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बंद कमरे के ख्वाब

ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

Blue Rose
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First Published in May 2017


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ISBN:

Price: INR 150


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Anjali Plaka & Ruchika Khanna

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पिता और प्रेयसी को समपिित, मााँ

और मृत्यु को समपिित,

अथवि और एधास को समपिित,

भैया और भाभी को समपिित,

जीत और हार को समपिित,

दे व और दानव को समपिित,

नानी और दादी को समपिित,

क्र्तत्य और काहु को समपिित,

धरती और आकाश को समपिित,

राम और रावण को समपिित,

प्यास और भूख को समपिित,

िशु और िंछी को समपिित,

रात और ददन को समपिित,

सखा और सखी को समपिित,

अध्यािक और अध्यापिका को समपिित,


होने और ना होने को समपिित,

भूत और पिशाच को समपिित,

नर और नारी को समपिित

अमृत और पवष को समपिित

भोग और ध्यान को समपिित

मुझे और तुझे समपिित |


िाठकों से...

नमस्ते,

हम सभी मनुष्यों की एक ककस्मत होती है जो हम अिने िैदा


होने के साथ ले आते हैं | जीवन के साथ साथ ये हमारी आदत
बन जाती है और हम वैसी ही ददशा में बढ़ जाते हैं जैसी
हमारी ककस्मत है |

इसी तरह से मेरे अनुसार हर िुस्तक की भी अिनी ककस्मत


होती है और अिने कमि होते है | हर िुस्तक अिनी जीवन
यात्रा खुद ही तय करती है और जजस व्यजतत के हाथ में वो
िुस्तक होती है, उसका दशिन शास्त्र भी उसी व्यजतत के
दृजष्िकोण जैसा हो सकता है | मतलब एक ही िस्
ु तक अलग
अलग व्यजतत से अलग अलग बात कर सकती है |

अब जो ये िस्
ु तक आिके हाथ में है, तो मेरा अधधित्य इस से
ख़त्म हुआ | अब ये आिकी है, आिके मलए है और आिके
द्वारा है |

इस िस्
ु तक का हर "मैं" आिके मलए है | इस िुस्तक के हर
जज़्बात आिके हैं | इस िुस्तक को मलखते हुए, मैंने बहुत कुछ
समझा है... सीखा है |
अब इस रस को आि पियो |

खुश रहे ... स्वस्थ जजए... सिने दे खें... कोमशश करें ... िूरे करें ...

याद रखखए हम सब को मरना है , और कुछ है, जो है, जीवन


के िार भी | कोई कहे ना कहे , आि खुद महसूस करते हैं |

तैयारी रखखए... धेयि रखखए... ध्यान रखखए |

जय हो |
ओ पप्रयतम अब इज़हार जो हो,

दहन्दी में हो... दहन्दी में हो...

होठों को होठों से छू लो,

दहन्दी बोलो... दहन्दी बोलो...


बंद कमरे के ख्वाब

वधृ ध गान

|| हृदय घननष्ठ मजस्तष्कवान

वसु मनु घने वीयिवान

बढ़ते वानर: अनतशोर दान

बली िहाड़ गनतघोर मान

हे मानव: हे पवजय गान

ननमिल ननगन
ुि चररत्रवान ्

हस्थ: नैत्र: हृदय सुजान

रतत िुष्ि संकल्ि ज्ञान

हे भूमम भारत: मम: वधृ धगान

दान- मान- अमभमान- समान

धमि कमि मानव उत्थान

नर उत्तम रे िुरुष महान

जीवन गुत्थी- मरण ज्ञान

शन्
ू य बोध मनु शौयिवान ||

1
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

प्राथिना

ओ प्रभ,ु तुम हर लो िीड़ा...

नयनों के सुनेिन... हर लो,

सूखे होंठों की प्यास... हर लो,

हृदय में उठते प्रश्नो को तुम,

आशीवािद से अिने थामो...

ददखाओ इस कलयुग में लीला,

प्रभु, तुम हर लो मानव की िीड़ा |

अंधकार है अज्ञान का,

माया जाल है पवज्ञान का,

िंछी अब उड़ते नहीं है ... भूमी सुखी जल की प्यासी,

आाँखें हुई ददि की दासी... सन्नािे हैं और उदासी,

सत्य ददखाओ और साहस का िीला,

प्रभु, तुम हर लो मानव की िीड़ा |

2
बंद कमरे के ख्वाब

ऐसा आशीवािद हो तेरा... अंधकार ये दरू हो जाए,

ज्ञान हो और समपृ ि पवश्व में ... और संतुजष्ि हृदय में आए,

ना हो खूनी खेल जंग का... ना हो बेिा दरू अंग का,

स्त्री का सम्मान बढे और मााँओं का अमभमान बढे ,

मनष्ु य उठाएाँ शांनत का बीड़ा,

प्रभु, तुम हर लो हम सब की िीड़ा |

3
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

स्त्री

तू एक कहानी है यहााँ,

तू एक फसाना है वहााँ,

तू ही बने है मातभ
ृ ूमम

तू ही बने धरती जहााँ...

िर स्त्री जब तू बनी… तेरा दठकाना है कहााँ |

तू जजंदगी की मरू त है,

तू मौत की भी सूरत है,

तू ही ग़ज़ल में साज़ भी,

तू हुस्न के अंदाज़ भी,

तेरी बयान आाँखों में ,

इश़् भी तझ
ु िे फ़ना...

िर स्त्री जब तू बनी… तेरा दठकाना है कहााँ |

4
बंद कमरे के ख्वाब

तू ही गगन में चााँद है ,

तू ही धरा में है नदी,

तू ही तो मेरा कल है ,

तू ही है मेरी बीती सदी,

िर तान ऐसी अब सुना... की जब जब चले तू वहााँ,

स्त्री जब तू बने... सारे झक


ु े कफर सर यहााँ |

5
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

ननजश्चंतता

ननजश्चंतता का िाठ मैने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ,

मौत सामने है खड़ी मेरे मगर... आाँखों में आाँखें डाले ननजश्चंत हूाँ |

तया ख़ौफ़ मैं उनसे कराँ... जो खुद ख़ौफ़ में छुिे हैं,

उन बबंडरों से तया डरना... जो बबॅंडर खुद लूिे हैं,

उस तलवार का तया है... लाखों खूनों से भी वो प्यासी िड़ी है,

शैतान है प्यासा वो तब से… जब से लगाई सावन ने खूनी झड़ी है,

लाख मरते हैं बेवजह यूँ ही... मैं भी शायद खुद ही में अिना अंत हूाँ,

ननजश्चंतता का िाठ मैंने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ |

लाशें िड़ी हैं मेरे आगे हर तरफ... कफर भी सारे मर घि सुनसान हैं,

मोल खुमशयााँ ले सके सस्ते में सभी... बबक चुकी वो सारी दक


ु ान हैं,

लाश िड़ी सॅड रही है खुद मेरी... नोच कर चील कौवे खा रहे हैं,

िर जजनका कमि हैं मेरी लाश को जलना...

6
बंद कमरे के ख्वाब

वो सर झक
ु ाए लौि कर जा रहे हैं,

रोना बबलखना बंद अब इंसान का... रो रही चारों तरफ सूनी ददशायें,

सुना िड़ा आाँगन िूरे संसार का... कोई नहीं जो दे सके कोई दआ
ु एाँ,

बात जो ना कर सके अब धमि की... बन चुका मैं एक ऐसा संत हूाँ,

ननजश्चंतता का िाठ मैने िढ़ मलया... ख़ौफ़ के साए में भी ननजश्चंत हूाँ |

7
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

ददल्ली

यहााँ से वहााँ तक…. बस तू है ,

धड़कन से जज़्बात तक… बस तू है |

तुझिर ककतने है िाि लगाए... यहााँ िर बसने वालों ने,

ककतने तझ
ु िर है तीर चलाए... तझ
ु िर हाँसने वालों ने,

कफर भी बरसाती रहमत तू... गले लगती हर इंसान को,

जीना सबको तू मसखाए... गीत भी बन जाती है शाम को |

तू हसीन अप्सरा सी... हर मसतम को सह जाती है ,

लेकर भी तू ददि सभी... यमन


ु ा में बह जाती है,

राग द्वेष में ददि छुिा कर... कुतुब मीनार बन जाती है,

लाल ककले िर अमभमान सा... नतरं गा बन लहराती है |

कभी सोचता हूाँ कब तक तू... इतने अलगाव झेलेगी,

8
बंद कमरे के ख्वाब

अिनी इन बेदियों के मलए... जब कभी तू बोलेगी |

कफर जब इनतहास को... हम तुम दोहराएाँगे,

कफर से हम सारे यहााँ... ददलवाले कहलाएाँगे,

कफर से गुरु वाणी के साथ सुबह होगी,

कफर से चौक और मोहल्लों में ... एक साथ दआ


ु होगी |

है अभी अंजान सारे तेरी जवान रातों से,

और अभी अंजान हम भी तेरी सभी बातों से,

जो अभी है रं ग मुझिर... है वही तो रं ग तुझिर,

न कहीं ये रं गरे ज मेरा... आ गया है कहीं िर,

बस धड़क के इस सदी की... ये कहानी है यहीं िर |

9
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बंद कमरे के ख्वाब

साल वक़्त और महीनों में ...

ना सुनी कोई दस्तक भी,

न हवायें खखड़ककयों िर...

ना धूि की हरकत भी,

ितझड़ के मौसम ही बस...

छाए हैं सारे ख्वाब में ,

ना छुिा संगीन चेहरा...

झठे इस नकाब में ,

बस चीख ही चीख हैं...

इस बंद कमरे के ख्वाब में |

10
बंद कमरे के ख्वाब

हे ईश्वर

हे ईश्वर ऐसा जाद ू कर...कक सारा जग तू हो जाए,

मैं भी तू हो जाए…तू भी मैं हो जाए,

जब जहााँ नज़र से मैं दे खूं…बस तू नज़र मुझे आए,

जो वाणी कानों िर िड़े…वो बस तेरी ही आए|

मेरी आखों को ननमिल कर…कक जब भी मैं दििण दे खूं,

मेरे इस भद्दे चेहरे में भी…बस तू नज़र मुझे आए,

ये सारी खश्ु बू ऐसी हो…सब में तू समा जाए,

मैं जब भी साांस में साांस भरं…तू मेरी सााँसों में भर जाए |

11
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

दे श था जो मेरा

ददन ढल गया है जब हमें यकीं हुआ है ,

हम भी खड़े हैं बाररशों और धूि में ,

और मााँग ली है आग हमने सूरज के रि में ,

हवायों के रुख़ ने महसूस ये कराया,

दे श कल तक था जो मेरा... वो मेरी सााँसों में आया |

ममला है वक़्त लेकर आज हम से अंगड़ाइयां,

लहलहाती फसलों की आज िड़ी है िरछाईयां,

दोस्तों के साथ हम भी वतन के मलए खड़े हैं,

हम भी नददयों के बहाव में नाव डालकर िड़े हैं,

आग की धचंगाररयों को फूल की तरह बनाया,

दे श कल तक था जो मेरा... वो मेरी सााँसों में आया |

आंखें खल
ु ी है सवेरा नजर है

12
बंद कमरे के ख्वाब

िकरा रहे आाँधधयों से ममि रहा भूँवर है

इस ओर भीड़ में दे श ने िुकारा है

हाथ थाम लूं मैं तेरा आखख़री सहारा है

आगोश में ले कर मुझे जीना तूने मसखाया

दे श कल तक था जो मेरा... वो मेरी सााँसों में आया |

13
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बह रहे हैं

बह रहे हैं सात जन्मों से

नददयों की तरह हम,

उड़ रहे हैं बादलों से

सिने होते नहीं कम,

ककतनी हार ककतनी तड़िन,

ककतने िूिे हुए ददल के संगम,

ककतनी आाँखें दे खी हैं नम,

ककतने गहरे हैं सारे जख्म |

बह रहे हैं सात जन्मों से...

