You are on page 1of 136

फार सॊस्काय

अनक्र
ु भणणका

प्रस्तावना 10

10

: 11

12

13

13

15

-ज - - - 17

17

: 18

- 19

ज - 20

ज 21

21

22
22

26

27

30

36

- 37

39

? 39

? 39

? 40

? 40

40

औ 41

41

- 41

42

ज 42

ज 42
ज 42

:ख ? 42

43

43

43

? 43

? 43

43

43

43

? 43

? 43

? 44

45

- 45

? 45

- ? 45

, 46

46
? 46

? ? 46

33 - ? 47

? 48

? 48

ज , - ? 48

? 49

ज ? 50

, ? 50

, औ ? 50

, , , , ,
, ज ज, ,
ज ? ? 51

53

ख 54

55

ख 57

द्खद ननभॊत्रण 58

59

60
60

61

62

ख 63

ॐ काय का अथथ एवॊ भहत्त्व 64

ज 65

? 66

? 67

ज ? 68

ज 69

69

70

ज 70

75

' ' , ज 77

79

- 80

- ज 81
औ ज 82

- ज 83

ख - ज 84

- खऔ 85

ज - ख , ख ? 86

87

ख ? 88

ज ....... 90

91

ज 91

ख 94

. .- 94

95

प्रसन्नता औय हास्म 97

- 99

- 99

100

101

102
102

103

104

108

110

- 116

हे प्रब! आनन्ददाता 116

कदभ अऩने आगे फढाता चरा जा... 117

ब्रह्भचमथ के ऩारन से... 117

भात पऩता गरु प्रब चयणों भें ... 119

शौमथ-गीत- हो जाओ तैमाय 120

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे... 121

जागत
ृ हो बायत साया... 122

जन्भददन तभ ऐसा भनाओ... 123

जन्भ ददन फधाई गीत 124

पवपरता आमे तो... 126

ज ... 127

आयती ॐ ज ज 128

/ 130
आज आ ,
, , ज , , ज, ज , ज, ,
, , , , आज ज ज

, ,ज
ज , ज
आ - ,

, , - ज - ज
, , ,
, , , ज आ
ज ,

- - , आ आ
आ :

- ज ( )
प्रस्तावना

ज आ फारक
आगे चरकय जी जैसे वीयों, एकनाथजी जैसे सॊत-भहाऩुरूषों एवॊ श्रवण कुभाय जैसे
भात-ृ पऩतब
ृ क्तों के जीवन का अनुसयण कयके सवाांगीण उन्नतत कय सकें इस हे तु फारकों भें
उत्तभ सॊस्काय का ससॊचन फहुत आवश्मक है । फचऩन जज ,
ज , ज

हॉसते-खेरते फारकों भें शुब सॊस्कायों का ससॊचन ककमा जा सकता है । नन्हा फारक कोभर
ऩौधे की तयह होता है , उसे जजस ओय भोड़ना चाहें , भोड़ सकते हैं। फच्चों भें अगय फचऩन से ही
शुब सॊस्कायों का ससॊचन ककमा जाए तो आगे चरकय वे फारक पवशार वटवऺ
ृ के सभान
पवकससत होकय बायतीम सॊस्कृतत के गौयव की यऺा कयने भें सभथथ हो सकते हैं।

पवद्माथॉ बायत का बपवष्म, पवश्व का गौयव एवॊ अऩने भाता-पऩता की शान है । उसके
अॊदय साभर्थमथ का असीभ बॊडाय छुऩा हुआ है । उसे प्रगट कयने हे तु आवश्मक है सस
ु ॊस्कायों का
ससॊचन, उत्तभ चारयत्र्म-तनभाथण औय बायतीम सॊस्कृतत के गौयव का ऩरयचम। इन्हीॊ पवषमों ऩय
प्रकाश डारा गमा है । उन्हीॊ के आधाय ऩय सयर, सफ
ु ौध शैरी भें फाराऩमोगी साभग्री का सॊकरन
कयके फार सॊस्काय नाभ ददमा गमा है । मह ऩस्
ु तक प्रत्मेक भाता-पऩता एवॊ फारकों के सरए
उऩमोगी ससद्ध होगी, ऐसी आशा है ।

पवनीत

- /

फा्
र्
सॊ:
स ्: , औ
का्
य्
।। : ।।

ॐ |
||
ॐ, , औ आ ज ,
ज , |
|
||
ज , ,
औ ज |
|
|
ज ज |
ज औ ज |
: : |
: : ||
ज ( = , ) औ
( ज ) औ

: : |
ज ||
, औ | औ ,
- |

।। ।।
ॐ : : : |
, | , ||
ज , आ | , ||
, | , ||
।। ।।
ॐ , ।
,
! , - ,
|ॐ आ |

ददनचमाथ

1. फारकों को प्रात् सम
ू ोदम से ऩहरे ही उठ जाना चादहए। - आ

ॐ ज ज |
!आ ज , ज (आ ) |
ॐ |
!आ , – |
ॐ |
!आ , |
ॐ ज ज |
!आ ज , ज ( औ आ ) |
ॐ |
!आ ( ) ,
ज |
ॐ ||
!आ | , ज
ज |

2. शौच-स्नानादद से तनवत्त
ृ होकय प्राणामाभ, जऩ, ध्मान, त्राटक, बगवदगीता का ऩाठ कयना
चादहए।

3. भाता-पऩता एवॊ गुरूजनों को प्रणाभ कयना चादहए।

4. तनमसभत रूऩ से मोगासन कयना चादहए।

5. अध्ममन से ऩहरे थोड़ी दे य ध्मान भें फैठें। इससे ऩढा हुआ सयरता से माद यह जाएगा। जो बी
पवषम ऩढो वह ऩूणथ एकाग्रता से ऩढो।
6. बोजन कयने से ऩूवथ हाथ-ऩैय धो रें। बगवान के नाभ का इस प्रकाय स्भयण कयें -
ॐ ब्रह्भाऩथणॊ ब्रह्भ हपवब्रह्भाग्नौ ब्रह्भणा हतभ ्। ब्रह्भैव तेन गन्तव्मॊ ब्रह्भकभथसभाधधना।।

प्रसन्नचचत्त होकय बोजन कयना चादहए। फाजारू चीज़ नहीॊ खानी चादहए। बोजन भें हयी सब्जी
का उऩमोग कयना चादहए।

7. फच्चों को स्कूर भें तनमसभत रूऩ से जाना चादहए। अभ्माभ भें ऩूणथ रूऩ से ध्मान दे ना चादहए।
स्कूर भें योज-का-योज कामथ कय रेना चादहए।

8. शाभ को सॊध्मा के सभम प्राणामाभ, जऩ, ध्मान एवॊ सत्सादहत्म का ऩठन कयना चादहए।

9. यात्रत्र के दे य तक नहीॊ जागना चादहए। ऩव


ू थ औय दक्षऺण ददशा की ओय ससय यखकय सोने से
आमु फढती है । बगवन्नाभ का स्भयण कयते-कयते सोना चादहए।

प्रात् ऩानी प्रमोग

प्रात् सूमोदम से ऩूवथ उठकय, भॉह


ु धोमे त्रफना, भॊजन मा दातुन कयने से ऩूवथ हय योज
कयीफ सवा रीटय (चाय फड़े चगरास) यात्रत्र का यखा हुआ ऩानी ऩीमें। उसके फाद 45 सभनट तक
कुछ बी खामें-ऩीमें नहीॊ। ऩानी ऩीने के फाद भॉुह धो सकते हैं, दातन
ु कय सकते हैं। जफ मह
प्रमोग चरता हो उन ददनों भें नाश्ता मा बोजन के दो घण्टे के फाद ही ऩानी ऩीमें।

प्रात् ऩानी प्रमोग कयने से रृदम, रीवय, ऩेट, आॉत के योग एवॊ ससयददथ , ऩथयी, भोटाऩा,
वात-पऩत्त-कप आदद अनेक योग दयू होते हैं। भानससक दफ
ु र
थ ता दयू होती है औय फुद्चध तेजस्वी
फनती है । शयीय भें काॊतत एवॊ स्पूततथ फढती है ।

नोट् फच्चे एक-दो चगरास ऩानी ऩी सकते हैं।

स्भयण शक्तत फढाने के उऩाम

फच्चों की स्भयण शजक्त फढाने के कई उऩाम हैं, उसभें कुछ भख्


ु म उऩाम इस प्रकाय हैं-

1. भ्राभयी प्राणामाभ्
पवधध् सवथप्रथभ दोनों हाथों की उॉ गसरमों को कन्धों के ऩास ऊॉचा रे जामें। दोनों हाथों की
उॉ गसरमाॉ कान के ऩास यखें। गहया श्वास रेकय तजथनी उॉ गरी से दोनों कानों को इस प्रकाय फॊद
कयें कक फाहय का कुछ सुनाई न दे । अफ होंठ फॊद कयके बॉवये जैसा गॊज
ु न कयें । श्वास खारी होने
ऩय उॉ गसरमाॉ फाहय तनकारें।

राब् वैऻातनकों ने ससद्ध ककमा है कक भ्राभयी प्राणामाभ कयते सभम बॉवये की तयह
गुॊजन कयने से छोटे भजस्तष्क भें स्ऩॊदन ऩैदा होते हैं। इससे एसीटाईरकोरीन, डोऩाभीन औय
प्रोटीन के फीच होने वारी यासामतनक प्रकक्रमा को उत्तेजना सभरती है । इससे स्भतृ तशजक्त का
पवकास होता है । मह प्राणामाभ कयने से भजस्तष्क के योग तनभर
ूथ होते हैं। अत् हय योज़ सुफह
8-10 प्राणामाभ कयने चादहए।

2. भॊत्र दीऺा् भॊत्र की दीऺा रेकय भॊत्र का तनमसभत रूऩ से जऩ कयने से


औय उसका अनुष्ठान कयने से फारक की स्भयणशजक्त चभत्कारयक ढॊ ग से फढती है ।

3. सूमथ को अर्घमथ् सूमोदम के कुछ सभम फाद जर से बया ताॉफे का करश हाथ भें रेकय
सम
ू थ की ओय भख
ु कयके ककसी स्वच्छ स्थान ऩय खड़े हों। करश को छाती के सभऺ
फीचोफीच राकय करश भें बये जर की धाया धीये -धीये प्रवादहत कयें । इस सभम करश
के धाया वारे ककनाये ऩय दृजष्टऩात कयें गे तो हभें हभें सम
ू थ का प्रततत्रफम्फ एक छोटे से
त्रफॊद ु के रूऩ भें ददखेगा। उस त्रफॊद ु ऩय दृजष्ट एकाग्र कयने से हभें सप्तयॊ गों का वरम
ददखेगा। इस तयह सम
ू थ के प्रततत्रफम्फ (त्रफॊद)ु ऩय दृजष्ट एकाग्र कयें । सम
ू थ फद्
ु चधशजक्त के
स्वाभी हैं। अत् सम
ू ोदम के सभम सम
ू थ को अर्घमथ दे ने से फद्
ु चध तीव्र फनती है ।
4. सूमोदम के फाद तुरसी के ऩाॉच-सात ऩत्ते चफा-चफाकय खाने एवॊ एक ग्रास ऩानी ऩीने
से बी फच्चों की स्भतृ तशजक्त फढती है । तुरसी खाकय तुयॊत दध
ू न ऩीमें। मदद दध

ऩीना हो तो तुरसी ऩत्ते खाने के एक घण्टे के फाद ऩीय़ें।

5. यात को दे य यात तक ऩढने के फजाम सुफह जल्दी उठकय, ऩाॉच सभनट ध्मान भें फैठने
के फाद ऩढने से फारक जो ऩढता है वह तुयॊत माद हो जाता है ।

प्राणामाभ

प्राणामाभ शब्द का अथथ है ् प्राण+आमाभ।

प्राण अथाथत ् जीवनशजक्त औय आमाभ अथाथत तनमभन। श्वासोच््वास की प्रकक्रमा का


तनमभन कयने का काय़थ प्राणामाभ कयता है ।

जजस प्रकाय एरौऩैथी भें फीभारयमों का कायण जीवाणु, प्राकृततक चचककत्सा भें पवजातीम
तत्त्व एवॊ आमव
ु ेद भें आभ यस (आहाय न ऩचने ऩय नस-नाडड़मों भें जभा कच्चा यस) भाना गमा
है उसी प्रकाय प्राण चचककत्सा भें योगों का कायण तनफथर प्राण भाना गमा है । प्राण के तनफथर हो
जाने से शयीय के अॊग-प्रत्मॊग ढीरे ऩड़ जाने के कायण ठीक से कामथ नहीॊ कय ऩाते। शयीय भें
यक्त का सॊचाय प्राणों के द्वाया ही होता है । अत् प्राण तनफथर होने से यक्त सॊचाय भॊद ऩड़ जाता
है । ऩमाथप्त यक्त न सभरने ऩय कोसशकाएॉ क्रभश् कभजोय औय भत
ृ हो जाती हैं तथा यक्त ठीक
तयह से रृदम भें न ऩहुॉचने के कायण उसभें पवजातीम द्रव्म अचधक हो जाते हैं। इन सफके
ऩरयणाभस्वरूऩ पवसबन्न योग उत्ऩन्न होते हैं।

मह व्मवहारयक जगत भें दे खा जाता है कक उच्च प्राणफरवारे व्मजक्त को योग उतना


ऩये शान नहीॊ कयते जजतना कभजोय प्राणफरवारे को। प्राणामाभ के द्वाया बायत के मोगी हजायों
वषों तक तनयोगी जीवन जीते थे, मह फात तो सनातन धभथ के अनेक ग्रन्थों भें है । मोग
चचककत्सा भें दवाओॊ को फाहयी उऩचाय भाना गमा है जफकक प्राणामाभ को आन्तरयक उऩचाय एवॊ
भर
ू औषचध फतामा गमा है । जाफाल्मोऩननषद् भें प्राणामाभ को सभस्त योगों का नाशकताथ फतामा
गमा है ।
शयीय के ककसी बाग भें प्राण ज़्मादा होता है तो ककसी बाग भें कभ। जहाॉ ज़्मादा है वहाॉ
से प्राणों को हटाकय जहाॉ उसका अबाव मा कभी है वहाॉ प्राण बय दे ने से शयीय के योग दयू हो
जाते हैं। सुषुप्त शजक्तमों को जगाकय जीवनशजक्त के पवकास भें प्राणामाभ का फड़ा भह्त्तत्त्व है ।

प्राणामाभ के राब्

1. प्राणामाभ भें गहये श्वास रेने से पेपड़ों के फॊद तछद्र खर


ु जाते हैं तथा योग
प्रततकायक शजक्त फढती है । इससे यक्त, नाडड़मों एवॊ भन बी शुद्ध होता है ।

2. त्रत्रकार सॊध्मा के सभम सतत चारीस ददन तक 10-10 प्राणामाभ कयने से


प्रसन्नता, आयोग्मता फढती है एवॊ स्भयणशजक्त का बी पवकास होता है ।

3. प्राणामाभ कयने से ऩाऩ कटते हैं। जैसे भेहनत कयने से कॊगारी नहीॊ यहती है ,
ऐसे ही प्राणामाभ कयने से ऩाऩ नहीॊ यहते हैं।

प्राणामाभ भें श्वास को रेने का, अॊदय योकने का, छोड़ने का औय फाहय योकने के सभम
का प्रभाण क्रभश् इस प्रकाय है ् 1-4-2-2 अथाथत मदद 5 सैकेण्ड श्वास रेने भें रगामें तो 20
सैकेण्ड योकें औय 10 सैकेण्ड उसे छोड़ने भें रगाएॊ तथा 10 सैकेण्ड फाहय योकें मह आदशथ
अनुऩात है । धीये -धीये तनमसभत अभ्मास द्वाया इस जस्थतत को प्राप्त ककमा जा सकता है ।

प्राणामाभ के कुछ प्रभुख अॊग्

1. ये चक् अथाथत श्वास को फाहय छोड़ना।

2. ऩूयक् अथाथत श्वास को बीतय रेना।

3. कॊ बक् अथाथत श्वास को योकना। श्वास को बीतय योकने कक कक्रमा को आॊतय कॊु बक
तथा फाहय योकने की कक्रमा को फदहकांु बक कहते हैं।

पवद्माधथथमों के लरए अन्म उऩमोगी प्राणामाभ

1. अनरोभ-पवरोभ प्राणामाभ् इस प्राणामाभ भें सवथप्रथभ दोनों नथन


ु ों से ऩूया श्वास
फाहय तनकार दें । इसके फाद दादहने हाथ के अॉगूठे से नाक के दादहने नथन
ु े को फन्द
कयके फाॉए नथन
ु े से सुखऩूवक
थ दीघथ श्वास रें । अफ मथाशजक्त श्वास को योके यखें ।
कपय फाॉए नथन
ु े को भध्मभा अॉगुरी से फन्द कयके श्वास को दादहने नथन
ु े से धीये -धीये
छोड़ें। इस प्रकाय श्वास के ऩूया फाहय तनकार दें औय कपय दोनों नथन
ु ों को फन्द कयके
श्वास को फाहय ही सुखऩूवक
थ कुछ दे य तक योके यखें । अफ ऩुन् दादहने नथुने से श्वास
रें औय कपय थोड़े सभम तक योककय फाॉए नथन
ु े से श्वास धीये -धीये छोड़ें। ऩूया श्वास
फाहय तनकर जाने के फाद कुछ सभम तक योके यखें । मह एक प्राणामाभ हुआ।

2. ऊजाथमी प्राणामाभ् इसको कयने से हभें पवशेष ऊजाथ (शजक्त) सभरती है , इससरए इसे
ऊजाथमी प्राणामाभ कहते हैं। इसकी पवचध है ्

ऩद्भासन मा सख
ु ासन भें फैठ कय गद
ु ा का सॊकोचन कयके भर
ू फॊध रगाएॊ। कपय नथन
ु ों,
कॊठ औय छाती ऩय श्वास रेने का प्रबाव ऩड़े उस यीतत से जल्दी श्वास रें । अफ नथन
ु ों को खर
ु ा
यखकय सॊबव हो सके उतने गहये श्वास रेकय नासब तक के प्रदे श को श्वास से बय दें । इसके
फाद एकाध सभनट कॊु बक कयके फाॉमें नथन
ु े से श्वास धीये -धीये छोड़ें। ऐसे दस ऊजाथमी प्राणामाभ
कयें । इससे ऩेट का शर
ू , वीमथपवकाय, स्वप्नदोष, प्रदय योग जैसे धातु सॊफॊधी योग सभटते हैं।

ध्मान-जऩ-भौन-सॊध्मा तथा भॊत्र-भदहभा

ध्मान भदहभा

नाक्स्त ध्मानसभॊ तीथथभ ्। नाक्स्त ध्मानसभॊ दानभ ्।

नाक्स्त ध्मानसभॊ मऻभ ्। नाक्स्त ध्मानसभॊ तऩभ ्।

तस्भात ् ध्मानॊ सभाचये त ्।

ध्मान के सभान कोई तीथथ नहीॊ। ध्मान के सभान कोई दान नहीॊ। ध्मान के सभान कोई
मऻ नहीॊ। ध्मान के सभान कोई तऩ नहीॊ। अत् ध्मान कयना चादहए।

सफ
ु ह सम
ू ोदम से ऩहरे उठकय, तनत्मकभथ कयके गयभ कॊफर अथवा टाट का आसन
त्रफछाकय ऩद्भासन भें फैठें। ॐ, , ज
आ आ ज कपय दोनों हाथों को
ऻानभुद्रा भें घुटनों ऩय यखें। थोड़ी दे य तक को दे खते-दे खते त्राटक कयें ।
ऩहरे खर
ु ी आॉख आऻाचक्र भें ध्मान कयें । कपय आॉखें फॊद कयके ध्मान कयें ।

फाद भें गहया श्वास रेकय थोड़ी दे य अॊदय योक यखें , कपय ॐ... दीघथ उच्चायण कयते
हुए श्वास को धीये -धीये फाहय छोड़ें। श्वास को बीतय रेते सभम भन भें बावना कयें - भैं सदगुण,
बजक्त, तनयोगता, भाधम ु ,थ आनॊद को अऩने बीतय बय यहा हूॉ। औय श्वास को फाहय छोड़ते सभम
ऐसी बावना कयें - भैं द्ु ख, चचॊता, योग, बम को अऩने बीतय से फाहय तनकार यहा हूॉ। इस प्रकाय
सात फाय कयें । ध्मान कयने के फाद ऩाॉच-सात सभनट शाॉत बाव से फैठे यहें ।

राब् इससे भन शाॉत यहता है , एकाग्रता व स्भयणशजक्त फढती है , फद्


ु चध सूक्ष्भ होती है ,
शयीय तनयोग यहता है , सबी द्ु ख दयू होते हैं, ऩयभ शाॉतत का अनब
ु व होता है औय ऩयभात्भा के
साथ सॊफॊध स्थापऩत ककमा जा सकता है ।

ज ज , , , , , , ,
, , , , , ३ आ | ,
,औ | आ
औ आ ज |
आ , -ज - ज |
ज | ,
- , |
ज , ज ( ) :
औ ( ) |
, आ
, आ |आ , ज
, ज ज ज -
ज औ ज आ , |
भॊत्र-भदहभा

भन की भनन कयने की शजक्त अथाथत एकाग्रता प्रदान कयके जऩ द्वाया सबी बमों का
पवनाश कयके, ऩूणथ रूऩ से यऺा कयनेवारे शब्दों को भॊत्र कहा जाता है । ऐसे कुछ भॊत्र औय उनकी
शजक्त तनम्न प्रकाय है ्

1. हरय ॐ

हरय शब्द फोरने से मकृत ऩय गहया प्रबाव ऩड़ता है औय हरय के साथ मदद ॐ सभरा कय
उच्चायण ककमा जाए तो हभायी ऩाॉचों ऻानेजन्द्रमों ऩय अच्छी असय ऩड़ती है। सात फाय हरय ॐ का
गॊज
ु न कयने से भर
ू ाधाय केन्द्र ऩय स्ऩॊदन होते हैं औय कई योगों को कीटाणु बाग जाते हैं।

2. याभ्

यभन्ते मोगीन् मक्स्भन ् स याभ्। जजसभें मोगी रोग यभण कयते हैं वह है याभ। योभ योभ
भें जो चैतन्म आत्भा है वह है याभ। ॐ याभ... ॐ याभ... का हययोज एक घण्टे तक जऩ कयने
से योग प्रततकायक शजक्त फढती है , भन ऩपवत्र होता है , तनयाशा, हताशा औय भानससक दफ
ु र
थ ता दयू
होने से शायीरयक स्वास्र्थम प्राप्त होता है ।

3. ॐ सूमाथम नभ्।

इस भॉत्र के जऩ से स्वास्र्थम, दीघाथमु, वीमथ एवॊ ओज की प्राजप्त होती है । मह भॊत्र शयीय


एवॊ चऺु के साये योग दयू कयता है । इस भॊत्र के जऩ कयने से जाऩक के शत्रु उसका कुछ बी नहीॊ
त्रफगाड़ सकते।

4. ॐ सायस्वत्मै नभ्।

इस भॊत्र के जऩ से ऻान औय तीव्र फुद्चध प्राप्त होती है ।

5. ॐ श्री भहारक्ष्म्मै नभ्।

इस भॊत्र के जऩ से धन की प्राजप्त होती है औय तनधथनता का तनवायण होता है ।

6. ॐ गॊ गणऩतमे नभ्।
इन भॊत्रों के जऩ से कोई बी कामथ ऩूणथ कयने भें आने वारे पवर्घनों का नाश होता है ।

7. ॐ श्री हनभते नभ्।

इस भॊत्र के जऩ से पवजम औय फर की प्राजप्त होती है ।

8. भहाभत्ृ मुॊजम भॊत्र

ॐ ज ।ॐ ।ॐ ज ।
। ॐ। ज ॐ।

ज ज ,आ

ज ज
आज ज , ज ,
ज औ

9. सगण भॊत्र् ॐ श्री याभाम नभ्। ॐ नभो बगवते वासदे वाम। ॐ नभ् लशवाम।

मे सगुण भॊत्र हैं, जो कक ऩहरे सगुण साऺातकाय कयाते हैं औय अॊत भें तनगण
ुथ
साऺात्काय।

10. भोऺभॊत्र् ॐ, सोsहभ ्, लशवोsहभ ्, अहॊ ब्रह्भाक्स्भ।

मे भोऺ भॊत्र हैं, जो आत्भ-साऺात्काय भें भदद कयते हैं।

जऩ-भदहभा

बगवान श्रीकृष्ण ने गीता भें कहा है , मऻानाभ ् जऩमऻो अक्स्भ। मऻों भें जऩमऻ भैं हूॉ।
श्री याभ चरयत भानस भें बी आता है ्

कलरमग केवर नाभ आधाया, जऩत नय उतये लसॊध ऩाया।

इस करमग
ु भें बगवान का नाभ ही आधाय है । जो रोग बगवान के नाभ
का जऩ कयते हैं, वे इस सॊसाय सागय से तय जाते हैं।
जऩ अथाथत क्मा? ज = जन्भ का नाश, ऩ = ऩाऩों का नाश।

ऩाऩों का नाश कयके जन्भ-भयण कयके चक्कय से छुड़ा दे उसे जऩ कहते हैं। ऩयभात्भा के
साथ सॊफॊध जोड़ने की एक करा का नाभ है जऩ। एक पवचाय ऩूया हुआ औय दस ू या अबी उठने
को है उसके फीच के अवकाश भें ऩयभ शाॊतत का अनुबव होता है । ऐसी जस्थतत राने के सरए जऩ
फहुत उऩमोगी साधन है । इसीसरए कहा जाता है ्

अधधकभ ् जऩॊ अधधकॊ परभ ्।

ज :
<> आ आ ज !!
<> ज ज !!
<> ज , औ !!
<> 12 !!
<> आ , , ,आ
!!
<> आ !!
<> !!

