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Dehaati Ladke
Dehaati Ladke
शशांक भारतीय
Published in Hindi in paperback as Dehati Ladke in 2019 by Hind
Yugm and Eka, an imprint of Westland Publications Private Limited.
61, 2nd Floor, Silverline Building, Alapakkam Main Road,
Maduravoyal, Chennai 600095
Hind Yugm
201 B, Pocket A, Mayur Vihar Phase-2, Delhi-110091
www.hindyugm.com
Westland, the Westland logo, Eka and the Eka logo are the trademarks of Westland Publications
Private Limited, or its affiliates.
Copyright © Shashank Bharatiya
ISBN: 9789387894907
987654321
This is a work of fiction. Names, characters, organisations, places, events and incidents are
either products of the author’s imagination or used fictitiously.
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Printed at Thomson Press (India) Ltd
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express written permission of the publisher.
माँ के लए, जसने लखना सखाया
भू मका
मेरे दो त,
यह कहानी नह , ये मेरी जदगी के सबसे चमक ले दन ह। उ टे -पु टे दन, गरते-
पड़ते, ल य के पीछे भागते दन, चौराहे पर आँख चकमकाते, यार म पड़ते, दो ती म
लड़ते ए दन। उन दन क सबसे खास बात यह है क उनम ए वो सारे अनुभव ‘पहले’
ह। तब के, जब हम ब त सोचते नह थे। कहानी हम तीन दो त क है। दो त तीन ही य
होते ह? तीन तगाड़ा-काम बगाड़ा। जब मने यह कहानी पहली बार इन दोन के सामने
रखी तो दोन के दमाग घूम गए। रजत ने शु के दो चै टर पढ़कर ही एलान कर दया क
मने उसका कैरे टर ठ क से नह लखा, अब वह अपना नया नॉवेल लखेगा। खैर! मुझे
उससे कोई द कत नह , वो इं लश म लखने जा रहा है। युवान ने सारे प े तफसील से पढ़े
और ख म करते व उसका चेहरा दे खने लायक था। “भाई! ये कहानी अगर प लक ई
तो मेरी जदगी क तो लंका लग जाएगी! काहे धान बो रहे हो… ह?” मगर शु या युवान
का जसने मुझे यह कहानी का शत करने क इजाजत द ।
शु या संपादक मनीष जी का ज ह ने मेरी हर झक को सुनने का धैय रखा। शु या
मेरी बहन और मेरे अजीज म डॉ टर सूरज सह का ज ह मने रात के दो-दो बजे फोन
करके जगाया है क ये चज कया है कहानी म, ज द पढ़कर बताओ। शु या शहर-ए-
लखनऊ और लखनऊ यू नव सट का जसने हम मलाया और कहानी के सारे लॉट बुने।
‘वो’ जसका ज म यहाँ करने से बच रहा ँ, उससे आप सीधे कहानी म मल तो
बेहतर होगा। कहानी राजरजत सह चौहान क है, इस लए आगे क कहानी उसी क
जुबानी। आगे मेरा वेश नषेध है… वदा।
शशांक भारतीय
आज
कॉफ क आ खरी चु क लेते ए मने सड़क क सरी तरफ खड़ी इमारत क ओर दे खा।
द वार पर उभरे सुनहरे भ अशोक च के ठ क ऊपर वाली घड़ी दो बजकर तीन मनट
बजा चुक थी। सूरज क तरछ करण अशोक च के नीचे, मोटे सुनहरे अ र म लखे
‘भारत सरकार’ को दमका रही थ । आगे क त ती पर ‘कोष मूलो द डः’ सुशो भत कार
का का फला दो मनट पहले ही रवाना आ था। सड़क पर र तक फैली पीपल क
चरमराती ई प याँ थोड़ी र उड़कर कार के साथ गई थ , फर चौराहे पर खड़े, दांडी
जाने को उ त बापू के पास जाकर थरा गई थ । उड़ी ई धूल और धुएँ का गुबार पट रहा
था और दहलीज तक छोड़ने आए अफसरान वापस ब डंग म लौट रहे थे। स यू रट हेड
कमलेश के हाथ ने आज औसत से तीन गुना यादा ‘जय हद’ कया था। साहब के अंदर
जाने के बाद वह वापस अपनी कुस पर जाकर बैठ गया था। मने कॉफ ख म करके कप
लेट म रखा, लेट के नीचे क पच नकाली और काउंटर क तरफ चला आया। होटल
मैनेजर सुनील ने पच मेरे हाथ से ली और बना दे खे बगल रखी क ल म घ प द । उसे पता है
क बल पछले 3 साल से बला नागा 25 पया ही है। फुटकर पैसे वापस करते ए बोला,
“बड़े साब आए थे… आप नह गए?” मने पैसे समेटकर जेब म डाले और उसक आँख म
दे खा। व तौर पर लगा क उसे जवाब ँ गा, मगर मु कुराया और होटल से बाहर नकल
आया। सड़क पार क और इमारत क सी ढ़याँ चढ़ने लगा। 53 साल पहले बनी यह इमारत
बाहर से जतनी उदासीन दखती है, अंदर से उतनी ही भ है। भारत सरकार के अ य
द तर क तरह जजर नह । दहलीज पार कर एक गोल बरामदा है, जहाँ सोफे पड़े ह।
जसके ऊपर क गुंबदाकार छत शीशे क है। फर लगभग सौ फ ट लंबा ग लयारा है।
ग लयारे के दोन तरफ अ धका रय के द तर ह, जनके सामने उनके नाम और भार क
त तयाँ लगी ह। हर दस फुट पर ला टक फूल के गमले रखे ह। ग लयारा ख म होते ही
फर एक गोल बैठक है, जहाँ से तीन तरफ को रा ते गए ह। तीन तरफ अलग-अलग वग
के ऑ फस ह। चौथी मं जल तक ब डंग का ढाँचा ऐसा ही है।
ग लयारा पार करने पर म ा जी खड़े दखे। सोफे क वृ ाकार सजावट के ठ क बीच
म खड़े ए थे। शरीर पर सलेट सफारी सूट, और चेहरे पर तमतमाने क हद तक गंभीरता
लए ए इधर ही दे ख रहे थे। हीरे के नग से जड़ी उनक म ट लक अपने चरप र चत थान,
सामने क जेब म लगी ई थी। शायद मेरा ही इंतजार कर रहे थे। नजर पड़ते ही ऑ फस क
तरफ मुड़ गए। उनका मूक संकेत था क मुझे उनके पीछे जाना था। उँग लय म फँसा आ
गुलाबी लफाफा, जसपर कां फड सयल क मुहर लगी ई थी, उनके चौथी मं जल से नीचे
ाउंड लोर तक आने क जहमत उठाने क वजह बता रहा था। मुझे लगा, ल ट म
बताएँग,े मगर मेरे ऑ फस क तरफ मुड़ गए। आईट ओ एच यू के हाथ म सीआईट
ऑ फस का कां फड सयल लफाफा अ छे -अ छे अ धका रय के माथे पर पसीने क बूँद
भेज सकता है। बना मेरी तरफ दे खे चलते-चलते ही बोले, “फोन कया था… दे खा ऑ फस
म ही बज रहा है। फोन साथ तो रखा करो कम से कम!” मने कुछ नह कहा, पीछे -पीछे
चलता रहा। कनारे पड़ी कु सय पर बैठे जो असेसी उ ह दे खकर अपनी-अपनी जगह से
खड़े हो रहे थे, उ ह उँग लय से बैठे रहने का इशारा करता रहा। मेरे के बन का दरवाजा
खोलकर स त लहजे म बोले, “आ टर यू!” पहले म अंदर आया फर वह वयं अंदर आ
गए। “दे खए अभी भी बज रहा है!” फोन क तरफ इशारा करते ए बोले।
“पीछे का दरवाजा बंद हो चुका है पं डत जी! नामल हो जाइए”, अपनी घूमती ई
कुस पर बैठते ए कहा मने।
“यार ठाकुर तुम मरवाओगे कसी दन! फोन तो साथ रखा करो कम से कम… अ छा
चाय मँगवाओ।”, सामने क कुस पर पसरते ए बोले।
मने मेज के बगल म लगी बेल बजाई। “ लफाफे म या लाए ह पं डत जी?” … फर
बेल सुनने आए चपरासी क तरफ दे खकर.. “दो चाय भजवा दो!”
“चाय पेशल रखना” चपरासी क तरफ घूमते ए कहा म ा जी ने, फर मेरी तरफ
दे खकर लफाफा बढ़ाते ए बोले, ‘सीआईट साब ने ए स लेनेशन काल फॉर कया है,
“अनऔथराइ ड ए सस ॉम ऑ फस”।
“अब लंच पे भी ना जाए आदमी?” लफाफा उनके हाथ से लेकर मने दराज म डाल
दया। “और कुछ?”
“तुम काहे पंगे लेते हो बे… आधे घंटे बाद चले जाते लंच पे। लास वन ऑ फसर तक
जब मुजरा सलामी म लगे ए थे तो हम-तुम कौन होते ह? मु कुराओ नह । तु हारे च कर म
हम सुनते ह, अपने यू.पी. वाले होने का यादा ही फायदा उठाते हो तुम।”
“तो करवा द जए ना यूपी ांसफर, आपसे यादा लक ह या कसी के डपाटमट
म?”
अपनी तारीफ पर झप जाते ह म ा जी। मुझसे 8 साल सी नयर ह, और वभाग के
सबसे भावशाली अ धका रय म से एक। बाल म चाँद उतर आई है और पेट म ढोलक।
चुटकुल और चाय के सहारे जवानी बरकरार रखे ह। कानपुर से ह इस लए चेहरे पर मु कान
वरासत म मली है। मने फोन उठा लया और म ा जी सामने रखी फाइल पलटने लगे।
मुझे याद आया क फोन लगातार बज रहा था। अपने अँगूठे का फगर ट दया। मेरी दस
उँग लय म शंख ह। दाद कहती थ क जसक दस उँग लय म शंख होता है, वह या तो
राजा होता है या भखारी। पता नह म या ँ?
‘15 म ट कॉ स, फाइव यू मेसेजेस’ क नोट फकेशन लैश हो रही थी। 5 म ड
कॉल युवान क थ और 10 दशा धायल क । दोन के फोन एक अरसे बाद आए थे और
इ ेफाकन एक साथ आए थे। मैसेज दे खा।
दशा का मैसेज था, “अहमदाबाद आई ँ, फोन पक करो।”
युवान का था, “ज री है… कॉल करो।”
‘ह म… कसे कॉल क ँ पहले? पहले इस दशा को करता ँ, वरना ये सर खा
जाएगी।’ मने मन म सोचा।
दशा को कॉल कया और फोन उठने के 10 सेकंड तक च वात चला। “समझते या
हो? म कतने दे र से कॉल कर रही ँ! अब टाइम मला है? ब त बजी हो? पता है। म
अहमदाबाद आई ।ँ ”
“कब? कस लए?”
“आज! और तुमसे मलने गधे!”
“ या! कहाँ हो?” म अपनी कुस से उठ खड़ा आ। म ा जी आ य से मुझे दे खने
लगे।
“तु हारे डपाटमट ब डंग के पास वाले सीसीडी म।”
“सच म! कतनी दे र से?”
“तुम आओ पहले, सारी बात फोन पे करोगे या? और सुनो…”
“ह म..”
“… आज मेरा बथडे है”
“बथडे? आज 12 फरवरी है?” उसने फोन काट दया था। मने कैलडर क तरफ
दे खा, फर म ा जी क तरफ दे खा। उ ह ने लानत भरी नजर से मुझे दे खा। उठे और
कैलडर बदल दया। कैलंडर म जनवरी लगा आ था।
“मुझे… जा… ना होगा…” मने उनक तरफ संशय भरी नजर से दे खते ए कहा,
“चाय क सल कर द जए।”
“अमा काहे क सल कर द यार? 2 कप पी लगे हम।” वे का ह लयत से वापस फाइल
म झाँकने लगे। द त ब डस क फाइल थी भी रोचक। वे कई दन से इसम ढ ल दे ने के
लए कह रहे थे। मने उनके हाथ से फाइल समेट और बैग म रख ली। एक सादे कागज के
कोने पर द तखत करके उ ह पकड़ाते ए बोला, “इसपे एक हाफ सीएल का ए लीकेशन
लख दगे लीज… वो ड् यू टू सम अजट पसनल वक वाला फॉमट!’
“मुझे तो वो वाला फॉमट याद है.. म राज रजत सह चौहान, अपने पूरे होशो-हवाश म
अपनी सारी चल-अचल संप पंकज म ा के नाम..” वे मटरग ती से बोले।
“और ये रहा आपके सीआईट मेमो का र लाई”, मने दराज से सरा लफाफा
नकालते ए कहा, “जाते व थमा द जएगा।”
“ र लाई? तुम पहले ही बना के गए थे, मतलब पता था क आने वाला है?” उ ह ने
हैरत भरी नजर से मेरी तरफ दे खा। फर हाथ से लफाफा ले लया। म मु कुराते ए बाहर
नकल आया।
“फोन ले लए हो ना अपना?” पीछे से म ा जी क घसटती ई आवाज आई।
दशा… पागल है यह लड़क भी। सीसीडी म बैठ है, अब बताया है मुझ? े ओ हो! तो
म भी तो संत बनने चला ँ, फेसबुक खोला होता तो सुबह ही पता चल जाता। सीसीडी,
ऑ फस ब डंग से 1 कलोमीटर र था। बाहर नकलते ही कैब ले ली। मौसम म हलक
बदरी थी और नमी यहाँ के माहौल म हमेशा बनी रहती है।
दशा… कमाल है यह लड़क भी। टोटल अनकं ोल। द ली म मली थी। स व स क
को चग के व । दो ती हो गई थी। फर यहाँ चला आया। ले कन इसे ग ट या दया
जाए? इस 10 मनट और एक कलोमीटर क री म या मल जाएगा? फूड पांडा से लेकर
लपकाट तक सारे ऑ शन मेरे दमाग म घूम गए, पर समझ नह आ रहा था। लड़ कय
को ग ट दे ने का करंट म या ड चल रहा था, मुझे पता ही नह । मेरे पास कोई माँ का
पहनाया लॉकेट भी नह था क इमोशनली चपका दे ता। मुझे याद आया क इस बीच कतने
बथडे भूल गया था म। युवान का, पापा का और यहाँ तक ‘उसका’ भी। पर अभी इसका
या क ँ ? अपने पहनावे क तरफ दे खा। वही ऑ फस फॉम स। मने ऊपर से नीचे तक
अपने-आपको दे खा। बाह और कॉलर के बटन खोलने शु कए। उधेड़बुन म था क कैब
ने गंत थान तक प ँचा दया।
मुझे पूरा यक न था क सीसीडी इसके आतंक से काँप रहा होगा। मुझे याद है क
को चग म अपनी खूबसूरती से यादा अपनी बेबाक के लए जानी जाती थी। अकेली
लड़क थी जो बाइक से आती थी। यामाहा आर-वन-फाइव से। दोपहर का समय था और
होटल पूरा खाली। मने बाहर से झाँककर माहौल का जायजा लया। इन होटल क ब डंग
शीशे क होने का कुछ फायदा तो है ही। मने दरवाजे के अ पारदश काँच म अपने-आपको
दे खा। दाढ़ ह क बढ़ आई थी और बाल माकट का ै फक हो गए थे। हाथ से बाल झाड़ते
ए और मैनेजर के अ भवादन को उँग लय से खा रज करते ए उसक तरफ चला। कोने म
शेरनी अकेली बैठ ई थी। बगल म एक वेटर सहमा आ खड़ा था। बेचारा दो बार ऑडर
लेने आया था और दोन बार फटकार खाकर गया था। दशा ने मेरी तरफ दे खा, फर सरी
तरफ दे खने लगी। मतलब यह था क आसानी से नह मानने वाली थी। आ खर बथडे है
उसका आज। और वादा भी कया था मलने का।
मने वेटर को आँख से ही इशारा कया क बेटा, थोड़ी दे र बाद आना। वैसे भी माहौल
गरम है। एक तो तुम लोग बाहर कंपाउंड म कोई गुलाब, गदा भी नह लगाते हो जसे
तोड़कर लाया जा सके। पानी माँगो तो उसम भी मनरल वाटर और लेन वाटर क
ल फाजी करके पैसे बना लोगे!
आँख को ठं डक दे ने वाली बात यह थी क लैदर जैकेट वाली दशा ने कसीदाकारी
वाला सलवार सूट पहना था, क थई रंग का और हाथ म मै चग कंगन थे। चेहरा गु से म
गुलाबी आ जा रहा था और मेरी तरफ न दे खने क भरपूर को शश कर रहा था। कंधे के
एक तरफ आए बाल मुझसे चुगली कर रहे थे क गु से म दखने के पहले क तैयारी सुंदर
दखने क थी। यह मेरी गत राय है क भारतीय लड़ कयाँ े डशनल वयर म सबसे
खूबसूरत लगती ह। मुझे तारीफ करके आग बुझाने का एक ह थयार तो मल ही गया था। म
‘नाइस ेस!’ कहकर सामने वाली चेयर पर बैठ गया। एक उड़ता आ च मच मेरे सर से
गुजरा जसे मने पकड़ लया।
“हाउज दै ट?”
उसने मेरी तरफ दे खा, फर सरी तरफ दे खकर अनचाहे मु कुराने लगी। वह नाराज
रहना चाहती थी पर मेरी तरफ दे खकर उसे मु कुराना पड़ा।
“है पी बथडे नौटं क !”
“हग भी नह करोगे?” उसने मासू मयत से दोन हाथ बढ़ाते ए कहा।
म चाहता तो उसक तरफ जाकर हग कर सकता था, पर मने टे बल के ऊपर से ही हग
करना बेहतर समझा। यह परप डकुलर हग है। सफ कंधे से कंधे मलते ह, बाक पेयर
पाट् स सुर त रहते ह… दल से दल मलने का तो कोई चांस ही नह ।
“ कतने सड़े ए आदमी हो तुम! एक लड़क को इतना दौड़ाते हो और ऊपर से उसके
लुक क तारीफ भी नह करते!”
मने तुरंत अपने दमाग के घोड़े दौड़ाए और कसी शायर को ट प दया।
“ऐ चाँद! हमने भी एक चाँद दे खा है…
तुझम तो दाग है… हमने बेदाग दे खा है… वाह! वाह!”
“वाह! वाह!” वह कुछ ढूँ ढ़ रही थी, फककर मारने के लए पर उसे कुछ मला नह ।
मेरी तरफ कुट् ट करने जैसा मुँह बनाया। जग से गलास म पानी डालने लगी। पानी थोड़ा ही
था, आधा ही गलास आया। म और वह एक साथ वेटर क तरफ दे खने लगे। यह दे खकर
वेटर म भी थोड़ी ह मत आई और वह पानी का जग लेकर ऑडर लेने आया।
“टू लेन कॉफ न द रॉ स!” उसने व साइन बनाते ए कहा। वेटर ने मेरी तरफ
दे खा तो मने भी लाचारी से उसक आँख से आँख मला क अंकल जी! जो मैडम का
ऑडर है… वही मेरा भी ऑडर है।
“तुम इतनी र सफ मुझसे मलने तो आई नह होगी?” मने जग से पानी नकालते
ए पूछा।
“ सफ तुमसे मलने आई थी, मेरी जान!” वह टे बल पर कुहनी और हाथ म ठु ड्डी
टकाकर बैठ गई। जब उसे शरारत सूझती है, आँख को अजीब ढं ग से चकमकाती है।
“अ छा?” मने चेहरा तरछा करके उसक आँख म सच ढूँ ढ़ने क को शश क ।
“ठ क है! ठ क है! घर आई थी, जयपुर! तो इधर भी खसक आई।”
“ म… वैसे तुम ये सब कब से?”
“अ छा लग रहा है न? मुझे पता था क तु ह े डशनल पसंद ह।” उसने अपने कंगन
खनकाते ए कहा।
“हाँ! सूट कर रहा है तुमपे ये… सूट!”
“हाहा… शाद करोगे?”
“ या…?”
वेटर टे बल पर कॉफ रख रहा था। मेरे साथ वह भी च क गया। वह खड़ा हो गया,
जैसे मेरा जवाब सुनकर ही जाएगा।
“अचानक से? कुछ भी?” मने कॉफ उठाते ए कहा।
“यार, कॉफ पलाकर पूछ रही ँ, घूँघट म चाय क े लेकर आऊँ या?” उसने
पट् टे का घूँघट लेकर हाथ म े पकड़ने क ए टं ग क ।
मुझे हँसी आ गई। वेटर अब भी वह खड़ा था। मने वेटर क तरफ दे खते ए कहा,
“अमा तुम जाओ यार! अभी तुरंत थोड़ी न करने जा रहे ह शाद जो तुम बे टमैन बनने क
फराक म खड़े हो!” वह चला गया और दशा मुझे अब भी सवाल भरी नगाह से दे ख रही
थी।
“यार, ऐसे या दे ख रही हो? अ छा लड़का नह ँ म! खुश नह रहोगी तुम।” कॉफ
कड़वी लग रही थी।
“अ छा! ये काड दे ख रहे हो, या लखा है इसम?” उसने जेब से अपना आइड टट
काड नकालते ए कहा।
“अ स टट से शन ऑ फसर!”
“वो नह , उसके ऊपर!”
“ म न ऑफ होम अफेयस!”
“तो? गृह मं ालय समझ रहे हो? तु हारा सारा बैक ाउंड नकलवाया है मने। घणे छोरे
से यूपी के!” आ खरी वा य उसने शरारती तरीके से अपनी राज थानी जुबान म बोला।
“अ छा! तो तुम जासूसी कर रही हो मेरी?”
“यार, कमी या है मुझम? मलेगी नह मेरे जैसी!” उसने कॉफ क चु क लेते ए
कहा।
“अरे! तुम जाट का या भरोसा, या पता कब आंदोलन कर दो?”
वह चुलबुली हँसी म खनखनाई, “तो तुम सारी शत मान लेना मेरी, तब म नह क ँ गी
आंदोलन!” उसने ब च जैसे सर हलाते ए कहा। कॉफ क ह क -सी बूँद उसके ह ठ के
पास बफरी ई थ । उसक नजर ने नो टस कर लया क मेरी नजर वहाँ ह। मुझे ह का-सा
असहज महसूस आ तो मने ट यू पेपर क तरफ इशारा करते ए कहा, “तु हारे ह ठ पर
लग गया है थोड़ा-सा।”
“कहाँ?” उसने चेहरा आगे कया।
“यहाँ पे!” मने अपने ही ह ठ पर लोकेट करके बताया। उसने चाट लया। मुझे फर
हँसी आ गई।
“ कस… मूड म हो आज?”
“प त ता नारी मूड।” उसने अपने कंगन फर खनकाए।
“कुछ और बात कर? बथडे गल? तुम तो जानती हो कतना सड़ा आदमी ँ म… एक
ईमेल भी कया था।”
“एक तो हाट् सए प के टाइम म तुम ईमेल करते हो! या ज रत, या थी? खत
लख के कसी कबूतर को पकड़ा दे त!े और कसी के पोजल का इतना घ टया जवाब कोई
दे ता है या? को, म तु हारे ईमेल का टआउट मारकर लाई ।ँ अभी दखाती ,ँ आवारा
इंसान!” उसने अपने बैग म कुछ ढूँ ढ़ते ए कहा। “हाँ ये रहा!”
“ डपाटमट के टर का ब ढ़या यूज कर रही हो तुम… लीज! मेरा लैटर अब मुझे ही
न सुनाओ!!”
“नह -नह , सुन लो अपना सा ह य।” उसने अपने बैग से टआउट नकालते ए
कहा। मने यह ईमेल अपनी गहरी उदासी के पल म कया था उसे, और अब सोच रहा ँ क
य कर दया था। उसके पस के खुलते ही पूरे टे बल पर पर यूम क महक फैल गई।
“उ म! ऊहम, सुनो—
करो न जद मुह बत क , हमारा दल ये खाली है,
न गम है, न ही उ फत है, न होली, न दवाली है…
करो न…”
“ दशा लीज…!”
“नह , नह … कं ट यू!”
“समाज और जदगी के मानक से उठ चुका ँ म,
कसी को यार दे कर, यार म भी लुट चुका ँ म”
“बस बस बस…”
“तुम या सोच रहे थे क म ब त भावुक हो जाऊँगी इसे पढ़के? बॉलीवुड हीरोइन क
तरह क ँगी क इ श! तुम मेरे नह हो पाए राज तो या आ, म खुद को मटा ँ गी तु ह
उससे मलाने के लए। फर उसे ढूँ ढ़ने के बहाने हम लोग व ड टू र पर नकल जाएँगे और
बीच म सनम रे… सनम रे… गाना गाएँग? े ”
“नह ! ये मने नह सोचा था।” मेरे ह ठ मु कान म खच गए।
“तुम या साउथ क फ म यादा दे खते हो या, जसम एक ‘माचो’ हीरो को बैलस
करने के लए दो हीरोइन चा हए होती ह?”
“तुम जानना नह चाहोगी?” मने हँसते ए खुनक के साथ पूछा!
“नह ! मुझे इंटरे ट नह है। जो भी है, मुझसे सुंदर तो नह रही होगी!” उसने अपने
आगे आए बाल को पीछे क तरफ ले जाते ए कहा।
यह लड़ कय क आदत है क अगर आप कसी सरी लड़क का ज करते ह तो
वो खुद से तुलना करने क पूरी को शश म लग जाएँगी और मानगी भी नह क तुलना कर
रही ह।
“ये वाली फोटो दे खो, 512 लाइ स, और ये वाली दे खो, 600+ लाइ स। पता है म
कतनी हॉट ँ? आधा स चवालय पोज कर चुका है मुझ!े ” उसने अपने कुत के कॉलर
उचकाए।
मने अपनी कॉफ ख म क और बाहर खड़क क तरफ दे खते ए मु कुरा दया।
उसक कॉफ अभी थोड़ी बची ई थी। एक चोर नगाह घड़ी क तरफ फराई, तीन बज रहे
थे। उसक तरफ दे खा, वह मुझे ही दे ख रही थी। मने मेनू बोड क तरफ दे खा। मेनू म कुछ
खास नह था।
“चलो बाहर चलते ह, कोई मूवी वगैरह, फर म तु ह ॉप कर ँ गा।” म अपनी कुस
से उठ खड़ा आ और वेटर को आँख से इशारा कया। पीछे घूमा और उँग लय से दशा को
अपना पस समेटने का इशारा कया।
“ या? इतनी शाम म वापस डे ही कैसे जाऊँगी?”
“तो?”
बल चुकाकर हम बाहर आ गए थे और थएटर क तरफ कैब ले ली थी। ाइवर को
सनेपॉ लस का ए ेस दे कर हम कार क पीछे वाली सीट पर आ गए थे। रे तराँ का वेटर
आते व हम आलोकनाथ क ‘जोड़ी सलामत रहे’ वाली नजर से दे ख रहा था।
“तु हारे लैट म या द कत है? दो लोग क नह सकते?” उसने भ ह उचका ।
“ए स यूज मी! मेरे लैट म?” मने उसे व मय से दे खा।
“अरे, मुझे तुमपे पूरा भरोसा है!” उसने एक मु का मारते ए कहा। उसके गाल पर
डपल आ गए थे। हलवाई डपल।
“नह , मुझे तो नह है।” मने उसके रात कने के आइ डया को रजे ट करते ए
कहा।
“अरे, तुम दे ख लेना न क म कतना अ छा खाना बनाती ँ।”
“तुम कोई भारतीय सास फलॉसफ पढ़कर आई हो या? आदमी के दल का रा ता
उसके पेट से जाता है टाइ स?”
“अरे नोइ, मने कल ही म मी से राज थानी खीर बनानी सीखी है। सो आई वांटेड टू
ै टस।” उसने अपनी उँग लयाँ चटकाते ए कहा।
“नो थ स! चलो आज गुजराती ढोकला खाओ और क ट मारो यहाँ से।”
“यार, बथडे है मेरा, तु हारे लए आई ँ म!”
“जी नह , खाली हो तुम, मस म तो आ नह तु हारा। ए से राइ टग ै टस के बजाय
लवलैटर राइ टग क ै टस कर रही थी। तो घूमो खाली… अहमदाबाद या, पूरे भारत के
दो त से मल आओ।”
“यार, म ब त थक ई ,ँ ब तर पर टाँग फैलाकर सोना चाहती ँ।” उसने अँगड़ाई
लेते ए कहा। जब उसे पता चला क ाइवर पीछे के शीशे म दे ख रहा है, झट से सीधे बैठ
गई और मुझे इन आँख से दे खने लगी, “तुम जानते थे न?”
“तुम सोओगी ब तर पे… हम कमर टे ढ़ करगे सोफे पे?”
“तुम सो जाना मेरे पास… लात नह मारती ँ म!”
“जी शु या।”
“ये द त कौन है?”
“तुमसे या मतलब? तु ह तो इंटरे ट नह था।”
“इतना झुँझला य रहे हो? तु हारे बैग म फाइल पड़ी है कसी द त क !”
“अ छा… ओह… अरे वो ऐसे ही… इसका सीए ब त चालू है।”
हम शहर के लोकल मॉल म आ चुके थे। उसने मुझे रा तेभर तंग कया था। ये या
है… वो या है? तुम लोग लकर का जुगाड़ कर लेते होगे न… ओह म भी कससे पूछ रही
ँ। अरे यहाँ का कले शन अ छा लग रहा है। तु हारे लए कुछ खरीद लू? ँ ग ट तो तु ह
मुझे दे ना चा हए।
“वापस आओ! टाइम नह है जो फुदक रही हो।” उसे हाथ पकड़कर कई जगह
ख चना पड़ा।
“यार, इस टाइम तो कोई लाइट भी नह होगी?” उसने अपना 3-डी च मा उतारते
ए कहा।
“ शश… मूवी के बाद बात करगे!”
“एक से फ ल?”
“ श!”
“अ छा चलो, पेपर टू के नोट् स दो, जो मेरा छू ट गया था, जा लम वहशी कह के!”
