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और मृत्यु को समपिित,
दे व और दानव को समपिित,
नर और नारी को समपिित
नमस्ते,
अब जो ये िस्
ु तक आिके हाथ में है, तो मेरा अधधित्य इस से
ख़त्म हुआ | अब ये आिकी है, आिके मलए है और आिके
द्वारा है |
इस िस्
ु तक का हर "मैं" आिके मलए है | इस िुस्तक के हर
जज़्बात आिके हैं | इस िुस्तक को मलखते हुए, मैंने बहुत कुछ
समझा है... सीखा है |
अब इस रस को आि पियो |
खुश रहे ... स्वस्थ जजए... सिने दे खें... कोमशश करें ... िूरे करें ...
जय हो |
ओ पप्रयतम अब इज़हार जो हो,
वधृ ध गान
ननमिल ननगन
ुि चररत्रवान ्
शन्
ू य बोध मनु शौयिवान ||
1
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
प्राथिना
2
बंद कमरे के ख्वाब
3
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
स्त्री
तू एक कहानी है यहााँ,
तू एक फसाना है वहााँ,
तू ही बने है मातभ
ृ ूमम
इश़् भी तझ
ु िे फ़ना...
4
बंद कमरे के ख्वाब
तू ही तो मेरा कल है ,
5
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
ननजश्चंतता
ननजश्चंतता का िाठ मैने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ,
मौत सामने है खड़ी मेरे मगर... आाँखों में आाँखें डाले ननजश्चंत हूाँ |
तया ख़ौफ़ मैं उनसे कराँ... जो खुद ख़ौफ़ में छुिे हैं,
लाख मरते हैं बेवजह यूँ ही... मैं भी शायद खुद ही में अिना अंत हूाँ,
ननजश्चंतता का िाठ मैंने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ |
लाशें िड़ी हैं मेरे आगे हर तरफ... कफर भी सारे मर घि सुनसान हैं,
लाश िड़ी सॅड रही है खुद मेरी... नोच कर चील कौवे खा रहे हैं,
6
बंद कमरे के ख्वाब
वो सर झक
ु ाए लौि कर जा रहे हैं,
रोना बबलखना बंद अब इंसान का... रो रही चारों तरफ सूनी ददशायें,
सुना िड़ा आाँगन िूरे संसार का... कोई नहीं जो दे सके कोई दआ
ु एाँ,
ननजश्चंतता का िाठ मैने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ |
7
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
ददल्ली
ककतने तझ
ु िर है तीर चलाए... तझ
ु िर हाँसने वालों ने,
राग द्वेष में ददि छुिा कर... कुतुब मीनार बन जाती है,
8
बंद कमरे के ख्वाब
9
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
10
बंद कमरे के ख्वाब
हे ईश्वर
11
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
दे श था जो मेरा
आंखें खल
ु ी है सवेरा नजर है
12
बंद कमरे के ख्वाब
13
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
बह रहे हैं
14
बंद कमरे के ख्वाब
ना हैं धचडड़या और सन
ू ी है डाली,
धारा िण
ू ि कफर से सजेगी... यही बातें हम को सन
ु ानी |
15
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
जजंदगी ही जजंदगी
बस सुनहरा है उजाला
बस जजंदगी ही जजंदगी |
हर बेसहारा का तू सहारा
बस जजंदगी ही जजंदगी |
वो छिििाता है ढूाँढने को
बस जजंदगी ही जजंदगी |
16
बंद कमरे के ख्वाब
तू कांि मत
हम से यूँ ही कह जाता है
ये तो हर इंसान की है
वो भी तो अिनी दे पवयों को
17
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
वो भूँवरें अब रस िान कर के
18
बंद कमरे के ख्वाब
लेककन
लेककन...
19
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
है वही तू
अगर तू ममले मझ
ु े मौत बनकर
20
बंद कमरे के ख्वाब
चेहरा मेरा
21
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
हलाहल
िी चला चल अब हलाहल |
धर सामने एक मंजज़ल...
िी चला चल तू हलाहल |
22
बंद कमरे के ख्वाब
िी चला चल तू हलाहल |
दनु नया भर के मख
ु हाँसे हो,
सामने हो बस एक मूरत...
िी चला चल तू हलाहल |
23
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
िी चला चल अब हलाहल |
स्वामी भी खद
ु ही का मठ ले,
िी चला चल तू हलाहल |
रं ग भी बेरंग होकर...
न तझ
ु ही को रं ग सकें अब,
24
बंद कमरे के ख्वाब
स्वगि ही झक
ु जाए सारे ...
