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औरअंकु र .
फ़ादर बुल्के की बायोपिक
जन्म- 1 सितम्बर 1909 रामशैपेल
(Ramskapelle)

मृत्यु- अगस्त 17, 1982 (उम्र 72)

माता-पिता - अडोल्फ बुल्के , मरिया बुल्के


प्रसिद्धि कारण - हिंदी साहित्य पर शोध, तुलसी दास
पर शोध
हिंदी के विदेशी सेवक
फ़ादर कामिल बुल्के हिंदी के एक ऐसे समर्पित सेवक रहे, जिसकी मिसाल दी जाती हैI कामिल बुल्के का अहम
काम हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश की तैयारी थी, जिसे उन्होंने उम्र भर बहुत जतन से बढ़ाया।कामिल बुल्के की अंग्रेजी और
यूरोपीय भाषाओं की जानकारी का भी हिंदी को फायदा मिला और वह शब्दकोश इतना प्रामाणिक बन गया कि
आज भी किसी शब्द और उसके भेद पर विवाद होने पर लोग कामिल बुल्के की डिक्शनरी की तरफ ही रुख
करते हैं।
1935 में मैं जब भारत पहुंचा, मुझे यह देखकर आश्चर्य और दुःख हुआ, मैंने यह जाना कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृ तिक परम्पराओं से अंजान थे और
इंग्लिश में बोलना गर्व की बात समझते थे। मैंने अपने कर्तव्य पर विचार किया कि मैं इन लोगों की भाषा को सिद्ध करूँ गा।

—एक ईसाई का विश्वास - हिंदी और तुलसी का भक्त - कामिल बुल्के


भारत में अंग्रेज़ी क्यों महत्वपूर्ण है?

कहा जाता है कि लॉर्ड थॉमस मैकाले वह शख्स था जिसने 1835 में


देसी भाषाओं की जगह अंग्रेजी को भारतीय शिक्षा का मुख्य माध्यम
बना डाला. मैकाले के सुझाव पर ही अंग्रेजों ने अपनी भाषा और ज्ञान
विज्ञान को भारत पर थोपा. मकसद था कि अगली कु छ पीढ़ियों में
भारतीय उन जैसे बन जाएं. मैकाले का मानना था कि दुनिया का
सर्वश्रेष्ठ ज्ञान अंग्रेजी और यूरोपीय सभ्यता में निहित है. वह भारतीय
भाषा और ज्ञान को दोयम दर्जे का मानता था.
भारत आगमन
उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया
था। 'यूवेन विश्वविद्यालय' से अभियांत्रिकी (engineering) की शिक्षा समाप्त करने के बाद वह
1935 में भारत आए। सबसे पहले उन्होंने भारत का भ्रमण किया और भारत को अच्छी प्रकार से
समझा। कु छ समय के लिए वह दार्जिलिंग में भी रहे और उसके बाद राँची और उसके बाद झारखंड के
गुमला ज़िले के 'इग्नासियस विद्यालय' में गणित विषय का अध्यापन करने लगे। यहीं पर उन्होंने भारतीय
भाषाएँ सीखना प्रारम्भ कीं और उनके मन में हिन्दी भाषा सीखने की ललक पैदा हो गई, जिसके लिए वह
बाद में प्रसिद्ध हुए।
निधन
बीमारी के इलाज के दौरान उनका निधन दिल्ली में हो गया
था। उन्हें दिल्ली स्थित कश्मीरी गेट समीप संत निकोलस
कब्रिस्तान में दफनाया गया था। लेकिन 13 मार्च 2018
को फ़ादर के पार्थिव अवशेष को उनके कर्मभूमि राँची
लगाया गया और राँची स्थित संत जेवियर्स कॉलेज के
मुख्य द्वार समीप बने समाधि स्थल में 14 मार्च को विधि
विधान और भव्य समारोह के साथ वहां स्थापित किया
गया।

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