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𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋

(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

 
𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

मेरा नाम अथव है - अथव शेखावत । आज म आपके सामने मेरी जदगी क कहानी लेकर
आया ं। कहानी या , कहा जाए तो यह मेरी जदगी एक बंद तजोरी क तरह है, जसे
आज म आपके सामने खोलने जा रहा । उ मीद है क आपको इसमे छु पा खजाना पसंद
आएगा।
म तीस साल का तथाक थत सफल और संप आदमी। इतना क एक औसत
मुझसे इ या करे। सफलता क इस सीढ़ को लांघने के लए मेरे माता- पता ने ब त
ो साहन दया। उ ह ने अपने जीवनकाल म ब त से क दे खे और सहे थे - इस लए
उ ह ने ब त यास कया क म वैसे क न दे ख सकूँ। अतः उ ह ने अपना पेट काट-काट
कर ही सही, ले कन मेरी श ा और लालन पालन म कोई कमी न आने द । सदा यही
सखाया क 'पु ! लगे रहो। यास छोड़ना मत! आज कर लो, आगे सफ सुख भोगोगे!'
म यह कतई नह कह रहा ँ क मेरे माँ बाप क श ा म या थी। यास करना, मेहनत
करना अ बाते ह - दरअसल यह सब मानवीय नै तक गुण ह। क तु मेरा मानना है क
इनका 'जीवन के सुख' (वैस,े सुख क हमारी आज-कल क समझ तो वैसे भी गंदे नाले म
व जल को थ करने के ही तु य है) से कोई खास लेना दे ना नह है। और वह एक
अलग बात है, जसका इस कहानी से कोई लेना दे ना नह है। म यहाँ पर कोई पाठ पढाने
नह आया ँ।

जीवन क मेरी घुड़दौड़ अभी ठ क से शु भी नह ई थी, क मेरे माँ बाप मुझे जीवन क
जन मुसीबत से बचाना चाहते थे, वो सारी मुसीबत मेरे सर पर मानो हमालय के सम त
बोझ के सामान एक बार म ही टू ट पड़ी। जब म यारहव म पढ़ रहा था, तभी मेरे माँ बाप,
दोन का ही एक सड़क घटना म दे हा त हो गया, और म इस नमम संसार म नता त
अकेला रह गया। मेरे रदश जनक ने अपना सारा कुछ (वैसे तो कुछ खास नह था उनके
पास) मेरे ही नाम लख दया था, जससे मुझे कुछ अवलंब तो अव य मला। ऐसी मुसीबत
के समय मेरे चाचा-चाची मुझे सहारा दे ने आये - ऐसा मुझे लगा – ले कन वह केवल मेरा
म याबोध था। व तुतः वो दोन आये मा इस लए थे क उनको मेरे माँ बाप क संप का
कुछ ह सा मल जाए, और उनक चाकरी के लए एक नौकर (म) भी। क तु यह हो न
सका - माँ बाप ने मेहनत करने के साथ ही अ याय न सहने क भी श ा द थी। ले कन
मेरी अ याय न सहने क वृ थोड़ी हसक थी। चाचा-चाची से मु का वृतांत मार-पीट
और गाली-गलौज क अन गनत कहा नय से भरा पड़ा है, और इस कहानी का ह सा भी
नह है।

बस यहाँ पर यह बताना पया त होगा क उन दोन कूकुर से मुझे अंततः मु मल ही


गयी। बाप क सारी कमाई और उनका बनाया घर सब बक गया। मेरे मात- पता से
मुझको जोड़ने वाली अं तम भौ तक कड़ी भी टू ट गयी। घर छोड़ा, आवासीय व ालय म
पढ़ा, और अपनी श ा जारी रखने के लए (जो मेरे माता पता क न सफ अं तम इ ा
थी, ब क तप या भी) व भ कार क ा वृ पाने के लए मुझे अपने घोड़े को सबसे
आगे रखने के लए मार-मार कर ल -लुहान कर दे ना पड़ा। खैर, वप भरे वो चार साल,
जसके पयत मने अ भयां क सीखी, जैसे तैसे बीत गए - अब मेरे पास एक आदरणीय
ड ी थी, और नौकरी भी। क तु यह सब दे खने के लए मेरे माता पता नह थे और न ही
उनक इतनी मेहनत से बनायी गयी नशानी।

घोर अकेलेपन म कसी भी कार क सफलता कतनी बेमानी हो जाती है! ले कन मने इस
सफलता को अपने माता- पता क आशीवाद का साद माना और अगले दो साल तक
एक और साधना क - मने भी पेट काटा, पैसे बचाए और घोर तप या (पढाई) करी,
जससे मुझे दे श के एक अ त आदरणीय बंधन सं ान म दा खला मल जाए। ऐसा आ
भी और आज म एक ब -रा ीय कंपनी म बंधक ँ। कहने सुनने म यह कहानी ब त
सुहानी लगती है, ले कन सच मा नए, तीस साल तक बना के ए इस घुड़दौड़ म दौड़ते-
दौड़ते मेरी कमर टू ट गयी है। भावना मक पीड़ा मेरी अ -म ा के ोड़ म समा सी गयी
है। दय म एक काँटा धंसा आ सा लगता है। और आज भी म एकदम अकेला ँ। कुछ
म बने – ले कन उनसे कोई अंतरंगता नह है – सदा यही भय समाया रहता है क न जाने
कब कौन मेरी जड़ काटने लगे! और न ही कोई जीवनसाथी बनने के इद- गद भी है। ऐसा
नह है क मेरे जीवन म लड कयां नह आ - ब त सी आ और ब त सी ग । क तु
जैसी बेईमानी और अमानवता मने अपने जीवन म दे खी है, मेरे जीवन म आने वाली
यादातर लड़ कयां वैसी ही बेइमान और अमानवीय मली। आर म सभी मीठ -मीठ
बाते करती, लुभाती, लारती आती ह, ले कन धीरे-धीरे उनके च र क याज़ जैसी परत
हटती है, और उनक स ाई क ककशता दे ख कर आँख से आंसू आने लगते ह।

सच मा नए, मेरा मानव जा त से व ास उठता जा रहा है, और म खुद अकेलेपन के गत म


समाता जा रहा ँ। तो या अब आप मेरी मनः त थ समझ सकते ह? कतना अकेलापन
और कतनी ही बेमानी ज दगी! त दन (अवकाश वाले दन भी) सुबह आठ बजे से रात
आठ बजे तक काय म वयं को वाहा करता ँ, जससे क इस अकेलेपन का बोझ कम
ढ़ोना पड़े। पर फर भी यह बोझ ब त भारी ही रहता है। कायालय म दो-तीन सहकम और
बॉस अ े वहार वाले मले। वो मेरी कहानी जानते थे, इस लए मुझे अ सर ही छु पर
जाने को कहते थे। ले कन वो कहते ह न, क मु त क सलाह का या मोल! म अ सर ही
उनक बात अनसुनी कर दे ता।

ले कन, पछले दन मेरा हवा-पानी बदलने का ब त मन हो रहा था - वैसे भी अपने जीवन


म म कभी भी बाहर (घूमने- फरने) नह गया। मेरे म मुझको “अचल संप ” कहकर
बुलाने लगे थे। अपनी इस जड़ता पर मुझको वजय ा त करनी ही थी। इंटरनेट पर करीब
दो माह तक शोध करने के बाद, मने मन बताया क उ राँचल जाऊंगा! अपने बॉस से एक
महीने क छु ली - आज तक मने कभी भी छु नह ली थी। लेता भी कसके लए - न
कोई सगा न कोई स ब ी। मेरा भला-मानुस बॉस ऐसा स आ जैसे उसको अभी
अभी पदो त मली हो। उसने तुरंत ही मुझको छु दे द और यह भी कहा क एक महीने
से पहले दखाई मत दे ना। छु लेकर, ऑ फस से नकलते ही सबसे पहले मने
आव यकता के सब सामान जुटाए। वह अग त मास था – मतलब वषा ऋतु। अतः सम त
उ चत व तुएं जुटानी आव यक थ । सामान पैक कर म पहला उपल वायुयान लेकर
उ राँचल क राजधानी दे हरा न प च गया। उ राँचल को लोग दे व-भू म भी कहते ह -
और वायुयान म बैठे ए नीचे के य दे ख कर समझ म आ गया क लोग ऐसा य कहते
है। मने अपनी या ा क कोई योजना नह बनाय थी - मेरा मन था क एक गाडी कराए
पर लेकर खुद ही चलाते ए बस इस सु दर जगह म खो जाऊं। समय क कोई कमी नह
थी, अतः मुझे घूमने और दे खने क कोई ज द भी नह थी। हाँ, बस म भीड़ भाड़ वाली
जगह (जैसे क ह र ार, ऋ षकेश इ या द) से र ही रहना चाहता था। मने दे हरा न म ही
एक छोट कार कराए पर ली और उ राँचल का न ा, 'जी पी एस' और अ य आव यक
सामान खरीद कर कार म डाल लया और आगे या ा के लए चल पड़ा।

अगले एक स ताह तक मने ब नाथ दे व ान, फूल क घाट , कई सारे याग, और कुछ
अ य छोटे ा नक मं दर भी दे खे। हमालय क गोद म चलते, ाकृ तक छटा का
रसा वादन करते ए यह एक स ताह न जाने कैसे फुर से उड़ गया। येक ान मुझको
अपने ही तरीके से अचं भत करता। अब जैसे ब नाथ दे व ान क ही बात कर ल – मं दर
से ठ क पूव भीषण वेग से बहती अलकनंदा नद यह मा णत करती है क कृ त क
श के आगे हम सब कतने बौने ह। इसी ठं डी नद के बगल ही एक त त-कुंड है, जहाँ
भूगभ से गरम पानी नकलता है। हम वै ा नक तक- वतक करने वाले आसानी से कह
सकते ह क भूगभ य या के चलते गरम पानी का सोता बन गया। क तु, एक आम
के लए यह दै वीय चम कार से कोई कम नह है। मं दर के साद म मलने वाली
वन-तुलसी क सुगंध, थके ए शरीर से सारी थकान ख च नकालती है और सफ यही
नह । येक सुबह, सूरज क पहली करण नीलकंठ पवत क छोट पर जब पड़ती ह, तो
उस पर जमा आ हम (बरफ) ऐसे जगमगाता है, जैसे क सोना!

ऐसे चम कार वहां पग-पग पर होते रहते ह। ताज़ी ठं डी हवा, हरे भरे वृ , जल से भरी
न दय का नाद, फूल क महक और रंग, नीला आकाश, रात म (अगर भा यशाली रहे तो)
टम टमाते तारे और व भ न का दशन, कभी होटल म, तो कभी ऐसे खुले म ही टट
म रहना और सोना - यह सब काम मेरी घुड़दौड़ वाली जदगी से बेहद भ थे और अब
मुझे मज़ा आने लग गया था। मने मानो अपने तीस साल पुराने व को कह रा ते म ही
फक दया और इस समय खुले शरीर से कृ त के ऐसे मनोहर प को अपने से चपटाए
जा रहा था।

सबसे आनंददायी बात वहां के ानीय लोगो से मलने जुलने क रही। सच कहता ँ क
उ राँचल के यादातर लोग ब त ही सु दर है - तन से भी और मन से भी। सीधे सादे लोग,
मेहनतकश लोग, मुकुराते लोग! रा ते म कतनी ही सारी याँ दे खी जो कम से कम
अपने शरीर के भार के बराबर बोझ उठाए चली जा रही है - ले कन उनके ह ठो पर
मु कराहट बद तूर बनी ई है! सभी लोग मेरी मदद को हमेशा तैयार थे - मने एकाध बार
लोगो को कुछ पये भी दे ने चाहे, ले कन सभी ने इनकार कर दया - 'भला लोगो क
भलाई का भी कोई मोल होता है?' छोटे -छोटे ब ,े अपने सेब जैसे लाल-लाल गाल और
बहती नाक के साथ इतने यारे लगते, क जैसे गु े-गु डय ह ! इन सब बातो ने मेरा मन
ऐसा मोह लया क मन म एक ती इ छा जाग गयी क अब यही पर बस जाऊं।

खैर, म इस समय 'फूल क घाट ' से वापस आ रहा था। वहां बताये चार दन म कभी नह
भूल पाऊँगा। कोई तीन कलोमीटर ऊपर त इस घाट म अ यंत ानीय, केवल उ
पवतीय े म पाये जाने वाले फूल मलते ह। फूल से भरी, सुगंध से लद इस घाट को
दे खकर ऐसा ही लगता है क उस जगह म वाकई दे व और अ सरा का ान होगा।
बचपन म आप सब ने दाद क कहा नय म सुना होगा क प रयां जमीन पर आकर नाचती
ह। मेरे ख़याल से अगर धरती पर कोई ऐसा ान है, तो वह ‘फूल क घाट ’ ही है। मेरे
जैसा एकाक इस बात को सोच कर ही स हो गया क इस जगह से "मानव
स यता" से र- र तक कोई संपक नह हो सकता। न कोई मुझे परेशान करेगा, और न ही
म कसी और को। ले कन पहाड़ो के ऊपर चढ़ाई, और उसके बात उतराई म इतना यास
लगा क ब त यादा थकावट हो गयी। इतनी क म वहां से वापस आने के बाद करीब
आधा दन तक म अपनी गाडी म ही सोता रहा।
वापसी म म एक घने बसे क बे म ( जसका नाम म आपको नह बताऊँगा) आ गया। मने
गाडी रोक द क , थोडा े श होकर खाना खाया जा सके। एक भले आदमी ने मेरे नहाने
का बंदोब त कर दया, ले कन वह बंदोब त सुशीलता से परे था। सड़क के कनारे खुले म
एक है डपाइप, और एक बा ट और एक स ता सा साबुन। खैर, मने पछले ३ दन से
नहाया नह था, इस लए मेरा यान सफ तरो-ताज़ा होने का था। म जतनी भी दे र नहाया,
उतनी दे र तक वहां के लोग के लए कौतूहल का वषय बना रहा। वशेषतः वहां क य
के लए - वो मुझे दे ख कर कभी हंसती, कभी मु कुराती, तो कभी आपस म खुसुर-फुसुर
करती। वैस,े अपने आप अपनी बढाई या क ँ , ले कन नय मत आहार और ायाम से
मेरा शरीर एकदम तगड़ा और गठा आ है और चब र ी भर भी नह है। ायाम करना
मेरे लए सबसे बड़ा भोग- वलास है, य प कभी कभार ा ासव का सेवन भी करता ,ँ
ले कन सफ कभी कभार। इसी के कारण मुझे पछले कई वष से त दन बारह घंटे काय
करने क ऊजा मलती है। हो सकता है क ये याँ मुझे आकषक पाकर एक सरे से
अपनी ेम क पना बाँट रही ह - ऐसे सोचते ए मने भी उनक तरफ दे ख कर मु कुरा
दया।

खैर, नहा-धोकर, कपडे पहन कर मने खाना खाया और अपनी कार क ओर जाने को आ
ही था क मने कूल यू नफाम पहने लड़ कय का समूह जाते ए दे खा। मुझे लगा क
शायद कसी कूल म छु ई होगी, य क उस समूह म हर क ा क लड़ कयां थी। म यूँ
ही अपनी कार के पास खड़े-खड़े उन सबको जाते ए दे ख रहा था क मेरी नज़र अचानक
ही उनमे से एक लड़क पर पड़ी। उसको दे खते ही मुझे ऐसे लगा क जैसे धूप से तपी ई
ज़मीन को बरसात क पहली बूंदो के छू ने से लगता होगा।

वह लड़क आसमानी रंग का कुरता, सफ़ेद रंग क सलवार, और सफ़ेद रंग का ही प े


वाला प ा (यही कूल यू नफाम थी) पहने ए थी। उसने अपने ल बे बालो को एक चोट
म बाँधा आ था। अब मने उसको गौर से दे खा - उसका रंग साफ़ और गोरा था, चेहरे क
बनावट म पहाड़ी वशेषता थी, आँख एकदम शु , मूँ गया रंग के भरे ए ह ठ और अ दर
सफ़ेद दांत, एक बेहद यारी सी छोट सी नाक और यौवन क ला लमा लए ए गाल!
उसक उ बमु कल बस इ क स क रही होगी, इससे मने अंदाजा लगाया क वह
कॉलेज म पढ़ती होगी।

' कतनी सु दर! कैसा भोलापन! कैसी सरल चतवन! कतनी यारी!'
" या... क जा दो मनट के लए..." उसक कसी सहेली ने पीछे से उसको आवाज़
लगाई। वह लड़क मु कुराते ए पीछे मुड़ी और थोड़ी दे र तक क कर अपनी सहेली का
इंतज़ार करने लगी।

' या..! ह म.. यह नाम एकदम परफे ट है! सचमुच, एकदम सांझ जैसी सु दरता! मन को
आराम दे ती ई, पल-पल नए-नए रंग भरती ई .. या बात है!' मने मन ही मन सोचा।

मने ज द से अपना कैमरा नकाला और रदश ले स लगा कर उसक त वीरे तब तक


नकालता रहा जब तक क वह आँख से ओझल नह हो गयी। उसके जाते ही मुझे होश
आया! होश आया, या फर गया?

' या लव एट फ ट साईट ऐसे ही होता है?' ‘लव एट फ ट साईट’ – यह वा य अगर कसी


को कहो, तो वह यही कहेगा क दरअसल ऐसा कुछ नह होता। ऐसी भावना लालसा के
वेश म लपट वासना के अ त र और कुछ भी नह । वे इसको ेम क एक झूठ भावना
कहकर उपहास करने लगगे।

ले कन कैसा हो य द ऐसा कुछ वाकई होता हो? मुझे एक नशा मला आ बुखार सा चढ़
गया। दमाग म इसी लड़क का चेहरा घूमता जाता। उसक सु दरता और उसके भोलेपन
ने मुझे मोह लया था - या यह क हये क मुझे ेम म पागल कर दया था। मेरे मन म आया
क अपने होटल वाले को उसक त वीर दखा कर उसके बारे म पूछूँ, ले कन यह सोच के
क गया क कह लोग बुरा न मान जाएँ क यह बाहर का आदमी उनक लड़ कय /बे टय
के बारे म य पूछ रहा है। वैसे भी र दराज के लोग अपनी मा यताओ और री तय को
लेकर ब त ही ज होते है, और म इस समय कोई मुसीबत मोल नह लेना चाहता था।

'हो सकता है क जसको म ेम समझ रहा ँ वह सफ वमोह हो!' मेरे मन क उधेड़बुन


जारी थी।

उसी के बारे म सोचते-सोचते दे र शाम हो गयी, तो मने न य कया क आज रात यह रह


जाता ँ। ले कन उस लड़क का यान मेरे मन और म त क म कम आ ही नह ! रात म
अपने ब तर पर लेटे ए मेरा सारा यान सफ या पर ही था। मुझे उसके बारे म कुछ भी
नह मालूम था - ले कन फर भी ऐसा लग रहा था क , यह मेरे लए परफे ट लड़क है।
मुझको ऐसा लगा क अगर मुझे जीवन म कोई चा हए तो बस वही लड़क - या।
न द नह आ रही थी – बस या का ही ख़याल आता जा रहा था। तभी यान आया क वो
तो मेरे कैमरे म है! ज द से म अपने कैमरे म उतारी गयी उसक त वीर को यान से
दे खने लगा - ल बे बाल, और उसके सु दर चेहरे पर उन बाल क एक दो लट, उसक
सु दरता को और बढ़ा रहे थे। पतली, ले कन व बाह। उ सुकतावश उसके तन का
यान हो आया – छोटे -छोटे , जैसे मानो म यम आकार के सेब ह । ठ क उसी कार ही
व , युवा नत ब। साफ़ और सु दर आँख, भरे ए ह ठ - बाल-सुलभ अठखे लयाँ भरते
ए और उनके अ दर सफ़ेद दांत! यह लड़क मेरी क पना क तमू त थी... और अब मेरे
सामने थी।

यह सब दे खते और सोचते ए वाभा वक तौर पर मेरे शरीर का र मेरे लग म तेजी से


भरने लगा, और कुछ ही ण म वह तं भत हो गया। मेरा हाथ मेरे लग को मु करने म
त हो गया .... मेरे म त क म उसक सु दर मु ा क बार-बार पुनरावृ होने लगी -
उसक सरल मु कान, उसक चंचल चतवन, उसके युवा तन... जैस-े जैसे मेरा म त क
या के च को नव करता जा रहा था, वैसे-वैसे मेरे हाथ क ग त ती होती जा रही
थी.... साथ ही साथ मेरे लग म अंद नी दबाव बढ़ता जा रहा था - एक नए कार क
हरारत पूरे शरीर म फैलती जा रही थी। मेरी क पना मुझे आनंद के सागर म डु बोती जा रही
थी। अंततः, म कामो माद के चरम पर प च गया - मेरे लग से वीय एक व ोटक लावा
के समान बह नकला। ह त-मैथुन के इन आ खरी ण म मेरी ई र से बस यही ाथना
थी, क यह क पना मा कोरी-क पना बन कर न रह जाए। रात न द कब आई, याद नह
है।

अगले दन क सुबह इतनी मनोरम थी क आपको या बताऊँ। ठं डी ठं डी हवा, और उस
हवा म पानी क अ त-सू म बूंदे ( जसको मेरी तरफ "झ सी पड़ना" भी कहते ह) मल कर
बरस रही थी। वही र कह से - शायद कसी मं दर से - हरीओम शरण के गाये ए भजन
का रकॉड बज रहा था। म बाहर नकल आया, एक फ़ो ग कुस पर बैठा और चाय पीते
ए ऐसे आनंददायक माहौल का रसा वादन करने लगा। मेरे मन म या को पुनः दे खने
क इ ा बल होने लगी। अनायास ही मुझे यान आया क उस लड़क के कूल का
समय हो गया होगा। मने झटपट अपने कपडे बदले और उस ान पर प च गया जहाँ से
मुझे कूल जाते ए उस लड़क के दशन फर से हो सकगे।

मने मानो घंटो तक इंतज़ार कया ... अंततः वह समय भी आया जब यू नफाम पहने
लड़ कयां आने लगी। कोई पांच मनट बाद मुझे अपनी परी के दशन हो ही गए। वह इस
समय ओस म भीगी नाजक पंखुड़ी वाले गुलाबी फूल के जैसे लग रही थी! उसके प का
सबसे आकषक भाग उसका भोलापन था। उसके चेहरे म वह आकषण था क मेरी
उसके शरीर के कसी और ह से पर गयी ही नह । कोई और होती तो अब तक उसक पूरी
नाप तौल बता चुका होता। ले कन यह लड़क अलग है! मेरा इसके लए मोह सफ मोह
नह है - संभवतः ेम है। आज मुझे अपने जीवन म पहली बार एक कशोर वाली भावनाएँ
आ रही थ । जब तक मुझे या दखी, तब तक उसको मने मन भर के दे खा। दल धाड़
धाड़ करके धड़कता रहा। उसके जाने के बाद म दन भर यूँ ही बैठा उसक त वीर दे खता
रहा और उसके त अपनी भावना का तोल-मोल करता रहा।

म यह सु न त कर लेना चाहता था, क या के लए मेरे मन म जो भी कुछ था वह


ल सा अथवा वमोह नह था, अ पतु शु ेम था। उसको दे खते ही ठं डी बयार वाला
एहसास, मन म शा त और जीवन म ठहर कर घर बसाने वाली भावना ल सा तो नह हो
सकती! ऐसे ही घंटो तक तक वतक करते रहने के बाद, अंततः मने ठान लया क म
इससे या इसके घरवाल से बात अव य क ं गा। दोपहर बाद जब उसके कूल क छु ई
तो मने उसका पीछा करते ए उसके घर का पता करने क ठानी। आज भी मेरे साथ कल
के ही जैसा आ। उसको तब तक दे खता रहा जब तक आगे क सड़क से वह मुड़ कर
ओझल न हो गयी और फर मने उसका सावधानीपूवक पीछा करना शु कर दया। मु य
सड़क से कोई डेढ़ कलोमीटर चलने के बाद एक व तृत े आया, जसमे काफ र तक
फैला आ खेत था और उसमे ही बीच म एक छोटा सा घर बना आ था। वह लड़क उसी
घर के अ दर चली गयी।

'तो यह है इसका घर!'

म करीब एक घंटे तक वह न े य खड़ा रहा, फर भारी पैर के साथ वापस अपने होटल
आ गया। अब मुझे इस लड़क के बारे म और पता करने क इ ा होने लगी। अपने बु
और ववेक के तकूल होकर मने अपने होटल वाले से इस लड़क के बारे म जानने का
न य कया। यह ब त ही जो खम भरा काम था - शायद यह होटल वाला ही इस लड़क
का कोई स ब ी हो? न जाने या सोचेगा, न जाने या करेगा। कह पीटना पड़ गया तो?
खैर, मेरी ज ासा इतनी बलवती थी, क मने हर जो खम को नज़रंदाज़ करके उस लड़क
के बारे म अपने होटल वाले से पूछ ही लया।

"साहब! यह तो अपने ह रहर सह क बेट है।" उसने त वीर को दे खते ही कहा। फर


थोडा क कर, "साहब! माज़रा या है? ऐसे राह चलते लड़ कय क त वीर नकालना
कोई अ बात नह ।" उसका वर म तापूण नह था।

"माज़रा? मुझे यह लड़क पसंद आ गयी है! इससे म शाद करना चाहता ँ।" मने उसके
बदले ए वर को अनसुना कया।

" या! सचमुच?" उसका वर फर से बदल गया – इस बार वह अचरज से बोला।

"हाँ! या ह रहर सह जी इसक शाद मुझसे करना पसंद करगे?"

"साहब, आप सच म इससे शाद करना चाहते है? कोई मजाक तो नह है?"

"यार, म मजाक य क ं गा ऐसी बातो म? अब तक कुंवारा ँ – अ खासी नौकरी है।


बस अब एक साथी क ज़ रत है। तो म इस लड़क से शाद य नह कर सकता? या
गलत है?"

"मेरा वो मतलब नह था! साहब, ये ब त भले लोग ह - सीधे सादे । ह रहर सह खेती करते
ह - कुल मला कर चार जने ह: ह रहर सह खुद, उनक प नी और दो बे टयां। इस लड़क
का नाम या है। आप बस एक बात यान म रख, क ये लोग ब त सीधे और भले लोग
ह। इनको ःख न दे ना। आपके मुकाबले ब त गरीब ह, ले कन गैरतमंद ह। ऐसे लोगो क
हाय नह लेना। अगर इनको धोखा दया तो ब त पछताओगे।"

"नह दो त! मेरी खुद क जदगी ःख भरी रही है, और मुझे मालूम है क सर को ःख


नही प चना चा हए। और शाद याह क बात कोई मजाक नह होती। मुझे यह लड़क
वाकई ब त पसंद है।"

"अ बात है। आप कह तो म आपक बात उनसे करवा ं ? ये तो वैसे भी अब शाद के


लायक हो चली है।"

"नह ! म अपनी बात खुद करना जानता ँ। वैसे ज़ रत पड़ी, तो आपसे ज़ र क ँगा।"

रात का खाना खाकर मने ब त सोचा क या म वाकई इस लड़क , या से ेम करता ँ


और उससे शाद करना चाहता ँ! कह यह वमोह मा ही नह ? कह ऐसा तो नह क
मेरी बढती उ के कारण मुझे कसी कार का मान सक वकार हो गया है और म
पीडोफाइल (ऐसे लोग जो ब ो क तरफ कामुक झान रखते ह) तो नह बन गया ?ँ
काफ समय सोच वचार करने के बाद मुझे यह सब आशंकाएं बे-सरपैर क लग । मने एक
बार फर अपने मन से पूछा, क या मुझे या से शाद करनी चा हए, तो मुझे मेरे मन से
सफ एक ही जवाब मला, "हाँ"!

सवेरे उठने पर मन के सभी मकड़-जाल खुद-ब-खुद ही न हो गए। मने न य कर लया


क म ह रहर सह से मलूंगा और अपनी बात क ँगा। आज र ववार था - तो आज या
का कूल नह लगना था। आज अ ा दन है सभी से मलने का। नहा-धोकर मने अपने
सबसे अ े अनौपचा रक कपडे पहने, ना ता कया और फर उनके घर क ओर चल
पड़ा। न जाने कस उधेड़बुन म था क वहां तक प चने म मुझे कम से कम एक घंटा लग
गया। आज के जतना बेचैन मने अपने आपको कभी नह पाया। खैर, या के घर प च
कर मने तीन-चार बार गहरी साँसे ली और फर दरवाज़ा खटखटाया।

दरवाज़ा या ने ही खोला।
'हे भगवान्!' मेरा दल धक् से हो गया। या पौ फटने से समय सूरज जैसी लग रही थी।
उसने अभी अभी नहाया आ था - उसके बाल गीले थे, और उनक नमी उसके हलके
लाल रंग के कुत को कंधे के आस पास भगोए जा रही थी।

' कतनी सु दर! जसके भी घर जाएगी, वह ध य हो जायेगा।'

"जी?" मुझे एक बेहद मीठ और शालीन सी आवाज़ सुनाई द । कानो म जैसे म ी घुल
गयी हो।

"अ..अ आपके पताजी ह?" मने जैस-े तैसे अपने आपको संयत कया।

"आप अ दर आइए ... म उनको अभी भेजती ँ।"

"जी, ठ क है"

या ने मुझे बैठक म एक बत क कुस पर बैठाया और अ दर अपने पता को बुलाने चली


गयी। आने वाले कुछ मनट मेरे जीवन के सबसे क ठन मनट होने वाले थे, ऐसा मुझे
अनुमान हो चुका था। करीब दो मनट बाद ह रहर सह बैठक म आये। ह रहर सह
साधारण कद-काठ के पु ष थे, उ करीब बयालीस के आस-पास रही होगी। खेत म
काम करने से सर के बाल असमय सफ़ेद हो चले थे। ले कन उनके चेहरे पर संतोष और
गव का अ त तेज था। 'एक आ मस मानी पु ष!' मने मन ही मन आँकलन कया, 'ब त
सोच समझ कर बात करनी होगी।'

"नम कार! आप मुझसे मलना चाहते ह?" ह रहर सह ने ब त ही शालीनता के साथ


कहा।

"नम ते जी। जी हाँ। म आपसे एक ज़ री बात करना चाहता ँ ..... ले कन मेरी एक


वनती है, क आप मेरी पूरी बात सुन ली जये। फर आप जो भी कहगे, मुझे वीकार है।"

"अरे! ऐसा या हो गया? बै ठए बै ठए। हम लोग बस ना ता करने ही वाले थे, आप आ गए


ह - तो मेहमान के साथ ना ता करने से अ ा या हो सकता है? आप पहले मेरे साथ
ना ता क रए, फर अपनी बात क हये।"
"नह नह ! लीज! आप पहले मेरी बात सुन ली जए। भगवान् ने चाहा तो हम लोग ना ता
भी कर लगे।"

"अ ा बताइए! या बात हो गई? आप इतना घबराए ए से य लग रहे ह? सब खै रयत


तो है न?"

" हाँ! सब ठ क है... जी वो म आपसे यह कहने आया था क ...." बोलते बोलते म क


गया। गला ख़ु क हो गया।

"बो लए न?"

"जी वो म .... म आपक बेट या से शाद करना चाहता ँ!" मेरे मुंह से यह बात े न क
ग त से नकल गई..
'मारे गए अब!'

" या? एक बार फर से क हए। मने ठ क से सुना नह ।"

मने दो तीन गहरी साँसे भर और अपने आपको काफ संयत कया, "जी म आपक बेट
या से शाद करना चाहता ँ।"

“...........................................”

"म इसी लए आपसे मलना चाहता था।"

"आप या को जानते ह?"

"जी जानता तो नह । मने उनको दो दन पहले दे खा।"

"और इतने म ही आपने उससे शाद करने क सोच ली?" ह रहर सह का वर अभी भी
संयत लग रहा था।
"जी।"

"म पूछ सकता ँ क आप या से शाद य करना चाहते है?"

"मने आपके बारे म पूछा है और मुझे मालूम है क आप लोग ब त ही भले लोग ह। आज


आपसे मल कर म आपको अपने बारे म बताना चाहता था। इस लए मेरी यह वनती है क
आप मेरी बात सुन ली जये। उसके बाद आप जो भी कुछ कहगे, मुझे सब मंज़ूर रहेगा।"

"ह म! दे खये, आप हमारे मेहमान भी है और ... शाद का ताव भी लाये ह। तो हमारी


मयादा यह कहती है क आप पहले हमारे साथ खाना खाइए। फर हम लोग बात करगे।
.... आप बै ठये। म अभी आता ँ।" यह कह कर ह रहर सह अ दर चले गए।

म अब काफ संयत और ह का महसूस कर रहा था। पटूँ गा तो नह । न त प से अ दर


जाकर मेरे बारे म और मेरे ताव के बारे म बात होनी थी। मेरे भा य पर मुहर लगनी थी।
इस लए मुझे अपना सबसे मज़बूत केस तुत करना था। यह सोचते ही मेरे जीवन म मने
अपने च र म जतना फौलाद इक ा कया था, वह सब एकसाथ आ गए।

'अगर मुझे यह लड़क चा हए तो सफ अपने गुण के कारण चा हए।'

ह रहर सह कम से कम दस मनट बाद बाहर आये। उनके साथ उनक छोट बेट भी थी।

"यह मेरी छोट बेट अ नी है।" अ नी करीब अठारा-उ ीस साल क रही होगी।

"नम ते। आपका नाम या है? या आप सच म मेरी द द से शाद करना चाहते ह? आप


कहाँ रहते ह? या करते ह?" अ नी न एक ही सांस म न जाने कतने ही दाग दए।

म उसको कोई जवाब नह दे पाया... बोलता भी भला या? बस, मु कुरा कर रह गया।

"मुझे आपक माइल पसंद है ..." अ नी ने बाल-सुलभ सहजता से कह दया।

वाकई ह रहर सह के घर म लोग ब त सीधे और भले ह - मने सोचा। कतना स ापन है


सभी म। कोई मलावट नह , कोई बनावट नह । अ नी एकदम चंचल ब ी थी, ले कन
उसमे भी शालीनता कूट कूट कर भरी ई थी। खैर, मुझे उससे कुछ तो बात करनी ही थी,
इस लए मने कहा, "नम ते अ नी। मेरा नाम अथव है। म अभी आपको और आपके माता
पता को अपने बारे म सब बताने वाला ँ।"

लड़क के पता वह पर खड़े थे, और हमारी बात सुन रहे थे। इतने म ह रहर सह जी क
धमप नी भी बाहर आ ग । उ ह ने अपना सर साड़ी के प लू से ढका आ था।

"जी नम ते!" मने उठते ए कहा।

"नम ते! बै ठये न।" उ ह ने बस इतना ही कहा। प र मी और आ मस मानी पु ष क


स ी साथी तीत हो रही थ ।

मुझे इतना तो समझ म आ गया क यह प रवार वाकई भला है। माता पता दोन ही
वा भमानी ह, और सरल ह। इस लए बना कसी लाग लपेट के बात करना ही ठ क
रहेगा। हम चारो लोग अभी बस बैठे ही थे क उधर से या ना ते क े लए बैठक म
आई। मने उसक तरफ बस एक झलक भर दे खा और फर अपनी नज़र बाक लोगो क
तरफ कर ल – ऐसा न हो क म मूख क तरह उसको पुनः एकटक दे खने लगूं, और मेरी
बना वजह फजीहत हो जाय।

"और ये या है – हमारी बड़ी बेट । खैर, इसको तो आप जानते ही ह। अ नी बेटा!


जाओ द द का हाथ बटाओ।"

दोन लड़ कय ने कुछ ही दे र म ना ता जमा दया। लगता है क वो बेचारे मेरे आने से


पहले खाने जा रहे थे, ले कन मेरे आने से उनका खाने का ग णत गड़बड़ हो गया। खैर, म
या ही खाता! मेरी भूख तो नह के बराबर थी – ना ता तो कया ही आ था और अभी
थोडा घबराया आ भी था। ले कन साथ म खाने पर बैठना आव यक था – कह ऐसा न
हो क वो यह समझ क म उनके साथ खाना नह चाहता। खाते ए बस इतनी ही बात ई
क म उ राँचल म या करने आया, कहाँ से आया, या करता ँ, कतने दन यहाँ पर ँ
..... इ या द इ या द। ना ता समा त होने पर सभी लोग बैठक म आकर बैठ गए।

ह रहर सह थोड़ी दे र चुप रहने के बाद बोले, "अथव, मेरा यह मानना है क अगर लड़क
क शाद क बात चल रही हो तो उसको भी पूरा अ धकार है क अपना नणय ले सके।
इस लए या यहाँ पर रहेगी। उ मीद है क आपको कोई आप नह ।"

"जी, बलकुल ठ क है। भला मुझे य आप होगी?" मने या क ओर दे खकर बोला।


उसके ह ठो पर एक ब त हलक सी मु कान आ गयी और उसके गाल थोड़े और गुलाबी
से हो गए।

फर मने उनको अपने बारे म बताना शु कया क म एक ब -रा ीय कंपनी म बंधक ँ,


मने दे श के सव बंधन सं ान और अ भयां क सं ान से पढाई क है। बगलोर म
रहता ँ। मेरा पै क घर कभी मेरठ म था, ले कन अब नह है। प रवार के बारे म बात चल
पड़ी तो ब त सी कड़वी, और ःखदाई बात भी नकल पड़ी। मने दे खा क मेरे माँ-बाप क
मृ यु, मेरे संबं धय के अ याचार और मेरे संघष के बारे म सुन कर ह रहर सह क प नी
और या दोन के ही आँख से आंसू नकल आये। मने यह भी घो षत कया क मेरे
प रवार म मेरे अलावा अब कोई और नह है।

उ ह ने ने भी अपने घर के बारे म बताया क वो कतने साधारण लोग ह, छोट सी खेती है,


ले कन गुजर बसर हो जाती है। उनके वृहत प रवार के फलाँ फलाँ वभ ान
पर ह। इ या द इ या द।

"अथव, आपसे मुझे बस एक ही बात पूछनी है। आप या से शाद य करना चाहते ह?


आपके लए तो लड़ कय क कोई कमी नह ।" ह रहर सह ने पूछा।

मने कुछ सोच के बोला, "ऊपर से म चाहे कैसा भी लगता ँ, ले कन अ दर से म ब त ही


सरल साधारण आदमी ँ। मुझे वैसी ही सरलता या म दखी। इस लए।"

फर मने बात आगे जोड़ी, "आप बेशक मेरे बारे म पूरी तरह पता लगा ल। आप मेरा काड
र खये - इसम मेरी कंपनी का पता लखा है। अगर आप बगलोर जाना चाहते ह तो म सारा
बंध कर ं गा। और यह मेरे घर का पता है (मने अपने व स टग काड के पीछे घर का पता
भी लख दया था) - वैसे तो म अकेला रहता ,ँ ले कन आप मेरे बारे म वहां पूछताछ कर
सकते ह। म यहाँ, उ राँचल म, म वैसे भी अगले दो-तीन स ताह तक ँ। इस लए अगर
आप आगे कोई बात करना चाहते ह, तो आसानी से हो सकती है।"
ह रहर सह ने सर हलाया, फर कुछ सोच कर बोले, " या और आप आपस म कुछ बात
करना चाहते ह, तो हम बाहर चले जाते ह।" और ऐसा कह कर तीनो लोग बैठक से बाहर
चले गए।

अब वहां पर सफ म और या रह गए थे। ऐसे ही कसी और पु ष के साथ एक कमरे म


अकेले रह जाने का या का यह पहला अनुभव था। घबराहट और संकोच से उसने अपना
सर नीचे कर लया। मने दे खा क वो अपने पांव के अंगूठे से फश को कुरेद रही थी। उसके
कुत क आ तीन से गोरी गोरी बाह नकल कर आपस म उलझी जा रही थी।

" या! मेरी तरफ दे खए।" उसने बड़े जतन से मेरी तरफ दे खा।

"आपको मुझसे कुछ पूछना है?" मने पूछा।

उसने सफ न म सर हलाया।

"तो म आपसे कुछ पूछूं?" उसने सर हला के हाँ कहा।

"आप मुझसे शाद करगी?"

मेरे इस पर मानो उसके शरीर का सारा खून उसके चेहरे म आ गया। घबराहट म
उसका चेहरा एकदम गुलाबी हो चला। वो शम के मारे उठ और भाग कर कमरे से बाहर
चली गयी। कुछ दे र म ह रहर सह अ दर आये, उ ह ने मुझे अपना फ़ोन नंबर और पता
लख कर दया और बोले क वो मुझे फ़ोन करगे। जाते जाते उ ह ने अपने कैमरे से मेरी
एक त वीर भी खीच ली। मुझे समझ आ गया क आगे क तहक कात के लए यह बंध
है। अ ा है - एक पता को अपनी पूरी तस ली कर लेनी चा हए। आ खर अपनी लड़क
कसी और के सुपुद कर रहे ह!

म अगले दो दन तक वह रहा ले कन मुझे ह रहर सह का फ़ोन नह आया। म कोई


ता और अ तआ ह नह दशाना चाहता था, इस लए मने उनको उन दो दन तक फोन
नह कया, और न ही या का पीछा कया। म नह चाहता था क वो मेरे कारण ल त
हो। मेरा मन अब तक काफ ह का हो गया था क कम से कम मन क बात कह तो द ।
अब म आगे क या ा आर करना चाह रहा था। इस लए म आगे क या ा पर नकल
पड़ा और कौसानी प च गया। नकलने से पहले मने ह रहर सह जी को फोन करके बता
दया। उनके श द से मुझे कसी कार क त खी नह सुनाई द – यह अ बात थी।

कौसानी तक आते-आते उ राँचल के े अलग हो जाते ह – या का घर गढ़वाल म था,


और कौसानी कुमाऊँ म। वहां तक क या ा मेरे लए ठठु राने वाली थी – एक तो बेहद
घुमावदार सड़क, और ऊपर से ठं डी ठं डी वषा। ले कन मेरे आनंद म कोई कमी नह थी।
कौसानी को महा मा गाँधी जी ने "भारत का वट् ज़रलड" क उपा ध द थी। इतनी सु दर
जगह हमालय म शायद ही कह मलेगी। यहाँ क ाकृ तक भ ता क कोई मसाल नह
द जा सकती है - दे वदार के घने वृ से घरे इस पहाड़ी ल से हमालय के तीन सौ
कलोमीटर चौड़े वहंगम य को दे खा जा सकता है। म दन म बाहर जा कर पैदल या ा
करता और रात म अपने होटल के कमरे से बाहर के अँधेरे म आकाशगंगा दे खने का यास
करता।

ले कन मेरे दलो- दमाग पर बस या ही छायी ई थी। ' या उन लोगो को याद भी है मेरे


बारे म?' म यह अ सर सोचता। कौसानी म अ यंत शा त थी, अतः कुछ दन वह रहने का
न य कया। वैसे भी उ राँचल घूमने क मेरी कोई न त योजना नह थी। जहाँ मन रम
जाय, वह रहने लगो! वहां रहते ए, करीब पांच दन बाद मुझे ह रहर सह के नंबर से रात
म फ़ोन आया।

"हे लो!" मने कहा।

"जी..... म या बोल रही ँ।”

“ या? आप ठ क ह? घर म सभी ठ क ह?” मने ज द ज द दाग दए। ले कन वो


जैसे कुछ नह सुन रही हो।

“जी.... हम आपसे कुछ कहना था।"

"हाँ क हये न?" मेरा दल न जाने य जोर जोर से धड़कने लगा।

"जी..... हम आपसे ेम करते ह।" कहकर उसने फोन काट दया।


मुझे अपने कानो पर व ास ही नह हो रहा था – ये या आ? ज़ र ह रहर सह ने मेरे
बारे म तहक कात करी होगी, और यह सोचा होगा क या और मेरा अ ा मेल है। हाँ,
ज़ र यही बात रही होगी। पारंप रक भारतीय समाज म आज भी, य द माता- पता अपनी
लड़क का ववाह तय कर दे ते ह, तो वह लड़क अपने होने वाले प त को ववाह से पूव ही
प त मान लेती है।

‘वो भी मुझसे ेम करती है!’

या के फोन ने मेरे दल के तार कुछ इस कार झनझना दए क रात भर न द नह आई।


मने पलट कर फोन नह कया। हो सकता है क ऐसा करने पर वो लोग मुझे असं कृत
समझ। ब त ही बेचैनी म करवट बदलते ए मेरी रात कसी कार बीत ही गयी। ' या का
कैसा हाल होगा?' यह वचार मेरे मन म बार बार आता।

अगले दन मेरे ऑ फस से मेरे बॉस, और मेरे हाउ सग सोसाइट के से े टरी का फ़ोन
आया। उन लोगो ने बताया क कोई मेरे बारे म पूछताछ कर रहे थे। मने उन लोगो को सारी
बात का ववरण दे दया। दोन ही लोग ब त खुश हो गए - दरअसल सभी को मेरी चता
खाए जाती थी। खासतौर पर मेरा बॉस - उसको लगता था क कह म वैरागी न बन जाऊं।
काम म अ ा कर लेता ँ, इस लए उसको मुझे खोने का डर लगा रहता था। इसी तरह
हाउ सग सोसाइट का से े टरी सोचता क रहता तो इतने बड़े घर म है, ले कन अकेले रहते
रहते कह उसको खराब न कर ं । ले कन, अगर म शाद कर लेता, तो उन लोगो क
अपनी अपनी चता समा त हो जाती। इस लए उन लोगो ने मौका मलते ही मेरे बारे म
जांच करने वाले को अ -अ बात बताई और मेरी इतनी बढाई कर द जैसे
मुझसे बेहतर कोई और आदमी न बना हो। शायद यही बाते ह रहर सह को भी पता चली
ह और उ ह ने अपने घर म मेरे बारे म वचार वमश कया हो।

सारे संकेत सकारा मक थे। अव य ही ह रहर सह के घर म मुझको पसंद कया गया हो।
या के फोन के बाद मुझे अब ह रहर सह के फोन का इंतज़ार था। पूरे दन इंतज़ार
कया, ले कन कोई फ न नह आया। आ खरकार, शाम को करीब तीन बजे ह रहर सह
का फोन आया।

"हे लो... अथव जी, म ह रहर सह बोल रहा ँ .."

"जी.. नम ते! हाँ... बो लए... आप कैसे ह?"

"आपसे एक ब त ज़ री बात करनी है। आप हमारे यहाँ एक बार फर से आ सकते ह?"

"जी.. बलकुल आ सकता ँ। ले कन मुझे दो दन का समय तो लगेगा। अभी कौसानी म


ही !ँ "

"कोई बात नह । आप आराम से आइये। ले कन मलना ज़ री है, य क यह बात फोन


पर नह हो सकती।"
"जी.. ठ क है" कह कर मने फोन काट दया, और मन ही मन ह रहर सह को ध कारा।
'अरे यार! यह बात सवेरे बता दे ते तो कम से कम म एक तहाई रा ता पार चुका होता अब
तक!'

खैर, इतने शाम को ाइव करना मु कल काम था, इस लए मने सुबह तड़के ही नकलने
क योजना बनाय । अपना सामान पैक कया, और रात का खाना खा कर लेटा ही था, क
मुझे फर से ह रहर सह के नंबर से कॉल आया। मने तुरंत उठाया - सरी तरफ या थी।

" या जी, आप कैसी ह?" मने कहा।

"जी..... म ठ क ँ। .... आप कैसे ह?"

"म बलकुल ठ क ँ ... आपको फर से दे खने के लए बेकरार .ँ .."

उधर से कोई जवाब तो नह आया, ले कन मुझे लगा क या शम के मारे लाल हो गयी


होगी।

" या?" मने पुकारा।

"जी... म ँ यहाँ।“

“तो आप कुछ बोलती य नह ?”

“..... आपको मालूम है क आपको पताजी ने य बुलाया है?"

"कुछ कुछ आई डया तो है। ले कन पूरा आप ही बता द जये।"

"जी... पताजी आपसे हमारे बारे म बात करना चाहते ह....." जब मने जवाब म कुछ नह
कहा, तो या ने कहना जारी रखा, ".... आप सच म मुझसे शाद करगे?"

"आपको लगता है क मने मजाक कर रहा ँ? आपसे म ऐसा मजाक य क ं गा?"


"नह नह ... मेरा वो मतलब नह था। हम लोग ब त ही साधारण लोग ह... आपके
मुकाबले ब त गरीब! और... म तो आपके लायक ब कुल भी नह ँ... न आपके जतना
पढ़ लखी, और न ही आपके तौर तरीके जानती .ँ ."

" या... शाद का मतलब अंत नह है ... यह तो हमारी शु आत है। म तो चाहता ँ क


आप अपनी पढाई जारी र खये। खूब प ढ़ए – मुझसे यादा प ढ़ए। भला म य रोकूंगा
आपको। रही बात मेरे तौर तरीके सीखने क , तो भई, मेरा तो कोई तरीका नह है... बस
म त रहता ँ! ठ क है?"

"जी..."

"तो फर ज द ही मलते ह.. ओके?"

"ओ.. के.."

"और हाँ, एक बात... आई लव यू टू "

जवाब म उधर से खल खला कर हंसने क आवाज़ आई।

अगली सुबह सूय क पहली करण के साथ ही म या से मलने नकल पड़ा। मौसम
अ ा था - हलक बा रश और मंद मंद बयार। ऐसे म तो पूरे चौबीस घंटे ाइव कया जा
सकता है। ले कन, पहाड़ पर थोड़ी मु कल आती है। खैर, मन क उमंग पर नयं ण
रखते ए मने जैसे तैसे ाइव करना जारी रखा - बीच बीच म खाने पीने और शरीर क
अ य ज रत के लए ही का। ऐसे करते ए शाम ढल गयी, ले कन फर भी या का घर
कम से कम पांच घंटे के रा ते पर था। बा रश के मौसम म, और वह भी शाम को, पहाडो
पर ाइव करने के लए ब त ही अ धक कौशल चा हए। अतः मने वह रात एक छोटे से
होटल म बताई।
अगली सुबह नहा धोकर और ना ता कर मने फर से ाइव करना शु कया और करीब
छह घंटे बाद ह रहर सह के घर प ँचा। सवेरे नकलने से पहले मने उनको फोन कर दया
था क आज ही आने वाला ँ, इस लए उनके घर पर सामा य दन से अ धक चहल पहल
दे ख कर मुझे कोई आ य नह आ। दरवाज़े पर ह रहर सह और अ नी ने मेरा वागत
कया और मुझे घर के अ दर सस मान लाया गया। घर के अ दर चार पांच बुजुग पु ष थे -
उनमे से एक तो न त प से प डत लग रहा था। जान पहचान के समय यह बात भी
साफ़ हो गयी। ह रहर सह वाकई आज मेरे ताव को अगले तर पर ले जाना चाहते थे।
उन बुजुग म दो लोग ह रहर सह के बड़े भाई थे, और बाक लोग उस समाज के मु खया
थे। भारतीय शा दयाँ, वशेष तौर पर छोट जगह पर होने वाली भारतीय शा दयाँ काफ
ज टल और पेचीदा हो सकती ह - इसका ान मुझे अभी हो रहा था।

ऐसे ही हाल चाल लेते ए दोपहर का खाना जमा दया गया। ब त ही चकर गढ़वाली
खाना परोसा गया था - पेट भर गया, ले कन मन नह । ना ता सवेरे कया था, इस लए
भूख तो जम कर लगी थी - इस लए मने तो डटकर खाया। खाना खाते ए अ य लोगो से
मेरे उ राँचल आने, मेरे पढाई और काम के वषय म औपचा रक बाते । वैसे भी उन
लोगो को अब मेरे बारे म काफ कुछ मालूम हो चुका था, बस वहां बात करने के लए कुछ
तो होना चा हए - ऐसा सोच कर बस खाना पूरी चल रही थी।

खाने के बाद अब गंभीर वषय पर चचा होनी थी।

ह रहर सह : "अथव जी, म जानता ँ क आप ब त अ े आदमी ह, और आपके जैसा


वर ढूं ढना मेरे अपने खुद के बस म संभव नह है... और म यह भी जानता ँ क आप मेरी
बेट को ब त ज मेदारी और यार से रखगे। ले कन.. यह सब बात आगे बढ़, इसके पहले
म आपको बता ं क हम लोग अपनी पर रा म ब त व ास रखते ह।"

मने सफ अपना सर सहमती म हलाया... ह रहर सह ने बोलना जारी रखा, ".... वैसे तो
हम लोग अपने समाज के बाहर अपने ब ो को नह याहते, ले कन आपक बात कुछ
और ही है। फर भी, ज म-प ी और कुंडली तो मलानी ही पड़ती है न..."

"मुझे इस बात पर कोई ऐतराज़ नह ... आप मला ली जये..." मने मन ही मन श को


उनक मूखता के लए कोसा, 'कह ये बु ा कचरा न कर दे '

"इसके लए मने पं डत जी को बुलाया था... आप अपनी ज म त थ, समय और ज म-


ान बता द जये। पं डत जी इसका मलान कर दगे।"

" बलकुल .." यह कह कर मने पं डत को अपने ज म स बं धत सारे योरे दे दए। पं डत ने


अपने मोटे -मोटे पोथे खोल कर न जाने कौन सी ाचीन, लु त ाय प त लगा कर हमारे
भ व य के लए नणय लेने क या शु कर द । यह सब करने म करीब करीब एक घंटा
लगा होगा उस मूख को। खैर, उसने अंततः घोषणा करी क लड़का और लड़क के बीच
अ कूट मलान छ बीस ह, और यह ववाह ेय कर है। यह सुनते ही वहां उप त सभी
लोगो म ख़ुशी क लहर दौड़ गयी - खासतौर पर मुझम। चूं क घर क सारी याँ और
लड़ कयां घर के अ दर के कमर म थ , इस लए मुझे उनके हाव-भाव का पता नह ।

खैर, इस घोषणा के बाद ह रहर सह और उनक प नी दोन ने मुझे कुस पर आदर से


बठा कर मेरे म तक पर तलक लगाया और मठाई खलाई। मुझे तो कुछ समझ नह आ
रहा था क यह सब या हो रहा था - खैर, म भी बहती धारा के साथ बहता जा रहा था।
ऐसे ही कुछ लोगो ने ट का इ या द कया - अभी यह या चल ही रही थी क बैठक म
या आई। उसने लाल रंग क साड़ी पहनी ई थी - शायद अपनी माँ क । ह री तय म
लाल रंग संभवतः सबसे शुभ माना जाता है। इस लए शाद याह के मामल म लाल रंग क
ही ब तायत है। साड़ी का प लू उसके सर से होकर चेहरे पर थोड़ा नीचे आया आ था -
इतना क जससे आँख ढँ क जाए।

' या बकवास!' मने मन म सोचा, 'इतना र आया... और चेहरा भी नह दे ख सकता ..!'

या को मेरे बगल म एक कुस पर बैठाया गया। वहां बैठे सम त लोगो के सामने हम दोन
का व धवत प रचय दया गया। उसके बाद पं डत ने घोषणा करी क वर (या न क म),
वधु (या न क या) से ववाह करने क इ ा रखता ँ और यह क दोन प रवार के और
समाज के व र जनो ने इस ववाह के लए सहम त दे द है। उसके बाद सभी लोगो ने हम
दोन को अपनी हा दक बधाइयाँ और आशीवाद दए। मने और या ने एक सरे को
मठाई खलाई।

पं डत ने एक और दल तोड़ने वाली बात क घोषणा क - यह क अभी चातुमास चल रहा


है, इस लए ववाह क त थ नव बर म न त है। मेरा मन आ क इस बुढऊ का सर तोड़
दया जाए। खैर, कुछ कया नह जा सकता था। बस इ तजार करना पड़ेगा। यह भी तय
आ क शाद पारंप रक री त के साथ क जायेगी। यह सब होते होते शाम ढल गयी। उन
लोगो ने रात म वह कने का अनुरोध कया, ले कन मने उनसे वदा ली, और अपने पहले
वाले होटल म रात गुजारी। होटल के मा लक ने मुझे बधाई द और मुझे मु त म रात का
खाना खलाया।
सवेरे उठने के साथ मने सोचा क अब आगे या कया जाए! शाद के लए छु तो लेनी
ही पड़ेगी, तो य न यह छु याँ बचा ली जाए, और वापस चला जाया जाए। इस समय का
उपयोग घर इ या द जमाने म कया जा सकता था। अतः मने सवेरे ही ह रहर सह के घर
जा कर अपनी यह मंशा उनको बतायी। उ ही के यहाँ खाना इ या द खा कर मने वापसी का
ख लया। ःख क बात यह क जाते समय या से बात भी न हो सक और न ही
मुलाकात।

'द कयानूसी क हद!' खैर, या कर सकते ह!

वापस कब घर आ गया, कुछ पता ही नह चला। समय कहाँ उड़ गया - बस खयालो क


नया म ही घूमता रहा। कुछ याद नह क कब ाइव करके वापस दे हरा न प ँचा और
कब वापस घर!

या के लए मेरे ेम ने मुझे पूरी तरह से बदल दया था। सुना था, क लोग ेम के च कर
म पड़ कर न जाने कैसे हो जाते ह, ले कन कभी यह नह सोचा था क मेरा भी यही हाल
होगा। घर प ँचने के बाद म जो भी कुछ कर रहा था, वह सब या को ही यान म रख कर
कर रहा था। बेड म क सजावट कैसी हो, उसी तज पर नया बेड और नयी अलमा रयां
खरीद , खड कय के परदे और द वार क सजावट सब बदलवा द । मुझे जानने वाले
सभी लोग आ यच कत थे। इन कुछ महीन म मने या या कया, उसका यौरा तो नह
ं गा, ले कन अगर कुछ ही श द म बयान करना हो तो बस इतना कहना काफ होगा क
' यार म होने' का एहसास गज़ब का था। ऐसा नह था क म और या फोन पर दन रात
लगे रहते थे - वा त वकता म इसका उ टा ही था। ववाह के अंतराल तक हमारी मु कल
से पांच-छः बार ही बात ई थी, और वह भी न त तौर पर उसके प रवार वालो के
सामने। लहाज़ा, मला-जुला कर कोई पांच-छः मनट! बस! ले कन फर भी, उसक
आवाज़ सुन कर नया भर क एनज भर जाती मुझमे, जो उसके अगले फोन तक
मुझको जला दे ती। मेरा सचमुच का कायाक प हो गया था।

अंततः वह दन भी आया जब मुझे या को याहने उसके घर जाना था। नकलने से पूव,


एक इवट आगनाइजर को बुला कर ववाहोपरांत रसे शन भोज के नदश दए और घर क
चा बयाँ हाउ सग सोसाइट के से े टरी को स प कर वापस उ राँचल चल पड़ा।

बरात के नाम पर मेरे दो ब त ही ख़ास दो त आ सके। खैर, मुझे बरात जैसे तमाश क
आव यकता भी नह थी। कोट म ज़ री कागजात पर ह ता र करना मेरे लए काफ था।
ववाह, दरअसल मन से होता है, नौटं क से नह । मं पढने, आग के सामने च कर लगाने
से ववाह म ेम, आदर और स मान नह आते – वो सब यास कर के लाने पड़ते ह।
ले कन म यह सब उनके सामने नह बोल सकता था – उन सबके लए अपनी बड़ी लड़क
का ववाह करना ब त ही बड़ी बात थी, और वो सभी इस अवसर को अ धक से अ धक
पारंप रक तौर-तरीके से मनाना चाहते थे। मेरे म ने दे हरा न से वयं ही गाड़ी चलाई,
और मुझे नह चलाने द । उस कसबे म सबसे अ े होटल म हमने कमरे बुक कर लए थे,
जससे कोई क ठनाई नह ई।

ववाह स ब ी या व धयां और सं कार, शाद के दो दन पहले से ही ारंभ हो गयी -


यादातर तो मुझे समझ ही नह आय , क य क जा रही ह। पारंप रक बाजे गाजे,
संगीत इ या द कभी मनोरम लगते तो कभी बेहद चढ़ पैदा करने वाले! कम से कम एक
दजन, ल बी चौड़ी ववाह री तयाँ (मुझे नही लगता क आपको वह सब व तार म जानने
म कोई च होगी) संप , तब कह जाकर मुझे या को अपनी प नी कहने का
अ धकार मला। यह सब होते होते इतनी दे र हो चली थी क मेरा मन आ क बस अब
जाकर सो जाया जाए। ऐसी हालत म भला कौन आदमी सहवास अथवा सुहागरात के बारे
म सोच सकता है! मने अपनी घड़ी पर नज़र डाली, दे खा अभी तो मु कल से सफ दस
बज रहे थे - और मुझे लग रहा था क रात के कम से कम दो बज रहे ह गे। स दय म
शायद पहाड़ पर रात ज द आ जाती है, जसक मुझे आदत नह थी। खैर, अगले आधे
घंटे म हमने खाना खाया और शुभ चतक से बधाइयाँ वीकार कर, वदा ली।

खैर, तो मेरी सुहागरात का समय आ ही गया, और या जैसी परी अब पूरी तरह से मेरी है
- यह सोच सोच कर म ब त खुश हो रहा था। अब भई यहाँ मेरी कोई भाभी या बहन तो
थी नह – अ यथा सोने के कमरे म जाने से पहले चुंगी दे नी पड़ती। मुझे अ नी ने सोने के
कमरे का रा ता दखाया। मने उसको गुड नाईट और ध यवाद कहा, और कमरे म वेश
कया। हमारे सोने का इ तेजाम उसी घर म एक कमरे म कर दया गया था। यह काफ
व त कमरा था - उसमे दो दरवाज़े थे और एक बड़ी खड़क थी। कमरे के बीच म
एक पलंग था, जो ब त चौड़ा नह था (मु कल से चार फ ट चौड़ा रहा होगा), उस पर एक
साफ़, नयी च र, दो त कये और कुछ फूल डाले गए थे। या उसी पलंग पर अपने म ही
समट कर बैठ ई थी। या ने लाल और सुनहरे रंग का शाद म हन ारा पहनने वाला
जोड़ा पहना आ था। म कमरे के अ दर आ गया और दरवाज़े को बंद करके पलंग पर बैठ
गया। पलंग के बगल एक मेज रखी ई थी, जस पर मठाइयाँ, पानी का जग, गलास,
और अगरब यां लगी ई थी। पूरे कमरे म एक मादक महक फैली ई थी। बाहर हांला क
ठं डक थी, ले कन इस कमरे म ठं डक नह लग रही थी।
' या सोच रही होगी ये? या इसके भी मन म आज क रात को लेकर कामुक भावनाए
जाग रही ह गी?'

म यही सब सोचते ए बोला - " या ..?"

"जी"

"आई लव यू....."

जवाब म या सफ मु कुरा द ।

"म आपका घूंघट हटा सकता ?ँ " या ने धीरे से हाँ म सर हलाया।

मने धड़कते दल से या का घूंघट उठा दया - बेचारी शम से अपनी आँख बंद कये बैठ
रही। अपने साधारण मेकअप और गहन (माथे के ऊपरी ह से से होती ई बद , म तक
पर बद , नाक म एक बड़ा सा नथ, कानो म झुमके) और केस रया स र लगाई ई होने
पर भी या ब त सु दर लग रही थी - व तुतः वह आज पहले से अ धक सु दर लग रही
थी। उसके दोन हाथ म कोहनी तक मेहंद क व भ कार क डज़ाइन बनी ई थी,
और कलाई के बाद से लगभग आधा हाथ लाल और वण रंग क चू ड़य से सुशो भत था।
उसके गले म तीन तरह के हार थे, जनमे से एक मंगलसू था।

" लीज अपनी आँख खोलो..." मने कम से कम तीन-चार बार उससे बोला तब कह उसने
अपनी आँख खोली। आख खुलते ही उसको मेरा चेहरा दखाई दया।

' या सोच रही होगी ये? और या सोचेगी? शायद यही क यह आदमी इसका कौमाय भंग
करने वाला है।'

यह सोचकर मेरे ह ठ पर एक व मु कान आ गयी। ऐसा नह है क या को पाकर म


उसके साथ सफ सहवास करना चाहता था – ले कन सुहागरात के समय मन क दशा न
जाने कैसी हो जाती है, क सफ सहवास का ही ख़याल रहता है। या ने दो पल मेरी
आँख म दे खा – संभवतः उसको मेरे पौ ष, और मेरी आँख म कामुक व ास और
संक प का आभास हो गया होगा, इसी लए उसक आँख तुरंत ही नीचे हो गय ।

"मे आई कस यू?" मने पूछा।

उसने कुछ नह बोला।

"ओके। यू कस मी।" मने आदे श दे ने वाली आवाज़ म कहा।

या एक दो सेकंड के लए हच कचाई, फर आगे क तरफ थोडा झुक कर मेरे ह ठो पर


ज द से एक चु बन दया, और उतनी ही ज द से पीछे हट गयी। उसका चेहरा अभी और
भी नीचे हो गया।

'भला यह भी या कस आ' मने सोचा और उसके चेहरे को ठु ी से पकड़ कर ऊपर


उठाया।

कुछ पल उसके भोले स दय को दे खता रहा और फर आगे क ओर झुक कर उसके ह ठो


को चूमना शु कर दया। यह कोई गम या कामुक चु बन नह था - ब क यह एक
नेहमय चु बन था - एक ब त ही ल बा, नेहमय चु बन। मुझे समय का कोई यान नह
क यह चु बन कब तक चला। ले कन अंततः हमारा यह पहला चु बन टू टा।

ले कन, बेचारी या का हाल इतने म ही ब त बुरा हो चला था - वह बुरी तरह शमा कर


कांप रही थी, उसके गाल इस समय सुख लाल हो चले थे और साँसे भारी हो गयी थी।
संभवतः यह उसके जीवन का पहला चु बन रहा होगा। उसक नाक का नथ हमारे चु बन
म परेशानी डाल रहा था, इस लए मने आगे बढ़कर उसको उतार कर अलग कर दया। ऐसा
करने ए मुझे सहसा यह एहसास आ क थोड़ी ही दे र म इसी कार या के शरीर से
धीरे-धीरे करके सारे व उतर जायगे। मेरे मन म कामुकता क एक लहर दौड़ गयी।

" या?"

"जी?"
"आपको इं लश आती है?"

"थोड़ी-थोड़ी ... आपने य पूछा?"

" बकॉज़, आई वांट टू सी यू नेकेड" मने उसके कान के ब त पास आकर फुसफुसाती
आवाज़ म कहा।

"जी?" उसक ब त ही भयभीत आवाज़ आई।

"म आपको बना कपड़ो के दे खना चाहता "ँ मने वही बात ह द म दोहरा द , और
उसको आँख गड़ा कर दे खता रहा। वह बेचारी घबराहट और शम के मारे कुछ भी नह बोल
पा रही थी। मने कहना जारी रखा, "म आपके सारे कपड़े उतार कर, आपके तना चूमूंगा,
आपके बम और े ट् स को दबाऊँगा और फर आपके साथ ज़ोरदार सहवास क ं गा..."

मेरी खुद क आवाज़ यह बोलते बोलते ककश हो गयी, और मेरे श म उ ान आना शु


हो गया।

" ीईई .. म मुझे ब त डर लग रहा है" बड़े जतन से वह सफ इतना ही बोल पाई।

"आई कैन अंडर टड दै ट डअर। म आपको कसी भी ऐसी चीज़ को करने को नह क ँगा,
जसके लए आप रेडी नह ह।"

या ने समझते ए ब त धीरे से सर हलाया। कुछ कहा नह ।

मने उसक लाल गोटे दार साड़ी का प लू उसक छाती से हटा दया। लाल रंग के ही
लाउज म कैद उसके युवा तन, उसक तेज़ी से चलती साँस के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे
थे। मेरा ब त मन आ क उसके कपड़े उसके शरीर से चीर कर अलग कर ँ , ले कन मेरे
अ दर उसके लए यार और ज मेदारी के एहसास ने मुझे ऐसा करने से रोक लया।
लहाज़ा, मेरी ग त ब त ही मंद थी। वैसे मेरे खुद के हाथ कांप रहे थे, ले कन मने यह
न य कया था क इस परम सुंदरी परी को आज म यार कर के र ँगा।
मने उसक साड़ी को उसक कमर म बंधे पेट कोट से जैसे तैसे अलग कर दया और उसके
शरीर से उतार कर नीचे फक दया। इस समय वह सफ लाउज और पेट कोट म बैठ ई
थी। मेरी अगली वाभा वक पसंद (उतारने के लए) उसका लाउज थी। कतनी ही बार
मने क पना कर कर के सोचा था क मेरी जान के तन कैसे ह गे, और इस समय मुझे
ब त मन हो रहा था क उसके तन के दशन हो ही जाएँ। म कांपते ए हाथ से उसके
लाउज के बटन धीरे-धीरे खोलने लगा। करीब तीन बटन खोलने के बाद मुझे अहसास
आ क उसने अ दर ा नह पहनी है।

"आप ा नह पहनती?" मने बेशम से पूछ ही लया।

या घबराहट और शम के मारे कुछ भी नह बोल पा रही थी। उसका चेहरा नीचे क तरफ
झुका आ था, मानो वह उसके लाउज के बटन खोलते मेरे हाथ को दे ख रही हो। उसक
तेज़ी से चलती साँसे और भी तेज़ होती जा रही थी। उसने उ र म सफ न म सर हलाया -
और वह भी ब त ही हलके से। खैर, यह तो मेरे लए अ ा था - मुझे एक कपड़ा कम
उतारना पड़ता। मने उसक लाउज के बचे ए दोन बटन भी खोल दए। उसक वचा
शम या उ ेजना के कारण लाल होती जा रही थी। मने अंततः उसके लाउज के दोन पट
अलग कर दए, और मुझे उसके तन के दशन हो गए।

या के तन अभी भी छोटे थे - म यम आकार के सेब जैसे, और ठोस। उसक वचा


एकदम दोषर हत थी। उन पर गहरे भूरे रंग के अ यंत आकषक तना ( तना ) थे,
जनका आकार अभी छोटा लग रहा था। म हला के तन बढती उ , मोटापे, अ मता
और गु व के मले जुले कारण से बड़े हो जाते ह, और कई बार भा यपूण तरीक से नीचे
लटक से जाते ह। ले कन या इन सब भाव से र, अभी अभी यौवन क दहलीज़ पर
आई थी। लहाज़ा, उसके तन पर गु व का कोई भाव नह था, और उसके तना
भू म के सामानांतर ही सामने क ओर नकले ए थे। या के तन उसक तेज़ी से चलती
साँस के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे थे। यह सारा नज़ारा दे ख कर मुझे नशा सा आ गया -
वाकई इन तन को कसी भी ा क ज़ रत नह थी।

" या ... यू आर सो ीट ! आप मेरे लए नया क सबसे सु दर लड़क ह!" यह सब


कहना वयं म ही कतना उ ेजनापूण था - खास तौर पर तब, जब यह सारी बात सच थी।

मुझसे अब और रहा नह जा रहा था। उसके जवान, ठोस तन पर मने अपने मुंह से
हमला कर दया। मेरा सबसे पहला एहसास उसके तन क महक का था - आ जैसी
महक! उसके चकने तना पहले मुलायम थे, ले कन मेरे चूसे और चुभलाए जाने से कड़े
होते जा रहे थे। मेरे इस या कलाप का सकारा मक असर या पर भी पड़ रहा था,
य क उसके हाथ ने मेरे सर को उ मा दत होकर पकड़ लया था। मने कुछ दे र तक
उसके तन को ऐसे ही लार कया - ले कन इतना होते होते या और मेरा, दोन का ही,
गला एकदम शु क हो गया। मने क कर पास ही रखे गलास से पानी पया और या को
भी पलाया। उसके बाद मने उसके लाउज को उसके शरीर से अलग कर के ज़मीन पर
फक दया। ऐसा होते ही मेरी जान अपने म ही समट गयी और अपने हाथो से अपनी
न नाव ा को छु पाने क को शश करने लगी। चू ड़य और मेहंद से भरे हाथो से ऐसा
करते ए वह और भी यारी लग रही थी। मने उसके हाथ हटाने क को शश नह क ,
ले कन उसके चेहरे को अपने दोन हाथ म लेकर उसके ह ठ पर एक गहरा चु बन दया,
और फर सल सलेवार तरीके से चु बन क बौछार कर द ।

शु म उसका शरीर, ह ठ, चेहरा - सब कुछ - एकदम से कड़ा हो गया, शायद नवस होने
से ... ले कन चु बन क सं या बढ़ते रहने से वह भी धीरे-धीरे शांत होने लगी। उसने मेरी
आँख म दे खा, और फर आँख बंद कर के चु बन म यथासंभव सहयोग दे ने लगी। उसके
ह ठ गम और मुलायम थे - एकदम शानदार! चु बन करते ए म अपनी जीभ को उसके
मुंह म डालने का यास करने लगा। संभवतः उसको यह बात समझ म आ गयी - उसने
अपने ह ठ ज़रा से खोल दए। मने ब त सावधानीपूवक अपनी जीभ उसके मुंह म व
कर द । एक बात और ई, उसने अपने हाथ अपने सीने से हटा कर, मुझे अपनी बाह म
भर लया। या के मुंह का वाद ब त अ ा था - हलक सी मठास लए ए। म बयान
नह कर सकता क यह अनुभव कतना ब ढ़या था। यह एक कामुक चु बन था, जसके
उ माद म अब हम दोन ही बहे जा रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से हट कर उसक कमर पर
चले गए और वहां से धीरे धीरे उसके नत ब पर। मेरी उ ेजना मुझे या को अपनी तरफ
भ चने को मजबूर कर रही थी। मने उसको अपनी तरफ खीच लया - मुझे अपने सीने पर
या के तन का एहसास होने लगा। इस तरह से या को चूमना और भी सुखद लग रहा
था।

खैर, ऐसे ही कुछ दे र चूमने के बाद हम दोन के मुंह अलग ए। मने या क कमर पर
नज़र डाली - उसके पेट कोट का नाड़ा ढूँ ढने के लए। नाड़ा उसक कमर से बाएं तरफ था,
जसको मने तुरंत ही खीच कर ढ ला कर दया। अब पेट कोट उसके शरीर पर नाम-मा
के लए ही रह गया। इस लए मने उसको उतारने म ज़रा भी दे र नह क । ले कन मेरी इस
ज दबाजी म या ब तर पर चत होकर गर गयी। पेट कोट के उतरते ही उसने अपना
चेहरा अपने हाथ से ढक लया - शायद अब उसको अपने तन के दशन पर उतना
ऐतराज़ नह था, ले कन ऐसी न नाव ा म वह मुझे अपना चेहरा नह दखाना चाहती थी।
मेरी आशा के वपरीत, या ने च ी पहनी ई थी। उसका रंग काला था। उसमे कुछ भी
उ लेखनीय नह था - बस रोज़मरा पहनी जाने वाली साम य सी च ी थी - हाँ एक बात है -
च ी नयी थी। सामने से दे खने पर उसक च ी अं ेजी के "वी" जैसी, कमर क तरफ
फैलाव लए और वहां, जहाँ पर उसक यो न थी, एक सौ य उभार लए ए थी। या के
नत ब यो चत फैलाव लए ए तीत होते थे, ले कन उसका कारण यह था क उसक
कमर पतली थी। उसके शरीर का आकर व तुतः एक कम सन, छरहरी और त ण लड़क
जैसा था।

मने और नीचे नज़र डाली। या के दोन पाँव भी मेहंद से आ लकृत थे। दोन ही टखन म
चांद क पायल थ । उसके पैर म मने ही ब छया पहनाई थी। उसके दोन पाँव क नचली
प र ध लाल रंग से रंगे ए थे। मेरी वापस उसके यो न े पर चली गयी। मेरा मन
आ क उसक च ी भी उतार द जाए - मेरे लग का त न और कसाव बढ़ता ही जा
रहा था, और म अब या के अ दर समा हत होने के लए ाकुल आ जा रहा था।
ले कन मुझे अभी कुछ और दे र उसके साथ खेलने का मन हो रहा था। मने पलंग पर या
के काफ पास अपने घुटने पर बैठ कर, अपना कुरता उतार दया। अब मने सफ चूड़ीदार
पजामा और उसके अ दर लम फट च ी पहनी ई थी।

" या ..?" मने उसको आवाज़ लगाई।

"जी?" ब त दे र बाद उसने अपना चेहरा ढके ए ही बोला।

"आपको मेरा एक काम करना होगा ...." मेरे आगे कुछ न बोलने पर उसने अपने चेहरे से
हाथ हटा कर मेरी तरफ दे खा।

"जी ... बो लए?" मेरे कसरती शरीर को दे ख कर उसको और भी ल ा आ गयी, ले कन


इस बार उसने छु पने का यास नह कया।

"अपने हाथ मुझे द जये" उसने थोडा सा हचकते ए अपने हाथ आगे बढ़ाए, जनको मने
अपने हाथ म थाम लया, और फर अपने पजामे के कमर के सामने वाले ह से पर रख
दया।
"यह पजामा आपको उतारना पड़ेगा। आपके कपडे उतार-उतार कर म थक गया।" मने
मु कुराते ए उससे कहा।

उसने पहले तो थोड़ा सा संकोच दखाया, ले कन फर मेरी बात मान कर इस काम म लग


गयी। उसने ब त सकुचाते ए मेरे पजामे का नाड़ा ढ ला कर दया और मेरे पजामे को धीरे
से सरका दया। मेरी च ी के अ दर मेरा लग बुरी तरह कस जा रहा था, और अब मेरा मन
था क लग को मेरी च ी के बंधन से अब मु कर या के नरम, गरम और आरामदायक
गहराई म समा हत कर दया जाए। मेरी च ी के व को बुरी तरह से धकेलते मेरे लग को
या भी बड़े कौतूहल से दे ख रही थी।

"इसे भी ..." मने उसको उकसाया।

या को फर से घबराहट होने लग गयी.. उसने न म सर हलाया। यह दे ख कर मने उसके


हाथ पकड़ कर जबरद ती अपनी च ी क इला टक पर रख दया और उसको नीचे क
तरफ खीच दया। और इसके साथ ही मेरा अ त-उ े जत लग मु हो गया।

"बाप रे!" या के मुंह से नकल ही गया, "इतना बड़ा!"

या क मेरे कस के तने ए लग पर जमी ई थी।

जैसा क मने पहले भी उ लेख कया है, मेरा शरीर शरीर इकहरा और कसरती है। और
उसम से इतने गव से बाहर नकले ए मेरा लग दे खकर वह न त प से घबरा गयी
थी। च ी नीचे सरकाने क या म मेरे लग का श छद वयं ही थोड़ा पीछे सरक
गया और लग के आगे का गुलाबी चमकदार ह सा कुछ-कुछ दखाई दे ने लगा। या को
मेरे लग को इस कार दे खते ए दे ख कर मेरा शरीर कामा न से तपने लग गया -
संभवतः या भी इसी तरह क तपन खुद भी महसूस कर रही थी।

उसको अचानक ही अपनी कही ई बात, अपनी त, और अपने साथ होने वाले या
कलाप का यान हो आया। उसने ल ा से अपना मुंह त कये म छु पा लया। ले कन
उसका हाथ मु था - मने उसको पकड़ कर अपने लग पर रख दया। उसक हथेली मेरे
लग के गद लपट गई। घेरा पूरा बंद नह आ। मेरा संदेह सही था - या का हाथ तप
रहा था। उसके हाथ को पकडे-पकडे ही मने अपने लग को घेरे म ले लया और ऐसे ही घेरे
ए अपने हाथ को तीन चार बार आगे पीछे कया, और अपना हाथ हटा लया। या अभी
भी मेरे लग को पकडे ए थी, हाँला क वह आगे पीछे वाली या नह कर रही थी। मेरे
लग क ल बाई का कम से कम आधा ह सा उसके हाथ क पकड़ से बाहर नकला आ
था। ले कन इस तरह से सजे ए कोमल हाथ से घरा आ मेरा लग मुझे ब त अ ा लग
रहा था।

"जी.... हम शरम आती है" उसने अंततः त कये से अपना चेहरा अलग करके कहा। उसक
आवाज़ पहले जैसी मीठ नह लगी - उसमे अब एक तरह क ककशता थी - मने सोचा क
शायद वह खुद भी उ े जत हो रही है। लहाजा मने इस त य को नज़रंदाज़ कर दया।

"अपने प त से शम? म ... च लए, आपक शम र कर दे ते ह।" कहते ए मने उसक


च ी को नीचे सरका द । मेरी इस हरकत से या शरम से दोहरी होकर अपने म ही समट
गयी। कहाँ मने उसक शरम मटानी चाही थी, और कहाँ यह तो और भी अ धक शरमा
गयी। कोई दो पल बाद ही मुझे उसका शरीर थरकता आ लगा - ठ क वैसे ही जैसे
सुबकने या सस कयाँ लेते समय होता है। मारे गए..... संभवतः मेरी हरकत ने उसक
भावनाओ को कसी तरह से ठे स पं चा द थी।

" या ..."

कोई उ र नह ! मेरे मन म अब उधेड़बुन होने लगी - ' या यार! सब कचरा हो गया। एक


तो यह एक छोट सी लड़क है, और ऊपर से इतने धम-कम मानने वाले प रवार से। इसको
आज तक शायद ही कसी लड़के ने छु आ हो। मेरी ज दबाजी और जबरद ती ने सारा
मज़ा खराब कर दया।'

सारा मज़ा सचमुच ख़राब हो चला था - मेरा लगो ान तेज़ी से घटने लग गया। खैर अभी
इस बात क चता नह थी। चता तो यह थी, क जस लड़क को म ेम करता ,ँ वह मेरे
ही कारण खी हो गयी थी। अब यह मेरा दा य व था क म उसको मनाऊँ, और अगर
क मत ने साथ दया तो संभवतः सहवास भी कया जा सके। म या के बगल ही लेट
गया, और यार से उसको अपनी बाह म भर लया। थोड़ी दे र पहले उसका तपता शरीर
अपे ाकृत ठं डा लग रहा था। अ ा, एक बात बताना तो भूल ही गया - म पलंग पर अपने
बाएं करवट पर लेटा आ था, और या मेरे ही तरफ मुंह छु पाए लेट ई थी।
" या ... मेरी बात सु नए, लीज!"

उसने मेरी तरफ दे खा - मेरा शक सही था, उसक आँख म आँसू उमड़ आये थे, और
उसके काजल को अपने साथ ही बहाए ले जा रहे थे।

" ह .... लीज मत रोइये। मेरा आपको ठे स प चाने का कोई इरादा नह था। आई ऍम
सो सॉरी! ऑने टली ! मने आपको ो मस कया था क म आपको कसी भी ऐसी चीज़
को करने को नह क ँगा, जसके लए आप रेडी नह ह। शायद इसके लए आप रेडी नह
ह। म आपको ब त यार करता ,ँ और आपको कभी खी नह दे ख सकता।"

ऐसी बाते करते ए म या को चूमते, सहलाते और लारते जा रहा था, जससे उसका
मन बहल जाए और वह अपने आपको सुर त महसूस करे।

मेरा मनाना न जाने कतनी दे र तक चला, खैर, उसका कुछ अनुकूल भाव दखने लगा,
य क या ने अपने म समटना छोड़ कर अपने बाएँ हाथ को मेरे ऊपर से ले जाकर मुझे
पकड़ लया - अध-आ लगन जैसा। उसके ऐसा करने से उसका बायाँ तन मेरी ही तरफ
उठ गया। मेरा मन तो ब त आ क पुनः अपने कामदे व वाले बाण छोड़ना शु कर ं ,
ले कन कुछ सोच कर ठहर गया।

"अगर आप चाह, तो हम लोग आज क रात ऐसे ही लेटे रह कर बात कर सकते ह।"

उसने मुझे वाचक से दे खा।

"ऐसा नह है क म आपके साथ सहवास नह करना चाहता - अरे म तो ब त चाहता ँ।


ले कन आपको खाने के एवज़ म नह । जब तक आप खुद क फ़टबल न हो जाएँ, तब
तक मुझे नह करना है यह सब ..."

मेरी बातो म स ाई भी थी। शायद उसने उस स ाई को दे ख लया और पढ़ भी लया।

"नह ... आप मेरे प त ह, और आपका अ धकार है मुझ पर। और हम भी आपको ब त


यार करते ह और आपका दल नह खाना चाहते। म डर गयी थी और ब त नवस हो
गयी थी।" उसक आँख से अब कोई आंसू नह आ रहे थे।
'सचमुच कतनी यादा यारी है यह लड़क !' मने ेम के आवेश म आकर उसक आँख
कई बार चूम ली।

"आई लव यू सो मच! और इसम अ धकार वाली कोई बात नह है। हम दोन अब लाइफ
पाटनर ह – बराबर के। म आपके साथ कोई जबरद ती नह कर सकता ँ।"

"नह ..........” वह थोडा कते ए बोली, “आपको मालूम है क मने कभी शाद के बारे म
सोचा ही नह था। सोचती थी, क खूब पढ़ लख कर माँ, पापा और अ नी को सहारा
ँ गी। माँ और पापा ब त मेहनत करते ह, ले कन यहाँ पहाड़ो म उस मेहनत का फल नह
मलता। ...... ले कन, फर आप आये - और मेरी तो सुध बुध ही खो गयी। सब कुछ इतना
ज द आ है क म खुद को तैयार ही नह कर सक ..."

मने समझते ए कहा, " या, मने आपसे पहले भी कहा है क म आपको पढने लखने से
नह रोकूंगा। म तो चाहता ँ क आप अपने सारे सपने पूरे कर सक। बस, म उन सारे
सपनो का ह सा बनना चाहता ँ।"

या ने अपनी झील जैसी गहरी आँख से मुझे दे खा - बना कुछ बोले। उसने अपनी उं गली
से मेरे गाल को हलके से छु आ - जैसे छोटे ब े जब कसी नयी चीज़ को दे खते ह, तो
उ सुकतावश उसको छू ते ह। "आपसे एक बात पूछूँ?" आ खरकार उसने कहा।

"हाँ .. पू छए न?"

"आपके जीवन म ब त सी लड़ कयां आई ह गी? ... दे खये सच बताइयेगा!"

"हाँ ... आई तो थ । ले कन मने उनके अ दर जस तरह क बेईमानी और अमानवता दे खी


है, उससे मेरा ी जा त से मानो व ास ही उठ गया था। शु शु म मीठ मीठ बाते
वाली लड़ कय क हक कत पर से जब पदा हटता है, तो दल टू ट जाता है। फर मने
आपको दे खा ... आपको दे खते ही मेरे दल को ठ क वैसे ही ठं डक प ंची, जैसे धूप से बुरी
तरह तपी ई ज़मीन को बरसात क पहली बूंदो के छू ने से प ंचती होगी। आपको दे ख कर
मुझे यक न हो गया क आप ही मेरे लए बनी ह - और आपका साथ पाने के लए म
अपनी पूरी उ इंतज़ार कर सकता था।" मेरे बोलने का तरीका और आवाज़ ब त ही
भावना मक हो चले थे।
यह सब सुन कर या ने मेरे चेहरे को अपने हाथ म ले लया और मेरे ह ठो पर एक छोटा
सा मीठा सा चु बन दे दया।

"आई लव यू ...." उसने ब त धीरे से कहा, ".... म आपसे एक और बात पूछूं? .... आपने
... आपने कभी.... पहले भी .... आपने कभी सहवास कया है?" या ने ब त हच कचाते
ए पूछा।

"नह ... मने कभी कसी के साथ सहवास नह कया।"

यह बात आं शक प से सच थी - ऐसा नह है क मने मेरी भूतपूव म हला म के साथ


कसी भी तरह का कामुक स ब नह बनाया था। मेरा यह मानना था क य द कसी
चीज़ म समय और धन का नवेश करो, तो कम से कम कुछ याज़ तो मलना ही चा हए।
इस लए, मने कम से कम उन सभी के तन का मदन और चूषण तो कया ही था। एक के
साथ बात काफ आगे बढ़ गयी थी, तो उसके दोन तन के बीच म अपने लग को फंसा
कर मैथुन का आनंद भी उठाया था, और एक अ य ने मेरे लग को अपने मुंह म लेकर मुझे
परम सुख दया था। ले कन कभी भी कसी भी लड़क के साथ यो न मैथुन नह कया।

मने कहना जारी रखा, "...... कुछ एक के साथ म लोज था, ले कन उनके साथ भी ऐसा
कुछ नह कया है। मेरा यह मानना है क फ ट-टाइम सहवास को एक ेशल दन और
एक ेशल लड़क के लए बचा कर रखना चा हए।"

........... या चुप रही ... ले कन उसके चेहरे पर एक गव का भाव मुझे दखा।

"और म सोच रहा था क वह ेशल दन आज है .... या म सही सोच रहा ?ँ " मने
अपनी बात जारी रखी।

या ने कुछ दे र सोचा और फर धीरे से कहा, "जी .....? हाँ ... ले कन .. ले कन मुझे


लगता नह क 'ये' मेरे अ दर आ पायेगा।"

"वह मुझ पर छोड़ दो ... बस यह बताइए क या हम आगे शु कर ..?" मने पूछा, तो


उसने सर हला कर हामी भरी।
मेरा मन ख़ुशी के मारे नाच उठा। बीवी तो तैयार है, ले कन मुझे सावधानी से आगे बढ़ना
पड़ेगा। इसके लए मुझे इसके सबसे संवेदनशील अंग को छे ड़ना पड़ेगा, जससे यह खुद
भी उतनी कामुक हो जाए क मना न कर सके। इसके लए मने या के तन पर अपना
दाँव फर से लगाया। जैसा क मने पहले भी बताया है क या के तन अभी भी छोटे थे -
म यम आकार के सेब जैसे और उन पर गहरे भूरे रंग के अ यंत आकषक तना थे।
वाकई उसके तन ब त यारे थे .... खास तौर पर उसके तना । इतने यारे और वा द ,
जैसे क टड भरी कटोरी पर चेरी सजा द गयी हो। उसके तन को अगर पूरी उ भर चूसा
और चूमा जाए, तो भी कम है।

अतः मने यही काय म ारंभ कर दया। मने पहले या के बाएं तना को अपनी जीभ
से कुछ दे र चाटा, और फर उसको मुंह म भर लया। या के मुह से हलक ससकारी
नकल पड़ी। म बारी बारी से उसके दोन तन को चूसता जा रहा था। जब म एक तन
को अपने ह ठो और जीभ से लारता, तो सरे को अपनी उँ ग लय से। साथ ही साथ मने
अपने खाली हाथ को या क यो न को टटोलने भेज दया। या के समतल पेट से होते
ही मेरा हाथ उसक यो न ल पर जा प ंचा। उसक यो न पर बाल तो थे, ले कन वह
अभी घने बलकुल भी नह थे। यो न पर हाथ जाते ही कुछ गीलेपन का एहसास आ।
कुछ दे र तक मने उसक यो न के दोन ह ठ , और उसके भगनासे को सहलाया, और फर
अपनी उं गली या क यो न म धीरे से डाल द । मेरे ऐसा करते ही या हांफ गयी। उं गली
मु कल से बस एक इंच जतनी ही अ दर गयी होगी, ले कन उसके यौवन का कसाव
इतना अ धक था, क या को ह का सा दद महसूस आ। उसके गले से आह नकल
गयी।

मने अपनी उं गली रोक ली, ले कन उसको यो न से बाहर नह नकलने दया। साथ ही साथ
उसके तन का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मनट म मने महसूस कया क या अब
तनाव-मु हो गयी है। मने धीरे धीरे अपनी उं गली को उसक यो न के अ दर बाहर करना
शु कर दया। इन सभी या का स म लत असर यह आ क या अब काफ
न त हो गयी थी और उसक यो न कामरस क बरसात करने लगी। मेरी उं गली पूरी
तरह से भीग चुक थी और आसानी से अ दर बाहर हो पा रही थी।

उं गली अ दर बाहर होते ए मु कल से दो मनट ए ह गे क इतने म ही या ने पहली


बार चरमसुख ा त कर लया। उसक सांस एक पल को थम गयी, और जब आई तो
उसके गले से एक भारी और बल आह नकली। मुझे प का यक न है क बाहर अगर
कोई बैठा हो या जाग रहा हो, तो उसने यह आह ज़ र सुनी होगी। फर वह नढाल होकर
ब तर पर गर गयी और गहरी गहरी साँसे भरने लगी। मने उं गली क ग त धीमी कर द ,
जससे उसक यो न का उ ेजन ख़तम न हो।

"ज ट रलै स! अभी ख़तम नह आ है। असली काम तो बाक है।" मने यार से बोला।

लगता है अभी अभी मले आनंद से वह ो सा हत हो गयी थी, लहाजा उसने हाँ म सर
हलाया।

म उठ कर बैठ गया, और थोड़ा सु ताने लगा। थोड़ी दे र के आराम के बाद मने उसक दोन
जांघो को फैला दया, जससे उसक यो न के ह ठ खुल गए थे। उसक यो न के बाहर का
रंग उसके तना के जैसा ही था, ले कन यो न के अ दर का रंग ‘सायमन’ मछली के रंग
के जैसा था। मेरा मन आ क कुछ दे र यह पर मुख-मैथुन कया जाए, ले कन मेरी खुद
क दशा ऐसी नह थी क इतनी दे र तक अपने आपको स हाल पाता। मुझे यह भी डर लग
रहा था क कह शी पतन जैसी सम या न आ खड़ी हो। मेरा लग अब वापस खड़ा हो
चुका था, और अपने गंत को जाने को ाकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी - मेरा लग
उसक यो न के मुकाबले ब त वशाल था, और अगर म जरा सी भी जबरद ती करता, या
फर अगर लग अ दर डालने म कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़क पूरी उ भर मुझसे
डरती रहती।

मेरे पास अपने लग को चकना करने के लए कुछ भी नह था ..... 'एक सेकंड ... म अपने
लग को ना सही, ले कन उसक यो न को तो अ े से चकना कर सकता ँ न!' मेरे
दमाग म अचानक ही यह वचार क ध गया।

मने उसक यो न पर हाथ फराया - या क ससकारी छू ट पड़ी। उसके शरीर के सबसे


गु त और महफूज़ ान म आज सध लगने जा रही थी। यहाँ छू ना कतना आनंददायक था
- कतना कोमल .. कतना नरम! म वासना म अँधा आ जा रहा था .. मने उसके भगो
के ह ठ को अपनी उँ ग लय से पुनः जांचना आर कर दया। मने उसक यो न से रस
नकलता आ दे खा, और समझ गया क अब यह सही समय है।

मने ब तर पर लेट या के न न प का पुनः अवलोकन कया। उसक आँख बंद थी,


ले कन लग वेश क त म होने वाली पीड़ा क घबराहट म उसके शरीर क व भ
माँस-पे शयाँ कसी ई थी। उसको पूरी तरह शांत और श थल करने के लए मने उसके
कान को चूमना आर कया। ऐसे करते करते, धीरे धीरे उसक ठोढ़ क तरफ बढ़ते ए
म उसके ह ठो को चूम रहा था, और गले से होते ए शरीर के ऊपरी भाग को चूमना और
हलके हलके चाटना जारी रखा। कुछ दे र ऐसे ही करते ए, इस समय म या के तना
को चूम और चूस रहा था। या क आह छू ट पड़ और मेरे ह ठो पर एक मु कान आ गई।
चूसते चूसते मने उसके तन पर दांत से ह का सा काट लया और उसक ससक नकल
गयी। या अब मूड म आने लग गयी थी - उसक साँसे भारी हो गयी थी, बढ़ते र -
संचालन के कारण उसके गोरे शरीर म ला लमा आ गयी थी। ले कन अभी म उसको अभी
छोड़ने के मूड म नह था, और लगातार उसके शरीर के साथ लगातार छे ड़-छाड़ करता जा
रहा था।

या को चूमते, चाटते और छे ड़ते ए जब म उसके यो न े पर प ंचा तो उसने यो न


ार को दो तीन बार चाटा और फर उसक जांघो के अंद नी ह से को चूमने और चाटने
लगा। या वापस अपनी उ ेजना के चरम ब पर प च चुक थी। म कभी उसक जांघ ,
तो कभी उसक यो न को चूमता-काटता जा रहा था। या का शरीर अब थर थर कांप रहा
था और साँसे भारी हो गयी। ले कन फर भी म अगले दो तीन मनट तक उसक यो न के
साथ खलवाड़ करता रहा। उसक आँख अब बंद थी और शरीर बुरी तरह थरथरा रहा था।

यह मेरे लए संकेत था क अब वाकई सही समय आ गया है। मने उसक टांगो को फैला
दया। उसक यो न का खुला आ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था।

"ज ट ाई टू रलै स! ओके?" कह कर मने एक हाथ से उसक यो न को थोडा और


फैलाया और अपने लग को उसक यो न मुख से सटा कर धीरे-धीरे आगे क तरफ जोर
लगाया, जससे मेरा लग अपने गंत क ओर चल पड़ा। मेरे लग का सुपाड़ा, लग के
बाक ह स से बड़ा है, अतः या को सबसे अ धक पीड़ा शु के एक दो इंच से ही होनी
चा हए थी। ले कन यह लड़क अभी भी छोट थी, और उसके शरीर क बनावट
प रप वता क तरफ भी अ सर थी। यह बात मुझसे छपी ई नह थी। इस लए मने
सुपाड़े का बस आधा ह सा ही अ दर डाला और उसक यो न से नकलते रस से उसको
अ तरह से भगो लया। सबसे खतरनाक बात यह थी क मुझम अब इतना धैय नह
बचा आ था। मुझे लग रहा था क अगर कुछ दे र मने यह या जारी रखी तो इसी ब तर
पर ख लत हो जाऊँगा। न जाने य , या के अ दर अपना वीय डालना मुझे इस समय
नया का सबसे ज़ री काय लग रहा था।
मेरा लग तैयार था। मने एकदम से जोरदार ध का लगाया और मेरा आधा लग या क
यो न म समा गया।

"आआ ह ..." या क गहरी चीख नकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नह ! म
एकदम से सकपका गया, 'कह इसको चोट तो नह लग गयी?' मने एक दो पल ठहर कर
या क त या भांपी - ले कन भगवान् क दया से उसने आगे कुछ नह कहा। बाहर
लोग ने सुना तो ज़ र होगा ...

'भाड़ म जाएँ सुनने वाले! लड़क के साथ यह तो होना ही है!आज तो...' मने कने का
कोई उप म नह कया। मने अपना लग या क यो न से बाहर नकालना शु कया,
ले कन पूरा नह नकाला ... इसके बाद पुनः थोडा सा और अ दर डाला और पुनः नकाल
लया।

ऐसे ही मने कम से कम पांच छः बार कया। या चीख तो नह रही थी, ले कन मेरी हर


हरकत पर कराह ज़ र रही थी। ले कन इस समय मेरे पास इन सब के बारे म सोचने का
धैय बलकुल भी नह था। मने अपना लग या के अ दर और भीतर तक घुसा दया और
सनातन काल से त त प त से काम- या आर कर द । या का चेहरा दे खने
लायक था - उसक आँख बंद थ , ले कन मुंह पूरा खुला आ था। इस समय उसके लए
साँसे लेन,े हच कयाँ लेने और सस कयाँ नकालने का यही एकमा साधन और ार था।
मेरे हर ध के से उसके छोटे तन हल जाते। और नीचे का ह सा, जहाँ पेट और यो न
मलते ह, मेरे पु मांसल लग के कुटाई से लाल होता जा रहा था।

मने या को भोगने क ग त तेज़ कर द । या अपनी उ ेजना के चरम पर थी, ले कन


अभी उसको इसक अ भ करनी नह आती थी - बस उसने मेरे क को जोर से
जकड रखा था। संभवतः उसको अपनी कामा भ करने म ल ा आ रही हो। मुझको
भी महसूस आ क उसका खुद का चरम-आनंद भी पास म है। हमारे सहवास क ग त
और तेज़ हो गई - या क रस से भीगी यो न म मेरे लग के अ दर बाहर जाने से 'पच-पच'
क आवाज़ आने लग गई थी। पलंग के पाव ज़मीन पर थोड़ा थोड़ा घसटने से क कयाने
क लयब आवाज़ नकाल रहे थे, उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आह भी नकल
रही थ । कमरे म एक कामुक माहौल बन चला था।

इस पूरे काम म इतना समय लग चुका था क मेरा कुछ ण से अ धक टकना संभव नह


था। और आ भी वही। मेरे लग से एक व ोटक खलन आ, और उसके बाद तीन
चार और बार वीय नकला। हर खलन म मने अपना लग या क यो न के और अ दर
ठे लने का य न कर रहा था। मेरे चरमो कष पाने के साथ ही या पुनः चरम आनंद ा त
कर चुक थी। इस उ माद म उसक पीठ एक चाप म मुड़ गयी, जससे उसके तन और
ऊपर उठ गए। मने उसका एक तना सहष अपने मुह म ले लया और उसके ऊपर ही
नढाल होकर गर गया।

मेरा या क मखमली गहराई से नकलने का मन ही नह हो रहा था। इस लए मने अपने


लग को उसक यो न के बाहर तब तक नह नकाला, जब तक मेरा पु षांग पूरी तरह से
श थल नह पड़ गया। इस बीच मने या को चूमना, लारना जारी रखा। अंततः हम दोन
एक सरे से अलग ए। मने या को मन भर के दे खा; वह बेचारी शमा कर दोहरी ई जा
रही थी और मुझसे आँखे नह मला पा रही थी। उसके चेहरे पर ल ा क ला लमा फैली
ई थी।

मने पूछा, " या! आप ठ क ह?" उसने आँख बंद कये ए ही हाँ म सर हलाया।

"मज़ा आया?" मने थोड़ा और कुरेदा - ऐसे ही स ते म कैसे जाने दे ता? या का चेहरा मेरे
इस पर और लाल पड़ गया - वह सफ हलके से मु कुरा सक । मने उसको अपनी
बांह म कस के भर कर उसके माथे को चूम लया, और अपने से लपटा कर ब तर पर
लटा लया।

हम लोग कुछ समय तक ब तर पर ऐसे ही पड़े पड़े अपनी सांसे संयत करते रहे। ले कन
कुछ ही दे र म वह ब तर पर उठ बैठ । वह इस समय आराम म बलकुल भी नह लग रही
थी। मुझे लगा क कह सहवास क ला न के कारण तो वह ऐसे नह कर रही है? मने
वाचक उसक ओर डाली।

" या आ आपको?"

"जी ... मुझे टॉयलेट जाना है ...." उसने कसमसाते ए बोला।

दरअसल, या को सहवास करने के बाद मू वसजन का अ य धक ती एहसास होता


है। नःसंदेह उसको और मुझको यह बात अभी तक नह मालूम थी। हम लोग अभी तो
एक सरे को जानने क पहली दहलीज पर पाँव रख रहे थे। उसक इस आदत का उपयोग
हम लोग ने अपने बाद के सहवास जीवन म खूब कया है। खैर, उसको टॉयलेट जाना था
और तो और, मुझे भी जाना था। मने दे खा क कमरे से लगा आ कोई टॉयलेट नह था।

"इस कमरे से लगा आ कोई टॉयलेट नह है या?" या ने न म सर हलाया ...

"तो फर कहाँ जायगे ..?"

"घर म है ..."

"ले कन ... मुझे तो अ दर से लोग के बात करने क आवाज़ सुनाई दे रही है। लगता है
लोग अभी तक नह सोये।" मने कहा, "... और घर म ऐसे, नंगे तो नह घूम सकते न? सफ
टॉयलेट जाने के लए पूरे कपडे पहनने का मन नह है मेरा।"

या कुछ बोल नह रही थी।

"वैसे भी सबने अ दर से हमारी आवाज सुनी ह गी ... मुझे नह जाना है सबके सामने ..."
मने अपनी सारी बात कह द ।

"इस कमरे का यह सरा दरवाज़ा बाहर बगीचे म खुलता है ..."

"ओ के .. तो?"

".... हम लोग बगीचे म टॉयलेट कर सकते ह ... वहां एकांत होगा .." एडवचर! लड़क तो
साहसी है! इंटरे टग!

" म .. ठ क है। च लए फर।" मने पलंग से उठते ए बोला। या अभी भी बैठ ई थी


- शायद शरमा रही थी, य क उठते ही वह (मनोवै ा नक तौर पर) पूरी तरह से न न हो
जाती ( ब तर पर चादर इ या द तो थे ही, जनके कारण आ ा दत (कपड़े पहने रहने)
होने का एहसास तो होता ही है)।
मने अपना हाथ उसक तरफ बढ़ाया, "चलो न .." या ने सकुचाते ए मेरा हाथ थाम
लया और मने उसको सहारा दे कर पलंग से उठा लया।
अपनी परी को मने पहली बार पूणतया न न, खड़ा आ दे खा। मने उसके न न शरीर क
अपया त प रपूणता क मन ही मन शंशा क । उसके शरीर पर वसा क अनाव यक मा ा
बलकुल भी नह थी। उसके जांघे और टाँगे ढ़ मांस-पे शय क बनी ई थ । एक बात तो
तय थी क आने वाले समय म यह लड़क , अपनी सु दरता से कहर ढा दे गी। मेरे लग म
पुनः उ ान आने लगा। या क पुनः ल ा के कारण नीची हो गयी। ले कन उसने
सरे दरवाज़े का ख कर लया।

मने उसको दरवाज़ा खोलने से रोका और वयं उसको खोल कर बाहर नकल आया, सब
तरफ दे ख कर सु न त कया क कोई वहां न हो और फर उसको इशारा दे कर बाहर
आने को कहा। वह दबे पाँव बाहर नकल आई, क तु इतनी सावधानी रखने के बाद भी
उसक पायल और चू ड़य क आवाज आती रही। बगीचा कमरे से बाहर कोई आठ-दस
कदम पर था। रात म यह तो नह समझ आ रहा था क वहां पर कस तरह के पेड़ पौधे थे,
ले कन यह अव य समझ आ रहा था क कस जगह पर मू कया जा सकता है। या
कसी झाड़ी से कोई दो फुट री पर जा कर बैठ गयी। अँधेरे म कुछ दखाई तो नह दया,
ले कन मू वसजन करने क सुसकारती ई आवाज़ आने लगी। मेरा यह य दे खने का
मन हो रहा था, ले कन कुछ दख नह पाया।

मने या के उठने का कुछ दे र इंतज़ार कया। उसने कम से कम एक मनट तक मू कया


होगा, और फर कुछ दे र तक ऐसे ही बैठ रही। मने फर उसको उठ कर मेरी तरफ आते
दे खा। यह सब होते होते मेरा लग कड़क त न ा त कर चुका था। इस दशा म मेरे लए
मू करना संभव ही नह था।

"आप भी कर ली जये .."

"चाहता तो म भी ,ँ ले कन मुझसे हो नह पा रहा है ..."

" य .. या आ?" या क आवाज़ म अचानक ही चता के सुर मल गए। अब तक वह


मेरे एकदम पास आ गयी थी।

"आप खुद ही दे ख ली जये ..." कहते ए मने उसका हाथ पकड़ कर अपने लग पर रख
दया। उसके हाथ ने मेरे लग के पूरे दं ड का माप लया - अँधेरे म ल ा कम हो जाती है।
उसको समझ आ रहा था क लगो ान के कारण ही म मू नह कर पा रहा था।
"आप को शश क जये ... म इसको पकड़ लेती ँ?" उसने एक मासूम सी पेशकश क ।
"ठ क है ..." कह कर मने अपने जघन े क मांस-पे शय को ढ ला करने क को शश
क । या के कोमल और गम श से यह काम होने म समय लगा। खैर, ब त को शश
करने के बाद मने महसूस कया क मू ने मेरे लग के ग लयारे को भर दया है ... त ण
ही मने मू को बाहर नकलता महसूस कया।

"इसक कन को पीछे क तरफ सरका लो ..." मने या को नदश दया।

या ने वैसे ही कया, ले कन ब त कोमलता से। मने भी लगभग एक मनट तक मू


वसजन कया। मुझे लगता है क , संभवतः या ने छोटे लड़क को मू करवाया होगा,
इसी लए जब मने मू कर लया, तब उसने ब त ही वाभा वक प से मेरे लग को तीन-
चार बार झटका दया, जससे मू क बची ई बूँद भी नकल जाएँ। मने उसक इस
हरकत पर ब त मु कल से अपनी मु कराहट दबाई। इसके बाद हम दोन वापस अपने
कमरे म आ गए।

अ ा, हमारी तरफ शाद क पहली रात को एक र म होती है, जसको ‘मुँह- दखाई’
कहा जाता है। इसम हन का घूंघट उठाने पर उसको एक वशेष मरणाथक व तु
( नशानी) द जाती है। मुझे इसके बारे म याद आया, तो मने अपने बैग म से या के लए
खास मेड-टू -आडर करधनी नकाली। यह एक १८ कैरट सोने क करधनी थी, जसम या
के रंग को यान म रखते ए इसम लाल-भूर,े नीले और हरे रंग के म यम मू यवान जड़ाऊ
प र लगे ए थे। वह उ सुकतावश मुझे दे ख रही थी क म या कर रहा ,ँ और यूँ ही
न नाव ा म ब तर के बगल खड़ी ई थी। म वापस आकर ब तर पर बैठ गया और या
को अपने एकदम पास बुलाकर उसक कमर म यह करधनी बाँध द , और थोड़ा पीछे
हटकर उसके स दय का अवलोकन करने लगा।

या के न न शरीर पर यह करधनी ही सबसे बड़ी व तु बची ई थी – उसक बद और नथ


तो कब क उतर चुक थ , और बद हमारे सहवास या के समय न जाने कब खो गयी।
उसका स र और काजल अपने अपने ान पर फ़ैल गया, और लप टक का रंग मट
गया था। क तु न जाने कैसे यह होने के बावजूद, वह इस समय बलकुल र त का अवतार
लग रही थी। थोड़ी ऊजा होती तो एक बार पुनः सहवास करता। ले कन अभी नह ।

“आपको यह उपहार अ ा लगा?”


या ने ल ा भरी मु कान के साथ सर हला कर मेरा उपहार वीकार कया। मने उसक
कमर को आ लगन म लेकर उसक ना भ, और फर उसक कमर को करधनी के ऊपर से
चूमा।

“आई लव यू!” कह कर मने उसको अपने पास बठा लया और फर हम दोन ब तर पर


लेट कर एक सरे क बाह म समां कर गहरी न द म सो गए।

मेरी न द खड़क से आती च ड़य क चहचहाने के आवाज़ से खुली। म ब त गहरी न द
सोया ँगा, य क मुझे न द म कसी भी सपने क याद नह थी। मने एक आल य भरी
अंगड़ाई ली, तो मेरा हाथ या के शरीर पर लगा, और उसके साथ साथ रात क सारी
घटनाएं ही याद आ गय । मने अपनी अंगड़ाई बीच म ही रोक द , जससे या क न द न
टू टे। म वापस ब तर म या से सट कर लेट गया । या के शरीर क नम और गमाहट ने
मेरे अ दर क वासना पुनः जगा द । क बल के अ दर मेरा हाथ अपने आप ही या के एक
तन पर आकर लपट गया। अगले कुछ ही ण म म उसके शरीर के व भ ह स का
जायज़ा लेने लगा। साथ ही साथ यह भी सोचता रहा क या या को भी रात क बात
याद ह गी?

मुझे अपनी सुहागरात क एक एक बात याद आ रही थी, और उसी आवेश म मेरा हाथ
या क आकषक यो न पर पर चला गया, और मेरी उं ग लयाँ उसके ंजी ह ठ को दबाने
सहलाने लगी। त या व प या के कोमल और मांसल नत ब मेरे लग पर जोर
लगाने लगे। सोचो! ऐसी सु दर लड़क को सहवास के बारे म सखाना भी एक ब त बड़ी
उपल है। कुछ ही दे र क मा लश ने या के मुंह से कूजन क आवाज़ आने लग गयी -
लड़क को न द म भी मज़ा आ रहा था। मेरे लग म कड़ापन पैदा होने लगा। वरोधाभास
यह क आज के दन हमको कुछ पूजाय करनी थी - ये भारतीय शा दय म सबसे बड़ा
जंजाल है - खैर, वह सब करने म अभी दे र थी। फलहाल मुझे इस स दय और ेम क
दे वी क पूजा करनी थी।

मने उसक यो न से हाथ हटा कर उसके कोमल तन पर रख दया और कुछ ण उसके


तना से खेलता रहा। फर, मने अधीर होकर या को अपनी तरफ भ च लया। मेरे ऐसा
करने से या के शरीर म हलचल ई, ले कन मने उसको छोड़ा नह । या अब तक जाग
चुक थी - ले कन सूरज क रोशनी, जो कमरे के सामने के पेड़ क प य से छन छन कर
अ दर आ रही थी, उसक आँख को चुं धया रही थ , और उसक आँख बंद हो रही थ । म
उसके इस भोलेपन और ेम से अ भभूत हो गया था - मेरे लए वह न छल ला ल य क
तमू त थी। एकदम परफे ट!

मने अपनी पकड़ ढ ली कर द और हाथ हटा लया, जससे वह अपने हाथ पाँव हला सके
और न द से जाग सके। या ने सबसे पहले अपना सर मेरी तरफ घुमाया - मने दे खा क
उसक आँख म पल भर म कई सारे भाव आते गए - आ य, भय, प र ान, ल ा और
ेम! संभवतः उसको कल रात के कामो माद स ब ी अनुभव याद आ गए ह गे। उसके
ह ठ पर एक मीठ मु कान आ गयी।

"गुड मो नग, हनी!" मने दबी ई आवाज़ म कहा, "सुबह हो गयी है ..."

या ने थोड़ा उठते ए अंगडाई ली, इससे ओढ़ा आ क बल उसके ऊपर से सरक गया,
और एक बार फर से या के तन न न हो गए। मेरी तुरंत ही उन कोमल ट ल क
तरफ चली गयी। उसने झटपट अपने शरीर को ढकना चाहा, ले कन मने उसके हाथ को
रोक दया और अपने हाथ से उसके तन को ढक लया और उसको धीरे धीरे दबाने लगा।

"हमारे पास कुछ समय है ..." मने कहा - मेरी आवाज़ और आँख म कामुकता थी। मेरा
लग उसके शरीर से अभी भी लगा आ था, लहाज़ा वह उसके कड़ेपन को अव य ही
महसूस कर पा रही थी।

या समझते ए मु कुराई, "जी .... आपने कल मुझे थका दया ... अभी .... थोड़ा नरमी
से क रयेगा? वहां पर थोड़ा दद है ..."

तब मुझे यान आया ... थोड़ा नह , काफ दद होगा। कल उसने पहली बार सहवास कया
है, और वह भी ऐसे लग से। न त तौर पर उसक हालत खराब होगी। ये बेचारी लड़क
मुझे मना नह कर सकेगी, इस लए ऐसे बोल रही है। ऐसे म मुझे हड़बड़ी नह करनी
चा हए। ले कन, मेरा अभी सहवास करने का ब त मन है ... और हर बार लग से ही
सहवास कया जाए, यह कोई ज़ री नह । मने सोचा क म उसके साथ मुख-मैथुन
क ं गा, और अगर लक रहा, तो वह भी करेगी। दे खते ह।

"ओह गॉड! आई वांट यू सो मच!" कहते ए म या के ऊपर झुक गया और अपने ह ठो


को उसक गदन से लगा कर मने या को चूमना शु कया - एक पल को वह हलके से
च क गयी, ले कन फर मेरे येक चु बन के साथ उठने वाले कामुक आनंद का मज़ा लेने
लगी। मने अपनी जीभ को या के मुख म डालने का यास कया तो या ने भी अपना
मुख खोल कर पूरा सहयोग दया। हमारी ज ा ने एक अ त कार का नृ य आर
कर दया, जसका अंत (जैसी मेरी उ मीद थी) हमारे शरीर करते। या ने अपनी बाह मेरी
गदन के इद- गद डाल कर मुझे अपनी तरफ समेट लया और मने उसको कमर से थाम
रखा था। भाव वणता से चल रहे हमारे चु बन ने हम दोन म ही यौने ा क अ न पुनः
जला द ।

उसक गदन को चूमते ए म नीचे क तरफ आने लगा और ज द ही उसके कोमल तन


को चूमने लगा। मुझे उनको दे ख कर ऐसा लगा क वो मेरे ही ेम और लार का इंतज़ार
कर रहे थे। यहाँ पर मने काफ समय लगाया - उसके तना को अपने मुंह म भर कर मने
उनको अपनी जीभ से सावधानीपूवक खूब मन भर कर चाटा, और साथ ही साथ दोन
तन के बीच के सीने को चूमा। मेरी आवभगत का भाव उसके तना ो ने तुरंत ही खड़े
होकर द शत करना शु कर दया। कुछ और दे र उसके तन को लार करने के बाद,
मने अ न ा से और नीचे बढ़ना आर कर दया। उसके तना को चूमना और चूसना
सबसे रोमांचक अनुभव था। मेरा अगला नशाना उसका पेट था, जसको चूमते ए म
अपने चेहरे को उस पर रगड़ता भी रहा।

खैर, जैसा व ध का वधान है, म कुछ ही दे र म उसके पैर के बीच म प ँच गया। मेरे चेहरे
पर, म उसक यो न क आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मने उसक दोन जांघो को
फैला दया, जससे उसक यो न के ह ठ खुल गए। उसक यो न के बाहर का रंग उसके
तना के जैसा ही था, ले कन यो न के अ दर का रंग 'सामन' मछली के रंग के जैसा था।
या क यो न के दोन ह ठ, उसके जीवन के पहले र त-सहवास के कारण सूजे ए थे।
मने उ ही पर अपनी जीभ का नेह-लेप लगान शु कर दया, और ब त ही धीरे-धीरे
अ दर क तरफ आता गया। मुझे या के मन का ावरोध कम होता आ सा लगा - उसने
मेरे चु बन पर अपने नत ब को हलाना चालू कर दया था - और म यह श तया तौर पर
कह सकता ँ क उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ दे र ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के
बाद या के कोमल और कामुक कूजन का वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसक
यो न से काम-रस भी रसने लगा। इसको दे ख कर मुझे शक आ क संभवतः उसका रस
मेरे वीय से मला आ था। ले कन मुझे कोई परवाह नह थी - व तुतः, यह दे ख कर मेरा
रोमांच और बढ़ गया। मने उसक जांघ थोड़ी और खोल द , जससे मुझे वहां पर लपलपा
कर चाटने म आसानी रहे।

मेरी जीभ ने जैसे ही उसक यो न के अ दर का जायजा लया उसक हलक सी चीख


नकल गयी, "ऊई माँ!"

या के मज़े को दे ख कर मने अपने काम क ग त को और बढ़ा दया - अब म उसक पूरी


यो न को अपने मुंह म भर कर चूसने लगा, और अपने खाली हाथ से उसके तन और
तना को दबाने कुचलने लगा। जब उसके तना बारा खड़े हो गए, तब मने अपने
हाथो को वहां से हटा कर या के नत ब को थाम लया। फर धीरे धीरे, मने दोन हाथ से
उसके नतंब क मा लश शु कर द । मेरा मुंह और जीभ पहले से ही उसक यो न पर
हमला कर रहे थे। या क तेज़ होती ई साँसे अब मुझे सुनाई भी दे ने लग गयी थी।

या धीरे से फुसफुसाई, "धीरे .. धीरे ..." ले कन मेरी ग त पर कोई अंकुश नह था …


"आअ ह! लीज! बस ... बस ... अब और बदा त नह कर सकती ...."

य ही है, क यह सब या के लए काफ हो चुका था। वह कल रात क ग त व धय


के फल व प तकलीफ म थी। फर भी मने अभी बंद करना ठ क नह समझा - लड़क
अगर यहाँ तक प ंची है, तो उसको अंत तक ले चलना मेरी ज मेदारी भी थी, और एक
तरह से क भी। मेरे हाथ इस समय उसके नत बो के म य क दरार पर फर रहे थे।
मने कुछ दे र तक अपनी उं गली उस दरार क पूरी ल बाई तक चलाई - मन तो आ क
अपनी उं गली उसक गुदा म डाल ँ - ले कन कुछ सोच कर क गया, और उसक यो न
को चूसने - चाटने का काय करता रहा।

अब या के मुख से "आँह .. आँह .." वाली कामुक कराह नकल रही थी। मानो वह द न-
नया से पूरी तरह से बेखबर हो। अ े सं कार वाली यह सीधी-साद लड़क अगर ऐसी
नल ता से कामुक आवाज नकाले तो इसका बस एक ही मतलब है - और वह यह क
लोहा बुरी तरह से गरम है - चोट मार कर चाहे कैसा भी प दे दो। पहले तो मेरा यान बस
मुख-मैथुन तक ही सी मत था, ले कन अब मेरा ल य था क या को इतना उ े जत कर
ं , क सहवास के लए मुझसे खुद कहे।

- आपको मालूम है " ून पोजीशन"? बस ठ क वैसे ही


यह सोच कर मने अपना मुँह उसक यो न से फर से सटाया, और अपनी जीभ को उसके
जतना अ दर प ंचा सकता था, उतना डाल दया। मेरे इस नए हमले से वह बुरी तरह
तड़प गयी - उसने अपनी टाँगे पूरी तरह से खोल द , ले कन यो न क मांस-पे शय को
सकोड़ ली। ऐसा नह है मेरे मन पर मेरा पूरा नयं ण था - मेरा लग खुद भी पूरी तरह
फूल कर झटके खा रहा था।

आप सभी ने तो दे खा ही होगा - ' लू फ म ' म हीरो कुछ इस तरह दखाए जाते ह क


मानो वो चार-चार घंटे ल बे यौन मैराथन को भी मजे म कर सकते ह। और इतनी दे र तक
उनका लग भी खड़ा रहता है और उनक टांगो और जांघ म ताकत शेष रहती है। संभव है
क कुछ लोग शायद ऐसा करते भी ह गे, और उनक य से मुझे पूरी सहानुभू त भी है।
मुझे अपने बारे म मालूम था क म ऐसे मैराथन नह खेल सकता ँ। वैसे भी म आज तक
कसी भी ऐसे से नह मला ँ जसने ऐसा दावा कया हो। खैर, यह सब कहने का
मतलब यह है क मेरे लए यह सब ज द ही ख़तम होने वाला था ....

मने ऊपर जा कर या के ह ठ चूमने शु कर दए - हम दोन ही कामुकता के उ माद के


चरम पर थे और एक सरे से उलझे जा रहे थे। या क टाँगे मेरे कंधो पर कुछ इस तरह
लपट ई थी क मुझे कुछ भी करने से पहले उसक टांगो को खोलना पड़ता। मने वही
कया और उसके सामानांतर आकर उसको पकड़ लया। ऐसा करने से मेरा उ त श
अपने तय नशाने से जा चपका।

मुझे लगता है क यौन या हम सभी को नैस गक प म मलती है - चाहे कसी


को वा यायन क व भ मु ा का ान न भी हो, फर भी ी-पु ष दोन ही सहवास
क आधारभूत या से भली भाँ त प र चत होते ही ह। कुछ ऐसा ही ान इस समय या
भी दखा रही थी। वह अभी भी कामुकता के सागर म गोते लगा रही थी और पूरी तरह से
अ यमन क थी। ले कन उसका जघन े धीरे-धीरे झूल रहा था - कुछ इस तरह जससे
उसक यो न मेरे लग के ऊपर चल फर रही थी और उसके अनजाने म ही, मेरे लग को
अपने रस से भगो रही थी।

या अचानक से क गयी - उसने अपनी पलक खोल कर, अपनी नशीली आँख से मुझे
दे खा। और फर ब तर पर लेट गयी।

'कह यह आ तो नह गयी!' मेरे दमाग म ख़याल आया। 'ये तो सारा खेल चौपट हो गया।'

म एक पल अ न य क हालत म क गया और अगले ही पल या ने लेटे-लेटे ही अपना


हाथ बढ़ा कर मेरे लग को पकड़ लया और उसको अपनी यो न क दशा म खीचने लगी।
म भी उसक ही ग त के साथ साथ चलता रहा। अंततः, वह मेरे लग को पकड़े ए अपनी
यो न ार पर सटा कर सहलाने लगी।

यह पूरी तरह से अ व सनीय था।


या मुझे सहवास करने के लए खुद ही आमं त कर रही थी!!

कामो माद का ऐसा दशन!

वाह!

अब आगे जो मुझे करना था, वह पूरी तरह साफ़ था। मने बलकुल भी दे र नह क । या
को मन ही मन इस नमं ण के लए ध यवाद करते ए मने उसको हौले से अपनी बाँह म
पकड़ लया। ऐसा करने से उसके दोन तना (जो अब पूरी तरह से कड़क हो चले थे) मेरे
सीने पर चुभने लगे। मने या को फर से कई बार चूमा - और हर बार और गहरा चु बन।
चूमने के बाद, मने उसके नत ब को पकड़ कर हौले हौले दबा दया; साथ ही साथ मने
अपने पैर को कुछ इस तरह व त कया जससे मेरा लग, या क यो न को छू ने
लगे।

मने लग को हाथ से पकड़ कर, पहले या के भगनासे पर फराया, और फर वहां से होते


ए उसके भगो के बीच म लगा कर अ दर क या ा ारंभ क । मेरे लग क इस या ा म
उसका साथ या ने भी दया। जैसे ही मने आगे क तरफ जोर लगाया, नीचे से या ने भी
जोर लगाया। इन दोन यास के फल व प, मेरा लग, या क यो न म कम से कम
तीन चौथाई समां गया। या क उ ेजना इसी बात से मा णत हो जाती है। मने या क
गमागरम, कसी ई, गीली, रसीली यो न म और अ दर सरकना चालू कर दया। या क
आँख बंद थी, और हम दोन म से कोई भी कुछ भी नह बोल रहा था। ले कन फर भी,
ऐसा लगता था मानो हम दोन इस नए 'केबल-कने न' के ारा बतला रहे ह । इस समय
श द क कोई आव यकता नह थी। मने महसूस कया क म अपनी डा लग के अ दर पूरी
तरह से समां गया ँ।

इस छण म हम दोन कुछ दे र के लए क गए - अपनी साँसे संयत करने के लए। साथ ही


साथ एक सरे के शरीर के श का आनंद भी लेने के लए। करीब बीस तीस सेकंड के
आराम के बाद मने लग को थोडा बाहर नकाल कर वापस उसक यो न क आरामदायक
गहराई म ठे ल दया। या क यो न के अ दर क द वार ने मेरे लग को कुछ इस तरह
कस कर पकड़ लया जैसे क ये दोन ही एक सरे के लए ही बने ए ह । अब मने अपने
लग को उसक यो न म चर-प र चत अ दर बाहर वाली ग त दे द । साथ ही साथ, हम
दोन एक सरे को चूमते भी जा रहे थे।
मेरी कामना थी क यह काय कम से कम दस मनट तक कया जा सके, ले कन म सफ
प ीस से तीस ध क तक ही टक सका। अपने आ खरी ध के म म जतना भी अ दर
जा सकता था, चला गया। शायद मेरे इशारे को समझते ए या ने भी अपने नत ब को
ऊपर धकेल दया। मेरा पूरा शरीर खलन के आनंद म स त हो गया - मेरे लग का गम
लावा पूरी ती ता से या क कोख म खाली होता चला गया। पूरी तरह से खाली होने के
बाद मने या को ब तर से उठा कर अपने से कस कर लपटा लया, और उसके कोमल
मुख को ब त दे र तक चूमता रहा। यह आभार कट करने का मेरा अपना ही तरीका था।

हम लोग कुछ समय तक ऐसे ही एक सरे के आ लगन म बंधे ए यौन या के आनंद


रस पीते रहे, क अचानक या कसमसाने लगी। मने वाचक उसक ओर डाली।

" या आ?"

"जी ... टॉयलेट जाना है ...." उसने कसमसाते ए बोला।

जैसा क मने पहले ही बताया है, या को सहवास करने के बाद मू वसजन का


अ य धक ती एहसास होता है। वैसे भी सुबह उठने के बाद सभी को यह एहसास तो
होता ही है ... लहाज़ा या को और भी ती अनुभू त हो रही थी। उसके याद दलाने से
मुझे भी टॉयलेट जाने का एहसास होने लगा। और इस कमरे से लगा आ कोई टॉयलेट
नह था - मतलब अब तो कमरे से बाहर घर के अ दर वाले बाथ म म जाना पड़ेगा। इतनी
सुबह तो बाहर बगीचे म तो जाया नह जा सकता न। वैसे भी अब उठने का समय तो हो ही
गया था। आज के दन कुछ पूजाय करनी थी, और उसके लए नहाना धोना इ या द तो
करना ही था।

हम दोन ही उठ गए। मूखता क बात यह क हम दोन के सारे सामान इस कमरे म नह


थे। या ने न जाने कैसे कैसे अपने आप को स हाल कर साड़ी, पेट कोट और लाउज
पहना। ही था क वो साड़ी नय मत प से नह पहनती थी – संभवतः हमारा ववाह
पहला अवसर था जब उसने साड़ी पहनी हो। और इस कारण से वो ठ क से पहनी नह
गयी, और चीख चीख कर हमारी कल रात क हरकत क सबसे चुगली रही थी। यह सब
करते करते हम दोन को कम से कम दस मनट लग गए। इस बीच मने भी अपना कुरता
और पजामा पहन लया। उस बेचारी का इस समय बुरा हाल हो रहा होगा - एक तो
सहवास का दद और ऊपर से मू का ती एहसास! या धीरे-धीरे चलते ए दरवाज़े तक
प ंची। दरवाज़ा खोलने से पहले उसको कुछ याद आया, और उसने अपने सर को प लू से
ढक लया।

'हह! भारतीय ब के तौर तरीके! ये लड़क तो अपने मायके से ही शु हो गयी!' मने


मज़े लेते ए सोचा।

"जाग गयी बेटा!" ये ह रहर सह थे ... अब उनको या बताया जाए क जाग तो ब त दे र


पहले ही गए ह। और ऐसा तो हो नह सकता क अपनी बेट क कामुक कराह उ ह ने न
सुनी हो। या यु र म सफ मु कुरा कर रह गयी। उसने ज द से बाथ म क तरफ
का ख कया। या के पीछे ही म कमरे से बाहर नकला। मने यह यान दया क वहाँ
उप त सभी लोग या के अ त- त कपड़े और चेहरे को दे ख कर मंद मंद मु कुरा रहे
थे।

"... आइये आइये .." ह रहर सह जी ने मुझे दे ख कर कहना जारी रखा, "बै ठये .. अ नी
बेटा, जीजाजी के लए चाय लाओ ..... आप ज द से े श हो जाइये ... आज भी काफ
सारे काम ह।"

कम जान पहचान होने के कारण म मना नह कर सका। वैसे भी, गरम चाय इस ठ डक म
आराम तो दे गी ही। अब मने अपने चार तरफ नज़र दौड़ाई - घर म सामा य से अ धक
लोग थे।

'शाद - याह का घर है', मने सोचा, '... सारे र तेदार आये ह गे ..'

सभी लोग मेरी तरफ उ सुकतापूवक दे ख रहे थे... ले कन अगर मेरी नज़र कसी क नज़र
से मलती तो वो तुरंत अपनी नज़र नीची कर लेते - मानो को कोई चोरी पकड़ी गयी हो।
एक-दो औरत ले कन बड़ी ढठाई से मुझे घूरे जा रही थी। मने उनको नज़रंदाज़ करना ही
उ चत समझा। ह रहर सह से आगे कोई बात नह हो पायी ... वो आगे के इंतजाम के लए
कमरे से बाहर चले गए थे। लहाज़ा, अब मेरे पास चाय आने के इंतज़ार के अ त र और
कोई काम नह बचा था।

मुझे अब ठ ड लगने लग गयी थी... मेरे पास इस समय कोई गरम कपड़ा नह था। मेरा
सामान कह नह दख रहा था। 'इतनी ठ ड म तो जान नकल जायेगी' मने सोचा।
"जीजू, आपक चाय...." यह सुन कर मेरी जान म जान आई।

"थक यू!" मने मु कुराते ए कहा।

".. और ये है आपके लए शाल!" अ नी ने बाल-सुलभ चंचलता के साथ कहा।

"अ नी! यू आर अन एंजेल! .... फ़ र ता हो तुम!" मने मु कुराते ए मन से आभार कट


कया।

अ नी के चेहरे पर स ता क लहर दौड़ गयी।

"जीजू ... आपक माइल मुझे ब त पसंद है ..." अ नी ने चंचलता से कहना जारी रखा,
"... और आपसे म एक बात क ?ँ "

"हाँ .. बोलो न" मने चाय क पहली चु क लेते ए कहा।

"म आपको जीजू न बोलूँ तो चलेगा?"

" बलकुल!"

"म आपको दाजू क ?ँ "

"कह सकती हो .. ले कन इसका मतलब या होता है?"

"दाजू होता है बड़ा भाई ... आप मेरे बड़े भैया ही तो ह न..." अ नी क इस नेह भरी
बात ने मेरे दय के न जाने कैसे अनजान तार छे ड़ दए। मेरा मन आ क इस ब ी को
जोर से गले लगा लू!ँ एक रोड- प पर नकला था, और आज एक पूरा प रवार है मेरे पास!

मेरे चाय पीने, नहा-धो कर ना ता करने तक के अंतराल तक या मेरे सामने नह आई।


वह अ दर ही थी ... अपने प रजन के साथ बात-चीत कर रही होगी। खैर, जब वह बाहर
नकली, तो उसने नीले रंग क साड़ी पहनी ई थी। बाक का पहनावा कल के जैसा ही
था। नई-नवेली हन को वैसे भी सोलह ृंगार करना शोभा भी दे ता है। बस एक अंतर था
– आज उसने मेरी द ई करधनी भी पहनी ई थी। कोई आ य नह क वहां उप त
कई लोग क नज़र उसी करधन पर थी। मने कुता और चूड़ीदार पजामा पहना आ था।
हम दोन ने ही शाल ओढ़ा आ था। दन म भी ठं डक काफ थी। आज क व ा यह
थी क इस कसबे क मानी ई संर क दे वी के दशन और पूजा-पाठ करनी थी। उनका
मं दर घर से कोई एक कलोमीटर र पहाड़ के ऊपर बना था। लहाज़ा वहां पर जाने के
लए पैदल ही रा ता था। अगर मुझे मालूम होता, तो या को इतना परेशान न करता।
खैर, अब कया भी या जा सकता था।

पहाड़ी रा ते पर चलते ए मने या से पूछा क या वह ठ क से चल पा रही है ….


जसका उ र उसने हाँ म दया। रा ते म मेरे ससुर जी, सासु माँ और अ नी मुझसे कुछ न
कुछ बात करते जा रहे थे – मुझे या तो उस जगह के बारे म बताते, या फर अपनी पहचान
के लोगो से मेरा प रचय भी करते। कुछ दे र चलते रहने के बाद मं दर आया। वहां पं डत जी
पहले से ही तैयार थे, और हमारे आते ही उनके मं ो ारण शु हो गए। कुछ दे र म पूजा
स ई और हम लोग मं दर के बाहर एक चौरस मैदान म आकर के। पं डत जी यहाँ
भी आकर मं पढने लगे और कुछ ही दे र म उ ह ने मुझे एक पौधा दया, और मुझे उसको
रोपने को बोला। मुझे उस समय याद आया क उ राँचल म कुछ वष से एक आ दोलन
जैसा चला आ है, जसको "मैती" कहा जाता है।

आज के दौर म " लोबल वा मग" मानवता और धरती दोन के लए एक बड़ी सम या


बनकर उभरा, ऐसे म मैती आंदोलन अपने आप म एक बड़ी मसाल है। कुछ लोग के लए
यह सफ र म भर हो सकता ह, ले कन वा त वकता म यह एक ऐसा भावना मक
पयावरणीय आंदोलन है जसे अगर ापक चार मले तो पयावरण षत ही ना हो।
इस री त म शाद के समय वै दक मं े ार के बीच हा- हन ारा फलदार पौध का
रोपण कया जाता है। जब भी उ राँचल के कसी गांव म कसी लड़क क शाद होती है,
तो वदाई के समय हा- हन को गांव के एक न त ान पर ले जाकर फलदार पौधा
लगवाया जाता है। हा पौधो को रो पत करता है और हन इसे पानी से स चती है, फर
गाँव के बड़े बूढ़े लोग नव-द को आशीवाद दे ते ह।

मुझे पता चला क हा अपनी इ ा अनुसार मैती संर क ( जनको मैती बहन कहा
जाता है) को पैसे भी दे ता है, जो क र म के बाद रोपे गए पौध क र ा करती ह, खाद,
पानी दे ती ह, जानवर से बचाती ह। मैती बहन को जो पैसा ह के ारा इ ानुसार
मलता है, उसे रखने के लए मैती बहन ारा संयु प से खाता खुलवाया जाता है।
उसम यह रा श जमा होती है। खाते म अ धक धानरा श जमा होने पर इसे गरीब ब क
पढ़ाई पर भी खच कया जाता है। 'ऐसे यास के लए तो म कतने ही पैसे दे सकता ँ'
मने सोचा, ले कन उस समय मेरी जेब म इतने पैसे नह थे। इस लए मने उन लोगो को घर
पर अपने साथ बुलाया। वहां पर मने एक लाख पये का चेक काट कर उनको दया। मुझे
लगा क आज का दन कुछ साथक आ।

आज का काय म अब समा त हो गया था, खाना-पीना करने के बाद अब मेरे पास कुछ
भी करने को नह था। मुझे या का साथ चा हए था, ले कन यहाँ पर लोग का जमावड़ा
था। जो भी अंतरंगता और एकांत मुझे उसके साथ मला था, वह सफ रात को सोते समय
ही था। म उसके साथ कह खुले म या अकेले बताना चाहता था। म अपनी कुस से उठ
कर अ दर के कमरे म गया, जहाँ या थी। मने दे खा क अन गनत औरत और लड़ कयां
उसको घेर कर बैठ ई थी। मुझे उनको दे ख कर चढ़ हो गयी। मुझे वहां दरवाज़े पर सभी
ने खड़ा आ दे खा … या ने भी। मने उसको इशारे से मेरी ओर आने को कहा। या
उठ , और अपना प लू ठ क करती ई मेरी तरफ आई।

"जी?"

" या … कह बाहर चलते ह।"

"कहाँ?"

"मुझे या मालूम? आपका शहर है …. आपको जो ठ क लगे, मुझे दखाइए …."

"ले कन, यहाँ पर इतने सारे लोग ह …"

"अरे! इनसे तो आप रोज़ मलती ह गी। मुझे आपके साथ कुछ अकेले म समय चा हए
…"

या के गाल यह सुन कर सुख लाल हो गए। संभवतः, उसको रात और सुबह क याद हो
आई हो।

"जी, ठ क है।"
"और एक बात, यह साड़ी उतार द जये।"

"जी???"

"अरे! मेरा मतलब है क सलवार कुरता पहन कर आओ। चलने फरने म आसानी रहेगी।
हाँ, मुझे आप सलवार कुत म यादा पसंद ह …." मने उसको आँख मारते ए कहा।

"जी, ठ क है। म थोड़ी दे र म बाहर आ जाऊंगी।"

मुझे नह पता क उसने सलवार कुता पहन कर बाहर आने के लए अपने घर म या या


झक झक करी होगी, ले कन य क यह आदे श मेरी तरफ से आया था, कोई उसका
वरोध नह कर सका। या ने हलके हरे रंग का बूटेदार सलवार कुता और उससे मलान
कया आ प ा पहना आ था। उसके ऊपर उसने लगभग मलते रंग का वेटर पहना
आ था। इस पहनावे और लाल रंग क चू ड़य म वह बला क खूबसूरत लग रही थी। इस
समय दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। ठं डक और दोपहर होने के कारण आस पास कोई लोग
भी नह दखाई दे रहे थे। अ बात यह थी क ठं डी हवा नह चल रही थी, नह तो यूँ
बाहर घूमने से त बयत भी बगड़ सकती थी। या मुझे मु य सड़क से पृथक, पहाड़ी
रा त से कृ त के सु दर य के दशन करने को ले गयी। कुछ दे र तक पैदल चढ़ाई
करनी पड़ी, ले कन एक समय पर समतल मैदान जैसा भी आ गया। या ने बताया क
इसको बु याल बोलते ह। इन चौरस घास के मैदान म हरी घास और मौसमी फूल क
मानो एक कालीन सी बछ ई रहती है। यहाँ से चार तरफ र- र तक ऊंचे-ऊंचे दे वदार
और चीड के पेड़ दे खे जा सकते थे।

" या म त जगह है …" कहते ए मने या का हाथ थाम लया, और उसने भी मेरा हाथ
ढ़ता से पकड़ लया।

"म आपको अपनी सबसे फेव रट जगह ले चलू?ँ " या ने उ साह के साथ पूछा।

" बलकुल! इसी लए तो आपके साथ बाहर आया ँ।"

इस समय अचानक ही कसी तरफ से करारी ठं डी हवा चली।


"अगर ऐसे ही हवा चलती रही तो ठं डक बढ़ जायेगी" मने कहा। या ने सहमती म सर
हलाया।

"हाँ, इस समय तक पहाडो पर बफ गरनी शु हो जाती है…. ले कन अभी ठ क है…


चार बजे से पहले लौट चलगे ले कन, नह तो ब त ठं डक हो जायेगी।" उसने कहा, और
बु याल म एक तरफ को चलती रही। कोई पांच-छः मनट चलने पर मुझे सामने क तरफ
एक झील दखने लगी। उसके बगल म ही एक झोपड़ा भी बना आ था। या वहां जा
कर क गयी। पास से दे खने पर यह झोपड़ा नह , एक घर जैसा लग रहा था। कहने को तो
एकदम वीरान जगह थी, ले कन कतनी रोमां टक! एक भी आदमी नह था आस पास।

"यहाँ म बचपन म कई बार आती थी …. यह घर मेरे दादाजी ने बनवाया था, ले कन


दादाजी के बाद पताजी नीचे क बे म रहने लगे - वहां हमारी खेती है। पछले दस साल से
हम लोग यहाँ नह रहते ह। ले कन म यहाँ अ सर आती ँ। मुझे यह जगह ब त पसंद है।"

" या बात है!" मने एक बाल-सुलभ उ साह से कहा, "मने इससे सु दर जगह नह दे खी
…" मने कते ए कहा, "और मने आपसे सु दर लड़क आज तक नह दे खी।"

या उ र म हलके से मु कुरा द । घर के सामने, झील के लगा आ प र का बैठने का


ान बना आ था। हम दोन उसी पर बैठ गए। इसी समय बदल का एक छोटा सा टु कड़ा
सूरज के सामने आ गया और एक ताज़ी बयार भी चली। मौसम एकदम से रोमां टक हो
चला। ऐसे म एक सु दर सी झील के सामने, अपनी े मका के साथ बैठ कर आनंद उठाना
अ यंत सुखद था।

“ या, आई ऍम क लीटली इन लव वद यू! जब मने आपको पहली बार कूल जाते ए


दे खा, तभी से।” मुझे लगा क आज यह पहला मौका है जब हम दोन पहली बार एक
सरे से खुल कर बात चीत कर सकते ह। तो इस अवसर को म गंवाना नह चाहता था।
“मुझे कभी कभी शक भी आ क कह यह ऐसे ही लालसा तो नह – ले कन मेरे मन ने
मुझे हर बार बस यही कहा क ऐसा नह हो सकता। और यह क मुझे आपसे वाकई बेहद
बेहद मोह बत है।“

या मेरी हर बात को अपनी मनमोहक भोली मु कान के साथ सुन रही थी। मने उसके
हाथ को अपने हाथ म ले लया और कहना जारी रखा,
“और म आपसे वादा करता ँ क म आपको ब त खुश रखूंगा, और आपके हर सपने को
पूरा क ं गा।”

“मेरा सपना तो आप ह! आप जस दन हमारे घर आये, उस दन से आज तक म हर दन


यही सोचती ँ क ये कोई सपना तो नह ! वो दन, वो पल इतना अ त था, क मेरी
बोलती ही बंद हो गयी थी।”

“मेरा भी यही हाल था, जब मने आपको पहली बार दे खा। मने उसी ण म यार महसूस
कया।”

हम दोन कुछ पल यूँ ही चुप-चाप बैठे रहे, फर मने पूछा,

“ या, आपसे एक बात पूछूं? हाट डू वांट इन लाइफ?”

मेरे इस पर या ने पहली बार मेरी आँख म आँखे डाल कर दे खा। वह कुछ दे र


सोचती रही, और फर बोली,

“है पीनेस!”

“और आप है पी कैसे ह गी?”

“मेरी ख़ुशी आपसे है – आप मेरे जीवन म आ गए, और म खुश हो गयी। आपका यार
और आपको यार करना मुझे ख़ुश रखेगा। आप मेरे सब कुछ है – आपके साथ म ब त
सेफ !ँ ये बात मुझे ब त ख़ुश करती है। और यह भी क मेरा प रवार साथ म हो और
सुर त, व हो।”

या क भोली बात सुन कर म भाव- वभोर हो गया।

“म आपको ब त यार क ं गा! आई वल क प यू एंड योर फॅ मली सेफ! एंड आई वल बी


एवरी थग एंड मोर फॉर यू!”

“यू आलरेडी आर द होल व फॉर मी!”


या क इस बात पर मने उसको जोर से भ च कर अपने गले से लगा लया। हम लोग
काफ दे र तक ऐसे ही एक सरे को पकडे ए बात करते रहे – कोई भी वशेष बात नह ।
बस मने उसको अपने रोज़मरा के काम, बगलोर शहर, और उ राँचल म जो भी जगह
दे ख , उसके बारे म दे र तक बताता रहा। या ने भी मुझे अपने प रवार, बचपन, और अ य
वषय के बारे म बताया। मेरे बचपन म कोई भी ऐसी बात नह ई जसको म वहाँ बताता,
और ऐसे अ े मौसम म बने मूड का स यानाश करता।

या ब त ख़ुश थी। वह अभी खुल कर मेरे साथ बात कर रही थी, और लगातार मु कुरा
रही थी। म न त प से कह सकता था क वह हमारी इस नयी अंतरंगता को पसंद कर
रही थी। जब हम एक र ते म शु आती नाजक दौर – जसम एक सरे को जानने क
या चल रही होती है – को पार कर लेते ह, तो हमम एक कार क शा त और ताजगी
आ जाती है। इस समय हम दोन अपने स ब के सरे चरण म थे, जसम हम हमारे
मासूम ेम का कोमल एहसास था।

मेरे मन म एक क पना थी - और वह यह क खुले म - संभवतः कसी खेत म या कसी


एकांत, नजन जगह म - सहवास करना। यह ान कुछ वैसा ही था। वैसे यह ब त संभव
था क गाँव और कसबे का कोई यहाँ आ सकता, ले कन मेरे हसाब से इस समय
और इस मौसम म यह होने क स ावना थोड़ी कम थी। यह दे ख कर मेरे दमाग म अपनी
क पना को मूत प दे ने क संभावना जाग उठ । ताज़ी, सुग त हवा ने मेरे अ दर एक
नया जोश भर दया था। कुछ तो बात होती है नए ववा हत जोड़ म – उनम उ साह और
जोश भरा आ रहता है। हमने अभी कुछ ही घंट पहले ही सहवास कया था, ले कन
अभी पुनः करने क तगड़ी इ ा जाग गयी।

मने या क छरहरी कमर म अपनी बाँह डाल कर उसको अपने से चपटा लया। या भी
ब त ही मु कल से मले इस एकांत का आनंद उठाना चाहती थी - वह भी मुझसे समट
सी गयी। मने अपना गाल, या के गाल से सटा दया और सामने के सु दर य का आनंद
लेने लगा। ऐसे सु दर पवत क गोद म, नया के भीड़-भाड़ से र …. यह एक ऐसी
नया थी, जहाँ जीवन पय त रहा जा सकता था।

"आई लव यू" मने कहा और या के गाल को चूम लया। या ने फर से मुझे अपनी


भोली मु कान दखाई। उसके ऐसा करते ही मने उसके मुखड़े को अपनी बाँह म भरा और
उसके सु दर कोमल ह ठ को चूम लया। मने उसको वशु ेम और अ भलाषा के साथ
चूम रहा था। या मेरे लए पूरी तरह से "परफे ट" थी। हाँला क वह अभी नव-त णी ही
थी, और उसके शरीर के वकास क ब त संभावनाएं थी। मुझे उसके शरीर से ब त लगाव
था - ले कन मेरे मन म उसके लए ेम सफ शारी रक बंधन से नह बंधा आ था, ब क
उससे काफ ऊपर था। ले कन यह सब कहने का यह अथ नह है क मुझे उसके शरीर के
भोग करने म कोई एतराज़ था। म उससे जब भी मौका मले, ेम-योग करने क इ ा
रखता था। या मेरे चु बन से पहले तो एकदम से पघल गयी - उसका शरीर ढ ला पड़
गया। उसक इस न यता ने असाधारण प से मेरे अ दर क लालसा को जगा दया।

मने उसके ह ठो को चूमना जारी रखा - मेरे मन म उ मीद थी क वह भी मेरे चु बन पर


कोई त या दखाएगी। मुझे ब त इंतज़ार नह करना पड़ा। उसने ब त नरमी से मेरे
ह ठो को चूमना शु कर दया, और मुझे अपनी बांह म बाँध लया। मने उसको अपनी
बांह म वैसे ही पकड़े रखा आ था, बस उसको अपनी तरफ और समेट लया। हम दोन
के अ दर से अपने इस चु बन के आनंद क कराह नकलने लग । पहाड़ क ताज़ी,
सुग त हवा ने हम दोन के अ दर ू त भर द ।

न जाने कैसे और य मने इन चु बन के बीच या के वेटर को उसके शरीर से उतार


दया। या पहाड़ो पर ही पली बढ़ थी - यह ठं डक व तुतः उसके लए सुखदायक थी।
वेटर तो उसने बस कसी अ या शत ठं डक से बचने के लए पहना आ था। ठं डी ताज़ी
बयार के सुख से या के मुंह से सुख वाली आह नकल गयी। मने उसको पुनः चूमना शु
कर दया और साथ ही साथ उसके कुत के ऊपरी बटन खोलने लगा। मुझे ऐसा करते दे ख
कर या चु बन तोड़ कर पीछे हट गयी।

" कए! लीज!" उसने अपनी आँख सकोड़ते ए कहा, "… यहाँ नह । अगर कोई दे ख
लेगा तो?"

"मुझे नह लगता यहाँ कोई इस समय आएगा।"

"ले कन दन म ….?"

" य ? दन म या बुराई है? सब कुछ साफ़ साफ़ दखता है!" मने शैतानी भरा जवाब
दया।
"आप भी न … आपक बीवी को अगर कोई ऐसी हालत म दे खेगा तो या आपको अ ा
लगेगा?" बात कहने का उसका अंदाज़ शकायत वाला था, ले कन वर म कसी भी कार
क शकायत नह थी।

" म … इस बारे म सोचा नह कभी। ले कन अभी लग रहा है क मेरी इतनी कामुक


बीवी है, तो कोई अगर दे ख भी ले, तो या ही बुराई है?" मने उ टा जवाब दे ना जारी रखा।

" लीज …." या ने वनती क । ले कन मेरे हाथ तब तक उसके कुत के सारे बटन खोल
चुके थे ( सफ तीन बटन ही तो थे)।

“यू आर मो कग हॉट! आपका साथ मुझे इतना उ े जत कर दे ता है क म अपने आपको


रोक ही नह पाता!” म सुन नह रहा था, और उसके कुरते को हटाने क चे ा कर रहा था।

उसने ह थयार डाल ही दए, "अ ा ठ क है … ले कन लीज एक बार दे ख ली जये क


कोई आस पास नह है।" वो बेचारी मेरी कसी भी बात का वरोध नह कर रही थी।

"ओके वीट हाट!" मने अ न ा से उससे अलग होते ए कहा। मने ज द से चार तरफ
का सव ण कया। वैसे मेरे ऐसा करने का कोई फायदा नह था। मुझे पहाड़ी इलाको क
कोई जानकारी नह थी। कोई भी , जो इस इलाके का जानकार हो, अगर चाहे तो
बड़ी आसानी से मेरी से बच सकता था। मुझे यह पूरा काम समय क बबाद ही लग
रहा था। म ज द ही वापस आ गया।

कोई नह है …." मने ख़ुशी ख़ुशी उ ोषणा क , और वापस उसको चूमने म त हो


गया। मने दे खा क या ने अपने कुत के बटन वापस नह लगाए थे, मतलब यह क वह
भी तैयार थी। मने उसके कुत के अ दर हाथ डाल कर उसके तन को हलके हलके से
दबाया और फर उसके कुत को उसके शरीर से उतारने लग गया।

"वाकई कोई नह है न?" या ने घबराई आकुलता से पूछा - अब तक कुत का दामन


उसके तन के तर तक उठ चुका था।

मने उसको फर से चूम लया।


"यहाँ बस दो ही लोग आने वाले थे … जो क आ चुके ह" मने मु कुराते ए जवाब दया।

या भी उ र म मु कुराई और मु कुराते ए उसने अपने दोन हाथ उठा दए, जससे म


उसके कुत को उतार सकूं। कुरता उतरते ही उसके सु दर और दलच तन दखने लग
गए। उसके तना पहले ही खड़े ए थे - या तो यह ठं डी हवा का भाव था, या फर
कामुक उ ेजना का। मने उसके तन को अपने हाथ म समेट लया। या के दय के
ंदन, उसके तन क कोमलता और उसके तना के कड़ेपन को महसूस करके मुझे
उसक उ ेजना का अनुमान हो गया। हम वापस अपने कामुक चु बन के आदान दान म
त हो गए।

या क उ ेजना बढती ही जा रही थी - वह मेरे चु बन का उ र और भी भूखे चु बन से


दे रही थी। उसके ह ठ मेरे ह ठो को बुरी तरह चूम रहे थे, और अब उसके हाथ मेरे पजामे
के नाड़े को टटोल कर खोलने क को शश कर रहे थे। उसक इस हरकत से मुझे आ य
आ।

' कृ त और उसके अजीब भाव' मने मन ही मन सोचा।

नाडा खुलते ही मेरा पजामा नीचे सरक गया, और सामने अंडर वयर को उभारता आ मेरा
लग दखने लगा। ठं डी हवा से मेरे जांघो और अ य संवेदनशील ान पर र गटे खड़े हो
गए। या ने कल रात क द ई श ा का पालन करते ए मेरे अंडर वयर को नीचे सरका
दया। मेरा उ े जत लग अब मु था। बना कोई दे र कये उसने लग को अपने गरम
हाथो म पकड़ कर यार से सहलाने लगी। अब तक मने भी उसक सलवार को नाड़े से
मु कर दया था। म उससे अलग आ और उसक च ी और सलवार को एक साथ ही
नीचे सरका कर उसके शरीर से अलग कर दया। अब पूणतया अनावृत या इस नजन
ाकृ तक सौ दय का एक ह सा बन चुक थी। मने भी अपना कुरता और अ य व तुरंत
अपने शरीर से अलग कर दए। हम दोन ही अब पूण पेण न न हो गए थे - ेम-योग म
कोई बाधा नह आनी चा हए।

या क क शश ही कुछ ऐसी थी क म उसके साथ कतनी भी बार सहवास कर सकता


था। हमारे इस सं त स ब म मुझे या के संग का आनंद आने लगा - उसके शरीर का
भोग करना, उसके शरीर के हर अंग और उसक हर भावना का अ वेषण करना - यह
सब मुझे ब त आनंद दे ने लग गया था। या का हाथ मेरे लग पर था, और उसको सहला
रहा था। मुझे उसक इस या से आनंद आने लग गया। उसने ऐसा बस दस बारह सेकंड
ही कया होगा क उसने अपना हाथ मेरे लग से हटा लया और प र पर लेट गयी -
सहवास क मु ा म - अपनी टाँगे थोड़ा खोल कर।

"ये या है? छोड़ य दया?" मने उसको छे ड़ा।

"आइये न!" या बात है!

"नह ! ऐसे नह । कुछ अलग करते ह!"

"अलग? या?"

"अरे! यह कोई ज़ री नह है क पीनस हमेशा वेजाइना के अ दर ही जाए!"

"जी …. पीनस या होता है? और वो सरा आपने या कहा?"

"पीनस होता है यह," मने अपने लग को पकड़ कर दखाया, "… और वेजाइना होती है
यह …." मने उसक यो न क तरफ इशारा कया।"अब समझ म आया आपको?"

"जी! आया …. ले कन 'ये' 'इसके' अ दर नह आएगा, तो … फर …. कहाँ ….


जाएगा?" या थोड़ी अ लग रही थी।

"अगर बताऊँगा तो आप नाराज़ तो नह ह गी?"

"आप तो मेरे मा लक है … आपक बात मानना मेरा फ़ज़ है!"

"हनी!" मने थोड़ा जोर दे ते ए कहा, "म तुमको एक बात बोलना चाहता ँ - और वह यह
क कसी शाद म प त-प नी दोन का दज़ा बराबर का होता है। लहाज़ा, कोई मा लक
और कोई गुलाम नह हो सकता। और, सहवास जतना मेरे मज़े के लए है, उतना ही
आपके मज़े के लए है। इस लए हम दोन को ही अपने और एक- सरे के मज़े का यान
रखना होगा। समझी?"

"जी …. समझ गयी …. आप कुछ बताने वाले थे?"


"हाँ … म यह कह रहा था क य न आज आप मेरे 'इसको', अपने मुंह म ल?"

"जीईई!!? मुंह म?"

"हाँ! अगर आप ऐसा करगी तो मुझे ब त अ ा लगेगा …. ले कन तभी क रयेगा, जब


आपका मन करे। म कोई दबाव नह डालूँगा।"

"नह … दबाव वाली बात नह है। ले कन …." बोलते बोलते या क गयी।

"हाँ हाँ …. बताइए न?"

"जी … ले कन माँ ने बोला था क .…" कहते कहते या के गाल सुख होने लगे।

मने उसको आगे बोलने का हौसला दे ते ए सर हलाया।

"यही क …. आपका … 'बीज' …… बेकार … खच न होने ँ !" या ने जैसे तैसे अपनी


बात ख़तम क ।

" म! माँ ने ऐसा कहा?" या ने सर हलाया, "अ ा, मुझे एक बात बताइए …." या
ने बड़े भोलेपन से मुझे दे खा, "…. आपको इससे या समझ आया?"

उसने कुछ दे र सोचा और कहा, "यही क आपका … वीय …. मेरे अ दर …" वह शम से


इतनी गड़ गयी क आगे कुछ नह बोल पायी।

"हाँ! ले कन, वीय को 'अ दर' लेने का सफ यही तो एक रा ता नह है …", या मेरी बात
को यान से सुन रही थी, "…. जहाँ तक मुझे मालूम है, तीन रा ते ह - पहला तो यह क
आप इसको अपनी यो न म जाने द, जैसे क हमने पहले कया है," या इस बात से शम
से और भी लाल हो गयी, ले कन मने अपनी बात कहनी जारी रखी, " सरा यह क
'इसको' आप अपने मुँह म ल, और जब म वीय छो ँ तो आप उसको पी जाएँ …." या
का चेहरा अ न तता और जुगु सा से थोडा वकृत हो गया, "… और तीसरा 'गुदा
मैथुन'…"
"गुदा?" उसके पूछने पर मने उसके नत ब पर अपना हाथ फराया।"

मतलब आपका लग मेरे पीछे ! बाप रे!" वह थोडा सा क , फर बोली "न बाबा! मुझे नह
लगता क यह 'वहां' पर फट होगा।"

मने कुछ नह कहा। उसने कहना जारी रखा, " या आप वहाँ डालना चाहते ह?"

"दे खो, कुछ लोग ऐसा करते ह, और कुछ याँ इसको पसंद भी करती ह - अगर ठ क
ढं ग से कया जाए तो!"

"आप.…?"

"अगर आप ाई करना चाहती ह तो.…."

"जी …. मुझे नह मालूम। ले कन अगर ठ क लगा तो कर भी सकती ँ। आप मुझे वह


सब बताइए जससे म आपको खुश रख सकूं।"

"हनी! मने पहले ही कहा है, क यह सफ मेरे लए नह है - आपके लए भी उतना ही है।


आप मुझे खुश करना चाहती ह, यह एक अ बात है.. ले कन, मने भी आपको खुश
करना चाहता ँ।"

इतना कह कर म चुप हो गया.. इस सारे वातालाप म मेरे लग का उ ान जाता रहा.. या


ने मन ही मन म कुछ तय कया, और फर हलक कंपकंपी के साथ मेरे लग को अपने
हाथ म ले लया। उसक छोट छोट उं ग लया मेरे लग के चार तरफ लपट ई थ ,
जनसे वो इसको कभी दबाती, तो कभी हलके से ख चती। वह कुछ दे र तक यूँ ही खेलती
रही - उसने मेरे वृषण को भी अपने हाथ म लया - उनक हलक हलक मा लश क और
उनको कुछ इस कार अपनी हथेली म उठाया जैसे क वह उनका भार जानना चाहती हो।
फर उसने लग क जड़ को पकड़ कर धीरे धीरे ऊपर-नीचे वाला झटका दे ने लगी - मेरे
लग के आकार म अब तक खासा बढ़ो री हो चली थी।

या ने मेरी तरफ एक शरारती मु कान फक , "मुझे नह लगता क यह मेरे वहां पर फट


हो पायेगा।"
उसने मेरे लग के साथ छे ड़-खानी करनी बंद नह करी। इस समय वह उसक पूरी ल बाई
पर अपना हाथ फरा रही थी, जसके कारण मेरे श का श द पीछे सरक गया
और उसका गुलाबी चमकदार ह सा दखने लगा। उसने अचानक ही मेरे लग क
ना लकपथ से रसते ए व को दे खा।

"ये यहाँ से या नकल रहा है?" उसने उ सुकतावश पूछा।

"इसको ' ी-कम' कहते ह" मने बताया।

उसने कुछ दे र मेरे लग को यूँ ही दे खा, और फर धीरे से आगे झुक कर, मानो एक
योगा मक तरीके से ी-कम को चाट लया, और फर मेरी तरफ दे खा। मने उस पर
वाचक डाली।

उसने मु कुराते ए कहा, "थोड़ा नमक न है …. ले कन, आपका टे ट अ ा है।"

फर, थोड़ा क कर, "मुझे बताइये क आपको कैसा पसंद है?"