त्रत्रकार सॊध्मा

प्रात् सम
ू ोदम के 10 सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद तक, दोऩहय के 12 फजे से 10
सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद तक एवॊ शाभ को सम
ू ाथस्त के 10 सभनट ऩहरे से 10 सभनट फाद
तक का सभम सॊचधकार कहराता है । इड़ा औय पऩॊगरा नाड़ी के फीच भें जो सुषुम्ना नाड़ी है , उसे
अध्मात्भ की नाड़ी बी कहा जाता है । उसका भुख सॊचधकार भें उध्वथगाभी होने से इस सभम
प्राणामाभ, जऩ, ध्मान कयने से सहज भें ज़्मादा राब होता है ।

अत् सुफह, दोऩहय एवॊ साॊम- इन तीनों सभम सॊध्मा कयनी चादहए। त्रत्रकार सॊध्मा कयने
वारों को असभट ऩुण्मऩुॊज प्राप्त होता है । त्रत्रकार सॊध्मा भें प्राणामाभ, जऩ, ध्मान का सभावेश
होता है । इस सभम भहाऩरू
ु षों के सत्सॊग की कैसेट बी सन
ु सकते हैं। आध्माजत्भक उन्नतत के
सरए त्रत्रकार सॊध्मा का तनमभ फहुत उऩमोगी है । त्रत्रकार सॊध्मा कयने वारे को कबी योज़ी-योटी
की चचॊता नहीॊ कयनी ऩड़ती। त्रत्रकार सॊध्मा कयने से असाध्म योग बी सभट जाते हैं। ओज़, तेज,
फुद्चध एवॊ जीवनशजक्त का पवकास होता है । हभाये ऋपष-भुतन एवॊ श्रीयाभ तथा श्रीकृष्ण आदद बी
त्रत्रकार सॊध्मा कयते थे। इससरए हभें बी त्रत्रकार सॊध्मा कयने का तनमभ रेना चादहए।

भौन् शक्ततसॊचम का भहान स्रोत

भौन शब्द की सॊचध पवच्छे द की जाम तो भ+उ+न होता है । भ = भन, उ = उत्कृष्ट औय


न = नकाय। भन को सॊसाय की ओय उत्कृष्ट न होने दे ना औय ऩयभात्भा के स्वरूऩ भें रीन
कयना ही वास्तपवक अथथ भें भौन कहा जाता है ।

वाणी के सॊमभ हे तु भौन अतनवामथ साधन है । भनु ्ष्म अन्म इजन्द्रमों के उऩमोग से जैसे
अऩनी शजक्त खचथ कयता है ऐसे ही फोरकय बी वह अऩनी शजक्त का फहुत व्मम कयता है ।

भनष्ु म वाणी के सॊमभ द्वाया अऩनी शजक्तमों को पवकससत कय सकता है । भौन से


आॊतरयक शजक्तमों का फहुत पवकास होता है । अऩनी शजक्त को अऩने बीतय सॊचचत कयने के सरए
भौन धायण कयने की आवश्मकता है । कहावत है कक न फोरने भें नौ गण।

मे नौ गुण इस प्रकाय हैं। 1. ककसी की तनॊदा नहीॊ होगी। 2. असत्म फोरने से फचें गे। 3.
ककसी से वैय नहीॊ होगा। 4. ककसी से ऺभा नहीॊ भाॉगनी ऩड़ेगी। 5. फाद भें आऩको ऩछताना नहीॊ
ऩड़ेगा। 6. सभम का दरू
ु ऩमोग नहीॊ होगा। 7. ककसी कामथ का फॊधन नहीॊ यहे गा। 8. अऩने
वास्तपवक ऻान की यऺा होगी। अऩना अऻान सभटे गा। 9. अॊत्कयण की शाॉतत बॊग नहीॊ होगी।
सुषुप्त शजक्तमों को पवकससत कयने का अभोघ साधन है भौन। मोग्मता पवकससत कयने के सरए
भौन जैसा सुगभ साधन दस
ू या कोई नहीॊ हैं।

सूमन
थ भस्काय

भहत्त्व् हभाये ऋपषमों ने भॊत्र औय व्मामाभसदहत एक ऐसी प्रणारी पवकससत की है जजसभें


सूमोऩासना का सभन्वम हो जाता है । इसे सूमन
थ भस्काय कहते हैं। इसभें कुर 12 आसनों का
सभावेश है । हभायी शायीरयक शजक्त की उत्ऩपत्त, जस्थतत एव वद्
ृ चध सूमथ ऩय आधारयत है । जो रोग
सूमस्
थ नान कयते हैं, सूमोऩासना कयते हैं वे सदै व स्वस्थ यहते हैं। सूमन
थ भस्काय से शयीय की
यक्तसॊचयण प्रणारी, श्वास-प्रश्वास की कामथप्रणारी औय ऩाचन-प्रणारी आदद ऩय असयकायक
प्रबाव ऩड़ता है । मह अनेक प्रकाय के योगों के कायणों को दयू कयने भें भदद कयता है ।
सूमन
थ भस्काय के तनमसभत अभ्मास के शायीरयक एवॊ भानससक स्पूततथ के साथ पवचायशजक्त औय
स्भयणशजक्त तीव्र होती है।

ऩजश्चभी वैऻातनक गाडथनय यॉनी ने कहा् सूमथ श्रैष्ठ औषध है । उससे सदॊ, खाॉसी,
न्मुभोतनमा औय कोढ जैसे योग बी दयू हो जाते हैं।

डॉक्टय सोरे ने कहा् सूमथ भें जजतनी योगनाशक शजक्त है उतनी सॊसाय की अन्म ककसी
चीज़ भें नहीॊ।

प्रात्कार शौच स्नानादद से तनवत


ृ होकय कॊफर मा टाट (कॊतान) का आसन त्रफछाकय
ऩूवाथसबभुख खड़े हो जामें। चचत्र के अनुसाय ससद्ध जस्थतत भें हाथ जोड़ कय, आॉखें फन्द कयके,
रृदम भें बजक्तबाव बयकय बगवान आददनायामण का ध्मान कयें -

आदददे व नभस्तभ्मॊ प्रसीद भभ बास्कय। ददवाकय नभस्तभ्मॊ प्रबाकय नभोsस्त ते।।

हे आदददे व सम
ू न
थ ायामण! भैं आऩको नभस्काय कयता हूॉ। हे प्रकाश प्रदान कयने वारे दे व!
आऩ भुझ ऩय प्रसन्न हों। हे ददवाकय दे व! भैं आऩको नभस्काय कयता हूॉ। हे तेजोभम दे व! आऩको
भेया नभस्काय है ।

मह प्राथथना कयने के फाद सूमथ नभस्काय आ कयें । कपय चचत्रों कें तनददथ ष्ट 12 जस्थततमों का
क्रभश् आवतथन कयें । मह एक सूमथ नभस्काय हुआ।
- ज ज
:-
1. ॐ लभत्राम नभ्।

2. ॐ यवमे नभ्।

3. ॐ सूमाथम नभ्।

4. ॐ बानवे नभ्।

5. ॐ खगाम नभ्।

6. ॐ ऩष्ू णे नभ्।

7. ॐ दहयण्मगबाथम नभ्।

8. ॐ भयीचमे नभ्।

9. ॐ आददत्माम नभ्।

10. ॐ सपवत्रे नभ्।

11. ॐ :

12. ॐ बास्कयाम नभ्।

: ज ज
ज ,
आ ॐ :

:

आ आ ॐ :
: ,
, -
आ ॐ :

:
ज आ

आ ॐ :

: ज

आ ॐ :

: ज
- ,

आ ॐ :

: ,

आ , ज
आ ॐ :

:
ज आ
-
, औ
आ ॐ :
: आ

ज औ आ आ
ॐआ :

: आ आ ज

-
आ ॐ :

:
ज आ
आ ॐ :

: ज -
ज ज
आ ॐ
:

मौधगक चक्र

चक्र् चक्र आध्माजत्भक शजक्तमों के केन्द्र हैं। स्थूर शयीय भें मे चक्र चभथचऺुओॊ से नहीॊ
ददखते हैं। क्मोंकक मे चक्र हभाये सूक्ष्भ शयीय भें होते हैं। कपय बी स्थर
ू शयीय के ऻानतॊतुओ-ॊ
स्नामुकेन्द्रों के साथ सभानता स्थापऩत कयके उनका तनदे श ककमा जाता है ।
हभाये शयीय भें सात चक्र हैं औय उनके स्थान तनम्नाॊककत हैं -

1. भूराधाय चक्र् गुदा के नज़दीक भेरूदण्ड के आणखयी त्रफन्द ु के ऩास मह चक्र होता है ।

2. स्वाधधष्ठान चक्र् नासब से नीचे के बाग भें मह चक्र होता है ।

3. भणणऩय चक्र् मह चक्र नासब केन्द्र ऩय जस्थत होता है ।

4. अनाहत चक्र् इस चक्र का स्थान रृदम भे होता है ।

5. पवशद्धाख्म चक्र् कॊठकूऩ भें होता है ।

6. आऻाचक्र् मह चक्र दोनों बौहों (बवों) के फीच भें होता है ।

7. सहस्राय चक्र् ससय के ऊऩय के बाग भें जहाॉ सशखा यखी जाती है वहाॉ मह चक्र होता
है ।

कछ उऩमोगी भद्राएॉ

प्रात् स्नान आदद के फाद आसन त्रफछा कय हो सके तो ऩद्भासन भें अथवा सुखासन भें फैठें।
ऩाॉच-दस गहये साॉस रें औय धीये -धीये छोड़ें। उसके फाद शाॊतचचत्त होकय तनम्न भुद्राओॊ को दोनों
हाथों से कयें । पवशेष ऩरयजस्थतत भें इन्हें कबी बी कय सकते हैं।
लरॊग भद्रा् दोनों हाथों की उॉ गसरमाॉ ऩयस्ऩय बीॊचकय अन्दय की ओय यहते हुए
अॉगूठे को ऊऩय की ओय सीधा खड़ा कयें ।

राब् शयीय भें ऊष्णता फढती है , खाॉसी सभटती है औय कप का नाश कयती


लरॊग भद्रा है ।

शून्म भद्रा् सफसे रम्फी उॉ गरी (भध्मभा) को अॊदय की ओय भोड़कय उसके नख


के ऊऩय वारे बाग ऩय अॉगूठे का गद्दीवारा बाग स्ऩशथ कयामें।
शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् कान का ददथ सभट जाता है । कान भें से ऩस तनकरता हो अथवा फहयाऩन
शन्
ू म भद्रा हो तो मह भद्र
ु ा 4 से 5 सभनट तक कयनी चादहए।

ऩथ्
ृ वी भद्रा् कतनजष्ठका मातन सफसे छोटी उॉ गरी को अॉगूठे के नुकीरे बाग से
स्ऩशथ कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।

राब् शायीरयक दफ
ु र
थ ता दयू कयने के सरए, ताजगी व स्पूततथ के सरए मह भुद्रा
ऩथ्
ृ वी भद्रा अत्मॊत राबदामक है । इससे तेज फढता है ।

सूमभ
थ द्रा् अनासभका अथाथत सफसे छोटी उॉ गरी के ऩास वारी उॉ गरी को भोड़कय
उसके नख के ऊऩय वारे बाग को अॉगूठे से स्ऩशथ कयामें।
शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।

राब् शयीय भें एकत्रत्रत अनावश्मक चफॉ एवॊ स्थूरता को दयू कयने के सरए मह

सूमभ
थ द्रा एक उत्तभ भुद्रा है ।

ऻान भद्रा् तजथनी अथाथत प्रथभ उॉ गरी को अॉगूठे के नुकीरे बाग से स्ऩशथ
कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् भानससक योग जैसे कक अतनद्रा अथवा अतत तनद्रा, कभजोय मादशजक्त,
क्रोधी स्वबाव आदद हो तो मह भद्र
ु ा अत्मॊत राबदामक ससद्ध होगी। मह भद्र
ु ा
कयने से ऩज
ू ा ऩाठ, ध्मान-बजन भें भन रगता है ।
ऻान भद्रा इस भद्र
ु ा का प्रततददन 30 सभनठ तक अभ्मास कयना चादहए।
वरुण भद्रा् भध्मभा अथाथत सफसे फड़ी उॉ गरी के भोड़ कय उसके नुकीरे बाग को
अॉगूठे के नुकीरे बाग ऩय स्ऩशथ कयामें। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।
राब् मह भुद्रा कयने से जर तत्त्व की कभी के कायण होने वारे योग जैसे कक
यक्तपवकाय औय उसके परस्वरूऩ होने वारे चभथयोग व ऩाण्डुयोग (एनीसभमा) आदद
दयू होते है ।
वरुण भद्रा
प्राण भद्रा् कतनजष्ठका, अनासभका औय अॉगूठे के ऊऩयी बाग को ऩयस्ऩय एक
साथ स्ऩशथ कयामें। शेष दो उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।

राब् मह भुद्रा प्राण शजक्त का केंद्र है । इससे शयीय तनयोगी यहता है । आॉखों के
योग सभटाने के सरए व चश्भे का नॊफय घटाने के सरए मह भुद्रा अत्मॊत
प्राण भद्रा् राबदामक है ।

वाम भद्रा् तजथनी अथाथत प्रथभ उॉ गरी को भोड़कय ऊऩय से उसके प्रथभ ऩोय ऩय
अॉगठ
ू े की गद्दी स्ऩशथ कयाओ। शेष तीनों उॉ गसरमाॉ सीधी यहें ।

राब् हाथ-ऩैय के जोड़ों भें ददथ , रकवा, ऩऺाघात, दहस्टीरयमा आदद योगों भें राब
होता है । इस भुद्रा के साथ प्राण भुद्रा कयने से शीघ्र राब सभरता है ।

वाम भद्रा्
अऩानवाम भद्रा् अॉगूठे के ऩास वारी ऩहरी उॉ गरी को अॉगूठे के भूर भें
रगाकय अॉगूठे के अग्रबाग की फीच की दोनों उॉ गसरमों के अग्रबाग के साथ
सभराकय सफसे छोटी उॉ गरी (कतनजष्ठका) को अरग से सीधी यखें।
इस जस्थतत को अऩानवामु भुद्रा कहते हैं। अगय ककसी को रृदमघात आमे मा
रृदम भें अचानक ऩीड़ा होने रगे तफ तयु न्त ही मह भुद्रा कयने से रृदमघात को
अऩानवाम भद्रा बी योका जा सकता है ।

राब् रृदमयोगों जैसे कक रृदम की घफयाहट, रृदम की तीव्र मा भॊद गतत, रृदम का धीये
धीय फैठ जाना आदद भें थोड़े सभम भें राब होता है ।
ऩेट की गैस, भेद की वद्
ृ चध एवॊ रृदम तथा ऩयू े शयीय की फेचन
ै ी इस भद्र
ु ा के अभ्मास से
दयू होती है । आवश्मकतानस
ु ाय हय योज़ 20 से 30 सभनट तक इस भुद्रा का अभ्मास
ककमा जा सकता है ।
मोगासन

मोगासन के तनमसभत अभ्मास से शयीय तॊदरूस्त औय भन प्रसन्न यहता है । कुछ प्रभुख


आसन इस प्रकाय हैं-

1 ऩद्भासन् इस आसन से ऩैयों का आकाय ऩद्भ अथाथत कभर जैसा


फनने से इसको ऩद्भासन मा कभरासन कहा जाता है ।
: ज ज

ऩद्भासन ऩद्भासन के अभ्मास से उत्साह भें वद्


ृ चध होती है , स्वबाव भें
प्रसन्नता फढती है , भुख तेजस्वी फनता है , फुद्चध का अरौककक पवकास होता है तथा स्थर
ू ता
घटती है ।

2. उग्रासन (ऩादऩक्चचभोत्तानासन)- :आ

उग्रासन (ऩादऩक्चचभोत्तानासन) ज औ -

आज

सफ आसनों भें मह सवथश्रेष्ठ है । इस आसन से शयीय का कद फढता है । शयीय भें अचधक स्थर
ू ता
हो तो कभ होती है । दफ
ु र
थ ता दयू होती है , शयीय के सफ तॊत्र फयाफय कामथशीर होते हैं औय योगों का
नाश होता है । इस आसन से ब्रह्त्तभचमथ की यऺा होती है ।
3. सवाांगासन् बूसभ ऩय सोकय सभस्त शयीय को ऊऩय उठामा जाता है
इससरए इसे सवाांगासन कहते हैं।
: औ
ज औ -
ज -ज -
औ 90
सवाांगासन ज औ
आ औ ज आ

आ आ

सवाांगासन के तनत्म अभ्मास से जठयाजग्न तेज होती है । शयीय की त्वचा ढीरी नहीॊ होती। फार
सपेद होकय चगयते नहीॊ हैं। भेधाशजक्त फढती है । नेत्र औय भस्तक के योग दयू होते हैं।

4. हरासन् इस आसन भें शयीय का आकाय हर जैसा फनता


है इससरए इसको हरासन कहा जाता है ।

: ज औ

हरासन ज

इस आसन से रीवय ठीक हो जाता है । छाती का पवकास होता है । श्वसनकक्रमा तेज होकय अचधक
आक्सीजन सभरने से यक्त शद्
ु ध फनता है । गरे के ददथ , ऩेट की फीभायी, सॊचधवात आदद दयू होते
हैं।ऩेट की चफॉ कभ होती है । ससयददथ दयू होता है । यीढ रचीरी फनती है ।
5. चक्रासन् इस आसन भें शयीय की जस्थतत चक्र जैसी फनती है
इससरए इसे चक्रासन कहते हैं।
:आ ज

ज औ
चक्रासन
-
ज आ ज
( ) आ

भेरूदण्ड तथा शयीय की सभस्त नाडड़मों का शद्


ु चधकयण होकय मौचगक चक्र जाग्रत होते हैं। रकवा
तथा शयीय की कभजोरयमाॉ दयू होती हैं। इस आसन से भस्तक, गदथ न, ऩेट, कभय, हाथ, ऩैय, घुटने
आदद सफ अॊग फनते हैं। सॊचधस्थानोंभें ददथ नहीॊ होता। ऩाचन शजक्त फढती है । ऩेट कीअनावश्मक
चफॉ दयू होती है । शयीय सीधा फना यहता है ।

6. भत्स्मासन् भत्सम का अथथ है भछरी। इस आसन भें शयीय का आकाय भछरी जैसा
फनता है । अत् भत्स्मासन कहराता है ।
: ज
ज आ


भत्स्मासन

आज

प्रापवनी प्राणामाभ के साथ इस आसन की जस्थतत भें रम्फे सभम तक ऩानी भें तैय सकते हैं।
भत्स्मासनसे ऩूया शयीय भजफूत फनता है । गरा, छाती, ऩेट की तभाभ फीभारयमाॉ दयू होती हैं।
आॉखों की योशनी फढती है । ऩेट के योग नहीॊ होते। दभा औय खाॉसी दयू होती है । ऩेट की चफॉ
कभ होती है ।
7. ऩवनभततासन् मह आसन कयने से शयीय भें जस्थत
ऩवन (वामु) भुक्त होता है । इससे इसे ऩवन भुक्तासन कहा
जाता है । :
,

ऩवनभततासन

(Nose) 10 30

आ आ -
-

ऩवनभक्
ु तासन के तनमसभत अभ्मास से ऩेट की चफॉ कभ हो जाती है । ऩेट की वामु नष्ट होकय
ऩेट पवकाय यदहत फनता है । कब्ज दयू होती है । इस आसन से स्भयणशजक्त फढती है । फौद्चधक
कामथ कयने वारे डॉक्टय, वकीर, सादहत्मकाय, पवद्माथॉ तथा फैठकय प्रवपृ त्त कयने वारे भुनीभ,
व्माऩायी, क्रकथ आदद रोगों को तनमसभत ऩवनभुक्तासन अवश्म कयना चादहए।

8. वज्रासन् वज्रासन का अथथ है फरवान जस्थतत। ऩाचनशजक्त, वीमथ शजक्त


तथा स्नामुशजक्त दे ने वारा होने के कायण मह आसन वज्रासन कहराता है ।
: ज औ
.


वज्रासन औ

बोजन के फाद इस आसन भें फैठने से ऩाचनशजक्त तेज होती है । बोजन जल्दी हज्भ होता है ।
कब्जी दयू होकय ऩेट के तभाभ योग नष्ट होते हैं। कभय औय ऩैय का वामुयोग दयू होता है ।
स्भयणशजक्त भें वद्
ृ चध होती है । वज्रनाड़ी अथाथत वीमथधाया भजफूत होती है ।
9. धनयासन् इस आसन भें शयीय की आकृतत खीॊचे हुए धनुष जैसी
फनती है , अत् इसको धनुयासन कहा जाता है ।
: ज
(Hips) आ (Ankle)

धनयासन औ

(Thighs) औ ज ज

धनुयासन से छाती का ददथ दयू होता है । रृदम भजफूत फनता है । गरे के तभाभ योग नष्ट होते हैं।
आवाज़ भधयु फनती है । भख
ु ाकृतत सन्
ु दय फनती है । आॉखों की योशनी फढती है । ऩाचन शजक्त
फढती है । बख
ू खर
ु ती है । ऩेट की चफॉ कभ होती है ।

10. शशाॊकासन् आ ( )
ज आ ज
:
-

शशाॊकासन आ ज आ

( ) -

शशाॊकआसन श्रोणी प्रदे श की ऩेसशमो के सरए अत्मन्त राबदामक है । एडिनर ग्रन्थी के कामथ
तनमसभत होते हैं, कोष्ठ- फद्धता औय सामदटका से याहत सभरती है तथा क्रोध ऩय तनमन्त्रण आता
है , फजस्त प्रदे श का स्वस्थ पवकास होता है तथा मौन सभस्माएॉ दयू होती हैं।
11. ताडासन् : ज आ
औ आ
आ | -

ज ,ज
आ औ
औ ज ज
आ |
ताडासन आ
औ आज

वीमथस्राव क्मों होता है ? जफ ऩेट भें दफाव ( Intro-abdominal Pressure) फढता है तफ


वीमथस्राव होता है । इस प्रेशय के फढने के कायण इस प्रकाय हैं - 1. ठूॉस-ठूॉस कय खाना 2.
फाय-फाय खाना 3. कजब्जमत 4. गैस होने ऩय (वामु कये ऐसी आरू, गवाय परी, बीॊडी,
तरी हुई चीजों का सेवन एवॊ अचधक बोजन कयने के कायण) 5. सैक्स सम्फन्धी पवचाय,
चरचचत्र एवॊ ऩत्रत्रकाओॊ से। इस प्रेशय के फढने से प्राण नीचे के केन्द्रों भें , नासब से नीचे
भूराधाय केन्द्र भें आ जाता है जजसकी वजह से वीमथस्राव हो जाता है । इस प्रकाय के प्रेशय
के कायण हतनथमा की फीभायी बी हो जाती है । ताड़ासन कयने से प्राण ऊऩय के केन्द्रों भें
चरे जाते हैं जजससे तुयॊत ही ऩुरूषों के वीमथस्राव व जस्त्रमों के प्रदय योग की तकरीप भें
राब होता है ।

12 शवासन् ज
आ :

शवासन : ज
6 8
आ औ

अन्म आसन कयने के फाद अॊगों भें जो तनाव ऩैदा होता है उसको दयू कयने के सरए अॊत भें 3
से 5 सभनट तक शवासन कयना चादहए। इस आसन से यक्तवादहतनमों भें , सशयाओॊ भें यक्तप्रवाह
तीव्र होने से सायी थकान उतय जाती है । नाड़ीतॊत्र को फर सभरता है । भानससक शजक्त भें वद्
ृ चध
होती है ।


, ज

(आसन तथा प्राणामाभ की पवस्तत


ृ जानकायी के सरए ऩस्
ु तक को अवश्म ऩढें ।)

प्राणवान ऩॊक्ततमाॉ

फच्चों के जीवन भें सषप्त अवस्था भें छऩे हए उत्साह, तत्ऩयता, ननबथमता
औय प्राणशक्तत को जगाने के लरए उऩमोगी प्राणवान सूक्ततमाॉ

जहाजों से जो टकयामे, उसे तूपान कहते हैं।


तूपानों से जो टकयामे, उसे इन्सान कहते हैं।।1।।

हभें योक सके, मे ज़भाने भें दभ नहीॊ।


हभसे है ज़भाना, ज़भाने से हभ नहीॊ।।2।।

जजन्दगी के फोझ को, हॉ सकय उठाना चादहए।


याह की दश्ु वारयमों ऩे, भस्
ु कुयाना चादहए।।3।।

फाधाएॉ कफ योक सकी हैं , आगे फढने वारों को।


पवऩदाएॉ कफ योक सकी हैं, ऩथ ऩे फढने वारों को।।4।।

भैं छुई भई
ु का ऩौधा नहीॊ, जो छूने से भयु झा जाऊॉ।
भैं वो भाई का रार नहीॊ, जो हौवा से डय जाऊॉ।।5।।
जो फीत गमी सो फीत गमी, तकदीय का सशकवा कौन कये ।
जो तीय कभान से तनकर गमी, उस तीय का ऩीछा कौन कये ।।6।।

अऩने द्ु ख भें योने वारे, भुस्कुयाना सीख रे।


दस
ू यों के द्ु ख ददथ भें आॉसू फहाना सीख रे।।7।।

जो णखराने भें भज़ा, वो आऩ खाने भें नहीॊ।


जजन्दगी भें तू ककसी के, काभ आना सीख रे।।8।।

खन
ू ऩसीना फहाता जा, तान के चादय सोता जा।
मह नाव तो दहरती जाएगी, तू हॉ सता जा मा योता जा।।9।।


है ।।10।।

एक-दो की सॊख्मा द्वाया ऻान

एक से दस की धगनती सफ माद यखना आऩ,


जीवन भें उतयना, तो भहान फनेंगे आऩ।।

1. एक, ऩयभात्भा है एक् जैसे सोने के आबूषण अरग-अरग होते हैं, कपय बी भूर भें
सोना तो एक ही है । इसी तयह ऩयभात्भा का नाभ औय रूऩ अरग-अरग है । जैसे , ,
, ऩयन्तु तत्त्वरूऩ भें तो एक ही ऩयभात्भा है औय वह अऩना आत्भा है । ऐसा एक हभें
सभझाता है ।

2. दो भन के प्रकाय हैं दो् भन दो प्रकाय का है ् 1 शुद्ध भन 2. अशुद्ध भन। शुद्ध


भन के पवचाय हैं सुफह जल्दी उठना, जऩ-ध्मान-कीतथन कयना, हभेशा सच फोरना, चोयी न कयना
आदद जफकक अशुद्ध भन के पवचाय हैं दे य से उठना, झूठ फोरना, फड़ों का अऩभान कयना आदद।
फच्चों को सदा शुद्ध भन के पवचायों को ही अभर भें राना चादहए। ऐसा दो हभें कहता है ।

3. तीन, सॊध्मा कयनी तीन् हययोज़ तीन सॊध्मा अथाथत सफ


ु ह, दोऩहय औय शाभ तीनों
सभम सॊध्मा कयनी चादहए। सॊध्मा भें ॐ का उच्चायण, प्राणामाभ, जऩ, ध्मान आदद ककमा जाता
है । बगवान याभ तथा श्री कृष्ण बी सॊध्मा कयते थें। फच्चों को योज़ सॊध्मा कयनी चादहए। ऐसा
तीन हभें सभझाता है ।

4. चाय, मोग के लरए हो जाओ तैमाय् 84 से बी अचधक आसन हैं , ऩयन्तु उन भें से
थोड़े आसनों को बी जो तनमसभत रूऩ से कयता है तो उसको शायीरयक एवॊ भानससक स्वास्र्थम के
सरए खफ
ू राबदामी होता है । मोगासन कयने से डॉक्टय की गुराभी नहीॊ कयनी ऩड़ती है । इससरए
हययोज़ मोगासन कयना चादहए। ऐसा चाय हभें सभझाता है ।

5. ऩाॉच, प्रकृनत के तत्त्व हैं ऩाॉच् हभाया मह शयीय प्रकृतत का है जो ऩाॉच तत्त्वों आकाश,
तेज, वाम,ु जर औय ऩर्थ
ृ वी का फना हुआ है । जफ भत्ृ मु होती है , तफ मह शयीय ऩाॉच तत्त्वों भें सभर
जाता है , तफ बी इसभें यहने वारा आत्भा कबी भयता नहीॊ है । वस्तत ु ् हभ चैतन्म आत्भा हैं
शयीय नहीॊ है । ऐसा ऩाॉच हभें माद ददराता है ।

6. छ् फनो ननबथम् तनबथमता ही जीवन है , बमबीत होना भत्ृ मु है । फच्चों को हभेशा


तनबथम फनना चादहए। बूत-प्रेत से, अॊधेये से, भौत से डयना नहीॊ चादहए। तनबथम फनने के सरए
योज़ सुफह ॐ शब्द का दीघथ स्वय से जऩ कयना चादहए। डयाने वारे सऩने आते हों तो
श्रद्धाऩूवक
थ बगवदगीता का ऩाठ कयके उसभें भोय का एक ऩॊख यख ससयहाने के नीचे यखकय सो
जाने से राब होगा। ऐसा हभें छ् कहता है ।

7. सात, दगण
थ ों को भायो रात् फच्चों को अऩने जीवन भें से दग
ु ण
ुथ ों को जैसे कक झूठ
फोरना, चोयी कयना, तनॊदा कयना, ऩान-भसारा खाना, अऩनी फुद्चध त्रफगाड़े ऐसी कपल्भें टी.वी.
सीरयमर दे खना तथा उन्हें दे खकय, उसके पवऻाऩन दे खकय पैशन का कचया घय भें राना आदद
दग
ु ण
ुथ ों को जीवन भें से दयू कयना चादहए। ऐसा सात हभें कहता है।

8. आठ, योज कयो गीता-ऩाठ् का ऩपवत्र ग्रॊथ श्रीभदबगवदगीता का फच्चों को


योज़ ऩाठ कयना चादहए क्मोंकक बगवदगीता बगवान के श्रीभख ु से तनकरी हुई ऻानगॊगा है । उसे
ऩढने से आत्भपवश्वास फढता है । हभाये ऩाऩ नाश होते हैं। जीवन के प्रश्नों के सबी जवाफ हभें
गीता से सभर जाते हैं। इससरए बगवदगीता का ऩाठ योज़ कयना चादहए। ऐसा आठ हभें
सभझाता है ।

9. नौ, कयो आत्भानबव् हभ अऩने जीवन भें सुख-द्ु ख, भान-अऩभान, राब-हातन आदद
फहुत से अनुबव कयते हैं, ऩयन्तु भनुष्म-जन्भ का उद्दे श्म साथथक कयने के सरए भैं शयीय नहीॊ
ऩयन्तु चैतन्म आत्भा हूॉ, ऐसा अनुबव कय रो। मही साय है । ऐसा नौ हभें माद ददराता है ।
10. दस, यहो आत्भानॊद भें भस्त् बगवान आनॊदस्वरूऩ हैं , द्ु ख, चचॊता मा ग्रातनस्वरूऩ
नहीॊ। इससरए सदा आनॊद भें यहना चादहए। सदा सभ औय प्रसन्न यहना ईचवय की सवोऩरय
बक्तत है - कैसी बी पवकट ऩरयजस्थतत मा द्ु ख आ ऩड़े तो बी रृदम की शाॊतत मा आनन्द गॉवाना
(खोना) नहीॊ चादहए ऩयॊ तु सभचचत्त औय प्रसन्न यहना चादहए। ऐसा दस का अॊक हभें सभझाता
है ।

|| ||

- ? ? ? ?
-

- ?
- - -आ , आ |
- ?
- , औ
- ?
- ज औ |

- ?
- ज :
औ ज ज ज ,
| ,
ज , ज आ औ
ज ज

: + + + + +आ+ +
=
=
=
=
=

- , , , , औ - : ज
' ' । । , ,
ज , औ ज

- ?
-ज आ आ औ
ज औ
; आ ,
- ?
- ज आ औ , ,
ज , , ,
, ,
|
- - ?
- : :।
||
( ज ज ),
( ज , ज , ज -
,
), ( ), , ( ),
, , , औ ( , ज
आ ,
ज ज ज ज आ,
ज ज ज
ज );

- औ ?

- |
|| ज 40/12

ज , ज औ ज

ज | ज आ |
ज ज
| औ , : |

- ?
- , ,
आज
- खऔ ?
- , , , , औ , , ,
, औ
- ?
- , ज ज
- ?
-

- ?
-ज
- ?
- , , आ
- ?
- ज
- ?
- , , , , ज
-ज ?
-ज ज ज ज औ

-ज ?
- , औ ज
-ज औ ?
- ज , आ ज ज औ
- औ ज ?
-ज ज ज ज
ज ज

-ज ?
-ज , , , , आ ज -ज औ , ज
ज |
- ज ?
- , ज ज , -
, औ ( ज )|ज ज
|
- ख ?
- , , , - ज
- ख ?
- औ औ औ
- ?
- आ ,ज
-ज ?
-ज आ ज ज
- ज ?
- , औ ज
- ?
-
- ?
-
- ?
- , औ
- ?
- , , औ
- ज ?
- ज , औ
- ?
-
- ?
-ज
- ?
-आ

- ?
- औ |
- ज ?
- |
- ?
- |
- ?
-
|
- ज ?
- ज |
- ज ज ख ज ?
- |
- ?
-आ |
- , , औ ?
- |
- ?
- ज |
- ज ?
- ज - ज ,
आ औ ?

