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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

Shri Lalitasahasranama stotram

श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्
॥ न्यासः ॥
अस्य श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रमालामन्त्रस्य ।
वलिन्यालिवाग्दे वता ऋषयः । अनुष्टु प्छन्दः ।
श्रीलललतापरमेश्वरी िे वता । श्रीमद्वाग्भवकूटे लत बीजम् ।बीजम्
मध्यकूटे लत िक्तः । िक्तकूटे लत कीलकम् ।कीलकम्
श्रीलललतामहालत्रपुरसुन्दरी -प्रसािलसक्िद्वारा
लिक्ितफलावाप्त्यर्थे जपे लवलनयोगः ।
॥ ध्यानम् ॥
लसन्िू रारुणलवग्रहाां लत्रनयनाां मालणक्यमौललस्फुरत्
तारानायकिेखराां क्ितमुखीमापीनवक्षोरुहाम् ।
क्ितमुखीमापीनवक्षोरुहाम् पालणभ्यामललपूणणरत्निषकां
रतोत्पलां लवभ्रतीां सौम्ाां रत्नघटस्र्थरतिरणाां
ध्यायेत्परामक्िकाम् ॥
The Divine mother is to be meditated upon as shining
in a vermilion-red body, with a triple eyes, sporting a
crown of rubies studded with the crescent moon, a
face all smiles, a splendid bust, one hand holding a
jewel-cup brimming with mead, and the other twirling
a red lotus.

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

अरुणाां करुणातरलिताक्षी ां धृ तपािाङ् कुिपुष्पबाणिापाम्


।धृ तपािाङ् कुिपुष्पबाणिापाम् अलणमालिलिरावृताां मयुखः अहलमत्ये व
लविावये िवानीम् ॥
I meditate on the great Empress. She is red in color, and her
eyes are full of compassion, and holds the noose, the goad, the
bow and the flowery arrow in Her hands. She is surrounded on
all sides by powers such as aNimA for rays and She is the Self
within me.
ध्यायेत्पद्मासनस्र्थाां लवकलसतविनाां पद्मपत्रायताक्षी ां हे मािाां पीतवस्त्ाां
करकललतलसिे मपद्माां वरािीम् ।वरािीम् सवाण लङ्कारयुताां सततमियिाां
ितनम्ाां िवानी ां श्रीलवद्ाां िािमूलतिं सकलसु रनु ताां सवणसम्पत्प्रिात्रीम् ॥
The Divine Goddess is to be meditated upon as seated on the
lotus with petal eyes. She is golden hued, and has lotus flowers
in Her hand. She dispels fear of the devotees who bow before
Her. She is the embodiment of peace, knowledge (vidyA), is
praised by gods and grants every kind of wealth wished for.
सकुङ् कुमलवलेपनामललकिुक्िकस्तू ररकाां समन्दहलसतेक्षणाां
सिरिापपािाङ् कुिाम् ।सिरिापपािाङ् कुिाम्
अिे षजनमोलहनीमरुणमाल्यिूषािराां जपाकुसु मिासु राां जपलवधौ
िरे िक्िकाम् ॥
I meditate on the Mother, whose eyes are smiling, who holds
the arrow, bow, noose and the goad in Her hand. She is
glittering with red garlands and ornaments. She is painted with
kumkuma on her forehead and is red and tender like the japa
flower.

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

॥ अर्थ श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम् ॥
ॐ श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्-लसांहासने श्वरी ।
लििलि-कुण्ड -सम्भू ता िे वकायण -िे वकायणसमुद्ता ॥ १॥
उद्द्भानु -उद्द्भानु सहस्रािा ितुबाण हु -समक्िता ।
रागस्वरूप-पािाढ्या क्रोधाकाराङ् कुिोज्ज्वला ॥ २॥
मनोरूपेक्षु -मनोरूपेक्षुकोिण्डा पञ्चतन्मात्र-सायका ।
लनजारुण-प्रिापूर -मज्जद्ब्रह्माण्ड-मण्डला ॥ ३॥
िम्पकािोक-पुन्नाग -सौगक्िक-लसत्किा ।
कुरुलवन्दमलण -श्रेणी -कनत्कोटीर-मक्ण्डता ॥ ४॥
अष्टमीिन्द्र-लवभ्राज-िललकस्र्थल-िोलिता । मु
खिन्द्र -कलङ्काि-मृगनालि-लविे षका ॥ ५॥
विनिर-मािल्य-गृहतोरण -लिक्िका ।
वक्त्रलक्ष्मी-परीवाह-िलन्मीनाि-लोिना ॥ ६॥
नविम्पक-पुष्पाि -नासािण्ड-लवरालजता ।
ताराकाक्ि-लतरस्कारर-नासािरण-िासु रा ॥ ७॥
कििमञ्जरी-कॢप्त-कणणपूर -मनोहरा ।
ताटङ्क-युगली -िूत -तपनोडु प -मण्डला ॥ ८॥
पद्मराग-लिलाििण-लिलाििण पररिालव-कपोलिूः ।
नवलवद्रुम -लबिश्री-न्यक्कारर-रिनच्छिा ॥ ९॥ or ििनच्छिा
िु ि -लवद्ाङ् कुराकार -लद्वजपङ् क्त-द्वयोज्ज्वला ।
कपूणर -वीलटकामोि-समाकलषण-समाकलषण लिगिरा ॥ १०॥
लनज-सिाप-माधु यण -माधु यणलवलनिणक्सणत -कच्छपी । or लनज-सां लाप