िी चला चल तू हलाहल |
अिनी आहुनत से धो दे ,
नामों की िहचान खो दे ,
िी चला चल तू हलाहल |
25
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
26
बंद कमरे के ख्वाब
कुछ भख
ू ों मरें ... कुछ चलते चले,
जामलम रोक नही िाए उन्हें ... बेददी से फााँसी लगा कर,
27
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
28
बंद कमरे के ख्वाब
मााँ...
मााँ समय के घम
ू ते... छठे चक् में तम
ु हो,
मााँ...
मााँ अंधेरे छठे िहर में ... हाथ में जो हाथ है,
29
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
मााँ...
मााँ...
30
बंद कमरे के ख्वाब
मााँ...
मााँ खन
ू की छठी बाँद
ू में ... बह रही हो बस तम्
ु ही,
मााँ...
31
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
सैननक
32
बंद कमरे के ख्वाब
33
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कर दे िरू ी ये कहानी
34
बंद कमरे के ख्वाब
सुबह
मान कर धमि जात को मशरोमखण ... इंसान सारे धमि िर चढ़ने लगे,
बात मेरी कुछ चुमभ पवश्व को... सारी लादठयााँ एक साथ उठने लगीं,
मेरी आस्था जो छुिी थी धमि में ... न जाने तयों धमि से उठने लगी,
मेरे आगे ही दफ़ना ददया जजन्हे जजंदा... वो प्रेम धमि के रखवाले थे,
35
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
िर बात ऐसी हुई कुछ दरू कहीं... सोए मन में आग एक भड़का गयी,
दस
ू रों की मदद को भी हाथ सारे सुने थे,
36
बंद कमरे के ख्वाब
जजंदगी की चाह
गि
ु चि
ु - गि
ु चि
ु अंधकार... बैठा उदास अकेला था,
खा गयी दल्
ू हे को उसके... वो जो होने वाली जानम थी,
और दल्
ु हन जजंदगी की चाह में ... सो गयी आाँखें मूंदकर |
37
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
मत्ृ यु बाला
िर तू अद्भत
ु है ओ सखी... बत्रत्य नयन िर मोह लगा,
मैं ध्यान मलए जो बैठा हूाँ... तू भौहों िर से बोझ हिा,
तेरे भीतर मैं ही मलंग हूाँ... मेरे भीतर तू योनन है,
तेरे भीतर मैं मौनी हूाँ... मेरे भीतर तू भोगी है |
38
बंद कमरे के ख्वाब
खल
ु े केश िर धूल लगा... मेरे सीने आमलंगन हो,
द्वािर से जो संभोग सधे... कलयुग में उसका मोचन हो,
मैं िार रहूं और मााँग भरं... ऐसे पवष्णु सा स्वांग रचा,
तू सती बनी एक रि धरे ... मैं कफर निराजन दं ग रहा |
39
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
बह जाना हो
इस बुपिजीवी दनु नया में कुछ मूखि ममलें ... जो मुझसे हो,
40
बंद कमरे के ख्वाब
जीवन जल्दी चल
ए जीवन तन
ू े खेल रचाया,
इस ओर चलूं या उस ओर जाउूँ ,
41
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
धीरे धीरे
बातें जो कल की थी,
मझ
ु को जीवन में करना तया,
42
बंद कमरे के ख्वाब
धीरे धीरे सरू ज आ रहा है... चंदा को सोने के मलए मना रहा है|
43
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
संघषि
फेर ना मूँह
ु मुजश्कलों से... छोड़ दे अब दहचककचाना,
44
बंद कमरे के ख्वाब
45
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
मात ृ भमू म
46
बंद कमरे के ख्वाब
िष्ु ि िज
ू ा भले हो ककतनी... िर एक सभी का पिता हो आज,
47
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
48
बंद कमरे के ख्वाब
मत्ृ यु क्ीड़ा
ये आाँखे तेरी मग
ृ नयणी और रि तेरा िीने का |
अब भय नहीं मझ
ु े ककसी का... हां मैंने तझ
ु से प्यार ककया |
49
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
50
बंद कमरे के ख्वाब
मत्ृ यु रस
अिनी ही आाँखों से तझ
ु े... मैं सिने रोज़ ददखाउाँ ,
51
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
मेरी जजंदगी
जो ककताब धूल में मलििी हुई बुकशेल्फ िर रखी है... वो मेरी जजंदगी है,
उन सभी को दआ
ु एाँ दे कर मैं अकेला चल ददया,
52
बंद कमरे के ख्वाब
न ममला कहीं ममला कहीं से कोई जवाब... जहााँ भी मैंने बात की,
जजंदगी जजसमे दआ
ु ए हर ककसी के िास थी,
जहााँ दस
ू रों से बात करने को भी ककसी के िास वक़्त न था,
53
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
