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ज़िन्दगी में जो कु छ है, जो भी है

सहर्ष स्वीकारा है;


इसलिए कि जो कु छ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
सहर्ष स्वीकारा है

यह विचार-वैभव सब
दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए के पल-पल में
जो कु छ भी जाग्रत है अपलक है--
संवेदन तुम्हारा है !!
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
सहर्ष स्वीकारा है जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
सहर्ष स्वीकारा है सचमुच मुझे दण्ड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर,चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मै, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता--
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गयी है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नही होती है !!!
सहर्ष स्वीकारा है
सचमुच मुझे दण्ड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बाद्लों में
बिलकु ल मैं लापता!!
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!
इसलिए कि जो कु छ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों
का वैभव है
सहर्ष स्वीकारा है

अब तक तो ज़िन्दगी में जो कु छ था, जो कु छ है


सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कु छ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है ।
कविता में जीवन के सुख– दुख‚ संघर्ष– अवसाद‚ उठा– पटक को समान रूप से
स्वीकार करने की बात कही गई है।
स्नेह की प्रगाढ़ता अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर वियोग की कल्पना मात्र से त्रस्त हो
उठती है।
प्रेमालंबन अर्थात प्रियजन पर यह भावपूर्ण निर्भरता‚ कवि के मन में विस्मृति की चाह
उत्पन्न करती है।वह अपने प्रिय को पूर्णतया भूल जाना चाहता है |
वस्तुतः विस्मृति की चाह भी स्मृति का ही रूप है। यह विस्मृति भी स्मृतियों के धुंधलके से
अछू ती नहीं है।प्रिय की याद किसी न किसी रूप में बनी ही रहती है|
परंतु कवि दोनों ही परिस्थितियों को उस परम् सत्ता की परछाईं मानता है।इस परिस्थिति को
खुशी –खुशी स्वीकार करता है |दुःख-सुख ,संघर्ष –अवसाद,उठा –पटक, मिलन-बिछोह
को समान भाव से स्वीकार करता है|प्रिय के सामने न होने पर भी उसके आस-पास होने
का अहसास बना रहता है|
भावना की स्मृति विचार बनकर विश्व की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती है| स्नेह में थोड़ी
निस्संगता भी जरूरी है |अति किसी चीज की अच्छी नहीं |’वह’ यहाँ कोई भी हो सकता है
दिवंगत माँ प्रिय या अन्य |कबीर के राम की तरह ,वर्ड्सवर्थ की मातृमना प्रकृ ति की तरह यह
प्रेम सर्वव्यापी होना चाहता है |
“मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!”
छायावाद के प्रवर्तक प्रसाद की लेखनी से यह स्वर इस प्रकार
ध्वनित हुआ है –
“दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात।
एक परदा यह झीना नील छिपाए है जिसमें सुख गात।“
यह कविता ‘नई कविता’ में व्यक्त रागात्मकता को आध्यात्मिकता
के स्तर पर प्रस्तुत करती है।
गरबीली गरीबी- इसका बहुत गहरा अर्थ है। एक गरीब आदमी अपनी गरीबी से परेशान तथा हताश रहता है।
उसे गरीबी पर दुख होता है। इस कारण उसमें आत्मविश्वास की कमी रहती है। निराशा उसके चारों तरफ
रहती है। लेकिन कु छ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए गरीबी दुख का कारण नहीं होती बल्कि अभिमान का
कारण होती है। कवि ऐसे ही लोगों में से एक है। उसने गरीबी को गरबीली बोलकर उसका ही नहीं बल्कि हर
गरीब व्यक्ति को सम्मान देने का प्रयास किया है। एक व्यक्ति गरीब अवश्य होगा, निराशा से भरा होगा,
आत्मविश्वास से विहीन हो लेकिन अपनी गरीबी से तंग आकर वह ऐसा कार्य नहीं करता, जो उसे समाज
का शत्रु बना दे। अतः उनकी गरीबी उन्हें बुरे मार्ग पर नहीं ले जाती है। वह ईश्वर का नाम लेकर जीवन जीते
है। उनका यह जीवन गर्व करने लायक होता है।
 
 भीतर की सरिता- 
भीतर की सरिता से कविता का तात्पर्य प्रेम रूपी भावना से है। यह प्रेम हृदय के
अंदर नदी के समान प्रवाहित होता है। जैसे नदी मनुष्य के जीवन का पालन-
पोषण करती है, वैसे ही प्रेम की भावना मनुष्य का तथा उसके आपसी संबंधों
का पालन-पोषण करती है। इसी के प्रवाह को सरिता का नाम दिया गया है। यह
ऐसी पवित्र नदी के समान है, जो संबंधों तथा लोगों में जीवनदान करती है।
बहलाती सहलाती आत्मीयता- कवि की प्रेमिका के साथ आत्मीय संबंध है। वह
उसके साथ आत्मीय भरा व्यवहार करती है। उसे विभिन्न प्रकार से वह बहलाती
है तथा सहलाती है। प्रेमिका के आत्मीयता से भरे व्यवहार को कवि ने ऐसा कहा
है। लेकिन इन पंक्तियों में कवि के इस व्यवहार के प्रति शिकायती भाव भी स्पष्ट
दृष्टिगोचर होता है। कवि को हर समय प्रेमिका की  बहलाने और सहलाने वाला
व्यवहार पसंद नहीं आता होगा।
अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है? माँ का दूध
छू टने का कष्ट जैसे एक ज़रूरी कष्ट है, वैसे ही कु छ
और ज़रूरी कष्टों की बात बताइए
प्रेरणा शब्द पर सोचिए और उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते
हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-
भैया, शिक्षक या कोई महापुरुष/महानारी आपके अँधेरे क्षणों
में प्रकाश भर गए।
भय' शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन
चीज़ों का भय बैठा है? उससे निपटने के लिए आप
क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी
मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
भाषागत विशेषताएँ
खड़ीबोली
तत्सम शब्दों का प्रयोग है
भाषा प्रभावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है |
भाषा सरल, सरस एवं सुबोध है |
भावानुकू ल शब्द प्रयोग है |
शैली
भावात्मक एवं चित्रात्मक हैं |संबोधन भी है|
छंद
मुक्तक
गुण
माधुर्य एवं प्रसाद गुण
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
अ यह विचार-वैभव सब
लं दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
का इसलिए के पल-पल में
र जो कु छ भी जाग्रत है अपलक है--
संवेदन तुम्हारा है !!
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
अलंकार

मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर


मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

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