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" डा. िवदा कया बेिमसाल रचना िलखी है आपने ! सच पूिछए तो मैने आजतक ऐसी संवेदनायुकत किवता नही सुनी", "अरे शुकला जी
आप सुनेगे कैसे? ऐसी रचनाएँ तो सालो मे, हजारो रचनाओं मे से एक िनकल के आती है. मेरी तो आँख भर आई" "ये ऐसी वैसी नही
बिलक आपको सुभदा कुमारी चौहान और महादेवी वमा जी की शेणी मे पहुँचाने वाली कृित है िवदा जी. है की नही भटनागर साब?"
एक के बाद एक लेखन जगत के मूधरनय िवदानो के मुखारिबंद से िनकले ये शबद जैसे-जैसे डा.िवदा वाषणेय के कानो मे पड़ रहे थे वैसे
वैसे उनके हदय की वेदना बढती जा रही थी. लगता था मानो कोई िपघला हुआ शीशा कानो मे डाल रहा हो. अपनी तारीफो के बंधते
पुलो को पीछे छोड़ उस किव-गोषी की अधयका िवदा अतीत के गिलयारो मे वापस लौटती दो वषर पूवर उसी सथान पर आयोिजत एक
अनय किव-गोषी मे पहुँच जाती है, जब वह िसफर िवदा थी बेिसक िशका अिधकारी डा.िवदा नही. हा अलबता एक रसायन िवजान की
शोधाथी जरर थी.
शायद इतने ही लोग जमा थे उस गोषी मे भी, सब वही चेहरे, वही मौसम, वही माहौल. सभी तथाकिथत किव एक के बाद एक करके
अपनी-अपनी नवीनतम सवरिचत किवता, गजल, गीत आिद सुना रहे थे. अिधकाश लेखिनया शहर के मशहूर डॉकटर, पोफेसर, वकील,
इंजीिनयर और िपंिसपल आिद की थी. देखने लायक या ये कहे की हँसने लायक बात ये थी की हर कलम की कृित को किवता के
अनुरप न िमलकर रचनाकार के ओहदे के अनुरप दाद या सराहना िमल रही थी. इका दुका ऐसे भी थे जो औरो से बेहतर िलखते तो थे
लेिकन पदिवहीन या सममानजनक पेशे से न जुड़े होने की वजह से आयाराम-गयाराम की तरह अनदेखे ही रहते. गोषी पगित पे थी,
समीकाओं के बीच-बीच मे ठहाके सुनाई पड़ते तो कभी िबसकुट की कुरकुराहट या चाय की चुिसकयो की आवाजे. शायद उम मे सबसे
छोटी होने के कारण िवदा को अपनी बारी आने तक लमबा इनतेजार करना पड़ा. सबसे आिखर मे लेिकन अधयक महोदय, जो िक एक
पशासिनक अिधकारी थे, से पहले िवदा को कावयपाठ का अवसर अहसान िक तरह िदया गया. 'पुरषपधान समाज मे एक नारी का
कावयपाठ वो भी एक २२-२३ साल की अबोध लड़की का, इसका हमसे कया मुकाबला?' कई बुिदजीिवयो की तयोिरया खामोशी से ये
सवाल कर रही थी.
वैसे तो िवदा बचपन से ही किवता, कहािनया, वयंगय आिद िलखती आ रही थी लेिकन उसे यही एक दुःख था की कई बार गोिषयो मे
कावयपाठ करके भी वह उन लोगो के बीच कोई िवशेष सथान नही अिजरत कर पाई थी. िफर भी 'बीती को िबसािरये' सोच िवदा ने एक
ऐसी किवता पढनी पारंभ की िजसको सुनकर उसके दोसतो और सहपािठयो ने उसे पलको पे िबठा िलया था और उस किवता ने सभी के
िदलो और होठो पे कबजा कर िलया था. िफर भी देखना बाकी था की उस कृित को िवदान सािहतयकारो और आलोचको की पशंसा का
ठपपा िमलता है या नही.
तेजी से धड़कते िदल को काबू मे करते हुए, अपने सुमधुर कनठ से आधी किवता सुना चुकने के बाद िवदा ने अचानक महसूस िकया की
'ये कया किवता की जान समझी जाने वाली अितसंवेदनशील पंिकतयो पे भी ना आह, ना वाह और ना ही कोई पितिकया!' िफर भी हौसला
बुलंद रखते हुए उसने िबना सुर-लय-ताल िबगड़े किवता को समािपत तक पहुँचाया. परनतु तब भी ना ताली, ना तारीफ, ना सराहना और
ना ही सलाह, कया ऐसी संवेदनाशील रचना भी िकसी का धयान ना आकृष कर सकी? तभी अधयक जी ने बोला "अभी सुधार की बहुत
आवशयकता है, पयास करती रहो." मायूस िवदा को लगा की इसबार भी उससे चूक हुई है. अपने िवचिलत मन को समहालते हुए वो
अधयक महोदय की किवता सुनने लगी. एक ऐसी किवता िजसके ना सर का पता ना पैर का, ना भावः का और ना ही अथर का, या यूं
कहे की इससे बेहतर तो दजा पाच का छात िलख ले. लेिकन अचमभा ये की ऐसी कोई पंिकत नही िजसपे तारीफ ना हुई हो, ऐसा कोई
मुख नही िजसने तारीफ ना की हो और तो और समापत होने पे तािलयो की गड़गडाहट थामे ना थमती.
सािहतयजगत की उस सचची आराधक का आहत मन पूछ बैठा 'कया यहा भी राजनीित? कया यहा भी सरसवती की हार? ऐसे ही
तथाकिथत सािहितयक मठाधीशो के कारण हर रोज ना जाने िकतने योगय उदीयमान रचनाकारो को सािहितयक आतमहतया करनी पड़ती
होगी और वहीँ िविभन पदो को सुशोिभत करने वालो की नजरंदाज करने योगय रचनाएँ भी पुरसकृत होती है.' उस िदन िवदा ने ठान िलया
की अब वह भी सममानजनक पद हािसल करने के बाद ही उस गोषी मे वापस आयेगी.
वापस वतरमान मे लौट चुकी डा. िवदा के चेहरे पर खुशी नही दुःख था की िजस किवता को दो वषर पूवर धयान देने योगय भी नही समझा
गया आज वही किवता उसके पद के साथ अितिविशष हो चुकी है. अंत मे सारे घटनाकम को सबको समरण करने के बाद ऐसे छद
सािहतयजगत को दूर से ही पणाम कर िवदा ने उसमे पुनः पवेश ना करने की घोषणा कर दी. अब उसे रोकता भी कौन, सभी किव व
आलोचकगण तो सचचाई के आईने मे खुद को नंगा पाकर जमीन फटने का इनतेजार कर रहे थे.
दीपक 'मशाल'
~एक समसामियक राजनीितक वयंगय~
आज की ताजा खबर, आज की ताजा खबर... 'कसाब की दाल मे नमक जयादा', आज की ताजा खबर..... .
चौिकए मत, कया मजाक है यार, आप चौके भी नही होगे कयोिक हमारी महान मीिडया कुछ समय बाद ऐसी खबरे बनाने लगे तो कोई बड़ी
बात नही. आप िवगत कुछ िदनो की खबरो पर जरा गौर फरमाइए, 'कसाब की िरमाड एक हफते और बढी', 'कसाब ने माना की वो
पािकसतानी है', 'कसाब मेरा बेटा है-एक पािकसतानी का दावा', 'कसाब मेरा खोया हुआ बेटा-एक इंिडयन मा', 'जेल के अनदर बमब-
रोधक जेल बनेगी कसाब के िलए', 'कसाब के िलए वकील की खोज तेज', 'अंजिल बाघमारे लडेगी कसाब के बचाव मे', 'गाधी की
आतम-कथा पढ रहा है कसाब' वगैरह-वगैरह.... अरे महाराज, ये मिहमामंडन कयो? कसाब न हुआ 'ओये लकी, लकी ओये' का अभय
देओल हो गया.जरा सोिचये की कया गुजरती होगी ये सब देख कर उनीकृषणन, करकरे, सालसकर और कामते जैसे शहीदो पर. अरे
इतनी बार नाम तो हमने देश को इस भयावह संकट से िनकलने वाले इन वीरो का भी नही िलया. माफ कीिजये मै ये सब वयंगय की भाषा
मे िलख सकता था मगर मै उन मुखयमंती जी की तरह संवेदनाहीन नही बन सकता जो शहीदो का सममान करना नही जानते. इतने के
बावजूद शायद महामीिडया और तथाकिथत सेकुलरो का तकर हो की ' पाप से घृणा करो, पापी से नही', तो ठीक है उसे उसके पापो की
ही सजा दे दो, नही िहममत पड़ती तो गीता पढ के देदो, कुरान का सही अथर समझ के देदो और दो, ऐसी सजा दो, ऐसी सजा दो की हर
आतंक की रह फना हो जाये, काप जाये.
खैर जयादा बोल गया, कयोिक इस सब के िलए इन मीिडया वालो को दोषी ठहराना भी सही नही है, इन बेचारो के िलए तो रोजी-रोटी
वतन और इजजत से पयारी हो गयी है. तभी 'काली मुगी ने सफेद अणडे िदए' बेिकंग नयूज बनाते है और चुनावी बरसात का मौसम आते ही
ये भी सताधारी सरकार को पुनः बहाल करने के 'अिभयान'(सािजश नही कह सकता, ये शबद चुनाव आयोग को भड़का सकता है
खामखवाह मुझ पर भी रासुका लग सकती है) के तहत अघोिषत, अपमािणत, अपकट िकनतु दृषवय गठबंधन बना लेते है. चाणकय नीित
मे नयी नीित एड करनी पड़ेगी ' िजसकी लाठी उसकी भैसे' भैसे इसिलए की कई है जैसे की पेिसडेट जी, चीफ इलेकशन किमशर जी,
सी बी आई जी, मीिडया जी, नयायाधीश जी.
कमाल देिखये की ५ वषर तक मूक-बिधरो के िलए पोगाम बने रहने के बाद हमारे अितपितभाशाली पधानमंती जी अकम पधानमंती का
लेबल हटाने के िलए अचानक आजतक की तरह हलला बोल की मुदा मे आ गए, मगर वो भी हाईकमान के इशारे पर. ऐसे लगा जैसे
मािलक ने बोला हो 'टॉमी छू '. अरे महाराज दया करो हमे पीअच्.डी., ऍफ.एन.ए.सी. िडगीधारक पोफेसर नही चािहए जो घड़ी देख के
कलास लेने आये और घड़ी देख के िबना कुछ समझाए चले जाएँ (ऐसे लोग सलाहकार ही अचछे लगते है). मािलक, सिचन होना एक बात
है और गैरी िकसटरन होना दूसरी, जररी नही की अचछा िखलाडी अचछा कोच भी सािबत हो. हमे एक लीडर चािहए न की शोपीस.