हैं समंदर दरू फैला,

तारे सारे भी दरू हैं,

गम ये कहता मैं अकेला,

खो गये सारे नूर हैं,

ककतने जंगल अब हैं खाली,

14
बंद कमरे के ख्वाब

ना हैं धचडड़या और सन
ू ी है डाली,

ककतनी मौतें ... ककतनी घुिन,

ककतने करते हैं हम तुम जतन |

रं ग भर दो इस जीवन में ... जजसकी हो एक कहानी,

धारा िण
ू ि कफर से सजेगी... यही बातें हम को सन
ु ानी |

15
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जजंदगी ही जजंदगी

बस सुनहरा है उजाला

और दरू बहुत फैला है सारा

बस जजंदगी ही जजंदगी |

िानी है खारा िर तू ककनारा

हर बेसहारा का तू सहारा

बस जजंदगी ही जजंदगी |

िागल हुआ है जो ददल तेरा अब

वो छिििाता है ढूाँढने को

बस जजंदगी ही जजंदगी |

16
बंद कमरे के ख्वाब

तू कांि मत

जब जब भी ददल धुआाँ हुआ

तब तब सूरज ये भुझा हुआ

हर बार ये कानों में आकर

हम से यूँ ही कह जाता है

तू कांि मत, तू हााँफ मत |

ददल जजसने जहााँ जहााँ लगाए

वो ज़ख्मी होकर वािस आए

अब ये कहानी तेरी नहीं

ये तो हर इंसान की है

तो दरू तयों हम से जाता है

तू कांि मत, तू हाफ़ मत |

वो प्रेम िुजारी जजन िर सारा

हुस्न अब तक कफदा रहा,

वो भी तो अिनी दे पवयों को

17
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

रुला रहे हैं, सता रहे हैं,

और वो िुजाररन जजन्होंने अिना

ददल भूँवरों में लगा मलया,

वो भूँवरें अब रस िान कर के

दरू उनसे जा रहे हैं,

अब ये कहानी तेरी नहीं... ये तो हर इंसान की है,

तू तयों उदास हो जाता है...

तू कांि मत, तू हाफ़ मत |

18
बंद कमरे के ख्वाब

लेककन

कुछ थोड़ी जजंदगी है रही,

कुछ थोड़ी नींद बाकी है,

कुछ थोड़े से सिने हैं कहीं,

भखे रहकर भी कई रातें कािी हैं,

लोग तो कई हैं आस िास,

लेककन...

19
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

है वही तू

है वही तू जजसके मलए मैं

बंद आाँखें प्यार कराँ,

है वही तू जजसके मलए मैं

जजंदगी बबािद कराँ,

छोड़ सारे स्वगि मैं तेरे मलए

दरू जाकर नकि में आग से श्ांग


र ार कराँ,

है वही तू जजसके मलए मैं

सूँतुष्ता का नतरस्कार कराँ,

अगर तू ममले मझ
ु े मौत बनकर

आमलंगन कर इज़हार कराँ

है वही तू जजसके मलए मैं

ईश्वर का बदहष्कार कराँ |

20
बंद कमरे के ख्वाब

चेहरा मेरा

चेहरा मेरा भद्दा सा... बदसूरत है और शन्


ू य भी,

कफर भी इसमें एक नूर है... मााँ को ये पवश्वास है |

कमि मेरे सारे दपू षत... घण


ृ ा है और द्वेष भी,

कफर भी इसमें भगवान है... पिता को ऐसी आस है |

हर कपवता जो मैने मलखी है... खोखली है और बेढंगी भी,

कफर भी इनमें जज़्बात है... अल्फ़ाज़ के ऐसे साज़ हैं |

इश़् मुझे कभी हुआ नहीं... ना ददल ही मेरे िास है,

कफर भी मोहब्बत है उसे... आाँखों के ऐसे राज हैं |

ना गीत ही मेरे पप्रयतम हैं... ना िैरों िर कभी नत्ृ य चढ़ा,

कफर भी मैं िागल नाच रहा... कुछ िैरों में आगाज़ है |

मंददर कभी मैं गया नहीं... ना िुष्ि िूजा ही कभी की मैंने,

कफर भी आत्मा साथ है... पवष्णु की इसको प्यास है |

21
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

हलाहल

ले धरे तू कंठ िर...

िी चला चल अब हलाहल |

लाख चाहे बहती हो नददयााँ...

हो भले मीठे ककनारे ,

लाख बाहों में ही भरने...

को तयों ना प्रेयसी ही िुकारे ,

धर सामने एक मंजज़ल...

िी चला चल तू हलाहल |

बार बार तयों ना मरे हों...

तेरे अरमान ये सारे ,

लाख तेरे सामने ही बनते...

तयों ना मरघि हो नज़ारे ,

22
बंद कमरे के ख्वाब

नाम बस अिना ही जि के...

िी चला चल तू हलाहल |

चाहे तयों ना तेरे कमों िर...

दनु नया भर के मख
ु हाँसे हो,

अनधगनत तयों ना धगराने को...

तुझ िर सब ने िैंतरे कसें हो,

सामने हो बस एक मूरत...

िी चला चल तू हलाहल |

दे ख ऋपष महान कैसा...

धैयि से डि के खड़ा है,

ईश्वर आता है ना ममलने िर...

जज़द्दी वो भी बड़ा है,

23
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

एक श्लोक की रि बना ले...

िी चला चल अब हलाहल |

एक चररत्र ऐसा बना की...

नाम तेरा ईश्वर भी जि ले,

तेरे इस बेड़े में आकर...

स्वामी भी खद
ु ही का मठ ले,

छोड़ की तू हद बना दे ...

िी चला चल तू हलाहल |

रं ग भी बेरंग होकर...

न तझ
ु ही को रं ग सकें अब,

ममल सके ननवािण सबको...

द्वार ऐसे ही खुले सब,

24
बंद कमरे के ख्वाब

स्वगि ही झक
ु जाए सारे ...

िी चला चल तू हलाहल |

तू अकेला िाि सबके...

अिनी आहुनत से धो दे ,

बस बने इंसान सारे ...

नामों की िहचान खो दे ,

ले धरे तू कंठ िर...

िी चला चल तू हलाहल |

25
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बैठो मत इंतज़ार में

चल ददए सब बहारों में ,

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ारों में |

िवितों िर जाने की तैयारी थी...

सभी के ददलों में दहकी एक धचंगारी थी,

जहााँ वो जा रहे थे वहााँ हर तरफ बबािदी थी,

मसर िर कफ़न बााँध कर... थे मौत के श्ांग


र ार में ,

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ार में |

प्रश्न था मााँ का... उसकी इज़्ज़त और सम्मान का,

भारतीयों की भावनाओं... उनके िागलिन और अमभमान का,

कोसों दरू तक कोहराम था,

दीवानेिन की हदें िार कर गये थे... और वही उनका भगवान था,

िाि पिछले सौ जन्मों के धो रहे थे... स्वाधीनता के संग्राम में ,

26
बंद कमरे के ख्वाब

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ार में |

कुछ भख
ू ों मरें ... कुछ चलते चले,

कुछ खा कर कसम दे श की... तेज़ आग में कूद िड़े,

बन रहे थे ममसाल... मर कर या मार कर,

जामलम रोक नही िाए उन्हें ... बेददी से फााँसी लगा कर,

बहते जा रहे थे वो क्ांनत के बहाव में ,

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ार में |

छाया था ददलों ददमाग़ िर बस नशा आज़ादी का,

उन िर वक़्त नहीं था रुक कर शोक करना बबािदी का,

तेज़ नारे इं़लाब के हर ददशा में गाँज


ू रहे थे,

हर धमि के नौजवानो के सर... िूजा की माला में गाँध


ू रहे थे,

हर बाग बगीचा, फसलें डूबी तीन उनकी खुश्बू और फुहार में ,

27
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ार में |

चढ़े थे फााँसी िर हंसकर भी... भगत मसंह, सख


ु दे व, राज गरु
ु ,

आखख़री बूाँद भी रतत की दी बचाने को मााँ की आबर,

फौलादी हाथों से उन्होंने थामा था दे श को,

जहााँ िजश्चम की बातें थी... बदला उस िररवेश को,

भारत मााँ ने शान से... व्यंग ककया उन लोगों िर,

जजन्होने उठा मलया था... ़ज़ि नमक का दहन्दस्


ु तानी चोलो िर,

रं ग गये थे सब ददलों तक... बस बसंती रं ग में ,

लड़ रहे थे सब लड़ाई अिने अिने ढं ग में ,

कुछ जुनून था उनके ददलों में मौत से इज़हार में ...

िर कुछ बैठे रहे इंतज़ार में |

28
बंद कमरे के ख्वाब

मााँ...

एक शब्द जो कह गया... जजंदगी की दास्तान,

एक शब्द जजसमे छुिा है... ये ज़मीं ये आसमान,

एक शब्द जजसने ककया... बेबस मझ


ु े जीने को,

एक शब्द जजसने ककया... एक इन ज़मीनो को,

मााँ समय के घम
ू ते... छठे चक् में तम
ु हो,

मााँ तुम्हारी गोद में ही... मेरी आाँखें मूंद हो |

मााँ...

एक शब्द जजसने मुझे... बोलना भी मसखाया,

एक शब्द जजसने हाथों... की िकड़ को भी ददखाया,

एक शब्द जजसकी गमािहि... अब तक मेरे साथ है ,

एक शब्द जजसके मलए... जजंदगी में आग है,

मााँ अंधेरे छठे िहर में ... हाथ में जो हाथ है,

मााँ तुम्हारे आाँचल से ही... भीगती बरसात है |

29
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मााँ...

एक शब्द जो न कहे ... ककतनी खफा हूाँ मैं,

एक शब्द जो कहे ... सााँस हैं दबाब में ,

एक शब्द जो होंठो में ... ददि को भी है दबाया,

एक शब्द जो आाँखों से... कई बार है आया,

मााँ आाँख का छठा आाँसू... तेरे मलए धगरता रहे गा,

मााँ सुकून का हर झरना... तेरे कारण ही बहे गा |

मााँ...

एक शब्द जजसकी कमी... सूरज ने की कम नहीं,

एक शब्द जजसकी नमी... चााँद में भी है नहीं,

एक शब्द जजसका धुआ.ाँ .. धुाँधला है ददखता नहीं,

एक शब्द जजसके मलए... कोई उिहार बबकता नहीं,

मााँ छठी ये जजंदगी... बस तेरे ही नाम है,

सातवीं जजंदगी का तया... न कोई अब काम है |४|

30
बंद कमरे के ख्वाब

मााँ...

एक शब्द जजसमें छुिा... जजंदगी का अंत है,

एक शब्द जजसने ककया... नाग को भी संत है,

एक शब्द जजसको कभी... मैं बता सकता नहीं,

एक शब्द जजसको कहूाँ तो... है नहीं कोई शब्द भी,

मााँ खन
ू की छठी बाँद
ू में ... बह रही हो बस तम्
ु ही,

मााँ सााँस में... धड़कन में ... हो प्रेम की तुम नमी |

मााँ...

एक शब्द जजसने ईश्वर को... है बड़ा िावन बनाया,

एक शब्द जजसने हमें ... कई बार ईश्वर को ददखाया,

एक शब्द जजसको कभी... कोई भी ममिा सकता नहीं,

एक शब्द जजसको कभी... कोई छुिा सकता नहीं,

मााँ छठी इस व्याख्या में भी... न हुआ कोई अंत है,

मााँ आाँख में आाँसू हैं... िर तू मुझमें अनंत है |

31
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

सैननक

एक आदशि है हम सब में ...

वो आदशि एक सैननक कहलाता है ,

एक िावन भूमम िर वो...

शीषि िर लहराता है,

एक साथ होता है हृदय में कुछ...

