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सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
१
मेरा नाम अथव है - अथव शेखावत । आज म आपके सामने मेरी जदगी क कहानी लेकर
आया ं। कहानी या , कहा जाए तो यह मेरी जदगी एक बंद तजोरी क तरह है, जसे
आज म आपके सामने खोलने जा रहा । उ मीद है क आपको इसमे छु पा खजाना पसंद
आएगा।
म तीस साल का तथाक थत सफल और संप आदमी। इतना क एक औसत
मुझसे इ या करे। सफलता क इस सीढ़ को लांघने के लए मेरे माता- पता ने ब त
ो साहन दया। उ ह ने अपने जीवनकाल म ब त से क दे खे और सहे थे - इस लए
उ ह ने ब त यास कया क म वैसे क न दे ख सकूँ। अतः उ ह ने अपना पेट काट-काट
कर ही सही, ले कन मेरी श ा और लालन पालन म कोई कमी न आने द । सदा यही
सखाया क 'पु ! लगे रहो। यास छोड़ना मत! आज कर लो, आगे सफ सुख भोगोगे!'
म यह कतई नह कह रहा ँ क मेरे माँ बाप क श ा म या थी। यास करना, मेहनत
करना अ बाते ह - दरअसल यह सब मानवीय नै तक गुण ह। क तु मेरा मानना है क
इनका 'जीवन के सुख' (वैस,े सुख क हमारी आज-कल क समझ तो वैसे भी गंदे नाले म
व जल को थ करने के ही तु य है) से कोई खास लेना दे ना नह है। और वह एक
अलग बात है, जसका इस कहानी से कोई लेना दे ना नह है। म यहाँ पर कोई पाठ पढाने
नह आया ँ।
जीवन क मेरी घुड़दौड़ अभी ठ क से शु भी नह ई थी, क मेरे माँ बाप मुझे जीवन क
जन मुसीबत से बचाना चाहते थे, वो सारी मुसीबत मेरे सर पर मानो हमालय के सम त
बोझ के सामान एक बार म ही टू ट पड़ी। जब म यारहव म पढ़ रहा था, तभी मेरे माँ बाप,
दोन का ही एक सड़क घटना म दे हा त हो गया, और म इस नमम संसार म नता त
अकेला रह गया। मेरे रदश जनक ने अपना सारा कुछ (वैसे तो कुछ खास नह था उनके
पास) मेरे ही नाम लख दया था, जससे मुझे कुछ अवलंब तो अव य मला। ऐसी मुसीबत
के समय मेरे चाचा-चाची मुझे सहारा दे ने आये - ऐसा मुझे लगा – ले कन वह केवल मेरा
म याबोध था। व तुतः वो दोन आये मा इस लए थे क उनको मेरे माँ बाप क संप का
कुछ ह सा मल जाए, और उनक चाकरी के लए एक नौकर (म) भी। क तु यह हो न
सका - माँ बाप ने मेहनत करने के साथ ही अ याय न सहने क भी श ा द थी। ले कन
मेरी अ याय न सहने क वृ थोड़ी हसक थी। चाचा-चाची से मु का वृतांत मार-पीट
और गाली-गलौज क अन गनत कहा नय से भरा पड़ा है, और इस कहानी का ह सा भी
नह है।
घोर अकेलेपन म कसी भी कार क सफलता कतनी बेमानी हो जाती है! ले कन मने इस
सफलता को अपने माता- पता क आशीवाद का साद माना और अगले दो साल तक
एक और साधना क - मने भी पेट काटा, पैसे बचाए और घोर तप या (पढाई) करी,
जससे मुझे दे श के एक अ त आदरणीय बंधन सं ान म दा खला मल जाए। ऐसा आ
भी और आज म एक ब -रा ीय कंपनी म बंधक ँ। कहने सुनने म यह कहानी ब त
सुहानी लगती है, ले कन सच मा नए, तीस साल तक बना के ए इस घुड़दौड़ म दौड़ते-
दौड़ते मेरी कमर टू ट गयी है। भावना मक पीड़ा मेरी अ -म ा के ोड़ म समा सी गयी
है। दय म एक काँटा धंसा आ सा लगता है। और आज भी म एकदम अकेला ँ। कुछ
म बने – ले कन उनसे कोई अंतरंगता नह है – सदा यही भय समाया रहता है क न जाने
कब कौन मेरी जड़ काटने लगे! और न ही कोई जीवनसाथी बनने के इद- गद भी है। ऐसा
नह है क मेरे जीवन म लड कयां नह आ - ब त सी आ और ब त सी ग । क तु
जैसी बेईमानी और अमानवता मने अपने जीवन म दे खी है, मेरे जीवन म आने वाली
यादातर लड़ कयां वैसी ही बेइमान और अमानवीय मली। आर म सभी मीठ -मीठ
बाते करती, लुभाती, लारती आती ह, ले कन धीरे-धीरे उनके च र क याज़ जैसी परत
हटती है, और उनक स ाई क ककशता दे ख कर आँख से आंसू आने लगते ह।
अगले एक स ताह तक मने ब नाथ दे व ान, फूल क घाट , कई सारे याग, और कुछ
अ य छोटे ा नक मं दर भी दे खे। हमालय क गोद म चलते, ाकृ तक छटा का
रसा वादन करते ए यह एक स ताह न जाने कैसे फुर से उड़ गया। येक ान मुझको
अपने ही तरीके से अचं भत करता। अब जैसे ब नाथ दे व ान क ही बात कर ल – मं दर
से ठ क पूव भीषण वेग से बहती अलकनंदा नद यह मा णत करती है क कृ त क
श के आगे हम सब कतने बौने ह। इसी ठं डी नद के बगल ही एक त त-कुंड है, जहाँ
भूगभ से गरम पानी नकलता है। हम वै ा नक तक- वतक करने वाले आसानी से कह
सकते ह क भूगभ य या के चलते गरम पानी का सोता बन गया। क तु, एक आम
के लए यह दै वीय चम कार से कोई कम नह है। मं दर के साद म मलने वाली
वन-तुलसी क सुगंध, थके ए शरीर से सारी थकान ख च नकालती है और सफ यही
नह । येक सुबह, सूरज क पहली करण नीलकंठ पवत क छोट पर जब पड़ती ह, तो
उस पर जमा आ हम (बरफ) ऐसे जगमगाता है, जैसे क सोना!
ऐसे चम कार वहां पग-पग पर होते रहते ह। ताज़ी ठं डी हवा, हरे भरे वृ , जल से भरी
न दय का नाद, फूल क महक और रंग, नीला आकाश, रात म (अगर भा यशाली रहे तो)
टम टमाते तारे और व भ न का दशन, कभी होटल म, तो कभी ऐसे खुले म ही टट
म रहना और सोना - यह सब काम मेरी घुड़दौड़ वाली जदगी से बेहद भ थे और अब
मुझे मज़ा आने लग गया था। मने मानो अपने तीस साल पुराने व को कह रा ते म ही
फक दया और इस समय खुले शरीर से कृ त के ऐसे मनोहर प को अपने से चपटाए
जा रहा था।
सबसे आनंददायी बात वहां के ानीय लोगो से मलने जुलने क रही। सच कहता ँ क
उ राँचल के यादातर लोग ब त ही सु दर है - तन से भी और मन से भी। सीधे सादे लोग,
मेहनतकश लोग, मुकुराते लोग! रा ते म कतनी ही सारी याँ दे खी जो कम से कम
अपने शरीर के भार के बराबर बोझ उठाए चली जा रही है - ले कन उनके ह ठो पर
मु कराहट बद तूर बनी ई है! सभी लोग मेरी मदद को हमेशा तैयार थे - मने एकाध बार
लोगो को कुछ पये भी दे ने चाहे, ले कन सभी ने इनकार कर दया - 'भला लोगो क
भलाई का भी कोई मोल होता है?' छोटे -छोटे ब ,े अपने सेब जैसे लाल-लाल गाल और
बहती नाक के साथ इतने यारे लगते, क जैसे गु े-गु डय ह ! इन सब बातो ने मेरा मन
ऐसा मोह लया क मन म एक ती इ छा जाग गयी क अब यही पर बस जाऊं।
खैर, म इस समय 'फूल क घाट ' से वापस आ रहा था। वहां बताये चार दन म कभी नह
भूल पाऊँगा। कोई तीन कलोमीटर ऊपर त इस घाट म अ यंत ानीय, केवल उ
पवतीय े म पाये जाने वाले फूल मलते ह। फूल से भरी, सुगंध से लद इस घाट को
दे खकर ऐसा ही लगता है क उस जगह म वाकई दे व और अ सरा का ान होगा।
बचपन म आप सब ने दाद क कहा नय म सुना होगा क प रयां जमीन पर आकर नाचती
ह। मेरे ख़याल से अगर धरती पर कोई ऐसा ान है, तो वह ‘फूल क घाट ’ ही है। मेरे
जैसा एकाक इस बात को सोच कर ही स हो गया क इस जगह से "मानव
स यता" से र- र तक कोई संपक नह हो सकता। न कोई मुझे परेशान करेगा, और न ही
म कसी और को। ले कन पहाड़ो के ऊपर चढ़ाई, और उसके बात उतराई म इतना यास
लगा क ब त यादा थकावट हो गयी। इतनी क म वहां से वापस आने के बाद करीब
आधा दन तक म अपनी गाडी म ही सोता रहा।
वापसी म म एक घने बसे क बे म ( जसका नाम म आपको नह बताऊँगा) आ गया। मने
गाडी रोक द क , थोडा े श होकर खाना खाया जा सके। एक भले आदमी ने मेरे नहाने
का बंदोब त कर दया, ले कन वह बंदोब त सुशीलता से परे था। सड़क के कनारे खुले म
एक है डपाइप, और एक बा ट और एक स ता सा साबुन। खैर, मने पछले ३ दन से
नहाया नह था, इस लए मेरा यान सफ तरो-ताज़ा होने का था। म जतनी भी दे र नहाया,
उतनी दे र तक वहां के लोग के लए कौतूहल का वषय बना रहा। वशेषतः वहां क य
के लए - वो मुझे दे ख कर कभी हंसती, कभी मु कुराती, तो कभी आपस म खुसुर-फुसुर
करती। वैस,े अपने आप अपनी बढाई या क ँ , ले कन नय मत आहार और ायाम से
मेरा शरीर एकदम तगड़ा और गठा आ है और चब र ी भर भी नह है। ायाम करना
मेरे लए सबसे बड़ा भोग- वलास है, य प कभी कभार ा ासव का सेवन भी करता ,ँ
ले कन सफ कभी कभार। इसी के कारण मुझे पछले कई वष से त दन बारह घंटे काय
करने क ऊजा मलती है। हो सकता है क ये याँ मुझे आकषक पाकर एक सरे से
अपनी ेम क पना बाँट रही ह - ऐसे सोचते ए मने भी उनक तरफ दे ख कर मु कुरा
दया।
खैर, नहा-धोकर, कपडे पहन कर मने खाना खाया और अपनी कार क ओर जाने को आ
ही था क मने कूल यू नफाम पहने लड़ कय का समूह जाते ए दे खा। मुझे लगा क
शायद कसी कूल म छु ई होगी, य क उस समूह म हर क ा क लड़ कयां थी। म यूँ
ही अपनी कार के पास खड़े-खड़े उन सबको जाते ए दे ख रहा था क मेरी नज़र अचानक
ही उनमे से एक लड़क पर पड़ी। उसको दे खते ही मुझे ऐसे लगा क जैसे धूप से तपी ई
ज़मीन को बरसात क पहली बूंदो के छू ने से लगता होगा।
' कतनी सु दर! कैसा भोलापन! कैसी सरल चतवन! कतनी यारी!'
" या... क जा दो मनट के लए..." उसक कसी सहेली ने पीछे से उसको आवाज़
लगाई। वह लड़क मु कुराते ए पीछे मुड़ी और थोड़ी दे र तक क कर अपनी सहेली का
इंतज़ार करने लगी।
' या..! ह म.. यह नाम एकदम परफे ट है! सचमुच, एकदम सांझ जैसी सु दरता! मन को
आराम दे ती ई, पल-पल नए-नए रंग भरती ई .. या बात है!' मने मन ही मन सोचा।
ले कन कैसा हो य द ऐसा कुछ वाकई होता हो? मुझे एक नशा मला आ बुखार सा चढ़
गया। दमाग म इसी लड़क का चेहरा घूमता जाता। उसक सु दरता और उसके भोलेपन
ने मुझे मोह लया था - या यह क हये क मुझे ेम म पागल कर दया था। मेरे मन म आया
क अपने होटल वाले को उसक त वीर दखा कर उसके बारे म पूछूँ, ले कन यह सोच के
क गया क कह लोग बुरा न मान जाएँ क यह बाहर का आदमी उनक लड़ कय /बे टय
के बारे म य पूछ रहा है। वैसे भी र दराज के लोग अपनी मा यताओ और री तय को
लेकर ब त ही ज होते है, और म इस समय कोई मुसीबत मोल नह लेना चाहता था।
मने मानो घंटो तक इंतज़ार कया ... अंततः वह समय भी आया जब यू नफाम पहने
लड़ कयां आने लगी। कोई पांच मनट बाद मुझे अपनी परी के दशन हो ही गए। वह इस
समय ओस म भीगी नाजक पंखुड़ी वाले गुलाबी फूल के जैसे लग रही थी! उसके प का
सबसे आकषक भाग उसका भोलापन था। उसके चेहरे म वह आकषण था क मेरी
उसके शरीर के कसी और ह से पर गयी ही नह । कोई और होती तो अब तक उसक पूरी
नाप तौल बता चुका होता। ले कन यह लड़क अलग है! मेरा इसके लए मोह सफ मोह
नह है - संभवतः ेम है। आज मुझे अपने जीवन म पहली बार एक कशोर वाली भावनाएँ
आ रही थ । जब तक मुझे या दखी, तब तक उसको मने मन भर के दे खा। दल धाड़
धाड़ करके धड़कता रहा। उसके जाने के बाद म दन भर यूँ ही बैठा उसक त वीर दे खता
रहा और उसके त अपनी भावना का तोल-मोल करता रहा।
म करीब एक घंटे तक वह न े य खड़ा रहा, फर भारी पैर के साथ वापस अपने होटल
आ गया। अब मुझे इस लड़क के बारे म और पता करने क इ ा होने लगी। अपने बु
और ववेक के तकूल होकर मने अपने होटल वाले से इस लड़क के बारे म जानने का
न य कया। यह ब त ही जो खम भरा काम था - शायद यह होटल वाला ही इस लड़क
का कोई स ब ी हो? न जाने या सोचेगा, न जाने या करेगा। कह पीटना पड़ गया तो?
खैर, मेरी ज ासा इतनी बलवती थी, क मने हर जो खम को नज़रंदाज़ करके उस लड़क
के बारे म अपने होटल वाले से पूछ ही लया।
"माज़रा? मुझे यह लड़क पसंद आ गयी है! इससे म शाद करना चाहता ँ।" मने उसके
बदले ए वर को अनसुना कया।
"मेरा वो मतलब नह था! साहब, ये ब त भले लोग ह - सीधे सादे । ह रहर सह खेती करते
ह - कुल मला कर चार जने ह: ह रहर सह खुद, उनक प नी और दो बे टयां। इस लड़क
का नाम या है। आप बस एक बात यान म रख, क ये लोग ब त सीधे और भले लोग
ह। इनको ःख न दे ना। आपके मुकाबले ब त गरीब ह, ले कन गैरतमंद ह। ऐसे लोगो क
हाय नह लेना। अगर इनको धोखा दया तो ब त पछताओगे।"
"नह ! म अपनी बात खुद करना जानता ँ। वैसे ज़ रत पड़ी, तो आपसे ज़ र क ँगा।"
दरवाज़ा या ने ही खोला।
'हे भगवान्!' मेरा दल धक् से हो गया। या पौ फटने से समय सूरज जैसी लग रही थी।
उसने अभी अभी नहाया आ था - उसके बाल गीले थे, और उनक नमी उसके हलके
लाल रंग के कुत को कंधे के आस पास भगोए जा रही थी।
"जी?" मुझे एक बेहद मीठ और शालीन सी आवाज़ सुनाई द । कानो म जैसे म ी घुल
गयी हो।
"अ..अ आपके पताजी ह?" मने जैस-े तैसे अपने आपको संयत कया।
"जी, ठ क है"
"बो लए न?"
"जी वो म .... म आपक बेट या से शाद करना चाहता ँ!" मेरे मुंह से यह बात े न क
ग त से नकल गई..
'मारे गए अब!'
मने दो तीन गहरी साँसे भर और अपने आपको काफ संयत कया, "जी म आपक बेट
या से शाद करना चाहता ँ।"
“...........................................”
"और इतने म ही आपने उससे शाद करने क सोच ली?" ह रहर सह का वर अभी भी
संयत लग रहा था।
"जी।"
ह रहर सह कम से कम दस मनट बाद बाहर आये। उनके साथ उनक छोट बेट भी थी।
"यह मेरी छोट बेट अ नी है।" अ नी करीब अठारा-उ ीस साल क रही होगी।
म उसको कोई जवाब नह दे पाया... बोलता भी भला या? बस, मु कुरा कर रह गया।
लड़क के पता वह पर खड़े थे, और हमारी बात सुन रहे थे। इतने म ह रहर सह जी क
धमप नी भी बाहर आ ग । उ ह ने अपना सर साड़ी के प लू से ढका आ था।
मुझे इतना तो समझ म आ गया क यह प रवार वाकई भला है। माता पता दोन ही
वा भमानी ह, और सरल ह। इस लए बना कसी लाग लपेट के बात करना ही ठ क
रहेगा। हम चारो लोग अभी बस बैठे ही थे क उधर से या ना ते क े लए बैठक म
आई। मने उसक तरफ बस एक झलक भर दे खा और फर अपनी नज़र बाक लोगो क
तरफ कर ल – ऐसा न हो क म मूख क तरह उसको पुनः एकटक दे खने लगूं, और मेरी
बना वजह फजीहत हो जाय।
ह रहर सह थोड़ी दे र चुप रहने के बाद बोले, "अथव, मेरा यह मानना है क अगर लड़क
क शाद क बात चल रही हो तो उसको भी पूरा अ धकार है क अपना नणय ले सके।
इस लए या यहाँ पर रहेगी। उ मीद है क आपको कोई आप नह ।"
फर मने बात आगे जोड़ी, "आप बेशक मेरे बारे म पूरी तरह पता लगा ल। आप मेरा काड
र खये - इसम मेरी कंपनी का पता लखा है। अगर आप बगलोर जाना चाहते ह तो म सारा
बंध कर ं गा। और यह मेरे घर का पता है (मने अपने व स टग काड के पीछे घर का पता
भी लख दया था) - वैसे तो म अकेला रहता ,ँ ले कन आप मेरे बारे म वहां पूछताछ कर
सकते ह। म यहाँ, उ राँचल म, म वैसे भी अगले दो-तीन स ताह तक ँ। इस लए अगर
आप आगे कोई बात करना चाहते ह, तो आसानी से हो सकती है।"
ह रहर सह ने सर हलाया, फर कुछ सोच कर बोले, " या और आप आपस म कुछ बात
करना चाहते ह, तो हम बाहर चले जाते ह।" और ऐसा कह कर तीनो लोग बैठक से बाहर
चले गए।
" या! मेरी तरफ दे खए।" उसने बड़े जतन से मेरी तरफ दे खा।
उसने सफ न म सर हलाया।
मेरे इस पर मानो उसके शरीर का सारा खून उसके चेहरे म आ गया। घबराहट म
उसका चेहरा एकदम गुलाबी हो चला। वो शम के मारे उठ और भाग कर कमरे से बाहर
चली गयी। कुछ दे र म ह रहर सह अ दर आये, उ ह ने मुझे अपना फ़ोन नंबर और पता
लख कर दया और बोले क वो मुझे फ़ोन करगे। जाते जाते उ ह ने अपने कैमरे से मेरी
एक त वीर भी खीच ली। मुझे समझ आ गया क आगे क तहक कात के लए यह बंध
है। अ ा है - एक पता को अपनी पूरी तस ली कर लेनी चा हए। आ खर अपनी लड़क
कसी और के सुपुद कर रहे ह!
सारे संकेत सकारा मक थे। अव य ही ह रहर सह के घर म मुझको पसंद कया गया हो।
या के फोन के बाद मुझे अब ह रहर सह के फोन का इंतज़ार था। पूरे दन इंतज़ार
कया, ले कन कोई फ न नह आया। आ खरकार, शाम को करीब तीन बजे ह रहर सह
का फोन आया।
खैर, इतने शाम को ाइव करना मु कल काम था, इस लए मने सुबह तड़के ही नकलने
क योजना बनाय । अपना सामान पैक कया, और रात का खाना खा कर लेटा ही था, क
मुझे फर से ह रहर सह के नंबर से कॉल आया। मने तुरंत उठाया - सरी तरफ या थी।
"जी... म ँ यहाँ।“
"जी... पताजी आपसे हमारे बारे म बात करना चाहते ह....." जब मने जवाब म कुछ नह
कहा, तो या ने कहना जारी रखा, ".... आप सच म मुझसे शाद करगे?"
"जी..."
"ओ.. के.."
अगली सुबह सूय क पहली करण के साथ ही म या से मलने नकल पड़ा। मौसम
अ ा था - हलक बा रश और मंद मंद बयार। ऐसे म तो पूरे चौबीस घंटे ाइव कया जा
सकता है। ले कन, पहाड़ पर थोड़ी मु कल आती है। खैर, मन क उमंग पर नयं ण
रखते ए मने जैसे तैसे ाइव करना जारी रखा - बीच बीच म खाने पीने और शरीर क
अ य ज रत के लए ही का। ऐसे करते ए शाम ढल गयी, ले कन फर भी या का घर
कम से कम पांच घंटे के रा ते पर था। बा रश के मौसम म, और वह भी शाम को, पहाडो
पर ाइव करने के लए ब त ही अ धक कौशल चा हए। अतः मने वह रात एक छोटे से
होटल म बताई।
अगली सुबह नहा धोकर और ना ता कर मने फर से ाइव करना शु कया और करीब
छह घंटे बाद ह रहर सह के घर प ँचा। सवेरे नकलने से पहले मने उनको फोन कर दया
था क आज ही आने वाला ँ, इस लए उनके घर पर सामा य दन से अ धक चहल पहल
दे ख कर मुझे कोई आ य नह आ। दरवाज़े पर ह रहर सह और अ नी ने मेरा वागत
कया और मुझे घर के अ दर सस मान लाया गया। घर के अ दर चार पांच बुजुग पु ष थे -
उनमे से एक तो न त प से प डत लग रहा था। जान पहचान के समय यह बात भी
साफ़ हो गयी। ह रहर सह वाकई आज मेरे ताव को अगले तर पर ले जाना चाहते थे।
उन बुजुग म दो लोग ह रहर सह के बड़े भाई थे, और बाक लोग उस समाज के मु खया
थे। भारतीय शा दयाँ, वशेष तौर पर छोट जगह पर होने वाली भारतीय शा दयाँ काफ
ज टल और पेचीदा हो सकती ह - इसका ान मुझे अभी हो रहा था।
ऐसे ही हाल चाल लेते ए दोपहर का खाना जमा दया गया। ब त ही चकर गढ़वाली
खाना परोसा गया था - पेट भर गया, ले कन मन नह । ना ता सवेरे कया था, इस लए
भूख तो जम कर लगी थी - इस लए मने तो डटकर खाया। खाना खाते ए अ य लोगो से
मेरे उ राँचल आने, मेरे पढाई और काम के वषय म औपचा रक बाते । वैसे भी उन
लोगो को अब मेरे बारे म काफ कुछ मालूम हो चुका था, बस वहां बात करने के लए कुछ
तो होना चा हए - ऐसा सोच कर बस खाना पूरी चल रही थी।
मने सफ अपना सर सहमती म हलाया... ह रहर सह ने बोलना जारी रखा, ".... वैसे तो
हम लोग अपने समाज के बाहर अपने ब ो को नह याहते, ले कन आपक बात कुछ
और ही है। फर भी, ज म-प ी और कुंडली तो मलानी ही पड़ती है न..."
या को मेरे बगल म एक कुस पर बैठाया गया। वहां बैठे सम त लोगो के सामने हम दोन
का व धवत प रचय दया गया। उसके बाद पं डत ने घोषणा करी क वर (या न क म),
वधु (या न क या) से ववाह करने क इ ा रखता ँ और यह क दोन प रवार के और
समाज के व र जनो ने इस ववाह के लए सहम त दे द है। उसके बाद सभी लोगो ने हम
दोन को अपनी हा दक बधाइयाँ और आशीवाद दए। मने और या ने एक सरे को
मठाई खलाई।
या के लए मेरे ेम ने मुझे पूरी तरह से बदल दया था। सुना था, क लोग ेम के च कर
म पड़ कर न जाने कैसे हो जाते ह, ले कन कभी यह नह सोचा था क मेरा भी यही हाल
होगा। घर प ँचने के बाद म जो भी कुछ कर रहा था, वह सब या को ही यान म रख कर
कर रहा था। बेड म क सजावट कैसी हो, उसी तज पर नया बेड और नयी अलमा रयां
खरीद , खड कय के परदे और द वार क सजावट सब बदलवा द । मुझे जानने वाले
सभी लोग आ यच कत थे। इन कुछ महीन म मने या या कया, उसका यौरा तो नह
ं गा, ले कन अगर कुछ ही श द म बयान करना हो तो बस इतना कहना काफ होगा क
' यार म होने' का एहसास गज़ब का था। ऐसा नह था क म और या फोन पर दन रात
लगे रहते थे - वा त वकता म इसका उ टा ही था। ववाह के अंतराल तक हमारी मु कल
से पांच-छः बार ही बात ई थी, और वह भी न त तौर पर उसके प रवार वालो के
सामने। लहाज़ा, मला-जुला कर कोई पांच-छः मनट! बस! ले कन फर भी, उसक
आवाज़ सुन कर नया भर क एनज भर जाती मुझमे, जो उसके अगले फोन तक
मुझको जला दे ती। मेरा सचमुच का कायाक प हो गया था।
बरात के नाम पर मेरे दो ब त ही ख़ास दो त आ सके। खैर, मुझे बरात जैसे तमाश क
आव यकता भी नह थी। कोट म ज़ री कागजात पर ह ता र करना मेरे लए काफ था।
ववाह, दरअसल मन से होता है, नौटं क से नह । मं पढने, आग के सामने च कर लगाने
से ववाह म ेम, आदर और स मान नह आते – वो सब यास कर के लाने पड़ते ह।
ले कन म यह सब उनके सामने नह बोल सकता था – उन सबके लए अपनी बड़ी लड़क
का ववाह करना ब त ही बड़ी बात थी, और वो सभी इस अवसर को अ धक से अ धक
पारंप रक तौर-तरीके से मनाना चाहते थे। मेरे म ने दे हरा न से वयं ही गाड़ी चलाई,
और मुझे नह चलाने द । उस कसबे म सबसे अ े होटल म हमने कमरे बुक कर लए थे,
जससे कोई क ठनाई नह ई।
खैर, तो मेरी सुहागरात का समय आ ही गया, और या जैसी परी अब पूरी तरह से मेरी है
- यह सोच सोच कर म ब त खुश हो रहा था। अब भई यहाँ मेरी कोई भाभी या बहन तो
थी नह – अ यथा सोने के कमरे म जाने से पहले चुंगी दे नी पड़ती। मुझे अ नी ने सोने के
कमरे का रा ता दखाया। मने उसको गुड नाईट और ध यवाद कहा, और कमरे म वेश
कया। हमारे सोने का इ तेजाम उसी घर म एक कमरे म कर दया गया था। यह काफ
व त कमरा था - उसमे दो दरवाज़े थे और एक बड़ी खड़क थी। कमरे के बीच म
एक पलंग था, जो ब त चौड़ा नह था (मु कल से चार फ ट चौड़ा रहा होगा), उस पर एक
साफ़, नयी च र, दो त कये और कुछ फूल डाले गए थे। या उसी पलंग पर अपने म ही
समट कर बैठ ई थी। या ने लाल और सुनहरे रंग का शाद म हन ारा पहनने वाला
जोड़ा पहना आ था। म कमरे के अ दर आ गया और दरवाज़े को बंद करके पलंग पर बैठ
गया। पलंग के बगल एक मेज रखी ई थी, जस पर मठाइयाँ, पानी का जग, गलास,
और अगरब यां लगी ई थी। पूरे कमरे म एक मादक महक फैली ई थी। बाहर हांला क
ठं डक थी, ले कन इस कमरे म ठं डक नह लग रही थी।
' या सोच रही होगी ये? या इसके भी मन म आज क रात को लेकर कामुक भावनाए
जाग रही ह गी?'
"जी"
"आई लव यू....."
जवाब म या सफ मु कुरा द ।
मने धड़कते दल से या का घूंघट उठा दया - बेचारी शम से अपनी आँख बंद कये बैठ
रही। अपने साधारण मेकअप और गहन (माथे के ऊपरी ह से से होती ई बद , म तक
पर बद , नाक म एक बड़ा सा नथ, कानो म झुमके) और केस रया स र लगाई ई होने
पर भी या ब त सु दर लग रही थी - व तुतः वह आज पहले से अ धक सु दर लग रही
थी। उसके दोन हाथ म कोहनी तक मेहंद क व भ कार क डज़ाइन बनी ई थी,
और कलाई के बाद से लगभग आधा हाथ लाल और वण रंग क चू ड़य से सुशो भत था।
उसके गले म तीन तरह के हार थे, जनमे से एक मंगलसू था।
" लीज अपनी आँख खोलो..." मने कम से कम तीन-चार बार उससे बोला तब कह उसने
अपनी आँख खोली। आख खुलते ही उसको मेरा चेहरा दखाई दया।
' या सोच रही होगी ये? और या सोचेगी? शायद यही क यह आदमी इसका कौमाय भंग
करने वाला है।'
" या?"
"जी?"
"आपको इं लश आती है?"
" बकॉज़, आई वांट टू सी यू नेकेड" मने उसके कान के ब त पास आकर फुसफुसाती
आवाज़ म कहा।
"म आपको बना कपड़ो के दे खना चाहता "ँ मने वही बात ह द म दोहरा द , और
उसको आँख गड़ा कर दे खता रहा। वह बेचारी घबराहट और शम के मारे कुछ भी नह बोल
पा रही थी। मने कहना जारी रखा, "म आपके सारे कपड़े उतार कर, आपके तना चूमूंगा,
आपके बम और े ट् स को दबाऊँगा और फर आपके साथ ज़ोरदार सहवास क ं गा..."
" ीईई .. म मुझे ब त डर लग रहा है" बड़े जतन से वह सफ इतना ही बोल पाई।
"आई कैन अंडर टड दै ट डअर। म आपको कसी भी ऐसी चीज़ को करने को नह क ँगा,
जसके लए आप रेडी नह ह।"
मने उसक लाल गोटे दार साड़ी का प लू उसक छाती से हटा दया। लाल रंग के ही
लाउज म कैद उसके युवा तन, उसक तेज़ी से चलती साँस के साथ ही ऊपर नीचे हो रहे
थे। मेरा ब त मन आ क उसके कपड़े उसके शरीर से चीर कर अलग कर ँ , ले कन मेरे
अ दर उसके लए यार और ज मेदारी के एहसास ने मुझे ऐसा करने से रोक लया।
लहाज़ा, मेरी ग त ब त ही मंद थी। वैसे मेरे खुद के हाथ कांप रहे थे, ले कन मने यह
न य कया था क इस परम सुंदरी परी को आज म यार कर के र ँगा।
मने उसक साड़ी को उसक कमर म बंधे पेट कोट से जैसे तैसे अलग कर दया और उसके
शरीर से उतार कर नीचे फक दया। इस समय वह सफ लाउज और पेट कोट म बैठ ई
थी। मेरी अगली वाभा वक पसंद (उतारने के लए) उसका लाउज थी। कतनी ही बार
मने क पना कर कर के सोचा था क मेरी जान के तन कैसे ह गे, और इस समय मुझे
ब त मन हो रहा था क उसके तन के दशन हो ही जाएँ। म कांपते ए हाथ से उसके
लाउज के बटन धीरे-धीरे खोलने लगा। करीब तीन बटन खोलने के बाद मुझे अहसास
आ क उसने अ दर ा नह पहनी है।
या घबराहट और शम के मारे कुछ भी नह बोल पा रही थी। उसका चेहरा नीचे क तरफ
झुका आ था, मानो वह उसके लाउज के बटन खोलते मेरे हाथ को दे ख रही हो। उसक
तेज़ी से चलती साँसे और भी तेज़ होती जा रही थी। उसने उ र म सफ न म सर हलाया -
और वह भी ब त ही हलके से। खैर, यह तो मेरे लए अ ा था - मुझे एक कपड़ा कम
उतारना पड़ता। मने उसक लाउज के बचे ए दोन बटन भी खोल दए। उसक वचा
शम या उ ेजना के कारण लाल होती जा रही थी। मने अंततः उसके लाउज के दोन पट
अलग कर दए, और मुझे उसके तन के दशन हो गए।
मुझसे अब और रहा नह जा रहा था। उसके जवान, ठोस तन पर मने अपने मुंह से
हमला कर दया। मेरा सबसे पहला एहसास उसके तन क महक का था - आ जैसी
महक! उसके चकने तना पहले मुलायम थे, ले कन मेरे चूसे और चुभलाए जाने से कड़े
होते जा रहे थे। मेरे इस या कलाप का सकारा मक असर या पर भी पड़ रहा था,
य क उसके हाथ ने मेरे सर को उ मा दत होकर पकड़ लया था। मने कुछ दे र तक
उसके तन को ऐसे ही लार कया - ले कन इतना होते होते या और मेरा, दोन का ही,
गला एकदम शु क हो गया। मने क कर पास ही रखे गलास से पानी पया और या को
भी पलाया। उसके बाद मने उसके लाउज को उसके शरीर से अलग कर के ज़मीन पर
फक दया। ऐसा होते ही मेरी जान अपने म ही समट गयी और अपने हाथो से अपनी
न नाव ा को छु पाने क को शश करने लगी। चू ड़य और मेहंद से भरे हाथो से ऐसा
करते ए वह और भी यारी लग रही थी। मने उसके हाथ हटाने क को शश नह क ,
ले कन उसके चेहरे को अपने दोन हाथ म लेकर उसके ह ठ पर एक गहरा चु बन दया,
और फर सल सलेवार तरीके से चु बन क बौछार कर द ।
शु म उसका शरीर, ह ठ, चेहरा - सब कुछ - एकदम से कड़ा हो गया, शायद नवस होने
से ... ले कन चु बन क सं या बढ़ते रहने से वह भी धीरे-धीरे शांत होने लगी। उसने मेरी
आँख म दे खा, और फर आँख बंद कर के चु बन म यथासंभव सहयोग दे ने लगी। उसके
ह ठ गम और मुलायम थे - एकदम शानदार! चु बन करते ए म अपनी जीभ को उसके
मुंह म डालने का यास करने लगा। संभवतः उसको यह बात समझ म आ गयी - उसने
अपने ह ठ ज़रा से खोल दए। मने ब त सावधानीपूवक अपनी जीभ उसके मुंह म व
कर द । एक बात और ई, उसने अपने हाथ अपने सीने से हटा कर, मुझे अपनी बाह म
भर लया। या के मुंह का वाद ब त अ ा था - हलक सी मठास लए ए। म बयान
नह कर सकता क यह अनुभव कतना ब ढ़या था। यह एक कामुक चु बन था, जसके
उ माद म अब हम दोन ही बहे जा रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से हट कर उसक कमर पर
चले गए और वहां से धीरे धीरे उसके नत ब पर। मेरी उ ेजना मुझे या को अपनी तरफ
भ चने को मजबूर कर रही थी। मने उसको अपनी तरफ खीच लया - मुझे अपने सीने पर
या के तन का एहसास होने लगा। इस तरह से या को चूमना और भी सुखद लग रहा
था।
खैर, ऐसे ही कुछ दे र चूमने के बाद हम दोन के मुंह अलग ए। मने या क कमर पर
नज़र डाली - उसके पेट कोट का नाड़ा ढूँ ढने के लए। नाड़ा उसक कमर से बाएं तरफ था,
जसको मने तुरंत ही खीच कर ढ ला कर दया। अब पेट कोट उसके शरीर पर नाम-मा
के लए ही रह गया। इस लए मने उसको उतारने म ज़रा भी दे र नह क । ले कन मेरी इस
ज दबाजी म या ब तर पर चत होकर गर गयी। पेट कोट के उतरते ही उसने अपना
चेहरा अपने हाथ से ढक लया - शायद अब उसको अपने तन के दशन पर उतना
ऐतराज़ नह था, ले कन ऐसी न नाव ा म वह मुझे अपना चेहरा नह दखाना चाहती थी।
मेरी आशा के वपरीत, या ने च ी पहनी ई थी। उसका रंग काला था। उसमे कुछ भी
उ लेखनीय नह था - बस रोज़मरा पहनी जाने वाली साम य सी च ी थी - हाँ एक बात है -
च ी नयी थी। सामने से दे खने पर उसक च ी अं ेजी के "वी" जैसी, कमर क तरफ
फैलाव लए और वहां, जहाँ पर उसक यो न थी, एक सौ य उभार लए ए थी। या के
नत ब यो चत फैलाव लए ए तीत होते थे, ले कन उसका कारण यह था क उसक
कमर पतली थी। उसके शरीर का आकर व तुतः एक कम सन, छरहरी और त ण लड़क
जैसा था।
मने और नीचे नज़र डाली। या के दोन पाँव भी मेहंद से आ लकृत थे। दोन ही टखन म
चांद क पायल थ । उसके पैर म मने ही ब छया पहनाई थी। उसके दोन पाँव क नचली
प र ध लाल रंग से रंगे ए थे। मेरी वापस उसके यो न े पर चली गयी। मेरा मन
आ क उसक च ी भी उतार द जाए - मेरे लग का त न और कसाव बढ़ता ही जा
रहा था, और म अब या के अ दर समा हत होने के लए ाकुल आ जा रहा था।
ले कन मुझे अभी कुछ और दे र उसके साथ खेलने का मन हो रहा था। मने पलंग पर या
के काफ पास अपने घुटने पर बैठ कर, अपना कुरता उतार दया। अब मने सफ चूड़ीदार
पजामा और उसके अ दर लम फट च ी पहनी ई थी।
"आपको मेरा एक काम करना होगा ...." मेरे आगे कुछ न बोलने पर उसने अपने चेहरे से
हाथ हटा कर मेरी तरफ दे खा।
"अपने हाथ मुझे द जये" उसने थोडा सा हचकते ए अपने हाथ आगे बढ़ाए, जनको मने
अपने हाथ म थाम लया, और फर अपने पजामे के कमर के सामने वाले ह से पर रख
दया।
"यह पजामा आपको उतारना पड़ेगा। आपके कपडे उतार-उतार कर म थक गया।" मने
मु कुराते ए उससे कहा।
जैसा क मने पहले भी उ लेख कया है, मेरा शरीर शरीर इकहरा और कसरती है। और
उसम से इतने गव से बाहर नकले ए मेरा लग दे खकर वह न त प से घबरा गयी
थी। च ी नीचे सरकाने क या म मेरे लग का श छद वयं ही थोड़ा पीछे सरक
गया और लग के आगे का गुलाबी चमकदार ह सा कुछ-कुछ दखाई दे ने लगा। या को
मेरे लग को इस कार दे खते ए दे ख कर मेरा शरीर कामा न से तपने लग गया -
संभवतः या भी इसी तरह क तपन खुद भी महसूस कर रही थी।
उसको अचानक ही अपनी कही ई बात, अपनी त, और अपने साथ होने वाले या
कलाप का यान हो आया। उसने ल ा से अपना मुंह त कये म छु पा लया। ले कन
उसका हाथ मु था - मने उसको पकड़ कर अपने लग पर रख दया। उसक हथेली मेरे
लग के गद लपट गई। घेरा पूरा बंद नह आ। मेरा संदेह सही था - या का हाथ तप
रहा था। उसके हाथ को पकडे-पकडे ही मने अपने लग को घेरे म ले लया और ऐसे ही घेरे
ए अपने हाथ को तीन चार बार आगे पीछे कया, और अपना हाथ हटा लया। या अभी
भी मेरे लग को पकडे ए थी, हाँला क वह आगे पीछे वाली या नह कर रही थी। मेरे
लग क ल बाई का कम से कम आधा ह सा उसके हाथ क पकड़ से बाहर नकला आ
था। ले कन इस तरह से सजे ए कोमल हाथ से घरा आ मेरा लग मुझे ब त अ ा लग
रहा था।
"जी.... हम शरम आती है" उसने अंततः त कये से अपना चेहरा अलग करके कहा। उसक
आवाज़ पहले जैसी मीठ नह लगी - उसमे अब एक तरह क ककशता थी - मने सोचा क
शायद वह खुद भी उ े जत हो रही है। लहाजा मने इस त य को नज़रंदाज़ कर दया।
" या ..."