मुझे लगा क जैसे वह मुझसे पूछ रही हो क वह मुख-मैथुन कैसे करे।

मने पूछा, "आपने लोलीपॉप खाया है?" उसने हाँ म सर हलाया।

"बस इस गुलाबी ह से को लोलीपॉप के जैसे ही चूसो और चाटो। आप चाहे तो लग का


और ह सा भी अ दर ले सकती ह.…. ले कन, यान से - यह ब त ही नाजक होता है -
दांत न लगने दे ना।

" या ने समझते ए अपनी जीभ पुनः बाहर नकाली और धीरे धीरे से मेरे लग के इस
गुलाबी ह से को चारो तरफ से चाटा, और फर इस या म पुनः नकले ए ी-कम को
चाट लया। मेरे सात इंच ल बे लग को बीच से पकड़ कर उसने अपने मुंह को धीरे धीरे
खोलना शु कया। जब मेरा लग उसके मुंह के बलकुल करीब आया, तब मुझे उसक
गरम साँसे अपने लग पर महसूस ई। यह कुछ ऐसा संवेदन था, जससे मुझे लगा क म
अभी ख लत हो जाऊँगा।
अब उसके ह ठ मेरे लग के गुलाबी ह से के करीब आधे भाग पर जम गए। या बस एक
पल को ठहरी, और फर उसने लग को अपने मुँह म सरका लया। मुझको एक जबरद त
संवेद अघात लगा। आप लोगो म जो लोग इतने भा यवान ह, जनको अपनी प नी या
े मका से मुख-मैथुन का सुख मला है, वो लोग यह बात समझ सकते ह। और जन लोगो
को यह सुख नह मला ह, उनको अव य ही अपनी प नी या े मका से यह वनती करनी
चा हए। यह आघात था या के गरमागरम मुंह म नगले जाने का.. और यह आघात था
इस सं ान का क एक अ त-सु दर कशोरी यह कर रही थी.…

जैसा मने पहले भी बताया है, मेरा लग या क कलाई से भी यादा मोटा है। लहाज़ा,
यह ब त अ दर नह जा सकता था। या ने भी यह अनुमान लगा लया होगा क कतना
अ दर जा सकता था, य क उसने करीब करीब तीन इंच अपने मुंह म लया होगा जब
उसको घुटन सी महसूस ई।

"ब त यादा अ दर लेने क ज़ रत नह है।" मने उसको कहा. उसने मेरे लग को मुंह म
लए लए ही सर हलाया, और धीरे धीरे अपनी जीभ को मेरे लग के सर और बाक ह से
पर फरना शु कर दया। मने महसूस कया क वह इसको थोड़ा चूस भी रही थी (उसके
गाल वैसे ही हो रहे थे जैसा क चूसते समय होते ह)…

"थोडा और तेज़!" मने उसको ो सा हत कया। उसक ग त बढ़ गयी.. या इसको हलके


से चूसती और श ा को चुभलाती थी - जससे मेरे लग का कड़ापन और बढ़ जा रहा
था।

कभी कभी वो गलती से अपने दांत से लग को हलके हलके काट भी रही थी और जोर
जोर से चूस रही थी। इस चूषण का असर मेरे लग पर वैसा ही जैसे उसक यो न क मांस-
पे शयाँ मेरे लग पर कसती ह। इस या म बीच बीच म या मेरे श ा के छे द के
अ दर अपनी जीभ भी घुसाने का यास कर रही थी। इसके कारण मुखो रह रह के
बजली के झटके जैसे लग रहे थे। मेरे गले से उ माद क तेज़ आवाज़ छू ट पड़ी, और पूरा
शरीर थरथराने लगा।

कुछ ही समय बीता होगा क मुझे अपने वृषण पर वैसा ही एहसास आ जैसा खलन के
पूव होता है.… संभवतः, या ने भी यह महसूस कया होगा (हमारे ेम- मलन के पूव
अनुभव से उसको यह ान तो हो ही गया होगा)…. अब चूँ क वह मेरा 'बीज' न नह कर
सकती थी, अतः उसको मेरा वीय पीना तय था!
इस सं ान से मेरा खलन ब त ही ती आ - मेरे गले से साथ ही साथ एक भारी कराह
भी नकली। संभवतः उसको यह उ मीद नह थी क म इस ती ता के साथ ख लत
होऊंगा। उसको थोड़ी सी उबकाई आ गयी, और इस कारण से मेरे सरे और तीसरे
खलन का कुछ वीय उसके ह ठो से बाहर ही छलक गया। ले कन उसने अपने आपको
संयत कया और आगे आने वाले खलन को पी गयी। त प ात उसने मेरे लग को प
क तरह से चला कर बाक बचा आ वीय भी नकाल कर गटक गयी।मेरे घुटने कमज़ोर
होकर कांपने लगे - मुझे लगा क म अभी च कर खाकर गर जाऊँगा।

ऐसा ख़याल आते ही, मने या के दोन कंधे थाम लए, ले कन फर भी मेरे पैर का
क न गया नह । या ने मेरा लग अभी भी अपने मुंह से बाहर नह नकाला था, ले कन
अभी वह उसको ब त ही नरमी से चूस रही थी। उसको संभवतः महसूस आ होगा क
अब कुछ भी नह नकल रहा है - उसने मेरी तरफ दे खा और अपने मुंह को मेरे लग से
अलग कर के कहा,

"मने ठ क से कया?"

मने हामी भरी तो उसने आगे कहा, "आपने कतना ढे र सारा छोड़ा! … आप अभी खुश
ह?"

"ब त!" म बस इतना ही बोल पाया।

वह खल खला कर हंस पड़ी.… म नीचे या के बराबर आकर बैठ गया और उसको


चूमने लगा। मुझे अपने वीय का वाद आने लगा.. ले कन या के वाद से मलने के
कारण मुझे ये अभी वा द लग रहा था। उसको चूमते ए म उसक पीठ सहलाने लगा -
हवा क ठं डी के कारण उसक वचा क सतह ठं डी हो गयी थी, ले कन शरीर के अ दर क
गम ख़तम नह ई थी।

मुझे अचानक ही वातावरण क ठं डी का एहसास आ, तो मने उठ कर या को अपने


साथ ही उठा लया और च ान पर अपने कपड़े बछा कर फर उसको बैठने को बोला।

जब वो बैठ गयी, तो मने कहा, "अब मेरी बारी है …. आपको खुश करने क !"
यह कहते ए मने या को ह का सा ध का दे कर उस जुगाड़ी ब तर पर लटा दया, और
उसके मुख को पूरी कामुकता के साथ चूमने लगा। मेरे मुख को जगह दे ने के लए या का
मुख भी पूरी तरह से खुला आ था। उसक जीभ मेरी जीभ के साथ टगो नृ य कर रही
थी। कुछ दे र उसके मुख को चूमने के बाद मने उसके दा हने कंधे को चूमना शु कया
और उसके ऊपरी सीने को चूमते ए उसके बाएँ तन पर आकर टक गया। या ने अपने
हाथो क गोद बना कर मेरे सर को सहारा दया, और मने उसके तन को शाही अंदाज़ म
भोगना आर कर दया - पहले मने उसके बाएं तन को चूसा, चूमा और दबाया, और
फर यही या उसके दाय तन पर क ।

काफ समय तन को भोगने के बाद म उसके धड़ को चूमते ए उसके पेट तक आ गया।


वहां मने उसक ना भ के चार तरफ अपनी जीभ से वृ ाकार तरीके से चाटा, और फर
ना भ के अ दर जीभ डाल कर कुछ दे र चाटने का ो ाम कया। मेरी इस हरकत से या
क खल खलाहट छू ट गयी। इसके बाद मने उसको सरल रेखा म चूमना शु कया और
उसक यो न के दरार के एकदम शु आती को चूम लया। या के गले से आनंद क चीख
नकल गयी और साथ ही साथ उसने अपने नत ब कुछ इस तरह उठा दए जससे उसक
यो न और मेरे मुख का संपक न छू टे ! इस नजन ान म नबाध ेम संयोग करने के
कारण वह ब त ही आ त लग रही थी। ले कन मने वह ह सा फलहाल छोड़ दया और
उसके जांघ के भीतरी ह से को चूमने लगा। या ने अपनी जांघे खोल द - इस उ मीद म
क म उसक यो न पर हमला क ं गा। मने दे खा क या क यो न के दोन ह ठ उसके
काम-रस से भीग गए थे। मने उसके दा हने पैर को उठाया और उसको चूमना शु कया -
म उसक पडली चूमते ए टखने तक प ंचा और उसके मेहंद से सजे पैर को चूमा।

चूमते ए मने उसके पैर के अंगूठे को कुछ दे र चूसा भी। मेरे ऐसा करने से या ने
खल खलाते ए अपना पैर वापस खीच लया, और बोली, "गुदगुद होती है!" मने फर
यही या उसके बाएं पैर पर करनी शु क । कुछ दे र ऐसे ही खलवाड़ करने के बाद म
वापस जांघो के रा ते होते ए उसक यो न क तरफ बढ़ने लगा। हाँला क, हम लोग पहले
भी सहवास कर चुके थे, ले कन या क यो न का ऐसा दशन नह आ था। दन के
उजाले म मुझे उसका आकार कार ठ क से दखा - उसक यो न के मांसल ह ठ उसके
टांग के बीच के ह से क तरफ झुके ए थे और चकने और ूल थे (जैसा म पहले भी
कह चुका ,ँ इनका रंग सामन मछली के मांस के रंग का था)। इनके ऊपरी ह से म
गुलाबी मूंगे के रंग का ड था, जसमे से उसका भगनासा दख रहा था। या क साँसे
अब तक ब त भारी हो चली थ ।
मने या क टाँगे पूरी तरह से खोल द - उसके शरीर का लचीलापन मेरे लए ब त ही
आ यजनक था! उसक जांघे लगभग एक-सौ-साठ अंश तक खुल गयी थ ! मने अपनी
जीभ से उसक यो न के नचले ह से को ढं का और नीचे से ऊपर क तरफ चाटा - ब त
ही धीरे धीरे! जैसे ही मेरी जीभ का संपक उसके भगनासे से आ, उसक ससक छू ट
गयी, और साथ ही साथ उसके शरीर म एक थरथराहट भी।

"हे भगवान!" वो बस इतना ही बोल पायी। ले कन मेरे लए यह काफ था।मने अपने मुख
को वहां से हटाया और बैठे ए ही अपने दोन अंगूठ क सहायता से उसके यो न पु प क
पंखु ड़य को खोल कर उसके भगनासे को अनावृत कर दया। उसक यो न के अंद नी
ह ठ पतले थे और काफ छोटे थे। यो न- छ गुलाबी लाल रंग का था, और उसका ास
करीब करीब चौथाई इंच रहा होगा। उसक यो न म से जसमे धया, ले कन पारभासी व
रस रहा था और यो न से होते ए उसक गुदा क तरफ जा रहा था।

मने अपनी जीभ से उसके यो न रस का आ वादन करते ए, भगनासे को चाटना आर


कर दया।

"आऊऊ!" या कराही, "थोडा थोड़ा दद होता है!"

अरे! अगर मज़ा लेना है तो कुछ तो सहना पड़ेगा न! ले कन मेरे पास या को यह समझाने
का समय और संयम नह था। मने उस छोटे से ब को चाटना जारी रखा। या ने एक
गहरी सांस छोड़ी, और अपने नत बो को मेरे चाटने क ताल म ऊपर क तरफ हलाना
शु कर दया - मानो वह वयं ही अपनी यो न का भोग चढ़ा रही हो। कुछ दे र तक यूँ ही
चाटने के बाद मने अचानक से उसके सम त गु तांग को अपने मुंह म भर कर कास के चूस
लया और अपनी जीभ को बड़े ही हसा मक तरीके से उसके भगनासे पर फराने लगा।

या क गले से एक अ यंत कामुक ससकारी छू ट गयी और उसका शरीर कामो ेजना म


दोहरा हो गया। उसके हाथ मेरे सर को बलपूवक पकड़ कर अपनी यो न म खीचने लगे।
उसके हाँफते ए गले से आह नकलने लग ।

उसका शरीर एक कमानी जैसा हो गया, और मेरे सर पर उसक पकड़ और भी मजबूत हो


गयी और अचानक ही उसका शरीर एकदम से कड़ा हो गया। या के शरीर म तीन बार
झटके आये, और तीनो बार उसके मुंह से "ऊउ ह!" नकला। अंततः, वह नढाल होकर
लेट गयी।

या मुख मैथुन के ऐसे हार के आघात के बाद अपनी आँखे बंद कये लेट ई थी -
उसके तन उसक तेज़ चलती साँस के साथ ही उठ बैठ रहे थे और उसक साँसे अभी भी
उसके मुंह से आ-जा रही थ । उसक जांघे वापस खुल गयी थ और उसक छोट सी यो न
मेरे मौ खक प रचया के कारण पूरी तरह से गीली हो गयी थी - उसक यो न से काम-रस
अभी भी नकल रहा था।

हलक ठ ड होने के बावजूद या का शरीर पसीने क एक पतली परत से ढक गया था।


मने उसके हाँफते ए मुख को अपने मुख म लेकर भरपूर चु बन दया - हमारे तीन संसग
म ही हमारे बीच के गुणधम और ऊजा कई गुना बढ़ चुके थे। इस व तीण नजन ाकृ तक
ान म अपनी भावनाएँ अव करने का कोई अथ नह था। लहाज़ा, हमारा जोश
पाश वक जुनून तक प ँच गया। हमारा चु बन कामो माद क पराका पर था - चु बन के
बीच म हम एक सरे के ह ठ को ह के हलके चबा भी रहे थे। मुझे लगा क हमारी
ज ाएँ एक क ठन म लयु म भड़ने वाली थी क या कसमसाते ए बोली, "जी ….
मुझे टॉयलेट करना है।"

टॉयलेट? मुझे अब कुछ कुछ समझ आ रहा था। अव य ही या को सहवास के बाद मू


करने का संवेदन होता है। हो सकता है। ये सब सोचते ए मुझे एक वचार आया। हम लोग
इतने कर काय कर रहे थे, य न एक काय और जोड़ ल?

"टॉयलेट जाना है? और अगर म न जाने ँ तो?" कहते ए मने उसको अपनी बाँह के घेरे
म पकड़ कर और जोर से पकड़ लया। या कसमसाने लगी।

" लीज! जाने द जये न! नह तो यह पर हो जाएगा!" कहते ए या शरमा गयी।


.
"हा हा! ठ क है, कर लो …. ले कन, मुझे दे खना है।"

मेरी बात सुन कर या क आँख आ य से फ़ैल गय ! मेरी कामास के योग म या ने


अभी तक पूरा साथ दया था, ले कन उसके लए ये एक नया वषय था।
" या?! छ ! आप भी न!"

" या छ ? मने तो आपका सब कुछ दे ख लया है, फर इसम या शम?" मेरी बात सुन कर
या और भी शरमा गयी। म अब उठ कर बैठ गया और साथ ही साथ या को भी उसक
बाँहे पकड़ कर बैठा लया, और इसके बाद मने या क टाँगे थोड़ी फैला द । मेरी इस
हरकत से या खल खला कर हंस द ।

"इस तरह से?" मने सर हल कर हामी भरी …. "मुझे नह लगता क म ऐसे कर सकती
ँ!"

"जानेमन, अगर इस तरह से नह कर सकती, तो फर बलकुल भी नह कर सकती।" मने


ढठाई से कहा।

मने या का टखना जकड़ रखा था, और ढ़ न य कर रखा था क म उसको मू करते


ए अव य दे खूँगा - और अगर हो सका तो उसक मू -धार को श भी क ं गा। उस
समय नह मालूम था क यह अनुभव मुझे अ ा भी लगेगा या नह - बस उस समय मुझे
यह तजुबा लेना था। अं ेजी म जसे ' कक ' कहते ह, वही! या ने थोड़ी कसमसाहट
करके मेरी पकड़ छु ड़ानी चाही, ले कन नाकामयाब रही और अंततः उसने वरोध करना बंद
कर दया। उसने अपनी मु ा थोड़ी सी व त करी - प र पर ही वह उक बैठ गयी -
उसके ऐसा करने से मुझे उसक यो न का मनचाहा दशन होने लगा।

"आप सचमुच मुझे ये सब करते दे खना चाहते ह?" मने हामी भरी, "…. ये सब कतना
ग दा है!"

"जानू! इसी लए! म बस एक बार दे खना चाहता ँ। अगर हम दोन को अ ा नह लगा


तो फर नह करगे! ओके? जैसे आपने मेरी बात अभी तक मानी है, वैसे ही यह बात भी
मान ली जये।"

"जी, ठ क है … म को शश करती ँ।"

यह कहते ए या ने अपनी आँख बंद कर ल , और मू पर यान लगाया। उसक यो न


के पटल खुल गए - मने दे खा क वहां क माँस पे शयाँ थोडा खुल और बंद हो रही थ
(मू ाशय को मु करने का यास)। या के चमकते ए रस- स गु तांग को ऐसी
अव ा म दे खना अ यंत स मोहक था।

मने दे खा क मू अब नकलने लगा है - शु म सफ कुछ बूँद नकली, फर उन बूँद ने


रसाव का प ले लया, और कुछ ही पल म मू क अनवरत धार छू ट पड़ी। या का
मुँह राहत क साँसे भर रहा था। उसक आँख अभी भी बंद थ - मने अपना हाथ आगे बढ़ा
कर उसके मू के माग म लाया और त ण उसक गम को महसूस करने लगा।

कोई दस सेकंड के बाद या का मू यागना बंद आ। वह अभी भी आँख बंद कये ई


थी - उसक यो न क पे शयाँ सकुड़ और खुल रही थ और उसम से मू नकलना अब
बंद हो चला था। मेरे दमाग म न जाने या समाया क मने आगे बढ़ कर उसक यो न को
अपने मुंह म भर लया, और या के मू का पहला वाद लया - यह नमक न और थोड़ा
तीखा था। मुझे इसका वाद कोई अ ा नह लगा ले कन उसका वाद अ तीय था और
इस लए मुझे ब त रोचक लगा। मने उसक यो न से अपना मुँह कास कर चपका लया
और उसको चूस कर सुखा दया।

मेरी इस हरकत से या मेरे ऊपर ही गर गयी - उसक टांग म क न सा हो रहा था।


उसने जैसे तैसे अपने शरीर का भार व त कया, जससे मुझे परेशानी न हो, और
फर मुझे भावुक हो कर जकड कर एक ज़ोरदार चु बन दया, "हनी … आई लव यू! ….
ये … ब त …. अजीब था। मेरा मतलब … यह ब त उ ेजक है, ले कन ब त ही ….
अजीब!"

या को इस कार अपनी भावनाएँ बताते ए दे खने से मुझे ब त अ ा लगा। एक ेमी


युगल को अपनी अपनी काम भावनाएं एक सरे को बतानी चा हए। तभी एक सरे को
पूण पेण संतु कया जा सकता है।

"आई लाइ ड इट! इसको थोड़ा और आगे ले जायगे!" मने कहा और या को पुनः चूमने
लगा।

अ नी क नजर म :

अ नी कोई पाँच मनट से झाड़ी के पीछे खड़ी ई अपने द द और जीजाजी के र त-


सहवास के य को दे ख रही थी। उसके माँ और पताजी ने उसको उन दोन के पीछे भेज
दया था क उनको वापस ले आये, य क मौसम कभी भी गड़बड़ हो सकता है। अ नी
रा ते म लोगो से पूछते ए इस तरफ आ गयी थी - उसको या क इस फेव रट ान का
पता था। अ नी उस जगह पर प ँचने ही वाली थी क उसको कसी लड़क के कराहने
और ससकने क आवाज़ आई।

वह आवाज़ क दशा म बढ़ ही रही थी क उसने झील के बगल वाले तर खंड पर द द


और जीजू को दे खा - वह दोन पूणतः नं युल (न न) थे - द द लेट ई थी - उसके पाँव
फैले ए थे और आँख बंद थ - जीजू का सर द द क रान (जाँघ ) क बीच क जगह
सटा आ था और वो उसक पेशाब करने वाली जगह को चूम, चाट और पलास (सहला)
रहे थे। उनके इस हरकत से ही द द क कराहट नकल रही थ ।

' छः! जीजू कतने गंदे ह! द द दद से कराह रही है और वो ह क ऐसी ग द जगह को


पलास रहे ह!' ऐसा सोचते ए अ नी क नगाह अपने जीजू के नचले ह से पर पड़ी -
उनका छु ू और अंडे दख रहे थे। वह पहले सोचती थी क द द ब त बली है, ले कन
उसको ऐसे नरावृत दे ख कर उसको समझ आया क वो तो एकदम गुंट (सु दर और
सुडौल) है। जीजू भी बना कपड़ के कतने सु दर लगते ह!

अ नी को कुछ ही पल म समझ आ गया क उसका यह आंकलन क द द दद से कराह


रही है, दरअसल गलत था - वह व तुतः मज़े म आह भर रही है। कोई चाहे कतना भी
मासूम य न हो, सयाना होते होते र त या का नैस गक ान उसम वयं आ जाता है।
अ नी को ी पु ष के शारी रक बनावट का अंतर मालूम था और उसको यह भी मालूम
था क लग और यो न का आपस म या स ब है।

ले कन उसको यह नह ात था क इस संयोजन म आनंद भी आता है। इस कारण से


उसको अपनी भोली-भाली द द को इस कार आनंद ा त करने को उ त दे ख कर
आ य आ।
' कतनी नल ता से द द खुद भी अपनी यो न को जीजू के मुँह म ठे ले जा रही थी! कैसी
छं छा (च र हीन औरत) जैसी हरकत कर रही है द द !'

एक बात दे ख कर अ नी को काफ रोमांच आया - जीजू के हाथ द द के दोन दल


( तन) और दल-घुंडी ( तना ) को रह रह कर म ज भी रहे थे। इस समय द द जीजू के
सर को पकड़ कर अपनी यो न म खीच रही थी और हाँफ रही थी। अ नी ने दे खा क
अचानक ही द द का शरीर कमानी जैसा हो गया, और उसके शरीर म झटके आने लगे।
फर वह नढाल होकर लेट गयी।

कुछ दे र द द लेट रही और फर उठ कर जीजू से कुछ बाते करने लगी। फर वह ऐसी


मु ा म बैठ गयी जैसे पेशाब करते समय बैठते ह - ले कन प र पर और वह भी जीजू के
सामने? द द को ऐसा करते ए तो वह सोच भी नह सकती थी - ले कन जो य म हो
रहा है उसका या?

'इसको बलकुल भी शम नह है या?'

अ नी को अपनी द द को ऐसे खुलेआम पेशाब करते दे ख कर झटका लगा और एक


और झटका तब लगा जब जीजू ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके पेशाब क धार को
छु आ। और उसका मन जुगु सा से भर गया जब उसने दे खा क जीजू ने द द के पेशाब
वाली जगह को अपने मुंह म भर लया।

'ये द द जीजू या कर रहे ह? कतना ग दा ग दा काम!'

अ नी वहां से वापस जाने ही वाली थी क उसने दे खा क द द और जीजू आपस म कुछ


बात कर रहे ह और जीजू का छु ू तेजी से उ त होता जा रहा है - उसका आकार कार
दे ख कर अ नी का दल धक् से रह गया।

'यह या है?' अ नी ने सफ ब के श दे खे थे, जो क मूंगफली के आकार जैसे होते


ह। वो भी कभी कभी उ त होते ह, ले कन जीजू का तो सबसे अलग ही है। अलग … और
ब त सुंदर … और और ब त … बड़ा भी! ये तो उसक कूल क केल से भी यादा
ल बा लग रहा था और मोटा भी था - ब त मोटा।
द द ने ब त ही यार से जीजू के छु ू को धीरे धीरे पलासना शु कर दया था, और साथ
ही साथ वो च ान पर कुछ इस तरह से लेट गयी क उसक उसक रान पूरी तरह से खुल
गयी। ले कन फर भी द द अपने उस हाथ से, जो जीजू के छु ू पर नह था, अपनी पेशाब
करने वाली जगह को और फैला रही थी। द द क फैली ई यो न को दे ख कर अ नी के
दल म एक आशंका या डर सा बैठ गया।

' या करने वाली है ये?'

और फर वही आ जसक उसको आशंका थी - जीजू अपना छु ू द द क यो न म धीरे


धीरे डालने लगे। द द क छाती तेज़ साँस के कारण ध कनी जैसे ऊपर नीचे हो रही थी।

'द द को कतना दद होगा! बेचारी दे खो कैसे उसक साँसे डर के मारे बढ़ गयी ह!'

द द नीचे क तरफ, जीजू के छु ू को दे ख रही थी - जीजू अब साथ ही साथ द द के दल


म ज रहे थे और चुटक से दबा रहे थे। अंततः जीजू का पूरा का पूरा छु ू द द के अ दर
चला गया - द द के गले से एक गहरी आह नकल गयी। अ नी को वह आह सुनाई पड़ी
- उसके दमाग को लगा क द द दद के मारे कराह रही है, ले कन उसके दल को सुख
भरी आह सुनाई द ।

जीजू ने द द से कुछ कहा। जवाब म द द ने सर हला कर हामी भरी।

'द द ठ क तो है? बाप रे! इतनी मोट और ल बी चीज़ कोई अगर मेरे म डाल दे तो म तो
मर ही जाऊंगी!' अ नी ने सोचा।

"क रए न … कए मत।" अ नी को द द क हलक सी आवाज़ सुनाई द ।

'द द या करने को कह रही है? और वो ऐसी हालत म बोल भी कैसे पा रही है। मेरी तो
जान ही नकल जाती और म रोने लगती।'

द द क बात सुन कर जीजू क कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी - ले कन ऐसे क
उनका छु ू पूरे समय द द के अ दर ही रहे और बाहर न नकले।
'हे भगवान्!' अ नी अब मं मु ध होकर अपने द द और जीजा के यौन संसग का य
दे ख रही थी।
या क नजर म : :

या को पछले के र त-संयोग म वैसा नह महसूस आ था, जैसा क उसको अभी हो


रहा था। उसके प त का बृहद लग उसक न ही सी यो न का इस कार उ लंघन और
उपभोग कर रहा था जसक ा या करना अ यंत क ठन था! वह लग जस तरह से
उसक यो न ार को फैला रहा था और इस या से होने वाला क भी अब उसको य
लगने लगा था। उस लग के येक वेशन से उन दोन के जघन े एकदम ठ क जगह
पर, एकदम ठ क बल के साथ टकरा रहे थे। और उसके प त के वृषण उसके नत बो पर
नरम नरम चपत लगा रहे थे।

ऐसा सुख या को पहले नह महसूस आ। यह संवेदना थी आनंद क , क क ,


आनंदा तरेक क और एक तरह क हा न क । और कुछ भी हो, इस काम म मज़ा ब त आ
रहा था।

जब या के ववाह का दन नकट आने लगा, तो पास पड़ोस क तीन चार 'भा भय ' ने
उसको अंतहीन और अधकचरी यौन श ा दान क । उनके हसाब से पु ष का लग
सामा यतः संकरा, थोड़ा लटकता आ, पतली ककड़ी जैसे आकार का होता है। क तु
उसके प त का लग तो उनके बताये जैसा तो बलकुल ही नह था - ब क उसके वपरीत
कह अ धक बल, ल बा और मोटा था। उ ह ने यह भी बताया था क यौन या तो बस
दो से चार मनट म ख़तम हो जाती है, और ऐसा कोई घबराने वाली बात नह होती, और
यह भी क ये तो पु ष अपने मज़े के लए करते ह। ले कन उसका प त इस वभाग म भी
न त प म लाख म एक है - एक तो उनके बीच का एक भी यौन संग कम से कम
पं ह बीस मनट से कम नह चला … और तो और 'उ ह ने' उसके आनंद को हर बार
वरीयता द । भा भय के हसाब से सहवास का मतलब लग का यो न म अ दर बाहर जाना
और तीन चार मनट म काम ख़तम। ले कन अब तक उन दोन ने जतनी भी बार भी
सहवास कया, उतनी ही बार सब कुछ नया नया था।

आ खर कतनी वषमता हो सकती है, इस चरंतन काल से चली आ रही नैस गक या


म? या को अपनी यो न म एक तेज़ ध का महसूस आ - उसने यान कया क उसके
प त का लग कुछ और फूल रहा था। और जस तरह से वह लग उसके ोड़ को नःशेष
कर रहा था, उससे वह अपने प त और उसके लग, दोन क ही मुरीद बन चुक थी।
उसको मन ही मन ात हो चला था क अथव क वो पूरी तरह गुलाम बन गयी है। पहले तो
अपने व, फर अपने वहार और अब अपने यौन-साम य से उसके प त ने उसको
पूरी तरह से जीत लया था। इसके एवज़ म वह कुछ भी कहगे तो वह करेगी। अगर अथव
चाहे तो दन के चौबीस घंटे उसके साथ सहवास कर सकता है और वो मना नह कर
सकती थी।
मेरी नजर म : :

आमतौर पर पु ष एक खलन के आधे घंटे तक पुनः संसग के लए नह तैयार हो पाते।


ले कन या क क शश ही कुछ ऐसी है क म तुरंत तैयार हो जाता ँ। उसका अ तीय
प, उसका भोलापन, उसक सरलता और उसका कम सन शरीर मेरी कामातुरता को कई
गुना बढ़ा दे ता है। कभी कभी मन होता है क उसक यो न म अपने लग का इतने बल से
घषण क ँ क वहां लाल हो जाए। ले कन, याँ हसा से नह , ेम से जीती जाती है।
लहाज़ा, म अपने मन के पशु पर लगाम लगा कर लयब तरीके से उसक यो न का मदन
कर रहा ँ। उसक कसी ई और चकनी यो न म मेरे लग का आवागमन ब त ही
सुखमय लग रहा है।
या क नजर म :

या क कामा न कुछ इस कार से धधक रही है क उसको न तो अपने नीचे के


शलाखंड क शीतलता महसूस हो रही है और न ही अपने पयावरण क । इस समय उसके
पूरे अ त व का क उसक यो न थी, जहाँ पर उसके प त का लग अपन क कर रहा
था। उसके हर ध के म आनंद और पीड़ा क ऐसी मधुर झंकार छू ट रही थी क उसको लग
रहा था क वह वयं ही कोई वा -य हो। ऐसे ही आनंद के सागर म हचकोले खाते ए
उसक झा ड़य के पीछे चली गयी।

'कोई तो वहां है!' हाँला क उसके ने म ख चे वासना के डोरे उसक अवलोकन को धुंधला
बना रहे थे, ले कन थोडा जतन करने से उसको कुछ दखने लगा। जो था,
उसके कपडे ब त ही जाने पहचाने थे। पर समझ नह आ रहा था क ये है कौन!

क तु, अपने आपको ऐसे नतांत न न और यौन क ऐसी अव ा म कसी और के


ारा दे खे जाने के एहसास से या क कामुकता और बढ़ गयी।

'कोई दे खता है तो दे ख!े आ खर वह अपने प त के साथ समागम कर रही है, कसी गैर के
साथ थोड़े ही! और दे खना ही या? जा कर सबको बताये क या और उसका प त कस
तरह से सहवास करते ह। और यह भी क उसके प त का लग कतना बल है!'

यह सोचते ए कुछ ही पल म वह र त- न प के आनंदा तरेक पर प ँच गयी। उसक


यो न से काम रस बरस पड़ा और अथव के लग को भगोने लगा। आनंद क एक बल
ससकारी उसके ह ठ से नकल गयी। ले कन अथव का हार अभी भी जारी था - उसके
हर ध के के साथ ही साथ या उछल जाती। उसको इस समय न तो अपने आस पास का
अ भ ान था और न ही भौ तकता के कसी भी नयम का। पूण आनंद से ओत ोत होकर
या इस समय अ त र क सैर कर रही थी।
अ नी क नजर म :

अ नी का दल एकदम से बैठ गया - 'द द उसी क तरफ दे ख रही है! या उसने मुझको
दे ख लया होगा? चोरी पकड़ी गयी? ऐसा लगता तो नह ! अगर दे खा होता तो शायद वो
अपने आपको ढकने क को शश करती?' उसक इस समय इस अ यंत रोचक मैथुन
के क ब पर मानो चपक ही गयी थी। जीजू का वकराल लग द द क छोट सी यो न
के अ दर बाहर ज द ज द फसल रहा था, और द द उसके हर ध के से उछल रही थी,
और आह भर रही थी।
मेरी नजर म : :

मने अचानक ही या क यो न म चकनाई बढती ई दे खी, जो क मेरे अगले ध क म ही


मेरे लग के साथ बाहर आने लगी। या के शरीर क थरथराहट, गहरी गहरी साँसे, पसीने
क परत, यह सब एक ही और संकेत कर रहे थे, और वह यह क या को चरम सुख
ा त हो गया है। ले कन मेरी मं जल अभी भी दो तीन मनट र थी, इस लए मने ध के
लगाना जारी रखा। कोई एक मनट बाद या के शरीर क थरथराहट काफ कम हो गयी
और वह अपनी आँख खोल कर मेरी तरफ दे खने लगी। कुछ दे र और ध के लगाने के बाद
मुझे अपने अ दर एक प र चत दबाव बनता महसूस आ। मने त ण कुछ नया करने का
सोचा। ठ क तभी जब मेरा खलन होने वाला था, मने अपना लग बाहर नकाल लया
और हाथ से अपने लग को पकड़ कर मैथुन जैसे ग त दे ने लगा। या ता ुब से मेरी इस
हरकत को दे खने लगी। उसके चेहरे के हाव भाव बड़ी तेजी से बदल रहे थे। मुझे उसको
दे ख कर ऐसा लगा क उसको समझ आ गया है क मेरा लान अपने वीय को बाहर फकने
का है। और यह एक नरादर भरा काय था।

वह कुछ कर या कह पाती उससे पहले ही मने अपने आप को छोड़ दया - मेरे गम, सफ़ेद
वीय के ल बे मोटे डोरे उसके पेट और जाँघ पर छलक गए। वीय क कुछ छोट -छोट बूँद
उसके यो न के बाल पर उलझ ग । ऐसा करते ए मेरी भरी ई साँस के साथ कराह भी
नकल गय - मेरे पाँव इस तरह कांपे क मुझे लगा क म अभी गर जाऊँगा। मने पकड़
कर अपने आप को स हाला।

या ने मेरे वीय से सने और र वण लग को दे खा, फर अपने पेट पर पड़े वीय को दे खा


और फर बड़े अ व ास से मेरी तरफ दे खा। कुछ दे र ऐसे ही घूरने के बाद उसने हाँफते ए
बोला,

"आपने ऐसे य कया? मने आपको बोला था क आपका बीज मुझे मेरे अ दर चा हए!"

म अभी भी अपने आनंद के चरम पर था।

"जानेमन! सॉरी! आगे से सारा सीमन आपके अ दर ही डालूँगा!"


मेरी बात सुन कर पहले तो उसको संतोष आ और फर यह सोच कर क मेरा वीय लेने के
लए उसको सहवास करना पड़ेगा, उसका चेहरा शम से लाल हो गया।

"इन द मीनटाइम, लीन दस …" मने लग क तरफ इशारा करते ए कहा।

या मेरे यह कहने पर उठ और मेरे अध उ े जत लग को अपने मुंह म लेकर चूसने


लगी।
अ नी क नजर म : :

अ नी ने जो कुछ दे खा, उससे उसका मन जुगु सा से पुनः भर गया। द द जीजू के छु ू


को मुँह म भर कर चूस रही थी।

'पहले जीजू, और अब द द ! ये शाद करते ही या हो गया इसको? कतना ग दा ग दा


काम! और वो भी ऐसे खुले म? और वो जीजू ने द द के ऊपर ही पेशाब कर दया!
(अ नी क अथव का वीयपात पेशाब करने जैसा लगा)? अरे इतनी जोर से लगी थी तो
वहां बगल म कर लेत!े '

अ नी ने दे खा क कुछ दे र चूसने के बाद द द जीजू से अलग हो गयी और दोन ही उठ


कर झील क तरफ चलने लगे। वहां प ँच कर जीजू और द द अपने अपने शरीर को धोने
लगे, और कुछ दे र म वापस आकर उसी ट ले पर बैठ गए। और आपस म एक सरे को
गले लगा कर चूमने और पलासने लगे। ले कन दोन ने कपडे अभी तक नह पहने।

'अरे! ऐसे तो दोन को ठं डक लग जाएगी और इनक त बयत ख़राब हो जाएगी। कुछ तो


करना पड़ेगा! ये दोन तो न जाने कब तक कपडे नह पहनगे - म ही उनके पास चली जाती
ँ। जब इ ही लोगो को कोई शम नह है तो म य शरमाऊँ?'
मेरी नजर म : : :

"द द ?" यह आवाज़ सुन कर हम दोन ही च क गए - हमारा चु बन और आ लगन टू ट


गया और उस आवाज़ क दशा म हड़बड़ा कर दे खने लगे। मने दे खा क वहां तो अ नी
खड़ी है।

"अरे! अ नी?" या हड़बड़ा गयी - एक हाथ से उसने अपने तन और सरे से अपनी


यो न छु पाने का यास कया। "…. तू कब आई?" यह उसने अपनी श मदगी छु पाने
के लए कया था। या को समझ आ गया था क उन दोन क गरमागरम र त- या
अ नी ब त दे र से दे ख रही है।

मने अ नी को दे खकर अपनी नतांत न नता को महसूस कया और म भी हड़बड़ी म


अपने शरीर को ढकने का असफल यास करने लगा। हमारे कपडे उस च ान पर थोड़ा र
रखे ए थे, अतः चाह कर भी हम लोग ज द से कपडे नह पहन सकते थे।

"द द म अभी आई ँ …. माँ ने आप दोन के पीछे भेजा था मुझे, आप लोगो को वापस


लवाने के लए। वो कह रही थी क मौसम खराब हो जाएगा और आप लोगो क त बयत
न ख़राब हो जाए!"

कहते ए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था क अ नी ने मुझे
और या को पूरा न न तो दे ख ही लया है, तो अब छु पाने को या ही है? अतः मने भी
अपने शरीर को छु पाने क कोई को शश नह क - उसने हमको काफ दे र तक दे खा होगा
- संभव है क सहवास करते ए भी। संभव नह , न त है। लहाज़ा, अब उससे छु पाने
को अब कुछ रह नह गया था।

अ नी के हाव भाव दे ख कर मुझे लगा क वह हमारी न नता से काफ नवस है। हो


सकता है क हमारे सहवास को दे ख कर वह ल त या जेहनी तौर पर उलझ गयी हो।
उधर या बड़े जतन से अपने तन को अपने हाथ से ढँ के ए थी।

"अ ा …" या ने शमाते ए कहा। वो बेचारी जतना समट जा रही थी, उसके अंग
उतने अ धक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. लीज!" या
ने वनती करी। अ नी बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।
"आप लोग ऐसे नं युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे य ह? ठं डक लग जायेगी न! कर या
रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस म पूछ डाला।

"हम लोग एक सरे को यार कर रहे थे, ब े!" मने माहौल को ह का बनाने के लए
कहा।

" यार कर रहे थे, या मेरी द द को मार रहे थे। मने दे खा … द द दद के मारे कराह रही
थी, ले कन आप थे क उसको मारते ही जा रहे थे।"

‘ओके! तो उसने हम दोन को सहवास करते दे ख लया है।‘ मुझे लगा क अ नी हम


दोन को ऐसे दे ख कर संभवतः च कत हो गयी है - वैसे जब ब े इस तरह क घटना घटते
दे खते ह, तो समझ नह पाते क या हो रहा है। कई बार वे डर भी जाते ह, और उस डर
क घुटन से अजीब तरह से बताव करने लगते ह। अ नी सतही तौर पर उतनी बुरी हालत
म नह लग रही थी, ले कन कुछ कह नह सकते थे। मुझे लग रहा था क उसम इस घटना
को समझने क द ता तो थी, ले कन अभी उ चत और पया त ान नह था।

उसने पहले या को, और फर मुझको हमारे कपड़े दए, मने कपडे लेते ए उसका हाथ
पकड़ लया और अपने ओर ख च कर उसक कमर को पकड़ लया और उसक आँख म
आँख डाल कर, मु कुराते ए, ब त ही नरमी से कहा,

"तु हारी द द को मारने क म सपने म भी नह सोच सकता - वो जान है मेरी! उसक


ख़ुशी मेरे लए सब कुछ है और म उसक ख़ुशी के लए कुछ भी क ं गा। हम लोग वाकई
एक सरे को यार कर रहे थे - वैसे जैसे क शाद शुदा लोग करते ह। ले कन, तुम अभी
यह बात नह समझोगी। जब तु हारी शाद हो जायेगी न, तब तुमको मालूम होगा क दाजू
सही कह रहे थे। तब तक मेरी कही ई बात पर भरोसा करो …. ओके? तु हारी द द और
म, हम दोन एक ह!"

अ नी ने अ यंत मले जुले भाव से मुझे दे खा (मुझे नह समझ आया क वह या


सोच रही थी) और फर सर हला कर हामी भरी। मने उसके माथे पर एक छोटा सा चु बन
दया। मने दे खा क उधर या कपड़े पहनते ए हमको यान से दे ख रही है, और जब मने
अ नी को चूमा, तो या मु कुरा उठ । उस मु कान म मेरे लए शंसा और यार भरा
आ था। अ नी मेरे ारा इस तरह खुले आम चूमे जाने से शरमा गयी - उसके गाल सेब
जैसे लाल हो गए, अतः मने उसको जोर से गले से लगा लया, जससे उसको और
श मदगी न हो।

जब वो अलग ई तो बोली, "दाजू, आप ब त अ े हो! … और एक बात क ?ं आप


और द द साथ म ब त सु दर लगते ह!" इसके जवाब म अ नी को मेरी तरफ से एक
और चु बन मला, और कुछ ही दे र म या क तरफ से भी, जो अब तक अपने कपडे
पहन चुक थी।

कोई दो मनट म हम दोन ही शालीनता पूवक तरीके से कपड़े पहन कर, अ नी के साथ
वापस घर को रवाना हो रहे थे।

वापस आते समय हम बलकुल अलग रा ते से आये और तब मुझे समझ आया क या


मुझे ल बे और एकांत रा ते से लायी थी - यह सोच कर मेरे ह ठ पर शरारत भरी मु कान
आ गयी। खैर, इस नए रा ते के अपने फायदे थे। यह रा ता अपे ाकृत छोटा था और इस
रा ते पर घर और काने भी थ । वैसे अगर मन म मौसम खराब होने क आशंका हो तो
अ ा ही है क आप आबाद वाली जगह पर ह - इससे सहायता मलने म आसानी रहती
है।

इस छोट जगह म म एक मु त लफ़ इंसान था। ऐसा सो चये जैसे क वदे स फ म का


'मोहन भागव'। म ानीय नह था, ब क बाहर से आया था; मेरे हाव भाव और ढं ग ब त
भ थे; मुझे इनक भाषा नह आती थी, इ ही लोगो को दया कर के मुझसे हद म बात
करनी पड़ती थी - मुझसे ये लोग कई सारे मजेदार पूछते जनसे इनका भोलापन ही
उजागर होता; और तो और ब त सारे लोग मुझे ब त ही ज ासु नगाह से दे खते थे -
मुझसे बात करने के बजाय मुझे दे ख कर आपस म ही खुसुर पुसुर करने लगते। ले कन,
अब सबसे बड़ी बात यह थी क म यहाँ का दामाद था। इस लए लोग ऐसे ही काफ म वत
वहार कर रहे थे। यहाँ जतने भी लोग ने हमको दे खा, सभी ने हमसे मुलाक़ात क ,
अपने घर म बुलाया और आशीवाद दया। ना ते इ या द के आ ह करने पर हमने कई
लोगो को टाला, ले कन एक प रवार ने हमको जबरद ती घर म बुला ही लया और हमारे
लए चाय और हलके ना ते का बंदोब त भी कया। वहां करीब आधे घंटे बैठे और जब
तक हम लोग वापस आये तब शाम होने लगी थी।

इस समय तक मुझे वाकई ठं डक लगने लगी थी - और ल बे समय तक अनावृत अव ाम


रहने से ठ ड कुछ अ धक ही लग रही थी।
घर आकर दे खा क आस पास क पाँच-छः याँ आकर रसोई घर म कायरत थी। पता
चला क आज भी कुछ पकवान बनगे! मने सवेरे जो मैती आ दोलन के लए जस कार
का सहयोग दया था, उससे भा वत होकर याँ कर-सेवा करने आई थी और साझे म
खाना बना रही थी। वो सारे प रवार आ कर एक साथ खाना खायगे। मने या से गुजा रश
करी क कुछ ानीय और रोज़मरा का खाना बनाए। वो तो तुरंत ही शु ही कया गया
था, इस लए मेरी यह वनती मान ली गयी।

खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने
घर से यू जक स टम ले आये थे और उस पर 'गो न ओ ीस' वाले गीत बजा रहे थे।
उ ह ने ने ही बताया क या गाती भी है, और ब त अ ा गाती है। उसक यह कला तो
खैर मुझे मालूम नह थी। वैसे भी, हमको एक सरे के बारे म मालूम ही या था? मुझे
उसके बारे म बस यह मालूम था क उसको दे खते ही मेरे दल ने आवाज़ द क यही वह
लड़क है जसके साथ तु हे पूरी उ गुजारनी है।

मेरे अनुरोध करने पर या ने गाना आर कया ---

'तेरा मेरा यार अमर, फर यो मुझ को लगता ह डर ,


मेरे जीवन साथी बता, यो दल धड़के रह रह कर'

उसक आवाज़ का भोलापन और स ाई मेरे दल को सीधा छू गया। उसक आवाज़ लता


जी जैसी तो नह थी, ले कन उसक मठास उनक आवाज़ से सौ गुना अ धक थी। मेरा
मन उस आवाज़ के सागर म गोते लगाने लगा।

'कह रहा ह मेरा दल अब ये रात ना ढले,


खु शय का ये सल सला, ऐसे ही चला चले''

मेरे मन म हमारे साथ बताये ए इन दो दन क घटनाएं और य चल च क भाँ त


चलने लगे। मन म एक क सी हो गयी। या के बगैर एक भी पल नह चा हए मुझे मेरे
जीवन म!

'चलती म तार पर, फर यो मुझ को लगता ह डर'


वही डर जो मुझे भी लगता है। यार म होना, जहाँ अ य धक संतोष द और प रपूरक होता
है, वह अपने ेम को खोने का डर भी लगता है। गाना ख़तम हो गया था, और म या क
आँख म दे ख रहा था - और वो मुझ!े उसक आँख म यक न दलाने वाली चमक थी - इस
बात का यक न क म तु हारे साथ ,ँ हमेशा! मेरे दय म एक धमक सी हो गयी। ऐसा
कभी नह आ। हमारा ेम बढ़ता ही जा रहा था, और हमारे साथ के येक पल के साथ
और गाढ़ होता जा रहा था।

जब थाली परोसी गयी तो म घबरा गया - ये रोज़मरा क थाली है?! मुझको जो परोसा गया
वह था - पुलाव, राजमा दाल, वांटे के पकौड़े, वाले (एक तरह के परांठे), और खीर - जो
या ने बनायी। सबसे अ बात मुझको यह लगी क सभी लोग टाट-प पर साथ म
बैठ कर साथ म खाना खा रहे थे। यहाँ लगता है क याँ अपने प तय के साथ बैठ कर
खाना नह खाती, ले कन मेरे दबाव म या मेरे साथ ही खाने बैठ गयी। वह सल ,
ले कन संयत लग रही थी। पहले तो शाद होने के बाद भी सलवार-कुता पहनना, फर
खुलेआम एक रोमां टक गाना, और अब साथ म बैठ कर खाना - इस छोट सी जगह के
लए ब त बड़ा अपवाद था।

पहाड़ पर चढ़ने, और ठं डक म इतनी दे र तक अनावृत रहने से मेरी भूख काफ बढ़ गयी


थी, इस लए मने छक कर खाया, और या को भी आ ह कर के खलाया। खाने के बाद
क बे के बड़े-बूढ़े लोग भी साथ आ गए - हम लोग अलाव जला कर उसके इद- गद बैठे
और कुछ दे र यूँ ही इधर उधर क बात क । यहाँ पर कल और रहना था और परस वापस
अपने शहर - कं ट जंगल - को! मेरे पास वैसे तो छु याँ काफ थ , ले कन अभी तक
हनीमून का कोई लान नह बनाया था।

मने या से शाद के पहले पूछा था क वो कहाँ जाना पसंद करेगी, ले कन यह तीत


होता था क उसको हनीमून जैसी चीज़ के बारे म कुछ भी नह मालूम था। और उस समय
हम दोन इतनी कम बाते करते थे क यह संभव नह था क इसके बारे म या को
तफसील से बता पाऊँ! मुझे यह अचानक ही याद आया क हनीमून का तो कोई लान ही
नह बनाया है।

'ठ क है …. अभी या से इस वषय म चचा क ँ गा।' मने सोचा।

वैसे भी वदे श म जा कर हनीमून करना संभव नह था, य क एक तो या के पास


पासपोट नह था, और सरा उसके लए काफ योजना करनी होती है। खैर उसी से यह
बात करने पर कोई हल नकलेगा। मने अपने शाद -शुदा दो त को एस एम एस भेजे क
मुझे हनीमून आई डया भेज - जो भारत म ह - वो भी तुरंत। मने वैसे भी कह मनोरंजन के
इरादे से या ा नह करी थी - बस एक बार क , तो उसी म मुझको अपनी जीवन सं गनी भी
मल गयी।

अगले प ह मनट म शाद क बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगह
के बारे म मालूम हो गया - पहाड़ो से लेकर रे ग तान तक, धम ान (आ खर हनीमून के
लए कौन गधा धम- ान जाता है?) से लेकर न न-बीच तक। पहाड़, धम- ान,
रे ग तान, और जंगल वाले आई डया मने नकार दए (हाँला क जंगल वाला आई डया मुझे
ब त अ ा लगा - ले कन मने सोचा क उसको बाद म दे खा जाएगा।

न न बीच तो भारत म तो होते नह - ले कन बीच का आई डया म त है, मने सोचा। या


के लए एकदम नया होगा। उसने अभी तक सफ पहाड़ ही दे खे ह - इस जगह से आगे
कभी गयी ही नह । उसने बस कताब म ही पढ़ा होगा। मने अपने दो त को पुनः एस एम
एस भेजे क मुझे बीच के व भ आई डया बताएं।

अगले आधे घंटे म मुझको गोवा, केरल, अंडमान और ल प के बारे म मालूम हो गया।
लगभग सभी ने गोवा के बारे म बोला अव य। इसी से मुझे हो गया क वहां नह
जाना है - न त प से ब त ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चा हए
जो साफ़ सुथरी हो, सुर त हो, और जहाँ पया त एकांत भी मले।

फर मने अपने बॉस को फ़ोन कया और अपना लान बताया। आप लोगो सोचगे क ऐसा
बॉस सभी को मले - ले कन उसने पहले तो मुझे ववाह क बधाइयाँ द और फर ब त ही
ख़ुशी से मुझको वापस आने के लए 'अपना समय लेने' को कहा (इतने दन के काम म
मने शायद ही कभी छु ली हो - उसको कभी कभी यह डर लगता था क कह मुझे काम
के कारण बन-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कमचारी का य नह करना चाहता
था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया क उसका एक म है जो वहां
एक उ दा होटल का मा लक है। और यह क वह होटल एकदम फ ट लास है (वह खुद
भी वहां रह चुका है), और वह अपने दो त को मुझे ड काउं ट दे ने के लए भी बोलेगा। मुझे
तो उसका सुझाव ब त अ ा लगा, ले कन या क रजामंद भी उतनी ही आव यक थी।
अतः मने उसको कहा क म सवेरे फोन कर के बताऊँगा।
"यहाँ तो ब त ठं डक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे ह?" मने कमरे के अ दर
आते ए या से पूछा। म अपने हाथ को रगड़ कर गरम करने का यास कर रहा था।
या इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।

"आपको आदत नह है न! इसी लए आपको इतनी ठं डक लग रही है। और आप सफ एक


वेटर य लाये? पहाड पर आए और वो भी इस मौसम म! कुछ और गम कपडे रखने
चा हए थे न?" या ने हँसते ए जवाब दया।

"आपको कैसे मालूम क मेरे पास सफ एक वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर
रही थ या?" मने मजाक करते ए कहा।

"हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग म रखने थे, इस लए।" या ने प नी-सुलभ अ धकार
और मान वाली आवाज़ म कहा। म मु कुराया - अब 'मेरा सामान' जैसा कुछ नह है!

"आपने कभी बताया ही नह , क आप इतना ब ढ़या गाती ह? म अब तो रोज़ सुनूँगा


गाने!" या ने कुछ नह कहा, बस ल ा से मु कुराई। मेरे चेहरे पर उसके लए ेम,
शंसा, और गव के कतने ही सारे मले जुले भाव आये। मेरी आवाज़ आ हो चली,
ले कन फर भी मने उसको कहा,

"सच क ं? यू च माय लाइफ! थक यू!" मेरी यह बात सुनते सुनते या क आँख भर


आ , और वो तेज़ी से मेरे पास आकर मुझसे लपट गयी। अब 'आई लव यू' कहने क
ज़ रत नह थी। हम दोन इन मामूली औपचा रकता से ऊपर उठ गए थे। मने उसको
अपने से चपटाए ए ही कहा, "आपको मालूम है न, क परस एकदम सवेरे ही हम लोगो
को यहाँ से वापस जाना है?"

यह सुन कर या जा हर तौर पर उदास हो गयी और उसने ब त धीरे से सर हलाया।

"जानू, लीज! उदास मत होइए! हम लोग यहाँ हमेशा तो नह रह सकते ह न? जाना तो


होगा?" उसने फर से सर हलाया।

"माँ बाबा को छोड़ कर जाने से ःख तो होगा, ले कन म आपका पूरा ख़याल रखूंगा।


आपको मुझ पर भरोसा है न?" या ने मेरी आँख म एक गहन डाली और कहा,
"आप पर जतना भरोसा है, मुझे वो खुद पर नह है! आपके साथ म कह भी जाऊंगी।
और मुझे मालूम है क आप मुझे हमेशा खुश रखगे। इसका उ टा तो म सोच भी नह
सकती।"

मने संतोष द सांस भरी, "च लए, ब तर पर चलते ह …"

या ने ब तर को थोडा व त कया और मेरे पहले बैठने का इंतज़ार करने लगी। म


उसका आशय समझ कर ज द से ब तर के कगार पर बैठ गया, और उसको इशारे से
अपनी तरफ बुलाया। या मु कुराते ए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। मानव शरीर और
म त क अपने प रवेश से कतनी ज द अनुब ा पत कर लेता है! पछले दो दवस से
चल रही अनवरत यौन या ने या के दमाग का कुछ ऐसा ही अनुकूलन कर दया था -
जैसे ही हमको एकांत मलता, या को लगता क सहवास होने वाला है। वैसे मेरे भी
हालत उसके सामान ही थी - या मेरे आस पास रहती तो मेरे मन म और लग म हलचल
सी होने लगती।

"कम .... गव मी अ कस!" मने उसक कमर को थामते ए कहा। मेरी इस बात से या
के गाल एकदम से सुख हो गए। मने बड़ी मृ लता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और
उसक आँख म दे खा। वहाँ ल ा, ेम, रोमांच और स ता के मले-जुले भाव थे। मने
अपने ह ठ को उसके ह ठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके ह ठो के बीच धीरे से
धकेल दया। या के ह ठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख म चली गयी।
मने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शु कर दया और कुछ ही पल म
उसक जीभ को महसूस कया। या ने भी मेरा अनुसरण करते ए अपनी जीभ चलानी
शु कर द ।

इस सुंदरी को इस कार चूमने का संवेदन अतु य था - मुझे लगा क म पुनः अपने


कशोराव ा म आ गया। मुझे चूमते ए या अब और झुक गयी - उसक बाह मेरे गले
का घेरा डाले थ । उसके कोमल बाल का मेरे चेहरे पर श ब त ही आनंददायक था। मने
उसके कपोल पर अपनी हथे लय से थोडा और दबाव डाला और उसको च कस करना
जारी रखा। कुछ दे र बाद मने उसक पीठ को सहलाते ए अपने चु बन को एक भ दशा
दे ना आर कया, और अंततः उसके नत ब को थाम लया और उसको अपनी गोद म
बठा लया, कुछ इस तरह क उसके दोन पैर मेरे दोन तरफ रह और उसक यो न वाला
ह सा मेरे लग वाले ह से के ठ क सामने रहे।
अ त बात है, मने सोचा, क मने पछले दो दन म सहवास का मैराथन कया था और
आज क पदया ा के कारण थक भी गया था। वाभा वक प से मुझम अभी उ ेजना
नह आनी चा हए थी। ले कन, मेरे लग क अव ा कुछ और ही कह रही थी। कसी ानी
ने सही ही कहा है क लग का अपना ही दमाग होता है - भले ही व ान कुछ और ही
कहे। या का पेडू मेरे लग से एकदम सटा आ था, लहाज़ा, उसको न त तौर पर मेरे
लग का कड़ापन महसूस हो रहा था। म न त प से ब त उ े जत हो चला था।

मने उसके आकषक नत बो को अपने हथे लय से स दना शु कया। या म होकर


मेरे सीने को सहला रही थी - स व है क उसको भी अब मेरे सामान ही उ ेजना ा त हो
गयी हो। या को आगे बढ़ाने के लए मने उसके सलवार का नाडा ढ ला कर दया और
अपनी तजनी से उसके पु के बीच क घाट को सहलाया। वह स वतः मुझे चूमने म
अ य धक त थी, अतः मेरी इस या क उसने कोई त या नह दखायी। मने
अपना हाथ ऊपर सरका कर उसके पेट और पस लय को सहलाते ए उसके तन के
आधार को छु आ। या ने थोडा सा हट कर मेरे हाथ समु चत ान दया। मने अपने
हथे लय को अपने सीने और उसके तन के बीच के ान म आगे बढ़ा कर, उसके तनो
को पुनः महसूस करना शु कया। ठोस तनो से उसके दोन तना तन कर खड़े ए थे,
और कुत और वेटर के ऊपर से भी अ तरह से टटोले जा सकते थे।

मेरा लग पूरी तरह से अब खड़ा हो गया था, और न त तौर पर या उसको महसूस कर


सकती थी। स वतः वह लग के कड़ेपन का आनंद भी उठा रही थी, य क इस समय
अपने नत ब वह ब त थोड़ा भी मेरी गोद पर घस रही थी। यह अ व सनीय प से
कामुक था। इसी उ ेजना म मने उसके कू ह पर अपने हाथ चलाना शु कर दया।
ले कन सलवार के ऊपर से यह काम करने म कोई ख़ास मज़ा नह आ रहा था, अतः मने
कुछ इस तरह क या को न मालूम पड़े, उसक सलवार को नीचे क ओर सरका दया।
या ने च ी पहनी ई थी - ले कन इस समय उसके इस खूबसूरत ह से का अ धक
अ भगम मल गया था। मने अपनी हथे लय से उसके नंगे नतंबो का आनंद उठाना
आर कर दया। अचानक ही मने धीरे से मेरी उं ग लय से उसके नतंब के बीच क दरार
को छु आ। मेरे ऐसा करते ही या का चु बन क गया, और उसके साँसे अब और गहरी,
और तेज हो गय । हमारी आँख आपस म मल । उसका चेहरा संतोष क एक सुंदर नरम
अभ लए था, और म इस य को दे ख कर ब त स आ। म मु कुराया और
या भी। मने उसक सुंदर नाक को चूमा और उसको बताया क म उसको ब त यार
करता ँ।
या मेरी गोद से उठ खड़ी ई और मने बना कोई समय खोए उसका सलवार और च ी
पूरी तरह से उतार दया। मने दे खा क या क यो न अभी होने वाली र त या के
पूवानुमान से गीली हो गयी थी। मने उसको वापस अपनी गोद म बैठा लया और चूमना
आर कया। मने अभी तक अपने कपडे नह उतारे थे, लहाज़ा उसक यो न का
गीलापन, अब मेरे कपड़ो को भगो रहा था। मेरे हाथ इस समय उसके कुत के अंदर था,
और म उसक पीठ को सहला रहा था। उसक पीठ को सहलाते ए म उसक पीठ के
नचले ह से को, जहाँ डपल होते ह, अपनी उं ग लय से सहलाने लगा। या का शरीर
वयं ही मेरे श से ताल मलाने लगा। मने धीरे धीरे अपने हाथ को उसके शरीर के ऊपर
क तरफ ले जाने लगा। मेरा परम ल य उसके छोटे और ठोस तन क सुंदर जोड़ी थी।
ले कन म इस काम म कोई ज द नह करना चाहता था। म चाहता था क या अपने
शरीर को सहलाये और लराये जाने क अनुभू त का पूरा आनंद उठाये।

मने उसक पस लय को सहलाया और सहलाते ए अपने अंगूठ से उसके तन के बाहरी


गोलाइय को छु आ। उसका शरीर इस संवेदन के जवाब म पीछे को तरफ झुक गया,
ले कन यह कुछ इतनी ज द से आ क उसको स हालने के च कर म मेरे हाथ फसल
कर उसके तनो पर जा टके। या ने मुझे चूमना जारी रखा, और मेरे हाथ को अपने
तन पर महसूस करके पूरी तरह से खुश लग रही थी। मने उसके शानदार तन को
सहलाया। मेरे हाथ ने उसके तन को पूरी तरह से ढक रखा था और उनको इस तरह से
पूरी तरह से वरण करने म स म होने क अनुभू त अ त थी। मने कोमलता से उसके
तना को सहलाया - जवाब म या एक गहरी सांस भरती ई पीछे क तरफ मुड़ गयी।
उसने चूमना बंद कर दया था और मुँह से भारी साँसे भर रही थी। उसके शरीर क मेरे
श क इस तरह से त या करते दे खना अ त था।

अब समय आ गया था क या को पूणतया न न कर दया जाए। मने उसके कुत का


नचला ह सा पकड़ कर उसको नकालने लगा। या ने भी अपने हाथ उठा कर कुत को
उतारने म सहयोग कया। इस कार न न होने के बाद, या पीठ के बल लेट गयी - इसके
दोन हाथ उसके दोन तरफ थे। म भी एक करवट म उसके बगल आकर लेट गया और
भर कर उसके प का रसा वादन करने लगा। उसके तन इतने सु दर थे क म
उनको अपनी पूरी उ दे ख सकता था - खूबसूरती से तराशे ए! मने अपने सामने चल रहे
इस अ त य क शंसा म द घ ास छोड़ा। या ने वह आवाज़ सुन कर मेरी तरफ गव
और ल ा के मले-जुले भाव से दे खा।
मने लेटे लेटे ही उसके प का न र ण करना जारी रखा - और उसके तन ,
पस लय और पेट से होते ए उसके आकषक कू हे का अवलोकन कया। लेते ए उसका
पेट थोड़ा अवतल लग रहा था (बैठे ए वह सपाट लगता है) और उसक कू हे क ह यां
पेट से अ धक ऊपर उठ ई थ और प से प रभा षत दख रही थ । मेरे लए इस
कार का नारी शरीर अ य धक आकषक है। थोड़ी और आगे बढ़ तो उसके जघन
े के बाल दखने लगे। और नीचे दे खा तो उसका सूजा आ भगो और उन दोन के
बीच म त लगभग बाल- वहीन, उसके अ तभाग का ार, ब त ही लुभावना दख रहा
था। मेरे इस न र ण या के बीच म या ने कुछ भी नह कहा - इस समय उसक साँसे
भी आ यजनक प से शांत थ । मुझे अचानक ही अपने काय ल से एक मज़ेदार बात
याद आ गयी - क अगर म या पर कोई रपोट लख रहा होता, तो उसको म 'अ'
मू यांकन दे ता।

उसी समय मुझे यान आया क म तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने ए था। मने ज द
से अपने सारे कपडे उतार दए, जससे मु य काय म कोई वल ब न हो। मेरा इरादा या
के शरीर के एक एक इंच का आ वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मने उसके
इस काम के लए चेहरे से आर करने क सोची। मने या को ह ठ पर चूमा तो वह भी
मुझे चूमने लगी, ले कन मेरा लान अलग था। मने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फर
उसके कान के नकट गया। मने उसके कान को चूमते ए उसक लोलक को धीरे से
काटन और चबाना शु कया। उसके सरे कान के साथ भी यही आ। मने साथ ही साथ
अपने खाली हाथ से उसके शरीर को सहलाना भी शु कया। इस स म लत हार का
असर यह आ क या क साँसे फर से बढ़ने लग । ऐसे ही सहलाते सहलाते मने उसके
एक तन को अपने हाथ से ढक लया और कुछ दे र उनको यूँ ही दबाया। मने दे खा क
या क आँख अब बमु कल ही खुल पा रही थ ।

म उसक गदन से होते ए नीचे क तरफ जाकर उसके सीने के ऊपरी ह से चूमने लगा।
नीचे बढ़ते ए मने उसके तन के बीच के ह से, उनके नीचे और आसपास चूमा और
जीभ से छे ड़ा। या क सांस अब काफ बढ़ गय थ और उसक आँख कास कर बंद हो
गयी थ । उसके दोन हाथ अभी भी उसके बगल म ही थे, ले कन उ माद म उसक मु यां
बंध गय थ । मने एक और बात दे खी, और वह यह क उसने अपनी कामुक अवचेतना म
अपनी टाँगे थोड़ी खोल द थ जससे मन उसके यो न- े का अ वेषण कर सकूं, मने
अभी तक उसके तन पर अपना काय समा त नह कया गया था।
मने उसके एक तना पर अपनी जीभ फराई - या ने कांपते ए तेज़ सांस भरी। उसक
छाती एकदम से ऊपर उठ गयी, जससे उसका तन मेरे मुंह म अनायास ही भर गया। मने
उसके चेहरे को दे खा, उसक आँख अभी भी कस कर बंद थ , ले कन सांस भरने के कारण
उसके ह ठ थोड़ा जुदा थे। मने पुनः उसके तना को चाटा तो एक बार फर से उसक
छाती मेरे उठ कर मेरे छे ड़ते ए मुंह म भर गयी। मने उस तना को मुंह म भरा और धीरे
से चूसने, चबाने और काटने लगा। उसक साँसे अब और अ धक तेजी से चलने लग साँस
ले रहा था और बेचैनी म अपने सर को इधर उधर चलाने लगी। ऐसा करने से उसके बाल
ब तर पर फ़ैल गए। वाह! या गज़ब क कामुक लग रही थी वह! कुछ दे र उसके तन को
इसी कार छे ड़ने के बाद मने सरे तन पर भी यही या आर कर द , ले कन पहले
वाले तन को छोड़ा नह - उसको अपने हाथ से लगातार मसलता, लारता रहा। या क
कामो ेजना दे खने लायक थी - उसका पूरा शरीर कसमसाने लगा, और उसने अपने दोन
पैर और ऊपर ख च लए थे। मने समय दे ख कर उसके तन को छोड़ा और ऊपर प ँच कर
ह ठ पर उसे चूमा। या ने पहले क तुलना म कह अ धक श के साथ मेरे मुंह म
अपनी जीभ डाल कर मुझे वापस चूमा। उसने उ माद म आ कर मुझे पकड़ लया था।

कुछ दे र ऐसे ही चूमने के बाद मने पुनः उसके तनो का भोग लगाना आर कर दया।
उसके शरीर पर वह दोन वा द तन जस तरह से परोसे ए थे, म ही या, कोई भी
होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा क या कुछ कुछ कह रही थी, ले कन
उसक आवाज़ मेरे एक तो तनपान क या के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर
से मेरे वयं के उ माद के कारण मुझे लग रहा था क ब त र से आ रही है।

"हँ?" मने बड़े यास के बाद उसके तन से मुंह हटा कर पूछा।

"काश .......... इनम ..... ध होता …" या ने दबी ई आवाज़ म कहा।

'वाकई! काश इनमे ध होता!' मने सोचा, तो मुंह म और वाद आ गया। मने और जोश म
आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मने कब तक ऐसा कया मुझे यान
नह , ले कन एक समय ऐसा भी आया क या दद भरी ससक भरने लगी। मुझे समझ
आ गया क अब सरे तन क बारी है, और यही या उस पर भी आर कर द ।
न त तौर पर अब तक या का संकोच समा त हो चला था, और वह कामुक आनंद से
पूणतया अ भभूत हो गयी थी।
अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। म उसके पेट को लगातार चूमते ए उसके गु तांग
तक प ँचने लगा। मेरे हर चु बन के जवाब म या कसमसाने लगती। इस समय उसके
दोन हाथ मेरे बाल म घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। म चूमते ए
ज द ही उसक यो न तक प ँच गया। मने उसके जघन े को चूमा तो या ने अपने
कू ह को मेरे मुंह म ठे ल दया। मने अपनी जीभ से कुछ दे र चाटा। उसक यो न के इतने
करीब होने के कारण म उसक मंद ैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लग अ व सनीय ढं ग
से कड़ा हो गया था, और म चाहता था क या उसको महसूस कर सके।

ऐसे ही समय के लए महान ऋ ष वा यायन जी ने "को कला योग" क खोज क थी।


को कला - जसको आज कल क भाषा म ६९ कहा जाता है। "६९" सहवास ड़ा के पूव
का वह कामुक व यास है जो आप और आपके साथी को, एक सरे को, एक साथ
मौ खक सहवास दे ने के लए अनुम त दे ता है। इस योग म आप और आपका साथी अपने
मुंह से एक सरे के जननांग को एक अभूतपूव नजता के साथ काम-सुख दान कर
सकते ह। अतः, म उठ कर पूरी तरह से या के ऊपर धा हो गया - जससे मेरे दोन
पाँव उसके दोन तरफ रहे और मेरा मुंह उसक यो न पर और मेरा लग या के मुंह के
सामने रहे।

"अ … अ … आप क … क … या कर रहे ह … ह?" या के मुख से अ ु ट से वर


नकले। पता नह उसको कैसा लगेगा, जब वह अपने चेहरे के सामने मेरा यो नड़ दे खेगी!
मेरी एकमा उ मीद यह थी क या मेरे लग पर अपना यान क त करे, न क कसी
अ य ह से पर।

"जो म कर रहा ,ँ आप भी वही करो।" मने भी हाँफते ए कहा, और अपने नत ब को


नीचे क तरफ दबाया जससे मेरा लग उसके मुख के पास प ँच जाए। या पहले भी मेरा
लग अपने मुंह म ले चुक थी, अतः उसको दोबारा यह करने म कोई सम या नह ई।
अगले ही छण मुझे अपने लग पर एक गम, नम और मखमली एहसास आ।

या क यो न पहले से ही रसीली हो गयी थी। मने अपने अंगूठ से उसक यो न ार को


सरकाया और अपनी जीभ को उसक वा द यो न ार म सरका दया। य के गु तांग
(मूलाधार, भगशेफ और यो न) ब त संवेदनशील होते ह और मामूली उ ेजन से भी
कामुक त या दखाने लगते ह। अतः मने अपनी जीभ को सौ य और धीमी ग त से
चलना शु कया - ठ क इस कार जैसे क आइस म को चाटा जाता है। मने धीरे धीरे
शु आत करके, चाटने क ग त बढ़ा द - और साथ ही साथ चाटने का तरीका और चाटने
का दबाव भी बदलता रहा। मने धीरे-धीरे, अपनी उँ ग लय से उसके भगो को फैला कर
उसक वा द यो न के अंदर अपनी जीभ से अ वेषण कया और ऐसा करने से मने उसके
सम त कामुक ोड़ के तार झनझना दए।

हांला क या के मुख म मेरा लग था ले कन फर भी मुझे उसके गले से नकलती संतु


क ससकारी सुनायी द । उसने कुछ दे र तक तो श ा को चाटा और चूसा, ले कन जैसे
जैसे वह चरम सुख तक प ँचने लगी, उसक या धीमी पड़ गयी। कुछ दे र म उसका सर
पीछे क तरफ लुढ़क गया। या अपनी कामे य पर होने वाले इस इस भारी भरकम
हमले से अ भभूत हो गयी। वह इस समय मुंह से साँसे भर रही थी। उसके लए यह न त
प से वग क सैर करने जैसा था।

मुझे वैसे भी अपना वीय या क यो न के अंदर डालना था - याद है न, उसक माँ का


आदे श था! अपने खलन के तुरंत बाद ही या ने मेरा लग अपनी कोमल उँ ग लय से
पकड़ लया था। मेरे उ माद क भी यह सीमा ही थी। अगर वह आठ-दस बार मेरे लग को
दबा ही दे ती तो म ख लत हो जाता। अतः म ज द से अपनी अव ा से हट गया और
वापस पहले जैसे ही उसके सामने बैठ गया। मने कुछ एक ण गहरी साँसे भरी, जससे
क अपने लग पर मुझे और ापक नयं ण मल सके।

इसी वराम वेला म मने या को दे खा - एक त ण, ववा हत, और सहवास-तृ त ह


नारी का स दय अतुलनीय होता है। या का दोषर हत, सु दर और नतांत न न शरीर -
उसक छाती पर सजे ए यारे तन का जोड़ा, एकहरा शरीर, सुडौल नत ब, और व ,
नरम जांघ (जो इस समय मेरे दोन तरफ फैली ई थ ); हाथ म रची मेहंद और चू ड़याँ,
गले म मंगलसू , कानो म कणफूल, नाक म एक छोट सी चमकती ई क ल, मांग म
नारंगी स र और फैले ए बाल - वह इस समय वयं र त दे वी का ही प लग रही थी।

मने उसका चेहरा अपने दोन हथे लय म लेकर उसके ह ठ पर एक भरपूर चु बन दया
और कहा, "वाह! तुम एक ब त खूबसूरत लड़क हो!" अब तक मेरी साँसे मेरे नयं ण म
आ गयी थ और मेरा लग भी। उसक उ ेजना बरकरार थी ले कन बेकाबू नह । फर मने
या क टाँगे सावधानी से अलग कर और जगह बनायी और अपने लग को हाथ म लेकर
उसक यो न म धीरे धीरे सरका दया। लग का सर अपने गंत म वेश कर चुका था।

"आर यू रेडी?" मने या से पूछा। उसने तेजी से सर हला कर हामी भरी।


यो न बुरी तरह से चकनी थी, अतः लग को कोई भी तरोध नह मलना था। वैसे भी
या अभी अभी संप ए सहवास क पृ भू म म ल त पड़ी ई थी। उसको जागृत करने
के लए इससे अ ा तरीका और नह हो सकता था। मने अपने लग को एक तेज़ ध का
दया - दो बात एक साथ - एक तो या के मुख से एक ल बी सी कार नकल गयी
और सरा, चूं क मेरा लग अभूतपूव तरीके से तं भत था, इस लए या के यो न माग ने
अ यंत शानदार तरीके से मेरे लग क पूरी ल बाई को जकड लया। मने बना के ध के
लगाना आर कर दया और नीचे से या ने अपने ध को से उनका मलान करना। मने
या के चेहरे को दे खा। उसक आँख बंद थ और उसके होठ कामुकता से पृथक थे। हम
दोन ही इस र त- या का बराबर आनंद ले रहे थे।

या अपने नत बो को इस समय न केवल ऊपर नीचे, वरन, एक गोल ग त म भी घुमा


रही थी - इससे मेरे लग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी
बराबर उ ेजन हो रहा था। उसक ग त भी बढ़ने लगी थी - स वतः वह सरी बार
ख लत होने वाली थी। यह तो एकदम अ त घटना थी। ले कन मने सपने हाथ से उसके
नत बो को पकड़ कर उसक ग त को थोडा नयं ण म लाया। म चाहता था क हमारा यह
सहवास थोडा और दे र तक चले। उसक ग त पर तो म बस कुछ ही पल ठहर पाता। कुछ
दे र तक हम नयं त रहे ले कन पुनः या क ग त तेज हो गयी - इस बार मने उसको
रोका नह , ब क मने खुद भी अपनी ग त बढ़ा द ।

"कम ऑन वीट ! कम वद मी!" मुझे मालूम पड़ गया था क अब हम दोन ही खलन के


बेहद करीब ह। अतः मेरी इ ा यह थी क हम दोन साथ साथ आय।

"कम ऑन गल! कम फॉर मी!"

मने यह ब त ऊंची आवाज़ म बोला था। भगवान् ही जाने क बगल के कमरे म बैठे मेरे
ससुराल वाले या सोच रहे ह गे। मेरी हर 'कम ऑन' पर या के ध के और ती हो जा
रहे थे - वह मेरा मंत समझ रही थी। उसके उसके नाखून मेरी पीठ म गड़ने लगे थे -
ले कन मुझे यह पीड़ा भी इस समय मनोहर लग रही थी।

अचानक ही मने उसक यो न म एक बदलाव महसूस कया - उसक द वार तेजी से


संकु चत / क त होने लग और यो न रस क एक धारा मेरे लग को भगोने लगी। पहले
या ने हलक हलक ससकारी भरी और फर एक बड़ी सांस भरी। उसके बाद एक
ल बी "आँह" जैसी आवाज़ आयी। मुझे अ ा लगा क या अब अपने र त- न प के
आनंद का नल ता से आ वादन करने लगी है। उसके बाद कोई चार पांच ध क म मेरे
ख लत वीय का पहला माल बड़ी चंडता से मेरे लग से नकल कर या क गहराई म
चला गया। या ने भी इसको महसूस कया होगा, य क उसी के साथ उसने भी उ
वर म सांस भरी। या क र त न प का उ माद अभी बस शु ही आ था - उसने
अपने दोन पैर मेरे इद- गद कस कर जकड लए और पूरे जोश से ध के लगाने लगी।
उसके हर ध के के साथ मने वीय का कुछ कुछ माल उसक यो न म छोड़ा। उसक यो न
मेरे लग पर कुछ इस तरह संकु चत को रही थी जैसे उसको पूणतयः ह लेगी - और उसने
कया भी वही। कुछ दे र ऐसे ही करने के बाद हम दोन पूरी तरह से नढाल पड़ गए।

म या के बगल ही गर गया - उसके शरीर क तपन को म महसूस कर पा रहा था। इस


ठं डक म भी हम दोन का शरीर पसीने से ढक गया था। हम दोन ही जम कर हांफ रहे थे।
मने उसको अपनी बाँह के घेरे म लेकर कस के पकड़ लया। हम न जाने कब तक ऐसे ही
पड़े रहे, और जब चेतना लौट तो हम लोग पुनः एक सरे को चूमने लगे - ले कन इस बार
कोमलता से।

अंततः मने उसके कोमल ह ठो को चूमना छोड़ कर उससे पूछा, "सो गल, डू यू लाइक
मे कग लव?"

या ने थोड़ी दे र सोचकर कहा, "यस, ओह यस!" उसक आँख चमक रही थ । या को


इस तरह से खुश दे खना ब त ही सुखदाई था।

आज का पूरा दन हमारी वदाई क तैया रय म ही बीत गया।

सुबह सवेरे ही सबसे पहला काय हमारी शाद का पंजीकरण करवाने का कया। मने नहा-
धो कर पै ट-शट और शाल पहनी, और या ने साड़ी, लाउज और वेटर! पंजीकरण का
काय पड़ोस के बड़े कसबे म होना था, इस लए द तर खुलने से पहले ही हम सब वहां
प ँच गए। इतने मामूली काम के लए भी पूरी मंडली साथ आई – कहने का मतलब यह
काम सफ २ गवाह और मयां-बीवी के रहने मा से ही हो जाता है। खैर, हमने द तर के
बगल ही एक ढाबे म ना ता कया और सबसे पहले अपना नंबर लगवा दया। ववाह के
अ भलेखी (र ज ार) ब त ही मज़ेदार थे – उ ह ने हम सबको चाय पलाई, समोसे
खलाए और अपने अनुभव क कई सारी मज़ेदार बात बताय । उनके साथ ब त दे र तक
बात चीत करने के बाद हमने उनक अनुम त मांगी, जसके उ र म उ ह ने हमको द तर
के दरवाजे तक छोड़ा और एक बार फर से हम दोन को हमारी शाद क ब त ब त
बधाइयाँ द । करीब दोपहर तक वापस आते ए हमने या के कूल म जा कर उसका
पहचान प बनवाया और घर वापस आ गए।

हमको अगले दन बड़े सवेरे ही नकलना था, इस लए वदाई दे ने के लए मलने वाले लोग
दोपहर बाद से ही आने लगे। मेरे दो त लोग तो खैर कब के वापस चले गए थे, अतः
ाइ वग करने का सारा दारोमदार मुझ पर ही था। दोपहर का भोजन समा त करने तक
हमारे लए ससुराल वाल ने न जाने या- या पैक कर दया था, जसका पता मुझे दो-ढाई
बजे आ। इस लए बैठ कर मने बड़ी मेहनत से पैक कया आ सारा फालतू का सामान
बाहर नकाला और सफ ब त ही आव यक व तुएँ ही रखी। या का शाद का जोड़ा, दो
जोड़ी सलवार कुरता और एक वेटर रखा। मुझे उसक सारी सा ड़याँ बाहर नकालते दे ख
कर मेरी सासू माँ व मत हो गयी।

‘ससुराल (?) म या पहनेगी?... शाद के बाद कोई सलवार-कुरता पहनता है या!!...


ववा हता को साड़ी पहननी चा हए... सं कार भी कोई चीज़ होते ह!... वधम लड़क !...’
इ या द इ या द कार क उ ह ने हाय तौबा मचाई! उनको मनाने म कुछ समय और चला
गया। मने समझाया क या के ससुराल म सफ प त है – ससुर नह ! तो ससुराल नह ,
पाताल बो लए! यह भी समझाया क साड़ी अ यंत अ ावहा रक प रधान है... मा नए
कसी ी को कोई सड़क-छाप कु ा दौड़ा ले, तो साड़ी म वह तो भाग ही न पाएगी! और
तो और शरीर भी पूरा नह ढकता है, और छः-सात मीटर कपड़ा यूँ ही वे ट हो जाता है!!
मेरी दलील से मेरी सासू माँ चुप तो हो ग , ले कन मन ही मन उ ह ने मुझे खूब कोसा
होगा, य क सब मेरी बात पर हँस-हँस कर लोट-पोट हो गए!

खैर, आव यकता क सम त व तुएँ जैसे ववाह माणप , या का हाई- कूल माणप


और कूल पहचान-प , मेरा पासपोट, हवाई टकट इ या द सबसे पहले ही रख ली; उसके
बाद म कपड़े, आव यकतानुसार अ य साम ी, और त प ात कुछ वैवा हक भट! कुल
मलकर दो बैग बने! मेरे बैग मलाकर चार! सासू माँ इसी बात से खी थी क हम लोगो ने
कुछ रखा ही नह और यह क लोग या कहगे क ससुराल वाल ने कुछ भट ही नह द ।
उनको और समझाना मेरे लए न केवल बेकार था, ब क मेरी खुद क मता से बाहर भी
था।

शाम को कोई चार - साढ़े चार बजे कसी ने बताया क भारी बा रश का अंदेशा है – केदार
घाट और ब नाथ म हमपात हो रहा था और उसके नीचे बा रश। ऐसे म भू खलन क
संभावना हो सकती है। कुछ दे र के वचार वमश के प ात सबने यह नणय लया क म
और या तुरंत ही नीचे क तरफ नकल लेते ह, जससे आगे ाइव करने म आसानी रहे।
सासू माँ को यह ख़याल अ ा नह लगा, ले कन ससुर जी वहा रक थे, अतः
मान गए। वैसे भी आठ-दस घंटो म ऐसा या ही अलग होने वाला था। इस अ या शत
व ा के लए कोई भी तैयार नह था – एक तरह से यह अ बात सा बत ई।
य क वदाई के नाम पर अनाव यक रोने-धोने का काय म करने के लए कसी को
मौका ही नह मला। एक दो म हला ने को शश तो ज़ र करी क मगरम आंसू
बहाए जायँ, ले कन ससुर जी ने उनको डांट-डपट कर चुप करा दया। हम दोन ने सारे
बुजुग के पांव छु ए और उनसे आशीवाद लया। मने अ नी को छे ड़ने के लए (आ खर
जीजा ँ उसका!) दोन गाल पर ज़ोर से प पी ली, और उसको एक लफ़ाफ़ा दया, जो म
सफ उसके लए पहले से लाया था। अ नी को बाद म मालूम पड़ेगा क उसम या है,
ले कन उसके पहले ही आपको बता ं क उसम बीस हज़ार एक पए का चेक था। इसी
बहाने अ नी के नाम म एक बक अकाउं ट खुल जाएगा और उसके पढाई, और ज़ रत के
कुछ सामान आ जायगे।

एक सं छ त वदाई के साथ ही या और मने वापस दे हरा न के लए ान आर


कया। वैसे भी आज दे हरा न प ँचना संभव नह था – इस लए कोई दो तीन घंटे के ाइव
के बाद कह ठहरने, और फर सुबह दे हरा न को नकलने का ो ाम था। मेरी कराए क
कार एक एस यु वी थी – न जाने या सोच कर लया था। ले कन, मौसम क ऐसी
संभावना म एस यु वी ब त ही कारगर स होती है। वैसे भी पहाड़ पर ाइव करने म
मुझे कोई ख़ास अनुभव तो था नह , इस लए धीरे ही चलना था। या ा आर करने के
पं ह मनट म ही मुझे अपनी कार के फायदे दखने लगे – एक तो काफ बड़ी गाड़ी है, तो
सामान रखने और आराम से बैठने म आसानी थी। बड़े प हये होने के कारण खराब सड़क
पर आसानी से चल रही थी। शाम होते होते ठं डक काफ बढ़ गई थी, तो कार का
वातानुकूलक अ दर गम भी दे रहा था। मने या से कुछ कुछ बात करनी चाही, ले कन
वो अभी अपने प रवार वालो के बछोह के ःख से बात नह कर रही थी – ऐसे म गाड़ी
का संगीत तं मेरा साथ दे रहा था।

बा रश अचानक ही आई, और वह भी ब त ही भारी – सांझ और बादल का रंग मल कर


ब त ही अशुभ तीत हो रहा था। एक म म बूंदा-बांद न जाने कब भारी बा रश म
त द ल हो गयी। न जाने कस मूखता म म गाड़ी चलाये ही जा रहा था – जब क सड़क से
यातायात लगभग गायब ही हो गया था। भगवान् क दया से वषा का यह अ याचार कोई
दस मनट ही चला होगा – उसके बाद से सफ हलक बूंदा-बांद ही होती रही। घर से
नकलने के कोई एक घंटे बाद बा रश काफ क गई। या का मन बहलाने के लए मने
उसको अपने घर फोन करने के लए कहा। उसने ख़ुश हो कर घर पे कॉल लगाया और
सबसे बात करी – हम लोग कहाँ है, उसक भी जानकारी द और दे र तक बा रश के बारे म
बताया। और इतनी ही दे र म घुप अँधेरा हो गया था, और अब मेरे हसाब से गाड़ी चलाना
ब त सुर त नह था।

“आगे कोई धमशाला आये, तो रोक ली जयेगा”, या ने कहा, “काफ अँधेरा है, और
बा रश भी! अगर कह फंस गए तो ब त परेशान हो जायगे।“

“ बलकुल! वैसे भी आज रात म ाइव करते रहने का कोई इरादा नह है मेरा। कोई ढं ग
का होटल आएगा तो रोक लूँगा। आज दन क भाग-दौड़ से वैसे भी थक गया ँ।“

ऐसे ही बात करते करते मुझे एक बंगला, जसको होटल बना दया गया था, दखाई दया।
बाहर से दे खने पर साफ़ सुथरा और सुर त लग रहा था। इस समय रात के लगभग आठ
बज रहे थे, और इतनी रात गए और आगे जाने म काफ अ न तता थी – क न जाने कब
होटल मले? दे खने भालने म ठ क लगा, तो वह कने का सोचा। यह एक व टो रयन
शैली म बनाया गया बंगला था, जसम चार कमरे थे – कमरे या, क हये हाल थे। ऊंची-
ऊंची छत, उनको स हालती मोटे -मोटे लकड़ी क शहतीर, दो कमर म अलाव भी लगे ए
थे। साफ़ सुथरे ब तर। रात भर चैन से सोने के लए और भला या चा हए? होटल म
हमसे पहले सफ एक ही गे ट ठहरे ए थे – इस लए वहां का माहौल ब त शांत, या यूँ
कह ली जये क नजन लग रहा था। गाड़ी पाक कर के या और म कमरे के अ दर आ
गए। पता चला क वहां पर खाना नह बनाते (मतलब कोई रे ाँ नह है, और खाना बाहर
से मंगाना पड़ेगा)। मने प रचारक को कुछ पये दए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने
को कह भेजा। मेनेजर को यह कहला दया क सवेरे नहाने के लए गरम पानी का
बंदोब त कर द!

एक प रचारक गया, तो सरा अ दर आ गया। उसने कमरे के अलाव म लक ड़याँ सुलगा


द , जससे कुछ ही दे र म थोड़ी थोड़ी ऊ मा होने लगी और कमरे के अ दर का तापमान
शनैः-शनैः सुहाना होने लगा। इस पूरी या ा के दौरान न तो म या से ठ क से बात कर
पाया, और न ही उसक ठ क से दे ख-भाल ही कर पाया। उसक शकल दे ख कर साफ़ लग
रहा था क वह ब त ही उ न थी। स ंतः बछोह का ःख और बीच क भीषण वषा का
स म लत भाव हो!

“हनी! थक गई?” मने पूछा। या ने ‘न’ म सर हलाया।

“तो फर? त बयत तो ठ क है?”

या ने ‘हाँ’ म सर हलाया।

“अरे तो कुछ बात तो करो! या फर साइन ल वेज म बात करगे हम दोन ?”

अपना वा य ख़तम करते करते मुझे एक तुकबंद गाना याद आ गया, तो मने उसको भी
जोड़ दया,

“साइन ल वेज म बात करगे हम दोन !


इस नया से नह डरगे हम दोन !
खु लम खु ला यार करगे हम दोन !”

या मु कुराई, “सबक ब त याद आ रही है – और शायद थोड़ा थक गयी ँ और...... डर


भी गई! ऐसी बा रश म हमको क जाना चा हए था!” उसने बोला।
“अरे! बस इतनी सी बात? लाओ, म तु हारे पांव दबा दे ता ँ।“

“नह नह ! य मुझे पाप लगवाएंगे मेरे पैर छू कर?”

“अरे यार! तुम थोड़ा कम बकवास करो!” मने मजा कए लहजे म या को झड़क
लगाई। “शाद करते ही तुम अब मेरी हो – मतलब तन, और मन दोन से! मतलब तु हारा
तन अब मेरा है – और इसका मतलब तु हारा पांव भी मेरा है। और मेरे पांव म दद हो रहा
है! समझ म आई बात?”

“आप माँ वाली दलील मुझे भी दे रहे ह! आपने आज उनको ब त सताया!”

“आपको भी सताऊँ?”

और कोई चार-पांच मनट तक मनुहार करने के बाद वो राज़ी हो गई।

मने या को कुस पर बैठाया और सबसे पहले उसक सडल उतार द – यह कोई कामुक
या नह थी (हांला क मने पढ़ा है क कुछ लोग इस कार क जड़ास रखते ह और
इसको फुट-फे टश भी कहा जाता है), ले कन फर भी मुझे, और या को भी ऐसा लगा
क जैसे उसको एक कार से नव कया जा रहा हो। या क उ नता इतने म ही
शांत होती दखी। चाहे कैसी भी तकलीफ हो, पांव क मा लश उसको र कर ही दे ती है।
मने या के दा हने पांव के तलवे के नीचे के मांसल ह से को अपने अंगूठे से घुमावदार
तरीके से मा लश करना आर कया। कुछ दे र म उसके पांव क उँ ग लय के बीच के
ह से, तलवे और एड़ी को मब तरीके से मसलना और दबाना जारी रखा। पांच मनट
के बाद, ऐसा ही बाएँ पांव को भी यही उपचार दया। इस या के दौरान मने या को
दे खा भी नह था, ले कन मने जब सरे पांव क मा लश समा त क , तो मने दे खा क या
क आँख बंद ह, और उसक साँसे तेज़ हो चली थ ।

या क अव ा तनाव-मु से आगे क ओर जा रही थी – वह उ े जत हो रही थी।


या के दोन तना कड़े हो गए थे और उनका उठान उसके कुरते के व से साफ़
दखाई दे रहा था। उसके ह ठ पर एक ब त ही ह क मु कान भी दख रही थी – म जो
भी कुछ कर रहा था, बलकुल सही कर रहा था। मने अब उसके दोन टखन को एक साथ
अपनी उं गली और अंगूठे से पकड़ कर दबाना जारी रखा, और कुछ दे र मसलने के बाद
वापस उसके अंगूठ और तलव क मा लश करी। अब तक मा लश के करीब पं ह मनट
हो गए थे। मने मा लश रोक द , और बारी बारी से या के दोन अंगूठ को चूमा। या क
साँसे अब तक काफ उथली हो चली थ । संभवतः यह मेरा म हो, ले कन मुझे ऐसा लगा
क मानो हवा म या क ‘महक’ घुल गई हो।

या क आँख अभी भी बंद थी। इस प र त का लाभ उठाया मेरी उँ ग लय ने, ज ह ने


उसक सलवार के नाड़े को ढूं ढ कर ढ ला कर दया। अगले पांच सेकंड म उसक सलवार
उसके घुटन से नीचे उतर चुक थी, और मेरी उं ग लयाँ उसक यो न रस से गीली हो चली
च ी के ऊपर से उसक यो न का मदन कर रही थ । मेरी इस हरकत से या क यो न से
और यादा रस नकलने लगा।

म और भी कुछ आगे करता क दरवाजे पर द तक ई। या मानो मूछा से जागी हो।


उसने झटपट अपनी सलवार स हाली और पुनः बाँध ली, और कुस म और समट कर बैठ
गयी। दरवाजे पर प रचारक था, जो हमारे लए खाना लाया था। उसने टे बल पर खाना और
लेट व त कर के सजा दया – मने दे खा क उसने दो लेट रसगु ले, और पानी क
बोतल भी लाई थी। इस बात से ख़ुश हो कर मने उसको अ टप द और उससे वदा
ली। जाते-जाते उसने मुझको खाने के बाद े को दरवाज़े के बाहर रख दे ने को कह दया।

“आप मुझको कतनी आसानी से बहका दे ते ह!” मेरे वापस आने पर या ने लजाते,
सकुचाते कहा।

“बहका दे ता ?ँ ” मने बनावट आ य म कहा, “जानेमन, इसको बहकाना नह कहते –


यह तो मेरा यार है। और आप अभी नई-नई जवान ई ह, इतनी कामुक और हॉट ह,
इस लए आपक सहवास- ाइव, मेरा मतलब सहवास म दलच ी, थोड़ी अ धक है।
अ ा है न? सीखने क उ है – जो मन करे, जतना मन करे, सब सीख लो।“ मने आँख
मारते ए कहा।

“आप ह न मुझे सखाने के लए!” या क ल ा अभी भी कम नह ई थी। “आप के


जैसे ओपन माइंडेड तो नह ँ, ले कन जतना भी हो सकेगा, आपको ख़ुश रखूंगी।”

“जानू, सफ मुझे ही नह , हम दोन को ही ख़ुश रहना है। ओके? अरे भाई – हमारे शा
म भी यही बताया गया है!”
“शा म यह सब बाते होती है?”

“ बलकुल! यह सुनो... यह मनु ने कहा है –

संतु ो भायया भता भता भाया तथैव च:। य म ैव कुले न यं क याण त ेव ुवम्।।

जस कुल - मतलब घर या प रवार - म, पु ष ी से स रहता है, और पु ष से ी,


उस प रवार का अव य ही क याण होता है! कहने का मतलब बस यह, क एक सरे को
पूरी तरह से ख़ुश करने क हम दोन क ही बराबर क ज मेदारी है। न कसी एक क
यादा, न कम! समझ गयी?”

मेरी बात सुन कर या ने ‘हां’ म सर हलाया और फर हमने खाना आर कया।


गरमागरम खाना और रसगु ले खा कर पेट अ े से भर गया। दन भर क थकावट के
कारण खाना ख़तम करते करते न द आने लग गयी। मने े बाहर रखी और वापस आ
आकर ब तर पर ढे र हो गया।
या का सपना

अथव ने तेल से चुपड़ी अपनी दोन हथे लयाँ मेरे तन पर रख द । उनके हाथ क छु वन
मा से ही मेरे दोन चूचक तन कर खड़े हो गए। अथव जतनी भी बार मेरे तन को छू ते
ह, लगता है क पहली बार ही छू रहे ह । उनके छू ते ही मेरे पूरे शरीर म झुरझुरी दौड़ जाती
है। मेरी साँस तुरंत तेज़ हो गई – लाज के मारे मने अपनी आँख बंद कर ली, और आगे होने
वाले आ मण के लए अपने मन को मज़बूत कर लया।

उ ह ने पहले मेरे तन पर अ े से हाथ फराया, जससे वे तेल से पूरी तरह से सन जाएं,


और फर धीरे धीरे तन को अपनी मु म भर कर दबाना आर कर दया। मुझे ऐसा
लगा क सफ चूचक ही नह , पूरे तन ही अपनी नाजकता खोकर कड़े होते जा रहे ह!
अथव तो जैसे इन सब बात से बेखबर थे – उनक मेरे तन पर हाथ फराने, उनको
सहलाने और मसलने क ग त व ध बढती ही जा रही थी। न चाहते ए भी मेरी सस कयाँ
छू ट ग ! म कतनी को शश करती ँ क अथव के सामने म बेबस न होऊँ, ले कन उनक
उप त, उनक छु वन, उनक बात – मानो उनक हर एक ग त व ध ेम भरा दं श हो।
उनके ेमालाप आर करने मा से मेरे पूरे शरीर म काम का मीठा ज़हर फैलने लगता है।
म अब तक अपना आपा खो चुक थी और काम के सागर म आन द भरे गोते लगा रही
थी। मुझे लूटने के तो उनके पास जैसे हज़ार बहाने ह – आज मा लश का है!

‘सीईई! आह! यह या!’ ऐसी नदयता से मत मसलो मेरे साजन! ये कोमल क लयाँ है,
ज़रा बचा कर!

अथव पछले कोई १० मनट से मेरे तन क मा लश कये ही जा रहे ह, और इस बीच


उ ह ने उनको न जाने कतनी ही बार मसला, दबाया और रगड़ा होगा! सफ इतना ही नह ,
बीच बीच म वो मेरे तन को अपनी मु म पकड़ कर अपने सरे हाथ क हथेली से मेरे
चुचक पर फराते तो मेरी स का रयां ही नकल जाती। अथव कुछ कुछ कह भी रहे ह!
या कह रहे ह, कुछ भी समझ नह आ रहा है! मुझे तो लगता है क मेरे होश ही उड़ गए
ह! ले कन उनक बातो पर कुछ तो त या करनी ही पड़ेगी न! इस लए म बेसुध सी
आँख बंद कये, हाँ... .ँ .. और स का रयां ले रही थी। मेरी साँस क ग त ब त बढ़ गई है
और मेरे तन भी उ ही के ताल पर तेजी से ऊपर-नीचे हो रहे है!

अथव ने मेरे ह ठ पर अपने ह ठ लगा दए ह! उनके चु बन लेने का तरीका कतना


अनोखा है! उनके ह ठ और जीभ मेरे पूरे मुख क टोह ले डालते है! मुझे ब त आनंद आता
है और म भी उनके चु बन का मज़ा लेने से नह चूकती... उ ह ने इस समय मेरे तन छोड़
रखे थे और एक हाथ से मेरी नंगी पीठ सहला रहे थे और सरे हाथ से मेरे बाल सहला रहे
थे। आंख बंद कये म उनके ह ठ को चूमती और चूसती रही, और उनको जैसा जी चाहे
करने दे ती रही। इस कार के ेम- संग म जब भी मेरी आँख खुलती ह, तो मुझे ब त
ल ा आती है। उनक आँख के वासना के लाल डोरे साफ़ दख रहे ह और चेहरे पर
शरारती भाव थे। उस अ तरंग चु बन के बाद उ ह ने मेरी गदन पर हमला कया – यह
संभवतः पहली बार था! एक दो मधुर चु बन के बाद उ ह ने मेरी गदन पर अपने दांत ही
गड़ा दए – ले कन ऐसे नह क मुझे कोई नुकसान हो... ब क ऐसे जससे मेरे शरीर क
आग और भी बढ़ जाय!

मेरी साँस इस समय ब त तेज़ चल रही थी और आँख म खुमार सा आने लग गया। अथव
ने मुझे अपनी बांह म भर कर ब तर से उठा लया, तो म भी अपनी बाह उनके गले म
डाल कर उनके आ लगन म झूल सी गई। अनजाने ही सही, ऐसा करके मने उनके सामने
अपने तन परोस दए और उनको भोज का नमं ण भी दे दया। और द ऐसे तो नह है
क इस कार के भोज नमं ण तो ठु करा द। उ ह ने मुझे एक हाथ (बाएँ) से पकड़ कर
स हाला, और सरे (दा हने) से मेरे बाएँ तन को पकड़ कर थोड़ा दबाया। ऐसा करने से
मेरा तना एकदम से बाहर नकल आया। उ ह ने उसको कुछ दे र ऐसे नहारा जैसे क
उसका मू यांकन कर रहे ह और फर धीरे से अपने ह ठ उस पर लगा दए।

अपने शरीर के कसी अंग को कसी और के मुख म ऐसे कामुक ढं ग से लीले जाते ए
दे खना अ यंत रोमांचक होता है। मेरे चूचक से एक काम क एक मीठ धारा नकली और
वहां से होते ए पूरे शरीर म बहने लगी। ल ा और रोमांच के कारण मेरी आँख मुंद ग !
अथव मेरे तन क धीरे-धीरे चु क लगा रहे थे और साथ ही साथ तन को मुँह म भरते भी
जा रहे थे। कुछ ही दे र म मेरे तन का यादातर ह सा उनके मुँह म समां गया। कामो माद
ने मुझे पूरी तरह से बेबस कर दया था... म अब या कर रही थी, उस पर मेरा कोई भी
नयं ण नह था।

म उनका सर अपने हाथ से पकड़ कर अपनी छाती क तरफ दबाने लगी। अथव ने भी
ठ क उसी अनु प अपना आभार कट कया। वे अब बारी बारी से मेरे दोन तन को
चूम और चूस रहे थे - कभी वो उनको अपने मुँह म पूरा भर लेते तो कभी चूसते ए मेरे
चूचक अपने दांत से ह के से काट लेत!े उनक इन हरकत से मेरी कराह, सस कयाँ,
कलकारी – या जो भी कुछ है – नकल जाती!
आ य क बात है क हार मेरे तन पर हो रहा था और भाव मेरी यो न पर पड़ रहा था।
कामरस क बा रश से ब तर पर बछा च र गीला हो चला था। अथव मेरे दोन तन पर
योग पर योग कये जा रहे थे – वो कभी उनको चूमते, कभी मेरे चूचक पर जीभ
फराते, कभी चाटते, कभी मसलते तो कभी दबाते। और तो और वो बीच-बीच म तन को
छोड़ कर मेरे ह ठ पर जोरदार और अ तरंग चु बन लेटे और फर वापस अपने काम पर
लग जाते। अथव को तनपान कराने क मेरे अ दर ऐसी ती इ ा थी क मन म बस यही
आया क मेरे दोन तन मीठे मीठे ध से भर जाएँ, और अथव जीवन भर उनका पान कर
सक! अथव के श म वह जा था क वो मुझे कुछ ही पल म मतवाला बना दे ते। म इस
कदर रोमां चत हो चली थी क म उनक गोद म ही उछलने लगी।
या क आँख एक झटके से खुली।

‘कैसा सपना दे खा! कतना कामुक! और कतना वा त वक!’

इतना वा त वक सपना क उसको अपने तना पर अभी भी मीठ मीठ पीड़ा महसूस हो
रही थी। उसका हाथ उनको सहलाने के लए अपनी छाती पर गया।

‘अरे! ये तो खुले ए ह!! और ये बाएँ तरफ?’ सोचते ए या का यान अपने बाएँ तन


पर गया। इस तना को चूसते ए म सो गया था।

‘अ ा, तो यह सब इन जनाब क कार तानी है! कोई सपना वपना नह था – सब


हक कत थी। ले कन वह तेल...?’ सोचते ए या ने अपने तन क वचा पर उं गली
फराई, ‘नह .. यहाँ कोई तेल-वेल नह लगा है! सपने म या या सोच लया मने!’ सोचते
ए या ने अपने शरीर का और जायजा लया, ले कन इतने यान से क मेरी न द न टू टे।

‘बस कुरता ही उतारा है – सलवार तो य क य बंधी ई है! ले कन यह कुरता इ होने


उतारा कैसे क मुझे पता ही नह चला?! और... वहां तो जम कर गीलापन है! बदमाश...!!’
सोचते ए या लजा गई, और यार से मेरे बाल म उँ ग लय से सहलाने लगी। उसके इस
संकेत पर म सोते ए ही कुनमुनाया और पुनः उसके तना का चूषण करने लगा। पांच
छः बार चूसने के बाद पुनः म गहन न ा म लीन हो गया। मुझको ऐसे अबोधपन से ऐसी
बदमाशी भरा काम करते दे ख कर या हौले से हँस द और मुझे यार से अपने तन पर
भ च कर पुनः सो गयी।

मेरे नदश के अनुसार, मेनेजर ने सवेरे ६ बजे मुझको जगा लया और साथ ही साथ नहाने
का पानी भी पेश कया। कोई साढ़े सात बजते बजते या और म नहा धो कर और ह का
ना ता कर के आगे क या ा पर नकल गए। अगर सब ठ क रहा तो यारह बजे से पहले
हम लोग दे हरा न म ह गे।

इतने सवेरे या ा करने का यह लाभ होता है क सड़क खाली मल जाती ह, इस कारण से


हमारी र तार भी काफ तेज़ रही। आज या मुझसे कुछ यादा खुलकर बाते हर रही थी।
रा ते म उसने बताया क वो पहले भी दो बार दे हरा न आ चुक है। यह भी पता चला क
उनका प रवार ह र ार से आगे कभी नह गया। मने भी उसको अपने बारे म इधर उधर क
काफ बाते बतायी – ऐसे तो मुझे घूमने का कोई ख़ास अनुभव नह था, ले कन काम को
लेकर दे श- वदे श म काफ घूम चुका ँ। या वदे श के बारे म सुनकर काफ
आ यच कत ई। संछेप म कहा जाय तो आज क या ा ब त अ े से हो रही थी। बना
के हम लोग साढ़े दस पर ही दे हरा न प ँच गए। वहां प ँच कर मने अपनी एस यु वी को
उसके असली मा लक को स प दया और हसाब- कताब बराबर कर के एक रे ाँ म खाने
प ंचे।

“आप या लगी?” मने मे यू दे खते ए पूछा।

“आप या लगे?”

“आज तो हम वही लगे जो आप लगी।“

इस कार क पहले आप – पहले आप होटल/रे ाँ के बैरा लोगो के लए रोज़ क ही बात


होती है, लहाज़ा वो बेचारा पूरी धीरता के साथ हमारे आडर का इंतज़ार करता रहा। खैर,
हमने रोट -स ज़ी और मीठा मंगाया। कोई पौने एक बजे हम दोन एक कराए क गाड़ी म
बैठ कर हवाई-अ े प ँच गए। या के लए आज एक नया ही अनुभव होने वाला था। न
तो उसने कभी इस कार से सड़क या ा करी थी, और न ही कभी हवाई या ा। मुझे संदेह
था क हवाई अ े पर या को लेकर कुछ यादा पूछ-ताछ हो सकती है, ले कन ऐसा कुछ
नह आ। खैर, म यहाँ पर ‘मेरी पहली हवाई या ा’ पर कोई नबंध तो लखने बैठा नह
ँ, और न ही आप उसको पढने! कोई चार घंटे क या ा के बाद, हम लोग बगलोर प ँच
गए और वहां से कोई डेढ़ घंटे बाद (करीब आठ बजे रात को) अपने घर प ँच गए। ले कन
या ने ऐसी बदहवासी अपने पूरे जीवन म कभी नह दे खी – इतनी भीड़, इतने सारे
वाहन, इतना षण, इतना शोर, इतनी गंदगी, और इतनी अराजकता – उसके लए
एकदम नया भी था, और थोड़ा डरावना भी। अ बात यह रही क गाड़ी क खड़ कयाँ
बंद थ , और वातानुकूलन चल रहा था... नह तो मुझे पूरा शक था क उसको खाँसी हो
जाती। उसको तभी राहत मली जब हम अपनी हाउ सग सोसाइट के दायरे म आ गए।

अरे! मने आपको मेरी हाउ सग सोसाइट के से े टरी के बारे म कुछ बताया ही नह !

ी हेगड़े जी और उनक प नी अ यंत स न लोग थे, और बुजुग भी। वो सेना के


सेवा नवृत अ धकारी थे, और ब त ही जदा दल और मजा कया क म के इंसान थे।
उनक एकमा संतान, उनका पु था, जो ववाह कर के सप नीक अमे रका म ही बस गए
थे। वो दोन मेरे लैट के बगल वाले ३ कमरे वाले लैट म रहते थे। इस लए उनसे अ
जान-पहचान थी, और इसी लए मने उनको अपने घर क चाबी भी स पी थी। उनको
मालूम था क हम लोग इस समय पर उप त हो जायगे, इस लए उ ह ने और उनक
धमप नी ने पहले ही सारे इंतजाम कर रखे थे। मने दे खा क वो दोन मेरे घर ही वराजमान
ह, और अ दर से काफ सारे फूल क महक आ रही है, तो तुरंत ही समझ म आ गया क
माजरा या है। उनक प नी ने हम दोन को तलक लगाया; हम दोन ने उनका आशीवाद
लया। उसके बाद उ ह ने या को अ दर आने को कहा। दरवाज़े पर एक चावल भरा
कलश रखा था। या को मानो इसका सहज ान हो – उसने अपने दा हने पांव से उस
कलश को आगे क तरफ धकेल दया। उसके साथ ही एक परात म गुलाबी-लाल रंग का
घोल करके रखा आ था। या ने उसमे दोन पांव रख कर घर क फश पर नशान बनाए,
और वह बैठक म खड़ी हो गई।

ीमती हेगड़े जी ने ही उसको पकड़ कर सोफे पर बैठाया और वयं भी सभी बैठ गए। इस
समय मेरा मह व लगभग नग य था, य क वो दोन ही मेरी प नी से बात करने म मगन
थे। अब चूं क ी और ीमती हेगड़े जी को हद का ान ब त ही कम था और वो लोग
सहज नह थे, इस लए आगे क बात सब अं ेजी म !

ीमती हेगड़े जी ने ी हेगड़े जी से कहा, “Is she not a thing of beauty! ( कतनी
सु दर ह यह, है न?)”
ी हेगड़े जी: “Oh she is! Such a lovely child! What is your good name, my
child? (ओह बलकुल! ब त यारी ब ी है! तु हारा शुभ नाम या है बेटे?)”

“जी, या!”

ी हेगड़े जी: “Such a beautiful name - as precious as you are! ( कतना सु दर


नाम! ठ क तु हारे जैसा!)” फर मेरी तरफ मुखा तब हो कर, “You married a child,
you old goat! (तुमने एक ब े से शाद कर ली!?)” इस बात पर मेरे चेहरे पर उठने वाले
भाव को दे ख कर उनको खूब हंसी आई। उ ह ने मेरी और खचाई करते ए आगे कहा,
“Are you sure that she is of legal age to wed? (प का, यह बा लग़ ही है न?)”

“Shut up old man! (तुम चुप करो)” ये ीमती हेगड़े जी क मीठ झड़क थी, “Stop
teasing him! (ब त हो गयी इसक खचाई)” फर उ ह ने या को दे ख कर कहा, “But
yes, she is so beautiful, and I am so happy for you both. (ले कन हाँ, ब ब त
सु दर है, और म तुम दोन के लए ब त ख़ुश ँ)”

खैर, मने ही उनको बताया क या अभी कॉलेज म पढ़ रही है, और जैसे ही वो शाद
लायक ई, मने उसको लपक लया। फर मने उन दोन को मेरी ससुराल के बारे म
बताया। म उन सबसे कैसे मला, यह भी बताया। मेरी बात सुनने के बाद ी हेगड़े जी ने
मुझसे कहा,

“You are a lucky fellow, my boy! And oh yes we are very happy for both of
you! And I must tell you young man that you are going to take good care of
this little doll. (तुम ब त ही भा यशाली हो बेटा! और हाँ, हम दोन ही तु हारे लए ब त
ख़ुश ह... और एक बात, इस गु ड़या जैसी लड़क का ठ क से ख़याल रखना!)”

ी हेगड़े जी ने मुझे हदायद द , “... for us you are like a son, but she is now our
daughter too. (तुम हमारे बेटे जैसे ही हो, ले कन यह अब हमारी बेट है)”

फर या क तरफ मुखा तब होकर, “My dear child, you heard what I just said.
Treat us as your own parents. We will not let you feel alone, when this
nocturnal, workaholic husband of yours is away slogging. If you need
anything at all, you come to us. Okay? (ब ,े तुमने सुना क मने अभी या कहा?
हमको अपने माता- पता जैसा ही समझना। जब भी ये तु हारा प त ऑ फस म मेहनत कर
रहा हो, हमारे पास आ जाना - हम तुमको कभी भी अकेला नह महसूस होने दगे! कुछ भी
ज़ रत हो, तो तुरंत आ जाना। ओके?”

या को न जाने कतना समझ आया, ले कन उसने सर हला कर हामी भरी।

“Very well then, both of you on your feet. Clean up and get ready...
Tonight's dinner is with us. So, if you have any other plans for dinner, scrap
them. (ब त अ ा! अब चलो, ज द से े श होकर तैयार हो जाओ – आज का खाना
हमारे साथ ह। अगर बाहर जाकर खाने का कोई लान था, तो भूल जाओ।)”

और यह कह कर दोन उठ कर अपने घर को चल दए। मने सबसे पहले या को अपना


घर दखाया – यह २ कमरे का लैट था, जसम बैठक क , रसोई घर, भोजन करने के
लए जगह, २ व ता घर और एक बालकनी भी थी। मुझे यह दे खकर ब त अ ा लगा
क ी और ीमती हेगड़े जी ने घर क अ तरह से साफ़ सफाई करवा द थी और बड़े
शयनक को फूल क वे णय से सजा दया था – आज एक और सुहागरात होने वाली है,
ऐसा सोच कर म मन ही मन मु कुरा दया। खैर, घर दखाने के बाद, मने या के घर फोन
लगाया और सबसे बात करके या को फोन पकड़ाया, और हाथ मुँह धोने गुसलखाने म
चला गया।

अगले आधे घंटे म हम दोन ी और ीमती हेगड़े जी के घर ी तभोज करने प ँच गए।


आज तक कसी के घर इतना व तृत भोज मने कभी नह दे खा था। व भ कार के
सु वाद भो य थाली म परोसे गए, और हमारे मेजबान ने इतने ेम और आ ह से खलाया
क हम दोन ने आव यकता से अ धक खा लया। चलने से पहले ीमती हेगड़े जी ने या
को सोने क चेन भट म द । कुछ दे र और बात-चीत करने के बाद, हम अपने घर वापस आ
गए।

दरवाजे बंद कर मने या का हाथ पकड़ कर उसको हमारे कमरे के अ दर ले आया। दे र


भी हो गयी थी, और एक ल बी या ा के कारण थकावट भी थी, इस लए आज कोई ख़ास
ो ाम (मेरा मतलब समागम) नह सोचा। ले कन या से बात करने का मन तो था ही,
इस लए मने उससे पूछा,

“आपको घर अ ा लगा?”
“ब त अ ा है” (उसने ब त पर थोडा जोर दे कर कहा), “और आपने ब त अ े तरीके
से रखा भी है।“

“थक यू! अ ा, एक बात – कल मने एक रसे शन रखा है। मेरे जान पहचान के लोग
आयगे – यादातर ऑ फस से। आपके पास कल पहनने के लए कुछ है न?”

इतना तो मुझे मालूम था क या इतने दन से सफ सा ड़याँ ही पहन रही है, और वो भी


नई। संभव है क उसके पास कुछ न हो। मेरे पर उसका चेहरा उतर गया, और मेरा
शक यक न म बदल गया। उसने उ र म सफ न म सर हलाया।

“कोई बात नह , कल हम दोन शौ पग करने चलगे। ओके? इसी बहाने आपको अपना
शहर भी दखा ं गा!”

“जी ठ क है!” कोई खास उ साह नह ।

“अरे यार! आप भी न! हम लोग आपके लए नई ेस लगे – मनी मडी टाइप! अंग-


दशन करने वाली। लोगो को भी मालूम पड़े, क मेरी बीवी कतनी हॉट है!”

“छ !” उसका मूड अब अ ा हो गया।

म ब तर पर बैठ गया और या को भी अपने बगल बैठा कर आ लगनब कर लया।

“आई लव यू!” कह कर मने उसक साड़ी का प लू उसके सीने से नीचे ढलका दया, और
एक गहरी, शंसक डाली। मेरी इस हरकत से या क नजर नीचे झुक गयी। म कुछ
मज़े लेने के लए अनायास ही उसक लाउज का सबसे ऊपरी बटन खोलने लगा। ऐसे
सहवास करने का कोई मूड नह था – या के पूरे चेहरे पर शम का रंग गहरा गया।

“आपको और आपक शम को दे ख कर मुझे एक कहानी याद आ जाती है।“

या के ह ठो पर एक म म सी मु कान आ जाती है, “कौन सी?”

“आप सुनगी?” या ने हामी भरी।


मने कहानी शु करी:

“ब त पहले एक राजकुमार आ। वह ऐसे तो ब त ही अ ा था और जा उसको ब त


चाहती भी थी, ले कन उसक एक बात के लए लोग उससे ब त ही डरते थे, ख़ासतौर पर
लड़ कयाँ और औरत। और वह इस लए य क उसक यौन-श म ब त ही बल था।
उसको संतु करने के लए उसके पास कम से कम १०० रखैल थ । फर भी उसको चैन
नह आता था। एक रात उसक एक रखैल उसको संतु नह कर सक , तो राजकुमार ने
उसको भगा दया। अगले दन उसने अपने नौकर को आदे श दया क पूरा दे श ढूं ढ कर
सबसे सु दर ी को लाओ।

इस काम म ब त महीने लग गए, ले कन अंततः एक ब त ही सु दर, जवान, ले कन


यामवण लड़क मली। राजकुमार ने उसको दे खा तो कहा, ‘यह लड़क वाकई ब त
सु दर है। ले कन इसका रंग इतना याम वण य है?’”

कहानी सुनाते-सुनाते मने या क लाउज के सारे बटन खोल दया, और उसके पट


अलग कर उसके सु दर तन को मु भी कर दया। या के झुके ए चेहरे पर शरम
वाली मु कान आ गयी थी और उसके उसके तन और तना के इद- गद ला लमा भी आ
चली थी। मने कहानी आगे जारी रखी,

“इस बात पर एक चतुर नौकर बोला, ‘राजकुमार, वह इस लए य क यह लड़क काम-


दे वी है। इसके अ दर कामा न इतनी धधकती है क उसक तपन से इसका रंग इतना
गहरा हो गया है।‘ राजकुमार इस बात से दं ग रह गया। उसने पूछा, ‘अगर यह बात सच है
तो मुझे इन रखैल क ज़ रत ही नह ! है न?’ नौकर ने सहमती दखाई।

इस बात पर राजकुमार ने तुरंत ही उस लड़क से याह कर लया और बाक सभी औरत


क छु कर द । और अब दोन सुहाग-सेज पर आ कर बैठ गए। राजकुमार बना दे री
कये अपनी प नी से सहवास करना चाहता था। उसने शी ही राजकुमारी के कपड़े उतार
दए।“

इतना कहते ए मने भी या क लाउज उतार कर अलग कर द , और उसको खड़ा कर


के साथ ही साथ साड़ी भी उतार द ।
“राजकुमारी ने नंगा होते ही राजकुमार को अपने आकषण और यौन-द ता से म त कर
दया। अगले तीस दन और तीस रात तक पूरे राजमहल म उन दोन क कामुक और
आनंद भरी आह सुनाई दे ती रह । राजकुमारी ने राजकुमार को पूरी तरह से तृ त कर दया।
और जब दोन राजकुमार के महल से बाहर नकले, तो दोन पूरी तरह से नव ,
राजकुमार अपने हाथ-पैर पर घोडा बना आ था और राजकुमारी उसक सवारी कर रही
थी। राजकुमार ऐसे ही घोडा बने ए उसको अपने सहासन तक ले गया। राजकुमारी वहां
जा कर खुद तो सहासन पर वराजमान हो गयी, ले कन राजकुमार उसके पैर के पास ही
बैठा रहा।“

इस समय तक या पूण नव हो गयी थी और म उसक यो न को अपनी उं गली से


सहला रहा था। या ने सहज त या दखा कर अपनी दोन टांग को समटा लया था
और मेरी उं गली उसक टांगो के शकंजे म फंसे ए ही उसक यो न को सहला रही थी।
मने उसके ह ठ को गहराई से कुछ दे र चूमा, तब जा कर उसक पकड़ थोड़ी ढ ली पड़ी।
मने फर उसक पूरी यो न को अपनी म यमा उं गली से सहलाया। या अब भारी साँसे भर
रही थी और उसक टाँगे भी कांप रही थ । फर भी मने उसको बैठने नह दया और उसक
यो न को सहलाता रहा। उसक यो न से अब काम-रस क भारी वषा होने लग गई।

मने कहा, “तो डा लग, इस कहानी से हम या श ा मलती है?”

“हंह?”

“इस कहानी से या श ा मलती है?”

“आआअ ह.... आप... आ हह.. आप ब त बदमाश ह! आह!”

“ये श ा मलती है?” कहते ए मने अपनी उं गली जोर से उसक यो न के अ दर घुसा द ।

“आआ ह!” या च ँक गयी।

“आआ ह!” वह अपने उ माद के चरम पर प ँच रही थी। यह बात मुझे भी समझ आ रही
थी इस लए मने अब उसके भगनासे को भी अपने अंगूठे से छे ड़ना शु कर दया। या के
दोन हाथ मेरे दोन क को पकडे ए थे, उसक आँख बंद थ और मुँह से कामुक
आवाज नकल रही थ । मेरी उं गली के अ दर बाहर आने जाने से वह उचक भी रही थी।
कामा न के कारण या के चेहरे पर पसीने क बूंदे चमकने लगी – उसक साँसे छोट ,
गहरी और ध कनी जैसी चलने लगी।

“आ ह!” मने उसको कमर से पकड़ कर अपनी गोद म बैठा लया, ले कन उसक यो न
का मदन जारी रखा। या का पूरा शरीर कामो ेजना म कांप रहा था।

“उई माँ!” कह कर या का शरीर ठ सा गया, और कराह क आवाज़ के साथ वह


ख लत हो गयी। या का पूरा शरीर ढ ला पड़ गया – सर पीछे के तरफ ढलक गया और
बाह मेरे क से सरक कर नढाल गर गय । यो न रस से मेरे जांघ पर पजामे का कपड़ा
पूरी तरह से गीला हो गया। या अपने ह ठ काट रही थी और अपनी साँस को संयत
करने, और अभी-अभी संप ए क मोनामाद सुख से वापस बहाल होने का यास कर
रही थी। जैस-े जैसे उसक साँसे वापस आई, वैस-े वैसे वह शांत होने लगी – उसने अपनी
भाषा म ब त धीरे-धीरे कुछ कहा, जो मुझे समझ नह आया।

“ओ माँ! म तो मर गई!”

“आप हमारी बात म माँ को य लाती ह - हमारे बीच का मामला है, हम ही सुलझा लगे?
और..... अगर उ ह ने आपको ऐसे लुटते ए दे खा तो डर जाएँगी!” मने आँख मारते ए
चुटक ली।

“ध !” या ने तुरंत तकार कया, ले कन उसको लगा क शायद कोई गलती हो गयी,


“सॉरी!” फर उसको अपनी न नाव ा का आभास आ – मेरी बांह म ढलक कर लेटने
के कारण उसके तन आगे क ओर उठ गए। उसने झट से अपने हाथ से अपने तन को
ढक लया – इस त य के बावजूद क म अब तक उसके हर अंग- यंग को दे ख, छू , चूम
और यार कर चुका ँ। फर उसको अपने नत ब पर गीलेपन का आभास आ।

“अरे! आपका पजामा तो गीला हो गया। आई ऍम सॉरी!” कह कर वह मेरी गोद से उठने


लगी।

“सॉरी? ले कन म तो ब त ख़ुश !ँ ” मेरा अथ समझ कर या पुनः शमा गई। उठने के


बाद उसने दे खा क मेरे लग ने मेरे पजामे म बड़ा सा त बू बनाया आ है।
“म इसको उतार ं ?” उसने पूछा, और मेरे हाँ कहने से पहले ही मेरे पजामे का नाड़ा ढ ला
करने लगी। मने भी अपने नत ब को थोडा सा उठा कर पजामा उतारने म उसक मदद
करी। पजामा उतारने के बाद उसने एक बार मेरी तरफ दे खा, और फर मेरा अंडर वयर भी
उतारने लगी। मंद मंद मु कुराते ए उसने फर मेरे कुरते को भी उतार दया। मुझे पूणतया
नव करने का उसका यह पहला अनुभव था।

“इसका.... या कर?” या ने आँख से मेरे पूरी तरह से तने ए लग क तरफ इशारा


कया।

“अभी नह ... अभी सो जाते ह। कल करते ह?”

“ठ क है!”

हम दोन ने बाथ म म जा कर मू याग कया और अपने गु तांगो को पानी से साफ़


कया और वापस ब तर पर आ कर न न ही लेट गए। या ने अपने आप को मुझसे
लपटा लया – उसका सर मेरे कंधे पर, एक जांघ मेरी जांघ पर, एक तन मेरे सीने से सटा
आ और एक बाँह मेरे सीने के ऊपर। मने या को सहलाते और पुचकारते ए दे र तक
यार क बात करता रहा और फर पूरी तरफ अघा कर सो गया।

रात को सोते-सोते हमको काफ दे र हो गई, इस लए सवेरे उठने म भी समय लगा। शॉ पग
मॉल सवेरे १० बजे तक पूरी तरह से चलने लगते ह, और चूं क हमारे पास समय का काफ
अभाव था, इस लए मेरा ल य यह था क ज द से ज द सब सामान खरीद लया जाय।
वैसे भी हनीमून के लए कल सवेरे ही नकलना था (अरे! उसक टकट भी बुक करनी
है!)। अंडमान प-समूह चूं क बीच वाली जगह ह, इस लए उसी के मुता बक़ कपड़े-ल े
भी लेने ह गे।

खैर, ज द से उठ कर और तैयार हो कर हम लोग ठ क १० बजे ही पास के एक बड़े मॉल


प ँच गए। पूरे माल म हम लोग ही पहले ाहक थे। हम लोग सबसे पहले एक पारंप रक
प रधान वाले शो- म म प ंचे। वहां के मा लक को मने अपनी ज़ रत के बारे म आगाह
कया, तो उ ह ने वायदा कया क वो एक घंटे के अ दर ही कपड़ को पूरी तरह से नाप के
अनुसार नयो य करके दे दगे। अपना काम तो हो गया – या के लए कोरल- पक रंग
का और नीले बाडर वाला शफॉन का लेहगा-चोली खरीदा। शो- म के मा लक (जो खुद
भी एक ेस- डज़ाइनर ह, और म हला भी) ने खुद ही या क नाप ली और अधोव के
लए उसको सुझाव दया। चोली एक बैक-लेस कार क थी, अतः अ दर कुछ पहन नह
सकते थे, इस लए उ ह ने स लकॉन ै ट पैड्स दए, जो वचा के रंग के ही होते ह।
उ ह ने ही या के तन क माप भी ली और बताया क हम ३२ बी साइज़ क ा खरीद
सकते ह।

वहां से हम या के लए अंतव , बीच- वयर, और नाइट लेने सरे शो- म को गए।


वहां भी हम लोग पहले ही ाहक थे। वहां पर एक ा- फटर हमारे साथ हो ली – मने
उनको बताया क या ने पहले कभी भी ा नह पहनी है और जा हर है क उसको उनक
आदत नह है, इस लए ऐसी ा दखाए, जो आरामदायक ह , और साथ ही कामुक भी,
य क यह हमारा हनीमून भी है। साथ ही मै चग पट ज भी दखाएँ। वो ा- फटर प क
पेशेवर थ । वो अपना मापक-टे प लेकर आय , और या के साथ चज- म म चली गयी,
और मुझे भी साथ आने को बोला। फ टग म म प ँच कर उ ह ने या को नव होने
को कहा। या पहले ही इस पूरे अनुभव से अ भ लुत थी – यह सब कुछ उसने पहली बार
ही दे खा था, और शॉ पग इस तरह से भी होती है उसको मालूम ही नह था। और अब,
उसको एक अ ात म हला नव होने को कह रही थी – मने या को माथे पर चूमा, और
कपड़े उतारने को कहा। मेरे कहने पर या को थोड़ी वा वना मली और उसने कुछ और
हच कचाहट के बाद अपना कुता और सलवार उतार दया।

“शी इस सो यूट फुल, सर!” या के प का अवलोकन और आंकलन करते ए उसने


कहा।

“थक यू सो मच! शी इस इ ीड! एंड, आई ऍम इन लव वद हर!” मुझे समझ नह आया


क और या कहा जाए।

“ योर! नाउ सर, लीज़ सट एंड वेट! लेट अस सर ाइज यू!” उसने मु कुराते ए कहा।
उन दोन को कुछ दे र लगने वाली थी, इस लए मने ा- फटर को बीच- वयर, और वम-
वयर भी चुनने को कह दया और अपने लए भी कुछ सामान लेने चला गया। कोई डेढ़-दो
घंटे के बाद हमारे पास तीन बैग भर कर सामान हो गया।

ा- फटर ने बल का भुगतान लेते ए मुझसे फुसफुसा कर कहा, “सर, यू आर अ वेरी


लक मैन टू हैव अ गल लाइक योर वाइफ! एंड, यू आर गोइंग टू बी अ वेरी वेरी है पी मैन
ऑन योर हनीमून!”

‘ऐसा या खरीद लया!?’ मैने सोचा।

अगली कान म मने या के लए कुछ जी स, कट, हाफ-पै ट् स, और ट -शट खरीद ।


उसने मुझे ऐसी फ़ज़ूल-खच के लए ब त मना कया, ले कन मेरे लए यह पहला मौका
था जब म कसी अपने को कसी भी तरह का उपहार दे पाया, इस लए म कना नह
चाहता था। अगला पड़ाव जूते खरीदने के लए था – या के लए एक जोड़ी सडल,
ोट-शूज, और लपस खरीद । हमने खाना खाया, या क लहँगा-चोली ली, और
वापस घर आ गए।

घर आते ही सबसे पहले पोट- लेयर जाने का टकट लया। सामान पैक करने के लए कुछ
तैयारी नह करनी थी – यादातर सामान नया था और तुरंत ही पैक कया जा सकता है।
मने अपना ड जटल कैमरा और पसनल लैपटॉप भी बाहर ही रख लया, और फर अपने
रसे शन के इवट आगनाइजर से बात क । उसने बताया क सब पूरी तरह नयत प से
चल रहा है और शाम को ब त अ ा रसे शन होगा।
हमारा रसे शन बलकुल मॉडन समारोह था। ब त यादा लोग नह बुलाये गए थे – बस
मेरे सोसाइट के कुछ प रवार, हेगड़े जी दं प , मेरे ऑ फस के यादातर सहकम , मेरे
बॉस और उसका प रवार आये थे। या के लए यह रसे शन वाली संक पना ही पूरी तरह
से नई थी – वह हाँला क नवस थी, ले कन सारे लोग उससे इतने यार, अदब और शंसा
से मल रहे थे क धीरे-धीरे वह समारोह का आनंद उठाने लगी। हमेशा क तरह वह आज
भी बेहद सु दर लग रही थी। एक अ या शत बात ई - मेरी दो भूतपूव े मकाएँ भी बना
बुलाए आ ग , ले कन अ बात यह, क उ ह ने कोई बखेड़ा नह खड़ा कया। उलटे , वो
दोन मेरे लए ब त ख़ुश थ – दोन ने ही या को गाल पर चूमा, शाद क बधाइयाँ और
उपहार भी दए! मुझे भी बधाइयाँ मली और दोन ने ही मुझको बताया क मेरी बीवी ब त
सु दर है! अब यह दखावा था, या सचमुच क ख़ुशी, कह नह सकता।

रसे शन म होता ही या है? खाना-पीना, नाच-गाना, और म दरा। कोई तीन घंटे तक सबने
खूब म ती करी। मेरे म -गण मुझे और या को पकड़ कर डांस- लोर पर ले गए जहाँ
हमने दो-तीन धुन पर नृ य कया। नाचने म म तो खैर काफ बेढंगा ँ, ले कन या को
सुर-ताल-और-लय पर नाचना आता है। बड़ा मज़ा आया। समारोह के बाद सबने वदा ली।
मने अपने बॉस को बोला क वो अपने म को कह द क हम कल सवेरे पोट लेयर प ँच
जायगे, और हमारे लए इंतजाम कर दे । बॉस ने कहा क उ ह ने पहले ही अपने म को
कह दया है, और अभी वो फर से बात कर लगे। फर उ ह ने अपने म का भी नंबर दया
और मुझसे बात करायी। उ ह ने फ़ोन पर मुझे बताया क उ ह ने एक कमरा बुक कर रखा
है और हमारे आनंद क पूरी व ा कर द गयी है। उ ह ने मुझे आगे का लान बताया
और कहा क हम लोग पोट लेयर से सीधा हेवलॉक प प ँच जाएँ। हमारे लए फेरी का
टकट भी लान कर लया गया है। ये होती है नबाध व ा!

लोग के दए गए उपहार को समेट कर घर आते-आते पुनः रात के बारह बज गए। दे र तक


सोने का समय ही नह बचा। सबसे पहले अपने कपड़े बदले, दो बैग तैयार कये, अपना
कैमरा और लैपटॉप रखा। सोने का कोई सवाल ही नह था, इस लए म या को लेकर
अपनी बालकनी म आ गया।

“ कतनी शा त है – लगता ही नह क यह वही शहर है जहाँ दन भर इतना शोर होता


रहता है।“ या ने कहा।
“हा हा! हाँ, रात म ही लोगो को ठं डक पड़ती है यहाँ तो! पूरा दन बदहवासी म भटकते
रहते ह सब! आपने अभी मुंबई शहर नह दे खा – दे खगी तो डर जाएँगी।”

“इतना खराब है?”

“खराब छोटा श द है! ब त खराब है।”

कुछ दे र चुप रहने के बाद,

“आप य इतना खच कर रहे ह? म ... हम, अपने घर म, मतलब यह य नह रह


सकते?”

“जानेमन, अपने ही घर म रहगे। हनीमून घर म नह मनाते! और इसी बहाने कह घूम भी


आयगे!! मने अपनी पूरी लाइफ म सफ एक ही या ा क है – और उसम ही भगवान को
इतनी दया आ गयी क आपको मेरे जीवन म भेज दया। सोचा, क एक बार और अपने
लक को ाई कर लेता ँ। न जाने और या या मल जाए! हा हा!”

“अ ा, तो आपका मन मुझसे अभी से भर गया, क अब सरी क खोज म नकल


पड़े?” या ने मुझे छे ड़ा।

“ सरी क खोज! अरे नह बाबा! फलहाल तो पहली क ही खोज चल रही है! न तो


आपने कभी बीच दे ख,े और न ही मने! बीच भी दे खगे, और.... और भी काफ कुछ!” मने
आँख मारते ए कहा।

“काफ कुछ मतलब?”

उ र म मने या के कुरते के ऊपर से उसके तन को उं गली से तीन चार बार छु आ।

“आप थके नह अभी तक?” या ने मु कुराते ए कहा।

“ऐसी बीवी हो तो कोई गधा ह बड ही होगा जो थकेगा! तो बताओ, म गधा ँ या?”


या ने यार से मेरे गले म गलबयां डालते ए कहा, “नह ... आप तो मेरे शेर ह!”

“आपको मालूम है क शेर और शेरनी दन भर म कोई ४०-५० बार सहवास करते ह?”

“ या?... आप सचमुच, ब त बदमाश ह! न जाने कैसे ऐसी बाते मालूम रहती ह आपको!”

“इंटरे टग बाते मुझको हमेशा मालूम रहती ह!”

“तो, जब आपने मान ही लया है, क मने आपका शेर ँ.... और आप... मेरी शेरनी...
तो....”

“हःहःहःह...” या ह का सा हंसी, “शेर आपके जैसा हो, और शेरनी मेरे जैसी, तो शेरनी
तो बेचारी मर ही जाए!”

मने कुछ और ख चने क ठानी, “मेरे जैसा मतलब?”

“जब हमारी शाद पास आ रही थी, तो पास-पड़ोस क 'भा भयां' मुझ.े ... सहवास...
सखाने के लए न जाने या- या बताती रहती थ ।“

“आएँ! आपको भा भयाँ यह सब सखाती है?”

“तो और कौन बतायेगा? उनके कारण मुझे कम से कम कुछ तो मालूम पड़ा – भले ही
उ ह ने सब कुछ उ टा पु टा बताया हो! अब तो लगता है क शायद उनको ही ठ क से नह
मालूम!”

मुझे या क बात म कुछ दलच ी आई, “अ ा, ऐसा या बताया उ ह ने जो आपको


उ टा पु टा लगा? मुझे भी मालूम पड़े!”

या थोड़ा शरमाई, और फर बोली, “उ ह ने मुझे बताया क पु ष का... ‘वो’.. ककड़ी


के जैसा होता है। म तो उसी बात से डर गयी! मने तो सफ ब के ही... ‘छु ’ू दे खे थे,
ले कन उस दन जब मने पहली बार आपका.... दे खा, तो समझ आया क ‘वो’ उनके
बताये जैसा तो बलकुल भी नह था। आपका साइज़ तो ब त बड़ा है! मुझे लगा क मेरी
जान नकल जाएगी। और फर आप इतनी दे र तक करते ह क .....!”

“मतलब आपको मज़ा नह आता?” मने आ य से कहा – मुझे लगा क मने या को


ब त मज़े दे रहा !ँ कह दे र तक करने के कारण उसको तकलीफ तो नह होती!

“नह ! लीज! ऐसा न क हये! म सफ यह कह रही ँ क आप वैसे बलकुल भी नह ह,


जैसा मुझे भा भय ने मद के बारे म बताया है! भा भय के हसाब से सहवास.... बस दो-
चार मनट म ख़तम हो जाता है, और यह भी क यह मद के अपने मज़े के लए है। ले कन
आप.... आप एक तो कम से कम पं ह-बीस मनट से कम नह करते, और आप हमेशा
मेरे मज़े को तरजीह दे ते ह। और बात सफ सहवास क नह है......”

या थोड़ी भावुक हो कर क गई, “मेरे शेर तो आप ही ह!” कहते ए या ने मेरे लग


को अपने हाथ क गर त म ले लया – मेरा लग फूलता जा रहा था।

“आई ऍम सो लक ! .... और अगर म यह बात आपको बोलूँ, तो आप मेरे बारे म न जाने


या सोचगे! ले कन फर भी मुझे कहना ही है क म आपक फैन ँ! फैन ही नह , गुलाम!
आप मेरे हीरो ह... आप जो कुछ भी कहगे म क ं गी। आज आपने मुझे जब कपड़े उतारने
को कहा, तो मुझे डर या शंका नह ई। मुझे मालूम था क आप मेरे लए वहां ह, और मुझे
कोई नु सान नह होने दगे। और... आप चाहे तो दन के चौबीस घंटे मेरे साथ सहवास
कर सकते ह, और म बलकुल भी मना नह क ं गी!”

“ह म! गुड!” फर कुछ सोच कर, “... लगता है आपक भा भय को मेरे पीनस ( लग)
का वाद दे ना पड़ेगा!”

“न न ना! आप ब त गंदे ह!” या ने मेरे लग पर अपनी गर त और मज़बूत करते ए


कहा, “ऐसा सो चएगा भी नह । ये सफ मेरा है!”

कह कर या ने मेरे लग को दबाया, सहलाया और ह का सा झटका दया।

“ये करना आपक भा भय ने सखाया है?” मने शरारत से पूछा।


“च लए, आपको थकाते ह!” या ने मु कुराते ए कहा।

मने भी मु कुराते ए या को चूमने के लए उसक कमर को पकड़ कर अपनी तरफ


खीचा और उसके मुँह म मुँह डाल कर उसको चूमने लगा। कुछ दे र चूमने के बाद मने या
का कुरता उसके शरीर से ख च कर अलग कया और अपना भी ट -शट उतार दया। मेरी
न-परी के तन अब मेरे सामने परोसे ए थे – मने या के दा हने तना को अपनी
जीभ से कुछ दे र तक चुभलाया, फर मुँह म भर लया। या के मुँह से मीठ ससकारी
नकल पड़ी। म बारी-बारी से उसके तन को चूमता और चूसता गया - जब म एक तन
को अपने मुँह से लारता, तो सरे को अपनी उँ ग लय से। उसके तना उ ेजना से मारे
कड़े हो गए, और सांसे तेज हो ग । अब समय था अगले वार का - मने अपने खाली हाथ
को उसक सलवार के अ दर डाल दया, और उसक यो न को टटोला। यो न पर हाथ जाते
ही मुझे वहां पर गीलेपन का एहसास आ। कुछ दे र उसको सहलाने के बाद मने अपनी
उं गली या क यो न म डाल कर अ दर-बाहर करना शु कर दया।

या कुछ दे र आँख बंद करके आनंद लेती रही, फर उसने मेरे लग को मु कर दया –
म पूरी तरह उ े जत था। कुछ दे र या ने मेरे लग को अपने हाथ से पकड़ कर मैथुन
कया, और फर झुक कर उसको अपने मुँह म भर लया। दो त , लग को चूसे जाने का
एहसास अ यंत आंदो लत करने वाला होता है। उ ेजना के उ माद म म बालकनी क
रे लग के सहारे आधा लेट गया, और लग चुसवाता रहा। या कोई नपुण नह थी –
ले कन उसका अनाड़ीपन, और मुझे स करने क उसक को शश मुझे अभूतपूव आनंद
दे रही थी। कुछ दे र के बाद या ने चूसना रोक दया, और अपनी सलवार और च ी उतार
फक । फर उसने वो कया जो मने कभी सोचा भी नह – मेरे दोन तरफ अपनी टांगे फैला
कर वह मेरे लग को अपनी नम यो न म डाल कर धीरे-धीरे नीचे बैठने गयी।

“आअ ह....” उ माद म या क साँसे उखड गयी।

या ने उ साह के साथ मैथुन करना ारंभ कर दया – म वैसे भी दो दन से भरा बैठा था,
इस लए वैसे भी ब त कामो े जत हो गया था। मेरा लग एकदम कड़क हो गया, और
या क पहल भरी यौन- या से और भी दमदार हो गया। म बस या के तन और
नत बो को बारी-बारी से दबाता रहा। इस बीच या पूरे अनाड़ीपन म मेरे लग पर ऊपर-
नीचे होती रही – कभी कभी लग उसक यो न से बाहर भी नकल जाता। वैसा होने पर म
वापस उसको अ दर डाल दे ता। या को संभवतः एक पूव संसग क याद हो आई हो –
वह अपने नत बो को न केवल ऊपर नीचे, ब क गोलाकार ग त म भी घुमा रही थी -
इससे मेरे लग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर
उ ेजन हो रहा था। उसक ग त भी बढ़ने लगी थी - स वतः वह ख लत होने ही वाली
थी। बस अगले २ ही मनट म या का शरीर चरमो कष पर प ँच कर थरथराने लगा,
और उसी समय म भी अपने उ माद के आ खरी सरे पर प ँच गया। कुछ ही ध को म म
ख लत हो गया। या जैसी स दय क दे वी क यो न म वीय क धाराएँ छोड़ने का
एहसास ब त ही सुखद था।

सहवास का वार थमते ही या मेरे सीने पर गर कर हांफने लगी! मेरे तेजी से सकुड़ते
लग पर उसक यो न का मादक संकुचन – मानो उसक मा लश हो रही हो।

“बाप रे! आप कैसे करते ह, इतना दे र! ..... आपका तो नह मालूम, ले कन म थक गयी!


आअ ह!”

हम दोन ही इस बात पर हंसने लगे। फर या को कुछ याद आया,

“अ ा, आपने बताया ही नह क उस कहानी से हम या श ा मलती है?”

“ कस कहानी से?” मने दमाग पर जोर डाला, “अ ा, वो! हा हा हा! तो आपको याद आ
ही गया। इस कहानी से यह श ा मलती है क साँवली लड़ कयाँ सहवास म ब त तेज़
होती ह... और... गोरी लड़ कय को सखाना पड़ता है!”

“छ ! ध ! आप न! आपके साथ दो दन या रह ली, म भी बेशरम हो गई ँ!”

“हा हा! बेशरम? कैसे?”

“ऐसे ही आपके सामने नंगी पड़ी ँ।“

“तो फर कसके सामने नंगा पड़ा होना था आपको?”

“ कसी के सामने नह ! नंगा होना या ज़ री है? और तो और, उस दन तो अ नी ने भी


दे ख लया। और आप भी पूरे बेशरम हो कर उसको दखाते रहे।”
“अरे! दे ख लया तो दे ख लया! ब ी है वह! सीखने के दन ह... अ ा है, हमसे सीख
रही है!”

“जी नह ! कोई ज़ रत नह !”

हम लोग ऐसी ही फ़ज़ूल क बात कुछ दे र तक करते रहे। नव- ववा हत के बीच म शु
शु म एक द वार होती है। हमारे बीच म वह द वार अब नह थी। ये सब शकायत,
छे ड़खानी, हंसी-मज़ाक, सब कुछ मृ लता और नेक दली से हो रहा था। हमारे बीच क
अंतरंगता अब सफ शारी रक नह रह गई थी। मने एक कैब स वस को फ़ोन कर बगलोर
हवाई अ े के लए टै सी मंगाई, और हम दोन एक साथ नहाने के लए गुसलखाने म चले
गए।

या भले ही न दखा रही हो, ले कन वह हनीमून को लेकर उतना ही रोमां चत थी, जतना
क म। मने जब भी प के बारे म सोचा, मुझे बस यही लगता क वह कोई ऐसी एकांत
जगह होगी, जहाँ सफ़ेद बलुई बीच ह गे, लहराते ताड़ और ना रयल के पेड़ ह गे, और गरम
उजले दन ह गे! सच मा नए, उन तीन चार दन क ठं डी म ही मेरा मन भर गया। इतने
दन तक बगलोर क सम जलवायु म रहते ए उस कार क कड़क ठं डक से दो-चार होने
क ह मत मुझमे नह थी। अंडमान और नकोबार प समूह बलकुल वैसी जगह थी,
जहाँ म अभी जाना पसंद करता। या का साथ, इस या ा म सोने पर सुहागा थी।

बगलोर हवाई-अ े पर पुनः कोई सम या नह ई। बस यही क चेक-इन काउं टर पर बैठ
ऑ फसर, या जैसी अ पवय त णी को ववा हत सोच कर उ सुकता पूवक दे ख रही
थी। मेरे लाख मन करने के बावजूद आज भी या ने साड़ी- लाउज़ पहना आ था – हाथ
म मेहंद , सुहाग क चू ड़याँ, स र, मंगलसू , इ या द सब पहना आ था उसने। मने
लाख समझाया क गहन क सुर ा क कोई गारंट नह है, फर भी! अ प-वय प नी होने
के अपने ही नुकसान ह – लोग कैसी कैसी नज़र से दे खते रहते ह! और तो और, सारे
मॉडन कपड़े-ल े खरीदना बेकार स हो रहा था। जवान लोगो के शौक होते ह... ले कन
ये तो परंपरागत प रधान छोड़ ही नह रही है।

लाइट अपने नधा रत समय पर नकली – मने या को वडो सीट पर बैठाया, जससे वो
बाहर के नज़ारे दे ख सके। बंगाल क खाड़ी पर उड़ते समय कुछ भी साफ़ नह दख रहा
था – अ धक रोशनी और धूल-भरी धुंध के कारण कुछ भी नह समझ आ रहा था। ले कन,
जब हम प समूह के नकट प ंच,े तब नजारे एकदम से अलग दखने लगे। नीले रंग का
पानी, उसके बीच म अन गनत हरे रंग के टापू, नीला आसमान, उसम छटपुट सफ़ेद
बादल! लाइट पूरा समय सुगम प से चली, ले कन आ खरी पं ह मनट कसी एयर-
पॉकेट के कारण हमको झटके लगते रहे। बेचारी या ने डर के मारे मेरा हाथ कस के
पकड़ रखा था (अब कोई कसी को कैसे समझाए क अगर हवाई जहाज गर जाए, तो
कुछ भी पकड़ने का कोई फायदा नह !)।

खैर, उतरते समय नीचे का जो भी य दखा वो अ यंत मनोरम था। एअरपोट पर हवाई
प के च ँओर छोटे -छोटे पहाड़ी ट ले थे, जन पर चुर मा ा म हरे हरे पेड़ लगे ए थे।
दे ख कर ऐसा लग रहा था क यहाँ ब त ठं डक होगी, ले कन सूरज क गम और समु
भाव के कारण वातावरण गुनगुना गरम था। उ राँचल क ठं डी (जो क मेरे दलो दमाग
म बस गई थी) से तुरंत ही ब त राहत मली।

हमने पूरे दस दन का ो ाम बनाया था (दरअसल, बॉस ने बनाया था... और एक बात,


मेरे ऑ फस के सभी सहक मय ने हमारे हनीमून के लए योगदान कया था। यह एक
अभूतपूव घटना थी, और लोगो के ेम के इस संकेत से म पहले ही ब त भा वत और
भावुक था), और उसका सारा दारोमदार बॉस के म पर था। उ ह ने पूरी दयालुता से
हमारे हनीमून को अ व मरणीय अनुभव बनाने क गारंट ली थी।

पोट लेयर आते ही एक टै सी ने हमको एक जेट (जलबंधक) तक प ँचाया, जहाँ एक


उ म कार क फेरी म फ ट- लास म हमारी बु कग थी। यह सब कुछ हम दोन के लए
ही नया था और रोमांचक भी। फरोज़ी नीला समु जल, उसम उठती अनंत लहर, हमारे
जहाज ारा छोड़े जाने वाला फेन और शोर – सब कुछ रोमांचक था। फ ट लास म हमारे
अलावा एक और नव- ववा हत जोड़ा भी था, ले कन वो दोन अपने म ही इतना मगन थे,
क उनसे बात करने का अवाल ही नह उठा, और ऐसा भी नह है क मुझको उनसे बात
करने क ती इ ा थी। खैर, इन सब म समय यूँ ही नकल गया, और हम लोग वहां के
हेवलॉक प पर प ँच गए।

वहां जेट पर हम लेने होटल क गाड़ी आई। कार क खुली खड़क से गुनगुनी धूप मली
ई हवा और समु महक ब त अ लग रही थी। कोई दस मनट म ही हम लोग अपने
रसोट पर प ँच गए। आज सवेरे हवाई अ े पर ही जो खाया था, वही था, इस लए अभी
ब त तेज भूख लग रही थी। हमने होटल म चेक-इन कया और अपने कमरे म प ँच गए।
यह रसोट एक व तृत े म बना आ था – उसमे कुछ टट लगे ए कमरे थे, और कुछ
झोपड़े-नुमा कमरे। टट और झोपड़े सफ कहने के लए है – दरअसल यादातर कमर म
वातानुकूलन लगा आ था। पूरे रसोट म ना रयल के पेड़ और ब त सारे फूल लगे ए थे,
जससे य ब त ही सु दर बन पड़ता था। इस समय मुझे जतने भी ाहक वहां दखे, वो
सारे ही वदे शी थे। इस रसोट म खूबी यह भी थी क यहाँ पर समु एडवचर ोट् स का
भी बंदोब त करते थे। हमारा कमरा उनके सबसे अ े कमर म से एक था, और रसोट के
अपने बीच के ठ क सामने था। कमरे को सफ़ेद रंग से रंग गया था, और लनेन फरोज़ी
नीले रंग के व भ शेड्स के थे। प टग म भी समु ही दख रहा था। ब तर के सामने क
तरफ लैट- न ट वी लगी ई थी, और दा हनी तरफ लकड़ी का ेसर – कुल मला कर
एक टै डड रख रखाव!

“ हयर वी आर!” बेलहॉप ने हमारा सामान ेसर म रखते ए कहा, और फर दरवाज़े क


तरफ बढ़ते ए, “का ेचुलेशंस ऑन योर वे डग! आपको अगर कुछ आडर करना है तो
मेनू साइड टे बल पर है और रे ाँ का नंबर १० है।“

कह कर वह कमरे से बाहर चला गया। खैर, मने अपने आपको ब तर पर पटका और


खाने का मेनू उठाया, और या को पूछा क वो या खाएगी।
जैसा पहले भी हो चुका है, अंततः मुझे ही आडर करना पड़ा। खाने के साथ-साथ े श
लाइम सोडा भी मंगाया।

“च लए, आपको इन कपड़ से छु दलाते ह?” आडर दे ते ही मने जैसे ही या क तरफ


हाथ बढाया, वह झट से पीछे हट गई।

“ध ! आप भी न, जब दे खो तब शु हो जाते ह! आपके छु ू पर आपका कोई कं ोल


नह है!”

“छु ू? ये छु ू है?” कहते ए मने या का हाथ पकड़ कर अपने स त होते लग पर


फ़राया.... “जानेमन, इसको लग कहते ह.... या कहते ह?”

“मुझे नह मालूम।“ या ने ठु नकते ए कहा।

“अरे! अभी तो बताया – इसको लंग कहते ह।“ मने थोडा मह व दे कर बोला। “अब
बोलो।“

अब तक म ब तर के कोने पर बैठ गया था, और या मेरे बांह के घेरे म थी।

“नह नह !.. म नह बोल सकती!”

मने या के नत ब पर एक ह क सी चपत लगाई, “बोलो न! लीईईज्! या कहते ह


इसको?”

या, हचकते और शमाते ए, “ लंग...”

“वेरी गुड! और लग कहाँ जाता है?”

“मेरे अ दर...”

“नह , ऐसे कहो, ‘मेरी यो न के अ दर..’ .... कहाँ?”


या अब तक शमसार हो चली थी, ले कन ग द भाषा का योग हम दोन के ही लए
ब त ही रोमांचक था, “मेरी .. यो न.. के अ दर...”

“गुड! कल ही आपने कहा था क म चा ँ तो दन के चौबीस घंटे आपक यो न म अपना


लग डाल सकता ,ँ और आप बलकुल भी मना नह करगी! कहा था न?”

“मने कहा था? कब?” या भी खेल म शा मल हो गई।

“जब आप मेरे लग को अपनी यो न म डाल कर उछल-कूद कर रह थी तब...” मने या


क साड़ी का फटा उसके पेट कोट के अंदर से नकाल लया और ज़मीन पर फक दया।
“बो लए न, मुझे रोज़ डालने दगी?”

“आप भी न! जाइए, म अब और कुछ नह बोलूंगी..”

“अरे! मुझसे या शमाना? यहाँ मेरे सवाय और कौन है यह सब सुनने को? बो लए न!”

“नह ! आप ब त गंदे ह! और, म अब कुछ नह बोलूंगी.... जो बोलना था, वो सब बोल


दया।“

अब उसक पेट कोट का नाडा खुल गया और खुलते ही पेट कोट नीचे सरक गया। या
सफ लाउज और च ी म मेरे सामने खड़ी ई थी।

“ऐसे मत सताओ! लीज! बोलो न!”

“हाँ!”

“ या हाँ? ऐसे बोलो, ‘हाँ, म तुमको रोज़ डालने ं गी’...”

“छ ! मुझे शरम आती है।“

“कल तो बड़ी-बड़ी बाते कह रही थी, और आज इतना शमा रही ह! अब या शरमाना? ये


दे खो, मेरी उं गली आपक यो न के अ दर घुस रही है! और कुछ ही दे र म मेरा लग भी घुस
जाएगा! अब बोल दो लीज। मरे कान तरस रहे ह!” या क च ी मने थोड़ा नीचे सरका
द और उसक यो न को अपनी तजनी से यार से श कर रहा था।

“बोलो न!”

“हाँ, म रोज़ डालने ं गी।“

“कभी मना नह करोगी?”

“कभी नह ... जब आपका मन हो, तब डाल ली जये!”

“ या डाल ली जये?”

“जो आप थोड़ी दे र म डालने वाले ह!”

“ या डालने वाले ह?”

इस बार थोड़ी कम हचक से, “ लंग...”

“गुड! और कहाँ डालने वाले ह?” कहते ए मने या के भगो को सहलाते ए उसक
यो न म अपनी तजनी व करा द ।

“अआ हह! मेरी यो न म!”

“वेरी वेरी गुड! अब पूरा बोलो!”

या फर से सकुचा गई, “म रोज़ आपका लग.... अपनी यो न म... डालने ँ गी! और....
कभी मना नह क ँ गी।”

यह सुन कर मने या को अपनी ओर भ च लया और उसके सपाट पेट पर एक जबरद त


चु बन दया। हमारी ‘डट टॉक’ से वह ब त उ े जत हो गयी थी। एक दो और चु बन
जड़ने के बाद मने या को ब तर पर पेट के ही बल पटक दया और उसक च ी उतार
फक ।

या को ब तर पर लटा कर मने उसक दोन जांघ कुछ इस कार फैला जससे उसक
यो न और गुदा दोन के ही ार खुल गए। इससे एक और बात ई, या के नत ब ऊपर
क तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। सुडौल नत ब..! व और युवा
नत ब। जैसा क मने पहले भी बताया है, या के नत ब यो चत फैलाव लए ए
तीत होते थे, जसका मुख कारण यह है क उसक कमर पतली थी।

मने पहले अ धक यान नह दया, ले कन या के नत ब भी उसके तन के सामान ही


लुभावने थे। मने उसके दोन नत ब को अपनी दोन हथे लय म जतना हो सकता था,
भर लया और उनको ेम भरे तरीके से दबाने कुचलने लगा। कुछ दे र ऐसे ही दबाने के बाद
उसके नत ब के बीच क दरार क पूरी ल बाई म अपनी तजनी फराई। उसक यो न पर
जैसे ही मेरी उं गली प ंची, मुझे वहां पर उसक उ ेजना का माण मल गया – यो न रस
के ाव से यो न मुख चकना हो गया था। मने उसक यो न रस म अपनी तजनी भगो कर
उसक गुदा पर कई बार फराया। हर बार जैसे ही म उसक गुदा को छू ता, व त या म
उसका ार बंद हो जाता।

“और इस काम को या कहते ह?”

“आह! ... सहवास!”

“नह , बोलो, ठु काई! या कहते ह?”

“ठु काई! आह!”

“हाँ! अभी प का हो गया। मुझे रोज़ आपक यो न म मेरा लग डाल कर ठु काई करने का
ए ीमट मल गया है... य ठ क है न?”

“आह... जीईई..!”

हम आगे कुछ और करते, क दरवाज़े पर द तक ई, “ म स वस!”


मने हड़बड़ा कर बोला, “एक मनट!”

या सफ लाउज पहने ए ही भाग कर बाथ म म छु प गई। वो तो कहो मने भी अपने


कपड़े नह उतारे थे, नह तो ब त ही ल ाजनक त हो जाती। खैर, या के बाथ म
म जाते ही मने दरवाज़ा खोल दया। वेटर खाने क े , पानी, ट यु इ या द लेकर आ गया
था। उसने अ दर आते ए एक नज़र फश पर डाली, और वहां पर साड़ी, पेट कोट, च ी यूँ
ही पड़ी ई दे ख कर उसने एक ह क सी मु कान फक – उसको शायद ऐसे य दे खने
क आदत हो गयी होगी। उसने अब तक न जाने कतने ही नवदं प दे ख लए ह गे!

