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अं तम ऊँ चाई
समु क मछली
आप म
जब आदमी-आदमी नह रह पाता
ा है मेरे पास
उसको देने लायक
जसे उसक तरफ फककर
अपने को बचा लू?ं
और सबसे बड़ा चम ार तो यह
क घर लौटकर मने कसी और को नह
अपने ही को लौटा आ पाया।
एक अदद क वता
और म छूट गया ं कह
जहन् नुम के ख़लाफ़
एक अदद जुलसू
एक अदद हड़ताल
एक अदद नारा
एक अदद वोट
और अपने को अपने ही
देश क जेब म सम् भाले
एक अवमू त नोट
सोचता आ क भो
अब कौन कसे कस- कसके नरक से नकाले
इ ज़ाम
कल फर एक ह ा ई
अजीब प र तय म।
म अ ताल गया
ले कन वह जगह अ ताल नह थी।
वहाँ म डॉ र से मला
ले कन वह आदमी डॉ र नह था।
उसने नस से कुछ कहा
ले कन वह ी नस नह थी।
फर वे ऑपरेशन- म म गए
ले कन वह जगह ऑपरेशन- म नह थी।
वहां बेहोश करनेवाला डॉ र
पहले ही से मौजूद था-मगर वह भी
दरअसल कोई और था।
डॉ र ने मेज़ पर से
ऑपरेशन का चाकू उठाया
मगर वह चाकू नह
ज़ंग लगा भयानक छुरा था।
छुरे को ब े के पेट म भ कते ए उसने कहा
अब यह ब ु ल ठीक हो जाएगा।
आदमी अ वसायी था
सो कौन सं ार देगा
उन सारे औज़ार को
जो प र से ादा उसको तराशते रहे।
चोट जनक पाश वक खर च और घाव को
अपने ऊपर झेलता
और वापस करता वन कर
ता क एक खी कठोरता क
भीतरी सु रता कसी तरह बाहर आए।
अपने बजाय
र ार से जीते
दशक क लीला द दरू ी को लांघते ए : या
एक ही कमरे म उड़ते-टू टते लथपथ
दीवार के बीच
अपने को रोककर सोचता जब
सतह
बाक़ क वता
प पर पानी गरने का अथ
पानी पर प े गरने के अथ से भ है।
बाक़ क वता
श से नह लखी जाती,
पूरे अ को ख चकर एक वराम क तरह
कह भी छोड़ दी जाती है...
दो
शाम होते-होते
वही लोग
उ घर म
वापस लौट आते ह,
शामत के मारे
थके-हारे।
म जानता ँ
भूक इस तरह नह आएगा। इस तरह
कुछ नह होगा।
वे लोग कसी और वजह से डरे ए ह।
ये सब बार-बार
उसी एक प च ँ े ए नतीजे पर प च
ँ कर
रह जाएँगे क झूठ एक कला है, और
हर आदमी कलाकार है जो यथाथ को नह
अपने यथाथ को
कोई न कोई अथ देने क को शश य पागल है!
वभ ?
स के रा े जब द ु नया घटती
और बढ़ता है,
कतनी अजीब तरह
अपने-आपसे अलग होना पड़ता है।
लखनऊ
नई शामे-अवध-
दस सेके म समझाने-समझनेवाली कसी बात को
क़रीब दो घ े क बहस के बाद समझा-समझाया,
अपनी सरपट दौड़ती अ ल को
कसी बे-अ ल क समझ के छकड़े म जोतकर
हज़रतगंज क सड़क पर दौड़ा-दौड़ाकर थकाया,
ा हश क जगह बहस से काम चलाया,
और शामे-अवध को शामते-अवध क तरह बताया।
बाज़ार-
जहां ज़ रत का दम घुटता है,
बाज़ार-
जहाँ भीड़ का एक युग चलता है,
सड़क-
जन पर जगह नह ,
भागभाग-
जसक वजह नह ,
महज एक बे-रौनक़ आना-जाना,
यह है-शहर का वसातखाना।
यही है क़ ा
हमारा और आपका लखनऊ।
ज़ रत के नाम पर
वे सब मलकर
मेरी बहस क हत् या कर डालते ह
ज़ रत के नाम पर
और पूछते ह क ज़ गी क् या है
ज़ गी को बदनाम कर ।
लाउड ीकर
एक हरा जंगल
अपने म अ
म, शाम म इस तरह
क जैसे वह ई नह -मने क ,
उसके थ रंग को
एक साह सक योजना दी।
पहले भी आया ँ
रा े (फतेहपुर सीकरी)
वे लोग कहाँ जाने क ज ी म थे
जो अपना सामान बीच रा म रखकर भूल गए ह?
नह , यह मत कहो क इ रा से
हज़ार -हज़ार फूल गए ह...
वह आक क वदा (कदा चत गत !)
जो शायद जाने क ज ी म फर आने क बात थी।
आ य, क उन बेताब ज़ गय म
स क गुजं ाइश थी...