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

मन्दक्ित-प्रिापूर -मज्जत्कामेि -मानसा ॥ ११॥


अनाकललत-सादृश्य-लिबुकश्री -लवरालजता । or िुबुकश्री
कामेि -बि-मािल्य-सू त्र -िोलित-किरा ॥ १२॥
कनकािि-केयूर -कमनीय-िुजाक्िता ।
रत्नग्रवेय -लििाक-लोल-मुता -फलाक्िता ॥ १३॥
कामेश्वर -प्रेमरत्न -मलण-प्रलतपण-स्तनी ।
नाभ्यालवाल-रोमालल-लता-फल-कुिद्वयी ॥ १४॥
लक्ष्यरोम-लताधारता-समुन्नेय -मध्यमा ।
स्तनिार-िलन्मध्य-पट्टबि-वललत्रया ॥ १५॥
अरुणारुण-कौसु म्भ -वस्त्-िास्वत्-कटीतटी िास्वत् ।
रत्न-लकलङ्कलणका-रम्-रिना-िाम-िूलषता ॥ १६॥
कामेि -ज्ञात-सौिाग्य-मािण वोरु -द्वयाक्िता ।
मालणक्य-मुकुटाकार -जानु द्वय -लवरालजता ॥ १७॥
इन्द्रगोप-पररलक्षप्त-िरतूणाि -जलिका ।
गूढगुल्फा कूमणपृष्ठ -जलयष्णु-जलयष्णुप्रपिाक्िता ॥ १८॥
नख-िीलधलत-सां छन्न -नमज्जन-तमोगुणा ।
पिद्वय-प्रिाजाल-पराकृत -सरोरुहा ॥ १९॥
लसञ्जान-मलणमञ्जीर-मक्ण्डत-श्री-पिािुजा । or लिञ्जान
मराली-मन्दगमना महालावण्य-िे वलधः ॥ २०॥
सवाण रुणाऽनवद्ािी सवाण िरण -िूलषता ।
लिव-कामेश्वराङ्कस्र्था लिवा स्वाधीन-वििा ॥ २१॥
सु मेरु -मध्य-िृिस्र्था श्रीमन्नगर-नालयका ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

लििामलण-गृहािस्र्था पञ्च-ब्रह्मासन-क्स्र्थता ॥ २२॥


महापद्माटवी-सां स्र्था कििवन-वालसनी ।
सु धासागर -मध्यस्र्था कामाक्षी कामिालयनी ॥ २३॥
िे वलषण -िे वलषण गण-सां घात -स्तू यमानात्म -विवा ।
िण्डासु र -वधोि् युत -िक्तसे ना -समक्िता ॥ २४॥
सम्पत्करी-समारूढ-लसिुर -व्रज-से लवता ।
अश्वारूढालधलष्ठताश्व-कोलट-कोलटलिरावृता ॥ २५॥
िक्रराज-रर्थारूढ-सवाण युध -पररष्कृता ।
गेयिक्र -रर्थारूढ-मक्न्त्रणी-पररसे लवता ॥ २६॥
लकररिक्र-रर्थारूढ-िण्डनार्था-पुरस्कृता ।
ज्वाला-मालललनकालक्षप्त-वलिप्राकार-मध्यगा ॥ २७॥
िण्डसन्य -वधोि् युत -िक्त-लवक्रम-हलषण ता ।
लनत्या-पराक्रमाटोप-लनरीक्षण-समुसुका ॥ २८॥
िण्डपुत्र -वधोि् युत -बाला-लवक्रम-नक्न्दता ।
मक्न्त्रण्यिा-लवरलित-लवषि-वध-तोलषता ॥ २९॥
लविु क्र -प्राणहरण-वाराही-वीयण-वीयणनक्न्दता ।
कामेश्वर -मुखालोक -कक्ित-श्रीगणेश्वरा ॥ ३०॥
महागणेि -लनलिणन्न -लवघ्नयन्त्र-प्रहलषण ता ।
िण्डासु रेन्द्र -लनमुणत -िस्त्-प्रत्यस्त्-वलषण णी ॥ ३१॥
कराङ् गुलल -नखोत्पन्न-नारायण-ििाकृलतः ।
महा-पािु पतास्त्ालि -लनिण ग्धासु र -सलनका ॥ ३२॥
कामेश्वरास्त् -लनिण ग्ध -सिण्डासु र -िू न्यका ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

