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खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या

November 1964

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हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का आजकल शुद्ध रूप में मिलना दूभर हो गया है। बाजार
में कु छ भी वस्तु हम खरीदने जायें, जाँच पढ़ कर उसे खरीदें लेकिन फिर भी विश्वास नहीं होता कि
खरीदी गई वस्तु शुद्ध होगी की समस्या इस कदर व्यापक बन गई है कि वस्तु की शुद्धता के विषय
में हम लोगों के मन में अस ओर सन्देह की जड़ बहुत अन्दर तक जम गई है और ठीक भी है युद्ध
में कोई वस्तु प्राप्त कर लेना बहुत कठिन हो गया है। यह ऐसा रोग है कि बाहरी क्षेत्र से बढ़ता हुआ
हमारे ग्रामीण क्षेत्रों तक में भी फै ल गया है और अपनी जड़े फै ला रहा है। शहरों में मिलावट का रोग
अधिक व्यापक और गहराई से व्याप्त है तथापि हमारे ग्रामीण अंचल इससे बचे हुए नहीं है। शिक्षित
अतिरी ग्रामीण सभी अपनी उत्पादित वस्तुओं में अपने ढंग से मिलावट करते हैं।

घी, दूध, मसाले, आटा अनाज, दवाइयाँ तथा अन्य बहुत-सी वस्तुए बाजार से किसी भाग्यशाली को ही
शुद्ध रूप से मिल पाती होगी। श्री के नाम पर वनस्पति मक्शन की जगह मार्गरीन, आटे में सेलखड़ी
का पाउडर, पिसी हुई हल्दी में पीली मिट्टी, काली मिर्च में पपीते के बीज, कटी हुई सुपारी में कटे हुए
छु हारे की गुठलियां मिलाकर सरलता से बेची जा रही है। दूध में अरारोट या सपरेटा का पाउडर पानी
खूब मिलाया जा रहा है। में उबले आ शकरकन्द या रूपरेटा का सोचा, बहुत चल रहा है। बीड़ी सिगरेटों
में रखी जाने वाली तम्बाकू में गधे घोड़े की नींद मिलाने के समाचार भी हमने कई बार पड़े हैं। बहुत
सी दवाओं के नाम पर पंसारियों की दुकान में सड़ी गली जड़ी बूटियों का खाद, द्राक्षासव के नाम पर
गुड़ का शीरा, खूब चलता है। अनाज में अनार भूरे में पाउडर शरबत में रोकीन खूब चलती है। यह
एक प्रसिद्ध कहावत हो गई है कि जहर भी शुद्ध नहीं मिल चाँदी सोना, तांबा, पीतल कोई भी धातु
अपने शुद्ध रूप में नहीं मिल पाती। वस्तु वस्तु में मिलावट आज एक सामान्य बात हो गई है।
मिलावट के साथ-साथ अस वस्तु के स्थान पर नकली वस्तु खूब चल रही है जिसकी पहचान
भी नहीं हो सकती।

पिछले दस वर्षों में हमारे यहाँ मिलावट की मात्रा काफी बढ़ी है। कई वस्तुओं में 25-30 प्रतिशत से
लेकर 75-80 प्रतिशत से भी अधिक मिलावट होती है। हमारे लिये यह बात कितने दुर्भाग्य की है कि
जहाँ एक ओर वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं आसमान को चूम रही है वहाँ मिलावट की
मात्रा भी बहुत बढ़ गई है। जीवन की निर्वाह की सामग्री ही बड़ी कठिनाई से मिल पाये और वह भी
मिलावटी हो तब उस समाज की शारीरिक मानसिक स्थिति का क्या हाल होगा, इसकी कल्पना सहज
ही सामान्य बुद्धि का व्यक्ति कर सकता है। सचमुच ऐसे समाज का शारीरिक, मानसिक, नैतिक,
स्वास्थ्षत होगा और इनके फलस्वरूप उसकी प्रगति के द्वार ही अवरुद्ध हो जायेंगे। यह सत्य है कि
मिलावटी वस्तुओं के उपभोग से मनुष्य का नष्ट होता है। वास्म नष्ट होने के साथ-साथ जीवन की
सभी सम्भावनाओं के मार्ग बन्द हो जाते हैं। शरीर से रुग्ण जीर्ण-शीर्ण मनुष्य क्या कर सकता क्या
सोच सकता है?