सारा मज़ा सचमुच ख़राब हो चला था - मेरा लगो ान तेज़ी से घटने लग गया। खैर अभी
इस बात क चता नह थी। चता तो यह थी, क जस लड़क को म ेम करता ,ँ वह मेरे
ही कारण खी हो गयी थी। अब यह मेरा दा य व था क म उसको मनाऊँ, और अगर
क मत ने साथ दया तो संभवतः सहवास भी कया जा सके। म या के बगल ही लेट
गया, और यार से उसको अपनी बाह म भर लया। थोड़ी दे र पहले उसका तपता शरीर
अपे ाकृत ठं डा लग रहा था। अ ा, एक बात बताना तो भूल ही गया - म पलंग पर अपने
बाएं करवट पर लेटा आ था, और या मेरे ही तरफ मुंह छु पाए लेट ई थी।
" या ... मेरी बात सु नए, लीज!"
उसने मेरी तरफ दे खा - मेरा शक सही था, उसक आँख म आँसू उमड़ आये थे, और
उसके काजल को अपने साथ ही बहाए ले जा रहे थे।
" ह .... लीज मत रोइये। मेरा आपको ठे स प चाने का कोई इरादा नह था। आई ऍम
सो सॉरी! ऑने टली ! मने आपको ो मस कया था क म आपको कसी भी ऐसी चीज़
को करने को नह क ँगा, जसके लए आप रेडी नह ह। शायद इसके लए आप रेडी नह
ह। म आपको ब त यार करता ,ँ और आपको कभी खी नह दे ख सकता।"
ऐसी बाते करते ए म या को चूमते, सहलाते और लारते जा रहा था, जससे उसका
मन बहल जाए और वह अपने आपको सुर त महसूस करे।
मेरा मनाना न जाने कतनी दे र तक चला, खैर, उसका कुछ अनुकूल भाव दखने लगा,
य क या ने अपने म समटना छोड़ कर अपने बाएँ हाथ को मेरे ऊपर से ले जाकर मुझे
पकड़ लया - अध-आ लगन जैसा। उसके ऐसा करने से उसका बायाँ तन मेरी ही तरफ
उठ गया। मेरा मन तो ब त आ क पुनः अपने कामदे व वाले बाण छोड़ना शु कर ं ,
ले कन कुछ सोच कर ठहर गया।
"आई लव यू सो मच! और इसम अ धकार वाली कोई बात नह है। हम दोन अब लाइफ
पाटनर ह – बराबर के। म आपके साथ कोई जबरद ती नह कर सकता ँ।"
"नह ..........” वह थोडा कते ए बोली, “आपको मालूम है क मने कभी शाद के बारे म
सोचा ही नह था। सोचती थी, क खूब पढ़ लख कर माँ, पापा और अ नी को सहारा
ँ गी। माँ और पापा ब त मेहनत करते ह, ले कन यहाँ पहाड़ो म उस मेहनत का फल नह
मलता। ...... ले कन, फर आप आये - और मेरी तो सुध बुध ही खो गयी। सब कुछ इतना
ज द आ है क म खुद को तैयार ही नह कर सक ..."
मने समझते ए कहा, " या, मने आपसे पहले भी कहा है क म आपको पढने लखने से
नह रोकूंगा। म तो चाहता ँ क आप अपने सारे सपने पूरे कर सक। बस, म उन सारे
सपनो का ह सा बनना चाहता ँ।"
या ने अपनी झील जैसी गहरी आँख से मुझे दे खा - बना कुछ बोले। उसने अपनी उं गली
से मेरे गाल को हलके से छु आ - जैसे छोटे ब े जब कसी नयी चीज़ को दे खते ह, तो
उ सुकतावश उसको छू ते ह। "आपसे एक बात पूछूँ?" आ खरकार उसने कहा।
"हाँ .. पू छए न?"
"आई लव यू ...." उसने ब त धीरे से कहा, ".... म आपसे एक और बात पूछूं? .... आपने
... आपने कभी.... पहले भी .... आपने कभी सहवास कया है?" या ने ब त हच कचाते
ए पूछा।
मने कहना जारी रखा, "...... कुछ एक के साथ म लोज था, ले कन उनके साथ भी ऐसा
कुछ नह कया है। मेरा यह मानना है क फ ट-टाइम सहवास को एक ेशल दन और
एक ेशल लड़क के लए बचा कर रखना चा हए।"
"और म सोच रहा था क वह ेशल दन आज है .... या म सही सोच रहा ?ँ " मने
अपनी बात जारी रखी।
अतः मने यही काय म ारंभ कर दया। मने पहले या के बाएं तना को अपनी जीभ
से कुछ दे र चाटा, और फर उसको मुंह म भर लया। या के मुह से हलक ससकारी
नकल पड़ी। म बारी बारी से उसके दोन तन को चूसता जा रहा था। जब म एक तन
को अपने ह ठो और जीभ से लारता, तो सरे को अपनी उँ ग लय से। साथ ही साथ मने
अपने खाली हाथ को या क यो न को टटोलने भेज दया। या के समतल पेट से होते
ही मेरा हाथ उसक यो न ल पर जा प ंचा। उसक यो न पर बाल तो थे, ले कन वह
अभी घने बलकुल भी नह थे। यो न पर हाथ जाते ही कुछ गीलेपन का एहसास आ।
कुछ दे र तक मने उसक यो न के दोन ह ठ , और उसके भगनासे को सहलाया, और फर
अपनी उं गली या क यो न म धीरे से डाल द । मेरे ऐसा करते ही या हांफ गयी। उं गली
मु कल से बस एक इंच जतनी ही अ दर गयी होगी, ले कन उसके यौवन का कसाव
इतना अ धक था, क या को ह का सा दद महसूस आ। उसके गले से आह नकल
गयी।
मने अपनी उं गली रोक ली, ले कन उसको यो न से बाहर नह नकलने दया। साथ ही साथ
उसके तन का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मनट म मने महसूस कया क या अब
तनाव-मु हो गयी है। मने धीरे धीरे अपनी उं गली को उसक यो न के अ दर बाहर करना
शु कर दया। इन सभी या का स म लत असर यह आ क या अब काफ
न त हो गयी थी और उसक यो न कामरस क बरसात करने लगी। मेरी उं गली पूरी
तरह से भीग चुक थी और आसानी से अ दर बाहर हो पा रही थी।
"ज ट रलै स! अभी ख़तम नह आ है। असली काम तो बाक है।" मने यार से बोला।
लगता है अभी अभी मले आनंद से वह ो सा हत हो गयी थी, लहाजा उसने हाँ म सर
हलाया।
म उठ कर बैठ गया, और थोड़ा सु ताने लगा। थोड़ी दे र के आराम के बाद मने उसक दोन
जांघो को फैला दया, जससे उसक यो न के ह ठ खुल गए थे। उसक यो न के बाहर का
रंग उसके तना के जैसा ही था, ले कन यो न के अ दर का रंग ‘सायमन’ मछली के रंग
के जैसा था। मेरा मन आ क कुछ दे र यह पर मुख-मैथुन कया जाए, ले कन मेरी खुद
क दशा ऐसी नह थी क इतनी दे र तक अपने आपको स हाल पाता। मुझे यह भी डर लग
रहा था क कह शी पतन जैसी सम या न आ खड़ी हो। मेरा लग अब वापस खड़ा हो
चुका था, और अपने गंत को जाने को ाकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी - मेरा लग
उसक यो न के मुकाबले ब त वशाल था, और अगर म जरा सी भी जबरद ती करता, या
फर अगर लग अ दर डालने म कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़क पूरी उ भर मुझसे
डरती रहती।
मेरे पास अपने लग को चकना करने के लए कुछ भी नह था ..... 'एक सेकंड ... म अपने
लग को ना सही, ले कन उसक यो न को तो अ े से चकना कर सकता ँ न!' मेरे
दमाग म अचानक ही यह वचार क ध गया।
यह मेरे लए संकेत था क अब वाकई सही समय आ गया है। मने उसक टांगो को फैला
दया। उसक यो न का खुला आ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था।
"आआ ह ..." या क गहरी चीख नकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नह ! म
एकदम से सकपका गया, 'कह इसको चोट तो नह लग गयी?' मने एक दो पल ठहर कर
या क त या भांपी - ले कन भगवान् क दया से उसने आगे कुछ नह कहा। बाहर
लोग ने सुना तो ज़ र होगा ...
'भाड़ म जाएँ सुनने वाले! लड़क के साथ यह तो होना ही है!आज तो...' मने कने का
कोई उप म नह कया। मने अपना लग या क यो न से बाहर नकालना शु कया,
ले कन पूरा नह नकाला ... इसके बाद पुनः थोडा सा और अ दर डाला और पुनः नकाल
लया।
मने पूछा, " या! आप ठ क ह?" उसने आँख बंद कये ए ही हाँ म सर हलाया।
"मज़ा आया?" मने थोड़ा और कुरेदा - ऐसे ही स ते म कैसे जाने दे ता? या का चेहरा मेरे
इस पर और लाल पड़ गया - वह सफ हलके से मु कुरा सक । मने उसको अपनी
बांह म कस के भर कर उसके माथे को चूम लया, और अपने से लपटा कर ब तर पर
लटा लया।
हम लोग कुछ समय तक ब तर पर ऐसे ही पड़े पड़े अपनी सांसे संयत करते रहे। ले कन
कुछ ही दे र म वह ब तर पर उठ बैठ । वह इस समय आराम म बलकुल भी नह लग रही
थी। मुझे लगा क कह सहवास क ला न के कारण तो वह ऐसे नह कर रही है? मने
वाचक उसक ओर डाली।
" या आ आपको?"
"घर म है ..."
"ले कन ... मुझे तो अ दर से लोग के बात करने क आवाज़ सुनाई दे रही है। लगता है
लोग अभी तक नह सोये।" मने कहा, "... और घर म ऐसे, नंगे तो नह घूम सकते न? सफ
टॉयलेट जाने के लए पूरे कपडे पहनने का मन नह है मेरा।"
"वैसे भी सबने अ दर से हमारी आवाज सुनी ह गी ... मुझे नह जाना है सबके सामने ..."
मने अपनी सारी बात कह द ।
"ओ के .. तो?"
".... हम लोग बगीचे म टॉयलेट कर सकते ह ... वहां एकांत होगा .." एडवचर! लड़क तो
साहसी है! इंटरे टग!
मने उसको दरवाज़ा खोलने से रोका और वयं उसको खोल कर बाहर नकल आया, सब
तरफ दे ख कर सु न त कया क कोई वहां न हो और फर उसको इशारा दे कर बाहर
आने को कहा। वह दबे पाँव बाहर नकल आई, क तु इतनी सावधानी रखने के बाद भी
उसक पायल और चू ड़य क आवाज आती रही। बगीचा कमरे से बाहर कोई आठ-दस
कदम पर था। रात म यह तो नह समझ आ रहा था क वहां पर कस तरह के पेड़ पौधे थे,
ले कन यह अव य समझ आ रहा था क कस जगह पर मू कया जा सकता है। या
कसी झाड़ी से कोई दो फुट री पर जा कर बैठ गयी। अँधेरे म कुछ दखाई तो नह दया,
ले कन मू वसजन करने क सुसकारती ई आवाज़ आने लगी। मेरा यह य दे खने का
मन हो रहा था, ले कन कुछ दख नह पाया।
"आप खुद ही दे ख ली जये ..." कहते ए मने उसका हाथ पकड़ कर अपने लग पर रख
दया। उसके हाथ ने मेरे लग के पूरे दं ड का माप लया - अँधेरे म ल ा कम हो जाती है।
उसको समझ आ रहा था क लगो ान के कारण ही म मू नह कर पा रहा था।
"आप को शश क जये ... म इसको पकड़ लेती ँ?" उसने एक मासूम सी पेशकश क ।
"ठ क है ..." कह कर मने अपने जघन े क मांस-पे शय को ढ ला करने क को शश
क । या के कोमल और गम श से यह काम होने म समय लगा। खैर, ब त को शश
करने के बाद मने महसूस कया क मू ने मेरे लग के ग लयारे को भर दया है ... त ण
ही मने मू को बाहर नकलता महसूस कया।
अ ा, हमारी तरफ शाद क पहली रात को एक र म होती है, जसको ‘मुँह- दखाई’
कहा जाता है। इसम हन का घूंघट उठाने पर उसको एक वशेष मरणाथक व तु
( नशानी) द जाती है। मुझे इसके बारे म याद आया, तो मने अपने बैग म से या के लए
खास मेड-टू -आडर करधनी नकाली। यह एक १८ कैरट सोने क करधनी थी, जसम या
के रंग को यान म रखते ए इसम लाल-भूर,े नीले और हरे रंग के म यम मू यवान जड़ाऊ
प र लगे ए थे। वह उ सुकतावश मुझे दे ख रही थी क म या कर रहा ,ँ और यूँ ही
न नाव ा म ब तर के बगल खड़ी ई थी। म वापस आकर ब तर पर बैठ गया और या
को अपने एकदम पास बुलाकर उसक कमर म यह करधनी बाँध द , और थोड़ा पीछे
हटकर उसके स दय का अवलोकन करने लगा।
मुझे अपनी सुहागरात क एक एक बात याद आ रही थी, और उसी आवेश म मेरा हाथ
या क आकषक यो न पर पर चला गया, और मेरी उं ग लयाँ उसके ंजी ह ठ को दबाने
सहलाने लगी। त या व प या के कोमल और मांसल नत ब मेरे लग पर जोर
लगाने लगे। सोचो! ऐसी सु दर लड़क को सहवास के बारे म सखाना भी एक ब त बड़ी
उपल है। कुछ ही दे र क मा लश ने या के मुंह से कूजन क आवाज़ आने लग गयी -
लड़क को न द म भी मज़ा आ रहा था। मेरे लग म कड़ापन पैदा होने लगा। वरोधाभास
यह क आज के दन हमको कुछ पूजाय करनी थी - ये भारतीय शा दय म सबसे बड़ा
जंजाल है - खैर, वह सब करने म अभी दे र थी। फलहाल मुझे इस स दय और ेम क
दे वी क पूजा करनी थी।
मने अपनी पकड़ ढ ली कर द और हाथ हटा लया, जससे वह अपने हाथ पाँव हला सके
और न द से जाग सके। या ने सबसे पहले अपना सर मेरी तरफ घुमाया - मने दे खा क
उसक आँख म पल भर म कई सारे भाव आते गए - आ य, भय, प र ान, ल ा और
ेम! संभवतः उसको कल रात के कामो माद स ब ी अनुभव याद आ गए ह गे। उसके
ह ठ पर एक मीठ मु कान आ गयी।
"गुड मो नग, हनी!" मने दबी ई आवाज़ म कहा, "सुबह हो गयी है ..."
या ने थोड़ा उठते ए अंगडाई ली, इससे ओढ़ा आ क बल उसके ऊपर से सरक गया,
और एक बार फर से या के तन न न हो गए। मेरी तुरंत ही उन कोमल ट ल क
तरफ चली गयी। उसने झटपट अपने शरीर को ढकना चाहा, ले कन मने उसके हाथ को
रोक दया और अपने हाथ से उसके तन को ढक लया और उसको धीरे धीरे दबाने लगा।
"हमारे पास कुछ समय है ..." मने कहा - मेरी आवाज़ और आँख म कामुकता थी। मेरा
लग उसके शरीर से अभी भी लगा आ था, लहाज़ा वह उसके कड़ेपन को अव य ही
महसूस कर पा रही थी।
या समझते ए मु कुराई, "जी .... आपने कल मुझे थका दया ... अभी .... थोड़ा नरमी
से क रयेगा? वहां पर थोड़ा दद है ..."
तब मुझे यान आया ... थोड़ा नह , काफ दद होगा। कल उसने पहली बार सहवास कया
है, और वह भी ऐसे लग से। न त तौर पर उसक हालत खराब होगी। ये बेचारी लड़क
मुझे मना नह कर सकेगी, इस लए ऐसे बोल रही है। ऐसे म मुझे हड़बड़ी नह करनी
चा हए। ले कन, मेरा अभी सहवास करने का ब त मन है ... और हर बार लग से ही
सहवास कया जाए, यह कोई ज़ री नह । मने सोचा क म उसके साथ मुख-मैथुन
क ं गा, और अगर लक रहा, तो वह भी करेगी। दे खते ह।
खैर, जैसा व ध का वधान है, म कुछ ही दे र म उसके पैर के बीच म प ँच गया। मेरे चेहरे
पर, म उसक यो न क आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मने उसक दोन जांघो को
फैला दया, जससे उसक यो न के ह ठ खुल गए। उसक यो न के बाहर का रंग उसके
तना के जैसा ही था, ले कन यो न के अ दर का रंग 'सामन' मछली के रंग के जैसा था।
या क यो न के दोन ह ठ, उसके जीवन के पहले र त-सहवास के कारण सूजे ए थे।
मने उ ही पर अपनी जीभ का नेह-लेप लगान शु कर दया, और ब त ही धीरे-धीरे
अ दर क तरफ आता गया। मुझे या के मन का ावरोध कम होता आ सा लगा - उसने
मेरे चु बन पर अपने नत ब को हलाना चालू कर दया था - और म यह श तया तौर पर
कह सकता ँ क उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ दे र ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के
बाद या के कोमल और कामुक कूजन का वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसक
यो न से काम-रस भी रसने लगा। इसको दे ख कर मुझे शक आ क संभवतः उसका रस
मेरे वीय से मला आ था। ले कन मुझे कोई परवाह नह थी - व तुतः, यह दे ख कर मेरा
रोमांच और बढ़ गया। मने उसक जांघ थोड़ी और खोल द , जससे मुझे वहां पर लपलपा
कर चाटने म आसानी रहे।
अब या के मुख से "आँह .. आँह .." वाली कामुक कराह नकल रही थी। मानो वह द न-
नया से पूरी तरह से बेखबर हो। अ े सं कार वाली यह सीधी-साद लड़क अगर ऐसी
नल ता से कामुक आवाज नकाले तो इसका बस एक ही मतलब है - और वह यह क
लोहा बुरी तरह से गरम है - चोट मार कर चाहे कैसा भी प दे दो। पहले तो मेरा यान बस
मुख-मैथुन तक ही सी मत था, ले कन अब मेरा ल य था क या को इतना उ े जत कर
ं , क सहवास के लए मुझसे खुद कहे।
या अचानक से क गयी - उसने अपनी पलक खोल कर, अपनी नशीली आँख से मुझे
दे खा। और फर ब तर पर लेट गयी।
'कह यह आ तो नह गयी!' मेरे दमाग म ख़याल आया। 'ये तो सारा खेल चौपट हो गया।'
वाह!
अब आगे जो मुझे करना था, वह पूरी तरह साफ़ था। मने बलकुल भी दे र नह क । या
को मन ही मन इस नमं ण के लए ध यवाद करते ए मने उसको हौले से अपनी बाँह म
पकड़ लया। ऐसा करने से उसके दोन तना (जो अब पूरी तरह से कड़क हो चले थे) मेरे
सीने पर चुभने लगे। मने या को फर से कई बार चूमा - और हर बार और गहरा चु बन।
चूमने के बाद, मने उसके नत ब को पकड़ कर हौले हौले दबा दया; साथ ही साथ मने
अपने पैर को कुछ इस तरह व त कया जससे मेरा लग, या क यो न को छू ने
लगे।
" या आ?"
"... आइये आइये .." ह रहर सह जी ने मुझे दे ख कर कहना जारी रखा, "बै ठये .. अ नी
बेटा, जीजाजी के लए चाय लाओ ..... आप ज द से े श हो जाइये ... आज भी काफ
सारे काम ह।"
कम जान पहचान होने के कारण म मना नह कर सका। वैसे भी, गरम चाय इस ठ डक म
आराम तो दे गी ही। अब मने अपने चार तरफ नज़र दौड़ाई - घर म सामा य से अ धक
लोग थे।
'शाद - याह का घर है', मने सोचा, '... सारे र तेदार आये ह गे ..'
सभी लोग मेरी तरफ उ सुकतापूवक दे ख रहे थे... ले कन अगर मेरी नज़र कसी क नज़र
से मलती तो वो तुरंत अपनी नज़र नीची कर लेते - मानो को कोई चोरी पकड़ी गयी हो।
एक-दो औरत ले कन बड़ी ढठाई से मुझे घूरे जा रही थी। मने उनको नज़रंदाज़ करना ही
उ चत समझा। ह रहर सह से आगे कोई बात नह हो पायी ... वो आगे के इंतजाम के लए
कमरे से बाहर चले गए थे। लहाज़ा, अब मेरे पास चाय आने के इंतज़ार के अ त र और
कोई काम नह बचा था।
मुझे अब ठ ड लगने लग गयी थी... मेरे पास इस समय कोई गरम कपड़ा नह था। मेरा
सामान कह नह दख रहा था। 'इतनी ठ ड म तो जान नकल जायेगी' मने सोचा।
"जीजू, आपक चाय...." यह सुन कर मेरी जान म जान आई।
"जीजू ... आपक माइल मुझे ब त पसंद है ..." अ नी ने चंचलता से कहना जारी रखा,
"... और आपसे म एक बात क ?ँ "
" बलकुल!"
"दाजू होता है बड़ा भाई ... आप मेरे बड़े भैया ही तो ह न..." अ नी क इस नेह भरी
बात ने मेरे दय के न जाने कैसे अनजान तार छे ड़ दए। मेरा मन आ क इस ब ी को
जोर से गले लगा लू!ँ एक रोड- प पर नकला था, और आज एक पूरा प रवार है मेरे पास!
मुझे पता चला क हा अपनी इ ा अनुसार मैती संर क ( जनको मैती बहन कहा
जाता है) को पैसे भी दे ता है, जो क र म के बाद रोपे गए पौध क र ा करती ह, खाद,
पानी दे ती ह, जानवर से बचाती ह। मैती बहन को जो पैसा ह के ारा इ ानुसार
मलता है, उसे रखने के लए मैती बहन ारा संयु प से खाता खुलवाया जाता है।
उसम यह रा श जमा होती है। खाते म अ धक धानरा श जमा होने पर इसे गरीब ब क
पढ़ाई पर भी खच कया जाता है। 'ऐसे यास के लए तो म कतने ही पैसे दे सकता ँ'
मने सोचा, ले कन उस समय मेरी जेब म इतने पैसे नह थे। इस लए मने उन लोगो को घर
पर अपने साथ बुलाया। वहां पर मने एक लाख पये का चेक काट कर उनको दया। मुझे
लगा क आज का दन कुछ साथक आ।
आज का काय म अब समा त हो गया था, खाना-पीना करने के बाद अब मेरे पास कुछ
भी करने को नह था। मुझे या का साथ चा हए था, ले कन यहाँ पर लोग का जमावड़ा
था। जो भी अंतरंगता और एकांत मुझे उसके साथ मला था, वह सफ रात को सोते समय
ही था। म उसके साथ कह खुले म या अकेले बताना चाहता था। म अपनी कुस से उठ
कर अ दर के कमरे म गया, जहाँ या थी। मने दे खा क अन गनत औरत और लड़ कयां
उसको घेर कर बैठ ई थी। मुझे उनको दे ख कर चढ़ हो गयी। मुझे वहां दरवाज़े पर सभी
ने खड़ा आ दे खा … या ने भी। मने उसको इशारे से मेरी ओर आने को कहा। या
उठ , और अपना प लू ठ क करती ई मेरी तरफ आई।
"जी?"
"कहाँ?"
"अरे! इनसे तो आप रोज़ मलती ह गी। मुझे आपके साथ कुछ अकेले म समय चा हए
…"
या के गाल यह सुन कर सुख लाल हो गए। संभवतः, उसको रात और सुबह क याद हो
आई हो।
"जी, ठ क है।"
"और एक बात, यह साड़ी उतार द जये।"
"जी???"
"अरे! मेरा मतलब है क सलवार कुरता पहन कर आओ। चलने फरने म आसानी रहेगी।
हाँ, मुझे आप सलवार कुत म यादा पसंद ह …." मने उसको आँख मारते ए कहा।
" या म त जगह है …" कहते ए मने या का हाथ थाम लया, और उसने भी मेरा हाथ
ढ़ता से पकड़ लया।
"म आपको अपनी सबसे फेव रट जगह ले चलू?ँ " या ने उ साह के साथ पूछा।
" या बात है!" मने एक बाल-सुलभ उ साह से कहा, "मने इससे सु दर जगह नह दे खी
…" मने कते ए कहा, "और मने आपसे सु दर लड़क आज तक नह दे खी।"
या मेरी हर बात को अपनी मनमोहक भोली मु कान के साथ सुन रही थी। मने उसके
हाथ को अपने हाथ म ले लया और कहना जारी रखा,
“और म आपसे वादा करता ँ क म आपको ब त खुश रखूंगा, और आपके हर सपने को
पूरा क ं गा।”
“मेरा भी यही हाल था, जब मने आपको पहली बार दे खा। मने उसी ण म यार महसूस
कया।”
“है पीनेस!”
“मेरी ख़ुशी आपसे है – आप मेरे जीवन म आ गए, और म खुश हो गयी। आपका यार
और आपको यार करना मुझे ख़ुश रखेगा। आप मेरे सब कुछ है – आपके साथ म ब त
सेफ !ँ ये बात मुझे ब त ख़ुश करती है। और यह भी क मेरा प रवार साथ म हो और
सुर त, व हो।”
या ब त ख़ुश थी। वह अभी खुल कर मेरे साथ बात कर रही थी, और लगातार मु कुरा
रही थी। म न त प से कह सकता था क वह हमारी इस नयी अंतरंगता को पसंद कर
रही थी। जब हम एक र ते म शु आती नाजक दौर – जसम एक सरे को जानने क
या चल रही होती है – को पार कर लेते ह, तो हमम एक कार क शा त और ताजगी
आ जाती है। इस समय हम दोन अपने स ब के सरे चरण म थे, जसम हम हमारे
मासूम ेम का कोमल एहसास था।
मने या क छरहरी कमर म अपनी बाँह डाल कर उसको अपने से चपटा लया। या भी
ब त ही मु कल से मले इस एकांत का आनंद उठाना चाहती थी - वह भी मुझसे समट
सी गयी। मने अपना गाल, या के गाल से सटा दया और सामने के सु दर य का आनंद
लेने लगा। ऐसे सु दर पवत क गोद म, नया के भीड़-भाड़ से र …. यह एक ऐसी
नया थी, जहाँ जीवन पय त रहा जा सकता था।
" कए! लीज!" उसने अपनी आँख सकोड़ते ए कहा, "… यहाँ नह । अगर कोई दे ख
लेगा तो?"
"ले कन दन म ….?"
" य ? दन म या बुराई है? सब कुछ साफ़ साफ़ दखता है!" मने शैतानी भरा जवाब
दया।
"आप भी न … आपक बीवी को अगर कोई ऐसी हालत म दे खेगा तो या आपको अ ा
लगेगा?" बात कहने का उसका अंदाज़ शकायत वाला था, ले कन वर म कसी भी कार
क शकायत नह थी।
" लीज …." या ने वनती क । ले कन मेरे हाथ तब तक उसके कुत के सारे बटन खोल
चुके थे ( सफ तीन बटन ही तो थे)।
"ओके वीट हाट!" मने अ न ा से उससे अलग होते ए कहा। मने ज द से चार तरफ
का सव ण कया। वैसे मेरे ऐसा करने का कोई फायदा नह था। मुझे पहाड़ी इलाको क
कोई जानकारी नह थी। कोई भी , जो इस इलाके का जानकार हो, अगर चाहे तो
बड़ी आसानी से मेरी से बच सकता था। मुझे यह पूरा काम समय क बबाद ही लग
रहा था। म ज द ही वापस आ गया।
नाडा खुलते ही मेरा पजामा नीचे सरक गया, और सामने अंडर वयर को उभारता आ मेरा
लग दखने लगा। ठं डी हवा से मेरे जांघो और अ य संवेदनशील ान पर र गटे खड़े हो
गए। या ने कल रात क द ई श ा का पालन करते ए मेरे अंडर वयर को नीचे सरका
दया। मेरा उ े जत लग अब मु था। बना कोई दे र कये उसने लग को अपने गरम
हाथो म पकड़ कर यार से सहलाने लगी। अब तक मने भी उसक सलवार को नाड़े से
मु कर दया था। म उससे अलग आ और उसक च ी और सलवार को एक साथ ही
नीचे सरका कर उसके शरीर से अलग कर दया। अब पूणतया अनावृत या इस नजन
ाकृ तक सौ दय का एक ह सा बन चुक थी। मने भी अपना कुरता और अ य व तुरंत
अपने शरीर से अलग कर दए। हम दोन ही अब पूण पेण न न हो गए थे - ेम-योग म
कोई बाधा नह आनी चा हए।
"अलग? या?"
"पीनस होता है यह," मने अपने लग को पकड़ कर दखाया, "… और वेजाइना होती है
यह …." मने उसक यो न क तरफ इशारा कया।"अब समझ म आया आपको?"
"हनी!" मने थोड़ा जोर दे ते ए कहा, "म तुमको एक बात बोलना चाहता ँ - और वह यह
क कसी शाद म प त-प नी दोन का दज़ा बराबर का होता है। लहाज़ा, कोई मा लक
और कोई गुलाम नह हो सकता। और, सहवास जतना मेरे मज़े के लए है, उतना ही
आपके मज़े के लए है। इस लए हम दोन को ही अपने और एक- सरे के मज़े का यान
रखना होगा। समझी?"
"जी … ले कन माँ ने बोला था क .…" कहते कहते या के गाल सुख होने लगे।
" म! माँ ने ऐसा कहा?" या ने सर हलाया, "अ ा, मुझे एक बात बताइए …." या
ने बड़े भोलेपन से मुझे दे खा, "…. आपको इससे या समझ आया?"
"हाँ! ले कन, वीय को 'अ दर' लेने का सफ यही तो एक रा ता नह है …", या मेरी बात
को यान से सुन रही थी, "…. जहाँ तक मुझे मालूम है, तीन रा ते ह - पहला तो यह क
आप इसको अपनी यो न म जाने द, जैसे क हमने पहले कया है," या इस बात से शम
से और भी लाल हो गयी, ले कन मने अपनी बात कहनी जारी रखी, " सरा यह क
'इसको' आप अपने मुँह म ल, और जब म वीय छो ँ तो आप उसको पी जाएँ …." या
का चेहरा अ न तता और जुगु सा से थोडा वकृत हो गया, "… और तीसरा 'गुदा
मैथुन'…"
"गुदा?" उसके पूछने पर मने उसके नत ब पर अपना हाथ फराया।"
मतलब आपका लग मेरे पीछे ! बाप रे!" वह थोडा सा क , फर बोली "न बाबा! मुझे नह
लगता क यह 'वहां' पर फट होगा।"
मने कुछ नह कहा। उसने कहना जारी रखा, " या आप वहाँ डालना चाहते ह?"
"दे खो, कुछ लोग ऐसा करते ह, और कुछ याँ इसको पसंद भी करती ह - अगर ठ क
ढं ग से कया जाए तो!"
"आप.…?"
उसने कुछ दे र मेरे लग को यूँ ही दे खा, और फर धीरे से आगे झुक कर, मानो एक
योगा मक तरीके से ी-कम को चाट लया, और फर मेरी तरफ दे खा। मने उस पर
वाचक डाली।
" या ने समझते ए अपनी जीभ पुनः बाहर नकाली और धीरे धीरे से मेरे लग के इस
गुलाबी ह से को चारो तरफ से चाटा, और फर इस या म पुनः नकले ए ी-कम को
चाट लया। मेरे सात इंच ल बे लग को बीच से पकड़ कर उसने अपने मुंह को धीरे धीरे
खोलना शु कया। जब मेरा लग उसके मुंह के बलकुल करीब आया, तब मुझे उसक
गरम साँसे अपने लग पर महसूस ई। यह कुछ ऐसा संवेदन था, जससे मुझे लगा क म
अभी ख लत हो जाऊँगा।
अब उसके ह ठ मेरे लग के गुलाबी ह से के करीब आधे भाग पर जम गए। या बस एक
पल को ठहरी, और फर उसने लग को अपने मुँह म सरका लया। मुझको एक जबरद त
संवेद अघात लगा। आप लोगो म जो लोग इतने भा यवान ह, जनको अपनी प नी या
े मका से मुख-मैथुन का सुख मला है, वो लोग यह बात समझ सकते ह। और जन लोगो
को यह सुख नह मला ह, उनको अव य ही अपनी प नी या े मका से यह वनती करनी
चा हए। यह आघात था या के गरमागरम मुंह म नगले जाने का.. और यह आघात था
इस सं ान का क एक अ त-सु दर कशोरी यह कर रही थी.…
जैसा मने पहले भी बताया है, मेरा लग या क कलाई से भी यादा मोटा है। लहाज़ा,
यह ब त अ दर नह जा सकता था। या ने भी यह अनुमान लगा लया होगा क कतना
अ दर जा सकता था, य क उसने करीब करीब तीन इंच अपने मुंह म लया होगा जब
उसको घुटन सी महसूस ई।
"ब त यादा अ दर लेने क ज़ रत नह है।" मने उसको कहा. उसने मेरे लग को मुंह म
लए लए ही सर हलाया, और धीरे धीरे अपनी जीभ को मेरे लग के सर और बाक ह से
पर फरना शु कर दया। मने महसूस कया क वह इसको थोड़ा चूस भी रही थी (उसके
गाल वैसे ही हो रहे थे जैसा क चूसते समय होते ह)…
कभी कभी वो गलती से अपने दांत से लग को हलके हलके काट भी रही थी और जोर
जोर से चूस रही थी। इस चूषण का असर मेरे लग पर वैसा ही जैसे उसक यो न क मांस-
पे शयाँ मेरे लग पर कसती ह। इस या म बीच बीच म या मेरे श ा के छे द के
अ दर अपनी जीभ भी घुसाने का यास कर रही थी। इसके कारण मुखो रह रह के
बजली के झटके जैसे लग रहे थे। मेरे गले से उ माद क तेज़ आवाज़ छू ट पड़ी, और पूरा
शरीर थरथराने लगा।
कुछ ही समय बीता होगा क मुझे अपने वृषण पर वैसा ही एहसास आ जैसा खलन के
पूव होता है.… संभवतः, या ने भी यह महसूस कया होगा (हमारे ेम- मलन के पूव
अनुभव से उसको यह ान तो हो ही गया होगा)…. अब चूँ क वह मेरा 'बीज' न नह कर
सकती थी, अतः उसको मेरा वीय पीना तय था!
इस सं ान से मेरा खलन ब त ही ती आ - मेरे गले से साथ ही साथ एक भारी कराह
भी नकली। संभवतः उसको यह उ मीद नह थी क म इस ती ता के साथ ख लत
होऊंगा। उसको थोड़ी सी उबकाई आ गयी, और इस कारण से मेरे सरे और तीसरे
खलन का कुछ वीय उसके ह ठो से बाहर ही छलक गया। ले कन उसने अपने आपको
संयत कया और आगे आने वाले खलन को पी गयी। त प ात उसने मेरे लग को प
क तरह से चला कर बाक बचा आ वीय भी नकाल कर गटक गयी।मेरे घुटने कमज़ोर
होकर कांपने लगे - मुझे लगा क म अभी च कर खाकर गर जाऊँगा।
ऐसा ख़याल आते ही, मने या के दोन कंधे थाम लए, ले कन फर भी मेरे पैर का
क न गया नह । या ने मेरा लग अभी भी अपने मुंह से बाहर नह नकाला था, ले कन
अभी वह उसको ब त ही नरमी से चूस रही थी। उसको संभवतः महसूस आ होगा क
अब कुछ भी नह नकल रहा है - उसने मेरी तरफ दे खा और अपने मुंह को मेरे लग से
अलग कर के कहा,
"मने ठ क से कया?"
मने हामी भरी तो उसने आगे कहा, "आपने कतना ढे र सारा छोड़ा! … आप अभी खुश
ह?"
जब वो बैठ गयी, तो मने कहा, "अब मेरी बारी है …. आपको खुश करने क !"
यह कहते ए मने या को ह का सा ध का दे कर उस जुगाड़ी ब तर पर लटा दया, और
उसके मुख को पूरी कामुकता के साथ चूमने लगा। मेरे मुख को जगह दे ने के लए या का
मुख भी पूरी तरह से खुला आ था। उसक जीभ मेरी जीभ के साथ टगो नृ य कर रही
थी। कुछ दे र उसके मुख को चूमने के बाद मने उसके दा हने कंधे को चूमना शु कया
और उसके ऊपरी सीने को चूमते ए उसके बाएँ तन पर आकर टक गया। या ने अपने
हाथो क गोद बना कर मेरे सर को सहारा दया, और मने उसके तन को शाही अंदाज़ म
भोगना आर कर दया - पहले मने उसके बाएं तन को चूसा, चूमा और दबाया, और
फर यही या उसके दाय तन पर क ।
चूमते ए मने उसके पैर के अंगूठे को कुछ दे र चूसा भी। मेरे ऐसा करने से या ने
खल खलाते ए अपना पैर वापस खीच लया, और बोली, "गुदगुद होती है!" मने फर
यही या उसके बाएं पैर पर करनी शु क । कुछ दे र ऐसे ही खलवाड़ करने के बाद म
वापस जांघो के रा ते होते ए उसक यो न क तरफ बढ़ने लगा। हाँला क, हम लोग पहले
भी सहवास कर चुके थे, ले कन या क यो न का ऐसा दशन नह आ था। दन के
उजाले म मुझे उसका आकार कार ठ क से दखा - उसक यो न के मांसल ह ठ उसके
टांग के बीच के ह से क तरफ झुके ए थे और चकने और ूल थे (जैसा म पहले भी
कह चुका ,ँ इनका रंग सामन मछली के मांस के रंग का था)। इनके ऊपरी ह से म
गुलाबी मूंगे के रंग का ड था, जसमे से उसका भगनासा दख रहा था। या क साँसे
अब तक ब त भारी हो चली थ ।
मने या क टाँगे पूरी तरह से खोल द - उसके शरीर का लचीलापन मेरे लए ब त ही
आ यजनक था! उसक जांघे लगभग एक-सौ-साठ अंश तक खुल गयी थ ! मने अपनी
जीभ से उसक यो न के नचले ह से को ढं का और नीचे से ऊपर क तरफ चाटा - ब त
ही धीरे धीरे! जैसे ही मेरी जीभ का संपक उसके भगनासे से आ, उसक ससक छू ट
गयी, और साथ ही साथ उसके शरीर म एक थरथराहट भी।
"हे भगवान!" वो बस इतना ही बोल पायी। ले कन मेरे लए यह काफ था।मने अपने मुख
को वहां से हटाया और बैठे ए ही अपने दोन अंगूठ क सहायता से उसके यो न पु प क
पंखु ड़य को खोल कर उसके भगनासे को अनावृत कर दया। उसक यो न के अंद नी
ह ठ पतले थे और काफ छोटे थे। यो न- छ गुलाबी लाल रंग का था, और उसका ास
करीब करीब चौथाई इंच रहा होगा। उसक यो न म से जसमे धया, ले कन पारभासी व
रस रहा था और यो न से होते ए उसक गुदा क तरफ जा रहा था।
अरे! अगर मज़ा लेना है तो कुछ तो सहना पड़ेगा न! ले कन मेरे पास या को यह समझाने
का समय और संयम नह था। मने उस छोटे से ब को चाटना जारी रखा। या ने एक
गहरी सांस छोड़ी, और अपने नत बो को मेरे चाटने क ताल म ऊपर क तरफ हलाना
शु कर दया - मानो वह वयं ही अपनी यो न का भोग चढ़ा रही हो। कुछ दे र तक यूँ ही
चाटने के बाद मने अचानक से उसके सम त गु तांग को अपने मुंह म भर कर कास के चूस
लया और अपनी जीभ को बड़े ही हसा मक तरीके से उसके भगनासे पर फराने लगा।
या मुख मैथुन के ऐसे हार के आघात के बाद अपनी आँखे बंद कये लेट ई थी -
उसके तन उसक तेज़ चलती साँस के साथ ही उठ बैठ रहे थे और उसक साँसे अभी भी
उसके मुंह से आ-जा रही थ । उसक जांघे वापस खुल गयी थ और उसक छोट सी यो न
मेरे मौ खक प रचया के कारण पूरी तरह से गीली हो गयी थी - उसक यो न से काम-रस
अभी भी नकल रहा था।
"टॉयलेट जाना है? और अगर म न जाने ँ तो?" कहते ए मने उसको अपनी बाँह के घेरे
म पकड़ कर और जोर से पकड़ लया। या कसमसाने लगी।
" या छ ? मने तो आपका सब कुछ दे ख लया है, फर इसम या शम?" मेरी बात सुन कर
या और भी शरमा गयी। म अब उठ कर बैठ गया और साथ ही साथ या को भी उसक
बाँहे पकड़ कर बैठा लया, और इसके बाद मने या क टाँगे थोड़ी फैला द । मेरी इस
हरकत से या खल खला कर हंस द ।
"इस तरह से?" मने सर हल कर हामी भरी …. "मुझे नह लगता क म ऐसे कर सकती
ँ!"
