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पाठ- 11 जो दे खकर भी नहीं दे खते

-- हे लेन केलर
शब्दार्थ:
1. परखना = जाँच करना 2. अचरज = है रानी
3. आदी = अभ्यास होना, आदत होना 4. समाँ = वातावरण
5. नियामत = ईश्वर की ओर से दी गई अच्छी वस्तए
ु ँ 6. मधरु = मीठा
7. मग्ु ध = मोहित 8. दृष्टि = नज़र

प्रश्न - उत्तर
1. “जिन लोगों के पास आँखें हैं वह सचमच
ु बहुत कम दे खते हैं’’- हे लेन केलर को ऐसा क्यों लगता था?
उत्तर- हे लेन केलर की एक प्रिय मित्र जंगल की सैर करने गई। सैर करने के बाद जब वह घर लौटी तो हे लेन
केलर ने उनसे पछ ू ा- आपने जंगल में क्या-क्या दे खा है ? वह बोली कोई खास चीज नहीं दे खी। अपने मित्र से
ऐसा सन ु कर उसे यह लगा कि जिन लोगों के पास आँखें हैं वह सचमच ु बहुत कम दे खते हैं।

2. ‘प्रकृति का जाद’ू किसे कहा गया है ?


उत्तर- प्रकृति विभिन्न चीज़ों का खज़ाना है । भोजपत्र के पेड़ की चिकनी छाल, चीड़ की खरु दरी छाल, बसंत में
नन्ही कलियों का खिलना, फूलों की पंखड़ि
ु यों की मखमली सतह को प्रकृति का जाद ू कहा गया है ।

3. हे लन केलर प्रकृति की किन चीजों को छूकर और सन


ु कर पहचान लेती थी? पाठ के आधार पर इसका
उत्तर लिखो|
उ. हे लेन केलर भोजपत्र के पेड़ की चिकनी छाल, चीड़ की खरु दरी छाल, फूलों की मखमली और उनकी
घम
ु ावदार बनावट को छूकर तथा चिड़िया के मधरु स्वर को सनु कर पहचान लेती थी|

मल्
ू याधारित प्रश्न
प्रश्न: क्या आप लेखिका के इस विचार से सहमत है कि मनष्ु य अपनी क्षमताओं की कभी कदर नहीं करता?
वह हमेशा उस चीज की आस लगाए रहता है जो उसके पास नहीं है । तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर:ईश्वर ने मनष्ु य को बहुत कुछ दिया है । दे खने, सनु ने, सँघ


ू ने आदि की शक्ति और क्षमताएँ बहुत
महत्त्वपर्ण
ू है । हम ईश्वर द्वारा दी गई इन क्षमताओं का महत्व समझते ही नहीं। हमें ईश्वर ने जो कुछ दिया
है , उसे भलू जाते हैं, उसका आनंद नहीं लेत।े हमारे पास जो चीज नहीं है , उसकी उम्मीद लगाए रहते हैं।
लेखिका के इस विचार से मैं परू ी तरह से सहमत हूँ। यह जीवन की सच्चाई है । यदि ऐसा न हो तो मनष्ु य
सदा प्रसन्न रहे । जो कुछ उसे प्राप्त है , इसके लिए ईश्वर को सदा धन्यवाद दे और अपनी क्षमताओं का
परू ा-परू ा लाभ उठाए। पर ऐसा है नहीं। वह अपनी क्षमताओं को पहचानता ही नहीं और उसके लिए सदा
परे शान रहता है जो उसके पास नहीं है ।

2. कान से न सन
ु पाने पर आस-पास की दनि
ु या कैसी लगती होगी? इस पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर-कान से न सन ु पाने पर दनि


ु या बड़ी विचित्र लगती है । आँखें तो सब कुछ दे खती हैं, पर जब उन क्रिया
कलापों की आवाज़ नहीं सन ु पाते तब ऐसा प्रतीत होता है मानो बंद कानों से हम मक ू फ़िल्मों की तरह दे खते
हैं। न सन
ु ने के कारण व्यक्ति दस
ू रों से अपने विचारों का आदान-प्रदान सही रूप में नहीं कर पाता होगा।

बहुविकल्पी प्रश्न

1. लेखिका कभी-कभी किनकी परीक्षा लेती है ?


(क) छात्रों की (ख) अजनबी व्यक्तियों की
(ग) मित्रों की (घ) घरवालों की।
2. मित्र के जवाब पर लेखिका को आश्चर्य क्यों नहीं हुआ?
(क) वह स्वयं भी यही जवाब दिया करती थी (ख) ऐसे जवाब अक्सर सन
ु ने को मिलते थे
(ग) लेखिका को ऐसे ही जवाब की आशा होती थी (घ) इनमें से कोई नहीं।
3. लेखिका को फूलों की पंखड़ि
ु याँ छूने पर कैसी लगती थी?
(क) श्यामली (ख) मखमली
(ग) अधखिली (घ) खिली-खिली।
4. चीड़ की फैली पत्तियाँ या घास का मैदान लेखिका को किसके समान प्रिय था।
(क) महँगे रे शम (ख) महँगे कालीन
(ग) हरी-भरी फसलों (घ) महँगे मलमल के कपड़े।
5. आँखों वाले लोग बहुत कम क्यों दे खते हैं?
(क) क्योंकि वे दे खकर भी नहीं दे खते। (ख) उन्हें दिखाई नहीं दे ता।
(ग) वे अपने को सर्वज्ञ समझते हैं। (घ) ये अंतर्यामी नहीं हैं।

उत्तर: 1(ग) 2(ख) 3(ख) 4(ख) 5(क)

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