ब्रह्मोपेन्द्र -महे न्द्रालि -िे व -सां स्तुत -विवा ॥ ३३॥


हर-ने त्रालि -सां िग्ध -काम-सञ्जीवनौषलधः । श्री
मद्वाग्भव-कूटक -स्वरूप-मुख -पङ्कजा ॥ ३४॥
कण्ठाधः -कलट-पयणि -मध्यकूट -स्वरूलपणी ।
िक्त-कूटकतापन्न -कट्यधोिाग-धाररणी ॥ ३५॥
मूल -मन्त्राक्त्मका मूलकूटत्रय -कलेबरा ।
कुलामृतक -रलसका कुलसां केत -पाललनी ॥ ३६॥
कुलािना कुलािस्र्था कौललनी कुलयोलगनी ।
अकुला समयािस्र्था समयािार-तत्परा ॥ ३७॥
मूलाधारक -लनलया ब्रह्मग्रक्ि-लविेलिनी ।
मलण-पूरािरुलिता लवष्णुग्रक्ि -लविेलिनी ॥ ३८॥
आज्ञा-िक्रािरालस्र्था रुद्रग्रक्ि-लविेलिनी ।
सहस्रारािुजारूढा सु धा -सारालिवलषण णी ॥ ३९॥
तलडिता-समरुलिः षट् िक्रोपरर-सां क्स्र्थता ।
महासक्तः कुण्डललनी लबसतिु-लबसतिुतनीयसी ॥ ४०॥
िवानी िावनागम्ा िवारण्य-कुठाररका ।
िद्रलप्रया िद्रमूलतणर् ित-सौिाग्यिालयनी ॥ ४१॥
िक्तलप्रया िक्तगम्ा िक्तवश्या ियापहा ।
िाम्भवी िारिाराध्या िवाण णी िमणिालयनी ॥ ४२॥
िाङ्करी श्रीकरी साध्वी िरच्चन्द्र-लनिानना ।
िातोिरी िाक्िमती लनराधारा लनरञ्जना ॥ ४३॥
लनलेपा लनमणला लनत्या लनराकारा लनराकुला ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

लनगुणणा लनष्कला िािा लनष्कामा लनरुपप्लवा ॥ ४४॥


लनत्यमुता लनलवणकारा लनष्प्रपञ्चा लनराश्रया ।
लनत्यिुिा लनत्यबुिा लनरवद्ा लनरिरा ॥ ४५॥
लनष्कारणा लनष्कलङ्का लनरुपालधर् लनरीश्वरा ।
नीरागा रागमर्थनी लनमणिा मिनालिनी ॥ ४६॥
लनलििा लनरहां कारा लनमोहा मोहनालिनी ।
लनमणमा ममताहन्त्री लनष्पापा पापनालिनी ॥ ४७॥
लनष्क्रोधा क्रोधिमनी लनलोिा लोिनालिनी ।
लनः सांिया सां ियघ्नी लनिणवा िवनालिनी ॥ ४८॥ or लनस्सांिया
लनलवणकिा लनराबाधा लनिेिा िेिनालिनी ।
लननाणिा मृत्युमर्थनी लनक्ष्क्रया लनष्पररग्रहा ॥ ४९॥
लनस्तु ला नीललिकुरा लनरपाया लनरत्यया ।
िु लणिा िु गणमा िु गाण िु ः खहन्त्री सु खप्रिा ॥ ५०॥
िु ष्टिू रा िु रािार-िमनी िोषवलजणता ।
सवणज्ञा सान्द्रकरुणा समानालधक-वलजणता ॥ ५१॥
सवणिक्तमयी सवण-सवणमिला सद्गलतप्रिा ।
सवेश्वरी सवणमयी सवणमन्त्र -स्वरूलपणी ॥ ५२॥
सवण-सवणयन्त्राक्त्मका सवण-सवणतन्त्ररूपा मनोन्मनी ।
माहे श्वरी महािे वी महालक्ष्मीर् मृडलप्रया ॥ ५३॥
महारूपा महापूज्या महापातक-नालिनी ।
महामाया महासत्त्वा महािक्तर् महारलतः ॥ ५४॥
महािोगा महश्वयाण महावीयाण महाबला ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