उसने टे बल पर खाने क लेट, डशेस, पानी इ या द रखा और जाते-जाते कह गया क


शाम को एक ऑटो र ा हमको राधानगर बीच ले जाने के लए बुक कर दया गया है।
मने उसको ध यवाद कहा और उससे वदा ली। दरवाज़ा बंद करने के बाद मने या को
बाहर आने को कहा – उसको ऐसे सफ लाउज पहने दे खना ब त ही हा यकर तीत हो
रहा था।

“म इसी लए कह रहा था क आपके कपड़ क छु कर दे ते ह.. ले कन आप ही नह


मानी!”

“और वो आप जो मुझे वो नए नए श द सखाकर टाइम वे ट कर रहे थे, उसका या?”

“हा हा! अरे! आपने कुछ नया सीखा, उसका कुछ नह !”

“आप मुझे कुछ भी सखा नह रहे ह, ... ब क सफ बगाड़ रहे ह! अब च लए, मुझे कुछ
पहनने द जये!”

“अरे, म तो यह लाउज भी उतारने वाला था – आराम से, हो कर लंच क रए!”

“आपका बस चले तो मुझे हमेशा ऐसे नंगी ही करके रख!”

“हाँ! आप ह ही इतनी खूबसूरत!”


“हाय मेरी क मत! मेरे पापा ने सोचा क लड़क को अ े घर भेज रहे ह। कमाऊ जव
और एकलौता लड़का दे ख कर उ ह ने सोचा क उनक लाडली राज करेगी! और यहाँ
अस लयत यह है क उस बेचारी को तो कपड़े पहनना भी नसीब नह हो रहा!” या ने
ठठोली क ।

“उतना ही नह , उस बेचारी के ऊपर तो न जाने कैसे कैसे सतम हो रहे ह! बेचारी क यो न


म रोज़....”

मने जैसे ही उस पर हो रहे अ याचार क सूची कुछ जोड़ना चाहा तो या ने बीच म ही


काट दया, “छ ह! आपक सुई तो वह पर अटक रहती है।”

“सुई नह ... लंग... सब भूल जाती हो!”

या ने कृ म नराशा म माथा पीट लया – वह अलग बात है क मेरी बात पर वह खुद


भी बेरोक मु कुरा रही थी। खैर, मने जब तक खाना सव कया, या लाउज उतार कर,
और एक ोट् स पजामा और ट -शट पहन कर खाने आ गयी। खाते-खाते मने या को
अपने हनीमून के लान के बारे म बताया – उसको यह जान कर राहत ई क हमारे
हनीमून म सफ सहवास ही नह , ब क काफ घूमना- फरना और एडवचर ोट् स भी
शा मल रहगे।

भोजन समा त कर हम बीच क सैर पर नकले – इस समय समु म भाटा आया आ था,
जसके कारण काफ र तक सफ गीली, बलुई और प र से अट भू म ही दख रही
थी। हम लोग यूँ ही बाते करते, शंख, सी पयाँ और रंगीन प र बीनते काफ र नकल
गए। बात म हमारे सर पर चमक रहे चटक सूय का भी यान नह रहा – कहने का मतलब
यह, क उन डेढ़-दो घंट म ही धूप से हम लोग का रंग भी साँवला हो गया। और आगे
जाते, ले कन अचानक ही हमको पानी वापस आता महसूस आ, तो हमने वापस रसोट
जाने म ही भलाई समझी। हम दोन के हाथ शंख और सी पय से भर गए थे, इस लए यह
उ चत था, क उनम से सबसे अ े वाले चुन लए जाएँ और बाक सब वापस समु के
हवाले कर के हम वापस आ गए।

वापस आते ए मने दो-तीन वदे शी जोड़ से बात-चीत करी और उनके अंडमान के
अनुभव के बारे म पूछ-ताछ क । या के लए भी यह एक नया अनुभव था – शायद ही
उसने कसी वदे शी से पहले कभी बात करी हो, इस लए उसको थोडा मु कल लग रहा
था। ले कन फर भी, वह अपनी तरफ से पूरी को शश कर रही थी। कमरे म आ कर मने दो
कप चाय मंगाई – चाय पीते-पीते ही ऑटो- र ा वाला भी आ गया। मने हाफ-पट और
ट -शट पहना और या को भी कट और ट -शट पहनने को कहा। या क कट,
दरअसल, सूती के हलके कपड़े क बनी ई थी और उसके हलके हरे रंग के कपड़े पर
काले रंग के छोटे छोटे बखरे ए ट् स थे। यह कट मने बीच पर पहनने क से ही
लया था। वैस,े या के लए ऐसी कट पहनना, जो उसके घुटने तक भी न आ सके, थोड़ा
सा भ , या यह कह ली जये क अटपटा अनुभव था। ले कन, मेरे साथ बताये गए कुछ
ही दन म उसको समझ आ गया था क इस कार के अनुभव का होना अभी बस शु
ही आ है। इस लए, उसने कोई हील- त नह करी और कुछ ही दे र म हम लोग
राधानगर बीच क तरफ रवाना हो गए।

रसोट से बीच का रा ता काफ अ धक था – या यह कह ली जये क ऑटो क टरटराती


ती ग त और खाली सड़क के कारण अ धक लग रहा हो। यह रा ता भी ब त ही
मनोरंजक था – सड़क के दोन तरफ हरे भरे पेड़ और र र तक सफ ह रयाली ही दख
रही थी। खैर, कोई पं ह मनट म हम राधानगर बीच प ँच गए। यहाँ क एक ख़ास बात है
– इस बीच को टाइम मैगज़ीन ने ए शया के सबसे सु दर बीच म एक घो षत कया है। वहां
प ँच कर तुरंत ही समझ आ गया क ऐसा य है – मुलायम सफ़ेद बालू, शु फ़रोज़ी
समु , साफ़ सुथरा और सु दर बीच, और ऊपर से अपूव शा त – कुल मला कर एक ब त
ही असाधारण अनुभव! या के चेहरे पर आते-जाते भाव दे खते ही बन रहे थे। पहाड़ पर
रहने वाली लड़क , आज अथाह समु का आनंद ले रही थी।

नम और ह क गम हवा ब त ही अ लग रही थी। सूया त होने म कुछ और समय था,


इस लए मने समु म नहाने क सोची – या डर रही थी, इस लए कैमरा दे खने का बहाना
कर के तट पर ही खड़ी रही। ले कन इसम या मज़ा! मने अपनी ट -शट उतारी, और अपने
कैमरा बैग म रख कर बीच के ही एक कानदार के पास रख दया। उसने मुझे आ त
कया क उसके पास यह सुर त रहेगा, और या को ख च कर समु म ले गया। बीच
क गीली रेत जब पानी के आवागमन से पैर के नीचे से खसकती है तो संतुलन बनाना
ब त मु कल होता है, ख़ास-तौर पर तब जब आप इस अनुभव के लए बलकुल नए ह ।
न तो मुझे, और न ही या को समु और बीच का कोई अनुभव था, इस लए पहली बार म
ही हम दोन पानी म गर गए। नहाने ही आये थे, इस लए गीला होने म कोई बुराई नह
लगी।
हम दोन को ही तैरना आता था, इस लए कुछ ही दे र म समु लहर से नपटने का तरीका
आ गया और हमने कोई आधे घंटे तक तट पर ही तैराक करी। इतने म ही सूया त होने का
समय भी नकट आ गया इस लए मने वापस बीच पर खड़े होकर कुछ फोटो ाफ करने
क सोची।

कानदार से कैमरा बैग लेकर मने सबसे पहले या पर फोकस कया। या क ट -शट
जगह के ही मुता बक़ सफ़ेद रंग क थी – ा तो उसने पहना ही नह था, इस लए गीले और
उसके शरीर से चपक गए कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दख रहा था - उसके तना
दख रहे थे, और, चूं क उसक कट भी पूरी तरह से उसके इद- गद चपक गयी थी
और अ दर क काले रंग क च ी, और जांघ साफ़ दख रही थी। अब चलने वाली हवा
शरीर पर ठं डक दे रही थी – लहाज़ा, या के तना भी कड़े हो गए। इससे पहले क
या अपनी इस त पर यान दे पाती, मने दनादन उसक कई दजन फोटो ख च डाली!
और एक अ बात यह दखी क वहां पर जो भी लोग थे, कसी का भी वहार ल ट
जैसा नह था – न तो कसी ने या क तरफ कामुक डाली और न ही कसी कार
क छ टाकशी करी। एक और हनीमूनर को मने कैमरा पकडाया जससे वह हम दोन क
कुछ फोटो ले सके।

मने या के नत ब पर एक चकोट काट कर उसके कान म गुनगुनाया,

‘समु दर म नहा के, और भी नमक न हो गयी हो!


अरे लगा है यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!’

मेरे हो हो करने से या खल खला कर हंसने लगी, “अपनी बीवी को सबके सामने नंगा
करने म आपको अ ा लगता है?”

मने भी बेशम से जवाब दया, “ब त अ ा लगता है!” और गुनगुनाना जारी रखा,

“हंसती हो तो दल क धड़कन हो जाए फर जवान!


चलती हो जब लहरा के तो दल म उठे तूफ़ान...”

इतने म सूया त ारंभ हो गया – बीच पर सूया त अ यंत नाटक य होता है। उन पं ह-बीस
मनट म कृ त व भ रंग क ऐसी सुंदर छटा बखेरती है क उसका श द म बखान
नह कया जा सकता। जब मने या को पहली बार दे खा था, तो मुझे भी ऐसी ही सांझ
क अनुभू त ई थी - मन को आराम दे ती ई, पल-पल नए रंग भरती ई! यह उ चत था
क ऐसी सु दर ाकृ तक छटा के अवलोकन म मेरी ेयसी, या, जो खुद भी इस ढलती
शाम के समान सु दर थी, मेरे साथ खड़ी थी। म जब फोटो ख चने और ाकृ तक स दय
का आनंद उठाने क त ा से बाहर नकला तो दे खा क बीच लगभग वीरान हो चली है।
कमाल क बात है न, लोग सूय के अ त होते होते गायब हो गए! ले कन म और या वहां
कुछ और दे र बैठे रहे। पास क चाय-पानी क कान वाला हमारे पास आया और पूछा क
हम लोग कुछ लगे, तो हमने उसको चाय लाने के लए बोल दया। अभी लगभग अँधेरा हो
गया था और कुछ दख भी नह रहा था, इस लए चाय पीकर, हमने वापसी करी।

रसोट वापस जाने के रा ते म एक एट एम से कुछ रकम नकाली और कुछ दे र बाद हम


लोग अपने रसोट म आ गए। हनीमून का पहला दन ब त ब ढ़या बीत रहा था। ऑटो
वाले को पैसे दे कर मने रसे शन पर एडवचर ोट् स क बात करी। उ ह ने हमको कूबा-
डाइ वग, नोक लग, और े कग के बारे म व तार म बताया। पुनः, चूं क यह सब कुछ
हमारे लए नया था, इस लए हम सबसे आसान और सुर त काय करना चाहते थे।
रसे श न ट ने हमको डाइ वग श क से मलवाया। ये दोन वदे शी म हलाएं थ –
सुजेन और आना! दोन ब ीस से पतीस वष य पेशेवर डाइवर थ – सुजेन ऑ े लया क
मूल नवासी थी और आना इं लड क । और सबसे ख़ास बात – दोन समल गक थ और
साथ ही रहती थ । यह सब बात मुझे बाद म मालूम पड़ । खैर, उ ह ने बताया क फलहाल
दोन ह, और इस लए वे अगले दो तीन दन म या और मुझे व भ कार के डाइव
करवा सकती ह। मने कहा क फलहाल तो हम लोग नोक लग से शु करना चाहते ह –
एक बार पानी क समझ आनी ज़ री है। सुजेन ने कहा क वह हमको नोक लग
करवाएगी और अगले सवेरे तैयार रहने को बोला।

दे र शाम या ने अपने घर पर फ़ोन लगाया और दे र तक अपनी शाद के रसे शन, हवाई


या ा और अंडमान के बारे म बाते बता । या का उ साह दे खते ही बन रहा था –
प से वह ब त ख़ुश थी और यह एक अ खबर थी। मने उसके बात करने के बाद
कुछ दे र अपने ससुराल प के लोगो से बात कर अपनी औपचा रकता नभाई। अब आप
लोग ही बताइए "आप या कर रहे ह?" जैसे का या उ र ं ? कभी कभी मन म
आता है क कह ं क आपक बेट के साथ सहवास कर रहा ँ... ले कन!

खैर, शाम को रसोट म लाइव यू जक का काय म आर आ – बड के लोग अं ेजी


और हद के व भ शै लय के गाने गा-बजा रहे थे। बगल म ही एक बार था, जहाँ पर बैठ
कर म दरा और संगीत का आनंद उठाया जा सकता था।

“जानेमन, कॉकटे ल पयोगी?” मने पूछा।

“वो या होता है?”

“कॉकटे ल यानी अ कोह लक म ड क... पयोगी?”

“मतलब शराब!? न बाबा! आप पीते ह?” जब मने हामी भरी तो, “हाय राम! और या
या करते ह?”

“अबे! म कोई शराबी थोड़े ही न !ँ म पीता ँ तो बस कभी-कभार... क ही ख़ास मौक


पर! जैसे क हमारा हनीमून!”

“आप पी जये, म ऐसे ही ठ क ँ!”

“अरे एक बार ाई तो करो – यह कोई दे सी ठर क कान नह है। ये जो बार म बैठा है वह


एक ोफेशनल म सर है। इसको ख़ास े नग मली ई है.. एक कॉकटे ल ाई करो, मज़ा
न आये तो मत पीना! ओके?”

ऐसे न जाने कतनी ही दे र मनाने के बाद आ खरकार या ने ह थयार डाल ही दए। मने
बारमैन को दो ‘लांग आइलड आइ ड ट ’ बनाने को कहा।

“आप तो कॉकटे ल कह रहे थे, और अभी चाय मंगा रहे ह!”

“चाय नह है – दरअसल इस क का नाम ऐसा इस लए है य क इसका रंग और वाद


‘आइ ड ट ’ जैसा लगता है... जी हाँ, चाय को ठं डा भी पया जाता है!”

“और यह लांग आइलड य ?”

“शायद इस लए य क इस क के आ व कारक को इसका आई डया यूयॉक के ‘लांग


आइलड’ नाम के प म आया था।“ म इस बात को छु पा गया क ‘लांग’ दरअसल
अ कोहल क सामा य से कुछ यादा ही मा ा को दशाता है।

“ म... ले कन, अगर पापा को मालूम पड़ेगा तो वो ब त नाराज़ ह गे।“

“पहला, पापा को य मालूम पड़ेगा? और सरा, अगर मालूम पड़ भी जाय, तो या? अब


आप मेरी ह! मेरी गा जयन शप म!” मने आँख मारते ए कहा।

कुछ ही दे र म हमारी सआग ।

“आराम से पीना... धीरे धीरे! ओके?” मने हदायद द ।

या ने ब त ही सावधानीपूवक पहला सप लया – अनजान वाद! मीठा, ख ा, कड़वा!


आ खर कस ेणी म रखा जाय इस वाद को? अगली चु क कुछ यादा ही ल बी थी।
कॉकटे ल का आनंद उठाने का वैसे यही सही तरीका है – जीभ के सामने वाले ह से म कम
वादे याँ होती ह, इस लए अगर क पूरी जीभ म फ़ैलेगी तो अ धक वाद आएगा।

“कैसा लगा?”

“पता नह ...”

“खराब?”

“नह .. खराब तो नह .. अलग!”

“ म.. इसको अ वायड टे ट बोलते ह... सरी क आपको यादा अ लगेगी।“

मेरी हदायद के बावजूद, और शायद इस लए भी य क मीठे वाद म इस क के


जो खम का पता नह चलता, या ने मुझसे पहले ही अपना क ख़तम कर लया। मने
मना भी नह कया – वो कहते ह न, अपने सामने कसी और को नशे म धु होते ए
दे खना यादा मजेदार होता है। मने या के लए सरा क मंगाया। सरे के आते-आते,
पहले का असर या पर होने लग गया। उसक पलक भारी हो रही थ , और वह अब
यादा ख़ुश दख रही थी।
“आपने मुझसे मलने के पहले तक, सबसे वाइ , मतलब, सबसे पागलपन वाला काम
या कया है?”

“म...ने..? कुछ नह – म ब त अ ब ी ँ!” या ने सरी घूँट भरते ए कहा।

“ फर भी... ब ी ने कुछ तो कया होगा?”

“ऊ म... हाँ, एक बार मने और मेरी सहे लय ने मल कर पास के रामद न चाचा क


बक रयां छु पा द थ । उ ह ने पूरे दन भर बक रयां ढूँ ढ .. ले कन उनको मलती कैसे?
हमने उनको कहा क दस पये दो, हम ढूं ढ कर ले आएँगी! उनको समझ तो आ गया क
हमारी शैतानी है, ले कन उ ह ने शत मान ली। फर हमने ढूँ ढने का नाटक करने के बाद दे र
शाम को बक रयां वापस क और उनसे दस पया भी लया।“

“रामद न चाचा आये थे शाद म?”

“हाँ – गाँव के सब लोग ही आये थे! सभी आपको दे खना चाहते थे।“ उसक सरी क
आधी ख़तम भी हो गई।

“जानू, आराम से पयो! चढ़ जायेगी!”

“ले कन मुझको तो नह चढ़ ...! और ये ‘लांग ट आइलड’ ब त मजेदार है! अरे, अभी


तक आपने पहला भी ख़तम नह कया?”

“हा हा!” मुझे समझ आ गया क या को चढ़ गयी है। “आपको कोई जोक आता है?”

“जोक – हाँ! आप सुनगे?” मने हामी भरी।

“एक बार संता शाद क दावत म गया, ले कन सामने रखे सलाद क टे बल को दे ख कर


वापस आ गया। और बंता से बोला, “ओये बंता... अभी मत जा! अभी तो स जयां ही कट
रही ह!”

“हा हा! एक और?”


“हाँ –एक बार संता कहता है, “यार बंता, मेरी बीवी मुझको नौकर समझने लगी है... बोल
या क ँ ? बंता कहता है, अरे मौके का फायदा उठा... दो-चार घर और पकड़ ले और
अपना धंधा जमा ले!”

“आपको सब ऐसे ही जो स आते ह?”

“हाँ! मुझको संता-बंता के ब त से जोक आते ह! ब त मजा कया होते ह!”

“संता-बंता नह ... कोई और जोक सुनाइये!”

“अ ा..... कोई और? उ म...... हाँ याद आया.... एक बार एक प नी अपने प त को


कहती है, “चलो एक खेल खेलते ह, म छु पती ँ और आप मुझे ढूं ढ़ना। अगर आपने ढू ढ
लया तो म आपके साथ शॉ पग करने चलूंगी।“ प त कहता है, “अगर नह ढूं ढ पाया तो?”
प नी कहती है, “ऐसा मत कहो जानू, बस दरवाज़े के पीछे ही छु पूंगी।“”

“अब आप भी तो कुछ सुनाइए... सारे म ही सुना ँ ?”

“अ ा! आपने कभी कोई एड ट जोक सुना है?”

“एड ट जोक? वो या होता है?”

“अभी समझ आ जायेगा... यह सुनो....

“ द ली के एक मोह ले म एक ब ा अपने घर म हमेशा नंगा घूमा करता था। घर म कोई


भी आता, तो ब ा नंगा ही मलता और उसक मां को ताने सुनना पड़ते। उसक इस
आदत से परेशान होकर मां ने एक उपाय सोचा और अपने ब े से कहा, “बेटा, जब भी
कोई घर म आए, तो म क ँगी, ‘ द ली बंद’ और तुम तुरंत न कर पहनकर बाहर आ
जाना।“
ब ा समझ गया। एक दन उस ब े क मौसी उसके घर आई, तो मां ने आवाज लगाई,
“बेटा, द ली बंद।“ ब ा न कर पहनकर बाहर आ जाता है और कहता है, “मौसी, आप
यहां कस लए आये हो?” मौसी कहती है, “बेटा, म द ली दे खने आई ं।“
ब ा कहता है, “ये लो! वो तो अभी-अभी म मी ने बंद करवा द !” और कहते ए उसने
अपना न कर उतार दया। मौसी हंसते ए कहती है, “बेटा, म यह वाली द ली नह , बड़ी
वाली द ली दे खने आई ं।“
ब ा तुरंत कहता है, “कोई बात नह मौसी, म अभी पापा को बुलाता !ं ””

“ये भी या जोक है? ध ! .....और मुझे मालूम है, वो ब ा आप ही ह... आपका ही


न कर हमेशा उतरा रहता है!”

“हा हा हा!! एक और जोक सुनो - शाद के बाद सुहागरात के लए प त और उसक प नी


अपने कमरे म गये। प नी बेड पर बैठ गई और प त “कैडबरी चॉकलेट” अपने लग पर
लगाने लगा। प नी ये दे खकर बोली, “ या कर रहे हो जी?” प त कहता है, “अरे! वो कहते
ह न? शुभ काम करने से पहले कुछ मीठा हो जाये।“

या खल खला का हँस पड़ी - दो गलास भर के कॉकटे ल गटकने के बाद या अब पूरी


तरह से रलै ड और आरामदायक हो गई थी। मने दे खा क उसक मु कराहट बढती ही
जा रही थी और अब वह खुल कर बात कर रही थी। मने अंदाज़ा लगाया क एक और पेग,
और बस! लड़क ढह जायेगी!

मने एक बार फर से पांसा फका, “अ ा, और या- या वाइ काम कया है?”

“और या? ऐसे कुछ तो याद नह आ रहा!”

“कुछ सहवास? मेरे से पहले!”

“मेरे साथ जो भी सहवास है सब आपने ही कया है!” इतनी वीकारो !

“ले कन...” म तुरंत चौक ा हो गया, “... जब पड़ोस क भा भय ने मद के लग और


उसके काम के बारे म बताया तो म ब त घबरा गई। उनके बताने के एक दन बाद मने..
उं गली डालने का ाई कया था...”

“उं गली? कहाँ?” मुझे अ तरह से मालूम था क कहाँ, ले कन फर भी चुटक लेने से


बाज़ नह आया।
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“जाइए ह टये! आप मुझे सताते ह!”

“अरे! बलकुल नह ! य सताऊँगा? बोलो न, कहाँ?”

“यहाँ... नीचे!” या ने दबी ई आवाज़ म कहा।

“पीछे ?” मने फर छे ड़ा!

“हटो – मुझे नह कहना कुछ भी!” या ठ गई।

“अरे मेरी जान .. ठ क है, अब नह छे डूंगा.. बोल भी दो!”

“मेरी...” एक पल को हच कचाई, “... वेजाइना म! यही नाम बताया था न आपने? आधा


इंच भी नह जा पाई, और दद आ! मने डर के मारे वह छोड़ दया!”

“अ ा बेटा! मेरे पीठ पीछे यह सब करती थी? वेजाइना के साथ एक और नाम बताया था
– याद है?”

“हा हा! नह नह ... म तो बस यह दे ख रही थी क ... क मेरी वेजाइना कतनी चौड़ी है,
और कतनी फ़ैल सकती है! बस! स ी! बस और कुछ नह !”

“हा हा हा!”

“ए सै ट् ली मेरी पहली उं गली जतनी ही तो चौड़ी है! और ये दे खये,” उसने उ साह से


अपनी तजनी दखाते ए कहा, “ये उं गली ही कतनी पतली है! और इतने म ही दद हो
गया! उस दन आपका पहली बार दे खा तो मेरी सांस ही अटक गयी क यह कैसे अ दर
जाएगा!”

“दे खो – उस दन आपक यह पतली सी उं गली ही ठ क से नह जा पा रही थी, और आज


दे खये, मेरा लंग भी आराम से चला जाता है!”
“कोई आराम वाराम से नह जाता, आपका...!” बोलते बोलते या क गयी, और फर,
“.. मेरी जगह पर होते तो आपको मालूम पड़ता सारा आराम!”

“अ ा, आपने मुझसे तो सब पूछ लया – अब आप बताइए – आपने या कया?”

“जानेमन, मेरे पास तो ऐसे कारनाम क एक ल बी फेह र त है! बताने लग गया तो कई


दन नकल जायगे!”

“अ ा जी! म.. वैसे मुझे याद है, आपने बताया था क आपक कई सारी गल ड थ ।
उनके साथ या या कया? सच बताइयेगा – म बुरा नह मानूंगी।“

"नह ... सच ही बताऊँगा। आपसे झूठ बोलने वाला काम म कभी नह क ं गा। म आपसे
यह वायदा करता ँ क मने आपसे पहले कभी भी कसी लड़क के साथ सहवास नह
कया। सहवास का मतलब अगर लग और यो न से है तो! ले कन मने उनके साथ ब त
सारे अ तरंग ण बताये ह। हमारे रसे शन म आपको वो ‘ न कता’ याद है? जसने
गुलाबी-हरे रंग क ेस पहनी ई थी... वो जसके थोड़े बड़े-बड़े तन थे?”

“न...ही..!”

“अरे जसने आपको चूमा था।“

“मुझे तो दो लोगो ने चूमा था – हाँ याद आया! अ ा! वो आपक गल ड थी?”

“हाँ – उसका नाम न कता है। आपसे सच क ँगा, मुझे कसी भी ी म तन ब त यारे
लगते ह। इस लए जब मेरी न कता के साथ घ न ता बढ़ तो म उसके तन को अ सर
ही चूमता, चूसता था। एक दन बात काफ आगे बढ़ गई। मने उसके तन के बीच म
अपने लग को फंसा कर मैथुन कया – बड़ा आनंद भी आया! ले कन सच कहता ँ क
इसके आगे कभी नह गया।”

“च लए... मान लया क आप सच कह रहे ह! वैसे भी, आपके जीवन म मेरे आने से पहले
जो आ, उससे मुझे या सरोकार होगा? ले कन...”
“ले कन?”

“ले कन मेरे तन तो ब त छोटे ह।“

“छोटे नह ह जानू – आप भी तो अभी छोट ह! धीरे-धीरे यह भी बढ़गे! ले कन, सच क ँ


तो अभी जैसे ह, मुझे वैसे ही पसंद ह ये दोन !” कह कर मने आँख मार द ।

यहाँ लखने म आसानी हो, इस लए म बे हसाब लखा जा रहा ँ। ले कन सच तो यह है


क या क जुबान यह सब बात करते ए बुरी तरह लड़खड़ा रही थी और उसक आँख
भी ढलक जा रही थ । मने हम दोन के लए दो और गलास लांग आइलड आइ ड ट
मंगाई, ले कन क आते आते या को पूरी तरह से चढ़ गयी। अतः, मुझे ही दोन स
ख़तम करनी पड़ी। मेरे अ दर चार, और या के अंदर दो गलास म दरा आ गयी थी –
मुझे भी कोई ख़ास टै मना तो था नह , और आ खरी दोनो स मुझे ज द ज द ख़तम
करनी पड़ी। इस लए मुझे भी नशा आ गया। मने बैरा को एक लेट कबाब का आडर दया,
जससे अगर भूख लगे तो खाया जा सके और एक और बैरा क मदद से या को कमरे म
ले आया।

या नशे के कारण सो गयी थी – ले कन उसके माथे और सीने पर पसीने क बूंदे साफ़


दख रही थ । कमरे
के वातानुकूलन से या को ठ ड लग सकती थी, इस लए मने बना उसको अ धक हलाए
डु लाये उसके सारे कपड़े उतार दए। मुझे भी गम सी लग रही थी (जैसा क मुझे हर बार
म दरा पीने से होता है) इस लए मने भी अपने सारे कपड़े उतार दए, और या के बगल
बैठ कर, तौ लये से उसके शरीर से पसीना पोछने लगा।

वो कहते ह न क नशे म वयं पर वश नह रहता। जब म या को प छ रहा था, तभी


दरवाज़े पर द तक ई। मने बना सोचे समझे ‘कम-इन’ बोल दया। और प रचारक को
एक पूणतया न न युगल को दे खने का आनंद ा त हो गया। जब तक मुझे हम दोन क
न नाव ा का भान होता तब तक इतनी दे र हो चली थी क कुछ करने का कोई लाभ न
होता। खैर, उसके जाने के बाद मुझे एक वचार क धा क य न या क ऐसी हालत म
कुछ त वीर उतार ली जाएँ! मने झटपट अपना डी एस एल आर उठाया और या क
न नता क कला मक और अ तरंग कई त वीर ले डाली। उसके बाद म सो गया।
१०
अगली सुबह सुजेन ने मुझे सुझाव दया क नॉक लग के लए एक ब त ही सु दर जगह
है। उसको ‘इं लश आइलड’ कहते ह और उधर ब त ही कम लोग जाते ह। इस कारण से
वहां का ानीय पयावरण सु दर है और ब त ही अ े नज़ारे दखते ह। रकम थोड़ी
अ धक लगती है, ले कन आनंद भी ब त आता है। मने सोचा, और हाँ बोल दया। वैसे भी
हम लोग यहाँ पर हनीमून के लए आये ह – अकेलापन तो चा हए ही!

मने ह क ट -शट, व मग ं क, कैप और सन- लासेज पहने, और या ने नायलॉन-


लाइ ा का वमसूट पहना – वह बना बाँह का, वी-गले वाला प रधान था, जसको पीछे
डोरी से बाँधा जाता था। इस पर ब रंग ट् स बने ए थे। उसके ऊपर ( जससे उसको
अटपटा न लगे) या ने एक ल बी बीच मै सी, जसका रंग पीला और ह का हरा था,
लीव-लेस, वी-गले और बैक वाला प रधान पहना आ था। इसम तन के नीचे से रब
केज तक करीब चार इंच चौड़ा कोमल इला टक लगा आ था। आज या को इस कार
के प रधान म दे ख कर मुझे कुछ-कुछ होने लगा। मन तो यही था क उसको वह पटक कर
सहवास करने लगू,ं ले कन जैसे तैसे मने खुद को ज त कर लया। ले कन बोट पर चढ़ने
और उसके बाद आइलड के करीब नोक लग वाले ान तक प ँचने तक मने उसक
अन गनत त वीर ख च डाली।

सुजेन हमारी गाइड भी थी और श क भी। उसने हम दोन को नोक लग क व ध के


बारे म बताया और उपकरण से जानकारी कराई – ऐसा कुछ खास तो होता नह , बसे एक
आँख पर लगाने के लए मा क और साँस लेने के लए मुँह म लगाने वाली पाइप। खैर,
गोत लगाने क बारी आई तो हम तीन ने तैराक क पोशाक म आने का उप म करना
आर कया। या ब त झझक रही थी, इस लए मने उसको मै सी उतारने म मदद
करी, और खुद क भी ट -शट उतारी। सुजेन ने टू -पीस व मग कॉ टयूम पहना आ था।
मने बोट चालक को कैमरा पकड़ा कर हम तीन क त वीर लेने को कहा – खुद बीच म
खड़ा आ, दा हनी तरफ या और बा तरफ सुजेन!

और फर हम तीन समु म उतर गए।

उस ान पर मूंगा-च ान क ब तायत थी – यह अनुभव जैसे समु के अ दर झाँकने


जैसा था। समु का ठं डा पानी, कान म पानी के हलचल क आवाज़, और आँख के
सामने एक अलग ही नया का अ त नज़ारा!! आपने ‘फाइं डग नमो’ फ म दे खी है?
यहाँ पर वो वाली मछ लयाँ ब त दख रही थ । पानी यहाँ पर ब त गहरा था – कम से कम
२०-२५ फ ट गहरा। व भ कार क रंग- बरंगी मछ लयाँ हमारे चर तरफ तैर रही थ –
मने कई बार को शश करी क एक को कम से कम छू लया जाय – ले कन मछ लयाँ
मुझसे कह तेज और चपल थ । ले कन यह खेल बड़ा ही मज़ेदार रहा। हमने अचानक ही
एक बड़ी, े रंग क मछली दे खी, जो कम से कम ३ फ ट ल बी रही होगी। यादातर
मछ लयाँ ८ इंच से लेकर डेढ़ फ ट तक क ही थ । एक बार तो कोई सौ-डेढ़ सौ मछ लयाँ
हमारे इद गद वृ ाकार व यास म तैरने लग । उनको दे खते दे खते मानो समय ही क गया
हो – न जाने कतनी ही दे र वो हमारे चारो ओर च कर लगाती ही रही। और फर अचानक
ही सारी क सारी एक ओर नकल ग । टार फश, जेली फश, ए नमोनी, और न जाने
कौन कौन सी मछ लयाँ दख , जनके नाम याद रखना अभी मेरे लए संभव नह है। समु
तल भी साफ़ दख रहा था – मूंगे क कई कार क संरचनाएं, समु सवार, और तल पर
बड़े आकार के सी पयाँ और शंख यूँ ही पड़े ए थे। हमने कोई तीन घंटे तक इसी कार से
कृ त का आनंद उठाया। या इस नज़ारे को दे ख कर त हो गयी थी और अ त स
थी। खैर, हम लोग वापस बोट म बैठ कर इं लश आइलड को चल दए।

यह एक एकांत और छोटा टापू था और पूरी तरह नजन! इसके बीच म काफ पेड़ थे और
इसका बीच नरम सफ़ेद रेत का बना आ था। सुजेन ने बताया था क पांच मनट म ही
टापू पर प ँच जायगे, इस लए हमने कपड़े भी नह बदले थे, और ऐसे ही गीले गीले टापू
पर प ंचे। उस समय समु म लहर काफ ऊंची ऊंची उठ रही थी, इस लए नाव को थोडा
र ही लंगर दया गया और टापू पर जाने के लए एक बार फर से समु म कूदना पड़ा।
ना वक और सुजेन हमारे खाने पीने का सामान हमारे पास रखा, और हम बताया क हम
लोग यहाँ पर दो तीन घंटे आराम से रह सकते ह, और दोन टापू पर ही हमसे कुछ र पर
बैठ कर अपना खुद खाने पीने लगे।

या और मने सोचा क इस टापू को थोडा और दे खना चा हए, और तट पर ही चलने लगे।


या और उसका वमसूट पूरी तरह से गीला था और हवा के कारण उसको ठ ड लग रही
थी – रह रह कर उसके शरीर म झुरझुरी दौड़ जा रही थी। मने ऐसा दे खा तो पीछे से उसक
कमर म हाथ डाल कर, उसे अपनी तरफ ख च कर चलना शु कया। चलते चलते मने
दे खा क उसका सूट उसके नत बो को ढक कम, और द शत यादा कर रहा था। अतः,
मने उसके नतंबो को थोड़े जोश से रगड़ना शु कर दया।

“आप यह या कर रहे ह?”


“गम पैदा कर रहा ,ँ जानू! आपके कपड़े पूरी तरह से गीले ह, और हवा भी चल रही है।
ऐसे म आपको ठं ड लग सकती है।"

“आप ब त ख़याल रखते ह मेरा!”, या ने मु कुराते ए कहा।

‘कैसी नासमझ लड़क है यह! – ऐसी अव ा म कोई लड़क राका डाकू को मल जाए,
तो वह भी इसी कार गम पैदा करेगा।‘ हम लोग चलते चलते एक एकांत वाली जगह पर
आ गए – वहां पर बीच काफ चौड़ा और समतल था। सूय क गम भी अ आ रही थी।

" या इसे उतार सकती हो?" मने या को पूछा।

" य ?"

"आपक बॉडी ज द सूख जायगी, अगर उसको गम और हवा लगेगी।"

"ले कन, वो लोग?”

“वो पीछे ही ठहरे ए ह। इधर नह आयगे... चता न करो!”

"अरे? ऐसे कैसे? अगर उनमे से कोई भी आ गया... और हमको ऐसी हालत म दे खेगा तो
या सोचेगा? और उनक छो ड़ए... मुझको ऐसे कोई और दे खे तो म तो शरम से मर ही
जाऊंगी!"

"आप भी या मरने मारने वाली बात करती ह? हनीमून पर आए ह ... हमको कुछ तो मज़ा
करना चा हए? और पूरे इं डया म ऐसी सूनसान जगह नह मलेगी! जतना कपड़े उतार
सको, उतना ही म त!!" मने समझाया, "कोई नह आएगा ... अब उतार दो न.."

“ठ क है। ले कन यह डोर आपको खोलनी पड़ेगी...” कहकर या मुड़ कर खड़ी हो गई।

मने उसक यह बात सुनकर आ यच कत हो गया। दमाग म उ राँचल क वा दय म न न


होकर आनंद उठाने का अनुभव याद आ गया। मने उसक सूट क डोर खोली और जैसे
केले का छलका उतारते ह वैसे ही वमसूट को उतार दया। कुछ ही पल म या पूण
न न होकर बीच पर खड़ी थी। मने उसका सूट सूखने के लए बीच पर फैला दया, और
उसके बाद खुद भी अपना व मग ं क उतार कर पूण न न हो गया।

हम दोन कुछ दे र ऐसे ही नंगे पुंगे वहां पर खड़े होकर पानी सुखाते रहे, ले कन वहां ऐसे
रहते ए भी (चाहे कतने भी अकेले ह ), बेढंगा लग रहा था। खैर, ऐसे नजन बीच पर होने
का फायदा यह है क वहां पर खूब सारे समु तोहफे ऐसे ही बखरे पड़े रहते ह। मने या
को बीच-वाक करने और सी पयाँ बीनने के लए तैयार कर लया,

“अरे, चलो, यहाँ पर ज़ र अ े वाले शंख और सी पयाँ मलगी – चल कर उनको ढूं ढते
ह, और बीनते ह।“

मने कहा और हम दोन ऐसे ही पूण न न, उस वीरान और नजन प पर घूमने चल दए।


अपना सब सामान उसी ान पर छोड़ दया – भला कससे डरना? सूय क गम शरीर पर
ब तअ लग रही थी – अब तक सारा पानी सूख गया था और हवा भी थोड़ी सी ऊ ण
लगने लगी थी। मने सोचा क एक गलती हो गयी – बना कसी कार के सन- न म
के ऐसे ही बीच पर घूमने से सन-बन हो सकता है। कुछ और नह तो सांवलापन बढ़
जाएगा – खैर, यही सोच के संतु कर ली क चलो कुछ वटा मन डी ही बन जायेगा शरीर
म।

सबसे आनंददायक बात यह थी क या इस कार से न न होने म पूरी तरह से आ त


थी – यह म मान ही नह सकता क उसको यह सं ान न हो क कम से कम दो अजनबी
लोग कभी भी उसके सामने सामने आ सकते ह और उसको उसक पूण न नता वाली
त म दे ख सकते ह। ले कन मेरे साथ रहते ए उसको अब यादा आ म व ास हो गया
था। खैर, कोई तीन चार मनट चलते रहते ए ही हमको ब ढ़या क म क बड़ी सी पयाँ
और शंख मलने लग गए – एक बार फर से हमारे पास उनको एक करने के लए हमारे
पास हाथ के अ त र और कुछ भी नह था। हम लोग ऐसे ही कोई पं ह बीस मनट तक
घूमते रहे और फर वापस अपने ान क ओर चल दए। वापस आकर हमने खाना खाया
और नम और गरम रेत पर लेट कर धूप सकने लगे और कुछ ही दे र म हम दोन को ही
झपक आ गई।

सुजेन कब वहां आई, हमको इसका कोई ान नह । ले कन उसने हम दोन को न केवल


एक सरे से गु मगु ा होकर सोते दे खा, वरन उसी अव ा म मेरे ही कैमरे से हमारी कई
त वीर भी उतार ल ।
(सुजेन, जैसा क मने पहले ही बताया है, एक ऑ े लयाई है और अं ेज़ी म बात करती
है। हमारे वातालाप को अं ेज़ी और हद , दोन म ही लखने क ऊजा नह है मुझम,
इस लए यहाँ सफ हद म ही लखूंगा। ले कन कुछ श द अं ेजी के भी ह गे)

“अरे सोते ए ब , उठो... चलना भी है।“

“क या? ओह... सुजेन? या आ?” सुजेन ने मुझे ही हला कर उठाया ... म हड़बड़ा
गया।

“कुछ आ नह ! ले कन हमको कभी न कभी वापस भी तो चलना है न? ...और, दे ख रही


ँ क तुम दोन बड़े मजे ले रहे हो! है न? हे हे हे!”

“कोई मज़ा वज़ा नह , सुजेन। बस, थोड़ा धूप सकते सकते सो गए थे।“ सुजेन के सामने
ऐसे ही न न पड़े रहना ल ाजनक तो था, ले कन चूँ क वह भी ा-पट ज म ही थी,
इस लए मने खुद को या या को छु पाने का कोई यास नह कया। सुजेन को जो भी
कुछ दे खना था, वह अब तक व तार से दे ख चुक होगी।

“जैसा तुम कहो!” फर या को दे खते ए उसने मु कुरा कर कहा, “वेल, हे लो


यूट फुल! न द हो गई?” फर मेरी तरफ मुखा तब होकर, “तु हारी प नी ब त सु दर और
कामुक है। तुम ब त ही भा यशाली हो, दो त...!मेरे कहने का यह मतलब कतई मत
नकालना क तुम कसी भी तरह से कम हो... ले कन, ये ब त सु दर ह!”

“हाँ – यह बात मुझे मालूम है। इसी लए तो मने इनसे शाद क है।“ हमारी बात के बीच
ही या ने अपना वमसूट उठा कर अपने शरीर पर इस तरह से डाल लया जससे
उसक जा हर न नता छु प जाय। “हे! हम लोग यहाँ कुछ दे र और नह क सकते? यहाँ
ब त अ ा लग रहा है।“ मने आगे जोड़ा।

“ बलकुल क सकते ह... ले कन हमको एक नधा रत समय के बाद रसोट म इ ला दे नी


होती है। और यहाँ पर कोई रसंचार क सु वधा तो है नह ... ले कन.. मेरे पास एक वचार
है। उसको बताने से पहले म तुमको एक बात बताना चाहती ँ क जब आप लोग सो रहे
थे, तो मुझे आप दोन को ऐसे दे ख कर इतना अ ा लगा क मने आप लोगो क ऐसी यूड
फोटोज ख च ली...”
“ या?!! दखाना ज़रा!”

“आपके ही कैमरे से ली ह... दे ख ली जये।“ कह कर सुजेन ने मेरा कैमरा मेरे हाथ म स प


दया।
मने कैमरा ऑन कर, तुरंत ही र ु बटन दबाया – या भी अपनी छाती पर अपनी
ब कनी चपकाए, उ सुकतावश कैमरे क त वीर को दे खने मेरे बगल आ गई... इस बात
से बेखबर क उसक यो न से ब कनी का व हट गया है। खैर, जब हमने वो त वीर दे ख
तो हमको ल ा, आ य और गव तीन कार के ही भाव आए।

यादातर त वीर म हम पूणतः न न अव ा म आ लगनब होकर सो रहे थे – म या


क तरफ करवट करके लेटा आ था, ऐसे क मेरा बायाँ पाँव या के ऊपर था, और इस
कारण मेरा लग और वृषण दख रहे थे। मेरा लग अध त न म खड़ा आ था और
उसक कन थोड़ी पीछे खसक ई थी। या चत लेट ई थी और उसका सारा शरीर
द शत था। उसके छोटे छोटे तन, और उन पर आकषक तना ! सु दर, व और
पतली बाह और सपाट पेट! उसका बायाँ पाँव थोडा अलग हो रखा था जस कारण उसका
यो न ार थोडा खुला आ था।

“थ स फॉर द स प चस! ले कन, आप या कहने वाली थ ?”

“म यह कह रही ँ क आप दोन अपने हनीमून पर आये ह... य न म आप दोन के और


भी अ तरंग फोटोस कैमरे म उता ँ ..? वैसी जैसी २-ए स या ३-ए स फ म म होता है?
यू नो... जैसे आपका लग, इनक यो न म...? या कहते ह? व तुतः, मेरे ख़याल से आपके
हनीमून क यह एक अ यादगार नशानी बनेगी! इन त वीर को जब आप लोग बीस
साल बाद दे खगे तो वापस एक और हनीमून करने का मन हो जायगा!”

मने या को संछेप म सुजेन के सुझाव के बारे म बता दया।

“नह बाबा! म नह कर पाऊंगी! इनके सामने कैसे ऐसे...?”

“जानू, दे खो न... इनके सामने हम दोन ही तो नंगे ही ह...”

“ले कन अगर उन त वीर को कोई और दे ख ले तो?”


“अरे कौन दे खेगा? हमारे ब े? हा हा! तो उनको बताएँगे क हमने उनको ऐसे बनाया
था।“ मने शरारत भरी दलील द ।

या वैसे भी मेरी कसी भी बात का कोई वरोध तो करती नह ... अतः उसने अंत म हामी
भर द । ले कन एक शत पर क सुजेन भी हमारे साथ नव होकर कुछ त वीर
नकलवाए। सुजेन ने कुछ सोचने के बाद हामी भर द ।

“अ बात है!” मने कहा, “हम लोग या कर?”

“सबसे पहले तो रलै स होने क को शश क रए... आपक प नी तो अभी भी नवस लग


रही ह। पहले इ ही क कुछ त वीर नकाल लेती ँ... ठ क है न?” अभी भी हम तीन म
सफ सुजेन ने ही कपड़े पहने ए थे।

सुजेन या को कभी मु कुराने, तो कभी कोई पोज़ बनाने को कहती – ‘हड् स इन एयर...
हड् स ऑन ह स... लक योर ल स... मेक अ पाउट.. शो सम ै ट..’ या क इन झझक
और ल ा भरी अदा का असर मुझ पर होने लग गया और मेरा लग जी वत होने लगा।
या इस समय सुजेन के नदशन म एक पेड़ के तने से टक कर अपने दा हने हाथ से खुद
को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर क तरफ ख च रही थी।
इसका भाव यह था क या क पूरी सु दरता अपने पूरे शबाब पर द शत हो रही थी।

ऐसा तो मने कभी सोचा ही नह ... ‘यह सुजेन तो वाकई एक कलाकार है!’

‘ पच योर नपल’ या पर भी इस कार के दे ह दशन का अनुकूल भाव पड़ रहा था।


उसके तना उ ेजना से खड़े हो गए थे। ‘टन अराउं ड... शो म सम ह स..’

फोटो ख चते ए सुजेन अब मेरी तरफ मुखा तब ई – म स मो हत होकर या के उस


नए प को नहार रहा था और अपने उ े जत लग पर यार से हाथ फरा रहा था।

सुजेन: “ए साइटे ड? अब तु हारी बारी...” मेरे कसी त या से पहले ही मेरी चार-पांच


फोटो उतर चुक थी। “ये इसक दे खभाल कैसे कर पाती है? उसके लए ब त बड़ा है!
उसके या, मेरे लए ब त बड़ा है...” एक पल को जैसे सुजेन फोटो लेना ही भूल गयी –
और फर जैसे त ा से जाग कर उसने मेरे लग क कुछ लोज-अप त वीर भी ले डाल ।
फर उसने या को रेत पर लेटने को कहा और मुझको या के दोन ओर अपने घुटने
टका कर इस तरह बैठने को कहा जससे मेरा तं भत लग या के मुख के ऊपर आ
जाय। अब या को कुछ बताने क आव यकता नह थी – उसने वतः ही मेरा लग अपने
मुँह म भर लया और इस पूरी हरकत को सुजेन ने पूरी नपुणता से कैमरा म कैद कर
लया। मुझसे रहा ही नह जा पा रहा था – मने अपने लग को या के मुख म थोडा और
अ दर तक घुसेड दया।

“एनफ़ नाउ! लीज लक हर नपल...”

मन या के ऊपर आकर उसको अपनी बाह म कस कर चूमना शु कर दया –


त या व प सं ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लग को पकड़ लया और सहलाने लगी।
म कभी उसके ह ठो को चूमता, तो कभी उसके तन को। सुजेन हमारे बकुल करीब
आकर बेहद अ तरंग त वीर उतारने म त थी। मेरी और या क हालत ब त खराब थी
– मेरा लग इस समय ऐसा अकड़ा आ था जैसे क बस एक हलके से दबाव से फट जाए।
या क यो न भी पूरी तरह से गीली हो चुक थी। मुझसे रहा नह जा रहा था और मने
बना कसी नदशन के या के ह ठ चूमते ए अपने लग को या के यो न ार पर सटा
कर एक ज़ोर का ध का लगाया .... लग उसक यो न म ऐसे सरकता चला गया जैसे मोम
म गरमागरम चाकू घुसा दया गया हो। या के मुँह से एक कामुक सी कार नकल गई।

“मेरी जान... आह! मेरी हरनी..” म न जाने या या बड़बड़ाते ए पूरी ग त से या के


साथ सहवास करने म त हो गया। हमारा खेल ३-४ मनट म अपने पूरे शबाब पर प ँच
गया। मने या को भोगते ए उसके घुटन को ऊपर क तरफ उठा कर मोड़ दया और
उसके नत ब को सहलाना आर कर दया। म ज द ही ख लत होने वाला था, ले कन
कुछ और दे र यह खेल खेलना चाहता था। इस लए मने ध के लगाना रोक कर, अपने लग
को बाहर नकाल लया। यो न रस से सना आ मेरा लग, सूय क रौशनी म शामक रहा
था। मने या के नत ब के नीचे अपनी हथे लयाँ रख और उस ह से को ऊपर क तरफ़
इस तरह उठाया क उसक यो न मेरे मुख के सामने आ जाय। और फर उसक यो न पर
अपने मुख को ले जाकर उसको चूमा। या कलकारी भरने लगी।

कुछ दे र चूमने के बाद, मने खुद को व त कया और अपने लग को या क यो न म


पुनः समा हत कर के ध के लगाने आर कर दए। अगले २-३ मनट क मेहनत म मेरा
वीय या क यो न म क गहराइय म छू ट गया। आह भरते ए मने या क कमर को
कस कर अपने जघन े से चपका लया। या भी संयत होकर गहरी साँसे भारती ई
लेट गई – म उसके ऊपर ही लेट गया। ले कन उसके ह ठ , आँख , कान , गले और तन
पर चुंबनो क झड़ी लगा द । कुछ ही दे र बाद मेरा लग सकुड़ कर खुद ही या क यो न
से बाहर आ गया।
सुजेन क नजर म :

सहवास के इस सजीव सारण ने मुझे इस कार म -मु ध कर दया क म अपनी सुध-


बुध ही खो बैठ । मेरे हाथ से कैमरा गरते गरते बचा। म एक समल गक ,ँ ले कन इस
इतल गक मैथुन ने मुझे ब त भा वत कर दया था। अथव अब उठ कर बैठ गया था और
मेरी तरफ मुखा तब था, और या अपने अभी अभी संप ए मदन के कारण थक कर
लेट ई थी और सु ता रही थी। आ खरी कुछ त वीर लेते समय मुझे झुक कर बैठना पड़ा,
जसके कारण मेरे तन ा के कप से थोड़ा बाहर ढलक रहे थे। अथव नजर इस समय
उनको ही सहला रही थी। मने उसक आँख का पीछा कया तो तुरंत समझ गयी क वो
कहाँ घूम रही ह। म हांला क थोड़ा सचेत हो गई, ले कन मने उनको छपाने क कोई
को शश नह क – वैसे भी मने वायदा कया था क हम तीन न न त वीरे खचायगे – तो
दे र-सबेर इन व से छु तो होनी ही थी। अथव ने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और
म यं वत उसके पास आकर बैठ गई। अथव है भी कतने आकषक व का मा लक!
और इसक प नी, या, जब कम उ म ऐसी बला क सु दर है, तो फर जब उसका
यौवन पूरा नखरेगा, तब या होगा!!?

अथव ने अपनी बाह मेरी कमर म डाल कर मुझे कस कर दबोच लया और अपने ह ठ से
मेरे ह ठ सटा कर चूमने लगा। इस यंत अ या शत हमले से म सकते म आ गई। उसने
मेरे ह ठ काट लये और उनको चूसने लगा। एक ण को तो म अपनी ल गकता और सुध-
बुध दोन भूल गई और चु बन म उसका सहयोग करने लगी। उनके सहवास के य से
मेरा शरीर पहले से ही कामा न भड़क उठ थी, और अब इस चु बन ने मुझे दहकाना शु
कर दया। उसने मेरे ह ठ को अपने दांत के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शु कया,
और फ़र अपनी जीभ मेरे मुँह म डाल द । मने भी इनकार कये उसक जीभ को रसीले
फल के जैसे ही चूसना शु कर दया।

कुछ दे र तक इसी कार चूमने के बाद जब उसके हाथ मेरी ा को खोलने लगे... तब मने
अपने ह ठ झटक कर उससे अलग कए।

“यह या कर रहे हो...? बस अब ब त आ... अब चलते ह यहाँ से!” मने नाटक कया।
पर वह ऐसे मानने वाला नह था – उसने ा के ऊपर से ही मेरे दोन तन अपनी गर त म
ले लया। उसक पकड़ ब त मज़बूत थी – और उनको इस कार दबा रहा था क मेरी
उ ेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरे दल क धड़कन तेज होती जा रही थी। वैसे चाहती तो
म वहां से हट सकती थी, ले कन व तुतः मेरी को शश भी बस सतही तौर पर ही थी, और
मने उसक हरकत का कोई ख़ास वरोध नह कया। कुछ ही पल म उसने मेरी ा ख च
कर मेरे शरीर से अलग कर द और म ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मेरे तन उभर कर बाहर
हो आये – तना पहले ही उ ेजना के मारे कठोर हो गए थे।

मेरे गोरे बदन पर तने ये तन दे ख कर उसक आँख म एक चमक आ गई। उसने मेरे
तन को अपनी उं गली से ह के ह के सहलाते ए कहा, “तुम ब त ख़ूबसूरत हो।“

उसने मुझे खीच कर अपनी गोद म बैठा लया, ऐसे जससे मेरे दोन पांव उसक कमर के
अगल बगल होते ए उसक पीठ के पीछे आ गए। उसक ह मत क दाद दे नी होगी – इस
समय वह मेरे बाएँ तन के तना को अपने मुँह म भर कर ब क तरह चूस रहा था
और उ ेजनावश मेरे ह ठ पर स का रयां फूटने लगी। मने उ ेजनावश अथव के सर को
अपने तन म भ च लया। मेरे दमाग म इस समय गहरी उलझन हो रही थी – म
समल गक ,ँ इतल गक ँ, या उभयल गक ँ? इस लड़के ने मुझे भरमा दया है।

अपने तन के चूषण के आनंद के दौरान मेरी आँख अचानक ही खुली – दे खा क या


मेरी तरफ कुछ अजीब से भाव से दे ख रही है। या वह गु सा है? लगता तो नह ! उ सुक?
नह ! लालसा? पता नह ! या क नज़र दे ख कर उसके भाव कुछ समझ नह आये – मने
अपने आपको उसके कसी भी कार के आवेग के लए मन ही मन तैयार कर लया। या
उठ , मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा और आँख म उसी कार के भाव लए
मेरी तरफ गहरी डाली।

‘कह ये मेरी गदन तो दबाने वाली नह है?’ मरे मन म एक तनाव दे ने वाला वचार क धा।
ले कन बस एक दो ण के लए ही। म लगभग तुरंत ही तनाव मु हो गई – या क
छरहरी उं ग लयाँ मेरे दा हने तन को छू रही थ । ऐसे ही दो तीन बार छू ने के बाद उसने मेरे
तन को अपनी हथेली म भर कर दबाया। मेरे तन का आकार उसक हथेली के लए
काफ बड़ा था, ले कन फर भी उसक पकड़ ढ़ थी। बीच बीच म वह मेरे तना को
अपने अंगूठे और उं गली के बीच पकड़ कर चुटक ले रही थी।
उधर अथव आँख बंद कये मजे से मेरे बाएँ तन का पान कर रहा था, और इधर उसक
प नी मेरे दा हने तन से खेल रही थी। उसक आँख के भाव मुझे अब समझ आये – वह
भी अपने प त क ही तरह मेरे तन का पान करना चाहती है! मने अथव के सर को ज़रा
हलाया, तब जाकर वह अपने उ माद से बाहर नकला, ले कन उसक सफ आँख ही
खुली, मुँह म अभी भी मेरा तना भरा आ था। उसने एक नज़र मेरी तरफ दे खा तो
उसको भान आ क या मेरे सरे तन से खलवाड़ कर रही थी। वह मेरे तना को मुँह
म लए मलये ही मु कुराया, और फर या को कुछ बोला। ज़ र उसने उसको मेरे तन
पीने को कहा होगा य क अगले ही पल या ने मेरे तना को अपने मुँह म रख लया।

या के मुँह क गम का एहसास अथव से अलग था और ब त अ ा भी। कुछ दे र उसने


अपनी जीभ से उस पर लराया और फर चूसना शु कया। मेरे दोन तना पूरी तरह से
कड़े हो गए थे, अतः या को वह पूण सुगमता से उपल हो गया। या तना को मुँह
म भरे ए अपने दोन हाथ से मेरे तन को धीरे धीरे दबाने और सहलाने लगी।

"तुमको यह पसंद है?" या बना तना को छोड़े मु कुराई। "जब तक मन करे, पयो"
मने कहा। यह सीन बड़ा ही हा या द था – मेरे दोन तन से दोन इस कार चपके थे
जैसे अबोध ब े! कुछ दे र चूसने के बाद अथव ने मेरे तन को छोड़ दया और मेरे पीछे
जा कर मेरी च ी उतारने लगा। एक तरीके से यह सही भी था – हम तीन म सफ म ही
थी, जसने कुछ भी पहन रखा था। मने भी अपने पैर इधर उधर उठा कर उसक मदद करी
– अब हम तीन ही पूण नव हो गए।

म तो एक समल गक ,ँ और जब या जैसी सु दर, कामुक लड़क मेरे सामने इस कार


रहे, तो मेरा मन भी कुछ तो करने का बनेगा ही। मुझे यह नह मालूम था क हम तीन क
इस कामुक या क न प कैसे होगी, ले कन उसके बारे म कुछ सोचना भी बेकार था।
मने या के मुख से अपना तन मु कर उसको पीछे ही तरफ धकेला, जससे वह रेत पर
पीठ के बल गर गयी। मने कुछ पल उसको नहारा, फर अपना चेहरा या के पास ला
कर अपने ह ठ उसके ह ठो से सटा दए। तुरंत ही मुझे दो अ यंत कोमल ह ठो का वाद
मलने लगा।

म नह चाहती थी क या इस नए अनुभव से डर जाए या घबरा जाए, इस लए मने उसके


ह ठ पर हलके हलके कई चु बन जड़ दए। मने दे खा क या बुरा नह मान रही है तो
थोड़ी और तेज़ी और जोश के साथ उसको चूमना आर कर दया। मने उसके दोन गाल
अपने हाथो म लेकर से थोडा दबा दया, जससे उसके ह ठ खुल गए। मने अपनी जीभ
या के मुँह म डाल कर अ दर का जायजा लेना और चूसना शु कर दया।

मने एक हाथ उसके गाल से हटाया तो या का मुँह फर से बंद हो गया – हो सकता है क


उसको मेरा इस तरह से चूमना पसंद न आया हो। खैर, मुझे भी उसके तन का वाद
चा हए था – मेरा हाथ इस सामय उसके एक तन पर टका आ था, और उसको धीरे धीरे
दबा रहा था। अब एक साथ ही उसके ह ठ और दोन तन का मदन आर हो गया।
या का पूरा शरीर पहले से ही कामो माद के कारण काफ संवेदनशील हो गया था, और
अब इस नए हार के कारण अब वह असहज होने लगी। उसके मुँह से कराह नकलने
लग । फर भी, मने उसके दोन तना बारी बारी से अपने मुँह म भर कर चूसना आर
कर दया। वो अब ब त कड़े हो गए।

फर मने उसक यो न पर अपनी उं ग लयाँ सटा द , और उसे मसलने लगी। मेरी खुद क
हालत कोई ख़ास अ नह थी – या और अथव के मैथुन, मेरी खुद क यौन ा त
(पता नह क म समल गक ँ या इतरल गक?), और अब या जैसी सुंदरी को इस कार
लारने से मेरी खुद क यो न भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी या के सामान ही
मदहोशी छा रही थी। मुझे या क यो न का वाद भी लेना ही था – मने उसके पैर के
बीच म अपना मुँह लाकर उसक यो न से सटा दया और जीभ से उसका रस चाटने लगी।
या क यो न से ब त सारा तरल नकल रहा था – उसक यो न का रस, जसमे अथव
का वीय भी स म त था! अनोखा वाद!

मुझे अचानक ही अपने पीछे एक और ज म क अनुभू त ई – कसी ने मेरे कंधे को


पकड़ कर खुद को मुझसे चपका लया था। और उसी के साथ ही मुझे मेरी यो न क
द वार पर अभूतपूव खचाव महसूस आ। मुझे समझ आ गया क या आ है – अथव
का लग मेरी यो न क द वार को फैलाता आ अंदर घुस रहा था। ीसम का ऐसा
अनुभव तो मने कभी सपने म भी नह सोचा था।

जैसे ही उसका लग मेरी यो न म आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअ ह नकल
पड़ी। उसका लग मेरी यो न क गहराइय म उतर गया, और फर बाहर भी नकल पड़ा –
ले कन मेरे राहत क एक भी सांस लेने से पहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यक न हो
गया क अथव मेरे साथ सहवास कर ही लेगा, ले कन फर भी मने उसको रोकने क एक
आ खरी को शश करी।
“अथव.... आ ह! आई ऍम अ ले बयन!”

“हह हह हह ... ाई ै ट व स। दे न डसाइड... ओके?”

फर शायद उसको कुछ याद आया,

“आर यू सेफ? आई मीन...”

“यस... आह! आई ऍम सेफ! एंड आर यू?”

“यस! नो एस ट डी!”

कह कर अथव ने ध के लगाने आर कर दए। या बताऊँ! उस व मुझे ऐसा मज़ा आ


रहा था जैसे क म आसमान म उड़ रही ँ। मेरे मुँह म या क लटो रस थी, जसको म
अपनी जीभ से सहला रही थी और उधर मेरी यो न क कुटाई हो रही थी।

“आह ऊह! इट इस ह टग! इट इस सो बग! माई वेजाइना इस मा टग! हाऊ डस शी टे क


इट इन?”

मने उसके आगे पीछे वाले ध के से अपनी लय मलानी शु कर द । हर ध के से उसका


लग मेरी यो न के पूरी भीतर तक घुस जाता। वो जोर-जोर से मुझे भोगने लगा – और म
या को भोगना भूल गई। वह मुझे पीछे से होकर मेरे तन को दबोच दबोच नचोड़ रहा
था। उसके रगड़ने से मेरे पूरे शरीर म सहरन सी दौड़ने लगी। उसके जोरदार ध के मुझे
पागल बना रहे थे। कोई चार पांच मनट तक वह मुझे ऐसे ही ठ कता रहा - उसके ध क
से म नढाल होकर पूरी तरह थक गई। फर मुझे मेरी यो न म गरम गरम वीय क बूँद
गरती महसूस ई। कम से कम बीस साल बाद कसी पु ष ने मुझे भोगा था – ले कन
ऐसा मज़ा मुझे पूरे जीवन म कभी नह आया।
११
हम तीन बुरी तरह से थक कर वही गर कर एक सरे क बाह म कुछ दे र लेटे रहे। और
फर सु ताने के बाद हमने कैमरे को ऑटो-मोड म सेट कर हम तीन क वैसी ही
न नाव ा म व भ कार क त वीर ख ची, एक सरे के गले लगे और फर अपने कपड़े
पहन कर वापस रसोट जाने के लए तैयार हो गए। अगले दस मनट म हम लोग वापस
हेवलॉक प के लए रवाना हो गए।

जैसे जैसे हम लोग अपने म क तरफ आ रहे थे, मने दे खा, क या का चेहरा उतरता
जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गु सा, नराशा, खीझ, घृणा, और जुगु सा जैसे मले
जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को दे ख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी
तरह से उतर गया था और समझ नह आ रहा था क या क ँ ! म जानना चाहता था क
उसके मन म या चल रहा है, ले कन उस समय मने खुद तो ज त कर लया और म तक
प ँचने तक का इंतज़ार कया। हम दोन जैसे ही अ दर आये या के स का बाँध टू ट
गया,

“आपका अपनी बीवी से मन भर गया?”

“ या! ... आप ऐसे य कह रही ह, जानू?” मुझे तो जैसे काटो खून नह ।

“आप लीज सच सच बताइये... म बुरा नह मानूंगी! मुझसे आपका मन भर गया है न?”

“ या बकवास कर रही हो?”

“बकवास नह है! दे खये.... आपने मुझ पर पहले कभी भी गु सा नह कया.. और आज


यह भी शु हो गया। या म आपके लए ठ क नह ?ँ “ कह कर या सुबकने लगी।

“जानू, म आप पर नह , आपक बात पर गु सा हो रहा ँ! आप ऐसा सोच भी कैसे सकती


ह? य भरेगा मेरा मन आपसे? इसका तो सवाल ही नह उठता! आप यह सब या बात
कर रही ह?” अब तक मेरी हवाइयां उड़ने लगी।
“ या सोच रही ह आप? या चल रहा है दमाग म? लीज बताइए न? ऐसे मत क रए मेरे
साथ!” म गड़ गड़ाया।

“आप वो सुजेन के साथ .... कर रहे थे! अब म इसको या समझू?ं ”

“ओह गॉड! ... शट! तो यह बात है!?” मने माथा पीट लया।

“जानू! मने वो सब कुछ लान नह कया था - ऑने टली ! गॉड ो मस! वो कुछ भी नह
है! सुजेन कोई भी नह है! मने सुजेन को कुछ भी नह कहा – वो हम दोन को सहवास
करते दे ख कर खुद भी उ े जत हो गई..... और इस लए उसने आपके साथ...... दरअसल,
आप दोन को ऐसी हालत म दे ख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नह रहा। वह सब कुछ
ऐसा लग रहा था जैसे क कसी ने मुझ पर स मोहन डाल दया हो। सच म जानू! लीज...
मुझ पर व ास करो!” मने अपनी तरफ से सफाई द ।

“आप दोन ने मेरे साथ यह करने का लान कया था?”

“नह जानू! मने आपको कहा न! और तो और, सुजेन एक ले बयन है ... मतलब वह
आद मय से नह , औरत से सहवास करती है। पहले तो हम दोन को सहवास करते दे ख
कर, और फर आपको दे खकर ... आई मीन, आप इतनी कामुक ह क वह अपने आपको
रोक नह पाई।“

“तो आपने उसको मेरे साथ यह सब इस लए करने दया?”

“मने उसको यह सब करने को नह कहा था जानू! लीज बलीव मी!!” मेरी दलील उलट
पड़ रही थी।

“तो इसका मतलब उसने मेरे साथ वह सब कुछ यूँ ही कर लया?”

“हाँ!” मने अ न य के साथ हामी भरी।

“और आपने उसको रोका भी नह ?” या क आँख से आंसू गरने लगे।


“जानू... अररर ... आपको दे ख कर ऐसा लग रहा था क आप भी ए जॉय कर रही ह..
इस लए मने नह रोका।“ इससे बे-सर-पैर वाला बहाना या सफाई मने कभी नह द !

“तो आपका यह कहना है क कोई भी मेरे साथ सहवास कर लेगा.... य क म.... कामुक
ँ?”

“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था क कोई भी आपके साथ सहवास
करना चाहेगा! आप सु दर ह, जवान ह...! कोई य नह चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद
हो सकते ह।”

“इसका मतलब आप भी कसी सु दर और जवान लड़क को दे ख कर उसके साथ


सहवास करना चाहगे?”

“मने कहा न, कुछ एक अपवाद हो सकते ह?”

“मतलब आप एक अपवाद ह?”

“हाँ!”

“कैसे?”

“ य क म आपसे यार करता ँ!”

“अ ा! और कोई कारण?”

“और हम दोन मै रड ह!”

“ह म... और?”

“और य क म आपसे झूठ नह बोलूँगा, और आपको कसी भी तरह क तकलीफ नह


होने ं गा!”
“अ ा – तो आप कसी और लड़क को ‘मेरे लहाज’ के कारण नह .... करगे! नह तो
कर लेत?े ”

“जानू... म आपका गु सा समझ सकता ँ.. ले कन यह सब या है?”

“आप मुझे सीधा सीधा जवाब य नह दे रहे ह? अ ा, सच सच बताइए, जब आप


कसी सु दर दखने वाली लड़क को दे खते ह, तो उसके साथ सहवास करने का मन नह
होता?”

“जानू, मने कभी आपसे मेरे पछले अफेयस के बारे म छु पाया? चाहता तो छु पा लेता!
आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”

“आपने मेरी बात का जवाब नह दया?”

“ या जवाब चा हए आपको?”

“सच..”

“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बलकुल मन म आता है क ऐसी लड़क दखे तो
पटक कर ठोक ं ! ले कन मुझम और कसी रे प ट या जानवर म कोई अंतर है... और वह
अंतर है क म मानवता के बताये रा ते पर चलता ँ। मेरे अपने सं कार ह... और कसी क
मज़ के खलाफ जोर-जबरद ती करना गलत है।“

“.... और अगर लड़क चाहे, तो?”

“ यादातर लड़ कयाँ ऐसे नह चाहती!”

“अ ा! तो अब आपको यादातर लड़ कय के मन क बात भी पता ह! वह! और आप


ऐसा कह सकते ह य क?”

“ य क, मेरे ख़याल से, आदमी और औरत क ो ा मग बलकुल अलग होती है!”


“अ ा जी! आदमी चाहे तो कतनी ही लड़ कय क कोख म अपना बीज डालता रहे ..
ले कन औरत बस एक ही आदमी क बन कर रह, और उनके ब े पाल?”

“नह ... यह तो ब त ही ढ़वाद सोच है! इस तरह से नह , ले कन मेरे ख़याल से


लड़ कयाँ पहले ेम चाहती ह, और फर सहवास!”

“अ ा, एक बात बताइए.... अगर सुजेन क जगह कोई आदमी होता तो?” या लड़ाई
का मैदान छोड़ ही नह रही थी।

“तो उसक टाँगे तोड़ कर उसके हाथ म दे दे ता। म आपसे सबसे यादा ेम करता .ँ ..
और आपके यार को कसी के साथ नह बाँट सकता।“ मने पूरी ढ़ता और इमानदारी से
कहा।

“मतलब जो सुजेन ने कया वह गलत था.. है न?”

“नाउ दै ट यू पुट इट लाइक दै ट (अब जब आप ऐसे कह रही ह तो)... यस! हाँ .. वह गलत
था।“ मने अपना दोष मान लया।

“आपके लए इतना काफ नह था क अपनी बीवी क नुमाइश लगा रखी थी...?” ले कन


या का गु सा बढ़ता ही जा रहा था, “.... शी वायलेटेड मी!” या चीख उठ ! दल का
गुबार उस एक चीख के साथ नकल गया... या अब शांत होकर रो रही थी। मने उसको
रोने दया – मेरी गलती थी ... ले कन मेरी माफ़ के लए उसको संयत होना आव यक था।

मने आगे बढ़ कर या को अपने आ लगन म बाँध लया और कहा,

" ह .... लीज मत रोइये। मेरा आपको ठे स प चाने का कोई इरादा नह था। आई ऍम
सो सॉरी! ऑने टली ! आपको याद है न, मने आपको ो मस कया था क म आपको
कसी भी ऐसी चीज़ को करने को नह क ँगा, जसके लए आप राज़ी न ह ? म आपको
ब त यार करता ,ँ और आपको कभी खी नह दे ख सकता।"

ऐसी बाते करते ए म या को चूमते, सहलाते और लारते जा रहा था, जससे उसका
मन बहल जाए और वह अपने आपको सुर त महसूस करे। जस लड़क को म ेम
करता ँ, वह मेरे मूखता भरी हरकत से खी हो गयी थी।

" या ... मेरी बात सु नए, लीज!"

“जानू, आई ऍम सॉरी! आई ऍम वेरी सॉरी! लीज मुझे माफ़ कर द जये। मने कभी भी यह
सोच कर कुछ भी नह कया जससे क आपक बेइ ती हो। म आपको ब त यार
करता ँ – अपनी जान से भी यादा! और आपक ब त रे े ट भी करता ँ। लीज मेरी
बात पर व ास क रए।“

“एंड, आई ऍम रयली वेरी सॉरी! अपने मज़े क धुन म मने यह नह सोचा क आपको
और आपक भावना को ठे स लग सकती है। काम के वशीभूत होकर मने न जाने या
या गुनाह कए ह। म सच कहता ँ मेरे मन म बस एक ही धुन सवार रहती है क कसी
तरह आपके साथ सहवास कया जाय..”

मने कहते ए उसके माथे को चूमा और उसके बाल को सहलाया, “... पर अब मुझे लगने
लगा है क म अपनी परी के साथ ठ क नह कर रहा ँ। म सच कहता ँ क म आपको
यार करता ँ – और इसका मतलब है क सफ आपके शरीर को नह .. आपके मन, दल
और पूरी पसना लट को! ले कन आप मेरे पास रहती ह तो अपने को रोक नह पाता –
और सहवास को ाइसी बनाने के लए न जाने या या करता ँ।“

या का रोना, सुबकना अब तक ख़तम हो गया था। वह अब तक संयत हो गयी थी और


मेरी बात यान से सुन रही थी। उसने कुछ दे र तक मेरी आँख म दे खा – जैस,े मेरे मन क
स ाई मापना चाहती हो।

“जानू.. म भी आपके साथ यार क नया बनाना चाहती ँ। मेरा मन है क जैसे आपने
मुझे अभी पकड़ा आ है, वैसे ही हम एक सरे को बाह म जकड़े सारी ज दगी बता द।
और आप मेरे साथ जतना मन करे, सहवास क रए – जैसे मन करे, वैसे क रए। मुझे
अपनी यार क बा रश से मेरे तन मन को इतना भर द जये क म मर भी जाऊं तो मुझे
कोई गम ना हो। ... बस, मुझे कसी और के साथ शेयर मत क रए!”

"हाँ मेरी जान! अब म ऐसी गलती कभी नह क ँ गा! आई ऍम सॉरी!"


म या को आ लगनब कये ए ही ब तर पर बैठने लगा, और या भी मेरी गोद म
आकर बैठ गई और अपनी बाह मेरे गले म डाल द । वो इतनी यारी लग रही थी क मने
उसके ह ठ को चूम लया।

“आई लव यू! एंड, आई ऍम सॉरी! अब ऐसी गलती कभी नह होगी।”

“आई लव यू टू ! और आपको सॉरी कहने क ज़ रत नह ।”

या को चूमने के साथ साथ मुझे समु नमक न वाद महसूस आ – मतलब, नहाने का
उप म करना चा हए था। ले कन उसको चूमने – उसके ह ठो का रस पीने – से मेरा मन
अभी भरा नह था। या मेरी गोद म बैठ थी और हमारे ह ठ आपस म चपके ए थे। हम
दोन ही इस समय अपनी जीभ एक सरे के मुंह म डाल कर इस समय कु फ क तरह
चूस रहे थे। म कभी उसके गाल को चूमता, तो कभी ह ठो को, तो कभी नाक को, तो
कभी उसके कानो को, या फर उसक पलक को। इसी बीच मने कब उसक बीच मै सी
उतार द , उसको शायद पता भी नह चला (ढ ला ढाला ह का कपड़ा शरीर पर पता ही
नह चलता)। कोई ५ मनट के चु बन के आदान दान के बाद जब हमारी पकड़ कुछ
ढ ली ई तो या को अपने बदन पर मै सी न होने का आभास आ।

“जानू, आँख खोलो।”

“नह पहले आप मेरी मै सी द जये.... मुझे शम आ रही है।”

“अरे शरम! मेरी रानी .... कैसी शरम? तुम इस का ूम म कतनी खूबसूरत लग रही हो!
मेरी आँख से दे खो तो समझ म आएगा!”

“ध !”

“और वैसे भी यह भी उतरने ही वाला है... नहाना नह है?”

उसने मुझे चढ़ाते ए कहा, “अ ा जी... और आपको नह नहाना है? आपके कपडे तो
य के य ह।”
मुझे या आप हो सकती थी? म तो इसी ताक म था। या को अलग कर मने लगभग
तुरंत ही कपडे उतार दए और बेड पर सरहाने क ओर आकर बैठ गया। मेरा लग इस
समय अपने पूरे आकार म आकर नकला आ था। या ने पहले तो अपनी उँ ग लय से
उसे यार से छु आ और फर सहलाया और फर अ या शत प से उस पर एक चु बन
रसीद कर दया। मेरे लग ने उसक इस या के अनुकूल उ र दया और प र क तरह
कठोर हो गया। अब या मेरे ऊपर लगभग धी लेट कर मेरे लग के साथ खेल रही थी,
और म उसके चकने नत ब के साथ - मने उन पर कपड़े के ऊपर से ही यार से हाथ
फराना शु कर दया। मने उसक वमसूट को थोडा सा खसका कर अपनी उँ ग लय से
उसक नत ब के बीच क दरार पर सहलाना शु कर दया। और उधर, या मेरे लग
को मुँह म रख कर चूस रही थी।

उसक नरम मुलायम जीभ का गुनगुना अहसास मेरे लग पर महसूस कर के मुझे फर से


मदहोशी छाने लगी। दो त , कुछ भी हो – अपने जीवन म कम से कम एक बार अपनी
े मका/प नी को अपने लग का चूषण करने को अव य क हये। यह एक ऐसा अनुभव
होता है, जससे आगे और कुछ भी नह । उसने कोई ५-६ मनट उसने मेरा लग चूसा
होगा, फर वो अपने ह ठो पर जीभ फेरती ई उठ खड़ी ई। उसक आँख म एक शैतानी
चमक थी।

मने या को पुनः अपनी बाह म भर लया, और फर से उसके ह ठो पर अपने ह ठ रख


दए। उसके मुंह से मुझे मेरे ही रस क खुशबू और वाद महसूस ई।
मने उसके वमसूट के ऊपर से उसके तन को छू ते ए कहा, “मेरी जान, अब इसका या
काम है? ज़रा अपने मीठे मीठे , रसीले संतर को आज़ाद करो ना... लीज!”

“आप ही आज़ाद कर दो...” या ने कहा।

मने झटपट उसक का ूम क डोरी खोल द और उसके तन से उतार कर अलग कर द ।


या के दोन तन तन कर ऐसे खड़े हो गए, मानो उ ह बरस के बाद आजाद मली हो।
मने आगे बढ़ कर उन पर तड़ातड़ उनपर चु बन क बरसात कर द । या के पूरे शरीर म
सहरन को लहर दौड़ गयी। मने उसके तना पर धीरे से जीभ फराई और उसको पूरे का
पूरा अपने मुंह म भर कर चूसने लगा। या ससका रयां गूंज उठ । वह मेरी गोद म बैठ
थी - मेरा एक हाथ उसके न न नत ब पर घूम रहा था, तो सरा हाथ उसका सरा तन
दबा-कुचल रहा था।
मेरे चूसने के कारण उसके तना तन कर पेन क तरह एकदम तीखे हो गए। मने उसे बेड
पर लटा दया और उसके एक हाथ को थोडा ऊपर उठा कर उसक कांख पर चूमने और
चाटने लगा। समु पानी क महक, और नमक न वाद से मेरे मन म मादकता और भर
गयी। मेरे चाटने और चूमने से या उतेजना और गुदगुद से रोमां चत हो चली। उसको
वहां पर चूमने के बाद, मने पुनः उसका चेहरा अपनी हथे लय म थाम कर उसके ह ठ,
माथे, आँख , गाल , नाक और कान को चूमता चला गया। या पलक बंद कये एक
अलग ही नया क सैर कर रही थी - उसक साँसे तेज चल रही थी ह ठ कंपकपा रहे थे।
मने उसके गले और फर उसके तन को चूमा, और फर दोन तन के बीच के ह से को
जीभ लगा कर चाटा। या बस ससका रयां भर रही थी।

मने धीरे से उससे कहा, “जानू, आँख खोलो!”

ले कन उससे हो नह पाया। खैर, मने उसे एक बार फर बाह म भर कर पुनः उसक


पलक पर एक चु बन दया। काम और ेम का म त भाव या पर अब साफ़ दे खा
जा सकता था। सचमुच, ऐसी अव ा म ल सा रस म डू बी, नवयौवना, नव ववा हता
भारतीय नारी सचमुच र त का ही अवतार लगती है। मने उसके गाल को चूमते ए उसके
ह ठ पर फर से ह ठ लगा दए। उसने भी मुझे चूम लया और अपनी बाह म मुझे जोर से
कस लया। उसका शरीर कांप रहा था। मने धीरे धीरे उसके गले को चूमा और फर से नीचे
क तरफ उतरते ए उसके तन को चूमता आ उसक ना भ के छे द को चूमने और
अपनी जीभ क नोक से सहलाने लगा – या बस मीठ सी कार कये जा रही थी।

“आह! ओह..! जानू! ये आप या कर रहे हो? लीज बस करो! म मर जाउं गी।”

म बना कुछ बोले उसक ना भ म अपनी जीभ क नोक लगा कर झटके दे रहा था। या
ने कस कर अपनी जांघ भ च ली और मेरे सर के बाल पकड़ लए। फर नीचे आते ए मने
जैसे ही उसके पेडू पर जीभ लगाई, उसने एक जोर क कलकारी मरी – उसमे हंसी, पीड़ा,
आनंद और वासना क म त व न नकली। उसका शरीर बेकाबू होकर कांपने लगा और
कांपता ही गया। मुझे समझ आ गया क या अपने चरमो कष पर प ँच गयी है। मने
इतनी दे र म पहली बार उसक यो न पर चु बन लया – वह ह सा कामरस से पूरी तरह से
भीग गया था। जैसे ही मने वहां पर अपने ह ठ रखे, उसक जांघ चौडी होती चली गई।

मैने अपनी दोन हाथ क उँ ग लय से उसक यो न क पंखु डय को थोडा फैलाया –


उ ेजना के मारे र म हो चली उसक लटो रस और वाकई या क छोट उं गली क
प र ध वाली यो न छे द मेरे सामने उप त हो गयी। म अब भला कैसे क सकता था? मैने
अपने ह ठ उन फंको पर रख दए – इस छु वन से या का पूरा शरीर काँप गया, और मुंह
मीठ ससका रयां नक़ल रही थी। मैने उसके भगनासे को जैसे ही अपनी जीभ से टटोला,
उसक यो न से कामरस क आपू त होने लगी। या का ओगा म अभी भी जारी था –
कमाल है! मने दो तीन मनट तक उसका यो न-रस-पान कया और फर उठ कर अपने
लग को उसके ार पर ा पत कया।

इस ल बे फोर ले के दौरान मेरा खुद क उ ेजना अपने शखर पर थी, लहाजा, मेरा वयं
पर काबू रखना ब त ही मु कल था। कोई तीन-चार मनट तक जोरदार ताबड़-तोड़ ध के
लगाने के बाद म उसके अ दर ही ख लत होकर शांत हो गया। आज यह तीसरी बार था –
इस लए वीय क मा ा अ य प थी। ऊपर से थकावट ब त अ धक हो गयी थी, इस लए म
या के ऊपर ही गर गया।

“हटो गंदे ब े!” या ने मुझे अपने ऊपर से हटाया, और आगे कहना जारी रखा, “आपने
तो मुझे मार ही डाला।“ या अपनी यो न को सहलाते ए बोली, “कोई इतनी जोर से
करता है या? आःहह..!”

“हा हा हा!”

सरे हाथ क उँ ग लय से उसने मेरे सकुड़ते ए लग को पकड़ कर मुझे चढाते ए कहा,


“हाँ हाँ ... हँस ली जये! मुसीबत तो मेरी है न! ये आपका जो केला है न, उसको काट कर
छोटा कर दे ना चा हए... और कटर से छ ल कर पतला भी कर दे ना चा हए! मेरी तकलीफ़
कम हो जाएगी!”

“ये केला कट गया तो आपक तकलीफ़ के साथ साथ आपका मज़ा भी कम हो जायेगा!”
फर थोड़ा क कर,

“ या वाकई आपको ब त तकलीफ होती है?”

“नह जानू... मजाक कर रही थी म। ऐसी कोई तकलीफ तो नह होती – मुझे अभी ठ क
से आदत नह है न.. इस लए, लगता है क थोड़ा .... कैसे क .ँ .. उ म... जैसे घस गया
हो, ऐसा लगता है। वो भी काफ बाद म!”
कुछ दे र हम लोग ब तर पर पड़े ए अपनी साँसे ठ क करते रहे, और फर या ने बोला,

“जानू, हमको थोड़ा सावधान रहना होगा।“ वह थोड़ा शरमाई, “... पछले एक ह ते से हम
दोन बना कसी ोटे न के सहवास कर रहे ह।“ मेरे कान सावधानी म खड़े हो गए।
“अगर आप चाहते ह तो ठ क है... ले कन म.... े नट... हो जाऊंगी!”

बात तो सही है – म भी इतना भ पा ँ क बना कसी ज मेदारी के बस पेलम-पेल मचाये


डाल रहा ँ और एक बार भी नह सोचा क इतनी छोट लड़क के कुछ अरमान ह गे
जदगी जीने के! अगर इतनी छोट सी उ म वह माँ बन गयी तो सब चौपट!

“आप माँ बनना चाहती ह?”

“अगर आप कहगे तो मुझे कोई आप नह होगी।“

“ले कन अभी नह ... है न?”

“कम से कम.. पढाई पूरी हो जाए?” या ने शमाते ए कहा।

“आपके पी रयड् स कब ह?”

“तीन चार दन बाद...!” यह इतना गत सवाल था क या को और न नता का


एहसास होने लगा – उसके चेहरे पर शम क ला लमा साफ़ दख रही थी।

“आई ऍम सॉरी जानू! आई ऍम वेरी सॉरी! म ब त ही गैर- ज मेदार आदमी !ँ ”

“आप ऐसा न क हए.. लीज! म भी आपसे ब त यार करती ँ। आप जैसे कह रहे थे...
लड़ कयाँ वैसे नह होत ... कम से कम म नह .ँ .. जैसे आप नह रह पाते ह, वैसे ही म भी
नह रह पाती .ँ .. तो या आ क आप मुझे इस तरह से झकझोर दे ते ह...”

“ दस इस द से सएट थग आई एवर हड इन माई होल लाइफ! (यह मेरे जीवन क सबसे


कामुक बात है, जो मने सुनी है)।“ कह कर मने उसको अपनी बाह म समेट लया।
“बस... हम सतक रहना चा हए।“ या ने मु कुराते ए कहा।

हमने साथ म ही नहाया – कोई और समय होता तो संभव है क सहवास का एक और दौर


चलता... ले कन शरीर म खुद क एक सुर ा णाली होती है, जसके कारण आप
लगातार सहवास नह कर सकते। वैसे भी आज जो भी कुछ आ वह अ यंत अ या शत
था, इस लए म खुद भी ज द ज द उ े जत होकर तैयार भी हो गया। य द कसी ब त
भूखे इंसान को अचानक ही छ पन भोग परोस दया जाय तो वह पागल कु े के समान
उसको नबटा लेगा... ले कन वही छ पन भोग य द उसको रोज़ परोसा जाय, तो उसक
भूख नयं ण म आ जाती है।

नहा धोकर मने सफ अपना अंडर वयर पहना और फोन कर के ह का फु का खाना


मंगाया – खाकर आराम करने क इ ा हो रही थी। या ने क तान टाइल वाला बीच
वयर पहना आ था – यह पॉ लए टर का बना एक पारदश पहनावा था, जो समु नीले-
हरे रंग का था और जस पर फूल के ट बने ए थे। गले के नीचे एक लूप जैसा था जहाँ
पर डोर से इसको बाँधा जा सकता था। काफ ढ ला ढाला प रधान था - उसक ल बाई
जाँघ के आधे ह से तक आती थी और हाथ का ऊपर वाला ह सा ही ढकता था। उसके
अ दर या ने काले रंग क व कोस और एला टे न क पैडेड पुश-अप ा और काले ही
रंग क पट ज पहनी ई थी। उसने अपने बाल शै ू कये थे, जसके कारण वह अभी भी
गीले थे और उनसे रह रह कर पानी टपक रहा था। बाला क ख़ूबसूरत!

इस समय वह अपने बाल को तौ लये से रगड़ कर सुखाने क को शश कर रही थी। मेरे मुँह
से अनायास ही यह गाना नकल गया,

“ना झटको ज फ़ से पानी, ये मोती फूट जायगे।


तु हारा कुछ न बगड़ेगा, मगर दल टू ट जायगे।“

“हा हा! आपको हर सचुएशन के लए कोई न कोई गाना याद है!”

“आप ह ही ऐसी – हर सचुएशन को एकदम से कामुक बना दे ती है, तो गाना ख़ुद-ब-ख़ुद


नकल पड़ता है! आपक इस हालत म कुछ फोटो नकालने का तो बनता है! इजाज़त है?”

या ने सर हला कर अनुम त दे द ।
मने उसक कई सारी त वीर नकाली, क इतने म ही प रचायक खाना लेकर आ गया। मने
उसको कैमरा दे कर हम-दोन क कुछ त वीर लेने को बोला। मुझे प का यक न है क
साले ने कैमरे के ू-फाइंडर से या के ज म से अपनी खूब नैन-तृ त करी होगी...

‘खैर, कर ले बेटा, अपनी नैन-तृ त! तुझे यह लड़क ब त र से सफ दे खने को नसीब


होगी। ऐसे ही तरसते र हयो!’

कोई सात-आठ त वीर लक करने के बाद उसने बेमन से वदा ली। उसको ज़ र कल
रात वाले प रचायक ने बताया होगा, ले कन हर-एक क क मत सामान थोड़े न होती है।

हमने अपना खाना पीना समा त कया और फर मने या को कहा क वो चाहे तो आराम
कर ले, य क म भी कैमरे से त वीर अपने कं यूटर म कॉपी कर के आराम करने के मूड
म ँ!

“कं यूटर? कधर है कं यूटर?”

“मेरा मतलब मेरा लैपटॉप!”

“वो या होता है?” अ ा, अब समझा – या ने अभी तक वो बड़े वाले डे कटॉप के बारे


म ही जाना होगा। खैर, मने लैपटॉप बाहर नकाल कर उसको दखाया। वो उसको दे ख कर
य प से काफ उ सा हत हो गयी।

“आप मुझे इसके बारे म सखायगे?”

“अरे! य नह ... बलकुल सखाऊँगा!”

मने अपना लैपटॉप ऑन कर के उसे इसके बारे म बताना शु कया। या को थोड़ा-ब त


ान था, ले कन वह सब पुराना और कताबी ान था। मने उसे कं यूटर चालू करने,
ऑपरेट करने, और फर बंद करने के बारे म व तार से बताया। फर मने उसे व ोज़,
इंटरनेट और ईमेल के बारे म भी बताया – दरअसल आम आदमी के काम क चीज़ तो यही
होती ह! फाइ स कैसे खोली जाएँ, ो ा स कौन कौन से होते ह, गाने सुनना, फ म
दे खना, व डयो-चैट इ या द! उसको सबसे यादा उ साह ईमेल और इंटरनेट के बारे म
जान कर आ।

खैर, फर मने कैमरे को लैपटॉप से जोड़ कर त वीर कॉपी करनी शु करी। कोई पं ह
मनट बाद सारी त वीर जब कॉपी हो ग तो वह जद करने लगी क चलो त वीर दे खते
ह। मेरा मन था क कोई आधे घंटे क न द ले ली जाय, ले कन उसके उ साह को दे खकर
उसको मना करने का मन नह आ। कैमरे म हमारी शाद क त वीर (जो मेरे दो त ने
ख ची थ ), कुछ त वीर उसके कसबे क , कुछ हमारे रसे शन क (जो मेरे दो त और
पड़ो सय ने ख ची थ ), और फर ढे र सारी त वीर हमारे हनीमून क ! हमारी जो त वीर
सुजेन ने ख ची थी, उनको दे ख कर या के मुँह से ‘बाप रे’ नकल गया.... वाकई, सारी
क सारी ब त ही कला मक और कामो पक त वीर थ । वाकई यादगार त वीर! खैर,
कॉपी कर के मने चुपके से उन त वीर का एक बैक-अप भी बना लया क कह ऐसा न हो
क या शरम के मारे उनको डलीट कर दे । इसके बाद हम दोन लैपटॉप पर ही गाने
सुनते ए कुछ दे र के लए सो गए।

डनर के लए हमने सोचा क नीचे सबके साथ करगे - लाइव यू जक के काय म, और


अ य युगल और अ त थय के साथ बैठ कर म दरा, संगीत और भोजन का आनंद
उठाएंगे। या ने आज म दरा पीने से साफ़ मना कर दया – तो मने मोकटे ल और
मसालेदार खाना मंगाया।

“सीईईई हाआआ!”

“ या आ? कुछ तीखा था?”

“उई माँ!.... सीईई! मच खा ली... ब त तीखी है...!”

“अरे! दे ख कर खाना था न! ज द से पानी पी लो! नह ... एक मनट.. जब मच लगे, तो


ध पीना चा हए।”

मने ज द से वेटर को बुलाया और थोड़ा ध लाने को बोला।


पानी पीने से या के मुँह क जलन कुछ कम हो गई। ले कन मेरे दमाग म एक क ड़ा
कुलबुलाया, “वैस,े मच क जलन का एक ब त अचूक इलाज है मेरे पास!”

“ या? सीईईई!” उसक जलन कम तो हो गई थी पर फर भी वो सी... सी.... कर रही थी।

“आपके ह ठ और जीभ को अपने मुँह म लेकर चूस दे ता ँ, जलन ख़ म हो जायेगी... या


कहती हो?” मने हंसते ए कहा। म जानता था क सबके सामने ऐसा करने से वह मना
कर दे गी, ले कन जब उसने अपनी आँख बंद करके अपने ह ठ मेरी ओर बढ़ा दए, तो मेरी
हैरानी क कोई सीमा न रही। मने दे खा उसक साँस भी तेज़ हो गई थी और उसके तन
साँस के साथ साथ ही ऊपर-नीचे हो रहे थे। मने आगे बढ़ कर उसके नम ह ठ पर अपने
ह ठ रख दए।

या को चूमना तो खैर हमेशा ही आनंददायक अनुभव रहता है, ले कन ऐसे सबके सामने
उसको चूमना – मानो नशे के समान था। उसके नम, गुलाब क प य जैसे नाजक ह ठो
क छु अन से मेरा तन मन पूरी तरह तक तरं गत हो गया। या ने भी अपनी बाह मेरे गले
म डाल द और मेरे ह ठ को चूसने लगी। मने भी दोन हाथ से उसके गाल थाम कर पता
नह कब तक चूमता रहा, मुझे यान नह । ले कन जब हमारा चु बन टू टा तो हमारे चार
तरफ लोगो ने ताली बजा कर हमारा हौसला बढाया। मने भी हाथ हला कर सभी का
अ भवादन कया।

खाने के बाद हम दोन ने कोई एक घंटे तक संगीत का आनंद उठाया और फर उठ कर


समु के कनारे ना रयल के पेड़ पर बंधे हमक (जालीदार झूल ) पर लेट कर रा -
आकाश का अवलोकन करने लगे। हम दोन के झूले सामानांतर बंधे ए थे, कुछ ऐसे जैसे
ेमी युगल आपस म हाथ पकड़ कर आराम कर सक। नवच नकला आ था, इस लए
आकाश म चमकते, टम टमाते तारे और न साफ़ दख रहे थे। मुझे खगोलशा म
खासी च भी है और ान भी। लहाजा, मने तुरंत ही बीवी पर इ ैशन झाड़ने के लए
अपना ान बघारना शु कर दया।

“वह दे खये.. वो जो लाल सा सतारा दख रहा है, वो मंगल ह है... और वहां पर बृह त
या जु पटर! वही जहाँ से साबू आया है...”

“साबू?”
“अरे.. वो चाचा चौधरी वाला? आप कॉ म स नह पढ़त ?” मुझे नराशा ई... चाचा
चौधरी तो मेरे बचपन म लगभग हर ब े को मालूम था।

“नह ... ले कन चाचा चौधरी नाम सुना तो ज़ र है..”

“ओके.. अ ा उधर दे खये.. वहां है उ म... कृ का न ... दखने म जैसे हीरे के


चमकते गु े ह ! और वो दे खो... उधर है तुला न ..”

“हाँ.. कहते ह क तुला रा श धरती पर हो रहे पाप-पु य का पूरा लेखा जोखा उधर त
ुव तारे को दे ती
जाती है.. ुव तारा अपना ान नह बदलता..”

“अरे वाह! आपको मालूम है!?”

“हाँ... कुछ कुछ मालूम है!” या ने उ साह से कहा।

“गुड! तो मुझे भी बताइए...?”

“ म.. अ ा... वह जगमग रेखा.. वहाँ ... उधर... वह आकाश-गंगा है। इसके जल म
नान कर के दे वी-दे वता और अ सराएं हमेशा युवा बने रहते ह...”

‘ या बात है!’ मने सोचा, ‘ऐसा का ा मक कोण?’

या ने कहना जारी रखा, “इसी के जल से घड़ा भर कर रो हणी, आषाढ़ मास म धरती पर


उड़ेल दे ती है.. जससे धरती पर जीवन हरा-भरा हो जाता है.. पेड़ पौधे खेत सब हरे भरे हो
जाते ह...”

“अरे वाह! या बात है!!”

या अपनी शंसा सुन कर उ साह से बोली, “वहाँ उस ुव तारे को आधार बना कर


चलने वाले स त ष तारा-मंडल ह... आप क भाषा म शायद उनको ‘ बग डपर’ कहते ह...
उसम वो ह व श और उनके बगल ह अ ं धती... कहते ह क ववा हत जोड़े को इनके
दशन करने चा हए! शुभ होता है!”

मने व मय से दे खा.. जन तार को म मज़ार और अ कोर के नाम से जानता ँ, उनको


या एकदम सही पहचान कर एक भ कोण रख रही है। मने उसको आगे उकसाया,

“ऐसा य ?”

“एक कहानी है.. आप सुनगे?”

“हाँ हाँ.. बलकुल!”

“ये जो सात ऋ ष ह, दरअसल उ ही सूय का उदय-अ त नयं त करते ह। इन सभी का


ववाह सात बहन से आ था जनको कृ का कहते ह। ये सभी साथ साथ रहते थे।
ले कन एक दन एक हवंन के दौरान अ न दे वता कट ए और उन सात कृ का के
प से मु ध हो गए और उसी पागलपन म इधर उधर भटकने लगे। ऐसे म एक दन उनक
मुलाकात वाहा से ई। वाहा को अ न से ेम हो गया और उनका ेम पाने के लए
वाहा एक एक कर उन सातो बहन के प म अ न से मलन करने लगी। उसने छः बहन
का प तो धर लया, ले कन अ ं धती का प नह ले पाई। और वह इस लए य क
अ ं धती इतनी प त ता थ , क उनका प लेना असंभव हो गया। इस संयोग से वाहा ने
एक पु को ज म दया जसका नाम कंद पड़ा... बात फ़ैल गई क उन छः बहन म से
कोई उसक माता है। सफ अ ं धती और व श ही साथ रह गए।“

“ या बात है! यह सच है क इस कार के तार म एक तारा र और सरा उसके


च कर लगाता है... ले कन ये दोन साथ म च कर लगाते ह..।“

“हाँ.. इसी लए अ ं धती को दे खना शुभ है.. प त और प नी – उन दोन को हर काम साथ


म करना चा हए। यही तो ववाह क न व है!” या कुछ दे र तक रह यमयी ढं ग से क
और फर आगे बोली, “आपको एक बात पता है?”

“ या?” जा हर सी बात है क मुझे नह पता!


“ शव-पुराण म अ ं धती को... या कहा गया है... और, वे ा क पु ी थ । व श के
कहने पर उ ह ने तप करके शवजी को स कर लया और वयं को काम से मु करने
का आ ह कया। शव जी ने उनको मेधा त थ ऋ ष के हवन-कु ड म बैठने को कहा। ऐसा
करने से या उनक पु ी के प म पैदा ई और फर उ ह ने व श से ववाह कया।“

“बाई गॉड! तो मेरी जानू वयं ा क पु ी ह?”

या मु कुराई, “नह .. म तो बस अपने पापा क पु ी ँ.. और अब आपक प नी!” फर


कुछ क कर, “और म हमेशा आपक न ावान र ंगी – ठ क अ ं धती क तरह!”

उसने यह बात इतनी ईमानदारी और भोलेपन से कही, क दल म एक ट स सी उठा गई..


मन भावुक हो गया। सच म, या जैसी जीवनसाथी पाकर म ध य हो गया था, और मुझे
यक न हो चला था क मेरे अ े दन का आर उसके आने के साथ ही हो गया।

“म भी...” कह कर मने उसके हाथ को अपने हाथ म ले लया, और उसके साथ ही दे र तक


जगमगाते आकाश को यूँ ही दे खते रहा।
१२
या क नजर म :-
रात का समय,
पछले कुछ दन से मल रहे अनवरत सुख के कारण मुझम अपार ू त और ताज़गी आ
गई जान पड़ती है। न द ही नह आ रही है। कमरे म बाहर से ह का ह का उजाला आ रहा
है – ‘ कतना बजा होगा?’ मने घड़ी म दे खा : रात के साढ़े बारह ही बजे थे अभी तक। ‘ये’
तो सो गए जान पड़ते ह! हमको सोए ए कोई एक घंटा ही तो आ है अभी तक! और
मुझे लग रहा है क जैसे न जाने कतनी दे र तक सो गई! ‘एकदम े श लग रहा है.. या
क ँ ?’

‘ य न खड़क खोल द जाए!? समु का शोर ब त सुहाना होता है।‘ ऐसा सोच कर म
उठ और समु के सामने खुलने वाली खड़क के प ले खोल दए और पद हटा दए, और
वापस आकर ब तर पर सरहाने क टे क लेकर बैठ गई। समु क लहर क गजना,
रा काल क चु पी और रसोट क लाइट से उठने वाले मृ ल उजासे से माहौल और भी
शां तमय हो चला था। न द तो बलकुल ही गायब थी, इस लए म बैठे बैठे बस पछले कुछ
दन क बात सोचने लग गई...

वा तव म, यह सबकुछ एक प रकथा जैसा ही तो था! प रकथा! सपन का राजकुमार!!

एक सजीला, सु दर, और नौजवान राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया और एक गरीब


लड़क को अपनी रानी बना कर अपने महल म ले गया! शायद ही कोई ऐसा हो जसने
अपने बचपन म ऐसी, या इससे मलती-जुलती कहानी न सुनी हो! और इन कहा नय को
सुनते सुनते बचपन म ही लड़ कय के मन के कसी कोने म एक लालसा जागृत हो ही
जाती है क एक दन उनके भी सपनो का राजकुमार आएगा और उ ह अपने साथ अपने
महल ले जाएगा।

पर यथाथ म या ऐसा कह होता है? मुझे तो मालूम भी नह क मेरे सपनो का राजकुमार


कैसा होता! इसके बारे म मने वाकई कुछ भी नह सोचा था। अभी तक मने दे खा ही या
था? पछले साल क ही तो बात है जब मने माँ और पापा को खुसुर-पुसुर करते ए चुपके
से सुना था – चचा का वषय था ‘मेरी शाद ’! पापा मेरे लए आये कसी ववाह ताव क
बात माँ को बता रहे थे... उस दन मुझे पहली बार महसूस आ क लड़ कयां अपने माँ-
पापा के लए चता का वषय भी हो सकती ह। उस दन मने नणय कया क अपने बूते
पर कुछ कर दखाऊंगी और अपनी ही पसंद के लड़के से शाद क ं गी... माँ बाप क चता
ही ख़तम! ले कन अगर सोचो तो कैसी बचकानी बात है? एक पछड़े इलाके के छोटे क बे
रहने वाले औसत प रवार क लड़क भला या ढूं ढेगी अपने लए प त! हमको या
अ धकार है? अपनी है सयत के हसाब से जैसे तैसे कोई मल जाय, वही ब त है। ले कन
सोचने म या कोई दाम लगता है? म भी अपने लड़कपन म कुछ भी सोचती, ओर सोच
सोच कर खुश होती क यह कर ँ गी, वह कर ँ गी।

ले कन अथव ने अचानक ही हमारे जीवन म आकर यह सारे समीकरण ही बदल डाले।


सच क ं तो अथव कोई मेरे सपनो के राजकुमार नह ह... वे उससे कई गुणा यादा बढ़-
चढ़ कर ह... म सपने म भी उनके जैसा सु दर वर सोच नह सकती थी। इसके साथ साथ
ही वह एक यो य और लायक हमसफर भी ह। उ ह ने अपना सब कुछ अपने ही हाथ से
बनाया है... उनम इंसा नयत ह... उनम सभी के लए उ चत स मान भाव है और आ म-
स मान भी। और सबसे बड़ी बात, जो उनके सभी कार के यो यता और धन- दौलत से
अ धक है – और वह है उनका च र ! उ ह ने ही बताया था क उ ह ने मुझे व ालय जाते
ए दे खा था... अगले दन मने कई बार पीछे मुड़ कर दे खा, क शायद वो कह से मुझे दे ख
रहे ह , ले कन वो दखे ही नह । खैर, फर उनके बारे म पता लगाने के लए पापा ने कई
लोग भेजे, और जैसे जैसे उनके बारे म और पता चला, मेरे मन म उनके लए ेम और
आदर दोन बढ़ते चले गए।

पापा सभी को कहते फर रहे थे क या के लए अथव के जैसा वर वो ढूं ढ ही नह सकते


थे.. मजे क एक बात यह है क पापा को शु शु म उन पर ब त शक आ – न जाने
कहाँ से आया है? या पता कोई ल ट, शोहदा या उच का हो – हम ठगने आया हो?
बेचारी या को याह कर ले जाय, और कह बेच दे – अखबार तो ऐसे अन गनत क स
से आते पड़े ह! मेरी फूल सी ब ी! अगर उसको कुछ भी हो गया तो उसक माँ को या
जवाब दगे! ऐसे न जाने कैसे बुरे बुरे याल पताजी को दन-रात आते.... लोगो ने उनको
समझाया क सब के बारे म सफ बुरा नह सोचा जाता.. सतक रहना अ बात है,
ले कन इसका मतलब यह नह क सभी को बुरी और शक क नगाह से जांचा जाय। और
फर, बंगलौर म तो हमारे क बे और जान-पहचान के कतने सारे लोग ह.. पता लगा लगे।
सब कुछ। या तो पूरे क बे क ब टया है.. ऐसे ही उसका बुरा थोड़े न होने दगे!
फर आई हमारी शाद .....

हमारी शाद जैसे एक कवदं ती बन गई... पूरा गाँव शा मल आ – सफ दखाने के लए


नह , ब क सभी ने अपनी अपनी तरफ से कुछ न कुछ मदद भी करी। पापा ने तो सब क
सब री तयाँ नभा डाल – कह भी कोई कोर कसर नह ! सब के सब दे वता क पूरी
दया बनी रहे ब टया और दामाद पर! ऐसी शाद होती है कह भला? दे खने वाले हम दोन
को राम-सीता जैसी जोड़ी बताते। सभी ने मन से ढे र आशीवाद दए – सच म, भा य हो तो
ऐसा! और सभी ने हमको बोला क शाद ऐसी होनी चा हए!

हमारे मलन क रात!

वैसे तो लड़क शाद के बाद ससुराल चली जाती है, ले कन ये तो इतनी र रहते ह!
इसी लए हमारे लए घर म ही सारी व ा कर द गई थी.. कहा जाता है क प त-प नी
क यह पहली अ तरंग रात उनके वैवा हत जीवन के भ व य का नणय कर दे ता है।
सुहागरात म प त-प नी का यह पहला मलन शारी रक कम, ब क मान सक और
आ मक अ धक होता है। इस अवसर पर दो अनजान य के शरीर का ही नह
ब क आ मा भी मलन होता है। जो दो आ माएँ अब तक अलग थ , इस रात को
पहली बार एक हो जाती ह।

एक बार ट वी पर मने वो गाना दे खा था... “आज फर तुम पे यार आया है...” उसम
माधुरी द त और वनोद ख ा के बीच थम णय का सं छ त य दखाया गया था।
उस य को दे ख कर मेरे मन म भी एक अनजान तपन, एक बेबस इ ा और न जाने
कतने कोमल सपने अंकुर लेने लगे। अथव से ववाह क बात प क हो जाने पर वह सारे
सपने परवान चढ़ गए ... ले कन, भा भय के बताये यौन ान ने सब पर पानी फेर दया।
यादातर य के यौन जीवन, या कह ली जये वैवा हक जीवन क स ाई तो वैसी ही
है... मुझे उनक बात से जो एक बात समझ म आई थी वह यह थी क य के लए
सहवास का आनंद उठाने जैसी कोई व ा नह है। प तदे व आयगे, और कुछ कुछ
करके सो जायगे! ी के लए तो बस पूरे दनभर चौका-चू हा, सेवा-टहल, बस यही सब
चलता रहता है। हमारी ( य क ) तो बस न द ही पूरी हो जाय, यही ब त है।

‘ या अथव भी ऐसे ही ह गे?’ यह वचार मेरे मन म अन गनत बार आता... ले कन मुझे


इस का कोई उ र नह मल पाता.. मलता भी कैसे? आ खर उनके बारे म मुझे
मालूम ही या था? मन म बस डर सा लगा रहता। मेरा भ व य तो तय हो गया था। ठ क है,
अथव अ े इंसान ह, और म संभवतः ब त भा यशाली ँ क मुझे उनसे ववाह कर
उनक सं गनी बनने का अवसर मला था। पर तु फर भी, समाज म य क त और
अ य भा भय के अनुभव – इन सबने मेरे मन म एक अनजान सा डर भर दया था।

माँ ने हमारी सुहागरात से पहले मुझे इनक हर बात मानने क हदायद दे द और फर


सभी मुझे कमरे म अकेला छोड़ कर चले गए। म अकेली ही डरी, सहमी सी उनका इंतजार
करने लगी। समय के एक एक पल के बढ़ते ए मेरे दल क धड़कन भी बढती जा रही थी
और इंतजार का एक-एक पल मानो एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। खैर, अंततः अथव
कमरे म आये और मेरे पास आकर बैठ गए। उनक उप त मा से ही मेरे शरीर का रोम
रोम रोमां चत हो गया।

"म आपका घूंघट हटा सकता ?ँ " उ ह ने पूछा...

‘आप को जो करना है, करगे ही!’ ऐसा सोचते ए मेरे दमाग म भा भय क बताई ई
श ा, सहे लय क नटखट चुहल और छे ड़खानी और मेरी खुद क न जाने कतनी ही
कोमल इ ाएँ क ध ग ... मने सफ धीरे से हाँ म सर हलाया।

‘ या म इनको पसंद आऊंगी? इ होने तो मुझे र से ही दे ख कर पसंद कर लया! आज


इतने पास से मुझे पहली बार दे खगे..’ वो मुझे आँख खोलने को बोल रहे थे – ले कन
रोमांच के मारे मेरी आँख ही नह खुल रही थ । जब मेरी आँख खुली तब इनका मु कुराता
आ चेहरा दखाई दया। राम-सीता का नह मालूम, ले कन ये सचमुच मेरे लए कृ ण का
प थे... मेरी आँख तुरंत ही नीचे हो गय । फर उ ह ने मुझे चु बन के लए पूछा! कहाँ ँ
चु बन? गाल पर, या ह ठ पर? फ म म दे खा है क हीरो-हेरोइन ह ठ पर चूमते ह..
ले कन, या इनको यह पसंद आएगा? खैर, मने इनके ह ठो पर ज द से एक चु बन दया,
और पीछे हट गयी। शरम आ गई...।

ले कन इनका मन नह भरा शायद... इ होने मेरी ठु ी पकड़ कर मुझे कुछ दे र नहारा और


फर मेरे ह ठो को चूमना शु कर दया। म तो सहर ही गई, मेरे शरीर पर कसी मद का
यह पहला चु बन था। मेरा उनके ह ठ के श से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, और
र गटे खड़े हो गए। उनके गम होठ का श – एकदम नया अनुभव! मेरे पूरे बदन म
झुरझुरी सी दौड़ गई। समय का सारा एकसास न जाने कह खो गया। कुछ याद नह क
यह चु बन कब तक चला। ले कन, उतनी दे र म मेरा हाल ब त बुरा हो चला था – म बुरी
तरह कांप रही थी, उसके गाल से गम छू ट रही थी और साँसे भारी हो गयी थी।
न जाने या सोच कर उ ह ने मेरी नथ उतार द । पारंप रक ववाह म सुहागरात म प त
सहवास से पहले अपनी प नी क नथ उतारता है। सहवास! सहसा ही मुझे ऐसा एहसास
आ जैसे मुझे कसी ने न न कर दया हो। डर और ल ा क मली-जुली भावाना के
कारण सहवास या तो र क बात है, उनका आ लगन, चु बन और श म भी मेरे दल
को दहला दे रही थी। मन म बस यही भावना आ रही थी क उनके सामने पूरी नंगी न होना
पड़े। ले कन जस नल ता से उ ह ने मेरा लाउज उतारा था, म तो समझ गई क मेरी
भी दशा मेरी भा भय जैसी ही होने वाली है। उ ह ने धीरे-धीरे एक-एक करके मेरे सारे
कपड़े मेरे शरीर से उतार दए और मुझे उसी डर क खा म धकेल दया। सब कुछ ब त
ही अ वाभा वक तीत आ। जस आकर (खज़ाना) को म अब तक सुर त रखे ए थी,
वह उसी पर सीधी सधमारी कर रहे थे। ले कन जब उ ह ने मुझे ेम से आ लगनब कर
लराया, तो मन म कुछ साहस आया।

और फर वह आ जसक क पना मने अपने सबसे सुखद व म भी नह करी थी...


उनके ह ठ, जीभ, हाथ, उँ ग लय और लग ने एक समायो जत ढं ग से मेरे सव व पर कुछ
इस कार आ मण कया क म सब कुछ भूल गई। मेरे यौवन के खजाने को पहली बार
कोई मद ऐसे लूट रहा था, और उस समय होने वाले सुखद अहसास को मेरे लए शब्*द
म बयान करना नामुम कन है। मेरे चुचक पहले भी कभी-कभी कड़े हो जाते थे – जब
अ धक ठं डक होती, या फर तब जब म नहाते समय अपने तन पर कुछ यादा ही साबुन
रगड़ लेती.. ले कन उस समय तो कुछ और ही बात थी। मेरे चुचक उनके मुँह म जाकर
प र के सामान कड़े हो गए थे। वह उनको कसी ब े क तरह चूसते ह.... म तो जैसे
होश ही खो दे ती ँ। पता नह उनको मेरे तन इतने वा द य लगते ह! उनको पए जाने
पर मेरा मन भी नह भरता... मन म बस यही आता है क अथव मेरे दोन चुचक लगातार
पीते रह। हालां क उनके चूसने और पीने से मेरी दोन तना म दद होने लगता है, ले कन
उनके ऐसा करने से जो मुझे जो असीम आन द का अनुभव होता है, उसके लए यह दद
कुछ भी नह ।

मने सोते ए अथव को दे खा – वो एकदम से बेख़बर, एक भोले ब े के समान सो रहे थे।


न द म भी वो कतने मासूम और यारे लग रहे थे... चेहरे पर संतोष के भाव एकदम ।
म मु कुराई... इतने दन म यह एक अनोखी रात थी, जब मेरे शरीर पर कपड़े थे!

‘मेरे कपड़ो के मन...!’


मने यार से सोचा और उनके गाल पर धीरे से अपनी उं ग लयाँ फरा । मेरे श से वे थोड़ा
कुनमुनाए और फर अपने गाल को वतः ही मेरी उँ ग लय से सटा कर सो गए।

‘अरे मेरे मासूम साजन!’ मने मन ही मन सोचा और मु कुराई, ‘....कैसे ब के सामान


सो रहे हो! यही ब ा रोज़ मेरे ोड़ म उथल पुथल मचा दे ता है! ’

‘और इनका लग! बाप रे! पहली बार उनके ल बे तगड़े अंग को दे खते ही मुझे दहशत सी
हो गई! इतना मोटा! मेरे कलाई से भी अ धक मोटा! उसक वचा पर नस फूल कर मोट
हो रही थी और आगे का गुलाबी ह सा भी कुछ कुछ दख रहा था... आ खर यह मुझम
समाएगा कैसे?’ उस समय मुझे प का यक न हो गया क आज तो दद के मारे म तो मर ही
जाऊंगी! यह सब सोचते ए मेरी अथव के जघन भाग पर चली गई, जहाँ च र के
नीचे से उनका अंग सर उठा रहा था।

मेरे ह ठ से एक हलक सी हंसी छू ट पड़ी, ‘हे भगवान्! या ये कभी भी शांत नह


रहता?!’

मुझे याद है जब मने इसको पहली बार छु आ था... मने छु आ या था, दरअसल उ ह ने ही
मेरे हाथ को पकड़ कर अपने आ नेया पर रख दया।

आ नेया ! हा हा! सचमुच! मानो अ न क तपन नकल रही थी उसम से!! मेरी हथेली
उनके लग के गद लपट तो गई, ले कन घेरा पूरा बंद ही नह आ। इतना मोटा! बाप रे!
और तो और, उनके लग क ल बाई का कम से कम आधा ह सा मेरी पकड़ से बाहर
नकला आ था। शरीर और मन क इ ाएँ जब अपने मूत- प म जब इस कार
उप त हो जाती ह, और उनसे दो-चार होना पड़ता है तो डर और ल ा – बस यही दो
भाव मन म आते ह। म भी डर गई...!

ले कन उनके अंतहीन मौ खक ेम लाप ने मेरा सारा डर ख च कर बाहर नकाल दया!


ऐसा तो कुछ भी भा भय ने नह बताया था। न जाने कतनी दे र बाद अंततः वह समय आ
ही गया जब हम दोन संयु होने वाले थे। मन म अनजान सा डर था क उनका लग मेरी
या दशा करेगा, ले कन एक व ास भी था क वे मुझे कोई परेशानी नह होने दगे। एक
आशंका थी क अगर भा भय क बात सच हो गई तो..? और साथ ही साथ एक चता थी
क य द उनक बात सच न ई तो..?? इस कार के वरोधी भाव आते जाते गए, और फर
मने वयं को उनक नपुणता के हवाले कर दया।

जब उ ह ने मेरी जांघ फैला द तो मुझे लगा क जैसे मेरी यो न तरल हो गई है... पूरी तरह
से भ आभास! जब उ ह ने अपनी उँ ग लय से उसको फैलाया, तब जा कर मुझे वापस
आभास आ क मेरी यो न नायु, ऊतक और पे शय से बनी है। वो कुछ कहते, ले कन
मुझे कुछ भी सुनाई न दे ता! मानो, सब इ य क संवेदनशीलता समट कर मेरी यो न
और चुचक म ही रह गई हो।

उनका लग!

पहली बार उसको अपनी यो न म महसूस करना अ त था! उनके जोर लगाने से वह धीरे-
धीरे मेरे अ दर आने लगा। मुझे लगा क जैसे एक नया जीव मेरे अ दर घर बना रहा हो।
भराव का ऐसा अनुभव मेरी क पना से परे था। मने नीचे दे खा – अभी तो लग के आगे के
ह से का सफ आधा भाग ही अ दर घुसा था! उ ह ने एक ण क कर एक जोरदार
ध का लगाया और उनके वकराल अंग का आधा ह सा मेरी यो न के भीतर समा गया।

"आआ ह..." ऐसी ू रता! मेरी चीख नकल गयी – जो क मुझे भी सुनाई द । वो एक दो
पल ठहर कर मुझे दे खने लगे.. उनक आँख म चता थी – कस बात क यह तो नह
मालूम, ले कन इतना कह सकती ँ क मेरे लए नह । य क एक दो पल कने के बाद
ही उ ह ने अपना लग मेरी यो न से थोड़ा बाहर नकाला और फर पुनः और अ दर डाल
दया। ऐसे ही उ ह ने कई बार अ दर बाहर कया। म.. दद कुछ कम तो आ! ले कन
उनके हर ध के से मेरी कराह ज़ र नकल रही थी। फर अचानक ही उ ह ने पूरे का पूरा
लग मेरे भीतर ठे ल दया और मेरा व धवत भोग करना आर कर दया। वासना और
आनंद के स म ण से मेरी आँख बंद हो ग – सांस और कराह का आवागमन मुंह से ही
हो रहा था। उ ेजना के मारे मने उनके क को जोर से जकड रखा था। अजीब अजीब
सी आवाज – कुछ हमारी कामुक आह क , तो कुछ पलंग के पाए के भू म पर घसने क ,
तो कुछ हमारे जननांग के घषण क ! मुझे अचानक ही मेरे अ दर गम तरल क बूँद गरती
महसूस – और ठ क उसी समय मुझे एक बार पुनः कामुक आनंद के अनोखे वाद का
आभास आ। मेरी पीठ एक चाप म मुड़ गयी.. और मेरे भोले साजन मेरे चुचक को एक
बार फर से पीने लग गए और मुझ पर ही गर कर सु ताने लगे! मुझे नह मालूम था क
मद को य के तन का वाद लेने क ऐसी इ ा हो सकती है। मने उनके लग को
अपने अ दर मुलायम होते महसूस कया; ऊपर से उनका लार, चु बन और चूषण जारी
रहा।

र त नवृ जहाँ अ त आनंददायक हो सकती है, वह पहली बार करने पर एक कार क


ल ा भी होती है। उनको तो खैर नह हो रही थी, ले कन म शरम से दोहरी ई जा रही थी
और उनसे आँखे ही नह मला पा रही थी। पता नह य ! आ खर इस खेल म हम दोन ही
बराबर के भागीदार थे, ले कन फर भी शरम मुझे ही आ रही थी। एक वो दन था, और
एक आज का दन है! म भी कसी छं छा ( नल ी) क तरह नबाध यौन आनंद उठा
रही ँ।

सपन के ा ड म वचरण करते ए अगला पड़ाव मेरी वदाई का आया...

अ या शत प से मुझे एक दन पहले ही अपने पया के घर को नकलना पड़ा। एक पल


के लये भी मुझे अपने पता के घर को छोड़ने का मलाल नह आ। अथव के साथ जीवन
के हसीन सपने संज ते ए मने सबसे खुशी-खुशी वदा ली। मन म कई कार क खु शयाँ
घर करने लगी। मुझे मालूम था क अथव जैसे प त को पाकर म धन्*य हो गई थी। बंगलौर
प ँच कर मेरा ऐसा वागत आ क म खुद को कसी राजकुमारी से कम नह मान रही
थी। ले कन इस घर का अहसास कुछ ही घंट म मुझे अपना सा लगने लगा। म तो एक दन
म ही पापा का घर भूल गई। यह मेरा घर था... अ तीय वास्*तु शल्*प से न मत घर! म
दं ग रह गई थी। सब कुछ जैसे मीठा व हो! मुझे ऐसा लगा जैसे म एक ऐसे ान म ,ँ
जहां रश्*त क त पश का संसार बसाया जा सकता है। ेम के इन्* धनुषी रंग क
वतान (शा मयाना) के नीचे हम दोन क दे ह के मलन से सृष*् ट सृजन को ग त द जा
सकती है।

सच है.... एक वो दन था, और एक आज का दन है! नबाध यौन आनंद! जब म उनक


बांह म जाती ँ तो पूणतः तनाव मुक्*त हो जाती ँ। साहचय क कायापलट करने वाली
ऊजा क कां त मानो मेरी त्*वचा से फूट फूट कर नकलने लगी है। सचमुच, यौन या,
संसग के अ त र भी ऐसी ाप्*य है जो चेतना को सुकून और शरीर को पौष्* टकता
दे ती है। कुछ लोग कहते ह क जब स्* ी शरीर, पु ष रसायन ा त करता है, तो दे ह गदरा
जाती है।

म इस सोच पर मु कुराई... एक हाथ अनायास ही मेरे तन पर चला गया। ‘ये दोन ज द


ही बड़े हो जाएँ!’ मन म एक वचार क धा। कैसा हा या द वचार है यह... कुछ दन
पहले तक ही म सोचती थी क बड़े तन कतने तकलीफदे य हो सकते ह... ले कन जस
कार से अथव मेरे दोन तन का भोग योग करते ह.. य द, ये थोड़े बड़े होते तो उनको
और आनंद आता। और य द ये दोन मीठे मीठे ध से भर जाएँ, और अथव जीवन भर
उनका पान कर सक! आह!

मेरे मन म एक शरारत उठ । मने अथव से सट कर, च र के अंदर हाथ बढ़ा कर उनके लग


पर धीरे से हाथ फराया। मुझे ऐसा तीत आ जैसे उसको मेरी छु वन का ही इंतज़ार था –
मेरा हाथ लगते ही तुरत-फुरत उसका आकार अपने पूण प म बढ़ गया।

‘ऐसा पु अंग! हाथ म ठ क से आता ही नह ..! कतना स त हो गया है!’

मने पूरे हाथ को उनके लग पर कई बार फराया और फर उसको पकड़ कर हलाने लगी।
कुछ ही दे र म उनका लग मेरी यो न म जाने के लायक एकदम खड़ा और स त हो गया।

भा य से मेरी यो न इस समय थक ई थी, और हमने सावधानी बरतने का ण भी कया


था, इस लए मने सोचा क यूँ न हाथ से ही इनको नवृ कर दया जाय! मने अथव के
लग को थोड़ा मजबूती से पकड़ कर अपनी मु को उसक पूरी ल बाई पर आगे-पीछे
चलाना आर कर दया। सोते ए भी अथव के गले से कामुक आह नकलने लग ! फर
मुझे याद आया क उनका वीय नकलेगा तो ब तर को ही खराब करेगा, अतः म घुटन
और कोहनी के बल इस कार बैठ गई जससे उनका लग मेरे मुंह के सामने रहे। कुछ दे र
और उनके लग को पकड़ कर आगे पीछे करने के बाद मने उसके सामने वाले ह से को
अपने मुंह म भर लया। अब हाथ क ही ले म मेरा मुंह भी उनके लग पर आगे पीछे हो
रहा था। मने अपनी जीभ से उनके लग के आगे वाले चकने ह से पर कई बार फराया।

अथव ‘आऊ आऊ’ करते ये मेरे सर को अपने हाथ से सहला रहे थे। ‘हो गया सोना!’

"यस बेबी! यस!!" उ ह ने बुदबुदाते ए मेरा हौसला बढाया।

मने उ साह म आकर उनके लग को अपने मुंह के और भीतर जाने दया – एक बार तो
उबक सी आ गई, ले कन मने गहरी सांस भर कर उसको चूसना जारी रखा। उधर अथव
भी उ ेजना म आकर लेटे ए नीचे से ध के लगाने लगे – वो तो अ ा आ क म अभी
भी उसक ग त और भेदन नयं त कर रही थी, नह तो मेरा दम घुट जाता। खैर, कुछ ही
दे र म म अपने मुंह म उनके लग क उप त और चाल क अ य त हो गई और अब
मुझे इस कार मैथुन करना अ ा लगने लगा। मुझको यह या आर कये कोई चार-
पांच मनट तो हो ही गए थे.... अतः कुछ और झटके मारने के बाद वो ख लत हो गये और
मेरा मुख उनके गरम गरम वीय से भर गया, जसको मने तुरंत ही पी लया। कुछ यादा
नह नकला... संभवतः आज कुछ यादा ही खच हो गया। एक अजीब वाद! हो सकता
है क कुछ और बार ऐसे करने के बाद म उसक भी अ य त हो जाऊं! अथव भी ख लत
होने के बाद नढाल से लेटे रहे।

‘पता नह उनको या लगा होगा! सपना या हक कत! हा हा!’

म कुछ दे र तक उनका सकुड़ता आ लग मुंह म लए ऐसे ही लेट रही, और फर अलग


हट कर सरहाने क छोट मेज पर रखी बोतल से पानी पीने लगी। और फर उनके चेहरे
पर नज़र डाली... वो मु कुरा रहे थे। या ये जाग गए ह और उनको मेरी इस हरकत का
पता चल गया? या वो इसको एक सपना ही सोच कर मगन हो रहे ह! या पता!

'आज क रात य अनोखी हो भला?' यह सोचते ए मने अपने सारे कपड़े उतारे, और
अपने पया से चपक कर लेट गई.. रात म कब न द आई, कुछ भी याद नह ।
१३
आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका- छपी खेल रहा
था। ह क बयार और ढले ए तापमान से मौसम अ यंत सुहाना हो गया। मन म आया क
य न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दन भर बीच पर ही आराम कया जाय? आ खर
आये तो आराम करने ही है! मने या को यह बात बताई तो उसको ब त पसंद आई –
वैसे भी हमालय क हाड़ कंपाने वाली ठं डक से छु टकारा मलने से वह वैसे भी ब त खुश
थी। या ने भी कहा क आज बस आराम ही करने का मन है... खायगे, सोयगे और हो
सका तो रात म फ म दे खगे, इ या द... मेरे लए आज का यह लान एकदम ओके था।

हमने ज द ज द े श होने, और श करने का उप म कया। ेकफा ट के लए आज


मने रसोट के सावजा नक े म जाने का नणय लया – कम से कम कुछ और लोग से
बातचीत करने को मलेगा। ना ते पर हमारे साथ एक त मल जोड़ा बैठा। हमारी ही तरह
उनक भी अभी अभी ही शाद ई थी और वे हनीमून के लए आये थे। उनसे बात करते
ए पता चला क दोन ही बंगलौर म काम करते ह! लड़का लड़क दोन क उ प ीस से
स ाईस साल रही होगी। खैर, हमने अपने फ़ोन नंबर का आदान दान कया और मने
श ाचार दखाते ए उन दोन को अपने घर आने का योता दया। ना ता कर के हम
होटल के रसे शन पर चले गए और उनसे लान के बारे म पूछा।

वहां पर रसे श न ट ने बताया क ब त से लोग आज यही लान कर रहे ह.. उसने हमको
काला-प र बीच जाने को कहा.. एक तो वहां ब त भीड़ भी नह रहेगी और सरा वह
रसोट से आरामदायक री पर था। आई डया अ ा था। फर मेरे मन म एक ख़याल
आया – मने रसे श न ट से पूछा क दो साइ कल का इ तेजाम हो सकता है? य न कुछ
साइ क लग क जाय – वैसे भी इतने दन से कसी भी तरह का ायाम नह आ था..
बस आराम! खाओ, पयो, सोवो, और सहवास करो! ऐसे तो कुछ ही दन म तो मल हो
जायगे हम दोन ।

रसे श न ट ने कहा क है और कुछ ही दे र म हमारे सामने दो साइ कल (एक लेडीज और


एक जट् स) मौजूद थ । ब त ब ढ़या! या को पूछा क उसको साइ कल चलाना आता है?
उसने बताया क आता है.. उसने छु प छु पा कर सीखी है। भला ऐसा य ? पूछने पर या
ने कहा क पहले तो माँ, और फर पापा दोन ही उसको मना करते थे। माँ कहती थ क
लड़ कय क साइ कल नह चलानी चा हए... उससे ‘वहाँ’ पर चोट लग जाती है। कैसी
कैसी सोच! न जाने य हम लोग अपनी ही ब य को जाने-अनजाने ही, द कयानूसी
पाबं दय म बाँध दे ते ह!

खैर, साइ कल चलाने और चलाना सीखने का मेरा खुद का भी ढे र सारा आनंददायक


अनुभव रहा है। जब म छोटा था, उस समय मेरठ म वैसे भी साइ कल से कूल जाने का
रवाज था। कूल ही या, लोग तो काम पर भी साइ कल चलाते ए जाते थे उस समय
तक! लड़का हो या लड़क ... यादातर ब े साइ कल से ही कूल जाते थे। पांचव म था,
और उस समय मने साइ कल चलाना सीखी।

शु शु म मोह ले के कई सारे मुंहबोले भइया और द द मुझे साइ कल चलाना सखाने


लगे - कैसे पैडल पर पैर रखकर कची चलते है... कैसे सीट पर बैठते है... कैसे साइ कल
का हडल सीधा रखते ह... इ या द इ या द! शु शु म कोई न कोई पीछे से कै रयर पकड़
कर गाइड करता रहता... साई कल चलाते समय यह व ास रहता क अगर बैलस
बगड़ेगा तो कोई न कोई मुझे गरने से बचा ही लेगा। ऐसे म न जाने कब बड़े आराम से
अपने मोह ले मे साइ कल चलाना सीख लया... पता ही नह चला।

एक वह दन था और एक आज! न जाने कतने बरस के बाद आज साइ कल चलाने का


मौका मलेगा! कभी कभी कतनी छोट छोट बात भी कतने मज़ेदार हो जाती ह! मने
हाफ-पै ट् स और ट -शट पहनी, च पल पहनी और एक बैग रखा.. जसम फ़ोन, सन- न
लोशन, कैमरा, कताब, मेरा आई-पोड, पानी क बोतल, चादर और खाने का सामान था।
या ने हलके आसमानी रंग का घुटने तक ल बा का तान जैसा पहना आ था और उसके
अ दर नारंगी रंग क ा और च ी पहनी ई थी.. या बला क खूबसूरत लग रही थी!
बाल को उसने पोनीटे ल म बंद लया था – उसक मुखाकृ त और प लाव य अपने पूरे
शबाब पर था।

कोई पं ह बीस मनट क साइ क लग थी.. तो मने सोचा क र ते म इसको चुटकुले सुनाते
चलूँ...

हरयाणवी जाट का ब ा साइ कल चलाते-चलाते एक लड़क से टकरा गया। लड़क


बोली: य बे! घंट नह मार सकता या? जाट का ब ा कहता है: री छोरी, बावली है के?
पूरी साइ कल मार द इब घंट के अलग ते मा ं के?
या: “हा हा! ये तो ब त मज़ेदार जोक था! .... आप तो सुधर गए!”

म: “सुधर गया मतलब? अरे म बगड़ा ही कब था?”

या: “आपके ‘वो’ वाले जो स क केटे गरी म तो नह आता यह!”

म: “अ ा! तो आपको ‘वो’ जोक सुनना है? तो ये लो...

या: “नह नह बाबा! आप रहने ही द जये!”

म: “अरे आपक फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शाद के फेरे लेने के बाद लड़क
ने झुक कर पं डत जी के पैर छु ए और कहा "पं डत जी कोई ान क बात बता द जए।"
पं डत जी ने उ र दया "बेट , ा अव य पहना करो.. य क जब तुम झुकती हो तो ान
और यान, दोन ही भंग हो जाते ह।“”

“हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!”

ऐसे ही हंसी मज़ाक करते ए कुछ दे र बाद हम दोन काला प र बीच पर प ँच जाते ह।
वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. ले कन सभी अपने अपने
आनंद म ल त थे।

एक साफ़ सुथरा (वैसे तो सारे का सारा बीच ही साफ़ सुथरा था) ान दे ख कर अपना
च र बछाया और बैग रख कर म कैमरा सेट करने लगा। उसके बाद या क ढे र सारी
त वीरे उतार .. म उसको सफ ा-पट ज म कुछ पोज़ बनाने को बोला, तो वह लगभग
तुरंत ही मान गई। कसी मॉडल क भां त सुनहरी रेत और फरोज़ी पानी क पृ भू म म
मने उसक कई सु दर त वीरे उतारी। उसके बाद मने भी सफ अपनी अंडर वयर म या
के साथ कुछ युगल त वीरे एक और पयटक से कह कर उतरवाई।

यह सब करते करते कोई एक घंटा हो गया हमको बीच पर रहते ए.. बादल कुछ कुछ
हटने लगे थे, इस लए मने या को कहा क म उसके शरीर पर सन न लोशन लगा दे ता
.ँ . नह तो वो झुलस कर काली हो जायेगी। मने या को पानी क एक बोतल पकड़ाई
और वह च र पर आ कर लेट गई। सूरज इस समय तक ऊ व हो गया था। उसम त पश तो
थी, ले कन फर भी, समु हवा, और लहर का गजन ब त ही सुखकारी तीत हो रहे थे।
हम दोन चुप-चाप इस अनुभव का आनंद लेते रहे, और कुछ ही दे र म मने या और
अपने के पूरे शरीर पर सन न लगा लया।

कुछ दे र ऐसे ही लेटे लेटे या बोली, “आप ग़ज़ल पसंद करते ह?”

“ग़ज़ल!? हा हा! हाँ... जब भी कभी ब त ड े ड होता ँ तब!”

“ ड े ड? ऐसी सु दर चीज़ आप ड े ड होने पर पसंद करते ह?”

“सु दर? अरे, वो कैसे?”

“अ ा, आप बताइए, ग़ज़ल का मतलब या है?”

“ग़ज़ल का मतलब? म... हाँ! वो जो ग़मगीन आवाज़ म धीरे धीरे गाया जाय?”

“ म अ ा! तो आप जगजीत सह वाली ग़ज़ल क बात कर रहे ह? फर तो भई शाल


भी ओढ़ ही ली जाय!”

हम दोन इस बात पर खूब दे र तक हँसे... और फर या ने आगे कहना शु कया,

“एक ब त बड़े आदमी ए थे कभी... रघुप त सहाय साहब! जनको फराक गोरखपुरी भी
कहा जाता है! खैर, उ ह ने ग़ज़ल को ऐसे समझाया है – मानो कोई शकारी जंगल म कु
के साथ हरन का पीछा करे, और हरन भागते-भागते कसी झाडी म फंस जाए और वहां
से नकल नह पाए, तो वह डर के मारे एक दद भरी आवाज़ नकालता है। तो उसी क ण
कातर आवाज़ को ग़ज़ल कहते ह। सम झये क ववशता और क णा ही ग़ज़ल का आदश
ह।“

“ह म... इंटरे टग! कौन थे ये बड़े मयां फ़राक?”


“उनक वा ल फकेशन सुनना चाहते ह आप? मे रटो े टक लोगो म यही कमी है! अपने
सामने कसी को भी नह मानते! अ ा.. तो रघुप त सहाय जी अं ेज के ज़माने म आई
सी एस (इं डयन स वल स वसेज) थे, ले कन वतं ता क लड़ाई म महा मा गाँधी के साथ
हो लए। उनको बाद म प भूषण का स मान भी मला है। समझे मेरे नासमझ साजन?”

“सॉरी बाबा! ले कन वाकई जो आप बता रही ह ब त ही रोचक है! आपको ब त मालूम है


इसके बारे म! और बताइए!”

“ओके! ग़ज़ल का असल मायने है ‘औरत से बात’! अब औरत से आदमी लोग या ही


बात करते ह? बस उनक बढाई म कसीदे गढ़ते ह! शु शु म ग़ज़ल ऐसी ही लखते थे...

‘नाजक उसके लब क या क हये, पंखडी एक गुलाब क सी ह।‘”

“ कस गधे ने लखी है यह! आपक तो दो-दो गुलाब क पंखु ड़याँ ह!”

“हा हा हा! वेरी फनी! इसी लए पुराने सी रयस शायर ग़ज़ल लखना पसंद नह करते थे।
इसको अ ील या बे द शायरी कहते थे। ले कन जैसे जैसे व आगे बढ़ा, और इस पर
और काम आ, जीवन के हर पहलू पर ग़ज़ल लखी गयी।“

“अ ा – या आपको मालूम है क उ दरअसल भारतीय भाषा है?”

आज तो मेरा ान वधन होने का दन था! म इस ज़रा सी लड़क के ान को दे ख कर


व मत हो रहा था! या या मालूम है इसको?

“न.. ह ..! उसके बारे म भी बताइए?”

“ बलकुल! जब मु लम लोग भारत आये, तब यहाँ – ख़ास कर उ र भारत म खड़ी-बोली


या ाकृत भाषा बोलते थे.. और वो लोग फ़ारसी या अरबी! साथ म मलने से एक नई ही
भाषा बनने लगी, जसको ह दवी या फर दे हलवी कहने लगे। और धीरे धीरे उसी को आम
भाषा म योग करने लगे। उस समय तक यह भाषा फ़ारसी म ही लखी जाती थी – दाय
से बाएँ! ले कन जब इसको दे वनागरी म लखा जाने लगा, तो इसको हद कहने लगे।
ले कन इसम भी खूब सारी पॉ ल ट स ई – उस शु क हद से सं कृत ब ल श द
हटाए गए तो वह भाषा उ बनती चली गयी, और जब फारसी और अरबी श द हटाए गए
तो आज क हद भाषा बनती चली गयी। ले कन दे ख तो कोई ल बा चौड़ा अंतर नह है।“

“ या बात है! ले कन आप ग़ज़ल क बात कर रही थी?”

“हाँ! तो उ क बात मने इस लए छे ड़ी य क ग़ज़ल सुनने सुनाने का असली मज़ा तो बस


उ म ही ह!”

“आप लखती है?”

“नह ! पापा लखते ह!”

“ या सच? वाह! या बात है!! तो अब समझ आया आपका शौक कहाँ से आया!” या
मु कुराई!

“आप या करती ह? बस पापा से सुनती ह?”

“हाँ!”

“ले कन आपको गाना भी तो इतना अ ा आता है! कुछ सुनाइये न?”

“ फर कभी?”

“नह ! आपने इतना इंटरे ट जगा दया, अब तो आपको कुछ सुनाना ही पड़ेगा!”

“ म! ओके.. यह मेरी एक पसंद दा ग़ज़ल है ... मीर तक मीर ने लखी थी – कोई दो-
ढाई सौ साल पहले! आप तो तब पैदा भी नह ए ह गे! हा हा हा हा!”

या को ऐसे खुल कर बात करते और हँसते दे ख कर, और सुन कर मुझे ब त मज़ा आ


रहा था!

“हा हा! न बाबा! उस समय नह पैदा आ था! बूढ़ा ,ँ ले कन उतना भी नह ...”


“आई लव यू! एक फ म आई थी – बाज़ार? याद है? आप तब शायद पैदा हो चुके ह गे?
उस फ म म इस ग़ज़ल को लता जी ने ब त यार से गाया है!”

“बाज़ार? हाँ सुना तो है! एक मनट – आप भी कुछ दे र पहले कह रही थ क ग़ज़ल


औरत क बढाई के लए होती है.. और अभी कह रही ह क लता जी ने गाया?”

“अरे बाबा! ले कन लखी तो मीर ने थी न?”

“हाँ! ओह! याद आया! ओके ओके ... लीज कं ट यू!”

“तो जनाब! पेशे- ख़दमत है, यह ग़ज़ल...” कह कर या ने गला खंखार कर साफ़ कया
और फर अपनी मधुर आवाज़ म गाना शु कया,

“ दखाई दए यूं, के बेखुद कया... दखाई दए यूं, के बेखुद कया,


हमे आप से भी जुदा कर चले... दखाई दए यूं....”

या के गाने का तो म उस रात से ही द वाना !ँ ले कन इस ग़ज़ल म एक ख़ास बात थी –


वाकई, क णा और ेम से भीगी आवाज़, और साथ म उसक मु कुराती आँख! म इस
रसीली क वता ओह! माफ़ क रए, ग़ज़ल म डू बने लगा!

या गाते गाते खुद भी इतनी भाव- वभोर हो गयी, क उसक आँख से आंसू बहने लगे ...
उसक आवाज़ शनैः शनैः भराने लगी, ले कन फर भी मठास म कोई कमी नह आई...
मने उसके कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ समेट लया।

ग़ज़ल समा त हो गयी थी, ले कन मेरे दल म एक खालीपन सा छोड़ कर चली गयी।

“आई लव यू!” या बोली – ले कन इतनी श त के साथ क यह तीन श द, तीन तीर के


जैसे मेरे दल म घुस गए... “आई लव यू सो मच!” उसक आवाज़ म रोने का आभास हो
रहा था, “मुझे आपके साथ रहना है... हमेशा! आपके बना तो म मर ही जाऊंगी!”

या ने मेरे मुँह क बात छ न ली। उसक बात सुन कर मेरी खुद क आँख से आंसू क बूँद
टपक पड़ी। हाँ! मद को दद भी होता है, और मद रोते भी ह.. यार कुछ भी कर सकता है।
म कुछ बोल नह पाया – कुछ बोलता तो बस रो पड़ता। मने या को जोर से अपने म
भ च लया। जो उसका डर था, वही मेरा भी डर था। इतनी उ नकल जाने के बाद, मेरे
साथ पहली बार कुछ ठ क हो रहा था।

आप कहगे क ‘अरे भई, अ पढाई लखाई ई, अ नौकरी है, अ ा कमा रहे हो –


घर है, गाड़ी है, बक बैलस है! फर भी कैसे गधे जैसी बात कर रहे हो! यह सब अ बाते
नह ई?’

तो म क ँगा क ‘ बलकुल! यह सब अ बाते ह! ले कन यह सब म इस लए कर पाया


क मेरे मन म एक तशोध क भावना थी! जनके कारण मेरा बा यकाल उजड़ गया,
उनको नीचा दखाना मेरे जीवन का एकमा उ े य बन गया। भोगवाद प रमाण और
मापदं डो पर ही मेरा जीवन टका आ था! एक अजीब तरह का च ूह या क हये भंवर!
जसम म खुद ही घुस गया, और न जाने कतने अ दर तक चला गया था। ले कन या ने
आते ही मुझे ऐसा अनोखा एहसास कराया क मानो पल भर म उस भंवर से बाहर नकल
आया।‘

‘अब समझ आया इस खालीपन का रह य! म अब तक बना वजह का बोझ, जो अपने


सर पर लए फर रहा था, वह न जाने कहाँ मेरे सर से उतर गया था। मुझे या और उसके
प रवार के प म एक अपना प रवार मल गया था, जसको म कसी भी क मत पर सहेज
कर रखना चाहता था।‘

“आई ऍम सॉरी जानू! म आपको लाना नह चाहती थी। ... म भी कतनी गधी ँ .. इतने
अ े मूड का स यानाश कर दया।“

“नह जानू! सॉरी मत बोलो! और ऐसा कुछ भी नह है। बस, आपके आने से यह समझ
आ गया क म या मस कर रहा था मेरी लाइफ म! यू आर वेरी े शयस फॉर मी! और
मुझे भी आपके ही साथ रहना है।“

कह कर मने या को और जोर से अपने म बका लया। मुझे मेरे जीवन म साफ़ उजाला
दख रहा था।
हम दोन काला प र बीच पर कम से कम छः घंटे तो रहे ही ह गे.. उस समय तो पता नह
चला, ले कन वापस रसोट आने पर जब आँख थोड़ी अ य त , तो साफ़ दख रहा था
क या और म, सूरज क तपन से पूरी तरह से गहरे रंग के हो गए। वैसे भी भारतीय
लोग क वचा धूप को ब ढ़या सोखती है, लहाजा हम दोन काले कलूटे बन गए थे।
ले कन एक अपवाद था... या ने टू -पीस ब कनी पहनी ई थी, इस लए जो ह सा (दोन
तन, जघन े और नत बो का ऊपरी ह सा) ढका आ था, वह अभी भी अपने मूल,
हलके रंग का था। इसको ब कनी टे न कहते ह। या ने कपड़े उतारे तो यह बात समझ आ
गई। ले कन शायद या ने दे खा न हो, इस लए उसने कसी भी तरह का व मय नह
दखाया। खैर नहा-धोकर हमने पकौड़े और चाय मंगाया, और खा-पीकर दोपहर म एक
छोट सी न द सो गए।

जब म उठा तो दे खा क सामने या कमर पर अपने हाथ टका कर, और कू हा एक तरफ


नकाल कर बड़ी अदा से खड़ी ई थी। उसने कोका-कोला रंग का काफ पारदशक नाइट
( जसको टे डी भी कहते ह) पहना आ था। कमर से बस कुछ अंगुल ही नीचे तक प ंचेगा
ल बाई म। तन के ऊपर से जाने वाले ै प ब त पतले थे। तन पर बस यही कपड़ा था,
इस लए उसके अ दर से चमकदार तना साफ़ दख रहे थे... और ना भ भी। उसने टे डी
के नीचे च ी पहनी ई थी... एक ब त ही कामुक ेस!

“ओहो! इस अ बग गल नाउ? कम हयर!”

या मु कुराते ए मेरे पास आई।

“ यू ेस?” मने या क ेस को छू ते ए कहा।

“यस! ीट यू! ओनली फॉर यू!”

“ म... आई लाइक दस वन!” और फर हँसते ए मने कहा, “... एंड आई सी दै ट यू


आर वेअ रग सम ीट पट ज अंडरनीथ इट!”

“यस! वांट टू सी इट?”

मने सर हला कर हामी भरी।


या ने हँसते ए टे डी का नचला कनारा पकड़ कर ऊपर उठा दया। उसक गहरे कोका
कोला रंग क च ी साफ़ दखने लगी। उसक चमक और बनावट दे ख कर मुझे लगा क
शायद स क क बनी होगी। स क! एक अ यंत अ तरंग कपड़ा! पु ष, स क पहनी ई
य को छू ने क प रक पना करते रहते ह। एक तरीके का सहवास- सबल! लेबॉय जैसी
मगज़ीन म स क पहनी ई लड़ कय को दे ख कर अन गनत लडको और आद मय म
ह त-मैथुन कया होगा! वही स क! वही प रक पना!

“ओह! दे आर रयली ीट पट ज!” मेरी आँख म एक इ ा जाग गई, “ वल यू माइंड,


अगर म इसको छू कर दे ख लू?ं ”

“ओके!” कह कर या ने अपनी ेस को कुछ और ऊपर उठा दया.. च ी का पूरा ह सा


दखने लगा। मने उं गली से च ी के ऊपर से ही या क यो न का आगे वाला ह सा छु आ,
और सरे हाथ से उसके नत बो के ऊपर से।

“फ स गुड?” या ने पूछा।

“ओह! दे फ ल अमे जग! सो नाइस! सो मूद.. सो कामुक!” मने हँसते ए पूछा, “डू दे
मेक यू फ ल कामुक, हनी?”

“कामुक? ओह यस! दे डू !”

“आई ऍम योर! इट इस सो मूद! ह म!” अपनी उं गली को या के पैर के बीच म


दबाते ए मने कहा, “ज़रा अपने पैर फैलाइये.. दे खूं तो ‘वहां’ पर छू ने पर यह कैसी लगती
ह!”

“ओके!” कहते ए या ने अपने पैर थोड़ा और खोले। और म बढाई करते ए उं गली से


यो न के ऊपर से उसक च ी का मखमली एहसास महसूस करने लगा।

“ड ट दे फ ल सो नाइस?” या ने अपनी आवाज़ थोड़ी कामुक बना कर पूछा।

“दे योर डू ! नॉट ओ ली नाइस, बट आ सो अमे जग!” कहते ए मने या क यो न क


झर के ऊपर से अपनी उं गली रगड़ कर फरानी शु क । “आई रयली लाइक हाउ योर
पट ज फ ल हयर, डा लग!”

या खल खला कर हंसने लगी.. और साथ ही साथ मेरी उं गली क हरकत को भी दे खती


रही। मने कुछ दे र आ ह ता आ ह ता सहलाने के बाद अपनी उं गली क ल बाई को उसक
यो न क पूरी दरार के अ दर फरानी शु कर द ।

“आ ह! आई रयली लाइक हाउ इट फ स हेन आई रब योर पट ज हयर, हनी! दस


इस वेयर दे फ ल बे ट टू मी। तुझे अ ा लगता है?“

“हा हा... हाँ! उ म!!” कहते ए उसने अपने नतंब मटकाए, जससे मेरी उं गली ठ क से
उसक दरार म फट हो जाय।

“आई कैन नॉट टॉप फ लग यू! इस दै ट ओके?”

या हंसी।

“यू कैन फ ल अस मच अस यू वांट!”

“थ स डअर!” कह कर मने कुछ और ढ़ता से यो न के ऊपर से दबाना और सहलाना


आर कर दया।

और फर, “ वल यू लेट मी सी हाउ दस थग अंडर योर पट ज फ ल?” कह कर बना


कसी उ र का इंतज़ार कए, मने या क च ी के अ दर हाथ डाल कर, उसक यो न क
दरार क पूरी ल बाई पर अपनी उं गली सटा कर थोड़ा बल लगाया। यो न के दोन ह ठ
खुल गए और उनके बीच मेरी उं गली ा पत हो गई।

“आह! दस फ स सो वाम... एंड नाइस! डस इट फ ल गुड टू यू टू ?” मने पूछा।

या खल खला कर हंस पड़ी, “यू आर अ नॉट बॉय!”

“आई ऍम योर दै ट इट फ स गुड एंड से सी बोथ..! आई बेट इट डस!”


“से सी? हाउ?” या भी इस खेल म शा मल हो गई थी।

“ हयर! लेट मी चेक..!” कह कर मने अपनी उं गली उसक यो न के अ दर व कर द ।

इतनी दे र तक सहलाने रगड़ने के बाद अंततः उसक यो न से रस नकलने ही लग गया था।


मने अपनी गीली उं गली उसक यो न से बाहर नकाल कर उसको दखाया, “सी! हाउ वेट
दस इस? डू यू नो हाट इट मी स?”
“ हाट?” या ने अन भ ता दशाते ए पूरे भोलेपन से पूछा।

“इट मी स दै ट यू फ ल से सी इनसाइड, यू नॉट गल!” कह कर मने या को नतंब से


पकड़ कर अपनी तरफ ख चा और उसक कमर के गद अपनी बाह लपेट ल । या ने भी
खड़े खड़े मेरे गदन के गद अपनी बाह लपेट ल ।

“आर यू ह वग फन?” मने अपना हाथ वापस या क नम और गम गहराई म डालते ए


पूछा।

“यस! हा हा! यू आर फनी!” मेरी कसी हरकत से उसको गुदगुद ई होगी..

मने कुछ दे र सहलाने के बाद उसक च ी को दोन तरफ से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे क
तरफ ख चना शु कया, “आई वल टे क द स यूट पट ज... अदरवाइज, दे वल गेट वेट!
... इस दै ट ओके?”

“ओके” या के ओके कहते कहते उसक च ी उतर चुक थी।

मने या को अपनी जांघो के आ खरी सरे पर बैठाया जससे उसका यो न न र ण कया


जा सके। उस तरह बैठने से वैसे ही उसक जांघे फ़ैल गई थ , लहाजा उसका यो न मुख
कुछ खुल सा गया और उससे रसते रस के कारण चमक भी रहा था।

“नाउ लुक अट दै ट!” मने शंसा करते ए कहा, “सच अ यूट पुसी यू हैव!”

“पुसी? आप इसको ब ली कह रहे ह?” या इस श द के नए योग को समझ नह


सक ।
“पुसी मी स यो न, जानेमन! तेरी यो न ब त यूट है!” मने ब त ही नंगई से यह बात फर
से दोहराई। एक बात तो है, अं ेजी म ‘डट -टॉक’ करना ब त मज़ेदार होता है... न जाने
य हद म वही बात बोलने पर अभ सा लगता है! खैर!

“दे खो न! कैसे हाईलाइट हो रही है...” दन भर धुप सकने के कारण च ी से ढं का आ


ह सा अभी भी गोरा था, और ऊपर नीचे का बाक ह सा साँवला हो गया था.. इस लए
ऐसा लग रहा था क जैसे अलग से उसक यो न पर लाइट डाली जा रही हो! मने अपने
दोन अंगूठे से उसके ह ठ को कुछ और फैलाया और अपनी उं गली को अ दर के भाग पर
फराया.. और फर अपनी उं गली को चाट लया।

“ म... सो वैरी टे ट !”

“ टॉप ट सग मी!” या कुनमुनाई।

“यू ड ट बलीव मी? हयर यू आ सो टे ट योर ओन जूसेस...” कह कर मने उसके र ते


ए रस का एक और अंश अपनी उं गली पर लगाया और उसके ह ठ के सामने रख दया,
“ड ट बी शाई! लक इट!”

या ने मुंह नह खोला तो मने ही उसके दोन गालो को दबा कर उसके ह ठ खोल दए


और अपनी उं गली उसके मुंह म डाल द । मरता या न करता! या ने पहले तो बेमन से,
और फर उ सुक वे ा से मेरी उं गली चाट कर साफ़ कर द ।

“ य ? मज़ा आया? है न वा द तु हारा ‘यो न-रस’?” मेरे इस तरह कहने से या के


गाल शम से सुख हो गए।

“तुम बोलो या नह .. है तो वा द !” कह कर मने वही उं गली अपने मुंह म डाल कर कुछ


दे र चूसा।

इं टमेसी / अंतरंगता / नजता.. इन सबके मायने हमारे लए ब त बदल गए थे, इन कुछ ही


दन म!
म बना कुछ पहने ही सो गया था। और इस समय मेरे लग का बुरा हाल था, और
दख भी रहा था। वह इस समय एकदम स त त न क त म था। या ने अब तक
मेरी उ ेजना महसूस कर ली होगी, इस लए उसका हाथ मेरे लग क पूरी ल बाई पर चल-
फर और दौड़ रहा था। कभी वह यह करती, तो कभी मेरे वृषण के साथ खेलती।

“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डअर!” मने वापस अपनी उं गली को उसक यो न पर फराया,
“... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”

कह कर मने अपनी म यमा उं गली को उसक यो न के अ दर तक ठे ल दया और एक


प ग ए न से उसको अ दर बाहर करने लगा... इसम एक ख़ास बात यह थी क एक
तरफ तो मेरी म यमा उसक यो न के अ दर बाहर हो रही थी, वह सरी तरफ बाक
उं ग लयाँ रह रह कर उसके भगनासे को सहला रही थ ।

दोहरी मार! या क साँसे इसके कारण भारी हो गई, और क क कर चलने लग ।


उसका चेहरा उ ेजना से तमतमा गया। कभी वह मुंह खोल कर सांस भारती, तो कभी
अपने सूखे ह ठ को जीभ से चाटती.. उसका सीना भारी भारी साँस के कारण ऊपर नीचे
हो रहा था।

“कैसा लग रहा है, जानू?” मने पूछा।

“आह! सोओओ गुड! उ मम...!” वह बस इतना ही कह पाई।

“ म... सो द ल टल गल इस ोन नाउ! लुक अट हर पुसी... आल जूसी एंड हॉट!” म रह


रह कर अपनी उं गली क ग त कभी धीमी, तो कभी तेज़ कर दे ता। या कभी स सयती
तो कभी र रयाती। कुछ ही दे र म र त- न प के चरम पर प ँच कर उसका शरीर कांपने
लगा। उसक बाह मेरी गदन पर कस ग और उसका माथा मेरे माथे पर आकर टक गया।
इस पूरे करण म पहली बार मने या के ह ठ चूम!े

“मज़ा आया हनी?”

या उ माद के आकाश म तैरते ए मु कुराई।


“दे खो न.. तुमने मेरी या हालत कर द है! कतना कड़ा हो गया है मेरा लग!” कह कर
मने या का एक हाथ अपने लग पर लाकर रख दया। या क उं ग लयाँ वतः ही उस
पर लपट ग । उधर म या के टे डी के ऊपर से ही उसके तना को बारी बारी से चूमने
और चूसने लगा। फर दमाग म एक आई डया आया।

या को पकड़े पकड़े ही म ब तर पर लेट गया और या को अपने लग पर कुछ इस


तरह से ा पत कया क उसक यो न मेरे लग क पूरी ल बाई पर सफ चले, ले कन
उसको अ दर न ले। या भी इस इशारे को समझ गई, उसने अपनी ेस काफ ऊपर उठा
द – अब उसके तन भी दख रहे थे, और पूरे उ साह के साथ मेरे लग को अपनी यो न-
रस से भगाते ए सहवास करने लगी। ब त ही अलग अनुभव था यह.. लग को यो न क
कोमलता और गरमी तो मल ही रही थी, साथ ही साथ कमरे क ठं डी हवा भी। यो न का
कसाव और पकड़ नदारद थी, ले कन दो शरीर के बीच म पसने का आनंद भी मौजूद था।

या के लए भी उ मादक अनुभव था – इस कार के मैथुन से उसके जननांग के सभी


कोमल, संवेदनशील और उ ेजक भाग एक साथ े रत हो रहे थे। साथ ही साथ, मेरे ऊपर
आकर मैथुन या को नयं त करना उसके लए भी एक अलग अनुभव रहा होगा...
पछली बार तो वह शमा रही थी, ले कन इस बार वह एक अ भलाषा, एक योजन के
साथ मैथुन कर रही थी। यह या अगले कोई पांच-छः मनट तो चली ही होगी.. मेरे अ दर
का लावा बस नकलने को ाकुल हो गया। मेरा शरीर अब कांपने लग गया था।

“जानू.. नकलने वाला है!”

मेरे बस इतना ही बोलने क दे र थी क या ने अपनी बाह मेरी गदन पर कस ल और मेरे


ह ठ को मुँह म भर कर जोर से चूमने चूसने लगी। उसके ऐसा करते ही एक व ोट के
साथ वीय का पहला खेप ख लत हो गया और फर उसके बाद ही ताबड़ तोड़ चार पांच
बड़ी गो लकाएं और नकल । या ने इस या के दौरान अपने कू हे चलाने जारी रखा।
और मेरे खलन के कुछ ही दे र बाद या का शरीर भी कुछ अकड़ा और एक बार फर
झटके खाते ए वो भी शांत पड़ने लगी और मुझ पर नढाल होकर गर गई। मेरा शरीर
अभी भी उ ेजना म कांप रहा था.. मने या को अपने म जोर से भ च लया – कभी
उसके ह ठ चूमता, तो कभी गाल, तो कभी माथा! मेरी हरकत पर मीठ मीठ सस कयाँ
नकल जात । इस अनोखे सहवास क संतु उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
जब हमारी उ ेजना का वार कुछ थमा, तो मने कहा, “दे खो न.. मने कहा था न क
साँवली लड़ कयाँ सहवास म ब त तेज़ होती ह... और... गोरी लड़ कय को सखाना
पड़ता है! याद है?”

