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CLASS 10 (संचयन)

मनष्ु यता (कविता)


कवि : मैथिलीशरण गप्ु त
(क) ननम्नललखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1. कवि ने कैसी मत्ृ यु को सम
ु त्ृ यु कहा है ?
उत्तर- कवि ने उस मत्ृ यु को सम
ु त्ृ यु कहा है जिसे मरने के बाद सभी याद करें I
ऐसी मत्ृ यु तब ममलती है िब हम दस
ू रों की भलाई के मलए िीते और मरते हैं I
परोपकारी व्यजतत की मत्ृ यु सम
ु त्ृ यु होती है I

2. उदार व्यजतत की पहचान कैसे हो सकती है ?


उत्तर- उदार व्यजतत की पहचान यह है कक िह परोपकार का काम करता है I िह
अपना िीिन दस
ू रों की भलाई में लगा दे ता है I

3. कवि ने दधीथच, कणण आदद महान व्यजततयों का उदाहरण दे कर ‘मनष्ु यता’ के


ललए तया संदेश ददया है ?
उत्तर- कवि ने यह संदेश ददया है कक परोपकार के मलए सिवस्ि न्यौछािर करें I
इन आदशव परु
ु षों ने दस
ू रों की भलाई के मलए अपने शरीर तक का दान कर ददया I
दधीचच ने अपने शरीर की हड्डियााँ तथा कर्व ने अपने शरीर का चमड़ा तक दान
में दे ददया I शरीर के प्रतत मोह रखना व्यथव है I परोपकार ही मनष्ु यता है , इसी
मागव पर हमें चलना चादहए |

4. कवि ने ककन पंजततयों में यह व्यतत ककया है कक हमें गिण-रदहत िीिन व्यतीत
करना चादहए ?
उत्तर- कवि ने तनम्नमलखखत पंजततयों में यह भाि व्यतत ककया है –
‘रहो न भल
ू के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ िान आपको करो न गिव चचत्त में I’

5. ‘मनष्ु य मात्र बंधु है ’ से आप तया समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए I


उत्तर- संसार के सभी मनष्ु य हमारे भाई हैं I उनमें भेदभाि करना उचचत नहीं है I
हमें मनष्ु यता पर ज़ोर दे ना चादहए, इससे आपसी प्रेम ि एकता की भािना बढ़ती
है I

6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा तयों दी है ?


उत्तर- कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरर्ा इसमलए दी है तयोंकक इससे
आपसी हे ल-मेल बढ़ता है तथा हमारे सभी काम मसद्ध हो िाते हैं I लोगों के बीच
मभन्नता और आपसी विरोध की प्रिजृ त्त समाप्त हो िाती है I

7. व्यजतत को ककस प्रकार का िीिन व्यतीत करना चादहए ? इस कविता के


आधार पर ललखिए I
उत्तर- व्यजतत को परोपकार का िीिन व्यतीत करना चादहए I उसे अपने अभीष्ट
मागव पर तनरं तर आगे बढ़ते रहना चादहए I हमे दस
ू रों की व्यथा को हरने का ि
परोपकार का काम करना चादहए I

8. ‘मनष्ु यता’ कविता के माध्यम से कवि तया संदेश दे ना चाहता है ?


उत्तर- ‘मनष्ु यता’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश दे ना चाहता है कक हमें
अपना िीिन परोपकार में व्यतीत करना चादहए I सच्चा मनष्ु य दस
ू रों की भलाई
के काम को सिोपरर मानता है I हमें मनष्ु य-मनष्ु य के बीच कोई अंतर नहीं करना
चादहए I हमें उदार हृदय बनना चादहए I अन्य संदेश यह है कक हमें धन के मद
में अंधा नहीं बनना चादहए I मानितािाद को अपनाना चादहए I
(ि) ननम्नललखित का भाि स्पष्ट कीजिए –
1. सहानभ
ु नू त चादहए¸ महाविभनू त है िही;
िशीकृता सदै ि है बनी हुई स्ियं मही।
विरूद्धिाद बद्ध
ु का दया–प्रिाह में बहा¸
विनीत लोक िगण तया न सामने झक
ु ा रहा?
उत्तर(भाि)- हमें एक दस
ू रे के प्रतत सहानभ
ु तू त की भािना रखनी चादहए I इससे
बढ़कर अन्य कोई विभतू त नहीं है I समस्त धरती परोपकारी व्यजतत के िश में
बनी रहती है I बद्ध
ु के प्रतत भी िो विरोध था, िह उनकी दया के सामने दटक न
पाया I विश्ि उनके समक्ष नतमस्तक हो गया I

2. रहो न भल
ू के कभी मदांध तच्
ु छ वित्त में,
सनाि िान आपको करो न गिण थचत्त में I
अनाि कौन हैं यहााँ? त्रत्रलोकनाि साि हैं,
दयालु दीनबन्धु के बडे विशाल हाि हैं I
उत्तर(भाि)- इन में कवि अहं कार को ममटाने पर बल दे ते हैं I हमें कभी भी धन
के मद में अंधा नहीं होना चादहए I स्ियं को सनाथ मानकर घमंि नहीं करना
चादहए, तयोंकक यहााँ तो प्रभु के िरदहस्त होते हुए सभी सनाथ हैं, कोई भी अनाथ
नहीं I परमात्मा बड़ा दयालु है , िह सब पर कृपा करता है I

3. चलो अभीष्ट मागण में सहर्ण िेलते हुए¸


विपजत्त विघ्न िो पडें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हे ल मेल हााँ¸ बढे न लभन्नता कभी¸
अतकण एक पंि के सतकण पंि हों सभी।
उत्तर(भाि)- तुमने िो भी मागव चन
ु मलया है , उसपर सहषव आगे बढ़ते चले िाओ I
यह सही है कक मागव में विपजत्तयााँ, रुकािटें आती हैं, पर तम्
ु हें उनको ढकेलते हुए
आगे बढ़ते िाना है , परं तु यह ध्यान रखो कक आपसी मेल-िोल में कोई बाधा न
आने पाए तथा मभन्नता का भाि न पनपे I बबना कोई तकव ददए सािधानी से
अपने मागव पर आगे बढ़ो I

प्रनतपाद्य –
'मनष्ु यता 'कविता के माध्यम से कवि मानिता, एकता, सहानभ
ु तू त, सदभाि,उदारता
और करुर्ा का संदेश दे ना चाहता है । िह मनष्ु य को स्िाथव ,मभन्नता ,िगविाद, िाततिाद,
संप्रदायिाद आदद संकीर्वताओं से मत
ु त करना चाहता है । िह मनष्ु य में उदारता के भाि
भरना चाहता है । कवि चाहता है कक हर मनष्ु य समस्त संसार में अपनत्ि की अनभ
ु तू त करे ।
िह दखु खयों ,िंचचतों और िरूरतमंदों के मलए बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो। िह
कर्व, दधीचच,रततदे ि आदद के अतुल त्याग से प्रेरर्ा ले। िह अपने मन में करुर्ा का भाि
िगाए। िह अमभमान, लालच और अधीरता का त्याग करे । एक-दस
ू रे का सहयोग करके
दे ित्ि को प्राप्त करे । िह हाँ सते-खेलते िीिन जिए तथा आपसी मेलिोल बढ़ाने का प्रयास
करे । उसे ककसी भी सरू त में अलगाि और मभन्नता को हिा नहीं दे नी चादहए।

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