- ?
- ज , , , , , , ज ,
, - , , ज

- ?
- आ , , औ
( ) |

- ?
- , औ , ,

ज ,
ज आ
ज ' ' ज औ
, औ
। ज ज , ज , ज
,

, ज
, औ ?
|
ज ज , , ,
औ ज ज ,
, ज

, औ आ ,
- -' ' ज -
- ज ज ,
, ,

- ?
- , , , आ आ
|

- - ?
- |

- ?
-ज - ज- ज - , -
औ ज , आ ( )

- , ?
- आ , |
आ | आज , , , , ,
आ - |ज - , -
!ज , ! ' :'
- |

- , , ?
- औ ,औ
|आ - ज
ज | , , , आ
ज | ज | ज आ
, आ |
, आ , ,
| ? ,
आ औ ज -
| - , , ज -
|
, , , ,आ ज |

| - ज
ज | ज-
आ आ |

- ?
- | |आ
ज , - ज ,ज - |

- ?
- आ ज ज आ
?आ ?आ आ
? - - , - |
आ औ -
औ ? |

- ? ?
- |
| ज | , ,
| , ज ,
|
|
|ज आ औ ,
ज | ज औ ,
औ ज ज
| ‛ : :
: ’ ज ज
| ज |ज
औ औ |
:
| : औ ज , : :
आ आ | औ
ज | आ औ ज ( :), ( :) औ
आ ( :) ( ) | ( :) ( )
( :) ( ) ,( ) ज
( :) ( :) ( :) ( )|
, |

- 33 - ?
- 33 - ,
" " औ " " |
|ज 33 33 - ( ,
, ज ) ,
ज ख |
ज , ज | ....
- " ज "
ज ज , |

ज ज औ ,
ख | ज ज |
, औ ज आज औ ,
आज औ ज ज ज
| ज ज औ ज |
, , , , औ 33
| ,आ ,
ज ज , |

- ?
- ज ज
ज ज ज औ

- ?
- ज –
ज ।
ज -
१०/ ४१
–( )ज -ज ,( ) ,( ज )
l( ) ( ज )
ज |

l ज -ज , औ
, ज l
( ) l “
( ) .” – १-३-१८
„ (ज ) l”
औ ज
औ ज , l
l

- ज , - ?
-

, 100
ज - आ
, , , , आज
, ज आ
1970 आ -
1954
-‘ ज’
‘ज ज ’ ज -ज ज औ
-‘ ’ ‘ ’
‘ ’ ‘ ’ - ज
ज ‘
’ - औ

ज -‘ औ
….. ज ,
, -
औ ज ….. - ?
ज ?’
ज , , ,
, औ -
!
ख |

- ?
- ज
| आज ज , , आ औ
|
ज !
ज ज ज |
- ज ? ज ?
- ज , ज

ज , | आ औ
, ज आ |
Deuteronomy
| , ,
औ | ,
ज 2600 आ , आ आ औ आ
| ज |

- ज ?
- | ज , , ,
ज |

- , औ !
- - ,ज आ ,
| , , ,
, ,आ आ ज - ,
, , ज | औ
, , - , - , , आ आ
| - - , |
ख, - ,ज
, ज , , | ,
, , , , , , , , ज , ,
| ज- |
ज ( ज ज )
औ |ज ज
, आ , आ |
, औ (
) आ | ,
, |
ज ज , , , औ
ज | ज
|
ज ज ,ज ( ज ज ) ज |ज ,
ज ज , ,
|

- , , , , ,
, ज ज, , ज
? ?
- ,
ज ज |
औ ज
| आज
, ,
औ ज |
|
| आ
|
| ज
आ ?
ज – ,
औ - ख
| ज
| औ
-
| औ
| ,ज

ख | ज
| ज
| |
( )|
आ औ
| औ ज
औ |
| औ
ज औ ज ज औ
ज |
औ ख ,ज
, | ज
आ औ आ | - |
औ ज औ |
आ | - |
, आ ,
|
ज , |
ज |

- ?
- | , ,
ज | - आ |

,
, |" ..!
ज , ख " ,ज ,
, , ज ज
ज |
, " " "
" ज ज
, , , ज
|

शास्त्र के अनसाय चरोकों का ऩाठ

तनम्नसरणखत श्रोकों को जीवन भें चरयताथथ कयने से भनुष्म-जीवन का रक्ष्म प्राप्त कय


सकते हैं। इससरए फच्चों को इन श्रोकों को कॊठस्थ कयके जीवन भें चरयताथथ कयना चादहए।

गीतामाॊ चरोकऩाठे न गोपवॊदस्भनृ त कीतथनात ्।


साधदशथनभात्रेण तीथथकोदटपरॊ रबेत ्।।

बावाथथ् गीता के श्रोक के ऩाठ से, बगवान श्री कृष्ण के स्भयण कयने से, कीतथन से औय
सॊतों के दशथनभात्र से कयोड़ों तीथों का पर प्राप्त होता है ।

उद्मभ् साहसॊ धैमां फद्धध् शक्तत् ऩयाक्रभ्।


षडेतै मत्र वतथन्ते तत्र दे व सहामकृत ्।।

बावाथथ् उद्मभ, साहस, धीयज, फुद्चध, शजक्त औय ऩयाक्रभ मे छ् गुण जजस व्मजक्त के
जीवन भें हैं उन्हें दे वता (ऩयब्रह्त्तभ ऩयभात्भा) सहामता कयते हैं

धन्मा भाता पऩता धन्मो गोत्रॊ धन्मॊ करोदबव्।


धन्मा च वसधा दे पव मत्र स्माद् गरूबततता।।

बावाथथ् जजसके अन्दय गुरूबजक्त है उसकी भाता धन्म है , उसके पऩता धन्म हैं, उसका
गोत्र धन्म है , उसके वॊश भें जन्भ रेने वारे धन्म हैं औय सभग्र धयती भाता धन्म है ।

अऻानभूरहयणॊ जन्भकभथननवायकभ ्।
ऻानवैयाग्म लसद् ध्मथां गरूऩादोदकॊ पऩफेत ्।।

बावाथथ् अऻान के भर
ू को हयने वारे, अनेक जन्भों के कभों का तनवायण कयने वारे,
ऻान औय वैयाग्म को ससद्ध कयने वारे गुरूचयणाभत
ृ का ऩान कयना चादहए।
अबमॊ सत्त्वसॊशद्धधऻाथनमोगव्मवक्स्थनत्।
दानॊ दभचच स्वाध्मामस्तऩ आजथवभ ्।।

बावाथथ् तनबथमता, अॊत्कयण की शुद्चध, ऻान औय मोग भें तनष्ठा, दान, इजन्द्रमों ऩय काफू,
मऻ औय स्वाध्माम, तऩ, अॊत्कयण की सयरता का बाव मे दै वी सम्ऩपत्त वारे भनुष्म के रक्ष्ण
हैं।

अलबवादनशीरस्म ननत्मॊ वद्


ृ धोऩसेपवन्।
चत्वारय तस्म वधथन्ते आमपवथद्मा मशो फरभ ्।।

बावाथथ् तनत्म फड़ों की सेवा औय प्रणाभ कयने वारे ऩुरुष की आमु, पवद्मा, मश औय फर
मे चाय फढते हैं।

साणखमाॉ

फच्चों को जीवन भें सदगणों का सॊचाय कयने के लरए उऩमोगी साणखमाॉ

हाथ जोड़ वन्दन करूॉ, धरूॉ चयण भें शीश।


ऻान बजक्त भोहे दीजजए, ऩयभ ऩुरूष जगदीश।।

भैं फारक तेया प्रबु, जानॉू मोग न ध्मान।


गुरूकृऩा सभरती यहे , दे दो मह वयदान।।

बमनाशन दभ
ु तथ त हयण, कसर भें हरय का नाभ।
तनशददन नानक जो जऩे, सपर होवदहॊ सफ काभ।।

आरस कफहुॉ न कीजजए, आरस अरय सभ जातन।


आरस से पवद्मा घटे , फर फुद्चध की हातन।।

तुरसी साथी पवऩपत्त के, पवद्मा पवनम पववेक।


साहस, सुकृत, सत्मव्रत, याभ बयोसो एक।।

धैमथ धयो आगे फढो, ऩयू न हो सफ काभ।


उसी ददन ही परते नहीॊ, जजस ददन फोते आभ।।
साॊच फयाफय तऩ नहीॊ, झूठ फयाफय ऩाऩ।
जाके रृदम साॊच है , ताके रृदम आऩ।।

फहुत ऩसाया भत कयो, कय थोड़े की आस।


फहुत ऩसाया जजन ककमा, वे बी गमे तनयाश।।

मह तन पवष की फेरयी, गुरू अभत


ृ की खान।
ससय दीजे सदगुरू सभरे, तो बी सस्ता जान।।

तुरसी जग भें मूॉ यहो, ज्मों यसना भुख भाॉही।


खाती घी औय तेर तनत, तो बी चचकनी नाॉही।।

जफ आए हभ जगत भें , जग हॉ सा हभ योए।


ऐसी कयनी कय चरो, हभ हॉसे जग योए।।

भेयी चाही भत कयो, भैं भूयख अनजान।


तेयी चाही भें प्रब,ु है भेया कल्माण।।

तुरसी भीठे वचन से, सुख उऩजत चहुॉ ओय।


वशीकयण मह भॊत्र है , तज दे वचन कठोय।।

गोधन, गजधन, वाजज धन, औय यतन धन खान।


जफ आवे सन्तोष धन, सब धन धरू य सभान।।

रक्ष्म न ओझर होने ऩाम, कदभ सभराकय चर।


सपरता तेये चयण चभ
ू ेगी, आज नहीॊ तो कर।।

आदशथ फारक की ऩहचान

फच्चा सहज, सयर, तनदोष औय बगवान का प्माया होता है । फच्चों भें भहान होने के
ककतने ही गण
ु फचऩन भें ही नज़य आते हैं। जजससे फच्चे को आदशथ फारक कहा जा सकता है ।
मे गण
ु तनम्नसरणखत हैं-

1. वह शाॊत स्वबाव होता है ् जफ सायी फातें उसके प्रततकूर हो जाती हैं मा सबी तनणथम
उसके पवऩऺ भें हो जाते हैं, तफ बी वह क्रोचधत नहीॊ होता।
2. वह उत्साही होता है ् जो कुछ वह कयता है , उसे अऩनी मोग्मता के अनुसाय उत्तभ से
उत्तभ रूऩ भें कयता है । असपरता का बम उसे नहीॊ सताता।

3. वह सत्मननष्ठ होता है् सत्म फोरने भें वह कबी बम नहीॊ कयता। उदायतावश कटु व
अपप्रम सत्म बी नहीॊ कहता।

4. वह धैमश
थ ीर होता है ् वह अऩने सतकभथ भें दृढ यहता है । अऩने सतकभों का पर
दे खने के सरए बरे उसे रम्फे सभम तक प्रतीऺा कयनी ऩड़े, कपय बी वह धैमथ नहीॊ छोड़ता,
तनरूत्सादहत नहीॊ होता है। अऩने कभथ भें डटा यहता है ।

5. वह सहनशीर होता है् सहन कये वह सॊत इस कहावत के अनुसाय वह सबी द्ु खों को
सहन कयता है । ऩयॊ तु कबी इस पवषम भें सशकामत नहीॊ कयता है ।

6. वह अध्मवसामी होता है ् वह अऩने कामथ भें कबी राऩयवाही नहीॊ कयता। इस कायण
उसको वह कामथ बरे ही रम्फे सभम तक जायी यखना ऩड़े तो बी वह ऩीछे नहीॊ हटता।

7. वह सभधचत्त होता है ् वह सपरता औय पवपरता दोनों अवस्थाओॊ भें सभता फनामे


यखता है ।

8. वह साहसी होता है ् सन्भागथ ऩय चरने भें , रोक-कल्माण के कामथ कयने भें , धभथ का
अनुसयण व ऩारन कयने भें , भाता-पऩता व गुरूजनों की सेवा कयने व आऻा भानने भें ककतनी
बी पवर्घन-फाधाएॉ क्मों न आमें, वह जया-सा बी हताश नहीॊ होता, वयन ् दृढता व साहस से आगे
फढता है ।

9. वह आनन्दी होता है ् वह अनुकूर-प्रततकूर ऩरयजस्थततमों भें प्रसन्न यहता है ।

10. वह पवनमी होता है ् वह अऩनी शायीरयक-भानससक श्रेष्ठता एवॊ ककसी प्रकाय की


उत्कृष्ट सपरता ऩय कबी गवथ नहीॊ कयता औय न दस
ू यों को अऩने से हीन मा तुच्छ सभझता है ।
पवद्मा ददानत पवनमभ ्।

11. वह स्वाध्मामी होता है ् वह सॊमभ, सेवा, सदाचाय व ऻान प्रदान कयने वारे उत्कृष्ट
सदग्रन्थों तथा अऩनी कऺा के ऩाठ्मऩस्
ु तकों का अध्ममन कयने भें ही रूचच यखता है औय उसी
भें अऩना उचचत सभम रगाता है , न कक व्मथथ की ऩस्
ु तकों भें जो कक उसे इन सदगण
ु ों से हीन
कयने वारे हों।
12. वह उदाय होता है ् वह दस
ू यों के गुणों की प्रशॊसा कयता है , दस
ू यों को सपरता प्राप्त
कयने भें मथाशजक्त सहामता दे ने के सरए फयाफय तत्ऩय यहता है तथा उनकी सपरता भें खसु शमाॉ
भनाता है । वह दस
ू यों की कसभमों को नज़यॊ दाज कयता है ।

13. वह गणग्राही होता है् वह भधभ


ु क्खी की तयह भधस
ु ॊचम की वपृ त्तवारा होता है । जैसे
भधभ
ु क्खी पवसबन्न प्रकाय के पूरों के यस को रेकय अभत
ृ तुल्म शहद का तनभाथण कयती है , वैसे
ही आदशथ फारक श्रेष्ठ ऩुरुषों, श्रेष्ठ ग्रन्थों व अच्छे सभत्रों से उनके अच्छे गुणों को चयु ा रेता है
औय उनके दोषों को छोड़ दे ता है ।

14. वह ईभानदाय औय आऻाकायी होता है ् वह जानता है कक ईभानदायी ही सवोत्तभ नीतत


है । भाता-पऩता औय गुरू के स्व-ऩयकल्माणकायी उऩदे शों को वह भानता है । वह जानता है कक
फड़ों के आऻाऩारन से आशीवाथद सभरता है औय आशीवाथद से जीवन भें फर सभरता है ।
ध्मान यहे ् दस
ू यों के आशीवाथद व शब
ु काभनाएॉ सदै व हभाये साथ यहते हैं।

15. वह एक सच्चा लभत्र होता है ् वह पवश्वसनीम, स्वाथथयदहत प्रेभ दे नेवारा, अऩने सभत्रों
को सही यास्ता ददखाने वारा तथा भुजश्करों भें सभत्रों का ऩूया साथ दे ने वारा सभत्र होता है ।

कऩटी लभत्र न कीक्जए, ऩेट ऩैदठ फधध रेत।


आगे याह ददखाम के, ऩीछे धतका दे त।।

गरू सॊग कऩट, लभत्र सॊग चोयी।


मा हो ननधथन, मा हो कोढी।।

माद यखें
जीवना का सभझ रो साय - व्मसन से कयो नहीॊ प्माय।
हरयनाभ की रे रो घुट्टी - गुटके को दे दो छुट्टी।।
सत्सॊग की सभठास न्मायी - ककससरए रें तम्फाकू सुऩायी।
ऩान-भसारे से सॊफॊध छोड़ो - हरयनाभ से सॊफॊध जोड़ो।।
द्खद ननभॊत्रण
अशब पववाह

अभॊगरॊ गटखा खाद्मॊ, अभॊगरॊ सयाऩानभ ्।


अभॊगरॊ धम्र
ू ऩानॊ, अभॊगरॊ सवथदव्मथसनभ ्।।

स्नेही स्वजन
धच.कैंसय कभाय उपथ राइराज भयकट
(कऩत्र-श्री असॊमभ लसॊह एवॊ त्फाकू दे वी)
ननवास स्थान् व्मसनऩय

सॊग
सौ. फीडी कभायी उपथ लसगये ट दे वी
कऩत्री-चयभदास एवॊ कोकीन फहन)
ननवास स्थान् द्खनगय

का अशुब पववाह तम हो गमा है । अत् इस बमॊकय प्रसॊग ऩय ककभाभ काका, कॉपी काकी,
गुटखा भाभा, ऩान-भसारा भाभी, शयाफ पूपा, चट
ु की फूआ, गाॉजा भौसा, चाम भौसी, स्भैक
फहनोई, हे योइन फहन, चूना दादा, खैनी दादी जैसे दष्ु ट फुजुगों की उऩजस्थतत भें नव दम्ऩपत्त को
असबशाऩ प्रदान कयने हे तु आऩ सबी भहानुबाव सादय आभॊत्रत्रत हैं।

सूचना् फायात का सभम सुपवधानुसाय है । फायात व्मसनऩुय से ऐम्फमूरस


ैं द्वाया अस्ऩतार
ऩहुॉचग
े ी। वहाॉ से शभशान घाट जामेगी, जहाॉ फायाततमों का स्वागत शभशान अजग्न से तनयन्तय
जायी यहे गा।

पववाह स्थर

धचॊता बवन, नॊ. 2, कष्ट भहल्रा, दगथनत गरी, द्ख नगय

क्ज. मभऩयी (नयक रोक) – 420420

आने से ऩहरे खफ
ू सोच-पवचाय रो क्मोंकक आना सुरब है ऩय वाऩस जाना...??

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
बायतीम सॊस्कृनत की ऩय्ऩयाओॊ का भहत्त्व

ककसी बी दे श की सॊस्कृतत उसकी आत्भा होती है । बायतीम सॊस्कृतत की गरयभा अऩाय है ।


इस सॊस्कृतत भें आददकार से ऐसी ऩयम्ऩयाएॉ चरी आ यही हैं, जजनके ऩीछे ताजत्त्वक भहत्त्व एवॊ
वैऻातनक यहस्म तछऩा हुआ है । उनभें से भुख्म तनम्न प्रकाय हैं-

नभस्काय् ददव्म जीवन का प्रवेशद्वाय

हे पवद्माथॉ! नभस्काय बायतीय़ सॊस्कृतत का अनभोर यत्न है । नभस्काय अथाथत नभन,


वॊदन मा प्रणाभ। बायतीम सॊस्कृतत भें नभस्काय का अऩना एक अरग ही स्थान औय भहत्त्व है ।
जजस प्रकाय ऩजश्चभ की सॊस्कृतत भें शेकहै ण्ड (हाथ सभराना) ककमा जाता है , वैसे बायतीम
सॊस्कृतत भें दो हाथ जोड़कय,ससय झुका कय प्रणाभ कयने नभस्काय के
अरग-अरग बाव औय अथथ हैं।

नभस्काय एक श्रेष्ठ सॊस्काय है । जफ तुभ ककसी फुजुग,थ भाता-पऩता, सॊत-ऻानी-भहाऩुरूष के


सभऺ हाथ जोड़कय भस्तक झुकाते हो तफ तुम्हाया अहॊ काय पऩघरता है औय अॊत्कयण तनभथर
होता है । तुम्हाया आडम्फय सभट जाता है औय तुभ सयर एवॊ साजत्त्वक हो जाते हो। साथ ही साथ
नभस्काय द्वाया मोग भुद्रा बी हो जाती है ।

तभ
ु दोनों हाथ जोड़कय उॉ गसरमों को रराट ऩय यखते हो। आॉखें अधोजन्भसरत यहती हैं,
दोनों हाथ जड़
ु े यहते हैं एवॊ रृदम ऩय यहते हैं। मह भद्र
ु ा तम्
ु हाये पवचायों ऩय सॊमभ, वपृ त्तमों ऩय
अॊकुश एवॊ असबभान ऩय तनमन्त्रण राती है । तुभ अऩने व्मजक्तत्व एवॊ अजस्तत्व को पवश्वास के
आश्रम ऩय छोड़ दे ते हो औय पवश्वास ऩाते बी हो। नभस्काय की भुद्रा के द्वाया एकाग्रता एवॊ
तदाकायता का अनुबव होता है । सफ सभट जाते हैं।

पवनमी ऩुरूष सबी को पप्रम होता है । वॊदन तो चॊदन के सभान शीतर होता है । वॊदन
द्वाया दोनों व्मजक्त को शाॊतत, सुख एवॊ सॊतोष प्राप्त होता है । वामु से बी ऩतरे एवॊ हवा से बी
हरके होने ऩय ही श्रेष्ठता के सम्भुख ऩहुॉचा जा सकता है औय मह अनुबव भानों, नभस्काय की
भद्र
ु ा के द्वाया ससद्ध होता है ।

जफ नभस्काय द्वाया अऩना अहॊ ककसी मोग्म के साभने झुक जाता है , तफ शयणागतत एवॊ
सभऩथण-बाव बी प्रगट होता है ।
भें नभस्काय को स्वीकाय ककमा गमा है । रोग छाती ऩय हाथ यखकय
शीश झुकाते हैं। फौद्ध बी भस्तक झुकाते हैं। ज भें बी भस्तक नवा कय वॊदना की जाती है
ऩयन्तु अऩने वैददक धभथ की नभस्काय कयने की मह ऩद्धतत अतत उत्तभ है । दोनों हाथों को
जोड़ने से एक सॊकुर फनता है , जजससे जीवनशजक्त एवॊ तेजोवरम का ऺम योकने वारा एक चक्र
फन जाता है । इस प्रकाय का प्रणाभ पवशेष राबकायी है जफकक एक-दस
ू ये से हाथ सभराने भें
जीवनशजक्त का ह्रास होता है तथा एक के सॊक्रसभत योगी होने की दशा भें दस
ू ये को बी उस योग
का सॊक्रभण हो सकता है ।

नतरक् फद्धधफर व सत्त्वफरवद्थधक

रराट ऩय दो बौहों के फीच पवचायशजक्त का केन्द्र है जजसे मोगी रोग आऻाशजक्त का


केन्द्र कहते हैं। इसे सशवने अथाथत कल्माणकायी पवचायों का केंद्र बी कहते हैं। वहाॉ ऩय चन्दन का
ततरक मा ससॊदयू आदद का ततरक पवचायशजक्त को, आऻाशजक्त को पवकससत कयता है । इससरए
दहॊद ू धभथ भें कोई बी शुब कभथ कयते सभम रराट ऩय ततरक ककमा जाता है । ऋपषमों ने बाव
प्रधान, श्रद्धा-प्रधान केन्द्रों भें यहने वारी भदहराओॊ की सभझदायी फढाने के उद्दे श्म से ततरक
की ऩयॊ ऩया शुरू की। अचधकाॊश भदहराओॊ का भन स्वाचधष्ठान औय भणणऩुय केंद्र भें यहता है । इन
केन्द्रों भें बम, बाव औय कल्ऩनाओॊ की अचधकता यहती है । इन बावनाओॊ तथा कल्ऩनाओॊ भें
भदहराएॉ फह न जाएॉ, उनका सशवनेत्र, पवचायशजक्त का केंद्र पवकससत हो इस उद्दे श्म से ऋपषमों
ने भदहराओॊ के सरए सतत ततरक कयने की व्मवस्था की है जजससे उनको मे राब सभरें। गागॉ,
शाजण्डरी, अनसूमा तथा औय बी कई भहान नारयमाॉ इस भें प्रकट हुईं। भहान वीयों
को, भहान ऩुरूषों को भहान पवचायकों को तथा ऩयभात्भा का दशथन कयवाने का साभर्थमथ यखने
वारे सॊतों को जन्भ दे ने वारी भातश
ृ जक्त को आज के कुछ स्कूरों भें ततरक कयने
ऩय टोका जाता है । इस प्रकाय के कफ तक सहते यहें गे? इस प्रकाय के
षडमॊत्रों के सशकाय कफ तक फनते यहें गे?

दीऩक

भनुष्म के जीवन भें चचह्त्तनों औय सॊकेतों का फहुत उऩमोग है । बायतीम सॊस्कृतत भें सभट्टी
के ददमे भें प्रज्जवसरत ज्मोत का फहुत भहत्त्व है ।
दीऩक हभें अऻान को दयू कयके ऩूणथ ऻान प्राप्त कयने का सॊदेश दे ता है । दीऩक अॊधकाय
दयू कयता है । सभट्टी का दीमा सभट्टी से फने हुए भनुष्म शयीय का प्रतीक है औय उसभें यहने
वारा तेर अऩनी जीवनशजक्त का प्रतीक है । भनष्ु म अऩनी जीवनशजक्त से भेहनत कयके सॊसाय
से अॊधकाय दयू कयके ऻान का प्रकाश पैरामे ऐसा सॊदेश दीऩक हभें दे ता है । भॊददय भें आयती
कयते सभम दीमा जराने के ऩीछे मही बाव यहा है कक बगवान हभाये भन से अऻान रूऩी
अॊधकाय दयू कयके ऻानरूऩ प्रकाश पैरामें। गहये अॊधकाय से प्रबु! ऩयभ प्रकाश की ओय रे चर।

दीऩावरी के ऩवथ के तनसभत्त रक्ष्भीऩूजन भें अभावस्मा की अन्धेयी यात भें दीऩक जराने
के ऩीछे बी मही उद्दे श्म तछऩा हुआ है । घय भें तर
ु सी के क्माये के ऩास बी दीऩक जरामे जाते
हैं। ककसी बी नमें कामथ की शुरूआत बी दीऩक जराने से ही होती है । अच्छे सॊस्कायी ऩुत्र को बी
कुर-दीऩक कहा जाता है । अऩने वेद औय शास्त्र बी हभें मही सशऺा दे ते हैं - हे ऩयभात्भा! अॊधकाय
से प्रकाश की ओय, भत्ृ मु से अभयता की ओय हभें रे चरो। ज्मोत से ज्मोत जगाओ इस आयती
के ऩीछे बी मही बाव यहा है । मह है बायतीम सॊस्कृतत की गरयभा।

करश

बायतीम सॊस्कृतत की प्रत्मेक प्रणारी औय प्रतीक के ऩीछे कोई-ना-कोई यहस्म तछऩा हुआ
है , जो भनुष्म जीवन के सरए राबदामक होता है ।

ऐसा ही प्रतीक है करश। पववाह औय शुब प्रसॊगों ऩय उत्सवों भें घय भें करश अथवा घड़े
वगैयह ऩय आभ के ऩत्ते यखकय उसके ऊऩय नारयमर यखा जाता है । मह करश कबी खारी नहीॊ
होता फजल्क दध
ू , घी, ऩानी अथवा अनाज से बया हुआ होता है । ऩूजा भें बी बया हुआ करश ही
यखने भें आता है । करश की ऩजू ा बी की जाती है ।

करश अऩना सॊस्कृतत का भहत्त्वऩूणथ प्रतीक है । अऩना शयीय बी सभट्टी के करश अथवा
घड़े के जैसा ही है । इसभें जीवन होता है । जीवन का अथथ जर बी होता है । जजस शयीय भें जीवन
न हो तो भुदाथ शयीय अशुब भाना जाता है । इसी तयह खारी करश बी अशुब है । शयीय भें भात्र
श्वास चरते हैं, उसका नाभ जीवन नहीॊ है , ऩयन्तु जीवन भें ऻान, प्रेभ, उत्साह, त्माग, उद्मभ,
उच्च चरयत्र, साहस आदद हो तो ही जीवन सच्चा जीवन कहराता है । इसी तयह करश बी अगय
दध
ू , ऩानी, घी अथवा अनाज से बया हुआ हो तो ही वह कल्माणकायी कहराता है । बया हुआ
करश भाॊगसरकता का प्रतीक है ।
बायतीम सॊस्कृतत ऻान, प्रेभ, उत्साह, शजक्त, त्माग, ईश्वयबजक्त, दे शप्रेभ आदद से जीवन
को बयने का सॊदेश दे ने के सरए करश को भॊगरकायी प्रतीक भानती है ।

स्वजस्तक

स्वजस्तक शब्द भूरबूत सु+अस धातु से फना हुआ है ।

सु का अथथ है अच्छा, कल्माणकायी, भॊगरभम औय अस का अथथ है अजस्तत्व, सत्ता अथाथत


कल्माण की सत्ता औय उसका प्रतीक है स्वजस्तक। ककसी बी भॊगरकामथ के प्रायम्ब भें स्वजस्तभॊत्र
फोरकय कामथ की शब
ु शुरूआत की जाती है ।

स्वक्स्त न इॊद्रो वद्


ृ धश्रवा: स्वक्स्त न् ऩूषा पवचववेदा:।
स्वक्स्त नस्ताक्ष्ममो अरयष्टनेलभ् स्वक्स्त नो फह
ृ स्ऩनतदथ धात।।

भहान कीततथ वारे इन्द्र हभाया कल्माण कयो, पवश्व के ऻानस्वरूऩ ऩष


ू ादे व हभाया कल्माण कयो।
जजसका हचथमाय अटूट है बगवान हभाया भॊगर कयो। फह
ृ स्ऩतत हभाया भॊगर कयो।

मह आकृतत हभाये ऋपष-भुतनमों ने हजायों वषथ ऩूवथ तनसभथत की है । एकभेव औय अद्पवतीम


ब्रह्त्तभ पवश्वरूऩ भें पैरा, मह फात स्वजस्तक की खड़ी औय आड़ी ये खा स्ऩष्ट रूऩ से सभझाती हैं।
स्वजस्तक की खड़ी ये खा ज्मोततसरांग का सूचन कयती है औय आड़ी ये खा पवश्व का पवस्ताय फताती
है । स्वजस्तक की चाय बुजाएॉ चायों ददशाओॊ का हैं।

स्वजस्तक अऩना प्राचीन धभथप्रतीक है । दे वताओॊ की शजक्त औय भनुष्म की भॊगरभम


काभनाएॉ इन दोनों के सॊमुक्त साभर्थमथ का प्रतीक मातन स्वजस्तक। स्वजस्तक मह सवाांगी
भॊगरभम बावना का प्रतीक है ।

जभथनी भें दहटरय की नाजी ऩाटॊ का तनशान स्वजस्तक था। दहटरय ने राखों महूददमों को
भाय डारा। वह जफ हाय गमा तफ जजन महूददमों की हत्मा की जाने वारी थी वे सफ भुक्त हो
गमे। तभाभ महूददमों का ददर दहटरय औय उसकी नाजी ऩाटॊ के सरए तीव्र घण ृ ा से मुक्त यहे
मह स्वाबापवक है । उन दष्ु टों का तनशान दे खते ही उनकी क्रूयता के दृश्म रृदम को कुये दने रगे
मह स्वाबापवक है । स्वजस्तक को दे खते ही बम के कायण महूदी की जीवनशजक्त ऺीण होनी
चादहए। इस भनोवैऻातनक तर्थम के फावजूद बी डामभण्ड के प्रमोगों ने फता ददमा कक स्वजस्तक
का दशथन महूदी की बी जीवनशजक्त को फढाता है । स्वजस्तक का शजक्तवधथक प्रबाव इतना प्रगाढ
है ।