अ छा था कॉलेज। दन कटने लगे थे। आईट चौराहे के पास कमरा लया था। आईट
चौराहा ह रयाली और पयटन क से काफ समृ इलाका है। कारण है क आईट
कॉलेज एक ग स कॉलेज है और यू नव सट के तीन-चार ग स हॉ टल भी आस-पास बसे
ए ह। वैसे तो आईट पर चाय क कान दनभर खुली रहती ह पर जब शाम को कॉलेज
और को चग छू टती ह, तब तलब सबसे यादा महसूस होती है। कोई-न-कोई काम नकल
ही आता है शाम को आईट जाने के लए। ले कन यादा मजनूँबाजी क ज रत नह है,
पास म पु लस लाइंस भी है। शु के कुछ दन म मुझे लगा क लखनऊ म रोज रात को
बा रश होती है, पर एक दन म समय से उठा और तब मुझे पता चला क मेरे सामने रहने
वाली आंट सुबह उठ के गली धो दे ती है और म इस म म रहता ँ क यहाँ रोज बा रश
होती है। मेरी सुबह क शु आत ेड बेचने वाले क प -प से होना शु ई और शाम एक
र सया स जी वाले के साथ गुजरने लगी, जो गाते ए स जी बेचता था। आलू हइइया, गोभी
भइइया…।
एक लड़का मुझसे भी बाद म आया था। शशांक। छह फ ट लंबा, भारी-भरकम और
साँवला। मजा कया ब त था। बॉडी वद ेन का लभ कॉ बनेशन। उसे कोई नोट् स वगैरह
नह दे रहा था तो मने ही दो ती का हाथ बढ़ाया। हमारे तीन स जे ट् स सेम थे। वह पढ़ने म
उतना अ छा नह था, मगर उसके पीछे एनसीसी और पोट् स कोटा लगा था। नई जगह
आदमी सबसे पहले अपना े वाद साधता है (चाहे अपने दे श के सभी जल के नाम पता
न ह )।
“कहाँ से? ग डा? म दे व रया से। पड़ोसी ए यार हम तो!” उसने हाई फाइव के लए
हाथ बढ़ाया। यह मेरे लए लखनऊ का सरा हाई फाइव था। झझकते ए हाथ आगे
बढ़ाया। उसने ताली मार द ।
“एसएसबी से नकाले गए? हम भी।” (हाई फाइव)
“अ लाहाबाद बोड? कॉ स आउट? हम भी। अ बे, वो बाय ड होते ह।”
“हाँ यार स व लयंस को ज द लेते नह ह।”
बस ये कुछ चीज कॉमन हो ग और भड़ास नकालते- नकालते हमम दो ती हो गई।
लास म उ र दे श क लगभग सभी ी-पु ष जनजा तयाँ मौजूद थ । जैस— े गीले
बाल लए लास म चली आने वाली दे वयाँ। “यार! आज म लेट सो के उठ , ज द से भाग
के आई।” हालाँ क ऐसा रोज होता था और जु फ झटक-झटककर कॉ पयाँ हमारी गीली क
जाती थ । लास म कसी का फोन आने पर अचानक इं लशो चारण करने वाली दे वयाँ या
सीधे लास से बाहर ही चली जाने वाली दे वयाँ, चाहे बाद म पता चले क ‘ य उपभो ा’
वाले याद कर रहे थे। छोटे शहर म अँ ेजी बोलने वाली लड़ कय क मु यतः दो जा तयाँ
पाई जाती ह। एक, जो धारा वाह मने लूएटं इं लश बोलती ह और सरी, ए चुली-
बे सकली वाली।
लड़के भी तरह-तरह के थे। कुछ गलती से ग स हॉ टल क तरफ नकल पड़ते थे।
हालाँ क यह गलती वे दन म तीन-चार बार कर बैठते थे। कुछ अपने जीवन का सार जान
चुके थे क बना ड ी और नौकरी के कोई भाव नह दे गा, इस लए मैडल ही एक मा ल य
है। कुछ एबीवीपी और एसएफआई टाइप छु टभैया गग जॉइन करके राजनी तक पैठ बना रहे
थे। भारतीय परंपरा, सनातन धम, बुजुआ और सवहारा। बड़े श द से नया-नया प रचय
आ था। भारतीय सं कृ त खतरे म है यू नो? कुछ पर संकट था क कौन-सी दाढ़ उन पर
सूट करेगी। शट क बाँह को कहाँ तक मोड़ा जाए? ऊपर के कतने बटन खोले जाएँ?
लड़के, मद होना चाहते थे। आइड टट ाइ सस ब त था क अलग कैसे दखा जाए। मुझे
और शशांक को समझ म ही नह आता था क हम कर या रहे ह। हम दोन खाली बैठे
पीछे लड़ कय को रे टग दे रहे थे 10 म से।
“वो वाली कतना?”
“उ म… 5।”
“वो वाली, शरारा-शरारा?”
“4!” (ब त ऑ जे टव जज थे हम दोन , कई पहलु पर यान दे ते थे।)
“वो सलवार सूट वाली?”
“नाह! नॉट वा लफाइड।”
“अरे नह ! तुम गलत एंगल से दे ख रहे हो। इस तरफ से खूबसूरत है।” वो हँस पड़ा।
“यार र जो, एक बात बताओ…”
“र जो मत बोला करो मुझे! या राज कहो या रजत कहो, समझे? र जो मुझे बलकुल
नह पसंद। बचपन से म मी ने हम लड़क बना रखा है।”
“अ छा ठ क है रजत जी!”
“बोलो!”
“ये बताओ… यार बचपन से हम गाना सुनते आ रहे ह क अबक बरस ये हाल है,
लगा सोलहवाँ साल है या फर, म सोलह बरस क तू स ह बरस का टाइप।”
“हाँ तो?”
“… और एक हम दे खो, उ ीस बसंत बीत गए एक फूल न खला…”
मुझसे हँसी आ गई। शशांक बेचारे को भारत म पैदा होने का सबसे बड़ा ःख इसी
बात से था। वो हॉलीवुड क ‘वैन वाइ डर’ और ‘रोड प बयरप ग’ टाइप मूवीज दे खता था
और अपनी 19 साल क व ज नट पर तरस खाता था। गलती से ‘ऑज ’ का नाम ले लो तो
दद के मारे ‘भारत म ेम क चतनीय थ त’ पर ा यान शु कर दे ता था। समय यूँ ही
कटता था। ए जाम सेशन के अंत म होना था, माच म, तो शेड्यूल बना लया था क जनवरी
से पढ़ाई शु करगे। 12 पेपर ह जनम दो ै टकल। 12 ह त का काम है मु कल से।
बाएँ हाथ का काम है। अभी त नक समझ ल जीवन, थोड़ा घुल- मल जाएँ लोग से। अटडस
दज कराना और ोफेसस को चेहरा दखाना ही परम उद्दे य था। इन सुंदर लड़ कय को तो
अपनी सोनजूही जैसी मु कान पर ही नंबर मल जाएँग।े हमारी भु चड़ श ल दे खकर कोई
भीख भी न दे । हम लोग के लए वाइवा भी होता है। इस लए कुछ छा , ोफेसस के टाफ
म म बैठना गौरव और स मान क बात समझते थे। लासेज सारी करते थे पर पता नह
रहता था क पढ़ या रहे ह। ान अब बँटता ही कहाँ है! ान तो अब फोटोकॉपी होता है,
चौराहे क कान पर।
अब तक लास म लगभग सबके नाम रखे जा चुके थे, तागढ़वाली, मदरडेरी से
लेकर मग-29 तक और लड़क के ढ कन, घ चू और ह क। उसका नाम रखने क ह मत
कसी ने क नह थी, हाँ कुछ लोग उसे छोटा पैकेट बड़ा धमाका कहते थे। मने और शशांक
ने आपसी सहम त से उसके नाम को शॉट कर लया था। पीडी। जब भी आती थी, ‘हाय’
करके जाती थी। मेरी को शश होती थी क इस खास मौके पर म अपनी लास के लड़क के
साथ होऊँ। कसी सरे वभाग क लड़क आपको ‘हाय’ करती है, यह अपने-आपम एक
स मान क बात है, जसे सीएस वग के लड़के वीकार करते थे। वे खोपड़ी मटकाकर लंबा
वाला ‘ह म’ करते थे और म मन ही मन पुल कत हो जाता था। पछले कुछ दन से वो
‘हाय’ से ‘हाय रजत’ पर आ गई थी और यह मेरे लए एक बड़ी उपल ध थी। शशांक को
अपना नाम पसंद था, ‘ह क’। हर लड़का अपनी जदगी म एक न एक बार जम ज र
जाता है। शशांक उसी दौर से गुजर रहा था। उसके च कर म मुझे रोज ‘जे कटलर’ और
‘ फल हीथ’ के वी डयोज दे खने पड़ते थे। अपनी हर चीज म वो अपने बाइसे स/ ाइसे स ले
ही आता था। चाहे आँसू प छने क ए टं ग हो या हाथ जोड़ने क ए टं ग। फ ज स क
लास ओवर हो गई थी और खाली समय म शशांक अपने शरीर म नई-नई जगह से गुलते
नकाल रहा था। हर गुलते के लए अलग नाम है। वही गुलता आगे नकल गया तो बाइसेप
और पीछे नकल गया तो ाइसेप। म मन म सोचता, यार ये माँस है तो एक ही।
“भाई, भाई, ये टे प दे ख… अब ये टे प दे ख…”
“बैठ जाओ मेरे टे प दर। ये बताओ क ेरणा लड़क कैसी है?”
“तुम यार हमको सी रयसली ले ही नह रहे हो। आज हम थाई के इतने सेट्स मारे क
सारे जम के लड़के क के दे खने लगे।”
“हाँ! हाँ! तुम जम म थाई-थाई मचा दए। जो म पूछ रहा ँ वो बताओ।”
“ यादा हाय/बाय नाह करो, रतेश क गल ड है।” शशांक ने मुँह बनाते ए कहा।
मुझे ऐसा लगा क शशांक के यह बोलने से पहले मेरे कान के पास एक बड़ा-सा
‘बीप’ बजना चा हए था, ता क मुझे कुछ सुनाई न दे । या बादल फटे और आकाशवाणी हो,
“शशांक झूठ बोल रहा है!”
मने उसक तरफ भाव से दे खा। उसने आँख बंद करके रवीश कुमार जैसा मुँह
बनाया, मतलब खबर प क है।
“ह म… (एक लंबा मौन… ह म…। नराशा… ठ क है… कोई बात नह … ह?)…”
“ठ क है, ठ क है। हम कुछ कह रहे ह या? अ छा सुनो, वो फोर ान क लास नह
होगी, ब ोई सर नह आए ह। बाहर चलते ह।”
“कट न ही चलते ह। चाऊमीन भी बनने लगी है वहाँ पे।”
“चलो, वैसे कौन रतेश? लास म तो दो ह।” मने सरी तरफ दे खते ए पूछा, जैसे
मुझे कोई इंटरे ट न हो।
“वो जो कनारे गटार लेकर बैठता है।”
“वो जो प सर से आता है?” (रख दया मने शशांक क खती रग पर हाथ। बेचारा
इतनी जबरद त पसनै लट होने के बावजूद रजर साइ कल से आता था। ऐसा लगता था,
गणेश जी चूहे पर बैठे आ रहे ह । उसक अपने पता जी से सबसे बड़ी खुंदक इसी बात को
लेकर थी क उसके पापा ने उसके लए बाइक नह भेजी थी। वो उसके बड़े भाई-बहन को
यादा यार करते ह, ऐसा उसका आरोप था)।
लास से नकलकर हम कॉलेज के सबसे सुकूनभरे ह से म आ गए थे। साइंस
कट न। कट न ब डंग अंदर से अ छ बनी है, पर बाहर खुले म पेड़ के नीचे, चेयर डालकर
बैठने का अलग ही आनंद है। वैसे भी हम दोन खाली थे। कोई साथ म तो था नह क अंदर
ाइवेसी के लए बैठ।
“वैसे कल उसका मैसेज आया था। पूछ रही थी क को चग टाइ मग चज ई है
या?” मने शशांक क लेट से समोसा तोड़ते ए कहा।
“अ छा?… ेरणा का? नंबर कब ए सचज आ?” शशांक ने श द को ख चते ए
कहा।
“ह म… ेरणा का…।” मने कॉलर चढ़ाते ए उसका समोसा तोड़ लया। (बचपन क
आदत है, सर को बात म उलझाकर उनक लेट साफ कर दे ना)।
“और तुमने या कहा?”
म उसका समोसा तोड़ने ही वाला था क उसने लेट ख च ली, “ र से ही बताओ,
समोसे क म ल ला नग हम समझ रहे ह।”
“मने… मने कुछ र लाई नह कया… अननोन नंबर था न…।” मने चाय उठाते ए
कहा।
“ससुर… ये तुम समोसा उड़ाने के लए बोल रहे थे न?”
“नह यार…। ऐ दलीप! भैया को एक समोसा और दे ना।”
“उधर दे खो कौन आ रहा है… ओ ह हो! मैडम का े सग सस बदल रहा है।” शशांक
ने इशारा कया।
“चुप रहो… आ गई।”
“हाय रजत!”
“हाय!”
“हाय-हाय!” शशांक ने दोन हाथ हलाते ए कहा। मने उसे घूरकर दे खा और वह
बल चुकाने चला गया। ेरणा सामने क कुस पर बैठ गई। मने दलीप को इशारा कया
और वह दौड़ा-दौड़ा आया। कॉलेज म सही इ जत तब महसूस होती है जब कट न म काम
करने वाला छोटू एक इशारे पर दौड़कर आता है। दलीप मेरे बगल आकर खड़ा हो गया,
“ या लाऊँ गु जी?” दलीप आँख ही आँख म मुझसे पूछ रहा था, “भाभी ह या?” इस
स मान क सुखद अनुभू त श द म बयाँ नह क जा सकती।
“आ यल हाव कोक।” ेरणा ने अपने बैग क चैन खोलते ए कहा।
“मैडम, थ सअप या ाइट?” इतनी अँ ेजी दलीप भी सीख गया है यहाँ रहते-रहते।
मु कुराते ए चला गया। इतने साल म उसने कतनी अँ ेजी उड़नत त रय को दे खा होगा।
वह बैग से र ज टर नकालकर आराम से बैठ गई।
“तुमने कल र लाई नह कया?” ेरणा ने बँधे ए बाल को एक बार फर खोलकर
बाँधते ए कहा। पता नह या मजा मलता है बार-बार खोलने-बाँधने म!
“ओ ह वो तु हारा नंबर था?”
“हाँ, तु हारा नंबर मने रतेश से लया था, उसने कहा था क तुम गए थे कल को चग।”
(हाँ तो तु हारा नंबर भी पता लगवा लया था। लड़क के नेटवक को कम समझी हो या?)
“अ छा ओके, म सेव कर लेता ँ।” (सेव या करोगे, पहले से ही सेव है गधे)
“कैन… कैन आई… म इसपे मैसेज भेज सकता ँ? आई मीन जो स हेहे..”
“या योर, आई वुड लव टू …”
पेड़ क प य से धूप छन-छनकर उसके चेहरे पर पड़ रही थी और मेरा दल बार-बार
बैक ाउंड यू जक म यह गाना बजा रहा था—‘तू यार है कसी और का… तुझे चाहता कोई
और है… तू पसंद है…’ इतने म दलीप को ड क और समोसे ले आया। मने समोसे क
ओर दे खा, फर दलीप क ओर। दलीप ने शशांक क ओर दे खा। समोसे शशांक ने भेजे थे
और वह काउंटर पर खड़ा होकर तरह-तरह के हँसाने वाले इशारे कर रहा था। स चे दो त
को अपनी उपयो गता इसी पल याद आती है।
वह सलवार सूट पहनकर आई थी। बीबा से लया होगा। म ‘ पेशल छ बीस’ के मनोज
बाजपाई क तरह पूछना चाहता था, “ पट् टा कहाँ है तु हारा?” पर अभी इतना कॉ फडस
आया नह था।
मन म तीन-चार बार ै टस करने के बाद मने थोड़ी झझक के साथ कहा, “अ छ
लग रही हो!”
“थ यू, आई थॉट क आज कुछ इं डयन पहनूँ!” उसने अपने कुत पर नजर फेरी और
मु कुराते ए मुझे दे खा।
“ह म, नाइस ेस!” (इं डयन नह प शयन है, पर छोड़ो, कौन जानता है!)
शाम हो गई है। कोई मैसेज नह आया है। चाय दो बार बन चुक है और टाइगर ं च
का छोटा पैकेट ख म हो चुका है। एक घंटे से लाइट नह है। कसी के इंतजार के व
कताब खुली होने से दल को संतु मलती है क टाइम टोटल वे ट तो नह हो रहा। दो बार
ट प-ट प आ तो पता चला बीएसएनएल म तया रहा था। ‘हाय म ँ शीतल और म ँ घर
पर एकदम अकेली, मुझसे कर गरमागरम बात। कॉल चाजज 2.50 पर मनट।’ युवान का
ान है क पहले मैसेज न करो। थोड़ा इंतजार कर लो। इससे से फ रे पे ट बनी रहती है।
इंतजार हो नह रहा, एक जोक भेज दे ता ँ। हाँ यह ठ क रहेगा। दो मनट हो गया है। कोई
त या नह ई है। ‘अरे कोई नह यार, इससे इ जत कम नह ई, समझ लो फॉरवड टू
ऑल म चला गया।’ मने अपने आ मस मान को सां वना द ।
ट प ट प! ट प ट प!
उँग लयाँ तुरंत हरकत म आ ग । क पैड लॉक से मैसेज बॉडी का सफर त ग त से
तय कया गया।
“हाहा!”
ऊपर कया, नीचे कया, और कुछ नह ?… ? बस हाहा? ये कोई बात ई?
अरे समझो! बेवकूफ आदमी! भारत सरकार दन म केवल 100 मैसेज अलाऊ करती
है, उसम से एक मैसेज तु ह ‘हाहा’ भेजकर खच कर दया, इंपोटट आदमी हो यार तुम।
ले कन इंतजार करो।
ट प ट प! ट प ट प!
हाय!
चेहरा खल गया। ी गणेशाय नमः, ेरणा का ‘हाय’ आया है। या र लाई क ँ ?
या र लाई क ँ ? कुछ ब ढ़या जवाब सोचो!
रजत : जाओ तु ह भी हमारी ‘हाय’ लग जाए!
पीडी : हाहा! वैरी फनी! या हो रहा है?
रजत : म… दन हो रहा है, फर रात हो जा रही है… तु हारे उधर भी यही हो रहा है
या?
पीडी : हाहा… लास म तो बड़े सीधे लगते हो तुम…
रजत : हर आदमी म होते ह दस-बीस आदमी, जसको भी दे खना कई बार दे खना…।
(कह पता न चल जाए क कहाँ से चपकाया है।)
पीडी : हाहा, इंटरे टं ग मैन! और बताओ…
रजत : और? म…।
ट प ट प! ट प ट प!
“तुम आईट के पास रहते हो?”
“हाँ… तु ह कैसे पता?”
“जब उधर से गुजरती ँ तब तुम जाते ए दखते हो, पैदल-पैदल!” (अ छा! नो टस
कया जा रहा है मुझे?)
“हाँ, उधर एक लैट लया है।” भौकाल मारते ए मैसेज कया मने। ( लैट नह 10
बाई 10 का कमरा लया था और एक कचन, पर इ जत मटे न रहनी चा हए)।
“तुमसे मलना हो तो कहाँ मलोगे?”
“कभी शाम ढले तो आईट पर आ जाना, कभी चाँद खले तो आईट पर आ जाना ☺
☺☺”
“हाहा… नाइस! को शश करती ँ शाम को मलने क …”
“पूछ लेना अपने रतेश जी से, फर ही आना!” (मने यह मैसेज जान-बूझकर उनका
रलेशन लयर करने के लए कया था। शशांक ने बताया तो था क वो कपल ह पर सीधे
पूछ लेना यादा बेहतर है।)
“गुलाम थोड़ी न ँ म! एंड ही इस नॉट माइ बॉय ड… बस पेशल है मेरे लए वो।”
उसका जवाब थोड़ी दे र बाद आया।
बस पेशल है मेरे लए वो… ँह, रे टग केल पर रखती है या ये लड़क को?
सामा य, खास… पेशल? इतने म एक मैसेज और आया।
“यार, मेरे से यादा टाइम तो वो द पका को दे ता है, नाहक इं ोड् यूस करा दया मने
इन दोन को!” उसने ये मैसेज शायद अपनी भड़ास नकलने के लए कया था।
“हाँ जो भी है, पेशल वगैरह… दे ख लेना, और आने से पहले मैसेज कर दे ना।” मने
अपनी अह मयत और बेपरवाही बघारते ए कहा। जताया क मुझे यादा इंटरे ट नह है
तु हारी पसनल बात म… जब क म उसके एक-एक मैसेज को तीन-तीन एंगल से पढ़ रहा
था। उसने ‘ओके, सी यू’ करके चैट बंद कर द । मने भी ‘कैच यू लेटर’ टाइप कर दया।
फोन ब तर पर फककर मने वापस अपनी कं यूटर ै टकल क फाइल खोल ली
और लू स क को डग करने लगा। ये ो ा स मुझे शशांक ने भेजे थे जो उससे ेक नह हो
रहे थे। घड़ी दे खी तो शाम के साढ़े पाँच बज गए थे। युवान थोड़ी दे र म मुझे को चग के लए
लेने आने वाला था। दसंबर क स दयाँ आ गई थ । लहाजन हमारे बदन पर वेटर और
मफलर भी। युवान रोज जैकेट बदल-बदलकर को चग आता था। शशांक और युवान क
जान-पहचान मने करवा द थी, मगर चूँ क शशांक ने लखनऊ आते ही सरी को चग म
एड मशन ले लया था, वह वहाँ जाता था। इस तरह मेरा को चग का साथी युवान था और
कॉलेज का शशांक। म आ खरी कोड बना ही रहा था क गली म गाड़ी क पीप-पीप सुनाई
द । मने बालकनी से झाँककर दे खा तो युवान अपनी यामाहा एफजी पर बैठा, लैक लैदर
जैकेट म शाइन मार रहा था। मुझे दे खकर उसने ज द नीचे आओ का इशारा कया।
“इतनी ज द ? अभी जाकर या करगे?” मने उसे ऊपर आओ का इशारा कया।
“को चग बंद है। शमा क चाय पए हो कभी?” उसने आँख चमका और मुँह से सद
क भाप छोड़ी।
“बस दो मनट” कहकर म कमरे म भाग आया। रोज क को चग, ै टकल,
ो ा मग से बोर होता मेरा दल बाहर घूमने को मचल उठा।
जनवरी क सुबह। घने कोहरे म हम दोन एक- सरे के सामने बैठे साँस से भाप
नकाल रहे थे। उस दन क कट न क चाय म वो बात नह थी। वो सामने बैठ मोबाइल म
खुटपुट कर रही थी और म उसके स दय का रसपान कर रहा था। पीछे कट न म दलीप
गाना बजा रहा था, ‘… अभी तो मोह बत का आगाज है, अभी तो मोह बत का आगाज है,
अभी तो मोह बत का अंजाम होगा… बड़ा दलनशी तेरा…’। म भी रे डयो क आड़ म
चुपके-चुपके गुनगुना रहा था। वह रह-रहकर मुझे घूर भी रही थी क म ये य गा रहा ँ।
हमारे जैसे आधे मॉल टाउनस क टोरी म दलीप जैसे ल डे ही बैक ाउंड का काम करते
ह। वह अ सर कॉलेज लेट आती थी। इ ेफाकन आज ज द आ गई थी। मुझे हर एक
सोच-समझकर पूछना था।
“तुम बे सकली कहाँ क हो, ॉपर लखनऊ?”
“लखनऊ नह बट हाँ… ए चुअली मेरे ट् स पंजाब म ह, पर हम लोग काफ दन से
यहाँ सैटल ह। तो अब ॉपर लखनऊ कह सकते ह… पर हम मो टली वह का क चर फॉलो
करते ह।” (पंजाब का? ब ले-ब ले!)
“और तुम?”
“म तो यह का ।ँ उ र दे श।” मने उसक तरफ दयनीय मु यमं ी भाव से दे खा,
जैसे सटर से यूपी के लए पेशल पैकेज माँग रहा ँ। भारत सरकार ने दे श को भी दे हाती
कर दया है। अँ ेज के समय सही था, कम-से-कम थोड़ा टाइल तो मार सकते थे। कहाँ से
हो? यूनाइटे ड ॉ वसेज। कतना टाइ लश नाम था… येह आई हैल ॉम यूनाइटे ड
ॉ वसेज, यू सी। अब या है? नवास थान—उ र दे श! गरीब दे श!
“पापा या करते ह?” अगला सवाल भी मने सीधे पूछा था।
“मेरे पापा? ह म… पापा का कैट रग बजनेस है।” उसने बेतक लुफ से जवाब दया
और अपने बैग क सामने वाली पॉकेट से स के नकालने लगी बल चुकाने के लए।
उसक अजीब आदत है, ढे र सारे स के बटोरकर रखने क । मने उसे पछली मुलाकात म
चढ़ाया भी था क तु हारी वजह से माकट म ल व डट कम हो रही है।
जब उसक नजर सामने पड़ी, म हँस-हँसकर लोटपोट आ जा रहा था।
“ या आ, हँस य रहे हो?”
(तु हारा बाप हलवाई है? हीहाहा… म इतनी दे र से पता जी के लए केन कां े टर,
डेरी बजनेस जैसे नाम सोच रहा ,ँ और तु हारा बाप हलवाई है। अब तो सीधे बोलूँगा…
सुनो! मेरे पता जी कसान ह… हलवाई?… सही है, शाद म कैट रग का काम उ ह को दे
दगे।)
“ या आ, य हँसे जा रहे हो?” उसने सवाल हराया।
“कुछ नह … खाते-पीते घर से हो तुम, आयँ? वही म सोचूँ क इतनी मोट य हो
तुम… ेरणा हलवाई।” यह कहकर मने उसके गाल ख च दए।
“म और मोट ? इतना लीन फगर है मेरा क…” उसने अपना सीना उठाया जससे पेट
पचक जाए और कमर का पतलापन दख जाए।
“नोइ नोइ नोइ… मेरी नजर से दे खो, तु हारे अंदर एक हलवाई छपा है।” म हँस पड़ा।
आज पहली बार, इस अचानक हँसी के ण म मने उसके गाल ख च दए थे। मुझे
धीरे-धीरे एहसास आ क अभी-अभी मने या कया है। वह उठकर बल पे करने चली गई
और म मू त जैसा बैठा अपने अँगूठे और उँगली को दे खने लगा। ऐसा लगा क मेरी उँग लय
म थोड़ा गुलाबीपन और मखमलीपन उतर आया है। मने जीभ को दाँत से काटकर अपने-
आपको यक न दलाया क अभी-अभी या आ है। मने उसे जाते ए दे खा, फर अपने
हाथ को दे खा। वह दलीप के पास गई, दलीप ने मुझे आवाज द , मने बल न लेने का
इशारा कया। वह आई और अपना बैग मेरी पीठ पर मारकर चली गई। मने उसे जाते ए
नह दे खा, वो ज री नह था मेरे लए। म अभी दो मनट पहले के उस पल को कैद कर
लेना चाहता था। वो मेरा पहला पश था। म अपने अँगूठे और उँगली को ही दे ख रहा था।
मने अपनी आँख बंद क , उँगली को अँगूठे पर रगड़ते ए अपनी नाक के पास ले गया और
एक लंबी साँस ली। फर अपना हाथ खोला और हाथ क रेखाएँ दे खने लगा, जैसे उ ह म से
उसे ढूँ ढ़ नकालूँगा। तब तक दे खता रहा, जब तक दलीप ने आकर टोक नह दया, “भैया,
अब तो हसाब कर दो!”
रात के एक बज चुके थे। पाँच मस कॉल युवान क भी पड़ी थ । फर कॉल आएगी तो बात
हो जाएगी। मने टे बल लप ऑफ कर दया और ब तर पर आ गया। मुझे कॉल कर लेनी
चा हए, दशा को तो नाराज कर ही चुका ँ, युवान को नह क ँ गा। अभी तो सो रहा होगा।
सुबह दे खगे। सुबह से शाम होने के बीच यह बात तीन बार याद आई। गीजर से पानी भरते
व , लंच म कॉफ पीते व और एक बार और याद आया था। तीन बार म कुछ सोचकर
भूल गया। शाम को ऑ फस से घर लौटने के बजाय पाक चला आया। चुपचाप बैठ गया।
अपनी आँख बंद क , अपनी जदगी को अपने सामने इमे जन कया और खुद से पूछा,
“ या म खुश ? ँ ”
खुश ँ म। मुझे और कोई खुशी नह चा हए। दशा भी नह । मुझे खुशी इस सूने पाक
के कोने म लगे जामुन के नीचे मलती है। इस बत क बच पर अकेला बैठा म, अपने कल
और आज को जोड़ता रहता ँ। कभी-कभी भूरी आँख वाला एक छोटा दे सी प ला मेरे
साथ खेलता है और म म त रहता ँ। म उसके लए सबसे यादा सुलभ ँ। इतनी आसानी
से म और कसी से नह मलता। वो मेरी गोद म चढ़ जाता है। म सोचता ,ँ चलो, कसी ने
तो मेरी गोद म सर रखा। अँ ेजी प ले तो कइय क गोद म जाते ह, अभाव तो हम दे सी
प ल का है। अ छा दो त है वो, मुझे पाक के गेट तक छोड़ने आता है। उसे रह-रहकर मेरा
घड़ी दे खना नह पसंद। कभी-कभी तो कई घंटे गुजर जाते ह क यु नट पाक म बैठे ए।
जैसे कसी झटके का इंतजार कर रहा ँ, या जैसे यह उदासी मुझे पसंद है।
घर लौट आया।
डोरबेल बजी तो सामने ेसवाला खड़ा था।
“साब कपड़े!”
“हाँ दे दो!”