ओबामा जी कलाकार आदमी है, खूब मीठी मीठी बाते कही पी ऍम साब के बारे मे, भाई इलेकशन टाइम है, वो भी मनमोहक अदा से झूमते
हुए पलट के तारीफ कर गए भाई की. इसपर मुझे संसकृत का एक शलोक याद आता है िक-
'उषटसय िववाहेषु गीतं गायिनत गदरभः, परसपरं पशंसयती अहो रपः अहो गुणं'
जयादा मुिशकल अथर नही है- ऊँट के िववाह मे गधे जी ने गीत गया, िफर दोनो ने आपस मे ही एक दुसरे के गले(आवाज) और रप की
पशंसा भी कर ली. सच है जी नेता जी वेदो की ओर लौट रहे है.
मुझे सच मे नही पता की नेहर-गाधी पिरवार के सबसे छोटे चशम-ओ-िचराग ने कुछ उलटा-पुलटा बोला था की नही (कयोिक सी.डी. नही
देिख) मगर ये तो सच है की आरोप लगे है, बाकी सचचाई चुनाव बाद ही पता चलेगी कयोिक अभी हाईकमान ने चीफ इलेकशन किमशर
की जंजीर टाइट कर रखी है. मगर शीमान वरण जी, अचछा सुनदर, धािमरक नाम पाया है आपने और आपके सारे पिरवार ने . जरा सोच
समझ के ही बोल लेते, जोश मे होश खो िदया, इतना भावुक होने की कया जररत थी. लोग अभी आपके िपताजी के सदकमों को नही
भूले है, माता जी पशु-पकी पेम मे वयसत है, लोग उनसे भी तसत है, आप कयो कोढ मे खाज कर बैठे भैय.े अगर ऐसा कहना ही था तो
जसपाल भटी साब के उलटा-पुलटा मे एक एपीसोड बना लेते, िफर माफी माग लेते.
अरे लेलेले अगर मैने मासूम लालू के िलए नही िलखा तो इस महान सेकुलर का िदल टू ट जायेगा और ललला रठ जायेगा. खैर ददा
आपकी तो कचची लोई है, जो जी मे आये बोलो. वैसे भी आपकी गलती नही मानता मै, चारा खा के कोई और बोलेगा भी कया(याद रहे ये
चारा है, राणा पताप ने भूसे की रोिटया खाई थी वो भी अपने देश के िलए, इसिलए अपने को उस केटेगरी मे मत समझना). लेिकन एक
नया राज पता चला की चारा आपने राबड़ी को भी िखलाया है, वो तो भला हो उनकी जुबान का िजसने खुल के सब पदाफाश कर िदया
की उनके िदमाग मे जो है वो कया खाने से हो सकता है.
आहा हा, पासवान साब तो मुझे सदािशव अमरापुरकर की याद िदला देते है(िरयल लाइफ नही रील लाइफ वाले अमरापुरकर की).
माननीय मुलायम जी के बारे मे िलखने से तो कलम भी इनकार करती है, वैसे भी मै इस बलॉग और वयंगय की गिरमा नही िगराना चाहता.
बिहन मायावती जी के िलए जरर करबद िनवेदन है आप लोगो से की एक बार इस बेचारी को २-४ िदन के िलए ही सही पधानमंती बनवा
दो यार. पुषपक िवमान से कुछ िवदेशी दौरे मार लेगी, बाहर की धरती देख लेगी, िवदेशी मेमो से कुछ फैशन िटपस ले लेगी, देश मे ५-६
हजार अपनी सटेचयू लगवा लेगी और उतर पदेश मे करोड़ो के करती है यहा अरबो के वारे-नयारे कर लेगी(इंटरनेशनल बथरडे पाटी के
िलए चंदा जयादा चािहए ना) और जयादा कुछ नही. िफर ललला कोई बड़ी समसया जैसे ही देश के सामने आवेगी अपने आप ही भड़भड़ा
के इसतीफा दे देगी. उसकी तमना पूरी कर दो यार, कम से कम सचचाई मे एक तो 'सलमडोग िमिलयेनर' बने .
बहुत देर से कमेनट िकये जा रहा हूँ भइया, अब सुनो गौर से ऐसे िलखते-पढते रहने से कुछ ना होने वाला, कुछ ठानो, कुछ करो. मैने
तो सोच िलया है अगला इलेकशन लड़ने का, आप भी िडसाइड करलो या िबना मेरा नाम बताये सुसाईड कर लो. कयोिक अब ये ही दो
आपशन है. सचचाई ये है की आज जब तक एक ऍम.पी. एक डी.ऍम. के बराबर योगय(िसफर िडगी वाला योगय नही, बोलने और करने
वाला योगय) नही होगा तब तक देश का यूँ ही मिटयामेट होता रहेगा और इस जैसे न जाने िकतने वयंगय सामने आते रहेगे.
एक बात िदल से बताना भाईलोग की "कया आप लोगो को ऐसा नही लगता की उममीदवारो के नाम के बाद एक आिखरी ऑपशन इनमे से
कोई नही का होना चािहए और यिद ५०% से जयादा मतदाता उस ऑपशन को चुनते है तो पुनः चुनाव हो. वो भी नए उममीदवारो के साथ
िजससे की सभी पािटरयो को ये सनदेश जाये की अब 'अदरलोकतंत' नही चलेगा, उनका उममीदवार नही चलेगा बिलक जनता का नेता
चलेगा. संिवधान मे संशोधन होना चािहए िक कुछ िवशेष योगयता वाला वयिकत ही सासद या िवधायक पद का उममीदवार हो वना ऐसे ही
भैिसयो की पीठ से उतर के लोग देश िक रेल ढकेलते रहेगे."
अरे जागो गाहक जागो, अब और घिटया माल मत खरीदो. एक नई काित का सूतपात करो.
दीपक 'मशाल'
1- ~गजल~
कोई इक खूबसूरत, गुनगुनाता गीत बन जाऊँ,
मेरी िकसमत कहा ऐसी, िक तेरा मीत बन जाऊँ.
तेरे न मुसकुराने से, यहा खामोश है महिफल,
मेरी वीरान है िफतरत, मै कैसे पीत बन जाऊँ.
तेरे आने से आती है, ईद मेरी औ दीवाली,
तेरी दीवाली का मै भी, कोई एक दीप बन जाऊँ.
लह-ू ए-िजसम का इक-इक, कतरा तेरा है अब,
िसफर इतनी रजा दे दे, मै तुझपे जीत बन जाऊँ.
नाम मेरा भी शािमल हो, जो चचा इशक का आये,
जो सिदयो तक जहा माने , मै ऐसी रीत बन जाऊँ.
मुझसे देखे नही जाते, तेरे झुलसे हुए आँसू,
मेरी फिरयाद है मौला, मै मौसम शीत बन जाऊँ.
कहा जाये खफा होके, 'मशाल' तेरे आँगन से,
कोई ऐसी दवा दे दे, िक बस अतीत बन जाऊँ.
दीपक 'मशाल' ११.०४.०९
2- ~गजल~
कभी मै चल नही पाया, कभी वो रक नही पाए,
मेरे जो हमसफर थे, साथ वो रह नही पाए.
मेरे घर मे नही आई, िकतने सालो से दीवाली,
तू आ जाये तो आँगन मे, अँधेरा रह नही पाए.
लगाते है सभी तोहमत, मै तुझसे हार जाता हूँ,
मेरी हसती ही ऐसी है, िक कोई िटक नही पाए.
मै माझी हूँ मगर खुद न, कभी उस पार जा पाया,
मेरे अरमा ही लहरो पे, कभी भी बह नही पाए.
कमर टू टी नही मेरी, िकसी की जी-हुजूरी से,
बोझ बढता गया हर पल, पर काधे झुक नही पाए.
ना फरेब कह देना, िसला-ए-चाहत को 'मशाल',
सैलाबे-जुनूँ-ए-इशक, तुम ही सह नही पाए.
दीपक 'मशाल' ११.०४.०९
दो जजबात-
(3) जूता खीच के मारो भइया
अब भी अगर न माने ये तो,
जूता खीच के मारो भइया.
बाट लगा दो बदमाशो की,
जूता खीच के मारो भइया.
िजयो लाल जरनैल खबिरया,
तुमहे कभी न लगे नजिरया,
िलखते-िलखते खबरे तुमने ,
इनकी खबर भी ले ली भइया.
बुश हो, वेन हो या हो िपललू(पी. िचदंबरम)
जूता खीच के मारो भइया.
ये लार िगराते वोटो पर,
और रोलर धरते छाती पर,
घुस आये तािलबानी घर मे,
इनकी बदली न पिरपाटी पर.
ऐसे नेताओं के सर पे,
जूता खीच के मारो भइया.
सेक रहे सब अपनी रोटी,
आज वतन की लाश पर,
मारा िहनदोसता को पहले,
िफर रोते अंितम अरदास पर.
ऐसे नौटंकीबाजो के मुंह पर,
जूता खीच के मारो भइया.
अरबो भर के झोली मे वो,
िदखलाते बस थोड़ा-थोड़ा,
जो देश नचाते अंगुली पर है,
उनका घर ना गाड़ी-घोड़ा.
ऐसे झूठे मकारो को,
जूता खीच के मारो भइया.
आग लगा दो इन चोरो को,
पुनः नया इितहास बनाओ,
वक्त िवकास का है बनधु ये,
अपना ना पिरहास बनाओ.
उगाओ सूरज कािनत का नव,
जूता खीच के मारो भइया.
दीपक 'मशाल'
जान जो कर गए अपरण,
मान तेरा बढाने मे,
नही वो आएंगे वापस,
नए कुछ नाम लाने दो.
5-~गजल~
नाम िलख िलख के तेरा िमटा देता हँू,
खुद का चेहरा ही खुद से िछपा लेता हँू.
6-~गजल~
कभी वो सूरज से िमलाता था नजर ,
अब नजर खुद से िमलाई नही जाती.
10 MARCH 2009
17-ििि िििि िि ििि िििि
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19-बेरोजगार
मै इक बेरोजगार हूँ,
मै इक बेरोजगार हूँ.
नजर मे दुिनया के बेकार हूँ,
पर बेकारी के आलम से जनमे
ददर का तजुबेकार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ.
सब मागते है अनुभव,
पर
अनुभव के िलए
कोई नौकरी नही देता.
इसीिलए मै बेगार हूँ,
मै इक बेरोजगार हूँ.
खोखले वादो के
खखोल से उपजी
देश की
िशका-पणाली की
एक हार हँू.
मै इक बेरोजगार हँू.
खामोश है जो,
कुछ कह नही सकती
िजगर के टुकड़े से,
ददर मे तड़पती उस
बीमार मा का गुनहगार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ.
जो
मुझमे तलाश बैठी है
सपने कई अपने ,
ढलती उम ढोती हुई
उस नादान का मै पयार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ.
दूर के
और करीब के,
समबिनधयो की
नजरो मे,
मै पढािलखा गंवार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ.
जो चहकते थे
संग खुिशयो मे,
अब
उन यारो की
उपेका का िशकार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ.
देखता नही मै
आइना,
कैसे सामना
करँ खुद का?
मै खुद का कसूरवार हूँ.
मै इक बेरोजगार हूँ......
दीपक 'मशाल'
20- मोक
पिरकमा
करते थे पश,
अँधेरे मन के
कोटर के,
उतर कोई िनकले साथरक,
िजसको
हिथया के पापत करँ,
िवचिलत हदय
संतृपत करँ।
िकस राह को
मै पा जाऊँ?
