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A
सकू ्तिसौरभम्
तृतीयपुष्पम्
उच्चतर माध्यमिक स्तर के शिक्षार्थियों के लिए
प्रथम सस्ं करण ISBN 978-93-5007-352-0
अगस्त 2015 श्रावाण 1937 q प्रकाशक की पर्वू अनमु ति के िबना इस प्रकाशन के किसी
भाग को छापना तथा इलेक्ट्राॅनिकी, मशीनी, फोटोप्रतिलिपि,
पुनर्मुद्रण रिकॉर्डिंग अथवा किसी अन्य विधि से पनु : प्रयोग पद्धति द्वारा
जनू 2020 ज्ये� 1942 उसका संग्रहण अथवा प्रसारण वर्जित है।
q इस पस्त
ु क की बिक्री इस शर्त के साथ की गई है कि प्रकाशक
की पर्वू अनमु ति के बिना यह पस्त
ु क अपने मल ू आवरण अथवा
PD 143T RPS जिल्द के अलावा किसी अन्य प्रकार से व्यापार द्वारा उधारी पर,
पनु विक्रय या किराए पर न दी जाएगी, न बेची जाएगी।
q इस प्रकाशन का सही मल्यू इस पृष्ठ पर मद्ु रित है। रबड़ की महु र
© राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण अथवा चिपकाई गई पर्ची (स्टीकर) या किसी अन्य विधि द्वारा
परिषद,् 2015 अकि ं त कोई भी संशोधित मल्य
ू गलत है तथा मान्य नहीं होगा।
प्रकाशन सहयोग
एन.सी.ई.आर.टी. वाटरमार्क 80 जी.एस.एम. अध्यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : अनपू कुमार राजपतू
पेपर पर मद्ु रित। मख्ु य संपादक : श्वेता उप्पल
मख्ु य उत्पादन अधिकारी : अरुण चितकारा
सचिव, राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और
प्रशिक्षण परिषद,् श्री अरविदं मार्ग, नयी दिल्ली मख्ु य व्यापार प्रबंधक : िवपिन िदवान
110 016 द्वारा प्रकाशन प्रभाग में प्रकाशित उत्पादन सहायक : मक
ु े श गौड़
तथा लक्ष्मी प्रिंट इडं िया, 519/1/23, संसार
इडस् आवरण
ं ट्रियल कॉम्पलैक्स, दिलशाद गार्डन,
दिल्ली 110 095 द्वारा मद्ु रित। अमित श्रीवास्तव
पुरोवाक्
प्रस्तुत पस्त
ु क सकू ्तिसौरभम-् तृतीयपष्प ु म् राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद् के पर्वू त: सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी शिक्षा विभाग
की लघु पस्त ु क माला योजना के अन्तर्गत, सम्प्रति भाषा शिक्षा विभाग
द्वारा कक्षा 11-12 के छात्रांे के लिए परू क पस्त ु क के रूप में एवं सामान्य
संस्कृ त जिज्ञासओ ु ं को ध्यान में रखकर विकसित की गई है। इसे प्रस्तुत
करते हुए मझु े हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
मझु े विश्वास है कि यह पस्त ु क सस्कृ
ं त छात्रों तथा सामान्य सस्कृ ं त
जिज्ञासओ ु ं के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी।
पस्त ु क के प्रणयन िवशेषत: सामग्री-संकलन, पाण्डुलिपि संशोधन
तथा निर्माणादि कार्यों में अनेकविध सहयोग के लिए श्रीमती उर्मिल खगंु र
सहित भ्ााषा शिक्षा विभाग के पर्वू संस्कृ त आचार्य डॉ. कमलाकान्त मिश्र,
डॉ. जतीन्द्र मोहन मिश्र, उपाचार्य, सस्कृ ं त एवं डॉ. रणजित बेहरे ा, पर्वू
सहायक आचार्य तथा वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रो. कृ ष्णचन्द्र त्रिपाठी हमारे
धन्यवाद के पात्र हैं।
पस्त ु क की पाण्डुलिपि समीक्षा के लिए आयोजित गोष्ठियों में
उपस्थित होकर जिन विषय-विशेषज्ञों एवं अनभु वी संस्कृ त अध्यापकों
ने अपने बहुमल्य ू सझु ावों एवं सहयोग से पस्त ु क को उपयोगी बनाने में