अब तक मझ
ु को याद है जो... वो उसकी अंगड़ाई थी |
54
बंद कमरे के ख्वाब
मौत की दस्तक
दे खता हूाँ मैं नीचे तया... जज़दगी आाँसू बहा रही थी,
उसको मझ
ु से प्रेम था... थी लाई प्यार मेरे िास,
56
बंद कमरे के ख्वाब
और इस दनु नया की ककसी नज़र में ... मेरे मलए प्यार न था,
इस भाग दौड़ की दनु नया में ... मैं भीड़ में सबसे िीछे था,
57
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कुछ कहते मेरे रास्ते ग़लत हैं... कुछ कहते मंजज़ल ही नहीं है ,
58
बंद कमरे के ख्वाब
मााँ
उस समय जब राहों िर
और मंजज़ल िर
तब तम
ु ने थामा मेरा हाथ
59
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
60
बंद कमरे के ख्वाब
मेरी यादें
61
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
बबखरी यादें
िर इस सब के बाद भी मैं... घण
ृ ा का िात्र रह जाता हूाँ,
62
बंद कमरे के ख्वाब
63
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कल कभी जो
64
बंद कमरे के ख्वाब
65
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
बाररश की बाँद
ू ों का जाद ू
66
बंद कमरे के ख्वाब
बाररश की बाँद
ू ों का जाद.ू .. जाद ू छा रहा है |
67
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
हर तरफ हररयाली हो
68
बंद कमरे के ख्वाब
मसलविें
खुमशयााँ उठ रही है
आज लेकर करविें …
प्यार ही है वजह
69
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कई बार
अब भी वहीं हैं,
जहााँ कल तक थे...
थमी सी हैं...
70
बंद कमरे के ख्वाब
प्रेम वषाि
शल
ू के आाँचल को लजजजत कर,
71
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
लफ्जज़ ए मोहब्बत
72
बंद कमरे के ख्वाब
सत्य
73
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
74
बंद कमरे के ख्वाब
मेरी भाषा
75
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
76
बंद कमरे के ख्वाब
77
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
वक़्त का मुसाकफर
वक़्त का है जो मस
ु ाकफर... वो कभी ना ठहरे ,
78
बंद कमरे के ख्वाब
तो मंजज़लें खद
ु दठठूरकर आती हैं... आगोश में ... बरसात में ,
79
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
दहसाब
80
बंद कमरे के ख्वाब
एक िंडडत का है मंददर,
एक काजी की है मजस्जद,
81
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
हलाहल
लेकर अमत
ृ की धारा |
दे व दै त्य की हो कतारें
और होता हो बूँटवारा |
िर इनतहास में जब तू हो
चल्
ु लू में हो भरा हलाहल
82
बंद कमरे के ख्वाब
नकिवान
हे यम पवद्वान... तू है महान,
लेकर तझ
ु े धचता िर अिनी... नाचूँगा,
डाल दे तू आज मझ
ु को बस... नकि की धचता में रहों सदहत |
अब जलूँ गा शन्
ू य तक मैं... नकि ही उस आग में ,
83
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
84
बंद कमरे के ख्वाब
ईश्वर है
अब कोई भी िस्
ु तक ले लाँ ू
85
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
ढूाँढते जजंदगी
मासूममयत और जजंदगी,
86
बंद कमरे के ख्वाब
ये है दआ
ु अब ना हो कोई गम भी,
87
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
तू जो ज़मीं िर
रह गया है दख
ु इतना सा... कक इंसान अब इंसान रहा ना,
और भी माशक
ू ऐसे... जजनके मलए खद
ु ा भी दीवाना |
अब मेरी इल्तजा है तझ
ु से... रुक ज़रा एक िल तो रुक जा,
89
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
िागलिन
90
बंद कमरे के ख्वाब
जो कल बेहतर बनाना था
कफर उत्िटाांग इस जजंदगी में ... कुछ वक़्त ममला कुछ लम्हें भी,
ठहरा हुआ कुछ वक़्त रहा... कुछ ददि रहा कुछ सख़्त भी,
कुछ बहुत दरू नहीं बस सालों िहले... मेरे दे श में कुछ ककताबें
थीं,
91
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
92
बंद कमरे के ख्वाब
तू है मााँ
नददयााँ सारी सख
ु रहीं और िवित सारे बझ
ु े हुए,
93
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
अिना कोई
मैं खड़ा हूाँ दरू कहीं... हैं नहीं अिना कोई िास मेरे,