िकसपे
कर िवशास चला जाऊँ?
िकसको भरँ,
अंक मे मै,
जीवन-दशरन या जग-पीड़ा?
करँ नर-सेवा या
नारायण?
बनूँ िकसका कतरवय-परायण?
चलूँ पथ
मोक पािपत का मै,
या पीड़ा दीनो की हरँ हरी?
गुँथा हुआ मै
गंिथ मे,
था अंतमरन टटोल रहा बैठा।
सहसा िघर आये मेघा
आबनूस रंग चढे हुए,
गरजे,
बरसे,
कौधी िबजली,
मुझे वज इनद का याद हुआ,
तयाग दधीिच का सार हुआ।
तब जान हुआ जो
करनी का,
जीते जी मोक पापत हुआ।
दीपक 'मशाल' 24.05.09
22- Nazm
बेजार मै रोती रही, वो बे-इनतेहा हँसता रहा.
वक्त का हर एक कदम, राहे जुलम पर बढता रहा.
ये सोच के िक आँच से पयार की िपघलेगा कभी,
मै मोमिदल कहती रही, वो पतथर बना ठगता रहा.
उसको खबर नही थी िक मै बेखबर नही,
मै अमृत समझ पीती रही, वो जब भी जहर देता रहा.
मै बारहा कहती रही, ए सब मेरे सब कर,
वो बारहा इस सब िक, हद नयी गढता रहा.
था कहा आसा यूँ रखना, कायम वजूद परदेस मे,
पानी मुझे गंगा का लेिकन, िहममत बहुत देता रहा.
बनध िकतने ढंग के, लगवा िदए उसने मगर,
'मशाल' तेरा पेम मुझको, हौसला देता रहा.
दीपक 'मशाल'
23-Nazm-
िक मै तो तब भी पागल था,
िक समझा नही था जब
हमारे िदल िक हलचल को,
िक जब मै पढ न पाया था
िनगाहो की िकताबो मे,
हसरत-ए-मोहबबत को,
तब तुमने ही आके तो
पागल मुझे नवाजा था.
िक मै तो तब भी पागल था
िक जब था इशक को समझा,
जमाने को भुलाया िफर
मै खुद को भी भुला बैठा,
सभी दुिनया ने िमल के तब
दीवाना पागल कह डाला.
िक मै तो अब भी पागल हँू,
तेरा दामन रहा थामे
मै पूरे जोर से कसके,
मगर खोना पड़ा तुमको
बुरे हालात मे फँस के,
कया अब तो खुद को ही मैने
पागल सच मे बना डाला.
अब इक बात का इतना
जरा इनसाफ कर जाओ,
िक पागल कब मै जयादा था?
िसफर इतना बता जाओ.
दीपक 'मशाल' 9.8.09
Important
लहू पहाड़ के िदल का, नदी मे शािमल है,
तुमहारा ददर हमारी खुशी मे शािमल है.
तुम अपना ददर अलग से िदखा न पाओगे,
तेरा जो ददर है वो मुझी मे शािमल है.
25-
मीलो साथ चले मगर
वो कुछ भी कह न पाए थे,
कहने को रोज िमलते थे
मगर हम िमल न पाए थे.
खतम सफर होने को था,
हमसफर खोने को था,
होठ खामोश थे तब भी,
अशक भी बह न पाए थे.
अब अतीत मे जाके
खोया मीत तकता हूँ,
अँधेरे मे साये से
आस िमलन की रखता हूँ.
मै घट भरा हुआ जल से
हर पल थोड़ा िरसता हँू,
कभी जुड़ा नही है जो
मै एक ऐसा िरशता हँू.
मै एक ऐसा िरशता हँू..
दीपक 'मशाल'
26-
धुँआ-धुँआ सा नजर आया सब,
उसने मुझको था ठुकराया जब.
इतना बेबस के जैसे खूँ ही नही,
िगरे बदन को जमी से उठाया जब.
सब अधूरा सा नजर आया था,
चाद कोरा सा खवाब लाया जब.
रंग फूलो का हो गया काफुर,
िकतना फीका सा शफक छाया तब.
दीपक 'मशाल'
27-
लो यहा इक बार िफर, बादल कोई बरसा नही,
तपती जमी का िदल यहा, इसबार भी हरषा नही.
उड़ते हुए बादल के टुकड़े, से मैने पूछा यही,
कया हुआ कयो िफर से तू, इस हाल पे िपघला नही.
तेरी वजह से िफर कई, फासी गले लगायेगे,
अनाथ बचचे भूख से, िफर पेट को दबायेगे.
मा िजसे कहते है वो, खेत बेचे जायेगे,
मजबूिरयो से तन कई, बाजार मे आ जायेगे.
िफर रोिटयो के चोर िकतने , भूखे पीटे जायेगे,
िफर कई मासूम बचपन, पल मे जवा हो जायेगे.
दीपक 'मशाल'
28-
कया खूब पायी थी उसने अदा,
खवाब तोड़े कई आंिधओं की तरह.
कतरे गए कई पिरंदो के पर,
सबको खेला था वो बािजयो की तरह.
हौसला नाम से रब के देता रहा,
औ फैसला कर गया कािजओं की तरह.
खास बनने के खवाब खूब बेचे मगर,
करके छोडा हमे हािशओं की तरह.
सािहलो को िमलाने की जुंिबश तो थी,
खुद का सािहल न था मािझओं की तरह.
िजनको िदल से लगा 'मशाल' शायर बना,
है अब लगाता उनहे कािफओं की तरह.
दीपक 'मशाल'
29-
ऐ मौत!
मै दरवाजे पे खडा हूँ,
तुम आओ तो सही,
मै भागूंगा नही.
कसम है मुझे उसकी,
िजसे
मै सबसे जयादा पयार करता हँू,
और उसकी भी
जो मुझे सबसे जयादा पयार करता है.
या शायद दोनो.....
एक ही हो.
एक ऐसा शखस
या ऐसे दो शखस......
जो आपस मे गडडमगडड है..
मगर जो भी हो
है तो पयार से जुड़ा हुआ ही न.
वैसे भी...
गिणत के िहसाब से
अ बराबर ब
और ब बराबर स
तो अ बराबर स ही हुआ न....
जो भी हो यार
मगर सच मे
उन दोनो की कसम
उन दोनो की कसम, मै भागूँगा नही.
कुछ लोग कहते है िक-
'िजंदगी से बड़ी सजा ही नही'
अरे
तो तुम तो इनाम हुई न
और भला इनाम से
कयो कर मै भागूंगा?
और िफर वो इनाम जो.....
आिखरी हो
सबसे बड़ा हो,
िजसके बाद िकसी इनाम की जररत ही न रहे..
उससे भला मै कयो भागूंगा?
इसिलए
ऐ मौत....
तुमहे
वासता है खुद का,
खुदा का
आओ तो सही
मै भागूंगा नही.....
दीपक 'मशाल'
30-
िदल की टीसो को, िदल मे दबाये रखना,
लोग आएंगे जब, जखमो को िछपाए रखना.
इक तबससुम तो रखना होठो पे जमाने के िलए,
वक्त जररत के िलए, आंसू भी कुछ बचाए रखना.
31 -गजल-
ये पिरंदा इन दरखतो से, पूछता रहता है कया,
ये आसमा की सरहदो मे, ढू ढ ं ता रहता है कया.
जो कभी खोया नही, उसको तलाश कया करना,
इन दरो को पतथरो को, चूमता रहता है कया.
खोलकर तू देख आँखे, ले रंग खुशी के तू िखला,
गम को मुकदर जान के, यूँ ऊंघता रहता है कया.
कोई मंतर नही ऐसा, जो आदिमयत िजला सके,
कान मे इस मुदे के, तू फूंकता रहता है कया.
आएँगी कहा वो खुशबुएँ , अब इनमे 'मशाल',
दरारो मे दरके िरशतो की, सूंघता रहता है कया.
दीपक 'मशाल'
वो जब घर से िनकलती है,
खुद ही
खुद के िलए दुआ करती है,
चाय की दुकान से उठे कटाको के शोलो मे,
पान के ढाबे से िनकली सीिटयो की लपटो मे,
रोज ही झुलसती है.
चौराहो की घूरती नजरो की गोिलया,
उसे हर घड़ी छलनी करती है.
आतंकवाद!!!!
अरे इससे तो तुम
आज खौफ खाने लगे हो,
वो कब से
इसी खुराक पे जीती-मरती है.
तुम तो आतंक को
आज समझने लगे हो
आज डरने लगे हो,
वो तो सिदयो से डरती है,
जमी पे आने की जदोजहद मे,
िकस-िकस से िनपटती है.
तुम जान देने से डरते हो
पर वो
आबर छुपाये िफरती है,
कयोिक वो जान से कम और
इससे जयादा पयार करती है.
तुम तो ढंके चेहरो और
असलहे वाले हाथो से सहमते हो,
वो तुमहारे खुले चेहरे,
खाली हाथो से िसहरती है.
तुम मौत से बचने को िबलखते हो,
वो िजंदगी पे िससकती है.
तुमहे लगता है...
औरत अखबार नही पढती तो..
कुछ नही समझती,
अरे चाहे िपछडी रहे
िशका मे मगर,
सभयता मे
आदमी से कई कदम आगे रहती है.
इसिलए
हा इसिलए,
हमसे कई गुना जयादा,
वो आतंकवाद समझती है
वो आतंकवाद समझती है....
दीपक 'मशाल'
दीपक 'मशाल'
समपरण
मन समिपरत, तन समिपरत
और यह जीवन समिपरत,
िपय तुमहारा ऋण बहुत है मै अिकंचन,
िकनतु इतना कर रही तुमसे िनवेदन
वयथा अंतस की सुनाऊँ जब वयिथत हूँ,
कर दया सवीकार लेना यह समपरण.
मान अिपरत, पाण अिपरत
रकत का कण-कण समिपरत,
सवप अिपरत, पश अिपरत
आयु का कण-कण समिपरत.
अपने जीवन को जलाकर के तुमने ,
चाहा खुिशयो का मुझे अमबार देना,
तोड़ दूँगी मोह का बंधन, कहो तुम,
छोड़ दूँगी चाहत तुमहारी, गर कहो तुम.
पर आज सुन लो िपय मेरे अंतस की पीड़ा,
तो यथावत मान लूंगी,
आज पूरा हो गया मेरा समपरण...
'बीती खुशी'
36- छोटी बऊ(दादी) वो महान आतमा थी, िजनहोने मुझे जो सनेह, जो दुलार िदया वो आज तक मै ढू ँढता हूँ. असल मे छोटी बऊ मेरे बाबा
िक चाची थी जो ताउम कहने को तो कोख से एक संतान को जनम न दे पाने के कारण िनःसंतान रही लेिकन आस पड़ोस मे और घर मे
कोई ऐसी संतान न थी, िजसके िलए वो मा न हो...
शायद ये किवता हो लोगो के िलए मगर-
मेरे िलए ये एक अतुलनीय पेम के आदशर का पितषापन है,
जो देते है लोग आराधय को उससे भी ऊंचा आसन है.
