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विश्व भूगोल राज होल्कर

ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड: सक्ष्ू मतम अणओ
ु ं से लेकर विशाल आकाशगगं ाओ ं तक के सवममवलत स्िरूप को ब्रह्माण्ड कहा जाता
है।
ब्रह्माण्ड की उत्पवि / विस्तार से सबं वं ित प्रारंवभक मत:
• 140 ई. में क्लॉवडयस टॉलमी ने सिवप्रथम ब्रह्माण्ड का वनयवमत अध्ययन कर भूकेन्द्रीय अिधारणा का
प्रवतपादन वकया एिं बताया वक 'पृथ्िी ब्रह्माण्ड के के न्द्र में है। सूयव एिं अन्द्य ग्रह पृथ्िी की पररक्रमा करते
हैं।'
• लगभग छठीं शताब्दी में भारतीय खगोलशास्त्री िराह वमवहर ने बताया वक ‘चंरमा पृथ्िी की पररक्रमा करता
है तथा पृथ्िी सूयव की पररक्रमा करती है।
• 1543 ई. में वनकोलस कॉपरवनकस (पोलैंड) ने सूयव कें वन्द्रत अिधारणा प्रस्तुत की एिं बताया वक 'ब्रह्माण्ड
के के न्द्र में पृथ्िी नहीं बवकक सूयव है। दैवनक गवत में पृथ्िी अपने अक्ष पर तथा िावषवक गवत में सूयव के चारों
ओर पररक्रमण करती है।'
• 1805 ई. में वब्रवटश खगोल शास्त्री हशेल ने ब्रह्माण्ड का अध्ययन दरू बीन से वकया।
• 1925 ई. में अमेररकी खगोलशास्त्री एडविन पॉिेल हब्बल ने बताया वक ब्रह्माण्ड में हमारी आकाशगगं ा
की भांवत लाखों आकाशगंगाएं हैं। आकाशगंगाओ ं के बीच की दरू ी बढ़ रही है। जैसे-जैसे आकाशगंगाओ ं
के बीच की दरू ी बढ़ रही है िैसे िैसे इनके दरू जाने की गवत तेज होती जा रही है। इस वसद्ांत को ‘विस्तृत
ब्रह्माण्ड का वसद्ांत’ कहा जाता है।
ब्रह्माण्ड की उत्पवत से संबंवित वसद्ांत:
• महाविस्फोट वसद्ातं (Big Bang Theory): जॉजव लैमेत्रे
• सामयािस्था वसद्ातं (steady State Theory): थॉमस गोकड एिं हमवन बााँडी
• दोलन (Pulsating) वसद्ातं : एलन साँडेजा
• स्फीवत वसद्ातं (Inflationary Theory) : एलन गथु
महाविस्फोट वसद्ांत (Big Bang Theory): ब्रह्माण्ड की उत्पवि के संबंध में यह सिाववधक मान्द्य वसद्ांत
है। इस वसद्ांत का प्रवतपादन िषव 1927 ई. में बेवकजयम के खगोलशास्त्री जॉजव लैमेत्रे ने वकया था। इस वसध्दांत में
जॉजव लैमेत्रे ने ब्रह्माण्ड, आकाशगगं ा एिं सौरमंडल की उत्पवि के बारे में बताया। बाद में िषव 1967 में रॉबटव िेगनर
ने इस वसद्ांत की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की।
जॉजव लैमैत्रे के अनुसार, आज से लगभग 15 अरब िषव पूिव समपूणव ब्रह्माण्ड एक गमव एिं सघन वबन्द्दु अथिा
अवनन वपण्ड के रूप में के वन्द्रत था। इसका वनमावण भारी पदाथों से हुआ था । अत्यवधक संकेन्द्रण के कारण उस वबन्द्दु

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में अचानक विस्फोट हुआ। यह विस्फोट वबग बैंग कहलाता है। इस विस्फोट के बाद उस भारी पदाथव में वबखराि
हुआ। विस्फोट के कुछ समय बाद ही उस वबन्द्दु का व्यास कई अरब मील का हो गया और िह वबन्द्दु एक आग के
गोले में बदल गया। विस्फोट के कुछ समय बाद इसका तापमान कुछ कम हुआ वजससे मल ू कणों एिं प्रवतकणों का
वनमावण हुआ। इन कणों ने आगे चलकर परमाणु का वनमावण वकया।
जैसे-जैसे समय गजु रता गया िैसे ही हाइड्रोजन परमाणु का वनमावण हुआ। बाद में हाइड्रोजन परमाणुओ ं से
हीवलयम परमाणओ ु ं की उत्पवि हुई। ब्रह्माण्ड में सिाववधक मात्रा में हाइड्रोजन एिं हीवलयम ही पाया जाता है। कुछ
अरब िषों के पश्चात इन्द्ही हाइड्रोजन एिं हीवलयम के बादलों ने ही सक ं ु वचत होकर आकाशगगं ाओ ं एिं तारों का
वनमावण वकया। वबग बैंग के लगभग 10.5 अरब िषव बाद (आज से, लनभग 4.5 अरब िषव पहले) सौरमण्डल का
विकास हुआ। सौरमडं ल के विकास की प्रवक्रया में ही विवभन्द्न ग्रहों एिं उपग्रह आवद का वनमावण हुआ।
निीनतम खोजों से यह ज्ञात हुआ है वक वबग बैंग आज से लगभग 13.7 अरब िषव पिू व हुआ था। इससे
पहले ब्रह्माण्ड का अवस्तत्ि एक मटर के दाने के बराबर था।

आकाश गंगा (Galaxy): आकाशगगं ा असंख्य तारों का एक विशाल पुाँज होता है। इसमें एक के न्द्रीय
बकज (Bulge) एिं तीन घूणवनशील भजु ाएं होती हैं। आकाशगगं ा के के न्द्र को बकज कहते हैं। बकज में तारों का
सक
ं े न्द्रण सिाववधक होता है।
आकाशगगं ा के वनमावण की शरुु आत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के सचं यन से होती है। यह
वनहाररका (Nebula) कहलाती है।
मंदावकनी आकाशगंगा (Mandakini Galaxy):
• हमारा सौर पररिार वजस आकाशगंगा में वस्थत है, उसे मंदावकनी कहते हैं। इसका आकार सवपवल है।
• मंदावकनी की आयु लगभग 12 अरब िषव है।
• मंदावकनी के के न्द्र से सूयव की दरू ी 32000 प्रकाश िषव है।
• सूयव मंदावकनी के के न्द्र का एक चक्कर 25 करोड िषव में पूरा करता है।
एड्रं ोमेडा आकाशगंगा:
• यह हमारी आकाशगंगा मंदावकनी के सबसे वनकट की आकाशगंगा है।
• मंदावकनी से इसकी दरू ी 2.2 वमवलयन प्रकाश िषव है।

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तारे का जीिनचक्र
स्टेलर नेबुला: तारे का जीिन आकाशगंगा की तीसरी भुजा में हाइड्रोजन एिं हीवलयम के बादलों के बनने से
शुरू होता है। ये बादल स्टेलर नेबुला कहलाते हैं।
भ्रूण तारा (Embryo Star): जब आकाशगंगा में हाइड्रोजन का विशाल बादल गुरुत्िाकषवण के प्रभाि से
वसकुड़ने लगता है तो इसका के न्द्र सघन हो जाता है। यह वपण्ड आवद तारा या भ्रूण तारा कहलाता है।
तारा (Star): आवद तारा के वसकुड़ने की प्रवक्रया अरबों िषव तक चलती है तथा इस प्रवक्रया के दौरान आंतररक
ताप अपररवमत रूप से बढ़ जाता है। इसके पररणामस्िरूप हाइड्रोजन से हीवलयम के नावभक बनने लगते हैं। इससे
असीवमत मात्रा में विवकरण ऊजाव मुक्त होती है और वपण्ड के अन्द्दर का तापमान एिं दाब बढ़ जाता है।
तारों में ऊजाा का स्त्रोत: नावभकीय संलयन
तारों का तत्िीय संगठन:
हाइड्रोजन: 71% हीवलयम: 27.1%
काबवन, नाइट्रोजन एिं वनयॉन: 1.5% लौह तत्क-: 0.5%
रक्त दानि (Red Giant): तारों के के न्द्र में नावभकीय सलं यन वक्रया में हाइड्रोजन, हीवलयम में पररिवतवत होता
है। कुछ समय पश्चात तारे के क्रोड में हीवलयम गैस की प्रधानता बढ़ जाती है। इससे नावभकीय संलयन अवभवक्रया
रुक जाती है। इससे क्रोड का दबाि कम हो जाता है और तारा वसकुड़ने लगता है। तारे के बाहरी भाग में नावभकीय
संलयन होता है वजससे विवकरण ऊजाव की तीव्रता घट जाती है। इस वस्थवत में तारे का रंग बदल कर लाल हो जाता
है। इस अिस्था में तारा लाल दानि तारा कहलाता है।
रक्त दानि अिस्था में तारे के पहुचं ने के बाद तारे का भविष्य उसके प्रारंवभक रव्यमान पर वनभवर करता है।
तारे के प्रारंवभक रव्यमान की तुलना चन्द्रशेखर सीमा के साथ की जाती है। 1.4 ms को चन्द्रशेखर सीमा कहते हैं।
वस्िवत - I: यवद वकसी तारे का रव्यमान सयू व के रव्यमान से कम या बराबर (चन्द्रशेखर सीमा) है तो िह
तारा लाल दानि तारे से श्वेत िामन तारे में बदल जाता है और अतं तः काला बौना (Black Dwarf) में
पररिवतवत हो जाता है।
वस्िवत - II: यवद वकसी तारे का रव्यमान सयू व के रव्यमान से अवधक या कई गनु ा अवधक होता है तो िह
तारा लाल दानि तारा से सपु रनोिा अिस्था से गुजरता है। इसके बाद िह न्द्यट्रू ॉन तारा या ब्लैक होल में
रूपातं ररत हो जाता है।

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अन्य महत्िपूणा तथ्य
श्वेत िामन (White Dwarf):
जब वकसी तारे का रव्यमान सूयव के रव्यमान के बराबर या कम होता है तो उसका बाह्य किच प्रसाररत होकर अंततः
लुप्त हो जाता है। बचा हुआ क्रोड धीरे -धीरे संकवचत होकर अत्यवधक घनत्ि के रव्य के गोले के रूप में बचा रहता
है। इससे अंदर का ताप अत्यवधक बढ़ जाता है। वजससे हीवलयम के नावभक संलवयत होकर काबवन जैसे तत्िों में
पररिवतवत होने लगते हैं। हीवलयम के संलयन के पररणामस्िरूप मुक्त कम ऊजाव के कारण यह क्रोड वकसी श्वेत िामन
के समान दीप्त हो जाता है। श्वेत िामन की सरं चना का पता सिवप्रथम आर एच फाउबर द्वारा लगाया गया था।
काला बौना (Black Dwarf):
श्वेत िामन तारा एक जीिाश्म तारा होता है। जब श्वेत िामन के क्रोड का हीवलयम धीरे -धीरे समाप्त हो जाता है तो
िह ऊजाव एिं प्रकाश का उत्सजवन नहीं करता और ठण्डा होकर सघन काला बौना तारा बन जाता है।
सपु रनोिा:
ऐसे तारे जो सूयव से कई गुना रव्यमान में भारी होते हैं और रक्त दानि अिस्था को प्राप्त हो जाते हैं। उनका क्रोड़
अत्यवधक गुरुत्ि के कारण वसकुडता जाता है और तापमान में अवतशय िृवद् से क्रोड का हीवलयम, काबवन में
पररिवतवत हो जाता है। यह काबवन क्रमशः भारी पदाथों जैसे- लोहे में पररिवतवत होता रहता है।
अतं में तारे का के न्द्र लोहे से युक्त हो जाता है वजसके फलस्िरूप के न्द्र में नावभकीय संलयन वक्रया रुक
जाती है। पररणामस्िरूप तारे की मध्यिती परत गुरुत्िाकषवण के कारण तारे के के न्द्र पर ध्िस्त हो जाती है। इससे
वनकली ऊजाव तारे की ऊपरी परत को उडा देती हैं। यह विस्फोट सुपरनोिा विस्फोट कहलाता है।
न्यूट्रॉन तारा:
जब कोई विशाल तारा अपनी अंवतम अिस्था में पहुचाँ जाता है। तब उसमें विस्फोट होता है। इस सुपरनोिा विस्फोट
से बचे हुए के न्द्रीय भाग से जो वक अत्यवधक घनत्ि एिं कुछ मील व्यास का होता है। यह न्द्यूट्रॉन तारा होता है। इसमें
सभी तत्ि न्द्यूट्रॉन के रूप में संगवठत रहते हैं। इस तारे का पता सिवप्रथम 1967 ई. में वमस जोकवलन बेल ने लगाया
था।
कृष्ण वििर (Black Hole):
न्द्यूट्रॉन तारे का अपररवमत रव्यमान अंतत: एक ही वबन्द्दु पर संकेवन्द्रत हो जाता है। ऐसे असीवमत घनत्ि के रव्य युक्त
वपण्ड को कृ ष्ण वििर कहते हैं।
इसकी गुरुत्िीय शवक्त इतनी अवधक होती है वक इनसे प्रकाश का भी पलायन नहीं हो सकता।

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नक्षत्र या तारामंडल (Constellation of Stars):
तारामण्डल, मंदावकनी में पाए जाने िाले तारों का समूह होता है जो कुछ विशेष आकृ वतयों के रूप में व्यिवस्थत
होते हैं। जैसे-सप्तऋवष मंडल

• इटं रनेशनल एस्ट्रोनॉवमकल यूवनयन के अनुसार, आकाश में कुल 88 तारामंडल हैं।
• सबसे बड़ा तारामंडल सेन्द्टॉरस (Centaurus) है। इसमें 94 तारे हैं।
क्िाससा (Quasars):
• क्िाससव एक अद्व ताराित रे वडयो स्त्रोत है, जो 4 से 10 अरब प्रकाश िषव की दरू ी पर वस्थत है।
• ये प्रकाश उत्सवजवत करते हैं। इनसे आने िाली रे वडयो तरंगें ही इनके बारे में जानकारी के स्त्रोत हैं।
प्रॉवक्समा सेंचुरी: यह हमारी मंदावकनी में सौरमंडल से सिाववधक नजदीक वस्थत तारा है।
पल्सर (Pulsar): यह एक खगोलीय वपण्ड है जो स्पंदन के रूप में वनयवमत अन्द्तराल पर रे वडयो तरंगे उत्सवजवत
करता रहता है। इसे न्द्यूट्रॉन तारा भी कहते हैं।
ध्रिु तारा (Pole Star):
• यह पृथ्िी के उिरी ध्रिु पर खड़े व्यवक्त के वशरोवबन्द्दु (Zenith)पर वस्थत है। इसकी वकरणें पृथ्िी के उिरी
ध्रिु पर 90° का कोण बनाती हैं।
• ध्रिु तारा की वकरणों के पृथ्िी के धरातल पर आपतन कोण (Angle of Incidence) के आधार पर पृथ्िी
के अक्षांशों का वनधावरण वकया जाता है।
साइरस स्टार या डॉग स्टार:
• यह रात में आकाश में वदखने िाला सिाववधक चमकीला तारा है।
• प्रॉवक्समा सेंचरु ी के बाद यह सौरमडं ल के दसू रा सबसे नजदीक वस्थत तारा है।

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सौरमण्डल (solar system)


सूयव एिं उसके चारों ओर भ्रमण करने िाले 8 ग्रह, 205 उपग्रह, धूमके त,ु उककाएं एिं क्षुरग्रह संयुक्त रूप से सौरमंडल
कहलाते हैं।
सयू ा (Sun)
• सूयव, सौरमंडल का जनक, के न्द्र एिं ऊजाव का स्रोत है। यह एक मध्यम आयु का तारा है। सूयव की आयु 4.5
अरब िषव है।
• सूयव का व्यास 13.84 लाख वकलोमीटर है। सूयव के के न्द्र का तापमान 15 वमवलयन वडग्री सेंटीग्रेड है।
• सूयव की ऊजाव का स्त्रोत उसके के न्द्र में हाइड्रोजन परमाणुओ ं का नावभकीय संलयन द्वारा हीवलयम परमाणुओ ं
में बदलना है।
• सौर पररिार के रव्यमान का 99.8% सूयव में वनवहत है। सूयव नावभकीय संलयन के फलस्िरूप हमें प्रवत
सेकण्ड 40 लाख टन ऊजाव सूयावतप के रूप में प्रदान कर सकता है।
• सूयव की पृथ्िी से न्द्यूनतम दरू ी 14.70 करोड़ वकमी., अवधकतम दरू ी 15.21 करोड़ वकमी. एिं माध्य दूरी
14.98 करोड़ वकमी. है।
• सूयव का आयतन पृथ्िी से 13 लाख गुना और रव्यमान पृथ्िी से 3,32,000 गुना है।
• सूया का रासायवनक संगठन: हाइड्रोजन: 71% , हीवलयम: 26.5% , अन्द्य तत्ि: 2.5%
• सूयव के आंतररक भाग क्रोड का तापमान 1.5x107 वडग्री सेंटीग्रेड होता है। सूयव की बाहरी सतह का तापमान
6000° C है। सौर कलक ं या सौर धब्बों का तापमान 1500 वडग्री सेंटीग्रेड होता है।
• सयू व के के न्द्र का तापमान अत्यवधक उच्च होने के कारण उपवस्थत सभी पदाथव गैस और प्लाज्मा के रूप में
वमलते हैं।
• सौर पररिार का गरुु त्ि के न्द्र सयू व है।
• पृथ्िी को सयू ावतप का 1/22 अरब िााँ भाग प्राप्त होता है। सयू व के प्रकाश को पृथ्िी तक पहुचाँ ने में 8 वमनट
16.6 सेकंड का समय लगता है।
• सयू व अतं तः श्वेत िामन नारे में पररिवतवत हो जाएगा।

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सूया की संरचना:

आतं ररक सरं चना:


1. के न्र (core): यह सयू व का के न्द्रीय भाग है। सयू व के के न्द्र का व्यास 3.48 लाख वकमी. है। इस भाग का
तापमान 15 वमवलयन वडग्री सेंटीग्रेड होता है।
2. विवकरण मेखला (Radiative Zone): यह सयू व के के न्द्र को चारों ओर से ढाँके हुए है।
3. सिं हनीय मेखला (Convection Zone): यह विवकरण मेखला को घेरे हुए है। इसका वनमावण परत
कोवशकाओ ं से हुआ है।
बाहरी संरचना:
1. प्रकाश मंडल (Photo Sphere): संिहनीय मेखला की सतह (सूयव का धरातल) को प्रकाश मंडल कहते
हैं। इस मंडल का तापमान 6000 वडग्री सेंटीग्रेड होता है। इस मंडल में ही सौर कलंक पाए जाते हैं।
2. िणा मंडल (chromosphere): िणवमंडल ही सूयव का िायुमंडल है। यह फोटो स्फे यर के ऊपर एक
आिरण के रूप में 2000-3000 वकमी. तक फै ला हुआ है। इस मंडल में प्रकाश मंडल की अपेक्षा गैसों
का घनत्ि कम है तथा तापमान अवधक है। इस मंडल में कभी कभी तीव्र गहन प्रकाश की उत्पवि होती है
वजसे सौर ज्िाला कहा जाता है।
3. कोरोना (corona): यह सूयव के िायुमण्डल का सबसे बाहरी आिरण है। यह िणव मण्डल के ऊपर पाया
जाता है। सौर पिन इसी मण्डल में पायी जाती है। कोरोना से रे वडयो तरंगे वनकलती हैं। यह के िल सूयवग्रहण
के समय वदखता है।
सयू ा से सबं वं ित प्रमख
ु घटनाए:ं
• सौर िर्ा (cosmic year): सूयव अपनी मंदावकनी की पररक्रमा 250 वमवलयन (25 करोड) िषव में करता
है। यह अिवध सौर िषव कहलाती है।

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• सौर पररभ्रमण (Solar Rotation): सूयव का अपने अक्ष पर पवश्चम से पूिव वदशा में घूणवन करना सौर
पररभ्रमण कहलाता है। सूयव अपने अक्ष पर 7.25 वडग्री का कोण बनाता है। सूयव का भूमध्य रे खीय भाग
24.47 वदन में एक चक्कर पूरा करता है। सूयव की घूणवन गवत उसके वनमन अक्षांशों पर सिाववधक होती है।
• ऑरोरा (Aurora): कभी- कभी सूयव के प्रकाश मंडल से परमाणुओ ं का तूफान बहुत अवधक िेग से
वनकलता है जो सूयव की आकषवण शवक्त को भी पार करके अन्द्तररक्ष में चला जाता है। यह सौर ज्िाला
कहलाता है। जब यह पृथ्िी के िायुमंडल में प्रिेश करता है तो हिा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश
उत्पन्द्न करता है। इस प्रकाश को उिरी ध्रिु पर ऑरोरा बोररयावलस एिं दवक्षणी ध्रिु पर ऑरोरा
ऑस्ट्रावलस कहा जाता है।

ग्रह (Planet)
ग्रह (Planet): तारों की पररक्रमा करने िाले प्रकाश रवहत आकाशीय वपण्ड ग्रह कहलाते हैं। ये सूयव से ही
वनकले हुए वपण्ड हैं। ग्रह सयू व की पररक्रमा करते हैं। ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता। ये सयू व के प्रकाश से ही चमकते
हैं। ग्रहों को प्राप्त होने िाली ऊष्मा का स्त्रोत सयू व ही है।
अगस्त, 2006 में प्राग (चेक गणराज्य) में आयोवजत अतं रावष्ट्रीय खगोलीय सघं (IAU) के अवधिेशन में
यह वनणवय वलया गया वक प्लूटो सौरमडं ल का ग्रह नहीं है। ितवमान में सौरमडं ल के के िल 8 ग्रह हैं।
ग्रह की नई पररभार्ा: के िल िे आकाशीय वपण्ड ही ग्रह माने जायेंगे जो अपनी वनवश्चत कक्षा में सूयव की
पररक्रमा करते हैं। वजनका आकार लगभग गोल है। तथा िे अन्द्य ग्रहों की कक्षा का अवतक्रमण नहीं करते।

• प्लटू ो की कक्षा, िरुण ग्रह की कक्षा का अवतक्रमण करती है। इसवलए प्लूटो को ग्रहों की श्रेणी से बाहर
कर वदया गया। अब प्लूटो को बौना ग्रह माना जाता है।
• ितवमान में सौरमंडल के 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्िी, मंगल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण (नेप्च्यून)
ग्रहों के गवत सबं ि
ं ी वनगम: सन् 1571 ई. में कै पलर ने ग्रहों की गवत से सबं वं धत तीन वनयमों का प्रवतपादन
वकया-
1. प्रिम वनयम: सभी ग्रह सूयव के चारों ओर दीघविृिाकार कक्षाओ ं में पररक्रमा करते हैं। इन कक्षाओ ं का
के न्द्र सूयव है। यह वनयम 'ग्रहों की कक्षाओ’ं का वनयम कहलाता है।
2. वितीय वनयम: ग्रहों की गवत के वद्वतीय वनयम के अनुसार, ग्रह की क्षेत्रफलीय चाल वनयत (constant)
रहती है। वकसी ग्रह के कक्षीय तल में ग्रह तथा सूयव को वमलाने िाली रे खा समान समयांतराल में समान
क्षेत्रफल तय करती है। अथावत अपनी कक्षा में ग्रह की चाल वनरंतर बदलती रहती है। जब ग्रह सूयव से दरू स्थ
होता है तो उसकी चाल न्द्यूनतम तथा जब सूयव के समीपस्थ होता है तो ग्रह की चाल अवधकतम होती है।
3. तृतीय वनयम: इस वनगम के अनुसार, जो ग्रह सूयव से वजतना अवधक दरू होगा उसका पररक्रमण काल उतना
ही अवधक होगा जैसे बुध का पररक्रमण काल 88 वदन एिं िरुण का पररक्रमण काल 164.8 िषव है।

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ग्रहों के सबं ि
ं में महत्िपूणा तथ्य:

सभी ग्रह (शुक्र एिं अरुण को छोड़कर) सूयव की पररक्रमा पवश्चम से पूिव वदशा में करते हैं। जबवक शुक्र एिं अरुण
(Uranus) सयू व की पररक्रमा पूिव से पवश्चम वदशा में करते हैं। सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पवत (Jupiter) एिं
सबसे छोटा ग्रह बधु (Mercury) है।

• आंतररक ग्रह (Inner Planets) or (Inferior Planet): ये छोटे एिं ठोस होते हैं। ये सूयव के वनकट
होते हैं एिं भारी पदाथों से बने होते हैं। इन ग्रहों में- बुि, शुक्र, पृथ्िी एिं मंगल ग्रह शावमल हैं।
• बाह्य ग्रह (outer Planets) or (Jovian Planets): ये ग्रह आकार में बड़े एिं हकके होते हैं। ये सूयव
से दरू वस्थत हैं एिं हकके पदाथों से वनवमवत हैं। इन ग्रहों में- बृहस्पवत, शवन, अरुण (यूरेनस) एिं िरुण
(नेपच्यून) ग्रह शावमल हैं।
कुल 5 ग्रहों- बुि, शुक्र, मंगल, बृहस्पवत एिं शवन को नंगी आँखों से देखा जा सकता है।
सूया से बढ़ती दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रमः बुध (न्द्यूनतम), शुक्र, पृथ्िी, मंगल, बृहस्पवत, शवन, अरुण
एिं िरुण (सूयव से सिाववधक दरू )
आकार के अनस
ु ार ग्रहों का अिरोही क्रम (Descending Order): 1. बृहस्पवत 2. शवन 3. अरुण
4. िरुण 5. पृथ्िी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
रव्यमान के अनुसार ग्रहों का अिरोही क्रम (Desc. Order): 1. बृहस्पवत 2. शवन 3. िरुण 4. अरुण
5. पृथ्िी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
घनत्ि के अनुसार ग्रहों का अिरोही क्रम (Desc. order): 1. पृथ्िी 2. बुध 3. शुक्र 4. मंगल 5. िरुण
6. बृहस्पवत 7. अरुण 8. शवन
पररक्रमण अिवि एिं पररक्रमण िेग के अनुसार ग्रहों का क्रम:
• पररक्रमण अिवि (आरोही क्रम): बधु , शक्र
ु , पृथ्िी, मगं ल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण
• पररक्रमण िेग (अिरोही क्रम): बधु , शक्र
ु , पृथ्िी, मगं ल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण

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सौरमंडल के ग्रह
बुि (Mercury) है क्योंवक शुक्र के िायुमंडल में 90-95%
तक काबवन डाई ऑक्साइड गैस विद्यमान है।
• बुध, सूयव के सबसे नजदीक वस्थत ग्रह है। • शुक्र ग्रह सुबह पूिव वदशा में एिं शाम को
इसकी सूयव से दरू ी 5.8 करोड़ वकमी. है। पवश्चम वदशा में वदखाई देता है। इसे सुबह का
• बुध, सूयव की पररक्रमा सबसे कम समय ( 88 तारा एिं सांझ का तारा भी कहते हैं।
वदन) में पूरी करता है। यह सिाववधक कक्षीय • शुक्र अपने अक्ष पर पूिव से पवश्चम (East to
गवत िाला ग्रह है। west) वदशा में घणू वन करता है।
• बुध, सिाववधक तापान्द्तर िाला ग्रह है इसका • शक्र
ु का अपना कोई उपग्रह नहीं है। शक्र ु ग्रह
तापान्द्तर लगभग 600°C है। की उत्पवि 4.6 वबवलयन िषव पिू व की है।
• बुध एक पावथवि ग्रह (Terrestrial Planet)
है एिं आकार में सबसे छोटा ग्रह है। इसका पृथ्िी (Earth):
व्यास 4880 वकमी. है। • पृथ्िी, सौरमंडल का 5िााँ सबसे बड़ा ग्रह है।
• बुध का रव्यमान पृथ्िी का 1/18 भाग है। सूयव से दरू ी के क्रम में पृथ्िी तीसरा ग्रह है।
• बुध का पलायन िेग अवधक है। अतः इस सूयव से पृथ्िी कीऔसत दरू ी 14.36
उपग्रह पर िायुमंडल नहीं पाया जाता। वकमी.है।
• इसकी कक्षा का झुकाि 7° है। • पृथ्िी का भूमध्य रे खीय व्यास 12755.6
• बुध का कोई उपग्रह नहीं है। वकमी. है। पृथ्िी का ध्रिु ीय व्यास 12,714
वकमी. है।
• यह सूयोदय के 2 घंटे पहले वदखाई देता है।
यह प्रातः एिं सायं के तारे के रूप में िषव में • पृथ्िी के भूमध्य रे खीय व्यास एिं ध्रुिीय
3 बार वदखाई देता है। व्यास में लगभग 42 वकमी. (वत्रज्या 21
वकमी.) का अंतर है।
शक्र
ु (Venus): • पृथ्िी, शुक्र एिं मंगल ग्रह के मध्य वस्थत है।
• यह सूयव से वनकटिती दसू रा ग्रह है। • पृथ्िी अपने अक्ष पर 23½° झुकी हुई है।
• यह पृथ्िी के सिाववधक वनकट ग्रह (पृथ्िी से इसी झुकाि के कारण पृथ्िी पर मौसम
लगभग 4 करोड़ वकमी. दरू वस्थत) है। पररितवन होता है।
• रव्यमान एिं आकार में पृथ्िी के समान होने • पृथ्िी अपने अक्ष पर एक चक्कर लगाने में
के कारण शुक्र को 'पृथ्िी की जुड़िा बहन 23 घंटे 56 वमनट एिं 4.09 सेकंड का समय
ग्रह' कहा जाता है। लेती है।
• शुक्र, सौरमंडल का सिाववधक चमकीला ग्रह • पृथ्िी का आकार पृथव्याकार (Geoid) हैं।
है। शुक्र, सौरमंडल का सिाववधक गमव ग्रह भी पृथ्िी दोनों ध्रिु ों पर चपटी है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• पृथ्िी की भूमध्य रे खीय वत्रज्या ध्रुिीय • आयरन ऑक्साइड की उपवस्थवत के कारण
वत्रज्या से लगभग 21 वकमी.अवधक है। इसकी सतह का रंग लाल वदखाई देता है।
• पृथ्िी सूयव के चारों ओर लगभग 29.8 इसवलए इसे लाल ग्रह भी कहते हैं।
वकमी. प्रवत सेकण्ड की दर से चक्कर लगाती • मंगल ग्रह पर पृथ्िी के समान ऋतु पररितवन
है। होता है। मंगल सूयव की पररक्रमा 686.98
• पृथ्िी पर उपवस्थत पाररवस्थवतकी के कारण वदन में पूरी करता है।
इसे हरा ग्रह कहा जाता है एिं जल की • मंगल ग्रह के िायुमंडल में काबवन डाई
उपवस्थवत के कारण इसे नीला ग्रह भी कहा ऑक्साइड, नाइट्रोजन एिं ऑगवन गैस
जाता है। सूयव का प्रकाश पृथ्िी तक पहुचाँ ने विद्यमान हैं।
में 8 वमनट 16 सेकेंड का समय लेता है। • फोबोस एिं डीमोस मंगल ग्रह के दो
• पृथ्िी के 71 प्रवतशत भाग पर जल एिं 29 प्राकृ वतक उपग्रह हैं।
प्रवतशत भाग पर स्थल पाया जाता है। • मंगल ग्रह का सबसे ऊाँचा पिवत वनक्स
• पृथ्िी की अनुमावनत आयु 4.6 वबवलयन ओलंवपया है। यह एिरे स्ट से भी तीन गुना
िषव है। पृथ्िी का पररक्रमण समय 365 वदन ऊाँचा है।
5 घंटे 48 वम. 46 सेकंड है एिं पररभ्रमण • सौरमंडल का सबसे बडा ज्िालामुखी
समय 23 घंटे 56 वम. 4 सेकंड है। ‘ओलंपस मेसी’ मंगल ग्रह पर वस्थत है।
• पृथ्िी का एकमात्र प्राकृ वतक उपग्रह चन्द्रमा
है। पृथ्िी की चंरमा से दरू ी 3,84,000
बहृ स्पवत (Jupiter):
वकमी. है। • यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका
• सूयव के पश्चात पृथ्िी के सबसे वनकट का तारा व्यास 1,42,800 वकमी. है।
प्रॉवक्समा सेंचरु ी है। पृथ्िी का अक्ष इसकी • बृहस्पवत की सूयव से औसत दरू ी 77.83
कक्षा के साथ 66½° का कोण बनाता है। करोड़ वकमी. है।
मगं ल (Mars): • बृहस्पवत अपने अक्ष पर सिाववधक तेज गवत
से घूणवन करता है। यह अपने अक्ष पर 9 घंटे
• यह सूयव से दरू ी के क्रम में चौथा एिं आकार 55 वमनट में एक चक्कर पूरा कर लेता है।
में सातिां ग्रह है।
• बृहस्पवत की पररक्रमण (Revolution)
• मंगल अपने अक्ष पर 25°12' झुका हुआ है। अिवध 11.86 िषव है।
इस कारण यहााँ पृथ्िी के समान वदन रात की
• बृहस्पवत का पलायन िेग सौरमंडल में
अिवध होती है।
सिाववधक है।
• मंगल अपने अक्ष पर 24 घंटे 37 वमनट और
• इसका औसत घनत्ि 1.33 ग्राम/घन सेमी.
23 सेकंड में एक घूणवन चक्र पूरा करता है।
है।

11
विश्व भूगोल राज होल्कर
• बृहस्पवत का िायुमंडल हककी गैसों जैसे • शवन के कुल 82 प्राकृ वतक उपग्रह हैं।
हाइड्रोजन, हीवलयम, वमथेन एिं अमोवनया ितवमान में सिाववधक उपग्रह शवन के पास हैं।
आवद से वनवमवत है। • शवन का सबसे बड़ा उपग्रह 'टाइटन' है।
• बृहस्पवत सूयव से प्राप्त ऊजाव का 2.5 गुना सौरमंडल का यही मात्र उपग्रह है वजसके
ऊजाव इन्द्रारे ड तरंगों के रूप में अंतररक्ष में पास अपना स्थायी िायुमंडल है।
विसवजवत करता है। • शवन के अन्द्य प्रमुख उपग्रह- ररया, एटलस,
• ितवमान में बृहस्पवत के 79 ज्ञात प्राकृ वतक फोइबे, हेलन, टेथीस, वममांस, वडओन आवद
उपग्रह हैं। इनमें गैवनवमड उपग्रह सौरमंडल हैं।
का सबसे बड़ा उपग्रह है।
अरुण (Uranus):
• बृहस्पवत तारा और ग्रह दोनों के गुणों से युक्त
ग्रह है। बृहस्पवत के पास स्ियं की रे वडयो • यूरेनस की खोज 1781 ई. में सर विवलयम
ऊजाव है। इसे तारा सदृश (Near Star) ग्रह हशेल ने की थी।
कहा जाता है। • यह आकार में तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
• उपग्रहों सवहत बृहस्पवत एक लघु सौर तंत्र के • यह सूयव की एक पररक्रमा 84 िषव में पूरा
रूप में है। करता है।
शवन (Saturn): • इसका गुरुत्िाकषवण लगभग पृथ्िी के समान
है।
• बृहस्पवत के बाद यह आकार में दसू रा सबसे
• यूरेनस का अक्षीय झुकाि 82°5’ है। अवधक
बड़ा ग्रह है। इसके चारों ओर िलय पायी
अक्षीय झुकाि होने के कारण इसे लेटा हुआ
जाती हैं। इन िलयों की संख्या 7 है।
ग्रह भी कहते हैं।
• सौरमंडल में सबसे कम घनत्ि शवन का है।
• यह शुक्र ग्रह की भााँवत ग्रहों की सामान्द्य
शवन का पलायन िेग 36 वकमी./ सेकंड है।
वदशा के विपरीत पूिव से पवश्चम वदशा में सूयव
• शवन के िायुमंडल में अमोवनया एिं वमथेन के चारों ओर पररभ्रमण करता है। शवन ग्रह
के बादल पाए जाते हैं। की भांवत यूरेनस के भी चारों ओर िलय हैं।
• शवन का घूणवन अक्ष 26°44' झुका हुआ है। [10 िलय]
• शवन को अपने अक्ष पर एक बार घूणवन पूरा • यूरेनस के उपग्रह पूिव से पवश्चम वदशा में
करने में 10 घंटा 34 वमनट का समय लगता यूरेनस के चक्कर लगाते हैं। यूरेनस अपने
है। जबवक सूयव की पररक्रमा पूरी करने में अक्ष पर 17 घंटे 14 वमनट में घूणवन पूरा
29.5 िषव लगते हैं। करता है।
• शवन को आकाशगंगा सदृश ग्रह (Galaxy • यूरेनस के कुल ज्ञात प्राकृ वतक उपग्रहों की
Like Planet) कहा जाता है। संख्या 27 है। यूरेनस का सबसे बड़ा उपग्रह
टाइटेवनया है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• दरू बीन से देखने पर यूरेनस एक हरी वडस्क हैं। इसके िायुमंडल में अमोवनया,
जैसा वदखता है। हाइड्रोजन, हीवलयम आवद गैसें भी पायी
जाती हैं।
• यूरेनस पर सूयोदय पवश्चम में तथा सूयावस्त
पूिव में होता है। सूयव से दरू होने के कारण यह • अरुण (Uranus) एिं िरुण (Neptune)
अत्यवधक ठण्डा है। को जुड़िा ग्रह भी कहा जाता है।
• िरुण की सूयव से औसत दरू ी 449.66 करोड़
िरुण (Neptune): वकमी. है। िरुण अपने अक्ष पर 28°48'
• नेप्च्यून ग्रह की खोज िषव 1846 ई. में जॉन झुका हुआ है।
गाले, लैिेररयर एिं एडमस ने की थी। • िरुण के ज्ञात प्राकृ वतक उपग्रहों की संख्या
• यह सूयव से सिाववधक दरू ी पर वस्थत है 14 है। इनमें वट्रटोन एिं मेरीड प्रमुख हैं।
इसवलए यह सौरमंडल का सबसे ठण्डा ग्रह • ट्राइटोन / वट्रटोन िरुण का सबसे बडा उपग्रह
माना जाता है। है।
• यह सूयव की एक पररक्रमा 164.79 िषों में • अरुण एिं िरुण ग्रहों को ननन आाँखों से नहीं
पूरी करता है। जबवक अपने अक्ष पर एक देखा जा सकता के िल 5 ग्रह- बुध, शुक्र,
पररक्रमा 17 घंटे 50 वमनट में पूरी करता है। मंगल, बृहस्पवत एिं शवन को ननन आाँखों से
• िरुण का िायुमंडल सघन है। इसके देखा जा सकता है।
िायुमंडल में वमथेन गैस के बादल पाये जाते • सौरमंडल में सिाववधक घनत्ि पृथ्िी का है।

अन्य महत्िपूणा तथ्य


• सयू व से वनकटतम ग्रह – बि
ु (Mercury) • भोर (सबु ह) एिं सााँझ (शाम) का तारा –
• सयू व से सिाववधक दरू वस्थत ग्रह – िरुण शक्र

(Neptune) • पृथ्िी की जड़ु िा बहन – शक्र

• पृथ्िी से वनकटतम ग्रह – शक्र
ु (Venus) • सिाववधक तापातं र िाला ग्रह – बि

• सबसे बड़ा ग्रह – बृहस्पवत (Jupiter) • अपने अक्ष पर सिाववधक तीव्र गवत िाला ग्रह
• सबसे छोटा ग्रह – बुि – बृहस्पवत
• सिाववधक चमकीला ग्रह – शुक्र • न्द्यूनतम पररभ्रमण गवत िाला ग्रह – शुक्र
• सिाववधक घनत्ि िाला ग्रह – पृथ्िी • लाल ग्रह – मंगल (Mars)
(Earth) • हरा एिं नीला ग्रह – पृथ्िी
• सिाववधक गमव ग्रह – शुक्र • हरे रंग का वदखने िाला ग्रह – अरुण
• सिाववधक ठण्डा ग्रह – िरुण (Uranus)
• सिाववधक उपग्रहों िाला ग्रह – शवन • अरुण का जुड़िा ग्रह – िरुण

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• गैसों का गोला कहलाने िाला ग्रह – शवन • सिाववधक पलायन िेग िाला ग्रह –
(Saturn) बृहस्पवत
• सबसे कम घनत्ि िाला ग्रह – शवन • सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह – गैनीवमड
• सिाववधक कक्षीय गवत िाला ग्रह – बुि (बृहस्पवत ग्रह पर)
• आकाशगंगा सदृश ग्रह – शवन • सौरमंडल का सबसे ऊंचा पिवत –
ओलम्पस मीन्स (मंगल ग्रह पर)
• मास्टर ऑफ गॉड्स कहलाने िाला ग्रह –
बृहस्पवत • सौरमंडल की सबसे बड़ी घाटी – मेररनेररस
(मंगल ग्रह पर)
• तारा सदृश ग्रह – बृहस्पवत
• वजस ग्रह के पास अपनी ऊजाव है – बृहस्पवत
• लेटा हुआ ग्रह – अरुण
• वजन ग्रहों के उपग्रह नहीं हैं – बुि, शुक्र

प्लूरो की ितामान वस्िवत:


• इसकी खोज 1930 ई. में क्लाइड टॉमबैग ने की थी।
• 24 अगस्त, 2006 में प्राग (चेक गणराज्य) में हुए इटं रनेशनल एस्ट्रोनॉवमकल यवू नयन (IAU) के सममेलन
में िैज्ञावनकों ने इसके ग्रह होने का दजाव समाप्त कर वदया तथा इसे बौने ग्रह (Dwarf Planet) की श्रेणी में
रख कर इसको नया नाम 134340 वदया।
उपग्रह (Satellite): ये िे आकाशीय वपण्ड हैं, जो अपने-अपने ग्रहों की पररक्रमा करते हैं तथा अपने ग्रह के
साथ-साथ सयू व की भी पररक्रमा करते हैं। ग्रहों की भााँवत इनमें भी स्ियं का प्रकाश नहीं होता। उपग्रह भी सयू व के
प्रकाश से प्रकावशत होते हैं। उपग्रहों का भ्रमण पथ भी ग्रहों की तरह परिलयाकार (Parabolic) होता है।
चन्रमा (Moon):
• चन्द्रमा पृथ्िी का एकमात्र उपग्रह है। यह • चन्द्रमा का रव्यमान एिं घनत्ि पृथ्िी से कम
सौरमंडल का पााँचिा सबसे बड़ा उपग्रह है। है परन्द्तु चन्द्रमा की भू-पपवटी (crust) पृथ्िी
चन्द्रमा को जीिाश्म ग्रह (Fossil Planet) की अपेक्षा ठोस है। चन्द्रमा की क्रस्ट में
भी कहा जाता है। मुख्य रूप से ऑक्सीजन तथा वसवलके ट
• चन्द्रमा की उत्पवि पृथ्िी के वनमावण के समय पाया जाता है।
पृथ्िी के चारों ओर पररक्रमण • चन्द्रमा भूकंपीय दृवि से वनवष्क्रय है यहााँ
(Revolution) कर रहे कणों के वमलने से वििवतववनकी घटनाएं नहीं होती।
हुई। • चन्द्रमा का पलायन िेग पृथ्िी से कम है।
चन्द्रमा के िायुमंडल में भारी गैसों का

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विश्व भूगोल राज होल्कर
अभाि है। चन्द्रमा पर पृथ्िी जैसा िायुमंडल • चन्द्रमा की पृथ्िी से औसत दरू ी 3,84, 400
नहीं है। िामुमंडल के अभाि के कारण वकमी. है। चन्द्रमा का अक्षीय झुकाि 5° है।
चन्द्रमा पर मौसमी तत्ि जैसे बादल, िषाव
• चन्द्रमा का घनत्ि 3.34 ग्राम / घन सेमी. है।
तथा कुहासा आवद का अभाि है।
• चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्िी तक पहुचाँ ने में
• चन्द्रमा अपने अक्ष पर 29 वदन 12 घटं े तथा
1.34 सेकेण्ड का समय लगता है।
44 वमनट में एक पररभ्रमण (Rotation) परू ा
कर लेता है। यह अिवध चन्द्र मास (Lunar • चन्द्रमा का रव्यमान पृथ्िी के 1/ 81.3 भाग
Month) कहलाती है। 12 चन्द्रमासों की के बराबर है। चन्द्रमा का गुरुत्िाकषवण पृथ्िी
अिवध चन्द्र िषव (Lunar year) कहलाती के गुरुत्िाकषवण का 1/6 भाग है।
है। चन्द्र वदिस की अिवध 24 घटं े 52 वमनट • चन्द्रमा का पलायन िेग 2.38 वकमी /
की होती है। सेकेण्ड है। चन्द्रमा की पररक्रमण गवत 3700
• चन्द्रमा की घणू वन अिवध एिं पररक्रमण वकमी / घंटा है। नील आमवस्ट्रााँग चन्द्रमा पर
अिवध समान होती है। जब तक चन्द्रमा कदम रखने िाले पहले व्यवक्त हैं।
पृथ्िी की एक पररक्रमा पूणव करता है तब तक • चन्द्रमा पर 20 जुलाई, 1969 में अपोलो-
िह अपने अक्ष पर भी एक बार घमू लेता है। 11 अंतररक्ष यान से जाने िाले नील
यही कारण है जो हम चन्द्रमा का के िल 59 आमवस्ट्रााँग तथा उनके सावथयों ने वजस स्थान
प्रवतशत भाग ही देख पाते हैं। पर उतरा था, उसे ‘सी ऑफ़ ट्रेंवक्िवलटी
(शांत सागर)’ कहा जाता है।
क्षरु ग्रह (Asteroids): मगं ल और बृहस्पवत ग्रह के मध्य क्षेत्र में पाए जाने िाले खगोलीय वपण्ड क्षरु ग्रह
कहलाते हैं। ये सभी वपण्ड अन्द्य ग्रहों की तरह सूयव के चारों तरफ दीघवििृ ाकार कक्षा (Elliptical orbit) में पवश्चम
से पूिव वदशा में पररक्रमा करते हैं। सेरस (Ceres) क्षरु ग्रह सिाववधक चमकीला एिं विशाल है।
उल्कावपडं (Meteor): ये अतं ररक्ष में तेज गवत से घमू ते हुए सक्ष्ू म ब्रह्माडं ीय वपण्ड हैं। इनका वनमावण मख्ु यतः
ठोस पदाथव, धूल एिं गैसों से हुआ है। पृथ्िी के गुरुत्िाकषवण के कारण ये वपण्ड पृथ्िी की ओर गवतशील होते हैं तथा
पृथ्िी के िायुमंडलीय घषवण के कारण जलने एिं चमकने लगते हैं। इन्द्हें टूटता हुआ तारा (Shooting star) भी कहा
जाता है।
पुच्छल तारा या िूमके तु (Comets): पत्थर, धूल, बफव , वहमानी एिं गैस से वनवमवत वपण्ड हैं। मे सूयव से
दरू ठंडे एिं अंधेरे क्षेत्र में पाए जाते हैं। मे सौर तंत्र के स्थायी सदस्य होते हैं। नावभ (के न्द्र), कोमा एिं पूाँछ ये धूमके तु
के तीन भाग हैं। इसकी पूाँछ सदैि सूयव के विपरीत वदशा में रहती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
पथ्ृ िी की गवतयाँ
पृथ्िी की गवतयाँ: पृथ्िी की दो प्रकार की गवतयााँ हैं –
1. घूणान (Rotation) गवत [दैवनक गवत]: पृथ्िी का अपने अक्ष पर पवश्चम से पूिव वदशा में घूमना। इसे
पररभ्रमण भी कहते हैं।
2. पररक्रमण (Revolution): पृथ्िी का सूयव के चारों ओर घूमना। यह पृथ्िी की िावषवक गवत होती है। पृथ्िी
365 वदन एिं 6 घंटे में सूयव का एक चक्कर पूरा करती है।
उपसौर (Perihelion): जब पृथ्िी सूयव के सबसे नजदीक होती है।
अपसौर (Aphelion): जब पृथ्िी सूयव से अवधकतम दरू ी पर होती है।
पृथ्िी की गवतयों के प्रभाि
1. वदन एिं रात का छोटा ि बड़ा होना:
कारण:

• पृथ्िी का अपने अक्ष पर झुका होना


• पृथ्िी द्वारा सूयव की पररक्रमा करना (पररक्रमण गवत)
प्रभाि:

• विषुित रे खा से उिर एिं दवक्षण वदशा में जाने पर वदन एिं रात की अिवध में अंतर आता है।
• विषुित रे खा पर वदन एिं रात की अिवध समान रहती है।
• 21 माचव से 23 वसतंबर के मध्य उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होती हैं। [उ. ध्रिु पर 6 माह
वदन]
• 23 वसतंबर से 21 माचव के मध्य दवक्षणी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होती हैं। [द. ध्रिु पर 6 माह
वदन]
• उिरी ध्रिु एिं दवक्षणी ध्रिु पर 6 महीने तक वदन एिं 6 महीने तक रात रहती है।
2. ऋतु पररितान:
कारण:

• पृथ्िी का अपने अक्ष पर झुका होना।


• पृथ्िी का अपने अक्ष पर घूमना (पररभ्रमण गवत)
• पृथ्िी द्वारा सूयव की पररक्रमा करना (पररक्रमण गवत)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
ऋतु पररितान
पृथ्िी के अपने अक्ष पर झकु ाि एिं अपने अक्ष पर घणू वन करने तथा सयू व की पररक्रमा करने के कारण पृथ्िी की सयू व
के सापेक्ष वस्थवत बदलती रहती है। यही वस्थवतयााँ पृथ्िी पर ऋतु पररितवन का कारण बनती हैं। वस्थवतयां वनमनवलवखत
हैं –
ग्रीष्म अयनांत (Summer Solstice): [21 जून]
• इस समय सूयव की वकरणें ककव रे खा पर लंबित पड़ती हैं।
• 21 जून को उिरी गोलाद्व में वदन सबसे बड़ा एिं रात सबसे छोटी होती है।
• 21 जून को दवक्षणी गोलाद्व में वदन सबसे छोटा एिं रात सबसे बड़ी होती है।
• 21 जून के पश्चात् 23 वसतंबर तक सूयव विषुित रे खा की ओर उन्द्मुख होता है। वजससे उिरी गोलाद्व में वदन
की अिवध कम होने लगती है एिं रात की अिवध बढ़ने लगती है।
• 21 जून के बाद उिरी गोलाद्व में गमी कम होने लगती है।
शरद विर्िु (Autumn Equinox): [23 वसतबं र]
• 21 जून के बाद सूयव विषुित रे खा की ओर उन्द्मुख होता है एिं यह 23 वसतंबर को विषुित रे खा पर चमकता
है।
• 23 वसतंबर को सूयव की वकरणें विषुित रे खा पर सीधी पड़ती हैं।
• 23 वसतंबर को दोनों गोलाद्ों में वदन एिं रात की अिवध बराबर होती है।
• 23 वसतंबर के बाद, सूयव मकर रे खा की ओर उन्द्मुख हो जाता है।
शीत अयनातं (Winter Solstice): [22 वदसबं र]
• इस समय सूयव की वकरणें मकर रे खा पर लंबित पड़ती हैं।
• 22 वदसंबर को दवक्षणी गोलाद्व में वदन सबसे बड़ा एिं रात सबसे छोटी होती है।
• 22 वदसंबर को उिरी गोलाद्व में वदन सबसे छोटा एिं रात सबसे बड़ी होती है।
• 22 वदसंबर के बाद सूयव पुनः विषुित रे खा की ओर उन्द्मुख होता है। वजससे 21 माचव तक दवक्षण गोलाद्व
में वदन छोटे एिं रात बड़ी होने लगती हैं तथा उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रात छोटी होने लगती हैं।
• 22 वदसंबर के बाद दवक्षणी गोलाद्व में ग्रीष्म ऋतु की समावप्त हो जाती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
बसतं विर्िु (Spring Equinox): [21 माचा]
• 22 वदसंबर के बाद सूयव पुनः विषुित रे खा की ओर उन्द्मुख होता है एिं यह 21 माचव को विषुित रे खा पर
चमकता है।
• 21 माचव को सूयव की वकरणें विषुित रे खा पर सीधी पड़ती हैं।
• 21 माचव को दोनों गोलाद्ों में वदन एिं रात की अिवध बराबर होती है।
• 21 माचव एिं 23 वसतंबर को सूयव की वकरणें विषुित रे खा पर लमबित पड़ती है। इन दोनों वदन दोनों गोलाद्ों
में वदन एिं रात की अिवध बराबर होती है। इन दोनों वस्थवतयों में दोनों गोलाद्ों में ऋतु में समानता पायी
जाती है। इन दोनों वस्थवतयों को विषुि (Equinox) कहा जाता है।
• 21 माचव के बाद सूयव पुनः ककव रे खा की ओर उन्द्मुख हो जाता है।
• 21 माचव के बाद उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होने लगती है तथा दवक्षणी गोलाद्व में वदन छोटे
एिं रातें बड़ी होने लगती हैं।

ज्िार-भाटा (Tide)
सयू व एिं चन्द्रमा की आकषवण शवक्तयों के कारण सागरीय एिं महासागरीय जल के ऊपर उठने तथा वगरने को ज्िार-
भाटा कहा जाता है।
ज्िार भाटा की उत्पवि के कारण
• सूयव की आकषवण शवक्त
• चन्द्रमा की आकषवण शवक्त [ज्िारीय बल]
• पृथ्िी का अपके न्द्रीय बल (Rotation के कारण उत्पन्द्न)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
दैवनक ज्िार
प्रवतवदन एक स्थान पर एक ज्िार एिं एक भाटा को दैवनक ज्िार-भाटा कहते हैं।

• पृथ्िी पर प्रवतवदन प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्िार-भाटा आता है।


• पृथ्िी पर ज्िार प्रत्येक 12 घटं े पर आना चावहए वकन्द्तु यह 26 वमनट की देरी [12 घटं ा 26 वमनट बाद] से
आता है। इसका कारण चन्द्रमा का पृथ्िी के सापेक्ष गवतशील होना है।
ज्िार भाटे की ऊँ चाई में वभन्नता के कारण
• सागर की गहराई
• सागरीय तट की संरचना
• सागर का खुला या बंद होना
ज्िार-भाटे के प्रकार
1. उच्च / दीघा ज्िार (Spring Tide)
जब सूय,व पृथ्िी एिं चन्द्रमा एक सीधी रे खा में होते हैं तो इस वस्थवत में उनकी सवममवलत आकषवण शवक्त के
पररणामस्िरूप दीघव ज्िार की उत्पवि होती है।
सूयव, पृथ्िी एिं चन्द्रमा के एक सीध में होने की वस्थवत युवत- वियवु त (Syzygy) कहलाती है। यह वस्थवत
पूवणवमा एिं अमािस्या के वदन घवटत होती है।
यवु त (Conjunction): जब सूयव एिं पृथ्िी के बीच चन्द्रमा होता है। इस वस्थवत को युवत कहते हैं। यह
सूयवग्रहण की वस्थवत होती हैं। यह वस्थवत के िल अमािस्या के वदन ही बनती है।
इस वस्थवत में उच्च ज्िार आता है क्योंवक सूयव एिं चन्द्रमा की सवममवलत गुरुत्िाकषवण (ज्िारीय बल)
पृथ्िी पर लगता है।

वियवु त (Opposition): जब सयू व एिं चन्द्रमा के बीच पृथ्िी आ जाती है। यह वस्थवत वियुवत कहलाती
है। यह चन्द्रग्रहण की वस्थवत होती है तथा के िल पूवणवमा के वदन घवटत होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर

2. वनम्न ज्िार (Low Tide)


प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष तथा कृ ष्ण पक्ष की सप्तमी या अिमी के वदन सूयव, पृथ्िी एिं चन्द्रमा वमलकर समकोण
बनाते हैं। इस वस्थवत में सूयव एिं चन्द्रमा का ज्िारोत्पादक बल एक दसू रे के विपरीत कायव करते हैं। इस कारण वनमन
ज्िार की उत्पवि होती है।
वनमन या लघु ज्िार सामान्द्य ज्िार से 20% नीचा एिं दीघव या उच्च ज्िार सामान्द्य ज्िार से 20% ऊाँचा
होता है।

अन्य महत्िपूणा तथ्य:


• पृथ्िी के एक घूणवन की अिवध 23 घंटा, 56 वमनट एिं 4.09 सेकेण्ड है।
• पृथ्िी के घूणवन की गवत भूमध्य रे खा पर सिाववधक (0.46 वकमी. प्रवत सेकेण्ड) एिं ध्रिु ों पर शून्द्य होती है।
यह ध्रिु ों की ओर क्रमशः कम होती जाती है।
• पिनों एिं समुरी धाराओ ं में विक्षेपण, दैवनक ज्िार-भाटा की वस्थवत में पररितवन, ध्रिु ों का चपटाकार
स्िरूप, भूमध्य रे खा का उभार, उिरी चमु बकीय ध्रिु का गवतमान होना आवद पृथ्िी की घूणवन गवत के कारण
है।
• पृथ्िी की घूणवन गवत के कारण ही 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्िार एिं दो बार भाटा आता है।
दैवनक ज्िारों में 24 घंटे 52 वमनट का अंतर होता है।
• उप-भू (Perigee): जब पृथ्िी चन्द्रमा से सिाववधक वनकट होती है। इस वस्थवत में उच्च ज्िार आता है।
• अप- भू (Apogee): जब चंरमा पृथ्िी से अवधकतम दरू ी पर वस्थत होता है। इस वस्थवत में वनमन या लघु
ज्िार आता है।
• विश्व का सबसे ऊंचा ज्िार फंडी की खाड़ी (कनाडा) में एिं भारत का सबसे ऊंचा ज्िार ओखा तट
(गुजरात) में आता है।

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सूयाग्रहण एिं चन्रग्रहण
पवू णामा (Full Moon): पृथ्िी पर चन्द्रमा का समपणू व प्रकावशत भाग महीने में के िल एक बार ही वदखाई देता है।
यह पूवणवमा का वदन होता है।
अमािस्या (New Moon): पृथ्िी पर चन्द्रमा का समपूणव अप्रकावशत भाग महीने में के िल एक बार ही वदखाई
देता है। यह अमािस्या का वदन होता है।
चन्रग्रहण (Lunar Eclipse)
• जब पृथ्िी, सयू व और चन्द्रमा के बीच आ जाती है तो सयू व की रोशनी चन्द्रमा तक नहीं पहुचाँ पाती तथा
पृथ्िी की छाया के कारण चन्द्रमा पर अधं ेरा छा जाता है। यह वस्थवत चन्द्रग्रहण कहलाती है।
• इसे वियवु त की वस्थवत भी कहते हैं।
• चन्द्रग्रहण हमेशा पूवणवमा की रात को ही होता है।

सूयाग्रहण (Solar Eclipse)


• जब सूयव एिं पृथ्िी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो पृथ्िी पर प्रकाश न पड़कर चन्द्रमा की परछाई पड़ती
है।
• इसे युवत की वस्थवत भी कहते हैं।
• सूयव ग्रहण हमेशा अमािस्या को ही होता है।
• नोट: एक िषव में अवधकतम 7 बार सूयवग्रहण एिं चन्द्रग्रहण की वस्थवत उत्पन्द्न होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
प्रत्येक पवू णामा को चन्रग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को सयू ाग्रहण न लगने का कारण:
प्रत्येक पूवणवमा को चन्द्रग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को सूयवग्रहण लगना चावहए वकन्द्तु ऐसा नहीं होता क्योंवक चन्द्रमा
अपने अक्ष पर 5° झुका हुआ है।
जब चन्द्रमा और पृथ्िी एक ही वबन्द्दु पर पररक्रमण पथ में पहुचं ते हैं उस समय चन्द्रमा अपने अक्षीय झुकाि
के कारण पृथ्िी से थोड़ा आगे वनकल जाता है। इसी कारण प्रत्येक पूवणवमा को चन्द्र ग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को
सूयव ग्रहण लगने की वस्थवत नहीं बन पाती।
पणू व सूयव ग्रहण कभी-कभी देखे जाते हैं वकन्द्तु सूयव, चन्द्रमा एिं पृथ्िी के आकार में अंतर होने के कारण पूणव
चन्द्र ग्रहण प्राय: नहीं देखे जाते।

अन्य तथ्यः
• वकसी भी पररवस्थवत में पणू व सयू व ग्रहण 8 वमनट से अवधक नहीं हो सकता।
• पूणव सूयवग्रहण के समय सूयव के चारों ओर हीरक िलय (Diamond Ring) वदखायी देती हैं।
• पूणव सूयवग्रहण के समय भारी मात्रा में पराबैंगनी वकरणें (Ultra Violet) उत्सवजवत होती हैं। इसवलए सूयवग्रहण
को नंगी आाँखों से नहीं देखा जाता।
• सूयवग्रहण की वस्थवत में युवत वस्थवत बनती है और चन्द्रग्रहण की वस्थवत में वियुवत वस्थवत बनती है।

अक्षांश एिं देशांतर


अक्षाश
ं (Latitudes)
• भपू ष्ठृ पर विषुित रे खा या भूमध्य रे खा के उिर एिं दवक्षण में एक ‘यामयोिर (Meridian) पर वकसी भी
वबन्द्दु को पृथ्िी के के न्द्र से मापी गयी कोणीय दरू ी (Angular Distance) को अक्षांश कहते हैं’।
• अक्षांश का मापन अंश, वमनट एिं सेकेण्ड में वकया जाता है।
• भूमध्य रे खा (Equator) को 0° अक्षांश द्वारा प्रदवशवत वकया जाता है। यह पृथ्िी को दो बराबर भागों में
बांटती है।
• उिरी एिं दवक्षणी गोलाद्ों में 0° से 90° तक के अक्षांश िृि पाए जाते हैं।
• कुल 181 होते हैं। [1° के अतं राल पर अक्षाश
ं रे खाएं- 179]

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• 0° अक्षांश या विषुित रे खा सभी अक्षांशों में बड़ी होती है। इसकी कुल लंबाई 40,075 वकमी. है। इसे
िृहद िृि भी कहते हैं। विषुित रे खा के अवतररक्त कोई भी अक्षांश िृहद िृि नहीं है क्योंवक िे विषुित रे खा
की अपेक्षा छोटे हैं।
• विषुित रे खा के उिर में वस्थत अक्षांशों को उिरी अक्षांश एिं दवक्षण में वस्थत अक्षांशों को दवक्षणी अक्षांश
कहते हैं।
• विषिु त रे खा पृथ्िी को दो बराबर भागों में विभावजत करती है। इसके उिर में वस्थत भाग उिरी गोलाद्व एिं
दवक्षण में वस्थत भाग दवक्षणी गोलाद्व कहलाता है।
• भमू ध्य रे खीय व्यास की लबं ाई 12755.6 वकमी. है जबवक ध्रिु ीय व्यास की लबं ाई 12712 वकमी. है। दोनों
व्यास में लगभग 43 वकमी. का अतं र हैं।
• पृथ्िी की भमू ध्य रे खीय पररवध लगभग 40,075 वकमी. है जबवक ध्रिु ीय पररवध 40,008 वकमी. है।
• 1° अक्षाश
ं की पृथ्िी के धरातल पर दरू ी 111.13 वकमी. है।
• एक सेकेण्ड अक्षाश
ं की कोणीय दरू ी 31 मीटर होती है।
• पृथ्िी पर एक वमनट अक्षांश की दरू ी 1.86 वकमी. होती है।
• वकसी अक्षांश का सहअक्षांश ज्ञात करने के वलए वदए गए अक्षांश को 90 में से घटा वदया जाता है। सह
अक्षांश को प्रदवशवत करने के वलए उिरी या दवक्षणी अक्षांश नहीं वलखा जाता।
• नलोब पर समान अक्षांशीय कोण िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खाओ ं को अक्षांश रे खाएं कहा जाता है।
नलोब पर 1° अक्षांश के अंतराल पर कुल अक्षांश रे खाओ ं की संख्या 179 (भूमध्य रे खा सवहत) हैं। िह
इसवलए क्योंवक 90° उिरी एिं 90° दवक्षणी अक्षांश नलोब पर रे खा न होकर मात्र वबन्द्दु है। अतः 90° उिरी
अक्षांश एिं 90° दवक्षणी अक्षांश के िल अक्षांशों में शावमल वकया जाता है अक्षांश रे खाओ ं में नहीं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
महत्िपूणा अक्षांश:
• भमू ध्य रे खा के उिर तथा दवक्षण जाने पर अक्षाश
ं ों का कोणीय मान बढ़ता जाता है वकन्द्तु उनकी लबं ाई
घटती जाती है।
• 60° उिरी तथा दवक्षणी अक्षाश
ं ों की लबं ाई विषिु त रे खा की लगभग आधी है।
• 80° उिरी तथा दवक्षणी अक्षांश रे खाओ ं की लंबाई विषित रे खा की लगभग 1/6 है।
1. विर्ुित रेखा (Equator)
• पृथ्िी के भूमध्य रे खीय उभार के कारण ध्रिु तारे का आपतन कोण भूमध्य रे खा या विषुित रे खा पर 0° है।
इसे 0° अक्षांश कहा जाता है।
• 0° अक्षांश पर खींची गयी रे खा को विषुित रे खा या भूमध्य रे खा कहते हैं।
• अक्षाश
ं रे खाओ ं में विषिु त रे खा सबसे बड़ी है इसवलए इसे िृहद िृि कहा जाता है। इसकी कुल लंबाई
40,075 वकमी. है।
भमू ध्य रे खा पर अिवस्थत देश: [कुल-13]

• एवशया के देश: 1. मालदीि 2. इडं ोनेवशया 3. वकररबाती


• द० अमेररका के देश: 1. इक्िाडोर 2. कोलवं बया 3. ब्राजील
• अरीका के देश: 1. साओ टॉम और वप्रवं सप 2. सोमावलया 3. के न्द्या 4. यगु ाडं ा 5. गैबोन 6. कागं ो
गणराज्य 7. लोकतावं त्रक गणराज्य कागं ो
2. कका रेखा (Tropic of Cancer)
• नलोब पर उिरी गोलाद्व में 0 से 23½° की कोणीय दरू ी पर खींचा गया काकपवनक िृि ककव िृि कहलाता
है।
• 23½° उिरी अक्षांश को ककव रे खा कहते हैं।
ककव रे खा पर अिवस्थत देश: [कुल 17 देश]

• उिरी अमेररका के देश: 1. मैवक्सको 2. बहामास


• अरीका के देश: 1. वमस्त्र 2. लीवबया 3. नाइजर 4. अकजीररया 5. माली 6. मॉरीतावनया 7. प. सहारा
• एवशया के देश: 1. ताइिान 2. चीन 3. मयामं ार 4. बानं लादेश 5. भारत 6. ओमान 7. सयं क्त
ु अरब
अमीरात 8. सऊदी अरब

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विश्व भूगोल राज होल्कर
3. मकर रेखा (Tropic of Capricorn)
• नलोब पर दवक्षणी गोलाद्व में 0° अक्षांश से 23½° की कोंणीय दरू ी पर खींचा गया काकपवनक िृि मकर
िृि कहलाता है।
• 23½° दवक्षणी अक्षांश को मकर रे खा कहते हैं।
मकर रे खा पर अिवस्थत देश:

• द. अमेररका के देश: 1. अजेंटीना 2. ब्राजील 3. वचली 4. परानिे


• अरीका के देश: 1. नामीवबया 2. बोत्सिाना 3. द. अरीका 4. मोजावमबक 5. मेडागास्कर
• ऑस्ट्रेवलया: 1. ऑस्ट्रेवलया 2. टोंगा 3. रें च पॉलीनेवशया (रांस)
4. आका वटक िि
ृ (Tropic of Arctic): 66½° उिरी अक्षाशं को आकव वटक रे खा कहा जाता है।
आकव वटक रे खा पर अिवस्थत देश: 1. कनाडा 2. वफनलैंड 3. ग्रीनलैंड 4. रूस 5. नॉिे 6. स्िीडन 7.
अलास्का (USA)
5. अंटाका वटक िृि (Tropic of Antarctica): 66½° दवक्षणी अक्षांश को अंटाकव वटक िृि कहते हैं।
अंटाकव वटक िृि को प्रकाश िृि (Light circle) भी कहा जाता है।

देशांतर (Longitude)
• देशांतर, नलोब पर वनवमवत होने िाले ऐसे काकपवनक अद्विृि हैं, जो उिर से दवक्षण वदशा की ओर उिरी
ध्रिु एिं दवक्षणी ध्रुि को जोड़ते हैं।
• देशांतर सदैि अक्षांशों के लमबित वनवमवत होते हैं।
• कुल देशांतरों की संख्या 360 है। देशांतर रे खाओ ं के बीच की दरू ी ध्रिु ों पर 0 होती है।
• देशांतर रे खाओ ं की लंबाई बराबर होती है।
• नलोब पर उिरी ध्रिु तथा दवक्षणी ध्रिु को वमलाने िाली रे खा देशांतर रे खा कहलाती है।
• 0° देशांतर ग्रीनविच नामक स्थान से होकर गुजरता है। इसे मानक देशांतर या प्रधान यामयोिर (मध्याह्न
रे खा) कहते हैं। इसे ग्रीनविच मीन टाइम रे खा भी कहते हैं। समय का वनधावरण इसी को आभार मानकर वकया
जाता है।
• 180° देशांतर रे खा तथा 0° देशांतर रे खा न पूिी होगी न पवश्चमी ।
• 180° देशांतर रे खा तथा 0° देशांतर रे खा के सहारे नलोब को दो भागों में बांट वदया जाता है। इसका पूिी
भाग पूिी गोलाद्व तथा पवश्चमी भाग पवश्चमी गोलाद्व कहा जाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• 1’ वमनट के अतं राल पर नलोब पर खींची गयी देशांतर रे खाओ ं की कुल संख्या 360 होती है। [180°
देशांतर दो बार वगना जाता है। 0° देशांतर को रे खा नहीं माना जाता]
• 1 वमनट के अतं राल पर खींची गयी देशातं र रे खाओ ं की कुल सख्ं या 21600 होगी।
• 1 सेकेण्ड के अतं राल पर खींची गयी देशातं र रे खाओ ं की कुल सख्ं या 12,96,000 होगी।
• भमू ध्य रे खा पर 1° अतं राल पर दो देशातं र रे खाओ ं के बीच की दरू ी 111.32 वकमी. होगी।
• दो देशातं रों के मध्य सिाववधक दरू ी भमू ध्य रे खा पर होती है। ध्रिु ों की ओर जाने पर देशातं र रे खाओ ं के बीच
की दरू ी घटती जाती है और ध्रिु ों पर ये रे खाएं आपस में वमल जाती हैं।
• दो देशातं रों के मध्य का क्षेत्र गोर (GORE) कहलाता है।
• 180° पूिी देशांतर एिं 180° पवश्चमी देशांतर एक ही रे खा है।

अंतरााष्ट्रीय वतवि रेखा


• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा का वनधावरण िषव 1884 में िावशंगटन डी.सी. (USA) में आयोवजत वकए गए एक
अंतरावष्ट्रीय सममेलन में वकया गया। इस सममेलन में 180° देशांतर के सहारे गुजरने िाली एक काकपवनक
रे खा को अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा घोवषत वकया गया।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा पर समय को 24 घंटों में समायोवजत वकया गया है। इसमें 15° देशांतर पर 1 घंटे का
समय कवटबंध वनधावररत वकया गया है।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा के पूिव एिं पवश्चम में एक वदन का अंतर पाया जाता है। जब कोई जलयान पवश्चम
वदशा में यात्रा करता है तो एक वदन जोड़ वदया जाता है। िहीं जब कोई जलयान पूिव वदशा में यात्रा करता है
तो एक वदन घटा वदया जाता है।
• एक ही साथ वकसी एक समय पर पूरे नलोब पर तीन वदन होते हैं। ऐसा अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा के सीधा न
होकर टेढ़ी मेढ़ी होने के कारण होता है।

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• 180° देशांतर रे खा (अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा) तीन बार विचवलत होती है। यह रे खा कुल 8 स्थानों पर
विचवलत हुई है।
o अल्युवशयन िीप: 169° पूिी देशांतर से खींची गयी
o रूस का भूखंड: 169° पवश्चमी देशांतर से खींची गयी
o वफजी, टोंगा एिं चैिम िीप: प्रशातं महासागर में मोडी गयी।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा आकव वटक सागर, चक्ु ची सागर, बेररंग जल सवं ध एिं प्रशातं महासागर से होकर
गजु रती हैं।
• बेररंग जलसवं ध अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा के समानातं र वस्थत है।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा अण्टाकव वटका महाद्वीप पर वस्थत दवक्षणी ध्रिु पर रॉस सागर, रॉस बफव सेकफ एिं
क्िीन मॉड पिवत स्थल से होकर गजु रती है।

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समय का वनिाारण
• पृथ्िी पर समय का वनधावरण पृथ्िी के घूणवन तथा पररक्रमण के आधार पर वकया जाता है। पृथ्िी एक घूणवन
पूरा करने में लगभग 24 घंटे का समय लेती है। इसका तात्पयव है वक पृथ्िी 24 घंटे में 360° का घूणवन पूरा
करती है। इसवलए प्रत्येक 15° देशांतर की दरू ी घूणवन करने में 1 घंटा तथा 1° देशांतर की दरू ी पूरा करने के
वलए 4 वमनट का समय लेती है।
• पृथ्िी को एक-एक घंटे के 24 टाइम जोन में बााँटा गया है।
• प्रत्येक टाइम जोन 15° के बराबर है।
• 0° देशांतर को मध्याह्न देशांतर (Noon Meridian) कहा जाता है एिं 180° देशांतर को अद्व रावत्र देशांतर
(Mid Night Meridian) कहा जाता है। 180° देशांतर के समय को 0 घंटे (Zero Hour) कहा जाता
है।
• पृथ्िी पर ध्रुिों को समय विहीन स्थान माना जाता है।

ग्रीनविच मीन टाइम (GMT)


• 22 अक्टूबर, 1884 को िावशंगटन डी.सी. (USA) में आयोवजत वकये गए एक अंतरावष्ट्रीय सगं ोष्ठी में
ग्रीनविच नामक स्थान से गुजरने िाली 0° देशांतर रे खा को प्रधान मध्याह्न रे खा माना गया तथा इसे ग्रीनविच
मीन टाइम (GMT) का नाम वदया गया ।
• समय का वनधावरण इसी ग्रीनविच मीन टाइम (0° देशांतर रे खा) को आधार मान कर वकया जाता है।
• 0° देशांतर पर हुए समय को ग्रीन विच मीन टाइम / ब्रह्माण्ड समय (Universals Time) / जूलू समय के
नाम से जाना जाता है।
अंतरााष्ट्रीय मानक समय रेखा (IST) मा 0° देशांतर रेखा वनम्नवलवखत देशों से होकर गुजरती है –
1. यूनाइटेड वकंगडम 2. रांस 3. स्पेन 4. अकजीररया 5. माली 6. बुवकव ना फासो 7. टोंगा 8. घाना 9.
अण्टाकव वटका
GMT को मानक समय के रूप में उपयोग करने िाले देश:
वब्रटेन लाइबेररया बुवकव ना फासो आइसलैंड पुतवगाल
वसएरा वलओन कनारी द्वीप (स्पेन) आयरलैंड टोंगा सेनेगल
घाना मॉररतावनया माली वगनी गावमबया
आवश्वनी कोस्ट असेंसन द्वीप (वब्रटेन)

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मानक समय (Standard Time)
• मानक समय वकसी देश के मध्य से गजु रने िाली यामयोिर का माध्य होता है। यह स्थानीय समय की
असवु िधा के कारण सपं णू व देश के वलए लागू माना जाता है।
• प्रत्येक देश का मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से आधे घटं े के गणु क के अतं र पर वनधावररत
वकया जाता है।
• भारत में 82½° पिू ी देशातं र को मानक समय के वलए देशातं र माना गया है। यह देशातं र भारत के लगभग
मध्य से गुजरता है। भारत की मानक समय रे खा (82½° पूिी देशांतर) प्रयागराज के वनकट नैनी से गुजरती
है। भारत की मानक समय रे खा (IST) [82½° पिू ी देशातं र] का समय ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से
5.30 घटं े आगे होता है।
• सयं क्त
ु राज्य अमेररका में 6 टाइम कनाडा में 6 टाइम जोन, चीन में 2 टाइम जोन है।

स्िानीय समय (Local Time)


• स्थानीय समय से तात्पयव वकसी स्थान पर मध्याह्न सूयव की सहायता से वनवश्चत वकए गए समय से होता है।
• प्रत्येक स्थान का देशातं र अलग-अलग होता है इसवलए प्रत्येक स्थान का स्थानीय समय भी अलग अलग
होता है। वकन्द्तु एक ही देशातं र रे खा पर वस्थत स्थानों का स्थानीय समय एक ही होता है।
• वकसी भी देशातं र से जब बायीं ओर जाते हैं तो प्रत्येक 1° देशातं र पर समय में 4 वमनट की कमी आती है
जबवक दायी ओर जाने पर 4 वमनट की िृवद् होती है।
• भारत के सिाववधक पिू व (वकविथ,ु अरुणाचल प्रदेश) एिं सिाववधक पवश्चम (गहु ारमोती, गजु रात) में वस्थत
स्थानों के स्थानीय समय में लगभग 2 घंटे का अंतर वमलता है।

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पृथ्िी की उत्पवि
पृथ्िी एिं अन्द्य ग्रहों की उत्पवि के संबंध में दो प्रकार के िैज्ञावनक मत प्रचवलत हैं। जो वनमनवलवखत हैं –

पृथ्िी की उत्पवि से
सबं ंवधत संककपनाएाँ

अद्वैतिादी द्वैतिादी
संककपना सकं कपना

काटं की लाप्लास की चैमबरवलन जेमस जींस की रसेल की ऑटोवश्मड की


िायव्य रावश वनहाररका से और मोकटन ज्िारीय द्वैतारकिाद अंतरतारक धल

पररककपना संबंवधत की ग्रहाणु पररककपना सक ं कपना पररककपना
पररककपना पररककपना

1. अिैतिारी संकल्पना (Monistic Concept): इस संककपना को Parental Hypothesis भी कहा


जाता है। महत्िपूणव अद्वैतिादी संककपनाएं वनमनवलवखत हैं –
A. कांट की िायव्य रावश पररकल्पना (Kant's Gaseous Hypothesis):

• इसका प्रवतपादन सन् 1755 ई. में काण्ट द्वारा वकया गया। यह न्द्यूटन के गुरुत्िाकषवण के वनयमों पर आधाररत
है।
• इसके अनुसार, वकसी वनहाररका पर लगने िाले के न्द्रापसाररत बल द्वारा उस तप्त एिं गवतशील वनहाररका
से कई गोल छकले अलग हुए। इन छकलों के शीतलन से सौरमंडल के विवभन्द्न ग्रहों का वनमावण हुआ। पृथ्िी
का वनमावण भी इन्द्ही छकलों द्वारा हुआ।
B. लाप्लास की वनहाररका पररकल्पना:

• लाप्लास ने 1796 ई. में काण्ट के वसद्ांत को संशोवधत वकया।


• इसके अनसु ार, एक विशाल तप्त वनहाररका से पहले एक ही छकला बाहर वनकला तथा बाद में छकलों (9
छकलों) में विभावजत हो गया वजससे सौरमडं ल के विवभन्द्न ग्रहों का वनमावण हुआ एिं पृथ्िी का वनमावण
हुआ।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
2. िैतिादी संकल्पना (Dualistic Concept):
A. चैम्बरवलन ि मोल्टेन की ग्रहाणु पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1905 में चैमबरवलन और मोकटन ने वकया था।


• इसके अनुसार, ग्रहों का वनमावण तप्त गैसीय वनहाररका से न होकर एक ठोस वपण्ड से हुआ है।
• इस पररककपना के अनसु ार, प्रारंभ में ब्रह्माडं में दो विशाल तारे थे वजनमें एक सयू व था। दसू रा तारा भ्रमणशील
था। जब यह भ्रमणशील तारा सयू व के पास पहुचाँ ा तो इस तारे की आकषवण शवक्त के कारण सयू व के धरातल
से असख्ं य कण अलग हो गए। बाद में, इन्द्हीं कणों के आपस में वमलने से ग्रहों एिं पृथ्िी का वनमावण हुआ।
B. जेम्स जींस की ज्िारीय पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1919 में जेमस जींस ने वकया। बाद में हेराकड जेफरीज ने इसमें सश
ं ोधन वकया।
• इसके अनसु ार, सौरमडं ल का वनमावण सयू व एिं एक अन्द्य तारे के सयं ोग से हुआ है।
• इस पररककपना के अनसु ार, दसू रे तारे के सयू व के वनकट आने से सयू व का कुछ भाग ज्िारीय उद्भेदन के कारण
वफलामेंट के रूप में वखचं गया तथा बाद में टूट कर सयू व के चक्कर लगाने लगा। यही वफलामेंट सौरमडं ल
के ग्रहों की उत्पवि का कारण बना।
C. ऑटोवममड की अतं रतारक िल
ू पररकल्पना:
• इसका प्रवतपादन िषव 1943 ई. में ऑटोवश्मड ने वकया।
• इस पररककपना के अनसु ार, ग्रहों की उत्पवि गैस एिं धल ू कणों से हुई है।
• इसके अनसु ार, जब सयू व आकाशगगं ा के करीब से गजु र रहा था तो उसने अपनी आकषवण शवक्त द्वारा कुछ
गैस के बादलों एिं धूलकणों को अपनी ओर आकवषवत कर वलया। ये गैसीय बादल एिं धूलकण सामूवहक
रूप से सयू व की पररक्रमा करने लगे। बाद में इन्द्हीं धूलकणों के सगं वठत एिं घनीभतू होने से पृथ्िी एिं अन्द्य
ग्रहों की उत्पवि हुई।
D. अवभनि तारा पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1939 ई. में रे ड होयल एिं वलवटलटन ने वकया।


• इन्द्होने बताया वक ग्रहों की उत्पवि में दो नहीं बवकक तीन तारों का योगदान है। वजनमें एक सूयव, दसू रा सयू व
का साथी तारा एिं तीसरा तारा इनके पास आने िाला तारा है।
• इस पररककपना के अनुसार, ग्रहों का वनमावण सूयव से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
3. आिुवनक वसद्ांत:
A. वबग बैंग (महाविस्फोट) वसद्ांत:

• इस वसद्ांत का प्रवतपादन िषव 1927 ई. में जॉजव लैमेंतेयर ने वकया। िषव 1967 ई. में रॉबटव िेगनर ने इस
वसद्ांत की व्याख्या प्रस्तुत की।
• इस वसद्ांत के अनुसार, ब्रह्मांड की उत्पवि आज से लगभग 15 वबवलयन िषव पूिव घने पदाथों िाले विशाल
अवननवपण्ड के आकवस्मक जोरदार विस्फोट से हुई है।
B. स्फीवत वसद्ांत:

