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• आज देश को आजाद हुए ६६ वर्षो से भी अधिक कासमय बीत चुका है लेकिन देश की प्रगति का पहिया घूम तो रहा है लेकिन

उस गति से नहीं घूम रहा है जिस गति से घूमना चाहिए था ।


• कई वर्षो की गुलामी के बाद १९४७ में देश आज़ाद हुआ ।  इस आजादी को पाने के लिए न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने परिवार, अपनी सुख सुविधाओं और यंहा तक अपनी जान की भी बाजी
लगा दी ताकि आने वाली पीढ़ियां स्वतन्त्र भारत में सिर उठाकर जी सकें ।
• देश आज़ाद तो हो गया लेकिन अनेक समस्यायों जैसे अशिक्षा , बेरोजगारी, गरीबी तथा कु छ अजीबोगरीब समस्यायों ने जगह बना ली जैसे कालाबाजारी , रिश्वतखोरी, संसाधनों का असंतुलित दोहन ,
स्वार्थसिद्धि हेतु कमजोर का शोसण, निशेध वस्तुओं का व्यापार, खाद्यान में  मिलावट आदि समस्याओं ने आज जनमानस को बेहाल कर रखा है । ये सारी  समस्या लचर शासन व्यवस्था तथा अदूरदर्शिता
के फलस्वरूप आज जनमानस के समक्ष घड़ियाल के तरह मुंह खोले खड़ा है जिसका शिकार सबसे पहले सामर्थ्यविहीन हो रहा है और बाद में धीरे धीरे सम्पूर्ण समाज ही इसके गिरफ्त में आ रहा है । पूर्व
के राज नेताओं जैसे महात्मा गांधी , डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू , सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे राजनेताओं ने देश को प्रगति कि राह पर अग्रसर कराया परन्तु सत्ता के लोलुप कु छ
तथाकथित नेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थसिद्धि और वोट बैंक के हौवा को बरक़रार बनाये रखने के लिए देश के जनमानस को जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद, सुप्रीमोवाद, परिवारवाद आरक्षण
जैसे मुद्दों के साथ ही कें द्रित कर के सम्पूर्ण भारतवर्ष को चार दसक पीछे कर दिया कभी भी इन तथाकथित राजनीति के चोला पहने सौदागरों ने देश के हित के लिए कोई कार्य न किया और न ही इनके
विचार हैं
• इन सब के बावजूद बहुत खुशी की बात है कि विगत कई वर्षो से सोये लोकतंत्र में पुनः एक जाग्रति आ गई है  और एकबार फिर लोकतंत्र आज पूर्ण रूप जाग उठा है । वर्तमान चुनाव में आज सम्पूर्ण भारत के
मतदाताओं ने यह प्रमाणित कर दिया कि  जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद, सुप्रीमोवाद, परिवारवाद से पूर्णरूपेण परहेज कर रखा है और आज का जनमानस विकाश चाहता है । वह सुशासन और
खुशहाली का सपना साकार देखना चाहता है जिसमे हर जगह सम्पन्नता भाईचारा और प्रेम का वातावरण हो चाहे वो कृ षि सम्बन्धी हो या उद्योग जगत ।  अगर समृद्धि हर तरफ अपनी उपस्थिति दर्ज कराती
है तो गरीबी भुखमरी आदि समस्या स्वयं ही पलायन कर जाएँगी।
• कु छ घंटो के बाद नई नवेली सरकार बनने जा रही है । यह करीब  १२५ करोड़ लोगो के उम्मीद की सरकार है और इसका नेतृत्व एक दूरदर्शी, आशावादी, सहृदय तथा कर्तब्य-परायण व्यक्ति कर रहा है।
 जो सभी के जीवन में समृद्धि लाने के लिए कृ त संकल्प है । सम्पूर्ण देश में समस्याएं सुरसा की भांति मुह खोले खड़ी है जैसे अर्थव्यवस्था, आतंकवाद, शिक्षा , बेरोजगारी, ऊर्जा, मुद्रा का अवमूल्यन,
कालाबाज़ारी तथा महिला हितों की अनदेखी आदि ज्वलंत नासूर मौजूद हैं परन्तु इलाज भी है हम सभी को आशावादी विचार के साथ अपने निर्धारित कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ सम्पादित करना है इस
समय सबसे बड़ी चुनौती हमें अपने संकल्पों को मूर्त रूप देने का है और उस पर अमल करने का है लेकिन ध्यान रहे संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता और अगर विकल्प है तो संकल्प  हो ही नहीं सकता
। यहाँ पर संकल्प यह है कि कोई भी भारतवासी कोई भी कार्य कर रहा है वो उस कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ करे यही संकल्प है और इसका कोई विकल्प नहीं है ।
• संकल्प और विकल्प
• जिसके संकल्प में विकल्प नहीं होता, उसके संकल्प की सिद्धि हो जाती है। इसलिए सिद्ध पुरुष वे ही हैं, जो अपने संकल्प में विकल्प नहीं