जो खून में ममल जाता है,

जीना तया मारना तया... सब ईश्वर से ममल जाता है |

वो खड़े दरू हैं हमारे मलए वहााँ कहीं,

ये जज़्बा ही एक इंसान को... और मजबूत बनाता हैं,

न दर होता है कहीं... न होश इस महकफ़ल में आता है ,

जब कारवााँ उनका चलता है... एक दास्तान बन जाता हैं,

न रहता है कुछ िाने को... न खोने को रह जाता है ,

32
बंद कमरे के ख्वाब

जीना तया मारना तया... सब ईश्वर से ममल जाता है |

हर मन में एक पवश्वास है... ये पवश्वास ही आस कहलाता है,

हर एक कोई हो दरू कहीं... हर बार लौि कर आता है,

हर बार जो िूिे हौसला तो... हर बार वो लेकर आता है ,

हर बुझती लौ को हर बार... वो अिने कारण जलाता है ,

वो लेकर आदशि चलता है... वो हौसला कहलाता है,

वो जीता है दे श िर... वो दे श िर ममि जाता है,

कफर जीना तया मारना तया... सब ईश्वर से ममल जाता है |

33
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कर दे िरू ी ये कहानी

ककतना मलखूं मैं तेरे मलए... ककतनी रातें बबािद कराँ,

तू तयूाँ ब्रहमांड में है भिकती... तयूाँ रहों को शमिसार कराँ |

सब ़ब्रें अब खाली है... मैं भी ककतना बेताब हूाँ,

तू वक़्त तयूाँ है चाहती... जब मैं बबल्कुल तैयार हूाँ,

अब डाल मौत का आाँचल... कर दे िरू ी कहानी,

तू बस जा मेरे रोम रोम में ... बन जा मेरी दीवानी |

दे दे मुझको वो जीवन... जो इस जीवन के बाद कहीं,

बस मत्ृ यु के आाँगन में ... करता है इंतज़ार कहीं |

ये मानव जीवन ऐसा... दे रहा असहनीय िीड़ा,

तू मौत बन कर बरस... उठा प्यासी रहों का बीड़ा,

तेरा रि अप्सरा सा प्यारा... ओ मौत तू ककतनी सुहानी,

अब आकर मेरी बाहों में ... कर दे िूरी ये कहानी |

34
बंद कमरे के ख्वाब

सुबह

सांझ ने इज़हार ककया सुबह से... सुबह शमािकर मसमि गयी,

दे ख कर रि सौंदयि अप्सराओं का... साधुओं की ननगाह भी भिक


गयी|

सोच कर िानी चमकते रे त को... शीघ्रता से िंछी उस ओर बढ़ने लगे,

मान कर धमि जात को मशरोमखण ... इंसान सारे धमि िर चढ़ने लगे,

मेरे मन की वेणी की सुरीली धुन...

सारे गगन में मीठी सी वाणी बन गयी,

सांझ ने इज़हार ककया सुबह से... सुबह शमािकर मसमि गयी |

बात मेरी कुछ चुमभ पवश्व को... सारी लादठयााँ एक साथ उठने लगीं,

मेरी आस्था जो छुिी थी धमि में ... न जाने तयों धमि से उठने लगी,

बन रहे थे वो ममसाल... जजनके दामन काले थे,

मेरे आगे ही दफ़ना ददया जजन्हे जजंदा... वो प्रेम धमि के रखवाले थे,

35
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

दे ख कर याँू दमन इंसानी सिनों का... ददल की कली भी मरु झा गयी,

िर बात ऐसी हुई कुछ दरू कहीं... सोए मन में आग एक भड़का गयी,

सामना जब प्रेम से होने लगा... ददल की मुरझाई कली भी खखल गयी,

सांझ ने इज़हार ककया सुबह से... सुबह शमािकर मसमि गयी |

जो लोग सच्चाई की राहों िर थे... वो िल िल मरते जा रहे थे,

और ये ग़रीब भखे नंगे... मुजश्कलों में हंसते जा रहे थे,

प्रश्न उठाते थे जो नारी की... इज़्ज़त और सम्मान का,

नोच रहे सारा दामन थे... वो उूँ चे भगवान का,

दस
ू रों की मदद को भी हाथ सारे सुने थे,

लूिता दे ख अिना समाज िंडडत आाँखें मुन्दे थे,

इस बार हमें ईश्वर से... इच्छा शजतत की तागत ममल गयी,

सांझ ने इज़हार ककया सब


ु ह से... तान सीना कफर सब
ु ह खखल गयी |

36
बंद कमरे के ख्वाब

जजंदगी की चाह

एक मरघि था वीरान िड़ा.... जब मैंने उसमें दस्तक दी,

सब मुदे उसमें आ जायें... ये कोमशश मैंने भरसक की,

िर अजनन की लििों के कारण... कोई न आने वाला था,

मौत खड़ी तन्हाई में थी... और सना काल का भाला था,

गि
ु चि
ु - गि
ु चि
ु अंधकार... बैठा उदास अकेला था,

नर- पिशाच की बात तया... हर भूत प्रेत अकेला था,

सन्नािें की चादर ओढ़े ... रात काली आ गयी,

दरू ककस के इंतज़ार में ... आाँखें मेरी धुाँधला गयी,

सज़ी हुई घूाँघि में थी वो... िर जजंदगी ये जामलम थी,

खा गयी दल्
ू हे को उसके... वो जो होने वाली जानम थी,

सब भूत प्रेत जो बराती थे... जा रहे थे लौि कर,

और दल्
ु हन जजंदगी की चाह में ... सो गयी आाँखें मूंदकर |

37
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मत्ृ यु बाला

स्तन तेरे है रस भरे ... योनन से अमत


ृ झरता है,
केशों में मरघि से सन्नािे ... इंदद्रयों का बबगल
ु सरकता है |

तेरे अधरों से अधर पिरोए... धचता के उिर गाता हूाँ,


आग मलए कोरी कगली िर... नि राजन हो जाता हूाँ,
भर भर के मााँस चखू अिना... कुछ तू भी मेरा भोग लगा,
रतत मेरे जो भीतर है... उस से अिनी तू प्यास बझ
ु ा |

नर मुंडे... नर पिशाच सभी... मेरी धूमल िर लोि रहे ,


सभी पिशचनी मझ
ु िर मोदहत... मेरे यौवन को लूि रहे ,
कुछ मलंग को लेकर जाती हैं... कुछ मस्तक में घस
ु जात है,
कुछ भर भर के मुझे िीती हैं... कुछ मस्त होकर नाचीं हैं |

िर तू अद्भत
ु है ओ सखी... बत्रत्य नयन िर मोह लगा,
मैं ध्यान मलए जो बैठा हूाँ... तू भौहों िर से बोझ हिा,
तेरे भीतर मैं ही मलंग हूाँ... मेरे भीतर तू योनन है,
तेरे भीतर मैं मौनी हूाँ... मेरे भीतर तू भोगी है |

38
बंद कमरे के ख्वाब

खल
ु े केश िर धूल लगा... मेरे सीने आमलंगन हो,
द्वािर से जो संभोग सधे... कलयुग में उसका मोचन हो,
मैं िार रहूं और मााँग भरं... ऐसे पवष्णु सा स्वांग रचा,
तू सती बनी एक रि धरे ... मैं कफर निराजन दं ग रहा |

39
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बह जाना हो

इस बुपिजीवी दनु नया में कुछ मूखि ममलें ... जो मुझसे हो,

कुछ बेतुकी सी बातें हो, कुछ ककस्से हो कुछ तुतके हों |

लूिे हुए कुछ सिने हो... ना आना हो ना जाना हो,

कुछ रातें हो कुछ अंधेरा… कुछ दे र तक सो जाना हो |

भख लगे तो अिने मााँस को... धीरे धीरे खाना हो,

कुछ ध्यान लगे कुछ सााँसे हो... कुछ ईश्वर का िा जाना हो |

ना िुस्तक हो ना मंददर हो... ना मजस्जद ककसी को जाना हो,

ना ज्ञान हो ना पवज्ञान बहे ... बस शाम ढले तक गाना हो |

भाषा ककसी के िास ना हो... बस आाँखों का िकराना हो,

तया जलाना तया दफ़नाना... बस िानी में बह जाना हो |

40
बंद कमरे के ख्वाब

जीवन जल्दी चल

एक तरफ है मौत खड़ी,

और एक तरफ सारा जीवन,

एक तरफ है पप्रयतम मेरा,

और एक तरफ जैसे हमदम,

ए जीवन तन
ू े खेल रचाया,

िर मौत तो बाल सखी बन बैठी,

इस ओर चलूं या उस ओर जाउूँ ,

अब मन में हलचल है ऐसी,

िर मौत तो बाररश बन कर,

हर बार भीगा कर जाती है,

ए जीवन जल्दी जल्दी चल,

मुझे मौत बुलाने आती है |

41
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

धीरे धीरे

धीरे धीरे सुरज आ रहा है,

चंदा को सोने के मलए मना रहा है,

सुबह को चोर दरवाज़े से लाकर,

हल्के से मेरे िास आकर,

अंधेरे शैतान को डरा धमका कर,

मेरे सुबह के सिञ को बुला कर,

धीरे धीरे मेरी अाँखखयों की दनु नया िर छा रहा है...

धीरे धीरे सूरज आ रहा है|

बातें जो कल की थी,

उन्हें मेरे ददल से ममिा रहा है ,

मझ
ु को जीवन में करना तया,

सब कुछ सीखा रहा है ,

कुछ तनहाईयााँ कब से मेरे िीछे िड़ी थी,

42
बंद कमरे के ख्वाब

सबकी नतरछी नज़रें हमेशा मझ


ु िर िड़ी थीं,

मैने सबसे भीख मााँगी िर दआ


ु ओं में कमी थी,

वो बड़े लोगों के छोिे ददल...

मुझे दनु नया के अंजाने लोगों से ममला रहा है …

धीरे धीरे सूरज आ रह है |

मुझे मेरा प्यार ममलेगा इस बात में खुशी थी,

िर राहों में कुछ कांिें थे और जज़ंदगी रुकी थी,

सबने तेरा साथ दे ने से मुझे इनकार ककया,

िर मैं भी िूरा िागल था, भरी महकफ़ल में इज़हार ककया,

और तुमने जो मुझसे प्यार ककया...