• इस वसद्ांत का प्रवतपादन एलेन गुथ ने वकया है।


• इस वसद्ातं के अनसु ार, ब्रह्माडं के दृश्य रव्यमान के घनत्ि की तल
ु ना में उसका िास्तविक घनत्ि काफी
अवधक है। इससे स्पि होता है वक ब्रह्माण्ड में अदृश्य काले पदाथों का अवस्तत्ि है। इन्द्हीं काले पदाथों के
समूहन से आकाशगंगाओ ं का वनमावण हुआ है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
पृथ्िी का भूगवभाक इवतहास
उककावपडं ों एिं चन्द्रमा की चट्टानों के नमूनों के अध्ययन से पृथ्िी की आयु 4.6 अरब िषव मानी गयी है। इसे अवधक
प्रमावणक माना गया है। पृथ्िी पर सिाववधक प्राचीन पत्थर के नमूनों के रे वडयो धमी तत्िों के परीक्षण के आधार पर
पृथ्िी की आयु 3.9 वबवलयन (अरब) िषव मानी गयी है। पृथ्िी के भूगवभवक इवतहास की व्याख्या सिवप्रथम रांसीसी
िैज्ञावनक ‘कास्ते द बफन’ ने प्रस्तुत की थी।
कालखण्ड:
1. महाककप (Era): सबसे बड़ा कालखडं
2. यगु (Epoch): महाककपों को यगु ों में भावजत वकया जाता है
3. शक या ककप (Period): प्रत्येक यगु को ककप या शक में विभावजत वकया जाता है।
पृथ्िी का भूगवभाक इवतहास:
- आद्यमहाककप o जरु ै वसक
- प्री पैकयोजोइक o वक्रटैवशयस
- पैकयोजोइक (प्रथम युग) - सेनोजोइक (तृतीय युग)
o कै वमब्रयन o पैवलयोसीन
o आड़ोविवसयन o इयोसीन
o वसकयूररयन o ओवलगोसीन
o वडिोवनयन o मायोसीन
o काबोवनफे रस o प्लायोसीन
o पवमवयन - वनयोजोइक (चतुथव युग)
- मेसोजोइक (वद्वतीय युग) o प्लीस्टोसीन
o वट्रयावसक o होलोसीन

1. आद्य महाकल्प या प्रीपैल्योजोइक: इसे आवकव यन एिं प्री-कै वमब्रयन दो भागों में विभावजत वकया गया
है।
A. आवका यन काल [Archean Era or Azoic]:
• शैलों में जीिाश्मों का पूणवतः अभाि।
• चट्टानों में ग्रेनाइट एिं नीस की अवधकता।
• चट्टानों में सोना तथा लोहा पाया जाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• इस काल में कनावडयन एिं फे नोस्कैं वडयन शीकड का वनमावण हुआ।
B. प्री-कै वम्ब्रयन काल [Pre-Cambrian Era]:
• समुर में रीढ़ विहीन जीि का प्रादभु ावि।
• स्थल मंडल अभी भी जीि रवहत था।
• समुर में रीढ़ युक्त जीिों का भी प्रादभु ावि।
• भारत में अरािली पिवत एिं धारिाड क्रम की चट्टानों का वनमावण।
2. पुराजीि महाकल्प (Paleo-zoic Era): इसे 6 ककप या शक में विभावजत वकया जाता है।
I. कै वम्ब्रयन शक/कल्प:
• स्थान भागों पर समरु ों का अवतक्रमण।
• प्राचीनतम अिसादी शैलों का वनमावण।
• भारत में विन्द्ध्याचल पिवतमाला का वनमावण।
• सिवप्रथम िनस्पवत एिं जीिों की उत्पवि [जीि वबना रीड िाले)।
• समुर में शैिालों की उत्पवि।
II. आड़ोविवसयन काल /शक:
• िनस्पवतयों का विस्तार
• समुर में रें गने िाले जीिों की उत्पवि
• स्थल भाग अभी भी जीि विहीन था।
• समुर का विस्तार हुआ।
III. वसल्युररयन कल्प/शक: [रीढ़ िाले जीिों का काल]
• पृथ्िी की ‘कै वलडोवनयन हलचल’ के पररणाम स्िरूप उिरी अमेररका के अप्लेवशयन, स्कॉटलैंड एिं
स्कैं वडनेविया के पिवतों का वनमावण
• सिवप्रथम रीढ़ िाले जीिों का आविभावि
• समुरों में मछवलयों की उत्पवि
• प्रिाल जीिों का विकास
• स्थल पर पहली बार पौधों का उदभि
् [पौधे पणवरवहत थे एिं पौधों का सिवप्रथम विकास ऑस्ट्रेवलया
में हुआ]
IV. वडिोवनयन काल / शक: [मत्स्य युग]
• शाकव मछली का आविभावि
• उभयचर जीिों (Amphibians) की उत्पवि

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• फनव िनस्पवतयों की उत्पवि ।
V. काबोवनफेरस कल्प /शक: [बड़े िृक्षों का काल] या [कोयला युग]
• स्थल भाग पर रें गने िाले जीिों (Raptiles) की उत्पवि
• गोंडिाना क्रम की चट्टानों का वनमावण
• लंबे-लंबे पेड़ों की उत्पवि
VI. पवमायन कल्प/शक:
• इस काल में ‘िैरीसन हलचल’ हुई।
• िैरीसन हलचल के कारण ब्लैक फॉरे स्ट एिं िास्जेज जैसे भ्रन्द्शोत्थ पिवतों का वनमावण ।
• स्पेवनस, मेसेटा, अकटाई, वतएनशान एिं अप्लेवशयन जैसे पिवतों का वनमावण
3. मध्यजीिी महाकल्प (Mesozoic Era): इसे तीन भागों में विभावजत वकया जाता है -
I. वट्रयावसक कल्प [रगं ने िाले जीिों का काल]:
• स्थल पर बड़े-बड़े रें गने िाले जीिों का विकास
• आवकव योप्टेररस की उत्पवि [आवकव योप्टेररस: स्थल एिं आकाश दोनों में विचरण करने िाला जीि]
• लॉबस्टर (के कडा प्रजावत) का उद्भि
• रें गने िाले जीिों में स्तनधाररयों की उत्पवि
• मेंडक एिं कछुआ की उत्पवि
• मांसाहारी मत्स्य तुकय रेंगने िाले जीिों की उत्पवि
II. जुरैवसक कल्प [Jurassic Period]:
• डायनासोर का विकास
• जलचर, स्थल चर एिं नभचर तीनों का आविभावि
• जूरा पिवत का विकास
• पुष्पयुक्त िनस्पवतयों की उत्पवि
• प्रथम उडने िाले पवक्षयों का उद्भि
III. वक्रटेवशयस कल्प:
• आिृतबीजी (एंवजयोस्पमव) पौधों का विकास
• रॉकी एिं एंडीज पिवतों की उत्पवि आरंभ
• दक्कन ट्रैप में ज्िालामख
ु ी लािा का उद्भेदन
• दक्कन ट्रैप एिं काली वमट्टी का वनमावण
• उ. प. अलास्का, कनाडा, मैवक्सको, वब्रटेन का डोबर क्षेत्र एिं ऑस्ट्रेवलया में खवडया वमट्टी का जमाि

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विश्व भूगोल राज होल्कर
4. निजीिी महाकल्प [Cenozoic Era]: इस ककप को तृतीयक या टवशवयरी युग भी कहा जाता है। इसे
5 कालों में विभावजत वकया जाता है -
I. पैल्योसीन काल (Paleocene Period):
• इस काल में 'लैरामाइड हलचल' हुई वजसके पररणामस्िरूप उिरी अमेररका में रॉकी पिवतमाला का
वनमावण हुआ।
• इस काल में सिवप्रथम स्तनपायी जीिों एिं पुच्छविहीन बंदरों (APE) का आविभावि हुआ।
• इस काल तक डायनासोर समाप्त हो चक
ु े थे।
II. इओसीन कल्प (Eocene period]:
• स्थल पर रें गने िाले जीि प्रायः विलप्तु
• प्राचीन बदं र एिं वगब्बन मयामं ार में उत्पन्द्न
• हाथी, घोडा, गैंडा एिं सअ ु र के पिू वजों का आविभावि
• इस यगु में बड़ी मात्रा में ज्िालामख
ु ी उद्गार हुए।
• इस युग में िृहद् वहमालय का वनमावण प्रारंभ हुआ।
• इस काल से पूिव वनवमवत पिवतों की ऊंचाई में िृवद् हुई।
III. ओवलगोसीन कल्प (Oligocene Period):
• आकपस पिवत का वनमावण प्रारंभ
• कुिा, वबकली एिं भालुओ ं के पूिवजों की उत्पवि
• पुच्छविहीन बंदर (APE) का विकास
• िृहद् वहमालय का विकास जारी रहा।
IV. मायोसीन कल्प (Miocene Period):
• इस काल में लघु या मध्य वहमालय का वनमावण हुआ।
• जलपक्षी (हसं , बतख), पेंवनिन आवद की उत्पवि।
• शाकव मछली का सिाववधक विकास हुआ।
• हाथी का विकास इसी काल में हुआ।
V. प्लायोसीन कल्प (Pliocene Period):
• ितवमान महासागरों एिं महाद्वीपों का स्िरुप प्राप्त
• वशिावलक वहमालय की उत्पवि ।
• यूरोप, उिरी अमेररका, वसंध एिं भारत में विस्तृत मैदानों का विकास
• शाकव का विनाश

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• मानि के पूिवजों का विकास
• भारत के उिरी विशाल मैदान का आविभावि
• ब्लैक सागर, उिरी सागर, कै वस्पयन सागर एिं अरब सागर की उत्पवि ।
5. नूतन महाकल्प (Neozoic Era): इसे दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
I. प्लीस्टोसीन कल्प (Pleistocene Period):
• इस ककप में यरू ोप में क्रमश: चार वहमयगु - गजुं , वमडं ेल, ररस एिं िमु व देखे गए।
• उिरी अमेररका में क्रमश: चार वहमयगु - नेब्रास्कन, कन्द्सान, इलीनोइन (आयोिा) एिं विसं ावकन देखे
गए।
• पृथ्िी पर उड़ने िाले पवक्षयों का आविभावि
• उ. अमेररका की िृहद झीलों एिं नॉिे के वफयोडव तटों का वनमावण
II. होलोसीन कल्प (Holocene Period): [मानि यगु ]
• उिरी अरीका एिं मध्य एवशया में मरुस्थलों का उदभि

• मानि ने कृ वष कायव एिं पशुपालन प्रारंभ वकया।
• यह ककप अभी चल रहा है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
पृथ्िी की आंतररक संरचना

पथ्ृ िी की आतं ररक संरचना के बारे में जानने के स्त्रोत:


स्रोत

पृथ्िी की उत्पवि से
अप्राकृ वतक स्रोत संबंवधत वसद्ांत प्राकृ वतक स्रोत

घनत्ि दाब तापमान ज्िालामख


ु ी भक
ू ं पीय तरंगें उककावपंड

अप्राकृवतक स्रोत
1. घनत्ि (Density)
पृथ्िी का औसत घनत्ि 5.5 gm/cm3 है। पृथ्िी की भू-पपवटी (Crust) का घनत्ि लगभग 3 gm/cm3 है। पृथ्िी
की क्रोड का औसत घनत्ि 11 से 13.5 gm/cm3 है। इससे स्पि होता है वक पृथ्िी की आंतररक संरचना कई भागों
में विभक्त है और पृथ्िी की क्रोड़ का घनत्ि सिाववधक हैं।
2. दबाि (Pressure)
दबाि बढ़ने से घनत्ि बढ़ता है। वकन्द्तु चट्टानों की एक सीमा है वजससे अवधक उसका घनत्ि नहीं हो सकता। पृथ्िी
के अंदर अवधक घनत्ि पाया जाता है इसका अथव हुआ वक पृथ्िी का आंतररक भाग अवधक घनत्ि िाली भारी
धातुओ ं की चट्टानों से बना है।
3. तापमान (Temperature)
• सामान्द्यतः 8 वकमी. तक पृथ्िी की गहराई में प्रिेश करने पर प्रवत 32 मीटर पर 1 वडग्री सेंटीग्रेड तापमान में
िृवद् होती है। इसके बाद गहराई के साथ िृवद् दर कम हो जाती है।
• प्रथम 100 वकमी. की गहराई में प्रत्येक वकमी. पर 12°C की िृवद् होती है।
• 300 वकमी. की गहराई में प्रत्येक वकमी. पर 2° C एिं उसके बाद प्रत्येक वकमी. की गहराई पर 1°C की
िृवद् होती है।
• पृथ्िी के आंतररक भाग से बाहर की ओर ऊष्मा का प्रिाह तापीय संिहन तरंगों के रूप में होता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
पृथ्िी की उत्पवि से संबंवित वसद्ांत
1. ग्रहाणु संकल्पना: इस संककपना का प्रवतपादन टी. सी. चैमबरवलन ने वकया। इस संककपना के अनुसार,
पृथ्िी का वनमावण ठोस ग्रहाणु के एकत्रीकरण से हुआ है। अत: पृथ्िी का क्रोड ठोस होना चावहए।
2. ज्िारीय संकल्पना: इस संककपना का प्रवतपादन जेमस जीन ने वकया। इस संककपना के अनुसार, पृथ्िी
की उत्पवि सूयव द्वारा वनःसृत ज्िारीय पदाथव के ठोस होने से हुई है अतः पृथ्िी का क्रोड़ तरल अिस्था में
होना चावहए।
3. वनहाररका वसध्दांत: लाप्लास के वनहाररका वसद्ांत के अनुसार, पृथ्िी का क्रोड गैसीय अिस्था में होना
चावहए।

प्राकृवतक स्त्रोत
ज्िालामुखी: ज्िालामुखी उद्गार से वनकलने िाला तरल मैनमा इस ओर संकेत करता है वक पृथ्िी के अंदर कोई
परत तरल अथिा अद्वतरल अिस्था में है।
भूकम्पीय तरंगें: भूकमपीय तरंगों के अध्ययन से पृथ्िी की आंतररक संरचना के बारे में पयावप्त जानकारी प्राप्त हुई है।

पृथ्िी की विवभन्न परतें

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विश्व भूगोल राज होल्कर
1. भू-पपाटी (Crust):
यह पृथ्िी का सबसे बाहरी भाग है। महासागरों के नीचे इसकी मोटाई 5 वकमी. है जबवक महाद्वीपों के नीचे इसकी
मोटाई 30 वकमी. है। पिवतीय श्रृंखलाओ ं के क्षेत्र में इसकी मोटाई 70 से 100 वकमी. है।
क्रस्ट को दो भागों में विभावजत वकया गया है –
1. ऊपरी क्रस्ट [औसत घनत्ि: 2.7 gm/cm3]
2. वनचली क्रस्ट [औसत घनत्ि: 3 gm/cm3]
ऊपरी क्रस्ट एिं वनचले क्रस्ट के मध्य ‘कोनराड़ असमबध्दता’ पायी जाती है।
क्रस्ट का वनमावण वसवलका एिं एकयुवमवनयम से हुआ है। इसे वसयाल (SiAl) परत भी कहा जाता है।
क्रस्ट में पाए जाने िाले तत्ि:
ऑक्सीजन: 46.60% वसवलकॉन: 27.72%
एकयुवमवनयम: 8.13% लोहा: 5% एिं अन्द्य पदाथव (कै वकसयम, सोवडयम, पोटेवशयम एिं मैननीवशयम आवद)
2. मेंटल (mantle):
• क्रस्ट के वनचले आधार पर भूकंपीय लहरों की गवत में अचानक िृवद् हो जाती है।
• वनचली क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटल के मध्य मोहो असमबध्दता पायी जाती है।
• मोहो असमबद्ता से लगभग 2900 वकमी. की गहराई तक मैंटल का विस्तार है।
• मैंटल का आयतन पृथ्िी के कुल आयतन का लगभग 83% एिं रव्यमान का लगभग 68% है।
• मैंटल का वनमावण वसवलका एिं मैननीवशयम से हुआ है। इसवलए इसे वसमा/सीमा (SiMa) भी कहा जाता
है।
• ऊपरी मेंटल एिं वनचले मेंटल के बीच ‘रे पेटी असंबध्दता’ पायी जाती है।
मेंटल के भाग:
a. मोहो असमबद्ता से 200 वकमी. की गहराई िाला भाग
b. 200 से 700 वकमी.
c. 700 से 2900 वकमी.
दबु वलता मंडल (Asthenosphere): ऊपरी मैंटल के ऊपरी भाग को दबु वलता मंडल कहते हैं। यह भाग पृथ्िी पर
उत्पन्द्न होने िाले ज्िालामुखी के मैनमा की आपूवतव करता है। स्थल मंडल, दबु वलतामंडल के ऊपर तैर रहा है। दबु वलता
मंडल को प्लावस्टक या तरल अिस्था में माना जाता है। इसका विस्तार 100 वकमी. से 700 वकमी. तक माना जाता
है। इसे वनमन गवत क्षेत्र (Low Velocity Zone) भी कहते हैं। यहााँ भूकंपीय तरंगों में मंदन (Deceleration) उत्पन्द्न
होते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर

3. क्रोड (Core):
• वनचले मैंटल के आधार पर भूकंप की P तरंगों की गवत में अचानक िृवद् होती है।
• वनचले मेंटल एिं ऊपरी क्रोड के बीच में ‘गुटेनबगव-विसाटव' असंबद्ता पायी जाती है।
• गुटेनबगव असंबद्ता से लेकर 6,371 वकमी. (या 2900 वकमी. से. 6,371 वकमी.) की गहराई तक के भाग
को क्रोड (core) कहा जाता है।
• क्रोड का आयतन पूरी पृथ्िी का मात्र 16% है परंतु इसका रव्यमान पृथ्िी के कुल रव्यमान का लगभग
32% है ।
• क्रोड़ के आंतररक भागों का वनमावण मुख्य रूप से वनके ल और लोहा से हुआ है। इसे वनफे (NiFe) भी कहा
जाता है।
• बाहरी क्रोड में S तरंगें प्रिेश नहीं कर पाती इसवलए इस भाग को तरल अिस्था में माना जाता है।
• आतं ररक क्रोड में P तरंगों की गवत 11.23 वकमी./से. होती है। अतः इसे ठोस अथिा प्लावस्टक अिस्था
में माना जाता है।
• क्रोड का घनत्ि मेंटल के घनत्ि के दोगुने से भी अवधक है।
• बाहरी क्रोड एिं आंतररक क्रोड के बीच 'लैहमैन असंबद्ता’ पायी जाती है।
क्रोड का विभाजन: क्रोड को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
a. बाहरी क्रोड (Outer Core): विस्तार 2900 से 5150 वकमी.
b. आतं ररक क्रोड (Inner core): विस्तार 5150 से 6371 वकमी.

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विश्व भूगोल राज होल्कर
चट्टानें (Rocks)
चट्टान (Rock): पृथ्िी पर पाए जाने िाले िे समस्त पदाथव जो धातु नहीं हैं, चट्टान कहलाते हैं। चट्टानें वकसी एक
खवनज से वनवमवत अथिा खवनजों का समूह हो सकती हैं।
भपू टल के वनमावण में 24 खवनज महत्िपूणव हैं। इनमें से भी मात्र 6 खवनज ही प्रधान रूप में पाए जाते हैं। इन
खवनजों में फे कसपार, क्िाट्वज, पायरॉवक्सन, एमफीबोकस, अभ्रक एिं ओलीविन अवत महत्िपूणव हैं। चट्टान
वनमावणकारी खवनज िगव में वसवलके ट सिवप्रमुख है।
पृथ्िी का क्रस्ट:
• पृथ्िी के क्रस्ट में पाए जाने िाले तत्िों की संख्या 110 है वकन्द्तु क्रस्ट के वनमावण में के िल 8 तत्ि प्रमुख
माने जाते हैं।
• भपू ष्ठृ का 98.77 प्रवतशत भाग के िल 8 खवनजों से बना है। इन तत्िों में ऑक्सीजन (46.8%), वसवलकॉन
(27.7%), एकयुवमवनयम (8.13%), लोहा (5%), कै वकसयम (3.63%), सोवडयम (2.83%), पोटेवशयम
(2.59% ) एिं मैननीवशयम (2.09%) से वनवमवत है।
चट्टानों का िगीकरण:
वनमावण की विवध के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभक्त वकया जा सकता है –
1. आननेय चट्टान (Igneous Rocks)
2. अिसादी चट्टान (Sedimentary Rocks)
3. कायान्द्तररत चट्टान (metamorphic Rocks)
1. आग्नेय चट्टान:
• ज्िालामुखी उद्गार के समय भू-गभव से वनकलने िाला लािा ही धरातल पर जमकर ठण्डा हो जाने के पश्चात्
आननेय शैलो में पररिवतवत हो जाता है।
• पृथ्िी की उत्पवि के पश्चात् सिवप्रथम इन्द्ही चट्टानों का वनमावण हुआ। इसवलए इन्द्हें प्राथवमक शैल भी कहा
जाता है।
• ये चट्टानें रिेदार, परतविहीन एिं कठोर होती हैं। इन चट्टानों में जीिाश्म नहीं पाये जाते ।
• आननेय चट्टानों पर रासायवनक अपक्षय का प्रभाि कम पाया जाता है। इन चट्टानों पर यांवत्रक एिं भौवतक
अपक्षय का प्रभाि होता है। यांवत्रक एिं भौवतक अपक्षय के कारण इनका विघटन एिं वियोजन होता है।
• प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आननेय चट्टानों द्वारा ही अिसादी एिं रूपांतररत चट्टानों का वनमावण होता है।
• ये चट्टानें रन्द्ध्र हीन होती हैं। इनमें खवनज तत्िों की मात्रा अवधक पायी जाती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• क्रस्ट का लगभग 90% भाग इन्द्ही चट्टानों से वनवमवत है।
• आननेय चट्टानों के उदाहरण: ग्रेनाइट, बेसाकट, पेनमाटाइट, डायोराइट, गैब्रो, वपचस्टोन एिं प्यूवमस आवद ।
आग्नेय चट्टानों के प्रकार:
वस्िवत एिं संरचना के आिार पर आग्नेय चट्टान:
1. अन्तः वनवमात आग्नेय (Intrusive Igneous Rocks): इनका वनमावण सतह के नीचे मैनमा के ठण्डा
होने के कारण होता है। ये दो प्रकार की होती हैं –
A. पातालीय चट्टान:
• इनका वनमावण पृथ्िी की गहराई में होता है।
• अत्यवधक धीमी गवत से ठंडा होने के कारण इसके रिे बड़े-बड़े होते हैं।
• उदाहरण: ग्रेनाईट, गैब्रो एिं डाइओराइट
B. मध्यिती चट्टान:
• इनका वनमावण ज्िालामुखी उदगार के समय धरातलीय अिरोध के कारण मैनमा के दरारों, वछरों
एिं नाली में जमकर ठोस होने से होता है।
• इसके रूप- लेकोवलथ, फै कोवलथ, बेथोवलथ, वसल एिं डाइक।
• उदाहरण: डोलोराइट, मैननेटाइट आवद।
2. बाह्य आग्नेय चट्टान (Extrusive Igneous Rocks): जब मैनमा क्रस्ट के ऊपर जमकर ठोस होता है
तो इन चट्टानों का वनमावण होता है।
• मैनमा के जकदी ठंडा होने के कारण इनका रिा छोटा होता है।
• इनके क्षरण से काली वमटटी का वनमावण होता है।
• ये रंध्रविहीन होती हैं।
• बेसाकट इसी प्रकार की चट्टान है।
• ऑवलिीन, माइका, एमफीबोल, पायरॉवक्सन, फे कसपार एिं क्िाटवज आवद इसके उदाहरण हैं।

रासायवनक सरं चना के आिार पर आग्नेय चट्टान का िगीकरण: रासायवनक सरं चना के आधार पर
आननेय चट्टानों को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
1. अमलीय आननेय चट्टान
2. क्षारीय आननेय चट्टान

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विश्व भूगोल राज होल्कर
1. अम्लीय आग्नेय चट्टान:
• इसमें बालू एिं वसवलका की मात्रा 65-85% तक होती है।
• इसका रंग हकका होता है। इसका औसत घनत्ि कम (2.75 से 2.8 तक) होता है।
• महाद्वीपीय क्रस्ट का वनमावण इसी से हुआ है। इसमें सोवडयम, पोटेवशयम, एकयवु मवनयम एिं फे कसपार पाया
जाता है।
• उदाहरण: ग्रेनाइट, रायोलाइट, वपचस्टोन, ऑब्सीवडयन. ii) सारीय आननेय चट्टान:
2. क्षारीय आग्नेय चट्टान:
• इसमें बालू एिं वसवलका की मात्रा लगभग 40-55% होती है।
• वसवलका की मात्रा कम होने के कारण इसका रंग गहरा होता है।
• इसका औसत घनत्ि अमलीय आननेय से अवधक (2.8 से 3) होता है।
• महासागरीय क्रस्ट का वनमावण इसी से होता है।
• इसमें लोहा, मैननीवशयम एिं चनू ा की मात्रा अवधक पायी जाती है।
• उदाहरण: बेसाकट, डोलोराइट तथा गैब्रो
नोट:

• भारत में राजस्थान का अरािली पिवत, छोटा नागपरु की पहावड़यााँ, राजमहल श्रेणी, रााँची का पठार, अजतं ा
की गफ ु ाएाँ आवद आननेय चट्टानों से वनवमवत हैं।
• अवधकाश ं खवनज एिं धातु अयस्क - लौह अयस्क, सोना, चााँदी, सीसा, जस्ता, तााँबा, मैंगनीज, वनके ल,
क्रोमाइट एिं प्लेवटनम आवद धातु खवनज आननेय चट्टानों में पाए जाते हैं।
• ग्रेनाइट कठोर चट्टान होती है। इसका उपयोग भिन वनमावण एिं सजािट के वलए वकया जाता है।

2. अिसादी चट्टानें (sedimentary Rocks):


• पृथ्िी तल पर आननेय एिं रूपांतररत चट्टानों के अपरदन एिं वनक्षेपण के फलस्िरूप अिसादी चट्टानों का
वनमावण होता है।
• इसकी संरचना परतदार होती है। इसकी परतों में जैि अिशेष पाए जाते हैं।
• इन चट्टानों में प्राकृ वतक गैस, कोयला एिं खवनज तेल के भण्डार पाये जाते हैं।
• इन चट्टानों का वनमावण अपरदन से प्राप्त बारीक कणों द्वारा होता है। अतः इनके कण बारीक होते हैं। रिे नहीं
बन पाते।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• इनका वनमावण जल एिं स्थल दोनों भागों में होता है।
• संपूणव भूपष्ठृ (Crust) के ऊपर अिसादी चट्टानें लगभग 75% भाग पर फै ली हुई हैं। क्रस्ट के वनमावण में
अिसादी शैलों का योगदान मात्र 5% है।
• अिसादी चट्टानों में 80% शैल, 12% बलुआ पत्थर एिं 8% चनू ा पत्थर पाया जाता है।
• ये चट्टानें वछरयुक्त होती हैं इनमें पानी आसानी से प्रिेश करता है।
• इन चट्टानों में संवधयााँ एिं जोड़ बहुतायत में पाये जाते हैं। इन चट्टानों पर अपरदन की वक्रयाओ ं का प्रभाि
शीघ्र पड़ता है।
• इन चट्टानों में आवथवक महत्ि के खवनज कम पाए जाते हैं।
• इन चट्टानों में खवनज तेल, बॉक्साइट, मैगनीज एिं वटन आवद के अयस्क उपवस्थत होते हैं।
• भिन वनमावण में उपयोग वकया जाने िाला पत्थर इन्द्हीं चट्टानों से प्राप्त वकया जाता है।
वनमााण प्रक्रम के आिार पर अिसादी शैलों का िगीकरण:
A. यांवत्रक वक्रया द्वारा वनवमवत: बालुका पत्थर, चीका वमट्टी, कॉनलोमेरेट या गोलाश्म, शेल एिं लोएस
B. जैविक तत्िों द्वारा वनवमवत: चनू ा पत्थर, कोयला एिं पीट
C. रासायवनक वक्रया द्वारा वनवमवत: खवडया वमट्टी, सेलखड़ी एिं नमक की चट्टानें

3. रूपातं ररत/कायान्तररत चट्टान (Metamorphic Rocks):


• रूपातं ररत चट्टानों का वनमावण ताप एिं दाब के कारण आननेय तथा अिसादी चट्टानों के संगठन तथा स्िरूप
में पररितवन के कारण होता है। मे सिाववधक कठोर चट्टानें होती हैं।
• इन चट्टानों में जीिाश्म नहीं पाया जाता। इन चट्टानों में हीरा, संगमरमर, अभ्रक एिं क्िाटवजाइट आवद पाए
जाते हैं।
रूपांतरण के कारक:

• ताप या ऊष्मा
• दबाि या संपीडन
• घोलीकरण
रूपातं रण के प्रकार:

• तापीय रूपातं रण (Thermal Metamorphism)


• गवतक रूपातं रण (Dynamic Metamorphism)

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• ताप-जलीय रूपांतरण (Hydro Thermal metamorphism)
• जलीय रूपांतरण (Hydro Metamorphism)

रूपांतरण से वनवमात चट्टानें:


अिसादी चट्टानों का रूपांतरण:

• शेल – स्लेट
• चनू ा पत्थर एिं डोलोमाइट – संगमरमर
• चॉक एिं डोलोमाइट – संगमरमर
• बालुका पत्थर – क्िाटवजाइट
• कांनलोमेरेट (गोलाश्म) – क्िाटवजाइट

आननेय चट्टानों का रूपांतरण:

• ग्रेनाइट – नीस
• बेसाकट – वसस्ट या एमफीबोलाइट

रूपांतररत चट्टानों का पुन: रूपांतरण:

• स्लेट – फाइलाइट
• फाइलाइट – वसस्ट
• गैब्रो – सरपेंटाइन

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विश्व भूगोल राज होल्कर
ज्िालामुखी (Volcano)

ज्िालामुखी: यह एक वछर होता है वजससे होकर पृथ्िी के अंदर का अत्यंत तप्त गमव लािा, गैस, जल एिं चट्टानों
के टुकडों से युक्त पदाथव पृथ्िी के धरातल पर प्रकट होते हैं।
ज्िालामुखीयता: इसमें पृथ्िी के आंतररक भाग में मैनमा एिं गैस के उत्पन्द्न होने से लेकर धरातल के अंदर एिं
ऊपर लािा प्रकट होने एिं ठण्डा ि ठोस होने की समस्त प्रवक्रया शावमल होती है।
लािा एिं मैग्मा:
• लािा: यह पृथ्िी के अंदर का िह तप्त तरल पदाथव होता है जो ज्िालामुखी वछर से बाहर आता है।
• मैग्मा: यह पृथ्िी के अंदर का िह तप्त तरल पदाथव होता है जो बाहर नहीं आ पाता अंदर ही जमकर ठोस
बन जाता है। अथावत पृथ्िी के अंदर का तप्त तरल पदाथव जब तक बाहर नहीं आता िह मैनमा कहलाता है।
ज्िालामुखी वछर से बाहर वनकलने के बाद िही पदाथव लािा कहलाता है।
ज्िालामुखी वक्रया के रूप:
• धरातल के नीचे होने िाली वक्रया: ज्िालामुखी वक्रया के दौरान जब धरातल के नीचे भूगभव में मैनमा ठण्डा
होकर जम जाता है। इस वक्रया के पररणामस्िरूप- बैथोवलथ, फै कोवलथ, लोपोवलथ, वसल एिं डाइक जैसी
अन्द्तः स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
• धरातल के ऊपर होने िाली ज्िालामुखी वक्रया : ज्िालामुखी वक्रया के दौरान जब धरातल के ऊपर आकर
लािा ठण्डा होकर जम जाता है। इस वक्रया के पररणामस्िरूप ज्िालामुखी पिवत, पुठार, गमव जल के झरने,
गेसर, धुाँआरे आवद का वनमावण होता है।
ज्िालामख
ु ी से वनःसतृ पदािा:
• गैस: जलिाष्प (60-90%), CO2, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन क्लोराइड, काबवन मोनोऑक्साइड,
हाइड्रोजन फ्लोराइड, हीवलयम एिं सकफर डाई ऑक्साइड
• अन्य पदािा: धूल, राख, चट्टानी टुकडे आवद।
ज्िालामुखी वक्रया से संबंवित पदािा:
• लैवपली: मटर के दाने के आकार के टुकडे
• टफ: धूल एिं राख से बने चट्टानी टुकड़े
• बम: बड़े- बड़े आकार के चट्टानी टुकडे

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• प्यूवमक: जल से कम घनत्ि िाले एिं जल पर तैर सकने योनय चट्टानी टुकड़े।
• पाइरोक्लास्ट: धरातल पर आए बडे-बडे वशलाखंड
• मैवफक: गहरे रंग के खवनज (मैननीवशयम की अवधकता)
• फेवल्सक: हकके रंग के खवनज (वसवलका एिं फे कसपार की अवधकता)

लािा के प्रकार: वसवलका की मात्रा के आधार पर लािा दो प्रकार का होता है –


1. अम्लीय लािा:
• अत्यन्द्त गाढ़ा एिं वचपवचपा होता है।
• वसवलका की मात्रा अवधक (65-80%)
• इसका रंग हकका होता है (रंग हकका पीला)
• इसका घनत्ि कम है।
• इसमें मुख्यतः सोवडयम, पोटेवशयम, एकयुवमवनयम एिं फे कसपार पाया जाता है।
• यह धरातल पर दरू तक नहीं फै लता (गाढ़ा होने के कारण) बवकक क्रेटर के आसपास शंकु का वनमावण
करता है।
2. क्षारीय लािा:
• यह कम गाढ़ा एिं कम वचपवचपा होता है।
• वसवलका की मात्रा कम (40-55%) होती है।
• इसका रंग गहरा होता है।
• इसका घनत्ि अवधक होता है।
• इसमें मुख्यतः लोहा, मैननीवशयम एिं चनू ा पाया जाता है।
• यह धरातल पर दरू तक फै लता है। यह शीकडनुमा शंकु का वनमावण करता है।
• इसका विस्फोट या उदगार अमलीय लािा की अपेक्षा कम तीव्रता या कम विस्फोटक होता है।

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ज्िालामुखी का िगीकरण:
सवक्रयता के आिार पर:
1. सवक्रय ज्िालामुखी (Active Volcanoes): इन ज्िालामुवखयों से लािा, गैस, जलिाष्प एिं विखंवडत
पदाथव सदैि वनकलते रहते हैं।
प्रमुख सवक्रय ज्िालामुखी:
• वकलायु: हिाई द्वीप, अमेररका
• स्ट्रामबोली: वलपारी दीप, वससली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ)
• एटना: इटली कोटोपैक्सी: इक्िेडोर
• माउंट एबुवश: अंटाकव वटका
• बैरेन द्वीप: अंडमान वनकोबार (भारत) लााँवगला एिं बागाना: पापुआ न्द्यू वगनी
• समेरु, मेरापी, दक
ु ोनो, वसनाबंग, अगुंग: इडं ोनेवशया
• मोनालोआ : हिाई द्वीप
• ओजोस डेल सलाडो: अजेंटीना एिं वचली सीमा (दवक्षण अमेररका)
2. सुर्ुप्त ज्िालामुखी (Dormant Volcanoes): ये िे ज्िालामुखी हैं जो िषों से सवक्रय नहीं हैं, परन्द्तु
कभी भी विस्फोट कर सकते हैं।
प्रमुख सुषुप्त / प्रसुप्त ज्िालामुखी:
• विसुवियस: इटली
• फ्यूजीयामा: जापान
• क्राकाताओ: इडं ोनेवशया
• नारकोंडम द्वीप: अडं मान-वनकोबार
3. मृत / शातं ज्िालामख ु ी: ये िे ज्िालामख
ु ी हैं वजनमें िषों से उद्गार नहीं हुआ और न ही भविष्य में सभं ािना
है।
प्रमख
ु मृत/शातं ज्िालामखु ी:
• वकवलमजं ारो: प.ू अरीका
• माउंट पोपा: मयामं ार
• कोह सकु तान: ईरान
• वचमबाराजो: इक्िेडोर
• देमबंद: ईरान
• एकााँकागुआ: एंडीज

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विश्व भूगोल राज होल्कर
लािा के आिार पर ज्िालामुखी िगीकरण: लािा के आधार पर ज्िालामुवखयों को 4 िगों में विभावजत
वकया जाता है –
1. पीवलयन तुल्य ज्िालामुखी:
• ये सिाववधक विनाशकारी होते हैं।
• इनके लािा में वसवलका की मात्रा अवधक होती है इसवलए यह लािा गाढ़ा, वचपवचपा एिं अमलीय
होता है।
• इसका उद्गार अत्यवधक विस्फोटक होता है।
• इसके उद्गार में वपछले उद्गार के कारण वनवमवत ज्िालामख
ु ी शक
ं ु नि हो जाता है।
• उदाहरण: माउंट पीली (माटीवनक द्वीप), क्राकाताओ (इडं ोनेवशया), माउंट ताल (वफवलपींस)
2. िल्कै वनयन तल्ु य ज्िालामख
ु ी:
• इसका लािा अमलीय से लेकर क्षारीय तक प्रत्येक प्रकार का होता है।
• इस प्रकार के ज्िालामख ु ी उद्गार में गैसों का अत्यवधक वनष्कासन होता है इस कारण इस
ज्िालामख ु ी से वनकले ज्िालामख ु ी मेघ फूलगोभी के आकार में दरू तक छाए रहते हैं।
• वप्लवनयन या विसवु ियस प्रकार के ज्िालामख ु ी भी इसी श्रेणी में शावमल वकए जाते हैं।
3. स्ट्राम्बोली तल्ु य ज्िालामख ु ी:
• इसके लािा में अमल की मात्रा कम होती है।
• सामान्द्यतः इनमें विस्फोटक उद्गार नहीं होते।
4. हिाईयन तुल्य ज्िालामुखी:
• इनका लािा तरल एिं क्षारीय होता है।
• इनके उद्गार प्रायः शांत होते हैं।
• इनसे वनकला लािा दरू तक फै लकर जमा होता है एिं शीकड शंकु का वनमावण करता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
ज्िालामुखी उद्गार के कारण:
1. प्लेट टेक्टोवनक्स: यह दो प्रकार के प्लेट संचलन से उत्पन्द्न होता है –
a. जब दो प्लेट आपस में टकराती है: जब दो प्लेट आपस में टकराती हैं तो भारी प्लेट, हककी प्लेट के
नीचे क्षेवपत होने लगती है। यह प्लेट नीचे जाकर एण्डेसाइट (हककी चट्टान) के रूप में पररिवतवत हो जाती
है। यह एण्डेसाइट गब्ु बारों की तरह पृथ्िी के नीचे से ऊपर उठती है तथा ज्िालामख
ु ी का रूप धारण करती
है।

b. जब दो प्लेट एक दूसरे से दूर जाती हैं: जब दो प्लेटें एक-दसू रे से दरू जाती हैं तो इस वक्रया में भ्रंश
का वनमावण होता है। वजस स्थान पर इन दोनों प्लेटों के मध्य भ्रंश का वनमावण होता है उस स्थान पर दाब कम
हो जाता है। अंदर से अवधक दाब लगने के कारण उस स्थान पर ज्िालामुखी उदगार ् होता है।

2. कमजोर भूपटल: ज्िालामुखी का लािा कमजोर भू-पटल (क्रस्ट) को तोड़कर बाहर आ जाता है।
3. भू-गभा में अत्यविक तापमान: यह उच्च तापमान भूगभव में पाए जाने िाले रे वडयोधमी पदाथों के विघटन,
रासायवनक प्रक्रम एिं उच्च दाब के कारण होता है।

ज्िालामुखी वक्रया िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ: ज्िालामुखी वक्रया से दो प्रकार की स्थलाकृ वतयों
का वनमावण होता है। जो वनमनवलवखत हैं –
1. बाह्य स्थलाकृ वतयााँ [लािा के धरातल के ऊपर जमने से वनवमवत]
2. आतं ररक स्थलाकृ वतयााँ [मैनमा के धरातल के अंदर जमने से वनवमवत]
बाह्य स्िलाकृवतयाँ: इन स्थलाकृ वतयों में वनमनवलवखत स्थलाकृ वतयों को शावमल वकया जाता है –
1. ज्िालामुखी शंकु (Volcanic Cone): जब राख एिं लािा जालामुखी के मुख से वनकलकर तथा
बहकर ज्िालामुखी के आस-पास जमा होता है तो एक शंकु का रूप ले लेता है। इसका वनमावण मुख्यतः 3
प्रकार से होता है –
(i) राख शंकु (ii) लािा शंकु
(iii) वमवश्रत शंकु

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विश्व भूगोल राज होल्कर
(i) राख शंकु / वसण्डर शंकु (Ash or Cinder Cone):

• विस्फोटीय ज्िालामुखी द्वारा जमा की गयी राख से बनने िाली शंक्िाकार आकृ वत को राख शंकु
कहते हैं।
• इनकी ऊाँचाई कम होती है तथा वकनारे अितल होते हैं।
• ये शंकु हिाई द्वीप में अवधक पाए जाते हैं।
• उदाहरण: पैराक्युवटन पिवत (मैवक्सको), जोरकलो पिवत (मैवक्सको) एिं लुजोन द्वीप (वफलीपींस)