"आप सचमुच मुझे ये सब करते दे खना चाहते ह?" मने हामी भरी, "…. ये सब कतना
ग दा है!"
"आई लाइ ड इट! इसको थोड़ा और आगे ले जायगे!" मने कहा और या को पुनः चूमने
लगा।
५
अ नी क नजर म :
'द द को कतना दद होगा! बेचारी दे खो कैसे उसक साँसे डर के मारे बढ़ गयी ह!'
'द द ठ क तो है? बाप रे! इतनी मोट और ल बी चीज़ कोई अगर मेरे म डाल दे तो म तो
मर ही जाऊंगी!' अ नी ने सोचा।
'द द या करने को कह रही है? और वो ऐसी हालत म बोल भी कैसे पा रही है। मेरी तो
जान ही नकल जाती और म रोने लगती।'
द द क बात सुन कर जीजू क कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी - ले कन ऐसे क
उनका छु ू पूरे समय द द के अ दर ही रहे और बाहर न नकले।
'हे भगवान्!' अ नी अब मं मु ध होकर अपने द द और जीजा के यौन संसग का य
दे ख रही थी।
या क नजर म : :
जब या के ववाह का दन नकट आने लगा, तो पास पड़ोस क तीन चार 'भा भय ' ने
उसको अंतहीन और अधकचरी यौन श ा दान क । उनके हसाब से पु ष का लग
सामा यतः संकरा, थोड़ा लटकता आ, पतली ककड़ी जैसे आकार का होता है। क तु
उसके प त का लग तो उनके बताये जैसा तो बलकुल ही नह था - ब क उसके वपरीत
कह अ धक बल, ल बा और मोटा था। उ ह ने यह भी बताया था क यौन या तो बस
दो से चार मनट म ख़तम हो जाती है, और ऐसा कोई घबराने वाली बात नह होती, और
यह भी क ये तो पु ष अपने मज़े के लए करते ह। ले कन उसका प त इस वभाग म भी
न त प म लाख म एक है - एक तो उनके बीच का एक भी यौन संग कम से कम
पं ह बीस मनट से कम नह चला … और तो और 'उ ह ने' उसके आनंद को हर बार
वरीयता द । भा भय के हसाब से सहवास का मतलब लग का यो न म अ दर बाहर जाना
और तीन चार मनट म काम ख़तम। ले कन अब तक उन दोन ने जतनी भी बार भी
सहवास कया, उतनी ही बार सब कुछ नया नया था।
'कोई तो वहां है!' हाँला क उसके ने म ख चे वासना के डोरे उसक अवलोकन को धुंधला
बना रहे थे, ले कन थोडा जतन करने से उसको कुछ दखने लगा। जो था,
उसके कपडे ब त ही जाने पहचाने थे। पर समझ नह आ रहा था क ये है कौन!
'कोई दे खता है तो दे ख!े आ खर वह अपने प त के साथ समागम कर रही है, कसी गैर के
साथ थोड़े ही! और दे खना ही या? जा कर सबको बताये क या और उसका प त कस
तरह से सहवास करते ह। और यह भी क उसके प त का लग कतना बल है!'
अ नी का दल एकदम से बैठ गया - 'द द उसी क तरफ दे ख रही है! या उसने मुझको
दे ख लया होगा? चोरी पकड़ी गयी? ऐसा लगता तो नह ! अगर दे खा होता तो शायद वो
अपने आपको ढकने क को शश करती?' उसक इस समय इस अ यंत रोचक मैथुन
के क ब पर मानो चपक ही गयी थी। जीजू का वकराल लग द द क छोट सी यो न
के अ दर बाहर ज द ज द फसल रहा था, और द द उसके हर ध के से उछल रही थी,
और आह भर रही थी।
मेरी नजर म : :
वह कुछ कर या कह पाती उससे पहले ही मने अपने आप को छोड़ दया - मेरे गम, सफ़ेद
वीय के ल बे मोटे डोरे उसके पेट और जाँघ पर छलक गए। वीय क कुछ छोट -छोट बूँद
उसके यो न के बाल पर उलझ ग । ऐसा करते ए मेरी भरी ई साँस के साथ कराह भी
नकल गय - मेरे पाँव इस तरह कांपे क मुझे लगा क म अभी गर जाऊँगा। मने पकड़
कर अपने आप को स हाला।
"आपने ऐसे य कया? मने आपको बोला था क आपका बीज मुझे मेरे अ दर चा हए!"
कहते ए उसने एक भरपूर नज़र मेरे शरीर पर डाली। मुझे मालूम था क अ नी ने मुझे
और या को पूरा न न तो दे ख ही लया है, तो अब छु पाने को या ही है? अतः मने भी
अपने शरीर को छु पाने क कोई को शश नह क - उसने हमको काफ दे र तक दे खा होगा
- संभव है क सहवास करते ए भी। संभव नह , न त है। लहाज़ा, अब उससे छु पाने
को अब कुछ रह नह गया था।
"अ ा …" या ने शमाते ए कहा। वो बेचारी जतना समट जा रही थी, उसके अंग
उतने अ धक अनावृत होते जा रहे थे। "…. वो हमारे कपड़े यहाँ ले आ …. लीज!" या
ने वनती करी। अ नी बात मान कर हमारे कपड़े लाने लगी।
"आप लोग ऐसे नं युल …. मेरा मतलब ऐसे नंगे य ह? ठं डक लग जायेगी न! कर या
रहे थे आप लोग?" उसने एक ही सांस म पूछ डाला।
"हम लोग एक सरे को यार कर रहे थे, ब े!" मने माहौल को ह का बनाने के लए
कहा।
" यार कर रहे थे, या मेरी द द को मार रहे थे। मने दे खा … द द दद के मारे कराह रही
थी, ले कन आप थे क उसको मारते ही जा रहे थे।"
उसने पहले या को, और फर मुझको हमारे कपड़े दए, मने कपडे लेते ए उसका हाथ
पकड़ लया और अपने ओर ख च कर उसक कमर को पकड़ लया और उसक आँख म
आँख डाल कर, मु कुराते ए, ब त ही नरमी से कहा,
कोई दो मनट म हम दोन ही शालीनता पूवक तरीके से कपड़े पहन कर, अ नी के साथ
वापस घर को रवाना हो रहे थे।
खाने के पहले करीबी लोग साथ बैठ कर हंसी मजाक कर रहे थे। एक भाई साहब अपने
घर से यू जक स टम ले आये थे और उस पर 'गो न ओ ीस' वाले गीत बजा रहे थे।
उ ह ने ने ही बताया क या गाती भी है, और ब त अ ा गाती है। उसक यह कला तो
खैर मुझे मालूम नह थी। वैसे भी, हमको एक सरे के बारे म मालूम ही या था? मुझे
उसके बारे म बस यह मालूम था क उसको दे खते ही मेरे दल ने आवाज़ द क यही वह
लड़क है जसके साथ तु हे पूरी उ गुजारनी है।
जब थाली परोसी गयी तो म घबरा गया - ये रोज़मरा क थाली है?! मुझको जो परोसा गया
वह था - पुलाव, राजमा दाल, वांटे के पकौड़े, वाले (एक तरह के परांठे), और खीर - जो
या ने बनायी। सबसे अ बात मुझको यह लगी क सभी लोग टाट-प पर साथ म
बैठ कर साथ म खाना खा रहे थे। यहाँ लगता है क याँ अपने प तय के साथ बैठ कर
खाना नह खाती, ले कन मेरे दबाव म या मेरे साथ ही खाने बैठ गयी। वह सल ,
ले कन संयत लग रही थी। पहले तो शाद होने के बाद भी सलवार-कुता पहनना, फर
खुलेआम एक रोमां टक गाना, और अब साथ म बैठ कर खाना - इस छोट सी जगह के
लए ब त बड़ा अपवाद था।
अगले प ह मनट म शाद क बधाई के साथ मुझे कम से कम बीस अलग अलग जगह
के बारे म मालूम हो गया - पहाड़ो से लेकर रे ग तान तक, धम ान (आ खर हनीमून के
लए कौन गधा धम- ान जाता है?) से लेकर न न-बीच तक। पहाड़, धम- ान,
रे ग तान, और जंगल वाले आई डया मने नकार दए (हाँला क जंगल वाला आई डया मुझे
ब त अ ा लगा - ले कन मने सोचा क उसको बाद म दे खा जाएगा।
अगले आधे घंटे म मुझको गोवा, केरल, अंडमान और ल प के बारे म मालूम हो गया।
लगभग सभी ने गोवा के बारे म बोला अव य। इसी से मुझे हो गया क वहां नह
जाना है - न त प से ब त ही भीड़-भाड़ वाली जगह होगी। कोई ऐसी जगह चा हए
जो साफ़ सुथरी हो, सुर त हो, और जहाँ पया त एकांत भी मले।
फर मने अपने बॉस को फ़ोन कया और अपना लान बताया। आप लोगो सोचगे क ऐसा
बॉस सभी को मले - ले कन उसने पहले तो मुझे ववाह क बधाइयाँ द और फर ब त ही
ख़ुशी से मुझको वापस आने के लए 'अपना समय लेने' को कहा (इतने दन के काम म
मने शायद ही कभी छु ली हो - उसको कभी कभी यह डर लगता था क कह मुझे काम
के कारण बन-आउट न हो जाए। वो मेरे जैसे लाभकर कमचारी का य नह करना चाहता
था। उसने मुझे अंडमान जाने को कहा, और यह भी बताया क उसका एक म है जो वहां
एक उ दा होटल का मा लक है। और यह क वह होटल एकदम फ ट लास है (वह खुद
भी वहां रह चुका है), और वह अपने दो त को मुझे ड काउं ट दे ने के लए भी बोलेगा। मुझे
तो उसका सुझाव ब त अ ा लगा, ले कन या क रजामंद भी उतनी ही आव यक थी।
अतः मने उसको कहा क म सवेरे फोन कर के बताऊँगा।
"यहाँ तो ब त ठं डक हो जाती है! बाप रे! आप लोग रहते कैसे ह?" मने कमरे के अ दर
आते ए या से पूछा। म अपने हाथ को रगड़ कर गरम करने का यास कर रहा था।
या इस समय कुछ कपडे तह करके एक तरफ रख रही थी।
"आपको कैसे मालूम क मेरे पास सफ एक वेटर है? मेरे पीछे पीछे मेरा सामान चेक कर
रही थ या?" मने मजाक करते ए कहा।
"हाँ! आपके कुछ कपड़े आपके बैग म रखने थे, इस लए।" या ने प नी-सुलभ अ धकार
और मान वाली आवाज़ म कहा। म मु कुराया - अब 'मेरा सामान' जैसा कुछ नह है!
"कम .... गव मी अ कस!" मने उसक कमर को थामते ए कहा। मेरी इस बात से या
के गाल एकदम से सुख हो गए। मने बड़ी मृ लता से उसके सर को मेरी तरफ झुकाया और
उसक आँख म दे खा। वहाँ ल ा, ेम, रोमांच और स ता के मले-जुले भाव थे। मने
अपने ह ठ को उसके ह ठो से सटाया और अपनी जीभ को उसके ह ठो के बीच धीरे से
धकेल दया। या के ह ठ सहजता से खुल गए, और मेरी जीभ उसके मुख म चली गयी।
मने अपनी जीभ से उसके मुख के भीतर टटोलना शु कर दया और कुछ ही पल म
उसक जीभ को महसूस कया। या ने भी मेरा अनुसरण करते ए अपनी जीभ चलानी
शु कर द ।
उसी समय मुझे यान आया क म तो अभी भी पूरी तरह से कपड़े पहने ए था। मने ज द
से अपने सारे कपडे उतार दए, जससे मु य काय म कोई वल ब न हो। मेरा इरादा या
के शरीर के एक एक इंच का आ वादन अपने हाथ और मुंह से करने का था। मने उसके
इस काम के लए चेहरे से आर करने क सोची। मने या को ह ठ पर चूमा तो वह भी
मुझे चूमने लगी, ले कन मेरा लान अलग था। मने उसके पूरे चेहरे को चूमा और फर
उसके कान के नकट गया। मने उसके कान को चूमते ए उसक लोलक को धीरे से
काटन और चबाना शु कया। उसके सरे कान के साथ भी यही आ। मने साथ ही साथ
अपने खाली हाथ से उसके शरीर को सहलाना भी शु कया। इस स म लत हार का
असर यह आ क या क साँसे फर से बढ़ने लग । ऐसे ही सहलाते सहलाते मने उसके
एक तन को अपने हाथ से ढक लया और कुछ दे र उनको यूँ ही दबाया। मने दे खा क
या क आँख अब बमु कल ही खुल पा रही थ ।
म उसक गदन से होते ए नीचे क तरफ जाकर उसके सीने के ऊपरी ह से चूमने लगा।
नीचे बढ़ते ए मने उसके तन के बीच के ह से, उनके नीचे और आसपास चूमा और
जीभ से छे ड़ा। या क सांस अब काफ बढ़ गय थ और उसक आँख कास कर बंद हो
गयी थ । उसके दोन हाथ अभी भी उसके बगल म ही थे, ले कन उ माद म उसक मु यां
बंध गय थ । मने एक और बात दे खी, और वह यह क उसने अपनी कामुक अवचेतना म
अपनी टाँगे थोड़ी खोल द थ जससे मन उसके यो न- े का अ वेषण कर सकूं, मने
अभी तक उसके तन पर अपना काय समा त नह कया गया था।
मने उसके एक तना पर अपनी जीभ फराई - या ने कांपते ए तेज़ सांस भरी। उसक
छाती एकदम से ऊपर उठ गयी, जससे उसका तन मेरे मुंह म अनायास ही भर गया। मने
उसके चेहरे को दे खा, उसक आँख अभी भी कस कर बंद थ , ले कन सांस भरने के कारण
उसके ह ठ थोड़ा जुदा थे। मने पुनः उसके तना को चाटा तो एक बार फर से उसक
छाती मेरे उठ कर मेरे छे ड़ते ए मुंह म भर गयी। मने उस तना को मुंह म भरा और धीरे
से चूसने, चबाने और काटने लगा। उसक साँसे अब और अ धक तेजी से चलने लग साँस
ले रहा था और बेचैनी म अपने सर को इधर उधर चलाने लगी। ऐसा करने से उसके बाल
ब तर पर फ़ैल गए। वाह! या गज़ब क कामुक लग रही थी वह! कुछ दे र उसके तन को
इसी कार छे ड़ने के बाद मने सरे तन पर भी यही या आर कर द , ले कन पहले
वाले तन को छोड़ा नह - उसको अपने हाथ से लगातार मसलता, लारता रहा। या क
कामो ेजना दे खने लायक थी - उसका पूरा शरीर कसमसाने लगा, और उसने अपने दोन
पैर और ऊपर ख च लए थे। मने समय दे ख कर उसके तन को छोड़ा और ऊपर प ँच कर
ह ठ पर उसे चूमा। या ने पहले क तुलना म कह अ धक श के साथ मेरे मुंह म
अपनी जीभ डाल कर मुझे वापस चूमा। उसने उ माद म आ कर मुझे पकड़ लया था।
कुछ दे र ऐसे ही चूमने के बाद मने पुनः उसके तनो का भोग लगाना आर कर दया।
उसके शरीर पर वह दोन वा द तन जस तरह से परोसे ए थे, म ही या, कोई भी
होता तो अपने आपको रोक न पाता। मुझे लगा क या कुछ कुछ कह रही थी, ले कन
उसक आवाज़ मेरे एक तो तनपान क या के कारण धीरे-धीरे आ रही थी और ऊपर
से मेरे वयं के उ माद के कारण मुझे लग रहा था क ब त र से आ रही है।
'वाकई! काश इनमे ध होता!' मने सोचा, तो मुंह म और वाद आ गया। मने और जोश म
आकर उनको चूमना, चूसना और दबाना जारी रखा। मने कब तक ऐसा कया मुझे यान
नह , ले कन एक समय ऐसा भी आया क या दद भरी ससक भरने लगी। मुझे समझ
आ गया क अब सरे तन क बारी है, और यही या उस पर भी आर कर द ।
न त तौर पर अब तक या का संकोच समा त हो चला था, और वह कामुक आनंद से
पूणतया अ भभूत हो गयी थी।
अब आगे बढ़ने का समय हो चला था। म उसके पेट को लगातार चूमते ए उसके गु तांग
तक प ँचने लगा। मेरे हर चु बन के जवाब म या कसमसाने लगती। इस समय उसके
दोन हाथ मेरे बाल म घुस कर मेरे सर को कभी पकड़ते तो कभी सहलाते। म चूमते ए
ज द ही उसक यो न तक प ँच गया। मने उसके जघन े को चूमा तो या ने अपने
कू ह को मेरे मुंह म ठे ल दया। मने अपनी जीभ से कुछ दे र चाटा। उसक यो न के इतने
करीब होने के कारण म उसक मंद ैण-गंध सूंघ सकता था। मेरा लग अ व सनीय ढं ग
से कड़ा हो गया था, और म चाहता था क या उसको महसूस कर सके।
मने उसका चेहरा अपने दोन हथे लय म लेकर उसके ह ठ पर एक भरपूर चु बन दया
और कहा, "वाह! तुम एक ब त खूबसूरत लड़क हो!" अब तक मेरी साँसे मेरे नयं ण म
आ गयी थ और मेरा लग भी। उसक उ ेजना बरकरार थी ले कन बेकाबू नह । फर मने
या क टाँगे सावधानी से अलग कर और जगह बनायी और अपने लग को हाथ म लेकर
उसक यो न म धीरे धीरे सरका दया। लग का सर अपने गंत म वेश कर चुका था।
मने यह ब त ऊंची आवाज़ म बोला था। भगवान् ही जाने क बगल के कमरे म बैठे मेरे
ससुराल वाले या सोच रहे ह गे। मेरी हर 'कम ऑन' पर या के ध के और ती हो जा
रहे थे - वह मेरा मंत समझ रही थी। उसके उसके नाखून मेरी पीठ म गड़ने लगे थे -
ले कन मुझे यह पीड़ा भी इस समय मनोहर लग रही थी।
अंततः मने उसके कोमल ह ठो को चूमना छोड़ कर उससे पूछा, "सो गल, डू यू लाइक
मे कग लव?"
सुबह सवेरे ही सबसे पहला काय हमारी शाद का पंजीकरण करवाने का कया। मने नहा-
धो कर पै ट-शट और शाल पहनी, और या ने साड़ी, लाउज और वेटर! पंजीकरण का
काय पड़ोस के बड़े कसबे म होना था, इस लए द तर खुलने से पहले ही हम सब वहां
प ँच गए। इतने मामूली काम के लए भी पूरी मंडली साथ आई – कहने का मतलब यह
काम सफ २ गवाह और मयां-बीवी के रहने मा से ही हो जाता है। खैर, हमने द तर के
बगल ही एक ढाबे म ना ता कया और सबसे पहले अपना नंबर लगवा दया। ववाह के
अ भलेखी (र ज ार) ब त ही मज़ेदार थे – उ ह ने हम सबको चाय पलाई, समोसे
खलाए और अपने अनुभव क कई सारी मज़ेदार बात बताय । उनके साथ ब त दे र तक
बात चीत करने के बाद हमने उनक अनुम त मांगी, जसके उ र म उ ह ने हमको द तर
के दरवाजे तक छोड़ा और एक बार फर से हम दोन को हमारी शाद क ब त ब त
बधाइयाँ द । करीब दोपहर तक वापस आते ए हमने या के कूल म जा कर उसका
पहचान प बनवाया और घर वापस आ गए।
हमको अगले दन बड़े सवेरे ही नकलना था, इस लए वदाई दे ने के लए मलने वाले लोग
दोपहर बाद से ही आने लगे। मेरे दो त लोग तो खैर कब के वापस चले गए थे, अतः
ाइ वग करने का सारा दारोमदार मुझ पर ही था। दोपहर का भोजन समा त करने तक
हमारे लए ससुराल वाल ने न जाने या- या पैक कर दया था, जसका पता मुझे दो-ढाई
बजे आ। इस लए बैठ कर मने बड़ी मेहनत से पैक कया आ सारा फालतू का सामान
बाहर नकाला और सफ ब त ही आव यक व तुएँ ही रखी। या का शाद का जोड़ा, दो
जोड़ी सलवार कुरता और एक वेटर रखा। मुझे उसक सारी सा ड़याँ बाहर नकालते दे ख
कर मेरी सासू माँ व मत हो गयी।
शाम को कोई चार - साढ़े चार बजे कसी ने बताया क भारी बा रश का अंदेशा है – केदार
घाट और ब नाथ म हमपात हो रहा था और उसके नीचे बा रश। ऐसे म भू खलन क
संभावना हो सकती है। कुछ दे र के वचार वमश के प ात सबने यह नणय लया क म
और या तुरंत ही नीचे क तरफ नकल लेते ह, जससे आगे ाइव करने म आसानी रहे।
सासू माँ को यह ख़याल अ ा नह लगा, ले कन ससुर जी वहा रक थे, अतः
मान गए। वैसे भी आठ-दस घंटो म ऐसा या ही अलग होने वाला था। इस अ या शत
व ा के लए कोई भी तैयार नह था – एक तरह से यह अ बात सा बत ई।
य क वदाई के नाम पर अनाव यक रोने-धोने का काय म करने के लए कसी को
मौका ही नह मला। एक दो म हला ने को शश तो ज़ र करी क मगरम आंसू
बहाए जायँ, ले कन ससुर जी ने उनको डांट-डपट कर चुप करा दया। हम दोन ने सारे
बुजुग के पांव छु ए और उनसे आशीवाद लया। मने अ नी को छे ड़ने के लए (आ खर
जीजा ँ उसका!) दोन गाल पर ज़ोर से प पी ली, और उसको एक लफ़ाफ़ा दया, जो म
सफ उसके लए पहले से लाया था। अ नी को बाद म मालूम पड़ेगा क उसम या है,
ले कन उसके पहले ही आपको बता ं क उसम बीस हज़ार एक पए का चेक था। इसी
बहाने अ नी के नाम म एक बक अकाउं ट खुल जाएगा और उसके पढाई, और ज़ रत के
कुछ सामान आ जायगे।
“आगे कोई धमशाला आये, तो रोक ली जयेगा”, या ने कहा, “काफ अँधेरा है, और
बा रश भी! अगर कह फंस गए तो ब त परेशान हो जायगे।“
“ बलकुल! वैसे भी आज रात म ाइव करते रहने का कोई इरादा नह है मेरा। कोई ढं ग
का होटल आएगा तो रोक लूँगा। आज दन क भाग-दौड़ से वैसे भी थक गया ँ।“
ऐसे ही बात करते करते मुझे एक बंगला, जसको होटल बना दया गया था, दखाई दया।
बाहर से दे खने पर साफ़ सुथरा और सुर त लग रहा था। इस समय रात के लगभग आठ
बज रहे थे, और इतनी रात गए और आगे जाने म काफ अ न तता थी – क न जाने कब
होटल मले? दे खने भालने म ठ क लगा, तो वह कने का सोचा। यह एक व टो रयन
शैली म बनाया गया बंगला था, जसम चार कमरे थे – कमरे या, क हये हाल थे। ऊंची-
ऊंची छत, उनको स हालती मोटे -मोटे लकड़ी क शहतीर, दो कमर म अलाव भी लगे ए
थे। साफ़ सुथरे ब तर। रात भर चैन से सोने के लए और भला या चा हए? होटल म
हमसे पहले सफ एक ही गे ट ठहरे ए थे – इस लए वहां का माहौल ब त शांत, या यूँ
कह ली जये क नजन लग रहा था। गाड़ी पाक कर के या और म कमरे के अ दर आ
गए। पता चला क वहां पर खाना नह बनाते (मतलब कोई रे ाँ नह है, और खाना बाहर
से मंगाना पड़ेगा)। मने प रचारक को कुछ पये दए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने
को कह भेजा। मेनेजर को यह कहला दया क सवेरे नहाने के लए गरम पानी का
बंदोब त कर द!
या ने ‘हाँ’ म सर हलाया।
अपना वा य ख़तम करते करते मुझे एक तुकबंद गाना याद आ गया, तो मने उसको भी
जोड़ दया,
“अरे यार! तुम थोड़ा कम बकवास करो!” मने मजा कए लहजे म या को झड़क
लगाई। “शाद करते ही तुम अब मेरी हो – मतलब तन, और मन दोन से! मतलब तु हारा
तन अब मेरा है – और इसका मतलब तु हारा पांव भी मेरा है। और मेरे पांव म दद हो रहा
है! समझ म आई बात?”
“आपको भी सताऊँ?”
मने या को कुस पर बैठाया और सबसे पहले उसक सडल उतार द – यह कोई कामुक
या नह थी (हांला क मने पढ़ा है क कुछ लोग इस कार क जड़ास रखते ह और
इसको फुट-फे टश भी कहा जाता है), ले कन फर भी मुझे, और या को भी ऐसा लगा
क जैसे उसको एक कार से नव कया जा रहा हो। या क उ नता इतने म ही
शांत होती दखी। चाहे कैसी भी तकलीफ हो, पांव क मा लश उसको र कर ही दे ती है।
मने या के दा हने पांव के तलवे के नीचे के मांसल ह से को अपने अंगूठे से घुमावदार
तरीके से मा लश करना आर कया। कुछ दे र म उसके पांव क उँ ग लय के बीच के
ह से, तलवे और एड़ी को मब तरीके से मसलना और दबाना जारी रखा। पांच मनट
के बाद, ऐसा ही बाएँ पांव को भी यही उपचार दया। इस या के दौरान मने या को
दे खा भी नह था, ले कन मने जब सरे पांव क मा लश समा त क , तो मने दे खा क या
क आँख बंद ह, और उसक साँसे तेज़ हो चली थ ।
“आप मुझको कतनी आसानी से बहका दे ते ह!” मेरे वापस आने पर या ने लजाते,
सकुचाते कहा।
“जानू, सफ मुझे ही नह , हम दोन को ही ख़ुश रहना है। ओके? अरे भाई – हमारे शा
म भी यही बताया गया है!”
“शा म यह सब बाते होती है?”
संतु ो भायया भता भता भाया तथैव च:। य म ैव कुले न यं क याण त ेव ुवम्।।
अथव ने तेल से चुपड़ी अपनी दोन हथे लयाँ मेरे तन पर रख द । उनके हाथ क छु वन
मा से ही मेरे दोन चूचक तन कर खड़े हो गए। अथव जतनी भी बार मेरे तन को छू ते
ह, लगता है क पहली बार ही छू रहे ह । उनके छू ते ही मेरे पूरे शरीर म झुरझुरी दौड़ जाती
है। मेरी साँस तुरंत तेज़ हो गई – लाज के मारे मने अपनी आँख बंद कर ली, और आगे होने
वाले आ मण के लए अपने मन को मज़बूत कर लया।
‘सीईई! आह! यह या!’ ऐसी नदयता से मत मसलो मेरे साजन! ये कोमल क लयाँ है,
ज़रा बचा कर!
मेरी साँस इस समय ब त तेज़ चल रही थी और आँख म खुमार सा आने लग गया। अथव
ने मुझे अपनी बांह म भर कर ब तर से उठा लया, तो म भी अपनी बाह उनके गले म
डाल कर उनके आ लगन म झूल सी गई। अनजाने ही सही, ऐसा करके मने उनके सामने
अपने तन परोस दए और उनको भोज का नमं ण भी दे दया। और द ऐसे तो नह है
क इस कार के भोज नमं ण तो ठु करा द। उ ह ने मुझे एक हाथ (बाएँ) से पकड़ कर
स हाला, और सरे (दा हने) से मेरे बाएँ तन को पकड़ कर थोड़ा दबाया। ऐसा करने से
मेरा तना एकदम से बाहर नकल आया। उ ह ने उसको कुछ दे र ऐसे नहारा जैसे क
उसका मू यांकन कर रहे ह और फर धीरे से अपने ह ठ उस पर लगा दए।
अपने शरीर के कसी अंग को कसी और के मुख म ऐसे कामुक ढं ग से लीले जाते ए
दे खना अ यंत रोमांचक होता है। मेरे चूचक से एक काम क एक मीठ धारा नकली और
वहां से होते ए पूरे शरीर म बहने लगी। ल ा और रोमांच के कारण मेरी आँख मुंद ग !
अथव मेरे तन क धीरे-धीरे चु क लगा रहे थे और साथ ही साथ तन को मुँह म भरते भी
जा रहे थे। कुछ ही दे र म मेरे तन का यादातर ह सा उनके मुँह म समां गया। कामो माद
ने मुझे पूरी तरह से बेबस कर दया था... म अब या कर रही थी, उस पर मेरा कोई भी
नयं ण नह था।
म उनका सर अपने हाथ से पकड़ कर अपनी छाती क तरफ दबाने लगी। अथव ने भी
ठ क उसी अनु प अपना आभार कट कया। वे अब बारी बारी से मेरे दोन तन को
चूम और चूस रहे थे - कभी वो उनको अपने मुँह म पूरा भर लेते तो कभी चूसते ए मेरे
चूचक अपने दांत से ह के से काट लेत!े उनक इन हरकत से मेरी कराह, सस कयाँ,
कलकारी – या जो भी कुछ है – नकल जाती!
आ य क बात है क हार मेरे तन पर हो रहा था और भाव मेरी यो न पर पड़ रहा था।
कामरस क बा रश से ब तर पर बछा च र गीला हो चला था। अथव मेरे दोन तन पर
योग पर योग कये जा रहे थे – वो कभी उनको चूमते, कभी मेरे चूचक पर जीभ
फराते, कभी चाटते, कभी मसलते तो कभी दबाते। और तो और वो बीच-बीच म तन को
छोड़ कर मेरे ह ठ पर जोरदार और अ तरंग चु बन लेटे और फर वापस अपने काम पर
लग जाते। अथव को तनपान कराने क मेरे अ दर ऐसी ती इ ा थी क मन म बस यही
आया क मेरे दोन तन मीठे मीठे ध से भर जाएँ, और अथव जीवन भर उनका पान कर
सक! अथव के श म वह जा था क वो मुझे कुछ ही पल म मतवाला बना दे ते। म इस
कदर रोमां चत हो चली थी क म उनक गोद म ही उछलने लगी।
या क आँख एक झटके से खुली।
इतना वा त वक सपना क उसको अपने तना पर अभी भी मीठ मीठ पीड़ा महसूस हो
रही थी। उसका हाथ उनको सहलाने के लए अपनी छाती पर गया।
“आप या लगे?”
अरे! मने आपको मेरी हाउ सग सोसाइट के से े टरी के बारे म कुछ बताया ही नह !
ीमती हेगड़े जी ने ही उसको पकड़ कर सोफे पर बैठाया और वयं भी सभी बैठ गए। इस
समय मेरा मह व लगभग नग य था, य क वो दोन ही मेरी प नी से बात करने म मगन
थे। अब चूं क ी और ीमती हेगड़े जी को हद का ान ब त ही कम था और वो लोग
सहज नह थे, इस लए आगे क बात सब अं ेजी म !
ीमती हेगड़े जी ने ी हेगड़े जी से कहा, “Is she not a thing of beauty! ( कतनी
सु दर ह यह, है न?)”
ी हेगड़े जी: “Oh she is! Such a lovely child! What is your good name, my
child? (ओह बलकुल! ब त यारी ब ी है! तु हारा शुभ नाम या है बेटे?)”
“जी, या!”
“Shut up old man! (तुम चुप करो)” ये ीमती हेगड़े जी क मीठ झड़क थी, “Stop
teasing him! (ब त हो गयी इसक खचाई)” फर उ ह ने या को दे ख कर कहा, “But
yes, she is so beautiful, and I am so happy for you both. (ले कन हाँ, ब ब त
सु दर है, और म तुम दोन के लए ब त ख़ुश ँ)”
खैर, मने ही उनको बताया क या अभी कॉलेज म पढ़ रही है, और जैसे ही वो शाद
लायक ई, मने उसको लपक लया। फर मने उन दोन को मेरी ससुराल के बारे म
बताया। म उन सबसे कैसे मला, यह भी बताया। मेरी बात सुनने के बाद ी हेगड़े जी ने
मुझसे कहा,
“You are a lucky fellow, my boy! And oh yes we are very happy for both of
you! And I must tell you young man that you are going to take good care of
this little doll. (तुम ब त ही भा यशाली हो बेटा! और हाँ, हम दोन ही तु हारे लए ब त
ख़ुश ह... और एक बात, इस गु ड़या जैसी लड़क का ठ क से ख़याल रखना!)”
ी हेगड़े जी ने मुझे हदायद द , “... for us you are like a son, but she is now our
daughter too. (तुम हमारे बेटे जैसे ही हो, ले कन यह अब हमारी बेट है)”
फर या क तरफ मुखा तब होकर, “My dear child, you heard what I just said.
Treat us as your own parents. We will not let you feel alone, when this
nocturnal, workaholic husband of yours is away slogging. If you need
anything at all, you come to us. Okay? (ब ,े तुमने सुना क मने अभी या कहा?
हमको अपने माता- पता जैसा ही समझना। जब भी ये तु हारा प त ऑ फस म मेहनत कर
रहा हो, हमारे पास आ जाना - हम तुमको कभी भी अकेला नह महसूस होने दगे! कुछ भी
ज़ रत हो, तो तुरंत आ जाना। ओके?”
“Very well then, both of you on your feet. Clean up and get ready...
Tonight's dinner is with us. So, if you have any other plans for dinner, scrap
them. (ब त अ ा! अब चलो, ज द से े श होकर तैयार हो जाओ – आज का खाना
हमारे साथ ह। अगर बाहर जाकर खाने का कोई लान था, तो भूल जाओ।)”
“आपको घर अ ा लगा?”
“ब त अ ा है” (उसने ब त पर थोडा जोर दे कर कहा), “और आपने ब त अ े तरीके
से रखा भी है।“
“थक यू! अ ा, एक बात – कल मने एक रसे शन रखा है। मेरे जान पहचान के लोग
आयगे – यादातर ऑ फस से। आपके पास कल पहनने के लए कुछ है न?”
“कोई बात नह , कल हम दोन शौ पग करने चलगे। ओके? इसी बहाने आपको अपना
शहर भी दखा ं गा!”
“आई लव यू!” कह कर मने उसक साड़ी का प लू उसके सीने से नीचे ढलका दया, और
एक गहरी, शंसक डाली। मेरी इस हरकत से या क नजर नीचे झुक गयी। म कुछ
मज़े लेने के लए अनायास ही उसक लाउज का सबसे ऊपरी बटन खोलने लगा। ऐसे
सहवास करने का कोई मूड नह था – या के पूरे चेहरे पर शम का रंग गहरा गया।
“हंह?”
“ये श ा मलती है?” कहते ए मने अपनी उं गली जोर से उसक यो न के अ दर घुसा द ।
“आआ ह!” वह अपने उ माद के चरम पर प ँच रही थी। यह बात मुझे भी समझ आ रही
थी इस लए मने अब उसके भगनासे को भी अपने अंगूठे से छे ड़ना शु कर दया। या के
दोन हाथ मेरे दोन क को पकडे ए थे, उसक आँख बंद थ और मुँह से कामुक
आवाज नकल रही थ । मेरी उं गली के अ दर बाहर आने जाने से वह उचक भी रही थी।
कामा न के कारण या के चेहरे पर पसीने क बूंदे चमकने लगी – उसक साँसे छोट ,
गहरी और ध कनी जैसी चलने लगी।
“आ ह!” मने उसको कमर से पकड़ कर अपनी गोद म बैठा लया, ले कन उसक यो न
का मदन जारी रखा। या का पूरा शरीर कामो ेजना म कांप रहा था।
“ओ माँ! म तो मर गई!”
“आप हमारी बात म माँ को य लाती ह - हमारे बीच का मामला है, हम ही सुलझा लगे?
और..... अगर उ ह ने आपको ऐसे लुटते ए दे खा तो डर जाएँगी!” मने आँख मारते ए
चुटक ली।
“ठ क है!”
“ योर! नाउ सर, लीज़ सट एंड वेट! लेट अस सर ाइज यू!” उसने मु कुराते ए कहा।
उन दोन को कुछ दे र लगने वाली थी, इस लए मने ा- फटर को बीच- वयर, और वम-
वयर भी चुनने को कह दया और अपने लए भी कुछ सामान लेने चला गया। कोई डेढ़-दो
घंटे के बाद हमारे पास तीन बैग भर कर सामान हो गया।
घर आते ही सबसे पहले पोट- लेयर जाने का टकट लया। सामान पैक करने के लए कुछ
तैयारी नह करनी थी – यादातर सामान नया था और तुरंत ही पैक कया जा सकता है।
मने अपना ड जटल कैमरा और पसनल लैपटॉप भी बाहर ही रख लया, और फर अपने
रसे शन के इवट आगनाइजर से बात क । उसने बताया क सब पूरी तरह नयत प से
चल रहा है और शाम को ब त अ ा रसे शन होगा।
हमारा रसे शन बलकुल मॉडन समारोह था। ब त यादा लोग नह बुलाये गए थे – बस
मेरे सोसाइट के कुछ प रवार, हेगड़े जी दं प , मेरे ऑ फस के यादातर सहकम , मेरे
बॉस और उसका प रवार आये थे। या के लए यह रसे शन वाली संक पना ही पूरी तरह
से नई थी – वह हाँला क नवस थी, ले कन सारे लोग उससे इतने यार, अदब और शंसा
से मल रहे थे क धीरे-धीरे वह समारोह का आनंद उठाने लगी। हमेशा क तरह वह आज
भी बेहद सु दर लग रही थी। एक अ या शत बात ई - मेरी दो भूतपूव े मकाएँ भी बना
बुलाए आ ग , ले कन अ बात यह, क उ ह ने कोई बखेड़ा नह खड़ा कया। उलटे , वो
दोन मेरे लए ब त ख़ुश थ – दोन ने ही या को गाल पर चूमा, शाद क बधाइयाँ और
उपहार भी दए! मुझे भी बधाइयाँ मली और दोन ने ही मुझको बताया क मेरी बीवी ब त
सु दर है! अब यह दखावा था, या सचमुच क ख़ुशी, कह नह सकता।
रसे शन म होता ही या है? खाना-पीना, नाच-गाना, और म दरा। कोई तीन घंटे तक सबने
खूब म ती करी। मेरे म -गण मुझे और या को पकड़ कर डांस- लोर पर ले गए जहाँ
हमने दो-तीन धुन पर नृ य कया। नाचने म म तो खैर काफ बेढंगा ँ, ले कन या को
सुर-ताल-और-लय पर नाचना आता है। बड़ा मज़ा आया। समारोह के बाद सबने वदा ली।
मने अपने बॉस को बोला क वो अपने म को कह द क हम कल सवेरे पोट लेयर प ँच
जायगे, और हमारे लए इंतजाम कर दे । बॉस ने कहा क उ ह ने पहले ही अपने म को
कह दया है, और अभी वो फर से बात कर लगे। फर उ ह ने अपने म का भी नंबर दया
और मुझसे बात करायी। उ ह ने फ़ोन पर मुझे बताया क उ ह ने एक कमरा बुक कर रखा
है और हमारे आनंद क पूरी व ा कर द गयी है। उ ह ने मुझे आगे का लान बताया
और कहा क हम लोग पोट लेयर से सीधा हेवलॉक प प ँच जाएँ। हमारे लए फेरी का
टकट भी लान कर लया गया है। ये होती है नबाध व ा!
