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िह दी उप यास के बेताज बादशाह

अिमत खान
का ज़बरद त रोमां टक ि लर

नाइट लब
ह या का खौफ़नाक िसलिसला एक बार शु आ, तो फर उसने कने का नाम ही नह िलया।

नाइट लब
स पस से भरा आ एक ऐसा बेहद तेजर तार उप यास, जो आपको सांस लेने क भी फु सत नह देगा। मडर क एक
मा टरपीस योजना।

नाइट लब
इस समय आपके हाथ म िह दी उप यास के बेताज़ बादशाह “अिमत खान” का उप यास है। इस उप यास को
पढ़ना शु करने से पहले आप अपने तमाम ज़ री काम िनपटा ल- य क उसके बाद आपको सांस लेने क भी फु सत
नह िमलेगी।

िशनाया शमा क र गटे खड़े कर दे ने वाली कहानी, उसी क ज़बानी

लेख़ क का प रचय
अिमत खान का ज म गािज़याबाद जनपद के िपलखुआ क बे म आ. उनके ारा िलखी गयी पहली कहानी मा १२
वष क अ प आयु म और पहला उप यास मा १५ वष क आयु म कािशत हो गया था, जो संभवत िव रकॉड
है.
उनके ारा िलखी गयी कहािनयाँ ब त कम आयु म ही देश क बड़ी िस प -पि का म कािशत .
देश के बड़े काशन सं थान ारा अभी तक उनके ारा िलखे गए १०० से यादा उप यास कािशत हो चुके ह.
देश के िस “राइटर फे ि टव स” म उ ह “ पीकर” के तौर पर अपने िवचार करने के िलये आमंि त कया
जाता है.
उ ह ने “डायमंड कॉिम स” भी काफ बड़ी सं या म िलखे- जो हंदी, अं ेजी और बंगला भाषाओँ म कािशत ए.
इसके अलावा आज उनका पा “कमांडर करण स सेना” हंदी उप यास जगत म मील का प थर बन चुका है, िजस
सीरीज पर उ ह ने ५८ उप यास िलखे.
वह आजकल मुंबई म रहते ह और मुंबई फ़ म इं ड ी म भी काफ स य ह. उनके ारा िलखी कथा, पटकथा,
संवाद पर कई भाषाओँ ( हंदी-मराठी-पंजाबी) म फ़ म बन चुक है और टी.वी. पर भी वह अभी तक अलग-अलग
धारावािहक के कई सौ एिपसोड िलख चुके ह.
उ ह “िव हंदी अकादमी” ारा “िह दी सेवा स मान” से भी अलंकृत कया जा चुका है.
“नािशक इं टरनेशनल फ़ म फे ि टवल” म भी उ ह “बे ट कथा-पटकथा” का अवाड दया गया है.
इस समय आपके हाथ म उ ह हंदी उप यास के बेताज़ बादशाह “अिमत खान” का एक बेहद तेज़र तार उप यास
“नाईट लब” है, जो आपका भरपूर मनोरं जन करने वाला है.

कु छ ट पिणयाँ अख़बार से लेख़ क के बारे म


अिमत खान—िह दी प प फ शन का बेहद मश र और सबसे युवा चेहरा।
िह दु तान टाइ स
िह दी प प सािह य के सबसे युवा लेखक, िजनक िनगाह लेखन के इस बदलते युग म इं टरनेट वसाय पर भी है।
फे िमना
अिमत खान—वह लेखक, िज ह ने अपनी िज़द और शत पर िज़ दगी जी।
दै ि नक जागरण
अिमत खान—ि लर उप यास क दुिनया म एक भावशाली नाम है।
िमड डे
12 साल क उ म पहली कहानी। 15 साल क उ म पहला धारावािहक उप यास। यह कसी कहानी के करदार
का िज़ नह है बि क ‘अिमत खान’नाम के एक ऐसे श स का प रचय है—िजसका िलखा ब से लेकर बुजुग तक
ने पढ़ा और अब पद पर लाख लोग देख रहे ह।
दै ि नक जनवाणी
अिमत खान—वह नाम, जो लेखन क दुिनया का अ भुत ि व है।
द ेस जनरल
चेतन भगत व सस अिमत खान
द भा कर

अिमत खान का रह यमय रचना संस ार


कमा डर करण स सेन ा सीरीज़
• ​ ितलक रोड का भूत
• ​ दो डकै त
• ​ जान खतरे म
• ​ मौत क कु स
• ​ खतरनाक आदमी
• ​ मु ी म बंद मौत
• ​ गडा वामी का आतंक
• ​ एक िच ी खून भरी
• ​ िम टर ज़ीरो
• ​ चौक न बर तीन
• ​ गोली करे गी फै सला
• ​ आगे खतरा, पीछे मौत
• ​ ह यारे का चैले ज
• ​ लाल कफ़न
• ​ गन मा टर
• ​ भे दया
• ​ क ल होगा सरे आम
• ​ च ा का च ूह
• ​ जलता शहर
• ​ हाहाकार
• ​ कै दी
• ​ मेरा देश, मेरे लोग
• ​ ड डा परे ड
• ​ एक डकै ती ऐसी भी
• ​ एक न बर का ज लाद
• ​ हमलावर
• ​ सात दन का अिभयान
• ​ ग ार
• ​ कमा डर
• ​ दोहरी चाल
• ​ मुदाघर
• ​ बम का ड
• ​ मेरे हाथ, मेरे हिथयार
• ​ बा द का बेटा
• ​ 10 टन सोना
• ​ मौत के मुँह म
• ​ आिखरी गोली
• ​ िहटलर का खज़ाना
• ​ आतंकवादी
• ​ हेराफे री
• ​ सात ताल म बंद मौत
• ​ सरहद का िसपाही
• ​ एक वै ािनक क तलाश
• ​ कौन जीता, कौन हारा
• ​ एक गोली, एक िनशाना
• ​ 100 करोड़ का पहरे दार
• ​ पासे पलट गये
• ​ रॉयल पैलेस
• ​ सांप सीढ़ी का खेल
• ​ नक़ाब के पीछे
• ​ बाज ि गेड
• ​ एक चोट लौहार क
• ​ झांसेबाज
• ​ लानर
• ​ म रयम का बेटा
• ​ परकटा पंछी
• ​ वन मैन आम
ि लर
• ​ चकमे का चकमा
• ​ िब छू का खेल
• ​ बॉस
• ​ फं स जाओ मेरे िलए
• ​ तुम मरोगी मेरे हाथ
• ​ गरम छु री
• ​ नाइट लब
• ​ मैडम नताशा का ेमी
• ​ पुरानी बीवी, नया यार
• ​ साथ िजयगे, साथ मरगे
• ​ क र मा हाथ का
• ​ औरत मेरी दु मन
• ​ भगवान पर मुक मा
शीतल राजपूत सीरीज
• ​ घायल शेरनी
• ​ िनशाना िनगाह का
गॉड फादर सीरीज
• ​ पाप क दुिनया
• ​ गोवा का शेर
• ​ छापामार
कहानी सं ह
• ​ रांग न बर
• ​ लव टोरीज
अं ेज ी उप यास
• ​ एन इटरनल लव टोरी
• ​ ऑटोबायो ाफ ऑफ ए ि जनर गल
• ​ऑ जे शन माई गॉड
• ​ लव ए ड रोमां टक टोरीज़ ( टोरी ले शन)
बाल उप यास (िवजय-हमीद सीरीज)
• ​ आदमखोर शैतान
• ​ भूत का शंहशाह
• ​ दमाग क चोरी

• ​ जहांगीरा का इं साफ़

लेखक य
ि य पाठक ,
“बुक कै फ़े पि लके शन” म पेश है— मेरा जबरद त रोमां टक ि लर उप यास “नाइट लब”।
आजकल सोशल मीिडया पर भी उप यास क ज़बरद त गम है । फे सबुक पर दज़न ुप बन गये ह । सकड पाठक
उनम स य ह । पहले िवचार के आदान- दान का इतना सहज़ साधन मौजूद नह था । “कमांडर करण स सेना
फे न लब” भी आज काफ स य है, िजसे भाई आ द य व स हडल करते ह और बख़ूबी हडल करते ह.
आइये अब कु छ बात “नाइट लब” के बारे म करते ह। “नाइट लब” वह उप यास है, िजसने कभी सफलता के कई
नये क तमान थािपत कर दये थे।
अब वही “नाइट लब” एक नई साज—स ा के साथ आपके सामने तुत है। इस उप यास को मने दोबारा से
एिडट कया है। ब त अ छी तरह से एिडट कया है। िजसक वजह से यह उप यास न िसफ ब त अिधक रोचक बन
गया है बि क ब त तेज़र तार भी। मेरा दावा है क यह उप यास आपको ब त पसंद आएगा। इसका पेपरबैक
एिडशन “सूरज पॉके ट बु स” से कािशत आ है, जब क ई-बुक सं करण “बुक कै फ़े पि लके शन” से “ क डल-
अमेजोन” पर उपल ध है। मेरे पाठक क हमेशा से यह िशकायत रही है क उ ह मेरे उप यास ब त कम मा ा म
उपल ध हो पाते ह। अब म कोिशश कर रहा ँ क उ ह मेरे यादा-से- यादा उप यास िमल। अपने पुराने सुपरिहट
उप यास के भी म िब कु ल नये संशोिधत सं करण तैयार कर रहा ।ँ “नाइट लब” ऐसे संशोिधत सं करण क
पहली कड़ी है। आशा है क मेरा यह यास आपको अ छा लगेगा, फर भी अपनी मू यवान राय से मुझे अवगत
कराना न भूल।
इस उप यास का अं ेज़ी सं करण भी “ऑटोबायो ाफ ऑफ ए ि जनर गल” के नाम से पहले ही कािशत हो चुका
है और वह अमेजोन पर उपल ध है। अगर आप तुत उप यास अं ेज़ी भाषा म पढ़ना चाह, तो अमेज़ोन से खरीद
सकते ह।
यह एक कॉलगल क कहानी है। खुद उसक ऑटोबायो ाफ है। िजसम उसने अपनी ज़ंदगी के दुःख—दद को बड़ी
बारीक से उके रा है। उसे क़ु दरत ने बेपनाह क मि लका बनाया था। उसके ताजमहल जैसे अज़ीमु शान
संगमरमरी िज म म चाहत का समंदर कै द था, जो हर बांध तोड़कर बह जाना चाहता था।
वही चाहत, वही िज़ दगी से कु छ यादा पाने क उ मीद उसक दु मन बन गय ।
मेरा दावा है, एक बार आप यह उप यास पढ़ना शु करगे—तो फर क नह पाएंगे।
यह आपका भरपूर मनोरं जन करने वाला है।
ज द ही एक और “रोमां टक ि लर सीरीज़” के उप यास “मरकर भी न ह गे जुदा” के साथ आपसे फर मुलाकात
होगी।
तब तक के िलए िवदा!
आपका अपना

अिमत खान

तुत उप यास के सभी पा एवं घटनाएं का पिनक है। कसी जीिवत अथवा मृत ि से इनका कतई कोई संबंध
नह है। उप यास म महानगर मुंबई का मुखता से वणन के वल क य को िव सनीय बनाने के िलए कया गया है।
उप यास का उ े य मा मनोरं जन है। उप यास के सम त कॉपीराइट “अिमत खान” के पास सुरि त ह.

नाइट लब
काल -कोठरी का दरवाजा चरमराता आ खुला और से ल जेल के जेलर ने अ दर कदम रखा।
“मुझे हैरानी हो रही है।”
“कै सी हैरानी?”
वह एक खूबसूरत—सी लड़क थी।
ब त खूबसूरत।
उ भी यादा नह । मुि कल से प ीस—छ बीस साल।
वही उस काल—कोठरी के अ दर कै द थी।
“यही सोचकर हैरानी हो रही है।” जेलर बोला—” क तुमने अपनी अंितम इ छा के तौर पर मांगा भी तो या
मांगा? िसफ कु छ पैन और कागज के कु छ द ते। आिखर तुम उनका या करोगी?”
लड़क ने गहरी सांस छोड़ी।
उसके चेहरे पर एक साथ कई रं ग आकर गुजर गये।
“म एक कहानी िलखना चाहती ं जेलर साहब!”
“कहानी!”
“हां, अपनी कहानी। अपनी िज दगी क कहानी।”
“ओह! यािन तुम आ मकथा िलखना चाहती हो।”
“हां।”
“ले कन उससे होगा या?”
“शायद कु छ हो। शायद मेरे साथ जो कु छ गुजरा है, वो एक दा तान बनकर सारे जमाने को मालूम हो जाये।”
“मेरे तो तु हारी कोई बात समझ नह आ रही है।”
लड़क हंसी।
मगर उसक हंसी म भी दद था।
तड़प थी।
“आप एक पुिलस ऑ फसर ह, आप मेरी बात इतनी आसानी से समझ भी नह सकते। मेरी बात समझने के िलये
दमाग नह , बि क सीने म एक दद भरा दल चािहये।”
“ले कन तुम भूल रही हो लड़क !” जेलर बोला—” क तु ह फांसी होने म िसफ तीन दन बाक है।”
“म कु छ भी नह भूली।”
“इतने कम समय म तुम अपनी िज दगी क कहानी कै से िलख पाओगी?”
“शायद िलख पाऊं। कोिशश करके तो देखा ही जा सकता है।”
“काफ िज ी हो।”
जेलर को उस लड़क से हमदद थी।
कह —न—कह उसके दल म उसके ित सॉ ट कॉनर था।
“िजद नह - यह मेरी अंितम इ छा है जेलर साहब!” लड़क टू टे—टू टे, िबखरे —िबखरे वर म बोली—” आपने ही
तो मेरी अंितम इ छा के बारे म पूछा था। ले कन मेरी इ छा को पूरी करने म अगर आपको कोई मुि कल पेश आ रही
है, तो फर रहने दीिजए।”
“नह - कोई मुि कल नह है।” जेलर तुर त बोला—” म अभी तु हारे िलये पेन और कागज के कु छ द ते िभजवाता
।ं ”
“थ यू जेलर साहब! अपनी िज दगी और अपने इराद से पूरी तरह िह मत हार चुक यह बेबस लड़क आपके इस
अहसान को कभी नह भुला पायेगी।”
जेलर वहां से चला गया।
थोड़ी ही देर म कु छ पैन और कागज के चार द ते जेल क उस काल—कोठरी म प च
ं गये थे।

मेरा बचपन
मुझ े अपने नाम से ही शु करना चािहए।
मेरा नाम िशनाया है।
िशनाया शमा!
काफ खूबसूरत नाम है।
जैसा नाम- वैसी म!
बेहद खूबसूरत!
यौवन और सु दरता के याले म उफनती शराब क तरह, जो हर बांध को जबरन तोड़ डालना चाहे। िजसक सांस
क गम जब अपने पूरे उफान पर हो, तो लोहा पानी बनकर बहने लगे।
यूं तो औरत का िज म ही उसक सबसे बड़ी ताकत होता है।
िजसक िबना पर वो हर खेल, खेल सकती है।
मगर यक न मािनये- औरत का वही िज म उसक सबसे बड़ी कमजोरी भी है। इस कमजोरी का अहसास आपको
कहानी म आगे चलकर होगा।
मेरा ज म मु बई शहर के एक ऐसे बदनाम इलाके म आ—िजसे फारस रोड के नाम से जाना जाता है।
मेरी मां वे या थी।
अपना िज म बेच—बेचकर वो अपनी गुजर करती थी और म उसके ऐसे ही कु कम का ितफल थी।
मेरा बाप कौन है- यह उसे भी मालूम न था।
जरा सोिचये- िजस औरत ने अपने िज म को कारपोरे शन क सड़क क तरह इ तेमाल कया हो, िजसके ऊपर से
सैकड़ मद गुजर गये, वह कै से बता सकती है- उसक कोख म पनप रहा बीज कसका है।
फर भी मुझे अपनी मां से पूरी हमदद है।
खासतौर पर जैसी मौत उसे नसीब ई- ई र ऐसी मौत तो कसी दु मन को भी न दे।
सैकड़ क सं या म पु ष के साथ सहवास करने के कारण उसे ए स हो गया था।
वो मर गयी।
अब आप खुद अ दाज लगा सकते ह क उसका जो िज म कभी उसक सबसे बड़ी ताकत था, वही उसक सबसे बड़ी
कमजोरी बन गया।
मां तो चल बसी- ले कन मेरी देखभाल करने वाली औरत क उस कोठे पर कोई कभी न थी।
चाची, ताई, बुआ, अ मा- ढेर औरत।
सबसे मुझे मां जैसा ही यार िमला।
फर मेरी सबसे बड़ी खूबी ये थी- म एक लड़क थी। ऊपर से बला क खूबसूरत। जब म पांच साल क थी- तभी से
कोठे पर आने वाले िछछोरे और ब जात मद मुझे इस तरह घूर—घूरकर देखने लगे, मानो कसी नंगी—बु ी औरत
को देख रहे ह ।
और कहर ऊपर वाले का, यारह साल क उ तक प च ं ते—प च
ं ते तो म ऐसी कड़क जवान हो गयी क मेरे
फनफनाते यौवन के सामने मेरी चाची, ताई और बुआ तक शमसार होने लग ।
“हाय दइया!” मेरी एक चाची तो अपने मुंह पर हाथ रखकर बड़ी हैरत के साथ कहती—”यह लड़क है या
बबालेजान है। कमब तमारी को देखो तो अभी से कै सी िबजिलयां िगराने लगी है।”
चाची क बात सुनकर सब औरत हंस पड़त ।
कभी—कभी म भी मु कु रा देती।
कोठे क औरत अ सर मद क बेहयाई क भी खूब हंस—हंसकर चचाएं करत । उनके बीच यह बात भी खूब होत
क मद को कै से रझाया जाता है, कै से उ ह काबू कया जाता है और कस कार मद के ऊपर शेर क तरह सवार
रहना चािहए। मेरा दावा है, कोठे क उन बड़ी—बू ढ़य क बात को अगर कोई लकड़ी अपनी िगरह म बांध ले- तो
फर वह सात ज म तक भी कसी मद से मात न खाए।
उन बात के सामने ‘कामसू ’ क लास तो कु छ भी नह ।
•••
अब मुझे वो दहशतनाक घटना याद आ रही है, जब म कसी मद के साथ पहली बार हमिब तर ई।
म उस घटना को दहशतनाक इसिलए कह रही ,ं य क तब म ब त डरी ई थी।
आिखर मेरी उ ही या थी- तेरह वष।
और वह पतीस—चालीस साल का पूरा मु ट डा जवान था। ऊपर से काला भुजंग! बड़ी—बड़ी मूंछ। हंसता तो उसके
मूछ के बल इस तरह फड़फड़ाते, जैसे बारीक—बारीक सुइय खड़ी हो गयी ह ।
कमरे म आकर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर िलया।
“खबरदार!” म उसे चेतावनी देते ए गुरायी— “खबरदार- मुझे हाथ भी मत लगाना।”
मेरी चेतावनी सुनकर वो हंसा।
उसक हंसी ब त घ टया थी।
उसने पान का बीड़ा िनकालकर अपने गाल म ठूं सा और उसक बड़े वािहयात अंदाज म जुगाली करता आ धीरे —
धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगा।
“सुना नह ।” म दहाड़ी—”आगे मत बढ़ो- आगे मत बढ़ो।”
“ य ?” वो पुनः अ ील भाव से हंसा—”डर लगता है।”
मने फौरन वह रखा िन कल उतरा आ तांबे का फू लदान उठाकर बड़ी जोर से उसक तरफ ख चकर मारा।
वह नीचे झुका।
उसक खोपड़ी तरबूज क तरह फटने से बस बाल—बाल बची।
उसी ण वो मेरे ऊपर झपट पड़ा।
म भागी।
ले कन भागकर भी कहां जाती!
तीन गज का कमरा था। उसने फौरन ही मुझे दबोच िलया।
म चीखने लगी। छटपटाने लगी। हाथ—पैर पटकने लगी।
उसने कसकर मुझे अपने आगोश म भर िलया।
फर उसके भ े होठ मेरे ह ठ पर आ टके ।
उसने मेरा गाढ़ चु बन िलया।
और!
मेरे तन—बदन म सनसनाहट दौड़ गयी।
“पीछे हटो।” म पुनः दहाड़ी।
मने अपने नाखून से उसका चेहरा खर च डाला।
मगर वह एक इं च भी न िहला।
वह पागल हो रहा था।
उसने मेरे कपड़े फाड़कर उतार डाले।
म न हो गयी।
िनव !
“भगवान के िलये!” म उसके सामने हाथ जोड़कर िगड़िगड़ाई—”मुझे छोड़ दो।”
मेरा पूरा िज म ह दी क तरह पीला जद पड़ चुका था।
म डर के मारे थर—थर कांप रही थी।
पर तु मेरी कसी चीख, कसी फ रयाद ने उसके दल को न िपघलाया।
“वाकई लाजवाब ह।” मुझे उस प म देखकर वह और दीवाना हो उठा।
उसने मुझे और कसकर पकड़ िलया।
उसके बाद म बेबस हो गयी थी।
पूरी तरह बेबस।
ज द ही मेरी चीख़ से तीन गज का वह पूरा कमरा दहल उठा।
•••
म सारा दन और सारी रात सदमे क हालत म रही।
मेरी दोन जांघ पके फोड़े क तरह दुःख रही थ और िनत ब म भी ह का—ह का दद था।
जो कु छ मुझे झेलना पड़ा था- अगर इतनी कम आयु म कसी दूसरी लड़क को झेलना पड़ता, तो मेरी गार टी ह क
वो िनि त प से मर जाती।
ले कन म िज दा थी।
न िसफ िज दा थी, बि क एकदम सही—सलामत थी।
और यही बात अपने आपम एक पया सबूत है क तेरह वष क आयु म ही मेरा शरीर कतना प रप हो गया था।
कु छ दन तक दहशत मेरे ऊपर बुरी तरह हावी रही।
पर तु फर एकाएक मेरे अंदर बड़ा भूकंपकारी प रवतन आ। थम सहवास का जो खौफ मेरे दल म बैठा था,वो
िनकल गया। मुझे धीरे —धीरे उसका क पना मा से ही अनोखा सुकून िमलने लगा- जो मेरे साथ आ था।
कै सी सै सुअल फसी थी?
कै सा पागलपन भरा अहसास था?
कोठे पर ही तमाम औरत के साथ एक तबलची भी रहता था, जो नाच—गाने के ो ाम म कभी—कभार ढोलक
बजा िलया करता।
एक रात म चुपके से उस तबलची के कमरे म जा घुसी।
कमरे म घुसते ही मने अपने शरीर के तमाम कपड़े उतार फके ।
“यह सब या है?” तबलची बौखलाया।
“ य ?” म अपने होठ चुभलाते ए बड़े कु ि सत भाव से मु कु राई—”मुझे देखकर तु हारे अंदर कु छ-कु छ होता
नह ?”
तबलची क खोपड़ी उलट गयी।
शायद उसने वाब म भी नह सोचा था, कभी म भी उससे इस तरह क बात क ं गी।
आिखर म तो ब ी थी।
तबलची क हालत कु छ सोचने-समझने लायक होती, उससे पहले ही म आगे बढ़कर उससे िलपट गयी।
फर मने उसका एक चु बन भी ले डाला।
चु बन िव फोटक था।
मने देखा- उस एक चु बन ने ही उसे उ माद से भर दया।
और!
खलबली मेरे अंदर भी मच गयी।
मेरा िज म रोमांस से भरता चला गया।
“सचमुच!” तबलची अब बड़े दीवानावार आलम म मुझे िनहारने लगा—”तुम इतनी खूबसूरत होओगी- मने सोचा
भी न था।”
तबलची ने अब कसकर मुझे अपनी बांह के दायरे म समेट िलया।
उसका पश पाकर म रोमांिचत हो उठी।
“आई लव यू बेबी- आई लव यू!” तबलची भी पागल हो उठा।
“मुझे बेबी मत बोलो।” मने थोड़ा नाराजगी के साथ कहा।
“इसम कोई शक नह ।” तबलची मुझे देखता आ मु कु राया—”अब तुम बेबी नह हो।”
उसके बाद उसने मुझे उठाकर वही ँ एक िब तर पर पटक दया।
यह मेरी िज दगी का पहला रोमांस था- िजसका मने भरपूर मजा लूटा था।
उसके बाद तो वह तबलची भी मेरा खूब दीवाना हो गया।
वह हमेशा म खी क तरह मेरे आगे-पीछे मंडराता रहता।
मेरे िलए बाजार से खु बूदार तेल लाता। गजरा लाता। मुझे घुमाने ले जाता। म जो कहती, मेरा हर वो काम खुशी से
दौड़-दौड़कर पूरा करता। मेरी िज दगी का वो पहला सबक था, जब मुझे इस बात का पूरी संजीदगी के साथ अहसास
आ क इं सानी र त म औरत क हैिसयत कसी मदारी जैसी होती है- िजसक डु गडु गी पर मद िब कु ल बंदर क
तरह नाच सकता है।
शत िसफ एक है!
औरत अपने फन क पूरी उ ताद होनी चािहए।
वरना वही मद उसका बेड़ागक कर सकता है। उसके ऊपर हावी हो सकता है।
•••
यह सारी ारि भक िश ाएं थ - जो मुझे ‘फारस रोड’ के उस कोठे पर रहकर िमल ।
बीस वष क उ तक प च
ं ते-प च
ं ते इस कार क ढेर बात मुझे सीखने को िमल चुक थी।
इस बीच म वे या क दुदशा से भी अ छी तरह वा कफ ई।
एक बार वो उ के ढलान पर प चं ी नह , फर उ ह कोई नह पूछता था। न मद! न चकले चलाने वाली बड़ी—
बू ढ़यां! फर तो उनक हालत गली के उस कु े से भी ब तर होती थी, जो दुर-दुर करता आ सारा दन इधर-से-
उधर मारा-मारा फरता है।
तब दौलत क अहिमयत मेरी समझ म आयी।
दौलत ही वो व तु है- िजसक िबना पर कोई वे या उ के ढलान पर प चं ने के बाद भी खुद को स भालकर रख
सकती है। इसिलए समझदार वे या वही है, जो अपनी जवानी के दन म खुद को खूब जमकर कै श करे और बुढ़ापे के
िलए ढेर सारी दौलत का इं तजाम एडवांस म करके रखे।
यह बात समझ आते ही मने सबसे मह वपूण कदम ये उठाया क मने फारस रोड का वो कोठा छोड़ दया और एक
‘नाइट लब’ म ब त हाई ाइ ड कॉलगल बन गयी।
य क ढेर सारी दौलत कमाने क गुंजाइश ‘नाइट लब’म ही यादा थी।
हाई ाइ ड कॉलगल बनने के बाद मानो मेरी दुिनया ही बदल गयी।
अब मेरा वा ता ऐसे िबगडै़ल रईसजाद से पड़ता, जो दोन हाथ से खुलकर पैसा लुटाते थे। िजनके िलए पैसे क
कोई अहिमयत ही न थी।
म उनके साथ कार म घूमती।
आलीशान लै स और फाइव टार होटल के अंदर जाती।
वह मेरे िलए नई दुिनया थी।
नई और रं गीन दुिनया। िजसम इ धनुषी रं ग भरे ए थे।
अब मने अपने िलए मु बई के चार बंगला इलाके म एक आलीशान लैट भी कराये पर ले िलया था।
म क मती-से-क मती स दय साधन इ तेमाल करती।
शानदार कपड़े पहनती।
पर तु शी ही मुझे एक नई मुि कल का सामना करना पड़ा।
जहां मेरी आमदनी बढ़ी थी- वह मेरे खच भी अब ब त बढ़ चुके थे। फर एक मुि कल और थी, म उस ऐशो-आराम
क इस कदर आदी हो गयी थी क उसके िबना िज दगी गुजारने क क पना मा से ही मुझे दहशत होती।
म यह भी जानती थी क उस ऐशो-आराम को तमाम उ बरकरार रखना भी मेरे िलए क ठन है।
य क हाई ाइ ड कॉलगल के उस धंधे म चाहे िजतना पैसा था- ले कन उतना पैसा फर भी नह था, जो तीस के
बाद क तमाम उ उसी ऐशो-आराम के साथ गुजारी जा सकती।
फर ए स होने का भी मुझे भय था।
म अपनी मां क तरह खौफनाक मौत नह मरना चाहती थी।
िज दगी क दु ा रय का अहसास मुझे अब हो रहा था।
सच बात तो ये है- म कभी अपनी मां क मौत के बारे म सोच भी लेती, तो मेरे शरीर म दहशत क लहर दौड़ जाती
और मुझे कॉलगल के उस धंधे से नफरत होने लगती।
उ ह दन मेरे दमाग म एक बड़ा नायाब िवचार आया।
हां!
वह िवचार नायाब ही था।
य क उस एक िवचार क बदौलत ही मेरी िज दगी म वो जबरद त भूकंप आया, िजसक बदौलत म अपने मौजूदा
अंजाम तक प च
ं ी।
िजसके कारण मुझे सजा भुगतनी पड़ी।
मने सोचा- य न म कसी खूबसूरत रईसजादे को अपने ेम-जाल म फांसकर उससे शादी कर लूं?
जरा सोचो- इस तरह तो मेरी तमाम दु ा रय का ही हल िनकल आता।
फर मुझे न भिव य क चंता थी- न वतमान क । वैसे भी म ‘नाइट लब’ क उस हंगामाखेज गहमा-गहमी से ऊब
चुक थी और फलहाल हर व मुझे अपने आने वाले कल क फ लगी रहती थी।
ज द ही मने अपने उस नायाब िवचार पर काम शु कर दया।
मने कई रईसजाद को अपने ेम-जाल म फांसने का यास कया।
ले कन बात नह बनी।
शी ही मुझे इस बात का अहसास हो गया क वो काम इतना आसान नह था- िजतना म समझ रही थी।
रईसजादे मेरे आगे-पीछे हर व जो मि खय क तरह िभनिभनाते ए घूमते थे, वह अलग बात थी। और उनसे
शादी करना सवथा अलग बात थी। अपने िजन चुने ए ाहक के ऊपर मने डोरे डाले- उनम से जहां कु छेक बाद म
शादी-शुदा िनकल आये, वह कु छ घबराहट के कारण मुझे बीच म ही छोड़कर भाग खड़े ए। दो-एक रईसजाद के
साथ बात शादी तक प च ं ी भी, तो उनके प रवारजन क तरफ से इतना स त िवरोध आ क वह उस िवरोध के
सामने यादा देर तक टके न रह सके ।
•••
मुझे आज भी याद है- वह 22 दस बर क रात थी।
उस रात एक हे डसम नौजवान ने मुझे अपने िलए बुक कया और रात रं गीन बनाने के िलए अपने शानदार लैट पर
ले गया। उसक उ अड़तीस-चालीस साल के आसपास थी। बाल घुंघराले थे और रं ग गोरा-िच ा था। वह शादीशुदा
नजर आ रहा था और कसी खाते-पीते प रवार का दखाई पड़ता था।
“लगता है- तु हारी बीवी शायद घर पर नह है।” म उसके लैट म दािखल होते ए बोली।
नौजवान हंसने लगा।
“अगर बीवी घर पर होती।” वह बोला—“तो मने तु ह अपने साथ यहां लाकर या करना था! फर तो इतनी देर म
तलाक क नौबत आ जाती।”
“कहां गयी वो?”
“उसक सहेली के भाई क शादी है।” नौजवान ने बताया—“आज सारी रात वो वह रहेगी।”
“और ब े?”
“ब े भी उसी के साथ है।”
“ब ढ़या! यािन आज सारी रात खूब गुलछर उड़ाने लान है।”
“इसम तो कोई शक ही नह ।” नौजवान चंचल भाव से बोला—“रोजाना एक ही तरह का ंजन खाते-खाते बोर हो
गया ,ं इसिलए आज सोचा क य न कोई नया िडश चखकर देखा जाए।”
“नया िडश?”
“हां- जो क मेरे सामने बैठा है और िजसे मने सारे का सारा ह म कर जाना है तथा डकार भी नह लेनी।”
म मु कु राई।
“िवचार काफ अ छे ह।”
वो भी हंसा।
म जानती थी- आधे से यादा शादी-शुदा मद क यही ॉ ल स होती है। उनक बीवी चाहे कतना ही माट य न
हो, वह उससे बोर हो जाते ह। उसके बाद उनका इधर-उधर मुंह मारने का िसलिसला शु होता है।
भटकने का िसलिसला शु होता है।
उस नौजवान ने मु कु राते ए वाडरोब म से अपने िलए एक नाइट गाउन िनकाला और एक तौिलया िनकाला।
नाइट गाउन, अंगरखे जैसा था- िजसम साइड क तरफ डोरी बंधती थी।
“कहां जा रहे हो?”
“तुम थोड़ी देर आराम करो।” नौजवान बोला—“तब तक म बाथ म से े श होकर आता ।ं ”
“ या िबना नहाये कु छ नह होगा?”
“नह । वैसे भी ज दी या है- सारी रात अपनी है।”
नौजवान नहाने के िलये बाथ म म घुस गया।
म िब तर पर लेट गयी।
वह एक अखबार पड़ा था। मने अखबार उठा िलया और उसके प े पलटने लगी।
वह नौजवान कम-से-कम एक मायन से दूसरे ाहक से जुदा था। दूसरे ाहक एक ण के िलये भी कॉलगल को
अपने लैट म अके ला नह छोड़ते थे। उ ह हमेशा यह डर रहता था- अगर उ ह ने कॉलगल को जरा भी अपने लैट
म अके ला छोड़ा, तो वह तुर त सामान चुराकर वहां से च पत हो जायेगी। ले कन उसने िव ास कया था, जो क
बड़ी बात थी।
उसी ण अखबार के प े पलटते ए मेरी िनगाह अनायास एक ब त सनसीखेज िव ापन पर पड़ी।
िव ापन ने मुझे चकाया।
आव यकता है- एक कु शल लेडी के अरटेकर क ।
जो स ाइस-अ ाइस वष य बेहद बीमार औरत क देखभाल कर सके तथा घर क साज-सफाई का काम भी स भाल
सके । तुर त िमल।
ितलक राजको टया।
ोपराइटर: राजको टया ुप ऑफ होट स।
“ ुप ऑफ़ होट स!” मेरे होठ से सीटी बज उठी।
सचमुच वह कोई बड़ा आदमी था।
जो कसी फाइव टार होटल जैसी जगह म रहता होगा।
मेरी आंख चमकने लग ।
तभी वह नौजवान तौिलये से अपने िसर के बाल साफ करता आ बाहर िनकल आया। उसने नाइट गाउन पहना आ
था।
“ या पढ़ रही हो डा लग?”
“कु छ नह - एक िव ापन देख रही थी।”
“कै सा िव ापन?”
“यह ितलक राजको टया कौन है?” मने अखबार वापस िब तर पर रखते ए पूछा।
नौजवान आिह ता से िच क
ं ा।
“ितलक राजको टया!”
“हां।”
“तुम ितलक राजको टया को नह जानती?”
“नह ।”
“आ य है- ितलक राजको टया तो मु बई शहर का ब त बड़ा आदमी है। ब त तबे वाला आदमी है।”
“करता या है?”
“वह िब डर है।” नौजवान ने बताया—”एक ब त बड़ी कं शन क पनी का ऑनर है। मु बई शहर म कई बड़ी-
बड़ी रहायशी इमारत और शॉ पंग मॉल उसके ारा बनाये गये ह, ले कन आजकल बेचारा ब त परे शान है।”
“ य - जब इतना बड़ा आदमी है, तो परे शान य ह?” म ितलक राजको टया के बारे म यादा-से- यादा जानकारी
पाने को उ सुक थी।
उस व मेरे दमाग म एक ही नाम मंडरा रहा था- ितलक राजको टया।
ितलक राजको टया।
“दरअसल ितलक राजको टया क परे शानी का असली सबब उसक बीवी है।” नौजवान बोला—”वह आजकल स त
बीमार चल रही है और उसके बचने क फलहाल कोई गुंजाइश नह ।”
“यह तो सचमुच दुःखद बात है।” मने कहा—”बीमारी या है उसक बीवी को?”
“बीमारी का तो मुझे भी मालूम नह , ले कन कु छ यादा ही सी रयस के स है।”
“ओह!”
वह बात करता-करता मेरे नजदीक आया और उसने तौिलया एक खूंटी पर लटका दया।
“वैसे उ या होगी ितलक राजको टया क ?”
“उ भी यादा नह है- मुि कल से च तीस-पतीस साल होगी।”
मेरी आंख चमक उठ ।
मुझे लगा- िजस तरह के िशकार क मुझे तलाश थी, वो मुझे िमल गया है।
आिखर कोई ऐसा ही पु ष तो मुझे चािहये था- िजसके साथ शादी करके म अपना भिव य खुशहाल बना सकूं ।
कोई ऐसा ही करोड़पित!
“अब हम अपना ो ाम आगे बढ़ाना चािहये।” नौजवान मु कु राते ए िब तर के ऊपर चढ़ आया।
“ य नह !”
“वैसे तुम ितलक राजको टया के बारे म इतने सवाल य कर रही हो?”
“ऐसे ही- या तु ह बुरा लगा?”
“मुझे भला य बुरा लगेगा।”
उस समय नौजवान का पूरा शरीर महक रहा था।
अगले ही पल हम दोन रित- ड़ा म म हो गये।
बि क अगर म ये क ,ं तो कोई अित योिवत न होगी क िसफ वही रित- ड़ा म म आ था। मेरा दमाग तो उस
ण कह और था।
म ितलक राजको टया के बारे म सोच रही थी।
उसक बीवी बीमार थी और उसे उसक देखभाल करने के िलये एक लेडी के अरटेकर क आव यकता थी। इससे एक
बात और सािबत होती थी क उसके ‘पथ हाउस’म दूसरी कोई औरत भी नह थ - जो देखभाल कर सकती।
यािन लाइन पूरी तरह ि लयर थी।
म खेल, खेल सकती थी।
तभी मेरे मुंह से तेज िससकारी छू ट पड़ी।
2

मेरी ा ड यू लाइफ क शु आत
सुब ह के साढ़े दस बज रहे थे, जब म होटल राजको टया प च
ं ी।
मने टाइट जीन, हाइनेक का पुलोवर और चमड़े का कोट पहना आ था। उन कपड़ म, म काफ सु दर नजर आ रही
थी।
वह होटल भी ितलक राजको टया क ही िमि कयत था और वह उसका ऑॅ फस था।
“किहये!” जैसे ही म ऑ फस के सामने प च
ं ी, एक गाड ने मुझे रोका—” कससे िमलना है आपको?”
“मने राजको टया साहब से िमलना है।” मेरे वर म आदर का पुट था।
“ कसिलये?”
“उ ह ने कल के अखबार म एक एड िनकलवाया है।” म वहां पूरी तैयारी करके आयी थी—”िजसके मुतािबक उ ह
अपनी बीमार बीवी क देखभाल के िलये एक लड़क क ज रत है।”
“ओह- तो तुम के अरटेकर क जॉब के िलये आयी हो?”
“हां।”
गाड ने मुझे पुनः िसर से पांव तक एक नजर देखा।
जैसे मेरे सम ि व को परखने क कोिशश कर रहा हो।
उसक नजर काफ पैनी थ ।
“कर सकोगी यह काम?”
“ य नह कर सकूं गी!” म तपाक् से बोली—”तु ह कोई शक है?”
“नह ।” गाड हड़बड़ाया—”मुझे य शक होने लगा?”
गाड को मुझसे उस तरह के जवाब क िब कु ल उ मीद नह थी।
उसने फौरन वह टेबल पर पेपरवेट के नीचे दबे कु छ कागज म से एक कागज ख चकर बाहर िनकाला और मेरी
तरफ बढ़ा दया।
“आप अपना ाथना-प िलख दो।”
मने कागज पर ाथना-प िलख दया।
गाड ाथना-प लेकर ऑ फस के अंदर चला गया। म उसका इं तजार करती रही।
मेरा दल अजीब-से अहसास से धड़क-धड़क जा रहा था।
म नह जानती थी- अगले पल या होने वाला है। यह पहला मौका था।
जब म इस कार कह नौकरी के िलये आयी थी और उस नौकरी पर मेरे भिव य का सारा दारोमदार टका था।
मने अगर ितलक राजको टया को अपने ेम-जाल म फांसना था, तो उसके िलये वह नौकरी िमलनी ज री थी।
थोड़ी देर बाद ही गाड बाहर िनकला।
“जाइये।” गाड बोला—”राजको टया साहब आपका इं तजार कर रहे ह।”
मेरा दल और जोर-जोर से धड़कने लगा।
म अंदर प च
ँ ी।
म काफ सजा-धजा था। फ़ॉ स सी लंग क बड़ी शानदार छत थी। दीवार पर चैक के बारीक िडजाइन वाला
वॉलपेपर था। फश पर क मती कालीन था और सामने एक काफ िवशाल टेिबल के पीछे रवॉ वंग चेयर पर ितलक
राजको टया बैठा था।
वह उ मीद से कह यादा खूबसूरत नौजवान िनकला।
उसने एक सरसरी-सी नजर मेरे ऊपर डाली।
“तु हारा नाम िशनाया शमा है?” वह बोली।
“जी।”
मुझे अपनी आवाज क ठ म घुटती-सी अनुभव ई।
थोड़ा ब त पढ़ना-िलखना मने फारस रोड के कोठे पर ही रहकर सीख िलया था।
“पहले कह के अरटेकर का काम कया है?” ितलक राजको टया ने अगला सवाल कया।
“जी नह ।”
ितलक राजको टया च का।
“अगर पहले कह के अरटेकर का काम नह कया, तो यह सब कै से स भाल पाओगी?”
“म समझती -ं के अरटेकर का काम ऐसा नह है, िजसके िलये कसी खास े नंग क आव यकता हो।”
“ य ?”
“ य क यह एक फै िमली जॉब जैसा है।” मेरे श द नपे-तुले थे—”इस काम को करने के िलये दल म कसी दूसरे के
दुःख-दद को समझने का अहसास होना चािहये। मन मे सेवा-भाव होना चािहये। फर कोई भी के अरटेकर के इस
काम को कर सकता है।”
ितलक राजको टया क आंख चमक उठ ।
“दे स गुड!” वह शंसनीय मु ा म बोला—”काफ सु दर िवचार ह। पहले या काम करती थी?”
“आपस म लोग के दुःख-दद बांटती थी।”
“ कस तरह?”
“इस बात के ऊपर पदा ही पड़ा रहने द, तो यादा बेहतर है।”
“मुझे कोई ऐतराज नह , ले कन दो बात म तु हारे सामने शु म ही साफ़ कर देना चाहता ।ं ”
“ या?”
“पहली बात।” ितलक राजको टया बोला—”तु ह चौबीस घ टे ‘पथ हाउस’के अ दर रहना होगा, य क मैडम को
तु हारी कसी भी समय ज रत पड़ सकती है। वह काफ ग भीर पेशे ट ह और उ ह ‘मेलीगनट ब ड िड े िसया’
नाम क काफ सी रयस बीमारी है- जो दुिनया म काफ कम लोग म पाई जाती है और ला-इलाज़ बीमारी है।”
“मेलीगनट लड िड े िसया!”
“हां।”
म लाइफ म फ ट टाइम उस बीमारी का नाम सुन रही थी।
ले कन मुझे या था!
मेरे िलये तो यह अ छा ही था क वो एक ला-इलाज बीमारी थी।
“मुझे चौबीस घ टे पथ हाउस म रहने म कोई ॉ लम नह ।” मने तुर त कहा।
आिखर मेरा उ े य भी ‘पथ हाउस’ के अ दर रहे िबना पूरा होने वाला नह था।
“और दूसरी बात या कहना चाहते ह आप?”
“दूसरी बात तु हारी सैलरी से स बि धत है।” ितलक राजको टया बोला—”शु म तु ह यादा सैलरी नह िमल
पायेगी।”
“ कतनी?”
“िसफ वटी थाउजड हर महीने—अलब ा काम को देखते ए बाद म तु हारी सैलरी बढ़ाई भी जा सकती है।”
“मुझे कोई ऐतराज नह ।”
मने सैलरी पर भी यादा बहस नह क ।
“ठीक है- तो फर जॉब अंितम प से कबूल करने से पहले तुम ‘पथ हाउस’ देख लो और उस पेशे ट को देख लो,
िजसका के अरटेकर तु ह बनाया जा रहा है।”
“ओ.के .।” मेरी गदन वीकृ ित म िहली।
“म तु ह अभी ऊपर भेजता ।ं ”
ितलक राजको टया ने इ टरकॉम करके कसी को बुलाया।
तुर त एक गाड ने अ दर ऑ फस म कदम रखा।
“यस सर!”
वह अ दर आते ही बड़े त पर भाव से बोला।
“जाओ- इ ह मेमसाहब के पास ले जाओ।”
“जी सर!” गाड मेरी तरफ घूमा—”आइये!”
म ऊपर जाने के िलये उसके साथ-साथ िल ट क तरफ बढ़ गयी।
•••
होटल राजको टया एक टथ लोर का होटल था और उसक यारहव मंिजल पर स र कमर का वो िवशाल ‘पथ
हाउस’ बना आ था, जो ितलक राजको टया क रहायशगाह थी। वो ‘पथ हाउस’ फाइव टार होटल से भी यादा
आिलशान था। पूरा पथ हाउस से ल एअरक डीश ड था और गिलयार म भी मू यवान गलीचे िबछे ए थे।
दीवार पर आकषक तैल िच सुसि त थे और जगह—जगह जो लॉबीनुमा हॉल बने थे, उससे गुज़रते ए गाड मुझे
सीधे िमिसज राजको टया के शयन क म ले गया।
और!
शयन-क म घुसते ही मुझे ऐसा तेज झटका लगा, मानो िबजली का नंगा तार छू गया हो।
एक ही सै क ड म मेरी सारी योजना उलट-पलट होकर रह गयी।
क मत मेरे साथ कै सा अजीबोगरीब खेल-खेल रही थी, इसका अहसास आपको अभी हो जायेगा।
“बृ दा तुम!”
सामने िब तर पर लेटी औरत को देखकर म बुरी तरह च क ।
म मानो सकते म आ गयी।
सामने िब तर पर जो औरत लेटी थी- वह मेरी अ छी-खासी प रिचत थी बि क वह मेरी सहेली थी।
बृ दा!
उस औरत को देखते ही एक साथ कई सारे दृ य मेरी आंख के सामने िझलिमला उठे ।
जैसे बृ दा कभी उसी नाइट लब से जुड़ी ई थी, िजससे म जुड़ी थी। वह भी मेरी ही तरह कॉलगल थी और कभी
िज म बेच-बेचकर अपनी गुजर करती थी। इतना ही नह - हम दोन का सपना भी एक ही था। कसी फ दी रच
आदमी से शादी करना तथा फर बाद क सारी िज दगी ठाठ के साथ गुजारना। अलब ा बृ दा म कु छ कमी ज र
थी।
जैसे वो मेरी तरह खूबसूरत नह थी।
मेरी भांित से स अपील तो उसम जरा भी नह थी।
हम दोन के बीच बड़ी अजीब-सी ित पधा चलती थी। नाइट लब म जो भी ाहक आते, वह पहले मुझे चुनते। म
हमेशा उससे जीतती। इसके अलावा एक बार जो भी पु ष मेरे साथ रात गुजार लेता, फर वो हमेशा मेरा ही
गुणगान करता। पु ष को ेम-जाल म फांसने क योजनाय भी हम दोन साथ-साथ िमलकर बनाती- पर तु म बृ दा
से कह यादा बेहतरीन योजना बनाती और मेरी योजनाय अिधकतर सफल भी होत ।
“माई डेलीशस डा लग!” बृ दा अपनी दोन बाह मेरे गले म डालकर अ सर बड़े अनुरागपूण ढंग से कहती—”म
तुझसे हमेशा हार जाती .ं .. हमेशा! ले कन एक बात याद रखना।”
“ या?”
“िज दगी म कभी, कसी मोड़ पर म तुझसे जीतकर भी दखाऊंगी और इस तरह जीतकर दखाऊंगी- जो बस एक ही
झटके म सारा िहसाब— कताब बराबर हो जाये।”
वह बात कहकर जोर से हंसती बृ दा।
जोर से!
ले कन म उसक हंसी म िछपे दद को भी अ छी तरह अनुभव करती।
और फर बृ दा कोई तीन साल पहले नाइट लब से एकाएक गायब हो गयी।
कहां गायब ई?
कसी को कु छ पता न चला।
जब क आज वह मुझे एक िब कु ल नये प म िमल रही थी। एक बेहद करोड़पित बीमार मिहला के प म। िपछले
तीन वष म उसके अ दर काफ प रवतन आ था। जैसे वह ब त कमजोर हो गयी थी। आंख के नीचे काले—काले
ग े पड़ गये थे और जीण—शीण सी काया हो गयी थी।
उस व उसे देखकर कौन कह सकता क वो कभी कसी नाइट लब म हाई ाइ ड कॉलगल भी रही थी।
“लगता है- आप दोन तो एक—दूसरे को जानती ह।” गाड खुश होकर बोला।
“हाँ- यह मेरी पुरानी प रिचत ह।”
“वैरी गुड!” गाड के चेहरे पर हष क क पल फट —”म साहब को जाकर अभी यह खुशखबरी सुनाता ।ं ”
“ले कन...।”
“साहब इस बात को सुनगे, तो वह काफ खुश ह गे।”
मने गाड को रोकना चाह- ले कन रोक न सक ।
गाड मुड़ा था और तीर क मा फक तेजी के साथ बाहर िनकल गया।
•••
मेरी िनगाह पुनः बृ दा पर जाकर ठठक ।
वह अब िब तर पर थोड़ा पीठ के सहारे बैठ गयी थी और अपलक मुझे ही िनहार रही थी।
“कै सी हो तुम?” मने अचि भत लहजे म पूछा।
“अ छी ।ं ”
“तुम तो नाइट लब से िब कु ल इस तरह गायब ई,” म बोली—” क फर तु हारा कह कु छ पता ही न चला।
कतना ढूढ
ं ा सब लोग ने तु ह!”
उसने गहरी सांस ली।
“देख नह रही- यह बृ दा िपछले तीन साल म कस कदर बदल गयी है।” बृ दा क आवाज म हताशा कू ट—कू टकर
भरी थी—” कतने बड़े च म उलझा िलया है मने अपने आपको! याद है िशनाया- मने एक दन तुझसे या कहा
था?”
“ या?”
“मने कहा था—एक दन म तुझसे जीतकर दखाऊंगी। म जीत गयी िशनाया! म तुझसे पहले दौलतम द बन गयी।
ल—ले कन...।” वह श द बोलते—बोलते उसक आवाज कं पकं पायी।
“ले कन या?”
“ले कन अब इस जीत का भी या फायदा!” एकाएक वह बड़े टू टे—टू टे अफसोसनाक लहजे म बोली—”जब मौत
इतने करीब खड़ी हो- जब सांस क डोर यूं टू टने के कगार पर हो।”
वह सचमुच ब त िनराशा से िघरी थी।
“आिखर या बीमारी हो गयी है तुझे?”
“मेलीगट लड िडस े िसया।”
“मेलीगट लड िडस े िसया! यह कै सी बीमारी है?”
“काफ सी रयस बीमारी है।” बृ दा बोली—”िजसका कोई इलाज भी नह । इसम मरीज क दोन कडनी बेकार हो
जाती ह और खून म इं फे शन भी हो जाता है। लड इं फे शन के कारण कडनी को ऑपरे शन करके बदला भी नह
जा सकता।”
“ य ?”
“ य क कडनी चज करने के िलये जैसे ही पेशे ट का ऑपरे शन होगा।” वह बोली—”तो फौरन ऑपरे शन टेबल पर
ही उसक मौत हो जायेगी। सबसे बड़ी बात ये है- दुिनया म इस रोग से त पेशे ट क सं या भी यादा नह है।”
“ कतनी होगी?”
“दुिनया म मुि कल से दस पेशे ट इस रोग से त ह, जब क भारतवष म मेरे अलावा ‘मेलीगट लड
िडस े िसया’का िसफ एक पेशट म ास म कह है।”
“ओह!”
वाकई बृ दा को ग भीर बीमारी ने जकड़ा था।
“ या पूरे शरीर का लड बदलकर भी यह ऑपरे शन नह हो सकता?” म बोली।
“नह ।” बृ दा क गदन इं कार म िहली—”वा तव म यह बीमारी कडनी क कम और लड से स बि धत यादा है।
इस बीमारी म लड के अ दर इं फे शन इतनी तेजी के साथ फै लता है क इधर पेशे ट को नया लड चढ़ाया जाता है
और उधर लड के शरीर म प च ं ते ही उसमे इं फे शन क या शु हो जाती है।”
“ले कन तु ह यह बीमारी कै से लग गयी?”
“मालूम नह - कै से लगी।”
“कह कॉलगल...?”
“सही कहा।” वह फौरन बोली—”कभी—कभी तो सोचती ,ं कॉलगल के उस धंधे के कारण ही म इस नामुराद
बीमारी का िशकार बनी ।ं ”
मुझे अपने हाथ—पैर म बफ जैसी ठ डक दौड़ती अनुभव ई।
फौरन मेरी आंख के इद—िगद अपनी मां का चेहरा घूम गया।
िजसे ए स हो गया था।
जो उससे भी कह यादा तड़प—तड़प कर मरी थी।
मेरा यह िव ास दृढ़ हो गया क ज र बृ दा को वह बीमारी उसी धंधे के कारण लगी थी।
“और राजको टया के स पक म कै से आय तुम?”
“ितलक राजको टया से मेरी पहली मुलाकात एक शॉ पंग कॉ पलै स म ई थी।” बृ दा ने बताया।
“कै से?”
“मुझे आज भी याद है।” बोलते—बोलते बृ दा क ह याल म गुम हो गयी—”ितलक वहां कोई जे ट खरीदने क
कोिशश कर रहा था, िजसे खरीदने म मने उसक हे प क । बस वही बात उसके दल को छू गयी। फर तो हमारी
मुलाकात अ सर होने लग । हालां क ितलक के ऊपर दजन लड़ कय क िनगाह थ , ले कन मने उसे बड़ी आसानी
के साथ अपनी शादी के जाल म फांस िलया। तभी म बड़ी खामोशी के साथ ‘नाइट लब’ भी छोड़कर अलग हो
गयी। य क म अपने पुराने संगी—सािथय म से कसी को इस बात क भनक भी नह लगने देना चाहती थी क
मने ितलक राजको टया जैसे फ दी रच आदमी से शादी कर ली है।”
“ य ?”
“ य क मुझे डर था।” वह थोड़े सकु चाये वर म बोली—” क कह कोई मुझे लकमैल न करने लगे। या मेरे पास
इतनी ढेर सारी दौलत देखकर कसी के मुंह म पानी न आ जाये।”
“ओह!”
बृ दा ने सचमुच काफ चतुराई से काम िलया था।
चतुराई से भी और समझदारी से भी।
य क उस प रि थित म इस कार क घटना का घट जाना कु छ अस भव न था।
“ले कन म एक बात नह समझ पा रही ।ं ” बृ दा जबरद त स पसफु ल लहजे म बोली।
“ या?”
“तुम यहां तक कस तरह प च
ं ी? या तु ह मालूम हो गया था क मने ितलक राजको टया से शादी कर ली है?”
“नह ।”
“ फर?”
म गहरी सांस लेकर वह उसके नजदीक पड़ी एक कु स पर बैठ गयी।
फर मने अपने कोट क जेब म-से एड क क टंग िनकालकर बृ दा क तरफ बढ़ा दी।
“इस तरह प च
ं ी।”
“यह या है?”
“पढ़ो।”
बृ दा ने मेरे हाथ से वो एड लेकर पढ़ा।
एड पढ़ते ही उसने एक बार फर च ककर मेरी तरफ देखा तथा फर उसके होठ पर अनायास ही बड़ी यारी—सी
मु कान िथरक उठी।
“म सब समझ गयी।” वह बोली।
“ या समझी?”
“ज र तू भी यहां अपना सपना साकार करने आयी थी।”
“सपना!”
“हां- सपना! तूने सोचा होगा।” वह अ िन ल ने से मेरी तरफ देखते ए बोली—” क एक करोड़पित क बीवी
बीमार है। वह मौत के दहाने पर पड़ी आिखरी सांस ले रही है और ऊपर से इतने बड़े पथ हाउस म उसक देखभाल
करने वाला भी कोई नह । ऐसी प रि थित म तेरे िलये उसे करोड़पित को अपने ेमजाल म फांसना कतना आसान
होगा। य - म ठीक कह रही ं नं?”
म उस ण उसम आंख िमलाये रखने क ताब न ला सक ।
आिखर वो सहेली थी मेरी।
मेरी नस—नस से वा कफ थी।
“मेरे सवाल का जवाब नह दया?” बृ दा पुनःबोली—” या मने कु छ गलत कहा?”
“नह । अब तुझसे या िछपा है।” मने गहरी सांस छोड़ी—”सच बात तो यही है- म यहां इसीिलये आयी थी। अगर म
यह कहने लगूं क म यहां िसफ के अरटेकर का जॉब करने आयी थी- तो तू भी जानती है, यह इस दुिनया का सबसे
बड़ा झूठ होगा।”
“यािन तू ितलक से शादी करना चाहती है।” वह अपलक मुझे ही िनहार रही थी।
“ितलक से नह , बि क उसक दौलत से। उसके तबे से।”
“एक ही बात है।”
“नह - एक ही बात नह है। ितलक राजको टया जैसे मद मुझे मु बई शहर म हजार िमल सकते ह। लाख िमल
सकते ह, ले कन उस जैसा तबा िमलना आसान नह ।”
“ ।ं ”
“ले कन तू फ मत कर- अब मेरे थॉट बदल चुके ह।”
“ य ?”
“ य क यह मालूम होने के बाद क ितलक राजको टया क वह बीमार बीवी तू है- अब म तेरे हक पर डाका नह
डालूंगी। अब म सच म ही तेरी मन से सेवा क ं गी।”
“सच!”
“हां- सच!” मने उसका हाथ अपने हाथ म ले िलया।
बृ दा ज बाती हो उठी।
उसक आंख म आंसू छलछला आये।
जब क मने उसे अब कसकर अपनी छाती से िचपका िलया था।
“आिखर िब ली भी दो घर छोड़कर िशकार करती है िडयर- म तो फर भी एक इं सान ।ं तेरी सहेली ।ं ”
“तू सच कह रही है िशनाया?”
“हां।”
“ओह- तू नह जानती, तेरी यह बात सुनकर मुझे कतनी खुशी हो रही है। तू सचमुच मेरी अ छी सहेली है।” बृ दा
क आंख म खुशी के कारण झर—झर आंसू बहने लगे।
म भी उस ण इमोशनल ए िबना न रह सक ।
वह ज बात से भरे ण थे।
•••
“हैलो एवरीबड़ी!”
तभी एक नई आवाज मेरे कान म पड़ी।
म बृ दा से अलग ई और पलटी।
सामने ितलक राजको टया खड़ा मु कु रा रहा था।
“मुझे यह देखकर अ छा लग रहा है क आप दोन पहले से ही एक—दूसरे को जानती ह।” ितलक राजको टया
बोला।
“दरअसल कभी हम दोन बचपन म साथ—साथ एक ही कू ल म पढ़ी थ ।” बृ दा अपने आंसू साफ करते ए बोली
—”आज साल बाद एक—दूसरे को देखा, तो पुरानी याद ताजा हो उठ ।”
“कौन—से कू ल म पढ़ी थी?”
“था एक कू ल! जहां िज दगी से स बि धत ऐजूकेशन दी जाती है।”
बृ दा हंसी।
म भी मु कु रायी।
“चलो- यह बेहतर ही आ।” ितलक राजको टया बोला—” य क बृ दा क िजतनी अ छी तरह तुम देखभाल कर
पाओगी, उतनी शायद ही कोई और कर पाता। आओ- म तु ह तु हारा म दखाता ।ं ”
म उठकर खड़ी हो गयी।”
•••
वह पथ हाउस का एक काफ आलीशान म था- जहां मुझे ठहराया गया। ज र ितलक ने यह पता चलने के बाद क
म बृ दा क सहेली थी- मुझे जानबूझकर उस म म ठहराया था, वरना मामूली के अरटेकर के तर का कमरा तो वह
हरिगज नह था।
कमरे म एअरक डीशन चल रहा था। टी.वी. और ज रखा आ था। क मती कालीन िबछा था। इसके अलावा एक
आलीशान कं ग साइज डबल बैड भी वहां था।
“ म पस द आया?” ितलक राजको टया कमरे म दािखल होता आ बोला।
“बेहतरीन!”
“ फर भी कह कु छ कमी लगे, तो मुझे बेिहचक बता देना। तुम अब यह िब कु ल मत समझना क तुम यहां एक
के अरटेकर क हैिसयत से रह रही हो। तुम खुद को बृ दा क सहेली ही समझना—इस प रवार क एक अिभ िम
समझना।”
“थ यू! आप लोग से मुझे जो यार िमल रहा है, उसने मुझे भाव—िवभोर कर दया है।”
“हर इं सान को िज दगी म वही सब कु छ िमलता है, िजसका वो हकदार होता है।”
“आप शायद मजाक कर रहे ह राजको टया साहब!”
“नह ।” वह दृढ़तापूवक बोला—”म इतने सी रयस स जे ट पर कभी मजाक नह करता।”
“अ छा यह बताइये!” मने बातचीत का ख बदला—”यहां कचन कस तरफ है?”
“ कचन भी दखाता ।ं ”
कमरा दखाने के बाद फर ितलक राजको टया ने मुझे कचन भी दखाया।
डाय नंग हॉल दखाया।
अपना शयनक दखाया।
सचमुच पथ हाउस क एक—एक चीज शानदार बनी ई थी।
“इसके अलावा म तु ह एक जानकारी और देना चाहता ।ं ” वह बोला।
“ या?”
“बृ दा को डॉ टर ने पूरी तरह बैड रे ट क िहदायत दी ई है।”
“मतलब?”
“दरअसल उसे थोड़ा ब त चलने— फरने क भी मनाही है।” ितलक राजको टया बोला—”यहां तक क वो अपने
िन यकम से िनवृ भी वह अपने शयनक म होती है। एक चलता— फरता कमोड उसके शयन—क म ले जाया
जाता है और वो बस उस बैड से सरककर उस कमोड पर बैठ जाती है।”
“ओह! यािन उसक हालत यादा सी रयस है।”
“हां- बस यूं समझो, वह अपनी िज दगी के आिखरी दन पूरे कर रही है।” वह श द कहते ए ितलक उदास हो गया
था—”उसक हैिसयत नाजुक कांच जैसी है, जो जरा भी हाथ से फसला क टू टा! म समझता -ं ऐसी हालत म कोई
तु हारे जैसी सहेली ही उसक देखभाल कर सकती थी। सच बात तो ये है- मने के अरटेकर का वह िव ापन भी
िनकलवा ज र दया था, ले कन म उससे संतु नह था। म भरोसा नह कर पा रहा था क कोई तन वाह के वा ते
काम करने वाली लड़क बृ दा क कस कार देखभाल कर पायेगी। ले कन तु हारे आने से अब म काफ सकू न
महसूस कर रहा ।ं ”
“आप बे फ रह ितलक साहब!” म बोली—”बृ दा को स भालना अब पूरी तरह मेरी िज मेदारी है।”
“आई नो।”
तभी मेरी िनगाह सामने े संग टेबल के आइने पर पड़ी—िजसम मेरा अ स चमक रहा था।
उस ण म बला क हसीन नजर आ रही थी।
बला क खूबसूरत!
ऐसा नह हो सकता था क उस ल हा कोई मद मुझे देखे और मेरे ऊपर आस न हो जाये।
हाईनैक के पुलोवर और चमड़े के कोट ने मेरी सु दरता कई गुना बढ़ा दी थी। एअरक डीशन चलने के कारण मेरे
बाल क एक लट उड़—उड़ जा रही थी, िजसे म बार—बार स भालती।
मने चोरी—चोरी िनगाह से ितलक राजको टया क तरफ देखा।
वह भी मेरे प—सौ दय को ही िनहार रहा था।
कु ल िमलाकर पथ हाउस म मेरी ड यू लाइफ क शु आत हो गयी थी।