(ii) लािा शंकु: इस प्रकार के शंकु का वनमावण अमलीय एिं क्षारीय दोनों प्रकार के लािा से होता है।
लािा शंकु को पुन: दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
A. अमलीय लािा शंकु
B. क्षारीय लािा शंकु
A. अम्लीय लािा शंकु:

• अमलीय लािा में वसवलका की मात्रा अवधक पायी जाती है। इस कारण यह गाढ़ा एिं
वचपवचपा होता है। यह लािा ज्िालामुखी के मुख के पास ही ठण्डा होकर जम जाता है।
• इस शंकु में तीव्र ढाल िाले गुमबद का वनमावण होता है।

B. क्षारीय लािा शंकु:


• क्षारीय लािा में वसवलका की मात्रा कम होती है अतः यह पतला लािा होता है जो जालामुखी
के मुख से दरू तक फै ल कर ठण्डा होकर जमता है।
• इस प्रकार के शंकु की ऊंचाई कम होती है एिं ढाल मंद पाया जाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
(iii) वमवित ज्िालामुखी शंकु: ये सबसे बड़े एिं सबसे ऊंचे शंकु होते हैं, इनका वनमावण लािा, राख
एिं अन्द्य ज्िालामुखी पदाथों द्वारा होता है। उदाहरण: फ्यूजीयामा (जापान), मेयान (वफलीपींस), रे वनयर
(USA)
2. काल्डेरा (Caldera): ज्िालामुखी वक्रया के समय तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग नि हो जाता है या
क्रेटर के नीचे धाँस जाने से काकडेरा का विकास होता है। िास्ति में यह क्रेटर का ही विस्तृत रूप है।
क्रेटर: ज्िालामुखी के शांत होने के बाद उसके मुख पर जब ज्िालामुखी ग्रीिा में लािा ठण्डा होकर जम
जाता है तो मुख एक गड्ढे का रूप ले लेता है। यह गड्ढा ही क्रेटर कहलाता है।

3. लािा डॉट एिं ज्िालामुखी ग्रीिा:


• जब ज्िालामुखी उद्गार से वनकलने िाला लािा अत्यवधक अमलीय एिं वसवलकायुक्त होता है तो लािा की
एक कठोर पट्टी ज्िालामुखी नावलका एिं वििर (क्रेटर) में जमा हो जाती है। जब ज्िालामुखी शंकु का
क्रेटर लािा से भर जाता है तो इसे ज्िालामुखी प्लग या लािा डॉट कहा जाता है।
• ज्िालामुखी नावलका में जमा हुआ लािा की पट्टीनुमा आकृ वत ज्िालामुखी ग्रीिा कहलाती है।
• लािा डॉट एिं ज्िालामुखी ग्रीिा का समेवकत रूप डायट्रम कहलाता है।
4. ज्िालामुखी पठार:
• इसका वनमावण क्षारीय लािा के जमने से होता है। क्षारीय लािा पतला होता है और बहुत दरू तक फै ल जाता
है। पररणामस्िरूप कम ऊाँचाई एिं मंद ढलान के उच्च भाग का वनमावण होता है। यह बेसावकटक लािा
धरातल के ऊपर मोटी परत के रूप में जमा होता जाता है। ये परतें लािा पठार या ट्रैप का वनमावण करती हैं।
• उदाहरण: दक्कन ट्रैप (भारत), कोलंवबया स्नैक पठार (USA), पराना पठार (ब्राजील), ड्रेकेन्द्सबगव पठार
(द. अरीका) एिं िलकै नो-वड-फ्यूगो (निाटेमाला)
5. ज्िालामख
ु ी पिात: इसका वनमावण अमलीय लािा के जमने से होता है। अमलीय लािा गाढ़ा एिं वचपवचपा
होता है। यह ज्िालामुखी मुख के पास ही जमकर ठोस बन जाता है पररणामस्िरूप एक उच्च तथा तीव्र ढाल की
स्थलाकृ वत का वनमावण होता है वजसे ज्िालामुखी पिवत कहते हैं।
6. गीजर (Gyser): इनका संबंध ज्िालामुखी वक्रया से होता है। ये गमव जल के ऐसे स्रोत हैं जहााँ से समय-समय
पर गमव जल की फुहारें वनकलती रहती हैं जैसे- ओकड फे थफुल गीजर (यलो स्टोन नेशनल पाकव , USA)
7. िआ
ु ँरे (Fumaroles): ये ज्िालामख
ु ी वक्रया की अंवतम अिस्था के प्रतीक हैं। इनसे गैस एिं जलिाष्प
वनकलता रहता है। उदाहरण: दस हजार धुआंरों की घाटी (अलास्का, USA), कोह सुकतान धुंआरा (ईरान), व्हाइट
द्वीप धुआंरा (न्द्यूजीलैंड)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
आतं ररक स्िलाकृवतयाँ
इन स्थलाकृ वतयों का वनमावण धरातल के अंदर मैनमा के जमकर ठोस हो जाने से होता है। इनमें वनमनवलवखत
स्थलाकृ वतयों को शावमल वकया जाता है –

• बैिोवलि: यह आननेय चट्टानों का वपण्ड है। यह मैनमा का भण्डार है जो पृथ्िी के अंदर वस्थत होता है। यहीं
से मैनमा ऊपर जाकर ज्िालामुखी के रूप में बाहर वनकलता है।
• लैकोवलि: ये गुंबदनुमा अंतभेदी चट्टान हैं जो अन्द्य चट्टानों पर ऊपर की ओर दबाि डालती हैं तथा एक
पठारी भूवम का वनमावण करती हैं। ये आकृ वतयााँ कनावटक के पठार में पायी जाती हैं।
• लैपोवलि: इसमें मैनमा धरातल के अंदर क्षैवतज रूप में तश्तरीनुमा आकृ वत में जमा होता है।
• फैकोवलि: जब चट्टानें मोडदार अिस्था में होती हैं तो मैनमा अपनवत या अवभनवत के तल पर जमा होता
है वजससे इसका वनमावण होता है।
• वसल: मैनमा जब चट्टानों के बीच में क्षैवतज रूप में जमा होता है तो वसल का वनमावण होता है।
• डाइक: जब मैनमा चट्टानों की दरारों में ऊध्िावधर रूप में जमा होता है तो वनवमवत आकृ वत को डाइक कहा
जाता है।

ज्िालामुखी के अंग:

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विश्व भूगोल राज होल्कर
ज्िालामुखी का िैवश्वक वितरण:
80 प्रवतशत ज्िालामुखी विनाशात्मक प्लेटों के वकनारों पर, 15 प्रवतशत रचनात्मक प्लेटों के वकनारों पर एिं शेष
ज्िालामुखी प्लेट के आंतररक भागों में पाए जाते हैं।
1. परर-प्रशांत महासागरीय मेखला (Circum Pacific Belt):
• यहााँ विनाशात्मक प्लेटों के वकनारों के सहारे ज्िालामुखी वमलते हैं।
• यहााँ विश्व के ज्िालामुवखयों का लगभग 2/3 भाग वमलता है जो प्रशांत महासागर के दोनों तटीय भागों,
द्वीप चापों एिं समुरी द्वीपों के सहारे पाया जाता है। इसे प्रशांत महासागर का अवनन िलय (Fire Ring
of the Pacific Ocean) कहा जाता है।
• यह पेटी अंटाकव वटका के माउंट इरे बस (एबुवश) से शुरू होकर दवक्षण अमेररका के एंडीज पिवतमाला
और उ० अमेररका के रॉकी पिवतमाला से होते हुए अलास्का, पूिी रूप, वफलीपींस आवद के आगे
मध्य महाद्वीपीय पेटी तक विस्तृत है।
2. मध्य महािीपीय पेटी (Mid- continental Belt):
• इस क्षेत्र में यूरेवशयन प्लेट तथा अरीकन ि इवं डयन प्लेट का अवभसरण होता है।
• इसकी एक शाखा अरीका की भ्रंश घाटी एिं दसू री शाखा स्पेन ि इटली होते हुए काके शस ि वहमालय
की ओर बढ़ते हुए दवक्षण की ओर मुड कर प्रशांत महासागरीय पेटी में वमल जाती है।
• मध्य महाद्वीपीय पेटी मुख्य रूप से अकपाइन - वहमालय पिवत श्रृंखला के साथ चलती है।
• भमू ध्य सागर के ज्िालामुखी इसी पेटी के अंतगवत आते हैं। इनमें स्ट्रॉमबोली, विसुवियस एिं माउंट
एटना प्रमुख हैं।
• इसी पेटी में कोह सुकतान (ईरान), देमबंद (ईरान) एिं अरारात (अमेवनया), कै मरून पिवत (प. अरीका)
आवद शावमल हैं।
• इस पेटी में भूमध्य सागर, काके शस, आमेवनया, ईरान, बलोवचस्तान, यूनान, मयांमार, इडं ोनेवशया एिं
अंडमान शावमल हैं।
3. मध्य अटलांवटक मेखला:
• ये रचनात्मक प्लेट वकनारों के सहारे वमलते हैं। यहााँ दो प्लेटों के अपसरण से भ्रंश का वनमावण होता है
वजससे ज्िालामुखी वक्रया की उत्पवि होती है।
• उदाहरण: हेकला एिं लॉकी (आइसलैंड के ज्िालामुखी), एंटलीज ज्िालामुखी (द. अटलांवटक
महासागर), एजोसव एिं सेंट हेलेना ज्िालामुखी (उ. अटलांवटक महासागर)
4. अफ्रीकन ररफ्ट िैली: यह अरीका के पूिी भाग में झील प्रदेश लेकर लाल सागर तक फै ली हुई है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व के प्रमुख ज्िालामुखी:
ओजेस डेल सलाडो – अजेंटीना एिं वचली माउंट रे वनयर – USA
माउंट शस्ता – USA कोटोपैक्सी – इक्िेडोर
पोपो कै वपटल – मैवक्सको मोनालोआ – हिाई डीप (USA)
माउंट कै मरून – कै मरून (अरीका) माउंट इरे बस – रॉस (अंटाकव वटका)
माउंट एटना – वससली (इटली) माउंट पीली – मावटवनीक द्वीप
हैक्ला एिं लाकी – आइसलैंड विसुवियस – नेपकस की खाडी (इटली)
वकवलमंजारो – तंजावनया मेयाना – वफलीपींस
इजाफ जालाजोकुल – आइसलैंड स्ट्रॉमबोली – वलपारी द्वीप (भूमध्य सागर)
क्राकाताओ – इडं ोनेवशया कटमई – अलास्का (USA)
वचमबाराजो – इक्िेडोर फ्यूजीयामा – जापान
माउंट ताल – वफलीपींस माउंट वपनाटुिो – वफलीपींस
देमबदं – ईरान कोह सकु तान – ईरान
माउंट पोपा – मयामं ार

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विश्व भूगोल राज होल्कर
भूकम्प [Earthquake]
भक
ू मप: पृथ्िी के अंतगवत एिं बवहजावत बलों के कारण ऊजाव का वनष्कासन होता है। यह ऊजाव तरंग उत्पन्द्न करती है
तथा ये तरंगें पृथ्िी पर सभी वदशाओ ं में फै लती हैं तथा कंपन उत्पन्द्न करती हैं। यह कंपन ही भूकमप कहलाता है।
भक
ू म्प की उत्पवि के कारक: भकू ं प उत्पवि के कारकों को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
1. प्राकृवतक कारक:
a. ज्िालामुखी वक्रया
b. प्लेटों की गवतशीलता
c. संतुलन स्थापना का प्रयास
d. िलन एिं अंशन
e. प्लूटोवनक घटनाएं
f. भूपटल (Crust) का संकुचन
g. भूगवभवक गैसों का फै लान
h. प्रत्यास्थ पुनश्चलन वसद्ांत
2. मानिीय कारक:
a. अवस्थर प्रदेशों में सड़क, बांध एिं विशाल जलाशय आवद का वनमावण
b. परमाणु परीक्षण

प्रत्यास्ि पुनश्चलन वसद्ांत (Elastic Rebound Theory): पृथ्िी के वनचले भाग में चट्टानें रबर की
भााँवत लचीली होती हैं। अत: वकसी तनाि या वखंचाि के कारण एक वनवश्चत सीमा तक धीरे -धीरे बढ़ती हैं और एक
वनवश्चत सीमा के पश्चात् टूट जाती हैं। टूटने के पश्चात चट्टानें पुन: अपनी प्रारंवभक वस्थवत में आने का प्रयास करती हैं।
पररणामस्िरूप पृथ्िी में कंपन उत्पन्द्न होता है वजससे भूकमप उत्पन्द्न होता है।
भक
ू ं प मल
ू (Focus): वजस स्थान पर भकू ं पीय तरंगे उत्पन्द्न होती हैं उसे भकू ं प मलू (Focus) कहते हैं।
भूकंप के न्र (Epi-centre): वजस स्थान पर सबसे पहले भूकंपीय तरंगों का अनुभि वकया जाता है, उसे भूकंप
के न्द्र कहते हैं। यह भूकंप मूल (Focus) के ठीक ऊपर धरातल पर वस्थत होता है।
समघात रेखाएं (Isoseismal Lines): यह भकू ं पीय तरंगों द्वारा उत्पन्द्न समान घात क्षेत्रों ( Places of
Equal Intensity) को वमलाने िाली रे खाएं हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
भूकंपीय तरंगें: इन्द्हें तीन श्रेवणयों में विभावजत वकया जाता है –
1. प्रािवमक अििा अनुदैध्या तरंगें (Primary or Longitudinal Waves):
• इन्द्हें ‘P-तरंगें’ भी कहा जाता है।
• ये अनदु ैध्यव तरंगें होती है एिं ध्िवन तरंगों की भांवत चलती हैं।
• भूकंपीय तरंगों में सिाववधक तीव्र गवत इसी की होती है।
• ये ठोस, तरल एिं गैस सभी माध्यमों से होकर गुजर सकती हैं।
• भूकंप के दौरान धरातल पर सबसे पहले यही तरंगें पहुचं ती हैं।
• इनकी सिाववधक गवत ठोस में होती है।
2. अनुप्रस्ि तरंगे (Transverse Waves) या ‘S-तरंगें’:
• ये प्रकाश तरंगों के समान चलती हैं।
• ये तरंगें के िल ठोस माध्यम में ही चलती हैं।
• तरल माध्यम में ये तरंगे प्रायः विलुप्त हो जाती हैं।
• P - तरंगों की तुलना में इनकी गवत 40 प्रवतशत कम होती है।
• पृथ्िी की क्रोड (Core) में ये तरंगें नहीं गुजर पाती इसी कारण पृथ्िी के क्रोड के तरल होने का अनुमान
लगाया जाता है।
3. िरातलीय तरंगें (Surface Waves) या ‘L-तरगं ें':
• ये तरंगें ठोस एिं तरल माध्यम से होकर गुजर सकती हैं।
• ये तरंगें पृथ्िी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती हैं।
• ये तरंगें अत्यवधक प्रभािशाली एिं सिाववधक विनाशकारी होती हैं।
• इन तरंगों की गवत बहुत धीमी होती है। ये तरंगें सबसे लंबा मागव तय करती हैं।
• इन तरंगों में कमपन्द्न की गवत सिाववधक होती है।

भूकम्प मापने िाले यंत्र:


• सीस्मोग्राफ: वजन यत्रं ों द्वारा भक
ू मपीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्द्हें सीस्मोग्राफ कहते हैं।
• मरके ली स्के ल: इसके द्वारा भूकंप की तीव्रता की माप उसके विनाशकारी प्रभाि के रूप में गुणात्मक
मापन द्वारा मापी जाती है। िैज्ञावनकों ने इस पैमाने को प्रमावणक नहीं माना। इसमें 12 अंक होते हैं।
• ररक्टर स्के ल: इसके द्वारा भूकमप की तीव्रता और पररणाम मापा जाता है। इसमें 1- 9 तक की संख्याएं
होती हैं। इसमें प्रत्येक संख्या अपने पीछे िाली संख्या से 10 गुना तेज भूकंप तीव्रता प्रस्तुत करती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
भूकम्पों का िैवश्वक वितरण:
1. प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी (Circum Pacific Belt):
• यह विश्व का सबसे विस्तृत भक
ू मप क्षेत्र है, यहााँ समपणू व विश्व के लगभग 63% भक
ू मप आते हैं।
• इस क्षेत्र में प्रशातं महासागर के चारों ओर के समरु तटीय भाग सवममवलत हैं- वचली, कै वलफॉवनवया,
अलास्का, जापान, वफलीपींस एिं न्द्यजू ीलैंड आवद।
• यहााँ भक ू मपों की अवधकता का कारण प्लेट अवभसरण, निीन िवलत पिवतों का क्षेत्र, ज्िालामख ु ी
वक्रयाएं, क्रस्ट के चट्टानी संस्तरों में भ्रंशन।
2. मध्य महािीपीय पेटी:
• इस पेटी में विश्व के लगभग 21% भूकमप आते हैं।
• यह प्लेट अवभसरण का क्षेत्र है। यहााँ आने िाले भूकमप भ्रंशमूलक होते हैं।
• यह पेटी के प िडे से आरमभ होकर अटलांवटक महासागर, भूमध्य सागर से आगे बढ़ते हुए आकपस,
काके शस, वहमालय से होते हुए प्रशातं महासागरीय पेटी में वमल जाती हैं।
• भारत का भक ू ं पीय क्षेत्र इसी पेटी में शावमल वकया जाता है।
3. मध्य अटलांवटक पेटी:
• यह पेटी मध्य अटलांवटक कटक के सहारे वस्थत है। इस क्षेत्र में प्लेट अपसरण के कारण भ्रंश का
वनमावण होता है वजससे ज्िालामुखी वक्रया होती है तथा भूकमप आते हैं।
• इस पेटी के सिाववधक भूकमप भूमध्य रे खा के आस-पास आते हैं।
4. अन्य क्षेत्र:
• नील नदी से लेकर समपूणव अरीका का पूिी भाग
• अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र
• वहन्द्द महासागरीय क्षेत्र
अन्य महत्िपण
ू ा तथ्य:
• भूकमप आने से पहले िायुमंडल में रे डॉन गैस की मात्रा बढ़ती है।
• भूकमप मूल (Focus) से वनकलने िाली ऊजाव प्रत्यास्थ ऊजाव होती है।
• समान भूकंप तीव्रता िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खाएं आइसो सीस्मल रे खाएं कहलाती हैं।
• 105° और 145° के बीच का क्षेत्र भूकमपीय छाया क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में P तथा S तरंगें अनुपवस्थत
होती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
अन्तजाात एिं बवहजाात बल
अन्तजाात बल (Endogenic Force): पृथ्िी के आंतररक भाग से लगने िाले बल को अन्द्तजावत बल कहा
जाता है। इसे रचनात्मक भू-संचलन भी कहा जाता है क्योंवक इससे विवभन्द्न स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
कारक: भू-संचलन, भूकमप, ज्िालामुखी एिं भू-स्खलन
बवहजाात बल: यह बल पृथ्िी की सतह के ऊपर कायव करता है एिं अन्द्तजावत बलों द्वारा वनवमवत स्थलाकृ वतयों
को समतल रूप में पररिवतवत करता है।
कारक: अपक्षय, अपरदन, गरुु त्िाकषवण एिं वनक्षेपण

अन्द्तजावत बल

पटल विरूपणी बल आकवस्मक संचलन


(दीघवकावलक
सचं लन) भक
ू ंप ज्िालामख
ु ी भ-ू स्खलन

महाद्वीप वनमावणकारी बल पिवत वनमावणकारी बल


(लंबित संचलन) (क्षैवतज सचं लन)

संपीडन तनाि
उपररमख
ु ी अधोमख
ु ी
संचलन िलन भ्रंशन चटखन दरार

दीघाकावलक संचलन [पटल विरूपणी बल]:


• दीघवकावलक सचं लन से विशाल भू-भाग धीरे - धीरे ऊपर उठते हैं या नीचे धाँसते हैं। इसके द्वारा िृहत
स्थलरूपों का सृजन होता है।
• इस बल द्वारा महाद्वीप, पिवत एिं पठारों का वनमावण होता है।
• वदशा के आधार पर यह दो प्रकार का होता है –
1. लबं ित / ऊध्िावधर सचं लन [महाद्वीप वनमावणकारी]
2. क्षैवतज सचं लन [पिवत वनमावणकारी]
1. लबं ित / ऊध्िाािर सच
ं लन (महािीप वनमााणकारी):

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• ऊध्िावधर संचलन में भू-पृष्ठ का एक विस्तृत क्षेत्र ऊपर- उठता है या नीचे धाँसता है।
• इसमें िलन या मोड की कोई वक्रया नहीं होती।
• इस वक्रया द्वारा महाद्वीप, पठार एिं मैदान का वनमावण होता है।
• भ्रंशोत्थ पिवतों का वनमावण भ्रंशन एिं लंबित संचलन द्वारा होता है।
• पृथ्िी के अन्द्तजावत बलों के ऊध्िावधर लगने के फलस्िरूप क्रस्ट के दो भागों में टूटने से महाद्वीपों का
वनमावण होता है।

2. क्षैवतज संचलन (पिात वनमााणकारी):

• यह अपेक्षाकृ त छोटे क्षेत्रों में शुरू होता है। इसके द्वारा चट्टानें क्षैवतज वदशा में गवत करती हैं तथा उनमें
अत्यवधक मोड आते हैं। कभी-कभी टूटी हुई परतें एक-दसू रे के ऊपर चढ़ जाती हैं।
• क्षैवतज संचलन में दो प्रकार के बल कायव करते हैं –
I. दबाि या संपीडन (Compression)
II. तनाि बल (Tension)
• संपीडन एिं तनाि बल दोनों एक दसू रे से संबंवधत हैं। इनसे चट्टानों पर दो प्रकार की गवतयााँ उत्पन्द्न
होती हैं – वसकुडन एिं प्रसार
• चट्टानों में वसकुडन आते ही मोड पडने लगते हैं एिं प्रसार के कारण चटकन एिं भ्रशं न होते हैं।
• भ-ू पृष्ठ पर पिवतों का वनमावण संपीडन एिं तनाि बल द्वारा होता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िलन के प्रकार (Types of Folds): क्षैवतज संचलन द्वारा लगने िाले संपीडन बल के कारण चट्टानों में
उत्पन्द्न होने िाले मुडाि को िलन (Fold) कहते हैं। इसके वनमनवलवखत प्रकार हैं –
a. समवमत िलन (Symmetrical Fold): इस प्रकार के िलन में िलन की दोनों भुजाओ ं का झक
ु ाि
समान एिं अक्ष रे खा लमबित होती है।

b. असमवमत िलन (Asymmetrical Fold): िलन की एक भुजा दसू री भुजा की अपेक्षा कम या अवधक
झुकी होती है।

c. एकनत िलन (Monoclinal Fold): इसमें एक भुजा धरातल से समकोण बनाती है परन्द्तु दसू री भुजा
साधारण रूप से झुकी हुई होती है।

d. समनत िलन (Isoclinal Fold): िलन की दोनों भुजाएं एक ही वदशा में झुकी हुई होती है तथा एक
दसू रे के समानान्द्तर हो जाती हैं।

e. पररिलन / शयन िलन (Recumbent Fold): िलन की दोनों भुजाएं परस्पर समानान्द्तर होती हुई
क्षैवतज वदशा में हो जाती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
भ्रंश (Fault): भ-ू संचलन में तनाि बल के कारण चट्टानों में एक तल के सहारे भ्रंश का वनमावण होता है।
भ्रंश सामान्द्यतः चार प्रकार का होता है –
1. सामान्य भ्रंश (Normal Fault): इसमें भ्रंश तल के सहारे दोनों ओर के शैलखंड विपरीत वदशा में
वखसकते हैं।
2. व्युत्क्रम भ्रंश: भ्रंश तल के सहारे दो शैलखंड आमने-सामने वखसकते हैं। बाद में एक शैलखंड दसू रे पर
चढ़ जाता है।
3. पावश्वाक भ्रंश: भ्रंश तल के सहारे शैल खंडों में क्षैवतज संचलन होने पर पावश्ववक भ्रंश का वनमावण होता है।
4. सोपानी भ्रंश: इसमें समानांतर भ्रंश इस प्रकार पाए जाते हैं वक सभी भ्रंश तलों के ढाल की वदशा समान
होती हैं।
भ्रंशन िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ: भ्रंशन वक्रया द्वारा वनमनवलवखत स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है –
1. भ्रश
ं घाटी (Rift Valley):
• भ्रशं घाटी का वनमावण तब होता है जब दो भ्रशं रे खाओ ं के बीच के चट्टानी स्तभं नीचे धसं जाते हैं। जब
तनाि बल के कारण दो भख ू डं विपरीत वदशा में वखसकते हैं तो भ्रश
ं घाटी का वनमावण होता है।
• जॉडवन की भ्रश
ं घाटी में मृत सागर वस्थत है।
• अरीका में न्द्यासा, रूडोकफ, टंगावनका, अकबटव एिं एडिडव झीलें भ्रंश घाटी में वस्थत हैं।
• कै वलफॉवनवया (USA) की मृत घाटी भी भ्रंश घाटी है।
• ऑस्ट्रेवलया की स्पेन्द्सर खाडी, भारत की नमवदा, ताप्ती एिं दामोदर नदी घावटयााँ भ्रंश घाटी के उदाहरण
हैं।
2. रैम्प घाटी (Ramp Valley):
रै मप घाटी का वनमावण तब होता है जब दो भ्रंश रे खाओ ं के बीच का स्तंभ यथावस्थवत में ही रहे वकन्द्तु
संपीडनात्मक बल के कारण वकनारे के दोनों स्तंभ ऊपर उठ जाएं। जैसे – ब्रह्मपुत्र घाटी
ब्लॉक पिात (Block Mountain): जब दो भ्रंशों के बीच का स्तंभ यथाित रहे एिं वकनारे के स्तंभ
नीचे धाँस जाएाँ तब ब्लॉक पिवत का वनमावण होता है। उदाहरण – सतपुडा (भारत), ब्लैक फॉरे स्ट (जमवनी),
िॉस्जेज पिवत (जमवनी), िासाच रें ज (USA), वसएरा नेिादा (USA) एिं साकट रें ज (पावकस्तान)
हॉस्टा पिात (Horst Mountain): जब दो भ्रश ं ों के वकनारे के स्तभं यथाित रहे एिं बीच का स्तभं ऊपर
उठ जाए तो हॉस्टव पिवत का वनमावण होता है। उदाहरण – जमवनी का हॉजव पिवत

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विश्व भूगोल राज होल्कर
बवहजाात बल
• बवहजावत प्रवक्रयाएाँ अपनी ऊजाव सूयव द्वारा प्राप्त ऊजाव एिं अंतजववनत शवक्तयों से उत्पन्द्न (Gradient) से प्राप्त
करती हैं।
• अनाच्छादन (Denudation) के अंतगवत अपक्षय (Weathering), अपरदन, पररिहन एिं िृहत् क्षरण को
वकया जाता है।
अपक्षय (Weathering): चट्टानों के अपने ही स्थान पर कमजोर होने, टूटने, सड़ने तथा विखवण्डत होने
को अपक्षय कहते हैं।
कारक:
1. भौवतक एिं यांवत्रक अपक्षय:
• ताप: यह शुष्क एिं उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों में अवधक होता है। तापांतर के कारण चट्टटानों में फै लने
और वसकुडने से तनाि उत्पन्द्न होता है। इससे बड़ी चट्टानें टुकड़ों में विघवटत हो जाती हैं।
• अपशल्कन (Exfoliation): कुछ चट्टानें ऊष्मा की अच्छी चालक नहीं होती अतः ताप के कारण
उनका ऊपरी भाग अत्यवधक गमव हो जाता है और आंतररक भाग ठण्डा बना रहता है। अतः चट्टानों
का ऊपरी भाग प्याज के वछलकों की तरह चट्टान से टूट जाता है।
• तर्ु ार चीरण / चट्टानों में जल प्रिेश: यह वक्रया मध्य अक्षांशों या अवधक ऊाँचाई पर वस्थत चट्टानों
में होती है। इसमें सिवप्रथम चट्टानों के अंदर जल प्रिेश कर जाता है एिं वहमकरण होने पर जल बफव में
बदल जाता है वजससे जल का आयतन बढ़ जाता है और चट्टानों को देता है।
• दाब मुवक्त: अपरदन के कारण जब ऊपरी चट्टानें हट जाती हैं तो नीचे की चट्टानों को दाब से मुवक्त
वमल जाती है इससे चट्टानों में विसरण होता है और दरारें आ जाती हैं।
• लिण अपक्षय: चट्टानों में नमक तापीय वक्रया, जलयोजन एिं वक्रस्टलीकरण के कारण फै लता है।
सोवडयम, पोटेवशयम, कै वकसयम आवद लिणों में आयतवनक फै लाि की प्रिृवि होती है। अतः सतह
के उच्च तापमान के कारण ये लिण आयतन में िृवद् करते हैं। इससे चट्टानों में अपक्षय होने लगता है।
2. रासायवनक अपक्षय:
यह अवधकतर कोष्ण तथा आरव प्रदेशों में होता है। इसमें ऊष्मा के साथ जल एिं िायु की विद्यमानता
आिश्यक है।
a. जलयोजन (Hydration): खवनज स्ियं जलधाररत करके विस्ताररत हो जाते हैं तथा आयतन में
िृवद् हो जाने के कारण चट्टानों को तोड़ते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
b. काबोनीकरण (Carbonation): यह कै वकसयम युक्त चट्टानों में देखी जाती है क्योंवक कै वकसयम
काबोनेट एिं मैननीवशयम काबोनेट काबववनक एवसड में घुल जाता है। इस वक्रया द्वारा कास्टव
स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
c. ऑक्सीकरण (Oxidation): इस वक्रया में जल तथा िायु में वमली हुई ऑक्सीजन लौहयक्त ु , चट्टानों
को ऑक्साइडों के रूप में बदल देती है और लौह यक्त
ु चट्टानें भरु भरु ी होकर नि हो जाती हैं।
भौवतक अपक्षय एिं रासायवनक अपक्षय में अंतर:
रासायवनक अपक्षय भौवतक अपक्षय
यह उष्ण एिं आरव प्रदेशों में होता है। यह शीत एिं शष्ु क प्रदेशों में होता है।
रासायवनक वक्रया द्वारा शैलों का अपक्षय। भौवतक बल द्वारा चट्टानों का अपक्षय।
चट्टानों में रासायवनक पररितवन आता है। रासायवनक पररितवन नहीं आता।
मुख्य कारक: ऑक्सीकरण, जलयोजन, मुख्य कारक : लाप, पाला एिं दाबमुवक्त।
काबोनीकरण एिं विलयन।
इसमें चट्टानें के िल तल पर ही प्रिावहत होती हैं। इसमें चट्टानें एक साथ काफी गहराई तक प्रभावित
होती हैं।

3. जैविक अपक्षय:
• िनस्पवत तथा जीि जन्द्तु चट्टानों के विघटन तथा वियोजन में सहयोग प्रदान करते हैं।
• जैविक अपक्षय के तीन कारक हैं- िनस्पवत, जीि जन्द्तु एिं मानि
• कीडे- मकोड़े तथा वबलकारी प्राणी लगातार धरातलीय चट्टानों को ढीली एिं पोली बनाते हैं वजससे
उनका विघटन आसानी से हो जाता है।
• िनस्पवतयााँ अपनी जडों द्वारा चट्टानों में दरारे पैदा कर अपक्षय में अपनी भूवमका वनभाती हैं।
• मानिीय गवतविवधयों जैसे खनन एिं वनमावण कायव, अपक्षय में सहायक होती हैं।

अपरदन (Erosion)
अपक्षय द्वारा प्राप्त पदाथों का अन्द्यत्र स्थानान्द्तरण पररिहन कहा जाता है तथा पररिहन वक्रया में पदाथों का अपक्षय
अपरदन कहलाता है। अपरदन की प्रवक्रयाएं वनमनवलवखत हैं –

• अपघर्ाण (Abrasion): जब वकसी प्रक्रम द्वारा अपने साथ काँ कड, पत्थर, बालू आवद बहाकर लाए जाते
हैं तो ये कंकड़-पत्थर अपने संपकव में आने िाली चट्टानों का घषवण द्वारा क्षरण करते हैं। यह अपघषवण
कहलाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• सवन्नघर्ाण (Attrition): वकसी प्रक्रम के साथ बहने िाले पदाथव आपस में टकराकर जब टूटते हैं तो यह
वक्रया सवन्द्नघषवण कहलाती है।
• घोलन या संक्षारण (Corosion): घुलनशील चट्टानें जैसे- चनू ा पत्थर एिं डोलोमाइट आवद का
जलवक्रया द्वारा घुलकर शैल से अलग होना घोलन कहलाता है। यह भूवमगत जल तथा बहते जल द्वारा
होता है। इसके द्वारा कास्टव आकृ वतयों का वनमावण होता है।
• जलगवत वक्रया (Hydraulic Action): जब जल की तीव्र गवत के द्वारा चट्टानों में टूटफूट होती है तो
इसे जलगवत वक्रया कहा जाता है। यह सागरीय लहरों एिं नदी द्वारा होती है।
• जलदाब वक्रया (Water Pressure): जब कोई चट्टान जल के दाब द्वारा टूटती है तो यह जलदाब वक्रया
कहलाती है। यह सागरीय लहरों द्वारा संपन्द्न होती है।
• उत्पाटन (Plucking): जब वहमावनयााँ अपने प्रिाह मागव में पड़ने िाली चट्टानों को तोड़ते हुए आगे बढ़ती
हैं तो यह वक्रया उत्पाटन कहलाती है।
• अपिहन (Deflation): यह पिनों द्वारा होता है। इसमें पिनों द्वारा चट्टानों को तोड़ा जाता है और अपने
साथ बहाकर ले जाया जाता है।
नोट:

• भौवतक अपक्षय को विघटन एिं रासायवनक अपक्षय को वियोजन कहा जाता है।
• अपरदन में अपक्षय एिं पररिहन वक्रया साथ-साथ होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
स्िलाकृवतयाँ
अपरदन के प्रक्रम: नदी, भूवमगत जल, सागरीय तरंगें, वहमानी, पररवहमानी एिं पिन।
स्िलाकृवतयों के प्रकार:
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वत
B. वनक्षेपणात्मक स्थलाकृ वत

1. नदी िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


A. अपरदनात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• V आकार की घाटी: नदी द्वारा अपनी घाटी में वकये गए ऊध्िावधर कटाि के कारण घाटी पतली, गहरी
और V आकार की हो जाती है। इसमें दीिारों का ढाल तीव्र एिं उिल होता है। आकार के अनुसार, ये दो
प्रकार के होते हैं –
o गॉजा: यह बहुत गहरी एिं साँकरी घाटी होती है।
o कै वनयन: गॉजव के विस्तृत रूप को कै वनयन कहा है। यह अपेक्षाकृ त खडी ढाल िाली होती है।
• जलप्रपात ि वक्षवप्रकाए:ं जब नदी के मागव में कठोर एिं मुलायम चट्टानें अनुप्रस्थ वदशा में अिवस्थत
हो तो कोमल चट्टानों का अपरदन हो जाता है। फलत: नदी की तली ऊबड़-खाबड़ हो जाती है। इस ढाल
पर नदी तीव्र झोंके की तरह आगे बढ़ती है, वजसे वक्षवप्रका (Rapid) कहते हैं।
• जलप्रपात: जब नवदयों का जल ऊंचाई से खडे ढाल से तीव्र िेग से नीचे की ओर वगरता है तो उसे जल
प्रपात कहते हैं। इसका वनमावण चट्टानी संरचना में विषमता के कारण असमान अपरदन, भूखंड में उत्थान,
भ्रंश कगारों के वनमावण आवद के कारण होता है।

• जलगवताका (Potholes): जब जलप्रपात की तली में कोमल चट्टान आती है तो उसका अपरदन हो
जाता है एिं िहााँ पर छोटा सा एक गतव बन जाता है। नदी को जल इस गतव में भिं र के रूप में घमू ने लगता
है। जो छे दक का कायव करता है।
• नदी-विसपा (Meanders): मैदानी क्षेत्रों में नदी की धारा अवधक अिसादी बोझ के कारण दाएं-बाएं
बलखाती प्रिावहत होती है और विसपव बनाती है। विसपव बनने के कारण –

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विश्व भूगोल राज होल्कर
o मंद दाल पर बहते जल में तटों पर क्षैवतज या पावश्ववक कटाि करने की प्रिृवत का होना।
o तटों पर जलोढ़ या अवनयवमत ि असंगवठत जमाि वजससे जल के दबाि के कारण नदी पाश्वों का
बढ़ना।
o प्रिावहत जल का कोररयावलसल बल के प्रभाि से विक्षेपण।
• गोखुर झील (Oxbow Lake): जब नदी अपने विसपव को त्यागकर सीधे मागव से प्रिावहत होती हैं।
नदी का अिवशि भाग गोखुर झील बन जाता है।

B. वनक्षेपण िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


• जलोढ़ शक ं ु : जब नवदयााँ पिवतीय भाग से वनकलकर समतल प्रदेश में प्रिेश करती हैं तो चट्टानों के बड़े -
बड़े अिसाद पीछे छूट जाते हैं तथा उनसे बनी आकृ वत जलोद शंकु कहलाती है। विवभन्द्न जलोढ शंकुओ ं
के वमलने पर भाबर प्रदेश का वनमावण होता है।
• जलोढ़ पख ं (Alluvial Fans): नदी का जल जलोढ शकं ु ओ ं को अनेक धाराओ ं द्वारा पार करता
है और तलछट के वनक्षेप द्वारा पंखनुमा मैदान का वनमावण करता है वजसे जलोढ़ पंख कहते हैं। अनेक जलोढ
पंखों के वमलने से वगररपाद मैदान या तराई प्रदेश का वनमावण होता है।
• गुवम्फत नदी (Braided Rivers): वनचली घाटी में नदी की भार िहन की शवक्त बेहद कम हो जाती
है एिं सपाट मैदान वदखाई देता है। भारिहन क्षमता में कमी के कारण नदी अपने तल पर ही वनक्षेषण कर
देती है वजससे उसकी धारा अिरुद् हो जाती है पररणामस्िरूप नदी अब कई शाखाओ ं में बंट जाती है।
अनेक धाराओ ं से युक्त यह नदी गुवमफत नदी कहलाती है।
• प्राकृवतक तटबंि: नदी में अवधक मात्रा में जल आने से उसके वकनारों को पार करके जल बहने लगता
है। इस अिस्था में नदी की पररिहन शवक्त एिं अिसाद दोनों ही अवधक हो जाते हैं। इस दौरान नदी के दोनों
वकनारों पर अत्यवधक मात्रा में वनक्षेप होने लगता है। वनक्षेपण के पररणामस्िरूप तटबधं ों का वनमावण होता
है।
• बाढ़ का मैदान: नदी में अत्यवधक जलरावश एिं पररिहन भार बढ़ने से नदी वनमनिती क्षेत्रों में अपने
अिसादों का वनक्षेपण करती है। इस कारण नदी की धारा अिरुद् हो जाती है एिं नदी का जल आस-पास
के मैदानों में फै ल जाता है। यह एक मैदान के समान वदखाई देता है। इसे ही बाढ़ का मैदान कहा जाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• डेल्टा (Delta): वनमनिती मैदानों में ढाल की कमी एिं अिसादों की अवधकता के कारण नही की
पररिहन क्षमता कम हो जाती है। इन क्षेत्रों में नदी अपने अिसादों का जमाि करने लगती है। इसे डे कटा
जैसी आकृ वत के रूप में देखा जा सकता है।
o डेकटा के प्रकार:
▪ चापाकार डेकटा (Arcuate Delta): उदाहरण – नील, नाइजर, वसंध,ु इरािदी, िोकगा,
डेन्द्यूब, पो, गंगा-ब्रह्मपुत्र, मेकांग एिं लीना आवद।
▪ पजं ाकार डेकटा: उदाहरण – वमसीवसपी एिं वमसौरी नदी।
▪ दन्द्ताकार डेकटा: उदाहरण – टाइबर (इटली) एिं इब्रो (स्पेन) नदी।
▪ ज्िारनदमुख डेकटा (Estuarine Delta): उदाहरण – अमेजन, नमवदा, ताप्ती, सीन, ओब
एिं विश्चुला नदी।