“आपको मालूम है क शेर और शेरनी दन भर म कोई ४०-५० बार सहवास करते ह?”
“ या?... आप सचमुच, ब त बदमाश ह! न जाने कैसे ऐसी बाते मालूम रहती ह आपको!”
“तो, जब आपने मान ही लया है, क मने आपका शेर ँ.... और आप... मेरी शेरनी...
तो....”
“हःहःहःह...” या ह का सा हंसी, “शेर आपके जैसा हो, और शेरनी मेरे जैसी, तो शेरनी
तो बेचारी मर ही जाए!”
“जब हमारी शाद पास आ रही थी, तो पास-पड़ोस क 'भा भयां' मुझ.े ... सहवास...
सखाने के लए न जाने या- या बताती रहती थ ।“
“तो और कौन बतायेगा? उनके कारण मुझे कम से कम कुछ तो मालूम पड़ा – भले ही
उ ह ने सब कुछ उ टा पु टा बताया हो! अब तो लगता है क शायद उनको ही ठ क से नह
मालूम!”
“ह म! गुड!” फर कुछ सोच कर, “... लगता है आपक भा भय को मेरे पीनस ( लग)
का वाद दे ना पड़ेगा!”
या कुछ दे र आँख बंद करके आनंद लेती रही, फर उसने मेरे लग को मु कर दया –
म पूरी तरह उ े जत था। कुछ दे र या ने मेरे लग को अपने हाथ से पकड़ कर मैथुन
कया, और फर झुक कर उसको अपने मुँह म भर लया। दो त , लग को चूसे जाने का
एहसास अ यंत आंदो लत करने वाला होता है। उ ेजना के उ माद म म बालकनी क
रे लग के सहारे आधा लेट गया, और लग चुसवाता रहा। या कोई नपुण नह थी –
ले कन उसका अनाड़ीपन, और मुझे स करने क उसक को शश मुझे अभूतपूव आनंद
दे रही थी। कुछ दे र के बाद या ने चूसना रोक दया, और अपनी सलवार और च ी उतार
फक । फर उसने वो कया जो मने कभी सोचा भी नह – मेरे दोन तरफ अपनी टांगे फैला
कर वह मेरे लग को अपनी नम यो न म डाल कर धीरे-धीरे नीचे बैठने गयी।
या ने उ साह के साथ मैथुन करना ारंभ कर दया – म वैसे भी दो दन से भरा बैठा था,
इस लए वैसे भी ब त कामो े जत हो गया था। मेरा लग एकदम कड़क हो गया, और
या क पहल भरी यौन- या से और भी दमदार हो गया। म बस या के तन और
नत बो को बारी-बारी से दबाता रहा। इस बीच या पूरे अनाड़ीपन म मेरे लग पर ऊपर-
नीचे होती रही – कभी कभी लग उसक यो न से बाहर भी नकल जाता। वैसा होने पर म
वापस उसको अ दर डाल दे ता। या को संभवतः एक पूव संसग क याद हो आई हो –
वह अपने नत बो को न केवल ऊपर नीचे, ब क गोलाकार ग त म भी घुमा रही थी -
इससे मेरे लग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर
उ ेजन हो रहा था। उसक ग त भी बढ़ने लगी थी - स वतः वह ख लत होने ही वाली
थी। बस अगले २ ही मनट म या का शरीर चरमो कष पर प ँच कर थरथराने लगा,
और उसी समय म भी अपने उ माद के आ खरी सरे पर प ँच गया। कुछ ही ध को म म
ख लत हो गया। या जैसी स दय क दे वी क यो न म वीय क धाराएँ छोड़ने का
एहसास ब त ही सुखद था।
सहवास का वार थमते ही या मेरे सीने पर गर कर हांफने लगी! मेरे तेजी से सकुड़ते
लग पर उसक यो न का मादक संकुचन – मानो उसक मा लश हो रही हो।
“ कस कहानी से?” मने दमाग पर जोर डाला, “अ ा, वो! हा हा हा! तो आपको याद आ
ही गया। इस कहानी से यह श ा मलती है क साँवली लड़ कयाँ सहवास म ब त तेज़
होती ह... और... गोरी लड़ कय को सखाना पड़ता है!”
“जी नह ! कोई ज़ रत नह !”
हम लोग ऐसी ही फ़ज़ूल क बात कुछ दे र तक करते रहे। नव- ववा हत के बीच म शु
शु म एक द वार होती है। हमारे बीच म वह द वार अब नह थी। ये सब शकायत,
छे ड़खानी, हंसी-मज़ाक, सब कुछ मृ लता और नेक दली से हो रहा था। हमारे बीच क
अंतरंगता अब सफ शारी रक नह रह गई थी। मने एक कैब स वस को फ़ोन कर बगलोर
हवाई अ े के लए टै सी मंगाई, और हम दोन एक साथ नहाने के लए गुसलखाने म चले
गए।
या भले ही न दखा रही हो, ले कन वह हनीमून को लेकर उतना ही रोमां चत थी, जतना
क म। मने जब भी प के बारे म सोचा, मुझे बस यही लगता क वह कोई ऐसी एकांत
जगह होगी, जहाँ सफ़ेद बलुई बीच ह गे, लहराते ताड़ और ना रयल के पेड़ ह गे, और गरम
उजले दन ह गे! सच मा नए, उन तीन चार दन क ठं डी म ही मेरा मन भर गया। इतने
दन तक बगलोर क सम जलवायु म रहते ए उस कार क कड़क ठं डक से दो-चार होने
क ह मत मुझमे नह थी। अंडमान और नकोबार प समूह बलकुल वैसी जगह थी,
जहाँ म अभी जाना पसंद करता। या का साथ, इस या ा म सोने पर सुहागा थी।
९
बगलोर हवाई-अ े पर पुनः कोई सम या नह ई। बस यही क चेक-इन काउं टर पर बैठ
ऑ फसर, या जैसी अ पवय त णी को ववा हत सोच कर उ सुकता पूवक दे ख रही
थी। मेरे लाख मन करने के बावजूद आज भी या ने साड़ी- लाउज़ पहना आ था – हाथ
म मेहंद , सुहाग क चू ड़याँ, स र, मंगलसू , इ या द सब पहना आ था उसने। मने
लाख समझाया क गहन क सुर ा क कोई गारंट नह है, फर भी! अ प-वय प नी होने
के अपने ही नुकसान ह – लोग कैसी कैसी नज़र से दे खते रहते ह! और तो और, सारे
मॉडन कपड़े-ल े खरीदना बेकार स हो रहा था। जवान लोगो के शौक होते ह... ले कन
ये तो परंपरागत प रधान छोड़ ही नह रही है।
लाइट अपने नधा रत समय पर नकली – मने या को वडो सीट पर बैठाया, जससे वो
बाहर के नज़ारे दे ख सके। बंगाल क खाड़ी पर उड़ते समय कुछ भी साफ़ नह दख रहा
था – अ धक रोशनी और धूल-भरी धुंध के कारण कुछ भी नह समझ आ रहा था। ले कन,
जब हम प समूह के नकट प ंच,े तब नजारे एकदम से अलग दखने लगे। नीले रंग का
पानी, उसके बीच म अन गनत हरे रंग के टापू, नीला आसमान, उसम छटपुट सफ़ेद
बादल! लाइट पूरा समय सुगम प से चली, ले कन आ खरी पं ह मनट कसी एयर-
पॉकेट के कारण हमको झटके लगते रहे। बेचारी या ने डर के मारे मेरा हाथ कस के
पकड़ रखा था (अब कोई कसी को कैसे समझाए क अगर हवाई जहाज गर जाए, तो
कुछ भी पकड़ने का कोई फायदा नह !)।
खैर, उतरते समय नीचे का जो भी य दखा वो अ यंत मनोरम था। एअरपोट पर हवाई
प के च ँओर छोटे -छोटे पहाड़ी ट ले थे, जन पर चुर मा ा म हरे हरे पेड़ लगे ए थे।
दे ख कर ऐसा लग रहा था क यहाँ ब त ठं डक होगी, ले कन सूरज क गम और समु
भाव के कारण वातावरण गुनगुना गरम था। उ राँचल क ठं डी (जो क मेरे दलो दमाग
म बस गई थी) से तुरंत ही ब त राहत मली।
वहां जेट पर हम लेने होटल क गाड़ी आई। कार क खुली खड़क से गुनगुनी धूप मली
ई हवा और समु महक ब त अ लग रही थी। कोई दस मनट म ही हम लोग अपने
रसोट पर प ँच गए। आज सवेरे हवाई अ े पर ही जो खाया था, वही था, इस लए अभी
ब त तेज भूख लग रही थी। हमने होटल म चेक-इन कया और अपने कमरे म प ँच गए।
यह रसोट एक व तृत े म बना आ था – उसमे कुछ टट लगे ए कमरे थे, और कुछ
झोपड़े-नुमा कमरे। टट और झोपड़े सफ कहने के लए है – दरअसल यादातर कमर म
वातानुकूलन लगा आ था। पूरे रसोट म ना रयल के पेड़ और ब त सारे फूल लगे ए थे,
जससे य ब त ही सु दर बन पड़ता था। इस समय मुझे जतने भी ाहक वहां दखे, वो
सारे ही वदे शी थे। इस रसोट म खूबी यह भी थी क यहाँ पर समु एडवचर ोट् स का
भी बंदोब त करते थे। हमारा कमरा उनके सबसे अ े कमर म से एक था, और रसोट के
अपने बीच के ठ क सामने था। कमरे को सफ़ेद रंग से रंग गया था, और लनेन फरोज़ी
नीले रंग के व भ शेड्स के थे। प टग म भी समु ही दख रहा था। ब तर के सामने क
तरफ लैट- न ट वी लगी ई थी, और दा हनी तरफ लकड़ी का ेसर – कुल मला कर
एक टै डड रख रखाव!
“अरे! अभी तो बताया – इसको लंग कहते ह।“ मने थोडा मह व दे कर बोला। “अब
बोलो।“
“मेरे अ दर...”
“अरे! मुझसे या शमाना? यहाँ मेरे सवाय और कौन है यह सब सुनने को? बो लए न!”
अब उसक पेट कोट का नाडा खुल गया और खुलते ही पेट कोट नीचे सरक गया। या
सफ लाउज और च ी म मेरे सामने खड़ी ई थी।
“हाँ!”
“बोलो न!”
“ या डाल ली जये?”
“गुड! और कहाँ डालने वाले ह?” कहते ए मने या के भगो को सहलाते ए उसक
यो न म अपनी तजनी व करा द ।
या फर से सकुचा गई, “म रोज़ आपका लग.... अपनी यो न म... डालने ँ गी! और....
कभी मना नह क ँ गी।”
या को ब तर पर लटा कर मने उसक दोन जांघ कुछ इस कार फैला जससे उसक
यो न और गुदा दोन के ही ार खुल गए। इससे एक और बात ई, या के नत ब ऊपर
क तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। सुडौल नत ब..! व और युवा
नत ब। जैसा क मने पहले भी बताया है, या के नत ब यो चत फैलाव लए ए
तीत होते थे, जसका मुख कारण यह है क उसक कमर पतली थी।
“हाँ! अभी प का हो गया। मुझे रोज़ आपक यो न म मेरा लग डाल कर ठु काई करने का
ए ीमट मल गया है... य ठ क है न?”
“आह... जीईई..!”
“आप मुझे कुछ भी सखा नह रहे ह, ... ब क सफ बगाड़ रहे ह! अब च लए, मुझे कुछ
पहनने द जये!”
भोजन समा त कर हम बीच क सैर पर नकले – इस समय समु म भाटा आया आ था,
जसके कारण काफ र तक सफ गीली, बलुई और प र से अट भू म ही दख रही
थी। हम लोग यूँ ही बाते करते, शंख, सी पयाँ और रंगीन प र बीनते काफ र नकल
गए। बात म हमारे सर पर चमक रहे चटक सूय का भी यान नह रहा – कहने का मतलब
यह, क उन डेढ़-दो घंट म ही धूप से हम लोग का रंग भी साँवला हो गया। और आगे
जाते, ले कन अचानक ही हमको पानी वापस आता महसूस आ, तो हमने वापस रसोट
जाने म ही भलाई समझी। हम दोन के हाथ शंख और सी पय से भर गए थे, इस लए यह
उ चत था, क उनम से सबसे अ े वाले चुन लए जाएँ और बाक सब वापस समु के
हवाले कर के हम वापस आ गए।
वापस आते ए मने दो-तीन वदे शी जोड़ से बात-चीत करी और उनके अंडमान के
अनुभव के बारे म पूछ-ताछ क । या के लए भी यह एक नया अनुभव था – शायद ही
उसने कसी वदे शी से पहले कभी बात करी हो, इस लए उसको थोडा मु कल लग रहा
था। ले कन फर भी, वह अपनी तरफ से पूरी को शश कर रही थी। कमरे म आ कर मने दो
कप चाय मंगाई – चाय पीते-पीते ही ऑटो- र ा वाला भी आ गया। मने हाफ-पट और
ट -शट पहना और या को भी कट और ट -शट पहनने को कहा। या क कट,
दरअसल, सूती के हलके कपड़े क बनी ई थी और उसके हलके हरे रंग के कपड़े पर
काले रंग के छोटे छोटे बखरे ए ट् स थे। यह कट मने बीच पर पहनने क से ही
लया था। वैस,े या के लए ऐसी कट पहनना, जो उसके घुटने तक भी न आ सके, थोड़ा
सा भ , या यह कह ली जये क अटपटा अनुभव था। ले कन, मेरे साथ बताये गए कुछ
ही दन म उसको समझ आ गया था क इस कार के अनुभव का होना अभी बस शु
ही आ है। इस लए, उसने कोई हील- त नह करी और कुछ ही दे र म हम लोग
राधानगर बीच क तरफ रवाना हो गए।
कानदार से कैमरा बैग लेकर मने सबसे पहले या पर फोकस कया। या क ट -शट
जगह के ही मुता बक़ सफ़ेद रंग क थी – ा तो उसने पहना ही नह था, इस लए गीले और
उसके शरीर से चपक गए कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दख रहा था - उसके तना
दख रहे थे, और, चूं क उसक कट भी पूरी तरह से उसके इद- गद चपक गयी थी
और अ दर क काले रंग क च ी, और जांघ साफ़ दख रही थी। अब चलने वाली हवा
शरीर पर ठं डक दे रही थी – लहाज़ा, या के तना भी कड़े हो गए। इससे पहले क
या अपनी इस त पर यान दे पाती, मने दनादन उसक कई दजन फोटो ख च डाली!
और एक अ बात यह दखी क वहां पर जो भी लोग थे, कसी का भी वहार ल ट
जैसा नह था – न तो कसी ने या क तरफ कामुक डाली और न ही कसी कार
क छ टाकशी करी। एक और हनीमूनर को मने कैमरा पकडाया जससे वह हम दोन क
कुछ फोटो ले सके।
मेरे हो हो करने से या खल खला कर हंसने लगी, “अपनी बीवी को सबके सामने नंगा
करने म आपको अ ा लगता है?”
इतने म सूया त ारंभ हो गया – बीच पर सूया त अ यंत नाटक य होता है। उन पं ह-बीस
मनट म कृ त व भ रंग क ऐसी सुंदर छटा बखेरती है क उसका श द म बखान
नह कया जा सकता। जब मने या को पहली बार दे खा था, तो मुझे भी ऐसी ही सांझ
क अनुभू त ई थी - मन को आराम दे ती ई, पल-पल नए रंग भरती ई! यह उ चत था
क ऐसी सु दर ाकृ तक छटा के अवलोकन म मेरी ेयसी, या, जो खुद भी इस ढलती
शाम के समान सु दर थी, मेरे साथ खड़ी थी। म जब फोटो ख चने और ाकृ तक स दय
का आनंद उठाने क त ा से बाहर नकला तो दे खा क बीच लगभग वीरान हो चली है।
कमाल क बात है न, लोग सूय के अ त होते होते गायब हो गए! ले कन म और या वहां
कुछ और दे र बैठे रहे। पास क चाय-पानी क कान वाला हमारे पास आया और पूछा क
हम लोग कुछ लगे, तो हमने उसको चाय लाने के लए बोल दया। अभी लगभग अँधेरा हो
गया था और कुछ दख भी नह रहा था, इस लए चाय पीकर, हमने वापसी करी।
“मतलब शराब!? न बाबा! आप पीते ह?” जब मने हामी भरी तो, “हाय राम! और या
या करते ह?”
ऐसे न जाने कतनी ही दे र मनाने के बाद आ खरकार या ने ह थयार डाल ही दए। मने
बारमैन को दो ‘लांग आइलड आइ ड ट ’ बनाने को कहा।
“कैसा लगा?”
“पता नह ...”
“खराब?”
“हाँ – गाँव के सब लोग ही आये थे! सभी आपको दे खना चाहते थे।“ उसक सरी क
आधी ख़तम भी हो गई।
“हा हा!” मुझे समझ आ गया क या को चढ़ गयी है। “आपको कोई जोक आता है?”
X Night Clubs
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
Adult Comics Club
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
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18 Vargin Girls
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
“जाइए ह टये! आप मुझे सताते ह!”
“अ ा बेटा! मेरे पीठ पीछे यह सब करती थी? वेजाइना के साथ एक और नाम बताया था
– याद है?”
“हा हा! नह नह ... म तो बस यह दे ख रही थी क ... क मेरी वेजाइना कतनी चौड़ी है,
और कतनी फ़ैल सकती है! बस! स ी! बस और कुछ नह !”
“हा हा हा!”
“अ ा जी! म.. वैसे मुझे याद है, आपने बताया था क आपक कई सारी गल ड थ ।
उनके साथ या या कया? सच बताइयेगा – म बुरा नह मानूंगी।“
"नह ... सच ही बताऊँगा। आपसे झूठ बोलने वाला काम म कभी नह क ं गा। म आपसे
यह वायदा करता ँ क मने आपसे पहले कभी भी कसी लड़क के साथ सहवास नह
कया। सहवास का मतलब अगर लग और यो न से है तो! ले कन मने उनके साथ ब त
सारे अ तरंग ण बताये ह। हमारे रसे शन म आपको वो ‘ न कता’ याद है? जसने
गुलाबी-हरे रंग क ेस पहनी ई थी... वो जसके थोड़े बड़े-बड़े तन थे?”
“न...ही..!”
“हाँ – उसका नाम न कता है। आपसे सच क ँगा, मुझे कसी भी ी म तन ब त यारे
लगते ह। इस लए जब मेरी न कता के साथ घ न ता बढ़ तो म उसके तन को अ सर
ही चूमता, चूसता था। एक दन बात काफ आगे बढ़ गई। मने उसके तन के बीच म
अपने लग को फंसा कर मैथुन कया – बड़ा आनंद भी आया! ले कन सच कहता ँ क
इसके आगे कभी नह गया।”
“च लए... मान लया क आप सच कह रहे ह! वैसे भी, आपके जीवन म मेरे आने से पहले
जो आ, उससे मुझे या सरोकार होगा? ले कन...”
“ले कन?”
यह एक एकांत और छोटा टापू था और पूरी तरह नजन! इसके बीच म काफ पेड़ थे और
इसका बीच नरम सफ़ेद रेत का बना आ था। सुजेन ने बताया था क पांच मनट म ही
टापू पर प ँच जायगे, इस लए हमने कपड़े भी नह बदले थे, और ऐसे ही गीले गीले टापू
पर प ंचे। उस समय समु म लहर काफ ऊंची ऊंची उठ रही थी, इस लए नाव को थोडा
र ही लंगर दया गया और टापू पर जाने के लए एक बार फर से समु म कूदना पड़ा।
ना वक और सुजेन हमारे खाने पीने का सामान हमारे पास रखा, और हम बताया क हम
लोग यहाँ पर दो तीन घंटे आराम से रह सकते ह, और दोन टापू पर ही हमसे कुछ र पर
बैठ कर अपना खुद खाने पीने लगे।
‘कैसी नासमझ लड़क है यह! – ऐसी अव ा म कोई लड़क राका डाकू को मल जाए,
तो वह भी इसी कार गम पैदा करेगा।‘ हम लोग चलते चलते एक एकांत वाली जगह पर
आ गए – वहां पर बीच काफ चौड़ा और समतल था। सूय क गम भी अ आ रही थी।
" य ?"
"अरे? ऐसे कैसे? अगर उनमे से कोई भी आ गया... और हमको ऐसी हालत म दे खेगा तो
या सोचेगा? और उनक छो ड़ए... मुझको ऐसे कोई और दे खे तो म तो शरम से मर ही
जाऊंगी!"
"आप भी या मरने मारने वाली बात करती ह? हनीमून पर आए ह ... हमको कुछ तो मज़ा
करना चा हए? और पूरे इं डया म ऐसी सूनसान जगह नह मलेगी! जतना कपड़े उतार
सको, उतना ही म त!!" मने समझाया, "कोई नह आएगा ... अब उतार दो न.."
हम दोन कुछ दे र ऐसे ही नंगे पुंगे वहां पर खड़े होकर पानी सुखाते रहे, ले कन वहां ऐसे
रहते ए भी (चाहे कतने भी अकेले ह ), बेढंगा लग रहा था। खैर, ऐसे नजन बीच पर होने
का फायदा यह है क वहां पर खूब सारे समु तोहफे ऐसे ही बखरे पड़े रहते ह। मने या
को बीच-वाक करने और सी पयाँ बीनने के लए तैयार कर लया,
“अरे, चलो, यहाँ पर ज़ र अ े वाले शंख और सी पयाँ मलगी – चल कर उनको ढूं ढते
ह, और बीनते ह।“
“क या? ओह... सुजेन? या आ?” सुजेन ने मुझे ही हला कर उठाया ... म हड़बड़ा
गया।
“कोई मज़ा वज़ा नह , सुजेन। बस, थोड़ा धूप सकते सकते सो गए थे।“ सुजेन के सामने
ऐसे ही न न पड़े रहना ल ाजनक तो था, ले कन चूँ क वह भी ा-पट ज म ही थी,
इस लए मने खुद को या या को छु पाने का कोई यास नह कया। सुजेन को जो भी
कुछ दे खना था, वह अब तक व तार से दे ख चुक होगी।
“हाँ – यह बात मुझे मालूम है। इसी लए तो मने इनसे शाद क है।“ हमारी बात के बीच
ही या ने अपना वमसूट उठा कर अपने शरीर पर इस तरह से डाल लया जससे
उसक जा हर न नता छु प जाय। “हे! हम लोग यहाँ कुछ दे र और नह क सकते? यहाँ
ब त अ ा लग रहा है।“ मने आगे जोड़ा।
या वैसे भी मेरी कसी भी बात का कोई वरोध तो करती नह ... अतः उसने अंत म हामी
भर द । ले कन एक शत पर क सुजेन भी हमारे साथ नव होकर कुछ त वीर
नकलवाए। सुजेन ने कुछ सोचने के बाद हामी भर द ।
सुजेन या को कभी मु कुराने, तो कभी कोई पोज़ बनाने को कहती – ‘हड् स इन एयर...
हड् स ऑन ह स... लक योर ल स... मेक अ पाउट.. शो सम ै ट..’ या क इन झझक
और ल ा भरी अदा का असर मुझ पर होने लग गया और मेरा लग जी वत होने लगा।
या इस समय सुजेन के नदशन म एक पेड़ के तने से टक कर अपने दा हने हाथ से खुद
को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर क तरफ ख च रही थी।
इसका भाव यह था क या क पूरी सु दरता अपने पूरे शबाब पर द शत हो रही थी।
ऐसा तो मने कभी सोचा ही नह ... ‘यह सुजेन तो वाकई एक कलाकार है!’
अथव ने अपनी बाह मेरी कमर म डाल कर मुझे कस कर दबोच लया और अपने ह ठ से
मेरे ह ठ सटा कर चूमने लगा। इस यंत अ या शत हमले से म सकते म आ गई। उसने
मेरे ह ठ काट लये और उनको चूसने लगा। एक ण को तो म अपनी ल गकता और सुध-
बुध दोन भूल गई और चु बन म उसका सहयोग करने लगी। उनके सहवास के य से
मेरा शरीर पहले से ही कामा न भड़क उठ थी, और अब इस चु बन ने मुझे दहकाना शु
कर दया। उसने मेरे ह ठ को अपने दांत के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शु कया,
और फ़र अपनी जीभ मेरे मुँह म डाल द । मने भी इनकार कये उसक जीभ को रसीले
फल के जैसे ही चूसना शु कर दया।
कुछ दे र तक इसी कार चूमने के बाद जब उसके हाथ मेरी ा को खोलने लगे... तब मने
अपने ह ठ झटक कर उससे अलग कए।
“यह या कर रहे हो...? बस अब ब त आ... अब चलते ह यहाँ से!” मने नाटक कया।
पर वह ऐसे मानने वाला नह था – उसने ा के ऊपर से ही मेरे दोन तन अपनी गर त म
ले लया। उसक पकड़ ब त मज़बूत थी – और उनको इस कार दबा रहा था क मेरी
उ ेजना बढ़ती ही जा रही थी। मेरे दल क धड़कन तेज होती जा रही थी। वैसे चाहती तो
म वहां से हट सकती थी, ले कन व तुतः मेरी को शश भी बस सतही तौर पर ही थी, और
मने उसक हरकत का कोई ख़ास वरोध नह कया। कुछ ही पल म उसने मेरी ा ख च
कर मेरे शरीर से अलग कर द और म ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मेरे तन उभर कर बाहर
हो आये – तना पहले ही उ ेजना के मारे कठोर हो गए थे।
मेरे गोरे बदन पर तने ये तन दे ख कर उसक आँख म एक चमक आ गई। उसने मेरे
तन को अपनी उं गली से ह के ह के सहलाते ए कहा, “तुम ब त ख़ूबसूरत हो।“
उसने मुझे खीच कर अपनी गोद म बैठा लया, ऐसे जससे मेरे दोन पांव उसक कमर के
अगल बगल होते ए उसक पीठ के पीछे आ गए। उसक ह मत क दाद दे नी होगी – इस
समय वह मेरे बाएँ तन के तना को अपने मुँह म भर कर ब क तरह चूस रहा था
और उ ेजनावश मेरे ह ठ पर स का रयां फूटने लगी। मने उ ेजनावश अथव के सर को
अपने तन म भ च लया। मेरे दमाग म इस समय गहरी उलझन हो रही थी – म
समल गक ,ँ इतल गक ँ, या उभयल गक ँ? इस लड़के ने मुझे भरमा दया है।
‘कह ये मेरी गदन तो दबाने वाली नह है?’ मरे मन म एक तनाव दे ने वाला वचार क धा।
ले कन बस एक दो ण के लए ही। म लगभग तुरंत ही तनाव मु हो गई – या क
छरहरी उं ग लयाँ मेरे दा हने तन को छू रही थ । ऐसे ही दो तीन बार छू ने के बाद उसने मेरे
तन को अपनी हथेली म भर कर दबाया। मेरे तन का आकार उसक हथेली के लए
काफ बड़ा था, ले कन फर भी उसक पकड़ ढ़ थी। बीच बीच म वह मेरे तना को
अपने अंगूठे और उं गली के बीच पकड़ कर चुटक ले रही थी।
उधर अथव आँख बंद कये मजे से मेरे बाएँ तन का पान कर रहा था, और इधर उसक
प नी मेरे दा हने तन से खेल रही थी। उसक आँख के भाव मुझे अब समझ आये – वह
भी अपने प त क ही तरह मेरे तन का पान करना चाहती है! मने अथव के सर को ज़रा
हलाया, तब जाकर वह अपने उ माद से बाहर नकला, ले कन उसक सफ आँख ही
खुली, मुँह म अभी भी मेरा तना भरा आ था। उसने एक नज़र मेरी तरफ दे खा तो
उसको भान आ क या मेरे सरे तन से खलवाड़ कर रही थी। वह मेरे तना को मुँह
म लए मलये ही मु कुराया, और फर या को कुछ बोला। ज़ र उसने उसको मेरे तन
पीने को कहा होगा य क अगले ही पल या ने मेरे तना को अपने मुँह म रख लया।
"तुमको यह पसंद है?" या बना तना को छोड़े मु कुराई। "जब तक मन करे, पयो"
मने कहा। यह सीन बड़ा ही हा या द था – मेरे दोन तन से दोन इस कार चपके थे
जैसे अबोध ब े! कुछ दे र चूसने के बाद अथव ने मेरे तन को छोड़ दया और मेरे पीछे
जा कर मेरी च ी उतारने लगा। एक तरीके से यह सही भी था – हम तीन म सफ म ही
थी, जसने कुछ भी पहन रखा था। मने भी अपने पैर इधर उधर उठा कर उसक मदद करी
– अब हम तीन ही पूण नव हो गए।
फर मने उसक यो न पर अपनी उं ग लयाँ सटा द , और उसे मसलने लगी। मेरी खुद क
हालत कोई ख़ास अ नह थी – या और अथव के मैथुन, मेरी खुद क यौन ा त
(पता नह क म समल गक ँ या इतरल गक?), और अब या जैसी सुंदरी को इस कार
लारने से मेरी खुद क यो न भी काम रस टपकाने लगी। मुझ पर भी या के सामान ही
मदहोशी छा रही थी। मुझे या क यो न का वाद भी लेना ही था – मने उसके पैर के
बीच म अपना मुँह लाकर उसक यो न से सटा दया और जीभ से उसका रस चाटने लगी।
या क यो न से ब त सारा तरल नकल रहा था – उसक यो न का रस, जसमे अथव
का वीय भी स म त था! अनोखा वाद!
जैसे ही उसका लग मेरी यो न म आगे बढ़ा मेरे मुँह से एक गहरी आआअ ह नकल
पड़ी। उसका लग मेरी यो न क गहराइय म उतर गया, और फर बाहर भी नकल पड़ा –
ले कन मेरे राहत क एक भी सांस लेने से पहले ही वह वापस घुस गया। मुझे यक न हो
गया क अथव मेरे साथ सहवास कर ही लेगा, ले कन फर भी मने उसको रोकने क एक
आ खरी को शश करी।
“अथव.... आ ह! आई ऍम अ ले बयन!”
“यस! नो एस ट डी!”
जैसे जैसे हम लोग अपने म क तरफ आ रहे थे, मने दे खा, क या का चेहरा उतरता
जा रहा था। उसके चेहरे पर उदासी, गु सा, नराशा, खीझ, घृणा, और जुगु सा जैसे मले
जुले भाव आते और जाते जा रहे थे। उसके चेहरे को दे ख कर मेरे खुद के मजे का नशा पूरी
तरह से उतर गया था और समझ नह आ रहा था क या क ँ ! म जानना चाहता था क
उसके मन म या चल रहा है, ले कन उस समय मने खुद तो ज त कर लया और म तक
प ँचने तक का इंतज़ार कया। हम दोन जैसे ही अ दर आये या के स का बाँध टू ट
गया,
“ओह गॉड! ... शट! तो यह बात है!?” मने माथा पीट लया।
“जानू! मने वो सब कुछ लान नह कया था - ऑने टली ! गॉड ो मस! वो कुछ भी नह
है! सुजेन कोई भी नह है! मने सुजेन को कुछ भी नह कहा – वो हम दोन को सहवास
करते दे ख कर खुद भी उ े जत हो गई..... और इस लए उसने आपके साथ...... दरअसल,
आप दोन को ऐसी हालत म दे ख कर मेरा खुद पर कोई काबू ही नह रहा। वह सब कुछ
ऐसा लग रहा था जैसे क कसी ने मुझ पर स मोहन डाल दया हो। सच म जानू! लीज...
मुझ पर व ास करो!” मने अपनी तरफ से सफाई द ।
“नह जानू! मने आपको कहा न! और तो और, सुजेन एक ले बयन है ... मतलब वह
आद मय से नह , औरत से सहवास करती है। पहले तो हम दोन को सहवास करते दे ख
कर, और फर आपको दे खकर ... आई मीन, आप इतनी कामुक ह क वह अपने आपको
रोक नह पाई।“
“मने उसको यह सब करने को नह कहा था जानू! लीज बलीव मी!!” मेरी दलील उलट
पड़ रही थी।
“तो आपका यह कहना है क कोई भी मेरे साथ सहवास कर लेगा.... य क म.... कामुक
ँ?”
“ऐसे कैसे कर लेगा, कोई भी! मेरे कहने का मतलब था क कोई भी आपके साथ सहवास
करना चाहेगा! आप सु दर ह, जवान ह...! कोई य नह चाहेगा? हाँ – कुछ एक अपवाद
हो सकते ह।”
“हाँ!”
“कैसे?”
“अ ा! और कोई कारण?”
“ह म... और?”
“जानू, मने कभी आपसे मेरे पछले अफेयस के बारे म छु पाया? चाहता तो छु पा लेता!
आपको कैसे मालूम होता? बताइए?”
“ या जवाब चा हए आपको?”
“सच..”
“सच जानना है आपको? तो सुनो – हाँ बलकुल मन म आता है क ऐसी लड़क दखे तो
पटक कर ठोक ं ! ले कन मुझम और कसी रे प ट या जानवर म कोई अंतर है... और वह
अंतर है क म मानवता के बताये रा ते पर चलता ँ। मेरे अपने सं कार ह... और कसी क
मज़ के खलाफ जोर-जबरद ती करना गलत है।“
“अ ा, एक बात बताइए.... अगर सुजेन क जगह कोई आदमी होता तो?” या लड़ाई
का मैदान छोड़ ही नह रही थी।
“तो उसक टाँगे तोड़ कर उसके हाथ म दे दे ता। म आपसे सबसे यादा ेम करता .ँ ..
और आपके यार को कसी के साथ नह बाँट सकता।“ मने पूरी ढ़ता और इमानदारी से
कहा।
“नाउ दै ट यू पुट इट लाइक दै ट (अब जब आप ऐसे कह रही ह तो)... यस! हाँ .. वह गलत
था।“ मने अपना दोष मान लया।
" ह .... लीज मत रोइये। मेरा आपको ठे स प चाने का कोई इरादा नह था। आई ऍम
सो सॉरी! ऑने टली ! आपको याद है न, मने आपको ो मस कया था क म आपको
कसी भी ऐसी चीज़ को करने को नह क ँगा, जसके लए आप राज़ी न ह ? म आपको
ब त यार करता ,ँ और आपको कभी खी नह दे ख सकता।"
ऐसी बाते करते ए म या को चूमते, सहलाते और लारते जा रहा था, जससे उसका
मन बहल जाए और वह अपने आपको सुर त महसूस करे। जस लड़क को म ेम
करता ँ, वह मेरे मूखता भरी हरकत से खी हो गयी थी।
“जानू, आई ऍम सॉरी! आई ऍम वेरी सॉरी! लीज मुझे माफ़ कर द जये। मने कभी भी यह
सोच कर कुछ भी नह कया जससे क आपक बेइ ती हो। म आपको ब त यार
करता ँ – अपनी जान से भी यादा! और आपक ब त रे े ट भी करता ँ। लीज मेरी
बात पर व ास क रए।“
“एंड, आई ऍम रयली वेरी सॉरी! अपने मज़े क धुन म मने यह नह सोचा क आपको
और आपक भावना को ठे स लग सकती है। काम के वशीभूत होकर मने न जाने या
या गुनाह कए ह। म सच कहता ँ मेरे मन म बस एक ही धुन सवार रहती है क कसी
तरह आपके साथ सहवास कया जाय..”
मने कहते ए उसके माथे को चूमा और उसके बाल को सहलाया, “... पर अब मुझे लगने
लगा है क म अपनी परी के साथ ठ क नह कर रहा ँ। म सच कहता ँ क म आपको
यार करता ँ – और इसका मतलब है क सफ आपके शरीर को नह .. आपके मन, दल
और पूरी पसना लट को! ले कन आप मेरे पास रहती ह तो अपने को रोक नह पाता –
और सहवास को ाइसी बनाने के लए न जाने या या करता ँ।“
“जानू.. म भी आपके साथ यार क नया बनाना चाहती ँ। मेरा मन है क जैसे आपने
मुझे अभी पकड़ा आ है, वैसे ही हम एक सरे को बाह म जकड़े सारी ज दगी बता द।
और आप मेरे साथ जतना मन करे, सहवास क रए – जैसे मन करे, वैसे क रए। मुझे
अपनी यार क बा रश से मेरे तन मन को इतना भर द जये क म मर भी जाऊं तो मुझे
कोई गम ना हो। ... बस, मुझे कसी और के साथ शेयर मत क रए!”
या को चूमने के साथ साथ मुझे समु नमक न वाद महसूस आ – मतलब, नहाने का
उप म करना चा हए था। ले कन उसको चूमने – उसके ह ठो का रस पीने – से मेरा मन
अभी भरा नह था। या मेरी गोद म बैठ थी और हमारे ह ठ आपस म चपके ए थे। हम
दोन ही इस समय अपनी जीभ एक सरे के मुंह म डाल कर इस समय कु फ क तरह
चूस रहे थे। म कभी उसके गाल को चूमता, तो कभी ह ठो को, तो कभी नाक को, तो
कभी उसके कानो को, या फर उसक पलक को। इसी बीच मने कब उसक बीच मै सी
उतार द , उसको शायद पता भी नह चला (ढ ला ढाला ह का कपड़ा शरीर पर पता ही
नह चलता)। कोई ५ मनट के चु बन के आदान दान के बाद जब हमारी पकड़ कुछ
ढ ली ई तो या को अपने बदन पर मै सी न होने का आभास आ।
“अरे शरम! मेरी रानी .... कैसी शरम? तुम इस का ूम म कतनी खूबसूरत लग रही हो!
मेरी आँख से दे खो तो समझ म आएगा!”
“ध !”
उसने मुझे चढ़ाते ए कहा, “अ ा जी... और आपको नह नहाना है? आपके कपडे तो
य के य ह।”
मुझे या आप हो सकती थी? म तो इसी ताक म था। या को अलग कर मने लगभग
तुरंत ही कपडे उतार दए और बेड पर सरहाने क ओर आकर बैठ गया। मेरा लग इस
समय अपने पूरे आकार म आकर नकला आ था। या ने पहले तो अपनी उँ ग लय से
उसे यार से छु आ और फर सहलाया और फर अ या शत प से उस पर एक चु बन
रसीद कर दया। मेरे लग ने उसक इस या के अनुकूल उ र दया और प र क तरह
कठोर हो गया। अब या मेरे ऊपर लगभग धी लेट कर मेरे लग के साथ खेल रही थी,
और म उसके चकने नत ब के साथ - मने उन पर कपड़े के ऊपर से ही यार से हाथ
फराना शु कर दया। मने उसक वमसूट को थोडा सा खसका कर अपनी उँ ग लय से
उसक नत ब के बीच क दरार पर सहलाना शु कर दया। और उधर, या मेरे लग
को मुँह म रख कर चूस रही थी।
म बना कुछ बोले उसक ना भ म अपनी जीभ क नोक लगा कर झटके दे रहा था। या
ने कस कर अपनी जांघ भ च ली और मेरे सर के बाल पकड़ लए। फर नीचे आते ए मने
जैसे ही उसके पेडू पर जीभ लगाई, उसने एक जोर क कलकारी मरी – उसमे हंसी, पीड़ा,
आनंद और वासना क म त व न नकली। उसका शरीर बेकाबू होकर कांपने लगा और
कांपता ही गया। मुझे समझ आ गया क या अपने चरमो कष पर प ँच गयी है। मने
इतनी दे र म पहली बार उसक यो न पर चु बन लया – वह ह सा कामरस से पूरी तरह से
भीग गया था। जैसे ही मने वहां पर अपने ह ठ रखे, उसक जांघ चौडी होती चली गई।
इस ल बे फोर ले के दौरान मेरा खुद क उ ेजना अपने शखर पर थी, लहाजा, मेरा वयं
पर काबू रखना ब त ही मु कल था। कोई तीन-चार मनट तक जोरदार ताबड़-तोड़ ध के
लगाने के बाद म उसके अ दर ही ख लत होकर शांत हो गया। आज यह तीसरी बार था –
इस लए वीय क मा ा अ य प थी। ऊपर से थकावट ब त अ धक हो गयी थी, इस लए म
या के ऊपर ही गर गया।
“हटो गंदे ब े!” या ने मुझे अपने ऊपर से हटाया, और आगे कहना जारी रखा, “आपने
तो मुझे मार ही डाला।“ या अपनी यो न को सहलाते ए बोली, “कोई इतनी जोर से
करता है या? आःहह..!”