कहानी म नया ि व ट
रात के नौ बजे पथ हाउस म एक ऐसे नये करदार के कदम पड़े, िजसके कारण कहानी म आगे चलकर नई—नई
घटना का ज म आ।
बड़े—बड़े अजीब मोड़ आये।
वह डॉ टर कृ णराव अ यर नाम का एक म ासी आदमी था। उसक उ कोई चालीस—पतालीस के आसपास क
थी, ले कन फर भी शरीर सौ व क दृि से वो काफ त दु त था। उसके िसर के बाल कु छ उड़े ए थे और िज म
क रं गत आम म ािसय क तरह थोड़ी मटमैली थी।
“डॉ टर!” ितलक राजको टया ने डॉ टर अ यर से मेरा प रचय कराया—”इनसे िमलो- ये है बृ दा क के अरटेकर
कम े ड!”
“हैलो!”
मने भी डॉ टर अ यर से कसकर हाथ िमलाया।
म मु कु रायी।
म जानती थी- मेरी हंसी म जादू था।
जो मद के दल— दमाग पर भीषण िबजली क तरह गड़गड़ाकर िगरती।
“आपसे िमलकर काफ खुशी ई।” डॉ टर अ यर बोला।
“मुझे भी।”
डॉ टर अ यर ने अपना कट बैग उसी िब तर पर रखा, िजस पर बृ दा लेटी ई थी। फर कट बैग क चैन खोलकर
उसने उसम से लड ेशर नापने वाला इं मे ट बाहर िनकाला।
“इ ह देखभाल क थोड़ी यादा ज रत है।” डॉ टर अ यर कह रहा था—”शु म थोड़े दन तु ह कु छ परे शान
होगी, ले कन फर तुम इस सबक आदी हो जाओगी।”
“मुझे थोड़े दन भी परे शानी महसूस नह होगी डॉ टर साहब! आपने शायद श द गौर से सुने नह , म के अरटेकर
होने के साथ—साथ बृ दा क े ड भी ।ं सहेली भी ं और अपन के सुख—दुःख म काम आने से कभी कसी को
परे शानी नह होती।”
“अगर तुम ऐसा सोचती हो, तो यह तु हारा बड पन है।”
डॉ टर अ यर ने िब कु ल ब क तरह मु कु राते ए मेरी तरफ देखा और फर लड नापने वाली प ी बृ दा के बाजू
पर कसकर बांधने लगा।
“पेट म दुःखन वगैरह तो नह है?” उसने बृ दा से सवाल कया।
“नह ।”
“दवाई पूरी पाब दी के साथ ले रही हो?”
“हां।”
डॉ टर अ यर लड ेशर का प प धीरे —धीरे दबाने लगा और उसक पैनी िनगाह मीटर पर जाकर ठहर गय —
िजसक सु ऊपर क तरफ बढ़ रही थी।
जैसे—जैसे सु ऊपर क तरफ बढ़ी—डॉ टर के चेहरे पर िच ता क लक र उभरने लग ।
“ या आ डॉ टर?” ितलक राजको टया बोला।
“ लड ेशर अभी भी काबू म नह है, जो क ठीक नह ।”
“ले कन लड ेशर काबू म करने के िलये दवाई वगैरह तो चल रही थी?”
“हां। पर उससे शायद बात नह बन रही है।”
डॉ टर अ यर ने बाजू पर िलपटी ई प ी खोल डाली और प प ढीला छोड़ दया।
फर वो संजीदगी के साथ सोचने लगा।
“ या सोच रहे ह डॉ टर?”
“कु छ नह - दवाई के बारे म सोच रहा ।ं अभी कु छेक दन और यही दवाई चलाकर देखते ह।”
फर वो मेरी तरफ घूमा।
“ या नाम है तु हारा?”
“िशनाया शमा!”
“हां- देखो िशनाया, तुमने बृ दा क दवाई का सबसे यादा यान रखना है। इ ह दवाई देने म कह कोई कोताही
नह होनी चािहये। मुझे लग रहा है- अभी दवाई सही ढंग से नह खाई जा रही है।”
“ऐसा कु छ नह है।” बृ दा िवरोध व प बोली।
“ फर भी म सब कु छ िस टम के साथ चलाना चाहता ।ं मेरी इ छा है- अब आपको दवाई िखलाने क िज मेदारी
िशनाया ही स भाले।”
बृ दा खामोश हो गयी।
“आपको इस बात से कु छ ऐतराज है?”
“नह - मुझे भला या ऐतराज हो सकता है।” बृ दा ने कहा।
“और तु ह?” डॉ टर अ यर ने मेरी तरफ देखा।
“मेरे तो ऐतराज करने का सवाल ही नह ।” म बोली—”आिखर यह तो मेरी ूटी म शािमल है।”
“गुड!”
“आप बस एक बार मुझे दवाई का शे ूल समझा दे क कस टाइम कौन—कौन सी दवाई देनी है।”
“अभी समझाता ।ं ”
वही ँ बैड के बराबर म एक छोटी—सी हैि डल ॉली के ऊपर काफ सारी दवाइयां रखी ई थ ।
डॉ टर अ यर ॉली के नजदीक प च
ं ा और उसने मुझे शे ूल समझाया।
“ठीक है।” मेरी गदन वीकृ ित म िहली—”अब इ ह दवाई िखलाना मेरी िज मेदारी है।”
•••
डॉ टर अ यर के चेहरे पर उदासी के भाव छाये ए थे।
उस व वह पथ हाउस के ांइग होल म बैठा था। म और ितलक उसके सामने बैठे थे।
“मालूम नह - मु गन (म ािसय के अरा य देव) क या इ छा है?” वह बड़े अफसोसनाक लहजे म बोला—” या
चाहता है मु गन?”
“ य ?” ितलक स पसफु ल लहजे म बोला—” या हो गया?”
“ऐ ा- एक बड़ी दुःखद खबर मने आप लोग को सुनानी है।”
“ या?”
डॉ टर अ यर ने अपना च मा उतारकर उसका लास माल से साफ कया और फर उसे वापस आंख पर चढ़ाया।
“बृ दा क लड रपोट आज आ गयी है।”
“ लड रपोट आ गयी है।” ितलक राजको टया चका—”और आपने अभी तक रपोट के बारे म कु छ बताया नह ।”
“दरअसल रपोट कु छ उ साहजनक नह है राजको टया साहब! बि क...।”
“बि क या?”
“बि क उस रपोट ने िपछली वाली रपोट क ही पुि क है।”
“आपने जो कहना है, साफ—साफ किहये। खुलकर किहये।”
“तीन महीने!” डॉ टर अयर बोला—”बृ दा क िज दगी के यादा—से— यादा तीन महीने बा क है। अब वो तीन
महीने से यादा जीिवत नह रह सकती।”
ितलक राजको टया कु स पर िब कु ल इस तरह पसर गया- मानो कसी ने उसके शरीर क सारी शि ख च ली हो।
वह एकाएक वष का बीमार नजर आने लगा।
जब क मेरे दल— दमाग म तो िव फोट होते चले गये थे।
“ कै न फाइट अग ट फे ट राजको टया साहब!” डॉ टर अ यर बोला—”मु गन पर िव ास रिखये। हो सकता है-
मु गन उनक िज दगी का कोई और ज रया िनकाल दे। कोई और ऐसा रा ता पैदा कर दे, जो वह बच जाय।”
ितलक राजको टया कु छ न बोला।
“अब आप मुझे इजाजत द।” डॉ टर अ यर बोला—”अभी मने हॉि पटल म एक पशे ट को भी देखते ए जाना है।”
डॉ टर अ यर चला गया।
उसके जाने के काफ देर बाद तक भी ितलक राजको टया उसी कु स पर प थर के बुत क तरह बैठा रहा।
फर उसने दोन हथेिलय से अपना चेहरा ढांप िलया ओर सुबक उठा।
“धीरज रिखये!” म ितलक राजको टया के नजदीक प च
ं ी।
“मने बृ दा से ब त यार कया था िशनाया!” ितलक राजको टया तड़पते ए बोला—”ब त यार कया था।”
“म आपक था समझ सकती ।ं ”
“सच तो ये है, म उस दन के बारे म सोच—सोचकर कांप जाता ,ं िजस दन बृ दा क मौत होगी। िजस दन वो
मुझे छोड़कर जायेगी।”
मेरी आंख के सामने भी अंधेरा—सा िघरने लगा।
•••
तीन महीने!
बृ दा िसफ तीन महीने क मेहमान है।
यक न मािनये- उस बात ने मेरे दलो— दमाग म अजीब—सी हलचल पैदा करके रख दी थी।
म समझ नह पा रही थी- उस खबर क मेरे ऊपर या ित या होनी चािहये। िजस उ े य को लेकर म वहां आयी
थी, उस उ े य के ऐतबार से वह मेरे िलये एक िनहायत ही खुशी से भरी खबर थी, य क मेरे रा ते का कांटा इतनी
ज दी खुद—ब—खुद साफ होने जा रहा था।
पर तु या सचमुच बृ दा मेरे रा ते का कांटा थी?
म उस बारे म िजतना सोच रही थी—उतना ही खुद को दुिवधा म िघरा पा रही थी। इस बात ने भी मुझे काफ
डराया क बृ दा क उस मौजूदा बीमारी क िज मेदारी भी कामोबेश उसक कॉलगल वाली िज दगी ही थी।
उस दन सोने से पहले जब म बृ दा को दवाई िपलाने उसके शयनक म प च
ं ी, तो मने उसके चेहरे पर बड़ी
आ याि मक—सी शांित देखी।
उसका चेहरा सुता आ था।
ऐसा लग रहा था- मानो उसे अपनी मौत क जानकारी थी।
“दवाई खा लो।” म जग म-से एक िगलास म पानी पलटते ए बोली।
“तुमने तो काफ ज दी अपना चाज स भाल िलया।” बृ दा ब त धीरे से मु कु राई।
फर वो ब त थके —थके अ दाज म उठकर बैठी।
“शायद अभी तु ह भी यह बात समझाने क ज रत है डा लग!” मने उसके गाल पर चंचल अ दाज म िचकोटी काटी
—” क म िसफ तु हारी के अरटेकर ही नह बि क तु हारी सहेली भी ।ं ”
वो हंसी।
तभी एकाएक मेरी दृि बृ दा के व थल पर जाकर ठहर गयी।
उसने काफ मोटा गाउन पहना आ था।
ले कन उस गाउन म भी उसके तने ए व अलग से नुमाया हो रहे थे। खासतौर पर उसके रबड़ जैसे कठोर िन पल
का दबाव तो गाउन के मोटे कपड़े पर इस तरह पड़ रहा था, जैसे वो अभी गाउन को फाड़कर बाहर िनकलने को
आतुर ह ।
“ या देख रही हो?” बृ दा चंचल भाव से बोली।
“देख रही -ं बीमारी का तु हारी सेहत पर ज र फक पड़ा है, ले कन इन रसभरे याल पर कोई फक नह पड़ा।”
बृ दा िखलिखलाकर हंस पड़ी।
“कम—से—कम यही एक चीज तो मेरे पास ऐसी थी।” बृ दा ठ डी सांस लेकर बोली—”िजससे म तु ह मात देती
थी।”
“इसम कोई शक नह । तु हारा मुझसे दो न बर साइज बड़ा था न?”
“हां। मेरा अड़तीस—तु हारा छ ीस!”
“माई ग़ॉड!” मने हैरानीपूवक अपने मुंह पर हाथ रखा—”तु ह तो मेरा साइज आज भी याद है।”
“आिखर म इस एक बात को कै से भूल सकती थी?”
“ज र ितलक राजको टया तु हारे इन व थल को देखकर ही तु हारा मुरीद बना होगा।”
बृ दा के गाल पर लाज क लािलमा दौड़ गयी।
िपछले एक वष म बृ दा के अ दर जो प रवतन ए थे, यह उनम से एक प रवतन था। वह अब शमाने भी लगी थी।
“ य !” मने उसके कोहनी मारी—”मने कु छ गलत कहा?”
“नह । यह सच बात है। सबसे पहले इ ह ने मेरे इन याल क ही तारीफ क थी।”
“और उसके बाद कस चीज क तारीफ क ?”
“पीछे हट!” वह और लजा गयी—” फर शरारत करने लगी।”
“ य ?” मने बृ दा क आंख म झांका—” या मने कोई गलत सवाल पूछ िलया?”
“बेकार क बात मत कर!” उसने अपने ह ठ चुभलाये—”तू अब ब त शैतान हो गयी है।”
“इसम शैतान होने क या बात है?”
“अ छा अब रहने दे।”
“बतायेगी नह ?” मने पुनः उसके कोहनी मारी।
“सच बताऊं?”
“हां।”
“इ ह ‘उसक ’ तारीफ करने का तो मौका ही नह िमला।” बृ दा ने मेरी आंख म झांका—”उसे देखने के बाद तो यह
मेरे ऊपर इस तरह टू टकर िगरे , जैसे आंधी म कोई सूखा प ा टू टकर िगरता है।”
मेरी हंसी छू ट गयी।
बृ दा ने वह बात कही ही कु छ ऐसे अ दाज म थी।
आंधी म सूखा प ा!
अ छी िमसाल थी।
बृ दा भी िखलिखलाकर हंस रही थी।
उस ण उसे देखकर कोई नह कह सकता था क वह लड़क इतनी ज दी मरने वाली है।
या फर उसे कोई ग भीर बीमारी भी है।
“एक बात क ?ं ” म हसरत भरी िनगाह से बृ दा क हंसी को देखते ए बोली।
“ या?”
“तू सचमुच ब त क मत वाली है।” मने बृंदा को अपने बा पोश म समेट िलया—”जो तुझे ितलक राजको टया
जैसा हसबै ड िमला।”
“हां।” उसने गहरी सांस छोड़ी—” क मत वाली तो म -ं ब त क मत वाली।”
ले कन उस ण मुझे अहसास आ क मेरी जबान से कोई गलत श द िनकल गया था। िजस लड़क का देहावसान
मा ३ महीने बाद होने वाला हो, वह क मत वाली कै से हो सकती थी?
मने बृ दा को दवाई िपलाई और फर रात के उस स ाटे म चुपचाप बाहर िनकल आयी।
रात बड़ी खामोशी के साथ गुजरी।
अलब ा अगले दन मेरे साथ पथ हाउस म एक ऐसा हंगामाखेज वा या घटा, िजसने मेरे िवचारो को एक नई दशा
दे दी।
•••
सुबह का समय था।
म ितलक राजको टया के शयनक क सफाई कर रही थी।
तभी अक मात् मेरी िनगाह एक फोटो एलबम पर पड़ी। मने एलबम खोलकर देखी। उसम ितलक राजको टया और
बृ दा क शादी के फोटो ा स थे।
म बड़ी दलच प िनगाह से उस एलबम को देखने लगी। बृ दा सचमुच शादी के जोड़े म काफ सु दर नजर आ रही
थी। शादी के फोटो ा स के अलावा उस एलबम म ितलक राजको टया के कु छ पसनल फोटो भी थे। अलग—अलग
पा टय के फोटो ा स! िजनम से कु छेक म उसका बथडे सेली ेट कया गया था। वह बड़े—बड़े समारोह के फोटो थे।
िजनम वह फ मी हि तय के साथ खड़ा था।
बड़े—बड़े के ट िखलािड़य के साथ।
और मु बई शहर क गणमा य हि तय के साथ।
इसके अलावा कु छेक फोटो उसके लड़ कय के साथ भी थे।
ितलक राजको टया के लड़ कय के साथ फोटो ा स देखकर मेरे अ तमन म द-सा िछड़ गया। म उन दन क
क पना करने लगी, जब बृ दा का देहावसान हो जायेगा। जब ितलक क िज दगी म कोई लड़क नह होगी। तब या
ऐसा हो सकता था क उस जैसा रिचरीच आदमी अपनी सारी उ यूँ ही बृ दा क याद म गुजार दे।
इ पॉिसबल- मतलब ही नह था।
म समझती ं क ऐसा सोचना भी मेरा पागलपन था।
आिखर या खूबी नह थी ितलक राजको टया म। है डसम था। माट था। सोसायटी म तबे वाला था। पैसे वाला
था।
सभी कु छ तो था ितलक राजको टया के पास।
ऐेसे लड़क के पीछे तो लड़ कयां मि खय क तरह िभनिभनाती ई घूमती ह।
बृ दा के आंख मूंदने क देर थी, फौरन लड़ कय क एक ल बी कतार ितलक राजको टया के सामने लग जानी थी।
फर म अपने बारे म सोचने लगी।
और या िमलना था मुझे?
ितलक राजको टया ने तो अंत—पंत दूसरी शादी कर ही कर लेनी थी, जब क मने वापस ‘नाइट लब’ म प च

जाना था, फर रात—रात िबकने के िलये।
या फर कसी खतरनाक बीमारी का िशकार होकर तड़प—तड़पकर मर जाने के िलये।
“नह ! नह !!” मेरे शरीर म िसहरन दौड़ी—”म ‘नाइट लब’ म वापस नह जाऊंगी।”
अगर ितलक राजको टया क िज दगी म दूसरी लड़क आनी ही थी, तो वह लड़क म ही य नह हो सकती थी?
मेरे म ही या बुराई थी?
मने दृढ़ िन य कर िलया क म िजस उ े य को लेकर वहां आयी थी, उस उ े य को पूरा करके र ग
ं ी।
ितलक राजको टया को अपने ेमजाल म फांसकर र ग
ं ी।
वह िनःसंदेह मेरा एक मह वपूण फै सला था।
मह वपूण भी और ह सले से भरा भी।
अलब ा उस एक फै सले ने मेरी िज दगी म आगे चलकर बड़ा हड़क प मचाया।
•••
रात के समय मने ितलक राजको टया को नशे म बुरी तरह धु होकर पथ हाउस म आते देखा।
गाड उसे पकड़कर ला रहा था। अपने शयनक म प च
ं ते ही ितलक राजको टया बार काउ टर वाली सीट पर ढेर हो
गया तथा वहां बैठकर और शराब पीने लगा।
बृ दा क मौत वाली खबर ने उसे झंझोड़ा आ था।
वह सदम म था।
कु छ देर म लास िव डो पर उसक परछाई को देखती रही।
फर म दबे पांव उसके शयनक म दािखल ई।
उसक पीठ मेरी तरफ थी।
“ितलक साहब!”
ितलक राजको टया ने आिह ता से च ककर गदन घुमाई और मेरी तरफ देखा।
“यह आपको या हो गया है?”
उसक आंखे कबूतर क भांित लाल—लाल हो रही थ ।
“ य आप इस तरह खुद को बबाद करने पर तुले ह?”
“बबाद- ह
ं !” ितलक राजको टया धीरे से हंसा और फर वो ि ह क का पूरा िगलास एक ही सांस म खाली कर गया
—”अब इस िज दगी म बबादी के िसवा बचा भी या है िशनाया! हर तरफ अंधेरा—ही—अंधेरा है।”
“म जानती ं ितलक साहब- िज दगी ने आपके साथ बड़ा भारी मजाक कया है।” म धीरे —धीरे चलती ई ितलक
राजको टया के नजदीक प च
ं ी—”ले कन िज दगी यह ख म तो नह हो जाती। इ सान के साथ जंदगी म बड़े—बड़े
हादसे पेश आते ह—मगर िज दगी फर भी चलती रहती है।”
“शायद तुम ठीक कह रही हो। िज दगी चलती रहती है।”
ितलक राजको टया क जबान लड़खड़ाई।
उसने पारदश कांच के काउ टर पर रखी पीटर कॉच ि ह क क बोतल उठाई तथा फर ढेर सारी ि ह क अपने
िगलास म पलटनी चाही।
“यह आप या कर रहे ह?” मने फौरन ि ह क क बोतल पकड़ी।
“मुझे पीने दो।”
“ले कन आप पहले ही काफ नशे म है ितलक साहब!”
“म और यादा नशे म होना चाहता ।ं म भूल जाना चाहता ं क म कौन ?ं ”
“आप बहक रहे ह।”
“हां-हां, म बहक रहा ।ं ” ितलक राजको टया चीखता आ कु स छोड़कर खड़ा हो गया—”ले कन तुम कौन होती हो
मुझे रोकने वाली? कस अिधकार के साथ रोक रही हो मुझे?”
“ितलक साहब!” मेरे मुंह से िससकारी छु ट गयी।
जब क ितलक राजको टया क लाई छू ट पड़ी थी।
उसने अपना िसर मेरे क धे पर रख िलया और सुबक उठा।
मने अनुभव कया—उसका िज म तप रहा था।
म गार टी के साथ कह सकती थी क वो औरत का िपछले कई दन से भूखा था। आिखर यही एक फ ड तो ऐसा था
—िजसम मुझे महारथ हािसल थी।
“मुझे लगता है- म पागल हो जाऊंगा।” उसका िज म हौले—हौले कांप रहा था—”म पागल हो जाऊंगा।”
“आप धैय रख। कु छ नह होगा आपको।”
उस ण मेरी हालत भी बुरी थी।
मेरा दल हथौड़े क तरह मेरी पसिलय से टकरा था।
हांिलक मुझे भी िपछले कई दन से पु ष का संसग हािसल नह आ था। ले कन म ज त कये ए थे। खुद को रोके
ए थी। बचपन से ही मुझे िसखाया गया था क कभी पु ष के सामने आसानी से समपण नह करना चािहये।
औरत क जीत तभी है, जब पु ष उसके सामने िब तर पर घुटन के बल झुककर उसका हाथ मांगे।
उसी ण नशे म या न जाने कै से उसका हाथ मेरे व को छू गया।
मेरे तन—बदन म आग लग गयी।
“बृ दा!” उसके हाथ मेरी गोलाइय को जुगरा फया नापने लगे—”बृ दा!”
वह शायद नशे म मुझे बृ दा समझ रहा था।
उसने कसकर मुझे अपने आ लंगन म समेट िलया।
एक ण के िलये तो मुझे लगा—मानो मेरे संयम का बांध छू ट जायेगा।
ले कन मेरे संयम का बांध टू टता, उसके पहले ही उसका शरीर मेरे ऊपर लुढ़क गया।
“ितलक साहब!” मने उसे झंझोड़ा।
उसका शरीर िसफ िहलकर रह गया।
उसके खराटे गूंजने लगे।
मने आिह ता से उसे िब तर पर िलटा दया।
मने उसक तरफ देखा।
वो गहरी न द म भी सा ात् कामदेव का अवतार नजर आ रहा था। आज तक सकड़ पु ष के साथ म मौज—म ती
कर चुक थी, मगर उनम ितलक राजको टया जैसा कोई न था। उसे देखते—देखते मुझे उसके ऊपर यार आने लगा।
वह एक अजीब—सा अहसास था, जो मुझे पहली बार हो रहा था।
मने उसके शूज उतारे ।
सॉ स उतारे ।
टाई क नॉट ढीली क ।
फर म एअरक डीशन चालू करके खामोशी के साथ उसके शयनक से बाहर िनकल आयी।
पर तु ितलक राजको टया क त वीर फर आसानी से मेरे मानस—पटल के ऊपर से न धुली।
•••
पथ हाउस का डाय नंग हॉल काफ खूबसूरती के साथ डेकोरे ट कया गया था। यूं तो पथ हाउस क हर चीज भ
थी। पर तु ऐसा लगता था, डाय नंग हॉल क साज—स ा के ऊपर कु छ यादा ही यान दया गया था।
ितलक राजको टया क नजर झुक ईथ।
सुबह का समय था। वो डाय नंग हॉल म बैठा था और म उसके सामने ना ता लगा रही थी।
“म कु छ कहना चाहता ।ं ” वो धीम वर म बोला।
रात जो कु छ आ था, उसके कारण उसक िह मत नह हो रही थी क वो मेरे सामने नजर उठाये।
“ या?”
“रात नशे म अगर मुझसे कोई गु ताखी हो गयी हो,” वह नजर झुकाये—झुकाये बोला—”तो म उसके िलये माफ
चाहता ।ं ”
म धीरे से मु कु रा दी।
वह सचमुच स न आदमी था। भला।
“म अपनी हरकत के िलये श मदा ।ं ” ितलक राजको टया पुनः बोला।
“रात आपने ऐसा कु छ नह कया था ितलक साहब, जो आपको श मदा होना पड़े।”
“ फर भी मुझे रात तु हारे साथ इस तरह पेश नह आना चािहये था। आइ बैग योअर पाडन!”
“दै स ऑल राइट! आप ना ता क िजये।”
“बट...।”
“ितलक साहब!” मने एक—एक श द चबाया—”अगर सचमुच आपको रात वाली घटना का अफसोस है, तो आप
बस मेरा एक कहा मान लीिजये।”
“ या?”
ितलक राजको टया क नजर मेरी तरफ उठ ।
उसने तब पहली मतबा मेरी तरफ देखा।
“आप वादा क िजये क फर कभी इस तरह शराब पीकर पथ हाउस म नह आयगे।”
ितलक राजको टया क आंख म हैरानी के भाव नमूदार ए।
उसे शायद यक न नह था, म उससे इस तरह क बात भी कह सकती ।ं
“ठीक है।” वो बोला—”म वादा करता ।ं ोिमस।”
मेरे होठ पर मु कान िखल उठी।
उस दन रात को जब ितलक राजको टया िबना शराब पीये पथ हाउस म आया, तो वह मेरी पहली बड़ी कामयाबी
थी।
मुझे लगा- जैसे मने का न का कोई ब त बड़ा खजाना हािसल कर िलया हो।

यार क शु आत
होटल म आधी रात के करीब एक ब तभ पाट का आयोजन कया गया था।
वह पाट ितलक राजको टया क तरफ से थी।
उसका एक नया शॉ पंग कॉ पलै स बनना शु आ था और कॉ पलै स क खुशी म ही उसने वो पाट दी थी।
बहरहाल उस पाट क सबसे अहम् बात ये थी क ितलक राजको टया ने मुझे भी उस पाट म िनमंि त कया।
हालां क म पाट म जाते ए डर रही थी, य क म अतीत म ‘नाइट लब’ क एक हाई ाइ ड कॉलगल रह चुक
थी।
अगर पाट म कसी ने मुझे पहचान िलया तो?
तो या होगा?
म डर गयी।
ले कन फर मने अपने अंदर हौसला इक ा कया।
यह खतरा तो अब मने उठाना ही था।
अगर कसी ने मुझे पहचान िलया, तो उसका भी कोई—न—कोई समाधान िनकलेगा। अब ऐसा तो नह हो सकता
था क म उस डर क वजह से पाट म ही शािमल न होती।
उस रात मने एक बड़ा खूबसूरत भूरे रं ग का क तान पहना और अपने बाल को जूड़े क श ल म कु छ इस तरह गूंथा,
जो मेरी सु दरता म चार चांद लग गये।
पाट म शहर के बड़े—बड़े गणमा य ि मौजूद थे। हर कोई बृ दा के बारे म सवाल कर रहा था। मुझे न जाने य
उस ण बृ दा से जलन होने लगी।
“मेरे साथ आओ।”
पाट चलते आधा घ टा हो गया होगा, तभी ितलक राजको टया मेरे नजदीक आया और मेरा हाथ पकड़कर मुझे ले
जाने लगा।
“कहां ले जा रहे हो?” म च क ।
“आओ तो!”
म बड़ी असमंजसतापूण मु ा म उसके साथ—साथ चली।
ितलक राजको टया मुझे लेकर उस मंच क तरफ बढ़ा, जहां आक ा बज रहा था।
“वहां कसिलये ले जा रहे हो?” मेरी हैरानी बढ़ी।
“िच ता मत करो।” ितलक राजको टया के होठ पर मु कान थी।
जब क म समझ नह पा रही थी, ितलक राजको टया का अगला कदम या होने वाला है?
मंच पर प च
ं कर उसने मेरा हाथ छोड़ दया।
फर वो माइक क तरफ बढ़ा। म हाथ बांधे उसके िब कु ल बराबर म खड़ी थी।
“लेिडस ए ड जै टलमैन!”
ितलक राजको टया क आवाज पूरे हॉल म गूंजी।
सब लोग ठठक गये। सब ितलक राजको टया क तरफ देखने लगे।
“ े स! म आज आपका प रचय अपने एक ब त खास मेहमान से कराने जा रहा ।ं ”
“य—यह आप या कर रहे हो?” मेरे चेहरे पर घबराहट के भाव तैर गये।
“तुम चुप रहो।” वह फु सफु साया, फर पहले क तरह माइक क तरफ मुंह करके बुल द आवाज म बोला—”इनस
िमिलये-यह है िशनाया शमा! बृ दा क हर दल अजीज दो त! और आज इ ह के कारण मुझे बृ दा क देखभाल करने
म आसानी हो रही है। मुझे यह कहने म कोई िहचक नह े स- अगर आज यह न होत , तो म बुरी तरह टू ट गया
होता। िबखर गया होता। यह मेरे साथ ह, तो मेरे पास िह मत है, ताकत है। म चाहता ं क आप सब लोग िमलकर
इनके िलये तािलयां बजाय।”
फौरन वह पूरा हॉल तािलय क गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
मुझे वह सब कु छ काफ अज़ीब लगा।
मुझे यह कहने म कोई िहचक नह क उस तरह का स मान मुझे िज दगी म पहली मतबा िमल रहा था। वरना आज
तक तो मद ने मुझे िसफ नंगी—बु ी औरत के तौर पर ही देखा था।
“थ यू!” ितलक राजको टया क आवाज माइक पर पुनः गूंजी—”म इन तािलय के िलये आप लोग का ब त—ब त
शु गुज़ार ।ं अब मेरी आप लोग से एक र े ट और है।”
“तुसी बेधड़क बोलो ितलक शाह जी!” मंच के नजदीक ही खड़ा एक पगड़ीधारी सरदार बोला—”तुसी या र े ट
है?”
“म चाहता -ं आप लोग यहां से जाकर अपने—अपने इ देव से बृ दा क िज दगी के िलये म त ज र मांग। हो
सकता है- उसक बीमारी म जो काम दवाई न कर रही हो, वह आप लोग क दुआ कर जाये।”
“ओह- तुसी ेट हो शाह जी, ेट!” सरदार भावुक हो उठा—”तुसी फ न करो बादशाहो, असी आज ही गु ारे म
नानक साहब के सामने जाकर म था टेकेगा। आज ही रब से म त मांगेगा।”
“ध यवाद!”
ितलक राजको टया फर मुझे अपने साथ लेकर िजस तरह मंच पर बढ़ा था, उसी तरह नीचे उतर गया।
मने एक सरसरी—सी िनगाह तमाम लोग पर दौड़ाई—शु था, जो फलहाल कसी ने मुझे नह पहचाना था।
अलब ा कसी बड़े आदमी के साथ रहने म कै सी गव ि होती है, इसका अहसास भी मुझे पहली बार ही आ।
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
वह बड़ी अनुरागपूण नजर से मेरी तरफ देख रहा था।
म मद क फतरत क अ छी जानकार थी। म खूब समझती थी- उस िनगाह का या मतलब है? उस समय वह शत
— ितशत मेरे हवाले हो जाने को पूणतया तैयार था। उसक आंख म उ मीद क चमक थी। उसक आंख म यार
का सैलाब उमड़ रहा था। उस समय अगर म चाहती- तो िब कु ल मदारी क तरह उसे अपनी डु गडु गी पर नचा
सकती थी।
िब कु ल शेरनी क तरह उसके ऊपर सवार हो सकती थी।
ले कन मने स कया।
अलब ा मेरा ितलक राजको टया से शादी करने का िन य अब और भी यादा दृढ़ हो गया।
•••
सुबह का समय था और म उस ण बृ दा के पास थी।
बृ दा के गले म मने नेप कन लपेटा आ था और खुद अपने हाथ से उसे धीरे —धीरे सूप िपला रही थी।
फलहाल उसक तबीयत और भी यादा िनढाल थी।
“कै सी तबीयत हो रही है?” मने पूछा।
“तबीयत कु छ ठीक नह है।” वह धीमी आवाज म बोली—”जरा भी िहलने—डु लने को दल नह चाह रहा।”
“अगर यादा बेचैनी महसूस कर रही हो, तो डॉ टर को बुलाऊं?”
“नह - ऐसी कोई बात नह ।”
म उसे फर सूप िपलाने लगी।
सूप पीने म भी उसका दल नह था।
तभी ितलक राजको टया वहां आ गया।
वह नीला सूट पहने था। नीली फू लदार टाई लगाये था और टाई म लगा सोने का िपन अलग से जगमग—जगमग
कर रहा था।
उस ण वह काफ माट दखाई पड़ रहा था।
“गुड मॉ नंग ऐवरीबड़ी!”
“गुड मॉ नग!”
म मन—ही—मन मु कु राई।
मेरा जादू धीरे —धीरे उस पर चल रहा था।
“आज तो लगता है क तुम सुबह काफ ज दी जाग गयी थ ?”
“हां- मेरी आँख आज थोड़ा ज दी खुल गयी थी।” मने कहा।
ितलक राजको टया चहलकदमी—सी करता आ बृ दा के िब कु ल बराबर म आकर बैठ गया।
“डा लग!” उसने बृ दा के बाल म बड़े यार से उं गिलयां फरा —”कभी—कभी सोचता ,ं तु हारी इस सहेली के
साथ बड़ा अ याय हो रहा है।”
“कै सा अ याय?”
“डा लग- जरा सोचो!” ितलक राजको टया बोला—”आिखर तु हारे साथ—साथ इसे भी पथ हाउस म कै दय जैसी
िज दगी गुजारनी पड़ रही है।”
“नह - ऐसी कोई बात नह ।” मने तुर त कहा—”आिखर म अपनी मज से यहां आयी थी।”
“ फर भी तु ह थोड़ा ब त घूंमना— फरना भी चािहये िशनाया, इससे मन बहलता है।”
म कु छ न बोली।
म िसफ बृ दा को सूप िपलाती रही।
“तुम एक काम करो।” ितलक राजको टया ने पुनःकहा।
“ या?”
“आज रात आजाद मैदान म िवकलांग क सहायताथ एक ‘ फ म टार नाइट’ का आयोजन कया जा रहा है। मेरे
पास भी उस नाइट के पास आये ए है।”
“ फर?”
“हालां क वहां जाने के िलये मेरा मन नह है।” ितलक राजको टया बोला—”ले कन अगर तुम वहां जाना चाहो, तो
म तु हारे साथ चलूंगा। इससे तु हारा दल बहल जायेगा।”
मेरे चेहरे पर िहच कचाहट के भाव उभरे ।
मने सोचा भी न था, ितलक राजको टया ऐसा कोई ताव बृ दा के सामने ही मेरे सम रख देगा।
“ या सोचने लग ?”
“ले कन हम दोन के पीछे बृ दा के पास कौन रहेगा?” मने थोड़ा सकु चाते ए कहा।
“गाड रह लेगा। आिखर पहले भी तो वही रहता था।”
“मगर...।”
“डोट माइ ड! बृ दा- तु ह इससे बोल दो। यह तु हारी परिमशन के िबना नह जायेगी।”
“हां—हां।” बृ दा हकबकाकर बोली—”मने कब मना कया है!”
“लो।” ितलक राजको टया बोला—”अब तो तु हारी सहेली ने भी तु ह परिमशन दे दी।”
“ले कन बृ दा क तबीयत आज कु छ ठीक नह है ितलक साहब!”
“ या हो गया बृ दा को?” ितलक राजको टया ने बृ दा क तरफ देखा।
बृ दा ने तभी सूप का आिखरी घूंट भरा था, फर वो गले म-से नेप कन उतारकर धीरे —धीरे उससे अपना मुंह साफ
करने लगी।
“बस मामूली थकान है।” बृ दा ने आिह ता से कहा—”ऐसी थकान तो कभी भी हो जाती है, फर तुम लोग दो—
तीन घ टे म तो लौट ही आओगे।”
“हां।”
“ठीक है- तुम जाओ।”
मुझे अपने कान पर िव ास नह हो रहा था।
ितलक राजको टया के नजदीक आने के चांस मुझे अपने आप िमल रहे थे।
•••
रात के नौ बजे हम दोन ‘आजाद मैदान’ म थे।
म मानो आकाश म उड़ रही थी।
मेरी उ मीद को पर लग गये थे।
हम दोन एक साथ वी.आई.पी. गैलरी म जाकर बैठे। म खुद को िब कु ल राजकु मारी जैसी फ़ ल कर रही थी। िपछले
चंद दन म जैसे तजुब मुझे ए थे, वह अिव मरणीय थे।
म एक नई वैभव से भरी दुिनया से प रिचत हो रही थी।
मने तब तक वाब म भी नह सोचा था, दुिनया इस कदर रं गीन भी हो सकती है।
उस रात मने परदे पर िझलिमलाने वाले िसतार को अपने इतना करीब से देखा क उ ह हाथ बढ़ाकर छु आ जा सके ।
रात के एक बजे का समय था- जब ो ाम ख म आ और हम दोन वापस पथ हाउस म लौटे।
“ या मेमसाहब सो गय ?” मने लौटने के बाद गाड से सबसे पहला सवाल यही पूछा।
“नह - जाग रही ह।”
म स ् रह गयी।
च कत्!
उस जवाब को सुनकर मेरे ऊपर घोर जपात—सा आ था।
“ले कन उ ह तो अब तक सो जाना चािहये था। या तुमने उ ह सोने के िलये नह कहा?”
“कहा था मैडम!” गाड बोला—”ले कन उ ह ने कहा, न द ही नह आ रही है।”
म ल बे—ल बे डग रखती ई बृ दा के शयनक म दािखल ई।
वो तब भी जाग रही थी।
लाइट जली ई थी।
उसक आंख म उस ण अजीब—सी बेचैनी थी। उसक आंख म उस तरह क बेचैनी मने तब भी देखी थी—जब
‘नाइट लब’ म आने वाले ाहक उसे छोड़कर मुझे बुक कर लेते थे।
“बड़ी देर म ो ाम ख म आ?” बृ दा क िनगाह वाल लॉक क तरफ दौड़ी।
“हां- हम थोड़े लेट हो गये।” म उसक िनगाह—से—िनगाह िमलाकर बात नह कर पा रही थी—”ले कन तु ह तो
अब तक सो जाना चािहये था।”
“बस न द नह आ रही थी।”
“दवाई खाई?”
“नह ।”
“हे भगवान!” म बोली—”तु ह या हो गया है बृ दा! इसका मतलब डॉ टर साहब ठीक ही कह रहे थे, तुम दवाई
खाने म लापरवाह हो। तु ह अपनी जरा भी फ नह ।”
बृ दा कु छ न बोली।
“चलो- अब सबसे पहले दवाई खाओ।”
मने बृ दा क कमर के नीचे हाथ लगाया और उसे यूं आिह ता से उठाकर िबठाया, मानो वह सचमुच कांच क कोई
नाजुक गुिड़या थी।
बृ दा पीठ लगाकर बैठ गयी।
फर मने उसे दवाई िखलाई।
“ ो ाम कै सा रहा?” बृ दा ने धीमे वर म पूछा।
“अ छा रहा।” म दवाई िखलाने के बाद बोली—”ले कन हम दोन का यान तो तु हारे पास यह पड़ा रहा था। यह
तो बार—बार तु हारे बारे म ही बात करने लगते थे।”
“वाकई?”
“ह—हां।” मुझे अपनी ही आवाज कपकं पाती अनुभव ई—”सचमुच यह तुमसे ब त यार करते ह।”
बृ दा ने कु छ न कहा।
मुझे ऐसा लगा- उसक सशं कत दृि मुझे ही घूर रही थी।
“अब तुम यादा बात मत करो- ब त रात हो चुक है।”
मने बृ दा को वापस िब तर पर िलटा दया और उसके पायताने म रखा क बल खोलकर उसके क ध तक ओढ़ा
दया।
“अब तुम सो जाओ।” म बोली—” यादा देर तक जागना तु हारी सेहत के िलये अ छा नह है।”
बृ दा कु छ न बोली।
उस ण उसक वो खामोशी मुझे चुभती—सी लगी।
म लाइट ब द करके उसके शयनक से बाहर िनकल आयी। पर तु हर ण मुझे ऐसा तीत हो रहा था- मानो उसक
नजर मेरी पीठ पर ही गड़ी ई ह।
म फै सला नह कर पा रही थी- म वह जो कु छ कर रही थी, वह सही है या गलत?
•••
उसी रात बृ दा क कडनी म ब त भीषण दद उठा।
दद इतना भीषण था- जैसे बृ दा क अब जान िनकली। अब िनकली। वह दद से बुरी तरह छटपटा रही थी।
तड़प रही थी।
देखते—ही—देखते उसका पूरा शरीर पसीन म लथपथ हो गया।
मने अपनी िज दगी म कसी के इतना तेज दद उठते नह देखा था।
“म डॉ टर को बुलाता ।ं ” ितलक राजको टया भी घबराहट म टेलीफोन क तरफ झपटा।
उसने डॉ टर अ यर को फोन कया।
पांच िमनट भी नह गुजरे , डॉ टर अ यर अपना कट—बैग लेकर दौड़ता आ वहां प च
ं गया। बृ दा तब भी दद से
छटपटा रही थी।
“हे मु गन!” बृ दा क इतनी बुरी हालत देखकर डॉ टर अ यर के चेहरे पर आतंक के भाव दौड़े—”पहले तो कभी
इनके इस तरह दद नह उठा था।”
“नह ।” ितलक राजको टया बोला—”पहली बार दद उठ रहा है।”
डॉ टर अ यर ने अपना कट बैग एक तरफ रखा और बृ दा के नजदीक प च
ं ा।
“बृ दा!” डॉ टर अ यर ने उसके दोन कं धे पकड़कर झंझोड़े—”बृ दा!”
“ह—हां।” बृ दा ने छटपटाते ए आंख खोल —”हां, डॉ टर!”
वह पसीन म नहा रही थी।
उसका बुरा हाल था।
“तु हारे कस जगह दद उठ रहा है?”
“क— कडनी म!” बृ दा ने हांफते ए कहा—” कडनी म!”
“ या इस जगह?” डॉ टर अ यर ने उसके कडनी वाले िह से पर हाथ रखा और उसे धीरे से दबाया।
बृ दा के हलक से वीभ स चीख िनकल गयी।
वह छटपटाई।
“ या आ?”
“यह !” वह पीड़ाजनक मु ा म बोली—”यह दद उठ रहा है।”
“और यहां?”
डॉ टर अ यर ने उसके पेट पर एक अ य जगह हाथ रखकर धीरे से दबाया।
बृ दा क पुनः चीख िनकली।
“यहां भी! यहां भी!! ऐसा लग रहा है—जैसे पेट म जगह—जगह आग के गोले उठ रहे हो।”
“ओह—काफ सी रयस मामला है।”
डॉ टर अ यर के माथे पर चंता क ढेर सारी लक र उभर आय ।
म भी वह बृ दा के पास खड़ी उस सारे नजारे को देख रही थी।
अलब ा बृ दा के िजतनी बुरी तरह दद उठ रहा था—उसने हाथ—पैर मेरे भी फु लाकर रख दये थे।
“अब या करोगे डॉ टर?” ितलक राजको टया बोला।
“म एक इं जे शन लगा रहा —
ँ शायद उससे कु छ फक पड़े।”
डॉ टर अ यर ने कट बैग खोलकर इं जे शन िनकाला और एक सी रं ज िनकाली।
ज द ही उसने इं जे शन तैयार कर िलया।
“ऐ ा- अपना बाजू मोड़ लो।”
बृ दा ने बाजू मोड़ा।
फौरन डॉ टर अ यर ने उसके इं जे शन लगा दया।
“म समझता -ं शी ही अब तु ह न द आ जानी चािहए।” डॉ टर अ यर, बृ दा के बाजू को धीरे —धीरे उस थान
से रगड़ता आ बोला—जहां उसने इं जे शन लगाया था।
रात के दो पतीस हो रहे थे।
म, डॉ टर अ यर और ितलक राजको टया- हम तीन पथ हाउस के ही एक कमरे म बैठे थे।
इं जे शन ने ज दी अपना असर दखाया और मुि कल से पांच िमनट बाद ही बृ दा को न द आ गयी।
अलब ा बृ दा को न द आने के बाद डॉ टर अ यर ने एक काम और कया था। उसने इं जे शन से बृ दा का थोड़ा खून
और िनकाल िलया।
“यह आपने लड सै पल य िलया है?” मने आ यवश पूछा।
“म दरअसल बृ दा का लड एक बार फर टे ट के िलये भेजना चाहता ।ं ” डॉ टर अ यर कह रहा था—”म अब
एक—एक पल क रपोट लेना चाहता ।ं ”
“ले कन आज बृ दा के यह इतना भयंकर दद य उठा है?” ितलक राजको टया बोला।
“ऐ ा- यही बात म नह समझ पा रहा ।ं इसी बात ने मुझे चंता म डाला आ है।” डॉ टर अ यर बोला—”दद
उठना इ ेफाक भी हो सकता है और ये भी स भव है- इसके पीछे कोई ग भीर मामला जुड़ा हो।”
“अगर ग भीर मामला आ, तब या होगा?”
“उसे भी देखा जाएगा- बहरहाल सब कु छ अब दूसरी लड रपोट के ऊपर िनभर है।”
फर डॉ टर अ यर ने अपने कटबैग से कु छ कै सूल िनकालकर मेरी तरफ बढ़ाये।
“इ ह तुम अपने पास रख लो िशनाया!”
“इनका मने या करना है?”
“अगर बृ दा के दोबारा कडनी म दद उठे - तो तुमने फौरन एक कै सूल उ ह खाने के िलए देना है। यह कै सूल पेन
कलर है।”
“ठीक है।”
मने वीकृ ित म गदन िहलाई।
डॉ टर अ यर चला गया।
•••
बाक सारी रात मुझे न द नह आयी।
अलब ा म अपने बैड म म जाकर लेट गयी थी।
बृ दा को म धीरे —धीरे मौत क तरफ बढ़ते देख रही थी। हर गुजरती ई घटना के साथ यह प ा होता जा रहा था,
बृ दा अब यादा दन क मेहमान नह है।
वह ब त ज दी मर जाएगी।
और यह सब मेरे हक म अ छा ही हो रहा था।
उसी रात एक घटना और घटी।
कोई साढ़े तीन का समय रहा होगा। तभी मेरे शयनक का दरवाजा कर— कर करता आ आिह ता से खुला और
एक साये ने अंदर कदम रखा।
म िब कु ल िन े पड़ी रही।
मानो गहरी न द सो रही होऊं।
गहन अंधेरे म भी मने साये को साफ—साफ पहचाना, वह ितलक राजको टया था।
ितलक राजको टया िब कु ल मेरे िब तर के करीब आकर खड़ा हो गया और अपलक मुझे िनहारने लगा।
फर वह थोड़ा—सा मेरी तरफ झुका।
उसक गरम—गरम सांस मेरे चेहरे से टकराने लग ।
वह ाकु ल हो रहा था।
उ मा दत!
यही हालत मेरी थी।
म भी बेचैन हो रही थी।
आिखर म भी तो ‘भूखी’ थी।
ले कन मने स कया।
आिखर म एक औरत थी। वो भी अपने फन म पूरी तरह मािहर औरत!
“िशनाया!”
उसने मुझे धीरे से पुकारा।
मने कोई ित या जािहर न क ।
म गहरी िन ा का अिभनय कये लेटी रही। अलब ा उस ण मुझे अपनी भावना पर अंकुश रखने म कतनी
मश त करनी पड़ रही थी, यह िसफ म जानती ।ं
“िशनाया!” उसक आवाज इस बार थोड़ी तेज थी।
मेरी तरफ से फर कु छ ित या न ई।
ितलक राजको टया मेरी तरफ थोड़ा और झुका।
उसक सांस क गम के साथ—साथ उसके िज म क गम भी अब मुझे अपने अंदर उतरती अनुभव होने लगी।
मुझे ऐसा लगा- अगर ितलक राजको टया कु छ देर और उसी मु ा म रहा, तो शायद मेरा संयम छू ट जाएगा।
मेरे दल म खलबली मच चुक थी।
मेरे अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
मुझे ऐसा लगने लगा- ितलक राजको टया अभी अपने ह ठ मेरे ह ठ पर रख देगा।
अभी उसक बाह का िशकं जा मेरे शरीर के िगद कस जाएगा।
पर तु वैसी नौबत न आयी।
ितलक राजको टया कु छ देर उसी मु ा म मेरे नजदीक खड़ा रहा।
फर जब उसे इस बात का पूरा यक न हो गया क म गहरी न द सो रही ,ं तो वह पीछे हट गया तथा चुपचाप वहां
से चला गया।
जाते—जाते वह मेरे शयनक का दरवाजा बंद करना नह भूला।

ितलक के साथ र ते क शु आत
अगले दन ितलक राजको टया बहाना भरकर मुझे फर घुमाने ले गया।
उसक सफे द बी.एम.ड यू. कार मानो हवा म उड़ी जा रही थी।
म कार क ड सीट पर ितलक राजको टया के बराबर म ही बैठी थी।
“आज आप मुझे कहां ले जा रहे ह?”
“आज म तु ह एक ऐसी जगह ले जा रहा ,ँ जहां जाकर तु हारी तबीयत खुश हो जाएगी।”
“ऐसी कौन—सी जगह है?”
“बस थोड़ा स रखो, अभी हम वहां प च
ं ने ही वाले ह।”
म रोमांच से भरी ई थी।
ितलक राजको टया के साथ गुजरने वाला हर ण मुझे ऐसा लगता, मानो वह मेरी िज दगी का सबसे खूबसूरत ण
हो।
यह बात म अब भांप गयी थी क ितलक राजको टया के दल म मेरे िलए यार उमड़ चुका है, ले कन म अपनी
भावनाएं अभी उसके ऊपर जािहर नह कर रही थी।
थोड़ी देर बाद ही कार एक ‘िड को’ के सामने प च
ं कर क ।
मचक।
“यह आप मुझे कहां ले आए?”
“ य ?” ितलक राजको टया बोला—” या तु ह इस तरह क जगह पसंद नह ?”
“ऐसी कोई बात नह ।”
अलब ा मेरा दल धड़क—धड़क जा रहा था।
म ितलक राजको टया के साथ िड को के अंदर दािखल ई।
अंदर का दृ य काफ िवहंगमकारी था। वह एक ब त बड़ा हॉल था, िजसक छत और फश दोन जगह रं ग—िबरं गी
लाइट लगी ई थ । सामने मंच पर आक ा ारा ब त तेज, कान के परदे फाड़ देने वाला यूिजक बजाया जा रहा
था। हॉल म जगह—जगह घूमने वाले त भ लगे थे, िजनके ऊपर िमरर फट थे। हॉल म जलती—बुझती रं ग—
िबरं गी लाइट का रफले शन जब उन घूमने वाले िमरर पर पड़ता- तो पूरे हॉल म ऐसी रं गीनी िबखर जाती, जैसे
वह कोई ितिल म हो।
हॉल के कांचयु फश पर लड़के —लड़ कयां मदम त होकर नाच रहे थे।
वह म थे।
मुझे घबराहट होने लगी।
“म डांस नह कर पाऊंगी।” म, ितलक राजको टया से धीमी जबान म बोली।
“ य ?”
“ य क म कसी ऐसे लेस पर िज दगी म पहली बार आयी ।ं ”
ितलक राजको टया हंस पड़ा।
“इं सान हर काम कभी—न—कभी िज दगी म पहली बार ही करता है।”
“ले कन...।”
“कम ऑन!”
ितलक राजको टया ने मेरा हाथ पकड़कर डां संग लोर क तरफ ख चा।
“नह ।”
“कम ऑन िशनाया- कम ऑन! डो ट फ ल नवस!”
मने एक सरसरी—सी दृि पुनः लड़के —लड़ कय पर दौड़ाई।
उनम आधे से यादा नशे म थे।
एक लड़का—लड़क तो िब कु ल अिभसार क मु ा म थे।
वह दोन एक—दूसरे से कसकर िचपके ए थे।
ब त कसकर।
दोन के मुंह से आह—कराह फू ट रही थ ।
ितलक राजको टया ने मुझे फर डां संग लोर क तरफ पकड़कर ख चा।
इस बार मने उसका अिधक िवरोध नह कया।
म डां संग लोर क तरफ खंचती चली गयी।
वहां यादातर लड़के —लड़ कयां बेले डांस कर रहे थे।
लगता था—उन सबका मनपसंद वही नृ य था।
लोर पर प च
ं ते ही ितलक राजको टया ने अपने दोन हाथ मेरे हाथ म ले िलये और धीरे —धीरे िथरकने लगा।
मने भी उसका साथ दया।
मने देखा- वह आज मेरे साथ कु छ यादा ही हो रहा था।
फर धीरे —धीरे िथरकते ए उसने खुद को मेरे साथ सटा िलया।
उसका शरीर भभकने लगा था।
“माहौल म गम बढ़ती जा रही है।” म मु कु राकर बोली।
“हां।” वह भी मु कु राया—”ह क —ह क गम तो है, ले कन इतनी गम भी नह - िजसे बदा त न कया जा सके ।”
ज दी ही मुझे भी उस डांस म आन द अनुभव होने लगा।
म भी अब ितलक राजको टया का खूब खुलकर साथ दे रही थी।
फर एक ण वह भी आया- जब ितलक राजको टया मेरे साथ डांस करता आ मुझे एक कोने म ले गया।
“ या सोच रही हो?” वह फु सफु साया।
“कु छ नह ।” मेरे कदम िथरक रहे थे—”बृ दा के बारे म सोच रही ।ं ”
“ या?”
“यही क उसका या होगा, उसक क मत म या िलखा है?”
“कु छ नह िलखा।” ितलक राजको टया ने मुझे अपने सीने के साथ और यादा कस िलया—”अब उसक मौत
िनि त है। अब कोई क र मा ही उसे बचा सकता है। फलहाल थोड़ी देर के िलये उसे भूल जाओ िशनाया, म तुमसे
आज कु छ कहना चाहता ।ं ”
मचक।
“बुरा तो नह मानोगी?”
“अगर कोई ब त यादा ही बुरी बात न ई,” म बोली—”तो म बुरा नह मानूंगी।”
“नह - पहले तुम वादा करो।“ ितलक राजको टया बोला—”म आज चाहे तुमसे कु छ भी क ,ं तुम बुरा नह
मानोगी।”
“ या बात है ितलक साहब- आज ब त मूड म नजर आ रहे ह।”
“तुम इसे कु छ भी समझ सकती हो।”
“ठीक है- म आपसे वादा करती ।ं ” म इठलाकर बोली—”आज आप मुझसे चाहे कु छ भी कह, म आपक बात का
बुरा नह मानूंगी।”
“प ा वादा?”
“प ा!”
ितलक राजको टया ने इ मीनान क सांस ली। फर वह मुझसे कु छ और यादा िचपक गया।
उस ण वो ब त भावुक नजर आ रहा था।
“मेरी तरफ देखो िशनाया- मेरी आंख म।”
मने कु छ सकपकाकर ितलक राजको टया क आंख म झांका।
उसक सांस अब और यादा धधकने लगी थ ।
“आई लव यू िशनाया!”
“ या?”
म हैरान रह गयी।
अचि भत!
मुझे मानो अपने कान पर यक न न आ।
“आई लव यू!” ितलक राजको टया ने िथरकते—िथरकते अपना िसर मेरे क धे पर रख िलया—”म तुमसे यार करने
लगा ं िशनाया- या तुम भी मुझसे यार करती हो?”
म हवा म उड़ने लगी।
मेरी िज दगी म वो पहला पु ष था। एक कॉलगल क िज दगी म वो पहला पु ष था- जो उससे ‘आई लव यू’ बोल
रहा था।
“जवाब दो!” ितलक राजको टया ने मेरे कं धे पकड़कर झंझोड़े—” या तुम भी मुझसे यार करती हो?”
म चुप!
म फै सला नह कर पा रही थी क म या जवाब दूं।
मुझे उ मीद भी नह थी क ितलक राजको टया इतने अ यािशत ढंग से मेरे सामने वो पोजल रख देगा।
“तुम एक िमनट यही को- म अभी आता ।ं ” ितलक राजको टया बोला।
“कहां जा रहे हो?”
“अभी आया।”
ितलक राजको टया मुझे वह डां संग लोर पर अके ला छोड़कर चला गया।
मने देखा- वो बार काउ टर क तरफ जा रहा था।
मेरी िनगाह अब उस लड़के —लड़क क तरफ घूम , जो अिभसर क मु ा म थ ।
वो अब हॉल म कह नजर नह आ रहे थे। ज र वो अपने कसी ठकाने पर चले गये थे।
तभी ितलक राजको टया वापस लौट आया।
उसके हाथ म दो पैग थे।
“यह सब या है?” मने आ यवश पूछा।
“एक तु हारे िलये- एक मेरे िलये।”
“ले कन म शराब को छू ती भी नह ।”
मने सफे द झूठ बोला।
जब क शराब मेरा ि य पेय था।
“कोई बात नह ।” ितलक राजको टया बोला—”म तुमसे शराब पीने के िलये नह क ग ं ा, ले कन अगर तुम मुझसे
यार करती हो- तो इस पैग म से एक ब त छोटा—सा घूट भर लो। म समझ जाऊंगा- तु हारे दल म मेरे िलये या
है! जो बात शम क वजह से तु हारी जबान नह कहेगी, वो आज यह शराब कह देगी।”
मेरी आंख चमक उठ ।
“ यार के इजहार का तरीका अ छा ढूढ
ं ा है ितलक साहब! यािन अगर मने शराब का एक घूंट पी िलया- तो उससे यह
सािबत हो जायेगा क म तुमसे यार करती ।ं ”
“िब कु ल।”
“और अगर मने शराब के दो घूंट पीये, तो उससे या सािबत होगा?”
“तो उससे यह सािबत होगा,” ितलक राजको टया मु कु राकर बोला—” क तुम मुझसे और यादा यार करती हो।”
“ठीक है- तो लाओ, पैग मुझे दो।”
मने ितलक राजको टया के हाथ से शराब का पैग ले िलया।
उसके चेहरे पर अब जबरद त स पस के िच ह थे।
वो अपलक मेरा चेहरा देख रहा था। वो नह जानता था- अगले ण या होने वाला है!
म ितलक राजको टया क तरफ देखकर मु कु रायी।
फर अगले ही पल म एक ही सांस म वह पूरा पैग पी गयी।
“और अब यह पूरा पैग पीने से या सािबत आ?”
“ओह डा लग!” वह एकाएक कसकर मुझसे िलपट गया—”तुम ेट हो— ेट!”
म बड़े सम पत अ दाज म उसके आगोश म समा गयी।
•••
कार से वापस पथ हाउस लौटते समय मने अपनी तरफ से पहला प ा फका।
यािन िशनाया शमा उस व नशे का जमकर नाटक कर रही थी। मने वो नाटक करना भी चािहये था। आिखर मने
िज दगी म पहली बार शराब पी थी।
वो भी पूरा पग भरकर।
मने देखा- बाहर अब ह क —ह क बा रश भी होने लगी थी, जो वातावरण को काफ रोमां टक बना रही थी।
म बार—बार झूमकर ितलक राजको टया के ऊपर ढेर हो जाती।
ितलक राजको टया मुझे स भालता।
“लगता है- नशा तु हारे ऊपर कु छ यादा ही हावी हो गया है।” वो मु कु राकर बोला।
“नशा होना भी चािहये।” म बोली—”यह यार का नशा है।”
“अगर मुझे पहले से यह मालूम होता क उस एक पैग से तु हारे ऊपर इतना नशा हो जायेगा, तो म तु ह कभी वो
पैग पीने के िलये न देता।”
“यह आप और बुरा करते।” म ब क तरह बोली।
“ यो?”
“ फर यह सािबत कै से होता क म भी आपसे यार करती ।ं ”
ितलक राजको टया हंसे िबना न रह सका।
“सचमुच तुम काफ दलच प हो।”
“िसफ दलच प!”
“नह - काफ खूबसूरत भी।”
म नशे म झूमती ई, फर लहराकर ितलक राजको टया के ऊपर िगरी।
इस बार ितलक राजको टया ने मुझे अपने से अलग नह कया बि क मुझे कसकर अपनी बाह के इद—िगद लपेट
िलया और बाह म लपेटे—लपेटे कार ाइव करता रहा।
बा रश अब तेज हो गयी थी। बा रश के तेज होने के साथ—साथ ितलक राजको टया ने कार क र तार थोड़ी कम
कर दी और िव ड न के वाइपर चालू कर दये।
वाइपर घूम—घूमकर िव ड न का पानी साफ करने लगे।
मेरा शरीर भभक रहा था।
वैसी ही गम ितलक राजको टया के शरीर म भी थी।
“ले कन यह यार पाप है ितलक साहब!” मेरे हाथ ितलक राजको टया क पीठ पर सरसरा रहे थे।
मेरे रोम—रोम म िसरहन थी।
“ य - यह यार य पाप है?”
“ य क आप मेरी सहेली के हसबै ड ह।”
“ले कन तुम जानती हो।” ितलक राजको टया ने मुझे अपने शरीर के साथ और यादा कसकर भ च िलया—” क
बृ दा अब यादा दन क मेहमान नह ह- ब त ज द उसक मौत हो जायेगी, फर म तुमसे शादी कर लूंगा। बोलो,
करोगी मुझसे शादी?”
मुझे अपने कान पर िव ास नह आ।
ितलक राजको टया खुद मेरे सामने शादी का पोजल रख रहा था।
“बोलो िशनाया!” ितलक राजको टया बोला—”करोगी मुझसे शादी?”
“यह तो मेरा सौभा य होगा ितलक साहब- जो मुझे आप जैसा हसबै ड िमले।”
तभी एकाएक आसमान का सीना चाक करके ब त जोर से िबजली कड़कड़ाई।
ितलक राजको टया ने कार वह एक पेड़ के नजदीक रोक दी।
वह एक ब त िनजन—सा इलाका था।
ितलक राजको टया क बाह अब और यादा कसकर मेरे शरीर के िगद िलपट गय तथा वह मेरे ऊपर ढेर होता चला
गया।
उसके ह ठ मेरे होठ से आ सटे।
म अभी भी नशे का अिभनय कर रही थी।
“त... ितलक साहब!” मेरी आवाज थरथरा रही थी—”आई लव यू!”
उसने मेरी गदन, पलक , कपोल , अधर और बारी—बारी से दोन कं ध पर चु बन अं कत कर दया।
उसक एक—एक हरकत मेरी रग म िबजली बनकर दौड़ने लगी थी।
वह मेरे कं ध पर हाथ टकाकर झुका।
हम दोन अब कार क ट सीट पर ही आपस म गु थम—गु था हो रहे थे।
हालां क म खूब खेली—खाई थी। पर तु ितलक राजको टया के सामने ऐसा ‘शो’कर रही थी, मानो वह मेरी िज दगी
का पहला अनुभव है।
“यह आप या कर रहे ह ितलक साहब?”
“म... म तु हारा दीवाना हो गया ।ं ” ितलक राजको टया सचमुच ब त उतावला हो रहा था—”और अब चाहता
-ं तुम भी मेरी दीवानी हो जाओ।”
“ओह!”
मेरे होठ से भी मादक िससका रयां फू ट पड़ी।
म अब ट सीट पर िबछती जा रही थी।
तभी ितलक राजको टया ने एक काम और कया।
उसने कार क ‘डोम लाइट’ बुझा दी।
वहां अब अंधेरा छा गया।
घु प अंधेरा!
ऐसा- जो हाथ को हाथ भी न सुझाई दे।
फर मुझे िनव करने म उसने यादा समय नह लगाया और उसके बाद आनन—फानन खुद भी िनव हो गया।
यही वो ण था, जब अंधेरे का सीना चाक करके एक बार फर जोर से िबजली कड़कड़ाई।
मेरा पूरा शरीर एक पल के िलये तेज रोशनी म नहा उठा।
और!
ितलक राजको टया भौच ा—सा मेरे शरीर को देखता रह गया।
कसूर उसका भी नह था।
आज से पहले उसने ऐसा शरीर देखा ही कहां होगा?
“तुम सचमुच ब त सु दर हो।” वह मेरी शंसा कये िबना न रह सका—”वैरी यूटीफु ल!”
म मन—ही—मन हंसी।
वह बेचारा कहां जानता था, आज के बाद वह मेरा गुलाम बन जाने वाला था।
बा रश अब और तेज हो गयी।
इस समय खूब जमकर मूसलाधार बा रश हो रही थी।
इतना ही नह - िबजली और यादा जोर—जोर से कड़कड़ाई। ल बा सफे द ह टर बार—बार आसमान क गुफा को
चीरने लगा।
मौसम एकाएक काफ खतरनाक हो उठा था।
ऐसा लग रहा था- मानो आज कोई तूफान आकर रहेगा।
ितलक राजको टया ने मेरे दोन क धे कसकर पकड़ िलये।
उस काम के िलये कार क ट सीट काफ छोटी पड़ रही थी।
मगर!
दोन जोश से भरे ए थे।
ज द ही खेल शु हो गया।
खेल वही था।
वही पुराना, जो आ दकाल से ी और पु ष के बीच लगातार बार—बार खेला जाता रहा है। क तु आज तक इस
खेल से दोन म-से कसी का भी दल नह भरा।
थोड़ी ही देर बाद हम दोन कार क ट सीट पर िनढाल से पड़े थे। हमारे शरीर पसीन म तर—बतर थे और हम
इस कार हांफ रहे थे, मानो कई सौ मीटर ल बी मैराथन दौड़ म िह सा लेकर आये ह ।
•••
उस रात म ब त खुश थी।
ब त यादा!
मुझे ऐसा लग रहा था- जैसे वह रात मेरी िज दगी म ढेर सारी खुिशयां ले आयी हो। म अपने िलये िजस तरह के
हसबै ड क क पना करती थी- िब कु ल वैसा हसबै ड मुझे हािसल हो गया था और बड़ी स िलयत के साथ हािसल
आ था। मुझे उसके िलये कोई ब त यादा मेहनत नह करनी पड़ी थी। अब बृ दा के मरने क देर थी, फर म
उसक तमाम जायदाद क माल कन बन जानी थी।
और!
बृ दा के मरने म भी कतने दन बचे थे।
तीन महीने!
यािन न बे दन!
न बे दन यूं ही पलक झपकते गुजर जाने थे। फर न बे दन तो उसके मरने क अंितम सीमा थी, मर तो वह उससे
कह यादा पहले सकती थी।
म िजतना सोच रही थी, उतनी ही मेरी उ मीद को पर लग रहे थे।
इसके अलावा मुझे अब यह सोच—सोचकर भी डरने क आव यकता नह थी क मुझे कभी ‘नाइट लब’ म भी
वापस लौटना पड़ सकता है।
सच बात तो यह है—‘नाइट लब’ म लौटने क बात ही मुझे सबसे यादा भयभीत करती थी।
रात को भी जब मुझे यह याल आ जाता क मुझे कभी उस दुिनया म लौटना पड़ सकता है, तो म एकदम सोते—
सोते उठकर बैठ जाती ।ं
म अपनी मां क तरह नह मरना चाहती थी।
आप सोच भी नह सकते, उस एक ही रात म मने बेशुमार सपने देख डाले थे। मुझे अपना होश स भालने के बाद
ऐसी कोई रात याद नह आती, जब म इतना खुश रही होऊं।
ले कन वो सारी खुशी, सारे सपने दन िनकलने के साथ एक ही झटके म फना हो गये।
वह िब कु ल ऐसा था- मानो च ड धमाके के साथ कोई कसी के तमाम सपन को चकनाचूर कर डाले।