तो तेरे मेरे प्यार को तारों से सज़ा रहा है |

धीरे धीरे सरू ज आ रहा है... चंदा को सोने के मलए मना रहा है|

43
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

संघषि

िवित और झरने ऊूँचे खड़े हैं... कहते हम से बनना ननडर है,

तेज़ िानी बहता ही जाता... कह रहा िानी डगर है,

चमकते जुगनूं राहें ददखाते... कहते मंजज़ल की लगन है,

जब साथ तेरे हर ददशा है... तो माथे िर तयों ये थकन है |

छोड़ धचंता उठ खड़ा हो... कहती तुझसे ये िवन है,

चल बढा चल राह िर... दनु नया सारी एक भ्रम है,

दे ख तेज़ तिजस्वयों का... कैसे धुनन में रमें हैं,

दे ख कैसा धैयि उनमें ... कैसे दशिन को खड़े हैं |

ना मशकन माथे िर हो अब... सीख ले तू मुस्कुराना,

फेर ना मूँह
ु मुजश्कलों से... छोड़ दे अब दहचककचाना,

छोड़ हल्की हल्की बाररश... िकरा मंजज़लों से जैसे आाँधधयााँ,

छोड़ दे ये फुसफुसाहि... चींख ऐसे, गाँज


ू े ये वाददयााँ |

44
बंद कमरे के ख्वाब

खोल कर बाहें अिनी... कर जा जो हृदय ये कहता,

सोच कर अंजाम की... तयों डरा सहमा तू रहता,

काम कोई ऐसा ही करना... जजस से ईश्वर को खुशी हो,

नाम उूँ चा मााँ का करना... िर उसके आगे नज़रें झुकी हों |

45
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मात ृ भमू म

हर एक की यही है प्यास... और सबके िास ये एक आस,

दे श धरा हो दे श हो अंबर... भूमम ही हो अिनी तलाश,

हर जवानी की हो कहानी... हर कहानी हो कुछ खास,

हर एक जहााँ भी जैसा भी हो... उसकी खोज का हो नाश,

सबका जो भी ईश्वर हो... जैसा भी हो उस िर हो नाज़,

मुट्ठी जजसमे भी ममट्टी हो... उस िर सबको हो पवश्वास,

हे मात ृ भूमम तू अमर रहे .... सबके िास हो आवाज़ |

रं ग खून का लहू में ममलकर... रं ग दे कुछ ऐसे आगाज़,

आाँख बंद जब इश़् जुनाँू मैं... सरफरोशी हो सरताज़,

फैलते हो जहााँ उजाले... सन्नािे भी हो आबाद,

खोद कब्र सब बात उखाडें... ऐसे हो तेरे सब राज़,

हर फसाने हो सुनाने... ऐसा ही हो कुछ इनतहास,

46
बंद कमरे के ख्वाब

गीत ही सारे िास बल


ु ा ले... गीतों के हो ऐसे साज़,

हे मात्र भूमम तू अमर रहे ... तुझसे सबका हो ररश्ता खास |

तेरी ही बाररश में हो जवानी... इश़् ही हो सारे अल्फ़ाज़,

फूल रं ग का बदन में ममलकर... बन जाए अिने मलबास,

िष्ु ि िज
ू ा भले हो ककतनी... िर एक सभी का पिता हो आज,

भले ही लाखों ब्रहमांड बने... िर धरती बने बस एक हर बार,

रातें भले ही लंबी हों... िर हर सुबह में हो सन्यास,

महक गुलों की बने ज़मीन से... महके धरती से हर सााँस,

हे मात्र भूमम तू अमर रहे ... हर ज़ुबान िर तेरी बात |

मैं रं गू तेरे ही रं ग से... तेरे रं ग हो सबके िास,

हर धड़कन के गीत हो उजले... गीत ना हो वो कभी उदास,

यह धुआाँ जब हम से उतरे ... सूरज ननकले लेकर बरसात,

47
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

अंकुर फूिे हर गााँव में ... हर शहर में हो व्यािार,

अिना नतरं गा शीषि िे फैले... गाँज


ू दहमालय के भी िार,

ना बुझे ये लौ वतन की... ना गंगा हो कभी खिास,

हे मात्र भूमम तू अमर रहे ... िैदा हों हर ददन अल्फ़ाज़ |

48
बंद कमरे के ख्वाब

मत्ृ यु क्ीड़ा

ओ मौत तू इतनी सुंदर तयों है... तयों हर अदा मस्तानी है,

तयों मुझसे तुझको प्यार है... तयों मेरे मलए दीवानी है |

मुझे ररझाने को तू कैसे... काजल बबंददया से साज़ रही है,

मुझसे ममलन के ख्वाब से... ददल में शहनाई बज रही है ,

ये मस्तानी कानतल अदायें... ये जुल्फ तू मुझ िर बबखरा दे ,

इस िहली प्यार की रात में ... तू मझ


ु को कोई तोहफा दे |

बबलख बबलख कर तयों रोती है... मैं तझ


ु को हर िल थामाँूगा,

इस सात जन्म के बंधन को मैं... ददल से अिने मानाँग


ू ा,

वो मत्ृ यु मशखर तो अिना है... न कोई हम से छछनें गा,

ये आाँखे तेरी मग
ृ नयणी और रि तेरा िीने का |

तेरे आमलंगन का इंतज़ार मैंने है ककतने साल ककया,

अब भय नहीं मझ
ु े ककसी का... हां मैंने तझ
ु से प्यार ककया |
49
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

अब आ तू मेरी बाहों में ... तयों िल िल मझ


ु को तड़िाती,

ये ददल तो लेकर जाती है... ये रह भी मेरी ले जाती |

50
बंद कमरे के ख्वाब

मत्ृ यु रस

तू िरी है ककतनी सुंदर... मुझको तयूाँ तड़िाती है,

तू मौत बन के आजा... तू प्यार अगर चाहती है |

तुझको अिने होठों िर... मैं जाम की तरह रखूाँगा,

तेरे रि सौंदयि िर... मैं कपवतायें मलखूंगा,

अिनी ही आाँखों से तझ
ु े... मैं सिने रोज़ ददखाउाँ ,

तू मत्ृ यु वस्त्र धारण कर... कफर प्यार तुझे सीखाउाँ |

मेरी बाहों में आ तू... आाँखों में काजल डाल कर,

तू मुझ ही मुझ में खो जा... मत्ृ यु आाँचल डालकर |

है प्यार की रात सुहानी... सब भूत प्रेत गाते हैं,

ये प्रेम कहानी अिनी... सुन ने यहााँ आते हैं,

िर आज की रात दीवानी... ये रात प्यार की आई,

तू मसमिी मेरी बाहों में ... लेकर अिनी अंगड़ाई |

51
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मेरी जजंदगी

जो ककताब धूल में मलििी हुई बुकशेल्फ िर रखी है... वो मेरी जजंदगी है,

जो चार कोरे िन्ने बबखरे िड़े हैं... वही मेरी जजंदगी है |

वो जजंदगी जजसमें हाँस कर कााँिों िर भी मैं चला था,

वही जजंदगी जजसको मैंने मसफ़ि गैरों के मलए चुना था,

जजंदगी जजसमें मैंने समझा दस


ू रों की मदद करना ही,

खुदा की बंदगी है,

िर आाँसुओं में जो धूल गयी... वही मेरी जजंदगी है |

जजंदगी जजसमें मैंने सभी बातों को छोड़ा था,

जहााँ लोग खुद ही में व्यस्त थे... उन रास्तों को मोड़ा था,

उन सभी को माफ़ ककया जजन्होंने ददल को तोड़ ददया,

उन सभी को दआ
ु एाँ दे कर मैं अकेला चल ददया,

जजन्होंने वादा करके रास्तों में इन हाथों को छोड़ ददया,

जजंदगी जजसमें मााँ ने मसखाया सीधािन ही सादगी है,

िर ितझड़ में डूबा जो िे ड़ है... वही मेरी जजंदगी है |

52
बंद कमरे के ख्वाब

जजंदगी जजसमें कहीं ना मेरी कोई बात थी,

न ममला कहीं ममला कहीं से कोई जवाब... जहााँ भी मैंने बात की,

वो जजंदगी जो अकेली अमावस्या में है जली,

वो जजंदगी जो अकेली आाँधधयों में है िली,

जजंदगी जजसमें सभी के िास दीिक की आस है,

िर अंधेरो में जो है अभी... वही मेरी जजंदगी है|

जजंदगी जजसमे दआ
ु ए हर ककसी के िास थी,

िर मेरी नज़रों से धगरी दनु नया िूरी तरह बबािद थी,

जहााँ दस
ू रों से बात करने को भी ककसी के िास वक़्त न था,

जहााँ मानवता के िुतलों में लाल रतत न था,

वो जज़दगी जहााँ बड़ों ने मसखाया की यहााँ अकेले जीना है,

िर इंतज़ार में है जो अभी... वही मेरी जज़दगी है |

53
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मैं और मेरी जजंदगी

मैं और मेरी जजंदगी... एक मोड़ िर आकर ठहर गये,

मैं भी वो भी शरमाये से... और बातों में सौ िहर गये |

सोच समझ कर आगे अब... जाने को मुझसे कह रही है ,

मुझे ददशा ददखाने के मलए... िवन के साथ बह रही है ,

रास्तों में लड़खड़ाया मैं... हाथ थाम कर मस्


ु करा रही थी,

आाँसू िोंछ कर मेरे... सहारे से उठा रही थी |

हज़ारों प्रश्नों में नघरा तो... आगे मुझको ले गयी,

वक़्त वक़्त िर मुझको सारे ... प्रश्नों का हल दे गयी,

गुम अंधेरो में ददए वो... जाने कहााँ से लाई थी,

अब तक मझ
ु को याद है जो... वो उसकी अंगड़ाई थी |

तया हुस्न उसका तया िता... न मैंने उसको दे खा था,

िर मेरे िास ही रहती थी वो... जब जब भी मैं रोता था,

भर कर मेरे सारे गम... झोले में अिने चली गयी,

उसके इंतज़ार में मेरी... िूरी एक सदी गयी |

54
बंद कमरे के ख्वाब

मौत की दस्तक

मौत ने जब दस्तक दी... मुरझाई हुई सी जज़ंदगी लगी,

तेज़ धचता की लििों में ... स्वेत बदली उड़ गयी |

भोर हुई तो सन्नािा था... राख धचता की ठं डी थी,

जमघि का मेला भी तो अब... नततर बबतर सा हो गया,

आाँसू में आाँखें डूबी थीं... यादों में ददल खो गया |

सोच रहा था ककतनी सुहानी... िहले की जज़ंदगी थी,

िर सच्चाई कुछ और लगी... जब मौत सामने खड़ी थी |

हाथ मेरा थाम कर... जब िार मझ


ु े ले जा रही थी,

दे खता हूाँ मैं नीचे तया... जज़दगी आाँसू बहा रही थी,

दे खा जब मैंने आाँखो में ... तो मौत थोड़ी शरमाई,

कफर नैनों से नैना ममला कर... मझ


ु िर थोड़ा इठलाई |

दे खा मैंने सामने एक सागर पवस्तत


ृ और पवशाल,
55
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जहााँ खड़ी वो बाहें खोल... करती मेरा इंतज़ार |

उसको मझ
ु से प्रेम था... थी लाई प्यार मेरे िास,

रो रही थी मेरे आगे... थी सचमुच ददल से उदास,

तन्हा अकेली वो गुमसुम थी... कैसे छोड़ता उसका साथ,

कुछ प्यार तो मुझे भी था... तभी तो थामा उसका हाथ |

िर जजंदगी कुछ नाराज़ लगी... तयूाँ हुई मौत और मेरी सगाई,

कफर समझाया मैंने उसको... और हंस कर उसने दी पवदाई |

56
बंद कमरे के ख्वाब

मौत को व्यस्त िाया

कल जब मैं अकेला था... हर तरफ अंधेरा थोड़ा घनेरा था,

थोड़ा रुक कर रास्ते में ... मझ


ु से कोई बात करने को तैयार न था,

और इस दनु नया की ककसी नज़र में ... मेरे मलए प्यार न था,

इस भाग दौड़ की दनु नया में ... मैं भीड़ में सबसे िीछे था,

उस िल मैं एकदम ननहत्था था... और मसर शमि से नीचे था |

िर मेरी मंजज़ल की चाह ने... हर िल मझ


ु को बेचैन ककया,

िर जब जब मैंने कोमशश की... तूफ़ा ने मुझको घेर मलया |

तूफान और आाँधधयों को अब... चीर के आगे बढ़ना था,

दलदलों से नघरे हुए... घने जंगलों में चलना था,

थे रास्ते कााँिों भरे ... और साथ एक साया था,

जो बंधन मुझको रोकते... मैं तोड़ सब वो आया था |

57
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कुछ कहते मेरे रास्ते ग़लत हैं... कुछ कहते मंजज़ल ही नहीं है ,

िर जब प्यार न हो जजंदगी से... तो मौत तया सचमुच बड़ी है?

और सच झठ के षडयंत्रों से... जब मैं सबसे उिर था आया,

तो मैंने लोगों और जजंदगी को... खुद से था रठा िाया,

जजंदगी को मैंने खुद ही... अिने से था खफा ककया,

जब दे खा ऊिर मौत को... तो मौत को भी व्यस्त िाया |

58
बंद कमरे के ख्वाब

मााँ

उस समय जब राहों िर

मैं अकेला चल ददया था

और मंजज़ल िर

मैं अकेला ही खड़ा था

तब तम
ु ने थामा मेरा हाथ

हर मुजश्कल में ददया मेरा साथ

जजंदगी से तया ममला

था हमेशा यही धगला

िर मााँ तुम मेरे साथ थी

इसमलए मैं कफर चल िड़ा |

59
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

|| शब्द मुाँह से ननकलते है ऐसे

ददल में कोई बसा हो जैसे ||

60
बंद कमरे के ख्वाब

मेरी यादें

कभी जब ऐसा लगने लगे...

तुम अकेले हो,

कभी जब आसमान िर काले...