“हा हा हा!”
“ये केला कट गया तो आपक तकलीफ़ के साथ साथ आपका मज़ा भी कम हो जायेगा!”
फर थोड़ा क कर,
“नह जानू... मजाक कर रही थी म। ऐसी कोई तकलीफ तो नह होती – मुझे अभी ठ क
से आदत नह है न.. इस लए, लगता है क थोड़ा .... कैसे क .ँ .. उ म... जैसे घस गया
हो, ऐसा लगता है। वो भी काफ बाद म!”
कुछ दे र हम लोग ब तर पर पड़े ए अपनी साँसे ठ क करते रहे, और फर या ने बोला,
“जानू, हमको थोड़ा सावधान रहना होगा।“ वह थोड़ा शरमाई, “... पछले एक ह ते से हम
दोन बना कसी ोटे न के सहवास कर रहे ह।“ मेरे कान सावधानी म खड़े हो गए।
“अगर आप चाहते ह तो ठ क है... ले कन म.... े नट... हो जाऊंगी!”
“आप ऐसा न क हए.. लीज! म भी आपसे ब त यार करती ँ। आप जैसे कह रहे थे...
लड़ कयाँ वैसे नह होत ... कम से कम म नह .ँ .. जैसे आप नह रह पाते ह, वैसे ही म भी
नह रह पाती .ँ .. तो या आ क आप मुझे इस तरह से झकझोर दे ते ह...”
इस समय वह अपने बाल को तौ लये से रगड़ कर सुखाने क को शश कर रही थी। मेरे मुँह
से अनायास ही यह गाना नकल गया,
या ने सर हला कर अनुम त दे द ।
मने उसक कई सारी त वीर नकाली, क इतने म ही प रचायक खाना लेकर आ गया। मने
उसको कैमरा दे कर हम-दोन क कुछ त वीर लेने को बोला। मुझे प का यक न है क
साले ने कैमरे के ू-फाइंडर से या के ज म से अपनी खूब नैन-तृ त करी होगी...
कोई सात-आठ त वीर लक करने के बाद उसने बेमन से वदा ली। उसको ज़ र कल
रात वाले प रचायक ने बताया होगा, ले कन हर-एक क क मत सामान थोड़े न होती है।
हमने अपना खाना पीना समा त कया और फर मने या को कहा क वो चाहे तो आराम
कर ले, य क म भी कैमरे से त वीर अपने कं यूटर म कॉपी कर के आराम करने के मूड
म ँ!
खैर, फर मने कैमरे को लैपटॉप से जोड़ कर त वीर कॉपी करनी शु करी। कोई पं ह
मनट बाद सारी त वीर जब कॉपी हो ग तो वह जद करने लगी क चलो त वीर दे खते
ह। मेरा मन था क कोई आधे घंटे क न द ले ली जाय, ले कन उसके उ साह को दे खकर
उसको मना करने का मन नह आ। कैमरे म हमारी शाद क त वीर (जो मेरे दो त ने
ख ची थ ), कुछ त वीर उसके कसबे क , कुछ हमारे रसे शन क (जो मेरे दो त और
पड़ो सय ने ख ची थ ), और फर ढे र सारी त वीर हमारे हनीमून क ! हमारी जो त वीर
सुजेन ने ख ची थी, उनको दे ख कर या के मुँह से ‘बाप रे’ नकल गया.... वाकई, सारी
क सारी ब त ही कला मक और कामो पक त वीर थ । वाकई यादगार त वीर! खैर,
कॉपी कर के मने चुपके से उन त वीर का एक बैक-अप भी बना लया क कह ऐसा न हो
क या शरम के मारे उनको डलीट कर दे । इसके बाद हम दोन लैपटॉप पर ही गाने
सुनते ए कुछ दे र के लए सो गए।
“सीईईई हाआआ!”
या को चूमना तो खैर हमेशा ही आनंददायक अनुभव रहता है, ले कन ऐसे सबके सामने
उसको चूमना – मानो नशे के समान था। उसके नम, गुलाब क प य जैसे नाजक ह ठो
क छु अन से मेरा तन मन पूरी तरह तक तरं गत हो गया। या ने भी अपनी बाह मेरे गले
म डाल द और मेरे ह ठ को चूसने लगी। मने भी दोन हाथ से उसके गाल थाम कर पता
नह कब तक चूमता रहा, मुझे यान नह । ले कन जब हमारा चु बन टू टा तो हमारे चार
तरफ लोगो ने ताली बजा कर हमारा हौसला बढाया। मने भी हाथ हला कर सभी का
अ भवादन कया।
“वह दे खये.. वो जो लाल सा सतारा दख रहा है, वो मंगल ह है... और वहां पर बृह त
या जु पटर! वही जहाँ से साबू आया है...”
“साबू?”
“अरे.. वो चाचा चौधरी वाला? आप कॉ म स नह पढ़त ?” मुझे नराशा ई... चाचा
चौधरी तो मेरे बचपन म लगभग हर ब े को मालूम था।
“हाँ.. कहते ह क तुला रा श धरती पर हो रहे पाप-पु य का पूरा लेखा जोखा उधर त
ुव तारे को दे ती
जाती है.. ुव तारा अपना ान नह बदलता..”
“ म.. अ ा... वह जगमग रेखा.. वहाँ ... उधर... वह आकाश-गंगा है। इसके जल म
नान कर के दे वी-दे वता और अ सराएं हमेशा युवा बने रहते ह...”
“ऐसा य ?”
‘ य न खड़क खोल द जाए!? समु का शोर ब त सुहाना होता है।‘ ऐसा सोच कर म
उठ और समु के सामने खुलने वाली खड़क के प ले खोल दए और पद हटा दए, और
वापस आकर ब तर पर सरहाने क टे क लेकर बैठ गई। समु क लहर क गजना,
रा काल क चु पी और रसोट क लाइट से उठने वाले मृ ल उजासे से माहौल और भी
शां तमय हो चला था। न द तो बलकुल ही गायब थी, इस लए म बैठे बैठे बस पछले कुछ
दन क बात सोचने लग गई...
वैसे तो लड़क शाद के बाद ससुराल चली जाती है, ले कन ये तो इतनी र रहते ह!
इसी लए हमारे लए घर म ही सारी व ा कर द गई थी.. कहा जाता है क प त-प नी
क यह पहली अ तरंग रात उनके वैवा हत जीवन के भ व य का नणय कर दे ता है।
सुहागरात म प त-प नी का यह पहला मलन शारी रक कम, ब क मान सक और
आ मक अ धक होता है। इस अवसर पर दो अनजान य के शरीर का ही नह
ब क आ मा भी मलन होता है। जो दो आ माएँ अब तक अलग थ , इस रात को
पहली बार एक हो जाती ह।
एक बार ट वी पर मने वो गाना दे खा था... “आज फर तुम पे यार आया है...” उसम
माधुरी द त और वनोद ख ा के बीच थम णय का सं छ त य दखाया गया था।
उस य को दे ख कर मेरे मन म भी एक अनजान तपन, एक बेबस इ ा और न जाने
कतने कोमल सपने अंकुर लेने लगे। अथव से ववाह क बात प क हो जाने पर वह सारे
सपने परवान चढ़ गए ... ले कन, भा भय के बताये यौन ान ने सब पर पानी फेर दया।
यादातर य के यौन जीवन, या कह ली जये वैवा हक जीवन क स ाई तो वैसी ही
है... मुझे उनक बात से जो एक बात समझ म आई थी वह यह थी क य के लए
सहवास का आनंद उठाने जैसी कोई व ा नह है। प तदे व आयगे, और कुछ कुछ
करके सो जायगे! ी के लए तो बस पूरे दनभर चौका-चू हा, सेवा-टहल, बस यही सब
चलता रहता है। हमारी ( य क ) तो बस न द ही पूरी हो जाय, यही ब त है।
‘आप को जो करना है, करगे ही!’ ऐसा सोचते ए मेरे दमाग म भा भय क बताई ई
श ा, सहे लय क नटखट चुहल और छे ड़खानी और मेरी खुद क न जाने कतनी ही
कोमल इ ाएँ क ध ग ... मने सफ धीरे से हाँ म सर हलाया।
‘और इनका लग! बाप रे! पहली बार उनके ल बे तगड़े अंग को दे खते ही मुझे दहशत सी
हो गई! इतना मोटा! मेरे कलाई से भी अ धक मोटा! उसक वचा पर नस फूल कर मोट
हो रही थी और आगे का गुलाबी ह सा भी कुछ कुछ दख रहा था... आ खर यह मुझम
समाएगा कैसे?’ उस समय मुझे प का यक न हो गया क आज तो दद के मारे म तो मर ही
जाऊंगी! यह सब सोचते ए मेरी अथव के जघन भाग पर चली गई, जहाँ च र के
नीचे से उनका अंग सर उठा रहा था।
मुझे याद है जब मने इसको पहली बार छु आ था... मने छु आ या था, दरअसल उ ह ने ही
मेरे हाथ को पकड़ कर अपने आ नेया पर रख दया।
आ नेया ! हा हा! सचमुच! मानो अ न क तपन नकल रही थी उसम से!! मेरी हथेली
उनके लग के गद लपट तो गई, ले कन घेरा पूरा बंद ही नह आ। इतना मोटा! बाप रे!
और तो और, उनके लग क ल बाई का कम से कम आधा ह सा मेरी पकड़ से बाहर
नकला आ था। शरीर और मन क इ ाएँ जब अपने मूत- प म जब इस कार
उप त हो जाती ह, और उनसे दो-चार होना पड़ता है तो डर और ल ा – बस यही दो
भाव मन म आते ह। म भी डर गई...!
जब उ ह ने मेरी जांघ फैला द तो मुझे लगा क जैसे मेरी यो न तरल हो गई है... पूरी तरह
से भ आभास! जब उ ह ने अपनी उँ ग लय से उसको फैलाया, तब जा कर मुझे वापस
आभास आ क मेरी यो न नायु, ऊतक और पे शय से बनी है। वो कुछ कहते, ले कन
मुझे कुछ भी सुनाई न दे ता! मानो, सब इ य क संवेदनशीलता समट कर मेरी यो न
और चुचक म ही रह गई हो।
उनका लग!
पहली बार उसको अपनी यो न म महसूस करना अ त था! उनके जोर लगाने से वह धीरे-
धीरे मेरे अ दर आने लगा। मुझे लगा क जैसे एक नया जीव मेरे अ दर घर बना रहा हो।
भराव का ऐसा अनुभव मेरी क पना से परे था। मने नीचे दे खा – अभी तो लग के आगे के
ह से का सफ आधा भाग ही अ दर घुसा था! उ ह ने एक ण क कर एक जोरदार
ध का लगाया और उनके वकराल अंग का आधा ह सा मेरी यो न के भीतर समा गया।
"आआ ह..." ऐसी ू रता! मेरी चीख नकल गयी – जो क मुझे भी सुनाई द । वो एक दो
पल ठहर कर मुझे दे खने लगे.. उनक आँख म चता थी – कस बात क यह तो नह
मालूम, ले कन इतना कह सकती ँ क मेरे लए नह । य क एक दो पल कने के बाद
ही उ ह ने अपना लग मेरी यो न से थोड़ा बाहर नकाला और फर पुनः और अ दर डाल
दया। ऐसे ही उ ह ने कई बार अ दर बाहर कया। म.. दद कुछ कम तो आ! ले कन
उनके हर ध के से मेरी कराह ज़ र नकल रही थी। फर अचानक ही उ ह ने पूरे का पूरा
लग मेरे भीतर ठे ल दया और मेरा व धवत भोग करना आर कर दया। वासना और
आनंद के स म ण से मेरी आँख बंद हो ग – सांस और कराह का आवागमन मुंह से ही
हो रहा था। उ ेजना के मारे मने उनके क को जोर से जकड रखा था। अजीब अजीब
सी आवाज – कुछ हमारी कामुक आह क , तो कुछ पलंग के पाए के भू म पर घसने क ,
तो कुछ हमारे जननांग के घषण क ! मुझे अचानक ही मेरे अ दर गम तरल क बूँद गरती
महसूस – और ठ क उसी समय मुझे एक बार पुनः कामुक आनंद के अनोखे वाद का
आभास आ। मेरी पीठ एक चाप म मुड़ गयी.. और मेरे भोले साजन मेरे चुचक को एक
बार फर से पीने लग गए और मुझ पर ही गर कर सु ताने लगे! मुझे नह मालूम था क
मद को य के तन का वाद लेने क ऐसी इ ा हो सकती है। मने उनके लग को
अपने अ दर मुलायम होते महसूस कया; ऊपर से उनका लार, चु बन और चूषण जारी
रहा।
मने पूरे हाथ को उनके लग पर कई बार फराया और फर उसको पकड़ कर हलाने लगी।
कुछ ही दे र म उनका लग मेरी यो न म जाने के लायक एकदम खड़ा और स त हो गया।
अथव ‘आऊ आऊ’ करते ये मेरे सर को अपने हाथ से सहला रहे थे। ‘हो गया सोना!’
मने उ साह म आकर उनके लग को अपने मुंह के और भीतर जाने दया – एक बार तो
उबक सी आ गई, ले कन मने गहरी सांस भर कर उसको चूसना जारी रखा। उधर अथव
भी उ ेजना म आकर लेटे ए नीचे से ध के लगाने लगे – वो तो अ ा आ क म अभी
भी उसक ग त और भेदन नयं त कर रही थी, नह तो मेरा दम घुट जाता। खैर, कुछ ही
दे र म म अपने मुंह म उनके लग क उप त और चाल क अ य त हो गई और अब
मुझे इस कार मैथुन करना अ ा लगने लगा। मुझको यह या आर कये कोई चार-
पांच मनट तो हो ही गए थे.... अतः कुछ और झटके मारने के बाद वो ख लत हो गये और
मेरा मुख उनके गरम गरम वीय से भर गया, जसको मने तुरंत ही पी लया। कुछ यादा
नह नकला... संभवतः आज कुछ यादा ही खच हो गया। एक अजीब वाद! हो सकता
है क कुछ और बार ऐसे करने के बाद म उसक भी अ य त हो जाऊं! अथव भी ख लत
होने के बाद नढाल से लेटे रहे।
'आज क रात य अनोखी हो भला?' यह सोचते ए मने अपने सारे कपड़े उतारे, और
अपने पया से चपक कर लेट गई.. रात म कब न द आई, कुछ भी याद नह ।
१३
आज सुबह से ही बदली वाला मौसम था – सूरज बादलो के साथ लुका- छपी खेल रहा
था। ह क बयार और ढले ए तापमान से मौसम अ यंत सुहाना हो गया। मन म आया क
य न अगर ऐसे ही मौसम रहे, तो आज दन भर बीच पर ही आराम कया जाय? आ खर
आये तो आराम करने ही है! मने या को यह बात बताई तो उसको ब त पसंद आई –
वैसे भी हमालय क हाड़ कंपाने वाली ठं डक से छु टकारा मलने से वह वैसे भी ब त खुश
थी। या ने भी कहा क आज बस आराम ही करने का मन है... खायगे, सोयगे और हो
सका तो रात म फ म दे खगे, इ या द... मेरे लए आज का यह लान एकदम ओके था।
वहां पर रसे श न ट ने बताया क ब त से लोग आज यही लान कर रहे ह.. उसने हमको
काला-प र बीच जाने को कहा.. एक तो वहां ब त भीड़ भी नह रहेगी और सरा वह
रसोट से आरामदायक री पर था। आई डया अ ा था। फर मेरे मन म एक ख़याल
आया – मने रसे श न ट से पूछा क दो साइ कल का इ तेजाम हो सकता है? य न कुछ
साइ क लग क जाय – वैसे भी इतने दन से कसी भी तरह का ायाम नह आ था..
बस आराम! खाओ, पयो, सोवो, और सहवास करो! ऐसे तो कुछ ही दन म तो मल हो
जायगे हम दोन ।
कोई पं ह बीस मनट क साइ क लग थी.. तो मने सोचा क र ते म इसको चुटकुले सुनाते
चलूँ...
म: “अरे आपक फरमाइश है..! अब तो सुनना ही पड़ेगा.. शाद के फेरे लेने के बाद लड़क
ने झुक कर पं डत जी के पैर छु ए और कहा "पं डत जी कोई ान क बात बता द जए।"
पं डत जी ने उ र दया "बेट , ा अव य पहना करो.. य क जब तुम झुकती हो तो ान
और यान, दोन ही भंग हो जाते ह।“”
“हा हा हा!”
“हा हा हा हा हा!”
ऐसे ही हंसी मज़ाक करते ए कुछ दे र बाद हम दोन काला प र बीच पर प ँच जाते ह।
वहाँ पर हमारे अलावा कोई चार पांच जोड़े और मौजूद थे.. ले कन सभी अपने अपने
आनंद म ल त थे।
एक साफ़ सुथरा (वैसे तो सारे का सारा बीच ही साफ़ सुथरा था) ान दे ख कर अपना
च र बछाया और बैग रख कर म कैमरा सेट करने लगा। उसके बाद या क ढे र सारी
त वीरे उतार .. म उसको सफ ा-पट ज म कुछ पोज़ बनाने को बोला, तो वह लगभग
तुरंत ही मान गई। कसी मॉडल क भां त सुनहरी रेत और फरोज़ी पानी क पृ भू म म
मने उसक कई सु दर त वीरे उतारी। उसके बाद मने भी सफ अपनी अंडर वयर म या
के साथ कुछ युगल त वीरे एक और पयटक से कह कर उतरवाई।
यह सब करते करते कोई एक घंटा हो गया हमको बीच पर रहते ए.. बादल कुछ कुछ
हटने लगे थे, इस लए मने या को कहा क म उसके शरीर पर सन न लोशन लगा दे ता
.ँ . नह तो वो झुलस कर काली हो जायेगी। मने या को पानी क एक बोतल पकड़ाई
और वह च र पर आ कर लेट गई। सूरज इस समय तक ऊ व हो गया था। उसम त पश तो
थी, ले कन फर भी, समु हवा, और लहर का गजन ब त ही सुखकारी तीत हो रहे थे।
हम दोन चुप-चाप इस अनुभव का आनंद लेते रहे, और कुछ ही दे र म मने या और
अपने के पूरे शरीर पर सन न लगा लया।
कुछ दे र ऐसे ही लेटे लेटे या बोली, “आप ग़ज़ल पसंद करते ह?”
“ग़ज़ल का मतलब? म... हाँ! वो जो ग़मगीन आवाज़ म धीरे धीरे गाया जाय?”
“एक ब त बड़े आदमी ए थे कभी... रघुप त सहाय साहब! जनको फराक गोरखपुरी भी
कहा जाता है! खैर, उ ह ने ग़ज़ल को ऐसे समझाया है – मानो कोई शकारी जंगल म कु
के साथ हरन का पीछा करे, और हरन भागते-भागते कसी झाडी म फंस जाए और वहां
से नकल नह पाए, तो वह डर के मारे एक दद भरी आवाज़ नकालता है। तो उसी क ण
कातर आवाज़ को ग़ज़ल कहते ह। सम झये क ववशता और क णा ही ग़ज़ल का आदश
ह।“
“हा हा हा! वेरी फनी! इसी लए पुराने सी रयस शायर ग़ज़ल लखना पसंद नह करते थे।
इसको अ ील या बे द शायरी कहते थे। ले कन जैसे जैसे व आगे बढ़ा, और इस पर
और काम आ, जीवन के हर पहलू पर ग़ज़ल लखी गयी।“
“ या सच? वाह! या बात है!! तो अब समझ आया आपका शौक कहाँ से आया!” या
मु कुराई!
“हाँ!”
“ फर कभी?”
“नह ! आपने इतना इंटरे ट जगा दया, अब तो आपको कुछ सुनाना ही पड़ेगा!”
“ म! ओके.. यह मेरी एक पसंद दा ग़ज़ल है ... मीर तक मीर ने लखी थी – कोई दो-
ढाई सौ साल पहले! आप तो तब पैदा भी नह ए ह गे! हा हा हा हा!”
“तो जनाब! पेशे- ख़दमत है, यह ग़ज़ल...” कह कर या ने गला खंखार कर साफ़ कया
और फर अपनी मधुर आवाज़ म गाना शु कया,
या गाते गाते खुद भी इतनी भाव- वभोर हो गयी, क उसक आँख से आंसू बहने लगे ...
उसक आवाज़ शनैः शनैः भराने लगी, ले कन फर भी मठास म कोई कमी नह आई...
मने उसके कंधे पर हाथ रख अपनी तरफ समेट लया।
या ने मेरे मुँह क बात छ न ली। उसक बात सुन कर मेरी खुद क आँख से आंसू क बूँद
टपक पड़ी। हाँ! मद को दद भी होता है, और मद रोते भी ह.. यार कुछ भी कर सकता है।
म कुछ बोल नह पाया – कुछ बोलता तो बस रो पड़ता। मने या को जोर से अपने म
भ च लया। जो उसका डर था, वही मेरा भी डर था। इतनी उ नकल जाने के बाद, मेरे
साथ पहली बार कुछ ठ क हो रहा था।
“आई ऍम सॉरी जानू! म आपको लाना नह चाहती थी। ... म भी कतनी गधी ँ .. इतने
अ े मूड का स यानाश कर दया।“
“नह जानू! सॉरी मत बोलो! और ऐसा कुछ भी नह है। बस, आपके आने से यह समझ
आ गया क म या मस कर रहा था मेरी लाइफ म! यू आर वेरी े शयस फॉर मी! और
मुझे भी आपके ही साथ रहना है।“
कह कर मने या को और जोर से अपने म बका लया। मुझे मेरे जीवन म साफ़ उजाला
दख रहा था।
हम दोन काला प र बीच पर कम से कम छः घंटे तो रहे ही ह गे.. उस समय तो पता नह
चला, ले कन वापस रसोट आने पर जब आँख थोड़ी अ य त , तो साफ़ दख रहा था
क या और म, सूरज क तपन से पूरी तरह से गहरे रंग के हो गए। वैसे भी भारतीय
लोग क वचा धूप को ब ढ़या सोखती है, लहाजा हम दोन काले कलूटे बन गए थे।
ले कन एक अपवाद था... या ने टू -पीस ब कनी पहनी ई थी, इस लए जो ह सा (दोन
तन, जघन े और नत बो का ऊपरी ह सा) ढका आ था, वह अभी भी अपने मूल,
हलके रंग का था। इसको ब कनी टे न कहते ह। या ने कपड़े उतारे तो यह बात समझ आ
गई। ले कन शायद या ने दे खा न हो, इस लए उसने कसी भी तरह का व मय नह
दखाया। खैर नहा-धोकर हमने पकौड़े और चाय मंगाया, और खा-पीकर दोपहर म एक
छोट सी न द सो गए।
“फ स गुड?” या ने पूछा।
“ओह! दे फ ल अमे जग! सो नाइस! सो मूद.. सो कामुक!” मने हँसते ए पूछा, “डू दे
मेक यू फ ल कामुक, हनी?”
“कामुक? ओह यस! दे डू !”
“हा हा... हाँ! उ म!!” कहते ए उसने अपने नतंब मटकाए, जससे मेरी उं गली ठ क से
उसक दरार म फट हो जाय।
या हंसी।
मने कुछ दे र सहलाने के बाद उसक च ी को दोन तरफ से पकड़ कर धीरे धीरे नीचे क
तरफ ख चना शु कया, “आई वल टे क द स यूट पट ज... अदरवाइज, दे वल गेट वेट!
... इस दै ट ओके?”
“नाउ लुक अट दै ट!” मने शंसा करते ए कहा, “सच अ यूट पुसी यू हैव!”
“ म... सो वैरी टे ट !”
“यू हैव अ वैरी नाइस पुसी डअर!” मने वापस अपनी उं गली को उसक यो न पर फराया,
“... इट इस सो हॉट... एंड वेट! यू आर सो रेडी टू फ़क!”
या और म बाह म बाह डाल कर सुनहरी रेत वाले इस बीच के एक तरफ बैठ गए।
“हयं! तो और कहाँ रहने वाली थी? अरे भई, हम लोग ह बड-वाइफ ह.. साथ ही तो
रहगे?”
या मु कुराई।
“वैसे आप आगे या करना चाहती ह? मेरा मतलब कै रयर के बारे म कुछ सोचा है? आप
कह रही थी न.. हमारी सुहागरात को, क आप कुछ करना चाहती ह.. कुछ बनना चाहती
ह?”
“ओके..”
“नौकरी या बजनेस...”
“नौकरी या बजनेस...”
“पता नह ...”
“ह म.. मेरे मन म यह बकवास करते करते एक याल आया। यूँ न आप अपना खुद का
बजनेस शु करो? साथ म ेजुएशन क पढाई करते रहना? अगर दमाग म ब ढ़या
आई डया हो, तो बजनेस ज़ र करना चा हए। पैसे क जो ज़ रत होगी, वो म क ं गा...
मेरे ब त से दो त भी है, अगर वो आपके बजनेस आई डया से सहमत ह , तो वो भी पैसे
लगा सकते ह। बगलोर वैसे भी उ मय का शहर है! ोफेशनल हे प मल जाएगी।
सोचना... कोई ज द नह है! ओके?”
“तो या आ.. अभी कोई ज द नह है.. अपना टाइम ली जये.. जब समझ आय तभी
कुछ करगे! ओके?”
मने या के बाल म अपने हाथ से सहलाया.. और फर आगे कहा, “दे खो, यह बात सच
है क कम उ म शाद करने से ब त सी सम याएँ खड़ी हो जाती है। ले कन म आपसे
आज कुछ वायदे करता ँ। पहला तो यह क आपको अपने त व के वकास के लए
पूरा समय, और सहयोग ं गा। आपको जो भी कुछ करना है, जो भी कुछ बनना है, उसम
म पूरी मदद क ं गा। आप पर कसी भी तरह क पा रवा रक ज मे*दारी तब तक नह
आने ं गा, जब तक आप उसके लए पूरी तरह से तैयार न ह – मतलब पढाई लखाई पूरी
करनी होगी, और उसके बाद आपका अगर मन हो तो आप अपना पूरा यान कै रयर पर
लगाइए। और ब ा तभी जब आप तैयार ह ।“
“आई लव यू!” कहते ए या का गला भर आया। उसने बड़े य न से अपना गला साफ़
कया और वयं पर नयं ण कया।
“पता है आप मेरे कौन है?” भावुक माहौल था.. नह तो कसी न कसी तरह क
चुहलबाजी ज़ र करता।
“बाप रे!”
“सच म!”
“आई लव यू!”
“आई लव यू टू !!”
मने या को अपनी बाह के घेरे म कस कर बका लया – जैसे मेरा आ लगन उसके लए
सबसे सुर त ान बन जाय.. हम दोन वैसे ही काफ दे र तक सूया त का अ त् नज़ारा
दे खते रहे। सूरज ढलने के साथ साथ ही धीरे धीरे सांझ का धुंधलका बढ़ने लगा, और
उसके साथ ही आसमान म गहरे लाल, काले नीले इ या द रंग उभरने लगे। कई लोग अब
जाने क तैयारी कर रहे थे और जो लोग के ए थे, उनक भी बस पा आकृ त ही दख
रही थी।
“म ठ क !ँ ”
“मेरा घर तो आप ह!”
“ओहो! मेरा मतलब माँ से? या अ नी से? ... बात करनी है वहाँ? वहां कॉल कए दो दन
हो गए शायद?”
“आप नह करगे?”
मने उ राँचल कॉल लगाया। चूँ क फ़ोन तो ह रहर सह जी के ही पास रहता है, इस लए
उनको ही उठाना था।
“ह लो!” मने कहा..
‘बेटा!’ र ते म तो हम बाप-बेटा ही तो ह!
कैसे सब कुछ इतनी ज द बदल जाता है! ह ता भर पहले ही म माँ पापा को छोड़ कर
कह जाने क सोच भी नह सकती थी.. और आज का दन यह है क उनक याद भी नह
आई! या जा है! सहे लय क बात , कहा नय और फ म म दे खा सुना तो था क यार
ऐसा होता है, यार वैसा होता है.. ले कन, अब समझ म आया क यार कैसा होता है! यार
का एहसास तो हमेशा ही नया रहता है - हमेशा ताज़ा!
पापा से कुछ दे र बात करने के बाद माँ फ़ोन पर आई.. उनसे बात करनी शु ही क थी क
‘इनका’ हाथ मेरे तन पर आ टका! ‘हाय’ मेरे मुंह से अनायास ही नकल पड़ा। उधर से
माँ ने पूछा क या आ.. अब उनको या बताती? म जैसे तैसे उनसे बात करने क
को शश कर रही थी, और उधर मेरे प तदे व मेरे तन से खेल रहे थे – वो बड़े इ मीनान से
मेरे तन दबा और धीरे धीरे सहला रहे थे। चाहे कुछ भी हो, ऐसा करने से य के चूचक
कड़े होने ही लगते ह। मेरे भी होने लगे। शरीर म जानी पहचानी गुदगुद होने लगी। म
अ यमन क सी होकर बाते कर रही थी, ले कन सारा यान उनके इस खेल पर ही लगा
आ था। वे कभी मुझे चूमते, तो कभी मेरे बाल को सहलाते, तो मेरे तन से खेलते!
अंततः उनका हाथ मेरी पट के अ दर और उनक उं गली मेरी यो न क दरार प ँच गई।
उनके टटोलने से म बेबस होने लग गई.. माँ या कह रही थी और फर कब अ नी फ़ोन
पर आ गई, मुझे कुछ याद नह ! मदहोशी छाने लगी। सच म म अथव क दासी ँ.. अगर
वो उस समय मुझे न न होने को कहते तो म तुरंत हो जाती... बना यह सोचे क वहां पर
और लोग भी उप त थे। इतना तो तय है क म उनक कसी बात का वरोध कर ही नह
सकती!
खैर, ऐसा कुछ नह आ.. अ नी ने अपने जीजू से बात करने को कहा तो मने फ़ोन
इनको दे दया।
“मेरी एंजेल कैसी है?” इ होने ेम और वा स य भरी बात कही.. एक बात तो है, ये जो
कहते ह, उनक आँखे भी वही कहती ह। न कोई लाग लपेट, और न कोई फरेब! स ा
इ सान!
“ या बाते हो रही थ जीजा साली म? रोमां टक रोमां टक... ईलू ईलू वाली!” मने ठठोली
करी।
“हा हा हा! अरे जो भी हो रही हो... आपको इससे या? हमारी आपस क बात है! हा
हा!” फर कुछ दे र क कर, “.. जानू, य न ए जाम के बाद वहां से सभी लोग यह
बगलोर म रह? अ नी क पढाई भी अ जगह हो जायेगी.. और माँ पापा भी आराम से
रह लगे! या कहती हो?”
“ य ! या ॉ लम है?”
म मु कुराया, ‘ब ढ़या!’
“जानेमन, जब इसके जैसी नरमी, इसके जैसी गरमी और इसके जैसा वाद मले, तो म
कह और य घुस?ूँ यह न घुस?ूँ ” (मने ‘आपक पारखी नज़र और नरमा सुपर’ वाले
चार क तज पर अपना जुमला ठ क दया।)
“म कैसे साफ़ क ँ ?”
“बाप रे!”
“बाप रे?”
खैर, अथव ने बड़े इ मीनान से मेरे पूरे शरीर पर साबुन रगड़ा – ख़ास तौर पर मेरे बगल म,
मेरे तन पर और मेरी यो न और नत ब के बीच के ह से पर!
“ज़रा अपने पैर खोल कर सीधी खड़ी हो जाना तो.. तु हारी यो न और नतंब क सफाई
कर दे ता ँ।“ मुझे उनक ग द भाषा सुन के बुरा तो लगता है, ले कन एक तरह क
उ ेजना भी आती है। अब इस वरोधाभास क ा या कैसे क ँ , समझ नह आता।खैर,
उनके आदे श का पालन करते ए म अपनी टाँगे खोल कर सीधी खड़ी हो गई.. और उनक
उं ग लयाँ नबाध प से मेरी यो न, उसके भीतर और मेरी गुदा के भीतर सफाई के बहाने
सध लगाने लग ।
इस या के दौरान उनका खुद का लग खड़ा हो गया.. मने हाथ बढ़ा कर उसको पकड़ने
क को शश करी।
“अब दे खो..!”
युवा व , छोटे कंधे, गोलाकार नतंब, और केश से टपकती पानी क बूंद...! म खुद पर
मु ध ई जाती .ँ .. खुद के शरीर पर! इतनी खूबसूरत ँ या म... सचमुच? या सचमुच
अथव रोज़ नबाध इसी सौ दय का पान करते ह? मने कन खय से उनक तरफ दे खा...
उनक आंख म मेरे लए कामना थी - उ त कामना! एक चाहत थी - उ ाम चाहत...!
उ र म म सफ मु कुराई...
अथव इस समय मेरे नत ब पर म लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उं गली से।
मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इराद पर। ले कन फर भी मने सोचा क साथ दे ती
ँ, जब तक हो पाता है तब तक! ज द ही उनक म से भरी उं गली मेरी गुदा- ार पर
फरने लगी और फर अ दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उं गली अ दर आती, व त या
म मेरी गुदा का ार बंद हो जाता।
‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते ह या?’ मेरे दमाग म एक वचार क धा।
“ या करना चाहते हो?” मने याचना भरी आवाज़ म कहा, और साथ ही साथ पीछे क
तरफ मुड़ी। उनका तना आ बल लग इस तरह से उठा आ था क मानो मेरी गुदा को
ही दे ख रहा हो।
“नह ! आगे से आपका मन भर गया या, जो आप पीछे डालना चाहते ह? लीज लीज!
म आपक हर बात मानूंगी, ले कन ये नह ! म मर जाऊंगी सच म! आप उं गली ही डाल रहे
ह और उसी म मेरी जान नकल रही है।“ म बुरी तरह गड़ गड़ा रही थी। इनका जो भी
लान था, म उसमे भाग नह लेना चाहती थी।
इतना सब होते ए भी मने जो मढक वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा आ
था। अथव मेरे पीछे आकर मु से चपक गए और पीछे से ही मेरे तन को पकड़ कर
भ चने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से च कर म घुमा रहे थे
जससे उनके लग का अ म भाग मेरी यो न और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही
मेरी यो न को उनका लग छू ता, मेरा मन होता क एक झटके से उनके लग को अ दर ले
लूं.. ले कन यो चत संकोच और ल ा मुझे रोक लेती। इसी पूवानुमान म मेरी यो न से
रस नकलने लगा।
उ ह ने ब त दे र तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटना म म म सोच रही थी और
उ मीद लगाए बैठ थी क कभी तो इनका धैय छू टे गा, और कभी तो वो मेरे अ दर व
ह गे। यही सब सोचते ए मने इतने म ही एक बार और चरमो कष ा त कर लया।
मने दे खा क अथव बैग म से कुछ और भी नकाल रहे थे... कोई शीशी! वापस आकर
उ ह ने मुझे ब तर पर च लेटा दया और मेरी जांघे थोड़ा और फैला द । म तो नढाल
पड़ी थी, उ ही के रहमो करम पर! ऐसे नीचे से दे खने पर अथव का तना आ लग दख
पड़ रहा था। ऐसा भयावह वह पहले द भी नह दखा। नःसंदेह उसक ल बाई और
मोटाई कुछ यादा ही लग रही थी। उसक नस भी फूल कर मोट हो रही थी, और उसका
आगे का चमकदार गुलाबी भाग भी दख रहा था। अपनी ताकत बटोर कर मने उस माँसल
अ को पकड़ लया। इतना गम! ब त अ त सी बात थी – नहाने के बाद संभवतः कमरे
के वातानुकूलन के कारण उनके वृषण सकुड़ कर उनके जघन े के काफ अ दर छु प
गए से मालूम हो रहे थे, ले कन लग क अलग ही बात थी! इतना गम, और सामा य
उ ेजना से भी अ धक उ े जत!
उ ह ने मुझे कुछ दे र अपना लग पकड़ने दया और फर अलग होकर अपने काम के अगले
ह से को अंजाम दे ने लगे। शीशी खोलकर उ ह ने मेरी योनी पर उड़ेल दया।
इतना मजा जीवन म कभी नह आया – मान म वग क सैर कर रही ँ! मुझे तो कसी
भी चीज़ का आभास नह था – बस यह क यो न के रा ते से आनंद का उ माद मेरे पूरे
शरीर म फ़ैल रहा था। तीसरी बार मेरी यो न म जबरद त चगारी पनपी – इस बार मुझे
वहां से व छलकता महसूस आ... मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा। मने दोन हाथ को
ब तर पर पटक रही थी, और हांफ रही थी! बेबस... लाचार! ले कन संतु !
अथव वह बाथ म क फ़श पर लेट गए, और मुझे इशारे से अपने ऊपर बैठने को कहने
लगे।
उ ह ने दोन हाथ से मरे दोन टखने पकड़ लए और मने अपने दोन हाथ उनके सीने पर
टका दए – सहारे के लए। द कत यह है क कुछ दे र अगर मू को रोक लया जाए, तो
फर तुरंत ही नह हो पाता – कुछ दे र इंतज़ार करना पड़ता है। मने कुछ दे र तक अपनी
साँसे नयं त कर , और अपनी मांस-पे शयाँ कुछ श थल कर ।
जैसा पहले भी कया था (याद है न? बु याल पर? झील के बगल?), आज पुनः कुछ नया
करने क इ ा जाग गई थी। ठ क ह, गंदे हो जायगे, ले कन तो या? बाथ म म ही ह न?
फर से नहा लगे!
मने या के कंधे पकड़े, और उसी के सहारे उठ कर पहले तो उसको गले से लगा लया।
या खुद के ही मू म सन गई। नहाने के अ त र अब कोई चारा नह था हम दोन के ही
पास। मने अपनी उं गली से उसक यो न को कुछ दे र टटोला, और फर खड़ा हो गया।
इस समय तक म एक बार पुनः सहवास के लए तैयार हो गया था। इस बार मने न कोई
औपचा रकता दखाई, और न ही कोई फोर ले कया। बस इस समय या को एक और
बार ‘ठोकने’ का मन था। एकदम पाश वक इ ा! वासना क न न अ भलाषा!
या क नजर म :
मने महसूस कया क मेरी यो न उनके लग को मसल रही है। मेरी सांसे तेज़ हो ग । अथव
समझ तो रहे थे क मुझे दद आ है, ले कन वो बस चार पांच सेकंड ही के। और फर
उ ह ने अपनी कमर हलानी शु कर द । उनका लग तेजी से मेरी यो न के अंदर-बाहर
होने लगा। दे खते ही दे खते उनक ग त तेज़ होती चली गई। तेज़ ग त के कारण लग का
व ापन कम ही हो रहा था, लहाज़ा, पूरे समय, मेरी यो न म उनका लग लगभग पूरा ही
समाया रहा। मू ने संभवतः अ दर से काफ चकनाई नकाल द थी, इस लए कुछ कुछ
ट स सी उठ रही थी। ले कन म या करती – अथव मुझे वाकई ‘ठोक’ रहे थे।
सवेरे म काफ ज द उठा। घर के पास ही स जी-हाट लगता है.. कभी कभी म वहां से
स जयां लेता था। अ बात यह है क वहां ताज़ी स जयां मलती ह। न जाने कतने ही
दन बाद आज खरीददारी कर रहा था। वापस आते आते साढ़े सात बज गए थे – अभी
भी सवेरा ही था। ले कन वहां खरीदने वालो क भीड़ अ खासी थी। वापस आते आते
मने ी हेगड़े जी को लंच पर आमं त कया। घर आया तो दे खा या अभी उठने के
कगार पर ही थी। उठते ही उसने पूछा, आज खाने म या पकाएँगे?