अऩनी बायतीम सॊस्कृतत की ऩयम्ऩया के अनुसाय पववाह-प्रसॊगों, नवजात सशशु की छठ्ठी


के ददन, दीऩावरी के ददन, ऩुस्तक-ऩूजन भें , घय के प्रवेश-द्वाय ऩय, भॊददयों के ऩय
तथा अच्छे शुब प्रसॊगों भें स्वजस्तक का चचह्त्तन कुभकुस से फनामा जाता है एवॊ बावऩूवक
थ ईश्वय
से प्राथथना की जाती है कक हे प्रबु! भेया कामथ तनपवथर्घन सपर हो औय हभाये घय भें जो अन्न,
वस्त्र, वैबव आदद आमें वह ऩपवत्र फनें। बायतीम सॊस्कृतत की भॊगरभम बावना का भूततथभॊत
प्रतीक मातन स्वजस्तक।

शॊख

शॊख दो प्रकाय के होते हैं- दक्षऺणावतथ औय वाभवतथ। दक्षऺणावतथ शॊख दै वमोग से ही


सभरता है । मह जजसके ऩास होता है उसके ऩास रक्ष्भीजी तनवास कयती हैं।

मह त्रत्रदोषनाशक, शुद्ध औय नवतनचधमों भें एक है । ग्रह औय गयीफी की ऩीड़ा, ऺम, पवष,


कृशता औय नेत्रयोग का नाश कयता है । जो शॊख श्वेत चॊद्रकाॊत भणण जैसा होता है वह उत्तभ
भाना जाता है । अशुद्ध शॊख गुणकायी नहीॊ है । उसे शुद्ध कयके ही दवा के उऩमोग भे रामा जा
सकता है ।

बायत के भहान वैऻातनक श्री जगदीशचन्द्र फसु ने ससद्ध कयके ददखामा कक शॊख फजाने
से जहाॉ तक उसकी ध्वतन ऩहुॉचती है वहाॉ तक योग उत्ऩन्न कयने वारे हातनकायक जीवाणु
(फैक्टीरयमा) नष्ट हो जाते हैं। इसी कायण अनादद कार से प्रात्कार औय सॊध्मा के सभम भॊददयों
भें शॊख फजाने का रयवाज चरा आ यहा है ।

सॊध्मा के सभम शॊख फजाने से बत


ू -प्रेत-याऺस आदद बाग जाते हैं। सॊध्मा के सभम
हातनकायक जीवाणु प्रकट होकय योग उत्ऩन्न कयते हैं। उस सभम शॊख फजाना आयोग्म के सरए
पामदे भॊद है ।

गॉग
ू ेऩन भें शॊख फजाने से एवॊ तुतरेऩन, भुख की काॊतत के सरए, फर के सरए,
ऩाचनशजक्त के सरए औय बूख फढाने के सरए, श्वास-खाॉसी, जीणथज्वय औय दहचकी भें शॊखबस्भ
का औषचध की तयह उऩमोग कयने से राब होता है ।
ॐ काय का अथथ एवॊ भहत्त्व

ॐ = अ+उ+भ+(ँॉ) अधथ तन्भात्रा। ॐ का अ काय स्थर


ू जगत का आधाय है । उ काय
सूक्ष्भ जगत का आधाय है । भ काय कायण जगत का आधाय है । अधथ तन्भात्रा (ँॉ) जो इन तीनों
जगत से प्रबापवत नहीॊ होता फजल्क तीनों जगत जजससे सत्ता-स्पूततथ रेते हैं कपय बी जजसभें
ततरबय बी पकथ नहीॊ ऩड़ता, उस ऩयभात्भा का द्मोतक है ।

ॐ आजत्भक फर दे ता है । ॐ के उच्चायण से जीवनशजक्त उध्वथगाभी होती है । इसके सात फाय


के उच्चायण से शयीय के योग को कीटाणु दयू होने रगते हैं एवॊ चचत्त से हताशा-तनयाशा बी दयू
होतीहै । मही कायण है कक ऋपष-भुतनमों ने सबी भॊत्रों के आगे ॐ जोड़ा है । शास्त्रों भें बी ॐ की
फड़ी बायी भदहभा गामी गमी है । बगवान शॊकय का भॊत्र हो तो ॐ नभ् लशवाम । बगवान
गणऩतत का भॊत्र हो तो ॐ गणेषाम नभ्। बगवान याभ का भॊत्र हो तो ॐ याभाम नभ्। श्री
कृष्ण भॊत्र हो तो ॐ नभो बगवते वासदे वाम। ऩयभात्भा का गामत्री भॊत्र हो तो ॐ बूबव
थ ् स्व्।
तत्सपवतवथयेण्मॊ बगोदे वस्म धीभदह धधमो मो न् प्रचोदमात ्। इस प्रकाय सफ भॊत्रों के आगे ॐ तो
जुड़ा ही है ।

ऩतॊजसर भहायाज ने कहा है ् तस्म वाचक् प्रणव्। ॐ (प्रणव) ऩयभात्भा का वाचक है ,


उसकी स्वाबापवक ध्वतन है ।

ॐ के यहस्म को जानने के सरए कुछ प्रमोग कयने के फाद रूस के वैऻातनक बी


आश्चमथचककत हो उठे । उन्होंने प्रमोग कयके दे खा कक जफ व्मजक्त फाहय एक शब्द फोरे एवॊ अऩने
बीतय दस
ू ये शब्द का पवचाय कये तफ उनकी सक्ष्
ू भ भशीन भें दोनों शब्द अॊककत हो जाते थे।
उदाहयणाथथ, फाहय के क कहा गमा हो एवॊ बीतय से पवचाय ग का ककमा गमा हो तो क औय ग
दोनों छऩ जाते थे। मदद फाहय कोई शब्द न फोरे, केवर बीतय पवचाय कये तो पवचाया गमा शब्द
बी अॊककत हो जाता था।

ककन्तु एकभात्र ॐ ही ऐसा शब्द था कक व्मजक्त केवर फाहय से ॐ फोरे औय अॊदय दस


ू या
कोई बी शब्द पवचाये कपय बी दोनों ओय का ॐ ही अॊककत होता था। अथवा अॊदय ॐ का पवचाय
कये औय फाहय कुछ बी फोरे तफ बी अॊदय-फाहय का ॐ ही छऩता था।
सभस्त नाभों भें ॐ का प्रथभ स्थान है ।
, - , ,
, आ आ

ससख भें बी एको ओॊकाय सनतनाभ...... कहकय उसका राब उठामा जाता है । ससख
धभथ का ऩहरा ग्रन्थ है , जऩुजी औय जऩुजी का ऩहरा वचन है ् एको ओॊकाय सनतनाभ.........

ज औ , ,
आ , ज , औ ज
ज औ ज ज

, , , , औ


आ औ औ
ज ज
ज , औ

आ औ
, , , औ ,ज आ

ज ज , ज ज ज
, , , औ ज
ज , , , औ

ज ज, औ
, औ

ऩयीऺा भें सपरता कैसे ऩामें?

जैस-े जैसे ऩयीऺाएॉ नज़दीक आने रगती हैं, वैसे-वैसे पवद्माथॉ चचॊततत व तनावग्रस्त होते
जाते हैं, रेककन पवद्माचथथमों को कबी बी चचॊततत नहीॊ होना चादहए। अऩनी भेहनत व बगवत्कृऩा
ऩय ऩण
ू थ पवश्वास यखकय प्रसन्नचचत्त से ऩयीऺा की तैमायी कयनी चादहए। सपरता अवश्म सभरेगी,
ऐसा दृढ पवश्वास यखना चादहए।

1. पवद्माथॉ-जीवन भें पवद्माचथथमों को अऩने अध्ममन के साथ-साथ तनमसभत जऩ-ध्मान का


अभ्मास कयना चादहए। ऩयीऺा के ददनों भें तो दृढ आत्भपवश्वास के साथ सतकथता से जऩ-ध्मान
कयना चादहए।

2. ऩयीऺा के ददनों भें प्रसन्नचचत्त होकय ऩढें , न कक चचॊततत यहकय।

3. योज सुफह सूमोदम के सभम खारी ऩेट तुरसी के 5-7 ऩत्ते चफाकय एक चगरास ऩानी ऩीने से
मादशजक्त फढती है ।

4. सूमद
थ े व को भॊत्रसदहत अर्घमथ दे ने से मादशजक्त फढती है ।

5. ऩयीऺा भें प्रश्वऩत्र (ऩेऩय) हर कयने से ऩव


ू थ पवद्माथॉ को अऩने इष्टदे व मा बगवान का स्भयण
अवश्म कय रेना चादहए।

6. सवथप्रथभ ऩूये प्रश्नऩत्र को एकाग्रचचत्त होकय ऩढना चादहए।

7. कपय सफसे ऩहरे सयर प्रश्नों का उत्तय सरखना चादहए।

8. प्रश्नों के उत्तय सुॊदय व स्ऩष्ट अऺयों भें सरखने चादहए।

9. मदद ककसी प्रश्न का उत्तय न आमे तो घफयाए त्रफना शाॊतचचत्त होकय प्रबु से प्राथथना कयें व
अॊदय दृढ पवश्वास यखें कक भझ
ु े इस प्रश्न का उत्तय बी आ जाएगा। अॊदय से तनबथम यहें एवॊ
बगवदस्भयण कयके एकाध सभनट शाॊत हो जाएॊ। कपय सरखना शुरू कयें । धीये -धीये उन प्रश्नों के
उत्तय बी आ जाएॊगे।

10. दे य यात तक न ऩढें । सुफह जल्दी उठकय, स्नान कयके ध्मान कयने के ऩश्चात ऩढने से
जल्दी माद होगा।

11. गामत्री भॊत्र का तनमसभत जऩ कयने से मादशजक्त भें चभत्कारयक राब होता है ।

12. भ्राभयी प्राणामाभ तथा त्राटक कयने से बी एकाग्रता औय मादशजक्त फढती है ।

पवद्माथी छट्दटमाॉ कैसे भनामें?

एक वषथ की कड़ी भेहनत के फाद पवद्माचथथमों को डेढ भाह की छुट्दटमों का सभम सभरता
है जजसभें कुछ कयने व सोचने-सभझने का अच्छा-खासा अवसय सभर जाता है । रेककन प्राम् ऐसा
दे खा गमा है कक पवद्माथॉ इस कीभती सभम को टी.वी., ससनेभा आदद दे खने भें तथा गन्दी व
पारतू ऩस्
ु तकें ऩढने भें फयफाद कय दे ते हैं। जो अऩने सभम को फयफाद कयता है उसका जीवन
फयफाद हो जाता है । जो अऩने सभम का सदऩ
ु मोग कयता है उसका जीवन आफाद हो जाता है ।
अत् सभरी हुई मोग्मता एवॊ सभरे हुए सभम का सदऩ ु मोग उत्तभ-से-उत्तभ कामों के सॊऩादन भें
कयना चादहए। फड़े धनबागी होते हैं वे पवद्माथॉ जो सभम का सदऩ ु मोग कय अऩने जीवन को
उन्नत फना रेते हैं।

1. अऩने से छोटी कऺा वारे पवद्माचथथमों को ऩढाना चादहए। फारकों को अच्छी-अच्छी सशऺाप्रद
कहातनमाॉ सुनानी चादहए। अऩने साथी-सभत्रों के साथ अच्छी-अच्छी सशऺाप्रद कहातनमाॉ सुनने व
सुनाने से ऩयभात्भप्राजप्त भें भदद सभरती है । सा पवद्मा मा पवभततमे। असरी पवद्मा वही है जो
भुजक्त प्रदान कये ।

2. अऩने साचथमों के साथ अऩने गरी-भोहल्रे भें सपाई असबमान चराना चादहए।

3. पऩछड़े हुए ऺेत्रों भें जाकय वहाॉ के रोगों को सशऺा दे ना तथा के प्रतत जागरूक
कयना चादहए।

4. अस्ऩतारों भें जाकय भयीजों की सेवा कयनी चादहए। कयो सेवा, लभरे भेवा।
5. अऩने से अचधक मोग्मता व सशऺावारे पवद्माचथथमों के साथ यहकय पवनोद सशऺा सम्फॊधी चचाथ
कयनी चादहए।

6. अऩनी ददव्म सनातन सॊस्कृतत के पवकास हे तु बयऩूय प्रमास कयना चादहए।

7. प्राचीन ऐततहाससक धासभथक स्थरों भें जाकय अऩने पववेक-पवचाय को फढाना चादहए।

8. अऩनी ऩढाई को छुट्टी के दौयान एकदभ नहीॊ छोड़ना चादहए। योज़ थोड़ा-थोड़ा अध्ममन कयते
ही यहना चादहए।

जन्भददन कैसे भनामें?

फच्चों को अऩना जन्भददन भनाने का फड़ा शौक होता है औय उनभें उस ददन फड़ा उत्साह
होता है रेककन अऩनी ऩयतॊत्र भानससकता के कायण हभ उस ददन बी फच्चे के ददभाग ऩय
अॊग्रजजमत की छाऩ छोड़कय अऩने साथ, उनके साथ व दे श तथा सॊस्कृतत के साथ फड़ा अन्माम
कय यहे हैं.

फच्चों के जन्भददन ऩय हभ केक फनवाते हैं तथा फच्चे को जजतने वषथ हुए हों उतनी
भोभफपत्तमाॉ केक ऩय रगवाते हैं। उनको जराकय कपय पॉू क भायकय फुझा दे ते हैं।

ज़या पवचाय तो कीजजए के हभ कैसी उल्टी गॊगा फहा यहे हैं! जहाॉ दीमे जराने चादहए वहाॉ
फुझा यहे हैं। जहाॉ शुद्ध चीज़ खानी चादहए वहीॊ पॉू क भायकय उड़े हुए थक
ू से जूठे फने हुए केक
को हभ फड़े चाव से खाते हैं! जहाॉ हभें गयीफों को अन्न णखराना चादहए वहीॊ हभ फड़ी ऩादटथ मों का
आमोजन कय व्मथथ ऩैसा उड़ा यहे हैं! कैसा पवचचत्र है आज का हभाया सभाज?

हभें चादहए कक हभ फच्चों को उनके जन्भददन ऩय बायतीम सॊस्काय व ऩद्धतत के अनुसाय


ही कामथ कयना ससखाएॉ ताकक इन भासभ
ू को हभ अॊग्रेज न फनाकय सम्भाननीम बायतीम
नागरयक फनामें।

1. भान रो, ककसी फच्चे का 11 वाॉ जन्भददन है तो थोड़े-से अऺत ् (चावर) रेकय उन्हें हल्दी,
कॊु कुभ, गुरार, ससॊदयू आदद भाॊगसरक द्रव्मों से यॊ ग रे एवॊ उनसे स्वजस्तक फना रें। उस
स्वजस्तक ऩय 11 छोटे -छोटे दीमे यख दें औय 12 वें वषथ की शुरूआत के प्रतीकरूऩ एक फड़ा दीमा
यख दें । कपय घय के फड़े सदस्मों से सफ दीमे जरवामें एवॊ फड़ों को प्रणाभ कयके उनका आशीवाथद
ग्रहण कयें ।
2. ऩादटथ मों भें पारतू का खचथ कयने के फजाए फच्चों के हाथों से गयीफों भें , अनाथारमों भें बोजन,
वस्त्रादद का पवतयण कयवाकय अऩने धन को सत्कभथ भें रगाने के सुसॊस्काय सुदृढ कयें ।

3. रोगों के ऩास से चीज-वस्तुएॉ रेने के फजाए हभ अऩने फच्चों के हाथों दान कयवाना ससखाएॉ
ताकक उनभें रेने की वपृ त्त नहीॊ अपऩतु दे ने की वपृ त्त को फर सभरे।

4. हभें फच्चों से नमे कामथ कयवाकय उनभें दे शदहत की बावना का सॊचाय कयना चादहए। जैसे,
ऩेड़-ऩौधे रगवाना इत्मादद।

5. फच्चों को इस ददन अऩने गत वषथ का दहसाफ कयना चादहए मातन कक उन्होंने वषथ बय भें क्मा-
क्मा अच्छे काभ ककमे? क्मा-क्मा फुये काभ ककमे? जो अच्छे कामथ ककमे उन्हें बगवान के चयणों
भें अऩथण कयना चादहए एवॊ जो फुये कामथ हुए उनको बूरकय आगे उसे न दोहयाने व सन्भागथ ऩय
चरने का सॊकल्ऩ कयना चादहए।

6. उनसे सॊकल्ऩ कयवाना चादहए कक वे नए वषथ भें ऩढाई, साधना, सत्कभथ, सच्चाई तथा
ईभानदायी भें आगे फढकय अऩने भाता-पऩता व दे श के गौयव को फढामेंगे।

उऩयोक्त ससद्धान्तों के अनुसाय अगय हभ फच्चों के जन्भददन को भनाते हैं तो जरूय


सभझ रें कक हभ कदाचचत ् उन्हें बौततक रूऩ से बरे ही कुछ न दे ऩामें रेककन इन सॊस्कायों से
ही हभ उन्हें भहान फना सकते हैं। उन्हें ऐसे भहकते पूर फना सकते हैं कक अऩनी सुवास से वे
केवर अऩना घय, ऩड़ोस, शहय, याज्म व दे श ही नहीॊ फजल्क ऩूये पवश्व को सुवाससत कय सकेंगे।

लशष्टाचाय व जीवनोऩमोगी ननमभ

लशष्टाचाय के ननमभ

अऩने ऋपष-भुतनमों ने भनुष्म जीवन भें धभथ-दशथन औय भनोपवऻान के आधाय ऩय


सशष्टाचाय के कई तनमभ फनामे हैं। इन तनमभों के ऩारन से भनुष्म का जीवन उज्जवर फनता
है । इससरए इन तनमभों का ऩारन कयना मह प्रत्मेक फारक का कत्तथवम फनता है ।

1. अऩने से उम्र भें फड़े व्मजक्त को आऩ कहकय तथा अऩने फयाफय तथा अऩने से छोटी उम्र के
व्मजक्त को तभ
ु कहकय फोरना चादहए।
2. हभाये शास्त्रों भें उल्रेख है कक गुरूजनों को तनत्म प्रणाभ कयने से तथा उनकी सेवा कयने से
आमु, फर, पवद्मा औय मश की वद्
ृ चध होती है । इससरए दोनों हाथ जोड़कय, भस्तक झुका कय
इन्हें प्रणाभ कयना चादहए। बोजन, स्नान, शौच, दातुन आदद कयते सभम एवॊ शव रे जाते
सभम नभस्काय नहीॊ कयना चादहए। स्वमॊ इन जस्थततमों भें हो तो प्रणाभ न कयें औय जजनको
प्रणाभ कयना है वे इन जस्थततमों भें हों तो बी प्रणाभ न कयें । इसके अततरयक्त साष्टाॊग दण्डवत
प्रणाभ कयना मह असबवादन की सवथश्रेष्ठ ऩद्धतत है ।

3. अऩने से फड़ों के आने ऩय खड़े होकय प्रणाभ कयके उन्हें भान दे ना चादहए। उनके फैठ जाने ऩय
ही स्वमॊ फैठना चादहए।

4. ऩरयजस्थततवश अगय भाता-पऩता आऩकी कोई वस्तु की भाॉग ऩयू ी न कय सकें तो उस वस्तु के
सरए मा उस फात के सरए हठ नहीॊ कयना चादहए। उनके साभने कबी बी उरटकय उत्तय न दें ।

सदगणों के पामदे

सदगण पामदे
1.प्रात्कार ब्रह्त्तभभुहूतथ भें शुब चचन्तन तथा हभ जैसा सोचते हैं, वैसा होने रगता है ।
शुब सॊकल्ऩ कयने से .....
2. प्राथथना कयने से .... रृदम ऩपवत्र फनता है , ऩयोऩकाय की बावना
का पवकास होता है ।
चॊचर भन शाॊत यहता है औय आत्भफर
3. ॐ काय का दीघथ उच्चायण कयने से...
फढता है ।
4. ध्मान कयने से..... एकाग्रता की शजक्त की फढती है ।
5. भ्राभयी प्राणामाभ कयने से..... स्भयणशजक्त फढती है ।
6. भौन यखने से.... आॊतरयक शजक्तमों का पवकास होता है औय
भनोफर भजफूत होता है ।
7. फार-सॊस्काय केन्द्र भें तनमसभत जाने अनेक दोष-दग
ु ण
ुथ दयू होकय व्मजक्तत्व का
से..... पवकास होता है ।

जीवन भें उऩमोगी ननमभ

1. जहाॉ यहते हो उस स्थान को तथा आस-ऩास की जगह को साप यखो।


2. हाथ ऩैय के नाखन
ू फढने ऩय काटते यहो। नख फढे हुए एवॊ भैर बये हुए भत यखो।

3. शयीय भें तेर रगाते सभम ऩहरे नासब एवॊ हाथ-ऩैय की उॉ गसरमों के नखों भें बरी प्रकाय तेर
रगा दे ना चादहए।

4. ऩैयों को मथासॊबव खर
ु ा यखो। प्रात्कार कुछ सभम तक हयी घास ऩय नॊगे ऩैय टहरो। गसभथमों
भें भोजे आदद से ऩैयों को भत ढॉ को।

5.ऊॉची एड़ी के मा तॊग ऩॊजों के जूते स्वास्र्थम को हातन ऩहुॉचाते हैं।

6. ऩाउडय, स्नो आदद त्वचा के स्वाबापवक सौंदमथ को नष्ट कयके उसे रूखा एवॊ कुरूऩ फना दे ते
हैं।

7. फहुत कसे हुए एवॊ नामरोन आदद कृत्रत्रभ तॊतुओॊ से फने हुए कऩड़े एवॊ चटकीरे बड़कीरे गहये
यॊ ग से कऩड़े तन-भन के स्वास्र्थम के हातनकायक होते हैं। तॊग कऩड़ों से योभकूऩों को शुद्ध हवा
नहीॊ सभर ऩाती तथा यक्त-सॊचयण भें बी फाधा ऩड़ती है । फैल्ट से कभय को ज़्मादा कसने से ऩेट
भें गैस फनने रगती है। ढीरे-ढारे सूती वस्त्र स्वास्र्थम के सरए अतत उत्तभ होते हैं।

8. कहीॊ से चरकय आने ऩय तुयॊत जर भत पऩमो, हाथ ऩैय भत धोओ औय न ही स्नान कयो।
इससे फड़ी हातन होती है । ऩसीना सूख जाने दो। कभ-से-कभ 15 सभनट पवश्राभ कय रो। कपय
हाथ-ऩैय धोकय, कुल्रा कयके ऩानी ऩीमो। तेज गभॉ भें थोड़ा गुड़ मा सभश्री खाकय ऩानी ऩीमो
ताकक रू न रग सके।

9. अश्रीर ऩुस्तक आदद न ऩढकय ऩुस्तकों का अध्ममन कयना चादहए।

10. चोयी कबी न कयो।

11. ककसी की बी वस्तु रें तो उसे सॉबार कय यखो। कामथ ऩूया हो कपय तुयन्त ही वापऩस दे दो।

12. सभम का भहत्त्व सभझो। व्मथथ फातें , व्मथथ काभ भें सभम न गॉवाओ। तनमसभत तथा सभम
ऩय काभ कयो।

ज ज आ ‟‟ ज
, , , ,आ ,
ज ज,आ आ ज
, , आ आ
ज ज
ज , - आज
„„ आज , आज ,
‟‟

13. स्वावरॊफी फनो। इससे भनोफर फढता है ।

14. हभेशा सच फोरो। ककसी की रारच मा धभकी भें आकय झठ


ू का आश्रम न रो।

15. अऩने से छोटे दफ


ु र
थ फारकों को अथवा ककसी को बी कबी सताओ भत। हो सके उतनी
सफकी भदद कयो।

16. अऩने भन के गर
ु ाभ नहीॊ ऩयन्तु भन के स्वाभी फनो। तच्
ु छ इच्छाओॊ की ऩतू तथ के सरए कबी
स्वाथॉ न फनो।

17. ककसी का ततयस्काय, उऩेऺा, हॉसी-भजाक कबी न कयो। ककसी की तनॊदा न कयो औय न सुनो।

18. ककसी बी व्मजक्त, ऩरयजस्थतत मा भुजश्कर से कबी न डयो ऩयन्तु दहम्भत से उसका साभना
कयो।

19. सभाज भें फातचीत के अततरयक्त वस्त्र का फड़ा भहत्त्व है । शौकीनी तथा पैशन के वस्त्र, तीव्र
सुगॊध के तेर मा सेंट का उऩमोग कयने वारों को सदा सजे-धजे पैशन यहने वारों को सज्जन
रोग आवाया मा रम्ऩट आदद सभझते हैं। अत् तुम्हें अऩना यहन सहन, वेश-बूषा सादगी से
मुक्त यखना चादहए। वस्त्र स्वच्छ औय सादे होने चादहए। ससनेभा की असबनेत्रत्रमों तथा
असबनेताओॊ के चचत्र छऩे हुए अथवा उनके नाभ के वस्त्र को कबी भत ऩहनो। इससे फुये सॊस्कायों
से फचोगे।

20. पटे हुए वस्त्र ससर कय बी उऩमोग भें रामे जा सकते हैं, ऩय वे स्वच्छ अवश्म होने चादहए।

21. तभ
ु जैसे रोगों के साथ उठना-फैठना, घभ
ू ना-कपयना आदद यखोगे, रोग तम्
ु हें बी वैसा ही
सभझेंगे। अत् फयु े रोगों का साथ सदा के सरए छोड़कय अच्छे रोगों के साथ ही यहो। जो रोग
फयु े कहे जाते हैं, उनभें तम्
ु हे दोष न बी ददखें , तो बी उनका साथ भत कयो।
22. प्रत्मेक काभ ऩूयी सावधानी से कयो। ककसी बी काभ को छोटा सभझकय उसकी उऩेऺा न
कयो। प्रत्मेक काभ ठीक सभम ऩय कयो। आगे के काभ को छोड़कय दस
ू ये काभ भें सत रगो।
तनमत सभम ऩय काभ कयने का स्वबाव हो जाने ऩय कदठन काभ बी सयर फन जाएॉगे। ऩढने भें
भन रगाओ। केवर ऩयीऺा भें उत्तीणथ होने के सरए नहीॊ, अपऩतु ऻानवद्
ृ चध के सरए ऩूयी ऩढाई
कयो। उत्तभ बायतीम सदग्रॊथों का तनत्म ऩाठ कयो। जो कुछ ऩढो, उसे सभझने की चेष्टा कयो।
जो तुभसे श्रेष्ठ है , उनसे ऩूछने भें सॊकोच भत कयो।

23. अॊधे, काने-कुफड़े, रूरे-रॉ गड़े आदद को कबी चचढाओ भत, फजल्क उनके साथ औय ज़्मादा
सहानुबूततऩूवक
थ फताथव कयो।

24. बटके हुए याही को, मदद जानते हो तो, उचचत भागथ फतरा दे ना चादहए।

25. ककसी के नाभ आमा हुआ ऩत्र भत ऩढो।

26. ककसी के घय जाओ तो उसकी वस्तओ


ु ॊ को भत छुओ। मदद आवश्मक हो तो ऩछ
ू कय ही छुओ।
काभ हो जाने ऩय उस वस्तु को कपय मथास्थान यख दो।

27. फस भें ये र के डडब्फे भें , धभथशारा व भॊददय भें तथा सावथजतनक बवनों भें अथवा स्थरों भें न
तो थक
ू ो, न रघुशॊका आदद कयो औय न वहाॉ परों के तछरके मा कागज आदद डारो। वहाॉ ककसी
बी प्रकाय की गॊदगी भत कयो। वहाॉ के तनमभों का ऩूया ऩारन कयो।

28. हभेशा सड़क की फामीॊ ओय से चरो। भागथ भें चरते सभम अऩने दादहनी ओय भत थक
ू ो, फाईं
ओय थक
ू ो। भागथ भें खड़े होकय फातें भत कयो। फात कयना हो तो एक ककनाये हो जाएॊ। एक दस
ू ये
के कॊधे ऩय हाथ यखकय भत चरो। साभने से .मा ऩीछे से अऩने से फड़े-फुजुगों के आने ऩय फगर
हो जाओ। भागथ भें काॉटें, काॉच के टुकड़े मा कॊकड़ ऩड़े हों तो उन्हें हटा दो।

29. दीन-हीन तथा असहामों व ज़रूयतभॊदों की जैसी बी सहामता व सेवा कय सकते हो, उसे
अवश्म कयो, ऩय दस
ू यों से तफ तक कोई सेवा न रो जफ तक तभ
ु सऺभ हो। ककसी की उऩेऺा
भत कयो।

30. ज आ झॊड,े याष्रगीत, , आ


तथा भहाऩुरूषों का अऩभान कबी भत कयो। उनके प्रतत आदय यखो।
31. कोई अऩना ऩरयचचत, ऩड़ोसी, सभत्र आदद फीभाय हो अथवा ककसी भुसीफत भें ऩड़ा हो तो उसके
ऩास कई फाय जाना चादहए औय मथाशजक्त उसकी सहामता कयनी चादहए एवॊ तसल्री दे नी
चादहए।

32. मदद ककसी के महाॉ अततचथ फनो तो उस घय के रोगों को तुम्हाये सरए कोई पवशेष प्रफन्ध न
कयना ऩड़े, ऐसा ध्मान यखो। उनके महाॉ जो बोजनादद सभरे, उसे प्रशॊसा कयके खाओ।

33. ऩानी व्मथथ भें भत चगयाओ। ऩानी का नर औय त्रफजरी की योशनी अनावश्मक खर


ु ा भत यहने
दो।

34. चाकू से भेज भत खयोंचो। ऩेजन्सर मा ऩेन से इधय-उधय दाग भत कयो। दीवाय ऩय भत
सरखो।

35. ऩस्
ु तकें खर
ु ी छोड़कय भत जाओ। ऩस्
ु तकों ऩय ऩैय भत यखो औय न उनसे तककए का काभ
रो। धभथग्रन्थों को पवशेष आदय कयते हुए स्वमॊ शद्
ु ध, ऩपवत्र व स्वच्छ होने ऩय ही उन्हें स्ऩशथ
कयना चादहए। उॉ गरी भें थकू रगा कय ऩस्ु तकों के ऩष्ृ ठ भत ऩरटो।

