण के लक्षण की अनुपयुक्तता को स्पष्ट कर अब कारण के भेदों
को बतलाते :
हैं
(च और
) ( तत् ) वह ( कारणम् ) कारण ( त्रिविधम् ) तीन प्रकार का
है - (१) समवायि कारण ( २ ) असमवाय कारण और (६ ) निमित्त कारण
( भेदात् ) भेदों से |
( तत्र ) उनमें से ( यत् ) जिसमें ( समवेतम् ) समवायसम्बन्ध से
( कार्यम् ) कार्य ( उत् प द ् य त े ) उत्पन्न होता है ( तत् ) उसको ( समवायि कारणम् )
समवायिकारण कहा जाता है । ( यथा ) जैसे ( तन्तवः ) तन्तु ( पटस्य ) पट के
( समवाय कारणम् ) समवाय कारण हैं । ( यतः ) क्योंकि ( तन्तुषु एव )
तन्तुओं में ही ( पटः ) पट [ कार्य (
] समवेतः ) समवाय सम्बन्ध से (जायते )
उत्पन्न होता ,
है ( तुर्यादिषु ) तुरी आदि में ( न ) नहीं ।

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