खतरनाक टन
सुब ह के साढ़े नौ बज रहे थे।
पथ हाउस म उस दन क शु आत दूसरे दन क तरह ही सामा य ढंग से ई थी।
मने ितलक राजको टया को ना ता दया।
बृ दा को सूप िपलाया और दवाई िखलाई।
ितलक राजको टया आज काफ ज दी तैयार हो गया था। वैसे भी वो आज काफ िखला—िखला नजर आ रहा था।
तभी पथ हाउस म डॉ टर अ यर के कदम पड़े।
“नम ते ितलक साहब!”
“नम ते!”
डॉ टर अ यर भी आज काफ खुश था।
“ या बात है डॉ टर, आज आप सुबह—ही—सुबह कै से दखाई पड़ रहे ह?”
“दरअसल हॉि पटल जा रहा था, मने सोचा क आपको भी वह खुशखबरी सुनाता चलूं।”
“खुशखबरी?” ितलक राजको टया च का।
म भी वह थी।
‘खुशखबरी’ के नाम पर मेरी दलच पी भी एकाएक उस वातालाप म बढ़ी।
या खुशखबरी ले आया था डॉ टर अ यर?
“ऐ ा- खुशखबरी ऐसी है क उसे सुनकर आपके चेहरे पर भी स ता िखल उठे गी। मु गन क ब त बड़ी मेहरबानी
हो गयी है। म कह रहा था न, मु गन कोई—न—कोई क र मा ज र करे गा। बस यूं समझो- मु गन ने क र मा कर
दखाया है।”
“कै सा क र मा?”
“दरअसल बृ दा क दूसरी लड रपोट आ गयी है।” डॉ टर अ यर बोला—”और रपोट काफ हैरान कर देने वाली
है। आप दोन को यह सुनकर बेइ तहां खुशी होगी क बृ दा के ऊपर जो मौत क तलवार लटक ई थी, वो
फलहाल टल गयी है।”
“क... या कह रहे ह आप?”
“म िब कु ल ठीक कह रहा ं ितलक साहब! उ ह जो दवाइयां दी जा रही थ , वो काम करने लगी ह और इस बार
उनक लड रपोट बेहतर आयी है।”
मेरे दल— दमाग पर मानो भीषण जपात आ।
मेरे हाथ—पांव फू ल गये।
“ या बात है?” डॉ टर अ यर ने मेरी तरफ देखा—”यह खबर सुनकर तु ह खुशी नह ई?”
“ए... ऐसा कै से हो सकता है।” म बुरी तरह हकबकाई—”खुशी ई- ब त यादा खुशी ई।”
“म जानता था क आप लोग को ज र खुशी होगी। इसिलए रपोट िमलते ही म फौरन यह खबर आप लोग को
सुनाने यहां दौड़ा—दौड़ा चला आया।”
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
उसका भी बुरा हाल था।
उसके चेहरे क रं गत भी एकदम ह दी क तरह पीली जद पड़ चुक थी।
“यािन अब बृ दा क तीन महीने के अंदर—अंदर मौत नह होगी?” ितलक राजको टया ने शु क वर म पूछा।
“नह - िब कु ल नह , बि क अब तो मुझे इस बात क भी काफ उ मीद नजर आ रही है क अगर उनके लड म इसी
तरह इ ूवमट होता रहा, तो वह बच जाएंगी।”
“ओह!”
“डॉ टर- ले कन म एक बात नह समझ पा रही ।ं ” म बोली।
“ या?”
“ लड रपोट म एकाएक इतना बड़ा प रवतन आया कै से? य क जहां तक म समझती -ं िपछले दन म दवाइयां
भी नह बदली गयी ह।”
“िब कु ल ठीक कहा।” डॉ टर अ यर बोला—”दवाइयां तो िपछले काफ टाइम से नह बदली गय ।”
“ फर यह क र मा कै से आ?”
“सब मु गन क कृ पा है।” डॉ टर अ यर बोला—”दरअसल जो दवाइयां उ ह काफ दन से िखलाई जा रही थ ,
उ ह ने देर से असर दखाया। अब जाकर असर दखाया और यह उसी का प रणाम है।”
“ओह!”
मेरे ह ठ भी िसकु ड़ गये।
“बहरहाल जो आ- बेहतर आ।” डॉ टर अ यर बोला—”म अभी बृ दा को भी जाकर यह खुशखबरी सुनाता ।ं ”
डॉ टर अ यर तेजी के साथ सब बृ दा के शयनक क तरफ बढ़ गया।
•••
डॉ टर अ यर तो वह खबर सुनकर पथ हाउस से चला गया था- ले कन उस खबर ने मुझे कतनी बुरी तरह झंझोड़ा,
इसका अनुमान आप सहज प से ही लगा सकते ह।
मुझे लगा- एक बार फर म हार गयी ।ं
जरा सोिचए।
दवाइय ने भी अभी अपना असर दखाना था।
मुझे एक ही झटके म अपने तमाम सपने चकनाचूर होते दखाई पड़े।
म दौड़ती ई सीधे अपने शयनक म प च
ं ी और धे मुंह िब तर पर लेट गयी।
त कये म मने अपना मुंह छु पा िलया।
“ या बात है?” ितलक राजको टया भी मेरे पीछे—पीछे ही वहां दािखल आ—”तुम एकाएक उदास य हो गय ?”
म कु छ न बोली।
म बस जोर से सुबक उठी।
“िशनाया!” मेरी सुब कयां ितलक राजको टया के ऊपर िबजली—सी बनकर िगर —”तुम रो रही हो।”
ितलक राजको टया ने मेरे दोन कं धे कसकर पकड़े और मुझे झटके के साथ िब तर पर पलट दया।
मेरी आंख आंसु से डबडबाई ई थ ।
“ या बात है?” ितलक राजको टया मेरे ऊपर झुका—” या हो गया है तु ह?”
“अ... अब मेरा या होगा ितलक साहब? म... म तो कसी को मुंह दखाने लायक भी नह रही।”
मेरे मुंह से पहले से भी कह यादा जोर से सुबक उबली।
“घबराओ मत- तु हारा कु छ नह होगा।”
“ले कन... ।”
“एक बात याद रखो िशनाया!” ितलक राजको टया क आवाज म दृढ़ता कू ट—कू टकर भरी थी—”और अ छी तरह
याद रखो। मने तु हारे इस शरीर को हािसल करने से पहले तुमसे जो वादा कया था, म वो वादा पूरा करके र ग
ं ा।”
“यािन आप मुझसे शादी करगे?” मेरे मुंह से ती िससकारी छू टी।
मचक।
“हां।” ितलक राजको टया के मुंह से मानो भेिड़ये जैसी गुराहट िनकली—”हां- म तुमसे शादी क ं गा।”
एक ण के िलए म रोना मानो िब कु ल भूल गयी।
म ितलक राजको टया को आ य से िब कु ल इस तरह देखने लगी, मानो मेरी आंख के सामने सा ात् ताजमहल
आकर खड़ा हो गया हो।
“आप जानते ह- आप या कह रहे ह?”
“हां- म अ छी तरह जानता ं क म या कह रहा ।ं ” ितलक राजको टया बोला।
“ले कन अब यह सब कै से मुम कन है ितलक साहब! एक प ी के रहते ए आप मुझसे दूसरी शादी कै से कर सकते
ह?”
“मुझे सोचने दो। मुझे अब यही सोचना है क म तुमसे कस तरह दूसरी शादी कर सकता ?ं ”
ितलक राजको टया बेचैनीपूवक कमरे म इधर—से—उधर घूमने लगा।
उस ण वह मुझसे कह यादा परे शान दखाई पड़ रहा था।
टाई क नॉट उसने ढीली कर ली।
फर मने ितलक राजको टया को एक नया काम करते देखा।
िब कु ल नया काम!
जो मने उसे पहले कभी नह करते देखा था।
उसने अपने कोट क जेब से िसगरे ट का पै कट िनकाल िलया। उसम से एक िसगरे ट िनकालकर लाइटर से सुलगाई
तथा फर धुएं के गोल—गोल छ ले बनाकर हवा म उछालने लगा।
िजस तरह वो िसगरे ट पी रहा था- उससे सािबत होता था क वो बेचैनी के आलम म कभी—कभार ही िसगरे ट पीता
है।
काफ देर तक ितलक राजको टया इधर—से—उधर मटरग ती करता रहा।
“ या कोई तरीका सूझा?” मने लगभग आधा घ टे बाद सवाल कया।
“नह ।” ितलक राजको टया ठठका—”अभी कोई तरीका नह सूझा है, ले कन तुम मुझे सोचने के िलए थोड़ा व
और दो, मुझे उ मीद है क तब तक म कोई—न—कोई तरीका ज र खोज िनकालूंगा।”
“और अगर मान लो।” म डरते—डरते बोली—” फर भी आपको कोई तरीका न सूझा, तब या होगा?”
“ऐसा नह हो सकता क मुझे कोई तरीका न सूझे। म इस सम या का कोई—न—कोई हल ज र िनकाल लूंगा।”
मेरे चेहरे पर ता झलकने लगी।
“एक बात अ छी तरह समझ लो िशनाया!” ितलक राजको टया ने िसगरे ट का टोटा वह पड़ी एश— े म रगड़कर
बुझाया और सीधे मेरी आंख म झांकने लगा।
“क... या?”
“म अब सचमुच तुमसे ब त यार करने लगा ।ं म बृ दा के िबना जीिवत रह सकता ,ं मगर अब तु हारे िबना
कसी हालत म नह !”
ितलक राजको टया बड़ी तेजी के साथ मुड़ा और फर आंधी क तरह उस शयनक से बाहर िनकल गया।
•••
म बेचैन थी।
म समझ नह पा रही थी क ितलक राजको टया अब या िनणय लेगा?
वो कस तरह मुझसे शादी करे गा?
पर तु ितलक राजको टया ने मुझसे शादी करने का जो तरीका सोचा, वह सचमुच अचि भत कर देने वाला था।
दोपहर का समय था। म और ितलक राजको टया डाय नंग टेबल पर एक बार फर िमले। मने अपने और ितलक
राजको टया दोन के िलए भोजन परोस िलया था, पर तु खाने म दोन म-से कसी क भी दलच पी न थी।
“ या शादी करने का कोई तरीका सोचा?” मने ितलक राजको टया से डरते—डरते वो सवाल कया।
मुझे भय था- कह ितलक राजको टया यह न कह दे क उसे कोई तरीका नह सूझा है।
“हां।” ितलक राजको टया के चेहरे पर स ती के भाव उभरे —”एक तरीका सोचा है।”
“ या?”
ितलक राजको टया यानपूवक मेरे चेहरे क तरफ देखने लगा।
उसके हाव—भाव से लग रहा था, उसने कोई ब त कठोर फै सला कया है।
“पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो।”
“पूछो।”
“सवाल का जवाब खूब सोच—समझकर देना िशनाया! य क उस एक सवाल के जवाब पर हमारे भिव य का सारा
दारोमदार टका है।”
“म सोच—समझकर ही जवाब दूंगी।”
मेरा दल धड़क—धड़क जा रहा था।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी।
“ या तुम मुझसे शादी करने के िलए कु छ भी करने को तैयार हो?”
“ या कु छ भी?”
“मसलन- कोई बुरे से बुरा काम। कोई ऐसा काम, िजसे करने के िलए तु हारा दल भी गंवारा न करे ।”
“हां- म कु छ भी कर सकती ।ं ” मने पूरी दृढ़ता के साथ जवाब दया।
“एक बार फर सोच लो।”
“मने सोच िलया।”
“ठीक है।” ितलक राजको टया कोहिनय के बल टेबल पर मेरी तरफ झुक गया तथा ब त स पसफु ल आवाज म
फु सफु साया—”तो फर हम दोन क शादी होने का बस एक ही तरीका है िशनाया- एक आिखरी तरीका!”
“ या?”
“हम बृ दा को अपने रा ते से हटा द।”
“ या कह रहे हो?” मेरे मुंह से ती िससकारी छू ट पड़ी—”यािन ह या- बृ दा क ह या!”
“धीरे बोलो!” ितलक राजको टया घबरा उठा—”धीरे ।”
मने सकपकाकर इधर—उधर देखा।
शु था!
वहां कोई न था।
कसी ने बौखलाहट म मेरी जबान से िनकले वो श द सुन नह िलये थे।
पर तु ‘ह या’ के नाममा से ही मेरे माथे पर पसीने क न ही—न ही बूंद चुहचुहा आय , िज ह मने माल से साफ
कया।
“ल... ले कन कसी क ह या करना इतना आसान नह होता ितलक साहब!” म इस बार ब त धीम से फु सफु साई।
“म भी जानता ।ं ” ितलक राजको टया बोला—” क कसी क ह या करना आसान नह होता है। ले कन अगर हमने
शादी करनी है, तो हम दोन ने िमलकर बृ दा को अपने रा ते से हटाना ही होगा। इसके अलावा हमने बृ दा क
ह या भी कु छ इस ढंग से करनी होगी, जो कसी को कान —कान भी इस बात क भनक न लगे क बृ दा क ह या क
गयी है। सब उसे साधारण मौत ही समझ।”
“मगर ह या का वो तरीका या होगा, जो सबको वह साधारण मौत दखाई दे?”
“अब हमने यही सोचना है। फलहाल तुम भी ह या क कोई फु ल ूफ ला नंग सोचो और म भी सोचता ।ं शाम को
हम दोन फर इस बारे म बात करगे। मंजूर?”
“मंजूर।” मने कहा।
उस दन हम दोन म-से कसी ने भी दोपहर का भोजन नह कया।
ितलक राजको टया िसफ एक िगलास पानी पीकर डाय नंग हॉल से चला गया।
•••
मेरे हाथ—पैर म कं पकं पी छू ट रही थी।
ह या!
वह एक श द ही मेरे होश उड़ा देने के िलए पया था।
या बृ दा को मार डालना उिचत था?
म ितलक राजको टया के शयनक म जा घुसी और वहां एक के बाद एक ि ह क के कई पैग बनाकर पी गयी। ले कन
चार पैग पीने के बावजूद मुझे जरा—सा भी नशा नह आ।
मेरा दमाग िभ ोट होने लगा।
म जासूसी उप यास पढ़ने क जबरद त शौक न रही थी। इसिलए मेरे दमाग म ऐसी एक फु ल ूफ ला नंग थ ,
िजसके बलबूते पर बृ दा क ह या क जा सकती थी और कसी को पता भी नह लगना था क उसे मार डाला गया
है।
शाम के समय हम दोन फर एक जगह इक े ए।
थान वह था- डाय नंग हॉल।
“ या ह या क कोई योजना सूझी?” मने डाय नंग हॉल म दािखल होते ही ितलक राजको टया से सबसे पहला
वही कया।
“अभी तो कोई योजना नह सूझी है।” ितलक राजको टया बोला—”अलब ा दोपहर से ही म इसी एक दशा म
अपने दमागी घोड़े दौड़ा रहा ।ं या तु ह कोई योजना सूझी?”
“हां—मेरे दमाग म एक योजना है।” मने िन वकार ढंग से कहा—”और म समझती ,ं वह इस काम के िलए सबसे
बेहतर योजना है।”
“िसफ सबसे बेहतर।”
“नह - सबसे फु ल ूफ भी। मेरा मानना है, योजना आपको भी पसंद आएगी ितलक साहब!”
“ या योजना है?”
“यह तो आप भी जानते ह- बृ दा न िसफ बीमार है, बि क ब त बीमार है।” मने अपनी ‘योजना’ के प े खोलने
शु कये—”अगर ऐसी हालत म उसक मौत हो जाती है, तो कोई भी नह च के गा। यहां तक क डॉ टर अ यर भी
नह । शत िसफ एक है।”
“ या?”
“उसक मौत पूरी तरह वाभािवक दखाई पड़नी चािहए—उसके शरीर पर कसी ज म या गोली का िनशान न
हो।”
“िब कु ल ठीक कहा।” ितलक राजको टया क आंख चमक उठ —”अगर बृ दा क ह या इस तरह होती है, तो कसी
को भी उसक मौत पर शक नह होगा। मगर या तु हारी योजना ऐसी ही है- जो उसक मौत इसी तरह हो?”
“एकदम ऐसी ही योजना है। म आपको योजना बताती ।ं ”
फर मने ह या क योजना ितलक राजको टया को सुनानी शु क —म काफ धीमी आवाज म बोल रही थी।
जैसे—जैसे मने योजना सुनायी, ठीक उसी अनुपात म ितलक राजको टया के ने आ य से फै लते चले गए।
योजना वाकई शानदार थी।
ितलक राजको टया ने फौरन ही वह योजना पास कर दी।
•••
अगले दन से ही योजना पर काम शु हो गया।
ितलक राजको टया ‘डायिनल’ टेबलेट क एक पूरी ि प खरीदकर ले आया था।
“यह लो—‘डायिनल’ टेबलेट तो म ले आया ।ं ” ितलक राजको टया बोला—”अब इनका तुम या करोगी?”
“यह तो आप जानते ही हो ितलक साहब!” म फु सफु साकर बोली—” क यह ‘डायिनल’ टेबलेट उन ि य को
खाने के िलए दी जाती है, जो शुगर के पेशे ट होते ह। िजनके शरीर म शुगर क मा ा बढ़ जाती है।”
“िब कु ल ठीक।” ितलक राजको टया बोला—”यह बात म काफ अ छी तरह जानता ।ँ ”
“दरअसल यह ‘डायिनल’टेबलेट शुगर को घटाने का काम करती है।” म उप यास म पढ़ी ‘योजना’ िव तारपूवक
बताती चली गयी—”इस ‘डायिनल’ से शुगर क ोल होती है। बात ये है- इं सान के शरीर को एक िनि त मा ा म
शुगर क ज रत होती है। अगर शुगर बढ़ जाती है, तब भी वो खतरनाक है और अगर शुगर इं सान के शरीर म कम
हो जाए- तो वह और भी यादा हािनकारक है। बढ़ने से भी यादा खतरनाक इं सान के शरीर म शुगर का कम हो
जाना है, य क शुगर कम होने क ि थित म इं सान तुरंत मर जाता है। अब एक दूसरी प रि थित पर भी गौर
करो।”
“ कस प रि थित पर?”
ितलक राजको टया क आवाज स पसफु ल होती जा रही थी।
“बृ दा शुगर क पेशे ट है या नह ?”
“िब कु ल भी नह है।” ितलक राजको टया ने जवाब देने म एक सैके ड क भी देर नह लगायी।
“करै ट!” म फु ि लत मु ा म बोली—”बृ दा शुगर क पेशे ट नह है। यािन एक ठीक—ठाक इं सान के शरीर को
िजतनी शुगर क आव यकता होती है, ठीक उतनी ही शुगर बृ दा के शरीर म है। न कम। न यादा। अब जरा सोिचये
ितलक साहब- अगर हम बृ दा को ‘डायिनल’ टेबलेट िखलाना शु कर द, तो या होगा?”
ितलक राजको टया चुप।
“मने आपसे एक िस पल—सा सवाल कया है।” म एक—एक श द चबाते ए बोली—”अगर हम बृ दा को
‘डायिनल’ टेबलेट िखलाना शु कर द, तो या होगा?”
“उसके िज म क शुगर कम होने लगेगी।” ितलक राजको टया बोला।
“िब कु ल ठीक- और उसक शुगर कम होने से या होगा?”
एकाएक ितलक राजको टया के चेहरे पर जबरद त आतंक के भाव उभर आये।
उसका शरीर जोर से कांपा।
“त... तो वह मर जाएगी।” ितलक राजको टया हकलाये वर म बोला- “ य क इं सान के शरीर म शुगर का यादा
होना इतनी बुरी बात नह है, िजतना शुगर का एकदम से कम हो जाना- शुगर अगर एकदम से कम हो जाये, तो
इं सान का फ़ौरन हाटफ़े ल हो जायेगा।“
“और यही हम चाहते ह।” मने चहककर कहा—”बृ दा क मौत! बृ दा क एक वाभािवत मौत! जो कोई भी उसक
ह या पर शक न कर सके । सबसे बड़ी बात ये है- हमारे इस तरह ह या करने से बृ दा के शरीर पर न कोई घाव
बनेगा, न कोई गोली लगेगी। सब यही समझगे क बृ दा अपनी बीमारी के कारण मरी है, उसका सडनली हाटफे ल
हो गया है।”
“ रअली ए सीले ट!” ितलक राजको टया मु क ठ से मेरी शंसा कये िबना न रह सका—”मारवलस! तु हारी
योजना क िजतनी भी शंसा क जाए- वह कम होगी िशनाया!”
मेरे ह ठ पर ब त ह क —सी मु कान आकर चली गयी।
“टेबलेट िखलाने का यह िसलिसला अब कब से शु करोगी?” ितलक राजको टया ने उ सुकतापूवक पूछा।
“आज रात से ही। आज रात म बृ दा को उसक दवाई के साथ िमलाकर पहली ‘डायिनल’ टेबलेट दूंगी, फर देखते
ह- उस टेबलेट का बृ दा के ऊपर या असर होता है?”
“यािन आज रात से हमारा ‘ह या का खेल’शु हो जाएगा।”
“िब कु ल।”

ह या के खेल क शु आत
मौसम आज फर कु छ खराब था और ह क बूँदा—बांदी हो रही थी।
ले कन पथ हाउस के अंदर रह यमयी स ाटा छाया आ था।
गहरी खामोशी।
मेरे दल क भी आज कु छ अजीब हालत थी।
आिखर!
म अपनी िज दगी क पहली ह या करने जा रही थी।
उस रात म ब त सहमी—सहमी सी बृ दा के शयनक म दािखल ई। बृ दा को नहाये ए भी महीन हो चुके थे।
उसका शरीर िसफ गीले कपड़े से प छकर साफ कया जाता था। उस रात मने सबसे पहले उसी कार बृ दा का
शरीर गीले कपड़े से प छकर साफ कया तथा फर काफ सारा पाउडर उसके िज म के अलग—अलग अंग पर
िछड़क दया। उसम से भीनी—भीनी सुगंध आने लगी।
चेहरे पर भी आज बृ दा के कु छ रौनक दखाई पड़ रही थी, वह बार—बार बड़ी यार भरी नजर से मुझे देखती।
“ या बात है!” म मु कु राई—”इस तरह या देख रही हो?”
“कु छ नह ।”
“कु छ तो!”
“ऐसा लगता है िशनाया!” बृ दा गहरी सांस लेकर बोली—”पैथ हाउस म तु हारे कदम मेरे िलए काफ शुभ सािबत
ए ह।”
म च क उठी।
वो बड़ी अजीब बात थी- जो अजब हालात म कही गयी थी।
“ य ?” मने हैरानी से पूछा।
“ य क जब से तुम यहां आयी हो डा लग, तभी से मुझे एक के बाद एक शुभ समाचार सुनने को िमल रहे ह।”
“कै से शुभ समाचार?” म बृ दा के े संग गाउन क डो रयां कसते ए बोली।
“जैसे ितलक साहब बीच म काफ शराब पीने लगे थे।” बृ दा बोली—”मगर आज ही गाड बता रहा था क िपछले
कई दन से उ ह ने शराब को छु आ तक नह है- वह मानो शराब को िब कु ल भूल गए ह।”
“यह तो है।” मेरे ह ठ पर ह क —सी मु कान िथरक उठी।
“कै से आ यह क र मा?”
“मालूम नह - कै से आ।” म पूरी तरह अंजान बनी।
“और सबसे बड़ी खुशखबरी तो मेरी बीमारी को लेकर है।” बृ दा बोली—”मेरी िजस बीमारी के सामने डॉ टर
अ यर भी पूरी तरह हिथयार डाल चुके थे और उसे होपलेस के स करार दे चुके थे, उसम िजस कार एकाएक सुधार
होना शु आ है- वह सचमुच आ यजनक है। तुम मानो या न मानो िशनाया, ले कन तुम सचमुच मेरे वा ते यहां
खुिशयां—ही—खुिशयां लेकर आयी हो। ढेर सारी खुिशयां।”
मेरा दल अंदर—ही—अंदर कांप उठा।
खुिशयां!
म उसके िलए खुिशयां लेकर आयी थी?
उफ् !
वो कहां जानती थी- म उसके िलए खुिशयां नह मौत लेकर आयी थी।
एक दुदा त मौत!
“ या सोच रही हो िशनाया?” उसने मुझे कोहनी से टहोका।
“कु छ नह ।” म हड़बड़ाई—”लाओ- म तु हारे बाल बना देती ।ं ”
फर म कं घे से उसके बाल संवारने लगी।
•••
वह खाने क एक काफ बड़ी ॉली थी- िजसे पिहय पर धके लती ई म थोड़ी देर बाद पुनः बृ दा के शयनक म
लेकर दािखल ई।
ॉली पर लेट, च मच और िडश वगैरह रखे ए थे।
“आज या बनाया है?” बृ दा ने पूछा।
वह उस समय बैड क पु त से पीठ लगाये बैठी थी और खूब तरोताजा नजर आ रही थी।
“तु हारे िलए मूंग क दाल क िखचड़ी और दही है।” म बोली—”जब क मने अपने और ितलक साहब के िलए शाही
पनीर बनाया था। वैसे तुम भी थोड़ा—सा शाही पनीर खाना चाहो, तो खा सकती हो।”
“ओह- शाही पनीर!” बृ दा चहक —”थोड़ा—सा तो ज र खाऊंगी। वैसे भी मुझे खूब याद है, तुम शाही पनीर
काफ अ छा बनाती हो।”
म हंसी।
“पुरानी सारी बात तु ह आज भी याद ह।”
“म कभी कु छ नह भूलती।”
तब तक खाने क ॉली को मने उसके बैड के िब कु ल बराबर म ले जाकर खड़ा कर दया था। उस ॉली के िनचले
िह से म एक छोटी—सी फो डंग टेबल रखी ई थी—िजसके पाये मुि कल से छः इं च लंबे थे और उ ह गोल कुं दे म
अटकाकर खोल दया जाता था। मने टेबल के पाये खोले और फर उस टेबल को अ छी तरह बृ दा क गोद म टका
दया। अब वह बड़ी स िलयत के साथ उस पर खाना खा सकती थी।
उसके बाद मने लेट और िडश उस टेबल पर सजाने शु कये।
“टी.वी. और शु कर दो।” बृ दा बोली—”आज टी.वी. देखे ए भी कई दन हो गए ह।”
मने आगे बढ़कर टी.वी. भी ऑन कर दया।
‘एम टी.वी.’ पर उस समय फ मी गान का एक काउ ट डाउन शो आ रहा था, मने टी.वी. वह लगाया।
टी.वी. पर तुर त ‘छइयां—छइयां’ गाने क मधुर पंि यां गूंजने लग ।
इस बीच बृ दा ने शाही पनीर क थोड़ी—सी स जी एक लेट म िनकाल ली थी और फर खाना भी शु कर दया।
“स जी कै सी बनी है?”
“सचमुच लाजवाब!” बृ दा ने ब त चमकती आंख से मेरी तरफ देखा—”तुम तो खाना बनाने म अब पहले से भी
यादा ए सपट हो गयी हो िशनाया!”
“थ यू फ़ॉर द कॉ लीमे ट!”
“अं ेजी म भी पहले से सुधार आ है।” वो बात कहकर बृ दा हंसी।
“सब पढे—
़ िलख ाहक के साथ सैर—सपाटा करने का नतीजा है। वरना तू तो जानती है, म या -ं अंगूठा छाप!”
“और म ही कौन—सा बे र टर , म भी तेरी तरह अंगूठा छाप ।ं ”
हम दोन हंस पड़े।
तभी जोर से िबजली कड़कड़ाई।
“मौसम शायद आज कु छ ठीक मालूम नह होता।” बृ दा ने संजीदगी के साथ कहा।
“हां।” म बोली—”बाहर ह क बूंदा—बांदी हो रही है।”
बृ दा खाना खाती रही।
उसने अब मूंग क दाल क िखचड़ी और दही भी अपनी लेट म िनकाल ली थी।
“म तुझसे एक बात क ं िशनाया?”
“ या?” म बृ दा के नजदीक ही बैठ गयी।
“तुझे अब उस ‘नाइट लब’ क िझलिमलाती दुिनया म कभी वापस नह लौटना चािहए। अगर तू िज दगी के इस
मोड़ पर आकर भी उस दुिनया म वापस गयी, तो फर शायद ही कभी उस गदंगी से बाहर िनकल सके । फर तो तेरा
हाल भी तेरी मां जैसा ही होगा।”
“न... नह ।” म कांप उठी, मेरे शरीर का एक—एक रोआं खड़ा हो गया—” लीज बृ दा- ऐसे श द भी अपनी जबान
से मत िनकालो।”
“म जानती ,ं तू अपनी मां क मौत को अभी भी नह भुला पायी है। इसीिलए कहती -ं तू भी ितलक राजको टया
जैसा कोई आदमी देखकर ज द—से—ज द शादी कर डाल।”
“म वही कोिशश तो कर रही ।ं ”
“ या मतलब?”
“मेरा मतलब है,” म ज दी से बात स भालकर बोली—”म वही कोिशश तो कर रही थी, जो के अरटेकर क नौकरी
करने यहां आ प च
ं ी। अब मुझे यह थोड़े ही मालूम था क यहां मेरी तुझसे मुलाकात हो जाएगी।”
“ओह- सचमुच तेरे साथ काफ बुरा आ।” बृ दा अफसोस के साथ बोली—”ले कन मु बई शहर म ितलक
राजको टया के अलावा और भी तो ढेर लड़के ह।”
“यह तो है।”
शी ही उसने खाना खा िलया।
मने सारे बतन समेटकर वापस ॉली पर रखे।
रात के उस समय दस बज रहे थे- जब मने बृ दा को सोने से पहले दो टेबलेट खाने के िलए द । पर तु उस रात बृ दा
को दी जाने वाली उन दो टेबलेट म-से एक ‘डायिनल’ थी।
डायिनल!
खतरे क घ टी!
•••
“ओह डा लग- तुम सचमुच खूबसूरत हो, बेहद खूबसूरत।”
ितलक राजको टया के नाक के नथुन से उस ण भभकारे छू ट रहे थे।
वह दीवाना बना आ था।
सहसा उसने मेरी कलाई कसकर अपने हाथ म पकड़ी और मुझे अपनी तरफ ख च िलया।
म सीधे उसक गोद म िगरी।
अगले पल उसने अपने जलते ए ह ठ मेरे नाजुक और सुख ह ठ पर रख दये।
मुझे ऐसा लगा- जैसे मेरे ह ठ से कोई दहकता अंगारा आ िचपका हो।
उस समय ितलक राजको टया और म दोन िब तर पर थे।
दोन को एक—दूसरे क ज रत थी।
“ या तुमने उसे ‘डायिनल’ दे दी है?” ितलक राजको टया बेहद दीवानावार आलम म अपने ह ठ मेरे होठ पर
रगड़ता आ बोला।
“हां- म उसे आज क खुराक दे चुक ।ं ”
“यािन एक डायिनल!”
“हां- एक डायिनल! अब िसफ उसका प रणाम देखना बाक है। म समझती ,ं थोड़ी—ब त देर म उसका प रणाम
भी सामने आ ही जाना चािहए।”
उसी ण ितलक राजको टया मुझे अपनी बाह म भ चे—भ चे िब तर पर कलाबाजी खा गया।
फर वो मेरी शॉट ज के बटन खोलने लगा।
शी ही मेरी शॉट ज उतरकर एक तरफ जा पड़ी।
नीचे म ेसरी पहने थी।
उसके बाद ितलक राजको टया क उं गिलयां सरसराती ई ेसरी के क क तरफ बढ़ ।
रात के उस समय दो बज रहे थे।
“ या तु ह ऐसा नह लग रहा डा लग!” ितलक राजको टया मेरा गाढ़ चु बन लेता आ बोला—” क टेबलेट का
रज ट सामने आने म ज रत से कु छ यादा देर हो रही है?”
“ चंता मत करो।” मेरे िज म म अजीब—सी सनसनाहट ग दश कर रही थी—” रज ट ज र िनकलेगा। आिखर
टेबलेट को अपना असर दखाने म भी तो व चािहए।”
इस बीच वो ेसरी का क खोल चुका था।
ेसरी का क खुलते ही उसके ेप कं ध से फसलकर बाह पर आ गये।
आन द क अिधकता से मेरी पलक बंद होती चली गय ।
मेरी उं गिलयां भी अब ितलक राजको टया क पीठ पर रगने लगी थ ।
हम दोन अपनी मंिजल पर प च
ं ते, उससे पहले ही घटना घटी।
“नह !”
एकाएक ब त दय—िवदारक चीख क आवाज पूरे पथहाउस को थराती चली गयी।
हम दोन उछल पड़े।
चीख क आवाज ब त वीभ स थी।
“य... यह तो बृ दा के चीखने क आवाज है।” मेरे िज म का एक—एक रोआं खड़ा हो गया।
“हां- उसी क आवाज है।”
ितलक राजको टया के शरीर म भी झुरझुरी दौड़ी।
हमने आनन—फानन कपड़े पहने और एकदम उसके बैड म क तरफ झपट पड़े।
•••
हम दोन दनदनाते ए बृ दा के बैड म म दािखल ए थे।
कहने क आव यकता नह - उन चंद सैके ड म ही हमारा बुरा हाल हो चुका था।
सांस ध कनी क तरह चलने लगी थी।
और!
बैड म म दािखल होते ही हमारे होश और भी यादा उड़ गये।
बृ दा िब कु ल िनढाल—सी अव था म अपने िब तर पर पड़ी थी। उसके हाथ—पैर फै ले ए थे और गदन लुढ़क ई
थी।
“इसे या आ?” ितलक राजको टया आतं कत मु ा म बोला—”कह यह मर तो नह गयी?”
मर गयी!
मेरे भी होश गुम।
म भी दंग!
बृ दा िजस अंदाज म िब तर पर पड़ी थी। वह सचमुच दल म हौल पैदा कर देने वाला दृ य था।
“बृ दा! बृ दा!!” मने आगे बढ़कर बृ दा के दोन कं धे पकड़े और उसे बुरी तरह झंझोड़ डाला।
बृ दा पर कोई ित या न ई।
उसका पूरा िज म िसफ िहलकर रह गया।
“बृ दा!”
मने बृ दा का शरीर और बुरी तरह झंझोड़ा।
उसका शरीर पुनः िनज व देह क तरह िहला।
“माई गॉड!” ितलक राजको टया िवचिलत हो उठा—”यह तो एक ही टेबलेट से मर गयी दखती है।”
उस बात ने मेरे भी हाथ—पांव फु लाये।
ह या करना हम दोन का उ े य था। पर तु इतनी ज दी उसे मार डालने क बात हमने सोची भी न थी।
पहले हमने बृ दा क एक—दो बार तबीयत खराब करनी थी, फर कह ‘डायिनल’ क हाईडोज देकर उसे मार
डालना था।
“अगर यह मर गयी- तो ब त बुरा होगा।” म बोली—” फर तो यूं समझो, हमारी सारी योजना फे ल हो जाएगी।”
•••
एकाएक ितलक राजको टया को कु छ सूझा।
उसने आगे बढ़कर बृ दा क हाटबीट चैक क ।
त काल उसके चेहरे पर उ मीद जागी।
“ या आ?”
“हाटबीट चल रही है- उसम कं प है।”
“थक ग़ॉड!”
मने राहत क सांस ली।
मने बृ दा क न ज टटोली।
न ज भी चालू थी।
“यह िज दा है- अभी िज दा है।”
“लगता है- टेबलेट के असर से िसफ बेहोश ही ई है।”
“दरअसल एक ‘डायिनल’म इतनी ताकत होती है,” म बोली—” क अगर वह कसी ऐसे त द त आदमी को िखला
दी जाए, जो ‘शुगर’का पेशे ट न हो- तो वह त द त आदमी भी फौरन ही च र खाकर नीचे िगर पड़ेगा। बृ दा तो
फर भी ब त बीमार है, इसीिलए यह बेहोश हो गयी।”
ितलक राजको टया ने फौरन ही बृ दा के चेहरे पर काफ सारे पानी के छ टे दये।
म उसके पैर के पास प च
ं ी।
फर उसके पैर के तलुए काफ जोर—जोर से रगड़ने लगी।
हथेली रगड़ी।
“थोड़ी जोर—जोर से रगड़ो।” ितलक राजको टया बोला।
मने उसक हथेली और पैर के तलुए कु छ और जोर—जोर से रगड़े।
ितलक राजको टया भी तलुए रगड़ने म मेरी मदद करने लगा।
हमारी थोड़ी देर क कोिशश के बाद ही बृ दा होश म आ गयी।
उसने कं पकं पाते ए धीरे —धीरे आंख खोली।
उसका चेहरा सुता आ था।
िब कु ल सफे द झ क् कागज क तरह।
वह बड़ी हैरान िनगाह से कभी मुझे, तो कभी ितलक राजको टया को देखने लगी।
“क... या हो गया था मुझे?” बृ दा ने कं पकं पाये वर म पूछा।
“कु छ नह ।” ितलक राजको टया बोला—”कु छ नह आ था तु ह।”
“ले कन...।”
“तुम सो जाओ। फलहाल तु हारी तबीयत ठीक नह है।”
बृ दा ने बड़ी सशं कत िनगाह से मेरी तरफ देखा।
“िशनाया- तुम बताओ, या आ था मुझे?”
मने सूचक ने से ितलक राजको टया क तरफ देखा।
मानो कु छ भी बताने से पहले उसक परिमशन लेना चाहती होऊं।
ितलक राजको टया कु छ न बोला।
वह िसफ बैड म से चला गया।
म बृ दा के नजदीक जाकर बैठी।
स पस के मारे तब तक बृ दा का बुरा हाल हो चुका था।
उसने पीठ के बल बैठने का यास कया।
“नह ।” मने उसका हाथ पकड़ा—”तुम लेटी रहो- तु हारी तबीयत ठीक नह है।”
अंितम श द मने पुनः काफ जोर देकर कहे।
एक ही झटके म वो बेहद कमजोर दखाई पड़ रही थी।
मानो कसी ने उसके िज म क सारी शि को िनचोड़ िलया हो।
“दरअसल तु हारी ब त जोर से चीख िनकली थी।” मने उसे बताया—”तु हारी चीख सुनकर हम दोन यहां दौड़ते
ए आये, तो तु ह बेहोश पड़े देखा।”
“बेहोश!”
“हां। या हो गया था तु ह?”
बृ दा के चेहरे पर असमंजसपूण भाव दखाई दये।
“मुझे खुद कु छ नह मालूम।” बृ दा बोली।
“ फर भी कु छ तो महसूस आ होगा?”
“बस ऐसा लगा था, मानो मेरे पेट म गोला—सा छू टा हो। उसके बाद मेरे साथ या आ- मुझे नह पता।”
बृ दा अब साफ—साफ फ मंद दखाई पड़ने लगी।
•••
म, डॉ टर अ यर और ितलक राजको टया, तीन सुबह के व ाइं ग हॉल म बैठे थे और धीरे —धीरे चाय चु क रहे
थे।
तीन चंतत थे।
डॉ टर अ यर को ितलक राजको टया ने ही फोन करके पथ हाउस म बुलाया था।
“ऐ ा- मामला मेरे कु छ समझ नह आ रहा है।” डॉ टर अ यर बोला।
“ य ?”
“पहले तो बृ दा के साथ इस कार क कभी कोई घटना नह घटी थी। यह बेहोश होने का पहला मामला है। फर
सबसे उलझनभरी बात ये है- बेहोश होने क वजह भी मालूम नह चल पा रही है। य क इस मतबा िजस तरह क
लड रपोट आयी थी- उस िहसाब से तो बृ दा क तबीयत म सुधार होना चािहए था। जब क यहां तो मामला और
िबगड़ गया है- और उलझ गया है।”
“यह तो है।” ितलक राजको टया बोला—”इसी बात ने तो हम भी िहलाकर रख दया है डॉ टर!”
तीन धीरे —धीरे चाय चुसकते रहे।
“रात यह घटना अ दाजन कस व घटी?”
“कोई दो बज रहे थे।”
“और आप कह रहे ह,” डॉ टर अ यर गरमजोशी के साथ बोला—” क पहले आपने चीखने क आवाज सुनी थी।”
“िब कु ल।” इस मतबा वह श द मेरी जुबान से िनकले—”चीखने क आवाज सुनकर ही तो हमारी आंख खुली थी-
वरना हम तो उस व गहरी न द म थे। म अपने शयनक से बाहर िनकली—ितलक साहब अपने शयनक से
बाहर िनकले। उसके बाद दौड़ते ए बृ दा के पास प च
ं े।”
“ फर?”
“ फर या- जब हम वहां प च
ं े, तो वह बेहोश पड़ी ई थ ।”
“बि क शु म तो हम यह सोचकर डर ही गये थे डॉ टर!” ितलक राजको टया बोला—” क कह बृ दा मर न गयी
हो।”
“ फर आपको यह कै से पता चला क वो िसफ बेहोश है?”
“मने हाट बीट चैक क ।”
“हाट बीट!”
“यस।”
डॉ टर अ यर चाय का घूंट भरता—भरता ठठक गया।
वह अब ब त गौर से हम दोन क श ल देखने लगा।
जैसे कोई ब त खास बात नोट करने क कोिशश कर रहा हो।
“हाट बीट चैक करने क बात आप दोन म से सबसे पहले कसे सूझी?”
“मुझे सूझी।” ितलक राजको टया ने बताया।
“ ।ं ”
डॉ टर अ यर ने चाय का घूंट भरा तथा फर कप खाली करके टेिबल पर रखा।
उसके बाद वह कु स छोड़कर खड़ा हो गया था।
फर वो बेचैनीपूवक इधर—से—उधर टहलने लगा।
वह िजस तरह सवाल—जवाब कर रहा था, उसके कारण मेरे मन म भय पैदा आ। म तुर त भांप गयी, श ल—
सूरत से ब त स न—सा दखाई पड़ने वाला वह ि कभी भी खतरनाक सािबत हो सकता है।
“ऐ ा- कु छ बात मुझे बड़ी उलझन म डाल रही ह।” डॉ टर अ यर बोला।
“कै सी बात?”
“जैसे मने ‘मेलीगनट लड िडस े िसया’ के स का जो रकॉड आज तक टडी कया है, उसम कसी पेशे ट के साथ
आज से पहले इस तरह का कोई वाकया पेश नह आया- जैसा वाकया रात बृ दा के साथ पेश आया है। जहां तक मेरी
बुि कहती है, इसके पीछे बस दो ही कारण हो सकते ह।”
“ या?”
“या तो यह िब कु ल अलग तरह का मामला है ितलक साहब या फर यह ‘मेलीगनट लड िडस े िसया’क कोई
हायर कै टेिगरी है। बहरहाल वजह चाहे जो भी है- म फलहाल बृ दा से िमलना चाहता ।ं ”
“चलो।”
तब तक म और ितलक राजको टया भी अपने—अपने चाय के कप खाली करके टेिबल पर रख चुके थे।
•••
हम तीन बृ दा के शयनक म दािखल ए।
डॉ टर अ यर फलहाल ब त ग भीर नजर आ रहा था।
और!
उसक यही ग भीरता मुझे बार—बार डरा रही थी।
बृ दा के पास प च
ं ते ही डॉ टर अ यर ने सबसे पहले उसका लड ेशर चक कया तथा फर पिसल टॉच से उसक
आंख को देखा।
“िशनाया।” वह मेरी तरफ घूमा—”तुम इ ह दवाई तो िब कु ल ठीक व पर िखला रही हो?”
“हां।”
“कोई खुराक बीच म छू टी तो नह ?”
“नह ।”
डॉ टर अ यर अब दवाई वाली ाली के नजदीक जाकर खड़ा हो गया तथा फर ब त गौर से ाली म रखी दवाईय
पर दृि दौड़ाने लगा।
मने जोर से गले का थूक सटका।
सचमुच वह ब त हराट ि था।
मने मन—ही—मन परमा मा का शु या अदा कया क रात ही मने वह टेबलेट भी ॉली म से िनकालकर अपने
पास रख ली थी। वरना वो हराट डॉ टर उसी ण असिलयत क तह तक प च
ं जाता।
वो तभी भांप जाता, रात एक टेबलेट िखलाने म कह —न—कह कु छ गड़बड़ ई है।
“बृ दा!” डॉ टर अ यर, बृ दा क तरफ घूमा—”रात आपने कस टाइम दवाई खाई थी?”
“रात के उस समय यही कोई दस बज रहे थे।” मने जवाब दया।
“म तुमसे नह बृ दा से सवाल कर रहा ।ं ” डॉ टर अ यर एकाएक मेरी तरफ देखता आ गुरा उठा—”जो सवाल
तुमसे कया जाए, िसफ उसका जवाब तुम देना।”
मने अपने शु क अधर पर जबान फराई।
डॉ टर अ यर का वह एक िब कु ल नया प म देख रही थी।
“िशनाया ठीक ही कह रही है डॉ टर।” बृ दा धीमे वर म बोली—”कोई दस बजे का ही समय रहा होगा, जब रात
मने दवाई खाई थी।”
“दस बजे!”
“हां। यह बात म दृढ़तापूवक इसिलए भी कह सकती ,ं ” बृ दा बोली—” य क ‘एम टी.वी.’ पर तभी फ मी गान
का काउ ट डाउन शो ख म आ था, जो क दस बजे ही ख म होता है।”
“दवाई म आपने या— या िलया?”
“वही जो टीन के मुतािबक लेती ।ं ”
“ या?”
“दो टेबलेट और एक च मच सीरप।”
“उसके बाद?”
“उसके बाद कु छ नह आ। दवाई खाने के बाद म बस लेट गयी थी।” बृ दा बोली—”और सोने क कोिशश करने
लगी थी। थोड़ी ब त देर बाद मुझे न द भी आ गयी।”
“दवाई खाने के बाद शरीर म कसी तरह क बेचैनी ई हो, हरकत ई हो?”
“नह - कु छ नह आ।”
“यािन सब कु छ सामा य था।”
“हां। बस िजस व मेरे मुंह से चीख िनकली, उस व मुझे अपने पेट म गोला—सा छू टता अनुभव आ था। फर
मुझे नह मालूम- उसके बाद मेरे साथ या आ।”
“और अब कै सा महसूस कर रही हो?”
“शरीर म कु छ कमजोरी अनुभव हो रही है।” बृ दा बोली—”बाक सब कु छ सामा य है।”
डॉ टर अ यर के माथे पर ढेर सारी लक र उभर आय ।
वो अभी भी काफ बेचैन था।
“ितलक साहब!” डॉ टर अ यर, ितलक राजको टया क तरफ घूमा—”म कल ठीक इसी व आप लोग से फर
आकर िमलता ।ं ”
“ या यह मालूम आ क रात बृ दा के साथ इस तरह क घटना य घटी थी?”
“म दरअसल यही जानने क कोिशश कर रहा ।ं मुझे उ मीद है- म कल तक कसी—न— कसी नतीजे पर ज र
प च
ं जाऊंगा।”
फर डॉ टर अ यर पथ हाउस से चला गया।
•••
सारा दन तता से भरा रहा।
शाम के समय ितलक राजको टया खुद मेरे म म आया। अब हम दोन के बीच म बॉस और सव ट जैसा र ता
िब कु ल ख म हो चुका था और मौह बत भरे एक ऐसे आलीशान र ते क आधारिशला रखी गयी, जो िसफ औरत
तथा मद के बीच ही कायम हो सकती है।
“ितलक साहब- मुझे इस डॉ टर से खतरा महसूस हो रहा है।” मने वह श द ितलक राजको टया के कं धे पर िसर
रखकर अनुरागपूण ढंग से कहे।
हालां क म डरी ई तब भी थी।
बार—बार उस म ासी डॉ टर का चेहरा मेरी नजर के सामने घूम जाता।
“कै सा खतरा?”
“मुझे लग रहा है, इस डॉ टर के कारण कह —न—कह कु छ गड़बड़ ज र होगी। इसक आज क गितिविधय से
सािबत हो गया है- यह उतना सीधा ह गज नह है, िजतना म इसे आज तक समझती थी।”
ितलक राजको टया ने यानपूवक मेरी तरफ देखा।
“ले कन यह कै सी गड़बड़ कर सकता है?”
“जैसे अगर इसे यही मालूम हो गया,” म कं पकं पाये वर म बोली—” क हमने बृ दा को ‘डायिनल’ िखलाई थी- तो
उसी से हमारी ‘ह या’ क पूरी योजना का बेड़ा गक हो जाएगा। फर बोलकर भी गया है, म कल तक कसी—न—
कसी नतीजे पर ज र प च ं जाऊंगा।”
“यह बात कहना ब त आसान है िशनाया।” ितलक राजको टया बोला—”पर तु इस काम को कर दखाना उतना ही
क ठन है। सोचो- वह कै से इस बात का पता लगायेगा क रात हमने बृ दा को ‘डायिनल’ दी थी या फर हमारा
उ े य उसक ह या करना है।”
“शायद वो कसी तरह पता लगा ले।”
“ले कन कै से?”
मुझे एकाएक कोई जवाब न सूझा।
ले कन मेरा दल बार—बार कसी अंजानी आशंका से धड़क-धड़क जा रहा था।
डॉ टर का डर मेरे मन से िनकलने के िलए तैयार न था।
“तुम उस डॉ टर के बारे म सोचना भी छोड़ दो डा लग।” ितलक राजको टया ने मेरे बाल म ेह से उं गिलयां
फरा —”उस म ासी डॉ टर को म तुमसे काफ पहले से जानता ।ं मुझे मालूम है, कम—से—कम उसके कारण
कु छ गड़बड़ नह होगी।”
म शांत रही।
“ फलहाल तुम बस यह सोचो!” ितलक राजको टया बोला—” क तुमने ह या क दशा म अब अगला कदम या
उठाना है। कम—से—कम इस पूरे करण म एक बात तो सािबत हो चुक है।”
“ या?”
“तुमने ह या करने के िलए ‘डायिनल’ वाला जो फामूला सोचा है- वह िब कु ल सही है। रात एक ‘डायिनल’ खाते ही
बृ दा का जो ह आ, वह च का देने वाला है।”
“आज रात म बृ दा को दो डायिनल दूंगी।”
“दो डायिनल!”
“हां।”
ितलक राजको टया के चेहरे पर परे शानी के भाव उभरे ।
“दो डायिनल कह भारी न पड़ जाएं, एक ही टेबलेट ने अ छा—खासा तहलका मचा दया था।”
“कु छ नह होगा। उन दो टेबले स क पावर इतनी नह होती, जो कोई आदमी मौत के गत म समा जाए।”
“यह सोचना तु हारा काम है।” ितलक राजको टया बोला—”म तो अब बस उस दन का बेस ी से इं तजार कर रहा
,ं िजस दन बृ दा क मौत होगी और तुम मेरी वाइफ बनोगी। सचमुच वह मेरे िलए ब त खुशी से भरा दन
होगा।”
“वह दन अब यादा दूर नह है ितलक साहब!” म, ितलक राजको टया से थोड़ा और कसकर िलपट गयी—” यादा
दूर नह है। बस थोड़े दन क ही और बात है। फर हमारा हर सपना पूरा होगा- हर सपना!”
तभी एकाएक कमरे म जोर—जोर से तािलयां बजने क आवाज गूंज उठी।
“वैरी गुड!” एक िब कु ल नया वर कमरे म गूंजा—”वैरी गुड! काफ अ छी योजना के प े िबछाये जा रहे ह। यह
श द शायद तु हारे ही थे क िब ली भी दो घर छोड़कर िशकार करती है- मगर दौलत क भूख ने शायद तु हारे
तमाम आदश पर पानी फे र डाला है।”
•••
मेरे दल— दमाग पर भीषण व पात आ।
और!
ितलक राजको टया तो िब कु ल इस तरह च का, मानो उस आवाज ने उसका हाटफे ल ही कर डाला हो।
हम दोन त काल एक—दूसरे से अलग ए।
आवाज क दशा म देखा।
सामने बृ दा खड़ी थी।
बृ दा!
जो अपने स पूण रौ प म नजर आ रही थी।
वह बीमार है- ऐसा उस व तो उसके चेहरे से िब कु ल भी कट नह हो रहा था।
“तुम!” बृ दा को देखते ही ितलक राजको टया के चेहरे क रं गत िब कु ल सफे द झ क् पड़ गयी—”तुम बैड छोड़कर
य खड़ी हो गय , डॉ टर ने तो तु ह पूरी तरह आराम करने क िहदायत दी ई है।”
“आराम करने क िहदायत!” फर वो धीरे —धीरे कदम रखती ई अंदर शयनक म दािखल ई—”और शायद
मेरी इसी िहदायत से तु हे खुलकर रं गरिलयां मनाने का मौका िमल गया है। गुलछर उड़ाने का मौका िमल गया है।
पित होने का अ छा कत िनभा रहे हो ितलक साहब!” बृ दा गुरायी—”प ी बीमार पड़ गयी—तो एक नई सहेली
बना ली! इतना ही नह - प ी को रा ते से हटाने क योजना भी बना बैठे। वैरी गुड! अगर तु हारे जैसे
अहसानफरामोश पित इस सारी दुिनया म हो जाएं, तो औरत शायद शादी जैसे पिव र ते पर यक न करना ही
बंद कर दगी।”
बृ दा ने एक बार फर उसका मखौल उड़ाते ए जोर—जोर से ताली बजायी।
ितलक राजको टया क गदन झुक गयी।
जब क!
मेरे शरीर म काटो तो खून नह ।
बृ दा इस कार भी हम दोन को रं गे हाथ पकड़ लेगी, मने सोचा भी न था।
“और तुम!” बृ दा मेरी तरफ घूमी—”िशनाया शमा! सकड़ दल क धड़कन! खूबसूरती का अज़ीमुशान नमूना!
तुमने भी सहेली होने का बड़ा अ छा फज िनभाया है। ‘डायिनल’ िखला—िखलाकर मार डालना चाहती थ मुझे!
सचमुच ह या करने का बड़ा नायाब तरीका सोचा तुमने।”
“सॉरी!” म नजर झुकाकर धीम आवाज म बोली—”सचमुच मुझसे भूल ई है बृ दा!”
म बुरी तरह डर गयी थी।
मुझे लग रहा था—कही बृ दा गु से म मेरा कॉलगल वाला राज न उगल दे।
“भूल नह ।” बृ दा दहाड़ी—”यह फतरत है तु हारी ब जात लड़क - फतरत! शु से ही दूसरे के हक पर डाका
डालने का शौक रहा है तु ह। तुम र डी हो- िसफ र डी!”
“बृ दा!” म िच लाई।
“चीखो मत।” बृ दा मुझसे कह यादा बुलंद आवाज म चंघाड़ी-“तु हारी करतूत का िच ा तु हारे चीखने से दब
नह जाएगा। तु हारी हैिसयत ‘नाइट लब’ क एक कॉलगल से यादा नह है। और एक बात तुम दोन अ छी तरह
कान खोलकर सुन लो।”
माई गॉड।
उसने गु से म मेरी असिलयत उगल ही दी थी।
ले कन इस तरह उं गली थी, जो ितलक राजको टया कु छ भी न समझ पाया था।
बृ दा उस समय सा ात् रणच डी नजर आ रही थी।
बेहर खूंखार!
“अगर तुम दोन यह सोचते हो!” बृ दा ने खतरनाक लहजे म कहा—” क तुम मुझे अपने रा ते से हटाकर खुद शादी
कर लोगे, तो यह तु हारी ब त बड़ी गलतफहमी है। तु हारा यह सपना कभी पूरा होने वाला नह है। म अभी पुिलस
को फोन करके तु हारी योजना के बारे म बताती ।ं ”
“पुिलस!”
हम दोन के हाथ से तोते उड़ गये।
“हां- पुिलस!”
“नह - नह ।” ितलक राजको टया तुर त बृ दा क तरफ बढ़ा—”तुम पुिलस को फोन नह करोगी।”
“पीछे हटो ितलक!” बृ दा ने ितलक राजको टया को जोर से पीछे ध ा दया—”तुम अपनी कोई भी बात मुझसे
मनवाने का अिधकार खो चुके हो। अब पुिलस को फोन करने से मुझे दुिनया क कोई भी ताकत नह रोक सकती।”
हालात ने सचमुच एकाएक ब त खौफनाक प धारण कर िलया था।
म पलक झपकते ही भांप गयी, बृ दा अब नह के गी। थोड़ी ही देर पहले जो दृ य बृ दा ने देखा था, उसे देखकर
कोई भी प ी भड़क सकती है।
और फर वही आ- बृ दा मुड़ी तथा फर अ दतीय फु त के साथ पुिलस को टेलीफोन करने के िलए अपने शयनक
क तरफ झपटी।
मेरे होश गुम!
“ितलक साहब!” म अपनी पूरी ताकत से िच ला उठी—”पकड़ो इसे- पकड़ो। अगर इसने पुिलस को फोन कर दया,
तो हम कह के नह रहगे।”
ितलक राजको टया के साथ—साथ म भी बृ दा को पकड़ने के िलये िब कु ल आंधी—तूफान क तरह उसके पीछे
झपटी।
•••
पर तु!
बृ दा म न जाने कहां से फु त आ गयी थी।
उस व उसक चीते जैसी फु त को देखकर कोई नह कह सकता था क वह इतनी बीमार भी है, जो डॉ टर ने उसे
िब तर तक से न िहलने क िहदायत दी ई है।
“बृ दा!” पीछे से ितलक राजको टया बदहवास क तरह गला फाड़कर िच ला रहा था—” क जाओ बृ दा।”
उसके पैर म मान पंख लगे ए थे।
हम दोन म—से कोई भी उसे पकड़ पाने म सफल होता, उससे पहले ही बृ दा दनदनाती ई अपने शयनक म
दािखल हो गयी।
“बेवकू फ मत करो बृ दा!” ितलक राजको टया पुनः चीखा।
“बेवकू फ तो म कर चुक ,ं तु हारे जैसे इं सान से शादी करके ।”
बृ दा मुड़ी।
फर उसने अपने शयनक का दरवाजा भड़ाक क तेज आवाज के साथ बंद कर लेना चाहा।
मगर तभी झपटकर ितलक राजको टया ने अपनी टांग दरवाजे के दोन पट के बीच फं सा दी।
“पीछे हटो।”
बृ दा ने वह रखा छोटा—सा िम ी का लॉवर पॉट पूरी ताकत से ितलक राजको टया के मुंह पर ख च मारा।
ितलक राजको टया चीखता आ पीछे हटा।
उसी पल उसने भीषण आवाज के साथ दरवाजे के दोन पट बंद कर िलये और अंदर से सांकल भी लगा ली।
•••
बृ दा अब अपने शयनक म बंद थी। इसम कोई शक नह - बृ दा ने उस ण हमारे जबरद त तरह से होश उड़ाये
ए थे।
हाथ—पैर स थे।
मान कसी ने उ ह डीप जर म जमा दया हो।
“बृ दा!” ितलक राजको टया ने जोर—जोर से दरवाजा भड़भड़ाया—” लीज दरवाजा खोलो। पुिलस को टेलीफोन
करने क बेवकू फ मत दखाओ।”
“जो कु छ आ है बृ दा!” मने भी जोर—जोर से दरवाजा पीटा—”म उसके िलये तुमसे माफ मांगती ।ं म अभी यह
पथ हाउस छोड़कर चली जाऊंगी।”
ले कन बृ दा ने दरवाजा न खोला।
तभी अंदर से कु छ खड़—खड़ क आवाज ई।
“ितलक साहब- लगता है वो फोन कर रही है।” म बौखलाकर बोली—”ज दी कु छ करो। कह वो फोन करने म
कामयाब न हो जाये।”
ितलक राजको टया ने इधर—उधर देखा।
दरवाजा तोड़ना आसान न था।
वह मजबूत शीशम क लकड़ी का बना था।
फौरन उसक दृि कांच क एक काफ बड़ी िखड़क पर जा टक ।
“बस एक ही तरीका है।” ितलक राजको टया बोला—”िखड़क का शीशा तोड़कर अंदर घुसा जाये!”
“तो फर सोच या रहे हो।” म िच लाई—”ज दी करो।”
ितलक राजको टया ने िम ी का वही लॉवर पॉट उठा िलया—िजसे बृ दा ने उसके ऊपर अपनी पूरी शि से
ख चकर मारा था।
उसने एक बार उस गमले को अपने हाथ म तोला।
वह काफ वजनी था और प िम ी का बना था।
बृ दा के उसके ऊपर ख चकर मारने के बावजूद वह ब त यादा टू टा नह था।
“एक तरफ हटो।”
म तुर त िखड़क से अलग हट गयी।
उसी ण ितलक राजको टया ने लॉवर पॉट को अपनी पूरी ताकत के साथ िखड़क पर देकर मारा।
टन न न!
कांच टू टने क ब त जोरदार आवाज ई।
कांच क छोटी—छोटी क चयां उछलकर इधर—उधर जा िगर ।
“ज दी करो।”
ितलक राजको टया अब िखड़क क तरफ दौड़ा।
फर उसने टू टे ए कांच म हाथ देकर अंदर क तरफ से िखड़क क िसटकनी खोल डाली।
िखड़क के दोन पट लहलहाकर खुलते चले गये।
त काल हम दोन िखड़क के रा ते छलांग लगाकर शयनक म दािखल ए।
बृ दा सामने ही खड़ी थी।
सामने!!!! जहां एक छोटी—सी टेिबल पर टेलीफोन इं टू मट रखा रहता है।
•••
रसीवर उस व बृ दा के हाथ म था।
वह ज दी—ज दी कोई न बर डायल कर रही थी। उसे न बर डायल करने म भी इसिलये इतनी देर हो गयी,
य क उसने पहले डायरे ी म ‘पुिलस’ का टेलीफोन न बर तलाश कया था।
डायेर ी वह टेिबल पर खुली पड़ी थी।
मने त काल आगे बढ़कर बृ दा के हाथ से रसीवर झपट िलया और उसे जोर से े िडल पर पटका।
“ब जात!” बृ दा का हाथ मेरी तरफ उठा—”मेरे घर म घुसकर मेरे साथ ही ऐसी हरकत करती ह।”
ले कन बृ दा का हाथ मेरे गाल पर पड़ता, उससे पहले ही ितलक राजको टया ने उसके हाथ को पकड़ िलया था।
फर ितलक राजको टया का एक ब त झ ाटेदार थ पड़ बृ दा के मुँह पर पड़ा।
बृ दा क चीख िनकल गयी।
उसक आंख के िगद रं ग—िबरं गे तारे नाच उठे ।
“िपछले एक साल म शायद तुम यह भूल गयी हो बृ दा!” ितलक राजको टया गु से म बोला—” क तुमसे कह पहले
यह घर मेरा है।”
ितलक राजको टया ने वह दवाइय क ाली पर रखा स जी काटने वाला चाकू उठा िलया।
चाकू देखते ही बृ दा सूखे प े क तरह कांपी।
“ितलक- य... यह तुम या कर रहे हो?” बृ दा के िज म का एक—एक रोआं खड़ा हो गया।
“अभी शायद तुम कु छेक दन और जंदा रह जात ।” ितलक राजको टया दांत कट कटाता आ बोला—”ले कन
तु हारी आज क इस हरकत ने तु ह िब कु ल मौत के दहाने पर लाकर खड़ा कर दया है। तु हारा जंदा रहना अब
ठीक नह होगा बृ दा, य क तुम हमारी योजना से वा कफ हो गयी हो।”
बृ दा का पूरा शरीर सफे द पड़ गया।
मने खुद उसक आंख म साफ—साफ मौत क छाया मंडराते देखी।
न जाने य उस ण मुझे बृ दा पर तरस आया।
शायद वो सहेली थी मेरी- इसीिलये मेरे अ दर से वो भावनाय उपजी थ । हालां क उसक मौत के िबना अब मेरी
भी गित नह थी।
वह िजतना ितलक राजको टया के िलये खतरा थी, उतना ही मेरे िलये थी।
फर उसक टेलीफोन वाली घटना से यह भी सािबत हो गया था क वह हम दोन के िखलाफ कस हद तक जा
सकती है।”
“न... नह ।” बृ दा िगड़िगड़ा उठी—”नह ितलक- मुझे मत मारो।”
“मरना तो तूने अब है।” ितलक राजको टया के ब त दृढ़ता से भरे श द मेरे कान म पड़े—”और आज क रात ही
मरना है। य क अगर तू जंदा रही तो फर हम दोन म—से कोई जंदा नह बचेगा।”
“ले कन... ।”
“अब कोई बहस नह ।”
ितलक राजको टया का चाकू चाला हाथ एकाएक छत क तरफ उठा और िबजली क भांित लपलपाता आ बृ दा क
तरफ झपटा।
“नह ितलक साहब!” मुझे न जाने या आ, मने फौरन दौड़कर ितलक राजको टया का चाकू वाला हाथ पकड़
िलया—”नह ! इसे मत मारो।”
ितलक राजको टया स त हैरानी से मेरी तरफ देखता रह गया।
•••
और!
आ य क कड़कड़ाती ई िबजली बृ दा के दलो— दमाग पर भी िगरी।
“यह तुम या कह रही हो िशनाया!” ितलक राजको टया अचरजपूवक बोला—”शायद तुम जानती नह हो- अगर
हमने आज रात इसे जंदा छोड़ दया, तो या होगा।”
“म अ छी तरह जानती ं क या होगा। म इस जंदा छोड़ने के िलये नह कह रही ितलक साहब।”
“क... या मतलब?”
मेरा रं ग उस ण पल—पल बदल रहा था।
“ितलक साहब!” म चहलकदमी—सी करती ई ितलक राजको टया के और बृ दा के बीच म आ गयी—”आप शायद
भूल रहे ह, हमारी योजना या थी! म िसफ इसे चाकू से मारने के िलए मना कर रही ।ं य क अगर आपने इसक
चाकू से ह या क - तो यह बेहद संगीन जुम होगा। को ड लािडड मडर होगा। उस हालत म मु बई पुिलस आपको
फौरन ही इसक ह या के इ जाम म अरे ट कर लेगी। जब क...।”
“जब क या?”
ितलक राजको टया ने िव फा रत ने से मेरी तरफ देखा।
“जब क अगर हम उसी योजना के तहत इसक ह या करगे, तो कसी को कान —कान भी पता नह चल पायेगा क
इसक ह या ई है।”
“ओह माई गॉड!” ितलक राजको टया के मुंह से िससकारी छू टी—”म गु से म कतनी बड़ी बेवकू फ करने जा रहा
था।”
“शु है- जो गु से म आपने चाकू चला नह दया।”
ितलक राजको टया ने फौरन चाकू वापस मेिडिसन क ाली पर इस तरह रखा, मानो उसके हाथ म कोई जंदा सांप
आ गया हो।
बृ दा िसर से पांव तक पसीन म लथपथ हो उठी।
“अब या करना है?” ितलक राजको टया बोला।
“सबसे पहले कोई मजबूत र सी ढूढ
ं ो और इसे कसी कु स पर कसकर बांध दो।”
“म र सी अभी लेकर आता ।ं ”
ितलक राजको टया तुर त र सी लाने के िलये शयनक से बाहर िनकल गया।
“िशनाया!” बृ दा गुरायी—”यह तुम ठीक नह कर रही हो।”
“इस बात का फै सला अब व करे गा।” म हंसी—” क या ठीक है और या गलत!”
तभी बृंदा चाकू क तरफ झपटी।
ले कन वह चाकू को छू भी पाती, उससे पहले ही मेरी लात अपनी च ड शि के साथ उसके पेट म लगी।
वह िबलिबला उठी।
उसी पल मने उसके मुंह पर तीन—चार झ ाटेदार तमाचे भी जड़ दये।
वो चीखते ए पीछे िगरी।
“तुम शायद भूल गयी हो बृ दा!” म िवषैले वर म बोली—”म हमेशा जीतती आयी -ं हमेशा! और इस बार भी म
ही जीतूंगी।”
तभी नायलोन क मजबूत र सी लेकर ितलक राजको टया वहां आ प च
ं ा।
•••
ज द ही बृ दा के हाथ—पैर एक कु स के साथ ब त कसकर बांध दये गये थे।
ितलक राजको टया ने उसके हाथ—पैर इतने यादा कसकर बांधे थे, जो वह एक इं च भी इधर—से—उधर न सरक
सके ।
बृ दा क अब बुरी हालत थी।
उसका पूरा शरीर पसीन से तर—ब—तर हो रहा था और वह डर के मारे कांप—कांप जा रही थी।
उसक आंख म जबरद त खौफ था।
“त... तुम लोग या करने जा रहे हो?” वो भयभीत वर म बोली।
“देखती रहो, आज या होता है!”
“देखो- म फर कहती ।ं ” बृ दा शु क वर म बोली—”यह सब तुम ठीक नह कर रहे हो। अगर तुमने मेरी ह या
क , तो तुम दोन म—से भी कोई नह बचेगा। तु हारी सारी उ जेल क सलाख के पीछे गुजरे गी।”
“हम कु छ नह होगा बृ दा डा लग।” ितलक राजको टया हंसा—”सच तो ये है- कसी को पता भी नह चलने वाला
है क तु हारी ह या क गयी है। तुम एक सामा य मौत मरोगी- िब कु ल सामा य मौत!”
“यह तु हारी भूल है।” बृ दा दहाड़ी—”हर चालाक अपराधी जुम करने से पहले यही समझता है क कानून उसे
कभी नह पकड़ पायेगा- वो कभी कानून के िशकं जे म नह फं सेगा। मगर होता इससे िब कु ल उ टा है। होता ये है क
इधर अपराधी, अपराध करता है और उधर कानून का फं दा उसके गले म आकर कस जाता है।”
ितलक राजको टया धीरे से मु करा दया।
उसक मु कान बता रही थी, उसे मेरी योजना पर ज रत से कु छ यादा ही भरोसा था।
तभी म अपने शयनक से बीस ‘डायिनल’ टेबलेट और न द क गोिलयां ले आयी।
“यह बीस टेबले स ह बृ दा डा लग!” मने वह बीस टेबले स बृ दा को दखाई—”ले कन अब यही बीस टेबले स
तु हारी मौत का कारण बनगी।”
फर म चहलकदमी—सी करती ई मेडीिसन क ोली क तरफ बढ़ी।
वहां पानी का जग और कांच का एक िगलास रखा था।
मने वह व टी टेबले स िगलास म डाल द और फर उस िगलास को पानी से ऊपर तक लबालब भरा।
देखते—ही—देखते वह सभी गोिलयां िगलास के पानी म अ छी तरह घुल गय ।
•••
बृ दा ब त खौफजदा आंख से मेरी एक—एक हरकत देख रही थी। उसके बाद म वह िगलास लेकर बृ दा क तरफ
बढ़ी।
“अब तुम या कर गी?” बृ दा के शरीर म झुरझुरी दौड़ी।
“अब यह पानी तु ह िपलाया जाएगा। जरा सोचो बृंदा डा लग- एक ‘डायिनल’ लेने के बाद ही तु हारा या ह हो
गया था। जब क अब तो तु ह बीस ‘डायिनल’ एक साथ िखलाई जायगी। और उसके साथ न द क गोिलयां भी। यह
सब टेबले स तु ह मौत के कगार तक प च
ं ाने के िलये काफ है।”
“नह ।” बृ दा आंदोिलत लहजे म बोली—”नह ! तुम यह पानी मुझे नह िपला सकती। तुम सचमुच ब त घ टया
हो। ितलक—ितलक तुम इसको नह जानते। म तु ह इसके बारे म...।”
म भांप गयी—बृ दा, ितलक को मेरे बारे म सब कु छ बताने जा रही थी। मने एक सैके ड भी थ नह गंवाया और
झटके से उसका मुंह पकड़ िलया।
“ब त बकवास कर चुक तुम।” म उसक बात बीच म ही काटकर दहाड़ी—”यह पानी तो तु ह पीना ही पड़ेगा।”
उस ण मेरे अंदर न जाने कहां से इतना साहस आ गया था।
मेरे दल— दमाग पर कोई अदृ य—सी शि हावी हो गयी थी, िजसने मुझे इतना कठोर बना डाला था।
बृ दा ने अपना जबड़ा स ती से बंद कर िलया।
“नह !” उसने जोर—जोर से अपनी गदन िहलाई— “नह ।”
ितलक राजको टया ने आगे बढ़कर उसक गदन कसकर पकड़ ली।
“अपना मुंह खोलो।” वह गुराया।
“नह ।”
उसक गदन पुनः जोर—जोर से िहली।
त काल ितलक राजको टया का एक च ड घूंसा बृ दा के मुंह पर पड़ा।
बृ दा क चीख िनकल गयी।
उसका मुंह खुला।
जैसे ही मुंह खुला, तुर त ितलक ने वह ाली पर टील का एक च मच उठाकर उसके हलक म फं सा दया।
बृ दा का मुंह खुला—का—खुला रह गया।
उसके हलक से गूं—गूं क आवाज िनकलने लग ।
ने दहशत से फै ल गये।
“िशनाया!” ितलक राजको टया, बृ दा क गदन पकड़े—पकड़े चीखा—”ज दी इसके मुंह म पानी डालो- ज दी।”
बृ दा का मुंह अब छत क तरफ था।
तुर त मने आगे बढ़कर बृ दा के मुंह म धीरे —धीरे पानी उं डेलना शु कर दया।
उस ण मेरे हाथ कांप रहे थे।
उनम अजीब—सा क प था।
वह जोर—जोर से अपनी गदन िहलाने क कोिशश करने लगी। ले कन ितलक उसक गदन इतनी यादा कसकर
पकड़े ए था क वह गदन को एक सूत भी इधर—से—उधर नह िहला पा रही थी।
पानी को उसने बाहर िनकालने क कोिशश क , तो उसम भी वह असफल रही।
ज द ही मने सारा पानी उसे िपला दया।
•••
पानी िपलाते ही मेरी बुरी हालत हो गयी थी।
म एकदम दहशत से पीछे हट गयी।
आिखर वो मेरी जंदगी क पहली ह या थी। वो भी अपनी सहेली क ह या! मेरा दल धाड़—धाड़ करके पसिलय
को कू टने लगा और म अपलक बृ दा को देखने लगी।
टील का च मच अभी भी बृ दा के हलक म फं सा आ था।
अलब ा ितलक ने अब उसक गदन छोड़ दी थी। फर उसने च मच भी िनकाला।
वो भी अब कु छ भयभीत था और एकटक बृ दा को ही देख रहा था।
“य... यह तुम लोग ने ठीक नह कया है।” बृ दा च मच िनकलते ही कं पकं पाये वर म बोली—”तु ह इस ह या क
सजा ज र िमलेगी। तुम बचोगे नह ।”
हम दोन के मुंह से अब कोई श द न िनकला।
उसी ण एकाएक बृ दा को जोर—जोर से उबकाइयां आने लग । उसक आंख सुख होती चली गय । शरीर पसीन
म लथपथ हो उठा।
फर वो जोर—जोर से अपना िसर आगे को झटकने लगी।
“इसे या हो रहा है?” म भय से कांपी।
“लगता है- इसका अंत समय नजदीक आ प च
ं ा है।” ितलक राजको टया बोला।
तभी एकाएक बृ दा ब त जोर से गला फाड़कर चीखी।
उसक चीख अ य त दयिवदारक और क णादायी थी।
“िखड़क —दरवाजे अंदर से कसकर बंद कर दो। इसके चीखने क आवाज नीचे होटल तक न पँ चने पाये, ज दी
करो।”
म फौरन िखड़क —दरवाजे बंद करने के िलये शयनक से बाहर क तरफ झपट पड़ी।
अगले ही पल म ब त बौखलाई ई—सी अव था म पथ हाउस के सभी िखड़क —दरवाजे धड़धड़ बंद कर रही थी।
तभी बृ दा क एक और दयिवदारक चीख मेरे कान म पड़ी।
उसम दन शािमल था।
उसके बाद खामोशी छा गयी।
गहरी खामोशी!
सभी िखड़क —दरवाजे बंद करके म वापस बृ दा के शयनक म प च
ं ी। वहां प च
ं ते ही मेरा दल ध से रह गया।
ितलक राजको टया ने उसका मुंह कसकर पकड़ा आ था- ता क वो चीख न सके । ले कन बृ दा क हालत देखकर
फलहाल महसूस नह हो रहा था क वो अब चीखने जैसी ि थित म है।
उसक आंख चढ़ी ई थ ।
गदन लुढ़क पड़ी थी।
ितलक राजको टया उसे छोड़कर आिह ता से एक तरफ हट गया।
“इसे या आ?” मेरे दमाग म सांय—सी िनकली।
“यह मर चुक है।”ितलक क आवाज काफ धीम थी।
मने तुर त उसक हाट बीट देखी।
न ज टटोली।
सब कु छ गायब था।
म फौरन उससे पीछे हट गयी।
•••
मौत को मने जंदगी म पहली बार इतने करीब से देखा था।
उस व म यह प थर का बुत बनी ई एक टू ल पर बैठी थी और मुझे च र आ रहे थे।
मेरी आंख धुंआ—धुंआ थ ।
उस ण मेरी जो ि थित थी- उसे शायद म यहां कागज पर सही श द म नह कर पा रही ।ँ आप िसफ
इतना समझ सकते ह- म ब त भयभीत थी।
मेरे कान म रह—रहकर बृ दा के श द गूंज रहे थे।
“यह तु हारी फतरत है ब जात लड़क - फतरत! तुम र डी हो- िसफ र डी!”
“तु हारी हैिसयत नाइट लब क एक कॉलगल से यादा नह है।”
मने अपने दोन कान पर कसकर हाथ रख िलये।
मने देखा- ितलक ने अब बृ दा क लाश को नायलोन क डोरी से आजाद कर दया था।
फर उसने बृ दा को ब त संभालकर बड़ी ऐहितयात के साथ अपनी गोद म उठा िलया तथा उसे लेकर िब तर क
तरफ बढ़ा।
उसके बाद उसने उसे धीरे से िब तर पर िलटा दया।
बृ दा क आंख खुली ई थी।
ितलक राजको टया ने उसक वो आंख बंद क ।
थोड़ा—सा पानी उसके मुंह से बहकर गले तक प च
ं रहा था, ितलक ने तौिलये से वो पानी भी साफ कया और
उसके बाल समेटकर उसक पीठ के नीचे सरकाय।
वो एक—एक कदम बड़ी सावधानी के साथ उठा रहा था, जो कसी को भी इस बात का शक न होने पाए क उसक
ह या क गयी है।
बृ दा के चेहरे पर उस समय गजब क मासूिमयत दखाई पड़ रही थी।
बेहद भोलापन!
उसे देखकर ऐसा लगता था- मान वो गहरी न द म हो और थोड़ी देर बाद जैसे ही उसक न द पूरी होगी, वह अपनी
आंख खोल देगी।
सचमुच मौत एक बेहद खौफ से भरा अहसास है। उस ण मेरे अंदर बृ दा क लाश को देखकर बड़े अजीब—अजीब
यालात ज म ले रहे थे।
ितलक अब िम ी के गमले को भी उठाकर बाहर ले गया था।
इसके अलावा भागादौड़ी म जो सामान इधर—से—उधर िगर गया था, उसने उसे भी उठाकर सलीके से यथा थान
रखा।
खुली ई टेलीफोन डायरे ी क तरफ बढ़ा। रसीवर उठाया और उसक उं गिलय ने धीरे —धीरे कोई न बर डायल
करना शु कया।
“ कसे टेलीफोन िमला रहे हो?” म मान न द से जागी।
“डॉ टर अ यर को िमला रहा ।ं ” ितलक ने बताया—”आिखर हम सबसे पहले उसे ही बताना चािहये क बृ दा क
मौत हो चुक है।”
“डॉ टर अ यर!” मेरे शरीर म िसहरन दौड़ी, म एकदम से िच ला उठी—” या बेवकू फ कर रहे हो! अगर ऐसे म
डॉ टर अ यर यहां आ गया, तो वह फौरन भांप जायेगा क बृ दा अपनी वाभािवक मौत नह मरी। बि क हम
लोग ने िमलकर उसक ह या क है।”
“ले कन वो कै से भांप जायेगा? ह या से जुड़े ए यहां िजतने भी सबूत थे, उ ह तो म पहले ही अ छी तरह साफ कर
चुका ।ं ”
“मगर इस दौरान तुम एक बड़ा सबूत नजरअंदाज कर गये हो।” मने दांत कट कटाये।
“बड़ा सबूत!”
“हां, कांच क वह िखड़क ितलक—िजसे तोड़कर हम इस बैड म म दािखल ए थे। जरा सोचो- जब उस हराट
डॉ टर क िनगाह उस टू टी ई कांच क िखड़क पर पड़ेगी, तो वह या सोचेगा? या वही एक िखड़क हमारी सब
कारगुजा रय के ऊपर से पदा नह उठा देगी?”
“माई गॉड!” ितलक राजको टया ने तुर त रसीवर वापस े िडल पर रखा—”यह म या बेवकू फ करने जा रहा था!
टू टी ई िखड़क क तरफ तो मेरा यान ही नह गया।”
“डॉ टर अ यर को इ फोमशन देने से पहले ज री है,” म बोली—” क िखड़क के टू टे ए कांच को बदला जाये।”
“ले कन इतनी आधी रात के व हम िखड़क का कांच कहां िमलेगा?” ितलक राजको टया के ने िसकु ड़े।
“तो फर जब तक िखड़क का कांच नह िमल जाता,” म बोली—”तब तक डॉ टर अ यर को खबर मत दो। य क
िखड़क का कांच बदले िबना डॉ टर अ यर को यहां बुलाना खुद अपने गले पर छु री फे रने जैसा काम है।”
“िखड़क का कांच तो सुबह िमलेगा।”
“तो फर हम सुबह तक ही ती ा करनी होगी।”
“इसम भी एक ॉ लम है।” ितलक राजको टया गंभीरतापूवक बोला।
“ या?”
“अगर हम इतनी देर से डॉ टर अ यर को बृ दा क मौत क इ फ़ॉमशन दगे,” ितलक राजको टया ने एक नई
सम या क तरफ मेरा यान आक षत कया—”तो बृ दा क लाश ठ जायेगी। और ऐसी ि थित म डॉ टर अ यर
लाश को देखते ही भांप जायेगा क बृ दा को मरे ए कई घ टे गुजर चुके ह। वह ि थित हमारे िलये और भी िवकट
होगी। और भी फसाद पैदा करने वाली होगी।”
“बात तो ठीक है।”
म भी अब संजीदा नजर आने लगी।
ितलक राजको टया ठीक कह रहा था।
“ फर हम या कर?”
हम दोन सोचने लगे।
•••
सम या वाकई ब त ज टल थी।
आिखरकार मने ही उस सम या का समाधान िनकला।
“एक तरीका है।” म उ साहपूवक बोली।
“ या?”
“पथ हाउस म कु ल कतने कमरे ह?”
“स र!” ितलक राजको टया ने तुर त जवाब दया।
“और जहां तक म समझती ,ं पथ हाउस के सभी स र कमर के िखड़क —दरवाजे िब कु ल एक साइज के बने ए
ह।”
“एकदम ठीक बात है।”
“तो फर मुि कल या है।” म फौरन बोली—”हम अभी पथ हाउस के कसी िपछले कमरे क िखड़क से शीशा
उतारकर इस कमरे क िखड़क पर चढ़ा देते ह। डॉ टर अ यर को तो या, उसके फ र त को भी पता नह चल
पायेगा क हमने िखड़क का कांच इस तरह भी बदला है।”
“ रअली ए सीले ट!” ितलक राजको टया मेरी शंसा कया िबना न रह सका—”सचमुच तुमहारे दमाग का जवाब
नह है िशनाया! मुझे हैरानी है- इतनी मामूली बात मुझे नह सूझी।”
दहशत से भरे उन पल म भी मेरे होठ पर ह क —सी मु कान तैर गयी।
•••
फर कई काम आनन—फानन ए।
जैसे िपछले कमरे क िखड़क से एक शीशा उतारकर उस कमरे क िखड़क पर चढ़ा दया गया था।
फर डॉ टर अ यर को बृ दा क मौत क इ ला दी गयी।
िजस ण ितलक राजको टया, डॉ टर अ यर को फोन कर रहा था- उसी ण मने भी नीचे होटल ए बेसडर म
प च
ं कर बृ दा क मौत का ढंढोरा पीट डाला।
कु ल िमलाकर बृ दा मर चुक है- यह बात आधी रात म ही िब कु ल इस तरह फै ली, जैसे जंगल म आग फै लती है।
रात के उस समय तीन बज रहे थे, जब डॉ टर अ यर ने ब त हैरान—सी अव था म पथ हाउस के अंदर कदम रखा।
उस व आधे से यादा पथ हाउस आगंतुक से खचाखच भरा आ था।
होटल का सारा टाफ वहां प च
ं चुका था।
इसके अलावा ितलक राजको टया के ऐसे कई प रिचत जो उसी होटल म ठहरे ए थे, वो भी सूचना िमलते ही वहां
आ गये।
बृ दा क लाश तब तक िब तर से उतारकर नीचे जमीन पर रखी जा चुक थी और वह बीच—बीच म सुबक उठता
था।
डॉ टर अ यर ने पथ हाउस म प च ं ने के बाद सबसे पहले बृ दा क लाश का बड़ी अ छी तरह मुआयना कया और
उसके बाद ितलक के बराबर म ही जा बैठा।
“यह सब अचानक कै से हो गया?”
ितलक राजको टया ने एक जोरदार ढंग से सुबक ली—”सब कु छ एकदम कल क तरह आ था- िब कु ल एकाएक!
उसके ब त तेज़ दद उठा था। दद इतना तेज था क उसक चीख िनकल गय ।”
“ फर?”
“ फर चीख सुनकर जब म और िशनाया उसके पास प चं े, तब तक ब त देर हो चुक थी।” ितलक अफसोस के साथ
बोला—”तब तक वो हम छोड़कर जा चुक थी। सब कु छ सै क ड म हो गया- पलक झपकते ही।”
वो फफक उठा।
ितलक राजको टया उस ण एक गमजदा पित का इतना बेहतरीन अिभनय कर रहा था क जो कोई भी उसे देखता-
उसे उससे हमदद हो जाती।
“म जो दद वाली टेबलेट दे गया था, या वो टेबलेट उ ह दी?”
“नौबत ही नह आयी।” ितलक बोला—”हम कु छ करने का उसने मौका ही नह दया। मने बताया न- सब कु छ
िब कु ल अचानक आ। बि क शु म तो हम काफ देर तक यही समझते रहे क वो कल क तरह ही िसफ बेहोश ई
है। ले कन बाद म जब मने उसक न ज टटोली, तब मालूम आ क उसका देहावसान हो चुका है।”
“वाकई ब त बुरा आ।” डॉ टर अ यर भारी अफसोस के साथ बोला—”ऐ ा- वरना म तो यह सोच रहा था क
मैडम बृ दा अब ठीक हो जायेगी। उन पर मु गन क कृ पा हो चुक है।”
ितलक राजको टया फर धीरे —धीरे फफकने लगा।
“धैय रखो ितलक साहब- धैय! शायद मु गन को यही मंजूर था।”
डॉ टर अ यर उसे ढांढस बंधाने लगा।
•••
म नीचे फश पर ही एक कोने म बैठी थी।
उस ण पथ हाउस म जो कु छ हो रहा था, वह सब म अपनी आंख से देख रही थी।
अलब ा मेरा दल अभी भी धड़क—धड़क जा रहा था और लगातार कसी अिन क आशंका का मुझे एहसास करा
रहा था। म नह जानती थी, वह अिन क आशंका कै सी थी? य क अभी तक जैसा आप लोग भी महसूस कर रहे
ह गे, सब कु छ मेरी मज के मुतािबक हो रहा था। बृ दा क मने िजस ढंग से ह या करनी चाही थी, िब कु ल उसी ढंग
से ह या कर डाली थी। और सबसे बड़ी बात ये थी क उस बेहद हराट म ासी डॉ टर को भी उसक मौत पर शक
नह आ- जो क मेरी एक बड़ी उपलि ध थी।
फर ितलक राजको टया भी पूरी तरह मेरी मु ी म था।
कु ल िमलाकर सब कु छ मेरी योजनानुसार चल रहा था। फर भी म य आशं कत थी- म नह जानती थी। इसक दो
वजह हो सकती थी। या तो मेरे अंदर आ मिव ास क कमी थी या फर यह मेरे जीवन का य क पहला अपराध
था- इसिलये म डर रही थी।
मगर दोन म-से कोई भी वजह न िनकली।
वा तव म मेरे मन जो भय समाया आ था, वो ठीक ही था।
धीरे —धीरे भोर का उजाला अब चार तरफ फै लने लगा था।
पथ हाउस म भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। आिखर ितलक राजको टया एक ह ती था, इसीिलये उसके दुःख—
दद म शािमल होने वाला जनसमुदाय भी िवशाल था। फर बृ दा के अंितम सं कार क या भी शु ई।
“ितलक साहब!” तभी डॉ टर अ यर अपना थान छोड़कर खड़ा आ और ितलक राजको टया से बोला—”म आपसे
एक ब त ज री बात कहना चाहता ।ं ”
उस व वहां चूं क मातमी स ाटा छाया आ था- इसिलये डॉ टर अ यर के वह श द लगभग सभी के कान तक
प च
ं े। सब उसी क तरफ देखने लगे।
मने भी देखा।
“बात ब त ज री है।” डॉ टर अ यर बेहद संतुिलत लहजे म बोल रहा था—”दरअसल बृ दा ने आज से कोई पं ह
दन पहले एक सीलबंद िलफाफा अपनी अमानत के तौर पर मेरे पास रखवाया था और मुझसे कहा था, अगर
इ ेफाक से मुझे कु छ हो जाये, तो म यह िलफाफा आपको स प दूं ितलक साहब! इसम उ ह ने अपनी कोई अंितम
इ छा िलखी ई है और दर वा त क है क उनक यह अंितम इ छा ज र पूरी क जाये।” डॉ टर अ यर ने अपनी
जेब से एक सफे द िलफाफा िनकाला, िजस पर ‘क थई लाक’ क सील लगी ई थी और फर उस िलफाफे को ितलक
राजको टया क तरफ बढ़ाया।
“अंितम इ छा!” ितलक राजको टया च का—”कै सी अंितम इ छा?”
“ऐ ा- यह तो उस िलफाफे को खोलने के बाद ही पता चलेगा क उनक अंितम इ छा या थी। इस स बंध म
उ ह ने मुझे भी कु छ नह बताया था- सब कु छ पूरी तरह गु रखा था।”
मेरे िज म म सनसनाहट दौड़ गयी।
मुझे अपने हाथ—पैर म सुइंया—सी चुभती तीत ।
फर कोई झंझट!
मुझे लगा- जीती ई वह सारी बाजी एक बार फर मेरे हाथ से िनकलने वाली है।
मेरे दमाग पर हथौड़े बरसने लगे।
•••
ितलक राजको टया अब अपना थान छोड़कर खड़ा हो गया था और उसने डॉ टर अ यर के हाथ से वो सीलबंद
िलफाफा अब अपने हाथ म ले िलया था। फर वो बड़ी हैरान िनगाह से उस िलफाफे को उलट—पलटकर देखने
लगा।
उस व उसके आसपास िजतने भी आदमी थे, सबक िनगाह उसी सीलबंद िलफाफे पर के ि त थी।
सबके चेहर से ऐसा लग रहा था- मान अभी वह सीलबंद िलफाफा खुलेगा और अभी उसके अंदर रखा कोई टाइम
—बम फटेगा।
जबरद त टाइम—बम!
“आपने इस िलफाफे के बारे म मुझे पहले य नह बताया?” ितलक राजको टया बोला।
“दरअसल बृ दा ने ही मुझे इस स ब ध म स त ताक द क ई थी क उनके देहावसान से पहले न तो वह िलफाफा
खोला जाये और न ही कसी को उसके अि त व क भनक िमले।”
“बड़े आ य क बात है।”
“आप िलफाफा खोलकर प ढ़ये तो सही ितलक साहब!” भीड़ म खड़ा एक ि बोला।
जािहर है- सबका स पस से बुरा हाल हो रहा था।
और मेरी हालत के तो कहने ही या थे। बृ दा ने मरने के बाद भी मेरी जान सुंभी क नोक पर अटका दी थी।
बहरहाल ितलक राजको टया ने सबके सामने ही उस िलफाफे क सील तोड़ी और उसके बाद िलफाफे को खोला।
िलफाफे म एक लाइनदार कागज रखा आ था।
तब तक म भी अपने थान से खड़े होकर ितलक के बराबर म प च
ं चुक थी। फर ितलक राजको टया के लगभग
साथ—साथ ही मने उस कागज पर िलखी इबारत को पढ़ा।
ितलक साहब,
म जानती -ं इस सीलबंद िलफाफे को देखकर आप च क गये ह गे, य क शादी के बाद मने आपसे िछपकर कभी
कोई काम नह कया। ज रत ही नह पड़ी। हम दोन के स ब ध पारदश कांच क तरह थे, िजसम हम एक—दूसरे
को ब त साफ—साफ देख सकते थे। यह जंदगी म मने पहला काम आपसे छु पाकर कया है और मुझे उ मीद है-
इसके िलये आप मुझे माफ कर दगे। दरअसल इस प को आपसे छु पाना मेरी मजबूरी बन गयी थी।
बात ही कु छ ऐसी थी।
ऐसी बात, िजसे म कम—से—कम जीते जी आपके सामने उजागर नह कर सकती थी। आप नह जानते िजस बृ दा
को आप एक स च र ी समझते रहे, वो स च र नह थी।
वह तो च र हीन थी।
अपनी इस जंदगी म मने न जाने कतने पु ष के साथ शारी रक स बंध बनाये।
सच बात तो ये है- उन ण को याद करके मुझे अपने इस अंितम समय म खुद से घृणा होने लगी है, जो हर कु कम म
मेरा भागीदार रहा।
ितलक साहब, इसीिलये अब मेरी एक छोटी—सी अंितम इ छा है। म चाहती ं क मेरे इस पापी शरीर को पिव
अि क भट न चढ़ाया जाये। बि क यह शरीर मैडीकल रसच से टर को दान दे दया जाये, ता क डॉ टर इसे
चीरफाड़ करके अपने रसच के काम म ले सक। म िजस बीमारी से मर रही ,ँ उस पर रसच हो। ता क मेरे बाद
कोई और इस बीमारी से ना मरे । हो सकता है- मने जो पाप कये ह, मेरे इस फै सले से वो पाप थोड़े-ब त धुल जाय।
मुझे उ मीद है- आप मेरी यह अंितम इ छा ज र पूरी करगे।
आपक िसफ आपक
बृ दा।
सचमुच वह बड़ा अ भूत प था।
बहरहाल मने राहत क सांस ली। य क प म कोई ब त यादा खतरनाक बात बृ दा ने नह िलखी थी।