या को पहले कुछ समझ नह आया, ले कन फर मेरा इशारा समझ कर मु कुरा द ।


उसके गाल सेब के जैसे लाल हो गए।

सहवास क नवृ के बाद हम दोन ने ज द ज द अपनी सफाई करी और फर कपड़े


बदल कर अपनी साइ कल उठा कर प के प म दशा क तरफ चल दए.. जससे
सूया त के दशन हो सक। या ने मुझे बताया था क सूया त ऐसा सु दर हो सकता है,
उसको मालूम ही नह था। पहाड़ पर या सूय दय और या सूया त! सब एक जैसा ही
दखता है। हम दोन ज द ही एक साफ़ सुथरे नजन बीच पर प ँच गए.. ऐसा कोई
नजन भी नह था.. कोई पांच छः जोड़े वही बैठे ए थे, सूया त के इंतज़ार म।

या और म बाह म बाह डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।

“जानू, म आपसे एक बात क ं?”

“हाँ.. पूछो मत, बस कह डालो” मने रोमां टक अंदाज़ म कहा।

“म आपके साथ ही रहना चाहती .ँ ... हनीमून के बाद भी।“

“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग ह बड-वाइफ ह.. साथ ही तो
रहगे?”

“नह वो बात नह ... ए जा स के लए पढना भी तो है। इतने दन से कॉलेज नह गई .ँ .


और जो भी कुछ पढ़ा लखा था, वो सब गायब है! हा हा!”

“हा हा! अ ा, कब ह ए जा स?”

“माच – अ ैल के महीने म ही ह गे.. ले कन आप कुछ न कुछ कर के मुझे अपने साथ


र खए न, लीज!”
“अरे! यह भी कोई कहने वाली बात है? ए जाम तो वही जा कर दे ने ह गे... ले कन उसके
पहले के लए एक काम तो कर ही सकते ह.. आपके सपल से पूछ के ‘होम- कूल’ क
अनुम त ले सकते ह.. वो अलाऊ कर द, तो फर बस ए जाम दे ने के लए आपको माच म
वापस जाना होगा... उतना तो ठ क है न? उसके बाद फर से यहाँ? ओके?”

“हाँ... ठ क तो है... ले कन हो जाएगा न?”

“अरे य नह ? मुझसे यादा पढ़े लखे लोग ह या वहां? म क वस कर लूँगा आपके


सपल को! और जहाँ तक पढाई क बात है, हमारे पड़ोसी ब त ही वा लफाइड ह..
उनसे कह कर दन म आपक पढाई का इंतज़ाम कर ं गा... कुछ कोस तो म ही पढ़ा
सकता .ँ . मुझे नह लगता कोई ॉ लम होगी। या पता आप टापर हो जाएँ! हा हा!”

या मु कुराई।

“वैसे आप आगे या करना चाहती ह? मेरा मतलब कै रयर के बारे म कुछ सोचा है? आप
कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, क आप कुछ करना चाहती ह.. कुछ बनना चाहती
ह?”

“करना तो चाहती , ले कन या क ं गी.. कुछ मालूम नह ..!”

“अ ा, म आपसे कुछ सवाल पूछूंगा... आप सोच कर उसम जो पसंद है बताइयेगा..


ओके?”

“ओके..”

“खूब पैसे चा हए, क तबा?”

“उ म...” या ने कुछ दे र तक सोचा और फर कहा, “..आप!”

म मु कुराया, “खूब मेहनत या फर आराम?”

“मेहनत.. ले कन आपका साथ चा हए।“


“ओके! नौकर, या अपना खुद का बॉस?”

“अपना खुद का..”

“नौकरी या बजनेस...”

“नौकरी या बजनेस...”

“पता नह ...”

“ह म.. मेरे मन म यह बकवास करते करते एक याल आया। यूँ न आप अपना खुद का
बजनेस शु करो? साथ म ेजुएशन क पढाई करते रहना? अगर दमाग म ब ढ़या
आई डया हो, तो बजनेस ज़ र करना चा हए। पैसे क जो ज़ रत होगी, वो म क ं गा...
मेरे ब त से दो त भी है, अगर वो आपके बजनेस आई डया से सहमत ह , तो वो भी पैसे
लगा सकते ह। बगलोर वैसे भी उ मय का शहर है! ोफेशनल हे प मल जाएगी।
सोचना... कोई ज द नह है! ओके?”

“बाप रे! आप मुझ पर इतना भरोसा करते ह?”

“दे खो, जानू, भरोसा तो मुझे आप पर है.. ले कन जब तक आई डया सॉ लड नह होगा, म


पैसे नह लगाऊँगा!” मने मु कुराते ए कहा।

“ले कन... मुझे तो अभी तक कुछ मालूम ही नह ! या करना है, या नह ..”

“तो या आ.. अभी कोई ज द नह है.. अपना टाइम ली जये.. जब समझ आय तभी
कुछ करगे! ओके?”

मने या के बाल म अपने हाथ से सहलाया.. और फर आगे कहा, “दे खो, यह बात सच
है क कम उ म शाद करने से ब त सी सम याएँ खड़ी हो जाती है। ले कन म आपसे
आज कुछ वायदे करता ँ। पहला तो यह क आपको अपने त व के वकास के लए
पूरा समय, और सहयोग ं गा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसम
म पूरी मदद क ं गा। आप पर कसी भी तरह क पा रवा रक ज मे*दारी तब तक नह
आने ं गा, जब तक आप उसके लए पूरी तरह से तैयार न ह – मतलब पढाई लखाई पूरी
करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा यान कै रयर पर
लगाइए। और ब ा तभी जब आप तैयार ह ।“

अब तक आसमान म जीवंत और चटक गुलाबी, लाल, नारंगी और पीले रंग क छटा छा


गई। सूरज का लाल गोला धीरे धीरे बादल के पीछे से नीचे आ रहा था।

या ने मेरी तरफ उचक कर मेरे ह ठ को चूम लया।

“थक यू!” उसने कहा।

मने उसक आँख म दे खा और फर मु कुराते ए कहा, “नो! थक यू!”

मने उसक आँख म यान से दे खा – आंसू से या क आँख डबडबा ग थ । या


को शश कर रही थी क आंसू न नकाल, ले कन फर भी एक-एक बूँद आँख से नकल
कर उसके गाल पर ढलक ही गई। मने बना कुछ कहे या का हाथ थाम लया... नश द
भाषा म बस यह कहने के लए क म उसके साथ .ँ .. जीवन क कड़वी स ाईयाँ अभी
र थ ... जो इस समय हमारे पास था वह था हम दोन का साथ और यह सु दर सूया त!

“आई लव यू!” कहते ए या का गला भर आया। उसने बड़े य न से अपना गला साफ़
कया और वयं पर नयं ण कया।

“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नह तो कसी न कसी तरह क
चुहलबाजी ज़ र करता।

“आप मेरे कृ ण है! मेरे स ूण पु ष! जब ज़ रत ई तब म


े ी, जब ज़ रत ई तब
सारथी, और जब ज़ रत ई तब सखा! मने सच म कोई ब त पु य के काम कए ह गे,
जसके कारण मुझे आप मले।“

“बाप रे!”

“सच म!”
“आई लव यू!”

“आई लव यू टू !!”

मने या को अपनी बाह के घेरे म कस कर बका लया – जैसे मेरा आ लगन उसके लए
सबसे सुर त ान बन जाय.. हम दोन वैसे ही काफ दे र तक सूया त का अ त् नज़ारा
दे खते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और
उसके साथ ही आसमान म गहरे लाल, काले नीले इ या द रंग उभरने लगे। कई लोग अब
जाने क तैयारी कर रहे थे और जो लोग के ए थे, उनक भी बस पा आकृ त ही दख
रही थी।

“अभी कैसी हो जानू?” मने पूछा।

“म ठ क !ँ ”

“घर बात करना है?”

“मेरा घर तो आप ह!”

“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या अ नी से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल कए दो दन
हो गए शायद?”

“हाँ! मुझे तो यान ही नह रहा! आपके संग तो म सब कुछ भूल गई !ँ ”

“अ बात है... ये लो फ़ोन.. बात कर लो!”

“आप नह करगे?”

“अरे.. कॉल म ही लगा कर आपको दे ं गा.. ओके?”

मने उ राँचल कॉल लगाया। चूँ क फ़ोन तो ह रहर सह जी के ही पास रहता है, इस लए
उनको ही उठाना था।
“ह लो!” मने कहा..

“ह लो अथव.. कैसे ह आप बेटा?”

‘बेटा!’ र ते म तो हम बाप-बेटा ही तो ह!

“जी.. पापा..” मने हच कचाते ए कहा, “हम दोन ठ क ह..”

“ वा य ठ क है आप दोन का? मौसम कैसा है वहाँ?”

“ वा य एकदम ठ क है... मुझे लगा था क ठ े गरम के कारण कह जुकाम न हो जाय,


ले कन ऐसा कुछ नह आ। यहाँ का मौसम तो गरम ही है.. चार ओर समु से घरा है,
इस लए बारह मास ऐसे ही रहता है यहाँ। .. और आप कैसे ह? माता जी कैसी ह?”

“हम सब ठ क ह बेटा.. आप लोगो क ब त याद आती है। बस और या!”

म इसके उ र म या ही बोलता! “ली जये, या से बात कर ली जए..” कह कर मने या


को फ़ोन थमा दया।

लाडली बेट का फ़ोन आते ही वहां पर सब लोग आ ा दत हो गए ह गे – मने सोचा।


या क नजर म :

कैसे सब कुछ इतनी ज द बदल जाता है! ह ता भर पहले ही म माँ पापा को छोड़ कर
कह जाने क सोच भी नह सकती थी.. और आज का दन यह है क उनक याद भी नह
आई! या जा है! सहे लय क बात , कहा नय और फ म म दे खा सुना तो था क यार
ऐसा होता है, यार वैसा होता है.. ले कन, अब समझ म आया क यार कैसा होता है! यार
का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा!

पापा से कुछ दे र बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शु ही क थी क
‘इनका’ हाथ मेरे तन पर आ टका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही नकल पड़ा। उधर से
माँ ने पूछा क या आ.. अब उनको या बताती? म जैसे तैसे उनसे बात करने क
को शश कर रही थी, और उधर मेरे प तदे व मेरे तन से खेल रहे थे – वो बड़े इ मीनान से
मेरे तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से य के चूचक
कड़े होने ही लगते ह। मेरे भी होने लगे। शरीर म जानी पहचानी गुदगुद होने लगी। म
अ यमन क सी होकर बाते कर रही थी, ले कन सारा यान उनके इस खेल पर ही लगा
आ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बाल को सहलाते, तो मेरे तन से खेलते!
अंततः उनका हाथ मेरी पट के अ दर और उनक उं गली मेरी यो न क दरार प ँच गई।
उनके टटोलने से म बेबस होने लग गई.. माँ या कह रही थी और फर कब अ नी फ़ोन
पर आ गई, मुझे कुछ याद नह ! मदहोशी छाने लगी। सच म म अथव क दासी ँ.. अगर
वो उस समय मुझे न न होने को कहते तो म तुरंत हो जाती... बना यह सोचे क वहां पर
और लोग भी उप त थे। इतना तो तय है क म उनक कसी बात का वरोध कर ही नह
सकती!

खैर, ऐसा कुछ नह आ.. अ नी ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मने फ़ोन
इनको दे दया।

“मेरी एंजेल कैसी है?” इ होने ेम और वा स य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो
कहते ह, उनक आँखे भी वही कहती ह। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! स ा
इ सान!

उधर से अ नी ने कुछ बात कही होगी, तो ये मु कुरा रहे थे.. ब त दे र तक मु कुरा कर


सुनने के बाद इ होने कहा, “अरे तो फर हमारे पास आ जाओ! दो से भले तीन! है न?”
फर उधर से अ नी ने कुछ कहा होगा, जसके उ र म इ होने ‘आई लव यू टू ’ कहा, और
बाय कर के फ़ोन काट दया।

“ या बाते हो रही थ जीजा साली म? रोमां टक रोमां टक... ईलू ईलू वाली!” मने ठठोली
करी।

“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे या? हमारी आपस क बात है! हा
हा!” फर कुछ दे र क कर, “.. जानू, य न ए जाम के बाद वहां से सभी लोग यह
बगलोर म रह? अ नी क पढाई भी अ जगह हो जायेगी.. और माँ पापा भी आराम से
रह लगे! या कहती हो?”

“आप को लगता है क माँ पापा आयगे यहाँ?”

“ य ! या ॉ लम है?”

“वो लोग ब त पुराने खयालो वाले ह, जानू! बेट के घर का पानी भी नह पीते!”

“हंय! इसका मतलब वो लोग यहाँ आयगे तो कह और से पानी लाना पड़ेगा?”

“आप भी हमेशा मजाक करते रहते ह! आप ाई कर ली जए.. आ जाते ह तो इससे अ ा


या?” मने कहा, और आगे जोड़ा, “... और अभी आप या कर रहे थे, बदमाश! माँ और
अ नी ने या कहा, कुछ याद नह !”
१४
बीच से मने सीधा मे डकल शॉप का ख लया। या के पूछने पर उसको बताया क
उसके लए सेनेटरी नैप कन लेने जा रहे ह। मुझे यह जान कर घोर आ य आ क उसको
नैप कन के बारे म हाँला क मालूम तो था, ले कन उसका योग या ने कभी नह कया
था। कुछ दे र तक उससे ो र करने के बाद सब कुछ समझ म आ गया। एक तो छोटा
सा क़ बा, और उसम न न म यम वग य और ढ़वाद प रवार! पुराने ढ़वाद वचार,
री त- रवाज और अंध- व ास को मानने के कारण उसक माँ ने भी या को वही सब
सखाया था।

बाद म और पढने पर मुझे समझ आया क यह हालत खली एक या क ही नह है... दे श


क कम से कम स र तशत लड़ कयाँ, और म हलाएं सेनेटरी पैड का इ तेमाल नह
करती ह – या तो खच वहन नह कर सकने के कारण, और या तो अपने ढ़वाद वचार
के कारण! हालत यह है क भारत क अन गनत म हलाएं और लड़ कयाँ आज भी पी रयड
के दौरान गंदे क ड़े का उपयोग करती ह, जसके कारण वे सं मण क चपेट म आ जाती
ह। ामीण इलाक म म हला म सवाइकल कसर क एक ब त ड़ी वजह यौनांग क
साफ-सफाई न होना है।

जहाँ तक या का है, पी रयड् स के दौरान उसके और अ नी के साथ अछू त जैसा


वहार कया जाता है। दोन लड कयां पूजाघर और रसोई से र रहती ह। र - ाव
रोकने के लए र क ड़ का इ तेमाल करती ह, जससे सं मण क आशंका बढ़ जाती
है। इस कारण से हर महीने तीन चार दन पढने भी नह जा पाती। ऐसा नह है क या के
प रवार वाले उसके लए सेनेटरी पैड खरीद नह सकते थे – स ते उ पाद तो मौजूद ही ह।
ले कन पुरानी पर रा को जैसे का तैसा नभाना, और यह सोचना क कान पर जाकर
पैड खरीदने से प रवार क त ा को ध का लगेगा.. यह दोन सबसे बड़े कारण बने – न
खरीदने के।

खैर, यहाँ पर जब हम मे डकल शॉप प ंचे, तो कानदार ने नैप कन के पैकेट को अखबार


म लपेटकर, काली पोली थन बैग म डाल कर दया.. जैसे वह मुझे दा बेच रहा हो! सच
म! दे श क म हला को या कुछ सहना पड़ता है! कानदार से या बहस करता? बस,
सामान लेकर वापस रसोट आ गए।
वापस आकर दे खा तो रसे शन पर सुजेन और आना खड़े थे... वहां पर उनसे कुछ दे र बात
चीत क । सुजेन ने मुझे आँख के इशारे से कुछ न कहने को कहा था, इस लए मने कसी
भी तरह से आना को यह अहसास नह होने दया क सुजेन और हमारे बीच म कुछ भी
आ था। वैसे भी यह कोई ऐसी बात नह थी जसको म याद रखना चाहता।

रात म ऐसा कुछ उ लेखनीय नह घटा। बस खाया पया, और आराम से सो गए।

सवेरे उठा, तो अपने ऊपर एक अ त र भार महसूस आ। आँख खुल तो दे खा क या


मुझसे पूरी तरह चपक सो रही थी – करवट के कारण उसका बायाँ पाँव मेरे जांघ के
ऊपर आराम कर रहा था। मने उस पर यार से हाथ फराया तो समझ आया क वह पूण-
प से नव है।

म मु कुराया, ‘ब ढ़या!’

और उसको अपने आ लगन म समेट कर उसके माथे पर जोरदार चु बन दया। मेरी इस


हरकत से उसक न द भी खुल गई। मने अपनी घड़ी म दे खा.. सवेरे के सात बज रहे थे।

“उठो जानू! आज का ो ाम या है?” मने या के दोन नत ब के बीच म अपना हाथ


फराते ए पूछा। पांव मेरे ऊपर इस कार रखने के कारण उसका यो न ार थोड़ा खुल
गया था, इस लए मेरी तजनी उं गली अनायास ही उसके यो न के अ दर दो-तीन मलीमीटर
चली गई।

“उई अ मा!” या च ंक गई, “ध ! आप भी न.. जब दे खो तब इसी म घुसना चाहते


ह..” अपनी उन द आवाज़ म या ने कहा।

“जानेमन, जब इसके जैसी नरमी, इसके जैसी गरमी और इसके जैसा वाद मले, तो म
कह और य घुस?ूँ यह न घुस?ूँ ” (मने ‘आपक पारखी नज़र और नरमा सुपर’ वाले
चार क तज पर अपना जुमला ठ क दया।)

“ध ...!” वह शमा कर मेरे सीने म छु प गई।


“मेरी जान, मेरी ऐसी हरकत म मेरी कोई गलती नह । तु हारी यो न वाकई ब त खूबसूरत
है!” मने सफाई पेश करी। उसने कोई उ र नह दया... बस मेरे सीने म सर छु पा कर हंसने
लगी।

“अ ा, एक बात बताइए... आपको शे वग करनी आती है?” मने पूछा।

“शे वग करना? नह .... य ? मुझे या ज़ रत है, शे वग करने क ? मुझे दाढ़ थोड़े न


आती है!”

“दाढ़ नह ... ये तो आती है न?” कह कर मने उसके यो न पर उगे बाल को उं गली से


पकड़ कर ख चा – ऐसे नह क या को दद हो, बस इतना जससे या को उनका
एहसास हो जाय।

“हाय राम! इसक शे वग?”

“हाँ! और या? आपको अ े लगते है या ये बाल?”

“नह , ऐसे कोई अ े तो नह लगते!”

“तो फर इनको साफ़ य नह करती?”

“म कैसे साफ़ क ँ ?”

“अरे! रेज़र से.. या फर कची से!”

“बाप रे!”

“बाप रे?”

“और या? कह कट गया तो?”

“ह म... तो ठ क है... चलो, म ही काट दे ता ँ। या कहती हो?” म हंसने लगा।


“नह जी, रहने द जये! जैसा है, उसी से काम चलाइए!” या ने मुझे चढ़ाते ए कहा।

“जानू, लीज! म इनको साफ़ कर दे ता ँ। म शे वग करने म ए सपट ँ। साफ़ हो जायेगी


तो फर आप ही बोलोगी, क कतनी ख़ूबसूरत यो न है मेरी!”

“ध ! न बाबा! मुझे शम आती है!”

“अरे भाड़ म गई शम! तो फर तय रहा... ना ते के बाद आज म तुमको नहलाता ँ...


ओके? ठ क से! चलो उठो... ज द से ना ता करने चलते ह...” कह कर म ब तर से उठा,
और या को भी उठाया। मने उठ कर कमरे क खड़ कयाँ खोल द और वातानुकूलन बंद
कर दया। आज भी मौसम अ ा था – ब ढ़या हवा चल रही थी। परदे ख च दए, जससे
कोई कमरे के अ दर यूँ ही आनायास न दे ख सके...

े श हो कर और श करने के बाद ना ता समा त कया और ज द से अपने कमरे म चले


आए।

मने अपने बैग से शे वग कट नकाली – रसे शन वाले दन से मने अब तक शे वग नह


बनाई थी, इस लए चेहरे पर कड़े बाल क ठूं ठ नकल आई थी। मने ज द से अपनी शे वग
ख़तम करी – वैसे भी मुझे अपनी दाढ़ बनाना ब त ही ऊबाऊ काम लगता है। समय क
बबाद ! फर रेजर म नए लेड-काट रज लगा कर या को पुकारा,

“आओ.. मने तुमको नहलाता ँ।“

या ने सर हामी म हलाया, और पहनने के लए कपड़े तह कर के बाथ म के अ दर


आई।

“ये या? नहाने के बाद कपड़े पहनने का इरादा है या?”

“ यूँ जी? नहलाने के बाद ब ी को नंगी रखने का इरादा है या आपका?”


“जानेमन शे वग और नहाने के बाद ऐसी चकनी हो जाओगी, तो खुद ब खुद नंगी होने का
मन करेगा।“ मेरी बात सुन कर या का चेहरा शम से सुख लाल हो गया।
या क नजर म :
जघन े क शे वग जैसा तो मने अपने पूरे जीवन म कभी नह सुना। ये भी न जाने या
या आई डया लाते ह... नत नए योग, नत नए अनुभव! बाप रे! या दमाग है इनके
पास!

बाथ म म वैसे कोई टू ल या कुस तो थी नह , इस लए म खुद ही टॉयलेट के कमोड क


सीट पर कवर रख कर के उसी पर बैठ गई। कपड़े उतारने का काम मेरे ीमान ने ही कर
दया। इस समय म नतांत न न थी, और मन ही मन सोच रही थी क कैसा अनुभव होगा!
न जाने कैसे दल म हमारे थम मलन के पहले होने वाला अनजान भय घर कर गया।
फर मने सोचा क ये ह, तो फर या डर? मने अपने पांव यथा-संभव खोल दए, जससे
इनको मेरी यो न के सारे ह से म अ भगमन करने म आसानी हो। उ ह ने मुझको ऐसे ही
बैठे रहने को कहा, और फर अपनी शे वग म और श क सहायता से मेरी यो न पर दे र
तक ढे र सारा झाग बनाया। उ ह ने समझाया क वह इस लए ऐसा कर रहे ह जससे मेरे
बाल पूरी तरह से मुलायम हो जाएँ। वो सब तो ठ क है, ले कन सम या यह थी क इनके
शे वग श क मेरी यो न पर मीठ मीठ रगड़ाई और ठ े ठ े पानी के श से मेरा मन
बेबस आ जा रहा था। ‘बैजर हेयर’ हाँ... शायद यही बताया था... कसी जानवर के बाल
से बना आ था श! मुलायम! अनजाने ही मेरी टाँगे और खुलती चली ग ...

“वेल,” उ ह ने मेरी उ ेजना ज़ र क सूस करी होगी.. ले कन फर भी बना कसी भाव


के कहा, “थक यू! इससे शेव करने म यादा आसानी होगी!”

फर उ ह ने रेजर क मदद से सावधानीपूवक धीरे धीरे मेरी यो न पर से बाल क परत


हटाने का उप म आर कया। कभी वे वचा को इधर ख चते तो कभी उधर, कभी
फैलाते, तो कभी दबाते, तो कभी यो न के दोन ह ठ को उँ ग लय से फैलाते। उनके लए
यह शायद सफ शे वग करना हो, ले कन उ ेजना के मारे मेरी हालत खराब ई जा रही
थी। ब त यादा बाल नह थे, इस लए कोई पांच मनट के बाद उ ह ने अपना काम
समा त कर दया... कमरे क हवा का श मेरी यो न ठं डा ठं डा महसूस हो रहा था,
इस लए मुझे समझ आया क मेरी यो न पूरी तरह बाल- वहीन हो गई है। ले कन उ ह ने
मुझे इसको दे खने से मना कर दया – कहने लगे क जब म क ,ं तभी दे खना। ठ क है!
इंतज़ार और सही!
उ ह ने काम होने के बाद एक छोटे तौ लये से मेरी यो न प छ और कहा, “अरे वाह
जानेमन! हाय! म मर जावां!”

इनक इस नल उ ोषणा से म ब त शमा गई... ले कन फर भी उ सुकतावश मने नीचे


दे खने क को शश करी। ले कन उ ह ने फर से मना कर दया और कहा क अब म तुमको
नहलाऊँगा। उ ह ने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे कमोड से उठाया और फर बाथ म के
नहाने वाले ान पर ले गए। उ ह ने पानी का फौ वरा चलाया और खुद भी नव होकर
मेरे साथ शा मल हो गए। हम नहाने के लए रसोट के साबुन का योग नह कर रहे थे – ये
ही न जाने कौन सा बेहद सुग त साबुन लाये थे।

खैर, अथव ने बड़े इ मीनान से मेरे पूरे शरीर पर साबुन रगड़ा – ख़ास तौर पर मेरे बगल म,
मेरे तन पर और मेरी यो न और नत ब के बीच के ह से पर!

“ज़रा अपने पैर खोल कर सीधी खड़ी हो जाना तो.. तु हारी यो न और नतंब क सफाई
कर दे ता ँ।“ मुझे उनक ग द भाषा सुन के बुरा तो लगता है, ले कन एक तरह क
उ ेजना भी आती है। अब इस वरोधाभास क ा या कैसे क ँ , समझ नह आता।खैर,
उनके आदे श का पालन करते ए म अपनी टाँगे खोल कर सीधी खड़ी हो गई.. और उनक
उं ग लयाँ नबाध प से मेरी यो न, उसके भीतर और मेरी गुदा के भीतर सफाई के बहाने
सध लगाने लग ।

“आह! या कर रहे ह..!?”

“चुप!” उ ह ने मीठ झड़क लगाई।

इस या के दौरान उनका खुद का लग खड़ा हो गया.. मने हाथ बढ़ा कर उसको पकड़ने
क को शश करी।

“नह .. अभी नह ..” कह कर उ ह ने मुझे रोक दया।

उ ह ने खुद पर भी साबुन लगाया और फर हम दोन साथ म फौ वारे के नीचे नहाने लगे।


उसमे यादा समय नह लगा। उ ह ने एक बड़ी तौ लया उठाई और पहले मेरा और फर
अपना शरीर प छ कर मुझे वापस बेड म म ले आये, और मुझे बड़े शीशे के सामने खड़ा
कर बोले,

“अब दे खो..!”

शीशे के सामने खड़े ए म अपने को नहारती ँ - मेरा वयं का अनावृ शरीर! एक पल


को म खुद को पहचान ही नह पाती ँ... कब दे खा है मने खुद को इस तरह? इतने
इ मीनान से? न तो एकांत मलता है और न ही इस कार के संसाधन! ऐसा लगा क
आईने म दखने वाली लड़क म नह ँ। यह एक कम सन और बाल-र हत यो न वाली
लड़क थी - जैसे कोई छोट ब ी!

हे भगवान्! मेरी यो न के ह ठ के सलवट साफ़ साफ़ दख रही थ । ऐसे तो मने इनको


कभी नह दे खा था। ऐसे लग रहा था क जैसे उनक नुमाइश लगा द गई हो। बाप रे!
अपने आपको इतनी नंगी मने कभी नह महसूस कया। मने शमा कर अपनी यो न को
अपने हाथ से छु पा लया और कहा, “मुझे ब त शरम आ रही है।“

युवा व , छोटे कंधे, गोलाकार नतंब, और केश से टपकती पानी क बूंद...! म खुद पर
मु ध ई जाती .ँ .. खुद के शरीर पर! इतनी खूबसूरत ँ या म... सचमुच? या सचमुच
अथव रोज़ नबाध इसी सौ दय का पान करते ह? मने कन खय से उनक तरफ दे खा...
उनक आंख म मेरे लए कामना थी - उ त कामना! एक चाहत थी - उ ाम चाहत...!

“मज़ा आया, जानेमन?”

उ र म म सफ मु कुराई...

“अब बताओ... इस ब ी को नंगा नह , तो फर कैसे रखा जाए?” उनक आवाज़ एक


प र चत प से ककश हो गई थी... इस ककशता क म पहचानती ँ.. वो खुद भी
उ े जत थे – मुझम आस !

“आओ इधर और ब तर पर लेट जाओ।“ उ ह ने अगला आदे श दया।


म ब तर क तरफ जाते ए दे खती ँ क अथव अपने बैग से कसी कार क बोतल
नकाल रहे थे। म लेट जाती ँ और वे मेरे पास आकर कहते ह, “तु हारी कन ाई हो गई
होगी। म म लगा दे ता .ँ . अ ा लगेगा!”

म मूख के जैसे पूछती ,ँ “आप मेरे पूरे बदन पर म लगायगे?”

“बस दे खती जाओ...”

अथव मेरे सर के नीचे सरी सूखी तौ लया रख दे ते ह, जससे ब तर गीला न हो और फर


अपनी हथेली म ढे र सारी म लेकर मेरे तन , हाथ और पेट पर धीरे धीरे रगड़ दे ते ह।
अगला राउं ड मेरी जांघ और पैर का था। फर उ ह ने मेरी यो न को नशाना बनाया –
म लगते ही हलक सी चुनचुनाहट ई। शायद शे वग करने म कह कुछ कट गया होगा।
मेरी सस कयाँ नकल गई, ले कन म उनको रोका नह ।

उ ह ने तीन चार मनट तक अपनी उँ ग लय से मेरी यो न पर अ तरह से म लगाया..


इतनी अ तरह क म उसी बीच एक बार परम सुख भी पा गई। उ ह ने मुझे कुछ दे र
सु ताने दया और फर कहा,

“अभी पेट के बल लेट जाओ..”

म उनक आ ापालन करते ए पलट गई। उ ह ने पहले पीठ पर म लगाई और फर पैर


और जाँघ के पछले ह से पर लगाई। माँ के बाद मुझे इतने अ तरंग तरह से शायद ही
कसी ने मा लश क हो... और मुझे वो तो याद भी नह ! शरीर भर म सहरन दौड़ गई।
उसके बाद उ ह ने एक त कया उठाकर मेरे जघन े के नीचे लगा द । इससे यह आ क
मेरे नतंब काफ उठ से गए।

‘ या करने वाले ह ये?’ मने सोचा।

“जानू, मढ़क के जैसे हो जाओ..”

मुझे समझ नह आया..., “मतलब? कैसे?”


अथव ने पीछे से ही मेरे पैर ऊपर क तरफ उठा दए, इस कार जैसे मेरे घुटने मेरे पेट के
बराबर हो जाएँ, और हाथ को मेरे सर (म तक) के नीचे रख दया। ब त बेढब सी अव ा
थी... घुटने पेट के बराबर, पैर फैले ए – मेरी यो न और ... गुदा दोन ने खुल कर नल
दशनी लगा रखी थी इस समय।

“आप या करने वाले हो?” म ब े जैसे र रयाई।

“ ह ह... कुछ दे र शांत रहो.. अगर मज़ा न आए, तब कहना। ओके?”

मज़ा या आएगा? मुझे तो कुछ समझ ही नह आ रहा है। एक तो जस तरह से अथव ने


रोज़ रोज़ मेरे अंग- यंग क जाँच करी है, और जस तरह का प रचय उनका मेरे गु तांग
से है, वैसा तो मुझे भी नह है। उन पर व ास करने के अ त र मेरे पास कोई चारा नह
था। उनके ही नदश पर मने अपनी टाँगे और चौड़ी खोल द ...

‘ या दे खना चाहते ह ये? भला ‘वो’ भी कोई दे खने क चीज़ है?!’

अथव इस समय मेरे नत ब पर म लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उं गली से।
मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इराद पर। ले कन फर भी मने सोचा क साथ दे ती
ँ, जब तक हो पाता है तब तक! ज द ही उनक म से भरी उं गली मेरी गुदा- ार पर
फरने लगी और फर अ दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उं गली अ दर आती, व त या
म मेरी गुदा का ार बंद हो जाता।

‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते ह या?’ मेरे दमाग म एक वचार क धा।

“ या करना चाहते हो?” मने याचना भरी आवाज़ म कहा, और साथ ही साथ पीछे क
तरफ मुड़ी। उनका तना आ बल लग इस तरह से उठा आ था क मानो मेरी गुदा को
ही दे ख रहा हो।

“जानू, थोड़ा वेट तो करो!”

उ ह ने कुछ और म उं गली पर लेकर मेरी गुदा म व कराया और दे र तक भीतर ही


चलाते रहे। कुछ दे र म मुझे गुदा पर अभूतपूव फैलाव महसूस आ... तुरंत समझ म आ
गया क इस बार उं गली नह , उनका लग अ दर जाने क को शश कर रहा है!

“न न नह ..! लीज! वहां पर नह ! लीज! म मर जाऊंगी!”

“जानू! एक बार ाई तो करते ह?”

“नह ! आगे से आपका मन भर गया या, जो आप पीछे डालना चाहते ह? लीज लीज!
म आपक हर बात मानूंगी, ले कन ये नह ! म मर जाऊंगी सच म! आप उं गली ही डाल रहे
ह और उसी म मेरी जान नकल रही है।“ म बुरी तरह गड़ गड़ा रही थी। इनका जो भी
लान था, म उसमे भाग नह लेना चाहती थी।

“अ ा ठ क है... ठ क है! म कुछ नह क ं गा! भरोसा रखो। सॉरी! तुमको दद दे कर मुझे


कोई मज़ा थोड़े ही मलेगा!” उ ह ने मेरे नतंब सहलाते ए भरोसा दलाया। ले कन मन म
डर बैठ गया...

इतना सब होते ए भी मने जो मढक वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा आ
था। अथव मेरे पीछे आकर मु से चपक गए और पीछे से ही मेरे तन को पकड़ कर
भ चने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से च कर म घुमा रहे थे
जससे उनके लग का अ म भाग मेरी यो न और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही
मेरी यो न को उनका लग छू ता, मेरा मन होता क एक झटके से उनके लग को अ दर ले
लूं.. ले कन यो चत संकोच और ल ा मुझे रोक लेती। इसी पूवानुमान म मेरी यो न से
रस नकलने लगा।
उ ह ने ब त दे र तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटना म म म सोच रही थी और
उ मीद लगाए बैठ थी क कभी तो इनका धैय छू टे गा, और कभी तो वो मेरे अ दर व
ह गे। यही सब सोचते ए मने इतने म ही एक बार और चरमो कष ा त कर लया।

‘ या टै मना है इनम! लगता है एक जबरद त सहवास होने वाला है! एक तगड़ी


ठु काई..!’ मन म कैसे कामुक वचार! अजीब सी म ती छाने लगी... इस समय मेरा अंग-
अंग थरथरा रहा था, घुटन म स हलने क ताकत ही नह बची थी.. इ होने पीछे से मुझको
थाम रखा था, इस लए म अभी भी उसी अव ा म टक थी.. नह तो अब तक गर चुक
होती।
उनको मेरे चरमो कष का पता अव य चला होगा, य क अब वो मेरी योनी को चाट रहे
थे। उ ेजना के वशीभूत होकर म अपने नत ब जोर जोर से हलाने लगी। मेरी हालत ब त
बुरी थी। एकदम छं छा जैसी हरकत! इस समय अथव मेरी यो न के भगो को खोलकर
जीभ से अ दर तक कुरेद और चाट रहे थे। न चाहते ए भी मेरे गले से कामुक स का रयां
छू ट ग । उधर उ ह ने चूसना जारी रखा। कुछ ही दे र म म सरी बार चरम आनंद को ा त
कर कांपने, और आह भरने लगी। मेरे होशो-हवास सब गायब हो गए - उनका इस तरह
चाटना मुझे ब त अ ा लग रहा था। इस बार अथव ने मुझे छोड़ दया, तो म नढाल
होकर ब तर पर गर गई – इतनी भी ताकत नह बची क ठ क से लेट जाऊं.. बस उसी
अव ा म लेट रही।

मने दे खा क अथव बैग म से कुछ और भी नकाल रहे थे... कोई शीशी! वापस आकर
उ ह ने मुझे ब तर पर च लेटा दया और मेरी जांघे थोड़ा और फैला द । म तो नढाल
पड़ी थी, उ ही के रहमो करम पर! ऐसे नीचे से दे खने पर अथव का तना आ लग दख
पड़ रहा था। ऐसा भयावह वह पहले द भी नह दखा। नःसंदेह उसक ल बाई और
मोटाई कुछ यादा ही लग रही थी। उसक नस भी फूल कर मोट हो रही थी, और उसका
आगे का चमकदार गुलाबी भाग भी दख रहा था। अपनी ताकत बटोर कर मने उस माँसल
अ को पकड़ लया। इतना गम! ब त अ त सी बात थी – नहाने के बाद संभवतः कमरे
के वातानुकूलन के कारण उनके वृषण सकुड़ कर उनके जघन े के काफ अ दर छु प
गए से मालूम हो रहे थे, ले कन लग क अलग ही बात थी! इतना गम, और सामा य
उ ेजना से भी अ धक उ े जत!

उ ह ने मुझे कुछ दे र अपना लग पकड़ने दया और फर अलग होकर अपने काम के अगले
ह से को अंजाम दे ने लगे। शीशी खोलकर उ ह ने मेरी योनी पर उड़ेल दया।

“ या ... है.. यह?” मने टू ट फूट कामुक आवाज़ म पूछा!

“हनी... यह हनी है!”

एक और योग! यो न एक वा द भो य भी बनाय जा सकती है! उ ह ने उं गली से शहद


को मेरी पूरी योनी पर फैलाया और फर जीभ क नोक से धीरे धीरे चाटने लगे।
“आहह…!” अभी अगर म इस समय मर भी जाऊं, तो कोई ःख न होगा! ऐसा सुखद
एहसास! “हम्*म्*म्*म*” उनका मेरी यो न का यूँ भोग लगाना मुझे पागल कए जा रहा
था। मन म इ ा जागी क वो लगातार ऐसे ही चाटते रह। अनायास ही म अपनी बची
खुची ताकत लगा कर अपने नत बो को उठा उठा कर यो न को उनके मुंह म और प ँचाने
क को शश कर रही थी। इसी बीच मने दे खा क वो अपने लग पर भी शहद लगा रहे थे।
शहद लगाने के बाद वह मेरे ऊपर उ टा होकर लेट गए.. लेट नह गए... ले कन कुछ ऐसे
क उनका लग मेरे मुँह क तरफ रहे, और उनका मुँह मेरी यो न के ऊपर! मने भी बना
कसी पूवा ह के उनका लग अपने मुँह म भर लया।

‘ वा द !’ म उनके शहद से चपुड़े लग पर जीभ फेर फेर कर वाद ले रही थी, और


अथव मेरी यो न का!

इतना मजा जीवन म कभी नह आया – मान म वग क सैर कर रही ँ! मुझे तो कसी
भी चीज़ का आभास नह था – बस यह क यो न के रा ते से आनंद का उ माद मेरे पूरे
शरीर म फ़ैल रहा था। तीसरी बार मेरी यो न म जबरद त चगारी पनपी – इस बार मुझे
वहां से व छलकता महसूस आ... मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा। मने दोन हाथ को
ब तर पर पटक रही थी, और हांफ रही थी! बेबस... लाचार! ले कन संतु !

अथव खुद भी न जाने कब से मुझे भोगने को तैयार थे, ले कन सफ मेरी ख़ुशी के लए


अभी तक खुद को ज त कए ए थे। ले कन अब बस! वो मेरे ऊपर से उतरकर, मेरी दोनो
टांग को चौड़ा करके, और एक त कये को उठाकर मेरे नत ब के नीचे लगा कर उनके
बीच म बैठ गए। अपने लग को उ ह ने मेरी यो न पर सटाया, और दोन हाथ से मेरी कमर
थाम कर अपने लग को अनादर क तरफ धकेला।

“आहहह...” अ दर इतनी चकनाई हो गई थी क पहले ही वार म उनका यादातर लग


मेरी यो न म समां गया। उ ह ने फर मेरे ह ठ को चूमते ए, पहले तो धीरे धीरे, और बाद
म तेज़ ग त से मुझे भोगना आर कर दया। एक के बाद एक ती र त- न प के बाद
मेरी दशा नज व जैसी हो गई थी। ले कन उनके सहवास के तरीके म कुछ ख़ास बात थी,
क कुछ ही दे र म म भी अब कुछ होश म आकर अपने नत ब को उ ही क ग त से, धीरे
धीरे ही सही, ग त मलाने लगी। कोई तीन मनट के बाद अचानक ही उ ह ने सहवास क
ग त बढ़ा द । मुझे भी अपने अ दर एक और लावा बनता आ महसूस होने लगा! घोर
आ य! ये चौथा होगा.. और इनका पहला!
मुझे एक और बार चरम सुख मल गया। ले कन ये नह के। न प के सुख के बाद मेरी
सांसे अभी तक स ल भी नह पाई थी क इ होने मुझे अपने आ लगन म भर लया और
ब त तेज ग त से ध के चलाने लगे। ऐसे तो उ ह ने कभी नह कया। तीन चार बार तो
मुझे चोट भी लग गई! फर अचानक ही ये भी ख लत हो गए – मुझे मेरे अ दर बेहद गरम
व गरता आ महसूस आ! गहरी साँसे भरते ए अथव नढाल हो कर मेरे ही ऊपर गर
गए। हम दोन दे र तक अपनी साँसे नयं त करते रहे। मुझे मू क ती इ ा हो रही थी,
ले कन थकावट इतनी यादा थी क हलने का भी मन नह कर रहा था।

ले कन कती भी तो कतनी दे र! कुछ तो बात है – यौन संसग के बाद न जाने य मुझे


मू क ती इ ा होने लगती है। म कुनमुनाई। इनको जैसे तुरंत समझ आ गया।

“टॉयलेट जाना है?” इ होने पूछा।

“हाँ.. ज द !” कहते ए म मु कुराई। कतना कुछ बदल गया इतने ही दन म! अब कोई


संकोच नह लगता!

“आओ मेरे साथ..” कह कर ये उठे और मुझे भी हाथ पकड़ कर ब तर से उठा लया।

‘ फर कोई नया खेल या? बाप रे!’

म ठ क से चल नह पा रही थी – एक तो मेरे पाँव अभी तक कांप रहे थे, और ऊपर से


ब त यादा थकावट! इस लए अथव ने मुझे सहारा दे कर बाथ म तक प ँचाया। बाथ म
तक, ले कन कमोड तक नह । वो मुझे नहाने वाले ान पर लेकर गए... मुझे कुछ समझ
नह आया। मने उनक तरफ दे खा, ले कन जब उ ह ने कुछ नह कहा तो म बैठने लगी।

“ को..” इनक आँख म एक बार फर से एक शैतानी चमक जाग गई। म समझ गई क


अब म फर से मरने वाली ँ!

अथव वह बाथ म क फ़श पर लेट गए, और मुझे इशारे से अपने ऊपर बैठने को कहने
लगे।

“छ ! आप भी न! न जाने या या करवाते ह मुझसे!”


"अरे यार! या छ ? एक बार मेरा कहा मानो.. मज़ा न आये तो फर शकायत करना!"
उनक बात सुन कर मुझे हंसी आ गए! ब जैसी ज ासा, उ ही के जैसी शैतानी, उ ही
के जैसी मासू मयत! उ ह ने मुझे हाथ से पकड़ कर अपने जघन े पर बैठाने म मेरी मदद
करी। म या ही करती? म भी जैसे तैसे उनपर उकडू ं बैठ गई – ब त ही बेढब तरीका था..
ले कन अब समझ आया क अथव या चाहते थे। एक तो मेरे उनके ऊपर इस तरह बैठने
से मेरी यो न पूरी तरह से द शत होती, और मू उ ही के ऊपर ही गरता!

"जानू! आप योर ह? मुझे ब त जोर से आ रही है।"

उ ह ने सर हला कर हामी भरी, “ बलकुल योर! शु करो।"

उ ह ने दोन हाथ से मरे दोन टखने पकड़ लए और मने अपने दोन हाथ उनके सीने पर
टका दए – सहारे के लए। द कत यह है क कुछ दे र अगर मू को रोक लया जाए, तो
फर तुरंत ही नह हो पाता – कुछ दे र इंतज़ार करना पड़ता है। मने कुछ दे र तक अपनी
साँसे नयं त कर , और अपनी मांस-पे शयाँ कुछ श थल कर ।

म अपनी आँख मूँद ल , और मू करने पर यान लगाया।


मेरी नजर म :

जैसा पहले भी कया था (याद है न? बु याल पर? झील के बगल?), आज पुनः कुछ नया
करने क इ ा जाग गई थी। ठ क ह, गंदे हो जायगे, ले कन तो या? बाथ म म ही ह न?
फर से नहा लगे!

मने दे खा क या क यो न के पटल खुल गए - वहां क माँस पे शयाँ रह रह कर खुल


और बंद हो रही थ (मू ाशय को मु करने का यास)। स मोहक य!

कुछ ही पल म मू क धार छू ट पड़ी। अनवरत धार! या अभी राहत क साँसे ले रही


थी। उसक आँख बंद थ । गरम गरम व मेरे शरीर पर पड़ा – अनोखा अनुभव! काफ
गरम! मू गर कर मेरे सीने पर से होकर फ़श पर रसने लगा। और उसक गंध! कोई
ती ण गंध नह । ले कन ऐसी भी नह जसको मन-भावन गंध कहा जाय। खैर, कुछ दे र के
बाद या का मू यागना बंद आ। वह अभी भी आँख बंद कये ई थी - उसक यो न
क पे शयाँ सकुड़ और खुल रही थ और उसम से मू नकलना अब बंद हो चला था। इस
अनुभव का एक असर मुझ पर आ – मेरा लग फर से कड़ा होने लगा, और साथ ही
साथ मुझे भी मू क इ ा होने लगी।

मने या के कंधे पकड़े, और उसी के सहारे उठ कर पहले तो उसको गले से लगा लया।
या खुद के ही मू म सन गई। नहाने के अ त र अब कोई चारा नह था हम दोन के ही
पास। मने अपनी उं गली से उसक यो न को कुछ दे र टटोला, और फर खड़ा हो गया।

या ने वाचक पहले मेरे चेहरे पर डाली और फर मेरे लग पर, जो क उचक


उचक कर जैसे स दे श दे रहा हो। इसके पहले क वह कुछ कहती, या कोई तरोध
करती, मने भी अपनी मू क धार छोड़ द । पहला छपाका उसके चेहरे पर ही पड़ा –
व त या व प उसने आँख और मुँह को कस कर भ च लया। और अपने एक हाथ के
सहारे से फ़श पर ही थोड़ा पीछे झुक गई। ले कन इससे वो बचने वाली तो थी नह । मुझे
भी अपना लैडर खाली करना ही था। और साथ ही साथ म खलवाड़ के भी मूड म था।
मने लग को पकड़ कर उसके पूरे शरीर को अपने मू से नहला दया। और कुछ दे र बाद म
भी खाली हो गया।

या ने एक आँख खोल कर मुझे दे खा, “छ गंदे! ये या है? बता तो दे ते!”


मने उ र म कुछ कहा नह । बस आगे बढ़ कर उसको फ़श पर लटाया, और उसक यो न
को अपने मुंह म भर कर चूस चूस कर सुखा दया। अब वह या ही शकायत कर पाती
भला? बस भावुक हो कर उसने मुझे जोर से अपने आ लगन म जकड़ लया और कहा,
“आई लव यू!”

इस समय तक म एक बार पुनः सहवास के लए तैयार हो गया था। इस बार मने न कोई
औपचा रकता दखाई, और न ही कोई फोर ले कया। बस इस समय या को एक और
बार ‘ठोकने’ का मन था। एकदम पाश वक इ ा! वासना क न न अ भलाषा!
या क नजर म :

यह मू नान सुनने या सुनाने म भले ही ब त ही ग दा सा लगता हो, और संभव है क


यादातर युगल इसको नह आजमाते, ले कन यह एक नए कार का ही अनुभव होता है।
म अथव क आँख म वासना के डोरे साफ़ दे ख रही थी। अपने ऊदे य म ! इसम ेमी
जैसा भाव नह था – बस वही ाचीन नर-मादा वाला भाव दख रहा था। मतलब, आज तो
मेरी जान नकल कर ही रहेगी!

उ ह ने मेरी बा टांग को अपने कंधे के ऊपर रखा और अपने लग को मेरी यो न के बीच


रखा। मने उनके लग को पकड़ लया, जससे वह अपने माग पर ही रहे। उ ह ने ऐसे जोर
के ध के के साथ मुझम कभी वेश नह कया! मेरी चीख नकल गई। म स हलती, उससे
पहले ही उ ह ने सरा ध का लगाया – मने दे खा उनका लग और मेरी यो न दोन आपस
म चपके ए थे। मुझे दद आ! ले कन म उसको पी गई – यह अनुभव भी सही।

मने महसूस कया क मेरी यो न उनके लग को मसल रही है। मेरी सांसे तेज़ हो ग । अथव
समझ तो रहे थे क मुझे दद आ है, ले कन वो बस चार पांच सेकंड ही के। और फर
उ ह ने अपनी कमर हलानी शु कर द । उनका लग तेजी से मेरी यो न के अंदर-बाहर
होने लगा। दे खते ही दे खते उनक ग त तेज़ होती चली गई। तेज़ ग त के कारण लग का
व ापन कम ही हो रहा था, लहाज़ा, पूरे समय, मेरी यो न म उनका लग लगभग पूरा ही
समाया रहा। मू ने संभवतः अ दर से काफ चकनाई नकाल द थी, इस लए कुछ कुछ
ट स सी उठ रही थी। ले कन म या करती – अथव मुझे वाकई ‘ठोक’ रहे थे।

चूं क वो कुछ ही मनट पहले ख लत ए थे, इस लए मुझे लगा क उनका बारा ख लत


होने अभी र था। ले कन ग त इतनी तेज थी क दस मनट के अ दर ही वो अपनी मं जल
पर प ँच गए। आ य मुझे इस बात का आ क ख लत होने के बाद भी उनका कडापन
कम नह आ और उ ह ने मुझे दो और मनट तक भोगा। और मुझे एक और घोर आ य
तब आ जब म आज पांचव बार र त के उ तम शखर पर प ंची। पाश वक सहवास
का ऐसा नंगा नाच! और इनक कुशलता तो दे खए! न जाने कैसी भूख! ले कन इतना तो
तय है क म पूरी तरह अघा गई थी।

हम दोन ब त दे र तक यूँ ही व भ शारी रक तरल से सने ए, आ लगनब फ़श पर


पड़े रहे। अंततः अथव ने उठा कर फ़ वारा चलाया, और हम दोन ने फ़श पर बैठे बैठे ही
एक बार और नहाया। और फर अपने अपने शरीर प छ कर ब तर पर लुढ़क कर गहरी
न द सो गए।
१५
अगले चार दन तक या के पी रयड् स थे। यह समय हमने बीच पर टहलने घूमने, नौका-
वहार करने, लैपटॉप और ट वी पर फ स इ या द दे खने म बताये। सुजेन और आना
हमारे ब त अ े दो त बन गए – हमारे, मतलब मेरे और या दोन के। या उन दोन
क ही आ म नभरता और बदास अंदाज़ से ब त भा वत ई, और उनसे उनके काम,
जीवन इ या द के बारे म कई बार बात कर । जहाँ तक मेरा सवाल है, मने उनके साथ दो
बार कूबा डाइ वग करी।

कूबा डाइ वग ब त ही अ धक रोमांचल खेल है। सुजेन और आना, दोन ने ही मुझे


बताया क उनक हर डाइ वग म नयापन होता है – एकदम नए अनुभव, नयी चुनौ तयाँ!
अंडमान म च ओर फैले जल े म वाल भ (कोरल रीफ) जल-पयावरण णाली का
घर ह! एक और बात है, अंडमान म ब त कुछ जो बना है, वह वालामुखी क ग त व धय
के कारण बना है। उनके कारण डाइ वग के दौरान अभूतपूव अनुभव होता है। हम समु म
करीब करीब साथ फ ट तक अंदर गए। इस दौरान मने वाल और उनमे रहने वाली
अनेकानेक मछ लयाँ और उनक अनोखी नया को ब त नजद क से दे खा। वाकई, यह
एक अलग ही नया थी। खैर, म तो बस रंग बरंगी मछ लय के झु ड, नीले पानी, और
अपने कान म पानी क गुलगुलाहट सुन कर रोमां चत हो गया! छोटे बड़े, हर आकार क
मछ लयाँ चुर मा ा म बना रोक टोक तैर रही थी। पानी के भीतर फोटो ाफ भी करी।
मुझे बताया गया था क शाक क भी कई सारी जा तयाँ यहाँ होती ह, ले कन दखी एक
भी नह !

या और मने पहले नोक लग क थी – यूँ तो दोन ही वॉटर ोट ह, ले कन दोन म


काफ अंतर है। कूबा श द अं ेजी म से फ कंटड अंडरवॉटर ी दग अपरेटस का शॉट
फॉम है। कूबा डाइ वग म ऑ सीजन टक, तैराक पोशाक और मा क इ या द पहनकर
पानी क काफ गहराई म उतरना होता है, जब क नोक लग म छोटा मा क पहना जाता
है। सांस लेने के लए इस मा क का एक ह सा पानी क सतह से बाहर नकला रहता है,
और तैराक के दौरान तैराक सतह पर तैरता है, और मुँह क सहायता से सांस लेता है।
कूबा डाइ वग एक बार म कम से कम आधे घंटे तक तो चलती ही है। नोकइ लग म पानी
के दो-तीन फ ट अंदर ही जाते ह, जब क कूबा डाइ वग म तो लोग सौ फ ट से भी अ दर
तक चले जाते ह, और पानी क गहराई म उतरकर अ दर के तमाम नजार को करीब से
दे ख सकते ह। मने मन ही मन सोचा क कूबा डाइ वग क े नग ज़ र लूँगा।
इतने म हमारे हनीमून का समय भी लगभग समा त हो गया और वापस आने का दन भी
पास आने लगा।
इस बीच मने या के कॉलेज म कॉल कर के उसके सपल से बात करी। उ ह ने मेरी
उ मीद और सारी दलील के वपरीत या को होम- कूल करने से मना कर दया, और यह
याद भी दलाया क उसक उप त कम हो जाएगी, और ए जाम लखने म द कत
होगी। फर उ ह ने मुझे बताया क य द वो अगले ह ते तक वापस आ जाय, तो उसको
शीतकालीन अवकाश के पहले करीब चार ह ते मल जायगे, जसम काफ कोस नबटाया
जा सकता है। फर वो छु म बंगलौर जा सकती है, और कोस रीवाइज कर सकती है।
मने छु के बारे म पूछा, तो उ ह ने बताया क दस बर के आ खरी स ताह म होगी, और
जनवरी के म य तक चलेगी।

कोई बुराई नह थी.. मने मन म सोचा। वैसे भी या बंगलौर म क कर या ही करती,


इस लए मने सोचा क वापस जा कर एक दो दन म ही या को उ राँचल भेज ं गा। वो
अपना अब तक का कोस भी कर लेगी, और घर वालो से मल भी लेगी। उसके बाद तीन
ह ते मेरे पास.. और फर बोड ए जाम के बाद परमानट मेरे पास!! मने या को बताया तो
उसका मुँह उतर गया। रोने धोने क ही कमी थी बस.. ले कन जैसे तैसे उसको समझाया
बुझाया और राजी कर लया।

खैर, रसोट म रहने के आ खरी दन मने जो भी बल था, वो भरा और फर हेवलॉक प


से वदा ली। ू ज़ बोट से वापस पोट लेयर आ गए। शाम क लाइट थी, सो वमानप न
पर ही खाना पीना कया, और यादगार के लए कुछ सामान खरीदा। वीर सावरकर
वमानप न काफ छोटा है, और उसके लहाज से वहां ब त भीड़ होती है। उस दन तो
वहां ठ क से खड़े होने क भी जगह नह थी। खैर, वहां से उड़ान भरने के कोई छः घंटे के
अ दर, या और म बंगलौर प ँच गए।

घर प ँचने के बाद हमने ी और ीमती हेगड़े जी जी से मुलाकात करी। उ ह ने हमारा


कुशल ेम पूछा, कुछ इधर उधर क बात करी.. और फर अंत म यह ट पणी करी क हम
दोन ही कौ वे जैसे काले हो गए ह! म और ी हेगड़े जी, दोन इस बात पर खूब हँस.े .
ले कन ीमती हेगड़े जी ने अपने प त को मीठ झडक लगायी। खैर, म उनको बताया क
दो दन बाद या को वापस उ राँचल भेज आऊँगा.. नह तो पढाई का ब त नुकसान हो
जाएगा। बेचार को इस बात से ब त ःख आ, ले कन इस बात से ब त खुश ए क
एक महीने म ही या वापस भी आ जाएगी।
घर म आकर मने पास के ही एक होटल से खाना माँगा लया। या चाहती थी क वह
कुछ बनाए, ले कन घर म कोई राशन पानी तो था ही नह ... मने उसको कहा क कल हम
दोन मयां बीवी मल कर लंच बनायगे, और पड़ो सय को भी बुलाएँग!े मेरे इस सुझाव पर
या ब त खुश ई।

जब तक खाना आता, या नहाने चली गई, और म हमारी दे हरा न लाइट के लए टकट


बुक करने लगा। मजेदार बात यह दखी क दो दन बाद का टकट, एक महीने के बाद
वाले टकट से स ता था! उसके बाद मने बॉस को फ़ोन करके कल के लंच के लए
आमं त कया। उसके बाद मने अपने दो त को बुलाया जो शाद म स म लत ए थे,
और उनको साथ म ख ची ई त वीर भी लाने को बोला। फर अपने फोटो ाफर को
रसे शन क त वीर लाने को बोला। यह सब काम करने के बाद मने भी नहाया और इतने
म ही खाना भी आ गया। दन भर ब त या ा ई थी, इस लए हम दोन थक कर सो गए।

सवेरे म काफ ज द उठा। घर के पास ही स जी-हाट लगता है.. कभी कभी म वहां से
स जयां लेता था। अ बात यह है क वहां ताज़ी स जयां मलती ह। न जाने कतने ही
दन बाद आज खरीददारी कर रहा था। वापस आते आते साढ़े सात बज गए थे – अभी
भी सवेरा ही था। ले कन वहां खरीदने वालो क भीड़ अ खासी थी। वापस आते आते
मने ी हेगड़े जी को लंच पर आमं त कया। घर आया तो दे खा या अभी उठने के
कगार पर ही थी। उठते ही उसने पूछा, आज खाने म या पकाएँगे?

एक बात आपको बता ं , जब से उ राँचल – या यह क हये क गढ़वाल से नाता जुड़ने


वाली बात चली है, तब से मने वहां क यादा से यादा बाते जानने का येय बना लया है।
खासतौर पर वहां के खाने का। जब मने या को बताया, क या बनने वाला है, तो वह
बड़ी खुश ई। आ खर, मने आज के लंच के लए गढ़वाली और अवधी खान का कोस
तैयार कया था। लंच क तैयारी शु करने से पहले, मने या के तैयार होते होते हम दोन
के लए आलू सड वच, और चाय तैयार कर द ।

“बाप रे! आपको तो कु कग भी आती है!”

“ बलकुल आती है.. आपको या लगा? इतने दन ऐसे ही सवाइव कर लया मने?”

“मुझे तो मालूम ही नह था!”


“ ये, प त के गुण धीरे धीरे मालूम होने चा हए। इससे ेम म गाढ़ता आती है।“ मने
फ़ मी डायलॉग बोल कर ठठोली करी।

“ओके, ाण य! तो फर तैयारी कर?” या ने भी मेरी ठठोली म अपना जुमला भी


जोड़ा।

रसोई शु करने से पहले कपडे इ या द वा शग मशीन म धोने म डाल दए, जससे कल


क या ा से पहले कोई द कत न हो।

हमेशा से कहा जाता है क प त के दल का रा ता पेट से होकर गुजरता है। मेरे ख़याल से


यह ब त ही गैर- ज मेदाराना सोच है, और खाने क तैयारी का सारा ठ करा य के सर
पर पटकने जैसा है। मेरा मानना यह है क य द खाने का शौक हो, तो बनाने म भी प तय
को कुछ तो सहयोग करना ही चा हए। जरा सोच कर दे खए, य द रसोई म ब ढ़या, वा द
पकवान प त प नी साथ म बनाएँ, तो उनके बीच क नजद कयां बढऩे लगती ह। जब
प त-प नी साथ साथ रसोई म प ंच जाएं तो वो पल अभूतपूव अपन व म बदल जाते ह।
हमारे यहाँ कु कग को काम बना दया गया है... ले कन अगर यान से दे ख तो दरअसल
कु कग तो एक कला है। नह तो कैसे संजीव कपूर जैसे लोग ‘मे ो’ कहलाते? अगर प त-
प नी साथ मलकर इस कला म सहयोग कर, तो कुछ भी संभव है।

गढ़वाली ंजन ब त अलंकृत और ज टल नह होते। ले कन मोटे अनाज के इ तेमाल से


उनका वाद अनोखा, और ब त पौ क होता है। अब चूं क मेरा और या का मेल भी
अनोखा था, इस लए आज का कोस भी ब त अनोखा था – रेशमी पनीर (पनीर, याज,
रंग- बरंगी शमला मच पर आधा रत सूखी स जी), फ़ानू (एक कार क गढ़वाली
पंचमेल दाल), लेसु (गे ँ और रागी क रोट ), केसर हलवा, पुलाव और सलाद।
खाना बनाने म समय लगा, ले कन मेहमान के आने से पहले खाना तैयार हो गया, और
हम लोग भी। भोज पर कुल मला कर आठ लोग आये थे। मेरे दो दो त, उनमे से एक क
प नी, बॉस, उनक प नी और पु , ी और ीमती हेगड़े जी! ये सभी इतने अ े लोग थे,
क अपने साथ कुछ न कुछ खाने पीने का सामान लाये थे – यह जानते ए भी क भोज
हमने आयो जत कया था। कुंवारा दो त तो अपने साथ वाइन क बोतल लाया था, ले कन
बॉस अपने साथ मठाइयाँ, और पड़ोसी पु लयोगरे चावल (कनाटक का एक डश) लाये
थे। या फर अपने घर से या ने कहा क वह सबको खलने के बाद खा लेगी – ले कन
मने इस बात से साफ़ इनकार कर दया। खायगे तो हम सब प रवार और म एक साथ...
नह तो खाने क कोई ज़ रत नह । स ताहांत भोज अगर हत- म ो के साथ करने को
मले, तो इससे अ ा या हो सकता है? कुछ ही दे र म हम सभी ग प लड़ाते ए, घर म
बने वा द भोजन का आनंद उठा रहे थे। मेरी खूब खचाई ई जब बॉस और पड़ो सय
ने या के प रवार वालो के ारा मेरी जांच पड़ताल क बाते उसको सुनाय । ब त मज़ा
आया – दे र तक (कोई तीन घंटे) चले इस भोज से मुझे पहली बार अपने पड़ो सय , और
बॉस को इतने करीब से जानने का मौका मला।

जैसी क मुझे उ मीद थी, सभी ने शाद , रसे शन और हनीमून क त वीर दे खने क मांग
क । मने पहले ही हम दोन क अ तरंग त वीर अलग कर ली थ , और दो त क ख ची
ई त वीर अपने लैपटॉप म कॉपी कर के मने सबको सल सलेवार तरीके से त वीर दखा
द । सभी ने एक बार तो ज़ र कहा, क हम दोन ही अंडमान क धूप म साँवले हो गए।
खैर, इन सब बातो के बाद, मने सबको आने के लए ध यवाद दया और फर वदा कया।

हम दोन टहलते घूमते पास के एक कान पर जा कर या के लए दो जोड़ी सलवार


कुता खरीद लाये। हनीमून पर जो कुछ पहना था, अगर अपने घर पर पहनती तो वहां लोग
व मत और नाराज़ दोन हो जाते। अ नी के लए कई कार के कपड़े जनम कट-
टॉप, जी स-ट -शट, और एक ब त खूबसूरत सूट शा मल थे - आ खर मेरी एकलौती साली
है। एक कलर-लैब से मने दो-तीन छोटे -बड़े ए बम, और ट करने के लए लॉसी
फोटो ाफ पेपर, और कुछ कलर का ज खरीद लए। मेरे घर म लेज़र टर पहले से ही
है, जसका इ तेमाल म व भ काय म करता रहता था। एक मे डकल क कान से मने
दो पैकेट सेनेटरी नैप कन, और अपने लए कंडोम खरीदा – या के जाते जाते एक बार
और आनंद लेने क तो बनती थी। यह एक र ड कंडोम था – उसके बाहर क तरफ उभरी
ई धा रयां बनी ई थ ... इसका फायदा यह था क घषण के समय आनंद और बढ़ सकता
है।

डनर म कुछ बनाने का काम नह था, य क दोपहर का खाना बचा ही आ था। घर


आकर मने सबसे पहले लैपटॉप पर ख़ास ख़ास त वीर चुन कर ट करने पर लगा द ।
कई सारी त वीर थ , इस लए समय लगता। इस लए मने एक बैग म या का सामान पैक
कया और अपने लए एक अलग छोटे बैग म। इस बीच म या नहाने चली गई – द न भर
षण, और गम !

‘हा हा,’ मने सोचा, ‘वापस जा कर पानी छू ने क भी ह मत नह पड़ेगी!’ उ राँचल म


ठं डक तो अब अपने पूरे शबाब पर होगी! पैक करते समय मेरा मन ब त ख़राब हो रहा था
– यह सोच कर क ‘मेरी जान’ कल जाने वाली है... ले कन या ही करता? मेरे पास दो
फोन थे – एक ऑ फस के लए, और एक मेरा पसनल। या जब वापस आई, तो मने
पसनल वाला या को दे दया, जससे वह मुझसे जब भी मन करे, बात कर सके। यह
सुन कर हाँला क या का गला भर आया, ले कन उसके रोने से पहले ही मने उसको मना
लया और संयत कर दया। कुछ दे र तक हमने बालकनी म जाकर बात चीत करी, और
फर म भी नहाने चला गया। वापस आकर दे खा, क सारी त वीर ट हो गई ह। एक बड़े
ए बम म हम दोन मल कर अपने शाद , रसे शन, और अंडमान क त वीर लगाने लगे,
जसको या घर पर दखा सके। एक छोटे ए बम म मने हमारी बेहद अ तरंग और न न
त वीर लगा – सफ या के लए... जब उसको हमारी ‘वैसी’ वाली याद आये तो उन
त वीर को दे ख कर धैय धर सके।

मने कहा, “जानू, तु हारा मन तो अपनी कताबो के साथ बहल जाएगा... हो सकता है क
पढाई, घर और सहे लय के साथ मेरी याद भी न आए... ले कन मन तु हारे बना एक दन
भी न रह पाऊँगा!”

या मेरी बात पर भावुक हो गई और मुझसे आकर लपट गई... मने भी अपनी बांह उसके
चार ओर कस द ।

“आपको ऐसा लगता है क मुझे आपक याद नह आएगी? मुझे आपक ब त याद
आएगी!!” या भावुक हो कर बोली। “... ले कन म ब त ज द ही आपक बाह म फर
से आ जाऊंगी!”

म बेबसी म मु कुराया, “अ ा, मुझे ो मस करो क अपना खूब अ े से याल रखोगी!”

“ ो मस! आप भी रखना..”

“आई लव यू!” बछोह के गहरे दद का अहसास करते ए मने कहा। फर आगे सोच कर
कहा, “अ ा, जाते जाते ‘गुडबाय कस’ तो दो!”

“अरे म अभी कहाँ जा रही ँ? कल सवेरे जाना है न?”


“अरे तो मुझे भी कौन सा आपके ह ठ पर कस करना है?” मने इतने ग़मगीन माहौल म
भी शैतानी नह छोड़ी। ले कन आगे जो या ने कया, वो मेरी उ मीद के वपरीत था।

या ने एक टे डी नाइट पहनी ई थी। मेरे कहते ही उसने अपनी टे डी का नचला घेरा


ऊपर उठा लया – और उसक च ी से ढक यो न मेरे सामने परोस गई। ऐसा आमं ण हो
तो भला कौन मना कर पाए? मने या को चूमने के लए उसक कमर को पकड़ कर
अपनी तरफ खीचा, और मेरी बाह म आते ही उसके तन मेरे सीने से टकराए। उसने यार
से मेरे गले म बाह डाल द , और मुँह म मुँह डाल कर मुझे चूमने लगी। कुछ दे र चूमने के
बाद मने या क टे डी के ऊपर से ही उसके तन का पान आर कर दया। उनको बारी
बारी से दे र तक चूसा, चुभलाया और चूमा। टे डी का कपडा रेशमी और नायलॉन मला
आ था (मतलब मुलायम नह था), इस लए मेरी मुँह क हरकत का भाव उसके
तना और तन पर कई गुणा अ धक हो रहा था। टे डी के ऊपर से ही मने जीभ क नोक
से उसके तना को छे ड़ा.. मेरे हर वार से उसक ससकारी नकल जाती। इसी बीच मने
अपने खाली हाथ को उसक च ी के अ दर डाला और यो न को टटोला - वह पहले ही
गीली हो चली थी। कुछ दे र वहां सहलाने के बाद मने अपनी उं गली या क यो न म डाल
कर अ दर बाहर करना शु कर दया।

इस पूरे काय म के दौरान मने या को नव नह कया, और न ही अपने ही कपडे


उतारे। या आँख बंद कए आनंद लेती रही, फर कुछ दे र बाद उसने आगे बढ़ कर मेरे
लग को पकड़ने क को शश करी। म पूरी तरह उ े जत था।

“आआ ह...! आज खूब दे र तक क जयेगा...” या ने उखड़ी ई आवाज़ म मुझे


नदश दया।

मने या को अपनी गोद से उतारा और उसका हाथ पकड़ कर बेड म म ले आया। वह


अपने कपडे उतारने लगी तो मने मना कर दया।

“नह ... पहने रहो। आज ऐसे ही करगे..”

मने भाग कर आज खरीदा आ कंडोम का पैकेट नकाला, और एक कंडोम नकाल कर


अपने लग पर चढाने लगा। पजामा मने अभी भी पूरा नह उतारा। तो हम लोग पूरे कपडे
भी पहने ए थे, और यथो चत न न भी!
“ये... या कर रहे ह आप?”

“कंडोम!” फर कुछ क कर, “ ोटे न...” कंडोम चढ़ाने के बाद मने या को ब तर से


उठाया और अपनी गोद म लेकर उसके नत ब को पकड़े ए, उसक पीठ को द वार से
लगा दया। नया आसन! मने या को कहा क वह अपनी टांगो से मेरी कमर को जकड़
ले। या को कुछ कुछ समझ म आया क म या करना चाहता ,ँ और उसने
नदशानुसार सहयोग कया। म ब ल ँ, नह तो ब त द कत हो जाती।
मने उसक च ी को यो न से थोड़ा अलग हटाया, और बड़ी मु कल से अपने लग को
उसक यो न म व कराया। दो तीन बार ध का लगाने से मुझे समझ आ गया क नीचे
से ऊपर ध के लगाना मु कल है.. एक तो उसका भार स हालना, और ऊपर से यह
सु न त करना क लग यो न के भीतर ही रहे! मने या को धक्*का लगाने को कहा।
या ने उ साहपूवक ध के लगाने आर कए..

यह वाकई एक आनंददायक आसन था – मु कल, ले कन आनंददायक! एक तो मेरा लग


पूरी तरह से या के भीतर जा पा रहा था, और इससे एक नए तरह के घषण का अहसास
हो रहा था। हर ध के म या क पूरी यो न मेरे लग पर घषण रही थी... ब त ही
आनंददायक!

और इसका सबूत या क कामुक आह म था, "आअ ह.... म त लग रहा है...."


उसक साँसे उ माद के कारण उखड रही थ । हमने पूरे उ साह के साथ मैथुन करना ारंभ
कर दया। या वैसे भी मुझे कामो ेजना के शखर पर यूँ ही ले जा सकती है। लहाजा,
मेरा लग एकदम कड़क हो गया था और इस नए आसन क चुनौती से और भी दमदार हो
गया था। रह रह कर म या के ह ठ चूम लेता, या अपने सीने के या के तन कुचल
दे ता।

चाह कर भी ती ग त म मैथुन संभव नह हो पा रहा था, इस लए हम लोग ब त दे र तक


एक सरे म गु म-गु ा होते रहे! समय का कोई यान नह .. ले कन जब म ख लत
आ, तब तक या दो बार अपने चरम पर प ँच चुक थी, और उसका शरीर चरमो कष
पर आकर थरथरा रहा था, और वह रह रह कर कामुकता से चीख रही थी। खलन के बाद
भी मेरा लग उ माद म था, इस लए मने या के श थल हो जाने पर ध के लगाने शु
कर दए। कुछ और समय बीत जाने के बाद अंततः मेरे लग का कड़ापन समा त आ और
मने अपना लग बाहर नकाला और या को ेम से वापस ब तर पर लटा दया। जब
मने कंडोम को कचरा पेट म, और अपने लग को साफ़ कर वापस ब तर पर आया, तो
दे खा क या थक कर सो गई थी।
अगले दन सवेरे सवेरे ही हमने वापस उ राँचल क या ा आर कर द । घर वापस जाने
के कारण या ने साड़ी पहनी ई थी। दे हरा न म कराए पर एस यु वी लेकर हमने या
के घर क या ा आर करी। बीच म एक जगह क कर हमने लंच कया, और पुनः आगे
चल पड़े। हवा म ठं डक काफ बढ़ गई थी। इस लए मने एस यु वी म हीटर चला दया
था, जससे गम रहे।

या के घर हम लोग कोई चार बजे प ँच!े एक बात तो कहना भूल ही गया, या के घर


हमने कसी को भी इ ला नह द थी क हम आने वाले ह! वो सभी लोग हमारे इस
सर ाइज से दं ग रह गए और ब त खुश भी ए। मने ससुर जी को बताया क या क
पढाई का हजा हो रहा था, इस लए जब तक शीतकालीन अवकाश नह शु हो जाते, तब
तक या यह रहेगी, और अब तक का कोस पूरा कर लेगी। और उसके बाद छु य म
वापस बगलोर आ जाएगी, और फर वापस आ कर ए जाम इ या द लख कर वापस
बगलोर आ जायेगी। उनको सुन कर काफ तस ली ई। उसका वापस आने का टकट मने
पहले ही बुक कर दया था। इतनी सारी लाइट लेने, और हवाई या ा करने के बाद मुझे
उ मीद थी क या खुद हवाई या ा करने म अब स म थी।

म वापस नकलना चाहता था, ले कन सभी ने रोक लया। वैसे भी मेरी लाइट कल
दोपहर बाद क थी, इस लए अभी शु कर के मुझे कोई खास फायदा नह होना था।
इस लए म क गया। मौसम काफ ठं डा हो गया था – और रात म ठं डक और बढ़नी ही
थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे स कार म लग ग – चाय पकोड़े इ या द! और उसके
बाद रात का खाना। इसी बीच म हमने सभी को शाद इ या द के ए बम दखाए। या ने
पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ ए बम छु पा लया था।

हमारे आने क खबर हमारे कसबे म आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे ब त
आ य नह आ जब या क कई सारी सहे लयाँ मुझसे मलने घर आ । वो सभी या
को चढाने के लए मुझसे ब त दे र तक हंसी मज़ाक करती रह ,

‘जीजू, हमारी बहना को आपने यादा सताया तो नह ?’


‘हाय राम, आपने तो इसका मुँह काला कर दया!’
‘ज ,ू इस बार अपने साथ आचार लेते जाइएगा!’

इ या द!
जब या क माँ ने उनको डांट लगाई, तो फर जाते जाते मुझसे काफ सट कर त वीर भी
खचाय , और एक गु ताख ने मेरा मुँह यार से न च कर चु बन दया। बदमाश लड़ कयाँ!

जाड़ म, खासतौर पर पहाड़ पर ब त ही ज द सूया त और अँधेरा हो जाता है। इस लए


सासू माँ खाने क ज द कर रही थ । खैर, डनर करीब सवा सात बजे ही परोस दया
गया, और करीब आठ बजे तक अपने सास-ससुर से बात करने के बाद, या और म,
या के (हमारे सुहागरात वाले) कमरे म आ गए। मने अ नी को भी कमरे म बुला लया।

“ या आ जीजू?”

“अरे, पहले अ दर तो आओ... फर बताएँग!े ”

मने एक एक कर के अ नी के उपहार उसके सामने सजा कर रख दए! अ नी नए नए


कपड़ को दे ख कर ब त खुश ई, “ये सब कुछ मेरे लये ह?”

“हाँ!”

“द द के लए या लया, आपने?”

“अरे! तुम अपना दे खो न!” या बोली...

“नह .. बस ऐसे ही पूछा! ... थक यू, जीजू!” कहते ए उसने मेरे दोन गालो पर चु बन भी
लया। मेरे बगल म या मु कुराती ई अपनी बहन को दे ख रही थी। अ नी ने फर या
को भी चूमा।

“इनको पहन कर दे खो तो! ठ क फट आते भी ह, या नह ?”

“ठ क है!” कह कर अ नी ने एक जोड़ी कपडा उठाया और सरे कमरे म चली गई। मने


यान नह दया क कौन सा उठाया था.. या और म कसी बात म मशगूल हो गए और
कुछ ही दे र म अ नी कमरे म आई। मने दे खा क वह सकुचाते ए चल रही थी – म
उसने कट और टॉप पहना आ था। सकुचाने क वजह भी थी। यह कट कसी और
जगह के लए मॉडे ट कहलाती, ले कन यहाँ, इस छोट जगह के लए हो सकता है उ चत
न हो! कट क ल बाई उसके घुटने के ठ क नीचे तक ही आई। मने और या दोन ने ही
उसक ेस का जायजा लया और फर मने अ नी को मुड़ने का इशारा कया। पीछे मुड़
कर हमको पूरा जायज़ा करने दे ने के बाद अ नी ने पूछा, “ठ क है?”

मेरे बोलने से पहले या ने क कहा, “अरे ब त ब ढ़या! मने नह सोचा था क इतना


अ ा लगेगा, है न?”

“ बलकुल! यह तो ब त ही अ ा फट आ है..” मने कहा, “अब ये जी स पहन कर


दखाओ।“

अ नी पूरे उ साह से अपना अगला कपड़ा ले कर कमरे से बाहर नकल गई, ले कन ब त


ज द ही वापस आ गई। उसने अभी भी कट और टॉप ही पहना आ था।

“ या आ?” मने पूछा।

“वहाँ जगह नही है.. म मी पापा आ गए ह। कल पहन कर दखा ं ?”

“अरे! कल तो म सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे दे खूँगा?“ मने मु कुराते ए कहा।

“अ नी, यही बदल ले न?” या ने सुझाया!

“यह ? तुम दोन के सामने?”

“हाँ! य या आ?”

“ध ! मुझे शम आएगी!”

“अरे, इसम शरम वाली या बात है? हम दोन को तुम पहले ही ‘वैसे’ दे ख चुक हो... और
‘ये’ तो तु हारे जीजू ही ह।”

अ नी ने कुछ दे र तक या क बात को तौला – संभवतः वह यह बात माप रही हो क


अपने जीजा के सामने कपड़े बदलना, या नव होना – या यह एक सहज या है?
द द तो ऐसे ही कहती ई मालूम हो रही है... अगर उसको कोई द कत नह है, और मुझे
नह है, तो फर बलकुल कया जा सकता है। ले कन ये लोग कह शरारत म कसी को
इसके बारे म कुछ बता न द!

“प का? आप दोन कसी को बताओगे तो नह ? पापा को मालूम पड़ गया तो मेरी टाँग


तोड़ दगे।“ ये अ नी ने मुझसे कहा था... ब त व ास चा हए, ऐसे काम के लए! मुझे
अ ा लगा क अ नी हम दोन पर इतना व ास करती है। ठं डक म इतनी दे र तक ऐसे
कम कपड़े पहने रहने के कारण वह थोड़ा कांपने भी लग गई थी।

“अरे, हम लोग य बताएँगे? बस ज द ज द चज कर के दखा दो। ठ क है?” मने कहा।

“ठ क है!”

कह कर अ नी ने जा कर कमरे का दरवाज़ा बंद दया, और वापस आ कर कपड़े बदलने


का उप म करने लगी। अब य द कोई ऐसा काम करे तो कोई कैसे न दे खे। या और म
दोन क अ नी को कपड़े बदलते ए उ सुकता से नहारने लगे। कसी के सामने नव
होना उतना आसान नह है, जतना कहने सुनने म लगता है। प त प नी भी पहली बार बार
जब एक सरे के सामने नव होते ह तो अपनी न नाव ा के बोध से कई बार सहवास
नह कर पाते।

“जीजू, आप उधर दे खए न? म कपड़े बदल लूँ!” अ नी ने कट का क खोलते ए


मुझसे कहा।

“रहने दे न! अगर म दे ख सकती ँ, तो तेरे जीजू के दे खने म या बुराई है?” या ने


तरोध कया।

“एक मनट! अ नी, अगर तुमको मेरे दे खने म शम आती है तो एक बार फर से कहो। म
आँख बंद कर लूँगा। बोलो बंद कर लू?ं ”

अ नी ने मुझे एक बार दे खा, दो पल यूँ ही चुप रही, और फर उसने शमाते ए नजरे नीचे
कर ली और सर हला कर ‘न’ कहा। और अपनी कट को नीचे सरका दया। अ नी ने
एक साधारण सी च ी पहनी ई थी। म और या दोन क अ नी को ऐसे दे ख रहे थे।
मुझे मज़ा आने लगा। अ नी ने धीरे से अपना टॉप भी उतार दया। उसने नीचे कुछ भी
नह पहना आ था – लहाजा, अ नी हमारे सामने सफ च ी पहने खड़ी ई थी...

पहला वचार जो मुझे अ नी के तन को दे ख कर आया, वह यह था क कुछ समय बाद


ये बड़े हो जायगे, और फर कसी दन ये तन कसी ब े को ध पलायगे। उ के
हसाब से उसके तन भी अभी छोटे ही थे – और उसके तना , या के तना से
एकदम अलग थे। वह गहरे भूरे रंग के थे, मानो चॉकलेट रंग के... और तना के बगल का
प रवेश न के बराबर था। एक पचास पैसे का स का उसके तना को ढक सकता था।
उसी म से छोटे छोटे स त तना बाहर क ओर नकले ए थे। अ नी मेरी नज़र म एक
ब ी ही है, अतः मुझे उसके छोटे तन , और उसके शरीर से कसी भी कार का
आकषण नह आ...

खैर, आगे जो अ नी ने कया वह हमारे लए पूरी तरह से अ या शत था। उसने नीचे


झुक कर अपनी च ी भी उतार द । य कया उसने ऐसे? वह थोड़ा सा घबराई ई अव य
थी, ले कन उसके चेहरे को दे ख कर लग रहा था क संभवतः उसको यह अपे त था। न
चाहते ए भी उसक छोट सी यो न पर मेरी नज़र चली गई। मन म ला न भर गई। मने
इशारे से अ नी को अपने पास बुलाया। वो थोड़ा झझकते ए मेरे पास आई तो मने
उसक कमर म हाथ डाल कर अपने पास ख च लया, और अपनी गोद म बैठा लया। अब
अ नी के शरीर क कंपकंपाहट काफ बढ़ गई थी – ठं डक श तया उस पर भाव डाल
रही थी। उसक न नता को मने अपने आ लगन से छु पा लया।

मुझे और कुछ समझ नह आया और मने उसको अपनी बाँह म ही भरे ए उसक गदन
पर एक चु बन दे दया।

“यह य जीजू?”

“आई ऍम सॉरी बेटा! हम तुमसे यह सब करने को नह बोलना चा हए था।“

“सॉरी मत क हये जीजू! मने जो भी कुछ कया, अपनी मज़ से कया। मुझे मालूम है,
आप दोन मुझसे खूब यार करते ह... इस लए मुझे कुछ भी बुरा नह लगा... उ टा, मुझे
ब त अ ा लगा क आपने मुझे ऐसे दे खा...”
“ बलकुल... वी लव यू वैरी मच! और तुम ब त खूबसूरत हो, अ नी!” कह कर मने
अ नी के दोन गाल बारी बारी चूमे, और एक बार फर से उसको जोर से अपने गले से
लगा लया। मेरी दे खा दे खी या ने भी अ नी को ब त यार से कई बार चूमा और ‘आई
लव यू’ बोला। अ नी शरमाते ए ऐसे ही न न हम दोन से काफ दे र लपट रही, और
फर उसने बारी बारी से अपने बचे ए कपड़े भी पहन कर दखाए। सारे के सारे प रधान
ब ढ़या फ टग के थे, और उस पर ब त जच रहे थे।

अ नी आ खरी कपड़े उतार कर अपने पहले वाले कपड़े पहनने का उप म कर ही रही


थी क बजली चली गई। कमरे म घु प अँधेरा! या ने कहा क वह बाहर जा कर
मोमब ी का इंतजाम करती है। इस बीच अ नी उसी अव ा (अधन न) म कमरे म खड़ी
रही। मने ही उसको अपने पास बुला कर ब तर पर बैठा लया। तीन चार मनट बाद या
मोमब ी ले कर कमरे म आई। उतने म अ नी ने अपना वापस सलवार कुता पहन लया।
जा हर सी बात है अब सोने का उप म होना था, और अ नी के बाहर जाने क बात थी।
ले कन अ नी जाने का नाम ही नह ले रही थी – ब तर पर ही बैठे बैठे संकोच भरी
मु कान भर रही थी।

“ या आ अ नी?”

“जीजू - द द !”, अ नी ने सकुचाते ए हम दोन से कहा, “आज म आप लोगो के साथ


सो जाऊं?” वो बेचारी लड़क बड़ी उ मीद और नरीहता से हम दोन को बारी बारी से दे ख
रही थी। मने या क तरफ वाचक डाली, और या ने मुझे अ यंत वनोद
उ सुकता से दे खा।

“म पहले हमेशा ही द द के साथ सोती थी...” अ नी ने कहना जारी रखा, “उसके जाने
के बाद मने उसको ब त मस कया... और कल आप भी चले जायगे। और म आपको भी
ब त मस क ं गी। लीज़!”

चूं क या ने कुछ नह कहा, तो मुझे ही इस त के लए नणय लेना था। ‘ या फक


पड़ता है?’ मने सोचा।

“हा हा... बस इतनी सी बात? बलकुल सो जाओ!” मने माहौल को थोडा वनोद बनाते
ए आगे जोड़ा, “मेरी क मत तो दे खो – एक साथ दो-दो सु दर लड़ कय के साथ सोने
का मौका मल रहा है आज!”

मेरी इस बात पर अ नी शरमा गयी। हम दोन को ही दन भर कपड़े बदलने का समय ही


नह मल पाया था, इस लए सोने से पहले कुछ आराम-दायक पहनना आव यक था। या
ने कहा क वह बड़े क बल लेकर आती है, और एक बार फर से बाहर चली गई, और कुछ
ही दे र म या दो बड़े क बल और च र लेकर वापस कमरे म आ गई। कपड़े चज करने से
पहले मने अ नी को मुँह फेरने को कहने क सोची, ले कन फर लगा क यह सही नह
होगा। उसी के सामने मने सब कपड़े उतार कर पजामा कुरता पहन लया – कमरे म वैसे
भी अँधेरा सा ही था, इस लए ब त हच कचाहट नह ई। मेरी दे खा दे खी या ने भी
अपनी साड़ी उतार द ... सफ साड़ी।

“अब मुझे यह बताओ क कस तरफ लेटोगी? मेरी तरफ या द द क तरफ?” मने ब तर


पर बैठते ए अ नी से पूछा।

“द द क तरफ!” अ नी ने जब शम से दोहरा होते ए कहा तो म और या दोन ही हँस


पड़े।

जैसा मने पहले भी बताया है क हमारा पलंग कोई ख़ास बड़ा नह था, लहाज़ा, तीन लोगो
के लेटने का केवल एक ही तरीका हो सकता था, और वह यह क या बीच म चत हो
कर लेटे, और म और अ नी दोन करवट लेकर। ऊपर से दोहरे क बल और च र क
परत ओढ़ ई थ , और साथ म तीन लोग चपक कर लेटे थे, इस लए गम अ हो गई
थी। लेटने से पहले मोमब ी बुझा द गई थी। मने करवट लेकर या को अपनी दा हनी
बाँह के घेरे म ले लया। अ नी मुझसे काफ दे र तक मेरे, बगलोर और अंडमान के बारे म
सवाल कर रही थी। उसक बात म, और दन क या ा क थकावट के कारण न द कब
आ गई, कुछ याद ही नह !

अगली सुबह काफ ज द उठ गया, और उठ कर ब तर से बाहर नकलते ही कड़ाके क


ठं डक का एहसास आ। सवेरे का कोई चार साढ़े -चार का समय आ था - सूय दय अभी
भी कोस र था। दरअसल इस बार पूरा दे श भीषण ठं ड क चपेट म ज द ही आ गया
था। गढ़वाल हमालय म ब नाथ, केदारनाथ, गंगो ी, यमुनो ी जैसे ान पर बफबारी
भी आर हो गई थी। हमारे जाने के बाद, और आने के पहले दे हरा न और अ य नचले
इलाक म क- क कर बा रश होती रही, जससे ठठु रन बढ़ गई थी। खैर, उ मीद थी क
इस कारण से सड़क पर यातायात कुछ कम रहेगा। और आ भी वैसा ही। मने सवेरे े श
हो कर चाय ना ता कया, उस बीच या को ज री नदश दए (यही क अपना ठ क से
ख़याल रखे, पढाई म मन लगाए..), उसको कुछ पए थमाये - जससे वह अपना, अ नी
और घर का, और या ा के अ य खच का वहां कर सके। उसके पास कोई बक अकाउं ट
अभी तक नह था, इस लए यही एकमा साधन था। खैर, ना ते के बाद सभी से वदा ली
– अ नी को यार से गले लगाया, और या को चूमा (सबके सामने ऐसे खुलेपन से ेम
द शत करने से वहां सभी लोग शरमा गए), और माँ-पापा से आशीवाद लया, और
वापसी क या ा शु क ।

मने दे खा क सड़क पर लोग क आवाजाही काफ कम थी, ठं डक का कोप साफ़ दख


रहा था। एक तो सवेरा था, और ठं डक भी ... इसके कारण यादातर लोग अपने घर म ही
बके ए थे। खैर, मने कुछ दे र तक गाडी चलाई – न द का और ठं डक का असर अभी भी
था – इस लए ब त आल य लग रहा था। कोई चालीस मनट ाइव करने के बाद मने
गाड़ी रोक द - रा ते म ही एक ढाबे टाइप रे ाँ था, अतः वह पर क कर गरमागरम चाय
और ब कट का सेवन करने का सोचा। शरीर म गम आई – कुछ भी हो... ठं ड म गम
चाय का आनंद ही कुछ और होता है!

यह ढाबा कसी ने अपने खेत के ज़मीन पर ही बनाया आ था – इसके पीछे खुला आ


खेत था, जसम सारस का एक जोड़ा एक अं यंत आकषक णय नृ य म म न था। सारस
प य का णय नृ य अ यंत मनोहारी और सुप र कृत होता है। कभी इनको यान से
दे खना – कई सारे सारस प ी कसी जलाशय म उतरकर अलग अलग जोड़ म बंट जाते
ह और अपने मनमोहक नृ य से अपनी े मका का मन जीत लेते ह। दे खा गया है क
सारस नर और मादा, एक सरे के त पूरी तरह से सम पत होते ह - एक बार जोड़ा बनाने
के बाद ये जीवन भर साथ रहते ह, और य द उनमे से एक साथी क मृ यु हो जाए, तो
सरा अकेले ही रहता है। इसी कारण से सारस प ी को दे खना ब त शुभ माना जाता है,
ख़ास तौर से ववा हत जोड़ो के लए।

प य का नृ य जैसे मेरे दे खने के लए ही हो रहा था – कोई एक मनट के बाद वे वापस


खेत म खाने पीने म लग गए। इस नृ य ने जहाँ मेरे मन को मोह लया, वही मेरे दय म
एक अजीब सा खालीपन भी छोड़ गया... मेरा तो सब कुछ पीछे ही छू ट गया था न! इतनी
उ हो आई, ले कन या से पहले कसी भी के संग क आव यकता मने कभी
महसूस नह करी। मने फ़ोन उठाया और एक एस एम एस लखा :
“Missing you already. Your voice, your touch, your smell, your warmth!
How will I spend these days without you?”

और या को भेज दया। चाय ख़तम कया और गाड़ी टाट ही करने वाला था क मेरे
फ़ोन पर एक एस एम एस आया :

“Dear husband.. my handsome husband! I also can’t wait to see you


again.”

म मु कुराया – आगे क या ा के लए मुझे भावना मक ऊजा मल गई थी। गाड़ी या ा का


पहला पड़ाव दे हरा न था – वहां मने गाडी वापस स पी, और एक जगह खाने के लए
का। वही जगह, जहाँ या और मने साथ म पहले भी लंच कया था। खाना खाते खाते
मुझे या का एक और एस एम एस आया :

“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”

‘ कस नह , इतने दन के इंतज़ार के बाद म सफ एक काम ही क ं गा!’ मने नराश होते


ए सोचा।

दे हरा न एअरपोट से बगलोर तक का सफ़र... समय मान हवा म उड़ गया। कुछ याद
नह । हाँ, जैसे ही बगलोर प ंचा, मने तुरंत ही या को फ़ोन लगाया और दे र तक यार
मोह बत क बात कर । जब घर प ंचा तो स ाटा बखरा आ था – यही स ाटा पहले
मेरा साथी था, ले कन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाक प! पुनज वन,
जो मुझे या के मेरे जीवन म आने से मला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, या
भगवन के ारा भेजा आ उपहार है मेरे लए। बलकुल!!

मने कं यूटर ऑन कया, और या क सबसे बेहतरीन न न त वीर ढूं ढ कर उसका ए४


साइज़ का ट लया और हमारे बेड म क द वार पर लगा दया। रात म खाना खा कर
या को फ़ोन पर मने ब त दे र तक यार कया और फर सोने से पहले एक और एस एम
एस कया :

“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my
dreams tonight.. naked!”
सवेरे दे र तक सोया और जब उठा तो दे खा क एक और संदेशा आया है :

“Honey! Getting ready for school. In my dream last night, we were


sleeping together. We were naked and your skin was hot. I never wanted
to wake up.”

बस, हमारे बछोह भरे दन और रात ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बात ( यादातर
रोमां टक और कामुक बात), कभी एस एम एस, तो कभी कभार प -लेखन भी!

खैर, म तो भई जब दे खो तब, अनायास ही, म अपना लग बाहर नकाल लेता, और मन ही


मन या के प को याद करते करते ह तमैथुन करने लगता। हमारे पुनः मलन क बेला
ब त र तो नह थी, ले कन इस बीच कम से कम दो स ताह तक मने ह तमैथुन कर के ही
काम चलाया। ले कन जस पु ष को या जैसी सा ात् र त क त प प नी मली हो,
उसका मन ह तमैथुन से कैसे भरे? तो अब मेरे पास या चारा था – सवाय या के वापस
आने के?
१६
या क नजर म :
आज के दन का म पछले एक महीने से इंतज़ार कर रही थी। आज मेरे कृ ण.. मेरे अथव
से मलने मुझे बगलोर क या ा जो करनी थी। जबसे म अपने मायके आई (दे खए न...
कैसे ‘अपना पुराना घर’ मायका बन जाता है... य द प त का ऐसा नेह मले तो कुछ भी
संभव है).. तभी से मुझे बस अपने पया से मलने क धुन सवार है। मने अन गनत
लड़ कयाँ दे खी ह, जो शाद के बाद वापस अपने मायके आने के लए मरती रहती ह...
और एक म ँ जो वापस अपने प त के घर जाने के लए मरी जा रही ँ। ऐसा नह है क
मुझे माँ पापा से कोई कम यार मला – वो दोन तो जान छड़कते ह। माँ तो मुझे घेर कर
बैठ गई – ‘मेरे घर’ क हर बात के बारे म पूछा – या है, कैसा है, वहां के लोग कैसे ह,
अथव कैसे ह, घर कैसा है, समु कैसा होता है, अंडमान कहाँ है, हवाई जहाज म कैसा
लगता है इ या द इ या द। एक दो दन बाद माँ ने दबा-छु पा कर अथव और मेरे अ तरंग
संबंधो के बारे म भी पूछ लया। मेरी शम भरी संतु मु कान और संकोच भरी वैवा हक
बात से वे अव य ही संतु और स ई ह गी।

वापस मायके आना तो मानो एक मशन समान था। ढं ग क उ मा य मक श ा और


अंक ा त करने का मेरा उ े य और बढ़ गया। यादातर लड़ कयाँ शाद के बाद अपनी
श ा क इ त ी कर लेती ह, ले कन अथव के ो साहन, मेरी श ा म उनक च और
श ा के लहाज से उनके ‘लायक’ बनने क मेरी वे ा के कारण म इस एक महीने और
आगे आने वाले समय म ठ क से पढाई करना चाहती थी। परी ा के लए फाम इ या द
भरने का काय स हो गया था, और म अपने श क और श का के साथ
यादातर समय पढ़ने म लगा रही थी। कुछ ही दन म छू टा स कोस मने पूरा कर लया
और वतमान कोस के बराबर आ गयी। मेरी दे खा दे खी अ नी भी पढाई म ही मन लगा
रही थी, और यह सब कुछ हमारे माँ पापा को ब त संतु कर रहा था। वो दोन हमेशा क
ही तरह हमारी सभी सु वधा का यान रख रहे थे, जससे हमारी पढाई लखाई म
वधान न हो। इसका यह मतलब कतई नह क मने एक महीना सफ पढाई ही करी –
कसी पा रवा रक म के यहाँ कोई योजन हो तो हम लोग वहाँ ज़ र गए। स दय म
वैसे भी खाने पीने क चुरता हो जाती है, तो मने खाने पीने म भी कोई कोताही नह
बरती। रोज़ अथव से फोन पर बात हो ही जाती थी, इस लए हर रोज़ मुझे अवलंब (सहारा)
मलता।
मजे क बात हो और सखी सहे लय का ज न हो, ऐसा नह हो सकता। उनक हंसी-
चुहल, और मेरी टांग खचाई पूरे महीने भर चली। अंततः बात मेरे यौन अनुभव पर आ
कर क । माँ ने यौन संबंध के बारे म जब मेरे साथ पहली बार (शाद के कुछ ह त
पहले) चचा करी थी तो मुझे इतनी शम और हचक महसूस ई क म आपको बता नह
सकती। ऐसे कैसे मन से ‘इन’ वषय पर बात क जाय? अ त है न? हमारे दे श म इतने
सारे ववाह, और इतने सारे ब े होते ह... फर भी इन वषय पर माँ-बाप से ब े शायद
ही कभी बात करते ह। संभव है इसी लए माँ ने पड़ोस क भा भय को मुझे कुछ ान दे ने
को कहा होगा। झझक तो उनके साथ भी ई, ले कन कम... ले कन सहे लय के साथ इस
वषय पर खु लम-खु ला बात हो जाती है। पछले चौदह प ह साल से एक सरे के दो त
होने के कारण हम लोग हम एक- सरे क कई सारी नजी बात भी जानते ह, और ज़ रत
पड़ने पर सलाह मश वरा भी लेत-े दे ते ह। हमारे बीच छे ड़-छाड़ और हंसी-मज़ाक उ के
साथ साथ बढ़ती चली गयी। तो आज जब सहवास के बारे म उनको जानने बूझने का
मौका मला, तो मेरी तीन ख़ास सहे लय ने तो मुझे घेर कर सब कुछ जानने और पूछने क
ठान ली।

“शाद के बाद या- या धमाल कया मेरी ब ो ने?” एक सहेली ने पूरी बेशम से पूछा।

“अरी, शरमा मत मेरी लाडो! उस दन हमने तु हारी आह सुनी थ ... जीजू तुमको सवेरे
सवेरे ही नबटाये डाल रहे थे! हाय! बता री! या या कया तुम दोन ने?” सरी सखी ने
पूछा – नमक मच लगा कर।

“अरे बता दे ! ऐसे य नखरे कर रही है? अरे, हम भी तो कुछ सीखने को मले!” तीसरी ने
और कुरेदा।

“ य री! तुम लोगो को कुछ यादा ही हवा लग गई है जवानी क !” मने चुटक ली।

“अरे वाह! तू तो याह कर के इतने मजे ले रही है.. अपने राजा के साथ महल म रह रही
है... और हमको जवानी क हवा भी नह लगे! वाह भाई वाह!” तक वतक जारी था।

मुझे यह नह मालूम क पु ष अपने यौन संबंधो क बाते अपने म से करते ह या नह ,


ले कन य के बीच ऐसी बात करना ब त वाभा वक सा लगता है। यादातर म हलाएं
जब अपनी सहे लय से मलती ह, तो अ सर यौन संबंध क बात करती ह। मेरी सारी
सहे लयाँ मेरी हम-उ थ , और एक दो क तो शाद क बात भी चल रही थ (यह कोई
अनहोनी बात नह है... पछड़े इलाक म स ह अठारह क उ म शाद तो ब त ही आम
बात है)। उस उ म वैसे भी यौन इ ाएँ अपने पूरे शबाब पर होती ह – सभी लड़ कयाँ
अपने अपने (का प नक) साथी के साथ अ तरंग संबंधो क क पना कर रही होती ह। वैस,े
अब उन लड़ कय म मुझे ऊँचा दजा मल गया था – म अनुभवी जो हो गई थी। ब त दे र
तक न नुकुर करने के बाद मने उनको धीरे धीरे सुहागरात और हनीमून से लेकर, यहाँ
वापस आने तक क सारी बात सल सलेवार तरीके से बता द । इसम या ही बुराई हो
सकती है... वो कहते ह न, ान बांटने से बढ़ता है। मने तो मानो सा ात् कामदे व से यौन
श ा ा त करी थी। इस लए मने उनको सब कुछ व तार से बताया क कैसे मेरे प त ने
मुझे हर दन, दोन हाथ से लूटा। उनको मने जब अंडमान के बीच पर सफ अधोव म
खुली धूप सकने के बारे म बताया तो, कसी ने यक न ही नह कया।

“हाय! शम नह आती? ऐसे ही... सबके सामने?”

“अरे हम कैसे मान ल? कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर बोल दे गी, और हम मान लगे?”

“नह मानना है तो मत मान! हमने जो कया, वो मने बता दया!” कह कर मने हाथ झाड़ा,
और उठने लगी।

“अरे! तू तो नाराज़ हो गई...” सहेली ने मुझे हाथ पकड़ कर वापस बैठाया, “मान लया
भई! ये तो बता, जीजू तेरे पीते ह या? का मनी कह रही थी क उसके भैया उसक
भाभी के पीते ह... उसने उन दोन को ऐसे करते ए दे खा था। अब तू ही बता भला! ध
पीने का काम तो ब का है, बड़े लोगो का थोड़े ही!”

अ तरंग सवाल का सल सला थमने वाला नह था।

“बोल न, या! जीजू पीते ह या तेरे ध?”

उ र म म सफ मु कुरा द ।

“पीते ह? या सच म! हाय राम!” उन सबको व ास नह आ।


“बाप रे! बोल री या! कैसा लगा था तुझे?”

“अरे! मुझे कैसा लगा, तुझे कैसे बताऊँ? सभी के अनुभव अलग अलग ह गे!” मने
समझदारी दखाई, और टालने का यास भी कया।

“नखरे करने लगी फर से! बोल दे न, जब जीजू ने तेरा ध पया तो तुझे कैसा लगा?”

“नखरे कैसे? तेरे पए जायगे तो तुझे भी मालूम पड़ेगा!”

“अरे वो तो जब होगा, तब होगा! ले कन तू भी तो कुछ बता न?”

मुझे शम आने लगी, “हाय! कैसे बताऊँ?”

“ब ो रानी, तुझे करते और करवाते ए तो शम नह आई.. ले कन हम बताते ए आ रही


है! अब बता भी दे ... नह तो तेरे पाँव पड़ जाएँगी हम!”

“उ म... ठ क है.. नहाते-धोते समय हम सबने अपने तन छु वे ही ह... ले कन जब ‘उनके’


गम होठ का श... उस जैसा अनुभव कभी नह हो सकता! एकदम नया एहसास! मेरे
पूरे बदन म झुरझुरी सी दौड़ गई.. अभी भी वैसे ही होता है। मेरे चुचक तो उनके मुँह म
जाकर मान प र जैसे कड़े हो जाते ह। और वो बदमाश, उनको कसी ब े क ही तरह
चूसते ह.... म तो अपने होश ही खो दे ती ँ। उनका हमला अ सर यह से शु होता है...
शायद उनको मेरे तन वा द लगते ह ! सच बताऊँ, जब वो इनको पीते ह तो मेरा भी मन
नह भरता... बस यही लगता है क वे मेरे दोन चुचक लगातार पीते रह। दद क भी कोई
परवाह नह होती... इतना आन द जो आता है! उसके सामने यह दद कुछ भी नह । आनंद
आता है, ले कन मेरा हाल भी बुरा हो जाता है... शरीर बुरी तरह कांपने लगता है और हर
अंग से गम छू टने लगती है और साँसे भारी हो जाती ह। मुझे नह लगता क ब को ध
पलाने पर ऐसा लगेगा!”

मेरी सहे लयाँ मेरी बात से पूरी तरह मं मु ध हो ग ।

“तू है ही इतनी सु दर! जीजू ही या.. अगर म होती तो म ही तेरे पीती र !ँ ”


“ह बेशरम! इसी लए ये सब बात नह करनी चा हए... कैसे कैसे ख़याल आने लगते ह!”
मने फर से समझदारी से कहा।

मेरी सहेली मेरी बात से हतो सा हत नह ई.. और मेरे सीने को दे खते ए बोली, “सच
या! एक बार इ ह छू लूँ या... बुरा तो नह मानोगी न?”

“नह रे! पागल हो गई है या? अब ये तेरे जीजू क अमानत ह!”

ले कन वो लगता है सुन ही नह रही थी। उसने संकोच करते ए मेरे तन पर हाथ लगाया,
और फर कुछ दे र हाथ फ़ेर कर सहलाया।

“हाय रे! कतने कड़े ह तेरे !” उसने कहा। उसक बात सुन कर जैसे सभी को मेरे तन
छू ने का लाइसस मल गया हो – सभी ने बारी बारी से छु आ और सहलाया।

“अब बस! र रहो मुझसे तुम सब!” मने उनको यारी झड़क द ।

सहे लयां मान ग ... और फर एक सहेली दबी आवाज़ म बोली, “अ ा, एक बात तो


बताना, पहली बार म ब त दद होता है या?”

अब म इस बात का या जवाब ँ ! जवाब ँ भी क न ँ ? मने अनजान बनने क सोची,

“पहली बार? बताया तो! जब वो पीते ह तो दद तो होता है... इतनी दे र तक जो पीते ह,


इस लए।“

“अरे यार! जब ध पीने क बात नह कह रही ,ँ जब वो ‘डालते’ ह, तब दद होता है – ये


पूछ रही ?ँ ” उसने पूरी नंगई से अपनी बात करी।

“दे ख... जब उनके जैसा प त तुझे मलेगा, तब तू समझेगी!” मने समझदारी से बात को
टालते ए कहा।

“उनके जैसा मतलब? जीजू का... ब त बड़ा है या?” सरी सहेली ने अटखेली करी।
“ह बेशरम!”

“अरी बोल न!! दे ख, जीजू ह भी तो कतने ह े क े ! ब त बड़ा होगा उनका तो! कैसे
सहती है? बोल दे ! कौन सा हम उनको नंगा दे खे ले रहे ह?” लड़ कयाँ तो ज़द पर अड़ ग
थ।

“अ ा, तो सुन! मुझे दे ख.. म तो ँ इतनी बली पतली सी.. और जैसा तूने कहा, तेरे
जीजू ह एकदम ह े क े ! तो उनका अंग ब त बड़ा है मेरे लए... ले कन वो इतने यार से
करते ह क दद का यादा पता नह चलता। उनक को शश हमेशा मुझे खुश करने क
होती है.. इस लए ब त दे र तक मुझे यार करते ह। अगर वो ऐसे ही अपने अंग को मेरे म
घुसेड़ द तो म तो मर ही जाऊं! इस लए ऐसे न सोचना क बड़ा और मोटा लग होगा तभी
तुमको ब त मज़ा आएगा... तु हारे प त को ढं ग से करना आना चा हए, तभी मज़ा
आएगा!”

मने न जाने कस भावना म आकर यह सब कह दया!

“आय हाय! मेरी ब ो! तू तो पूरी वा यायन बन गई है!”

“हा हा हा!” सभी ने अठखे लयाँ भर ।

“रोज़ रोज़ कामसू क नयी नयी कहा नयाँ जो लखती है...!”

“अ ा, ये बता.. और या या करती है तू?”

“और या?”

“अब हम या मालूम होगा? दे ख री, तेरी इस लास क हम सब टू डट् स ह... जो भी कुछ


मालूम है, और जो भी कुछ कया है, वो हमको बता दे लीज़! हमारा भी उ ार हो
जाएगा!!”

“अ ा, एक बात बता तो! तुम दोन पूरी तरह से नंगे हो जाते हो या?”
म फर से शरमा गई, “तेरे जीजू का बस चले तो मुझे हमेशा नंगी ही रख! ब त बदमाश ह
वो!”

“सच म? ले कन तू तो इतनी बड़ी लड़क है, नंगी होने पर शरम नह आती?”

“आती तो है... ले कन म या क ँ ? वैसे भी.. अपने ही प त से या शरमाऊँ? वो अपने


हाथ से मेरे कपड़े उतारते ह, और मुझे पूरी नंगी कर दे ते ह। लाज तो आती है, ले कन
रोमा च भी भर जाता है।“

“हाँ! वो भी ठ क है! अ ा, एक अ दर क बात तो बता... तूने जीजू का .... लग ... छू


कर दे खा?”

“हा हा हा! अरे पगली, अगर छु वूंगी नह , तो सब कुछ कैसे होगा? हा हा!” इस नासमझ
बात पर मुझे हंसी आ गयी। “शाद क रात को ही उ ह ने मुझे अपना लग पकड़ा दया
था... मेरी तो जान नकल गयी थी उसको दे ख कर...”

“कैसा होता है पु ष का लग?”

“बाक लोग का नह मालूम, ले कन इनका तो ब त पु है। इतना (मने हवा म ही


उँ ग लय को करीब सात इंच र रखते ए बनाया) ल बा, और मेरी कलाई से भी मोटा है!”

“ या बात कर रही है? ऐसा भी कह होता है?”

“वो मुझे नह मालूम... ले कन इनका तो ऐसा ही है। और तुझे कैसे मालूम क कैसे होता
है? कस कस का लग दे खा है तूने?“

“बाप रे! और वो तेरे अ दर चला जाता है?” उसने मेरे सवाल क अनदे खी करते ए पूछा।

“मने भी यही सोचा! उनका मोटा तगड़ा लग दे ख कर मने यही सोचा क यह मुझमे
समाएगा कैसे! उस समय मुझे प का यक न हो गया क आज तो दद के मारे म तो मर ही
जाऊंगी! सोच ले, शाद करने के बाद लड़ कय को ब त सी तकलीफ़ झेलनी पड़ती ह।
और मेरी क मत तो दे खो.... उनका लग तो हमेशा खड़ा रहता है... कभी भी शांत नह
रहता! जानती है, मेरी हथेली उनके लग के गद लपट तो जाती है, ले कन घेरा पूरा बंद
नह होता। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लग क ल बाई का कम से कम आधा
ह सा मेरी पकड़ से बाहर नकला आ रहता है।” अब म भी पूरी नल ता और
त मयता के साथ सहे लय के ान वधन म रत हो गयी।

“अरे तो फर ऐसे लग को तू अ दर लेती कैसे है?”

“मने बताया न... वो यह सब इतने यार से करते ह क दद का पता ही नह चलता। वो


ब त दे र तक मुझे यार करते ह – चूमते ह, सहलाते ह, इधर उधर चाटते ह। जब वो
आ खर म अपना लग डालते ह तो दद तो होता है, ले कन उनके यार और इस काम के
आनंद के कारण उसका पता नह चलता।“

ऐसे ही बात ही बात म न जाने कैसे मेरे मुंह से हमारी न न त वीर वाली बात नकल पड़ी।
कहना ज़ री नह है क ये सारी लड़ कयां हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ ग क म उनको ये
त वीरे दखाऊँ। कसी तरह से अगले दन कॉलेज के बाद दखाने का वायदा कर के मने
जान छु ड़ाई।

अगले दन कॉलेज के बाद हम चार लड कयां हमारे बु याल/झील वाले झोपड़े क ओर


चल द । म तो आराम से थी, ले कन बाक तीन ज द ज द चल रही थ , और मुझे तो
मान घसीट रही थ । खैर, हम लोग वहां ज द ही प ँच गए।

“जानती हो तुम लोग... हम दोन ने यहाँ पर भी.... हा हा!” मने ड ग हांक ।

“ या!!!? बेशरम कह क ! और तुम ही या? तुम दोन ही बेशरम हो! अब तो हमको


यक न हो गया है क तुम दोन ने ऐसी वैसी त वीर खचाई ह। खैर, अब ज द से दखा
दे ... दे र न कर!“ तीन उन त वीर को दे खने के लए मरी जा रही थ ।

म भी उनको न सताते ए ‘उन’ त वीर को सल सलेवार ढं ग से दखाने लगी। शु वात


हमारी उन त वीर से ई जब हम बीच पर न न लेटे सो रहे थे, और सुजेन ने चुपके से
हमारी कई त वीर ख च ली। उन त वीर म हम पूणतः न न और आ लगनब होकर सो
रहे थे। अथव मेरी तरफ करवट करके लेटे ए थे – उनका बायाँ पाँव मेरे ऊपर था, और
उनका अध- तं भत लग और वृषण दख रहे थे। म पीठ के बल लेट ई थी और
मेरा न न शरीर पूरी तरह द शत हो रहा था। सच मा नए, तो कुछ यादा ही द शत हो
रहा था।

“ या! मेरी जान!” एक सहेली ने कहा, “तुझको मालूम है क तू कतनी सु दर है? तुझे
दे ख कर मन हो रहा ही काश म मद होती तो म तुझसे शाद करती! सच म!” कहते ए
उसने मुझे चूम लया।

“अरे ऐसा या है! तुम तीन भी तो कतनी सु दर हो!”

“अगर ये सच होता, मेरी ब ो, तो जीजू तुझे नह , हम म से कसी को चुनते! या पैनी


नज़र है उनक !” कह कर एक ने मेरे तन पर चकोट काट ली।

“चल, अब और सब दखा..”

आगे क त वीर म मने जम कर पोज़ लगाये थे... कभी मु कुराती ई, कभी मादक अदाएं
दखाती ई! कुछ त वीर म म एक पेड़ के तने पर पीठ टका कर अपने दा हने हाथ से
ऊपर क एक डाली को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर क
तरफ ख च रही थी। यह त वीर सबसे कामुक थ – उनम मेरा पूरा शरीर और पूरी सु दरता
अपने पूरे शबाब पर द शत हो रही थी। कुछ त वीर म म अपने चूचक उँ ग लय से पकड़
कर आगे क ओर ख च रही थी – शम, झझक, उ ेजना और गव का ऐसा मला जुला
भाव मेरे चेहरे पर मने पहले कभी नह दे खा था। आगे क त वीर म अथव अपने
आ नेया पर ेम से हाथ फरा रहे थे; फर उनके लग क कुछ अन य त वीर आ ,
जसम पूरे लग का अंग व यास साफ़ द शत हो रहा था।

और फर आ वह त वीर जनको दे ख कर मेरी सहे लया दहल ग । वे त वीर थ जनम


म अथव का लग अपने मुंह म लेकर उसको चूम, चूस और चाट रही थी। मुख मैथुन का
ऐसा उ मु दशन तो मने भी नह दे खा था पहले... सहे लय क तो बात ही या? वो
सभी म मु ध हो कर वो सारे च दे ख रही थ ... उनके लग के ऊपर से श द पीछे
हट गया था, जससे हलके गुलाबी रंग का लगमुंड साफ़ दखाई दे रहा था। आगे क कुछ
त वीर म उनका लग मेरे मुख क और गहराइय म समाया आ था।

“हाय या! तुझे ग दा नह लगा?”


“पहली बार तो कुछ उबकाई आई... ले कन जब इनको ग दा नह लगता (मेरा मतलब
अथव ारा मुझे मुख-मैथुन करने से था) तो मुझे य लगेगा?”

“अरे जीजू को तो मज़ा आ ही रहा होगा!” फर उसका दमाग चला, “एक मनट... उनको
य ग दा लगेगा?” उसने पूछा।

“नह .. मेरा मतलब वो नह था.. तेरे जीजू भी तो मुझे वहाँ चू...” कहते कहते म शमा कर
क गयी।

“ या? सच म? हाय! या! तू सचमुच ब त लक है!”

आगे क त वीर म अथव मुझे भोगने म पूरी तरह से रत थे - वे कभी मेरे ह ठो को चूमते,
तो कभी मेरे तन को। और फर आया आ खरी पड़ाव – उनका लग मेरी यो न के भीतर!

“बाप रे! ऐसे होता है सहवास?!” सहे लयां बस इतना ही कह सक ।

जब त वीर ख़तम हो ग , तब मेरी सभी स खयाँ भी शांत हो ग । आज उनको ऐसा ान


मला था, जो वो अपने उ भर नह भूल सकगी।

मने उनको यार से समझाया क सहवास ववाह का सफ एक छोटा सा ह सा है। अगर


सफ उसी पर यान लगेगा तो दल टू टने क पूरी गु जाइश है! ववाह तो ब त ही व तीण
वषय है... उनका यार... वो जस तरह से मुझे स मान दे ते ह और मेरी हर इ ा क पूत
करते ह, वह यादा बड़ी बात है। इसी कारण से उनक हर इ ा पूरी करने का मेरा भी मन
होता है। जीवन भर के इस नाते को नभाने के लए प त-प नी का एक- सरे के त
वफादार होना ब त आव यक है। सुख तो तभी होता है। अगर ववाह क न व बस काम
वासना क तृ त ही है, तो बस, फर हो गया क याण! ये तो मुझे और पढ़ने, आगे बढ़ने
और यहाँ तक क अपना खुद का काम करने के लए ो सा हत कर रहे ह। और मुझे मेरे
खुद के व को नखारने के लए बढ़ावा दे रहे ह। ...वो मुझे कैसे न कैसे हंसाने क
को शश करते रहते ह.. ऐसा नह है क उनक हर बात, या हर जोक पर मुझे हंसी आती
है... ले कन वो को शश करते ह क म खुश र ँ.. यह बात तो मुझे समझ म आती है! अपने
माँ बाप का घर छोड़ कर, उस अनजान जगह पर, अनजान प रवेश म, एक अनजान
आदमी के साथ म रह सक , और रहना चाह रही ,ँ अपने को सुर त मान सक , और
उनको मन से अपना मान सक तो उसके बस यही सब कारण ह... यह सब कुछ सफ
म पढ़ने, और री त रवाज़ नभा लेने से तो नह हो जाता न!

मेरी सहे लय ने मेरी इस बात को ब त यान से सुना। उनके मन म या था, यह मुझे नह


मालूम... ले कन जब मेरी बात ख़तम ई, तो सभी ने मुझे कहा क वो मेरे लए ब त खुश
ह! और चाहती ह, और भगवान् से यही ाथना करती ह क हमारी जोड़ी ऐसे ही बनी रहे,
और हम हमेशा खुश रह।
१७
एक महीना यादा भी होता है और कम भी! उसका अंतराल इस बात पर नभर करता है
क हमारी मनः त कैसी है? मजे क बात यह है क हम दोन क मनः त स भी
थी, और बेकल भी। स इस बात से क एक एक कर के महीने के सारे दन बीत रहे ह,
और बेकल इस बात से क कैसे ज द से ये दन बीत जाएँ। व च बात है न क कृ त
अपने नधा रत वेग पर चलती रहती है, ले कन हम मानव अपने मन म कुछ भी सोच सोच
कर उसके व च प रमाण बनाते रहते ह – ‘यह ह ता कतनी ज द बीत गया’, ‘इस बार
यह साल ब त ल बा था’ इ या द!

मने इस माह सफ तीन काम ही कए – अपना ऑ फस का काम (भगवान् क दया से यह


ब त ही लाभकर महीना सा बत आ), सेहत बनाना (शाद के बाद इस दशा म कुछ
लापरवाही हो गयी थी.. ले कन अब वापस पटरी पर आ गयी) और या क बाट जोहना!

श नवार सवेरे के करीब साढ़े दस बज रहे ह गे – आज वैसे भी ब त ही आल य लग रहा


था। सवेरे न तो जॉ गग करने गया, और न ही कसरत! बस पतालीस मनट पहले ही
जबरद ती ब तर से उठ कर, कॉफ़ बना कर, अखबार के साथ पीने ही बैठा था क
डोरबेल बजी!

‘इतने सवेरे सवेरे कौन है!’ सोचते ए मने जब दरवाज़ा खोला तो दे खा क सामने न कता
खड़ी थी। न कता याद है न? मेरी भूतपूव े मका!

“हाआआय!” न कता का मु कुराता आ चेहरा जैसे सौ वाट के ब ब जैसे चमक रहा था।

म भ च क! ‘ये यहाँ या कर रही है?’ दमाग म अ व ास और संदेह ऐसे कूट कूट कर


भरा आ है क सहजता समा त ही हो चली है मेरे अ दर। मेरे मुंह से बोल नह नकली।

“आज बाहर से ही दफ़ा करने का इरादा है या?” न कता ने बुरा नह माना। अ े मूड म
लग रही है।

“हे! हे लो! आई ऍम सॉरी! लीज... कम इन! यू सर ाइ मी!” मने खुद को संयत कर


के ज द से उसको अ दर आने का इशारा कया।
“सर ाइज होता तो ठ क था... तुम तो शा ड लग रहे हो! हा हा!” न कता हमारे ेकअप
से पहले अ सर घर आती थी, और हम दोन कई सारे अ तरंग ण साथ म बता चुके थे...
ले कन वो पुरानी बात है।

“कॉफ़ पयोगी?” मने पूछा।

“अरे कुछ पीना पलाना नह है! आज तो म ती करने का मूड है! या कहाँ है? उसको
शौ पग करवाने लेने आई .ँ .”

“शौ पग?” न कता को शौ पग करना ब त अ ा लगता था (वैसे कस लड़क / ी को


अ ा नह लगता?)।

“ या तो नह है..”

“नह है? कहाँ गयी?”

“वो अपने मायके गई है..”

“मायके? अरे, अभी तो तुम दोन वापस आये हो हनीमून से! अभी से रयाँ? या फर
तुमने कुछ कर दया, यू नॉट बॉय? यू नो! हा हा हा!” न कता मेरी टांग ख चने से बाज़
नह आती कभी भी।

कमाल क बात है! इस लड़क का दल वाकई ब त बड़ा है। मने ेकअप के बाद, जस
बे ख़ी से न कता से कनारा कया था, मुझे कभी नह लगता था क वो मुझसे फर कभी
बात भी करना चाहेगी। ले कन उसको इस तरह से हँसते बोलते दे ख कर मुझे यक न हो
गया क उसने मुझे माफ़ कर दया था। ले कन फर भी, म अपने नए जीवन म कोई भी या
कसी भी कार का उलझाव नह आने दे ना चाहता था।

‘इसको ज द टरकाओ यार!’ मने सोचा।

“ऐसा कुछ नह है... उसक लासेज ह न! इस लए गयी है।“


“ लासेज? कौन सी? कस लास म है वो अभी?”

“कॉलेज! आएगी वो दस दन बाद! तब ले जाना उसको शौ पग!” मुझे लगा क वो यह


सुन कर चली जायेगी।

“ हाट? कॉलेज? तुमने ‘बाल ववाह’ कया है या? हा हा हा! ओ माय गॉड! बा लका
वधू.. हा हा हा!” न कता पागलो के तरह सोफे पर हँसते ए लोट पोट ई जा रही थी।

“सॉरी सॉरी... हा हा! मेरा वो मतलब नह था। म बस तुमसे मजे ले रही ँ.. ओके? ड ट
माइंड!” न कता अंततः चुप ई.. और कुछ दे र कने के बाद बोली,

“... या वाकई ब त यारी है। यू आर अ लक मैन! उस दन तु हारी रसे शन ै श करने


के लए मुझे माफ़ कर दे ना... ले कन म दे खना चाहती थी क तुमने कससे शाद क है..
रहा नह गया! पुरानी आदत! सॉरी!” उसक आवाज़ म न कपटता थी।

“ले कन... उस दन उसको दे खा तो म अपना सारा गु सा भूल गई! यू डस ड हर। वो ब त


यारी है... तुम बुरे आदमी नह हो... बस थोड़ा ब े जैसे हो। वो छोट है, ले कन तुमको
यार करती है – उसक आँख म दखता है। शी वल टे क केयर ऑफ़ यू! और यह मत
सोचना क म या से मल कर तु हारी कोई बुराई क ं गी... आई ज ट वांट टू बी हर ड!
डू यू माइंड?” न कता क यह ीच ब त संजीदा थी। कोई बनावट नह ।

“आई ऍम सॉरी न कता। आई रयली ऍम! शायद तुम सही हो – और म वाकई एकदम
बचकाना .ँ .”

न कता ने मेरी बात बीच म काट द , “... नह बचकाने नह .. मेरा मतलब था, तुम मेरे छोटे
भाई होने चा हए थे.. लवर नह ।“

“तुमने शाद क ?”

“तुमको या लगता है?”

“ म....” (मतलब नह क ।)
“ यार वार के मामले म अपनी क मत थोड़ी खोट है.. खैर, मेरी बात फर कभी.. तुम
बताओ.. नया और ए साइ टग तो तु हारी लाइफ म चल रहा है.. सबसे पहले ये बताओ
क तुमको इतनी यारी लड़क मली कहाँ? ... और हाँ, एक कप कॉफ़ मेरे लए भी बना
दो!”

न कता से बात करके ऐसा लगा ही नह क उससे आ खरी बार तीन साल पहले मला। ये
लड़क ब त बदास थी – पूरी तरह व नभर, बेख़ौफ़, और अपने मन क बात कहने और
करने वाली। ब त कुछ सीखा मने इससे... ले कन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था! मने
अपनी उ राँचल रोड- प और फर या और उसके प रवार वाल से मलने, और फर
हमारी शाद क बात सल सलेवार तरीके से सुना द । न कता को यह सुन कर अ ा
लगा क मने कम से कम छु याँ तो ल ..

“ये तो पूरी तरह से फेयरी-टे ल है! आई ऍम सो है पी फॉर यू..” फर घड़ी दे खते ए, “अरे
यार! ये तो एक बज रहा है! पूरा लान बेकार हो गया... बोलना अपनी बीवी को, क ऐसे
इधर उधर रहेगी तो हमारी दो ती कैसे होगी?”

जवाब म म सफ मु कुरा दया।

“अ ा... तो हम चलते ह..” गाते ए न कता उठने लगी।

म मु कुराया, “ओके! बाय! यू टे क केयर!”

“अरे.. दो त को ऐसे वदा करते ह?” कहते ए न कता ने गले मलने के लए अपनी बाह
फैला द । अब श ाचार के नाते गले तो मलना ही चा हए न? म झूठ नह बोल सकता –
न कता को इतने समय बाद वापस गले लगाना अ ा लगा... ब त अ ा! वही पुराना,
प र चत और सुर त अनुभव! मने उसके बाल म हाथ फराया – तउ र म उसके गले
से हलक ‘ह म’ जैसी आवाज़ नकली। उसको आ लगन म ही बांधे, मने उसके बाल पर
एक चु बन लया।

“अरे.. ये तो गलत बात है! अगर कस करना है, तो ल स पर करो! बाल पर य वे ट


करना?” कहते ए उसने मुझे ह ठ पर चूम लया। और हँसते ए मेरे बाल म कई बार
हाथ फराया। म वह दरवाज़े पर ह का ब का खड़ा यह सोचता रह गया क यह या
आ?

“ओके! टाटा! या आ जाय तो बताना... आई वल कम!” कहते ए वह बाहर नकल


गयी। और म सोचता रह गया क यह सब आ या?

और ज द ही या के वापस आने दन आ गया।


या ाली पर अपना सामान लेकर बाहर नकली। ब त यारी लग रही थी – उसने एक
ेताभ (ऑफ हाइट) कुरता और नीले रंग का सलवार पहना आ था। प ा भी ेताभ
ही था। नह भाई – यह कोई यू नफाम नह था, ले कन उससे े रत ज़ र लग रहा था। मेरे
साथ तो मने कभी भी या को स र, मंगलसू इ या द के लए जबरद ती नह क –
उसके कारण पूछने पर म उसको कहता क उसका प त तो उसके साथ है, फर ऐसी
औपचा रकता क या आव यकता? ले कन उ राँचल म वह पूरी तरह से अपने माता
पता क ढ़वाद चौकसी के अधीन रही होगी, लहाजा उसने इस समय स र,
मंगलसू , चू ड़याँ और ब छया सब पहन रखी थी। सलवार कुरता पहनने को मल गया,
यही ब त है। या कुछ सहमी सी और उ न लग रही थी। उसक आँख न त तौर पर
मुझे ही ढूं ढ रही थी।

‘बेचारी! पहला ल बा सफ़र और वो भी अकेले!’ ले कन, हर बार तो म उसके साथ नह


जा सकता न! उसको दे खते ही मेरे चेहरे पर ख़ुशी क लहर दौड़ गयी, एक बड़ी सी मु कान
खुद ब खुद पैदा हो गई।

“जानू! यहाँ!” मने पागल के जैसे हाथ हलाते ए उसका यान अपनी तरफ आकृ करने
का यास कया।
या ने आवाज़ का पीछा करते ए जैसे ही मुझे दे खा, उसक बाछ खल ग । सामान
छोड़ कर वो मेरी तरफ भागने लगी। राहत, ख़ुशी और जोश – यह मले जुले भाव.. जैसे
कसी बछड़े ए को कोई अपना मल गया हो!

“जानू... जानू!!” न जाने कतनी ही बार वह यही एक श द भावुक हो कर दोहराते ए मेरी


बाह म समां गयी। ब त भावुक! कतना ेम! ओह! म इस लड़क को कतना यार करता
ँ! मने जोश म आकर उसको अपने आ लगन म ही भरे ए उठा लया। न जाने कस
व ेरणा से, या ने भी अपनी टांग मेरे इद गद लपेट ल ।

मने तुरंत ही अपने ह ठ उसके ह ठ पर रख दए – मेरे लए इससे अ धक वाभा वक बात


और कुछ नह हो सकती थी। कुछ दे र तक हमने यूँ ही च कस कया और फर मने या
को वापस ज़मीन पर टकाया। आस पास खड़े लोग हमारा मेल दे ख कर ज़ र ल त हो
गए ह गे!

“मेरी जान..?”
“ म म?” वह मेरी आँख म दे ख रही थी – कतनी सु दर! वाकई! मने नो टस कया
क उसका शरीर कुछ और भर गया था, उसके कोमल मुख पर यौवन के रसायन का
भाव और बढ़ गया था, आँख क बरौ नयाँ और ल बी हो ग थ , ह ठ म कुछ और
ला लमा आ गयी थी... कुल मला कर या का प और लाव य बस और बढ़ गया था।
पहाड़ क हवा म कुछ बात तो है!

“तुम ब त सु दर लग रही हो! .. म ब त ब त है पी ँ क तुम वापस आ गयी!”

उसके चेहरे पर तस ली, खुशी, थकान और मलन क भाव, एक साथ थे। हम दोन ब त
दन बाद मले थे... मले या थे, बस यह सम झये क जैसे अ े को आख और यासे को
पानी मल गया हो! इतने दन बाद उससे मल कर दल भर आया! पुरानी यास फर जग
गयी!

“म भी...!”

घर आते आते दे र हो गई – ब त ै फक था। रा ते म मने घर पर सभी का हाल चाल लया


और या क पढाई लखाई, सेहत और मेरे काम काज, और मौसम इ या द क चचा
करी। घर आते ही सबसे पहले मने खाना लगाया (जो क मने एअरपोट जाते समय पहले
ही पैक करवा लया था) और हमने साथ म खाया, और फर टे बल साफ़ कर के बेड म
का ख़ कया। या अभी तक बेड म म नह आई थी – आकर वह जैसे ही ब तर पर
बैठ , उसक नज़र सामने क द वार पर अपने न न च पर पड़ी।

“अरे ये या लगा रखा है आपने? कोई अ दर आकर दे ख ले तो?”

“ या? अ ा यह? यह तो मेरी जानेमन के भरपूर यौवन का च है। आपके वयोग म


इसी को दे ख कर मेरा काम चल रहा था।“

“आआ.. मेरा ब ा!” या ने बनावट लार जताते ए कहा, “... इतनी याद आ रही थी
म मी क ..” और फर ये कहने के बाद खल खला कर हंस द । फर अचानक ही, जैसे
कुछ याद करते ए, “पता है.... माँ ने आपके लए शु ... पहाड़ी फूल के रस से बना आ
शहद भेजा है...” कह कर उसने अटै ची से एक बड़ी शीशी नकाली,
“रोज़ दो च मच शहद पीने को बोला है... ध के साथ! आपको पता है? शहद से ववा हत
जीवन और बेहतर बनता है।“

“अ ा जी? ऐसा या? तो अब ये भी बता द जए क कब खाना है?” मने भी मज़े म


अपना मज़ा मलाया।

“रात म...” या ने आवाज़ दबा कर बोला.. जैसे कोई ब त रह यमय बात करने वाली हो,
“ ेम संबंध बनाने से पहले... हा हा हा..!”

“हा हा! अरे मेरा शहद तो तुम हो! इसी लए तो रोज़ तुमको खाता ँ...” म अब मूड म आ
रहा था, “ऊपर से नीचे तक रस म डू बी ई... ेम स ब बनाने से पहले म तो तु हारे
अधर (ह ठ) रस पयूँगा, फर तन रस.. और आ खर म यो न रस...” कह कर मने या
को पकड़ने क को शश करी। ले कन वो छटक कर मुझसे र चली गयी।

“ छः ग दा ब ा! अकेले रहते रहते बगड़ गया है.. म मी से ऐची ऐची बात करते ह? .. ही
ही!”

इस खेल म या के लए तकूल प र त थी, और वह यह क उसके हाथ म भारी सा


शहद का जार था। उसने ब त सहेज कर उसको हमारे बेड के सरहाने क टे बल पर रख
दया। मने तो इसी ताक म था – इससे पहले या कुलांचे भरती ई कह और भाग पाती,
मने उसको धर दबोचा। उसको पीछे से पकड़ने के कारण उसके तन मेरे दबोच म आ गए।
महीने भर क यास पुनः जाग गयी : मने उनको बेदद से दबाते और मसलते ए, उसके
खुले गले पर ह ठ और दांत क सहायता से एक गाढ़ चु बन लया। या ससकने
लगी।

“आह... य इतने बेस हो रहे हो?” चु बन जारी है, “...अआ ह.... आराम से करो न!
कह भागी थोड़े ही न जा रही ँ...” मने उसके बोलते बोलते ही जोर से चूसा, “...सीईईई!
आह!”

“एक महीना तुमने तड़पाया है... आज तो बदला लेने का भी दन है, और पूरा मज़ा लेने का
भी...” और वापस चूमने म त हो गया।
या अभी तक या ा वाले कपड़ो म ही थी.. उनसे मु होने का समय आ गया था।

“ब े को म मी का पीना है...” मेरी आवाज़ उ ेजनावश ककश हो गयी, “... अपनी


चू चयां तो खोलो...” ग द बात शु ! और मेरे हाथ क ग त व धयाँ भी!

म कभी उसके तन दबाता, तो कभी उसके खुले ए अंग पर ‘लव बाईट’ बनाता। या
क ह क ह क ससका रयाँ नकलने लगी थी। उसने मुझे इशारे से बताया क लाइट भी
जल रही है और खड़क पर पदा भी नह ख चा है, कोई दे ख सकता है।

मुझे इस बात क परवाह नह थी... वैसे भी इतनी रात म भला कौन जागेगा? और अगर
कोई इतनी रात म जागे, तो उसको कुछ पा रतो षक (ईनाम) तो मलना चा हए! मने या
को पलट कर अपनी तरफ मुखा तब कया। उसक आँख बंद थ । मने अपनी उं गली को
उसके नरम ह ठ पर फराया, और फर उसके ह ठ को चूमने लगा। ‘उ म! प र चत
वाद!’ या भी चु बन म मेरा पूरा साथ दे ने लगी। एक सरे के होठ को गाढ़ता से
चूमने चूसने के दौरान मने उसक कमर पर हाथ रख दया और कुरते के अंदर हाथ डाल
कर उसक कमर को सहलाने लगा। बीच बीच म उसक ना भ म उं गली से गुदगुदाने लगा।

कपड़े तो खैर मने भी अभी तक चज नह कये थे। या भी अपनी तरफ से पहल कर रही
थी – उसने मेरी पट क जप खोली, और मेरी च ी क फाँक म अपना हाथ व कर के
मेरे लग को अपनी मु म पकड़ कर बाहर नकाल लया। ऊपर चु बन, नीचे या क
कमर को सहलाना, और मेरे लग का सौ य मदन! इन सब म मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
मने एक हाथ को उसके कुरते के अ दर ही ऊपर क तरफ एक तन क तरफ बढाया, और
सरे हाथ को उसके सलवार और च ी के अ दर डालते ए उसक यो न को छु आ।

‘वैरी गुड! उ ेजना से फूली ई... गम.... नम... यो न रस नकल रहा था।‘ मने कुछ दे र
अपनी उं गली को यो न क दरार पर फराया, और फर उसको नव करने का उप म
शु कया। कुरता उतारते ही एक अ त नज़ारा दखाई दया। उसके गोरे गोरे शरीर पर,
तन को कैद कये ए काले रंग क ा थी! गले म पड़ा मंगलसू दोन तन के बीच म
पड़ा आ था। सचमुच या का शरीर कुछ भर गया था - कमर और तन म और व ता
आ गयी थी! इस समय या कसी परी को भी मात दे सकती थी! मने हाथ बढा कर
उसके तन को ह के से दबाया।
“ये दोन .. थोड़े बड़े हो गए ह या?”

या खल खला कर हंस द , “और या! आप नह थे, इस लए आपके हाथ म समाने के


लए ाकुल हो रहे थे ये दोन !” उसक इस बात पर हम दोन हँसने लगे। म पागल के
जैसे ा के ऊपर से ही उनको दबाने और चूमने लगा।

“अरे रे रे..! ऐसे ही करने का इरादा है या?” या ने कामुक अंगड़ाई लेते ए कहा, “ ा
को भी तो उता रए न!”

“आज तो तुम ही उतारो मेरी जान! हम तो दे खगे!”

या मु कुराई और फर बड़े ही नजाकत के साथ हाथ पीछे कर कर के अपनी ा के क़


खोले और जैसे ही उसने वह काला कपड़ा हटाया, दोन तन आज़ाद हो गए। मान रस से
भरे दो स री आम उसक छाती पर परोस दए गए ह ! दोन तना इरे ट! और मेरा
लग भी!

मने इशारे से उसको सलवार भी उतारने को कहा। या ने नाड़ा खोल कर जैसे ही उसको
ढ ला कया, सलवार उसक टांगो से होकर फश पर गर गयी। च ी के सामने वाला ह सा
कुछ गीला हो रहा था। वही ह सा उसक यो न क दरार म कुछ फंसा आ था। अब
मुझसे रहा नह गया; मने तुरंत या को अपनी गॉड म उठाया और ब तर पर पटक दया
और अपने दोन हाथ से या क च ी नीचे सरका द ।

मने या को ब तर पर चत लेटा कर अपने आ लगन म भरा, और उसके पूरे शरीर को


सहलाना और चूमना आर कर दया। या भी कुछ ऐसे लेट थी, जैसे उसक दोन टाँगे
मेरी कमर के गद लपट ई थ । म उसके ह ठो को चूमते ए, उसके पूरे शरीर पर हाथ
फराने और सहलाने लगा।

कुछ दे र ऐसे ही यार करने के बाद, म ब तर पर या के एक तरफ लेट गया और उसक


जांघ यथासंभव खोल द , और फर बारी बारी उसके ह ठ और तना चूमते ए उसक
जाँघ को सहलाने लगा। उ ेजना के मारे या क जाघ और खुल ग । या के ह ठ चूमते
ए मने उँ ग लय से उसक यो न का मदन आर कर दया। यो न मदन करते ए म रह
रह कर उसके तना भी चूमता और चूसता। या भी एक महीने से अतृ त बैठ ई थी ...
इस लए फोर ले के ब त मूड म नह लग रही थी। फर भी ऐसी या म सफ आनंद
ही आता है।

मने कुछ दे र उसक यो न से छे ड़खानी करने के बाद वापस उसके तन पर हमला कया।
मने उसके दोन तन को अपनी हथे लय म कुछ इस कार दबाया , जससे उसके
तना पूरी तरह से बाहर नकल आय, और फर उनको बारी बारी से दे र तक जी भर के
पया। या उ ेजक बेबसी म रह रह कर सफ मेरे बाल, पीठ और गाल सहला रही थी। म
भी दया कर के बीच बीच म तना छोड़ कर उसके ह ठ को चूमने लगता। फर भी तन
पर मेरी पकड़ नह छू ट ।

शी ही या अपनी उ ेजना के चरम पर थी, और उसक यो न से शहद क बा रश होने


लगी। मने उसको ब तर पर ऐसे ही छोड़ा, जससे वह अपनी साँसे संयत कर सके। जब
वापस आया तो मेरे हाथ म माँ का दया आ शहद का जार और एक च मच था।

मने दो च मच शहद अपने मुंह म डाला (ले कन नगला नह ), और वापस ब तर पर आ


बैठा। बैठने से पहले जार को ब तर के साइड म नीचे क तरफ रख दया था, जससे
आव यकतानुसार शहद का सेवन कया जा सके। वापस आकर मने संतृ त या को
अपनी गोद म बैठाया और आ लगन म भर के उसके ह ठ को चूमने लगा। इस चु बन से
मा यम से म या को अ त सुग त पहाड़ी फूल के रस से बने शहद को पलाने लगा।
सच कहता ,ँ बाजा उ पाद इस शहद का या मुकाबला करगे? ऐसा वाद, ऐसी सुगं ध
और ऐसी संरचना! थोड़ी दे र म मने या को लगभग पूरा शहद पला दया (मने थोड़ा ही
पया)। उसके बार पुनः बारी बारी से ह ठ , और दोनो तना पर चु बन जड़ने लगा।
कहने क आव यकता नह क या के तन मीठे हो गए थे।

आज तो बीवी को त बयत से भोगने का इरादा था! मने वापस या को ब तर पर लेटाया


और उसक दोन जांघे फैला कर या को रलै स करने को कहा। शहद के जार से एक
च मच शहद नकाल कर मने एक हाथ क उँ ग लय क मदद से उसक यो न के पटल
खोले और मीठा गाढ़ा शहद या क यो न म उड़ेल दया।

" या कर रहे ह आप..?" या मादक वर म बोली।


"आपके यो न रस को और हे द बना रहा .ँ .. ज ट वेट एंड वाच!"

कह कर मने जैसे ही अपनी जीभ उसक यो न म व करी, तो उसक एक तेज़


ससकारी नकल गई। मने जीभ को या क यो न के भीतर घुसेड़ दया – यो न के
ाकृ तक सुगंध क जगह पर अब फूल क भीनी भीनी और मीठ सुगंध आ रही थी...
और वाद भी.. बलकुल मीठा! या इस एकदम नए अनुभव के कारण कामुक
कलका रयाँ मारने लगी थी। उसने अपने नत ब उठाते ए अपनी यो न मेरे मुँह म ठे ल द ,
और मेरे सर को दोन हाथ से ज़ोर से पकड़ कर अपनी यो न क तरफ भ च लया। सफ
इतना ही नह , उ ेजना के आवेश म या ने अपने पाँव उठा कर मेरे गले के गद लपेट
लया। ऐसा करने से मुझे उसक पूरी क पूरी यो न को अपने मुँह म भरने म आसानी होने
लगी। अगले कोई पांच मनट तक मने इस अ त यो न रस को जी भर के पया – दो
च मच शहद, जो मने डाला था, और दो च मच खुद या का! या तड़प रही थी, और
काम क अं तम ड़ा करने के लए अनुनय वनय कर रही थी। ले कन, उसको और भोगा
जाना अभी बाक था। या इसी बीच म एक बार और चरम सुख को ा त कर लया।

खैर, अंत म वह समय भी आया जब हम आ खरी या के लए एक सरे म गु म-गु ा


हो गये और एक सरे को कसकर पकड़ कर ह ठ से ह ठ मला कर एक सरे का वाद
लेने लगे। एक महीने क यास अब पूरी हो रही थी। मीठे ह ठ और मुँह से! चूसते और
चूमते ए हम लोग जीभ से जीभ लड़ा रहे थे, रह रह के म उसके तन को चूम, चूस और
दबा रहा था, तो कभी उसक गदन को चूम और चाट रहा था। मने ज द से अपने बचे
खुचे कपड़े उतारे, और या क यो न म मने अपने लग क करीब तीन इंच ल बाई एक
झटके म अ दर घुसा द । या दद से ठ गई, और उसक चीख नकल गई।

‘यह या आ?’ संभव है, क एक महीने तक यौन स ब न बनाने के कारण, यो न क


आदत और पुराना कुमारी प वापस लौट आया हो! मतलब, एक और बार एकदम नई
यो न को भोगने का मौका! मने उसक कमर पकड़ ली जससे वो दद से डर कर मना न
कर दे । मने और ध के लगाने रोक लए, और लग को या क यो न म ही कुछ दे र तक
डाले रखा – एक दो मनट के व ाम के बाद जब या को कुछ राहत आई, तब मने धीरे-
धीरे नपे-तुले ध के लगाने शु कए, और लग को पूरा नह घुसाया।

मने या को और आराम दे ने के लए उसके नत ब के नीचे एक त कया लगा दया, और


पहले उसके ह ठ को हलके हलके चूमा और फर दोन ह ठ अपने मुँह म भर कर चूसने
लगा। या अब पूरी तरह से तैयार हो गयी थी - उसने भी नीचे से ह के-ह के ध के लगाने
शु कर दए। मने अंततः अपने लग को एक ज़ोरदार ध का लगा कर पूरे का पूरा उसक
यो न म घुसा दया। या ने घुट -घुट आवाज़ म चीख़ भरी।

मने कहा, “जानू, वाकई या ब त दद हो रहा है?”

“बाप रे! पहली बार जैसा फ ल आ! आप क रए ... म ठ क ँ!”

“प का?”

“हाँ प का! आप क रए न... आगे तो बस आन द ही आन द है।“

फर या? चरंतन काल से चली आ रही या पुनः आर हो गयी। या बस मज़े लेते


ए मेरे बाल सहला रही थी। उसके अ दर कुछ करने क श नह बची थी। वो भले ही
कुछ न कर रही हो, ले कन उसक यो न भारी मा ा म रस छोड़ रही थी। इस कारण से
लग के हर बार अ दर-बाहर जाने से अजीब अजीब कार क पनीली व न नकल रही
थी। खैर, मेरा भी यह ो ाम दे र तक चलाने का कोई इरादा नह था। इतना संयम तो नह
ही है मुझम! कोई चार मनट बाद ही मेरे लग से वीय क पचका रयाँ नकलने लग । या
ने जैसे ही वीय को अपने अ दर महसूस कया, उसने मुझे कस कर पकड़ लया और मेरे
ह ठ , आँख और गाल को कई बार चूमने लगी। थक गया! एक महीने का सैलाब थम
गया! म उसक बाँह म लपटा आ अगले लगभग दस मनट तक उसके ऊपर ही पड़ा
रहा।

जब या नीचे कसमसाई, तो म मानो न द से जागा! या ने मेरे ह ठ पर दो-तीन चु बन


और जड़े और कहा, “ग दे ब े! मन भरा? ... अब ज द से हटो, नह तो मेरी सू सू नकल
जायेगी!” कहते ए उसने उँ ग लय से मेरी नाक पकड़ कर यार से दबा द ।

“चलो, म तुमको ले चलता ँ..” मने या को गोद म उठाया और बाथ म क ओर ले


जाने लगा। या तृ त, अपनी आँख बंद कये ए और मु कुराती ई, अपनी बाँह मेरे गले
म डाले ए थी। उसको बाथ म म कमोड पर मने ही बैठाया। जैसे उसको कसी असीम
दद से छु मली हो! या आँख बंद कये, और गहरी आँह भरते ए मू करने लगी। म
मं मु ध सा होकर उस नज़ारे को दे खने लगा – उसके यो न से मू क पतली, ले कन तेज़
धार नकल रही थी, और अभी-अभी कूट जाने के कारण यो न के ह ठ सूज गए थे – बढ़े
ए र चाप के कारण उसक रंगत अ धक लाल हो गयी थी।

या को इस कार मूतते दे ख कर मुझे भी इ ा जाग गई। मने उसके सामने खड़ा होकर
अपने लग को नशाने पर साधा, उसके श ा द (फोर कन) को पीछे क तरफ
सरकाया और मने भी अपने मू क धार छोड़ द । नशाना स ा था – मेरी मू क धार
या क यो न क फाँक के बीच पड़ने लगी। इस अचानक हमले से या क आँख खुल
ग ।

“ग दा ब ा! ... या कर रहा है! उ फ़!” संभव है क मेरे मू म यादा गम हो!

“तुमको माक कर रहा ,ँ मेरी जान...! शेर अपने इलाके को ऐसे ही माक करता है न! हा
हा!”

या ने कुछ नह कहा। हाँला क उसका पेशाब मुझसे पहले ही ब द हो गया था, फर भी


वो उसी अव ा म बैठ रही जब तक म मू करना न बंद कर ं ! या मेरे मू को भी
ठ क उसी कार हण और वीकार कर रही थी, जैसे मेरे वीय को! जब मने मू करना
बंद कया तो वह सीट से उठ , और फर पांव क उँ ग लय के बल उचक कर उसने मेरे
ह ठ चूम लए। अब ऐसे मा कग ( च हत) करने के बाद तो हम लोग ब तर पर नह लेट
सकते थे.. इस लए हमने साथ ही ह का शॉवर लया और बदन प छ कर ब तर पर आ
गए। मने लेटने से पहले कमरे क लाइट बंद कर द थी – खड़क के बाहर से आती ई
चाँदनी से कमरे म ह का उजास था। या मेरे हाथ के ऊपर सर रखे ए थी, और मेरे गले
म बाह भी डाले ए थी। हमने उस रात कुछ और नह कहा – बस एक सरे के ह ठ को
चूमते, चूसते सो गए!
१८
या क नजर म :
मुझसे मेरे दो त अ सर पूछते ह क म और अथव कब मले, कैसे मले.. शाद के बाद का
यार कैसा होता है, कैसे होता है... आ द आ द! उनको इसके बारे म बताते ए मुझे
अ सर लगता क कभी म और अथव एक साथ बैठ कर इसके बारे म बात करगे और
पुरानी याद ताज़ा करगे! अभी दो दन पहले म रे डयो (ऍफ़ एम) पर एक ब त पुराना गीत
सुन रही थी – हो सकता है क आप लोग म भी कई लोग ने सुना हो!

और आज घर वापस आकर मने जैसे ही रे डयो चलाया, फर वही गाना आने लगा:

“चलो एक बार फर से, अजनबी बन जाएँ हम दोन !”

मेरे ख़याल से यह नया के सबसे रोमां टक दस बारह गान म से एक होगा...!

मुझे पता है क अब आप मुझसे पूछगे क या, आज या ख़ास है जो रोमां टक गान क


चचा हो रही है? तो भई, आज ख़ास बात यह है क आज अथव और मेरी शाद क सरी
साल गरह है! जी हाँ – दो साल हो गए ह! इस बीच म मने कॉलेज क परी ा अ े अंक
से पास क , और कुछ इस कारण से और कुछ अथव क जान-पहचान के कारण से मुझे
बगलोर के काफ पुराने और जाने माने कॉलेज म दा खला मल गया। शु शु म यह सब
ब त ही मु कल था – लगता था क कहाँ आ फंसी! इतने सारे बदलाव! अनवरत अं ेज़ी
म ही बोल चाल, नह तो क ड़ म! मेरी ही हम उ लड़ कयाँ मेरी सहपाठ थ ... ले कन
उनमे और मुझमे कतना सारा अंतर था! कॉलेज के गेट के अ दर कदम रखते ही नवस हो
जाती। दल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगता। ले कन अथव ने हर पल मुझे हौसला दया –
मान सक, शारी रक, मनोवै ा नक! हर कार का! वो अपने काम म अ य धक त होने
के बावजूद मुझसे मेरे वषय के बारे म चचा करते, जब बन पड़ता तो पढ़ाते (वैसे हमारे
पड़ो सय ने मुझे पढ़ाने म ब त सहयोग दया है.. आज भी म ीम त हेगड़े जी क शरण
म ही जाती ,ँ जब भी कह फंसती ँ)। और तो और, सहे लयां भी ब त उदार और दयालु
क म क थ – वो मेरी हर संभव मदद करत , मुझे अपने गुट म शा मल करत , अपने घर
बुलात और यथासंभव इन नई प र थ तय म मुझे ढलने के लए ो साहन दे त । इसका
यह लाभ आ क मेरी लास के लगभग सभी सहपाठ मेरे म बन गए थे। श क और
श काएँ भी मेरी ग त म वशेष च लेते। वो सभी मुझे ‘ ेशल टू डट’ कह कर
बुलाते थे। मने भी अपनी तरफ से कोई कोर कसार नह छोड़ी ई थी – म मन लगा कर
पढ़ती थी, और मेरी मेहनत का नतीजा भी अ ा आ रहा था। कहने क कोई ज़ रत नह
क मुझे अपना नया कॉलेज ब त पसंद आया...। अ नी के लए भी अथव और मने
अपने सपल से बात करी थी। उ ह ने मुझे भरोसा दलाया था क अगर अ नी म
तभा है, तो वो उसे अव य दा खला दगे। अ नी इस बार इंटरमी डएट का ए जाम्
लखेगी, और उसके बाद अथव उसको भी बगलोर ही लाना चाहते ह, जससे उसक
पढाई अ जगह हो सके।

आप लोग अब इस बात क शकायत न क रए क कहानी से दो साल यूँ ही नकाल दए,


बना कुछ कहे सुने! इसका उ र यह है क अगर लोग खुश ह तो समय तो यूँ ही हरहराते
ए नकल जाता है। और रोज़मरा क बात लख के आपको या बोर कर? अब यह तो
लखना बेवकूफ होगा क ‘जानू, आज या खाना बना है?’ या फर, ‘आओ सहवास
कर!’ ‘आओ कह घूम आते ह.. शौ पग करने!’ इ या द! यह सब जानने म आपको या
च हो सकती है भला?

इतना कहना या उ चत नह क यह दो साल तो न जाने कैसे गुजर गए! तता इतनी है


क अब उ राँचल जाना ही नह हो पाता! कॉलेज क परी ा दे ने के बाद सफ दो बार ही
जा पाई, और अथव तो बस एक बार ही जा पाए! उनको इस बीच म दोहरी पदो त मली
है। जा हर सी बात है, उनके पास समय क ब त ही कमी हो गयी है... ले कन यह उ ही
का अनुशासन है, जसके कारण न केवल म ढं ग से पढाई कर पा रही ,ँ ब क सेहत का
भी ढं ग से ख़याल रख पा रही ँ। सुबह पांच बजे उठकर, न य या नबटा कर, हम दोन
दौड़ने और ायाम करने जाते ह। वहाँ से आने के बाद नहा धोकर, पौ क भोजन कर के
वो मुझे कॉलेज छोड़ कर अपने ऑ फस चले जाते ह। मेरे वापस आते आते काम वाली
बाई आ जाती है, जो घर का धोना प छना और खाना बनाने का काम कर के चली जाती
है। म और कभी कभी अथव, स ताहांत म ही खाना बनाते ह.. त तो ह, ले कन एक
सरे के लए कभी नह !

उधर पापा ने बताया क खेती म इस बार काफ लाभ आ है – उ ह ने पछली बार नगद
फसल बोई थ , और कुछ वष पहले फल क खेती भी शु करी थी। इसका स म लत
लाभ दखने लग गया था। अथव ने अपने जान-पहचान से तैयार फसल को सीधा बेचने का
इंतजाम कया था.. सफ पापा के लए नह , ब क पूरे कसबे म रहने वाले कसानो के
लए! बचौ लय के कट जाने से कसानो को यादा लाभ मलना वाभा वक ही था।
अगले साल के लए भी पूवानुमान ब ढ़या था।
खैर, तो म यह कह रही थी, क इस गाने म कुछ ख़ास बात है जो मुझे अथव से पहली बार
मलने, और हमारे मलन क पहली रात क याद दलाती है। सब खूबसूरत याद! अथव ने
वायदा कया था क वो आज ज द आ जायगे – अगले दो दन तो श नवार और र ववार
ह... इस लए कह बाहर जाने का भी ो ाम बन सकता है! उ ह ने मुझे इसके बारे म कुछ
भी नह बताया। ले कन उनका ज द भी तो कम से कम पांच साढ़े -पांच तो बजा ही दे ता
है!

म कुस पर आँख बंद कए, सर को कुस के सरहाने पर टकाये रे डयो पर बजने वाले
गान को सुनती रही। और साथ ही साथ अथव के बारे म भी सोचती रही। इन दो साल म
उनके कलम के कुछ बाल सफ़ेद हो (पक) गए ह.. बाक सब वैसे का वैसा ही! वैसा ही ढ़
और -पु शरीर! जीवन जीने क वैसी ही चाहत! वैसी ही मृ भा षता! कायाक प क
बात करते ह.. इससे बड़ी या बात हो सकती है क उ ह ने अपने चाचा-चाची को माफ़
कर दया। उनके अ याचार का दं ड तो उनको तभी मल गया जब उनके एकलौते पु क
एक सड़क हादसे म मृ यु हो गयी। जब अथव को यह मालूम पड़ा, तो वो मुझे लेकर अपने
पै क ान गए और वहाँ उन दोन से मुलाकात करी।

अभी कोई आठ महीने पहले क ही तो बात है, जब अथव को कसी से मालूम आ क


उनके चचेरे भाई क एक सड़क हादसे म मृ यु हो गयी। अथव ने यह सुनते ही बना एक
मनट दे र कये भी उ ह ने मेरठ का ख कया। हम दोन ही लोग गए थे – उस दन मने
पहली बार इनके प रवार(?) के कसी अ य सद य को दे खा था। इनके चाचा क उ
लगभग साठ वष, औसत शरीर, सामा य कद, गे ंआ रंग... दे खने म एक साधारण से वृ
पु ष लग रहे थे। चाची क उ भी कमोवेश उतनी ही रही होगी.. दोन क उ कोई ऐसी
ख़ास यादा नह थी.. ले कन एकलौते पु और एकलौती संतान क असाम यक मृ यु ने
मानो उनका जीवन रस नचोड़ लया था। ःख और अवसाद से घरे वो दोन अपनी उ से
कम से कम दस साल और वृ लग रहे थे।

उ ह ने अथव को दे खा तो वो दोन ही उनसे लपट कर ब त दे र तक रोते रहे... मुझे यह


नह समझ आया क वो अपने ःख के कारण रो रहे थे, या अपने अ याचार के ाय त
म या फर इस बात के संतोष म क कम से कम एक तो है, जसको अपनी संतान कहा जा
सकता है। कई बार मन म आता है क लोग अपनी उ भर न जाने कतने दं द फंद करते
ह, ले कन असल म सब कुछ छोड़ कर ही जाना है। यह स ाई हम सभी को मालूम है,
ले कन फर भी यूँ ही भागते रहते ह, और सर को तकलीफ़ दे ने म ज़रा भी हच कचाते
नह ।
अथव को इतना शांत मने इन दो साल म कभी नह दे खा था! उनके मन म अपने चाचा
चाची के लए कसी भी कार का े ष नह था, और न ही इस बात क ख़ुशी क उनको
सही दं ड मला (एकलौते जवान पु क असमय मृ यु कसी भी अपराध का दं ड नह हो
सकती)! बस एक स ा ःख और स ी चता! अथव ने एक बार मुझे बताया था क
उनका चचेरा भाई अपने माता पता जैसा नह है... उसका वहार हमेशा से ही इनके
लए अ ा रहा। अथव इन लोगो क सारी खोज खबर रखते रहे ह (भले ही वो इस बात
को वीकार न कर! उनको शु शु म शायद इस बात पर मज़ा और संतोष होता था क
अथव ने उनके मुकाबले कह ऊंचाई और सफलता ा त करी थी। ले कन आज इन बातो
के कोई मायने नह थे)। अथव ने उनक आ थक सहायता करने क भी पेशकश करी
(जीवन जैसे एक वृ म चलता है.. अ याचार क कमाई और धन कभी नह कते.. इनके
चाचा चाची क आ थक तअ नह थी), ले कन उ ह ने यह कह कर मना कर दया
क जब ई र उन दोन को उनके अ याचार और गल तय का दं ड दे रहे ह, तो वो उसमे
कसी भी कार का वधान उ प नह करगे। उनके लए बस इतना ही उ चत है क
अथव ने उनको माफ़ कर दया। मुझसे वो दोन ब त सौहाद से मले... ब क यह क हये
क ब त लाड़ से मले। जैसे क म उनक ही पु -वधू ँ... फर उ ह ने मुझे सोने के कंगन
और एक मंगलसू भट म दया। बाद म मुझे मालूम आ क वो माँ जी (मेरी वगवासी
सास) के आ खरी गहने थे। उस दन यह जान कर कुछ सुकून आ क हमारे प रवार म
कुछ और लोग भी ह।

अथव म बदलाव तो थे ही, मुझम खुद भी ब त से बदलाव हो रहे थे। म तो बढ़ती युवती तो
ँ ही – खान पान क गुणव ा, दै नक ायाम और पु ष हाम न क नय मत खुराक से
(अथव कभी कभी कंडोम का योग करना ‘भूल?’ जाते ह...) मेरी दे ह अभी भी भर रही
है। मेरे तन अब ३४सी के माप के ह, कमर म कटाव, और नत ब म उभार साफ़ दखता
है। जब कभी नहाने के बाद मुझे फुसत होती है, तो म वयं का अनावृ शरीर दे ख कर
स हो जाती !ँ कभी कभी लगता है क कसी और को दे ख रही ँ - कसे-भरे तन,
छोटे कंधे, उ त नतंब, सपाट पेट, और करीने से कटे केश से टपकती पानी क बूंद! म
कभी कभी खुद के शरीर पर मु ध हो जाती !ँ कसक कामना नह हो सकती ऐसी दे ह!
मुझे गव है, क अथव मेरा भोग पाते ह!