2. भवू मगत जल िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


• जब चट्टानें पारगमय, कम सघन, अत्यवधक जोड, संवध ि दरारों िाली हो तो धरातलीय जल का अंत:
स्त्रिण (Infilteration) आसानी से होता है।
• भवू मगत जल, चनू ा पत्थर या डोलोमाइट जैसी चट्टानों वजनमें कै वकसयम काबोनेट की प्रधानता होती है, में
घोलीकरण ि अिक्षेपण द्वारा अनेक स्थल रूपों का विकास करता है। ऐसे स्थलरूपों को कास्टव स्थलाकृ वत
कहा जाता है।
A. अपरदनात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• लैपीज (Lapies): िषाव जलवक्रया द्वारा चट्टानों के कुछ अश ं को घल
ु ाकर भवू म के अदं र प्रिेश करता
है तो सतह के ऊपर वमट्टी की एक पतली परत विकवसत हो जाती है वजसे टेरारोसा कहा जाता है। जल की
घुलन वक्रया के फलस्िरूप ऊपरी सतह अत्यवधक ऊबड-खाबड़ हो जाती है वजसे लैपीज कहा जाता है।
• घोलरंध्र (Sink Holes): चनू ा पत्थर क्षेत्रों में िषाव जल विलयन वक्रया द्वारा चट्टानों की संवधयों पर
कई छोटे-छोटे वछरों का वनमावण करता है। इन्द्हें घोलरंध्र कहते हैं।
o विलयन रध्र ं (Swallow Holes): जब घोलरंध्रों का आकार बढ़ जाता है।
o डोलाइन (Doline): जब विलयन रंध्रों का आकार बढ़ जाता है।
o युिाला (Uvala): जब डोलाइन वमलकर एक विस्तृत गतव का रूप धारण करते हैं।
o पोल्जे: यह युिाला से भी अवधक विस्तृत गतव होता है।
• कन्दरा (caverns): इसका वनमावण घुलन वकया तथा अपघषवण द्वारा होता है। यह ऊपरी सतह के नीचे
एक ररक्त स्थान होती है और इसके अंदर वनरंतर जल का प्रिाह होता रहता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• अंिी घाटी (Blind Valley): कास्टव प्रदेशों में नवदयों का जल विलयन रंध्रों से नीचे की ओर ररसने
लगता है एिं नवदयों की आगे की घाटी शुष्क रह जाती है, वजसे शुष्क घाटी कहते हैं। जबवक घाटी का
वपछला भाग अंधी घाटी कहलाता है।
B. वनक्षेपणात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• स्टेलेक्टाइट (Stalectite): भवू मगत कंदराओ ं में जल के िाष्पीकरण के फलस्िरूप कन्द्दरा के तल
एिं छत पर कै वकसयम काबोनेट का वनक्षेप होने लगता है। ये वनक्षेप लमबे एिं पतले स्तंभों के रूप में होता
है जो वनक्षेप कन्द्दरा की छत से लटककर तल की ओर बढ़ता है उसे स्टेलेक्टाइट कहा जाता है।
• स्टेलैग्माइट (Stalegmite): ऊपर से टपक रही बूाँदें जब कन्द्दरा के तल पर वनरंतर वगरती हैं तो उससे
वनवमवत आकृ वत ऊपर की ओर विकवसत होने लगती है वजसे स्टेलैनमाइट कहते हैं।

3. वहमानी (Glaciers) िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


पृथ्िी पर परत के रूप में प्रिावहत या पिवतीय ढालों से घावटयों में रै वखक प्रिाह के रूप में बहती वहम संहवत (Mass)
को वहमनद (Glacier) कहते हैं।
A. अपरदनात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• U आकार की घाटी: पिवतों पर पहले से मौजूद नदी घाटी में वहमानी के लंबित् अपरदन से U आकार
की घाटी का वनमावण होता है।
• लटकती घाटी (Hanging Valley): जब वकसी मुख्य वहमनद से कोई सहायक वहमनद आकर
वमलती है तो सहायक वहमनद की घाटी मख्ु य वहमनद की घाटी पर लटकती सी प्रतीत होती है वजसे लटकती
घाटी कहते हैं।
• वहम गह्वार / सका (Cirque): जब वकसी पिवतीय भाग से वहमावनयााँ हटती हैं तो िहााँ आरामकुसी
की तरह की आकृ वत बनती है वजसे सकव कहा जाता है।
• एरीट (Arete): वकसी पिवत के दोनों ओर सकव के विकवसत होने से मध्य का भाग अपरवदत हो जाता
है। अपरवदत होकर यह भाग नुकीला हो जाता है वजसे एरीट कहते हैं।
• वगररिृंग या हॉना (Horn): जब वकसी पिवतीय भाग पर चारों ओर से सकव बनने लगते हैं तो बीच का
नुकीला शीषव हॉनव कहलाता है। एिरे स्ट िास्ति में एक हॉनव हैं।
• नुनाटक (Nunatak): वकसी पिवतीय भाग में वहमाच्छादन के बािजूद चट्टानों के वनकले हुए ऊंचे टीले
ननु ाटक कहलाते हैं।
• भेडवशला/भेडपीठ (Roche Mountanne): वहमानी के मागव में जब कोई बड़ी ऊाँची चट्टान
अिरोधक के रूप में आती है तो वहमानी उसके ऊपर से बहने लगती है तथा चढ़ते समय अपघषवण के

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विश्व भूगोल राज होल्कर
कारण इसे मन्द्द एिं वचकना कर देती हैं। वकन्द्तु, विपरीत वदशा की ढाल वजस पर वहमानी उतरती है, को
तोड फोड कर अवधक तीव्र ऊबड़-खाबड ढाल बना देती है। ऐसे चट्टानी टीले दरू से देखने पर भेड़ की पीठ
के समान वदखते हैं। अतः इन्द्हें भेडवशला कहते हैं।

B. वनक्षेपणात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• एस्कर: वहमानी-जलोढ के द्वारा वनक्षेवपत स्थान पर सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी एक स्थलाकृ वत वनवमवत होती
है, वजसे एस्कर कहा जाता है।
• वहमोढ़ (Moraines): ये वहमनद वटल या गोलाश्मी मृवतका के जमाि की लबं ी कट्कें हैं। वहमावनयों
द्वारा अपरवदत ि परिवहत पदाथों का वनक्षेप वहमोढ़ कहलाता है। यह प्राय: उन्द्ही स्थानों पर होता है जहााँ
वहमावनयााँ वपघलकर जल में पररिवतवत होने लगती हैं।
• वटल मैदान: वहमानी द्वारा विस्तृत क्षेत्र में बोकडर क्ले के वनक्षेपण के फलस्िरूप वटल मैदान का वनमावण
होता है। उिरी अमेररका के प्रेयरी के मैदान वटल मैदान के उदाहरण हैं।
• ड्रमवलन (Drumlin): जब वहमावनयों के तलस्थ वहमोढ का थोडे-थोड़े समय पर गुंबदाकार टीलों के
रूप में जमाि होता है तो उससे बनी स्थलाकृ वतयों को ड्रमवलन कहते हैं। इसका आकार उकटे नौका के
समान होता है।
• वहम-जलोढ मैदान (Out Wash Plain): वहमनद के वपघलने पर उसका जल कई धाराओ ं में बंट
जाता है एिं डेकटा के समान धरातल पर एक विशेष प्रकार के मैदान का वनमावण करता है। इसे वहम-जलोढ
मैदान कहते हैं।

4. पिन िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


पिन के काया:

• अपघर्ाण (Abrasion or Corrosion): अपघषवण द्वारा बालू के कणों से युक्त पिनें चट्टानों को वघसकर
वचकना बना देती हैं।
• अपिाहन (Deflation): इस वक्रया द्वारा पिन असंगवठत चट्टानी कृ णों को उडाकर ले जाती है फलतः
धरातल पर गतों का वनमावण होता है वजन्द्हें िात गतव कहते हैं।
• सवन्नघर्ाण (Attrition): इस वक्रया के द्वारा पिन के साथ उडते हुए रे त के कण परस्पर घषवण द्वारा छोटे
हो जाते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
A. अपरदनात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• इन्सेलबगा (Inselberg): पिन के प्रभािकारी अपरदन से जब चट्टानी भाग कट-छाँ टकर समतल हो
जाता है और यत्र-तत्र कडे चट्टान टीले के रूप में उभरे रहते हैं। इन गबुं दाकार टीलों को ही इन्द्सेलबगव कहते
हैं।

• यारडाग ं (Yardang): जब कठोर तथा कोमल चट्टानें लमबित वदशा में एक दसू रे के समानातं र खड़ी
हो तो िायु कोमल चट्टानों का अपरदन कर देती है और कठोर चट्टानें नुकीले स्तंभों के रूप में खड़ी रहती
हैं, इन्द्हें यारडांग कहते हैं।

• ज्यग ू ेन (Zeugen): धरातल पर जब कोमल चट्टान के ऊपर कठोर चट्टान क्षैवतज वदशा में वबछी रहती
है तो अपक्षय के कारण ऊपरी चट्टान में दरारें पड़ जाती हैं। पिन की अपरदन वक्रया से ये दरारें बढ़ती जाती
हैं। नीचे की कोमल चहटान को िायु उड़ा ले जाती है। इस प्रकार कोमल चटान के ऊपर कठोर चट्टान मेज
की भााँवत वदखाई देने लगती है, वजसे ज्यूगेन कहते हैं।

• छत्रक शैल या गारा (Mushroom Rock or Gara): पिन द्वारा अपरवदत शैल के हकके तथा
बारीक कण अवधक ऊंचाई तक उठाए जाते हैं तथा भारी एिं बड़े कण धरातल के साथ घसीटे जाते हैं। बड़े
कण छोटे कणों की अपेक्षा अवधक कटाि करते हैं। इससे मरू भवू मयों में खड़ी चट्टान का अपरदन ऊपर की
अपेक्षा नीचे अवधक होता है फलस्िरूप एक छतरीनमु ा या कुकुरमिु ानमु ा आकृ वत बन जाती है। इसे छत्रक
शैल या गारा कहते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• ड्राईकांटर (Dreikanter): भूवम पर वबछे कठोर चट्टानी टुकड़ों पर बलायुक्त हिा की चोट पड़ने से
उनका आकार वघसकर वचकना एिं वतकोना हो जाता है। ये वतकोने टुकडे ड्राईकाटं र कहलाते हैं।
• िातगता (Blow-Outs): िनस्पवत विहीन मरुस्थलीय प्रदेशों में तीव्र िेग से चलती हुई िायु में भंिर
उत्पन्द्न हो जाती है और धरातल पर वबछी हुई कोमल तथा असंगवठत शैल को उड़ा ले जाती है फलस्िरूप
बनी तश्तरीनमु ा आकृ वत ही िातगतव कहलाती है।
• जालीदार वशला (Stone Lattice): जन तीव्र गवत से चलने िाली पिन के मागव में विविधतापूणव
सरं चना िाली चट्टान उपवस्थत होती है तो उसके कोमल भागों को काटकर पिन आर-पार प्रिावहत होने
लगती है वजससे िह चट्टान जाली के समान वदखाई पड़ने लगती है। यही जालीदार वशला कहलाती है।
B. वनक्षेपणात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• बालुका स्तूप (Sand Dunes): ऐसे टीले जो हिा द्वारा उडाकर लायी गयी रे त आवद पदाथों के
जमान से बनते हैं, बालकु ा स्तपू कहलाते हैं। ये पिन की वदशा में वखसकते या स्थानातं ररत होते रहते हैं।
बरखान (Barkhan): बरखान एक विशेष आकृ वत िाला बालू का टीला होता है वजसका अग्र भाग अद्व
चन्द्राकार होता है और उसके दोनों छोरों पर आगे की ओर एक-एक सींग जैसी आकृ वत वनकली रहती है।
आगे िाले पिनविमुख ढाल तीव्र होते हैं। इसके विपरीत पिनमुख ढाल उिल एिं मंद होते हैं।

• लोएस (Loess): मरुस्थलीय क्षेत्रों के बाहर पिन द्वारा उडाकर लाए गए महीन बालूकणों के िृहत्
वनक्षेप को लोएस कहते हैं। इसकी वमट्टी जल वमलने पर अत्यंत उपजाऊ हो जाती है। चीन के उिरी मैदान
में लोएस वमट्टी वमलती है जो गोबी मरुस्थल से उड़कर पहुचाँ ी है। ऑक्सीकरण के कारण इसका रंग पीला
होता है।
• पेडीमेंट (Pediment): मरूस्थलीय प्रदेशों में वकसी पिवत, पठार या इसं ेलबगव के पदीय प्रदेशों में वमलने
िाले सामान्द्य ढालयक्त ु अपरवदत शैल सतह िाले मैदान को पीडमेंट/पेडीमेंट कहते हैं।
• प्लाया (Playa): मरुस्थल की अतं ःप्रिावहत नवदयााँ िषाव के बाद अस्थायी झीलों का वनमावण करती हैं
वजन्द्हें प्लाया कहते हैं। खारे जल के प्लाया को सैलीनास कहते हैं।
• बजाड़ा (Bajada): इसका वनमावण पेडीमेंट के नीचे तथा प्लाया के वकनारों पर जलोढ पंखों के वमलने
से होता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर

5. सागरीय जल िारा वनवमात स्िलाकृवतयाँ:


A. अपरदनात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• तटीय कगार या भृगु (coastal cliff): जब समुर तट वबककुल खड़ा हो उसे भृगु कहते हैं।
• तटीय कन्दरा (Coastal Caves): तटीय चट्टानों के बीच में जहााँ संवधयााँ, भ्रंश ि कमजोर चट्टान
वमलते हैं, िहााँ सागरीय तरंगे तेजी से अपरदन करती हैं वजससे िहााँ तटीय कन्द्दरा का वनमावण होता है।
• स्टैक (Stack): कन्द्दराओ ं के वमलने से बने प्राकृ वतक मेहराबों की प्रकृ वत अस्थायी होती है। इस मेहराब
के ध्िस्त होने के बाद चट्टान का जो भाग समरु जल में स्तभं के समान शेष रह जाता है, उसे स्टैक कहते
हैं।

• तट रेखा (Coast Line): समुर तट और समुरी वकनारे के मध्य की सीमा रे खा को तटरे खा कहते हैं।
समुरी तट पर अवधक अिरोधी चट्टानों से अंतरीप (Cape) तथा कम अिरोधी चट्टानों से खावड़यों (Gulf
& Bays) का वनमावण होता है।
तटरेखाओ ं के प्रकार:
o वफयाडा तट: वकसी वहमानीकृ त उच्च भूवम के सागरीय जल के नीचे अंशतः धंस जाने से वफयडव
तट का वनमावण होता है। इनके वकनारे , खड़ी दीिार के समान होते हैं। नॉिे का तट वफयडव तट का
सुन्द्दर उदाहरण है।
o ररया तट: नवदयों द्वारा अपरवदत उच्च भवू म के धसं जाने से ररया तट का वनमावण होता है। ये V
आकार की घाटी तथा ढलएु वकनारे िाली होती है। उदाहरण- प्रायद्वीपीय भारत के पवश्चमी तट का
उिरी भाग।
o डॉल्मेवशयन तट: समानान्द्तर पिवतीय कटकों िाले तटों के धंसाि से डॉकमेवशयन तट का वनमावण
होता है। उदाहरण- यूगोस्लाविया का डॉकमेवशयन तट
o हैफा तट या वनमग्न वनम्न भूवम का तट: सागरीय तटीय भाग में वकसी वनमन भूवम के डूब जाने
से वनवमवत तट। यह तट कटा- फंटा नहीं होता तथा इस पर घावटयों का अभाि पाया जाता है। इस

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विश्व भूगोल राज होल्कर
पर रोवधकाओ ं की समानान्द्तर श्रृंखला वमलती है वजससे सागरीय जल वघरकर लैगून झीलों का
वनमावण करता है। उदाहरण- यूरोप का बावकटक तट।
o वनगात समुर तट: स्थलखंड के ऊपर उठने से या समुरी जलस्तर के नीचे वगरने से वनगवत समुर
तट का वनमावण होता है। इस प्रकार के तट पर वस्पट, लैगून, पुवलन, वक्लफ तथा मेहराब वमलते हैं।
उदाहरण- गुजरात का कावठयािाड़ तट

वनक्षेपणात्मक स्िलाकृवतयाँ:
• पुवलन (Beach): तटीय भागों में भाटा जलस्तर और समुरी तट रे खा के मध्य बालू, बजरी, गोलाश्म
आवद पदाथों के अस्थायी जमाि से वनवमवत आकृ वत
• रोविका (Bars): तरंगों तथा धाराओ ं द्वारा वनक्षेप के कारण वनवमवत बाधं को रोवधका कहते हैं। तट के
समानान्द्तर बनी रोवधका को अपतट रोवधका एिं वकसी द्वीप के चारों ओर बनी रोवधका को लूप रोवधका
कहते हैं।
• संयोजक रोविका: दो सुदरू िती तटों या वकसी द्वीप को तटों से जोड़ने िाली रोवधका को संयोजक
रोवधका कहते हैं। जब इसके दोनों छोर स्थल भाग से वमल जाते हैं तो उनके द्वारा वघरे हुए क्षेत्र में समुरी
खारे जल िाली लैगून झील का वनमावण होता है। उदाहरण- वचकका झील, पुवलकट झील एिं बेमिनाद
झील।
o तट से वकसी द्वीप को वमलाने िाली संयोजक रोवधका टोमबोलो (Tombolo) कहलाती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
महासागरीय जल िाराएं

महासागरीय िारा: एक वनवश्चत वदशा में महासागरीय जल के प्रिावहत होने की सामान्द्य गवत को महासागरीय
धारा (Ocean Current) कहते हैं।
जलिाराओ ं की उत्पवि के कारक:
• पथ्ृ िी की पररभ्रमण गवत (Rotation of Earth): सागरीय धाराओ ं का प्रिाह प्राय: गोलाकार होता
है। इसका कारण पृथ्िी का घूणवन है। पृथ्िी की पररभ्रमण गवत के कारण जल पृथ्िी की घूणवन वदशा के
विपरीत वदशा में गवत करता है। भूमध्य रे खीय धारा की उत्पवि पृथ्िी की पररभ्रमण गवत के कारण हुई है।
पृथ्िी की पररभ्रमण गवत के कारण ही सागरीय धाराएं उिरी गोलाद्व में दायीं ओर तथा दवक्षणी गोलाद्व में
बायीं ओर मुड़ जाती हैं।
• िायुदाब (Air Pressure): जहााँ िायुदाब अवधक होता है िहााँ जल का तल नीचे रहता है तथा कम
िायुदाब िाले क्षेत्रों में जल का तल ऊपर रहता है। ऊाँचे जल तल से नीचे जल तल की ओर जल धाराएं
प्रिावहत होती हैं। इस प्रकार जलधाराओ ं की उत्पवि होती है।
• प्रचवलत पिनें (Prevailing Winds): सागरों के ऊपर चलने िाली पिनें अपने साथ जल को बहाकर
ले जाती हैं। स्थायी पिनें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धाराओ ं को जन्द्म देती है। विश्व की अवधकांश धाराएं
प्रचवलत पिनों का अनुगमन करती हैं।
• तापमान में वभन्नता: तापमान अवधक होने पर जल का घनत्ि कम होता है तथा तापमान कम होने पर
घनत्ि बढ़ जाता है। भारी जल संकुवचत होकर नीचे बैठ जाता है, जबवक हकका जल प्रसाररत होता है।
पररणामस्िरूप गमव जलधाराएं ठण्डे प्रदेशों की ओर तथा ठण्डी जलधाराएं गमव प्रदेशों की ओर प्रिावहत
होती हैं।
• लिणता में वभन्नता: लिणता कम होने से घनत्ि कम होता है तथा लिणता में िृवद् से जल के घनत्ि
में िृवद् होती है। जल का प्रिाह कम घनत्ि के स्थानों से अवधक घनत्ि के स्थानों की ओर होता है।
• िाष्पीकरण एिं िर्ाा: अवधक िाष्पीकरण िाले सागरों में जल तल नीचे रहता है जबवक अवधक िषाव
िाले सागरों में जल तल ऊपर रहता है। धाराओ ं का प्रिाह ऊंचे जल तल से नीचे जल तल की ओर होता
है।
• महािीपीय तटीय बािाए:ं महाद्वीपों के तट धारा एिं उसके प्रिाह की वदशा दोनों को प्रभावित करते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व की प्रमुख सागरीय जलिाराएँ
1. अटलांवटक महासागर की िाराएं
A. उिरी अटलावं टक महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषिु त रे खीय धारा (गमव) कै ररवबयन धारा (गमव)


• एटं ीलीज धारा (गमव) फ्लोररडा की धारा (गमव)
• गकफ स्ट्रीम धारा (गमव) नॉिे की धारा (गमव)
• रे नेल की धारा (ठण्डी) लेब्राडोर की धारा (ठण्डी)
• कनारी की धारा (ठण्डी)
B. दवक्षण अटलांवटक महासागर की िाराए:ं
• दवक्षण विषुित रे खीय धारा (गमव) ब्राजील की धारा (गमव)
• वगनी तट की धारा (गमव) फॉकलैंड की धारा (ठण्डी)
• बेंगुला की धारा (ठण्डी)

2. प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) की िाराएं


A. उिरी प्रशातं महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषिु तरे खीय धारा (गमव) क्यरू ोवशयो की धारा (गमव)
• अलास्का की धारा (गमव) कै वलफॉवनवया की धारा (ठण्डी)
• ओखाटस्क की धारा (ठण्डी) ओयावशयो की धारा (ठण्डी)
B. दवक्षणी प्रशांत महासागर की िाराए:ं

• दवक्षणी विषुित रे खीय धारा (गमव) पूिी ऑस्ट्रेवलया की धारा (गमव)


• पेरू या हमबोकट की धारा (ठण्डी) एलनीनो की धारा (गमव)
• लावननो की धारा (ठण्डी) के वकिन धारा (गमव)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
3. वहन्द महासागर की िाराएं
A. उिरी वहन्द महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषुितरे खीय धारा (गमव) द.प. मानसूनी धारा (गमव)


• प्रवतविषुित रे खीय धारा (गमव) उ.पू. मानसूनी धारा (गमव)
B. दवक्षण वहन्द महासागर की िाराए:ं

• दवक्षणी विषुित रे खीय धारा (गमव) मोजावमबक की धारा (गमव)


• मेडागास्कर की धारा (गमव) पवश्चम ऑस्ट्रेवलया की धारा (ठण्डी)
विश्व की प्रमुख जलिाराएं
गमा जलिारा ठण्डी जलिारा
क्यरू ोवशयो की धारा रे नेल की धारा
एंटीलीज धारा कनारी की धारा
गकफ स्ट्रीम धारा लेब्राडोर की धारा
कै ररवबयन धारा बेंगुला की धारा
फ्लोररडा की धारा फॉकलैंड की धारा
नॉिे की धारा कै वलफॉवनवया की धारा
एलनीनो की धारा ओखाटस्क की धारा
वगनी तट की धारा ओयावशयो की धारा
ब्राजील की धारा पेरू या हमबोकट की धारा
के वकिन धारा लावननो की धारा
मोजावमबक की धारा
मेडागास्कर की धारा
अलास्का की धारा

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विश्व भूगोल राज होल्कर
महासागरीय तापमान
महासागरीय तापमान को वनिाा ररत करने िाले कारक:
• सयू ावताप की मात्रा सागरीय जल का घनत्ि
• िाष्पीकरण एिं सघं नन ऊष्मा सतं ल
ु न
• स्थानीय मौसमी दशाएं सागरीय जल की लिणता
सागरीय तापमान को प्रभावित करने िाले घटक: [सतह पर]
• अक्षांशीय वस्थवत प्रचवलत पिनें
• महाद्वीपीय स्थलखडं महासागरीय धाराएं
अन्य महत्िपण
ू ा तथ्य:
• महासागरीय जल की सतह का औसत दैवनक तापान्द्तर लगभग नगण्य (1°C या इससे कम) होता है।
• महासागरीय सतह के जल का उच्चतम तापमान 2 बजे अपराह्न एिं न्द्यूनतम तापमान 5 बजे प्रातः अंवकत
वकया जाता है।
• स्थल से वघरे छोटे सागरों में िावषवक तापान्द्तर अवधक होता है।
• विषुित रे खा से ध्रुिों की ओर जाने पर सागरीय जल का तापमान घटता है।
• सबसे अवधक तापमान स्थल भाग से वघरे सागरों का होता है।
• व्यापाररक पिनों के कारण उष्ण कवटबंधों में महासागर के पवश्चमी भाग अवधक गमव होते हैं।
• पछुआ पिनों के कारण महासागरों के पूिी भाग अवधक गमव होते हैं।
• समुर में गहराई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आती है।
• महासागरों का तापमान (गहराई में) उष्ण कवटबन्द्धों तथा ध्रिु ों पर समान होता है।
• उच्च अक्षाशं ों में सागरीय तापमान व्यत्ु क्रम वमलता है अथावत सतह का तापमान कम एिं गहराई में अवधक
होता है। इसका प्रमख ु कारण इन अक्षाश ं ों में स्िच्छ जल की अवधक प्रावप्त है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
महासागरीय लिणता
लिणता:
• सागरीय जल के भार एिं उसमें घुले पदाथों के भार का अनुपात ही सागरीय लिणता है।
• सागरीय लिणता की मात्रा प्रवत हजार ग्राम जल में घुले लिण की मात्रा के रूप में दशावया जाता है। [x
०/॰॰ ]
• समान लिणता िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खा समलिण रे खा (Isohaline) कहलाती है।
• सागर की लिणता का मापन सैलीनोनैक्टर (Salinonactor) यंत्र द्वारा वकया जाता है।
सागरीय जल में पाए जाने िाले लिण:
• सोवडयम क्लोराइड: 77.8% मैननीवशयम क्लोराइड 10.9%
• मैननीवशयम सकफे ट: 4.7% कै वकसयम सकफे ट: 3.6%
अन्य लिण: पोटेवशयम सकफे ट, कै वकसयम काबोनेट एिं मैननीवशयम ब्रोमाइड

• महासागरों की औसत लिणता 35 ०/॰॰ होती है।


• नवदयााँ लिणता को सागरों तक पहुचाँ ाने िाले कारकों में सिवप्रमख
ु हैं परन्द्तु नवदयों द्वारा लाए गए लिणों में
कै वकसयम की मात्रा 60% होती है। नवदयों के जल में सोवडयम क्लोराइड के िल 2% होता है।
सिााविक लिणता िाले क्षेत्र:
• लेक िॉन सील: 330 ०/॰॰ (तुकी) मृत सागर: 238 ०/॰॰ (जॉडवन)
• ग्रेट सॉकट लेक: 220 ०/॰॰ (अमेररका)
लिणता की मात्रा को वनयवं त्रत करने िाले कारक
A. लिणता में िृवद् करने िाले कारक:
• उच्च तापमान िषाव का अभाि
• िाष्पीकरण की तीव्र गवत समुरी धाराएं ि लहरें
• अत्यवधक गमव एिं शुष्क पिन नवदयों द्वारा स्िच्छ जल आपूवतव
• स्िच्छ एिं स्पि आकाश
B. लिणता कम करने िाले कारक:
• वनमन तापमान (अपिाद: भमू ध्य रे खा) सागरीय धाराएं
• ठण्डी पिनें िाष्पीकरण की गवत मन्द्द

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• नदी जल की अवधक मात्रा अत्यवधक िषाव
लिणता का वितरण:
सिााविक लिणता:

• उिरी गोलाद्व में: 20°- 40° अक्षांशों के मध्य


• दवक्षणी गोलाद्ों में: 10°- 30° अक्षांशों के मध्य
नोट: भूमध्य रे खा के आस पास के क्षेत्रों में लिणता अवधक होनी चावहए क्योंवक िाष्पीकरण की दर अवधक है
वकन्द्तु इस क्षेत्र में िषाव की मात्रा अवधक होने के कारण लिणता कम है।
लिणता में वभन्नता के कारण: स्िच्छ जल आपूवतव, िषाव की मात्रा, िाष्पीकरण की दर, सागरीय धाराएं, पिनें
एिं समुरी जीि
सागरीय लिणता के स्त्रोत:

• नवदयााँ पिनें
• सागरीय लहरें ज्िालामुखी वक्रया

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुमण्डल (Atmosphere)
िायुमण्डल का संघटन
• िायमु ण्डल अनेक गैसों का वमश्रण है वजसमें ठोस एिं तरल कण भी पाए जाते हैं।
• िायु रंगहीन, गधं हीन एिं स्िादहीन है।
• िायमु ण्डल का 99% भाग भपू ष्ठृ से 32 वकमी. की ऊाँचाई तक सीवमत है।
• पहले िायमु ण्डल की ऊाँचाई 800 वकमी. तक मानी जाती थी परन्द्तु निीनतम खोजों के अनसु ार िायमु ण्डल
की ऊाँचाई 32000 वकमी. है।
• िायमु ण्डल की कोई ऊपरी सीमा नहीं है।
िायमु ण्डल में विद्यमान गैसों की मात्रा
• नाइट्रोजन (N2): 78.08% ऑक्सीजन (O2): 20.94%
• ऑगवन (Ar): 0.93% काबवन डाई ऑक्साइड (CO2): 0.03%
• वनयॉन (Ne): 0.0018% हीवलयम (He): 0.0005%
• ओजोन (O3): 0.00006% हाइड्रोजन (H): 0.00005%
• अन्द्य गैसें: मीथेन (CH4), वक्रप्टोन एिं जीनॉन

नाइट्रोजन (N2):
• इसकी उपवस्थवत के कारण िायुदाब, पिनों की शवक्त तथा प्रकाश के पराितवन का आभास होता है।
• इस गैस का कोई रंग, गंध एिं स्िाद नहीं होता।
• यह िस्तुओ ं को तेजी से जलने से बचाती है इससे आग पर वनयंत्रण रहता है।
• नाइट्रोजन से पेड-पौधों में प्रोटीन का वनमावण होता है।
• यह िायमु डं ल में 128 वकमी. की ऊाँचाई तक फै ली हुई है।
ऑक्सीजन (O2):
• यह जीिनदायी गैस है जो श्वसन वक्रया में काम आती है।
• ऑक्सीजन के अभाि में ईधन
ं नहीं जलाया जा सकता।
• यह िायुमंडल में 64 वकमी. तक है परन्द्तु 16 वकमी. के ऊपर यह बहुत कम है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
काबान डाई ऑक्साइड (CO2):
• यह एक भारी गैस है इसवलए िायुमंडल की वनचली परत में ही वमलती है।
• यह पेड़-पौधों के वलए प्रकाश संश्लेषण में आिश्यक गैस है।
• यह सयू व से आने िाली विवकरणों के वलए पारगमय तथा पृथ्िी की पावथवि विवकरणों के वलए अपारगमय गैस
है इस प्रकार यह हररत गृह प्रभाि के वलए उिरदायी है।
• यह िायमु ण्डल की वनचली परत को गमव रखती है।
हाइड्रोजन:
• यह एक हककी गैस है जो लगभग 1100 वकमी. की ऊंचाई तक पायी जाती है।
ओजोन:
• यह ऑक्सीजन का ही एक विशेष रूप है जो िायुमण्डल में ऊाँचाई पर अवत न्द्यून मात्रा में पायी जाती है।
• यह गैस समताप मण्डल (Stratosphere) के वनचले भाग में पायी जाती है।
• यह सूयव से आने िाली पराबैंगनी वकरणों को अिशोवषत करती है तथा पृथ्िी के वलए एक सुरक्षा किच का
कायव करती है।
जलिाष्प (Water Vapour):
• यह जलिायु को सिाववधक प्रभावित करता है।
• ऊाँचाई बढ़ने के साथ जलिाष्प की मात्रा घटती जाती है।
• जलिाष्प सूयव से आने िाले सूयावतप के कुछ भाग को अिशोवषत करता है तथा पृथ्िी द्वारा विवकररत ऊष्मा
को संजोये रखता है इस प्रकार यह एक कंबल का काम करता है वजससे पृथ्िी न तो अवधक गमव न अवधक
ठण्डी होती है।
• यह िषाव करिाने के वलए उिरदायी होता है।
िूल के कण:
• धूल के कण प्रायः िायुमण्डल की वनचली परतों में पाये जाते हैं।
• अवधकांश धलू कण आरवताग्राही बनकर बादलों के वनमावण में भाग लेते हैं।
• धल
ू कण सयू व की वकरणों को परािवतवत करते हैं।
• आकाश का नीला रंग धल
ू कणों की उपवस्थवत के कारण होता है।
• सयू ोदय एिं सयू ावस्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग का प्रकाश धल
ू कणों की उपवस्थवत के
कारण वदखायी पडता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुमण्डल की सरं चना
िायुमण्डल को पााँच मुख्य परतों में बााँट सकते हैं –
1. क्षोभमण्डल (Troposphere)
2. समताप मण्डल (Stratosphere)
3. मध्यमण्डल (Mesosphere)
4. आयनमण्डल (Ionosphere)
5. बवहमवण्डल (Exosphere)

क्षोभ मण्डल (Troposphere)


• यह िायुमंडल की सबसे वनचली परत है।
• विषुित रे खा पर इसकी ऊाँचाई 18 वकमी. एिं ध्रिु ों पर ऊाँचाई 8 वकमी है। इसका कारण संिहनीय धाराएं
हैं जो भूमध्य रे खा पर उपवस्थत हैं।
• इस मण्डल में ऊाँचाई बढ़ने पर तापमान में वगरािट आती है।
• सामान्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate): 165 मी. की ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में 1°C की
कमी आती है यही सामान्द्य ह्रास दर कहलाती है।
• संिहनीय धाराओ ं की उपवस्थवत के कारण वकसी भी अक्षांश पर क्षोभमण्डल की ऊाँचाई शीत ऋतु की
अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अवधक होती है।
• ऋतु तथा मौसम संबंधी सभी घटनाएाँ जैसे- बादल, िषाव, आाँधी, तफ
ू ान आवद क्षोभमण्डल में होती हैं।
• क्षोभ सीमा: यह 1.5 वकमी. मोटी अस्थायी परत है। इस परत में िायुमण्डल के तापमान का वगरना बंद हो
जाता है। क्षोभमण्डल की हिा एिं संिहनीय धाराएं चलना बंद हो जाती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
समताप मंडल (Stratosphere)
• यह परत क्षोभ सीमा के ऊपर से शुरू होती है एिं पृथ्िी से 50 वकमी. तक की ऊाँचाई तक विस्तृत है।
• इसकी मोटाई भूमध्य रे खा पर कम तथा ध्रुिों पर अवधक होती है। (कारण: ध्रुिों पर क्षोभमण्डल के िल 8
वकमी. तक की ऊंचाई पर ही है अतः ध्रिु ों पर समताप मंडल की ऊंचाई क्षोभसीमा से (50 – 8 = 42
वकमी.) ऊाँची होगी।
• समताप मंडल में ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में िृवद् होती है। यह तापमान में िृवद् ओजोन गैस की
उपवस्थवत के कारण होती है।
• समताप मडं ल में िायु सैवतज वदशा में प्रिावहत होती है।
• िायु के क्षैवतज प्रिाह एिं मौसमी पररघटनाओ ं के शातं रहने के कारण िाययु ान समताप मण्डल में उड़ते हैं।
• समताप सीमा: यह समताप मण्डल की बाहरी सीमा है यहााँ ओजोन गैस अत्यवधक मात्रा में पायी जाती
है।
मध्य मण्डल (Mesosphere)
• यह समताप मण्डल के ऊपर वस्थत है इसका विस्तार 80 वकमी. तक है।
• इस मण्डल में ऊाँचाई बढ़ने के साथ तापमान में वगरािट आती है।
आयनमण्डल (Ionosphere)
• मध्य मण्डल के ऊपर 400 वकमी. की ऊाँचाई तक आयन मण्डल पाया जाता है।
• आयन मण्डल में उपवस्थत गैसों के कण विद्युत आिेवशत होते हैं।
• िायुमण्डल की इस परत द्वारा रे वडयो तरंगों को परािवतवत वकया जाता है।
• आयनमण्डल में ऊाँचाई में िृवद् के साथ तापमान में भी िृवद् होती है। इसका कारण िायु के कणों का विद्युत
आिेवशत होना है।
• आयन मण्डल को 4 छोटी परतों में बााँटा जाता है –
o D-Layer: यह 60-99 वकमी. के बीच वस्थत है। इस परत से रे वडयो तरंगों की दीघव तरंगदैध्यव
िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o E-Layer: इस परत से रे वडयो तरंगों की मध्यम तरंगदैध्यव िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o F-Layer: इस परत से रे वडयो तरंगों की लघु तरंगदैध्यव िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o G-Layer: इस परत से सभी प्रकार की रे वडयो तरंगे परािवतवत हो सकती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
बवहमाण्डल (Exosphere)
• यह िायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है।
• यहााँ िायु बहुत विरल होती है एिं धीरे -धीरे अंतररक्ष में विलीन हो जाती है।
• इस मण्डल में हाइड्रोजन एिं हीवलयम जैसी हककी गैसें पायी जाती हैं।
• इस मण्डल में कृ वत्रम उपग्रह स्थावपत वकये जाते हैं।

सयू ाातप (Insolation)


सयू ाातप (Insolation):
• पृथ्िी की सतह पर आने िाली सौर विवकरण को सूयावतप कहते हैं।
• सौर विवकरण लघु तरंगों के रूप में पृथ्िी तक पहुचाँ ती हैं।
• सूयावतप (सौर विवकरण) से 2 कै लोरी प्रवत िगव सेमी. प्रवत वमनट की दर में पृथ्िी का धरातल ऊजाव प्राप्त
करता है।
• सौर विवकररत ऊजाव का 51% पृथ्िी के धरातल पर पहुचाँ ता है।
सूयाातप को प्रभावित करने िाले तत्ि:
• सूयव की वकरणों का आपतन कोण वदन की लंबाई अपना धूप की अिवध
• िायुमण्डल की पारगमयता विषुित रे खा से दरू ी
तापमान में विर्मता के कारण:
a. अक्षाश ं ीय वितरण: उष्ण कवटबंधीय प्रदेशों में सूयावतप की मात्रा सिाववधक होती है तथा धुिों की ओर
क्रमश: इसकी मात्रा कम होती जाती है।
b. ऊँ चाई: ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में वगरािट आती है।
c. स्िल एिं जल का प्रभाि: जल देर से गमव एिं देर से ठण्डा होता है। अतः जल का तापान्द्तर कम होता
है। जबवक स्थल जकदी गमव एिं जकदी ठण्डा होता है। इस कारण ही महासागरों की अपेक्षा स्थलखंडों पर
तापान्द्तर अवधक होता है।
d. समुरी िाराए:ं गमव जल धाराएं समुर तटीय भागों के तापमान में िृवद् करती हैं जबवक ठण्डी जलधाराएं
समुर तटीय भागों के तापमान में वगरािट लाती हैं।
e. प्रचवलत िायु: ठण्डी क्षेत्रीय पिनें तापमान में वगरािट लाती हैं जबवक गमव क्षेत्रीय पिनें तापमान में िृवद्
करती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुमण्डल के ठण्डा एिं गमा होने के कारक:
1. विवकरण (Radiation)
2. संचालन (Conduction)
3. संिहन (Convection)
4. अवभिहन (Advection)
ऊष्मा बजट (Heat Budget):
• सयू व से 100 यवू नट सौर विवकरण पृथ्िी पर उत्सवजवत होती हैं वजनमें से 35 यवू नट विवकरण बादलों (27
यवू नट), धलू कणों (6 यवू नट) एिं वहमनदों (2 यवू नट) द्वारा परािवतवत कर दी जाती हैं एिं 14 यवू नट
िायुमण्डल द्वारा अिशोवषत कर ली जाती हैं। इस प्रकार सयू व से आने िाली सौर विवकरणों की 51 यवू नट
ही पृथ्िी की सतह तक पहुचं ती हैं।
o 100 – (35+14) = 51 यूवनट
• पृथ्िी पर पड़ने िाली 51 यूवनट पावथवि विवकरणों के रूप में पृथ्िी द्वारा परािवतवत की जाती हैं वजनमें से 17
यूवनट सीधा अंतररक्ष में चली जाती हैं एिं 34 यूवनट िायुमण्डल द्वारा अिशोवषत कर ली जाती हैं।
• िायुमण्डल द्वारा 14 यूवनट सौर विवकरण एिं 34 यूवनट पावथवि विवकरण का अिशोषण अथावत कुल 48
यूवनट का अिशोषण वकया जाता है। ये 48 यूवनट ही िायुमण्डल को गमव करती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुमण्डलीय दाब
िायुदाब: िायुमण्डलीय दाब का अथव है वकसी वदए गए स्थान तथा समय पर िहााँ की हिा के स्तंभ का भार
िायुदाब मापन:
• बैरोमीटर में प्रवत इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने िाले बल के रूप में मापा जाता है।
• दाब की इकाई वमलीबार है।
• बैरोमीटर में िायुदाब की तेजी से वगरािट तूफान का संकेत देता है।
• बैरोमीटर के पाठन का पहले वगरना वफर धीरे -धीरे बढ़ना िषाव का संकेत है।
• बैरोमीटर के पाठन का लगातार बढ़ना प्रवत चक्रिात और साफ मौसम का संकेत देता है।
समदाब रेखाएं (Isobar): ये िे काकपवनक रे खाएं हैं जो समान िायदु ाब िाले स्थानों को वमलाती हैं।
िायुदाब को मौसम के पूिावनुमान का सूचक माना जाता है।
िायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने िाले कारक:
1. ऊध्िाािर िायमु ण्डलीय दाब:
दाब α घनत्ि α 1/आयतन

• घनत्ि के कम होने के कारण ऊाँचाई के साथ िायुदाब में कमी आती है। इसीवलए पृथ्िी से ऊंचाई बढ़ने
पर िायुदाब में कमी आती है।
• िायु के संकुचन से घनत्ि में िृवद् होती है वजससे िायुदाब में िृवद् होती है। िायु के फै लाि से घनत्ि
में कमी आती है वजससे िायुदाब में कमी आती है।

2. िायु प्रसार एिं िायुदाब: जब िायु नीचे से ऊपर उठती है तो उसके घनत्ि में कमी आती है इसवलए
िायुदाब में कमी आती है।
3. िायु संकुचन एिं िायुदाब: जब िायु ऊपर से नीचे की तरफ आती है तो घनत्ि में िृवद् होती है वजससे
िायुदाब में भी िृवद् होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुदाब के प्रक्रम: िायुदाब के दो प्रक्रम हैं –
1. तापीय प्रक्रम (इसमें ऊष्मा का प्रिाह होता है)
2. रुद्ोष्म प्रक्रम (इसमें ऊष्मा वनयत रहती है)
1. तापीय प्रक्रम:
ऊष्मीय प्रसार: जब सौर विवकरण पृथ्िी की सतह पर पड़ती है तो सतह गमव हो जाती है तथा सतह से
सपं कव िाली िायु गमव होकर प्रसाररत होती है वजससे उसके आयतन में िृवद्, घनत्ि में कमी तथा िायदु ाब
में कमी आती है।
ऊष्मीय संकुचन: जब ठण्डे क्षेत्रों की िायु पृथ्िी की सतह पर अत्यवधक ठण्डी होती है तो उसके संपकव
में जो िायु आती है तो ऊष्मा का संचरण िायु की सतह की ओर होने लग जाता है वजससे घनत्ि में िृवद्,
आयतन में कमी एिं िायुदाब में िृवद् होती है।
2. रुद्ोष्म प्रक्रम:
रुद्ोष्म संकुचन: ऊष्मा एिं िायु दोनों में संकुचन के कारण घनत्ि में िृवद् होती है वजससे िायुदाब में
िृवद् होती है।