हनीमून
उसके बाद कु छ समय मेरा िब कु ल पंख लगाते ए गुजरा।
वह मेरी िज दगी के शायद सबसे यादा खुशी से भरे दन थे। उन दन म यह बात िब कु ल भूल चुक थी क म एक
कॉलगल ं और मेरा अि त व कसी ‘नाइट लब’ या फर फारस रोड के कसी कोठे के साथ भी जुड़ा आ है।
अ सर रात को सोते—सोते मुझे यह जो अहसास दहशत से च ककर िबठा देता था क व पड़ने पर मुझे कभी
‘नाइट लब’ क िझलिमलाती दुिनया म भी वापस लौटना पड़ सकता है, तो उन दन के दौरान मुझे ऐसा कोई
अहसास भी न आ।
म खुद को कसी ंसेस क तरह महसूस कर रही थी।
िजसके पास अब सब कु छ था।
जहां तक बृ दा के अंितम सं कार क बात है, उसम कु छ परे शानी नह आयी थी। ितलक राजको टया ने बृ दा क
अंितम इ छा पूरी कर दी थी। उसने डॉ टर से कह दया, वह बृ दा के शव को ‘मेिडकल रचस से टर’ को स पने के
िलये तैयार है। फर बाक क सारी कागजी कारवाई डॉ टर अ यर ने ही पूरी क । वह पथ हाउस म ही कु छ
डा यूमे ट ले आया था, िजस पर उसने ितलक राजको टया से िस ेचर करा िलये और फर बृ दा के शव को सील पैक
करके खुद ही अपनी क टडी म वहां से ले गया। कु ल िमलाकर वो करण वह समा हो गया था।
उसके बाद मेरी िज दगी के सबसे मह वपूण अ याय का समय आया- जब मेरी शादी ई।
आप सोच रहे ह गे- मेरी शादी का इस पूरे घटना म से या स ब ध है?
सच बात तो ये है- शादी के बाद ही मेरी जंदगी म और तबाही मची।
और हंगामा बरपा आ।
बृ दा क मौत के एक महीने बाद तक तो ितलक राजको टया और म पथ हाउस म बड़ी खामोशी के साथ रहे थे।
य क उसक मौत के फौरन बाद ही हम दोन क शादी करना उिचत भी नह था। अलब ा हम दोन के साथ—
साथ रहने के कारण अब हमारे स ब ध क खबर धीरे —धीरे लोग क जबान पर आने लगी थ । जो क कम—से
—कम मेरे िलये तो ब त ही अ छा था।
फर पूरे एक महीने के बाद हम दोन ने एक बड़े सीधे—सादे समारोह म शादी कर डाली।
शादी के अगले दन ही म और ितलक राजको टया हनीमून मनाने के िलये संगापुर के िलये रवाना हो गये थे।
मुझे आज भी वो लॉज खुद याद है- संगापुर प च
ं ने के बाद हम िजसम ठहरे थे। वो काफ खूबसूरत लॉज थी। उस
लॉज क सबसे बड़ी िवशेषता ये थी क वहां िसफ ‘हनीमून कप स’ को ही ठहरने क परमीशन दी जाती थी। उस
व उस पूरी लॉज म िसफ एक आदमी ऐसा ठहरा था, िजसके साथ उसक बीवी नह थी।
और इ ेफाक से वो भी हमारी ही तरह िह दु तानी था।
सरदार करतार संह!
हां- यही उसका नाम था।
वह ल बे—चौड़े कद—काठ वाला सरदार था। उ मुि कल से पतीस साल के आसपास थी। हमेशा लाल रं ग क
पगड़ी बांधता था और हर व नशे म धु रहता था।
उस सरदार को वहां ठहरने क परमीशन भी लॉज मैनेजमट ने क ह िवशेष कारण से दी थी।
दरअसल दो साल पहले सरदार करतार संह क शादी ई थी और तब करतार संह अपनी बीवी के साथ हनीमून
मनाने उसी लॉज म आया था। दोन एक—दूसरे से बेइ तहां यार करते थे। दोन का वैवािहक जीवन बेहद खुशहाल
था। ले कन अब उसक बीवी का देहा त हो गया था, िजसका सरदार को ब त जबरद त आघात प च ं ा। जब सरदार
वहां आया था, तब उसने अपनी मृतक बीवी से वादा कया था क शादी क दूसरी वषगांठ पर वो उसे लेकर उसी
हनीमून लॉज म आयेगा। पर तु ऐसी नौबत ही न आयी। उससे पहले ही उसक बीवी वग िसधार गयी।
तब भी वो वहां अके ला आया था।
इसी कारण वो हमेशा अपनी बीवी क याद म नशे म धु पड़ा रहता था और कभी उसने अपनी बीवी के साथ उस
लॉज म जो खूबसूरत ल ह गुजारे थे- उ ह याद करता रहता था।
सबको करतार संह से हमदद थी।
मने भी उसे देखा। मुझे न जाने य उस सरदार क सूरत कु छ—कु छ जानी—पहचानी सी लगी।
•••
ितलक राजको टया और म!
बहरहाल हम दोन ही शादी करके खुश थे।
ब त खुश!
उस हनीमून लॉज म जो दन हमने तीत कये- उन दन के दौरान मुझे ऐसी कोई रात याद नह आती, जब हमने
सै स न कया हो।
ितलक राजको टया तो मेरे अ नं सौ दय का, मेरी हंसी का, मेरी एक—एक बात का दीवाना था।
उन दन संगापुर म हनीमून कप स के िलये एक नई व था भी चल रही थी।
हनीमून मनाने के िलये वहां बाकायदा ‘चाटड लेन’ बुक कये जाते थे। फर आधी रात के समय वह चाटड लेन
जोड़े को ब त ऊपर अन त आकाश म ले जाता तथा फर संगापुर के ऊपर चार तरफ च र काटता। उड़ते ए
लेन म हनीमून मनाने का आन द ही कु छ और था।
ितलक राजको टया ने पूरे बारह घ टे के िलये लेन बुक कया।
वहां बादल के बीच अन त आकाश म उड़ते ए हमने हनीमून मनाया।
चाटड लेन क िखड़ कय म—से हमारे आसपास से गुजरते बादल, िझलिमलाते तारे और नीचे जगमग—जगमग
करते संगापुर का सौ दय दखाई पड़ रहा था। मुझे एक—एक बात ने बेहद रोमांिचत कया।
“कै सा लग रहा है डा लग?” ितलक राजको टया ने मेरे गाल का एक गाढ़ चु बन िलया।
“अ भूत ितलक साहब- बेहद अ भूत!”
हम दोन उस समय एक—दूसरे क बांह म िब कु ल िनव थे।
लेन उड़ा जा रहा था।
म दीवानी हो रही थी।
पागल!
मने िज दगी म कभी सोचा भी नह था, जंदगी म मेरे सपने इस तरह भी पूरे ह गे। मुझे इतनी खुिशयां भी िमलेगी।
मने ितलक राजको टया को कसकर अपनी बांह म जकड़ िलया- ब त दृढ़ इराद के साथ- मान दौलत क उस खान
को म अब कभी अपने से अलग नह होने देने वाली थी।
“ितलक साहब!” म आंख मूंदकर आनंदाितरे क बोली—”सचमुच इन चम का रक ण को म कभी नह भुला
पाऊंगी- कभी नह ।”
“ितलक साहब नह !” ितलक राजको टया ने मेरे रे शमी बाल म बड़े यार से उं गिलयां फरा —”अब तुम मुझे
ितलक कहा करो, िसफ ितलक!”
म मु कराई।
मने भी उसका एक िव फोटक चु बन ले डाला।
“अब तुम मुझे एक बार ितलक कहो।”
“ितलक!”
म बड़े मादक अंदाज म हंसी।
ितलक राजको टया ने भी हंसते ए मुझे और भी यादा कसकर अपनी बांह म समेट िलया।
उसके सीने का दबाव मेरे भारी—भरकम उरोज का कचूमर िनकाल देने पर आमादा था।
•••
फर मेरी खुिशय से इठलाती जंदगी म एक नया तूफान आया।
शाम का समय था। ितलक राजको टया और म हनीमून लॉज म ही िडनर कर रहे थे। वह काफ बड़ा हॉल था, हमारे
इद—िगद के कु छेक जोड़े और भी अलग—अलग टेिबल पर बैठे थे। हर टेिबल पर एक मोमब ी जल रही थ । वह
के ि डल लाइट िडनर का आयोजन था- जो काफ भ तर पर वहां होता था। उस दौरान पूरे हॉल म बड़ी गहरी
खामोशी ा रहती तथा सभी जोड़े ब त धीरे —धीरे भोजन करते नजर आ रहे थे।
मने देखा- सरदार करतार संह भी उस समय हॉल म मौजूद था।
वह हम दोनो से काफ दूर एक अ य टेिबल पर बैठा था। उस व भी वह शराब पी रहा था और उसक िनगाह
अपलक मेरे ऊपर ही टक थ । न जाने या बात थी- जबसे म उस हनीमून लॉज म आयी थी, तभी से म नोट कर
रही थी क वो सरदार हरदम मुझे ही घूरता रहता था। उसके देखने के अंदाज से मेरे मन म दहशत पैदा होती चली
गई।
उस दन इ तहा तो तब ई—जब सरदार नशे म बुरी तरह लड़खड़ाता आ हम दोन क टेिबल के नजदीक ही आ
प च
ं ा।
“सत ी अकाल जी!”
हम दोन खाना खाते—खाते ठठक गये।
सरदार इतना यादा नशे म था क उससे टेिबल के पास सीधे खड़े रहना भी मुहाल हो रहा था।
अलब ा उस व वो संजीदा पूरी तरह था।
“अगर तुसी बुरा ना मानो, तो म वाड़े कौल इक ग ल पूछना चांदा ।ं ” उस व भी उसक िनगाह मेरे ऊपर ही
यादा थी।
“पूछो।” ितलक राजको टया बोला—” या पूछना चाहते हो?”
“पापा जी- जब से असी इन मैडम नू वे या (देखा) है, तभी से मेरे दमाग िवच रह—रहकर इक ही याल आंदा है।”
“कै सा याल?”
“मैनू ए लगदा है बादशाह , म इनसे पहले वी क थे िमल चुका ।ं मेरी एना नाल कोई पुरानी जान—पहचान है।”
मेरा दल जोर—जोर से धड़कने लगा।
ितलक राजको टया ने भी अब थोड़ी िवि मत िनगाह से मेरी तरफ देखा।
“पहले कहां िमल चुके हो तुम मुझसे?” मने अपने शु क अधर पर जबान फराई।
“शायद मु बई िवच!” सरदार करतार संह बोला।
“म... मु बई म कहां?”
“यही तो मैनू यान नह आंदा या मैडम!” सरदार ने अपनी खोपड़ी िहलाई—”कभी मेरी बड़ी चंगी याददा त थी।
ले कन ण वाहेगु दी मेहर, अब तो मैनू कु छ याद वी करना चा ,ं तो मैनू याद नह आंदा। न या आप मैनू
पहचांदी हो?”
“िब कु ल भी नह !” मने एकदम प प से इं कार म गदन िहलाई—”मने तो आपक यहां श ल भी पहली मतबा
देखी है।”
“ओह! फे र तो मैनू लगदा है क मैनू कु छ यादा ही चढ़ गयी ए। म पी के िड गन लगा। सॉरी!”
“मे शन नॉट!” ितलक राजको टया बोला।
“ रअली वैरी सॉरी।”
“इ स ऑल राइट।”
सरदार करतार संह नशे म झूमता आ आ वापस अपनी टेिबल क तरफ चला गया और वहां बैठकर पहले क
तरह शराब पीने लगा।
अलब ा वो अभी भी देख मेरी ही तरफ रहा था।
मेरे िज म का एक—एक रोआं खड़ा हो गया।
उसक आवाज सुनते ही म उसे पहचान चुक थी।
सरदार करतार संह!
मुझे सब कु छ याद आ गया।
कभी ह े—क े और ल बे—चौड़े शरीर का मािलक सरदार नाइट लब का परमाने ट क ूमर था। स ाह म कम
—से—कम दो बार उसका वहां फे रा ज र लगता था और म उसक पहली पसंद थी।
सरदार अ य त सै सी था।
वह कम—से—कम नौ—दस घंटे के िलये मुझे बुक करता था और रात को हर तीन—तीन घ टे के अंतराल के वह
मेरे साथ तीन राउ ड लगाता।
उसक सबसे बड़ी खूबी ये होती थी क हर राउ ड वो नये टाइल से लगाता था।
सै स क ऐसी नई—नई तरक ब उसक दमाग म होती थ क म भी च र काट जाती। खासतौर पर उसके जांघ
क मछिलयां तो गजब क थ ।
“सरदार- या खाते हो?” म अ सर उसक जांघ पर बड़े जोर से हाथ मारकर पूछ लेती।
“ओये कु िड़ये- वाहे गु दी सौ, यह सरदार दा पु र तेरे जैसी सोणी-सोणी कु िड़य को ही देसी घी म तलकर चट—
चट के खांदा।” वह बात कहकर ब त जोर से हंसता सरदार।
वो ब त खुशिमजाज आदमी था।
हंसी तो जैसे उसके खून म िम स थी। बात—बात पर िखलिखलाकर हंस पड़ता था।
ले कन अब तो उसके चेहरे से सारी खुशिमजाजी हवा ई पड़ी थी। अब तो उस सरदार क सूरत देखकर ऐसा लगता
था क मालूम नह , वो सरदार अपनी जंदगी म कभी हंसा भी है या नह ।
•••
बहरहाल सरदार करतार संह के कारण म ब त आंत कत हो उठी।
वह एक नई मुि कल अब मुझे अपने सामने दखाई पड़ रही थी।
वो रात मेरी भारी बेचैनी के आलम म गुजरी।
म जानती थी, सरदार नशे म था। अपनी बीवी के गम म था। ले कन देर—सवेर उसे मेरे बारे म सब कु छ याद ज र
आ जाना था।
म या थी?
मेरी औकात या थी?
फर शायद वो मेरी असिलयत का सारा भांड़ा ितलक राजको टया के सामने ही फोड़ देता।
इसी बात ने मुझे आतं कत कया। इसी बात ने मुझे डराया। म तो यह सोचकर ही सूखे प े क तरह कांप उठती थी
क अगर कसी दन ितलक राजको टया को मेरी वा तिवकता मालूम हो गयी, तब या होगा।
रात के उस समय यारह बज रहे थे। ितलक राजको टया और म हनीमून लॉज म बंद थे तथा सारा दन के खूब थके
—हारे होने के कारण बस सोने क कोिशश कर रहे थे।
तभी कसी ने जोर से दरवाजा खटखटाया।
हम च के ।
“इस व कौन आ गया?”
मने िब तर से उठने क कोिशश क ।
“तुम लेटी रहो।” ितलक बेाला— “म देखता ।ं ”
ितलक राजको टया अपने खून जैसे सुख रे शमी गाउन को ठीक करता आ िब तर से उठा और उसने आगे बढ़कर
दरवाजा खोला।
सामने लॉज का बैल वॉय खड़ा था।
“गुड इव नंग सर!”
“वेरी गुड इव नंग।”
“मु बई से आपके िलये फोन है सर, आप तुर त नीचे चल।”
“फोन!”
ितलक राजको टया च क उठा।
म भी च क ।
फ़ोन मेरे मोबाइल पर य नह आया था?
“तुम यह रहो िशनाया!” फर ितलक राजको टया शी तापूवक मेरी तरफ पलटकर बोला—”म अभी आता ।ं ”
उसके बाद ितलक राजको टया नीचे जाने वाली सी ढ़य क दशा म झपट पड़ा।
म िब तर पर अपनी जगह स —सी लेटी रही।
मु बई से फोन?
इतनी रात को?
मुझे न जाने य यह सब कु छ काफ अजीब—सा लगा।
मेरा दल कसी अंजानी आशंका से फर धड़कने लगा।
कोई प ह िमनट बाद ितलक राजको टया वापस लौटा। उस समय वो ब त परे शान नजर आ रहा था। उसके माथे
पर पसीने क न ह —न ह बूंद भी थ । सच बात तो ये है, मने ितलक को पहले कभी इतना परे शान नह देखा था।
म ज दी से िब तर छोड़कर उठी और उसके नजदीक प च
ं ी।
“ या बात है।” म बोली—” कसका फोन था ितलक?”
“ कसी का फोन नह था- तुम आराम से सो जाओ।” उसने अपना मोबाइल देखा- “नेटवक ॉ लम थी।
इसी कारण कसी ने होटल के नंबर पर फ़ोन कया था।“
“ले कन तुम एकाएक इतना परे शान य हो गये हो?”
“कहां ं म परे शान?” ितलक राजको टका ने जबरद ती हंसने क कोिशश क —”िब कु ल भी परे शान नह ।ं ”
फर ितलक राजको टका ने अपने माथे पर चुहचुहा आयी पसीने क न ह —न ह बूंद भी प छ डाल ।
“ड ट वरी- देअर इज न थंग टू फअर।” ितलक ने मेरा गाल यार से थपथपाया।
फर वो वापस िब तर पर लेट गया।
उसके बराबर म, म भी लेटी।
पर तु िब तर पर लेटते ही ितलक के चेहरे पर पुनः िच ता के बादल मंडराने लगे थे।
“तुम चाहे कु छ भी कहो ितलक!” म उसक तरफ देखते ए बोली—”मगर सच तो ये है, तुम मुझसे कु छ िछपा रहे
हो।”
“दरअसल कु छ कारोबार से स बि धत परे शानी है।” ितलक राजको टया बोला—”इसीिलए होटल के मैनेजर ने मुझे
यहां फोन कया था। ले कन कोई यादा बड़ी परे शानी नह है, इसीिलए कह रहा ,ं िच ता मत करो।”
उसके बाद ितलक राजको टया मेरी तरफ से पीठ फे रकर लेट गया।
ले कन सच बात तो ये है, ितलक मुझसे ज र कह रहा था क चंता मत करो, ले कन वो खुद िच ता म था।
उस रात वह एक बजे तक या फर उससे भी बाद तक िब तर पर करवट बदलता रहा।
मुझे लगा- कोई खास बात है।
अगर खास बात न होती, तो होटल का मैनेजर उसे वहां संगापुर म फोन न करता।
वो भी ‘हनीमून’ के दौरान!
उस रात न द मुझे भी आसानी से न आयी।
•••
अगले दन सुबह हम दोन लांग ाइव पर गये। उस दन ितलक राजको टया का दल घूमने म भी नह था। वो कह
खोया—खोया था।
शाम को जब हम ‘हनीमून लॉज’ म वापस लौटे, तो ह का—ह का धुंधलका अब चार तरफ फै लने लगा था। लॉज
म घुसते ही एक बार फर सरदार करतार संह से हम लोग का आमना—सामना आ।
सरदार करतार संह लॉन म गाडन अ ेला के नीचे बैठा अभी भी शराब चुसक रहा था और उसक िनगाह मेरे
ऊपर ही थ ।
“सचमुच इस बेचारे के साथ ब त बुरा आ है।” ितलक राजको टया बड़े अफसोस के साथ बोला—”मुझे डर है,
अगर इसक हालत ऐसी ही बनी रही, तो कह यह सरदार अपनी बीवी के गम म पागल ही न हो जाए।”
“अभी भी तो इसक हालत पागल जैसी ही है।” म बोली।
“इसम कोई शक नह ।”
फर ितलक राजको टया को अक मात् न जाने या सूझा, वह ल बे—ल बे डग रखता आ सरदार क तरफ बढ़
गया।
मने उसे रोकने क भी कोिशश क - ले कन जब तक म उसे रोक पाती, तब तक वह उसके पास प च
ं चुका था।
“आओ पा जी- बैठो।”
सरदार करतार संह शराब पीता—पीता ठठक गया और वह कु स छोड़कर कोई छः इं च ऊपर उठा।
“म तु हारे पास बैठने नह आया ं दो त, बि क आज तुमसे कु छ कहने आया ।ं ”
“ या?”
तब तक म भी उन दोन के करीब प च
ं चुक थी।
“सरदार जी, तु ह इस कदर शराब नह पीनी चािहए।” ितलक रोजको टया उसे सलाह देता आ बोला—”तुम
शायद जानते नह हो, आइ दा िज दगी म तु ह इसका कतना खौफनाक प रणाम भुगतना पड़ सकता है।”
सरदार के होठ पर ं य के भाव उभर आये।
“छ ो वी पा जी!” सरदार बोला—”जो आिशयाना इक बार जल गया, तो फे र वो अंगारा दी परवा या करे गा। अज
दी तरीख िवच ए सरदार इक बुझा होया दीया है, ण चाहे क ी बी आंिधयां यूं ना आव, क े वी तूफान यूं ना
आव, मै ू क फरक पदा है।”
ितलक राजको टया हैरानी से उसक तरफ देखता रह गया।
जब क सरदार करतार संह ने कु स पर वापस बैठकर शराब का एक घूंट और भरा।
“ जंदगी इतनी स ती नह है सरदार जी!” ितलक राजको टया बोला—”िजतनी तुम समझ बैठे हो।”
“तुसी िज दगी दा गलत मोल लगा बैठे हो पा जी!” करतार संह एकाएक बड़े दाशिनक अंदाज म बोला।
“ य ?”
“सच ते ए है, इस पहाड़ी (नामुराद) िज दगी ते स ता कु छ नह है। ए दी क मत ना ते अठ ी, ना ते चव ी! कु छ भी
नह । तेरा अ त न जाणा मेरे सािहब, म अंधुले या चतुराई!”
म बेहद िवि मत िनगाह से उसे देखने लगी।
सचमुच कतना बदल गया था करतार संह! वह न िसफ हंसना भूल गया था बि क उसके िवचार म भी ब त
भीषण प रवतन आ चुका था।
उसने िगलास उठाकर फर शराब के कई घूंट भरे और उसके बाद पहले क तरह ही मुझे देखने लगा।
कमब त देखता भी ऐसे था क नजर सीधे िज म म तलवार क तरह घुसती अनुभव होती थ ।
म कांप उठी।
“ितलक- हम अब चलना चािहए।” म ज दी से ितलक राजको टया का हाथ पकड़ते ए बोली—”वैसे भी सारा दन
क लाँग ाइव के कारण म काफ थक चुक ।ँ ”
“चलो।”
हम दोन लॉज म अंदर क तरफ बढ़ गये।
पर तु मुझे चलते ए भी बद तूर ऐसा महसूस हो रहा था क करतार संह क िनगाह लगातार मेरा पीछा कर रही
ह।
वह मेरी पीठ पर ही िचपक ह।
मेरी इतनी िह मत भी न ई, जो म एक नजर पलटकर उसे देख लूं।
मेरे हाथ—पांव िब कु ल बफ के समान ठ डे पड़े ए थे।
•••
कु ल िमलाकर धीरे —धीरे हमारा हनीमून का सारा मजा अब कर करा होना शु हो गया था।
शु के कु छेक दन म हमने जो हनीमून का आन द ले िलया था, बस वह ले िलया था। अब तो अजीब—सी दहशत
मुझे हर व अपने इद—िगद मंडराती महसूस होती थी। इसके अलावा मेरा यह िव ास भी दृढ़ होता जा रहा था
क सरदार करतार संह के कारण भी कु छ—न—कु छ गड़बड़ ज र होगी।
वह सरदार हंगामा करके रहेगा।
इसी कार दहशत के माहौल म हम दोन के संगापुर म तीन दन और गुजर गये।
मने ितलक राजको टया से कसी दूसरी लॉज म िश ट होने का आ ह भी कया, ले कन इसके िलए वो तैयार न आ।
वह उसक खास पसंदीदा लॉज थी।
उस लॉज म नये जोड़ के मनोरं जन के िलए अ सर नये—नये ो ाम भी होते रहते थे।
ऐसे ही एक बार वहां एक ‘डांस पाट ’ का आयोजन कया गया।
उस ‘डांस पाट ’ म ितलक राजको टया और मने भी िह सा िलया।
एक बात क फम थी।
कम—से—कम ितलक राजको टया अब पूरी तरह िच तामु था।
और फोन वाली बात तब तक वो शायद भुला चुका था।
हम दोन डां संग लोर पर एक—दूसरे क बांह—म—बांह डालकर अ य जोड़ के साथ िथरकने लगे।
“म तुमसे फर क ग ं ी ितलक!” म िथरकते ए उसके कान म ब त धीरे से फु सफु साई—”हम यह लॉज छोड़कर
कसी दूसरी जगह िश ट हो जाना चािहए।”
“यह तु ह या हो गया है िशनाया!” ितलक राजको टया झुंझलाकर बोला—”िपछले तीन दन से तुम यही एक बात
कहे जा रही हो क हम यह लॉज छोड़ देनी चािहए। आिखर तु ह यहां रहने म या परे शानी है, तमाम सुिवधाएं तो
इस लॉज म मौजूद ह।”
“म जानती ,ं इस लॉज म काफ सुिवधाएं ह।” म बोली—”ले कन अब यहां मेरा दल घबराने लगा है।”
“ य ?”
“म... मुझे लगता है,” म थोड़े भयभीत वर म बोली—”अगर हम यहां कु छ दन और ठहरे , तो हमारे साथ ज र
कोई—न—कोई घटना घट जाएगी।”
ितलक राजको टया हंस पड़ा।
हंसते ए ही उसने एक बांह मेरी कमर के िगद लपेट दी।
हम दोन के कदम िथरकते रहे।
“तुम हंस य रहे हो?” म बोली।
“माई डेलीशस डा लग!” ितलक राजको टया ने मेरे गाल का पुनः गाढ़ चु बन िलया—”तु हारी बात ही ऐसी ह।
जरा सोचो- िह दु तान से इतनी दूर एक अंजान—सी जगह पर हमारे साथ या घटना घटेगी, यहां हमारा कौन
दु मन हो सकता है।”
“मुझे उस सरदार से डर लगता है।”
“सरदार करतार संह से?”
“वही।”
“डा लग- उस बेचारे से या डरना! वह तो खुद अपनी क मत के हाथ सताया आ है।”
“तुम कु छ भी कहो- मुझे तो वह कोई ढ गी मालूम होता है।” म अपनी बात पर दृढ़ थी—”देखा नह , वह मुझे हरदम
कस तरह घूरता रहता है। मान मुझे आंख —ही—आंख म िनगल जाएगा।”
“यह तो अ छी बात है।” ितलक पुनः हंसा— “मुम कन है क वह तु हारा कोई पुराना आिशक हो।”
“बेकार क बात मत करो।” म गुरा उठी—”म साफ कहे देती ,ं म इस लॉज के अंदर अब और नह ठह ं गी।”
“ओ.के . बाबा! कल हम कोई अ छी—सी लॉज देखने चलगे।”
“ रअली?” म फु ि लत हो उठी।
“ रअली।”
“ओह ितलक- तुम सचमुच कतने अ छे हो।” म डांस करते—करते ितलक राजको टया से कसकर िलपट गयी।
वह मेरी बड़ी जीत थी।
आिखरकार मने ितलक राजको टया को वह लॉज छोड़ देने के िलए तैयार कर ही िलया था।
हम दोन और भी काफ देर तक दूसरे जोड़ के साथ वहां डांस करते रहे।
तभी एकाएक मेरी िनगाह सरदार करतार संह पर पड़ी। उसने लगभग तभी उस डां संग हॉल म कदम रखा था।
सरदार को देखते ही मेरे शरीर म सरसराहट दौड़ गयी।
उस हरामजादे क िनगाह डां संग हॉल म आने के बाद मेरी तलाश म ही इधर—उधर भटकनी शु हो गयी थी,
फर उसने जैसे ही मुझे देखा, उसक िनगाह फौरन मेरे ऊपर ही आकर ठहर गयी।
सबसे बड़ी बात ये थी क आज वो यादा शराब िपये ए भी नह था।
उसके कदम भी नह लड़खड़ा रहे थे।
उसक आंख को देखकर आज मेरे मन म न जाने य और भी यादा दहशत पैदा ई।
सरदार करतार संह क आंख म आज मेरे िलये वो अजनबीपन नह था, जो हमेशा होता था।
उनम आज िवल ण चमक थी।
मुझे लगा- सरदार मेरी असिलयत से वा फक हो गया है। म डांस करना भूल गयी।
•••
अ राि का समय था।
ितलक राजको टया उस व ब त गहरी न द म था और कमरे के अंदर उसके मि म खराटे गूंज रहे थे।
म मानो उसी मौके क तलाश म थी।
म ब त धीरे से िब तर छोड़कर उठी।
िब कु ल िनःश द।
उस समय मेरी हालत एकदम चोर जैसी थी।
मने एक नजर फर ितलक राजको टया को देखा, जो दीन—दुिनया से बेखबर सोया आ था और फर दबे पांव
कमरे से बाहर िनकल गयी।
सरदार करतार संह लॉज के दूसरे माले पर ठहरा था। म दूसरे माले क तरफ ही बढ़ी।
सी ढ़यां चढ़कर ऊपर प च
ं ी।
थोड़ी देर बाद ही म सरदार के कमरे के सामने खड़ी थी। इस बीच मने इस बात का खास याल रखा था क म कसी
क नजर म न आऊं।
मने दरवाजा खटखटाया।
“कौन है?” तुरंत मुझे अंदर से सरदार क भारी—भरकम आवाज सुनाई पड़ी।
उसके बाद िसटकनी िगरने और दरवाजा खुलने क आवाज आयी। अगले ही पल सरदार करतार संह मेरी नजर के
सामने खड़ा था। उसने चैक क लुंगी पहन रखी थी और बाजूदार बिनयान पहना आ था। उसके ल बे—ल बे के श
खुले ए कं ध पर पड़े थे। उस व वो टबन (पगड़ी) नह बांधे था।
मुझे देखकर वो िब कु ल भी न च का।
“ओह िशनाया शमा।” करतार संह बोला—”आओ, अंदर आओ।”
म बड़ी त ध—सी मु ा म कमरे के अंदर दािखल ई।
इस बात ने मुझे काफ अचि भत कया क मेरे इतने रात म आने के बावजूद भी सरदार जरा िवचिलत नह था।
“म जानदा सी, तुसी आज रात यहां ज र आओगी।” सरदार बोला—”सच तो ए है क इस व म जागकर वाडा
ही इं तजार करदा पयासी।”
“मेरा इं तजार कर रहे थे?” मेरे दल— दमाग पर भीषण िबजली गड़गड़ाकर िगरी।
“हां।”
सरदार करतार संह ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद कया और िसटकनी चढ़ाई।
फर वो पलटा।
म अभी भी बेहद कौतुहल नजर से उसे ही देख रही थी।
“ या तु ह मालूम था क म आज रात यहां आने वाली ?ं ”
“हां- म ू मलूम सी।” सरदार रह य क बढ़ो री करता आ बोला—”दरअसल िजस तरह तु सी मेरी आंखा िवच
पढ़ िल ा सी क म वाडी असिलयत नू जाण गया ,ँ उसी तरह अ सी भी वाडी आंखा िवच ऐ पढ़ िल ा सी क
तु सी इस राज़ नू जाण गयी हो क म वाडी असिलयत नू जाण गया ।ं और ए पता लगने के बाद म जानता था क
तुसी मैनूं अके ले िवच िमलने दी कोिशश करोगी। वैसे भी ऐसी खामोश मुलाकात के िलये रात से ब ढ़या टाइम और
या हो सकदा सी।”
“दै स गुड!” मने मु क ठ से करतार संह क शंसा क —”ब त अ छे! यािन शराब ने अभी तु हारे दमाग के
ायु तं को उतना नह िघस दया है, िजतना लोग समझते ह। तु हारा दमाग अभी भी पहले क तरह ही काफ
पैना है और उसम सोचने—समझने क अ छी सलािहयत मौजूद ह।”
“इवे िवच ते कोई शक ही नह क मेरे दमाग दा पैनापन बरकरार है।” करतार संह बोला—”अलब ा यादा
शराब पीने क वजह से मेरी याददा त कभी—कभी धुंधलाने लगदी है।”
“जैसे िपछले कु छ दन से धुंधला रही थी।”
“हां। बैठ जाओ।”
“नह ।” मने बैठने का उप म नह कया—”म ऐसे ही ठीक ।ं ”
मेरी िनगाह पूरी तरह सरदार के चेहरे पर टक थ ।
“सबसे पहले तो तु सी अपने याह दी मुबारका कबूल करो।” सरदार करतार संह अपने के श का जूड़ा बांधता आ
बोला—”चंगी आसामी तलाश क ी है। मुबारकां हो, बहोत—बहोत मुबारकां।”
“शटअप!” म गुरा उठी—”जरा तमीज से बात करो। तुम शायद भूल रहे हो, वह मेरे हसबै ड ह और मु बई शहर के
एक इ तदार आदमी ह। रसूख वाले आदमी ह।”
“इ त वाला बंदा ए- तभी तो म पा जी नू चंगी आसामी कह रहा ।ं वरना पा जी नू कौन पूछदा सी, कौन ऐनू घास
डालदा सी?”
“करतार संह! तुम बड़ी अजीब ून म बात कर रहे हो।” मेरी आवाज म नागवारी के िच ह थे—”मने ितलक
राजको टया को कोई जबरद ती नह फांसा है। बि क हम दोन ने ेम िववाह कया है। और ेम िववाह के मायने तो
तुम अ छी तरह समझते ही होओगे। ेम िववाह एक भावना मक स ब ध है। िजसका ज म दोन तरफ क
अ डर ट डंग के बाद ही होता है।”
“दोन तरफ क अ डर ट डंग?”
“हां।”
“ वाडी ितलक राजको टया नाल कस चीज दे ित अ डर ट डंग थी? उसके रोकड़े नाल—नावे वाली?”
“म तु हारे इस सवाल का जवाब देना ज री नह समझती।”
करतार संह सामने पड़ी एक कु स पर पैर फै लाकर बैठ गया।
“ठीक ए।” करतार संह गहरी सांस लेकर बोला—”तुसी मेरे दूजे सवाल दा जवाब दो।”
म खामोश रही।
“ या ितलक राजको टया इस गल नू जानदा सी क वाडा अतीत या है? तुसी ‘नाइट लब’ दी एक कॉलगल रह
चुक हो?”
मेरे मुंह से श द न फू टा।
“ या इस सवाल दा जवाब देना भी तुम ज री नह समझद ?”
“वो इस रह य से वा कफ नह है।” म फं से—फं से वर म बोली।
“ फर भी तुसी यह कहती हो,” करतार संह बोला—” क वो वाडे वा ते एक चंगी आसामी नह है, एक तगड़ी
आसामी नह है।”
म कु छ न बोली।
सच तो ये है, मेरा दमाग उस समय काफ तेज पीड से चल रहा था।
एकाएक सरदार करतार संह नाम क जो मुि कल मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी, म उस मुि कल का कोई हल
सोच रही थी।
•••
सरदार करतार संह ने कु स पर बैठे—बैठे सामने टेिबल पर रखी शराब क बोतल खोल डाली और फर थोड़ी—सी
शराब िगलास के अंदर पलटी।
उसके बाद ज म से िनकालकर दो आइस यूब भी उसने िगलास म डाले।
पैग तैयार हो गया।
“ या तुसी बी एक पैग लोगी?” करतार संह ने मेरी तरफ देखकर पूछा।
“नह ।”
“ य - तुसी पहले तो खूब पी दी सी। पहले तो शराब वाडा सबसे चंगा शौक सी।”
“मेरी फलहाल इ छा नह है।”
“या फर एक शरीफ बंदे दी बीवी बनने के साथ—साथ शराब नू पीना वी छोड़ द ा ए। इस तरह दे सारे नामुराद
शौका नाल त बा कर ली है। एक—आध पैग ले लो, पुराने दो तां नाल कदो—कदो याद ताजा कर लेनी चािहए।”
करतार संह ने एक—दूसरे बड़े खूबसूरत क टंग वाले िगलास म थोड़ी—सी शराब और पलट दी तथा उसम एक
आइस यूब भी डाल दया।
“लो- िचयस!”
“मने कहा न, मेरी इ छा नह है।”
“ओ.के .।”
करतार संह ने यादा बहस नह क ।
उसने िगलास वापस वह टेिबल पर रख दया।
फर वो पहले क तरह कु स क पु त से पीठ लगाकर बैठ गया और अपने िगलास म से शराब का एक घूंट चुसका।
“म वानु एक गल ब त साफतौर पर बता देना चाहता ं िशनाया शमा!” करतार संह बोला।
“ या?”
“कम—से—कम मेरी वजह से वानु यादा परे शान होने दी ज रत नह है। म वाडे राज ते ज र वा कफ ,ं
ले कन ए राज हमेशा मेरे दल िवच ही रहेगा। ए गल कभी वी मेरी जुबान ते ितलक राजको टया नूं पता नह
लगेगी।”
मने करतार संह क उन बात क तरफ कोई खास यान न दया।
मेरी आंख उसके कमरे का मुआयना करने म त लीन थ ।
वो काफ बड़ा कमरा था और हनीमून लॉज के िब कु ल बैक साइड म बना आ था। सामने क तरफ एक छोटा—सा
टैरेस था, जो एक िब कु ल उजाड़ िबयाबान इलाके क तरफ खुलता था और जहां दूर—दूर तक स ाटा था। म धीरे
—धीरे टहलती ई टैरेस पर प च ं ी।
फर मने िबयाबान इलाके क तरफ देखा।
रात के समय उस उजाड़ िबयाबान इलाके का स ाटा और भी गहरा दखाई पड़ रहा था।
“ या देख रही हो?” पीछे से करतार संह क आवाज मेरे कान म पड़ी।
“कु छ नह ।”
तभी सरदार करतार संह भी शराब का िगलास हाथ म पकड़े—पकड़े वहां टेरेस पर आ गया।
उसके मुंह से शराब के भभकारे छू ट रहे थे।
“तुसी मेरी गल सुनी।” सरदार करतार संह पुनः बोला—”कम—से—कम मेरी वजह त वानु यादा परे शान होने
क ज रत नह है।”
“म जानती ,ं इस बात को बार—बार दोहराओ मत।”
“ या जानती हो?”
“यही क तुम भले आदमी हो।” म उसक आंख म झांकते ए बोली—”शरीफ आदमी हो। तु हारे कारण मुझे कोई
नुकसान नह प च
ं ेगा। ले कन फर भी एक भयंकर गलती तो तुमसे हो ही चुक है करतार संह।”
“ या?”
“यही क तुम मुझे पहचान चुके हो। अगर शराब ने तु हारे दमाग को वाकई िघस दया होता, तो तु हारे हक म
ब त अ छा रहता। तब शायद तु हारे ऊपर वह आफत न आती, जो अब आने वाली है। म जानती ,ं तुम अपनी
जबान के प े हो। ले कन फर भी म कोई र क नह उठाना चाहती।”
“क मतलब?”
“दरअसल ितलक राजको टया को मने बड़ी मुि कल से हािसल कया है करतार संह!” म धीरे —धीरे उसक तरफ
बढ़ी—”इसम कोई शक नह क मने दौलत क खाितर ही उससे शादी क । म नाइट लब क जंदगी से तंग आ चुक
थी, मुझे दौलत चािहए थी, ढेर सारी दौलत! और वह दौलत मुझे ितलक के पास दखाई दी। करतार संह,तु हारी
जानकारी के िलए बता दूं, उसे तथा उसक दौलत को हािसल करने के िलए म एक खून कर चुक ।ं ”
“दाता! तुसी एक खून वी कर चुक हो?”
“हां।” म ब त दृढ़ श द म बोली—”एक खून! जरा सोचो, िजस आदमी को हािसल करने के िलए म एक खून कर
सकती ,ं तो वह सदा मेरी मु ी म रहे,इसके िलए म एक खून और नह कर सकती।”
“क... क कहना चांदी हो तुम?”
म एकदम चीते क भांित सरदार करतार संह क तरफ झपट पड़ी।
इससे पहले क करतार संह को मेरे खतरनाक इराद क जरा भी भनक िमल पाती, मने नीचे झुककर करतार संह
के दोन पैर पकड़ िलये और फर अपनी पूरी शि लगाकर उसे टैरेस से पीछे क तरफ उछाल दया।
करतार संह क अ य त दय ाही चीख गूंज उठी।
वह हवा म कलाबाजी खाता चला गया और फर कई मंिजल नीचे धड़ाम् से नुक ले प थर पर जाकर िगरा। नीचे
िगरते ही उसका िसर िब कु ल कसी तरबूज क तरह दो िह स म फट पड़ा। वह जंदा बचा होगा, इस बात का तो
अब ही नह था।
म टैरेस से वापस कमरे म प च
ं ी।
मेरी सतक िनगाह इधर—उधर घूम ।
शराब का वह दूसरा िगलास अभी भी टेिबल पर रखा था, िजसे करतार संह ने मेरे िलए तैयार कया था और िजसम
एक पैग शराब थी।
म एक ही घूंट म उस शराब को पी गयी और फर िगलास धोकर वापस यथा थान रखा।
फर म िब कु ल चोर क भांित कमरे से बाहर िनकली।
लॉज म पूव क भांित गहन स ाटा ा था। शायद सरदार करतार संह क दय ाही चीख कसी के कान म नह
पड़ी थी।
म तेज—तेज कदम से सी ढ़य क तरफ बढ़ती चली गयी।
•••
सुबह ितलक ने मुझे झंझोड़कर जगाया।
तब नौ बज रहे थे।
“ या हो गया?” म हड़बड़ाई।
“सरदार मारा गया।” ितलक इस तरह बोला, जैसे कोई बम छोड़ रहा हो।
“सरदार! कौन सरदार?”
“वही जो हमेशा नशे म धुत रहता था। िजसके घूरने से तुम परे शान थ ।”
“माई गॉड!” म एकदम िब तर से उठी—”वो सरदार कै से मारा गया?”
“यह अभी पता नह चला। अलब ा उसक लाश लॉज के िपछले िह से म पड़ी पाई गयी है।”
म, ितलक राजको टया के साथ—साथ अपने कमरे से बाहर िनकली।
लॉज म बड़ा जबरद त भूकंप आया आ था। पुिलस वहां प च
ं चुक थी और फलहाल लॉज के मैनेजर से पूछताछ
क जा रही थी। लॉज म ठहरे तमाम ‘हनीमून कप स’ अपने—अपने कमर से बाहर िनकल आये थे और उनके
चेहर से कट हो रहा था क सरदार करतार संह क मौत का उन सभी को ब त अफसोस है।
एक बात क मुझे ज र हैरानी थी।
रात सरदार क ह या करके आने के बाद मुझे इतनी गहरी न द कै से आ गयी? या कसी क जान ले लेना मेरे िलए
इतना सहज हो चुका था?
“लाश कहां है?” म पूरी तरह अंजान बनते ए बोली।
“वो शायद अभी भी िपछली तरफ ही है।”
हम दोन लॉज के िपछले िह से क तरफ बढ़े।
•••
सरदार करतार संह क लाश अभी भी वहां प थर पर ही पड़ी थी और खून के छ टे दूर—दूर तक िबखरे थे।
साफ जािहर था, करतार संह को बड़ी खौफनाक मौत हािसल ई थी।
फलहाल पुिलस ने उसक लाश के ऊपर चादर डाली ई थी। इसिलए उसक लाश क दुदशा नजर नह आ रही
थी। वहां आसपास पुिलस घेरा डाले थी और वह कु छ हनीमून कप स भी खड़े थे। तभी मेरी िनगाह उस कांच के
िगलास क क चय पर भी पड़ी, जो िगलास रात करतार संह के हाथ म था।
इस समय संगापुर पुिलस का एक हैड कां टेिबल नोकदार िचमटी से पकड़—पकड़कर उन क चय को उठा रहा था।
“ क चयां ब त सावधानी के साथ उठाना।” उसी ण इं पे टर ने आदेश दनदनाया—”कह कांच के ऊपर से फं गर
ि ट न िमट जाएं।”
“बे फ रिहए सर,म इसी तरह उठा रहा ।ं ”
फर इं पे टर ने दूसरे पुिलसक मय क तरफ एबाउट—टन िलया।
“यहां आसपास से कोई और सामान िमला?”
“नह सर- कु छ नह िमला।” एक थोड़ा ठगने कद का कां टेिबल बोला—”हम यहां का च पा—च पा छान चुके ह।”
“उस कमरे म से कोई संदेहजनक व तु िमली हो, िजसम यह सरदार ठहरा था?”
“नह सर- वहां से भी कु छ नह िमला।”
इं पे टर अब प थर पर चहलकदमी करते ए खुद वहां कसी संदेहजनक व तु क खोज करने लगा।
पर तु काफ देर चहलकदमी करने के बाद भी उसे कोई खास व तु न दखाई पड़ी।
“इं पे टर साहब!” तभी एक नौजवान से आदमी ने इं पे टर से कया—” या यह ह या का मामला है?”
“अभी तक जो बात सामने आयी ह,” इं पे टर िवचारपूण मु ा म बोला—”उससे तो यह ह या का मामला नह
लगता। उससे तो यह दुघटना का मामला यादा दखाई देता है।”
“दुघटना!”
“हां- दुघटना!” इं पे टर बोला—”म समझता ,ं हमेशा क तरह सरदार करतार संह रात भी अपनी बीवी के गम
म नशे म धु था। और कसी कार टहलता—टहलता अपने कमरे के टेरेस तक प च ं गया था। फर नशे क िपनक
म ही वो कसी तरह धड़ाम् से यहां नीचे िगर पड़ा और िगरते ही मर गया।”
“ज र यही आ है।” उस नौजवान ने कहा—”वैसे भी इस बेचारे भले आदमी से कसी क या दु मनी हो सकती
है, जो कोई इसक ह या करे गा।”
“ठीक बात है।”
उन दोन का वातालाप सुनकर म मन—ही—मन मु करा उठी।
•••
लॉज म वह दन ब त स ाटे म डू बा आ था। पुिलस सरदार करतार संह क लाश का पंचनामा भरकर और उसे
सीलबंद करके वहां से ले गयी थी। पुिलस ने अंितम तौर पर उसे दुघटना का मामला ही माना था।
दोपहर के उस समय बारह बज रहे थे, ितलक राजको टया ने और मने ना ते क जगह िसफ एक—एक कप याली
चाय पी। सरदार करतार संह क मौत का ितलक को भी बड़ा दुःख था और वह चुप—चुप था।
“म समझता ,ं ” ितलक चाय क चु क भरता आ बोला—”सरदार क मौत से कम—से—कम एक सम या तो हल
हो गयी है।”
“ या?”
“तुम अब लॉज बदलने क िजद् नह करोगी।”
म खामोश बैठी रही।
“या अभी भी तुम इस लॉज म नह ठहरना चाहती?”
“नह !” मने अपनी नजर झुका ल —”अब ऐसी कोई बात नह है।”
“चलो- शु है। कम—से—कम एक सम या तो िनपट ही गयी।”
म चाय चुसकती रही।
मुझे अभी भी इस बात पर यक न नह हो रहा था क म ितलक राजको टया क दौलत पर सदा कािबज बने रहने के
िलए एक ह या और कर चुक थी।
वो भी सरदार करतार संह जैसे बेहद भले ि क ह या!
उस दन हमने सारा दन हनीमून लॉज म ही आराम करते ए गुजारा। मने सारा दन अपने पसंदीदा लेखक
‘अिमत खान’ का जासूसी उप यास पढ़ा था, जब क ितलक राजको टया टेलीिवजन पर पो स के अलग—अलग
ो ाम देखता रहा।
दूसरे जोड़े भी अपना मनोरं जन करने के िलए आज कह बाहर नह गये थे।
फर एक घ टी घटना घटी।
रात के दस बज रहे थे, जब हनीमून लॉज के बैल वाय ने ितलक राजको टया को आकर बताया, उसके िलए मु बई
से फोन है।
ितलक तुर त उठकर खड़ा हो गया।
“लगता है,” ितलक राजको टया बोला—”होटल के मैनेजर का ही फोन है। म अभी फोन सुनकर आता ।ं ”
ितलक राजको टया चला गया।
म चंितत हो उठी।
या माजरा था?
य होटल का मैनेजर ितलक को वहां बार—बार टेलीफोन कर रहा था?
मने ितलक का मोबाइल फ़ोन चेक कया, नेटवक ॉ लम अभी भी थी।
मेरे दल क धड़कन तेज होने लग ।
•••
बहरहाल ितलक राजको टया जब फोन सुनकर कमरे म वापस लौटा, तो वह आज हद से यादा परे शान दखाई पड़
रहा था।
कमरे म आते ही वो धड़ाम् से कु स पर बैठ गया और बुरी तरह हांफने लगा।
उसका चेहरा िछपकली क मा नंद िब कु ल पीला जद पड़ा आ था।
“ या बात है ितलक?” म तुरंत ितलक राजको टया के नजदीक प च
ं ी और बेहद िवचिलत वर म बोली—” या
कोई बुरी खबर है?”
“हां।” ितलक ने अपने शु क अधर पर जबान फराई—”साव त भाई ने गड़बड़ कर रखी है।”
साव त भाई!
मेरे हाथ—पैर म स ाटा दौड़ गया।
साव त भाई का नाम मने बखूबी सुना था।
सावत भाई मु बई शहर का एक बड़ा दादा था। बड़ा गग टर था। त करी से लेकर जुएखाने, शराबखाने और
नारका ट स तक उसका ापक िबजनेस था। छोटे—मोटे गु डे तो साव त भाई के नाम से वैसे ही थरा उठते थे।
“साव त भाई!” म आंदोिलत लहजे म बोली—”साव त भाई ने या गड़बड़ कर रखी है?”
“तुम उस कहानी को नह समझोगी। ले कन इस व मेरा फौरन मु बई प च ं ना ज री है। आई एम सॉरी िशनाया,
मुझे अफसोस है क मेरे कारण तु हारे हनीमून का सारा मजा कर करा हो गया है और मुझे बीच म ही यह टू र
किसल करना होगा।”
“कोई बात नह ितलक!” म बोली—”अगर कोई आफत सामने आयी है, तो पहले उस आफत से िनपटना ज री है।
वैसे भी हनीमून तो हम मना ही चुके ह।”
“ओह डा लग!” ितलक राजको टया एकाएक कु स छोड़कर खड़ा हो गया और उसने कसकर मुझे अपनी बांह म
समेट िलया—”तुम सचमुच कतनी समझदार हो। तुमसे मुझे ऐसे ही कसी जवाब क उ मीद थी।”
म ितलक राजको टया के सीने से लगी उसक आंख म झांकती रही।
“हम िह दु तान वापस कब जाना होगा?”
“कल सुबह ही हम संगापुर छोड़ दगे।” ितलक बोला—”बि क अपने सामान क पै कं ग भी हमने अभी करनी है।
य क कल सुबह हमारे पास यादा समय नह होगा।”
म च कत थी।
मुझे उ मीद भी नह थी क संगापुर से इतनी ज दी हमारी वापसी हो जाएगी।
हालात वाकई ब त ज दी नये—नये मोड ले रहे थे।
ितलक और म रात को ही सामान क पै कं ग करने म जुट गए।
“ले कन तु हारे सामने मुि कल या है ितलक!” म अटैची म अपने कपड़े रखते ए बोली—”आिखर मुझे भी तो कु छ
बताओ?”
“कु छ कारोबार से स बि धत ही मुि कल है।” ितलक राजको टया बोला—”तुम बे फ रहो, म सब स भाल लूंगा।”
ले कन मेरा दल धड़क—धड़क जा रहा था।
साव त भाई!
मेरे र गटे खड़े करने के िलए बस वही एक नाम काफ था।