क्या मिलावटी वस्तुओं का प्रभाव जनजीवन के स्वास्थ्य पर कम पड़ता है जब असंख्यों को रोगी


बनना पड़ता है। रोग के साथ-साथ ही उसकी चिकित्सा पर होने वाला व्यय भी कु छ कम नहीं होता।
कई बहुमूल्य जीवन फिर भी नहीं बच पाते और नष्ट हो जाते हैं मिलावटी वस्तुओं से उपभोग से
सचमुच ही व्यापक स्तर पर फै लने वाली भोकर बीमारियों का एक मुखा कारण अशुद्ध खाद का प्रयोग
करना भी है। क्या मिलावट करने वाले यह नहीं सोचते कि उनके कारण कितनों को ही अकाल मौत
का सामना करना पड़ता है? क्या वे परोक्ष रूप से जनजीवन की सामूहिक हत्या के प्रपन नहीं करते।
वस्तुओं में मिलावट करके ? सभा में बोलते हुए भूतपूर्व स्वास्थ मंत्री श्री डी. पी. करमकर ने एक बार
कहा था- एक हत्यारा भी खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों से अधिक ईमानदार है। वह अपने
पाप के प्रति सच्चा होता है और उसे सीधे-सीधे इसका परिणाम भी दण्ड के रूप में भुगतना ही पढ़ता
है। किन्तु खाद्यपदार्थों में मिलावट करने वाला तो वस्तुओं को विष करके अनेकों व्यक्तियों की हत्या
करके भी समाज में सच्चा, धार्मिक, बना बैठा रहता है और दण्ड से साफ बच जाता है। किसी भी रूप
में मिलावट करने वालों को माफ नहीं किया जाना चाहिए। हत्यारों की तरह ही उन्हें भी अपराधी
मानकर दण्ड देना अनिवार्य है क्योंकि रूप से अनेकों की जाने से लेते हैं।"

क्या मिलावट करने वाले इस बात पर विचार करेंगे कि उनके द्वारा अज्ञात रूप से कितने जीवन
नष्ट होते हैं कितनों को रुग्ण जीवन बिताना पड़ता है। जीवन निर्वाह के लिए बेचारा मनुष्य न जाने
कितनी मेहनत मजदूरी नौकरी चाकरी करता है और फिर भी तंग रहता है। तब तंगी की हालत में भी
बाजार में से जैसे कै से निर्वाह की वस्तुयें खरीद कर लाता है उसका उपभोग करके जब स्वास्थ्य, धन,
समय नष्ट होते देखता है तो उसकी दीन स्थिति क्या होती

मिलावट करने वाले इस बात पर विचार करेंगे कि उनके द्वारा अज्ञात रूप से कितने जीवन नष्ट
होते हैं। कितनों को रूण जीवन बिताना पह है। जीवन निर्वाह के लिए बेचारा मनुष्य न जाने कितनी
मेहनत मजदूरी नोकरी चाकरी करता है और फिर भी तंग रहता है। तब तंगी की हालत में क में से
ऐसे कै से निर्वाह की वस्तु खरीद कर लाता है उसका उपभोग करके जब स्वास्थ्य, धन, समय, श्रम नष्ट
होते देखता है तो उसकी दीन स्थिति हो है इसका भुक्त भोगी लोग सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।
इन मिलावटी विषाका चस्तुओं का सेवन करके कोई स्वस्थ रह सकता है? कदापि नहीं फिर कल्पना
कीजिए उस समाज की उस राष्ट्र की नहीं खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या व्यापक स्तर पर
फै ली हो? क्या वह देश वह समाज उन्नति क राके गा, शाक्तिशाली बन सके गा समृद्ध हो सके गा इसका
एक ही उत्तर है नहीं।
क्या मिलावट करके हम अपना ही नाम नहीं करते। यह सत्य है कि समाज के साथ ही व्यक्ति के
जीवन का उत्कर्ष जुड़ा हुआ है। समाज को हम अपने ही हाथों मिलावटी वस्तुओं का विष देकर क्षीण,
कमजोर बनाते हैं उसे नष्ट करते हैं क्या उसके साथ-साथ एक दिन हमारा ना भी नहीं हो जायेगा
समाज के नष्ट होने के साथ ही हमें भी नष्ट होना पड़ेगा

एक बार एक भारतीय सज्जन इंग्लैंड गये थे। एक स्थान पर दूध लेते समय वे पूछ बैठे "इसमें पानी
तो नहीं मिला है दुकानदार आर्य चकित होक

बोला- क्या आपके यहाँ दूध में पानी मिलाया जाता है?" उन सज्जन ने कोई उत्तर नहीं दिया। सचमुच
बहुत से देशों में पर्याप्त मूल्य से लिया जाता है लेकिन

मिलावट करना एक बहुत ही कर्म समझा जाता है। इसके मानी यह नहीं कि अन्य देशों में ऐसा होता
ही नहीं है। फिर भी बहुत सी जातियों में इस

अनैतिक कार्य को बहुत पृणित समझा जाता है। हमें भी राष्ट्र के लिये समाज के लिये जन जीवन की
समृद्धि के लिये अपने नैतिक उतों के लिये पदार्थ में मिलावट के पाप से बचना चाहिये देशव्यापी
स्तर पर फै ले हुए इस पाप प्रवृत्ति को दूर करना चाहिये। यदि इस सम्बन्ध में हम सफल हो सके तो
राष्ट्र विकास समाज के उत्थान, जन जीवन की समृद्धि में एक बहुत बड़ा काम हो सके गा।

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