बादल घनेरे हो,

िूिती हुई सी सिनो की लड़ी लगे,

मंजज़ल िर िहुाँच कर जजंदगी अकेली लगे,

तब मुझे सोचना... मेरे नाम से तुम्हारी जजंदगी सजेगी,

और मेरी यादों में तम्


ु हे ... कभी जजंदगी अकेली न लगेगी |

61
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बबखरी यादें

भागती दौड़ती गमलयों में ... सुनसान िड़ा मन मेरा है,

हर जगमगाती रोशनी है... िर मेरे ददल में अंधेरा है |

ये शोर गुल मेरे कानों की भूल भल


ु ैया में खो जाता है,

और ददल का राग खामोशी बनकर तन बदन में लहराता है |

खोजता हूाँ तुमको... खामोशी में रहता हूाँ,

जब खामोशी मुझसे िूछती है... मैं उस से अिना गम कहता


हूाँ|

और मेरे गम के कारण ही... ये बादल ररम खझम रोते हैं,

कफर झठी खुशी को िाने को... करते हम समझोते हैं |

िर इस सब के बाद भी मैं... घण
ृ ा का िात्र रह जाता हूाँ,

62
बंद कमरे के ख्वाब

करता तो सब अच्छे काम हूाँ... िर इन्सा मात्र रह जाता हूाँ |

िर इसके बाद भी मैं... िवितों िर जाता हूाँ,

हर कोई कहता स्वाथी है ... िर मैं उनको समझाता हूाँ |

मुझको वो खुश रखें गे... ये वाददयों के वादे हैं,

जजनके कारण मैं मानव हूाँ... वो सारी बबखरी यादें हैं |

63
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कल कभी जो

कल कभी जो बाररश में ... तुम्हें याद मेरी आ जाए,

कहीं मेरी वो िुरानी हाँसी तुम्हारी... आाँखों से एक लड़ी आाँसू की


बहाए,

जब कभी गरजते बादल तुमको... मेरी घुिन महसूस कराए,

जजसके कारण बेचैन था मैं... वही एहसास तम्


ु हें भी हो जाए,

तो मुमककन है ये प्यार है... वो प्यार जजसे था मैं छुिाए,

कल कभी जो बाररश में ... तुम्हें याद मेरी आ जाए |

होश उड़ जायें तुम्हारे ... रात ददन की न खबर हो,

कुछ बेचैनी का हो आलम... और ददल में एक भंवर हो,

भीड़ और बाज़ारों में ... हर तरफ वीराना लगे,

जब तुम्हें हर फूल प्यारा... बस अिना दीवाना लगे,

सोच कर मेरी आाँखों को... ददल की धड़कन बढ़ जाए,

कल कभी जो बाररश में ... तुम्हें याद मेरी आ जाए |

64
बंद कमरे के ख्वाब

बंद आखें करके ददल से... मसफ़ि मझ


ु को याद करना,

ददि हद से गुजर जाए... तो आकर मुझसे बात करना,

व्यथि की ये धचंता है... जजसको हम तुम हैं दबाए,

प्यार की ताकत तो... छुि सकी ना ककसी के छुिाए,

कल कभी जो बाररश में ... तम्


ु हें याद मेरी आ जाए |

65
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बाररश की बाँद
ू ों का जाद ू

बाररश की बूाँदों का जाद.ू .. जाद ू छा रहा है,

घनेरे बादलों में ना जाने... तयों मज़ा आ रहा है,

ममट्टी की ये सोंधी खुश्बू... घुल रही है सााँसों में ,

होश उड़ गये हैं सारे ... बस नशा आाँखों में ,

रं गों का है मौसम... हर फूल गा रहा है ,

बाररश की बूाँदों का जाद.ू .. जाद ू छा रहा है |

झिकी लेकर आाँखें मेरी... सिने दे खती है,

समेिकर यादें वो भी... हाथ सेकती है ,

आकर आगे से मेरे... सरू ज ने इंद्र धनष


ु बबखराया,

खुद खबर मुझे ना अिनी... ददल भी है इतराया,

हर तरफ रं ग हैं बबखरे ... एक आाँचल उड़ा जा रहा है,

बाररश की बूाँदों का जाद.ू .. जाद ू छा रहा है |

66
बंद कमरे के ख्वाब

हर जगह यादों के झरने... वादी में धगरते हैं,

हाथ छूिे थे जजनसे... आज सब ममलतें हैं,

गीत ग़ज़ल बन सके... ये फ़ुसित ही नहीं हैं,

िवितों िर जो झरने हैं... ददल मेरा वही हैं,

लम्हा लम्हा लेकर खुमशयााँ… आज आ रहा है,

बाररश की बाँद
ू ों का जाद.ू .. जाद ू छा रहा है |

67
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जजतनी तुम प्यारी हो

जब उगता सूरज वादी िर छाए

तो ये िूरा ददन तुम्हारा हो जाए

िंख अरमान लगा लें

और हवायें गीत बना ले

रं ग भर जाए जीवन में

हर तरफ हररयाली हो

प्यारा इतना ददन हो जाए

जजतनी की तुम खुद प्यारी हो |

68
बंद कमरे के ख्वाब

मसलविें

सुबह की गहराती धूि ने

ममिा दी हैं मसलविें …

खुमशयााँ उठ रही है

आज लेकर करविें …

प्यार ही है वजह

जो हवाओं में हैं हरकतें …

और तेरी सााँसों से ही रहें

मेरी सााँसें महकते |

69
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कई बार

कई बार ख़्याल ये ददल में आया है

मैंने जीत कर भी तया िाया है

तेरे आाँस.ू .. तेरे गम...

अब भी वहीं हैं,

जहााँ कल तक थे...

आज भी मुझे तड़िाती है वो बातें ,

जो तेरे ददल में ... रुकी सी हैं...

थमी सी हैं...

कई बार ख़्याल ये ददल में आया है,

मैंने जीत कर भी तया िाया है |

70
बंद कमरे के ख्वाब

प्रेम वषाि

मरुस्थल है यह जीवन... और तुम हो एक बादल,

मेरी प्यास बुझा दी तुमने... जब बरसाया मीठा जल,

बंजर था सुनसान िड़ा मन... ठहर गया था यह जीवन,

मुझको जीने का िाठ िढ़ाया... सुना के यह जीवन सरगम |

दृढ़ पवश्वास कफर से जगाया... मझ


ु से ममला कर अिने कदम,

हलचल ही मंडराती हृदय िर... पवचमलत था मैं प्रेम िात्र को,

बुझते नेत्र में घना अंधेरा... था व्याकुल मन स्नेह मात्र को,

तुमने छूकर अधरों को मेरे... हृदय में धड़कन का वास कराया,

हैं नहीं यह व्यथि सााँसें... तुमने यह पवश्वास जगाया |

मन की िीड़ा को पवचमलत कर...