िििि ििि िििि िि िि ििि िििि, िििि िििि िििि ििि िििि,
ििििि िििि िि ििि ििििि िि, िि ििििि िििि िििि िििि.
ििि िि िििि ििि ििििि िि ििि िि, िि िििि िििि ििि िि,
िि िििि िििि ििि िििि, िि िििििि िििि िििि िििि.
किवता एक ऐसा बादल है, जो कब िजहन के आसमान पर आ जाये, छा जाये और कब बरस जाये इसका पूवानुमान कोई मौसम िवशेषज
नही कर सकता. कयोिक ना तो आम मानसून की तरह इसका कोई वक्त होता है और ना ही यह किव िकसान की दुआओं के असर से
बनता, बरसता है. बस जब भी जजबात के समंदर पे िकसी हालात का सूरज अपने सुख या दुःख के अहसास का ताप फैलाता है तो एक
किवता रपी बादल जनम लेता है. अब िनभरर करता है की कब िकस तरह का सूरज उगा और उसने िकस तरह के जजबात को उकसा के
कौन से बादल की किवता बना डाली. ऐसी ही कुछ किवताये जीवन के आते-जाते कणो मे हदय से अवतिरत हुई है जो आपके सामने
पसतुत कर रहा हूँ.
जहा तक मै समझता हूँ, अिभवयिकत की दृिष से देखे तो किवता एक नदी की तरह भी है. जैसे एक नदी का नैसिगरक रप िजतना सुनदर,
मनमोहक व आनंददायक होता है और जैसे छोटे-बड़े पतथरो से टकरा कर के एक अिनिशत वेग से बहती नदी, िजसकी कल-कल की
करतल धविन पािणमात को अपनी ओर बरबस ही खीच लेती है, जीवन देती है, ठीक वैसे ही नई किवता या छंद मुकत किवता होती है. नयी
किवता मे आप अपने िदल की बात पूणर िनिशंत होकर, सवचछंद होकर रख सकते है. 'शबद संयोजन ठीक है या नही, माताएँ बराबर है या
नही, धारापवाह है या नही' जब ये सारी बंिदशे हट जाती है तो िबना िकसी फेर बदल के हम अपनी भावनाओं को जस की तस
अिभवयकत कर सकते है, हा बस इतना धयान रखना होता है की अपनी कही बात िसफर सवयं के ही नही बिलक सभी के समझ मे आये.
इसमे शबद िशलप पे थोड़ा धयान दे सकते है. सािहितयक भाषा मे मै ना तो जयादा वणरन करना चाहता हूँ और ना ही मै बहुत िवशेषज हूँ, हा
मगर इतना कहूँगा की नई किवता मे रप सौदयर के बजाय भाव सौदयर पर अिधक धयान देना होता है.
वहीँ दूसरी ओर मुकतक, पूणर किवता, गीत, दोहा, सोरठा, चौपाई इन सब मे भावनाओं के ममर को जीिवत रखते हुए उसे रस, छंद, अलंकार
से िवभूिषत कर देते है. वैसे ही जैसे की असीिमत वेग वाली पचंड नदी को जनोपयोगी बनाने के िलए उसके तटो पर घाट बना िदए जाएँ ,
शहर बसा िदए जाएँ , उसको िनयंितत करने के िलए बाध बनाये जाएँ . इससे नदी के पाकृितक सौदयर मे बदलाव आना तो सवाभािवक है
िकनतु अगर इस सब से होने वाले लाभो को धयान मे रखे तो ये बदलाव साथरक ही िसद होते है. जरा धयान दीिजये, एक बार िफर लगेगा
की ऐसा ही तो एक पिरषकृत कावय रचना के साथ है, उसकी खूबसूरती को बढाने के िलए उस सिरता का, किवता-कािमनी का शृंगार कर
िदया जाता है.
ये संगह जो आपके हाथ मे है इसके लेखन व पकाशन का शेय ईशर के अलावा सवर शी मेरी छोटी बऊ, मेरे बाबा, नाना, मममी-पापा,
गुरजी, पिरवारीजनो व अिभन िमतो को जाता है. समसत पिरवार का उललेख नही कर सकता कयोिक काफी बड़ा एवं संयुकत पिरवार है
और ईशर की कृपा से अभी तक ना तो घर के बचचे बँटे है और ना ही बड़े. कई किवताये या तो इनमे से िकसी ना िकसी को धयान मे
रखकर बुनी गयी है या िफर कही ना कही से इनसे जुड़ी है. कई ऐसी किवताये है जो की जीवन के सफर मे घिटत हुई
घटनाओं/दुघरटनाओं की चशमदीद है या इनमे िकसी तरह िमले लोगो या िकसी चिरत िवशेष की भावनाओं को उकेरने की कोिशश भर की
गयी है. कुछ रचनाएँ ऐसी है जो िक 'गर ऐसा होता, तो कैसा होता' की तजर पर िनिमरत िक गई है, ये है तो कालपिनक ही लेिकन ये कलपना
िकसी अहसास को इनसान से जोड़ने के िलए की गयी है, जैसे मन मे ही एक कलपना उभरी की यिद कोई ऐसा वयिकत हो िजसको िकसी
िवशेष(िपय/अिपय) पिरिसथित से होकर गुजरना पड़ा हो तो उसके मन पे कया बीती होगी या उस वक्त उसने कया सोचा होगा? या उसके
सथान पर सवयं को रख उसके मनोभावो को कागज पर उतारने की चेषा िक है. वहीँ कुछ किवताये समाचारपतो मे पकािशत असमंजस
मे डाल देने वाली खबरो की वयुतपित भी है..
अंत मे इतना ही कहूँगा की यह एक पयास िकया है कई अहसासो पे कलम चलाने का. उममीद तो है लेिकन उससे अिधक है िवशास, वो
ये िक ये रचनाएँ आपके हाथो तक ही नही बिलक वहा से िदल तक भी पहं ुचेगी, अब यह ईमानदार पयास िकतना साथरक िसद होता है
इसका िनणरय आप पर ही छोड़ रहा हूँ. आपकी पितिकया का इंतजार रहेगा.
जय िहंद...
आपका ही-
दीपक 'मशाल'
Kuchh rangoli aur drawings
Sunday, April 18, 2010
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बहुत िदनो से अपने आप को रोकने की कोिशश मे लगा था िक जैसा चल रहा है चलने दो दुिनया के अनय िवभागो की तरह यहा बलॉग
िवभाग मे भी हर तरह के लोग है उनहे झेलना ही पड़ता है और यहा भी झेलना पड़ेगा. लेिकन अबअपनी ही िलखी एक किवता की
पंिकतया-
याद आने लगी है. देखा जाए तो दोनो पको से ही ये अनगरल वातालाप हो रहे है लेिकन जब से इस बलॉगवुड मे अनवर जमाल और सलीम
खान जैसे लोग आये है तब से तनाव जैसी िसथित बढती ही जा रही है. इनकी बकवास और बेहूदा तकों से तो यही सािबत होता है. आज
की तारीख मे सलीम खान और अनवर जमाल से देश की अखंडता, सापदाियक सदावना और अमन, चैन को िजतना खतरा है उतना ही
बलोगवाणी या दूसरे अनय संकलको को भी. कयोिक यिद िनकट भिवषय मे इनके जहरीले और बेिसर-पैर के िवशलेषण से दंगा-फसाद की
िसथित बनती है तो कानून के हाथो दारा कॉलर इन एगीगेटर की भी पकड़ी जाएगी.
ना तो इन धािमरक अनपढो को कुरआन का क आता है और ना वेद का व लेिकन िफर भी ये सवघोिषत िवदान बने हुए है. िसफर अनुवाद की
भाषा समझते है ममर की नही, संवेदना की नही. ऊपर से इनके ५-६ चमचे जो िक िबलकुल धमाध और मुिसलम समाज के नाम पर कलंक
है बराबर इनको पीछे से समथरन दे रहे है. वैसे इन शैतानो की संखया जयादा नही है लेिकन अपने िलए इनहोने कई िहनदू और मुिसलम नामो
से फजी आई.डी. बना रखी है. पता नही ये सब जग जािहर होने के बाद भी ये संकलक कयो इन आसतीन के सापो को पशय िदए हुए है,
कयो भीषम की तरह चुपचाप तमाशा देख रहे है.
कभी ये इसलाम के सनदेश को अपने िहसाब से बदल कर लोगो के सामने रखते है तो कभी वेदो और पुराणो को झुठलाने मे लगे रहते है..
िजन पुसतको ने भारत को िवशगुर की पदवी िदलाई उसे ये कल के चूहे झूठ, अनाचार और कदाचार का पुिलंदा सािबत करने मे लगे है.
अभी कुछ िदन पहले ही धमर-पिरवतरन को ही लकय बना रखा है और लोगो के सामने उन घटनाओं का बार-बार िजक कर रहे है जो िकसी
समुदाय िवशेष की भावनाओं को भड़का कर गृहयुद की िसथित पैदा कर सकती है. बड़ी लागलपेट के साथ उन लोगो के तथाकिथत
साकातकार पसतुत कर रहे है िजनके होने ना होने से दुिनया को कोई फकर नही पड़ता.
िकस की दुहाई दे रहे है ये लोग? िकसके नाम से डरा रहे है? अललाह के ईशर के या भगवान् के? अरे बेवकूफो वो रहीम है, वो करीम है,
वो भगवान् है, दया सागर है, कृपाला है. तुमहे कया लगता है एक मंिदर या मिसजद तोड़ देने से वो अपना कहर बरपायेगा? वो िसफर ये सब
देख कर कही बैठ कर हंसेगा िक ''बचचो!! तुम एक इमारत तोड़ कर समझते हो िक मेरा नाम िमट जाएगा? अरे तुम समपूणर पृथवी, इस
सृिष को भी िमटा दोगे तब भी मेरा नाम ना िमटा पाओगे.'' और येही वो खूबी है जो उस सवरशिकतमान को इंसानी सोच से अलग करती है.
तुमने तो मजाक बना कर रख िदया.. कहते हो उसका कोई रप नही, कोई रंग नही... और िसद ये करते हो िक वह हमारी-तुमहारी तरह
सोचता है, बदले लेता है, खुश होता है. अजीब भम मे हो.
ये अनवर उलटे-सीधे िवशलेषण तो करता ही है लेिकन साथ मे यह भी मानने को राजी नही िक उसका िवशलेषण गलत है और मनगढंत
है. आप सबने एक चुटकुला तो सुना ही होगा िक 'एक शराबी से शराब छुड़ाने के िलए िकसी महामना ने उसके सामने एक िगलास मे
शराब डाली और एक कीड़ा डाल िदया, कुछ ही समय मे कीड़ा मर गया तो उस शराबी से पूछा िक इससे कया सबक िमला? तो शराबी
बोलता है िक शराब पीने से पेट के कीड़े मर जाते है.''
''शठे शाठयम समाचरेत'' का मतलब भी ये मूखर के साथ मूखर का सा वयवहार करना चािहए बताएँगे ना िक दुष के साथ दुषता का.