“ बलकुल आती है.. आपको या लगा? इतने दन ऐसे ही सवाइव कर लया मने?”
जैसी क मुझे उ मीद थी, सभी ने शाद , रसे शन और हनीमून क त वीर दे खने क मांग
क । मने पहले ही हम दोन क अ तरंग त वीर अलग कर ली थ , और दो त क ख ची
ई त वीर अपने लैपटॉप म कॉपी कर के मने सबको सल सलेवार तरीके से त वीर दखा
द । सभी ने एक बार तो ज़ र कहा, क हम दोन ही अंडमान क धूप म साँवले हो गए।
खैर, इन सब बातो के बाद, मने सबको आने के लए ध यवाद दया और फर वदा कया।
मने कहा, “जानू, तु हारा मन तो अपनी कताबो के साथ बहल जाएगा... हो सकता है क
पढाई, घर और सहे लय के साथ मेरी याद भी न आए... ले कन मन तु हारे बना एक दन
भी न रह पाऊँगा!”
या मेरी बात पर भावुक हो गई और मुझसे आकर लपट गई... मने भी अपनी बांह उसके
चार ओर कस द ।
“आपको ऐसा लगता है क मुझे आपक याद नह आएगी? मुझे आपक ब त याद
आएगी!!” या भावुक हो कर बोली। “... ले कन म ब त ज द ही आपक बाह म फर
से आ जाऊंगी!”
“ ो मस! आप भी रखना..”
“आई लव यू!” बछोह के गहरे दद का अहसास करते ए मने कहा। फर आगे सोच कर
कहा, “अ ा, जाते जाते ‘गुडबाय कस’ तो दो!”
म वापस नकलना चाहता था, ले कन सभी ने रोक लया। वैसे भी मेरी लाइट कल
दोपहर बाद क थी, इस लए अभी शु कर के मुझे कोई खास फायदा नह होना था।
इस लए म क गया। मौसम काफ ठं डा हो गया था – और रात म ठं डक और बढ़नी ही
थी। खैर, सासु माँ तुरंत ही हमारे स कार म लग ग – चाय पकोड़े इ या द! और उसके
बाद रात का खाना। इसी बीच म हमने सभी को शाद इ या द के ए बम दखाए। या ने
पहले से ही बड़ी चतुराई से अपना ‘छोटा वाला’ ए बम छु पा लया था।
हमारे आने क खबर हमारे कसबे म आने के साथ ही सभी को हो गई थी। तो मुझे ब त
आ य नह आ जब या क कई सारी सहे लयाँ मुझसे मलने घर आ । वो सभी या
को चढाने के लए मुझसे ब त दे र तक हंसी मज़ाक करती रह ,
इ या द!
जब या क माँ ने उनको डांट लगाई, तो फर जाते जाते मुझसे काफ सट कर त वीर भी
खचाय , और एक गु ताख ने मेरा मुँह यार से न च कर चु बन दया। बदमाश लड़ कयाँ!
“ या आ जीजू?”
“हाँ!”
“द द के लए या लया, आपने?”
“नह .. बस ऐसे ही पूछा! ... थक यू, जीजू!” कहते ए उसने मेरे दोन गालो पर चु बन भी
लया। मेरे बगल म या मु कुराती ई अपनी बहन को दे ख रही थी। अ नी ने फर या
को भी चूमा।
“अरे! कल तो म सवेरे सवेरे ही चला जाऊँगा। कैसे दे खूँगा?“ मने मु कुराते ए कहा।
“हाँ! य या आ?”
“ध ! मुझे शम आएगी!”
“अरे, इसम शरम वाली या बात है? हम दोन को तुम पहले ही ‘वैसे’ दे ख चुक हो... और
‘ये’ तो तु हारे जीजू ही ह।”
“ठ क है!”
“एक मनट! अ नी, अगर तुमको मेरे दे खने म शम आती है तो एक बार फर से कहो। म
आँख बंद कर लूँगा। बोलो बंद कर लू?ं ”
अ नी ने मुझे एक बार दे खा, दो पल यूँ ही चुप रही, और फर उसने शमाते ए नजरे नीचे
कर ली और सर हला कर ‘न’ कहा। और अपनी कट को नीचे सरका दया। अ नी ने
एक साधारण सी च ी पहनी ई थी। म और या दोन क अ नी को ऐसे दे ख रहे थे।
मुझे मज़ा आने लगा। अ नी ने धीरे से अपना टॉप भी उतार दया। उसने नीचे कुछ भी
नह पहना आ था – लहाजा, अ नी हमारे सामने सफ च ी पहने खड़ी ई थी...
मुझे और कुछ समझ नह आया और मने उसको अपनी बाँह म ही भरे ए उसक गदन
पर एक चु बन दे दया।
“यह य जीजू?”
“सॉरी मत क हये जीजू! मने जो भी कुछ कया, अपनी मज़ से कया। मुझे मालूम है,
आप दोन मुझसे खूब यार करते ह... इस लए मुझे कुछ भी बुरा नह लगा... उ टा, मुझे
ब त अ ा लगा क आपने मुझे ऐसे दे खा...”
“ बलकुल... वी लव यू वैरी मच! और तुम ब त खूबसूरत हो, अ नी!” कह कर मने
अ नी के दोन गाल बारी बारी चूमे, और एक बार फर से उसको जोर से अपने गले से
लगा लया। मेरी दे खा दे खी या ने भी अ नी को ब त यार से कई बार चूमा और ‘आई
लव यू’ बोला। अ नी शरमाते ए ऐसे ही न न हम दोन से काफ दे र लपट रही, और
फर उसने बारी बारी से अपने बचे ए कपड़े भी पहन कर दखाए। सारे के सारे प रधान
ब ढ़या फ टग के थे, और उस पर ब त जच रहे थे।
“ या आ अ नी?”
“म पहले हमेशा ही द द के साथ सोती थी...” अ नी ने कहना जारी रखा, “उसके जाने
के बाद मने उसको ब त मस कया... और कल आप भी चले जायगे। और म आपको भी
ब त मस क ं गी। लीज़!”
“हा हा... बस इतनी सी बात? बलकुल सो जाओ!” मने माहौल को थोडा वनोद बनाते
ए आगे जोड़ा, “मेरी क मत तो दे खो – एक साथ दो-दो सु दर लड़ कय के साथ सोने
का मौका मल रहा है आज!”
जैसा मने पहले भी बताया है क हमारा पलंग कोई ख़ास बड़ा नह था, लहाज़ा, तीन लोगो
के लेटने का केवल एक ही तरीका हो सकता था, और वह यह क या बीच म चत हो
कर लेटे, और म और अ नी दोन करवट लेकर। ऊपर से दोहरे क बल और च र क
परत ओढ़ ई थ , और साथ म तीन लोग चपक कर लेटे थे, इस लए गम अ हो गई
थी। लेटने से पहले मोमब ी बुझा द गई थी। मने करवट लेकर या को अपनी दा हनी
बाँह के घेरे म ले लया। अ नी मुझसे काफ दे र तक मेरे, बगलोर और अंडमान के बारे म
सवाल कर रही थी। उसक बात म, और दन क या ा क थकावट के कारण न द कब
आ गई, कुछ याद ही नह !
और या को भेज दया। चाय ख़तम कया और गाड़ी टाट ही करने वाला था क मेरे
फ़ोन पर एक एस एम एस आया :
“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”
दे हरा न एअरपोट से बगलोर तक का सफ़र... समय मान हवा म उड़ गया। कुछ याद
नह । हाँ, जैसे ही बगलोर प ंचा, मने तुरंत ही या को फ़ोन लगाया और दे र तक यार
मोह बत क बात कर । जब घर प ंचा तो स ाटा बखरा आ था – यही स ाटा पहले
मेरा साथी था, ले कन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाक प! पुनज वन,
जो मुझे या के मेरे जीवन म आने से मला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, या
भगवन के ारा भेजा आ उपहार है मेरे लए। बलकुल!!
“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my
dreams tonight.. naked!”
सवेरे दे र तक सोया और जब उठा तो दे खा क एक और संदेशा आया है :
बस, हमारे बछोह भरे दन और रात ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बात ( यादातर
रोमां टक और कामुक बात), कभी एस एम एस, तो कभी कभार प -लेखन भी!
“शाद के बाद या- या धमाल कया मेरी ब ो ने?” एक सहेली ने पूरी बेशम से पूछा।
“अरी, शरमा मत मेरी लाडो! उस दन हमने तु हारी आह सुनी थ ... जीजू तुमको सवेरे
सवेरे ही नबटाये डाल रहे थे! हाय! बता री! या या कया तुम दोन ने?” सरी सखी ने
पूछा – नमक मच लगा कर।
“अरे बता दे ! ऐसे य नखरे कर रही है? अरे, हम भी तो कुछ सीखने को मले!” तीसरी ने
और कुरेदा।
“ य री! तुम लोगो को कुछ यादा ही हवा लग गई है जवानी क !” मने चुटक ली।
“अरे वाह! तू तो याह कर के इतने मजे ले रही है.. अपने राजा के साथ महल म रह रही
है... और हमको जवानी क हवा भी नह लगे! वाह भाई वाह!” तक वतक जारी था।
“अरे हम कैसे मान ल? कुछ भी बढ़ा चढ़ा कर बोल दे गी, और हम मान लगे?”
“नह मानना है तो मत मान! हमने जो कया, वो मने बता दया!” कह कर मने हाथ झाड़ा,
और उठने लगी।
“अरे! तू तो नाराज़ हो गई...” सहेली ने मुझे हाथ पकड़ कर वापस बैठाया, “मान लया
भई! ये तो बता, जीजू तेरे पीते ह या? का मनी कह रही थी क उसके भैया उसक
भाभी के पीते ह... उसने उन दोन को ऐसे करते ए दे खा था। अब तू ही बता भला! ध
पीने का काम तो ब का है, बड़े लोगो का थोड़े ही!”
उ र म म सफ मु कुरा द ।
“अरे! मुझे कैसा लगा, तुझे कैसे बताऊँ? सभी के अनुभव अलग अलग ह गे!” मने
समझदारी दखाई, और टालने का यास भी कया।
“नखरे करने लगी फर से! बोल दे न, जब जीजू ने तेरा ध पया तो तुझे कैसा लगा?”
मेरी सहेली मेरी बात से हतो सा हत नह ई.. और मेरे सीने को दे खते ए बोली, “सच
या! एक बार इ ह छू लूँ या... बुरा तो नह मानोगी न?”
ले कन वो लगता है सुन ही नह रही थी। उसने संकोच करते ए मेरे तन पर हाथ लगाया,
और फर कुछ दे र हाथ फ़ेर कर सहलाया।
“हाय रे! कतने कड़े ह तेरे !” उसने कहा। उसक बात सुन कर जैसे सभी को मेरे तन
छू ने का लाइसस मल गया हो – सभी ने बारी बारी से छु आ और सहलाया।
“अब बस! र रहो मुझसे तुम सब!” मने उनको यारी झड़क द ।
“दे ख... जब उनके जैसा प त तुझे मलेगा, तब तू समझेगी!” मने समझदारी से बात को
टालते ए कहा।
“उनके जैसा मतलब? जीजू का... ब त बड़ा है या?” सरी सहेली ने अटखेली करी।
“ह बेशरम!”
“अरी बोल न!! दे ख, जीजू ह भी तो कतने ह े क े ! ब त बड़ा होगा उनका तो! कैसे
सहती है? बोल दे ! कौन सा हम उनको नंगा दे खे ले रहे ह?” लड़ कयाँ तो ज़द पर अड़ ग
थ।
“अ ा, तो सुन! मुझे दे ख.. म तो ँ इतनी बली पतली सी.. और जैसा तूने कहा, तेरे
जीजू ह एकदम ह े क े ! तो उनका अंग ब त बड़ा है मेरे लए... ले कन वो इतने यार से
करते ह क दद का यादा पता नह चलता। उनक को शश हमेशा मुझे खुश करने क
होती है.. इस लए ब त दे र तक मुझे यार करते ह। अगर वो ऐसे ही अपने अंग को मेरे म
घुसेड़ द तो म तो मर ही जाऊं! इस लए ऐसे न सोचना क बड़ा और मोटा लग होगा तभी
तुमको ब त मज़ा आएगा... तु हारे प त को ढं ग से करना आना चा हए, तभी मज़ा
आएगा!”
“और या?”
“अ ा, एक बात बता तो! तुम दोन पूरी तरह से नंगे हो जाते हो या?”
म फर से शरमा गई, “तेरे जीजू का बस चले तो मुझे हमेशा नंगी ही रख! ब त बदमाश ह
वो!”
“हा हा हा! अरे पगली, अगर छु वूंगी नह , तो सब कुछ कैसे होगा? हा हा!” इस नासमझ
बात पर मुझे हंसी आ गयी। “शाद क रात को ही उ ह ने मुझे अपना लग पकड़ा दया
था... मेरी तो जान नकल गयी थी उसको दे ख कर...”
“वो मुझे नह मालूम... ले कन इनका तो ऐसा ही है। और तुझे कैसे मालूम क कैसे होता
है? कस कस का लग दे खा है तूने?“
“बाप रे! और वो तेरे अ दर चला जाता है?” उसने मेरे सवाल क अनदे खी करते ए पूछा।
“मने भी यही सोचा! उनका मोटा तगड़ा लग दे ख कर मने यही सोचा क यह मुझमे
समाएगा कैसे! उस समय मुझे प का यक न हो गया क आज तो दद के मारे म तो मर ही
जाऊंगी! सोच ले, शाद करने के बाद लड़ कय को ब त सी तकलीफ़ झेलनी पड़ती ह।
और मेरी क मत तो दे खो.... उनका लग तो हमेशा खड़ा रहता है... कभी भी शांत नह
रहता! जानती है, मेरी हथेली उनके लग के गद लपट तो जाती है, ले कन घेरा पूरा बंद
नह होता। इतना मोटा! बाप रे! और तो और, उनके लग क ल बाई का कम से कम आधा
ह सा मेरी पकड़ से बाहर नकला आ रहता है।” अब म भी पूरी नल ता और
त मयता के साथ सहे लय के ान वधन म रत हो गयी।
ऐसे ही बात ही बात म न जाने कैसे मेरे मुंह से हमारी न न त वीर वाली बात नकल पड़ी।
कहना ज़ री नह है क ये सारी लड़ कयां हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ ग क म उनको ये
त वीरे दखाऊँ। कसी तरह से अगले दन कॉलेज के बाद दखाने का वायदा कर के मने
जान छु ड़ाई।
“ या! मेरी जान!” एक सहेली ने कहा, “तुझको मालूम है क तू कतनी सु दर है? तुझे
दे ख कर मन हो रहा ही काश म मद होती तो म तुझसे शाद करती! सच म!” कहते ए
उसने मुझे चूम लया।
“चल, अब और सब दखा..”
आगे क त वीर म मने जम कर पोज़ लगाये थे... कभी मु कुराती ई, कभी मादक अदाएं
दखाती ई! कुछ त वीर म म एक पेड़ के तने पर पीठ टका कर अपने दा हने हाथ से
ऊपर क एक डाली को और बाएँ हाथ से अपने बाएँ पैर को घुटने से मोड़ कर ऊपर क
तरफ ख च रही थी। यह त वीर सबसे कामुक थ – उनम मेरा पूरा शरीर और पूरी सु दरता
अपने पूरे शबाब पर द शत हो रही थी। कुछ त वीर म म अपने चूचक उँ ग लय से पकड़
कर आगे क ओर ख च रही थी – शम, झझक, उ ेजना और गव का ऐसा मला जुला
भाव मेरे चेहरे पर मने पहले कभी नह दे खा था। आगे क त वीर म अथव अपने
आ नेया पर ेम से हाथ फरा रहे थे; फर उनके लग क कुछ अन य त वीर आ ,
जसम पूरे लग का अंग व यास साफ़ द शत हो रहा था।
“अरे जीजू को तो मज़ा आ ही रहा होगा!” फर उसका दमाग चला, “एक मनट... उनको
य ग दा लगेगा?” उसने पूछा।
“नह .. मेरा मतलब वो नह था.. तेरे जीजू भी तो मुझे वहाँ चू...” कहते कहते म शमा कर
क गयी।
आगे क त वीर म अथव मुझे भोगने म पूरी तरह से रत थे - वे कभी मेरे ह ठो को चूमते,
तो कभी मेरे तन को। और फर आया आ खरी पड़ाव – उनका लग मेरी यो न के भीतर!
‘इतने सवेरे सवेरे कौन है!’ सोचते ए मने जब दरवाज़ा खोला तो दे खा क सामने न कता
खड़ी थी। न कता याद है न? मेरी भूतपूव े मका!
“हाआआय!” न कता का मु कुराता आ चेहरा जैसे सौ वाट के ब ब जैसे चमक रहा था।
“आज बाहर से ही दफ़ा करने का इरादा है या?” न कता ने बुरा नह माना। अ े मूड म
लग रही है।
“अरे कुछ पीना पलाना नह है! आज तो म ती करने का मूड है! या कहाँ है? उसको
शौ पग करवाने लेने आई .ँ .”
“ या तो नह है..”
“मायके? अरे, अभी तो तुम दोन वापस आये हो हनीमून से! अभी से रयाँ? या फर
तुमने कुछ कर दया, यू नॉट बॉय? यू नो! हा हा हा!” न कता मेरी टांग ख चने से बाज़
नह आती कभी भी।
कमाल क बात है! इस लड़क का दल वाकई ब त बड़ा है। मने ेकअप के बाद, जस
बे ख़ी से न कता से कनारा कया था, मुझे कभी नह लगता था क वो मुझसे फर कभी
बात भी करना चाहेगी। ले कन उसको इस तरह से हँसते बोलते दे ख कर मुझे यक न हो
गया क उसने मुझे माफ़ कर दया था। ले कन फर भी, म अपने नए जीवन म कोई भी या
कसी भी कार का उलझाव नह आने दे ना चाहता था।
“ हाट? कॉलेज? तुमने ‘बाल ववाह’ कया है या? हा हा हा! ओ माय गॉड! बा लका
वधू.. हा हा हा!” न कता पागलो के तरह सोफे पर हँसते ए लोट पोट ई जा रही थी।
“सॉरी सॉरी... हा हा! मेरा वो मतलब नह था। म बस तुमसे मजे ले रही ँ.. ओके? ड ट
माइंड!” न कता अंततः चुप ई.. और कुछ दे र कने के बाद बोली,
“आई ऍम सॉरी न कता। आई रयली ऍम! शायद तुम सही हो – और म वाकई एकदम
बचकाना .ँ .”
न कता ने मेरी बात बीच म काट द , “... नह बचकाने नह .. मेरा मतलब था, तुम मेरे छोटे
भाई होने चा हए थे.. लवर नह ।“
“तुमने शाद क ?”
“ म....” (मतलब नह क ।)
“ यार वार के मामले म अपनी क मत थोड़ी खोट है.. खैर, मेरी बात फर कभी.. तुम
बताओ.. नया और ए साइ टग तो तु हारी लाइफ म चल रहा है.. सबसे पहले ये बताओ
क तुमको इतनी यारी लड़क मली कहाँ? ... और हाँ, एक कप कॉफ़ मेरे लए भी बना
दो!”
न कता से बात करके ऐसा लगा ही नह क उससे आ खरी बार तीन साल पहले मला। ये
लड़क ब त बदास थी – पूरी तरह व नभर, बेख़ौफ़, और अपने मन क बात कहने और
करने वाली। ब त कुछ सीखा मने इससे... ले कन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था! मने
अपनी उ राँचल रोड- प और फर या और उसके प रवार वाल से मलने, और फर
हमारी शाद क बात सल सलेवार तरीके से सुना द । न कता को यह सुन कर अ ा
लगा क मने कम से कम छु याँ तो ल ..
“ये तो पूरी तरह से फेयरी-टे ल है! आई ऍम सो है पी फॉर यू..” फर घड़ी दे खते ए, “अरे
यार! ये तो एक बज रहा है! पूरा लान बेकार हो गया... बोलना अपनी बीवी को, क ऐसे
इधर उधर रहेगी तो हमारी दो ती कैसे होगी?”
“अरे.. दो त को ऐसे वदा करते ह?” कहते ए न कता ने गले मलने के लए अपनी बाह
फैला द । अब श ाचार के नाते गले तो मलना ही चा हए न? म झूठ नह बोल सकता –
न कता को इतने समय बाद वापस गले लगाना अ ा लगा... ब त अ ा! वही पुराना,
प र चत और सुर त अनुभव! मने उसके बाल म हाथ फराया – तउ र म उसके गले
से हलक ‘ह म’ जैसी आवाज़ नकली। उसको आ लगन म ही बांधे, मने उसके बाल पर
एक चु बन लया।
“जानू! यहाँ!” मने पागल के जैसे हाथ हलाते ए उसका यान अपनी तरफ आकृ करने
का यास कया।
या ने आवाज़ का पीछा करते ए जैसे ही मुझे दे खा, उसक बाछ खल ग । सामान
छोड़ कर वो मेरी तरफ भागने लगी। राहत, ख़ुशी और जोश – यह मले जुले भाव.. जैसे
कसी बछड़े ए को कोई अपना मल गया हो!
“मेरी जान..?”
“ म म?” वह मेरी आँख म दे ख रही थी – कतनी सु दर! वाकई! मने नो टस कया
क उसका शरीर कुछ और भर गया था, उसके कोमल मुख पर यौवन के रसायन का
भाव और बढ़ गया था, आँख क बरौ नयाँ और ल बी हो ग थ , ह ठ म कुछ और
ला लमा आ गयी थी... कुल मला कर या का प और लाव य बस और बढ़ गया था।
पहाड़ क हवा म कुछ बात तो है!
उसके चेहरे पर तस ली, खुशी, थकान और मलन क भाव, एक साथ थे। हम दोन ब त
दन बाद मले थे... मले या थे, बस यह सम झये क जैसे अ े को आख और यासे को
पानी मल गया हो! इतने दन बाद उससे मल कर दल भर आया! पुरानी यास फर जग
गयी!
“म भी...!”
“आआ.. मेरा ब ा!” या ने बनावट लार जताते ए कहा, “... इतनी याद आ रही थी
म मी क ..” और फर ये कहने के बाद खल खला कर हंस द । फर अचानक ही, जैसे
कुछ याद करते ए, “पता है.... माँ ने आपके लए शु ... पहाड़ी फूल के रस से बना आ
शहद भेजा है...” कह कर उसने अटै ची से एक बड़ी शीशी नकाली,
“रोज़ दो च मच शहद पीने को बोला है... ध के साथ! आपको पता है? शहद से ववा हत
जीवन और बेहतर बनता है।“
“रात म...” या ने आवाज़ दबा कर बोला.. जैसे कोई ब त रह यमय बात करने वाली हो,
“ ेम संबंध बनाने से पहले... हा हा हा..!”
“हा हा! अरे मेरा शहद तो तुम हो! इसी लए तो रोज़ तुमको खाता ँ...” म अब मूड म आ
रहा था, “ऊपर से नीचे तक रस म डू बी ई... ेम स ब बनाने से पहले म तो तु हारे
अधर (ह ठ) रस पयूँगा, फर तन रस.. और आ खर म यो न रस...” कह कर मने या
को पकड़ने क को शश करी। ले कन वो छटक कर मुझसे र चली गयी।
“ छः ग दा ब ा! अकेले रहते रहते बगड़ गया है.. म मी से ऐची ऐची बात करते ह? .. ही
ही!”
“आह... य इतने बेस हो रहे हो?” चु बन जारी है, “...अआ ह.... आराम से करो न!
कह भागी थोड़े ही न जा रही ँ...” मने उसके बोलते बोलते ही जोर से चूसा, “...सीईईई!
आह!”
“एक महीना तुमने तड़पाया है... आज तो बदला लेने का भी दन है, और पूरा मज़ा लेने का
भी...” और वापस चूमने म त हो गया।
या अभी तक या ा वाले कपड़ो म ही थी.. उनसे मु होने का समय आ गया था।
म कभी उसके तन दबाता, तो कभी उसके खुले ए अंग पर ‘लव बाईट’ बनाता। या
क ह क ह क ससका रयाँ नकलने लगी थी। उसने मुझे इशारे से बताया क लाइट भी
जल रही है और खड़क पर पदा भी नह ख चा है, कोई दे ख सकता है।
मुझे इस बात क परवाह नह थी... वैसे भी इतनी रात म भला कौन जागेगा? और अगर
कोई इतनी रात म जागे, तो उसको कुछ पा रतो षक (ईनाम) तो मलना चा हए! मने या
को पलट कर अपनी तरफ मुखा तब कया। उसक आँख बंद थ । मने अपनी उं गली को
उसके नरम ह ठ पर फराया, और फर उसके ह ठ को चूमने लगा। ‘उ म! प र चत
वाद!’ या भी चु बन म मेरा पूरा साथ दे ने लगी। एक सरे के होठ को गाढ़ता से
चूमने चूसने के दौरान मने उसक कमर पर हाथ रख दया और कुरते के अंदर हाथ डाल
कर उसक कमर को सहलाने लगा। बीच बीच म उसक ना भ म उं गली से गुदगुदाने लगा।
कपड़े तो खैर मने भी अभी तक चज नह कये थे। या भी अपनी तरफ से पहल कर रही
थी – उसने मेरी पट क जप खोली, और मेरी च ी क फाँक म अपना हाथ व कर के
मेरे लग को अपनी मु म पकड़ कर बाहर नकाल लया। ऊपर चु बन, नीचे या क
कमर को सहलाना, और मेरे लग का सौ य मदन! इन सब म मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
मने एक हाथ को उसके कुरते के अ दर ही ऊपर क तरफ एक तन क तरफ बढाया, और
सरे हाथ को उसके सलवार और च ी के अ दर डालते ए उसक यो न को छु आ।
‘वैरी गुड! उ ेजना से फूली ई... गम.... नम... यो न रस नकल रहा था।‘ मने कुछ दे र
अपनी उं गली को यो न क दरार पर फराया, और फर उसको नव करने का उप म
शु कया। कुरता उतारते ही एक अ त नज़ारा दखाई दया। उसके गोरे गोरे शरीर पर,
तन को कैद कये ए काले रंग क ा थी! गले म पड़ा मंगलसू दोन तन के बीच म
पड़ा आ था। सचमुच या का शरीर कुछ भर गया था - कमर और तन म और व ता
आ गयी थी! इस समय या कसी परी को भी मात दे सकती थी! मने हाथ बढा कर
उसके तन को ह के से दबाया।
“ये दोन .. थोड़े बड़े हो गए ह या?”
“अरे रे रे..! ऐसे ही करने का इरादा है या?” या ने कामुक अंगड़ाई लेते ए कहा, “ ा
को भी तो उता रए न!”
मने इशारे से उसको सलवार भी उतारने को कहा। या ने नाड़ा खोल कर जैसे ही उसको
ढ ला कया, सलवार उसक टांगो से होकर फश पर गर गयी। च ी के सामने वाला ह सा
कुछ गीला हो रहा था। वही ह सा उसक यो न क दरार म कुछ फंसा आ था। अब
मुझसे रहा नह गया; मने तुरंत या को अपनी गॉड म उठाया और ब तर पर पटक दया
और अपने दोन हाथ से या क च ी नीचे सरका द ।
मने कुछ दे र उसक यो न से छे ड़खानी करने के बाद वापस उसके तन पर हमला कया।
मने उसके दोन तन को अपनी हथे लय म कुछ इस कार दबाया , जससे उसके
तना पूरी तरह से बाहर नकल आय, और फर उनको बारी बारी से दे र तक जी भर के
पया। या उ ेजक बेबसी म रह रह कर सफ मेरे बाल, पीठ और गाल सहला रही थी। म
भी दया कर के बीच बीच म तना छोड़ कर उसके ह ठ को चूमने लगता। फर भी तन
पर मेरी पकड़ नह छू ट ।
“प का?”
या को इस कार मूतते दे ख कर मुझे भी इ ा जाग गई। मने उसके सामने खड़ा होकर
अपने लग को नशाने पर साधा, उसके श ा द (फोर कन) को पीछे क तरफ
सरकाया और मने भी अपने मू क धार छोड़ द । नशाना स ा था – मेरी मू क धार
या क यो न क फाँक के बीच पड़ने लगी। इस अचानक हमले से या क आँख खुल
ग ।
“तुमको माक कर रहा ,ँ मेरी जान...! शेर अपने इलाके को ऐसे ही माक करता है न! हा
हा!”
और आज घर वापस आकर मने जैसे ही रे डयो चलाया, फर वही गाना आने लगा:
उधर पापा ने बताया क खेती म इस बार काफ लाभ आ है – उ ह ने पछली बार नगद
फसल बोई थ , और कुछ वष पहले फल क खेती भी शु करी थी। इसका स म लत
लाभ दखने लग गया था। अथव ने अपने जान-पहचान से तैयार फसल को सीधा बेचने का
इंतजाम कया था.. सफ पापा के लए नह , ब क पूरे कसबे म रहने वाले कसानो के
लए! बचौ लय के कट जाने से कसानो को यादा लाभ मलना वाभा वक ही था।
अगले साल के लए भी पूवानुमान ब ढ़या था।
खैर, तो म यह कह रही थी, क इस गाने म कुछ ख़ास बात है जो मुझे अथव से पहली बार
मलने, और हमारे मलन क पहली रात क याद दलाती है। सब खूबसूरत याद! अथव ने
वायदा कया था क वो आज ज द आ जायगे – अगले दो दन तो श नवार और र ववार
ह... इस लए कह बाहर जाने का भी ो ाम बन सकता है! उ ह ने मुझे इसके बारे म कुछ
भी नह बताया। ले कन उनका ज द भी तो कम से कम पांच साढ़े -पांच तो बजा ही दे ता
है!
म कुस पर आँख बंद कए, सर को कुस के सरहाने पर टकाये रे डयो पर बजने वाले
गान को सुनती रही। और साथ ही साथ अथव के बारे म भी सोचती रही। इन दो साल म
उनके कलम के कुछ बाल सफ़ेद हो (पक) गए ह.. बाक सब वैसे का वैसा ही! वैसा ही ढ़
और -पु शरीर! जीवन जीने क वैसी ही चाहत! वैसी ही मृ भा षता! कायाक प क
बात करते ह.. इससे बड़ी या बात हो सकती है क उ ह ने अपने चाचा-चाची को माफ़
कर दया। उनके अ याचार का दं ड तो उनको तभी मल गया जब उनके एकलौते पु क
एक सड़क हादसे म मृ यु हो गयी। जब अथव को यह मालूम पड़ा, तो वो मुझे लेकर अपने
पै क ान गए और वहाँ उन दोन से मुलाकात करी।
अथव म बदलाव तो थे ही, मुझम खुद भी ब त से बदलाव हो रहे थे। म तो बढ़ती युवती तो
ँ ही – खान पान क गुणव ा, दै नक ायाम और पु ष हाम न क नय मत खुराक से
(अथव कभी कभी कंडोम का योग करना ‘भूल?’ जाते ह...) मेरी दे ह अभी भी भर रही
है। मेरे तन अब ३४सी के माप के ह, कमर म कटाव, और नत ब म उभार साफ़ दखता
है। जब कभी नहाने के बाद मुझे फुसत होती है, तो म वयं का अनावृ शरीर दे ख कर
स हो जाती !ँ कभी कभी लगता है क कसी और को दे ख रही ँ - कसे-भरे तन,
छोटे कंधे, उ त नतंब, सपाट पेट, और करीने से कटे केश से टपकती पानी क बूंद! म
कभी कभी खुद के शरीर पर मु ध हो जाती !ँ कसक कामना नह हो सकती ऐसी दे ह!
मुझे गव है, क अथव मेरा भोग पाते ह!
अथव ने एक दन मुझे कहा था, “तुमने कभी खजुराहो क मू तयां दे खी है? यू हैव अ बॉडी
लाइक खजुराहो आइडो स!”
खजुराहो आइडो स? मने पहले कभी खजुराहो के च नह दे खे थे.. हम लोग कभी वहाँ
नह गए... ले कन अथव ने जब ऐसा कहा तो मेरा मन नह माना! इंटरनेट पर खजुराहो के
बारे म ढूँ ढा और वहाँ के मं दर और उन पर उकेरी गयी मू तय क त वीर को दे खा! ी
जीवन के न जाने कतने प, न जाने कतने रंग उन श पय ने प र म गढ़ डाले थे!
और तो और, सभी एकदम जीवंत से लगते! यां ही यां! उनके हर कार के हाव-
भाव, उनके शरीर क हर बनावट, अंग के लोच, भाव-भं गमा का दशन – यह सब
कुछ ह वहाँ! ी च के हर रंग को साकार कर दया था श पय ने इस ाचीन
व लोक म! इन च को दे खा, तो अथव क बात और समझ म आई! म पुलक उठ !
यह उपमा तो उ ह ने न त प से अपनी चाहत दशाने के लए मुझे द थी।
अथव के लए मेरे दोन तन दलच रचना के समान ह.. जैसे एक जोड़ी खलौने! जब
कभी भी हम दोन अगल बगल बैठते ह (कहने का मतलब हर रोज़, कम से कम पांच से
दस बार), वे उनको उँ ग लय क सहायता से छे ड़ते ह और सहलाते ह। और मेरे शरीर क
त या भी दे खए – उनके छू ते ही मेरे दोन तना सूजने लगते ह। सहवास हो या न
हो, स ताह के हर दन (मेरा मतलब रात), अथव मेरे तन को चूसते ए ही सो जाते है –
कहते ह क बना तनपान कये उनको न द ही नह आती। हो सकता हो क उनके यह
कहने म अ तशयो हो, ले कन मेरा भी हाल कुछ कुछ ऐसा ही है – उनके लग को पकडे
ए ही म सोती .ँ . रात म जब भी कभी कसी भी कारणवश उनका लग जब मेरे हाथ से
छू ट जाता है, तो मेरी न द खुल जाती है। इस लए म बना हील त के उनको अपनी
मनमानी करने दे ती ँ।
उनका लग! बाप रे! शायद ही कभी शांत रहता हो! मने पढ़ा है क र वाह बढ़ने से
लग म त न होता है.. अरे भई, कतना र वाह होता है? इनका तो लगभग सदा ही
तं भत रहता है। म सोचते ए मु कुरा द । इससे मेरा एक अजीब सा नाता है – उसको
इस कार अपने भीमकाय प म दे ख कर भय भी लगता है, और स ता भी होती है।
जी हाँ – शाद के दो साल बाद भी। लगभग रोज़ ही इसको हण करने के बावजूद जस
कार से उनका लग मेरी यो न का मदन करता है, वो अनुभव अनोखा ही है! मेरे लए
उनका लग ठ क वैसा ही खलौना है, जैसे क मेरे तन उनके लए। उनके गठे ए शरीर
से नकलती यह मोट न लका... जोशपूण और वीयवान! वो खुलेआम नव होकर घर म
घूमते ह... और उनके हर कदम पर उनका तं भत लग हलके हलके हचकोले खाता है।
ह म...!
“हाउ आर यू, डा लग?” और मेरा उ र सुने बना ही, “जानू, ज द से तैयार हो जाओ –
सर ाइज है! म तुमको घंटे भर म पकअप कर लूँगा.. ओके.. बाय!” कह कर उ ह ने फ़ोन
काट दया!
अथव ने मु कुराते ए मेरे पास गाडी रोक ; मने उनके बगल वाली सीट वाला दरवाज़ा
खोला और कार म बैठ गयी। उनको मु कुराता दे ख कर म भी मु कुराने लगी (कुछ तो चल
रहा है इनके दमाग म)! उ ह ने मु कुराते ए मेरे ह ठ पर एक चु बन जड़ा और फर कार
वापस सड़क पर घुमा द । म.. अभी तक तो सभी कुछ पूवानुमेय है – हम एक रे ाँ जा
कर के, जहाँ हमने मुगलई भोजन कया। आज अथव ने कॉकटे ल नह ली (वो अ सर
लेते ह, ले कन आज कह रहे थे क ाइव करना है, इस लए नह लगे..), ले कन उ ह ने
मुझे दो गलास पला ही द । बाहर आते आते मुझ पर नशा छाने लगा। ले कन इतना तो
होश था ही क समझ आ सके क हम लोग वापस घर क तरफ नह जा रहे थे। मने जब
पूछा क कहाँ जा रहे ह, तो उ ह ने कहा क यही तो सर ाइज है..! ह म... लॉ ग ाइव!
रात के अं धयारे म, जगमगाती सड़क और उन पर सरपट दौड़ती गा ड़य को दे खते दे खते
कब मेरी आँख लग गयी, कुछ याद नह ।
“जानू.. जाग गई?” अथव ने मुझे दे खा, और मेरे पास आते आते मुझे आं शक आ लगन म
भरा। उ ह ने फर हमारे मेज़बान से मुझे मलवाया।
‘कूग?’
उनसे मलते मलते सूय दय हो गया – सूय क करण पहा डय के असं य ृंखला पर
लगे वृ से छन छन कर आती ई दखाई पड़ रही थी। जा ई समां!
ओह! आपको कूग के बारे म बताना ही भूल गई... कूग कनाटक रा य के प मी घाट पर
है। स ज़ घा टय , भ पहाड़ और सागौन क लकड़ी जंगल के बीच त दे श के सबसे
खूबसूरत हल टे शन म से एक है। इन पहा ड़य से होती ई कावेरी नद बहती है। यह
जगह पयटक को ब त आक षत करती है – शहर म रहने वाले, खास तौर पर बगलोर
और मैसूर से अनेक पयटक यहाँ आते ह। शु ताज़ा हवा और च ँओर बखरी ह रयाली
लोग के च को स कर दे ती है। इसके अ त र , यह ान कॉफ , चाय, और
इलायची के बागान के लए भी जाना जाता है। यह भारत का ‘ कॉटलड’ भी कहा जाता
है... अपनी ाकृ तक सुंदरता के कारण! लगभग १०० साल पहले टश लोग ने इस
ान पर भी रहाइशी बंदोब त कए थे।
मने अथव से शकायत करी क अगर वो पहले बताते तो कम से कम कुछ पहनने को पैक
कर लेती। कतनी दे र तक इसी कपड़े म र ंगी? इसके उ र म उ ह ने गाड़ी क पछली
सीट पर ब त ही तरीके से छु पाया आ एक पैक नकाला – उसमे मेरे पहनने के लए
जी स और ट -शट था। अथव के लए शॉट् स और ट -शट था। या बात है!
शाम होते होते हम दोन घूम फर कर वापस होम टे आ गए, और अपने मेजबानो के साथ
दे र तक ग प लड़ाई, खाना खाया और बॉन-फायर का मज़ा लया। आज रात यही क कर
कल सवेरे वापस नकलने का ो ाम था। ले कन मन हो रहा था क यही पर क जाया
जाय! घर क याद हो आई – वहाँ भी सब कुछ ऐसा ही था। मलनसार लोग, शु
वातावरण, पहाड़ी और शांत इलाका! म बालकनी म आकर बैठ गयी – एकांत था, र र
तक शां त, न कोई लोग और न कोई आवाज़! रात म पहनने को कुछ नह था, इस लए
कमरे क ब ी बुझा कर, बना कपड़ के ही कुस पर बैठ कहे आकाश को दे र तक दे ख
रही थी। कम षण वातावरण म होने के नाते, रा आकाश असं य सतार जगमगाते
ए दख रहे थे! शानदार था!