महाबुक्िर् महालसक्िर् महायोगेश्वरे श्वरी ॥ ५५॥


महातन्त्रा महामन्त्रा महायन्त्रा महासना ।
महायाग-क्रमाराध्या महािरव -पूलजता ॥ ५६॥
महे श्वर -महाकि-महाताण्डव-सालक्षणी ।
महाकामेि -मलहषी महालत्रपुर -सुन्दरी ॥ ५७॥
ितुः षष्ट्युपिाराढ्या ितुः षलष्टकलामयी ।
महाितुः -षलष्टकोलट-योलगनी-गणसे लवता ॥ ५८॥
मनु लवद्ा िन्द्रलवद्ा िन्द्रमण्डल-मध्यगा ।
िारुरूपा िारुहासा िारुिन्द्र-कलाधरा ॥ ५९॥
िरािर-जगन्नार्था िक्रराज-लनकेतना ।
पावणती पद्मनयना पद्मराग-समप्रिा ॥ ६०॥
पञ्च-प्रेतासनासीना पञ्चब्रह्म-स्वरूलपणी ।
लिन्मयी परमानन्दा लवज्ञान-घनरूलपणी ॥ ६१॥
ध्यान-ध्यातृ-ध्ये यरूपा धमाण धमण -धमाण धमणलववलजणता ।
लवश्वरूपा जागररणी स्वपिी तजसाक्त्मका ॥ ६२॥
सु प्ता प्राज्ञाक्त्मका तुयाण सवाण वस्र्था -लववलजणता ।
सृ लष्टकत्री ब्रह्मरूपा गोप्री गोलवन्दरूलपणी ॥ ६३॥
सां हाररणी रुद्ररूपा लतरोधान-करीश्वरी ।
सिालिवाऽनु ग्रहिा पञ्चकृत्य -परायणा ॥ ६४॥
िानु मण्डल -मध्यस्र्था िरवी िगमाललनी ।
पद्मासना िगवती पद्मनाि-सहोिरी ॥ ६५॥
उन्मे ष -लनलमषोत्पन्न-लवपन्न-िुवनावली ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

सहस्र-िीषण विना सहस्राक्षी सहस्रपात् ॥ ६६॥


आब्रह्म-कीट-जननी वणाण श्रम -लवधालयनी ।
लनजाज्ञारूप-लनगमा पुण्यापुण्य -फलप्रिा ॥ ६७॥
श्रुलत -सीमि-लसन्िू री-कृत -पािाब्ज-धू ललका ।
सकलागम-सन्दोह-िु क्त -सम्पुट -मौक्तका ॥ ६८॥
पुरुषार्थणप्रिा पूणाण िोलगनी िुवने श्वरी ।
अक्िकाऽनालि-लनधना हररब्रह्मेन्द्र -से लवता ॥ ६९॥
नारायणी नािरूपा नामरूप-लववलजणता ।
ह्ीक
ां ारी ह्ीमती हृद्ा हे योपािे य -वलजणता ॥ ७०॥
राजराजालिणता राज्ञी रम्ा राजीवलोिना ।
रञ्जनी रमणी रस्या रणक्त्कलङ्कलण-मेखला ॥ ७१॥
रमा राकेन्िु विना रलतरूपा रलतलप्रया ।
रक्षाकरी राक्षसघ्नी रामा रमणलम्पटा ॥ ७२॥
काम्ा कामकलारूपा किि-कुसु म -लप्रया ।
कल्याणी जगतीकन्दा करुणा-रस-सागरा ॥ ७३॥
कलावती कलालापा कािा काििरीलप्रया ।
वरिा वामनयना वारुणी-मि-लवह्वला ॥ ७४॥
लवश्वालधका वेिवेद्ा लवन्ध्यािल-लनवालसनी ।
लवधात्री वेिजननी लवष्णुमाया लवलालसनी ॥ ७५॥
क्षेत्रस्वरूपा क्षेत्रेिी क्षेत्र -क्षेत्रज्ञ -पाललनी ।
क्षयवृक्ि -लवलनमुणता क्षेत्रपाल -समलिणता ॥ ७६॥
लवजया लवमला वन्द्ा वन्दारु-जन-वसला ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

वाग्वालिनी वामकेिी वलिमण्डल-वालसनी ॥ ७७॥


िक्तमत्-किललतका िक्तमत् पिु पाि -लवमोलिनी ।
सां हृतािेष -पाषण्डा सिािार-प्रवलतणका ॥ ७८॥ or पाखण्डा
तापत्रयालि-सिप्त-समाह्लािन-िक्न्द्रका ।
तरुणी तापसाराध्या तनु मध्या तमोऽपहा ॥ ७९॥
लिलतस्तत्पि-लक्ष्यार्थाण लििे करस -रूलपणी ।
स्वात्मानन्द-लवीिूत -ब्रह्माद्ानन्द-सिलतः ॥ ८०॥
परा प्रत्यक्ितीरूपा पश्यिी परिे वता ।
मध्यमा वखरीरूपा ित-मानस-हां लसका ॥ ८१॥
कामेश्वर -प्राणनाडी कृतज्ञा कामपूलजता ।
िृिार-रस-सम्पूणाण जया जालिर-क्स्र्थता ॥ ८२॥
ओड्याणपीठ-लनलया लबन्िु -मण्डलवालसनी ।
रहोयाग-क्रमाराध्या रहस्तपणण -तलपणता ॥ ८३॥
सद्ः प्रसालिनी लवश्व-सालक्षणी सालक्षवलजणता ।
षडििे वता -युता षाड् गुण्य -पररपूररता ॥ ८४॥
लनत्यक्नन्ना लनरुपमा लनवाण ण -सु ख -िालयनी ।
लनत्या-षोडलिका-रूपा श्रीकण्ठाधण-श्रीकण्ठाधण िरीररणी ॥ ८५॥
प्रिावती प्रिारूपा प्रलसिा परमेश्वरी ।
मूलप्रकृलतर् अव्यता व्यताव्यत-स्वरूलपणी ॥ ८६॥
व्यालपनी लवलवधाकारा लवद्ालवद्ा-स्वरूलपणी ।
महाकामेि -नयन-कुमुिाह्लाि -कौमुिी ॥ ८७॥
ित-हािण -हािण तमोिेि -िानु मद्भानु -िानु मद्भानु सिलतः ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