य को अ सर ही छु ईमुई जैसा शरमाया, सकुचाया सा दशाया जाता है, और उनसे इसी


कार के वहार क अपे ा भी करी जाती है। इतने बदलाव के बाद भी म अभी तक
वैसी ही .ँ . ले कन अचरज तब होता है जब म अथव के साथ णय करते समय ब कुल
भी नह सकुचाती ,ँ ब क म तो उनक सहयो गनी ही बन जाती !ँ कैसे होता है यह
सब? कभी कभी सोचती ँ तो लगता है क एक ी कसी पु ष के साथ ऐसा वहार
तभी कर सकती है जब वो पु ष उस ी का य हो। जसक वो हमेशा कामना करे! जो
न केवल उसके सपन का अ ध ाता हो, ब क उसका स ा साथी बन कर ी के जीवन
के हर सुख ःख को बाँट कर सही अथ म सहचर बने!

अथव ने एक दन मुझे कहा था, “तुमने कभी खजुराहो क मू तयां दे खी है? यू हैव अ बॉडी
लाइक खजुराहो आइडो स!”

खजुराहो आइडो स? मने पहले कभी खजुराहो के च नह दे खे थे.. हम लोग कभी वहाँ
नह गए... ले कन अथव ने जब ऐसा कहा तो मेरा मन नह माना! इंटरनेट पर खजुराहो के
बारे म ढूँ ढा और वहाँ के मं दर और उन पर उकेरी गयी मू तय क त वीर को दे खा! ी
जीवन के न जाने कतने प, न जाने कतने रंग उन श पय ने प र म गढ़ डाले थे!
और तो और, सभी एकदम जीवंत से लगते! यां ही यां! उनके हर कार के हाव-
भाव, उनके शरीर क हर बनावट, अंग के लोच, भाव-भं गमा का दशन – यह सब
कुछ ह वहाँ! ी च के हर रंग को साकार कर दया था श पय ने इस ाचीन
व लोक म! इन च को दे खा, तो अथव क बात और समझ म आई! म पुलक उठ !
यह उपमा तो उ ह ने न त प से अपनी चाहत दशाने के लए मुझे द थी।

म आँख बंद कए पुराने गीत का आनंद ले रही थी, और उस दन क याद कर रही थी जब


अथव पहली बार मेरे घर आये थे। एक मजेदार बात है (आप लोगो ने भी कभी न कभी
नो टस कया ही होगा), कसी घटना के हो जाने के बाद (ख़ास तौर पर जब वो मह वपूण
घटना हो) जैसे जैसे समय बीतता जाता है, उस घटना के कई सारे पहलू, या यह कह
ली जये क हमारे दे खने का कोण बदल जाता है। मधुर संगीत के भाव म अभी मुझे
ऐसे जान पड़ रहा था क उस दन रे डयो पर कोई रोमां टक गाना बज रहा था। संभव है
क ऐसा न हो! ले कन इससे या ही बदल जाएगा? बस, वो याद और मधुर बन जाएँगी।

ऐसा नह है क हम दोन सफ एक सरे को हमेशा इलू इलू ही बोलते रहते ह.. अ य


ववा हत जोड़ के समान ही हम म भी झगड़े होते ह। ले कन ऐसे झगड़े नह जनम मन
मुटाव होता हो.. यादातर बनावट झगड़े! अरे भई, कहते ह न.. इस तरह के झगड़े
ववा हत जीवन म वाद भरते ह! या फर कभी कभी ‘आज फर से टडे बने ह?’ वाले।
मारा-पीट भी होती है (अ सर अथव ही मारते ह मुझ.े .) – ओह लगता है आप गलत
समझ गए। ये वो वाली बनावट मार है, जसमे मु का मेरे शरीर के पास आता तो तेज़ से
है, ले कन मुझको छू ता ऐसे है जैसे मेरी मा लश क जा रही हो... मारने से पहले अथव मुझे
अपने आ लगन म कस कर बाँध लेते ह और ऐसे मारते ए वो अपने मुंह से वो ‘ए भ श..
ए भ श..” जैसी बनावट आवाज भी नकालते ह। मतलब ऐसी मार जो, चोट तो
बलकुल नह दे ती, उ टा गुदगुद लगाती है। म हँसते हँसते लोट पोट हो जाती !ँ कोई
वय क हमको यह सब करते दे खे तो अपना सर पीट ले! इतना यार! इतना लार! यह सब
सोच सोच कर मेरी आँख भर ग !

यह दो साल कतनी ज द बीत गये! कुछ पता ही नह चला!! हम दोन ने अपने दा य


जीवन के हर पहलू का आनंद उठाया था! आज भी, अगर अथव अपनी पर आ जाए (जो
क अ सर स ताहांत म होता ही है), तो मुझे पूरी रात सोने ही नह दे ते – मानो पूरे ह ते
क कसर नकालते ह। उनक योगा मक सोच के कारण, घर का कोई ऐसा कोना नह
बचा जहाँ पर हमने सहवास नह कया हो! ब तर पर तो होता ही है, इसके अलावा
बाथ म म, द वार पर, बालकनी म, फश पर, और रसोईघर म भी हमने सहवास कया
था। कभी कभी लगता क अ त हो रही है.. इस वष मने यूँ ही मज़ाक मज़ाक म यह गनना
शु कया क हम कतनी बार सहवास करते ह... तीन सौ का आंकड़ा पार करते करते
मने गनती करनी बंद कर द । ठ क है.. समझ आ गया क मेरे प त मेरे यौवन को दोन
हाथ से लूट रहे ह! हा हा!

ले कन ऐसा हो भी य न? उनके छू ने से मुझे सुख मलता है। मन क ता, शंकाएँ और


क – सब तुरंत र हो जाते ह। जस तरह से वो मुझे दे खते ह... एक मादा के जैसे नह ,
ब क एक े मका के जैस.े .. जैसे म कसी धा म ा त पुर कार !ँ बेहद इ त!
उनक छु वन म एक सकारा मक ऊजा होती है – ऐसा नह है क उनक छु वन लोलुपता
वहीन होती है (ऐसा कभी नह महसूस आ), ले कन वो लोलुपता न छल और ताज़ी
होती है। सड़क चलते पु ष वाली नह ... उनमे मने वो ज़हरीली लोलुपता दे खी है.. कैसे वो
अपनी आँख से ही सामने दखती म हला और लड़ कय को नव करते रहते ह।
उनको मेरे शरीर म ल सा है, ले कन ऐसा नह है क वो मेरी इ ज़त नह करते!

अथव के लए मेरे दोन तन दलच रचना के समान ह.. जैसे एक जोड़ी खलौने! जब
कभी भी हम दोन अगल बगल बैठते ह (कहने का मतलब हर रोज़, कम से कम पांच से
दस बार), वे उनको उँ ग लय क सहायता से छे ड़ते ह और सहलाते ह। और मेरे शरीर क
त या भी दे खए – उनके छू ते ही मेरे दोन तना सूजने लगते ह। सहवास हो या न
हो, स ताह के हर दन (मेरा मतलब रात), अथव मेरे तन को चूसते ए ही सो जाते है –
कहते ह क बना तनपान कये उनको न द ही नह आती। हो सकता हो क उनके यह
कहने म अ तशयो हो, ले कन मेरा भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है – उनके लग को पकडे
ए ही म सोती .ँ . रात म जब भी कभी कसी भी कारणवश उनका लग जब मेरे हाथ से
छू ट जाता है, तो मेरी न द खुल जाती है। इस लए म बना हील त के उनको अपनी
मनमानी करने दे ती ँ।

उनका लग! बाप रे! शायद ही कभी शांत रहता हो! मने पढ़ा है क र वाह बढ़ने से
लग म त न होता है.. अरे भई, कतना र वाह होता है? इनका तो लगभग सदा ही
तं भत रहता है। म सोचते ए मु कुरा द । इससे मेरा एक अजीब सा नाता है – उसको
इस कार अपने भीमकाय प म दे ख कर भय भी लगता है, और स ता भी होती है।
जी हाँ – शाद के दो साल बाद भी। लगभग रोज़ ही इसको हण करने के बावजूद जस
कार से उनका लग मेरी यो न का मदन करता है, वो अनुभव अनोखा ही है! मेरे लए
उनका लग ठ क वैसा ही खलौना है, जैसे क मेरे तन उनके लए। उनके गठे ए शरीर
से नकलती यह मोट न लका... जोशपूण और वीयवान! वो खुलेआम नव होकर घर म
घूमते ह... और उनके हर कदम पर उनका तं भत लग हलके हलके हचकोले खाता है।
ह म...!

अचानक ही मेरे फ़ोन क घंट बजी – अथव!

“हाउ आर यू, डा लग?” और मेरा उ र सुने बना ही, “जानू, ज द से तैयार हो जाओ –
सर ाइज है! म तुमको घंटे भर म पकअप कर लूँगा.. ओके.. बाय!” कह कर उ ह ने फ़ोन
काट दया!

सर ाइज! हा हा! अथव के साथ तो हर पल ही सर ाइज है! एक घंटा? ह म.. बस इतना


समय है क नहा कर, कपड़े बदले जा सक। नहा कर म अपने कमरे म आई, और सोचने
लगी क या पहना जाय! मेरे ज म दन पर अथव ने एक लाल रंग क ेस मुझे ग ट करी
थी, वो घुटने से बस ठ क नीचे तक जाती थी.. अभी तक पहनने का मौका नह मला था,
तो सोचा क आज तो एकदम सही समय है। म ेस पहनी, अपने बाल को एक पोनीटे ल
म बाँधा, गले म एक छोटे छोटे मो तय क माला पहनी और तैयार हो गयी।

म कभी यह नह सोचती क म कैसी दखती ँ – मेरे प त मुझे आकषक पाते ह, मेरे लए


इतना ही काफ है। ले कन ख़ास मौक पर सजने सँवरने म या बुराई है.. ख़ास तौर पर
उसके लए जसको म बेहद यार करती ँ? हम लोग अ सर बाहर का खाना नह खाते
( वा य के लए ठ क नह होता न!), कभी कभी ही खाते ह (या फर तब जब हम या ा
कर रहे होते ह).. बाहर जाने से याद आया, क मुझे आज उनके लान के बारे म कुछ भी
नह मालूम था। सर ाइज का तो मज़ा ही इसी म है! म ल ट से नीचे क तरफ उतर कर
भवन के ांगन म अभी आई ही थी, क गेट से मुझे अथव कार म आते ए दखे।

ऐसा नह है क हम लोग घूमने फरने कह जाते नह – अथव और म का हा रा ीय उ ान


के जंगल गए। का हा श द कनहार से बना है जसका ानीय भाषा म अथ चकनी म
है। यहां पाई जाने वाली म के नाम से ही इस ान का नाम का हा पड़ा। डयाड
कप लग क स पु तक “जंगल बुक” क ेरणा इसी ान से ली गई थी। यहाँ हमने
भारत का रा ीय पशु बाघ, बारह सघा, हरण, मोर, भे ड़ये इ या द जीव दे खे। इसके
अलावा हमने राज ान रा य क भी या ा करी, जहाँ हमने जयपुर, जोधपुर (दोन जगह
अपनी ाप य और श पकला के लए और साथ ही साथ ह कला के लए स ह),
जैसलमेर (थार रे ग तान) और रणथ ोर रा ीय उ ान ( फर से, बाघ, हरण, सांभर
हरण!) क सैर करी। मेरे लए यह दोन जगह बु कुल अ त थ ! एक तरफ तो अं यंत
घना जंगल, तो सरी तरफ क ठन रे ग तान! ले कन अपने दे श के इन अ त ान को
दे ख कर न केवल मेरा कोण ही वक सत आ, ब क भारतवासी होने पर गौरव भी
महसूस आ। बंगलोर के आस पास भी हम लोग यूँ ही ल बी ाइव पर जाते ह... मुझे यहाँ
का खाना ब त पसंद है (कभी सोचा नह था क द ण भारतीय खाना मुझे इतना पसंद
आएगा!)।

अथव ने मु कुराते ए मेरे पास गाडी रोक ; मने उनके बगल वाली सीट वाला दरवाज़ा
खोला और कार म बैठ गयी। उनको मु कुराता दे ख कर म भी मु कुराने लगी (कुछ तो चल
रहा है इनके दमाग म)! उ ह ने मु कुराते ए मेरे ह ठ पर एक चु बन जड़ा और फर कार
वापस सड़क पर घुमा द । म.. अभी तक तो सभी कुछ पूवानुमेय है – हम एक रे ाँ जा
कर के, जहाँ हमने मुगलई भोजन कया। आज अथव ने कॉकटे ल नह ली (वो अ सर
लेते ह, ले कन आज कह रहे थे क ाइव करना है, इस लए नह लगे..), ले कन उ ह ने
मुझे दो गलास पला ही द । बाहर आते आते मुझ पर नशा छाने लगा। ले कन इतना तो
होश था ही क समझ आ सके क हम लोग वापस घर क तरफ नह जा रहे थे। मने जब
पूछा क कहाँ जा रहे ह, तो उ ह ने कहा क यही तो सर ाइज है..! ह म... लॉ ग ाइव!
रात के अं धयारे म, जगमगाती सड़क और उन पर सरपट दौड़ती गा ड़य को दे खते दे खते
कब मेरी आँख लग गयी, कुछ याद नह ।

जब आँख खुली तो मने दे खा क गाडी क ई है (शायद इसी कारण से आँख खुली),


सुबह का म म, ला लमामय उजाला फैला आ है, हवा म ताज़ी ताज़ी सुगंध और मेरे
च ँओर छोट छोट हरी भरी पहा ड़याँ थ । मुझे अथव क आवाज़ सुनाई दे रही थी – वो
आस पास ही कह थे, और कसी से बात कर रहे थे। मने चार पांच गहरी गहरी सांस ल –
मन और शरीर दोन म ताजगी आ गयी। नशा काफूर हो गया। मने सीट पर बैठे बैठे
अंगड़ाई ली और फर से गहरी सांस ल , और फर कार से बाहर नकल आई और आवाज़
क दशा म बढ़ द ।

“जानू.. जाग गई?” अथव ने मुझे दे खा, और मेरे पास आते आते मुझे आं शक आ लगन म
भरा। उ ह ने फर हमारे मेज़बान से मुझे मलवाया।

“हम लोग कहाँ ह?” मने पूछा।

“डा लग, हम लोग कूग म ह..”

‘कूग?’

उनसे मलते मलते सूय दय हो गया – सूय क करण पहा डय के असं य ृंखला पर
लगे वृ से छन छन कर आती ई दखाई पड़ रही थी। जा ई समां!

ओह! आपको कूग के बारे म बताना ही भूल गई... कूग कनाटक रा य के प मी घाट पर
है। स ज़ घा टय , भ पहाड़ और सागौन क लकड़ी जंगल के बीच त दे श के सबसे
खूबसूरत हल टे शन म से एक है। इन पहा ड़य से होती ई कावेरी नद बहती है। यह
जगह पयटक को ब त आक षत करती है – शहर म रहने वाले, खास तौर पर बगलोर
और मैसूर से अनेक पयटक यहाँ आते ह। शु ताज़ा हवा और च ँओर बखरी ह रयाली
लोग के च को स कर दे ती है। इसके अ त र , यह ान कॉफ , चाय, और
इलायची के बागान के लए भी जाना जाता है। यह भारत का ‘ कॉटलड’ भी कहा जाता
है... अपनी ाकृ तक सुंदरता के कारण! लगभग १०० साल पहले टश लोग ने इस
ान पर भी रहाइशी बंदोब त कए थे।

जस जगह पर हम के थे, वह एक होम- टे था। अथव का लान था क कसी होटल म


नह , ब क कृ त के बीच एक शांत जगह पर रहगे। यह एक अ बात थी – पहला
इस लए य क यहाँ कोई भीड़ भड़ का नह था। हमारे मेजबान का घर और होम- टे
उनके कॉफ़ और केले के बगान म ही थे। यह एक ब त ही वृहद् (करीब सौ एकड़) बगान
था – इसम इनके अलावा इलाइची भी पैदा क जाती है। और तो और, हमारे खाने पीने का
इंतजाम भी हमारे मेजबानो ने कर दया था – सवेरे का ना ता तैयार था, तो हमने े श
होकर उनके साथ ही बैठ कर ानीय ना ता कया और कॉफ़ क चु कय के साथ दे र
तक बात चीत करी।

मने अथव से शकायत करी क अगर वो पहले बताते तो कम से कम कुछ पहनने को पैक
कर लेती। कतनी दे र तक इसी कपड़े म र ंगी? इसके उ र म उ ह ने गाड़ी क पछली
सीट पर ब त ही तरीके से छु पाया आ एक पैक नकाला – उसमे मेरे पहनने के लए
जी स और ट -शट था। अथव के लए शॉट् स और ट -शट था। या बात है!

इस जगह क सैर पर जब हम नकले, तब समझ आया क यह वाकई एक अलग ही


कार का हल टे शन है। उतना वसायीकरण नह आ है अभी तक! साथ ही साथ इस
जगह पर अपनी एक मज़बूत सं कृ त, और इ तहास है। सबसे अ बात यहाँ क साफ-
सुथरी हवा, लगातार आती पं छय क चहचहाहट और गुनगुनी धूप! एकदम ताजगी का
एहसास! दन भर म हमने वहाँ के खास खास पयटन ल (ओमकारे र मं दर, राजा क
सीट, ए बे झरना) दे ख डाले। झरने के बगल वाले ए टे ट म कॉफ के साथ साथ काली-
मच, और इलायची और अ य पेड़-पौधे दे खने को मले।

एक बात मने वहाँ घूमते फरते और दे खी – यहाँ के लोग ब त ही ख़ुश मजाज़ क म के


ह। दे खने भालने म आकषक और ब ढ़या क़द-काठ के ह। ख़ासतौर पर कूग क म हलाएं
ब त सु दर ह। हमने अपने लए कॉफ , और शु शहद ख़रीदा (याद है?)। एक और ख़ास
बात है यहाँ क , और वह यह क भारतीय सेना म ब त से जवान और अ धकारी कूग
से ह। यहाँ के लोगो क वीरता के कारण इनको आ नेया (अथव वाला नह , बं क वाला)
रखने के लए लाइसस क आव यकता नह है।

शाम होते होते हम दोन घूम फर कर वापस होम टे आ गए, और अपने मेजबानो के साथ
दे र तक ग प लड़ाई, खाना खाया और बॉन-फायर का मज़ा लया। आज रात यही क कर
कल सवेरे वापस नकलने का ो ाम था। ले कन मन हो रहा था क यही पर क जाया
जाय! घर क याद हो आई – वहाँ भी सब कुछ ऐसा ही था। मलनसार लोग, शु
वातावरण, पहाड़ी और शांत इलाका! म बालकनी म आकर बैठ गयी – एकांत था, र र
तक शां त, न कोई लोग और न कोई आवाज़! रात म पहनने को कुछ नह था, इस लए
कमरे क ब ी बुझा कर, बना कपड़ के ही कुस पर बैठ कहे आकाश को दे र तक दे ख
रही थी। कम षण वातावरण म होने के नाते, रा आकाश असं य सतार जगमगाते
ए दख रहे थे! शानदार था!
यहाँ ाकृ तक य क भरमार थी... मटट से मानो एक जा ई खुशबू नकल रही थी।
पेड़ पौध का अपना नराला अंदाज़, चार ओर जैसे बस सुगंध ही सुगंध! ऐसे मनभावन
वातावरण म कसी भी कार का लेश कैसे हो सकता है? ले कन फर भी मन आशा त
था! घर क याद हो आई.. एक एक बात! माँ बाप का साथ कतना सुकून दे ता है! उनक
याद आते ही मन आ क जैसे पंख लगाकर पल भर म ही उनके पास प ँच जाऊँ। पापा
तो कतना लारते ह! घर जाने पर म आराम से उनके ऊपर पैर पसारकर दे र तक बैठ
रहती ँ। माँ कभी एक कप चाय का पकड़ा दे ती ह, तो कभी रक लेट गरम पकोड़े!

“ या सोच रही हो?” अथव ने मेरे कंधे पर मा लश करते ए पूछा। न जाने कैसे, अगर मेरे
मन म कुछ भी उ टा पु टा होता है तो उनको ज़ र मालूम पड़ जाता है। एक बार उ ह ने
मुझे कहा था क म बलकुल पारदश ँ...

“कुछ भी नह , बस यूं ही मन उदास है।” मने सहज होते ए कहा।

“अरे! ऐसा य ? मेरा सर ाइज पसंद नह आया या, जो ऐसे जाने कहां खोई हो?”

मने संभलते ए कहा, “कुछ भी तो नह आ?”

“नह ... कुछ तो गड़बड़ है... वरना तुम इस तरह उदास और बुझी ई कभी नह रहती।”
इनक पारखी आंख ने ताड़ ही लया... और ताड़े भी य न? हम अब तक एक- सरे क
रग-रग से वा कफ हो गए थे, और एक- सरे क परेशानी क चता-रेखा को पकड़ लेते
ह। दो साल का अ तरंग साथ है। चेहरा दे ख कर तो या, अब तो बना दे खे ए ही मन के
भाव समझ जाते ह। उ ह ने मुझे पीछे से आ लगन म भरते ए पूछा, “ए जानू! बोलो न
या आ? कुछ तो बताओ!”

मने सहज होने क को शश करते ए कहा, “यूं ही आज रह-रहकर घर क याद आ रही


ह।“

“अरे! बस इतनी सी बात.. अरे भई, कॉल कर लो!”

“ म.. दे खा.. ले कन स नल नह ह..”


“कोई बात नह , कल सवेरे कर लेना, जैसे ही नेटवक आता है.. ओके?”

मने कुछ नह कहा... बस डबडबाई ई आंख को चुपके से प छ लया। चाहे मने कतनी
ही चोरी छु पे यह कया हो, वो दे ख ही लेते ह।

“ओये, तुम चॉकलेट खाओगी?” मुझे चॉकलेट ब त पसंद ह... इसी लए वो अ सर अपने
साथ दो तीन पैक ज़ र रखते ह। म मु कुराई! मेरी हर परेशानी का इलाज रहता है इनके
पास।

“हाँ! बलकुल! चॉकलेट के लए मने कब मना कया?”

“हा हा! चलो यार! कम से कम तुम कुछ मु कुराई तो!” उ ह ने मुझे चॉकलेट पकड़ाते ए
कहा, “... यू नो! तु हारे चेहरे के लए मु कुराहट ही ठ क है.. उदास होना, या गु सा होना...
तु हारे लए नह डज़ाइन कया गया है..।“

“अ ा जी, तो फर कसके लए?”

“मेरे लए! मुझे दे खो न.. अगर इस चेहरे पर एक बार गु सा आ जाय, तो सामने वाले
क ...”

मने बीच म ही काटते ए कहा, “जी हाँ.. समझ आ गया!” फर कुछ दे र क कर, “जानू,
आप भी कभी गु सा या उदास मत होइएगा। आप पर भी सूट नह करता!”

“म भला य होऊंगा? मेरे साथ तो तुम हो! मेरे पास गु सा या उदास होने का कोई रीज़न
ही नह है!” इ होने मुझे लारते ए कहा। म मु करा उठ । इनके नेह भरे साथ ने मुझे
कतना बदल दया है!

“यू कस मी...”, मने एक बदास लड़क के जैसे वतमान अ तरंग ण का भरपूर लु त


उठाने के लए अथव का चेहरा अपने चेहरे पर ख च लया। पछले एक ह ते से हम लोग
ब त ही त हो गए थे, और जा हर सी बात है क इस कारण से सबसे पहले हमारे यौन
समागम क ब ल चढ़ । मुझे तो लगता है क जब कसी को सहवास क नय मत खुराक
क आदत पड़ जाती है तो कसी भी कार का वधान शरीर और मन पर असर करने
लगता है। ठ क वैसे ही जैसे कसी क न द गड़बड़ होने से पूरे मान सक और शारी रक
व ा पर बुरा असर पड़ता है। मेरा शरीर कसी कसे ये वीणा क तरह आ जा रहा
था। मन बेचैन होने लगा था।

हमारे आ लगन ब शरीर म जैव रसायन और संवेदना के समरस भाव से अब ती


उ ेजना वा हत होने लगी थी। ऐसे खुले ाकृ तक वातावरण म यह यौनजन्*य या
अब अपना असर दखाने लगी थी – मेरी यो न से वही जाना पहचाना ाव होने लगा था,
और अथव का लगो ान होने लगा। कुछ दे र ढं ग से चूमने के बाद, अथव मुझे अपनी गोद
म उठाकर हमारे सुसज्* जत शयनक म आए। म ब तर पर बैठ कर चादर क सलवट
ठ क करने लगी, ले कन अब तक अथव कामास होकर शरारत के मूड म आ गए थे।
हमने इन दो साल म कतनी ही बार अनवरत सहवास कया था, ले कन आज भी जब भी
वो मुझे अपनी बाह म लेटे ह तो उनके मनोभाव समझते ही शम क लाली मेरे गाल और
आँख म उभर जाती है। मुझे ब तर पर लटा कर जब अथव मुझमे व ए तब तक
मेरा सारा तनाव और उदासी समा त हो गयी थी। ताज़ी हवा, च ँओर फैली शां त और
बल साहचय क ऊजा ने हमारे शरीर म हाम स क ग त इतनी बढ़ा द क उ ेजना क
कां त त्*वचा से रसने लगी। यौन संसग सचमुच मान सक चेतना को सुकून और शरीर को
पौष्* टकता दे ती है। दे खो न, कैसे उनके पौ ष रसायन क आपू त से मेरी दे ह गदरा गयी
है! साहचय म म मदमस्*त होकर अथव को अपनी छा तय म समेटे ले रही थी – और दे र
तक हमारी कामज नत इ ा को मूत प दे ते रहे।

सवेरे हम लोग दे र से उठे , और जब तक तैयार होकर बाहर आये, तब तक हमारे मेजबान


ने एक बेहतरीन ेकफा ट बना दया था। हमने खाना खाया, कॉफ़ पी, और फर भुगतान
वगैरह करके वापस क या ा आर करी। रा ते म अथव ने कहा क चलो, तु हे त बत
क सैर कराता !ँ

त बत! यहाँ कहाँ त बत! फर कोई एक घंटे म उनका मतलब समझ आया। हम लोग
यलाकु पे त बती मठ प ंचे। यह एक बेहद सु दर जगह है... अचानक ही इतने सारे
त बती चेहर को दे ख कर लगता है क भारत म नह , ब क वाकई त बत प ँच गए ह!
ाचीन पर रा को लए, और आधु नक सु वधा के साथ यह जगह एक ब त सु दर
गाँव जैसे है। वैसे भी यह जगह दे खने के लए आज एकदम सही दन था – गुनगुनी धुप
बखरी ई थी। प रसर के अ दर बगीच का रख रखाव अ े से कया गया था। हर भवन
के ऊपर रंग- बरंगी झंडे फहरते दख रहे थे। आते जाते भगवा व म बौ भ ु दख रहे
थे। एक तरफ त बती ब े आइस म का आनंद ले रहे थे। हम लोग वाकई यह भूल गए
क हम लोग कनाटक म ह। मठ इतनी अ तरह से सु व त और शां तपूण ढं ग से
सजाया गया था क यहाँ आ कर मेरे मन म अनंत शां त और ऊजा का संचार होने लगा।

मठ के अ दर एक मं दर है, जसको वण मं दर कहते ह। उसम ब त सु दर तीन मू तयाँ ह


- भगवान बु (क पर), गु प संभव, और बु अ मतायुस। ये मू तयाँ तांबे क बनी ह,
और उन पर सोना चढ़ा आ है। मं दर के अंद नी और वा द वार पर बारीक डजाइन
और भ - च बनाए गए थे। द वार पर बने रंगीन भ च अनेक कार क कहा नयां
सुना रहे थे। एक तरफ भ ु लोग ाथना कर रहे थे और उनक ाथना से उ पा दत गहरी
गुंजार... मानो हम खो गए थे। यहाँ पर ब त दे र रहा जा सकता है, ले कन काम को कैसे
दर कनार कया जा सकता है? शाम से पहले बगलोर प ंचने के लए हमको अभी ही शु
करना चा हए था, तो इस लए हमने भगवान बु को वदाई द और बाहर आ गए। दोपहर
का भोजन हमने वह कया – त बती भोजन! वहाँ यादातर घर को कैफे और रे तरां
भोजनालय म बदल दया गया है। खाने के बाद हमने कुछ ह त श प सामान खरीदा और
वापसी का ख कया।
अथव क खजुराहो वाली उपमा मेरे दमाग म हमेशा बनी रही। इंटरनेट और अ य जगह
से उसके बारे म मने ब त सी जानकारी इक कर ली थी.. इसलीये जैसे ही अथव ने
दस बर क छु याँ मनाने के लए जगह चुनने क पेशकश करी, मने तुरंत ही खजुराहो
का नाम ले लया। अथव ने आँख मारते ए पूछा भी था क ‘जानेमन, या चाहती हो?
अब या सीखना बाक है?’ उनका इशारा सहवास क तरफ था, यह मुझे मालूम है..
ले कन मने उनक सारे तक वतक को ीण कर के अंततः खजुराहो जाने के लए मना ही
लया। ले कन अथव भी कम चालाक नह ह, उ ह ने चुपके से प ा रा ीय उ ान को भी
हमारी या ा म शा मल कर लया।

खजुराहो के मं दर भारतीय ाप य कला का सु दर और उ कृ मसाल ह! मं दर क


द वार पर उकेरी व भ मु ा को दखाती मनोहारी तमाएँ लभ श पकारी का
उदाहरण ह। खजुराहो म य दे श रा य म त एक छोटा सा गाँव है। म यकाल म उ री
भारत के सीमांत दे श पर पराये धम क ◌ी आ ांता के अनवरत आ मण के कारण
बड़गु र राजपूत ने पूव दशा का ख कया, और म यभारत अपना रा य ा पत
कया। ये राजपूत महादे व शव के उपासक थे। उ ह शासक ारा नव से यारहव
शता द के बीच खजुराहो के मं दर का नमाण कराया गया। कहते ह इन मं दर क कुल
सं या प ासी थी, ज ह आठ ार का एक वशाल परकोटा घेरता था और हर ार
खजूर के वशाल वृ लगे ए थे। इसी कारण इस जगह को खजुराहो कहते थे। आज
उतनी सं या म मं दर नह बचे ह। मु लम आ मणका रय क धमा ता और समय का
शकार हो कर अ धकांश मं दर न हो गए ह। आज केवल बीस-प ीस मं दर ही बचे ह।
हर साल लाख क सं या म दे शी व वदे शी पयटक खजुराह आते ह व यहाँ क खूबसूरती
को अपनी मृ त म कैद कर ले जाते ह।
खजुराहो के मं दर को ‘ ेम के मं दर’ भी कहते ह। क हये तो इन मं दर का इतना चार
यहाँ क काम-मु ा म म न दे वी-दे वता तमा के कारण आ है। यान से दे ख तो इन
मू तय म अ ीलता नह , ब क ेम, स दय और सामंज य का दशन है। खजुराहो के
मं दर को आम तौर पर कामसू मं दर क सं ा द जाती है, ले कन केवल दस तशत
श पाकृ तयाँ ही र त ड़ा से संबं धत ह। तवष कई नव ववा हत जोड़े प रणय सू म
बँधकर अपने दांप य जीवन क शु आत यही से करते ह। ले कन सच तो यह है क न ही
कामसू म व णत आसन अथवा वा यायन क काम-संबंधी मा यता और उनके
कामदशन से इनका कोई संबंध है।
खजुराहो मं दर तीन दशा म बने ए ह - प म, पूव और द ण दशा म। यादातर
मं दर बलुहा प र के बने ह। इन पर आकृ तयाँ उकेरना क ठन काय है, य क अगर
सावधानी से छे नी हथोडी न चलाई जाय, तो यह प र टू ट जाते ह। खजुराहो का मुख
एवं सबसे आकषक मं दर है कंदा रया महादे व मं दर। आकार म तो यह सबसे वशाल है
ही, ाप य एवं श प क से भी सबसे भ है। समृ ह नमाण-कला एवं बारीक
श पकारी का अ त नमूना तुत करता है यह भ मं दर। बाहरी द वार क सतह का
एक-एक इंच ह सा श पाकृ तय से ढं का पड़ा है। कंद रया’ - कंदप का अप ंश! कंदप
यानी कामदे व! सचमुच इन मू तय म काम और ई र दोन क त मयता क चरम सीमा
दे खी जा सकती है... भावा भभूत करने वाली कला मकता! सु च त तोरण- ार पर नाना
कार के दे वी-दे वता , संगीत-वादक , आ लगन-ब यु म आकृ तय , यु एवं नृ य,
राग- वराग क व वध मु ा का अंकन आ है। अ दर क तरफ मंडप क सुंदरता मन
मोह लेती है। बाला क कमनीय दे ह क हर भं गमा, और हर भाव का मनोरम अंकन
आ है। उनके शरीर पर सजे एक-एक आभूषण क आकृ त श पकला के कौशल
को दशाती है। ंदन, ग त, ू त सब जैसे ग तमान और जीवंत से लगते ह! म एकटक
उन मू तय को दे खती रही!

मं दर के गभगृह म संगमरमर का शव लग ा पत है, और उसक द वार पर प र मा


करने वाले पथ पर मनोरम श पाकृ तयाँ बनी ह। मं दर क बाहरी द वार पर चार
दशा म दे वी-दे वता , दे व त , य -गंधव , अ सरा , क र आ द का च ण कया
गया है। सीढ़ साद भाषा म कह तो खजुराहो मं दर, ख़ास तौर पर कंद रया महादे व मं दर
ह श प और ाप य कला का सं हालय है। श प क से दे श के अ य सारे
नमाण बौने ह! म इन मं दर को दे खते ए म बार-बार अ भभूत हो रही थी। मं मु ध सी
नहार रही थी!

वशालता और श प-वैभव म कंद रया महादे व का मुकाबला करते ल मण मं दर है।


इसके ांगन म चार कोन पर बने उपमं दर आज भी ह। इस मं दर के वेश- ार के शीष
पर भगवती महाल मी क तमा है। उसके बाएँ त पर ा एवं दा हने पर शव क
मू तयाँ ह। गभगृह म भगवान व णु क लगभग चार फुट ऊँची तमा ा पत है। इस
तमा म आप नर सह और वाराह अवतार का प दे ख सकते ह। मं दर क द वार पर
व णु के दशावतार , अ सरा , आ द क आकृ तय के साथ-साथ ेमालाप, आखेट,
नृ य, म लयु एवं अ य ड़ा का अंकन कया गया है।
दन भर इन मं दर का मण करने, थोड़ी ब त खरीददारी करने और रात का साउं ड एंड
लाइट शो दे खने के बाद जब हम वापस आये तो ब त थक गए थे! सच क ,ं तो यहाँ आने
को लेकर अथव मेरी अपे ा कम उ सा हत थे। हमने कमरे म ही माँगा लया और खाना
खा पीकर जब हम ब तर पर लेटे तो दमाग म इस जगह के शासक – चंदेल राजपूत क
उ प क कहानी याद आने लगी। चंदेल राजा वयं को च मा क संतान कहते थे।
कहानी कुछ ऐसी है - बनारस के राजपुरो हत क वधवा बेट हेमवती ब त सुंदर थी....
अनुपम पवती! एक रात जब वह एक झील म नहा रही थी तो उसक सुंदरता से मु ध
होकर च मा धरती पर उतर आया और हेमवती के साथ संसग कया। हेमवती और चं मा
के इस अ त मलन से जो संतान उ प ई उसका नाम च वमन रखा गया, जो चंदेल
के थम राजा थे।

कहानी अ है, और ेरणादायी भी! ेरणा कस बात क ? अरे, या अब यह भी बताना


पड़ेगा?

“जानू?”

“ म?”

“हेमवती और च मा वाला खेल खेल?”

“नेक और पूछ पूछ! ले कन सेटअप सही होना चा हए!”

“अ ा जी! मने तो मजाक कया था, ले कन आप तो सी रयस हो गए!” मने ठठोली


करी।

अथव ने खड़क खोल द । चांदनी रात तो खैर नह थी, ले कन चांदनी क कमी भी नह


थी। उसके साथ साथ ठं डी हवा भी अ दर आ रही थी। ले कन, अगर शरीर म गम हो, तो
इससे या फक पड़ता है? सोते समय मने शफॉन क नाइट पहनी ई थी – इसका सामने
(मेरे तन पर) वाला ह सा जालीदार था। उसक छु वन और ठं डी हवा से मेरे तना
लगभग तुरंत ही तीखे नोक म प रव तत हो गए। अथव के कहने पर म खड़क के पास
जा कर खड़ी हो गई - ण भर को मुझे जाने य लगा क म वाकई हेमवती ,ँ वाराणसी
के उसी ा ण पं डत क पु ी! खुली खड़ कय से आती ई चांदनी हमारे कमरे को मानो
सरोवर म त द ल कये जा रही थी और म चं मा क करण म नहा रही थी, अंग-अंग डू बी
ई। मने अपनी आँख बंद कर ल !

‘न जाने कतनी य को यह अनुभव आ हो!’

मने मुड़ कर अथव को दे खा – वो भी त लीन होकर चांदनी म नहाए मेरे प का अनवरत


अवलोकन कर रहे थे।

‘बॉडी लाइक खजुराहो इडो स!’

म धीरे धीरे खजुराहो क सपनीली नया क ना यका बनती जा रही थी। राग-रंग से भरी
ई... आ मलीन ना यका! मुझे लगा जैसे क मेरा शरीर कसी कसे ये वीणा क तरह हो
गया हो – उं गली से छे ड़ते ही न जाने कतने राग नकल पड़गे! मन अनुरागी होने लगा।
या यह बेचैनी खजुराहो क थी? लगता तो नह ! अथव तो हमेशा साथ ही रहते ह, ले कन
आज वाली यास तो ब त भ है! न जाने कैसे, अथव के लये मानो मेरी आ मा तड़पती
है, शरीर क न करता है... अब यह सब सवाय यार के और या है?

“कब तक यूँ ही दे खगे?”

“पता नह कब तक! तुम वाकई खजुराहो क दे वी लग रही हो! ये गोल, कसे और उभरे
ए तन, पतली कमर, उ त नतंब! ... बलकुल सपने म आने वाली एक परी जैसी!”

“अ ा... आपके सपने म प रयां आती ह?” तब तक अथव ने मुझे अपनी बाह म भर
लया।

वो मुझे ब त यार से दे ख रहे थे – आँख म वासना तो थी, ले कन यार से कम! उनक


आँख म मेरा अ स! उनक आँख के ेम म नहाया आ मेरा शरीर! सचमुच, म हेमवती
ही तो थी!

अथव ने या कहा मुझे सुनाई नह दया – बस उनके ह ठ जब मेरे ह ठ से मले, तो जैसे


शरीर म बजली सी दौड़ गई! म चुपचाप दे खती ँ क वो कैसे मेरे हर अंग को अनावृत
करते जाते ह, और चूमते जाते ह। बस कुछ ही पल म म अपने सपन के अ ध ाता के
साथ एक होने वाली थी।

‘बस कुछ ही पल म....’

अथव मेरे तना को बारी बारी मुंह म भर कर चूस, चबा, मसल और काट रहे थे। मेरी
साँसे तेजी से चलने लग । मेरा पूरा शरीर कसमसाने लगा। आज अथव कुछ अ धक ही
बल से मेरे तन दबा रहे थे – ऐसा कोई अस नह , ले कन ह का ह का दद होने लगा।

“अआ ह! आराम से...”

"हँ?" अथव जैसे कसी त ा से जागे!

“आराम से जानू... आह!”

“आराम से? तू इतनी कामुक लग रही है... आज तो इनम से ध नचोड़ लूँगा!” कह कर


उ ह ने बेरहमी से एक बार फर मसला।

"आऊ! अगर... इनम... ध होता... तो आपको... मज़ा... आआ ह! आता?" मने जैसे


तैसे कराहते ए अपनी बात पूरी करी। म अ यमन क हो कर उनके बाल म अपनी
उँ ग लयाँ फरा रही थी।

उ ह ने एक तना को मुंह म भर कर चूसते ए हामी म सर हलाया। कुछ दे र और तन


मदन के बाद मेरी दद और कामुकता भरी सस कयाँ नकलने लगी। लोहा गरम हो चला
था... ले कन अथव फोर ले म बजी ह!

“अब... बस...! आह! अब अपना ... ओह! लग.. डाल दो! लीज़! आऊ! अब न...
अआ ह! सताओ...!”

अथव जैसे बहरे हो गए थे। अब वो धीरे-धीरे चूमता ए मेरे पेट क तरफ आ कर मेरी
ना भ को चूमने, चूसने और जीभ क नोक से छे ड़ने लगे, सरे हाथ से वो मेरी यो न का
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जायजा लेने लगे। और फर अचानक ही, उ ह ने मुझे अपनी गोद म उठाया और लाकर
ब तर पर पटक दया। कपड़े मेरे तो न जाने कब उतर चुके थे... अथव के कहने पर मने
अपनी यो न पर से बाल हटवा लए थे – ाई प से! अथव अभी पूरी त मयता के साथ
बेतहाशा मेरी यो न को पागल क तरह चूस रहे थे। अपनी जीभ यथासंभव अ दर घुसा
घुसा कर मेरा रस पी रहे थे। म बेचारी या करती? म आन द के मारे आँख बंद करके मजा
ले रही थी, और इस बात पर कुढ़ भी रही थी क अभी तक उ ह ने लग य नह घुसाया।
अब मुझसे सहन नह हो पा रहा था।

जैसे अथव ने मेरे मन क बात सुन ली हो – उ ह ने यो न चूसना छोड़ कर एक बार मेरे


ह ठ पर एक चु बन लया और फर खुद भी नव हो कर मु य काय के लए तैयार हो
गए। अथव ने एक झटके के साथ ही पूरा का पूरा मूसल मेरे अ दर ठे ल दया – मेरी
उ ेजना चरम पर थी, इस लए आसानी से सरकते ए अ दर चला गया। उ ेजना जैसे मेरे
वश म ही नह थी - मने नीचे दे खा – मेरी यो न क मांसपे शय ने लग- त को ब त
जोर से जकड़ रखा था। अथव ने ह के-ह के ध के लगाने शु कर दए थे। और म मुँह
भ चे, उनके लग क चोट को झेल रही थी।

मने कहा, “आप तेज-तेज करो... जतनी तेज कर पाओ.. आह!”

अथव ने अपनी ग त बढ़ा द और तेज़-तेज़ झटके मारने लगे। जा हर सी बात है, इतनी
तेज ग त से सहवास करने पर हमेशा जैसा मैराथन संभव नह था। उनक ग त और भी
तेज हो गयी थी, य क म भी अपनी कमर हला- हला कर उनका साथ दे रही थी।
आ ख़रकार एक झटके के साथ अथव का ढे र सारा वीय मेरे अ दर भर गया। जब वो पूरी
तरह से नवृ हो गए तो हम दोन लपट गए।

मने उनको चूमते ए कहा, “बाहर मत नकलना!”

अथव उसी तरह मुझे अपने से लपेटे लेटे रहे और बात करते रहे। अंततः, उनका लग पूरी
तरह से सकुड़ कर बाहर नकल गया। म उठ कर बाथ म गयी, और साफ़ सफाई कर के
अथव के साथ रजाई के अ दर घुस गयी।

“म आपसे एक बात क ं? ... उ म एक नह , दो बात?”


“अरे, अब आपको अपनी बात कहने से पहले पूछना पड़ेगा?”

“नह .. वो बात नह है.. ले कन बात ही कुछ ऐसी है!”

“ऐसा या? बताओ!”

“आपने एक बार मुझे कहा था न.. क अगर मेरे पास कोई बज़नस आई डया होगा, तो
आप मेरी हे प करगे?”

“हाँ.. और यह भी कहा था क आई डया दमदार होना चा हए... कुछ है या दमाग म?”

“है तो... आप सुन कर बताइए क ब ढ़या है या नह ?”

“म सुन रहा .ँ ..”

“एक फैशन हाउस, जसमे े डशनल से इं ायर हो कर कंटे ररी जेवेलरी मल?
खजुराहो ओनामट् स! कैसा लगा नाम? पुरानी मू तय , और च से ेरणा लेकर नए
कार के गहने? मेटल, वुड, टोन, और ब स – इन सबसे बना आ? या कहते ह?
कॉ लमटरी ए सेसोरीस, जैसे टोल, बे ट् स, और बै स भी रख सकते ह!”

“ म... इंटरे टग!” अथव ने च लेटे ए कहा... “अ ा आई डया तो लग रहा है.. इस


पर कुछ रसच करते ह। एक टोर के साथ साथ इंटरनेट पर भी बेच सकते ह... ठ क है...
मुझे और पता करने दो, और इस बीच म अपने इस आई डया को और आगे बढाओ...
ओके? हाँ, अब सरी बात?”

“ सरी बात... उ म.. कैसे क ं आपसे..!”

“अरे! मुझसे नह , तो फर कससे कहोगी?” अथव ने यार से चूमते ए कहा।

म मु कुराई, “मुझे इनम,” कहते ए मने अथव का हाथ अपने एक तन पर रखा, “ ध


चा हए...”
“ह? वो कैसे होगा?”

“अरे बु ... म माँ बनना चाहती ँ...”

“माँ बनना चाहती हो? वाकई? ...आई मीन, इस इट फॉर रयल?” मुझे उसक बात पर
यक न ही नह हो रहा था। या अभी तक अपनी पढाई लखाई म इतनी मशगूल थी, क
इस बात को पचाना ही मु कल हो रहा था।

“हाँ! य ? आप ऐसे य कह रहे ह?” या का वर अभी भी उतना ही संयत और शांत


था, जतना क यह बात करने से पहले... सहवास क संतृ त क उ रद त का असर
होगा? ... नह .. ये तो सी रयस लग रही है!

“नह .. मेरा मतलब.. तुम अभी कतनी छोट हो!”

“आपका मतलब, आपसे शाद करने के टाइम से भी छोट ?”

“नह ... ओह गॉड! एक मनट... जरा ठ े दमाग से सोचते ह.. माँ बनना एक बात है,
ले कन ब े क परव रश, उसक दे खभाल करना एक बलकुल अलग बात है। म यह नह
कह रहा ँ क तुम हमारे ब े का याल नह रख पाओगी.. ले कन उसक फुल टाइम
ज़ मेदारी? मुझे नह लगता क तुम.. और म भी अभी तैयार ह। अभी तु हारी उ इन
च कर म पड़ने क नह है... हम ज़ र ब े करगे! ले कन, अभी नह । यह समझदारी
नह है... अभी अपने क रयर के बारे म सोचो – ब े तो कभी भी कर सकते ह!”

“जानू.. माना क म अभी पढ़ रही .ँ .. ले कन, वो मेरे लए ब त आव यक नह है! पढाई


म जारी भी रख सकती .ँ . है क नह ? वैसे भी मने अभी आपको अपना क रयर लान
बताया न? हम लोग एक अ गवनस रख सकते ह.. मेरी हे प के लए!”

उसने क कर मुझे कुछ दे र दे खा... मने कुछ नह कहा। तो उसी ने आगे कहना जारी रखा,

“जानू.. पछले कई दन से मुझे माँ बनने क ब त ती इ ा हो रही है। और इसम


परेशानी ही या है?
यहाँ, हमारी कॉलोनी म ही दे ख ली जये.. कतनी सारी म हलाएं माँ बनी, और फर उसके
बाद अपने क रयर पर भी काम कर रही ह.. मेरा सेकंड इयर ख़तम होने ही वाला है.. अगर
हे ठ क रहे और कोई कॉ लकेशन न हो, तो थड इयर क लासेज तो आराम से क
जा सकती ह! ...वैस.े .. अगर आप पापा बनने को अभी रेडी नह है, तो कोई बात नह ! हम
वेट कर लगे!”

पापा! और म? ऐसे तो मने कभी सोचा ही नह !

“वेट कर लगे? अरे यार! अभी तु हारी उ ही कतनी है?”

“आपको नह मालूम?”

“मालूम है.. ! एकदम क ी कली हो तुम! अभी ब ा जनना ज़ री है?”

“क ी कली.. ही ही ही...! इस कली को आपने महकता आ फूल बना दया है, मेरे
जानू!” हँसते ए या ने मेरे गले म गलब हयाँ डाल द और मेरे चेहरे को अपने तन क
तरफ झुकाते ए ब तर पर लेट गयी।

इशारा साफ़ था – सच म, मेरा भी कतना मन होता था क अगर इसके तन म ध उतर


आये तो कतना मज़ा आये! ले कन इतनी सी बात के लए उसको माँ बनाना! ये तो वही
बात ई, खाया पया कुछ नह और गलास तोड़े बारह आने!
१९
मुझे नह मालूम था क या इस बात का ठ करा मेरे सर पर, और वो भी इस तरह
फोड़ेगी। रात म न द नह आई, और पूरी रात सोचता रहा – या ब ा लाने क बात से म
डर गया ?ँ या तो तैयार लग रही है, ले कन या म तैयार ँ? आ थक, सामा जक,
शारी रक से तो अभी तो उ म त है.. ले कन भावना मक प से? या म एक
न ही सी जान इस संसार म लाने और उसको लाड़- यार दे ने और पाल-पोस कर बड़ा करने
के लए तैयार ?ँ अभी तक तो जब जो जी म आया वो कया वाली हालत है.. ले कन
ब ा आने पर वो सब कुछ बदल जाएगा! अपनी वतं ता छोड़ सकता ँ या? उ का
बहाना तो बना ही नह सकता.. मेरी उ के कई सहकम बाप बन चुके ह.. एक नह ब क
दो दो ब के! या यह डर मेरा या पर अपने एका धकार के कारण है? ब ा आने पर
वो तो उसी म लगी रहेगी.. फर... मेरा या होगा? अब यह चाहे मेरा डर हो, या फर या
पर मेरा एका धकार, और या फर उसके लए मेरी चता... म उसको सीधे-सीधे मना नह
करना चाह रहा था, पर इशार म समझाया क अभी ब े के च कर म मत पड़ो! पहले
पढ़ाई ख़तम करो, और फर ब े।

माँ बाप बनना कोई मु कल काम तो है नह ... बस नबाध प से सहवास करते रह, और
या? म और या कभी भी इस मामले म पीछे नह रहते ह, और ज द ही या के आ ह
पर या के दौरान हमने कसी भी कार क सुर ा रखना बंद कर दया। ब े के वषय
म और यादा बात करने से म भी कुछ दन म मन ही मन पता बनने को तैयार हो गया।
माच का महीना था, और आ ख़री ह ता चल रहा था। या उस रात अपने ए जाम क
तैयारी कर रही थी, और हमेशा क तरह म उसके साथ उसके वषय पर चचा कर रहा था।
मने एक बात ज़ र दे खी – या आज रोज़ से यादा मु कुरा रही थी... रह रह कर वो हंस
भी रही थी! ये सब मेरा म था या? उसके गाल थोड़ा और गुलाबी लग रहे थे! ये लड़क
तो परी है परी! हर रोज़ और यादा सु दर होती जा रही है!! दस बजते बजते उसने कहा
क तैयारी हो गयी है। साल भर पढ़ने का लाभ यही है क आ खरी रात यादा मश कत
नह करनी पड़ती। कताब को बगल क टे बल पर रख कर या मेरा हाथ पकड़ कर मुझे
मु कुराते ए दे खने लगी।

“ या बात है जानू? ब त खुश लग रही हो आज!”

“हाँ.. आज खुश तो ब त ँ म!”


“अरे वाह! भई, हम भी तो मालूम पड़े आपक ख़ुशी का राज़!”

उ रम या ने मेरे हाथ को अपने एक तन पर रख कर कहा, “इनम... ध... आने वाला


है!”

मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।

या ने मुझे समझाते ए कहा, “जानू.. आप पापा बनने वाले ह!”

“ हाट! या ये सच है जानू?”

या खल खला कर हंस पड़ी, और दे र तक हंसने के बाद उसने सर हला कर हामी भरी।

“ओओ माय गॉड! वाव! आर यू योर?”

“मुझे आज सवेरे मालूम पड़ा.. म ड माय पी रयड् स फॉर सेकंड मंथ.. इस लए आज होम
ेगनसी कट ला कर टे ट कया। रज ट पॉ ज टव है!”

मुझे अभी भी यक न नह हो रहा था, “वाव!” मने धीरे से कहा.. और फर तेज़ से,
“वा व! ओह गॉड! हनी, आई ऍम सो है पी! अमे जग!!” कहते ए मने या के ह ठ पर
अपने ह ठ रख दए और अपने दोन हाथ से उसके गाल को पकड़ कर दे र तक चूमता
रहा। मेरी बीवी गभवती है! अ त! मुझे उसका शरीर दे खने क ती इ ा होने लगी (मेरी
मूखता दे खए, अभी दो दन पहले ही तो हमने सहवास कया था), और मने उसक ट -
शट उठा द ... और उसके पेट पर यार से हाथ फराया।

‘इसम मेरा ब ा है!’ म इस ख़याल से हैरान था। मेरा मन उ साह से भर गया। मने बना
कोई दे र कए उसके पेट पर एक चु बन दया – या मेरी इस हरकत से सहर उठ और
हलके से हंसने लगी।

“आई लव यू सो मच हनी! आज तुमने मुझे कतनी सारी ख़ुशी द है, तुमको मालूम नह !”
“आई लव यू टू .. सबसे यादा! आप मेरे हीरो ह.. हमारा ब ा ब त लक है क उसको
आपके जैसा पापा मलेगा!”

“नह जानू.. म लक .ँ . क मुझे तुम मली.. पहले तुमने मुझे पूरा कया, और अब मेरे पूरे
जीवन को! थक यू!”

पूरी रात मुझे न द नह आई... मुझे या, या को भी रह रह कर न द आई। मुझे डर लग


रहा था क कह न द क कमी से उसका अगले दन का ए जाम न गड़बड़ हो जाय..
ले कन या ने मुझे दलासा दया क वो भी ख़ुशी के कारण नह सो पा रही है। और
इससे ए जाम पर असर नह पड़ेगा। मने अगले दन से ही या का और यादा ख़याल
रखना शु कर दया – ब ढ़या डॉ टर से सलाह-मश वरा, खाना पीना, ायाम, और
यादा आराम इ या द! डॉ टर या क शारी रक हालत दे ख कर ब त खुश थी, और
उसने या को अपनी दनचया बरकरार रखने को कहा – बस इस बात क हदायद द क
वो कोई ऐसा मसा य काम या ायाम न करे, जसमे ब त थकावट हो जाय। उ ह ने
मुझे कहा क म या को यादा से यादा खुश रखूँ। उ ह ने यह भी बताया क य क
या क सेहत ब ढ़या है, इस लए सहवास करना ठ क है, ले कन सावधानी रख जससे
गभ पर अनचाहा चोट न लगे। उ ह ने यह भी कहा क इस दौरान या ब त ‘मूडी’ हो
सकती है, इस लए उसको हर तरह से खुश रखना ज़ री है। मुझे यह डॉ टर ब त अ
लगी, य क उ ह ने हमको बना वजह डराया नह और न कोई दवाई इ या द लखी।
गभधारण एक सहज ाकृ तक या है, कोई रोग नह । बस उ ह ने समय समय पर जांच
करने और कुछ सावधा नयां लेने क सलाह द ।

हमने जब उसके घर म यह इ ला द , तो वहाँ भी सभी ब त स ए। उसक माँ या


को मायके बुलाना चाहती थ , ले कन या ने उनको कहा क म उसका खूब ख़याल रखता
ँ, और बगलोर म दे खभाल अ है। इस लए वो यह रहेगी, ले कन हाँ, वो बीच म एक
बार मेरे साथ उ राँचल आएगी। अ नी यह खबर सुन कर ब त ही अ धक उ सा हत थी।
इस लए या ने उसको अपनी गम क छु याँ बगलोर म मनाने को कहा। अ नी का
अ ैल के अंत म बगलोर आना तय हो गया। मुझे इसी बीच तीन ह त के लए यूरोप जाना
पड़ा – मन तो बलकुल नह था, ले कन बॉस ने कहा क अभी जाना ठ क है, बाद म कोई
े वल नह होगा। यह बात एक तरह से ठ क थी, ले कन मन मान नह रहा था। खैर, मने
जाने से पहले या क दे खभाल के सारे इंतजाम कर दए थे और हेगड़े दं प से वनती
करी थी क वो ज़ रत होने पर या क मदद कर द। इसके उ र म मुझे ल बा चौड़ा
भाषण सुनना पड़ा क या उनक भी बेट है, और मने यह कैसे सोच लया क मुझे
उनको उसक दे खभाल करने के लए कहना पड़ेगा। या के ए जाम अ ैल के म य म
ख़तम हो गए, और अ ैल ख़तम होते होते म भी बगलोर वापस आ गया।

जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा क जैसे मेरे सामने कोई अ सरा खड़ी ई है! म
एक पल को उसे पहचान ही नह पाया।

" या! आज तुम कतनी सु दर लग रही हो।"

"आप भी ना..." या ने शमाते ए कहा।

या तो हमेशा से ही सु दर थी, ले कन गभाव ा के इन महीन म उसका शरीर कुछ ऐसे


बदल गया जैसे कसी स ह मू तकार ने फुसत से उसे तराशा हो। बलकुल जैसे कोई
अ त सु दर खजुराहो क मूरत! सु दर, लाव य से प रपू रत मुखड़ा, गुलाबी रसीले ह ठ,
मादक तन ( प से उनका आकार बढ़ गया था), सुडौल-गोल नतंब, और पेट के
सामने सौ य उभार! हमारा ब ा! और इन सबके ऊपर, एक यारी-भोली सी सूरत। आज
वह वाकई र त का अवतार लग रही थी। और हलके गुलाबी साड़ी- लाउज म वह एकदम
क़यामत ढा रही थी। मने भाग कर बना कोई दे र कये अपना कैमरा नकला और या क
ना-नुकुर के बावजूद उसक कई सारी त वीर उतार ल । मने मन ही मन नणय लया क
अब से गभाव ा के हर महीने क न न त वीर लूँगा... बुढापे म साथ म याद करगे!

तीन ह ते हाथ से काम चलाने के बाद म भी या के साथ के लए ाकुल था। मने या


के मुख को अपने हाथ म ले कर उसके ह ठ से अपने ह ठ मला दए। या तुरंत ही मेरा
साथ दे ने लगती है : म म त होकर उसके मीठे ह ठ और रस-भरे मुख को चूसने लगता ँ।
ऐसे ही चूमते ए म उसक साड़ी उठाने लगता ँ। या भी उ े जत हो गयी थी - उसक
सांसे अब काफ तेज चल रही थ । उ माद म आकर उसने मुझे अपनी बाह म जकड
लया। चूमते ए उसक सांसो क कामुक सस कयां मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने
लग । मै इस समय अपने एक हाथ से उसक नंगी जांघ सहला रहा था। इस पर या ने
चु बन तोड़ कर कहा,

“जानू, बेड पर चलते ह?”


मने इस बात पर उसको अपनी दोन बाह म उठा लया और उसको चूमते ए बेड म तक
ले जाकर, पूरी सावधानी से ब तर पर लटा दया। अब म आराम से उसके बगल लेट कर
उसको चूम रहा था – अ य धक घषण, चु बन और चूषण से उसके ह ठ सुख लाल रंग के
हो गए थे। हम दोन के मुँह अब तक काफ गरम हो गए थे, और मुँह ही या, हमारे शरीर
भी!

मने या क साड़ी पूरी उठा द – आ य, उसने नीचे च ी नह पहनी ई थी। मने उसको
छे ड़ने के लए उसक यो न के आस-पास क जगह को दे र तक सहलाता रहा – कुछ ही दे र
म वो अपनी कमर को तड़प कर हलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नह रही थी, ले कन
उसके भाव पूरी तरह से थे – “मेरी यो न को कब छे ड़ोगे?”

पर म उसक यो न के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था।
या क यो न म अंतर दख रहा था – र से अ तपू रत हो चले उसके यो न के दोन ह ठ
कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है क वो ब त संवेदनशील भी ह ! उसका यो न ार बंद था,
ले कन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मने अपनी जीभ को उसक यो न से सटाया और
जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसक यो न के पट तुरंत खुल गए। अंदर का
सामा यतः गुलाबी ह सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई या नह थी
– मुख मैथुन हमारे लए एक तरह से सहवास के दौरान होने वाला ज़ री द तूर हो गया
था.. ले कन गभवती यो न पर मौ खक या काफ रोचक लग रही थी। कुछ दे र या क
यो न को चूमने चाटने के बाद,

“जानू, तेरी यो न तो या म त लग रही है... दे खो, फूल कर कैसी कु पा हो गयी है!”

“आ ह! छ ! कैसे ग द बात बोल रहे ह! ब ा सुनेगा तो या सीखेगा? जो करना है


चुपचाप क रए!” मीठ झड़क !

“ग द बात या है? यो न का मतलब है आम! ये भी तो आम जैसी रसीली हो गयी है..”

“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी श दावली अपने पास र खए..
ऊ ह!” मने जोर से उसके भगनासे को छे ड़ा।
साड़ी का कपड़ा ह त ेप कर रहा था, इस लए मने उठ कर या का नचला ह सा
नव करना शु कर दया। कुछ ही दे र म उसक साड़ी और पेट कोट दोन ही उसके
शरीर से अलग हो गए।

“इतनी दे र तक, इतनी मेहनत करने के बाद मने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर
नह रही..” या ने झूठा गु सा दखाया।

“अ ा जी, मुझे लगा क तुमको नंगी रहना अ ा लगता है!”

“मुझे नह ... वो आपको अ ा लगता है!”

“हाँ... वो बात तो है!” कह कर मने उसक लाउज के बटन खोलने का उप म कया।


कुछ ही पल म लाउज या क छाती से अलग हो गयी। या ने नीचे ा नह पहनी थी।
मने एक पल क कर उसके बदले ए तन को दे खा – या क नज़र मेरे चेहरे पर थी,
मानो वो मेरे हाव भाव दे खना चाहती हो। गभाधान के पहले या के तना गहरे भूरे रंग
के थे, और बेहद यारे लगते थे। इस समय उनम ह का सा कालापन आ गया था –
आबनूस जैसा रंग! और areola का आकार भी कुछ बढ़ गया था। सच कहता ँ, कसी
और समय ऐसा होता तो नराशा लगती, ले कन इस समय उसके तन मुझे अ यंत
आकषक लग रहे थे। यारे यारे तन!

“ यूट फुल!” कह कर मने अपने मुँह से लपक कर उसके एक तना को दबोच लया और
उ साह से उसको पीने लगा। या आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बाल को कस
के पकड़ने लगी।

“आह.. जानू जानू.. इ स! दद होता है.. धीरे आ ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।

“ स धीरे धीरे कैसे क ँ ? कतनी सु दर तन ह तेरी..” कह कर मने उसके तना बारी


बारी से दाँत के बीच लेकर काटने लगा।

“म तो इनम से ध क एक एक बूँद चूस लूँगा!”

“जानू! सच म.. आह! दद होता है.. कुछ रहम करो.. उफ़!”


या ने ऐसी त या कभी नह द .. सचमुच उसको दद हो रहा होगा। मने उसके तन
को इस हमले से राहत द । या दोन हाथ से अपने एक एक तन थाम कर राहत क
सांसे भरने लगी, और कुछ दे र बाद बोली,

“अब आप इन पर सधमारी करना बंद क जए.. हमारे होने वाले ब े क डेयरी है यहाँ!”

“ह? या मतलब? मेरा प ा साफ़? इतना बड़ा धोखा!!”

“ही ही ही...” या खल खला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नह .. ऐसा मने कब कहा? सब
कुछ आप का ही तो है... ले कन एक साल तक आप सरे नंबर पर ह... आप भी ध
पीना.. ले कन हमारे ब े के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने लार से मेरे बाल म
हाथ फराया।

“बस.. एक ही साल तक पलाओगी?”

“हाँ.. उसको बस एक साल... ले कन उसके पापा को, पूरी उ !”

“ह म... तो अब मुझे जू नयर क जूठन खानी पड़ेगी..”

“न बाबा... खाना नह .. बस पीना...”

या क बात पर हम दोन खुल कर हंसने लगे।

“ठ क है... म मी क तन नह तो यो न ही सही..” कह कर मने या क यो न पर हमला


कया।

“जानू...!” या च ंक उठ , “ल वेज! ... बलकुल बेशरम हो!”

मने नए अंदाज़ म या क यो न चाटनी शु क – जैसे बाघ पानी पीता है न? लपलपा


कर! ठ क उसी कार मेरी जीभ भी या क यो न से खेल रही थी... या क सांस
त या व प तेजी से चलने लगी.. उ ेजना म वो कसमसा मुझे ो साहन दे ने लगी..
वह उ ेजना के चरम पर ज द ज द प ँच रही थी, और इस कारण उसका शरीर पीछे
क ओर तन गया था – धनुष समान! उसके हाथ मेरे सर पर दबाव डाल रहे थे। मैने उसके
हाथ को अपने सर से हटा कर, उसक उँ ग लय को बारी बारी से अपने मुंह म ले कर
चूसने चाटने लगा। या उ माद म कराह उठ – उसक कमर हलाने लगी... ठ क वैसे ही
जैसे सहवास के दौरान करती है। उसके हाथ को छोड़ कर मने जैसे ही उसक यो न पर
वापस जीभ लगाई उसक यो न से सरप जैसा व बहने लगा, और उसके बदन म
कंपकंपी आने लगी। मै धीरे धीरे, वाद ले लेकर उस व को चाट रहा था। ब ढ़या वाद!
नमक न, ख ा, और कुछ अनजाने वाद – सबका मला-जुला।

या मुँह से अं ेजी का ओ बनाए ए तेजी से साँसे ले रही थी – इस कारण हलक सीट


सी बजती सुनाई द । मने सर उठा कर उसक तरफ दे खा – या ने आंखे कस कर मूंद
ई थी, और कांप रही थी। मैने वापस उसक यो न का मांस अपने होठ के बीच लया
और ह ठ क मदद से दबाने, और चाटने लगा। इस नए आ मण से वो पूरी तरह से तड़प
उठ । मने व भ ग तय और तरीक से उसक यो न के दोन ह ठ और भगनासे को चाट
रहा था। उसी लय म लय मलाते ए या भी अपनी कमर को आगे-पीछे हला रही थी।
या दोबारा अपने चरम के नकट प ँच गई। ले कन उसको ा त करवाने के लए मुझे
एक आ खरी हमला करना था – मने उसक यो न मुख को अपनी तजनी और अंगूठे क
सहायता से फैलाया, और अपने मुँह को अ दर दे मारा। जतना संभव था, मने अपनी जीभ
को उसक यो न के भीतर तक ठे ल दया – उसक यो न क अंद नी द वार मानो भूचाल
उ प कर रही थ – तेजी से संकुचन और फैलाव हो रहा था। शी ही उसक यो न के
भीतर का वालामुखी फट पड़ा। मुझे पुनः नवप र चत नमक न-ख ा वाद एक गरम व
के साथ अपनी जीभ पर महसूस आ। मै अपनी जीभ को यथासंभव उसक यो न के
अंदर तक डाल दे ता ँ।

“आआ ह!” या चीख उठती है। उ ेजनावश वो अपने पैर से मेरी गरदन को जकड़
लेती है और कमर को मेरे मुंह ठे लने क को शश कर रही थी। म अपनी जीभ को अंदर-
बाहर अंदर-बाहर करना बंद नह करता। उसका रसता आ यो न-रस म पूरी तरह से पी
लेता ँ। या का शरीर एकदम अकड़ जाता है; र त- न प के बाद भी उसका शरीर रह
रह कर झटके खा रहा होता है। जब उ ेजना कुछ कम ई तो या क ससकारी छू ट गई,
“ स...सीईइइ ह म”

अंततः म उसको छोड़ता ँ, और मु कुराते ए दे खता ँ। या संतु और स ता भरी


नगाह मुझे दे खती है। मने ऊपर जा कर उसको एक बार फर से चूमा, और उसके सर पर
हाथ फराते ए बोला,
“जानू.. लग ले सकोगी?”

या ने सर हला कर हामी भरी और फर कुछ क कर कहा, “जानू... ब ा सुनता है!”

म सफ मु कुराया। इतनी दे र तक यह सब याएँ करने के कारण, मेरा लग अपने


अ धकतम फैलाव और उ ान पर था। मुझे मालूम था क बस दो तीन मनट क ही बात
है.. म ब तर से उठा और या को उसके नत ब पकड़ कर ब तर के सरे क ओर
खसकाया। कुछ इस तरह जससे उसके पैर घुटने के नीचे से लटक रहे ह , और यो न
ब तर के कनारे के ऊपर रहे, और ऊपर का पूरा शरीर ब तर पर चत लेटा रहे। म या
को घुटने के बल खड़ा हो कर भोगने वाला था। यह एक सुर त आसन था – या के पेट
पर मेरा र ी भर भार भी नह पड़ता।

सामने घुटने के बल बैठ कर, मने या क टांग को मेरी कमर के गद घेर लया और एक
जांघ को कस कर पकड़ लया। सरे हाथ से मने अपने लग को या क यो न- ार पर
टकाया और धीरे धीरे अ दर तक घुसा दया। लग इतना उ े जत था क वो या क
यो न म ऐसे घुस गया जैसे क म खन म गरम छु री! इस समय हम दोन के जघन े
आपस म चपक गए थे – मतलब मेरे लग क पूरी ल बाई इस समय या के अ दर थी।
जैसे तलवार के लए सबसे सुर त ान उसका यान होती है, ठ क उसी तरह एक
उ े जत लग के लए सबसे सुर त ान एक उतनी ही उ े जत यो न होती है – उतनी
ही उ े जत... गरम गीलापन और फसलन लए! काफ दे र से उ े जत मेरे लग को जब
या क यो न ने यार से जकड़ा तो मुझ,े और मेरे लग को को ब त सकून मला। हम
दोन ेमा लगन म बांध गए।

इस अव ा म मुझे बदमाशी सूझी।

मने या के पेट पर हाथ फराते ए कहा, “मेरे ब ,े म आपका पापा बोल रहा !ँ
आपक म मी और म, आपको खूब यार करते ह... म आपक म मी को भी खूब यार
करता ँ... उसी यार के कारण आप बन रहे हो!”

या मेरी बात पर मु कुरा रही थी.. मने कहना जारी रखा, “जब आप म मी के अ दर से
बाहर आ जाओगे, तो हम ठ क से शेक-है ड करगे... फलहाल म आपको अपने लग से
छू रहा ँ.. इसे पहचान लो.. जब तक आप बाहर नह आओगे तब तक आपका अपने
पापा का यही प रचय है..”

या ने यार से मेरे हाथ पर एक चपत लगाई, “बोला न, आप चुप-चाप अपना काम


क रए!”

“दे खा ब े.. आपक माँ मेरा लग लेने के लए कतना लला यत रहती है?”

“चुप बेशरम..”

मने यादा छे ड़ छाड़ न करते ए सीधा मु े पर आने क सोची – म स हाल कर धीरे धीरे
या को भोग रहा था। हलके झटके, नया आसन, और या क नई अव ा! रह रह कर
चूमते ए म या के साथ सहवास कर रहा था। या ने इससे कह अ धक बल सहवास
कया है, ले कन इस मृ ल और सौ य सहवास पर भी वो सुख भरी स का रयां ले रही
थी... कमाल है! वो हर झटके पर स का रयां या आह भर रही थी!

‘अ ा है! मुझे ब त कुछ नया नह सोचना पड़ेगा!’

मने नीचे से लग क या के साथ साथ, या के मुख, गाल , और गदन पर चु बन, चूषण


और कतरन जारी रखी। और हाथ से उसके मांसल तन का मदन भी! चौतरफा हमला!
अभी केवल तीन चार मनट ही ए थे, और जैसे मने सोचा था, म या के अ दर ही
ख लत हो गया। कोई उ लेखनीय तरीके से मने आज सहवास नह कया था, ले कन
आज मुझे ब त ही सुखद अहसास आ! या ने मुझे अपने आ लगन म कैद कर लया...
और मने उसे अपनी बाँह म कस कर भ च लया।

“जानू हमरे...” कुछ दे र सु ताने के बाद या ने कहा, “... आज वाला.. द बे ट था..” और


कह कर उसने मुझे ह ठ पर चूम लया।

मने उसको छे ड़ा, “आज वाला या?”

“यही..”
“यही या?”

“से... स...”

“नह .. ह द म कहो?”

“चलो हटो जी.. आपको तो हमेशा मजाक सूझता है..” या शरमाई।

“मज़ाक! अरे वाह! ये तो वही बात ई.. गुड़ खाए, और गुलगुले से परहेज़! चलो बताओ..
हमने अभी या कया?”

“ लीज़ जानू...”

“अरे बोल न..”

“आप नह मानोगे?”

“ बलकुल नह ...”

“ठ क है बाबा... ठु काई.. बस! अब खुश?”

“हाँ..! ले कन... अब पूरा बोलो...”

“जानू मेर,े आज क ठु काई ‘द बे ट’ थी!”

“वैरी गुड! आई ऍम सो है पी!”

“मालूम था.. हमारा ब ा अगर बगड़ा न.. तो आपक ज मेदारी है। ... और अगर इससे
आपका पेट भर गया हो तो खाना खा ल?“
२०
अ नी इस घटना के एक स ताह बाद बगलोर आई। अकेले नह आई थी, साथ म मेरे
सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही ल बी चौड़ी रेल या ा करी थी उन लोग ने! अ नी के
लए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी क उनक े न सवेरे ही आ गई,
और छु के दन आई, इस लए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नह करना
पड़ा! रेलवे टे शन पर म ही गया था सभी को रसीव करने... या घर पर ही रह कर
ना ता बनाने का काम कर रही थी।

घर आने पर हम लोग ठ क से मले। अब चूं क वो दोन पहली बार अपनी बेट के ससुराल
(या क घर कह ली जए) आये थे, इस लए उ ह ने अपने साथ कोई न कोई भट लाना
ज़ री समझा। न जाने कैसी पर रा या प त नभा रहे थे... भई, जो पर राएँ धन का
अप य कर, उनको न ही नभाया जाए, उसी म हमारी भलाई है। वो या के लए कुछ
जेवर और मेरे लए पए और कपड़ क भट लाये थे। घर क माली हालत तो मुझे मालूम
ही थी, इस लए म खूब बगड़ा, और उनसे आइ दा फजूलखच न करने क कसम
दलवाय । इतने दन बाद मले, और बना वजह क बात पर बहस हो गयी। खैर! ससुर
जी ने कहा क इस बार फसल अ ई है, और कमाई भी.. इस लए दे न वहार तो
करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोन बे टय के लए ही तो है!
अपने साथ थोड़े न ले जायगे! ढ़वाद लोग और उनक सोच!

अ नी अब एक अ यंत खूबसूरत त णी के प म वक सत हो गयी थी.. इतने दन के


बाद दे ख भी तो रहा ँ उसको! वो मुझे मु कुराते ए दे ख रही थी।

मने आगे बढ़कर उसक एक हथेली को अपने हाथ म ले लया, “अरे वाह! कतनी सु दर
लग रही है मेरी गु ड़या... तुम तो खूब यारी हो गई हो..!” कह कर मने उसको अपने गले से
लगा लया। अ नी शरमाते ए मेरे सीने म अपना मुँह छु पाए बक गई। ले कन मने
उसको छे ड़ना बंद नह कया,

“म तु हारे गाल का सेब खा लूँ?”

“नहीईई.. ही ही ही..” कह कर हँसते ए वो मेरे आ लगन से बाहर नकलने के लए


कसमसाने लगी..
“अरे! य भई, मुझे प पी नह दोगी?”

अ नी शम से लाल हो गई, और बोली, “जीजू, अब म बड़ी हो गयी ँ।“

“हंय? बड़ी हो गयी हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नह दखा!” साफ़ झूठ! दख तो सब
रहा था, ले कन फर भी, मने उसको छे ड़ा! ले कन मेरे लए अ नी अभी भी ब ी ही थी।

“उ म... मुझे नह पता। ले कन म मी मुझे अब ॉक पहनने नह दे ती... कहती है क तू


बड़ी हो गयी है...”

“म मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते ह! ... ले कन उससे पहले...” कहते
ए मने उसक ठु ी को ऊपर उठाते ए उसके दोन गाल पर एक-एक प पी ले ही ली।
शम से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छू ट कर भाग खड़ी ई।

या इस समय सबके आकषण का क थी, इस लए मने कुछ काम के बहाने वहाँ से छु


ली, और बाहर नकल गया। सारे काम नबटाते और वापस आते आते दोपहर हो गई..
और कोई डेढ़ बज गए! सासु माँ के आने का एक लाभ होता है (मेरे सभी ववा हत म
इस बात से सहमत ह गे) – और वह है समय पर वा द भोजन! वापस आया तो दे खा क
सभी मेरा ही इंतज़ार कर रहे ह। खैर, मने ज द ज द नहाया, और फर वा द गढ़वाली
ंजन का भोग लगाया। और फर सुखभरी न द सो गए।

शाम को चाय पर मने अ नी से उसके संभा वत रज ट के बारे म पूछा। उसको पूरी


उ मीद थी क अ ा रज ट आएगा। मने ससुर जी और अ नी से व धवत अ नी क
आगे क पढाई के बारे म चचा करी। कूल और ए जाम क बात करते करते मुझे अपना
बचपन और उससे जुडी बात याद आने लग । पढाई वाला समय तो जैसे तैसे ही बीतता
था, ले कन परी ा के दन म अलग ही कार क म ती होती थी। दन भर लास म बैठने
के झंझट से पूरी तरह मु और ए जाम के बाद पूरा दन म ती और खेल कूद! मजे क
बात यह क न तो ट चर क फटकार पड़ती और न ही माँ क डांट! बेटा ए जाम दे कर जो
आया है! पूरा दन कूल म रहना भी नह पड़ता। और ब े तो ए जाम से ब त डरते,
ले कन म साल भर परी ा के समय का ही इंतज़ार करता था – सो चये न, पूरे साल म यही
वो समय होता था जब भारी-भरकम ब ते के बोझ से छु टकारा मलता था। ए जाम के
लए म एक पोलीबैग म राइ टग पैड, प सल, कलम, रबर, इ या द लेकर लेकर प ँच
जाता। उसके पहले ना ते म माँ मुझे स जी-परांठे और फर दही-चीनी खलाती ता क मेरे
साल भर के पाप धुल जाय, और मुझ पर माँ सर वती क कृपा हो! पुरानी याद ताज़ा हो
ग !

खैर, जैसा क मने पहले लखा है, मने अ नी और ससुर जी को यहाँ क पढाई क
गुणव ा, और इस कारण, सीखने और क रयर बनाने के अनेक अवसर के बारे म
समझाया। उनको यह भी समझाया क आज कल तो अन गनत राह ह, जन पर चल कर
ब ढ़या क रयर बनाया जा सकता है। बात तो उनको समझ आ , ले कन वो काफ दे र तक
पर रा और लोग या कहगे (अगर लड़क अपनी द द जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग
आलापते रहे।

मने और या ने समझाया क लोग के कहने से या फक पड़ता है? अ ा पढ़ लख


लेगी, तो अपने पैर पर खाड़ी हो सकेगी.. और फर, शाद ढूँ ढने म भी तो कतनी आसानी
हो जायेगी! हमारे इस तक से वो अंततः चुप हो गए। अ नी को भी मने काफ सारा ान
दया, जो यहाँ सब कुछ लखना ज़ री नह है.. ले कन अंततः यह तय हो गया क अ नी
अपनी आगे क पढाई यह हमारे साथ रह कर करेगी। सासु माँ ने बीच म एक ट पणी द
क दोन ब े उनसे र हो जाएँग.े . जस पर मने कहा क आपक तो दोन ही बे टयाँ है..
कभी न कभी तो उ ह आपसे र जाना ही है.. और यह तो अ नी के भले के लए ह..
और अगर उनको इतना ही ःख है, तो य न वो दोन भी हमारे साथ ही रह? (मेरी नज़र
म इस बात म कोई बुराई नह थी) ले कन उ ह ने मेरी इस बात बार तौबा कर ली और बात
वह ख़तम हो गयी।

शाम को हमने पड़ो सय से भी मुलाकात करी – हेगड़े द अ नी को दे ख कर इतने


खुश ए क बस उसको गोद लेने क ही कसर रह गयी थी! अ नी वाकई गु ड़या जैसी
थी!

मेरे सास ससुर बस तीन दन ही यहाँ रहने वाले थे, इस लए मने रात को बाहर जा कर खाने
का ो ाम बनाया – जससे कसी को काम न करना पड़े और यादा समय बात चीत
करने म तीत हो। अ नी ख़ास तौर पर उ सा हत थी – उसको दे ख कर मुझे या क
याद हो आती, जब वो पहली बार बगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, स मोहक! जो
लोग यहाँ रहते ह उनको समझ आता है क बना वजह का नाटक है शहर म रहना! अगर
रोजगार और वसाय के साधन ह , तो छोट जगह ही ठ क है.. कम षण, कम लोग,
और यादा संसाधन! जीवन जीने क गुणव ा तो ऐसे ही माहौल म होती है। एक और
बात मालूम ई क अगले दन अ नी का ज म दन भी था! ब त ब ढ़या! (मुझे बना
बताये ए या ने अ नी के ज म दन के लए ला नग पहले ही कर रखी थी)।

खैर, खा पीकर हम लोग दे र रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर या ा से काफ थक भी
गए थे, और उनको इतनी दे र तक जागने का ख़ास अनुभव भी नह था। इस लए हमने
उनको सरा वाला कमरा सोने के लए दे दया और अ नी को हमारे साथ ही सोने को
कह दया। उ ह ने यादा हील त नह करी ( य क हम तीन पहले भी एक साथ सो
चुके ह) और सो गए।

“भई, आज तो म बीच म सोऊँगा!” मने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते ए कहा।

“वह यूँ भला??” या ने पूछा!

“अरे यार! इतनी सु दर दो-दो लड़ कय के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मलता
है!”

“अ ा जी! साली आई, तो साहब का दल डोल गया?”

“अरे म या चीज़ !ँ ऐसी सुंद रय को दे ख कर तो ऋ षय का मन भी डोल जाएगा! हा


हा!”

“नह बाबा! द द , तुम ही बीच म लेटो! नह तो जीजू मेरे सेब खायगे!” अ नी ने भोलेपन
से कहा। म
और या दो पल एकदम से चुप हो गए, और फर एक सरे क तरफ दे ख कर ठहाके
मार कर हंसने लगे (अ नी का मतलब गाल के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच
लया)।

“मेरी यारी बहना! तू नरी बु है!”

कहते ए या ने अ नी के दोन गाल को अपने हाथ म लया और उसके ह ठ पर एक


चु बन दे दया।
“आई लव यू!”

“आई लव यू टू , द द !” कह कर अ नी या से लपट गयी।

“ह म.. भारत मलाप संप हो गया हो तो अब सोने का उप म कर?”

“कोई चढ़ गया है लगता है...” या ने मेरी खचाई करी।

“हाँ द द ! जलने क गंध भी आ रही है... ही ही!”

“और नह तो या! अ ा खासा बीच म सोने वाला था! मेरा प ा साफ़ कर दया!”

“हा हा!”

“हा हा!”

“अ ा... चल अ नी, सोने क तैयारी करते ह। तू चज करने के कपड़े लाई है?”

“ह? नह !”

“कोई बात नह .. म तुमको नाईट दे ती ँ.. वो पहन कर सो जाना। ओके?” कह कर या


ने अलमारी से ढूं ढ कर एक नाईट नकाली – मने पहचानी, वो हमारे हनीमून के दौरान क
थी! अभी तक स हाल कर रखी है इसने!

अ नी ने उसको दे खा – उसक आँख शम से चौड़ी हो ग , “द द , म इसको कैसे


पहनूंगी? इसम तो सब दखता है!”

“अरे रात म तुमको कौन दे ख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौ पग करने ले
चलगे! ठ क है?”

“ठ क है..” अ नी ने अ न य से कहा, और नाईट लेकर बाथ म म घुस गयी। इसी बीच


या ने अपने कपड़े उतार कर एक क मोनो टाइल क नाईट पहन ली (यह सामने से
खुलती है, और उसम गन कर सफ दो बटन थे। और सपोट के लए बीच म एक फ ता
लगा आ था, जसको सामने बाँधा जा सकता था – ठ क नहाने वाले रोब जैसा), और मने
भी या से ही मलता जुलता रोब पहना आ था (बस, अ नी के कारण अंडर वयर
अभी भी पहना आ था, जसको म रात म ब यां बुझने पर उतार दे ने के मूड म था)।
खैर, कोई पांच मनट बाद अ नी वापस कमरे के अ दर आई।
अ नी क नजर म :

जीजू ब तर के सरहाने पर एक त कया के सहारे पीठ टकाये ए एक कताब पढ़ रहे थे।


सरी तरफ द द अपने े सग टे बल के सामने एक टू ल पर बैठ कर अपने बाल म कंघी
कर रही थी।

‘द द के तन कतने बड़े हो गए ह पछली बार से!’ मने सोचा। बाल म कंघी करते समय
कभी कभी वो बाल के सरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के च कर म द द को
यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके
तन को न त प से पछली बार से कह यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार
होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कू हे कुछ और ापक हो गए थे।
कुल- मला कर द द अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। म म मु ध हो कर उसे दे ख
रही थी : अचानक मने दे खा क द द ने आईने से मुझे दे खते ए दे ख लया... त या म
उसके ह ठ पर वही प र चत मीठ मु कान आ गई।

“आ गई? चल.. अभी सो जाते ह.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे
हे!” द द ने जीजू को छे ड़ा।

यह ब तर हमारे घर म सभी पलंग से बड़ा था। इस पर तीन लोग तो ब त ही आराम से


लेट सकते थे। जीजू ने कुछ तो कहा, अभी याद नह है, और ब तर के एक कनारे पर लेट
गए, बीच म द द चत हो कर लेट , और म सरे कनारे पर! म द द से कुछ री पर लेट
ई थी, ले कन द द ने मुझे ख च कर अपने बलकुल बगल म लटा लया। कमरे म ब ढ़या
आरामदायक ठं डक थी (वातानुकूलन चल रहा था), इस लए हमने ऊपर से च र ओढ़ ई
थी। कमरे क ब य क वच जीजू क तरफ थी, जो उ ह ने हमारे लेटते ही बुझा द ।
मेरी नजर म :

मने अपने बा तरफ करवट लेकर या को अपनी बाँह के घेरे म ले कर चु बन लया और


‘गुड नाईट’ कहा – ले कन मने अपना हाथ उसके तन पर ही रहने दया। या को मेरी
कसी हरकत से अब आ य नह होता था, और वो मुझे अपनी मनमानी करने दे ती थी।
उसको मालूम था क उसके हर वरोध का कोई न कोई काट मेरे पास अव य होगा। ले कन
अ नी क अनवरत चलने वाली बात हम सोने नह दे रही थ । l

बगलोर कैसा है? लोग कैसे ह? यहाँ ये कैसे करते हो, वो कैसे करते हो..? कॉलेज कैसा
होता है? बाद म पता चला क वह पूरी या ा के दौरान सोती रही थी.. इसी लए इतनी ऊजा
थी! अब चूं क मेरे दमाग म शैतान का वास है, इस लए मने सोचा क य न कुछ मज़ा
कया जाय।

अ नी के का उ र दे ते ए मने या के दाएँ तन को धीरे धीरे दबाना शु कर


दया (म या के दा हनी तरफ था)। मेरी इस हरकत से या हत भ हो गयी और मूक
वरोध दशाते ए उसने अपने दा हने हाथ से मेरे हाथ को जोर से पकड़ लया। ले कन मुझे
रोकने के लए उतना बल अपया त था, इस लए कुछ दे र को शश करने के बाद, उसने
ह थयार डाल दए। अ नी ने करवट ले कर या के बाएँ हाथ पर अपना हाथ रखा आ
था, इस लए या वह हाथ नह हटाना चाहती थी। अब मेरा हाथ न व न हो कर अपनी
मनमानी कर सकता था। कुछ दे र कपड़े के ऊपर से ही उसका तन-मदन करने के बाद
मने उसक क मोनो का सबसे ऊपर वाला बटन खोल दया। या को ल ा तो आ रही
थी, ले कन इस प र त म रोमांच भी भरा आ था। इस लए उसने इस या क धारा
के साथ बहना उ चत समझा।

जब उसने कोई हील त नह दखाई, मने नीचे वाला बटन भी खोल कर सामने बंधा
फ ता भी ढ ला कर दया। क मोनो वैसे भी साटन के कपड़े का था – बना कसी बंधन के,
उसके क मोनो के दोन पट अपने आप खुल गए। अ नी को वैसे तो दे र सबेर मालूम पड़
ही जाता क उसक द द के शरीर का ऊपरी ह सा नव हो चला है, ले कन जब उसने
अपने हाथ पर या क नाईट का कपड़ा महसूस कया तो उसको उ सुकता ई। उसने
बना कसी कार क वशेष त या दखाते ए अपनी बा हथेली से या के बाएँ
तन को ढक लया।
या इस अलग सी छु वन को महसूस कर च ँक गयी, 'अरे! अ नी का हाथ मेरे तन
पर!'

या आ यच कत थी, ले कन वह यह भी समझ रही थी क अ नी उसके तन को सफ


ढके ए थी, और कुछ भी नह । साथ ही साथ वह अपने जीजू से बात भी कर रही थी –
और उधर उसके जीजू का हाथ या के दा हने तन का मदन कर रहा था। ले कन चाहे
कुछ भी हो – अगर कसी ी को इतने अ तरंग तरीके से छु आ जाय, तो उसक त या
होना वाभा वक ही है। या ने अनायास अपने तन को आगे क ओर ठे ल दया, जसके
कारण उसके तन का पया त ह सा मेरे और अ नी दोन के ही हाथ म आ गया। संभव
है क या क इस हरकत से अ नी को कसी कार क वतः- ेरणा मली हो – उसने
भी या के तन को धीरे-धीरे दबाना और मसलना शु कर दया। या के चूचक शी
ही उ े जत हो कर उ व हो गए।

इस समय हम तीन का मन कह और था। हम तीन ही कुछ दे र के लए चुप हो गए। यह


चु पी अ नी ने तोड़ी –

“जीजू – द द ! म आपसे कुछ माँगूं तो दगे?”

“हाँ हाँ! बोलो न?” मने कहा।

“उस दन आप दोन लोग बु यल पर जो कर रहे थे, मेरे सामने करगे?”

‘बु याल पर? .. ओह गॉड! ये तो सहवास क बात कर रही है!’

या: “ या? पागल हो गयी है?”

म: “एक मनट! अ नी, हम लोग बु यल पर सहवास कर रहे थे। सहवास कसी को


दखाने के लए नह कया जाता। ब क इस लए कया जाता है, य क दो लोग - जो
यार करते ह – उनको एक सरे से और इं टमेसी, मेरा मतलब है क ऐसा कुछ मले जो
वो और कसी के साथ शेयर नह करते। जब तु हारी शाद हो जायेगी, तो तुम भी अपने
ह बड के साथ खूब सहवास करना।“
अ नी: “तो फर आपने मेरे यहाँ रहने के बावजूद द द का लाउज य खोला?”

मेरा हाथ उसक यह बात सुन कर झट से या के बाएँ तन पर चला गया, जस पर


अ नी का हाथ पहले से ही उप त था।

म: “ वो.. म... तु हारी द द का ध पीता ँ न, इस लए!”

या: “ध बेशम! कुछ भी कहते रहते हो!”

अ नी: “ या जीजू.. आप तो इतने बड़े हो गए ह.. फर भी ध पीते ह?”

म: “अरे! तो या हो गया? तेरी द द के ध दे खे ह न तुमने? कतने मुलायम ह! ह न?”

अ नी: “हाँ.. ह तो!”

म: “तो.. बना इनको पए मन मानता ही नह .. और फर ध तो पौ क होता है!”

अ नी: “ले कन द द को तो अभी ध तो आता ही नह ..”

म: “अरे भई! नह आता तो आ जायेगा! पहले से ही ै टस कर लेनी चा हए न!”

या: “तुम कतने बेशम हो! दे ख न अ नी, तुम ही बताओ अब म या क ँ ? अगर न


पलाऊँ, तो तु हारे जीजू ऐसे ही उधम मचाने लगते ह। वैसे तुझे पता है क वो ऐसे य
करते ह?

अ नी: “बताओ..”

या: “अरे तु हारे जीजू अपनी माँ जी का ध भी काफ बड़े होने तक पीते रहे। उ ह ने
ब त यास कया, ले कन ये जनाब! मजाल है जो ये अपनी मां क छाती छोड़ द!”

अ नी: “तब?”
या: “तब या? माँ ने थक कर ने अपने तना पर मच या नीम वगैरह रगड़ लया। और
जब भी ये जनाब ध पीने क जद करते तो तीखा लगने के कारण धीरे धीरे खुद ही माँ
का ध पीना छोड़ते गए।“

अ नी: “ले कन अभी य करते ह?”

या: “आदत ऐसे थोड़े ही जाती ह!”

म: “अरे यार! कम से कम तुम तो मच का लेप मत लगाने लगना।“

मेरी इस बात पर या और अ नी खल खला कर हंस पड़ !

या: “नह मेरे जानू.. म ऐसा कुछ नह क ं गी! आप मन भर कर पी जये! मेरा सब कुछ
आपका ही है..”

म: “सुना अ नी..” कहते ए मने या के एक तना को थोड़ा जोर से दबाया, जससे


उसक ससक नकल गयी। अ नी को वैसे तो मालूम ही है क उसके द द जीजू कह
भी अपने यार का इजहार करने म शम महसूस नह करते... फर जगह चाहे कोई भी हो!

अ नी (हमारी छे ड़खानी को अनसुना और अनदे खा करते ए): “जीजू द द .. म आप


दोन को खूब यार करती ँ। उस दन जब मने आप दोन को.... सहवास... (यह श द
बोलते ए वह थोडा सा हच कचा गयी) करते ए र से दे खा था। म बस इतना कह रही
ँ क आज मुझे आप पास से कर के दखा दो! यह मेरे लए सबसे बड़ा ग ट होगा।”

या: “ले कन अ नी, तेरे सामने करते ए मुझे शरम आएगी।“ हम सभी जानते थे क
यह पूरी तरह सच नह है।

अ नी: “ लीज!”

या: “ले कन तू अभी ब त छोट है, इन सब बात को समझने के लए!”


अ नी: “म कोई छोट वोट नह !ँ और तुम भी मुझसे ब त बड़ी नह हो। म अभी
उतनी बड़ी ,ँ जस उ म तुमने जीजू से शाद कर ली थी! और जीजू, अगर आप द द के
बजाय मुझे पसंद करते तो?”

म (मन म): ‘हे भगवान्! छोट उ का वमोह!’

म( य): “अगर म तुमको पसंद करता तो म इंतज़ार करता – तु हारे बड़े होने का!”

अ नी: “जीजू! म बड़ी .ँ .. और... और... म सफ दे खना चाहती ँ – करना नह । आप


दोन लोग उस दन ब त सु दर लग रहे थे। लीज़, एक बार फर से कर लो!”

म: “जानती हो, अगर कसी को मालूम पड़ा, तो म और तु हारी द द , हम दोन ही जेल के


अ दर ह गे!”

अ नी: “जेल के अ दर य ह गे? म अब बड़ी हो गयी .ँ .. वैसे भी, म कसी को य


क ँगी? अगर आप लोग यह करगे तो मेरे लए। कसी और के लए थोड़े ही!“

म: “अब कैसे समझाऊँ तुझे!”

म ( या से): “आप या कहती ह जानू?”

या (शमाते ए): “आप मुझसे य पूछ रहे ह? बना कपड़ो के तो म पड़ी ँ!”

ऐसे खुलेपन से सहवास क दावत! मेरा मन तो बन गया! वैसे भी, न द तो कोस र है.. म
रजामंद से मु कुराया।

अ नी ( या से): “द द , तुम मुझे एक बात करने दोगी?”

या: “ या?”

अ नी ने या के ऊपर से च र हटाते ए उसके तना को अपने मुँह म भर कर चूसना


आर कर दया। अ नी के मुँह क छु वन और कमरे क ठं डक ने या के शरीर म एक
बलकुल अनूठा एहसास उभार दया। उसके दोन तना लगभग तुरंत ही इस कार कड़े
हो गए मानो क वो र संचार क बलता से चटक जायगे! उसक यो न म नमी भी एक
भयावह अनुपात म बढ़ गयी। अपने ही प त के सामने उसके शरीर का इस कार से
अ तरंग अ त मण होना, या के इस एहसास का एक कारण हो सकता है। या वाकई
यह यक न ही नह कर पा रही थी क वह अपनी ही बहन के कारण इस कदर कामो े जत
हो रही थी। उसक आँख बंद थी। कामो पन से अ भभूत या, अ नी को रोकने म
असमथ थी – इस लए वह उसको तनपान करने से रोक नह पाई।

ले कन जस तरह से अ या शत प से अ नी ने यह हरकत आर करी थी, उसी


अ या शत तरीके से उसने रोक भी द । अ नी ने या को दे खते ए कहा,

“आई ऍम सॉरी, द द ! पता नह मेरे सर म न जाने या घुस गया! सॉरी? माफ़ कर दो


मुझ!े ”

या क चेतना कुछ कुछ वापस आई, और वह उठ कर बैठ गयी। इस नए अनुभव से वह


अभी भी अ भ लुत थी। या और अ नी दोन ही काफ करीब थ – ले कन इस कार
क अंतरंगता तो उनके बीच कभी नह आई। या को यह अनुभव अ ा लगा – अपने
ताना का चूषण, और इस या के दौरान दोन बहन के बीच क नकटता। या ने
आगे बढ़ कर अ नी को अपने गले लगा लया – उसने भी अ नी के कठोर हो चले
तना को अपने सीने पर महसूस कया ... ‘ये लड़क कब बड़ी हो गई!’

या: “अ नी!”

अ नी ( झझकते ए): “हाँ?”

या: “ लीज़, सॉरी मत कहो!”

अ नी: “नह द द ! तुम मुझे इतना यार करती हो न... एक दम माँ जैसी! इस लए इ ह
पीने का मन आ..। सॉरी द द !“

“तू माँ का अभी भी पीती है? उनको भी मच वाला आई डया ं या?” या ने


अ नी को छे ड़ा।
अ नी (शरमाते ए): “नह पागल... ध ! ...ले कन जीजू भी तो तु हारा ध पीते ह, और
तुम माँ बनने वाली हो न, इस लए मेरा मन कया। ... ले कन इनमे तो ध नह है.. लीज़
मुझे माफ़ कर दो!”

या: “ह म.. अ नी... अब बस! सॉरी श द दोबारा मत बोलना मुझसे! ठ क है?”

अ नी ने सर हला के हामी भरी।

या: “गुड! अब ले... जी भर के पी ले..”

अ नी: “ या... मतलब?”

या: “अरे पागल! ये बता, या तुमको इसे पीना अ ा लगा?”

अ नी ने नज़र उठा कर या क तरफ दे खा और कहा, “हाँ द द , ब त अ ा लगा!”

या: “ फर तो! लो, अब आराम से इसे दबा कर दे खो और बे फ होकर पयो! मुझे भी


अ ा लगेगा!” या ने अपने तना क तरफ इशारा कया।

“ या सचमुच? मुझे लगा क तुमको अ ा नह लगा! ..और... मुझे लगा क तुम मुझसे
गु सा हो!”

“पगली, म तुमसे कभी भी गु सा नह हो सकती!” कहते ए या ने अपना क मोनो पूरी


तरह से उतार दया, और मेरी तरह मुखा तब हो कर बोली, “ये सरा वाला आपके लए
है...”

पता नह य , अ नी इस बार कुछ हच कचा गई। जब कुछ दे र तक उसने कुछ नह


कया, तो या ने खुद ही उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने तन पर रख दया। वतः
ेरणा से उसने धीरे धीरे से चार पांच बार उसके तन को दबाया, और फर अपना मुँह
आगे बढ़ा कर उसका एक तना मुंह म लेकर चूसने लगी। मने भी या का सरा तन
भोगना आर कर दया। उधर या का हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से मेरे लग पर फरने
लगा – वो तो पहले से ही पूरी तरह से उ त था।
कमरे म अभी भी कुछ सं म था - इतना तो तय है क मुझे यह सब कुछ समझ म नह
आया। ले कन अब मुझे और हमको इस बात से कोई फक नह पड़ने वाला था। इतना तो
तय था क या को अ नी के साथ अपनी नजता को बांटना ब त अ ा लग रहा था।
या के तन इस तरह से अनावृत हो जाने से अ नी के मन म एक और चाहत जाग गयी
– वह ब तर से उठ और जा कर एक ब ी जला आई। पूरी रौशनी से नहाये ए या के
न न तन को आज वह खूब करीब से दे खना चाहती थी।

“द द , तुम कतनी सु दर हो!”

या को अपने पेट म एक मीठ सी गुदगुद जैसी महसूस ई – यहाँ दो लोग, जनको वो


ब त ेम करती है, और जो उसको ब त ेम करते ह, एक साथ बैठ कर उसके प का
इस अ तरंग तरह से आ वादन कर रहे ह। उसने बड़े ेम से एक एक हाथ से अ नी और
मेरे गले म गलबाह डाल , और हमको अपने तन क तरफ ख चा। अ नी उसके तना
को मुँह म भर कर चूसने लग गई; मने पहले उसके तना के च ँओर पहले तो मन भर
कर चाटा, और फर इ मीनान से उसको चूसना आर कया। कुछ ही मनट के तनपान
के बाद, या का शरीर अचानक ही एक कमानी के जैसे हो गया और वह ब तर पर
नढाल हो कर गर गई और हांफने लगी..

“द द , या आ?” अ नी ने चता और सहानुभू त से पूछा।

या कुछ बोली नह , बस हाँफते हाँफते मु कुराई। मुझे मालूम था क या आ.. इस लए


मने मैदान नह छोड़ा। मेरा हाथ उसक कमर को टटोल रहा था। अगले पांच सेकंड म मेरी
उं ग लयाँ उसक यो न रस से गीली हो चली च ी के ऊपर से उसक यो न का मदन कर रही
थ । मेरी इस हरकत से उसक यो न से और यादा रस नकलने लगा।

अ नी को सहवास का कोई ब त ान तो था नह – उसको बस उतना ही पता था


जतना क उसने हमको करते ए दे खा था। और कोई कतनी दे र तक सफ तनपान कर
सकता है? कुछ दे र म अ नी थक गयी (या बोर हो गई) और या से अलग हो गयी।
इतनी दे र म मेरा लग भी अपने नधा रत काय के लए तैयार हो चला था – अ नी से यह
बात छु पी नह ।

“जीजू, अब आप द द के साथ ‘सहवास’ क रए न?”


कसी के सामने नव वैसे भी आसान नह होता। और यहाँ पर त थोड़ा भ थी –
यहाँ पर एक ज ासु लड़क मुझे अपनी प नी के साथ उसके सामने सहवास करने को
कह रही थी। खैर, या को लगभग न न दे ख कर मेरी खुद क अ भ ता कुछ कम हो गई
थी – लहाज़ा, मने भी अपने कपड़े उतारे, और साथ ही साथ यह आलोकन भी कया क
हम तीन म सफ अ नी ही है जसने सारे कपड़े पहन रखे ह।

“अ नी, यह तो ब त बेढंगा लगता है क हम दोन के कपड़े उतर रहे ह, और तुमने सब


कुछ पहना आ है। तुम भी तो उतारो!”

“जीजू... ये भी या पहना है मने! सब कुछ तो दख रहा है!” मने आगे कोई जद नह


करी। ले कन जो कुछ अ नी ने आगे कया, उसको दे ख कर हम दोन ही मु कुरा उठे ।
उसने ज द से अपनी नाईट उतार फक और अपने ज म दन वाले सूट (अथात पूणतः
न न) म हमारे सामने ब तर पर बैठ गयी। आज पहली बार अ नी का वय क प मने
और या ने दे खा था। अ नी क छाती पर अब संतरे के आकार के दो तन बलकुल तन
कर खड़े हो गए थे, और उसके शरीर पर ब त ही शोभन लग रहे थे। उसके तना गहरे
भूरे रंग के थे, और उनके बगल हलके भूरे रंग का कोई डेढ़ इंच ास वक सत हो गया
था।

“अब क रए..?” अ नी कतनी उतावली हो रही थी हमको सहवास करते दे खने के लए!

मेरे मन म ं छड़ गया - या यह ठ क होगा? कह इसके दमाग पर बुरा असर न पड़े!


बुरा असर य होगा? आ खर यह श ा तो सभी को चा हए ही न! ऐसी कोई छोट भी तो
नह है! ज द ही इसक शाद भी इसके प रवार वाले ढूँ ढने लग जायगे! उसके पहले
इसको सहवास के बारे म मालूम हो जाय तो अ ा है।
अब कहानी आगे बढ़ने से पहले एक सवाल का जवाब आप ही लोग द जए : अगर कोई
सु दर सी लड़क अगर इस तरह अ तरंग तरीके से आपके सामने नव हो जाय, तो
उसका कुछ तो आदर होना चा हए क नह ? मने आगे बढ़ कर उसके दोन चूचुक पर एक
एक चु बन ले लया। अ नी सहर उठ । मुझे मालूम था क या नीचे लेट ई है..
ले कन अ नी को कुछ तो यादगार गत अनुभव होना ही चा हए! मने अ नी क
कमर पकड़ कर अपनी तरफ ख चा, और फर इ मीनान से उसके तन को बारी बारी से
अपने मुंह म भर कर चूसने लगा। कमरे म अ नी क हाय तौबा गूंजने लगी। उसको
नज़रंदाज़ कर के म साथ ही साथ उसके दोन नत ब को मसल भी रहा था।
“जीजू... ब स! आह! मेरे साथ.. ह .. द ..द .. के साथ..” वो उ माद म न जाने या
या बड़बड़ा रही थी। ले कन मने बना के त बयत से उसके तन को कोई दस मनट
तक चूमा और चूसा। उ ेजनावश उसके तन इस समय साइज़ म कोई बड़े लग रहे थे,
और और दोन चूचक वैसे तन कर खड़े हो गए जैसे रबर-वाली प सल के रबर! एकदम
सावधान! खैर अंततः मने अ नी को छोड़ा – वो बुरी तरह से हांफ रही थी। दोन तना
इस कदर चूसे जाने से लाल हो गए थे, और उसके शरीर पर, ख़ास तौर पर तन , पेट और
नत ब पर लाल नशान पड़ गए थे।

“है पी बथडे!” मने मु कुराते ए बस इतना ही कहा। अ नी उ र म शमा गयी।

“ म... तो जीजा और साली आपस म ही बथडे बथडे खेले ले रहे ह? अपनी द द को


ट नह दोगी?” या ने मु कुराते ए कहा।

“ ट?”

या भी लगता है अपने तन पए जाने का हसाब बराबर करना चाहती थी। वह उठ कर


अपना हाथ अ नी के तन पर रख कर उनको धीरे धीरे सहलाने लगी। अ नी के तन
छोटे छोटे तो थे, ले कन या के तन जैसे यारे से थे। अ नी क सस कयाँ नकल
पड़ । या को अभी ठ क से आई डया नह था – उसने अ नी के एक तना को जोश
म आकर कुछ यादा ही जोर से मसल दया।

अ नी: “सीईईई... या कर रही हो द द ! आराम से करो न! जीजू ने वैसे ही मेरी जान


नकाल द है।”

या यह इशारा पा कर अब खुल कर अ नी के तन से खेलने लग गई। कुछ तो मेरे


सखाई व ा, और कुछ उसक खुद क ज ासा... कभी अ नी के ो साहन से या
भी तन-रस-पान करने लगी। अ नी के चूचुक को यार से रगड़ने के बाद उसके तन को
चूसना शु कर दया, तो वो एकदम गरम हो गई थी। म या करता? मने या के पेट और
ना भ के आस पास चूमना और चाटना शु कर दया। कमरे म न न पड़े तीन ज म अब
सुलग उठे थे। कुछ ही पल के बाद अ नी अपने जीवन क थम र त- न प का
अनुभव कर के गहरी गहरी साँसे भरने लगी। उसक यो न के ाव से नकलती नमक न
सी खुशबू हम दोन ने महसूस करी। अ नी इन सबसे बेखबर, अपनी आँख बंद कये
मानो जैसे सपनो क नया म खोई ई थी - उसक साँसे तेजी से चल रही थ , और ह ठ
कांप रहे थे। वो अभी अभी अनुभव कये नए आनंद के सागर के तल तक गोते लगा रही
थी।

“वैरी है पी बथडे अ नी!” कहते ए या ने अ नी को ह ठ पर चूम लया, और आगे


कहा, “... कैसा लगा?”

“आअ ह द द ! एकदम अनोखा!” अ नी ने गहरी सांस भरी। “... अब आप लोग करो


न लीज!”

हम लोग तो तैयार थे – बस दशक (अ नी) के रेडी होने क बात जोह रहे थे। या के हरी
झंडी दखाते ही मने उसको छे ड़ना शु कर दया। गभधारण करने से य के शरीर म
कई सारे प रवतन होने लगते ह। उनम से एक है - ए ोजन और ोजे ोन रसायन के
तर म वृ ! ये दोन रसायन य के शरीर को कुछ इस तरह से बदल दे ते ह क उनम
गभाव ा के दौरान कामे ा काफ बढ़ जाती है। इनके कारण गभाशय म र का वाह
और ाकृ तक चकनाई बढ़ जाती है, और तन और तना स म संवेदनशीलता भी बढ़
जाती है। कहना गलत न होगा, क ब त सी याँ ( जनका वा य इ या द ठ क हो)
गभधारण के उपरा त यौन संसग का और अ धक आनंद उठाती ह! लहाजा, या जो
पहले से ही र त का अवतार है, अब और भी कामुक हो गयी थी।

या : “उफ़.. आप या कर रहे ह?”

म : “अरे भई! मौके का सही फायदा उठा रहा ँ। तु हारी बहन के लए अ ा सा ग ट


ला रहा ँ...” कहते ए मने या को टांग से ख च कर अपनी गोद म बठा लया, और
उसके तन दबाने लगा। या ने अपनी आंख बंद कर रखी थी। वैसे भी उसके तन
उ ेजनावश पहले ही स त हो चुके थे।

या बोली, “हाय! या करते हो? आराम से! आपका हाथ ब त कड़क पड़ता है! ‘ये’
ब त स स टव हो गए ह अब! पहले ही तुम दोन ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दया
है.. अब बस...”
मने कहा, “अरे! ले कन ये सब नह क ं गा तो अ नी या सीखेगी?” कह कर म फर
उसके तन का मदन करने लगा।

या बोली, “ लीज़ जानू ! दद होता है! अब आप सीधा मेन काम क रए.. म पूरी तरह से
तैयार .ँ .”

तैयार तो थी! मने या को अपनी बाँहो म भर लया, और उसके नरम-नरम ह ठ को


अपने ह ठ म भर कर चूसने लगा। कुछ दे र तक ऐसे ही उसके पूरे शरीर को चूमा। अब
या पूरी तरह से तैयार थी। उसके लए ये फोर ले कुछ यादा ही हो गया था।

म उसके पेट पर हाथ फराते ए उसक च ी के अ दर ले गया। उसक यो न उ ेजनावश


जैसे पाव रोट क तरह सूजी ई थी। मने च ी के अ दर से उसक यो न को सहलाने
लगा। या ने अपनी आंख बंद कर ल । कुछ दे र ऐसे ही छे ड़खानी करने के बाद मने
उसक च ी भी उतार द और अपनी तजनी और अंगूठे क मदद से उसक यो न के ह ठ
को खोलने और ब द करने लगा, और साथ ही साथ उसके भग श को भी छे ड़ने लगा।
या के मुँह से कामुक कराह नकलने लगी, और वो म त होकर मेरे लग को अपने हाथ
म पकड़ कर दबाने और सहलाने लगी।

“बोलो या रानी! ठु कने का मन हो रहा है या नह ?”

“छ ! जानू.. आप ब त गंदे हो!”

“अरे बोल न! ऐसे य शमा रही है? बोल न... ठु कने का मन हो रहा है?” या समझ गयी
क बना ‘डट -टॉक’ कये म कुछ नह क ं गा.. इस लए उसने पीछा छु डाने के लए कहा,

“हाँ जानू.. ब त मन हो रहा है।“

अब आप लोग ही सो चए – एक लड़क पूरी तरह से नंगी दो लोग के सामने भोगे जाने


हेतु पड़ी ई है, ले कन फर भी माकूल या मुना सब वहार नह छोड़ रही है! भारतीय
लड़ कयाँ वाकई कमाल होती ह। मुझे मालूम था क इससे अ धक वो और कुछ नह
कहेगी। मने या को सावधानी पूवक ब तर पर वापस लटाया और अपने लग को
उसक यो न क दरार पर कई बार फरा कर गीला कर लया। उसक यो न से कामरस
मान बह रहा था। जब वो अ तरह से गीला हो गया, तब मने अपने लग को पकड़ कर
उसक यो न के भीतर धीरे से ठे ल दया। मेरे लग का सुपाड़ा उसक यो न म भीतर तक
घुस गया – इतनी चकनाई थी अ दर। या के मुँह से आह नकल पड़ी।

आगे हम एक सरे को चूमते ए वही पुरानी आ द-कालीन या करने लगे। पहले धीरे
धीरे और फर बाद म तेजी से म अपने लग को या क यो न के अ दर-बाहर करने लगा।
कुछ दे र बाद या ने अपनी टांग ऊपर क तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोन तरफ
लपेट ली। अब मेरा लग या क यो न म तेजी से अ दर-बाहर हो रहा था – इस ग त म
आयाम कम, ले कन आवृ ब त ही अ धक थी। म अब तेज-तेज ध के मार रहा था।
काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। या भी आनंद लेते ए मेरे हर ध के का वाद
ले रही थी।

या ने मेरे नत ब को अपने हाथ म थाम रखा था और उनको पकड़े ए ही वो भी नीचे


से मेरे ध क के साथ-साथ अपने नत ब क ताल दे रही थी। यो न सुरंग म पहले से ही
काम-रस क बाढ़ आई ई थी, और इतने मदन के बाद अब मेरा लग बना के ए
आराम से अ दर बाहर फसल रहा था। इस सहवास का आनंद या महसूस करके, और
अ नी अवलोकन करके ले रहे थे। इस नए प रवेश म मने भी या को कसी पागल क
भां त भोग रहा था।

मने पूछा, “जानेमन, अ ा लग रहा है?”

या बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लग इतना तगड़ा है, और आपके ठु काई का
तरीका इतना शानदार! ब त अ ा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”

ग द बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मने अपनी र तार और बढ़ा द । म वाकई
उसको ‘ठोकने’ लग गया। मेरा लग सटासट उसक यो न म तेजी से अ दर बाहर हो रहा
था। या म ती म ‘आअ ह ओ ह’ करती रही। कोई पांच मनट चले इस घमासान
के बीच अचानक ही या ने मुझे कस कर अपनी बाँहो म भर लया। म समझ गया क
इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आ खरी बार
अपने नत ब को मेरे लग पर ठे ला, और फर ब तर पर अपने पैर पसार कर ढे र हो गयी।
मने भी ज द ज द ध के लगाए और आ खरी ण म लग को उसक यो न से बाहर
नकाल कर उसके पेट पर अपनी वीय क कई सारी धाराएँ छोड़ द ।
फर म गहरी साँसे भरता आ या के बगल लेट गया और कुछ दे र तक सांस को संयत
करता रहा। या भी मेरे बगल अपनी आँख बंद करके लेट ई थी। इस पूरे वाकए को
अ नी खामोशी से (और व मय के साथ भी) दे खती रही। मने उसक तरफ मुखा तब हो
कर कहा,

“अ नी, ज़रा लोजेट से मेरी एक माल नकाल कर दे ना तो!”

वो तो जैसे कसी स मोहन से जागी। फर मेरी अलमारी से उसने एक माल नकाल कर


मुझे स प दया। मने माल से या के पेट पर गरा वीय और अपना लग साफ़ कया
और उठ कर बाथ म के अ दर फक दया। वापस आकर म फर से उसक बगल म लेट
गया, और उसके तन पर हाथ फेरने लगा।

या : “हो गई तु हारे मन क ?” यह अ नी के लए था।

अ नी ने कुछ नह कहा।

“बोल न? ग ट कैसा लगा?”

“द द ! म नह क ं गी यह सब कभी भी..” अ नी ने आंसी आवाज़ म कहा, “... बाप


रे! म तो मर जाऊंगी!”

“अ नी बेटा!” मने कहा, “जब तु हारे ह बड का लग तु हारे अ दर जाएगा न, तब तुम


यह कहना भूल जाओगी!”

कह कर मने या को अपनी बाँहो म भर लया, और कुछ दे र तक ऐसे ही अ नी को


समझाते रहे। फर या ने कहा, “म तो थक गयी ँ... चलो अब सो जाते ह!” और कह
कर अगले कुछ ही पल म वो सो गयी। अ नी भी या के बगल चुपचाप पड़ी रही। म
कब सोया कुछ याद नह ।
२१
अगली सुबह ना ते पर ससुर जी ने मुझसे कहा क उनके प रवार क भगवान केदारनाथ
धाम म बड़ी अगाध ा है। और हर शुभ-काय अथवा पव- योजन म वो सभी वहाँ जाते
रहते ह। उनका पूरा प रवार कई पी ढ़य से शुभ योजन म यह या ा करता रहा है। उनके
अनुसार, अब चूं क या गभवती है, तो य द संभव हो, तो हम सभी एक बार केदारनाथ
जी के दशन कर आएँ? इस बात पर सबसे पहले तो मुझे राहत क सांस आई – कल रात
क धमाचौकड़ी इन लोगो ने कैसे नह सुनी, वही एक अचरज क बात है। अ ा है.. सवेरे
सवेरे धम कम क बाते हो रही थ ।

“जी पताजी, एक बार हम या क डॉ टर से बात कर लेते ह। अगर उनक सलाह ई,


तो ज़ र चलगे। अभी जाना है या? मेरा मतलब, कोई मु त जैसा कुछ है?”

“नह ऐसा कुछ भी नह है बेटा। जब आप लोग को सही लगे, आ जाइए। भगवान् के


दशन के लए कैसा मु त! बस हम सभी एक बार सप रवार केदारनाथ जी के दशन कर
ल.. हमारी ब त दन से बड़ी इ ा है।“

“जी, बलकुल! म अभी कुछ ही दे र म डॉ टर को पूछता .ँ .”

खाने पीने के बाद कोई दस बजे मने डॉ टर को फ़ोन लगाया। उ ह ने कहा क अगले
महीने या या ा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शु हो जाएगा, और वह
सुर त समय है। बस समु चत सावधानी रखी जाय। म उन रा त पर गया आ ँ पहले
भी, और मुझे मालूम है क कुछ ान को छोड़ दया जाय, तो वहाँ क सड़क अ
हालत म ह। इस लए कोई द कत नह होनी चा हए। वहाँ ऊपर जा कर पालक इ या द
क व ा तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नह थी।

दो दन और बगलोर म रहने के बाद मेरे सास ससुर दोन वापस उ राँचल को लौट गए।
मने ब त कहा क यही क जाएँ, ले कन उनको वहाँ कई काय नबटाने थे, इस लए हमारी
ब त मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मने सबसे पहले दे हरा न
का हवाई टकट हम तीन के लए बुक कर लया। इस एक महीने म हमने ब त सारे काम
यहाँ पर भी नबटाए – सबसे पहले अ नी के दा खले के लए उसके संभा वत कॉलेज के
सपल से मले, और उ ह ने भरोसा दलाया क उसको दा खला मल जाएगा अगर
बारहव म अंक अ े आयगे! उ ह ने काफ समय नकाल कर उसक काउं स लग भी करी
– वो या करना चाहती है, या पढना चाहती है, कौन से कोस वहाँ पढाए जा रहे ह
इ या द! मुझे भी काम के सल सले म दो ह ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोन
लड़ कय ने ढे र सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे या के शरीर म वृ हो रही थी,
उसको नए कपड़ो क आव यकता हो रही थी; अ नी को भी नए प रवेश के हसाब से
प रधान खरीदने क ज़ रत थी। खैर, अ ा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को दे खने
और समझने का मौका मल रहा था।

दोन ही लड़ कय से रोज़ बात होती थी.. एक बार या ने कहा क जस तरह से उसका


शरीर बढ़ रहा है, उसको लगता है क नए कपड़े लेने से बेहतर है क वो नंगी ही रहे। इस
पर मने सहम त जताई, और कहा क यह ख़याल ब त उ दा है। या ने कहा क ख़याल
तो उ दा है, ले कन आज कल उसक बहन रोज़ ही उससे चपक सी रहती है.. ऐसा नह
है क या को अ नी का संग बुरा लगता है। बस यह क एक वय क लड़क के लए
ऐसा वहार थोड़ा अजीब है। मेरे पूछने पर उसने बताया क अ नी अ सर उसके तन
और शरीर के अ य ह स को छू ती टटोलती रहती है। कहती है क उसको या ब त
सु दर लगती है, और उससे रहा नह जाता बना उसको छु ए। या ने ही बताया क ,

एक दन अ नी ने या को कहा, “द द , तु हारा ब ा कतना लक है न! हम तो बस


गलास से ही...”

“ या मतलब?” या समझ तो रही थी.. फर भी पूछा।

“मेरा मतलब द द , हर कसी को तु हारे जैसी खूबसूरत लड़क का ... पीने .. को.. नह
मलता है न!”

गभाव ा के दौरान लड़ कयाँ वयं को फूली ई महसूस करती ह, इस लए उनक तारीफ़


इ या द करने से उनको ख़ुशी मलती है। या भी अपनी तारीफ़ सुन कर मु कुराई।

“द द , म तुमको चूम लू?ँ ”

“ या अ नी! तू भी! तू अपने लए एक लड़का ढूं ढ ले.. तेरे भाव नह लग रहे ह


मुझ.े . हा हा हा!”
“तो ढूं ढ दो न तुम ही.. जीजू जैसा कोई! तब तक यही भाव रहगे मेर.े .”

कहते ए अ नी ने अपना चेहरा या के चेहरे के पास लाया। या क आँख अ नी के


ह ठो पर लगी ई थ । या ने कभी नह सोचा था क उसके साथ ऐसा भी कुछ होगा।
या उसक ही अपनी, छोट बहन उसक तरफ यौन आकषण रखती है! ऐसा नह है क
उसको बुरा लग रहा हो... शाद के बाद के कई अनुभव के बाद उसक खुद क अन गनत
वजनाएँ समा त हो गयी थ , ले कन फर भी, यह सब कुछ ब त ही अलग था.. अनोखा!
अनोखा, और ब त ही रोचक। अ नी ने झुक कर अपने ह ठ या के ह ठो से सटा
दए...

“ओह! कतने सॉ ट ह!” एक छोटा सा चु बन ले कर उसने कहा।

अ नी या के ह ठ पर ब त ही हलके हलके कई सारे चु बन दे रही थी। दे रही थी, या


ले रही थी? जो भी है! जब उसने दे खा क या उसक इस हरकत का कोई बुरा नह मान
रही है, और साथ ही साथ उसक इस हरकत के तउ र म वो खुद भी वापस चु बन दे
रही है, तो उसने कुछ नया करने का सोचा। उसने चु बन म कुछ तेज़ी और जोश लाई, और
साथ ही या को अपने आ लगन म बांध लया। कुछ तो आ दोन के बीच – दोन
लड़ कयाँ अब पूरी त मयता के साथ एक सरे का चु बन ले रही थ । या ने भी अपने
अनुभव का योग करते ए अ नी के दोन गाल अपने हाथ से थोड़ा दबा दए, जसके
कारण अ नी का मुँह खुल गया। और इसी ण या ने अपनी जीभ अ नी के मुँह के
अ दर डाल कर चूसना शु कर दया।

उधर, अ नी या क शट के ऊपर से उसके तन को बारी बारी छू ने लगी। या के लए


यह कोई नई बात तो नह थी, ले कन फर भी सुने आँख खोल कर दे खा - अ नी तो
अपनी आँख बंद कये इस काम म पूरी तरह मगन थी। एक सहज त या म या ने
पुनः अपने तन को आगे क ओर ठे ल दया, जसके कारण उसके तन अ नी के हाथ म
आ गए। अ नी ने तुरंत ही खुश होकर उसके तन को मसलना चालू कर दया।

चु बन क बलता अब ती हो चली थी और दोन लड़ कय क साँसे भी। अ नी के


दोन हाथ अब या के शट के अ दर जा कर उसके तन का मदन कर रहे थे। या के
तना गभाव ा क संवेदनशीलता के कारण उसके मदन से असहज महसूस कर रहे थे।
ले कन वो अ नी का मन रखना चाहती थी।
या ने अ नी को अपने से कुछ र कया, और फर अपनी शट के बटन खोल कर
उसके पट खोल दए। वो शट को उतार पाती, उससे पहले ही अ नी वापस उससे जा
चपक और उसको पुनः चूमने लग गई। या के वतं तन को वो बारी बारी से अपने
मुंह म भर कर चूसना आर कर दया। पहले के मदन के कारण उसके तना पहले ही
कड़े हो गए थे, और अब इस चूषण के बाद वो और भी कड़े हो गए।

“म भी लक !ँ ... उ म उ म (चूसते ए) ओह द द ..! आप लीज मुझको भी इनसे


ध पलाना! आह! इतने सु दर ह!” इतना कह कर वह पुनः चूसने म लग गयी।

“हा हा! ये लो... अब एक और दावेदार आ गई! गाँव बसा नह , और लुटेरे आ गए!”

अ नी ने उसक बात को जैसे अनसुना कर दया। उसके हाथ या के सारे शरीर पर


चलने फरने लगे। कभी वो उसके तन दबाती, तो कभी उसके नत ब, तो कभी उसक
पीठ! आगे वो उसक कट को नीचे क तरफ सरकाने लगी।

“अरे! ये या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है या?” या ने मु कुराते ए
पूछा।

"हाँ! म तुमको पूरा नंगा भी दे खूँगी, और आपके साथ वह सब क ं गी जो जीजू करते ह।“
कहते ए अ नी या क कट और च ी दोन एक साथ ही नीचे सरकाने लगी।

“नह अ नी.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने क इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लए है!”

या अ नी के सामने न न पड़ी ई थी, और अपने शरीर का कोई ह सा छु पाने का य न


नह कर रही थी। कदा चत, वह यह चाहती थी क अ नी उसक सु दरता के रसभरे य
से सराबोर हो जाए। ले कन, अ नी को बस इतनी ही अनुम त थी। उसने एकदम आस
हो कर अपनी तजनी को या क सूजी ई यो न क दरार पर फराया और फर ब त ही
अ न ा से अपना हाथ वापस ख च लया। या मु कुराई।

अ नी ने वापस आकर या के तन पर अपना मोचा स हाला, और पुनः उनको चूसना


शु कर दया। कुछ दे र चूसने के बाद,
“अरे द द ! ये या..?”

या क बात सुन कर मुझे ब त रोचक लगा! और म खुद भी काफ उ े जत हो गया!!


बात तो सही है.. या है ही इतनी सु दर! और अब जब वो माँ बनने वाली है, तो उसक
सु दरता और भी नखर आई है! यादातर याँ गभ-धारण करने के बाद अ तप व
दखने लगती है, और उनके शरीर पर गभ का बोझ दखने लगता है। कहने का मतलब, वे
ूल, थक ई और न तेज हो जाती है। ले कन, कुछ याँ ऐसी होती है, जो पु प क
तरह खल जाती ह.. उनके चेहरे पर उनके अ दर पनप रहे जीवन का तेज दखने लगता
है। या इस सरी ेणी म थी। उसका चेहरा जीवन क आशा से द तमान होता जा रहा
था, और उसका छरहरा शरीर ूल तो हो रहा था, परंतु साथ ही साथ अ यंत आकषक भी
होता जा रहा था। पहले ही वो र त का व प लगती थी, अब तो ऐसा लगता है क उसम
कम से कम सौ र तय का वास हो! कोई भी ऐसी ी को आकषक पायेगा ही! इसके लए
अ नी से मुझे कोई भी गला- शकवा नह था।

वापस आने के एक दन पहले या ने मुझे फ़ोन पर कहा क वापस आने पर मेरे लए एक


सर ाइज है! मेरे लाख पूछने पर भी उसने कुछ नह बताया क या! खैर, बता दे ती तो
कैसा सर ाइज! घर आने पर मेरा वागत एक बेहद झीने नाईट पहने ए या ने एक गम
कामुक च चु बन के साथ कया। दरवाज़े को भी ठ क से बंद नह पर पाया म। था
क इतने दन म या क यौन च कई गुना बढ़ गयी थी। मुझे भी इस तराशी ई सुंदरी
को नंगा दे खने क ती इ ा हो रही थी, इस लए तुरत-फुरत मने उसक नाईट उतार
फक । मेरी नज़र के सामने भरे ए तन और उनके सामने सुशो भत ूल चूचक, जैसे
कसी पूव ान के कारण खड़े ए, उप त थे। मने आँख उठाई, तो मेरी आँख या क
आँख से मल । उसक आँख म एक संतु चमक थी – उसको मालूम है क म उसके
तन क सु दरता का द वाना ँ। फर भी वो एक शकायत भरे लहजे म कहती है,

“ब त बड़े हो गए न?” और कहते ए अपने तन के नीचे हथे लयाँ लगा कर उठाती है।
उसके इस हरकत म कसी भी कार क ल ा नह है.. व तुतः, मुझे ऐसा लगा जैसे वो
मुझे अपने तन का चढ़ावा दे रही हो। ऐसे चढ़ावे का भोग तो म कभी भी, और कह भी
लगा सकता ँ।

मने ‘न’ म सर हलाया, “आई लव दे म... आई लव यू!”


“तुम पागल हो..” कह कर या खल खलाते ए हंसी.. और फर उसने आगे जो कया
उसने मेरे दमाग और शरीर के सारे तार झनझना दए। उसने अपने तन को हलके से
दबा दया, और ऐसा करने से दोन चूचक म हलके पीले से रंग के ध क बूँद नकल
आ । ज़रा सो चये, उसके यारे यारे रसभरे तन म से अमृत उतर रहा था, और म उसको
पीने जा रहा था! यह मेरा दावा है क धरती के येक पु ष के मन क फंतासी होगी क
वो अपनी े मका या प नी के तन से ध पए! कम से कम मेरी तो थी! और आज यह
व पूरा होने वाला था। इस य को दे खते ही मेरा लग अपने पूरे तनाव पर खड़ा हो
गया।

“मेला ब ा भूखा है?” या ने मुझे यार से छे ड़ा।

म मं मु ध सा इस य को दे ख रहा था.. लहाजा, म सफ सर हला कर हामी भर पाया।

“अले मेला बेटू... इ ी दे र शे उसे कुछ खाने को नह मला... है न? मेला धू पएगा..?”

या ने लराते ए मुझसे पूछा। मेरे फर से ‘हाँ’ म सर हलाने पर या वह सोफे पर


बैठ गई, और उसने मुझे अपनी गोद म आने का इशारा कया। मने उसक गोद म
सावधानीपूवक व त हो जाने के बाद उसके ह ठ को कोमलता से चूम लया और
उसके ह ठ के अ दर से होते ए अपनी जीभ से उसक जीभ चाट ली।

या फर से खल खलाई, और बोली, “नीचे और भी टे ट चीज़ है...”

और यह कहते ए उसने मेरे सर को अपने तन क तरफ नद शत कया। मने उसके


तना का पूरा ह सा मुँह म भर लया और जोर से चूसा। कोई पांच छः बार को शश
करने के बाद मुझे अपने मुंह म एक वादर हत व रसता आ महसूस आ। और इसी के
साथ ही मुझे या के मुंह से संतु भरी आह भी सुनाई द ।

“आ ह मेरे राजा! ऐसे ही चूसते रहो.. आह.. ब त अ ा लग रहा है..।“

या मेरे चूषण से स तो थी – उसक व भ कार क आह और उ म आ ह..


इ या द इसका सबसे बड़ा माण थ । कुछ दे र म व/ ध नकलना बंद हो गय, ले कन
फर भी मने उसके बाद भी एक दो मनट तक उसके उस तन को चूसा। उसके बाद आई
सरे तन क बारी.. मुझे अनुभव तो हो ही गया था.. या यह कह ली जये क शेर को
खून... (ओह! माफ क रयेगा), ध का वाद पता चल गया था।

इधर म उसका ध पी रहा था, और उधर या मेरी पट क ज़प के अ दर से मेरे तने ए


लग के साथ खलवाड़ कर रही थी। मने यह महसूस कया क जब वो मेरे लग को दबाती
है, तो मेरा चूषण और बढ़ जाता है। खैर, यह खेल कब तक चलता.. अंततः उसके दोन
तन म ध समा त हो गया, तो म उसके पेट पर चु बन लेकर सोफे से ज़मीन पर उतर
आया।

“कैसा लगा सर ाइज?”

“ब त ही बड़ा सर ाइज था! मज़ा आ गया..”

“कब से बचा के रखा था.. आपका मन भरा?”

“मन कैसे भरेगा इससे मेरी जान! इतना यू शयश, इतना मजेदार! मने तो रोज़ पयूँगा!”

ऐसी बात करते ए शरीर पर जो भाव होना होता है, वो होने लगा।

“अले ले ले! ये या.. मेले बेटू का छु ू तो लंग बन गया है.. कतना बड़ा वाला
लंग..” उसने मुझे चढ़ाया।

“म मी है ही इतनी कामुक!”

“ म? म मी इसको ज द से वापस छु ू बना दे ? ठ क है न?”

“ख़याल ब त ही उ दा है!”

“मेला बेटू अपनी म मी क ठु काई करना चाहता है?” आज या को या हो गया है! अगर
ऐसे ही होता रहा तो उसक बात सुन कर ही म ख लत हो जाऊंगा!

“हां.. म मी क ज़ोरदार ठु काई करनी है..”


“ सीईई! ग दा ब ा! अपनी म मी को ठोकेगा!”

म ज़मीन पर लेट गया और ज द से अपने लग को ज़प के अ दर से आज़ाद कर दया।

“मेरे लग को अ दर ले लो और अपनी दोन टाँग मेरी दोन ओर करके बैठ जाओ! आज


म मी मेरी घुड़सवारी करेगी!”

“इस तरह?”

वह मेरी गोद पर चढ़ते ही पूछती है। वह अपनी दोन टाँग मेरी दोन ओर करके बैठ गयी है,
ले कन अभी भी ज़मीन पर अपने घुटन के बल टक ई है। उसके यो नड़ मेरी जांघ पर
टके ए थे, और मेरा लग अभी भी बाहर था। मने अपने दोन हाथ से उसके नत ब थाम
लए।

“इतना बड़ा लग!”

या पर मानो आज कसी भूत का साया पड़ गया था। ऐसे खुलेपन से उसने ग द -बात
कभी नह कर थी। उसने मेरे लग को पकड़ कर अपने यो न के चीरे पर से ऊपर-नीचे कई
बार फराया। उसक यो न म से तेजी से ाव हो रहा था। फर उसने धीरे से मेरे लग के
सुपाड़े को अपने चीरे म लगाया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी। उसका यो न ार तुरंत
खुल गया, और मेरा लग अपनी नयत जगह म आराम से जाने लगा – जैसे गरम चाकू,
म खन के अ दर जाता है। आधा लग अ दर जाने तक वह नीचे क तरफ बैठती है, और
साथ म हाँफते ए यह भी कहती जाती है क “यह ब त बड़ा है”। कहने के लए शकायत
है, ले कन उसक मु कान से पता चलता है क वह खुद अपने झूठ से आनं दत है। फर
वह मेरे लग पर ऊपर और नीचे होना शु कर दे ती है।

एक मनट भी नह आ होता है क म अपना वीय छोड़ दे ता ँ। ह! यह या!! एक मनट


भी नही! मुझे थोड़ी ल ा आई.. इतने वष के सहवास ड़ा म मने कभी भी इतनी ज द
मैदान नह छोड़ा! आज या आ! फर मने अपने लग पर या के खुद के सहवास
न प का ंदन महसूस कया।

‘अरे! ये भी आ गई या!’
हम दोन ने कुछ दे र तक अपनी साँसे संयत कर , और फर या ने ही कहा, “बेटू मेरा...
अपनी माँ को ऐसे आसानी से छोड़ दे गा, या?” न जाने य उसके इस तरह चढ़ाने से या
फर यह कह ली जये क इस वांग से म ज द ही फर से उ े जत हो गया।

“ऐसे स ते म जाने दे गा? ह म? ऐसे ठोको न, जैसे अपनी बीवी को ठोकते हो... हर
रोज़..” मेरा लग वापस अपने पूण तनाव पर आ गया। और पूण तनाव आते ही,

“जानू...”

‘ह! इसक तो भाषा ही बदल गई..!’

“आज एक नया आसान ाई करते ह? कुछ ही दन म मेरा पेट फूल कर ब त बड़ा हो


जाएगा। ले कन, मुझे आपना लग अपने अ दर हमेशा चा हए... मगर, आपको ठ क लगे
तो ही!”

“जानू मेरी! म तो बस जो तुम चाहती हो, मुझे बताओ, और म वैसे ही को शश क ं गा।


अगर तुमको अ ा लगता है तो म कसी भी आसन म तुमको ठोकने को तैयार ँ।“

तब या ने मुझे ान-सहवास आसन (दरअसल इसको कामसू म ‘धेनुका’ कहा जाता


है, ले कन सामा य भाषा म डॉगी टाइल कहते ह) लगाने का नदश दया। वो वयं अपने
हाथ और सर को सोफे पर टका कर और अपने नत ब को बाहर क तरफ नकाल कर
घुटने के बल लेट/बैठ गई। जब म उसके पीछे जा कर अपना ान व त कर रहा था
तो उसने बस इतना ही कहा, “जानू, आप सही छे द म ही करना..”

कहने सुनने म हा या द बात लगती है, ले कन यह एक गंभीर चेतावनी थी। भगवान् के


दए दोन छे द इतने करीब होते ह, क इस आसन म अगर यान नह दया तो एक ददनाक
और शमनाक गलती होने के पूरे आसार होते ह। वैसे भी या को म आज तक गुदा-मैथुन
के लए मना नह पाया था।

मने अपने लग को या क यो न से रसते रस (जो या के और मेरे रस का म ण था)


से अ तरह भगोया और उसके पीछे से यो न ार पर टकाया। या ने अपनी उँ ग लय
से अपनी यो न क दरार को कुछ फैलाया, जससे मुझे उ चत छे द खोजने म कोई कोई
परेशानी न हो। अ दर इतनी यादा चकनाई थी क ज़रा सी हरकत से म अ दर तक समां
गया।

या ने एक कामुक कलकारी भरी, “उईई माँ! आप तो पूरा अ दर तक घुस गए!


आ ह!”

इस कथन म कसी भी तरह क शकायत, या दद जैसा कुछ नह था, इस लए मने इसको


सहवास आर करने क अनुम त के प म लया, और उसक सूजी ई यो न क कुटाई
आरंभ कर द । या ने मेरे लग के घषण के साथ ही अपना आनंद भरा वलाप करना
आर कर दया। उधर मने पीछे से ही उसके तन को दबाना, मसलना चालू कर दया,
और आराम से ध के लगाने लगा। पीछे से सहवास करने से नत ब क पूरी संरचना
दखाई दे ती है.. कमाल क बात यह है क इतने सारे आसन और पोजीशन ाई करने के
बाद भी यह वाला बचा रह गया! या के नत ब! मने उं गली से उसक गुदा को छु आ और
फर उसके छे द पर अपनी अंगुली फराने लगा। कुछ त या न दे खने पर मने धीरे से
अपनी उं गली अंदर डाली। या च ंक गई, “ओउईई! मत क़करो..”

म क गया और कुछ और जोर से ध के लगाने लगा। पहले खलन के बाद मेरा टै मना
काफ बढ़ गया था। इस नए काम यु को करते ए कोई दस-बारह मनट के ऊपर तो हो
ही गए ह गे। और अब मुझे भी लग रहा था क मं जल नकट ही है। इस बीच म या एक
बार नवृ हो चुक थी। म अब ज़ोर का ध का लगाने लगा – या भी अपनी तरफ से
अपने नत ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही दे र म मेरे अ दर का लावा फ़ूट पड़ा। खलन
के उ माद म मने अपनी कमर को कस कर या के नत बो से पूरी तरह चपका लया।
सहवास का नशा उतरा तो याद आया क अ नी भी घर पर होगी! ले कन या ने बताया
क वो अभी बाहर गयी ई है कसी काम से। मने राहत क साँस ली – कमाल है! सोचा
भी नह क घर म हमारे अलावा एक और ाणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।
२२
या ा वाले दन:

या : “जानू, आप भी साथ आते तो मज़ा आता।“

अ नी : “हाँ जीजू! आप भी न.. मौके पर धोखा दे ते ह!”

म : “मौके पर धोखा! हा हा हा!”

अ नी : “और या! अब बताइए.. ये सारा लगेज हम दो बेचारी लड़ कय को खुद ही


ढोना पड़ेगा..”

म : “अ ा जी.. तो म तुम दोन का कुली ँ?”

अ नी : “नह नह .. आप तो मेरी द द के ‘जाआआनू’ ह.. (अ नी ने मुझे चढ़ाया)


और मेरे याआआरे जीजू! ले कन.. सामान उठाने वाला भी तो कोई चा हए! ही ही ही!!!”

म : “दे ख रही हो जानेमन.. इस लड़क को सामान उठाने वाला चा हए.. लगता है क


इसके लए लड़का ढूं ढना शु कर दे ना चा हए..”

अ नी : “ध जीजू! आपके होते ए मुझे कोई और य चा हए?” उ फ़! इस लड़क


से जीतना मु कल है!

म (अ नी क बात को नज़रंदाज़ करते ए): “ या बताऊँ जानू.. मेरा भी तो कतना मन


है आपके साथ आने का! ले कन यह मी ट स! ये तो अ ा है क मेरा काम द ली म है..
बस, काम ज द से नबटा कर तुरंत आ जाऊँगा। बस यही तीन चार दन क ही तो बात
है... आप लोग एक दो दन ए ा रह लेना वहाँ.. या एक दो दन बाद चली जाना। म वह
सबको मलूंगा! ओके?“

या मु कुराई, और फर मेरे पास आ कर दबी आवाज़ म बोली, “वो तो ठ क है.. ले कन,


ये ध कौन पएगा?”
अ नी : “हाँ हाँ.. सुनाई दे रहा है मुझ!े ” अ नी अँधेरे म तीर मार रही थी।

म : “ या सुन रही है तू?”

अ नी : “आप दोन मेरे खलाफ कोई सा जश कर रहे ह..”

या : “तेरे कॉलेज म क ँगी क रोज़ तेरे कान उमेठ जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ नकल
जायेगी!”

अ नी : “ठ क है! ठ क है! कर लो आप दोन पसनल बात! म यूँ कबाब म ह ी बनूँ?”


कहते ए अ नी कमरे से बाहर नकल गयी।

म (मु कुराते ए) : “इसको स हाल कर र खएगा... म इ मीनान से पयूँगा, जब आपसे


मलूंगा!”

या ( खलवाड़ करते ए), “ग दा ब ा...!” और फर अचानक गंभीर हो कर, “... जानू..


आपके बना मेरा मन कह नह लगता! आप रहते ह तो ज़ दगी म मज़ा रहता है!”

म : “ या जानू.. बस तीन चार ही दन क तो बात है! म आ जाऊँगा! .. और फर, मुझे ये


डेयरी भी तो खाली करनी है! यू शन!! हेह हेह!”

या : “मेरा तो बस यही मन रहता है क इनम लबालब ध भरा रहे.. जससे म आपको


जब मन करे, ध पला सकूं!”

केदारनाथ क चढ़ाई काफ क ठन है। करीब सात हज़ार फुट क चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ
म दर तक प ंचते ह। केदारनाथ जाने क बल इ ा य थी इसका मेरे पास कोई
जवाब नह था। मुझे वैसे तो कसी तीथ पर जाने म कोई ख़ास च नह है। ले कन, इन
लोगो क आ ा, और उनके प रवार क एक कार क पर रा के कारण मने कोई वरोध
नह कया। वैसे भी या क डॉ टर ने बताया था क इस या ा म कोई द कत नह है,
अगर बस कुछ ख़ास सावधा नयाँ बरती जाएँ! मने यह स त नदश दए थे, क या को
चढ़ाई चढ़ने न दया जाय – पालक कर ली जाय, जससे आसानी रहेगी। यह भी नदश
दया क या लगातार मुझसे बात करती रहे, जससे मुझे वहाँ क प र त का मालूम
होता रहे। इस पर या ने कहा क वो दन म पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़ र
करेगी।

दोन लड़ कय को मने बगलोर वमानप न तक छोड़ा, और वापस काम पर चला गया। दो


दन बाद मुझे द ली के लए नकलना था, और वहाँ चार ज़ री मी ट स कर के दे हरा न,
और वहाँ से केदारनाथ क या ा करनी थी। या, अ नी के जाने के बाद घर खाली
खाली सा लगने लगा तो मेरा यादातर समय ऑ फस म ही बीत रहा था। या मुझे हर
समय फ़ोन या एस ऍम एस पर अपनी जानकारी दे ती रहती। द ली म मी ट स वगैरह
करते ए मुझे या ने बताया क केदार घाट म काफ बा रश हो रही है। मने उसको
सावधानी बरतने को कहा, और ज द मलने का वायदा करके फोन काट दया। दे हरा न
के लए अगले दन सवेरे क लाइट थी।

रात म सोने से पहले मने या का नंबर लगाने क को शश करी – कई बार को शश कया,


ले कन न बर नह मला। फर उसके पापा और होटल का भी नंबर लगाया.. कह भी फ़ोन
नह लग रहा था। नराश हो कर म सोने चला गया – रात भर ठ क से न द नह आई।
अजीब अजीब सपने आते रहे, और सवेरे उठने के बाद बुरे बुरे ख़याल आते रहे। उठते ही
मने फर से फ़ोन लगाने क को शश करी, ले कन अभी भी फ़ोन नह लग रहा था। ऐसे ही
बुरे मूड म म द ली वमानप न प ंचा और वहाँ जा कर मालूम आ क केदारनाथ म
भीषण बाढ़ आई ई है। मेरे पैर के नीचे से जैसे ज़मीन ही खसक गई – पेट म जैसे गाँठ
पड़ गयी! मन अ ात आशंका से घर गया।

मन म अनजाने डर, और दय म ढे र सारी ाथनाएँ लए पूरी या ा बीती। ले कन दे हरा न


वमानप न पर प ँचते ही सारे के सारे डर हक कत म बदल गए। वहाँ मने टै सी करने क
को शश करी, तो लोग ने बताया क केदारनाथ म कसी भी ाईवर से उनका संपक नह
हो पा रहा है। पूछने पर उसने आगे जाने से मना कर दया, यह कह कर क ले तो जा
सकता है, ले कन सड़क क या हाल है, और बा रश म न जाने या या हो सकता है
कुछ नह मालूम! आज का दन यूँ ही नकल गया – एक एक मनट.. एक एक पल ऐसा
लग रहा है जैसे क एक एक सद बीत रही हो! बॉस का भी दन म कई बार कॉल आ चूका
– वो या के बारे म पूछते ह! म या जवाब ं ! एक बार तो मेरी आंख म आंसू छलक
पड़े! मेरी चु पी और खामोश दन उ ह ने शायद सुन लया हो! फ़ोन पर मुझे धाड़स बंधाते
ए उ ह ने कहा क उ मीद मत छोड़ना, और मेरी हर तरह से मदद करने का आ ासन
कया। मुझे इतना तो मालूम पड़ गया क उ ह ने उ राखंड आपदा कं ोल म और
अ धका रय से संपक करने क हर संभव को शश क है।
एक दन।

दो दन।

तीन दन।

चार दन।

हर एक दन गुजरने के बाद मुझे मेरे प रवार के लौटने क आशा भी धू मल होती नजर आ


रही थी। एक एक पल इंतजार क करना मु कल होता जा रहा था। न तो भोजन का कोई
कौर गले के अ दर जा पाता, और न ही हलक से पानी क एक बूँद! न जाने उन लोग ने
कुछ खाया पया होगा या नह , बस यही सोच कर कुछ खाने पीने क ह मत भी नह पड़
रही थी।

यादातर टै सी वाले अब मुझे पहचानने लग गए। मुझे दे खते ही वह कहते ह, “साहब,


ऊपर के इलाक म सड़क ख़ म हो चुक ह... और गाँव के गाँव साफ़ हो गए ह। हमारे
कसी भी साथी क कोई खोज खबर नह है। अब तो बस भगवान्, और सेना का ही
सहारा है। आप बस ाथना क रए क आपका प रवार सही सलामत आपको मल जाय।“

रात म होटल वाले ने जबरद ती एक रोट मुझे खला द । दन भर आपदा कायालय के


च कर लगाता, फ़ोन क घंट बजने का इ नाजार करता, और समाचार म मृतक क
बढ़ती ई सं या दे ख कर मन ही मन मनाता क मेरा कोई अपना न हो! इतनी बेबसी मने
अपने जीवन म पहले कभी नह महसूस करी। इतनी बेबसी, और इतनी खुदगज !

इस आपदा म ई और हो रही जान-माल क त का आंकड़ा वकराल प से बढ़ता ही


जा रहा है! मन म बस अब एक ही ख़याल आता है क अब बस! अब ये गनती ख़ म करो
भगवान्! इतने दन हो गए, और कसी से कोई संपक ही नह हो पाया है!

'काश! ये लोग ठ क ह ! ओह या! लीज लीज! काश! तुम ज़दा हो..!'

छठा दन:
राहत और बचाव काय बा धत हो रहा है, य क घाट म फर से तेज बा रश हो रही है,
और धुंध छाई ई है। सेना के हे लकॉ टर उड़ान ही नह भर पा रहे ह! खबर आई थी क
एक हे लकॉ टर घटना त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ क भट चढ़
गए! एक अफसर से बात ई, उ ह ने मुझे साफगोई से कह दया,

“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगे ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जो खम
ह और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख– यास
से मर रहे ह! कतनी मौत , कतने लापता ए और कतने लोग सुर त नकाले गए -
इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, य क यहाँ कोई सम वय नज़र नह आ रहा
है, और न ही कोई एक सूची है। स ाई यह भी है क खुद शासन का कतना नुकसान
आ है, इसका अंदाजा ठ क-ठ क अभी उ ह भी नह है। इसके शकार ए लोग का पता
लगाना ही अपने आप म एक बड़ी चुनौती बन गयी है। हज़ार क तादाद म लोग मदद क
आस लगाए बैठे ह। आप भी उ मीद न छो डए.. कुछ भी हो सकता है!”

सातवाँ दन:

अब तो कोई उ मीद ही नह बची है.. बस यं वत रोज़ रोज़ राहत श वर के द तर प ँच


जाता ँ। वहाँ लोग से कई बार ाथना भी करी है क मुझे भी सेवा का अवसर द.. ले कन
वहाँ कसी के पास समय नह है। कई सारे लोग बचाए भी जा चुके ह, ले कन इन लोग का
कोई नामो नशान ही नह है!

‘अरे! फ़ोन बज रहा है..’

कोई अनजाना नंबर था। ानीय! दल धाड़ धाड़ कर के धड़कने लगा।

“हे लो?” मने ब त उ मीद से बोला।

“जीजू..?” यह तो अ नी क आवाज़ थी।

“अ नी?”

“जीजू... ..” वो बेचारी रोने लगी!


‘हे भगवान्!’

“अ नी.. तुम ठ क तो हो न?”

“जीजू.. लीज आप मुझे ले चलो.. ..” रोते ए उसक हच कयाँ बांध ग ।

“हाँ अ नी.. बताओ कहाँ हो? बाक लोग कैसे ह?”

उ र म अ नी सफ रोती रही।

“साहब, आप फलां फलां जगह प ँच जाइए.. ए स ै न वही हो रहा है..”

“जी हाँ.. जी.. ठ क है.. म आ रहा .ँ .”

“ओह भगवान्! तेरा लाख लाख शु है!”

कह कर म बलख बलख कर रोने लगा। कोई दे खे या नह .. मुझे कोई परवाह नह ! जब


सब उ मीद छू ट ग , तब दे खए! कैसे खुशखबरी आई! कोई तीन घंटे क मश कत के बाद
म राहत श वर / ए स ै न कप म प ंचा। वहाँ क हालत तो और भी दयनीय थी।
बचाए गए सभी लोग क आँख म राहत और आस क नमी थी। साफ़ दख रहा था क
वो सभी बेहद भूखे और बेबस थे, और अब उनके अ दर कसी भी तरह क श नह
बची ई थी। वा जब भी है - इन लोग को एक ह ता हो गया, कुछ भी खाने को नह मला
था.. और पीने के लए भी सफ ग दा पानी ही नसीब आ होगा। ज़मीन पर एक
लेटा आ था... उसक हालत दे खकर मुझे नह लगा क उसके बचने क कोई उ मीद
होगी। सभी के कपड़े फटे ए और मैल-े कुचैले हो गए थे... या तो वो खड़े थे, या फर लेटे
ए थे।

एक वृ मुझे दे खते ही बोला, “हे बबुआ, हम हाथ जो ड़त है.. हमका हयाँ से ले चला।”

बेचारे को लगा होगा क म उसका पु या कोई सगा स ब ी ँगा! एक तरफ कुछ लोग
उ टयाँ कर रहे थे।
‘ये लोग दख यूँ नह रहे ह?’ अचानक मेरी नज़र एक तरफ ज़मीन पर लेट ई लड़क
पर पड़ी.. ‘अ नी!’

“अ नी?” ‘हे भगवान्! या हालत हो गयी है इसक ! इतनी यारी ब ी.. और ये दशा?’
उसके कपड़े बुरी तरह से फटे ए थे। बुरी तरह से मैली कुचैली, ज़ मी, बेदम!

“जीजू? ओह जीजू!” कहते ए वो मुझसे लपट गयी।

“तुम ठ क तो हो अ नी?”

उसने सर हला कर हामी भरी।

“बाक लोग कहाँ ह?”

मेरे पर उसक आँख भर आ .. उसने बस ‘न’ म सर हलाया। मुझे समझ आ गया क


वो बात करने क दशा म नह है। मने वहाँ उप त अ धकारी से बात करी, तो उ ह ने
बताया क मेरे प रवार का कोई और सद य उनको नह मला.. अ नी अकेली ही थी।
वही बता सकती है क बाक लोग कधर ह! मने वहाँ पर सारी ज़ री औपचा रकताएं पूरी
कर , और अ नी को होटल ले आया। रा ते म आते आते वो या तो गहरी न द सो गयी, या
फर बेहोश हो गयी। बेचारी क या दशा हो गयी थी!! कोई और समय होता तो ऐसी
हालत म कसी लड़क को लाने पर होटल के सभी लोग शक करते, ले कन आज सभी
सहयोग कर रहे थे। सामू हक वप म समाज म म क सं या बढ़ जाती है।

उ ही क मदद से मने अ नी को ब तर पर लटाया, और फर दरवाज़ा बंद कर के उसके


सारे कपड़े उतारे। उसके पूरे शरीर पर चोट, और कटने के नशान दख रहे थे। शरीर म
सूजन तो थी, ले कन उसके तलवे काफ सूजे ए थे, और साथ ही साथ उन पर फ़फोले
पड़े ए थे। उनमे से कुछ फूट भी गए थे, और वो घाव खुले भी ए थे। म उसको ब तर म
लटा कर उसके लए ज़ री व , और डॉ टर का इंतजाम करने चला गया। डॉ टर के
साथ वापस आया तो दे खा क अ नी अभी भी सो रही थी, और उसका शरीर तप रहा
था।
उ ह ने अ नी क पूरी तरह से जांच करी, और उसको इंजे न दया, और कुछ दवाएं
लख कर द । बताया क कोई डरने क बात नह लगती, बस अ नी को कुछ ह का
खलाता र .ँ . जैसे क जूस, सड वच इ या द, जब तक उसक ताकत वापस न आ जाय!
एक बार ताकत आने पर बुखार खुद ही उतर जाएगा। उनको बस इसी बात का डर है क
कह उसको ड-हाइ ेशन न हो जाय!

अ नी दे र शाम को ही उठ पाई। तब तक म उसके लए जूस, और सड वच इ या द का


इंतजाम कर लाया था। म उसको ब तर से उठा कर बाथ म ले गया, जहाँ अ य ज़ री
काम के साथ मने उसको नहलाया भी। वापस आ कर मने उसको कपड़े पहनाये – वो
इतनी कमज़ोर हो गयी थी क खुद के बल पर बैठ भी नह पा रही थी। खाना भी मने
उसको अपने हाथ से ही खलाया। और सबसे अंत म दवा पलाई। फर उसको वापस
ब तर म लटाया।

मने यार से उसके बाल को सहलाते ए पूछा, “अ नी, अब ठ क लग रहा है?”

अ नी क आँख से आंसू टपक पड़े।

“कोई नह बचा, जीजू! कोई नह ..”


मेरे ऊपर मानो बजली गरी! ‘कोई नह ..! मतलब!’

जब तक कोई न त बुरी खबर नह मलती, तब तक आशा बंधी रहती है। मेरी भी आशा
बंधी ई थी क शायद या और बाक सभी जी वत ह गे... ले कन अ नी के इस एक
वा य ने वह आशा भी छ न ली। म बुरी तरह से फूट पड़ा – मानो, थमा आ बाँध अचानक
ही टू ट गया हो। मेरे पैर... जैसे उनम से सारी जान नकल गयी हो। मेरा सर चकराने लगा,
और म अचेत हो कर गर गया।
रजनीगंधा क म त कर दे ने वाली खुशबू मेरे नथुन के रा ते से आ कर मुझे आंदो लत कर
दे ती है। मेरी चेतना वापस आती है। आँख खुलती है, तो मुझे लगता है क मानो म वग के
नंदन वन म ँ। चारो तरह चांदनी फैली ई है, और हरी भरी घास पर ढे र सारे पु प खले
ए ह! वैसे ही जैसे फूल क घाट म दे खे थे!

‘ या बात है! ले कन.. ले कन, वो रजनीगंधा क खुशबू?’