जबरद त टशन
बहरहाल अगले दन सुबह ही हम दोन ने संगापुर छोड़ दया।
हमारे दस बजे वाली लाइट के ट कट बुक ए।
ितलक राजको टया तो सुबह आठ वाली लाइट ही पकड़ना चाहता था। पर तु उस लाइट के हम ट कट नह िमले,
वो पहले ही फु ल थी।
इसिलए मजबूरन हम उससे दो घ टे बाद वाली लाइट ही पकड़नी पड़ी।
ितलक राजको टया सारे रा ते परे शान दखाई देता रहा।
कसी मैगजीन या अखबार पढ़ने म भी उसक कोई दलच पी नह थी।
मुझसे भी वो ब त कम बात कर रहा था।
“ितलक!” म सीट पर बैठे—बैठे बोली—”म समझती ,ं मुि कल उतनी सहज नह है, िजतनी तुम शो कर रहे हो।”
“ य ?”
“ य क अगर मुि कल सहज होती, तो तुम इतना परे शान ह गज न दखाई पड़ते।”
“म कहां ब त यादा परे शान ।ं ” ितलक धीरे से मु कराया।
म बड़ी पैनी िनगाह से उसक तरफ देखने लगी।
“इस तरह या देख रही हो?”
“लगता है- तुम मेरे ऊपर िव ास नह करते हो ितलक!”
“ऐसी कोई बात नह है।”
“नह - ऐसी ही बात है।” म दृढ़तापूवक बोली— “अगर तुम मेरे ऊपर िव ास करते, तो तुम मुझे सब कु छ बताते।
मुझसे कु छ भी िछपाने क ज रत नह थी।”
“मने कहा न- कु छ कारोबार से स बि धत मुि कल ह। अब म तु ह उनक या िडटेल समझाऊं!”
म फर खामोश हो गयी।
सच बात तो ये है, ितलक राजको टया अब मुझे बदला—बदला नजर आ रहा था।
शादी के पहले वाले ितलक म और आज के ितलक म जमीन—आसमान का फक था।
मुझे मालूम था- अगर मद, औरत से कु छ भी छु पाने लगे, तो औरत को फौरन समझ जाना चािहए क मद पूरी तरह
उसक मु ी म नह है।
और इस व ऐसा ही कु छ अहसास मुझे हो रहा था।
आप समझ सकते ह, यह अहसास मेरे िलए कतना क दायक था।
कतना दहला देने वाला था।
ज द ही हमारे लेन ने मु बई एयरपोट पर लै ड कया।
उस दन मने एक नई बात और नोट क । होटल का मैनेजर खुद ितलक राजको टया को रसीव करने बीएमड यू
लेकर वहां आया था।
ितलक को देखते ही वह तुर त उसके पास प च
ं ा।
उसने हाथ जोड़कर हम दोन का अिभवादन कया।
मैनेजर भी चंितत दखाई दे रहा था।
“सब कु छ ठीक है?” ितलक ने पूछा।
“यस सर- फलहाल तो सबकु छ ठीक ही है। आइए।”
वह हम लेकर गाड़ी के नजदीक प च
ं ा।
ितलक राजको टया ने मुझे कार क ट सीट पर बैठा दया।
कार दौड़ पड़ी।
सारे रा ते वह दोन ब त धीमी आवाज म न जाने या— या बात करते रहे।
उनक कोई बात मुझे नह सुनाई दे रही थी।
मेरी ता बढ़ने लगी।
•••
सुबह ितलक राजको टया नहा—धोकर काफ ज दी तैयार हो गया था। मोबाइल पर न जाने कन— कन लोग से
बात करता रहा था और दन िनकलते ही वो फर तैयार था।
तभी डॉ टर अ यर के पथ हाउस म कदम पड़े।
डॉ टर अ यर का उस ण वहां आगमन िब कु ल अ यािशत था।
“आओ डॉ टर!” ितलक अपनी टाई क नॉट कसता आ बोला—”आज काफ दन बाद दखाई दे रहे हो।”
“ऐ ा- म तो दखाई भी दे रहा ।ं ले कन आप लोग तो मुझे िब कु ल ही भूल गये थे।” डॉ टर अ यर बोला-“आिखर
मु गन क कृ पा से इतना बड़ा ो ाम कर डाला। शादी बना डाली। और इस डॉ टर को पता तक नह लगने दी,
खबर तक नह भेजी।”
ितलक राजको टया के साथ—साथ म भी च क ।
वाकई!
यह गलती तो हमसे ई थी।
मुझे फौरन यान आया- सचमुच हम डॉ टर अ यर को शादी क पाट म बुलाना भूल गये थे।
“सॉरी डॉ टर!” ितलक ने आगे बढ़कर डॉ टर अ यर का हाथ अपने हाथ म ले िलया—” रअली वैरी सॉरी!
सचमुच यह हमसे ब त भारी भूल ई है।”
“दरअसल सारा ो ाम इतनी तेजी से बना!” मने भी सफाई दी—” क हम अपने ब त से प रिचत को बुलाने म
चूक गये।”
डॉ टर अ यर के होठ पर बड़ी शाितराना मु कान दौड़ गयी।
वह मु कान ऐसी थी, जो कसी ब त खतरनाक आदमी के होठ पर ही आती है।
“कोई बात नह ऐ ा!” डॉ टर अ यर बोला—”आप लोग मुझे एक बार भूले हो, ले कन अब शायद िज दगी भर
नह भुला पाओगे।”
“ या मतलब?” ितलक राजको टया च का।
“बैठो ितलक साहब, मुझे आपसे कु छ ज री बात करनी है।”
“ले कन फलहाल मेरे पास यादा समय नह है। मुझे ज दी कह प च
ं ना है।”
“समय तो वाकई आपके पास ब त यादा नह है।” डॉ टर अ यर अथपूण लहजे म बोला—”खासतौर पर मेरी
बात सुनने के बाद तो आपको यह अहसास और भी यादा अ छी तरह होगा। फलहाल बैठ जाओ- मुझे आपसे बृ दा
के बारे म बात करनी है और वो ब त ज री बात ह।”
बृ दा!
मेरे िज म का एक—एक र गटा खड़ा हो गया।
और बृ दा का नाम सुनकर यही हाल ितलक राजको टया का आ।
•••
म ितलक राजको टया और डॉ टर अ यर, हम तीन उस समय अलग—अलग कु सय पर आमने—सामने बैठे थे।
खासतौर पर मेरी और ितलक क तो अजीब हालत थी।
िजस बृ दा के चै टर को हम िब कु ल ख म आ समझ बैठे थे, उसी चै टर को डॉ टर अ यर ने इतने ामे टक अंदाज
म आकर खोला था क हम अंदर तक िहल गये।
“ या कहना चाहते हो तुम बृ दा के बारे म?” ितलक, डॉ टर अ यर क तरफ देखता आ बोला।
“उसके बारे म कहने को अब बचा ही या है?” डॉ टर अ यर हंसा।
उसक हंसी फर बड़ी अजीब थी।
“मतलब?”
“ऐ ा- अगर आप ऐसा सोचते हो,” डॉ टर अ यर एक—एक श द चबाता आ बोला—” क इं सान के मरने के साथ
ही उससे जुड़ी तमाम बात भी ख म हो जाती ह, तब तो म यही क ग
ं ा क मुझे आपक अ ल पर तरस आता है।”
“ य - इसम तरस आने क या बात है?”
“ य क कभी—कभी जंदा इं सान भी इतना हंगाम नह करता ितलक साहब, िजतना उसक लाश करती है। और
अब ऐसा ही कु छ बृ दा के साथ हो रहा है, उसक लाश ने हंगामा बरपा करके रख दया है।”
“कै सा हंगामा?” मेरे गले म काटे से उगे।
मेरे दल क र तार तेज होने लगी।
“दरअसल पूरे एक महीने तक बृ दा का शव िविभ कै िमकल के बीच ‘मैडीकल रसच सोसायटी’ के मोग म रखा
रहा था।” डॉ टर अ यर ने बताना शु कया—” फर कोई एक स ाह पहले उस शव पर रसच करने के िलए एक
कमेटी ग ठत क गयी। बृ दा को चूं क ‘मेलीगट लड िडस े िसया’ जैसी ग भीर बीमारी थी, इसिलए उसी बीमारी
को आधार बनाकर जांच का काम चुना गया। ता क उस बीमारी क बेिसक बात का पता लगाया जा सके और फर
उस बीमारी पर पूरी तरह कं ोल करने क दवाइयां बने। मेरे अ डर म जांच का यह काय शु आ। आपको सुनकर
आ य होगा राजको टया साहब- जब हम बृ दा के आमाशय क जांच कर रहे थे, तभी कु छ धमाकाखेज त य मेरे
सामने उजागर ए।”
“कै से धमाकाखेज त य?”
“जैसे बृ दा के आमाशय म कु छ ऐसी टेबलेट के ब त सू म कण पाये गये, जो न द क टेबलेट थ । इसके अलावा
‘डायिनल’ टेबलेट के भी ब त सू म कण मने बृ दा के अमाशय म देखे। उन कण को देखकर म च क उठा। य क
मने बृ दा को न तो कभी न द क गोिलयां ही खाने के िलए दी थ । और ‘डायिनल’ उ ह देने का तो ही कोई नह
था। य क ‘डायिनल’ तो िसफ शुगर के पेशे ट को दी जाती है ऐ ा- जब क बृ दा को तो शूगर दूर—दूर तक नह
थी।”
मेरे पसीने छू ट पड़े।
उस घांघ डॉ टर क जबान से ‘डायिनल’ और न द क टेबलेट का नाम सुनकर मेरी बुरी हालत हो गयी।
“इसके अलावा एक बात और थी ऐ ा!”
“ या?”
“उन दोन टेबलेट के कण बृ दा के आमाशय म भारी तादाद म थे। ऐसा मालूम पड़ता था- जैसे कसी ने वह काफ
सारी टेबलेट उ ह एक साथ िखला दी थ । जानते हो, इसका या मतलब होता है?”
“क... या मतलब होता है?” ितलक राजको टया क आवाज बुरी तरह कं पकं पाई।
उसक हालत ऐसी थी, मान कसी ने उसे चोरी करते रं गे हाथ पकड़ िलया हो।
“इसका िसफ एक ही मतलब है।” डॉ टर अ यर बोला—”बृ दा क मौत वाभािवत मौत नह थी। वह एक फु ल ूफ
मडर था। कसी ने ब त लान के साथ, बड़े ही योजनाब तरीके से बृ दा क ह या क थी।”
“ह या!”
पूरे कमरे म धमाके —पर—धमाके होते चले गये।
जोरदार धमाके !
•••
मेरी आंख म दहशत नाच उठी।
मने सोचा भी न था- िजस बृ दा क ह या हमने इतने योजनाब ढंग से क है, उस ह या के ऊपर से इस तरह भी
पदा उठे गा।
वाकई वो हैरतअंगेज मामला था।
जबरद त हैरतअंगेज!
“ह या!” म स त अचि भत लहजे म बोली—”ले कन बृ दा क ह या कौन करे गा डॉ टर?”
डॉ टर अ यर के होठ पर पुनः बड़ी वेधक मु कान उभरी।
“ या इस सवाल का जवाब भी मुझे ही देना होगा?”
मेरे बदन म िसरहन दौड़ गयी।
उफ् !
वह साफ—साफ मेरे ऊपर शक कर रहा था।
और सबसे बड़ी बात ये थी, अपने शक को छु पा भी नह रहा था क ब त!
“बृ दा का ह यारा वही है िशनाया जी!” डॉ टर अ यर बोला—”िजसे उसक मौत से सबसे बड़ा फायदा िमला हो।
अब आप खुद मुझे सोचकर बताइए क उनक मौत से सबसे बड़ा फायदा कसे प च ं ा है?”
म दाय—बाय बगले झांकने लगी।
“इसके अलावा िजसने बृ दा क ह या क है, उसे एक स िलयत और हािसल थी।”
“क... या?”
“वो उ ह टेबलेट भी िखला सकता था?”
मेरे रहे—सहे कस—बस भी ढीले पड़ गये।
“िशनाया जी, अब आप खुद ही मुझे यह सोचकर बता दीिजए क यहां ऐसा कौन आदमी है।” डॉ टर अ यर बोला
—”िजसे यह दोन स िलयत हािसल ह । िजससे यह दोन बात मैच करती ह ।”
“आप कहना या चाहते ह।” ितलक राजको टया एकाएक मेरे प म गुराया—” या आपके कहने का मतलब है क
िशनाया ने बृ दा क ह या क है? िशनाया अपराधी है?”
“म तो कु छ भी नह कहना चाहता ऐ ा!” डॉ टर अ यर बोला—”मेरा या मजाल, जो म साहब लोग के िखलाफ
कु छ क ।ं म तो िसफ गुजरे ए हालात क त वीर आपके सामने पेश कर रहा ।ं कु छेक लू आप लोग के सामने
रख रहा ,ं जो मेरे हाथ लगे ह। कसी को अपराधी सािबत करना या न करना मेरा काम थोड़े ही ह, यह तो पुिलस
का काम है। पुिलस खुद करे गी।”
“पुिलस!”
मेरी ह फनां हो गयी।
“तुम पुिलस के पास जाओगे?” ितलक राजको टया एकदम से बोला।
“जाना ही पड़ेगा। पुिलस के पास जाये िबना बात भी तो नह बनती दखाई पड़ती।”
ितलक राजको टया भी अब साफ—साफ भयभीत नजर आने लगा।
हालात एकाएक खराब होने शु हो गये थे।
“वह तो इस पूरे करण म मु गन क एक ब त बड़ी कृ पा ई है ितलक साहब!” डॉ टर अ यर बोला।
“ या?”
“यही क बृ दा ने मरने से पहले िच ी िलखकर अपना शव मैिडकल रसच सोसायटी को दान दे दया। वरना जरा
सोिचये- अगर तभी बृ दा के शव का दाह—सं कार हो जाता, वो अि क भट चढ़ जाता, तब तो कु छ भी पता न
चलता। तब तो इन रह य के ऊपर से पदा उठने का ही कु छ नह था।”
“ले कन अभी यह बात पूरी तरह सािबत थोड़े ही ई है।” म शु क वर म बोली—” क बृ दा के आमाशय म जो
सू म कण िमले ह, वो ‘डायिनल’ तथा न द क गोिलय के ही ह।”
“ठीक कहा तुमने।” डॉ टर अ यर बोला—”अभी यह बात पूरी तरह सािबत नह ई। अभी मने उन सू म कण क
जो खुद ारि भक जांच क है, उ ह से यह रज ट िनकलकर सामने आया है। फलहाल मने उन कण को
उ तरीय जांच के िलए पैथोलोजी लैब म भेजा आ है और वहां से रपोट आते ही सबकु छ सािबत हो जाएगा। वैसे
मुझे इस बात क उ मीद कम ही नजर आती है क मेरी रपोट और पैथोलोजी लैब क रपोट म कोई फक होगा।”
“लैब से रपोट कब आएगी?”
“दो—तीन दन म ही आ जाएगी।”
•••
ितलक राजको टया अब इस बात को िब कु ल भूल चुका था क उसने कह जाना भी है।
इस समय उसका सारा यान डॉ टर अ यर क तरफ था।
उसके माथे पर पसीने क ढेर सारी बूंद चुहचुहा आय , िजसे उसने माल से साफ कया।
यही हाल मेरा था।
मेरा तो पूरा शरीर पसीने म लथपथ था।
और म तो उस घाघ डॉ टर से अपने पसीन को छु पाने का भी यास नह कर रही थी। आिखर म जानती थी, चूहा
—िब ली का यह खेल खेलने से अब कोई फायदा नह है।
डॉ टर अ यर हमारी ‘योजना’ के बारे म सब कु छ जान चुका है।
सब कु छ!
ितलक राजको टया कु स छोड़कर खड़ा हो गया। उसने िसगरे ट सुलगा ली। फर वो बेचैनीपूवक इधर—से—उधर
टहलने लगा।
म आज उसे दूसरी मतबा िसगरे ट पीते देख रही थी।
“ या सोच रहे ह ऐ ा?” डॉ टर अ यर मु कराया।
“कु छ नह ।”
“कु छ तो?”
“म तुमसे कु छ कहना चाहता ं डॉ टर!”
“ या?”
“देखो।” ितलक राजको टया टहलते—टहलते ठठका और उसने िसगरे ट का एक छोटा—सा कश लगाया—”मेरी
बात यान से सुनो। जहां तक म समझता ,ं अभी यह पूरी तरह सािबत नह आ है क बृ दा क ह या ही ई है
और वह वाभािवक मौत नह मरी। इसके अलावा अभी यह भी ह ेड परसे ट सािबत नह आ है क बृ दा के
आमाशय से िजन टेबलेट के सू म कण बरामद ए, वह ‘डायिनल’ और ‘न द’ क टेबलेट ही थी। पैथोलोजी लैब क
रपोट आने के बाद ही कह कु छ सािबत हो पाएगा क असली मामला या है।”
“तुम कहना या चाहते हो?”
“म तुमसे िसफ एक बात कहना चाहता ।ं ”
“ या?”
डॉ टर अ यर गौर से ितलक राजको टया क सूरत देखने लगा।
और!
मेरी िनगाह भी उसी क तरफ थी।
म नह जानती थी, ितलक या कहने जा रहा है।
“म चाहता ं डॉ टर- जब तक पैथोलोजी लैब क रपोट न आ जाए और जब तक यह पूरी तरह सािबत न हो जाए
क बृ दा क वा तव म ही ह या क गयी है, तब तक यह मामला यादा उछलना नह चािहए।”
“ य ?”
“ य क म ऐसा चाहता ।ं ” ितलक क आवाज दृढ़ हो उठी—”जरो सोचो, अगर यह मामला पहले—से—पहले ही
उछल गया और बाद म कह जाकर यह सािबत आ क बृ दा क ह या नह ई थी, वह वाभािवक मौत मरी थी,
तब तो तु हारी अ छी—खासी छीछालेदारी हो जाएगी।”
डॉ टर अ यर के होठ पर पुनः ह क —सी मु कान तैरी।
वह धीरे —धीरे वीकृ ित म गदन िहलाने लगा।
“मेरी आपको काफ फ है ितलक साहब!”
“तुम कु छ भी समझ सकते हो।”
“ठीक है ऐ ा!” डॉ टर अ यर बोला—”जब तक पैथोलोजी लैब क रपोट नह आ जाती, तब तक म पुिलस के पास
नह जाऊंगा। तब तक यह मामला िब कु ल नह उछलेगा।”
“थ यू- थ यू वैरी मच! मेरे एक सवाल का जवाब और दो।”
“पूछो।”
“तु हारे अलावा यह बात और कौन—कौन जानता है?”
“कोई भी नह जानता। िसफ एक मेरा ब त खास आदमी है ऐ ा- िजसे मने जानबूझकर इस मामले म अपना
राजदार बनाया है। इतना ही नह - म इस व यहां भी आया ,ं तो उसे इस बात क भी जानकारी है क म यहां
।ं ”
“ य - तुमने उसे अपना राजदार य बनाया?”
डॉ टर अ यर हंसा।
“आप भी कभी—कभी िब कु ल ब जैसी बात करते ह ितलक साहब!”
“इसम ब जैसी या बात है?”
“दरअसल जब कोई समझदार आदमी भूखे भेिड़य क गुफा म हाथ डालता है, तो वह अपनी सुर ा के तमाम
इं तजाम करके रखता है। मेरा मानना है, जो आदमी अपने फायदे के िलए एक खून कर सकते ह, उनके िलए दूसरा
खून कर देना भी कोई बड़ी बात नह ।”
म स रह गयी।
सचमुच वो म ासी ब त चालाक था।
ब त यादा शाितर!
“एक बात म आप लोग को और बता दूं।” डॉ टर अ यर बोला।
“ या?”
“अगर म एक घ टे के अंदर—अंदर पथ हाउस से बाहर न िनकला, तो मेरा जो राजदार है, वो पुिलस के पास प च

जाएगा। वो पुिलस के सामने प च
ं कर बृ दा क मौत का सारा भांडा फोड़ देगा।”
“ओह!”
“मुझे अब चलना चािहए।” फर डॉ टर अ यर अपनी र टवाच देखता आ बोला—”मुझे यहां आये ए पचास
िमनट हो चुके ह। अगर कह मुझे यादा देर हो गयी, तो गड़बड़ हो जाएगी।”
डॉ टर अ यर अपनी कु स छोड़कर खड़ा हो गया।
फर दरवाजे क तरफ बढ़ते—बढ़ते वो एकाएक ठठका।
उसके ठठकने का अंदाज ऐसा था, मान एकाएक उसे कु छ याद आया हो।
“ऐ ा- मुझे आपसे कहना तो नह चािहए।” वह ितलक राजको टया क तरफ देखता आ बोला—”ले कन एकाएक
ज रत ऐसी आन पड़ी है क मुझे ब त मजबूरी म आपसे कहना पड़ रहा है।”
“ या कहना चाहते हो?”
“दरअसल मने कोई साल भर पहले एक पजेर कार क त पर ली थी।” डॉ टर अ यर बोला—”आज ही मने उस
कार क क त फाइनस कं पनी म जमा करनी है, जब क क त देने को मेरे पास िब कु ल भी पये नह ह। अगर आप
मुझे क त के पये उधार दे द, तो आपक ब त—ब त मेहरबानी होगी।”
हम दोन के दल— दमाग पर भीषण िबजली गड़गड़ाकर िगरी। वह हम साफ—साफ लैकमेल कर रहा था।
“आप लोग इ मीनान रख।” फर वो ज दी से बोला—”जैसे ही मेरे पास पय का इं तजाम होगा, म सबसे पहले
आपक रकम लौटाऊंगा।”
“ कतनी क त देनी है।”
“िसफ तीन लाख!” उस दु ने ख से—सी िनपौरी—”आपके िलये िब कु ल भी यादा नह है ऐ ा, बस हाथ का मैल
है। दरअसल िपछली क त भी नह गयी थ ।”
“ठीक है- तुम को, म अभी तीन लाख पये लाकर देता ।ं ”
“और जरा ज दी लेकर आना। एक घ टा पूरा होने से पहले मने पैथ हाउस से बाहर भी िनकलना है।”
•••
ितलक राजको टया और म अलग—अलग कु सय पर िब कु ल स बैठे थे।
इस तरह!
जैसे कोई रोडरोलर गड़गड़ाता आ हम दोन के ऊपर से गुजर गया हो।
जैसे हम जंदा लाश म बदल गये हो।
डॉ टर अ यर तीन लाख पये लेकर पथ हाउस से जा चुका था, पर तु उसने अपने पीछे जो खौफनाक स ाटा छोड़ा
था, वो अभी भी बरकरार था।
“म आपसे या कहती थी।” आिखरकार मने ही उस स ाटे को भंग कया—” क यह ब त हराट डॉ टर है। इसके
कारण कभी—न—कभी हंगामा ज र होगा और इसने हंगामा कर ही दया।”
“ठीक कहा तुमने।” ितलक ने िसगरे ट का टोटा एश— े म रगड़कर बुझाया और गहरी सांस ली—”वाकई म सोच भी
नह सकता था क यह म ासी भी ऐसी हरकत करे गा। म इसे बेइ तहां शरीफ आदमी समझता था।”
“ऐसे शरीफ आदमी ही आ तीन के सांप होते ह। ऐसे आदमी ही झंझट को ज म देते ह।”
ितलक राजको टया शा त रहा।
उसके चेहरे पर गहन िच ता के भाव थे।
“और सच तो ये है ितलक- इस हंगाम क सबसे बड़ी वजह बृ दा है।”
“बृ दा!”
“हां बृ दा!” म बोली—”जरा सोचो, अगर वो अपनी लाश ‘मेडीकल रसच सोसायटी’ को दान देकर न जाती, तो
ऐसा कोई हंगामा न होता। ले कन उसने अपनी लाश ‘मेिडकल रसच सोसायटी’ को दान देकर एक बड़े झगड़े क
आधारिशला रख दी। जब उसने सीलबंद िलफाफे म अपनी यह अंितम इ छा कट क थी, तब मने सोचा था क यह
कोई खास बात नह है। ले कन अब मुझे महसूस हो रहा है क साधारण—सी नजर आने वाली वो बात वा तव म
कतनी असाधारण थी- उसक वजह से कतना बड़ा हंगामा बरपा हो गया है।”
ितलक राजको टया साफ—साफ आतं कत नजर आने लगा।
उसने एक दूसरी िसगरे ट और सुलगा ली।
“बृ दा क तु ह वह बात याद है िशनाया!” ितलक बोला—”जो उसने मरते ए कही थी।”
“कौन—सी बात?”
“यही क हर चालाक अपराधी जुम करने से पहले यही समझता है क कानून उसे कभी नह पकड़ पाएगा, वो कभी
कानून के िशकं जे म नह फं सेगा। पर तु होता इससे िब कु ल उ टा है। होता ये है क इधर अपराधी, अपराध करता है
और उधर कानून का फं दा उसके गले म आकर कस जाता है।” ितलक राजको टया ने गहरी सांस छोड़ी—” कतना
सच कहा था बृ दा ने।”
“यह सब बेकार क बात ह।”
“अगर यह बेकार क बात होती िशनाया!” ितलक बोला—”तो हम आज इस तरह फं सते नह । ह या क इतनी
फु ल ूफ योजना बनाने के बाद भी वो म ासी डॉ टर इस कार हमारे ऊपर हावी न हो जाता।”
“मेरी बात सुनो।” मेरा दमाग एकाएक स य हो उठा—”म समझती ं क हालात ज र िबगडे ह—ले कन अभी
भी वो पूरी तरह हमारे काबू से बाहर नह हो गये ह।”
“कै से?”
“उस म ासी डॉ टर के बारे म कम—से—कम अब एक बात तो सािबत हो ही चुक है। वो लालची है, नोट का
भूखा है। अगर वो लालची न होता, तो वह हमारे पास ह गज न आता। तब वो सीधा पुिलस के पास प च
ं ता। जो
कहानी उसने हम सुनाई, उसने वो कहानी सीधे पुिलस को जाकर सुनानी थी।”
“यह तो है।”
“बस अगर हम चाह,” म उ साहपूवक बोली—”तो हम उस म ासी डॉ टर क इस कमजोरी का फायदा उठा सकते
ह।”
“ कस तरह?”
ितलक राजको टया िसगरे ट का कश लगाते—लगाते ठठका।
उसके ने गोल दायरे म िसकु ड़ गये।
“ फलहाल हम यह देखना है क वो म ासी हमारे िखलाफ अब अगला कदम या उठाएगा।” म बोली—”उसका
अगला ए शन या होगा। इसके बाद ही हम कोई िनणय करगे।”
ितलक राजको टया ने िसगरे ट का एक छोटा—सा कश लगाया।
10

प का जादू
दो दन तक कोई िवशेष घटना न घटी।
तीसरे दन क बात है।
ितलक और म िब तर पर थे। अ राि का समय था। हम दोन धीरे —धीरे रित ड़ा क तैयारी म म थे।
यह कोई कम बड़े आ य क बात नह है क इतने झंझट के दौरान भी म ितलक राजको टया को सै स के िलए
तैयार कर ही लेती थी और बाकायदा दल से तैयार करती।
अगर मने उसक दौलत पर कािबज रहना था, तो यह मेरे िलए ब त ज री था क मेरे प का जादू उसके ऊपर
चलता रहे।
फलहाल ितलक नीचे था।
म ऊपर!
कु छ अजीब—सा पोज था।
मेरी बाह अमरबेल क तरह उसके गले से िलपटी थ ।
मने थोड़ा उ मा दत होकर उसके होठ का चु बन ले िलया।
ितलक के होठ पर मु कान िखल उठी।
“तुम मेरी सारी थकान एक ही झटके म दूर कर देती हो िशनाया!”
“सच कह रहे हो?”
“हां।”
ितलक ने बड़े अनुरागपूण ढंग से मुझे अपनी मजबूत बांह म भ च िलया और फर इतनी जोर से कसा क मुझे ऐसा
महसूस आ, मान मेरे िज म क एक—एक ह ी कड़कड़ा उठे गी।
फर उसके हाथ मेरी मखमली बांह पर फसल आये।
म िसहर उठी।
उस ण म आंख बंद करके यार के उन ल ह का भरपूर लु फ उठा रही थी। उसक रोमांसपूण हरकत ने मेरे िज म
क धड़कन बढ़ा दी थ ।
वह रह—रहकर मेरे अंग पर ह ठ रगड़कर िज म म सनसनाहट उ प करने लगा।
फर उसने एक हरकत और क ।
वह मुझे अपनी बांह म दबोचकर िब तर पर कलाबाजी खा गया।
म अब उसी जगह आ गयी, जहां रित डा के दौरान एक औरत को होना चािहए।
ितलक मेरे ऊपर था।
हम धीरे —धीरे यार का खेल, खेल रहे थे।
रात यूं सरक रही थी- जैसे कसी दु हन के िसर से आिह ता—आिह ता िसतार ढंका सुरमई आंचल सरकता जा रहा
हो।
हम रित ड़ा के चरम—िब दु पर प च
ं ते, उससे पहले ही मोबाइल फ़ोन क बेल एकाएक ब त जोर से बज उठी।
बेल क उस आवाज ने हमारी सारी त ा भंग करके रख दी।
•••
मोबाइल क बेल लगातार जोर—जोर से बज रही थी।
ितलक राजको टया मेरे ऊपर से हटा और उसने िब तर पर ही थोड़ा आगे को सरककर मोबाइल उठाया।
“हैलो!” ितलक राजको टया ने मोबाइल कान से लगाकर थोड़ी ऊंची आवाज म कहा।
दूसरी तरफ से कोई कु छ बोला।
“डॉ टर अ यर!” ितलक राजको टया के मुंह से एकाएक तेज िससकारी छू टी।
म तुरंत भांप गयी- वह उसी दु म ासी डॉ टर का फोन था।
म फौरन ितलक के करीब िसमट आयी और टेलीफोन पर होने वाला वातालाप सुनने क कोिशश करने लगी।
ले कन दूसरी तरफ क कोई बात मुझे नह सुनाई पड़ रही थी।
“ या कह रहे हो?” ितलक एकाएक ब त भयभीत हो उठा—”नह - नह , तुम ऐसा नह करोगे डॉ टर!”
दूसरी तरफ से मुझे िसफ डॉ टर अ यर के हंसने क आवाज सुनाई पड़ी।
फर उसने कु छ कहा।
जैसे—जैसे वो बोल रहा था, ठीक उसी अनुपात म ितलक के चेहरे का रं ग उड़ने लगा था।
वह —
ं हां करने लगा।
उसक हालत बुरी होती जा रही थी।
“ले कन यह तो ब त यादा है।” ितलक ने अपने शु क होठ पर जुबान फराई—”कु छ कम नह हो सकते?”
डॉ टर अ यर ने फर कु छ कहा।
ितलक के चेहरे पर दहशत साफ—साफ मंडराती दखाई पड़ रही थी।
साफ जािहर था- डॉ टर जो कु छ बोल रहा है, वह कोई साधारण बात नह है।
वह कोई डजर बात है।
ब त डजर!
“ठीक है।” ितलक ने दाय—बाय गदन िहलाई—”म कल दे दूंगा।”
डॉ टर अ यर ने फर कु छ कहा।
“हां- फाइनल!” ितलक बोला।
•••
ितलक राजको टया जब मोबाइल रखकर मेरी तरफ घूमा, तो उस ण तक वह पसीन म बुरी तरह लथपथ हो चुका
था।
उसका दल जोर—जोर से पसिलय को कू ट रहा था।
उसक ऐसी हालत थी- मान कसी ने उसके िज म का सारा खून िम सी म डालकर िनचोड़ डाला हो।
“ या आ?” मने ितलक राजको टया के थोड़ा और िनकट आकर पूछा।
“डॉ टर अ यर का फोन था।”
“वह तो म समझ चुक ,ं ले कन या कह रहा था वो दु आदमी?”
“हमारे िलए खबर कोई अ छी नह है िशनाया!” ितलक ने बड़े िवचिलत अंदाज म मेरी तरफ देखा।
“ले कन कु छ आ भी?”
“दरअसल पैथोलोजी लैब से रपोट आ गयी है। यह अब पूरी तरह सािबत हो चुका है क बृ दा के आमाशय म जो
सू म कण पाये गये, वो ‘डायिनल’ और न द क गोिलय के ही थे। इतना ही नह - उस हरामजादे को अब यह भी
पता चल चुका है क उस रात हमने बृ दा क ह या करने के िलए उसे जो टेबलेट द , उसक कु ल सं या बीस थी।”
“ओह!”
मेरे िज म के र गड़े खड़े हो गये।
म भी थरा उठी।
सचमुच वो एक खतरनाक खबर थी।
“यह तो वाकई ठीक नह आ है ितलक!” म आहत मु ा म बोली—”उस शैतान को टेबलेट क सही—सही सं या
भी मालूम हो जाना वाकई आ यजनक है। अब या कह रहा है वो?”
“ फलहाल पुिलस के पास जाने क धमक दे रहा था।” ितलक बोला—”मने बड़ी मुि कल से उसे रोका है।”
“ कस तरह का वो?”
ितलक राजको टया ने नजर नीचे झुका ल ।
“कु छ मुझे बताओ तो।”
“उसने बीस लाख पये क िडमांड और क है।”
मचक।
“बीस लाख!”
“हां।”
“और तुमने उसक वह िडमांड मंजूर कर ली?”
“करनी ही पड़ी।” ितलक राजको टया बेबसीपूण लहजे म बोला—”इसके अलावा मेरे सामने दूसरा रा ता ही या
था। वरना वो अभी पुिलस के पास जाने क धमक दे रहा था।”
“उफ् !”
म और भी अिधक आतं कत हो उठी।
लैकमे लंग के ऐसे ब त सारे क से म जासूसी उप यास म पढ़ चुक थी।
म जानती थी- इस तरह के क स का अंत या होता है।
“तुम शायद अनुमान नह लगा सकते ितलक!” म धीम आवाज म बोली—”यह एक ब त खतरनाक िसलिसले क
शु आत हो गयी है। वह दु आदमी अब िब कु ल साफ—साफ लैकमे लंग पर उतर आया है।”
“म भी सब कु छ महसूस कर रहा ।ं ” ितलक बोला—”सच तो ये है िशनाया, अगर मुझे पहले से मालूम होता क म
बृ दा क ह या करके इतने बड़े संकट म फं स जाऊंगा, तो म कभी उसक ह या न करता। वैसे ही म आजकल काफ
उलझन म िघरा आ ।ं ”
“ या तुम मुझसे शादी करके पछता रहे हो ितलक?”
“नह - ऐसी कोई बात नह है।”
ले कन मुझे भली—भांित महसूस आ, ितलक आजकल कोई यादा खुश नह है।
मुझसे भी वो कु छ कटा—कटा रहने लगा था।
“आओ।” मने पुनः उसे अपनी मखमली बांह म समेट िलया—”थोड़ी देर के िलए सबकु छ भूल जाओ! हम अपने
पहले वाले खेल को ही आगे बढ़ाते ह।”
“नह - मेरी अब इ छा नह है िशनाया! तुम सो जाओ।” ितलक ने मेरी बांह अपने िज म से अलग कर द ।
म स रह गयी।
च कत!
यह मेरी िज दगी का पहला वा या था, जब कोई मद मुझसे इतनी बे खी के साथ पेश आ रहा था।
वरना मद तो मेरी कं चन—सी काया को देखकर हमेशा मेरे ऊपर भूखे कु क तरह झपटते थे।
उस रात म सै स क तृषाि म जलती ई खामोशी के साथ िब तर पर लेट गयी। यह बड़ी अजीब बात है, िजस
नाइट लब क क पना से ही मुझे खौफ सताने लगता था, उस रात मुझे उसी नाइट लब क बड़ी िश त के साथ
याद आयी। मेरी इ छा ई क म अभी दौड़कर वहां प च ं ूं और अपना कोई पुराना मुरीद, कोई पुराना एडमायरर
पकड़कर उससे अपने शरीर क यास बुझा लूं। अपनी उस खतरनाक इ छा का म उस रात बड़ी मुि कल से दमन कर
सक ।
•••
फर अगले दन सुबह ही डॉ टर अ यर पथ हाउस म आया था और वो अपनी बीस लाख पये क रकम ले गया।
बीस लाख पये भी वो इस तरह ठोक—बजाकर ले गया, मान उस रकम को लेकर भी वो हम दोन पर ही बड़ा
भारी अहसान कर रहा था।
मानो उसने वो रकम हाथ उधार दी ई थी, िजसे अब हम लौटा रहे थे।
ऐसी सुअर न ल वाला आदमी था डॉ टर अ यर!
फर कई दन गुजरे ।
लैकमे लंग का वो िसलिसला एक बार शु आ, तो उसके बाद उसने कने का नाम ही नह िलया।
पहले बीस लाख।
फर तीस।
फर चालीस।
उसके बाद सीधे पचास लाख।
डॉ टर अ यर के मुंह अब खून लगा चुका था।
ग दा खून!
•••
ितलक राजको टया भी अब काफ अपसेट रहने लगा था।
शाम के समय वो अपने शयनक के बार काउं टर पर बैठा शराब पी रहा था और मौजूदा िसलिसले के कारण काफ
परे शान था।
फलहाल वो आधी से यादा बोतल खाली कर चुका था।
उसके पुराने अवगुण दोबारा िसर उठाने लगे थे।
“अब बस भी करो ितलक!” म उसके नजदीक प च
ं कर बोली—”और कतनी देर तक पीते रहोगे।”
“मेरे कु छ समझ नह आ रहा है।” ितलक ने गु से म झुंझलाकर जोर से टेिबल पर घूंसा मारा—” क म या क ं ?
कै से क ं ?”
“देखो- इसम कोई शक नह ।” म उसके करीब बार काउं टर के दूसरे टू ल पर बैठते ए बोली—” क अगर ज दी ही
उस म ासी डॉ टर का कु छ इलाज न कया गया, तो उसक िडमांड बढ़ती चली जाएगी। और िडमांड बढ़ते—बढ़ते
एक ऐसी टेज पर भी प च ं सकती है—िजसे फर शायद पूरा करना तु हारे िलए नामुम कन होगा। इसिलए हम
ज द ही कसी कार इस सम या से िनपटना चािहए।”
“ले कन सवाल तो ये है िशनाया!” ितलक फुं फकारा—” क इस सम या से कस तरह िनपट सकते ह?”
“एक तरीका है।” मेरी आवाज एकाएक काफ रह यमयी हो उठी—”िजसके बलबूते पर हम इस सम या से िनपट
सकते ह।”
ितलक राजको टया च क उठा।
“तरीका!”
“हां।”
“ या तरीका?” उसने िवि मत िनगाह से मेरी तरफ देखा।
वो शराब पीना भूल गया।
“हम डॉ टर अ यर को भी बृ दा के पास ही प च
ं ाना होगा।”
“यािन एक और ह या!” ितलक के मुंह से तेज िससकारी छू ट पड़ी।
उसके चेहरे पर जबरद त आतंक के भाव दौड़े।
“हां।”
“नह -नह ।” ितलक राजको टया क गदन इं कार क सूरत म िहली—”ह या के एक मामले को छु पाने के िलए हम
दूसरी ह या नह करगे िशनाया।”
“सोच लो ितलक!” मेरी आवाज म दृढ़ता थी—”इस सम या से िनपटने का इसके अलावा दूसरा कोई रा ता नह है।
फर आिखर तुम कब तक उसक िडमांड पूरी करोगे- कब तक?”
“ले कन तुम एक बात नजरअंदाज कर रही हो िशनाया।”
ितलक साफ—साफ िवचिलत नजर आ रहा था।
एक और ह या क बात ने उसे झकझोर डाला था।
“कौन—सी बात?”
“यही क उस दु आदमी ने अपना एक राजदार भी बनाया आ है, जो इस पूरे करण से वा कफ है।”
“यह सब बेकार क बात है।” म बोली—”इस तरह के लालची लोग कभी अपना कोई राजदार नह बनाते ितलक!
य क राजदार बनाने का मतलब है, उसे भी िह सा देना होगा। उसे भी फ टी परसट का पाटनर बनाना होगा।
तु ह या लगता है, डॉ टर अ यर जैसा पाई—पाई के िलए जान िछड़कने वाला आदमी कसी के साथ रकम का
बंटवारा कर सकता है?”
ितलक कु छ न बोला।
उसने िसफ शराब का एक घूंट भरा।
“जवाब दो मेरी बात का ितलक?”
“लगता तो नह ?” ितलक राजको टया िहच कचाये वर म बोला—” क वो रकम का कसी के साथ बंटवारा कर
सकता है। ले कन अगर वो यह बात कह रहा है, तो उसम कु छ—न—कु छ स ाई तो ज र होगी।”
“कोई स ाई नह है। वो यह बात हम िसफ डराने के िलए कह रहा है।” म बोली—”हमारे ऊपर अपना रौब गािलब
करने के िलए कह रहा है, ता क हम उसके िखलाफ कोई गलत कदम न उठा सक। ता क हम कोई ऐसा ष ं न रच
सक, जैसा ष ं रचने क हम फलहाल कोिशश कर रहे ह।”
“ले कन अगर सच म ही उसका कोई राजदार आ तो?”
“मने कहा न!” म पुनः पूरी दृढ़ता के साथ बोली—”नह है।”
“ले कन अगर उसका कोई राजदार आ, तब या होगा?” ितलक आशं कत वर म बोला—”तब तो हम एक और
नये झंझट म फं स जाएंगे। और उसके बाद यह भी पता नह है क हम उस झंझट से कभी िनकल भी पाएं या नह ।”
म सोचने लगी।
कु छ भी था- आिखर अपनी जगह यह स भावना तो थी ही क डॉ टर अ यर ने अपना कोई राजदार भी बनाया हो
सकता था।
म सोचती रही।
“इसका भी एक तरीका है।” आिखरकार म बोली।
“ या?”
मने ितलक को तरीका बताया।
तरीका सुनकर उसक उ मीद कु छ बंधी।
उसक आंख म ह क चमक पैदा ई।
•••
ले कन ितलक राजको टया अब डरा आ ब त था।
खासतौर पर ह या के नाम से तो वह बार—बार कांप जा रहा था।
वह ह या के बारे म सोचता भी तो उसके पूरे शरीर म सनसनाहट दौड़ जाती।
“िशनाया!” उस रात ितलक राजको टया ने मुझे अपनी बांह म भरकर सवाल कया—” या इस सम या का कोई
और समाधान नह है? या कसी और तरह से हम उस म ासी डॉ टर से पीछा नह छु ड़ा सकते?”
“मेरी िनगाह म तो कोई और तरीका नह है।” मने अपने धधकते ह ठ ितलक के होठ पर रखे—”अगर कोई और
तरीका होता माई िडयर- तो म तु ह सबसे पहले वही तरीका सुझाती। आिखर म भी तो नह चाहती क कसी के
खून से हाथ रं गे जाएं।”
ितलक क शरारती उं गिलयां मेरे उरोज पर फरने लग ।
मेरे पूरे शरीर म कर ट—सा दौड़ा।
“ फर भी सोचकर देखो डा लग- शायद कोई तरीका सूझ जाए।”
“म काफ सोच चुक ं ितलक!” म बोली—”सच तो ये है- िजस दन डॉ टर अ यर ने तुमसे तीन लाख पये क
पहली क त ली थी, म उसी दन से इस पूरे िसलिसले पर गौर कर रही ।ं ले कन मुझे इसके अलावा दूसरा कोई
तरीका नह सूझा।”
ितलक क शरारती उं गिलयां अब मेरी जांघ तक प च
ं गयी थ ।
मेरे ह ठ से मादक िससका रयां फू ट पड़ ।
“ले कन एक और ह या करने म र क तो है िशनाया।”
“िब कु ल है।” मने उसे कसकर अपनी बांह म जकड़ िलया—”ले कन अगर हमने अपनी जान बचानी है,तो हम यह
र क तो अब उठाना ही होगा।”
काश!
मने सोचा- ितलक राजको टया जानता होता क वह एक और ह या करते ए कांप रहा है, जब क म तो एक और
ह या कर भी चुक थी।
सचमुच अपराध एक अनवरत् और ब त भयानक दलदल क तरह है, िजसम मनु य अगर एक बार धंसना शु
होता है, तो फर धंसता ही चला जाता है।
गहरा!
और गहरा!
ितलक मुझे अपनी बांह म भरे सोचता रहा क उसे अब अगला कदम या उठाना चािहए?
“ठीक है।” आिखरकार वो मुझसे थोड़ा दूर हटकर ब त स ती के साथ बोला—”अगर यह बात है िशनाया, तो हम
एक और ह या करगे।”
“यािन डॉ टर अ यर क मौत अब िनि त है।”
“िब कु ल।”
पर तु उस ण ितलक राजको टया के चेहरे से साफ लग रहा था, उसने वो फै सला ब त मजबूरी म, ब त दल
कठोर करके कया है।