शल
ू के आाँचल को लजजजत कर,

नेत्र िाश का ताना बुनकर साज़ गीत िर सरगम बनाया,

तुमने तो जीवन मसखाया... धड़कन का एहसास कराया |

71
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

लफ्जज़ ए मोहब्बत

लफ्जज़ ए मोहब्बत तेरे मायने

दरू गश्त िर आज फसाने

नूर- चश्मा हीर वादी

रांझा रफाकत मौत नािी

़ाबबल यकीं फ़लसफाह सदी

जन्नत जहााँ ग़ैरते वदद |

72
बंद कमरे के ख्वाब

सत्य

जो अकेली चीज़ है... वही सत्य है,

घूम कर जो वक़्त की घड़ी ठहर गयी है ... वही सत्य है |

जजंदगी के मोड़ िर जो िााँव की दठठक हैं,

और बादलों की आड़ में जो चााँद छुिा है ... वही सत्य है |

तेरे हृदय में मेरा चररत्र सत्य है,

मेरे हृदय में तेरा चररत्र सत्य है,

इस जीत में जो ददि है वही सत्य है,

इस हार में जो खुशी है... वही सत्य है |

इस जजंदगी में मौत की घड़ी सत्य है,

और मौत में एहसास- ए- सक


ु ु सत्य है,

जो है हृदय में हौंसले वही सत्य है,

हौसलों में तैरता जुनूं सत्य है |

73
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

मनहूमसयत के हाल में बागबत सत्य है,

संिन्नता के माहौल में इनायत सत्य है |

सत्य है नहीं सत्य... यही सत्य है,

झठ में जो है नछिा... वही सत्य है |

74
बंद कमरे के ख्वाब

मेरी भाषा

मेरी भाषा हसीन है... जो लफ़्जों को समाए है,

जो भावनाओं की लहरों में ... हर घड़ी लहराए है |

जो दशािती प्रेम को है... जजसमें िीड़ा का भाव है,

जजसको मााँ कहती है तो... जजंदगी झलकती है,

जजसने थामा इस दे श को... िर कफर भी तड़िती है ,

जो मौत को छूकर भी... मुस्कुराती रहती है |

जो िवितों िर है बस्ती... और नददयों में बहती है,

जब बोखझल होता हूाँ मैं... तो कपवता बन आती है,

जब हो हृदय उन्मुतत तो... नत्ृ य सा झलकती है |

मेरी भाषा हसीन है... जो लफ़्जों को समाए है,

मेरी भाषा है दहन्दी... जो दे वताओं को भाए है |

75
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

वक़्त का हूाँ मैं मुसाकफर

वक़्त का हूाँ मैं मुसाकफर... तो ददल तयूाँ ठहरे ,

मंजजले मेरी हज़ारों... तयों हैं तेरे िहरे ,

तू छोड़ कर जो गया... कई सालों िहले,

छूिते हाथों को भी दे खूं... तो ये ददल दहले,

वक़्त का हूाँ मैं मस


ु ाकफर... तो ददल तयाँू ठहरे ,

मंजजले मेरी हज़ारों... तयों हैं तेरे िहरे |

खामोमशयों का धुआाँ है... सदि रातों में ,

मैं रोता हूाँ अतसर अकेला... बरसातों में ,

मेरे चेहरे के घाव ही... मेरी कहानी हैं,

रुकती सााँसें ही मेरी... आखख़री ननशानी हैं,

वक़्त का हूाँ मैं मुसाकफर... तो ददल तयूाँ ठहरे ,

मंजजले मेरी हज़ारों... तयों हैं तेरे िहरे |

76
बंद कमरे के ख्वाब

जजंदगी ने मारा हैं मझ


ु को... तन्हाई की आग में ,

जब खोया था सिनो में ... नहीं कोई था साथ में ,

जब खोने और रोने को ना हो... कुछ भी हाथ में ,

तब जीना तया अकेले ....है काली रात में ,

वक़्त का हूाँ मैं मुसाकफर... तो ददल तयूाँ ठहरे ,

मंजजले मेरी हज़ारों... तयों हैं तेरे िहरे |

77
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

वक़्त का मुसाकफर

वक़्त का है जो मुसाकफर... वो कभी ना ठहरे ,

मंजजले जजसकी हज़ारों... ना ककसी के िहरे ,

छोड़ ददया जजसने हैं घर... कई सालों िहले,

छूिते हाथों को भी दे खे... ना वो दहले,

वक़्त का है जो मस
ु ाकफर... वो कभी ना ठहरे ,

मंजजले जजसकी हज़ारों... ना ककसी के िहरे |

नाकामयाबी जजसके मसरहाने... हर रात बैठी रहे ,

और हाँसी के मुखोिों को भी... वो खुशी से िहने,

जजसके चेहरे के घाव ही... उसकी कहानी हों,

अधूरे प्यार की जजसके... आाँखें ननशानी हो,

वक़्त का है जो मुसाकफर... वो कभी ना ठहरे ,

मंजजले जजसकी हज़ारों... ना ककसी के िहरे |

78
बंद कमरे के ख्वाब

मौत भी तया मारे उसको... जजस से मौत ही हार हो,

जजंदगी तब ही नशा है... जब जजंदगी दश्ु वार हो,

जब खोने और रोने को... ना हो कुछ भी हाथ में ,

तो मंजज़लें खद
ु दठठूरकर आती हैं... आगोश में ... बरसात में ,

वक़्त का है जो मुसाकफर... वो कभी ना ठहरे ,

मंजजले जजसकी हज़ारों... ना ककसी के िहरे |

79
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

दहसाब

सीधी जाती जो हैं राहे ,

और सूनी हैं जो िनाहें ,

उन्हें ममलें हैं कई खाव्ब |

वक़्त जजसने है थामा,

जजसने मौका इक ददया है,

उन्हें ममले गहरे नकाब |

मााँ के आाँसू तो मैं िोंछों,

बाहों में ले लू पप्रय को,

िर मुझे ममली हैं मौतें हज़ार |

ईश्वर ने है जजसको थामा,

जजसने सजृ ष्ि है बनाई,

उनको ममला सुना दहसाब |

80
बंद कमरे के ख्वाब

एक कपव है नगमें बनाता,

एक गायक ग़ज़लें सुनाता,

उनको ममला ना कोई दहज़ाब |

एक िंडडत का है मंददर,

एक काजी की है मजस्जद,

कफर भी है दनु नया हराम |

81
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

हलाहल

मोदहनी बनकर पवष्णु आए

लेकर अमत
ृ की धारा |

दे व दै त्य की हो कतारें

और होता हो बूँटवारा |

िर इनतहास में जब तू हो

तो मशव जैसा बन तू आना |

चल्
ु लू में हो भरा हलाहल

और तू वो पवष िीते जाना |

82
बंद कमरे के ख्वाब

नकिवान

यम खड़ा बनकर सुजान... गा रहा है मत्ृ युगान,

कह रहा है अब जलूँ गा सदा... मैं आग में हो नकि वान |

हे यम पवद्वान... तू है महान,

लेकर तझ
ु े धचता िर अिनी... नाचूँगा,

तू जानता है मेरी रहों में ... है भरा ईश्वर कहीं,

स्वगि के जो सुख हैं ऊिर... मेरे मलए वो हैं नहीं |

मेरा सुख तो एक अल्लाह... एक ईश्वर में ननदहत,

डाल दे तू आज मझ
ु को बस... नकि की धचता में रहों सदहत |

एक छोिी ठोकर िर भी... जीवन में ईश्वर ईश्वर गाता था,

अब जलूँ गा शन्
ू य तक मैं... नकि ही उस आग में ,

83
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

चींख चींख कर हर घड़ी में ... ईश्वर ईश्वर गाऊूँगा,

और इस मदहोशी में हर िल रहूाँगा...

ना कभी मैं मार अब िाऊूँगा |

84
बंद कमरे के ख्वाब

ईश्वर है

अब जहााँ भी जाता मैं हूाँ

जजसको दे खूं ईश्वर है |

अब जहााँ भी होता मैं हूाँ

कुछ भी छू लाँ ू ईश्वर है |

जहााँ दरू तक नज़र है जाती

आाँखें खोलूं बस ईश्वर है |

अब कोई भी िस्
ु तक ले लाँ ू

हर िुस्तक में ईश्वर है |

85
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

ढूाँढते जजंदगी

नन्हीां उं गमलयााँ और मीठी हाँसी...

मासूममयत और जजंदगी,

आाँखें मूंदी और सिनो की नदी,

जजंदगी... जजंदगी... जजंदगी...

ढूाँढते कफर रहें जजंदगी |

नन्हीां दे ह है िर हौंसले फलक के,

छोिे कदम हैं िर राहें दहला दे ,

ये दे श है इंतज़ार में और कल भी,

कुछ कर गुज़रें गे ये छोिे से िल भी,

जजंदगी... जजंदगी... जजंदगी...

ढूाँढते कफर रहें जजंदगी |

कुछ नन्हें हाथ यहााँ िर हैं मााँग रहे जीवन,

कुछ नन्हें हाथ वहााँ िर हैं बााँि रहे गुलशन,

इनको िढ़ाए... इनको बढ़ायें...

86
बंद कमरे के ख्वाब

इनसे ही हमरा कल है,

ये दे श का भपवष्य हैं... इनसे ही सज़ा हर मन है,

ये है दआ
ु अब ना हो कोई गम भी,

जजंदगी... जजंदगी... जजंदगी...

ढूाँढते कफर रहें जजंदगी |

87
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

तू जो ज़मीं िर

जो है धगरा अब यहााँ वो... कफर कभी उठा ना,

रह गया है दख
ु इतना सा... कक इंसान अब इंसान रहा ना,

रं ग लेकर जो चला है... वो धचत्रकार बनकर सयाना,

और भी माशक
ू ऐसे... जजनके मलए खद
ु ा भी दीवाना |

फ़कि मसफ़ि इतना रहा है ... कक जजतना भी संताि है अंदर,

आ रहा है अब ननकलकर... और इंसान अब इंसाननयत से


बंजर,

खोखले से जो हैं चररत्र... खौलते है लहू वो जहााँ में ,

हर नसें बन कर के लोहा... जम गयीं है अिने बदन में |

ले खुल तेरा है बस्ता... जजसमें भारी इनायतें हैं सारी,

और कुछ इन्सा भी चलतें हैं... जजनके हौसलों से तकदीर भी


हारी,

हैरां उनसे ईश्वर भी होता... जजनको िाने को स्वगि रोता |


88
बंद कमरे के ख्वाब

अब मेरी इल्तजा है तझ
ु से... रुक ज़रा एक िल तो रुक जा,

दे ख आईने में चेहरा... और अिने ही आगे तू झुक जा,

हवा के जैसे बन जाए सााँसें... आग की लििों में आाँखें |

सनसनी तेरे कदम हों... रहमती तेरा बदन हो,

कमि तेरे... तेरी हो िज


ू ा,

और अिनी ही आहुनत में हो तू डूबा,

आमलंगन कर तू नकि का... कक उस को भी हो फक् खुद िर,

चूम ले तू मौत को ....कक आए वो कई बार िलि कर,

जैसे ब्रहमांड में हैं प्राण जस्थत... वैसे तू बन जा ज़मीं िर |

89
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

िागलिन

कााँच के मंच िर सभी... नाच रहें हैं बेख़बर,

मैं भी कुछ बेचैन हूाँ... और इन सब को भी नहीं खबर |

एक रे त का महल कहीं दरू ... हवा में उड़ता जा रहा है,

जैसे जैसे आाँधी आती है... वो कुछ कम हो जाता है |

मैं िागल सा हो जाता हूाँ... ये सब तयों तड़िता है,

तयों घुिन भरा ये मौसम... तयों रह में भर जाता है |

ना िंछी हैं ना िवित कहीं... बस बेचैन आदमी ऐसा है,

इस कहानी का अंत नहीं... ना कहीं कोई संत बैठा है |

90
बंद कमरे के ख्वाब

जो कल बेहतर बनाना था

ना मैंने कल को दे खा था... ना तुमने ही जाना कल को,

जो सब था सारी उम्र... वो आज था... बस आज था,

बस भागते भागते सोचा ककया ददन रात यही,

आज तो अब जैसा है... कल कराँगा बेहतर कहीं,

ना कभी कल हुआ... ना मैं बेहतर हो िाया |

कफर उत्िटाांग इस जजंदगी में ... कुछ वक़्त ममला कुछ लम्हें भी,

ठहरा हुआ कुछ वक़्त रहा... कुछ ददि रहा कुछ सख़्त भी,

जो रह गया अब है बाकी... वो उमर का आखख़री िड़ाव है,

सुखी हुई है एक नदी... और जंगल का भी नहीं दहसाब है |

कुछ बहुत दरू नहीं बस सालों िहले... मेरे दे श में कुछ ककताबें
थीं,

91
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जजनमें जजंदगी थी कहीं... जजनमें ब्रहमांड की बातें थी,

वो खो गयी कहााँ... तया िता... तया िता,

उनमें ही था वो कल छुिा... जो हमें बेहतर बनाना था,

वो खो गया... कहीं खो गया |

92
बंद कमरे के ख्वाब

तू है मााँ

जो ज़मीन िर चााँद है... वो चााँद मेरा तू है मााँ,

बबन तेरे इस चााँद के... मेरी जन्नत है कहााँ,

हर घोंसलें के िंछी िर... धूि बढ़ रही है यहााँ,

हर एक प्यासा तड़ि रहा है ... ना जाने एक बूाँद िानी की कहााँ,

नददयााँ सारी सख
ु रहीं और िवित सारे बझ
ु े हुए,

सागर का िानी भी तो अब... खारा ककसी को ना लगे,

हर बाररश की ठं डक... वो ठं डक सब की तू है मााँ,

तू बने ब्रहमाण्ड ऊिर... तू ही बने तारे वहााँ,

ढूंढता है मंजज़ल रास्ता... तू नहीं होती जहााँ,

हो उठे जब हाथ ऊिर... हर दआ


ु में तू है मााँ,

तू नहीं है जब यहााँ तो... जजंदगी जाने कहााँ |

93
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

अिना कोई

मैं खड़ा हूाँ दरू कहीं... हैं नहीं अिना कोई िास मेरे,

है खोए हुए सारे मौसम... है नहीं कोई अिना एहसास मेरे,

जहााँ तक भी मैंने दे खा है... अिनी कोई कहानी नहीं,

जजतनी भी बातें की हैं मैंने...

उनसे अभी तक नहीं कोई आस मझ


ु े |

सारे ही अफ़साने सुनने सुनाने के मलए,

हर एक रात जैसे नींदे उड़ाने के मलए |

हर जग
ु नंू बझ
ु ा हुआ सा है... और नततमलयों के रं ग उड़ गये हैं,

कोई दरू है कहीं िर, कौन है...

जैसे मेरे जलते ख्वाब अचानक सो गये हैं,

अब धीरे धीरे मेरी दह


ु ाई... कम सी होती जाती है,

ना मशकायत कुदरत से है...

94
बंद कमरे के ख्वाब

ना अब बेवजह कोई उम्मीद मझ


ु े सताती है |

यही वो िल है जजसके मलए... कई रात भूखा मैं रहा,

यही है वो घड़ी जजसके मलए... लाखों बार ईश्वर से ममला,

बाररश यहााँ होती है अब... मेरी ही रजामजन्दयो से,

हर हवा जो चल रही है ... इज़ाज़त है मेरी उसे |

है ठहर गया जो िल... मैंने उसे कल बना ददया,

जो आज अब मैं जी रहा हूाँ... उसमें खुदा ममला ददया,

और जो उठा है आज लम्हा... वो नहीं अब सोएगा,

जो भी इस राह िर चलेगा... ना कभी वो खोएगा |

जब बनेगा बीज़ एक मरने के बाद िेड़ सा,

हर एक को ये जीवन अब बस लगेगा खेल सा |

95
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

इंतज़ार कुछ ऐसा हो

तेरा इंतज़ार कुछ ऐसा हो मेरी जजंदगी में ...

कक जब जब बाररश हो यहााँ,

मैं अकेला उसमें भीगा कराँ |

कुछ ऐसा हो दीदार तेरे चेहरे का...

कक जब जब नज़रे ममले ककसी से,

मैं हर चेहरे में तुझको ढूाँढा कराँ |

हर शाम ऐसी तन्हाई लेकर आए...

कक जब जब मैं अकेला रहूाँ,

हर शाम मैं तन्हाइयों से तेरी बातें कराँ |

ये गीत जो महकफ़ल में अब ममल रहे है...

जब जब मेरे कानों में िड़े,

96
बंद कमरे के ख्वाब

हर गीत अब मैं तेरे मलए गाया कराँ |

गर साल और िहरो में मसमिी हो दनु नया...

हो जाऊूँ मैं रुसवा सभी इंसानो से,

हर िहर में मैं सााँसे तेरे मलए भरा कराँ |

काश ममल जाए सभी खुमशयााँ और गम एक दस


ू रे से...

कक जब भी मैं रुकने की बस बातें सुनू,

हर कदम बस तेरी तरफ लाया कराँ |

ऐसे ममल जाए खद


ु ा मझ
ु े इन रास्तों में ...

कक जब मेरा दीदार उस खद
ु ा से हो,

आगे तुझे मैं खुदा से हर बार कराँ |

हर लफ्जज़ और अल्फ़ाज़ मेरे ऐसे बने...

कक सोच की भी सोच में मैं जब रहूं,

97
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

हर सोच की उस रोशनी में तझ


ु े िाया कराँ |

रुक जाए जब चलती हुई ये दनु नया...

और ़यामत के तसव्वुर में बेतहाशा,

मौत में भी तस्वीर तेरी लाया कराँ |

वक़्त जब उठे यहााँ करविें लेकर...

जब िैगाम उस एक का आया करे ,

हर काग़ज़ के िचे िर तुझे बयान कराँ |

कुछ ऐसा ही बन जाए अब सारा मंज़र...