म उठ कर दे खता ँ तो एक तरफ छोटा सा तालाब, जसम कई सारी कुमुद नयाँ अभी


सु त अव ा म थ । सरी तरफ नज़र दौड़ाई तो दे खा क एक ब त ही सु दर सा घर था –
उस घर के थम तल पर त एक बड़ी खड़क से रौशनी छन कर बाहर आ रही थी।
दमाग क एक झटका सा लगा – यह तो वही घर है जैसा मने और या ने साथ म सोचा
था! एक बार और मने नज़र दौड़ाई, तो दे खा क तालाब के समीप ही एक ी, एक छोट
सी लड़क के साथ खेल रही है।

‘ओह! रजनीगंधा क सुगंध उसी तरफ से आ रही है।‘

अचानक उस ी क भी मेरे ऊपर पड़ती है; वो खेलना बंद कर मेरे पास आती है..
या को दे ख कर मने मु कुरा उठता ँ। वो खजुराहो क मू तय जैसी सवाग सुंदर दख
रही है - अ य त कमनीय! दरअसल, उसने खजुराहो क मू तय के समान ही व पहने
ए ह – कमर के नीचे धोती है, और तन को ढके ए कंचुक ! इन व म या के प
स दय और अंग- यंग क रचना दे खते ही बन रही है। उसके व गोलाकार थे, और शरीर
चांदनी म चमक रहा था। आँख म वही प र चत चंचलता और मादकता!

वो ेम से मेरे सर को अपनी गोद म रखकर मुझसे कहती है, “जानू.. उठ गए!”

मने एक गहरी सांस भरी – रजनीगंधा क मादक खुशबू मेरे पूरे वजूद म समां गई। समझ
नह आ रहा क सो जाऊं या जागूँ?

“आई लव यू!” मने आँख बंद कये कये कहा।

उ रम या खल खलाई! फर क कर बोली, “अ ा.. एक बात बताओ.. सु दर है


न?”
“बहोत!” मने या क कंचुक म उं गली डाल कर उसको नीचे क तरफ ख चा। उसका
बायाँ तन कंचुक के बंधन से मु हो गया। मेरी हरकत पर या ने मेरे हाथ पर एक
हलक सी चपत लगाई।

“गंदे! म नह ...”,

कहते ए उसने एक तरफ अपनी उं गली से इशारा कया,

“... हमारी बेट !”

या क इस बात पर मेरा सर एक झटके से सरी तरफ उस छोट लड़क को दे खने के


लए मुड़ता है। मेरी आँख एक झटके से खुलती है। मेरे चेहरे पर अ नी झुक ई है और
बदहवासी म मेरे दोन गाल को पीट रही है।

“जीजू.. उ ठए.. लीज.. उ ठए! ओह थक गॉड!”

मेरा सर अ नी क गोद म था – उसने जब मेरी आँख खुली ई दे खी तो उसके चेहरे पर


कुछ राहत के भाव आये।

“जीजू... आप ठ क तो ह न?”

“ ह..हाँ.. म ठ क .ँ .” कहते ए म उसक गोद से उठ कर बैठ जाता ँ। ले कन सदमे


का असर अभी भी था – मेरा सर फर से चकरा गया, तो म सर थाम कर बैठ गया।
अ नी मुझे पकड़ कर पुनः रोने लगी।

“सब ख़तम हो गया.. सब..” कहते ए उसक एक बार फर से हच कयाँ बंध ग । म तो


मानो काठ का हो गया! या क ँ? अ नी कुछ दे र रोने के बाद खुद ही कहने लगी,

“बाढ़ से बचने के लए हम लोग होटल बाहर नकले। होटल का अहाता बुरी तरह से टू ट
गया था, और वहाँ से पानी बह रहा था – वह से बाहर नकलते ए माँ का पैर फसल
गया। पानी क धारा इत न तेज़ थी क गरने के बाद वो फर कभी नह दखाई द । पापा
उनको बचने के लए अहाते म कुछ दे र तक गए, और जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल
रहे थे – शायद उनके पैर म मोच आ गयी थी।

हमने दे खा क आस पास के कुछ लोग पहाड़ क ढलान के ऊपर क तरफ जा रहे थे,
इस लए हम लोग भी उधर ही चलने लगे। जैस-े तैसे हम लोग ऊपर प ंच गए, ले कन उस
चढ़ाई को करने म ब त समय लगा – न दन का पता चलता और न रात का! द द तो
ेगनसी के कारण पहले ही कुछ कमज़ोर थ , और भूखी यासी रहने के कारण उसक
ह मत जवाब दे गई। और वो वह बेहोश होकर गर गयी। पापा ने कहा क वो कुछ खाने
के लए लाते ह, ले कन पूरा दन भर तलाशने के बाद भी उनको कुछ भी नह मला।

हमारे साथ जो लोग ऊपर जा रहे थे उनमे से उस समय तक कोई नह दख रहा था –


शायद वो कसी और तरफ नकल गए, या फर .. बह गए! मदद दे ने के लए अब कोई
नह था। खैर, पहाड़ पर घास भी उगी ई थी, और उसको दे ख कर पापा ने सोचा क
शायद उसको खाया जा सकता है। ले कन उनको कुछ शक था क वो घास खाने लायक है
भी, या नह ! ले कन, उनका शक सही था... वो वाली घास ज़हरीली थी। उसको खाने पर
उनको अ ा तो नह लगा तो उ ह ने उसको थूक दया – ले कन लगता है क कुछ ज़हर
अ दर चला गया। दन भर उ टयाँ करने के बाद उनक भी मौत हो गयी।

द द अब और चल नह सकती थ .. इस लए मने उसको वह लटा कर म आस पास खाने


को ढूँ ढने गयी। शायद कसी प ी ने कुछ मांस गरा दया था। वो मने और द द ने मल
कर खाया। रात म डर लगता - लगातार बा रश, ठं ड और जंगली जानवर का डर बना
रहता था। मरने वाल के शव को कु े और अ य जानवर खा रहे थे। अगले दन द द क
हालत काफ खराब हो गयी। भूख, क ा मांस, डहाइ ेशन, कमजोरी, सं मण... रात म
जब वो सोई तो उसका शरीर कांप रहा था। बाहर ठं डक भी ब त हो रही थी। म जब सवेरे
उठ तो दे खा क द द नह बची..! रोने के लए अब तो आंसू भी नह बचे थे! दो दन तक
जैसे तैसे जंगली जानवर से बचते ए म रही... फर कल मने हे लकॉ टर क आवाज़ सुनी
तो उसको इशारा कया... न जाने कैसे उ ह ने मुझे दे खा और वहाँ से नकला। अब यह
नह समझ आता क म लक ँ, या एकदम मन स!“

जीवन भी अजब है। या या रंग दखलाता है। सब कुछ... इसी ज म म हो जाता है, सब
यह मल जाता है! तीन साल भी हम साथ नह रह पाए! तीन साल भी नह !
‘हे दे व! इतनी ू रता! ऐसे लेना था, तो दया ही य ? या ने ऐसा या कया था क
उसक इस तरह से मृ यु हो? वह बेचारी सभी क हंसी ख़ुशी के लए ही सब कुछ करती
थी। कसी के त उसके मन म कोई भी व े ष नह था। फर य ? कहाँ है भगवान?
कैसा भगवान?’
२३
म एकदम अकेला !ँ एकदम अकेला.. मेरे हर तरफ एक भीड़ जैसी है.. घर म रहो, सड़क
पर नकालो, या फर ऑ फस जाओ... हर तरफ लोग क कोई कमी नह है.. ले कन, म
नतांत अकेला !ँ सोसाइट म लोग जब मुझे दे खते ह तो मानो उनको लकवा हो जाता है..
बात करते करते चुप हो जाते ह, मुझे दे ख रहे होते ह तो कसी और तरफ दे खने लगते ह..
क ी काट लेते ह.. जैसे क मुझे कोई रोग हो!

मुझे भी मु चा हए! ले कन आ मह या कर नह सकता। ऐसा लगता था मानो पानी क


कोई तेज धारा आये और मुझे बहा ले जाये.

वसीयत म मने अपना सब सब कुछ अ नी के नाम लख दया है, और अपनी आ खरी


इ ा के लए नदश दया है क मृ यु के बाद मुझे व ुत् शव-दाह गृह म जलाया जाय।
य बेकार म लक ड़याँ जलाना?

या क मृ यु के बाद बीमा रा श और सरकारी सहायता से मली ई रकम मला कर मने


एक ट-फ ड बनाया, जसका एक ही उ े य था – गरीब प रवार क चुनी ई मेधावी
ा ा को उनक उ श ा (कम से कम नातक तर तक) तक पूरी सहायता दे ना।
मेरे ऑ फस, और या के कॉलेज के लोग ने इस फ ड म भरपूर योगदान दया था,
जससे अब यह एक ाई ा वृ बन चुका था। बाक का सारा नबटारा होने वाली
सारी रा श (अ नी के माता पता क बीमा रा श और सरकारी सहायता), और उ राँचल
क सारी ज़मीन इ या द मने कानूनी सहायता से अ नी के नाम लखवा द । कम से कम
उसका जीवन तो अब र हो गया था।

मुझे लग रहा था क अब मेरे जीवन का मकसद पूरा हो गया है.. ‘ या! मुझे भी अपने
पास बुला लो!’ बस म यही एक बात रोज़ मन ही मन दोहराता। एक साल हो गया था मेरा
प रवार न ए! प रवार या, पूरा संसार न ए! संसार क सबसे नराली लड़क को
मुझसे आज से एक साल पहले काल ने छ न लया। उसके साथ साथ छ न लया उसने
मेरी संतान को – मेरी बेट ! साथ ही चले गए मेरे माता और पता भी! दोन माता पता!

‘कैसा ू र मजाक!’
कहते ह क जीवन कसी के लए नह कता! चलता ही रहता है.. ले कन कस ओर? म
तो अब हर ण बस मृ यु का ही इंतज़ार कर रहा ँ। हाँ – खाता ँ, पीता ँ, सोता .ँ .
ट वी भी दे ख लेता .ँ . या क ँ ? जीना पड़ रहा है! ले कन या जीना! म सब कुछ अकेले
ही करता ँ। हाँ – घर म अ नी भी रहती है। ले कन, उससे तो बस नाममा क बात
होती ह। कभी कभी ःख होता है क इस सब म उसक या गलती! म य उसके साथ
ऐसे बताव क ँ ? आ खर मेरे साथ साथ उसने भी तो अपना प रवार खोया है! ले कन, फर
भी.. एक अजीब तरह क बेबसी होती है.. अजीब तरह क कसक.. अक अजीब तरह का
आ ोश!! कुल मला कर, उससे अ धक बात नह हो पाती! अब तो लगता है क कसी से
भी म ठ क से बात नह कर पाऊँगा!

उस घटना के कुछ ही दन बाद क बात है... म कमरे क खड़क से बाहर कसी अनंत
शू य म दे ख रहा था।

अ नी मेरे पीछे आ कर कहती है, “आप या दे ख रहे हो?”

मने कई दन से खुद को ज त कया आ था.. उस एक वा य ने न जाने कैसे मेरे स के


बाँध को ढहा दया। मने चड़ चड़े ढं ग से उसको जवाब दया, “अपने काम से काम रखो!
मुझसे चपकने क कोई ज़ रत नह !”

वो उसी पल मेरे कमरे से बाहर भाग गई। कुछ समय बाद मने उसके रोने सुबकने क
आवाज़ सुनी, ले कन मने उसको मनाने क कोई को शश नह करी। वो मेरी ज मेदारी
नह है। अगर उसको भी इस संसार म गुजारा करना है, तो बना कसी मोह के ही करना
होगा। संसार ब त ू र है! और भगवान उससे भी बड़ा ू र! कसी भी कार का मोह न ही
हो तो अ ा! न कोई बंधन होगा, और न कोई बोझ! आराम से चले जाओ.. कसी को
पता भी नह चलेगा क कब नकल लए!

सबसे अ बात यह क या के ही कॉलेज म अ नी का दा खला हो गया था – वहाँ के


सपल मुझे अ सर उसक उ त के बारे म बताते.. कहते क ब त मेधावी है! मने
उनको अपनी त के बारे म बताया, और उनको कहा क वो उसको उ चत मागदशन
दे ते रह। य क मुझसे नह हो पायेगा।
अ े लोगो न भारी अभाव हो रहा है मेरे जीवन म.. अभी कोई सात महीने पहले ी हेगड़े
जी का दे हांत हो गया – दल का दौरा पड़ने से। उनक ीम त को उनक संताने अपने
साथ ले ग । लहाजा, अब पड़ोस भी खाली लगता है। घर आने का मन नह होता।
इस लए म अ सर अपने टू र बनाता रहता .ँ . पछले एक साल म चार महीने म बाहर रहा।
वो मकान तो बस या के कारण घर था, अब तो बस एक बेरंग ढांचा सा लगता है! ऐसे
यं वत जीवन होने के कारण काय ल पर तर क ब त तेजी से हो रही है! अब म खुद
भी मेरे भूतपूव बॉस के तर पर ँ। ले कन उनका म वत वहार अभी भी बरकरार है।

वो अभी भी मुझसे संपक म ह। घटना के बाद उ ह ने मुझसे या के बारे म पूछा। या


बताता! बस फूट फूट कर रोने लगा। उनको मने सारा वाकया सुनाया। उसके बाद से
उ ह ने कभी भी या का नाम भी मेरे सामने नह लया, जससे मुझे ःख न हो! शु
शु म मने दो त के साथ मुलाकात क , और वो लोग भी मुझसे मलने आये – जैसे क
पारंप रक सामा जक णाली होती है..। न कता भी मलने आई थी... उसने मुझसे दबे
छु पे श द म दोबारा शाद करने को भी कहा। मने उससे या कहा, मुझे कुछ याद नह
आता अभी! हाँ, ले कन कोई चार महीने पहले मने उसक शाद का काड दे खा – काड
मलने के एक महीना पहले उसक शाद हो गयी थी। अ बात थी.. मुझे अपने जीवन म
कसी भी तरह का उलझाव नह चा हए था।

अकेलेपन के साथ साथ, म पछले छह महीन म न जाने कस ग े के अ दर चला जा रहा


ँ.. वहाँ पर सूय का काश संभवतः कभी नह गया है। काश! आ मह या करना पाप न
होता!

मृ यु :

ब त भयावह होता है जब आप दे खते ह क एक न त मृ यु आपक तरफ आ रही है,


और आपके पास उससे बचने का कोई उपाय नह है। ती ग त पर अचानक ही लगाम
लगाये जाने पर टायर से उठने वाली चीख, े स के जलने पर उठने वाली कसैली गंध..
और इन सब का उस भयावह सच क तरफ इशारा!! मेरे अं तम ण म मेरे दमाग म बस
एक ही बात आई,

‘आ ही गई मौत!’
वैस,े मृ यु से मुझे कोई डर वर नह लगता.. हाँ, उससे मुझे एक तरह क खीझ सी होती है।
ले कन, या के बाद म जी ही कहाँ रहा था – बस जी वत था। अपने आ खरी ण म मुझे
बस यही ख़याल आया... और चैन भी। ट कर बेहद भीषण थी। उस झटके से मेरा दय
क गया, और दमाग म अन गनत धर वा हकाएँ फट गई। चेतना जाते ए आ खरी
बात जो मुझे याद है वह यह है क कार क चेसी कुचलती जा रही थी, और कार क फ़श
पर मेरा ल ! मेरे सर म एक असहनीय दद आ, और चेतना लु त हो गई।

अगला ख़याल जो मुझे याद है वह यह है क म मर गया ँ। सचमुच मृत! ...ले कन, फर


दमाग पर जोर लगाया तो समझ आया क अगर म मर गया ,ँ तो फर सोच कैसे सकता
ँ? सोच तो दमाग से होती है, और दमाग जी वत शरीर म! मतलब अभी भी जी वत !ँ

ेट!

“अथव... अथववववव..!” मने आवाज तो सुनी, ले कन पहचान नह पाया।

कैसी आवाज़ है? अ आवाज है, ले कन जानता नह ..। मेरे सर म भयंकर दद हो रहा
था। सर म ही या, पूरे शरीर म! तो या म उस अ तभा रत क से ई घटना से बच
गया?

“अथव.. बेबी.. मरना नह । लीज़..? जागते रहो। तुम मुझे सुन रहे हो? मेरे साथ रहो।
चता मत करो। म ँ यहाँ तु हारे साथ। मुझे सुन रहे हो? मुझसे बात करो.. लीज़..?”

अरे भई.. कौन हो आप? कौन है मेरे साथ? मुझे तो कुछ भी समझ नह आ रहा था। मेरे
सर म जैसे जैसे वो भयंकर दद बढ़ रहा था, वैसे वैसे मुझे यह समझ नह आ रहा था क ये
अथव कौन है, और ये औरत (हाँ.. औरत क ही आवाज़ थी) कौन है! मने उठने क
को शश करी.. एक अजीब सा अनुभव आ – जैसे च कर, उलट , और एक और भयंकर
दद क लहर.. ये सब एक साथ! म फर से अचेत हो गया।

रह रह कर या क बात याद आत .. एक बार मने सड वच बनाया। और खाते ए उसको


पूछा, “तु हारा बनाया आ इतना ब ढ़या लगता है! ये कैसे हो सकता है!! एक जैसी चीज़
ही तो डालते ह – जो तुमने यूज़ करी, वही मने भी.. फर ऐसा य ?”
या ने मु कुराते ए कहा, “जानू.. म सड वच म यार भी डालती .ँ .”

या बलकुल ऐसी ही थी। हर चीज़ म यार डालती थी। उसका कया हर काम बेहतर
होता था! .. यह यार नह तो और या है...?

यू- ूब पर म “आगे भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू..” वाला गाना सुन रहा था। या
को यह गाना ब त पसंद था। म भी साथ म गाने लगा.. या क याद हो आई.. गला भर
गया। और आँख से आंसू आ गए। म रोने लगा – इस तरह म कभी नह रोया। कम से कम
एक घंटा रोने के बाद सारी ऊजा ीण हो गयी। कब सोया कुछ भी याद नह !

‘ लप... लप... लप...’

‘ये या चढ़ाने वाला शोर हो रहा है! और.. या कहाँ है? अभी तो यह थी...’

मने आँख खोलने क को शश करी। ले कन ब त ही अस दद आ। मृ यु? अ हहाँ!


मतलब मरा तो नह ँ। जैसे जैसे चेतना लौट रही थी, और म जाग रहा था, तो मुझे समझ
आने लगा क म शायद अचेत था।

अचानक ही मेरा संसार नश दता से गुंजायमान क तरफ चल दया। मुझे सुनाई भी दे रहा
था, और सुंघाई भी दे रहा था.. ले कन, दखाई य नह दे रहा है?

मने आँख खोलने क को शश करी। इस को शश म मेरी हर चीज़ दद करने लगी – सर,


आँख! मेरी कराह नकल गई।

“इनको होश आ गया..” कोई च लाया।

मेरी आँख उनको खोलने म मेरा साथ ही नह दे रही थ । जैसे तैसे जब वो खुल , तो रोशनी
क एक तीखी लक र व हो गयी। मने तुरंत ही आँख बंद कर ल .. यह सोच कर, क
अभी तो नह खोलूँगा। सोचने क को शश करने पर दमाग म सब ग -म हो गया.. कुछ
समझ ही नह आ रहा था। मने महसूस कया क आँख बंद होने के बावजूद मुझे मेरे इद
गद का सारा संसार धुंधला होता महसूस हो रहा था। और म एक बार फर से स ते
टं ग टन के ब ब के समान बेहोश हो गया।
जब म जागा तो काफ रौशनी हो रही थी। आँख बंद होने के बावजूद म रौशनी महसूस कर
सकता था। मने काफ य न करने के बाद अपनी आँख खोल , और अपने बना सर
हलाए, सफ आँख घुमा कर जायजा लया। मुझे समझ आया क म एक कमरे म .ँ ..
संभवतः.. नह संभवतः नह .. न त तौर पर एक अ ताल के कमरे म। कमरे म सूय क
रौशनी से ही उजाला हो रहा था। जी वत होने, और उसके एहसास से मुझे अ ा लगा!
कुछ ण के लए मुझे अपने शरीर क व भ ह स से उठने वाले दद पर से यान हट
गया।

फर अचानक ही सब याद आ गया। मेरे शरीर ने झटके खाए ह गे..

“ शश ह”

‘हँ..? कौन?’ मने महसूस कया क कसी ने मेरा हाथ थाम रखा है। मने उसी तरफ अपना
सर घुमाया और कहा,

“हाय!” मेरे इतना कहने मा से ही वो ब त खुश हो गई। कौन है ये? धुंधला सा दख रहा
है.. ले कन लगता है क जान पहचान क है.. पता नह ..! थोड़ा अपनी आँख फोकस कर
तो उस ी का चेहरा दखा.. ी नह .. लड़क । मेरे ज़हन म जो पहली बात आई, वो यह
थी क यह लड़क ब त थक ई लग रही थी.. और.. ब त.. सु दर भी! सु दर... या
जैसी!

‘ या जैसी?’ ये ख़याल ज़हन म कैसे आया? जो भी हो, ख़याल तो सच था। यह लड़क


वाकई सु दर थी.. सौ य सु दर! आकषक! वो मु कुराई,

“ओह! हे लो!” मान मेरी आवाज़ सुन कर उसक जान म जान आई हो.. “आपको नह
मालूम आपको ठ क होता दे ख कर म कतनी खुश ँ! जब मुझे खबर मली आपके
ए सीडट क तो मेरी तो जान ही नकल गयी थी.. सब को तो खो चुक .ँ . और आपको
भी नह खोना चाहती.. भगवान का लाख लाख शु है!”

‘आपको भी? मतलब? मतलब.. ये लड़क मुझे जानती है? ले कन मुझे य नह समझ
आ रही है? य नह याद आ रही है? मेरा नाम या है?’
“म... कहाँ ?ँ (इसका उ र तो खैर मुझे मालूम है) मेरा.. ए सीडट.. कतना बुरा है? (हाँ..
यह ठ क है..) घर.. कब तक?”

“सब बताऊंगी.. ले कन पहले डॉ टर को बुला कर लाती ँ...” कह कर वो लड़क लगभग


भागते ए कमरे से बाहर चली गयी।

जस ग त से वो लड़क बाहर गई थी, उसी ग त से भागते ए डॉ टर ने भी कमरे म वेश


कया। आते ही उसने मेरी कलाई थाम ली (न ज़ लेने के लए), और मेरे चाट का मुआयना
कया।

“आपको कैसा लग रहा है?” उसने पूछा।

‘मुझे कैसा लग रहा है? हा! कैसा लग रहा है!! मेरी पछली याद मरने क है साहब! मरने
क .. सुना? मृ यु! नज व! शव! यह है मेरी पछली याद.. और आप पूछ रहे हो क कैसा
लग रहा है! मर के वापस लौट आया ँ.. कतनी श त से मरने क इ ा थी.. ले कन
अभी लग रहा है क अ ा आ क वापस लौट आया! ले कन अभी कुझे डर भी लग रहा
था.. एक बार मरना क सल हो जाय, तो जीने क चाह ब त बढ़ जाती है!’
न जाने कैसे कैसे ख़याल आ रहे थे दमाग म! मुझे खुद को नयं ण म रखना चा हए.. यह
सब कोई सुनना नह चाहता! कम से कम इतनी तो को शश करनी ही चा हए क सामा य
का सामा य उ र तो दया ही जाय! वैसे लगता तो है क कुछ कुछ याददा त चली
गयी है.. खैर...!

य म मने कहा, “सब ःख रहा है! सर म दद है.. ए चुअली, पूरे शरीर म ही दद है..
ले कन फर भी चलने फरने का मन करता है। ले कन सब कुछ टफ भी लग रहा है.. ऐसे
लग रहा है क सब कुछ टू ट जाएगा!”

फर कुछ क कर, “कुछ खाने को है? ब त भूख लग रही है.. और पानी भी चा हए.. म
तो कम से कम एक लीटर पानी पी सकता ँ अभी!”

मेरी बात पर डॉ टर हंसने लगा, और वो लड़क (कौन है भई?) राहत क सांस भरती है,
“... अब मुझे प का यक न है क आप बलकुल ठ क हो जायगे!” उसक हंसी म
खल खलाहट और संतोष का मला-जुला भाव आ रहा था.. और यह भाव बेहद मनमोहक
था।

डॉ टर ने मुझसे एक दो सवाल पूछे जैसे क म कस शहर म ,ँ या समय है.. बेहद


सामा य यह जानने के लए क मेरा दमाग तो ठ क ठाक चल रहा है.. दन के सवाल
पर म उ र नह दे सका.. उसने पूछा क अं तम कौन सा दन याद है.. तो मने घटना
वाला दन बता दया। उसने संतोष द तरीके से सर हलाया। फर काफ दे र तक वो मुझे
बताता रहा क म कतना भा यशाली ँ, और यह कतना अ व सनीय है क ऐसी घटना
हो जाने पर, जब मुझे ऐसी भयंकर चोट आने पर भी म ब त ज द रकवर कर रहा ँ।

“सच कहता .ँ .” उसने कहा, “आप ऑपरेशन टे बल पर.. यू व ट बलीव मी, .. मर गए


थे!”

‘ या सच म! इंटरे टग!’

उसने कहना जारी रखा, “ले कन एक मनट बाद जब आपक धड़कन वापस चलने लगी
तो वो तो मुझे बलकुल क र मा ही लगा! मने और मेरे सा थय ने ऐसा कमाल होते कभी
नह दे खा!”

म मु कुराया।

“नह .. आप मजाक मत समझना इसको! यह वाकई अनयूसुअल है! आपके सर पर सबसे


यादा चोट आ थ .. हमने उ मीद छोड़ द । फर जब आपके दल ने धड़कना बंद कर
दया तो हम समझ गए क आब या कर सकते ह.. ले कन फर.. क र मा नह तो और
या है! ले कन आपक प नी ने आपका साथ नह छोड़ा..”

‘मेरी प नी? ... या! कहाँ हो तुम?’

“.. यहाँ नस कह रही ह क वो आपको वापस ले आ .. जैसे सा व ी ले आ थ स यवान


को! हो सकता हो क यह सच भी हो!”

‘सा व ी? या!!’
“आप भले मेरी बात को मज़ाक मा नए, ले कन मने यह सब कहना अपना फ़ज़ समझा..
आगे इनका खूब ख़याल र खएगा.. यू शुड ट भी अलाइव!”

“डॉ टर.. एक मनट..” ये लड़क कह रही थी, “म इनक प नी नह .. साली ँ....” उसने
धीरे से कहा।

‘साली? मेरी साली?’ मेरे दमाग म घूणन शु हो गया, ‘मतलब... अश...वी.. न?’

“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा क आप इनक बीवी ह.. ऐसी चता, ऐसी सेवा तो आज
कल बी वयां भी नह करत ।”

“इट इस ओके!” अ नी ने धीरे से कहा।

“अ नी?” मने कमज़ोर आवाज़ म उसको पुकारा। दल के सारे ज़ म हरे हो गए। मेरी
यारी बीवी नह है.. वो तो कब क मुझे छोड़ कर चल द है.. आँख से आंसू ढलक गए।

“जी?” उसने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा।

“थक यू!”

अ नी मेरे हाथ को अपने दोन हाथ म थाम कर अपने आंसु से भगोने लगी।
२४
अ नी क नजर म :
मेरी आँख के सामने एक एक कर मेरी माँ, मेरे पता, और फर मेरी यारी बहन – जसका
दजा बहन से भी ऊपर था – और उसक संतान क द मृ यु को ा त हो गए। ब त से
ा नय को अ सर यह कहते सुना है क य द कसी के साथ कुछ बुरा होता है तो उसके
ारा कये गए पाप के कारण होता है। मने ब त बार सोचा क इन लोग ने कसका और
या बुरा कया था, जो इनको इस कार क मृ यु मली! माँ ने अपनी तरफ से पूजा पाठ,
धा मक और सामा जक काय म कभी भी कसी भी कार क कोर कसर नह रखी। पता
जी ने भी सदा ही अपनी मेहनत और इमानदारी का ही खाया, न कभी कसी के साथ बुरा
कया और न कभी कसी का बुरा सोचा। और तो और, जतना उनका बस चला और क
मदद ही क । और माँ उनके सभी काम म बराबर क सं गनी बन कर चल । तो उनको इस
कार मृ यु? यह कस तरह ठ क है? और द द ! उसने तो अभी अपने जीवन म दे खा ही
या था? उसक तो हंसती खेलती ज़ दगी तो बस शु ही ई थी। उसके जैसी दयावान
लड़क मने कभी नह दे खी.. लोग या, वो तो पं छय और जानवर के लए भी अ ा
और भला सोचती थी। और उस अज मे ब े का या, जो अपनी माँ के साथ ही तड़पता
चल बसा?

और सोचती ,ँ तो लगता है क दरअसल यह उन तीन को सजा नह , हम दोन को सजा


थी। मेरे पाप के बदले मेरे दय म शूल भ क दया गया और अथव के दय म एक दो-
धारी तलवार! हाँ! यही तक उ चत है.. हमने ज़ र कुछ ऐसा कया है जसके कारण
भगवान ने हमसे हमारे सबसे य लोग छ न लए। और दं ड व प हम दोन को उनका
चर- वयोग सहन करना लख दया। खैर, इस घटना को चाहे कसी भी से दे खा
जाय, सच तो यह है क मेरे दय म एक बड़ा सा ह सा अब खाली हो गया है, और लगता
है क जैसे मेरे सीने पर एक भारी सल रख दया गया हो। यह भी सच है क उ भर, इन
तीन के वयोग क पीड़ा नह जाने वाली!

कभी कभी मन म एक ं थ सी बनती लगती है.. सोचती ँ क हो न हो, अथव यह यह


बात तो ज़ र सोचते ह गे क अगर उनक या क जगह अगर म होती तो? अगर म मर
जाती, तो आज उनके पास कम से कम उनका प रवार तो होता। मुझे प का यक न है क
जब भी वो मुझे दे खते ह गे, तो उनको यह वचार तो ज़ र आता होगा। उस दन जस
तरह से वो उस मामूली बात से मुझ पर गु सा ए थे, उससे मुझे सौ तशत यक न हो
गया है क वो मुझसे नफरत करते ह। ले कन उनका दल अ ा है, इस लए मुझे बेघर
होने, और दर-दर क ठ कर खाने से बचाने के लए अपने घर म पनाह द । और पनाह ही
या, मेरी पढाई, लखाई, खाने, पीने, रहने और हर खच का इंतज़ाम भी कया। बस, कभी
मुझसे खुल कर बात नह कर सके।

नई जगह, नया कॉलेज.. इन सबके कारण इस झंझावात को सहने क ह मत मली।


सहारा – मेरा मतलब, भावना मक सहारे से है – तो कोई था नह । तो कभी अनवरत अ -ु
धारा , तो कभी सपल महोदय के परामश और उ साहवधन, तो कभी बस अथव के
आभासी सा य को ही अपना अवलंब (सहारा) बना लया। पड़ोसी ीम त हेगड़े जी ने
भी को शश करी, ले कन उनक बात ही समझ नह आती.. और अब तो पड़ोस भी खाली
है!

वैसे भी मुझे पड़ो सय से कसी कार के सहारे, और मदद क कोई उ मीद नह है। शु
शु म सभी ने (ख़ास तौर पर पड़ोस क म हला ने) हमारे ःख म मगरम आंसू
बहाए, ले कन तीन चार महीने के बाद ही मुझे ऐसे दे खने लगे जैसे कसी तरह से म इस
घटना के लए उ रदाई !ँ जैसे मने अथव का घर उजाड़ा हो! जैस,े या के जाने के बाद
उनमे से कसी का चांस था, ले कन म उस चांस का सूपड़ा साफ़ कर रही ँ अथव पर डोरे
डाल कर! यह सब सोच सोच कर दल और गला भर आता है.. ले कन यह सब बात
कससे क ?ँ सहे लय को कतनी बात बताई जा सकती ह? हम दो जने एक छत के नीचे
रहते ह, ले कन मानो बस दो अजनबी ह !

धीरे धीरे अपने गम का इलाज म वयं ही होती गई। बात तो सच है, क अगर मन म ढ़ता
न बढ़े , तो जीवन मु कल हो जाए.. इस लए मने इस अनुभव को जीवन क ल बी
पाठशाला का एक और पाठ समझ कर खुद म समा व कर लया। समय के साथ धीरे
धीरे मेरा ःख कम होता गया, और म भ व य के लए आशा वत होने लगी। उधर अथव
अभी तक अपनी इस हा न से उबर नह सके ह.. मने अ सर उनको रात म रोते ए सुना
है। ले कन उनके कमरे म जाने क मेरी ह मत नह होती..! कैसे इस शानदार, आकषक
पु ष का त वहीन हो जाता है, उसका उदाहरण था अथव का य! उनका चेहरा ःख से
खुर रा हो गया था; बाल पकने लग गए थे; न द, आराम और मनःशां त क कमी के कारण
वो महज एक वष म ही बूढ़े से लगने लग गए थे। वैसे भी अथव ने अपने गम से नपटने का
रा ता ढूं ढ लया है। वो काम के सल सले म अ सर बाहर रहते ह। हर का अपने
अपने ख से नपटने का अपना अपना तरीका है.. और मुझे नह लगता क वो अपनी से
ब त कम उ क लड़क से इस वषय म कोई चचा करना चाहते ह। तो अगर, वो ठ क ह,
तो म कुछ भी नह क ँगी। मेरे लए बस इतना ही काफ है!

इसी बीच मुझे एक तरह का आ म उ े द आ।

पछले कुछ महीन के तनाव, अवसाद और त ता के कारण शरीर म ब त थकावट सी


हो गयी थी। उस दन जब म कॉलेज से बाहर नकली तो आसमान म काले घने बादल छाए
ए थे। काफ अँधेरा हो गया था। अथव बगलोर से बाहर गए ए थे, और म घर म
बलकुल अकेली थी। बा रश का अंदेशा तो था ही.. मंद मंद ठं डी हवा बह रही थी।
स ताहांत होने के कारण वैसे भी कुछ राहत सी लग रही थी। ब ग प ँच कर म ल ट
के बजाय सीढ़ चढ़ कर घर प ंची। अथव तो आज आने ही वाले नह ह... दो दन खुद से!
ह म... द द होती तो हम दोन शौ पग करने जाते। यह सोच कर कुछ ःख तो आ,
ले कन मने ज द ही उस पर काबू कर लया।

घर पर अकेले मन नह आ, इस लए सोचा क अपनी कसी सहेली को बुला लेती ँ


अगले दो दन के लए! कम से कम यह घर मुझे काट खाने को नह दौड़ेगा! मने इस लए
अथव को फ़ोन लगाया, जससे उनक अनुम त मल सके। उ ह ने सं छ त सा उ र दया
क मेरा जैसा मन हो, म वैसा कर सकती .ँ . यह घर मेरा भी है, और मुझे कसी काम के
लए उनक अनुम त क आव यकता नह है। उ ह ने यह भी कहा क तीन दन बाद
आयगे। अ बात है... मने अगला फ़ोन अपनी सबसे करीबी सहेली आरती ी (आरती)
को लगाया, और घर आने को कहा। वो वैसे तो चार पांच बार यहाँ आ चुक थी, ले कन
रहने के लए कभी नह ।

आरती अपने प रवार के साथ बगलोर म रहती थी। वो लोग क डगा ा ण थे, और
हमारे घर से कोई प ह कलोमीटर र रहते थे। मने उसक माँ से भी बात करी, तो उ ह ने
मुझे ही घर रहने को बुला लया। ले कन फर मेरे ही अनुनय वनय से उ ह ने उसको
अनुम त दे द । उनके प रवार वाले मुझे पसंद करते थे, और अथव से भी मले थे.. इस लए
परेशानी वाली बात नह थी। आरती ने मुझसे कहा क वो करीब एक-डेढ़ घंटे म आ
जाएगी। अ ा है.. इतनी दे र म म नहा लेती ँ!

म घर पर छोटे गुसलखाने का योग करती ँ.. ले कन उस दन मेरा मन था क म मा टर


बाथ म म नहाऊँ। वहाँ पर एक बाथटब था, जसको घटना के बाद कभी भी योग म
नह लाया गया था (घर क कामवाली ने बताया.. पहले काफ ग दा हो जाता था, ले कन
आज कल साफ़ ही रहता है, और महीने म बस एक-आध बार सफाई से ही काम चल
जाता है)। आज मेरा उसी म घुस कर नहाने का मन था। मने उसम पानी भरने के लए नल
खोल दया, और अपनी पसंद का खुशबूदार साबुन डाल दया। और अपने कमरे म नव
होने चली गयी।

आज म वो करने वाली थी जो मने कभी नह कया था। ऐसा नह है क अथव मुझ पर


मा टर बाथ म योग करने से नाराज़ होते.. बस, मने ही कभी उधर नहाने का नह सोचा।
दरअसल, म घर म उस तरफ जाती ही नह – मेरे हसाब से आप सोच, तो वो एक तरह
का पु य ान था, जहाँ मेरी द द क याद बसी ई थ .. और अथव क यारी प नी क ! म
वहाँ जा कर कसी तरह क सधमारी नह करना चाहती थी। ले कन, आज यूँ अकेलेपन के
कारण मन आ क यूँ न वहाँ नहाया जाए.. और यही सोच सोच कर मुझे रोमांच हो रहा
था। म कुछ गुनगुना रही थी.. मने अपनी ा उतारी.. आ ह! तन के उस बंधन से मु
होते ही आनंद आ गया। मने अपने शरीर का न र ण कया – ा क कसाव के कारण मेरे
तन पर लाल नशान पड़ गए थे। उन नशान , उन रेखा को हाथ से मसलने पर काफ
आराम मला। कतना मज़ा आएगा, अगर म दो दन बना कपड़ के र ?ँ इस ख़याल से
मेरा रोमांच और बढ़ गया!!

मेरे बचपन म घर पर सहवास के बारे म कसी तरह क बात ही नह होती थ । बड़े बुजुग
म सहवास को लेकर इतनी संकुचता थी क इसको सफ संतानो प हेतु एक आव यक
काय ही समझा जाता रहा। मुझे जो भी कुछ मालूम आ, वो द द और अथव के कारण!
उनको सहवास का आनंद उठाते दे ख कर समझ आया क सहवास "मजे" के लए भी
कया जाता है, और ेम दशन के लए भी.. और अगर कायदे से कया जाय तो सफ
शारी रक ही नह , मान सक और आ मक सतह पर जुड़ने के लए भी। यही सब सोचते
ए म मा टर बाथ म म लगे लगभग आदमकद दपण के सामने आ कर नव खड़ी हो
गई। और जीवन म पहली बार खुद को पूण-न न दे खा। बीस क उ ! और वैसा ही त ण
ताज़ा शरीर! मने अपने तन को धीरे से दबाया – एकदम पु ! कहना तो नह चा हए,
ले कन द द के तन से भी नखरे और बड़े! अपने सु दर न न शरीर को आईने म दे ख कर
म वाकई खुद ही उ े जत सी हो गई।

द द क याद आते ही उनके तन का चूषण करना याद आ गया, और साथ ही यह वचार


भी क कसी दन मेरे तन को भी कोई चूसेगा, और उनम ध आएगा! कृ त क कैसी
अ द रचना! सच ही कहते ह क नारी शरीर एक त ल म होता है। मने तन को कुछ दे र
दबाया, फर तना को ह का सा मसला! त या व प वो तुरंत ही खड़े हो गए। म
मु कुराई। मेरा यान अब अपने सपाट पेट से होते ए यो न पर चला गया। वहाँ उँ ग लय
से टटोलने पर गीलापन महसूस आ! म.. यो न वो पहले ही प रप व हो चली थी –
उ ेजना के कारण उसके दोन पटल फूले ए थे (कह पढ़ा था क लड़के इनक तुलना
पाव-रोट से करते ह)। आज से पहले भी मन ब त बार हो चुका है क अपनी यो न म
उं गली डाल कर खुद को संतु कर लया जाय, ले कन बालपन म सखाई गई वजनाएँ ऐसे
ही नह चली जात ।

टब म समु चत पानी भर गया था। म जा कर उस सुग त झाग-वाले पानी म लेट गई,


और इस नए अनुभव का आनंद लेने लगी। यहाँ पर भी द द और अथव साथ म नहाते रहे
ह गे.. मेरे दमाग म उन दोन क काम-रत त वीर खच गई। मेरा हाथ पुनः मेरी यो न पर
जा पं चा। ऐसा कुछ करने का मने कभी सोचा ही नह .. ले कन आज सब कुछ नया है!
अपनी आँख बंद कर मने अनायास ही अपने भगनासे को सहलाना ारंभ कर दया। पानी
के अ दर ऐसा करना एकदम अनोखा अनुभव सा बत हो रहा था... अनोखा, और कामुक
और आनंददायक! कामा न से मेरा शरीर दहकने लग गया - ठ क वैसे ही जैसे क १०२
ड ी बुखार आने पर तपने लगता है।

‘यह कैसी तपन!’

कॉलेज म मेरी सहे लयाँ अ सर ह तमैथुन क बात करत । ऐसा नह है क मुझे काम/यौन
स ब ी ान नह था – भरपूर था। अथव और द द क काम- ड़ा मने दे खी थी और मुझे
अ तरह से मालूम था क लड़क और लड़के के अंग का योग कस कार और कस
हेतु होता है। कॉलेज म मेरे सफ लड़ कयाँ ही नह , ब क लड़के भी म थे और उनम से
कई मुझसे णय स ब बनाना भी चाहते थे.. ले कन मेरी म वो सारे सफ अनाड़ी ही
नह , मूढ़ भी थे। ले कन अथव... हाँ, उनक बात कुछ और ही थी। धीर और शांत वभाव
के अथव, और उसम न हत ती ता! उनका भावशाली व और उनक गहन आँख..
जैसे सामने वाले क आ मा को ही दे ख रही ह ! और हाँ! वो कसरती दे ह.. जैसे ा ! कुछ
बात तो थी इस आदमी म!

शारी रक ौढ़ता मने द द क शाद के आस-पास ही ा त कर ली थी। ले कन उसके साथ


साथ मुझे हाम न का भाव भी झेलना पड़ा। सपने आते। और सपन म लड़के आते..
उनका कोई चेहरा नह होता था। बना चेहरे वाले नर! उन सपन म वो मुझे छू ते, छे ड़ते..
और मेरे साथ अजीब अजीब सी हरकत करते। आँख खुली होने पर भी सपने आते - म
खुद को जवान होते दे खने क चाह म अ सर आईने म अपने आप को नहारती रहती,
अपने नवांकुर व को दे खकर बड़ा अ ा लगता। माँ दे खती, तो डांटती, और कसी अ य
काय म लगा दे ती। खैर, मुझे सबसे अ धक रोमां चत मेरे यो न े म उग आये रोयदार
बाल ने कया था। रात के अँधेरे म अ सर उ ह छू ने का आन द लेती, और उनके साथ
साथ यो न भी सहलाने म आन द का अहसास होता। ले कन डर लगता क कह चोट न
लग जाय (घर म ऐसे ही तो सखाते ह)। नहाते समय जब अपने तन को सहलाती तो
ऐसा महसूस होता क छू ने पर वो आकार म बढ़ते जा रहे ह।

बचपन म मने दे खा था क एक घोड़ा, घोड़ के झु ड म से एक के पीछे पीछे दौड़ रहा था..


दौड़ रहा था, या उसको दौड़ा रहा था। तः वह एक नर था – य क दौड़ते ए उसके
लग का आकार वकराल से वकरालतर होता जा रहा था। भयावह य था। आगे वाला
घोड़ा (दरअसल घोड़ी) अचानक क गया, और नर उसके पीछे से उस पर सवार हो गया।
उस समय मुझे इस वषय म कोई समझ नह थी, ले कन फर भी ऐसा लगा क यह य
नह दे खना चा हए। मने चुपके से अपने चार तरफ दे खा क कोई है तो नह ! उस नर का
वकराल लग, मादा के भीतर पूरी गहराई तक घुसा आ था, और वह शायद चार पांच
ध के लगाने के साथ ही कांपने लगा, और नथुने क राह से घुरघुराते ए मादा पर से उतर
गया। उसके ल बे लग के आगे से, और मादा के पीछे से सफ़ेद रंग का गाढ़ा व ज़मीन पर
गरने लगा।

और फर वो वाला दन.. बु याल पर! मुझे अ े से द द क कराह और सस कयाँ आज


भी याद ह। याद है क कैसे अथव उसक जाँघ को फैलाए उसक यो न को चूम, चाट और
सहला रहे थे। द द भी उनका लग अपने मुंह म ले कर कैसे दे र तक बदला चुका रही थी।
और फर अथव ने भी उसी घोड़े के समान द द क चढ़ाई करनी शु कर द थी! कतनी
समान, ले कन कतनी अलग थी दोन क सहवास या! वो घोड़ा तो लगभग तुरंत ही ढे र
हो गया था, ले कन अथव तो मानो कने का नाम ही नह जानते! ओह! द द वाकई तृ त
रहती होगी।

'हे भगवान्!' उ ही याद से मं मु ध होकर मेरे बना सोचे ए ही यो न को छे ड़ने क मेरी


ग त बढ़ती जा रही थी। हाथ क उं ग लयाँ अ नयं त होती जा रही थ , और मेरे गले से
दबी घुट स का रयां नकल रही थी। यह कहने क आव यकता नह क मेरा पूरा शरीर
उ ेजना के मारे कांपने लग गया था।

हाँ... कॉलेज म मेरी सहे लयाँ अ सर ह तमैथुन क बात करत । यह बात भी होती क यह
या कतनी लाभदायक है! आनंद तो आता ही है, साथ ही साथ अनवरत यौने ा, जो
हम युवा म होती रहती है, उससे नजात भी मल जाती है – बना कसी पु ष क
आव यकता के! मतलब बलकुल सुर त, और संतोषजनक! शी ही मेरा कामो माद
समा त हो गया। अनुभव म वह कुछ कुछ वैसा था जब द द और अथव ने मेरे तन से
खलवाड़ कया था.. ले कन इसक ती ता कह अ धक थी।

"ऐसा आनंद तो पहले कभी नह आया", मने सोचा और संतोष द गहरी सांस भरी।

अब नहा भी लया जाय!

आरती मेरी एक ब त ही करीबी, और यारी सहेली है। जा हर सी बात है क उसक उ


भी मेरे ही बराबर थी। वैसे उ ही या, हम दोन का डील डौल भी लगभग एक जैसा ही
था। ले कन जहाँ म एक पहाड़ी लड़क ,ँ आरती एक द ण भारतीय सुंदरी है। एक बात
तो है – द ण भारत क लड़ कय क गढ़न ब त अ होती है। आरती भी ऐसी ही है...
सांवली सलोनी.. सामा य कद क । ले कन उसके तन ३२ बी साइज़ के ह, और उस पर
खूब फबते ह। बड़ी बड़ी आँख और उ त नत ब! सचमुच, ब त ही यारी लड़क है वो। वो
कॉलेज म सबसे पहले मेरी दो त बनी, और धीरे धीरे हम दोन इतने करीब आ गए ह क
हमारी कोई भी बात एक सरे से नह छु पी है।

एक और बात है, बगलोर जैसे शहर म रहने के बावजूद उसका प रवार कुछ ढ़वाद
क म का है। र म , और कम-कांड को नभाने क जैसे सनक सी ह उनम! उनके प रवार
क सोच यह भी रही है क लड़ कय का याह ज द कर दे ना चा हए.. लहाजा, दो साल
पहले ही आरती का र ता एक सॉ टवेर इं ज नयर के साथ तय कर दया गया है। इसने
तो शु शु म ब त नखरे कए, ब त सी म त कर , ले कन कुछ हो नह सका। माता-
पता के सामने बेबस थी। बस, इतनी ही गनीमत थी क उसको कम से कम नातक क
पढ़ाई पूरी कर लेने तक क मोहलत द गई थी। शायद उसक कुंडली म कुछ गो ,
मांग लक वाला च कर था, और इस कारण से बस कुछ ही र ते मल रहे थे। उसके माता-
पता ने सबसे कमाऊ वाले र ते को पकड़ लया। मजे क बात यह, क उसक यह बात
पूरे कॉलेज म सफ मुझे ही मालूम थी। वैसे उसका मंगेतर अ ण कोई बुरा नह था। दे खने
बोलने म अ ा था। उन दोन को अपने अपने प रवार क तरफ से दन म मलने क
इजाज़त मली ई थी। आज भी कॉलेज के बाद वो दोन कसी कॉफ़ शॉप पर ही मल
रहे थे।
खैर, नहाने के बाद मने ह का फु का कपड़ा पहना (मतलब, सफ पजामा और ट -शट,
और अ दर कुछ भी नह ) और ट वी दे खते ए आरती के आने का इंतज़ार करने लगी।
कुछ ही दे र म वो आ गई – उसके हाथ म एक बैग था, जसम दो दन के लए ज़ री
सामान और कपड़े थे। उसके आने के बाद हम दोन साथ म चाय बनाने लगे, और साथ ही
साथ मज़े से बात भी करने लगे। मने उसको पूछा क आज दोन ने मल कर या कया!
उ र म वो बस शरमा रही थी। दोन को अनोखे म ही मलने का अवसर मलता था,
इस लए कुछ तो कया होगा न! मेरे खूब जद करने से उसने बताया क आज अ ण म न
जाने कहाँ से इतनी ह मत आ गई, क उसने इसे चूम लया। यह बताते बताते ही उसके
सांवले गाल पर लाली आ गयी। मने उसे छे ड़ते ए कहा, क बदमाश, इतनी ज़ री बात
इतनी दे र म बता रही है! तो वो शरमा कर हंस द । (हमारी बात चीत अं ेजी, हद और
क ड़ – इन मली जुली भाषाआ म ई.. ले कन यहाँ सु वधा के लए सफ हद म ही बता
रही ँ)..

म : “हाय! हमारी क मत कहाँ, क कोई हमको चूम!े ”

आरती : “अरे है न! तु हारे जीजू?”

म : “ऐसे मत छे ड़ यार! म तो उनको दखती ही नह .. उनक नज़र मुझ पर पड़े, ऐसी


क मत ही नह !”

आरती : “तू क मत क बात करती है? तू तो आइटम है.. आइटम! और आइटम ही या,
पूरी पटाखा है! एक बार इशारा कर दे , बस, आ शक क लाइन लग जायेगी तेरे सामने!”

म : “अ ा जी! तू जैसे कोई कम है..?”

आरती (गहरी सांस भरते ए): “मेरा या! मेरा ड बा तो पैक हो गया है!”

म : “हा हा हा! वाह भई... यह ड बा खुलने को इतना बेकरार है या? कुछ दन क जा..
फुसत से खुलेगी! हा हा हा! अबे बता न.. या कया था तुम दोनो ने।“

आरती : “अरे बताया तो! सफ़ कस कया था उसने...”


म : “हाँ जी! तुमने कहा, और मने मान लया! आप लोग इतने शरीफ हो!”

आरती : “कुछ बात परदे के अ दर रखनी चा हए!”

म (चाय पीते ए): “मुझसे भी?”

आरती : “हाँ.. तुझसे भी..!”

म:“ म... ये सुनो! म तो तुमको कुछ बताने वाली थी.. ले कन.. अब...”

आरती : “ह? या बताने वाली थी?”

म (उसको छे ड़ते ए): “रहने दे .. कुछ बात परदे के अ दर ही रहनी चा हए!”

आरती : “अ नी.. ऐसे मत छे ड़! ठ क है बाबा.. म बताऊंगी.. ले कन पहले तू बता!


ओके?”

म : “ले कन पहले तो मने पूछा!”

आरती : “तू बहस ब त करती है.. अब नखरे मत कर, और बता भी दे ..”

म : “अ ा.. ठ क है! तो सुन.. मने आज अपनी.. इसको (अपनी यो न क तरफ इशारा


करते ए) दे र तक सहलाया.. पहली बार...”

आरती : “ध तेरे क ! खोदा पहाड़, नकली चु हया! यह बोल न क तूने आज पहली बार
मा चरबेट कया!”

म : “हाँ.. वही..”

आरती : “मेरी बु राम! तूने यह आज कया? अपनी जदगी के कतने बरस तूने यूँ ही वे ट
कर दए!”
म : “मतलब? तूने या ब त पहले ही...?”

आरती : “हाँ जी.. पांच साल पहले..!”

म : “पांच साल पहले? बाप रे!”

आरती : “हाँ! और नह तो या? हम लड़ कयाँ तो ज द ही जवान हो जाती ह! ले कन तू


बना यह सब कए इतना दन कैसे रही?”

म : “पता नह ..”

आरती : “अपने जीजू को एक इशारा तो दे ती.. फर दे खती, तू कैसे बचती?”

म : “आरती लीज! इस बात से मुझे मत छे ड़! ठ क है क वो मुझे पसंद ह.. ले कन इसका


यह मतलब नह क वो भी मुझे पसंद कर!” फर कुछ दे र क चु पी के बाद, “अरे! मेरी
छोड़.. तू बता! या या कया तुम दोन ने?”

आरती : “ठ क है बाबा.. सुन! आज म टर मूड म थे! पहले भी उसने मुझे दो तीन बार
चूमा था.. ले कन आज वाला! उसने मेरे दोन गाल को पकड़ कर चूमा.. नॉट कस.. मूच!
मेरी जान ही नकल गई जब मने उसक जीभ अपने मुँह म महसूस करी! फर उसने मेरे
बू स भी छु ए! इतना मना करने पर भी दे र तक दबाता मसलता रहा! बड़ी मु कल से
उससे पीछा छु ड़ाया। शॉप म यादातर लोग हम ही दे ख रहे थे। म तो शम के मारे बाहर
भाग आई।“

म : “बाप रे! तुझे कैसा लगा यार?”

आरती : “कैसा लगा? अरे, मेरी हालत खराब हो गयी! मेरी यो न म च टयाँ काटने लग
ग । कोई और जगह होती तो आज मेरा केक भी कट जाता!”

म : “ या वैसा लगता है जैसे मा चरबेट करते समय लगता है?


आरती : “अरे! वो तो कुछ भी नह है.. उससे भी पावरफुल! मा टरबेशन का या है? उसम
तो बस अपना ही हाथ है.. ले कन जब सरे का हाथ लगता है न.. पूरा शरीर झनझना
जाता है।”

म : “बाप रे!”

आरती : “तू जानना चाहती है क कैसा लगता है?”

म : “न बाबा! वैसे भी मेरा कोई बॉय ड थोड़े ही है!”

आरती : “बॉय ड नह तो या, गल ड तो है! म ही सखा दे ती .ँ ..”

म उसक बात सुन कर चुप हो गयी।

आरती : “ए अ नी.. तू बुरा तो नह मान गयी?”

म : “नह यार!”

आरती : “तो बोल.. तुझे यार क ँ ?”

म हंस पड़ी।

आरती : “तेरे होने वाले बॉय ड से ब ढ़या क ं गी!”

म : “ऐसी बात है? तो आ जा..”

आरती वाकई सी रयस थी। मुझे शु शु म लगा क वो शायद मजाक कर रही थी।
ले कन जब उसने मेरे पास आकर मेरे ह ठ पर अपने ह ठ सटाए तो मुझे वाकई एक करंट
सा लगा। कुछ दे र ऊपर से ही छोटे छोटे चु बन लेने के बाद वो उ हे चूसने लगी। मने भी
अपनी तरफ से जैसा हो सका, सहयोग कया। कुछ दे र चूमने के बाद आरती का मेरे तन
पर आ गया और वो उनको ट -शट के ऊपर से ही सहलाने लगी। म रोमां चत हो उठ ..
दमाग म पुरानी याद ताज़ा हो ग । सच म, मेरे शरीर म एक अनोखी सी आग आग सुलग
गई। आरती मुझे अपनी बाह म लए रह रह कर मेरे गाल, ह ठ, आंख, नाक, गदन और
तन पर चु बन दे ने लगी। एक बारगी कामुक उ माद म मेरा मुँह खुल गया, तो उसने मौका
पाते ही अपने ह ठ से वहाँ हमला कर दया, और अपनी जीभ मेरे मुंह के अ दर डाल कर
मेरी जीभ से खलवाड़ करने लगी! म उचक कर अलग हो गई।

म : “ओए! छ ! कैसा कैसा तो लगा! गीला गीला!”

आरती : “तुझे अ ा नह लगा?”

म : “न रे! कैसा अजीब सा लग रहा था। अब बस कर..।“

आरती : “बस कैसे क ँ मेरी जान? अब तो मुझसे भी रहा नह जा रहा है..”

म : “ह म.. तो या कया जाय?”

आरती : “तेरा तो नह मालूम.. ले कन मेरा तो अब इन कपड़ के अ दर रहना मु कल


है..”

म (हँसते ए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे दे खने वाला?”

आरती : “अरे ऐसे नह ! तू उतार! म तेरा उतार ँ गी!”

कहते ए वो फर से मुझसे लपट कर मेरे ह ठ चूसने लगी और ट -शट के नचले ह से


को पकड़ कर मेरे शरीर से हटाने लगी। म भी उसके कुत के बटन खोल कर उसके कुरते
को उतारने लगी। जैसा क मने पहले भी बताया है, मने ट -शट के नीचे कुछ भी नह पहना
आ था, लहाजा, उसके उतरते ही म अधन न आरती के सामने स मुख हो गयी। आरती
का कुता भी उतरा – ले कन उसने अभी भी ा पहनी ई थी।

आरती : “अरे भगवान्! अ नी.. तेरी तन या म त ह! कतनी यारी यारी! दे ख न! कैसे


लाइट मार रही ह!”
म : “ह बेशरम! कैसे बोल रही है!”

आरती : “अरे म सच कह रही ँ..” कहते ए उसने मेरे हाथ अपने तन पर जमाए, और
खुद मेरे दोन तन को दबाने लगी। मेरी तो जान ही नकल गयी।

म : “आऊऊ.. आ ह नह .. धीरे अआ ह.. धीरे!”

आरती (अनसुना करते ए) : “अ नी, तू भी उतार इसको और खेलो..”

मने जैसे तैसे उसके हार झेलते ए उसक ा उतारी। तुरंत ही उसके उ त व मेरे
सामने उप त थे। म सचमुच म उसके तन दे खती रह गई। कतने यारे तन! बलकुल
खलौन के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाक ह स जैसा ही साँवला सलोना रंग, उ ेजना
से ओत- ोत ल बे तने ए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मलता जुलता गोल घेरा।
मुझसे रहा नह गया.. और मने भी अपने हाथ उन पर जमा दए।

म : “हाय रे मेरी आरती रानी! तेरे संतरे कतने म त ह! ठोस.. मुलायम.. और रसीले...
दोन के दोन ! म खा लू?ँ ”

आरती : “नेक और पूछ पूछ?”

मने उसक इस बात पर उसको सोफे पर ही लटा दया, और खुद भी उसके बराबर लेट
गई। एक तरीके का आ लगन – करवट म मेरा दा हना तन उसके बाएं तन से टकरा रहा
था। मने उसक पीठ और नत ब सहलाते ए उसके एक तना पर अपनी जीभ फराई।
द द क याद पुनः हो आई। मने पूरा तना अपने मुंह म भरा, और चूसना शु कया।
मज़ा आ गया। आरती क ससक छू ट गयी। ले कन फर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर
अपने तन म भ च सा लया।

आरती : “आ ह! इ स... नी लू.. आ ह! धीरे... ऊफ़.. मज़ा आ गया! आ ह! ब त


अ ा लग रहा है। कस कर चूसो न... उ फ़! आआऊऊ ... काटो मत लीज। आराम से
मेरी जान। अआ ह.. अ ण सुनेगा, तो जल मरेगा! ऊऊ ह.. मजे से चूसो! ओ ह!”
मने कोई चार-पांच मनट तक उसके दोन तन को बारी बारी से चूसा। एक पल मुझे लगा
क आरती का शरीर थरथरा रहा है.. मुझे समझ म आ गया क उसने अपना कामो कष
ा त कर लया है, इस लए जब तक वो शांत न हो जाए, तब तक म चूसती रही। नवृ
होने के बाद आरती भी अब मेरे तन दबाने और चूसने लगी।

म : “आरती, तेरा मन नह आ क और कुछ भी कया जाय..?”

आरती : “मन य नह आ! मने बताया न.. बड़ी मु कल से भागी वहाँ से.. कोई और
जगह होती, तो आज तो अ ण ने मेरा काम तमाम कर दया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू
बता, तेरा दल भी तो तेरे जीजू से लगा आ है.. तेरा दल नह चाहता?”

म : “ दल तो ब त चाहता है! मने उनका और द द का खेल दे खा है.. और मुझे मालूम है


सब कुछ। ले कन डर लगता है।“

आरती : “डर? कस बात का?”

म : “इस बात का क कह म उनको चोट न प च


ं ा ं ! वो अभी तक द द के जाने का गम
नह मटा पाए ह.. कह उनको ऐसा न लगे क म द द क याद मटाना चाहती ँ.. उनक
जगह लेना चाहती .ँ .”

आरती : “ले कन ऐसा तो नह है न! तू तो उनसे यार करती है!”

म : “हाँ! यार तो म ब त करती .ँ . जब से उनको दे खा है तब से! बस, यार के प


बदलते गए!”

आरती : “तु हारी जैसी लड़क भी तो बड़े नसीब से मलती है। ये एहसास करा दो अपने
जीजू को! यार करती हो, तो बता भी दो! या बगड़ेगा भला!”

फर कुछ दे र बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी
नंगी हो कर उनके म म चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायगे वो.. जब खुद
व ा म मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो या चीज़ ह?”
म : “बस कर.. अपने आइ डयाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे
..”

आरती : “छोड़ने का मन ही नह करता। अ नी मेरी जान.. सच सच बताना, कहाँ छु पा


रखी थी यह यारी यारी तन?”

उसक इतनी बेशम भरी बात सुन कर म पुनः शरमा गयी।

वो फर मेरे तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उ माद म
म पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शु कर दया। म च क
गई, “अआ ह.. ओए.. ये या कर रही है?”

“अ नी.. तेरे यार से पहले म दे ख लूंगी, तो या हो जाएगा?”

अब वो पूरी तरह नल हो कर मुझे नव करने पर उता हो गई थी। हलके फु के


कपड़े उतारने म कतनी ही दे र लगती है.. कुछ ही ण म म पूण न न उसके सामने थी।
शम के कारण मने अपनी दोन टांग और पैर एकदम सटा लए, जससे आरती मेरी यो न
ठ क से न दे ख सके। कैसी मूखता.. नव हो जाने पर भी या छु पना है भला! आरती न
जाने कहाँ कहाँ से सीख कर आई है (और कहाँ से सीखी होगी?) ले कन वो अपनी
उँ ग लय से मेरी यो न पर मा लश जैसी करने लगी, और साथ ही मेरे तन भी पी रही थी।
ऐसे म भला कतनी दे र रहा जाए? म वैसे ही उ े जत थी, अब अ तउ े जत हो गयी और
बना सोचे मने अपने दोन पैर खोल दए। आरती अब मेरी यो न एकदम साफ़ साफ़ दे ख
सकती थी।

आरती मेरी यो न क दरार पर अपनी उं गली फराते ए बोली, “सच अ नी.. जसे तू ये
खज़ाना दे गी न, वो ध य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांक ह.. और गोरी भी! बस... ये
बाल साफ़ करवा ले.. एकदम म त लगेगी!”

वो ह के हलके हाथ से मेरी यो न को सहलाते ए, मेरे उसके भगांकुर को रगड़ने लगी, म


न चाहते ए भी जोर जोर से आह भरने लगी! उ माद क बेचैनी के मारे म अपना सर
इधर-उधर करने लगी। लगा क साँसे क क कर चल रही ह.. वाकई, कोई और छू ता है,
तो ब त ही अलग एहसास होता है। आरती न जाने कब तक मेरी यो न को इस कार
रगडती रही, फर अचानक ही उसने मेरे छ म अपनी उं गली डाल कर अ दर बाहर करने
लगी। इस हार को म नह सह पाई, और दे खते ही दे खते वह दबी घुट आह भरते ए
ख लत हो गई। उसी उ माद म म उठ कर जोर से आरती से लपट गई। जब वासना का
वार थमा, तो मने दे खा क सोफे के ग पर मेरी यो न के नीचे क जगह गीली हो गई थी।
न जाने य मेरी आँख म आँसू आ गए। आरती बना कुछ कहे मुझसे लपट रही।

जब हम दोन सहे लयां संयत हो कर एक सरे से अलग , तो आरती ने कहा, “अ नी


रानी.. चल, तेरी यो न से बाल नकलवाते ह.. ऐसा चकना ज
ं न दे ख कर तेरे जीजू क
भूख बढ़ जायेगी!”

मने काफ दे र न नुकुर क , और नाराज़ होने का नाटक कया, ले कन कौन लड़क सु दर


नह दखना चाहती? और कौन लड़क अपने यतम को रझाना नह चाहती? हम दोन ने
अपनी साफ़ सफाई करी, कपड़े पहने और बाहर चल दए।
आरती मुझे एक वै संग सैलून लेकर गयी। म कभी कभार यूट पालर जाती ँ, और
शरीर क वै संग भी करवाती ँ। वै संग करने म दद अ धक हो सकता है, ब न बत
शे वग जैसे उपाय के! ले कन अन गनत याँ आज कल वै संग यादा करवाती ह,
य क उसके प रणाम कई कई स ताह तक रह सकते ह। खास तौर पर गम के मौसम म,
जब शे वग करने के एक-दो दन के अ दर ही छोटे -छोटे बाल आना शु हो जाते ह। वो
अटपटा भी लगता है, और मेहनत भी बेकार जाती है। ऐसे म वै संग लंबे समय तक
अनचाहे बाल से नजात दलाता है। तो कहने का मतलब, मुझे भी अ ा खासा अनुभव
हो गया था अब तक! ले कन आज कुछ अनोखा होना था। जब यो न और गुदा जैसे अ त-
संवेदनशील ह स के बाल वै संग के ारा नकलवाए जाते ह, तो इसको ब कनी अथवा
ाज़ी लयन वै संग करवाना कहते ह। यह सैलून थोड़ा अप-माकट था.. ब त ही साफ
सुथरा और शांत! मुझे यहाँ आने से पहले डर लग रहा था क यो न पर से बाल नोचे जाने
पर तो ब त दद होगा, ले कन यहाँ आ कर उ मीद बंधी क सब ठ क हो जाएगा। आरती ने
बताया क वो अ सर ब कनी वै संग करवाती है, और इसम डरने जैसी कोई बात नह
है। मुझे इंतज़ार नह करना पड़ा – वै सर मुझे एक रोशनी-यु छोटे कमरे म ले गई –
इसम कोई खड़क नह थी, और मधुर संगीत भी बज रहा था। उसने मुझे एक टे बल पर
लेटने को कहा – वो टे बल भी काफ साफ़ थी, और उस पर एक कागज़ क परत चढ़ ई
थी.. जैसे कोई अ ताल हो।

“आप अपनी पै ट् स उतार कर इधर लेट जाइए.. सर उधर रख कर..” उसने कहा।

“... और अंडर वयर?”

“आप ब कनी वै संग करवाने आई ह न?”

“हाँ.. पहली बार! इस लए डर लग रहा है..”

“ओके! डरने जैसी कोई बात नह है.. और हाँ, अंडर वयर भी..”

मने अ न त होकर अपनी च ी उतार द , और डरते ए उस टे बल पर लेट गयी। वै सर


मुझे बहलाने के लए मुझसे बात करने लगी (आप यहाँ क लगती नह .. कहाँ से ह? या
कर रही ह? कहाँ रहती ह.. इ या द)।
खैर, ब कनी वै संग के लए वै सर को अपने गु तांग म यादा से यादा पैठ दे ने के
लए अपनी जांघ को ऊपर क तरफ मोड़ कर और फैला कर रखना होता है... ठ क वैसे ही
जैसे सहवास के समय लड़क लेटती है.. या लगभग वैसा ही! अब ऐसी दशा म कोई कैसे
आराम से लेट सकता है? खुली ई, पूणतः द शत यो न, खूब सारी रौशनी, और एक
अजनबी... न जाने आरती कैसे कह रही है क इतना खराब नह होता! झूठ कह रही है!
मुझे तो लग रहा है क यह सब ब त दे र तक चलने वाला है.. अपने पैर हवा म उठाना,
और अपने शरीर के उस भाग म कसी अजनबी क उं ग लयाँ महसूस करना जहाँ अपने
कभी सोचा भी ना हो, क कोई छु एगा...

खैर! अब तो भगवान् ही बचाए!

यहाँ इ तेमाल होने वाला वै स कुछ अलग था। यह ज द सूख जाता है.. मेरा मतलब ब त
ज द । वै सर इसको लगाती ह, और लगभग तुरंत ही यह सूख जाता है। यहाँ तक तो
ठ क है, ले कन जान नकलती है जब वो इसको एक झटके के साथ शरीर से अलग करती
है। गनीमत यह थी क वो वै स क ई जगह पर अपने हथेली से थोड़ा दबाव डालती है..
इससे चुभन और दद कुछ कम हो जाता है। य द वो ऐसे न करती तो शायद म बेहोश ही हो
जाती! कोई अ तशयो नह है।

अब मुझे यह तो नह पता क यूट पालर म काम करने वाली सारी म हलाएं बातूनी होती
ह या वो मुझको कुछ ख़ास ही वा वाना दे रही थी, ले कन अगले एक घंटे तक, जब म
सफ चीख, च ला और दद बदा त कर रही थी, वो वै सर लगातार अपनी ही बात करने
म लगी ई थी।

“आप पहली बार करवा रही ह न, इस लए दद तो ज़ र होगा।“

‘कमीनी.. अभी तो कह रही थी क डरने वाली कोई बात नह है..!’

“बाल कुछ छोटे काट कर आती तो कम दद होता..”

‘माफ़ कर दो माल कन..’


“आपको पता है.. अभी कल ही हमारे यहाँ एक हन आई थी यह वै संग कराने। कह
रही थी क उसके होने वाले प त को सब चकना चकना चा हए था.. हे हे हे!”

“आअ ह... म..”

“आपक भी शाद होने वाली है या?”

“इह.. आह.. नह .. ऐसे ही..”

“ओह!”

न जाने या समझी वो! वैसे यादातर लड़ कयाँ तो इसी लए ब कनी वै संग करवाती ह
जब उनको यौन या करनी होती है.. बलकुल वह भी यही समझी होगी। वैस,े मन म मेरे
भी तो यही था!

“आप तो उससे यादा ह मती ह... उसक तो चीख च लाहट के साथ साथ कुछ पेशाब
भी नकल गयी...”

‘आरती क ब ी! ठहर.. तेरी खैर नह !’

उसने जांघ के ऊपरी ह से से शु होते ए यो न तक ऐसे ही वै स कया। दद भी इसी


कार से बढ़ता रहा। यो न तक आते आते दद असहनीय हो गया! दे खने म तो यहाँ के बाल
तो पूरी तरह से बेकार लगते ह। ले कन जो दद मुझे महसूस आ, उससे तो यही लगता है
क जघन े के बाल नकालने नह चा हए! उनका कोई तो उपयोग होगा.. पता नह !
खैर! अ बात यह थी क यह म हला लगातार मुझसे बात कर रही थी.. इससे मेरा यान
अपने दद से काफ हट सा गया था।

ले कन इतना होने के बावजूद, परेशानी तो होती ही है। वातानुकूलन चल रहा था, ले कन


फर भी मुझे पसीने छू ट रहे थे। ऐसे क जैसे अभी दौड़ कर आई ँ! हाथ, चेहरा, छा तयाँ..
सब जगह पसीना! और फर यह नोचना खसोटना ब त ही अ तरंग ान पर होने लगा –
यो नमुख के बेहद समीप! एक बारगी मन म आया क यह कमीनी अपनी एक उं गली भी
अ दर घुसेड़ दे ती.. कम से कम यान हट जाता। वो तो ज द ही कर रही होगी, ले कन
मुझे लग रहा था क न जाने कतनी दे र से यह नोच खसोट चल रही है।

अंततः यो न के ठ क बीच पर वै स लगा, और इससे पहले क म खुद को तैयार कर पाती,


उसने उसे तेजी से उखाड़ दया। दद के अ तरेक से मेरी आँख म आंसू भर गए। मन आ
क फूट फूट कर रो ं । ले कन जैसे तैसे खुद को ज़ त कया।

“वैरी गुड हनी! यू आर सो ेव!! अब पीछे भी कर ल?”

आरती ने कहा था क पीछे वै संग करने म दद नह होता। एक तरह से सच ही था – जब


पहले ही कसी लड़क क यो न और भगनासे को नोच लया गया हो, उसको और या दद
महसूस होगा? दद या.. पहले क तकलीफ़ के आगे यह तो जैसे बगीचे क सैर जैसा
लगा! खैर, जैसे तैसे मेरी वै संग ख़तम हो ही गयी। उस वै सर ने वै संग ख़तम होते ही
कसी तरह का लोशन लगा दया और अपने दराज से एक दद नवारक गोली भी द ।

फर वो मुझे एक आदमकद आईने के पास ले गयी और मु कुराते ए बोली, “दे ख


ली जये... अपनी यो न को यान से...”

मने दे खा और अपनी यो न को ऐसे नंगा दे ख कर खुद ही शम से पानी पानी हो गई... मुझे


समझ नह आया क या क ँ , बस उस वै सर के गले लग गई, और उसको दोन गालो
पर चूम कर बोली, “यू आर ेट... यू हैव डन अ वंडरफुल जॉब...!”

कुछ दे र वहाँ बैठने के बाद म आरती के साथ बेढंगी चाल चलती ई घर तक प ंची। घर
तक आते आते दद काफ कम हो गया, और म ठ क महसूस करने लगी। बाहर कसी
होटल जाने के बजाय घर पर ही खाना मंगाने का न य कया था, यह सोच कर क ऐसे
बेढंग चाल चलता आ दे ख कर न जाने लोग या सोचगे! खैर, इतने दद झेलने के बावजूद
मुझे साफ़ और चकना होने का एहसास ब त अ ा लग रहा था। मुझे ब त ख़ुशी मल
रही थी, और एक तरह से वो मेरा त ा वाला पल भी था।

घर पर आने के बाद आरती ने बड़ी बेशम से मुझे एक बार फर से नंगा कर दया और मेरी
यो न को यान से दे खते ए बोली, “सच म अ नी, तू कतनी सु दर है! और.. तेरे जैसी
सुंदर और म त यो न शायद ही कसी लड़क क हो! तेरा ेमी या प त, जो भी होगा.. वो
ब त भा यवान होगा! जो तेरी जैसी सु दर लड़क , इतनी सु दर यो न भोगेगा!”

और कहते ए उसने मेरी यो न पर ब त ज़ोर का चु बन लया।

“सच म.. बेहोश हो जाएगा वो!” कह कर उसने यार से मेरी चकनी सी यो न पर उं गली
फराई।

म तो शम से पानी पानी हो गई। म मन ही मन सोच रही थी, ‘ या वो भी मेरी यो न को ऐसे


ही चूमगे... ऐसे ही यार करगे...?”

आरती ने मुझसे कहा भी, “जानेमन, अब तो तुम ठु क ही जाओ!”

मने भी म ती करी, “आरती यार.. म तो कब से तैयार .ँ . ले कन मेरे बु सजन को कैसे


समझाऊँ?”

“म तुझे रा ता बताऊंगी.. ले कन मुझे भी कुछ मलना चा हए.. है न?”

“ या चा हए तुझे?” मने ना-समझी म पूछा।

“तेरी यो न!” और हम दोन खल खला कर हंस द ।


डनर के बाद हम दोन मेरे कमरे म चली ग । आरती ने इस पूरे समय सफ ट -शट और
च ी पहनी ई थी, तो मेरी भी हच कचाहट चली गयी। मने भी उसी कार के व म
उसके साथ ब तर म घुस गई और हम दोन बात करने लगी। बात बात म वं शका मुझसे
लड़क के साथ सहवास क बात करने लगी। हम दोन कॉलेज के लड़क , उसके मंगेतर
और अथव के बारे म बात करते रहे। मने उसे अथव के लए अपने दल क चाहत के बारे
म उसको पहले से ही बता रखा था, और आरती भी मुझे बताने लगी क कैसे एक बार
अ ण ने उसके साथ सहवास कया था। यह मेरे लए एक नई खबर थी। मने उससे सारे
वृ ा त को बताने को बोला, तो वो रस ले लेकर मुझे सब बताने लगी। इतना तो समझ
आया क दोन ने एक झट-पट वक करी है, ले कन उसके बताने का तरीका इतना
मजेदार था, क मुझे अपनी यो न के आस पास फर एक जाना-माना पघला सा एकसास
होने लगा।

वो कमीनी यह सब बोलते ए मुझे लगातार छे ड़ती भी जा रही थी, और मेरी जाँघ सहला
रही थी। म ज द ही उ े जत होने लगी और उसके बताने जैसे ही सहवास के बारे म
सोचने लगी। मेरी साँस भारी होने लग और मेरी यो न भी गीली होने लगी। और यह सफ
मेरी ही हालत नह थी। यह सब कहते करते आरती भी गहरी साँस ले रही थी, और उसक
छा तयाँ साँस लेने के साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थ । मेरे मन म आया क उनको दबा ँ ,
और मने ऐसा ही कया।

“अआ ह... मार डालेगी या? अरे आराम से दबा.. तेरी सहेली के ही ह..”

“ओके!” मने कहा, और उसके दोन गाल को बारी बारी से चूम लया। और जैसी मुझे
उ मीद थी, आरती भी मेरा सर पकड़ कर अपने और पास लाने क को शश करने लगी,
और मुझे ह ठ पर चूमने लगी। आरती ने पछली बार भी पहल करी थी, तो इस बार वो
कैसे पीछे रह जाती? वो कुछ ही दे र म मेरे होठ को चूसने लगी। जा हर सी बात थी,
आरती भी उ े जत थी।

“ओह मेरी रानी! तू ब त सै सी है! म आदमी होती तो तुझे यही पटक कर ठोक डालती!
हाय!”
म या बोलती? बस उसके चु बन म साथ दे ती रही। कुछ दे र बाद उसने अपनी बाह मेरी
कांख के नीचे डाल कर मुझे अपने ऊपर क तरफ आने को कहा। म इशारा समझ कर
उसके ऊपर आ गई और अपनी यो न को उसक यो न पर दबाने रगड़ने लगी। आरती मेरे
होठ को ह के ह के काटती ई, अपने ह ठ म दबा कर चूस रही थी।

मने कहा, “हाय आरती! तू ही आज आदमी बन जा.. अब तो रहा नह जा रहा है...”

आरती मु कुराई। उसने कुछ जगह सी बना कर पहले मेरी, और फर अपनी ट -शट उतार
द । उसके सांवले सलोने और यारे खलौने मेरे सामने थे। म उनके प का वाद ले रही
थी, और उसी बीच उसने मेरे नत ब पर हाथ फेरते ए मेरी च ी भी नीचे कर द । मने
वयं ही उनको उतार दया और आरती के होठ को चूसने लगी।

आरती मुझको पलट कर नीचे लटा कर मेरे ऊपर चढ़ गयी, और अपनी च ी उतार कर
अपनी यो न से मेरी यो न को रगड़ने लगी। बीच म मने एक बार उसके एक तना को
अपनी उँ ग लय के बीच मसल दया। वो जोर से च क तो म हंसने लगी।

“आरती, तुझे ऐसे मज़ा आता है?”

उसने हाँ म सर हलाया तो म पुनः उनको मसलने कुचलने लग गयी।

“मेरी ब ो! तेरी यो न तो ब त गरम हो गई है! दे ख न! और मेरी भी दे ख! कैसे उससे पानी


नकल रहा है! बोल.. ठु कने का मन हो रहा है न?”

कहते ए आरती मेरे ऊपर झुक कर मुझे पुनः चूमने लगी। हम दोन लड़ कयाँ साथ ही
साथ अपने द न हाथ से एक सरे के तन का मदन कर रही थ । मेरी यो न वाकई ब त
गीली हो गयी थी, और मुझे वाकई एक तगड़े सहवास का मन होने लगा था। मने आरती के
तन को पकड़ कर अपने मुंह क तरफ ख चा और उसके चूचक चूसने लगी।

“आरती, तेरे तन कतने ब ढ़या ह! इनको दबाने और चूसने म कतना मज़ा आता है!”

“मेरी रानी! तुझे इतना मज़ा आता है, तो सोच, लड़क को कतना आता होगा?”
“अ ण के रहते तुझे और लड़के चा हए या?”

“ही ही ही.. जानती है, वो एक दन कह रहा था क वो मेरे बू स के बीच अपना लग


रगड़ना चाहता है!”

“ या? होओओओओ!”

“हाँ.. म टर मेरी यो न ही नह , मेरे बू स भी ठोकना चाहते ह!”

म उ ेजना म आ कर उसके तन खुद जोर से दबा दए।

“आ ह अ नी! मसल दे ! हाय! चूस, और जोर से चूस! काट ले इनको!”


उसके उ साहवधन पर म उसके तन को और जोर से दबाना, चूसना और काटना शु
कर दया। उधर, वो अपने हाथ से मेरे नत ब को मसलने लगी। मने इशारा पा कर अपनी
एक उं गली उसक यो न पर रखी, और उसको सहलाने लगी। वाकई, उसक यो न भी
ब त गीली थी। म ज़रा सी हरकत से अपनी उं गली उसक यो न म डाल द । आरती
ससक उठ । वो भी मेरे ऊपर से उतर कर मेरे बगल लेट गई और उसने भी मेरी यो न म
अपनी एक उं गली डाल द ।

म थोड़ा उ सुक थी। सुना था क सहवास करने से लड़क क यो न का आकार बढ़ जाता


है (दरअसल ऐसा होता तो है, ले कन यो न ब त लचीली और इला टक होती है.. इस लए
उसके आकार म आया प रवतन ज द ही वापस हो जाता है। य द लड़क कुछ दन
सहवास न करे, तो उसक यो न का आकार पहले जैसा हो जाता है।)। तो, अगर आरती ने
सहवास कया है, तो ज़ र उसक यो न का आकार बढ़ गया होगा। मने चुपके से अपनी
सरी उं गली भी आरती क यो न म व करा द । यह उं गली आसानी से अ दर नह
गयी। ले कन आरती ने हल डु ल कर, जैसे तैसे उसक अपने अ दर डालने म मेरी मदद
करी। जैसे ही उं ग लयाँ उसक यो न म ग , मने उनको उसक यो न के अंदर-बाहर करना
शु कर दया। उधर आरती ने अपनी उं गली मेरी यो न से नकाल कर मेरे ह ठ को जोर
जोर से चूसना शु कर दया। मने अपनी उँ ग लय को उसक यो न के अंदर-बाहर करने
क ग त और तेज़ कर द । जैसे जैसे मेरे हाथ क ग त बढ़ती, आरती क ससका रय क
आवाज़ भी उतनी जोर से आती। कुछ ही दे र म उसने अपना चरम सुख ा त कर लया
और वो अपना सर इधर उधर हलाते डु लाते ए आहआह क आवाज नकालने लगी।
म क गयी। आरती को ऐसे सुख के आसमान म गोते लगाते दे खना ब त सुखद था। कुछ
दे र बाद उसने अपनी आँख खोली, और मुझे चूमते ए बोली, “हाय रानी! तुमने ब त मज़ा
दलाया! अब दे ख, म तुझे कैसे मज़ा दलाती !ँ ”

और वो अपनी साँस संयत कर के मुझे फर से चूमने चाटने लगी। और धीरे धीरे मेरे चेहरे
से मेरे शरीर के नीचे क ओर जाने लगी।

“तेरी यो न के लए एक लग चा हए, रानी!” उसने फरमाया!

“ म?” मने म ती म कहा।

“खीरा है या?”

“हं?”

“तू लेट रह.. म आती !ँ ”

म पीठ के बल लेट ई अपनी साँसे संयत करने लगी। कुछ ही दे र म आरती वापस आई..
उसके हाथ म एक खीरा था।

“ह? इसका या करेगी?”

“अरे रानी, तेरी यो न का इलाज है इसम! आज इसी लग से काम चला ले?”

कहते ए वो ब तर पर मेरे पास आई, और उसने खीरे को मेरी यो न पर फराया। ज़ म


रखा होने के कारण खीरा ब त ठं डा हो गया था। म च ंक गयी। और उसी के साथ मेरे
होश भी ठकाने आ गए।

“नह .. आरती.. लीज! ये मत घुसाना!”

“ य डा?”
“नह यार! लीज! म ‘उनके’ अलावा और कुछ अपने अ दर नह लेना चाहती..”

“ओओ ह! तो आग इतनी भड़क है! मेरी रानी अपने जीजू को अपनी कुंवारी यो न का
उपहार दे ना चाहती है! हाय! ऐसी क मत सभी आ शको क हो! कसम से.. हा हा हा!”

आरती क नंगेपन से भरी इतनी बेशम बात सुन कर म शम से पानी पानी हो गयी।

“चुप कर..”

“ही ही ही.. आज खीरे से ठु क जा.. कल अपने जीजू का डलवा लेना!”

“आरती क ब ी.. तू मरने वाली है अब..!”

“अरे! अभी थोड़ी दे र पहले ही तो मने अपनी उं गली डाली थी?”

“ये खीरा इसक शकल बगाड़ दे गा! उं गली तो पतली सी होती है..”

“अरे मेरी मेनका! अपने व ा म को भी तो पटा पहले.. नह तो तेरी यो न सूखी रह


जायेगी!”

“सच म आरती! क मत ही खराब है मेरी!”

“ क मत नह .. तू गधी है.. पूरी गधी!”

“तो म या क ँ ?”

“ ी को करना ही या है? भगवान् ने ी को ऐसा ही बनाया है क उसको कुछ न करना


पड़े! जो करना है बस मद को ही..” कहते ए उसने आँख मारी!

“ले कन वो तो मेरी तरफ दे खते ही नह ..”


“जानेमन..” आरती ने मेरे एक नत ब को अपने हाथ से दबाते, और मेरे एक तना को
चूसते ए कहा, “.. या तो तेरा जीजू अँधा है.. या फर नामद!”

“ या कह रही है?” मुझे उनक बुराई बलकुल अ नह लगी। और ऊपर से यह भी क


उसने इसी समय मेरे चूचक काटने शु कर दए।

“हट तू.. छोड़ इसको!” कहत ए ए मने झड़क लगाई।

“गु सा मत हो यार! मने बस तुझे छे ड़ा! ले कन तू ही बता.. तुझ जैसी लड़क एक ही छत


के नीचे है.. उनको उसक चाहत, उसका यार नह दखता? य ?”

वो मेरे पेट को चाटती ई मेरी यो न तक प ँच गई और मेरी जांघ को चाटने लगी। म


व ेरणा से अपने नत ब को आगे पीछे करते ए अपनी यो न को उसके मुँह पर फराने
लगी। अंततः आरती ने अपनी दो उँ ग लयाँ मेरी यो न म डाल द और उ ह अंदर-बाहर
करने लगी। साथ ही साथ वो मेरे भगनासे को अपनी जीभ से धीरे धीरे चाटने लगी।

“अब कैसा लग रहा है?”

“ब त अ ा! और... सस..... आअ ह.... चाटो और चाटो!”

आरती ने बलकुल वैसे ही कया।

“आह! आरती..” म आनंद से मरी जा रही थी, “तू यह या जा कर रही है?” म जैसे तैसे
अपनी सांस स हालने क को शश कर रही थी।

“आरती... हाय... कैसा कैसा तो हो रहा है!” मने कहा।

“मजे ले मेरी जान! बस मजे ले...” आरती ने कहा।

मेरी आँख उ माद के मद म बंद हो गयी थ और म अपने नत ब जोर से चला रही थी। मन
म बस यही हो रहा था क अथव इसी समय आ जाएँ, और मुझे यार कर!
“अआ हह.. ओ ह!” मने अपना मुँह त कये म दबा लया। आरती कसी अनुभवी
खलाड़ी क तरह तेजी से मुझे अपनी उँ ग लय से ठोकती रही और म ज द ही र त-
न प को ा त हो गयी। मेरी यो न से नकल कर रस क बौछार आरती के हाथ, और
साथ ही साथ ब तर को भगोने लगी। जैसे ही आरती ने अपनी उं ग लयाँ बाहर नकाली,
म ब तर पर गर गई और जोर जोर से हांफने लगी।

आरती ने मुझे चूमते ए कहा, “अ नी मेरी जान, मेरे दमाग म एक आई डया है... तेरे
जीजू को पटाने का!”

कह कर उसने मेरी यो न का रस चाट चाट कर वहाँ सफाई कर द , और मुझे बाह म लेकर


मुझे अपना लान समझाने लगी।
सोमवार सवेरे ही अथव क कार घटना क खबर आई। मुझ पर तो मानो व पात आ।
खबर सुनते ही मुझे च कर आ गया, और म जहाँ खड़ी थी, वही गर गई।

“अथव शेखावत को जानती ह?” फ़ोन के उस तरफ से दो टू क सवाल कया गया।

“...जी हाँ!”

“आप?”

“जी म उनक .. रले टव ”ँ मने हच कचाते ही कहा, “... य ?”

“ओके.. उनका ए सीडट आ है मैडम...” उधर से उ र सुन कर मेरा मन जोर जोर से


धड़कने लगा। सोचने लगी क कह अथव को कुछ हो तो नह गया...।

“आप लीज ठ क ठ क बताइए...”

"... आप ज द से अपोलो हॉ टल आ जाइए..” उधर फर से दो टू क आवाज़ आई।

“आप बताएँगे तो?”

“कहा न...”

“हाँ... वो मेरे रले टव ह..। सब ठ क तो है।“ मने घबराते ए पूछा।

“खबर ठ क नह है।“

“... या मतलब...?”

“वैसे हम उनका ऑपरेशन कर रहे ह.. ले कन...”

“ले कन या...?”
“बचने क कोई उ मीद नह है। खून ब त नकल चुका है.. और.. और दे र भी काफ हो
गयी है..।“

इतना सुनना था क म बेहोश होकर वही फ़श पर ढे र हो गई। सहे लय ने मेरे चेहरे पर


पानी के छ टे दे दे कर मुझे होश म लाया। और, थोड़ा होश आने पर मेरे साथ हॉ टल
प ंचे। करने को वहाँ या था? बस, अन गनत कागज पर द तखत करने थे। वैसे भी
इं योरस अथव के इलाज का पूरा खचा उठा ही रहा था। उनके ऑ फस से कई सारे लोग
आ कर मल चुके ह.. कोई आ ासन दे ता, कोई ह मत बढ़ाता, कोई सलाह दे ता, तो कोई
मदद!

ले कन मुझे कुछ समझ नह आता, कुछ सुनाई नह दे ता, कुछ दखाई नह दे ता। बार बार
आँख के सामने कुछ ही दन पहले ए आतंक के च खच जाते। म वापस वैसे
पर तयां झेलने के लए बलकुल भी तैयार नह थी। इतने बड़े संसार म ऐसे नतांत
अकेली रहना...!! बस मन म एक ख़याल रहता क भगवान्, इनको ठ क कर दो.. ज द !
न अ का दाना खाया जाता, न ही जल क एक बूँद पी जाती! ले कन जीने के लए करना
पड़ता है.. जैसे तैसे अ जल को अपने उदर के अ दर धकेल कर वापस आई सी यु के
सामने बैठ जाती, क न जाने कब इनको होश आ जाए!

‘बचना मु कल है..’

‘खून ब त बह चुका..’

‘ब त दे र से हॉ टल लाये जा पाए..’

‘ आ करो क बच जाएँ..’

‘अगले बह र घंटे म कुछ सुधार हो तो कुछ गुंजाईश है..’

‘कमाल है.. बस होश आ जाय..’

‘जैसा सोचा था, उतना बुरा नह है..’


‘बच जायगे अब..’

‘बस, ज द से होश आ जाय..’

एक.. दो.. तीन.. ऐसे कर के पूरे अ ारह दन बीत गए! न जाने इस कार के कतने बयान
सुने! डॉ टर भी या करे! वो कोई भगवान् या अ तयामी थोड़े ही होते ह.. और फर
अंततः..

“.. यहाँ नस कह रही ह क वो आपको वापस ले आ .. जैसे सा व ी ले आ थ स यवान


को! हो सकता हो क यह सच भी हो!”

सुन कर मेरी आँख से आंसू ढलक गए! ऐसे य कह रहे ह डॉ टर? म इनक प नी ँ
नह .. ले कन... ले कन... ओह!

“आप भले मेरी बात को मज़ाक मा नए, ले कन मने यह सब कहना अपना फ़ज़ समझा..
आगे इनका खूब ख़याल र खएगा.. यू शुड ट भी अलाइव!”

“डॉ टर.. एक मनट..” मने कहा, “म इनक प नी नह .. साली ँ....”

“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा क आप इनक बीवी ह.. ऐसी चता, ऐसी सेवा तो आज
कल बी वयां भी नह करत ।”

“इट इस ओके!”

“अ नी?” उ ह ने पुकारा! उनक आँख म आंसू थे।

“जी?” मेरे दल ने राहत क सांस ली.. मने उनका हाथ पकड़ लया।

“थक यू!”

दल के सारे बाँध टू ट गए.. म उनके हाथ को अपने दोन हाथ म थाम कर अपने आंसु
से भगोने लगी।
‘हे भगवान्! आपका लाख लाख शु है!’
२५
अगले स ताह मुझे अ ताल से छु मल गयी। हादसे क गंभीरता के वपरीत, मेरे शरीर
म टू ट ई ह य क सं या काफ कम थी – बस हाथ, पैर और पस लय म कुछ टू ट फूट
ई थी। इस घटना ने मान सक और भावना मक तौर पर कतनी चोट प ंचाई थी, वो तो
समय के सतह ही मालूम होना था। ले कन, हाल फलहाल, सभी का (और मेरा भी) उ े य
मुझे वापस अपनी पहले वाली शारी रक दशा तक लाना था। अ ताल म पड़े रहने से कोई
लाभ नह था – वहाँ जतना वा य लाभ उठाना था, वो तो हो गया था। इस लए अब घर
म ही रहने का आदे श आ था। एक बड़ी सम या यह थी क मेरी दे खभाल कौन करेगा –
ऐसी ऐसी जगह पर ह याँ टू ट थ , क म खुद से तो अपनी दे खभाल तो या, ठ क से
उठ या चल फर नह सकता था। अ नी ने तुरंत ही मेरी दे खभाल करने के लए आ ह
कया, ले कन मने ही मना कर दया। उसक पढाई लखाई का हजा कर के मुझे कोई
ख़ुशी नह मलने वाली थी। और वैसे भी मुझे एक ऐसी नस चा हए थी तो मेरे साथ अगर
सारे चौबीस घंटे नह तो उसके यादातर समय तक तो रहे ही।

खैर, मेरे ड चाज के ठ क एक दन पहले एक ऐसी नस मल गई, और जैसे ही वो मली,


मुझे ड चाज होने का सुख भी मल गया (अ ताल क गंध से मुझे उबकाई आती है... तो
मा वहाँ से छु टकारा पाने के ख़याल से ही सुख होने लगता)। घर प ँचने के लगभग साथ
साथ ही एक नस ने दरवाजे पर द तखत द । उसके साथ कुछ दे र अ नी ने वातालाप
कया, और फर वो मेरे कमरे म अ दर आई। मने दे खा क वो बलकुल साफ़-सुथरी बेदाग़
सफ़ेद पोशाक पहने एक लड़क थी – उसक आँख म ह का सा काजल लगा आ था,
और उसने अपने बाल पोनीटे ल जैसे बाँधा आ था। नस श द सोच कर लगता है क कोई
ौढ़ उ क एक क टाली म हला होगी.. ले कन यह सबसे पहले तो एक लड़क थी.. बस
कोई चौबीस-प ीस साल क .. और.. और उसका चेहरा एकदम खला खला सा था।
मु कुराता आ। उतनी ही मु कुराती ई और चमकदार आँख!

“हे लो म टर शेखावत!” उसने फु ल आवाज़ म कहा, “हाउ आर यू फ लग टु डे?”

और मेरे उ र दे ने से पहले, “ओह.. बाई द वे.. आई ऍम योर नस, आयशा!”

“हे लो आयशा! थक यू फॉर अ से टग टू टे क केयर ऑफ़ मी!”


अगले कुछ दे र तक उसने मुझे और अ नी को अपना अपॉइंटमट लैटर पढाया, मेरी
दवाइय और उनको लेने क समय सा रणी, ायाम और अ य आव यकता के बारे म
व तार से बताया। यादातर बात तो ठ क थी, ले कन जब उसने यह भी बताया क उसक
ूट म रोज़ मेरे कपड़े बदलना, नहलाना और बाथ म म मदद करना भी शा मल रहेगा
तो मुझे कुछ घबराहट और को त सी महसूस ई।

“आयशा, टे ल मी अबाउट योर फॅ मली!” मने कहा। इतनी दे र तक अं ेजी म ही बात हो


रही थ .. मुझे लगा क औपचा रक रहना ठ क है..

“म, और मेरे अ बू.. बस, हम दो ही जने ह!”

“अरे वाह! आपको तो ह द बोलनी भी आती है? और.. आपके बोलने से लग रहा है क
आप उ र भारत क ह..?”

“आपको कैसे पता? दरअसल, मेरे अ बू लखनऊ से ह! वो यहाँ बगलोर म कोई पतीस
साल पहले आये थे.. काम के लए। वो रटायर हो गए ह.. शॉप- लोर पर एक ए सीडट म
उनका हाथ कट गया था। तब से वो रटायर हो गए ह। घर चलाने और उनक दवाइय के
खच के लए पशन पूरा नह पड़ता न.. इस लए म भी काम करती ँ।“

बना कहे ही उसको जैसे मेरी मन क बात समझ म आ गयी। इतना तो मुझे समझ म आ
गया क इस लड़क से आराम से बात चीत क जा सकती है। यह एहसास अपने आप म
ब त सुखद था.. इतने दन गहरे मान सक अवसाद म गुजारने, और फर एक ाणघातक
घटना झेलने के बाद मुझम वापस जीवन जीने क इ ा बल हो गयी थी।

खैर, आयशा को कुछ और कुरेदने पर उसने बताया क वैसे तो नस बनने, या फर कसी


तरह का क रयर बनाने क उसने कभी सोची ही नह थी। न न-म यम वग य प रवार से
स ब होने के कारण उसक नय त उसको मालूम थी। जैसे तैसे तो उसने इंटरमी डएट
क परी ा बायोलॉजी साइंस से पास करी। बायोलॉजी लेने पर भी घर म ब त हाय-तौबा
मची।

‘आट् स या होम साइंस य नह लेती?’ कह कह कर नाक म दम कर दया। ले कन आज


पीछे दे ख कर लगता है क अ ा कया! अपने अ बू के ए सीडट के बाद उसने जनरल
न सग और मडवाइफरी का कोस कया। जब तक कोस ख़तम आ तब तक उसक
अ मी चल बसी, और घर क माली हालत ब त खराब हो गयी। अ बात यह रही क
उसक इस हॉ टल म न सग का काय मल गया, जससे कुछ सहारा हो सका। य द सब
कुछ ठ क रहता तो पढाई लखाई नह , वो कसी के ब े जन कर उनको पाल रही होती।

मने पूछा क वो और आगे नह पढना चाहती, तो उसने बताया क बलकुल पढना चाहती
है.. ले कन बीएससी न सग का कोस दो साल का है.. और इस समय वो अपने काम से
मु नह हो सकती।

उसने यह भी बताया क घर ही नह , जान पहचान म भी सभी ने कतना बवाल मचाया।


उसका न सग क पढाई करना जैसे सभी का ठे का हो गया। ‘गैर मद को छु एगी!’ यह
सभी के जीवन का मानो सबसे बड़ा मु ा बन गया। ले कन वो कहते ह न.. जब ज़ रत
होती है, तो हर बात छोट हो जाती है। कुछ दन बाद सभी लोग चुप हो गए.. भारत क
नस आज कल ग फ और यूरोप म काफ डमांड म ह.. इस लए पहले हाय तौबा मचाने
वाले, अब उसके क रयर म स क क खनक सुन कर र तेदारी जोड़ने के लालच म चुप
हो गए।

“और यह इतनी अ इं लश कैसे बोलती हो?” मने पूछा।

“जब इतनी क ठन े नग होती है, तो लगता है क य न फर इस मौके का पूरा फायदा


उठाया जाय। लैब े नग, लाइ ेरी, और हे सटस.. वहाँ अन गनत घंटे बताने के बाद
बचे ए समय म म ड कवरी और यूज़ चैनल दे खती, और अं ेजी पढ़ती। बना अं ेजी के
आगे कैसे बढ़ा जा सकता है?” उसने एक बु म ापूण उ र दया। इसी बीच अ नी भी
कमरे म आ गयी।

“दै ट इस ेट, आयशा! आपसे बात करके मुझे लग रहा है क अब मेरा केयर ठ क से होगा,
एंड दै ट आई ऍम इन सेफ हड् स!”

मेरी इस बात पर वो ख़ुशी से मु कुराई। हम तीन कुछ दे र तक इधर उधर क बात करते
रहे। आयशा ने मुझे आराम करने को कहा, ले कन मने यह कह कर मना कर दया क
पछले न जाने कतने महीनो से कसी से ढं ग से बात नह कया – न घर के बाहर, और न
ही घर के अ दर! इस लए, आज रोको मत.. अगर थक गया, तो मने खुद ही चुप हो कर सो
जाऊँगा। मेरी इस दलील पर दोन ही लड़ कयाँ चुप हो गयी, और हमने कुछ और दे र तक
बात चीत जारी रखी।

मुझे इस बात का अनुमान था क मेरे ए सीडट के कारण अ नी क पढाई का काफ


नु सान हो गया था, इस लए मने उससे आ ह कया क वो अब बे फ हो कर अपने
कोस को ज द ज द पूरा करने पर यान लगाए। वैसे भी घर म खाना पकाने के लए
हमारी काम-वाली ने वीकार कर लया था। मजे क बात यह है क अभी मेरा जीवन पूरी
तरह से य के भरोसे पर टका आ था।

“अ ा.. म आप से एक बात पूछूं?” मने आयशा से कहा।

“हाँ, पू छए न?”

“आपके नाम का मतलब या है?”

“ओह! हा हा.. आयशा शायद अरबी या फ़ारसी श द है.. और इसका मतलब है.. उ म..
सुशील, स य, है पीनेस, आनंद, मेजे ट .. ए चुअली ब त सारे मी न स ह.. ले कन
लड़ कय के लए यूज़ होने से इसका मतलब है पीनेस होना चा हए..”

“वैरी नाईस!” कह कर म कुछ और दे र तक चुप हो गया।

और फर ब तर से उठने क को शश करने लगा।

“आपको उठना है?”

“हाँ.. ए चुअली, टॉयलेट जाना है..”

“ओके” कह कर आयशा मेरी उठने म मदद करने लगी।

कोई दो तीन मनट को शश करने के बाद, जससे मुझे कम से कम तकलीफ़ हो, आयशा
मुझे सहारा दे कर टॉयलेट तक प ँचाया। इतना तो तय था क बना उसके सहारे के म यह
सब मामूली काम भी नह कर सकता था, ले कन ऐसे ही कसी अनजान लड़क (जो क
उ म मुझसे काफ छोट हो) के सामने नव कैसे आ जा सकता है? एक वय क पु ष
के लए इससे यादा लाचारी और ल ा का वषय और या हो सकता था?

“आयशा.. आप.. अब म दे ख लूँगा..” मने हच कचाते ए कहा।

“नाउ वेट अ मनट! आई थक वी नीड टू टॉक एंड सॉट आउट सम थग। म आपक नस ,ँ
तो सबसे पहला ल यह है क आपको मेरे सामने शमाने क कोई ज़ रत नह है। आपके
हाथ और पैर पर ला टर चढ़ा आ है, और र स पर भी चोट ह.. अगर आप पूरी तरह से
ठ क होते तो मेरी ज़ रत ही नह थी.. है न?”

“हाँ.. वो सब तो ठ क है ले कन..”

“ले कन वे कन कुछ नह । आप अगर इस बात से शमा रहे ह तो यह सो चये क म आपको


ंज बाथ, टॉयलेट, े सग भी क ं गी.. तो लीज.. ओफे दे ड मत फ ल क जए! ओके?

“ओह गॉड! कहना आसान है..”

“आई नो! बट वी वल ाई.. ओके? नाउ, लेट म हे प यू वद योर पजामा..”

कह कर उसने मुझे सहारा दए ए ही मेरे पजामे का नाड़ा ढ ला कर दया और मेरे पजामे


को धीरे से नीचे सरका दया। कोई और समय होता (मतलब अगर या होती) तो अब
तक मेरा लग अपने पूण उ ान पर प ँच कर छलांगे लगाने लगता, ले कन इस समय
शम, संकोच और नवसनेस होने के कारण मेरा लग एक छोटे से छु हारे के आकार का ही
रहा। मने आयशा क तरफ दे खने क ह मत नह क , ले कन मुझे पूरी तरह से यक न था
क वो अव य ही उसी तरफ दे ख रही होगी, और उसके आकार पर मन ही मन हंस रही
होगी..

खैर, जब मेरा पजामा यथो चत री तक सरक गया, तो उसने मुझे सहारा दे कर कमोड पर
बैठाया। मने कुछ दे र तक को शश करी, ले कन आयशा क उप त म मेरे लए मू
करना संभव ही नह हो रहा था।

“कर ली जये न..”


“थोड़ी ाइवेसी मल जाय... मुझसे हो नह पा रहा है ...”

“ओह सॉरी..!” कह कर वो बाथ म से बाहर नकल गयी।

उसके जाते ही मन म कुछ शां त ई - मने अपने जघन े क मांस-पे शय को ढ ला


करने क को शश क और त ण ही मने मू को बाहर नकलता महसूस कया। जब मने
मू कर लया तो मने कुछ दे र क कर आवाज़ लगाई,

“..आयशा?”

“जी.. आई..”

अ दर आकर उसने सबसे पहले बाथ म म नज़र दौड़ाई। एक तरफ उसको वेट- ट यु
मल गए। उसने उसम से एक ट यु नकाल कर आधा फाड़ा, और मेरी तरफ मुखा तब
ई। उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और फर मेरे लग को पकड़ कर उसके श ा द
को धीरे से पीछे क तरफ सरकाया उसको तीन-चार बार झटका दया, जससे मू क
बची ई कुछ बूँद नकल गई। फर उसने वेट- ट यु क मदद से लग के सुपाड़े को ठ क से
प छ दया। इसके बाद हम दोन वापस अपने कमरे म आ गए।

कमरे म आकर लेटने के कुछ दे र तक हमने कोई बात नह करी। इसी बीच कामवाली आ
गयी। आयशा ने उसको वशेष नदश दए क घर और खासतौर पर मेरे कमरे क सफाई
कैसे करी जाय, और यह भी क खाना कैसे बनाया जाय। यह नदश दे ते समय उसका
अंदाज़ ध स दे ने वाला नह था.. ब क यह साफ़ दख रहा था क वो मेरी और कामवाली
क मदद ही करना चाहती थी। सच म.. पहले ही दन म आयशा का व, उसके बात
करने का अंदाज़ और उसक मु कान मेरे दल-ओ- दमाग पर छा गई।

रात म खाने के बाद तक आयशा घर पर ही थी, और संभव है क दे र रात अपने घर गयी


हो। रात म मेरे आँख एक बार खुली थी, ले कन मने उसको वहाँ नह दे खा। सवेरे जब
आँख खुली तो उसको अपने बगल बैठा पाया।

“गुड मो नग!”
मने उसक आँख म दे खा। वही मु कुराती ई आँख, खला आ चेहरा! म भी मु कुरा
उठा। बगल म अ नी भी खड़ी ई थी.. मने साइड टे बल पर रखी घडी पर नज़र डाली तो
दे खा क सवेरे के छः बजे थे!

“गुड मो नग! आप रात म घर चली ग थ ?”

“जी..”

“अरे! इतने रात म य ? सेफ नह रहता!”

“आई नो.. ले कन अ बू को बताया नह था..”

“उनक दे खभाल कौन करता है?”

“वो कर लेते ह.. और खाना पीना हमारे पड़ोसी पका दे ते ह.. इस लए द कत नह होती।“

“आयशा.. ऐसे तो अगर आप रात म घर जायगे तो ठ क नह रहेगा.. आप दन म जाइए..


ले कन सेफ रहना ज़ री है..”

“ह म..”

“इससे मुझे एक आई डया आ रहा है.. आप अपना सामान ले कर यही य नह आ


जात ? हमारा टोर- म एक हाफ म जैसा है, और खाली पड़ा आ है। खाने पीने क
सारी व ा यह हो जायेगी! और अ नी भी पढाई लखाई कर रही है.. वो कम से कम
हो जायेगी।”

“आप ऐसे य कहते ह जैसे मुझे आपक इस हालत से कोई मु कल है? म भी आपक
सेवा करना चाहती .ँ .”

“अरे अ नी.. तुम नाराज़ मत हो! तु हारे कारण ही तो म बच सका .ँ . ले कन तुम जानती
हो न क मुझे यादा ख़ुशी तब मलेगी, जब तुम अपनी पढाई पर यादा यान लगाओगी!
है न? और मेरा या? म तो यहाँ चौबीस घंटे पड़ा र ँगा! हा हा!”
“आप ज द से ठ क हो जाओ.. आयशा और म, दोन ही आपको ज द से ठ क कर दगे..
है न आयशा?”

“ बलकुल.. च लए, म आपको मो नग ए ट वट ज के लए रेडी करती .ँ .”

“म भी आपक मदद करती ँ..” अ नी ने कहा।

“नह अ नी.. लीज.. मने तु हारे सामने वो सब नह कर पाऊँगा.. लीज ाई टू


अंडर टड!”

“जी.. ठ क है..” अ नी ने अनमने ढं ग से कहा, और कमरे से बाहर नकल गयी।

फर आयशा ने मुझे सहारा दे कर बाथ म प ँचाया। कल इतनी बार उसके सामने नंगा
होना पड़ा था, क आज मुझे ब त कम शम आ रही थी। खैर, इस त को मन ही मन
ज़ त कर के मने अपनी न य या करी, और वापस ब तर पर आ लेटा। आयशा ने मेरी
साफ़ सफाई कर के मुझे ब तर पर लटाया। तब तक अ नी चाय और सड वच बना कर
ले आई, जसको हम तीन ने साथ मल कर खाया। उसका कॉलेज सवेरे ज द शु हो
जाता था, इस लए उसने ज द ही हमसे वदा ली।

इस बीच म हमारी कामवाली आ गयी, और खाना पकाने के काय म जुट गयी।

“अथव, च लए, आपको ंज बाथ दे दे ती ँ?”

“ ंज बाथ?”

“हाँ.. नहायगे नह तो एक तो आपको बेड-सोर हो जाएगा, और ऊपर से बदबू आने


लगेगी..” कह कर उसने अपने नाक सकोड़ी..

“अरे.. म तो बस ये कह रहा था क म खुद ही..”

“ओह गॉड! नॉट अगेन! हमने कल ही तो इस बारे म बात करी है.. आप बलकुल सब कुछ
क रयेगा, ले कन पूरी तरह से ठ क होने के बाद.. ओके?”
फर इधर उधर दे ख कर, “म अभी आती ँ..”

कह कर आयशा कमरे से बाहर नकल गई.. ज़ र रसोई म गयी होगी। य क जब वो


वापस आई तो उसके हाथ म एक मुलायम तौ लया, एक साफ़ च र और गुनगुने पानी से
भरी एक बा ट थी। कामवाली एक और बा ट म म ठं डा पानी ले आई थी। उसके जाने के
बाद आयशा ने कमरे का दरवाज़ा थोड़ा बंद कर दया और फर मेरे कपड़े उतारने क
या करने लगी। म बुरी तरह से नवस था, ले कन मने दे खा क मेरी शट उतारते समय
आयशा के ह ठ पर एक ब त ही मंद मु कान थी, और उसक आँख म एक संशा भरी
चमक। अगले पांच मनट बाद, जब म पूरी तरह से नव हो गया, तब उसक बेहद मंद
मु कान अब कुछ यादा ही दख रही थी।

“आयशा.. यू आर नॉट हे पंग! आई ऍम नवस आलरेडी!!”

“ओह आई ऍम सॉरी! ले कन आप नवस य ह?”

“अरे.. इस हालत म आपके सामने..”

“यू हैव अ नाईस म कुलर बॉडी! नवस तो.. मुझे होना चा हए!” कह कर आयशा जोर से
मु कुराई।

खैर, मने बात को आगे न ख चने का नणय लया, और आयशा को उसका काम करने क
छू ट दे द । वो तौ लये को भगो कर मेरे पूरे शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ करने लगी।
गदन, सीना, पेट और बाह साफ़ होने के बाद उसने मुझे धीरे से करवट बदलवाई, और
पीठ, कमर, पु और जांघ को उतने ही सावधानी से ंज बाथ दे ने लगी। म अचानक ही
उछल गया – वो मेरी रीढ़ पर बारी-बारी से गम और ठं डा ंज करने लगी थी। उसने मुझे
बताया क ऐसा करने से दल और साँस के के उ े जत हो जाते ह, यह कई तरह के
रोग के नवारण करने म मदद करता है। एक बार फर से उसने मेरी करवट बदल कर मुझे
पीठ के बल लटाया, और एक अलग छोटे तौ लये से मेरा चेहरा और सर प छकर सुखाने
लगी।

साधारणतः, मेरा मेरी उ ेजना पर अ ा नयं ण रहता है। ले कन एक अरसे से कसी भी


तरह क यौन या न करने के कारण, मेरा लग बेकाबू सा हो गया। जैसे उसम खुद ही
सोचने समझने क क श आ गयी हो। ऐसा हो ही नह सकता क उसको मेरा उ े जत
लग न दख रहा हो, ले कन वो बलकुल ोफेशनल तरीके से मेरी सफाई कर रही थी।
आयशा मगन हो कर जब मेरी सफाई कर रही थी, तब म उसके ही शरीर का जायजा ले
रहा था – उसका कद कोई साढ़े पांच फ़ ट रहा होगा। चेहरा मोहरा तो साधारण ही था,
ले कन उसक मु कान और जीवंत आँख उसको सु दर बना दे ती थ । उसक यू नफाम तो
आरामदायक थी, ले कन फर भी उसके तन और उनका आकार समझ म आ रहा था।
उसने तना भी खड़े हो कर यू नफाम के कपड़े को सामने से कुछ कुछ उभार रहे थे।
उसने ज़ र ही एक ह का सा मेक-अप कया आ था.. कुल मला कर वो सु दर लग रही
थी।

इतने अरसे के बाद एक ी का इस तरह का अ तरंग सा य पा कर अब मेरा लग अपने


पूरे तनाव पर प ँच गया।

“अ ा है ‘ये’ इस तरह से खड़ा आ है... सफाई करने म आसानी रहेगी!”

वो मुझे सुना रही थी, या खुद से बात कर रही थी?

उसने मेरा लग अपने हाथ म पकड़ा और उसक सफाई करने लगी। उसके छू ते ही मुझे
एक झटका सा लगा.. वैसे यह झटका मुझे ही नह , उसको भी लगा। जब मेरा लग पूरी
तरह से जीवंत होता है, तो उसका आकार, उसका घन व और उसक ढ़ता कभी कभी
मुझे भी आ यच कत कर दे ती है। मुझे यह तो नह मालूम, क आयशा ने ऐसा लग... या
फर कोई भी लग कभी भी अपने हाथ म पकड़ा है या नह , ले कन इतना तो तय है क
उस पर असर बखूबी हो रहा था।

अभी तक इतने आ म- व ास के साथ मेरी सफाई करने के बाद, उसक भी घबराहट


दखाई दे ने लगी। उसने धीरे धीरे, मानो डरते ए, मेरे लग को गीले तौ लये से साफ़ करना
शु कया। मानो न मानो, मुझे उसका यह बदला आ प अब ब त अ ा लग रहा था।
मुझे अपने लग, और उसके बल म ब त भरोसा था, और मुझे लगता था क उसम एक
जा ई श है। जो भी लड़ कयाँ मेरे जीवन म आ , वो उससे भा वत ए बना नह रह
सक । आयशा के हाथ का श बड़ा ही आनंददायक सा बत हो रहा था। ले कन कुछ
होता, उससे पहले ही मेरे लग और अ डकोष क सफाई हो गई, और आयशा ज द से
तौ लया और बा ट उठा कर कमरे से बाहर हो गई।
आने से पहले उसने मुझे खुद को संयत करने का समु चत समय दया। कुछ दे र क
न यता के बाद तना आ लग वापस श थल हो गया। आयशा कुछ दे र बाद वापस
कमरे म आई.. वो हमेशा क तरह मु कुरा नह रही थी.. लग रहा था क जैसे कुछ तनाव म
हो। ले कन मुझसे जैसे ही उसक आँख मल , उसक मु कान वापस आ गयी।

उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और एक आरामदायक कुस पर बैठाया और च र बदला।


फर मुझे वापस लटा कर, एक नए च र से ढक कर, मेरे और अपने लए ना ता ले आई,
और हम दोन ना ता करते ए वापस बात करने लगे।

उसने मुझे उस दन के बारे म बताया, जब उसको बतौर नस पहली नौकरी मली थी। बंधी
ई तन वाह और अ बू क मदद करने के ख़याल से ही रोमांच हो गया था उसको। कतनी
खुश थी वह नौकरी पा कर! पहली बार नौकरी के लए वो सफ़ेद यू नफाम पहनना, और
फर आइने के सामने खड़े होकर खुद को नहारना.. उसको आज भी याद है!

जहाँ उसको काम मला था, वो एक न सग होम था। वहाँ पहले से काम करने वाली नस ने
उसे धीरे-धीरे काम समझाना और सखाना शु कर दया। शु शु म वो मरीज को
इंजे न दे ती थी, उनके चाट दे ख कर दवाई दे ती, आपरेशन के समय रो गय को
स हालती थी। वो ऑपरेशन होने पर शरीर से नकला कचरा और लोथड़े उठा कर फकने
का भी काम करती। कई बार उस कचरे म साबूत ब ा भी होता। सो चए.. एक पूरा सबूत
ब ा! शु शु म इस काम म उबकाई आती, जी मचलाता और वापस काम पर आने का
मन नह करता। ले कन, धीरे धीरे वह इसक आद हो गई। अब वो सब बदा त कर लेती
थी।

ले कन उससे यह बात छु पी नह क यह और ऐसे कई न सग होम इस शहर का गटर थ ..


कस धड़ ले से यहाँ अवैध गभपात कया जाता है। जानते सभी ह, ले कन कोई कुछ
कहता नह । न सग होम म काम करने वाले सारे कमचारी गूंगे और अंधे बन कर रहते ह।
आयशा ने भी ऐसे ही कुछ ही महीन म कम बोलना सीख लया... चुप रहना सीख लया...
और चेहरे को सपाट बनाना सीख लया था। ज द ही उसका मन उकता गया और उसने
वह नौकरी छोड़ द , और रो गय के साथ रह कर उनक दे खभाल करने का काम करने
लगी।

यह सब बताने के बाद उसने मेरे बारे म पूछा। मने उ र म अपने काम के बारे म उसको
बताया।
उसने फर कुछ गत सवाल पूछे..

“आपक और मैडम क लव मै रज ई थी न?” उसने द वार पर टं गी या क त वीर


दे खते ए कहा।

“हाँ.. मने उसको उ राँचल म दे खा था पहली बार... लव ऐट फ ट साईट!” मने मु कुराते


ए कहा..

“आप उनसे ब त यार करते ह..”

या के बारे म याद आते ही उदासी छाने लगी।

“आप उदास ह...” उसने कहा।

जब मने काफ दे र तक कुछ नह कहा तो,

“आई ऍम सॉरी..”

“नह आयशा! ड ट से सॉरी! ले कन.. या के जाने के बाद ब त अकेला हो गया। न कुछ


करने का मन होता, न ही जीने का.. जब ए सीडट हो रहा था, तो लगा क अब इस ःख
से छु मल जायेगी.. ले कन.. लगता है क और जीना लखा है क मत म!”

“अरे! आप ऐसे कैसे बोल रहे ह? ज़रा सो चये, ज त से मैडम आपको इस हालत म
दे खगी, तो या उनको अ ा लगेगा? वो तो आपके लए बस ख़ु शयाँ ही चाहती रही
ह गी.. आपको ऐसे ःख म दे ख कर उनको भी तो ब त ःख होगा न?”

“ले कन फर भी.. उसक ब त याद आती है..”

“याद तो आनी ही चा हए! ले कन उनको याद करके उदास मत होइए.. ब क खुश होइए..
साथ बताये ए ख़ुशी के मौके याद क रए.. और.. आप ऐसे ही उदास मत होइए। म ँ न?
म आपक अ दो त बन सकती ँ! आप मुझसे दो ती करगे?”
“आयशा! आप पहले ही मेरी दो त बन चुक ह!” म मु कुराया।

बस.. ऐसे ही मेरे सुधार क गाडी आगे चल नकली। अ ताल म तो समय बीतता ही नह
था.. ले कन यहाँ पर आयशा मेरे साथ मेरी छाया क तरह बनी रहती। लगता ही नह था
क वो नस है.. ब क लगता क वो.. क वो.. मेरी प नी है! मेरी हर ज़ रत को मुझसे भी
पहले महसूस कर पूरा करने क को शश करती, हर लहाज से मेरा पूरा ख़याल रखती।

दोपहर बाद अ नी कॉलेज से आती, और वो भी मेरे साथ ही रहती। मेरा जीवन वापस
ेम से लबालब होने लगा। दोपहर बाद ही लगभग हर दन कोई न कोई आ ही जाता -
कभी नीचे मे डकल टोर से कोई आ जाता, कभी कोई प र चत, कभी कोई ऑ फस से...
तो कभी कोई पड़ोसी! अब तो जैसे आदत हो गयी.. दोपहर बाद आने वाल क ती ा
करना! ले कन यह तो है क अब तक मुझे संसार और यहाँ के लोग के बारे म जतनी भी
गलतफह मयां थ , वो सब ख़तम हो ग । म समझ गया क नया कठोर नह , ब क
संवेदनशील है। मेरे ए सीडट के बारे म जसने भी सुना, वो सुनकर परेशान हो गया। भागा
भागा चला आया दे खने!

ऐसा कोई दन नह गया जब या क याद न आई हो... उसक याद आती तो म आँख मूँद
कर अतीत के संसार क या ा कर आता, उसके बारे म सोच कर आँसू भी ढु लका लेता,
और भ व य क चता म भी डू ब जाता। कभी दद, तो कभी पीड़ा-भरी याद म जब म
अचानक ही च ला उठता, तो आयशा एक झटके से कसी फ़ र ते क तरह मुझे स हाल
लेती।

कभी कभी उसक बाते मुझे बोर भी करत । ले कन उससे बात करना दन का सबसे
सुखद अनुभव होता था। वो रोज़ मुझसे बात करती, मुझे दवा दे ती, नहलाती, साफ़-सफाई
करती, कभी कभार मुझे उप यास पढ़ कर सुनाती, तो कभी अखबार! वो मेरी
फ जयोथेरेपी भी करती। ये सल सला चलता रहा। और उसी के साथ मेरी सेहत भी
वापस आने लगी। हाथ और पैर क ह याँ जुड़ ग , और उनम ताकत वापस आने लगी।
म अब खुद से चल फर सकता था, और कई सारे छोटे मोटे काम कर सकता था.. ले कन
आयशा क आदत मुझे कुछ ऐसी लग गयी थी क म उसको मना नह कर पाता था। मेरी
हालत म सुधार के बारे म उसको भी मालूम था, ले कन वो भी कभी ऐसे नह दखाती थी
क उसको मुझे नहलाने इ या द म कोई झझक नह महसूस होती थी।
एक दन सवेरे वो मुझको ंज बाथ दे रही थी। वो हाँला क मेरे घर म ही रहती थी, ले कन
फर भी पूरी इमानदारी से वो अपनी यू नफाम पहन कर ही मेरी दे खभाल करती थी।
ले कन, आज जब वो नहा कर बाथ म से बाहर आई, तो उसने आरामदायक, कैसुअल
कपड़े पहने ए थे। उसको ट -शट और होसरी पजामा पहने दे ख कर मुझे अच ा आ,
और अ ा भी लगा।

“आयशा, तुम कतनी अ लग रही हो आज!”

वो मु कुराई।

“जी.. वो.. म.. दो जोड़ी यू नफाम है.. और दोन ही धोने म डाली ई है..”

“आई ऍम नॉट क लै नग.. म तो कहता ँ क तुम ऐसे ही रहा करो..”

हाँला क ये कोई कामुक कपड़े नह थी, ले कन फर भी बना कसी बंधन के (उसने ा


नह पहनी ई थी) उसके तन उसक हर हरकत पर जस कार से हल रहे थे, और जस
तरह से उसके पजामे ने उसके नत बो को उभार रखा था, उससे मेरे लग का त न
ज द कम नह होने वाला था। हर रोज़ क तरह जब वो कमरे से बाहर जाने को ई, तो
मने लपक कर उसका हाथ पकड़ लया।

“मेरे पास रहो..” न जाने कैसे मेरे मुँह से यह तीन श द नकल गए। न त है, मेरी आँख
म वासना के डोरे आयशा को साफ़ दख रहे ह गे!

आयशा कुछ नवस दख रही थी। उसके ह ठ कांप से रहे थे, और ह ठ के ऊपर पसीने क
एक पतली सी परत साफ़ दख रही थी। म भी नवस था.. ंज-बाथ के बाद न नाव ा म
लेटा आ था। न जाने या होने वाला था आज..!

“अथव..?”

मने कुछ नह कहा, बस उसका हाथ पकड़े ए ही उसको पहले तो ब तर पर बैठाया..


और उसका हाथ तब तक अपनी तरह ख चता रहा जब तक वो मेरे बराबर ही ब तर पर
लेट नह गयी। जस तरह से वो न वरोध यह सब कर रही थी, उससे तो तय था क आज
हम दोन का मलन होना ही था।

“हम दोन दो त ह न?” वो पूछ रही थी, क बता रही थी? कुछ समझ नह आया.. ले कन
यह तो तय था क वो नवस ब त थी।

“यस.. सो ट मी! ओके?” मने कहा।

उसके लेटते ही मने उसके ह ठ पर एक चु बन रसीद कर दया। उसके ह ठ ब त ही नरम


थे। ब त दन बाद कसी लड़क के ह ठ चूमने को मला! इस लए मने चु बन जारी रखा
और कुछ दे र म मने उसके ह ठ चूसने शु कर दए। म उसके एक एक ह ठ को अपने
ह ठ के बीच म दबा कर उनको जीभ से लारता। आयशा चु बन करने म अनाड़ी थी।
मुझे समझ म आ गया क यह सब उसके साथ पहली बार हो रहा है (मतलब, हर बात म
अनाड़ी थी)। मने जब अपनी जीभ उसके मुंह म डालने क को शश करी, तो कुछ हचक
के बाद उसने अपना मुंह खोल दया। अब हमारी जीभ एक सरे के मुँह म थ । इतने दन
बाद ऐसा चु बन करने म मुझे ब त आनंद आ रहा था।

चूमते ए ही मेरा हाथ उसके सर और उसके बाल म फरने लगा.. एकदम कोमल,
मुलायम बाल!

“तु हारे बाल ब त सु दर ह.. एकदम कामुक!” इस श द का योग उसके सामने मने एक
तो पहली बार कया और सरा, जान-बूझ कर कया। म चाहता था क हमारी आपस म
हचक र हो जाय। ले कन आयशा नवस ही रही..

“हाँ.. सफ बाल ही ह..” शायद वो आगे ‘कामुक’ कहना चाहती थी, ले कन हचक रही
थी।

उसको चूमते ए मेरा हाथ उसके एक तन पर आ गया। जैसा मने बताया था, उसने ा
नह पहनी थी और उ ेजना के मारे उसके तना खड़े ए थे। उसने झट से अपने हाथ से
मेरे हाथ को पकड़ लया। ले कन उसके पकड़ने से म क नह सकता था, लहाजा, मने
उसका तन दबाना शु कया। कुछ ही दे र म उसक पकड़ कमज़ोर हो गयी और वो आह
भरने लगी। मने चु बन लेना जारी रखा, और साथ ही साथ उसक ट -शट को ऊपर उठाने
लगा।

“नह .. लीज.. मुझे नंगी मत क रए!”

“दे खते ह न.. क तु हारा और या या कामुक है!”

“और कुछ भी कामुक नह है.. मने आपको बताया न!” आयशा वरोध नह कर रही थी..
मुझे ऐसा लग रहा था क यह एक सामा य सा वातालाप है।

“आयशा.. आज हम दोन क नह पाएँगे.. न तुम, और न ही म! ... ले कन अगर तुम


वाकई नह चाहती हो, तो हम ये नह करगे..”

कह कर म कुछ दे र के लए क गया, और उसक कसी त या का इंतज़ार करने


लगा। जब उसने कुछ वरोध नह कया और ब तर से उठने क कोई को शश नह करी,
तो मने उसक ट -शट उसके शरीर से अलग कर द । सामने का य दे ख कर आनंद आ
गया – छ ीस इंच के भरे पूरे गोल तन! लाल-भूरे रंग के छोटे छोटे तना ।

कहने क आव यकता नह क मने उसके तन को दबाते ए चूसना आर कर दया।


आयशा भी अभी खुल कर आनंद लेने लगी। आदमी क अजीब हालत होती है – कसी भी
उ का हो, अगर उसके सामने कसी लड़क या ी का तन हो, तो उनको बना पए रह
नह सकता।

‘ओह भगवान्! कतने दन हो गए!’

‘ओह भगवान्! कतने दन हो गए!’

म कसी भूखे ब े क तरह आयशा से लपट कर उसका तन पी रहा था, और उनसे खेल
रहा था। आयशा आँख बंद कये ए इस अनोखे अनुभव का मज़ा ले रही थी। उसक भी
उ ेजना बढ़ती जा रही थी – जो क उसक भारी होती सांस से प रल त हो रहा था। वो
खुद भी मेरे सर को अपने तन से सटा कर रखे ए थी। उसने मेरे शरीर को सहलाना
आर कया, और ऐसे सहलाते ए उसका हाथ मेरे लग पर प ंचा! साफ़ सफाई करते
समय वो बलकुल भी संकोच नह करती थी, ले कन इस समय उसने अपना हाथ तुरंत
हटा लया।

“ या आ?”

“ ये ब त बड़ा है।“

एक बार मने एक चुटकुला सुना था, जसमे नया के सबसे बड़े झूठ म एक यह बताया
गया था क जब औरत कसी मद को कहे क तु हारा पु षांग ब त बड़ा है।

अ सर यह दलील द जाती है क जब यो न म से पूरा ब ा नकल आता है, तो फर लग


का साइज़ या चीज़ है? उसका उ र यह है क जब ी जनन करने वाली होती है, तो
होम स के भाव से उसके शरीर म (ख़ास तौर पर जघन े म) अभूतपूव लचीलापन
आ जाता है.. यह या सामा य अव ा म नह होती है.. इस लए अगर लग बड़ा है, और
ी ऐसा कहे, तो यह बात सुननी चा हए, और आराम से काम करना चा हए।

“आर यू ओके, आयशा?”

“पता नह ..” फर कुछ दे र क कर, “.. मुझे डर लग रहा है, अथव! अभी जो हो रहा है, म
उसके लए बलकुल भी रेडी नह थी... समझ नह आ रहा है क म या क ँ ..!”

“तुमको कुछ भी करने से डर लग रहा है?” मने पूछा। आयशा वाकई डरी ई लग रही थी।

“ वो.. म.. आई.. आई ऍम टल अ व जन!”

“ ही ड ट नीड टू डू एनी थग, इफ़ यू ड ट वांट टू , वीट !” मने आयशा को वा वाना दे ते


ए कहा, “ ही कैन ज ट बी वद ईच अदर!”

मेरी बात से आयशा कुछ तो शांत ई.. ले कन फर उसक आँख मेरे पूरी तरह से सूजे ए
लग पर पड़ी।

“ले कन... ले कन.. आप या ‘करना’ नह चाहते?”


मने आयशा को अपनी बाह म लेते ए शांत वर म कहा, “ बलकुल करना चाहता .ँ .
ले कन सफ तभी, जब तुम भी चाहती हो। तुमने कभी सहवास नह कया.. इस लए अब
यह तो मेरी ज मेदारी है क तुमको उसका पूरा आनंद मले.. और उसके लए सबसे पहले
तु हारी रज़ामंद चा हए.. है न?”

मेरी इस बात पर आयशा मुझसे और चपक सी गई, और उसने मेरे सीने पर अपना हाथ
रख दया। म इस समय उसके दल क धड़कन सुन सकता था। फर उसने एक गहरी सी
सांस भरी और सर हला कर हामी भरी।

“ या आ आयशा?”

“रज़ामंद है..”

“हंय?”

“आपने कहा न, क रज़ामंद चा हए? तो.. रज़ामंद है!”

“प का आयशा? य क एक समय के बाद म भी खुद को रोक नह पाऊँगा!”

“प का.. बस, थोड़ा स हाल कर क रएगा.. सुना है क ब त दद होता है!”

“आयशा, डरो मत! म तुमको दद नह होने ं गा... बस, को शश कर के मजे करो! चलो,
अभी जू नयर से कुछ जान पहचान बढ़ाओ..” मने मु कुराते ए उसको हौसला दया।

उसने हचकते ए मेरे लग को अपनी हथेली म पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, उधर
मने भी उसके पजामे के ऊपर से ही उसक यो न को धीरे धीरे सहलाना शु कया। ऐसा
अनुभव उसको पहली बार हो रहा था, इस लए कुछ ही दे र म आयशा बेकाबू हो गयी।
ले कन मने उसक यो न का मदन जारी रखा। उसका रस नकलने लग गया था, य क
पजामे के सामने का ह सा गीला और चप चपा हो गया था। फर कोई दस मनट बाद
मने अपना हाथ उसके पजामे के अ दर डाल कर उसक यो न क टोह लेनी आर करी।
आयशा कामुक आनंद के शखर पर प ँच गयी थी।
कुछ ही ण म मने अपनी उं गली ज़ोर-ज़ोर से उसक यो न पर रगड़ना शु कया, और
वहाँ का गीलापन, और गम अपनी उं गली पर महसूस कया। वो इस समय अपनी पीठ के
बल ब तर पर नढाल लेट गयी थी और साथ ही साथ अपनी टाँग भी कुछ खोल द थ ,
जससे मेरे हाथ को अ धक जगह मल सके। मने अपनी तजनी उं गली को उसक यो न म
घुसाने लगा। एक पल तो आयशा ने अपनी साँस रोक ली, ले कन उं गली पूरी अ दर घुस
जाने के बाद उसने राहत म सांस छोड़ी। उसक यो न या क यो न के जैसे क कसी ई
थी! उतनी ही तंग! ले कन आ य क बात है क वो कोमल भी ब त थी! और, वहाँ पर
काफ बाल भी थे.. आनंद आने वाला है!

कुछ दे र तक उं गली को उसक यो न के अ दर बाहर करने के बाद आयशा दोबारा अपने


चरम पर प ँच गयी। उसक कामुक आह नकलने लग । जब तक उसने आह भर , तब
तक मने उं गली से मैथुन जारी रखा, ले कन जब वो अंततः शांत ई, तो मने उं गली नकाल
ली और सु ताने लगा।

“आप क य गये?” उसने पूछा।

“अब तो मेन ए ट का टाइम है.. तुम रेडी हो?”

“बाप रे! अभी ख़तम नह आ? म तो थक गयी.. ओ ह...”

“अभी कहाँ ख़तम? अभी तो हम ‘कने ट’ होना है.. तभी तो पूरा होगा..”

कह कर मने अपने लग क ओर इशारा कया, और उसका पजामा नीचे सरका कर उसके


शरीर से मु कर दया। अब हम दोन ही पूरी तरह न न मेरे ब तर पर थे। मने वापस
उसके दोन तन को अपने हाथ म लेकर उसको मसलने लगा। वो पुनः वासना के सागर
म गोते लगाने लगी। मने उसके क को चूमना शु कर दया और वहाँ से होते ए उसके
कान को चूमा और उसक लोलक को चूसने लगा।

“आयशा, या तु हे अ ा नही लग रहा?”

उसने सफ सर हला कर हामी भरी।


मने उसके हाथ म अपना लग दया। कमाल क बात है आयशा के मज़बूत, नस वाले हाथ
इस समय मेरे लग पर काफ मुलायम और नाजक महसूस हो रहे थे। उधर मने उसके
शरीर को चूमना और चाटना जारी रखा। म चूमते ए उसक गदन से होते ए उसके पेट,
और फर वहाँ से उसक यो न को चूमने और चाटने लगा। म जीभ क नोक से उसक
यो न के भीतर भी चूम रहा था। अभी कुछ ही समय पहले रसा आ यो न-रस काफ
वा द था। अब म भी कने क हालत म नह था, ले कन फर भी मने जैसे तैसे खुद पर
काबू रखते ए उसक यो न चाटता रहा। कुछ दे र बाद वो तीसरी बार ख लत हो गयी।
उसक यो न का रंग उ ेजना से गुलाबी हो गया था।

खैर, अंततः मने अपना लग उसक टाँग के बीच यो न के ार पर टकाया, और धीरे धीरे
अंदर डालने लगा। उसक यो न काफ कसी ई थी। आयशा गहरी गहरी साँसे भरते ए
मेरे लग को हण करना आर कया। खैर मने धीरे धीरे लग क पूरी ल बाई उसक
यो न म डाल द , और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। न तो मेरे पैर म इतनी ताकत ही,
और न ही हाथ म, क वो मेरे शरीर का बोझ ठ क से उठा सके और ध के भी लगाने म
मदद कर सके.. ले कन जब इ ाएं बलवती हो जाती ह तो फर कस बात का बस चलता
है मानुस पर? वैसे भी, कामो ेजना इतनी दे र से थी क गने चुने ध को म ही मेरा काम हो
जाना था। दमाग म बस यही बात चल रही थी क कतनी ज द और कैसे अपना वीय
आयशा के अ दर ख लत कर ं । यह एक नहायत ही मतलबी सोच थी, ले कन या
करता? उस समय शरीर पर मेरा अपना बस लगभग नह के बराबर ही था। आयशा अगर
मदद न करती, तो कुछ भी नह कर पाता.. उसी ने खुद-ब-खुद अपनी टाँगे इतनी खोल द
थ जससे मेरी ग त व ध आसान इसे हो जाय। मुझे नह मालूम क उसको अपने जीवन
के पहले सहवास से या आशाएं थ , ले कन जब मने उसको दे खा तो उसक आँख बंद थ
और उसके चेहरे के भाव ने लग रहा था क उसको भी सहवास का आनंद आ रहा था।

मन म तो यह इ ा ई क ब त दे र तक कया जाय, ले कन अपने शरीर से म खुद ही


लाचार हो गया। कुछ ही ध क बाद मुझे महसूस आ क म ख लत होने वाला ँ।
इस लए मने तुरंत ही अपने लग को बाहर नकाल लया। आयशा च क ।

“ या आ?”

“नह .. कह तु हारे अ दर ही एजाकुलेट (वीयपात) न कर ं इस लए बाहर नकाल लया..


कह तुम े नट हो गयी तो?”
मेरी इस बात पर आयशा मु कुराई, और मुझे चूमते ए बोली,

“आपको पता है, क आपक इसी बात पर तो म आपसे ‘करने’ के लए तैयार ई। मुझे
हमेशा से मालूम था क आप मेरा कसी भी तरीके से नुकसान नह होने दगे.. ले कन मुझे
इस बात क कोई चता नह है। म एक नस .ँ .. एंड, आई नो हाऊ टू क प सेफ! नाउ
लीज, गो बैक इन..”

“आर यू योर, वीट ?”

“यस हनी! आई वांट योर सीमन इनसाइड मी! लीज डू इट!”

म उसक बात से थोड़ा भावुक हो गया, उसको कुछ दे र यार से दे खा, और वापस उसक
यो न क फाँक को अपनी उँ ग लय क सहायता से अलग कर के अपना लग अ दर डाल
दया। इस घषण से आयशा क पुनः आह नकल ग । अब बस चंद ध क क ही बात
थी.. मेरे भीतर का महीनो से सं चत वीय बह नकला और आयशा क कोख म समां गया।

म वीय छोड़ने, और आयशा वीय को हण करने के एहसास से आंदो लत हो गए.. हम


दोन ही आनंद म आह भरने लगे। उ ेजना के शखर पर प ँचने का मुझ पर एक और भी
असर आ.. ख लत होते ही मेरे हाथ पांव कांप गए.. और मेरा भार स हाल नह पाए।
ऐसे और या होना था? मने भदभदा कर आयशा के ऊपर ही गर पड़ा, जैसे तैसे स हालते
ए भी मेरा लगभग आधा भार उस बेचारी पर गर गया! संभव है क उ ेजना के उन ण
म र संचार और र दाब इतना होता हो क उसको कुछ पता न चला हो, ले कन मेरी
बेइ ती हो गयी!

“गाट यू.. गाट यू...” उसने मुझे स हालते ए कहा। वाकई उसने मुझे स हाल लया था..
उसक बाह मेरे पीठ पर लपट ई थ , और उसक टाँगे मेरे नत ब पर।

“सॉरी” म बस इतना क कह पाया!

“सॉरी? कस बात का? आपने आज मुझे वो ख़ुशी द है जसके बारे म म ठ क से सोच भी


नह सकती थी! सो, थक यू! आज आपने मुझे क लीट कर दया! आई ऍम सो है पी!”
“तुमको दद तो नह आ!”

“ आ.. ले कन.. ह म.. शु शु म म यह नह करना चाहती थी.. ले कन फर अचानक


ही मुझे ऐसा लगा क मुझे यह करना ही है! और यह एकसास आते ही दद गायब हो
गया!”

मने उसके माथे पर एक दो बार चूमा और कहा, “आर यू योर.. आई मीन, आर यू ओके
वद आवर यू रलेशन शप?”

आयशा मु कुराई, “आई ऍम! आपको जब मन करे, मुझे बताइयेगा! और मुझे लगता है क
मुझे भी इसक (मेरे लग क तरफ इशारा करते ए) ब त ज़ रत पड़ने वाली है! ही ही
ही!”
२६
अ नी क नजर म :

आयशा के अथक यास का फल अब दखने लग गया था। समय समय पर दवाइयाँ


वगैरह दे ना, अथव क पूरी दे खभाल करना, उनको ायाम करवाना और उनक
फ जयोथेरेपी करना। इन सब के कारण अथव क अव ा अब काफ अ हो गयी थी।
मने एक और बात दे खी - ब त दन से दे ख रही ँ क अथव और आयशा क नजद कयां
बढ़ती जा रही ह। अथव प से पहले से काफ खुश दखाई दे ते ह। उ राखंड
ासद के बाद से पहली बार उनको इतना खुश दे खा है। मुझे ख़ुशी है क उनके वा य म
काफ सुधार है, और यह भी लग रहा है क वो भावना मक और मान सक अवसाद से अब
काफ उबर चुके ह।

उनके वा य म कई सारे सकारा मक सुधार भी ह.. अथव चल फर पाते ह... आज कल


घर से ही अपने ऑफ स का काम भी कर लेते ह... वैसे डॉ टर ने उनको कुछ भी करने से
माना कया है, ले कन वो जस तरह के ह... खाली नही बैठ सकते इस लए एक
तरह से अ बात है क वो अपने काम म मशगूल रहते ह. सवेरे उठने के बाद वो कुछ दे र
टहलते भी ह।

ले कन ःख इस बात का है क म उनके इस सुधार का कारण नह बन पाई ँ। यह सब


कुछ आयशा के कारण है – उसके आने से वाकई घर क त म ब त सारे सकारा मक
सुधार आये ह। वो आई तो अथव क नस बन कर थी, ले कन कुछ ही दन म उनक
दे खभाल के साथ ही साथ मेरी भी दे खभाल करती थी – मेरे खाने पीने, सोने, वा य,
और पढाई लखाई म अथव के बराबर ही च लेती थी और यह भी सु न त करती थी
क सब कुछ सुचा प से हो। घर के संचालन म आयशा को अपार द ता ा त थी।
लोरस नाइ टगेल के जैसे ही घर म घूम घूम कर, ढूं ढ ढूं ढ कर काम करती! मुझे भी कभी
कभी लगता था क जैसे मेरी द द या माँ ही आयशा के प म वापस आ गए ह! सच म!
ब त बार तो आयशा को द द या म मी कह कर बुलाने का मन होता! मेरे मन से यह बात
क वो नस है, कब क चली गई!

ये सब अ बात थ .. ले कन मुझे एक बात ज़ र खटकती थी। और वो यह, क मेरा


प ा साफ़ हो रहा था.. जवानी म मने सफ एक ही पु ष क चाह करी थी, और वो है
अथव! ले कन अब वो ही मेरी प ँच से र होते जा रहे थे। मुझे शक ही नह , यक न भी था
क आयशा और अथव म एक ेम-स ब बन गया है। वो अलग बात है क मेरे घर म
रहने पर ऐसा कुछ होता नह दखता था... संभवतः वो दोन सतक रहते थे। आयशा हमारे
घर पर ही रहती थी (अभी वो स ताह म एक दन अपने घर जाने लग गयी थी), और अब
इतने दन के बाद हमारे प रवार का ही अ भ ह सा बन गयी थी।
एक रोज़, स ताहांत म, म सवेरे सवेरे उठ – उस रोज़ कुछ ज द ही उठ गयी थी। आज के
दन आयशा अपने घर जाती थी। मने सोचा क य न आज काम-वाली बाई के बजाय म
ही ना ता और चाय बना ं और सब लोग साथ मल कर आल य भरे स ताहांत का आर
कर। म अपने कमरे से बाहर नकल कर दालान म आई ही थी, क मुझे अथव के कमरे से
दबी दबी, फुसफुसाती ई आवाज सुनाई द । ह क हलक सस कय , दबी दबी हंसी और
खल खलाहट, और चु बन लेने क आवाज।

य को भला कैसा माण? म समझ गयी क इस समय अ दर या चल रहा है। ले कन


फर भी मन मान नह रहा था – दय म एक कचोट सी ई।जो काम म खुद अथव के
साथ करना चाह रही थी, वही काम कोई और उनके साथ कर रही थी। ःख भी आ, और
उ सुकता भी! उ सुकता यह जानने और दे खने क क ये दोन या कर रहे ह!

म दबे पांव चलते ए अथव के कमरे तक प ंची, और दरवाज़े पर अपने कान सटा दए।

“उ म म.. ये गलत है..” ये आयशा थी।

“कुछ भी गलत नह ..”

“गलत तो है.. आह... शाद शुदा न होते ए भी यह सब.. ओ ह.. धीरेएएए..!” आयशा
ठु नकते ए कह रही थी।

“जानेमन... मेरे लग का तु हारी यो न से मलन हो गया...शाद म इससे और यादा या


होता है?”

“ छः! कैसे कैसे बोल रहे हो! ग द ग द बात! आअऊऊऊ! आप न, बड़े ‘वो’ हो.. अभी,
जब आपके हाथ पांव ठ क से नह चल रहे ह, तब मेरी ऐसी हालत करते ह.. जब सब ठ क
हो जाएगा तो...”
“अ ाआआआ... तो ये नस मेरे ठ क होने के बाद भी मुझे नस करना चाहती है?”

आयशा को शायद अथव के शरारत भरे ो र का भान नह था।

“हाँ... य ? ठ क होने के बाद मुझसे क ी काट लोगे या?” आयशा ने शकायत भरे
लहजे म कहा।

“अरे! बलकुल नह !”

“आऊऊऊऊऊ..” यह आयशा थी।

“कम.. लेट मी नस यू.. उ म!”

“आऊऊऊऊऊ... आराम से! ही ही ही!!”

दोन क बातचीत क म सफ क पना ही कर सकती थी... मेरे दमाग म एक च खच


गया क अथव ने आयशा के एक तना को अपने मुंह म भर लया होगा। अ त और
आनंददायक होता होगा न, ऐसे सहवास करना? अपनी ेयसी क तन को चूसते ए
अपने लग को उसक यो न म लगातार ठ कते रहना। है न? ले कन मुझे पता नह कैसा
लगा – अजीब सा, रोमांच, गु सा, उ सुकता... ऐसे न जाने कतने मले जुले भाव!

मुझसे रहा नह जा रहा था... म वाकई दे खना चाहती थी क अ दर या चल रहा है –


सफ सुन कर उ सुकता कम नह , ब क बढ़ने लगती है। मने क -होल से अ दर दे खने क
को शश करी – छे द था तो, ले कन कुछ ऐसा था क अ दर ब तर का कोई ह सा नह
दख रहा था। तभी मुझे ख़याल आया क ाई बालकनी से मा टर बाथ म के रा ते अ दर
का नज़ारा दे खा जा सकता है। म भागी भागी उसी तरफ गयी... उ मीद के वपरीत मुझे
सीधा तो कुछ नह दखाई दया, ले कन बाथ म के अ दर लगे आदमकद आईने से
बेड म के खुले दरवाज़े के अ दर का य साफ़ नज़र आ रहा था।

आयशा अथव क सवारी करते ए सहवास कर रही थी। उसके नत ब के बार बार ऊपर
नीचे आने जाने पर अथव का लग दखाई दे ता था – आयशा क यो न रस से सराबोर वह
लग कमरे क लाइट और बाहर क रौशनी से ब ढ़या चमक रहा था। आयशा अथव के
ऊपर झुक ई थी, जससे अथव उसके तन पी सक। हो भी वही रहा था – अथव के मुंह
म उसका एक तना था, और सरे तन पर उनका हाथ! म वही खड़े खड़े अथव और
आयशा के संगम का अनोखा य दे ख रही थी।

“जानू.. जानू.. बस.. ब स.. आह! दद होने लगा अब... अब छोड़ अआ ह.. दो!”

‘जानू? वाह! तो बात यहाँ तक प ँच गयी है? अ नी... तू या कर रही है??’

“ या छोड़ ं ?” अथव ने आयशा का तना छोड़ कर कहा (बेचारी का तना वाकई


लाल हो गया था), “चूसना, मसलना या फर ठोकना?”।

अथव को ऐसी भाषा म बात करते ए सुन कर मुझे बुरा सा लगा – उनके मुंह से ऐसी
भाषा वाकई शोभा नह दे ती है।

“चूसना और मसलना.. तीसरा वाला तो म ही कर रही ँ.. आप तो आराम से लेटे हो!”

“ठ क है फर.. चलो, यह शुभ काम अब मै ही करता ँ.. अब खुश?”

कह कर अथव ब तर से उठने लगे, और साथ ही साथ आयशा को लटाने लगे।उसके लेट


जाने के बाद, अथव अब आयशा के ह ठो को बड़े अ तरंग तरीके से चूमने लगे। आयशा भी
बढ़ चढ़ कर उनका साथ दे ने लगी। ऐसे ही चूमते ए अथव ने अपनी एक उं गली आयशा
क यो न म डाली, और उसे अ दर बाहर करने लगे। आयशा क ससका रयाँ मुझे साफ़
सुनाई दे रही थ । वह आह ओह करते ए, अथव के बाल को न च रही थी। अथव ने अब
अपनी उं गली उसक यो न से नकाल के उसके मुंह म डाल द । वो मज़े ले कर अपनी ही
यो न का रस चाटने लगी।

अथव और आयशा, दोन ही समागम के लए तड़प रहे थे। अथव ने आयशा क टांगो को
खोला और अपना श ा उसक यो न के खुले ए मुख पर रख दया। उनका लग
कतना मोटा था! सच म! यह लग अगर मेरी यो न म जाएगा, तो अपार क तो होना ही
है! ले कन आयशा क यो न क अब तक इतनी कुटाई हो चुक थी क अथव के एक ही
झटके म उनके लग का आधा ह सा उसके अ दर चला गया। आयशा के चेहरे पर मा
ह का सा क का भाव आया, और उसने अथव का लग अपनी यो न म सही तरह से ले
लया। अथव नीचे झुक कर उसके तन पर भोग लगाने लगे और साथ ही साथ नीचे क
तारफ अपनी कमर को एक झटका और दे कर के अपने लग को उसके अ दर पूरी तरह
व कर दया। आयशा ने अपने हाथ उनक कमर के गद लपेट कर अपनी तरफ और
ख चने लगी। अथव पूरे जोशो खरोश के साथ सहवास करने लगे... उधर आयशा भी नीचे
से अपनी कमर को उछाल कर उनका साथ दे रही थी।

म और अ धक नही दे ख सकती थी... भले ही स मुख य इतना रोचक और कामुक हो..


यह उन दोनो के बीच का अपना और ब त ही अंतरंग संसग संबंध था, और म ऐसे चोरी
छपे दे ख कर इस बात का अनादर नही कर सकती थी.. म ज द से अपने कमरे म वापस
चली आई और ब तर पर लेट गयी और सोने का नाटक करने लगी। जब आयशा और
अथव फ़सत पाकर कमरे से बाहर नकलगे, तब उनको कसी कार क ल ाजनक
त का सामना नही करना पड़ेगा।

कुछ दे र के बाद (कोई पं ह मनट के बाद) मुझे उनके कमरे का दरवाज़ा खुलने क
आवाज़ आई। म दम साध कर लेट रही – जैसे अभी भी सो रही ँ। मुझे वाकई बुखार सा
हो गया था। ऐसे ही नाटक करते करते न जाने कब आँख लग गयी, मुझे कुछ याद नह है।
ले कन मेरी न द तब खुली जब मने अपने गाल और माथे पर कसी के छू ने का एहसास
आ।

मैने आँख खोल ... सामने आयशा बैठ ई थी...! वो मेरे गाल को यार से सहला रही थी।

"आयशा! आप?"

" ह ह... अभी त बयत कैसी है?"

“त बयत?”

“हाँ.. बुखार से तप रहा था तु हारा शरीर! मने कोई दवाई नह द , ले कन सोचा क पहले
तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”

“तप रहा था? मेरा शरीर?” फर अचानक याद आया क वो तो मेरे शरीर क कामा न क
तपन थी। मने सोचा क आज आयशा से इस बारे म बात कर ही ली जाय।
“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नह है... अथव कहाँ ह?”

“वो तो बाथ म म ह! य ?”

“वो इस लए, क मुझे आपसे एक बात करनी थी!”

“ या बात है? बताओ?”

म हचक , “आयशा, या आप और अथव... मतलब, या आप दोन शाद करना चाहते


ह?”

“ऐसे य पूछ रही हो, अ नी?” आयशा ने सतक होते ए पूछा।

“मने आज आप दोन को... सहवास करते ए...”

“हाय अ लाह!” कहते ए आयशा ने अपने दोन हाथ से अपना चेहरा ढँ क लया।

“बताइए न?”

“करना तो चाहती .ँ .. ले कन तुम भी तो..”

“म भी तो या?”

“तुम भी तो उनसे शाद करना चाहती हो.. है न?”

“ये आप कैसे कह रही ह?” मने तरोध कया।

“अ नी, म भी औरत ,ँ और तुम भी! और औरत ही सरे औरत के मन क बात समझ


सकती है! हमको कुछ कहने सुनने क ज़ रत होती है या?”

म चुप ही रही। आयशा भी कुछ दे र चुप रही, और फर आगे बोली,


“अथव ह ही ऐसे मद! य न कोई लड़क उनको चाहने लगे? मद नह , सोना ह सोना! म
तो उनक ल डी (गुलाम) बन गयी !ँ ”

मने कुछ ह मत करी।

“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, ले कन पूछना ज़ री है। आप उनसे उनक दौलत
के लए शाद करना चाहती ह?”

आयशा मु कुराई, “हा हा! नह .. मने तु हारी बात का कोई बुरा नह माना। मुझे मालूम है
क अथव ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर द है। नह ... दौलत के लए नह ! मेरी
नस क नौकरी म यादा तो नह , ले कन कम कमाई भी नह होती। आराम से चल जाता
है। नह ... उ ह ने जस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दलाया है, मुझे जस तरह से
मान स मान दया है, उसके लए! ... कौन सी औरत नह करेगी उनके जैसे मद से
मोह बत? अथव न केवल ज म से ही एक भरपूर मद ह, ब क दल से भी ह।"

“ले कन.. आप तो पराये धम क ह?”

“हाँ! ले कन, पराये धम क होने से पहले एक इंसान भी तो ँ!”

“नह नह ! मेरा वो मतलब नह था।“

“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तु हारा वो मतलब नह था! हाँ.. पराये धम क ँ.. अ बू कुछ
न कुछ नाटक कर सकते ह!”

फर कुछ क कर, “तु हे तो कोई द कत नह ? ... मेरा मतलब...”

मेरी उदासी मेरे चेहरे पर साफ़ दखने लगी।

“अ नी, अगर तुम उनसे यार करती हो, तो तुमको उ ह बताना चा हए!”

“अगर का कोई सवाल ही नह है आयशा...”


“इसी लए तो ये समझा रही ँ तुमको! ऐसे मन म रखने से तो उनको मालूम नह होगा न?
कसी को वाब थोड़े न आ रहे ह! और सच कहती .ँ . अगर वो भी तुमको पसंद करते ह,
तो मुझे ब त ख़ुशी मलेगी.. और भी ख़ुशी मलेगी अगर तुम दोन मल जाओ। ःख तो
ब त होगा.. झूठ नह कह सकती... ऐसा शानदार मद हाथ से चला जायेगा, तो कसी को
भी अफ़सोस होगा! ले कन, मुझे ख़ुशी भी मलेगी। सच कहती !ँ “

“आयशा.. आप इतनी अ ह, मुझे भी लगता है क उनको आपसे शाद करनी चा हए!”

“अ नी, ऐसे मत कहो! म तो ब त बाद म आई... ले कन मुझे मालूम है क तुमने उनक


सेवा म दन रात एक कर दया था। इस लहाज़ से तु हे पहला हक़ है, उनसे यार जताने
का। ले कन अथव को नह मालूम क तुम उनसे यार करती हो! मुझे भी काफ कुछ हो
जाने के बाद मालूम पड़ा.. नह तो म कैसे भी उनसे इतना न घुल- मल जाती।“

आयशा कुछ दे र के लए चुप हो गयी – कमरे क न त ता म दोन लड कयाँ जैसे अभी


अभी ई बात क वज़न का माप कर रही थ । चु पी वापस आयशा ने ही तोड़ी –

“अ नी यारी, मेरी तो बस यही सलाह है क तुम उनको बताओ। उनको बताओ क तुम
उ ह यार करती हो! बाक तो सब अ लाह का रहम!”

आयशा क ऐसी बात सुन कर मुझे ब त राहत ई – एक अरसे के बाद कसी से इस तरह
बात करी। इस कारण मन का ःख आँख के रा ते, आंसूं बन कर बाहर नकल आये।
आयशा ने मुझे अपने गले से लगा लया। और मुझे दलासा दे ने लगी। कुछ दे र के बाद वो
ही बोली,

“ य न हम एक काम कर?”

मने वाचक डाली,

“आज घर जाना क सल कर दे ती ँ! और... तुमको फुल-बॉडी मसाज दे ती !ँ एक तो


तुमको खूब अ ा महसूस होगा, और सरा, कभी न कभी अथव तु हारे कमरे के सामने
से गुजरगे! तु हारा नंगा बदन दे ख कर कुछ तो समझ आएगा न उस बु को?”
“ध आयशा! आप भी न!”

“अरे! इतना कम सन ज म है! कभी दखाओ तो उ ह!”

“ या! आप भी न !”

“अरे! आप भी न का या मतलब है? पता है, जब उ ह ने जब मेरी छा तयाँ पहली बार


नंगी कर , तो कैसी आह भरी थ ! मद के सामने अपनी छा तयाँ परोस दो, बस! उसक तो
तुरंत लार टपकने लगेगी! और इस बेचारे को तो कतना दन भी हो गया था!”

“ छः! कतनी ग द हो तुम!” मेरी आँख के सामने सवेरे के य घूम गए।

“ग द नह ! खैर, मद क ही या बात कर! हम औरत क भी तो ऐसी ही हालत हो जाती


है! इन चूच पर मद क जीभ पड़ जाय बस! हा हा!”

“ध ...”

“अरे! ध या! बेटा, अगर अथव मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, क तुझे ऐसा
लगेगा क सात ज त क सैर करके आई हो! बाप रे! थका दे ते ह वो तो! ... और, उनका
औज़ार भी तो कतना तगड़ा...”

मने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथ से बंद कर लए, और अपनी आँख भी
मचल!
आयशा बात म तो मा हर थी। उससे भी अ धक उसम नेह था। जो सारी बात अभी
आयशा ने कही थी, वो सारी बात मेरे लए भी उतनी ही सच थ । अगर अथव आयशा को
पसंद कर ल, तो मुझे भी ब त ख़ुशी मलेगी – ःख होगा, ले कन वाकई, ख़ुशी भी ब त
मलेगी। एक बार तो मन आ क य न आयशा भी हमारे साथ ही रहे। शाद कसी क
भी हो, ले कन साथ तो हम तीन ही रह सकते ह! ले कन इस लान म एक अड़चन यह थी
क आयशा क शाद म द कत आएगी...

ह! कमाल है! म पहले से ही सोच रही ँ क अथव मुझे ही पसंद करगे, और मुझ ही से
शाद करना चाहगे! मज़े क बात है, क मने अभी तक उनको अपने मन क बात भी नह
बताई!

