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�ीभाईजी-

एक अलौ�कक �वभू�त

रस-�स�-संत भाईजी
�ीहनुमान�सादजी पो�ार
एवं
संत�वर सेठजी �ीजयदयालजी
गोय�का का जीवन-दशर्न
�ीराधा-माधव
पता नह� कुछ रात �दवसका
ब�ईम� 'क�ाण के �वतर्नके समय �ीभाईजी
�ीभाईजीक� अलौ�कक छटा
�ग��म गंगातटपर
ऋ�षकेश �ेशनपर रेलक� �तीक्षाम�

अ�ना-�ली क� अचर्ना
पू� �ीसेठजी जयदयालजी गोय�का
गोलोकवासी �ीग�ीरच�जी दज
ु ारी
(सन् १९०१-१९६२)

आपके जीवनकालम� हम लोग पूरा समझ नह� पाये थे �क


आप �जस कायर्म� अपना स�ूणर् जीवन लगा रहे ह� उसका
�ा मह� है ? अब कुछ समझम� आ रहा है �क वतर्मान
युगके दो सव�प�र संत�के जीवन-त� �व�के समक्ष आ ही
नह� पाते य�द आप अपना जीवन इस कायर्के �लये सम�प�त
नह� करते । आप �जस �पम� इस साम�ीको �का�शत करना
चाहते थे, वह तो संभव नह� हो सका-पर जैसा मेरस
े े बन पड़ा
आज आपके सौव� ज��दनपर-

"व�ु तु�ारी तव चरण�म� अपर्णकर कर रहा �णाम"

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