योगदान दिया है, परिषद् उनके प्रति हार्दिक कृ तज्ञता ज्ञापित करती है।
पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपस्त ु क का विकास एक निरन्तर चलने वाली
प्रक्रिया है। अत: पस्तु क को और उपयोगी बनाने के लिए विशेषज्ञों एवं
अध्यापकों के अनभु व पर आधारित परामर्शों का सहर्ष स्वागत किया
जाएगा तथा सश ं ोधित सस्क
ं रण तैयार करते समय उनका समचु ित उपयोग
किया जाएगा।
बी.के . त्रिपाठी
नई दिल्ली निदेशक
14 अगस्त 2015 राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद्
भूमिका
सस्कृ
ं त विश्व की प्राचीनतम भाषा है जिसका विशाल साहित्य (वेद,
वेदा�, उपनिषद,् परु ाण, विविध शास्त्र, काव्य अादि) अनेक दृष्टियों से
महत्त्वपर्णू है। यह उदात्त संस्कारों के साथ ही साथ शास्त्रीय ज्ञान तथा
मौलिक चिन्तन का अगाध स्रोत भी है। इसमें विद्यमान सभु ाषित भारतीय
मनीषियों के ऐसे सवु चन हैं जो अनभु वों पर आधारित होने के कारण
शाश्वत सत्य का उदघ् ाटन करते हैं तथाा विषमता से यक्त ु इस जगत में
संकटग्रस्त किंकर्तव्यविमढ़ू मनष्ु यों का मार्गदर्शन करते हैं। लोक-कल्याण
के िलए प्रयक्तु ये सक्ति
ू याँ जीवन की विस�तियों को सहज एवं सरल रूप
से सल ु झाने का कार्य करती हैं। इनमें नीति, कर्त्तव्य, सत्य, व्यवहार, परिवार,
समाज, राष्ट्र तथा विश्वबन्धुत्व संबंधी अनेकानेक शाश्वत जीवनमल्य ू
विद्यमान हैं। जीवन के यथार्थ का दिग्दर्शन कराने वाली एवं नैतिक मलू ्याें
कोे मन-मस्तिष्क में आरूढ़ करने वाली इन सक्ति ू यों से लोकहित की
सहज प्रेरणा मिलती है जिसकी सहायता से मनष्ु य अपने जीवन में सत्यम,्
शिवम् और सन्ु दरम् की अलौकिक छवि प्रकट कर सकता है। भाषागत
सरलता, भावों की सहजता तथा संवेदना की गहराई के साथ ही साथ
अभिव्यक्ति की मनोरम शैली के कारण सक्ति ू साहित्य निश्चय ही विशेष
रूप से अवलोकनीय है।
शभु चिन्तक मित्र की तरह संस्कृ त-सक्ति ू याँ जन-जन का मार्गदर्शन
करती हैं। ये जीवन में परिस्थिति-जनित समस्याओ ं का सद्य: समाधान
सझु ाकर मानव को सख ु -शान्ति तथा सन्मार्ग की अोर अग्रसर होने की
प्रेरणा प्रदान करती हैं। इनके लघु आकार में जनमानस के लिए व्यावहारिक
संदश े तथा शाश्वत जीवनदर्शन के संकेत 'गागर में सागर' की भाँति समाए
हुए हैं। इनकी मधरु ता की प्रशसं ा में एक सक्ति ू है-
'तस्माद्धि काव्यं मधुरं तस्मादपि सभु ाषितम'्
अर्थात् काव्य मधरु होता है और उसमें भी सभु ाषित (अधिक मधरु
होता है)
आज जब समाज में मानवीय मल्यों ू का ह्रास हो रहा है, राष्ट्रीय
शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् इन मल्यों ू को छात्रों एवं सामान्य
लोगों में िवकसित करने हेतु प्रयत्न कर रही है। संस्कृ त वाङ्मय से चयनित
सक्ति
ू यों का विशेष महत्त्व है— इसी उद्देश्य से परू क पाठ�-सामग्री के
िवकासक्रम में सस्कृत ं लघु पुस्तकमाला योजना के अतं र्गत विभिन्न
शास्त्रों से संकलित एवं छात्रों के बौद्धिक स्तर के अनरू ु प एक सभु ाषित
सग्रं ह प्रस्तुत किया गया है। यह सग्रं ह सक्ू तिसौरभम,् तीन खण्डों (तीन
पष्ु पों) में क्रमश: उच्च प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक छात्रों