अिमत शमा ने बहुत कोिशश की इनहे समझाने की, सतीश सकसेना जी ने की, एकाध बार मैने भी की लेिकन ये अपनी आदत से मजबूर
है. मना िक बहुसंखयक समुदाय के कुछ लोग भी कभी-कभी इस तरह की अनगरल और बेहूदा बाते करते है लेिकन वो कभी इतने
आकामक नही होते ना ही फजी आइ.डी. बना कर िकसी को धमकाते या िटपपणी करते है(जैसा िक िफरदौस जी ने बताया).
अरे इतनी सी बात समझ नही आती िक यिद यही सवरशिकतमान की मजी थी जो ये लोग सोच रहे है तो सबको एक ही समुदाय मे पैदा ना
करते? हम कैसे उसकी मजी के िखलाफ जा सकते है वो तो खुद चाहता है िक िविभन तरीको से मुझे याद करो पर करो तो, मुझे याद
रखोगे तो मृतयु का भय रहेगा, मृतयु का भय रहेगा तो गलत काम नही करोगे और अनुशासन मे रहोगे िजससे िक ये दुिनया जब तक
अिसततव मे रहेगी सुचार रप से चलती रहेगी.
बताना जररी समझता हूँ िक मेरे जो दो सबसे पयारे भाई है उनके नाम मोहममद आजम और अकबर कादरी है और इससे कम से कम
मुझे तो कोई फकर नही पड़ता. मेरे पापा के सबसे करीबी दोसतो मे से एक इंतजार चचा के साथ हमारे सालो से पािरवािरक समबनध है.
आज भी याद है िक हमारे पािरवािरक िमत और मेरे बाबा के गुर सवगीय शी िवशाल चचचा िकतने अपनेपन से िदवाली और होली पर
कढी-चावल, दाल, पापड़, चीनी और दही बड़े की कलौजी घर आकर िकतने हक से आजा देकर मंगाते और खाते थे और ईद पर िटिफन
भरके िसवईया भेजते थे. नािजम चचचा की भैसो का दूध पी-पीकर हम बड़े हुए लेिकन आज तक िकसी ने िकसी की आसथा पर चोट नही
की. रोजे की नमाज मैने मिसजद मे पढी तो सईद ने वजू बनाने के िलए मेरे हाथो, पैरो पर पानी डाला तो उसने भी देवी मूितर िवसजरन पर
मेरे साथ पसाद बाटने मे हाथ बंटाया और ये सब सलीम की तरह िकसी अपराधबोध को लेकर नही िकया बिलक इंसािनयत के धमर को
सबसे बड़ा मान कर िकया. ये पोसट िजस बलॉग पर मै डाल रहा हूँ वो भी मेरे दोसत मोहममद शािहद 'अजनबी' और मेरा साझा बलॉग है।
वैसे कहने की जररत नही लेिकन जब बलॉग जगत मे महफूज भाई, युनुस खान भाई, िफरदौस जी, शीबा असलम फहमी जी, शहरोज
साब और कुछ अनय बलोगर जैसे उदाहरण भी है तो उनसे कुछ कयो नही सीखा जाता.
अंत मे एक बार िफर बलोगवाणी, िचटाजगत और अनय बलोग संकलको से अनुरोध करंगा िक ऐसे बलोगो को िबलकुल पनाह ना दे जो
यहा माहौल िबगाड़ने की कोिशश मे लगे है और यिद कल के िदन मै भी यही सब करता पाया जाऊं तो िबना समय गंवाए मुझे भी यहा से
धके देकर िनकाल िदया जाए.दीपक 'मशाल'
---------------------------------------------
नेकसट---
3 िििििििि------->>>िििि 'िििि'
१-
अकस धुंधला पड़ा है मेरा
खो सा गया हूँ मै
जाने कया-कया खवािहश िलए
सो सा गया हूँ मै..
वो हर घड़ी मुझे
गैर िकये जाते है
मोहबबत देखे वगैर
वैर िकये जाते है..
२-
अपनी तो आदत है समझो, तुमको िचढाने की
कभी तुमको सताने की कभी तुमको हंसाने की
कहने को कह दूँ दोसत तुमको अपनी जान से पयारा
मगर हर िरशते को नाम देने की आदत है जमाने की
3-
ऐ मेहजबी ऐसा नही िक हमे तुमसे पयार नही
खता है वक्त की के हमे मौका नही िमलता
तुमहे पता नही िक दुिनया मे और भी है ताजमहल
पर िदल से िनकलने का उनहे मौका नही िमलता
दीपक 'मशाल'
-------------------
बहुत दुःख भी है और तिनक संतोष भी िक जलदी ही हकीकत से र-ब-र हो गया.. बहुत कुछ सोच कर और उममीदे लेकर आया था
बलॉगजगत मे लेिकन.... खैर छोिड़ये यहा बात करते है पहले अहसास की.. लेिकन इतना िफर भी कहना चाहूंगा िक इस चापलूसी
लोक(बलॉगजगत) मे अचछे इंसा िमले मगर िफर भी कम. सब िसफर अपने को दुिनया की नजर मे जानदार और शानदार बताने मे लगे है.
इसिलए ऐसी दुिनया को मेरा नजदीक आके परखने के बाद पणाम, ऐसा तो नही िक औरो की तरह िचललाऊं िक 'ऐ भाई मेरा हाथ पकड़ो
मै बलोिगंग छोड़ कर जा रहा हूँ' लेिकन हा िनयिमत भी नही रहूँगा बस कभी आऊंगा तो िसफर उस िवषय पर अपनी बात कहने जो जररी
समझता हूँ, कभी कहानी, कभी गजल, कभी लघुकथा , कभी किवता या गीत तो कभी पोएम के रप मे.. और शायद अब 'मिसकागद' पर
कम और अपने अनय अजीजो के बलॉग पर जयादा.. ना मुझे चटके चािहए ना िटपपणी और ना िकसी का मान मनौवल.. बस कुछ अचछे
लोगो का सनेह चािहए तो िमलता रहेगा ऐसी उममीद है, नही भी िमलेगा तो अगर मै सचचा होऊंगा तो ऊपरवाले का आशीष तो िमलेगा ही..
कल लनदन से लौट के आया हूँ कई नए अनुभवो के साथ.. कुछ बहुत अचछे इंसानो से भी िमला जो सािहतयकार भी है, साथ ही उनके
जीवन के तजुबात सुनकर 'पयासा' िफलम का अहसास भी जागा िक- ''ये दुिनया अगर िमल भी जाए तो कया है''
दुःख होता है कहते हुए िक इस जगत के जयादातर लोग िसफर अपने को बहुत अचछा सािबत करने के चकर मे बहुत अचछा करना भूल
जाते है और बस एक लकीर पर चलते जाते है अपनी पलके मूदे हुए, पर मै िकसी को सुधारना भी नही चाहता बस खुद ही सुधर जाऊं
इतना काफी है मेरे िलए. हा िपंट मीिडया और सािहतय से जरर जुड़ा रहँूगा.
यहा मै अपने पहले अहसास के बारे मे बताने जा रहा हँू जो िक जुड़ा हुआ है मेरे िकसी भी खेल पागन(सटेिडयम) को देखने को लेकर..
मैने अगर अपने जीवन मे कोई पहला सटेिडयम देखा तो वो है लोडसर िककेट मैदान िजसे िक 'िककेट का मका' भी कहते है और इसे
ऊपरवाले का अहसान ही मानूंगा िक सीधा उस मैदान को पहली बार देखने का अवसर िदया जहा से िककेट शुर हुआ..
सुबह १२ बजे लनदन मे उस जगह से िनकला जहा ठहरा हुआ था, िनकलते ही सबसे पहले लोडसर सटेिडयम के िरसेपशन पर फोन
लगाया तो पता चला िक १२ बजे वाला िटप पहले ही शुर हो चुका है अब मै २ बजे पहंुचूं वही बेहतर था.. तो कुछ समय इमपीिरयल
कोलेज लनदन मे अपने िमत की पयोगशाला मे गुजारा उसके बाद अपने गंतवय का रासता अंतजाल के माधयम से पता करके वहा के िलए
पसथान िकया. पेिडंगटन बस सटॉप से बस पकड़ कर बेकर सटीट पहं ुचा. वहा पहुँच कर पता चला िक अभी भी ४५ िमनट बाकी है तो
पैदल ही रासता खोजते हुए बढ िदया लोडसर की िदशा मे, लेिकन िफर भी करीब २० िमनट पहले बािरश और तेज हवा को झेलता वहा
पहुँच ही गया.
मेनगेट पर दो सेकयुिरटी गाडर थे तो उनहोने अनदर जाकर िटकट लेने िक सलाह दी लेिकन चूंिक पहले से ही लनदन पास था मेरे पास तो
सीधा िरसेपशन पर दसतक दी और सटीकर लेने के बाद सीधा संगहालय मे. जहा गावसकर का वो हेलमेट रखा हुआ था जो चीनी िमटी से
बना था और अससी के दशक मे पयोग िकया गया था तो साथ मे ही नवाब पटौदी की तसवीर और लारा का हेलमेट था. डेिनस िलली िक
ऐितहािसक गेद थी तो िजम लेकर की टेसट मे १९ िवकेट चटकाने वाली गेद भी, िविवयन िरचडसर का हेलमेट, कोट और बलला भी. जेफ
बायकोट का एक अलग ही सेकशन बना हुआ था. हा सिचन से समबंिधत कोई चीज नही िमली अलबता गागुली की वो टी-शटर जरर थी
जो उसने वहा िफलंटोफ को िचढाने के िलए उतारी थी.
िककेट का इितहास देखा सुना िक िकस तरह के बलले सबसे पहले १७३० मे चलते थे िफर कया रप आया और िकस तरह पहले ३ के
बजाए िसफर २ िवकेट जमा कर खेल होता था.. ना पैड थे, ना गलबस, ना हेलमेट और ना ही कोई और सुरका उपकरण.
सुनकर हंसी भी आई िक जब इंगलैणड की टीम पहली बार आसटेिलया गई तो आसटेिलया ने इंगलैणड के ११ िखलािड़यो के मुकाबले २२
िखलाड़ी मैदान मे उतारे कयोिक उनका मानना था िक उनकी टीम बहुत कचचड थी और शुरआती अवसथा मे थी(हुई ना बचचो वाली बात).
वहीँ एक कोने मे उस िचिडया की मृत देह भी उसी बॉल से िचपकी आज भी रखी है िजससे िक उसकी मौत हुई थी(एक तेज गेदबाज की
गेद के रासते मे आ जाने का खािमयाजा).
एशेज की वो असली टॉफी देखी िजसने इस शृंखला को नाम िदया और उसकी कहानी सुनी तो दूसरी ओर W G Grace की पेिटंग और
मूितर देखी. सर डोन बेडमेन की भी पेिटंग देखी और िफर लौज रम देखा जहा इंगलैणड की टीम और भारत की टीम नाशता और खाना
खाती है, िफर उनके डेिसंग रम और पिविलयन और िफर वो रम जहा महतवपूणर िनणरय िलए गए थे जैसे िक िरकी पोिटंग को काबरन के
हेिडल वाले बलले से ना खेलने देने का िनणरय.