36.हाथ-ऩैय से बूसभ कुये दना, ततनके तोड़ना, फाय-फाय ससय ऩय हाथ पेयना, फटन टटोरते यहना,
वस्त्र के छोय उभेठते यहना, झूभना, उॉ गसरमाॉ चटखाते यहना- मे फुये स्वबाव के चचह्त्तन हैं। अत्
मे सवथथा त्माज्म हैं।

37.भुख भें उॉ गरी, ऩेजन्सर, चाकू, पऩन, सुई, चाफी मा वस्त्र का छोय दे ना, नाक भें उॉ गरी
डारना, हाथ से मा दाॉत से ततनके नोचते यहना, दाॉत से नख काटना, बौंहों को नोचते यहना- मे
गॊदी आदते हैं। इन्हें मथाशीघ्र छोड़ दे ना चादहए।

38. ऩीने के ऩानी मा दध


ू आदद भें उॉ गरी भत डुफाओ।

39. दे वता, वेद, सच्चे भहात्भा, गुरू, ऩततव्रता, मऻकत्ताथ, तऩस्वी आदद की तनॊदा-ऩरयहास न कयो
औय न सुनो। - ज ज , ज
आ | ज
आ | ज
! ज ज ,
ज ज ज
- ?
40. अशुब वेश न धायण कयो औय न ही भुख से अभाॊगसरक वचन फोरो।

41. कोई फात त्रफना सभझे भत फोरो। जफ तुम्हें ककसी फात की सच्चाई का ऩूया ऩता हो, तबी
उसे कयो। अऩनी फात के ऩक्के यहो। जजसे जो वचन दो, उसे ऩूया कयो। ककसी से जजस सभम
सभरने का मा जो कुछ काभ कयने का वादा ककमा हो वह वादा सभम ऩय ऩूया कयो। उसभें पवरॊफ
भत कयो।

42. तनमसभत रूऩ से बगवान की प्राथथना कयो। प्राथथना से जजतना भनोफर प्राप्त होता है उतना
औय ककसी उऩाम से नहीॊ होता।

43. सदा सॊतुष्ट औय प्रसन्न यहो। दस


ू यों की वस्तुओॊ को दे खकय ररचाओ भत।

44. नेत्रों की यऺा के सरए न फहुत तेज प्रकाश भें ऩढो, न फहुत भॊद प्रकाश भें । दोनों हातनकायक
हैं। इस प्रकाय बी नहीॊ ऩढना चादहए कक प्रकाश सीधे ऩस् ु तक के ऩष्ृ ठों ऩय ऩड़े। रेटकय, झक
ु कय
मा ऩस्
ु तक को नेत्रों के फहुत नज़दीक राकय नहीॊ ऩढना चादहए। जरनेतत से चश्भा नहीॊ रगता
औय मदद चश्भा हो तो उतय जाता है ।

45. जजतना सादा बोजन, सादा यहन-सहन यखोगे, उतने ही स्वस्थ यहोगे। पैशन की वस्तुओॊ का
जजतना उऩमोग कयोगे मा जजह्त्तवा के स्वाद भें जजतना पॉसोगे, स्वास्र्थम उतना ही दफ
ु र
थ होता
जाएगा।

मदद पवद्माथॉ उचचत ददनचमाथ एवॊ उऩयोक्त तनमभों के अनुसाय जीवन जजमेगा तो तनश्चम
ही भहान फनता जाएगा।

* ज आ |

* ज ज |
|
* ज , , |
, , , - ज | |
„ ‟ ,ज ज |

* ज २–३ |
„ ‟ |

* ज ज , ज |
ज (आ ) ज ( )
ज |

* १–२ ज ज , , , आ ज ज
| ज
|

* |

* ज |आ
|

* ज ज ज, - ,
| – ज |

*ज आ
ज „ ‟ ज |

* ज , , ज , , , , आ
आ | आ ज ज |

* |

* , ज , |
|
*ज ज | - -
ज | ज आ
|

औ - , |

' ' , ज

आज ज - ज ज
ज ज
ज ज :

ख ज -
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
१ आ ' ज ' ज

२ , आ , ज , ज, , ज -
, आ ज

३ ज ज , ज ज ज

४ , ज

५ ज - ज
६ - ज ज , -
ज ज ज ज

७ ज ज ज , ज
ज औ
-

८ - ज औ
- ज

( ) ज -
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
१ ' ज ' ज

२ , आ

३ ज ,

५आ ज ज
ज -

६ , ज ज ज
ज ज

७ ज , ज ज ज ज
, - आ

८ ज , -
ज ज ,
ज ज ज ज

, ,

औ ज ज
, ज ज

20-25 , ज

100 -150 ज ज
औ ज
ज आ

ज , औ
ज ज
ज औ ,


ज ज , ( ज )
औ औ ज


औ आ ज



ज ज

:- ज (
) , आ , औ

-
,
ज ,
.
ज ,
ज , ज
.
,
,ज
.
,
,
.
,
,
.
,
,
.
ज ,
,
!! !!

- ज

ज ,
ज ज
-„
... „ आ -ज ,
, ज ज ‟ ज

आ , - ,
ज आ
ज आ आ
ज ज
, - ज
दाॉतो औय हड्डडमों के दचभन् फाजारू शीतर ऩेम

क्मा आऩ जानते हैं कक जजन फाजारु ऩेम ऩदाथों को आऩ फड़े शौक से ऩीते हैं, वे आऩके
दाॉतों तथा हड्डडमों को गराने के साधन हैं ? इन ऩेम ऩदाथों का „ऩीएच‟ (सान्द्रता) साभान्मत्
3.4 होता है , जो कक दाॉतों तथा हड्डडमों को गराने के सरमे ऩमाथप्त है ।

रगबग 30 वषथ की आमु ऩूयी कयने के फाद हभाये शयीय भें हड्डडमों के तनभाथण की
प्रकक्रमा फॊद हो जाती है । इसके ऩश्चात ् खाद्म ऩदाथों भें एससडडटी (अम्रता) की भात्रा के अनुसाय
हड्डडमाॉ घुरनी प्रायॊ ब हो जाती हैं।

मदद स्वास्र्थम की दृजष्ट से दे खा जामे तो इन ऩेम ऩदाथों भें पवटासभन अथवा खतनज
तत्त्वों का नाभोतनशान ही नहीॊ है । इनभें शक्कय, काफोसरक अम्र तथा अन्म यसामनों की ही
प्रचयु भात्रा होती है । हभाये शयीय का साभान्म ताऩभान 37 डडग्री सेजल्समस होता है जफकक ककसी
शीतर ऩेम ऩदाथथ का ताऩभान इससे फहुत कभ, महाॉ तक कक शन् ू म डडग्री सेजल्समस तक बी
होता है । शयीय के ताऩभान तथा ऩेम ऩदाथों के ताऩभान के फीच इतनी अचधक पवषभता व्मजक्त
के ऩाचन-तॊत्र ऩय फहुत फयु ा प्रबाव डारती है । ऩरयणाभस्वरूऩ व्मजक्त द्वाया खामा गमा बोजन
अऩचा ही यह जाता है जजससे गैस व फदफू उत्ऩन्न होकय दाॉतों भें पैर जाती है औय अनेक
फीभारयमों को जन्भ दे ती है ।

एक प्रमोग के दौयान एक टूटे हुए दाॉत को ऐसे ही ऩेम ऩदाथथ की एक फोतर भें डारकय फॊद कय
ददमा गमा। दस ददन फाद उस दाॉत को तनयीऺण हे तु तनकारना था ऩयन्तु वह दाॉत फोतर के
अन्दय था ही नहीॊ अथाथत ् वह उसभें घुर गमा था। जया सोचचमे कक इतने भजफूत दाॉत बी ऐसे
हातनकायक ऩेम ऩदाथों के दष्ु प्रबाव से गर-सड़कय नष्ट हो जाते हैं तो कपय उन कोभर तथा नभथ
आॉतों का क्मा हार होता होगा जजनभें मे ऩेम ऩदाथथ ऩाचन-कक्रमा के सरए घॊटों ऩड़े यहते हैं।

कोल्ड डरॊतस ऩी यहे हैं मा जॊतनाशक दवा ?


अफ आऩ ही ननणथम कयें

कोल्ड डिॊक्स भें डी.डी.टी. (कैंसयकायक), सरण्डेन (फच्चों के भजस्तष्क को ऺततग्रस्त कयता है ),
क्रोयऩामरयपोस (गबथवती भदहराओॊ के सरए घातक), भेराचथमोन (तॊत्रत्रका-तॊत्र के सरए
हातनकायक) के अततरयक्त अन्म घातक यसामन जैसे कैपीन, कोककन, अल्कोहर, ऩोटे सशमभ
फेंजोएट, पॉस्पोरयक अम्र बी ऩामे जाते हैं। इनके सेवन से हड्डडमों का गरना, भोटाऩा, गुदों भें
ऩथयी आदद खतयनाक फीभारयमाॉ बी हो सकती हैं।
चाम-कापी भें दस प्रकाय के जहय

1. टे तनन नाभ का जहय 18 % होता है , जो ऩेट भें छारे तथा ऩैदा कयता है ।

2. चथन नाभक जहय 3 % होता है , जजससे खश्ु की चढती है तथा मह पेपड़ों औय ससय भें
बायीऩन ऩैदा कयता है ।

3. कैपीन नाभक जहय 2.75 % होता है , जो शयीय भें एससड फनाता है तथा ककडनी को
कभजोय कयता है ।

4. वॉराटाइर नाभक जहय आॉतों के ऊऩय हातनकायक प्रबाव डारता है ।

5. काफोतनक अम्र से एससडडटी होती है ।

6. ऩैसभन से ऩाचनशजक्त कभजोय होती है ।

7. एयोभोरीक आॉतडड़मों के ऊऩय हातनकायक प्रबाव डारता है ।

8. साइनोजन अतनद्रा तथा रकवा जैसी बमॊकय फीभारयमाॉ ऩैदा कयती है ।

9. ऑक्सेसरक अम्र शयीय के सरए अत्मॊत हातनकायक है ।

10. जस्टनॉमर यक्तपवहाय तथा नऩुॊसकता ऩैदा कयता है ।

इससरए चाम अथवा कॉपी कबी नहीॊ ऩीनी चादहए औय अगय ऩीनी हो तो आमुवैददक
चाम ऩीनी चादहए।

चाम-कॉपी के स्थान ऩय....

जफ बी चाम-कॉपी ऩीने की इच्छा हो तफ उसके स्थान ऩय तनजम्नसरणखत प्रमोग कयके उसका


सेवन कयने से अत्मचधक राब होगा एवॊ सदॊ, जुकाभ, खाॉसी, श्वास, कपजतनत फुखाय,
तनभोतनमा आदद योग कबी नहीॊ होंगे।

फनफ्शा, छामा भें सुखामे तुरसी के ऩत्ते, दारचीनी, छोटी इरामची, सौंप, ब्राह्त्तभी के सूखे ऩत्ते,
तछरी हुई मजष्टभधु – प्रत्मेक वस्तु एक तोरा (रगबग 12-12 ग्राभ)
इन सफको अरग-अरग ऩीसकय सभश्रण फनाकय यखें। जफ चाम ऩीने की इच्छा हो तफ आधा
तोरा (रगबग 6 ग्राभ) चण
ू थ को एक यतर (450 ग्राभ) ऩानी भें उफारें । आधा ऩानी शेष यहे तफ
छानकय उसभें दध
ू , सभश्री सभराकय पऩमें। इससे भजस्तष्क भें शजक्त, शयीय भे स्पूततथ औय बूख
फढती है ।

ऩाचनशक्तत व फद्धधवधथक, रृदम के लरए दहतकय

14 फहुभूल्म औषचधमों के सॊमोग से फनी मह चाम ऺुधावधथक, भेध्म व रृदम के सरए फरदामक
है । मह भनोफर को फढाती है । भजस्तष्क को तनावभुक्त कयती है , जजससे नीॊद अच्छी आती है ।
मह मकृत के कामथ को सुधाय कय यक्त की शुद्चध कयती है ।

इसभें ननदहत घटक द्रव्म व उनके राब

सोंठ् कपनाशक, आभऩाचक, जठयाजग्नवधथक। ब्राह्भी् स्भतृ त, भेधाशजक्त व भनोफर वधथक।


अजन
थ ् रृदमफरवधथक, यक्त-शुद्चधकय, अजस्थ ऩुजष्टकय। दारचीनी् जॊतुनाशक, रृदम व मकृत
उत्तेजक, ओजवधथक। तेजऩत्र् सुगॊध व स्वाददामक, दीऩन, ऩाचक। शॊखऩष्ऩी् भेध्म, तनावभुक्त
कयने वारी, तनद्राजनक। कारी लभचथ् जठयाजग्नवधथक, कपर्घन, कृसभनाशक। यततचॊदन्
दाहशाभक, नेत्रों के सरए दहतकय। नागयभोथ् दाहशाभक, पऩत्तशाभक, कृसभर्घन, ऩाचक। इरामची्
त्रत्रदोषशाभक, भखु दग
ु चां धहय, रृदम के सरए दहतकय। करॊजन् ऩाचक, कॊठशद् ु चधकय, फहुभत्र
ू भें
उऩमक् ु त। जामपर् स्वय व वणथ सध ु ायने वारे, रूचचकय, वष्ृ म। भरेठी (मक्ष्टभध): कॊठ-शद्
ु चधकय,
कपर्घन, स्वयसध
ु ायक। सौंप् उत्तभ ऩाचक, रूचचकय, नेत्रज्मोततवधथक।

एक आधा घॊटा ऩहरे अथवा यात को ऩानी भें सबगोकय यखी हुई चाम सुफह उफारें तो उसका औय
अचधक गुण आमेगा।

आधननक खान-ऩान से छोटे हो यहे हैं फच्चों के जफडे

आज सभाज भें आधतु नक खान-ऩान (पास्टपूड) का फोरफारा फढता जा यहा है । व्मस्त


जीवन अथवा आरस्म के कायण ककतने ही घयों भें पास्टपूड का उऩमोग ककमा जाता है । ऩहरे
बी फहुत से शोधकत्ताथओॊ ने अऩने सवेऺण के आधाय ऩय पास्टपूड तथा ठण्डे ऩेम, चॉकरेट आदद
को अखाद्म चगनकय स्वास्र्थम के सरए खतयनाक सात्रफत ककमा है ।
नई ददल्री जस्थत „बायतीम आमुपवथऻान कचहयी‟ के शोधकत्ताथओॊ ने फारकों के स्वास्र्थम
ऩय पास्टपूड के कायण ऩड़ने वारे प्रततकूर प्रबाव ऩय सवेऺण ककमा। सॊस्था के दॊ तचचककत्सक
पवबाग के प्रभुख डॉ. हरयप्रकाश फताते हैं कक फच्चों के खान-ऩान भें जजस प्रकाय पास्टपूड,
चॉकरेट तथा ठॊ डे ऩेम आदद तेजी से सभापवष्ट होते जा यहे हैं इसकी असय फच्चों के दाॉतों ऩय
ऩड़ यही है । बोजन को चफाने से उनके आॉतो औय जफड़ों को जो कसयत सभरती थी, वह अफ
कभ होती जा यही है । इसका दष्ु ऩरयणाभ मह आमा है कक दाॉत ऩॊजक्तफद्ध नहीॊ यहते, उफड़-खाफड़
तथा एक-दस
ू ये के ऊऩय चढ जाते हैं एवॊ उनके जफड़े का आकाय बी छोटा होता जा यहा है ।

एक सवेऺण के अनुसाय रगबग 60 से 80 प्रततशत स्कूर के फच्चे तथा 14 से 18


प्रततशत फुजग
ु थ दाॉत की तकरीप के सशकाय हैं.

डॉ. हरयप्रकाश के फतामे अनस


ु ाय फच्चों के बोजन भें ऐसे ऩदाथथ तथा पर होने चादहए
जजनको वे चफा सकें। आधतु नक खान-ऩान की फदरती शैरी, पैशन-ऩयस्ती औय फेऩयवाही
स्वास्र्थम के सरए बमसच
ू क घॊटी है ।

हभाये शास्त्रों ने बी कहा है ् जैसा अन्न वैसा भन। इससरए अऩपवत्र वस्तुओॊ से तथा
अऩपवत्र वातावयण भें फननेवारे पास्टपूड आदद से अऩने ऩरयवाय को फचाओ।

सौन्दमथ-प्रसाधनों भें नछऩी हैं अनेक प्राणणमों की भक


ू चीखें औय
हत्मा

सौन्दमथ-प्रसाधन एक ऐसा नाभ है जजससे प्रत्मेक व्मजक्त ऩरयचचत है । सौन्दमथ प्रसाधनों


का प्रमोग कयके अऩने को खफ
ू सयू त तथा पवशेष ददखने होड़ भें आज ससपथ नायी ही नहीॊ, वयन ्
ऩरू
ु ष बी ऩीछे नहीॊ हैं।

हभें पवसबन्न प्रकाय के तेर, क्रीभ, शैम्ऩू एवॊ इत्र आदद जो आकषथक डडब्फे एवॊ फोतरों भें
ऩैक ककमे हुए सभरते हैं, उनभें हजायों-हजायों तनयऩयाध फेजुफान प्राणणमों की भूक चीखें तछऩी हुई
होती हैं। भनुष्म की चभड़ी को खफू सयू त फनाने के सरए कई तनदोष प्राणणमों की हत्मा........ मही
इन प्रसाधनों की सच्चाई है ।

सेंट के उत्ऩादन भें त्रफल्री के आकाय के त्रफज्जू नाभ के प्राणी को फेंतों से ऩीटा जाता है ।
अत्मचधक भाय से उद्पवग्न होकय त्रफज्जू की मौन-ग्रॊचथ से एक सुगॊचधत ऩदाथथ स्रापवत होता है ।
जजसको धायदाय चाकू से तनभथभताऩूवक
थ खयोंच सरमा जाता है जजसभें अन्म यसामन सभराकय
पवसबन्न प्रकाय के इत्र फनामे जाते हैं।

ऩुरुषों की दाढी को सजाने भें जजन रोशनों का उऩमोग होता है उसकी सॊवेदनशीरता की
ऩयीऺा के सरए चह
ू े की जातत वारे चगनी पऩग हैं, जजनकी जान री जाती है ।

रेभूय जातत के रोरयस नाभक छोटे फॊदय की बी सुन्दय आॉखों औय जजगय को ऩीसकय
सौन्दमथ प्रसाधन फनामे जाते हैं। इसी तयह केस्टोरयमभ नाभ की गन्ध प्राप्त कयने के सरए चह
ू े
के आकाय के फीफय नाभ के एक प्राणी को 15-20 ददन तक बख
ू ा यखकय, तड़ऩा-तड़ऩाकय
तकरीप दे कय हत्मा की जाती है ।

भनुष्म की प्राणेजन्द्रम की ऩरयतजृ प्त के सरए त्रफल्री की जातत के सीवेट नाभ के प्राणी को
इतना क्रोचधत ककमा जाता है कक अॊत भें वह अऩने प्राण गॊवा दे ता है । तफ उसका ऩेट चीयकय
एक ग्रॊचथ तनकारकय, आकषथक डडज़ाईनों भें ऩैक कयके सौन्दमथ प्रसाधन की दक
ु ानों भें यख दे ते
हैं।

अनेक प्रकाय के यसामनों से फने हुए शैम्ऩू की क्वासरटी को जाॉच कयने के सरए इसे
तनदोष खयगोश की सुॊदय, कोभर आॊखों भें डारा जाता है । जजससे उसकी आॉखों से खन ू तनकरता
है औय अॊत भें वह तड़ऩ-तड़ऩकय प्राण छोड़ दे ता है ।

इसके अततरयक्त काजर, क्रीभ, सरऩजस्टक, ऩावडय आदद तथा अन्म प्रसाधनों भें ऩशुओॊ
की चफॉ, अनेक ऩैरोकैसभकल्स, कृत्रत्रभ सुगॊध, इथाइर, जजयनाइन, अल्कोहर, कपनाइर,
ससरोनेल्स, हाइिाक्सीससरोन आदद उऩमोग ककमे जाते हैं। जजनसे चभथयोग जैसे कक एरजॉ, दाद,
सपेद दाग आदद होने की आशॊका यहती है ।

मे तो भात्र एक झरक है , ऩूया अध्माम नहीॊ है । ऩयू ा अध्माम तो ऐसा है कक आऩ कल्ऩना


बी नहीॊ कय सकते।

फाजारू आइसक्रीभ-ककतनी खतयनाक, ककतनी अखाद्म?

आइसक्रीभ के तनभाथण भें जो बी साभग्रीमाॉ प्रमक्


ु त की जाती हैं उनभें एक बी वस्तु ऐसी
नहीॊ है जो हभाये स्वास्र्थम ऩय प्रततकूर प्रबाव न डारती हो। इसभें कच्ची साभग्री के तौय ऩय
अचधकाॊशत् हवा बयी यहती है । शेष 30 प्रततशत त्रफना उफरा हुआ औय त्रफना छाना हुआ ऩानी, 6
प्रततशत ऩशुओॊ की चफॉ तथा 7 से 8 प्रततशत शक्कय होती है । मे सफ ऩदाथथ हभाये तन-भन को
दपू षत कयने वारे शत्रु ही तो हैं।

इसके अततरयक्त आइसक्रीभ भें ऐसे अनेक यासामतनक ऩदाथथ बी सभरामे जाते हैं जो
ककसी जहय से कभ नहीॊ होते। जैसे ऩेऩयोतनर, इथाइर एससटे ट, फुराडडहाइड, एसभर एससटे ट,
नाइरे ट आदद। उल्रेखनीम है कक इनभें से ऩेऩयोतनर नाभक यसामन कीड़े भायने की दवा के रूऩ
भें बी प्रमोग ककमा जाता है । इथाइर एससटे ट के प्रमोग से आइसक्रीभ भें अनानास जैसा स्वाद
आता है ऩयन्तु इसके वाष्ऩ के प्रबाव से पेपड़े, गुदे एवॊ ददर की बमॊकय फीभारयमाॉ उत्ऩन्न होती
हैं। ऐसे ही शेष यसामतनक ऩदाथों के बी अरग-अरग दष्ु प्रबाव ऩड़ते हैं।

आइसक्रीभ का तनभाथण एक अतत शीतर कभये भें ककमा जाता है । सवथप्रथभ चफॉ को
सख्त कयके यफय की तयह रचीरा फनामा जाता है ताकक जफ हवा बयी जामे तो वह उसभें सभा
सके। कपय चफॉमक्
ु त इस सभश्रण को आइसक्रीभ का रूऩ दे ने के सरए इसभें ढे य सायी अन्म
हातनकायक वस्तए
ु ॉ बी सभराई जाती हैं। इनभें एक प्रकाय का गोंद बी होता है जो चफॉ से सभरने
ऩय आइसक्रीभ को चचऩचचऩा तथा धीये -धीये पऩघरनेवारा फनाता है । मह गोंद जानवयों के ऩॉछ
ू ,
नाक, थन आदद अॊगों को उफार कय फनामा जाता है ।

इस प्रकाय अनेक अखाद्म ऩदाथों के सभश्रण को पेतनर फपथ रगाकय एक दस


ू ये शीतकऺ
भें रे जामा जाता है । वहाॉ इसे अरग-अरग आकाय के आकषथक ऩैकेटों भें बया जाता है ।

एक कभये से दस
ू ये तक रे जाने की प्रकक्रमा भें कुछ आइसक्रीभ पशथ ऩय बी चगय जाती
है । भजदयू ों के जूतों तरे यौंदे जाने से कुछ सभम फाद उनभें से दग
ु न्
थ ध आने रगती है । अत् उसे
तछऩाने के सरमे चाकरेट आइसक्रीभ तैमाय की जाती है ।

क्मा आऩका ऩेट कोई गटय मा कचयाऩेटी है , जजसभें आऩ ऐसे ऩदाथथ डारते हैं। ज़या
सोचचए तो?

भाॊसाहाय् गॊबीय फीभारयमों को आभॊत्रण

भाउन्ट जज़ओन मूतन. ऑप केसरपोतनथमा भें हुए शोध के अनुसाय भाॊसाहाय भें जो एससड
होता है , उसे ऩचाने के सरए फेज़ की ज़रूयत होती है । रीवय के ऩास ऩमाथप्त फेज़ न हो तो वह
फेज़ हड्डडमों से रेता है , क्मोंकक हड्डडमाॉ फेज़ औय कैजल्शमभ से फनी होती हैं। इसका भतरफ
रीवय भाॊस ऩचाने के सरए ऩमाथप्त फेज़ ऩैदा नहीॊ कय सकता है तो हड्डडमों भें से वह सभरने
रगता है औय अॊत भें हड्डडमाॉ पऩसती जाती हैं. छोटी बी फनती जाती हैं औय कभजोय बी होती
जाती हैं। इससरए हड्डडमों का फ्रैकचय बी अचधक भाॊस खाने वारों को होता है । इससरए इस
शोध भें शाकाहाय को ही ज़्मादा भहत्त्व ददमा गमा है ।

भाॊसाहाय ऩय ककमे गमे ऩयीऺणों के आधाय ऩय तो महाॉ तक कहा है कक भाॊसाहाय कयना


भतरफ बमॊकय फीभारयमों को आभॊत्रण दे ना है . भाॊसाहाय से कैंसय, रृदम योग, चभथयोग, कुष्टयोग,
ऩथयी औय ककडनी सॊफॊधी ऐसी अनेक फीभारयमाॉ त्रफना फुरामे आ जाती हैं।

डॉ. फेंज ने अऩने अनेक प्रमोगों के आधाय ऩय तो महाॉ तक कहा है ् “ भनष्ु म भें क्रोध,
उद्दॊ डता, आवेग, अपववेक, अभानष
ु ता, अऩयाचधक प्रवपृ त्त तथा काभक
ु ता जैसे दष्ु ट कभों को
बड़काने भें भाॊसाहाय का अत्मॊत भहत्त्वऩण
ू थ हाथ होता है क्मोंकक भाॊस रेने के सरए जफ ऩशओ
ु ॊ
की हत्मा की जाती है उस सभम उनभें आमे हुए बम, क्रोध, चचॊता, णखन्नता आदद का प्रबाव
भाॊसाहाय कयने वारे व्मजक्तमों ऩय अवश्म ऩड़ता है । “

अभेरयका की स्टे ट मूतन. ऑप न्मूमाकथ, फपैरो भें ककमे हुए अनेक शोध के ऩरयणाभस्वरूऩ
वहाॉ के पवशेषऻों ने कहा है ् “ अभेरयका भें हय सार 47000 से बी ज़्मादा ऐसे फारक जन्भ रेते
हैं, जजनके भाता-पऩता के भाॊसाहायी होने के कायण फारकों को जन्भजात अनेक घातक फीभारयमाॉ
रगी हुई होती हैं। “

भाॊसाहाय से होने वारे घातक ऩरयणाभों के पवषम भें प्रत्मेक धभथग्रॊथ भें फतामा गमा है ।
भाॊसाहाय का पवयोध आमथद्रष्टा ऋपषमों ने, सॊतों-कथाकायों ने सत्सॊग भें बी ककमा है , मही पवयोध
अबी पवऻान के ऺेत्र भें बी हुआ है । कपय बी, अगय आऩको भाॊसाहाय कयना हो, अऩनी आने
वारी ऩीढी को कैन्सयग्रस्त कयना हो, अऩने को फीभारयमों का सशकाय फनाना हो तो आऩकी
इच्छा। अगय आऩको अशाॊत, णखन्न, ताभसी होकय जल्दी भयना हो तो कयो भाॊसाहाय! नहीॊ तो
आज ही दहम्भत कयके सॊकल्ऩ कयो औय भाॊसाहाय छोड़ दो।

आऩ चाकरेट खा यहे हैं मा ननदोष फछडों का भाॊस?