उसने गनना शु कया, राम, दो, तीन, चार… तेरह। उसके जाने के बाद एक
ं यभरी मु कान मेरे चेहरे पर उभर आई। पहले मेरे पास बाहर पहनकर आने-जाने वाले
गने-चुने कपड़े होते थे। एक या दो सेट। तब कपड़े दे खकर दे ता था, अब गनकर दे ता ँ।
ँह। अलमारी म एक तरफ पड़ी काई लू शट ने मेरा यान ख चा। यह शट अब नह
पहनता म। य नह पहनता? य क छोट हो गई है। यह कब खरीद थी मने? एक मनट,
एक मनट। ये तो युवान क है। ओ तेरी! यह तो वही शट है जो उसे कसी लड़क ने
वैलटाइन ग ट क थी और मने छ न ली थी। अभी तक वापस नह क मने? क! अभी
फोन करता ँ साले को! फोन उठा, नंबर डायल आ और फर अचानक कसी पुरानी याद
ने मेरी उँग लयाँ रोक द । दल क धक्-धक् तेज हो गई। फोन वापस रख दया। साँस
सामा य । मने शट हाथ म उठाई और बालकनी म चला आया। आमचेयर का सहारा
लेकर बैठ गया। शट को अपने सीने पर चपटा लया और चेहरा झुका दया। इसे कतनी
बार मने ही पहना है, पर पता नह य लगा क इसम से युवान क खुशबू आएगी। आँख
बंद कर सूँघने लगा।
या दन थे वे? और वो कौन-सा खास दन था जस दन वह इसे लेकर लाया था।
2010 का वैलटाइन डे। भाईसाहब सुबह-सुबह ही तैयार होकर, अपनी एफजी चमकाकर
नकल गए थे। और मेरे लए यह सफ एक नॉमल दन था। मने रोज क तरह सुबह उठकर
चाय बनाई थी। म अपनी टडी टे बल पर वराजमान था। पीछे मेरे दरवाजे पर शशांक जी
का अवतरण आ था, जो मेरा कचन पहले ही चेक कर आए थे और दे ख आए थे क उनके
लए चाय बची है या नह । चाय न मलने क कंडीशन म ही वो रोष जताते ए प ँचे थे। मेरा
कमरा पहली मं जल पर था। कमरे के बगल ही कचन और कचन के बगल ही वॉश म
था। सामने थोड़ी-सी छत थी। सी ढ़याँ घर म वेश करते ही बाहर से थ , जससे कोई भी
मकान मा लक से मले बना सीधे मेरे कमरे म आ सकता था। शशांक आते ही सीधे
वॉश म या कचन म ही जाता था। वैलटाइन डे के दन उसका भी कोई ठकाना नह था।
वैलटाइन डे क उस रोमां टक बा रश म हम दोन ही अभागे थे। अपने-अपने तर के
अभागे। हम दोन के जीवन म सूखा पड़ा था और युवान जी बाढ़ राहत काय पर गए थे।
शशांक अपने इस अभागेपन को खुलकर वीकारता था और म अपनी अकड़ म रहता था।
“रजत भाई, आज डे कौन-सा है?” मुझे छे ड़ते ए बोला और मेरे बेड पर पसर गया।
मने उसे पलटकर एक बार दे खा, फर अलमारी म रखे अपने डओडरंट क तरफ दे खा। मेरा
कमरा बाबूगंज म था जो यू नव सट से एकदम पास, 200 मीटर क री पर था और शशांक
का अलीगंज-यू नव सट से दो कलोमीटर क री पर। शशांक पहले मेरे म पर आता,
अपनी रजर साइ कल खड़ी करता और हम दोन साथ कॉलेज पैदल जाते थे। आज
यू नव सट जाकर अपनी इ जत उतरवाने का कोई मतलब भी नह था। शशांक रोज चलने
से पहले मेरे डओडरंट पर धावा बोलता था, इस लए म उसके आते ही उसे छु पा दे ता था
और डम कूल आगे कर दे ता था… क बेटा, इससे जतना कूल होना है हो लो। नह मतलब
अगल-बगल छड़क लो ठ क है, पर पूरे छह फ ट क काया पर घुमा-घुमाकर डीओ से
नहाना कहाँ का इंसाफ है! ऊपर से तु ह कोई सूँघने वाला भी नह है।
मने चाय क चु क ली। कप टे बल लप के बगल रखा, अपनी उँग लयाँ चटका और
फर उसक तरफ दे खते ए कहा, “दे खो! आज है मंडे! और कोई ‘डे’ नह है, समझे? और
कसी और ‘डे’ क याद दलाई, तो घूँसा खाओगे।” मने अपना घूँसा लहराया।
शशांक ने मुँह लटका लया, “रजत मेरे भाई! तु ह नह लगता क एक लड़क होनी
चा हए जदगी म?”
मने अपनी कुस , टडी टे बल से उसक तरफ घुमाई, “दे खो भाई शशांक! इस बारे म
कोई बात नह होगी।”
“मगर फर भी…”
मने उसे घूरकर दे खा। उसने आगे का डायलॉग मुँह म ही रोक लया।
“भाई! कह घूम के आते ह यार। युवान क बाइक लेते ह और कह चलते ह।”
“तु ह लगता है आज उसक बाइक खाली होगी? सुबह-सुबह ही टॉम ू ज साहब बन-
ठन के नकल गए ह।”
“चलो यार, पैदल ही टहलते ह। बाहर नकले तो! दे ख या माहौल है बाहर का? तु ह
पता है बाहर या मौसम है?”
आज के दन पढ़ने- लखने का मन मेरा भी नह था। मेरे अंदर भी कुलबुलाहट हो रही
थी क दे ख तो बाहर या हो रहा है। मने उसक पैदल टहलने क सलाह मान ली। कताब
बंद क , कमरे म ताला लगाया और शशांक के कंधे पर हाथ रखे नकल पड़ा। शशांक शनैः
शनैः अपना दद बयाँ कर रहा था। ए स लेन करते-करते वाब क नया म चला गया,
“भाई, हर तरफ यार क क लयाँ खल रही ह, प ी चहचहा रहे ह, वो झाड़ी के पीछे , वो
झुरमुट के नीचे… और हमारी जदगी म या है? उजाड़, सूखा! ये या है रजत? ये सब या
है?”
हम टहलते-टहलते सड़क पर आ गए थे। अब धीरे-धीरे हजरतगंज क ओर बढ़ रहे थे।
हजरतगंज पुराने लखनऊ क जान है। और शायद ‘शाम-ए-अवध’ हजरतगंज क ही शाम
को कहते ह। दन कुछ नॉमल ही लग रहा था। आसमान साफ था और सद क गुनगुनाती
धूप खली ई थी। हवा भी ह क -ह क बह रही थी। कह -कह एकाध जोड़ा बाइक से
नकल जाता था जो र से ही अलग दख जाता था, य क उसम लड़क ाइवर के ऊपर
चढ़ होती थी। शशांक छे ड़ता—“भाई वो दे ख! वो दे ख!” बाक लोग अपने काम म ही लगे
ए थे। हमने तय कया क हम लालबाग म लखनऊ के सबसे फेमस चायवाले शमा
चायवाले के यहाँ चाय पएँगे और वहाँ से सहारागंज मॉल जाएँग।े अगर मूवी का टकट
स ता आ तो मूवी भी दे ख लगे। हम दोन जानते थे क आज के दन टकट स ता होने का
कोई चांस नह है, फर भी हम दोन खुद को छलावा दे रहे थे क हम भी अपनी जदगी म
खुश ह। हमने ढाई सौ ाम चने पैक कराए थे और वही फाँकते ए जा रहे थे। रह-रहकर
शशांक का सगल होने का दद छलक आता।
“भाई, आज के दन पूरा लखनऊ सजा आ है। सहारागंज मॉल, वेव, फन, फ न स,
आच ज गैलरी, सब सजे ए ह। सब रेड और वाइट बलूंस से अपनी कान सजाए ए ह।
मने पता कया, साला कल तक जो गुलाब 20 का था, आज 70 का मल रहा है।”
“तो? तु ह या लगता है, यार स ता है? आज के दन अपनी कान कसने सजा ?
जसे मुनाफा कमाना है! समझे? यार एक कै पट ल टक अवधारणा है। इस दन को
हाईलाइट वही करगे जनको इससे ॉ फट होता है, कैड् बरी और आच ज गैलरी जैसे ांड
समझे?” मने एक नया पतरा फका।
“मगर यार, एक उ के बाद इस शरीर क कुछ माँग भी होती ह। यार, कुछ डमांड
होती है। ये स त ह ड् डयाँ, कड़कड़ाता शरीर, कभी-कभी कुछ नरम को अपनी बाँह म
भरने क कामना करता है यार।” उसने चलते-चलते हवा को ही अपनी बाँह म भरने क
को शश क । “यार रजत… लड़क होनी चा हए यार।”
“ये सब यार- ार, इ क-खुमारी, पेट भरे होने के बाद के वचार ह। दो दन भूखे रहो
तब दे ख क शरीर कस चीज क डमांड पहले करता है।”
“सच म यार?”उसने मेरी तरफ कौतूहल से दे खा, फर अपने चेहरे का ए स ेशन
बदला। “ फर ये पू ड़याँ खाकर गलत कया मने। सुबह-सुबह पू ड़याँ न खाई होत तो ये गंदे
वचार न आते। शट!” उसने अफसोस कया। मने भी अपने अकाट् य तक पर संतोष कट
कया क चलो, अब कुछ दे र तो यह चुप रहेगा। मगर थोड़ी दे र बाद फर—
“यार रजत, मगर लड़क होनी चा हए भाई!”
“हाँ, लड़क तो चा हए!” (मने उसे इस नजर से दे खा क अगर मुझे भगवान वरदान
दे ते तो म तु हारे लए अभी लड़क बन जाता।)
“मुझे स चा यार कब मलेगा भाई? रजत! बताओ यार!” उसने उदास, उतावली
आँख से मेरी ओर दे खा।
म गंभीर आ। उसक आँख म दे खता ए बोला, “भाई! बरगद के नीचे दे शी घी के
दए जलाओ,” और गंभीर यो तष क तरह पलक झपका ।
“भ क साले! तुम फरक ले रहे हो!” उसने मेरी गदन मरोड़ी। थोड़ी दे र बाद फर
फलॉस फकल हो गया, “ये जो उँग लय के बीच खाली जगह दे ख रहे हो, ये पोर ह! रजत
मेरे भाई, ये कसी के भरने के लए ह।” उसने अपनी हथे लयाँ अपने चेहरे के सामने ला ,
फर उ ह पलटकर दे खा।
मने उसक उँग लय म अपनी उँग लयाँ डालते ए कहा, “लो भर गए तु हारे पोर!”
उसने एक ठं डी आह भरी, “तुम कौन-कौन से पोर भरोगे मेरे दो त?”
“भ क! साले हरामी।” मने तुरंत अपनी उँग लयाँ ख च ल । वह हँस पड़ा। म नह
पकड़ पाया था क पोर क यह फलॉसफ वह पोन कर दे गा।
उसे एक नया आइ डया सूझा, “ य न हम लोग बजरंग दल या शव सेना जॉइन कर
ल। जतने लोग आज के दन यार कर रहे ह , सब को कंटा पत कर?”
“अबे पागल हो या! अपना युवानवा भी होगा कह पे। मेरे पास एक नया आइ डया
है (मने आँख मारते ए कहा)। हम लोग एक नया दल बनाएँग।े यार बाँटने वाला दल।
कृ णा क हैया दल।” मने आ खरी मूठा चना उठाते ए कहा। उसने वतृ णा से ‘यह संसार
न र है’ वाली हँसी हँसी। बात ख म हो गई। वापस आकर मने चाय चढ़ा द । जब उसे चाय
पीनी होती थी तो वह म ल ला नग म ब कुट पहले ही खरीद लेता था, फर म जबरद ती
उससे ध भी खरीदवाता था। हम सारा शहर घूम-घुमाकर वापस लौट आए थे और कमरे पर
लौटकर दनभर के दे खे ए कप स क ववेचना कर रहे थे। एक लड़क ब त यूट थी और
उसका बॉय ड ब त भु चड़ था। यह बात हम दोन को नह पची थी। यह हमारी वप
को और गहरा कर रही थी। हम दोन छत क रे लग पर खड़े वलाप ही कर ही रहे थे क
नीचे मोटरसाइ कल क दगदगदग सुनाई द । झाँककर दे खा तो टॉम ू ज लौट आए थे।
उसने हाथ हलाकर हाय कया, हम दोन ने हाय भी नह कया। अपनी-अपनी चाय के घूँट
लए। हम दोन म करार आ क कोई इस सुपर लक आदमी से बात नह करेगा। हम दोन
जलन म मरे जा रहे थे। वो खट् खट् खट जीना चढ़ता आ आ रहा था और हम दोन सरी
तरफ दे ख रहे थे। कुढ़न के मारे हम उससे बात भी नह करना चाहते थे। अभी यह आएगा
और अपने रोमांस के क से सुनाएगा। सुपर लक हरामखोर! हमारी ही तरफ आ रहा था,
हम सरी तरफ दे ख रहे थे। समझौता अपनी जगह बरकरार था, मगर उसके हाथ म तीन-
चार ग ट् स के ड बे दे खकर हमने उस पर हमला कर दया।
जैसा क पुराण म मलता है क ‘काकभुशुं ड ने ग ड़दे व का सब कार से स कार
करने के बाद, उनक सेवा-शु ूषा करने के बाद उनके आने का योजन पूछा’, उसी कार
हमने युवान क लाई सब कार क चॉकलेट्स खाने के बाद, उसके सारे ग ट् स उधेड़ दे ने
के बाद उसका हाल पूछा, “सर आपका दन कैसा रहा?” मेरे लए सबसे अ छ बात यह है
क मेरा और युवान का साइज सेम है। डट् टो सेम। शशांक यहाँ मात खा जाता है। इस
समय उसे अपनी छह फ ट हाइट और चे ट पर गव नह होता। मने युवान को ग ट म मली
काई लू शट पहन ली थी। मुझे एकदम फट भी आई थी। उसे कसी अमीर बाप क बेट ने
ग ट क थी। मने कहा क म उसे कभी वापस नह क ँ गा। उसने कहा, “रख लो, बस जब
उससे मलने जाऊँ तो पहनने के लए दे दे ना।” शशांक को कुछ नह मला तो उसने युवान
क रेड टाई गले म पीछे क तरफ लटका ली। उसको लगा क उसक लैक ट -शट पर यह
टाई कूल लगेगी। फर हम दोन क नजर अचानक एक घड़ी पर पड़ी। हम दोन उस पर
झपटते, उससे पहले युवान ने घड़ी उठाकर अपने हाथ म ले ली।
“नह , ये घड़ी नह ँ गा!” पहली बार युवान ने कसी चीज के लए मना कया था।
घड़ी साधारण-सी थी। महँगी नह थी। युवान के पास उससे भी अ छ कई घ ड़याँ ह। फर
भी उसने मना कया। हम दोन कौतुक भरी नजर से उसे दे खने लगे।
उसके चेहरे पर कोई याद घर आई और ह ठ पर एक मु कान खल आई। हम दोन ने
एक साथ चुटक बजाई, तो उसने ए स लेन करना शु कया—
“यार, एक सपल-सी लड़क , ब त सुंदर नह , मुझे ब त अलग लगी। वो ठ क से
अपनी बात नह कह पाती है। पर कुछ अलग है उसम।”
“अ छा? यार आ है, मढक को जुकाम आ है? आँय?”
“अरे नह यार… वो लड़क …”
और हम दोन के चेहरे पर अगला अटका, “कौन-सी लड़क भैया?”
“यार, म जहाँ को चग पढ़ाने जाता ँ, उसके सामने वाली ब डंग म रहती है। अमृता
नाम है उसका।” युवान मयाँ खोए-खोए ही ब तया रहे थे, “यार, उसने कुछ और नह दे खा,
उसने सफ मेरा दल दे खा।”
“शट उतारना जरा, हम तो कभी नह दखा तु हारा दल, हम भी दे ख!” शशांक को
म ती सूझी। शशांक क एक ब त बुरी आदत है सर क शट उतरवाने क , फर अपनी
बॉडी से तुलना करने क । युवान ने उसे झटक दया।
“वो सामने वाले अपाटमट म रहती है? अबे वहाँ से तु हारी को चग का बैनर नह
दखता साफ-साफ, उसे तु हारा दल दख गया? मुबारक हो! भैया, लड़क नह टे ल कोप
पटाए ह।”
“अबे नह ! वो ब त सीधी है यार। पता है, मने उससे लट कया क या बात है,
ब त नखरती चली जा रही हो, या राज है? तो उसने मु तानी मट् ट के पैकेट क फोटो
ख च के भेज द क ये लगा रही ँ आजकल। हाहाहा।” वो हँस पड़ा।
मने और शशांक ने एक- सरे के चेहरे क तरफ दे खा, “भाई मैटर सी रयस है।” कभी-
कभी मेरे और शशांक के मुँह से एक ही डायलॉग एक साथ नकलता है। यह वही मौका था।
“महाराज! आप अब तक कतनी लड़ कय को टहला चुके ह?” शशांक ने उँग लय
से दस का ऑ शन दे ते ए पूछा।
“कभी गनती नह क ।”
“तो ऐसा है महाराज! आप टॉम ू ज नह , टॉम लूज ह, और आपको ये यार- ार
शोभा नह दे ता है। समझे?”
मने भी तवाद कया, “दे ख रहे हो शशांक, भाई के जीवन म लड़क इंपोटट हो रही
है, हमारी दो ती अब खतरे म है।”
युवान ने मेरे और शशांक के गले पर हाथ रखा और कहा, “लड़ कयाँ तो ब त आती-
जाती रहगी, हमारी दो ती पर कभी आँच नह आएगी।”
…
…
“हमारी दो ती पर कभी आच नह आएगी।” यह डायलॉग एक बार शशांक ने भी मारा
था। कतने अ छे दन थे वो? मने एक ठं डी आह भरी और उस काई लू शट को वापस
सूँघा। शायद इस बार उसम से युवान क खुशबू आई। इससे पहले क मेरी आँख म आँसू
आते, मने उ ह पलक फड़फड़ाकर सुखा दया। म कॉल क ँ युवान को? कल उसक पाँच
मस कॉ स थ । उसका मैसेज बारा पढ़ा। “ज री है कॉल बैक करो!” या ज री हो
सकता है? सारी ज री चीज तो हो चुक ह हमारी जदगी म। अब या रह गया ज री?
मने उसके मैसेज को तबारा पढ़ा। फर दशा को नाराज करने के प ाताप म फोन मला ही
दया। तीन घं टया खाली ग । चौथी पर उठाया।
राज : हे लो … यू… वान?
युवान : हाँ… युवान… युवान सघा नया, नाम पूरा भूल गए हो तो?
राज : हाहा… मार लो ताने, हक है तु हारा… साइलट पर कर रखे थे या?
मने फे म लअर होने क को शश क और उसके कटा को टाल दया।
युवान : म…। इधर काफ बजी चल रहा है सबकुछ। तुम बताओ, तुम कैसे हो?
राज : म…? या उ मीद करते हो कैसा होऊँगा? (एक लंबी ज हाई) घर-ऑ फस-घर
को जदगी कहते ह तो जी रहा ँ।
युवान : जी तो नह रहे हो?
राज : खुद को ब त त कर लया है मेरी जान… ये सब छोड़ो, लखनऊ म सब
कैसा है?
मने उसके कटा को फर टालना चाहा।
युवान : ब त यार नह करते हो मुझसे जो इतना हक जता रहे हो! य त हो…
वकलोड यादा है?
राज : नह … ऐसा भी नह है…
युवान : फर? घर गए थे… गाँव?
राज : नह , एक साल हो गया…
युवान : वही तो… मने सोचा क लखनऊ आए और बना मले चले गए…
राज : या जाएँ गाँव…
कुछ दे र तक चु पी रही, 30 सेकंड बना बोले चले गए… मुझे लगा क मुझे अब फोन
रखने के लए पूछना चा हए। कुछ अजट होता तो वह खुद ही बताता। फर उसी ने चु पी
तोड़ी…
युवान : मेरी इंगेजमट है… इसी महीने… और तुम आ रहे हो!
राज : कमाल है! पहले शाद … उसके बाद इंगेजमट?
युवान : ताना मत मारो! तुम आ रहे हो न?
राज : कुछ… कह नह सकता… मेरा इंटर ू है…
युवान : कुछ कह नह सकता का या मतलब है? और अब कस चीज का इंटर ू है?
बन तो गए इनकम टै स ऑ फसर?
राज : भारत म एक आईएएस नाम क भी चीज होती है…
युवान : वो म नह जानता, तुम आ रहे हो, वरना या मतलब है ऐसी इंगेजमट का!
राज : इतनी अह मयत है मेरी? शाद तो मेरे बना ही कर ली थी, और…।
टूँ टूँ … फोन कट गया था। अंदर नेटवक कमजोर था इस लए म बाहर आ गया और
बारा कॉल कया।
युवान : तुम पछली बात को भूल नह सकते, कुरेदना ज री है?
राज : भूल तो रहा ँ… वो सारी चीज भूल रहा ँ। उन सब चीज का अ छा इलाज
मला है मुझे, मेरा अकेलापन। ऐसा नह है क म तुम से पेशली कट गया ।ँ सबसे र ँ।
युवान : रजत, एक बात बताओ। कसी को ठं ड लगती है तो वो गरम कपड़े पहनता है
या अपने-आप को आग लगा लेता है?
राज : युवान, तुम एक बात बताओ। कसी हेलमेट पहने आदमी को सर म खुजली
होती है तो वो हेलमेट के ऊपर से खुजाता है या हेलमेट नकाल के फक दे ता है?
युवान : मुझे तुमसे फलॉस फकल बहस नह करनी है। इंगेजमट इसी 26 को है। काड
भेज ँ गा।
राज : 26 फरवरी! शशांक के बथडे के दन?
युवान : तु ह याद है उसका बथडे? वश भी कर दे ते पछले साल!
राज : एक अमे जग चीज बताऊँ? साल म एक दन मेरा भी बथडे आता है, पर
जदगी सफ एक- सरे को बथडे वश करने तक नह होती।
युवान : बड़ी अ छ दो ती चल रही है हम तीन क ! ‘वी द दस ॉम डफरट मदस’
क ? उसने तु ह लॉक कर रखा है, तुमने मुझे लॉक कर रखा है।
राज : मने तु ह लॉक नह कया। मने अपनी आईडी ही डीए टवेट कर रखी है।
युवान : तो? तीन महीने बाद मुझसे बात कर रहे हो! शशांक से तो कॉलेज के बाद से
बात ही नह क तुमने।
राज : बीच म एक बार क थी। या फक पड़ता है?
युवान : या आ हमारे ‘ जदगी न मलेगी दोबारा’ वाले लान का। पेन छोड़ो हम तो
साथ म नेपाल भी नह गए!
राज : सारी गलती मेरी थी? उस दन या आ था?
युवान : उस दन कुछ नह आ था रजत। कुछ भी नह । म भी बैठा आ था वहाँ पे।
जतना आ उससे यादा तुम दोन अपने मन म सोच ले गए। सारी गलती तु हारी नह थी,
पर या तुमने उसे समझने क को शश क ? वो कहाँ उन चीज को सी रयसली लेता था?
य नकले थे शशांक सुधार ोजे ट पर? जैसा था वो, वैसे ही उसे ए से ट करते। उसक
हर फ लग को शेयर न करते पर महसूस करते? म तो कुछ नह था, सबसे अ छा दो त वो
तु ह मानता था अपनी जदगी म।
राज : म काहे का दो त था? जो आदमी अपनी फोन क गैलरी तक मुझसे छु पाता है
वो कैसे दो त हो सकता है मेरा? बाद म जब द ली से वापस आया था, बीच म, मेरे म पर
य नह का था? जान-बूझकर होटल म का था। म पराया हो गया था? और जब मलने
गया… उसे पता है क मुझे सगरेट से स त नफरत है, वो पीना शु कर दे ता है और मेरे
सामने पीता है, मुझे इस बहकावे का क फट तो दे सकता था क मेरे सामने नह पीता।
युवान : अपने सप स और ईगो से नीचे उतर के तुमने कभी ये जानने क को शश
क क वो कतना अकेला है? य ऐसा हो गया वो? य इतना बदल गया वो? य क
पहले ‘तुमने’ उसका साथ छोड़ दया। उसक एक छोट -सी गलती क वजह से। और तु हारे
उस ‘ टे टमट’ का कतना गहरा असर पड़ा उसपे, जानते हो? मेरे पास रात के दो बजे
उसका फोन आता है, नशे क हालत म। कहता है क… खैर… हर आदमी अपने आप म
अधूरा है रजत। कोई पूरा नह है। पहले भी तुम दोन मै रड कपल क तरह झगड़ते ए मेरे
पास आते थे, पर हमेशा साथ रहते थे। द कत तो तब शु ई जब दोन म से एक ने
झगड़ना बंद कर दया।
राज : या क ँ ? उसे ःख बटोरने म मजा आता है। पता है, बीएससी थड ईयर क
हाट् सए प क वसशन सेव कर रखी है। वो सुना रहा था क मने तब या बोला था। उस
बात को अब तक लेकर बैठा है। म उस चीज क सफाई अब ँ ?
युवान : दे खो, तक सबके पास ह, पर कभी तुमने ये दे खा क उन तक के पीछे तुम
दोन का अहं काम कर रहा है। अपनी-अपनी अकड़ म र ते कुबान हो जाएँगे और हाथ म
या रह जाएगा? सफ तक। फर बैठना अकेले और रोज अपने तक को धारदार करना।
ले कन सुनने वाला कोई नह होगा। तुम दोन क ईगो म म पसता ँ। तु ह पता है, तुम दोन
के च कर म कतनी शाम बबाद ई ह मेरी! और सुन लो, कोई पो टमैन नह ँ म… मुझे
कहना था सो कह दया।
युवान का वर धीमा हो गया था। उसक आवाज म थकान उभर आई थी। चुंबक के दो
सामान सर को जबरद ती मलाने क थकान। पाँच गुजरे साल क थकान। उसने एक
ठं डी आह भरी, मगर फोन चलता रहा। हम दोन एक- सरे क साँस सुनते रहे। थोड़ी दे र
बाद मने ही चु पी तोड़ी।
राज : चलो, फर होती रहेगी बात… फोन रखूँ अब?
युवान : म ‘हाँ’ समझू?
ँ
राज : अ म… (एक गहरी साँस)…। कह नह सकता…
युवान : म फोन क ँ गा…
ट नग पॉइंट
टै गोर लाइ ेरी के सामने वाला पया मलन पाक। जस पाक म कप स बैठते ह, हम उसे
यही कहते ह। एक तरफ झा ड़याँ ह जहाँ ट् यूबवेल लगा आ है, सरी तरफ खाली मैदान है
जहाँ स दय म टू डट् स धूप लेते ह। सामने लाइ ेरी है, पीछे फ वारे ह जसके पीछे से रा ता
साइंस डपाटमट क तरफ जाता है। हॉ टल से आने वाले ब चे इसी रा ते से गुजरते ह।
आम के पेड़ के नीचे और पीछे फ वार क तरफ पीठ कए हम बैठे ए ह। पाक म और
कोई नह है। हम ज द आ गए ह। मेरा कंधा है, उसका सर है। और दो न दयाँ ह जो
अनवरत बहती जा रही ह। सुबक-सुबककर उसे सारी बात याद आ रही ह। वह कसी छोटे
ब चे क तरह सुबक रही है, जसक टॉफ छ न ली गई हो। मुझे समझ नह आ रहा है क
उसे चुप कराने के लए कौन-से श द का चयन क ँ ? म कुछ इं लश म दलासा ँ ? ‘मूव
ऑन’ या ‘ज ट गेट ओवर इट’। मेरे अंदर कुछ दाश नक वचार भी आ रहे ह, जैसे ‘ यायतो
वषया पुंसः…” या सब न र है टाइप, पर उससे आगे चलकर मुझे ही द कत होगी। या
म क ँ क सब ठ क हो जाएगा? कोई मर थोड़ी न गया है जो यह क ँगा। फर या क ँ? म
जरा-सा उस लड़के क बुराई क ँ गा क मेरे अपने नॉ मनेशन का स नल जाएगा। यह तो
मेरे अपने लाइन मारने जैसा हो जाएगा? मुझे महसूस आ क म काफ संवेदनशील थ त
म ँ। म बस एक अ छा इंसान ँ जो तु हारी तड़प नह दे ख पा रहा है। बस हम अ छे दो त
ह। मूव ऑन। और या? सीधे बैठ जाता ।ँ वो बात अलग है क उसे दे खने के पहले दन से
मेरा उसपर झुकाव है। म कतना वाथ ,ँ वह मेरे बगल बैठे रोए जा रही है और म ँ क
अपने ही बारे म सोच रहा ँ।
मने अपने शरीर का एक-एक रोआँ कैसे सी मत करके और अपने हाथ को कैसे
बाँधकर रखा है! अपनी रीढ़ क हड् डी का पूरा योग करके एकदम सीधा बैठा आ ँ। पर
म अपनी इन आँख का या क ँ जो कसी अंडे के ठे ले के पास घूमते ए कु े क तरह
उसे दे ख रही ह। और उसक आँख? रो-रोकर लाल हो गई ह। वह जो अभी रो रही ह तो
कल रात कतना रोई ह गी। उस बेवकूफ के लए जो उस लड़क के साथ घूमने गया है। मुझे
कसी पुरानी पढ़ क वता क पं याँ याद आती ह, ‘… तेरी रात कैसे गुजरी तेरी आँख कह
रही है’..। सुबक-सुबक। मेरी आधी शट गीली होकर नमक न हो गई है। मने कल ही धोई
थी। अब इसे शायद म कभी न धोऊँ। वह आँख, नाक और मुँह, तीन से रो रही है। “पता है
र जत, ये दोन मुझसे छु प-छु प के रात के दो-दो बजे बात करते थे। दो बजे, पता है दो
बजे।” उसने मुझे उँगली के इशारे से बताया, ता क मुझे व ास हो जाए। “हाँ दो बजे। टू ओ
लॉक। मुझे पहले बता दे ते, म खुद अलग हो जाती, कम-से-कम ये धोखा तो न करते।
मुझसे बना बताए वो शॉ पग पर गए तब भी मने कुछ नह कहा। मने कहा मेरी ड है इट् स
ओके। (उसने ससक ली—सुबक-सुबक) पता है रजत, वो जो रोमां टक मैसेज मुझे करता
था, सेम टाइम वो उसे भी करता था। डबल ॉस? म कुछ थी ही नह उसके लए? (सुबक-
सुबक) म कुछ भी नह थी?” और छोट -छोट बूँद जो काफ दे र से डबडबा रही थ उनका
बाँध टू ट गया। आँसु ने उसके चेहरे को धो दया और उसके चेहरे क मासू मयत और बढ़ा
द।
मेरा दा हना हाथ अनायास ही उसके कंधे पर चला गया और उसके कंधे और बाजू को
सहलाने लगा। बाएँ हाथ ने उसक ठु ड्डी को अपने हाथ म ले लया। उसने भी अपने शरीर
को ढ ला छोड़ दया है और म भी दा हने हाथ से ह क -ह क थप कयाँ दे रहा ँ। उसक
आँख बंद ह। हर बार अपने हाथ से उसक आँख प छ दे ता ँ, हर बार चार बूँद उसक
पलक के कनार से ढलक आती ह। आज पहली बार मुझे अपने जटलमैन न होने पर
अफसोस आ। माल रखना चा हए। कुछ दे र यूँ ही खामोशी फैली रही। ऐसे मौक पर बात
ब त ह क हो जाती ह और मौन से काम चलता है। कई सवाल मेरे जेहन म आए पर मने
उ ह मन म ही खा रज कर दया। जैस— े या तुम अब भी उसे वापस पाना चाहती हो या
या तुम उससे बदला लेना चाहती हो? या तु हारा यार- ार से व ास उठ चुका है? तु ह
कब पता चला ये सब या तु ह उस गधे म दखा या? या तुम कैसे मले थे ता क म जज कर
सकूँ क स चा यार था भी या नह या तुम लोग म या- या हो चुका है? पर इन सवाल
को मने मन म ही खा रज कर दया। उसने चुपचाप अपनी आँख बंद रख और मने भी कंधे
और बाजू को सहलाता आ हाथ नह हटाया। उसने चेहरा ऊपर कया, मने धीरे-से हाथ
हटाकर अपने-आप को पीछे कर लया। एक खामोश आपसी अंडर ट डग।
उसने अपने दोन हाथ से अपनी आँख दे र तक मीच , एक गहरी साँस ली, चेहरा
प छा, बाल खोले फर बाल बाँधे और अपनी लाल आँख से मेरी तरफ दे खते ए कहा,
“र जो!”
“ म!”
“ या म बेवकूफ ँ?”