यहाँ ाकृ तक य क भरमार थी... मटट से मानो एक जा ई खुशबू नकल रही थी।
पेड़ पौध का अपना नराला अंदाज़, चार ओर जैसे बस सुगंध ही सुगंध! ऐसे मनभावन
वातावरण म कसी भी कार का लेश कैसे हो सकता है? ले कन फर भी मन आशा त
था! घर क याद हो आई.. एक एक बात! माँ बाप का साथ कतना सुकून दे ता है! उनक
याद आते ही मन आ क जैसे पंख लगाकर पल भर म ही उनके पास प ँच जाऊँ। पापा
तो कतना लारते ह! घर जाने पर म आराम से उनके ऊपर पैर पसारकर दे र तक बैठ
रहती ँ। माँ कभी एक कप चाय का पकड़ा दे ती ह, तो कभी रक लेट गरम पकोड़े!
“ या सोच रही हो?” अथव ने मेरे कंधे पर मा लश करते ए पूछा। न जाने कैसे, अगर मेरे
मन म कुछ भी उ टा पु टा होता है तो उनको ज़ र मालूम पड़ जाता है। एक बार उ ह ने
मुझे कहा था क म बलकुल पारदश ँ...
“अरे! ऐसा य ? मेरा सर ाइज पसंद नह आया या, जो ऐसे जाने कहां खोई हो?”
“नह ... कुछ तो गड़बड़ है... वरना तुम इस तरह उदास और बुझी ई कभी नह रहती।”
इनक पारखी आंख ने ताड़ ही लया... और ताड़े भी य न? हम अब तक एक- सरे क
रग-रग से वा कफ हो गए थे, और एक- सरे क परेशानी क चता-रेखा को पकड़ लेते
ह। दो साल का अ तरंग साथ है। चेहरा दे ख कर तो या, अब तो बना दे खे ए ही मन के
भाव समझ जाते ह। उ ह ने मुझे पीछे से आ लगन म भरते ए पूछा, “ए जानू! बोलो न
या आ? कुछ तो बताओ!”
मने कुछ नह कहा... बस डबडबाई ई आंख को चुपके से प छ लया। चाहे मने कतनी
ही चोरी छु पे यह कया हो, वो दे ख ही लेते ह।
“ओये, तुम चॉकलेट खाओगी?” मुझे चॉकलेट ब त पसंद ह... इसी लए वो अ सर अपने
साथ दो तीन पैक ज़ र रखते ह। म मु कुराई! मेरी हर परेशानी का इलाज रहता है इनके
पास।
“हा हा! चलो यार! कम से कम तुम कुछ मु कुराई तो!” उ ह ने मुझे चॉकलेट पकड़ाते ए
कहा, “... यू नो! तु हारे चेहरे के लए मु कुराहट ही ठ क है.. उदास होना, या गु सा होना...
तु हारे लए नह डज़ाइन कया गया है..।“
“मेरे लए! मुझे दे खो न.. अगर इस चेहरे पर एक बार गु सा आ जाय, तो सामने वाले
क ...”
मने बीच म ही काटते ए कहा, “जी हाँ.. समझ आ गया!” फर कुछ दे र क कर, “जानू,
आप भी कभी गु सा या उदास मत होइएगा। आप पर भी सूट नह करता!”
“म भला य होऊंगा? मेरे साथ तो तुम हो! मेरे पास गु सा या उदास होने का कोई रीज़न
ही नह है!” इ होने मुझे लारते ए कहा। म मु करा उठ । इनके नेह भरे साथ ने मुझे
कतना बदल दया है!
त बत! यहाँ कहाँ त बत! फर कोई एक घंटे म उनका मतलब समझ आया। हम लोग
यलाकु पे त बती मठ प ंचे। यह एक बेहद सु दर जगह है... अचानक ही इतने सारे
त बती चेहर को दे ख कर लगता है क भारत म नह , ब क वाकई त बत प ँच गए ह!
ाचीन पर रा को लए, और आधु नक सु वधा के साथ यह जगह एक ब त सु दर
गाँव जैसे है। वैसे भी यह जगह दे खने के लए आज एकदम सही दन था – गुनगुनी धुप
बखरी ई थी। प रसर के अ दर बगीच का रख रखाव अ े से कया गया था। हर भवन
के ऊपर रंग- बरंगी झंडे फहरते दख रहे थे। आते जाते भगवा व म बौ भ ु दख रहे
थे। एक तरफ त बती ब े आइस म का आनंद ले रहे थे। हम लोग वाकई यह भूल गए
क हम लोग कनाटक म ह। मठ इतनी अ तरह से सु व त और शां तपूण ढं ग से
सजाया गया था क यहाँ आ कर मेरे मन म अनंत शां त और ऊजा का संचार होने लगा।
“जानू?”
“ म?”
म धीरे धीरे खजुराहो क सपनीली नया क ना यका बनती जा रही थी। राग-रंग से भरी
ई... आ मलीन ना यका! मुझे लगा जैसे क मेरा शरीर कसी कसे ये वीणा क तरह हो
गया हो – उं गली से छे ड़ते ही न जाने कतने राग नकल पड़गे! मन अनुरागी होने लगा।
या यह बेचैनी खजुराहो क थी? लगता तो नह ! अथव तो हमेशा साथ ही रहते ह, ले कन
आज वाली यास तो ब त भ है! न जाने कैसे, अथव के लये मानो मेरी आ मा तड़पती
है, शरीर क न करता है... अब यह सब सवाय यार के और या है?
“पता नह कब तक! तुम वाकई खजुराहो क दे वी लग रही हो! ये गोल, कसे और उभरे
ए तन, पतली कमर, उ त नतंब! ... बलकुल सपने म आने वाली एक परी जैसी!”
“अ ा... आपके सपने म प रयां आती ह?” तब तक अथव ने मुझे अपनी बाह म भर
लया।
अथव मेरे तना को बारी बारी मुंह म भर कर चूस, चबा, मसल और काट रहे थे। मेरी
साँसे तेजी से चलने लग । मेरा पूरा शरीर कसमसाने लगा। आज अथव कुछ अ धक ही
बल से मेरे तन दबा रहे थे – ऐसा कोई अस नह , ले कन ह का ह का दद होने लगा।
“अब... बस...! आह! अब अपना ... ओह! लग.. डाल दो! लीज़! आऊ! अब न...
अआ ह! सताओ...!”
अथव जैसे बहरे हो गए थे। अब वो धीरे-धीरे चूमता ए मेरे पेट क तरफ आ कर मेरी
ना भ को चूमने, चूसने और जीभ क नोक से छे ड़ने लगे, सरे हाथ से वो मेरी यो न का
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जायजा लेने लगे। और फर अचानक ही, उ ह ने मुझे अपनी गोद म उठाया और लाकर
ब तर पर पटक दया। कपड़े मेरे तो न जाने कब उतर चुके थे... अथव के कहने पर मने
अपनी यो न पर से बाल हटवा लए थे – ाई प से! अथव अभी पूरी त मयता के साथ
बेतहाशा मेरी यो न को पागल क तरह चूस रहे थे। अपनी जीभ यथासंभव अ दर घुसा
घुसा कर मेरा रस पी रहे थे। म बेचारी या करती? म आन द के मारे आँख बंद करके मजा
ले रही थी, और इस बात पर कुढ़ भी रही थी क अभी तक उ ह ने लग य नह घुसाया।
अब मुझसे सहन नह हो पा रहा था।
अथव ने अपनी ग त बढ़ा द और तेज़-तेज़ झटके मारने लगे। जा हर सी बात है, इतनी
तेज ग त से सहवास करने पर हमेशा जैसा मैराथन संभव नह था। उनक ग त और भी
तेज हो गयी थी, य क म भी अपनी कमर हला- हला कर उनका साथ दे रही थी।
आ ख़रकार एक झटके के साथ अथव का ढे र सारा वीय मेरे अ दर भर गया। जब वो पूरी
तरह से नवृ हो गए तो हम दोन लपट गए।
अथव उसी तरह मुझे अपने से लपेटे लेटे रहे और बात करते रहे। अंततः, उनका लग पूरी
तरह से सकुड़ कर बाहर नकल गया। म उठ कर बाथ म गयी, और साफ़ सफाई कर के
अथव के साथ रजाई के अ दर घुस गयी।
“आपने एक बार मुझे कहा था न.. क अगर मेरे पास कोई बज़नस आई डया होगा, तो
आप मेरी हे प करगे?”
“एक फैशन हाउस, जसमे े डशनल से इं ायर हो कर कंटे ररी जेवेलरी मल?
खजुराहो ओनामट् स! कैसा लगा नाम? पुरानी मू तय , और च से ेरणा लेकर नए
कार के गहने? मेटल, वुड, टोन, और ब स – इन सबसे बना आ? या कहते ह?
कॉ लमटरी ए सेसोरीस, जैसे टोल, बे ट् स, और बै स भी रख सकते ह!”
“माँ बनना चाहती हो? वाकई? ...आई मीन, इस इट फॉर रयल?” मुझे उसक बात पर
यक न ही नह हो रहा था। या अभी तक अपनी पढाई लखाई म इतनी मशगूल थी, क
इस बात को पचाना ही मु कल हो रहा था।
“नह ... ओह गॉड! एक मनट... जरा ठ े दमाग से सोचते ह.. माँ बनना एक बात है,
ले कन ब े क परव रश, उसक दे खभाल करना एक बलकुल अलग बात है। म यह नह
कह रहा ँ क तुम हमारे ब े का याल नह रख पाओगी.. ले कन उसक फुल टाइम
ज़ मेदारी? मुझे नह लगता क तुम.. और म भी अभी तैयार ह। अभी तु हारी उ इन
च कर म पड़ने क नह है... हम ज़ र ब े करगे! ले कन, अभी नह । यह समझदारी
नह है... अभी अपने क रयर के बारे म सोचो – ब े तो कभी भी कर सकते ह!”
उसने क कर मुझे कुछ दे र दे खा... मने कुछ नह कहा। तो उसी ने आगे कहना जारी रखा,
“आपको नह मालूम?”
“क ी कली.. ही ही ही...! इस कली को आपने महकता आ फूल बना दया है, मेरे
जानू!” हँसते ए या ने मेरे गले म गलब हयाँ डाल द और मेरे चेहरे को अपने तन क
तरफ झुकाते ए ब तर पर लेट गयी।
माँ बाप बनना कोई मु कल काम तो है नह ... बस नबाध प से सहवास करते रह, और
या? म और या कभी भी इस मामले म पीछे नह रहते ह, और ज द ही या के आ ह
पर या के दौरान हमने कसी भी कार क सुर ा रखना बंद कर दया। ब े के वषय
म और यादा बात करने से म भी कुछ दन म मन ही मन पता बनने को तैयार हो गया।
माच का महीना था, और आ ख़री ह ता चल रहा था। या उस रात अपने ए जाम क
तैयारी कर रही थी, और हमेशा क तरह म उसके साथ उसके वषय पर चचा कर रहा था।
मने एक बात ज़ र दे खी – या आज रोज़ से यादा मु कुरा रही थी... रह रह कर वो हंस
भी रही थी! ये सब मेरा म था या? उसके गाल थोड़ा और गुलाबी लग रहे थे! ये लड़क
तो परी है परी! हर रोज़ और यादा सु दर होती जा रही है!! दस बजते बजते उसने कहा
क तैयारी हो गयी है। साल भर पढ़ने का लाभ यही है क आ खरी रात यादा मश कत
नह करनी पड़ती। कताब को बगल क टे बल पर रख कर या मेरा हाथ पकड़ कर मुझे
मु कुराते ए दे खने लगी।
“ हाट! या ये सच है जानू?”
“मुझे आज सवेरे मालूम पड़ा.. म ड माय पी रयड् स फॉर सेकंड मंथ.. इस लए आज होम
ेगनसी कट ला कर टे ट कया। रज ट पॉ ज टव है!”
मुझे अभी भी यक न नह हो रहा था, “वाव!” मने धीरे से कहा.. और फर तेज़ से,
“वा व! ओह गॉड! हनी, आई ऍम सो है पी! अमे जग!!” कहते ए मने या के ह ठ पर
अपने ह ठ रख दए और अपने दोन हाथ से उसके गाल को पकड़ कर दे र तक चूमता
रहा। मेरी बीवी गभवती है! अ त! मुझे उसका शरीर दे खने क ती इ ा होने लगी (मेरी
मूखता दे खए, अभी दो दन पहले ही तो हमने सहवास कया था), और मने उसक ट -
शट उठा द ... और उसके पेट पर यार से हाथ फराया।
‘इसम मेरा ब ा है!’ म इस ख़याल से हैरान था। मेरा मन उ साह से भर गया। मने बना
कोई दे र कए उसके पेट पर एक चु बन दया – या मेरी इस हरकत से सहर उठ और
हलके से हंसने लगी।
“आई लव यू सो मच हनी! आज तुमने मुझे कतनी सारी ख़ुशी द है, तुमको मालूम नह !”
“आई लव यू टू .. सबसे यादा! आप मेरे हीरो ह.. हमारा ब ा ब त लक है क उसको
आपके जैसा पापा मलेगा!”
“नह जानू.. म लक .ँ . क मुझे तुम मली.. पहले तुमने मुझे पूरा कया, और अब मेरे पूरे
जीवन को! थक यू!”
जब घर का दरवाज़ा खुला तो मुझे लगा क जैसे मेरे सामने कोई अ सरा खड़ी ई है! म
एक पल को उसे पहचान ही नह पाया।
मने या क साड़ी पूरी उठा द – आ य, उसने नीचे च ी नह पहनी ई थी। मने उसको
छे ड़ने के लए उसक यो न के आस-पास क जगह को दे र तक सहलाता रहा – कुछ ही दे र
म वो अपनी कमर को तड़प कर हलाने लगी। वह कह तो कुछ भी नह रही थी, ले कन
उसके भाव पूरी तरह से थे – “मेरी यो न को कब छे ड़ोगे?”
पर म उसक यो न के आस पास ही सहला रहा था, साथ ही साथ उसको चूम रहा था।
या क यो न म अंतर दख रहा था – र से अ तपू रत हो चले उसके यो न के दोन ह ठ
कुछ बड़े लग रहे थे। संभव है क वो ब त संवेदनशील भी ह ! उसका यो न ार बंद था,
ले कन आकार बड़ा लग रहा था। अंततः मने अपनी जीभ को उसक यो न से सटाया और
जैसे ही अपनी जीभ से उसे कुरेदा, तो उसक यो न के पट तुरंत खुल गए। अंदर का
सामा यतः गुलाबी ह सा कुछ और गुलाबी हो गया था। यह ऐसे तो कोई नई या नह थी
– मुख मैथुन हमारे लए एक तरह से सहवास के दौरान होने वाला ज़ री द तूर हो गया
था.. ले कन गभवती यो न पर मौ खक या काफ रोचक लग रही थी। कुछ दे र या क
यो न को चूमने चाटने के बाद,
“हाँ जी हाँ! सब मालूम है मुझे आपका.. आप अपनी श दावली अपने पास र खए..
ऊ ह!” मने जोर से उसके भगनासे को छे ड़ा।
साड़ी का कपड़ा ह त ेप कर रहा था, इस लए मने उठ कर या का नचला ह सा
नव करना शु कर दया। कुछ ही दे र म उसक साड़ी और पेट कोट दोन ही उसके
शरीर से अलग हो गए।
“इतनी दे र तक, इतनी मेहनत करने के बाद मने साड़ी पहनी थी... एक घंटा भी शरीर पर
नह रही..” या ने झूठा गु सा दखाया।
“ यूट फुल!” कह कर मने अपने मुँह से लपक कर उसके एक तना को दबोच लया और
उ साह से उसको पीने लगा। या आह-आह कर के तड़पने लगी और मेरे बाल को कस
के पकड़ने लगी।
“आह.. जानू जानू.. इ स! दद होता है.. धीरे आ ह... धीरे!” वो बड़बड़ा रही थी।
“अब आप इन पर सधमारी करना बंद क जए.. हमारे होने वाले ब े क डेयरी है यहाँ!”
“ही ही ही...” या खल खला कर हंस पड़ी, “अरे बाबा! नह .. ऐसा मने कब कहा? सब
कुछ आप का ही तो है... ले कन एक साल तक आप सरे नंबर पर ह... आप भी ध
पीना.. ले कन हमारे ब े के बाद! समझे मेरे साजन?” कह कर उसने लार से मेरे बाल म
हाथ फराया।
“आआ ह!” या चीख उठती है। उ ेजनावश वो अपने पैर से मेरी गरदन को जकड़
लेती है और कमर को मेरे मुंह ठे लने क को शश कर रही थी। म अपनी जीभ को अंदर-
बाहर अंदर-बाहर करना बंद नह करता। उसका रसता आ यो न-रस म पूरी तरह से पी
लेता ँ। या का शरीर एकदम अकड़ जाता है; र त- न प के बाद भी उसका शरीर रह
रह कर झटके खा रहा होता है। जब उ ेजना कुछ कम ई तो या क ससकारी छू ट गई,
“ स...सीईइइ ह म”
सामने घुटने के बल बैठ कर, मने या क टांग को मेरी कमर के गद घेर लया और एक
जांघ को कस कर पकड़ लया। सरे हाथ से मने अपने लग को या क यो न- ार पर
टकाया और धीरे धीरे अ दर तक घुसा दया। लग इतना उ े जत था क वो या क
यो न म ऐसे घुस गया जैसे क म खन म गरम छु री! इस समय हम दोन के जघन े
आपस म चपक गए थे – मतलब मेरे लग क पूरी ल बाई इस समय या के अ दर थी।
जैसे तलवार के लए सबसे सुर त ान उसका यान होती है, ठ क उसी तरह एक
उ े जत लग के लए सबसे सुर त ान एक उतनी ही उ े जत यो न होती है – उतनी
ही उ े जत... गरम गीलापन और फसलन लए! काफ दे र से उ े जत मेरे लग को जब
या क यो न ने यार से जकड़ा तो मुझ,े और मेरे लग को को ब त सकून मला। हम
दोन ेमा लगन म बांध गए।
मने या के पेट पर हाथ फराते ए कहा, “मेरे ब ,े म आपका पापा बोल रहा !ँ
आपक म मी और म, आपको खूब यार करते ह... म आपक म मी को भी खूब यार
करता ँ... उसी यार के कारण आप बन रहे हो!”
या मेरी बात पर मु कुरा रही थी.. मने कहना जारी रखा, “जब आप म मी के अ दर से
बाहर आ जाओगे, तो हम ठ क से शेक-है ड करगे... फलहाल म आपको अपने लग से
छू रहा ँ.. इसे पहचान लो.. जब तक आप बाहर नह आओगे तब तक आपका अपने
पापा का यही प रचय है..”
“दे खा ब े.. आपक माँ मेरा लग लेने के लए कतना लला यत रहती है?”
“चुप बेशरम..”
मने यादा छे ड़ छाड़ न करते ए सीधा मु े पर आने क सोची – म स हाल कर धीरे धीरे
या को भोग रहा था। हलके झटके, नया आसन, और या क नई अव ा! रह रह कर
चूमते ए म या के साथ सहवास कर रहा था। या ने इससे कह अ धक बल सहवास
कया है, ले कन इस मृ ल और सौ य सहवास पर भी वो सुख भरी स का रयां ले रही
थी... कमाल है! वो हर झटके पर स का रयां या आह भर रही थी!
“यही..”
“यही या?”
“से... स...”
“नह .. ह द म कहो?”
“मज़ाक! अरे वाह! ये तो वही बात ई.. गुड़ खाए, और गुलगुले से परहेज़! चलो बताओ..
हमने अभी या कया?”
“ लीज़ जानू...”
“आप नह मानोगे?”
“ बलकुल नह ...”
“मालूम था.. हमारा ब ा अगर बगड़ा न.. तो आपक ज मेदारी है। ... और अगर इससे
आपका पेट भर गया हो तो खाना खा ल?“
२०
अ नी इस घटना के एक स ताह बाद बगलोर आई। अकेले नह आई थी, साथ म मेरे
सास और ससुर भी थे। एक बड़ी ही ल बी चौड़ी रेल या ा करी थी उन लोग ने! अ नी के
लए तो एकदम अनोखा अनुभव था! खैर, गनीमत यह थी क उनक े न सवेरे ही आ गई,
और छु के दन आई, इस लए उनको वहाँ से आगे कोई परेशानी का सामना नह करना
पड़ा! रेलवे टे शन पर म ही गया था सभी को रसीव करने... या घर पर ही रह कर
ना ता बनाने का काम कर रही थी।
घर आने पर हम लोग ठ क से मले। अब चूं क वो दोन पहली बार अपनी बेट के ससुराल
(या क घर कह ली जए) आये थे, इस लए उ ह ने अपने साथ कोई न कोई भट लाना
ज़ री समझा। न जाने कैसी पर रा या प त नभा रहे थे... भई, जो पर राएँ धन का
अप य कर, उनको न ही नभाया जाए, उसी म हमारी भलाई है। वो या के लए कुछ
जेवर और मेरे लए पए और कपड़ क भट लाये थे। घर क माली हालत तो मुझे मालूम
ही थी, इस लए म खूब बगड़ा, और उनसे आइ दा फजूलखच न करने क कसम
दलवाय । इतने दन बाद मले, और बना वजह क बात पर बहस हो गयी। खैर! ससुर
जी ने कहा क इस बार फसल अ ई है, और कमाई भी.. इस लए दे न वहार तो
करने का बनता है.. और वैसे भी उनका जो कुछ भी है, वो दोन बे टय के लए ही तो है!
अपने साथ थोड़े न ले जायगे! ढ़वाद लोग और उनक सोच!
मने आगे बढ़कर उसक एक हथेली को अपने हाथ म ले लया, “अरे वाह! कतनी सु दर
लग रही है मेरी गु ड़या... तुम तो खूब यारी हो गई हो..!” कह कर मने उसको अपने गले से
लगा लया। अ नी शरमाते ए मेरे सीने म अपना मुँह छु पाए बक गई। ले कन मने
उसको छे ड़ना बंद नह कया,
“हंय? बड़ी हो गयी हो? कब? और कहाँ से? मुझे तो नह दखा!” साफ़ झूठ! दख तो सब
रहा था, ले कन फर भी, मने उसको छे ड़ा! ले कन मेरे लए अ नी अभी भी ब ी ही थी।
“म मी ऐसा कहती है? चलो, उनके साथ झगड़ा करते ह! ... ले कन उससे पहले...” कहते
ए मने उसक ठु ी को ऊपर उठाते ए उसके दोन गाल पर एक-एक प पी ले ही ली।
शम से उसके गाल और लाल हो गए और वो मुझसे छू ट कर भाग खड़ी ई।
खैर, जैसा क मने पहले लखा है, मने अ नी और ससुर जी को यहाँ क पढाई क
गुणव ा, और इस कारण, सीखने और क रयर बनाने के अनेक अवसर के बारे म
समझाया। उनको यह भी समझाया क आज कल तो अन गनत राह ह, जन पर चल कर
ब ढ़या क रयर बनाया जा सकता है। बात तो उनको समझ आ , ले कन वो काफ दे र तक
पर रा और लोग या कहगे (अगर लड़क अपनी द द जीजा के यहाँ रहेगी तो..) का राग
आलापते रहे।
मेरे सास ससुर बस तीन दन ही यहाँ रहने वाले थे, इस लए मने रात को बाहर जा कर खाने
का ो ाम बनाया – जससे कसी को काम न करना पड़े और यादा समय बात चीत
करने म तीत हो। अ नी ख़ास तौर पर उ सा हत थी – उसको दे ख कर मुझे या क
याद हो आती, जब वो पहली बार बगलोर आई थी। सब कुछ नया नया, स मोहक! जो
लोग यहाँ रहते ह उनको समझ आता है क बना वजह का नाटक है शहर म रहना! अगर
रोजगार और वसाय के साधन ह , तो छोट जगह ही ठ क है.. कम षण, कम लोग,
और यादा संसाधन! जीवन जीने क गुणव ा तो ऐसे ही माहौल म होती है। एक और
बात मालूम ई क अगले दन अ नी का ज म दन भी था! ब त ब ढ़या! (मुझे बना
बताये ए या ने अ नी के ज म दन के लए ला नग पहले ही कर रखी थी)।
खैर, खा पीकर हम लोग दे र रात घर वापस आये। मेरे सास ससुर या ा से काफ थक भी
गए थे, और उनको इतनी दे र तक जागने का ख़ास अनुभव भी नह था। इस लए हमने
उनको सरा वाला कमरा सोने के लए दे दया और अ नी को हमारे साथ ही सोने को
कह दया। उ ह ने यादा हील त नह करी ( य क हम तीन पहले भी एक साथ सो
चुके ह) और सो गए।
“भई, आज तो म बीच म सोऊँगा!” मने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करते ए कहा।
“अरे यार! इतनी सु दर दो-दो लड़ कय के साथ सोने का मौका बार बार थोड़े न मलता
है!”
“नह बाबा! द द , तुम ही बीच म लेटो! नह तो जीजू मेरे सेब खायगे!” अ नी ने भोलेपन
से कहा। म
और या दो पल एकदम से चुप हो गए, और फर एक सरे क तरफ दे ख कर ठहाके
मार कर हंसने लगे (अ नी का मतलब गाल के सेब से था.. और हमने कुछ और ही सोच
लया)।
“और नह तो या! अ ा खासा बीच म सोने वाला था! मेरा प ा साफ़ कर दया!”
“हा हा!”
“हा हा!”
“ह? नह !”
“अरे रात म तुमको कौन दे ख रहा है.. अभी पहन लो, कल हम तुमको शौ पग करने ले
चलगे! ठ क है?”
‘द द के तन कतने बड़े हो गए ह पछली बार से!’ मने सोचा। बाल म कंघी करते समय
कभी कभी वो बाल के सरे पर उलझ जाती, और उसको सुलझाने के च कर म द द को
यादा झटके लगाने पड़ते.. और हर झटके पर उसके तन कैसे झूल जाते! हाँ! उसके
तन को न त प से पछली बार से कह यादा बड़े लग रहे थे। उसके पेट पर उभार
होने के कारण थोड़ा मोटा लग रहा था, और उसके कू हे कुछ और ापक हो गए थे।
कुल- मला कर द द अभी और भी खूबसूरत लग रही थी। म म मु ध हो कर उसे दे ख
रही थी : अचानक मने दे खा क द द ने आईने से मुझे दे खते ए दे ख लया... त या म
उसके ह ठ पर वही प र चत मीठ मु कान आ गई।
“आ गई? चल.. अभी सो जाते ह.. जानू.. बस.. अब पढ़ने का बहाना करना बंद करो! हे हे
हे!” द द ने जीजू को छे ड़ा।
बगलोर कैसा है? लोग कैसे ह? यहाँ ये कैसे करते हो, वो कैसे करते हो..? कॉलेज कैसा
होता है? बाद म पता चला क वह पूरी या ा के दौरान सोती रही थी.. इसी लए इतनी ऊजा
थी! अब चूं क मेरे दमाग म शैतान का वास है, इस लए मने सोचा क य न कुछ मज़ा
कया जाय।
जब उसने कोई हील त नह दखाई, मने नीचे वाला बटन भी खोल कर सामने बंधा
फ ता भी ढ ला कर दया। क मोनो वैसे भी साटन के कपड़े का था – बना कसी बंधन के,
उसके क मोनो के दोन पट अपने आप खुल गए। अ नी को वैसे तो दे र सबेर मालूम पड़
ही जाता क उसक द द के शरीर का ऊपरी ह सा नव हो चला है, ले कन जब उसने
अपने हाथ पर या क नाईट का कपड़ा महसूस कया तो उसको उ सुकता ई। उसने
बना कसी कार क वशेष त या दखाते ए अपनी बा हथेली से या के बाएँ
तन को ढक लया।
या इस अलग सी छु वन को महसूस कर च ँक गयी, 'अरे! अ नी का हाथ मेरे तन
पर!'
अ नी: “बताओ..”
या: “अरे तु हारे जीजू अपनी माँ जी का ध भी काफ बड़े होने तक पीते रहे। उ ह ने
ब त यास कया, ले कन ये जनाब! मजाल है जो ये अपनी मां क छाती छोड़ द!”
अ नी: “तब?”
या: “तब या? माँ ने थक कर ने अपने तना पर मच या नीम वगैरह रगड़ लया। और
जब भी ये जनाब ध पीने क जद करते तो तीखा लगने के कारण धीरे धीरे खुद ही माँ
का ध पीना छोड़ते गए।“
या: “नह मेरे जानू.. म ऐसा कुछ नह क ं गी! आप मन भर कर पी जये! मेरा सब कुछ
आपका ही है..”
या: “ले कन अ नी, तेरे सामने करते ए मुझे शरम आएगी।“ हम सभी जानते थे क
यह पूरी तरह सच नह है।
अ नी: “ लीज!”
म( य): “अगर म तुमको पसंद करता तो म इंतज़ार करता – तु हारे बड़े होने का!”
या (शमाते ए): “आप मुझसे य पूछ रहे ह? बना कपड़ो के तो म पड़ी ँ!”
ऐसे खुलेपन से सहवास क दावत! मेरा मन तो बन गया! वैसे भी, न द तो कोस र है.. म
रजामंद से मु कुराया।
या: “ या?”
या: “अ नी!”
अ नी: “नह द द ! तुम मुझे इतना यार करती हो न... एक दम माँ जैसी! इस लए इ ह
पीने का मन आ..। सॉरी द द !“
“ या सचमुच? मुझे लगा क तुमको अ ा नह लगा! ..और... मुझे लगा क तुम मुझसे
गु सा हो!”
“अब क रए..?” अ नी कतनी उतावली हो रही थी हमको सहवास करते दे खने के लए!
“ ट?”
हम लोग तो तैयार थे – बस दशक (अ नी) के रेडी होने क बात जोह रहे थे। या के हरी
झंडी दखाते ही मने उसको छे ड़ना शु कर दया। गभधारण करने से य के शरीर म
कई सारे प रवतन होने लगते ह। उनम से एक है - ए ोजन और ोजे ोन रसायन के
तर म वृ ! ये दोन रसायन य के शरीर को कुछ इस तरह से बदल दे ते ह क उनम
गभाव ा के दौरान कामे ा काफ बढ़ जाती है। इनके कारण गभाशय म र का वाह
और ाकृ तक चकनाई बढ़ जाती है, और तन और तना स म संवेदनशीलता भी बढ़
जाती है। कहना गलत न होगा, क ब त सी याँ ( जनका वा य इ या द ठ क हो)
गभधारण के उपरा त यौन संसग का और अ धक आनंद उठाती ह! लहाजा, या जो
पहले से ही र त का अवतार है, अब और भी कामुक हो गयी थी।
या बोली, “हाय! या करते हो? आराम से! आपका हाथ ब त कड़क पड़ता है! ‘ये’
ब त स स टव हो गए ह अब! पहले ही तुम दोन ने चूस चूस कर इनका हाल बुरा कर दया
है.. अब बस...”
मने कहा, “अरे! ले कन ये सब नह क ं गा तो अ नी या सीखेगी?” कह कर म फर
उसके तन का मदन करने लगा।
या बोली, “ लीज़ जानू ! दद होता है! अब आप सीधा मेन काम क रए.. म पूरी तरह से
तैयार .ँ .”
“अरे बोल न! ऐसे य शमा रही है? बोल न... ठु कने का मन हो रहा है?” या समझ गयी
क बना ‘डट -टॉक’ कये म कुछ नह क ं गा.. इस लए उसने पीछा छु डाने के लए कहा,
आगे हम एक सरे को चूमते ए वही पुरानी आ द-कालीन या करने लगे। पहले धीरे
धीरे और फर बाद म तेजी से म अपने लग को या क यो न के अ दर-बाहर करने लगा।
कुछ दे र बाद या ने अपनी टांग ऊपर क तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोन तरफ
लपेट ली। अब मेरा लग या क यो न म तेजी से अ दर-बाहर हो रहा था – इस ग त म
आयाम कम, ले कन आवृ ब त ही अ धक थी। म अब तेज-तेज ध के मार रहा था।
काम का नशा अब हमारे सर चढ़ गया था। या भी आनंद लेते ए मेरे हर ध के का वाद
ले रही थी।
या बोली, “हमेशा ही लगता है! आपका लग इतना तगड़ा है, और आपके ठु काई का
तरीका इतना शानदार! ब त अ ा लग रहा है। बस आप तेज-तेज करते रहो।”
ग द बात! वाह! उसके मुंह से यह बात सुन कर मने अपनी र तार और बढ़ा द । म वाकई
उसको ‘ठोकने’ लग गया। मेरा लग सटासट उसक यो न म तेजी से अ दर बाहर हो रहा
था। या म ती म ‘आअ ह ओ ह’ करती रही। कोई पांच मनट चले इस घमासान
के बीच अचानक ही या ने मुझे कस कर अपनी बाँहो म भर लया। म समझ गया क
इसका काम तो हो गया। और अगले ही पल उसने एक जोर से आह भरी और आ खरी बार
अपने नत ब को मेरे लग पर ठे ला, और फर ब तर पर अपने पैर पसार कर ढे र हो गयी।
मने भी ज द ज द ध के लगाए और आ खरी ण म लग को उसक यो न से बाहर
नकाल कर उसके पेट पर अपनी वीय क कई सारी धाराएँ छोड़ द ।
फर म गहरी साँसे भरता आ या के बगल लेट गया और कुछ दे र तक सांस को संयत
करता रहा। या भी मेरे बगल अपनी आँख बंद करके लेट ई थी। इस पूरे वाकए को
अ नी खामोशी से (और व मय के साथ भी) दे खती रही। मने उसक तरफ मुखा तब हो
कर कहा,
अ नी ने कुछ नह कहा।
खाने पीने के बाद कोई दस बजे मने डॉ टर को फ़ोन लगाया। उ ह ने कहा क अगले
महीने या या ा कर सकती है। तब तक उसका पाँचवाँ महीना शु हो जाएगा, और वह
सुर त समय है। बस समु चत सावधानी रखी जाय। म उन रा त पर गया आ ँ पहले
भी, और मुझे मालूम है क कुछ ान को छोड़ दया जाय, तो वहाँ क सड़क अ
हालत म ह। इस लए कोई द कत नह होनी चा हए। वहाँ ऊपर जा कर पालक इ या द
क व ा तो हो ही जाती है... अतः डरने या घबराने वाली कोई बात नह थी।
दो दन और बगलोर म रहने के बाद मेरे सास ससुर दोन वापस उ राँचल को लौट गए।
मने ब त कहा क यही क जाएँ, ले कन उनको वहाँ कई काय नबटाने थे, इस लए हमारी
ब त मनुहार के बाद भी उनको जाना पड़ा। खैर, उनके जाते ही मने सबसे पहले दे हरा न
का हवाई टकट हम तीन के लए बुक कर लया। इस एक महीने म हमने ब त सारे काम
यहाँ पर भी नबटाए – सबसे पहले अ नी के दा खले के लए उसके संभा वत कॉलेज के
सपल से मले, और उ ह ने भरोसा दलाया क उसको दा खला मल जाएगा अगर
बारहव म अंक अ े आयगे! उ ह ने काफ समय नकाल कर उसक काउं स लग भी करी
– वो या करना चाहती है, या पढना चाहती है, कौन से कोस वहाँ पढाए जा रहे ह
इ या द! मुझे भी काम के सल सले म दो ह ते घर से बाहर जाना पड़ा, और इस बीच दोन
लड़ कय ने ढे र सारी खरीददारी भी कर ली.. जैसे जैसे या के शरीर म वृ हो रही थी,
उसको नए कपड़ो क आव यकता हो रही थी; अ नी को भी नए प रवेश के हसाब से
प रधान खरीदने क ज़ रत थी। खैर, अ ा ही है.. इसी बहाने उसको नई जगह को दे खने
और समझने का मौका मल रहा था।
“मेरा मतलब द द , हर कसी को तु हारे जैसी खूबसूरत लड़क का ... पीने .. को.. नह
मलता है न!”
“अरे! ये या कर रही है? मुझे पूरा नंगा करने का मूड है या?” या ने मु कुराते ए
पूछा।
"हाँ! म तुमको पूरा नंगा भी दे खूँगी, और आपके साथ वह सब क ं गी जो जीजू करते ह।“
कहते ए अ नी या क कट और च ी दोन एक साथ ही नीचे सरकाने लगी।
“नह अ नी.. ऐसे मत कर.. बस, इनको पीने क इजाज़त है.. ये तेरे जीजू के लए है!”
“ब त बड़े हो गए न?” और कहते ए अपने तन के नीचे हथे लयाँ लगा कर उठाती है।
उसके इस हरकत म कसी भी कार क ल ा नह है.. व तुतः, मुझे ऐसा लगा जैसे वो
मुझे अपने तन का चढ़ावा दे रही हो। ऐसे चढ़ावे का भोग तो म कभी भी, और कह भी
लगा सकता ँ।
“मन कैसे भरेगा इससे मेरी जान! इतना यू शयश, इतना मजेदार! मने तो रोज़ पयूँगा!”
ऐसी बात करते ए शरीर पर जो भाव होना होता है, वो होने लगा।
“अले ले ले! ये या.. मेले बेटू का छु ू तो लंग बन गया है.. कतना बड़ा वाला
लंग..” उसने मुझे चढ़ाया।
“म मी है ही इतनी कामुक!”
“ख़याल ब त ही उ दा है!”
“मेला बेटू अपनी म मी क ठु काई करना चाहता है?” आज या को या हो गया है! अगर
ऐसे ही होता रहा तो उसक बात सुन कर ही म ख लत हो जाऊंगा!
“इस तरह?”
वह मेरी गोद पर चढ़ते ही पूछती है। वह अपनी दोन टाँग मेरी दोन ओर करके बैठ गयी है,
ले कन अभी भी ज़मीन पर अपने घुटन के बल टक ई है। उसके यो नड़ मेरी जांघ पर
टके ए थे, और मेरा लग अभी भी बाहर था। मने अपने दोन हाथ से उसके नत ब थाम
लए।
या पर मानो आज कसी भूत का साया पड़ गया था। ऐसे खुलेपन से उसने ग द -बात
कभी नह कर थी। उसने मेरे लग को पकड़ कर अपने यो न के चीरे पर से ऊपर-नीचे कई
बार फराया। उसक यो न म से तेजी से ाव हो रहा था। फर उसने धीरे से मेरे लग के
सुपाड़े को अपने चीरे म लगाया और धीरे धीरे उस पर बैठने लगी। उसका यो न ार तुरंत
खुल गया, और मेरा लग अपनी नयत जगह म आराम से जाने लगा – जैसे गरम चाकू,
म खन के अ दर जाता है। आधा लग अ दर जाने तक वह नीचे क तरफ बैठती है, और
साथ म हाँफते ए यह भी कहती जाती है क “यह ब त बड़ा है”। कहने के लए शकायत
है, ले कन उसक मु कान से पता चलता है क वह खुद अपने झूठ से आनं दत है। फर
वह मेरे लग पर ऊपर और नीचे होना शु कर दे ती है।
‘अरे! ये भी आ गई या!’
हम दोन ने कुछ दे र तक अपनी साँसे संयत कर , और फर या ने ही कहा, “बेटू मेरा...
अपनी माँ को ऐसे आसानी से छोड़ दे गा, या?” न जाने य उसके इस तरह चढ़ाने से या
फर यह कह ली जये क इस वांग से म ज द ही फर से उ े जत हो गया।
“ऐसे स ते म जाने दे गा? ह म? ऐसे ठोको न, जैसे अपनी बीवी को ठोकते हो... हर
रोज़..” मेरा लग वापस अपने पूण तनाव पर आ गया। और पूण तनाव आते ही,
“जानू...”
म क गया और कुछ और जोर से ध के लगाने लगा। पहले खलन के बाद मेरा टै मना
काफ बढ़ गया था। इस नए काम यु को करते ए कोई दस-बारह मनट के ऊपर तो हो
ही गए ह गे। और अब मुझे भी लग रहा था क मं जल नकट ही है। इस बीच म या एक
बार नवृ हो चुक थी। म अब ज़ोर का ध का लगाने लगा – या भी अपनी तरफ से
अपने नत ब आगे पीछे कर रही थी। कुछ ही दे र म मेरे अ दर का लावा फ़ूट पड़ा। खलन
के उ माद म मने अपनी कमर को कस कर या के नत बो से पूरी तरह चपका लया।
सहवास का नशा उतरा तो याद आया क अ नी भी घर पर होगी! ले कन या ने बताया
क वो अभी बाहर गयी ई है कसी काम से। मने राहत क साँस ली – कमाल है! सोचा
भी नह क घर म हमारे अलावा एक और ाणी रहता है। आगे से सजग रहना होगा।
२२
या ा वाले दन:
या : “तेरे कॉलेज म क ँगी क रोज़ तेरे कान उमेठ जाएँ.. सारी चबड़ चबड़ नकल
जायेगी!”