के लिए विभक्त है, जिसका यह तृतीय खण्ड है।
प्रस्तुत सकू ्तिसौरभम् सक ु ु मारमति विद्यालय-स्तरीय छात्रों में संस्कृ त
साहित्य के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने एवं उनमें नैतिक मल्यों ू का विकास
करने में उपादेय होगा। इस पस्त ु क के िनर्माण में जिन ग्रन्थों, ग्रन्थकारों एवं
विद्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ है, सम्पादक उनके प्रति हार्दिक कृ तज्ञता
व्यक्त करता है। पस्त ु क के प्रकाशन में विविध सहयोग के िलए विभाग के
पर्वू कर्मचारी श्री रामप्रकाश और डॉ. दयाशक ं र तिवारी एवं श्री अविनाश
पाण्डेय, जे.पी.एफ., श्री प्रभाकर पाण्डेय, जे.पी.एफ., रे खा तथा अनिता
कुमारी, डी.टी.पी. ऑपरे टर धन्यवाद के पात्र हैं।
vi
पुस्तक निर्माण समिति
viii
विषयानुक्रमणिका
परु ोवाक् iii
भमिू का v
1. आत्म-विश्वास: 1
2. आत्म-सम्मान: 2
3. त्यागभावना 4
4. उत्तमजन: 5
5. उत्साह: 6
6. उदारता 7
7. उद्यम: 8
8. कर्त्तव्यपरायणता 9
9. कार्य-दक्षता 10
10. सत्स�ति: 11
11. क्षमा 13
12. चतरु ता 14
13. ज्ञानमार्गस्वरूपम् 15
14. तेजस्विता 16
15. द:ु खमक्ु त्युपाय: 17
16. धैर्यम ् 18
17. मानववैचित्र्यम् 20
18. परोपकार: 21
19. प्रियवादिता 22
20. मद्य-निषेध: 23
21. शौर्य 24
22. महापरुु ष: 25
23. मित्रता 26
24. आत्मसंयम: 28
25. वाग्भूषणम ् 29
26. विनम्रता 30
27. विश्वास: 31
28. शिष्टाचार: 32
29. सज्जन: 33
30. सदग् णु ा: 35
31. सन्तोष: 37
32. सत्य-निष्ठा 38
33. सर्व-समभाव: 39
34. स्वाभिमान: 40
श्लोकानाम् अकारादिक्रमसची
ू 41
x
प्रथमो भाग:
1. आत्म-विश्वास:
विस्मय: सर्वथा हेय:
प्रत्हयू : सर्वकर्मणाम् ।
तस्माद् विस्मयमतु ्सृज्य
साध्ये सिद्धिर्विधीयताम् ।।1।।
(सभु ाषितरत्नभाण्डागारम् 155.95)
(हितोपदेश:2.15)
संदहे का सर्वथा परित्याग करना चाहिए क्योंकि यह सभी कर्मों में व्यवधान
स्वरूप होता है। इसलिए अनिश्चय को छोड़कर लक्ष्य की सिद्धि करनी
चाहिए ।
Confusion should be always avoided, for it is an
obstruction to all actions. Therefore, avoiding
confusions one should accomplish one's tasks.
18. परोपकार:
अहो एषां वरं जन्म
सर्वप्राण्युपजीवनम् ।
धन्या महीरुहा येभ्यो
निराशां यान्ति नार्थिन: ।।21।।
(श्रीमदभ् ागवतपरु ाणम,् 22/23)
अहो! जन्म तो इन्हीं वृक्षों का श्रेष्ठ है क्योंकि ये सब प्राणियों के उपकारी
हैं। ये वृक्ष धन्य हैं कि इनके पास आकर याचक निराश नहीं लौटते।
The life of the trees is worthiest because they
support all living beings. Blessed are the trees from
whom no beggar goes back disappointed.
पत्र-पष्प
ु -फलच्छाया-मूलवल्कलदारुभि: ।
गन्ध-निर्यास-भस्मास्थितोक्मै: कामान् वितन्वते ।।22।।
(श्रीमदभ् ागवतपरु ाणम,् 22/34)
ये वृक्ष अपने पत्तों, फूलों, फलों, छाया, जड़, छाल, लकड़ी, गन्ध, गोंद,
राख, गठल ु ी और कोपलों से लोगों की इच्छाएँ पूर्ण करते हैं ।
Trees fulfill the desire of the people by (giving) their
leaves, flowers, fruits, shades, roots, barks, wood,
fragrance, gum, ashes, kernels and sprouts.
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