माहौल म दो-तीन सेकंड क त धता रही। मने एक गहरी साँस लेने क ए टं ग सफ
यह समझने के लए क क कह यह कमट मेरे लए तो नह है। मेरे दल का जवाब ‘नह ’
होने पर मने आगे कं ट यू कया, “तुम बेवकूफ हो या नह हो ये इस पे डपड करता है क
अब तुम या करती हो?” मने उसक आँख म दे खा।
“अब म या क ँ रजत तुम बताओ? म लास म जाऊँगी, तो सब मुझे उसी नगाह से
दे खगे। वो दे खो, ये वही लड़क है न जसे रतेश ने डच कया। को चग म भी, अरे ये तो
वही है न जसे रतेश ने डंब कया। कसके लए कया, वो दे खो लास क महारानी
द पका सह। म कैसे नजर मलाऊँगी सबसे? सब मुझे बेचारी नजर से दे खगे। लुक ऐट दै ट
बेचारी!” ेरणा ने रोनी-सी सूरत बनाकर मेरी तरफ दे खा।
“अरे, अब उनक वजह से तुम लास अटड नह करोगी या? पागल!” मने उसके
सर पर एक ट पी द । मने एक तरछ नगाह घड़ी क तरफ डाली। लास का समय होने
वाला था। पर आज उसक यह हालत दे खकर मुझे नह लगा क हम लास जाना चा हए।
“तो म या क ँ , तुम बताओ…?”
“अरे, तु ह तो कोई भी मल जाएगा… इतनी सुंदर जो हो तुम!”
“सच?” उसने आँख म चमक के साथ कहा। पर अगले ही पल चमक चली गई,
“सुंदर तो वो ह। कॉलेज क महारानी। रतेश तो उसी को सबसे सुंदर मानता है।” उसने
बनावट तकरार क और जवाब के लए मेरी तरफ दे खने लगी।
“ए चुअली तु हारा और रतेश, दोन का टे ट खराब है… ह म।” मने ं य भरी
मु कान फक और फ वार क तरफ दे खने लगा। फ वारे अब ऊँचा उड़ने लगे थे।
उसने मेरा चेहरा घुमाकर अपनी तरफ कया, “तो तु हारे टे ट के हसाब से ‘म’ सुंदर
ँ? बताओ जरा या अ छा है मुझम…?”
मने उसक तरफ शैतानी मु कुराहट से दे खा, “तु हारा ये ढोलक जैसा पेट, घड़े जैसी
गदन और ब ली जैसी श ल, ब त सुंदल हो तुम!”
“कहाँ पेट है मेरा? जरा बताओ तो, एकदम लम- लम।” उसने अपने पेट को
पचकाते ए और कमर को हलाते ए कहा।
“ऐसे उचक के बैठोगी तो कसी का भी पेट नह दखेगा। हलवाई कह क ।”
“और तुम! तुम तो बलकुल ही दे हाती हो। एक हक नह रख सकते थे?”
“हाँ, तो तुम कौन-सा पट् टा लए घूम रही हो? (मने फ मी सास क ए टं ग म कहा)
बना पट् टे के अब तू कहाँ मुँह छु पाएगी कलमुँही?” मुझे लगा था क मेरे इस मर पर उसे
हँसी आएगी पर उसे रतेश क ही याद आ गई। मुझे ही आगे कं ट यू करना पड़ा, “अरे यार,
तुम य उसी के बारे म सोचने लगी? तुम मेरी पाटटाइम गल ड बन जाना न!” मने मनाने
के अंदाज म कहा।
“बट यू कांट बी माइ बॉय ड रजत!”
“ य ?” मने आँख बड़ी करके पूछा।
“ म! लेट मी सी, जरा र होना तो…” अब मजाक करने क बारी उसक थी। ह ठ
पर उँगली रखकर मुझे ऊपर से नीचे तक दे ख रही थी। “उ मम… य क तुम गोरे नह हो…
और… तुम लंबे नह हो और… तु हारे पास बाइक नह है।”
“माइ गॉड कतनी मटे रय ल टक हो तुम! गोरा? उ म… म फेयर एंड हडसम लगा
लूँगा! पाएँ मद वाला नखार सफ सात दन म!” मने आँख चमकाते ए कहा, “हाहा…
और तेरे से तो लंबा ही ँ म, भस कह क …”
“नो! लड़के छह फ ट वाले अ छे लगते ह।” उसने उँगली दखाते ए कहा।
“तो कॉ लान पीना शु कर ँ या? और बाइक तो बस फ ट सैलरी…”
“हाहा, म मजाक कर रही ँ पागल, तुम हर बात को इतना सी रयसली य ले रहे हो?
मजाक कर रही ँ बाबा…”
“जाओ-जाओ, मटे रअ ल म वीन!” मने बनावट गु सा दखाते ए कहा।
“अ छा गव मी अ हग!” उसने अपनी बाँह फैलाते ए कहा।
“ योर!”
लास का समय हो गया था। ब चे हॉ टल क तरफ से नकलकर वभाग क ओर जा
रहे थे। कुछ च ककर दे खने लगे। अ बे ये या हो रहा, खुले म आ लगन? लड़क के चेहर
पर एक अद्भुत-सी मु कान है। म भी मु कुराकर जवाब दे रहा ँ। शायद ेरणा को नह
पता क उसके पीछे या हो रहा है, या उसने जान-बूझकर लास के लड़क के सामने मुझे
हग कया है, यह जताने के लए क अब वह मेरे साथ है या यह सफ एक इ ेफाक है। कोई
दो त ‘भई वाह’ कहकर गुजर रहा है। कोई आँख मारकर ‘कैरी ऑन’ कह रहा है। कोई
इशारा कर रहा है क ‘लगे रहो बंध’ु । युवान और शशांक भी उधर से गुजरे ह। युवान ने
थ सअप का साइन दया है। उसके चेहरे पर ‘ये तो होना ही था’ वाली मु कान है। उसने
कहा था यह होगा। हमेशा उसके े ड शन के हसाब से ही चीज य होती ह? शशांक दोन
हाथ से थ स डाउन का साइन दे रहा है। जीभ नकालकर चढ़ा रहा है, फर कॉपी हला
रहा है क कॉपी नह दे गा। हट! जलनखोर कह का! या मुझे कॉपी नह मलेगी!
ेरणा ने फर पूछा, “वो उसके इतने करीब कैसे चली गई?”
“वो सब छोड़ो, हम तु ह एक भ व य संबंधी ान दे ते ह।”
उसने भव टे ढ़ करके पूछा, “ या?”
“आगे से तुम…” (मने अपनी नाक मलते ए कहा, दरअसल म अपनी शैतानी
मु कुराहट छु पा रहा था।)
“हाँ म?”
“… इतनी ढ ली ट शट पहनकर कसी के इतने करीब मत जाना, कई ाइवेट पाट् स
व जबल रज म आ जाते ह।” और म ज द से भाग खड़ा आ।
“हॉव!” उसने तुरंत अपने गले पर हाथ रखते ए कहा, “तुमने मुझे पहले य नह
बताया?”
“अरे यार! तुम बड़ा जकली रो रही थी। मने सोचा क ड टब न कर।”
“म कुछ फक के मा ँ गी, र जो, सच बता रही ।ँ ”
“अरे, तुम ब त लो म रो रही थी यार! मने आँख बंद कर रखी थ । सच म, गॉड
ॉ मस… लास का टाइम हो गया है… चल?”
“नह , तुम मु कुरा रहे हो!.. तुम झूठ बोल रहे हो…। तुम ब त बदतमीज हो।”
द वाना आ बादल
न जाने य मुझे लगा क मुझे कुछ फेसबुक पर डालना चा हए। एक आजाद पंछ के
मा फक कुछ, जसने सारा आकाश पा लया हो। जसने फतह कर लया मैदान-ए-कबला
को! पर फेसबुक पर फैली अपनी सारी र तेदारी और पट दारी का खयाल आते ही मने
अपनी भावना को ड क ेक दया। फर भी फेसबुक खोला। शशांक ने दो अपडेट्स
डाले थे। पहला एक गाना था—
दल होते जो… … मेरे सीने म तीन,
एक भी ना दे ता म तुमको,
और बजाता म बीन…।
ओ ेरी! ये तो हम दोन ने मलकर बनाया था, साले ने मुझे े डट भी नह दया,
अब उसपर कमट कर-कर के लाइ स बढ़वा रहा है। मने उसपर ट पणी क , “ साले, मेरा
े डट नह दया?”
सरी पो ट म उसने हम तीन क फोटो का कोलाज डाला था। एक चौड़ी फोटो
जसके तीन पाट शन थे। जसम कनारे- कनारे ये दोन थे और बीच म म था। फोटो को
जान-बूझकर लैक एंड वाइट कया गया था, ता क युवान के आगे हम दोन नी ो न लग।
फोटो काफ यादा ए डट क गई थी और हम तीन ने च मा लगा रखा था। शशांक ने फोटो
को टै गलाइन द थी—“बॉडी, यूट एंड द ेन—डेडली ोइका”। एक घंटे के अंदर लाइ स
100 के पार हो गए थे। बॉडी ब डर शशांक था, यूट युवान था और ेन का टै ग मुझे मला
था। हमने अपने ुप को यही नाम दया है। हालाँ क कोई जानता नह है अभी इस ुप के
बारे म, पर शायद कभी सर को दलच पी हो। सबसे पहले युवान का कमट आया—
“ओहो, भाई लोग के साथ म भी माट लग रहा ँ।”
जब क सही बात तो यह थी क उसी क वजह से अब तक न बे लड़ कय के लाइ स
आ गए थे। बाक लाइ स कुछ दानवीर दो त क कृपा से थे। शशांक ने उसके कमट पर
जवाब दया—
“ठ क है, ठ क है, साथ रहोगे… सीख जाओगे।”
अगला कमट ेरणा का आया—
“ये बीच म कौन बंदर है?”
उसक ट पणी का जवाब शशांक ने दया—
“ओ हो! दे ख रहे हो युवान? अगल-बगल दो हडसम जटलमैन नह दखाई दए,
दखाई दया तो सफ रजत?”
#true love #made for each other.
म चुपचाप इन सबके कमट दे ख रहा था और मन-ही-मन मु कुरा रहा था। कॉफ के
लए ध गरम हो रहा था। म गैस धीमी करके वापस आया।
ेरणा ने वापस जवाब दया। #shashank, हाँ, बड़ी मु कल से मलता है इतना
स चा यार। #true love.
अब मुझसे जवाब दए बना रहा नह गया। मुझे लगा क मेरे ह त ेप क ज रत है।
बात यादा आगे बढ़ रही है इस लए मने कमट कया—
#prerna dixit citation needed.
म व कपी डया से चोरी कए अपने मर पर मु कुराया, मोबाइल बगल म मेज पर
रखा और नाचते ए पीछे घूमा क सामने शशांक खड़ा था। उसने एक हाथ से दरवाजे को
एक तरफ झड़का और सरे हाथ म पकड़ा मोबाइल दे खते ए बोला…
“ट लव, हाँ…?”
“अ बे, तुझे चढ़ा रही है बस।” (मोबाइल म दे ख रहा था, मतलब मुझे नाचते ए नह
दे खा होगा?)
वह आया और ध म से ब तर पर गर गया। मुझे पानी क बोतल क तरफ इशारा
करते ए बोला—
“मतलब तुमने ोपोज नह कया अभी?”
“अ बे नह यार!” मने ोपोज करने के याल को झड़कते ए कहा। जैसे म जदगी
म कभी क ँ गा ही नह ोपोज-वपोज। वह घुटने पर बैठकर, मुँह म गुलाब दबाकर,
छ छ छ। (गुलाब के काँटे चुभते नह ह गे? गुलाब कोई मुँह से खै च ले सटाक से,
ल लुहान हो जाए आदमी।) मेरा दमाग इतना यादा कुछ सोच गया और म मु कुरा पड़ा।
हीहीही। जब म अपने याल से वापस आया, शशांक कॉफ मग को हाथ म लेकर चार
ओर से नरी ण कर रहा था।
“ये कब लया तुमने?”
“वो आज ही खरीदा है।” मने तुरंत झूठ बोल दया।
“ कतने का?”
“अरे वो… आ… तुम जान के या करोगे?” (अचानक से मेरे दमाग म कोई दाम नह
आया, यादा बताऊँगा तो कहेगा क लुट गए और कम बताऊँगा तो इनडायरे टली ेरणा
क बेइ जती।)
“ससुर बोतल पास करो, कॉफ मेरे लए बन रही है न?” वह आराम से ब तर पर पैर
फैलाकर लेट गया। अब भी मग को यान से दे ख रहा था। मेरा मन हो रहा था क ज द से
उससे छ नकर कचन म रख आऊँ, पर अगर म यादा जोर ँ गा तो वो पकड़ लेगा क मग
ेरणा ने ग ट कया है।
“नह ! कॉफ तु हारे लए बलकुल नह बन रही है, तुमको एक बूँद भी नह मलेगी।”
“ य ?”
“ साले, वो गाना तो हम दोन ने मलके बनाया था, उसका े डट नह दया मुझे?”
“हाँ जाओ केस कर दो।” वो ढठाई से, चोरी ऊपर से सीनाजोरी क तज पर बोला।
मने उसे पानी क बोतल पकड़ाई और कॉफ मग छ न लया। पानी पीते व अब भी
उसक नजर मग पर ही थी। मने उठाकर अपने टे बल लप के बगल रख दया।
उसने पानी ख म करके मग फर उठा लया और फर उसे चार तरफ से दे खने लगा,
जैसे कोई सुराग ढूँ ढ़ रहा हो।
“तुमने बताया नह , कतने का है?”
मेरे कुछ दे र चुप रहने पर उसने फरमान सुनाया, “ये हम लगे, तुम सरा ले लो!”
“अरे! हम दगे ही नह !”
“अरे, तुम सरा ले लो न!”
“जबरद ती है या? वापस दो!” मने मग लेने के लए अपने हाथ आगे कए।
वह मग लेकर खड़ा हो गया और हाथ ऊपर कर दए। अपनी छह फ ट लंबाई का
फायदा उठाया और मग को आठ फ ट ऊपर लहराने लगा, “यार, मने भी तो तु ह अपना
डंबल दे रखा है, वो भी एकदम म?”
“वो तु हारे साइज के हसाब से ह का पड़ गया है, इस लए तुमने मुझे दया है! मग
वापस करो!”
“और मने तु ह अपना पं चग बैग भी तो दया है?”
“तो उसम बालू तो मने भरी है न?”
“तो या? आ खर पं चग बैग तो मेरा है न?”
“ठ क है, ले लो अपना पं चग बैग, मेरा मग मुझे वापस करो! म कुछ नह जानता।”
“एक कॉफ मग के लए पं चग बैग वापस? ऐसा या खास है इसम? ग टे ड है?”
उसने आँख चमका , “अब तो नह ँ गा!”
“हम मार दगे शशांक!”
उसने हाथ ऊपर कर रखे थे और म उचक रहा था। म जान-बूझकर थोड़ा-थोड़ा ही
उचक रहा था, ता क शशांक को लगे क म इतना ही उचक सकता ँ और अचानक म हाई
जंप मारकर झपट लूँगा। और मने ऐसा ही कया। एक हाई जंप म मने मग उसके हाथ से
अपने हाथ म ले लया, और उसके हाथ से भी एक ब ा ऊपर गया। जस पल मेरे हाथ म
मग आया, सेकंड के उस ह से म मेरे चेहरे पर जीत क झलक आई और शशांक को
दे खकर चढ़ाया भी। पता नह कैसे, नीचे आते व मेरा पैर उसके पैर पर पड़ा। ह का-सा
डसबैलस और… ख ननन!
शशांक ने मेरी तरफ दे खा और मने शशांक क तरफ, फर टू टे ए मग क तरफ। और
कमरे म एक मातम क खामोशी छा गई। एक पल के लए मुझे कुछ समझ नह आया क
यह या हो गया। मने उस मासूम मग क तरफ दे खा। हडल या, उसक पद तक बखर
गई थी। उसका एक-एक टु कड़ा पूरे कमरे म छटक गया था। हाय मग! इतने यार से दया
गया मग! बेशक मती मग! मेरी आँख म आँसू आ गए। टू ट गया? तोड़ दया?
मने आँसी आँख से जड़मू त शशांक क तरफ दे खा। वह हँसना चाहता था, पर मेरे
आँसे चेहरे को दे खकर उसके चेहरे के भाव गायब हो गए। मुझे लग गया क यह ःखी होने
क ए टं ग कर रहा है।
“शशांक! मरने से पहले तु हारी कोई आ खरी इ छा हो तो अभी बता दो।”
पीछे दरवाजा खुला आ था और उसके दमाग ने ब त तेज काम कया। वह ज द से
भागा। म उसके पीछे भागा। कप का टु कड़ा मेरे पैर म चुभ गया, म फर भी भागा। उसने
गलती क , नीचे जीने क ओर भागने के बजाय वह खुली छत क ओर भागा। छत सी मत
थी। छत के कोने म वह पकड़ लया गया। शायद वह खुद पकड़ लया जाना चाहता था।
“म कुछ नह जानता! मुझे मेरा मग चा हए वापस, बस! चाहे जो हो जाए। मुझे मग
चा हए। मग चा हए।” मने उसका कॉलर पकड़ लया। मेरे सर पर खून सवार था।
“हाँ ले आएँग!े कतने का था?”
“म नह जानता! मुझे डट् टो ऐसा ही चा हए! सेम यही चा हए!”
“अरे, ऐसा ही ले आएँगे यार।”
“अगर तु ह अपनी जान बचानी है तो ऐसा ही नह , एकदम यही लाना है, चाहे पूरा
लखनऊ छान मारो, समझे!”
“ठ क है! ठ क है! मेरी भी एक शत है।”
“ या?”
“ये जो कॉफ बन रही है, वो म पी के जाऊँगा!”
“ठ क है! पर मेरी एक और शत है, ये जो मेरे दल के टु कड़े बखरे ह न पूरे कमरे म,
तुम झाड लगा के जाओगे!”
“और म अपना पं चग बैग ले के जाऊँगा।”
“और तुम जो ये मेरा पंच दे ख रहे हो न, ये खा के जाओगे!”
ध प!!
“चलो डजाइन तो दे ख ल, तभी तो लाएँगे वैसा।”
“हाँ, यान से दे ख लो!”
“अ छा सुनो, ेरणा ने दया था न?”
“हाँ!”
“मुझे लग ही रहा था! भाई भाई भाई, एक गाना अभी-अभी बनाया है, सुनाएँ?”
“उससे रलेटेड नह होना चा हए।” मने उँगली दखाते ए ेरणा क ओर इशारा
कया।
“नह , उससे रलेटेड नह है।”
मने मुँह टे ढ़ा करके उसे सुनाने क हामी भरी।
“मग सूना सूना लागे…
मग सूना सूना लागे…
कोई रहे न जब अपना…”
“भ क साले!”
मैथमे ट स से लेकर फ ज स वभाग के बीच चौड़ी सीमटे ड सड़क है, जसपर हम हाथ
पकड़कर साथ चलते ह। उस सड़क पर दरार पड़ गई ह और बीच-बीच से ब नकल आई
है, जसे हम दोन कुचलते चलते ह। बा रश के मौसम म यहाँ काई जम जाती है और छोटे -
छोटे गड् ढ म पानी भर जाता है। तब सडल पहनकर छप-छप-छप चलना कतना सुहाना
होता है! सद क धूप म टै गोर लाइ ेरी के सामने बने पाक पर हरी घास पर बैठने का भी
एक गुदगुदा एहसास होता है। वहाँ प थर क सफ दो बैठक ह और अगर आपके भा य का
गु नवम् भाव म है, तभी वो आपको खाली मलगी। जब सूरज क रोशनी तु हारे गाल पर
पड़ती है तब म अपनी उँग लय क परछा से तु हारे चेहरे पर आकृ त बनाता ।ँ तुम
नो टस नह करती हो। फर म तु हारी छोट -सी हथेली को अपने हाथ म लेता ँ और उस
पर पेन से एक फूल बनाता ँ। तु ह गुदगुद होती है तब भी तुम बनवाती हो। तुम उस फूल
क ॉइंग को सुपरवाइज करती रहती हो, फर आँख बंद कर लेती हो। म चुपके से उस फूल
के नीचे लख दे ता ँ, ‘ ेरणा मोट भस’ और तब तुम च लाती हो। मेरे पीछे भागती हो।
हम भागते ए गेट नंबर वन तक जाते ह। वहाँ ने कैफे क नई-नई कॉफ शॉप खुली है।
चाचा हमारी श ल दे खकर जान जाते ह क ब चे थके ए ह, इ ह मैगी खलाओ और कॉफ
पलाओ। म वहाँ कता ँ, तुम हाँफती ई आती हो। मुझे डर नह लगता। म घूँसे खाने के
लए खड़ा रहता ँ। या इसका मतलब है क म तुमसे यार करता ँ? नह तो! हम कॉफ
पीते ह और मैगी खाते ह। गेट नंबर टू से गेट नंबर वन के बीच अशोक के ऊँचे पेड़ लगे ह।
वहाँ हमेशा छाँव रहती है। तुम कहती हो, “पता है रजत, यहाँ हमेशा हवाएँ चलती रहती ह!”
तुम ऐसे कहती हो जैसे तुमने कोई बड़ी खोज कर डाली हो।
“भ क! ये सफ तु हारा भरम ह। हम ऐसे टाइम पर आते ह क यहाँ हवा चल रही
होती है। बस!”
“मने तो हमेशा यहाँ हवा चलते ए ऑ जव कया है…”
“अ छा!” कहकर म तु हारे कंधे पर एक मु का जमा दे ता ँ। पूरे एलयू को तसद क
है क तुम मेरी गल ड हो। बस मुझे ही क फम नह है। अब जब हम हमेशा हाथ पकड़कर
चलते ह तो सब लोग ऐसा ही सोचगे ना! और जब तु ह कोई अपने हाथ से मुझे ट फन
खलाते दे खेगा तब तो उसे यक न हो ही जाएगा। मने तुमसे यह बात कही तो तुम पहले तो
हँसी, फर कहा, “मुझे फक नह पड़ता लोग या सोचते ह। सोचते ह तो सोचने दो।” तुमने
कंधे उचका दए। मुझे समझ नह आया क यह मेरे लए पॉ ज टव बात है या नेगे टव।
कं यूटर साइंस डपाटमट के सारे चपरासी उसे जानते ह जब क वो कं यूटर साइंस
डपाटमट क नह है। उसक इले ॉ न स लास और मेरी वजुअल बे सक क लास के
बीच एक घंटे हम दोन खाली रहते ह। तब हम साथ बैठते ह। लास एकदम खाली होती है
और हम एक कपल क तरह वहाँ बैठे होते ह। या हम एक कपल ह?
वह सामने, ऊँची वाली सीट पर बैठती है और म उसके सामने नीचे वाली सीट पर। म
इतना ढ ठ हो गया ँ क जब वह थोड़ा र बैठ होती है तब म उसक कमर और पैर से
पकड़कर उसे पास ख च लेता ँ। म खुद को त दखाता ँ क कतना पढ़ रहा ँ म, पर
मेरा दमाग लगा होता है उसके साथ खेलते रहने म, जैसे वह कोई टे डी बेयर हो। वह है भी
कसी टे डी बेयर से यादा खूबसूरत। नया के कसी भी टे डी बेयर से यादा खूबसूरत। म
अपने टे डी बेयर को घूँसे जमाता रहता ँ। ऐसे म मेरी लास का कोई दो त जब लास
टाइ मग से थोड़ा पहले आता है तो गेट पर से ही लौट जाता है। मेरी आँख म दे खता है, एक
मु कान मारता है क सर! आपक ाइवेसी ड टब करने के लए माफ चा ँगा। जब क म
उसे बताना चाहता ँ क हम ऐसा कुछ भी नह कर रहे थे। वो तो हम बस ऐसे ही बैठे थे।
पर उस दो सेकंड म वो मुझे ‘ऐश करो यार’ क अनुम त दे कर चला जाता है। फर मेरी
लास क कोई लड़क आती है। वह मुँह बनाती है। जल जाती है क सरे बैच क लड़क
उसक लास म बैठ है या इसे कोई सीएस वग क लड़क नह मली थी, गल ड बनाने
को? वह आती है, रोष म अपना बैग पटकती है और लास से बाहर चली जाती है। हमारी
ाइवेसी म खलल वह भी नह डालती। बस बैग पटककर बता जाती है क यह लास
उसक भी है। उसके जाने के बाद म और ेरणा हँसते ह। हम दोन क वजह से मेरी लास
के ब चे अब लेट आने लगे ह। शशांक अब लास नह करता। वह घर से भी कम ही
नकलता है, बस को चग आता है। कभी-कभी ेरणा पहले आ जाती है और मेरी लास म
बैठ जाती है। फर मुझे मैसेज करती है, “कहाँ हो तुम? म कबसे यहाँ ँ!”
म अभी घर से नकला ही था क उसका मैसेज आया, “कहाँ हो तुम?”
यानी आज वह काफ पहले आ गई। अभी तो साढ़े आठ हो रहे ह। मने वापस मैसेज
कया—“इतनी ज द ?”
“ लास नह ई। म तेरी लास म वेट कर री…”
म जब लास म घुसा, तब मैडम तीन-चार कताब एक साथ खोले ई थ । मगर चला
मोबाइल रही थ । इस बार सामने वाली सीट पर नह , बैठने वाली सीट पर बैठ ई थ ।
“ या कर रही हो म तीखोरा?” म उसके बगल म ध का मारते ए बैठा।
“म तीखोरा? अब ये कौन-सा नया नाम ले के आए हो मेरे लए?” उसने वापस कंधे से
मुझे ध का दया।
“और या! दनभर म ती ढूँ ढ़ती रहती हो तुम, म तीखोरा तो हो ही…”
“तुम ये हमेशा नए-नए नाम य धरते रहते हो मेरे लए?”
“तु हारी कैरे टर ट स को हाईलाइट करने के लए,” मने अपने बैग से
माइ ो ोसेसर क कताब नकालते ए कहा।
उसने थोड़ी दे र सोचा, फर अचानक से मेरा दया एक नाम ढूँ ढ़कर लाई, “अ छा
‘चीकू’ य ?”
“उ म… य क तु हारे दाँत खरगोश जैसे ह।”
“और शोना-मोना?”
“अब ‘शोना-मोना’ का ए स लेनेशन नह है मेरे पास। अ छा तुम बताओ, ये मेरी
कॉपी पर हर जगह साइन य करती रहती हो?”
ेरणा ने कसी ब त अमीर आदमी को गम लगने क ए टं ग करते ए कहा, “अरे,
तु हारे सारे काम मेरे ही साइन से ह गे न, इस लए ै टस कर रही ँ! ैक ठस बेबी,
ैक ठस!”
“चल भाग यहाँ से!” मने उसके पैर पर पैर मारे। अपनी माइ ो ोसेसर 8086 के
स कट डाय ाम म घुस गया। वह ब कग क रीज नग लगाने लगी। फर थोड़ी दे र बाद मने
ही बात छे ड़ी—
“तुम ब कग म जाओगी?”
“हाँ!” उसने आँख चमका ।
“तुम या बनोगी, लक?” मुझे पता था क इस डायलॉग म मने उसक बेइ जती क
है।
“भ क! म पीओ बनूँगी! बक मैनेजर, बेटा!”
“ऐसे जबरद ती बन जाओगी? पढ़ती- लखती तो हो नह ! कैट क एसट से
नकलेगा?” मेरे इस कैट क एसट के वरोध म उसके के वन के साथ जाने का वरोध छु पा
आ था।
“अब तुम ताना न मारो! मने छोड़ द है कैट वाली एसट । और म पढ़ तो रही ँ!”
उसने अपनी बुक बंद कर द और मेरी तरफ दे खने लगी, जैसे अपनी पछले 15 मनट क
पढ़ाई का क फमशन ले रही हो।
“ठ क है! ठ क है! फर तुम मैनेजर बन जाओगी?” मने उसे चढ़ाना शु कया।
“हाँ…!” उसक आँख क चमक म डॉलर साइन, कार और बक बैलस, सब एक साथ
आ गए। उसने अपने दोन हाथ मलाए और सपने दे खने चालू कए, “मेरी खुद क कार
होगी, और…”
“टाटा नैनो?”
“भ क ह डा सट ! म उससे जाऊँगी ऑ फस खुद ाइव करके।” मने उसे ै फक
इं पे टर वाली नजर से दे खा और मन-ही-मन उसका डीएल रजे ट कया। उसने आगे
शु कया, “म मी-पापा क स वर जुबली आने वाली है, म चाहती ँ क इसक अरजमट
म क ँ … ड पाट होगी (उसने हाथ को काफ ड ए रया म घुमाया। म थोड़ा पीछे हट
गया ता क उसे ए रया कम न पड़े। उसने मुझे वापस ख च लया)… पाट होगी, बड़ा-सा
केक होगा, यम-यम!” उसने केक को सपने म ही खाकर जीभ लपलपाई… मने भूखी नजर
से उसे दे खा। सपने म ही खाना था तो मुझे भी खला दे ती। मने उसे टोक दया, “अरे ओ
मुंगेरीलाल, ी तो वालीफाई आ नह , सपने शु ह इनके!”
“म कर लूँगी यार,” उसने मुझे सपने म ड टब करने के लए कुह नयाया। केक न
मलने से मेरी भावनाएँ आहत हो गई थ । मने तघात शु कया…
“ फर म तु हारे बक म अकाउंट खुलवाऊँगा और रोज 100 पए नकालने के बहाने
तुमसे मलने आऊँगा। तु हारे पूरे टाफ को परेशान कर ँ गा।” मने आँख मटका ।
“अ छा? फर म तु हारे पैसे काट लूँगी।” (अब लड़ाई शु )
“ फर म तु हारा फ डबैक बेकार लख ँ गा।”
“उससे कुछ फक नह पड़ता, हम तु हारा फ डबैक फाड़ के फक दगे। और पैसे काट
लगे।”
“जबरद ती है या? भ क तु हारे हाथ म नह होगा पैसे काटना। समझी?”
“तो या? तु हारा फोन नंबर तो होगा न, जो अकाउंट से लक होगा, उसपे रोज मैसेज
भेजूँगी क आपके दस पए काट लए गए ह।” उसने ह ठ दाँत के नीचे दबाए और मेरे दस
पए कटने पर शोक कट कया।
“भ क! हम खुलवाएँगे ही नह तु हारे बक म अकाउंट।”
“अ बे चल!”
“ फर हम आईएएस बन जाएँगे और तु हारी पो टं ग अपने अंडर म करवा लगे। तु ह
खूब परेशान करगे।” मने अपनी आँख बड़ी करके उसे डराना शु कया, जससे वह अभी
मुझसे माफ माँगे नह तो उसक प नशमट पो टं ग तय है। उसने मुझे भाव नह दया और
बात बदल द । हमेशा अपनी चलाती है वह।
“रजत! तुमने वो ‘जब वी मेट’ दे खी है?”
मने अपने दमाग म पूरी ‘जब वी मेट’ फा ट फॉरवड क क कह उसम तो कोई ऐसा
सीन नह है जसपर यह मुझे चढ़ा सके। फ म ससर होने के बाद ही मने ‘हाँ’ म सर
हलाया।
“उसम वो जो लॉवर बा केट वाली साइ कल पर वो दोन घूमते ह। दे खा है न? मुझे
तु हारे साथ वैसे घूमना है।”
“अ छा? हम तु ह लाद के नह घूमगे।”
“ या?”