आयशा के उकसाने पर मने मा लश के लए हामी भर द । मुझे ब त शम आ रही थी और


मन म एक उलझन सी भी बन रही थी। कुछ दन पहले ही आरती के सामने म नंगी हो
गयी थी, और उसके साथ न जाने या या कर डाला था, और आज आयशा है! या म
ठ क ?ँ कह म ले बयन तो नह ? सुना तो है क याँ आसानी से समल गक स ब
बना लेती ह। ले कन जो म अथव क तरफ आक षत होती ,ँ वो या है? और.. और...
आज भी म आयशा को सफ इसी कारण से यह सब करने दे रही ँ, य क उसने मुझे
अथव के सामने दशन का लालच दया है। शायद म ठ क ँ!

आयशा कुछ दे र के लए कमरे से बाहर गयी ई थी – मा लश के लए तेल लाने। अथव


द द क अ सर ही मा लश करते थे – ख़ास तौर पर स ताहांत म। मा लश के साथ साथ
द द के साथ जम कर सहवास भी करते थे। द द भले ही थक कर चूर हो जाती थी,
ले कन फर भी उसके चेहरे पर संतु के भाव, रह य भरी मंद मंद मु कान मुझसे छपी
नह रहती थी। वाकई, अथव इस काय म ब त कुशल थे। मुझे बगल के कमरे से अथव
और आयशा क दबी ई आवाज सुनाई दे रही थ । न जाने या कह रही होगी ये उनसे!
खैर, कोई पांच मनट के बाद आयशा वापस कमरे म आई। जब उसने मुझे अपने पूरे
कपड़ म दे खा तो उसने मुझे कपडे उतारने को कहा। म शरम के कारण दोहरी हो रही थी
और मेरा चेहरा लाल सा हो गया था।

आयशा मुझे ऐसे दे ख कर मेरे पास आई, और मेरे दोन हाथ को पकड़ कर ब त ही धीमे
वर म बोली, “अ नी, मुझसे शरमाओ मत! म तु हारी दो त !ँ और, तुमने मुझे आज
नंगा दे खा है... और वो सब करते दे खा है, जो नह दे खना चा हए! इस लए, अब इतना तो
बनता है न?”

आयशा क बात तो सही थी। मने अपने सूखे गले को थूक क एक घूँट से तर कया, और
अपने कपडे उतार दए। अ दर कुछ पहना आ था नह , इस लए म तुरंत ही पूण न न हो
गयी। मुझे इस हालत म दे ख कर आयशा भी एक बार हत भ हो गयी।

“ या बात है अ नी! सचमुच तुम ब त सु दर हो – न केवल तु हारी सूरत, ब क ये (मेरे


तन क तरफ इशारा करते ए) तेरी छा तयाँ भी! और ये ( फर मेरी यो न क तरफ), तेरी
यो न भी! जब यो न क फांके ऐसे दखती ह, तो या सु दर लगती ह!”
ब कनी वै स ारा बाल नकालने के बाद मेरी यो न पर बाल के हलके ह के रोय ही उगे
ए थे। ऐसे म मेरे यो न के दोन ह ठ दख रहे थे।

“मन करता है क इनको चूम लूं!”

कह कर उसने वाकई मेरी यो न के ह ठ को चूम लया।

“ईई ष! आयशा, मने इसे धोया नह था!” उसके इस काम से मुझे हलक सी घन आ
गयी।

“धोया नह था? म.. इसी लए इतनी नमक न थी!”

उसक ऐसी बात से मेरी शम और हच कचाहट कम तो नह होने वाली थी। इस लए म


ब तर पर मुँह छु पा कर लेट गयी। और आयशा ने हँसते ए मेरी पीठ पर तेल डाल कर
मा लश करना शु कया। हलके हाथ से धीरे धीरे मा लश होना – मुझे ब त अ ा लग
रहा था। कुछ ही दे र म मेरे मुँह से सुख भरी आवाज नकलने लग । कोई दस मनट के बाद
उसने मेरे पैर मा लश शु करी। मा लश करते ए उसके हाथ धीरे धीरे ऊपर क तरफ
आ रहे थे – यह मुझे मालूम हो रहा था। ऐसा नह है क वो मुझसे छु पा कर कुछ भी कर
रही हो।

खैर, जाँघ क मा लश करते ए जब तब उसके हाथ मेरे नत ब के बीच म छू जाते थे।


वैसे भी कुछ दे र पहली क घटना के कारण म वैसे ही गम हो गयी थी – अब तक मेरी
यो न से रस भी रसने लगा था। मेरी ससका रयाँ अभी भी नकल रही थ , ले कन अब
मुझे ही नह मालूम था क वो मा लश क संतु के कारण थी, या फर कामुक!

अचानक ही आयशा ने मेरे हाथ क मा लश शु कर द । एक तरह से मुझे राहत ही ई।


ले कन जब दो मनट बाद वो वापस मेरे पु को मसलने लगी, तो म समझ गयी क बाह
क मा लश तो महज़ एक खाना पूरी थी। मेरे नत ब क मा लश वो ऐसे कर रही थी, जैसे
आटा गूंथ रही हो। बीच बीच म रह रह कर वो दोन पु पर अपनी मु से हार भी
करती। इस कारण से मीठा मीठा दद उभर कर नकल रहा था। म मीठ पीड़ा, आनंद, सुख
और काम – इन न जाने कतने मले जुले भाव के सागर म गोते लगाने लगी। अचानक ही
आयशा क आवाज़ सुन कर मेरी त ा भंग ई,
“गु ड़या रानी, अब सामने क बारी!” कह कर उसने मुझे पीठ के बल लेटने को कहा।

मुझे सहरन सी होने लगी। आयशा ने मेरे सामने क तरफ मा लश शु कर द थी। पहले
तो उसने मेरी गदन और कंधे क मा लश करी, और फर दोन तन पर काफ तेल लगा
कर कुछ यादा ही जोर शोर से मा लश करने लगी। कहने क आव यकता नह क मेरी
उ ेजना अब काफ बढ़ गयी थी। आयशा के हाथ क हरकत के साथ साथ मेरी
ससका रयाँ भी बढती जा रही थ ।

ले कन, आयशा का मन भरा नह था – उसका खेल जारी रहा। कुछ दे र त बयत से मेरे
तन क मा लश करने के बाद वो मेरे चूचक के साथ भी खलवाड़ करने लगी। वो कभी
उनको अपनी तजनी और अंगूठे के बीच पकड़ कर मसलती, तो कभी उनको बाहर क
तरफ ह के से ख चती । उसने ऐसा न जाने कतनी बार कया – ले कन मेरी हालत खराब
हो गयी। मेरी आह और भी भारी और तेज हो गई। हार कर मने उसका हाथ पकड़ कर
उसको रोक दया। तब कह जा कर उसके मेरे तन का पीछा छोड़ा।

अगली बारी पेट क थी। मने राहत क सांस ली। कोई पांच मनट के बाद उसने
आ खरकार मेरी यो न क मा लश आर कर द । डर के मारे मने अपने दोन पैर एकदम
सटा लए थे, जससे वो यो न से खलवाड़ न कर सके। ले कन उसक उं गली रह रह कर
जाँघ क बीच क दरार म लुका छपी खेल रही थी। अथव के साथ रह रह कर आयशा को
कुछ तरीके तो आ ही गए थे। उसक इन हरकत से म फर से उ े जत हो गई, और मेरे पैर
खुद ब खुद खुलते चले गए। आयशा को मेरी यो न साफ़ साफ़ दखने लगी।

“ कतने पतले पतले ह ठ ह...” आयशा अपनी ही नया म थी और इस समय मेरे यो न के


ह ठ को हलके से मसलते ए कहा, “गुलाबी गुलाबी! सच म! गुलाब क कली जैसी!”
मुझे यो न से काम-रस बहता आ महसूस आ! उस ान पर गीला गीला और ठं डा ठं डा
लग रहा था।

“मज़ा आ रहा है न अ नी?” उसने धीरे धीरे से मेरे भगनासे सहलाते ए पूछा।

म या ही कहती? मेरी फर से आह नकलने लग , और म अपना सर इधर-उधर कर के


छटपटाने लगी। आयशा को मेरी हालत तो साफ़ पता चल ही रही होगी! उसने अगले कोई
दो मनट तक अनवरत उस ह से को कुछ तेज़ ग त से रगड़ा। दे खते ही दे खते म म त
आह भरते ए चरमो कष पर प ँचते ए ख लत हो गई।

जब मने वासना क म ती म चूर आँख खोल , तो आयशा ने कहा,

“मज़ा आया?”

म मु कुरा द ।

“तुम ज त क र हो, अ नी!”

उसने कुछ दे र मेरे एक तन को सहलाया और फर कहा, “तुम ह मत कर के उनको अपने


दल क बात बता दो! तुमको भी खुश रहने का पूरा हक़ है!”

फर उसने मेरे माथे को चूमते ए कहा, “हमेशा खुश रहो!”

आयशा क हरकत से मेरे शरीर म आग लग गयी। वो मुझे उकसाने का यास कर रही


थी, जसमे वो शत तशत सफल रही। उसके कहने के बाद मने मन म ठान लया क म
अथव से अपने ेम का इज़हार क ं गी।

मने इंतज़ार कया जब अथव नहा धो कर बाहर नकलगे, तब म उनसे बात क ं गी। कमरे
क आहात से पता चल गया क वो कुछ ही दे र म बाहर आ जायगे... उसके पहले म ही
कमरे म चली गयी।
“आप कैसे ह?”

“एकदम ब ढ़या, अ नी!”

उ ह ने मु कुराते ए कहा, “अ ा कया, जो तुम मुझसे बात करने चली आय । मु त हो


गयी, तुमसे आराम से बात कया ए।“

“हाँ! म भी चाहती थी क हम फॉमल जैसी बाते न कर!”

मेरी इस बात ने ज़ र उनके दल को कह न कह कचोट दया होगा। फॉमल बाते ही तो


होती ह हमारे बीच! उनका सु दर चेहरा उतर गया.. वो कुछ कह न पाए! मने बात स हालने
क को शश करी,

“ मेरा वो मतलब नह था..”

“नह अ नी! तुम सही ही तो कह रही हो! मेरी हरकत के लए मेरे पास कोई बहाना नह
है.. हो सके तो माफ़ कर दो!”

“नह नह .. आप माफ़ य कह रहे ह! मने आपको उलाहने दे ने के लए यह नह कहा!”

“मुझे मालूम है अ नी! तु ही तो हो, जो मेरा इतना ख़याल रखती है!” उ ह ने मु कुराने
क को शश करी! मु कुराते ए ये कतने सु दर लगते ह!!

“और भी रखूंगी.. अगर आप ऐसे ही हँसते मु कुराते रह!”

“हा हा! हाँ! .. अ ा चलो, बताओ.. कॉलेज कैसा चल रहा है?”

“ब ढ़या!”

“दो त बनाए वहां?”

“हाँ! ब त से ह!”
“मुझे तो बस आरती का ही पता है!”

“उसके अलावा भी कई ह...”

“लड़के भी?”

“हाँ!”

“ म... गुड! कोई ख़ास?”

“नह ! उनम कौन ख़ास हो सकता है!”

“अरे य ?”

“अ ा.. आप मेरी नह अपनी बताइए! आपक कोई गल ड है?”

“मेरी गल ड? हा हा!”

“सच सच बताइयेगा?”

“ह म.. अ नी, कोई और होता तो झूठ बोल दे ता.. ले कन तुमसे झूठ नह कह सकता!
आयशा अ लगती है मुझे!”

“हाँ! आयशा तो है भी अ !”

“तुमको अ लगती है?”

“हाँ! उसके आने से आप कतना खुश रहने लगे ह!”

“अरे! ऐसे य कह रही हो? तु हारे साथ या म गु सा था?”

म चुप रही। अथव भी कुछ दे र सोच म पड़ गए,


“या शायद था! तुमने मेरी लाइफ, और पसना लट का सबसे खराब भाग झेला है!”

“नह ! म कोई शकायत नह कर रही ँ! म तो बस इसी बात से खुश ँ क वो पुराने वाले


अथव वापस आ रहे ह!”

“हः! पुराना वाला अथव तो तु हारी द द के साथ ही चला गया, अ नी।“ अथव क
आँख से खामोश आंसूं नकलने लगे, ”वो तो मेरी आ मा थी। अब तो बस मेरा ढाँचा ही
बच रहा है!”

“हाँ! द द तो सबसे अ थी!” मेरा दल बैठ गया ‘थी’ कहते ए!

“सच म... उसके बना सब फ का फ का लगता है..”

“आयशा के रहते ए भी?”

“अ नी, आयशा मुझे अ ज़ र लगती है, ले कन वो मेरी गल ड नह है! हम लोग


सहवास करते ह, ले कन अभी तक दल के स ब नह बन पाए ह! और... मुझे लगता भी
नह क ऐसा कुछ होगा!”

“ऐसा या आ आयशा के साथ?”

“नह .. बात सफ आयशा क नह है... मुझे नह लगता क कसी भी लड़क के साथ मुझे
अब या जैसा लग सकेगा!”

यही समय था!

“ या क परछा के साथ भी नह ?” मेरी आवाज़ म एक तरह क ठं डक सी आ गयी थी..

अथव एकदम से ठठक गए,

“मतलब?”
मेरा गला सूख गया,

“आप.. मुझसे शाद करगे?” ब त धीमी आवाज़ नकली।

“अ नी! ये तुम या कह रही हो?”

“अथव! म आपसे यार करती ँ! और आपसे शाद करना चाहती ँ! म चाहती ँ क म


आपके सारे ःख बाँट सकूं, और आपको सब कार के सुख दे सकूं!”

“अ नी!.. अ नी.. ले कन तुम मुझसे .. मुझसे कतनी तो छोट हो!”

“ तो या आ?”

अथव वाकई ह के ब के हो गए थे।

“ल ल.. ले कन.. मेरी.. ओह भगवान्!”

“अथव! मेरी तरफ दे खए... मुझे मालूम है, क आपने मुझे उस नज़र से कभी नह दे खा,
ले कन मने पहली ही नज़र से आपसे हमेशा ेम ही कया है.. हाँ – यह सच है क उस ेम
के प बदलते चले गए। अगर द द न होती, तो म आपसे ही शाद करती। उनके बाद, मने
इतने दन तक अपने मन म यह बात रखी ई है.. ले कन, अब और नह होगा। मने मन ही
मन आपको अपना प त माना आ है! बाक सब आपके हाथ म है!”

कह कर म कमरे से बाहर नकल गयी। दय का बोझ काफ ह का हो गया।


२७
मेरा मन अ यंत अशांत था – कहने सुनने म तो आज का दन भी पहले के दन के ही
समान था, ले कन मन म न जाने कतने वचार आ और जा रहे थे। अ नी क ववाह
तावना मेरे लए अ यंत अ या शत थी। अचानक ही जीवन ने एक नया ही मोड़ ले
लया। एक तो ये ‘अचानक’ जैसे क मेरे पीछे ही पड़ गया है – कभी तो इससे मुझे लाभ
आ, और कभी भारी हा न भी उठानी पड़ी – या से मलना एक अचानक और
अ या शत घटना थी... जीवन के उन कुछ साल म म इतना खुश था, जतना कभी नह ।
फर वो अचानक ही चल द ! फर अचानक ही मेरा ए सीडट हो गया... अचानक ही
आयशा के साथ स ब बने.. और आज, अचानक ही अ नी ने यह दाग दया!

कैसी कमाल क बात है न? हम दोन इतने साल से साथ म ह, ले कन मुझे कभी इस बात
का भान भी नह आ क अ नी मुझको ले कर ऐसे सोचती है। खैर, भान भी कैसे होता?
म तो अपने ही ग़म म इतना घुला आ था क आस पास का यान भी कहाँ था? ले कन
अब जब यह बात खुल कर सामने आ ही गयी है तो इस पर वचार करना ही पड़ रहा है –
या अ नी के साथ मेरा होना ठ क रहेगा? म उससे कई साल बड़ा .ँ .. कई साल! उसने
बोला था क “तो या आ?” एक तरह से दे खो तो वाकई, तो या आ? या भी मुझसे
कई साल छोट थी....। ले कन इन दो बात म या समानता है? या से मुझे ेम आ था।
जब ेम होता है, तो उ , जा त, बरादरी, धम इ या द का कोई ान नह होता – बस
पु ष और नारी का! (और कुछ लोग म पु ष पु ष और नारी नारी का!) इस लहाज से
दे खा जाय तो या कोई बड़ी अनहोनी नह थी। अ नी को भी मुझसे ेम आ था। अब मेरे
सामने एक ही है, और वो यह क या मुझे भी उससे ेम है? मतलब, ेम तो है..
ले कन वो ेम, जसक प रण त ववाह हो?

ले कन अ नी मेरे लए ववाह ताव लाई थी। इस नाते यह सब तो सोचना ही पड़ता है


न! अभी तो वह नयी नयी जवान ई है। जवान शरीर क अपनी मांगे होती ह। मेरी हालत
तो अभी पूरी तरह से ठ क तो है नह । फर मन म वचार आता है क यह सब एक बहाना
है। आयशा को मने इसी हालत म इस कार संतु कया है क वो मेरी मुरीद बन गयी है!
आयशा को या क ं? उसको कैसा लगेगा? वो भी कतनी अ लड़क है! उसका दल
टू ट जाएगा! सच क ं तो मेरे पास कुछ ख़ास वक प नह ह... जो ह वो वा तव म सबसे
अ े ह। या तो अ नी से ववाह क ँ , या फर आयशा से! कसी भी एक वक प को
चुनने से सरे का दल तो अव य टू टेगा। यह सोचना मेरे लए क द है। जो भी होगा, इन
दोन को ही सुनने का पूरा हक़ है।

कह कसी को कहते ए सुना है – ेम कह से भी, कसी से भी और कसी भी प म


आये या मले, तो उसको लपक कर ले लेना चा हए। और मुझे तो बैठे बैठे जैसे झोली म
डाल कर या थाली म परोस कर ेम मल रहा था। कुछ तो अ ा कया होगा मने अपने
जीवन म – पहले या, फर आयशा और अब अ नी! नह नह – म म कुछ गड़बड़ है
– अ नी आयशा के पहले से है। खैर, म का या है? वृ म भला या कोई आ द या
अंत होता है? ठ क वैसे ही, ेम म भी या आ द या अंत?

मेरे लए यह भी सोचने वाली बात थी क म ेम के खा तर ववाह करना चाहता था, या


इस लए क मेरा ब तर गरम रहे? आयशा से मुझे शारी रक संतु तो ब त मल रही है...
यह उसी क दे न है क आज म अपने हाथ पांव का ठ क से इ तेमाल कर पा रहा ँ।
उसका ब त उपकार है मुझ पर। ले कन, या म उससे शाद कर सकता ?ँ उसके धम से
मुझे कोई लेना दे ना नह है.. ले कन, मन म यह बात तो अटक ई है क म उससे यार तो
नह करता। वो मुझे अ लगती है, मेरी सबसे ख़ास दो त भी है, ले कन मुझे उससे ेम
नह है! मेरा मतलब, ‘उस’ कार का।

सरी तरफ अ नी है, जो मुझे चाहती है – आज अगर जी वत ँ, तो सब उसी क


आ , ाथना और ेम के कारण ही है। लोगो ने मुझे कहा था क कैसे उसने दे वी
सा व ी के समान ही मेरे ाण, मानो यमराज से वापस मांग लए! कभी कभी सोचता ँ
क उसके मन और दय पर या बीत रही होगी उस समय? या उसने भी दे वी सा व ी के
ही समान यमराज से सौ पु का वरदान माँगा था? या या सोच रहा ँ म? म दन म
अपने कमरे म ही रहा। बाहर जाने जैसी ह मत नह ई – अगर अ नी से आँख मल ग
तो? या क ँगा म उससे?

अ नी से आँख मलाने के लए मुझे कमरे से बाहर जाने क आव यकता नह थी। वो


खुद ही आ गई – एक मंद मु कान लए!

‘ओह भगवान! कतनी यारी है ये लड़क !’

“आपको यूँ कमरे के अ दर बैठे रहने क कोई ज़ रत नह ! आइए, लंच कर लेते ह?”
कह कर उसने बना मेरे उ र क ती ा कये, मेरे हाथ पकड़ कर मुझे ब तर से उठाने
लगी। म भी एक अ े ब े क तरह उठ गया, और न जाने कतने दन के बाद डाइ नग
टे बल पर उसके साथ बैठ कर खाना खाया। कभी कभी छोट छोट बात भी कतनी सु दर
लगती ह! दमाग म या के साथ वाले सुख भरे दन का य घूम गया। होनी कतनी
बल है! उसको कौन टाल सकता है?
अगली सुबह जब आयशा घर आई, तो अ नी को वहां उप त दे ख कर थोड़ा अचरज म
आ गई .. फर उसको तुरंत समझ म आ गया।

“आयशा! आओ! आज हम सभी साथ म ना ता करगे?” उसको बताने से यादा, म पूछ


रहा था।

उसको लग गया क अब फैसले क घड़ी है, तो उसने भी कोई न नुकुर न करते ए हमारे
साथ होने म भलाई समझी। ले कन, म कुछ कहता, उससे पहले ही आयशा ने अ नी से
पूछा,

“अ नी, तुमने इनको बता दया?”

अ नी शरमाते ए मु कुराई, और साथ ही उसने हाँ म सर हलाया।

“ओह अ नी!” कहते ए उसने अ नी को अपने गले से लगा लया!

“आई ऍम सो है पी फॉर यू!”

“थक यू, आयशा!” अ नी बस इतना ही कह सक ।

“अथव,” आयशा ने मेरी तरफ मुखा तब होते ए कहा, “आपको कुछ कहने क ज़ रत
नह है.. बस इतना बता द जए, क आप अ नी से शाद करगे?”

अचानक ही मेरा ल बा चौड़ा भाषण दे ने का लान चौपट हो गया! मेरी बोलती कुछ ण
के लए बंद हो गयी।

“अरे कुछ बो लए भी!”

“आयशा...”

“हाँ, या ना?”
“ हान!” मेरे मुँह से बेसा ता नकल गया।

आयशा मु कुरा द .. उसक आँख से आंसू भी नकल आये! भरे ए गले से उसने मुझे
बधाई द ...

“वैरी गुड चॉइस! सच म! अगर तुम अ नी से शाद न करते, तो मुझसे बुरा कोई न होता!
..” वो रोने लगी, “कम, गव मी अ हग!”

अ नी तुरंत ही आयशा से लपट कर रोने लगी! म भी संकोच करते ए उससे लपट


गया।

“मेरे सामने नंगा होने म शम नह आती, ले कन मुझे हग करने म शम आती है? कम... हग
मी ोपरली..” आयशा ने रोते ए हच कय के बीच म मुझे झाड़ लगाई।

अब तक मेरे भी आँसू नकलने लगे। हम तीनो न जाने कतनी दे र तक यूँ ही आपस म


लपट कर रोते रहे, फर अलग हो कर हमने साथ म ना ता कया।

ना ते के बाद अ नी ने आयशा का हाथ थाम कर उससे कहा,

“आयशा, चाहे कुछ भी हो, ये घर आपका भी है!”

आयशा ने बीच म कुछ कहना चाह तो अ नी ने कहा, “मुझे बोल लेने द जए, लीज! मेरे
लए आपका दजा मेरी द द के जैसा है! इस घर म आपक इ ज़त उ ही के जैसे होगी।
मेरी एक वनती है आपसे – आप यह पर र हए!”

आयशा फर से रोने लगी, “न बाबा! तुम दोन जब साथ म आह भरोगे, तो मेरा या


होगा?” बेचारी, इस बुरी हालत म भी वो मज़ाक करने से नह चूक रही थी।

अ नी ने कहा, “तो फर ठ क है! हम दोन तब तक शाद नह करगे, जब तक आपके


आह भरने का परमानट इंतजाम न कर द! य ठ क है न?” ये आ खरी वाला मेरे लए था!

“ या मतलब?” मुझे वाकई नह समझ आया।


“आप द द के लए कोई अ ा सा लड़का ढूं ढए न! जब तक इनक शाद नह होगी, म
भी नह क ं गी!” अ नी ने फैसला सुनाया।

ऐसा नाटक य दन शायद ही कसी के जीवन म आ हो!

अब अ ा सा लड़का यूँ ही तो नही मलता है! दे खना पड़ता है, लड़के क पृ भू म क


जांच करनी होती है, फर दोन एक सरे को पसंद भी करने चा हए! अगर ेम के अंकुर
नकल पड़, तो और भी अ ा! इसको एक अ त संयोग ही मा नए क कोई दो महीने
बाद, मेरी मुलाकात मेरे अ भयां क क पढाई के दन के एक म से ई। उसका नाम
अमर है। वो मुझसे मलने मेरे घर आया था – म अभी भी ऑ फस नह जा रहा था, और
घर से ही काम करता था। वो एक महीने के लए भारत आया आ था – वैसे अभी
ल समबग म रहता था, और वह पर उसने अपना बजनेस जमा लया था। उसको मेरी
घटना के बारे म मालूम पड़ा तो मलने चला आया – वैसे उसका घर द ली म था।
उसने अभी तक ववाह नह कया था।

मलने आया तो उसक हम सभी से मुलाक़ात ई। मुझे तुरंत ही समझ आ गया क उसको
आयशा म दलच ी है। मने उसको पूछा क वो कहाँ ठहरा आ है, तो उसने होटल का
नाम बताया। मने जद से वहां क बु कग क सल कर द , और हज़ार कसम दे कर उसको
यह मेरे घर पर रहने को कहा। इससे एक लाभ यह था क मेरे पुराने म से म दे र तक
बात कर पाऊँगा, और सरा यह क आयशा और अमर को एक सरे से बात करने का भी
अवसर मलेगा।

हमारी बात म मने जान बूझ कर आयशा का कई बार ज़ कया, जससे वो उसके बारे
म और पूछे, और उसके बारे म ठ क से जान जाय। बाक सब तो भु क इ ा! एक
और बात थी – वो मने कसी को नह बताई थी, और वो यह, क अमर का लग मेरे लग
से बड़ा था। ल बाई म भी, और मोटाई म भी। मुझे कैसे मालूम? अरे दो त , बी टे क का
हाल अब न ही पू छए! भाई को एक बार दा पीना का शौक चराया था। न जाने कतनी
ही बार मद म लड़खड़ाते ए अमर को मने टॉयलेट म ले जा कर मुताया था। पै ट् स म से
उसका लग बाहर नकालने पर कई बार खड़ा आ भी रहता था। ऐसे म मुताने के लए....
अब छो डये भी!
अगर इन दोन क शाद हो जाय, तो वाकई, आयशा क आह भरने का परमानट इंतजाम
हो जाए! और सबसे बड़ी बात यह, क अमर एक ब त अ ा लड़का, मेरा मतलब
आदमी, भी है। वो इस समय अपने क रयर और जीवन के उस मुकाम पर है, जहाँ पर
उसको एक साथी क आव यकता थी। उसके वापस द ली जाने के दो दन बाद जब
आयशा के लए उसका फोन आया, तो मुझे जैसे मन मांगी मुराद मल गयी! उसके एक
स ताह के बाद, आयशा ने शाद के लए उससे हाँ कर द ! भले ही उन दोन को एक सरे
के बारे म ब त कुछ न मालूम हो, ले कन मुझे यक न था क लड़क वाकई, ब त खुश
रहेगी! और अमर भी!

अमर और आयशा क शाद जैसे आंधी तूफ़ान क तरह ई! दोन ने कोट म जा कर शाद
करी थी – आयशा के अ बू ने फ़ज़ूल क न नुकुर तो करी, ले कन अमर के लायक न होने
का कोई कारण न ढूं ढ सके। अब बस ह पराये धम क के फक के कारण ऐसी शाद तो
कोई नह छोड़ सकता है न? लहाजा, दोन क शाद आराम से हो गयी। वैसे भी अमर
दखावे के स त खलाफ है – इस लए शाद म अ नी, म, आयशा के अ बू, और पांच
और म के अ त र और कोई नह आमं त था। शाद द ली म ई, और वह पर
र ज टर भी। वैसे तो काफ सारा पंच करना पड़ता है कोट क शाद म, ले कन उसने
कुछ दे दला कर ह ते भर म ही दन नकलवा लया। कसी को उनक शाद पर भला
या आप हो सकती थी।

हम सभी ने ब त मज़े कये। शाद के बाद, एक पांच सतारा होटल म खाना पीना आ,
नृ य भी – हम चार ने एक सरे के साथ डांस भी कया। अ नी भी पूरा समय अमर को
जीजू जीजू कह कर छे ड़ती रही। फर हम सबने वदा ली, और उनको अकेला छोड़ दया।
वापसी क लाइट म अ नी ने पूछा,
२८
अ नी क नजर म :

म कमरे म रखे ए आईने म अपने त ब ब को नहार रही थी। जो दखा ब त ही


आ यच कत करने वाला था। वैसे भी जब कोई लड़क हन का प रधान धारण करती
है, तो वो बलकुल अलग सी ही लगने लगती है। और, मेरी सबसे य सहेली आरती ने
कोई कोर कसर नह छोड़ी थी मुझको सजाने म... आरती क ही जद थी क म लहँगा-
चोली पहनूँ। रंग भी उसी ने पसंद कया। वैसे तो म सब कुछ अथव क ही पसंद का
पहनना चाहती थी, ले कन अथव चाहते थे क म अपनी ही पसंद का पहनूँ! अब ऐसे म
कोई रा ता कैसे नकलता? इस मतभेद के कारण न तो मेरी, और न ही अथव क चली...
और म अब आरती क पसंद का ही पहन रही थी, और यह हम दोन को ही आसान लगा।

मने र ट (जंग लगे लाल) रंग का लहंगा चोली पहना आ था – आरती के कहने पर चोली
इस कार सली गयी थी जसमे से पीठ का लगभग सारा ह सा एक गोल से दखता था।
ऐसे म म उसके अ दर कुछ नह पहन सकती थी। इस लए आगे क तरफ तन को संबल
दे ने के लए पै डग लगाई गयी थी।चोली को पीछे क तरफ से बाँधने के लए ऊपर नीचे
डोरी क जोड़ी थी। नंगी पीठ को ढं कने के लए सर पर उसी रंग क चुनरी थी। लहंगा कुछ
कुछ अनारकली टाइप का था। पूरे प रधान पर कुंदन क कारीगरी क गई थी.. इस समय
म वाकई कसी राजकुमारी जैसी लग रही थी।

ओह! एक मनट! कहानी एकदम बीच से शु हो गयी! शु से बताती .ँ .. अमर और


आयशा क दे खा दे खी, हमने भी कोट म शाद करने का फैसला कया। अथव चाहते थे क
कुछ तो धूम धाम होनी चा हए – दरअसल उनको मन म था क मेरे भी अपनी शाद को
लेकर कई सारे अरमान ह गे। ले कन उस उ लू को यह नह समझ आया क जस लड़क
का अपने अरमानो के रजा के साथ ववाह हो, उसको कसी दखावे क या
आव यकता? हमने कसी को कुछ घूस इ या द नह द – और एक महीने के बाद हमारी
भी शाद हो गयी। शाद म मेरे सपल, सारे ट चर, मेरे कई दो त, आरती (वो तो मेरी
सबसे ख़ास है), अथव के ऑ फस के कुछ म , और ीम त हेगड़े जी आमं त और
उप त थे। हमने एक सरे को वरमाला पहनाई! कोट कचहरी क मारा मारी थी,
इस लए मने सलवार कुरता, और अथव ने ट -शट और जी स पहनी ई थी। यहाँ से वापस
घर जा कर अपने राग रंग वाले प रधाना पहनने का लान था।
पताजी धम परायण व सं कारी थे। जात, बरादरी, गाँव, घर, धम-कम म उनक
गहरी च थी। हमेशा से ही उनके लए धम और री त- रवाज क पालना करना परम
कत था। य द वो आज जी वत होते तो या सोचते? या वो मुझे अथव के साथ शाद
करने दे ते? शायद! या शायद नह ! कुछ कहा नह जा सकता! एक ही आदमी को अपनी
दोन बे टयां या कोई स प सकता है? संभव भी हो सकता है – य द पता को मालूम हो
क वो आदमी हर तरह से अ ा है, और उनक पु य को ेम कर सकता है! मुझे आज
उनक , माँ क , और द द क – सबक रह रह कर याद आती रही। बस, दल म यह सोच
कर दलासा कर लया क वो सभी मुझे वह ऊपर, वग से आशीवाद दे रहे ह गे!

हम सबने एक पांच सतारा होटल म साथ म लंच कया। काफ दे र तक ग पे लड़ाई, और


फर घर आ गए।
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मेरी नजर म :
सुहागरात आ ही गई। मेरी सरी सुहागरात! अपनी बीवी क छोट बहन के साथ! मन म
अजीब सा लग रहा था – एक अजीब सी बेचैनी! एक होता है ेम करना – बना कसी
तक के, बना कसी वाद तवाद के, बना कसी लाभ हा न के हसाब के! या के साथ
मने ेम कया था। अ नी से भी मुझे ेम था, ले कन एक ेमी के जैसा नह ! अभी तक
नह । वो अभी भी मुझे या क छोट बहन ही लगती – वो ही छोट सी लड़क जो मुझे
‘दाजू’ कह कर बुलाती थी, और फर जीजू कह कर! अब वही लड़क मुझे प त कह कर
बुलाएगी? प त बना ,ँ तो प त धम भी नभाना पड़ेगा। या के साथ मुझे ब त आ म-
व ास था, ले कन अ नी के बारे म सोच सोच कर ही नवस होता जा रहा ँ!

मुझे नह मालूम था क अ नी को सहवास के बारे म कतना मालूम था। मने और या ने


एक बार उसको कर के दखाया था : उस दन तो वो ब त अ धक डर गई थी। उसने
हमको कहा भी था, क वो कसी के साथ भी ऐसे नह कर सकेगी! न करे तो ही ठ क है!
अपनी से चौदह साल छोट लड़क के साथ कोई कैसे सहवास करे भला? ले कन कुछ भी
हो – एक लड़क का संग मलने का सोच कर एक कार का आनंद तो आ ही रहा था।
साथ ही साथ मेरे मन म कई का के सवाल भी उठ रहे थे – अगर सहवास करने तक बात
प ंची, तो या अ नी मेरा लग ले सकेगी? उसक यो न कैसी होगी? उसे कतना दद
होगा? इ या द! खैर, इन सब का उ र तो रात के अंक (आ लगन / आगोश) म
समा हत थे – जैसे जैसे रात आगे बढ़े गी, उ र आते जायगे!

खैर, अंततः म ‘हमारे’ कमरे म दा खल आ। हमारा कमरा आरती, अ नी क दो अ य


सहे लय – अन या और ऋतु, और ीम त हेगड़े जी के नदशन म सजाया गया था। कमरा
या, एक तरह का पु प कुट र लग रहा था! हर तरफ बस फूल ही फूल! दरवाज़ा खुलते ही
पु प क ाकृ तक महक से मन ह का हो गया। मन म जो सब अपराध बोध सा हो रहा
था, अब जाता रहा। फश पर फूल, द वार पर फूल, ब तर पर फूल, खड कय पर फूल!
पु प क ऐसी बबाद दे ख कर मुझे थोड़ा नराशा तो ई, ले कन अ ा भी लगा। गुलाब,
गदे , रजनीगंधा, रात रानी और चंपा के पु प! मादक सुगंध! ब तर के बगल रखी नाईट
टे बल पर पानी क बोतल और मठाई का ड बा रखा आ था। ब तर पर अ नी बैठ ई
थी, और अपनी सहे लय के साथ गुप चुप बात कर रही थ !
मुझे दे खते ही आरती चहकते ए बोली, “जीजू मेर,े आइये आइये! आपका खज़ाना
आपके इंतज़ार म कब से ाकुल है!” फर मेरे एकदम पास आ कर मेरे कान म
फुसफुसाते ए बोली, “ज़रा स हाल के ठो कयेगा! बेचारी क यो न एकदम कोरी है!”

आरती को ऐसे नंगेपन औए बेशम से बात करते दे ख कर मुझे ह का सा गु सा आया।


कैसी कैसी लड़ कय से दो ती है अ नी क ?

“तुझे इतनी फकर है तो आ, पहले तुझे ही नबटा ं ?”

ले कन मुझे उसक बेशम का ान नह था। मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोली, “आय
हाय जीजा जी, आपक बीवी ब तर पर बैठ है, और आप उसक सहेली क मारना चाहते
ह! वैरी बैड!! पहले उसक सील तो खोल द जए... जब आप बाहर नकलगे, तो म भी
‘खोल’ कर रखूंगी! ही ही ही!”
आरती क ग द बात से मूड ऑफ हो गया!

“कैसी बेहया लड़क है तू?”

“जीजू! आपक साली !ँ हमारे र ते म छे ड़खानी करने का बनता है न?” मेरी डांट के डर
से उसका चहकना कुछ कम तो आ। मुझे भी लगा क आज के दन कसी को डांटना
नह चा हए।

“सॉरी!” म बस इतना ही कह पाया।

“सॉरी से काम नह चलेगा! अ नी क हम सब रखवाली ह.. रोकड़ा नका लए, रोकड़ा...


तब अ दर जाने को मलेगा! ऐसा थोड़े ही है क कोट म शाद कर लोगे, तो हमको हमारी
नेग नह मलेगी! य लड़ कय ?”

अ दर से सभी लड़ कय ने एक वर म आरती क इस बात का समथन कया। मने कुछ


दे र तक उन सबको छे ड़ा और वरोध कया – ले कन फर उन तीनो को हज़ार हज़ार पए
पकड़ाए और,

“चल .. दफा हो!” कह कर मने उनको कमरे से बाहर नकाल दया।


"हाँ हाँ! जाइए जाइए.. अपने कबाब को खाइए.. हमारी या वै यू!!" कह कर वो ठु नकते
ए बाहर चली गयी। बाक दोन भी उसके पीछे पीछे मु कुराते ए हो ली। म कुछ करता,
उसके पहले ही मेरे पीछे उन दोन म से कसी ने दरवाज़ा बंद कर लया। म धीरे धीरे चलते
आ जब ब तर के नकट, अ नी के पास प ंचा, तो उसने ब तर से उठ कर मेरे पैर छू ने
क को शश करी। मने उसको कंधे से पकड़ कर रोक लया,

“अ नी, हम दोन प त प नी ह – मतलब दोन बराबर ह!”

“ले कन आप तो मुझसे बड़े ह न...”

“शाद म दोन बराबर होते ह!”

“ले कन आप तो..”

“अगर तुम मुझसे बड़ी होती, तो या मुझे भी तु हारे पैर छू ने पड़ते?”

उसने तुरंत न म सर हलाया।

“इसी लए कह रहा ,ँ क हम दोन बराबर ह! तु हारी जगह मेरे दल म है! आओ इधर..”

कह कर मने उसको अपने गले से लगा लया। उसको इस तरह से गले से लगाने से मुझे
पहली बार उसके तन का आभास आ – कैसे ठोस गोला ! अचानक ही मन क
इ ाएँ जागृत हो ग !

मने उसको वापस ब तर पर बैठाया, और उसके पास ही बैठ गया।

“दे खने दो मेरी छोट सी ह नया को!”

मेरी बात पर अ नी मु कुराई। सचमुच अ नी बेहद सु दर लग रही थी। साधारण सा


मेकअप कया गया था – ले कन उसका प रणाम जबरद त था! उसक सु दर लाल रंग
क , बूते लगी लहंगा चोली, माथे पर बद , नाक म नथ, कानो म मै चग बा लयाँ, और गले
म वण-माला! माथे पर छोट सी लाल रंग क बद , और ह ठ पर उसी रंग क लाली!
कुल मला कर एक ब त क सु दर क या! उसके कजरारे बड़े बड़े नयन! और मु कुराता
आ चेहरा.. जैसा मने पहले भी कहा है, भारतीय हन, सा ात र त का प होती ह! न
जाने कैसे मुझे ऐसी दो दो र तय का साथ मला! ऐसी लड़क पर तो वयं कामदे व का भी
दल आ जाय!!

उसका एक हाथ दे ख कर मने कहा,

“अरे वाह! ये मेहंद तो ब त सु दर रची है...”

“आपको अ लगी?”

“ब त!” कह कर मने कुछ दे र यान से उसक मेहंद क डज़ाइन दे खी... जैसे क अ सर


होता है, हनो क मेहंद म प त का नाम भी लखते ह.. कुछ दे र क मश कत के बाद
मुझे अपना नाम लखा आ दख गया!

“अरे वाह! यहाँ तो मेरा नाम भी लखा आ है!”

अ नी हौले से मु कुराई।

“और भी कह लगवाई है मेहंद ?”

“हाँ! पांव पर भी..” कह कर उसने अपना पांव आगे बढ़ाया। पांव और आधी टांग पर
मेहंद सजी ई थी। कुछ दे र वहां क डज़ाइन का नरी ण करने के बाद मुझे लगा क
अब चांस लेना चा हए।

“यहाँ नह लगवाया?” मने उसके तन क तरफ इशारा कया। प त प नी के बीच तो ऐसे


न जाने कतने ही अन गनत छे ड़खा नयाँ होती ह, ले कन मुझे ऐसे बोलते ए कुछ
अ ाकृ तक सा लगा।

मेरी बात पर अ नी बुरी तरह शमा गयी, और न म सर हलाया।


“ऐसे कैसे मान लू?ं आओ.. दे खूं तो ज़रा..” कह कर मने उसके सर से चुनरी अलग कर द ।
चोली के कोमल कपडे से ढके उसके युवा तन का आकार दखने लगा।

“यह लाउज का कपड़ा ब त कोमल है.. ले कन, यहाँ (उसके तन क तरफ इशारा करते
ए) से अ धक यह यहाँ ( ब तर के कनारे क तरफ इशारा करते ए) यादा अ ा
लगेगा!”

वो शम से मु कुराई।

“आपको एक बात मालूम है?” उसने अचानक ही कहा।

“ या?”

“ लाउज उतारने से पहले, बीवी को कुछ पहनाना भी होता है?”

अरे हाँ! वो मुँह- दखाई क र म! कैसे भूल गया! मुझे तो ए सपी रयंस भी है!

“ओह हाँ! याद आया.. एक मनट!”

कह कर म उठा, और अलमारी क तरफ जा कर, सेफ के अ दर से एक जड़ाऊ हीर का


हार नकाला। यह हार ऐसा बना आ था जैसे क दो मोर प ी अपनी गदन से आपस म
छू रहे थे, और उनके पंख वपरीत दशा म र तक फैले ए थे। मोर के ही रंग क
मीनाकारी क गई थी। यह मने ेशल आडर दे कर अ नी के लए बनवाया था। मेरे
हसाब से एक नायाब उपहार था। उ मीद थी, क उसको यह ज़ र पसंद आएगा।

म मु कुराते ए अ नी के पास आया, और उसके सामने एकदम नाटक य तरीके से वो


हार तुत कया,

“टे न टे ना!”

उसको दे ख कर अ नी क आँख व मय से फ़ैल ग ।


“ये या है?? बाप रे!”

“ये है.. आपको पहनाने के लए.. पहना ं ?”

“ ले कन.. मेरा ये मतलब नह था...”

“मतलब? म समझा नह ..”

“आपने अभी तक स र नह डाला! और मंगलसू ...” उसक आँख कुछ नम सी हो ग ।

हे दे व! ये तो गुनाहे अज़ीम हो गया मुझसे! एकदम से मेरी भी बोलती बंद हो गई। मने
ज द से इधर उधर दे खा – स र दान तो बगल टे बल पर दख गया। मने उसको उठाया।
वो सौ ाम का ड बा कतना भारी तीत हो रहा था उस समय, म यह बयां नह कर
सकता। कोट म एक सरे को वरमाला पहनाना, और यहाँ पर उसक मांग म स र
डालना – दो बलकुल भ बात थ । अ नी क मांग को भरते समय मुझे अचानक ही नई
ज मेदारी का भान होने लगा। ऐसा नह क कोट क शाद का कोई कम मायने है.. ले कन
स र जैसी पर राएँ ब त गंभीर होती ह। मने दे खा क अ नी के ह ठ भावना के
आवेश म कांप रहे थे।

“मंगल...” उसने इशारा कर के टे बल क दराज खोलने को कहा। बात पूरी नह नकली।


ले कन म समझ गया।

मने दराज खसकाई तो उसम छोटे छोटे काले मो तय से सजा सोने का मंगलसू दखा।
सच क ,ं यह मेरे लाये गए हार से कह अ धक सु दर था। सरल, साद चीज़ का अपना
अलग ही आकषण होता है। मेरे खुद के हाथ अब तक हलके से कांपने लग गए थे। मने
अ नी को मंगलसू भी पहना दया – हाँ, अब हो गयी वो पूरी तरह से मेरी प नी!

“अब आपको जो मन करे, उतार ली जए!” उसने आँख नीची कये आ कहा।

मुझे यक न नह आ जब उसने ऐसा कहा।

“सच म?”
अब वो बेचारी या कहती? म भी या ही करता? ऐसी सु दर, अ सरा जैसी प नी अगर
मल जाय, तो कोई कैसे खुद पर काबू रखे? इतना तो समझ आ रहा था क उसक चोली
पीछे से खुलेगी। ले कन म अपना नाटक कुछ दे र और करना चाहता था। और मने बटन
ढूँ ढने के बहाने उसक चोली के सामने क तरफ कुछ दे र तक पकड़म पकड़ाई करी। वैसे,
अ नी को इस कार से छे ड़ने म मुझे अभी भी सहजता नह आई!! आयशा के साथ तो
आराम से हो गया था.... फर अभी य ..?

उधर, अ नी क हालत दे ख कर लग रहा था क उसका इतने म ही दम नकल जाएगा।


उसने न जाने कैसे कहा,

“प प पीछे से...”

हाँ! पीछे से ही डोरी खुलनी थी। चोली क डोर पीछे से चोलने के दो तरीके ह – या तो
लड़क क पीठ को अपने सामने कर दो, या फर लड़क के सामने से चपका कर! मने
सरा रा ता ठ क समझा, और अ नी से चपक कर उसक चोली क डोर खोलने का
उप म शु कया। दो गांठ खोलने म कतना ही समय लगता है? झट-पट अ नी क
पीठ नंगी हो गई। ले कन मने आगे जो कया, उससे अ नी भी आ यच कत हो गई होगी
– म पहले ही उससे चपका आ था, और फर उसी अव ा म मने अ नी को जोर से
अपने सीने से लगाया। ऐसा करते ही अचानक ही मेरे अ दर ेम क भावना बलवती हो
गई – मने कहा ेम क , न क भोग क ! मने अ नी को दल से ध यवाद कया – हर काम
के लए, जो उसने मेरे लए कया था।

मने उससे यह भी कहा क यह सब मेरे लए ब त नया था। न केवल वो मुझसे काफ


छोट थी, ब क मेरे मन म उसक जो त वीर थी, वो अभी भी एक छोट लड़क के जैसे
ही थी। अ नी संभवतः कुछ तवाद करना चाहती थी, ले कन जब मने कहा क अगर
वो मुझे कुछ समय दे , और कुछ धैय से काम ले तो वो संयत हो गयी – कुछ नराश सी,
ले कन संयत। मुझे साफ़ लग रहा था क वो कुछ नराश तो है। इस लए मने उससे कहा,

“अ नी, लीज तुम बुरा मत मानो! न जाने य मुझे ऐसा लग रहा है जैसे या अभी यहाँ
दरवाज़े पर आ खड़ी होगी। न जाने य ऐसा लग रहा है जैसे हम दोन उसक पीठ पीछे
चोरी कर रहे ह..”

अ नी को मेरी बात और मेरी चता का सबब समझ म आ गया। उसने कहा,

“आपको ऐसा य लग रहा है? ... मेरी तरफ दे खए... मुझे भी आज दन म कोट म ऐसे
ही लग रहा था .. जैसे माँ, पापा और द द हमको वहां ऊपर से दे ख रहे ह ! ले कन, मुझे
ऐसे नह लगा क वो हमारी शाद पर बुरा मानगे! हम दोन ने एक सरे से शाद करी है।
चोरी नह ! द द के जाने के बाद आपने जो ःख झेले ह, वो मुझसे छु पे ह या? मुझे
यक न है, क द द का, और माँ पापा का आशीवाद हमको ज़ र मलेगा!”

कह कर उसने मुझे जोर से अपने गले से लगा लया। कुछ दे र मुझसे ऐसे ही चपके रहने
के बाद, मुझे पकडे ए ही उसने कहा,

“आप मुझे कस नह करगे?”

ओह भगवान! य नह ! मने अ नी क नथ उतारी, और फर उसके ह ठ पर अपने ह ठ


रखे - अ नी के ह ठ ब त ही नरम थे, और सच मा नए, गुलाब के फूल क तरह ही महक
रहे थे। मने उसके ह ठ पर एक एक एक एक कर के कई सारे चु बन जड़ दए, और फर
उनको चूसना भी शु कया। कुछ ही दे र म उसके ह ठ क लाली, मेरे ह ठ पर भी लग
गयी। अ नी तो बलकुल अनाड़ी थी, ले कन अपनी तरफ से को शश कर रही थी। उसके
चु बन पर मुझे ब त आनंद आ रहा था। कुछ ही दे र म हमारा चु बन, एक आ म-चु बन
(या च कस कह ली जए) म त द ल हो गया – हमारी ज ाएं आपस म म ल-यु लड़ने
लग । मुझे ब त मज़ा आ रहा था – और मूड भी बनने लगा था।

मने चोली के ऊपर से ही अपने हाथ को उसके सीने पर फराया, और फर उसके एक तन


को पकड़ कर दबाने लगा। उसका चूचक पहले से ही मु तैद खड़ा आ था। याद रहे, मने
अ नी क चोली उतारी नह थी, बस, उसक पीछे क दोन डो रयाँ खोल द थ – इससे
चोली के सामने के कप ढ ले हो गए थे। एक तरह से अ नी के तन अब वतं हो गए
थे।
मने कुछ दे र के लए अ नी को चूमना छोड़ा, और कहा,

“ ब व तनी, कोम लता, सुशीला, सुगंध यु ा ल लता च गौरी... ना े षता येन च


क ठदे शे, वृथा गतं त य नर य जी वतम्।“

कुछ ण तक अ नी ने मुझे कौतूहल भरी से दे खा – उसको कुछ समझ नह


आया।

उसने कहा, “अब इसका मतलब भी बता द जए?”

“हा हा! दे वलोक क अ सरा र ा के बारे म तो सुना ही होगा?”

अ नी ने मु कुराते ए हर हलाया।

“तो र ा, और शुकदे व, मह ष वेद ास के पु थे.. एक बार क बात है... दोन के बीच


एक ल ी चौड़ी बहस होने लगी क कसके जीवन का तरीका े है। दोन ही अपने
तरीके को े , और सरे के जीवन को थ बता रहे थे! र ा, य क अ सरा है, इस लए
कहती है क भोग के बगैर जीवन थ है! शुकदे व कहते ह क योग और वैरा य बना
जीवन थ है! एक वैरागी या जाने नारी के सा य का बल? वो काफ दे र तक कुतक
तो करते ह, ले कन र ा के तक कह भारी पड़ते ह। वो कहती है, क नारी के सहयोग के
बना कुछ भी संभव नह है! सम त तप का आधार वयं नारी ही है। ववाद का हल तो
कुछ नकला नह , ले कन अंत म शुकदे व नारी को प नी के प म रखने क अनुम त दे
दे ते ह!”

“इंटरे टग! .. ले कन उसका – जो आपने कहा – का मतलब या था?”

“हां! वो तो बताना ही भूल गया – र ा कहती है क बेल के फल के समान कठोर तन


वाली, ले कन अ यंत कोमल शरीर वाली, सुशील वभाव वाली, महकते केश वाली, और
जसको दे खने से लालच आ जाय – ऐसी सु दर ी का जसने आ लगन नह कया,
उसका जीवन तो बलकुल बेकार है!”
अ नी शमाते ए मु कुराई,

“तो..? आपका जीवन बेकार है, या...”

“ये तो इन बेल क कठोरता पर डपड करता है.. है न?”

मने आँख मारते ए कहा, “जाँचा जाए?”

उसने कोई उ र नह दया, तो मने चोली के ऊपर से ही उसके दोन तन को थाम लया।
अ नी क वतः त या पीछे हटने क थी, ले कन उसने वयं को रोका। ले कन, आज
पहली बार मेरे हाथ के श को अपने तन पर महसूस करके उसको भी अ ा लग रहा
था। मने मन ही मन उसके और या के तन क तुलना करी – अ नी के तन या के
तन से बस कुछ ही बड़े थे। छू ने से समझ आया क वाकई दोन एकदम गोल और ठोस
थे! मन तो उसके तन क बनावट, तापमान और छु वन को अपने हाथ म महसूस करने
का था, इस लए कपड़े के ऊपर से मज़ा कम आ रहा था।

“अ नी, ये तो ब ढ़या साइज़ के हो गए ह!”

“आपको पसंद आये?” उसने धीमे से, शमाते ए पूछा।

“ब त यादा! अब खोल के दखा दो न?”

“मने आपको कब रोका? मेरा सब कुछ आपका है..”

उसका इशारा पा कर मने उसक चोली के सरे को दोन कंधे से पकड़ कर सामने क तरफ
ख चा – तन तुरंत वतं हो गए! जैसा सोचा था, ये दोन वो उससे भी कई कई गुना
सु दर नकले! बलकुल युवा, गोल और ठोस तन – गु व के भाव से पूरी तरह अछू ते!
गोरे गोरे चकने गोला ।

आपने कभी लाल गुड़हल क कली दे खी है? खले से कोई दो घंटा पहले वो कली एक इंच
के आस पास ल बी होती है, और बेलनाकार होती है। इसी समय कली के बीच म से यो न-
छ (पु प का मादा भाग) नकल रहा होता है। ठ क इसी कार के चूचक थे मेरी अ नी
के!

उ ेजनावश कोई पौना इंच तक ल बे हो गए थे। उनका रंग लाल-भूरा था – या के समान


ही! अरेओला और चूचक के रंग म कोई ख़ास फक नह था। अरेओला पर छोटे छोटे दाने
जैसे उठे ए थे – ठ क वैसे ही जैसे गुड़हल के फूल का यो न-छ !

“ओह गॉड!” मेरे मुँह से बेसा ता नकल गया, “कहाँ छु पा कर रखा था तुमने इनको अभी
तक?”

मेरी बात पर उसने अपनी आँख बंद कर ल ! उसके ह ठो पर एक म म मु कान थी।


मुझसे रहा नह गया। मने दोन ही तन पर बारी बारी से ( बना हाथ लगाए) कई सारे
चु बन जड़ने शु कर दए। कोई दो तीन मनट तक उसको ऐसे ही छे ड़ता रहा। ले कन म
कब तक यह करता? मजबूर हो कर मने एक तना को अपने मुँह म भर लया, और
त मय हो कर चूसने लगा। उसको मन भर कर चूसा, चुभलाया, काटा, और चबाया! मेरी
हरकत पर अ नी उह और सी सी जैसी आवाज नकालने लगी। फर मने सरे के साथ
भी यही कया।

इसी समय मेरे साथ वो आ, जसक मने क पना भी नह करी थी – मेरे लग से वीय
नकल पड़ा! मुझे घोर आ य आ! ऐसा कैसे हो गया? म तो खुद को ल बी रेस का घोड़ा
मानता था, जो कभी कता ही नह था! खैर, वीय नकलने पर भी लग का कड़ापन कम
नह आ – यह अ बात थी। न जाने अ नी का या हाल होगा?

तन को छोड़ कर मने कुछ दे र तक उसके पेट और ना भ को चूमा और जीभ क नोक से


चाटा। साथ ही साथ मने उसके लहँगे का नाड़ा भी चुपके से खोल दया।

“अ नी रानी!” मने कामुक और फट ई आवाज़ म कहा, “अब अपने प त को अपना


द प दखाने का समय हो गया है!”
मेरी इस बात पर वो अचानक ही गंभीर हो गई – यह वह समय था, जसक वो अभी तक
बस क पना ही कर रही थी। उसने अपने ह ठ पर बेचैनी से जीभ फराई और फर अपने
लहँगे को कमर पर पकड़े ए ब तर से नीचे उतर गई। कैसी नासमझ है ये लड़क ? ‘ द
प’ दखाने को बोला था न! फर भी लहँगा पकडे ए है! लगता है ये चीर हरण भी मुझे
ही करना पड़ेगा!

कुछ भी हो, मने ज दबाज़ी बलकुल भी नह करी। उससे भला या लाभ? बीवी तो
अपनी ही है – कह भागी थोड़े ही जा रही है!! मने उसक कमर को पकड़ कर अपने
नजद क बुलाया, और उसके अधन न शरीर का अपनी आँख से आ वादन करने लगा।
अ नी ने दे ख क म या कर रहा ँ – इस पर वो शरमा कर नीचे क तरह दे खने लगी।
मने कुछ दे र खेलने और छे ड़ने क सोची। उसका जूड़ा बंधा आ था – सामा य सा था –
कोई ब त ज टल बंदोब त नह था। मने उसमे से गजरा नकाला, और उसके बाल को
खोल कर बखेर दया। अब उसक मूरत दे खते बन रही थी – एक अ यंत सु दर, अ सरा
जैसी कम सन लड़क , अपना लहँगा पकडे मेरे सामने अधन न खड़ी ई थी – उसक साँसे
तेजी से चल रही थ , और उनके साथ ही उसके उ त तन ऊपर नीचे हो रहे थे, बाल खुल
कर आवारा हो रहे थे... शरीर का रंग ऐसा जैसे कसी ने संगमरमर म मूंगे का रंग मला
दया हो! जैसे ध म केसर मल गया हो!

वह एक अ तसु दर तमा जैसी लग रही थी। और मुझे ऐसे लुभा रही थी, क जैसे मुझे
बुला रही हो!

अब मुझे खुद पर वाकई संयम नह रहा। म उसको कमर से पकड़ कर धीरे धीरे अपनी
तरफ ख चा, और उसके दोन हाथ को उसके लहँगे से हटाने का यास करने लगा। उसके
हाथ ठ े हो गए थे। यह सब होना तो आज क रात अव य ावी था – यह उसको भी
मालूम था, और मुझे भी! ले कन इस सं ान म भी सब कुछ नया था। म तो खेला खाया
त ,ँ फर भी सब कुछ नया सा लग रहा था। एकदम से उसका हाथ अपने लहँगे के
सरे से हट गया। मुझे उ मीद थी क गु वाकषण वयं ही उसको नीचे सरका दे गा –
ले कन हो सकता है क उसका नाड़ा पूरी तरह से ढ ला नह आ था, या यह क लहंगा
उसक कमर के बल पर अटक गया हो!

मने खुद ही लहँगे को नीचे खसकाना शु कया – ले कन ऐसे नह क अ नी तुरंत नंगी


हो जाए। म उसको अभी कुछ दे र और छे ड़ना चाहता था। मने लहँगे को थामे ए ही
अ नी को घुमा कर उसक पीठ को अपने सामने कर दया। उसक पीठ भी उसके शरीर
के बाक ह से के समान ही सु दर, और नद ष थी! नत ब के ऊपर मे के दोन तरफ
छोटे छोटे डपल थे, जनको अं ेजी म डपल ऑफ़ वीनस कहते ह। और नीचे क तरफ
उसके गोरे, चकने नत ब का ऊपरी ह सा और उनके बीच क अँधेरी दरार दख रही
थी।

मने धीरे से उसके नत ब पर चूम लया, और अपनी जीभ को उसक दरार पर फराया।
मजा आया और रोमांच भी! अ नी सच म एक जवान कली थी, और उस पर अभी
जवानी का पूरा रंग चढ़ना बाक था। ले कन फर भी उसके शरीर म रस भरा आ था –
जैसे फूल म सार भरा आ होता है! वैसा ही! उस रस का मद मुझ पर चढ़ गया था – मेरे
हाथ से उसका लहँगा छू ट गया।

अ नी ने नीचे भी कुछ नह पहना आ था – कोई अधोव नह ! सच म! य झंझट


करना? एकदम से उसके सुडौल, वक सत, गोर गोर गोल नत ब मेरी आँख के सामने
तुत हो गए। सच म मुझसे रहा नह गया! मने अपने पूरे मुँह और चेहरे का योग करते
ए उसके नत ब का भोग लगाना आर कर दया! उनका चु बन, चूषण और लेहन
करते समय कब वो घूम कर मेरी तरफ हो गई, उसका यान नह रहा। ले कन जब मांसल
गु बज के बजाय मेरे सामने दो मीठे मालपुए आ गए तब समझ आया क अ नी अब
मेरी तरफ मुखा तब है।

अ नी क यो न के दोन ह ठ फूले ए थे – जैसा मने पहले भी कहा, मीठे मीठे मालपु


के समान (जो ऊपर नीचे रखे ए थे)! उन ह ठ पर कोई बाल नह था – एकदम चकनी।
और उनम से रस तो जैसे बाँध छोड़ कर नकल रहा था। सच म, अब तो बस एक ही काम
बाक था। म भी उस काम म अब दे र नह लगाना चाहता था।

मने अ नी क यो न के दोन फूले ए पट के बीच एक जोरदार चु बन जड़ा, और उसको


चूमने लग गया। कुछ दे र चूमने के बाद मने उसके पट को उँ ग लय क मदद से कुछ
फैलाया, और जीभ डाल कर चूसने लगा। मीठा रस! सच म! जैसे कसी ने उसक यो न
रस म ह का सा शहद मला दया हो!

“कठोर पीन तन भारन ा सुम यमा चंचल खंजना ी, हेम तकाले र मता न येन, वृथा गतं
त य नर य जी वतम्..”
अ नी अभी मुझसे इस ोक का अथ पूछने क हालत म नह थी, इस लए मने खुद ही
बताना शु कर दया, “हेमंत ऋतु म, ठोस और भरे ए तन के भार से झुक ई, पतली
कमर वाली, चंचल और धारदार चाकू जैसी नैन वाली ी से जस कसी पु ष ने संभोग
नह कया, उसका जीवन थ ही चला गया..”

“त..तो क रए न...”

म मु कुराया। मने अ नी को ब तर पर लटाया। सफ आभूषण, चू ड़याँ, पायल इ या द


पहने ए वो ब त यारी लग रही थी। कोई भी ी लगेगी! सच म। मेरी बात का यक न न
हो, तो अपनी प नय या े मका को पूणतया न न होने को क हए, ले कन वो अपने
गहने इ या द पहने रह! फर बताइयेगा!

जब वो लेट गई, तब मने अपने कपड़े भी उतारने शु कए – एक मनट के अंदर ही म भी


तैयार था। अ नी एक टक मेरे लग को ताक रही थी।

“अ नी रानी, सफ दे खो ही नह , इसको छू भी सकती हो! इसके साथ खेल भी सकती


हो! अब से यह तु हारा है.. और सफ तु हारी ही सेवा करेगा!” मने उसको छे ड़ा, “.. लाओ
अपना हाथ.. इसे महसूस करो..”

कह कर मने उसके हाथ म अपना लग पकड़ा दया। र चाप के कारण लग पूरी तरह से
तना आ था, और तप रहा था। वो तो जैस जड़ हो गई – बस लग को हाथ म पकडे ए
हत भ सी दे ख रही थी। मने उसके हाथ को अपने लग पर पीछे क तरफ सरकाया। ऐसा
करने से उसक चमड़ी पीछे क तरफ खच गयी, और लाल गुलाबी सुपाड़ा भी उसको
दखने लगा। जो वीय नकला आ था, उसका कुछ शेष अभी भी बूंद के प म बाहर
नकल रहा था।

“कुछ बोलो भी...”

“अभी.. तो... बस...”

“हाँ हाँ.. बोलो न?”


“बस.. सेवा क जए..” उसने शरमाते ए कहा।

“जो आ ा दे वी!” कह कर मने अपने दोन हाथ जोड़ लए। अ नी मु कुरा द । प त-प नी
म सबसे पहला मह वपूण काय है उन दोन का संयोग! दोन का मलन! अब हम दोन के
मन क यही इ ा थी।

मने उसको ब तर से उठाया, और अपनी गोद म ले कर ब तर पर बैठ गया। अ नी मेरी


गोद म ही अपनी टाँगे दोन तरफ लए बैठ ई थी। र -चाप के कारण मेरा लग बार बार
झटके लेता, और उसक यो न का चु बन लेता! मने उसको अपनी बाह म ले कर एक
गहरा सा चु बन लया। अ नी कामुकता क सीमा पर खड़ी ई थी। उसके रस भरे, और
महकते ए ह ठ का वाद वयं को भुला दे ने वाला था। अ नी भी मुझसे पूरी तरह से
लपट गयी थी – उसके दहकते तन मेरे सीने पर चुभ रहे थे।

अब हम दोन ही अपने काबू म नह थे। ऐसे आ लगन म बंधे ए हम दोन को एक सरे


के शरीर का पूरी तरह से सं ान हो रहा था। हम दोन ही अब तैयार थे। मने अ नी क
गदन पर चु बन लया – जैसे ही मने उसक गदन पर जीभ फराई, वो तड़पने लगी। ी
का शरीर पूरी तरह से काम से भरा आ होता है। कह भी छू लो, कह भी चूम लो..
लगभग एक जैसा ही प रणाम आता है। कुछ दे र उसक ीवा चूमने के बाद मने जैसे ही
उसक कान क लोलक को अपने मुँह म लया, वह अपने काबू म नह रही। उसका हाथ
अनायास ही मेरे लग पर आ गया, और उसे सहलाने लगा।

इतना इशारा काफ था। हम दोन ही कुछ दे र म पागल क तरह एक सरे के शरीर के
अंग को सहला, छू और मसल रहे थे। मने पुनः अपनी जीभ उसके एक तन के चूचक पर
फराया – अ नी अब नल हो कर जोर से सी कार करने लगी। अगर बाहर कोई जाग
रहा होगा, तो उसको अ नी क कामो ेजक आवाज सुनाई दे रही ह गी! वैसे इससे या
फक पड़ता है? अगर यह सब आज नह , तो कब होगा? उसने मेरा लग पकड़ लया, और
उसको सहलाने लगी।

म भी एक चंचल ब े क भां त कभी तो उसका बाएँ तन का भोग लगाता, तो कभी दाएँ


तन का! हम सब पु ष, और काफ सारी याँ भी, इस बात से सहमत ह गे क एक युवा
ी के तन, इस पूरे संसार के सबसे वा द , सबसे मीठे फल होते ह! भले ही आम को
फल का राजा माने, ले कन एक ी के उ त आम के सामने उनका वाद फ का ही है! म
पुनः अ नी के तन पी आम का रसा वादन करने लगा। इतने म अ नी पुनः ख लत
हो गयी।
मुझे समझ आया क उसके साथ या हो रहा है – ऐसे म म उसको अपनी गोद म ही लए
चूमता रहा, जब तक वो अपने काम के वार से नीचे नह उतर गयी। कुछ दे र सु ताने के
बाद मने उसको वापस नीचे, ब तर पर लटाया। अ नी क साँसे अभी भी गहरी गहरी
चल रही थ । म उसको लटा कर नीचे क तरफ खसक आया।

मने उसक टाँगे कुछ फैला जससे उसक यो न का अ भगम कुछ आसान हो सके।
उसक यो न तो अब तक न जाने कतना सारा रस नकाल चुक थी – वहां का गीलापन
साफ़ दख रहा था। इसके बाद म उसक मालपुए के सामान मीठ , रसीली और मुलायम
यो न का रसा वादन करने लगा। मने अपनी जीभ उसक नम गम यो न म वेश कराया –
अ नी कसी जानवर क तरह भराती गुराती ई कराह नकालने लगी। मने अपनी जीभ
को उसम ज द ज द अंदर बाहर कर के उसके आगे आने वाले ो ाम के बारे म अवगत
कराया। अ नी तो आज जैसे वासना पी परमाणु बम के भ डार पर बैठ ई थी – एक
के बाद एक चरमो कष ा त कर रही थी। कुछ ही दे र म अनवरत ज ा-मैथुन के बाद,
अ नी पुनः कांपते, कराहते आह भरने लगी। मुझे अपने मुँह म पुनः गम व का अनुभव
आ। म समझ गया क अ नी फर से ख लत हो गई है।

उसको मने कुछ दे र आराम करने दया। मुझे खुद पर भी नयं ण नह था। इतना दे र भला
कब तक चलता? मेरे अ दर का लावा भी बाहर नकलने को उ त था। म अंततः उसके
ऊपर आ गया। मने लग को उसक यो न मुझ पर टकाया और एक ध के से उसक यो न
म वेश करा दया। अ नी क कोरी, कुँवारी यो न ब त छोट भी थी। ध के के कारण
मेरा करीब दो इंच लग उसक यो न म वेश कर गया – ले कन उधर उसक चीख नकल
पड़ी। गलती यह ई क मने उसके ह ठ पर अपने ह ठ नह रखे। अब तक तो सभी को
मालूम हो गया होगा, क अ नी अब लड़क नह रही!

मने उसको दो तीन चु बन दए, और उसके गाल को सहलाते ए बोला, “शाबाश अ नी!
बस.. अब हो गया! वेलकम टू वुमन ड! बस.. कुछ ही दे र म सब ठ क हो जाएगा! ओके
हनी? अभी मज़ा आने लगेगा! बाक अ दर जाने दो! ड ट रे स ट! अब और तकलीफ़ नह
होगी। ठ क है?”
अ नी ने सर हला कर जवाब दया।

मने आगे कहा, “अगर दद हो, तो बता दे ना! ओके हनी?”

उसने फर से सर हलाया। मने ह का सा बाहर नकाल कर पुनः अ दर क तरफ ध का


लगाया – उसको पुनः दद आ, ले कन उसने कसी तरह से दद को ज़ त कर लया। इस
ध के का प रणाम यह आ क अब बस एक डेढ़ इंच ही बाहर नकला आ था। मने नीचे
क तरफ दे खा, और फर वापस अ नी को बोला,

“दे ख अ नी... सब अ दर हो गया.. दे ख न?”

अ नी ने बड़ी क ठनाई से नीचे भ च क रह गई।

“ बाप रे! अआआपने इसक शकल बगाड़ द ! उफ़...” मने लग को बाहर ख चा।

बात तो सही थी – उसक छोट सी यो न म मेरा मोटा सा लग ऐसे ही लग रहा था! उसक
यो न का वा ह सा इतना खच गया था, क वो अभी एक पतले छ ले के समान लग
रहा था। इसम भला या आनंद आएगा कसी को? बेचारी को कतना दद हो रहा होगा!!

“दद होता है? नकाल ं बाहर?” मने पूछा।

मने पूछ तो लया, ले कन मन ही मन सोच रहा था क बाहर नकालने को न बोले।

“न..नह ! दद नह है.. पहले आप कर...” बोलते बोलते वो क गयी – अब यह शम थी, या


उसक वासना, या फर थकान! अभी कहना मु कल है। वो अपने ह ठ भ च कर, मुँह मोड़
कर होने वाले हमले के लए तैयार थी।

“पहले आप “ या” कर...? बोलो न?”

“अहह.. लीज छे डये नह ..”

“अरे! मुझसे या शरमाना? बोलो न?”


अ नी ने सर हला के ‘न’ कहा।

“बोल दोगी, तो जोश आएगा मुझ!े और फर हम दोन को ही मज़ा आएगा.. बोल न!”

“बोल न या क ँ ?”

“ओ हो!” फर धीरे से, “सहवास..”

“अरे हमारा वाला बोलो!” मने आगे छे ड़ा।

“ठु का..ई”

“वैरी नाईस.. ये लो” कह कर मने धीरे धीरे ध के लगाना शु कया। अ नी भी या के


ही समान छोटे काठ क लड़क थी – जब मेरा लग पूरी तरह से उसके अ दर घुस गया,
तो मुझे ऐसा लगा जैसे मने उसके पूरे यो न माग का नाप ले लया हो! एक बात और थी –
अ नी, या के मुकाबले कुछ अ धक साहसी और अ भ ंजक थी। म जब ध के लगा
रहा था, तब वो वयं भी नीचे से ध के लगा रही थी। सहवास का मज़ा तो तभी है, जब
दोन साथी उसका आनंद एक साथ उठाएँ, नह तो बस वह इवाली बात है क एक का
मज़ा और सरे क सज़ा!

म उसक मखमली यो न का आनंद उठाने के साथ साथ उसके तन को कस कर दबा


और नचोड़ भी रहा था। कोई और समय होता, तो उसक चीख पुकार और रोना धोना मच
जाता.. ले कन सहवास के समय शरीर का र चाप और दाब इतना बढ़ जाता है क इस
कार क हरकत दद दे ने के बजाय दरअसल उ ेरक का काय करती ह। अ नी भी इस
कार के मदन से उ माद म तड़पने लगी और म त होकर अपने नत ब को और जोर शोर
से ऊपर क तरफ ठे लने लगी। उसे अपनी पहले ही सहवास म पूण आनंद मल रहा था।
और अचानक ही वो एक बार पुनः ख लत हो गई। कमाल है! इतनी बार! मेरा अब भी
नह आ था। जब क म खुद भी अपने सरे खलन के कगार पर खड़ा आ था।
संभवतः, अ नी ही ब त ज द ज द ख लत हो रही थी। खैर, मने ध के लगाना जारी
रखा। अ नी के आ खरी खलन के कोई दो तीन मनट के बाद अंत म मेरा भी खलन हो
गया।
पहले तो मने सोचा क बाहर नकाल दे ता ँ... फर लगा, क पहला वाला तो अ नी के
अ दर ही जाना चा हए। ऐसा सोचते ही वीय एक व ोट के समान मेरे लग से बाहर
नकल गया। पछले कुछ दन से संचय आ सारा रस अ नी के गभ म समां गया। ब त
ही थका दे ने वाला सहवास कया था हमने! या समा त होते ही हम दोन ही एक सरे
क बाह म थक कर यूँ ही पड़े रहे (दरअसल म उसके ऊपर ही पड़ा आ था, और मेरा
लग अभी भी उसी के अ दर था)। हाँला क म कुछ दे र तक अ नी के शरीर के व भ
ह स को सहलाता रहा, और चूमता रहा। हम दोन क ही वासना अब धीरे धीरे शांत होने
लगी थी। मेरा लग भी सकुड़ कर वयं ही उसक यो न से बाहर आ गया।

हम दोन ही अब ब तर पर अगल बगल सट कर लेट गए। अ नी को भी अब शा त


मली होगी। उसने एक अंगड़ाई ली – अंगडाई म उसके प रंग क रौनक दे खते बनती
थी! उसने मुझे वयं को ऐसे आस हो कर दे खते ए दे खा तो मु कुरा द । करवट लेकर
मेरी पीठ सहलाने लगी। मने भी मु कुरा कर उसके ह ठ पर एक चु बन लया और कहा,

“अ नी, मज़ा आया?”

उसने उ र म मु कुरा दया।

“तुमको दद तो नह आ न?”

पहले तो उसने ‘न’ म सर हलाया और फर कहा, “ आ.. ले कन आपने सब भुला दया।


अभी ह का ह का मीठा मीठा दद है!”

उसने जस अदा से यह बात कही, उससे मेरा लग पुनः कड़क हो गया।

“एक और राउं ड हो जाए?” कह कर मने उसके एक तन को ह का सा दबाया।

“बाप रे! आप फर से रेडी?”

“और या? तुमको भली भां त ठु क ई म हला जो बनाना है..”

“उ फ़! ऐसी बात है तो फर म भी ठु कने को तैयार .ँ .. आप शु क जए...”


कहते ए उसने शरमा के अपने चेहरे को अपनी हथेली से ढँ क लया। अब बार बार या
वणन कया जाय? हमारी सुहागरात क सरी ठु काई कोई आधा घंटा और चली। अ नी
इतनी दे र म तीन बार और ख लत ई। अगर वो हर बार ऐसे ही व नकालती रही, तो
उसको तो डी-हाइ ेशन का खतरा हो जाएगा! खैर, जब हम दोन भली भां त थक गए, तो
नकट रखी बोतल से पानी पया। उसके बाद एक सरे से लपट कर सो गये।

नव ववा हत होना अपने आप म ही एक मादकता भरा अनुभव होता है। शरीर म एक


भ कार क थकावट, ऊजा और इ ा का अ त स म ण होता है। और इस भावना
का सबसे अ धक जोर नव ववा हत युगल क पहली रात को होता है। ऐसा नह है क बाद
म नह होता, ले कन एक सरे के शरीर को दे खने, महसूस करने और जानने क ती
इ ा, एक सरे के श का मादक अनुभव, और पहले पहले संसग का अनुभव – ववाह
के बाद क पहली रात को सचमुच अनोखा बना दे ती ह।
२९
मेरी आँख खुली तो दे खा क सुबह क पांच बज रहे ह। अ नी मेरे बाएँ बाजू पर सर रखे,
और मुझसे लपट ई सो रही थी – ठ क वैसे ही जैसे सोने से जाने से पूव – मतलब
पूणतः न न। मने ेम भरी मु कान से सोती ई अ नी को दे खा। ई र के खेल नराले होते
ह। पहले तो मेरे और अ नी के सारे सहारे छ न लए, और फर ऐसी प र तयाँ बना द
क आज हम दोन एक सरे के ही सहारे बन गए ह! कहते ह न क सुबह सुबह अगर मन
से ाथना करी जाय, तो वह ज़ र साथक होती है – तो मेरी ई र से बस यही ाथना है
क म अ नी को हमेशा खुश रख सकूँ! उसको कभी भी उसके प रवार क कोई कमी न
महसूस होने ं ! उसक हर छोट बड़ी ज़ रत को पूरा कर सकूं, और... उसके शरीर को
हमेशा यौन रस से स चत रख सकूँ!

ये आ खरी वाली ाथना पर मेरा लग तुरंत तैयार हो गया। म मु कुराया – अगर ाथनाएँ
इसी तरह से तुरंत वीकार हो जाएँ, तो या बात है! मन के कह कसी कोने म एक बार
यह आवाज़ भी नकली क काश या भी आ जाय! ले कन या कभी आशा पर ही
नभर कोई कामना पूरी होती है भला? मने एक गहरी साँस छोड़ी – या के साथ साथ ही
हमारे अन गनत मधु- मलन क कई सारी छ वयाँ मेरे आँख के सामने एक चल च के
समान चलने लग ! अ नी को भोगने के लए म एक बार पुनः तैयार था।

मने अपने दा हने हाथ को नीचे क तरफ बढ़ाया, और उसक उँ ग लय क सहायता से


अ नी क यो न के दोन पट को थोड़ा फैलाया। मुझे तो लगता है क यो न का ी के
म त क म एक कोई ख़ास संयोजन होता है। इतनी बार मने दे खा है क जैसे ही कसी ी
क यो न को छु ओ, वो च ंक उठती है। अ नी भी च ंक गई – सोते सोते ही!

“उ म!” उसने सोते ए ही जैसे शकायत करी हो!

म मु कुराया और ब त स हाल कर उसके सर के नीचे से अपना हाथ नकाला, और उसके


सर के नीचे त कया रख दया। म ज द से नीचे क तरफ लपका। अ नी अभी भी
अ हड़ता से सोती थी। मतलब – उसके पैर हमेशा इतने खुले ए रहते थे जससे उसक
यो न तक आसानी से प ंचा जा सके। मतलब मुझे कुछ ख़ास करने क ज़ रत नह थी –
मने बस अपने ह ठ उसके यो न के ह ठ पर लगा दए और जीभ को धीरे से अ दर वेश
करने लगा।

“अ ह... जानू!” अ नी सोते सोते ही बोली!

‘कमाल है! न द म भी मालूम है क कौन है!’

मने मु कुराते ए सोचा। खैर, काफ दे र तक त बयत भर कर मने उसक यो न को तब


तक छे ड़ा, जब तक उसम से मीठा मीठा रस नह नकल आया। इस पूरे काय म के दौरान
अ नी व भ कार क मादक आवाज नकालती रही। जब मने उसक यो न छोड़ी, तो
वो मु कुराते ए मुझसे बोली,

“सुबह सुबह उठते ही आपको इसक याद आ गई?”

“और नह तो या? नई नवेली और जवान बीवी क यो न क याद नह आएगी तो और


कस चीज़ क याद आएगी?”

“छ ! आप कैसे बोलते ह!”

“पहले बता, और कसक याद आएगी?”

“अरे! भगवान क .. और कसक ?” वो मु कुराई।

“तुमको याद आती है?”

उसने हामी म सर हलाया।

“ कस भगवान् क ?”

“अरे...! सबक !”

“अरे... सबक का या मतलब? मेरा मतलब.. कोई ख़ास भगवान?”


“भगवान ..”

“ह म... ” मने उसको छे ड़ा!

मुझे लगा क वो शरमा जायेगी, या कुछ वरोध करेगी.. ले कन मेरी इस बात पर अ नी


एकदम से गंभीर हो गई।

“म आपसे एक बात क ँ?”

‘ओ हो! जब लड़ कयाँ सी रयस होती है तो कुछ न कुछ गड़बड़ होता है..’ मने सोचा।

“हाँ!”

“आप ॉ मस क रए क म जो कुछ क ँगी, और क ं गी, आप करने दगे?”

“ऐसे बना सुन,े जाने कैसे ॉ मस कर ं ?”

“आपको अपनी बीवी पर भरोसा नह ?”

“अरे! ऐसी बात नह है..”

“तो फर ॉ मस क रए!”

“अ ा बाबा! ॉ मस! म तुमको नह रोकूंगा!”

मेरे ऐसा बोलते ही अ नी एकदम से खुश हो गई। उसने मुझे ब तर पर एक तरफ बैठने
को कहा। बाद म मने यान दया क उसने मुझे पूव क दशा के स मुख बैठाया था। उसने
कमरे क खड़क और परदे भी खोल दए। उस समय कोई साढ़े पांच हो रहे ह गे। बाहर
अभी भी अँधेरा था – इस लए अ नी ने कमरे क लाइट भी जला द ।

“बैठे र हएगा... बस दो मनट..” कह कर वो ऐसे नंगी ही, दबे पांव कमरे से बाहर नकल
गई। घर म और लोग भी थे... ले कन, अभी तो सभी सो रहे ह गे! म सोच रहा था क या
करने वाली है! खैर, मेरे सोचते सोचते, जैसा क उसने कहा था, सफ दो मनट म वापस
आ गयी। उसके हाथ म एक छोट थाली थी – उसमे आरती का सामान था – दया, च दन,
फूल इ या द! म भ च क था!

उसने आरती का दया जलाया, फर मेरे माथे पर च दन का एक ल बा तलक लगाया और


फर दया जला कर मेरी आरती उतारी।

“आप ही मेरे भगवान् ह.. मेरे सब कुछ!” कह कर वो मेरे सामने घुटन के बल बैठ गई और
झुक कर मेरे पैर पर अपना सर टका दया! मुझे तो जैसे काटो खून नह ! ये या कर रही
है! म इस लायक नह !ँ ले कन म कुछ भी कहने और करने क अव ा म नह था।
अ नी एक अलग ही नया म थी – ऐसा लग रहा था!

“आप ही मेरे भगवान ह.. और ये मेरा साद!” कह कर उसने मेरे खड़े ए लग पर भी


ट का लग और उसक भी आरती उतारी, और उसको भी शीश नवाया। फर उसने मेरे
लग के सरे को एक ह का सा चु बन दया। अ नी इतनी स लग रही थी, जैसे कसी
ब े क मन मांगी मुराद पूरी हो जाती है!

“अब म आपसे एक वनती क ँ गी – याद रहे, आपने ॉ मस कया था क आप मेरी बात


मानगे! है न?”

मेरी तो जैसे त ा भंग ई.. “बोलो!”

अ नी क मेरे लए इतनी ा दे ख कर मुझे डर सा लग गया।

“अ नी... इधर आओ! मेरे पास... लीज!”

मने अ नी को अपने पास बुला कर अपनी जांघ पर बैठाया, और यार से उसके गाल को
सहलाते ए कहा,

“अ नी... तुमने ब त बड़ी बात कर द आज! ब त स मान और ब त यार दया है!


इस लए म भी एक बात कहना चाहता ँ... प नी सहवास का य नह होती। कम से कम
मेरे लए तो बलकुल नह ! ऐसा नह है क मुझे सहवास करना अ ा नह लगता – ब क
मुझे तो ब त अ ा लगता है.. ले कन, ऐसा नह है क तु हारा उपयोग बस इसी एक काम
के लए है! मुझे भी तुमसे ेम है! और म भी तु हारा ब त स मान करता ँ.. हम दोन खूब
सहवास करगे! खूब! ले कन, तभी जब हम दोन ही मन से तैयार ह !”

अ नी मेरी बात सुन कर मु कुरा द ।

“और एक बात.. अगर तुम मुझे अपना भगवान मानती हो, तो म भी तुमको अपना दे वी
मानता !ँ ” कह कर मने उसके माथे को चूम लया, और नीचे झुक कर उसके पैर को छू
कर अपने माथे पर लगा लया। अ नी मेरी इस हरकत पर ससक उठ ,

“आह.. आप मुझे पाप लगवाओगे!”

“कोई पाप वाप नह लगेगा!”

अ नी कुछ दे र तक चुप हो कर मुझे दे खती रही। मुझे लगा क वो कुछ कहना चाहती है।

“ या आ? कुछ कहना चाहती हो?”

उसने हामी म सर हलाते ए कहा, “हाँ.. म ‘इसको’ एक बार ठ क से दे ख लू?ं ” उसने मेरे
लग क तरफ इशारा कया।

म मु कुराया, “तु हारा ही तो है.. अ े से दे खो.. एक बार ही नह , बार बार..”

वो मु कुराती ई, लगभग उछल कर मेरी गोद से नीचे उतरी, और उ साह के साथ मेरे लग
को अपने हाथ म लेकर उसका नकटता से नरी ण करने लगी। इस तरह से छू ने-टटोलने
से वो कुछ ही दे र म पुनः तं भत हो गया।

“बाप रे! कतना बड़ा है आपका!”

“आपने कसी और का भी दे खा है?”


“नह .. कसका दे खूँगी भला?”

“दे खना है?”

“न बाबा.. जसके हाथ म ऐसा वाला हो, उसको कसी और ‘के’ क या ज़ रत?”

“हा हा! आपको पसंद है?”

“हाँ! ब त! ले कन सचमुच.. ब त बड़ा है!”

“बड़ा है, तो बेहतर है..”

“हाँ हाँ.. कहना आसान है.. अ दर लेना पड़े, तो समझ आये!”

“एक बार तो हो गया.. आगे अब आसान रहेगा!”

“भगवान करे क ऐसा ही हो!” फर कुछ क कर, “मुझे तो लगता है.. जब आपने ‘ये’
पूरा अ दर डाल दया था, तो मेरा वज़न कम से कम एक कलो तो बढ़ ही गया होगा!”

“चल... ये गधे का थोड़े ही है..”

“ही ही! आप भी न..” कह कर वो पुनः नरी ण म लग गई।

“आपके यहाँ (उसने श ा के नीचे इशारा कया) और यहाँ (मेरे दा हने वृषण क तरफ
इशारा कया) पर तल है...”

“ह म म! तो? उससे या?”

“कहते ह य द पु ष के गु तांग पर तल हो तो वह पु ष अ य धक कामुक होता है.. और


एक से अ धक य के संसग का सुख पाता है।“
“अ ा जी! ऐसा है या? म.. और इसका या मतलब है?” कहते ए मने अ नी के
दा हने तन के बाहरी तरफ के दो तीन तल क तरफ इशारा कया।

वो शरमाती ई बोली, “इसका यह मतलब है क जसके सीने के दा हनी तरफ तल होता


है, उसको सु दर जीवनसाथी मलता है...”

“ओ हो... फर तो गड़बड़ हो गई! तुमको तो म मल गया!!” मने अ नी को छे ड़ा।

“अरे या गड़बड़? आप तो कतने सु दर..” कहते कहते अ नी क गई और उसका


चेहरा शरम से लाल हो गया।

“अ ा जी! ऐसा है?”

“जी हाँ.. मने तो जब पहली ही बार आपको दे खा था, तभी आप मुझे ब त पसंद आ गए
थे!”

“अ ा! ऐसी बात है? तो फर आपने कुछ कहा य नह ?”

“ या कहती? म तो छोट थी, और आपको द द पसंद थी! तो मने सोचा क आपके जैसा
ही कोई चा हए मुझको! ले कन फर द द के जाने के बाद...”

या क बात सुन कर दल भर आया। पहले या, और अब उसक बहन – यह बात सोच


कर दय म ला न सी हो गई... फर लगा, क हमने तो बाकायदा शाद करी है.. तो उसमे
य ला न हो? अ नी जैसे मेरे चेहरे पर से ही मेरे मन म उठने वाले भाव पढ़ रही हो!

“आपसे एक बात क ?ँ ”

मने हामी म सर हलाया।

“आपक कोई भी इ ा हो – जो पूरी नह ई हो, द द या आयशा कसी ने भी.... या जो


भी आप करना चाहते ह.. मुझसे क हएगा। म कभी आपको मना नह क ँ गी। आप जो
भी कहगे, म क ँ गी।“

“ यारी अ नी.. हम कसी क ट शन म ह या?”

“नह नह .. मेरा वो मतलब नह है... म तो बस..”

“मुझे मालूम है क तुम या कहना चाह रही हो! और मुझे ख़ुशी है क तुम मुझसे यह सब
कह रही हो! मुझे भी तुमसे ेम है... और म तु हारी ब त इ ज़त करता ँ। इस लए ही नह
क तुम मेरी प नी हो.. ब क इस लए भी क तुम एक ब त अ इंसान हो, और म
तु हारी सेवा कर उ भर कज़दार र ँगा।“

मेरी बात सुन कर अ नी क आँख भर आ ।

“च लए जी! ये भी या बात है? मेरी सुहागरात के दन ही आप मुझे ला रहे ह!” कहते


ए उसने अपने आँसूं प छे ।

“ओओओ.. मेरी यारी बीवी नाराज़ हो गई? इसको कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ... म..
सुहागरात म तो बीवी को मनाने का बस एक ही तरीका है..”

“वो या?”

“उसक यो न चाट कर..”

“छ ह! आप ऐसे ऐसे श द मत बोला क रए.. आपके मुँह से अ ा नह लगता!”

“अ ा! ले कन मेरा मुँह अपनी यो न पर महसूस करना अ ा लगता है?”

मेरी बात पर अ नी बुरी तरह शरमा गयी!

“आप करते जाइए... धीरे धीरे सब अ ा लगने लगेगा!”


“दै ट्स लाइक माय गल!” कह कर मने अ नी को ब तर पर लटाया, उसक टाँगे फैला ,
और उसक मालपुए जैसी मीठ मीठ यो न को फर से भोगने लगा।

“जानेमन! तुमको मालूम है क तु हारी यो न का वाद कतना मीठा मीठा है? इसम शहद
डाल दया था या?”

“ओ ह.. नह .. ले कन यह सोच कर.. क अअअआआ से आपके सामने मुझे नंगी


रहना पड़ेगा, मेरी यो न से बस रस बहता ही जा रहा है! आः ह! ऊऊ ह!”

“सच म?”

“ या सच म?” अ नी जैसे कसी त ा से जागी। उसका एक और खलन समा त हो


गया था।

“तुम आज से नंगी रहोगी?”

"म नंगी र ंगी, तो आपको ख़ुशी मलेगी?”

“हाँ!”

"मुझे नंगी दे खकर आपको या कोई ए ा खुशी मलेगी?” अ नी ने मुझे छे ड़ा, “आपने
पहले तो द द , और फर आयशा - उनको तो लगभग हर रोज़ ही नंगी दे खा होगा!"

"हाँ! और तुम भी तो मेरी प नी हो! वो कोई बौड़म ही होगा, जो तुम जैसी प नी को नंगा न
रखना चाहे! खुशी तो मलेगी ही, और शारी रक संतु भी मलेगी मुझे! या से भी
मलती थी, और आयशा से भी! और अब, तुमको दे ख कर तुमसे भी वही खुशी पाना
चाहता ँ।"

कहते ये मने अ नी क यो न क दरार पर उं गली फराई – मेरी उं गली गीली हो गयी।


मने उसको दखाते ए उसके रस से भीगी उं गली को अपने मुँह म रख कर चूस लया।
"अ ा जी! तो आप मुझे न सफ नंगी रखना चाहते ह, ब क शारी रक सुख भी चाहते
ह!” उसने मुझे छे ड़ा!

"हाँ"

“इतना सब कुछ... और इतने स ते म!”

“अरे! स ता या? हर बार तु हारा वज़न एक कलो बढाऊँगा न!” मने भी उसको छे ड़ा।

“हा हा! और जब बाक लोग मुझे ऐसे दे खगे तो?”

“तो या? म उनके सामने ही यह सब क ँ गा।"

"अ ा! तो बीवी क नुमाइश लगने वाली है! और अगर दे खने वालो म से कसी ने ऐसा ही
कुछ करने क सोची तो?”

"तो या? अगर दे खने वाला आदमी आ, तो म तु हारी यो न म डालूँगा, और उसको


तु हारी नतंब म डालने को क ँगा!”

“ध ! गंदे!”

“अरे सुन तो ले पूरा... और अगर औरत ई, तो उसको तु हारी नतंब चाटने को क ँगा,
और म तु हारी यो न म डालूँगा!

“आप इतनी ग द बाते य कर रहे हो?” अ नी ने मेरे चेहरे हो अपनी हथे लय म भरते
ये कहा।

“सॉरी जानू.. ऐसे ही!”

“आप मुझे कसी के साथ भी शेयर मत क रएगा लीज!”

“आई ऍम सॉरी जानू! अब ऐसे कुछ नह क ँगा तुमको!”


“म आपको ब त यार करती ँ! कसी भी चीज से कह यादा...." कहते ये अ नी ने
अपने ह ठ मेरे ह ठ से मला दये और उ साह और जोश से चु बन दे ने लगी। जब वह
चु बन करके पीछे को यी तो उसने कहा,

“म सच म नंगी रह लूंगी.. आप दे खना.. ले कन मुझे अपने सवाय कसी और को न दे ना!”

मने उसका चेहरा अपने हाथ म भरकर कहा, “अ नी, तुम ब त अ हो!”

“हाँ... मुझे पता है क म य अ !ँ मने नंगी रहने का वायदा कया है, इसी लए न?”

“हाँ...वो भी है।“

“आपको मेरे बू स अ े लगते ह?” अ नी ने मेरी आँख को दे खा – वो काफ दे र से


उसके तन पर ही जमी ई थ ।

“हाँ! मुझे तु हारे बू स ब त अ े लगते ह..”

और मने उसके तन को अपने हाथ से लेकर दबाना, मसलना शु कर दया।

"आआ ह हह! आराम से! उफ़!” अ नी थोडा इठलाई, “अ ा एक बात बताइए – द द


और आयशा के मुकाबले आपको मेरे कैसे लगते ह?”

"कामुक! और टे ट !”

"तो फर! अब या करने का इरादा है?" उसने कहा।

“इनको पीने का लान है अब!”, मने कहा, और उसके एक चूचक को अपने मुँह म ले
लया!

“आह! हाँ! आ ह.. आराम से जानू!!” अ नी अपने सीने को आगे क तरफ ठे लते ए
बोली।
मने जी भर कर और जोश म उसके चूचक चूसना शु कर दया। अ नी आह भरने
लगी।

“काश, इनम ध भरा होता!”, मने चूसते ए बीच म कहा।

"हा हा! अ ा जी... आपके इरादे बड़े नेक ह! ले कन इसके लए तो आपको मुझे े नट
करना पड़ेगा।" अ नी हँसते ए बोली।

“तो फर ठ क है, चलो.. तैयार हो जाओ..”, मने कहा।

“ या?”

"अरे! तुमको े नट करने का यही तो एक तरीका है!”

अ नी ने मेरे तने ए लग को दे खा, और कहा, “आपका ‘वो’ ब त आतुर है अपनी


सहेली से मलने के लए!”

“हाँ! इसक सहेली भी इससे मलने के लए लार टपका रही है न!”

अ नी ने अपने दोन हाथ से मेरे लग को पकड़ा और सहलाने लगी। उसी समय मने भी
उसको पुनः चूमना शु कर दया और ब तर पर लटा दया।

“रेडी हो जाओ, जानू...”

“ य ? कस लए?” वो भली भां त जानती थी क कस लए।

"तुमको ठोकना है न.. जससे तुम ज द से ज द माँ बन सको!”

मेरी बात सुन कर अ नी ने अपनी दोन टाँगे फैला द ।

"ज़रा और फैलाओ जानेमन.. अपनी मालपुए जैस यो न थोड़ा ढं ग से दखाओ मुझ!े ” मने
उसक यो न पर अपनी नगाह जमाये ये कहा।
"अभी ठ क से दख रही है?“ अ नी ने टांग को और फैलाते ए पूछा।

“थोड़ा और..” मने म त करी।

“अब बताइए? अब दखी ठ क से? य क अब और नह फैला पाऊंगी...” अ नी ने


अपनी जांघे और फैलाते ये कहा।

“हाँ, अब दखी! तु हारी यारी यारी.. मीठे रस से सराबोर यो न!”

“अब और कतनी दे र तक इसे दे खते रहगे? मुझे माँ बनाने का इंतजाम कब करगे?”
अ नी ने हँसते ये पूछा।

"ये तो इतनी सु दर है क म चाहता ँ क इसे तब तक दे खूं, जब तक ये मेरे दमाग म पूरी


तरह न बस जाय!” मने कहा।

"अरे! आपक ही तो मल कयत है ये! जब चाहे आप दे ख ली जए, या भोग ली जए!”


उसने अपनी दोन टाँगे मेरे कंध पर रखते ये कहा।

मने अ नी क यो न पर अपना लग ा पत कया और कहा, “ठु कने को तैयार?”

“हाँ जानू! आप बुरी तरह ठो कये मुझ!े ”

मने अपने लग को अंदर क तरफ धकेलते ये उसको चूमा। जैसे ही अ नी ने मेरे लग


को अपनी यो न क गहराइय म जाते ये महसूस कया, वो बोली, “अब आप ज द से
कर द जए सब कुछ! म कैसे भी रोऊँ, आप कयेगा नह !“

उसक इस बात पर म भी तुरंत शु हो गया और बल पूवक ध के लगाने लग गया।


अ नी भी मेरे ध को के साथ नीचे क तरफ से ताल मलाने लगी। कुछ ही ण म मने
अ नी क यो न म लग को अंदर बाहर करने क ग त बढ़ा द और तब तक करता रहा
जब तक मने उसक यो न के अंदर अपना पूरा वीय उड़ेल न दया। इसी बीच म अ नी
को एक बार फर से चरमसुख मल गया। जब उसने अपनी कोख म मेरे वीय क पचकारी
महसूस करी, तो वो मु कुरा द ।
कुछ दे र के बाद हम दोन ही संयत हो गए। म कुछ दे र उसके ऊपर यूँ ही लेटा रहा। जब
उठा तो मने कहा, “अ नी, मुझे ब त मज़ा आया! तुमको?”

“मुझे भी!” उसने कहा, और मुझे ह ठो पर चूमा। “आप थक गए ह गे! सो जायगे?

“नह ! इतनी म त ठु काई करने के बाद कोई सोता है या?”

“हा हा! तो या करता है?”

“ को.. बताता !ँ ”

कह कर मने अलमारी से जो या के लए खास मेड-टू -आडर करधनी बनवाई थी, वो


बाहर नकाली। यह एक १८ कैरट सोने क करधनी थी। इसम लाल-भूर,े नीले और हरे रंग
के म यम मू यवान जड़ाऊ प र लगे ए थे। अ नी उ सुकतावश मुझे दे ख रही थी क
म या कर रहा ँ। म वापस आकर ब तर पर बैठ गया और अ नी को ब तर से नीचे
उतरने को कहा। जब वो ज़मीन पर खड़ी ई, तो मने उसक कमर म यह करधनी बाँध द ।
थम सहवास के समय उसका हीर का मयूर जड़ाऊ हार उतार दया था – उसको भी
वापस पहनाया। और थोड़ा सा पीछे हट कर उसके सौ दय का अवलोकन करने लगा।

अ नी पूरी तरह न न थी – और उसके शरीर पर यह हार, मंगलसू , वो करधन, कलाइय


म चू ड़याँ और कंगन, माथे म स र, कानो म कणफूल, पैर म पायल, और ब छया!
मतलब सफ आभूषण बचे थे! उसक बद हमारे सहवास या के समय न जाने कब खो
गयी, और स र और काजल अपने अपने ान पर फ़ैल गए थे, और लप टक का रंग
मट गया था। क तु फर भी, अ नी, अपनी ही बहन क भा त बलकुल र त का ही
अवतार लग रही थी।

“आपक एक त वीर नकाल लू?ं ”

अ नी शम से मु कुराई, और हामी म सर हलाया।

मने झटपट अपना कैमरा नकला, और दनादन कई सारी त वीर उतार ल । उसके बाद मने
अ नी क कमर को आ लगन म लेकर उसक ना भ, और फर उसक कमर को करधनी
के ऊपर से चूमा। फर खड़े हो कर उसके दोन चूचक को चूमा, और अंत म उसके ह ठ
पर एक चु बन दया।

“जानू.. आज दन म बस यही पहन कर रहना!”

अ नी उ र म सफ मु कुरा द !!

मेरी हर कही ई बात अ नी के लए जैसे वेद-वा य, या फर कोई दै वीय आदे श था।


हमारे वैवा हक जीवन के पहले दन सचमुच अ नी ने अपने शरीर पर कुछ भी नह पहना
– उसके शरीर पर बस वही कुछ आभूषण - करधनी, कंठहार, मंगलसू , चू ड़याँ और
कंगन, पायल और अंगूठ ही रही। ऐसा करने के लए उसक दलील यह थी क मने पहली
बार – मेरे जीवन म भी, और हम दोन के वैवा हक जीवन म भी – उससे कुछ माँगा था।
इस लए वो कसी भी क मत पर मुझे उस बात के लए मना नह कर सकती थी – चाहे म
ही उसको वैसा करने से मना क ँ ! खैर, मुझे या आप हो सकती थी भला? इतनी
सु दर सी लड़क अगर न न हो कर घर म इधर उधर घूमे तो आनंद ही आएगा! खैर, मने
कमरे से बाहर नकलने से पहले एक न कर और ट -शट पहन लया था। उसक सहेली
आरती जब सुबह उठ , तो उसका यह प दे ख कर दं ग रह गई।

“हाआआआआ! या जीजू! मेरी इतनी शम ली सी सहेली.. आपके साथ बस एक रात


या रह ली, उसक तो ऐसी हालत हो गई! या कया आ खर आपने?”

मने आँख मारते ए उसको उसी के अंदाज़ म छे ड़ा, “आजा तू भी.. दे खते ह, मेरे संग का
या असर होता है तुझ पर!”

“न बाबा! म तो सोच रही ँ क जब प त मलेगा तो उससे नए नए कपड़ क फरमाइश


क ं गी.. अगर आपके साथ हो ली, तो ऐसे नंगी रहना पड़ेगा!”

“ओये होए! सहेली के प त को अपना प त बनाना चाहती है?” मने फर छे ड़ा।

“अरे मेरा ही या? आपके जैसे शानदार मद को दे ख कर कसी भी लड़क का जी होने


लगेगा!”
“अरे तो क कर कुछ दे र दे ख ही ले क हमने ऐसा या कया जससे तेरी सहेली क ऐसी
हालत हो गई..”

“न बाबा... ये ऑ शन भी गड़बड़ है! आप दोन को ठु काई करते दे ख कर अगर मेरा भी


मन डोल गया तो?” आरती फर से बेशम पर उतर गई।

“तो या? तू भी बहती गंगा म हाथ धो लेना.. लगे हाथ तेरी यो न क भी कुटाई हो
जाएगी!”

“ओये होए! नई नई बीवी, वो भी नंगी नंगी, आपके पहलू म बैठ ई है, और आपक ग द
नज़र उसक सहेली पर है!”

“ठहर तो.. बताता ँ तुझे!” इस लड़क से कोई नह जीत सकता।

“नह ! मुझे कुछ मत बताओ...” वो भागी, “आप दोन ठु को-ठु काओ.. इसम मेरा या
काम? म य कबाब म ह ी बनू?ँ ” यह कहते ए वो खल खलाती ई कमरे से भाग खड़ी
ई। इस पूरे वातालाप के दौरान अ नी पहले तो सफ मु कुराती रही, ले कन बाद म
हँसते हँसते दोहरी हो गई।

“हंसी आ रही है?”

वो और हंसी.. दरअसल अब तक वो खल खला रही थी।

“जानू.. जाने द जए.. वो ऐसी ही है..”

“हंसी नकालूँ और?” मने अपनी आवाज़ म नकली ू रता मलाते आ कहा। अ नी
कुछ सहम गई।

“ह म? हंसी नकालूँ तेरी?” मने नाटक जारी रखा।

अ नी के चेहरे से मु कान अब तक ख़तम हो चुक थी – शायद मेरे ऐसे अचानक बदले


ए प को दे ख कर डर गई थी वो! मने उसके करीब जा कर उसक जाँघ के बीच म
अपनी उं गली फराई। उसक यो न क फाँक क गुलाब जैसी कोमल पंखु डयां खुली,
और मेरी उं गली के गद चपक ग ।

“ये ह ठ हँसगे तेरे... ऊपर वाल म तो सफ कराह और आह नकलगी!” सरे हाथ से म


अपनी न कर उतार रहा था।

मेरी इस बात पर अ नी के ह ठ पर एक ल ालु मु कान तैर गयी। वो बोली,

“ये भी कैसे मु कुराएंगे? आपका अंग लेने म तो ये पूरी तरह से खुल जाते ह!”

“अ ा जी?”

“हाँ जी! .. ऊओ ह! (मने उसक यो न के ऊपर भगशेफ़ को छे ड़ा) ये बेचारे तो बस लार


टपकाते रह जाते ह!” वो अदा से मु कुराई।

अब तक मेरी न कर उतर चुक थी। या न अब हम दोनो ही नंगे हो चुके थे। मने अपनी
प नी को जी भर कर दे खा – वो भी कभी मुझ,े तो कभी मेरे लग को दे ख रही थी। वो सोचे
बना न रह सक क द द को कैसा लगता रहा होगा जब वो इस लग को अपने अंदर लेती
थ ! इस बार शु आत अ नी ने करी। उसने मेरे लग को अपनी हथे लय म लेकर
सहलाने का उप म शु कया। उसक नरम गरम हथे लय का श पा कर मेरा लग भी
तुरंत ही पूण त न क त म आ गया। मने भी उसके तन को सहलाना और
मसलना शु कर दया।

ज द ही हम दोन ही एक सरे को अपनी बाह म भर कर लेट गये। मने एक हाथ से


अ नी के एक चूचक को मसलते ए कहा,

“ओह अ नी! तुम नह जानती क म कतना खुश !ँ तुमको पाकर मुझे अपने मन क
खोई ई खुशी मल गई है! और.. जीने का सहारा भी!”

“ऊ ह! अरे! आप ऐसा न क हए! सहारा तो आप ह मेरे! आपक वजह से मुझे वो सुख


मला है जसके बना म खुद को अधूरा महसूस कर रही थी।“
अ नी ने मेरे लग को सहलाते ए कहा। मने महसूस कया क अ नी क यो न गीली
हो गई थी। पर अभी उसमे लग डालने का सही समय नह आया था। यह बात उसको भी
समझ आ रही थी। वो अपनी जगह से उठ खड़ी ई, और अपने शरीर को कमानी क तरह
कुछ पीछे करते ए इस तरह ई, जससे उसका यो न े मेरे सामने कुछ बाहर आ जाय,
और कुछ अ धक द शत होने लगे।

“एक बार इन ह ठो को भी चूम ली जए..”

ऐसे सु दर, मादक, गोरे, चकने शरीर, और उससे भी अ धक चकनी और रसीली यो न को


अपने मुँह के करीब होता दे ख कर म और भी अ धक उ े जत होने लगा। मने आगे बढ़
कर उसके दोन नत ब को पकड़ लया, और अपनी तरफ धीरे से ख चा – ऐसा करने से
अ नी का यो न मुख मेरे ह ठ से मा कुछ इंच क ही री पर रह गए!

मने कहा, “अ नी, थोड़ा जगह बनाओ..”

अ नी ने अपनी टाँगे कुछ खोल द , और मुझे उसक यो न का आ वादन करने के लए


जगह मल गई। अ नी ने अपना यो न े कुछ इस तरह से व त कया जससे अब
म आराम से अपनी जीभ से उसक यो न का भोग कर सकता था – मने वही कया। म
उसक यो न को अपनी जीभ से सहलाने लगा। इस कार क छे ड़खानी का असर अ नी
पर काफ सकारा मक आ – वो भी कामुकता म म सी हो गई। मने सोचा क अ नी
को अपने इस काय का कुछ पा रतो षक तो मलना ही चा हए – इस लए मने भी आराम से
रह रह कर उसके भग श को चाटना शु कर दया। म मशः उसक यो न क पूरी
ल बाई को चाटता, और रह रह कर उसके भग श को अपने ह ठ से दबा कर उसको
पागल बना दे ता। लगभग तीन मनट के बाद ही अ नी उ माद म पीछे क तरफ कुछ
झुक और अपनी यो न का रस मेरे मुँह पर ही छोड़ने लगी। मेरे चाटने क ग त बढ़ने लगी
और उसी के साथ साथ अ नी भी उ माद के अंतराल तक प ँच गई। उस समय म अपनी
दो उं ग लयाँ उसक यो न म डाल कर अंदर बाहर करने लगा। अ नी इस नए हार को
बलकुल भी सहन नह कर सक ।एक जोरदार ससकारी के साथ वो अपने चरमो कष
तक प ँच गई। उस उ माद म उसका पैर कांप गया, और इससे पहले क म उसको स हाल
सकता, वो भहरा कर फश पर गर गई। म घबराया क कह उसको चोट न लग गयी हो –
ले कन अ नी लंबी लंबी साँसे भरते ए फश पर लेट गयी।
यह सु न त करने के बाद, क वह पूरी तरह से ठ क है, म वापस मूड म आ गया। म पुनः
उसके तन को मसलने म लग गया। मेरा लग भी अब अपने गंत म जाने को आतुर हो
रहा था। मने अ नी का हाथ पकड़ कर अपने लग पर रख दया – म एक तरह से उसको
बताना चाहता था क म अब तैयार ँ! अ नी भी समझ गई क अब व आ चुका है।
उसने मुझको उसके ऊपर आने को कहा, और मेरा लग अपने हाथ से पकड़ कर अपनी
यो न से सटा दया। मने धीरे धीरे लग को उसक यो न म डालना आर कर दया।

लड कयाँ अ सर ही सहवास के बाद एक कार का दद अनुभव करती ह। अगर वो दद


सहवास करते समय आघात के कारण उठता है, तो मद को चा हए क वो सावधानीपूवक,
और ेम से करे। ज दबाज़ी न दखाए। ले कन य द यह बात नह है, तो एक और कारण है
– और वो यह क सहवास, और उसके बाद चरमो कष क ा त के बाद लड़ कय क
यो न अ त संवेदनशील हो जाती है। अब इस संवेदनशीलता क अव ध कुछ भी हो सकती
है – कुछ सेकंड से लेकर कई मनट तक भी! इस अव ध म लड कयाँ यह नह चाहती क
उनक यो न को और अ धक छे ड़ा जाय। यह संवेदनशीलता इस बात पर भी नभर करती
है क उनके भगनासे को भी छे ड़ा गया है या नह । खैर, सुहागरात के सहवास, और अभी
अभी ा त यौन चरमो कष के बाद अ नी क भी कुछ ऐसी ही त थी – उसक यो न
के दोन ह ठ सूजे ए से लग रहे थे।

क तु इस पर भी उसने मेरे लग का पूरी तरह वागत कया। उसका छोटा सा यो न मुख


जैसे अपनी सीमा तक खच गया था। मेरे लग पर वो एक रबड़ के छ ले के समान कस
गया था, और मेरा लग इस समय पूरी तरह से उसके अ दर समा हत हो गया था। मने जैसे
यह दे खा, मने उसको लगभग पूरा बाहर नकाला, और वापस अंदर धकेल दया। पाठक
समझ सकते है क ऐसा करने म ग त तो कम हो जाती है, ले कन घषण अभूतपूव होता है।
म ऐसा बार बार दोहराने लगा। इस करण के दौरान, मने अ नी के कंधे पकड़ रखे थे।
इस लए अब इस उ मादक हार को झेलने के अ त र अ नी के पास अब कोई चारा
नह बचा था।

अ नी भी सहवास के मामले म या के समान ही थी – वो भी तुरंत ही बहकने लगती


थी, और लगभग तुरंत ही तैयार हो जाती थी। मेरे कठोर और गरम लग के घषण का
अनुभव अ नी को उ म करने लग गया था। वो शी ही अपने अंदर चरमो कष क
लहर उठती सी महसूस करने लगी। म भी जैसे कसी मतवाले पशु के समान, आँख बंद
कये, पूरे मनोयोग से उसके अ दर बाहर हो रहा था। जब आँख खुली, तो सामने अ नी
के यारे से तन नज़र आ गए। म रह न सका – मने जैसे ही उसके एक चूचक तन को मुँह
म लेकर चूसना शु कया, अ नी पुनः चरमो कष पर प ँच गयी। उसके शरीर क
थरथराहट मने महसूस क और अ नी को भोगने के लए अपनी ग त और बढ़ा द ।

ाइंग म म हमारी र त या क मादक व नयाँ गूँज रही थ । अरे, हमको तो यह भी नह


मालूम पड़ा क कब आरती वह आ खड़ी ई, और मज़े लेकर हमारे इस अ तरंग समय क
व डयो रकॉ डग कर रही थी। म अब पूरे वेग से ध के मार रहा था – मेरा भी अंत आ गया
था – मेरा पहला खलन ब त ही ती था। पहली पचकारी म ही मेरा कम से कम अ सी
तशत वीय अ नी क कोख म समां गया। बाक का बचा आ अगले चार पांच
पचका रय म नकल गया। इस सहवास म ऐसा अभूतपूव भावावेश था, क हम दोन एक
सरे से बुरी तरह से लपट गए। हमारी साँसे ध कनी क तरह चल रही थ , और मुझे ऐसा
लग रहा था जैसे क एक मैराथन दौड़ कर आया ँ। हम एक सरे को अपनी बाह म
भरकर लेटे रहे। वृषण म अब कुछ भी नह बचा आ था, ले कन फर भी लग रह रह कर
थ ही पचका रयाँ छोड़ने का यास कर रहा था। अ नी क यो न म भी ंदन हो रहे
थे – मान मेरे लग के उठने वाले ंदन से ताल मला रही थी। खैर, कुछ दे र तक ऐसे ही
शांत लेटे रहने के बाद हमने एक सरे को ह ठ म चु बन दया और पुनः आ लगनब हो
गए।

“ या बात है जीजू और अ नी!” हमारी त ा तब टू ट जब हमने हलक हलक ता लय


क आवाज़ सुनी। “ये तो गुड मो नग हो गया है जी!”

मने और अ नी – हम दोन ने ही आवाज़ क दशा म दे खा। आरती मु कुराती ई अपने


मोबाइल फ़ोन लए हमारा व डयो बना रही थी।

“ठहर जा तू..” मने धमक द और उठने का उप म कया, ले कन अ नी ने मुझे गलबैयां


डाल कर रोक लया।

“जाने द जए न.. ले दे कर वही तो एक आपक साली है..”

“हाँ जीजू.. आपक आधी घरवाली!” कह कर उसने मुझे जीभ दखा कर चढाया।
“डेढ़ घरवा लयाँ ह आपक ... डेढ़!! वैसे आप चता न क रए – ये व डयो म इंटरनेट पर
नह डालूँगी। ब क आप दोन को मेरी तरफ से ग ट ँ गी। .. और अपने पास भी रखूंगी।
जब भी मेरे कामुक से जीजू क याद आएगी, इसको दे ख कर खुश हो लया क ं गी..।“
उसने नहायत ही नाटक य अंदाज म यह बात कही। मुझे भी हंसी आये बना न रही।

“अ ा, तो तू मेरी आधी घरवाली है.. कम से कम घरवाली का आधा यार तो दे !” मने


उसको छे ड़ा। मुझे लगा क इस एक वा य से मने पहली बार आरती को कुछ समय के
लए न र कर दया। वो कुछ दे र अचकचा गयी, ले कन फर स हाल कर बोली, “ या
जीजू.. इतनी सु दर सी बीवी है, और नंगी पड़ी है.. और आप मुझ पर डोरे डाल रहे ह?”

“ या क ँ साली सा हबा! इतनी कामुक साली का कोई तो फायदा होना चा हए न!”

“ या सच म? आपको म कामुक लगती ँ?”

“हाँ! सु दर, और कामुक!” फर अ नी क तरफ दे ख कर, “ य जानू?”

“हाँ .. बलकुल! तू तो ब त सु दर है!” अ नी फर मेरी तरफ मुखा तब हो कर बोली,

“आपको अगर चांस मले, तो इसके बू स दे खएगा! ब त कामुक ह!”

“ या कह रही है तू कमीनी?”

“तू कमीनी है.. यहाँ हम दोन नंगे पड़े ह, और तू पूरे कपड़ म खड़ी है..”

सहे लय क मीठ तकरार...

“आप ही कुछ क हए न...”

“हाँ आरती.. वो बात तो है..”

“हाँ.. आप तो कहगे ही न.. मेरे कपडे उतर गए तो दो दो नंगी लड कयाँ मल जाएँगी


आपको.. यानी पाँचो उं ग लयाँ घी म..”
“नह रे.. पाँच नह ,” मने आरती के वा य को सुधारा, “दस उं ग लयाँ.. और घी म नह ..
या तो मीठे मीठे बन (छोटे , मीठे पाव – मेरा इशारा तन क तरफ था) म.. या फर शहद
म!”

हमारी छे ड़खानी सुन कर आरती क जो भी मोरचाबंद थी, वो ज द ही ढह गई।

“ या सचमुच इसके बू स ब त कामुक ह?” मने अ नी से पुछा।

अ नी के कुछ कहने से पहले ही आरती बोली, “कोई कामुक नह ह.. जैसा सभी का
होता है, वैसा ही है!”

मने कहा, “तु हारा भी ऐसा ही है या?” मने अ नी के तन क तरफ इशारा कया।

“आपक बीवी के ब त सु दर ह..”

“नह .. सच म.. इसके ब त सु दर ह.. आप खुद ही दे ख लो..” दोन लड कयाँ एकदम


ब वाली बात कर रही थ ।

“सच म जीजू.. ये बलकुल बेशम हो गयी है..”

“इधर आओ आरती...” मने थोड़ा सी रयस हो कर कहा। न जाने या असर आ उस पर,


वो बना कसी हील त के हमारे पास चली आई।

“बैठो..” वो बैठ गयी।

“म तेरे बू स छू कर दे ख लूँ या?”

उसने कुछ कहा तो नह , ले कन हलके से सर हला कर हामी भर द ।

“प का?” वो शम से मु कुरा द । ब क शरमाना मुझे चा हए था – नंगा तो आ खर म था


उसके सामने!
अ नी: “हाँ... छू कर दे खए न!”

मने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर उसका बायाँ तन ब त हलके से छु आ – ठ क से छु आ भी


नह था, फर भी आरती च ंक सी गई।

“आरती, डरो मत! म कुछ नह क ं गा.. अ नी भी तो यही ह न..!” मने उसको सां वना
द।

ले कन जस बात को म आरती क शम सोच रहा था, दरअसल वो उसक बदमाशी थी।


उसका घबराया आ, भोला सा चेहरा दे खते दे खते बदल गया – उसके ह ठ पर एक
पतली सी मु कान आ गयी, और उसने अचानक ही जीभ नकाल कर मुझे चढाया,

“न न न जी-जा-जी..” उसने एक एक अ र क क कर बोला, “आज के लए बस इतना


ही.. अपनी इस साली को खुश कर के र खएगा.. या पता, आगे और या या मल जाए
आपको!! ही ही ही!”

कह कर वो आगे बढ़ और मुझको ह ठ पर चूम लया, फर मेरे बाद उसके अ नी को भी


ह ठ पर चूम लया।

“अब आप लोग थोड़ा नहा-धो ली जए... म आपके लए ना ता बनाती ँ... ऊओ ह!


दे खए न.. आपक ये एकलौती साली पहले ही आपसे खुश हो गयी है.. आपको ना ता
मल रहा है उससे! हा हा!”

न य या से नवृ होने के बाद, अ नी और म हम दोन साथ ही नहाने के लए गए।


नहाते व ऐसी कोई ख़ास बात नह ई – ले कन जा हर सी बात है, अ नी भी यह
सु न त कर दे ना चाहती थी क म उसके शरीर के हर कोने से अ तरह से जानकारी
कर लूं – उसके शरीर म कस जगह पर कैसे लोच ह, कैसी गोलाईयां ह और कैसे मोड़ ह –
उन सबका ान उसको नहलाते समय साबुन लगाते और फर पानी से धोते समय मुझे हो
गया। उसके शरीर पर कहाँ कहाँ और कैसे कैसे तल ह, और कैसा ज म- च ह है, उसक
गुदा क बनावट और रंग, साथ ही साथ उसक यो न का व तृत ववरण – मतलब अ नी
के बारे म वो सभी जानका रयां जनके बारे म संभवतः अ नी को खुद भी न मालूम हो,
उस एक ही नान म मुझे हो गई।
हम तीन ने साथ म बैठ कर ना ता कया। वायदे के मुता बक, अ नी अभी भी न न थी –
सवाय एक नव- ववा हता के सम त आभूषण के। मने भी उसका साथ दे ने के लए कोई
कपड़े नह पहने थे। आरती ने ‘हाउ यूट’, ‘हाउ वीट’, और ‘हाउ कामुक’ जैसे कई
वशेषण हमारी संशा म जड़ दए, और हमको बारी बारी से चूमा। ना ता करते समय
आरती ने हमसे पूछा क हम दोन अपने हनीमून के लए कहाँ जा रहे ह? वाकई! इस बात
के बारे म तो मने बलकुल भी नह सोचा था। मने दमाग दौड़ाया ले कन कुछ समझ नह
आया – इस लए मने अ नी से ही पूछना ठ क समझा। उसने कहा,

“अ ा... आप ये बताइए क हम लोग हनीमून म या करगे?”

“अरे! हनीमून म या करना होता है?”

“ फर भी.. बताइए न?”

“भई, मेरे हसाब से तो हनीमून एक नए युगल के लए े फ , आनंद और पार रक


अंत ान का एक अवसर होता है! नए नए बने प त प नी को एकांत म मलने का सुख
मलता है, एक सरे को समझने का अवसर मलता है, और सब कुछ अ ा रहा तो एक
नए ान म पयटन करने का भी मौका मलता है! और या?”

“ओ हो! आप मेरे का उ र नह दे रहे ह.. हनीमून म करना या होता है?”

“अरे! बताया तो..” म जान बूझ कर टाल रहा था।

फर से आरती बीच म टपक पड़ी,

“ या मेरे भोले जीजू! आप भी न..” फर अ नी क तरफ मुखा तब होते ए, “मेरी ब ो..


हनीमून म जीजू तेरी जम कर ठु काई करगे! और या? अभी तो तू अपनी मज़ से नंगी
बैठ है, ले कन जब हनीमून पर जायेगी, तो तुझे ये जबरद ती नंगी रखगे! और तेरी यो न
का...”

“चो प!” मने डांट लगाई, “हनीमून म कुछ हो या न हो.. ले कन कम से कम तू तो नह


होगी वहाँ.. वही काफ है मेरे लए..”
“हाय मेरे जीजू! इतनी बे खी मुझसे? अपनी एकलौती साली से?” उसने फ़ मी अंदाज़ म
अपनी दा हनी बाँह थोड़ा ट् व ट करके अपने माथे पर, और बा बाँह ट् व ट कर के
अपनी कमर के पीछे कर लया और कहा, “हाय री क मत! कैसा जीजा मला मुझ!े ”

“तेरी तो..”

अ नी ने मुझे बाँह से पकड़ा, और मु कुराई, “जानू.. आप इसक बात मत सुना क रए!


वैसे म कह रही थी, क जो काम हम हनीमून पर करने वाले ह, वो सच म, अभी भी तो कर
ही रहे ह न! म संतु ँ पूरी तरह से.. और आपको संतु रखने क पूरी को शश क ं गी..”

“ओये होए मेरी प त ता नारी! वैसे सच क ं जीजू.. अपनी अ नी तो हमेशा से आपके ही


सपने संजोए रही थी। पूरी तरह से आपके त वफादार! बस.. एक बार मने ही इसको
बहका दया था..”

“तू तो कुछ भी कर सकती है” मने त खी से जवाब दया।

“अरे अरे! आप तो नाराज़ हो गए.. और एक म ँ.. जो आपसे खुश ई जा रही ँ..”

“तेरे खुश होने से भी मुझे या मला जा रहा है?”

“अरे! नह मला है तो मल जायेग! आप तो ऐसे उतावले ह गे तो कैसे चलेगा?”

“ या? म उतावला..!”

“जानू.. आप परेशान मत होइए! इस कमीनी ने मुझसे कहा था क तेरे ह बड को अपने


ध का वाद चखाएगी! चल री! कर न.. दे न अपने जीजू को ग ट...”

“अबे! मने कब कहा था?”

“कहा नह था तून?े ”
“न बाबा! तू ही पला ध वूध... ये सब मेरे अ ण क अमानत ह... ले कन... अपने यारे
जीजू को भी कुछ न कुछ तो ँ गी ही!”

कह कर उसने मुझे ह ठ पर चु बन दया.. और हँसते ए अ दर कमरे म भाग गयी।

और इसी के साथ अ नी और मेरी शाद -शुदा जदगी चल नकली। एक महीना ऐसे ही


हँसते हँसते बीत गया। सच म – जो सब कुछ या के जाने से खो गया था, वो सब कुछ
अ नी के आते ही वापस आ गया। सब कुछ तो नह – ले कन काफ कुछ। दल का घाव
भर तो सकता है, ले कन उसका च ह कैसे छू टे ? इस सब का पूरे का पूरा ेय अ नी को
ही जाता है। मने तो समय से पूरी तरह से हार मान लया था और उसके स मुख अपने सारे
ह थयार डाल दए थे। बस इसी बात क तम ा रह गई थी क कब मुझे समय अपने अंक
म भर के इस धरती से मु दे दे । ले कन, वो एक दन था, और आज का दन है – जीवन
को भरपूर जीने क इ ा बलवती हो गई है।

भगवान् ने एक और स द – और वह यह क मने कभी भी अ नी क या से तुलना


नह करी.. और करने क सोची भी नह । दोन ही लड कयाँ अ तम और अनोखी थ ।
दोन ही मेरी प नयाँ थ , और दोन से ही मुझे अ यंत ेम था। जहाँ या ने मेरे यं वत
जीवन म अपने ेम क फुहार स चत कर उसम बहार ला द थी, उसी कार अ नी ने
मेरे मृत ाय शरीर म पहले तो ाण फूंके, और फर अपने ेम के रस से स च कर जैसे मुझे
संजीवनी दे द थी। एक आदमी को भला जीवन से और या याशा हो सकती है?
३०
“ब ीस नंबर के पेशट को होश आ गया है..”, सरकारी अ ताल क नस नी लमा हष-
पू रत उ ेजना म भागते भागते बाहर आई और लगभग चीखते ए यह उ ोषणा करने
लगी।

“ज द से डॉ टर स हा को बुलाओ.. हे भु! कैसे कैसे नराले खेल! मने तो उ मीद ही


छोड़ द थी..” वह रसे शन पर नठ ले से खड़े दोन वाड-बॉयज को कह रही थी। उन
दोन ने उसक बात पर ऐसे मुँह बनाया जैसे उनको कसी ने रडी का तेल पला दया हो,
ले कन नी लमा ने जब आँखे तरेरी, तो दोन ही भाग कर डॉ टर स हा को बुलाने नकल
लए। कसी क मजाल नह थी क नस नी लमा क बात न माने।

कोई पं ह मनट बाद डॉ टर स हा, बतीस नंबर क पेशट क जांच कर रहे थे। न ज़ और
आँख इ या द दे खते ए वो मरीज़ से पूछते जा रहे थे,

“ब त ब ढ़या! कैसा लग रहा है आपको? कह दद तो नह ?”

“म कहाँ ?ँ ” मरीज़ ने पूछा।

“ओह! सॉरी! मने तो बताया ही नह – आप गौचर के सरकारी अ ताल म ह! म डॉ टर


स हा .ँ . और ये ह नस नी लमा! इ होने ही आपक दन रात दे खभाल करी है।“

“ या डॉ टर साहब.. आप भी..”नी लमा ने कहा

“अ ताल म? य ?”

“आपको सब बताएँग.े . ले कन, आप पहले यह बतोये क आपका नाम या है?”

“नाम? मेरा नाम.. या? मेरा नाम या है?” मरीज़ को कुछ समझ नह आ रहा था।

“कोई बात नह .. कोई बात नह .. आराम से!” कहते ए डॉ टर ने अपने नोट पैड म कुछ
लख लया, और फर नी लमा से कहा, “इनके वाइटल टै ट्स सब ठ क ह.. ले कन, इतने
महीने कोमा म रहने के कारण लगता है याददा त स ेस हो गयी है। कोई बात नह .. तीन
दन ऑ जरवेशन पर रखते ह – अगर हालत ठ क रही तो पेशट को रलीव कर दे सकते
ह.. मेमोरी गेन म टाइम लग सकता है और उसके लए हॉ टल म रहने क ज़ रत नह !
इनके घर इ ला कर द ?”

“ अभी करती ँ डॉ टर!”

“दे खए,” स हा ने मरीज़ को कहा, “आप घबराइये नह .. आप महीनो के बाद होश म


आ ह, इस लए शायद आपको अभी कुछ ख़ास याद नह है। ले कन, ज द ही आपको
सब याद आ जायेगा। इस बीच नस नी लमा आपका पूरा ख़याल रखगी।“

कह कर डॉ टर ने मरीज़ के सर पर यार से हाथ फराया और फर कुछ और ख़ास नदश


दे कर वहां से वदा ली।

“हाँ! सतीश जी... म नी लमा बोल रही ँ... नस नी लमा!” टे लीफोन पर नी लमा कह रही
थी,

“हाँ हाँ.. अ ताल से.. आपके लए खुश खबरी है.. हाँ! आपक प नी को होश आ गया
है.. हाँ हाँ! ... आप बलकुल आ सकते ह दे खने उसको! या नाम बताया था आपने
उसका? ... समा? हाँ? ओके! उनको ए चुअली फलहाल याद नह आ रहा है! कोमा का
असर लगता है.. आप आ जाइए, फर आराम से बात कर लगे.. ओके .. ओके!”

सतीश कोई इ क स बाइस साल का गढ़वाली युवक था। उसक इले ॉ न स रपेयर क
कान थी – कान या थी, बस महीने का खच नकल जाता था। पो लटे क नक क पढाई
करते ही उसने अपना खेत बेच दया, और यह काम करने लगा। माँ बाप उसके थे नह ,
इस लए कसी ने रोका भी नह ! मौज से कट रही थी। ले कन आमदनी अ धक तो नह
थी। रहने सहने का काम हो जाता था। बाक लोग क तरह उसको भी यह मन होने लगा
था क तनहा रात म वो अकेला न सोये! यूँ ही अकेले, ठ े ब तर म पड़े रहने से अ ा
था क कोई एक गरम शरीर उसके बगल म हो, जसके संग वो साहचय कर सके! ऐसे ही
नाहक अपने वीय को वो कब तक नाली म बहाता रहेगा?
महीनो पहले वो केदारनाथ जी के दशन के लए गया था यह म त मांगने क उसको एक
सु दर सी प नी मल जाय। प नी व नी का तो पता नह , ले कन वो उस ाकृ तक आपदा
क चपेट म आ गया। जैसे तैसे वो जान बचा कर भागा। चोट ब त सी आ , ले कन फर
भी वो न जाने कैसे पहाड़ क तरफ ऊपर क ओर प ँच गया। र ते म उसने न जाने कतने
ही अभाग के शव को दे खा। हर शव उसको यही याद दलाता क अंत म उसक भी यही
दशा होने वाली थी, ले कन फर भी उसने ह मत न हारी।

एक शाम को उसने एक लड़क को वह पहाड़ पर पड़े दे खा – वो लगभग मरणास थी।


उसके आस पास सयार मंडरा रहे थे, क कब वो मरे, और कब उनका भोजन बने।
अचानक ही सतीश को लगा क उसक आस पूरी होने वाली है। उसने उस लड़क को
जंगली जानवर क से बचाया, और जैसे कैसे भी उसको वापस जीवन क तरफ
लाया। ले कन लड़क क हालत ब त खराब थी। होश तो कब का खो चुक थी। इस घटना
के कोई दो दन बाद भारतीय सेना ने उन दोन को बचाया और अ ताल म भरती कया।

कोई और उस लड़क पर हाथ साफ़ न कर ले, उसके लए सतीश ने उसको अपनी प नी


‘ समा’ के नाम से भरती कया था। कम से कम वह दे ह ापार करने वालो क कु से
तो बची रहेगी। उसको तो अ ताल से ह ते भर म छु मल गयी, ले कन समा को होश
नह आया। इस बीच उसको पता चला क वो बाप बनने वाला था।

‘साला! कैसी क मत! लड़क मली भी तो पेट से!’ उसने सोचा।

ले कन फर उसको यह सुन कर राहत ई क वो ब ा उस ाकृ तक आपदा का शकार


बन गया था। यह सुन कर उसको सच म ःख आ। ले कन यह तस ली भी ई, क
शायद समा का प त मर गया हो, और अब यह सु दर सी, अ सरा सी दखने वाली लड़क
उसक बन सके। ले कन यह तस ली ब त दन न रही – समा जैसे होश म आने का नाम
ही नह ले रही थी। महीनो बीत गए। सतीश क उ मीद तो कब क छू ट गयी थी। माँ बाप
नह थे, तो कसी को या पड़ी थी क उसके लए लड़क ढूं ढता? ऐसा नह था क सतीश
क माली हालत म कोई ब त यादा खराबी थी – उसका गुजरा हो जाता था, उसको कोई
बुरी आदत नह थी.. ले कन उसके कसबे म एक बात स थी – वो बाद बेबु नयाद भी
हो सकती है – और वो यह क सतीश ‘उतना मद’ नह था। उसको अपने बारे म यह बात
सुनने म आती रहती थी। उसको गु सा भी आता था, ले कन बेचारा या करता? बस, खून
के घूँट पी कर रह जाता।
इस अफवाह के कारण कई सारे स ब ी नह चाहते थे क उनक लड़क का र ता
सतीश से हो जाय। कौन माँ बाप चाहगे क उनक लड़क वैवा हक सुख से वं चत रहे?
कसी को न मालूम होता तो कोई बात नह , ले कन जान बूझ कर कोई म खी तो नह
नगलेगा न! समा उसके लए एक आ खरी आस थी, ले कन उसको भी होश नह आ रहा
था। ले कन आज जब अचानक ही नस नी लमा का फ़ोन आया, तो सतीश क स ता का
कोई ठकाना नह रहा! न त सी बात है, समा का कोई भी र तेदार जी वत नह है..
होता तो अब तक कोई इ तेहार न दे दे ता? ढूँ ढने न आता भला? सतीश के अकेलेपन के
दन बस समा त होने ही वाले थे।
३१
आज ऑ फस जाने का मन नह आ, इस लए सवेरे ही बहाना बना कर घर म कने का
लान कर लया। ले कन, अ नी को कॉलेज जाना ही था – उसका कोई ब त ज़ री
ले चर था, जसको वो बलकुल भी मस नह कर सकती थी। खैर, मने ठान ही ली थी,
क आज घर म बैठँू गा, और अ नी के लए कुछ अ ा सा पका कर उसको दोपहर बाद
सर ाइज ं गा।

खैर, दोपहर के नकट म ट वी लगाए चैनल इधर उधर कर रहा था। ट वी दे खने क आदत
नह थी, ले कन समय काटने के लए कुछ तो करना ही था। सैकड़ चैनल तीन चार बार
इधर उधर करने के बाद नेशनल जयो ा फक चैनल पर रोक दया – रोक या दया, मेरी
उं ग लयाँ वतः क ग । सामने ट वी न पर उ राखंड ासद क एक डा यूम चल
रही थी। वो ासद मेरे जीवन का सबसे बड़ा घाव थी – मेरे हाथ खुद ही क गए, और म
दे खने लगा। दमाग कह और ही मंडरा रहा था। डा यूम म या कहा जा रहा था, मुझे
सुनाई नह दे रहा था – मेरा म त क वयं ही सामने के च म कभी तो अथाह जलरा श
क गड़गड़ जैसी आवाज़ भरता जा रहा था, तो कभी चो टल य क कराह क
आवाज़! मन म तो आ क ट वी बंद कर ं – ले कन वो कहते ह न, आदमी को अपने
व से दो-चार होना चा हए। और कुछ न हो, कम से कम तस ली तो मल ही जाती है।

म ट वी बंद नह कर सका। बस – च दे खता गया। अचानक ही एक ऐसा च आँख के


सामने आया जसने मेरे दय क धड़कन कुछ ण के लए रोक द । डा यूम म एक
अ ताल का य दखा रहे थे, जसमे ासद के शकार लोग भरती कये गए थे।
कैमरामैन ने अ ताल के बड़े से हॉल म अपना कैमरा एक कोने से सरे कोने तक चलाया
था, ले कन मुझे जो दखा वो अ यंत ही अक पनीय था।

उस अ ताल के एक ब तर पर या थी!!

कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। य म या लगभग नज व सी ब तर पर लेट ई


थी, नह – बैठ ई थी। उसको एक नस ने पीछे से सहारा दया आ, और सामने से एक
और नस उसका कुछ तो मुआयना कर रही थी। एक णक य, एक झलक भर.. ले कन
मेरे दलो दमाग पर एक अ मट छाप लगाता आ! एकदम से रोमांच हो गया – शरीर से
सारे र गटे खड़े हो गए। उ ेजना म मेरी साँसे तेज हो ग ।
‘ या सचमुच या जी वत है? हे भु! काश, ऐसा ही हो!’

अब म ब त सचेत हो कर वो डा यूम दे खने लगा – हो सकता है पुनः दखाएँ? ले कन


उस अ ताल का य पुनः नह दखाया गया। बीच म जब चार का समय आया तब
मने डा यूम का नाम नोट कर लया। और वापस दे खने लगा। अंत तक दोबारा वहां का
य नह दखाया गया। डा यूम ख़तम होने पर मने कैमरामैन, फोटो ाफर, नदशक
और नमाता समेत उस डा यूम को बनाने म जतने भी सहयोगी थे, सबका नाम लख
लया।

कुछ दे र समझ ही नह आ सका क या क ँ ! कहाँ से शु क ँ ! कह ऐसा तो नह क


पुराने ःख के कारण मुझे या दखी हो! या वो लड़क या न हो, कोई और हो? और
फर, अ नी ने भी तो दे खा ही था न क या मर चुक थी। अ नी से पूछूं? नह नह !
वो बेचारी को फर से उस बुरी घटना क याद दलाना बलकुल ही गलत होगा। वैसे भी वो
कतना कुछ झेल चुक है। नह नह ! अ नी से नह ।

मने ज द से लैपटॉप म इंटरनेट चला कर नेशनल जयो ा फक क वेबसाइट खोली, और


उनके कॉप रेट ऑ फस कॉल लगाई। अगले एक घंटे तक मने एक के बाद एक कई सारे
लोग से वहां बात करी, और सल सलेवार तरीके से उनको अपनी आप बीती सुनाई।
अंततः, वहां ले एक बड़े अफसर ने मुझसे मलने का वायदा कया और उसने अपना फ़ोन
और ईमेल भी दया। मने झटपट उसके ईमेल पर या क त वीर के साथ, उस डा यूम
का पूरा ववरण लख कर भेज दया। अ नी के घर आने से पहले मुझे उनका कॉल आया
क उ ह ने डा यूम दे खी है, ले कन उनको नह लगता क वो लड़क या है! य क
ठ क से कुछ भी नह दखा। ले कन मने अपनी जद नह छोड़ी। उ ह ने अंत म हार मान
ली और डा यूम बनाने वाली ट म से बात करने का वायदा कया। उ ह ने कहा क जो
कुछ भी बन पड़ेगा, वो करगे।

कुछ दे र म अ नी आ गई। कोई और समय होता, तो म सांझ को पहली बार मलने के


अवसर म अगले दस मनट म अ नी के साथ गु म-गु ा हो चुका होता। ले कन आज
म काफ शांत बैठा आ था – कम से कम अ नी को तो ऐसा ही लगा होगा। ले कन, मुझे
अगले कुछ मनट म मालूम होने वाला था क म अपनी प नी के बारे म काफ कम जानता
था – और वो मुझको मुझसे यादा समझती और जानती थी। अ नी ने मुझसे या बाते
कर , मुझे याद नह , ले कन वो अ दर चली गयी। संभवतः चाय बनाने गयी होगी।
मुझे नह मालूम क वो कब वापस आई और उसने या कहा – मेरी आँख तो खुली ई थ
ले कन मन न जाने कतने ही कोस र था। अचानक ही मुझे अपने चेहरे पर गरम साँस
और गाल पर नरम उँ ग लय का श महसूस आ। म एक झटके से वापस आया –
अ नी मेरी आँख म झाँक रही थी, मान यास कर रही हो क मेरे अ दर या चल रहा
था। वो य मु कुराई, ले कन वो च तत थी। उसने कुछ कहा नह ।

“जानू – कॉफ़ !” उसने एक हाथ से मेरे गाल को छु आ, और उसके सरे म कॉफ़ का मग


था।

म उ लु क भां त कभी उसक तरफ तो कभी कॉफ़ मग क तरफ दे ख रहा था। उसने
फर दोहराया, “कॉफ़ ..”

“ओह सॉरी! म कसी गहरी सोच म डू बा आ था।“

उसने कुछ कहा नह । बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गयी। हम दोन ही शा त
से कॉफ़ पीने लगे। कॉफ़ समा त होने के बाद अ नी ने अपना और मेरा मग सामने क
टे बल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद म इस तरह बैठ गयी जससे क उसक दोन
टाँगे मेरे इधर उधर रह। गोद म बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी ई ट -शट उतार फक ।
अ दर कुछ भी नह पहना आ था – कोमल पहा ड़य के मा नद उसके सु दर तन तुरंत
ही वतं हो कर मेरे स मुख हो गए।

इस बात का असर मुझ पर ब त ही सकारा मक पड़ा – उस मु ा म मेरा लग तुरंत ही


खड़ा हो कर उसक नत ब के म य क घाट म अटक सा गया। हम दोन ने ही इस समय
पजामे पहने ए थे, इस लए सीधा कने न नह हो सका – ले कन अ नी मेरे ऊपर
पड़ने वाले अपने इस भाव पर हलके से मु कुराई। उसने यार से मेरे गले म अपनी बाह
डाल द , और लग के ऊपर अपने नत ब को घसने लगी। कुछ ही दे र म मने भी दे खा क
म वयं भी हलके हलके अपनी कमर चला कर उसका साथ दे ने लगा था।

हम दोन ने एक सरे का चु बन लया। मने रह रह कर उसके ह ठ , गालो, क और


चूचक पर चु बन लया। इस बीच हम दोन ही अपने अपने तरीके से तेजी तेजी घस रहे
थे। मेरा लग उ ेजना के मारे फूल कर मोटा हो गया था।
थोड़ी दे र म मने उससे कहा, “अगर मज़ा ही लेना है, तो ठ क से लेते ह न...”

तो वो कुछ बोली नह , तो मने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दया।
उसके बाद मने खुद उठा और अपना पजामा उतार दया और फर लगे हाथ अ नी का
पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दया। उसने शम से अपनी आँख बंद कर ली।
अ नी ने उस समय काले रंग क च ी पहनी ई थी। मने दे खा क इतनी दे र तक लग
घसने के कारण च ी का नरम नरम कपड़ा उसके नत ब क दरार म अ दर घुस गया था।

मने जब उसके नतंबो को सहलाया, वो एकदम से कांप गयी। मने उसके नतंबो को कुछ
दे र तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से ख च के फर से अपने लग
पर बैठा लया। पहली ही बार क तरह इस बार भी अ नी अपनी कमर हला रही थी। म
उसी के ताल म उसक नंगी जांघ को सहलाने लगा। एकदम चकनी जाँघ – म खन के
जैसी! कुछ दे र ऐसा ही करने के बाद मने एकदम से उसक च ी को पकड़ा और घुटन
तक ख च दया। मने एक हाथ से अपने लग को साधा, और सरे से अ नी को फर से
अपनी गोद म बैठा लया। उस समय मेरे लग के उसक न न गुदा के श से मुझे मन म
आया क य न गुदा मैथुन कया जाय? एक अजीब सा वासना पूण अहसास था वो। मने
अपने हाथ से उसके नतंबो को चौड़ा कया और उनके म य अपने लग को बैठाया।

“जानू.. जानू! उसमे नह ! आपका ब त मोटा है.. मर जाऊंगी म..”अ नी ने म त करी।


सचमुच! यान ही नह रहा!

“ठ क है.. ले कन, कभी ाई करते ह!”

“हाँ.. ले कन आज नह ! लीज!”

“ओके” मने कहा और उसको लटा कर, अपना मुँह उसक यो न पर रख दया। लोग
उ े जत यो न को ‘पाव रोट ’ क उपमा दे ते ह.. मुझे यह पसंद नह आता। मुझे उ े जत
यो न को मालपुए क उपमा दे नी अ लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है।
अ नी क यो न भी उसी तरह क हो रही थी। अब मेरा भी लग उ ेजना के बल को
सहन नह कर पा रहा था। ले कन फर भी फोरे ले तो करना होता ही है न! म अपनी जीभ
उसक यो न के भीता डाल कर अ दर के वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था,
और उं गली से उसके भगनासे को छे ड़ रहा था। अ नी उस शाम पहली बार ख लत ई।
उसक आवाज अब कामुक ससका रय म बदल गई थी।

म फर उसक टाँग के बीच आ गया। मने उसक टाँग उठा कर अपने कंध पर रख ली
और अपने लग को उसक यो न के मुहाने पर टका दया। आप लोग उस य क
क पना कर सकते ह। अ नी क कुछ ऐसी हालत थी उसक जांघ मुड़ कर लगभग
ै तज हो गयी थ , और यो न लगभग ऊ व! मने तेजी से अपना लग उसक यो न म
डालना शु कर दया। मने गु व के भाव से सारा काम ज द हो गया। और फर वही
चरंतन चली आ रही या करने लगा। अ नी भी म त हो कर अपनी ठु काई का आनंद
लेने लगी । मेरे ह ठ उसके मुँह और ह ठ को चूस रहे थे। करीब पं ह मनट के बाद मने
अपना वीय अ नी के अ दर ही छोड़ दया।

उस पूरे साहचय के दौरान मेरे मन म सफ या क ही छ व घूम रही थी...


३२
सतीश आज समा को घर ले आया। नस नी लमा के कहने पर वह समा के लए कपडे
वगैरह खरीद कर ले आया था। उसक बीवी होती तो कम से कम उसके कपडे इ या द तो
रहते.. और उसको कुछ आई डया भी होता क उसक बीवी क नाप या है.. ले कन
आ य क बात थी क नस नी लमा को उसका यह अनाड़ीपन खटका नह .. उसने अपने
मन म यह कह कर समझा लया क संभव है क वो अपनी बीवी को नए कपडे पहनाना
चाहता हो! यह भी हो सकता है क वो हद से अ धक शम ला हो। नी लमा ने ही अंदाजे से
उसको समा के अधोव क नाप बता द , और उसको छे ड़ा भी क कम से कम अपनी
प नी का ठ क से जायजा तो लया कर!

समा के लए ा और च ी खरीदते समय सतीश ब त ही उ े जत हो गया था। अपनी


समझ से उसने बेहद कामुक लगने वाली गुलाबी सी ा और उसक मै चग च ी खरीद
थी। और गुलाबी ही रंग के शेड का सलवार सूट भी। एक मै सी भी खरीद ली, यह सोच
कर क वो घर म या पहनेगी! समा को दे ख कर उसको लगा था क वो उ म उससे कुछ
बड़ी है, ले कन उसको इस बात क कोई परवाह नह थी – अगर बड़ी होगी तो होती रहे!
बा लग़ तो अब वो खुद भी है! खैर, वो अ ताल प ंचा, और सभी ज़ री कागज पर
द तखत कर के समा को घर लाया।

आज समा को उसने पहली बार होश म दे खा था – बेहोशी क हालत म भी वो अ त सु दर


लगती थी, ले कन इस समय वो सचमुच क अ सरा लग रही थी। उस नतांत कमजोरी क
हालत म भी। समा ने जब सतीश को दे खा तो उसके चेहरे पर न तो ख़ुशी के भाव थे, और
न ही ःख के। वो दरअसल अपने प त को पहचान ही नह पाई। नस नी लमा ने जब दोन
को ऐसे ‘ हच कचाते’ ए दे खा, तो स भाव से बोली, “कोई बात नह .. घर जा कर
आराम से मलना!” उसने अपने हसाब से दो बछड़े ए े मय को मला दया था और
यही सबसे बड़े पु य क बात थी।

डॉ टर स हा ने सतीश को स त हदायद द थी क समा से घर के काम न कराये जांए,


और उसको आराम करने दया जाय। वो अभी भी काफ बल थी, और कम से कम एक
महीना लगेगा उसको वापस अपनी ताकत पाने के लए। उ ह ने उन दोन को यह भी कहा
था क वो दोन य द हो सके तो अगले दो स ताह शारी रक स ब न बनाय.. अभी वह
सब झेलने क दशा म नह थी समा। अ ताल म सबक नज़र म दोन प त-प नी थे,
इस लए ऐसी बाते आराम से करी जा सकती थ । दवाइयाँ इ या द समय पर लेते रह.. और
ऐसी ही कई सारी बात।

खैर, सतीश समा को घर ले आया। कसबे म आते ए वो ब त चौक ा था क कोई दे ख न


ले क वो कसी लड़क को घर ला रहा था। कोई दे खता तो हज़ार सवाल पूछते – कौन है,
कहाँ से आई है इ या द इ या द! और वो उनसे झूठ नह कह सकता था, य क वहां सभी
को मालूम था क सतीश क शाद ही नह ई है, तो उसक बीवी कहाँ से आ जाएगी!
उसक तेज क मत क हए, क जस समय वो अपने घर आया, उस समय सड़क पर और
आस पास कोई भी नह मला। वो ज द से समा समेत अपने घर म घुस गया, और अ दर
से कवाड़ लगा ली।

वो एक पुराने पहाड़ी तरीके का घर था – जसमे कुछ फेरबदल कर के आधु नक करण कर


लया गया था। एक कमरा था, एक खुला आ सा रसोईघर, उसके बलकुल वपरीत दशा
म नानघर और शौचालय था। एक हाल और एक अहाता जैसा बना दया गया था। प र,
लकड़ी जैसी साम ी से बना आ घर बाहर से पहाड़ी घर दखता था, ले कन अ दर से
बजली और ख ी टाइल के शौच क व ा थी।

“ समा... रर रानी..” सतीश ने अटकते ए कहा, “तु तुम.. नहा लो.. अगर चाहो तो..”

समा को तो इस समय कोई भी अजनबी लगता। ले कन यह सामने खड़ा उसका


प त था, ऐसा नस नी लमा ने उसको बताया था। इस लए इस से कोई हच कचाहट
नह होनी चा हए। ले कन फर भी वो संयत नह थी। उसने महसूस कया क उसका प त
भी संयत नह है।

“ज जी!” कह कर उसने सतीश क तरफ वाचक डाली।

“ओ ओह! बाथ म उधर है.. सब भूल गई?” उसने ख से नपोरी।

समा ने भी ख सयाई ई मु कान डाली!

‘ओ भगवान! कतनी सु दर सी मु कान है इसक ! हे बाबा केदार.. हे ब वशाल!


आपका ब त ब त ध यवाद!’ सतीश ने मन ही मन अपने सारे इ को ध यवाद कया।
“नहा लो.. तु हारे पुराने कपडे सब खराब हो गए थे.. ज द ही और नए कपड़े खरीद लूँगा
तु हारे लए..”

समा ने हामी म सर हलाया। वो एक ण को हच कचाई, फर सतीश के सामने ही मुँह


फेर कर अपने अ ताल वाले कपड़े उतारने लगी (नस नी लमा ने सतीश को कहा था क
जब वो वापस अ ताल आये, तो वो कपडे लेता आये)। कुछ ही दे र म पूण न न समा का
पृ भाग सतीश के सामने था। हाँला क समा के कमज़ोर शरीर से ह याँ कुछ कुछ झाँक
रही थ , ले कन उतना य ही सतीश के लए पया त था। उसका लग तुरंत ही तनाव त
हो गया। वो अ न त हालत म समा क तरफ बढ़ा, ले कन उसी समय समा नानघर क
तरफ चल द ।

जब नानघर का दरवाज़ा बंद हो गया, तो सतीश ने अपनी पट के सामने गीलापन महसूस


कया – उसके लग ने वीय उगल दया था। वो शमसार हो गया – कैसी छ छालेदर! या
लोग सच कहते ह? उसके मन म एक ण शंका ई.. फर उसने उस शंका को मन से
नकाल दया – पहली बार उसने एक लड़क इस हालत म दे खी थी.. ऐसे तो कसी का भी
नकल जाता.. उसने झटपट से अपनी पट उतार द । फर उसके मन म ख़याल आया क
य न आज वो नंगा ही रह ले.. या पता समा को भी नंगी रहने के लए पटा सके? अपने
इस वचार पर उसको ब त आनंद आया – उसने झटपट अपनी जां घया उतार द ।

जब समा नहा चुक , तो उसने पाया क नहा कर पहनने वाले कपडे तो वो लाई ही नह ।
कुछ असमंजस के बाद उसने अपने प त को आवाज़ लगाई,

“सु नए..?”

बाहर सतीश नंगा खड़ा आ था – या वो समा को पसंद आएगा? वो उसको दे ख कर


‘डर’ तो नह जायेगी? वह यह सोच ही रहा था क अ दर से समा क आवाज़ आई।

“ह हाँ?” सतीश अचकचा गया।

“मेरे कपडे..”
“बाहर आ जाओ..” उसने कहा, फर अपनी शैतानी क म के अंतगत उसने कहा, “तुम
वैसे भी घर म ऐसे ही रहती हो..”

‘ऐसे रहती ?ँ नंगी? अ ा!’ समा ने सोचा।

सतीश ने दे खा क कुछ दे र म नानघर का दरवाज़ा खुला, और पूण न न समा बाहर


नकली! वो उसको दे खता ही रह गया...

‘ओह भु! यह तेरी कैसी कलाकृ त है! इतनी सु दर! कैसे सु दर तन!

समा ने दे खा क कैसे उसका प त उसको यासी से दे ख रहा है.. वो हलके से मु कुरा


द । नस नी लमा ने बताया था क वो महीनो से बेहोश पड़ी है.. इतने दन तक कैसे इस
बेचारे ने जीवन तीत कया होगा! उसक अपने प त के जनन े पर पड़ी।

“इधर आओ..” समा ने सतीश को कहा।

सतीश यं वत उसक तरफ चल दया। समा वही रखे पीठे पर बैठ गई।

“अभी कुछ दन स कर लो.. ले कन तब तक..” उसने अपने तन क तरफ इशारा कया,


“आपको ध पलाती .ँ .”

समा क कही ई बात सतीश को म ी जैसी मीठ लग रही थ । कहाँ तो एक लड़क


मलनी ार थी, और कहाँ आज ऐसी बला क खूबसूरत लड़क के रसीले तन का पान
करने को मलेगा! इस वचार के साथ ही सतीश को लगा क जैसे वो गलत कर रहा है –
वो लड़क उसको अपना प त समझ कर यह सब कर रही थी। ले कन वो जान बूझ कर
उसका फायदा उठा रहा था। ले कन सतीश ने अपने मन को यह कह कर समझा लया क
बाद म वो समा को समझा दे गा। फलहाल तो ये मीठे मीठे ध पए जांए!

“सु नए...?” समा क आवाज़ दोबारा सुन कर सतीश क त ा टू ट !


‘ओ तेरी! ये तो सपना था!’ यह सोच कर उसने आवाज़ क दशा म दे खा। समा नानघर
के दरवाज़े क ओट से झांकती ई उसी क तरफ दे ख रही थी।

“क या?”

“जी मुझे कपड़े दे द जए पहनने के लए..”

“अ ा..” कह कर जब वो उठा, तो उसने दे खा क वो कमर के नीचे पूरी तरह नंगा था।

‘ध तेरे क ..’ वो नंगा होते ही लगता है सपना दे खने लगा था! एक पल को वो हाथ से
अपने छु ू को छु पाने को आ, ले कन फर क गया – बीवी से या छु पाना?

अपने प त को ऐसे अपने सामने नंगा घुमते ए दे ख कर उसको थोड़ी सी शम आई, और


हंसी भी! बेर के आकार के अंडकोष, और छु हारे के जैसा लग! दखने म भी, और आकार
म भी! समा को कह याद आया क लड़को का ऐसा होता है.. उसको नह मालूम था, क
आद मय का भी ऐसा ही होता है। या कह , उसका प त अभी लड़का ही तो नह ? अगर
ऐसा है, तो उसक खुद क उ या है?

सतीश अ दर कमरे म जा कर समा क मै सी ले आया। फर उसको एक शैतानी सूझी,

“यहाँ बाहर आ कर ले लो..”

“द जए न..”

“नह .. आज तो बाहर आ कर ही लेना पड़ेगा..”

समा ने उसको कुछ दे र दे खा, फर वापस अ दर हो कर उसने नानघर का दरवाज़ा बंद


कर लया।

‘ओये! ये या हो गया..’
फर कुछ दे र बाद जब दरवाज़ा खुला, तो समा अपने सीने पर अंगौछा लपेटे बाहर
नकली। अंगौछा गीला था, और उसके शरीर पर पूरी तरह से लपटा आ था। और चूं क
उसक ल बाई और चौड़ाई ब त बड़ी नह थी, इस लए वो अंगौछा समा का शरीर छु पा
कम और दखा अ धक रहा था। सतीश को वह य ब त पसंद आया। समा के उस प
का अनुमोदन , उसके छु ू ने अपना छु हारे वाला प छोड़ कर, भ ी जैसा प धारण
कर के कया। समा ने दे खा क उसके प त का लग उसक म यमा उं गली के जतना ही
ल बा, और बस मु कल से कोई दो गुना मोटा था।

न जाने य उसको हलक सी नराशा ई। उसको नराशा य ई? कह न कह उसके


मन म ऐसा वचार आया था क उसके प त के जननांग ब त पु ह गे। और उसका प त
ब त ही ढ़ शरीर और व का मा लक होगा.. ले कन सतीश ऐसा नह था। ऐसे
वचार उसको य आ रहे थे जैसे सतीश उसका प त न हो? ले कन, उसको कुछ याद ही
नह और सभी तो यही कह रहे ह क सतीश ही उसका प त है.. उसी ने उसको बचाया था।

“अब द जए...”

सतीश या करता भला? उसने समा को उसक मै सी दे द ।

“अ ा, म आपसे एक बात पूछूँ?” समा ने अपने बाल सुखाते ए कहा।

“एक या? जतना मन करे उतना पूछो!”

“नह .. आपको लग सकता है क म कैसी फालतू बात कह रही ँ, और पूछ रही .ँ ..”

“नह नह .. ऐसा कुछ भी नह .. पूछो न?”

“आपक उ कतनी है?”

सतीश को फर शरारत सूझी, “सोलह साल..”

‘ओह! तो मेरा ख़याल सही था...’ समा ने सोचा।


“और मेरी..?”

“इ क स साल..”

“सही म? म आपसे पांच साल बड़ी ँ?”

“और या!”

सतीश ने उसको और कुरेदा, “तुमको या लगा क म कतना बड़ा ँ?”

“मुझे लगा क पं ह सोलह के होगे!”

“ह! वो कैसे?” सतीश को वाकई आ य आ!

“वो कैसे या? आपके अंडे और छु ,ू लड़के जैसे ही तो ह अभी..”

समा क बात पर उसको अचानक ही बेहद गु सा आया, “इसी छु ू से मने तुझे गा भन


कया था..” वो गु से से बोला।

“आप गु सा य हो गए? मने कब मना कया इस बात से? बलकुल कया था आपने! वो
नस बता रही थ .. क हमारा ब ा..” कहते कहते समा क आँख म पानी आ गया।

“आई ऍम सॉरी.. मेरा मतलब.. मुझे माफ़ कर दो!”

“नह ! आप माफ़ मत पू छए... प त का आदर करना चा हए.. मने गलती करी है.. आप
मुझे माफ़ कर द जए!”

“अरे! अब माफ़ वाफ छोड़ो.. और ज द से कपड़े बदल लो...”

सतीश क बात पर समा कुछ दे र चुप रही.. वो फर से हच कचा रही थी..