11

एक और मडर ला नंग
दन िनकलते ही डॉ टर अ यर क ह या के प े फै लने शु हो गये।
एक और ह या क योजना का ताना—बाना बुना जाने लगा।
ितलक ने सबसे पहले डॉ टर अ यर को लडलाइन से फ़ोन कया। मने उस ‘कॉ स फोन’ का पीकर वाला बटन
दबा दया था, ता क दोन तरफ का वातालाप म आसानी के साथ सुन सकूं ।
इसके अलावा ितलक राजको टया ने डॉ टर अ यर से या कहना है, यह सब म उसे समझा चुक थी।
“हैलो!” दूसरी तरफ से आवाज आयी।
“कौन- डॉ टर अ यर?” ितलक बोला।
“यस आई एम पी कं ग।”
“म ितलक बोल रहा ं डॉ टर।”
“ओह!” डॉ टर अ यर हंसा।
उसक हंसी म साफ—साफ ं य का पुट झलक रहा था।
ले कन ितलक राजको टया और म उसक उस हंसी से जरा भी िवचिलत न ए।
उससे इस तरह क हरकत हम पहले से ही अपेि त थी।
“ऐ ा!” वह बोला—”आज इस डॉ टर क याद कै से आ गयी? आज सूरज पि म से कै से िनकल आया?”
ितलक ने योजना के मुतािबक अपनी आवाज म भारी संजीदगी के भाव पैदा कए।
“डॉ टर!” ितलक बोला—”म तुमसे ब त ज री बात करना चाहता ।ं ”
“तो फर करो ऐ ा- मना कसने कया है!”
“दरअसल म िपछली कई रात से ढंग से सो नह पाया ं डॉ टर!”
“तो इसम म या कर सकता ?ं ” डॉ टर अ यर पुनः हंसा—”आपक इस बेचैनी का मेरे पास कौन—सा इं लाज है?”
“इलाज तु हारे ही पास है।”
“ या?”
“दरअसल न द न आने क वजह तुम हो डॉ टर... तुम!” ितलक राजको टया आंदोिलत लहजे म बोला—”तु हारे
खतरे क जो तलवार हर समय मेरे िसर पर लटक रहती है- उसने मुझसे मेरा सकू न छीन िलया है।”
“इसके िलए मुझे दोष मत दो।” डॉ टर अ यर बोला—”इसक जड़ म तुम खुद हो। तु हारी अपनी करतूत ह। ऐ ा,
अगर तुमने बृ दा का मडर न कया होता, तो जरा सोचो- मेरी या मजाल थी, जो म खतरे क तलवार तु हारे िसर
पर लटकाता। तु ह लैकमेल करता।”
“म कबूल करता ,ं मुझसे गलती ई है।”
“गलती नह ऐ ा- ब त बड़ी गलती।”
म वह पूरा वातालाप ‘कां स फोन’ के पीकर पर सुन रही थी।
अभी तक एक—एक बात मेरी ‘योजना’ के अनु प हो रही थी।
“देखो डॉ टर!” ितलक ने ‘असली चाल’ चली—”अभी तक जो आ... आ, ले कन अब म चाहता ँ क इस मामले
का हमेशा—हमेशा के िलए पटा ेप हो जाये। हमेशा—हमेशा के िलए यह झंझट ख म हो।”
“कै से?”
“उसका भी एक तरीका मने सोचा है।” ितलक बोला—”अगर तु ह ऐतराज न हो, तो म तु ह लैकमे लंग क
एकमु त रकम देना चाहता ,ं ता क तुम मुझे बार—बार आकर तंग न करो और फर हमेशा के िलए इस बात को
भूल जाओ क बृ दा क ह या भी ई थी।”
“मुझे भला या ऐतराज हो सकता है ऐ ा!” डॉ टर अ यर फु ि लत मु ा म बोला—”मेरे को तो बस रोकड़े से
मतलब है। नगदऊ से मतलब है। बि क यह तो मेरे िलए और भी अ छा है क सारा रोकड़ा मुझे एकमु त िमल
जाएगा।”
“यािन तुम लैकमे लंग क इस कहानी का पटा ेप करने के िलए तैयार हो?”
“िब कु ल तैयार ं ऐ ा! बस मेरी दो शत ह।”
“ या?”
“पहली शत- रोकड़े क रकम जरा भारी—भरकम हो, जो सारा काम एकमु त िनपटाते ए अ छा लगे। दूसरी शत,
सारा रोकड़ा हाथ—के —हाथ िमलना चािहए।”
“दोन ही शत मुझे कबूल ह।”
“ फर या बात है ऐ ा! फर तो आप मेरे को बस यह बताइए क नगदऊ िगनने के वा ते मुझे आपके पास कब आना
होगा?”
ितलक ने अब मेरी तरफ देखा।
मने उसक तरफ उं गली से कु छ इशारा कया और हथेली पर उं गली से ही कु छ अंक बनाए।
“ठीक है।” ितलक बोला—”तुम आज रात सही बारह बजे पथ हाउस म प च
ं ो,तभी बैठकर बात करते ह।”
“बारह बजे!”
डॉ टर अ यर सकपकाया।
“हां।”
“ऐ ा- या बात है।” वो सशं कत वर म बोला—”इतनी रात को मुझे पथ हाउस म बुलाकर या करना है?”
“ चंता मत करो- बस बात ही करनी ह।”
“बारह बजे? आधी रात को??”
“दरअसल म नह चाहता,” ितलक ने सफाई दी—” क तु ह पथ हाउस म यादा लोग आते—जाते देख, इसिलए
मने अ राि का समय चुना है, जो क ब त मुनािसब है। वैसे भी िपछले कु छेक दन म तु हारे काफ च र पथ
हाउस के लग चुके ह। अगर तु हारे और यादा च र लगगे- तो लोग को शक होगा क पथ हाउस म कोई बीमार
भी नह है, फर भी डॉ टर यहां इतना य आता है।”
डॉ टर अ यर सोच म डू ब गया।
म भांप गयी, वो सही—गलत प रि थित का आंकलन करने क कोिशश कर रहा है।
मने तुर त ितलक को फर कु छ इशारा कया।
“देखो!” ितलक उसे यादा सोचने क मोहलत दये िबना बोला—”अगर तु ह कु छ शक हो रहा है, तो तुम दन म
भी कसी व आ सकते हो। म तो तु हारी भलाई के िलए ही यह सब कह रहा ।ं ”
“नह - नह , शक वाली कोई बात नह है।” डॉ टर अ यर बोला—”ठीक है ऐ ा, म आज रात सही बारह बजे पथ
हाउस प चं जाऊंगा।”
“और कोिशश करना क यादा लोग क िनगाह तु हारे ऊपर न पड़े।”
“मु गन क कृ पा रही- तो ऐसा ही होगा।”
“गुड बॉय!”
“गुड बॉय!”
ितलक राजको टया ने रसीवर रख दया।
•••
वो एक काफ खूबसूरत सोफा चेयर थी, िजस पर ितलक ब त गहरी सांस लेकर ढेर हो गया। दोन टांग उसने सामने
फै ला ल और हाथ िसर के नीचे रख िलये।
“बारह बजे!” वो शु क वर म बोला—”डॉ टर आज रात ठीक बारह बजे यहां प च
ं रहा है िशनाया!”
“ चंता मत करो।” म बोली—”अगर भगवान ने चाहा, तो सब कु छ ठीक ही होगा।”
“भगवान!” उसक आवाज कु िपत हो उठी—” कतनी अजीब बात है, हम एक खून करने जा रहे ह और उसम भी हम
यह चाहते ह क भगवान हमारा साथ दे!”
मेरे िज म का एक—एक रोआं खड़ा हो गया।
ितलक िजस कार आ याि मक बात कर रहा था, उससे मेरे मन म भय उ प आ।
कह ह या के दौरान वह कु छ कमजोर न पड़ जाए?
कह उससे कु छ गड़बड़ न हो जाए?
“अगर तु ह इस काम को सही तरह से िनपटाना है ितलक!” म बोली—”तो तु ह अपने आपको मजबूत बनाना
होगा।”
“म मजबूत ही ।ं ”
“नह - तुम मजबूत नह हो।” म स ती के साथ बोली—”मजबूत और दृढ़ इराद वाले आदमी इस कार क बात
नह कया करते।”
ितलक कु छ न बोला।
ले कन लग रहा था, वह अपने आपको इस काम के िलए तैयार कर रहा है।
“तुमने हिथयार का इं तजाम तो कर िलया है न ितलक?”
“हां।” ितलक ने अपनी जेब से एक 32 कै लीबर क ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर िनकालकर मुझे दखाई—”हिथयार
का इं तजाम मेरे पास पहले से ही है।”
“गुड!”
मने ितलक के हाथ से वो रवॉ वर ले ली और उसे उलट—पलटकर देखने लगी।
रवॉ वर वाकई ब त खूबसूरत थी।
खासतौर पर उसका ेगर पानी के धारे क तरह चलता था।
उस रवॉ वर को हैि डल करना ब त आसान था।
इतना आसान!
ज रत पड़ने पर उसे म भी चला सकती थी।
•••
वह पथ हाउस का सबसे अंद नी ‘स र न बर’ कमरा था, जहां रात के समय ितलक और म बैठे ए बड़ी बेस ी से
डॉ टर अ यर के आने का इं तजार कर रहे थे।
मौसम आज शाम से ही काफ खराब हो चुका था। पहले ह क —फु क बूंदा—बांदी शु ई और फर तेज
मूसलाधार बा रश होने लगी।
रह—रहकर आसमान का सीना चाक करके िबजली कड़कड़ा उठती।
ऐसा लगता था- मान मौसम क सारी बा रश उसी दन होकर रहेगी।
“बारह बज चुके ह।” मने वॉल लॉक पर दृि दौड़ाई—”अभी तक नह आया डॉ टर?”
“मुझे तो लगता है!” ितलक बोला—”वो आज आएगा भी नह ।”
तभी फर ब त जोर से िबजली कड़कड़ाई।
“उफ् - मौसम कतना खराब है।”
“ऐसा नह हो सकता।” मेरे वर म यक न था— “वह ज र आएगा। वह लालची आदमी है और कसी लालची
आदमी के सामने जब धन का इतना बड़ा लोभन हो, तो वह कभी नह कता।”
समय ब त धीमी गित से आगे सरकता रहा।
सवा बारह बज गये।
ले कन डॉ टर अ यर फर भी न आया।
अब मेरा यक न भी िहलने लगा। म िवचिलत हो उठी।
“मुझे तो लगता है िशनाया!” ितलक बोला—”तु हारी योजना फे ल हो चुक है।”
“नह - नह ।”
“यह सच है। हमने य क उसे इतनी रात को बुलाया था, इसी कारण उसे हमारे ऊपर शक हो गया है।”
मेरा दल डू बने लगा।
या सचमुच मेरी योजना फे ल हो चुक थी?
या उस म ासी डॉ टर को वाकई शक हो गया था, हम उसक ह या करने वाले ह?
तभी एकाएक उ मीद क करण रोशन ई।
रात के स ाटे म पथ हाउस क डोरबेल िब कु ल इस तरह चीखी- मान िमल का कोई भ पू बज उठा हो।
•••
मेरे शरीर म अ तीय फु त समां गयी।
मने दौड़कर दरवाजा खोला।
जब तक दरवाजा खोला- तब तक एक बार और डोरबेल चीख उठी थी।
सामने डॉ टर अ यर ही खड़ा था।
बा रश से बचने के िलए वो टखन तक ल बा रे नकोट पहने ए था और िसर पर काले रं ग का फे ट कै प लगाये था।
पैर म गम बूट थे। अलब ा फे ट कै प वो अपने चेहरे पर झुकाये ए था। एकाएक म उसे पहचान न सक । जब उसने
कै प िसर से उतारा, तब म उसे पहचानी क वो डॉ टर अ यर था।
“सॉरी मैडम!” वो खेदपूण लहजे म बोला—”म प ह िमनट लेट ।ं ”
“प ह नह - बीस िमनट।”
“ओह!” वह मु कराया—”शायद पांच िमनट मुझे नीचे से पथ हाउस तक आने म लग गये ह। दरअसल इतनी देर भी
मूसलाधार बा रश के कारण हो गयी। सड़क पर कई जगह घुटन —घुटन तक पानी भरा आ है, इसी कारण वाहन
के आवागमन म द त हो रही है।”
“कोई बात नह ।” म दरवाजा छोड़कर एक तरफ हटी—”अंदर आओ।”
डॉ टर अ यर ने अंदर कदम रखा।
अंदर आते ही उसने अपना फे ट कै प हगर पर लटका दया। फर बा रश के पानी म बुरी तरह भीगा आ रे नकोट भी
उतारकर उसी हगर पर लटकाया।
“बा रश भी आज काफ तेज है।” वह अपने जूते झाड़ता आ बोला—”ऐसा लगता है, जैसे सारी रात पानी बरसेगा।
ितलक साहब कहां ह?”
“वह अंदर तु हारी ही ती ा कर रहे ह।”
तब तक मने आगे बढ़कर पथ हाउस का मेन गेट वापस बंद कर दया था।
“मेरे साथ आओ।” म अंदर क तरफ बढ़ी।
डॉ टर अ यर मेरे पीछे—पीछे चल पड़ा।
म सबसे अंद नी कमरे क तरफ बढ़ रही थी।
“ या ितलक साहब अंदर ह?”
“हां।”
“बड़े आ य क बात है ऐ ा! पहले तो कभी मने उ ह पथ आउस म इतना अंदर नह देखा था।”
“दरअसल जो सौदा आज रात होने वाला है,” म बोली—”उस सौदे को करने के िलए ही उ ह ने खासतौर पर उस
कमरे का चयन कया है।”
डॉ टर अ यर के चेहरे पर कौतुहलता के भाव उभरे ।
“सौदे को करने के िलए कसी खास कमरे का चयन करने क या ज रत थी?”
“यह तो तु ह वहां प च
ं ने के बाद ही मालूम होगा।”
•••
ज द ही डॉ टर अ यर और म उस ‘स र न बर’ कमरे म दािखल हो गये।
उस पूरे कमरे म िसफ तीन कु सयां पड़ी ई थ और उन कु सय के बीच म एक गोल टेिबल पड़ी थी। एक कु स पर
ितलक राजको टया िवराजमान था।
न जाने य कमरे म दािखल होते ही डॉ टर अ यर के चेहरे पर संशय के भाव उभरे ।
“वेलकम डॉ टर- वेलकम!” ितलक राजको टया कु स छोड़कर खड़ा आ—”काफ देर इं तजार कराया।”
“सॉरी! मुझे मालूम नह था- आप लोग इतनी बेस ी से मेरा इं तजार कर रहे ह।”
डॉ टर अ यर िनगाह से इधर—उधर देखने लगा।
कमरा का माहौल उसे काफ संदेहजनक लगा।
“तु ह कसी ने ऊपर आते देखा तो नह ?”
“नह - म काफ ऐहितयात के साथ आया ं ऐ ा!” डॉ टर अ यर बोला—”वैसे भी मूसलाधार बा रश के कारण पूरे
होटल म स ाटा है।”
“गा स ने तो ज र देखा होगा?”
“मालूम नह ।”
ितलक चहलकदमी—सी करता आ अब डॉ टर अ यर के काफ नजदीक आ चुका था।
“मने यहां तक आने म पूरी ऐहितयात बरती है ऐ ा!” डॉ टर अ यर कह रहा था—”यहां तक क अपनी कार भी
होटल क पा कग म खड़ी नह क ।”
“ य ?”
“ य क अगर म अपनी कार होटल क पा कग म खड़ी करता,” वह बोला—”तो वहां के गाड क िनगाह म न आ
जाता ऐ ा! इसिलए म जानबूझकर अपनी कार पा कग से थोड़ा अलग हटकर एक इमारत के सामने खड़ी कर आया
।ं वैसे भी मने यहां कोई तीन—चार घ टे थोड़े ही कना है।”
“वैरी गुड।” म स तापूवक बोली—”सचमुच तुमने काफ बुि मानी का प रचय दया है डॉ टर!”
“बैठो।” ितलक बोला।
“नह - म ऐसे ही ठीक ।ं ” डॉ टर ने पुनः थोड़े िवचिलत अंदाज म कहा—”दरअसल आप लोग ने सौदे के बारे म
जो भी बात करनी है, थोड़ा ज दी कर लो।”
“सौदे के बारे म भी बात करते ह, िशनाया!” ितलक एकाएक सीधे मुझसे स बोिधत आ—“ज़रा कमरे का दरवाजा
अंदर से बंद कर लो।”
“द... दरवाजा बंद करने क या ज रत है?” डॉ टर अ यर सकपकाया।
“अभी मालूम आ जाता है- या ज रत है।”
ितलक का हाथ बड़ी तेजी से अपनी जेब क तरफ रगा।
फर इससे पहले क उसका हाथ जेब से बाहर िनकलता, डॉ टर अ यर खतरा भांप गया।
वह एकदम मुड़ा और कमान से छू टे तीर क भांित दरवाजे क तरफ भागा।
दरवाजे पर ऐसे ही कसी हालात का सामना करने के िलए म खड़ी थी।
अलब ा तब तक म दरवाजा बंद नह कर पायी थी।
मने फौरन िबजली जैसी फु त के साथ वह एक कोने म रखी लोहे क रॉड उठा ली। फर डॉ टर अ यर जैसे ही
दरवाजे के नजदीक प च
ं ा, मने अपनी पूरी शि के साथ रॉड का व हार उसके ऊपर कया।
रॉड सीधे उसके मुंह पर पड़ी।
डॉ टर अ यर िब कु ल इस तरह िबलिबला उठा, मान कु े क पूंछ कसी पिहये के नीचे आ गयी हो।
वह दहाड़ता आ नीचे फश पर िगरा।
वह स भलता- उससे पहले ही मने एक जोरदार ठोकर उसके पेट म जड़ी।
उसी ण ितलक ने उसे गले से कसकर पकड़ िलया तथा फर झटके से उठाकर कु स पर िबठाया। इतना ही नह ,
फौरन उसक तरफ अपनी ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर भी तान दी।
रवॉ वर देखकर डॉ टर अ यर के शरीर म भीषण क प आ।
“अगर जरा भी िहले!” ितलक राजको टया आ ोश म बोला—”तो गोली सीधे तु हारी खोपड़ी के आर—पार होगी-
अभी इसी कु स पर तु हारी लाश पड़ी होगी।”
डॉ टर अ यर आतं कत हो उठा।
“िशनाया इसक तलाशी लो।”
मने फौरन आगे बढ़कर डॉ टर अ यर क तलाशी ली।
उसके पास से एक देसी िप तौल बरामद ई, जो पे ट क बे ट म अंदर क तरफ खुंसी ई थी।
अपनी िप तौल भी िछनते देखकर अ यर के कस—बल िब कु ल ढीले पड़ गये।
उसके चेहरे क रं गत सफे द हो गयी।
•••
“ल... ले कन तुमने तो मुझे यहां सौदे के िलए बुलाया था ऐ ा!” डॉ टर अ यर क आंख म अब सा ात् मौत
ता डव नृ य कर रही थी।
“हां- यह सौदा ही है।” ितलक गुराया—”एकमु त सौदा! तु हारे जैसे दु आदमी से सौदा करने का यही एक तरीका
है क तु ह सीधा जह ुम प च ं ा दया जाए।”
“ले कन तुम भूल रहे हो!” वो शु क वर म बोला—”अगर म एक घ टे के अंदर—अंदर इस पथ हाउस से बाहर न
िनकला, तो मेरा राजदार पुिलस को जाकर सब कु छ बता देगा। वो तु हारे तमाम कु कम का भांडा फोड़ देगा।”
“राजदार!” ितलक ने उसका िगरे हबान स ती के साथ पकड़ िलया और हंसा—”तुम या समझते हो मूख आदमी!
तु हारी इस झूठी कहानी के मायाजाल म हम अभी तक फं से रहगे? हम अभी तक यह समझते रहगे क तु हारा कोई
राजदार भी है।”
“यह झूठी कहानी नह है।”
“यह झूठी ही कहानी है।” ितलक राजको टया ब त बुलंद आवाज म चंघाड़ा—”सच तो ये है, तु हारा कोई राजदार
नह है। कोई साथी नह है और अगर तु हारा कोई राजदार है भी!” ितलक ने एक िब कु ल नया रह यो ाटन कया
—”तो अब हम उसक भी कोई परवाह नह ।”
डॉ टर अ यर च का।
उसके चेहरे पर िव मयपूण भाव उभरे ।
“ य ?” वह बोला—”तु ह अब उसक परवाह य नह ऐ ा?”
“ य क हम तु हारी ह या अभी नह कर रहे ह डॉ टर!” ितलक ने उसे अपनी ‘योजना’ समझायी—”बि क पहले
कु छ दन हम तु ह पथ हाउस के इसी कमरे म बंधक बनाकर रखगे। फर उसके बाद देखते ह क तु हारा कौन
राजदार ‘बृ दा मडर के स’ क इस पूरी टोरी को लेकर पुिलस तक प च
ं ता है। अगर तु हारा कोई राजदार है—तो
अब तुमसे पहले वो मरे गा। पहले वो जह ुम प च
ं ेगा।”
“अ... और अगर नह है?”
“तो फर चंता कस बात क है।” ितलक बोला—”तुमने तो जह ुम प च ं ना—ही—प च ं ना है। ले कन फलहाल
कु छ दन के िलए तु हारी मौत टल गयी है—कु छ दन तुमने इसी कमरे के अंदर बंद रहना है।”
डॉ टर अ यर काफ आंदोिलत दखाई पड़ने लगा।
वो खुद को बुरी तरह फं सा अनुभव कर रहा था।
ितलक ने ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर अभी भी उसक तरफ तानी ई थी।
“िशनाया—तुम वही र सी लेकर आओ, िजससे हमने बृ दा को बांधा था।” ितलक राजको टया ने आिखरी श द
जानबूझकर उस पर रौब गािलब करने के िलए कहे।
म कमरे से बाहर िनकल गयी।
ज द ही म नायलोन क र सी लेकर वापस कमरे म दािखल ई।
र सी को देखते ही डॉ टर अ यर एकदम झटके से कु स छोड़कर खड़ा हो गया और वह िबना रवॉ वर का खौफ
खाये एक बार फर दरवाजे क तरफ भागा।
ले कन उसके सामने म खड़ी थी।
मने नायलोन क र सी का गु छा जोर से उसके मुंह पर ख चकर मारा।
वो चीखा।
तभी ितलक राजको टया ने पीछे से रवॉ वर क बैरल का च ड हार उसक खोपड़ी पर कया।
इस मतबा उसके हलक से ब त घुटी—घुटी चीख िनकली और वह अपनी खोपड़ी पकड़कर वह ढे़र होता चला गया।
त काल हम दोन ने उसे स ती के साथ पकड़कर वापस कु स पर िबठा दया और र सी से उसके हाथ—पैर जकड़ने
शु कर दये।
फर उसका मुंह भी जकड़ा।
•••
मेरे ह सले इस बार ब त बुलंद थे।
आिखर म दो—दो ह याय कर चुक थी।
हम दोन अब उस कमरे का कु डा लगाकर ाइं गहॉल म आ चुके थे। अलब ा कमरा छोड़ने से पहले मने डॉ टर
अ यर क जेब से उसक कार क चाबी भी बरामद कर ली।
मूसलाधार बा रश का म अभी भी जारी था।
“सब कु छ तु हारी योजना के अनुसार हो रहा है िशनाया!” ितलक शु क वर म बोला—”ले कन एक बात का मुझे
अभी भी डर है।”
“ कस बात का?”
“अगर वा तव म ही इसका कोई राजदार िनकल आया—तो ब त गड़बड़ हो जाएगी।”
“बे फ रहो।” मेरे वर म यक न कू ट—कू टकर भरा था—”कोई गड़बड़ नह होने वाली है ितलक! अगर कोई
क र मा ही हो जाए—तब बात अलग है। वरना उसका कोई राजदार नह िनकलने वाला है।”
“कार क चाबी कहां है?”
“मेरे पास है।” मने अपनी जेब से कार क चाबी िनकालकर ितलक को दखाई।
“अब हम सबसे पहले डॉ टर अ यर क कार को होटल के पास से हटाने का काम करना चािहए। लाओ- चाबी मुझे
दो। यह काम म करता ।ं ”
“नह - तुम नह । यह काम म ही क ं गी।”
“तुम!”
“हां- फलहाल तु हारा पथ हाउस के अंदर रहना ही यादा मुनािसब है। फर मु बई शहर म मेरे से यादा लोग
तु ह पहचानते ह। तुम एक पॉपुलर पसनेिलटी हो। म नह चाहती क कोई तु ह डॉ टर अ यर क कार म देखे।”
“ले कन या तुम यह काम कर सकोगी?”
“ चंता मत करो।” म बोली—”इस काम को करना कोई ब त बड़ी बात नह है ितलक!”
•••
पथ हाउस के दरवाजे के नजदीक प च
ं कर म ठठक ।
वहां हगर पर अभी भी डॉ टर अ यर का रे नकोट और फे ट कै प टंगा आ था। मने वह दोन चीज ही पहन ल ।
उसके गम बूट भी पहन िलये। एकाएक मेरा ि व काफ बदला आ नजर आने लगा।
अपने बाल मने जूड़े क श ल म लपेटकर फे ट कै प के अंदर कर िलये थे।
फे ट कै प मने चेहरे पर थोड़ा आगे को झुका िलया।
अब एकाएक यही मालूम नह हो रहा था क म कौन ।ं
औरत!
या आदमी!
“वैरी गुड!” ितलक राजको टया मेरे उस प को देखकर मेरी तारीफ कये िबना न रह सका—”सचमुच अब तु ह
कोई नह पहचान सकता। बि क अगर कसी ने डॉ टर अ यर को पथ हाउस म आते देखा भी होगा, तो वो यही
समझेगा क अब डॉ टर अ यर वापस जा रहा है। बस कसी क िनगाह आसानी से अपने चेहरे पर मत पड़ने देना।”
“बे फ रहो- म इस बात का खास याल रखूंगी।”
“लो।” ितलक राजको टया ने ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर मेरी तरफ बढ़ाई—”इसे अपने पास रख लो।”
“नह - इसक मेरे से यादा ज रत यहां तु ह है ितलक।”
“ले कन...।”
“ड ट वरी! मुझे कु छ नह होने वाला है। वैसे भी मेरे पास डॉ टर अ यर क िप तौल है।”
मने अपनी वह जेब थपथपाई, िजसम िप तौल रखी ई थी।
फर म पथ हाउस से बाहर िनकल गयी।
•••
उस म ासी डॉ टर क कार तलाशने म मुझे यादा व नह लगा था।
जैसा क डॉ टर अ यर ने बताया था, उसक कार पा कग से थोड़ा अलग हटकर एक इमारत के सामने खड़ी थी। वह
हाइट कलर क पजेरो थी।
म ल बे—ल बे डग रखती ई कार के नजदीक प च
ं ी।
मूसलाधार बा रश तब भी हो रही थी।
आसपास क इमारत के पतनाले खूब भरकर चल रहे थे।
म कार क ाइ वंग सीट पर बैठ गयी। फर मने कार के इ ीशन म चाबी लगाकर घुमाई, तो इं जन ब त जोर से
घरघराकर जाग उठा। फर मने लच दबाया, उसे िगयर म डाला और उसके बाद टेय रं ग मजबूती से थाम िलया।
कार सड़क पर त
ु गित से भागने लगी।
उसके वाइपर िव ड न पर दाय—से—बाय घूम रहे थे।
म सोचने लगी।
मेरी िज दगी भी कु छ उसी कार क तरह थी।
दौड़ती ई!
मंिजल क तलाश म भटकती ई।
कतने नये—नये मोड़ काटे थे मेरी िज दगी ने, अगर कभी म उनके बारे म सोचने भी लगती ,ं तो शरीर म कं पकं पी
—सी छू ट जाती है। फारस रोड के एक बेहद गंदे और गलीज कोठे से शु ई मेरी कहानी आज एक आलीशान पथ
हाउस तक प चं चुक थी। एक तरफ बदनामी थी- तो दूसरी तरफ तबा था, पोजीशन थी, इ त थी।
कतना फक होता है इं सान-इं सान म, इसका अहसास मुझे भली—भांित था।
एक आदमी, आदमी होते ए भी जानवर से ब तर िज दगी जीने पर मजबूर होता है, जब क दूसरा दौलत के बल
पर हर सुख खरीदता है। हर ऐ य को अपने चरण का दास बनाकर रखता है। शायद दौलत क इसी असीिमत चाह
ने मुझे आज अपराध क एक खतरनाक डगर पर धके ल दया था।
कार दौड़ती रही।
थोड़ी देर बाद ही मेरी कार ‘नाइट लब’ के सामने से गुजरी।
मने कु छ ण के िलए कार को वहां रोका।
‘नाइट लब’ म हमेशा क तरह भरपूर रौनक थी। वहां मूसलाधार बा रश के बावजूद खूब चहल—पहल दखाई
पड़ रही थी।
मुझे लब के लास डोर के पास ही कई कॉलगल खड़ी दखाई द , िजनम से लगभग सभी मेरी प रिचत थ और जो
बड़ी सूनी िनगाह से अपने क ूमर क राह तक रही थ ।
म जानती थ - उनम से कई लड़ कय क आज क रात ऐसे ही त हा गुजर जानी थी।
उनक हालत पर मुझे दया आयी।
वह तरस खाने के कािबल लड़ कयां थ ।
मने कार का फर लच दबाया और कार आगे बढ़ा दी।
मने कार िब कु ल डॉ टर अ यर के घर के सामने ले जाकर खड़ी कर दी थी।

12

मडर
ितलक राजको टया का और मेरा अगला पूरा दन बड़े स पस के आलम म गुजरा।
हर पल हम दोन को यह भय सताता रहा, अब पुिलस वहां आयी।
अब आयी।
हालां क म ‘राजदार’ के अि त व को शु से ही नकार रही थी, ले कन मुझे भी यह कहने म कोई िहचक नह है क
उस ण डरी ई म भी कम नह थी। य क म वह जो बात कह रही थी, वह मेरा अनुमान ही तो था।
जब क अनुमान गलत भी िनकलते ह।
और!
अगर अनुमान गलत िनकल आया तो?
यही एक बात हमारे भय का कारण बनी ई थी।
शाम हो गयी।
ले कन पुिलस वहां न आयी।
अलब ा रात के समय ितलक के मोबाइल पर एक फोन ज र आया।
“म डॉ टर अ यर का छोटा भाई बोल रहा ं ऐ ा!” वह आवाज काफ घबराई ई थी।
“किहये!” ितलक बोला।
“डॉ टर साहब रात पथ हाउस म तो नह आये थे?”
“नह - उ ह तो यहां आये ए कई दन हो गये। या बात है?”
“वह दरअसल रात से गायब ह।” उस आदमी क हालत ऐसी थी, मानो वह अभी रो पड़ेगा—”हम उ ह सब जगह
ढूढ
ं चुके ह ऐ ा, ले कन उनका कह कु छ पता नह चल रहा। अब अ य स भािवत जगह पर टेलीफोन कर—करके
पता लगाने क कोिशश कर रहे ह क शायद कह से कोई सुराग िमल जाए।”
“ओह- यह तो सचमुच बड़ी खतरनाक खबर है।” ितलक ने चंितत लहजे म कहा—”उ ह ने घर पर कोई िच ी—
प ी भी नह छोड़ी?”
“कु छ भी नह छोड़ा ऐ ा, इसी बात ने तो हम फ म डाला आ है।”
“पुिलस म रपोट दज करायी?”
“हां, अभी—अभी करायी है।”
“पुिलस या कहती है?”
“वही कहती है, जो अमूमन ऐसे के स म उसे कहना होता है। यही क वो तलाश करे गी। जैसे ही उनके बारे म कोई
खैर—खबर लगेगी, हम इ ला दी जाएगी।”
“मेरे लायक कोई सेवा हो, तो मुझे बे—िहचक बताना।”
“ज र।”
“कु छ भी कहते ए संकोच मत करना, बड़ा भाई ही समझना मुझे अपना।”
“जी- ज र।” लाइन कट गयी।
मेरे होठ पर मु कान िथरक उठी।
ितलक राजको टया भी अब मु कु रा रहा था।
•••
सुबह के तमाम अखबार म डॉ टर अ यर के आ यजनक ढंग से गायब होने क खबर मोटी—मोटी सु खय म छपी
थी और उनक कार के घर के सामने से बरामदी का उ लेख भी उन खबर म था।
ितलक ने और मने बड़ी दलच पी के साथ खबर को पढ़ा।
सुबह के नौ बज रहे थे, जब म गरमा—गरम चाय के साथ कु डा खोलकर उस कमरे म दािखल ई, िजसम डॉ टर
अ यर कै द था।
ितलक मेरे पीछे—पीछे कमरे म दािखल आ।
उसके हाथ म उस दन का अखबार था।
कमरे म प च
ं ते ही मने चाय का कप टेिबल पर रख दया, फर डॉ टर अ यर के मुंह पर बंधी प ी खोली और उसका
एक हाथ खोला। डॉ टर अ यर क हालत से साफ जािहर हो रहा था, वह सारी रात सोया नह है।
“लो चाय पीओ!” मने चाय का कप टेिबल पर से उठाकर उसक तरफ बढ़ाया।
“मेरी इ छा नह है।”
“पी लो- य क फर दोपहर तक तु ह कु छ और िमलने वाला नह है।”
“मने कहां न!” वह गुराया—”मेरी इ छा नह है।”
“पहले म तु ह आज के अखबार म छपी ई एक खबर दखाता ।ं ” ितलक ने कहा—”शायद उस खबर को पढ़ने के
बाद तु हारी चाय पीने क इ छा होने लगे।”
फर ितलक राजको टया ने अखबार खोलकर डॉ टर अ यर क गोद म रख दया।
“इस खबर को पढ़ो और जरा यान से पढ़ो।” ितलक ने अखबार पर एक जगह उं गली ठकठकाई।
डॉ टर अ यर ने खबर पढ़ी।
खबर पढ़ते ही उसके चेहरे का रहा—सहा खून भी िनचुड़ गया।
“अब या कहते हो डॉ टर!” ितलक राजको टया कु स ख चकर वह उसके सामने बैठ गया—”अखबार म तु हारी
गुमशुदगी क खबर छपी है और शहर म कसी को भी मालूम नह है क तुम इस व कहां हो? जब क तु हारे
िहसाब से तो अब तक हम दोन को जेल म होना चािहए था। बृ दा क मौत कै से ई, इस बात के शहर भर म ढोल
—नगाड़े बज जाने चािहए थे। कहां गया अब तु हारा वह राजदार, जो मा एक घ टे बाद ही हड़क प मचा देने
वाला था? अब तो तु ह गायब ए तीस घ टे से भी ऊपर हो चुके ह।”
डॉ टर अ यर ने अपने शु क अधर पर जबान फराई।
उससे कु छ कहते न बना।
“तुम चालाक तो हो डॉ टर!” मने भी कटा कया—”पर तु एक ब त भयानक गलती तुम कर बैठे। तुम खुद को
ज रत से यादा चालाक समझने लगे और इसीिलए चार खाने िच जा िगरे ।”
“म एक बात क ं ऐ ा!” वह थोड़े िवचिलत अंदाज म बोला।
“कहो।”
“अगर तुम लोग यह समझ रहे हो क मेरा कोई राजदार नह है, तो यह तु हारी ब त बड़ी भूल है।”
“अ छा! अगर तु हारा कोई राजदार है, तो फर वो पुिलस के पास गया य नह ? उसे तो एक घ टे बाद ही पुिलस
के पास प च
ं जाना चािहए था?”
“यह बात म भी नह समझ पा रहा ं ऐ ा!” वह खोखले वर म बोला—”हो सकता है- उसने पुिलस तक प च
ं ने
वाली योजना म कु छ फे रबदल कर दया हो।” वह एक नई बात सोचकर बोला।
“कै सा फे रबदल?”
“य... यह तो अब उसे ही मालूम होगा। या फर मु गन जानता होगा, वह या लीला रच रहा है।”
“तुम अब यह क से—कहानी गढ़ना बंद कर दो डॉ टर!” ितलक राजको टया ने दांत कट कटाये—”सच तो ये है क
तु हारा अब अंत समय आ चुका है। ब त ज द तु हारे सीने म यह सांस धड़कना बंद कर दगी। लो- चाय पीओ।”
पर तु डॉ टर अ यर ने चाय न पी।
सही बात तो यह है, चाय पीने क अब उसक ि थित ही नह थी। िजस आदमी को अपने सामने सा ात् मौत खड़ी
नजर आ रही हो, वह चाय या पीयेगा।
फर अखबार म छपी उस खबर को देखकर तो उसका रहा—सहा आ मिव ास और भी यादा बुरी तरह डोल गया
था।
इसीिलए उसने अपनी जान बचाने के वा ते नई—नई कहािनयां गढ़नी शु कर दी थ ।
बहरहाल मने डॉ टर अ यर का हाथ और मुंह दोबारा कसकर बांध दये और हम दोन कमरे से वापस बाहर िनकल
आये।
दरवाजे का कु डा पहले क तरह ही लगा दया गया।
•••
उसी रात एक घटना घटी।
ऐसी घटना- िजसने पूरे पथ हाउस म हलचल पैदा करके रख दी।
रात के कोई दो या ढाई बज रहे थे। सही व मुझे इसिलए याद नह है, य क कमरे म उस समय मा जीरो वाट
का ब ब जल रहा था और वैसे भी सारा िसलिसला एकदम इतने रोमांचकारी ढंग से शु आ क वॉल लॉक क
तरफ मेरी िनगाह ही नह गयी।
म और ितलक एक ही िब तर पर थे।
गहरी न द म थे।
तभी एकाएक ह क —सी आहट सुनकर मेरी आँख खुली।
वैसे भी म काफ क ी न द म सोती ।ं
आंख खुलते ही मेरे कान चौकस हो उठे ।
पथ हाउस के गिलयारे म—से ह क —ह क आवाज आ रही थी।
वह ऐसी आवाज थी- जैसे कोई चल रहा हो।
कौन था?
कौन था पथ हाउस म?
म एकदम झटके से िब तर छोड़कर उठ बैठी।
मने यान से आवाज को सुना- ले कन वा तव म ही गिलयारे म कोई था।
“ितलक!” मने जोर से अपने बराबर म सोते ितलक को झंझोड़ा—”ितलक!”
ितलक राजको टया को काफ देर झंझोड़ने के बाद आंख खुली।
“ या हो गया?” वह उठ बैठा।
“लगता है- पथ हाउस के अ दर कोई है।”
ितलक क न द एकदम भ क् से गायब हो गयी।
“ या कह रही हो?” वह आतं कत हो उठा।
“ यान से सुनो, गिलयारे म—से आवाज आ रही है।”
ितलक ने भी यान से सुना।
उसे भी गिलयार म-से कसी के चलने क आवाज आयी।
“यह तो सच म ही कोई है।” ितलक बोला—”ले कन कोई पथ हाउस म कै से घुस आया?”
“मालूम नह , कै से घुस आया! मुझे खुद आ य हो रहा है।”
“तुमने मेन गेट का दरवाजा तो अ छी तरह से बंद कर िलया था?”
“हां- लेटने से पहले मने खुद िसटकनी चढ़ाई थी।” म बोली।
कोई ब त धीरे —धीरे चलता आ अब उसी तरफ आ रहा था।
“कौन है?” ितलक एकाएक गला फाड़कर िच ला उठा—”कौन है बाहर?”
गिलयारे म अक मात् स ाटा छा गया।
खामोशी!
ितलक ने अब झपटकर अपने त कये के नीचे रखी ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर िनकाल ली। जबसे डॉ टर अ यर को
कै द कया था, तब से वह रवॉ वर हमेशा अपने त कये के नीचे रखकर सोता था।
रवॉ वर हाथ म आते ही वो िब तर से नीचे उतर गया।
लीपर पहने।
फर दौड़कर शयनक का दरवाजा खोला और गिलयारे म प च
ं गया।
उसके पीछे—पीछे म भी दौड़ती ई गिलयारे म प च
ं ी।
“कौन है?” ितलक रवॉ वर अपने से कोई दो फु ट आगे तानता आ पुनः चीखा—”कौन है यहां, सामने आओ।”
खामोशी!
पहले क तरह गहरी खामोशी!
वह मानो अपनी सांस तक रोके ए था।
ऐसा लग रहा था, वह हमारे आसपास ही है।
म दौड़ती ई पथ हाउस के मैन गेट के नजदीक प च
ं ी। मैन गेट का दरवाजा पहले क तरह बंद था और उसक
िसटकनी चढ़ी ई थी।
“ या आ?”
“बड़े आ य क बात है- मैन गेट का दरवाजा तो अंदर से बंद है।”
“ फर कोई अंदर कै से घुसा?”
“समझ नह आता।”
हम दोन क कौतुहलता अब बढ़ने लगी।
ितलक रवॉ वर हाथ म ताने—ताने उ टे पैर दौड़ता आ मैन गेट के नजदीक प च
ं ा।
फर उसे न जाने या सूझा, उसने अपने रे शमी गाउन क जेब से चाबी िनकालकर दरवाजे का िब ट—इन लॉक
लगा दया।
“यह ताला य लगाया?” म बोली।
“ता क पथ हाउस के अंदर जो कोई भी है, वह चुपचाप यहां से फरार न हो सके ।”
“ओह!”
•••
गिलयारे म पहले क तरह गहरा स ाटा ा था।
सबसे बड़ी बात ये है क स र कमर के उस अ य त िवशाल पथ हाउस म कसी को भी तलाशना कोई आसान काम
न था। पूरे पथ हाउस म काफ चौड़े-चौड़े कई सारे गिलयारे थे, जो इधर—उधर फटते थे और सब गिलयारे एक—
दूसरे के साथ जुड़े थे। इसिलए कोई उन गिलयार म दौड़ता आ कह —से—कह भी प च ं सकता था।
ितलक राजको टया और म उस आततायी को तलाशते ए गिलयारे म काफ आगे आ गये।
हम दो मोड़ भी मुडे़।
“कौन है?” म भी गिलयारे म सावधानी के साथ आगे बढ़ते ए चीखी—”कौन है यहां?”
न जाने य मेरा दल बुरी तरह घबरा रहा था।
उसम अजीब—सी बेचैनी थी।
मालूम नह कौन पथ हाउस म घुस आया था।
कोई चोर?
कोई डाकू ?
कोई काितल?
या कोई और?
िजतना म उस अजनबी आदमी के बारे म सोच रही थी, उतनी मेरी बेचैनी बढ़ने लगी।
तभी हम पीछे से दरवाजा बुरी तरह भड़भड़ाये जाने क आवाज सुनाई पड़ने लगी। शायद िजस आततायी को हम
ढूढ
ं रहे थे, वह आततायी ब त िनःश द ढंग से चलता आ मैन गेट के पास प च
ं गया था और अब जबरद ती जोर
—जोर से ठोकर मारकर उसे खोलने क कोिशश कर रहा था।
“शायद वो मैन गेट पर है।” ितलक चीखा।
आवाज सुनने क देर थी- म फौरन पलटी और त
ु गित के साथ वापस मैन गेट क तरफ भागी।
मेरे साथ—साथ ितलक भी उसी तरफ झपटा।
उसी ण मैन गेट पर ठोकर मारने क आवाज आनी बंद हो गयी और कसी के ताबड़तोड़ भागने क आवाज आयी।
जब तक हम मैन गेट पर प च
ं े, तब तक वो वहां से भाग चुका था।
मैन गेट पहले क तरह बंद था।
ले कन इस बार हड़बड़ाहट म आततायी से एक गलती ई। भागते समय उसका एक जूता वह रह गया।
मने आगे बढ़कर वो जूता उठाया और उसे यानपूवक देखा।
“जूते को इस तरह या देख रही हो?” ितलक बोला।
“तुम इस जूते को पहचानते हो?”
ितलक ने भी अब उसे यान से देखा।
“नह तो।”
“यह डॉ टर अ यर का जूता है।” मने मानो भीषण िव फोट कर दया था।
“क... या कह रही हो तुम?”
“म िब कु ल ठीक कह रही ,ं यह उसी का जूता है।”
“डॉ टर अ यर!” ितलक सकपकाकर बोला—”ले कन डॉ टर अ यर अपने कमरे म—से बाहर कै से िनकला?”
“हम यही देखना है।”
•••
हम दोन त काल दौड़ते ए अब उस कमरे के नजदीक प च
ं े, िजसम हमने डॉ टर अ यर को कै द करके रखा था।
कमरे का पहले क तरह ही बाहर से कु डा लगा आ था, अलब ा एक िखड़क खुली थी।
हम कु डा खोलकर दनदनाते ए कमरे म घुसे।
डॉ टर अ यर वाकई कु स से नदारद था। नायलोन क र सी खुली ई वह कु स के पास नीचे पड़ी थी और उसके
सामने जो एक टेिबल रखी थी, वह अब लुढ़क ई थी।
“ओह माई गॉड- यह तो डॉ टर अ यर ही है।”
“ज र उसने कसी तरह अपने बंधन ढीले कर िलये ह गे।” म बोली—”और फर र सी खोलकर यहां से भाग
िनकला।”
“हम ज दी से उसे ढूढ
ं ना चािहए- ज दी!”
हम दोन वापस कमरे से बाहर िनकल आये।
ितलक के हाथ म उस समय भी ि मथ ए ड वेसन रवॉ वर थी और वह कसी भी खतरे का सामना करने के िलए
पूरी तरह त पर था।
अलब ा इतना बड़ा पथ हाउस उस व हम काट खाने को दौड़ रहा था।
उसके एक—एक गिलयारे और एक—एक कमरे क तलाशी लेना कोई आसान काम न था।
न जाने कहां छु पा होगा वह डॉ टर?
कस कमरे म?
अगले एक घ टे के दौरान हमने दौड़—दौड़कर उस पथ हाउस के तमाम कमरे खंगाल डाले।
तमाम गिलयार म घूम गये।
पर तु वो कह न िमला।
“हैरानी है!” ितलक बोला—”वह कहां गायब हो गया?”
“ज र वो यह कह छु पा है।” म फुं फकारकर बोली—”वो ब त चालाक आदमी है। म समझती ,ं ज र वो हमारी
एक—एक ए टीिवटी पर नजर रखे ह और हमारे अनु प ही वो पल—पल अपने छु पने क जगह चज करता जा रहा
है। मुझे एक बात बताओ।”
“पूछो।”
“मैन गेट के अलावा पथ हाउस से बाहर िनकलने का कोई और रा ता तो नह है?”
“नह - कोई और रा ता नह है।”
“ फर ठीक है। फर वो हमसे बचकर कह नह भाग सके गा।”
तभी हम फर ब त ह क —सी आवाज सुनाई पड़ी।
“देखो!” ितलक आंदोिलत होकर बोला—”देखो, वह फर कह चल रहा है।”
आवाज ब त ह क थी।
वह भरपूर कोिशश कर रहा था क उसके चलने के कारण आवाज न हो, ले कन फर भी आवाज हो रही थी।
हमारी सांस थम गय ।
हमने ब त गौर से उस आवाज को सुना।
वह सी ढ़य पर चढ़ने क आवाज थी।
कु छ देर सी ढ़य पर चढ़ने क वह आवाज आती रही और फर कोई भारी—भरकम सरक डा सरकने क आवाज ई
तथा उसके बाद लोहे का कोई दरवाजा सरसराकर खुलता चला गया।
“वह इस समय छत पर है।” ितलक िच ला उठा—”पथ हाउस क छत पर है।”
हम दोन त काल छत पर जाने वाली सी ढ़य क तरफ झपटे।
तभी हम छत पर डॉ टर अ यर के भागने क भी आवाज सुनाई पड़ी। शायद वो भांप गया था क हम उसके पीछे ही
आ रहे ह।
हम दोन ज दी—ज दी सी ढ़यां चढ़ते ए ऊपर छत पर प च
ं े।
•••
ितलक राजको टया ने अब रवॉ वर और भी यादा मजबूती के साथ अपने हाथ म पकड़ ली थी।
वो भांप गया था, दु मन अब उससे कोई ब त यादा दूर नह है।
छत पर प च
ं ते ही हमारी िनगाह इधर—उधर घूम ।
पूरी छत िब कु ल सुनसान पड़ी थी।
दूर—दूर तक रात क गहन नीरवता ा थी। छत पर पानी क बड़ी—बड़ी काली संटे स टं कय के अलावा कु छ
नजर नह आ रहा था।
“ज र वो इस समय कसी पानी क टंक के पीछे छु पा है।” म ब त धीमी आवाज म फु सफु साई।
“ठीक कहती हो तुम!”
फर हम धीरे —धीरे पानी क टं कय क तरफ बढ़े।
हम हर चंद यह कोिशश कर रहे थे क हमारे चलने के कारण आवाज उ प न हो। ले कन छत पर इस कदर स ाटा
था क अगर कोई सांस भी लेता, तो उसक भी आवाज सुनाई पड़ती।
“डॉ टर!” म टं कय के नजदीक प च ं कर िच लाई—”हम जानते ह- तुम टं कय के पीछे िछपे हो। अगर अपनी
खै रयत चाहते हो, तो खामोशी के साथ बाहर िनकल आओ। वरना तुम कु े से भी यादा ब तर मौत मरोगे।”
डॉ टर ने कोई जवाब नह दया।
छत पर पुनः स ाटा ा हो गया।
उसक सांस क आवाज तक हम सुनाई नह पड़ रही थी।
ऐसा लग रहा था- मानो वह अपने दल क धड़कन तक पर काबू कये ए था।
“डॉ टर!” ितलक भी रवॉ वर टं कय क तरफ तानकर चीखा—”बाहर िनकल आओ, यह हमारी तरफ से तु ह
आिखरी चेतावनी है।”
फर कोई जवाब नह ।
अब हमारे दल म एक नई शंका घर बनाने लगी। कह ऐसा तो नह था- वह म ासी डॉ टर पानी क टं कय के
पीछे भी न हो।
हम धीरे —धीरे टं कय के थोड़ा और नजदीक प च
ं े।
तभी एकाएक डॉ टर ब त जबरद त झटके के साथ टंक के पीछे से बाहर िनकला और चीते क तरह हमारे ऊपर
झपट पड़ा।
वह बड़े रौ प म था और उसके हाथ म लोहे क एक ल बी रॉड थी। एकदम कट होते ही उसक रॉड धड़ाक् से
घूमी और सीधे मेरी टांग पर पड़ी।
मेरे हलक से अ य त ममभेदी चीख िनकल गयी।
म दहाड़ते ए पीछे िगरी।
मुझे ऐसा लगा- जैसे मेरी टांग क ह ी म अंदर तक सनसनाहट दौड़ गयी हो।
ितलक ने फौरन उसका िनशाना लेकर रवॉ वर का ेगर दबाना चाहा। ले कन डॉ टर अ यर म न जाने कहां से
बेपनाह फु त आ चुक थी। मेरे ऊपर लोहे क रॉड का हार करते ही वह एकदम िबजली जैसी फु त के साथ ितलक
क तरफ घूम गया और फर रॉड भड़ाक से उसके भी पड़ी।
ितलक भसे क तरह डकरा उठा।
रॉड सीधे उसके कं धे पर पड़ी थी।
उसने फर ब त जोर से घुमकर एक बार और रॉड ितलक के जड़ी।
“ऐ ा- तुम या समझते हो!” वह अ िवि क भांित दहाड़कर बोला—”तुम मुझे पकड़ लोगे, बृ दा क तरह
मार डालोगे मुझे? नह - मु गन क शपथ, अब मने तुम दोन को नरक प च
ं ा देना है।”
गु से के कारण उसके िज म का एक—एक पुजा कांप रहा था।
वह सा ात् द र दा नजर आ रहा था।
खूनी द र दा!
जो उस ण कसी क भी जान ले सकता था।
उसने फर अपनी भरपूर शि के साथ घुमाकर लोहे क रॉड ितलक के जड़नी चाही।
ितलक फौरन छत पर कलाबाजी खा गया।
रॉड ट ् क जोरदार आवाज के साथ लटर पर जाकर लगी।
उसके बाद डॉ टर अ यर वहां नह का।
सैके ड म अपना रौ प दखाने के बाद वह वापस छत से नीचे जाने वाली सी ढ़य क तरफ झपटा।
ितलक ने भी इस बीच असीिमत फु त का प रचय दया। वह बड़ी तेजी के साथ न िसफ छत से उठकर खड़ा हो गया,
बि क उसने रवॉ वर भी उसक तरफ तान दी।
डॉ टर अ यर त
ु गित के साथ सी ढ़य क तरफ दौड़ा जा रहा था।
रॉड अभी भी उसके हाथ म थी।
“डॉ टर!” ितलक कहर भरे वर म िच लाया—” क जाओ, वरना म गोली चला दूंगा।”
भागते—भागते डॉ टर अ यर ने पलटकर देखा।
एकाएक उसक आंख म आतंक के भाव तैर गये।
“पागल मत बनो डॉ टर!” ितलक दोबारा चीखा—”मौत तु हारे िब कु ल िसर पर खड़ी है।”
मगर वो का फर भी नह ।
तब तक वो दौड़ता—दौड़ता सी ढ़य के पास तक प च
ं गया था। तभी उसने पहली सीढ़ी पर कदम रखा।
ले कन वो पहली सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी पर कदम नह रख पाया।
उससे पहले ही ितलक ने गोली चला दी।
डॉ टर अ य त दय ाही ढंग से िच ला उठा। उसके चीखने क आवाज ऐसी थी- जैसे कोई बकरा िजबह कया गया
हो। फर भी वो कु छेक सी ढ़यां काफ ज दी—ज दी उतरा। उसके बाद उसका पैर फसलने क आवाज ई और
धड़ाधड़ सी ढ़य पर िगरने क आवाज ई।
हम दोन उसके पीछे—पीछे दौड़ते ए सी ढ़य से नीचे उतरे ।
नीचे प च
ं कर हमने देखा- वह िब कु ल आिख़री सीढ़ी पर धे मुंह पड़ा आ था। उसक टांग पीछे को थ और हाथ
आगे को फै ले ए थे।
गोली ठीक उसक गदन क ह ी को तोड़ती चली गयी थी तथा अब वहां से थुलथुल करके खून िनकल रहा था।
इतना ही नह , दहशत के कारण उसक आंख भी बड़े खौफनाक अंदाज म फटी—क —फटी रह गयी थ ।
सबसे पहले मने डॉ टर अ यर के नजदीक प च
ं कर उसका मुआयना कया।
“ या आ?” मेरे पीछे—पीछे ितलक राजको टया भी दौड़ता आ उसके पास प च
ं ा—” या यह मर गया?”
“हां- यह मर चुका है।”
“माई गॉड!”
आतंक और बढ़ गया।
•••
म अब वह लाश से थोड़ा ऊपर सी ढ़य पर बैठी ई थी और मने दोन हाथ से अपना िसर कसकर पकड़ रखा था।
दौलत के िलए यह तीसरा क ल था।
तीसरी ह या!
“यह ठीक नह आ ितलक!” म धीमी जबान म बोली।
“ य ?” ितलक ने रवॉ वर अपनी जेब म रखी और वह मेरे पास आकर बैठा—”ठीक य नह आ? इसक ह या
तो आिखरकार हमने करनी ही थी।”
“हां- करनी थी।” म बोली—”ले कन हमारी योजना थी, हम इसक ह या पथ हाउस म नह करगे, बि क पथ हाउस
से कह बाहर ले जाकर करगे। हम इसके चेहरे पर पहले थोड़ा—सा मेकअप करते और फर इसे यह कहकर बाहर ले
जाते क हम इसे आजाद कर रहे ह। फर बाहर कसी वीरान इलाके म ले जाकर हमने इसे गोली मार देनी थी।
हमारी यही योजना थी और इस बारे म मने तु ह भी बताया था। जब क अब पथ हाउस के अंदर ही उसक ह या
होने से तुम नह जानते हो क हमारे सामने कतना बड़ा संकट आ गया है।”
“कै सा संकट?”
“जरा सोचो ितलक!” म बोली—”अब हम इसक लाश कस तरह ठकाने लगाएंगे?”
ितलक भी सोच म डू ब गया।
“लाश ठकाने लगाने के िलए ज री है।” मने आगे कहा—” क हम पहले इसक लाश को लेकर नीचे जाएं तथा इस
तरह लेकर जाएं, जो लाश कसी क िनगाह म भी न आ सके । जब क म समझती ं क ऐसा नह हो सकता। अगर
हम लाश पथ हाउस से लेकर एक मंिजल भी नीचे उतरे , तो वह कसी—न— कसी क िनगाह म ज र आएगी।”
“यह तो है।”
“ फर लाश कस तरह ठकाने लगाई जाएगी?”
ितलक राजको टया भी अब चंितत दखाई पड़ने लगा।
ि थित वाकई ज टल थी।
बेहद मुि कल!
“कोई—न—कोई तरीका तो हम सोचना ही होगा।” ितलक बोला।
“हां- यह तो है।” मने कहा—”तरीका तो हम वाकई सोचना होगा। य क तरीका सोचे िबना अब हमारी गित नह
है।”
•••
थोड़ी देर बाद ही डॉ टर अ यर क लाश उठाकर हम उसी कमरे म ले आये थे, िजस कमरे म हमने उसे कै द करके
रखा था।
फर ितलक और म, दोन ने सी ढ़य पर पड़ा आ खून अ छी तरह साफ कया।
एक—एक ध बा प छा।
सी ढ़यां पहले क तरह चमकने लग ।
उसके बाद कमरा बंद करके हम दोन पथ हाउस के ाइं ग हॉल म आ बैठे।
मुझे खूब अ छी तरह याद है, घु प अंधेरा तब भी चार तरफ फै ला आ था और वह आधी रात का समय था। आधी
रात के व ही मने कॉफ़ बनायी थी- ता क दमाग कु छ ै श हो सके और हम लाश ठकाने लगाने क कोई बेहतर
योजना सोच सक।
हम दोन के शरीर के उन—उन िह स म अब भी भीषण दद हो रहा था, जहां—जहां लोहे क रॉड पड़ी थी।
वाकई उसने ब त जमकर हार कये थे।
जैसे धोबी कपड़ को कू टता है।
मेरे िसर म तो ह का—सा दद भी था।
बहरहाल हम दोन ाइं ग हॉल म बैठे धीरे —धीरे कॉफ़ पीते रहे।
“एक तरीका है।” ितलक काफ देर बाद बोला।
“ या?”
म कॉफ पीते—पीते ठठक गयी।
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
“अगर हम डॉ टर अ यर क लाश के कई सारे टु कड़े कर द!” ितलक ने कहा—”तो हमारा काम आसान हो सकता
है। य क फर हम लाश के उन टु कड़ को कसी चीज म भरकर कह फक आएंगे। फर कोई लाश को ले जाते ए
देखेगा भी नह ।”
“लाश के टु कड़े! नह -नह ।” मेरे शरीर म खौफ क बड़ी जबरद त िसहरन दौड़ गयी—”इतना द र दगी से भरा
काम मुझसे नह होगा ितलक!”
“पर तु इसके अलावा लाश ठकाने लगाने का दूसरा कोई तरीका नह है।”
•••
आिखरकार हम उस लाश के टु कड़े करने ही पड़े।
य क काफ सोचने—िवचारने के बाद भी हम लाश ठकाने लगाने का दूसरा कोई तरीका नह सुझाई दया था।
सच बात तो ये है- दूसरा कोई तरीका था ही नह ।
ितलक राजको टया एक काफ ल बा चाकू िनकालकर ले आया था, िजसक धार बेहद तेज थी। हम दोन ने िमलकर
उस चाकू से डॉ टर अ यर के िज म के कई टु कड़े कर डाले। वह अ य त थरा देने वाला दृ य था और उस काम को
करने के िलए हम दोन को ही अपने दल काफ मजबूत करने पड़े थे।
हमने डॉ टर अ यर के शरीर से उसक दोन टांग अलग कर द ।
धड़ अलग कर दया।
िसर और हाथ अलग कर डाले।
वह टु कड़ —टु कड़ म बंट गया।
फर हमने तीन बड़ी—बड़ी अटैिचय म उसके शरीर के टु कड़े भर दये तथा उसके बाद हम दन िनकलने पर
अटैिचय को कार म रखकर वस वा बीच के एक बेहद िनजन इलाके म ले गये।
वहां प च
ं कर हमने उन अटैिचय म बड़े—बड़े प थर और भरे ।
फर हमेशा—हमेशा के िलए उन तीन अटैिचय को अथाह समु क गहराइय म उछाल दया।
अब कसी को पता नह लगना था, डॉ टर अ यर कहां गया?
कधर गया?
उसने जल समािध ले ली।