और ऐसा स क अब ये प र भी ऊब रहे ह।
अना ा देह (फतेहपुर सीकरी)
मुंडेर के क े हलते ह,
झरोखे झाँकते ह,
दीवार सुनती ह,
मेहराब जमुहाई लेती,
गु द, ता ज़य के गु द क तरह
हवा म कांपते ह।
द ी क तरफ़
जधर घुड़सवार का ख हो
उसी ओर घसटकर जाते ए
मने उसे कई बार पहले भी देखा है।
इ ब
े तूता
माबर के जंगल म
सोचता इ बे तूता-पैने बांस क सू लय म बधे
कौन ह ये जनके शरीर से र चूता?
दन म भी इतना अं धेरा
या सु ान अ ा है
जसक अन् धी आँख से म देख रहा ँ
मशाल क फ क रोशनी म छटपटाता
तवारीख का एक पन् ना?-
इस बबर समारोह म
कौन ह ये अधमरे ब ,े औरत जनके बेदम शरीर से
हाथ पाँव एक एक कर अलग कए जा रहे ह?
का फ़र? या मनु ? कौन ह ये
मेरे इद गद जो
श रयत के खलाफ़
शराब पए जा रहे ह?
कोई नह । कुछ नह । यह सब
एक ग ा ाब है
यह सब आज का नह
आज से ब त पहले का इ तहास है
आ दम द र का
जसका म सा ी नह ...। सु ान,
मुझे इजाज़त दो,
मेरी नमाज़ का व है।
लापता का लया
बे ने म- ा ा म-बेलची म- वयतनाम म-
बांगला देश म-
स ाटा या शोर
कतना अजीब है
अपने ही सरहाने बैठकर
अपने को गहरी न द म सोते ए देखना।
यह रोशनी नह
मेरा घर जल रहा है।
मेरे ज़ ी पाँव को एक ल ा रा ा
नगल रहा है।
मेरी आँख नाव क तरह
एक अं धेरे महासागर को पार कर रही ह।
यह प र नह
मेरी चकनाचूर श का एक टु कड़ा है।
मेरे धड़ का पद ल
उसके नीचे गड़ा है।
मेरा मुंह एक ब तहखाना है। मेरे अ र
श का एक गुम खज़ाना है। बाहर
एक भारी र के नीचे दबे पड़े
कसी वैता लक अ दान म चा भय क तरह
मेरी कटी उँ ग लय के टु कड़े ।
लगातार सांय...सांय...मुझम यह
स ाटा गूज
ं ता है क शोर?
इन आहट और घबराहट के पीछे
कोई हमदद है क चोर?
लगता है मेरे कान के बीच एक पाताल है
जसम म लगातार गरता चला जा रहा ।ँ
मेरी बा तरफ़
ा मेरा बायां हाथ है?
मेरा दा हना हाथ
ा मेरे ही साथ है?
या मेरे हाथ के ब से
मेरे ही सर को
गद क तरह खेला जा रहा है?
म जो कुछ भी कर पा रहा ँ
वह व ा है या वचार?
म दो पांव पर खड़ा ं या चार?
ा म खुशबू और बदबू म फ़क कर पा रहा ?ँ
ा वह सबसे ऊँ ची नाक मेरी ही है
जसक सीध म
म सीधा चला जा रहा ?ँ
वह कभी नह सोया
वह जगह
जहाँ से मेरे मन म यह वधा आई
क अब यह खोज हम आगे नह बढ़ा पा रही
मेरे घर के ब ु ल पास ही थी।
वह घाटी नह तलहटी थी
जसे हमने खोद नकाला था-
और जसे खोद नकालने क धुन म
हम सैकड़ साल पीछे गड़ते चले जा रहे थे
इतनी दरू और इतने गहरे
क अब हमारी खोज म हम ही खोज पाना मु ल था।
वह अचानक ही मल गया।
कुछ नजी कारण से उसने
अपना नाम नह केवल न र बताया।
इ तहास देखकर जब वह वष ऊब गया
उसने अपने लए क़ नुमा एक कमरा बनाया
और एक ब त भारी प र को ओढ़कर सो गया।
वह फर कभी नह जागा, य प उसे देखकर लगता था
क वह कभी नह सोया था। उस ठ ी सीली जगह म
उसक अपलक आँख का अमानु षक दबाव, उसक आकृ त,
उसक वहारहीन भाषा-कुछ संकेत भर शेष थे
क वह प र नह आदमी था
और हज़ार साल से आदमी क तरह
ज़ ा रहने क को शश कर रहा था।
उस टीले तक
ले कन हम वहाँ व ु ल उ े रा े से प च
ँ े थे
और ब ु ल अक ात्। यानी कोई इरादा न था
क हम वह खड़े होकर, भूखे ासे ब से घरे,
उस उजाड़ जगह का मुआयना करते ए
सक र के भूत वा भ व के बारे म अनुमान लगाते।
"नह , हम अब और आगे नह जा सकते,
हम बेहद थक चुके ह, हम घर प च ँ ना चाहते ह"
उन सबने मलकर
लगभग बग़ावत कर दी थी। अगर म सक र होता
तो मुम कन है उस रात उन तेरह का खून कर देता
जो पीछे लौटनेवाल के अगुवा थे। हमने
वह सीमा क़रीब क़रीब ढं ू ढ़ ही नकाली थी
जहाँ तक सक र प च ँ ा था।