“दो साइ कल ह गी, हम दोन रेस करगे फर।” मने अपनी ट स एंड कंडीशंस लयर
कर द ।
“नह , दो नह ह गी, एक ही होगी… तुम चलाओगे, म बैठँ ू गी, इट वल बी सो
रोम टक।” उसने मुझे घूरकर दे खा। मुझे ऑडर ए से ट करना पड़ा।
“ये सपना लखनऊ म पूरा होने से रहा…” (घर वाले या कहगे, तु ह लखनऊ ाइवरी
करने भेजा था? वो भी साइ कल क …)
“कह बाहर चलगे न… जैसे नैनीताल? हाँ…”
“हाँ, ये सही रहेगा,” मने भी सपने म पैडल मारने शु कए। ेरणा के बारे म सबसे
खूबसूरत बात यह है क जब वो कोई चीज इमे जन करती है तो वह क पना उसके चेहरे पर
आ जाती है। जैसे इस समय उसका चेहरा नैनीताल आ जा रहा था। मस नैनीताल का
फोन बजा।
ट प ट प! ट प ट प!
“कौन है बेवकूफ जो मुझे साइ कल चलाते व ड टब कर रहा है?”
उसने मोबाइल उठाया, और अनलॉक खोलते ए कहा, “शशांक का मैसेज है।”
“शशांक का मैसेज! तु हारे फोन पे?” (इसे य मैसेज कर रहा है वो?)
“उसने तो कहा क मेरा नंबर उसने तुमसे लया है।”
“मुझसे? हाँ, एक बार ऐसे ही लया था।” मने अपने दमाग पर जोर डालते ए कहा।
“मैसेज या है?”
“जोक है…”
(साला इसे जोक य भेज रहा है?)
“दे ख उसके मैसेज?” मने ेरणा से मोबाइल माँगा। उसने बेतक लुफ से मुझे पास
कर दया। मैसेज यादातर गुड मॉ नग या गुड नाइट के थे या कुछ चुटकुले। थोड़ी-ब त
बातचीत थी, जसम उसका अंदाज लट था। मुझे को त ई क शशांक लट मैसेजेज
ेरणा को य कर रहा है, जब क उसका तो अभी वै णवी से चल रहा है। अभी कुछ ही दन
पहले तो मने उन दोन को इं ोड् यूस करवाया है और वै णवी उसके कमरे पर भी आ-जा
चुक है। फर वह ेरणा को लट वाले मैसेज य भेज रहा है? मुझे शशांक पर गु सा
आया, जो धीरे-धीरे नॉमल आ… अरे नह ! शशांक के कुछ गने-चुने दो त ही ह, और
लड़ कय के नाम पर तो एक भी नह है। उसके लए ेरणा को मैसेज भेजना ला जमी है।
और फर दोन मेरी ही वजह से तो जुड़े ह। यह उसके लए आम है। उसका सस ऑफ मर
ही ऐसा है क वह लट हो जाता है। वह जानबूझकर ऐसा नह कर रहा, सबसे ऐसा ही है।
अ छ बात यह है क ेरणा ने उसके लट का कोई र पांस नह दया है। पर शशांक को
यान रखना चा हए था। मेरी फ ल स क थोड़ी क करनी चा हए थी।
“तुम ये शशांक से मैसे जग कम करो।” मने फोन वापस करते ए कहा।
“म करती ही कहाँ ँ! फर भी सब मेरे बारे म उ टा-सीधा कहते ह।” उसके चेहरे पर
दद क एक रेखा उभर आई।
“ या? कौन तु ह उ टा-सीधा कहता है?”
“ रतेश!” उसने आँसी आवाज म कहा।
“ या कहा उसने?”
उसने अपना मोबाइल उठाया और उसका मैसेज पढ़ते ए कहा,
“एक है जसके साथ तुम पूरा दन कॉलेज म रहती हो, एक है जसके साथ तुम चै टग
करती हो, कोई कैरे टर है क नह तु हारा?”
उसक आँख डबडबा गई थ , “खुद उसके साथ घूम रा ऐ और मुझे कह रा ऐ।”
“चैट कससे करती रहती हो बोला?”
“शशांक से… कह रहा था क दोन दो त को टहला रही हो तुम।”
मने एक गहरी साँस ली। अपनी ठु ड्डी अपने हाथ पर रखकर सोचने लगा—‘ह म…
रतेश का अभी ब त हो गया।’
युवान को फोन कया तो पता चला शशांक भी उसी के घर पर है। मने सीधे वह मलने
का नणय कया। दरवाजा युवान ने खोला और शशांक पीछे खड़ा श कर रहा था।
“महाराज क जय हो” कहकर म अंदर आ गया। मुझे अजीब लगा क शशांक दन म यारह
बजे श य कर रहा है। वह वापस बे सन पर कु ला करने चला गया। युवान वापस जाकर
सोफे पर बैठ गया और अपनी के म क फाइल का काम करने लगा। अजीब बात है,
शां त से पढ़ रहा है। सोफे के पीछे , काँच क अलमा रय म मैडल लगे थे, जनम युवान का
एक भी नह था। सारी उसक बहन के लाए ए थे, जनका इ तेमाल उसे जलील करने के
लए होता था। अलमारी के बगल म, पीछे आँगन क तरफ दरवाजा था जहाँ से शशांक
झाँक-झाँककर श कर रहा था। लू डे नम ज स और लैक शट म था। लोअर-ट शट म भी
नह था क जससे लगे क सोकर उठा हो। घर से श करके नह आया है या? या कह
आंट कचौ रयाँ तो नह बना रही ह? एक बार को मेरी जीभ लपलपा उठ । मने युवान क
तरफ दे खा। युवान ने अपनी नेवी लू शट क बाँह कुहनी तक चढ़ा रखी थ ता क उसका
नया बनवाया आ टै टू दख जाए। म दो मनट तक वह बैठा रहा। वह अपने फाइल के
डाय ाम बनाने म मशगूल रहा। मुझे खटका आ, कह अंकल घर पर तो नह ह जो यह
इतना पढ़ाकू आ जा रहा है? परंतु ऐसा भी नह था। शशांक ने मुँह धोया, कु ला कया,
जीभ चटचटाई, फर मंजन नकालकर वापस रगड़ने लगा, इस बार और जोर से। मने युवान
को कुह नयाया, “अबे, ये या हो रहा है, दोबारा श य कर रहा है?”
उसने बना दे खे ही जवाब दया, “ पछले आधे घंटे से यही चल रहा है, चौथी बार है।”
“मैटर या है?”
“भाईजान वै णवी से मलने गए थे।”
“अ छा! तभी लैक शट, फर या आ…?”
“मने कहा था क कस- व स करके आना…”
“ फर?”
युवान ने फाइल के बीच म पेन लगाकर फाइल बंद क और मेरी तरफ दे खा, “ फर
या… हालत दे ख ही रहे हो” वो तेजी से हँस पड़ा।
“अबे भो भाट नई ऐ!” शशांक श करते ए ही बोला।
“अब चुप ही रहो तुम!” युवान ने उसे वही आँगन म के रहने और कु ला करने का
इशारा कया।
शशांक कु ला करने लगा। युवान ॉइंग म मशगूल रहा, थोड़ी अपनी बाँह और चढ़ा
ल । जब मने काफ दे र तक उसके टै टू को इ नोर कया तो झुँझलाकर अपना हाथ मेरी
आँख के सामने लाते ए बोला, “कइसा लग रहा है?”
“परमानट है?”
“हाँ, और या!” उसने गव के साथ बताया।
“कॉ ैचुलेशंस! सरकारी नौकरी गई तु हारी!”
“ह? ऐसा या?”
“और या, व जबल पाट पर टै टू अलाउड नह है।”
“अरे, हम छु पा लगे यार!” उसने बाँह से अपना टै टू छु पाते ए कहा।
“तो बनवाया ही य था?”
युवान ने पीछे सोफे पर अपनी पीठ टकाई और थोड़ा चौड़ा होकर बोला, “इसका
अलग ही वैग है भाई, अपना अलग लास है…”
“ लास? ये इ फे रय रट कॉ ले स क नशानी है!”
“अब ये तु हारी कौन-सी नई फलॉसफ है?” युवान ने मुँह बनाया। शशांक भी श
करते-करते कमरे के अंदर आ गया, फलॉसफ सुनने। उसने पंखा बंद कर दया ता क मेरी
बात यान से सुन सके। शशांक जब मेरी बात यान से सुनने लगता है तब मुझे ब त अलट
होना पड़ता है, य क या तो यह पकड़ लेगा क म ान कहाँ से चपका रहा ँ या अगर
योरी मेरी अपनी होगी तो कुछ फज बकैती दे गा। जैसे कोई कट् टर भाजपाई सारे तक
ख म होने पर ‘गाय-गलौज’ पर उतर आता है, ठ क उसी कार शशांक तक ख म हो जाने
पर अंटा-पंटा योरी दे ने लगता था। इसी लए इसका नंबर मेरे फोन म ऑगुमट कग नाम से
सेव था। मने योरी शु क ,
“दे खो, ऐसे समझो, जब हम कूल म पढ़ते थे, तब जो सबसे कॉ फडट और नॉलेज
से भरे ट चर होते थे, वे शां त से सपल तरीके से आते थे। चुपचाप सामने आ के बैठते और
कह से भी पढ़ाना शु कर दे ते। य ? य क उ ह सब कुछ आता था।”
“मगर जन ससुर को कुछ नह आता था, वो लास म डंडा लेकर आते थे, भगल
बनाए रहते थे, मार ड स लन- व लन, एकदम कड़क, क कोई ब चा सवाल न कर ले।
और जो सबसे भावशाली ट चर थे उनके व म ही वो बात थी क लास शांत रहती
थी, उ ह डंडे क या ज रत, उ ह ये ए ा वैग बनाने क या ज रत? उ ह इस बाहरी
तामझाम क या ज रत? तो भैया, बात जो है वो व म होनी चा हए। ये ए ा
वैग, ये गो ड चैन और ये ए पल फोन, ये सब इ फे रय रट कॉ ले स दखाता है, क
आपको अपने-आप पर भरोसा नह है और आप इन बाहर क चीज से अपना भौकाल
बनाना चाहते ह। समझे? अब गांधी जी पैदल चलने के बजाय अगर ‘हमर’ से चलते तब तुम
उनक इ जत यादा करते? या हमर क या औकात, गांधी जी क पसनै लट के सामने?”
मने पॉइंट ही इतना तगड़ा दया था क युवान को कोई जवाब नह सूझा। मने उसे
आधा क वंस कर ही लया था। वह हाथ अपनी ठु ड्डी पर ले गया, ए ी होने वाला ‘ह म’
करने ही वाला था क बीच म शशांक कूद पड़ा। मुझे उँगली से इशारा कया क को, हम
जवाब दे रहे ह, और फर कु ला करके आया।
“दे खो ऐसा है भैया क अब तुम नई योरी सुनो! दे खो भाई क गाड़ी म है वैग, और
तुम तो चीज का चयन उपयो गता के आधार पर करते हो। है न? हाँ, तो कल से भाई तुम
बाइक मत छू ना, हमी दोन को इ फ रयर रहने दो, तुम न… साइ कल से चलो।”
“अब यार ये तो यादती है। ये तो फज फलॉसफ है… ये तो नह कहा मने!”
“नह -नह , तु हारे व म ही वो बात है यार क मतलब… एफजी क या
औकात है।”
“भ क, एफजी कहाँ ले आए बीच म, वो…”
युवान ने कुढ़कर एक घूँसा सोफे पर जमाया। “बस! शांत रहो दोन … और तुम पंखा
चलाओ यार, यहाँ हमारी सरकारी नौकरी चली गई और तुम दोन झगड़े जा रहे हो…”
“हाँ तो या तु हारे लए दो मनट का मौन धारण कर बे?” यह डायलॉग मेरे और
शशांक के मुँह से एक साथ नकला। हमने एक- सरे को दे खा और फर हाई फाइव दया।
शशांक को लगा क उसके दाँत म अब भी कुछ फँसा है। वह वापस बे सन पर चला गया,
जाते व पंखा चला गया। युवान सोफे पर ऊपर पैर रखकर बैठ गया और अपनी फाइल
का काम करने लगा।
“एक मनट यार, तुम दोन के च कर म म भूल ही गया क म आया कस काम से
था। कुछ ब त सी रयस डसकस करना था… मगर यहाँ आओ तो अलग ही कहानी शु हो
जाती है!”
उसने अपनी फाइल से नजर उठा और मेरी तरफ उ सुकता से दे खा, “ या मैटर है?”
“मैटर रतेश के बारे म है।”
शशांक के कान खड़े हो गए। वह भी बगल आकर बैठ गया। युवान ने फाइल बंद कर
द । दोन मुझे घेरकर बैठ गए। मने बात शु क ।
“यार ेरणा बता रही…”
पूरी बात युवान ने यान से सुनी। चेहरे पर गंभीरता उतर आई। उसने सफ भव
उचका और लो टोन म बोला, “इंटरे टं ग!”
अगर आप युवान के पास कोई भी ी-ज नत सम या लेकर जाते ह, तो उसके पास
पूछने को दो ही होते ह,
1. लड़का कौन है?
2. मारना कब है?
गले पर हाथ फेरते ए मेरी तरफ दे खा। पहली चीज तो तय थी। सरी चीज मुझे या
शशांक को तय करनी थी। शशांक ज रत से यादा ओवर रये ट कर रहा था। “ रतेश ने
ेरणा से उसक बुराई कैसे कर द । उसने कहा था क उस शशांक से र रहो, वो अ छा
लड़का नह है। रजत फर भी ठ क है।”
“अ बे जब वो उसको छोड़ चुका है, तब कॉउंसलर काहे बना आ है?” शशांक ने
झ लाते ए कहा, “मेरे बारे म और या कहा उसने?”
“यही क शशांक ब त ईगोइ ट टाइप का है। हर जगह अपना अंग दशन, बाइसे स,
ाइसे स दखाता रहता है। अपने म ही रहता है।”
“अ छा? है तो दखाएँगे ही ना? उसके पास या है दखाने को?” शशांक ने अपनी
हाफ ट शट क बाँह थोड़ी और ऊपर चढ़ा द ।
“तुम दोन ेरणा से मलो, रतेश क सारी डटे ल लो, कहाँ को चग करता ह, कहाँ
रहता है, जम कब जाता है, पूरा शेड्यूल लो, फर डसाइड करो कब मार इसे? करके मुझे
बताओ, म आ जाऊँगा।” युवान ने अपनी उँग लयाँ चटकाते ए कहा।
“यार, मारना ठ क नह रहेगा। बातचीत से समझा दगे। झगड़ा करने का कोई मतलब
नह है।” मने बीच म अपनी राय रखी।
“डरते ह या उससे? आज मेरे बारे म ये बोला है, कल कुछ और बोलेगा, ेरणा के
बारे म उ टा-सीधा उड़ाएगा। म कह रहा ँ अभी मार दो!” शशांक दहक रहा था।
मने युवान क ओर दे खा, भव टे ढ़ करके शशांक क ओर इशारा कया क यह इतना
ए साइटे ड य हो रहा है। युवान ने एक आँख बंद क और गदन हलाई। मतलब था, “होने
दो! यादा र क नह है मारने म”। मने कंधे उचका दए।
“ठ क है, मार तो दगे, लीड कौन करेगा? म तो क ँ गा नह ।” युवान ने यह एक
ै टकल वे न पूछा था। मने शशांक क तरफ दे खा क यही यादा उछल रहे ह।
“म लीड क ँ गा, और कौन करेगा?” शशांक ने हम दोन को घूरा। वह मारने पर
आमादा था। उसके 14 इंची बाइसे स फड़कने लगे थे।
युवान ने एक लंबी साँस भरी। फर मेरी तरफ दे खकर, “ठ क है मारगे साले को,
जाओ ेरणा से उसक डटे स लो।”
बात तय ई। युवान ने वापस फाइल खोल ली। म पैर ऊपर करके बैठ गया और एक
गहरी साँस लेते ए बोला, “यार युवान! मेरा तो समझ म आता है, इसका भी समझ म आता
है, तुम य मारोगे उसे? तु हारा नह समझ आ रहा है।”
युवान ने अपनी दाढ़ पर हाथ फेरा और वजह सोचने क को शश क ।
“म?”
“हाँ तुम!” मने क फम कया।
उसने अपने दमाग पर जोर डाला, उसे वजह नह मली। फर ऊपर पंखे क तरफ
दे खा, वहाँ भी कोई ‘वजह’ नह थी। मुँह बनाया, फर मेरी तरफ दे खा, “ फलहाल मेरे पास
कोई सॉ लड रीजन तो नह है पर ता का लक कारण ये हो सकता है क मुझे साले क
शकल ही नह पसंद।”
मने शशांक क ओर दे खा और शशांक ने मेरी ओर, फर हम तीन अचानक हँस पड़े।
हाहाहा… साले!
मने युवान को छोड़ शशांक क ओर ख कया,
“अबे तुम वो छोड़ो, ये बताओ क वै णवी के साथ या आ जो… पछले एक घंटे से
व छता अ भयान चल रहा था?”
उसने युवान क तरफ दे खा। उसने भी गदन उचकाई, “बताओ! बताओ!” उसे वजह
बतानी ही पड़ी। शशांक ने अपना माथा पकड़ा, जैसे कोई ब त बड़ा कांड हो गया हो
उससे। हम दोन क तरफ दे खकर रोनी सूरत बनाकर बोला,
“अरे यार! मने उसे ध पीती ब ची समझा था, वो तो दा पीती ब ची नकली यार!”
“हाहाहा…। अ छा तभी कस म मजा नह आया… हाहाहाहा।” मने और युवान ने
एक- सरे को हाई फाइव दया। च..च..च…
“अबे तो सुबह-सुबह पए बैठ थी या? हाहाहाहा…”
म और युवान सोफे पर लोट-पोट ए जा रहे थे। शशांक शरम म लाल आ जा रहा
था।
“नह , मेल आ रही थी भाई, कल रात को पी होगी…”
“भ क! सच म?” हम दोन मॉल टाउन सं कार से आने के कारण सगरेट-शराब से
ब त र थे और युवान भी नह पीता था, इस लए ये हमारे लए बड़ी बात थी। फर भी मने
उसे चढ़ाया,
“तो या द कत है? शीशे से शीशा टकराए जो भी हो अंजाम…”
“अरे भ क, सगरेट और शराब हम तुम पे नह बदा त जब क तुम मेरे दो त हो, और
उसे जसे हम कस करना है उस पे कैसे बदा त कर सकते ह बे?”
“हाँ यार! मामला तो गंभीर है। गलत बात है ये। बैड मैनस।” मने और युवान ने एक
साथ गदन हलाई। हम दोन ने गंभीर होने क ए टं ग क । शशांक सच म गंभीर था।
“कह रही थी क उसे कसी बुआ के लड़के ने पलाई थी। अबे ये कस तरह के बुआ
के लड़के ह जो बहन को दा पलाते घूम रहे ह भाई?”
“अरे भाई आजकल ये बुआ-चाची के… ै टकल का शेड्यूल आ गया है। तु हारा
के म कब है?” मने युवान क तरफ दे खा। दोन मेरे इस अजीब-से डायलॉग से च क
गए। दोन ने मुझे घूरकर गदन उचकाई। मने पीछे इशारा कया। आंट चाय लेकर खड़ी थ ।
“हाँ, वो इसी स ह से शु है, मने अपना दे खा नह ।” युवान ने तुरंत फाइल खोल ली।
शशांक ने कूदकर आंट के हाथ से े ले ली। सव करने लगा। आंट चली ग । दोन ने मुझे
थ सअप का साइन दया, जान बचाने के लए। चलते-चलते मने शशांक को एक बार और
छे ड़ा,
“यार, वै णवी तो कह रही थी क शशांक के हाथ मज र जैसे ह।”
“हाँ तो उसके ताजमहल पर मज री भी तो इ ह ने क है…।” उसने अपनी उँग लयाँ
चमका ।
“भ क साले!”
इं वू मट के पेपर हो रहे थे। मने और शशांक ने इं ूवमट डीबीएमएस म डाला था। नवंबर क
पहरी थी, दो बज रहे थे। पेपर थोड़ी दे र पहले ही छू टा था। हम दोन साथ-साथ वापस लौट
रहे थे।
शशांक : तु हारी बात ई ेरणा से? पूछ रही थी क रजत कैसा है।
रजत : नह मेरी बात नह ई। (मेरे सबकुछ ख म करने के बाद तुम य बात कर रहे
हो?)
शशांक : वो हमेशा तु हारे बारे म पूछती है… क कहाँ है, कैसा है, रतेश वाले केस के
बाद से बात नह क तुमने?
रजत : मुझे उससे कोई बात नह करनी है, तुमने वो लड़क नो टस क जो अभी-अभी
गई, नीली छतरी लेकर? ये इधर से…
शशांक : हाँ वीट थी, चुनमुन-चुनमुन, मगर तुम उसे नो टस करो जो सामने आ रही है
बना कसी छतरी के…
उधर मत दे खो, इधर से चलते ह। सामने द पका और उसक सहे लय का ुप आ रहा
था। उनके पीछे ेरणा भी थी। शशांक ने उसी क तरफ इशारा कया था। और मने उधर से
ही उसका यान भटकाने के लए नीली छतरी वाली का ज कया था। पर साले ने उसी
को नो टस कया। म पछले दो ह त से उसके सामने नह पड़ रहा था। अब हम अशोक
वा टका से कॉमस वभाग क तरफ घूम चुके थे और सफ पीछे पलट सकते थे। अगल-
बगल कोई सड़क नह गई थी। हम फुटबॉल ाउंड के बगल-बगल चल रहे थे। सड़क क
सरी तरफ साइकोलॉजी डपाटमट था, जहाँ ब चे घेरा बनाकर कोई नो टस दे ख रहे थे। मेरे
पीछे सीएस वग के लड़क का ज था चल रहा था। “पेपर ब त टफ आया था, हाँ तो
इं ूवमट हमेशा नॉमल से टफ रहेगा।” वो ऐसी बात कर रहे थे। सामने से द पका, उसक
सहे लया और उसके पीछे ेरणा पास आती जा रही थी। पता नह य उसे दे खकर मेरे दल
म धक्-धक् होने लगी। तेज, ब त तेज। मने ब त बार इसक क पना क थी क वह
आएगी और म सरी तरफ दे खता आ नकल जाऊँगा। म अवॉइड करने म उ ताद र ँगा।
म शशांक से कोई चचा करने लगूँगा और हाथ हला- हलाकर बात क ँ गा, खुद को त
और खुश दखाऊँगा, तु हारे बना मर नह रहा ँ म। पर शशांक के सामने मेरे दमाग म
कोई मुददा् ही नह आ रहा था। एक श द भी नह आ रहा था उससे बात करने को। दलो-
दमाग म छाई थी तो बस वह। काश, युवान यहाँ होता, ेरणा क ह मत ही न होती मेरे
सामने आने क । आती तो युवान उसे सुना दे ता। युवान के पास कतने बेहतर तक होते ह।
वो यहाँ होता तो दखा दे ता क ेरणा ने मुझे धोखा दया है। उसने… उसने… उसने मुझसे
धोखा कया है। उसने… पर मेरे मुँह पर तक य नह आ रहे ह? मेरे अंदर उसे अवॉइड
करने क ह मत य नह आ रही है? मेरे दमाग म उसके खलाफ कोई बात य नह आ
रही है? यह युवान य नह है मेरे पास? वह पास आती जा रही है। शशांक तो ेरणा का ही
प लेगा। साला उसका दो त बन गया है। लाइन मारता है। वह पास आती जा रही थी।
मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थ । बस कसी तरह मेरे बगल से गुजरकर नकल जाए। मेरी
साँस बढ़ती चली जा रही थ । वह बस तीन मीटर क री पर थी, अपनी लीक छोड़कर मेरी
तरफ बढ़ने लगी। मने शशांक का हाथ पकड़ा और अपना रा ता छोड़ सड़क से उतरने लगा।
वह मेरी तरफ आने लगी। म सरी तरफ दे खने लगा। द पका और उसक सहे लयाँ ककर
दे ख रही ह, म जस तरफ मुड़ रहा ँ वह भी उस तरफ मुड़ रही है, मेरा रा ता रोक रही है।
यह या हो रहा है? पीछे मेरे दो त दे ख रहे ह।
ेरणा : कब तक मुझसे बात नह करोगे?
रजत : मेरा कॉलर छोड़ो! लोग दे ख रहे ह…
ेरणा : मेरी तरफ दे खो…
रजत : कॉलर छोड़ो!
ेरणा : लोग दे ख रहे ह तो दे खने दो… मुझे नी परवाह है, तुम ऐसे अवॉइड करोगे तो
म मर जाऊँगी। ऊपर आसमान क तरफ मत दे खो! सामने दे खो!
रजत : (शशांक क तरफ दे खकर) तुम… जाओ म आता ँ…।
शशांक आगे इस तरह जा रहा है जैसे बु के बताए माग पर चल रहा हो, पीछे मुड़कर
भी नह दे ख रहा है। फुटबॉल खेल रहे कुछ लड़के ककर दे ख रहे ह। ेरणा ने शट छोड़ द
है, हाथ पकड़ लया है। म पीछे मुड़ गया ँ। उसने हाथ ठकर मुझे वापस सामने मोड़ दया
है। म गु से से उसक आँख म दे खता ँ। वह मुड़ गई है, मेरा हाथ पकड़कर अपनी ही तरफ
ले जा रही है। म सोच रहा ँ क हम शशांक क तरफ य जा रहे ह, पर शशांक काफ
आगे नकल गया है। हम टै गोर लाइ ेरी के सामने वाले पाक क तरफ जा रहे ह। म सरी
तरफ दे खकर चल रहा ँ। नाराज होने क पुरजोर को शश कर रहा ँ। सारे तक जुटा रहा
ँ। सोच रहा ँ क काश, पाक म बनी बच पर कोई बैठा हो। काश, वो खाली न हो। मुझे र
से ही दख गया है क वो खाली है। आज के दन उसे भी खाली रहना था। वो मेरा हाथ
पकड़े आगे-आगे चल रही है। मने हाथ छु ड़ाने क को शश क है, उसने नह छोड़ा है। म
दे ख रहा ँ क कौन-कौन मुझे इस तरह दे ख रहा है। जो दे ख रहा है वह समझदार होने क
ए टं ग कर रहा है। समझ रहा है क इन दोन का तो यह नॉमल सीन है। म उनको जाकर
कह दे ना चाहता ँ क नह , यह नॉमल नह है, अब मुझे इस आगे चल रही लड़क से कोई
मतलब नह है। म तु हारा पुराना दो त रजत ँ। मगर उसके हाथ म मेरा हाथ कुछ और कह
रहा है। वो मुझे घसीटे आगे-आगे चली जा रही है। बच पर पहले मुझे बठाकर फर बैठ है।
मुझे नह पता था क म इतना कमजोर ँ। मेरी आँख म बूँद आ गई ह। मने जोर से आँख
मीच ली ह। मगर पलक पूरा भार सँभाल नह पा । मने एक हाथ से दोन आँख को म च
लया है। वह मेरा हाथ हटा रही है, म नह हटाने दे रहा ँ। फर मने अपना हाथ हटा लया है
और उसक तरफ दे खा है। और मेरी आँख लाल ह। मेरे सारे श द, सारे तक गायब हो गए
ह। बस मुँह से इतना नकला है, “झूठ हो तुम!”
वह सटकर मेरे पास आ गई है। उसने मेरी आँख प छ द ह।
“हाँ, म झूठ ँ, मुझे इधर क बात उधर नह करनी चा हए थी। मने तु ह ऐसी बात
बताई जसपे तुम ओ फड होते ही होते, पर म गलत नह ँ, म बस उस समय रतेश को
फेस नह करना चाहती थी। तु ह मुझे माफ नह करना है तो मत करो… म र हो जाऊँगी
तुमसे।”
म उसक तरफ आ य से दे खता ँ। ये धोखेबाज लोग अपनी बात रखने म इतने
लूएटं कैसे होते ह? मेरे मुँह से तो श द ही नह नकल रहे ह।
“म को… कौन होता ँ तु ह माफ करने वाला!”
“तु ह पता है क मने तु ह कतना मस कया है इन दन ?… लगातार…”
“या यू म ट!” म सरी तरफ दे खने लगा ँ। जान-बूझकर।
“अब तुम तो इतना डली बात मत करो मुझसे?” उसने हाथ से मेरा चेहरा सामने
कया है।
“ र भी करती ओ, हक भी जताती ओ, आई ड ट अ ी सयेट आइरनी एनीमोर।… ँ
ँ ँ…”
“कौन र करता है तु ह… हाँ?” पास आई और मुझे बाँह म भर लया…
युवान के पैर म मोच आई थी। मार- पटाई करता रहेगा तो और होगा या! जनके
लए लड़ कयाँ खुद आपस म लड़ जाती ह , उसे या ज रत है गग लेकर चलने क ? युवान
मयाँ सोफे पर बैठे, मेज पर पैर रखे कराह रहे थे। आह… अजीब नाटक ले लया यार!
आह… ले कन ेम ान का द रया बराबर बह रहा था।
युवान ने मुझे सब समझा दया था। बात अब आगे बढ़नी ही चा हए। अब लयर कर
ही लो क तुम दोन का सीन या है? ये बाँह म बाँह ब त हो ग । (वह समझाने म बजी
था, म आंट क बनाई कचौ रयाँ उड़ाने म। आंट क कचौ रयाँ म मी के ट कर क थ । हर
बार आंट आकर लेट म दो कचौ रयाँ डाल दे ती थ , हर बार म कहता था, ‘आंट , कचौ रयाँ
ब त अ छ बनी ह’ ता क दो और मल जाएँ। अभागा शशांक अपने गाँव गया था। उसके
ह से क भी म ही उड़ा रहा था।)
“दे खो, तुम लोग दो ती से काफ आगे बढ़ आए हो। पूरे कॉलेज को पता है क तुम
दोन साथ हो। हग करते हो ओपनली… एसएमएस म आई लव यू भी हो चुका है?”
“नह , आई लव यू नह आ है, लव यू, लव यू होता है, ‘आई’ लगाना बाक है अभी।”
मने सर खुजाते ए कहा।
“अमा कं यूटर का पेपर है या जो अ गो रदम से चलोगे? सीधा पॉइंट पर आओ न!”
“ यार म टे प मा कग नह होती?” मने ब च जैसे पूछा।
“नह ! तुम पुराने बॉलीवुड हीरो क तरह कहोगे या क बाग म बहार है, फूल म
करार है टाइप? जसम वो ला ट म न-ना-ना करेगी? वो सच म ‘ना’ कर दे गी भाई!”
“ ? अइसा या? ओके! म समझ गया!” मने चुट कयाँ बजाते ए कहा। (म कुछ
नह समझा था।)
“दे खो! लखनऊ म उप थत पया मलन का सबसे स ता, सुंदर, टकाऊ तरीका है
सायबर कैफे!”
“सायबर कैफे? अ बे पाक और होटल म या क यू लगा है? खुद तो जीरो ड ी
लाउंज म जाते हो, मुझे सायबर कैफे भेज रहे हो… और इसम टकाऊ या है?”