लिविू ती लिवाराध्या लिवमूलतणः लिवङ्करी ॥ ८८॥


लिवलप्रया लिवपरा लिष्टे ष्टा लिष्टपूलजता ।
अप्रमेया स्वप्रकािा मनोवािामगोिरा ॥ ८९॥
लिच्छक्ति् िेतनारूपालिच्छक्ति् िेतनारूपा जडिक्तर् जडाक्त्मका ।
गायत्री व्याहृलतः सन्ध्या लद्वजबृन्द -लनषे लवता ॥ ९०॥
तत्त्वासना तत्त्वमयी पञ्च-कोिािर-क्स्र्थता ।
लनः सीम-मलहमा लनत्य-यौवना मििाललनी ॥ ९१॥ or लनस्सीम
मिघूलणणत -रताक्षी मिपाटल-गण्डिूः ।
िन्दन-द्रव-लिग्धािी िाम्पेय -कुसु म -लप्रया ॥ ९२॥
कुिला कोमलाकारा कुरुकुिा कुलेश्वरी ।
कुलकुण्डालया कौल-मागण-मागणतत्पर-से लवता ॥ ९३॥
कुमार -गणनार्थािा तुलष्टः पुलष्टर् मलतर् धृ लतः ।
िाक्िः स्वक्स्तमती काक्िर् नक्न्दनी लवघ्ननालिनी ॥ ९४॥
तेजोवती लत्रनयना लोलाक्षी-कामरूलपणी ।
माललनी हां लसनी माता मलयािल-वालसनी ॥ ९५॥
सु मुखी नललनी सु भ्रूः िोिना सु रनालयका ।
कालकण्ठी काक्िमती क्षोलिणी सू क्ष्मरूलपणी ॥ ९६॥
वज्रेश्वरी वामिे वी वयोऽवस्र्था-लववलजणता ।
लसिे श्वरी लसिलवद्ा लसिमाता यिक्स्वनी ॥ ९७॥
लविु क्ििक्र -लनलयाऽऽरतवणाण लत्रलोिना ।
खट्वािालि-प्रहरणा विनक -समक्िता ॥ ९८॥
पायसान्नलप्रया त्वक्स्र्था पिु लोक -ियङ्करी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

अमृतालि-महािक्त-सां वृता डालकनीश्वरी ॥ ९९॥


अनाहताब्ज-लनलया श्यामािा विनद्वया ।
िां ष्टरोज्ज्वलाऽक्ष -मालालि-धरा रुलधरसां क्स्र्थता ॥ १००॥
कालरात्र्यालि-िक्त्यौघ-वृता लिग्धौिनलप्रया ।
महावीरे न्द्र -वरिा रालकण्यिा-स्वरूलपणी ॥ १०१॥
मलणपूराब्ज -लनलया विनत्रय-सां युता ।
वज्रालिकायुधोपेता डामयाण लिलिरावृता ॥ १०२॥
रतवणाण माां सलनष्ठा गुडान्न -प्रीत-मानसा ।
समस्तित-सु खिा लालकन्यिा-स्वरूलपणी ॥ १०३॥
स्वालधष्ठानािुज -गता ितुवणक्त्र -मनोहरा ।
िू लाद्ायुध -सम्पन्ना पीतवणाण ऽलतगलवणता ॥ १०४॥
मेिोलनष्ठा मधु प्रीता बक्िन्यालि-समक्िता ।
िध्यन्नासत-हृिया कालकनी-रूप-धाररणी ॥ १०५॥
मूलाधारािुजारूढा पञ्च-वक्त्राऽक्स्र्थ-सां क्स्र्थता ।
अङ् कुिालि -प्रहरणा वरिालि-लनषे लवता ॥ १०६॥
मुद्गौिनासत -लित्ता सालकन्यिा-स्वरूलपणी ।
आज्ञा-िक्राब्ज-लनलया िु नवणाण षडानना ॥ १०७॥
मज्जासां स्र्था हां सवती -मुख्य -िक्त-समक्िता ।
हररद्रान्नक -रलसका हालकनी-रूप-धाररणी ॥ १०८॥
सहस्रिल-पद्मस्र्था सवण-सवणवणोप-िोलिता ।
सवाण युधधरा िु न -सां क्स्र्थता सवणतोमुखी ॥ १०९॥
सवौिन-प्रीतलित्ता यालकन्यिा-स्वरूलपणी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