वो बालकनी देखी जहा सौरव ने अपनी टी-शटर उतारी थी और वो जगह जहा सिचन और दिवड़ बैठते है और जहा अगरकर ने लोडसर मे
शतक बना कर अपना दमखम सािबत िकया.
एक बहुत ही मजेदार बात जो बताई गई वो ये थी िक W.G.Grace जो िक एक अचछे िफिजिशयन थे वो जब एक अचछे िककेटर के रप
मे पिसद हो गए तो उनके खेल को देखने के िलए िटकट की कीमत १ पेस से बढाकर २ पेस कर दी गई और तभी यह पहली बार हुआ
िक िकसी िककेटर ने अपने खेल को देखने वालो की वजह से पायोजको से पैसे की माग की. उनका कहना था िक जब MCC उनकी
वजह से पैसा कम रहा है तो उनहे भी इसमे से िहससा िदया जाना चािहए और तभी पहली बार िकसी िखलाडी को उसके पशंसको की
वजह से पैसा िमला.
उसके बाद एक बार जब वो जलदी आउट हो गए तो W.G.Grace महोदय सीधा अमपायर के पास जाकर बोले िक यहा लोग मेरा खेल
देखने आये है तुमहारी अमपायिरंग नही.. :)
वहा का पिसद पेसबॉकस भी देखा और उसमे बैठने का मजा भी िलया. तो इस तरह पूरा हुआ मेरा पहली बार िकसी सटेिडयम को देखने
का सपना.
दीपक 'मशाल'
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ये तो सच है िक अपने जीवन का पहला अहसास कोई बड़ी मुिशकल से ही भूल सकता है. अब वह अहसास अचछा है या बुरा उसका
फकर इतना पड़ता है िक बुरे अहसासो को लोग बहुत कम भूल पाते है. इंसानी िफतरत ही ऐसी है.. देिखये ना हमारे साथ िकये गए
अहसान हम भूल सकते है लेिकन कोई अगर हमारा कुछ िबगाड़ दे या हमारे साथ जाने -अनजाने मे कुछ बुरा कर दे तो मजाल िक हम
आसानी से उसे भुला दे.
हा तो यहा आज एकबार िफर अपने जीवन के एक और पहले अहसास का िजक करने जा रहा हँू.. और वो अहसास जुड़ा हुआ है मेरे
खुद के साथ घटी पहली दुघरटना से. आमतौर पर दुघरटना शबद बोलने पर मिसतषक के ७२ इंच के शेत परदे पर जो िचत पकेिपत होता है
वो सड़क हादसे से जुड़ा ही लगता है या िफर उसमे िकसी मशीन का कही ना कही कोई ना कोई योगदान पतीत होता है. लेिकन दुघरटना
िसफर सड़क या मशीन से जुड़ी ही नही होती कई बार आप अपने आप घर बैठे दुघरटनाओं को िनमंतण पत थमा देते है, जैसा िक मैने
िकया देिखये कैसे-
''ये पहली दुघरटना उस समय की है जब मै ६-७ साल का रहा होऊंगा... तो हुआ ये िक मेरी बुआ जी ने अपनी शादी के बाद अपनी घिनष
सहेिलयो को और भािभयो को एक पाटी दी थी जैसा िक भारत मे ये चलन है. मेरे घर के सामने ही एक पािरवािरक िमत रहते है िजनके
साथ मेरे पिरवार के कई सालो से घर जैसे या उससे बढकर समबनध है, तो उस पिरवार से एक बचचा(बचचा इसिलए िक वो मुझ से भी २
साल छोटा था) अपनी मममी जी के साथ पाटी मे शािमल था. मै बहुत छोटा होने के कारण कोई जयादा काम तो नही कर रहा था लेिकन
हा कभी िकसी को पानी, समोसा या शरबत चािहए होता तो ला देता था. जाने उस बचचे का कया मन हुआ िक वो बोला िक उसे घर जाना
है और उसका नाशता उसके साथ िभजवा िदया जाये कयोिक पलेट बड़ी होने की वजह से उसके हाथ मे ना आएगी. बुआ जी ने मुझसे
उसको उसके घर तक भेज आने और नाशता भी दे आने के िलए कहा.
अब मेरे दोनो हाथो मे एक मे रसगुलले और एक मे समोसे.. मै आगे-आगे चल िदया. हा तो बताना जररी है िक उनका घर ऐसा बना हुआ
था िक मुखय दार से अनदर जाकर एक काफी लमबी गैलरी िफर आँगन िफर सीिढया और िफर छत और उसके बाद वो कमरे जहा पर
उसका घर था. हमारे यहा बंदरो की बहुतायत है इसिलए रोज ही उनसे मुठभेड़ होती रहती है और जब कभी छत पर गेहू या धान वगैरह
सूखने के िलए डालते तो िफर इन वानर शेषो की कभी-कभी छतो पर पाटी भी हो जाया करती थी. तो दुभागयवश उस िदन उनकी छत
पर गेहूं सूख रहा था और मै उस बालक का नेतृतव करते हुए जब छत पर पहं ुचा तो देखा िक करीब १०-११ बनदर छत पर कचचे गेहू
का आनंद ले रहे है. वो बचचा तो बनदर देखते ही चुपचाप सीिढयो से नीचे उतर िलया और मै जब तक पलटता िक िकसी शाितर बनदर ने
मेरे हाथ के रसगुललो पर नीयत खराब कर दी. खुद तो ठीक बाकी सब बंदरो को भी 'खो-खो' कर पाटी का माल उड़ाने का इशारा कर
िदया.
बस िफर कया था घेर िलया गया मुझे. मै भी कुछ जयादा ही अकलमंद िनकला और ये सोच िलया िक भाई इनहे दे िदए तो और रसगुलले
कहा से लाऊंगा? बस िफर कया था चुपचाप वहीँ बैठ गया और उनके आकमण झेलता रहा. अब एक धरमेदर और १०-११ अमरीश पुरी
तो कब तक बचता भाई.. जब लगा िक उनके दात और नाखून शरीर मे कई जगह तो लगे ही लेिकन िसर मे कुछ जयादा ही गड़ चुके है
और अब जयादा देर की तो मीठे सीरे के बजाय इनहे मेरे शरीर मे बहता लाल सीरा पसंद आ जायेगा और वैसे भी हाथ मे जो पलेट थी वो
ददर के कारण कब मुटी मे भीच गयी पता भी ना चला, तो दोबारा अकल लगाई िक भाई अब छोड़ दे ये सने हुए रसगुलले अब कोई ना
खायेगा.
उधर वो बालक नीचे जाके चुपचाप खड़ा रहा और िकसी को इतला भी नही िकया िक मेरे साथ कया जुलम हो गया. :) मै कुछ इस उममीद
मे था िक वो िकसी को बताएगा तो मेरे रकक कोई देव आयेगे, पर ऐसा कुछ ना हुआ अंततः जब मैने रसगुलले और समोसे वहीँ फेक िदए
तो सारे लफंगे बनदर मुझपर जोर-आजमाइश छोड़ उनका इंटरवयू लेने के िलए मुखाितब हुए और मै नीचे उतर कर आँगन, गिलयारा पार
करता हुआ बाहर चबूतरे पर जाकर खड़ा हो गया.
अब चूंिक मेरा घर सड़क पार करते ही सामने ही था तो मेरी मममी ने छत से मुझे देख िलया. तब तक मेरी सकूल की सफेद शटर मुफत मे
पूरी सुखर हो चुकी थी. मममी तो देखते ही गश खा कर िगर गयी और जब वो िगरी तो बाकी लोगो िक नजर भी मुझ पर इनायत हुई िक
मममी कया देख कर मूिछरत हो गयी. जब तक लोग आये तो ददर और रकतसाव के कारण गलेिडएटर दीपक जी बेहोश होने की हालात मे
पहुँच गए थे.
बस आनन-फानन मे ताऊ जी के िकलिनक मे पहुँचाया गया, िफर कया हुआ जयादा याद नही हा बस इतना याद है िक मुझे चेतन रखने के
िलए डॉकटर ताऊ अपने बेटे से कह रहे थे िक- 'देखो िकतना बहादुर बचचा है १० बंदरो से लड़ा और ७ टाके सर मे लगवाए तब भी नही
रोया और एक तुम हो जो एक इंजेकशन मे रोते हो'. अब तारीफ सुन मै भी खुद को पहलवान समझने लगा था जबिक भाई हकीकत मे तो
बंदरो से लड़ा नही बिलक िचथा था. :) ''
तो कैसी लगी ये राम ऊपस दीपक कहानी?? यािन बंदरो से िचथने का पहला अहसास.. वैसे आिखरी भी तो यही था कयोिक इसके बाद
बंदरो का आतंक मन से ऐसा िनकला िक जब भी बनदर देखता तो उनकी तरफ खाली हाथ ही दौड़ पड़ता और अबकी वो बेचारे भाग रहे
होते मुझे देखकर..
दीपक 'मशाल'
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दोसतो यूं तो िजंदगी की अपतयक लमबाई वाले सफर मे हमे कई अहसासो से रबर होना पड़ता है, कई चाहे अनचाहे अहसासो से हमारी
मुलाकात कराती है ये िजनदगी नाम की हसीना.... लेिकन हर अहसास की कभी ना कभी शुरआत होती है, िकसी की िजनदगी
मे कोई अहसास बहुत पहले होता है तो कभी िकसी की मे बहुत बाद मे. लेिकन मेरे खयाल से हर िकसी को लगभग एक जैसे अहसास से
गुजरना ही पड़ता है, हा उनके रप रंग अलग हो सकते है इतना जरर है........और जब िकसी अहसास की हमारे जीवन मे शुरआत
होती है तो उसे हम कभी नही भूल पाते, कयोिक वह, उस तरह का हमारा पहला अहसास होता है जो िक जीवन भर के िलए अिवसमरणीय
याद बन के ताजे सीमेट पर बनाये गए पैरो के िनशान िक तरह हमेशा के िलए हमारे िदल और िदमाग पर छप जाता है.....हम अगर उसे
याद ना भी करना चाहे तब भी वो अपने आप याद आ ही जाता है, ठीक वैसी ही खुशबू, ठीक वैसे ही ताप, वैसी ही हवा, वैसी ही आदरता का
माहौल बनाते हुए.......
अनिगनत पहले अहसासो मे से एक वैसा ही अहसास मेरे सामने अपने आप ही आकर खड़ा हो जाता है और मुझे खीच ले जाता है उस
समय मे जब मुझे अपने जीवन का पहला कप एक पुरसकार के रप मे िमला था(मै पढाई के अलावा अनय कायरकलापो मे िमलने वाले
पुरसकारो की बात कर रहा हँू)....
जयादा पुरानी नही बस सन १९९३ की बात है, जब मै सरसवती िवदा मंिदर, गलला मंडी, कोच का ७ वी कका का छात था, पढाई मे
अबबल तो नही था लेिकन हा िफर भी तीसरे-चौथे नंबर पर रहता ही था. पारंभ से ही कला िवषय मे मेरी गहरी रिच थी और ये बात सबपे
जािहर हो चुकी थी कयोिक शायद मेरे हाथो से सफेद कागज पे आड़ी ितरछी िगरती रेखाएं कला के आचायर जी को मेरे अनय सािथयो से
बेहतर लगती थी....
