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समकालीन वश्व राजनी त

कक्षा - 12 अध्याय 2 ,दो ध्रुवीयता का अंत


द्वारा
श्री स्प्रिेम कुमार (व्याख्याता - राजनी त वज्ञान )

राजकीय स्प्रि तभा वकास वद्यालय सेक्टर-10 द्वारका नई दल्ली-75

(M)-6013637580, Email.prem669226@gmail.com
दो ध्रुवीयता का अंत
दो ध्रुवीयता का अंत:- शीत युद्ध के दौरान वश्व
दो गुटों में बट गया, िजसे दो ध्रुवीयता
(BIPOLAR WORLD) कहा गयाI एक गुट
का नेता अमे रका और दूसरे गुट का नेता
सो वयत संघ था I दसंबर 1991 में सो वयत
संघ के वघटन के साथ ही दो ध्रुवीयता का अंत
हो गया I
सो वयत स्प्रिणाली
सो वयत स्प्रिणाली क्या थी ? - योजनाबद्ध
अथर्चव्यवस्था वह राज्य द्वारा नयं त्रत, साम्यवादी
दल के अलावा अन्य राजनी तक दल के लए जगह
नहीं, संचार स्प्रिणाली उन्नत परं तु सरकार का
एका धकार, बेरोजगारी नहीं, नौकरशाही का सख्त
शकंजा, नाग रकों को अ भव्यिक्त की आजादी नहीं,
सभी नाग रकों को न्यूनतम जीवन स्तर की स्प्रिािप्त I
दूसरी दु नया
दूसरी दु नया( समाजवादी खेमे के दे श) - दूसरे
वश्व युद्ध के बाद पूवर्वी यूरोप के दे श सो वयत संघ
के नयंत्रण में आ गएI सो वयत सेना ने इन्हें
फासीवादी ताकतों के चंगुल से मुक्त कराया था I इन
सभी दे शों की राजनी तक और सामािजक व्यवस्था
को सो वयत संघ की समाजवादी स्प्रिणाली की तजर्च पर
ढाला गया I इन्हीं दे शों को समाजवादी खेमे के दे श
या “दूसरी दु नया” कहा जाता है I
ब लर्चन की दीवार
ब लर्चन की दीवार:- ब लर्चन की दीवार पूंजीवादी दु नया
और साम्यवादी दु नया के बीच वभाजन का स्प्रितीक थीI
1961 मैं बनी यह दीवार पिश्चमी ब लर्चन को पूवर्वी
ब लर्चन से अलग करती थी I 150 कलोमीटर से भी
ज्यादा लंबी यह दीवार 28 वषर्षों तक खड़ी रही और
आ खरकार इसे 9 नवंबर,1989 को आम जनता द्वारा
तोड़ दया गया I इसके साथ ही जमर्चनी का एकीकरण हो
गया और साम्यवादी खेमे की समािप्त की शुरुआत हो
मखाईल गोबार्चचोव
मखाईल गोबार्चचोव:-सो वयत रूस के आखरी जनरल सेक्रेटरी
मखाईल गोबार्चचोव का जन्म 2 माचर्च 1931 को हु आ था I 1985
में मखाईल गोबार्चचोव कम्यु नस्ट पाटर्टी के महास चव बने I उस
समय सो वयत संघ ज टल आ थर्चक और सामािजक
प रिस्थ तयों से जूझ रहा था I मखाईल गोबार्चचोव ने
ग्लासनोस्त और पेरेस्ट्रोइका की नी तयों की शुरुआत की I
उन्होंने वश्व भर में एक उदारवादी नेता की ख्या त अिजर्चत की
I उन्होंने सो वयत संघ के अंदर आ थर्चक, राजनी तक सुधारों
तथा लोकतंत्र करण की नी त चलाई I
सो वयत संघ के भीतर संकट
मखाईल गोबार्चचोव की उदारवादी नी तयों के प रणाम स्वरूप, पूवर्वी
यूरोप की साम्यवादी सरकारे एक के बाद एक गरती गई I
गोबार्चचोव की सरकार ने अतीत की सरकारों की भां त इसमें कोई
हस्तक्षेप नहीं कया I सो वयत संघ के बाहर हो रहे इन प रवतर्चनों के
साथ-साथ अंदर भी संकट गहराता जा रहा थाI सो वयत संघ के