स्वाहा स्वधाऽमलतर् मेधा श्रुलतः िृ लतर् अनु त्तमा ॥ ११०॥


पुण्यकीलतणः पुण्यलभ्या पुण्यश्रवण -कीतणना ।
पुलोमजालिणता बि-मोिनी बिुरालका ॥ १११॥ or मोिनी
बबणरालका लवमिण रूलपणी लवद्ा लवयिालि-जगत्प्रसू ः ।
सवणव्यालध -प्रिमनी सवणमृत्यु -सवणमृत्युलनवाररणी ॥ ११२॥
अग्रगण्याऽलिन्त्यरूपा कललकल्मष-नालिनी ।
कात्यायनी कालहन्त्री कमलाक्ष-लनषे लवता ॥ ११३॥
तािूल -पूररत -मुखी िालडमी-कुसु म -प्रिा ।
मृगाक्षी मोलहनी मुख्या मृडानी लमत्ररूलपणी ॥ ११४॥
लनत्यतृप्ता ितलनलधर् लनयन्त्री लनक्खलेश्वरी ।
मत्र्यालि -वासनालभ्या महाप्रलय-सालक्षणी ॥ ११५॥
परा िक्तः परा लनष्ठा प्रज्ञानघन-रूलपणी ।
माध्वीपानालसा मत्ता मातृका-वणण -वणणरूलपणी ॥ ११६॥
महाकलास -लनलया मृणाल-मृिु-िोलणता ।
महनीया ियामूलतणर् महासाम्ाज्य-िाललनी ॥ ११७॥
आत्मलवद्ा महालवद्ा श्रीलवद्ा कामसे लवता ।
श्री-षोडिाक्षरी-लवद्ा लत्रकूटा कामकोलटका ॥ ११८॥
कटाक्ष-लकङ्करी-िूत -कमला-कोलट-से लवता ।
लिरः क्स्र्थता िन्द्रलनिा िालस्र्थेन्द्र -धनु ः प्रिा ॥ ११९॥
हृियस्र्था रलवप्रख्या लत्रकोणािर-िीलपका ।
िाक्षायणी ित्यहन्त्री िक्षयज्ञ-लवनालिनी ॥ १२०॥
िरान्दोललत-िीघाण क्षी िर-हासोज्ज्वलन् -मुखीहासोज्ज्वलन् मुखी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

गुरुमूलतणर् गुणलनलधर् गोमाता गुहजन्मिूः ॥ १२१॥


िे वेिी िण्डनीलतस्र्था िहराकाि-रूलपणी ।
प्रलतपन्मु ख्य -राकाि-लतलर्थ-मण्डल-पूलजता ॥ १२२॥
कलाक्त्मका कलानार्था काव्यालाप-लवनोलिनी । or लवमोलिनी
सिामर-रमा-वाणी-सव्य-िलक्षण-से लवता ॥ १२३॥
आलििक्तर् अमेयाऽऽत्मा परमा पावनाकृलतः ।
अने ककोलट -ब्रह्माण्ड-जननी लिव्यलवग्रहा ॥ १२४॥
नीक
ां ारी केवला गुह्या कवल्य -पििालयनी ।
लत्रपुरा लत्रजगद्वन्द्ा लत्रमूलतणस् लत्रििेश्वरी लत्रमूलतणस् लत्रििे श्वरी ॥ १२५॥
त्र्यक्षरी लिव्य-गिाढ्या लसन्िू र-लतलकालञ्चता ।
उमा िलेन्द्रतनया गौरी गिवण-गिवणसेलवता ॥ १२६॥
लवश्वगिाण स्वणणगिाण ऽवरिा वागधीश्वरी ।
ध्यानगम्ाऽपररच्छे द्ा ज्ञानिा ज्ञानलवग्रहा ॥ १२७॥
सवणवेिाि -सां वेद्ा सत्यानन्द-स्वरूलपणी ।
लोपामुद्रालिणता लीला-कॢप्त-ब्रह्माण्ड-मण्डला ॥ १२८॥
अदृश्या दृश्यरलहता लवज्ञात्री वेद्वलजणता ।
योलगनी योगिा योग्या योगानन्दा युगिरा ॥ १२९॥
इच्छािक्त-ज्ञानिक्त-लक्रयािक्त-स्वरूलपणी ।
सवाण धारा सु प्रलतष्ठा सिसद्रूप -धाररणी ॥ १३०॥
अष्टमूलतणर् अजाजत्री लोकयात्रा-लवधालयनी । or अजाजेत्री
एकालकनी िूमरूपा लनद्वै ता द्वतवलजणता ॥ १३१॥
अन्निा वसु िा वृिा ब्रह्मात्मक्य -स्वरूलपणी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी ब्रह्मानन्दा बलललप्रया ॥ १३२॥