हमारे िजले मे एक वयिकतगत संसथा 'लिलत कला अकादमी, उरई' दारा हर वषर एक िजला सतरीय बाल कला पितयोिगता का आयोजन
होता था. उस वषर िवदालय का पितिनिधतव करते हुए ३ अनय विरष छातो के साथ मुझे भी उसमे भाग लेने का अवसर िमला. पितयोिगता
एक कनयािवदालय(नाथूराम पुरोिहत बािलका िवदालय) मे आयोिजत होने के कारण मन मे एक अजीब सी घबराहट तो पहले से ही थी की
अगर िचत अचछा नही बना तो लड़िकयो के सामने बेईजजती होगी. देिखये आप िक उतनी छोटी सी उम मे भी इजजत-बेईजजती का खयाल
पनपने लगता है... खैर और कई िवदालयो से आये करीब ८० पितभािगयो के साथ मै जब वहा पहं ुचा तो पता चला िक 'मेरे शहर का
मेला' िवषय पर हम सबको सीिमत समयाविध मे एक रंगीन िचत बनाना था.. कापते हाथो से लगा िचत बनाने .. रंग भी भर िदया.... साथ मे
कनिखयो से औरो के भी देखते जाता िक कही मुझसे बेहतर तो नही बन रहा है.....कही कोई मुझसे जलदी तो नही बना रहा
है.... खासकर लड़िकयो से डर था और एक लड़के से जो िक शहर के मशहूर पेटर का सबसे छोटा बेटा था लेिकन था वो भी कमाल
का िचतकार....
करीब १ घंटे की मशकत के बाद िचत बन तो गया लेिकन औरो के िचत देखता तो कही ना कही कसक उठती िक 'यार इसने जो चीज
डाली है वो मै भी डाल सकता था लेिकन मै कयो नही सोच पाया? ओये उसकी कुलफी वाले िक कमीज लाल अचछी लग रही है मैने हरी
पिहना दी... उसने तो झूले मे ८ पालिकया बनाई मैने ६ ही... अरे इसने तो मेले मे बािरश भी िदखा दी अब इसका तो इनाम पका...'
वगैरह वगैरह
अब बैठ गया मन मसोस कर और लगा सोचने िक 'बेटा दीपक तुम तो िनकल लो पतली गली से, ये तुमहारे बस का रोग नही, लोगो को
तुझसे कई गुना जयादा कला िक समझ है.... आिद आिद.'
करीब आधे घंटे के बाद पिरणाम घोिषत हुए तो सबसे पहले तीसरे सथान पापत मेरे एक विरष को बुलाया गया तो मन शंका से भर उठा
िक 'इन भैया को िपछले साल जब पथम सथान िमला था तो मै सराहनीय पाया था, जब इस बार इनहे खुद ही तृतीय िमला तो तेरा कया
होगा कािलए?'
दूसरे सथान के िलए जैसी िक उममीद थी नगर के पेटर महोदय के बेटे को बुलाया गया.... मै बैठा रहा लड़िकयो से नजर बचा के दीवाल
ताकने ...
मगर अचानक पथम सथान के िलए लगा जैसे एक नाम दीपक कुमार चौरिसया िनणायक महोदय ने पुकारा हो...
मुझे अपने कानो पे िवशास नही हुआ और लगा िक कोई और दीपक होगा.... लेिकन जब २ बार उनहोने िफर से िवदालय का नाम लेकर
बुलाया तो शरीर मे कुछ हलचल हुई.. लेिकन उठने की िहममत ही नही हुई, पैर जैसे जमीन पे िचपक गए... अब पुरसकार लेने जाएँ तो
कैसे जाएँ मेरे तो पैर कापे जा रहे थे भाई, इस अपतयािशत िनणरय(आघात) से... तभी मेरे ही एक विरष भैया जी ने मुझे िहलाया और कहा
दीपक भाई जाओ तुमहारा ही नाम पुकार रहे है मुबारक हो!!!! तब जाके िकसी तरह मै खड़ा हुआ और लगभग दौड़ता सा सटेज पर
पहंुचा, पुरसकार लेते समय आँखो के सामने अँधेरा छा गया, िफर भी जैसे तैसे अपने िदल की धड़कनो पर काबू पाते हुए... कप को अपने
हाथो मे लेके सीने से िचपटा िलया.. ऐसे जैसे िक वो वापस छीन लेगे... और अपनी जगह वापस आने के करीब १५-२० िमनट बाद जब
सामानय हुआ तो मन बिललयो उछल रहा था और झूमने का मन कर रहा था..... लगता था की सारी दुिनया को िचलला िचलला के बता दूं
िक मैने कया जीता है.....हो ना हो आधे मोहलले को तो वो कप िदखाया ही था.....
तो ऐसा था मेरा पहला कप जीतने का अहसास, िजसके बाद जीवन मे कई पुरसकार िमले कभी िशका के िलए तो कभी किवता-कहानी के
िलए, कभी अिभनय के िलए तो कभी सामानय जान के िलए...... यहा तक िक उसी िचत पर िजला सतर पर भी िदतीय सथान िमला मगर
उस अहसास के जैसा अहसास, िफर कभी नही हुआ... यहा पर एक आवशयक पाथरना भी सुना रहा हूँ जो अकसर पभु से करता रहता
हूँ......िजसके िबना ये पोसट अधूरी है......
इक हाथ
कलम दी देव मुझे,
दूजे मे
कूंची पकड़ा दी,
संवाद मंच पर बोल सकूं
ऐसी है तुमने िजहा दी.......
पर इतने सारे मै हुनर िलए
कही िवफल िसद ना हो जाऊं,
तूने तो
गुण भर िदए बहुत,
खुद दोषयुकत ना हो जाऊं.
भूखे बचचो के पेटो को
कर सकूं अगर,
तो तृपत करँ...
जो बस माथ तुमहारे चढता हो
वो धवल दुगध ना हो जाऊं......
इतनी सी रखना कृपा पभो
मै आतममुगध ना हो पाऊं......
मै आतम मुगध ना हो पाऊं....
दीपक 'मशाल'
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खामोश!!!नेताजी दौरे पर है....
आज नेता जी को दौरे पर जाना है. सारी तैयािरयो का जायजा िलया जा रहा है, असल मे है कया िक आज के छिव-सुधार िशडयूल मे
नेता जी को शमदान करना है, पैदल चलना है, रसते मे कार रोक समोसे खरीदकर खाना है और सबसे बाद मे एक हिरजन के यहा खाना
खाना और सोना है. पहले से तैयािरयो के चलते अफसरो की एक टीम पहले ही गाव की तरफ गई हुई है. एक सेकेटरी सब वयवसथाओं
का पुनरीकण कर रहा है.
नेता जी के खासमखास ''आदमी' ने एक चमचे को बुला कर कहा- ''देखो, मीिडया वालो को खबर कर के बुला लो और उनकी जम के
खाितरदारी करना और समझा देना िक अपने खबिरयो को कह दे िक ये खबर तब तक लीक नही होनी चािहए.. जब तक िक दौरा पूरा
ना हो जाए. हा दौरे के बाद ये समाचार बनाना िक नेता जी ने अचानक दौरा िकया और सतारढ पाटी के राज मे पशासन इतना चुसत-
दुरसत है िक देश का इतना बड़ा युवा नेता दौरा करके चला गया और िकसी को कानो-कान खबर भी ना लगी.''
कहकर वापस अनदर नेता जी को सजाने -संवारने के िलए अनदर जाने लगे तो अचानक कुछ और धयान आया... पलट कर आये और
बोले-
''अरे सुनो, उधर पशासन के सभी बड़े अफसरान के घर िमठाई के डबबे िभजवा कर उनहे भी बतला देना िक तरकी चाहते हो तो थोड़ा
सा अपमान सहे और दौरे के बाद ही अपनी गािड़या 'मुकममल' सथान की तरफ दौडाएं. ''
कायालय के दूसरे कमरे मे एक दूसरे खास आदमी जी िलसट िमला रहे है-
''पलािसटक का तसला ले िलया, थमाकोल के बने रंगे हुए पतथर ले िलए, नेता जी के कुरते को मजदूर के कुरते का लुक देने के िलए
मटमैला चनदन ले िलया, िजन मजदूर युवितयो के साथ नेता जी िमटी ढोएंगे उनका चयन खूबसूरती के आधार पर हो गया है और उनहे
िहदायत दे दी गई िक अचछे से नेताजी दारा िभजवाये गए खुशबूदार साबुन से मल-मल कर नहा कर आये और ढेर सारा िडयोदेट और
परफयूम लगाना ना भूले, वगैरहवगैरह...''
नेता जी का कारवा सज चुका है और जेड पलस पलस पलस सुरका के अितिरकत २ अनय गािड़या, जो िक िनजी कंपिनयो के
सुरकाकिमरयो से भरी थी कािफले के आगे पीछे लगा दी गई है. एक गाडी मे नहाने और पीने के िलए िमनरल वाटर भर िलया गया है. इस
तरह नेता जी िजंदाबाद के नारे के साथ सभी १८-२० गािड़यो का 'छोटा' सा कािफला बीहड़ के एक गाव की तरफ रवाना हो गया. नेता
जी ने रासते मे पोलेराइड गलास वाला काला चशमा लगा िलया है और सेकेटरी को गाव के बाहर ही चशमा उतारने की याद िदलाने के िलए
भी कह िदया िजससे िक उन पर हाई-फाई बनने का इलजाम ना लगे.
नेता जी एक दूरदशी 'इंसान' है इसिलए रासते मे ही अपने खासमखास से पूछ िलया िक- ''समोसे वाले के यहा अपने रसोइये भेज कर
हाइजीिनक समोसे बनवा के रखे या नही?''
जवाब से संतुष ना हुए और खुद ही रसोइये से बात कर उसपर उपकार िकया. उसको बोला िक- ''िकसी तरह की गड़बड़ नही होनी
चािहए समोसे खाकर, कल एक और दौरे पर जाना है ना. तुमहारे साथ फोटो भी िनकलवा लेगे अगर अचछे बने तो.''
असल मे वे अपने बेशकीमती जीवन के साथ कोई खतरा मोल नही लेना चाहते थे.
गाव पहुँचते ही चशमा उतारा गया, नेता जी गाव के बड़े-बुजुगों से िमले और िफर शमदान सथल पर पहं ुच गए. लेिकन ये कया उफफफ आज
धूप इतनी कम.... खैर उसका भी इंतजाम हो गया िमनरल वाटर से नेताजी के कपड़ो और चेहरे पर पसीने का मेकअप िकया
गया(आिखर मेकअप वोमेन को साथ मे लाना वयथर नही गया).
नेता जी के आगे-पीछे मजदूर और बीच मे नेता जी. अब िमटी डालने का शुभकायर पारंभ हो गया और मीिडया जो िक घंटो से इस
ऐितहािसक कण की बेसबी से पतीका कर रही थी जलदी जलदी नेता जी के कई कोणो से पोज लेने मे लग गई.