“एक तो पहली बात, जब तक ‘हाँ’ न हो तब तक म पैसे खच करवाने के मूड म नह
ँ और सरा, वहाँ वो ाइवेसी नह मलती। यहाँ चीज एक ‘हाँ’ के बाद काफ आगे तक
जा सकती ह।” युवान ने एक आँख दबाते ए कहा, “और ‘ च- कस’ तक तो जाना ही
कम-से-कम…”
“भ क! च-वच नह , समझे! न छल ेम है मेरा!… च बता रहे ह… इं डयन
रहो!”
“अमा! भारतीय सं वधान यहाँ ांस से तीन कॉ से ट ले सकता है और तुम एक चु मा
नह ले सकते?”
“हाहाहा… भ क…। अ छा ये सब छोड़… ग ट वगैरह?” (मने सारी ा यकता
और सँभावना का अ ययन कया था।)
“ ग ट? नह ग ट- व ट कुछ नह … ग ट अभी रहने दो… जब तक ‘हाँ’ न हो,
पैसा मत खच करो, साइबर कैफे जाओ आराम से…”
“अ बे साइबर कैफे नह । इतना दमाग है उसके पास, समझ जाएगी। कल से नंबर
लॉक हो जाएगा।”
“यही तो टे ट है, पता सबको सब होता है। ये केवल फ म और जेन ऑ टे न क
नावेल म होता है क यार धीरे-धीरे पनप रहा है। लड़क को पहले दन से पता होता है क
लड़का इंटरे टे ड है। जब कोई लड़का लड़क से कॉपी माँगता है तो लड़क को पता होता है
क वो तो पढ़ने म अ छ है नह , कॉपी य माँगी जा रही है? पपज सबका वही है, अंतर
सफ पैके जग का है! वजह सोचो वजह, या बोलोगे?” (युवान के इसी ान क वजह से
तो नतम तक होना पड़ता है। चरण कहाँ ह इनके? फलहाल एक चरण टू टा आ था।)
“यार, फॉम भरना है एसएससी का। उसे भी भरना होगा। ये सही रहेगा?”
“यार, फॉम तो मुझे भी भरना है एसएससी का। खाली होना तो मेरा भी भर दे ना।”
“तु ह? तुम य भरोगे भला? भगवान का दया सबकुछ है। तुम काहे भरोगे फॉम?”
(ये डायलॉग मारते व म ‘सबकुछ’ पर यादा फोकस करता था। बाप का दया
बना-बनाया कॉलेज बजनेस है। पैसा है। पसनै लट है, हलवा सया म बैठे-बैठे हॉलीवुड का
लुक दे रहे ह। एक आम अकेले तनहा भारतीय लड़के को और या चा हए? और तो और,
बाइक भी है इनके पास। खैर, बाइक तो मेरी और शशांक क है, जब तक इ ह चोट लगी
है।)
“अरे यार, तुम तो जानते ही हो हमारे बापजान ‘अमृता’ के लए कभी राजी नह ह गे।
सोच रहा ँ क पढ़- लख ही लू।ँ ”
“करगे या इस बजनेस का? दे ख तो तुम ही रहे हो?”
“करगे या?… घर से नकाल दगे, सारा बजनेस कसी सं था को दान कर दगे। एक
दन जब मलने आओगे तो जहाँ हमारी बाइक खड़ी रहती है, वहाँ हम बैठे मलगे। वो जो
एफजी का टाइ लश हेलमेट दे ख रहे हो न? उसी को उ टा करके भीख माँगगे!”
मुझे इमे जन करके हँसी आ गई और वह सी रयस था। ये बातचीत हम एहसास दला
रही थी क अब हम ेजुएट हो रहे ह। बड़े हो रहे ह। कुछ दन म शायद नई ज मेदा रयाँ
भी ह । मुझे तो यी भी शक था क वह अमृता के लए सी रयस है भी या नह । अमृता भाभी
से म एक ही बार मला था। ब त शालीन लगी थ मुझे। खैर, लड़ कय के मामले म युवान
का या है, लड़ कयाँ तो आती-जाती रहती ह।
“यार, फॉम तो भरना है एसएससी का। अपने फैसले लेने के लए अपने पैर पर खड़ा
होना होगा भाई!” युवान के चेहरे पर संजीदगी तैर रही थी।
मने गुलाबी पट् ट से बँधे उसके पैर क तरफ दे खा, “ फलहाल तो नह ही खड़े हो
सकते मेरे दो त!”
वह हँस दया। फर कुछ सोचते ए बोला, “जाओगे कससे?”
मने शकु नया हँसी हँसी और अँगड़ाई लेते ए कहा, “भाई क बाइक तो खाली है
न?”
“भाई क बाइक और उसक टं क दोन खाली ह।”
“भरवा ँ गा मेरे दो त!”
……
वह कॉलेज से लौटते ए ऑटो टड क तरफ जा रही थी। म उसे पीछे से ही पहचान
सकता ँ। या यह कोई गलत बात है? धीमे-धीमे अपने म खोई ई जा रही थी। लू ज स,
पक जैकेट। उस पर वाइट और पक कलर का डजाइनर मफलर। पोट् स शूज पहने ए
थे। इयरफोन लगा रहता है कान म। लफंग को दखाने के लए क वह उनके कमट् स नह
सुन रही है, हालाँ क वो हमेशा ऑफ रहता है। बीच-बीच म कुछ सोचकर उँग लयाँ हला रही
थी। वह अकेले चलते ए अ छ नह लगती, मेरे साथ अ छ लगती है। अकेले आगे-पीछे
होता उसका हाथ सूना लग रहा है, जब मेरे हाथ म होता है तो थर होता है। मेरी उँग लय
के पोर म एकदम फट हो जाती ह उसक उँग लयाँ। आज सुबह हम कॉलेज म भी नह
मले थे, य क लान के हसाब से चलना था। आज उसने अपना ट फन अकेले खाया
होगा। फ ज स लास से इले ॉ न स लास के बीच का एक घंटा वह बोर ई होगी। मेरे
डपाटमट पूछने गई होगी और डपाटमट क लड़ कय ने उसे अकेले दे खकर मुँह बनाया
होगा। “कहाँ हो?” का एक मैसेज मेरे फोन म पड़ा है, जसका र लाई मने नह दया है।
बदले म गु से वाली माइली भी आई है। कुछ लोग सही कहते ह क नया क हर चीज के
पीछे कोई न कोई वजह होती है।
म युवान क यामाहा एफजी से पीछे -पीछे चल रहा था। सड़क पर कम ही लोग ह।
स दय का मौसम खुशनुमा होता है। आसमान म ह क बदरी है जससे व ज ब लट पुअर
है। यूँ तो म ै फक नयम का दल से पालन करता ँ पर युवान ने जान-बूझकर हेलमेट नह
दया है। मुझे बस बगल म जाकर बाइक रोकनी है और सात-आठ बार ै टस कया
डायलॉग मारना है। यहाँ रोकूँ? अ छा यह पेड़ ॉस हो जाए फर रोकता ।ँ च से गाड़ी
क । ( ड क ेक च प से पकड़ता है। पर इतना बैलस बनाना मुझे आता है।)
वह ठठक गई।
“मैडम! कह छोड़ द? या कह का न छोड़?”
“ हाट द फ…। हा… हा… हा ऐसे छे ड़ोगे तुम मुझ? े बंदर लग रहे हो!” उसने मेरे
गाल ख चते ए कहा।
“जवाब नह दया गया है मैम!”
वह चहककर बाइक पर बैठ गई और मेरा सर झझोड़ते ए कहा, “उ म कह का न
छोड़ो… हेहे…।” मने सरे गयर म बाइक ह के झटके से उठाई और नकल चला।
“यार, तुम इतनी ज द बैठ गई, अगल-बगल वाले सोचगे क लड़क कतनी ज द
पट गई…”
“म पट गई! म पट गई!” वह ब च क तरह फुदक ।
“सीधे बैठो भस! डसबैलंस हो जाएगा।”
“तुम कहाँ थे सुबह से?” उसने मुझे एक तगड़ा मु का मारते ए कहा।
“कुछ नह , म एक से मनार म गया था, यह पास म।” मने ब त फॉमल तरीके से
जवाब दया। (लव गु क से मनार।)
“मुझे बना बताए? वैसे हम जा कहाँ रहे ह?”
( बना सोचे बैठ गई थी? या ऐसे कसी क बाइक पर बैठ जाती है? नह गधे, तुम
पेशल हो। घर छोड़ो। वापस आओ। युवान को झूठ बोल दे ना।)
“मुझे फॉम भरना है एसएससी का, तुम तो भूल गई होगी… इस लए सोचा तुमको भी
लए चल, साथ म भर दगे।”
“तुम मुझे ‘सायबर कैफे’ लेकर जा रे ओ?” उसने ‘सायबर कैफे’ को लंबा ख चते ए
कहा। उसके लहजे म मासू मयत और शैतानी दोन थी।
च…
“उतरो! उतरो! हम अकेले जाएँग।े ”
“चल रही ँ, बाबा! यादा एट ट् यूड न मारो।”
“नह उतरो…”
“चल रहे ह ना…”
(ह! तैयार हो गई… इ ी ज द … ‘युवान टे ट’ पास? तथा तु! ओके, ठ क है। दै ट्स
ऑल। अब इसको घर ॉप कर दे ना चा हए। बस ठ क है, यादा कामदे व बनने क ज रत
नह है। यार है, ऐसे ही रहना चा हए… सपल और लेटॉ नक। गाड़ी म तेल भराओ और
युवान को वापस करो।)
“तु ह घर छोड़ ँ ? फॉम भर ँ गा तु हारा।”
“ क ी नौटं क करते हो तुम… चल तो रही ँ!” मुझे एक मु का और पड़ा।
म गाड़ी धीरे-धीरे चला रहा था क काश, कोई जान-पहचान का मुझे दे ख ले और
थोड़ा भौकाल हो जाए। तब हॉ टल म जाने पर बात ह गी, “ह म… ह म कहाँ घूम रहे हो
आजकल?” और म तरछ माइल से क ँगा, “अरे कह नह ।” ेमी क ज रत ेम से
यादा इ जत मटनस क है। खैर, कसी मुए ने नह दे खा। वही चर-प र चत साइबर कैफे
गणप त के सामने गाड़ी रोक । लो नाम भी गणप त है… यह होना है ी गणेश? म अ सर
वहाँ जाता था, मगर अकेले। वहाँ जोड़े भी खूब आया करते थे। म आगे-आगे टाइल मारते
ए चला। ऑपरेटर मुझे ेरणा के साथ दे खकर मु कुराया। ( साले मु कुरा या रहे हो?
आँय? फॉम भरने आए ह एसएससी का। अभी टआउट मारगे वहाँ से तब दे ख लेना,
कु े!)
“एक घंटे के लए चा हए? 20 पए।” उसने कु टल मु कान के साथ कहा।
(20 पए? साले रोज तो 15 होते ह, लड़क के साथ 20? साले यान से दे ख लो,
भाभी है तु हारी… कोई ऐसी-वैसी लड़क नह है। समझे!)
ले कन मेरे मुँह से बस इतना ही नकला, “हाँ, बस आधे घंटे का काम है।” अब ेरणा
के सामने पाँच पए के लए झंझट क ँ ?
उसने मुझे ऐसे दे खा जैसे कह रहा हो, बस आधे घंटे? बड़े मह वाकां ी आदमी हो!
और मने उसे ऐसे दे खा जैसे कह रहा ँ क बेटा, बाद म मलना।
के बन इतना छोटा था क दो लोग बैठ तो उनके पूरे शरीर लगभग चपके रह। दसंबर
क ठं ड थी तो इतनी करीबी गम दे रहे थी। ऐसे मौक पर मेरा हाथ उसके कंधे पर रहता है,
हमेशा। साइड हग कहते ह इसे। बड़े शहर म सबके साथ चलता है। साथ म फॉम भरने का
एक ॉ फट यह है क संभा वत ससुराल का ए ेस और भावी सास-ससुर के नाम याद हो
जाते ह। ःखद यह था क मुझे भी अपना ाम कचरावाँ और पो ट बछरावाँ, थाना स हत
उसके सामने भरना पड़ा। इसका सबकुछ सॉ फ टकेटे ड है और मेरा पूरा जीवन ही दे हाती
है। मेरे एसबीआई के डे बट काड पर भी एक दे हाती म हला बनी है शॉ पग बै स लेकर… म
कब जटलमैन बनूँगा यार? उसे हँसी आ रही थी और वह डे बट काड पर लखा नंबर बोलते-
बोलते भूल जा रही थी। तीन बार म पूरा बोला गया और दो बार पेज ए सपायर आ।
“मुझे तु हारे काड का नंबर याद हो गया है, अब बस स योरकोड चा हए, फर तु ह
चूना लगा सकती ँ।” उसने आँख चमकाते ए कहा।
“वो तु ह कभी नह मलेगा।” मने पासवड ब त तेजी से टाइप करते ए कहा। उसे
पता भी नह चला क पासवड म उसका नाम है। अब म कं यूटर के सामने तो
सॉ फ टकेटे ड ही ँ।
फॉम भर लया गया। पहले अपना, जसके सौ पए भरने पड़े। उसके बाद उसका, जो
था। इन अमीरजाद का फॉम ? पैसा हम गरीब से लूट रही है सरकार? वीमेन
एंपावरमट? ओके!
दोन फॉम 15 मनट म भर लए गए। पीड है मेरी। (अब? अब उठो और चलो घर।
यादा दमाग न चलाओ समझे?)
“मेरा काम तो हो गया, तु ह कुछ करना है इस पे?” मने मॉ नटर क तरफ इशारा करते
ए कहा!
“कुछ कर लो!” उसने शरारती आँख से मुझे दे खा।
“भ क भस!” मने उसके कंधे पर एक मु का मारा, उसने जवाब नह दया। फर मने
उसके गाल ख चे पर हर बार क तरह इस बार उसने मेरे गाल नह ख चे। हर चीज का
बदला लेने वाली ेरणा, चुप रही… चीज लो मोशन म जाने लग । जो हाथ उसके गाल को
ख चने गए थे। वो वह रह गए… उसके गाल को सहलाया, फर कंधे पर उतर गए, फर
उसके हाथ से होते ए मेरे पास वापस आ गए। दो मनट खामोशी म बीते। तीन-चार
डायलॉ स मेरे दमाग म आए पर मने उ ह मन म ही खा रज कर दया।
“तु हारा ये मफलर ब त अ छा लग रहा है, सूट कर रहा है तुम पे! कहाँ से लया?”
(बताओ तो ऐसा ही कुछ म भी तु ह ग ट ँ ।)
“ये? ये मेरे पापा ने मुझे ग ट कया!” कहते ए उसने मेरे कंधे पर सर रख दया।
(बेटा, उसका बाप लटका आ है मफलर म साँप बनके, यादा इधर-उधर कए न तो डस
लेगा। अब कोई ऐसा फज वे न मत पूछना।)
दो मनट बना कुछ बोले बीत गए और कं यूटर ने भी मौके क नजाकत को समझते
ए नसेवर चला दया। कं यूटर पर न सेवर चल रहा है, ‘दा टाइम इस नाउ’ म न
सेवर को ऊपर-नीचे जाते दे ख रहा ँ। उसका सर अब भी मेरे कंधे पर है। गले से एक काला
धागा लटक रहा है। चेहरा पहले से यादा गोरा लग रहा है। बैठे-बैठे ाइटनेस बढ़ा रही है
या ये? पूरा के बन महक रहा है। खूब डओ मारकर आई है। नवस कर रही है मुझ!े
शैतान… जैकेट क चैन खुली है। खुलती ही जा रही है। ये सलमान खान ई जा रही है
या? टा टग कैसे क ँ म? मु त का समय नकला जा रहा है जजमान! क या को
बताइए!… उ ँ… कान म बा लयाँ चमक रही ह, सोने क ह या? हाँ, ये पूछकर तुम और
मूड का कबाड़ा कर दो! गरीब आदमी! जो बात कहनी है उसम दे र न करो! आगे बढ़ो
बालवीर! कह भी दो! मत चूको चौहान! मने खुद को पंप करना शु कया। कोई फायदा
नह । उसका चेहरा मेरे गले से लग रहा था और म पघलता जा रहा था। नशा-सा हो रहा था।
अकेली लड़क खुली तजोरी क तरह होती है। कुछ दे र क और खामोशी और…
“ ेरणा! आई लव यू रे! सी रयसली!” उसके चेहरे को हाथ म लेते ए कहा।
उसने मासू मयत से मेरी आँख म दे खा। फर वापस मेरे कंधे पर सर रख दया। मुझे
पता नह य ऐसा लगा जैसे वह मेरी आँख म झूठ दे खना चाहती है। उसे शायद सच
दखता है और वह आँख फेर लेती है। अपना सारा तन मेरी बाँह म दे कर चेहरा सरी तरफ
कर रखा है… जवाब नह दया है। या वह नाराज हो गई है? उसने आँख बंद कर ली ह…
य ? या ये कोई स नल है? वह लुढ़ककर मेरे ऊपर आ गई है। दो मनट और बीत गए ह।
के बन लॉ ड है अंदर से… सामने चल रहा इंटरनेट भी चुप है। नेट यू लट है। बस घड़ी
और साँस चल रही ह…
वह कसी सोए ए ब चे से यादा खूबसूरत लग रही थी, म कसी सोकर उठे ब चे से
यादा च का आ था। या क ँ ? ोटोकॉल ही नह पता। आगे या करना है? यह युवान
मुझे सारी चीज नह बताता। पहले यह इसके बाप का नागपाश हटाओ यहाँ से, सफोकेट
कर रहा है। मफलर हटा दया है। जैकेट भी नकाल के सामने डे क पर रख द है। कोई
त या नह । अजीब-सी बात है… जैकेट नकालने से गम और बढ़ गई है। आँख अब भी
बंद ह। अंदर कुरता है, सफेद… झ क सफेद। कुत के कॉलर पर चकन का वक है। ध
जैसा गोरा गला है और कंधे से नीचे उतरने पर तल है। धागे से लटके शव जी नीचे जाकर
खो गए ह। उसक आँख अब भी बंद ह। कुछ बाल कान के आगे आ गए ह। मने उ ह वापस
कान के ऊपर चढ़ा दया है। आँख अब भी बंद ह… यह कोई सोने का टाइम है? दन म भी
10 बजे तक सोती है। शैतान! मने शैतान को और पास ख च लया। और पास… और
पास… शैतान क साँस ब त गम ह…! ह ठ गाल से रगड़ रहे ह…। हाथ सैलानी हो गए ह,
बस चलते जा रहे ह, खोजते जा रहे ह नई-नई जगह… साँस के आवेग उठ-उठकर गर रहे
ह… उँग लयाँ कह प ँचना नह चाहत , बस चलती जा रही ह… टू र ट हो गई ह, और
उसक सहरती सस कयाँ उ ह वीजा ऑन अराइवल दे रही ह… आँख बंद ई जा रही ह।
तुम यह या कर रहे हो रजत? घर चलो चुपचाप। यह गलत है, यह सब सप स के
खलाफ है। ऐसे नह होता है। शैतान के साथ यह सब गलत है… मेरे ह ठ वापस आ गए।
‘ या होना चा हए’ और ‘ या हो रहा है’ म उलझा म, अपनी जदगी के राजीव चौक
पर खड़ा था। एक तरफ मेरे दोन हाथ म सप स और उ मीद के लगेज थे, सरी तरफ
कसी मे ो क भीड़ जैसी उसक न मयाँ मुझे अपने साथ बहाए लए जा रही थ । म बहा जा
रहा था। मेरा दल बागी आ जा रहा था। ह ठ आगे गए और वापस आए… कोई आवाज
नह ई। वापस आओ ह ठो! यह सब नह होता भारत म। भारतीय तो आज कुछ होगा ही
नह … सब च होगा। दोन के ह ठ दे श ोही हो चले थे…
…
…
…
और वह उठ खड़ी ई।
“ या आ?” अब मेरी साँस तेज थ ।
“मुझे घर जाना है।”
“हाँ, म ॉप कर रहा ।ँ ”
“नह बस, टड तक छोड़ दो…”
“नह , म छोड़ रहा ँ ना।”
“चलो… बस!”
आज फर जीने क तम ा है
शाम के सात बज रहे ह। यादव का पयो लेकर आ गया है। यही कोई 20-21 साल
का ल डा। गु ू आगे क सीट पर बैठा है जो उसक पारंप रक सीट है। बगल म एक प ी म
बरात म चज करने के लए कपड़े रख लए ह। बीच क सीट पर ाइवर के पीछे म बैठा ँ।
रा ल का इंतजार है। गु ू ने गाड़ी बरात वाले घर से थोड़ी र मूँजे क आड़ म लगवाई है,
ता क इ का- का बराती छटककर हमारी गाड़ी म न बैठ जाएँ और हमारी ाइवेसी म
खलल न पड़े। इधर से जो भी गुजर रहा है वह गु ू जी को ‘जयराम भैया’ करके जा रहा है।
फर मुझे दे खकर कना चाहता है। मेरा हालचाल लेता है। “अरे भैया, आप कब आए?
क हौ कुछ दन क चले जइहो?” म मु कुराकर जवाब दे ता ँ, “नह , अभी कूँगा।” गु ू
उ ह आँख से ही ‘कट लो’ का इशारा करता है। वे कट लेते ह। मने यान दया, गाँववाल
को बदलाव पसंद नह है। उ ह ने बरात के लए वही कपड़े पहने ह जो पछले साल पहने
थे। या शायद बदलाव के लए उनके पास पैसे नह ह। गु ू ने नई शट-पट सलवाई है और
बदलने के लए प ी म कोट-पट रखा आ है। गु ू सबको हाथ से आगे बढ़ने का इशारा
कर रहा है, सीधे बरात वाले घर प ँचो, यहाँ मत को! और हमरी गाड़ी म बैठने का तो
सोचना भी मत।
“म वह जाऊँ? मेरी वजह से सब बार-बार क रहे ह।” मने सबसे मल आने का
सुझाव दया।
“अरे छोड़ो। अभइन वाँ कोई न होए, अभइन हा का कुवाँ पर घुमा रहे होइह।”
यादव ने कहा।
अभी वही चल रहा होगा, ‘आवा रे भवानी माता बैठा मोरे अँगना’ गु ू ने यह लोकगीत
गाकर और ताली पीटकर सुनाया। वह और यादव एक साथ हँसने लगे। पलटकर मेरी तरफ
दे खा, और जब जाना क मुझे मजा नह आया तो उसने सफाई द ,
“अरे, बस इस साले ‘अनवांटेड’ का वेट कर रहे ह, ये आ जाए बस चल द। हमको
हे से या मतलब?”
“पहले ये बताओ क र ला का नाम तुमने अनवांटेड काहे रखा है?” पीछे के शीशे म
रा ल र से आता आ दखा।
गु ू पीछे मेरी ओर पलटा, “वो इस लए दद्दा, यूँ क इस साले के सारे काम
अनवांटेड ही रहते ह। ये गाँव का सबसे गैरज री आदमी ह। एहके ब पा रोज कहत ह क ई
सार हमरे जव का काल पैदा होइ गवा है। टोटल ल डयाबाजी। एक लड़क नह बची होगी
गाँव क इससे। यह एलबीएस म नाम लखवा लया है, कॉलेज नह जाता। हर सरे दन
15 पए का आइ डया का नेटपैक करा लेगा और सोय-उठके दनभर का इसका एकसू ीय
काय म रहता है। जय ह व, जय राजपुताना, गौ माता अउ फलाना- ढमाका। तन पर नह
है ल ा, पान खाएँ अलब ा वाला हाल है। जबसे हमने इसको बताया है क अनवांटेड ब त
भौकाली नाम है, सलमान खान वाली वांटेड से भी जबरज त, तब से साले ने फेसबुक पर
अपना नाम ठाकुर रा ल सह चौहान ‘अनवांटेड’ कर लया है। जब क सच तो ये है क
‘अनवांटेड सेवट टू ’ गभ नरोधक गोली का चार दे ख के हमने इसका नाम रखा था।”
मेरी हँसी छू ट गई, “जब उसे पता चलेगा, ब त गहरा सदमा प ँचेगा उसको।”
“अरे छो ड़ए न, यहाँ तो हर आदमी फेसबुक पर जाते ही अँ ेजी भूँकने लगता है!
अभी दे खए, आते ही आपसे कैसे कड़क हो के हाथ मलाएगा और थोड़ी दे र बाद आपक
आईडी लेकर ड र वे ट भेजेगा, फर आपको टै ग करके पो ट डालेगा। सफ अपना
लाइक बढ़ाने के लए।”
रा ल बरात के हसाब से तैयार होकर आया था। वुडलड के जूते, डे नम क जैकेट।
लीन शेव, च मा-व मा। कान म ईयरफोन भी लगाए ए था। उसने आगे बढ़कर गु ू से
हेलो कया।
“ या बे! भारतीय सं कृ त के पुजारी, ल डया-व डया ह या हम जो हमसे हेलो
करोगे? पैर छु ओ पैर!” श मदा होकर रा ल को गु ू के पैर छू ने पड़े। रा ल उ म गु ू से
एक साल छोटा था और र ते म भी भतीजा लगता था।
“पीछे बैठो!” गु ू ने आदे श दया।
रा ल ने दरवाजा खोला और मेरे बगल बैठ गया, तो गु ू ने आदे श दया, “सबसे
पीछे !”
रा ल ने मेरी तरफ दे खा। मने उसे आँख से वह बैठे रहने का इशारा कया। रा ल,
गु ू क सीट के पीछे और मेरे बगल बैठा था। उसे गु ू क श ल नह दख रही थी। मुझे
दोन क श ल दख रही थी। गु ू ने मेरी तरफ दे खा और रा ल को छकाने पर मु कुरा
दया। मने अपनी मु कुराहट दबा ली य क मेरी मु कुराहट रा ल को दख जाती। और म
वैसे भी बड़ा था, मुझे कसी के प म नह होना था।
“अब अइसा है यादव जी! गाड़ी कह केगी नह , आप जानते ह!” गु ू ने यादव को
इं शन दया। गाड़ी चलने ही वाली थी क सामने से चाचा आते ए दखाई दए। उनके
साथ सात-सात साल के गोलू और भोलू भी थे, जनक आँख से ए ा काजल और बरात
जाने क लालसा टपक रही थी। गु ू ने अपने मुँह पर हाथ रखा और यादव को इशारा कया,
“यादव! गाड़ी पीछे ले।”
इससे पहले क यादव गाड़ी पीछे लेता, चाचा गाड़ी रोक चुके थे। गु ू क तमाम
दलील के बावजूद वह गोलू और भोलू को हमारे सुपुद करके चले गए। उन दोन को ड गी
म सेट कया गया। गाड़ी चली। गाँव के बाहर नकलते ही गु ू ने गाड़ी कवाई और ड गी से
उतारकर दोन को एक-एक झापड़ रसीद कया।
“गु ू भैया माल काहे लहे ह?” उनक तुतलाती आवाज म उनके आँसू और काजल
म स हो गए थे।
“मार कहाँ रहे ह बेटा? ये तो हमारी गाड़ी म चढ़ने का टकट है। और बना टकट
या ा करना कानूनन अपराध है। ई तो हम तुम दोन का टकट बना रहे ह। बरात जाएँग? े
मुँह दे ख भैया का? हग के स च लेते हो? बरात जाएँग?े ” गु ू दोन के कान ठ रहा था और
वे दोन ठे जा रहे थे।
रा ल ने गु ू को मेरी तरफ इशारा करके कुह नयाया। गु ू ने मेरी बुझी ई आँख क
तरफ दे खा और दोन को वा नग दे कर छोड़ दया। “आज के दन तुम दोन अपनी आँख
और कान बंद रखोगे, समझे? और जो भी दे खे वो घर पर कसी को बताए न, तो हमसे बुरा
कोई नह होगा।” धमक उन दोन के जेहन म अंदर तक बैठ गई थी। वे दोन पीछे क सीट
पर बैठ गए। अपने ह ठ पर उँगली रख ली। गु ू ने उनक तरफ दे खा, “हाँ, ऐसे ही रहना
चा हए!” गु ू को कुछ अटपटा लगा क मने उसे इन दोन को मारने पर डाँटा नह । कोई
और मौका होता तो उसे डाँट पड़ती। पर मेरा मन कह और ही खोया-खोया था। वतृ णा से
भरा आ, इन सब से उचटा आ था। फोन क न लैश ई। ट प ट प! ट प ट प! मने
मोबाइल उठाकर दे खा। युवान का मैसेज था। मोबाइल क न टू ट नह थी। बस न
गाड गया था। मैसेज चेक कया। “तुमने शशांक को अन ड कया है? ये अ छा नह कया
तुमने!” मने मोबाइल वच ऑफ कया। जेब म रख लया। सहज होने के भाव चेहरे पर
लाने क को शश करने लगा।
गाड़ी ने पीड पकड़ी और गु ू और अनवांटेड क बात ने अपने-अपने रंग। गाँव भर
क चक लस शु ई। गु ू चटखारे लेकर बता रहा था। बात-बात म आँख दबा दे ता था।
रा ल उसका साथ ताली मारकर दे ता था। दोन म कमला पसंद और पान बहार का लेनदे न
भी आ। यादव ने सगरेट जलानी चाही, तो गु ू ने इशारे से रोक दया, “दद्दा के सामने
नह ”। उसने पान बहार से काम चलाया। सगरेट के धुएँ से मुझे गत नफरत है, म
बदा त नह कर पाता, यह बात गु ू जानता है। गु ू पीछे मुड़ा और एक नया संग शु
कया।
“भैया! अबक जाने नह का आ?
“का भवा?
“ आ ई… अरे मैकुवा आपन, कान खो लस है कंपूटर का। सब व था राखत है
ओहमे, गाना अउर बीडीओ भरे वाली। तौ, बजट गए, क हन ‘महाभारत’ भर दयो यहमा!
बजट पेन ाइव अउर सीडी ल हन है नई-नई। हम अउर अनवांटेड हउव बैठ रह।
बजट हमारे महावीर चाचा का नाम रखा गया है जो भाजपा के लोकल व ा ह।
ब त धा मक आदमी ह। ले कन उनसे जब भी कुछ कहो क चाचा यह काम होना है तो
उँग लयाँ झटकाकर कहगे, “बजट बनेगा तो काम होगा!” हमने कहा, “चाचा नल लगवाना
है!’ “बजट बनेगा तो काम होगा!” एक बार चाची ने कहा क हमका एक बेटा चही तब भी
कहने लगे, “बजट बनेगा तो काम होगा!” बस, तब से इनका नाम हम लोग ने बजट रख
दया। बजट बनेगा तो काम होगा।
“हाँ तो भइया बजट प ँचे आपन पेन ाइव लैके, मैकुवा से क हन क महाभारत डाल
दयो एहमा। मैकुवा जान नाइ पाइस। ओकरे कान पर सब उहे डरवावे आवत रहे। कूट
भाषा मा ‘महाभारत’ कहत रहे। हम अनवांटेड का इशारा कहेन क बतायो न। मैकुवा डार
द हस। वहै का कहत ह? ऊ नंगी से सी?”