िाषारूपा बृहसेना िावािाव-लववलजणता ।
सु खाराध्या िु िकरी िोिना सु लिा गलतः ॥ १३३॥
राज-राजेश्वरी राज्य-िालयनी राज्य-वििा ।
राजत्कृपा राजपीठ-लनवेलित -लनजालश्रता ॥ १३४॥
राज्यलक्ष्मीः कोिनार्था ितुरि -बलेश्वरी ।
साम्ाज्य-िालयनी सत्यसिा सागरमेखला ॥ १३५॥
िीलक्षता ित्यिमनी सवणलोक -विङ्करी ।
सवाण र्थणिात्री सालवत्री सक्च्चिानन्द-रूलपणी ॥ १३६॥
िे ि -कालापररक्च्छन्ना सवणगा सवणमोलहनी ।
सरस्वती िास्त्मयी गुहािा गुह्यरूलपणी ॥ १३७॥
सवोपालध-लवलनमुणता सिालिव-पलतव्रता ।
सम्प्रिायेश्वरी साध्वी गुरुमण्डल -रूलपणी ॥ १३८॥
कुलोत्तीणाण िगाराध्या माया मधु मती मही ।
गणािा गुह्यकाराध्या कोमलािी गुरुलप्रया ॥ १३९॥
स्वतन्त्रा सवणतन्त्रे िी िलक्षणामूलतण -िलक्षणामूलतणरूलपणी ।
सनकालि-समाराध्या लिवज्ञान-प्रिालयनी ॥ १४०॥
लित्कलाऽऽनन्द-कललका प्रेमरूपा लप्रयङ्करी ।
नामपारायण-प्रीता नक्न्दलवद्ा नटे श्वरी ॥ १४१॥
लमथ्या-जगिलधष्ठाना मुक्तिा मुक्तरूलपणी ।
लास्यलप्रया लयकरी लज्जा रम्भालिवक्न्दता ॥ १४२॥
िविाव-सु धावृलष्टः पापारण्य-िवानला ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

िौिाण ग्य -तूलवातूला जराध्वाि-रलवप्रिा ॥ १४३॥


िाग्याक्ि-िक्न्द्रका ित-लित्तकेलक -घनाघना ।
रोगपवणत -िम्भोललर् मृत्युिारु -कुठाररका ॥ १४४॥
महे श्वरी महाकाली महाग्रासा महािना ।
अपणाण िक्ण्डका िण्डमुण्डासु र -लनषू लिनी ॥ १४५॥
क्षराक्षराक्त्मका सवण-सवणलोकेिी लवश्वधाररणी ।
लत्रवगणिात्री सु िगा त्र्यिका लत्रगुणाक्त्मका ॥ १४६॥
स्वगाण पवगणिा िु िा जपापुष्प -लनिाकृलतः ।
ओजोवती ि् युलतधरा यज्ञरूपा लप्रयव्रता ॥ १४७॥
िु राराध्या िु राधषाण पाटली-कुसु म -लप्रया ।
महती मेरुलनलया मन्दार-कुसु म -लप्रया ॥ १४८॥
वीराराध्या लवराडूपा लवरजा लवश्वतोमुखी ।
प्रत्यग्रूपा पराकािा प्राणिा प्राणरूलपणी ॥ १४९॥
माताण ण्ड -िरवाराध्या मक्न्त्रणीन्यस्त-राज्यधू ः । or मातणण्ड
लत्रपुरेिी जयसेना लनस्त्गुण्या परापरा ॥ १५०॥
सत्य-ज्ञानानन्द-रूपा सामरस्य-परायणा ।
कपलिण नी कलामाला कामधु क् कामरूलपणी ॥ १५१॥
कलालनलधः काव्यकला रसज्ञा रसिेवलधः ।
पुष्टा पुरातना पूज्या पुष्करा पुष्करे क्षणा ॥ १५२॥
परां ज्योलतः परां धाम परमाणुः परात्परा ।
पािहस्ता पािहन्त्री परमन्त्र-लविेलिनी ॥ १५३॥
मूताण ऽमूताण ऽलनत्यतृप्ता मुलनमानस -हां लसका ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

सत्यव्रता सत्यरूपा सवाण ियाण लमनी सती ॥ १५४॥


ब्रह्माणी ब्रह्मजननी बहुरूपा बुधालिणता ।
प्रसलवत्री प्रिण्डाऽऽज्ञा प्रलतष्ठा प्रकटाकृलतः ॥ १५५॥
प्राणेश्वरी प्राणिात्री पञ्चाित्पीठ-रूलपणी ।
लविृङ्खला लवलवतस्र्था वीरमाता लवयत्प्रसू ः ॥ १५६॥
मुकुन्दा मुक्तलनलया मूललवग्रह -रूलपणी ।
िावज्ञा िवरोगघ्नी िविक्र-प्रवलतणनी ॥ १५७॥
छन्दः सारा िास्त्सारा मन्त्रसारा तलोिरी ।
उिारकीलतणर् उद्दामविवा वणणरूलपणी ॥ १५८॥
जन्ममृत्यु-जन्ममृत्युजरातप्त-जनलवश्राक्ि-िालयनी ।
सवोपलनष-िु ि्-िु ि्घुष्टा िान्त्यतीत-कलाक्त्मका ॥ १५९॥
गम्भीरा गगनािस्र्था गलवणता गानलोलुपा ।
किना-रलहता काष्ठाऽकािा कािाधण -कािाधण लवग्रहा ॥ १६०॥
कायणकारण -लनमुणता कामकेलल -तरलिता ।
कनत्कनकता-टङ्का लीला-लवग्रह-धाररणी ॥ १६१॥
अजा क्षयलवलनमुणता मुग्धा लक्षप्र-प्रसालिनी ।
अिमुणख -समाराध्या बलहमुणख -सु िुलणिा ॥ १६२॥
त्रयी लत्रवगणलनलया लत्रस्र्था लत्रपुरमाललनी ।
लनरामया लनरालिा स्वात्मारामा सुधासृ लतः ॥ १६३॥ or सु धास्रुलतः
सां सारपङ्क -लनमणि -समुिरण -पक्ण्डता ।
यज्ञलप्रया यज्ञकत्री यजमान-स्वरूलपणी ॥ १६४॥
धमाण धारा धनाध्यक्षा धनधान्य-लववलधण नी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