वहा से िनपटकर कािफला आगे बढा और 'सुिनिशत' समोसे की दुकान पर 'अचानक' रका. लेिकन हाय िकसी ने धयान ही नही िदया
उनकी तरफ... िसवाए समोसे वाले के, िजसे पहले से सब जात था. कािफले मे से ही एक चमचा िचललाया- ''अरे इतना बड़ा नेता इतनी
छोटी और 'अनहाइजीिनक' दुकान पर समोसे खा रहा है, िकतने बड़े िदलवाला है, हमारा सचचा िहतैषी है. हमारी ही तरह का है.'' और
िजंदाबाद के नारे लगने शुर हो गए.
मीिडया तो पहले ही पीछे लगी हुई थी. वहा भी २-३०० फोटो िनकाल डाले.
अब शाम को दिलत बसती के एक सबसे साफ मगर िफर भी डेटोल से ४ बार धोये गए घर मे नेता जी पहं ुचे. पिरवार की धुली-पुंछी
वयोवृद मुिखया के साथ फोटोशेसन चला. शाम को पास के ही पञच िसतारा होटल से मंगवाया गया खाना साफ से बतरनो मे उड़ेल कर
बाहर लाया गया और मीिडया के सामने िकसी ने पीछे से कहा- ''देिखये दिलतो के घर का खाना खा रहे है, कया देवता सवरप आदमी
है!!'' नेता जी िफर िजंदाबाद हुए.
इसी तरह रात मे सारे कािफले और मीिडया के साथ उसी पिरवार के साथ रात गुजारी.
सुबह तडके कािफला वापस कायालय की तरफ रवाना हो गया. कुछ देर मे एस.पी. और डी.एम्. की गािड़या उस हिरजन के घर पहुँची
जहा नेता जी रके थे. सब ठीक तरह से संपन हो गया.
आज के अिधकाश अखबार तो उनकी तारीफो मे रंगे हुए थे. लेिकन पता नही कयो मीिडया का एक वगर नाराज हो गया, िजसने िक उनके
शमदान मे किमया िनकालते हुए तसवीर िनकाल दी. बेवजह खबर को उछाला और कहा गया िक शिमक के हाथ मे लोहे का तसला था
और नेता जी के मे पलािसटक का, शिमक के तसले मे ऊपर तक पतथर-िमटी भरी थी जबिक नेता जी का खाली था. यही तुलना उनके
सपोटसर शूज और मजदूर की चपपलो मे हुई. हद हो गई शराफत की.. बेचारेनेताजी ने इतना सब िकया इस बेददर जनता के िलए और
नतीजा कया िमला?'' खैर नेता जी ने तुरत-फुरत अगले कायरकम के िलए नया तसला, जो िक पलािसटक का हो लेिकन िदखने मे लोहे
का लगे, बनवाने का ऑडरर दे िदया साथ ही कुछ और थमाकोल के रंगीन पतथर जो असली से कही कमतर ना हो. आिखर मे उस
अखबार के हेड आिफस फोन लगा कर उसके चीफ को नेता जी के साथ िडनर पर आमंितत िकया गया. दीपक 'मशाल'
बीज
अपने गुससे की आग मे
जब जीत के लाया था मै
और हर अगले साल
चलाने को जीवन..
हरकयुिलस की तरह
दीपक 'मशाल'
अधूरी जीत
झूठी अिजरयो मे से एक को
वो झूठ जो तुमहारे ही एक
िक मेरे सच की कमाई
छोटा सा अपराधी बन
दीपक 'मशाल'
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बेतरतीब सा मै
उस चटानी नराजगी ने ..
यूँ तो िहममत ना थी
िक घर मे अनदर जाके
खुिशयो की ईद औ िदवाली
ले आऊंगा वापस.
चीखने की सी एक आवाज ने
जबतक की थी कोिशश
तब तक कुचल चुका था
कारे-कारे से शीशे है
उजरा-उजरा सा है काजर
धुंआ सा बन उड़ गए कही सब
िि ििििििि..
और मतलब जीने का .
ये मकसद भुला ना दे
आपस मे झगडते है
िििि 'िििि'
शिन की छाया
पूजा के िलए सुबह मुँहअँधेरे उठ गया था वो, धरती पर पाव रखने से पहले दोनो हाथो की हथेिलयो के दशरन कर पातःसमरण मंत गाया
'करागे बसते लकमी.. कर मधये सरसवती, कर मूले तु.....'. िपछली रात देर से काम से घर लौटे पड़ोसी को बेवजह जगा िदया अनजाने मे.
जनेऊ को कान मे अटका सपरा-खोरा(नहाया-धोया), बाग से कुछ फूल, कुछ किलया तोड़ लाया, अटारी पर से बचचो से छुपा के रखे पेड़े
िनकाले और धूप, चनदन, अगरबती, अकत और जल के लोटे से सजी थाली ले मंिदर िनकल गया. रसते मे एक हिडडयो के ढाचे जैसे
खजैले कुते को हाथ मे िलए डंडे से मार के भगा िदया.
खुशी-खुशी मंिदर पहुँच िविधवत पूजा अचरना की और लौटते समय एक िभखारी के बढे हाथ को अनदेखा कर पसाद बचा कर घर ले
आया. मन िफर भी शात ना था...
शाम को एक जयोितषी जी के पास जाकर दुिवधा बताई और हाथ की हथेली उसके सामने िबछा दी. जयोितषी का कहना था- ''आजकल
तुम पर शिन की छाया है इसिलए की गई कोई पूजा नही लग रही.. मन अशात होने का यही कारण है. अगले शिनवार को घर पर एक
छोटा सा यज रख लो मै पूरा करा दूंगा.''
यूिनविसरटी ने जब से कई नए कोसर शुर िकये है, तब से नए छातो के रहने की उिचत वयवसथा(हॉसटल) ना होने से यूिनविसरटी के पास
वाली कालोनी के लोगो को एक नया वयापार घर बैठे िमल गया. उस नयी बसी कालोनी के लगभग हर घर के कुछ कमरे इस बात को
धयान मे रखकर बनाये जाने लगे िक कम से कम १-२ कमरे िकराये पर देना ही देना है और साथ ही पुराने घरो मे भी लोगो ने अपनी
आवशयकताओं मे से एक-दो कमरो की कटौती कर के उनहे िकराए पर उठा िदया. ये सब कुछ लोगो को फायदा जरर देता था लेिकन झा
साब इस सब से बड़े परेशान थे, उनका खुद का बेटा तो िदलली से इंजीिनअिरंग कर रहा था लेिकन िफर भी उनहोने शोर-शराबे से बचने
के िलए कोई कमरा िकराए पर नही उठाया. हालािक काफी बड़ा घर था उनका और वो खुद भी िरटायर होकर अपनी पती के साथ शाित
से वहा पर रह रहे थे लेिकन कुछ िदनो से उनहे इन लड़को से परेशानी होने लगी थी.
असल मे यूिनविसरटी के आवारा लड़के देर रात तक घर के बाहर गली मे चहलकदमी करते रहते और शोर मचाते रहते, लेिकन आज तो
हद ही हो गई रात मे साढे बारह तक जब शोर कम ना हुआ तो गुससे मे उनहोने दरवाजा खोला और बाहर आ गए.
लेिकन सब उनपर हंसने लगे और कोई भी पास नही आया, ये देख झा साब का गुससा और बढ गया.. वहीँ से िचलला कर बोले- ''तुम लोग
चुपचाप पढाई नही कर सकते या िफर कोई काम नही है तो सो कयो नही जाते? ढीठ कही के''
एक लड़का हाथ मे शराब की बोतल िलए उनके पास लडखडाता हुआ आया और बोला- '' ऐ अंकल कयो टेशन लेते है, अभी चले जायेगे
ना थोड़ी देर मे. अरे यही तो हमारे खेलने -खाने के िदन है..''
शराब की बदबू से झा साब और भी भड़क गए- '' िबलकुल शमर नही आती तुमहे इस तरह शराब पीकर आवारागदी कर रहे हो.. अरे मेरा भी
एक बेटा है तुमहारी उम का लेिकन मजजाल िक कभी िसगरेट-शराब को हाथ भी लगाया हो उसने , कयो अपने मा-बाप का नाम खराब रहे
हो जािहलो..''
उनका बोलना अभी रका भी नही था िक एक दूसरा शराबी लड़का उनीदा सा चलता हुआ उनके पास आते हुए बोला- ''अरे अंकल, आप
िनिषफकर रिहये आपके जैसा ही कुछ हमारे मा-बाप भी हमारे बारे मे समझते है इसिलए आप जा के सो जाइये.. खामखवाह मे हमारा मजा
मती खराब किरए.''
अब झा साब को कोई जवाब ना सूझा और उनहे अनदर जाना ही ठीक लगा.. उनका मकसद तो पूरा ना हुआ लेिकन उस लड़के की बात
ने एक शक जरर पैदा कर िदया.
िििि 'िििि'
उसके कंधे पे हाथ रख कर पहली बार इतनी आतमीयता से बात करते हुए उस सुपर सटार पुत ने वीरेदर, जो िक उसका डाइवर था, को
अपनी परेशानी बताते हुए कहा-
''यार वीरेदर, मुझे पहली बार िकसी बहुत बड़े डायरेकटर के साथ काम करने का मौका िमला है..''
''ये तो बड़ी खुशी की बात है सर'' अपनी खुशी जािहर करते हुए वीरेदर बोला
''लेिकन रोल कुछ ऐसा है िक वो तेरी मदद के िबना पूरा नही हो सकता..'' अपनी बात को आगे बढाता वो नया 'हीरो' बोला..
''वो कैसे सर....'' अब वीरेदर उस अचानक उमड़े पेम का कारण कुछ समझ रहा था
''मुझे एक बड़े सटार के डाइवर का रोल िमला है जो िक कहानी का मुखय चिरत है.. एक तुमहारे जैसे गरीब, मजबूर आदमी का रोल है...
इसके िलए मुझे तुमहारी िदनचया.. उठना-बैठना, रहन-सहन समझना होगा बसस.. कुछ िदन के िलए'' अपनी मजबूरी बताते हुए और वीरेदर
की जेब मे १०००-१००० के १० करारे नोट घुसेड़ता हुआ वो तथाकिथत हीरो बोला..
''लेिकन सर ये तो...'' अपनी सवािमभिकत िदखाने के िलए रपये लेने से इंकार करता वो कुछ बोलना चाहता था...
''अबे रख ले चुपचाप साले.. अब जयादा मुँह मत खोल वना इतना भी नही देता .. वो तो मेरी मजबूरी है आज तक िकसी 'सलम डॉग' की
लाइफ को करीब से नही देखा.. इसिलए.. ििििि ििि ििि ििििि िि िििि िििि िििि...'' अचानक डाइवर को उसकी
औकात बताते हुए उसने िझड़क िदया..
होठ तो चुप रह गए लेिकन अब वीरेदर का िदमाग अपने आप से बोल रहा था 'ििि ििििि िि िि ििि िििि िि िििि िि
िििि िििि ििि ििि िि िििििि िििि िि???'
िििि 'िििि'