“ या आ?”
“कपड़े पहनने ह..”

“तो पहनो न?”

“आपके सामने?”

“हाँ! य या हो गया?”

समा ले कन चुप ही रही।

“अरे मुझसे या शरमाना? म तो तुमको नंगा दे खता ही रहता ँ..” सतीश ने उ े जत और


भरायी ई आवाज़ म समा को छे ड़ा।

“ध झूठे..”

“अरे म झूठ य क ँगा? तुम तो मुझे दे खते ही अपना कुरता उतारने लगती हो!”

“अ ा जी! वो य भला?”

“मुझको ध पलाने के लए..”

समा इस बात पर एकदम से गंभीर हो गयी।

“सच म?”

“सोलह आने सच!”

समा ने मै सी वह ज़मीन पर फक , और अंगौछे को अपने सीने से हटाते ए सामने पड़ी


ख टया क तरफ बढ़ । ख टया पर बैठते बैठते समा पूरी तरह से नंगी हो चली थी।

“इधर आओ..” समा ने सतीश को कहा।


सतीश ने समा के तन दे खे, तो उसको बाक कुछ भी दखना बंद हो गया... वो यं वत
उसक तरफ चल दया।

समा ने अपने तन क तरफ इशारा कया, “...आपको फर से अपना ध पलाती ँ..”

समा क कही ई बात सतीश को म ी जैसी मीठ लग रही थ । कहाँ तो एक लड़क


मलनी ार थी, और कहाँ आज ऐसी बला क खूबसूरत लड़क के रसीले तन का पान
करने को मलेगा! इस वचार के साथ ही सतीश को लगा क जैसे वो गलत कर रहा है –
वो लड़क उसको अपना प त समझ कर यह सब कर रही थी। ले कन वो जान बूझ कर
उसका फायदा उठा रहा था। ले कन सतीश ने अपने मन को यह कह कर समझा लया क
बाद म वो समा को समझा दे गा। फलहाल तो ये मीठे मीठे ध पए जांए!

एक पल को सतीश को लगा जैसे सपने वाली बात एकदम स च हो गयी! अगर सपने
इतनी ज द सच होते ह, तो वो और दे खेगा! यह छलकता आ सौ दय, ऐसा मीठा
आमं ण! सतीश समा के पास प ंचा, और उसके दा हने तन के एक तना को अपने
मुँह म ले कर चूसने लगा और सरे तन को सहलाने लगा! जा हर सी बात है क एक
वय क आदमी, तन को अलग तरीके से चूसेगा - ख़ास तौर से तब, जब क उसको अपने
जीवन म पहली बार ऐसे सु दर तन दे खने और भोगने को मले ह !

"आराम से बाबा.. यह आपके लए ही तो ह! जतना मन चाहे, उतना चूसो..." समा ने


सतीश के सर को यार से सहलाते ए कहा।

सतीश बारी बारी से समा के दोन तन को चूसता रहा।

रात का खाना सतीश ने ही बनाया – समा काफ थक गयी थी, और य क डॉ टर ने


आराम करते रहने क स त हदायद द थी, इस लए सतीश अपना प त-धम (या न क
आराम से बैठना, जब प नी खाना पका रही हो, और फर सहवास कर के सो जाना) नभा
नह पाया। समा कुछ ढं ग से खा नह सक – एक तो खाना बे वाद बना था, और ऊपर से
दवाइय , और ल बे कोमा के भाव से उसको खाने से अ च सी हो गयी थी। खाना और
दवाइयाँ खा कर समा सो गयी; तो उसके साथ सतीश को भी झक मार कर लेटना पड़ा।
पहली बार एक ी के साथ रात बताने क उ ेजना म उसके लग ने अनायास ही वीय
थूक दया। ले कन फर भी सतीश को उ मीद थी, क उसक यह हालत ज द ही ठ क हो
जायेगी – अब य क समा भी उसके साथ है!

आज समा पहली बार कोमा के भाव से पूरी तरह से बाहर आ कर सो रही थी। न द
ब त गहरी आई – और न द म बड़े ही व च से सपने भी! सपनो ने ऐसे ऐसे ान और
ऐसे व तु के य थे, जो उसने अपने जीवन म पहले कभी भी नह दे खे थे – अथाह
समु , रेतीला बीच, समु क गहराइयाँ, ब त ही घना बसा शहर और उसके अन गनत
य, एक आलीशान सा घर.... और इन सभी य म प रल त होता एक पु ष! और
सफ यही नह ... वह पु ष उसके सपनो म सु प से दख रहा था – कभी इस वेश
म, तो कभी कसी और... और तो और कभी कभी न न भी! दो तीन य तो उसने उस
पु ष के साथ सहवास के भी दे खे! कौन है वो? उसने सपने म ही अपने दमाग पर जोर
डाला! ले कन न ा ने ववश कर के रखा आ था। और भी लोग दखे – एक लड़क ..
“अ नी!” उसके दमाग म क धा!

सतीश उथली न द म सो रहा था क अचानक उसने समा को ‘अ नी अ नी’ पुकारते


सुना! वो जाग गया।

‘अ नी कौन?’ उसने सोचा! कह यह समा का असली नाम तो नह ? या उसक कसी


सहेली का? तो या समा को अपनी भूली ई याद-दा त वापस मलने लगी? बेटा! ज द
कुछ कर.. नह तो ये लड़क जायेगी हाथ से! और कुछ इ धर उधर हो गया, तो पटाई भी
हो सकती है! उसने कुछ दे र और इंतज़ार कया, ले कन समा ने कुछ और नह कहा..
उसको कब न द आई, उसको खुद ही नह पता चला।
सुबह का उजाला घर के आँगन म अपने पैर पसार रहा था। समा ने अपनी आँख धीरे धीरे
खोल । आज ब त ही अरसे के बाद उसने अ े से न द ली थी – यह बात उसको भी
समझ म आ रही थी। कल से आज वह काफ तरो ताज़ा महसूस कर रही थी। उसने
ज हाई भरी, अंगड़ाई ली, और फर अचानक ही उसको कल रात के सपने क बात याद
आ ग । उसको वयं पर ब त ही ल ा आई – अपना प त होते ए भी ऐसे ऐसे सपने
आते ह..! ले कन जाने य वो पु ष भी कोई अपना सा ही लग रहा था। उसने सतीश को
आँगन से इधर उधर होते ए दे खा। वो मु कुराई – कल जब सतीश उसके तन का पान
कर रहा था तो उसको ब त ही आनंद आया। वो भी कैसे नटखट ब के जैसे मचल
मचल कर पी रहा था।

कल शाम को सतीश ने समा को बताया क उसक उ सोलह साल क नह है.. ब क


समा के बराबर ही है.. समा थोड़ा नराश हो गयी – अगर सोलह क उ होती, तो कुछ
उ मीद भी थी, ले कन अभी तो... खैर!

उसके मन म एक बात उठ क उन दोन क पहली रात कैसी रही होगी? कैसे सतीश ने
उसके कपड़े उतारे ह गे, और कैसे उसके साथ सहवास कया होगा!

सतीश ने समा को दे खा तो मु कुराया। एक बार उसके मन म आया क समा से पूछे क


ये अ नी कौन है.. फर उसको याद आया क समा को तो कुछ याद ही नह .. य
अनायास ही ऐसी बात छे ड़ना? कह लेने के दे ने पड़ गए तो!

“ठ क से सोई?” उसने पूछा।

“हाँ.. आप या कर रहे ह?”

“ना ता बना रहा .ँ .. काम पर भी तो जाना है..”

“ओ माँ! कतनी दे र सोती रही म.. और आपने जगाया य नह ?”

“अरे कोई बात नह .. पहले ठ क हो जाओ.. ये सब तो होता रहता है..”

“नह नह .. अब से खाना म ही बनाउं गी..”


“ठ क है.. बना लेना.. ले कन अभी तो आराम से रहो न..”

“समय कतना हो रहा है..”

“साढ़े नौ हो रहे ह..”

“बाप रे!” फर कुछ सोच कर, “आपने... खा लया?”

“हाँ.. बस अभी अभी.. कुछ दे र म नकल जाऊँगा..”

“अ ा..” समा ने कुछ बुझे ए वर म कहा। अकेला रहना भला कसको पसंद आएगा?
“कब आयगे वापस?”

“शाम को..”

“ओह!”

“कहो तो न जाऊं..” सतीश ने रोमां टक बनने क असफल ए टं ग करी।

समा मु कुराई, “कुछ दे र म चले जाइए?”

“ह म.. दे र म चला तो जाऊं.. ले कन उसके बदले म मुझे या मलेगा?”

“मेरी गोद म सर रख कर लेटगे आप?” समा मु कुराई। सतीश भी मु कुराया।

“और?”

“पहले र खए तो सही..”

सतीश ब तर पर आ कर समा के बगल आ कर उसक गोद म सर रख कर लेट गया।


सतीश का श उ े जत होने लगा – ले कन फर भी वो इस समय काफ आराम महसूस
कर रहा था। आ यजनक प से उसको कसी भी तरह का उतावलापन नह महसूस
आ। समा बड़े यार से सतीश के सर और चेहरे को सहला रही थी। सतीश को ठ क वैसा
महसूस आ, जैसा क अगर वो अपनी माँ क गोद म सर रखता! उतना ही आराम! उतना
ही चैन! उतनी ही कोमलता!

‘ब ढ़या!’

सुख और आनंद से उसक आँख बंद हो ग , जो कपडे क हलक सरसराहट क आवाज़


के बाद ही खुल । समा ने मै सी के सामने के बटन खोल दए थे, और सतीश को तनपान
करवाने के लए अपने तन वतं कर दए थे। सतीश ने दे खा – समा के आदश तन
और चूचक उसको नमं ण दे रहे थे। उसके चूचक उ ेजनावश कड़े हो गए थे, मानो कह
रहे ह – ‘सैयां! आ जाओ.. हम अपने मुँह म ले लो.. और चूसो!’

सतीश ने वही कया। समा समझ गयी क आधे घंटे का ो ाम तो बन गया। कल क


चुसाई के बाद उसके चूचक थोड़े से पी ड़त थे, ले कन अकेला रहने से यह यादा अ ा
यह था क वो यह पीड़ा बदा त कर ले। सतीश भी पूरी सतकतापूव चूस रहा था, जससे
समा को चोट न लगे। कुछ दे र बाद जब उसने सरे तन को मुँह म लया, तब समा के
मुँह से एक कराह नकली।

‘ या उसको दद आ?’ सतीश ने ध पीना छोड़ कर एक वाचक समा पर डाली।


वो आँख बंद कए ससकारी भर रही थी। जब समा ने दे खा क सतीश ने पीना छोड़ दया,
तो उसने आँख म ही वापस पूछा, ‘ या आ?’

सतीश ने ‘कुछ नह ’ म सर हलाया, और वापस ध पीने म लग गया। उसी के साथ उसने


समा क मै सी भी उसके क से नीचे सरका द – अब वो ऊपर क और नंगी बैठ ई
थी। और सतीश बना झझक के समा के तन पी रहा था। जब उसका मन भर गया तो
अंत म वो अलग आ। अलग हो कर वो समा क गोद से उठा, और उसको ब तर पर
लटाने लगा। लटाने साथ साथ ही वो उसक मै सी को नीचे क तरफ ख चने लगा
जससे वो पूरी नंगी हो जाय। समा को शम आई, ले कन उसने मना नह कया।

“छु ी के साथ खेलोगी?”

समा शमाती ई मु कुराई।


“अपनी यो न के साथ खेलने दोगी?”

‘यो न?’ यह तो सुना आ श द है.. “वो या होता है?”

“यह..” सतीश ने समा क यो न क तरफ इशारा कया। समा ने जांघे सकोड़ ल ।

सतीश अपनी पट उतार रहा था। समा दे ख रही थी क आगे या होने वाला है। कुछ ही
दे र म उसका भ ी के आकर का श मु हो गया। वाकई अभूतपूव घटना थी क अभी
तक उसके लग ने वीय नह छोड़ दया था। सतीश ने समा का हाथ पकड़ कर अपने छु ू
पर रख दया। समा ने अपनी उं ग लयाँ उसके इद गद लपेट ल ।

“ कतना गरम है..”

सतीश गव से मु कुराया।

“ को.. आज तु हारी यो न के साथ खेलता ँ.. ब त दन हो गए..” उसने भाव के लए


आगे जोड़ा।

कह कर वो समा क घने बाल के अ दर छु पी यो न क दरार पर अपनी उं गली फराने


लगा। समा नख- शख तक कांप गयी, और सतीश को कामुक लालसा से दे खने लगी।
कुछ दे र यूँ ही दरार पर उं गली चलाने के बाद उसने अपनी उं गली वहां पर दबाई – पट से
अ दर जाने का रा ता खुल गया। सतीश मु कुराया और अपनी तजनी को समा क यो न
के भीतर डालने लगा। उधर समा भी अपनी जांघ खोलने लगी – जैसे उसको अ दर आने
के लए और जगह दे रही हो..

उं गली पूरी अ दर जाने के बाद उसने धीरे धीरे ही उसको बाहर नकाला और वापस अ दर
बाहर करने लगा। उसी ताल म समा भी अपने नत ब हलके हलके उछालने लगी।

सतीश समा के पास आया, और उसके कान म फुसफुसाते ए बोला, “इसको कहते ह
उं गल ठु काई..” और उं गली अ दर बाहर करने का म करते ए वो उसके तन भी चूसने
लगा। समा के अ दर का वार ब त दन से उठा आ था। सतीश ने उं गली डाल कर बस
जैसे कसी बाँध को तोड़ दया। दो मनट के भीतर ही समा यौन उ ेजना के चरमो कष
पर प ँच गयी... उसका शरीर कसी अ नयं त यं जैसे क त होने लगा।

उसको यूँ ख लत होते दे ख कर सतीश चाह कर भी खुद पर नयं ण न रख सका, और


उसके कुछ कर पाने से पहले ही उसका वीय नकल पड़ा, और सामने समा के सपाट पेट
पर जा कर गरा। दो तीन व ोट म वह खाली हो गया। समा हाँफते ए अपने पेट पर
पड़े सफ़ेद रंग के तीन छोटे छोटे तलैय को दे खने लगी – और उनको अपनी हथेली से
प छने लगी।

सतीश बोला, “स हाल कर रानी! हाथ धो लेना पहले.. कह मेरे पानी से सना हाथ अपनी
यो न पर लगा लया तो गा भन हो जाओगी.. समझी?”

समा ने हामी म सर हलाया, और ब तर से उठा कर हाथ धोने चल द । नंगी ही।

सतीश अपनी क मत पर खुद ही र क करने लगा।

सतीश अपनी तरफ से पूरा यास कर रहा था क समा के बारे म उसके कसी पडोसी को
न पता चले। इस लए उसने समा को जैसी जैसी हदायद द थ , उनको सुन कर वो खुद
भी अचरज म पड़ गयी। वो अगर इस घर क माल कन थी, तो य नही वो छत पर जा
सकती थी? य नह वो अपने कपड़े धूप म सुखा सकती थी? य नह वो घर म बना
खट-पट के रह सकती थी.. इ या द! और सबसे बड़ी बात क सतीश घर के बाहर ताला
लगा कर य जाय? अगर उसको घर से बाहर नकलने क ज़ रत पड़ी तो? ले कन उसको
कोई उ र नह मला। समा ने भी कोई अ धक तवाद नह कया – कुछ तो सोचा होगा
सतीश ने!

नहा धो कर उसने ना ता कया, और फर दवाई खाई। अकेले बंद घर म वो या करती


भला? ज द ही वो फर से सो गयी। उसको गहरी न द आई, या उथली यह तो नह कहा
जा सकता, ले कन उसको अ यंत सजीव से सपने आये। और उन सपनो ने फर से वही
पु ष व भ अव ाओ म दखा – कभी उसको अपनी गोद म बैठाए, कभी सूट पहने,
कभी कार चलाते, कभी न न, और कभी उसके साथ रमण करते!
“अथव?” समा ने ऊंची आवाज़ म कहा, और न द से जाग उठ । उसका शरीर पसीने
पसीने हो गया था, और एक क न भी हो रहा था।

‘ या नाम था उसका?’ समा को वापस याद नह आया।

कुछ दे र म उसको घर के दरवाज़े पर आहट ई। सतीश वापस आ गया था, और घर का


दरवाज़ा खोल रहा था। समा ने घड़ी पर नज़र डाली – शाम के चार बज रहे थे।

अ दर आते ए उसने ब त सावधानीपूवक दरवाज़ा वापस बंद कया और फर समा को


अपनी बाह म भर लया। ऐसा करते ही समा उसके आ लगन म समट गयी – उधर
सतीश समा के गालो, ह ठ और माथे पर अपने चु बन क छाप लगाने लगा। सतीश शायद
दन भर इसी ण के सपने संजो रहा था। उस पर इस समय वासना का तूफ़ान परवान चढ़
रहा था –उसके हाथ समा के शरीर क टोह लेने म त थे – वो कभी समा के तन को
मसलता, तो कभी उसके नत ब को! अंत म उसके हाथ समा के नतंबो पर जम गए।

“ समा रानी! आज म क नह पाऊँगा! आज मुझे तेरे अ दर जाना ही है..” चु बन के


बीच म सतीश ने समा को अपने इराद से अवगत कराया।

उसक बात पर समा ने एक पल को सोचा, और फर सतीश के एक हाथ को अपने एक


तन पर रख दया। जोश म आ कर सतीश समा को फर से चूमने लगा। समा ने आज
सलवार कुरता पहना आ था। उसने ज द ही समा का कुरता उतार दया – उसने अ दर
कुछ नह पहना आ था। फर उसने समा के सलवार का नाड़ा भी ढ ला कर दया।

सलवार उसके कू ह से सरक कर नीचे गर गया।

उसका ऐसा नज़ारा दे ख कर सतीश काफ आवेश म आ गया। आज कान पर जाते ही


उसने कसी से अ वल गुणव ा का शलाजीत खरीद कर उसका सेवन कया था। अब
उसका भाव हो, या न हो, ले कन इस समय सतीश को व ास भी था, और आ म-
व ास भी। लहाजा, उसका अब तक का दशन, उसके लए अ यंत संतोषजनक था।
समा ने च ी पहन रखी थी – गुलाबी च ी पहने ए, और अ य पूण न न समा का प
ब त सुहाना लग रहा था। वो सचमुच काम क दे वी लग रही थी। उससे रहा नह जा रहा
था – आज तो बस कर ही डालना है!
आ म व ास से लबरेज़, उसने समा के नत ब को दबाना, कुचलना शु कर दया।
उसके साथ ही उसक च ी भी नीचे क तरफ सरकानी शु कर द । समा समझ गयी क
सतीश आज क नह सकता। कसी का कोई डर तो था नह ! वो थोड़ा सा कसमसाई,
ले कन अपनी हर हरकत के साथ वो बस सतीश क बाह म और समाती गयी। वैसे, समा
को भी अ ा लग रहा था – प त का संसग तो सबसे सुखद होता है। और वैसे भी अपनी
याद म ेमालाप का उसका यह पहला अनुभव था।

कुछ ही दे र म समा पूरी तरह से नंगी हो गई, और सतीश उसको अपनी गोद म उठा कर
ब तर तक ले गया। ब तर पर लटा कर उसने समा क टाँग मोड़ कर, उसके घुटने उसके
सीने से लगा दए। इस अव ा म समा क यो न क दोन फांक पूरी तरह से खुल ग ,
और उनके बीच म से यो न का गुलाबी ह सा झाँकने लगा। समा को अपने गु तांग का
ऐसा नल दशन होते दे ख कर शम भी ब त आई और रोमांच भी! उसक अव ा
ऐसी थी क सतीश उसक यो न के पूरा भूगोल, और यहाँ तक क उसक गुदा को भी खूब
अ तरह से दे ख सकता था।

समा क रस से भरी, गुलाबी यो न दे ख कर सतीश के मुँह म पानी आ गया। उसने बस


टे शन पर बकती स ती काम- संग से भरी पु तका म पढ़ा था क अगर ी क
यो न को पु ष मुख से चाटे , तो उसको ब त आनंद आता है। लहाजा, उसने यह काम भी
आजमाने का सोचा। समा क टाँग को वैसे ही मोड ए, उसने झुक कर उसक यो न क
दरार पर जीभ फराई। वहां से मू क हलक सी गंध आ रही थी – सतीश का मन जुगु सा
से भर गया, ले कन फर भी उसने मैदान नह छोड़ा। जब ओखली म सर डाल दया है, तो
मूसल से या डरना?

दो तीन बार जीभ फराने के बाद, सतीश सहज हो गया और त बयत से समा क यो न
चाटने लगा। उसको यो न क संरचना का कोई ख़ास ान नह था – उसको नह मालूम था
क बस थोड़ा ऊपर चाटने से उसक ‘ े मका’ ऐसी पागल हो जायेगी क उसने नाम क
माला अपने उ भर ज ती रहेगी। खैर, इस समय वो जो कुछ कर रहा था, वही समा के
लए काफ भारी होता जा रहा था। दोन के सहवास का पहला खलन समा को बुरी तरह
क त कर गया।

“ओह सतीश..” समा ने बस इतना ही कहा, ले कन इतनी कामुक तरीके से कहा क


सतीश का खलन होते होते बचा। समा कोई दो मनट तक कांपती रही, तब जा कर वो
कुछ संयत ई। इतनी दे र तक वो बस आँख बंद कये आनंद ले रही थी। जब उसक आँख
खुली, तब उसने अपनी ही तरफ दे खते सतीश को दे खा। वो मु कुरा रहा था। पहला कला
फतह!! समा उसको दे ख कर ल ा से मु कुराई। इस बीच म वो कब नव हो गया,
समा को अंदाजा नह आ।

“रानी – अब मेरी बारी!”

कह कर उसने अपने तने ए लग का सर, उसक यो न के खुले ए ह ठ के बीच लगा


दया। अब यह शलाजीत का भाव हो, या फर सतीश के आ म- व ास का, इस समय
उसके लग म अ त र तनाव बना आ था, इस लए खुद सतीश को भी अपना आकार
और तनाव काफ भावशाली लग रहा था।

सतीश अनुभवहीन था, यह साफ़ दख रहा था। कसी लड़क से सहवास का यह पहला
अवसर था। उसको लगता था क यो न पर लग टका कर बस ध का लगा दे ने से काम हो
जाएगा। उसने वैसा ही कया – ले कन बार बार उसका लग फसल जा रहा था। अंत म
समा ने ही उसक मदद करी – उसने अपनी यो न के ह ठ को उँ ग लय क सहायता से
ह का सा फैलाया, और अपने हाथ से पकड़ कर सतीश के लग को वेश कराने म मदद
करी। उसका लग गम था, और साफ़ लग रहा था क बेहद उतावला हो रहा था। चाहे कुछ
भी हो – हर ी अपने ेमी को – वो चाहे प त के प म हो, या सफ ेमी के प म –
अपने लए ऐसे उतावला होते दे ख कर ख़ुशी से फूली नह समाएगी।

उसने सतीश के लगमुख को अपनी यो न के ार पर टका दया, और मन ही मन भगवान्


का नाम लया। सतीश ने रा ता साफ़ दे ख कर एक जोरदार झटका दया – उसका सारा
का सारा लग एक ही बार म उसक यो न के भीतर समा गया।

अब भले ही उसका लग काफ पतला सा रहा हो, ले कन समा के लए इतने अरसे के


बाद यह पहला सहवास था। अपनी गहराई म उस गरमागरम लग को उतरते ए महसूस
कर के समा क आह नकल गयी।

“ऊ ह! अ ह… उईई … आआआअ… ऊऊऊ… उह… ओ ह…” हर ध के के साथ


समा नए कार क आवाज़ नकालती जा रही थी। उसको शम तो ब त आ रही थी,
ले कन फर भी कामुक उ माद के स मुख वो नतम तक थी।
ख़ुशी से उछल पड़ी वह, और फर जोर से ध के मार-मार कर कलका रयां भरने लगी।
उधर सतीश भी वयं के भीतर एक नए कार का जीव उ प होता महसूस कर रहा था –
इतना दे र तो वो ह त मैथुन करते ए भी नह टक पाता। वो इसी ख़ुशी म पूरे जोश के
साथ ध के लगा रहा था। बीच बीच म वो समा के ह ठ को चूमता, तो कभी चूचक का
रस पीता। समा भी खुल कर अपने थम सहवास का आनंद उठा रही थी – उसक यो न
ब त गीली हो गई थी, और वो खुद भी अपने यो नड़ उचका उचका कर सहवास म
सहयोग दे रही थी।

अंततः सतीश ने पूरी ताकत से एक ज़ोर का ध का लगाया। आ खरी।

“आआआआआआ ह…”

और इसी ध के के साथ सतीश ने अपना पूरा वीय समा क यो न म खाली कर दया और


उसी अव ा म समा के ऊपर ही प त होकर गर गया।

“ समा समा! मेरी यारी! …आई लव यू… तू मेरी जान है! जान!”

जवाब म समा मु कुरा द , और सतीश के माथे पर चु बन दे कर उसने आँख बंद कर ल ।


३३
अ नी से आ फस के काम का झूठा बहाना बना कर, दो दन बाद म गुड़गाँव चला गया –
नेशनल जयो ा फक के ऑ फस, उस अफसर से मलने, ज ह ने मुझे अपनी तरफ से
सारी मदद दे ने का वायदा कया था! उ ह ने मुझ पर कृपा कर के उस डा यूम क सारी
अ त र फुटे ज, कैमरामैन और डायरे टर – सभी को बुला रखा था। कैमरामैन कुछ
न त तौर पर बता नह पाया – ले कन उसका कहना था क हो न हो, यह शॉट गौचर म
फ माया था। वह इतने व ास से इस लए गौचर का नाम ले रहा था य क वह पर
हैलीकॉ टर इ या द से ासद के पी ड़त लोग को लाया जा रहा था। सेना ने वही क एयर
प का योग कया था। इस लए ब त संभव है क गौचर के ही कसी अ ताल क
फुटे ज रही हो। मने बाक क फुटे ज भी दे ख डाली, ले कन न तो या क कोई और त वीर
दखी, और न ही उस अ ताल क !

मने उन सबसे बात कर के उनक डा यूम बनाते समय वो लोग कस कस जगह से हो


कर गए, उसका एक सल सलेवार न ा बना लया, और फर उनसे वदा ली। इस पूरे
काम म एक दन नकल गया। अब जो हो सकता था, अगले ही दन होना था। शाम को
अ नी को फ़ोन कर के मने बता दया क काम आगे बढ़ गया है, और कोई तीन चार दन
और लग जायगे। वो अपना ख़याल रखे, और वापसी म या चा हए वो सोच कर रखे। हम
खूब म ती करगे! उससे ऐसे बात करते समय मन म ट स सी भी उठ रही थी क म अ नी
से झूठ बोल रहा था। वैसे यह उसके लए भी एक तरह से अ ा था – अगर उसको पता
चलता क म या क खोज म नकला ँ, तो वो ज़ र मेरे साथ हो लेती। और मुझे अभी
तक नह मालूम था क जस लड़क को मने ट वी पर दे खा, वो सचमुच या थी, या मेरा
वहम। कुछ कह नह सकते थे। ऐसे म, अगर या न मलती, तो बना वजह ही पुराने घाव
कुरेदने वाली हालत हो जाती। अ नी ब त ही भावुक और संवेदनशील लड़क है, ठ क
या के जैसे ही। और मन क स ी और अ भी.. ऐसे लोग को अनजाने म भी ःख
नह दे ना चा हए। तो मेरा झूठ उसको एक तरह से र ा दे ने के लए था।

रात म द ली के एक होटल म का। वहां पर मेरी कंपनी जस े वल एजसी का उपयोग


करती थी, वहां पर फ़ोन लगा कर एक भरोसेमंद कार और ाईवर का इंतजाम कया –
दन रात क सेवा के लये। वो अगले सुबह छः बजे होटल आने वाला था। शुभ य शी म!
द ली से गौचर प ँचने म पूरे दो दन लग गए। एक कारण तो पहाड़ी रा ता है, और सरा
यह क गौचर से कोई पचास कलोमीटर पहले ही से मने अ ताल म जा जा कर या के
बारे म पता लगाना शु कर दया था। या क त वीर क ट मने द ली म ही नकाल
ली थ , जससे लोग तो दखाने म आसानी हो। म उनको सारी बात व तार म बताता, यह
भी बताता क नेशनल जयो ा फक वाल ने ासद के समय डा यूम फ माई होगी
यहाँ। गौचर तक प ँचते प ँचते कोई पांच छोटे बड़े अ ताल म बात कर चुका था,
ले कन कोई लाभ, कोई सू , अभी तक नह मला था।
३४
एक बार शेर को खून का वाद पता चल जाए, तो फर उससे पीछा छु ड़ाना मु कल है।
सतीश का भी यही हाल था – एक तो शलाजीत का अ य धक सेवन, और उससे होने वाले
लाभ – दोन का ही लालच उसको लग गया था। अगले दो दन उसका यही म चलता
रहा। वह दन भर यौन श व क दवाइय , खास तौर पर शलाजीत का सेवन करता,
और जैसे कैसे कसी भी बहाने समा के साथ सहवास!

उसी के कहने पर समा घर पर या तो नव रहती थी, या फर उस गुलाबी ा-पट ज म।


समा क कसी भी कार क न नाव ा का भाव, सतीश पर एक जैसा ही पड़ता था।
जब भी वो उसक गोरी टाँगे और जांघ दे ख लेता था, तो उसका मन डोल जाता था। जब
समा चलती, तो उसके गदराये ए ठु मकते नत ब उसके दल पर कहर बरपा दे ते। उसक
कठोर चूं चयाँ दे ख कर सतीश सोचता क ऊपर वाले ने बड़ी फुसत से जैसे संगमरमर को
तराश तराश कर नकाला हो। नमक न चेहरा, और रसीले ह ठ! कोई दे ख ले तो बस चूमने
का मन करे!

सहवास के बाद से दोनो ही एक सरे को ब त यार से दे खते। साथ म हँसी मज़ाक भी


करते। सतीश हंसी मजाक म कभी कभी समा के बाल पकड़ लेता, तो कभी कमर पकड़
कर भ च लेता। समा उसक हर बदमाशी पर हंसती रहती। जब वो रोमां टक हो जाता, तो
समा को कहता क आज ब त सु दर लग रही हो। समा उसक इतनी सी ही बात पर शम
से लाल हो जाती। रह रह कर वो समा के न न नत ब पर हौले से चकोट काट लेता, तो
कभी उसक चूं चयाँ दबा दे ता। उसक इन शैता नय पर समा जब उसको झूठ मूठ म
मारने दौड़ती, तो वो उसको यार से अपनी गोद म उठा लेता, और उसके चूचक को मुँह
म भर कर चूमने लगता।

इसके बाद होता दोन के बीच सहवास! भले ही उनक यौन या पांच मनट के आस
पास चलती, सतीश के लए एक ब त बड़ी उपल थी। उधर समा इस बात से संतु थी
क सतीश उसक सेवा और दे खभाल म कोई कसर नह रखता था। अपनी तरफ से खूब
ेम उस पर लुटाता था। पछले दो दन म उन दोन ने तीन बार सहवास कया था – समा
को हर बार आनंद आया था। येक सहवास से एक तरीके से उसको मान सक शा त
मल जाती थी। कुछ तो होता था, क संसग के कुछ ही दे र बाद समा आराम क अव ा
म आ जाती थी – और कब सो जाती थी, उसको खुद ही नह मालूम पड़ता।
बस दो बात थ जनके कारण उसको खटका लगा रहता – एक तो यह क उसके सपन
का पु ष हर बार दखता था। इससे समा को व ास हो गया क वो कोई मान सक
क पना नह था – ब क उसके अतीत का एक ह सा था। कब और कैसे, उसको समझ
नह आता। ले कन जस कार से वो दोन सपन म नभ क हो कर स कट रहते थे,
उससे न जाने य समा को लगता जा रहा था क समा उस पु ष क प नी रही होगी।

ले कन अगर यह सच था तो सतीश से उसक शाद कब ई? अगर सतीश से उसक शाद


ई है, तो फर इस घर म उसके कोई च ह य नह मौजूद ह? घर को दे ख कर साफ़
लगता था क यह कसी कुंवारे पु ष का घर है.. माना क वह इतने ल बे अरसे तक
अ ताल म रही थी, ले कन एक शाद -शुदा प रवार और घर म ी का कुछ भाव तो
मौजूद रहना ही चा हए था न?

सरा खटका उसको इस बात का लगता था क सतीश हमेशा उसको पड़ो सय से छु पा


कर रखता था। उसक इस हरकत का कोई तकसंगत ववरण उसके लाख पूछने पर भी
उसको नह मल पाता था। यह दोन ही बात मन ही मन म समा को ब त अ धल साल
रही थ । उसको यक न हो रहा था क कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। उसने सच का पता लगाने
क ठान ली।

हर रोज़ क तरह सतीश घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला डाल कर काम पर चला गया।
जाने से पहले उसने दै नक सहवास क खुराक लेनी न भूली। सतीश के जाने के कोई पं ह
मनट के बाद समा ने कपडे पहने, और दरवाज़े पर घर के अ दर से द तक द । पहले धीरे
धीरे, और फर तेज़ से। कसी ने कोई जवाब नह दया।

कोई पं ह बीस मनट तक ऐसे ही खटखटाने के बाद समा बुरी तरह से नराश हो गयी,
और नरी हताशा, खीझ और गु से म आ कर दरवाज़े को पीटने लगी। अंत म बाहर से
आवाज़ आई,

“कौन है अ दर?”

“म .ँ . समा!”

“ समा? कौन समा? कौन हो तुम बेट ?”


“आप..?”

“म यहाँ पड़ोस म रहता .ँ . मेरा नाम रामलाल है। तुम ब त दे र से दरवाज़ा पीट रही हो।
यहाँ मेरे साथ सात आठ और लोग ह.. तुम घबराओ मत.. मेरी बात का जवाब दो.. कौन हो
तुम?”

“जी.. म समा .ँ .”

“वो तो हमने सुना.. ले कन कौन हो?”

“जी म.. इनक .. प नी !ँ ”

“ कसक प नी?” रामलाल ने जोर से पूछा, जैसे उसको सुनाई न दया हो।

“इनक .. सतीश क ..”

“सतीश क प नी?”

“जी!”

रामलाल कुछ कहते कहते क गया। फर कहा,

“ले कन तुम अ दर य बंद हो?”

“वो ही बाहर से बंद कर के गए ह..”

“बाहर आना चाहती हो?”

“जी.. ले कन..”

“दे खो बेट , अगर बाहर आना चाहती हो, तो बताओ.. हम तब ही कुछ कर पाएंगे।”
“जी.. म आना चाहती .ँ .”

“ठ क है.. कुछ पल ठहरो, और दरवाज़े से र हट जाओ..”

कुछ दे र के बाद दरवाज़े पर जोर क खट-पट ई.. फर कुछ टू टने क आवाज़ आई। नह
दरवाज़ा नह , बस ताला ही टू टा था। दरवाज़ा खुल गया। समा को घोर आ य आ जब
उसने दे खा क घर के बाहर कम से कम बीस प ीस लोग क भीड़ लगी ई थी। वो ब त
डर गयी, और अपने आप म ही समट कर घर के कोने म बैठ गई।

उसक ऐसी हालत दे ख कर दो म हलाएँ घर के अ दर आ , और उसको सां वना और


दलासा दे ने लग । उसको समझाने लग क यहाँ कोई उसको कैसे भी कुछ नह
प ंचाएगा। खैर, कोई आधे घंटे बाद समा बात करने क हालत म वापस आई।

“हाँ बेट , अब बोल! तू कह रही थी क तू सतीश क प नी है?”

“ ी...” समा को लग गया क कुछ गड़बड़ तो हो गयी है। उसक ी सुलभ छठ


इ य कह रही थी कुछ भारी गड़बड़ थी। अगर वो सतीश क प नी थी, तो कोई पडोसी
उसको जानते य नह थे?

“कब ई तेरी शाद ?”

इस बात का या उ र दे ती वो!

“आप मुझे नह जानते?” उसने एक तरीके से वनती करते ए रामलाल से पूछा। मन ही


मन भगवान् से ाथना भी करी क काश उसको ये लोग जानते ह !

“उसका उ र म बाद म ं गा, पहले ये बता क तू आई कब यहाँ?”

“चार दन पहले!”

“कहाँ से?”
“म अ ताल म थी न.. कोमा म.. कोई दो साल के आस पास..”

“कोमा म..?”

“ ी..”

“तो या तुमको याद नह है क तुम कौन हो?”

“नह ..”

“और तु हारा नाम?”

“उ ह ने ही बताया..”

“अ ा?”

“हाँ!”

“और यह भी बताया क तुम उसक प नी हो?”

“जी..” इस पूरे ो र के कारण समा का दल ब त धड़क रहा था।

‘हे भु! हे भगवान एक लग! बचा लो!’

“और तुम दोन प त प नी के जैसे रह रहे हो – पछले चार दन से?”

इस का भला या उ र दे समा? वो समट गई – कुछ बोल न पाई। ले कन रामलाल


को अपना उ र मल गया।

“अब कृपा कर के मेरे के उ र बताइए! या आप मुझे जानते ह?”


“ ब टया,” रामलाल ने पूरी गंभीरता से कहा, “म अपनी पूरी उ यहाँ रहा ँ.. इसी क बे
म! और मेरे साथ ये इतने सारे लोग। म ही या, यहाँ कोई भी तुमको नह जानता। ले कन
तु हारी बात से मुझे और सबको समझ म आ रहा है क या आ है तु हारे साथ..”

रामलाल ने आ खरी कुछ श द ब त चबा चबा कर गु से के साथ बोले। और फर अचानक


ही वो दहाड़ उठे ,

“ह रया, शोभन.. पकड़ कर घसीटते ए लाओ उस हरामजादे को..”

समा हत भ रह गयी! घसीटते ए? य ? उसने डरी ई आँख से रामलाल को दे खा।

कह इसी कारण से तो सतीश उसको घर म बंद कर के तो नह रखता था? कह उसको


पड़ो सय से खतरा तो नह था? रामलाल ने जैसे उसक मन क बात पढ़ ली।

“ ब टया.. घबराओ मत! इस बात क म गारंट दे ता ,ँ क तू उस सतीश क प नी नह है..


उस सूअर ने तेरी याददा त जाने का फायदा उठाया है, और तेरी... इ ज़त से भी...
खलवाड़ कया है.. पाप का ाय त तो उसे करना ही पड़ेगा..”

‘प नी नह .. फायदा उठाया... इ ज़त से खलवाड़..’

“..उसक तो अभी तक शाद ही नह ई है.. उस नपुंसक को कौन अपनी लड़क दे गा?”


रामलाल अपनी झ क म कहते जा रहा था।

‘शाद नह .. नपुंसक..?’

समा को लगा क वो दहाड़ मार कर रोए.. ले कन उसको तो जैसे काठ मार गया हो। न
रोई, न च लाई.. बस चुप चाप बुत बनी बैठ रही.. और खामोश आंसू बहाती रही।

हाँला क समा अब कसी बात का कोई जवाब नह दे रही थी, ले कन फर भी रामलाल


और कंपनी ने सारे घटना म का दो नी चार करने म ब त दे र नह लगाई। उनको मालूम
था क सतीश केदारनाथ या ा करने गया था, और वहां वो भी ासद क चपेट म आ गया
था। वह कह उसको यह लड़क मली होगी – जा हर सी बात है, इसका नाम समा नह
है। उसने अपने आपको उस लड़क का प त बताया होगा, जससे अ ताल वाले खुद ही
उस लड़क को उसके हवाले कर द, और वो बैठे बठाए मौज करे!

तब तक ह रया और शोभन सतीश को सचमुच म घसीटते ए लाते दखे। मॉब-ज टस के


बारे म तो सुना ही होगा आप लोगो ने? खास तौर पर तब, जब मामला कसी लड़क क
इ ज़त का हो। भीड़ का पारा ऐसी बात से सारे बंधन तोड़ कर चढ़ता है, और जब तक
अ याचारी क कोई भी ह ी सलामत रहती है, तब तक उसक पटाई होती रहती है।
ह रया और शोभन ने लगता है सतीश को वहां लाने से पहले जम कर कूटा था।

समा ने दे खा – सतीश का सर ल -लुहान था, उसक कमीज़ फट गयी थी, और कुह नयाँ
और बाह र रं जत हो गई थी। घसीटे जाने से उसक पै ट भी जगह जगह से घस और
फट गयी थी। सवेरे का आ म व ास से भरपूर सतीश इस समय वैसे ही डरा आ लग रहा
था, जैसे हलाल होने के ठ क पहले कोई बकरा। समा ने उसको दे खा तो मन घृणा से भर
उठा। सतीश ने उसक तरफ दे खा – पता नह उसको समा दखी या नह , ले कन उसक
ाकुल और कातर नगाह कसी भी हमदद भरी क यासी हो रही थ । कोई तो हो,
जो इस अ याचार को रोक सके!

ले कन लगता है क कसी को भी सतीश पर लेशमा क भी दया नह थी। वहां लाये जाते


ही भीड़ उस पर पल पड़ी – बरस क पहचान जैसे कोई मायने नह रखती थी। जस ग त
से सतीश पर लात और घूंसे बरस रहे थे, उसी ग त से उस पर भ भ गा लय क
बौछार भी हो रही थी। क बे के चौराहे पर सतीश के साथ साथ उसके पूवज, और पूरे
खानदान क इ ज़त नीलाम हो रही थी।

“मादरठोक, इस म रयल सी छु ी म ब त गम आ गई है या?” कोई गरजा।

समा ने उस तरफ दे खा। सतीश को वही एक तरफ पेड़ से टका कर बाँध दया गया था।
वो इस समय पूरी तरह से नंगा था। वो कहते ह न, आदमी शु क मार क पीड़ा से डरता
है.. बाद म गनती भी कहाँ याद रह जाती है? सतीश एकदम नरीह सा लग रहा था! वो
कुछ बोल नह पा रहा था, ले कन उसक आँख च ला च ला कर अपने लए रहम क
भीख मांग रही थ ।
“अरे सोच या रहे हो.. साले को ब धया कर दो! वैसे ही नपुंसक है.. गो टय का या
काम?” कसी ने सुझाया।

ऐसा लग रहा था क यायपा लका वह क बे के चौराहे पर खुल गयी थी।

“सही कह रहे हो.. अबे शोभन.. ज़रा दरांती तो ला.. इस मादरठोक का या-करम यह
कर दे ते ह..” एक और यायाधीश बोला।

समा क आँख क घृणा यह सब बात सुन कर अचानक ही पहले तो डर, और फर


सतीश के लए सहानुभू त म बदल गयी। ठ क है सतीश ने उसके साथ वो सब कुछ कया,
जो उसको नह करना चा हए था, ले कन उसने समा क जान भी तो बचाई थी। एक
णक अ ववेक, और वाथ क भावना के कारण जो कुछ हो गया, उसक ऐसी सजा तो
नह द सकती। कम से कम समा तो नह दे सकती।

“नहीईईईईईईईईईईईई!” वो जोर से चीखी! “बस करो यह सब! जानवर हो या सभी?”

एकाएक जैसे अफ म के नशे म धु भीड़ को कसी ने झझोड़ के जगा दया हो। सारे
यायाधीश लोग एकाएक सकते म आ गए।

“ जसको अपनी उ भर जाना, उसके साथ यह सब करोगे? कोई मानवता बची ई है?
इसको तुम नपुंसक कहते हो? तो तुम लोग या हो? मद हो? ऐसे दखाते ह मदानगी?”

समा चीखती जा रही थी.. अचानक ही उसक आवाज़ आना बंद हो गई। जस वीभ स
य से वो अभी दो-चार ई थी, उसके डर से समा का गला भर गया। उसक हच कयाँ
बंध गयी, और वो रोने लगी। सतीश अचेत होने से पहले बस इतना समझ पाया क उसक
जान बच गई थी।
३५
म शाम को अ नी से बात कर रहा था क जस ोजे ट को करने नकला ,ँ वो अगर
ठ क से हो गया, तो हम दोन क ज़ दगी बदल जाएगी! उ र म अ नी ने मुझसे कहा
क उसको पूरा यक न है क मेरा ोजे ट ज़ र पूरा होगा। मने हंस कर उसक बात आई
गयी कर द । अगर उसको मालूम होता क मेरा ोजे ट या है, तब भी या वो ऐसे
कहती? सच म हम दोन क ही ज़ दगी बदल जाएगी! यह बात मने पहले सोची ही नह ।
अगर वाकई या जी वत है, और उसको मल जाती है, तो अ नी और मेरे वैवा हक
जीवन म ब त सी ज टलताएं आ जाएँगी! और तो और, हमारे ववाह पर ही एक
सवा लया नशान लग जायेगा।

यही सब सोचते सोचते म सो गया।

अगले दन एक घंटे के सफ़र के बाद हम गौचर के इलाके म प ंचे। मेरी उ राँचल या ा के


समय म म यहाँ से हो कर गुजरा था। पुरानी बात वापस याद आ ग । एक वो समय था,
जब मने या को पहली बार दे खा था.. और एक आज का समय है, म या को ढूँ ढने
नकला ँ।

गौचर का सरकारी अ ताल ढूं ढ नकालने म मुझे अ धक द कत नह ई। ले कन


सरकारी अ ताल म से सूचना नकालना ब त ही मु कल काम है। इसी च कर म कल
इतना समय लग गया था। रसे शन पर दो बेहद कामचोर से लगने वाले वाड बॉयज बैठे
ए थे। दे ख कर ही लग रहा था क उनका काम करने का मन बलकुल भी नह है; और वो
सफ मु त क रो टयाँ तोडना चाहते ह।

“भाई साहब,” मने बड़ी अदब से कहा, “एक जानकारी चा हए थी आपसे।“

“बो लए..” एक ने बड़ी लापरवाही से कहा।

“यह त वीर दे खए..” मने या क त वीर नकाल कर रसे शन क टे बल पर रख द ,

“इस लड़क को दे खा है या आपने?”


उसने एक उचाट सी नज़र भर डाली और कहा, “नह ! या साब! सवेरे सवेरे आ गए यह
सब करने! दे खते नह – हम कतना बजी ह..”

“अरे एक बार ठ क से दे ख तो ली जए!” मने वनती करी।

इस बार उसने भारी मेहनत और अ न ा से त वीर पर नज़र डाली – जैसे मने उसको एक
मन अनाज क बोरी ढोने को कह दया हो।

“ या साब! एकदम कंचा सामान है..” उसके श द कपटता से भरे ए थे, “इसको यहाँ
अ ताल म य ढूं ढ रहे ह?”

इसी बीच सरे वाड बॉय ने शगूफा छोड़ा,

“ऐसे सामान तो दे हरा न म भी नह मलते ह.. आहाहाहा!”

“सही कह रहे हो.. जी बी रोड जाना पड़ेगा इसके लए तो..”

और दोन ठठा कर हंसने लगे। उन दोन नक म क धूततापूण बात सुन कर मेरे शरीर म
आग लग गयी। मेरा बायाँ हाथ व ुत् क ग त से आगे बढ़ा और पहले वाले वाड बॉय क
गदन पर जम गया; दा हना हाथ उससे भी तेज ग त से उठा और उसका उ टा साइड सरे
वाले वाड बॉय के गाल पर कसी कोड़े के सरे के जैसे बरसा।

तड़ाक!

वह थ पड़ इतना झ ाटे दार था क अ ताल क पूरी गैलरी म उसक आवाज़ गूँज उठ ।


वैसे भी सवेरा होने के कारण अ धक लोग वहां नह थे।

“ लसन टू मी यू बा टड् स! तुम जैसे हरा मय को म दो मनट म ठ क कर सकता ँ।


समझे!”

मने पहले वाड बॉय के टटु ए को दबाया, सरा वाला अभी अपने गाल को बस सहला ही
रहा था।
“तमीज से बात करोगे, तो ज़ दगी म ब त आगे जाओगे.. नह तो जदगी भी आगे नह
जा पाएगी..”

म दांत पीस पीस कर बोल रहा था। मेरी या क बेई ज़ती करी थी उसने। वो तो म स
कर गया, नह तो दोन क आज खैर नह थी।

“ए म टर.. ये या हो रहा है..”

मने आवाज़ क दशा म दे खा – एक अधेड़ उ क नस या मै न तेजी से मेरी तरफ आ


रही थी.. लगभग भागते ए। मने पहले वाड बॉय को गदन से पकडे ए ही पीछे क तरफ
ध का दया, और उस नस ले लए रेडी हो गया। अगर ज़ रत पड़ी, तो इसक भी बड
बजेगी – मने सोचा।

“ये अ ताल है.. अ ताल.. तु हारे मारा पीट का अ ा नह .. चलो नकालो यहाँ से..”
उसने ढ़ श द म कहा।

“मै न.. मुझे मालूम है, ये अ ताल है! और मेहरबानी कर के इन दोन को भी यह बात
सखा द जए। ये दोन महा नक मे ही नह , ब क एक नंबर के धूत भी ह..”

लगता है मै न को भी उन दोन क हरकत क जानकारी थी.. मने उसके चेहरे पर कोई


आ य के भाव नह दे खे। उ टा उसने उन दोन वाड-बॉयज को घूर कर खा जाने वाली
नज़र से दे खा। दोन सकपका गए।

“तुम दोन ने मेरा जीना हराम कर दया है.. दफा हो जाओ.. एड म न े शन से कह कर म


तुम लोगो को स ड करवा ँ गी नह तो..”

दोन नक मे सर पर पांव रख कर भागे।

“अब बताइए.. इन दोन क कसी भी बात के लए आई ऍम सॉरी! आप यहाँ कैसे आये?”

“जी म यहाँ अपनी प नी क तलाश म आया .ँ ..”


“प नी क तलाश? यहाँ?”

“जी.. एक बार गौर से यह फोटो दे खए..” मने या क त वीर मै न को दखाई,

“आपने इसको कभी दे खा अपने अ ताल म?”

मै न ने त वीर दे खी – उसक आँख आ य से फ़ैल ग ।

“ये ये.. फोटो.. आपको..”

“जी ये फोटो मेरी प नी क है.. उसका नाम या है! आपने दे खा है इसको?”

मै न क त या दे ख कर मुझे कुछ आस जागी – इसने दे खा तो है या को। मतलब


यही अ ताल था डा यूम का! मतलब म सही माग पर था। मं जल र नह थी अब!

“आपक प नी? ये?”

“जी हाँ! आपने दे खा है इसको?” मने अधीर होते ए कहा।

“ले कन ले कन.. ये तो समा है.. सतीश क प नी!”

“सतीश? समा?”

‘हे भु! रहम करना!’

“मै न लीज! आप लीज मेरी बात पूरी तरह से सुन ली जए.. लीज!” मने हाथ जोड़
लए।

मै न आ यच कत सी भी लग रही थी, और ठगी ई सी भी! ऐसा य ? मने सोचा। मेरी


बात पर उसने सर हलाया और मुझे वहां लगी बच पर बैठने का इशारा कया। वो मेरे
बगल ही आ कर बैठ गयी।
“मै न, दे खए.. मेरा नाम अथव है..” कह कर मने उनको सारी बात व तारपूवक सुना द ।
बस अ नी और मेरी शाद क बात छोड़ कर। मेरी बात सुन कर मै न को जैसे काठ मार
गया। वो ब त दे र तक कुछ नह बोली।

“आपने मेरी पूरी बात सुन ली है.. अब लीज आप बताइए.. ये समा कौन है?”

“जी ये लड़क , जसक त वीर आपके पास है, हमारे यहाँ भत थी – जब ये यहाँ थी, तब
से वो कोमा म थी। जस डा यूम क आप बात कर रहे ह, शायद यह क ही हो.. म कह
नह सकती.. ले कन वो लड़क ब इस त वीर से मलती है। एक सतीश नाम का मरीज़
भी भत आ था उसी लड़क के साथ.. वो खुद को उसका प त कहता था। और उसको
समा!”

“तो फर?”

“वो समा को ले गया..”

“ले गया? कहाँ? कब?”

“अभी कोई पांच-छः दन पहले.. कए, म आपको उसका डटे ल बताती ँ..”

‘पांच छः दन पहले! हे दे व! ऐसा मज़ाक!’

कह कर वो एक रकॉड र ज टर लेने चली गयी। जब वापस आई, तो उसके पास एक नह ,


दो दो र ज टर थे।

“यह दे खए..” उसने एक पुराना र ज टर खोला, और उसमे सतीश के नाम क एं


दखाई, फर सरे म समा के नाम क एं दखाई – दोन म ही एक ही द तखत थे।
मतलब वो सही कह रही है। एं रकॉड म पता भी एक ही था, और फ़ोन नंबर भी। समा
के ड चाज क ता रख आज से एक स ताह पहले क थी।

“दे खए म टर...”
“अथव.. आप मुझे सफ अथव क हए..”

“अथव.. हमसे ब त बड़ी गलती हो गयी.. ले कन हमारे पास ॉस-चेक करने का कोई
तरीका नह था.. उस बदमाश ने कहानी ही ऐसी ब ढ़या बनाई थी! काश आप हमारे पास
पहले आ जाते..”

“मै न! इसम आपक कोई गलती नह है.. म खुद ही या को भगवान के पास गया आ
समझ रहा था.. म तो बस इतना चाहता ँ क वो सही सलामत हो, और मेरे पास वापस
आ जाय..”

“अथव.. आपके पास कोई सबूत है क ये लड़क आपक प नी है?”

“जी बलकुल है.. ये दे खए..” कह कर मने अपना और या दोन का ही पासपोट दखा


दया। ‘ ाउस’ के नाम के ान पर हमारे नाम लखे ए थे, और दोन पासपोट म त वीर
हमारी ही थ । शक क कोई गुंजाइश ही नह थी।

“थक यू म टर अथव.. ध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है..” कह कर उ ह ने


मेरा पता लख लया और मुझसे मेरा फ़ोन नंबर माँगा, जससे क अगर कोई ज़ री बात
याद आये तो मुझे बता सक! उ ह ने अपना नंबर भी मुझे दया।

अगर यह सतीश कह गया न हो, तो अभी कोई दे र नह ई है। लगता तो नह क वो कह


जाएगा।
३६
समा जब सो कर उठ , तो उसके सर म भीषण पीड़ा थी। असं य वचार उठते गरते –
सब ग म हो रहा था।

“ओह अथव! मेरे अथव!” यह उठते ही उसके पहले श द थे।

“लेट रह बेट , लेट रह.. तुम कल दोपहर अचेत हो गयी थी.. याद है?” रामलाल क प नी
ने समा को पुचकारा।

“कल?” समा कुछ समझ नह पाई।

“अ ा कोई बात नह .. ये ह डॉ टर स हा.. इनको पहचानती हो?”

‘ स हा? नाम तो सुना आ सा है.. कहाँ सुना है?’

य म समा ने ‘न’ म सर हलाया।

डॉ टर स हा मु कुराए, “हे लो! अ ा, तुमको अपना नाम याद है?”

समा ने हामी म सर हलाया।

“हमको बताओगी?”

“जी य नह ! मेरा नाम या है..” उसने ब त ही खानदानी अंदाज़ म उ र दया।

स हा मु कुराए, “वैरी गुड! और ये अथव कौन है?”

“मेरे प त.. हम बगलोर म रहते ह.. म कहाँ ?ँ ”

“आप गौचर म ह..”


“गौचर म?” कहते ए या सोच म पड़ गयी। “ले कन, मुझे तो केदारनाथ म होना चा हए
था!”

डॉ टर स हा समझ गए क या / समा को अब सारी बात याद आ गयी ह। हमारा


म त क कुछ ऐसे चे कग मैके न म ( णाली) लगाता है, जससे हमको घटना क
याद नह रहती। एक तरीके से यह णाली हमारे जी वत रहने के यास म एक अ त
आव यक कड़ी होती है।

“हाँ! हम आपको सारी बात बाद म व तार से बताएँग.े . ले कन पहले आप एक बात


बताइए, आप कसी सतीश को जानती ह?”

“सतीश? नह ...! पता नह .. कुछ याद नह आता..”

“आप मुझे जानती ह? मतलब आज से पहले आपने मुझे दे खा है?”

“नह डॉ टर, याद नह आता.. सॉरी! ले कन आप मुझसे यह सब य पूछ रहे ह?”

“डॉ टर का काम है मरीज़ को ठ क करना.. मुझे लगता है क आप अब ठ क हो ग ह..”

“ठ क हो गयी ?ँ ले कन मुझे रोग ही या था?”

“आई ॉ मस! म आपको सब कुछ बताऊँगा.. ले कन बाद म! अ ा, आपको अपने प त


का नंबर याद है?”

“जी हाँ! य ?”

“अगर आपक इजाज़त हो, तो म उनसे बात कर सकता ?ँ ”

“हाँ! य नह !” या कुछ समझ नह पा रही थी क यह सब या हो रहा है!

“आप मुझे उनका नंबर बताएंगी?”


“जी बलकुल.. उनका नंबर है.. नाइन एट, एट जीरो...” कह कर या ने उनको अथव का
नंबर बता दया।
सतीश का पता और फ़ोन नंबर ले कर, सट हॉ टल से म जैसे ही बाहर नकला, मेरे
फ़ोन क घंट बजने लगी। अनजाना नंबर था – मने फोने करने वाले को मन ही मन कोसा,
‘लोग कह भी पीछा नह छोड़ते...” मुझे लगा क कसी लाइंट का फ़ोन होगा। मने फ़ोन
उठाया, और ब त ही अनमने ढं ग से जवाब दया, “ह लो!”

“ म टर शेखावत..?” उधर से आवाज़ आई।

“ ी कग! ऍम आई टा कग टू ?”

“ म टर शेखावत, आई ऍम डॉ टर स हा! आई वांट टू टॉक टू यू अबाउट योर वाइफ..”

“माय वाइफ?” पहले तो डॉ टर, और फर अपनी प नी का ज सुन कर मेरे पैर के तले


ज़मीन खसक गई। या आ अ नी को? वो ठ क तो है न! मेरे दल क धडकन तेज हो
ग । अभी सुबह ही तो बात ई थी उससे – उस समय तो सब ठ क था.. अचानक.. या
हो गया? वो कहते ह न, जब कसी अ न त समय घर से र रहने वाल को घर से कॉल
आता है तो उनके दमाग म सबसे पहला याल अमंगल का ही होता है.. वही हाल मेरा
था।

“ हाट है पंड टू हर, डॉ टर?”

“ ही फाउं ड हर..”

“फाउं ड हर? डॉ टर लीज.. ठ क ठ क बताइए.. यह पहे लयाँ न बुझाइए लीज..” ..

“आई ऍम सॉरी, म टर शेखावत! म पहे लयाँ नह बुझा रहा ँ.. आपक प नी या मल


गई ह..”

“ या?” या मल गई है! ओह भु! आपका करोड़ करोड़ ध यवाद! “कहाँ है वो? कैसी
है?”

“जी इस समय गौचर के बगल एक गाँव से बोल रहा .ँ . सुगी!”


“सुगी से?” वहां तो सतीश रहता है! मेरे दमाग म याल क धा! मतलब सचमुच या ही
है..!

“जी हाँ.. आप यहाँ कब तक आ सकते ह?”

“जी एक बार या से...”

“हाँ हाँ! य नह ? आप बात कर ली जए उनसे!” कह कर डॉ टर स हा ने फ़ोन या को


पकड़ा दया।

“जा नू.. मेर.े . अथव!”

“ओह भगवान्!” यह आवाज़ सुने एक ल बा ल बा अरसा हो गया.. ले कन अभी फर से


उसक आवाज़ सुन कर जैसे दल पर ठं डा पानी पड़ गया हो। भावा तरेक म आ कर म
ससकने लगा। एक मु त के बाद दल क सारी तम ाएँ पूरी हो ग ! उसक आवाज़ सुन
कर ऐसा लगा क जैसे ये बरस ए ही नह !

“आप रो रहे ह?” या ने पूछा। उसके वर म वही जानी पहचानी चता!

“नह जानू!” मने आंसू प छते ए कहा, “ य रोऊँगा भला! आज तो मेरे लए सबसे ख़ुशी
का दन है..”

“आप कहाँ ह?” मुझे उसक आवाज़ से लगा क वो मु कुरा रही है।

“तु हारे ब त पास!”

“तो ज द से आ जाइए...” या को लग रहा होगा क म बगलोर म ही ँ।

“आता ँ जानू! ब त ज द ! बस वह रहना!”

“आई लव यू!”
“सबसे यादा जानू.. सबसे यादा!”

“जी म टर शेखावत.. आप कब तक आ सकते ह?” ये डॉ टर स हा थे।

“आप वहां पर कुछ दे र और ह डॉ टर साहब?”

“जी हाँ.. य ?”

“म आता .ँ .. आधे घंटे म!”

“ या?”

“जी.. आप या को मेरे आने क बात न बताइयेगा.. म आकर आपसे मल कर सारी बात


बताता .ँ .”

“जी ओके ओके! मुझे भी आपको कुछ बाते बतानी ह.. आप ज द से आ जाइए” इतना
कह हर उ ह ने फ़ोन कॉल व े द कर दया।

म भागता आ कार के पास प ंचा..

“ ाईवर, ज द से चलो! जतना ज द हो सके!”

“ कधर साहब?”

“सुगी.. म रा ता बताता .ँ .”
“डॉ टर बाबू, या बात है? या आ है इस लड़क को? और अचानक ही पछले कुछ
दन क बात याद य नही है?” स हा को बाहर कोने म ले जा कर रामलाल ने चतातुर
होते ए पूछा।

“दे खए ठ क ठ क तो म भी कुछ नह बता सकता। आदमी का म त क इतनी अबूझ


पहेली है, क उसको सुलझाने के लए कम से कम मेरे पास का ब लयत नह है... जहाँ
तक इस लड़क का सवाल है, तो मुझे इतना तो समझ आ रहा था क एक ल बी बेहोशी
क वजह से इसक याददा त गायब ई थी.. कल क घटना के कारण हो सकता है क
इसके दमाग पर इतना जोर पड़ा हो क उसको अपनी पुरानी सब बात याद आ ग ह !

“ले कन, ये कसी को पहचान नह रही है न..”

"हाँ! यह बात तो वाकई ब त नराली है.. ऐसा लग रहा है जैसे पछले एक स ताह क बात
इसके दमाग क लेट से कसी ने प छ द है.. सच क ं, मेरे पास आपके सवाल का कोई
जवाब नह है। एक तरीके से अ ा है.. ये अब अपनी पछली जदगी मे वापस प ँच गई
है। ज़रा सो चए – अगर इसको सारी बात याद रहती, तो सतीश वाला केस बगड़ सकता
था.. और आप लोग भी ल बा नप जाते! इस लए अ ा ही है, क यह बात यह दब जाय,
और ये लड़क अपने घर वापस चली जाय..”

“और इसके प त को या कहगे?”

“म उसको सब सच सच बता ं गा.. वो आपका तो कोई नुकसान नह करेगा.. आपने तो


इस लड़क क सफ मदद ही करी है... हाँ, ले कन हो सकता है क सतीश पर केस ठ क
दे ।“

“अ ा ही है.. साला मन स नपुंसक जाएगा यहाँ से..”

“रामलाल जी, एक बात क ँ.. आप बुरा मत मा नयेगा.. वो नपुंसक है, तो उसमे उसका
कोई अपराध नह । आप ठ े दमाग से सो चएगा कभी... उसने कभी भी कसी का भी
नुकसान कया है? इस लड़क को भी उसी ने तो बचाया.. मेरी मा नए, जो आ उसको
भूल जाइए, और उसको भी इ ज़त से जीने का मौका द जए..”
रामलाल को य तः डॉ टर स हा क बात अ तो नह लगी, ले कन उसको मालूम
था क वो सोलह आने सही बात कह रहे ह! इस लए वो चुप ही रहा।
सतीश अपने शरीर पर प याँ बंधवाए, अपने घर म चारपाई पर लेटा आ था। कल जस
कार से सारे क बे वाल ने जस बेदद से उसक ठु काई करी थी, उसको पूरा यक न हो
गया था क उसको वहां कोई भी पसंद नह करता। एक समा ही थी – नह समा नह ..
या! हाँ, यही नाम है उसका। एक वही थी, जसने उसको अपने पास आने का मौका
दया, और उसको वो सुख दया जो उसे समा से पहले कभी नह मल सका, और अब
लगता है क जीवन पयत नह मलेगा।

उसने गलत तो कया था – ले कन न जाने य वो सब करते समय उसको गलत नह लग


रहा था। कल उसक जान समा के कारण ही बची.. नह तो न जाने या हो जाता! उसके
म त क के पटल पर अनायास ही पछले स ताह के सारे य उजागर होने लगे। कैसी
यारी सी है समा! यह कहना अ तशयो नह थी क इतने कम समय म ही वो उसक
ज़ रत बन चुक थी। या यह भी हो सकता है क यह सब सतीश का वमोह हो! उसको
भला कसी ी का संग कब मला!

कसी ने उसको बताया क समा को अब उसके बारे म कुछ याद नह है.. इस बात क भी
पीड़ा रह रह कर उसके दल म उठ रही थी। उसक आँखो मे आँसू आ गये – कुछ शरीर के
दद के कारण, और कुछ भा य के स मुख उसक ववशता के कारण! संभव है, आंसू क
कुछ बूँद प ाताप क भी ह !

‘हे ब वशाल, आपक लीला भी अपर ार है! अब म इस बात पर हंस.ूं . क रोऊँ? यह


कैसी सज़ा है? समा के दमाग से मेरी सारी मृ त ही भुला द ? .. वैसे एक तरह से ठ क ही
कया। उसक मृ तय क ज़ रत तो मुझे है.. उसको नह ! उसका जीवन तो वैसे ही
खु शय से भरा आ था! सही कया भु! समा क मृ त म उ भर स हाल कर रखूंगा!’
सुगी म गाड़ी नह जाती – वहां पैदल जाना होता है। खैर, म ाईवर को पीछे छोड़ कर
लगभग भागता आ सा सुगी तक प ंचा। लोग बाग़ जैसे मुझे दे खते ही पहचान गए क म
कौन ;ँ वो सभी लोग मुझे इशारे से कसी रामलाल के घर जाने को कह रहे थे, और रा ता
भी बता रहे थे। खैर, म कोई आधे घंटे के अ दर ही वहां प ँच गया।

“ म टर शेखावत?”

“डॉ टर स हा?”

हम दोन एक सरे को दे खते ही पहचान गए। स हा इस बात पर हैरान थे क म सचमुच


आधे घंटे म कैसे वहां प ँच गया। मने उनको सारी बात व तार से बता द । वो व ा रत
से ने से मुझे दे खने लगे..

“सचमुच, कुदरत का क र मा है तुम दोन क मोह बत!” उ ह ने मुझे बस इतना कहा और


मुझे ब त ब त बधाइयाँ द ।

फर उ ह ने मुझे या के साथ घट सारी बात व तार से बताई – उ ह ने मुझे बताया क


कैसे लगभग मरणास सी हालत म उसको वहां लाया गया था। उ ह ने बताया क उस
अव ा म या का गभ भी गर गया। उ ह वैसे उसके बचने क कोई उ मीद नह थी,
ले कन कोई एक महीने के बाद अचानक ही या क हालत सुधरने लगी। ले कन वो इस
पूरे घटना म के दौरान अपने होश म नह थी – कोमा म थी। डॉ टस वदआउट बॉडस के
कुछ सहयो गय ने कुछ नवीन तरीके से या का इलाज जारी रखा, इस लए कोमा म रहने
के बाद भी, उसक मांसपे शय का य नह आ। बीच बीच म उसक आँख खुलती,
ले कन शायद वो कसी तरीके का र ले स रए न था। वो दे खा और सुना आ कुछ
समझ नह पाती थी।

ले कन कोई आठ दस दन पहले.... फर उ ह ने मुझे सतीश, और क बे म जो घटना ई,


उसके बारे म बताया। सच क ं, मुझे यह जान कर बलकुल भी बुरा नह लगा, क सतीश
ने या के साथ सहवास कया। उ टा मुझे उस बेचारे पर दया आई। मेरी नज़र म उसको
अपने कये क ब त ही बड़ी सजा मली थी.. उसका ऐसा अपराध था भी नह ।
या से मलने से पहले मने सतीश के घर का ख कया – उसक बुरी हालत दे ख कर
मेरा दल वैसे ही बैठ गया। हमारा प रचय आ, तो वो हाथ जोड़ कर ब तर से उठने क
को शश करने लगा। मने उसको सहारा दे कर लटाया, और लेटे रहने का आ ह कया।

“सतीश,” मने कहा, “तुमने मेरी या के लए जो कुछ कया, उसका एहसान म अपनी
पूरी जदगी नह भूलूंगा! यह तु हारा एक क़ज़ है मुझ पर.. जसको म चुका नह सकता।
म तो यही सोच कर रह गया था क वो अब इस नया म नह है.... ले कन वो आज मुझे
मली है, तो बस सफ तु हारे कारण!”

“ले कन...” सतीश कुछ कहने को आ..

“मुझे मालूम है, क तुमने या के साथ सहवास कया है। ले कन वो तु हारी नादानी थी।
वैसे भी या को उस बारे म कुछ याद नह .. और य क कल उसी ने तु हारी जान बचाई
थी, इस लए म मान कर चल रहा ँ क उसने तुमको माफ़ कर दया..”

“मुझे माफ़ कर द जए..” उसने फर से हाथ जोड़े।

“सतीश, माफ़ के लए कुछ भी नह है! अगर तुम माफ़ चाहते ही हो, तो मेरी एक बात
सुनो, और हो सके तो अमल करो।“

“बताइए सर!”

“म चाहता ँ क तुम आगे क पढाई करो – इं ज नयर बनो – ढं ग के इं ज नयर! तु हारी


पढाई लखाई का खचा म ं गा। बोलो – मंज़ूर है?”

सतीश क आँख म आंसू आ गए।

“जी! मंज़ूर है..” उसने भराए ए वर म कहा।


नयादारी से फुसत पाकर अब म अपनी या से मलने चला।

इतने दन के बाद.. ओह भगवान् म ख़ुशी से पागल न हो जाऊं! पैर म मेरे पंख जैसे
नकल आये..

या कुछ सी रामलाल के घर के दरवाज़े के ठ क सामने एक चारपाई पर बैठ ई


थी। मन म न जाने कतने सारे वचार आ और जा रहे थे। भले ही कसी ने उसको पूरी बात
व तार से न बताई हो, ले कन क त म और छोटे छोटे टु कड़ म उसको जो सब कुछ पता
चला, वो उसको हला दे ने वाला था। सबसे पहले तो उसके आँख के सामने वो दल दहला
दे ने वाला य पुनः सजीव हो उठा।

म त क के खेल नराले होते ह – केदारनाथ आपदा के समय जब अभी जीवन अभी मृ यु


जैसी दशा बन आई, तब कस तरह से वो, अ नी और उनके पता ह रहर सह जी अपनी
जान बचा कर वहां से नकले। माँ को तो उसने आँख के सामने उस अथाह जलरा श म
बह जाते ए दे खा था – बाढ़ म होटल का अहाता बुरी तरह से टू ट गया था, और होटल
ढलान पर होने के कारण, वहां से पानी भी बड़ी ती ता से बह रहा था। पकड़ने के लए न
कोई रे लग थी न कोई अ य सहारा। ब त स हाल कर नकलने के बाद भी माँ का पैर
फसल गया और वो सबक आँख के सामने बह ग । एक पल को आँख के सामने, और
अगले ही पल गायब! कतनी णक हो सकती है ज़ दगी! कतनी थ! पताजी उनके
पीछे भागे – बना अपनी जान क परवाह कये! ले कन पानी म इतना सारा म और
प र मला आ था, क उसक रंगत ही बदल गई थी। माँ फर कभी नह दखाई द । वो
कुछ र तक गए तो, ले कन जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल रहे थे – टू टे ए कसी
राह पर गलत पैर पड़ गया और उनके म चोट लग गयी।

जान बचाते लोग ने उनको पहाड़ पर ऊंचाई क तरफ जाने क सलाह द । काफ सारे
लोग वही काम कर रहे थे – मतलब लोग पहाड़ क ढलान के ऊपर क तरफ जा रहे थे।
उ ही क दे खा दे खी वो तीन भी ऊपर क चढ़ाई करने लगे। पवत क संतान होने के
बावजूद उस चढ़ाई को तय करने म ब त समय लग गया। न तो पताजी ही ठ क से चल
पा रहे थे, और न ही खुद या। वैसे भी गभाव ा म ऐसे क ठन काम करने से मु कल
और बढ़ जाती ह। चलते चलते अचानक ही उसक ह मत जवाब दे गई, और वो वह एक
जगह भहरा कर गर गई। जब होश आया तो उसने दे खा क पताजी उसको पानी पलाने
क को शश कर रहे ह।

रात गहरा गई थी, और आस पास कोई भी नह दख रहा था। बस इसी बात क आस थी


क कम से कम हम तीनो तो बच गए.. ले कन पताजी दन भर उ टयाँ करते करते मृ यु
से हार गए। एक साथ कतनी यातनाएँ सहती वो? दन भर के अंतराल म दोन लड़ कय
के सर से माँ बाप का साया उठ गया। अब तक वो भावना मक, शारी रक और मान सक –
तीन तर पर अपने ह थयार डाल चुक थी। न जाने कह से कुछ सड़ा आ मांस मल
गया – जसने कुछ दे र और उन दोन क जान बचाई। जंगली जानवर क आवाज़ के बीच
न चाहते ए भी उसको न द सी आ गई – पलक बंद करते करते उसने नज़र भर अ नी
को दे खा। या समझ गयी क अब अंत समय आ गया – उसको ःख बस इस बात का
था, क वो अपनी छु टक – अपनी छोट बहन – के लए कुछ नह कर पा रही थी।
संभवतः भु के घर उसको अपने माँ बाप के सामने ल त होना और लखा था।

जब खुद का होश आ, तो मालूम आ क वो यहाँ इस अनजान सी जगह पर है, और


डॉ टर उसक जांच पड़ताल कर रहे थे। उसको अपने शरीर म आ प रवतन समझ म आ
गया था – या समझ गयी क अथव और उसके ेम क नशानी अब नह बची। उसका
जी आ क बु का फाड़ कर रोए, ले कन उसने ऐसा कुछ नह कया। डॉ टर उससे
सवाल जवाब कर रहे थे.. उसको समझ नह आया क उससे ऐसी जवाब-तलबी य करी
जा रही है.. ले कन फर भी वो पूरे संयम से उनक बात का ठ क ठ क उ र दे ती रही।
फर मालूम आ क अथव यह आने ह.. यह सुन कर उसक जान म जान आई – कम से
कम पूरी बात तो समझ आएगी!

ले कन अथव के आने से पहले उसको लोग क दबी आवाज़ म कही गई बात सुनाई दे
ग । उसने डॉ टर स हा पर दबाव डाला क वो उसे सब कुछ सच सच बताएं – उसको
सब सच जानने का पूरा हक़ था। स हा और रामलाल ने उसको सारी बात, हचकते ए ही
सही, बता द । उसको यक न ही नह आ क उसके दमाग म जो बात अभी तक जी वत
थी, वो कोई दो साल पुरानी याद थ , और यह क पछले ह ता दस दन तक उसके साथ
जो कुछ भी आ, वो उसको याद ही नह था! उसने यह भी जाना क उसने ऐसे आदमी
क जान बचाई थी, जसने उसक याददा त का फायदा उठा कर उसके साथ शारी रक
याद तयां करी थ । अब या मुँह दखाएगी वो अथव को?
ऐसी ही न जाने कतनी बात सोचती ई, उ मीद और नाउ मीद के झूले म झूलते ए,
अ नी का अंतमन बेहद आंदो लत होता जा रहा था। वो ब त बेस ी से अथव क ती ा
कर रही थी।

‘अथव!’

अथव पर नगाह पड़ते ही वो चारपाई पर से उछल कर खड़ी हो गई। अथव को दे खते ही


जैसे उसके मन के सारे संताप ख़तम हो गए। उसके चेहरे पर तुरंत ही राहत के भाव आ
गए। या के मुँह से कोई बोल तुरंत तो नह फूटे , ले कन अथव को जैसे उसके मन क
बात सब समझ आ ग । या ने सुना तो कुछ नह , ले कन उसको लगा क अथव ने
उसको ‘कुछ मत कहो’ जैसा कुछ कहा था।

अथव ने या को दे खा – अपलक, मुँह बाए ए! दो वष या बीते, जैसे दो ज म ही बीत


गए!

‘हे भगवान्! कतनी बदल गयी है!’ उसका गुलाब जैसे खला खला चेहरा, एकदम
कु हला गया था; सदा मु कुराती ई आँख न जाने कस ःख के बोझ तले बुझ ग थ ।

न जाने य अथव का मन आ म ला न से भर गया। अथव लगभग दौड़ते ए उसक तरफ


बढ़ रहे थे; या भी लपक कर उनक बाह म आ गई। आ लगनब ए ही अथव उसका
शरीर यूँ टटोलने लगे जैसे उसक मुक मल सलामती क तसद क कर रहे ह !

“ओह जानू!” अथव ने कहा।

उनक आवाज़ म गहरी तस ली साफ़ सुनाई दे रही थी – उ मीद है क दल का ःख या


ने न सुना हो। आ लगन बना छोड़े ए ही, अथव ने या के कोमल कपोल को अपनी
हथे लय म ले कर यार से दबाया,

“ओह जानू!”

अथव का गला भर आया था। उनक आँख से आंसू बह रहे थे।


“ओह जानू..” कहते कहते वो फफक फफक कर रो पड़े। गले क आवाज़ भावावेश म आ
कर अव हो चली थी।

ऐसे भाव व ल मलन का असर या पर खुद भी वैसे आ, जैसे अथव पर! अथव को
अपने आ लगन म बांधे या क आँख बंद हो ग । वो नःश द रोने लगी। उन आंसु के
मा यम से वो पछले दो वष क भयानक याद भुला दे ना चाहती थी – अपनी भी, और
संभवतः अथव क भी। अथव को इस तरह से रोते ए उसने कभी नह दे खा था – वो
कभी कभी भावुक हो जाते थे, ले कन, रोना!! या को तो याद भी नह है क अथव कभी
रोए भी ह! या को अपने आ लगन म बांधे अथव रोते जा रहे थे। एक छोटे ब े के
मा नद! गाँव वाले पहले तो तमाशा दे खने के लए उन दोन को घेर कर खड़े रहे, ले कन
रामलाल ने जब आँख तरेर , तो सब चुपचाप खसक लए।

पता नह कब तक दोन एक सरे को थामे, रोते रहे और एक सरे के आंसूं प छते रहे।
ले कन आंसु का या कर? थमने का नाम ही नह ले रहे थे। अथव वगत दो वष क
नराशा, ःख, हताशा, और सब कुछ खो जाने के संताप से रो रहा था, और या उ ही
सब बात को सोच सोच कर! वो अथव के लए रो रही थी, अ नी के लए रो रही थी,
अपने माता पता के लए रो रही थी, और अपनी अज मी संतान के लए रो रही थी। कैसा
था वो समय.. और कैसे होगा आने वाला कल?

रोते रोते एक समय ऐसा भी आता है जब रोने के लए आँसूं भी नह बचते है... उस गहरे
अवसाद म अथव ने ही सबसे पहले खुद को स हाला,

“बस जानू बस.. अब चलते ह...”

या क हच कयाँ बंध ग थ । उसके ठ क से बोल भी नह नकल रहे थे।

“अ.. अ..श..श..अश.. वनी क..कैसी ..?” हच कय के बीच म उसने पूछा।

इस पर अथव को जैसे करंट लग गया। अचानक ही उसके मन म अपराध बोध घर कर


गया।
‘ओह भगवान्! या सोचेगी या, जब उसको मेरी करतूत के बारे म पता चलेगा! इतना
भी स नह आ? और ऐसा भी या क उसी क छोट बहन पर हाथ साफ़ कर दया!
कतनी ज़ लत! सुन कर या सोचेगी या? अपने से चौदह साल छोट लड़क के साथ!
छः छः!’

“अ है..”

मेरे गले म अपराध बोध वाली फाँस बन गयी, “बड़ी हो गई है काफ ..” जैसे तैसे वा य
ख़तम कर के मने बस यही सोचा क या अब अ नी के बारे म और पूछ-ताछ न करे।

“म मेरी अह अह.. उस उस से अह.. ब बात क क करा..अहइए..” या ने बंधे गले से


जैसे तैसे बोला।

“जानू.. अभी नह ! अभी चलते ह.. उसको सर ाइज दगे.. ठ क है?”

तकद र ने साथ दया, या मेरी बात मान गयी, और उसने आगे कुछ नह पूछा। मने
ज द ज द कई सारी औपचा रकताएँ पूरी कर , सारे ज़ री कागज़ात इक े कए,
ानीय पु लस थाने म जा कर या से स बं धत जानका रय का लेखा जोखा पूरा कया
और वहां से भी ज़ री कागज़ात इक े कए और फर वापसी का ख कया। नकलते
नकलते ही काफ शाम हो गई थी, और गाँव वाल ने कने क सलाह द , ले कन मेरा मन
नह माना। मेरा मन हो रहा था क उस जगह से ज द नजात पाई जाय – और यह क
वहां का नज़ारा दोबारा न हो! मने अपने ाईवर से पूछ क या वो गाडी चला सकता है,
तो उसने हामी भरी। हम लोग तुरंत ही वहां से नकल गए।

वैसे तो रात म पहाड़ी रा त म वाहन नह चलाना चा हए, ले कन अभी रात नह ई थी।


हमारा इरादा यही था क कोई दो तीन घंटे के ाइव के बाद कह कसी होटल म क
जायगे, और फर अगली सुबह वापस द ली के लए रवाना हो जाएँगे। ाईवर साथ होने
से काफ राहत रही – या न जाने या या सोच सोच कर या तो रोती, या फर गुमसुम
सी रहती। उस मन स घटना ने मेरी या को सचमुच ही मुझसे छ न लया था – म मन ही
मन सोच रहा था क अपनी या को वापस पाने के लए या क ँ ! ऊपर से या के पीछे
पीछे मने जो जो का ड कए थे, उनके या के सामने उजागर हो जाने क त म उनसे
दो चार होने का कोई लान सोच रहा था। ले कन इतना सोचने पर भी कुछ समझ नह आ
रहा था।

खैर, मन को बस यही कह कर धाडस बंधाया क अंत म स य तो उजागर हो कर रहेगा।


इस लए छु पाना नह है। वैसे भी अ नी को अभी तक कुछ भी मालूम नह आ था। वो
तो सब कुछ बोल ही दे गी। न जाने य सब कुछ व ध के हसाब से होने के बावजूद मन म
एक अपराधबोध सा घर कर गया था। न जाने या होगा!

रा ते म अ नी के कई सारे कॉल आए – जैसे हर रोज़ उससे रोमां टक बात होती थ ,


आज करना संभव नह था। जैसे तैसे उसको भरोसा और दलासा दला कर और बाद म
बात करने का वायदा कर के शांत कया। ले कन फर भी उसके एस एम एस आते रहे। वो
तो या गुमसुम सी बैठ थी, इस लए यह सब सल सला चल गया। साला म तो बना
वजह ही च क क दोन पा टया के बीच बस फंस कर ही रह गया! कैसी क मत थी – दो
दो बी वयाँ, और वो भी दोन सगी बहने! ऊपर से दोन को एक सरे के बारे म पता भी
नह ! वैसे यहाँ तक भी गनीमत थी... पसना तो अभी बाक है!
गंगा क नमल धारा जैसी बह रही मेरी जदगी म अचानक रोड़ा आ गया था. मानो गंगा
क उलट धारा बह रही हो!

तो ऐसे गुमसुम हालात म मेरे से तो गाडी नह चलाई जा पाती। इस लए ाईवर साथ होने
से ब त स लयत हो गई। हमारे पास वैसे भी कोई सामान नह था। मेरे पास बस दो जोड़ी
कपडे थे, और या के पास कुछ भी नह – जो उसने पहना आ था, बस वही था। मने
दमाग म नोट कर लया क उसके लए द ली म कपड़े खरीदने ह। ब त दे र क चु पी के
बाद मने ाईवर को गाड़ी म लगे संगीत तं को चलाने को कहा – कम से कम हम दोन
लोग अपनी अपनी चता के दायरे से बाहर नकालगे! मुझे तो लगा क बस कोई एक घंटा
चले थे, ले कन जब मने बाहर यान दया, तो घुप अँधेरा हो गया था, और अब मेरे हसाब
से गाड़ी चलाना ब त सुर त नह था।

“भाई, आगे कोई होटल या धमशाला आये, तो रोक लेना!”, मने ाईवर से कहा, “अब
अँधेरा बढ़ गया है, और ऐसे म गाड़ी चलाना ठ क नह । आज रात वह क जायगे, और
कल आगे का सफ़र करगे। य , ठ क है न?“
“ बलकुल ठ क है साहब! म भी यही कहने वाला था.. जैसे ही कोई सही होटल दखेगा म
वैसे ही रोक लूँगा। रात म ाइव करते रहने का कोई इरादा नह है मेरा।“

ऐसे ही बात करते ए मुझे एक बंगलेनुमा होटल दखा। मुझे अचानक ही पुरानी बात याद
हो आ – शाद के बाद जब म या को वदा कर के ला रहा था तो हम इसी होटल म के
थे। मने ाईवर को उसी होटल के ांगण म पाक करने को कहा, और उसको कहा क
आज हम यह पर कगे।

जैसा क मने पहले भी लखा है, यह एक व टो रयन शैली म बनाया गया बंगला था,
जसम चार बड़े बड़े हाल नुमा कमरे थे। हर कमरे ही छत ऊंची-ऊंची थ , जनको लकड़ी
क मोट मोट शहतीर स हाले ई थी। ब तर पहले के ही जैसे साफ़ सुथरे थे। क मत क
बात थी, एक कमरा खाली मल गया हम लोग को। होटल के सभी कमर म मेहमान थे,
ले कन फर भी वहां का माहौल ब त शांत था। ाईवर को खाने के लए पैसे दे कर या
और म अपने कमरे म आ गए। पहले क ही भां त मने वहां के प रचारक को कुछ पये
दए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने को कह ही रहा था क या ने माना कर दया –
उसने कहा क हम दोन बाहर ही चले जायगे।

खैर, मेरे लए तो यह भी ठ क था। सामान तो कुछ खास था नह , इस लए हम दोन बाहर


चले आये। काने यादातर बंद हो रही थ , ले कन एक दो काने, जो लगभग सभी कार
क व तुएं बेच रही थ , अभी भी खुली थ । वहां जा कर या के लए हमने एक और
जोड़ी सलवार कुता खरीदा, और फर खाने के लए चल दए। छोट जगह पर कोई
खासमखास इंतजाम तो रहता नह , ले कन फर भी उस छोटे से ढाबे म दाल तड़का, आलू
क स जी और रो टयाँ खा कर अपार तृ त का अनुभव आ। खाने के बाद हम लोग तुरंत
ही होटल म नह गए – या के कहने पर वहां क मु य सड़क से अलग हट कर नीचे क
तरफ जाने वाली सड़क क और चल दए। उसने ही मुझे बताया क अलकनंदा नद यहाँ
से बहती है।

मने कोई तरोध नह कया – इतनी दे र के बाद या ने वापस कुछ कहना बोलना शु
कया था – मेरे लए वही ब त था। बात उसी ने शु करी,

“आप अपना ख़याल नह रखते न?”


अब म उसको या बताता! उसके जाने के बाद मुझ पर या या बीती है, यह तो म ही
जानता ँ। और, वह सब बात म या को कैसे कह ं ?

“कैसे रखता? आपक आदत जो है..” यह वा य बोलते बोलते गले म फाँस सी हो गयी।

“मेरे कारण..” वो कुछ और कहती क मने उसको बीच म टोक दया,

“जानू.. कसी के कारण कुछ भी नह आ.. जो आ, वो आ.. इसम न कसी क गलती


है, और न ही कसी का जोर! वो कहते ह न.. आगे क सुध ले.. तो हम लोग भी आगे क
ही सुध लेते ह.. भगवान को जो करना था, वो कर दया.. ज़ र कुछ सखाना चाहते थे,
जसके लए यह सब आ!”

या कुछ दे र चुप रही।

हम लोग टहलते ए ज द ही नद के कनारे प ँच गए। अलकनंदा अपनी मंथर ग त से


बहती जा रही थी। नद क कण य व न से आ मा तक को आराम मल रहा था। हम
लोग चुपचाप उस आवाज़ का दे र तक आनंद लेते रहे... चु पी या ने ही तोड़ी,

“ पछली बार जब हम यहाँ आये थे, तो मेरा मन आ था क आपको यहाँ लाया जाए...”

“ह म... तो फर लाई य नह ?”

“आपको ठं डी लग जाती न... इस लए..” या मु कुराई।

ओह भु! इस एक मु कान के लए म अपना जीवन कुबान कर सकता !ँ कतने सारे


क सहे ह बेचारी ने! हे मेरे भु – लीज.. अब यह मु कान मेरी या से कभी मत
छ नना!

“अ ा जी! आपको नह लगती?”

“नह ! बलकुल भी नह .. म तो पहाड़ क बेट ँ.. याद है?” या क मु कान बढती जा


रही थी!
“हाँ! याद है... इ ही पहाड़ ने मेरा दल और दमाग दोन ले लया!”

“ह! तो मुझे या मला?”

“... और आपको दे दया..”

“हा हा! बात बनाना कोई आपसे सीखे!”

हम दोन अब तक नद के कनारे एक बड़े से प र पर बैठ कर अपनी टाँग को पानी म


डाले ए सौ य मा लश का आनंद उठा रहे थे।

“आपने बताया नह क आप यहाँ इतनी ज द कैसे आ गए?”

“ या – भगवान् के खेल तो बस भगवान् ही जानता है! बस यह कह लो क हमको


मलना था वापस, इसी लए भगवान् ने कोई यु लगा कर मला दया... सोचने समझने
जैसी बात ही नह है.. कोई और मुझे यह कहानी सुनाता तो म कहता क फक रहा है..
ले कन, अब जब यह खुद मेरे साथ आ है, तो और कुछ भी नह कह सकता! अभी कोई
स ताह भर पहले क बात है – म घर पर बैठा ट वी दे ख रहा था। वहां नेशनल
जयो ा फक म उ राँचल ासद के ऊपर कोई डा यूम चल रही थी। उसी म मने
झलक भर आपको दे खा।“

उसके बाद मने या को सब कुछ सल सलेवार तरीके से बता दया। वो मं मु ध सी मेरी


बात सुनती रही।

“समझ ही नह आया क आँख का दे खा मानूं या दल का कहा सुन,ूं या फर दमाग पर


भरोसा क ँ ! मने तो इस बार बस भगवान् पर भरोसा कर के यह सब कुछ कया.. और
दे खो.. यहाँ तक आ गया..”

सारी बात पूरी करते करते मेरी आँख से आंसूं गर गए। या ने कुछ कहा नह – बस मेरी
बाँह को पकड़ कर मुझसे कस कर चपक गई।
“अब तुम मुझे छोड़ कर कह मत जाना..” ब त दे र के बाद मने ब त ही मु कल से अपने
दल क बात या को कह द , “चाहे कुछ हो जाय..”

“नह जाऊंगी जानू.. कह नह ! आपको छोड़ कर म कह नह जाऊंगी!”

कह कर या मुझसे लपट गई, और हम दोन एक सरे के आ लगन म बंधे भाव- वभोर


हो कर रोने लगे। कुछ दे र बाद जब हम दोन आ लगन से अलग ए तो या ने कहा,

“अब म रोऊंगी भी नह .. आप मुझे मल गए.. अब या रोना?”

मने भी अपने आंसू प छे , और कहा, “सही है.. अब य रोना! .... चल वापस?”

या ने उ र म मुझे नज़र भर कर दे खा, और हलके से मु कुराई,

“जानू..” उसने पुकारा।

या क आवाज़ म ऐसा कुछ था जसने मेरे अ दर के ेमी को अचानक ही जगा दया। म


इतनी दे र से उसके अ भवावक, और र क का रोल अदा कर रहा था। ले कन या क
उस एक पुकार ने ही मेरे अ दर के ेमी को भी जगा दया।

“हाँ?”

“आपको शकुंतला और यंत क कहानी मालूम है?”

“हाँ..” या कहना चाहती है!

“आप मेरे यंत हो?”

“हाँ.. अगर आप मेरी शकुंतला हो!”

“म तो आप जो कह वो सब कुछ ँ..”
“ले कन, म तो नह भूला .. भूली तो आप..”

या मु कुराई, “वो भी ठ क है.. चलो, म ही यंत.. हा हा!”

“हा हा..”

“आप भी तो भूल गए ह गे..!”

“नह .. म कै..” मेरे पूरा कहने से पहले ही या ने अपना कुरता उतार दया।

“आप नह भूले?” वो मु कुराते ए अपनी ा का क खोल रही थी।

या से मने इतने साहस क उ मीद नह करी थी। एकदम नया था यह मेरे लए। और
आ यजनक भी। सुखद आ यजनक!

“ म.. अंगूठ कधर है?” मने भी ठठोली करी।

“अंगूठ ? हा हा.. आप फलहाल तो इन अंगूर से याददा त वापस लाइए.. अंगूठ आती


रहेगी..” वो मु कुराई।

“बस अंगूर ही मलगे?”

“नह जानू.. शहद भी...”

तब तक मेरा लग तन कर पूरी तरह तैयार हो चला था। सलवार का नाडा या खोल ही


चुक थी, तो उसको उतारने का उप म मने कर दया। साथ ही साथ उसक च ी भी उतर
गयी।

“इन अंगूर म रस कब आएगा?”

पूण न न हो कर या वह प र पर पीठ के बल लेट गयी। उस प र के वृ पर लेटने से


या का शरीर भी कमानीदार हो गया – अ चांदनी म उसके शरीर का भली भां त
छायांकन हो रहा था। यह सोच ली जए जैसे खुलेआम एक बेहद नजी अनावृ ! उसके
न न शरीर को सफ म दे ख सकता था और कोई नह । हलक चांदनी उसके शरीर के हर
अंग को दखा भी रही थी, और छु पा भी रही थी। उसके गाल, उसक नाक, उसके ह ठ,
उसके कंधे, और उ ेजना से ज द ज द ऊपर नीचे होते उसके तन! सपाट, तना आ
पेट, और उसके अंत म सु दर नत ब! कुल मला कर या के शरीर म ब त अंतर नह
आया था – हाँ, कम खाने पीने से वो कुछ पतली तो हो गयी थी, ले कन ऐसा कुछ नह तो
ह ते भर म ठ क न हो जाय। अ ताल म सचमुच उसक अ दे खभाल ई थी।

वो मु कुराई, “जब आपका रस अ दर जाएगा..”

मने या के ोड़ क तरफ दे खा – उसका यो न मुख – उसके दोन ह ठ फूले ए थे। घने


बाल के बीच से भी यह दख रहा था। फूले ए, रसीले भगो !

“सचमुच भूल गया!”

“तो अब आप याद कर ली जए, और मुझे भी याद दला द जए..” या ने ब त ही धीमी


आवाज़ म यह कहा – फुसफुसाते ए नह , बस दबी ई आवाज़ म!

“एक तरह से हमारी सरी सुहागरात!” उसने एक आ खरी हार कया..

मुझे उस हार क वैसे भी कोई आव यकता नह थी। मने या के पैर थोड़े से फैलाए।
और अपनी उं गली को उसक यो न क दरार पर फराने लगा। या एक प र चत छु वन से
कांप गयी। इतने अरसे से दबी ई कामुक लालसा इस समय उसके अ दर पूरे चरम पर
थी। कुछ दे र यो न क दरार पर उं गली चलाने के बाद मने अपनी उं गली को अ दर क
तरफ व कया – उं गली जैसे ही अ दर गयी, या क यो न ने तुरंत ही उसके इद गद
घेरा डाल कर उसे कस कर पकड़ लया। म मु कुराया।

“उ उं गली उं गली नह जानू..” या हांफते ए बोली।

या क इस बात पर मेरा लग जलने सा लगा। मेरे तने ए जलते लग को अगर म बटर


क क से लगा दे ता तो उसम लग क मोटाई के समान ही एक साफ़ छे द हो जाता। खैर,
मने अपनी उं गली को बाहर ख चा और उं गली और अंगूठे क सहायता से उसके यो न-पु प
क पंखु ड़य को अलग करने लगा। या के उ ेजक काम रसायन क महक हमारे आस
पास क हवा म घुल गयी।

वा द !

मने उसक खुली ई यो न को अपने मुख से ढं का और उन रसायन का आनंद उठाने


लगा। या का रस, अ नी के रस जैसा मीठा नह था। खैर, इस बात क म कोई
शकायत तो करने वाला नह था। मने धीरे धीरे से या क पूरी यो न को चूसना चाटना
आर कर दया। उतनी ज द तो उसक यो न काम रस बना भी नह पा रही थी। ज द
ही जब इस या से उसका रस समा त हो गया, तब म कभी दा हने, तो कभी बाएँ ह ठ
को चूसने लगा। हार मान कर उसक यो न पुनः काम रस का नमाण करने लगी। और म
उस रस को सहष पी गया।

या बड़े यार से मेरे बाल म हाथ फराती ई मेरा उ साह-वधन कर रही थी। आज एक
अरसे के बाद म या क यो न चाट रहा था, इस लए मुझे ब त रोमांचक आनंद आ रहा
था। थोड़ी ही दे र बाद मेरा लग खड़ा हो गया।

मने कहा, “जानू, लगाता है क आज तुम मूड म हो।”

या ने फुसफुसाते और कराहते ए कहा, “आ ह हाँ, इतने दन बाद अपने कामदे व से


मली .ँ . आज तो म सचमुच बड़े मूड म ँ। आप मुझे ठो कये, और जम कर ठो कये..
जैसे मन करे वैस.े . जतनी बार मन करे, उतनी बार...।”

“तब तो आज खूब मज़ा आयेगा।”

कह कर म वापस या क यो न को चाटने म म न हो गया। वो सचमुच ब त यादा जोश


म आ चुक थी। थोड़ी ही दे र म या ख लत हो गयी..

फर आई उसके भगनासे क बारी। मने उसके उस छोटे से अंग को दे र तक कुछ इस तरह


से चूसा जैसे कोई ी अपने ेमी के लग को चूसती है। इस या का या पर नैस गक
भाव पड़ा – वो अपने नत ब गोल गोल घुमा कर और उछाल कर मुख मैथुन का पूरा
आनंद उठा रही थी। खैर, जब तक मने उसके भगनासे से अपना मुँह हटाया, तब तक या
तीन बार और ख लत हो गयी। या क संतु भरी आह वातावरण म गूँज रही थ ।

“ओह गॉड!” उसने कामुकता भरी संतु से कराहा।

मने या को र त न प का पूरा आनंद उठाने दया। मुझे शंका थी क कह या क


आह और कराह सुन कर कोई आस पास न आ गया हो। उस जगह नजनता तो थी,
ले कन इतनी नह क कोई इतनी ऊंची आवाज़ न सुन सके। खैर, कोई दे खता है, तो दे खे!
या फक पड़ता है! मने अपने भी कपडे उतार दए। मेरा लग तो पूरी तरह से तना आ
था।

मने अपने आप को या क टाँग के बीच व त कया और उसक टाँग को उठा कर


अपने कंधे पर रख लया। फर मने उसक यो न के ह ठ को फैला कर अपने श ा को
वहां व त कया। कोई दो ढाई साल बाद या क ठु काई होने वाली थी (सतीश वाला
कुछ भी मा य नह होगा) – इस लए मुझे स हाल कर ही सब कुछ करना था।

या को खुद भी इस बीते ए अरसे का एहसास था – इस लए वो भी उ ेजना के मारे


एकदम पागल सी होने लगी। खुले म सहवास करने जैसी हमाकत वो ऐसे नह कर सकती
थी।

“शु कर?” कह कर मने लग को उसक यो न म फंसा कर एक जोर का ध का लगाया।


या के मुँह से चीख नकल पड़ी। उसक यो न सचमुच ही पहले जैसी हो गई थी – संकरी
और चु त! मने नीचे दे खा तो सफ सुपाड़ा ही अ दर गया था – बाक का पूरा का पूरा
अभी अ दर जाना बचा आ था।

“ या बात है रानी! आपक यो न तो एकदम कसी ई है! ठ क उस रात के जैसे जब हम


दोन पहली बार मले थे! असल म, उस से भी यादा कसी ई...।”

पीड़ा म भी या क खल खलाहट नकल गई।

“आप जो नह थे, इसके कस बल खोलने के लए...”


“कोई बात नह ... अब आपक ये शकायत र कर ं गा..”

“वो मुझे मालूम है... अब शु क जए..”

“ या?” मने छे ड़ा।

“ठु काई...” उसने फुसफुसाते ए कहा और मेरे लग को अपनी यो न के मुहाने पर छु आ


दया।

मने धीरे धीरे लग को अ दर घुसाया; या क कराह नकल रही थी, ले कन उसके खुद म
ही उसको ज़ त कर लया। या क यो न सचमुच संकरी हो गई थी। अ नी से भी
अ धक कसावट लए! उस घषण से लग के ऊपर क चमड़ी पीछे खसक गयी – अब मेरा
मोटा सुपाड़ा या क यो न क द वार को रगड़ रहा था। हम दोन का ही उ माद से बुरा
हाल हो गया। म अ दर के तरफ दबाव दे ता गया जब तक लग पूरी तरह से या के अ दर
समां नह गया।

“दे ख तो! मेरा लग कैसे तेरे अ दर फट हो गया है...”

या ने सर उठा कर दे खा और बोली, “ओ भगवान! शु है क पूरा अ दर आ गया.. मेरे


अ दर क खाली जगह आ खरकार भर ही गई! उ म.. मुझे डर लग रहा था क शायद न
हो पाए! अब बस.. आप जोर से ठोक डा लए मुझे... यह भी तो ब त आतुर हो रहा है..."

मने या क दोन टाँगे अपने क पर रख लया।

“तैयार हो?”

"हाँ... आप ऐसे मत सताइए! मेरे पूरे शरीर म आग सी लगी ई है। बुरी तरह...”, या ने
कहा।

" या सच म!” मने पूछा।


मेरे इतना कहने क दे र थी क या नीचे से खुद ही ध के लगाने लगी। मने कुछ नह
कहा, बस या को तेजी के साथ ठोकना शु कर दया। हम दोन ही ब त जोश म थे और
तेजी से मंथन कर रहे थे। अ त उ ेजना के कारण सफ पाँच मनट म ही या चरमो कष
पर प ँच गई। या क यो न से कामरस नकलता आ दे ख कर मेरा जोश भी बढ़ गया
और मने भी अपनी ग त बढ़ा द । म उसको तेजी से ठोकने लगा। हाँ, यही श द ठ क है!
जो हम कर रहे थे, वो वशु सहवास था, जसका सफ एक और एक ही उ े य था –
और वो था हमारे शरीर क काम पपासा को शांत करना। और इसका सट क श द ठु काई
ही था। आगे दो तीन मनट म मेरे लग ने भी वीय छोड़ दया और या क यो न भरने
लगी। पूरी तरह से ख लत हो जाने के बाद मने अपना लग उसक यो न से बाहर
नकाला, और हट गया। या ने मुझको अपनी तरफ़ ख च लया, और मेरा लग चाटने
लगी।

एक और नई बात!

“आज तो मज़ा आ गया।” जब या ने अपना काम ख़तम कया तो मेरे मुँह से अनायास
ही नकल गया।

“भैना, और मजा आएगा... आप ये जड़ी लया कर!”

हम दोन ही च क कर आवाज़ क दशा क तरफ दे खने लगे। एक लड़का, कशोराव ा


म ही रहा होगा वह, अपने कंधे पर एक झोला लटकाए हमारी ही तरफ दे ख रहा था।
जा हर सी बात है, उसने यह बात भी हमको ही कही थी।

वो न जाने कब से हमारी र त- या दे ख रहा होगा, इस लए मने तो अपनी न नता छु पाने


क कोई को शश नह करी, ले कन या अपने आप म ही समट सी गई।

“कौन है?” मने पूछा।

“जी म जड़ी-बूट बेचने वाला ँ... तरह तरह क जड़ी-बू टयाँ बेचता .ँ . आप लोग को
दे खा तो क गया।“

“अ ा तो तू सर को ठु काई करते ए दे खता है?”


“नह भैना! ले कन आप लोग भी तो खुले म...” वो झझकते ए बोला।

“अ ाअ ा! ठ क है! या जड़ी बेच रहे हो?”

“है तो भैना यह कामवधक जड़ी.. अरे! पूरी बात सुन तो ली जए!”

संभवतः उसने मेरे चेहरे पर उ प होने वाले झुंझलाने वाले भाव दे ख लए थे,

“यह जड़ी शु शलाजीत, इलाइची, अ गंधा और च दन से बनी है.. शु है! आप चाह


तो चख कर दे ख ल.. ऐसा वाद आपने कभी नह चखा होगा.. इसका नय मत इ तेमाल
कर.. द द खुश हो जाएँगी! ... और आप भी!”

“अभी खुश नह थ ?”

“थ भैना.. खुश थ ... ले कन और हो जाएँगी! आपका वा ल बी दे र तक कड़क


रहेगा..”

“अ ा..” अपनी मदाना ताकत पर ऐसी टप णी होते सुन कर मुझे अ ा नह लगा, “तू
खाता है ये जड़ी?”

“भैना, महँगी जड़ी है.. उतना तो नह खा पाता!”

“उतना नह ..? अरे! तुझे या ज़ रत ई इस जड़ी क ?”

“भैना, मेरी भी घरवाली है! उसको भी खुश रखना होता है न!”

“तेरी शाद हो गई? अरे!”

“हाँ! एक साल हो गया भैना।“

“अरे तू खुद इतना छोटा लग रहा है.. तेरी वारी क उ या है?”


“यही कोई पं ह क , भैना!”

“अरे! ब ी से..!?”

“बरब र है भैना वो.. ब ी नह ..” कहते ए वो मु कुराया! “मुझे एक बार अपना वा


दे खने दगे? .. म वै भी .ँ ..”

कह कर वो मेरे लग को पकड़ कर, ख च कर, दबा कर जांच करने लगा। न तो उसने मेरी
सहम त क परवाह करी और न ही कसी हील त क । जब वो अपनी जांच से संतु
हो गया तो बोला, “ब त गुंट अंग है भैना आपका... थोड़ा सा बांग है.. ले कन उससे कोई
द कत नह होगी। आप चाह तो उसके लए एक अक दे सकता .ँ . उससे मा लश कर के
थोड़ा सा सीधा हो जायेगा.. वैसे उसक कोई ख़ास ज रत नह है.. आप बस यह जड़ी
खाया कर। आप तो ज़ र ली जए.. अ ा वा य है, असर अ धक आएगा..”

“अ बात है.. अब अपनी द द क भी जांच कर के बता।“

“जी..” कह कर वो लड़का या क जांच करने लगा।

“अरे... ये... क या..” अचानक से ए इस घटना म से या भी अचकचा गई। ले कन


मुझे इस बात पर आ य आ, और एक तरह से ब ढ़या भी लगा क या एक पल को तो
हचक , ले कन उसके बाद उसने कोई वरोध नह कया, और उस वै /लड़के को अपनी
जांच करने द । लड़के ने या के भ भ ान पर दबा कर न जाने कस बात का
जायजा लया, उसके सीने पर कान लगा कर कुछ दे र धडकन को सुना, पेट और कमर को
दबा कर जाँचा, और अंत म कहा,

“द द भी आपक ही तरह एकदम गुंट है, भैना। आपको बस थोड़ा पूरक क ज रत है।
मेरा मतलब ज़ रत तो नह है, ले कन अगर लगे तो अ ा रहेगा। यह जड़ी न केवल वीय
व क है, ब क आरो य और ल बी आयु के लए भी ठ क है..“

“ म.. अ ा.. अगर म इसको अभी खरीद लूं, तो बाद म या होगा? मतलब एक पु डया
से तो कुछ नह होने वाला न?”
“बाद के लए या तो म आपको इसको बनाने क व ध बता ं गा, या फर आप मुझे कोई
पता बता द जए, जस पर म आपको डाक से भेज ं गा..”

“अ बात है..” कह कर मने उसको हमारे साथ होटल आने के लए बोला।

हमने अपने कपडे पहने, और साथ म होटल चल दए, जहाँ पर मने उससे जड़ी ली, उसको
पैसे दए और सो गए।
३७
अ नी क नजर म :
'Heading Back home... with huge huge surprise. Love You!'

अ नी अपने फ़ोन के न पर अथव के इस मैसेज को बार बार पढ़ रही थी. ऐसा नह है


क अथव सल सले म कभी बाहर नह गए - ले कन ऐसा व च वहार उ ह ने पहले
कभी नह कया। वो बना कसी चूक के उससे हर दन कम से कम बार बात अव य करते
थे। ले कन इस बार तो बात ही नह हो पाई। बस कभी कभी कोई एस एम एस भेज दे ते
थे। और तो और, उसका भी फ़ोन एक बार भी नह उठाया! या हो गया? या सर ाइज
है! उसके मन म कई सारे सवाल थे, ले कन उनके जवाब अथव ही दे सकते थे। तब तक
तो इंतज़ार करना ही होगा। अ बात यह थी क वो बस कुछ ही दे र म आने वाले थे।

चार दन हो चले थे - जैसे चार महीने बीत गए ह ! उनके बना तो मन लगता ही नह ! इस


बार बोलूँगी क जब वो बाहर जाया कर, तो मुझे भी साथ ले जाया कर! उनका अनवरत
साथ उसके लए शारी रक, मान सक और भावना मक - उसके तीन ही कार के वा य
के लए आव यक था।

अगले एस एम एस म लाइट नंबर लखा आ था। अथव हमेशा ही उसको अपनी लाइट
का नंबर लख कर भेजते थे। एक दन मज़ाक मज़ाक म उ ह ने कहा था क अगर कभी
मेरी लाइट ै श हो जाय तो कम से कम तुमको मालूम तो रहे क पूछ-ताछ कहाँ करनी
है! उनक इस बात पर अ नी खूब रोई थी; पूरा दन खाना भी नह खा सक । अथव क
लाख मनुहार के बाद ही उसके गले से खाने का एक नवाला उतर सका।

उसने फर से फ़ोन क न पर एस एम एस पढ़ा। अथव का स दे श, मनो खुद ही अथव


खड़े ह , और वो उ ह दे ख रही हो। शाद सचमुच ही जीवन बदल दे ती है। अथव और
अ नी क शाद वैसी नह थी, जैसी उसने कभी क पना करी थी। न जाने कैसे कैसे सपने
संजोती ह लड़ कयाँ अपनी शाद को ले कर... ले कन यहाँ तो.. सब कुछ एक तरफ़ा
मामला ही था; अथव ने जैसे बस उसक इ ा रख भर ली। उ ह ने इस मामले म न कभी
अपनी तरफ से कोई पहल करी और न ही कभी इस कार क गम ही दखाई, जो अ सर
मंगेतर जोड़े दखाते और महसूस करते ह। संभव है क उनके मन म कसी तरह का
अपराध-बोध रहा हो। यह शंका उ ह ने सुहागरात म जा हर भी कर द थी। अ नी समझ
सकती है - द द के जाने के बाद, उ ही क छोट बहन के साथ... पहले उसको भी यह
अपराध-बोध था। कैसे अपने ही जीजा से ेम! सोचने वाली बात यह क उनको वो पहले
दाजू कह कर बुलाती थी...! दाजू और अब..! और ऊपर से पड़ो सय क कुरेदती ई
नगाह! फर उसने नणय कर लया क बस, ब त आ। य द ेम करना गुनाह है, तो
होता रहे। अथव को वो अव य ही अपने मन क बात कहेगी। आगे जो होना होगा, भु क
इ ा!

उन दोन के स ब क ऊ णता ववाह के बाद ही तो ई। यह संभवतः उनके अंदर जगा


आ एक अ धकार भाव और एक सं ल त भाव था। दोन ही बात, जो ववाह के बंधन म
बंध कर होती ह। ववाह सचमुच एक मायावी स ब है - और उसके प रणाम रह यमय!
आ थक और सामा जत तर पर दे खा जाय, तो उसके पता क त ा एक मामूली
क ही थी। मामूली रहन-सहन, मामूली समाज म उठना बैठना, और मामूली आशाएँ और
उ े य। पर ऐसे मामूली प रवेश म भी उसने जीवन का एक अहम् रह य सीखा था – और
वह यह क अपने जीवन से संतु रहे, और सुखी रहे। अथव म उसको जीवन के रह य को
साकार करने का य मल गया था। और यह सब कुछ उनक संप के कारण नह था –
संप न भी होती, तो भी कुछ ख़ास भाव नह होना था। भाव था उनके नेह का, और
उनके ेम का! वो संतु थी, सुखी थी। ववाह के बाद उसको अपने ही अ दर छु पे ए
कतने ही सारे रह य पता चले थे! उन रह य के उजागर होने पर उसको रोमांच भी होता,
आ य भी होता, और ल ा भी आती। ले कन फर भी मन नह भरता। अथव भी हर
संभव तरीके से उसको सुखी रखते थे! ऐसे म कोई आ य नह , क ववाह के उपरा त
उसके दे ह भी भरने लगी है! पु ष के रसायन का कैसा अ द भाव होता है!

वो ल ा से मु कुरा द ।

‘पु ष के रसायन... हा हा’ अ नी मन ही मन हंस द ।

ये भी तो अपने रसायन उसके अ दर डालने म कोई कोर कसर नह छोड़ते ह! यह बात तो


है, दोन चाहे कतने भी थके ए ह , बना सहवास कए रह नह पाते! सहवास करने के
बाद क ऊजा और ताजगी! अथव के साथ क बात याद कर के अ नी के शरीर का पोर-
पोर खने लगता है। उसका मन करता है क ज द से अथव आ जाएँ, और उसे अपने
आ लगन म भ च ल; इतनी जोर से क उसक एक एक ह ी चटक जाए।
३८
हवाई-अ े से नकल कर मने और या ने टै सी करी और घर क ओर चल दए। घर क
तरफ जाते ए –

“अ नी है घर पर?” या ने पूछा।

मने सफ सर हला कर हामी भर द .

“उसक पढ़ाई लखाई कैसी चल रही है?”

“अ चल रही है..” अब म उसको या बताऊँ क पढ़ाई लखाई के साथ साथ और भी


ब त कुछ चल रहा है, और वो भी ब त ही अ े से!

“उसको कैसा लगेगा!” यह जैसे या ने खुद से ही कया था।

“कैसा लगेगा? ये या बात ई जानू! वो ब त खुश हो जाएगी.. और कैसा लगेगा! म


आपको बता नह सकता क वो कतनी खी रही है!”

“हाँ.. आप सही कह रहे ह! हम दोन सफ सगी बहन ही नह है.. हमारा र ता ब त ही


गहरा है..”

“इस बात म कोई शक नह ..”

‘ र ता तो गहरा ही है!’

“ या आ जानू.. आप ऐसे सूखा सूखा य बोल रहे ह?”

“नह कुछ नह .. थक गया ँ बस! और कुछ भी नह ..” अब अपनी सफाई म और या ही


बोल सकता था?
“ओह अ ा! कोई बात नह .. घर चल कर आपको अ सी चाय पलाती ँ, और फर
ब ढ़या वा द खाना.. ओके?”

म सफ मु कुराया! सच म! अगर घर जा कर सचमुच ऐसा ही हो, तो फर समझो क मेरी


लाइफ सेट हो गई!
घर क तरफ बढ़ते ए मेरे दल क धडकन ब त तेज हो ग , गला सूखने सा लगा और
ब त घबराहट हो गई. लगभग कांपती उँ ग लय से मने कॉल-बेल का बटन दबाया।

कोई बीस सेकंड (जो क मुझे घंटे भर ल बे लगे) के बाद दरवाज़ा खुला।

“आ गए आ... द द ? द द ..??? द द !!!! द द !!!! तुम जदा हो?!!!!!”

अ नी के सम जो प र य था, वह उसक समझ से परे था। कसी क भी समझ से परे


हो सकता है; ले कन इस बात के लए अ नी तैयार ही नह थी।

“ओह भगवान्! तुम जदा हो! ओह! ओह भगवान्!”

ऐसा कह कर अ नी या को कस कर अपने आ लगन म भर लेती है। या भी खुश हो


कर और भाव वभोर हो कर अ नी को अपनी बाह म भर कर उसका चु बन लेने लगती
है।

“तुम जदा हो द द ! तुम जदा हो।“ या के आ लगन म बंधी ई अ नी सुबकने लगी


थी। उसक आँख से ख़ुशी के आंसू ब हने लगे थे। “तुम जदा हो।“

“हाँ मेरी ब ी! म जदा !ँ ” या भी रोए बना नह रह सक । “म जदा !ँ ”

इस समय दोन ही बहने वतमान म नह थ । वो दोन ही उस भयावह अतीत को याद कर


रही थ , जसको उ ह ने साथ म झेला था। वह अतीत जसने उनके माँ बाप को लील लया
था। वह अतीत जसने उन दोन को अलग कर दया था। और वह अतीत, जसने अनजाने
म ही दोन के वतमान को भी बदल दया था। उस भयंकर अतीत को याद कर दोन ही फूट
फूट कर रोने लग ; एस समय उन दोन के लए ही इस बात से बढ़ कर कुछ नह था क वो
दोन ही जी वत थ , और एक बार फर से एक सरे के साथ थ । न जाने कतनी ही दे र
दोन बहने एक सरे को अपनी बाह म लए खड़ी रह , और फर आ खरकार दोन ने
अपना आ लगन छोड़ा।

“बस कर मेरी ब ी... बस कर! ... कैसी है तू?” या ने बड़े लाड से पूछा, और बड़े यार
से अ नी के चेहरे को अपने दोन हाथ म लए नहारने लगी।

“अरे! तेरी शाद हो गई?” या ने अ नी क मांग का स र दे ख लया।

“वाआ ह! कब?” या ने लगभग चहकते ए कहा। यह जैसे व क तरह गरा –


अ नी पर भी, और मुझ पर भी। इस पर अ नी के पूरे शरीर को मानो लकवा मार
गया।

“आपने बताया य नह ?” या ने शकायती लहजे म मुझ पर दागा।

“वो म.. म..”

“हाँ हाँ ठ क है.. बहाने मत बनाइए। अब आ गई ँ, तो सब कुछ डटे ल म सुन लूंगी! कहाँ
ह तेरे ह बड?”

वतः ेरणा से अ नी ने इस पर मेरी तरफ दे खा, और मने उसक तरफ। मने ‘न’ म
सर हला कर एक दबा छु पा इशारा कया।

“ वो वो द द .. तुम आओ तो सही। बैठो, फर बताती ँ सब।“

“हा हा.. ठ क है।“ कह कर हँसते ए या अ दर आ गई और सोफे पर बैठ गई। “कहाँ


तो म सोच रही थी क म तुझे सर ाइज ँ गी, और कहाँ तूने मुझे ही इतना ब ढ़या सर ाइज
दे दया...!”

“ मम चाय बनाती !ँ ” अ नी अपना बचाव करते ए बोली।

“अरे नह ! अ नी, तू बैठ। चाय म बनाऊँगी।“


कह कर या ने अ नी का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, और खुद रसोई म चली गई।

या ने जाते ही अ नी भी उठ खड़ी ई।

“कहाँ जा रही हो, अ नी?” मने पूछा।

“'अपने' कमरे म...” उसने थोड़े से उदास और आँसे वर म कहा। उसक आवाज़ म मुझे
शकायत क भी एक झलक सी महसूस ई।

“अपने कमरे म? अपने?” मुझे समझ आ गया क अ नी सरे कमरे म जाने वाली है।
“अ नी.. इधर आओ.. लीज!” कह कर मने उसको अपनी बाँह म भर लया।

अ नी उदास सी मेरे बाह म आ गई। तो मने कहना जारी रखा।

“हमने शाद करी है.. वो भी व धवत। तुम मेरी बीवी हो। ठ क या क ही तरह। इस लए
इस कमरे पर, इस घर पर, मुझ पर और मेरी हर चीज़ पर तु हारा उतना ही अ धकार है,
जतना क या का है!”

“आप समझ नह रहे ह... बहन से सौतन तो बना जा सकता है, ले कन सौतन से बहन
नह । आपको मुझे पहले ही बता दे ना चा हए था।“ अ नी ने बुझे ए वर म कहा।
“आपने सोचा भी है, क स ाई जानने के बाद द द या सोचेगी? या करेगी?”

“अ नी, म कैसे बताऊँ क या आ! म तुमको बताना चाहता था, ले कन म खुद ही


योर नह था। इस लए पहले नह बता सका। अगर या न मलती तो तु हारे मन पर या
बीतती? म तो अभी यह भी बताने क हालत म नह ँ क या को ढूँ ढने के लए मने या
या पापड़ बेल दए। यह तो बस भोलेनाथ क ही कृपा है क वो मुझे मल सक । ...
और... और कहाँ तक या के सोचने का सवाल है.. तो या के सोचने का या? म
उसको सब कुछ सच सच बताऊंगा। जो स ाई है, वो उसे वीकारना ही होगा। उसको...
या को तु ह इसी प म, इसी र ते म वीकारना ही होगा..।“
“ या वीकारना होगा, जानू?” या के ‘जानू’ कहने पर अ नी और म दोन ही च क
कर उसक तरफ दे खने लगे। न जाने य , मुझे पुनः अपराध बोध हो गया।

“सब वीकार है.. फलहाल आप दोन यह चाय वीकार क जए। वहां मु कु रखे ए थे,
वो भी म ले आई। अ नी, आज डनर के लए या सोचा है?”

“वो द द ..”

“ या.. जानू..,” मने झझकते ए यह कहा, “अभी चाय पी लो, डनर का दे ख लगे।
ओके?”

हमने चुपचाप चाय पीनी शु करी। मुझे यह तो मालूम था क अ नी और मेरी कहानी


मुझे ही या को सुनानी पड़ेगी, ले कन यह कतना क ठन होगा, यह मुझे नह मालूम था।

“जानू,” मने नया भर क ह मत इक ा कर के बोलना शु कया, “आपको एक बात


बतानी है.. ब त ज़ री..”

“हाँ, बो लए न! म भी तो मरी जा रही ँ सब कुछ सुनने के लए! कतना कुछ है सुनने के


लए! तीन साल यूँ ही उड़ गए! मुझे तो कुछ याद भी नह । अब आप दोन को ही तो
बताना है सब कुछ।“ या ने मु कुराते ए कहा। “.. और इसक शाद के बारे म भी..
कस से शाद कर ली?”

“तो ठ क है.. सबसे पहले अ नी क शाद से ही शु करते ह..”

ह मत बटोरी, ले कन फर भी ठठक नह गई। ऐसी बात सहजता से कैसे कही जा सकती


ह।

“जानू... अ नी से... शाद ... मेरा मतलब ह, अ नी से मने शाद कर ली..”

या को लगा जैसे उसके पैर तले क ज़मीन ही नकल गई हो। ‘शाद कर ली है..! यह
कैसे मुम कन है?’ या क शकल दे ख कर साफ़ दख रहा था क उसको यक न ही नह
आ है।
“शाद कर ली है..?”

मने हामी म सर हलाया।

“अ नी से?”

मने फर से सर हलाया।

या ने अ व ास के साथ अ नी क तरफ दे खा। वो सर झुकाए, कसी मुज रम क


भां त बैठ ई थी, और खामोशी के साथ आंसू टपका रही थी। आज सच म हम सभी का
जीवन बदल गया था। जदगी क बहती उलट धारा और तेज हो गयी थी ..

“ या सच म? आप और अ नी?”

“हाँ जानू.. हम दोन ने शाद कर ली.. ले कन इस बात को पूरा समझने के लए आपको


सब कुछ ब त पेशटली सुनना पड़ेगा..”

मुझे दख रहा था क मेरे इस खुलासे के बाद या ब त ही थत हो गई थी, ले कन


जतनी ही ज द यह सारी बात सामने आ जाय, उतना ही अ ा था।

मने या को सब कुछ बताना शु कया – शु से – जब म ासद के बाद, उनक


तलाश म उ राँचल गया था। मने बताया क कैसे दर दर भटकने के बाद एक दन
अनायास ही अ नी मली। उसक कैसी बुरी हालत थी। एकाध दन और न मलती, तो
कभी न मलती। अ नी से ही मुझे बाक जानकारी मली क कैसे म मी, पापा और या
तीनो ही नह रहे।

म अ नी को ले कर वापस आ तो गया, ले कन जीने क सारी इ ा अब समा त हो गई


थी। यं वत हो गया था। अब जीवन म न कोई उ े य नह दख रहा था, और न ही कोई
औ च य। आ मह या का भी ख़याल आया, ले कन कायर क तरह मरने म या रखा था।
इन सब के बीच म हर बात पर से यान हटने लगा – न वा य पर नज़र, और न ही
प रवार पर। अ नी घर पर थी, ले कन फर भी उससे न बराबर ही बात होती थी – उस
पूरे समय तक म उसका पूरी तरह से माद करता रहा था। एक तरह से मन म यह ख़याल
आता ही रहा क या के ान पर वो य न रही! अ नी का चेहरा मुझे उ राखंड क
ासद क ही याद दलाती थी।

और फर मेरा ए सीडट हो गया। ऐसा ए सीडट जसने मुझे मृ यु के मुहाने तक प ंचा


दया। म बोल रहा था, ले कन ए सीडट क बात सुन कर या के दलो दमाग म एक
झंझावात चलने लगा।

‘अथव का ए सीडट! मेरे अथव का ए सीडट!! हे भगवान्! यह या या हो गया मेरे


पीछे !’

म बोल रहा था – मुझे नह मालूम क या या बीता अ नी पर, ले कन जब अंततः मेरी


चेतना वापस आई, तब मने उसको अपने बगल, अपने साथ पाया। डॉ टर और नस सभी
लोग ने कहा क उ ह ने मेरे बचने क कोई उ मीद ही बाक नह रखी थी। ले कन अ नी,
जैसे सा व ी के समान ही मुझे यमराज के पाश से छु ड़ा लाई। ये वही अ नी थी, जसक
मने इतने समय तक उपे ा करी। ये वही अ नी थी, जसको मने बात बात म कार
दया, ये वही अ नी थी जसने मेरी हर कमी को मेरी हर उपे ा को नज़रंदाज़ कर के
सफ मेरा साथ दया। अ नी ने जस तरह से मुझे सहारा दया, मेरी टू ट ई ज़ दगी को
वापस पटरी पर लाया, मेरे पास और कोई वक प ही नह था। म सच म तु हारा कोई
वक प नह चाहता था – कभी भी नह । मेरा तो सब कुछ ही तु हारे साथ साथ ही चला
गया था। मने तो एक अँधेरे म डू बता जा रहा था, और न जाने कब तक डू बता रहता, अगर
अ नी ने आ कर मुझे स हाल न लया होता।

ये जो तुम मुझे इस हाल म दे ख रही हो, वो मेरा पुनज म है, और उसका सारा ेय सफ
अ नी को जाता है। तु हारे बाद य द मेरा कोई वक प हो सकता था – एक नेचुरल
वक प, तो वो सफ और सफ अ नी ही हो सकती थी। यह कहते कहते मुझे आयशा
क याद हो आई.. वो भी एक वक प थी। ले कन नेचुरल नह !

“सच म?” या मं मु ध सी हो कर बोली। उसने अ नी क तरफ दे खते ए ब त म म


आवाज़ म कहा, "मेरी यारी अ नी... तू कब से इतनी सयानी हो गई?"

इतना कह कर वो उठ खड़ी ई और हमारे शयन क क ओर जाने लगी।


“म कुछ दे र आराम करना चाहती .ँ . और शायद सोचना भी.. आप लोग मुझे कुछ दे र
ड टब मत क रए.. लीज!” उसने बना कसी क भी तरफ दे खे कहा और अ दर चली
गई। बस इतनी गनीमत थी क उसने अ दर से दरवाज़ा बंद नह कया।

सोने का तो सवाल ही नह था। ब तर पर पड़े पड़े या कुछ प र चत क तलाश कर रही


थी। उसका शयन क बलकुल बदल गया था। हाँ, वो कमरा, वो अलमारी, ये ब तर
आ द तो वही थे, ले कन इस समय कतने अलग से लग रहे थे। अप र चत। बलकुल
अप र चत। उसको ऐसा लग रहा था, क जैसे कसी और के कमरे म लेट ई हो!
अलमारी खोल कर अ दर दे खने क ह मत ही नह ई – प त ही अपना नह रहा तो कस
हक़ से कसी और क अलमारी खोले? कस हक़ से?

हाँ, कस हक़ से वो अथव और अ नी के ब तर पर लेट ई है? उसको समझ ही नह


आ रहा था क इस पूरे घटना म पर वो या त या दे ! उसको लगा क शायद उसको
गु सा आएगा, ले कन वो भी नह आ रहा था। अथव - उसका प त जस पर उसे हमेशा ही
गव रहा है। वह खुद को कतना सुहा गन मान कर इतराती रही है, गव से फूली ई फरती
रही है। वह प त अब कसी और का है!

कसी और का? कसी और का कैसे है? अ नी तो भी अपनी है। उसक खुद क ब ी!


खुद क ब ी – ँह! इतनी ही ब ी रहती तो उसके प त पर डोरे डालती? उसके प त को
ले उडती? अचानक ही या को इतना गुसा आया क उसका मन आ क उस डायन को
अभी के अभी अपने प त के सामने झा से पीट डाले!

उसके म त क म अ नी और अथव क छ व जाग गई – एक सरे से गु म गु ा! एक


सरे से गु म गु ा और न न! पूण न न! अथव अ नी के ऊपर चढ़े ए! उसको उस
छ व क क पना से उबकाई आ गई! शम नह आती... कसी और के साथ! फर उसको
एक सरा वचार आया। कसी और के साथ कहाँ? अ नी तो अब अथव क प नी है।
उनक ववा हता! तो कल जो उसके साथ आ? कल रात या था? अब या तो उनक
ववा हता नह रही! तो या था वह सब? रेप? ओह! नह नह ! कल तो उसके खुद के
आमं ण पर ही तो अथव ने उसको भोगा था! तो अब उसका और अथव का या र ता
है? और कैसे या उनक ववा हता नह है?

यह वचार आते ही या क कुछ ावहा रक बु जागी।


अथव ‘उसका प त’ कैसे है! वो तो सभी के अनुसार मर चुक थी। ावहा रकता के
हसाब से मर चुक है, व ध के हसाब से मर चुक है.. मर चुक है, मतलब अथव भी
उसके वैवा हक बंधन से मु हो चुके थे। और फर अ नी ने उनको तब स हाला जब वो
नतांत अकेले थे। वो भी तो नह थी। जब उनका ए सीडट आ, तो वो कहाँ थी? उनको
कसके भरोसे छोड़ गई थी? ऐसे म अ नी ने ही तो स हाला! उससे यादा कया। कह
यादा! पता नह अगर वो खुद वहां होती, तो या कर पाती! डा टर ने अ नी को
सा व ी का प बताया – सा व ी का! सती सा व ी! सती – वो ी, जो पूरी तरह प व
हो। अ नी प व है। पूरी तरह। ग दगी खुद उसके अपने दमाग म है, जो ऐसी फूल
जैसी, ऐसी गु ड़या जैसी ब ी को तकलीफ दे ने क सोची भी। दोन ही री त रवाज के
बंधन म बंधे ए प त-प नी ह। उनके बारे म वो ऐसा बुरा सोच भी कैसे सकती है?

पल भर म ही उसका सारा ोध शांत हो गया। कतना क आ होगा उन दोन को ही,


जब खुद उसने उन दोन का साथ छोड़ दया। अथव पूरी तरह से उसके लए ही सप पत
थे; अ नी उनके लए सम पत है; और अथव भी अ नी के त सम पत ह। उनका
ववाह झूठा तो नह है। भले ही भा य ने दोन को इतने ःख दए, ले कन एक सरे के संग
से दोन सुखी ह! मन का बंधन या टू टता है कभी?

कस तरह से, कस मु कल से दोन ने एक सरे से शाद करने का नणय लया होगा।


कतना क ठन रहा होगा उन दोन के लए ही। आज वो जो अचानक ही उनके हँसते
खेलते जीवन म आ गई, तो ये दोन अब कैसे खुश रहगे? उसके रहने से कतनी पीड़ा होगी
मन म उनके?

वो यारी सी ब ी! कैसे उसने उसके ही सुहाग क र ा करी थी! और एक वह है क


उसको ही अ भयु बना कर अपने कुं ठत यायलय के कठघरे म खड़ा करने चली थी!
छ:! कतना ओछापन!

संयोग से ही सही, अ नी को अथव मल गया। भले ही पहले अथव उसका प त था,


ले कन अब वह उस का नह , अ नी का प त है। सच तो यह है क अ नी ने उसके इस
छोटे से प रवार क र ा क , उसको सजाया, और सँवारा। और वह उस पर ही आ ोश म
भर कर इस सजे सजाए गृह ी म आग लगाने जा रही थी! कतना छोटा मन है उस का!
या को वापस आया दे ख कर अ नी को जो ख़ुशी मली थी, वो उसके सामने उसके
और मेरे स ब के उजागर होने से काफूर हो गई! और या को ऐसे उखड़े ए वहार
करते दे ख कर मेरा और अ नी – दोन का ही दल टू ट गया। यह तो मुझे मालूम था क
या को आ य होगा, ले कन उससे गु से क उ मीद नह थी। मुझे लगा था क वो शायद
समझ जाएगी। और बेचारी अ नी को तो या के अ त व के बारे म ही कुछ नह मालूम
था। उसको तो थोड़े ही अंतराल म न जाने कतने ध के लग गए। वो ऐसे ही मुझसे अलग
ब त दे र तक नह रह पाती, और अब तो उसक हालत ही खराब हो गई।

जब या ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लया, तब अ नी के धैय का बाँध पूरी तरह से ढह


गया – वो दबी घुट आवाज़ म हच कयाँ ले ले कर रोने लगी। मने अ नी को अपने गले से
लगाया और उसको चूमा। साफ़ जा हर था क अ नी के मन म सफ और सफ अशां त
थी। अ नी ने मुझे कस कर पकड़ कर अपने गले लगाया आ था। कुछ ऐसे जैसे क
उसने पहले नह कया था।

काफ यास कर के मने अ नी को शांत कराया और उसको छोटे बेड म म ले गया,


जससे वो भी कुछ आराम कर सके। अ नी इतने दन मेरे बना कैसे रही होगी, यह म
समझ सकता था – म खुद भी उसके बना इतना समय कैसे रहा यह बताना मु कल काम
है। यह समय उसके लए अ यंत ही यातना भरा था। या सोचा था, और या हो गया!

अ नी को मने काफ मना कर ब तर पर ही लटा लया। उसको इस समय ेम क


आव यकता थी.. तनाव, ला न और ोध या ऐसे ही मले जुले भाव जो उसके मन म उठ
रहे थे, उनके नवारण के लए ेम क आव यकता थी।

अ नी ने एक शट पहनी ई थी। वो जब बगल म लेट तो मने उसक शट का बटन


खोलना शु कर दया। उसका मन कह और ही लगा आ था। उसको अपनी न नता का
एहसास तब जा कर आ, जब उसक शट पूरी तरह से खुल गई और उसको मने अपने
आप म समेट लया। तब जा कर उसने महसूस कया क मेरी उं ग लयाँ लगातार उसके
तन के उभार के उतार-चढ़ाव का अ य यन करने म लगी ई थी।

या ने मन ही मन खुद को स हाला – उसका प त तो अब बँट ही गया था, ले कन अ


बात यह थी क वो बँटा था तो भी उसक खुद के बहन के साथ। वो बहन जसको या
खूब यार करती है... वो प त जो उसको खूब यार करता है... वो बहन जो या को खूब
यार करती है... और वो अथव जो अ नी को खूब यार करते ह! जब उन तीन म ही
इतना गाढ़ ेम है, तो फर मन मुटाव का सवाल ही कहाँ से आता है? वो अभी जा कर
उन दोन से बात करेगी और माफ़ मांगेगी... और वनती करेगी क वो उसको अपने साथ
रहने द! उसको यक न है क वो दोन मना नह कर सकगे!

या अथव और अ नी को ढूं ढते ए कमरे से बाहर नकली और सीधा बैठक क तरफ


गई। वहां कोई भी नह था, तो वो वापस अपने कमरे क तरफ आने लगी। तब जा कर
उसने दे खा क छोटे वाले कमरे म कोई है। उसने कमरे के अ दर झाँका, तो अ दर का य
दे ख कर चम कृत रह गई।

अ नी और अथव पूणतः न न अव ा म आ लगनब होकर सो रहे थे। न न तो थे ही,


ले कन या को समझ आ रहा था क यह न ा कुछ समय पहले ही संप ई र त- या
के बाद के सुख के कारण े रत ई है। अथव ब तर पर कुछ नीचे क तरफ, अ नी क
ओर करवट करके लेटे ए थे। उनका बायाँ पाँव अ नी के ऊपर था, और इस अव ा म
उनका लग दख रहा था। उस समय उनके लग का श ा छद पीछे क तरफ
खसका आ था, और इससे उनके लग का गुलाबी ह सा साफ दखाई दे रहा था।

अ नी पीठ के बल च लेट ई थी। आज पहली बार या ने अ नी के यौवन रस से


भरे अनावृ स दय को पहली बार दे खा था। जब छोट थी, तब वो ऐसी सु दर तो बलकुल
ही नह दखती थी! अभी जैसी लगती है, उससे तो कतनी भ ! ले कन अब दे खो...
कतनी अ धक सु दर हो गई है! उसके तन क मादक गोलाईयां – मन करता है क
उनका रस नचोड़ लया जाए! और कैसा सु दर, भोला चेहरा, भरे भरे रसीले ह ठ! और
ऊपर से ऐसा फट शरीर! कैसी सु दर है ये!

‘हाँ...’

अ नी के पाँव कुछ खुले ए थे, जस कारण उसक यो न भी थोड़ी सी खुली ई थी।


अ नी क यो न के ह ठ उसक खुद क यो न के ह ठ के समान ही फूले ए थे – या
संभवतः थोड़े से अ धक ही फूले ए थे। कुछ कुछ तो अभी ए घषण के कारण आ
होगा... ले कन इतना तो तय है क अ नी क यो न भी पूरी तरह से प रप व हो गई थी।
वहाँ से अभी कुछ दे र पहले ही संप ए सहवास का रस नकल रहा था। या का संदेह
सही था। खैर, कैसा संदेह? प त-प नी या ेम नह करगे? ेम स ब नह बनाएँगे?
दांप य जीवन म ेम का एक बड़ा प र त है। वही तो हो रहा था।
या ने उन दोन को वा स य भाव से दे खा, ‘कैसा सु दर और आकषक जोड़ा है दोन
का।‘

या से रहा नह गया। वो दबे पांव आगे बढ़ते ए अ नी और अथव के पास प ंची और


चुपके से अ नी के एक चूचक को हलके से अपनी उं गली और अंगूठे के बीच दबाया।
त या व प, लगभग तुरंत ही उसका चूचक खड़ा हो गया। अ नी के ह ठ पर
हलक सी मु कान भी बन गई।

‘ऐसे मु कुराते ए कतनी यारी लगती है..! सोच रही होगी क इ होने छु आ है...’

या ने सरे तन के चूचक के साथ भी वही कया। समान भाव! उ सुकतावश उसने


अथव के लग को भी हलके से सहलाया – पु अंग तुरंत ही उ ेजना ा त कर के आकार
म बढ़ने लगा।

‘इ होने शायद वो जड़ी ले ली..’ या ने मु कुराते ए सोचा।

लग के बढ़ते ही अथव कुनमुनाते ए जागने लगे। या झट से कमरे से बाहर हो ली।


३९
“अ नी?”

अ नी च क । द द उसको बुला रही थी। उसक आवाज़ ीण थी, ले कन गु से म नह


लग रही थी। ःख म भी नह लग रही थी। एक तरह से शांत लग रही थी। अ नी बस
अभी अभी जगी थी, और अपने कपड़े पहन रही थी। शायद कमरे से आने वाली आवाज़
द द को सुनाई दे गई, इस लए उसने उसको पुकारा है। इसका मतलब द द ने सब कुछ
दे ख भी लया है..

“जी, द द !”

“ज़रा यहाँ आ मेरी ब ी।“

द द क आवाज़ तो शांत ही लग रही थी। खैर, ऐसा तो नह है क वो कभी भी द द के


सामने जाने से बच सके। और बचे भी य ? द द है उसक । सगी द द ! और तो और,
उसने भी तो अथव से पूरी री त के साथ शाद करी है; जायज़ शाद करी है। वो य डरे?
अगर द द गु सा ई तो वो उससे माफ़ मांगेगी। उनके पैर पकड़ेगी। द द को उसे माफ़
करना ही पड़ेगा।

अ नी उठ ।

मने उसका हाथ पकड़ लया – मेरे दल म एक अबूझ सा डर बैठा आ था। अ नी ने


एक यार भरी मु कान मुझ पर डाली, और कहा,

“जानू, आप चता य करते ह? द द ह मेरी। आज एक काम क रए, आप बाहर घूम


आइए। लीज! आज अभी यहाँ मत र हए। म द द से बात करती ँ। ओके?”

कह कर अ नी ने मेरे ह ठ पर एक चु बन दया और मेरे जाने का इंतज़ार करने लगी। म


अ न य से कुछ दे र तक ब तर पर बैठा रहा, ले कन फर अ नी का आ म व ास दे ख
कर उठ खड़ा आ। मने बाहर जाने से पहले एक बार अ नी को दे खा – न जाने य लग
रहा था क उसको म आ खरी बार दे ख रहा था – और घर से बाहर नकल गया। दल बैठ
गया।

अ नी अंततः बेड म म प ंची।

अ नी क पदचाप या ने सुन ली, और उठ कर ब तर पर बैठ गई।

“यहाँ आओ.. मेरे पास। मेरे पास बैठो।“

अ नी धीरे धीरे ब तर तक प ंची, और झझकते ए एक तरफ बैठ गई। ले कन उसक


नज़र नीची ही रही।

“अ नी, मेरी बहन, मेरी तरफ दे ख!”

अ नी ने अंततः या ने आँख मलाई। या के ह ठो पर एक म म मु कान थी।

“मेरी ब ी, मुझे माफ़ कर दे । मेरा मन तु हारे और अथव के त कुछ दे र के लए मैला हो


गया था।“

“नह द द , आप ये कैसे बोल रही ह?” अ नी या सोच कर आई थी, और या हो रहा


था।

“बोल लेने दे । तू बाद म बोल लेना। मने ने आज तक अथव के च र म कसी भी तरह का


खोट नह दे खा। उ ह ने मेरी कसी भी इ ा को अपूण नह रखा। तुम भी उनक प नी
हो... तुम भी उनके साथ रही हो, और तुम भी यह बात जानती हो। अथव... प त धम को
नभाने म कह भी चूके ह? जब भी कसी भी कार क सम या, या क ठनाई आई, तो
ढाल बन कर वो मेरे सामने आ गए! मुझे हर क ठनाई से बचाते रहे, और रा ता दखाते
रहे। उ ह ने मुझे हर तरह से खुश रखने का यास कया। आज तक एक कटु श द तक
नह बोला उ ह ने मुझसे। वह तो इतने अ े ह, क मेरी हमउ यां... मेरी सहे लयां
मुझसे ई या करती ह।“

कह कर या ने अ नी पर मु कुराते ए एक गहरी डाली।


“... और आज... जब उनके पास ऐसे क ठन चुनाव का समय आया तो, म उनको अकेला
छोड़ ं ? नह मेरी बहन.. बलकुल नह । तुम उनक प नी हो, और हमेशा रहोगी। म वापस
हमारे गाँव चली जाऊंगी.. और वह र ंगी! तुम दोन कभी कभी मुझसे मलने आ जाना..
आओगी न ब े?”

या क ऐसी बात सुन कर अ नी का दल टू ट गया। आँख से आंसु क अनवरत धरा


बहने लगी। ःख के मारे उसका रोना छू ट गया और रोते ए हच कयाँ बंध ग ।

“द द , ये आप कैसी बाते कर रही ह? आपको या पता नह है क अथव का पहला यार


आप ह? ... और अगर आज उनके पास ऐसा क ठन समय आया है तो वो इसी लए है,
य क वो आपसे ब त यार करते ह। म सपने म भी आप दोन को अलग करने का सोच
भी नह सकती ँ। म तो यूँ ही अनायास ही आप दोन के बीच आ गई! द द आप ही
उनका पहला यार ह, और आप ही का उन पर यादा अ धकार है। आप फर से उनसे
शाद कर लो। म उनसे तलाक ले लूंगी।“

कहते कहते अ नी क हच कयाँ बंध ग ।

“ले पाओगी तलाक? सच म? अरी पगली.. कैसी बात करती है? तू अनायास हमारे बीच म
आ गई? अनायास? अरे मेरी सयानी बहन, अगर तू न होती, तो सच कह रही ,ँ अथव भी
न होते। मेरा सुहाग न होता। उनको अँधेरे से नकाल कर लाने वाली तू है.. सच क ?ँ उन
पर अगर कसी का हक़ है, तो वह सफ तु हारा है! ले कन मुझे यह भी मालूम है, क
अथव हम दोन से ही ब त यार करते ह! ज़रा कुछ दे र क कर यह सोच, हम दोन
कतने भा यशाली ह क हम दोन को ही उनका यार मला, उनका साथ मला। ख़बरदार
तुमने कभी अथव से अलग होने क सोची।“

ऐसे भावना मक वातालाप करते ए दोन ही बहने फूट फूट कर रोने लग । ऐसे ही रोते
रोते या ने कहा,

“ या तुम स े दल से इनसे यार करती हो?”

“द द यह कोई पूछने वाली बात है? म इनसे ब त यार करती ँ। अगर वो कहे तो म तो
उनके लए अपनी जान भी दे सकती ँ...”
“तो मेरी सयानी बहन, अब मेरी बात सुन... अगर अब से हम तीन ही एक साथ रह, तो
या तु हे कोई ा लम है?”

“ या? या? या सच म द द ? म इनसे और आपसे अलग नह हो पाऊंगी? सच म द द ,


म आप दोन से अलग नह हो सकती... अगर आप दोन के साथ रहने को मल गया, म
आपक ब त आभारी र ंगी और आप जो कहोगी, म वो सब कुछ क ँ गी.. आपक
नौकरानी बनकर र ंगी.. आप बस मुझे इनसे और अपने आप से अलग मत करना।“

“अरे पगली! वो मेरे प त ह, और तु हारे भी प त! ये नौकर नौकरानी वाली बात मत करना


कभी! मेरी बात यान से सुन.. म ब त भा यशाली ँ, क तू मेरी बहन है – मेरी छु टक !
मत भूलना क मने तुझे अपनी छाती पलाई है.. म तुझसे दो साल ही बड़ी सही, ले कन
तुझे माँ जैसा ेम भी करती ँ... मेरी यारी बहन, हम दोन बहन अब से एक ही प त क
प नी बनकर रहगी! ठ क है?”

“ बलकुल द द .. बलकुल! थक यू! थक यू! थक यू!!”

माहौल एकदम से ह का हो गया। दोन हो बहने मु कुराने लग ।

या और अ नी ने शायद ही कभी सहवास के वषय म बात करी हो, ले कन आज


पर तयाँ एकदम भ थ । बात के बारे म पहल या ने ही करी –

“ यारी बहना, एक बात बता...”

“ या द द ?”

“तुझको.. ज रत के हसाब से तो मल जाता है न..?”

“ या द द ?”

“अरे.. इनका ‘ यार’.. और या?”

“ या द द ! ही ही ही..”
“अरे बोल न?”

“ज रत का तो कभी नह मलता...”

“ या? या ये तुझे खुश नह ...”

“अरे नह द द ! ऐसा कुछ भी नह है... इनके तो छू ने भर से खुशी मल जाती है.. ले कन


ये कुछ इस तरह से करते ह क मन भरता ही नह ...”

या समझ गई क अ नी या कह रही है.. साफ़ सी बात थी क अ नी जम कर


सहवास का आनंद उठा रही थी, और या खुद मान रे ग तान म भटक रही थी। एक पल
को उसका मन फर से इ या से भर गया। एक भ कार क इ या – सौ तया डाह!

अ नी ने या के चेहरे को दे खा – उसको समझ म आ गया क या के मन म या चल


रहा है।

“द द , अब तो आप घर वापस आ गई हो... अब या चता!”

“अरे, तेरा ‘मन’ भरते भरते इनके पास मेरा भरने क ताक़त बचेगी भला?”

“आपका या द द , ही ही!” अ नी भी तरंग म आ गई थी।

“हा हा! मेरी मयान!”

“ही ही द द ! कैसा कैसा बोल रही हो!”

“अरे इसम कैसा कैसा वाला या है... मयान ही तो कहा है... यो न थोड़े ही कहा... अब
तेरा ही दे ख न.. कुछ साल पहले तक तेरी पोक ठ क से दखती तक नह थी.. और अब
तो एकदम रसीली हो गई है! फूल कर बलकुल कु पा!”

“द द !”
“अरे! मुझसे या शमाना? मेरी भी ऐसी ही हालत हो गई थी मेरी बहना! इनके बेदद लग
ने इतनी कुटाई करी मेरी सहेली क क साल भर तक ठ क से ले भी नह पाती थी.. ले कन
बाद म आदत हो गई, और जगह भी बन गई!”

अ नी शमाते ए या क बात सुन रही थी और साथ ही साथ कुछ सोचती भी जा रही


थी।

“अरी! मन ही मन या सोच सोच कर मु कुराए जा रही है?”

“कुछ नह द द ... म सोच रही थी क हम दोन बहन का कतना कुछ साझा है – माँ बाप
भी एक और प त भी..”

“हा हा! वो तो है!”

“द द , हम लोग कैसे करगे?”

“कैसे करगे का या मतलब?”

“मतलब, उन पर पहला हक़ तो आपका ही है..”

“ कसी का पहला सरा हक़ नह है... हम तीनो का ही हम तीनो पर एक सा हक़ है।


इ होने मुझे यही समझाया है क शाद म प त और प नी दोन बराबरी के होते ह.. और
कोई छोटा बड़ा नह ।“

“ह म.. मतलब क हम तीनो एक साथ?”

“और या? सोच.. हम तीनो एक साथ एक ब तर पर!”

“नंगू पंगु?” अ नी ने बचे ए आंसू प छते आ कहा।

“हाँ..” या मु कुराई, “और उनका छु ू.. हम दोन के अ दर बारी बारी से! सोच!”
“ही ही.. द द , वो उसको लग कहते ह..”

“तुझे भी सखा दया?”

“हाँ..”

“हम दोन मल कर अथव क सेवा करगी, और हम दोन मल कर उनको इतनी ख़ुशी


दगी क उनसे स हाली न जा पाए!”

“हाँ द द ! उ ह ने ब त सारे ःख झेले ह।“

“अब और नह ! अब बलकुल भी और नह !”

“द द ... य न आज हम सब मलकर रात बताएँ?”

“मन तो मेरा भी यही है.. ले कन इनसे भी तो पूछना पड़ेगा... या पता, या या सोच


लया होगा इ होने!”

“अरे या सोचगे? कस आदमी को अपने ब तर पर दो दो कामुक लड़ कयाँ नह


चा हए?”

“हा हा हा हा... हाँ.. इ होने हमारे हनीमून पर एक वदे शी लड़क के साथ कर लया था...”

“ या कह रही हो द द ?”

“हाँ! और वो भी मेरे सामने!”

“अरे! और आपने कुछ कहा नह ? रोका नह ?”

“अरे कैसे रोकती? इतनी कामुक सीन थी क या बताऊँ! वो सीन दे ख कर मेरे बदन म
ऐसी आग लग गई थी क कुछ कहते, करते न बना!”
“मतलब इ होने चार चार लड़ कय को...”

“चार? चार मतलब?”

“जब जनाब क ह याँ टू ट ई थ , तब इ होने अपनी नस क यो न को भी तर कया...”

“ या? हा हा!”

“हाँ द द ... ये तो उससे शाद भी करना चाहते थे.. अगर मने ही इनको ोपोज़ न कर दया
होता तो ये तो गए थे हाथ से...!”

“बाप रे... कौन थी वो लड़क ?”

दोन बहन फर आयशा क बात, और इधर उधर क गप-शप करने लग । पुरानी बात को
याद करने लग । जो भी गले शकवे, डर और संदेह बचे ए थे, सब नकल गए!
𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)

सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐒𝐭𝐮𝐝𝐲 𝐌𝐚𝐭𝐞𝐫𝐢𝐚𝐥

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

 
𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚𝐧 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐂𝐨𝐦𝐢𝐜𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒

𝐆𝐥𝐨𝐛𝐚𝐥 𝐄-𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐚𝐠𝐚𝐳𝐢𝐧𝐞𝐬

𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
४०
मुझे फोन पर एस एम एस मला ।समय दे खा, रात के साढ़े दस बजे थे। मुझे मालूम नह
था क दोन बहन आपस म या कर रही थ – झगड़ा या यार! कुछ भी समझ नह आ
रहा था। खाने पीने का भी कुछ ठकाना नह मालूम हो रहा था, इस लए मने बाहर ही
खाना खा लया – खाना या खाया, बस पेट म कुछ डाल लया। भूख तो वैसे भी नह लग
रही थी।

अ नी का एस एम एस पढ़ कर कुछ दलासा तो ई। मतलब बात खराब तो बलकुल भी


नह ई है।

या जैसी लड़क तो मुद म भी कामे ा जगा सकती है.. ये तो सफ म ही ँ... उसका


प त!’

म ज द ज द डग भरते ए घर प ंचा – तब तक तो मेरा श तीन चौथाई खड़ा भी हो


गया था। दरवाज़ा खोला तो दे खा क अ नी एक म म ब ब से रोशन ाइंग म म मेरा
ही इंतज़ार कर रही थी। उसने मुझे दे खा और फर मेरे लोअर के सामने बनते ए त बू को।
उसने एक हाथ क तजनी को अपने ह ठो पर ऐसे रखा क म कुछ न क ,ँ और सरे हाथ
क तजनी से इशारा कर के अपनी तरफ बुलाया। उसके पास म जैसे ही प ँचा, उसने एक
ही बार म मेरा लोअर और च ी ख च कर नीचे उतार दया और ‘गप’ से मेरे उ े जत लग
को अपने मुँह म भर लया। कुछ ही दे र के चूषण के बाद मेरा लग पूरी तरह से तैयार हो
गया। यह दे ख कर उसने मुझे छोड़ दया और फुसफुसाती ई आवाज़ म कहा,

“कस के ठोकना उसे... कम से कम तीन चार बार! समझ गए मेरे शेर? अब जाओ..”

य द कोई कसर बची रह गई हो तो अ नी क यह बात सुन कर पूरी हो गई। मा टर


बेड म का दरवाज़ा बंद था, और उसके अ दर म से कोई आवाज़ नह आ रही थी, और न
ही अ दर ब ी जलती ई लग रही थी। अ दर जाते जाते मने अपने सब कपड़े उतार दए।
अ दर गया तो दे खा क हाँला क ब ी बंद थी, ले कन बाहर से हलक हलक रोशनी छन
कर आ रही थी, और उसी रौशनी से या का न न शरीर तद त हो रहा था।
ल बे ल बे डग भरता आ म ब तर तक प ंचा और चुपचाप, बना कोई ख़ास हलचल
कए या के बगल प ंचा। वैसे दे खा जाय तो जो मने आगे उसके साथ करने वाला था,
उससे तो या क न द म कह अ धक ख़लल पड़ने वाला था। वैसे अगर मुझे पहले से
मालूम होता तो यह सब इन दोन बहन का वांग था। खैर, ब त ही मजेदार वांग था। मने
उं गली को या क यो न पर हलके से फराया – वो तुरंत ही गीली हो गई।

‘ म कैसे सपने दे ख रही है यह..!’ मने सोचा।

अब दे री कस बात क थी... मने या क जांघ फैलाई, और फर अपने लग को या के


वेश- ार पर टकाया। लग म बलपूवक र का संचार हो रहा था। लग इतना ठोस था
क एक ही बार म वो सरसराते ए पूरे का पूरा या के भीतर तक समां गया। मुझे ऐसा
लगा क सोते ए भी या क यो न पूरी अधीरता से मेरे लग का वागत कर रही थी। मने
लग को बाहर ख चा, और वापस उसके अ दर ठे ल दया – यह इतने बलपूवक कया था
क या क न द खुल गई। और उसको तुरंत ही अपनी यो न म होने वाले अ त मण का
पता भी चल गया।

या ने तुरंत ही अपना कू हा चला कर मेरी ताल म ताल मलाई। बना कसी रोक
कावट के मेरा लग सरकते ए उसक यो न क पूरी गहराई तक घुस गया। मीठे मीठे
दद से या कसमसा गई और उसने मुझे जोर से पकड़ लया। उ ेजना के अ तरेक से वह
कभी मेरी पीठ पर हाथ फराती, तो कभी नाखून भी गड़ा दे ती थी। एक अलग तरह का
जंगलीपन था आज उसम। मुझ म भी था! इसके कारण मुझे चुभन का दद नह , ब क
मजा आ रहा था। म उ माद म आ कर ध के लगाने लगा। मने या के नतंबो को पकड़
लया और तेजी से उसक यो न क पूरी गहराई तक जा जा कर उसक ठु काई करने लगा।

बीच-बीच म हम एक सरे के ह ठ को भी चूमते और चूसते। मने अपनी र तार बढ़ा द ।


या भी मेरी ताल पर अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी, जससे हम लोग जोरदार
ठु काई कर रहे थे। कोई पांच मनट के बाद मने पोजीशन बदलने क सोची। म या को
पेट के बल लटा कर उसको घोड़ी के पोजीशन म ले आया और पीछे से अपने लग को
उसक यो न म घुसा दया। मने उसक कमर को मजबूती से पकड़ा आ था, और ध के
लगाने के साथ-साथ उसक कमर को भी अपने तरफ ख चने लगा। उसक यो न क
भरपूर ठु काई हो रही थी। अ नी अगर यह य दे खती, तो उसको मुझ पर गव होता।
कुछ दे र म मुझे लगा क खलन हो जायेगा, इस लए म थोड़ा क गया। ले कन लग को
उसक यो न से नकाला नह । या ब तर पर घोड़ी बनी अपनी साँस संयत करने लगी। म
पीछे से ही या के ऊपर झुक गया और उसके तन को सहलाने लगा, साथ ही उसक
पीठ पर छोटे छोटे चु बन जड़ने लगा। इसी बीच या को चरम सुख मल गया। मने अपने
लग से उसके अ दर से नकाला नह था। यादा दे र क भी नह सकता था, य क मुझे
भी उसम वीय छोड़ने का मन हो रहा था।

मने या को ब तर के साइड म बैठा दया, कुछ ऐसे जैसे या का एक पैर नीचे था और


सरा ब तर पर ही रह गया। मने उसक कमर को अपने बांह म जकड़ा और अपना लग
उसक यो न पर टका कर एक ही बार म अ दर घुसा दया।

उसी समय अ नी ने कमरे म वेश कया। पूरी तरह से नंगी!

“द द का हो गया जानू.. अब मेरी बारी है!”

म एक पल को अ नी क बात समझ नह पाया – उसके यूँ ही अचानक से कट हो जाने


से एक तो म च क गया था, और ऊपर से मुझे अचरज आ क वो यह ऐसे कैसे बोल रही
है। मुझे ऐसे अचं भत दे ख कर दोन बहने एक साथ ही हंसने लग । तब जा कर मुझे समझ
आया क यह इ ही दोन क मलीभगत है और दोन मुझ से मजे ले रही ह! मने इशारे से
अ नी को ब तर पर बुलाया, और या के जैसे ही बैठने को कहा। फर या को छोड़
कर अ नी क यो न म व हो गया। बस एक ही बात मेरे दमाग म आई,

‘ नया म कह वग है, तो बस, यह है!


उपसंहार

मेरी कहानी क तजोरी अब फरसे बंद करने का व त आ गया है । आशा करता


आपको मेरी बंद तजोरी से नकला यह छोटासा खजाना लुभा पाया है ! पछला साल मेरे
जीवन का सबसे रंगीन, सबसे खुशनुमा, और ेम से सराबोर समय रहा। मेरी दोन ही
प नय ने अपनी अपनी पढ़ाई ख़तम करी। नातक क ड ी के साथ ही उन दोन को एक
और ड ी मली – माँ बनने क ! एक समय था जब म पूरी तरह अकेला हो गया था और
आज मेरे घर म कुल जमा पांच लोग ह - दो बी वयाँ और दो ब !े ! पास पड़ोस के लोग
शु शु म हमको अजीब नगाह से दे खते थे, ले कन फर सभी को हमारी प र तय
का पता चला तो उनका बताव भी सामा य हो गया। या, अ नी और म - हम तीनो मल
कर सहवास का भरपूर आनंद लेते ह। जीवन म अगर ेम है, तो सब कुछ है।

●◆■ ★ समा त ★■◆●

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