वघटन की ग त तेज हु ई,1991 मैं तख्तापलट हु आ I कम्यु नस्ट
पाटर्टी से जुड़े चरमपं थयों ने इसे बढ़ावा दया I बो रस येल्ट् सन के
नेतत्ृ व में इसके तीन बड़े गणराज्यो रूस, यूक्रेन, वह बेलारूस ने
सो वयत संघ की समािप्त की घोषणा की I वह 15 नए गणराज्य में
वभािजत हो गया और संयुक्त राज्यों का राष्ट्रकुल(CIS) बना I
सो वयत संघ के वघटन के कारण
1 राजनी तक लोकतंत्र को नकारना - सो वयत संघ की राजनी तक आ थर्चक संस्थाएं
अंधों में रूप से कमजोर हो गई थीI
2 आ थर्चक वफलताएं - यहां के लोगों का जीवन स्तर पिश्चमी दे शों के मुकाबले बहु त
नीचे थाI
3 सैन्य करण - सैन्य करण के कारण बु नयादी जरूरतों की चीजों के क्षेत्र में भारी
कमी पैदा हो गई थी I
4 पिश्चमी राष्ट्रों से सो वयत संघ की तुलना - राजनी तक, आ थर्चक, सामािजक, और
सांस्कृ तक क्षेत्रों में I
5 मखाईल गोबार्चचोव की नी तयां - ग्लासनोस्त और पेरेस्ट्रोइका I
6 पूवर्वी यूरोप में कम्यु नस्ट पाटर्टी व सरकारों का पतन - पोलैंड, हं गरी और रोमा नया I
7 पिश्चमी दे शों का समथर्चन - पूवर्वी यूरोप में लोकतां त्रक सुधारों की मांग का समथर्चन
अमे रका और पिश्चमी राष्ट्रों ने कयाI
8 रूसी गणराज्यों की राष्ट्रीय आकांक्षाएं - बािल्टक गणराज्य( एस्तो नया, लात वया,
व लथुआ नया), जॉिजर्चया, अजमे रया आ दI
सो वयत संघ के वघटन का कालचक्र(TIME-LINE)
माचर्च1985- मखाईल गोबार्चचोव कम्यु नस्ट पाटर्टी के महास चव चुने गए - ग्लासनोस्त और
स्प्रिेसत्रोइका I
जनवरी1987- स्प्रिेसत्रोइका के अंतगर्चत आ थर्चक और स्प्रिशास नक सुधारों पर बल I
सतंबर1988- मखाईल गोबार्चचोव दे श के राष्ट्रप त बनेI बािल्टकराज्य तथा जॉिजर्चया और
आमर्वी नया में आजादी की लड़ाई शुरूI
अक्टू बर1989- गोबार्चचोव ने पूवर्वी यूरोप के दे शों से सेनाएं हटा लीI
नवंबर1989- ब लर्चन की दीवार गरा दी गईI
फरवरी1990- सो वयत संघ में 72 वषर्षों से चला आ रहा कम्यु नस्ट पाटर्टी का एका धकार समाप्त
माचर्च1990- लथुआ नया ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी( स्प्रिथम दे श)I
जून1990- रूसी संघीय गणराज्य ने सो वयत संघ से अलग हो जाने की घोषणा कर दीI
जून1991- बो रस येल्ट् सन रूस के राष्ट्रप त बनेI
अगस्त1991- कम्यु नस्ट कट्टरपं थयों का मखाईल गोबार्चचोव के खलाफ वद्रोहI
सतंबर1991- बािल्टक गणराज्य(लात वया, एस्तो नया व लथुआ नया)अलग होकर UNO के
सदस्य बनेI
दसंबर1991- तीन गणराज्यो( रूस, यूक्रेन व बेलारूस) ने 1922 की सं ध को तोड़ा I
दसंबर1991- 25 दसंबर को मखाईल गोबार्चचोव का राष्ट्रप त पद से त्यागपत्र, सो वयत संघ का
सो वयत संघ के वघटन के प रणाम
1 शीत युद्ध से उत्पन्न संघषर्च की समािप्त( दूसरी दु नया
का अंत)- 1988अफगा नस्तान से रूस की वापसी,1989
ब लर्चन की दीवार का गरना,1991 सो वयत संघ का पतनI
2 दो ध्रुवीयता का अंत( अमे रका का वचर्चस्व)-पूंजीवादी अथर्च