13

दल थाम लीिजए एक और झटका


उस पूरे घटना म के बाद म यह सोच रही थी क सारा झंझट ख म हो गया है और अब ितलक राजको टया क पूरी
दौलत पर मेरा क जा है।
अब वो सारी दौलत मेरी है।
कह कोई अवरोध ही नह था।
बृ दा रा ते से हट चुक थी और िजस डॉ टर अ यर से मुझे सबसे बड़ा खतरा था, वह भी अब इस दुिनया म नह
था। सबसे बड़ी बात ये है क येक ह या फु ल ूफ ढंग से ई थी और अभी तक कसी ह या क वजह से कोई बड़ा
फसाद पैदा नह आ था।
थोड़ा—ब त फसाद बृ दा क मौत से ज र पैदा आ।
ले कन डॉ टर अ यर क मौत के साथ ही वो भी ख म हो गया।
फलहाल सारे हालात नामल थे।
अखबार म डॉ टर क गुमशुदगी क खबर अभी भी बड़े जोर—शोर के साथ छप रही थ ।
मु बई पुिलस उसे अपहरण का मामला समझ रही थी।
अलब ा पुिलस इस बात को लेकर हैरान ज र थी क अगर डॉ टर अ यर का अपहरण आ है, तो अपरािधय ने
अभी तक फरौती क िडमा ड य नह क ?
अपराधी अभी तक खामोश य ह?
यह बात तो मु बई पुिलस के वाब म भी नह थी क डॉ टर अ यर मारा जा चुका है।
इस बीच एक गलती मुझसे ज र ई। गलती ये ई क म साव त भाई वाले करण को िब कु ल भूल चुक थी।
जब क मुझे पहले दन ही समझ जाना चािहए था, वह भूलने लायक वाकया नह है।
बहरहाल फर एक ऐसी घटना घटी, िजसने एक ही झटके म मेरी सारी मेहनत पर पानी फे र दया और उसके बाद
ही म अपने मौजूदा अंजाम तक प च
ं ी।
जेल क इस काल—कोठरी तक प च
ं ी।
जहां ‘फांसी’ अब मेरा मुक र बन चुक थी।
•••
सोमवार का दन था।
ितलक को उस दन ह का—सा फ वर था और िसर म भी कु छ दद था।
इसिलए वो नीचे होटल के अपने ऑ फस म जाकर नह बैठा था।
सुबह से ही पथ हाउस म उसके टेलीफोन—पर—टेलीफोन आ रहे थे, िज ह वो अपने शयनक म बैठा सुन रहा था।
उस समय म ाइं ग हॉल म थी।
ाइं ग हॉल म भी एक पैरेलल फोन था।
दोपहर के व टेलीफोन क घ टी बजी। मुझे न जाने या सूझा, मने पैरेलल लाइन वाला वह फोन उठा िलया और
फोन उठाना ही मेरे िलए गजब आ।
उसी ण से मेरे ऊपर मानो मुसीबत के पहाड़ टू ट पड़े।
“ितलक साहब!”
मने वो आवाज िब कु ल साफ पहचानी।
वो होटल के मैनेजर क आवाज थी।
“म बोल रहा ।ं ” दूसरी तरफ से ितलक क आवाज आयी—” या बात है?”
“एक ब त बुरी खबर है ितलक साहब!”
“ या?”
“साव त भाई के आदमी आज भी मेरे पास आये थे।”
एकाएक ऐसा लगा, सावंत भाई का नाम सुनकर ितलक राजको टया के दल— दमाग पर िबजली—सी िगरी हो।
वह च का हो।
“ या कह रहे थे वो?”
“वह अब ब त बुरी तरह जोर डाल रहे ह ितलक साहब!” मैनेजर बोला—”वह कह रहे ह क पथ हाउस और होटल
का क जा ज द—से—ज द उ ह दे दया जाए।”
“पागल हो गये ह वह लोग!” ितलक राजको टया िवषधर क भांित फुं फकार उठा—”मने उ ह पहले भी हजार
मतबा मना कर दया है क म उ ह क जा नह दूंगा, नह दूंगा। और यह मेरा आिखरी फै सला है।”
“तो फर वह अपना पया मांग रहे ह।” मैनेजर ने कहा—”आप समझने क कोिशश कर ितलक साहब, मामला
ब त संगीन मोड़ लेता जा रहा है। आप या तो सावंत भाई को उनका पया लौटा द या फर होटल और पथ हाउस
का क जा उ ह दे द। दोन म से एक कदम तो आपने उठाना ही होगा- वरना आप जानते ह, वो गग टर आदमी है, वो
कु छ भी कर सकता है।”
“देखो मैनेजर- तुमसे मेरे हालात िब कु ल भी नह छु पे ह।” ितलक बोला—”मेरे पास उसे देने को भी कु छ नह है।”
“तो फर हम आिखर कब तक सावंत भाई के आदिमय को इस कार वापस भेज सकते ह- कब तक? कसी—न—
कसी दन तो वह हंगामा करगे ही?”
तभी मने ब त ह क —सी आहट सुनी।
आहट मेरे पीछे से आयी थी।
म घबरा उठी और मने हड़बड़ाकर ज दी से पैरेलल फोन का रसीवर े िडल पर रख दया।
म पलटी।
मेरे पीछे िब ली थी।
मेरे पलटते ही वो छलांग लगाते ए भाग खड़ी ई। म अब पसीन म बुरी तरह लथपथ हो उठी।
म भांप गयी- ितलक राजको टया को ज र मालूम हो गया होगा क कोई पैरेलल फोन पर उसक बात सुन रहा था।
•••
वही आ।
वही- िजसका मुझे डर था।
एक िमनट भी न गुजरा होगा, तभी ितलक दनदनाता आ ाइं ग हॉल म आ प च
ं ा।
वह बेहद गु से म था और उसक आंख दहकते अंगार क भांित सुलग रही थ ।
“ या पैरेलल लाइन पर तु ह मेरी बात सुन रही थ ?” वह आते ही दहाड़ा।
म स ्!
मेरे होश गुम!
वह आगे बढ़ा और उसने त काल मेरे मुंह पर ऐसा झ ाटेदार थ पड़ जड़ा क मेरे हलक तक से चीख िनकल गयी और
म लहराते ए पीछे सोफे पर जाकर िगरी।
“ लडी िशट!” ितलक गरजा—”मने सोचा भी न था क तुम ऐसी घ टया हरकत करोगी।”
फर ितलक राजको टया िजस तरह दनदनाता आ वहां आया था, उसी तरह वहां से चला गया।
म अचि भत—सी सोफे पर पड़ी रही।
ितलक ने मुझे थ पड़ मारा था, म अपने आप पर यक न नह कर पा रही थी। कसी मद के हाथ ई वह मेरी
िज दगी क सबसे बड़ी बेइ ती थी।
म सकते जैसी हालत म थी।
आ यच कत!
सोफे पर पड़े—पड़े मुझे फर ‘नाइट लब’ क याद आने लगी।
या इसीिलए म वो लब छोड़कर आयी थी?
इसी बेइ ती के िलए?
इस ऐ यपूण दुिनया से अ छा तो वही लब था, वहां कम—से—कम मुझे कभी इस तरह क बेइ ती का सामना
तो नह करना पड़ा था। वहां हमेशा मद मेरे आगे—पीछे भूखे कु क तरह घूमते थे। ले कन आज वैसा ही एक मद
मेरे ऊपर हावी था।
और िसफ मेरे कारण!
मेरी दौलत क असीिमत लालसा के कारण।
वरना ितलक क या मजाल थी, जो वह मुझे थ पड़ मारता।
उस दन म यह बात भली—भांित समझ गयी क ितलक काफ बदल गया है और वह शादी कोई ब त दन तक
चलने वाली नह है।
मुझे यह अहसास फर बड़ी िश त के साथ होने लगा क एक दन मुझे फर ‘नाइट लब’ क उसी िझलिमलाती
दुिनया म वापस लौटना पड़ेगा।
वह !
जहां म पैदा ई थी।
जो मेरी अपनी दुिनया थी।
•••
मुझे थ पड़ मारने के बाद ितलक राजको टया तभी पथ हाउस छोड़कर चला गया था। फर रात को वह नशे म बुरी
तरह धु होकर वापस लौटा। गाड उसे पकड़कर ऊपर तक लाया था।
शयनक के सामने प च
ं कर वो ठठका।
“ब... बस तुम वापस जाओ।” नशे के कारण ितलक क जबान बुरी तरह लड़खड़ा रही थी।
“म आपको कमरे के अंदर तक छोड़ देता ं साहब जी!”
“मने कहा न।” ितलक थोड़ी स ती के साथ बोला—”तुम वापस जाओ।”
“ठ... ठीक है साहब जी!”
गाड उसे वह दरवाजे पर छोड़कर चला गया।
ितलक के कदम लड़खड़ाये।
उसने आज ब त यादा पी ई थी।
उसके कदम दोबारा लड़खड़ाये, तो उसने दरवाजे क चौखट पकड़ ली और अंदर मेरी तरफ देखा।
म उस समय िब तर पर लेटी थी।
ितलक के बाल िबखरे ए थे। कोट कं धे पर पड़ा था। टाई क नॉट खुली ई थी और शट आधी से यादा बे ट से
बाहर झूल रही थी। ितलक क ऐसी अ त— त हालत मने इससे पहले कभी नह देखी थी।
मने उसक तरफ से गदन फे र ली।
“ य आये हो तुम यहां?”
ितलक कु छ न बोला।
शायद उसने मेरी बात सुनी ही नह थी।
मुझे उसके लड़खड़ाते कदम क आवाज सुनाई पड़ी।
वह धीरे —धीरे मेरी तरफ बढ़ रहा था।
जब क उस ण मुझे उस आदमी से नफरत हो रही थी, उसक श ल से नफरत हो रही थी।
वह मेरे बैड के नजदीक आकर खड़ा हो गया।
इतना नजदीक क मुझे उसक उपि थित का आभास अ छी तरह िमलने लगा।
“म... म जानता ं िशनाया!” वह लड़खड़ाये वर म ही बोला—”मने तु हारे थ पड़ मारा, इसीिलए तुम मुझसे
नाराज हो- स त नाराज।”
म खामोश लेटी रही।
मेरे अंदर गु से का वालामुखी खौल रहा था।
“मुझसे सचमुच गलती ई है।” ितलक बोला—”दरअसल इन दन मेरा दमाग ठकाने पर नह है िशनाया! म
जानता -ं म... म या कर रहा ।ं तु हारी जानकारी के िलए बता दूं- म पूरी तरह बबाद हो चुका ।ं मेरे पास अब
कु छ भी मेरा अपना नह है।”
मचक।
वह एक नई बात मुझे सुनने को िमल रही थी।
“य... यह पथ हाउस!” ितलक राजको टया लड़खड़ाये वर म बोला—”यह तमाम शानो—शौकत, बार, ऑ फस,
आज कु छ भी मेरे पास नह बचा है। म... म पूरी तरह सड़क पर आ चुका ।ं ि थित ये है क म अब उस दन के बारे
म सोच—सोचकर डरने लगा ,ं िजस दन मेरे सामने रो टय तक क सम या आ जाएगी।”
मेरी गदन एकदम झटके के साथ ितलक राजको टया क तरफ घूमी।
मुझे मान अपने कान पर यक न नह आ।
ितलक जैसा फ दी रच और सड़क पर?
कं गाली क हालत म?
नह - नह , ऐसा नह हो सकता।
“यह तुम या कह रहे हो?” मेरे होठ से खुद—ब—खुद िनकला।
“य... यह सच है िशनाया!”
“ले कन...।”
“इसम मेरी कोई गलती नह ।” ितलक ने अपना कोट वह िब तर पर डाल दया और एक कु स पर बैठकर धमाके
पर धमाके करता चला गया—”सब कु छ क मत क बदौलत आ- क... क मत ने मेरे साथ बड़ा भारी मजाक
कया।”
“कै सा मजाक?”
म मानो कु छ ण के िलए थ पड़ वाली बात िब कु ल भूल चुक थी।
“दरअसल मुझे एक के बाद एक कारोबार म ब त भारी—भारी नुकसान उठाने पड़े।” ितलक राजको टया बोला
—”म... मेरे तीन काफ बड़े—बड़े हाउ संग ोजे ट थे, जो लॉप हो गये। उन तीन ोजे ट म मुझे करोड़ पय
का नुकसान उठाना पड़ा। म... मेरी बुरी हालत हो गयी। अपने कारोबार को उभारने के िलए मने लोग से बड़े पैमाने
पर कजा िलया। अपना होटल, पथ हाउस, जो कु छ भी मेरे पास था- मने वह सब िगरवी रख डाला। यहां तक क म
सावंत भाई जैसे बड़े गग टर से भी सौ करोड़ पये का कज लेने म नह िहच कचाया।”
मेरे दमाग म भी अब आ य के अनार छू टने लगे।
“सौ करोड़ का कज!”
“हां।”
“सावंत भाई के पास तुमने या िगरवी रखा?” म बोल उठी।
“क,कु छ नह ।” ितलक ने एक और रह यो ाटन कया—”उस समय साव त भाई के और मेरे काफ अ छे स ब ध
थे- इ... इसिलए साव त भाई ने िबना कु छ रखे ही मुझे वह कजा दे दया। वैसे भी सावंत भाई जैसा आदमी कजा देते
समय कभी कु छ िगरवी नह रखता। य क उसे मालूम है- िजस तरह वो कजा देना जानता है, उसी तरह अपना
कजा सूद समेत कसी के हलक से वापस िनकालना भी जानता है। बहरहाल मने बाजार से वह भारी—भरकम कजा
उठाकर अपने दो काफ बड़े ोजे ट और शु कये, िजनसे मुझे शत— ितशत मुनाफे क उ मीद थी। ल... ले कन
क मत क मार देखो, मेरे वह दोन ोजे ट भी लॉप हो गये। मुझे उनम भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। उसके
बाद मेरी कमर टू ट गयी। आज ि थित ये है, मेरे पास कु छ नह बचा है। यह पथ हाउस और होटल भी दूसरे सा कार
के पास िगरवी पड़ा है, िजनसे मने पचास करोड़ का कजा िलया था। िजन सा कार के पास यह होटल और पथ
हाउस िगरवी है, उ ह अपने पैसे क कु छ चंता नह है। अपने पैसे क असल चंता सावंत भाई को है।”
“ य ? सावंत भाई को अपने पैसे क चंता य है?”
“क... य क सावंत भाई अब इस बात को अ छी तरह जान गया है,” ितलक बोला—” क मेरे पास उसका कजा
चुकाने को कु छ नह बचा है। वह अगर मेरे साथ जबरद ती भी करे गा, तब भी म उसका कजा कहां से चुकाऊंगा?
और उसके सामने सबसे बड़ी ॉ लम ये है क उसके पास िगरवी भी कु छ नह रखा आ।”
“ओह!”
ि थित वाकई ज टल थी।
•••
मुझे यह समझने म देर नह लगी क सावंत भाई क हालत सांप—छंछूदर जैसी थी।
वो बुरी तरह फं सा आ था।
ितलक राजको टया अभी भी शराब के नशे म सराबोर कु स पर बैठा था और अपनी बबादी क दा तान सुना रहा
था।
“अब सावंत भाई या चाहता है?” म कौतुहलतापूवक बोली—”वो अपने आदमी भेजकर तु ह कस तरह क धमक
दे रहा है?”
“द... दरअसल सावंत भाई क इ छा है,” ितलक ने पुनः नशे से लड़खड़ाये वर म कहा—” क म इस होटल और पथ
हाउस का क जा उसे दे दूं।”
“क जा देने से या होगा?” म बोली—”जब क तुम बता रहे हो क यह दोन चीज पहले ही क ह और सा कार के
पास िगरवी पड़ी ह।”
“ठ... ठीक बात है। असल मामला ये है क वह इन दोन चीज का क जा इसिलए लेना चाहता है, ता क फर उन
सा कार के साथ िमलकर वह ॉपट को बेच सके । सौ करोड़ नह तो चालीस—पचास करोड़ ही यहां से उठा सके ।
अपनी रकम उगहाने का उसे यही एक सॉिलड तरीका दखाई दे रहा है क उन सा कार को बिल का बकरा बनाया
जाए और इसीिलए अब वो हाथ धोकर इस काम को अंजाम देने के वा ते मेरे पीछे पड़ा है।”
इसम कोई शक नह - सावंत भाई ने अपनी रकम उगहाने का एक बेहतरीन ज रया सोचा था।
उसी तरह वो अपनी रकम वसूल सकता था।
“ फर तु ह अब क जा देने म या ऐतराज है?”
“म... म अपनी मा कट पोजीशन क खाितर उसे क जा नह दे रहा।” ितलक बोला—”िजस दन मने उसे क जा
दया, उसी दन मेरी रही—सही इ त भी िम ी म िमल जाएगी और म पूरी तरह सड़क पर खड़ा होऊंगा। म... म
कसी कार अपनी इस इ त को अभी तक बरकरार रखे ए ।ं ले कन मुझे लगता नह क यह इ त अब और
यादा दन बच पाएगी।”
म आ यच कत—सी ितलक राजको टया क सूरत देखे जा रही थी।
“म... म तु ह भी यह बात नह बताना चाहता था िशनाया।” ितलक पुनः गहरी सांस लेकर बोला—”ले कन
अफसोस मुझे मजबूरी म तु ह यह सारी कहानी सुनानी पड़ रही है। य क म तुमसे आिखर यह सब िछपाकर भी
कब तक रख सकता था! आिखर कभी—न—कभी तो तु ह मेरी बबादी क यह दा तान मालूम ही होती।”
•••
मेरे छ े छू ट पड़े।
िजस दौलत के िलए मने तीन—तीन ह याय क थ , िजस दौलत क खाितर मने अपनी सहेली और सरदार करतार
संह जैसे बेहद भले आदमी तक को मौत के घाट उतार डाला था, वही दौलत अब मेरे पास नह थी।
म फर वह —क —वह थी।
ितलक राजको टया क बात सुनकर मेरे ऊपर कै सा व पात आ होगा, इसका आप सहज अनुमान लगा सकते ह।
आिखर मने दौलत के िलए ही तो ितलक राजको टया से शादी क थी।
एक सुखद भिव य के िलए ही तो उसक अ धांगनी बनना वीकार कया था।
और कतने मजाक क बात है।
दौलत फर भी मेरे पास नह थी।
म फर कं गाल थी।
क मत मेरे साथ कै सा अजीब खेल, खेल रही थी।
सारी रात मुझे न द न आयी।
म बस बेचैनीपूवक करवट बदलती रही।
कभी उधर!
कभी इधर!
या मजाल- जो मेरी एक पल के िलए भी आंख लगी हो।
और सोया ितलक भी नह ।
अलब ा फर हम दोन के बीच कोई बात नह ई थी।
मुझे यह कबूल करने म कु छ िहचक नह है क अब हम दोन के बीच दू रयां बढ़ने लगी थ । कम—से—कम पहले
जैसा यार तो अब हमारे दर यान ह गज भी नह था।
अगले दन सुबह—ही—सुबह श ल—सूरत से ब त गु डे नजर आने वाले चार आदमी ऊपर पथ हाउस म आये।
उ ह ने क मती सूट पहना आ था।
टाई लगाई ई थी।
और हाथ क कई उं गिलय म सोने क मोटी—मोटी अंगू ठयां थ ।
फर भी कु ल िमलाकर बदमाशी उनके चेहरे से झलक रही थी।
वह साफ—साफ गु डे दखाई पड़ रहे थे।
उनम से एक क जेब म मुझे रवॉ वर का भी प अहसास आ।
“गुड मॉ नग ितलक साहब!”
“गुड मॉ नग!”
उन चार को देखकर ितलक राजको टया के ने िसकु ड़ गये।
वह तेजी से उनक तरफ बढ़ा।
“कौन हो तुम लोग?”
“हम आपके पास सावंत भाई ने भेजा है।”
सावंत भाई!
उस नाम ने एक बार फर मेरे शरीर म सनसनाहट दौड़ा दी।
जब क एक गु डा अब बड़ी अ ील िनगाह से मेरी तरफ देख रहा था।
जैसे कोई नंगी—बु ी औरत को देखता है।
मेरे ऊपर कोई फक न पड़ा।
आिखर ऐसे ब जात मद को और उनक ऐसी वािहयात िनगाह को म बचपन से झेलती आयी थी।
म खूब जानती थी, कसी ठीक—ठाक औरत को देखने के बाद ऐसे मद के दल म सबसे पहली या वािहश ज म
लेती थी।
वह एकदम उसके साथ अिभसार क क पना करने लगते थे।
“अगर तु ह सावंत भाई ने भेजा है,” ितलक राजको टया थोड़े ककश लहजे म बोला—”तो तु ह नीचे मैनेजर से बात
करनी चािहए थी।”
“जी नह ।” वही गु डा बोला, जो बड़ी यारी िनगाह से मुझे घूरकर देख रहा था—”मैनेजर से हम लोग ब त बात
कर चुके। अब सावंत भाई का आडर है क हम लोग सीधे आपसे बात कर और ज द—से—ज द इस मामले को
िनपटाय । चाह कै से भी!”
“कै से भी से या मतलब है तु हारा?”
गु डा हंसा।
“आप समझदार आदमी ह ितलक साहब। दुिनया देखी है आपने। य सारी बात हमारी जबान से ही ‘िह दी’ म
सुनना चाहते ह।”
ितलक राजको टया ने अपने शु क अधर पर जबान फे री।
हालात खुशगवार नह थे।
“तुम लोग मेरे साथ अंदर कमरे म आओ।”
“कमरे म य ?”
“तु ह जो कहना है- वह कहना।”
चार गु ड क िनगाह एक—दूसरे से िमली।
“ठीक है।” फर उनम से एक बोला—”कमरे म चलो, हमारा या है!”
ितलक राजको टया और वह चार एक कमरे म जाकर बंद हो गये।
उसके बाद उनके बीच जो बात , उसी कमरे के अंदर ।
बात का तो मुझे कु छ पता न चला।
अलब ा फर भी म यह अंदाजा भली—भांित लगा सकती थी क उनके बीच या बात ए ह गी।
वह गु डे िजनती देर पथ हाउस म रहे- मेरी सांस गले म अटक रही।
थोड़ी ही देर बाद वह चले गये।
•••
फर दोपहर के व पथ हाउस म एक ऐसी टेलीफोन कॉल आयी, िजससे मुझे एक और जानकारी हािसल ई।
िजसके बाद एक और खतरनाक िसलिसले क शु आत ई।
दोपहर के कोई दो बजे का समय था, जब घ टी क आवाज सुनकर मने टेलीफोन का रसीवर उठाया।
ितलक राजको टया तब पथ हाउस म नह था और न ही नीचे होटल म था।
वो अपनी कसी ‘साइट’ पर गया आ था।
“हैलो!”
मेरे कान म एक बेहद सुरीली आवाज पड़ी।
वह कसी लड़क का वर था।
“कौन?”
“मुझे ितलक राजको टया से बात करनी है।”
“ितलक साहब तो यहां नह है, आप कौन ह?”
“ या आप उनक प ी बोल रही ह?” दूसरी तरफ मौजूद लड़क ने सवाल कया।
“जी हां।”
“म एल.आई.सी. (भारतीय जीवन बीमा िनगम) क एक एजे ट बोल रही ।ं ” लड़क ने कहा—”ितलक साहब के
बीमे क क त अभी तक ऑ फस म जमा नह ई है- आप कृ पया उ ह यान दला द क वो बीमे क क त जमा कर
द।”
मचक।
बीमा!
वह मेरे िलए एक नई खबर थी।
“ या ितलक साहब ने बीमा भी कराया आ है?”
“आपको इस बारे म नह मालूम?” वह बोली।
“नह तो।”
“आ य है मैडम!” लड़क क आवाज म िव मय का पुट था—”पूरे मु बई शहर म अगर कसी का सबसे बड़ा बीमा
है, तो वह ितलक साहब का है। उ ह ने पांच—पांच करोड़ के दस बीमे कराये ए ह। कु ला िमलाकर उनका पचास
करोड़ का बीमा है।”
“प... पचास करोड़ का बीमा!”
“जी हां मैडम! कसी एक अके ले आदमी का इतना बड़ा बीमा िसफ उनका है।”
मेरे कान म सी टयां बजने लग ।
पचास करोड़ का बीमा!
ितलक राजको टया ने अपना इतना बड़ा बीमा कराया आ था।
“आप उ ह क त के बारे म यान दला द मैडम!”
“ज र।” मने त पर अंदाज म कहा—”म उनसे आते ही बोल दूंगी।”
“थ यू।”
लड़क ने लाइन काट दी।
•••
फर मने आनन—फानन उस अलमारी क तलाशी ली, िजस अलमारी म ितलक राजको टया इस तरह के ज री
डा यूमे ट रखता था।
वह अलमारी उसके शयनक म ही थी और सबसे बड़ी बात ये है क उस अलमारी क चाबी तक भी मेरी आसान
प च
ं थी। ज द ही मने अलमारी खोल डाली।
फर उसम कागज तलाशने शु कये।
शी ही बीमे के डा यूमे ट मेरे हाथ लग गये।
वाकई!
उसका पचास करोड़ का बीमा था।
पचास करोड़ क ‘मनी बैक पॉिलसी’!
मेरे हाथ—पैर म कं पकं पी छू टने लगी।
वह एक अजीब—सा अहसास था, जो यह पता लगने के बाद मेरे अंदर हो रहा था क ितलक राजको टया का पचास
करोड़ का बीमा है।
म इस बात को बखूबी जानती थी क ‘मनी बैक पॉिलसी’ म अगर पॉिलसी धारक का कोई ए सीडे ट हो जाता है या
उसक ह या हो जाती है, तो उसके उ रािधकारी को दोगुनी रकम िमलती है।
यािन सौ करोड़!
सौ करोड़- इतने पये मेरे सुखद भिव य के िलए ब त थे।
उस दन मेरे दमाग म एक और बड़ा खतरनाक याल आया।
तीन ह या म कर चुक थी।
तो फर दौलत के िलए एक ह या और य नह ?
एक आिखरी दांव और य नह ?
या पता इस बार कु छ बात बन ही जाए।

14

हसबै ड का मडर
अगले दो दन मने ितलक राजको टया क ह या क योजना बनाने म गुजारे ।
आप मेरी बुि पर इस समय आ य अनुभव कर रहे ह गे।
आिखर म अपने पित क ह या करने जा रही थी।
उस पित क ह या- िजसे मने भारी ज ोजहद के बाद हािसल कया था और जो कभी मुझे ब त पसंद था।
ले कन म समझती -ं इसम आ य जैसी कोई बात नह ।
मेरी गार टी है, अगर आप मेरी जगह होते, तो शायद आप भी यही कदम उठाते- जो मने उठाया।
जरा सोिचये- अब इसके िसवा मेरे सामने रा ता ही या था?
मेरे सामने दो ही रा ते थे।
या तो म ‘नाइट लब’ क उस िझलिमलाती दुिनया म वापस लौट जाऊं। ले कन जब—जब मुझे अपनी दम तोड़ती
ई मां का चेहरा याद आ जाता था, तो वहां लौटने क क पना से ही मुझे दहशत होने लगती थी।
या फर म कसी तरह दौलत हािसल क ं ?
कै से भी!
कु छ भी करके !
मने दूसरा रा ता चुना।
दौलत हािसल करने का रा ता।
मने दृढ़ संक प कर िलया क म ितलक राजको टया को भी रा ते से हटाऊंगी।
अलब ा ितलक राजको टया क ह या मने इस तरह करनी थी, जो उसक ह या का सारा शक सावंत भाई पर आये।
सावंत भाई को िनशाना बनाकर मने सारा खेल, खेलना था।
हमेशा क तरह ज द ही मने ह या क एक ब त फु ल ूफ योजना बना ली।
योजना को अंजाम देने के िलए मुझे सबसे पहले एक रवॉ वर क ज रत थी।
वह मेरे पास पहले से ही थी।
डॉ टर अ यर क देसी िप तौल- िजसे मने उससे छीना था।
•••
अगले दन से ही मेरा खेल शु हो गया।
बड़े िहसाब से मने एक—एक चाल चली।
जो कसी को भी मेरे ऊपर शक न हो।
ितलक राजको टया नीचे अपने ऑ फस म जाने के िलए सुबह ठीक दस बजे तक तैयार हो जाता था। फर वह िल ट
म सवार होकर नीचे प च
ं ता। ऊपर से नीचे ा ड लोर तक प चं ने म उसे दो िमनट लगते थे।
िल ट ाउ ड लोर पर िजस जगह जाकर कती, वो एक काफ सुनसान गिलयारा था।
उसके बाद वो ल बे—ल बे डग रखता आ गिलयारा पार करता। एक लॉबी म प च
ं ता। लॉबी के बराबर म ही एक
काफ ल बा—चौड़ा गिलयारा और था- जो आगे उसके ऑ फस तक जाता था।
उस दन म सुबह पोने दस बजे ही नहा—धोकर तैयार हो गयी थी।
मने बड़ी खूबसूरत ेस पहनी।
टाइट जीन!
हाइनेक का पुलोवर!
और चमड़े का मेह न कोट। िजसम कमर वाली जगह ब त चौड़ी बे ट लगी थी और उसम सुनहरी ब ल फट था।
“तुम कहां जा रही हो?” ितलक राजको टया मेरी तरफ देखकर बोला।
“मने आज से एक नया फै सला कया है ितलक।”
“ या?”
“म अब हमेशा तु हारे साथ रहा क ं गी।” मने कहा—”ऑ फस म भी और जहां—जहां तुम जाया करोगे, वहां भी।
यूं समझो- अब म हमेशा साये क तरह तु हारे साथ लग गयी ।ं ”
“ऐसा य ?” ितलक चका।
“दरअसल तुम नह जानते—सावंत भाई के आदिमय से अब तु हारी जान को पूरा खतरा है।” मने अपनी योजना के
प े फै लाने शु कये—”वह कसी भी पल, कु छ भी कर सकते ह। पथ हाउस म वो िजस तरह दनदनाते ए घुस
आये थे, उससे उनके इरादे साफ झलक रहे ह।”
“ले कन तुम मेरे साथ रहकर िबगड़ते ए हालात को स भाल थोड़े ही सकती हो िशनाया?”
“सही कहा तुमने।” मने बे—िहचक कबूल कया—”म िबगड़ते ए हालात को नह स भाल सकती। ले कन म
समझती ,ं एक से भले हमेशा दो होते ह। दो आदिमय का असर, दो आदिमय का तबा अलग होता है। इसके
अलावा म तुमसे एक बात और क गं ी।”
“ या?”
“ रवा वर हमेशा अपने पास रखा करो- चौबीस घ टे उसे त कये के नीचे रखना ठीक नह है।”
मने अपने कोट क जेब से ि मथ ए ड वैसन रवॉ वर िनकालकर उसक तरफ बढ़ाई।
“ओह िशनाया!” ितलक ने एकाएक कसकर मुझे अपनी बांह के दायरे म समेट िलया—”तुम कतना याल रखती
हो मेरा।”
“आिखर म प ी ं तु हारी!” म अमरबेल क तरह उससे िलपट गयी—”अगर म तु हारा याल नह रखूंगी- तो
कौन रखेगा?”
ितलक राजको टया ने बुरी तरह भावुक होकर मेरा गाढ़ चु बन ले िलया।
उसक बांह का दायरा मेरी पीठ के िगद कु छ और यादा कसा।
“अब इस रवॉ वर को अपनी जेब म रखो।”
ितलक ने वह रवॉ वर अपनी जेब म रखी।
“सचमुच म तु ह अपनी प ी के प म पाकर ध य हो गया ँ िशनाया!”
म धीरे से मुसकु रा दी।
उसे कहां मालूम था- मुझे प ी के प म पाकर उसके गले म कतनी बड़ी मुसीबत क घ टी बंध गयी थी।
उसने मुझे फर भी बांह के दायरे से मु नह कया।
बि क उसने मुझे और यादा कसकर अपने सीने से िचपटा िलया।
उसक उं गिलयां धीरे —धीरे मेरी पीठ पर सरसराने लग ।
उसने अपने जलते ए ह ठ थायी तौर पर मेरे नाजुक और सुख होठ पर रख दये।
उसक सांस भारी होने लगी।
आंख म नशा—सा छाने लगा।
म भी अपने बदन म अब अजीब—सी सनसनाहट अनुभव कर रही थी।
“ या कर रहे हो, अब और यादा शरारत मत करो।” मने ितलक राजको टया को जबरन धके लकर अपने से अलग
कया—”ये दन है, कोई रात नह है।”
“म जानता ं डा लग- यह दन है।” ितलक मु कु राया—”ले कन शरारत करने के िलए दन ही कौन—सा मना
करता है।”
ितलक ने मुझे फर आ लंगनब कर लेना चाहा।
“अ छा अब बस करो।” म तुरंत दो कदम पीछे हटी—”और मेरी बात यान से सुनो।”
“कहो।”
“म फलहाल नीचे ऑ फस म जा रही ,ं तुम भी तैयार होकर ज दी से वहां प च
ं ो।”
“ठीक है बॉस!” वह बड़ी अदा से िसर नवाकर बोला—”बंदा अभी हािजर होता है।”
म धीरे से हंस पड़ी।
•••
ले कन सच तो ये है क उस समय मेरा दमाग पूरी तरह स य था।
मेरी हंसी, मेरा चुहलपन, सब एक नाटक था।
ामा!
ितलक राजको टया से िवदा लेकर म तेजी से िल ट क तरफ बढ़ गयी।
अगले ही पल म िल ट के अंदर दािखल ई और झटके के साथ िल ट का दरवाजा बंद कया।
फर िल ट का ाउ ड लोर वाला बटन दबाया।
िल ट तूफानी गित से नीचे क तरफ भागने लगी।
वह समय आ गया था- जब मने ितलक क ह या क दशा म अपनी पहली चाल चलनी थी।
ठीक दो िमनट बाद िल ट ाउ ड लोर पर प च
ं कर क ।
म िल ट से बाहर िनकली।
अब म गिलयारे म थी।
गिलयारा हमेशा क तरह िब कु ल सुनसान पड़ा था। वहां कोई न था। इं सान का एक ब ा तक नह !
फर म िल ट के िब कु ल सामने वाले कमरे क तरफ बढ़ी। वह कमरा खाली पड़ा था। कमरे के पास प च
ं कर मने
उसका ताला खोला। उसक चाबी हािसल करने म मुझे कोई द त नह आयी थी- वह बड़ी सहजता से हािसल हो
गयी।
दरअसल ितलक के पास एक ऐसी मा टर—क थी, जो उस होटल के लगभग सभी दरवाज के ताले स िलयत के
साथ खोल देती थी। सबसे बड़ी बात ये है, ितलक राजको टया मा टर—क को पथ हाउस क उसी अलमारी म
रखता था, िजसम दूसरे ज री डा यूमे ट रखे रहते ह।
ताला खोलते ही म कमरे के अंदर दािखल ई और दरवाजा पहले क तरह वापस बंद कर िलया।
फर म एक िखड़क क तरफ बढ़ी।
वह लास—िव डो थी, िजसम से िल ट िब कु ल साफ नजर आ रही थी।
मने अपने चमड़े के मेह न कोट क जेब से िप तौल िनकाली।
उसका चै बर खोलकर देखा।
उसके चार खान म गोिलयां मौजूद थ ।
मने चै बर सैट करके उसे वापस बंद कया। फर मने लास—िव डो मुि कल से एक इं च खोली।
इतनी—जो बस िप तौल क नाल उसम से बाहर िनकल सके ।
फर म ब त धैयपूवक ितलक का इं तजार करने लगी।
•••
व गुजरता रहा।
ठीक दस बजे िल ट ऊपर क तरफ सरकनी शु ई और ज द ही वो मेरी नजर से ओझल हो गयी।
ज र ितलक ने ऊपर से इं डीके टर पैनल म लगा बटन दबाया था।
मने फौरन िप तौल क नाल लास—िव डो क िझरी से बाहर िनकाल दी।
मेरी ा ता बढ़ गयी।
ितलक अब नीचे आने वाला था।
उस ण मुझे अपनी सांस गले म घुटती अनुभव हो रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे हाथ—पांव ठ डे पड़ते
जा रहे ह ।
मेरी िनगाह िल ट के लाल इं डीके टर पर जाकर ठहर गयी।
वह अब बुझ चुका था।
कु छ देर इं डीके टर पर कोई हरकत न ई।
फर एकाएक इं डीके टर क सुख लाइट पुनः जल उठी।
उसके बाद पैनल पर बड़ी तेजी के साथ न बर जलने—बुझने शु ए।
नौ।
आठ।
सात।
छः।
िल ट नीचे क तरफ आ रही थी।
मेरी उं गली स ती से रवॉ वर के ेगर पर जाकर कस गयी।
मेरी िनगाह अपलक इं डीके टर को घूर रही थी।
तभी झटके के साथ िल ट नीचे आकर क । उसम ितलक मौजूद था। वह सफे द कोट—पट पहने था और लू कलर
क फू लदार टाई लगाए था, िजसम उसका ि व काफ खूबसूरत दखाई पड़ रहा था।
वह िल ट का दरवाजा खोलकर बाहर िनकला।
तभी मने िप तौल का ेगर दबा दया।
गोली चलने क ऐसी तेज आवाज ई, मानो तोप से गोला छू टा हो। साथ ही ितलक राजको टया क अ य त
दय ाही चीख भी वहां गूंजी।
गोली चलते ही मने लास िव डो बंद क और फौरन दरवाजे क तरफ भागी।
दरवाजे तक प च
ं ते—प च
ं ते म िप तौल वापस कोट क जेब म रख चुक थी।
मने दरवाजा खोला और बाहर झांका।
ितलक िल ट के पास धे मुंह पड़ा आ था।
म तुर त कमरे से बाहर िनकल गयी।
दरवाजे को मने पहले क तरह ही मा टर—क से लॉक भी कर दया।
•••
गोली चलने क आवाज इतनी तेज ई थी क वो दूर—दूर तक ित विन ई।
जो गिलयारा अभी तक िब कु ल सुनसान पड़ा आ था, एकाएक उस गिलयारे क तरफ कई सारे कदम के दौड़कर
आने क आवाज सुनाई पड़ी।
म तब तक ितलक राजको टया के पास प च
ं चुक थी।
मने देखा- गोली उसके कं धे म लगी थी और वहां से बुरी तरह खून रस रहा था। दद से उसका बुरा हाल था।
“ितलक!” मने ितलक राजको टया को बुरी तरह झंझोड़ा—”ितलक!”
“म... म ठीक ।ं ” ितलक अपना कं धा पकड़े—पकड़े कं पकं पाये वर म बोला—”म... मुझे कु छ नह आ।”
तभी तीन आदमी दौड़ते ए गिलयारे म आ प च
ं े।
उनम से एक होटल का मैनेजर था और बाक दो बैल वॉय थे।
ितलक राजको टया क हालत देखकर उन तीन क आंख भी आतंक से फै ल गय ।
“ कसने चलाई गोली?” होटल का मैनेजर िच लाकर बोला—” कसने कया यह सब?”
“म... मालूम नह , कौन था।” ितलक अपना कं धा पकड़े—पकड़े खड़ा आ—”म जैसे ही िल ट से बाहर िनकला-
ब... बस फौरन धांय से गोली आकर लगी।”
“मने देखा था- िजसने गोली चलायी।” एकाएक म शु क वर म बोली।
तुर त मैनेजर क गदन मेरी तरफ घूमी।
“वह कोट—पट पहने आदमी था।” म बोली—”ले कन वो श ल से बदमाश नजर आ रहा था। मने उसे उस तरफ
भागते देखा था।”
मने गिलयारे म दूसरी तरफ उं गली उठा दी।
त काल दोन बैल वॉय उसी तरफ दौड़ पड़े।
“गोली आपके कं धे के अलावा तो कह और नह लगी ितलक साहब?” मैनेजर ब त गौर से ितलक राजको टया को
देखता आ बोला।
“नह ।”
“चलो- शु है।”
तभी कु छ दौड़ते कदम क आवाज और हमारे कान म पड़ी, जो उसी गिलयारे क तरफ आ रहे थे।
मैनेजर के चेहरे पर अब चंता के भाव दौड़ गये।
“लगता है!” वह थोड़ा आंदोिलत होकर बोला—”गोली क आवाज कु छ और लोग ने भी सुन ली है और अब वो इसी
तरफ आ रहे ह। अगर यह बात ाहक के बीच फै ल गयी क होटल म कसी बदमाश ने गोली चलाई है, तो इससे
होटल क रे पुटेशन पर बुरा असर पड़ेगा।”
“ फर हम या कर?” मेरी आवाज म बैचेनी झलक ।
“एक तरीका है।”
“ या?”
“आप फौरन ितलक साहब को लेकर ऊपर पथ हाउस म चली जाएं मैडम, म अभी यहां के हालात नामल करके ऊपर
आता ।ं ”
“ठीक है।”
मने फोरन ितलक राजको टया को कं धे से कसकर पकड़ िलया और फर उसके साथ िल ट म सवार हो गयी।
मने जंगला झटके के साथ बंद कया।
तभी दोन बैल वॉय दौड़ते ए वहां आ प च
ं े।
“ या आ?” मैनेजर ने उनसे पूछा—” या उस बदमाश का कह कु छ पता चला?”
“नह साहब- वह तो इस तरफ कह नह है।”
“ज र साला भाग गया होगा।”
मने िल ट के पैनल म लगा एक बटन दबा दया।
तुर त िल ट बड़ी तेजी से ऊपर क तरफ भागने लगी।
“म तुमसे या कहती थी!” िल ट के टाट होते ही म ितलक से स बोिधत ई—”अब तु ह सावधान रहने क
ज रत है- य क सावंत भाई के इरादे ठीक नह ह। वह बुरी तरह हाथ धोकर तु हारे पीछे पड़ चुका है।”
ितलक राजको टया धीरे —धीरे वीकृ ित म गदन िहलाने लगा।
•••
ितलक अब अपने शयनक म लेटा आ था।
दद के िनशान अभी भी उसके चेहरे पर थे।
होटल का मैनेजर और दोन बैल वॉय भी उस समय वह मौजूद थे। वह थोड़ी देर पहले ही नीचे से ऊपर आये थे।
“आज तो बस बाल—बाल बचे ह।” मैनेजर अपने कोट का ऊपर वाला बटन लगाता आ बोला।
वह हड़बड़ाया आ था।
“ या हो गया?” ितलक ने पूछा।
“होटल के ाहक के बीच यह बात पूरी तरह फै ल गयी थी क वह गोली क आवाज थी। म बड़ी मुि कल से उ ह इस
बात का यक न दला सका क ऐसा सोचना उनक गलती थी। वह गोली क आवाज नह थी।”
“ फर कस चीज क आवाज थी वो?”
“मने उ ह समझाया क कार के बैक फायर क आवाज भी िब कु ल ऐसी ही होती है, जैसे कोई गोली चली हो। जैसे
कोई बड़ा धमामा आ हो। तब कह जाकर उ ह यक न आ। अलब ा एक ाहक तो फर भी हंगामा करने पर तुला
था।”
“ या?”
“वो कहता था क उसने एक आदमी के चीखने क आवाज सुनी थी। वो बड़े पु ता अंदाज म कह रहा था क अगर वो
कार के बैक फायर क आवाज थी, तो उसे कसी आदमी के बुरी तरह िच लाने क आवाज य सुनाई पड़ी?”
“उससे या कहा तुमने?”
“मने उसे समझाया क वह ज र उसका वहम था।”
“मान गया वो इस बात को?” म अचरजपूवक बोली।
“पहले तो नह माना। ले कन जब मने उसे यह दलील दी क अगर होटल म सचमुच कोई गोली चली होती या वहां
कोई हादसा घटा होता- तो वह नजर तो आता। दखाई तो पड़ता। तब कह जाकर वह शांत आ। तब कह उसक
बोलती बंद ई।”
“ओह!”
वाकई एक बड़ा हंगामा होने से बचा था।
होटल का मैनेजर कु स ख चकर वह ितलक के करीब बैठ गया।
“गोली िनकालने के िलए कसी डॉ टर को बुलाया?”
“हां।” म बोली—”म एक डॉ टर को फोन कर चुक ,ं वह बस आता ही होगा।”
“ठीक कया।”
फर मैनेजर ब त गौर से ितलक राजको टया के कं धे के ज म को देखने लगा।
उसम से खून अभी भी रस रहा था।
“हाथ तो सही िहल रहा है?”
“हां।” ितलक ने अपना हाथ िहलाया—डु लाया—”हाथ तो सही िहल रहा है, बस थोड़ा दद है।”
“सब ठीक हो जाएगा। शु है- जो गोली िसफ मांस म जाकर धंसी है, अगर उसने कसी ह ी को ेक कर दया होता,
तो फर हाथ महीन के िलए बेकार हो जाता।”
मने भी आगे बढ़कर ज म का मुआयना कया।
गोली कं धे म धंसी ई िब कु ल साफ नजर आ रही थी।
वह कोई एक इं च अंदर थी।
“म अभी आती ।ं ” एकाएक म कु छ सोचकर बोली।
“तुम कहां जा रही हो?”
“बस अभी आयी।”
म शयनक से बाहर िनकल गयी।
ज द ही जब म वापस लौटी- तो मेरे हाथ म कोई एक मीटर ल बी र सी थी।
र सी काफ मजबूत थी।
“इस र सी का आप या करगी मैडम?” मैनेजर ने पूछा।
“इसे म इनके कं धे पर ऊपर क तरफ कसकर बांध दूंगी।” म बोली—”इससे गोली का जहर पूरे शरीर म नह फै ल
पाएगा और खून का वाह भी के गा। जब तक डॉ टर नह आ जाता- तब तक म समझती ँ क ऐसा करना बेहतर
है।”
“वैरी गुड- सचमुच आपने अ छा तरीका सोचा है।”
मैनेजर ने शंसनीय ने से मेरी तरफ देखा।
जब क म र सी लेकर ितलक क तरफ बढ़ गयी।
“आप अपना हाथ थोड़ा ऊपर उठाइए।”
ितलक ने अपना वह हाथ ऊपर उठा िलया- िजसम गोली लगी ई थी।
मने फौरन कं धे से ऊपर र सी कसकर बांध दी।
र सी कसने का फायदा भी फौरन ही सामने आया। त काल खून बहना बंद हो गया।
मने ड टर से ितलक के कं धे पर मौजूद बाक खून भी साफ कर दया।
उस समय मेरी ए टीिवटी देखकर कोई नह कह सकता था क मने ही वह गोली चलाई है।
मने ही ितलक राजको टया को उस हालत म प च
ं ाया है।
•••
फर मने एक चाल चली।
तु प चाल!
िजस चाल को चलना मेरा वा तिवक उ े य था।
वह सब उस समय शयनक म ही मौजूद था और अभी थोड़ी ब त देर वहां से िहलते भी नजर नह आ रहे थे।
मौका देखकर म शयनक से बाहर िनकली और बड़ी खामोशी के साथ ाइं ग हॉल म प च
ं ी।
वहां प च
ं कर मने बड़ी तेजी के साथ टेलीफोन का रसीवर उठाया और फर ज दी—ज दी ितलक राजको टया के
फोन का न बर डायल करना शु कया। म जानबूझकर लडलाइन पर फ़ोन कर रही थी।
उस समय मेरी एक—एक हरकत देखने यो य थी।
तुर त दूसरी तरफ घ टी जाने लगी।
“हैलो।”
ज द ही मुझे फोन पर ितलक क िनढाल—सी आवाज सुनाई पड़ी।
मने फौरन टेलीफोन के माउथपीस पर मोटा—सा कपड़ा रख िलया।
“कौन- ितलक राजको टया?” म अपनी आवाज को मदाना और भारी बनाने क कोिशश करते ए बोली।
“हां- म ही बोल रहा ।ं ”
म हंसी।
कु छ तो म आवाज बदलकर बोल ही रही थी और कु छ कपड़े के कारण भी मेरी आवाज काफ बदल गयी थी।
“कौन हो तुम?” ितलक गुराया।
“म वही ं ितलक राजको टया!” मने अपने दांत कट कटाये—”िजसने अभी—अभी तु हारे ऊपर गोली चलायी।”
“न... नह ।” ितलक कांप उठा—”ले कन तु हारी मेरे से या दु मनी है?”
“कोई दु मनी नह । तु हारे से सावंत भाई क दु मनी है और म सावंत भाई का खास आदमी ।ं ”
दूसरी तरफ एकाएक स ाटा छा गया।
घोर स ाटा!
“जो गोली अभी—अभी तु हारे कं धे म लगी है ितलक राजको टया!” म िवषधर क भांित फुं फकारकर बोली—”वह
अभी तु हारी खोपड़ी को भी अ डे के िछलके क तरह फोड़ते ए गुजर सकती थी। यह मत समझना क मेरा
िनशाना चूक गया है, मेरा िनशाना कभी नह चूकता। बि क यह सावंत भाई ने तु ह एक मौका दया है।”
“क... कै सा मौका?” ितलक का शु क वर।
“अगर तु ह अपनी जान क जरा भी फ है, तो फौरन पथ हाउस और होटल का क जा सावंत भाई को दे दो।”
“ल... लगता है- तुम लोग पागल हो गये हो?”
“पागल हम नह बि क तुम हो गये हो बेवकू फ आदमी!” म मदाना आवाज म ही चंघाड़ी—”ऐसा मालूम होता है,
दौलत के साथ—साथ तु हारी अ ल भी घास चरने चली गयी है। एक बात ब त अ छी तरह कान खोलकर सुन लो
ितलक राजको टया! अगर तुमने सावंत भाई को क जा नह दया, तो ब त ज द तु हारी खोपड़ी के आर—पार एक
नह बि क कई गोिलयां िनकल जाएंगी।”
“ले कन... ।”
मने उसके आगे क कोई बात नह सुनी।
फौरन लाइन काट दी।
म अपना काम कर चुक थी।
•••
म जब शयनक म दािखल ई, तो वहां का माहौल बेहद सनसनीखेज था।
खासतौर पर ितलक राजको टया क सबसे बुरी हालत थी।
वह पसीन म लथपथ था।
डरा आ।
मानो िज म का एक—एक रोआं खड़ा हो। फोन अभी भी उसक गोद म रखा था और वह उस ण बैठा आ था।
“ या हो गया?” मने शयनक म दािखल होते ही अपनी नजर उन सबके चेहर पर घुमा —”आप लोग इतना
परे शान य ह?”
कोई कु छ न बोला।
सब चुप!
“ितलक!” म, ितलक राजको टया के नजदीक प च
ं ी—”आिखर या आ है, बताते य नह कु छ?”
“अ... अभी—अभी सावंत भाई के आदमी का फोन आया था।”
“ फर?”
“तु हारा अनुमान ठीक ही था िशनाया!” ितलक धीमे वर म बोला—”यह हरकत सावंत भाई के आदमी क ही है।
उ ह ने ही मेरे ऊपर गोली चलाई थी।”
“ले कन अब या कह रहे ह वह लोग?”
“वह मेरे ऊपर पथ हाउस और होटल का क जा देने के िलए ेशर डाल रहे ह। वह कह रहे ह- अभी यह ेलर था, जो
दखाया गया। आगे पूरी फ म भी दखाई जा सकती है। वह मेरी खोपड़ी म भी गोली मार सकते ह।”
“ओह!”
मने भी अब भयभीत होने का नाटक कया।
मेरे चेहरे पर भी आतंक के भाव दौड़े।
“म तो कहता ं ितलक साहब!” तभी होटल का मैनेजर बोला—”आपको इस घटना क पुिलस म रपोट दज करानी
चािहए। बाकायदा सावंत भाई के नाम से रपोट दज करानी चािहए। वैसे भी आपको गोली लगी है, यह कोई छोटा
मामला नह है।”
“नह ।” मने फौरन कहा—”पुिलस म रपोट दज करानी उिचत नह ।”
“ य ?” मैनेजर बोला—”उिचत य नह ? रपोट दज कराई जाएगी, तभी तो सावंत भाई को पता चलेगा क इस
तरह क हरकत का या नतीजा होता है। अभी शहर म कोई जंगलराज कायम नह हो गया है, जहां उस जैसे गु डे
—मवाली कु छ भी करते घूम।”
“ फर भी म समझती ,ं ” म अपनी बात पर दबाव बनाकर बोली—”पुिलस तक मामला प च ं ाना ठीक नह है।
यादातर ऐसे के स म पुिलस कु छ नह करती, अलब ा रपोट दज कराने से हम एक नुकसान ज र होगा।”
“ या?”
“सावंत भाई से हमारी दु मनी और बढ़ जाएगी।”
मैनेजर अब खामोश हो गया।
“िशनाया ठीक कह रही है।” ितलक ने भी मेरी हां—म—हां िमलाई—”पुिलस म रपोट दज कराना ठीक नह है।
फर रपोट दज कराने म एक नुकसान और है, िजसक तरफ अभी तुम लोग का यान नह गया है।”
“ या?”
“अभी मेरी कं गाली क जो बात िसफ चंद लोग को मालूम है, रपोट दज कराते ही फर वो पूरे शहर को मालूम
होगी। फर पूरा शहर चटखारे ले—लेकर इस िवषय पर चचा कर रहा होगा।”
बहरहाल पुिलस म रपोट दज कराने का मामला उसी ण ठ डा पड़ गया।
जो क मेरे िलए अ छा ही था।
तभी अपना कट बैग लेकर डॉ टर भी वहां आ प च
ं ा।
आते ही वो गोली िनकालने के अपने काम म जुट गया।
हालां क वह भी बार—बार एफ.आई.आर. क बात कर रहा था। कह रहा था क यह सब गैरकानूनी है।

15

मौत से पहले खेल


वह रात मेरे िलए बड़ी हंगाम से भरी रात रही।
हंगाम से भरी थी और यादगार भी।
उस रात म गहरी न द म थी- जब ितलक राजको टया ने मुझे झंझोड़कर जगाया और मुझसे कहा क वो मेरे साथ
सहवास करना चाहता है।
वह मेरे िलए बड़ी अ भुत बात थी।
उस रात मुझे पहली बार अपने प ी होने का अहसास आ। य क एक पित ही प ी से इस तरह क बात कर सकता
है। वरना एक कॉलगल को तो जगाना ही नह पड़ता। वह तो अपने ाहक के िलए पहले ही रे डी होती है। एकदम
चौकस। अगर ाहक सहवास करने के िलए उसे सोते से जगाएगा, तो फर उसक दुकान चल पड़ी। आिखर सै स
उसका पेट पालने का िब कु ल वैसा ही ज रया तो होता है, जैसे दूसरे लोग के अलग—अलग ज रये होते ह।
बहरहाल वह मेरे िलए एक दुलभ अवसर था।
उस रात ितलक मूड म भी ब त था। उसका पूरा शरीर इस तरह भभक रहा था, जैसे उसके अंदर कई हजार वो ट
का कर ट वािहत हो रहा हो।
कभी इतनी गम मने सरदार करतार संह के शरीर म ही देखी थी।
“ या बात है जनाब!” म उसे आ लंगनब करते ए बोली—”आज ब त मूड म नजर आ रहे हो।”
“हां।” ितलक बोला—”आज म ब त मूड म ।ं आज मेरी इ छा हो रही है क म तु ह बुरी तरह पीस डालूं।”
“तो फर मना कसने कया है?”
म हंसी।
मगर सच तो ये है- म रोमांस के उन मनोहारी ण म भी उस झांपड़ को नह भूली थी, जो ितलक राजको टया ने
मेरे मुंह पर मारा था। और... और उसी झांपड़ के कारण तब भी मेरे दल म उसके िलये नफरत थी।
ितलक ने बारी—बारी से मेरे गुलाबी गाल को चूम िलया।
हम दोन एक—दूसरे से कसकर िचपटे ए थे।
उस ण हम देखकर कोई नह कह सकता था, कसने कसे आ लंगब कया आ है।
अलब ा मेरे व उसके सीने से दबकर अजीब—सी शांित ज र महसूस कर रहे थे।
मेरा अजीब हाल था।
िजस आदमी के िलए मेरे दल म नफरत थी,िजसके म खून क यासी हो उठी थी, फलहाल म उसी के साथ
रित ड़ा कर रही थी।
“एक बात क !ं ” ितलक ने बड़े यार से मेरे गाल का एक और चु बन िलया।
“ या?”
म इठलाई।
म उसके ऊपर जरा भी यह जािहर नह होने दे रही थी क मेरे दल म उसके िलए या है।
“डा लग!” वह मेरे सुनहरी बाल क लट से खेलता आ बोला—” कसी खूबसूरत औरत को काबू म रखने का बस
एक ही तरीका है।”
“ या?” म थोड़ी चौक ी ई।
“अफसोस!” ितलक ने बड़ी गहरी सांस लेकर कहा—”वह तरीका कोई मद नह जानता। म भी नह जानता।”
म हंसे िबना न रह सक ।
वाकई उसने वह बात बड़े दलच प अंदाज म कही थी।
उसके हाथ उस व मेरी पीठ पर सरसरा रहे थे।
म अपने िज म म अजीब—सी बेचैनी, अजीब—सा रोमांच अनुभव करने लगी।
तभी ितलक ने मेरे गाउन क डोरी पकड़कर ख च दी।
तुर त गाउन खुलकर नीचे जा पड़ा।
अब म िसफ ा और पटी म थी।
मेरी सांस तेज होने लग ।
फर ितलक ने हाथ बढ़ाकर मेरी ा भी उतार डाली।
एक ण के िलए मेरे हाथ अपनी ा के क स पर जाकर ठठके थे, ले कन शी ही मेरा िवरोध समा हो गया।
मने अपने हाथ पीछे हटा िलये।
ा उतरकर अलग जा िगरी।
“न जाने या बात है!” वो बड़े अनुरागपूण ढंग से मुझे देखता आ बोला—”जब भी म तु ह इस प म देखता ,ं
तुम मुझे पहले से कह यादा खूबसूरत नजर आती हो।”
“औरत वही है िडयर!” मने भी उसके गाल का एक गाढ़ चु बन िलया—”जो मद को हमेशा खूबसूरत नजर आये।
जो हमेशा उसक दलकशी का सामना बनी रहे।”
“यह तो है।”
उसके हाथ सरसराते ए अब मेरी बांह पर आ गये थे।
फर उसके ह ठ मेरे सुख कपोल और क ठ थल पर अपना रोमांचक पश दान करने लगे।
उसक गम सांस का पश मेरे िज म को झुलसा—सा रहा था।
म दुिनया—जहान से बेखबर थी।
सच तो ये है, म आंख बंद करके यार के उन ल ह का भरपूर लु फ उठा रही थी। उसक यार भरी हरकत ने मेरे
दल क धड़कन बढ़ा दी थ ।
ितलक राजको टया के स का याला भी अब छलकने लगा था।
उसके हाथ सरसराते ए नीचे क तरफ बढ़ गये।
ज द ही उसने मेरी पटी भी उतार डाली।
•••
मने िपछले कई दन से सै स नह कया था।
इसीिलए म आज खुलकर खेलने के मूड म थी।
वैसे भी कम उ से ही बेतहाशा सै स करने के कारण मेरे शरीर म एक भयंकर कमजोरी आ चुक थी। अगर म दो—
तीन दन भी पु ष के साथ सहवास नह करती थी, तो म इस कार तड़पने लगती थी, जैसे कोई अ कोहोिलक
तड़पता है, ग—एिड ट तड़पता है। िपछले दो दन से मेरी अ कोहोिलक जैसी ही हालत थी और ितलक के जरा—
सा छू ते ही मेरे संयम का बांध टू ट गया था।
तभी एकाएक मने अपने घुटने मोड़ िलये और म झपटकर ितलक के ऊपर सवार हो गयी।
“आिखर आज या करने का इरादा है डा लग?” ितलक राजको टया हंसकर बोला।
“तु ह क ल कर देना चाहती ।ं ”
“वह तो तुम पहले ही कर चुक हो।”
“नह ।” म दृढ़तापूवक बोली—”म तु ह सचमुच म ही क ल कर देना चाहती ।ं ”
ितलक राजको टया फर हंस पड़ा।
वह मेरी बात को तब भी मजाक म ले रहा था।
“जानती हो डा लग!” वह बोला—”सै स के दौरान ऐसी बात िन फोमिनयाक औरत करती ह। मालूम है,
िन फोमैिनयाक कसे कहते ह?”
“नह ।”
“िन फोमैिनयाक का अथ है- ए वूमैन है वंग ए ामल ए ड अनक ोलेबल से सुअल िडजायर! यािन अित काम
वासना, कामो माद से तािड़त ी। हर समय सै स क उ कट इ छा रखने वाली ी। ऐसी ि यां ही सै स के
दौरान इस कार क जुनूनी बात करती ह।”
म च क पड़ी।
मने िव मयपूण िनगाह से ितलक राजको टया क तरफ देखा।
कभी ऐन वही बात सरदार ने भी मेरे िलये कही थी।
उसने भी मुझे कामो माद से तािड़त ी बताया था।
या म वाकई ऐसी थी?
िन फोमैिनयाक!
सै स क उ कट इ छा रखने वाली। ज र म वैसी थी। मने सोचा, दो—दो आदिमय का जजमट गलत नह हो
सकता।
और इसम मेरी गलती भी या थी।
िजस लड़क का शील मा तेरह वष क अ प आयु म ही भंग कर दया गया हो- वह सै स क उ कट इ छा रखने
वाली ी नह बनेगी, तो या बनेगी?
“इस तरह या देख रही हो मेरी तरफ?” ितलक बोला।
“कु छ नह ।”
म पुनः उसक बांह म समां गयी।
कु छ ण के िलये वह खेल जो क गया था- वह फर चल िनकला।
बि क पहले से भी यादा पीड के साथ चल िनकला।
काफ देर बाद वो खेल अपने चम कष पर प च
ं ने के बाद ही का।
•••
अगले दन मने ितलक राजको टया पर फर हमला कया।
इस बार मने उसके ऊपर गोिलयां तब चलाय - जब वह अपने ऑ फस म बैठा आ था। उसके ऑ फस म एक काफ
बड़ी िखड़क थी, जो पीछे पा कग क तरफ खुलती थी।
वह िब कु ल सुनसान इलाका था।
दोपहर के व म पा कग लॉट वाली साइड म प च
ं ी और वह से मने उसके ऊपर दो फायर कये।
दोन गोिलयां िखड़क म—से होते ए धांय—धांय उसके िब कु ल िसर को छू कर गुजर ।
गोली चलने क आवाज ने पूरे होटल म एक बार फर बड़ा जबरद त हंगामा बरपा दया।
गोली चलाते ही म पा कग लॉट से होटल क तरफ भागी।
फर भी म जब ितलक के ऑ फस म दािखल ई- तो मुझसे पहले वहां होटल का मैनेजर प च
ं चुका था।
“ या हो गया?” म बेहद हड़बड़ाते ए बोली—” या हो गया?”
मेरे लगभग पीछे—पीछे ही बेहद आतं कत अव था म होटल म ठहरे तीन—चार आदमी और अंदर दािखल ए।
“यह कै सी आवाज थ ?” उनम से एक ने अंदर प च
ं ते ही पूछा।
वह घबराये ए थे।
आतं कत!
“मालूम नह कै सी आवाज थ ।” मैनेजर ने कहा—”ऐसा लगता है- आज फर कसी कार म बैक फायर आ है।”
“बैक फायर!”
“हां। बैक फायर जैसी ही कु छ आवाज थी।”
साफ जािहर था- मैनेजर फर मामले को दबाने क चे ा कर रहा था।
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
वह उस ण पसीन म नहाया आ था और कु स पर बैठा था।
उसके िज म का एक—एक रोआं खड़ा था।
“ले कन हमने दो धमाक क आवाज सुनी थ ।” तभी दूसरा ि बोला।
“हो सकता है- दो कार म एक साथ बैक फायर ए ह । वैसे भी पा कग सामने ही है। इसके अलावा एक बात और
मुम कन है।”
“ या?”
“होटल म कोई ऐसा मसखरा आदमी भी ठहरा हो सकता है, िजसके पास धमाका करने वाला कोई यं हो। वह अब
धमाके कर—करके यहां खामखाह आतंक येट कर रहा है।”
वह आदमी अब िन र हो गये।
मैनेजर फर ितलक राजको टया के नजदीक प च
ं ा।
“ या धमाके क आवाज इसी िखड़क क तरफ से आयी थ ?”
“ल... लगा तो ऐसा ही था।” ितलक का कं पकं पाया वर—”जैसे आवाज इसी िखड़क क तरफ से आयी ह ।”
मैनेजर ने आगे बढ़कर िखड़क के प ले बंद कये।
इतना ही नह - फर पेलिमट म झूल रहा पदा भी िखड़क के ऊपर सरका दया।
“आप अब हमेशा इस िखड़क को बंद ही रखा क िजए ितलक साहब।”
“ठ... ठीक है।”
“और आप लोग लीज बाहर जाइए।” मैनेजर अंदर घुस आये आदिमय से बोला—”यहां कोई घटना नह घटी है,
यहां सब कु छ नॉमल है।”
ऑ फस म घुस आये तीन—चार आदमी धीरे —धीरे बाहर िनकल गये।
•••
अब म, ितलक राजको टया और होटल का मैनेजर- तीन ऑ फस म स —सी हालत म बैठे थे।
सबके चेहर पर जबरद त आतंक क ितछाया थी।
“म सोच भी नह सकता था ितलक साहब!” मैनेजर शु क लहजे म बोल रहा था—” क आज फर ऐसी घटना घट
जाएगी। आिखर सावंत भाई के आदिमय ने कल ही तो आप पर हमला कया था। आज फर दूसरा हमला। नह -
नह , हालात ब त खतरनाक प धारण करते जा रहे ह।”
म कु स पर थोड़ा आगे को झुक गयी।
भयभीत होने का अिभनय म भी परफै ट कर रही थी।
“इस बार कतनी गोिलयां चलाई गयी थ ?”
“दो।” ितलक राजको टया बोला—”दोन गोिलयां मेरे िब कु ल िसर को छू ते ए गुजर । दोन गोिलय और मेरे िसर
के बीच म मुि कल से तीन इं च का फासला था।”
“ओह माई गॉड!”
“बस यूं समझो, आज बाल—बाल बचा ।ं ” ितलक राजको टया बोला—”अगर जरा भी कोई गोली इधर—उधर हो
जाती, तो मेरी इहलीला यह समा हो जानी थी।”
“दोन गोिलयां सामने दीवार म जाकर लगी थ ?” मैनेजर ने पूछा।
“हां- दीवार म ही लगी थ ।”
मैनेजर अब दीवार क तरफ देखने लगा।
तभी उसे एक गोली नजर आ गयी, जो दीवार के ला टर म आधी से यादा धंसी ई थी।
“एक गोली तो वह रही।”
मैनेजर तुर त कु स छोड़कर खड़ा आ और उसने आगे बढ़कर ला टर म धंसी ई वह गोली बाहर िनकाली।
“शु है।” म बोली—”जो अंदर घुस आये कसी आदमी क िनगाह इस गोली पर नह पड़ गयी, वरना अभी यह
रह य खुल जाता क यह गोिलय क आवाज थ ।”
तभी दूसरी गोली भी िमल गयी।
वो वह नीचे फश पर पड़ी ई थी।
मैनेजर ने वह गोली भी उठा ली।
“ितलक साहब!” मैनेजर चंितत मु ा म बोला—”म आपको एक नेक सलाह देना चाहता ।ं ”
“ या?”
“हालात िजतनी तेजी से खतरनाक मोड़ लेते जा रहे ह, उस िहसाब से आपने ज द—से—ज द कोई स त कदम
उठाने क ज रत है।”
“ले कन म या कदम उठा सकता ?ं ”
“ फलहाल यही सोचना है। ले कन इतनी बात आप ज र समझ ल, अगर ज द ही कोई कदम न उठाया गया, तो
कोई बड़ी बात नह क आप कसी खतरनाक हादसे से भी दो—चार हो जाएं।”
मैनेजर के अंितम श द ने ितलक के शरीर म और भी यादा खौफ क लहर पैदा कर दी।
वह कु स छोड़कर खड़ा हो गया।
फर बेचैनीपूवक इधर—से—उधर टहलने लगा।
सच बात तो ये है- इस बात का अहसास उसे भी हो रहा था क उसे ज दी कु छ करने क ज रत है।
मगर वो करे या- यही समझ नह पा रहा था।
•••
उसी रात मने टेलीफोन के माउथपीस पर कपड़ा रखकर ितलक राजको टया से फर बात क ।
ितलक उस समय अपने कमरे म था और कज से स बि धत ही कु छ पेपर चैक कर रहा था, तभी मने ाइं ग हॉल से
उसके फोन का न बर डायल कया।
“हैलो!” त काल ितलक क आवाज मेरे कान म पड़ी।
म खामोश रही।
“हैलो!”
म फर खामोश!
“कौन है?” ितलक राजको टया झ लाकर बोला।
“म वह बोल रहा ं ितलक साहब!” मने ब त भराई ई और मदाना आवाज म ही कहा—”िजसने आज फर
तु हारे ऊपर दो फायर कये थे, िजसक दोन गोिलयां तु हारी खोपड़ी को छू ते ए गुजरी थ ।”
ितलक राजको टया एकदम चुप हो गया।
मानो स ाटे म डू ब गया हो।
“आिखर या चाहते हो तुम?”
“ या अब यह बात हम बार—बार दोहरानी होगी!” मने स ती के साथ गुराकर कहा—” क तुमने सावंत भाई को
होटल और पथ हाउस का क जा देना है। तुमने सौ करोड़ पये कज िलया आ है ितलक साहब- िजसक अभी तुमने
अदायगी भी करनी है।”
“ले कन म क जा कै से दे सकता ?ं ”
“ य नह दे सकते?”
“ या तुम लोग को मालूम नह है!” ितलक राजको टया बोला—” क यह दोन चीज पहले ही कसी और के पास
िगरवी पड़ी ह?”
“उस सारे मामले को स भालना सावंत भाई का काम है।” म आंदोिलत लहजे म बोली—”तुमसे िजतनी बात क जा
रही है- िसफ उसक पू त करो। इसके अलावा एक बात और अ छी तरह कान खोलकर सुन लो।” मेरी आवाज म
एकाएक बेहद हंसकता उभर आयी थी।
“क... या?”
“इस काम को करने के िलए तु हारे पास िसफ तीन दन का समय है ितलक राजको टया- िसफ तीन दन! तीन दन
के अंदर—अंदर तुम हम होटल और पथ हाउस का क जा दे दो- वरना... ।”
“व... वरना या?”
ितलक क आवाज बुरी तरह कं पकं पाई।
उसम आतंक के भाव तैरे।
“वरना इस बार तु ह कोई चेतावनी नह दी जाएगी।” म दहाड़ी—”गोली सीधे तु हारी खोपड़ी म जाकर लगेगी-
समझे!”
ितलक राजको टया चुप!
“और यह हमारी तरफ से तु ह ला ट वा नग दी जा रही है।” म फुं फकारकर बोली—”गुड बाय ए ड गुडलक!”
तभी वॉल लॉक का घ टा जोर से बजा।
मने झटके से रसीवर रख दया।
रात के दस बज चुके थे।
•••
ितलक राजको टया ने चाय का कप खाली करके सामने टेिबल पर रखा।
दहशत के भाव अभी भी उसके चेहरे पर साफ—साफ दृि गोचर हो रहे थे।
उस समय म वह ितलक के सामने बैठी थी और हम दोन के बीच ठ डी रह यमयी—सी खामोशी ा थी।
“ले कन तु हारे पास यह फोन आया कब?” मने भी अपना चाय का कप खाली करके सामने रखा।
“तुम शायद तब कचन म थी।” ितलक राजको टया बोला—”और चाय बना रही थ , तभी फोन क घ टी बजी।”
“ओह!”
ितलक कु स छोड़कर खड़ा हो गया और इधर—से—उधर टहलते ए उसने एक िसगरे ट सुलगा ली।
बेचैनी उसके चेहरे से साफ जािहर हो रही थी।
“िशनाया!” वह िब कु ल मेरे सामने आकर ठठका।
फर उसने बड़े अनाड़ीपन से धुएं के गोल—गोल छ ले बनाकर छत क तरफ उछाले।
“ या बात है?”
“मने एक फै सला कया है।”
“ या?”
“म होटल और पथ हाउस का क जा सावंत भाई को देने के िलए तैयार ।ं मने खूब सोच िलया है िशनाया- अब
इसके अलावा दूसरा कोई हल नह है। अब बात िब कु ल कनारे पर प च
ं चुक है। म जानता ,ं सावंत भाई ब त
डे जर आदमी है। अगर मने उसक बात नह मानी, अगर मने उसे क जा नह दया, तो वह बेधड़क मुझे शूट करा
देगा।”
“ले कन... ।”
“नह -नह ।” ितलक राजको टया बोला—”अब सोचने के िलए कु छ नह बचा है। यह मेरा अंितम िनणय है। म अभी
सावंत भाई को फोन करता ं और उसे अपना यह फै सला सुनाता ।ं ”
ितलक बड़ी तेजी के साथ मोबाइल क तरफ बढ़ा।
“यह या पागलपन है?” म एकदम कु स छोड़कर उसक तरफ झपटी—”यह तुम या कर रहे हो ितलक?”
म जानती थी- अगर उसने सावंत भाई को फोन कर दया, तो उसका या नतीजा होगा।
एक ही सैके ड म सारी हक कत ितलक को मालूम चल जाएगी।
“ले कन जब मने यह फै सला कर ही िलया है िशनाया!” ितलक बोला—”तो मुझे इस स ब ध म सावंत भाई को भी
तो बताना चािहए।”
“मगर इतनी ज दी भी या है!”
“ य ?”
“तुम शायद भूल रहे हो ितलक।” म एक—एक श द पर जोर देते ए बोली—”उसने तु ह तीन दन का समय दया
है- तीन दन! तु ह तीन दन तो इं तजार करना चािहए।”
“उससे या होगा?”
“शायद कु छ हो। शायद इस बीच तु ह कोई ऐसा तरीका सूझ जाए, जो होटल और पथ हाउस का सावंत भाई को
क जा भी न देना पड़े और जान भी बची रहे।”
ितलक राजको टया ने बड़ी कौतुहलतापूण िनगाह से मेरी तरफ देखा।
उसने िसगरे ट का एक कश और लगाया।
“ या ऐसा मुम कन है?”
“ य नह है मुम कन। फर तुम एक बात भूल रहे हो।” म बोली—”अगर तु ह ऐसा कोई तरीका नह भी सूझा
ितलक, तब भी या फक पड़ता है। उस हालत म तुम तीन दन बाद सावंत भाई को अपने इन फै सले से प रिचत
करा देना। इस बीच तु हारे ऊपर कोई आफत तो नह आ जाएगी। तु हारे ऊपर कोई नया हमला तो नह हो
जाएगा,आिखर उ ह ने खुद तु ह तीन दन का समय दया है।”
मेरी बात म दम था।
ितलक धीरे —धीरे गदन िहलाने लगा।
“कह तो तुम ठीक रही हो िशनाया!” ितलक बोला—”तीन दन हम वाकई इं तजार करना चािहए, शायद कोई
तरीका सूझ ही जाए।”
मने शांित क गहरी सांस ली।
एक बड़ा संकट टल गया था।
•••
फर उसी रात मने ितलक राजको टया को ठकाने लगाने का फै सला कर िलया।
न जाने या बात थी- ितलक क ह या के नाम से मेरे शरीर म कं पकं पी—सी छू ट रही थी।
शायद यह उन सात फे र का असर था, जो मने अि के िगद ितलक के साथ िलये थे। या फर उन अ य त पिव
वै दक मं का असर था, जो पि डत ने रीित अनुसार पढ़े थे।
बहरहाल कु छ भी था- म अपने फै सले पर दृढ़ थी।
मने अगर ितलक राजको टया को मारना था, तो बस मारना था।
चाहे कु छ हो जाए।
दरअसल यह बात अब तक आप अ छी तरह समझ ही गये ह गे क मने ितलक राजको टया क ह या करने से पहले
उसके ऊपर दो जानलेवा हमले कसिलए कए थे। हमले इसिलए ए थे- ता क यह बात अ छी तरह थािपत हो
जाए क सावंत भाई उसे मारना चाहता है। सावंत भाई उसका जानी दु मन है। और अब कु छ भी नह था, तो कम
—से—कम होटल का मैनेजर तो इस बात का च मदीद गवाह बन ही गया था क वह सब सावंत भाई कर रहा है।
मेरे िलए वही एक गवाह ब त था।
आिखर वो होटल का मैनेजर था।
ितलक राजको टया का सबसे िव सनीय आदमी था।
•••
उस रात म सोई नह !
सारी रात जागी।
जब क ितलक राजको टया के साढ़े दस बजे तक ही खराटे गूंजने लगे थे।
वह गहरी न द सो गया था।
वैसे भी सारे दन के थके —हारे ितलक राजको टया को आजकल ज दी न द आती थी। फर भी मने ह या करने म
शी ता नह दखाई, मने और रात गुजरने का इं तजार कया।
रात के उस समय ठीक बारह बज रहे थे- जब म िब कु ल िनःश द ढंग से िब तर छोड़कर उठी।
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
वो अभी भी गहरी न द म था।
म बड़ी खामोशी के साथ चमड़े के कोट क तरफ बढ़ी, जो खूंटी पर लटका आ था।
फर मने कोट क जेब म से देसी िप तौल बाहर िनकाली और उसका चै बर खोलकर देखा।
चै बर म िसफ एक गोली बाक थी।
एक गोली!
मने चै बर घुमाकर उस गोली को िप तौल म कु छ इस तरह सेट कया, जो ेगर दबाते ही फौरन गोली चले।
ितलक राजको टया क ह या करने के िलए वो एक गोली पया थी।
मने ठीक उसक खोपड़ी म गोली मारनी थी और उस एक गोली ने ही उसका काम तमाम कर देना था।
बहरहाल िप तौल अपने दोन हाथ म कसकर पकड़े ए म ितलक के िब कु ल नजदीक प च
ं ी।
वो अभी भी गहरी न द म था।
मने िप तौल ठीक उसक खोपड़ी क तरफ तानी और फर मेरी उं गली ेगर क तरफ बढ़ी।
तभी अक मात् एक िवहंगमकारी घटना घटी, िजसने मुझे च काकर रख दया।
उछाल डाला!
ितलक राजको टया ने एकाएक भ क् से अपनी आंख खोल दी थ ।
•••
ितलक राजको टया के आंख खोलते ही म इस तरह डर गयी, जैसे मने जागती आंख से कोई भूत देख िलया हो।
“त... तुम जाग रहे हो?” मेरे मुंह से चीख—सी खा रज ई।
“ य - मुझे जागते देखकर हैरानी हो रही है डा लग!” ितलक ब त िवषैले अंदाज म मु कु राते ए बैठ गया
—”दरअसल जब तु हारे जैसा दु मन इतना करीब हो, तो कसी को भी न द नह आएगी। वैसे तु हारी जानकारी के
िलए एक बात और बता दूँ, जो िप तौल इस व तु हारे हाथ म है- उसम नकली गोिलयां है।”
“न... नह ।” म कांप गयी—”ऐसा नह हो सकता।”
“ऐसा ही है माई हनी डा लग!” ितलक राजको टया बोला—”थोड़ी देर पहले मने खुद गोिलय को बदला है।
दरअसल मेरे ऊपर यह ाणघातक हमले तुम कर रही हो- इसका शक मुझे तु हारे ऊपर तभी हो गया था, जब आज
रात तुमने सावंत भाई का आदमी बनकर ाइं ग हॉल से ही मुझे फोन कया।”
“य... यह या कह रहे हो तुम?” म दहल उठी, मने च कने क जबरद त ए टंग क —”मने तु ह फोन कया?”
“हां- तुमने मुझे फोन कया।”
“लगता है- तु ह कोई वहम हो गया है ितलक!”
“बको मत!” ितलक राजको टया गुरा उठा—”मुझे कोई वहम नह आ। अगर तु ह याद हो- तो िजस व तुम मुझे
फोन कर रही थ , ठीक उसी व ाइं ग हॉल म टंगा वॉल लॉक ब त जोर—जोर से दस बार बजा था।”
मुझे तुर त याद आ गया।
सचमुच वॉल लॉक बजा था।
“ह... हां।” मने फं से—फं से वर म कहा—”बजा था।”
“बस उसी वॉल लॉक ने तु हारे रह य के ऊपर से पदा उठा दया। दरअसल वह वॉल लॉक अपने आपम ब त
दुलभ क म क व तु है। कभी उस वॉल लॉक को म इं लै ड से लेकर आया था। इं लै ड क एक ब त िस लॉक
कं पनी ने दीवार घिड़य क वह अ भुत रज तैयार क थी। उस रज म वॉल लॉक के िसफ पांच सौ पीस तैयार कये
गये थे और उन सभी पीस क सबसे बड़ी िवशेषता ये थी क उनके घ ट म जो यूिजक फट था, वह एक—दूसरे से
िब कु ल अलग था। यािन हर घ टे का यूिजक यूिनक था- नया था। यही वजह है क मने टेलीफोन पर तुमसे बात
करते समय घ टा बजने क वह आवाज सुनी, तो म च का । य क वह यूिजक मेरा जाना—पहचाना था। फर भी
म इतना टशन म था क मुझे तुरंत ही याद नह आ गया क वह मेरी अपनी वॉल लॉक क आवाज थी। और जब
याद आया, तो यह मुझे समझने म भी देर नह लगी क यह सारा ष ं तुम रच रही हो। य क उस व अगर
पथ हाउस म मेरे अलावा कोई और था, तो वह तुम थ । िसफ तु ह ाइं ग हॉल से फोन करने क स िलयत हािसल
थी।”
मेरे सभी मसान से एक साथ ढेर सारा पसीना िनकल पड़ा।
उफ् !
मने सोचा भी न था क िसफ वॉल लॉक ही मेरी योजना का इस तरह बंटाधार कर देगी।
“तु हारी असिलयत का पदाफ़ाश होने के बाद मने सबसे पहले तु हारी िप तौल क गोिलयां बदली।” ितलक
राजको टया बोला—”उसम नकली गोिलयां डाली। य क मुझे मालूम था क अब तु हारा अगला कदम या
होगा?”
“ल... ले कन इस बात क या गार टी है!” मने बुरी तरह बौखलाये वर म कहा—” क मेरी िप तौल के अंदर
नकली गोली है।”
ितलक राजको टया हंसा।
जोर से हंसा।
“इस बात को सािबत करने के िलए कोई ब त यादा दमाग नह लगाना पड़ेगा डा लग!” ितलक बोला—”िप तौल
तु हारे हाथ म है, ेगर दबाकर देख लो। अभी असिलयत उजागर हो जाएगी।”
उस समय मेरी ि थित का आप लोग अंदाजा नह लगा सकते।
मेरी ि थित िब कु ल अ िवि जैसी हो चुक थी, पागल जैसी। मेरे दमाग ने सही ढंग से काम करना बंद कर
दया था।
मने फौरन िप तौल ितलक राजको टया क तरफ तानी और ेगर दबा दया।
धांय!
गोली चलने क ब त धीमी—सी आवाज ई।
जैसे कोई गीला पटाखा छू टा हो।
ितलक तुर त नीचे झुक गया। गोली सीधे सामने दीवार म जाकर लगी और फर टकराकर नीचे िगर पड़ी।
दीवार पर मामूली खर च तक न आयी।
वह सचमुच नकली गोली थी।
अलब ा ितलक राजको टया ने उसी पल झपटकर त कये के नीचे रखी अपनी ि मथ ए ड वैसन ज र िनकाल ली।
•••
प े पलट चुके थे।
अब ितलक राजको टया क रवॉ वर मेरी खोपड़ी को घूर रही थी।
“मुझे अफसोस है िशनाया!” ितलक ककश लहजे म बोला—” क तुमने मुझसे िसफ दौलत के िलए शादी क - एक
पोजीशन हािसल करने के िलए शादी क । मने कज के डॉ यूमे ट रखने के िलए जब अलमारी खोली, तो दूसरा शक
मुझे तु हारे ऊपर तब आ। य क अलमारी म रखे सारे पेपर इधर—से—उधर थे। इतना ही नह - इं योरस कं पनी
के डॉ यूमे ट अलमारी म सबसे ऊपर रखे थे। म तभी भांप गया- बीमे क रकम के िलए तुम मुझे मार डालना
चाहती हो।”
“हां-हां।” म गुरा उठी—”बीमे क रकम के िलए ही म तु ह मार डालना चाहती ।ं दौलत के िलए ही मने तुमसे
शादी क । वरना तुम या समझते हो, तु हारे जैसे हजार नौजवान इस मु बई शहर म ह। म कसी से भी शादी कर
सकती थी।”
ितलक राजको टया के चेहरे पर दृढ़ता के अपार िच ह उभर आये। उसक आंख म वालामुखी—सा धधकता दखाई
पड़ने लगा।
“मुझे इस समय तुमसे कतनी नफरत हो रही है िशनाया!” ितलक ने दांत कट कटाये—”इस बात क तुम क पना
भी नह कर सकत । अलब ा एक बात क मुझे ज र खुशी है।”
“ कसक ?”
“कम—से—कम अब तु हारा बीमे क रकम हड़पने का सपना पूरा नह होगा। अब म नह बि क तुम मरोगी- तुम!”
ितलक दहाड़ा—”अब म लोग से यह क ग ँ ा क रात सावंत भाई के आदमी मुझे मारने आये थे, ले कन इ फाकन
उनके ारा चलायी गयी गोली तु ह लग गयी और तुम मारी गय । माई डेलीशस डा लग- अब तु हारे ारा गढ़ी
गयी योजना तु हारे ऊपर ही इ तेमाल होगी।”
मेरी आंख म मौत नाच उठी।
मेरे चेहरे का सारा खून िनचुड़ गया। मौत अब म अपने िब कु ल सामने खड़े देख रही थी।
“गुड बाय डा लग! ऊपर बृ दा क आ मा बड़ी बेस ी से तु हारी राह देख रही है।”
ितलक राजको टया ने रवॉ वर का सै टी लॉक पीछे ख चा और फर उं गली ेगर क तरफ बढ़ी।
तभी मेरे अंदर न जाने कहां से ह सला आ गया।
बेपनाह िह मत!
वह मेरे बराबर म टू ल रखा आ था। ितलक राजको टया ेगर दबा पाता- उससे पहले ही मने अि तीय फु त के
साथ झपटकर टू ल उठा िलया और फर उसे भड़ाक् से ितलक के मुंह पर ख चकर मारा।
ितलक क वीभ स चीख िनकल गयी।
वह लड़खड़ाकर िगरा।
उसी ण मने अपनी भरपूर ताकत के साथ एक लात उसके मुंह पर जड़ी और दूसरी लात ब त जोर से घुमाकर
उसके उस हाथ पर मारी- िजसम उसने रवॉ वर पकड़ी ई थी।
ितलक राजको टया िबलिबला उठा।
रवॉ वर उसके हाथ से छू ट गयी।
मने झपटकर सबसे पहले रवॉ वर उठाई।
रवॉ वर एक बार मेरे हाथ म आने क देर थी, त काल वो ितलक राजको टया क तरफ तन गयी।
फर म हंसी।
मेरी हंसी ब त कहर ढाने वाली थी।
“उठो!” म रवॉ वर से उसक खोपड़ी का िनशाना लगाते ए बोली—”उठकर सीधे खड़े होओ ितलक
राजको टया!”
ितलक का चेहरा फ क् पड़ गया।
वह धीरे —धीरे उठकर सीधा खड़ा आ।
•••
बाजी एक बार फर पलट चुक थी।
वो फर मेरे हाथ म थी।
“अब या कहते हो ितलक राजको टया!” म उसे ललकारते ए बोली—”तु हारे इस रवॉ वर म तो असली
गोिलयां ह या फर इसम भी नकली गोिलयां भरी ई ह?”
ितलक राजको टया चुप!
“लगता है- गोिलय को खुद ही चैक करना पड़ेगा।”
मने रवॉ वर का ेगर दबा दया।
ेगर मने एकदम इतने अ यािशत ढंग से दबाया था क ितलक क ककश चीख िनकल गयी।
उसने बचने का अथक प र म कया, ले कन गोली सीधे उसक टांग म जाकर लगी।
गोली लगने के बावजूद वो चीते जैसी फु त के साथ शयनक से िनकलकर भागा।
म उसके पीछे—पीछे झपटी।
ले कन जब तक म भागते ए बाहर गिलयारे म आयी, तब तक मुझे देर हो चुक थी।
तब तक वो दूसरे गिलयारे म मुड़ चुका था।
“ितलक!” म चीखी।
म भी धुआंधार पीड से दौड़ती ई उसी गिलयारे म मुड़ी।
एक दृढ़ संक प म कर चुक थी- मने आज ितलक राजको टया को छोड़ना नह है।
जैसे ही म दूसरे गिलयारे म मुड़ी, मुझे ितलक नजर आया।
वह अपनी पूरी जान लगाकर भागा जा रहा था।
उसक टांग से िनकलते खून क बूंद गिलयारे म जगह—जगह पड़ी ई थ ।
मने फौरन रवा वर अपने दोन हाथ म कसकर पकड़ी और उसक तरफ तान दी।
ले कन म ेगर दबा पाती- उससे पहले ही वो बेतहाशा दौड़ता आ गिलयारे म दाय तरफ मुड़ गया।
यह इस तरह नह पकड़ा जाएगा- मने सोचा।
म भागते—भागते क गयी।
फर मने एक दूसरा तरीका अपनाया।
मने गिलयारे म पड़ी खून क बूंद का पीछा करते ए धीरे —धीरे आगे बढ़ना शु कया।
म दाय तरफ मुड़ी।
दाय तरफ वाले गिलयारे म भी खून क बूंद काफ आगे तक चली गयी थ ।
म खून क बूंद को देखती ई आगे बढ़ती रही।
रवॉ वर अभी भी मेरे हाथ म थी।
म अलट थी।
चक ी!
कसी भी खतरे का सामना करने के िलए पूरी तरह तैयार! मगर तभी मुझे एक थान पर ठठककर खड़े हो जाना
पड़ा।
दरअसल गिलयारे के िब कु ल अंितम िसरे पर प च
ं कर खून क बूंद नदारद हो गयी थ । अब आगे उनका दूर—दूर
तक कह कु छ पता न था।
मने इधर—उधर देखा।
ितलक राजको टया कह नजर न आया।
एकाएक खतरे क गंध मुझे िमलने लगी।
“म जानती ं ितलक!” म गिलयारे म आगे क तरफ देखते ए थोड़े तेज वर म बोली—”तुम यह कह िछपे हो।
तुम आज बचोगे नह , तु हारी मौत आज िनि त है।”
गिलयारे म पूववत् खामोशी बरकरार रही।
गहरा स ाटा!
“तुम जानते हो!” म पुनः बोली—”म ह या क जो योजना बनाती -ं वह हमेशा कामयाब होती है। आज भी
कामयाब होगी।”
तभी एकाएक मुझे ह क —सी आहट सुनाई दी।
म अनुमान न लगा सक , वह आवाज कस तरफ से आयी थी।
एकाएक ितलक राजको टया ने मेरे ऊपर पीछे से हमला कर दया।
मेरे हलक से भय द चीख िनकली। वह बाह म दबोचे मुझे लेकर धड़ाम् से नीचे फश पर िगरा और नीचे िगरते ही
उसने मेरे हाथ से रवॉ वर झपट लेनी चाही।
म फौरन फश पर कलाबाजी खा गयी।
कलाबाजी खाते ही मने फायर कया।
ितलक राजको टया क खोपड़ी म सुराख होने से बाल—बाल बचा। उसने फर झपटकर मुझे अपनी बांह म बुरी
तरह दबोच िलया।
“अगर आज मेरी मौत िनि त है िशनाया!” वह कहर भरे वर म बोला—”तो आज बचोगी तुम भी नह । तुम भी
मेरे साथ—साथ मरोगी।”
उसने अपनी दोन टांग मेरी टांग म बुरी तरह उलझा द और उसके हाथ मेरी सुराहीदार गदन पर प च
ं गये।
फर उसने बड़ी बेदद के साथ मेरा गला घ टना शु कया।
मौत एक बार फर मेरी आंख के सामने नाच उठी।
उस ण म फायर भी नह कर सकती थी। य क मेरा रवॉ वर वाला हाथ दोन के पेट के बीच म फं सा आ था
और बुरी तरह फं सा आ था। म उसे चाहकर भी नह िनकाल पा रही थी।
वैसे भी म नह जानती थी, रवॉ वर क नाल उस व कसक तरफ है।
उसके पेट क तरफ?
या मेरी तरफ?
•••
उसी व हालात ने एक और बड़ा िवहंगमकारी मोड़ िलया।
एकाएक कोई पथ हाउस का मने गेट बुरी तरह पीटने लगा।
म और ितलक राजको टया- दोन च के ।
इस व कौन आ गया?
यही एक सवाल हम दोन के मि त क म हथौड़े क तरह बजा।
पर तु हम दोन ही ब त नाजुक मोड़ पर थे।
खासतौर पर मेरी हालत तो कु छ यादा ही दयनीय थी।
ितलक राजको टया क पकड़ अब मेरी गदन पर स त होती जा रही थी। मेरे हलक से गूं—गूं क आवाज िनकलने
लगी थ और मुझे ऐसा लग रहा था, अगर ितलक ने गला घ टने का वह म थोड़ी देर भी और जारी रखा- तो मेरा
देहा त हो जाएगा।
मुझे अपनी जान बचाने के िलए कु छ करना था।
उधर मैन गेट अब और भी यादा बुरी तरह भड़भड़ाया जाने लगा था।
ऐसा लग रहा था- जैसे मैन गेट पर कई सारे लोग जमा थे और अब वो उसे तोड़ डालने का भरपूर यास कर रहे थे।
मैन गेट पर च ड चोट पड़ने क आवाज आ रही थ ।
या आफत थ ?
कौन लोग थे मैन गेट पर?
तभी ितलक राजको टया क पकड़ मेरे गले पर और भी यादा स त हो गयी।
मुझे लगा- मेरे ाण बस िनकलने वाले ह।
म मरने वाली ।ं
मने फौरन र क उठाया। मने रवा वर का ेगर दबा दया।
धांय!
गोली चलने क ब त भीषण आवाज ई।
खून का बड़ा जबरद त फ वारा हम दोन के बीच म-से फू ट पड़ा। हम दोन क चीख गिलयारे म गूंज ।
फर हम इधर—उधर जा िगरे ।
खून वहां आसपास बहने लगा।
कु छ देर म िब कु ल िनढाल—सी पड़ी रही। उसके बाद मुझे अहसास आ, म जंदा ।ं
मेरी सांस चल रही ह।
मेरे हाथ—पैर म भी क प था।
मने ितलक राजको टया क तरफ देखा।
वो मर चुका था।
गोली ठीक उसके पेट को फाड़ती चली गयी थी और उसक आत तक बाहर िनकल आयी थ । यह एक इ ेफाक था-
िजस समय मने गोली चलायी, उस व रवॉ वर क नाल ितलक क तरफ थी।
मने अपनी िज दगी का एक जुआ खेला था- िजसम क मत क बदौलत म कामयाब रही।
थक गॉड!
म धीरे —धीरे फश छोड़कर खड़ी ई।
मेरा पूरा शरीर पसीन म लथपथ था।
तभी ब त जोर से मैन गेट टू टने क आवाज ई। वह ऐसी आवाज थी- मानो पूरे पथ हाउस म भूक प आ गया हो।
मानो पूरे पथ हाउस क दर —दीवार िहल गयी ह ।
“चीखने क आवाज उस तरफ से आयी थी।” उसी ण मेरे कान म एक आवाज पड़ी।
“उस गिलयारे क तरफ से।” एक दूसरी आवाज।
फर कई सारे पुिलसकम धड़धड़ाते ए मेरे सामने आ खड़े ए।
सब हिथयारबंद थे।
पुिलस!
मेरे होश उड़ गये।
और उस समय मेरे दल— दमाग पर घोर व पात आ, जब उन पुिलसक मय के साथ—साथ ‘बृ दा’ भी दौड़ते
ए वहां आयी।
बृ दा!
िजसक मने सबसे पहले ह या क थी।
वही जंदा थी।