चाकरेट का नाभ सन
ु ते ही फच्चों भें गद
ु गद
ु ी न हो, ऐसा हो ही नहीॊ सकता। फच्चों को
खश
ु कयने का प्रचसरत साधन है चाकरेट। फच्चों भें ही नहीॊ, वयन ् ककशोयों तथा मव
ु ा वगथ भें बी
चाकरेट ने अऩना पवशेष स्थान फना यखा है । पऩछरे कुछ सभम से टॉकपमों तथा चाकरेटों का
तनभाथण कयने वारी अनेक कॊऩतनमों द्वाया अऩने उत्ऩादों भें आऩपत्तजनक अखाद्म ऩदाथथ सभरामे
जाने की खफये साभने आ यही हैं। कई कॊऩतनमों के उत्ऩादों भें तो हातनकायक यसामनों के साथ-
साथ गामों की चफॉ सभराने तक की फात का यहस्मोदघाटन हुआ है ।

गुजयात के सभाचाय ऩत्र गुजयात सभाचाय भें प्रकासशत एक सभाचाय के अनुसाय नेस्रे
मू.के.सरसभटे ड द्वाया तनसभथत ककटकेट नाभक चाकरेट भें कोभर फछड़ों के ये नेट (भाॊस) का
उऩमोग ककमा जाता है । मह फात ककसी से तछऩी नहीॊ है कक ककटकेट फच्चों भें खफ
ू रोकपप्रम है ।
अचधकतय शाकाहायी ऩरयवायों भें बी इसे खामा जाता है । नेस्रे मू.के.सरसभटे ड की न्मूदरशन
आकपसय श्रीभतत वार एन्डसथन ने अऩने एक ऩत्र भें फतामा् “ ककटकेट के तनभाथण भें कोभर
फछड़ों के ये नेट का उऩमोग ककमा जाता है । परत् ककटकेट शाकाहारयमों के खाने मोग्म नहीॊ है । “
इस ऩत्र को अन्तयाथष्टीम ऩत्रत्रका मॊग जैन्स भें प्रकासशत ककमा गमा था। सावधान यहो, ऐसी
कॊऩतनमों के कुचक्रों से! टे सरपवज़न ऩय अऩने उत्ऩादों को शुद्ध दध
ू से फनते हुए ददखाने वारी
नेस्रे सरसभटे ड के इस उत्ऩाद भें दध ू तो नहीॊ ऩयन्तु दध
ू ऩीने वारे अनेक कोभर फछड़ों के भाॊस
की प्रचयु भात्रा अवश्म होती है । हभाये धन को अऩने दे शों भें रे जाने वारी ऐसी अनेक पवदे शी
कॊऩतनमाॉ हभाये ससद्धान्तों तथा ऩयम्ऩयाओॊ को तोड़ने भें बी कोई कसय नहीॊ छोड़ यही हैं।
व्माऩाय तथा उदायीकयण की आड़ भें बायतवाससमों की बावनाओॊ के साथ णखरवाड़ हो यहा है ।

हारैण्ड की एक कॊऩनी वैनेभैरी ऩूये दे श भें धड़ल्रे से फ्रूटे रा टॉपी फेच यही। इस टॉपी भें
गाम की हड्डडमों का चयू ा सभरा होता है , जो कक इस टॉपी के डडब्फे ऩय स्ऩष्ट रूऩ से अॊककत
होता है । इस टॉपी भें हड्डडमों के चण
ू थ के अरावा डारडा, गोंद, एससदटक एससड तथा चीनी का
सभश्रण है , ऐसा डडब्फे ऩय पाभर
ूथ े (सूत्र) के रूऩ भें अॊककत है । फ्रूटे रा टॉपी ब्राजीर भें फनाई जा
यही है तथा इस कॊऩनी का भुख्मारम हारैण्ड के जुडडआई शहय भें है । आऩपत्तजनक ऩदाथों से
तनसभथत मह टॉपी बायत सदहत सॊसाय के अनेक अन्म दे शों भें बी धड़ल्रे से फेची जा यही है ।

चीनी की अचधक भात्रा होने के कायण इन टॉकपमों को खाने से फचऩन भें ही दाॉतों का
सड़ना प्रायॊ ब हो जाता है तथा डामत्रफटीज़ एवॊ गरे की अन्म फीभारयमों के ऩैदा होने की सॊबावना
यहती है । हड्डडमों के सभश्रण एवॊ एससदटक एससड से कैंसय जैसे बमानक योग बी हो सकते हैं।

सन ् 1847 भें अॊग्रजों ने कायतूसों भें गामों की चफॉ का प्रमोग कयके सनातन सॊस्कृतत को
खजण्डत कयने की साजजश की थी, ऩयन्तु भॊगर ऩाण्डेम जैसे वीयों ने अऩनी जान ऩय खेरकय
उनकी इस चार को असपर कय ददमा। अबी कपय मह नेस्रे कॊऩनी चारें चर यही है । अबी
भॊगर ऩाण्डेम जैसे वीयों की ज़रूयत है । ऐसे वीयों को आगे आना चादहए। रेखकों, ऩत्रकायों को
साभने आना चादहए। दे शबक्तों को साभने आना चादहए। दे श को खण्ड-खण्ड कयने के भसरन
भुयादे वारों औय हभायी सॊस्कृतत ऩय कुठायाघात कयने वारों के सफक ससखाना चादहए।
दे व सॊस्कृतत बायतीम सभाज की सेवा भें सज्जनों को साहसी फनना चादहए। इस ओय सयकाय का
बी ध्मान णखॊचना चादहए।

ऐसे हातनकायक उत्ऩादों के उऩबोग को फॊद कयके ही हभ अऩनी सॊस्कृतत की यऺा कय


सकते हैं। इससरए हभायी सॊस्कृतत को तोड़नेवारी ऐसी कॊऩतनमों के उत्ऩादों के फदहष्काय का
सॊकल्ऩ रेकय आज औय अबी से बायतीम सॊस्कृतत की यऺा भें हभ सफको कॊधे-से-कॊधा सभराकय
आगे आना चादहए।

अधधकाॊश टूथऩेस्टों भें ऩामा जाने वारा फ्रोयाइड कैं सय को


आभॊत्रण दे ता है .......

आजकर फाजाय भें त्रफकने वारे अचधकाॊश टूथऩेस्टों भें परोयाइड नाभक यसामन का
प्रमोग ककमा जाता है । मह यसामन शीशे तथा आयसेतनक जैसा पवषैरा होता है । इसकी थोड़ी-सी
भात्रा बी मदद ऩेट भें ऩहुॉच जाए तो कैंसय जैसे योग ऩैदा हो सकते हैं।

अभेरयका के खाद्म एवॊ स्वास्र्थम पवबाग ने फ्रोयाइड का दवाओॊ भें प्रमोग प्रततफॊचधत
ककमा है । फ्रोयाइड से होने वारी हातनमों से सॊफॊचधत कई भाभरे अदारत तक बी ऩहुॉचे हैं।
इसेक्स (इॊग्रैण्ड) के 10 वषॉम फारक के भाता-पऩता को कोरगेट ऩाभोसरव कॊऩनी द्वाया 264
डॉरय का बुगतान ककमा गमा क्मोंकक उनके ऩुत्र को कोरगेट के प्रमोग से फ्रोयोससस नाभक
दाॉतों की फीभायी रग गमी थी।

अभेरयका के नेशनर कैंसय इन्स्टीच्मूट के प्रभुख यसामनशास्त्री द्वाया ककमे गमे एक शोध
के अनस
ु ाय अभेरयका भें प्रततवषथ 10 हजाय से बी ज़्मादा रोग फ्रोयाइड से उत्ऩन्न कैंसय के
कायण भत्ृ मु को प्राप्त होते हैं।

टूथऩेस्टों भें फ्रोयाइड की उऩजस्थतत चचॊताजनक है , क्मोंकक मह भसूड़ों के अॊदय चरा


जाता है तथा अनेक खतयनाक योग ऩैदा कयता है । छोटे फच्चे तो टूथऩेस्ट को तनगर बी रेते हैं।
परत् उनके सरए तो मह अत्मॊत घातक हो जाता है । टूथऩेस्ट फनाने भें ऩशुओॊ की हड्डी के चयू े
का प्रमोग ककमा जाता है ।

हभाये ऩव
ू ज
थ प्राचीन सभम से ही नीभ तथा फफर
ू की दातन
ु का उऩमोग कयते यहे हैं।
दातुन कयने से अऩने-आऩ भॉह
ु भें राय फनती है जो बोजन को ऩचाने भें सहामक है एवॊ आयोग्म
की यऺा कयती है ।
दाॉतों की सयऺा ऩय ध्मान दें

जहाॉ तक सॊबव हो, दाॉत साप कयने के सरए फाजारू टूथब्रशों तथा टूथऩेस्टों का उऩमोग
नहीॊ कयना चादहए। टूथब्रशों के कड़े, छोटे -फड़े तथा नुकीरे योभ दाॉतों ऩय रगे णझल्रीनुभा
प्राकृततक आवयण को नष्ट कय दे ते हैं, जजससे दाॉतों की प्राकृततक चभक चरी जाती है औय
उनभें कीड़े रगने रगते हैं।

अचधकतय टूथऩेस्ट बी दाॉतों के सरए राबदामक नहीॊ होते। कुछ टूथऩेस्टों भें हड्डडमों का
ऩावडय सभरामे जाने की फातों का यहस्मोदघाटन हुआ है । कई पवदे शी कॊऩतनमाॉ तो धन फटोयने के
सरए न ससपथ उऩबोक्ताओॊ के स्वास्र्थम के साथ णखरवाड़ कय यही हैं वयन ् कानून का बी
उल्रॊघन कयती जा यही हैं। ऩाञ्चजन्म नाभक सभाचाय ऩत्र भें ददनाॊक 17 जनवयी 1999 को
प्रकासशत एक सभाचाय के अनुसाय बायतीम खाद्म एवॊ दवा प्राचधकयण ने दहन्दस्
ु तान रीवय,
प्रोक्टय एण्ड गैम्फर औय कोरगेट ऩाभोसरव को नोदटस बेजकय ऩूछा कक, “ उन्होंने अऩने
टूथऩेस्ट तथा शैम्ऩू के फाये भें चचककत्सा सॊफॊधी दावे क्मों ककमे जफकक उन्हे तो ससपथ सौन्दमथ-
प्रसाधन सॊफॊधी दावे कयने की ही अनुभतत है । “

इस प्रकाय के टूथऩेस्ट अथवा टूथब्रश भॉहगे होने के साथ-साथ हातनप्रद बी होते हैं। इन्हीॊ
उत्ऩादों द्वाया पवदे शी कॊऩतनमाॉ बायत से अयफों की सम्ऩपत्त को रूटकय अऩने दे शों भें रे जा यही
हैं। अत् सुयक्षऺत तथा सस्ते साधनों का ही उऩमोग कयना चादहए।

अण्डा जहय है

बायतीम जनता की सॊस्कृतत औय स्वास्र्थम को हातन ऩहुॉचाने का मह एक पवयाट षडमॊत्र


है । अॊडे के भ्राभक प्रचाय से आज से दो-तीन दशक ऩहरे जजन ऩरयवायों को यास्ते ऩय ऩड़े अण्डे
के खोर के प्रतत बी ग्रातन का बाव था, इसके पवऩयीत उन ऩरयवायों भें आज अॊडे का इस्तेभार
साभान्म फात हो गमी है ।

अॊडे अऩने अवगुणों से हभाये शयीय के जजतने ज़्मादा हातनकायक औय पवषैरे हैं उन्हें प्रचाय
भाध्मभों द्वाया उतना ही अचधक पामदे भॊद फताकय इस जहय को आऩका बोजन फनानो की
साजजश की जा यही है ।

अण्डा शाकाहायी नहीॊ होता रेककन क्रूय व्मावसातमकता के कायण उसे शाकाहायी ससद्ध
ककमा जा यहा है । सभसशगन मूतनवससथटी के वैऻातनकों ने ऩक्के तौय ऩय सात्रफत कय ददमा है कक
दतु नमा भें कोई बी अण्डा चाहे वह सेमा गमा हो मा त्रफना सेमा हुआ हो, तनजॉव नहीॊ होता।
अपसरत अण्डे की सतह ऩय प्राप्त इरैजक्रक एजक्टपवटी को ऩोरीग्राप ऩय अॊककत कय वैऻातनकों
ने मह सात्रफत कय ददमा है कक अपसरत अण्डा बी सजीव होता है । अण्डा शाकाहाय नहीॊ, फजल्क
भुगॉ का दै तनक (यज) स्राव है ।

मह सयासय गरत व झूठ है कक अण्डे भें प्रोटीन, खतनज, पवटासभन औय शयीय के सरए
जरूयी सबी एसभनो एससडस बयऩूय हैं औय फीभायों के सरए ऩचने भें आसान है ।

शयीय की यचना औय स्नामओ


ु ॊ के तनभाथण के सरए प्रोटीन की जरूयत होती है । उसकी
योजाना आवश्मकता प्रतत कक.ग्रा. वजन ऩय 1 ग्राभ होती है मातन 60 ककरोग्राभ वजन वारे
व्मजक्त को प्रततददन 60 ग्राभ प्रोटीन की जरूयत होती है जो 100 ग्राभ अण्डे से भात्र 13.3 ग्राभ
ही सभरता है । इसकी तर
ु ना भें प्रतत 100 ग्राभ सोमाफीन से 43.2 ग्राभ, भॉग
ू परी से 31.5 ग्राभ,
भॉग
ू औय उड़द से 24, 24 ग्राभ तथा भसूय से 25.1 ग्राभ प्रोटीन प्राप्त होता है । शाकाहाय भें
अण्डा व भाॊसाहाय से कहीॊ अचधक प्रोटीन होते हैं। इस फात को अनेक ऩाश्चात्म वैऻातनकों ने
प्रभाणणत ककमा है ।

केसरपोतनथमा के डडमयऩाकथ भें सेंट हे रेना हॉजस्ऩटर के राईप स्टाइर एण्ड न्मूदरशन
प्रोग्राभ के तनदे शक डॉ. जोन ए. भेक्डूगर का दावा है कक शाकाहाय भें जरूयत से बी ज्मादा
प्रोटीन होते हैं।

1972 भें हावथडथ मूतनवससथटी के ही डॉ. एप. स्टे य ने प्रोटीन के फाये भें अध्ममन कयते हुए
प्रततऩाददत ककमा कक शाकाहायी भनुष्मों भें से अचधकाॊश को हय योज की जरूयत से दग ु ना प्रोटीन
अऩने आहाय से सभरता है । 200 अण्डे खाने से जजतना पवटासभन सी सभरता है उतना पवटासभन
सी एक नायॊ गी (सॊतया) खाने से सभर जाता है । जजतना प्रोटीन तथा कैजल्शमभ अण्डे भें हैं उसकी
अऩेऺा चने, भॉग
ू , भटय भें ज्मादा है ।

त्रब्रदटश हे ल्थ सभतनस्टय सभसेज एडवीना क्मूयी ने चेतावनी दी कक अण्डों से भौत सॊबापवत
है क्मोंकक अण्डों भें सारभोनेरा पवष होता है जो कक स्वास्र्थम की हातन कयता है । अण्डों से हाटथ
अटै क की फीभायी होने की चेतावनी नोफेर ऩयु स्काय पवजेता अभेरयकन डॉ. ब्राउन व डॉ.
गोल्डस्टीन ने दी है क्मोंकक अण्डों भें कोरेस्रार बी फहुत ऩामा जाता है .

डॉ. ऩी.सी. सेन, स्वास्र्थम भॊत्रारम, बायत सयकाय ने चेतावनी दी है कक अण्डों से कैंसय
होता है क्मोंकक अण्डों भें बोजन तॊतु नहीॊ ऩामे जाते हैं तथा इनभें डी.डी.टी. पवष ऩामा जाता है ।
जानरेवा योगों की जड़ है ् अण्डा। अण्डे व दस
ू ये भाॊसाहायी खयु ाक भें अत्मॊत जरूयी
ये शातत्त्व (पाईफसथ) जया बी नहीॊ होते हैं। जफकक हयी साग, सब्जी, गेहूॉ, फाजया, भकई, जौ, भॉग
ू ,
चना, भटय, ततर, सोमाफीन, भॉूगपरी वगैयह भें मे कापी भात्रा भें होते हैं।

अभेरयका के डॉ. याफटथ ग्रास की भान्मता के अनुसाय अण्डे से टी.फी. औय ऩेचचश की


फीभायी बी हो जाती है । इसी तयह डॉ. जे. एभ. पवनकीन्स कहते हैं कक अण्डे से अल्सय होता है ।

भुगॉ के अण्डों का उत्ऩादन फढे इसके सरमे उसे जो हाभोन्स ददमे जाते हैं उनभें स्टीर
फेस्टे योर नाभक दवा भहत्त्वऩण
ू थ है । इस दवावारी भग
ु ॉ के अण्डे खाने से जस्त्रमों को स्तन का
कैंसय, हाई ब्रडप्रैशय, ऩीसरमा जैसे योग होने की सम्बावना यहती है । मह दवा ऩरू
ु ष के ऩौरूषत्व
को एक तनजश्चत अॊश भें नष्ट कयती है । वैऻातनक ग्रास के तनष्कषथ के अनस
ु ाय अण्डे से खज
ु री
जैसे त्वचा के राइराज योग औय रकवा बी होने की सॊबावना होती है ।

अण्डे के गुण-अवगुण का इतना साया पववयण ऩढने के फाद फुद्चधभानों को उचचत है कक


अनजानों को इस पवष के सेवन से फचाने का प्रमत्न कयें । उन्हें भ्राभक प्रचाय से फचामें। सॊतुसरत
शाकाहायी बोजन रेने वारे को अण्डा मा अन्म भाॊसाहायी आहाय रेने की कोई जरूयत नहीॊ है ।
शाकाहायी बोजन सस्ता, ऩचने भें आसान औय आयोग्म की दृजष्ट से दोषयदहत होता है । कुछ
दशक ऩहरे जफ बोजन भें अण्डे का कोई स्थान नहीॊ था तफ बी हभाये फुजुगथ तॊदरूस्त यहकय
रम्फी उम्र तक जीते थे। अत् अण्डे के उत्ऩादकों औय भ्राभक प्रचाय की चऩेट भें न आकय हभें
उक्त तर्थमों को ध्मान भें यखकय ही अऩनी इस शाकाहायी आहाय सॊस्कृतत की यऺा कयनी होगी।

आहाय शद्धौ सत्व शद्धध्।

1981 भें जाभा ऩत्रत्रका भें एक खफय छऩी थी। उसभें कहा गमा था कक शाकाहायी बोजन
60 से 67 प्रततशत रृदमयोग को योक सकता है । उसका कायण मह है कक अण्डे औय दस
ू ये
भाॊसाहायी बोजन भें चफॉ ( कोरेस्रार) की भात्रा फहुत ज्मादा होती है ।

केसरपोतनथमा की डॉ. केथयीन तनम्भो ने अऩनी ऩुस्तक हाऊ हे ल्दीमय आय एग्ज़ भें बी
अण्डे के दष्ु प्रबाव का वणथन ककमा गमा है ।

वैऻातनकों की इन रयऩोटों से ससद्ध होता है कक अण्डे के द्वाया हभ जहय का ही सेवन


कय यहे हैं। अत् हभको अऩने-आऩको स्वस्थ यखने व पैर यही जानरेवा फीभायीमों से फचने के
सरए ऐसे आहाय से दयू यहने का सॊकल्ऩ कयना चादहए व दस
ू यों को बी इससे फचाना चादहए।
भौत का दस
ू या नाभ गटखा ऩान भसारा
क्मा आऩको तछऩकरी, तेजाफ जैसी गॊदी तथा जराने वारी वस्तुएॉ भॉह
ु भें डारनी अच्छी
रगती हैं? नहीॊ ना? क्मोंकक गुटका, ऩान-भसारा भें ऐसी वस्तुएॉ डारी जाती हैं।

अनेक अनुसॊधानों से ऩता चरा है कक हभाये दे श भें कैंसय से ग्रस्त योचगमों की सॊख्मा का
एक ततहाई बाग तम्फाकू तथा गुटखे आदद का सेवन कयने वारे रोगों का है । गुटखा खाने वारे
व्मजक्त की साॉसों भें अत्मचधक दग
ु न्
थ ध आने रगती है तथा चन
ू े के कायण भसूढों के पूरने से
ऩामरयमा तथा दॊ तऺम आदद योग उत्ऩन्न होते हैं। इसके सेवन से रृदम योग, यक्तचाऩ, नेत्रयोग
तथा रकवा, टी.फी जैसे बमॊकय योग उत्ऩन्न हो जाते हैं।

तम्फाकू भें तनकोदटन नाभ का एक अतत पवषैरा तत्त्व होता है जो रृदम, नेत्र तथा
भजस्तष्क के सरए अत्मन्त घातक होता है । इसके बमानक दष्ु प्रबाव से अचानक आॉखों की
ज्मोतत बी चरी जाती है । भजस्तष्क भें नशे के प्रबाव के कायण तनाव यहने से यक्तचाऩ उच्च हो
जाता है ।

व्मसन हभाये जीवन को खोखरा कय हभाये शयीय को फीभारयमों का घय फना दे ते हैं।


प्रायॊ ब भें झूठा भजा ददराने वारे मे भादक ऩदाथथ व्मजक्त के पववेक को हय रेते हैं तथा फाद भें
अऩना गुराभ फना रेते हैं औय अन्त भें व्मजक्त को दीन-हीन, ऺीण कयके भौत की कगाय तक
ऩहुॉचा दे ते हैं.

जीवन के उन अॊततभ ऺणों भें जफ व्मजक्त को इन बमानकताओॊ का ख्मार आता है तफ


फहुत दे य हो चक
ु ी होती है । इससरए हे फारको! गुटका औय ऩान-भसारे के भामाजार भें पॉसे
त्रफना बगवान की इस अनभोर दे न भनष्ु म-जीवन को ऩयोऩकाय, सेवा, सॊमभ, साधना द्वाया
उन्नत फनाओ।

टी.वी.-कपल्भों का प्रबाव

22 अप्रैर को आगया से प्रकासशत सभाचाय ऩत्र दै तनक जागयण भें ददनाॊक 21 अप्रैर
1999 को वासशग ॊ टन (अभेरयका) भें घटी एक घटना प्रकासशत हुई थी। इस घटना के अनस ु ाय
ककशोय उम्र के दो स्कूरी पवद्माचथथमों ने डेनवय (कॉरये डो) भें दोऩहय को बोजन की आधी छुट्टी
के सभम भें कोरॊफाइन हाई स्कूर की ऩुस्तकारम भें घुसकय अॊधाधुॊध गोरीफायी की, जजससे
कभ-से-कभ 25 पवद्माचथथमों की भत्ृ मु हुई, 20 घामर हुए। पवद्माचथथमों की हत्मा के फाद
गोरीफायी कयने वारे ककशोयों ने स्वमॊ को बी गोसरमाॉ भायकय अऩने को बी भौत के घाट उताय
ददमा। हॉरीवुड की भाया-भायीवारी कपल्भी ढॊ ग से हुए इस अबूतऩूवथ काॊड के ऩीछे बी चरचचत्र ही
(कपल्भ) भूर प्रेयक तत्त्व है , मह फहुत ही शभथनाक फात है । बायतवाससमों को ऐसे सध
ु ये हुए याष्र
औय आधतु नक कहरामे जाने वारे रोगों से सावधान यहना चादहए।

ससनेभा-टे सरपवज़न का दरू


ु ऩमोग फच्चों के सरए असबशाऩ रूऩ है । चोयी, दारू, भ्रष्टाचाय,
दहॊसा, फरात्काय, तनरथज्जता जैसे कुसॊस्कायों से फार-भजस्तष्क को फचाना चादहए। छोटे फच्चों की
आॉखों की ऱऺा कयनी जरूयी है । इससरए टे सरपवज़न, पवपवध चैनरों का उऩमोग ऻानवधथक
कामथक्रभ, आध्माजत्भक उन्नतत के सरए कामथक्रभ, ऩढाई के सरए कामथक्रभ तथा प्राकृततक सौन्दमथ
ददखाने वारे कामथक्रभों तक ही भमाथददत कयना चादहए।

एक सवे के अनस
ु ाय तीन वषथ का फच्चा जफ टी.वी. दे खना शरू
ु कयता है औय उस घय भें
केफर कनैक्शन ऩय 12-13 चैनर आती हों तो, हय योज ऩाॉच घॊटे के दहसाफ से फारक 20 वषथ
का हो तफ तक इसकी आॉखें 33000 हत्मा औय 72000 फाय अश्रीरता औय फरात्काय के दृश्म
दे ख चक
ु ी होंगी।

महाॉ एक फात गॊबीयता से पवचाय कयने की है कक नाभ का एक छोटा सा फारक एक


मा दो फाय दे खकय फन गमा औय वही फारक
के नाभ से आज बी ऩूजा जा यहा है । ज
ऩय असय कयता है कक उस व्मजक्त को जजॊदगी बय औय कयने वारा फना
ददमा, तो जो फारक 33 हजाय फाय हत्मा औय 72 हजाय फाय फरात्काय का दृश्म दे खेगा तो वह
क्मा फनेगा? आऩ बरे झूठी आशा यखो कक आऩका फच्चा इन्जीतनमय फनेगा, वैऻातनक फनेगा,
मोग्म सज्जन फनेगा, भहाऩुरूष फनेगा ऩयन्तु इतनी फाय फरात्काय औय इतनी हत्माएॉ दे खने वारा
क्मा खाक फनेगा? आऩ ही दफ
ु ाया पवचायें ।

फच्चों के सोने के आठ ढॊ ग

1. कुछ फच्चे ऩीठ के फर सीधे सोते हैं। अऩने दोनों हाथ ढीरे छोड़कय मा ऩेट ऩय यख
रेते हैं। मह सोने का सफसे अच्छा औय आदशथ तयीका है । प्राम् इस प्रकाय सोने वारे फच्चे
अच्छे स्वास्र्थम के स्वाभी होते हैं। न कोई योग न कोई भानससक चचॊता। इन फच्चों का
पवकास अचधकतय यात्रत्र भें होता ही है ।
2. कुछ फच्चे सोते वक्त अऩने दोनों हाथ उठाकय ससय ऩय ऱख रेते हैं। इस प्रकाय शाॊतत
औय आयाभ प्रदसशथत कयने वारा फच्चा अऩने वातावयण से सॊतोष, शाॊतत चाहता है । अत् फड़ा
होने ऩय उसे ककसी जजम्भेदायी का काभ एकदभ न सौंऩ दे , क्मोकक ऐसे फच्चे प्राम् कभजोय
सॊकल्ऩशजक्तवारे होते हैं। उसे फचऩन से ही अऩना काभ स्वमॊ कयने का अभ्मास कयवामें
ताकक धीये -धीये उसके अॊदय सॊकल्ऩशजक्त औय आत्भपवश्वास ऩैदा हो जाए।

3. कुछ फच्चे ऩेट के फर रेटकय अऩना भॉह


ु तककमे ऩय इस प्रकाय यख रेते हैं भानो
तककमे को चम्
ु फन कय यहे हों। मह स्नेह का प्रतीक है । उनकी मह चेष्टा फताती है कक फच्चा
स्नेह का बूखा है । वह प्माय चाहता है । उससे खफ
ू प्माय कयें , प्मायबयी फातों से उसका भन
फहरामें। उसको प्माय की दौरत सभर गमी तो उसकी इस प्रकाय सोने की आदत अऩने-आऩ
दयू हो जाएगी।

4. कुछ फच्चे तककमे से सरऩटकय मा तककमे को ससय के ऊऩय यखकय सोते हैं। मह
फताता है कक फच्चे के भजस्तष्क भें कोई गहया बम फैठा हुआ है । फड़े प्माय से छुऩा हुआ बम
जानने औय उसे दयू कयने का शीघ्राततशीघ्र प्रमत्न कयें ताकक फच्चे का उचचत पवकास हो।
ककसी सदगुरू से प्रणव का भॊत्र ददरवाकय जाऩ कयावें ताकक उसका बापव जीवन ककसी बम से
प्रबापवत न हो।

5. कुछ फच्चे कयवट रेकय दोनों ऩाॉव भोड़कय सोते हैं। ऐसे फच्चे अऩने फड़ों से
सहानुबूतत औय सुयऺा के असबराषी होते हैं। स्वस्थ औय शजक्तशारी फच्चे बी इस प्रकाय सोते
हैं। उन फच्चों को फड़ों से अचधक स्नेह औय प्माय सभरना चादहए।

6. कुछ फच्चे तककमे मा त्रफस्तय की चादय भें छुऩकय सोते हैं। मह इस फात का सॊकेत है
कक वे रजज्जत हैं। अऩने वातावयण से प्रसन्न नहीॊ हैं। घय भें मा फाहय उनके सभत्रों के साथ
ऐसी फाते हो यहीॊ हैं, जजनसे वे सॊतुष्ट मा प्रसन्न नहीॊ हैं। उनसे ऐसा कोई शायीरयक दोष,
कुकभथ मा कोई ऐसी छोटी-भोटी गरती हो गमी है जजसके कायण वे भॉह
ु ददखाने के कात्रफर
नहीॊ हैं। उनको उस ग्रातन से भुक्त कीजजए। उनको चारयत्र्मवान औय साहसी फनाइमे.

7. कुछ फच्चे तककम, चादय औय त्रफस्तय तक यौंद डारते हैं। कैसी बी ठॊ डी मा गभॉ हो,
वे फड़ी कदठनाई से यजाई मा चादय आदद ओढना सहन कयते हैं। वे एक जगह जभकय नहीॊ
सोते, ऩूये त्रफस्तय ऩय रोट-ऩोट होते हैं। भाता-पऩता औय अन्म रोगों ऩय अऩना हुकुभ चराने
का प्रमत्न कयते हैं। ऐसे फच्चे दफाव मा जफयदस्ती कोई काभ नहीॊ कयें गे। फहुत ही स्नेह से,
मुजक्त से उनका सुधाय होना चादहए।
8. कुछ फच्चे तककमे मा चादय से अऩना ऩूया शयीय ढॊ ककय सोते हैं। केवर एक हाथ
फाहय तनकारते हैं। मह इस फात का प्रतीक है कक फच्चा घय के ही ककसी व्मजक्त मा सभत्र
आदद से सख्त नायाज़ यहता है । वह ककसी बीतयी दपु वधा का सशकाय है । ऐसे फच्चों का गहया
भन चाहता है कक कोई उनकी फातें औय सशकामतें फैठकय सहानुबूतत से सुन,े उनकी चचॊताओॊ
का तनयाकयण कये ।

ऐसे फच्चों के गुस्से का बेद प्माय से भारूभ कय रेना चादहए, उनको सभझा-फुझाकय
उनकी रूष्टता दयू कयने का प्रमत्न कयना चादहए। अन्मथा ऐसे फच्चे आगे चरकय फहुत बावुक
औय क्रोधी हो जाते हैं, जया-जया सी फात ऩय बड़क उठते हैं।

ऐसे फच्चे चफा-चफाकय बोजन कयें , ऐसा ध्मान यखना चादहए। गस्
ु सा आमे तफ हाथ की
भट्
ु दठमाॉ इस प्रकाय बीीँच दे नी चादहए ताकक नाखन
ू ों का फर हाथ की गद्दी ऩय ऩड़े.... ऐसा
अभ्मास फच्चों भें डारना चादहए। ॐ शाॊतत् शाॊतत्... का ऩावन जऩ कयके ऩानी भें दृजष्ट डारें
औय वह ऩानी उन्हें पऩरामें। फच्चे स्वमॊ मह कयें तो अच्छा है , नहीॊ तो आऩ कयें ।

सॊसाय के सबी फच्चे इन आठ तयीकों से सोते हैं। हय तयीका उनकी भानससक जस्थतत
औय आन्तरयक अवस्था प्रकट कयता है । भाता-पऩता उनकी अवस्था को ऩहचान कय मथोचचत
उनका सभाधान कय दें तो आगे चरकय मे ही फच्चे सपर जीवन त्रफता सकते हैं।

प्रसन्नता औय हास्म

प्रसादे सवथद्खानाॊ हाननयस्मोऩजामते।


प्रसन्नचेतसो ह्माश फद्धध् ऩमथवनतष्ठते।।

'अॊत्कयण की प्रसन्नता होने ऩय उसके(साधक के) सम्ऩण


ू थ द्ु खों का अबाव हो जाता है
औय उस प्रसन्न चचत्तवारे कभथमोगी की फद्
ु चध शीघ्र ही सफ ओय से हटकय एक ऩयभात्भा भें ही
बरीबाॉतत जस्थय हो जाती है ।'

(गीता् 2.65)

खश
ु ी जैसी खयु ाक नहीॊ औय चचॊता जैसा गभ नहीॊ। हरयनाभ, याभनाभ, ओॊकाय के उच्चायण
से फहुत सायी फीभारयमाॉ सभटती हैं औय योगप्रततकायक शजक्त फढती है । हास्म का सबी योगों ऩय
औषचध की नाई उत्तभ प्रबाव ऩड़ता है । हास्म के साथ बगवन्नाभ का उच्चायण एवॊ बगवद् बाव
होने से पवकाय ऺीण होते हैं, चचत्त का प्रसाद फढता है एवॊ आवश्मक मोग्मताओॊ का पवकास होता
है । असरी हास्म से तो फहुत साये राब होते हैं।

बोजन के ऩूवथ ऩैय गीरे कयने तथा 10 सभनट तक हॉ सकय कपय बोजन का ग्रास रेने से
बोजन अभत
ृ के सभान राब कयता है । ऩूज्म श्री रीराशाहजी फाऩू बोजन के ऩहरे हॉ सकय फाद
भें ही बोजन कयने फैठते थे। वे 93 वषथ तक नीयोग यहे थे।

नकरी(फनावटी) हास्म से पेपड़ों का फड़ा व्मामाभ हो जाता है , श्वास रेने की ऺभता फढ


जाती है , यक्त का सॊचाय तेज होने रगता औय शयीय भें राबकायी ऩरयवतथन होने रगते हैं।

ददर का योग, रृदम की धभनी का योग, ददर का दौया, आधासीसी, भानससक तनाव,
ससयददथ , खयाथटे, अम्रपऩत्त(एससडडटी), अवसाद(डडप्रेशन), यक्तचाऩ(ब्रड प्रेशय), सदॊ-जुकाभ, कैंसय
आदद अनेक योगों भें हास्म से फहुत राब होता है ।

सफ योगों की एक दवाई हॉ सना सीखो भेये बाई।

ददन की शुरुआत भें 20 सभनट तक हॉ सने से आऩ ददनबय तयोताजा एवॊ ऊजाथ से बयऩूय
यहते हैं। हास्म आऩका आत्भपवश्वास फढाता है ।

खफ
ू हॉसो बाई ! खफ
ू हॉ सो, योते हो इस पवध तमों प्माये ?