व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्प्रिभावशाली,IMF,W-Bank.
3 नए दे शों का उदय- नए दे शUNO के सदस्य बने, कुल
सदस्य नाटो और यूरोपीय संघ के साथ जुड़ना चाहते थेI
शॉक थेरेपी
इसका शाि दक अथर्च आघात पहुं चा कर उपचार करना
थाI रूस, मध्य ए शया के गणराज्य व पूवर्वी यूरोप के
दे शों की साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर बदलने की
स्प्रि क्रया थीI यह खास मॉडल वश्व बैंक वह अंतरराष्ट्रीय
मुद्रा कोष द्वारा दया गया था I इसके द्वारा रूस की
कायापलट की जानी थी, जो भारी उथल-पुथल का
कारण बनी Iइसी लए इसे “शॉक थेरेपी” कहा जाता है I
यह मॉडल सफल नहीं हु आ I यह जनता को उपभोग के
आनंद लोक तक नहीं ले जा सका I
शॉक थेरेपी के प रणाम
1 आ थर्चक प रणाम- आ थर्चक असमानता बढ़ी,मुद्रा “रूबल” में
गरावट, सामू हक कृ ष फामर्च, सरकारी कल कारखानों को
नजी क्षेत्र में ले जाना I वत्तीय संस्थान तथा ईकॉम जैसे बैंक
दवा लया, इसे इ तहास की सबसे बड़ी गैराज सेल कहां गयाI
2 सामािजक प रणाम- काम का अ धकार, सामािजक सुरक्षा
तथा समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था समाप्त I
3 राजनी तक और संवैधा नक संकट- राष्ट्रप त नेल्सन की
लोक स्प्रियता समाप्त, उनके द्वारा 1993 में संसद भंग करने की
धमकी, 1994 में चेचन्या में हंसक अलगाववादी
आंदोलनI1995रूसी संसद के लए चुनाव हु एI
मखाईल गोबार्चचोव की नी तयां
मखाईल गोबार्चचोव ने 1985 में सो वयत संघ की शासन
व्यवस्था और अथर्चव्यवस्था में सुधार के लए नम्न ल खत
तीन नी तयां अपनाई -
1 ग्लासनोस्त( खुलापन)= नाग रकों को अ धकार दया गया
क वे अपने सावर्चज नक वषयों के बारे में खुलकर वचार वमशर्च
करें I
2 प रस्त्रोइका(पुनगर्चठन)= इसके द्वारा राजनी तक, आ थर्चक
और स्प्रिशास नक सुधारों पर बल दया गया I
3 उशकोरे नी( त्वरण)= अथर्चव्यवस्था की वृद् ध को
गुणात्मक दृिष्ट से नई अवस्था की ओर ले जाना I
रूस,पूवर्च साम्यवादी दे श और भारत के संबंध
भारत में साम्यवादी रह चुके सभी दे शों (बुल्गा रया; हं गरी, रोमा नया)के साथ
अच्छे संबंध कायम कए हैं, जैसे- रूस संकट के समय में हमारा मत्र सा बत
हु आ है I
1 आ थर्चक संबंध- सो वयत संघ ने भलाई, बोकारो और वशाखापट्टनम के
इस्पात कारखाना तथा भारत हे वी इलेिक्ट्रकल्स जैसे मशीनरी संयंत्रों के लए
आ थर्चक और तकनीकी सहायता दी I
2 राजनी तक संबंध- कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के रुख को
लंबे समय तक समथर्चन दयाI 1965 में पा कस्तान से युद्ध के दौरान मदद
की, 1971 में और उसने मत्रता और सेव की सं ध कीI
3 सैन्य संबंध- भारत को सो वयत संघ ने ऐसे वक्त में सैन्य साजो- सामान
दए जब शायद ही कोई अन्य दे श अपनी सैन्य टे क्नोलॉजी भारत को दे ने के
लए तैयार था I
4 सांस्कृ तक संबंध- हंदी फल्में और भारतीय संस्कृ त सत्संग में लोक स्प्रिय
भारत- रूस संबंधों से भारत को लाभ