16

सबसे बड़ा झटका—खेल ख म!


“इं पे टर साहब!” बृ दा, ितलक राजको टया क लाश क तरफ उं गली उठाकर बुरी तरह िच ला उठी
—”आिखर िजस बात का मुझे डर था, वही हो गया। इस दु ने ितलक को भी मार डाला। उसे भी मौत क न द
सुला दया।”
“ओह िशट!” इं पै टर ने लाश देखकर जोर से दीवार पर घूंसा मारा—”हम यहां प च
ं ने म सचमुच देर हो गयी।”
मेरे हाथ म अभी भी ि मथ ए ड वैसन थी।
ले कन फर वो रवॉ वर मेरी उं गिलय के बीच म से ब त आिह ता से िनकली और फसलकर नीचे फश पर जा
िगरी।
म अपलक बृ दा को देख रही थी।
मुझे अपनी आंख पर यक न नह हो रहा था, मेरे सामने वो बृ दा ही खड़ी ई थी।
“त... तुम जंदा हो।” म िवि मत लहजे म बोली।
“हां- म जंदा ।ं ” वो नािगन क तरह फुं फकारी—”और इसिलए जंदा -ं य क शायद मने ही तु हारी असिलयत
कानून के सामने उजागर करनी थी।”
“ल... ले कन तुम जंदा कै से हो?” म बोली—”तुम तो मर चुक थ बृ दा!”
“यह सब क मत का खेल है।” उस थाना े का इं पे टर आगे बढ़कर बोला—”जो आज बृ दा तु ह जीिवत दखाई
दे रही है। वरना तुमने तो अपनी तरफ से इ ह मार ही डाला था।”
“ले कन यह क र मा आ कै से?” म अचरजपूवक बोली—”यह मरकर जीिवत कै से हो गयी?”
म हत भ् थी।
हतबु !
बृ दा के एकाएक जीिवत हो उठने ने मुझे झकझोर डाला था।
“इस रह य के ऊपर से पदा म उठाती ।ं ” बृ दा बोली—” क म मरकर भी जीिवत कै से हो गयी। तु हारे ारा बीस
डायिनल और दस न द क टेबले स िखलाने के बाद तो म मर ही गयी थी और फर मेरी लाश ‘मेिडकल रसच
सोसायटी’ को दान भी दे दी गयी थी। ले कन म वा तव म मरी नह थी, म कोमा म थी। जब डॉ टर अ यर ने चीर
—फाड़ करने के िलए मेरी लाश बाहर िनकाली और मेरा अंितम तौर पर चैकअप कया, तो वो यह देखकर च क
उठा क मेरे शरीर म अभी भी जीवन के िनशान मौजूद थे। डॉ टर अ यर आनन—फानन मेरा इलाज करने म जुट
गया। बह र घ टे के अथक प र म के बाद आिखरकार वो ण आ ही गया, जब मने अपनी आंख खोल द । मेिडकल
साइं स म वह एक आ यजनक घटना थी- जब कोई लाश जीिवत हो गयी थी।”
“ फर!” मने कौतुहलतापूवक पूछा—”फ... फर या आ?”
“ फर होश म आने के बाद मने सबसे पहले डॉ टर अ यर को यह बताया,” बृ दा बोली—” क मेरी मौत एक
वाभािवक मौत नह थी। बि क वो एक ी— लान मडर था। मेरी, ितलक राजको टया और तुमने िमलकर ह या
क थी। मने डॉ टर अ यर से कहा- मेरे जीवन का अब बस एक ही ल य है, म तुम दोन को सजा कराऊं। पर तु
तभी डॉ टर अ यर ने मेरा यान एक कमजोरी क तरफ आक षत कराया।”
“कै सी कमजोरी?”
“इस बात को िसफ म कह सकती थी क मेरी ह या क गयी है। जब क कानून के सामने इस बात को सािबत करने के
िलए मेरे पास कोई सबूत नह था। तभी डॉ टर अ यर ने मुझे एक सुझाव दया। उसने कहा- पुिलस से इस स ब ध
म मदद लेने से पूव यह बेहतर रहेगा क हम पहले सबूत एकि त कर ल। इसीिलए डॉ टर अ यर ने ितलक
राजको टया के साथ लैकमेल वाला नाटक शु कया। डॉ टर अ यर को इस बात क पूरी उ मीद थी क
बौखलाहट म तुम दोन से कोई—न—कोई ऐसा कदम ज र उठे गा, िजससे हमारे हाथ सबूत लग जाएंगे।”
“ओह!” मेरे ह ठ िसकु ड़े—”इसका मतलब डॉ टर अ यर अपने िजस राजदार क बात करता था- वह तुम थ ?”
“हां- वह म ही थी।”
मेरे शरीर म रोमांच क वृि होने लगी।
रह य के नये—नये प े खुल रहे थे।
“बहरहाल मुझे झटका तब लगा,” बृ दा बोली—”जब तुम दोन ने डॉ टर अ यर क भी ह या कर दी और उसक
लाश कहां ठकाने लगायी- इस बारे म कसी को भी पता न चला। डॉ टर अ यर के गायब होने के बाद मने फौरन
पुिलस क मदद ली और इन इं पै टर साहब को सारी कहानी कह सुनायी।”
“अगर तुमने तभी पुिलस क मदद ले ली थी,” म बेहद स पसफु ल लहजे म बोली—”तो पुिलस ने पथ हाउस म
आकर डॉ टर अ यर के स ब ध म हम लोग से पूछताछ य नह क ?”
“इस सवाल का जवाब म देता ।ं ” इं पै टर बोला।
मने अब इं पे टर क तरफ देखा।
“दरअसल तुम और ितलक राजको टया िमलकर दो—दो ह या ज र कर चुके थे- ले कन सबसे बड़ी मुि कल ये थी
क हमारे पास तुम लोग के िखलाफ कोई सबूत नह थे। फर म यह भी जानता था क िबना सबूत के ितलक
राजको टया जैसे बड़े आदमी पर हाथ डालना मुनािसब नह है- य क ऐसी अव था म वो बड़ी आसानी से छू ट
जाएगा। तभी बृ दा ने मुझे एक ऐसी बात बतायी- िजसने मेरे अंदर उ मीद पैदा क । बृ दा ने बताया- तुम ‘नाइट
लब’ क एक मामूली कॉलगल हो और तुमने िसफ दौलत हािसल करने के िलए ितलक राजको टया से शादी क है।
बृ दा ने एक रह यो ाटन और कया क िजस दौलत के िलए तुमने ितलक से शादी क है और यह सारा ष ं रचा
है- वा तव म वो दौलत ितलक के पास है ही नह । वो दीवािलयेपन के कगार पर खड़ा आदमी है। बृ दा ने मुझे यह
भी बताया क ितलक राजको टया का पचास करोड़ पये का बीमा है। बीमे क उसी रकम ने मेरी आंख म उ मीद
क चमक पैदा क । मुझे लगा क िजस दौलत को हािसल करने के िलए तुम इतना बड़ा ष ं रच सकती हो- उसी
दौलत को हािसल करने के िलए तुम मौका पड़ने पर ितलक राजको टया क ह या करने से भी नह चूकोगी। तब
बृ दा के जीिवत होने वाली सनसनी को थोड़े समय के िलए और दबाकर रखा गया। य क पुिलस का ल य था- जब
तुम ितलक क ह या करने क कोिशश करो, तभी तु ह रं गे हाथ पकड़ िलया जाए। इससे कम—से—कम तु हारे
िखलाफ हमारे पास कु छ पु ता सबूत हो जाएंगे। मगर बेहद अफसोस क बात है- हमने तु ह रं गे हाथ तो अरे ट कर
िलया, मगर उससे पहले तुम एक ह या और करने म सफल हो गय ।”
मेरा िसर अब घूमने लगा था।
उनक बात सुन—सुनकर मेरे ऊपर या गुजर रही थी, इसक शायद आप क पना भी नह कर सकते।
बृ दा के अ यािशत प से जीिवत िनकल आने ने मेरे छ े छु ड़ा डाले थे।
“ले कन तुम लोग को यह कै से मालूम आ,” म बोली—” क म ितलक राजको टया क आज रात क ह या करने
वाली -ं जो तुम इतने बड़े लाव—ल कर के साथ इस तरह दनदनाते ए पथ हाउस म घुसे चले आये?”
“अ छा सवाल पूछा है।” इं पे टर बोला—”तु हारी जानकारी के िलए बता दूं िशनाया शमा- ितलक राजको टया ने
कोई सवा दस बजे थानीय पुिलस टेशन म टेलीफोन कया था और उस व ूटी पर तैनात एस.आई. (सब—
इं पे टर) को बताया था क आज रात उसक ह या हो सकती है। मगर यह दुभा य है क उस एस.आई. ने ितलक क
बात को ग भीरता से नह िलया। जब क म उस व पे ो लंग (ग त) पर गया आ था। थोड़ी देर पहले ही जब म
पे ो लंग से वापस लौटा और एस.आई. ने मुझे यह सूचना दी- तो मेरे र गटे खड़े हो गये। म त काल बृ दा को अपने
साथ लेकर बस दौड़ा—दौड़ा यहां चला आया। ले कन म फर भी ितलक राजको टया को न बचा सका।”
“ओह!”
मेरी आंख के सामने अब अंधेरा—सा िघरने लगा।
म बुरी तरह फं स चुक थी।
तभी होटल म से भी काफ सारे आदमी दौड़ते ए ऊपर पथ हाउस म आ गये।
मैनेजर भी उनम शािमल था।
•••
अब शायद आप लोग को यह बताने क ज रत नह है क मेरे सारे प े िपट चुके थे।
मेरी तमाम उ मीद, तमाम सपने कांच के उस खूबसूरत िगलास क तरह चकनाचूर हो गये- िजसे कसी ने बड़ी
बेदद के साथ फश पर पटक मारा हो।
मुझे िगर तार कर िलया गया।
बृ दा, डॉ टर अ यर और ितलक राजको टया- उन तीन क ह या के इ जाम म मुझे कोट ने फांसी क सजा सुनायी।
मने अपने हर अपराध को बे—िहचक कबूल कया।
यहां तक क संगापुर म ई सरदार करतार संह क ह या को भी मने कबूला।
म अंदर से बुरी तरह टू ट चुक थी।
मुझे अपनी मौत क भी अब परवाह नह थी। आिखर मने जो कया- उसी का ितफल तो मुझे िमल रहा था।
बहरहाल मेरी िज दगी क कहानी यह ख म नह हो जाती।
म इस स पूण अ याय को इसी जगह ख म आ समझ रही थी। ले कन ऐसा समझना मेरी भारी भूल थी। अभी
अ याय ख म नह आ था। बि क अभी एक ऐसा धमाका होना और बा क था, जो अब तक का सबसे बड़ा धमाका
था और िजसने सारे घटना म को एक बार फर उलट—पलटकर रख दया।
वह उस रं गमंच का सबसे बड़ा पदा था, जो उठा।
•••
वह जेल क एक ब त सीलनयु बदबूदार कोठरी थी- िजसके एक कोने म, म घुटने िसकोड़े बैठी थी और बस अपनी
मौत क ती ा कर रही थी।
म खुद को फांसी के िलए तैयार कर चुक थी।
तभी ताला खुलने क आवाज ई और फर काल—कोठरी का ब त मजबूत लोहे का दरवाजा घर—घर करता
खुलता चला गया।
दरवाजे के खुलते ही ब त ह का—सा काश उस काल—कोठरी म चार तरफ िबखर गया और एक हवलदार ने
अंदर कदम रखा।
“खड़ी होओ।” हवलदार मेरे करीब आते ही थोड़े ककश लहजे म बोला।
मने अपनी गदन घुटन के बीच म से धीरे —धीरे ऊपर उठाई।
“ या बात है?”
“कोई तुमसे िमलने आया है?”
मचक।
वह मेरे िलए बेहद हैरानी क बात थी।
भला अब मुझसे िमलने कौन आ सकता था?
कौन बचा था ऐसा आदमी?
“क... कौन आया है?” मने हवलदार से पूछा।
“मुझे उसका नाम नह मालूम।” हवलदार बोला— “मुलाकाती क म चलो- वह उसक सूरत देख लेना। और
थोड़ा ज दी करो, मुलाकात के िलए यादा समय नह है तु हारे पास।”
•••
‘मुलाकाती क ’ म बीच —बीच लोहे क एक ल बी जाली लगी ई थी। उस जाली म एक तरफ कै दी खड़ा होता
था और दूसरी तरफ मुलाकाती!
म जब उस क म प च
ं ी और मने जाली के पास िजस चेहरे को देखा, उसे देखकर मेरी हैरानी क कोई सीमा न रही।
मुझसे िमलने बृ दा आयी थी।
सबसे बड़ी बात ये है- बृ दा के चेहरे पर उस समय घृणा के भी िनशान नह थे। बि क वो मु कु रा रही थी- उसके
होठ पर बड़ी िनमल आभा थी। इस समय वह बीमार भी नह लग रही थी।
“त... तुम!”
“ य - हैरानी हो रही है!” बृ दा िब कु ल लोहे क जाली के करीब आकर खड़ी हो गयी—” क म तुमसे िमलने आयी
?ं ”
म चुप!
मेरी गदन उसके सामने अपराध बोध से झुक गयी।
आिखर म उसक गुनाहगार थी।
मने उसक हंसती—खेलती िज दगी म आग लगायी थी।
“तुम खुद को बुि मान समझती हो िशनाया- ले कन तुम मूख हो, अ वल दज क मूख!”
वह बात कहकर एकाएक इतनी जोर से िखलिखलाकर हंसी बृ दा, जैसे कसी चुडै़ल ने शमशान घाट म भयानक
अ ाहस लगाया हो।
मने झटके से अपनी गदन ऊपर उठाई।
उस समय बृ दा सा ात् च डािलनी नजर आ रही थी।
“िशनाया डा लग!” वो िखलिखलाकर हंसते ए ही बोली—”मालूम है- एक बार मने ‘नाइट लब’ म तुमसे या
कहा था? मने कहा था क म जंदगी म एक—न—एक बार तुमसे जीतकर ज र दखाऊंगी और मेरी वो जीत ऐसी
होगी क तुम चार खाने िच ् जा पड़ोगी। मेरी वो जीत ये है- ये!” उसने लोहे क जाली को बुरी तरह से ठकठकाया
—”आज यह जो तुम चार खाने िच ् जाकर पड़ी हो, यह सब मेरे कारण आ है।”
मेरे दमाग म अनार छू ट पड़े।
“य... यह तुम या कह रही हो बृ दा?”
“यह बृ दा का मायाजाल है!” वो फर ठठाकर हंसी—”और जो मायाजाल को इतनी आसानी से समझ जाए, वो
मायाजाल नह होता डा लग!”
“अ... आिखर या कहना चाहती हो तुम?”
“दरअसल पैथ हाउस म इं पे टर के सामने जो कहानी मने तु ह सुनायी!” बृ दा बोली—”वो असली कहानी नह
थी। असली कहानी सुनोगी- तो तु हारे पैर के नीचे से जमीन िखसक जाएगी। आसमान तु हारे ऊपर टू टकर
िगरे गा।”
“क... या है असली कहानी?” मेरी आवाज कं पकं पाई।
म अब बृ दा को इस कार देखने लगी, जैसे मेरे सामने कोई जादूगरनी खड़ी हो।
“दरअसल कॉलगल क उस नारक य िज दगी को ितलांजिल देने के िलए िजस तरह तुम ढेर सारी दौलत हािसल
करना चाहती थ , उसी तरह म भी ढेर सारी दौलत हािसल करना चाहती थी। इसीिलए मने ितलक राजको टया को
अपने ेमपाश म बांधकर उससे शादी क । ले कन तभी एक गड़बड़ हो गयी।”
“कै सी गड़बड़?”
मेरी उ क ठा बढ़ती जा रही थी।
“शादी के कु छ महीने बाद ही मुझे पता चला।” बृ दा बोली—” क ितलक राजको टया दीवािलयेपन के कगार पर
खड़ा ि है और उसके पास दौलत के नाम पर कु छ नह है। यह बात पता चलते ही मानो मेरे पैर के नीचे से
जमीन िखसक गयी। आिखर मेरी सारी मेहनत पर पानी फर गया था। तभी मेरे हाथ बीमे के वह डा यूमे ट लगे,
िजनसे मुझे यह जानकारी ई क ितलक ने पचास करोड़ का बीमा कराया आ है। मेरी आंख म उ मीद क चमक
जागी और उसी पल मेरे दमाग ने एक ब त भयानक ष ं को ज म दे डाला।”
“कै सा ष ं ?”
“ष ं - बीमे क रकम के िलए ितलक को मार डालना।” बृ दा ने दांत कट कटाये—”उसक ह या करना।”
“न... नह ।”
म कांप उठी।
“यह सच है िशनाया डा लग।” बृ दा बोली—”अलब ा यह बात जुदा है क मने ितलक राजको टया को अपने हाथ
से मार डालने क बात नह सोची। बि क मने पहले इस पूरे करण पर ग भीरता से िवचार कया। तभी मुझे
तु हारा याल आया- तुम न िसफ जासूसी उप यास पढ़ती थ बि क पहले से ही उ टे—सीधे हथक ड म भी मािहर
थ । मुझे महसूस आ- तुम ितलक को यादा—आसानी से ठकाने लगा सकती हो। बस मने फौरन तु ह ‘बिल का
बकरा’ बनाने का फै सला कर िलया और फर तु ह फांसने के िलए एक ब त खूबसूरत फं दा भी तैयार कर डाला।”
“कै सा खूबसूरत फं दा?”
“सारा ामा डॉ टर अ यर के साथ िमलकर रचा।” बृ दा बोली—”डॉ टर अ यर लब के जमाने से ही मेरा प ा
मुरीद था। दूसरे श द म वो मेरा फै न, मेरा एडमायरर, मेरी टेडी क ूमर था। जो अमूमन कसी र डी के दस—
पांच होते ही होते ह। वो मेरे एक इशारे पर कु छ भी करने को तैयार रहता था। उसके साथ िमलकर ही मने बीमार
पड़ने का नाटक रचा और डॉ टर अ यर ने ही मुझे ‘मेलीगनट लड िडस े िसया’ जैसी भयंकर बीमारी घोिषत क ।”
“यािन तुम ये कहना चाहती हो,” म हत भ् लहजे म बोली—” क तुम पेशे ट नह थ ?”
“िब कु ल भी नह । मेलीगनेट लड िडस े िसया तो अपने आप म ब त बड़ी बीमारी है, जब क मुझे तो नजला—
बुखार भी नह था। म एकदम त द त थी। चाक—चौबंद थी और जो कु छ पथ हाउस म मेरी बीमारी को लेकर हो
रहा था- वह नाटक के िसवा कु छ नह था।”
“बड़ी आ यजनक बात बता रही हो।” म बोली—”और तु हारी आंख म जो काले—काले ग े पड़ गये थे, तु हारा
शरीर जो पतला—दुबला हो गया था, वह सब या था?”
“आंख म ग े डालने या शरीर को पतला—दुबला करना कौन—सी बड़ी बात है!” बृ दा रह यो ाटन पर
रह यो ाटन करती चली गयी—”मने कम खाना—पीना शु कर दया, तो थोड़े ब त दन म ही मेरी हालत
बीमार जैसी अपने आप हो गयी। अब तु हारे दमाग म अगला सवाल यह उमड़ रहा होगा क इस सारे ाम से मुझे
फायदा या था? तो उसका जवाब भी देती -ं दरअसल तु ह कसी तरह पथ हाउस म बुलाना मेरा उ े य था।
बीमारी के बाद ही मने ितलक राजको टया से कहकर अखबार म ‘लेडी के अरटेकर’ का िव ापन िनकलवाया। वह
िव ापन िसफ तु हारे िलये था। इतना ही नह —तुमने जब पहली बार अखबार म छपा वह िव ापन देखा, वह भी
मेरी ही ला नंग थी। वो डॉ टर अ यर जैसा ही मेरा एक मुरीद था, मेरा एक क ूमर था, जो उस रात तु ह अपने
घर ले गया था और तुमने वहां वो िव ापन देखा। सब कु छ पहले से फ स था। उसके बाद जैसा म चाहती थी, वैसा
ही आ। म यह बात अ छी तरह जानती थी क उस िव ापन को पढ़कर तु हारे मन म कै सा लालच पैदा होगा? तुम
फौरन ितलक क बीवी बनने का सपना देखने लगोगी। वैसा सपना तुमने देखा भी। अलब ा एक जगह मुझे अपनी
सारी योजना ज र फे ल होती नजर आयी।”
“ कस जगह?”
“जब तुमने पथ हाउस म आकर मुझे देखा और मुझसे ये कहा क िब ली भी दो घर छोड़कर िशकार करती है,
इसीिलए अब म कोई गलत काम नह क ं गी और पूरे तन—मन से तु हारी सेवा क ं गी। तु हारी इस बात को
सुनकर मुझे जबरद त झटका लगा। मुझे लगा- मेरी सारी योजना फे ल हो गयी है। बहरहाल मने संतोष क सांस तब
ली- जब तुम ितलक राजको टया के साथ यार का खेल, खेलने लग ।”
वह एक अ भुत रह य मेरे सामने उजागर हो रहा था।
म च कत थी।
बृ दा ऐसा खेल भी खेलेगी, म क पना भी नह कर सकती थी।
“ फर ितलक राजको टया ने और तुमने िमलकर मेरी ह या क योजना बनायी।” बृ दा बोली—”सच बात तो ये है
क ह या क वह योजना बनाने के िलए भी मने तुम दोन को े रत कया। जरा सोचो- अगर डॉ टर अ यर तुमसे
यह न कहता क मेरी तबीयत म अब सुधार होने लगा है- तो या तुम मेरी ह या के बारे म सोचती भी? ह गज नह !
ले कन अपनी ह या कराना भी मेरी योजना का एक िह सा था, इसीिलए मने अपनी तबीयत म सुधार होने वाली
बात चा रत क । ज द ही तुमने ‘डायिनल’ और ‘ि ल पंग िप स’ से मेरी ह या करने का लान बना डाला। तु हारा
लान वाकई शानदार था- मने और डॉ टर अ यर तक ने तु हारे लान क तारीफ क । म छु पकर तु हारी और
ितलक क हर बात सुनती थी- इसिलए जब तुमने यह लान बनाया, तभी मुझे इसके बारे म पता चल गया। तु हारी
जानकारी के िलए एक बात और बता दूं, जब—जब तुम मुझे ‘डायिनल’ िखलाने का ो ाम बनाती थ , तब—तब म
चीनी भारी मा ा म पहले ही खा लेती थी। डॉ टर ने पहले ही बता रखा था क ‘डायिनल’ टेबलेट क काट िसफ
शुगर है। अगर शुगर पहले ही भारी मा ा म खा ली जाए, तो ‘डायिनल’ टेबलेट का इं सानी शरीर पर कोई
खतरनाक रए शन नह होगा। यहां तक क ‘डायिनल’ खाने के बाद मेरी जो तबीयत खराब होती थी, वह भी मेरा
ामा था। और िजस दन तुमने मुझे बीस ‘डायिनल’ िखलाई, उस दन तो मने ब त भारी मा ा म चीनी का सेवन
कया था।”
“यािन उन डायिनल टेबले स का भी तु हारे ऊपर कोई असर नह आ था?” म भ च े वर म बोली।
“यस!”
“और ि ल पंग िप स- ि ल पंग िप स के असर से कै से बच तुम?”
“ वीट हाट!” बृ दा के होठ से बड़ी शाितराना मु कु राहट दौड़ी—”म ि ल पंग िप स के असर से बची नह बि क
बेहोश हो गयी। यह उन ि ल पंग िप स का ही असर था—जो तुम सबने मुझे मरा आ समझा।”
“ओह!” मेरे ने िसकु ड़ गये—”अब तु हारी कु छ—कु छ चाल मेरी समझ आ रही ह। ‘मेिडकल रसच सोसायटी’ को
शवदान देने क बात भी तु हारी योजना का ही एक अंग थी। य क अगर तु हारा अंितम याकम हो जाता-
तु हारा शव अि क भट चढ़ जाता, तो तुम वा तव म ही मर जात - इसिलए तुमने वह चाल चलकर अपने आपको
बचाया। इतना ही नह - ‘मेडीकल रसच सोसायटी’ के नाम पर खुद डॉ टर अ यर तु हारे शव को पथ हाउस से
िनकालकर ले गया।”
“ए सो यूटली करै ट!” बृ दा फु ि लत अंदाज म बोली—”सब कु छ इसी तरह आ। फर मेरा अगला िशकार
डॉ टर अ यर था।”
“डॉ टर अ यर!” म च क —”ले कन डॉ टर अ यर तो तु हारा मुरीद था- तु हारा एडमायररर था?”
“वह सब बात अपनी जगह ठीक ह। ले कन डॉ टर अ यर मेरी पूरी योजना से वा कफ था और वह कभी भी मेरे
िलए खतरा बन सकता था। इसीिलए उसको रा ते से हटाना ज री था। डॉ टर अ यर को रा ते से हटाने के िलए ही
मने उसे लैकमे लंग जैसे काम के िलए े रत कया और यह कहकर े रत कया क अगर तुम ितलक तथा िशनाया
को लैकमेल कर गे, तो इससे तुम दोन के बीच आतंक फै लेगा और ऐसी प रि थित म तुम यािन िशनाया बौखलाहट
म ितलक को आनन—फानन ठकाने लगाने क बात सोचोगी। उस व उस बेवकू फ म ासी डॉ टर के दमाग म यह
बात नह आयी क ितलक राजको टया से पहले तुम उसके मडर क बात सोच सकती थ । जैसा क तुमने सोचा भी
और ितलक के साथ िमलकर डॉ टर अ यर क ह या कर दी। बहरहाल डॉ टर अ यर क ह या करके तुमने मेरे ही
एक काम को अंजाम दया। मेरे ही एक कांटे को रा ते से हटाया।”
•••
मेरे दमाग म अब चंगा रयां—सी छू ट रही थ ।
धुआंधार चंगा रयां!
म ‘मुलाकाती क ’ म जािलय के इस तरफ स ्—सी अव था म खड़ी थी और मेरे हाथ—पैर बफ क तरह ठ डे हो
रहे थे।
बृ दा ने मुझे िजस तरह इ तेमाल कया था, वह सचमुच आ यजनक था।
म यक न नह कर पा रही थी क मेरे सामने खड़ी साधारण श ल—सूरत वाली लड़क इस कदर बुि मान भी हो
सकती है।
“िशनाया डा लग!” बृ दा एक—एक श द चबाते ए बोली—”वह सारे काम तुम अपने दमाग से ज र कर रही
थ - ले कन सच ये है क म चाल इस तरह चल रही थी क तु हारा दमाग भी ऐन वही बात सोच रहा था, जो म
चाहती थी।”
मेरे मुंह से श द न फू टा।
“अब योजना का वह िह सा आता है!” बृ दा बोली—”िजसको अंजाम देने के िलए बड़ा पंच रचा गया था। यािन
ितलक राजको टया क ह या! ितलक क ह या कराने के िलए मने सबसे पहले तु हारे दमाग म बीमे वाली बात
ठूं सी।”
“मेरे दमाग म तुम वो बात कस तरह ठूं स पाय ?”
“अगर तु ह याद हो,” बृ दा बोली—”तो तु हारे पास पथ हाउस म एक लड़क का फोन आया था- जो बीमा कं पनी
क एजे ट थी। और उसी क माफत तु ह सबसे पहले यह राज मालूम आ क ितलक राजको टया का पचास करोड़
का बीमा भी है।”
“िब कु ल आया था।”
“तु हारी जानकारी के िलए बता दूं।” बृ दा मु कु राकर बोली—”फोन करने वाली वह लड़क म ही थी।”
म पुनः भ च रह गयी।
“बहरहाल बीमे वाली बात पता चलने के बाद तुमने जहां ितलक राजको टया क ह या का ो ाम बना डाला- वह
इस बीच म अपनी योजना का अगला िह सा चल रही थी। म थानीय थाना े के इं पै टर से जाकर िमली और
उसे मने एक दूसरी ही कहानी सुनायी। वो कहानी- िजसे तुम पथ हाउस म मेरी जबानी पहले ही सुन चुक हो।”
म ‘मुलाकाती क ’ क जाली पकड़े चुपचाप खड़ी रही।
“ये तो था मेरा मायाजाल िशनाया शमा!” बृ दा ने पुनः जोरदार अ ाहस कया—”िजसके बलबूते पर मने एक बड़ा
ष ं रचा- एक बड़ी चाल खेली। मने तु ह ऐसी िशक त दी है, िजसके बारे म तुमने कभी वाब म भी न सोचा
होगा। इसके अलावा म तु ह एक बात और बता दूं।”
“ या?”
“मेरे जीिवत कट होते ही न िसफ तु हारी वो शादी खुद—ब—खुद अवैध सािबत हो गयी है, जो तुमने ितलक से
क थी बि क अब बीमे क जो सौ करोड़ पये क धनरािश िमलेगी- उस पर भी पूरी तरह मेरा क जा होगा। सारी
मेहनत तुमने क डा लग, ले कन अब इ मीनान से बैठकर उसका फल म खाऊंगी।”
मेरा िसर घूमने लगा।
मेरा दल चाह रहा था- अगर वह जािलयां मेरे बीच म—से हट जाएं, तो म अभी एक ह या और कर डालूं।
बृ दा क ह या!
“इतना ही नह !” बृ दा ने आगे कहा—”अगर तुम मेरी यह योजना अदालत म चीख—चीखकर भी सुनाओगी- तब
भी तुम मेरा कु छ नह िबगाड़ सकत । अदालत भी मेरा कु छ नह िबगाड़ पाएगी। य क तु हारे पास मेरे िखलाफ
सािबत करने के िलए कु छ नह है- कु छ भी नह । सािबत तो तब होगा िशनाया डा लग- जब मने कु छ कया हो।
कया तो सब कु छ तुमने है- िसफ तुमने।”
•••
म खामोशी के साथ अब अपनी काल—कोठरी म बैठी थी।
काल—कोठरी बंद थी।
वहां अंधेरे के िसवा कु छ नह था।
दम तोड़ते स ाटे के िसवा कु छ नह था।
बृ दा जा चुक थी। ले कन वो अपने पीछे िवचार का जो द छोड़कर गयी थी, वो अभी भी मेरे अंदर खलबली
मचाये ए था।
मुझे आज रह—रहकर फारस रोड का वो कोठा याद आ रहा था, िजस पर मेरा ज म आ।
मुझे अपनी मां याद आ रही थी।
मुझे एक—एक करके उन तमाम ब जात मद के चेहरे भी याद आ रहे थे, िज ह ने बचपन से ही मुझे इस बात का
अहसास कराया क म एक लड़क ।ं जो दस— यारह साल क लड़क को भी एक नंगी—बु ी औरत क तरफ घूरते
थे।
फर मुझे वो काला मु टंडा आदमी भी याद आया- िजसने सबसे पहले मेरे साथ सै स कया था। मेरी चीख िनकल
गयी थी।
फर कोठे का तबलची याद आया- िजसके साथ मने बचपन म ही न जाने कतनी बार सै स कया था।
आज महसूस होता है- हमारे समाज ने चाहे कतनी ही गित य न कर ली हो, मगर फर भी लड़क होना एक
गुनाह है। एक अपराध है। हर पु ष लड़क के साथ िसफ से सुअल अटेचमे ट चाहता है। वो उसक भावना को
समझने क कोिशश नह करता।
म सोचती -ं गलती मेरी ही थी।
जो मने बेहतर भिव य चाहा।
म ‘नाइट लब’ के िलए ही बनी थी। ‘नाइट लब’ ही मेरी दुिनया थी। मने सारी उ बस शरीर का सौदा करना था
और फर मर जाना था। वह मौत कै सी भी होती!
हर औरत का बस यही नसीब है।
वह चाहे कॉलगल हो या फर कसी क प ी। उसने िसफ िब तर क शोभा बनना होता है। और घर क चारदीवारी
म भी कोई औरत कहां सुरि त रह पाती है! शायद इसीिलए यह कहावत सच ही है- िजस तरह हर वे या थोड़ी
ब त औरत होती है- ठीक उसी कार हर औरत थोड़ी ब त वे या ज र होती है।
मेरी यह कहानी अब बस यह समा होती है।
मने जो अपराध कये- मुझे उसक सजा िमल गयी।
ले कन आपको या लगता है, बृ दा को सजा नह िमलनी चािहए?
सबसे बड़ी अपराधी तो वह थी।
म तो उसक िसफ कठपुतली थी- िजसने मुझे अपने इशार पर नचाया और म नाची।
यह कहां का इं साफ है क कठपुतली को सजा िमले और कठपुतली को नचाने वाला सुख भोगे।
दौलत का आनंद ले।
या इसीिलए उसके सारे अपराध माफ थे, य क उसके िखलाफ कोई सबूत नह था?
या सबूत न होने से ही आदमी िनद ष हो जाता है?
या इसी को कानून कहते ह?
अगर इसी को कानून कहते ह- तो म लानत भेजती ं ऐसे कानून पर।
मुझे नफरत है ऐसे कानून से।
बस- अब म िलखना बंद करती ।ं वैसे भी िलखते—िलखते अब मेरी उं गिलयां दद करने लगी ह।
अगर मेरी यह कहानी कसी तरह आप लोग तक प च
ं ी, तो यह मेरा सौभा य होगा।
अलब ा एक बात म आप लोग से ज र कहना चा ग ं ी- दौलत के पीछे कसी भी आदमी को इतना नह भागना
चािहए, जो वह अंधा हो जाए। और कोई बृ दा क तरह उसे अपने हाथ क ‘कठपुतली’ बना ले।

17

उपसंहार
मने िशनाया शमा क वो आ मकथा बड़े मनोयोग के साथ पढ़ी और फर अपनी रवा वंग चेयर से पीठ लगा ली
थ।
मने च मा उतारकर अपनी राइ टंग टेबल पर रख दया।
म!
यािन ‘अिमत खान’ आपसे स बोिधत ।ं
इसम कोई शक नह - िशनाया शमा ने अपनी वो पूरी कहानी बड़े दलच प अंदाज म िलखी थी।
म खुद उसे एक ही सांस म पढ़ता चला गया।
इतना ही नह - उस कहानी ने मेरी अंतरा मा को झंझोड़ा भी। हालां क िशनाया शमा एक खूनी थी- ले कन फर भी
पूरी कहानी पढ़ने के बाद उसके कै रे टर से हमदद होती थी।
वह आ मकथा मेरे तक प च
ं ी भी बड़े अजीब अंदाज म थी। कल ही ‘से ल जेल’ के जेलर का मेरे पास फोन आया
था।
“मुझे अिमत खान जी से बात करनी है।”
“किहये।” मने कहा—”म अिमत खान ही बोल रहा ।ं ”
“ओह- सॉरी अिमत जी, म आपको पहचान न सका।”
“कोई बात नह ।”
“म दरअसल से ल जेल का जेलर ।ं ” उसने बताया—”हमारी जेल म एक कै दी लड़क है, जो आपके उप यास क
जबरद त फै न है। कल सुबह ठीक पांच बजे उसे फांसी होने वाली है। ले कन वो मरने से पहले एक बार आपसे ज र
िमलना चाहती है।”
वह मेरे िलए अ भुत बात थी।
अपने ढेर शंसक से म िमला था। मगर ऐसा फै न पहली बार देखा था, जो मरने से पहले एक बार मुझसे िमलने को
इ छु क था।
वो भी फांसी पर चढ़ने से पहले!
“उस लड़क क आपसे ब त िमलने क इ छा है िम टर अिमत!” जेलर पुनः बोला—”अगर आप थोड़ी देर के िलए
उससे िमलगे, तो मुझे भी खुशी होगी।”
“ठीक है।” म बोला—”म चार बजे तक से ल जेल प च
ं ता ।ं ”
“थ यू- थ यू वैरी मच! आइ’म वेरी ेटफु ल टू यू!”
“ओ.के .।”
•••
जेलर मुझे िशनाया शमा से िमलाने सीधे काल—कोठरी के अंदर ही ले गया। वरना अमूमन इस तरह क मुलाकात
‘मुलाकाती क ’ म ही होती ह।
मने जब जेलर के साथ काल—कोठरी म कदम रखा, तो िशनाया शमा सामने ही फश पर घुटने िसकोड़े बैठी थी।
आहट सुनते ही उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया।
वह सचमुच ब त सुंदर थी।
उसके िज म क रं गत ऐसी थी- मानो जाफरान िमला दूध हो।
मुझे देखते ही उसके चेहरे पर पहचान के िच उभरे ।
आिखर मेरी त वीर वो उप यास के पीछे देखती रही थी, इसिलए मुझे पहचानना उसके िलए मुि कल न था। वह
नजदीक म उसक िलखी ई आ मकथा रखी थी।
“ओह- आप आ गए।” वह तुर त उठकर खड़ी ई—”म तो सोच रही थी, पता नह आप आएंगे भी या नह ।”
“ऐसा नह हो सकता था।” म बोला—” क मेरा कोई शंसक मुझे बुलाये और म न प च
ं ूं।”
म अपनी आंख पर यक न नह कर पा रहा था- इतनी खूबसूरत लड़क ने कोई ऐसा जघ य अपराध भी कया हो
सकता है, जो उसे फांसी जैसी सजा िमले!
“म बस कल सुबह तक क मेहमान ं िम टर अिमत!” िशनाया शमा बोली—”कल सुबह पांच बजे के बाद मेरी
सांस क डोर टू ट जाएगी। मेरी िज दगी का यह ज रा ख म हो जाएगा।”
“ले कन तुमने ऐसा या अपराध कया है!” म कौतुहलतापूवक बोला—”िजसके कारण तु ह इतनी खौफनाक सजा
दी जा रही है?”
िशनाया शमा ने ब त सं ेप म मुझे अपना जुम बताया।
मेरे र गटे खड़े हो गये।
चार खून!
उस अ सरा जैसी लड़क ने चार खून कये थे।
“िम टर अिमत- आज म आपसे एक सवाल पूछना चाहती ।ं ”
“कै सा सवाल?”
“आप हमेशा अपने उप यास म एक बात िलखते ह। आप िलखते ह क हर चालाक—से—चालाक अपराधी को
उसके अपराध क सजा ज र िमलती है। वो कह —न—कह ज र फं सता है।”
“िब कु ल िलखता ।ं ” म बोला—”और िसफ िलखता ही नह ँ बि क इस बात पर मेरा पूरा यक न भी है। दृढ़
िव ास भी है।”
वो हंसी।
उसक हंसी म ं य का पुट था।
“म मा चा ग ं ी िम टर अिमत!” िशनाया शमा बोली—”इस तरह हंसकर अनायास ही मुझसे आपका अपमान हो
गया है। सच बात तो ये है- आपका यह यक न िसफ मेरे ऊपर लागू आ है। आिखर इतनी चालाक से खून करने के
बावजूद भी म कानून के िशकं जे म फं स ही गयी। ले कन बृ दा के बारे म आप या कहगे? इस पूरे खेल क असली
िखलाड़ी तो वह थी। सब कु छ उसके इशार पर आ। ले कन फर भी कानून उसका कु छ नह िबगाड़ पाया, य क
कानून क इमारत सबूत नाम क िजस बुिनयाद पर खड़ी होती है, वह सबूत उसके िखलाफ नह थे।”
म िन र हो गया।
िशनाया शमा काफ हद तक ठीक कह रही थी।
इसम कोई शक नह - बृ दा के िखलाफ कोई सबूत नह थे और इसीिलए वो बच गयी थी।
“िम टर अिमत!” िशनाया शमा कु िपत लहजे म बोली—”अगर हो सके - तो आज के बाद आप अपने उप यास म यह
िलखना छोड़ द क हर अपराधी को सजा िमलती है। बि क आज के बाद आप अपने उप यास म यह िलख क इस
दुिनया म कु छ अपराधी ऐसे भी होते ह, जो अपनी बुि के बल पर कानून क आंख म धूल झ कने म कामयाब रहते
ह। िजनका कानून कु छ नह िबगाड़ पाता।”
म कु छ न बोला।
जब क िशनाया शमा ने फर अपनी ‘आ मकथा’ उठाकर मेरी तरफ बढ़ाई थी।
“मने अपनी यह कहानी िलखी है िम टर अिमत!” वह बोली—”कागज के इन प पर मेरे सपने, मेरी उ मीद, मेरे
गुनाह, मेरी िज दगी का एक—एक ल हा कै द है। अगर हो सके , तो मेरी यह कहानी िह दु तान के तमाम पाठक तक
प च ं ा द। मेरे पास बृ दा के िखलाफ सबूत नह है- इसिलए म अपने इस के स को अदालत म तो नह लेकर जा
सकती। ले कन आपक बदौलत कम—से—कम पाठक क अदालत तक तो इस के स को लेकर जा ही सकती -ं ता क
पाठक फै सला कर सक क बृ दा म और मुझम कौन बड़ा अपराधी है? ता क उ ह पता चल सके क कस कार इस
के स के एक अपराधी को सजा िमली और दूसरे को कानून ने छु आ तक नह । अगर आप मेरा यह काम करगे िम टर
अिमत, तो आपका मेरे ऊपर ब त बड़ा अहसान होगा।”
मने ‘आ मकथा’ क वो पा डु िलिप अपने हाथ म पकड़ ली।
“िम टर अिमत!” िशनाया शमा पुनः बोली—”आप मेरी इस कहानी को पाठक क अदालत तक प च
ं ाएंगे न?”
“म पूरी कोिशश क ं गा।”
“कोिशश नह ।” िशनाया शमा बोली—”बि क आप वादा कर।”
“ठीक है- म वादा करता ।ं ”
“थ यू- थ यू वैरी मच!” िशनाया शमा ने मेरा हाथ अपने हाथ म ले िलया और उस पर अपना गाढ़ चु बन अं कत
कया—”आप नह जानते- आपने यह बात कहकर मेरे दल का कतना बड़ा बोझ ह का कर दया है। मेरे िलए यही
ब त होगा- मेरी कहानी लाख पाठक तक प च ं ेगी।”
मेरी िनगाह अपलक उस लड़क के चेहरे पर टक थी।
कल सुबह उसे फांसी होने वाली थी। ले कन उसके चेहरे पर कसी भी तरह क कु ठा या खौफ के िनशान नह थे।
ऐसा िब कु ल भी नह लग रहा था क उसे फांसी का खौफ हो।
“ या तु ह डर नह लग रहा िशनाया शमा?” मने उसक िब लौरी आंख म झांकते ए सवाल कया—”आिखर कु छ
घंट बाद तुम मरने जा रही हो?”
“नह - मुझे िब कु ल भी डर नह लग रहा।” वह बोली—”बि क मुझे खुशी है क मां क तरह मुझे खौफनाक मौत
नह िमली। हां- एक बात का अफसोस ज र है।”
“ कस बात का?”
“कु छेक ऐसे िनद ष आदिमय के खून से मेरे हाथ रं ग गये, िजनके खून से मेरे हाथ नह रं गने चािहए थे।”
“इट वाज गॉडस िवल।” म गहरी सांस लेकर बोला— “मे गॉड िगव यू थ टु बीयर दस टे रबल लो।”
मने धीरे —धीरे िशनाया शमा का कं धा थपथपाकर उसे सां वाना दी।
•••
मने चाय का कप खाली करके टेिबल पर रखा।
उस समय म जेलर के ऑ फस म बैठा आ था।
“यह लड़क कु छ अजीब है िम टर अिमत!” जेलर अपलक मुझे देखता आ बोला—”यह िजतनी भावना से भरी
ई है- उसे देखकर लगता ही नह क इसने चार खून कये ह गे। और खून भी ऐसे, िज ह आसानी से ‘को ड
लािडड मडर’ क सं ा दी जा सकती है।”
“ या इसक यह फांसी क नह सकती?” मने जेलर से सवाल कया।
“म अपनी तरफ से काफ कोिशश कर चुका ।ं ” जेलर ने बताया—”ले कन यह लड़क खुद फांसी पर चढ़ने को
तैयार है। मने इसे काफ समझाया क अगर यह रा पित के नाम एक िच ी िलख दे- तो म पूरी कोिशश कर सकता ं
क इसक फांसी क सजा उ कै द म बदल जाए। मगर अफसोस तो इस बात का है- यह िच ी भी िलखने को तैयार
नह ।”
“इसम इसक गलती कु छ नह जेलर!” म बोला—”इं सान के सपने जब एक बार टू ट जाते है, तो उसका ि व
बेजान मोितय क तरह इधर—उधर िबखर जाता है। और यही इं सानी िज दगी का वो पड़ाव है, जहां से इं सान का
िज दगी से नह बि क मौत से इ क शु होता है। उस खूबसूरत लड़क को भी अब मौत से इ क हो गया है।”
जेलर हैरानीपूवक मेरी तरफ देखने लगा।
“ फलहाल म चलता ं जेलर!” म कु स छोड़कर खड़ा हो गया।
“ओ.के .।” जेलर ने भी कु स छोड़ी और गरमजोशी के साथ मुझसे हाथ िमलाया—”वी िवल मीट अगेन!”
“ज र।”
म से ल जेल से बाहर िनकल आया।
•••
पा डु िलिप पढ़ने के बाद मने उसे टेिबल पर ही एक तरफ रख दया।
म अभी भी उस कहानी के मोहजाल म डू बा आ था।
सुबह का समय था।
मने वॉल लॉक क तरफ दृि उठाई।
चार बज चुके थे।
िशनाया शमा क फांसी म िसफ एक घ टा बाक था। उस पूरी रात म सोया नह था।
पूरी कहानी पढ़ने के बाद इस बात का अहसास मुझे अ छी तरह हो चुका था क बृ दा के िखलाफ कह कोई ऐसा
सबूत नह है, जो कानून उसे िगर तार कर सके ।
सचमुच उसने एक—एक चाल ब त सोच—समझकर चली थी।
तो या इस बार एक अपराधी को सजा नह िमलेगी?
वह इसी कार खुला घूमता रहेगा?
म बृ दा के बारे म िजतना सोच रहा था, उतनी मेरी दमागी उलझन बढ़ रही थ ।
तभी वॉल लॉक ब त जोर—जोर से पांच बार बजी।
मेरी आंख मुंद गय ।
मेरा शरीर रवा वंग चेयर पर िशिथल पड़ गया।
िशनाया शमा को फांसी हो चुक थी।
म आँख बंद कये- कये इसी तरह ना जाने कब तक चेयर पर पड़ा रहा।
दस बजे मेरी आँख खुली।
मने टी.वी. ऑन कया।
टी.वी. पर िशनाया क फाँसी क खबर ही चल रही थी।
तभी टी.वी. पर एक और खबर भी चलनी शु ई। यह खबर बृ दा से स बि धत थी। जब बृ दा िल ट म सवार
होकर पथ हाउस से नीचे होटल क तरफ जा रही थी, तभी न जाने कै से िल ट का तार कट गया और िल ट धड़ाम् से
नीचे जाकर िगरी। बृ दा क त काल ऑन द पॉट मौत हो गयी। पुिलस को उसके वेिनटी बैग म-से सौ करोड़ का बीमे
का चैक भी बरामद आ, जो बृ दा को उसी दन बीमा कं पनी से ा आ था और तब वो उस चैक को अपने बक
एकाउ ट म जमा कराने जा रही थी। मगर ऐसी नौबत ही न आयी। उन सौ करोड़ पय का सुख वो न भोग सक ।
टी.वी. पर उस खबर को सुनकर मेरे चेहरे पर बेपनाह हष क लक र खंच गय ।
मेरी कु ठा समा हो गयी।
िजस बृ दा को कानून सजा न दे सका, उसे उसके कृ य क ई र ने सजा दे दी थी।
उस पल के बाद मेरा यह िन य और भी यादा दृढ़ हो गया, अपराधी कभी बचता नह है!
उसे उसके पाप क सजा ज र िमलती है।
एज यू सो, सो शैल यू रीप।

समा

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