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1.

आचार्य शार्ङ्गधर के अनुसार

2.आचार्य सुश्रुत के अनुसार

तर्पणं पुटपाकश्च सेक आश्च्योतान अञ्जने |


तत्र तत्रोपदिष्टानां तेषां व्याषं निबोध मे
सेक विधि
• आचार्य शार्ङ्गधर के अनुसार

1. अक्षि को बन्द रखना है


2. अक्षि से चार अङ्गुल ऊपर से
3. सूक्ष्म धार
सेक भेद
• आचार्य शार्ङ्गधर के अनुसार

सेक के भेद दोष अवस्था मात्रा

1. स्नेहन वात प्रकोप 600 मात्रा

2. रोपन रक्त, पित्त प्रकोप 400 मात्रा

3. लेखन कफ़ प्रकोप 300 मात्रा


सेक के महत्वपूर्ण योग
• वातज अभिष्यन्द

 घटक द्रव्य
1. एरण्ड त्वक
पत्र ,मूल कल्क क्षीर पाक
सेक
2 . अजा क्षीर
वातज अभिष्यन्द

घटक द्रव्य
1.अजा दुग्ध
2.सैन्धव लवण
3.हल्दी
4.दारूहल्दी

क्षीरपाक विधि द्वारा पाक करके सेक करे


सेक के महत्वपूर्ण योग
वातभिष्यन्द नाशक योग रक्तभिष्यन्द् नाशक योग १ रक्तभिष्यन्द् नाशक योग २ नेत्र शूलनाशक योग

लोध्र १ भाग लाख त्रिफ़ला घृत भर्जित श्वेत लोध्र

मधूक १ भाग मुलेठी लोध्र उष्ण पिस कर जल मे घोल कर


छानकर सेक करे

घृत भर्जित हेतु मञ्जिष्ठा मुलेथि


अजाक्षीर लोध्र खाण्ड
क्षीरपाक सारिवा नागरमोथा
कमल
पिस कर जल मे घोल कर छानकर पिस कर जल मे घोल कर छानकर
सेक करे सेक करे
सेक सेवन काल

• दिन मे सेक हितकर होता है


• आत्ययिक परस्थिति मे रात्रि मे कर सकते है
आश्च्योतान

• निशा काल मे अपथ्य


• अक्षि के दृष्टि के मध्य
• अक्षि से दो अङ्गुल ऊपर
• औषधि द्रव्य को बूंद के रूप मे प्रयोग करते है
• शीतकाल मे कोष्ण तथा उष्ण काल मे शीत आश्च्योतान क प्रयोग करते है
आश्च्योतान भेद दोषानुसार भेद आश्च्योतान मात्रा दोशनुसार द्रव्य क प्रयोग

लेखन कफ़ 8 तिक्त ,स्निग्ध

स्नेहन वात 10 मधुर ,शीतल

रोपन रक्त, पित्त 12 तिक्त,उष्ण

1. सभी आश्च्योतान क धरान काल 100 वाक् होत है लगभग 4 मिनट


• 1 मात्रा बराबर
 १ निमेषोन्मेषणं
 १ चुटुकी बजाने क समय
 १ दीर्घ स्वर बोलणे मे लग्ने वाला समय
योग १

बृहती +एरण्ड आश्च्योतान प्रयोग


बृहत पञ्चमूल् क्वाथ
+शिग्रु करे

योग २

लोध्र की छाल मे पुटपाक


निम्ब पत्र कल्क आश्च्योतान मे प्रयोग करे
से स्वरस

त्रिफ़ला क आश्च्योतान सभी प्रकार के अभिष्यन्द्


स्त्री दुग्दः के आश्च्योतान रक्त पित्त एवं वातज शूल
कच्चे दुध या दहि से बना घी वातरक्त रुजा मे प्रयोग करे
पिण्डी या कवलिका

 इस क्रिया कल्प मे औषधि द्रव्य का कल्क रेशम के वस्त्र मे स्थित कर अक्षि को बन्द कर बांधा
जाता है |
 पिण्डी का आमयिक प्रयोग –
1.नेत्रभिष्यन्द्
2.अधिमन्थ
3.व्रण
4.कफज रोग
पिण्डी क प्रयोग विधि
कफ़ज
पिण्डी योग
नेत्र रोग उपयोगी कल्क

वातज नेत्रभिष्यन्द् एरण्ड पत्र,मूल त्वक्

पित्तज् नेत्रभिष्यन्द् अमलकी पत्र कल्क ,महानिम्ब कल्क

कफ़ज नेत्रभिष्यन्द् शिग्रु ,निम्ब पत्र कल्क

कफ़ पित्तज नेत्रभिष्यन्द् त्रिफला कल्क

रक्तज नेत्रभिष्यन्द् घृत भर्जित लोध्र कन्जि युक्त


विडालक

योग
घटक द्रव्य मुलेथी सैन्धव+लोध्र निम्ब फल रस मरीच चूर्ण
• विडालक के योग
गेरु क भस्म
दरुहल्दी
सैन्धव लवण
समभाग
द्रव द्रव्य जल मोम +घी भृङ्गराज
स्वरस्
उपादान द्रव्य लोह का पात्र मे घन

रोगघ्न्ता सर्व अक्षि रोग नेत्र रुजा नेत्र रुजा अर्म रोग
तर्पण
अथ तर्पणकं वच्मि नेत्रतृप्तिकरं परम्

 इस क्रिया कल्प मे नेत्र क संतर्पण चिकत्सा होता है


नेत्र तर्पण विधि
रोगावस्था तर्पण काल
वर्तमगत रोग 100 मात्रा काल
संधिगत रोग /कफ़ज रोग 500 मात्रा काल
शुक्लगत रोग 600 मात्रा काल
कृ ष्णगत रोग 700 मात्रा काल
दृष्टिगत रोग 800 मात्रा काल
अदिमन्थ /वात रोग 1000 मात्रा काल

तर्पण अयोग्य व्यक्ति – तर्पन योग्य रोग –


 चिन्तायुक्त  शीर्ण पक्षम रोग

 भ्रम युक्त  शिरोत्पात

 जिसके पुराणे अक्षि रोग के उपद्रव उपस्थित हो  कृ च्मलिनसंयुक्तं

 थका हुआ  तिमिर


 अर्जुन रोग
तर्पण अयोग्य काल -
 शुक्र रोग
 दुर्दिन
 अभिषयन्दी
 अतिशीत
 अधिमन्थ
 अतिउष्ण
 शुष्कक्षि पाक ,नेत्रशोथ

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