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Devi Sukt 1
Devi Sukt 1
श्री दे वी सूक्त
दे वीसूक्त .................................................................................................... 3
मैं रुद्रों और वसुओं के साथ ववचरण करती हूँ । मैं आवदत्य और ववश्वदे वों के साथ
रहती हूँ । मैं वमत्र और वरुण को धारण करती हूँ । इं द्र , अवग्न और दोनों अवश्वनीकुमारों
को मैं ही धारण करती हूँ । ॥१॥
मैं शत्रुहंता सोम को धारण करती हूँ । त्वष्टा पूषा और भग को धारण करती हूँ । मैं
अन्न आवद हववष्य पदाथव वाले, उत्तम हववयों से दे वों को तृप्त करने वाले और सोमरस
अवभषन करने वाले यजमान को यञफलरूप धन प्रदान करती हूँ । ॥२॥
मैं स्वयं ही इस ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदे श करती हूँ । दे वताओं और मनुष्यों ने भी इसी
का सेवन वकया हैं । मैं स्वयं ब्रह्मा हूँ । मैं वजसकी रक्षा करना चाहती हूँ , उसे सवव्ेष्ठ बना
दे ती हूँ , मैं चाहूँ तो उसे सृवष्टकताव ब्रह्मा बना हूँ , अतीक्तन्द्रयाथव ऋवष बना हूँ और उसे
बृहस्पवत के समान सुमेधा बना दें । मैं स्वयं अपने स्वरूप ब्रह्मवभन्न आत्मा का गान कर
रही हूँ ।। ५ ।।
जैसे वायु वकसी दू सरे से प्रेररत न होनेपर भी स्वयं प्रवावहत होता है , उसी प्रकार मैं ही
वकसी दू सरे के िारा प्रेररत और अवधवष्ठत न होनेपर भी स्वयं ही कारणरूपसे सम्पूणव
भूतरूप कायों का आरम्भ करती हूँ । मैं आकाश से और इस पृथ्वी से भी ्ेष्ठ, अपने
महान सामर्थ्व से प्रकट होती हूँ । ॥ ८॥
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