रुद्ोष्म प्रसार: गवतज ऊजाव के वस्थवतज ऊजाव में पररितवन से वनमन दाब का वनमावण होता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िायुदाब पेवटयाँ

1. भूमध्य रेखीय वनम्न िायुदाब क्षेत्र: [तापीय प्रकम के कारण]

• इसका विस्तार विषुित रे खा के दोनों तरफ 10°N एिं 10°S अक्षांशों के बीच है।
• इसका वनमावण िायु के ऊष्मीय प्रसार के कारण होता है वजसका कारण भूमध्य रे खीय क्षेत्रों में उच्च सौर
विवकरण एिं उच्च सतही तापमान गमव एिं हककी िायु संिहनीय धारा का वनमावण करती है। इस कारण इस
क्षेत्र में िायुमण्डलीय वस्थवत शांत या पिन रवहत होती है।
• पिन रवहत एिं िायुमण्डलीय वस्थवत शााँत रहने के कारण यह क्षेत्र डोलड्रम कहलाता है।
2. उपोष्ण कवटबंिीय उच्च िायुदाब पेटी: [गवतज प्रक्रम के कारण]

• इसका विस्तार दोनों गोलाद्ों में 23½°N से 35°N एिं 23½° S से 35°S के बीच है।
• विषुित रे खीय वनमन िायुदाब से ऊपर उठने िाली िायु जब क्षोभ सीमा पर पहुचाँ ती है तो कोररयावलस बल
के प्रभाि से यह ध्रिु ों की ओर विक्षेवपत हो जाती है। यह िायु ठण्डी होती है और भारी होती है। इस कारण
यह नीचे उतरने लगती है तथा रुद्ोष्म संकुचन द्वारा उच्च िायुदाब का वनमावण करती है।
• यह अक्षांश 'अश्व अक्षांश’ भी कहलाते हैं।

90
विश्व भूगोल राज होल्कर
3. उपध्रुिीय वनम्न िायुदाब पेटी [गवतज प्रक्रम के कारण]:

• इसका विस्तार दोनों गोलाद्ों में 45°N से 66½°N तथा 45°S से 66½°S के बीच है।
• इसका वनमावण पछुआ पिनों एिं ध्रिु ीय पिनों के उस क्षेत्र में टकराने के कारण होता है। पिनों के टकराने
से िायु ऊपर उठती है और रुध्दोष्म प्रसार द्वारा हककी एिं गमव होकर वनमम िायुदाब का वनमावण करती है।
4. ध्रुिीय उच्च िायुदाब पेटी: यह दोनों ध्रुिों पर पायी जाती है इसका वनमावण ऊष्मीय संकुचन के कारण होता है।
ध्रिु ों पर तापमान का कम होना यहााँ वनमन िायुदाब वनमावण का कारण है। यहााँ उच्च िायुदाब का कारण तापीय
प्रक्रम है।

पिन (Wind)
पिन (Wind): िायुदाब में क्षैवतज विषमताओ ं के कारण बना उच्च िायुदाब क्षेत्र से वनमन िायुदाब क्षेत्र की
ओर बहती है। क्षैवतज रूप से गवतशील इस हिा को पिन कहते हैं।
पिनों की वदशा वनिाारण: पिनों की वदशा फे रे ल के वनयम एिं बाइज बैलॉट के वनयम द्वारा वनधावररत होती
है।
फैरेल का वनयम (Ferrel's Law): इसके अनुसार, उिरी गोलाद्व में पिन दावहने ओर (Right Hand
Side) और दवक्षणी गोलाद्व में बायीं ओर (Left Hand Side) मुड जाती है। ऐसा कोररयावलस बल के
कारण होता है।
Note: भूमध्य रे खा पर कोररयावलस बल का प्रभाि शून्द्य होता है अतः भूमध्य रे खा पर पिनों
की वदशा में कोई विक्षेप नहीं होता है। ध्रिु ों पर अवधकतम विक्षेप होता है।
बाइज-बैलेट का वनयम (Buy’s – Ballot Law): 'यवद कोई व्यवक्त उिरी गोलाद्व में पिन की ओर
पीठ करके खड़ा हो तो उच्च दाब उसके दायीं ओर तथा वनमन दाब उसके बायीं ओर होगा।

पिनों के प्रकार: पिनें तीन प्रकार की होती हैं –


1. प्रचवलत पिन या भूमण्डलीय पिन
2. मौसमी पिन या सामवयक पिन
3. स्थानीय पिन

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विश्व भूगोल राज होल्कर
1. प्रचवलत पिन / भूमण्डलीय पिन:
ये सालभर वनवश्चत वदशा में प्रिावहत होने िाली पिनें हैं। इन्द्हें प्रचवलत स्थायी, सनातनी या भूमण्डलीय पिनों के रूप
में जाना जाता है ये पिनें 3 प्रकार की हैं –
a. व्यापाररक पिनें (Trade Winds)
b. पछुआ पिनें (Westerlies)
c. ध्रिु ीय पिनें (Polar winds)
a. व्यापाररक पिनें (Trade Winds):

• ये उपोष्ण उच्च िायुदाब कवटबंधों से विषुितीय वनमन िायुदाब की ओर दोनों गोलाद्ों में वनरंतर बहती
हैं।
o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: उिर-पूिी व्यापाररक पिन
▪ दवक्षणी गोलाद्व: दवक्षण-पूिी व्यापाररक पिन
• विषुित रे खा के समीप ये दोनों पिनें टकराकर ऊपर उठती हैं और घनघोर संिहनीय िषाव करती हैं।
b. पछुआ पिनें (Westerlies):

• ये उपोष्ण कवटबंधीय उच्च िायुदाब क्षेत्रों से उपध्रुिीय वनमन िायुदाब क्षेत्रों की तरफ गवत करती है।
o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: दवक्षण-पवश्चम से उिर-पूिव
▪ दवक्षणी गोलाद्व: उिर-पवश्चम से दवक्षण-पूिव
• पछुआ पिनों का सिाववधक विकास दवक्षणी गोलाद्व में 40-65° अक्षाश ं ों के मध्य होता है। इसका
कारण दवक्षणी गोलाद्व में स्थलीय अिरोधों का अभाि है।
• इन पिनों को अक्षाश
ं ों की वस्थवत ि गवत के आधार पर वनमन नामों से जाना जाता है –
o 40°S अक्षांश: गरजता चालीसा
o 50°S अक्षांश: प्रचंड पचासा
o 60°S अक्षांश: चीखता साठा
c. ध्रुिीय पिनें:

• ध्रिु ीय उच्च िायुदाब से उपध्रुिीय वनमन िायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं।


o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: उिर पूिव से दवक्षण पवश्चम
▪ दवक्षणी गोलाद्व: दवक्षण पिू व से उिर पवश्चम

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• ये पिनें अत्यन्द्त ठण्डी एिं बफीली होती हैं।
• उपध्रिु ीय वनमन िायुदाब कवटबंध में जब पछुआ पिनें इन ध्रिु ीय पिनों से टकराती हैं तो ध्रिु ीय िाताग्रों
का वनमावण होता है और इस क्षेत्र में शीतोष्ण कवटबंधीय चक्रिातों की उत्पवि होती है।

2. मौसमी पिनें:
मौसमी पिनों की वदशा वदन और रात एिं मौसम के अनुसार पररिवतवत होती रहती है। वनमन पिनों को इस श्रेणी में
mरखा जाता है -
A. स्थल एिं समुरी पिन
B. पिवत एिं घाटी समीर
C. मानसनू ी पिनें
A. स्िल एिं समुरी पिन:
समरु ी समीर: यह तटिती क्षेत्रों में प्रिावहत होती है। वदन के समय स्थल का तापमान समुरी सतह से ज्यादा
होता है वजसके कारण स्थल पर वनमन िायुदाब क्षेत्र एिं समुर में उच्च िायुदाब क्षेत्र का वनमावण होता है। अतः
पिन की वदशा समुर से स्थल की तरफ होती है।
इसके कारण तटिती क्षेत्रों में वदन के तापमान को ज्यादा उठने नहीं देती। समुरी समीर को प्रयोग कर
मछुआरे समुर से तट की तरफ लौटते हैं।

स्िलीय समीर: रात के समय जल की अपेक्षाकृ त स्थल तेजी से ठण्डा होता है वजसके कारण स्थल पर उच्च
िायदु ाब एिं समरु में वनमन िायदु ाब का वनमावण होता है अत: पिन की वदशा स्थल से समरु की तरफ होती है।
इसी पिन का प्रयोग कर मछुआरे रात में तट से समरु की तरफ जाते हैं।
B. पिात एिं घाटी समीर:
घाटी समीर: वदन के समय पिवत का तापमान ज्यादा सौर विवकरण प्राप्त करने के कारण घाटी से अपेक्षाकृ त
ज्यादा होता है वजसके कारण पिवत पर वनमन िायुदाब एिं घाटी में उच्च िायुदाब का वनमावण होता है। अतः
पिन का प्रसार से पिवत की तरफ होता है इस कारण इसको घाटी समीर कहते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर

पिात समीर: रात में पिवत से पावथवि विवकरण का पलायन तेजी से होता है अतः पिवत घाटी के अपेक्षाकृ त
ज्यादा ठण्डा होता है इस कारण पिन का प्रिाह पिवत से घाटी की तरफ होता है, इस कारण इसको पिवत समीर
कहते हैं।
C. मानसूनी पिनें: इनका प्रिाह भारतीय उपमहाद्वीप में होता है गमी के मौसम में दवक्षणी पवश्चमी मानसून
पिनों का प्रिाह होता है एिं शीत ऋतु में उिरी पूिी मानसून पिनों का प्रिाह होता है।
ब्यफू ोटा स्के ल: इस स्के ल का उपयोग िायु की गवत अथिा िेग के मापन एिं आलेखन में वकया जाता है। इस
स्के ल का आविष्कार 1805 ई. में सर रांवसस ब्यूफोटव द्वारा वकया गया था।

स्िानीय पिनें
ये पिनें तापमान तथा िायुदाब के स्थानीय अंतर से चला करती हैं और बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं। जहााँ
गमव स्थानीय पिन वकसी प्रदेश विशेष के तापमान में िृवद् लाती हैं, िहीं ठंडी स्थानीय पिन कभी-कभी तापमान
को वहमाक ं से भी नीचे कर देती हैं। ये स्थानीय पिनें क्षोभमण्डल की वनचली परतों तक ही सीवमत रहती हैं।
कुछ स्िानीय पिनें –
• वचनूक: इसका शावब्दक अथव ‘वहम भक्षी’ होता है। यह रॉकी पिवत के पूिी ढालों के सहारे चलने िाली
गमव तथा शुष्क हिा है। यह दवक्षण में कोलेरैड़ो से उिर में कनाडा के वब्रवटश कोलंवनया तक प्रिावहत होती
है। इससे चारागाह बफव मुक्त हो जाते हैं।
• फॉन (Fohn): यह आकपस पिवत के उिरी ढाल के सहारे उतरने िाली गमव ि शुष्क हिा है। इसका
सिाववधक प्रभाि वस्िट्जरलैंड में होता है। यह बफव को वपघलाती है। यह अंगूर की खेती के वलए लाभदायक
है।
• वसरॉको (Sirroco): यह गमव, शुष्क तथा रे त से भरी हिा है जो सहारा के रे वगस्तानी भाग से उिर की
ओर भूमध्य सागर होकर इटली और स्पेन में प्रिेश करती है। यहााँ इनसे होने िाली िषाव को रक्त िषाव
(Blood Rain) के नाम से जाना जाता है। वमस्त्र, लीवबया, ट्यूनीवशया में वसरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः
खमवसन, वगबली, वचली है। स्पेन तथा कनारी ि मेवडरा द्वीपों में वसरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः लेिेश
ि लेस्ट है।

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• ब्लैक रॉलर: ये उिरी अमेररका के विशाल मैदानों में चलने िाली गमव एिं धूलभरी शुष्क हिाएाँ हैं।
• योमा: यह जापान में सेंटाआना के समान चलने िाली गमव एिं शुष्क हता है।
• टेम्पोरल: यह मध्य अमेररका में चलने िाली मानसूनी हिा है।
• वसमूम: अरब के रे वगस्तान में चलने िाली गमव ि शुष्क हिा वजससे रे त की आंधी आती है।
• सामुन: यह ईरान ि ईराक के कुवदवस्तान में चलने िाली स्थानीय हिा है। यह गमव एिं शुष्क हिा है।
• शामल: यह इराक, ईरान और अरब के मरुस्थलीय क्षेत्र में चलने िाली गमव, शुष्क एिं रे तीली पिनें हैं।
• सीस्टन: यह पूिी ईरान में ग्रीष्मकाल में प्रिावहत होने िाली तीव्र पिन है।
• हबूब: उिरी सूडान में मुख्यतः खारतूम के समीप चलने िाली यह धूल भरी आंवधयााँ हैं।
• काराबुरान: यह मध्य एवशया के ताररम बेवसन में उिर-पूिव की ओर प्रिावहत होने िाली धूल भरी आाँवधयााँ
हैं।
• कोइम्बैंग: यह जािा द्वीप (इडं ोनेवशया) में चलने िाली गमव एिं शुष्क पिन है। यह तंबाकू की फसल को
नुकसान पहुचाँ ाती है।
• हरमट्टन: यह सहारा रे वगस्तान में उिर-पूिव तथा पूिी वदशा से पवश्चमी वदशा में चलने िाली गमव तथा शुष्क
हिा है, जो अरीका के पवश्चमी तट की उष्ण एिं आरव हिा में शुष्कता लाती है। इसे वगनी तट पर ‘डॉक्टर
हिा’ कहा जाता है।
• वब्रकफील्डर: यह ऑस्ट्रेवलया के विक्टोररया प्रांत में चलने िाली गमव एिं शुष्क हिा है।
• नािेस्टर: यह उिरी न्द्यूजीलैंड में चलने िाली गमव एिं शुष्क हिा है।
• सेंटाएना: यह कै वलफॉवनवया में चलने िाली गमव एिं शष्ु क हिा है।
• ल:ू यह उिर भारत में गवमवयों में उिर पवश्चम तथा पवश्चम से पूिव वदशा में चलने िाली प्रचडं ि शष्ु क हिा
है।
• जोंडा: ये अजेंटीना और उरुनिे में एडं ीज से मैदानी भागों की ओर चलने िाली कोष्ण शष्ु क पिनें हैं।
• वमस्ट्रल: ये ठण्डी ध्रिु ीय हिाएं हैं जो रोन नदी की घाटी से होकर चलती हैं। ये भमू ध्य सागर के उिर-
पवश्चमी भाग विशेषकर स्पेन एिं रासं को प्रभावित करती हैं।
• बोरा: ये ठण्डी एिं शष्ु क हिाएाँ हैं जो एवड्रयावटक सागर के पिू ी वकनारों पर चलती हैं। ये मख्ु यतः इटली
एिं यगू ोस्लाविया को प्रभावित करती हैं।
• वब्लजडा: ये बफीली ध्रिु ीय हिाएं हैं। इन हिाओ ं से साइबेररया, कनाडा एिं सयं क्त
ु राज्य अमेररका प्रभावित
होते हैं। रूस में इन हिाओ ं को पुरगा एिं साइबेररया में बुरान कहा जाता है।
• नाटे: ये संयुक्त राज्य अमेररका में शीत ऋतु में चलने िाली ध्रिु ीय पिनें हैं।
• पैंपैरो: ये अजेंटीना, वचली ि उरुनिे में बहने िाली तीव्र ठण्डी हिाएं हैं।
• ग्रेगाले: ये दवक्षण यूरोप के भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में बहने िाली ठण्डी हिाएाँ हैं।

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• जरू न: ये जूरा पिवत (वस्िट्जरलैंड) से जेनेिा झील (इटली) तक रावत्र के समय चलने िाली ठण्डी एिं शुष्क
पिनें हैं।
• मैस्ट्रो: ये भूमध्यसागरीय क्षेत्र के मध्यिती भाग में चलने िाली हिा है।
• पुना: यह एंडीज क्षेत्र में चलने िाली ठण्डी हिा है।
• पापागायो: यह मैवक्सको के तट पर चलने िाली तीव्र शुष्क एिं शीतल उिर-पूिी पिने हैं।
• पोनन्तः ये भूमध्य सागरीय क्षेत्र में विशेषकर कोवसवका तट एिं भूमध्यसागरीय रांस में चलने िाली ठण्डी
पवश्चमी हिाएं हैं।
• विरासेन: ये पेरू तथा वचली के पवश्चमी तट पर चलने िाली समुरी पिनें हैं।
• दवक्षणी बस्टार: ये न्द्यू साउथ िेकस (ऑस्ट्रेवलया) में चलने िाली तेज एिं शुष्क ठण्डी पिनें हैं।
• बाईज: यह रांस में प्रभािी रहने िाली अत्यंत ठण्डी एिं शुष्क पिन है।
• लेिांटर: यह दवक्षणी स्पेन में प्रभािी रहने िाली अत्यंत शवक्तशाली पूिी उण्डी पिनें हैं।

जेट स्ट्रीम (Jet Stream)


जेट धारा एक उच्च तलीय, सक ं ीणव तथा क्षैवतज अक्ष के सहारे तीव्र गवत से प्रिावहत होने िाली भव्ू यािती
(Geotropic Wind) पिन है जो क्षोभसीमा (Tropopause) के वनकट प्रिावहत होती है। सामान्द्यतः इनकी गवत
150 से 200 वकमी. प्रवत घंटा रहती है। परन्द्तु, कोर पर इनकी गवत सिाववधक (325 वकमी. प्रवत घटं ा) तक वमलती
है। मध्य अक्षाश
ं ों (30° से 35° अक्षाश
ं ों के बीच) इनकी गवत सिाववधक होती है।
जेट िायधु ाराएं सामान्द्यतः उिरी गोलाद्व में ही वमलती हैं (कारण: स्थलीय भाग अवधक होने से तापमान
में अन्द्तर अवधक होता है वजस से दाब प्रिणता अवधक होती है)। दवक्षणी गोलाद्ों में ध्रिु ों पर सवक्रय होती है अन्द्य
अक्षाश ं ों में बहुत कम।
जेट हिाओ ं का प्रिाह पथ सीधा न होकर सवपवलाकार अथिा विसपावकार होता है। ये पररध्रिु ीय (Circum
Polar) िायु धाराएं हैं। जेट िायु धाराओ ं को रॉस्बी लहरों (Rosby Waves) के नाम से भी जाना जाता है।
उत्पवि का कारण:
जेट धारा पछुआ अथिा अद्व पछुआ (Quasi Westerlies) हिाएं हैं जो ऊपरी िायुमण्डल में उष्ण एिं ठण्डी
िायुरावशयों के बीच िाताग्रीय क्षेत्रों में दाब की क्षैवतज प्रिणता में अन्द्तर तथा कोणीय संिेग संरक्षण
(Conservation of Angular Momentum) के कारण अवस्तत्ि में आती हैं।
1. िायुदाब प्रिणता (Pressure Gradient)
2. कोंणीय संिेग संरक्षण (Conservation of Angular Momentum)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
जेट िाराओ ं के प्रकार:
a. ध्रिु ीय रावत्र जेट स्ट्रीम (Polar Night Jet Stream)
b. ध्रिु ीय िाताग्रीय जेट स्ट्रीम
c. उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम
d. उष्ण कवटबंधीय पूिी जेट स्ट्रीम
a. ध्रुिीय रावत्र जेट स्ट्रीम: उिरी एिं दवक्षणी गोलाद्ों में 60° अक्षांशों से ध्रिु ों के बीच यह जेट स्ट्रीम पायी जाती
है।
b. ध्रुिीय िाताग्रीय जेट स्ट्रीम: इनका संबंध ध्रिु ीय िाताग्रों से है। ये 30°-70° उिरी अक्षांशों में क्षोभ सीमा पर
वमलती हैं। इनकी गवत 150-300 वकमी. प्रवत घंटा तक होती हैं। इन्द्हें रॉस्बी तरंगें कहते हैं।
c. उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम: ये 20°-35° उिरी अक्षांशों के बीच वमलती हैं। इनकी गवत सिाववधक होती है (340-
385 वकमी. प्रवत घंटा तक)। इनकी उत्पवि का मुख्य कारण विषुित रे खीय क्षेत्र में तापीय संिहन वक्रया के कारण
ऊपर उठी हुई िायु का क्षोभ सीमा पेटी में उिर-पूिी प्रिाह है।
नोट: भारत में शीत ऋतु में पवश्चमी विक्षोभ लाने के वलए ये जेट स्ट्रीम ही वजममेदार है।
d. उष्ण कवटबंिीय पूिी जेट स्ट्रीम: इस जेट पिन की वदशा उिर-पूिव होती है। ये वसफव उिरी गोलाद्व में 8°-35°
अक्षांशों के मध्य उिरी गोलाद्व में ग्रीष्म काल में उत्पन्द्न होती है। भारतीय मानसून की दशा में इनकी उत्पवि वतब्बत
के पठार क्षेत्र में होती है।
नोट: भारतीय मानसून की उत्पवि के वलए ये जेट पिनें वजममेदार हैं।
जेट पिनों का महत्ि:
• ताप, आरवता और सिं ेग के स्थानान्द्तरण में जेट धाराओ ं की महत्िपणू व भवू मका होती है।
• जब इन धाराओ ं का ऊपरी िायुमण्डल में अवभसरण होता है तो ये धरातल पर प्रवत चक्रिातीय दशाओ ं
का वनमावण करती हैं और जब ऊपरी िायुमण्डल में अपसरण होता है तो ये चक्रिातीय दशाओ ं एिं अिदाबों
की उत्पवि करती हैं।
• जेट धाराओ ं के अपसरण (ऊपर उठती िाय)ु एिं अवभसरण (नीचे उतरती िाय)ु के कारण क्षोभमण्डल एिं
समतापमण्डल के बीच हिा का वमश्रण होता है इससे प्रदषू क तत्ि समतापमण्डल में पहुचाँ जाते हैं एिं
क्षोभमण्डल में प्रदषू ण स्तर वनयवं त्रत रहता है।

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चक्रिात (Cyclone)
विशेर्ताए:ं
• ये वनमन िायदु ाब के के न्द्र होते हैं। इनके के न्द्र में िायदु ाब सबसे कम होता है।
• चक्रिात में पिन पररवध से के न्द्र की ओर चलती है। इनकी वदशा उिरी गोलाद्व में घड़ी की सईु के विपरीत
(Anti-Clockwise) एिं दवक्षणी गोलाद्व में घड़ी की सईु की वदशा (Clockwise) में होती है।
• इनके आगमन पर आकाश में सबसे पहले पक्षाभ मेघ वदखायी देते हैं। िायदु ाब तेजी से वगरता है। चन्द्रमा
एिं सयू व के चारों तरफ प्रभामण्डल वदखाई पड़ता है। िायु की वदशा पिू व से दवक्षण-पूिव होने लगती है।

शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिात उष्ण कवटबि ं ीय चक्रिात


उत्पविः इनकी उत्पवि शीत काल में दो विपरीत उत्पविः इनकी उत्पवि महाद्वीप एिं महासागर के
िाताग्रों के वमलने से होती है। वमलन क्षेत्र में ग्रीष्मकाल में तापीय कारणों से होती है।
क्षेत्र: शीतोष्ण कवटबंधीय भाग क्षेत्र: उष्ण कवटबंधीय क्षेत्रों में [भूमध्य रे खा के दोनों
ओर 5° अक्षांशों को छोड़कर]
आकार: िृिाकार आकार: िृिाकार
समयािवि: कुछ महीनो तक बना रहता समयािविः कुछ वदनों तक ही बना रहता है।
उत्पवि समय: शीत ऋतु उत्पवि समयः ग्रीष्म ऋतु
ऊजाा का स्त्रोत: िायुरावश के घनत्ि में अन्द्तर पर वनभवर ऊजाा का स्त्रोत: संघनन की गुप्त ऊष्मा
आँख: कम दाब, िषाव नहीं, आकाश साफ आँख: िायु प्रिाह शातं , कोई िषाव नहीं
तापमान: िाताग्र के अलग-अलग खंडो में अलग- तापमान: के न्द्र में समान तापमान, समदाब रे खाओ ं की
अलग तापमान संख्या कम ।
वदशा: पछुआ पिनों के प्रभाि से पवश्चम से पिू व वदशा: व्यापाररक पिनों के कारण पिू व से पवश्चम
इनमें िाताग्र अनुपवस्थत होते हैं।

अन्य नाम: हररके न (USA), टाइफून (चीन) तारनैडो


(USA), विली-विली (ऑस्ट्रेवलया) एिं चक्रिात
(भारत)

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विश्व भूगोल राज होल्कर
प्रवत चक्रिात (Anti-Cyclones)
विशेर्ताए:ं
• इसके के न्द्र में िायदु ाब उच्चतम होता है। िायदु ाब बाहर की ओर घटता जाता है।
• इसमें हिाएं के न्द्र से पररवध की ओर चलती हैं।
• प्रवत चक्रिात उपोष्ण कवटबधं ीय उच्च दाब क्षेत्रों में अवधक उत्पन्द्न होते हैं। भमू ध्यरे खीय भागों में इनका
अभाि रहता है।
• प्रवत चक्रिातों में मौसम साफ होता है तथा हिाएं मंद गवत से चलती हैं।
• इनका आकार प्राय: गोलाकार होता है परन्द्तु कभी-कभी ये V आकार में भी वमलते हैं। इनका आकार
चक्रिातों से अवधक विस्तृत होता है।
• उिरी गोलाद्व में इनकी वदशा घड़ी की सुई के अनुरूप (Clockwise) एिं दवक्षणी गोलाद्व में घड़ी की सुई
के विपरीत (Anti-Clockwise) होती है।
• प्रवत चक्रिात के के न्द्र में हिाएं ऊपर से नीचे उतरती है अतः मौसम साफ एिं िषाव रवहत होता है।
• प्रवतचक्रिात में िाताग्रों का वनमावण नहीं होता।
• प्रवत चक्रिातों का मागव एिं वदशा अवनवश्चत होती है।
• प्रवत चक्रिात के आने से िषाव की संभािना समाप्त हो जाती है।

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बादल (Clouds)
िायुभार में पररितवन के कारण जब िायु लंबित ऊपर उठे और िहााँ फै लकर ठण्डी हो जाए तब धरातल से अवधक
ऊाँचाई पर कुहरा छाने जैसी वस्थवत बनती है। बादल मुख्यतः हिा के रुद्ोष्म प्रवक्रया द्वारा ठण्डे होने पर उसके
तापमान के ओसांक वबन्द्दु के नीचे वगरने से बनते हैं। बादल वनमावण में धूलकण महत्िपूणव भूवमका वनभाते हैं।

बादलों का िगीकरण:
बादल

उच्च मेघ मध्य मेघ वनमन मेघ

पक्षाभ पक्षाभ पक्षाभ स्तरी कपासी स्तरी स्तरी कपासी कपासी िषाव
मेघ स्तरी कपासी मध्य मध्य मेघ कपासी मेघ िषी मेघ स्तरी मेघ
मेघ मेघ मेघ मेघ मेघ

1. उच्च मेघ (6000-12000 मी.)


A. पक्षाभ मेघ (Cirrus Clouds):
• ये िायुमण्डल में सिाववधक ऊाँचाई पर पाए जाते हैं। इनकी रचना वहमकणों से होती है।
• ये अत्यवधक ऊाँचाई पर सफे द रंग के वछतराए हुए मेघ हैं। ये मेघ िषाव नहीं करते।
• चक्रिात आने से पहले सबसे पहले ये मेघ वदखाई देते हैं। इन मेघों को चक्रिात के सचू क मे भी कहा जाता
है। इन मेघों से स्िच्छ मौसम की पूिव सचू ना वमलती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
B. पक्षाभ-स्तरी मेघ (Cirrostratus Clouds):
• ये मेघ एक िृहद क्षेत्र में दवू धया चादर की भााँवत फै ले होते हैं। इन मेघों से वदन में सूयव एिं रावत्र में चन्द्रमा के
चारों ओर प्रभामण्डल (Halo) का वनमावण होता है।
• चक्रिात के आगमन पर पक्षाभ मेघ के बाद ये मेघ वदखाई देते हैं। ये मेघ वनकट भविष्य में चक्रिात के
आगमन की सूचना देते हैं।
C. पक्षाभ-कपासी मेघ (Cirrocumulus Clouds):
• ये मेघ सफे द रंग के पतले गोलाकार धब्बों की भााँवत वदखाई देते हैं।
• ये मेघ सदैि पंवक्तयों अथिा समूहों में होते हैं। ये मेघ छायाहीन होते हैं इन्द्हें Mackerel Sky भी कहा जाता
है।

2. मध्य मेघ (2000-6000 मी. ऊँ चाई):


A. स्तरी मध्य मेघ (Altostratus Clouds):
• ये भरू े अथिा नीले रंग के मोटी परत की भांवत आसमान में छाए रहते हैं।
• इनसे विस्तृत क्षेत्रों पर िषाव की सभं ािना रहती है।
B. कपासी मध्य मेघ (Altocumulus Clouds):
• ये मेघ सफे द और भूरे रंग के होते हैं। ये आकाश में महीन चादर की तरह वबछे रहते हैं।
• ये मेघ छायादार होते हैं। पिवत वशखरों पर उत्पन्द्न ऐसे मेघों को 'पताका मेघ (Banner Clouds)’ भी कहा
जाता है।

3. वनम्न मेघ (2000 मी. की ऊँ चाई तक):


A. स्तरी मेघ (Stratus Cloud):
• ये धरातल से थोडी ऊाँचाई पर कोहरे की भााँवत पाए जाते हैं। इनका वनमावण कोहरे की वनचली परतों के
विसरण अथिा उनके उत्थान के कारण होता है।
• इनके खंवडत होने से नीला आकाश वदखाई पड़ता है। अतः इन खंवडत मेघों को ‘Fracto-Stratus
Clouds’ भी कहते हैं। ये मेघ आकाश में पूरी तरह छाए रहते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
B. स्तरी कपासी मेघ (Stratocumulus Clouds):
• ये हकके भूरे या सफे द रंग के गोलाकार धब्बों के रूप में वमलते हैं।
• ये मेघ साफ मौसम के सूचक हैं। जाडे के मौसम में ये मेघ समपूणव आसमान को ढाँक लेते हैं।
C. कपासी मेघ (Cumulus Cloud):
• ये आकाश में गुमबदाकार ि फूलगोभी की भााँवत छाए रहते हैं।
• ये मेघ प्रायः साफ मौसम की सूचना देते हैं।
D. कपासी िर्ाा मेघ (Cumulonimbus Clouds):
• ये अत्यवधक गहरे काले एिं सघन मेघ होते हैं।
• ये नीचे से ऊपर की ओर लंबित विशाल मीनार की भांवत उठे होते हैं।
• कभी कभी ये धरातल से काफी ऊाँचाई तक विस्तृत रहते हैं।
• इन बादलों से भारी िर्ाा, ओला, तवडत झंझा आवद उत्पन्न होते हैं।
• शीतोष्ण कवटबंधीय चक्रिातों में शीत िाताग्र के सहारे इन्द्ही बादलों से िषाव होती है।
• इन बादलों में भयंकर मेघ गजवन तथा वबजली की चमक होती है।
E. िर्ाा स्तरी मेघ (Nimbostratus Clouds):
• ये धरातल से कम ऊाँचाई पर वस्थत घने, काले एिं विस्तृत मेघ हैं।
• इनके छाने से अंधकार छाया रहता है।
• ये िायुमंडल में आरवता को बढ़ा देते हैं।
• शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिातों में उष्ण िाताग्र के सहारे इन बादलों से िर्ाा होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िर्ाा (Rain Fall)
जब जलिाष्प युक्त िायु ऊपर उठती है तो तापमान में कमी आने के कारण उसका संघनन (Condensation) होने
लगता है। इस तरह बादलों का वनमावण होता है। कुछ समय बाद बादलों में जलिाष्प की मात्रा अवधक हो जाती है।
यह िषवण (Precipitation) के रूप में जमीन पर वगरने लगती है।
िर्ाण (Precipitation) के प्रकार:

• िषाव (Rainfall) ओलािृवि (Hailfall)


• सवहम िृवि (Sleet) वहमपात (Snowfall)
• बूंदा-बांदी (Drizzle)
िर्ाा (Rainfall): जलिाष्प यक्तु िायु के ऊपर उठकर सघं वनत होने के कारण बादलों का वनमावण होता है तथा
बादलों में जलकणों की मात्रा अवधक हो जाने के कारण यह जल िषाव के रूप में जमीन पर वगरता है।
िर्ाा के प्रकार:
a. संिहनीय िषाव (Convectional Rainfall)
b. पिवतकृ त िषाव (Orographic Rainfall)
c. चक्रिाती िषाव या िाताग्री िषाव (Cyclonic or frontal Rainfall)
a. संिहनीय िर्ाा:
• इसकी उत्पवि गमव ि आरव पिनों के ऊपर उठने से होती है। पृथ्िी की सतह जब गमव हो जाती है तो अपने
सपं कव िाली िायु को गमव कर देती है। चाँवू क गमव िायु हककी होती है अतः यह ऊपर उठने लगती है तथा
सिं हनीय धाराओ ं का वनमावण करती है जो ऊपर जाकर सघं वनत हो जाते हैं एिं िषाव करते हैं।
• इस प्रकार की िषाव के वलए िायु में आरवता का होना आिश्यक है। इस प्रकार की िषाव के वलए वकसी
अिरोधक की आिश्यकता नहीं होती।
• विषिु तीय प्रदेश में इसी प्रकार की िषाव होती है िहााँ तापमान अवधक होने से एिं सिं हनीय धाराओ ं के
वनमावण से यह वस्थवत बनती है। यह िषाव बस कुछ समय के वलए होती है तथा लगभग प्रवतवदन होती है।
विषिु त रे खीय प्रदेशों में वदन के 2 बजे से 4 बजे के बीच सिं हनीय िषाव होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
b. पिातीय िर्ाा:
• जब जलिाष्प से लदी िायु को वकसी पिवत या ढलान के साथ चढ़ना होता है तो िायु रुद्ोष्म प्रक्रम के
कारण ठण्डी होने लगती है। ऊपर चढ़ने के कारण िायु संतप्तृ हो जाती है तथा संघवनत होकर बादलों का
रूप ले लेती है। संघनन के पश्चात िषाव होने लगती है। यही पिवतीय िषाव कहलाती है।
• संसार की अवधकतम िषाव इसी रूप में होती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ िषाव की मात्रा बढ़ जाती है।
पिनावभमख ु ढाल (Wind-ward Slope): पिवत का जो ढाल आने िाली पिन के सामने होता है िह
पिनावभमुख ढाल कहलाता है। यहााँ बहुत अवधक मात्रा में िषाव होती है। इस ढाल के सहारे िायु ऊपर उठती
है।
पिनविमख ु ढाल / िृवि छाया क्षेत्र (Lee-ward Side or Rain Shadow Zone): यह पिवत का दसू रा
ढलान होता है जहााँ से िायु नीचे उतरती है। इस ढाल पर िायु शुष्क होने लगती है तथा कम िषाव करती है।
महाबलेश्वर पिनावभमुख ढाल पर अिवस्थत होने के कारण अवधक िषाव प्राप्त करता है जबवक पुणे पिनविमुख
ढाल पर अिवस्थत होने के कारण कम िषाव प्राप्त करता है।

c. चक्रिाती या िाताग्री िर्ाा (Cyclonic Rainfall): चक्रिातों के कारण होने िाली िषाव को चक्रिाती
िषाव कहते हैं।

• प्रवक्रया: विशेषकर शीतोष्ण कवटबंधीय चक्रिातीय क्षेत्रों में गमव एिं शीतल िायुरावश के टकराने से तूफानी
दशाएं उत्पन्द्न होती हैं तथा गमव िायुरावश हककी होने के कारण शीतल िायुरावश के ऊपर चढ़ जाती है।
ऊपर चढ़ने िाली िायुरावश संघवनत होकर िषाव करती है।
• यह िषाव शीतोष्ण कवटबंधीय भागों में होती है। भारत के उिर-पवश्चमी भागों में शीत ऋतु में इसी प्रकार की
िषाव होती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व जलिायु प्रदेश
1. विर्ुित रेखीय (उष्ण एिं आरा
जलिायु): अरीका) एिं ऑस्ट्रेवलया का उिरी, उ.
पूिी तथा मध्य क्षेत्र
• क्षेत्र: अमेजन बेवसन, कागं ो बेवसन, • िायदु ाब: वनमन िायुदाब पेटी ि उच्च
मलेवशया एिं ईस्ट इण्डीज, वफ़लीपीन्द्स, िायुदाब पेटी के मध्य वस्थत
कमबोवडया [10°N से 10°S के बीच] • पिन प्रिाह: व्यापाररक या सन्द्मागी पिनें
• िायदु ाब: वनमन दाब [कारण: अत्यवधक • तापमान:
ताप] o औसत तापमान 18°C से अवधक,
• पिन प्रिाह: डोलड्रम [पिनों का प्रिाह o मावसक तापान्द्तर 20°C से 30°C
शांत] के मध्य,
• तापमान: o िावषवक तापान्द्तर 10°C तक
o न्द्यूनतम तापमान = 15°C • आराता: 60 से 75%
o अवधकतम तापमान = 40°C • िर्ाा: गवमवयों में अवधक
o िावषवक तापान्द्तर = 5°C
• िन: आरव शष्ु क उष्ण कवटबधं ीय िन
o दैवनक तापान्द्तर = 12°C तक
(वशकार भवू म)
• िर्ाा: संिहनीय िषाव, िावषवक औसत िषाव
• िनस्पवतया:ं सिाना घास, हाथी घास
200 CM से अवधक
आवद
• आराता: 75% से अवधक
• िन: उष्ण कवटबंधीय सदाबहार आरव िन
• िनस्पवत: महोगनी, आबनसू , रोजिङु , 3. मानसनू ी जलिायु (भारत तल्ु य):
मैंग्रोि (डेकटाई भाग), अवधपादप एिं
लताएं। • क्षेत्र: भारत, मयांमार, बांनलादेश, इण्डो
चीन, द० चीन, पू. एवशया एिं उिरी
ऑस्ट्रेवलया
2. सिाना प्रदेश या सूडान तुल्य • िायदु ाब: वनमन िायुदाब (ऋतु के साथ
जलिायु: िायुदाब में पररितवन)
• पिन प्रिाह: मानसूनी पिनें
• क्षेत्र: सूडान, द. अमेररका में (िेनेजुएला,
• तापमान: गवमवयों में 27°C (कुछ स्थानों पर
आंतररक पूिी ब्राजील एिं परानिे), अरीका
40°C तक), िावषवक तापान्द्तर 15°C तक
में (सहारा की द. सीमा से लगे क्षेत्र, पूिी

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• आराता: शीत एिं ग्रीष्म ऋतु में कम, िषाव 5. उष्णकवटबि
ं ीय सागरीय जलिायु:
ऋतु में अवधक
• क्षेत्र: उष्ण कवटबंधीय महासागरों के पवश्चमी
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 40-200 CM
क्षेत्र, मध्य अमेररका, पूिी अरीका,
तक, महासागरीय एिं मानसूनी पिनों द्वारा
मेडागास्कर, उ.पू. ऑस्ट्रेवलया, पूिी ब्राजील
एिं उष्ण कवटबंधीय चक्रिातों द्वारा िषाव
ि द. अमेररका का कै ररवबयाई भाग,
• िन: उष्ण कवटबंधीय पणवपाती/मानसूनी िन वफलीपींस तथा क्यूबा
• िनस्पवत: साल, सागिान, शीशम, बााँस, • िायुदाब: वनमन िायुदाब पेटी
बेंत, बेर, बबूल आवद ।
• पिन प्रिाह: व्यापाररक / सन्द्मागी पिनें
• तापमान: अवधकतम तापमान कम तथा
4. शष्ु क मरुस्िलीय (सहारा तल्ु य): िावषवक तापान्द्तर भी कम
• आराता: 70-80%
• क्षेत्र: द.प. USA, उिरी मैवक्सको, उिरी
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 58 CM
अरीका, पवश्चमी एिं दवक्षण एवशया में
अरब, पावकस्तान एिं भारत का पवश्चमी
भाग, द. अमेररका में अटाकामा, द.प. 6. उष्ण शीतोष्ण पूिी सीमान्त (चीन
अरीका में कालाहारी आवद।
तुल्य):
• िायुदाब: वनमन िायुदाब
• पिन प्रिाह: व्यापाररक / सन्द्मागी पिनें • क्षेत्र: मध्यिती चीन, द.प.ू USA, दवक्षण
• तापमान: ब्राजील, अजेंटीना का पिू ी भाग, द. पू.
o सवदवयों में औसत तापमान 10°C, अरीका एिं द.प.ू ऑस्ट्रेवलया
o गवमवयों में औसत तापमान 30°C, • िायदु ाब: उच्च िायदु ाब
o िावषवक तापान्द्तर 20°C • पिन प्रिाह: िायु की शांत दशा, अश्व
• आराता: अवत न्द्यून अक्षांश
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 10-12 CM • तापमान: औसत तापमान 20°C से 22°C
तक, िावषवक तापान्द्तर 12°C-18°C
• िन: उष्ण कवटबधं ीय मरुस्थलीय
• आराता: ग्रीष्म ऋतु शुष्क, शीत ऋतु आरव
• िनस्पवत: मेवस्क (द.प. USA), वक्रयाशॉट
झाडी, नागफनी, खजरू , बबल ू , खेजडी, • िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 40-80CM /
मैमीलेररया, यक
ू ा, सीरस, अगेि आवद । यहााँ पछुआ पिनों के प्रभाि से शीत ऋतु में
िषाव तथा सन्द्मागी / व्यापाररक पिनों के
प्रभाि से ग्रीष्म ऋतु शुष्क अथिा कम िषाव।
• िन: उपोष्ण कवटबंधीय सदाबहार िन