होना है सो होना है , ऩाना है सो ऩाना है , खोना है सो खोना है ।।

सफ सूत्र प्रब के हाथों भें , नाहक कयना का फोझ उठाना है ।।

कपकय पेंक कएॉ भें , जो होगा दे खा जाएगा।

ऩपवत्र ऩरुषाथथ कय रे, जो होगा दे खा जामेगा।।

अचधक हास्म ककसे नहीॊ कयना चादहए ?

जो ददर के ऩुयाने योगी हों, जजनको पेपड़ों से सम्फजन्धत योग हों, ऺम(टी.फी.) के भयीज
हों, गबथवती भदहरा मा प्रसव भें ससजजरयमन ऑऩये शन कयवामा हो, ऩेट का ऑऩये शन कयवामा हो
एवॊ ददर के दौये वारे(हाटथ अटै क के) योचगमों को जोय से हास्म नहीॊ कयना चादहए, ठहाके नहीॊ
भायने चादहए।
फार-कहाननमाॉ

ज ज आ -ज ज |
| ४०-५० , ज
ज | , !
, | ज :
“ ज , , ?”
:“ - ज ज ,
औ औ ज |
५०-६० ज , ज
, , |”
“ ज ! |”
ज ज ज “ ज !
, - | | ज
| ज ! ज आ |”
ज :“ ! आ | आ | आ |
ॐ .... ॐ .... ॐ ..... | |ज !
?”
ज आ |
आ | ,
. |
आ -आ - - ! ज आऔ आ ज
औ ज , ज |„ ज
आ , , , आ , | - -
आ |‟
, | | ,
ज ज
| औ , |
, ,„ ज - !
| | ज -ज
|‟ , |
ज |
औ | आ , औ

ज |
ज „ !
| औ आज
! ज - ज ज आ , - - |
! ज - ज ज !
S S ….
औ आ |
ॐ .... आ |„ - „ ‟,
„ ‟ज ज ? ॐ ...ॐ ... ॐ...... !
| आ औ ज |‟ – -
औ |
, ज ४०-५० औ - |
ज ज - - आ
ज | औ आ -
ज औ आ ज |

|एकाग्रता का प्रबाव

एक फाय स्वाभी पववेकानॊदजी भेयठ आमे। उनको ऩढने का खफ


ू शौक था। इससरए वे
अऩने सशष्म अखॊडानॊद द्वाया ऩस्
ु तकारम भें से ऩस्
ु तकें ऩढने के सरए भॉगवाते थे। केवर एक ही
ददन भें ऩस्
ु तक ऩढकय दस
ू ये ददन वाऩस कयने के कायण ग्रन्थऩार क्रोचधत हो गमा। उसने कहा
कक योज-योज ऩस्
ु तकें फदरने भें भझु े फहुत तकरीप होती है । आऩ मे ऩस्
ु तकें ऩढते हैं कक केवर
ऩन्ने ही फदरते हैं? अखॊडानॊद ने मह फात स्वाभी पववेकानॊद जी को फताई तो वे स्वमॊ
ऩस्
ु तकारम भें गमे औय ग्रॊथऩार से कहा्
मे सफ ऩुस्तकें भैंने भॉगवाई थीॊ, मे सफ ऩुस्तकें भैंने ऩढीॊ हैं। आऩ भुझसे इन ऩुस्तकों भें
के कोई बी प्रश्न ऩूछ सकते हैं। ग्रॊथऩार को शॊका थी कक ऩुस्तकें ऩढने के सरए, सभझने के
सरए तो सभम चादहए, इससरए अऩनी शॊका के सभाधान के सरए स्वाभी पववेकानॊद जी से फहुत
साये प्रश्न ऩूछे। पववेकानॊद जी ने प्रत्मेक प्रश्न का जवाफ तो ठीक ददमा ही, ऩय मे प्रश्न ऩुस्तक
के कौन से ऩन्ने ऩय हैं, वह बी तुयन्त फता ददमा। तफ पववेकानॊदजी की भेधावी स्भयणशजक्त
दे खकय ग्रॊथऩार आश्चमथचककत हो गमा औय ऐसी स्भयणशजक्त का यहस्म ऩूछा।

स्वाभी पववेकानॊद ने कहा् ऩढने के सरए ज़रुयी है एकाग्रता औय एकाग्रता के सरए ज़रूयी
है ध्मान, इजन्द्रमों का सॊमभ। फच्चों को ककसी बी ऺेत्र भें आगे फढने के सरए योज ध्मान औय
त्राटक का अभ्मास कयना चादहमे।

याजस्थान के डूग
ॊ यऩुय जजरे के यास्तऩार गाॉव की 19 जून, 1947 की घटना है ्
उस गाॉव की 10 वषॉम कन्मा कारी अऩने खेत से चाया ससय ऩय उठाकय आ यही थी। हाथ भें
हॉससमा था। उसने दे खा कक 'रक के ऩीछे हभाये स्कूर के भास्टय साहफ फॉधे हैं औय घसीटे जा यहे
हैं।'
कारी का शौमथ उबया, वह रक के आगे जा खड़ी हुई औय फोरी्
"भेये भास्टय को छोड़ दो।"
ससऩाही् "ऐ छोकयी ! यास्ते से हट जा।"
"नहीॊ हटूॉगी। भेये भास्टय साहफ को रक के ऩीछे फाॉधकय क्मों घसीट यहे हो?"
"भख
ू थ रड़की ! गोरी चरा दॉ ग
ू ा।"
ससऩादहमों ने फॊदक
ू साभने यखी। कपय बी उस फहादयु रड़की ने उनकी ऩयवाह न की औय भास्टय
को जजस यस्सी से रक से फाॉधा गमा था उसको हॉ ससमे काट डारा !
रेककन तनदथ मी ससऩादहमों ने, अॊग्रेजों के गुराभों ने धड़ाधड़ गोसरमाॉ फयसामीॊ। कारी नाभ की उस
रड़की का शयीय तो भय गमा रेककन उसकी शूयता अबी बी माद की जाती है ।
कारी के भास्टय का नाभ था सेंगाबाई। उसे क्मों घसीटा जा यहा था? क्मोंकक वह कहता था कक
'इन वनवाससमों की ऩढाई फॊद भत कयो औय इन्हें जफयदस्ती अऩने धभथ से च्मुत भत कयो।'
अॊग्रेजों ने दे खा कक 'मह सेंगाबाई हभाया पवयोध कयता है सफको हभसे रोहा रेना ससखाता है तो
उसको रक से फाॉधकय घसीटकय भयवा दो।'
वे दष्ु ट रोग गाॉव के इस भास्टय की इस ढॉ ग से भत्ृ मु कयवाना चाहते थे कक ऩूये डूग
ॊ यऩुय जजरे
भे दहशत पैर जाम ताकक कोई बी अॊग्रेजों के पवरुद्ध आवाज न उठामे। रेककन एक 10 वषथ की
कन्मा ने ऐसी शूयता ददखाई कक सफ दे खते यह गमे !
कैसा शौमथ ! कैसी दे शबजक्त औय कैसी धभथतनष्ठा थी उस 10 वषॉम कन्मा की। फारको ! तुभ
छोटे नहीॊ हो।
हभ फारक हैं तो क्मा हुआ, उत्साही हैं हभ वीय हैं।
हभ नन्हें -भुन्ने फच्चे ही, इस दे श की तकदीय हैं।।
तभ
ु बी ऐसे फनो कक बायत कपय से पवश्वगरु
ु ऩद ऩय आसीन हो जाम। आऩ अऩने जीवनकार भें
ही कपय से बायत को पवश्वगरु
ु ऩद ऩय आसीन दे खो... हरयॐ....ॐ....ॐ....ॐ

असॊबव कछ बी नहीॊ

Nothing is impossible. Everything is possible. असॊबव कुछ बी नहीॊ है - मह वाक्म है


फ्राॉस के नेऩोसरमन फोनाऩाटथ का, जो एक गयीफ कुटुॊफ भें जन्भा था, ऩयन्तु प्रफर ऩुरूषाथथ औय
दृढ सॊकल्ऩ के कायण एक सैतनक की नौकयी भें से फ्राॉस का शहॊ शाह फन गमा।

आ आ , , , ,आ ,
, आ , ज

इससरए दफ
ु र
थ नकायात्भक पवचाय छोड़कय उच्च सॊकल्ऩ कयके प्रफर ऩुरूषाथथ भें रग
जाओ, साभर्थमथ का खजाना तुम्हाये ऩास ही है । सपरता अवश्म तुम्हाये कदभ चभ
ू ेगी।

फारक श्रीयाभ

हभाये दे श भें बगवान श्री याभ के हजायों भॊददय हैं। उन बगवान श्री याभ का फाल्मकार
कैसा था, मह जानते हो?

फारक श्री याभ के पऩता का नाभ याजा दशयथ तथा भाता का नाभ कौशल्मा था। याभ जी
के बाइमों के नाभ रक्ष्भण, बयत औय शत्रर्घ
ु न था। फारक श्रीयाभ फचऩन से ही शाॊत, धीय, गॊबीय
स्वबाव के औय तेजस्वी थे। वे हय-योज़ भाता-पऩता को प्रणाभ कयते थे। भाता-पऩता की आऻा का
उल्रॊघन कबी बी नहीॊ कयते थे। फचऩन से ही गरू
ु वसशष्ठ के आश्रभ भें सेवा कयते थे। श्रीयाभ
तथा रक्ष्भण गुरू जी के ऩास आत्भऻान का सत्सॊग सुनते थे। गुरूजी की आऻा का ऩारन कयके
तनमसभत त्रत्रकार सॊध्मा कयते थे। सॊध्मा भें प्राणामाभ, जऩ-ध्मान आदद तनमसभत यीतत से कयते
थे। गुरू जी की आऻा भें यहने से, उनकी सेवा कयने से श्री वसशष्ठजी खफ
ू प्रसन्न यहते थे।
इससरए गुरू जी ने आत्भऻान, ब्रह्त्तभऻानरूऩी सत्सॊग अभत
ृ का ऩान उन्हें कयामा था।

गुरू वसशष्ठ औय फारक श्रीयाभ का जो सॊवाद-सत्सॊग हुआ था, वह आज बी पवश्व भें


भहान ग्रॊथ की तयह ऩूजनीम भाना जाता है । उस भहान ग्रॊथ का नाभ है , श्री मोगवासशष्ठ
भहायाभामण।

फचऩन से ही ब्रह्त्तभऻानरूऩी सत्सॊग का अभत


ृ ऩान कयने के कायण फारक श्रीयाभ तनबथम
यहते थे। इसी कायण भहपषथ पवश्वासभत्र श्रीयाभ तथा रक्ष्भण को छोटी उम्र होने ऩय बी अऩने
साथ रे गमे। मे दोनों वीय फारक ऋपष-भतु नमों के ऩये शान कयने वारे फड़े-फड़े याऺसों का वध
कयके ऋपषमों-भतु नमों की यऺा कयते। श्री याभ आऻाऩारन भें ऩक्के थे। एक फाय पऩताश्री की
आऻा सभरते ही आऻानस
ु ाय याजगद्दी छोड़कय 14 वषथ वनवास भें यहे थे। इसीसरए तो कहा
जाता है । यघकर यीत सदा चरी आई। प्राण जाई ऩय वचन न जाई।

श्री याभ बगवान की तयह ऩूजे जा यहे हैं क्मोंकक उनभें फाल्मकार भें ऐसे सदगुण थे औय
गुरू जी की कृऩा उनके साथ थी।

फारक ध्रव

याजा उत्तानऩाद की दो यातनमाॉ थीॊ। पप्रम यानी का नाभ सुऱूची औय अपप्रम यानी का नाभ
सुभतत था। दोनों यातनमों को एक-एक ऩुत्र था। एक फाय यानी सुभतत का ऩुत्र ध्रव
ु खेरता-खेरता
अऩने पऩता की गोद भें फैठ गमा। यानी ने तुयॊत ही उसे पऩता की गोद से नीचे उताय कय कहा्

पऩता की गोद भें फैठने के सरए ऩहरे भेयी कोख से जन्भ रे। ध्रव
ु योता-योता अऩना भाॉ
के ऩास गमा औय सफ फात भाॉ से कही। भाॉ ने ध्रव
ु को सभझामा् फेटा! मह याजगद्दी तो नश्वय
है ऩयॊ तु तू बगवान का दशथन कयके शाश्वत गद्दी प्राप्त कय। ध्रव
ु को भाॉ की सीख फहुत अच्छी
रगी। औय तयु ॊ त ही दृढ तनश्चम कयके तऩ कयने के सरए जॊगर भें चरा गमा। यास्ते भें दहॊसक
ऩशु सभरे कपय बी बमबीत नहीॊ हुआ। इतने भें उसे दे वपषथ नायद सभरे। ऐसे घनघोय जॊगर भें
भात्र 5 वषथ को फारक को दे खकय नायद जी ने वहाॉ आने का कायण ऩछ ू ा। ध्रव
ु ने घय भें हुई सफ
फातें नायद जी को फता दीॊ औय बगवान को ऩाने की तीव्र इच्छा प्रकट की।

नायद जी ने ध्रव
ु को सभझामा् “तू इतना छोटा है औय बमानक जॊगर भें ठण्डी-गभॉ
सहन कयके तऩस्मा नहीॊ कय सकता इससरए तू घय वाऩस चरा जा।“ ऩयन्तु ध्रव
ु दृढतनश्चमी
था। उसकी दृढतनष्ठा औय बगवान को ऩाने की तीव्र इच्छा दे खकय नायदजी ने ध्रव
ु को ॐ नभो
बगवते वासदे वाम ‟ का भॊत्र दे कय आशीवाथद ददमा् “ फेटा! तू श्रद्धा से इस भॊत्र का जऩ कयना।
बगवान ज़रूय तुझ ऩय प्रसन्न होंगे।“ ध्रव
ु तो कठोय तऩस्मा भें रग गमा। एक ऩैय ऩय खड़े
होकय, ठॊ डी-गभॉ, फयसात सफ सहन कयते-कयते नायदजी के द्वाया ददए हुए भॊत्र का जऩ कयने
रगा।

उसकी तनबथमता, दृढता, औय कठोय तऩस्मा से


बगवान ने ध्रव
ु से कहा् “ कुछ भाॉग, भाॉग फेटा! तुझे क्मा चादहए। भैं तेयी तऩस्मा से प्रसन्न
हुआ हूॉ। तुझे जो चादहए वय भाॉग रे।“ ध्रव
ु बगवान को दे खकय आनॊदपवबोय हो गमा। बगवान
को प्रणाभ कयके कहा् “हे बगवन ्! भुझे दस ू या कुछ बी नहीॊ चादहए। भुझे अऩनी दृढ बजक्त दो।“
बगवान औय अचधक प्रसन्न हो गए औय फोरे् तथास्त। भेयी बजक्त के साथ-साथ तुझे एक
वयदान औय बी दे ता हूॉ कक आकाश भें एक ताया „ध्रव ु ‟ ताया के नाभ से जाना जाएगा औय
दतु नमा दृढ तनश्चम के सरए तुझे सदा माद कये गी।“ आज बी आकाश भें हभें मह ताया दे खने को
सभरता है । ऐसा था फारक ध्रव
ु , ऐसी थी बजक्त भें उसकी दृढ तनष्ठा। ऩाॉच वषथ के ध्रव
ु को
बगवान सभर सकते हैं तो हभें बी क्मों नहीॊ सभर सकते? ज़रूयत है बजक्त भें तनष्ठा की औय
दृढ पवश्वास की। इससरए फच्चों को हय योज तनष्ठाऩूवक
थ प्रेभ से भॊत्र का जऩ कयना चादहए।

गरू गोपवॊद लसॊह के वीय सऩूत

पतेह ससॊह तथा जोयावय ससॊह ससख के दसवें गुरू गोपवॊदससॊह जी के सुऩुत्र थे।
आनॊदऩुय के मुद्ध भें गुरू जी का ऩरयवाय त्रफखय गमा था। उनके दो ऩुत्र अजीतससॊह एवॊ
जुझायससॊह की तो उनसे बें ट हो गमी, ऩयन्तु दो छोटे ऩुत्र गुरूगोपवॊद ससहॊ की भाता गुजयीदे वी के
साथ अन्मत्र त्रफछुड़ गमे।

आनॊदऩयु छोड़ने के फाद पतेह ससॊह एवॊ जोयावय ससॊह अऩनी दादी के साथ जॊगरों, ऩहाड़ों
को ऩाय कयके एक नगय भें ऩहुॉच।े उस सभम जोयावयससॊह की उम्र भात्र सात वषथ ग्मायह भाह एवॊ
पतेहससॊह की उम्र ऩाॉच वषथ दस भाह थी।

इस नगय भें उन्हें गॊगू नाभक सभरा, जो फीस वषों तक गुरूगोपवॊद


ससॊह के ऩास यसोईमे का काभ कयता था। उसकी जफ भाता गुजयीदे वी से बें ट हुई तो उसने उन्हें
अऩने घय रे जाने का आग्रह ककमा। ऩुयाना सेवक होने के नाते भाता जी दोनों नन्हें फारकों के
साथ गॊगू के घय चरने को तैमाय हो गमी।
भाता गुजयीदे वी के साभान भें कुछ सोने की भुहयें थी जजसे दे खकय गॊगू रोबवश अऩना
ईभान फेच फैठा। उसने यात्रत्र को भुहयें चयु ा रीॊ ऩयन्तु रारच फड़ी फुयी फरा होती है । वासना का
ऩेट कबी नहीॊ बयता अपऩतु वह तो फढती ही यहती है । गॊगू की वासना औय अचधक बड़क उठी।
वह ईनाभ ऩाने के रारच भें भुरयॊज थाना ऩहुॉचा औय वहाॉ के कोतवार को फता ददमा कक
गुरूगोपवॊद ससॊह के दो ऩुत्र एवॊ भाता उसके घय भें तछऩी हैं।

कोतवार ने गॊगू के साथ ससऩादहमों को बेजा तथा दोनों फारकों सदहत भाता गुजयीदे वी
को फॊदी फना सरमा। एक यात उन्हें भुरयॊडा की जेर भें यखकय दस
ू ये ददन सयदहॊद के नवाफ के
ऩास रे जामा गमा। इस फीच भाता गुजयीदे वी दोनों फारकों को , उनके
दादा गुरू तेग फहादयु एवॊ पऩता गुरुगोपवॊदससॊह की वीयताऩूणथ कथाएॉ सुनाती यहीॊ।

सयदहॊद ऩहुॉचने ऩय उन्हें ककरे के एक हवादाय फज


ु थ भें बख
ू ा प्मासा यखा गमा। भाता
गज
ु यीदे वी उन्हें यात बय वीयता एवॊ अऩने धभथ भें अडडग यहने के सरए प्रेरयत कयती यहीॊ। वे
जानती थीॊ कक भग
ु र सवथप्रथभ फच्चों से धभथऩरयवतथन कयने के सरए कहें गे। दोनों फारकों ने
अऩनी दादी को बयोसा ददरामा कक वे अऩने पऩता एवॊ कुर की शान ऩय दाग नहीॊ रगने दें गे
तथा अऩने धभथ भें अडडग यहें गे।

सुफह सैतनक फच्चों को रेने ऩहुॉच गमे। दोनों फारकों ने दादी के चयणस्ऩशथ ककमे एवॊ
सपरता का आशीवाथद रेकय चरे गए। दोनों फारक नवाफ वजीयखान के साभने ऩहुॉचे तथा ससॊह
की तयह गजथना कयते फोरे् “वाहे गुरु जी का खारसा, वाहे गुरू जी की पतेह।“

चायों ओय से शत्रओ
ु ॊ से तघये होने ऩय बी इन नन्हें शेयों की तनबॉकता को दे खकय सबी
दयफायी दाॉतो तरे उॉ गरी दफाने रगे। शयीय ऩय केसयी वस्त्र एवॊ ऩगड़ी तथा कृऩाण धायण ककए
इन नन्हें मोद्धाओॊ को दे खकय एक फाय तो नवाफ का बी रृदम बी पऩघर गमा।

उसने फच्चों से कहा् “इन्शाह अल्राह! तभ


ु फड़े सन्
ु दय ददखाई दे यहे हो। तम्
ु हें सजा दे ने
की इच्छा नहीॊ होती। फच्चों! हभ तु ्म्हें नवाफों के फच्चों की तयह यखना चाहते हैं। एक छोटी सी
शतथ है कक तभ
ु अऩना धभथ छोड़कय भस
ु रभान फन जाओ।“

नवाफ ने रारच एवॊ प्ररोबन दे कय अऩना ऩहरा ऩाॉसा पैंका। वह सभझता था कक इन


फच्चों को भनाना ज़्मादा कदठन नहीॊ है ऩयन्तु वह मह बूर फैठा था कक बरे ही वे फारक हैं
ऩयन्तु कोई साधायण नहीॊ अपऩत गुरू गोपवॊदससॊह के सऩूत हैं। वह बूर फैठा था कक इनकी यगों
भें उस वीय भहाऩुरूष का यक्त दौड़ यहा है जजसने अऩने पऩता को धभथ के सरए होने की
प्रेयणा दी तथा अऩना सभस्त जीवन धभथ की यऺा भें रगा ददमा था।

नवाफ की फात सुनकय दोनों बाई तनबॉकताऩूवक


थ फोरे् “हभें अऩना धभथ प्राणों से बी
प्माया है । जजस धभथ के सरए हभाये ऩूवज
थ ों ने अऩने प्राणों की फसर दे दी उसे हभ तुम्हायी
रारचबयी फातों भें आकय छोड़ दें , मह कबी नहीॊ हो सकता।“

नवाफ की ऩहरी चार फेकाय गमी। फच्चे नवाफ की भीठी फातों एवॊ रारच भें नहीॊ पॉसे।
अफ उसने दस
ू यी चार खेरी। नवाफ ने सोचा मे दोनों फच्चे ही तो हैं, इन्हें डयामा धभकामा जाम
तो अऩना काभ फन सकता है ।

उसने फच्चों से कहा् “तुभने हभाये दयफाय का अऩभान ककमा है । हभ चाहें तो तुम्हें कड़ी
सजा दे सकते हैं ऩयन्तु तु ्म्हे एक अवसय कपय से दे ते हैं। अबी बी सभम है मदद जज़ॊदगी चाहते
हो तो भुसरभान फन जाओ वनाथ....”

नवाफ अऩनी फात ऩयू ी कये इससे ऩहरे ही मे नन्हें वीय गयज कय फोर उठे ् “नवाफ! हभ
उन गरू
ु तेगफहादयु जी के ऩोते हैं जो धभथ की यऺा के सरए कुफाथन हो गमे। हभ उन गरू
ु गोपवॊदससॊह
जी के ऩुत्र हैं जजनका नाया है ् धचडडमों से भैं फाज रडाऊॉ, सवा राख से एक रडाऊॉ। जजनका एक-
एक ससऩाही तेये सवा राख गुराभों को धर
ू चटा दे ता है , जजनका नाभ सुनते ही तेयी सल्तनत
थय-थय काॉऩने रगती है । तू हभें भत्ृ मु का बम ददखाता है । हभ कपय से कहते हैं कक हभाया धभथ
हभें प्राणों से बी प्माया है । हभ प्राण त्माग सकते हैं ऩयन्तु अऩना धभथ नहीॊ त्माग सकते।“

इतने भें दीवान सुच्चानॊद ने फारकों से ऩूछा् “अच्छा! मदद हभ तुम्हे छोड़ दें तो तुभ
क्मा कयोगे?”

फारक जोयावय ससॊह ने कहा् “हभ सेना इकट्ठी कयें गे औय अत्माचायी भुगरों को इस दे श
से खदे ड़ने के सरए मुद्ध कयें गे।“

दीवान् “मदद तभ
ु हाय गमे तो?”

जोयावय ससॊह् (दृढताऩूवक


थ ) “हाय शब्द हभाये जीवन भें नहीॊ है । हभ हायें गे नहीॊ। मा तो
पवजमी होंगे मा आ होंगे।“
फारकों की वीयताऩूणथ फातें सुनकय नवाफ आग फफूरा हो उठा। उसने काजी से कहा् “इन
फच्चों ने हभाये दयफाय का अऩभान ककमा है तथा बपवष्म भें भुगर शासन के पवरूद्ध पवद्रोह की
घोषणा की है । अत् इनके सरए क्मा दण्ड तनजश्चत ककमा जामे?”

काजी् “मे फारक भुगर शासन के दश्ु भन हैं औय इस्राभ को स्वीकाय कयने को बी
तैमाय नहीॊ हैं। अत्, इन्हें जजन्दा दीवाय भें चन
ु वा ददमा जामे।“

शैतान नवाफ तथा काजी के क्रूय पैसरे के फाद दोनों फारकों को उनकी दादी के ऩास बेज
ददमा गमा। फारकों ने उत्साहऩव
ू क
थ दादी को ऩयू ी घटना सन
ु ाई। फारकों की वीयता को दे खकय
दादी गदगद हो उठी औय उन्हें रृदम से रगाकय फोरी् “भेये फच्चों! तभ
ु ने अऩने पऩता की राज
यख री।“

दस
ू ये ददन दोनों वीय फारकों को ददल्री के सयकायी जल्राद सशशार फेग औय पवशार फेग
को सुऩुदथ कय ददमा गमा। फारकों को तनजश्चत स्थान ऩय रे जाकय उनके चायों ओय दीवाय फननी
प्रायम्ब हो गमी। धीये -धीये दीवाय उनके कानों तक ऊॉची उठ गमी। इतने भें फड़े बाई जोयावयससॊह
ने अॊततभ फाय अऩने छोटे बाई पतेहससॊह की ओय दे खा औय उसकी आॉखों से आॉसू छरक उठे ।

जोयावय ससॊह की इस अवस्था को दे खकय वहाॉ खड़ा काजी फड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सभझा
कक मे फच्चे भत्ृ मु को साभने दे खकय डय गमे हैं। उसने अच्छा भौका दे खकय जोयावयससॊह से
कहा् “फच्चों! अबी बी सभम है । मदद तुभ भुसरभान फन जाओ तो तुम्हायी सजा भाप कय दी
जाएगी।“

जोयावय ससॊह ने गयजकय कहा् “भूखथ काजी! भैं भौत से नहीॊ डय यहा हूॉ। भेया बाई भेये फाद इस
सॊसाय भें आमा ऩयन्तु भझ
ु से ऩहरे धभथ के सरए हो यहा है । भुझे फड़ा बाई होने ऩय बी
मह सौबाग्म नहीॊ सभरा, इससरए भुझे योना आता है ।“

सात वषथ के इस नन्हें से फारक के भुख से ऐसी फात सुनकय सबी दॊ ग यह गमे। थोड़ी
दे य भें दीवाय ऩूयी हुई औय वे दोनों नन्हें धभथवीय उसभें सभा गमे।

कुछ सभम ऩश्चात दीवाय को चगया ददमा गमा। दोनों फारक फेहोश ऩड़े थे, ऩयन्तु
अत्माचारयमों ने उसी जस्थतत भें उनकी हत्मा कय दी।

पवश्व के ककसी बी अन्म दे श के इततहास भें इस प्रकाय की घटना नहीॊ है , जजसभें सात
एवॊ ऩाॉच वषथ के दो नन्हें ससॊहों की अभय वीयगाथा का वणथन हो।
जोयावय ससॊह एवॊ पतेहससॊह पऩता से त्रफछुड़ कय शत्रओॊ की कैद भें ऩहुॉच चुके थे। छोटी
सी उम्र भें ही उन्हें इतने फड़े सॊकट का साभना कयना ऩड़ा। धभथ छोड़ने के सरए ऩहरे रारच
औय कठोय मातनाएॉ दी गईँ ऩयन्तु मे दोनों वीय अऩने धभथ ऩय अडडग यहे । धन्म हैं ऐसे
धभथतनष्ठ फारक!