कक जब जब यहााँ ख़बरे उड़े अलपवदा की,

मैं जन्नते तेरे ममलन की लाया कराँ |

98
बंद कमरे के ख्वाब

तेरा इंतज़ार कुछ ऐसा हो मेरी जजंदगी में ...

कक जजतना भी मैं तुझिर मलखने की कोमशश कराँ,

ना कभी मैं ख़त्म इस कहानी को िाया कराँ |

99
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जश्न- ए- मौत

आाँख का तेरे ये काजल और जो उड़ता है आाँचल,

मखमली सा एहसास तेरी इन सााँसों का...

बन गया है दरू जाकर कोई बादल |

तू वहााँ िर बन रही है ... सज रही है ... थम रही है ,

और मैं नीचे खड़ा हूँ आदमी सा...

कह रहा हूाँ... रो रहा हूाँ... तक रहा हूाँ |

उड़ रही है दरू तू ऊूँचाईयों िर...

ममल रही है तू ज़रा िरछाईयों िर,

रं ग तेरा धूि है और तन तेरा है नदी...

तू यहााँ है तू वहााँ है... तेरे आगे िीछे है सारी सदी |

100
बंद कमरे के ख्वाब

ओ मौत तू कैसे बनी, ना ये मझ


ु े कोई वास्ता,

ना मेरा ररश्ता ककसी से... ना मेरा कोई रास्ता,

बस खड़ा हूाँ मैं यहााँ और हाथ तेरा हाथ में ,

ढूाँढ मैं अब रहा हूाँ साथ तेरा साथ में |

काश मेरा तन बने अब मौत के मलबास में ,

धगर िड़े एक मौसम आज मेरे इस अल्फ़ाज़ में ,

भागने और दौड़ने से... बस मना करदें कदम,

हो वहााँ ईश्वर जहााँ िर मौत है बनती सनम |

तेरी इन बाहों में हो कुछ साज़ ऐसा,

कक मौत के संगीत िर हो नाच ऐसा |

जब दे खने वाले ना कुछ दे खा करें ,

और सोचने वाले ना कुछ सोचा करें |

101
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

बातें जब तेरी उठे , वो हो िरे हर बात से,

हो कहानी अब शर
ु बस यहााँ इस रात से |

102
बंद कमरे के ख्वाब

मौत को व्यस्त िाया

कल जब मैं अकेला था... हर तरफ अंधेरा थोड़ा घनेरा था,

थोड़ा रुक कर रास्ते में ...

मुझसे कोई बात करने को तैयार ना था,

और इस दनु नया की ककसी नज़र में ... मेरे मलए प्यार ना था,

इस भाग दौड़ की दनु नया में ... मैं भीड़ में सबसे िीछे था,

उस िल मैं एकदम ननहत्था था... और मसर शमि से नीचे था |

िर मंजज़ल की चाह ने... हर िल मुझको बेचैन ककया,

िर जब जब मैंने कोमशश की... तूफान ने मुझको घेर मलया |

तूफान और आाँधधयों को अब... चीर के आगे बढ़ना था,

दलदलों से नघरे हुए... घने जांगलों में चलना था,

थे रास्ते कााँिों भरे ... और साथ एक साया था,

जो बंधन मुझको रोकते... मैं तोड़ सब वो आया था |

103
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कुछ कहते मेरे रास्ते ग़लत हैं... कुछ कहते मंजज़ल ही नहीं है,

िर जब प्यार ना हो जजंदगी से... तो मौत तया सचमुच बड़ी है

और सच झठ के षडयंत्रों से... जब मैं सब से ऊिर था आया,

तो मैंने लोगों और जजंदगी को... खुद से था रठा िाया,

जजंदगी को मैंने खद
ु ही... अिने से था खफा ककया,

जब दे खा ऊिर मौत को... तो मौत को भी व्यस्त िाया

104
बंद कमरे के ख्वाब

द्वेष

यूँ ही ढूाँढने चल िड़ा मैं... जीवन में ककतनी है बुराई,

जजन जजन को सुना था... उन सब ने ये बातें बताईं,

बातें वो सारी अच्छी थी... िर मुझको ना वो भाती थीं,

उनकी बातें जब जब सुनता... मुझमें वो द्वेष कराती थीं |

भिका कहााँ कहााँ ना मैं.. अच्छे लोगों से ममलने,

और मन में शर
ु हो गया था... क्ोध का एक ददया जलने,

खामोश ननगाहों में सबकी मैं... एक आक्ोश िाता था,

इस कारण मैं तन्हा था... हर सिने िूि जाता था |

तो ऐसे ही दनु नया में ... मैंने बस बैर ही बैर था िाया,

कफर एक बार हवा ने मुझको... अिने िास बुलाकर समझाया |

उसकी बातों से जाना... कक द्वेष मुझ ही िर छाया,

जो ददखता है मुझे सब... वो है मेरी अिनी माया,

105
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

जब समझ के इस बात को... लगा मैं खद


ु को बदलने,

तो दे खा हर तरफ प्यार था... और लगा जहााँ सूँवरने |

खामोश ननगाहों में सबकी मैं... एक स्नेह भाव ददखता था,

सारी दनु नया मेरे साथ थी... फूल खुशी का खखलता था,

दे ख के सारी यादें ये... समझ में आया मझ


ु को,

गर प्यार चादहए दनु नया से... तो िहले बदलो खुदको |

और आज मुझे सारा जग ककतना सुंदर लगता है,

जो मेरे ददल में प्यार है वो साथ साथ चलता है |

106
बंद कमरे के ख्वाब

जब उगता सूरज वादी िर छाए

तो ये िूरा ददन तुम्हारा हो जाए

िंख अरमान लगा ले

और हवायें गीत बना ले

रं ग भर जायें जीवन में

हर तरफ हररयाली हो

प्यारा इतना ददन हो जाए

जजतनी की तुम खुद प्यारी हो |

107
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

रुक जाए ज़मीं

रुक जाए ज़मीं जब चलते चलते,

और प्यार नदी में बहते बहते,

जब ठहराव जजंदगी में आ जाए,

और संभावनाए मंजज़ल की ना हो,

तो खद
ु अिने ही से कह दो,

हाँसना सीखो गम सहते सहते,

रुक जाए ज़मीं जब चलते चलते |

हर एक रास्ता छलावा लगे,

खमु शयााँ वक़्त का भल


ु ावा लगे,

बेवजह लतीफों िर हाँसना जब,

एक मजबूरी बन जाए,

जब जश्न िूरे यौवन िर हो... िर रात अधूरी बन जाए,

रोने ना दे ना आाँखों को अिनी... ये कहानी कहते कहते,

108
बंद कमरे के ख्वाब

रुक जाए ज़मीं जब... चलते चलते |

चल िड़ो भूलकर पिछली बातें ,

भूलो बीती वो काली रातें ,

मंददर की दहलीज िर ही... माथा झुकना धमि नहीं है,

कााँिते दे ख खद
ु अिने िााँव... राह िर रुक जाना कमि नहीं है,

कुछ फक् तो उस जीत में है... जो बने ददि सहते सहते,

रुक जाए ज़मीं जब... चलते चलते और प्यार नदी में ...

बहते बहते |

109
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

प्रथा

जुगनूं प्रेम का दीिक लेकर... व्योम िर मंडराता है ,

बाररश के रं गो के कारण... इंद्र धनुष सज जाता है ,

कानों में घुलती हवायें... महसूस करतीं हैं संगीत,

सोच कर ररश्ता प्यार का... कपव बनातें हैं सब गीत,

नततमलयों के रं ग भी तो... दशाितें हैं जीवन को,

धारा िूणि सौंदयि छिा दे ... जब बादलों में साजज़श हो,

हर रं ग है ये जीवन... और जीवन की एक कहानी है,

सजृ ष्ि ये िूरी दल्


ु हन हो... ये प्रथा अब हमें ननभानी है |

अंधकार में रख कर दीिक... आज खुशी पवश्व में लाओ,

आाँख से िानी हिा कर... बस हाँसती यादों को सहलाओ,

जीतने जतन से एक िररंदा… काटता है जीवन को,

तुम भी मसंचो मेहनत से जीवन... एक जुनूं दो खून को,

110
बंद कमरे के ख्वाब

जजंदगी गर हंसाए ना... तो एक बहाना हाँसने दो,

स्वप्न घोंसले के अंदर तुम... मीत िंछी को बसने दो,

हर रं ग है ये जीवन... और जीवन की एक कहानी है,

सजृ ष्ि ये िूरी दल्


ु हन हो... ये प्रथा अब हमें ननभानी है |

111
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

काल ित्र

काल कपव ने दे कर मत्ृ यु... एक कपवता मुझ िर मलख दी,

हाथ बााँध कर वक़्त ने मेरे... आाँख ममचौली मुझसे कर दी,

िूि गये थे सिने सारे ... रास्ता एक ददि का था,

एक घुिन सााँसों में थी... जब मौसम सदि सा था,

िांछछयों के बोल भी... मेरे कानों में चभ


ु रहे थे,

ददल के दरवाज़ों िर रखे… सारे ददए बुझ रहे थे,

िवितों के सारे नज़ारे ... रं गहीन नज़र आते थे,

एक रात में ककतने िहर... रोते हुए गुज़र जाते थे,

आज वक़्त की साजज़श दे खो... सिने ददखा कर जा रहा है ,

छीलकर हाथ कााँच से मेरे... वो शीश महल बना रहा है,

आखख़री आवाज़ दे कर... मुझको यहााँ बुलाया जजसने,

कोई और नहीं वो ददल था मेरा...

जो जलता रहा मुझ ही मुझ में ,

उसको भी कुछ राहत दे ता... ये भुला मैं जाने ककसकी सुध में ,

112
बंद कमरे के ख्वाब

और आज जो वक़्त सोने का आया... जब धचता बन रही है


मेरी,

तब होश आया अमावस्या में ... जब िूखणिमा थी घोर अंधेरी,

हवायें उड़ा ले गयीं सब िन्ने... अिनी तेज़ आाँधधयों में ,

एक व्यथा छुिी है मेरी... जजंदगी से आजाददयों में |

113
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

तेरी लगन

रही का हाथ थाम कर... ले जा रही उसको िवन,

ये दे ख मैं बबगड़ा बहुत... होने लगी मुझको जलन,

दे ख मेरी ये दशा... मुझ िर कई मुख हाँसने लगे,

और िचे पवश्व और संसार में ... मेरी हालत के ही बूँटने लगे |

रह गया ििोलता मैं... खाली झोले वक़्त के,

कहने लगीं मुझ से ददशायें... मैं काबबल नहीं मानव रतत के,

गर साथी थकन और घण
ृ ा है ... तो तयूाँ संसार में धुनता हूाँ,

गर हौंसला नहीं है लक्ष्य का... तो तयों राम को सुनता हूाँ |

कुछ िल बाद िवन हंस कहने लगी... पप्रय मानव खुद खड़े हो

कर ददखायें,

एक गरज के साथ मैं कह िड़ा...