लवप्रलप्रया लवप्ररूपा लवश्वभ्रमण-काररणी ॥ १६५॥


लवश्वग्रासा लवद्रुमािा वष्णवी लवष्णुरूलपणी ।
अयोलनर् योलनलनलया कूटस्र्था कुलरूलपणी ॥ १६६॥
वीरगोष्ठीलप्रया वीरा नष्कम्ाण नािरूलपणी ।
लवज्ञानकलना कल्या लविग्धा बन्दवासना ॥ १६७॥
तत्त्वालधका तत्त्वमयी तत्त्वमर्थण-तत्त्वमर्थणस्वरूलपणी ।
सामगानलप्रया सौम्ा सिालिव-कुटु क्िनी ॥ १६८॥ or सोम्ा
सव्यापसव्य-मागणस्र्था सवाण पलद्वलनवाररणी ।
स्वस्र्था स्विावमधु रा धीरा धीरसमलिणता ॥ १६९॥
ितन्यार्घ्ण -ितन्यार्घ्णसमाराध्या ितन्य -कुसु मलप्रया ।
सिोलिता सिातुष्टा तरुणालित्य-पाटला ॥ १७०॥
िलक्षणा-िलक्षणाराध्या िरिे र -मुखािुजा ।
कौललनी-केवलाऽनर्घ्ण -केवलाऽनर्घ्णकवल्य -पििालयनी ॥ १७१॥
स्तोत्रलप्रया स्तु लतमती श्रुलत -सां स्तुत -विवा ।
मनक्स्वनी मानवती महे िी मिलाकृलतः ॥ १७२॥
लवश्वमाता जगिात्री लविालाक्षी लवरालगणी ।
प्रगल्भा परमोिारा परामोिा मनोमयी ॥ १७३॥
व्योमकेिी लवमानस्र्था वलज्रणी वामकेश्वरी ।
पञ्चयज्ञ-लप्रया पञ्च-प्रेत -मञ्चालधिालयनी ॥ १७४॥
पञ्चमी पञ्चिूतेिी पञ्च-सां ख्योपिाररणी ।
िाश्वती िाश्वतश्वयाण िमणिा िम्भु मोलहनी ॥ १७५॥
धराधरसु ता धन्या धलमणणी धमणवलधण नी ।

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श्रीलललतासहस्रनामस्तोत्रम्

लोकातीता गुणातीता सवाण तीता िमाक्त्मका ॥ १७६॥


बिूक -कुसु मप्रख्या बाला लीलालवनोलिनी ।
सु मिली सु खकरी सु वेषाढ्या सु वालसनी ॥ १७७॥
सु वालसन्यिणन -प्रीताऽऽिोिना िु िमानसा ।
लबन्िु -तपणण -सिुष्टा पूवणजा लत्रपुराक्िका ॥ १७८॥
ििमुद्रा -समाराध्या लत्रपुराश्री -विङ्करी ।
ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्ा ज्ञानज्ञेय -स्वरूलपणी ॥ १७९॥
योलनमुद्रा लत्रखण्डे िी लत्रगुणािा लत्रकोणगा ।
अनघाऽि् िुत -िाररत्रा वाक्ितार्थण-वाक्ितार्थणप्रिालयनी ॥ १८०॥
अभ्यासालतिय-ज्ञाता षडध्वातीत-रूलपणी ।
अव्याज-करुणा-मूलतणर् अज्ञान-ध्वाि-िीलपका ॥ १८१॥
आबाल-गोप-लवलिता सवाण नुिङ् र्घ् -िासना ।
श्रीिक्रराज-लनलया श्रीमत्-लत्रपुरसु न्दरी श्रीमत् लत्रपुरसु न्दरी ॥ १८२॥
श्रीलिवा लिव-िक्त्यक्य -रूलपणी लललताक्िका ।
एवां श्रीलललता िे व्या नाम्ाां साहस्रकां जगुः ॥

॥ इलत श्रीब्रह्माण्डपुराणे उत्तरखण्डे श्रीहयग्रीवागस्त्यसां वािे श्रीलललता


सहस्रनाम स्तोत्र कर्थनां सम्पूणणम् ॥

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