“बीएफ! च चू बीएफ!” रा ल ने याद दलाया।
“हाँ दे खेव दद्दा! अनवांटेड का ई नाम ज र याद रहे।” गु ू ने खचाई क ।
“अरे छोड़ो च चू, आगे बताओ!” रा ल उतावला आ जा रहा था। यह संग कई बार
सुन चुका होगा पर गु ू के सुनाने के अंदाज का कायल है।
गु ू ने आगे कं ट यू कया, “हाँ तो दद्दा, हम अउर अनवांटेड पीछे -पीछे चल दए।
बजट सप रवार ट वी लगाकर बैठे। अपने साथ एक अउर म को लवा लाए थे। धा मक
प रचचा साथ ही हो। हम अउर अनवांटेड खड़क के पीछे से झाँक रहे थे। अब भइया ट वी
चालू आ। सीन शु आ। चाची क हन, ‘लागत है अबसी महाभारत मा सब वदे शी
कलाकार ह।’ बजट ठहरे भाजपाई! हाँके का शु क हन। ‘अउर या? वदे शी तो हमेशा
हमारी स यता के कायल रहे ह। भारत जगत गु ऐसे ही थोड़ी न है।’…
“अब दद्दा, ऊह-आह शु आ, सुहराना शु आ। अब हमरी अउर अनवांटेड क
हँसी के न। हम दोन एक- सरे के मुँह को दबा रहे थे। बजट को काटो तो खून नह । कह
रहे ह, ‘ये कुंती संग पहले ही दखा रहे ह या? ब त डटे ल म दखा रहे ह।’ लपक के
ट वी बंद कया। अउर हम औ अनवांटेड वहाँ से हँसते ए भगे।”
“हे! हे! हे! आह! आह! आह!” उस पल को याद करके गु ू और रा ल गाड़ी म ही
लोटपोट हो रहे थे। उस हँसी के माहौल म यादव भी पूरा डू ब गया था। मेरे चेहरे से भी एक
मु कान फसल गई थी। पूरी गाड़ी का माहौल झूम गया था। बस पीछे गोलू और भोलू अपने
ह ठ पर उँगली रखे बैठे ए थे। गु ू ने उ ह हँसकर उँगली नीचे करने का इशारा कया।
उ ह ने उँगली नीचे कर ली। गु ू ने मेरी तरफ एक कहकहा फका। मने जवाब नह दया।
“ले कन दद्दा एक बात है, बजट पेन ाइव वापस नह कए।”
“हाँ च चू, वापस नह कए, रात म मंथन कए ह गे क ये संग तो छू ट ही गया था,
हाहाहा, चाची के साथ दे खगे।” रा ल ने भी बात पुरवाई। दोन ने हँसी क उ मीद से मुझे
दे खा, मगर इस बार मेरे चेहरे पर हँसी नह आई। मेरी आँख म वापस जदगी क न सारता
उतर आई। न सार न सार! गु ू ने मेरे चेहरे क ओर दे खा और कुछ अनमना-सा हो गया।
“गाड़ी रोको यादव!”
गाड़ी क ।
“आगे जाओ अनवांटेड! हम दद्दा के पास बैठगे!” रा ल ने बात मानी, चुपचाप सीट
ए सचज कर ली। गाड़ी चल पड़ी। गु ू ने मेरे हाथ को अपने हाथ को अपने हाथ म लया,
“सुबह से हम दे ख रहे ह दद्दा, का हो गया है आपको? एकदम खोए-खोए लग रहे ह
आप!”
“अरे अइसा कुछ नह है गु ू, हम ठ क ह।” मने उसके हाथ को बगल म रखते ए
कहा।
“अरे है कैसे नह ? चुटकुल पर हँस नह रहे ह, गोलू-भोलू को मारने पर हमको डाँट
नह रहे ह, ई का है? आज आपके नाम पर हमने बछरावाँ वाल से मैच ले लया क हमारा
ओपनर बैट्समैन लौट आया है। और आप दोन मैच म जीरो पर आउट हो गए। हमने सगल
लेकर आपको ाइक दया क अब तो बा रश शु और आप अइसा लग रहा था जैसे बैट
ही नह उठ रहा हो। का आ का है? हमको बताएँग? े ”
मने आँख बंद क और एक गहरी साँस भरी। गु ू के कंधे पर हाथ रखा और साँस छोड़
द । अपनी उदास आँख उसक आँख म डालता आ बोला, “यार गु ू! खेल के नयम ही
नह समझ म आ रहे यार!”
“मतलब?”
“ये खेल जसे जदगी कहते ह, म हारता जा रहा ँ यार। जदगी छह क छह बाउंसर
मार रही है। म या क ँ गु ू?”
यादव ने गाड़ी क पीड धीमी कर द थी। वह भी इस बातचीत को सुन लेना चाहता
था, जैसे कोई ान क बात छु पी हो इसम। रा ल भी पीछे के शीशे म मुझे ही दे ख रहा था।
दो पल क खामोशी आ गई गाड़ी म।
“दद्दा, आप हार इस लए रहे ह, यूँ क आप गदबाज को ब त स मान दे रहे ह…
आप कब तक झुकगे? आप तो हमेशा से आगे बढ़के क करने वाल म से थे। हमको नह
पता क आप कौन-सा इंटर ू और इ तेहान म फेल ए ह पर हम को पता है क आप
उसका तोड़ नकाल लगे। यहाँ पर कसी भी चीज का सबसे पहले तोड़ आप ही नकालते
थे। आपका तरीका ही हमेशा से हम लोग का तरीका रहा है। ये लखनऊ जाकर आप पता
नह कैसे बैकफुट पर आ गए, नह तो आप तो हाफ पच पर जाकर हट करते थे। हमारे
लीडर तो आप थे। एक बात हम और बता द आपको जो कोई नह बताएगा। आप सफ
अपने लए नह लड़ रहे ह। आप एक ए सपे रमट ह। अगर आप स सेसफुल ए तो
आपके पीछे 50 लड़के गाँव से भेजे जाएँगे आगे पढ़ने को और अगर नह ए तो पचास को
हल-बैल म नाध दया जाएगा। क चलो करो चारा-पानी…”
गु ू के चेहरे पर गंभीरता छाई ई थी। उसने जो कहा था शायद उसम कह उसके
अपने सफल न हो पाने का मलाल भी छु पा था। रा ल और यादव ने शायद कभी गु ू का
पघला आ प नह दे खा था इस लए वे भ च कयाए ए थे। माहौल म एक त धता
छाई ई थी। गु ू ने गहरी बात कही थी और उसके स मान म दो मनट क खामोशी जायज
थी, पर जब माहौल यादा गंभीर होने लगा तो मुझे लगा क मुझे ही इससे ह का करने क
ज रत है। आ खर म ही कभी इनका लीडर था।
“तो फर गु ू! बुलाओ कल बछरावाँ वाल को, और बाउं ी थोड़ी और लंबी करवाओ,
दौड़ाते ह उनके फ डर को पूरे मैदान म।”
“जे ई न बात!” गु ू के चेहरे पर जोश आ गया। माहौल म वापस खनक लौट आई।
“और ये डफस का एसएसबी वगैरह मत दया क जए, वो आपके लायक नह है,
आप कसी और चीज के लए बने ह। स बल वगैरह दे खए।”
ललल उ चक उ चक उ चक उ चक।
घ मड घ मड घ मड घम। काक पूक पुक! ट ट ट काक पूक पुक! ाजील… ला ला
ला ला… ला ला ला ला ाजील… आज मेरे यार क शाद है, आज मेरे यार क शाद है…
लगता है जैसे सारे संसार क शाद है… आज मेरे यार क शाद है… डीजे वक ! डीजे
वक ! व है खूबसूरत, आहा! बड़ा शुभ लगन मु रत, आहा! दे खो या खूब जमी है, हे
क भोली सूरत आहा… सै याँ धाएँ धाएँ धाएँ धाएँ धाएँ हो सै याँ धाएँ धाएँ धाएँ धाएँ।
ई साला गाना कौन चज कया? रोक तो साले डीजे को! आगे ही आगे भाग रहा है।
लहा का गाड़ी पीछे छू ट गया। रोक सारे को!… आहा चक नक चक नक चक नक!
आहा चक नक चक नक चक नक!, यारा नइयो इ क बीमारी, चंगी नै यो इ क बीमारी।
हो जाएगी ब ले ब ले! हो जाएगी ब ले ब ले! आहा चक नक चक नक चक नक! आहा
चक नक चक नक चक नक। काक पूक पुक! ट ट ट काक पूक पुक। ाजील… ये साला
फर गाना कौन चज कया? एक बजने नह दे रहा है ठ क से!
“दद्दा! फोन बज रहा है आपका।” “ या…??” “फोन! दद्दा फोन!” “ या? सुनाई
नह दे रहा है!”
… कोई रपट लखा दो इसक , कोई रोको दा व क , ये हाथ म लेकर प टल! हो
जाता जादा र क … इसके आते ही खसको। जो नाचे न ये नचा दे , ये करा दे , तमंचे पर
ड को, तमंचे पर ड को, तमंचे पर डस डस डस…
“कुछ नह , कुछ नह … आपका फोन हमरे पास है, जनवासे प ँच के ले ली जएगा…
ये र लवा कहाँ गया?” “अरे ऊ सबसे आगे नाच रहा है। ारचार तक नाचते ए
जाएगा।”… चुनरी चुनरी! चुनरी चुनरी! आजा न छू ले मेरी चुनरी सनम…। कुछ न म बोलूँ
तुझे मेरी कसम… आई जवानी सर पर मेरे… आई जवानी सर पर मेरे… तेरे पे या क ँ
जवानी तेरे हम आजा…
“दे ख रहे ह दद्दा, कैसे ‘चुनरी चुनरी’ कर रहा है। सबसे यादा डांस उहाँ करेगा जहाँ
सब छत से झाँक रही ह। वहाँ! लोट-लोट के करेगा। एक-दो क चुनरी तो छू ही आएगा…
आप नह करगे डांस?” “नह म ऐसे ही ठ क ,ँ वैसे भी हमरे दोन हाथ म गोलू और भोलू
ह। इ ह खाना खलवा के सुला द”
… ये दे श है वीर जवान का, अलबेल का म तान का, इस दे श का यारो! आहा!…
“अरे दद्दा उहाँ कहाँ जा रहे ह, समधी मलन म माला पहेनना है क ारचार म गारी
खा के नैनमट का करना है?” “मतलब?” “आप इधर च लए, अपनी लोगन क व था
इधर है…”
“अरे यार ठ क कए जो वहाँ से लए आए। इतना शोर था क कान ही फटे जा रहे थे।
कौन व था?”
गु ू ने मेरी तरफ दे खा, फर दो फ ट नीचे गोलू-भोलू क तरफ दे खा। “एह गोलू-भोलू!
कान बंद कर रे!” दोन वैसे ही आधी न द म थे। कान बंद कर लए। गु ू ने अपनी एक
आँख बंद क और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोला, “अरे… जनपुर क नच नया है।
ब त कँट ली औरत है। जहरीला डांस करती है। रसीली। जनवासे म व था है… च लए
तो…”
चलो!… आज ये भी सही!
रात गहरी हो गई थी। रा ल का डांस और गु ू का झूमता अंदाज अवगत करा रहे थे
क दोन ने थोड़ी-थोड़ी लगा ली है। शाद मंडप से र हम जनवासे क ओर लौट रहे थे।
पीछे भड़क ले गान क ीण होती झमक कान म पड़ रही थी। सड़क खाली थी और
अगल-बगल पसरा आ आता अँधेरा था। जहाँ बरात टकाई गई थी, वो खाली कराया
गया खेत था। उसके पीछे नाच क व था थी। गु ू के पैर डगमगा रहे थे।
“दद्दा, फोन बज रहा था आपका। कोई अननोन नंबर था।”
मने फोन उठाया, 8604---- ह मम… एक पल को साँस क और आँख म च ल ।
ह मम… मने तुरंत अपना टोन बदला और रोष जताते ए पूछा, “फोन ऑन के क हस रहा
हमार?”
“अरे वहे कोई गोलू-भोलू मा से क हस रहा, गेम खेले ता ।”
“फोन म कोई गेम नह है मेर!े समझे?” मने गोलू-भोलू दोन को घूरा। मेरी आवाज
क झुँझलाहट पर गु ू को कुछ अटपटा लगा। उसने ‘पता नह ’ म कंधे उचकाए।
मैसेज था, “… यार एक बार बात कर लो… ले मी ए स लेन!… आई नो मने गलत
कया। ड ट नो हाउ ऑल दस टाटड… मने शशांक से अब बात करना भी बंद कर द …
डलीटे ड हज नंबर… टॉक वंस यार…।” मने आगे के दो मैसेज बना पढ़े डलीट कए और
फोन वापस वच ऑफ कर दया।
सामने नाच हो रहा था। दो 24-25 साल क औरत फूहड़ नृ य कर रही थ । पीछे लंबे
बाल रखे चार-पाँच लोग का ऑक ा था। उसके पीछे शा मयाना लगा था। सामने फो डंग
चारपाइयाँ पड़ी थ । बीच म एक माइक का टड लगा आ था जसम से माइक नकालकर
एक नतक ने अपने हाथ म ले लया था। गा भी वह वयं रही थी, पीछे वाले सफ बजा रहे
थे और नोट गन रहे थे। गाना ऑन प लक डमांड चल रहा था। सरी नतक ख टया के
पास जाकर कमर हलोर डांस कर रही थी। गाँव के बुढ़ऊ लोग, ‘नह -नह ’ करके 11 और
21 पए नकाल रहे थे। घर म जनसे स जी लाने के लए पैसे नह नकलते वह अधेड़ भी
छै ला बने ए थे। मटक-मटक के पचास के नोट वार रहे थे। गु ू के कदम यह से झूमने शु
हो गए। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और शरीर झुलाते ए कहा—
“दद्दा, ताजा सू से ात आ है क आपको… द ली भेजने का वधान है।” फर
सरी तरफ कसी को इशारा करके बोला, “एह! को ड क लेकर आ!”
“अरे! ऊ केवल ऋतुआ कै फैलावा रायता है, ऐसा कुछ नह है, हम पूछे रहे म मी
से।”
“अहाँ! अहाँ! खबर पु ता है…” फर फो डंग चारपाई पर बेहोश-से पड़े दो लोग को
ल तया कर, “का रे मे सी, फगुशनवा! उठ रे।”
वो दोन अपनी बेहोशी से च क के उठे , “हाँ… हाँ भैया!”
“खाना-वाना खाए?”
“नह , कोटा फुल हो गया रहा गु ू भैया, अब सो रहे…।” उ ह ने पी चुके होने का
इशारा कया।
“अरे नह ! जाओ खाना खाओ और ख टया छकाओ! नाही तो म लहे न सोवे का…
जाओ-जाओ… ज द उठो…।” गु ू उनसे जबरद ती ब तया रहा था, उ ह उनक ही ख टया
से उठाकर सरी ढूँ ढ़ने को कह रहा था। वो ँ- ँ करते ए उठे , अपनी च पल ढूँ ढ़ने लगे।
“अबे च पल उधर है। और जाओ खाना खाओ। इनका दोन को लहे जाओ, खला
दो। एह गोलू-भोलू… जाओ खाना खाओ, और उधर से अनवांटेडवा को भेज दे ना, अगर
उसक ल डयाबाजी ख म हो गई हो…”
“ ँ… … ँ ”
“अरे खड़े का हउ, जाओ ज द !… और ऊ हरमु नया वाले को भेज दो हमरे पास…”
हम दोन उन चारपाइय पर बैठ गए। गु ू ने अपना कोट उतारा और सामने वाली
चारपाई पर फक दया। फर कोट वापस उठाया और उसका माल-मसाला नकालकर शट
क जेब म लया। सामने नाचने-वाली ठाकुर के सामने नाच रही थी…। “तक टु डू टू डू! तक
टु डू टू डू! अरे… ‘डार’! कुवाँ मा जाल ‘डार’, कुवाँ मा जाल ‘डार’… सैयाँ हमरे बड़े
शकारी… कुवाँ मा जाल ‘डार’, कुवाँ मा जाल ‘डार’।” गु ू ने अपने जेब से शीशी नकाली।
“अब इसके लए मत रो कएगा हम… न द नै आती… इसके बना।” उसने चेहरे पर सारा
दद उड़ेल दया। मने ं य भरी मु कुराहट द , “मुझे या फक है।”
“तो… हम या कह रहे थे क सफ ऋतुआ का बवाल नह है, सदन म आपके द ली
जाने का ताव आ चुका है। इस बैठक म न सही… अगली बैठक म तो पा रत हो ही
जाएगा… ताऊ जी को तो जान ही रहे ह आप, कोई भी मैटर ‘बीटो’ कर दे ते ह। ऋतुआ को
भी नवोदय भेजने क बात हो रही है। साला घर को वृ ा म बना दगे ये लोग।” उसने
खोपड़ी झटक और रोष कट कया।
मेरा दमाग कह और खोया आ था। सरे मैसेज म या रहा होगा? बना पढ़े य
डलीट कर दया… अब य कर रही है मैसेज…
म सोच म डू बा आ था, सामने गु ू सागर-ओ-मीना का पूरा इंतजाम बना चुका था।
ड पोजबल म म दरा सज रही थी, दोने म ह द राम मसाला- म स का चखना भी सज
चुका था। रा ल कब मेरे बगल आकर बैठ गया था, मुझे पता ही नह चला।
“का रे अनवांटेड, ए को मली क नाही…?”
“अरे नह च चू, हयाँ के ब टये ब त एहसानफरामोश ह। एक घंटा उनके आरे पर
पूरा ना गन हो गए… साला नो टस ही नह कया कोई, बताइए! मामलै कैटापु ट हो गया।”
अफसोस म उसने आगे बढ़कर ड पोजबल उठा लया। गु ू ने उसे घूरकर दे खा। उसने
वापस रख दया। गु ू ने ‘अ छा पी लो, पी लो’ का इशारा कया। उसने दाँत चयारे, गटक
गया। गु ू ने भी एक साँस म पूरा ख च दया और गंद डकार मारी। आह! ये दोन जाम
छलका रहे थे। म चखना म से मूँगफली बीन-बीनकर खा रहा था। दोन सु र म आते जा रहे
थे। सामने ज म दखाऊ डांस चल रहा था। माहौल का नशा मुझपर भी आ रहा था। म भी
झूम रहा था। दोन मय के खुमार म पद-ग रमा सब भूल गए थे… दल क बात अंदर से
वशेषण के साथ नकल रही थी।
हारमो नयम वाला पंकज ‘अलबेला’, गु ू के पास आकर खड़ा हो गया। “जी भैया!”
“अबे रसीली से कहो इहाँ नाचे, वहाँ बूढ़वन के बीच म या कर रही है?” गु ू ने जेब
से 10 क गड् डी नकालकर लहराई। अलबेला फौरन रफू हो गया। गु ू म ती म तबले क
ताल पर खोपड़ी झुमका रहा था। ट ट टग डक टग डक टग डक! ट ट टग डक
टग डक टग डक! उसने एक गलास और झमकाया और मेरी तरफ एक आँख बंद करके
दे खा, “सुना है, ठाकुर ध मलाई सह आपसे ब त नाराज ह?” उसने एक ताली मारी और
बे दा हँसी हँसा। रा ल भी हँसा।
“अबे नाम तो ढं ग से लो, बाप ह हमरे!”
“अब यादा वण कुमार न ब नए! बाप ह हमरे… जब बमारी अजारी म तड़पते ह
तब पैरा सटामाल लाकर हम दे ते ह, आप नह ! आप तो हाट् सए प पर कह दए, ‘हे लो
फादर हाउ यू’… हीहीही… यहाँ का सारा मैटर हम दे खते ह… या रे अनवांटेड! दे खते ह क
नह ?”
“हाँ! हाँ! च चू आप ही दे खते ह!”
“हाँ! आपको पता है दद्दा क ताऊ जी कसी शाद - बयाह म नह जाते ह! पूछो
काहे? (उसने आँख बंद करके दो-तीन बार भ ह उचका । काहे से नी आपको ब त उ मीद
से भेजे थे। कह जब जाते ह तो लोग पूछते ह क आपका लड़का या कर रहा है, अब
उनके पास जवाब नह होता। थोड़ी दे र तक गदन हलाता रहा)… कोई ये सब खोदे -बीदे
न… इसी लए नह जाते…”
रसीली आ गई थी। प लू कमर म बाँध,े ह ठ दाँत म दबाए ए, लहराती चाल, एक
आँख बंद करके गु ू को अँ खय से गोली मारती ई…
ललल अरे सै याँ जी!… सै याँ जी!… सै याँ जी दलवा माँगे ला, गमछा बछाई के…
हो, सै याँ जी दलवा मांगे ला, ढबरी बुताई के ए…
माइक पर अनाउंस आ, “सौ पए क क दानी पर म गणेश सह गु ू जी का
शु या अदा करतीईईईईई ढम! ढम! अगली फरमाईश है, ‘जो बीच बज रया’ क …”
अब रसीली रा ल के सामने नाचने लगी थी। रा ल उसे डांस म जबरद त ट कर दे
रहा था।
गु ू ने एक गलास और झमकाया। फर मेरी तरफ दे खा, “सुबह से आपका मूड दे ख
के लग रहा है क कौनो न आ शक का मैटर है!”
“ न अ शक ?”
“हेहेहे… अरे वही यार- ार का चु तयापा!”
“हेहे… य , तु ह कभी नह आ ये यार- ार का चु तयापा?”
“नाह! कभी नह । एकदम बकवास बात। कोस र से णाम।” गु ू ने गलास ऊपर
उठाकर णाम कर लया। रा ल नाच रहा था, फर भी बात सुन रहा था। उसने मुझे उँगली
से क चा, “पू छए-पू छए, ब त सी रयस मैटर है।” उसने आँख मारी।
“चो प साले!”
“दद्दा, अब हमरा यार सीधा ग े के खेत म होता है। फ ड ड् यूट ! हेहेहे… जैसे ऊ
अँ ेजी प च रया म नह , वो जब हीरो हेरोईनी म तयाते ह न… तो एक- सरे को फोन
करते ह न? योर लेस ऑर माइन? अह हेहेहे… वैसे ही यहाँ होता है, योर खेत ऑर माइन?
हाहाहा।” उसने ताली मारी और जोर से हँसा।
रा ल ने फर क चा, “पू छए च चू, एलबीएस क ही रही… उसी के गम म ह…”
“चुप सारे! बीच म काहे ट पर- ट पर कर रहा है? दद्दा, एलबीएस नह यह टपरा क
थी।” गु ू ने एक मुट्ठ चखना फाँका और भखर-भखर चबाने लगा।
“कहानी या है गु ू?”
रसीली रा ल को घेरे म ले रही थी… जो बीच बज रया तूने मेरी पकड़ी बैयाँ म सबको
बोल ँ गी, टना ना ना… जब रात मा कोई ना जागे, ऐ यो सै याँ, म खड़क खोल ँ गी, टना
ना ना…
“… दद्दा कहानी कुछ नह है, बस शोट म बात इतनी ही रही…”
रा ल ने रसीली को दफा कया, “च चू अभी दे खए शेर सुनाएँग… े ”
गु ू जमीन म दे खता रहा, एक घूँट लया, फर नीचे ही दे खते बोला, “मु कुराती रही,
इठलाती रही… मु कुराती रही, इठलाती रही, करती रही बनोद… हेहेह… े यह यादव के गाँव
क ही थी…” गु ू ने एक घूँट और लया। बना घूँट लए आगे क बात नह बोल पाएगा…
“तो दद्दा, मु कुराती रही, इठलाती रही, करती रही बनोद… अंत म छोड़ कर चली गई
हाहा मादर… हहहाहा इह इह इह इह।” रा ल और गु ू एक फूहड़ हँसी म सराबोर हो गए।
यादव सट पटा गया। फर गु ू आँख प छने लगा।
“ई या है गु ुआ? तू रो रहा है या?”
“नह दद्दा बलकुल नह …।” गु ू ने चटपट अपनी आँख प छ , कहने लगा क
लाइए, अपना मोबाइल द जए हम बी डयो बनाएँगे। मने मोबाइल दे दया। वह गया और
रसीली को पकड़ लाया, मोबाइल रा ल के हाथ म दया। लेट्स नाचो!
ललल झूलने का झूला साजन तुझे म झुलाऊँगी, क ँ गी गुलामी तेरे नखरे उठाऊँगी…
अपने ह ठ का रस तेरे ह ठ पर राजा, कसम से घोल ँ गी, टना ना ना…
“वी डयो शु हो चुका है, जैसा क आप दे ख सकते ह, सामने रजत दद्दा बैठे ए ह
और उनके घेरे म रसीली नाच रही है, दद्दा ख टया पर से उठ नह रहे ह, रसीली झुक-झुक
के बजली गरा रही है, बैक ाउंड म ‘हँसे पर दे बे सौवा’ गीत शु हो चुका है, आनंद
ली जए! कैमरामैन ‘अनचाहे गभ’ के साथ म संवाददाता गणेश सह गु ू, अभी थोड़ी दे र
पहले तक!”
ट ना नन टन, ट ना नन टन…
“दद्दा ये फोन आने लगा कसी का बीच म।”
“ कसका है?”
“कोई अगुमट कग लख के आ रहा है!”
“ऑगुमट कग?”
शशांक…? पूरे एक महीने बाद? समय दे खा, पौने यारह हो रहे थे। ‘म सो रहा था’
वजह काम नह करेगी।
“लाओ फोन दो!”
फोन सुबह पटका जा चुका था। र गग आईसी चली गई थी। पूरे 1 मनट 35 सेकंड
चली कॉल म मेरी आवाज उस तरफ नह गई। उसे शायद मेरी बात सुननी भी नह थी। जो
उसक आवाज आ रही थी उसम भी मुझे आधा ही सुनाई दया…
लललसमझा ना हमका गोरी ऐरा गैरा न थू खैरा, च चा बधायक हमरे टरक चले ले
दस टयरा… $#%@& आज से कोई मर गया मेरे लए, &*$#$ कोई मर गया तु हारे
लए। @#$$% यह केवल शशांक ही था जो र ते को *%$#@… म भी कोई बरात नह
लेकर आया था इस नया म, बस तुम दोन … @#$% … अब म तु ह लॉक। *&#%$
फोन कट गया। मने वापस फोन कया। वच ऑफ हो चुका था। … चढ़ल जवा नया म काहे
तू पगला यल बाटे , ई तोहरा क मत हमरा तोहरा पर दल आइल बाटे … नफरत है मुझे
अपने आप से। मने ही उसे अन ड कर दया था। नफरत है मुझे अपने आप से।
“ला गड् डी दे रे गु !ू …” ललल हँसे पर दे बे सौवा, ते चु मा पर पंसौवा, हजारा दे बे
गोरी, तू बैठ जाओ धरौवा… चटाक!… “भ क! भग यहाँ से! बंद कर इसको!”
वापस तेरे शहर म…
एक ह ते बाद।
आज तीसरे दन अलाम बंद करके सोने वाला था। फर एक बात आई दमाग म। ‘तुम
नया या बदलोगे बेवकूफ, जब तुम खुद को नह बदल सकते!’ आँख अपने आप खुल
गई। चद्दर फक द । दौड़ने नकल गया। ब त गंभीर रहता ँ आजकल। अपनी लाश जैसी
थक आँख से सर क हँसी छ नता ँ। को चग के हेड ब त तेज हँसे थे जब मने कहा था,
“सर इसी ईयर का एसएससी नकालना है, या क ँ ?” हँसते ए अगल-बगल दे खकर
अपनी हँसी म पाटनर जोड़ने लगे थे। फर मेरे चेहरे को दे खा। म वैसा ही जड़ था। बेचारे
कागज-कलम नकालकर कताब के नाम नोट करवाने लगे थे। अपने चेहरे क गंभीरता
और आँख क गहराई से अगल-बगल बैठने वाले लड़क को डराता रहता ँ। उनक
चुहलभरी बात हाट् सए प के ‘है पी महा शवरा ” क बधाई जैसी बो रग होती ह।
“…आप एक ए सपे रमट ह।” “पता नह आप ये लखनऊ जाकर कैसे बैकफुट पर
आ गए, वरना आप तो हाफ पच पर जाकर हट करने वाल म से थे।” “ब त जने गए ह
हयाँ से भैया, बीटे क-सीटे क कर, कोही से क ँ पीछे न रहेव!”… मेरी चॉइस हमेशा से ही
गलत थी। उसके बारे म सोचता था जो मेरे लए कुछ श द भी न ब श सक । वह जो मुझे
बना बताए मेरी लंबी उ के लए नजला रहती है, उसके बारे म कभी फ ही नह क …
पता जी अब भी कसी र तेदारी म जाने से क ी काटते ह गे।
एक महीने बाद।
तु हारी याद नह आती अब। आती है तो म यादा लोड नह लेता। जब भी तुम याद
आती हो, कुछ करने लगता ँ। झाड लगाते-लगाते याद करता ँ। कपड़े धोते-धोते याद
करता ँ। बतन माँजते-माँजते याद करता ँ। सफ तु ह याद नह करता। तुम अब
‘सेकडरी’ हो गई हो मेरे लए। सुबह उठकर दौड़ना वापस शु कर दया है। तु हारी याद
आने लगती है, दमाग को ऐसा फ स कर लया है क तु हारी याद सफ सुबह पाँच बजे
रवाइंड क ँ गा। तुम याद आने लगती हो, म और तेज दौड़ने लगता ँ। तब तक दौड़ता ँ
जब तक शरीर टू टकर गर न जाए। घास पर गरता ँ तब पूरा पसीने से लथपथ होता ँ।
अपनी दोन बाँह चेहरे के दोन तरफ लपेटकर धे मुँह गरता ँ, मेरे पसीने से मेरी मेहनत
महकती है। तुम सही कहती थी, मुझसे ब कट जैसी खुशबू आती है। गेट नंबर वन से गेट
नंबर टू तक अब भी हवाएँ चलती ह।
8 महीने बाद।
मेरे गु ू से फोन बदल लेने क बात जानकर पता जी ने नया माटफोन भेजा था। उसे
खोलने क नौबत आज आई। हाट् सए प ऑन कया है। पहला काम कया है क ‘उसक ’
डीपी दे खी है और सरा काम शशांक को मैसेज कया है। “मस का रज ट आ गया है, दे ख
लेना!”। खुद को बताया क अभी हाट् सए प अनइं टाल कर ँ गा। पर कया नह । शायद
उसके जवाब का इंतजार कर रहा ँ। रज ट तो उसने पहले ही दे ख लया होगा। यह तो
जलाना आ। मस हम दोन ने वालीफाई कया था और मने उसे पतालीस नंबर के मा जन
से बीट कया था।
इंटर ू अगले तीन को है। तीन मई। इंटर ू ट स? शशांक को हराने के बाद भी सुकून
नह । वह मुझे इंटर ू म 45 नंबर से तो बीट नह कर सकता। फर भी मेरे अंदर का सनक
कह रहा है— “बी थलेस!”
इंटर ू ट स! शांत भैया से?