मंजज़ल है मेरी ढूंढूंगा मैं खद


ु ददशायें |

फि िड़े थे बादल... कांि गया ब्रहमांड ये,

प्रसन्नता से कह िड़ा ईश्वर... है मेरा इंसान ये |

114
बंद कमरे के ख्वाब

कफर चीर कर हर कदठनाई... िाई मैंने मंजज़ल कई,

कुछ गवि के साथ मुस्कुराकर... कहती हवायें तथ्य यही,

गर चाह हृदय में जीने की है... तो इन्साूँ कुछ कर जाएगा,

गर साधु धुनन में रमा रहे ... तो ईश्वर को िा जाएगा |

ये मजु श्कल तेरी अिनी हैं... न कोई मदद को आएगा,

और ददल में तेरे एक लगन है... तो मंजज़ल को तू िाएगा |

115
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

ढल गया मैं

जब तक मैं चला... ददन चले... रात चली,

जब तक मुझमें जोश था... सारी दनु नया मेरे साथ चली,

जब तक घुिन मैंने सही... हाँसी खुशी भी साथ चली,

जब तक िहाड़ों से ममला.... अंगार िर बरसात चली,

िर तया हुआ जो मैं ढला... ददन की खश


ु ी भी ढल गयी,

मुझ िर जब उम्र जीत गयी... छोड़ दनु नया आगे बढ़ गयी,

जब हुई मेरी पवदाई ददन की हसीन शाम से,

रात अिनी कला कहर माथे िर मेरे गड़ गयी,

हाथ जजनका थाम कर मैं... शाम में ही मस्त था,

हुस्न की वो मजस्तयााँ... मेरी आाँखों में जल गयी,

कफर सुने मैंने वो गीत... ना कभी जो सुनता था,

रात ईश्वर से ममला... कभी ना उनसे ममलता था,

हार की इस तड़ि में ... बस घुिन ही मेरे साथ थी,

और नाकामयाबी की बहारें ... तेज़ उनकी बरसात थी |

116
बंद कमरे के ख्वाब

िीड़ा

ये भूत प्रेत और आत्माएाँ तयों रो रही हैं आज वहााँ,

तया इस मर घि में कोई नहीं या बन गया श्मशान वहााँ,

या कफर ककसी इंसान का हुआ यहााँ प्रवेश है ,

या दख
ु ती रोती घडड़यों में आया कोई आवेश है,

कोई भावनाओं का शल
ू लेकर दाखखल हुआ है सीने में ,

या मलििा हुआ कोई आया है अिने खून िसीने में |

117
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

शहर

मुझे बस इंतज़ार था... खोई एक बहार का,

मेरी खुमशयों के साथ... समझौता कुछ त्योहारों का,

भवनों से नघरे शहर थे... िर ददल थे खाली से,

िवितों िर सुकून नहीं था... शन्


ू य हुए हररयाली से,

इंद्र धनष
ु के रं ग सारे ... धंध
ु ले प्रतीत थे,

अिनी खुशी को खो चुके... यहााँ सारे गीत थे,

गाना बजाना और ददल लगाना... कोई श्राि मुझे अब लगता


था,

मैं तो खाली हाथ था... मेरा कौन हो सकता था,

मुझको थोड़ी वो राहत दे ते... वो िवितों के सहारे थे,

मेरी सााँसों में ठं डक थी... जब नददयों िर ककनारे थे,

118
बंद कमरे के ख्वाब

दरू हुआ जब अिनों से मैं... मझ


ु को यादों ने घेरा था,

और जजस शहर में मैं रहता था... वहााँ कोई नहीं मेरा था |

119
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

एक नये भारत की रचना

कुचला गया सौ बार मुझको... और मौत में सौ बार नहाया,

वक़्त ने घुमा के मुझको... कफर से वो मंज़र ददखाया,

सोचता हूाँ मैं कफर से... एक नये भारत की रचना,

इंसाननयत के धमि िर... अब न कोई धमि रखना |

िर तया मेरा इनतहास कफर... मुझ िर दोहराया जाएगा,

तया कफर मुझे फााँसी ममलेगी... या जजस्म को जलाया जाएगा,

कहीं कोई मुझे चौराहे िर... चाबुक से न मारा जाए,

ख़ौफ़ है कक कफर मुझे... नोंच कर न धगध्ह खाए |

मानता हूाँ कक मुझे... ईश्वर ने दी दहम्मत बहुत है ,

िर मैं भी एक इंसान हूाँ... मुझ में भी तो लाल रतत है,

लेककन होंठों की मुस्कान ये... कह रही आज भी यही है,

मौत ही है तेरी मंजज़ल... हे सरकफरे तू भी वही है |

120
बंद कमरे के ख्वाब

तो सोचता हूाँ मैं कफर से... एक नये भारत की रचना,

इंसाननयत के धमि िर... न कोई अब धमि रखना |

आाँखों के सामने मेरे... आज भी सब कुछ जवां है,

जजस्म मेरा फाड़ने से... तया कोई ज़्यादा सज़ा है,

कानों में मेरे आज भी... गाँज


ू ती हर एक ध्वनन है,

मेरी ही सारी ज़मीं... मेरी चीखों से सनी है |

िर सच कहूाँ तो वो तबाही... मेरे मलए एक जश्न था,

छा गयी थी मेरे ही ददल िर... मौत का तया हुस्न था,

बंद होते ददल की धड़कन... जैसे एक गीत था,

मौत का था जो फररश्ता... मेरा वो ही मीत था |

ददल में कफर एक नशा है... कफर से ख्वादहश मौत की है,

कफर जला दं ू जजस्म अिना... कफर से ये जवाला बनी है,

121
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

सोचता हूाँ मैं कफर से... एक नये भारत की रचना,

इंसाननयत के धमि िर... अब न कोई कफर धमि रखना |

122
बंद कमरे के ख्वाब

जजंदगी ग़लती नहीं है

दे ख कर होता यकीं हैं... जजंदगी ग़लती नहीं है,

कई बार होता है ऐसा... जजंदगी ममलती नहीं है |

जजंदगी गर है अंधेरा... तो मुस्कुराहि है सवेरा,

ये भी सच है जजंदगी में ... मजु श्कलें होती बहुत हैं,

मुजश्कलों में जीने का जज़्बा... दे ती हम को मोहब्बत है |

जजंदगी कई बार यूँ ही... बनती है कोरी सज़ा,

िर जजंदगी में न हो गम भी... ममलती है कई सददयों में |

जो अब हम ये कहें कक... जजंदगी एक मंच हैं,

तो भागना तया ददि से... वो जजंदगी का अंश है,

तो थाम कर हम साथ सब... जजंदगी आगे बढ़ायें,

जब मुजश्कलों में साथ हम हों... तो न कोई मुजश्कल सतायें |

123
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

हम सब मनष्ु य जो हैं यहााँ... तो एक ज़ररत प्यार है,

जजस से है रं गीन दनु नया... ऐसी एक सौगात है,

अब तया बताऊूँ मैं तुम्हें ... जजंदगी तया ढं ग है,

ये है एक ऐसी िहे ली... जजस से हर एक दं ग है |

124
बंद कमरे के ख्वाब

मेरा ही मंज़र मौत था

मेरी जजंदगी कुछ यूँ रही... कक मैंने ही खुमशयााँ बुनी,

मेरा ही मंज़र मौत था,

एक तरफ तो जीत थी... जश्न था,

और एक तरफ मैं अकेला महखाने में बंद था,

ऐसे ही चलती रही... ये जजंदगी हर एक कदम,

बढ़ती गयी रह में घुिन... बढ़ता गया इसका मसतम,

महकफलें भी ऐसी रही... जजनमें कहीं एक ख़ौफ़ था,

मेरी जजंदगी कुछ यूँ रही... कक मैंने ही खुमशयााँ बुनी...

मेरा ही मंज़र मौत था,

हारकर मैं वक़्त से... कफर भी जीता ही गया,

िैमाना तो था मुझे िीना... वो मुझे िीता गया,

भूलने मैं अिने गम... शाममल हुआ जश्नों में ,

िर जश्नों में जो गम ममला... तो नघर गया मैं प्रश्नों में ,

कुछ यूँ चला मेरे दामन िर... मेरे संग हर दाग वो,

125
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

कई रात का भखा मैं... बझ


ु ा न सका इस आग को,

िहले हुआ भी था यही... मैं हार कर भी दं ग था,

और आज हैरान जीत कर हूाँ... कोई नहीं जब संग था,

ये सारी खुमशयााँ मैंने बुनी... और मेरा ही मंज़र मौत था |

126
बंद कमरे के ख्वाब

कल रात… सुबह एक स्वप्न ददखा... सिने में तुम आई थी,

बड़ी अजीब बात थी... और तुम मेरी िरछाई थी,

अब हैरां मैं इस बात िर हूाँ कक... तया िूरी बात बनी होगी,

कक तया मैं बुि बना होउाँ गा... या तुम मीरा बनी होगी |

127
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

दे खना भगवान को

जब सुबह को चलकर शाम तक न लौिे मन,

जब कंिीली राहो िर थक कर चूर हो जाए मन,

तब मज़ा है दे खना पवश्वास को,

तब मज़ा है चाहना कुछ आस को,

जब दे ख कर मंज़र मौत रो रहे हो सब... तब मज़ा है हाँसना


एक हस्ती का,

जब सुनी उजड़ी हो दनु नया... तब मज़ा है सजाना एक बस्ती


का,

हर आस हो पवश्वास हो... िर कोई साथ न चले,

जब मेहनत करने िर भी... तुझे अिनी मंजज़ल न ममले,

तब मज़ा है चलना अकेले जजंदगी की राह िर,

तब मज़ा है जलना अकेले जजंदगी की आग िर,

128
बंद कमरे के ख्वाब

जब लगे तू अकेले ही लड़ता गया,

जब लगे तू अकेले बस जीते गया,

तब मज़ा है जीतना हैवान को,

तब मज़ा है दे खना भगवान को |

129
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

वीरांगनायें

आज़ादी की राहों िर... जब सब थक कर हारे थे,

सुख चुके थे होंठ... और थके हुए सब नारे थे,

जजन रास्तों िर चल रहे थे... वो रास्ते खो चुके थे,

स्वामभमान से भरे लोग... आत्माओं से सो चुके थे,

भख
ू प्यास से भरे हुए वो... ग़रीबी के मारे थे,

आज़ादी की राहों िर... जब सब थक कर हारे थे |

जब मााँ रो रही थी... साहस की कहाननयों को याद करके,

तब ठानी थी कुछ वीरांगनाओं ने... जलने की उन राहों िर


चलके,

वो चलीं थी हाथों में ... कुछ धीमे होते ददए,

जो आगे चलकर धचंगारी बनी... आाँखों में शल


ू मलए |

दहला ददया था हकीमों को... उनकी जामलम आत्माओं को,

मरने से भी वो डरती नहीं थी... कफर कौन रोक सकता था


उनकी भावनाओं को,
130
बंद कमरे के ख्वाब

वो चलीं थी उस समय... जब थक चक
ु े इज़्ज़त वाले थे,

आज़ादी की राहों िर... जब सब थक कर हारे थे |

भारत मााँ भी मसर उठाकर... शान से लहराई थीं,

जब काली रात की चााँदनी ने... ददया था क़लों को जला,

जो फूल खखलने वाले थे... उन्हें आज़ादी की राहों िर ददया गया


चला,

वो उन राहों िर थीं चली... जजनिर सब मर जाने थे,

आज़ादी की राहों िर... जब सब थक कर हारे थे |

131
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

वेदना

हज़ारो सालों की कहाननयों में ... छुिी हुई एक वेदना है,

रातों के चमकते जुगन.ूं .. इस मानव की चेतना है,

मैं हूाँ ननहत्था, जनता हूाँ... िर कल तुम जब अकेले हो,

तो आाँखें झुका कर... ददल से मेरे मलए तुम सोचो,

एक अनसल
ु झी िहे ली में ... तम
ु उलझ जाओगे,

मैं हूाँ जुआरी या पवजेता... तुम खुद जान जाओगे,

कभी सोचना कक तयों नददयााँ... िहाड़ों से ननकलती हैं,

कक तयों ये नददयााँ... दरू सागर की लहरों में घुलती हैं,

कक ये बूढ़े बरगद... तयों थकों को छाया दे ते,

कक तयों चलने की चाह में ... राही गमि दोिहरी की धि


ू सहते,

कक तयों दरू िवित िर... कोई मधुर बंसी है बजाता,

कक तयों एक मााँ का ददल... सिने बेिा बेिी के सजाता,

कफर याद करना मेरी आाँखों को... इनमें भी एक िीड़ा है,

कफर दे खना इन खाली गमलयों में ... इनमें यादों का काकफला है,

132
बंद कमरे के ख्वाब

मैं हूाँ ननहत्था जनता हूाँ... तया तम


ु मेरा गम सहोगे,

मैं चाहता हूाँ िूरी दनु नया बदलना... तया तुम मेरे दख
ु सहोगे |

133
ऋुशांक वीरें द्र ममश्र

तुम खखली हुई गुलमगि कहीं... मैं खड़ा हुआ कैलाश कहीं

जो हुआ ममलन इस धरती िर... धड़ होगा दहन्दस्


ु तान कहीं |

134

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