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• िनस्पवत: ओक, लॉरे ल, मैननेवलया, बीच, 8. शीतोष्ण कवटबि
ं ीय घास के मैदान:
मैपल, चेस्टनट, एश िालनट आवद।
• क्षेत्र: यूरोप एिं मध्य एवशया का उ.पू. भाग,
उ. अमेररका, अजेंटीना, अरीका एिं
ऑस्ट्रेवलया
7. भमू ध्य सागरीय जलिाय:ु
• िायुदाब: वनमन िायुदाब
• क्षेत्र: भूमध्य सागर के तटिती भाग (स्पेन, • पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें
इटली, रांस, जमवनी, मोरक्को, लीवबया, • तापमान: 26°C (ग्रीष्म ऋतु), शीत ऋतु में
ट्यूवनवशया, अकजीररया, वमस्त्र, अरब वहमांक से नीचे
गणराज्य), कै वलफॉवनवया, मध्य वचली, द.
• अपिाद: द. गोलाद्व में समुरी प्रभाि के
अरीका एिं द. ऑस्ट्रेवलया
कारण औसत तापमान 10°C तक शीत
• िायदु ाब: वनमन िायुदाब पेटी एिं उच्च ऋतु में रहता है।
िायुदाब पेटी के मध्य वस्थत
• आराता: गवमवयों में अवधक सवदवयों में कम
• पिन प्रिाह: पछुआ पिनें
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 40 CM से 70
• तापमान: CM तक
o औसत तापमान: 20°C-26°C
• घास के मैदान:
(ग्रीष्म ऋत)ु
o स्टेपी – यरू े वशया
o औसत तापमान: 5°C-15°C
o डाउन्द्स – ऑस्ट्रेवलया
(शीत ऋतु)
o प्रेयरी – उ. अमेररका
o िावषवक तापान्द्तर: 10°C-15°C
[दैवनक तापान्द्तर अवधक] o पमपास – द. अमेररका
o िेकड – द. अरीका
• आराता: ग्रीष्म ऋतु शुष्क, शीत ऋतु आरव
(शीत ऋतु में िषाव होती है ग्रीष्म ऋतु में नहीं)
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 40-80 CM
• िन: भमू ध्य सागरीय िन
• िनस्पवत: कॉकव , ओक, जैतनू , चेस्टनट,
पाइन, चैपरल झाडी एिं रसदार फल

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विश्व भूगोल राज होल्कर
9. वब्रवटश तुल्य जलिायु: • तापमान: िावषवक तापान्द्तर 55°C तक
o विश्व का न्द्यूनतम तापमान:
• क्षेत्र: वब्रवटश कोलंवबया, उ. प. यूरोप, तटीय
बखोयान्द्स्क (-58°C)
द. वचली, तस्मावनया, न्द्यूजीलैंड के दवक्षणी
द्वीप • आराता: अवत न्द्यनू
• िायुदाब: वनमन िायुदाब पेटी • िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 38 CM से
अवधक नहीं
• पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें
• िन: टैगा िन / शंकुधारी िन / कोणधारी
• तापमान:
िन
o शीत ऋत:ु औसत तापमान 4°C
• िनस्पवत: लाचव, स्प्रसू , मॉस, लाइके न,
o ग्रीष्म ऋतु: औसत तापमान 16°C
चीड, देिदार, फर, हेमलॉक आवद।
o िावषवक तापान्द्तर: 8°C से 12°C
तक
• आराता: शीत ऋतु में अवधक 11. ध्रुिीय जलिायु / टुन्ड्रा जलिायु:
• िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 60 CM से 100
CM तक • क्षेत्र: उिरी कनाडा, उिरी एवशया में
साइबेररया से ध्रिु ों तक
• िन: उपध्रिु ीय िन
• िायदु ाब: उच्च िायदु ाब
• िनस्पवत: चीड, देिदार, ओक, पाइन
आवद। • पिन प्रिाह: ध्रिु ीय पिनें
• तापमान: िावषवक तापान्द्तर 40°C से
50°C तक
10. साइबेररया तुल्य जलिायु: • आराता: वनमन आरवता
• क्षेत्र: कनाडा का उिरी भाग, उ. अमेररका • िर्ाा: औसत िावषवक िषाव 25 CM
का उिरी भाग, यरू े वशया का रूस एिं • िन: टुण्ड्रा िन
साइबेररयाई भाग • िनस्पवत: के िल ग्रीष्म ऋतु में 2-3 माह
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब एिं उच्च तक ही िनस्पवत का विकास होता है,
िायदु ाब पेटी के मध्य अवधकतर बफव जमी रहती है।
• पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें

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विश्व भूगोल राज होल्कर
वमट्टी / मृदा (Soil)
वमट्टी (Soil): वमट्टी खवनज एिं जैविक तत्िों का ऐसा वमश्रण होती है वजसमें उिवरता की शवक्त होती है। यह
धरातल के ऊपरी भाग में पायी जाती है। मृदा को अनिीकरणीय (Non-Renewable) ससं ाधन माना जाता है।
मृदा वनमााण के कारक:
• आधारभूत चट्टान या आधारभूत जनक पदाथव जलिायु (Climate)
• स्थलाकृ वतक उच्चािच जैविक प्रभाि
मदृ ा पररच्छे वदका (Soil Profile):
मृदा पररच्छे वदका में चट्टानों से प्राप्त अपक्षवयत पदाथव ही होते हैं परन्द्तु आधारी चट्टान वजस पर मृदा का वनक्षेप होता
है, स्ियं पररच्छे वदका का भाग नहीं होती। इस आधार पर चट्टान के ऊपर के तीन संस्तर एक-दसू रे के ऊपर होते हैं।
क – संस्तर (A – Horizon):
यह वमट्टी का सबसे ऊपरी स्तर है वजसमें जैि पदाथव तथा ह्यमू स होता है। इसे ऊपरी स्तर (Top Soil) भी
कहते हैं। इसके ऊपरी भाग में ह्यमू स तथा वनचले भाग में जैि तत्िों की अवधकता होती है। इस स्तर के
तीसरे भाग में जल द्वारा ऊपरी भागों में ह्यमू स तथा जैि पदाथव ले लाया जाता है। इसे अपिहन क्षेत्र (Zone
of Eluviation) कहते हैं।
ख – संस्तर (B – Horizon):
क – संस्तर के नीचे ख – संस्तर होता है। इसे मध्य संस्तर (Sub – Soil) भी कहते हैं। इसके ऊपरी भाग
को संक्रमण (Transitional) क्षेत्र कहते हैं। इसके वनचले भाग में कोलॉयड (Colloids) बहुत अवधक
होते हैं। इसे विवनक्षेपण क्षेत्र (Zone of Illuviation) कहते हैं।
ग – सस्ं तर (C – Horizon): इसमें अपक्षवयत मूल चट्टानी पदाथव होता है।
घ – संस्तर (D – Horizon):
इसमें मूल चट्टानी पदाथव होता है, वजसका अपक्षय नहीं हुआ। इसे आधार चट्टान भी कहते हैं। िास्ति में
यह मूल चट्टानी भाग है वजस पर अन्द्य तीन संस्तर वटके हुए हैं। अतः यह मृदा पररच्छे वदका का भाग नहीं
है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
मृदा का िगीकरण:
1. क्षेत्रीय मृदा (Zonal Soil)
a. पेडाल्फर [63.5 CM से अविक िर्ाा]
उदाहरण: पॉडजॉल मृदा, लाल-पीली मृदा, लैटराइट मृदा, चरनोजम (काली मृदा), टुण्ड्रा मृदा
b. पेडोकल [63.5 CM से कम िर्ाा]
उदाहरण: प्रेयरी मृदा, चेस्टनट मृदा, सरोजेमस मृदा, मरुस्थलीय मृदा
2. अक्षेत्रीय मदृ ा (Azonal soil)
a. जलोढ़ मृदा
b. लोएस मदृ ा

1. क्षेत्रीय मृदा (Zonal Soil):


यह मृदा अपनी आधारी चट्टानों से संबंवधत होती है। इस मृदा में संस्तरों का पूणव विकास वमलता है। इसे दो भागों में
विभावजत वकया जाता है –
A. पेडाकफर मृदा
B. पेडोकल मृदा
A. पेडाल्फर मृदा:
i. पॉडजॉल मृदा:
• यह कोणधारी उच्च अक्षाश
ं ीय प्रदेशों में पायी जाती है।
• इसमें ह्यमू स की मात्रा कम होती है।
• यह अमलीय तथा कम उपजाऊ होती है।
• खाद, उिवरक एिं फसल शस्याितवन से उपजाऊ बनायी जा सकती है।
ii. लाल पीली मृदा:
• यह उष्ण कवटबंधीय उच्च ताप एिं उच्च आरवता िाले प्रदेशों में पायी जाती है।
• इसमें ह्यूमस की मात्रा कम होती है।
• इसका लाल रंग लोहे की उपवस्थवत के कारण होता है।
• इसमें कै वकसयम की मात्रा कम होती है। यह अमलीय मृदा होती है।
• यह कपास एिं तमबाकू उत्पादन के वलए उपयुक्त मृदा है।
• यह चीड के िृक्षों के वलए उपयुक्त मृदा है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
iii. लैटराइट मृदा:
• यह भमू ध्य रे खीय सिाना, उष्ण एिं आरव जलिायु प्रदेशों में विस्ताररत है। इसका वनमावण वनक्षालन
वक्रया द्वारा हुआ है।
• इसमें ह्यमू स का पणू वतः अभाि पाया जाता है।
• इसमें लोहे एिं एकयवु मवनयम के वनक्षेप पाए जाते हैं।
• इसमें बॉक्साइट, वलमोनाइट एिं मैननेटाइट खवनज पाया जाता है।
• यह कृ वष के उद्देश्य से अनुपयुक्त मृदा है।
• इस मृदा क्षेत्र में कठोर लकड़ी िाली एिं कांटेदार िनस्पवत पायी जाती है।
• यह मृदा जायरे बेवसन, अमेजन बेवसन एिं द. पू. एवशया में पायी जाती है।
B. पेडोकल मृदा:
iv. चरनोजम (काली मृदा):
• यह समशीतोष्ण (Semi-Temperate) क्षेत्रों में पायी जाती है।
• इस मृदा में ह्यमू स एिं कै वकसयम की मात्रा अवधक होती है।
• इस मृदा की आरवता ग्रहण क्षमता अवधक होती है इसवलए वसचं ाई की आिश्यकता कम होती है।
• यह मृदा रूस के स्टेपी, उिरी अमेररका के प्रेयरी, अजेंटीना के पमपास, अरीका के िेकड क्षेत्रों में
पायी जाती है।
v. टुण्ड्रा मृदा:
• यह टुण्ड्रा प्रदेशों में पायी जाती है।
• यह अकप विकवसत मृदा होती है।
• इसमें जैि तत्िों एिं महत्िपूणव खवनजों का अभाि पाया जाता है।
• इस मृदा क्षेत्र में काई (Lichen) एिं मॉस (Moss) मुख्यत: पायी जाती है।
vi. प्रेयरी मृदा:
• यह शीतोष्ण आरव प्रदेशों में लंबी घास भूवमयों में पायी जाने िाली मृदा है।
• इस मृदा में चरनोजम एिं पॉड्जॉल मृदा के वमवश्रत गुण पाये जाते हैं।
• ह्यूमस की अवधकता के कारण इसका रंग काला भूरा होता है।
• यह मृदा अत्यंत उपजाऊ होती है। इसमें चनू े का अंश भी पाया जाता है।
• मक्का इस मृदा क्षेत्र की मुख्य फसल है।
• यह मृदा उिरी अमेररका के प्रेयरी, दवक्षणी अमेररका के पमपास, हाँगरी के पुस्टाज, ऑस्ट्रेवलया की
डाउन्द्स घास भूवमयों में पायी जाती है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
vii. चेस्टनट मृदा:
• यह मृदा महाद्वीपों के शष्ु क एिं अद्वशष्ु क भागों में पायी जाती है।
• इसका रंग गहरा भरू ा होता है।
• इसमें ह्यमू स की मात्रा कम पायी जाती है।
• यह सिाना प्रकार की घास के मैदानों में पायी जाती है।
viii. सायरोजम / सरोजेम्स मृदा:
• इसमें ह्यूमस की मात्रा कम वकन्द्तु पोषक तत्िों की मात्रा पयावप्त होती है।
• यह क्षारीय मृदा है इसमें चनू ा सतह पर जमा रहता है।
• यह उष्ण कवटबंधीय शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में पायी जाती है।
ix. मरुस्िलीय मृदा:
• यह मृदा कम िषाव, अवधक तापमान एिं अवधक िाष्पीकरण िाले शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में
पायी जाती है।
• इस मृदा में उपजाऊ तत्िों का जल द्वारा ररसाि (Leaching) वबककुल नहीं होता।
• यह क्षारीय मृदा होती है इसमें ह्यूमस का अभाि होता है।
• इस मृदा क्षेत्र पर िनस्पवतयों का अभाि पाया जाता है।
• यह मृदा उपजाऊ होती है वकन्द्तु वसंचाई आिश्यक होती है।

2. अक्षेत्रीय मृदा (Azonal Soil):


• यह वमट्टी स्थानीय उत्पवि नहीं रखती। यह अपरदन के कारकों द्वारा बहा कर लायी जाती है।
• इसमें आधारी चट्टान से पूणवतः वभन्द्न पावश्ववका वमलती है।
• इस वमट्टी में सस्ं तरों का विकास ठीक से नहीं वमलता।
A. जलोढ़ मृदा:
• विश्व की सभी बड़ी नवदयों की घावटयों में यह मृदा पायी जाती है।
• आिश्यक खवनज तत्िों की दृवि से यह धनी मृदा है।
• यह विश्व की सिाववधक उपजाऊ मृदाओ ं में से एक है।
• यह मृदा चािल, जूट, गेह,ाँ गन्द्ना, कपास की कृ वष के वलए उपयोगी है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
B. लोएश मृदा:
• इसका सिाववधक विस्तार उिर-पवश्चम चीन में है। मध्यिती यूरोप एिं वमसीवसपी प्रदेश में भी यह मृदा
पायी जाती है। इस मृदा में अपक्षालन (Leaching) की वक्रया नहीं होती। यह एक उपजाक मृदा है।
इसके वलए वसंचाई की आिश्यकता होती है।
मृदा का निीन िगीकरण:
A. अविकवसत मदृ ा सस्ं तरों िाली वमरट्टयाँ:
1. एटं ीसॉल (Entisol):
स्िान: सहारा, अलास्का, साइबेररया, वतब्बत
विशेर्ता: यह अविकवसत मृदा है। इसमें संस्तरों का अभाि पाया जाता है।
2. इंसेप्टीसॉल (Inceptisol):
स्िान: अमेररका, वचली, कोलंवबया, स्पेन, रांस, साइबेररया, पूिी चीन एिं गंगा घाटी (बाढ
क्षेत्र), टुण्ड्रा एिं अकपाइन क्षेत्र
विशेर्ता: यह नूतन वमट्टी है। इसमें संस्तर अकपविकवसत अिस्था में होते हैं। इसमें अपक्षालन
एिं अपक्षयन की तीव्रता कम होती है।
3. वहस्टोसॉल (Histosol):
स्िान: शीत प्रदेशों में
विशेर्ता: यह अमलीय एिं कुप्रिावहत वमट्टी है। यह दलदली वमट्टी है। यह जैविक परतों से संपन्द्न
वमट्टी है। इसमें पौधों के वियोवजत अिशेष अवधक एिं मृविका की मात्रा कम होती है। इसमें पोषक
तत्िों की कमी होती है। चनू े एिं उिवरकों द्वारा इसे उपजाऊ बनाया जा सकता है।
B. विकवसत मृदा/संस्तरों िाली मृदाए:ं
1. ऑक्सीसॉल:
स्िान: उिरी ब्राजील, अरीका, द. पू. एवशया
विशेर्ता: इस मृदा में Fe एिं Al ऑक्साइडों की प्रचरु ता होती है। यह उष्ण कवटबंधीय भागों
की वमट्टी है जो वनक्षालन प्रवक्रया से वनवमवत होती है। यह गहन अपक्षावलत मृदा है। इसमें वसवलके ट
उपवस्थत नहीं होते। यहााँ झूवमंग कृ वष की जाती है।
2. अल्टीसॉल:

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विश्व भूगोल राज होल्कर
स्िान: द. पू. अमेररका, उ.प.ू ऑस्ट्रेवलया, द.पू. एवशया, द. ब्राजील, परानिे
विशेर्ता: यह उष्ण एिं उपोषण प्रदेश की वमरट्टयां हैं जो उपजाऊ तथा लाल, पीली एिं भरू ी होती
हैं। ये अमलीय वमरट्टयााँ हैं। ये ऑक्सीकरण के कारण लाल रंग की होती हैं।
3. िटीसॉल / इनिटीसॉल:
स्िान: पिू ी अमेररका, द. अमेररका, सडू ान, भारत एिं ऑस्ट्रेवलया
विशेर्ता: यह रे गुर या रें डवजना वमट्टी के समान है। सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। गीली होने
पर यह वचपवचपी हो जाती है। इस मृदा की जलधारण क्षमता अवधक होती है।
4. अल्फीसॉल:
स्िान: अमेररका, पू. ब्राजील, भारत, द. पू. एवशया के पणवपाती िन प्रांतों में
विशेर्ता: ये आरव एिं उप आरव प्रदेशों की मृदाएं हैं। वनक्षालन के कारण इसमें Al एिं Fe की
अवधकता होती है। ये अमलीय मृदाएं होती हैं। इनमें ह्यमू स की कमी होती है। ये कम उिवर मृदा
होती हैं। इनकी सतह का रंग सलेटी एिं मृदा का रंग भूरा होता है।
5. स्पोडोसॉल:
स्िान: उिरी अमेररका, उिरी यूरोप, द. अमेररका एिं ऑस्ट्रेवलया
विशेर्ता: यह पॉडजॉल समूह की वमरट्टयों के समान होती है। यह वमट्टी टैगा क्षेत्रों में पायी जाती
है। यह अमलीय वमवटयााँ होती हैं। इस प्रकार की वमरट्टयों में वनक्षालन वक्रया तीव्र एिं जैविक वक्रयाएं
कम होती हैं। इनकी जलधारण क्षमता कम होती है।
6. मोलीसॉल:
स्िान: अमेररका, चीन, मंगोवलया, परानिे, उरुनिे, ऑस्ट्रेवलया, अजेंटीना आवद
विशेर्ता: यह विश्व की सिाववधक उपजाऊ वमट्टी है एिं चरनोजम के समान होती है। प्रेयरी एिं
चेस्टनट वमरट्टयों को भी इसी समूह में रखा जा सकता है। ये वमरट्टयााँ गहरी भूरी या काले रंग की
होती हैं। इसमें ह्यूमस की पयावप्त मात्रा होती हैं। इन वमरट्टयों में घास के मैदानों का विकास होता है।
7. एररडोसॉल:
स्िान: द.प. अमेररका, मध्य मैवक्सको, सहारा, ऑस्ट्रेवलया, गोबी क्षेत्र, द. अमेररका का पवश्चमी
क्षेत्र।
विशेर्ता: ये रे वगस्तानी प्रदेशों की लिणीय ि क्षारीय वमट्टी है। इस वमट्टी की सतह पर सोवडयम
अथिा कै वकसयम की परत होती है। इनमें वनक्षालन नहीं होता, जैविक पदाथव का अभाि पाया
जाता है। यह मूलतः मरुस्थलीय मृदाएं है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
कृवर् (Agriculture)
विश्व में कृवर् के विशेर् प्रकार
• विटीककचर: अंगूरों की खेती सेरीककचर: रे शम उत्पादन
• ओवलिीककचर: जैतून की खेती हॉटीककचर: फलों का उत्पादन
• एपीककचर: मधुमक्खी पालन फ्लोरीककचर: फूलों की खेती
• ओलेरीककचर: सवब्जयों की खेती मेरीककचर: समरु ी जीिों का उत्पादन
• िमीककचर: कें चआ
ु पालन मोरीककचर: शहततू की कृ वष
• एरीपोवनक: पौधों को हिा में उगाना पोमोलॉजी: फल विज्ञान
• वपसीककचर / एक्िाककचर: व्यापाररक स्तर पर मछली पालन
• आरबरीककचर: विशेष प्रकार के िृक्ष एिं झावडयों की खेती एिं संरक्षण
• वसकिीककचर: िनों का संरक्षण एिं संिद्वन
िनस्पवतयों का िगीकरण
• हाइड्रोफाइट: जल की ऊपरी सतह पर उगने िाली िनस्पवत
• हाइग्रोफाइट: अवधक आरवता िाले क्षेत्रों में पायी जाने िाली िनस्पवत
• जेरोफाइट (Xerophyte): मरुस्थल में उगने िाली िनस्पवत
• मेसोफाइल (Mesophyte): शीतोष्ण कवटबंधीय टैगा िनस्पवत
• क्रायोफाइट (Cryophyte): शीत कवटबंधीय टुण्ड्रा िनस्पवत
• हैलोफाइट (Halophyte): नमकीन वमट्टी की िनस्पवत
• वलथोफाइट (Lithophyte): कठोर चट्टानों पर उगने िाली िनस्पवत
• पायरोफाइट (Pyrophyte): अवनन प्रवतरोधी िनस्पवत
• ट्रोपोफाइट (Tropophyte): उष्ण कवटबधं ीय क्षेत्र में िन एिं घास िाली िनस्पवत

कृवर् से सबं वं ित विवभन्न क्रावं तयाँ:


• हररत क्रांवत: कृ वष उत्पादन श्वेत क्रांवत: दनु ध उत्पादन
• नीली क्रांवत: मत्स्य उत्पादन गुलाबी क्रांवत: झींगा मछली उत्पादन
• लाल क्रांवत: मााँस / टमाटर उत्पादन गोल क्रांवत: आलू उत्पादन

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• रजत क्रावं त: अण्डा उत्पादन सनु हरी क्रावं त: फल उत्पादन
• काली / कृष्ण क्रावं त: खवनज तेल में आत्मवनभवरता अमतृ क्रावं त: नदी जोड़ो योजना
• पीली क्रांवत: सूयवमुखी एिं अन्द्य वतलहनों का उत्पादन
• इंरिनुर्ी क्रांवत: फसल उत्पादन में विवभन्द्नता (कृ वष संबंधी समग्र क्रांवत)
• भूरी क्रांवत: गैर परंपरागत ऊजाव उत्पादन एिं उिवरक उत्पादन

कृवर् के विवभन्न प्रकार एिं पध्दवतयाँ


झमू कृवर्: [स्िानान्तररत कृवर्]
इस कृ वष में पहले िनों में आग लगाकर उसे साफ वकया जाता है तथा कुछ िषव तक उस भवू म पर कृ वष की
जाती है। भवू म की उत्पादकता समाप्त होने या कम होने पर उसे छोड़ वदया जाता है वफर वकसी अन्द्य स्थान
पर इसी प्रकार कृ वष की जाती है।
वनिााहक कृवर्:
इस प्रकार की कृ वष में खाद्य फसलों की प्रधानता होती है। इसमें एक िषव में दो या तीन फसलें सघन रूप में
उगायी जाती हैं। इस कृ वष में वसंचाई सुविधाओ ं की कमी, सूखा तथा बाढ़ की क्षवत, उन्द्नत बीज उिवरकों
एिं कीटनाशकों का न्द्यून प्रयोग होता है।
िावणवज्यक कृवर्:
यह पणू वत: व्यापाररक उद्देश्य से की जाने िाली कृ वष है, वजसमें नकदी फसलों का उत्पादन वकया जाता है।
इस कृ वष में वसचं ाई, उन्द्नत वकस्म के अवधक उपज िाले बीज, रासायवनक उिवरक, कीटनाशी, फामव मशीनरी
पर विशेष ध्यान वदया जाता है। यह एक पाँजू ी सघन कृ वष है, वजसमें फसलों का अवधशेष उत्पादन बाजार
में लाभ कमाने के वलए वकया जाता है।
रेंवचंग खेती:
इस प्रकार की कृ वष में फसल का उत्पादन नहीं वकया जाता बवकक प्राकृ वतक िनस्पवत पर विवभन्द्न प्रकार
के पशुओ ं जैसे – गाय, भेड, बकरी आवद को चराया जाता है।
सहकारी खेती:
यह कृ वष खेती के छोटे तथा वबखरे होने की समस्या के समाधान तथा भूवम का सामाजीकरण कर भूवमहीनों,
छोटे वकसानों तथा कृ वष श्रवमकों के साथ न्द्याय करने के उद्देश्य से की जाती है। कृ वष की इस पद्वत में
वकसान परस्पर लाभ के उद्देश्य से स्िेच्छापूिवक अपनी भूवम, श्रम और पूाँजी को एकत्र करके सामूवहक रूप
से खेती करते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
गहन कृवर्:
यह कृ वष अवधक जनसंख्या घनत्ि तथा कम भूवम उपलब्धता िाले क्षेत्रों में की जाती है। इसमें भूवम की
प्रत्येक इकाई पर अवधक मात्रा में पूाँजी एिं श्रम का उपयोग कर एक वनवश्चत समयािवध में फसलों का
अवधकतम संभि उत्पादन वकया जाता है। इसमें रासायवनक उिवरकों, उन्द्नत बीजों, कीटनाशक दिाइयों,
वसंचाई, फसल चक्रण आवद का अवधकतम प्रयोग वकया जाता है।
वमवित कृवर्: इस प्रकार की कृ वष में कृ वष कायों के साथ पशुपालन भी वकया जाता है।
रोपण/बागानी कृवर्: यह पूणवत: व्यापाररक उद्देश्य से की जाती है। इसमें नगदी फसलों का उत्पादन वकया जाता
है।
डेयरी फावमिंग: इस प्रकार की कृ वष में दधू देने िाले पशओ
ु ं को पाला जाता है।
ट्रक फावमिंग: यह व्यापाररक स्तर पर की जाने िाली कृ वष है इसमें सवब्जयों एिं फलों की खेती की जाती है। इनके
पररिहन के वलए बड़े-बड़े ट्रकों का प्रयोग वकया जाता है।
ररले कृवर्: इसमें खड़ी फसल के नीचे दसू री अन्द्य फसल को बोया जाता है।
चक्रीय कृवर्: इसमें फसलें चक्रीय रूप में बोयी जाती हैं तावक खेतों की उिवरता बनी रहे। इसमें मुख्य रूप से
फलीदार पौधों को उगाया जाता है।

विश्व की प्रमुख फसलें


1. चािल:
• चािल एवशया की प्रमुख धान्द्य फसल है। यह मुख्यतः एवशया के मानसूनी प्रदेशों में बोयी जाती है।
• विश्व का लगभग 90% चािल दवक्षण पूिी एवशया में पैदा वकया जाता है।
• चीन, भारत, इडं ोनेवशया, बानं लादेश एिं वियतनाम प्रमख
ु चािल उत्पादक देश हैं।
• आिश्यक भौगोवलक दशाए:ं
o तापमान: 20° - 27° C
o िषाव: 150 – 200 CM
o वमट्टी: वचकनी, गहरी वचकनी एिं वचकनी दोमट
• अंतरावष्ट्रीय चािल अनुसंधान संस्थान मनीला (वफलीपींस) में वस्थत है।
• विश्व में सिाववधक धान उत्पादकता ऑस्ट्रेवलया की है।
• भारत, चािल की फसल के अन्द्तगवत विश्व में सिाववधक क्षेत्रफल रखता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• भारत का चािल के उत्पादन में चीन के बाद वद्वतीय स्थान है।
• शीर्ा चािल उत्पादक देश [FAO, िर्ा 2019]: 1. चीन 2. भारत 3. इडं ोनेवशया
• शीर्ा चािल वनयाातक देश: 1. भारत 2. थाईलैंड 3. वियतनाम 4. पावकस्तान
2. गेहँ (Wheat)
• गेहाँ की जन्द्मभूवम वफवलस्तीन मानी जाती है। यह विश्व की दसू री सबसे बड़ी खाद्यान्द्न फसल है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o बसंत कालीन तापमान: 20°-26° C
o शीत कालीन तापमान: 10°-15°C
o िषाव: 50-75 CM
o वमट्टी: दोमट, भारी दोमट, हककी वचकनी काली वमट्टी
• शीर्ा गेहँ उत्पादक देश [FAO, िर्ा 2019]: 1. चीन 2. भारत 3. रूस 4.USA
• शीर्ा गेहं वनयाातक देश: 1. USA 2. कनाड 3. अजेंटीना 4. ऑस्ट्रेवलया
• यूरोपीय देशों में रांस ही एकमात्र ऐसा देश है जो स्थानीय मांग की पूवतव के साथ-साथ गेहं का वनयावत भी
करता है।
3. मक्का (Maize):
• इसका जन्द्म स्थान मैवक्सको माना जाता है। यह एक उभयवलंगी पौधा होता है। यह उपोष्ण कवटबंध (मुख्य
रूप से 50°N एिं 40°S के बीच) का पौधा है। मक्के के प्रोटीन को जेन (Zein) कहा जाता है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 25° C - 30° C
o िषाव: 60-120 CM
o वमट्टी: वचकनी, दोमट, कांप
• शीर्ा मक्का उत्पादक देश [FAO, िर्ा 2019]: 1. USA 2. चीन 3. ब्राजील 4. अजेंटीना
4. कपास
• भारत को कपास का जन्द्मदाता माना जाता है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाए:ं
o तापमान: 20° - 30° C
o िषाव: 75-100 CM
o वमट्टी: चीका प्रधान दोमट, काली वमट्टी एिं चनू ा प्रधान वमरट्टयााँ

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• शीर्ा कपास उत्पादक देश (FAO, 2019): 1 चीन 2. भारत 3. USA. 4. ब्राजील
5. जूट / पटसन
• आिश्यक भौगोवलक दराएं:
o तापमान: 27°C से 37°C तक
o िषाव : 125-250 CM
o वमट्टी: कछारी, डेकटाई कांप, गहरी उपजाऊ वमट्टी
• शीर्ा जूट उत्पादक देश (FAO, 2019): 1. भारत 2. बांनलादेश 3. चीन
6. गन्ना
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o िषाव: 75-150 CM (िावषवक)
o तापमान: 20° - 25°C
o वमट्टी: दोमट, चीका, काली वमट्टी, लाल वमटट्टी एिं लैटराइट वमट्टी
• नोट: एक बार फसल को जड़ के ऊपर से काटने के बाद पुनः पैदािार लेना रतूवनंग कहलाता है।
• शीर्ा गन्ना उत्पादक देश (2019): 1. ब्राजील 2. भारत 3. थाईलैंड 4. चीन
7. कहिा (Coffee)
• उत्पवि स्थल – इवथयोवपया
• कहिा रोपण कृ वष की फसल है। कहिा की तीन मुख्य वकस्में –
o कॉवफया रोबस्टा
o कॉवफया लाइबेररया
o कॉवफया अरे वबका
• यमन के लाल सागर तटीय भाग में उत्पन्द्न होने िाला मोका (Mocca) एक उच्च कोवट का कहिा है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाएाँ:
o तापमान: 14°C – 26°C तक
o िषाव: 150 – 300 CM
o वमट्टी: पोटाश युक्त उपजाऊ वमट्टी, लैटराइट वमट्टी
• शीर्ा कहिा उत्पादक देश (2019): 1. ब्राजील 2. वियतनाम 3. कोलंवबया
• नोट: यह एक छायावप्रय पौधा है। अतः अन्द्य पेड़ों की छाया में लगाया जाता है। जड़ों में पानी नहीं रुकना
चावहए अत: ढलान िाली भवू म पर लगाया जाता है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
8. चाय (Tea)
• जन्द्म स्थान – चीन
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 20°- 30°C
o िषाव: 150-300 CM (सुवितररत िषाव)
o वमट्टी: गहरी भुरभुरी दोमट, हयूमस एिं लोहांश युक्त, लैटराइट वमट्टी
• शीर्ा चाय उत्पादक देश (2019): 1 चीन 2. भारत 3. के न्द्या 4. श्री लंका
9. रबड़ (Rubber)
• जन्द्म स्थान – द. अमेररका की अमेजन घाटी
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 20°C-25°C
o िषाव: 25 CM (सुवितररत िषाव)
o वमट्टी: गहरी दोमट
• शीर्ा रबड उत्पादक देश (2019): 1. थाईलैंड 2. इडं ोनेवशया 3. वियतनाम
10. कोकोआ (Cocoa)
• उपयोग: चॉकलेट बनाने में
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 16°-24° C
o िषाव: 125 CM
o वमट्टी: उपजाऊ दोमट
• शीर्ा कोकोआ उत्पादक देश (2019): 1. कोटे डी आइिरी 2. घाना 3. इडं ोनेवशया

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व के खवनज
खवनजों के प्रकार: खवनज दो प्रकार के होते हैं –
1. धावत्िक खवनज (Metallic Minerals) 2. अधावत्िक खवनज (Non-Metallic Minerals)
1. िावत्िक खवनज: इन खवनजों से धातुएं प्राप्त की जाती हैं। धातुओ ं के उपिगव वनमनवलवखत हैं –
a) बहुमूल्य िातुए:ं सोना, चांदी, प्लेवटनम, पैलेवथयम, इररवडयम
b) हल्की िातुए:ं एकयुवमवनयम, टाइटेवनयम, मैननीवशयम
c) लौह युक्त िातुए:ं क्रोवमयम, कोबाकट, मैंगनीज, वनके ल, टंगस्टन, मॉवलब्डेनम, बैनेवडयम, वजरकोवनयम,
बोरॉन राइटेवनयम आवद।
2. अिावत्िक खवनज: ये खवनज प्रकृ वत में अपने मूल रूप में पाए जाते हैं। इन खवनजों के उपिगव:
a) शवक्त के सािन: कोयला, खवनज तेल, पेट्रोवलयम, प्राकृ वतक गैस
b) उिारक खवनज: नाइट्रेट, फास्फे ट, पोटाश, गन्द्धक, सकफ्यरू रक अमल
c) रत्न एिं मावणक: हीरा, पन्द्ना, नीलम, ओपेल आवद

प्रमख
ु खवनज
1. लौह अयस्क (Iron Ore): लौह अयस्क के प्रकार –
• मैग्नेटाइट (Fe2O4): सिोिम वकस्म का लौह अयस्क है। इसमें लोहे का अंश 72% होता है।
• हेमेटाइट (Fe2O3): इसमें लोहे का अंश 60-70% तक होता है।
• वलमोनाइट (2FeO3): इसमें लोहे का अंश 40-50% तक होता है।
• वसडेराइट: इसे लोहा काबोनेट कहते हैं। इसमें लोहे का अंश 40-45% तक होता है।
सिााविक लौह अयस्क भण्डारण (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. ब्राजील 3. रूस 4. चीन 5. भारत
लौह अयस्क उत्पादन में शीर्ा (2019): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. ब्राजील 4. भारत 5. रूस
विश्व के लौह अयस्क उत्पादक प्रमुख क्षेत्र:
• चीन: मंचरू रया, शांतुंग, शान्द्सी, शेन यांग ब्राजील: इटावबरा पहाडी
• स्िीडन: वकरुना, गैलीबरा क्षेत्र यूक्रेन: वक्रिॉय रॉग
• द. अफ्रीका: पोस्टमास िगव क्षेत्र, ट्रांसिाल, नेटाल रूस: मैवननटोगोसव पिवत, कुजबास, टुला क्षेत्र
• USA: सुपीररयर झील प्रदेश (मेसाबी रें ज), अलबामा, पेंवसलिेवनया
• ऑस्ट्रेवलया: वपलबारा क्षेत्र, हैमस्ले खदान क्षेत्र, न्द्यू साउथ िेकस

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विश्व भूगोल राज होल्कर
2. मैंगनीज (Manganese): यह लौह-इस्पात उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है।
उपयोग: शुष्क बैटररयों का वनमावण, फोटोग्राफी में प्रयुक्त लिण, चमड़ा तथा मावचस उद्योग, कााँच को रंगने में,
पॉटरी, पेन्द्ट, रंगीन ईटं आवद बनाने में।
अयस्क: पायरोलुसाइट, मैंगेटाइट एिं रोडोक्रोसाइट
शीर्ा मैंगनीज भण्डारक देश (2021): 1. द. अरीका 2. ब्राजील 3. ऑस्ट्रेवलया
शीर्ा मैंगनीज उत्पादक देश (2019): 1. द. अरीका 2. गैबॉन 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के मैंगनीज उत्पादक प्रमुख क्षेत्र:
• गैबॉन: माओड खान यूक्रेन: वनकोपोल
• ब्राजील: अमापा क्षेत्र, ऑरो ग्रेटो क्षेत्र जावजाया: चायतरु ा
• द. अफ्रीका: पीटरमाररत्जबगव क्षेत्र, वकमबरले, क्रुनस ड्रॉप, संरैस
• चीन: अश
ं न-चागं वलगं , पेंकी क्षेत्र (द. मचं रू रया), हुनान, हुपे, तागं शगुं एिं बटु ान क्षेत्र, वकयानं सी

3. ताँबा (Copper)
ताँबे की प्रमख
ु वमििातुए:ं
• तााँबा + वटन = काँसा तााँबा + जस्ता = पीतल
ताँबे के अयस्क / खवनज:
• सल्फाइड: चेककोपायराइट, चेककोसाइट, बोनावइट ऑक्साइड: क्यूप्राइट
• काबोनेट: मैचेलाइट, एजरु ाइट
ताँबा भण्डारण िाले शीर्ा देश (2021): 1. वचली 2. पेरु 3. ऑस्ट्रेवलया
ताँबा उत्पादन में शीर्ा देश (2019): 1. वचली 2. पेरु 3: चीन 4. कांगो
विश्व के ताँबा उत्पादक क्षेत्र:
• वचली: चक्ु िीकमाटा पिवत USA: एररजोना प्रांत, मोंटाना प्रांत का बूटे क्षेत्र
• जायरे (कागं ो): कटंगा क्षेत्र कनाडा: सैडबरी (ओटं ाररयो)
• ऑस्ट्रेवलया : माउन्द्ट मॉगवन, माउन्द्ट ईसा, माउन्द्ट लायल
• द. अफ्रीका: ट्रासं िाल, के पटाउन, नाबादीप, मेवसना

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विश्व भूगोल राज होल्कर
4. बॉक्साइट: यह एकयुवमवनयम धातु का अयस्क है। बॉक्साइट में एकयुवमना की मात्रा 55 से 65 प्रवतशत होती
है। एकयुवमवनयम एक हककी, मजबूत, आघातिधवनीय, तन्द्य, ऊष्मा एिं विद्युत की संचालक तथा िायुमण्डलीय
संक्षारण की प्रवतरोधी धातु है।
उपयोग: विद्युत, धातुकमी, िैमावनकी, स्िचावलत िाहनों में, रसायन, रररे क्टरी अपघषी एिं ितवन बनाने में
बॉक्साइट भण्डारण िाले शीर्ा देश (2021): 1. वगनी 2. ऑस्ट्रेवलया 3. वियतनाम
बॉक्साइट उत्पादन िाले शीर्ा देश (2019): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. वगनी 3. चीन
विश्व के बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: के पयाडव प्रायद्वीप, िाइपा, अनावहमलैंड 2. USA: सेलाइन काउंटी क्षेत्र
3. जमैका: सेंट एवलजाबेथ, सैंटमैरी क्षेत्र 4. वगनी: िोको द्वीप, बरुका द्वीप, कस्सा द्वीप
5. द. अफ्रीका: उ. नेटाल प्रांत

5. वटन (Sn): वटन की प्रावप्त कै सीटेराइटं अयस्क से होती है।


वटन भण्डारण िाले शीर्ा देश (2018): 1. चीन 2. इण्डोनेवशया 3. ब्राजील
विश्व में वटन उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. चीन: युन्द्नान, हुनान, क्िांगसी 2. मलेवशया: पेनांग, सेलागं ोर, सगुाँ ी, लेवमबंग
3. इण्डोनेवशया: बाँका, वबवलटन 4. िाईलैंड: यूकेट
5. ऑस्ट्रेवलया: हरबटवन, तस्मावनया

6. स्िणा (Gold):
स्िणा भण्डारण िाले शीर्ा देश (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. रूस 3. USA
स्िणा उत्पादन िाले शीर्ा देश (2019): 1. चीन 2. ऑस्ट्रेवलया 3. रूस
विश्व में स्िणा उत्पादक प्रमुख क्षेत्र:
1. द. अफ्रीका: वबटिाट्सरैं ड, जोहान्द्सबगव, बोक्सिगव, ऑरें ज री स्टेट, वकंबरले
2. USA: साकट लेक रें ज, अलास्का 3. ऑस्ट्रेवलया: माउन्द्ट मॉगवन, कालगल
ू ी, कूलगाडी