1 कश्मीर के मुद्दे रूस ने सदा साथ दया वशेषकर यूएनओ
सुरक्षा प रषद में I
2 रूस ने भारत की वशेषकर अंत रक्ष, रक्षा सौदों और
ना भकीय ऊजार्च में सहायता की I
3 रूस नेअंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से संबं धत सभी जानका रयां
भारत को दी I
4 केंद्रीय ए शया के दे शों ( तुकर्चमे नस्तान और कजा कस्तान
आ द) मैं पहुं चने के लए रास्ता दया I
5 अरुणाचल स्प्रिदेश और लद्दाख की सीमाओं को लेकर भारत
चीन ववादों को रूस ने संतु लत करवाया I
भारत रूस संबंधों से रूस को लाभ
1 भारत द्वारा रूस से सै नक साजो- सामान और
ह थयार खरीदने से रूस को भारी-भरकम मुनाफा हु आI
2 रूस से भारत तेल का आयात करता है , इससे रूस की
आय में वृद् ध होती है I
3 रूस के लए भारत ए शया महाद्वीप में साम रक
महत्व रखता है , भारत के माध्यम से वह ए शया में चीन
के स्प्रिभाव को नयं त्रत करता है तथा केंद्रीय ए शयाई
दे शों में अमे रका के बढ़ते स्प्रिभाव पर नयंत्रण रखता है I
भारत और अन्य वकासशील दे शों पर सो वयत संघ के
वघटन के स्प्रिभाव :-
1 कम्यु नस्ट वचारधारा को आघात- करोड़ों श्र मकों और
गरीब कसानों की उम्मीदों पर पानी फर गयाI
2 वकासशील दे शों की घरे लू राजनी त में अमे रका जैसे
दे शों को हस्तक्षेप का ज्यादा अवसर मल गयाI
3 बहु राष्ट्रीय कंप नयों को भारत और अन्य वकासशील
दे शों में अ नयं त्रत स्प्रिवेश की सु वधा मल गईI
4 भारत और अन्य वकासशील दे शों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा
कोष और वश्व बैंक द्वारा सहायता में भारी कटौती हो गईI
बहु ध्रुवीय वश्व व्यवस्था
अथर्च- “ अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम को स्प्रिभा वत करने वाली कई ताकतों का होना,
िजससे वश्व राजनी त पर कसी एक दे श का वचर्चस्व काय में हो सके I
बहु ध्रुवीय व्यवस्था के लए आवश्यक बातें :-
1 सामू हक सुरक्षा =शां त भंग करने वाले राष्ट्र के खलाफ सभी दे श मलकर
कारर्च वाई करें I
2 क्षेत्रीय संगठनों को मान्यता मले= क्षेत्रीय संगठनों ( यूरोपीय संघ,
आ सयान और साकर्च) को मान्यता मली से क्षेत्र के ववादों का समाधान कर
सकेंगे I
3 शां त वातार्च द्वारा संघषर्षों का समाधान= अंतरार्चष्ट्रीय संघषर्षों का समाधान
शां त वातार्चओं द्वारा कया जाएI
4 स्वतंत्र वदे श नी त = हर दे श कोअ धकार हो क वह अपनी वदे श नी त
स्वयं नधार्च रत करें , कसी के दबाव में ना आएI
5 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प रषद को शिक्तशाली बनाया जाए= UNO & UNSC
I
“अरब िस्स्प्रिंग”
न/ जगह = अरब दे श और उत्तरी अफ्रीकी दे श I
ण = 1. तानाशाही I 2. मानव अ धकारों का उल्लंघन
बेरोजगारी I 4. राजनी तक भ्रष्टाचार I 5. अस्त-
त अथर्चव्यवस्था I 6.स्थानीय कारण I

ोह की व ध = 1. हड़ताल I 2. धरना I 3. माचर्च I


रै ली I

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