स्वधभे ननधनॊ श्रेम्

प्रत्मेक भनुष्म को अऩने धभथ के प्रतत श्रद्धा एवॊ आदय होना चादहए। बगवान श्री कृष्ण
ने कहा है ्

श्रेमान्स्वधभो पवगण् ऩयधभाथत्स्वनक्ष्टतात ्। स्वधभे ननधनॊ श्रेम् बमावह्।।

“अच्छी प्रकाय आचयण ककमे हुए दसू ये के धभथ से ऩयाजजत गुणयदहत बी अऩना धभथ अतत
उत्तभ है । अऩने धभथ भें तो भयना बी कल्माणकायक है औय दस ू ये का धभथ बम को दे ने वारा है ।“
(गीता् 3.35)

जफ बायत ऩय शाहजहाॉ का शासन था, तफ की मह घटना घदटत है ्

तेयह वषॉम हकीकत याम स्मारकोट के एक छोटे से भदयसे भें ऩढता था। एक ददन कुछ
फच्चों ने सभर कय हकीकत याम को गासरमाॉ दीॊ। ऩहरे तो वह चऩ
ु यहा। वैसे बी सहनशीरता हो
दहन्दओ
ु ॊ का गुण है ही.... ककन्तु जफ उन उद्दण्ड फच्चों ने दहॊदओ
ु ॊ के नाभ की औय दे वी-दे वताओॊ
के नाभ की गासरमाॉ दे नी शुरु की तफ उस वीय फारक से अऩने धभथ का अऩभान सहा नहीॊ गमा।

हकीकत याम ने कहा् “अफ तो हद हो गमी! अऩने सरमे तो भैंने सहनशजक्त का उऩमोग
ककमा रेककन भेये धभथ, गुरू औय बगवान के सरए एक बी शब्द फोरोगे ते मह भेयी सहनशजक्त
से फाहय की फात है । भेये ऩास बी जुफान है । भैं बी तुम्हें फोर सकता हूॉ।“

उद्दण्ड फच्चों ने कहा् “फोरकय तो ददखा! हभ तेयी खफय रेंगे।„

हकीकत याम ने बी उनको दो-चाय कटु शब्द सुना ददमे। फस, उन्हीॊ दो-चाय शब्दों को
सुनकय भुल्रा-भौरपवमों का खन
ू उफर ऩड़ा। वे हकीकत याम को ठीक कयने का भौका ढूॉढने
रगे। सफ रोग एक तयप औय हकीकत याम अकेरा दस
ू यी तयप। उस सभम भुगरों का शासन
था। इससरए हकीकत याम को जेर भें कैद कय ददमा गमा।
भुगर शासकों की ओय से हकीकत याम को मह पयभान बेजा गमा् “अगय तुभ करभा
ऩढ रो औय भुसरभान फन जाओ तो तुम्हें अबी भाप कय ददमा जाएगा औय मदद तुभ
भुसरभान नहीॊ फनोगे तो तु ्म्हाया ससय धड़ से अरग कय ददमा जामेगा।“

हकीकत याम के भाता-पऩता जेर के फाहय आॉसू फहा यहे थे् “फेटा! तू भुसरभान फन जा।
कभ से कभ हभ तुझे जीपवत तो दे ख सकेंगे! “… रेककन उस वीय हकीकत याम ने कहा्

“ क्मा भुसरभान फन जाने का फाद भेयी भत्ृ मु नहीॊ होगी ? ”

भाता-पऩता् “भ ृ ्त्मु तो होगी।“

हकीकत याम् ”तो कपय भैं अऩने धभथ भें ही भयना ऩसन्द करूॉगा। भैं जीते-जी दस
ू यों के
धभथ भें नहीॊ जाऊॉगा।“

क्रूय शासकों ने हकीकत याम की दृढता दे खकय अनेकों धभककमाॉ दीॊ रेककन उस फहादयु
ककशोय ऩय उनकी धभककमों का जोय न चर सका। उसके दृढ तनश्चम को ऩूया याज्म-शासन बी
न डडगा सका।

अॊत भें भुगर शासक ने प्ररोबन दे कय अऩनी ओय खीॊचना चाहा रेककन वह फुद्चधभान व
वीय ककशोय प्ररोबनों भें बी नहीॊ पॉसा।

आणखय क्रूय भुसरभान शासकों ने आदे श ददमा् “अभुक ददन फीच भैदान भें हकीकत याम
का सशयोच्छे द ककमा जाएगा।“

वह तेयह वषॉम ककशोय जल्राद के हाथ भें चभचभाती हुई तरवाय दे खकय जया-बी
बमबीत न हुआ वयन ् वह अऩने गुरू के ददए हुए ऻान को माद कयने रगा् “मह तरवाय
ककसको भाये गी? भाय-भाय इस ऩॊचबौततक शयीय को ही भाये गी औय ऐसे ऩॊचबौततक शयीय तो कई
फाय सभरे औय कई फाय भय गमे।..... तो क्मा मह तरवाय भुझे भाये गी? नहीॊ भैं तो अभय आत्भा
हूॉ.... ऩयभात्भा का सनातन अॊश हूॉ। भझ
ु े मह कैसे भाय सकती है ? ॐ... ॐ.... ॐ

हकीकत याम गुरु के इस ऻान का चचॊतन कय यहा था, तबी क्रूय काजजमों ने जल्राद को
तरवाय चराने का आदे श ददमा। जल्राद ने तरवाय उठाई रेककन उस तनदोष फारक को दे खकय
उसकी अॊतयात्भा थयथया उठी। उसके हाथों से तरवाय चगय ऩड़ी औय हाथ काॉऩने रगे।

काजी फोरे् “तझ


ु े नौकयी कयनी कक नहीॊ? मह तू क्मा कय यहा है ?”
तफ हकीकत याम ने अऩने हाथों से तरवाय उठाई औय जल्राद के हाथ भें थभा दी। कपय
वह ककशोय हकीकत याम आॉखें फॊद कयके ऩयभात्भा का चचॊतन कयने रगा् „हे अकार ऩुरूष! भुझे
तेये चयणों की प्रीतत दे ना ताकक भैं तेये चयणों भें ऩहुॉच जाऊॉ.... कपय से भुझे वासना का ऩुतरा
फनाकय इधय-उधय न बटकना ऩड़े। अफ तू भुझे अऩनी ही शयण भें यखना... भैं तेया हूॉ.... तू भेया
है .... हे भेये अकार ऩुरुष!‟

इतने भें जल्राद ने तरवाय चराई औय हकीकत याम का ससय धड़ से अरग हो गमा।

हकीकत याम ने 13 वषथ की नन्हीॊ सी उम्र भें धभथ के सरए अऩनी कुफाथनी दे दी। उसने
शयीय छोड़ ददमा रेककन धभथ न छोड़ा।

गरु तेगफहादय फोलरमा, सनो लसखों! फडबाधगमा, धड दीजे धयभ छोडडमे....

हकीकत याम ने अऩने जीवन भें मह चरयताथथ कयके ददखा ददमा।

हकीकत याम ने तो धभथ के सरए फसरवेदी ऩय चढ गमा रेककन उसकी कुफाथनी ने बायत के
हजायों-राखों जवानों भें एक जोश बय ददमा कक „धभथ की खाततय प्राण दे ना ऩड़े तो दें गे रेककन
पवधसभथमों के आगे नहीॊ झुकेंगे। बरे ही अऩने धभथ भें बूखे प्मासे भयना ऩड़े तो स्वीकाय है
रेककन ऩय धभथ को कबी स्वीकाय नहीॊ कयें गे।„

ऐसे वीयों के फसरदान के परस्वरूऩ ही हभें आजादी प्राप्त हुई है औय ऐसे राखों-राखों
प्राणों की आहूतत द्वाया प्राप्त की गमी इस आजादी को हभ कहीॊ व्मसन, पैशन एवॊ चरचचत्रों से
प्रबापवत होकय गॉवा न दें ! अत् दे शवाससमों को सावधान यहना होगा।

ॐ ॐ

आज ज
ज ज , आ आ, आ

-ज आ आ, ज
ज ,ज
ज -


1 ( 2/3)

ज ! , ज !
ज 1

ज ।
2 ( 2/13)

ज ज ,ज औ ,
, 2

ज ।
ज 3 ( 2/20)

आ ज औ
ज , , औ , ज
ज 3

ज ।
ज 4 ( 2/22)

ज , ज
||4||


5 ( 2/23)

आ , आ ज , ज औ
5
ख ख ज ज ।
6 ( 2/38)

ज - ज , - औ - , ज,
6


7 ( 2/47)

,
आ 7

ज ।
8 ( 2/48)

ज ! आ औ
आ , (ज ज , औ
' ' ) 8


ख ख 9 ( 2/15)

! - ज औ
, 9

ज ।
10 ( 3/21)

ज -ज आ , - आ ज
, - ज ( ,
' ' 10
ज ज ।
11 ( 5/7)

ज ,ज ज औ
आ ज आ , आ 11


12 ( 4/38)

आ -आ आ 12


13 ( 4/39)

ज , औ
- ज 13


14 ( 18/17)

ज ' ' ज औ
, औ
(ज , औ ज आ
, ज औ
ज , औ
ज , आ , औ

, ' ' ) 14


15 ( 3/35)

औ 15


16 ( 6/5)

- औ आ
औ आ 16

ज ।
17 ( 6/6)

ज ज औ ज आ , ज आ
औ ज ज , आ
17


ख 18 ( 6/17)

आ - ,
औ ज 18

ज ।
19 ( 9/27)

ज ! ज ,ज ,ज ,ज औ ज ,
19

ज ज ।
20 ( 12/15)
ज ज औ ज ज
ज , ( ' ' ), औ
- 20


ज 21 ( 16/21)

, - ( औ
, औ ' ' )आ
ज 21

ज ज ।
22 ( 15/7)

ज (ज आ
- , आ -
, ज ' '
)औ औ आ 22


ज 23 ( 8/13)

ॐ आऔ
आ ज , 23


ज 24 ( 18/78)

ज !ज औ ज - ज , , ज ,
औ -
-

हे प्रब! आनन्ददाता!!

हे प्रब!ु आनन्ददाता !! ऻान हभको दीजजमे।

शीघ्र साये दग
ु ण
ुथ ों को दयू हभसे कीजजमे।। हे प्रबु......

रीजजमे हभको शयण भें हभ सदाचायी फनें।

ब्रह्त्तभचायी धभथयऺक वीय व्रतधायी फनें।। हे प्रबु......

तनॊदा ककसी की हभ ककसी से बर


ू कय बी न कयें ।

ईष्माथ कबी बी हभ ककसी से बूरकय बी न कयें ।। हे प्रबु...

सत्म फोरें झूठ त्मागें भेर आऩस भें कयें ।

ददव्म जीवन हो हभाया मश तेया गामा कयें ।। हे प्रब.ु ...

जाम हभायी आमु हे प्रबु ! रोक के उऩकाय भें ।

हाथ डारें हभ कबी न बूरकय अऩकाय भें ।। हे प्रबु....

कीजजमे हभ ऩय कृऩा अफ ऐसी हे ऩयभात्भा!

भोह भद भत्सय यदहत होवे हभायी आत्भा।। हे प्रबु....

प्रेभ से हभ गुरुजनों की तनत्म ही सेवा कयें ।

प्रेभ से हभ सॊस्कृतत ही तनत्म ही सेवा कयें ।। हे प्रब.ु ..

मोगपवद्मा ब्रह्त्तभपवद्मा हो अचधक प्मायी हभें ।

ब्रह्त्तभतनष्ठा प्राप्त कयके सवथदहतकायी फनें।। हे प्रब.ु ...


कदभ अऩने आगे फढाता चरा जा....

कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा। सदा प्रेभ के गीत गाता चरा जा।।

तेये भागथ भें वीय ! काॉटें फड़े हैं। सरमे तीय हाथों भें वैयी खड़े हैं।

फहादयु सफको सभटाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।

तू है आमथवॊशी ऋपषकुर का फारक। प्रताऩी मशस्वी सदा दीनऩारक।

तू सॊदेश सख
ु का सन
ु ाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।

बरे आज तूपान उठकय के आमें। फरा ऩय चरी आ यही हों फरामें।

मव
ु ा वीय हैं दनदनाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।

जो त्रफछुड़े हुए हैं उन्हें तू सभरा जा। जो सोमे ऩड़े हैं उन्हें तू जगा जा।।

तू आनॊद डॊका फजाता चरा जा। कदभ अऩना आगे फढाता चरा जा।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

ब्रह्भचमथ के ऩारन से...

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से स्वास्र्थम का सॊचाय कयें ।

शजक्त का पवकास कयें चरयत्र का तनभाथण कयें ।। टे क।। - 2

मौवन की सुयऺा से जीवन का उद्धाय कयें ।

सॊमभ की शजक्त से सवाांगीण पवकास कयें ।।

मौवन धन फयफाद हुआ है स्वच्छन्दी उच्छृॊखर जीवन से,

टीवी सीयीमर चरचचत्रों से अश्रीर सादहत्मों से।


इन सफको अफ छोड़ के अऩने मौवन को भहकामें,

सॊतों के सत्सॊग भें जाकय जीवन धन्म फनामें।।

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से....।। टे क।।

सॊमभहीन दे शों भें हुई है मौवन धन की तफाही,

तन-भन के कई योग फढे हैं दष्ु टच चरयत्र अऩयाधी।

छोड़ के उनका अॊध अनुकयण अऩना दे श फचामें,

ध्मान मोग सेवा बजक्त से सॊस्कृतत को अऩनामें।।

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से....।। टे क ।।

सॊमभ से ही शजक्त सभरेगी तन-भन स्वस्थ यहें गे,

फुद्चध खफ
ू कुशाग्र फनेगी तनत्म प्रसन्न यहें गे।

जीवन के हय कोई ऺेत्र भें उन्नतत हो के यहे गी,

रौककक औय ऩायरौककक जग भें प्रगतत हो के यहेगी।।

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से....।। टे क ।।

दे ख रो अऩनी सॊस्कृतत भें बी सॊमभी वीय हुए हैं,

भहावीय औय बीष्भ पऩताभह जैसे वीय हुए हैं।

सॊमभ की सीख उनसे रे के हभ बी वीय फनेंगे,

पवश्वगुरु के ऩद ऩय स्थापऩत अऩना दे श कयें गे।।

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से..... ।। टे क ।।

मौवन सुयऺा के ग्रॊथों को जन-जन तक ऩहुॉचामें,


बटके उरझे मुवावगथ को सॊमभ ऩथ ददखरामें।

मुवाधन यऺक असबमान को व्माऩक तेज फनामें,

याष्रोत्थान के दै वी कामथ भें जीवन सपर फनामें।।

ब्रह्त्तभचमथ के ऩारन से.... ।। टे क ।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

भात पऩता गरु प्रब चयणों भें ...

भात पऩता गरु


ु प्रबु चयणों भें प्रणव्रत फायम्फाय।

हभ ऩय ककमा फड़ा उऩकाय, हभ ऩय ककमा फड़ा उऩकाय।। टे क।।

भाता ने जो कष्ट उठामा, वह ऋण कबी न जामे चक


ु ामा।

अॉगुरी ऩकड़कय चरना ससखामा, भभता की दी शीतर छामा।

जजनकी गोदी भें ऩरकय हभ, कहराते होसशमाय।

हभ ऩय ककमा....... भात-पऩता...........।। टे क।।

पऩता ने हभको मोग्म फनामा, कभा कभाकय अन्न णखरामा।

ऩढा सरखा गुणवान फनामा, जीवन ऩथ ऩय चरना ससखामा।

जोड़-जोड़ अऩनी सॊऩपत्त का, फना ददमा हकदाय।

हभ ऩय ककमा....... भात-पऩता...........।। टे क।।

तत्त्वऻान गुरु ने दयशामा, अॊधकाय सफ दयू हटामा।

रृदम भें बजक्त दीऩ जराकय, हरयदशथन का भागथ फतामा।

त्रफन स्वायथ ही कृऩा कयें वे, ककतने फड़े हैं उदाय।


हभ ऩय ककमा....... भात-पऩता...........।। टे क।।

प्रबु ककयऩा से नय तन ऩामा, सॊत सभरन का साज सजामा।

फर, फुद्चध औय पवद्मा दे कय, सफ जीवों भें श्रेष्ठ फनामा।

जो बी इनकी शयण भें आता, कय दे ते उद्धाय।

हभ ऩय ककमा....... भात-पऩता...........।। टे क।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

शौमथ-गीत
हो जाओ तैमाय

हो जाओ तैमाय साचथमो............ हो जाओ तैमाय

दे श हभाया त्रफक यहा है पवदे सशमों के हाथ।

धभथ के नाभ ऩय रट
ू चरी है , पवधभोमों के हाथ। हो जाओ...

धभथ की यऺा कयने को हो जाओ तैमाय,

धभथ यऺा भें नहीॊ रगे तो जीवन है फेकाय। हो जाओ...

हभ सफको वे ससखा यहे हैं आत्भफर हचथमाय,

जऩ-तऩ-ध्मान की भदहभा जानो, हाथ भें रो हचथमाय। हो जाओ...

दफ
ु र
थ पवचाय कुचर डारो कयो उच्च पवचाय,

अऩनी सॊस्कृतत ऩहचानो, हभ ऋपषमों की सॊतान। हो जाओ....

आओ हभ सफ सभर कय गामें हरय हरय ॐ

हरय हरय ॐ साचथमों, हरय हरय ॐ । हो जाओ...


ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे...

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे, फुद्चधभान फन आमेंगे।।

त्रत्रकार सॊध्मा वे फताते हैं, तन-भन स्वस्थ फनाते हैं।

मौचगक प्रमोग कयाते हैं, स्भयणशजक्त बी फढाते हैं।

खेर प्रततमोचगता भें जामेंगे, फर फुद्चध को फढामेंगे।

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे, फद्


ु चधभान हभ फन आमेंगे।।1।।

ध्मान का बी ऻान रेना है , सूमथ को बी जर दे ना है ।

त्राटक बी हभें कयना है , पवऩपत्तमों से ना हभें डयना है ।

भॊत्र-भदहभा हभ गामेंगे, बगवन्नाभ जऩते सो जामेंगे।

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे, फुद्चधभान हभ फन आमेंगे।।2।।

ऩद्भासन हभें सह
ु ाता है , आत्भफर वह फढाता है ।

वज्रासन बी हभें बाता है , फरवान हभें फनाता है ।

ताड़ासन हभ कय ऩामेंगे, सॊमभ ओज फढामेंगे।

फार सॊस्काय भें हभ जामेंगे, फुद्चधभान हभ फन आमेंगे।।3।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

जागत
ृ हो बायत साया...

जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।

गीत गाते खश
ु ी भनाते, खेर खेर भें सशऺा ऩाते।

नाच नाचते धभ
ू भचाते, भीठे -भीठे बजन बी गाते।

बायत यहे सदा आगे हभाया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।।1।।

प्रेयक सॊद
ु य कहानी सन
ु ाते, श्वास रेते अॊक चगनाते।

ध्मान ऩॊख रगाकय उड़ते, ऻान की सीढी हभ हैं चढते।

केन्द्र तो है प्रेभ का तनझथया, प्माया-प्माया सफसे न्माया।

जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।।2।।

केन्द भें ऐसा आनन्द आता, ʹफार सॊस्कायʹ भें भैं तनत जाता।

न जा ऩाऊॉ तो योना आता, इतना तो मे भझ


ु को बाता।

फारक है फाऩू को प्माया, घय-घय फहे गी सॊस्काय धाया।

जागत
ृ हो बायत साया, ʹफार सॊस्कायʹ का है मे नाया।।3।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जन्भददन तभ ऐसा भनाओ...

बायतीम सॊस्कृतत तुभ अऩनाओ, जन्भददन तुभ ऐसा भनाओ।

ʹहै प्ऩी फथथ डेʹ बूर ही जाओ, जन्भददन फधाई कहो-कहरवाओ।।

सुफह ब्रह्त्तभभुहूतथ भें जागो, भात-पऩता-प्रबु ऩाॉवों रागो।

सबी फड़ों के चयण छूना, केक का नाभ बूर ही जाना।।

अऩने सोमे भन को जगाओ, अऩना जीवन उन्नत फनाओ।

बायतीम सॊस्कृतत तुभ अऩनाओ, जन्भददन तुभ ऐसा भनाओ।।1।।

जन्भददन होता है दीमे जराना, ना होता मे दीमे फुझाना।

दीऩज्मोतत से जीवन जगभगाता, ना इसे तभ भें रे जाना।।

वेदों की मे सशऺा ऩा रो, ऻान सुधा से भन भहकाओ।

बायतीम सॊस्कृतत तभ
ु अऩनाओ, जन्भददन तभ
ु ऐसा भनाओ।।2।।

आज तुभ अन्न-प्रसाद फाॉटना, गयीफों को दान बी दे ना।

गमे सार का दहसाफ रगाना, नमे सार की उभॊगे जगाना।।

फाऩू कहते सदा खश


ु यहो, मही आशीष है प्रब-ु सुख ऩा रो।

बायतीम सॊस्कृतत तभ
ु अऩनाओ, जन्भददन तभ
ु ऐसा भनाओ।।3।।

ʹहै प्ऩी फथथ डेʹ बर


ू ही जाओ, जन्भददन फधाई कहो-कहरवाओ।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ
जन्भ ददन फधाई गीत

फधाई हो फधाई जन्भददवस की फधाई

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

फधाई हो फधाई जन्भददन की फधाई

जन्भददवस ऩय दे ते हैं तभ
ु को हभ फधाई

जीवन का हय इक रम्हा हो तभ
ु को सख
ु दामी

धयती सुखदामी हो अम्फय सुखदामी

जर सख
ु दामी हो ऩवन सख
ु दामी

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

भॊगरभम दीऩ जराओ उजजमाया जग पैराओ

उद्मभ ऩुरुषाथथ जगा कय भॊजजर को अऩनी ऩाओ

हो शतॊजीव हो चचयॊ जीव शब


ु घड़ी आज आई

भाता सुखदामी हो पऩता सुखदामी

फन्धु सुखदामी हो सखा सुखदामी

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

सदगुण की खान फने तू इतना भहान फने तू

हय कोई चाहे तुझको ऐसा इन्सान फने तू

फरवान हो तू भहान हो कयें गवथ तुझ ऩय सफ हभ

दशथन सख
ु दामी हो ससु भयन सख
ु दामी
तन भन सुखदामी हो जीवन सुखदामी

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

ऋपषमों का वॊशज है तू ईश्वय का अॊशज है तू

तुझभें है चॊदा औय ताये तुझभें ही सजथन हाये

तू जान रे ऩहचान रे तनज शुद्ध फुद्ध आत्भ

ईश्वय सुखदामी ऋपषवय सुखदामी

सभ
ु तत सख
ु दामी हो सत्ऻान सख
ु दामी

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

आनॊदभम जीवन तेया खसु शमों का हो सवेया

चभके तू फन के सूयज हय ऩर हो दयू अॊधेया

तू ऻान का बण्डाय है यखना तू है मे सॊमभ

जग सुखदामी हो गगन सुखदामी

जर सुखदामी हो अगन सुखदामी

फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

तुझभें न जीना भयना जग है केवर इक सऩना

ऩयभेश्वय है तेया अऩना तनष्ठा तू ऐसी यखना

तू ध्मान कय तनज रूऩ का तू सजृ ष्ट का है उदगभ

भॊजजर सुखदामी हो सपय सुखदामी

सफ कुछ सुखदामी हो फधाई हो फधाई


फधाई हो फधाई शुब ददन की फधाई

फधाई हो फधाई जन्भददन की फधाई

जर थर ऩवन अगय औय अम्फय हो तुभको सुखदामी

गभ की धऩ
ू रगे न तुझको दे ते हभ दहु ाई

ईश्वय सुखदामी तनश्वय सुखदामी

सुभतत सुखदामी हो सत्ऻान सुखदामी

फधाई हो फधाई शब
ु ददन की फधाई

फधाई हो फधाई जन्भददन की फधाई

फधाई हो फधाई शब
ु ददन की फधाई

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पवपरता आमे तो...

पवपरता आमे तो बी हभें , ऩीछे नहीॊ है हटना।

हाय के ऩीछे छुऩी है जीत, भामस


ू कबी ना होना।।

सौ सौ फाय चगये है चीॊटी, कपय बी भॊजजर ऩे जामे।

चगयने से तुभ बी ना डयो, सॊमभ भन भें रामे।

हाय से ना डयती चचडड़मा, सीखे धीये -धीये उड़ना।

हाय के ऩीछे छुऩी है जीत, भामूस कबी ना होना।।1।।


आधाय काॉटे होते हुए बी, गुराफ सफके भन को बामे।

गरत होते-होते ही, तीय तनशाने ऩय रग जामे।

अजुन
थ की तयह एकाग्रता, अऩने भन भें राना।

हाय के ऩीछे छुऩी है जीत, भामूस कबी न होना।।2।।

गयीफ हो मा अभीय, मायी तनष्काभ ककमा कयो।

कृष्ण-सुदाभा जैसा सभत्रप्रेभ, तुभ बी दो औय सरमा कयो।

सॊकट कार भें कृष्ण सखा है , कपय ककसी से क्मा भाॉगना ?

हाय के ऩीछे छुऩी है जीत, भामूस कबी ना होना।।3।।

पवपरता आमे तो बी हभें , ऩीछे नहीॊ है हटना।

हाय के ऩीछे छुऩी है जीत, भामस


ू कबी ना होना।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

भुझको फार सॊस्काय भें बेजजमे

पऩता जी इतना कीजजमे, भुझको फार सॊस्काय भें बेजजमे।

भाता जी इतना कीजजमे, भुझको फार सॊस्काय बेजजमे।।

क्मा आऩ चाहते नहीॊ हैं, कक भैं तॊदरूस्त फनॉ।ू

भन प्रसन्न फुद्चध तेज हो, औय अच्छे कामथ चन


ु ॉ।ू

तो कृऩा भझ
ु ऩे कीजजमे, भझ
ु को फार सॊस्काय भें बेजजमे।
पऩता जी इतना कीजजमे.... भाता जी इतना कीजजमे....।।1।।

क्मा नहीॊ चाहते स्ऩधाथओॊ भें , फनॉू भैं तेजस्वी ताया।

कदठन ऩरयजस्थतत भें साहसऩव


ू क
थ , खद
ु को दॉ ू सहाया।

तो इतना ठान रीजजमे, भझ


ु को फार सॊस्काय भें बेजजमे।

पऩता जी इतना कीजजमे... भाता जी इतना कीजजमे....।।2।।

क्मा नहीॊ चाहते आऩका राडरा, दे श को फनामे भहान।

फोरे सदा प्माय की जफ


ु ान, भन भें हो प्रबु गण
ु गान।

तो दृढ सुतनश्चम कीजजमे, भुझको फार सॊस्काय भें बेजजमे।

पऩता जी इतना कीजजमे... भाता जी इतना कीजजमे....।।3।।

आऩ बी खसु शमाॉ ऩाइमे, सभाज को सॊद


ु य फनाइमे।

सॊस्कायी फारक अऩथण कय, प्रबु की कृऩा को ऩाइमे।

पवनती भेयी स्वीकारयमे, भुझको फार सॊस्काय भें बेजजमे।

पऩता जी इतना कीजजमे... भाता जी इतना कीजजमे....।।3।।

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

आयती

ॐज ज

ज ज , ज ज ,
ज ज ज

ज , ,

आ , ज ज …

ज ,आ ज | ज ज …

, | ज ज ….

, ,

, | ज ज …

, ,

, | ज ज …

, ,

| ज ज …

, ,

, | ज ज …

|| ज ज ||

ॐ सहनाववतु सहनौबुनक्तु सहवीमां कयवावहै ।


तेजजस्वनावधीतभस्तु भा पवद्पवषावहै ।।
ॐ शाॊतत् शाॊतत् शाॊतत्।।
( )
, - -

ज ...?

ज आ

आ औ
आ ज ज

|
ज , ज ज |

( ) ज
0 0 0
A/C no :- 4579002100002930
IFSC - PUNB 0457900
Branch Code 457900
ज |
<> ज ( , ज
, , ) ज
ज 08126396457 |

ज. :- . . 60, . 1- , , , - 110094
http://www.sanatansanskritisangh.blogspot.com
E-mail:- sanatansanskritisangh@gmail.com
Mobile:- 08126396457, 8535004500, 9917648983

|| ज ज ||

Hkkjr LokfHkeku ny
, ,

ज आ , ,
औ , ,
, ,आ औ ,
औ ज आ , , औ
औ आज , , औ औ
आ आ

, , , , , , , औ

, ,

ज ज , ज , ज ,
औ , औ
, ज आ ,ज औ
, ,औ ज ,

ज औ ज ,ज ज ज ज ,
, ,

ज ,ज ,ज ,
, ज औ ,
,औ

आज , औ ,

ज ज ज

आ आ ज आ ज ,
ज ,

औ ज
, औ ज " "
,औ ज
, , , औ आ ,
, , औ ज

, औ


|

ज ....

, ज आ ,औ
आ ,आ
आ औ आ ,आ ,
, , औ
जऔ आ ज औ ,
ज आ ज औ ज आ औ

ज ज , ज आ ,
, , , ज,
, , , , ,आ
, , , , , , ज
, , , , , ,
आज औ ,

ज ज , ,
आ ,
आज , आ
जऔ
ज आ , जऔ आ , ज

{1} ज आ औ , ज ज
आ ,

{2} औ , ज
, , 1ज

{3} , आ -आ ज ,
,ज
आ , 08126396457
|

{4} ज ,

{5} 1 1 -2 ज

{6} ज ज आ ज

{7} ज

{8} आ sim

{9} , 100% , ज

{10}

{11} औ ,

{12} आ औ आ
, आ ज

{13} ज औ ज |
{14} , ज
, ज |

{15} आ औ ,
आ आ
ज ,
,औ -2 ज ,
आ आ औ
औ आ ज

आ आ ज आ आ औ ज औ

, ,
औ - -
, ज ।
|


,

A/C no. – 08840100020849


IFSC - BARB0FATEAS
Branch Code – 0884
ज ज
bharatswabhimandalofficial@gmail.com 08126396457

<> ज ( , ऑ
, ज , , ) ज

http://www.bharatswabhimandal.blogspot.com
ज ; . . 60, . 1--,, , , – 110094
:- 08535004500, 08126396457, 09917648983

|| ज ज ||

ॐ ।

You might also like