रखते। गृहस्थ के पास विकल्प ज्यादा होते हैं। कोई भी बात होगी तो सोचेगा- यह नहीं होगा तो यह कर लूंगा, या फिर यह कर लूंगा। यही करना
है- इस पर सारा जोर क्यों नहीं लगाते? विकल्प रखते ही क्यों हो? विकल्प होगा तो कभी पूरा जोर नहीं लगेगा। जिसे जगत में कु छ चाहिए, वह
उसे पाने का संकल्प कर ले। वह निश्चित पूरा होगा। गृहस्थ का मतलब है विषय-वासनाओं में जो ग्रसित है, जो उनसे परेशान है। गृहस्थ का
अर्थ घर-बार, बीवी-बच्चे नहीं है। और संन्यासी उसे कहते हैं, जिसने इनका न्यास कर दिया, जो इन विषय-वासनाओं से अलग हो गया, मुक्त हो
गया।
• गृहस्थ यदि सुखी हो तो समझना कि वह गृहस्थ नहीं है- वह संन्यासी होगा। हां, वह गृहस्थ के ढंग से रह रहा होगा। घर में, पत्नी-बच्चों में रह
रहा होगा- पर है वह संन्यासी, क्योंकि विषय-वासनाओं से मुक्त है। सुखी वही हो सकता है, जो विषय-वासनाओं से मुक्त हो। इसी तरह संन्यासी
कभी दुखी नहीं हो सकता। यदि संन्यासी दुखी है तो वह ऊपर से ही संन्यासी है। शायद रहने-सहने का ढंग संन्यासी जैसा होगा, पर संन्यासी
वह है नहीं।
तो तीन तरह के लोग हैं। पहले तो वे, जिनके पास संकल्प भी बहुत से होते हैं और विकल्प भी। अभी यह कह रहे हैं, थोड़ी देर में वह कह रहे हैं।
जिसके जीवन में संकल्प-विकल्प दोनों मौजूद होते हैं, वह गृहस्थ है। या कहें कि अज्ञानी है, क्योंकि संकल्प-विकल्प वासनाओं पर ही आधारित
है। जिसके जीवन में संकल्प है, विकल्प नहीं- वह सिद्ध पुरुष है। उसने विकल्प छोड़ दिए, संकल्प रख लिए। और जिसके जीवन से संकल्प भी
गया और विकल्प भी गया, वह संत है। संत के लक्षण बताते हुए गीता में श्रीकृ ष्ण ने कहा है कि संत के जीवन में संकल्प-विकल्प नहीं होते।
• संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता,
• जब कोई साधक लोकहित में कोई संकल्प लेता है तो उसकी मदद करने गुरुसत्ता विभिन्न रूपों में देवदूत भेजकर करती है और स्वयं उसके बुद्धि रुपी रथ को जगतगुरु कृ ष्ण
की तरह संचालित करती है। वह युगनिर्माणि साधक स्वयं और आसपास के लोग सभी हतप्रभ रह जाते हैं क़ि बिन साधन सम्पदा और बल के असम्भव से दिखने वाले कार्य
सम्भव कै से हो रहे हैं। हम सब तो एक कदम गुरु सत्ता की ओर बढ़ाते हैं, हमारी गुरुसत्ता उस एक साहसी कदम के जवाब में सौ कदम हमारी तरफ़ आती
• मन ही मन जप करने से वाक् सूक्ष्म हो जाती है! परा,पश्यंति, मध्यमा- यह तीनो भी सूक्ष्म हो जाती है! उसके वजह से नाभि मे विद्युत प्रकट हो जाता है! मानस जप का
प्रभाव सारे आकाश मे व्याप्त हो जाता है! जब जप से मन उचट जाए, तो ध्यान करना चाहिए! जब ध्यान से मन उचटने लगे तो आत्मचिंतन करना चाहिए! आर्षग्रंथों का
अध्ययन करना चाहिए! मन को हर समय लगाते रहना चाहिए!
• स्वामी जी नम्रतापूर्वक कहा कि मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ, ध्यान से सुनो – कहा जाता है कि ये धरती रत्नगर्भा है यहाँ जन्म लेने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं । एक
बार है कि देवी देवताओं की सभा चल रही थी कि इंसान इतना विकसित कै से है ? कै से वह इतने बड़े बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है ? ऐसी कौन सी शक्ति है जिसके दमपर
इंसान असंभव को संभव कर डालता है ।
सारे देवी देवता अपने अपने विचार रख रहे थे कोई बोल रहा था कि समुद्र के नीचे कु छ ऐसा है वो इंसान को आगे बढ़ने को प्रेरित करता है , कोई बोल रहा था कि पहाड़ों
की चोटी पर कु छ है ।
अंत में एक बुद्धिमान ने जवाब दिया कि इंसान का दिमाग ही ऐसी चीज़ है जो उसे हर कार्य करने की शक्ति देती है ।
मानव का दिमाग एक बहुत अदभुत चीज़ है जो इंसान इसकी शक्ति को पहचान लेता है वह कु छ भी कर गुजरता है उसके लिए कु छ भी असंभव नहीं है और जो लोग दिमाग
की ताकत का प्रयोग नहीं करते वो लोग जीवन भर संघर्ष ही करते रह जाते हैं । हर इंसान की जय और पराजय उसके दिमाग के काम करने की क्षमता पर ही निर्भर है । ये
दिमाग ही वो दैवीय शक्ति है जो एक सफल और असफल इंसान में फर्क पैदा करती है । सारे देवी देवता इस जवाब से बड़े प्रसन्न हुए |

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