हर जग
ु नंू बझ
ु ा हुआ सा है... और नततमलयों के रं ग उड़ गये हैं,
94
बंद कमरे के ख्वाब
95
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कक जब जब बाररश हो यहााँ,
96
बंद कमरे के ख्वाब
कक जब मेरा दीदार उस खद
ु ा से हो,
97
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
98
बंद कमरे के ख्वाब
99
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
जश्न- ए- मौत
100
बंद कमरे के ख्वाब
101
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
हो कहानी अब शर
ु बस यहााँ इस रात से |
102
बंद कमरे के ख्वाब
और इस दनु नया की ककसी नज़र में ... मेरे मलए प्यार ना था,
इस भाग दौड़ की दनु नया में ... मैं भीड़ में सबसे िीछे था,
103
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
कुछ कहते मेरे रास्ते ग़लत हैं... कुछ कहते मंजज़ल ही नहीं है,
जजंदगी को मैंने खद
ु ही... अिने से था खफा ककया,
104
बंद कमरे के ख्वाब
द्वेष
और मन में शर
ु हो गया था... क्ोध का एक ददया जलने,
105
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
सारी दनु नया मेरे साथ थी... फूल खुशी का खखलता था,
106
बंद कमरे के ख्वाब
हर तरफ हररयाली हो
107
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
तो खद
ु अिने ही से कह दो,
एक मजबूरी बन जाए,
108
बंद कमरे के ख्वाब
कााँिते दे ख खद
ु अिने िााँव... राह िर रुक जाना कमि नहीं है,
रुक जाए ज़मीं जब... चलते चलते और प्यार नदी में ...
बहते बहते |
109
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
प्रथा
110
बंद कमरे के ख्वाब
111
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
काल ित्र
उसको भी कुछ राहत दे ता... ये भुला मैं जाने ककसकी सुध में ,
112
बंद कमरे के ख्वाब
113
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
तेरी लगन
कहने लगीं मुझ से ददशायें... मैं काबबल नहीं मानव रतत के,
गर साथी थकन और घण
ृ ा है ... तो तयूाँ संसार में धुनता हूाँ,
कुछ िल बाद िवन हंस कहने लगी... पप्रय मानव खुद खड़े हो
कर ददखायें,
114
बंद कमरे के ख्वाब
115
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
ढल गया मैं
मुझ िर जब उम्र जीत गयी... छोड़ दनु नया आगे बढ़ गयी,
116
बंद कमरे के ख्वाब
िीड़ा
या दख
ु ती रोती घडड़यों में आया कोई आवेश है,
कोई भावनाओं का शल
ू लेकर दाखखल हुआ है सीने में ,
117
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
शहर
इंद्र धनष
ु के रं ग सारे ... धंध
ु ले प्रतीत थे,
118
बंद कमरे के ख्वाब
और जजस शहर में मैं रहता था... वहााँ कोई नहीं मेरा था |
119
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
120
बंद कमरे के ख्वाब
121
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
122
बंद कमरे के ख्वाब
123
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
124
बंद कमरे के ख्वाब
कुछ यूँ चला मेरे दामन िर... मेरे संग हर दाग वो,
125
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
126
बंद कमरे के ख्वाब
अब हैरां मैं इस बात िर हूाँ कक... तया िूरी बात बनी होगी,
कक तया मैं बुि बना होउाँ गा... या तुम मीरा बनी होगी |
127
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
दे खना भगवान को
128
बंद कमरे के ख्वाब
129
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
वीरांगनायें
भख
ू प्यास से भरे हुए वो... ग़रीबी के मारे थे,
वो चलीं थी उस समय... जब थक चक
ु े इज़्ज़त वाले थे,
131
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
वेदना
एक अनसल
ु झी िहे ली में ... तम
ु उलझ जाओगे,
कफर दे खना इन खाली गमलयों में ... इनमें यादों का काकफला है,
132
बंद कमरे के ख्वाब
मैं चाहता हूाँ िूरी दनु नया बदलना... तया तुम मेरे दख
ु सहोगे |
133
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र
तुम खखली हुई गुलमगि कहीं... मैं खड़ा हुआ कैलाश कहीं
134