हॉ टल गया। वह वहाँ नह थे। वह अब कमरा लेकर कह अकेले रहने लगे थे। उनके
म पाटनर रा ल ने उनका पता मुँह बनाकर दया। मुझे उड़ती-उड़ती खबर कसी ने बताई
थी क शांत भैया पर आलोक सह के लोग ने चौराहे पर सबके सामने हाथ उठाया है।
छाया जी के च कर म। रा ल भैया उस बारे म बात करने से कतरा रहे थे। सुनकर मेरा खून
जल गया था, मगर कसी ने मुझे पूरी बात बताई नह थी। मने इ ह ही कुरेदना ज री
समझा। वह बफर पड़े।
“तो! अब या कर लोगे तुम?” (यह कैसा जवाब है, यह तो धमक है।)
“म सपल-सा वे न पूछ रहा ँ, कसने?”
“उसे तो मार खाना ही था। पगला गया था उस राँड़ के च कर म। कह रहा था, सारी
नया एक तरफ, छाया एक तरफ। जब अपने दो त से ही बैर ले लेगा तो होगा या?”
“तमीज से नाम ली जए, आप कसी लड़क के बारे म बात कर रहे ह!”
“यही! यही! वो भी कह रहा था, साला!”
“ कसने मारा था? आलोक सह ‘भाऊ-भाऊ’ ने?”
“मने थ पड़ मारा था उसे। मने!” उसने अपनी बाँह चढ़ाते ए कहा, “जो करना है कर
ले। ब त समझाया, क वो राँड़ है, छोड़ दे उसे, मगर नह , अब दे ख! छोड़ के चली गई न
उसको… शाद का काड भेजा है, उसको या लगा था उससे शाद करेगी?”
“आपने मारा था?”
“हाँ मने! या कर लेगा?”
“बीच चौराहे पे?”
“हाँ तो?”
म जमीन म दे खने लगा। अंदर के कसी सनक के हाथ काँपने लगे। अ छ बात नह
है… नॉट गुड। नॉट गुड! उदास आँख को सफ बाहर का दरवाजा और सामने मेज पर पड़ा
ताला-चाभी दखने लगा। बंद करके चला आया। पीछे से “खोल! खोल! खोल! पागल है
या?” क आवाज आती रह । चाभी झा ड़य म फक द ।
शांत भैया ने कमरा पता नह कौन-सी अजीब-सी सुनसान जगह पर लया था। वही
ढूँ ढ़ना था। अब वही कुछ ट स दे सकते थे। यू नव सट से वापस लौटते व आईट चौराहे
पर कसी पर नजर पड़ी। या वह वही है? हाँ वही है! मुझे या फक? वो अपने ऑटो का
इंतजार कर रही थी। उसक पीठ मेरी तरफ थी, उसे मेरे पीछे आने क भनक नह थी। ँह।
जनके लए पूरे लखनऊ म पक एंड ॉप स वस चल रही थी, वो आज ऑटो का इंतजार
कर रही ह? ँह! मुझे या? मगर आगे बढ़ते-बढ़ते मेरे कदम ठठकने लगे। उसने पलटकर
दे ख लया तो? चार-पाँच लोग ऑटो के इंतजार म खड़े थे। उसने सलवार सूट पहना है। मेरा
फेवरेट। गाढ़े हरे रंग वाला पट् टा भी है। हाँ वही है, प का! पता नह मने कससे पहचाना
था, कपड़ से या आकृ त से। वही कंधे, ज ह म पीछे से पकड़ लेता था और वह मुझे डाँट
पड़ती थी, “हाव! तुमने तो मुझे डरा ही दया था!” फर सर पर एक ट पी पड़ती थी। मेरे
मन ने पकड़ने का अनुभव भी कया और ट पी भी खा ली। मने अपने आप को एक ट पी
मारी। या सोच रहे हो? जाकर बात करोगे? पूछोगे क मैसेज म या लखा था? मुझे अब
कोई मतलब नह उससे। पराई लड़क । ँह। या च र । स मंड ायड टापते रह गए क
ी चाहती या है, और तुम जानने चले हो… ड ज ड दे हाती? फर भी कदम ठठकने
लगे। साँस तेज होने लग । “ डवाइडर पार करके सरी तरफ से चलो न!” म रा ता य
बदलू? ँ सड़क सबक है! या म उससे बात करना चाहता ? ँ एक साँस भरी। शरीर अकड़
के सीधा कया और उसके सामने से “मने तु ह नह दे खा” का अ भनय करते ए नकला।
कान एक-एक श द को सुन लेने क चाह के साथ चैत यता के ती तम तर पर चले गए…
तीन-चार कदम आगे नकल गया उससे। साँस सामा य ।
“रजत!” वही चर-प र चत आवाज। पर उस आवाज म हक से लया गया नाम नह
था। एक सशं कत मन से लया गया नाम। ‘रजत!’ जसका ‘र’ ब त चहककर नकला था
और ‘त’ जैसे माफ माँग रहा हो क य नकल गया। कदम क गए। आँख म च ल । साँस
भरी। हाथ जेब म डाले। पलटकर दे खा। एक अजनबी नजर से। “कौन?” इतनी अजनबी
नजर से उसे दे खा जैसे कोई पराई भाषा क कताब हो। पहचान का कोई संकेत नह दया।
“कप… पस… से आ रहे हो?”
हाँ म सर हलाया। जतना धीमा हो सकता था, उतना धीमा ‘हाँ’, गदन जतनी कम
हल सकती थी उतनी कम हलाई। जतना औपचा रक हो सकता था उतना आ।
‘वहाँ तक साथ चल!’ उसने इशारे से उँगली दखाई। उँगली मेरी गली क ओर इशारा
कर रही थी।
ऊ स! मेरे पास तो बाइक भी नह है। मने हाथ से ए सेलरेटर ख चने का इशारा करके
अपनी असमथता जताई।
“पैदल चल वहाँ तक? तुम घर चले जाना, वहाँ से ऑटो कर लूँगी।” आँख जैसे माफ
माँग रही ह । जैसे वे उतनी री म सारी बात कह दगी।
“नह ! म अपने घर नह जा रहा… कह और जा रहा!” सरी तरफ जाने का इशारा
कया। ज ट अपो जट साइड। (मुझे पता है क मेरी गली तक प ँचने पर तु ह ऑटो ब त
मु कल से मलेगी और म 15 मनट तु हारे साथ खड़ा र ँगा।) “चलो सी यू, बाय!” आधी
बात श द से, आधी इशारे से। उसके बाय का इंतजार भी नह कया और पलट गया। लंबी
साँस लो! छोड़ो!… लो… छोड़ो…
‘ या क ँ म? म घर जा ही नह रहा था। शांत भैया के पास जा रहा ँ।’ मने दल
क अदालत म अपना प रखा। अगला : ‘तुम 200 मीटर पैदल नह चल सकते थे?
वहाँ से लौट आते!’
‘जी नह ! अब और मज री नह करनी। पु य कमाने नह आया ँ लखनऊ। णाम!’
अदालत क कायवाही अगली तारीख के लए मु तवी क जाती है। अंदर कोई अपील
पर अपील करता रहा, ‘जाओ वापस! वो अब भी वह खड़ी है।’
कमरे म वापस आकर चुपचाप बैठ गया। भैया क हालत दे खी नह जा रही। छाया जी
क शाद हो रही है। अगर ेरणा क शाद कह और हो गई? नह ऐसा नह हो सकता!
अभी तो लगता है क थोड़ी र पर है, और म नाराज घूम सकता ँ। मेरी मज , म ऐसे ही
नाराज घूमता र ँगा… मगर वह मनाने ही न आए तो? ऐसे ही चली जाए तो?
ट प-ट प! ट प-ट प!
हाट् सए प पर एक मैसेज लैश आ। वन यू मैसेज ॉम अननोन नंबर। नंबर वही
है।.. 86044..। हाट् सए प का ीन माक कह रहा है ज द से मुझ पर लक करो। नह
लक क ँ गा। दल धक्-धक् कर रहा है। शायद फोन हाथ से छू ट जाएगा… अपनी आँख
बंद क , मोबाइल बेड पर फका, कमरे से बाहर भाग आया। बाहर आकर रे लग पर का…
मोबाइल वापस बुला रहा है। उसम मैसेज आया है। उसका… या मैसेज है? पढ़ लूँ बस?…
जवाब नह ँ गा… प का! जवाब नह ँ गा…। नह तुम दोगे! नह ँ गा, बस पढ़ लू,ँ आज
मने उससे ढं ग से बात भी नह क …। लीज? अंदर कोई जद करने लगा। जैसे मेरे अंदर का
ब चा, मेरे अंदर के सनक क गर त से छू ट जाना चाहता है। वह ब चा जसे खेलने के
लए ेरणा मोट क गोद चा हए। नह वो कहेगी, “कहाँ मोट ँ म? जरा बताओ तो?” फर
यह ब चा उसे घूँसे मारेगा। नह म वापस नह जा सकता उसके पास… बलकुल नह । मेरे
ल य ह, मुझे उ ह हा सल करना है… या कर लोगे? ये सारी चीज हा सल करने के बाद भी
नया उसके बना अधूरी रहेगी… नह मुझे उसके पास जाना है… जाना है तो जाना है।
वापस आया, मोबाइल उठाया। लक कया। मैसेज था, “रजत”। न यार से कया
गया ‘र जो’, न गु से से कया गया ‘राजरजत सह चौहान’, न एक फालतू ब , न कॉमा, न
माइली, न ए स लेमेशन माक, सफ रजत। दो तीन-बार मैसेज को उलट-पलटकर दे खा।
सफ रजत! एक सेफ साइड लेकर खेला गया र क, “रजत”। मने वापस मैसेज कया,
“ ेरणा।”
उधर से जवाब आया, “पागल… आई हेट यू।”
नह ! नह ! नह ! म जवाब नह ँ गा। नह ँ गा! नह ँ गा! नह ँ गा… तीन मनट तक
दे खता रहा। फर उँग लय ने व ोह कर दया।
रजत : आई हेट यू टू ! (अब बस, इसके बाद कोई मैसेज नह । ब त आ।)
ेरणा : तुम आज एकदम पागल लग रहे थे, एकदम पागल।
(ये या शु आत ई? उसक बात करो जस वजह से मुझे नाराजगी है। इसका जवाब
नह ँ गा म।)
ेरणा : आई लव यू मोटे
रे णा : तु हारे बना रहना मु कल है…
रजत : शशांक तो है न…? म कौन ँ? (“म कौन ”ँ – टाइप कया, डलीट कया,
टाइप कया, फर डलीट कया। फर भेज दया।)
ेरणा : कॉल कर सकती ँ?
रजत : म। (और यहाँ से सब गड़बड़ हो गई। जतना कॉ फडस मेरे अंदर मैसेज म
आ रहा था, सब धुल गया। अपनी आवाज से या सामने होने से तो वह मुझे मना ही लेगी।
उसक आवाज सुनकर गला ँ धने लगा। आँख मचने लग ।)
ेरणा : हमारे बीच कुछ नह आ था…। और शशांक ने कुछ कहा है तो झूठ कहा है।
रजत : नह , उसने कुछ नह कहा है! (युवान न होता तो मुझे कुछ पता ही न चलता।)
ेरणा : वो कम-से-कम फोन पर ए स लेन तो करता है, तुमने तो इतने दन से मेरा
फोन भी नह उठाया। उसे लगता है क मेरी वजह से तुम दोन क दो ती टू ट । अब वो भी
मुझसे नफरत करता है।
मुझे उसके बारे म बात नह करनी थी। बात बदल द गई। “मने दे हरा न म तु हारे
लए ईयर रग खरीद थी।”
“कब पेना रे ओ?” उसका वर कातर हो गया।
रजत : तीन को दोपहर म मेरा इंटर ू है, फर तुमसे मलूँगा।
ेरणा : प का न?
रजत : मगर मुझे तुमसे ब त सारे सवाल करने ह!
“हाँ पूछ लेना।” उसने खनकती ई आवाज म कहा, जैसे मलने पर तो मुझे मना ही
लेगी।
इंटर ू के दन।
युवान का मैसेज सुबह ही मेरे पास आया है। “आल द बे ट फॉर इंटर ,ू कर तो लोगे
ही इतना जानते ह, उसका भी अ छा आ है।” मने मैसेज पढ़ा और डलीट कर दया।
बरामदे म चहलकदमी कर रहा ँ। दो लड़क के बाद मेरा नंबर है। दल म ह क धक्-धक्
तो है पर अभी एक बार अंदर घुस जाऊँ उसके बाद सब ठ क हो जाएगा। और इंटर ू के
बाद ेरणा से भी तो मलने जाना है। फर भी पैर ह के-ह के काँप रहे ह। ने ट!
एक लड़का मेरे सामने से गया। पसीना-पसीना। शायद उसका इंटर ू अ छा नह
आ। सरा लड़का अंदर गया। इसके बाद इस बगल वाले लड़के का नंबर है और उसके
बाद मेरा। टाई पहनकर आया है बेवकूफ। अखबार चाटे जा रहा है। जैसे आज के अखबार
म से ही पूछा जाएगा सब! इतनी गम म टाई कौन पहनता है! इंसान को नेचुरल रहना
चा हए।
“भाई, अखबार दे ना जरा!”
“आपको अपना लेकर आना चा हए था!” उसने मुझे उपे ा से दे खा।
“अरे आप नेशनल पढ़ रहे ह, मुझे बीच का ही दे द जए, लोकल खबर ही पढ़ लूँ।”
(अबे सुन बे गधे! इस पूरे सटर म मेरे नंबर सबसे यादा ह और तुम अखबार न दे कर मेरा
सले शन नह रोक दोगे।)
उसने मुझे घूरकर दे खा, मगर अखबार नकालकर दे दया…
ह म दे ख लेता ,ँ लोकल खबर या ह… लखनऊ मे ो का लान ता वत है, कहाँ से
कहाँ तक चलेगी, पहले चरण म…? हवाई अड् डे से रेलवे टे शन… सीजी सट डेवलप हो
रहा है… एलडीए के स चव बखा त, स वल परी ा म फेल होने के कारण शोधछा ने क
खुदकुशी। या- या- या? पंखे से लटककर द जान, मृत शरीर र सी से झूलता मला…
छा का नाम शांत… नह -नह -नह …। यह नह हो सकता, गलत खबर है। हाँह, लड़के
का नवास थान ग डा बेलसर बताया जा रहा है। नह … नह ।… नाह!
ये नह हो सकता… हाँह… हाँह!
“भाई साहब, मने आपको अखबार फकने के लए तो दया नह था!”
…
“अरे, अब जा कहाँ रहे ह, मेरे बाद आप ही का नंबर है! अजीब सनक है… सेले ट
कैसे हो गया?”
न न!
“भैया… ये अंडर वयर वाली सीमा बंद उखाड़ लाए आप?”
“हाँ! र सयाँ ब त काम आती ह रजत”… “दो को मेरा रज ट आने वाला है, तु हारे
इंटर ू से एक दन पहले, नह आ तो बखर जाऊँगा म!”… “उसक शाद हो रही है
रजत”… “थोड़ा-सा इंतजार नह कर सकती थी मेरा?”… “वो मुझे छोड़कर चली गई
रजत”… “माँ भी मुझे छोड़कर चली ग ”… “अजीब वडंबना है, म यहाँ मैगी बना रहा ँ,
मेरे बाप वहाँ मेड़ बना रहे ह”… “वो मुझे छोड़कर चली गई रजत”… “भूलना था तो इकरार
कया ही य था, बेवफा तूने मुझे यार कया ही य था?”… “अरे गाँववाल का
जा हलपन तो तुम जानते ही हो, जाओ तो पूछते ह क ँ जुगाड़ नाइ लाग?”… “आधे
लड़क को तो गाँव क राजनी त बबाद कर रही है, आईएएस छोड़ो एक पीसीएस नह
नकला गाँव से”… “ या जनरल गरीब नह हो सकता रजत?”… “यहाँ भाषा के चयन से
ही आधी बात तय हो जाती ह”… “वो मुझे छोड़कर चली गई रजत…”
“अबे दो बार घंट बज चुक है! तेरा दमाग कहाँ है? तु हारा नंबर है, पैनल वेट कर
रहा है!”
“हाँ…”
“तु हारा नंबर है! तु हारे डॉ यूमट प ँच चुके ह… होश म तो हो, 13 नंबर कमरा।
जाओ ज द !” चपरासी ने घुड़क द ।
“हाँ? जी! जी!”
“मे… मे आई… या म अंदर आ सकता ँ सर?”
“यस यस… कम-कम… लीज बी सीटे ड! वो पीछे दरवाजा बंद कर द जए!”
“जी, माफ क जएगा सर… गुड! गुड आ टरनून टू आल ऑफ यू सर!”
“ड ट वरी। इजी… इजी! मेक योरसे फ कंफटबल!”
“यस… जी सर!”
“सो म टर राजरजत सह चौहान! यू हैव सच अ नाइस ै क रकॉड, हाई डू यू वांट टू
जॉइन दस जॉब?”
“माफ क जएगा सर, मुझे अँ ेजी म तकलीफ है, म सा ा कार हद म दे ना पसंद
क ँ गा!”
सब एक- सरे को दे खने लगे, आ य और मा भाव चेहरे पर लाकर बोले, “जैसा
आप चाह।”
---
“आपने सोशल ए ट वट म लड डोनेट लखा है पर उसका स ट फकेट तो आपने
लगाया ही नह ?”
“सर, माणप भी मने दान कर दया।”
“ या? वो य ?”
“सर, उससे भी एक यू नट खून मल जाता है, दान करो तो पूरा दान करो। स ट फकेट
जमा करने का या फायदा?”
“ह म! और ये बॉडी डोनेट का?”
“हाँ सर, उसका स ट फकेट ही है, बॉडी डोनेट करने के बाद तो आपके सामने न बैठा
होता सर?”
“हाहाहा… वैरी फनी राजरजत सह… वैरी फनी!”
(वो मुझे छोड़कर चली गई रजत!)
---
“ वमन एंपावरमट पर या वचार ह आपके?”
“ नभर करता है क कनके सश करण क बात हो रही है। हमारे घर म, गाँव म
ऐसी म हलाएँ ह, ज ह पता ही नह है क उनका शोषण हो रहा है, उ ह उनके अ धकार
दलाने क बात पर म समथन करता ,ँ मगर जनके लए वमन एंपावरमट का मतलब
सफ माहवारी क बात करना, ा ै प झलकाना, फूहड़ कपड़ और च र हीनता का
समथन करना है, तो मुझे उनसे कोई सहानुभू त नह है।”
---
“कुछ चीज के काफ इंटरे टं ग जवाब दए आपने, नाइस। इट वाज नाइस मी टग
यू!”
“जी, ध यवाद!”
“अरे! अपने द तावेज तो लेते जाइए!”
“ मा चा ँगा सर!” हाथ बढ़ाकर ले लया।
वचार शू य। कमरे से बाहर। गली से बाहर। हॉल से बाहर। गेट से बाहर। सड़क पर।
चेतना शू य। “वो मुझे छोड़कर चली गई रजत”… “तुम… तुम बात करो न उससे, तु ह ब त
मानती थी वो, तु हारी बात ज र मानेगी”… “तुम बात करोगे मेरे लए उससे?”… “और
तुम न! थोड़ा मैनस सीखो, पूरा दाल-चावल इकट् ठे सान लए, अरे थोड़ा-थोड़ा लेकर
खाओ”… “तुम खड़े-खड़े य ब ला चाज करते हो? पहले गद क लाइन म जाओ तब
शॉट मारो!”… “अरे इधर से गुजर रहा था तो सोचा तु हारा प रचय आट् स वभाग से भी
करवा ँ !”… “च लए चीफ गे ट साहब, काहे डर रहे ह?”… “ या इस लए क मेरी
सफलता म थोड़ी दे र हो रही थी?”
ट ना नन टन! ट ना नन टन! ट ना नन टन! टन!
ेरणा कॉ लग!
“हे लो रजत! म आईट पर वेट कर रही ँ!”
“वो मुझे छोड़कर चली गई रजत।”
“ या?”
टूँ टूँ
ट ना नन टन ट ना नन टन ट ना नन टन टन!
“मेरा फोन य काट दया था?”
टूँ टूँ !
“वो मुझे छोड़कर चली गई रजत”… “मु कुराती रही इठलाती रही… अंत म छोड़कर
चली गई”… “तुम कैसे भूल सकते हो क हम कतने अ छे दो त थे? मेरी जदगी म कोई
है… लव यू टू एज अ ड?”… “वो मुझे छोड़कर चली गई…” “ य ? य क मेरी सफलता
म थोड़ी दे र हो रही है? या वो थोड़ा-सा इंतजार नह कर सकती?”… “ य ? य क तुम
गोरे नह हो और तुम लंबे नह हो… और तु हारे पास बाइक नह है… एक कपड़ का
मैनेजर… कोई खान? तुमको या लगता है बे क म उसका नाम याद रखूँगा? हम कतने
अ छे दो त थे…” या च र ।
ट ना नन टन! ट ना नन टन! ट ना नन टन! टन!
“तुम मेरा फोन य काट रहे हो?”
टूँ टूँ !
ट ना नन टन! ट ना नन टन! ट ना नन टन! टन!
पता जी कॉ लग! (‘हम येहके मुँह नाइ दे खा चा हत’ यही कहा था न इ ह ने?)
फर पता नह य लगा क कुछ मतलब क बात करगे!
“हे लो, हाँ बेटा! इंटर ू केस रहा?”
“ठ क रहा!” (बेटा?)
“ शांत कै पता लाग? गाँव भर मा मातम केर माहौल है। ओहके सले शन नाई भा
रहा।”
“हाँ पता चला!” (“ सफ यहै वजह नाय रही!” मेरे अंदर कोई चीखा)
“तुह कौनो द कत… द कत तो नाय है बेटा? घर… घर चले आओ! तोहार म मी
याद कर रही!” (आवाज म खौफ, लाचारी, मजबूरी, सब साफ झलक रही थी। एक बाप ने
अपना बेटा खोया है, सब बाप का यही हाल होगा…)
“नह , म ठ क ँ!”
“ द ली नकल जाओ! अब लखनऊ मा ना को… आगे के तयारी व से करो! औ
सेले सन के चन… चता ना कहो बेटा!”
“जी! पता… जी!”
“यमहा तो होइन जाए, अब जब तक पो टं ग ना आवे, द ली रहव… हम टक…
टकट दे खत है फन…?”
“पहले वप सना जाऊँगा…”
“ बपसना?”
“मै डटे शन कोस है, 10 दन का…”
“हाँ! हाँ! जाओ… जहाँ मन वहाँ जाओ!”
टूँ टूँ !
अंदर का ब चा मर गया। और सनक वापस लौट आया। अब शायद यान म ही कुछ
शां त मले। या समय ही ज म भरे! द ली चलो! द ली!
रीयू नयन
पूरे घर म सफेद करवाई गई है। पूरी गली को सजाया गया है। पा कग वगैरह के अलग
से इंतजाम कए गए ह। म णक णका शै णक सं थान समूह के चेयरमैन क सगाई है।
चेयरमैन साहब कह दख नह रहे ह। पूरी गली और सामने पूरे पाक को हरे रंग क दरी से
ढँ क दया गया है। लाइ टग, झालर, फोकस लप, एलसीडी, सारा इंतजाम शाम के लए हो
रहा है। उस बड़े-से दरवाजे के सामने म चार साल बाद खड़ा ँ। इधर-उधर दे ख रहा ँ। मेरी
नजर महारा ज धराज, टॉम ू ज को ढूँ ढ़ रही ह। जगह-जगह कु सयाँ डालकर कुछ
बेरोजगार मेहमान अपना मह व बघार रहे ह। जनक अपने घर म कोई पूछ नह होती वे भी
यहाँ पूँछ उठाए घूम रहे ह। त और मह वपूण। कोई प र चत दखे तो म पूछूँ भी क
महाराज कहाँ ह। आधे मेहमान और आधे कामगार लग रहे ह। कुछ ब चे इधर से उधर भाग
रहे ह। म दरवाजे के सामने हाथ म अपना बड़ा-सा बैग लटकाए खड़ा रहा। फोन क बैटरी
भी चली गई है, नह तो कॉल ही कर लेता। फोन म बैटरी होती तो दशा मैया मुझे खाली
छोड़त ? फोन चालू होते ही यार बरसेगा। म कुछ दे र इसी उलझन म था क मेरा सौभा य,
मुझे सामने गुजरती ई आंट दख ग । म सीधे उनके पैर पर गर पड़ा। इतने दन बाद भी
मेरे लए आंट का मतलब था, गरमागरम लजीज कचौ रयाँ! उनके पैर छू ते व मुझे वही
यान आ रही थ । जब उ ह ने मेरे सर पर वा स य भरा हाथ रखा, ऐसा लगा क अभी उधर
से एक कचौरी नकलेगी। उ ह ने मेरे मेहमान क तरह बाहर खड़े रहने पर रोष कट कया
और सीधे ऊपर, युवान के कमरे म जाने को कहा। ‘बैग यह छोड़ दो’ का इशारा भी कया।
सी ढ़याँ चढ़ते ए मेरे दल म उ साह भरा आ था। काश ऐसा हो क वह सरी तरफ दे ख
रहा हो और म पीछे से उसपर हमला कर ँ । उसे लेकर सीधा ब तर पर कूद पडू ँगा। म चोर
क तरह गुपचुप-गुपचुप चला। दरवाजे से झाँककर दे खा। भगवान ने मेरी सुन ली थी। वह
सरी तरफ दे ख रहा था। भखारी जैसे फटे हाल लोअर-ट शट म था। दाढ़ भी नह बनवाई
थी। कसी को फोन पर टे लर दे रहा था। मने सोचा क अगर अभी हमला क ँ गा तो फोन
हाथ से छटककर गर जाएगा। इस लए फोन कटने का इंतजार करने लगा। ले कन वह
बरसे ही जा रहा था।
“हाँ तो ट न का कन तर नह दे खे हो? अरे तेल आता है जसम? पहले डालडा आता
था, हाँ तो दो खाली कन तर ले लो, उसम मट् ट भर के… केले के पौधे रोप दो। दरवाजे के
अगल-बगल लगा दे ना, शुभ हो जाएगा, और या?… या कलेवा अ त या? रा या भषेक
होने जा रहा है या मेरा? ये सब म मी को बताओ न… और हाँ… हाँ… तो… हाँ… हाँ…
नह … तो ऐसा करो वो झालर ले आओ, मेरी खोपड़ी पर लगा दो, जब अँगूठ पहनाएँगे न
तब जलेगी… अरे तो तुमसे नह हो रहा तो बोल दो… नह या?… उनका या?… अरे
कने को होटल दे रहे ह… ये या कम है, बाथ म म शपू नह है तो वो भी जाकर हम
प चाएँ? एक दन नह करगे शपू तो या हो जाएगा… नीचे उतर के तीन पए का खरीद ल
यार, और अब म या हर मेहमान के कमरे के जा-जा के चंपी क ँ गा…”
मुझे लग गया क अगर मने नह टोका तो यह ऐसे ही फोन पर जुटा रहेगा। मने हमला
कर दया!
“मेरी जान!” और म उस पर कूद पड़ा। हम दोन बेड पर गरे, फोन छटककर र
गरा। मेरे चेहरे पर शैतानी भरी हँसी थी, वह पहले च का फर मुझे जकड़ लया। हम दोन
दो मनट आँख बंद करके ब तर पर पड़े रहे, फर उसे कुछ याद आया।
“तुम?… तुम डायरे ट यहाँ? अ मत वहाँ तु हारे लए टे शन पर छोट लाइन से बड़ी
लाइन कर रहे ह… कह रहा है क रजत भैया आए ही नह , ऊपर से तु हारा फोन वच
ऑफ है…”
“अरे, वो रात म ऑफ हो गया, मेरी सीट का चा जग पॉइंट खराब था यार…”
“ ँह, तुम डायरे ट चले आए? हम तु हारे लए अपनी नई वाली गाड़ी भेजे थे यार…”
“तो अब या वापस जाऊँ और तु हारी नई वाली कार म आऊँ तब खुश होगे?”
“नह , ऐसे ही खुश ह, तुम आ गए न… बस!” उसने मुझे फर से गले लगा लया।”
तुम आ गए बस…” उसक आवाज म पछली बार मेरे न होने का दद छलक गया था। दोन
क आँख बीती बात को याद करके नम तो पर लड़क पर यादा इमोशन सूट नह
करते। मुझे झटककर कहा, “अबे फोन कहाँ गरा मेरा…?”
“उधर पड़ा है!”
उसने फोन उठाया और चार तरफ से घुमा-घुमाकर दे खने लगा क काश, कह चटक-
वटक गया हो और हम दोन लड़ाई कर। पर फोन सही-सलामत था। मने जेब से अपना
फोन नकाला। “लो इसे भी चा जग पर लगवा दो!” हम दोन उसके सोफे पर पसर गए।
मने यान दया क सोफा नया था। वो पुराना वाला नह था जसके म रेशे नकाला करता
था। हम दोन ने थकान क अँगड़ाई ली। मने जूते उतारे और पैर सामने पड़ी मेज पर रख
दए। पुराने दन क तरह। उसने अपना टे शन नकाला,
“यार इस घर म नाई से ले के हा तक म ही ँ, सारे टडर मेरे ही ज मे ह।” उसने
अपना सर पकड़ते ए कहा।
“बताओ मुझे भी कुछ काम-वाम।” मने अपने दोन हाथ मसले।
“अरे बैठो आराम से, फं शन शाम पाँच बजे का है… तब तक पड़े रहो।”
हम दोन एक- सरे को दे खकर मु कुराए जा रहे थे। म उसे तर कृत कर रहा था क
या फट चर जैसे बने ए हो और वह मुझे दे खकर कुछ यादा ही तारीफ म भव उचका रहा
था। “वाह भैया, एकदम जटलमैन, फॉमल म भी टाइ लश लग रहे हो, और चेहरे पर इतनी
चमक। वाह वाह वाह…” हम दोन क चक लस म एक ही कमी थी। वो कमी एकदम साफ
दख रही थी। मने पूछ ही लया।
“वो नह आएगा?”
“नाम लो नाम! शशांक न? आने का कहा तो है… और दे खो, तु ह पहले माफ माँग
लेना… अकड़े तु ह थे।”
मने वीकारो म साँस छोड़ी। युवान के इ मीनान के लए पलक झपका द ।
“ये फं शन नपट जाए, इतने सारे काम ह खोपड़ी पे, सारी गहमागहमी ख म हो, फर
आराम से बैठते ह तीन , कसी शांत जगह पर!”
“हाँ ठ क है, तब तक म बाहर घूम लेता ,ँ एक-दो लोग से मल लेता ।ँ ”
“ कनसे?”
“अरे ऐसे ही… कुछ पुराने लोग, लखनऊ म म भी रहा ँ चार-पाँच साल, छु टपुट काम
नपटाने ह, बस!”
“अ छा! तो काम नपटाने आए हो यहाँ?”
“अरे नह मेरी जान, खाली पड़े बोर होऊँगा… तब तक थोड़ा घूम ही लूँ।”
“ठ क है नपटो!… अरे छोटू , कॉफ क व था करो इधर!”
“और तुम मेरे लए एक च पल क व था करो पहले…”