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विश्व भूगोल राज होल्कर
7. चाँदी (Silver): चााँदी का मुख्य अयस्क अजेंटाइट है। चााँदी अवधकतर जस्ता, तााँबा, सीसा के साथ वमवश्रत
रूप में पाया जाता है।
चाँदी भण्डारण िाले शीर्ा देश (2021): 1. पेरू 2. ऑस्ट्रेवलया 3. पोलैंड
चाँदी उत्पादन शीर्ा देश (2019): 1. मेवक्सको 2. पेरू 3.चीन
विश्व में चाँदी उत्पादक प्रमुख क्षेत्र:
1. मैवक्सको: वचहुआहुआ, वहण्डाहो 2. ऑस्ट्रेवलया: माउन्द्ट ईसा, ब्रोके न वहल, कालगूली
3. बोवलविया: पोटेसी 4. USA: यूटाह, मोंटाना, एररजोना, कोलैरैडो
5. कनाडा: ओटं ाररयो, वब्रवटश कोलंवबया, क्यूबेक 6. द. अफ्रीका: ट्रांसिाल क्षेत्र, नेटाल क्षेत्र

8. सीसा एिं जस्ता (Lead and Zinc):


A. सीसा (Lead): सीसा का प्रमुख अयस्क गैलेना है।
उपयोग: लोहे की चादरों की कोवटंग, अमलीय टैंकों की लाइवनंग, स्टोरे ज बैटरी, एमयुवनशन वनमावण, प्लंवबंग का
सामान, िायुयानों में इलेक्ट्रॉवनक मशीनों में
सीसा भण्डारण में विश्व में शीर्ा देश: 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. पेरू
सीसा उत्पादन में शीर्ा देश (2019): 1. चीन 2. ऑस्ट्रेवलया 3. पेरू
विश्व के प्रमुख सीसा उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: ब्रोकन वहल, माउन्द्ट ईसा 2. कनाडा: सैडबरी
3. पेरू: सरो-द-पास्को
B. जस्ता (Zinc): जस्ता का प्रमुख अयस्क स्फे लेराइट है।
उपयोग: लोहे को जंगरोधी बनाने में, वमश्र धात,ु शुष्क बैटरी, इलेक्ट्रोड, पेंट, वसरावमक, स्याही, मावचस आवद में।
जस्ता भण्डारण में शीर्ा देश (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. मैवक्सको / रूस
जस्ता उत्पादन में शीर्ा देश (2019): 1. चीन 2. पेरू 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के प्रमुख जस्ता उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: ब्रोके न वहल, माउन्द्ट ईसा 2. कनाडा: वब्रवटश कोलंवबया

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विश्व भूगोल राज होल्कर
9. हीरा (Diamond):
हीरा भण्डारण में शीर्ा देश (2021): 1. रूस 2. बोत्सिाना 3. कांगो
हीरा उत्पादन में शीर्ा देश (2019): 1. रूस 2. बोत्सिाना 3. कनाडा
विश्व के प्रमुख हीरा उत्पादक क्षेत्र:
1. द. अफ्रीका: वकमबरले, जोहान्द्सबगव, के पटाउन 2. कागं ो: कटंगा पठार

10. कोयला (Coal): कोयला काबोवनफे रस काल की परतदार चट्टानों में पाया जाता है। इसे उद्योगों की
जननी भी कहा जाता है।
कोयला के प्रकार:
1. एथ्र
ं े साइट कोयला: यह सिोिम प्रकार का कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 80-95 प्रवतशत होती है।
यह जलते समय धुआं नहीं देता।
2. वबटुवमनस कोयला: यह वद्वतीय श्रेणी का कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 55-65 प्रवतशत होती है।
गोंडिाना काल का कोयला इसी प्रकार का है।
3. वलग्नाइट कोयला: यह घवटया वकस्म का भूरा कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 45-55 प्रवतशत होती
है।
4. पीट कोयला: यह सबसे वनमन कोवट का कोयला है इसमें काबवन की मात्रा 45 प्रवतशत से कम होती है।
कोयला भण्डार में शीर्ा देश (2018): 1. USA 2. चीन 3. ऑस्ट्रेवलया
कोयला उत्पादन में शीर्ा देश (2019): 1. चीन 2. भारत 3. USA
विश्व के प्रमख
ु कोयला उत्पादक क्षेत्र:
1. USA: अप्लेवशयन क्षेत्र, वमसौरी, कन्द्सास, ओक्लोहामा, वमशीगन, टेक्सास
2. रूस: टुला- मास्को, कुजबास, कुजनेत्स्क, सखावलन, बैकाल झील क्षेत्र
3. यूक्रेन: डोनेट्ज/ डोनाबास क्षेत्र
4. चीन: हुपे-बीवजंग, शान्द्शी- सेन्द्शी, मॅन्द्चरू रया, शांटुंग, जेचिान, रे ड बेवसन
5. वब्रटेन: यॉकव शायर-नावटंघम-डबीशायर, वब्रस्टल 6. जमानी: रूर घाटी, सार क्षेत्र
7. द. अफ्रीका: ट्रांसिाल, नेटाल
8. ऑस्ट्रेवलया: न्द्यक
ू ै वसल, वलथगो, न्द्यू साउथ िेकस, क्िींसलैंड, विक्टोररया प्रान्द्त

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विश्व भूगोल राज होल्कर
11. खवनज तेल एिं पेट्रोवलयम: पेट्रोवलयम टवशवयरी युग की चट्टानों में पाया जाता है। पेट्रोवलयम
हाइड्रोकाबवन यौवगकों का वमश्रण है।
पेट्रोवलयम भण्डार िाले शीर्ा देश (2019): 1. िेनेजुएला 2. सऊदी अरब 3. कनाडा 4. ईरान
पेट्रोवलयम (कच्चा तेल) उत्पादक शीर्ा देश (2019): 1. अमेररका 2. रूस 3. सऊदी अरब 4. इराक
विश्व के प्रमुख मेट्रोवलयम उत्पादक क्षेत्र:
1. USA: अप्लेवशयन क्षेत्र, गकफ तटीय क्षेत्र, कै वलफॉवनवया
2. सऊदी अरब: अममान, धािर, आइनेदार, कावतफ 3. कुिैत: बुरहान पहाडी
4. ईरान: लाली, करमशाह, नफ्तसवदफ, हफ्तके ल, गच सारन
5. इराक: वकरकुक, मोसल, बसरा, वतकररक
6. िेनेजुएला: मरकै बो सील, ओररवनको बेवसन, अपूरे बेवसन

12. प्राकृवतक गैस: प्राकृ वतक गैस अवधकांशतः खवनज तेल के साथ पायी जाती है।
प्राकृवतक गैस भण्डार िाले शीर्ा देश (2019): 1. रूस 2. ईरान 3 कतर
प्राकृवतक गैस उत्पादन िाले शीर्ा देश (2019): 1.USA 2. रूस 3. ईरान
विश्व के प्राकृवतक गैस उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. USA: टेक्सास, लुवसयाना, ओक्लोहामा, न्द्यूमैवक्सको, कै वलफॉवनवया
2. कनाडा: अकबटाव, वब्रवटश कोलंवबया 3. रूस: स्टाबरपूल, क्रास्नेदार, ओरेनबगव, िक
ु वटल, याकूवतया
4. यूक्रेन: शिेवलका 5. उज्बेवकस्तान: गजनी

13. यरू ेवनयम: यरू ेवनयम के प्रमखु अयस्क वपचब्लेंड, सॉमर स्काइट एिं थोररयानाइट हैं। इसकी प्रावप्त
मोनोजाइट, पेनमेटाइट, चेरालाइट चट्टानों से होती है।
शीर्ा भण्डार िाले देश: ऑस्ट्रेवलया शीर्ा उत्पादक देश: 1. कजाखस्तान 2. कनाडा 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र:
1. कनाडा: अथािास्का झील (यरू े वनयम वसटी), ग्रेट वबयर झील (पोटव रे वडयम) 2. U.SA: कोलेरेडो पठार
3. कागं ो: कटंगा पठार

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व के प्रमख
ु उद्योग
जापान:
• नगोया को जापान का डेट्रायट कहते हैं।
• ओसाका को जापान का मानचेस्टर कहते हैं।
• कोबे एिं कािासाकी को जापान का पीट्सबगव कहा जाता है।
• क्िान्टा का मैदान: मोटरिाहन उद्योग, इलेक्ट्रॉवनक्स, इजं ीवनयररंग िस्तु एिं िायुयान वनमावण
• वकंकी प्रदेश: सूती िस्त्र, लौह इस्पात एिं मोटर िाहन
• क्यूशू प्रदेश: लौह इस्पात, इजं ीवनयररंग एिं जहाज वनमावण
सं. रा. अमेररका:
• पीट्सबगव को विश्व की इस्पात राजधानी कहा जाता है।
• वशकागो: मासं प्रसस्ं करण डेट्रॉयट: मोटर कार उद्योग
• लॉस एवं जल्स: हॉलीिडु एिं एयरक्राफ्ट उद्योग बवमिंघम एिं आवलायस
ं : इस्पात उद्योग
• कन्सास: वडब्बा बन्द्द मााँस प्लाइमाि: जलयान वनमावण
• वसएटल: िायुयान उद्योग सानफ्रांवसस्को: वसवलकॉन िैली
• न्यू इंग्लैंड: इजं ीवनयररंग, इलेक्ट्रॉवनक्स, ऊनी िस्त्र उद्योग, मत्स्य पालन
रूस:
• लेवननग्राड को रूस का वपट्सबगव कहा जाता है।
• मास्को इबानोि को रूस का मानचेस्टर कहा जाता है।
• टूला, वनजनीतावगल, मैननीटोगोस्कव , चेवलयावबन्द्स्क: लौह इस्पात के न्र
• ब्लाडीिोस्टक: जलयान वनमावण गोकी: इजं ीवनयररंग उद्योग
कनाडा:
• हैवमकटन को कनाडा का बवमिंघम कहा जाता है।
• क्यबू ेक: जलपोत वनमावण ओटािा एिं माँवट्रयल: कागज उद्योग

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विश्व भूगोल राज होल्कर
इग्ं लैंड:
• मानचेस्टर एिं वलिरपूल: सूती िस्त्र एिं जलपोत वनमावण
• ब्रेडफोडा एिं डबीशायर: ऊनी िस्त्र उद्योग
• बवकिं घम: लौह-इस्पात उत्पादन के न्द्र
जमानी:
• रूर-बेस्टफावलया: लौह इस्पात के न्द्र म्यूवनख एिं आग्सबगा: रसायन उद्योग
• फ्रेंकफटा एिं हेम्बगा: मोटरगाडी ि जलयान उद्योग डोटामंड: लौह इस्पात एिं रसायन उद्योग
• राइन घाटी क्षेत्र जमवनी का सिाववधक औद्योगीकृ त क्षेत्र है।
फ्रांस:
• शैम्पेन एिं बोडो: शराब उद्योग वलयॉनविलेज एिं लॉरेनसार क्षेत्र: लौह-इस्पात के न्द्र
• वलयॉन: रे शम िस्त्र उत्पादन टुलज
ु : लडाकू विमान वनमावण
चीन:
• शंघाई: सूती िस्त्र उद्योग शंघाई एिं क्िांगचाऊ: रे शम उत्पादन के न्द्र
• चांगचुन: ऑटो मोबाइकस एिं मशीनरी वकयामुजे एिं क्िांग चाऊ: कागज उद्योग
• शंघाई, िुहान एिं क्िॉगऊ: जलपोत वनमावण के न्द्र
सॉफ्टिेयर उद्योग के न्र:
• माइक्रोसॉफ्ट: रे डमाण्ट (USA) एप्पल: कै वलफॉवनवया (USA)
• IBM: न्द्यूयॉकव (USA) फेसबुक: कै वलफॉवनवया (USA)
• कॉम्पैक: ह्यूस्टन (USA) गूगल: कै वलफॉवनवया (USA)
मोटर िाहन वनमााण के न्र:
• जापान: टोवकयो, नगोया USA: डेट्रॉयट, स्टुटगाडव, मेनहेम
• रूस: मास्को, गोकी ग्रेट वब्रटेन: बवकिं घम, ऑक्सफोडव
• कनाडा: विंडसर फ्रांस: पेररस, वलयांशरे न्द्स

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विश्व भूगोल राज होल्कर
हिाई जहाज वनमााण के न्र:
• USA: वमशीगन, न्द्यूयॉकव , ओवहयो, कनेक्टीकट फ्रांस: टुलुज
• ग्रेट वब्रटेन: डबी, वक्रस्टल रूस: मास्को, गोकी, क्यूबीसेि
जलयान वनमााण के न्र:
• जापान: टोवकयो, याकोहामा, कोबे जमानी: हैमबगव, कील
• USA: डेलाबेयर, िाकटीमोर, प्लाइमाथ रूस: लेवननग्राड, ब्लाडीिोस्टक
• स्पेन: बावसवलोना नीदरलैंड्स: एमसटडवम, रोटरडम

विश्व के प्रमुख औद्योवगक नगर


नगोया (जापान): सूती िस्त्र, जलयान, इजं ीवनयररंग कािासाकी (जापान): लौह इस्पात
कोबे एिं क्योटो (जापान): लौह इस्पात, जलयान ओसाका (जापान): िस्त्र उद्योग
मांवट्रयल (कनाडा): जलपोत एिं एयरक्राफ्ट क्यूबेक (कनाडा): जलपोत, मरीन इजं ीवनयररंग
टोवकयो एिं नागासाकी (जापान): जलपोत, इजं ीवनयररंग ओटािा (कनाडा): कागज उद्योग
हैवमल्टन (कनाडा): लौह-इस्पात टोरंटो (कनाडा): इजं ीवनयररंग, ऑटोमोबाइल
वशकागो (USA): मांस उद्योग, लौह-इस्पात वसएटल (USA): िायुयान
सानफ्रांवसस्को (USA): तेल शोधन, जलपोत, कंप्यूटर डेट्रॉयट (USA): ऑटोमोबाइकस
कन्सास (USA): वडब्बा बंद मांस लॉस एवं जल्स (USA): वफकम, तेल शोधन
न्यू-आवलायन्स (USA): लौह-इस्पात, कोयला वफलाडेवल्फया (USA): लोकोमोवटि
वपट्सबगा (USA): लौह-इस्पात प्लाइमाइि (USA): जलयान वनमावण
ह्यूस्टन (USA): तेल एिं प्राकृ वतक गैस ड्रेस्डन (जमानी): ऑप्टीकल फोटो
डुसलडफा (जमानी): लौह-इस्पात एसेन (जमानी): लौह-इस्पात, इजं ीवनयररंग
हैम्बगा (जमानी): जलयान म्यूवनख (जमानी): लेंस वनमावण
डोटामन्ड (जमानी): लौह-इस्पात, रसायन शंघाई (चीन): िस्त्र, मशीन
अंशन (चीन): लौह-इस्पात चांगचुन (चीन): ऑटोमोबाइल, मशीनी औजार

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विश्व भूगोल राज होल्कर
िहु ान (चीन): िस्त्र, जलपोत, लौह-इस्पात, मशीन गोकी (रूस): इजं ीवनयररंग
चेवलयावबस्ं क (रूस): लौह-इस्पात, मशीनी औजार लेवननग्राड (रूस): जलयान, ऑटोमोबाइल
मैग्नीटोगोस्का (रूस): लौह इस्पात टुला (रूस): लौह इस्पात
ब्लाडीिोस्टक (रूस): जलयान वनमावण मास्को (रूस): रसायन, धात,ु मशीनरी उद्योग
शेफील्ड (वब्रटेन): कटलरी उद्योग बवमिंघम (ग्रेट वब्रटेन): लौह-इस्पात
लीड्स (ग्रेट वब्रटेन): ऊनी िस्त्र ब्रेडफोडा (वब्रटेन): ऊनी िस्त्र
मानचेस्टर (ग्रेट वब्रटेन): सूती िस्त्र मोसुल (ईराक): खवनज तेल
अबादान (नाइजीररया): तेल शोधन हिाना (क्यूबा): वसगार उद्योग
टुलुज (फ्रांस): लडाकू विमान वनमावण वलयॉन (फ्रांस): रे शमी िस्त्र
एटं िपा (बेवल्जयम): हीरा उद्योग बाकू (अजरबैजान): तेल शोधन
डूंडी (स्कॉटलैंड): जूट वनमावण वियना (ऑवस्ट्रया): कांच उद्योग
िेवलंग्टन (न्यूजीलैंड): डेयरी उद्योग ग्लासगो (स्कॉटलैंड): जलयान वनमावण
बैंकॉक (िाईलैंड): जलयान वनमावण जोहान्सबगा (द. अफ्रीका): सोना खनन
वकम्बरले (द. अफ्रीका): हीरा खनन वक्रिॉय रॉग (यूक्रेन): लौह-इस्पात
एम्स्टडाम (नीदरलैंड): हीरा पॉवलश कोपेनहेगेन (डेनमाका ): डेयरी उद्योग
वमलान (इटली): रे शमी िस्त्र तूररन (इटली): मोटरकार उद्योग
स्टॉकहोम (स्िीडन): जलपोत वनमावण साओ पोलो (ब्राजील): कॉफी उद्योग
ररयो वड जेनेररयो (ब्राजील): िस्त्र उद्योग, कॉफी लाप्लाटा (अजेंटीना): एयरक्राफ्ट, रसायन, िस्त्र
बालपरेजो (वचली): तेलशोधन सेंवटयागो (वचली): शराब उद्योग
मरकै बो (िेनेजुएला): तेलशोधन कासाब्लांका (मोरक्को): रसायन उद्योग
कावहरा (वमस्त्र): सूती िस्त्र उद्योग वसकन्दररया (वमस्त्र): सूती िस्त्र उद्योग
मुल्तान (पावकस्तान): वमट्टी के बतवन ज्यूररख (वस्िटजरलैंड): इजं ीवनयररंग
वसंगापुर: व्यापाररक पिन लंदन (वब्रटेन): इजं ीवनयररंग एिं पररिहन
यिाटा (जापान): लौह इस्पात बीवजंग (चीन): िस्त्र, मशीन, लौह-इस्पात

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व पररिहन
1. स्िल पररिहन:
विश्व में सड़कों की सिाववधक लंबाई िाले देश: 1. सं.रा. अमेररका 2. भारत 3. चीन
प्रमुख सडक महामागा:
A. ट्रास
ं कनावडयन महामागा:
• यह महामागव सैंट जॉन नगर (न्द्यफ
ू ाउंडलैंड) को िैंकूिर नगर से जोड़ता है।
• इसकी कुल लबं ाई 9600 वकमी. है।
• यह प्रशातं महासागर तथा अधं महासागर के तट को जोड़ने में सेतु का कायव करता है।
• यह महामागव सेंटजॉन → क्यूबेक → मााँवट्रयल →ओटािा → सडिरी → थंडर → विवनपेग →
रे वजना → कलगरी → िैंकुिर तक जाता है।
B. अलास्का महामागा: यह एडमान्द्टन (कनाडा) को ऐकं रे ज नगर (अलास्का) से जोड़ता है।
C. स्टुअटा महामागा: यह ऑस्ट्रेवलया महाद्वीप का सबसे लंबा महामागव है। यह विरंडुम नगर (उ. ऑस्ट्रेवलया) को
उडनादिा नगर (द. ऑस्ट्रेवलया) से जोड़ता है।
D. अंतरमहािीपीय महामागा: यह कावहरा (वमस्त्र) को के पटाउन (द.अरीका) से जोड़ता है।
E. पैन अमेररकन महामागा: यह सं.रा. अमेररका, मध्य अमेररका तथा द. अमेररका के नगरों को जोड़ेगा।
2. रेलमागा:
• प्रथम रे लमागव का वनमावण 1885 ई. में इनं लैंड में हुआ।
• पहली रे लगाडी मैनचेस्टर से वलिरपल
ू के वलए रिाना हुई।
• विश्व में सिाववधक रे लमागव सयं क्त
ु राज्य अमेररका में पाया जाता है।
A. ट्रास
ं साइबेररयन रेलमागा:
• इसका वनमावण 1891 ई. में शरू
ु हुआ तथा 1916 में बनकर तैयार हुआ।
• यह विश्व का सबसे लंबा रे लमागव हैं। इसकी लंबाई 9322 वकमी. है।
• यह रे लमागव सेंटपीट्सबगव से ब्लाडीिोस्टक तक है।
प्रमख
ु स्टेशन: सेंटपीट्सबगव, मास्को, कजान, उफ़ा, चेवलयावबंस्क, येकाटेररनबगव, ट्यूवमन, ओमस्क,
नोबोवसवब्रन्द्क, क्रासनोयास्कव , अन्द्गास्कव , इकवू टस्क, चीता, खबािोरस्क एिं ब्लाडीिोस्टक

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विश्व भूगोल राज होल्कर

B. कनावडयन पैवसवफक रेलमागा:

• यह हैवलफै क्स (सेंटजॉन) को िेंकूबर से जोड़ता है।


• इस रे लमागव की कुल लंबाई 7050 वकमी. है।
• प्रमुख स्टेशन: हैलीफै क्स, वसडनी, क्यूिेक, मााँवट्रयल, ओटािा, सडबरी, विवनपेग, रे वजना, िेंकूबर

C. कनेवडयन नेशनल रेलिे:


• यह पूणवतः कनाडा में वस्थत है।
• यह हैवलफै क्स नगर को वप्रंस रूपटव नगर से वमलाता है।
• मागा के प्रमुख स्टेशन: हैवलफै क्स, क्यूबेक, क्रोके न, वहयस्टव, विवनपेग, सस्के टून, वप्रंस रूपटव
D. सेन्ट्रल पैवसवफक रेलमागा:
• यह सं. रा. अमेररका का सबसे लमबा तथा महत्िपूणव रे लमागव है।
• यह न्द्यूयॉकव शहर को सैनरांवसस्को से जोड़ता है।
• प्रमुख स्टेशन: न्द्यूयॉकव , वपट्सबगव, वशकागो, ओमाहा, चेनी, ओण्डेन, साकट लेक वसटी एिं सैनरांवसस्को

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विश्व भूगोल राज होल्कर
E. ओररयण्टल एक्सप्रेस रेलमागा
• यह यूरोप के 8 बड़े देशों से होकर गुजरता है वजनमें से 6 देशों की राजधानी इसी मागव पर पड़ती हैं। यह
रे लमागव ली हािरे एिं पेररस को इस्तांबुल (तुकी) से जोड़ता है।
• शावमल देश (8): रांस, जमवनी, ऑवस्ट्रया, हगं री, यूगोस्लाविया, बुकगाररया, तुकी एिं रोमावनया
• प्रमख
ु स्टेशन: पेररस, नेन्द्सी वसटी, स्ट्रॉसबगव, काकसवरूहे, स्टुटगाटव, आनसबगव, मयूवनख, साकजबगव, वलंज
वसटी, वियना, बुडापेस्ट, बेडग्रेड, सोवफया, प्लेिवडि एिं इस्तांबुल
• मागा में पड़ने िाले राजिानी नगर (6): 1. पेररस (रांस) 2. वियना (ऑवस्ट्रया) 3. बुडापेस्ट (हगं री) 4.
बेलग्रेड (यूगोस्लाविया) 5. सोवफया (बुकगाररया) 6. इस्तांबुल (तुकी)

F. के प कावहरा रेलमागा:
• यह अरीका महाद्वीप का महत्त्िपूणव रे लमागव है। अभी पूणव नहीं है। यह के पटाउन को कावहरा से जोड़ने का
एकमात्र साधन है।
• प्रमुख स्टेशन: के पटाउन, वकमबरले, जोहान्द्सबगव, वलविंगस्टोन, एवलजाबेथ विले, खातरतूम एिं कावहरा
G. ट्रास
ं इवं डयन रेलमागा: यह द. अमेररका का महत्िपणू व रे लमागव है। यह बालपराइजो पिन (वचली) को ब्यनू स
आयसव (अजेंटीना) से जोड़ता है।
H. ऑस्ट्रे वलयाई ट्रांस-कॉन्टीनेंटल रेलमागा:
• यह ऑस्ट्रेवलया का सबसे महत्िपणू व रे लमागव है। यह ऑस्ट्रेवलया के पिू ी तट को पवश्चमी तट से वमलाता है।
िह पथव (पवश्चमी तट) को वसडनी (पूिी तट) से जोड़ता है।
• प्रमख
ु स्टेशन: वसडनी, पाक्सव, रोटो, ब्रोके न वहल, पोटव वप्रसं , एडीलेड, पोटव अगस्ता, कालगलू ी एिं पथव

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विश्व भूगोल राज होल्कर
I. बीवजंग-के ण्टन रेलमागा:
• यह चीन का सबसे लंबा रे लमागव है।
• यह बीवजंग से के ण्टन को जोड़ता है।
• इसकी लंबाई 2,350 वकमी. है।

2. जल पररिहन
जल पररिहन के दो भाग हैं –
1. आंतररक जलमागव
2. सामवु रक जलमागव
आंतररक जलमागा:
1. यूरोप के आंतररक जलमागा:
A. राइन नदी जलमागा:

• राइन नदी को यरू ोपीय व्यापार की जीिन रे खा कहा जाता है।


• यह विश्व की सिाववधक व्यस्त आन्द्तररक जलमागव िाली नदी है।
• इसे कोयला नदी के नाम से भी जाना जाता है।
• राइन का बेवसन: रांस, जमवनी, वस्िटजरलैंड, ऑवस्ट्रया, नीदरलैंड, इटली, वलंचटेंस्टाइन, लक्जमबगव एिं
बेवकजयम
B. यूरोप की प्रमुख नहरें:

• गोटा नहर: स्िीडन में स्टॉकहोम एिं गोटेबगव के बीच


• मैनचेस्टर नहर: इनं लैंड में मैनचेस्टर एिं वलिरपूल के बीच
• कील नहर: जमवनी में उिरी सागर एिं बावकटक सागर को जोड़ती है।
• उिरी सागर नहर: उिरी सागर एिं एमसटडवम को वमलाती है।
• न्यू िाटर िे: उिरी सागर एिं रॉटरडम के मध्य
• िोल्गा-डॉन नहर: रूस में रोस्तोि एिं िोकगाग्राड को जोड़ती है।
• स्टावलन नहर: बावकटक सागर एिं आकव वटक सागर के बीच
• राइन-मेन-डेन्यूब नहर: उिरी सागर को काला सागर से जोड़ती है।

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2. उिरी अमेररका का आंतररक जलमागाः
A. वमसीवसपी जलमागा: न्द्यू आवलवयंस बन्द्दरगाह को सेंट पॉल से जोड़ता है।
B. उिरी अमेररका की प्रमुख नहरें:

• सू नहर: सुपीररयर झील को ह्यूरोन झील से जोड़ती है।


• िैलेण्ड नहर: ईरी झील को ओण्टेररयो झील से जोड़ती है। इसी नहर के मध्य भाग में वनयाग्रा जलप्रपात
वस्थत है।
• ईरी नहर: यह ईरी झील को ह्यरू ोन झील से जोड़ती है।

विश्व के प्रमुख सामुवरक जलमागा:


1. उिरी अटलांवटक मागा:
• यह उिरी अमेररका के विकवसत पूिी भागों तथा पवश्चमी यूरोप के औद्योवगक देशों को जोड़ता है।
• यह विश्व का सिाववधक व्यस्त एिं महत्िपूणव समुरी जलमागव है। इसे िृहद ट्रंक मागव भी कहा जाता है।
• पवश्चमी यरू ोप के बन्दरगाह: नलासगो, वलिरपल
ू , साउथ हैमपटन, लन्द्दन, रॉटरडम, हैमबगव, एण्टिपव, ला
हािरे एिं वलस्बन
• उिरी अमेररका के पिू ी वकनारे के बन्दरगाह: क्यबू ेक, मााँवट्रयल, हैलीफै क्स, बोस्टन, सेंट जॉन, न्द्ययू ॉकव
एिं वफलाडेवकफया

2. भूमध्य सागरीय मागा:


• यह पूिी अरीका, ईरान, इराक, अरब, भारतीय उपमहाद्वीप एिं द. पू. एवशया के देशों, ऑस्ट्रेवलया,
न्द्यूजीलैंड और सुदरू पूिव के बाजारों को जोड़ता है।
• लन्द्दन से वलिरपूल, साउथ हैमपटन, हैमबगव, रॉटरडम, मासेलीज, वलस्बन, जेनेिा को और नेपकस से जहाज
वसकन्द्दररया ि स्िेज होकर अदन, मुंबई, कोलकाता, कोलमबो, रंगून, वपनॉग, वसंगापुर, मनीला, हांगकागं ,
पथव, वसडनी, एडीलेड, मेलबनव तथा पूिी अरीकी तट पर वस्थत मोमबासा, जंजीबार, बैरा एिं डरबन को
जाते हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
स्िेज नहर:
• यह नहर विश्व की सबसे बड़ी जहाजी नहर है। इसका वनमावण रांसीसी इजं ीवनयर फडीनेण्ड लैसेप्स की
देखरे ख में 1869 ई. में पूणव हुआ।
• यह नहर लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है। इसकी लंबाई 165 वकमी. एिं न्द्यूनतम चौडाई 60
मीटर है। गहराई 10 मी. है।
• इसके उिरी द्वार पर पोटव सईद एिं दवक्षणी द्वार पर स्िेज पिन वस्थत है। इस नहर के उिरी भाग में मैजाला
झील, मध्य भाग में वतमसा झील एिं दवक्षणी भाग में िृहत वबटर झील वस्थत है।
• इस नहर पर वमस्त्र का अवधकार है। लाल सागर के तट पर नहर के पवश्चमी भाग पर स्िेज पिन एिं पूिी
भाग पर तौवफक पिन वस्थत है।

3. प्रशातं महासागरीय मागा:


• इसका मुख्य मागव संयुक्त राज्य अमेररका के पवश्चमी वकनारों को पूिी एवशया (मुख्यतः चीन और जापान)
से जोड़ता है। यह न्द्यूजीलैंड तथा ऑस्ट्रेवलया को भी अमेररका से जोड़ता है।
• मागा में एवशया के मुख्य बंदरगाह: याकोहामा, पुसान, शंघाई, हांगकागं और मनीला।
• मागा में अमेररका के बंदरगाह: पोटवलैंड, सैनरांवसस्को, िैंकूिर, लॉस एंवजकस एिं वप्रंस रूपटव
पनामा नहर:
• यह प्रशातं महासागर और कै ररवबयन सागर को जोड़ता है।
• इस नहर में प्रशातं तट पर पनामा तथा कै ररवबयन तट पर कोलोन पिन हैं।
• इसका वनमावण 1914 ई. में पूणव हुआ। इस नहर पर पनामा का वनयत्रं ण है।
• यह सागर तल से 25 मी. ऊंची है। इसकी लंबाई 82 वकमी. एिं चौडाई 16 मी. तथा गहराई 12 मी. है।
• इसमें तीन झील- गाटून, ट्रैलोडोवमनिल और वमराफ्लोमव वस्थत हैं।
• यह नहर जल पाश (Water Lock) तकनीक का उपयोग कर बनायी गयी है।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
4. दवक्षणी अटलांवटक मागा:
• यह जलमागव पवश्चमी यूरोपीय देशों को पवश्चमी द्वीप समूह, ब्राजील, उरुनिे और अजेंटीना से जोड़ता है।
• मागा के प्रमुख बन्दरगाह: वकंगस्टन, हिाना, िैराकूज, टैमपको, िावहया, ररयो वड-जेनेररयो, मोंटेविवडयो,
ब्यूनस आयसव एिं रोसेररयो
5. के प ऑफ गडु होप जलमागा:
• इस जलमागव द्वारा पवश्चमी यूरोप एिं पूिी अरीका, पवश्चमी तथा दवक्षणी अरीका, ऑस्ट्रेवलया, न्द्यूजीलैंड
तथा इडं ोनेवशया के मध्य संबंध स्थावपत वकया जाता है।
• ितवमान में इस जलमागव द्वारा पवश्चम अरीकी देशों, दवक्षण अरीका, ऑस्ट्रेवलया एिं न्द्यूजीलैंड के मध्य
व्यापार वकया जाता है।
• जलमागा के प्रमुख पिन: के प टाउन, पोटव एवलजाबेथ, एवडलेड, मेलबनव एिं वसडनी हैं।
विश्व के प्रमख
ु पिन / बन्दरगाह
• रॉटरडम: राइन की सहायक नदी न्द्यूमास नदी पर लन्दन: टेमस नदी के मुहाने पर
• वलिरपूल: मसी नदी के मुहाने पर ग्लासगो: क्लाइड नदी के मुहाने पर
• एम्सटडाम: ज्िीडरजी नदी के बाएं वकनारे पर सेण्टपीटसाबगा: वफनलैंड की खाड़ी पर
• न्यूयॉका : हडसन नदी के मुहाने पर न्यू आवलायांस: वमसीवसपी नदी के मुहाने पर
• िेंकूबर: रे जर नदी के महु ाने पर ब्यनू स आयसा: लाप्लाटा नदी के महु ाने पर
• मरकै बो: मरकै बो झील पर वसडनी: ऑस्ट्रेवलया के दवक्षणी तट पर
• मेलबना: वफवलप की खाड़ी के पवश्चमी तट पर हागं कागं : वसक्यागं नदी के महु ाने पर
• हैम्बगा: एकि नदी के महु ाने पर फ्रैंकफटा: ओडर नदी पर
• मसेलीज: सीन नदी के मुहाने पर मनाओस: अमेजन नदी पर
• बोकी: मरे -डावलिंग नदी पर इस्तांबुल: बास्पोरस जलसंवध पर
• मॉवण्ट्रयल: सेंट लॉरें स एिं ओटािा नदी संगम पर सैनफ्रांवसस्को: USA के पवश्चमी तट पर
• शंघाई: ह्ांग हो नदी के मुहाने पर वस्थत। लदान मात्रा एिं कंटेनर क्षमता के आधार पर विश्व का सबसे बड़ा
पिन।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
विश्व की जनजावतयाँ
1. बश
ु मैन:
• ये द. अरीका के कालाहारी मरुस्थल, लैसथे ो, नेटाल और वजमबाब्िे में पाये जाते हैं।
• इनकी आाँखें चौड़ी एिं त्िचा काली होती है।
• दीमक को बुशमैन का चािल कहा जाता है।
2. वपग्मी:

• इनकी चार उपजावतयााँ - मबूती, तिा, विंगा, गोसेरा हैं।


• ये कांगो बेवसन के गैबॉन, यगु ांडा, वफलीपींस, अमेटा एिं न्द्यूवगनी के िनों में रहते हैं।
• इनका कद सामान्द्यतः 1 से 1.5 मी. तक होता है। विश्व में इनका कद सबसे कम होता है।
3. बोरा:

• ये पवश्चमी अमेजन-बेवसन, ब्राजील, पेरू एिं कोलंवबया के सीमांत क्षेत्रों में रहते हैं।
• ये अमेररका के रे ड इवं डयन के समान हैं।
• इनकी त्िचा का रंग भरू ा, बाल सीधे एिं कद मध्यम होता है।
4. बद्दू:

• ये अरब के उिरी भाग के हमद और नेफद मरुस्थल में कबीले के रूप में चलिासी जीिन व्यतीत करते हैं।
• ये जनजावत नीग्रटो प्रजावत से सबं वं धत है।
5. मसाई:

• ये तजं ावनया, के न्द्या एिं पिू ी यगु ाडं ा के पठारी क्षेत्रों में घमु क्कडी पशचु ारक के रूप में जीिन वनिावह करते
हैं।
• इनमें भमू ध्य सागरीय और नीग्रायड प्रजावत के वमश्रण की झलक वदखती है।
• इनकी झोपवड़यों को क्राल (Kral) कहा जाता है।
6. वखरगीज:

• ये मध्य एवशया में वकवगवस्तान में पामीर के पठार एिं वतएनशान पिवतमाला के क्षेत्रों में वनिास करते हैं।
• ये मंगोल प्रजावत से संबंवधत होते हैं।
• इनकी त्िचा का रंग पीला, बाल काले, कद छोटा, शरीर सुगवठत एिं आाँखें छोटी ि वतरछी होती हैं।

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विश्व भूगोल राज होल्कर
• वखरगीज प्रजावत के लोग ऋतु प्रिास करने िाले पशचु ारक चलिासी होते हैं।
• ये लोग दधू को सड़ाकर शराब बनाते हैं। इसे कुवमस कहते हैं।
• इनके तंबू को यूतव (Yurt) कहा जाता है।
7. एवस्कमो:

• ये अमेररका के अलास्का से ग्रीनलैंड तक के टुन्द्ड्रा प्रदेशीय क्षेत्रों में रहते हैं।


• ये लोग मंगोलॉयड प्रजावत के हैं।
• इनका पालतू पशु रें वडयर है।
• इनका वशकार करने का हवथयार हारपून है।
• इनके घर बफव के बने होते हैं वजन्द्हें इनलू कहते हैं।
• ये वबना पवहए की गाड़ी का उपयोग करते हैं वजसे स्लेज कहते हैं।
8. सकाई:

• ये मलय प्रायद्वीप ि मलेवशया के िनों में वनिास करते हैं।


• इनका रंग साफ, कद लंबा और शरीर छरहरा होता है।
• इनका वसर लंबा ि पतला एिं बाल काले ि घुंघराले होते हैं।
9. सेमांग:

• ये मलय प्रायद्वीप के पिवतीय भागों, अंडमान, वफलीपींस और मध्य अरीका में रहते हैं।
• से नीग्रेटो प्रजावत के लोग हैं।
• इनका कद नाटा, रंग गहरा भूरा, नाक छोटी ि चौडी, होठ चपटे एिं मोटे एिं बाल काले ि घुंघराले होते
हैं।
10. कज्जाक:

• ये कजाखस्तान ि सीक्यांग के क्षेत्रों में रहने िाले पशुचारक चलिासी होते हैं।
• ये मंगोलॉयड प्रजावत के लोग हैं।
• इनका कद छोटा, शरीर सगु वठत, त्िचा पीली एिं बाल काले होते हैं।
11. पापआ
ु न: पापआ
ु न्द्यवू गनी द्वीप में रहने िाली जनजावत
12. सेमोयेड्स: मगं ोलॉयड प्रजावत, साइबेररया के टुण्ड्रा प्रदेश के वनिासी
13. यक
ु ागीर: मगं ोलॉयड प्रजावत, साइबेररया के बखोयास्ं क और स्टैनोिाय पिवत के मध्य रहने िाले लोग

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विश्व भूगोल राज होल्कर
14. पनु न: बोवनवयो, मलेवशया एिं इडं ोनेवशया में रहने िाली जनजावत
15. माया: मैवक्सको, निाटेमाला और होंडुरास में रहने िाली जनजावत
16. माओरी: न्द्यजू ीलैंड की जनजावत
17. मग्यार: रोमावनया, यगू ोस्लाविया, चेकोस्लोिावकया एिं यक्र
ू े न की जनजावत
18. बोअर: द. अरीका की जनजावत
19. जुलू: द. अरीका के नेटाल क्षेत्र की जनजावत
20. कॉके शस: काला सागर, कै वस्पयन सागर के वनकटिती क्षेत्र, पोलैंड, वलथुआवनया, मस्कोिा एिं रूस में रहने
िाली जनजावत
21. अफरीदी: पावकस्तान में रहने िाली जनजावत
22. हाज्दा: तंजावनया की जनजावत
23. कुन्ग: कालाहारी क्षेत्र की जनजावत
24. अपाचे: ओक्लोहामा (USA) की जनजावत
25. चुकची: उ. पू. साइबेररया एिं उिरी अमेररका की जनजावत
26. ओन्गे: अंडमान एिं वनकोबार द्वीप की जनजावत
27. सेंटीनली: अंडमान एिं वनकोबार द्वीप की जनजावत
28. एक्रा: ब्राजील की जनजावत
29. एमेररंड: अमेररका की जनजावत
30. एटा: वफलीपींस की जनजावत
31. ब्लैक फैलो: ऑस्ट्रेवलया की जनजावत
32. कोसैक्स: यूक्रेन की जनजावत
33. फेल्लाह: वमस्र की खेवतहर जनजावत
34. हैदा: वब्रवटश कोलंवबया की जनजावत
35. हक्का: चीन की जनजावत
36. हान: चीन की जनजावत
37. इन्यूट: उिरी अमेररका के एस्कीमो

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विश्व भूगोल राज होल्कर
38. कावफर: द. अरीका की जनजावत
39. वकक्य:ू कीवनया की जनजावत
40. कुब:ु समु ात्रा की जनजावत
41. कुदा: ईरान, ईराक, आमीवनया, अजरबैजान के पशपु ालक कृ षक
42. लैप्स: द. स्कैं वडनेविया एिं उिरी रूस की जनजावत
43. जेमी: असम और मयांमार के सीमांत क्षेत्र की जनजावत
44. नॉवडाक: नॉिे, स्िीडन, डेनमाकव , वफनलैंड एिं आइसलैंड की प्रजावत
45. फोनेवशयन: इजराइल एिं तुकी की जनजावत
46. कुंग: द. अरीका के कालाहारी मरुस्थल की जनजावत
47. शान: द. चीन, असम, मयांमार एिं थाईलैंड की जनजावत
48. िेद्दा: श्री लंका के मूल वनिासी
49. उइगर: ताररम बेवसन के नखवलस्तान में रहने िाली जनजावत
50. रेड इवन्डयन: उिरी अमेररका के मूल वनिासी

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