केदारनाथ क चढ़ाई काफ क ठन है। करीब सात हज़ार फुट क चढ़ाई चढ़ कर केदारनाथ
म दर तक प ंचते ह। केदारनाथ जाने क बल इ ा य थी इसका मेरे पास कोई
जवाब नह था। मुझे वैसे तो कसी तीथ पर जाने म कोई ख़ास च नह है। ले कन, इन
लोगो क आ ा, और उनके प रवार क एक कार क पर रा के कारण मने कोई वरोध
नह कया। वैसे भी या क डॉ टर ने बताया था क इस या ा म कोई द कत नह है,
अगर बस कुछ ख़ास सावधा नयाँ बरती जाएँ! मने यह स त नदश दए थे, क या को
चढ़ाई चढ़ने न दया जाय – पालक कर ली जाय, जससे आसानी रहेगी। यह भी नदश
दया क या लगातार मुझसे बात करती रहे, जससे मुझे वहाँ क प र त का मालूम
होता रहे। इस पर या ने कहा क वो दन म पांच छः बार मुझसे फ़ोन पर बात ज़ र
करेगी।
दो दन।
तीन दन।
चार दन।
छठा दन:
राहत और बचाव काय बा धत हो रहा है, य क घाट म फर से तेज बा रश हो रही है,
और धुंध छाई ई है। सेना के हे लकॉ टर उड़ान ही नह भर पा रहे ह! खबर आई थी क
एक हे लकॉ टर घटना त हो गया! बचने गए वीर युवक, खुद ही पहाड़ क भट चढ़
गए! एक अफसर से बात ई, उ ह ने मुझे साफगोई से कह दया,
“साहब, यह तो एक तरह से 'रेस अगे ट टाइम' है... मौसम खराब है, हर तरह के जो खम
ह और अब तो महामारी का खतरा भी पैदा हो गया है... लोग अब बीमारी और भूख– यास
से मर रहे ह! कतनी मौत , कतने लापता ए और कतने लोग सुर त नकाले गए -
इस पर अब कोई भी बात बेमानी लग रही है, य क यहाँ कोई सम वय नज़र नह आ रहा
है, और न ही कोई एक सूची है। स ाई यह भी है क खुद शासन का कतना नुकसान
आ है, इसका अंदाजा ठ क-ठ क अभी उ ह भी नह है। इसके शकार ए लोग का पता
लगाना ही अपने आप म एक बड़ी चुनौती बन गयी है। हज़ार क तादाद म लोग मदद क
आस लगाए बैठे ह। आप भी उ मीद न छो डए.. कुछ भी हो सकता है!”
सातवाँ दन:
“अ नी?”
उ र म अ नी सफ रोती रही।
एक वृ मुझे दे खते ही बोला, “हे बबुआ, हम हाथ जो ड़त है.. हमका हयाँ से ले चला।”
बेचारे को लगा होगा क म उसका पु या कोई सगा स ब ी ँगा! एक तरफ कुछ लोग
उ टयाँ कर रहे थे।
‘ये लोग दख यूँ नह रहे ह?’ अचानक मेरी नज़र एक तरफ ज़मीन पर लेट ई लड़क
पर पड़ी.. ‘अ नी!’
“अ नी?” ‘हे भगवान्! या हालत हो गयी है इसक ! इतनी यारी ब ी.. और ये दशा?’
उसके कपड़े बुरी तरह से फटे ए थे। बुरी तरह से मैली कुचैली, ज़ मी, बेदम!
“तुम ठ क तो हो अ नी?”
जब तक कोई न त बुरी खबर नह मलती, तब तक आशा बंधी रहती है। मेरी भी आशा
बंधी ई थी क शायद या और बाक सभी जी वत ह गे... ले कन अ नी के इस एक
वा य ने वह आशा भी छ न ली। म बुरी तरह से फूट पड़ा – मानो, थमा आ बाँध अचानक
ही टू ट गया हो। मेरे पैर... जैसे उनम से सारी जान नकल गयी हो। मेरा सर चकराने लगा,
और म अचेत हो कर गर गया।
रजनीगंधा क म त कर दे ने वाली खुशबू मेरे नथुन के रा ते से आ कर मुझे आंदो लत कर
दे ती है। मेरी चेतना वापस आती है। आँख खुलती है, तो मुझे लगता है क मानो म वग के
नंदन वन म ँ। चारो तरह चांदनी फैली ई है, और हरी भरी घास पर ढे र सारे पु प खले
ए ह! वैसे ही जैसे फूल क घाट म दे खे थे!
अचानक उस ी क भी मेरे ऊपर पड़ती है; वो खेलना बंद कर मेरे पास आती है..
या को दे ख कर मने मु कुरा उठता ँ। वो खजुराहो क मू तय जैसी सवाग सुंदर दख
रही है - अ य त कमनीय! दरअसल, उसने खजुराहो क मू तय के समान ही व पहने
ए ह – कमर के नीचे धोती है, और तन को ढके ए कंचुक ! इन व म या के प
स दय और अंग- यंग क रचना दे खते ही बन रही है। उसके व गोलाकार थे, और शरीर
चांदनी म चमक रहा था। आँख म वही प र चत चंचलता और मादकता!
मने एक गहरी सांस भरी – रजनीगंधा क मादक खुशबू मेरे पूरे वजूद म समां गई। समझ
नह आ रहा क सो जाऊं या जागूँ?
“गंदे! म नह ...”,
“जीजू... आप ठ क तो ह न?”
“बाढ़ से बचने के लए हम लोग होटल बाहर नकले। होटल का अहाता बुरी तरह से टू ट
गया था, और वहाँ से पानी बह रहा था – वह से बाहर नकलते ए माँ का पैर फसल
गया। पानी क धारा इत न तेज़ थी क गरने के बाद वो फर कभी नह दखाई द । पापा
उनको बचने के लए अहाते म कुछ दे र तक गए, और जब वापस आये तो लंगड़ा कर चल
रहे थे – शायद उनके पैर म मोच आ गयी थी।
हमने दे खा क आस पास के कुछ लोग पहाड़ क ढलान के ऊपर क तरफ जा रहे थे,
इस लए हम लोग भी उधर ही चलने लगे। जैस-े तैसे हम लोग ऊपर प ंच गए, ले कन उस
चढ़ाई को करने म ब त समय लगा – न दन का पता चलता और न रात का! द द तो
ेगनसी के कारण पहले ही कुछ कमज़ोर थ , और भूखी यासी रहने के कारण उसक
ह मत जवाब दे गई। और वो वह बेहोश होकर गर गयी। पापा ने कहा क वो कुछ खाने
के लए लाते ह, ले कन पूरा दन भर तलाशने के बाद भी उनको कुछ भी नह मला।
जीवन भी अजब है। या या रंग दखलाता है। सब कुछ... इसी ज म म हो जाता है, सब
यह मल जाता है! तीन साल भी हम साथ नह रह पाए! तीन साल भी नह !
‘हे दे व! इतनी ू रता! ऐसे लेना था, तो दया ही य ? या ने ऐसा या कया था क
उसक इस तरह से मृ यु हो? वह बेचारी सभी क हंसी ख़ुशी के लए ही सब कुछ करती
थी। कसी के त उसके मन म कोई भी व े ष नह था। फर य ? कहाँ है भगवान?
कैसा भगवान?’
२३
म एकदम अकेला !ँ एकदम अकेला.. मेरे हर तरफ एक भीड़ जैसी है.. घर म रहो, सड़क
पर नकालो, या फर ऑ फस जाओ... हर तरफ लोग क कोई कमी नह है.. ले कन, म
नतांत अकेला !ँ सोसाइट म लोग जब मुझे दे खते ह तो मानो उनको लकवा हो जाता है..
बात करते करते चुप हो जाते ह, मुझे दे ख रहे होते ह तो कसी और तरफ दे खने लगते ह..
क ी काट लेते ह.. जैसे क मुझे कोई रोग हो!
मुझे लग रहा था क अब मेरे जीवन का मकसद पूरा हो गया है.. ‘ या! मुझे भी अपने
पास बुला लो!’ बस म यही एक बात रोज़ मन ही मन दोहराता। एक साल हो गया था मेरा
प रवार न ए! प रवार या, पूरा संसार न ए! संसार क सबसे नराली लड़क को
मुझसे आज से एक साल पहले काल ने छ न लया। उसके साथ साथ छ न लया उसने
मेरी संतान को – मेरी बेट ! साथ ही चले गए मेरे माता और पता भी! दोन माता पता!
‘कैसा ू र मजाक!’
कहते ह क जीवन कसी के लए नह कता! चलता ही रहता है.. ले कन कस ओर? म
तो अब हर ण बस मृ यु का ही इंतज़ार कर रहा ँ। हाँ – खाता ँ, पीता ँ, सोता .ँ .
ट वी भी दे ख लेता .ँ . या क ँ ? जीना पड़ रहा है! ले कन या जीना! म सब कुछ अकेले
ही करता ँ। हाँ – घर म अ नी भी रहती है। ले कन, उससे तो बस नाममा क बात
होती ह। कभी कभी ःख होता है क इस सब म उसक या गलती! म य उसके साथ
ऐसे बताव क ँ ? आ खर मेरे साथ साथ उसने भी तो अपना प रवार खोया है! ले कन, फर
भी.. एक अजीब तरह क बेबसी होती है.. अजीब तरह क कसक.. अक अजीब तरह का
आ ोश!! कुल मला कर, उससे अ धक बात नह हो पाती! अब तो लगता है क कसी से
भी म ठ क से बात नह कर पाऊँगा!
उस घटना के कुछ ही दन बाद क बात है... म कमरे क खड़क से बाहर कसी अनंत
शू य म दे ख रहा था।
वो उसी पल मेरे कमरे से बाहर भाग गई। कुछ समय बाद मने उसके रोने सुबकने क
आवाज़ सुनी, ले कन मने उसको मनाने क कोई को शश नह करी। वो मेरी ज मेदारी
नह है। अगर उसको भी इस संसार म गुजारा करना है, तो बना कसी मोह के ही करना
होगा। संसार ब त ू र है! और भगवान उससे भी बड़ा ू र! कसी भी कार का मोह न ही
हो तो अ ा! न कोई बंधन होगा, और न कोई बोझ! आराम से चले जाओ.. कसी को
पता भी नह चलेगा क कब नकल लए!
मृ यु :
‘आ ही गई मौत!’
वैस,े मृ यु से मुझे कोई डर वर नह लगता.. हाँ, उससे मुझे एक तरह क खीझ सी होती है।
ले कन, या के बाद म जी ही कहाँ रहा था – बस जी वत था। अपने आ खरी ण म मुझे
बस यही ख़याल आया... और चैन भी। ट कर बेहद भीषण थी। उस झटके से मेरा दय
क गया, और दमाग म अन गनत धर वा हकाएँ फट गई। चेतना जाते ए आ खरी
बात जो मुझे याद है वह यह है क कार क चेसी कुचलती जा रही थी, और कार क फ़श
पर मेरा ल ! मेरे सर म एक असहनीय दद आ, और चेतना लु त हो गई।
ेट!
कैसी आवाज़ है? अ आवाज है, ले कन जानता नह ..। मेरे सर म भयंकर दद हो रहा
था। सर म ही या, पूरे शरीर म! तो या म उस अ तभा रत क से ई घटना से बच
गया?
“अथव.. बेबी.. मरना नह । लीज़..? जागते रहो। तुम मुझे सुन रहे हो? मेरे साथ रहो।
चता मत करो। म ँ यहाँ तु हारे साथ। मुझे सुन रहे हो? मुझसे बात करो.. लीज़..?”
अरे भई.. कौन हो आप? कौन है मेरे साथ? मुझे तो कुछ भी समझ नह आ रहा था। मेरे
सर म जैसे जैसे वो भयंकर दद बढ़ रहा था, वैसे वैसे मुझे यह समझ नह आ रहा था क ये
अथव कौन है, और ये औरत (हाँ.. औरत क ही आवाज़ थी) कौन है! मने उठने क
को शश करी.. एक अजीब सा अनुभव आ – जैसे च कर, उलट , और एक और भयंकर
दद क लहर.. ये सब एक साथ! म फर से अचेत हो गया।
या बलकुल ऐसी ही थी। हर चीज़ म यार डालती थी। उसका कया हर काम बेहतर
होता था! .. यह यार नह तो और या है...?
यू- ूब पर म “आगे भी जाने न तू.. पीछे भी जाने न तू..” वाला गाना सुन रहा था। या
को यह गाना ब त पसंद था। म भी साथ म गाने लगा.. या क याद हो आई.. गला भर
गया। और आँख से आंसू आ गए। म रोने लगा – इस तरह म कभी नह रोया। कम से कम
एक घंटा रोने के बाद सारी ऊजा ीण हो गयी। कब सोया कुछ भी याद नह !
‘ये या चढ़ाने वाला शोर हो रहा है! और.. या कहाँ है? अभी तो यह थी...’
अचानक ही मेरा संसार नश दता से गुंजायमान क तरफ चल दया। मुझे सुनाई भी दे रहा
था, और सुंघाई भी दे रहा था.. ले कन, दखाई य नह दे रहा है?
मेरी आँख उनको खोलने म मेरा साथ ही नह दे रही थ । जैसे तैसे जब वो खुल , तो रोशनी
क एक तीखी लक र व हो गयी। मने तुरंत ही आँख बंद कर ल .. यह सोच कर, क
अभी तो नह खोलूँगा। सोचने क को शश करने पर दमाग म सब ग -म हो गया.. कुछ
समझ ही नह आ रहा था। मने महसूस कया क आँख बंद होने के बावजूद मुझे मेरे इद
गद का सारा संसार धुंधला होता महसूस हो रहा था। और म एक बार फर से स ते
टं ग टन के ब ब के समान बेहोश हो गया।
जब म जागा तो काफ रौशनी हो रही थी। आँख बंद होने के बावजूद म रौशनी महसूस कर
सकता था। मने काफ य न करने के बाद अपनी आँख खोल , और अपने बना सर
हलाए, सफ आँख घुमा कर जायजा लया। मुझे समझ आया क म एक कमरे म .ँ ..
संभवतः.. नह संभवतः नह .. न त तौर पर एक अ ताल के कमरे म। कमरे म सूय क
रौशनी से ही उजाला हो रहा था। जी वत होने, और उसके एहसास से मुझे अ ा लगा!
कुछ ण के लए मुझे अपने शरीर क व भ ह स से उठने वाले दद पर से यान हट
गया।
“ शश ह”
‘हँ..? कौन?’ मने महसूस कया क कसी ने मेरा हाथ थाम रखा है। मने उसी तरफ अपना
सर घुमाया और कहा,
“हाय!” मेरे इतना कहने मा से ही वो ब त खुश हो गई। कौन है ये? धुंधला सा दख रहा
है.. ले कन लगता है क जान पहचान क है.. पता नह ..! थोड़ा अपनी आँख फोकस कर
तो उस ी का चेहरा दखा.. ी नह .. लड़क । मेरे ज़हन म जो पहली बात आई, वो यह
थी क यह लड़क ब त थक ई लग रही थी.. और.. ब त.. सु दर भी! सु दर... या
जैसी!
“ओह! हे लो!” मान मेरी आवाज़ सुन कर उसक जान म जान आई हो.. “आपको नह
मालूम आपको ठ क होता दे ख कर म कतनी खुश ँ! जब मुझे खबर मली आपके
ए सीडट क तो मेरी तो जान ही नकल गयी थी.. सब को तो खो चुक .ँ . और आपको
भी नह खोना चाहती.. भगवान का लाख लाख शु है!”
‘आपको भी? मतलब? मतलब.. ये लड़क मुझे जानती है? ले कन मुझे य नह समझ
आ रही है? य नह याद आ रही है? मेरा नाम या है?’
“म... कहाँ ?ँ (इसका उ र तो खैर मुझे मालूम है) मेरा.. ए सीडट.. कतना बुरा है? (हाँ..
यह ठ क है..) घर.. कब तक?”
‘मुझे कैसा लग रहा है? हा! कैसा लग रहा है!! मेरी पछली याद मरने क है साहब! मरने
क .. सुना? मृ यु! नज व! शव! यह है मेरी पछली याद.. और आप पूछ रहे हो क कैसा
लग रहा है! मर के वापस लौट आया ँ.. कतनी श त से मरने क इ ा थी.. ले कन
अभी लग रहा है क अ ा आ क वापस लौट आया! ले कन अभी कुझे डर भी लग रहा
था.. एक बार मरना क सल हो जाय, तो जीने क चाह ब त बढ़ जाती है!’
न जाने कैसे कैसे ख़याल आ रहे थे दमाग म! मुझे खुद को नयं ण म रखना चा हए.. यह
सब कोई सुनना नह चाहता! कम से कम इतनी तो को शश करनी ही चा हए क सामा य
का सामा य उ र तो दया ही जाय! वैसे लगता तो है क कुछ कुछ याददा त चली
गयी है.. खैर...!
य म मने कहा, “सब ःख रहा है! सर म दद है.. ए चुअली, पूरे शरीर म ही दद है..
ले कन फर भी चलने फरने का मन करता है। ले कन सब कुछ टफ भी लग रहा है.. ऐसे
लग रहा है क सब कुछ टू ट जाएगा!”
फर कुछ क कर, “कुछ खाने को है? ब त भूख लग रही है.. और पानी भी चा हए.. म
तो कम से कम एक लीटर पानी पी सकता ँ अभी!”
मेरी बात पर डॉ टर हंसने लगा, और वो लड़क (कौन है भई?) राहत क सांस भरती है,
“... अब मुझे प का यक न है क आप बलकुल ठ क हो जायगे!” उसक हंसी म
खल खलाहट और संतोष का मला-जुला भाव आ रहा था.. और यह भाव बेहद मनमोहक
था।
‘ या सच म! इंटरे टग!’
उसने कहना जारी रखा, “ले कन एक मनट बाद जब आपक धड़कन वापस चलने लगी
तो वो तो मुझे बलकुल क र मा ही लगा! मने और मेरे सा थय ने ऐसा कमाल होते कभी
नह दे खा!”
म मु कुराया।
‘सा व ी? या!!’
“आप भले मेरी बात को मज़ाक मा नए, ले कन मने यह सब कहना अपना फ़ज़ समझा..
आगे इनका खूब ख़याल र खएगा.. यू शुड ट भी अलाइव!”
“डॉ टर.. एक मनट..” ये लड़क कह रही थी, “म इनक प नी नह .. साली ँ....” उसने
धीरे से कहा।
‘साली? मेरी साली?’ मेरे दमाग म घूणन शु हो गया, ‘मतलब... अश...वी.. न?’
“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा क आप इनक बीवी ह.. ऐसी चता, ऐसी सेवा तो आज
कल बी वयां भी नह करत ।”
“अ नी?” मने कमज़ोर आवाज़ म उसको पुकारा। दल के सारे ज़ म हरे हो गए। मेरी
यारी बीवी नह है.. वो तो कब क मुझे छोड़ कर चल द है.. आँख से आंसू ढलक गए।
“थक यू!”
अ नी मेरे हाथ को अपने दोन हाथ म थाम कर अपने आंसु से भगोने लगी।
२४
अ नी क नजर म :
मेरी आँख के सामने एक एक कर मेरी माँ, मेरे पता, और फर मेरी यारी बहन – जसका
दजा बहन से भी ऊपर था – और उसक संतान क द मृ यु को ा त हो गए। ब त से
ा नय को अ सर यह कहते सुना है क य द कसी के साथ कुछ बुरा होता है तो उसके
ारा कये गए पाप के कारण होता है। मने ब त बार सोचा क इन लोग ने कसका और
या बुरा कया था, जो इनको इस कार क मृ यु मली! माँ ने अपनी तरफ से पूजा पाठ,
धा मक और सामा जक काय म कभी भी कसी भी कार क कोर कसर नह रखी। पता
जी ने भी सदा ही अपनी मेहनत और इमानदारी का ही खाया, न कभी कसी के साथ बुरा
कया और न कभी कसी का बुरा सोचा। और तो और, जतना उनका बस चला और क
मदद ही क । और माँ उनके सभी काम म बराबर क सं गनी बन कर चल । तो उनको इस
कार मृ यु? यह कस तरह ठ क है? और द द ! उसने तो अभी अपने जीवन म दे खा ही
या था? उसक तो हंसती खेलती ज़ दगी तो बस शु ही ई थी। उसके जैसी दयावान
लड़क मने कभी नह दे खी.. लोग या, वो तो पं छय और जानवर के लए भी अ ा
और भला सोचती थी। और उस अज मे ब े का या, जो अपनी माँ के साथ ही तड़पता
चल बसा?
वैसे भी मुझे पड़ो सय से कसी कार के सहारे, और मदद क कोई उ मीद नह है। शु
शु म सभी ने (ख़ास तौर पर पड़ोस क म हला ने) हमारे ःख म मगरम आंसू
बहाए, ले कन तीन चार महीने के बाद ही मुझे ऐसे दे खने लगे जैसे कसी तरह से म इस
घटना के लए उ रदाई !ँ जैसे मने अथव का घर उजाड़ा हो! जैस,े या के जाने के बाद
उनमे से कसी का चांस था, ले कन म उस चांस का सूपड़ा साफ़ कर रही ँ अथव पर डोरे
डाल कर! यह सब सोच सोच कर दल और गला भर आता है.. ले कन यह सब बात
कससे क ?ँ सहे लय को कतनी बात बताई जा सकती ह? हम दो जने एक छत के नीचे
रहते ह, ले कन मानो बस दो अजनबी ह !
धीरे धीरे अपने गम का इलाज म वयं ही होती गई। बात तो सच है, क अगर मन म ढ़ता
न बढ़े , तो जीवन मु कल हो जाए.. इस लए मने इस अनुभव को जीवन क ल बी
पाठशाला का एक और पाठ समझ कर खुद म समा व कर लया। समय के साथ धीरे
धीरे मेरा ःख कम होता गया, और म भ व य के लए आशा वत होने लगी। उधर अथव
अभी तक अपनी इस हा न से उबर नह सके ह.. मने अ सर उनको रात म रोते ए सुना
है। ले कन उनके कमरे म जाने क मेरी ह मत नह होती..! कैसे इस शानदार, आकषक
पु ष का त वहीन हो जाता है, उसका उदाहरण था अथव का य! उनका चेहरा ःख से
खुर रा हो गया था; बाल पकने लग गए थे; न द, आराम और मनःशां त क कमी के कारण
वो महज एक वष म ही बूढ़े से लगने लग गए थे। वैसे भी अथव ने अपने गम से नपटने का
रा ता ढूं ढ लया है। वो काम के सल सले म अ सर बाहर रहते ह। हर का अपने
अपने ख से नपटने का अपना अपना तरीका है.. और मुझे नह लगता क वो अपनी से
ब त कम उ क लड़क से इस वषय म कोई चचा करना चाहते ह। तो अगर, वो ठ क ह,
तो म कुछ भी नह क ँगी। मेरे लए बस इतना ही काफ है!
आरती अपने प रवार के साथ बगलोर म रहती थी। वो लोग क डगा ा ण थे, और
हमारे घर से कोई प ह कलोमीटर र रहते थे। मने उसक माँ से भी बात करी, तो उ ह ने
मुझे ही घर रहने को बुला लया। ले कन फर मेरे ही अनुनय वनय से उ ह ने उसको
अनुम त दे द । उनके प रवार वाले मुझे पसंद करते थे, और अथव से भी मले थे.. इस लए
परेशानी वाली बात नह थी। आरती ने मुझसे कहा क वो करीब एक-डेढ़ घंटे म आ
जाएगी। अ ा है.. इतनी दे र म म नहा लेती ँ!
मेरे बचपन म घर पर सहवास के बारे म कसी तरह क बात ही नह होती थ । बड़े बुजुग
म सहवास को लेकर इतनी संकुचता थी क इसको सफ संतानो प हेतु एक आव यक
काय ही समझा जाता रहा। मुझे जो भी कुछ मालूम आ, वो द द और अथव के कारण!
उनको सहवास का आनंद उठाते दे ख कर समझ आया क सहवास "मजे" के लए भी
कया जाता है, और ेम दशन के लए भी.. और अगर कायदे से कया जाय तो सफ
शारी रक ही नह , मान सक और आ मक सतह पर जुड़ने के लए भी। यही सब सोचते
ए म मा टर बाथ म म लगे लगभग आदमकद दपण के सामने आ कर नव खड़ी हो
गई। और जीवन म पहली बार खुद को पूण-न न दे खा। बीस क उ ! और वैसा ही त ण
ताज़ा शरीर! मने अपने तन को धीरे से दबाया – एकदम पु ! कहना तो नह चा हए,
ले कन द द के तन से भी नखरे और बड़े! अपने सु दर न न शरीर को आईने म दे ख कर
म वाकई खुद ही उ े जत सी हो गई।
कॉलेज म मेरी सहे लयाँ अ सर ह तमैथुन क बात करत । ऐसा नह है क मुझे काम/यौन
स ब ी ान नह था – भरपूर था। अथव और द द क काम- ड़ा मने दे खी थी और मुझे
अ तरह से मालूम था क लड़क और लड़के के अंग का योग कस कार और कस
हेतु होता है। कॉलेज म मेरे सफ लड़ कयाँ ही नह , ब क लड़के भी म थे और उनम से
कई मुझसे णय स ब बनाना भी चाहते थे.. ले कन मेरी म वो सारे सफ अनाड़ी ही
नह , मूढ़ भी थे। ले कन अथव... हाँ, उनक बात कुछ और ही थी। धीर और शांत वभाव
के अथव, और उसम न हत ती ता! उनका भावशाली व और उनक गहन आँख..
जैसे सामने वाले क आ मा को ही दे ख रही ह ! और हाँ! वो कसरती दे ह.. जैसे ा ! कुछ
बात तो थी इस आदमी म!
हाँ... कॉलेज म मेरी सहे लयाँ अ सर ह तमैथुन क बात करत । यह बात भी होती क यह
या कतनी लाभदायक है! आनंद तो आता ही है, साथ ही साथ अनवरत यौने ा, जो
हम युवा म होती रहती है, उससे नजात भी मल जाती है – बना कसी पु ष क
आव यकता के! मतलब बलकुल सुर त, और संतोषजनक! शी ही मेरा कामो माद
समा त हो गया। अनुभव म वह कुछ कुछ वैसा था जब द द और अथव ने मेरे तन से
खलवाड़ कया था.. ले कन इसक ती ता कह अ धक थी।
"ऐसा आनंद तो पहले कभी नह आया", मने सोचा और संतोष द गहरी सांस भरी।
एक और बात है, बगलोर जैसे शहर म रहने के बावजूद उसका प रवार कुछ ढ़वाद
क म का है। र म , और कम-कांड को नभाने क जैसे सनक सी ह उनम! उनके प रवार
क सोच यह भी रही है क लड़ कय का याह ज द कर दे ना चा हए.. लहाजा, दो साल
पहले ही आरती का र ता एक सॉ टवेर इं ज नयर के साथ तय कर दया गया है। इसने
तो शु शु म ब त नखरे कए, ब त सी म त कर , ले कन कुछ हो नह सका। माता-
पता के सामने बेबस थी। बस, इतनी ही गनीमत थी क उसको कम से कम नातक क
पढ़ाई पूरी कर लेने तक क मोहलत द गई थी। शायद उसक कुंडली म कुछ गो ,
मांग लक वाला च कर था, और इस कारण से बस कुछ ही र ते मल रहे थे। उसके माता-
पता ने सबसे कमाऊ वाले र ते को पकड़ लया। मजे क बात यह, क उसक यह बात
पूरे कॉलेज म सफ मुझे ही मालूम थी। वैसे उसका मंगेतर अ ण कोई बुरा नह था। दे खने
बोलने म अ ा था। उन दोन को अपने अपने प रवार क तरफ से दन म मलने क
इजाज़त मली ई थी। आज भी कॉलेज के बाद वो दोन कसी कॉफ़ शॉप पर ही मल
रहे थे।
खैर, नहाने के बाद मने ह का फु का कपड़ा पहना (मतलब, सफ पजामा और ट -शट,
और अ दर कुछ भी नह ) और ट वी दे खते ए आरती के आने का इंतज़ार करने लगी।
कुछ ही दे र म वो आ गई – उसके हाथ म एक बैग था, जसम दो दन के लए ज़ री
सामान और कपड़े थे। उसके आने के बाद हम दोन साथ म चाय बनाने लगे, और साथ ही
साथ मज़े से बात भी करने लगे। मने उसको पूछा क आज दोन ने मल कर या कया!
उ र म वो बस शरमा रही थी। दोन को अनोखे म ही मलने का अवसर मलता था,
इस लए कुछ तो कया होगा न! मेरे खूब जद करने से उसने बताया क आज अ ण म न
जाने कहाँ से इतनी ह मत आ गई, क उसने इसे चूम लया। यह बताते बताते ही उसके
सांवले गाल पर लाली आ गयी। मने उसे छे ड़ते ए कहा, क बदमाश, इतनी ज़ री बात
इतनी दे र म बता रही है! तो वो शरमा कर हंस द । (हमारी बात चीत अं ेजी, हद और
क ड़ – इन मली जुली भाषाआ म ई.. ले कन यहाँ सु वधा के लए सफ हद म ही बता
रही ँ)..
आरती : “तू क मत क बात करती है? तू तो आइटम है.. आइटम! और आइटम ही या,
पूरी पटाखा है! एक बार इशारा कर दे , बस, आ शक क लाइन लग जायेगी तेरे सामने!”
आरती (गहरी सांस भरते ए): “मेरा या! मेरा ड बा तो पैक हो गया है!”
म : “हा हा हा! वाह भई... यह ड बा खुलने को इतना बेकरार है या? कुछ दन क जा..
फुसत से खुलेगी! हा हा हा! अबे बता न.. या कया था तुम दोनो ने।“
म:“ म... ये सुनो! म तो तुमको कुछ बताने वाली थी.. ले कन.. अब...”
आरती : “ध तेरे क ! खोदा पहाड़, नकली चु हया! यह बोल न क तूने आज पहली बार
मा चरबेट कया!”
म : “हाँ.. वही..”
आरती : “मेरी बु राम! तूने यह आज कया? अपनी जदगी के कतने बरस तूने यूँ ही वे ट
कर दए!”
म : “मतलब? तूने या ब त पहले ही...?”
म : “पता नह ..”
आरती : “ठ क है बाबा.. सुन! आज म टर मूड म थे! पहले भी उसने मुझे दो तीन बार
चूमा था.. ले कन आज वाला! उसने मेरे दोन गाल को पकड़ कर चूमा.. नॉट कस.. मूच!
मेरी जान ही नकल गई जब मने उसक जीभ अपने मुँह म महसूस करी! फर उसने मेरे
बू स भी छु ए! इतना मना करने पर भी दे र तक दबाता मसलता रहा! बड़ी मु कल से
उससे पीछा छु ड़ाया। शॉप म यादातर लोग हम ही दे ख रहे थे। म तो शम के मारे बाहर
भाग आई।“
आरती : “कैसा लगा? अरे, मेरी हालत खराब हो गयी! मेरी यो न म च टयाँ काटने लग
ग । कोई और जगह होती तो आज मेरा केक भी कट जाता!”
म : “बाप रे!”
म : “नह यार!”
म हंस पड़ी।
आरती वाकई सी रयस थी। मुझे शु शु म लगा क वो शायद मजाक कर रही थी।
ले कन जब उसने मेरे पास आकर मेरे ह ठ पर अपने ह ठ सटाए तो मुझे वाकई एक करंट
सा लगा। कुछ दे र ऊपर से ही छोटे छोटे चु बन लेने के बाद वो उ हे चूसने लगी। मने भी
अपनी तरफ से जैसा हो सका, सहयोग कया। कुछ दे र चूमने के बाद आरती का मेरे तन
पर आ गया और वो उनको ट -शट के ऊपर से ही सहलाने लगी। म रोमां चत हो उठ ..
दमाग म पुरानी याद ताज़ा हो ग । सच म, मेरे शरीर म एक अनोखी सी आग आग सुलग
गई। आरती मुझे अपनी बाह म लए रह रह कर मेरे गाल, ह ठ, आंख, नाक, गदन और
तन पर चु बन दे ने लगी। एक बारगी कामुक उ माद म मेरा मुँह खुल गया, तो उसने मौका
पाते ही अपने ह ठ से वहाँ हमला कर दया, और अपनी जीभ मेरे मुंह के अ दर डाल कर
मेरी जीभ से खलवाड़ करने लगी! म उचक कर अलग हो गई।
म (हँसते ए) : “तो बाहर आ जा.. मेरे अलावा कौन है यहाँ तुझे दे खने वाला?”
आरती : “अरे म सच कह रही ँ..” कहते ए उसने मेरे हाथ अपने तन पर जमाए, और
खुद मेरे दोन तन को दबाने लगी। मेरी तो जान ही नकल गयी।
मने जैसे तैसे उसके हार झेलते ए उसक ा उतारी। तुरंत ही उसके उ त व मेरे
सामने उप त थे। म सचमुच म उसके तन दे खती रह गई। कतने यारे तन! बलकुल
खलौन के समान! बड़े-बड़े, शरीर के बाक ह स जैसा ही साँवला सलोना रंग, उ ेजना
से ओत- ोत ल बे तने ए गहरे सांवले चूचक, और उसी से मलता जुलता गोल घेरा।
मुझसे रहा नह गया.. और मने भी अपने हाथ उन पर जमा दए।
म : “हाय रे मेरी आरती रानी! तेरे संतरे कतने म त ह! ठोस.. मुलायम.. और रसीले...
दोन के दोन ! म खा लू?ँ ”
मने उसक इस बात पर उसको सोफे पर ही लटा दया, और खुद भी उसके बराबर लेट
गई। एक तरीके का आ लगन – करवट म मेरा दा हना तन उसके बाएं तन से टकरा रहा
था। मने उसक पीठ और नत ब सहलाते ए उसके एक तना पर अपनी जीभ फराई।
द द क याद पुनः हो आई। मने पूरा तना अपने मुंह म भरा, और चूसना शु कया।
मज़ा आ गया। आरती क ससक छू ट गयी। ले कन फर भी उसने मेरे सर को पकड़ कर
अपने तन म भ च सा लया।
आरती : “मन य नह आ! मने बताया न.. बड़ी मु कल से भागी वहाँ से.. कोई और
जगह होती, तो आज तो अ ण ने मेरा काम तमाम कर दया होता! खैर, मेरी छोड़.. तू
बता, तेरा दल भी तो तेरे जीजू से लगा आ है.. तेरा दल नह चाहता?”
आरती : “तु हारी जैसी लड़क भी तो बड़े नसीब से मलती है। ये एहसास करा दो अपने
जीजू को! यार करती हो, तो बता भी दो! या बगड़ेगा भला!”
फर कुछ दे र बाद अचानक ही बोलती है, “एक काम कर.. एक रात को चांस ले। तू पूरी
नंगी हो कर उनके म म चली जा.. खुद बा खुद लाइन पर आ जायगे वो.. जब खुद
व ा म मेनका के सामने मेमना बन गए, तो वो या चीज़ ह?”
म : “बस कर.. अपने आइ डयाज अपने पास ही रख.. अब तेरा हो गया हो तो छोड़ मेरे
..”
वो फर मेरे तन जोर जोर से चूसने लगी और उसके कारण उठने वाले आनंद के उ माद म
म पागल होने लगी। इसी बीच उसने मेरा पजामा भी नीचे सरकाना शु कर दया। म च क
गई, “अआ ह.. ओए.. ये या कर रही है?”
आरती मेरी यो न क दरार पर अपनी उं गली फराते ए बोली, “सच अ नी.. जसे तू ये
खज़ाना दे गी न, वो ध य हो जाएगा! कैसी पतली पतली फांक ह.. और गोरी भी! बस... ये
बाल साफ़ करवा ले.. एकदम म त लगेगी!”
“आप अपनी पै ट् स उतार कर इधर लेट जाइए.. सर उधर रख कर..” उसने कहा।
“ओके! डरने जैसी कोई बात नह है.. और हाँ, अंडर वयर भी..”
यहाँ इ तेमाल होने वाला वै स कुछ अलग था। यह ज द सूख जाता है.. मेरा मतलब ब त
ज द । वै सर इसको लगाती ह, और लगभग तुरंत ही यह सूख जाता है। यहाँ तक तो
ठ क है, ले कन जान नकलती है जब वो इसको एक झटके के साथ शरीर से अलग करती
है। गनीमत यह थी क वो वै स क ई जगह पर अपने हथेली से थोड़ा दबाव डालती है..
इससे चुभन और दद कुछ कम हो जाता है। य द वो ऐसे न करती तो शायद म बेहोश ही हो
जाती! कोई अ तशयो नह है।
अब मुझे यह तो नह पता क यूट पालर म काम करने वाली सारी म हलाएं बातूनी होती
ह या वो मुझको कुछ ख़ास ही वा वाना दे रही थी, ले कन अगले एक घंटे तक, जब म
सफ चीख, च ला और दद बदा त कर रही थी, वो वै सर लगातार अपनी ही बात करने
म लगी ई थी।
“ओह!”
न जाने या समझी वो! वैसे यादातर लड़ कयाँ तो इसी लए ब कनी वै संग करवाती ह
जब उनको यौन या करनी होती है.. बलकुल वह भी यही समझी होगी। वैस,े मन म मेरे
भी तो यही था!
“आप तो उससे यादा ह मती ह... उसक तो चीख च लाहट के साथ साथ कुछ पेशाब
भी नकल गयी...”
कुछ दे र वहाँ बैठने के बाद म आरती के साथ बेढंगी चाल चलती ई घर तक प ंची। घर
तक आते आते दद काफ कम हो गया, और म ठ क महसूस करने लगी। बाहर कसी
होटल जाने के बजाय घर पर ही खाना मंगाने का न य कया था, यह सोच कर क ऐसे
बेढंग चाल चलता आ दे ख कर न जाने लोग या सोचगे! खैर, इतने दद झेलने के बावजूद
मुझे साफ़ और चकना होने का एहसास ब त अ ा लग रहा था। मुझे ब त ख़ुशी मल
रही थी, और एक तरह से वो मेरा त ा वाला पल भी था।
घर पर आने के बाद आरती ने बड़ी बेशम से मुझे एक बार फर से नंगा कर दया और मेरी
यो न को यान से दे खते ए बोली, “सच म अ नी, तू कतनी सु दर है! और.. तेरे जैसी
सुंदर और म त यो न शायद ही कसी लड़क क हो! तेरा ेमी या प त, जो भी होगा.. वो
ब त भा यवान होगा! जो तेरी जैसी सु दर लड़क , इतनी सु दर यो न भोगेगा!”
“सच म.. बेहोश हो जाएगा वो!” कह कर उसने यार से मेरी चकनी सी यो न पर उं गली
फराई।
वो कमीनी यह सब बोलते ए मुझे लगातार छे ड़ती भी जा रही थी, और मेरी जाँघ सहला
रही थी। म ज द ही उ े जत होने लगी और उसके बताने जैसे ही सहवास के बारे म
सोचने लगी। मेरी साँस भारी होने लग और मेरी यो न भी गीली होने लगी। और यह सफ
मेरी ही हालत नह थी। यह सब कहते करते आरती भी गहरी साँस ले रही थी, और उसक
छा तयाँ साँस लेने के साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थ । मेरे मन म आया क उनको दबा ँ ,
और मने ऐसा ही कया।
“अआ ह... मार डालेगी या? अरे आराम से दबा.. तेरी सहेली के ही ह..”
“ओके!” मने कहा, और उसके दोन गाल को बारी बारी से चूम लया। और जैसी मुझे
उ मीद थी, आरती भी मेरा सर पकड़ कर अपने और पास लाने क को शश करने लगी,
और मुझे ह ठ पर चूमने लगी। आरती ने पछली बार भी पहल करी थी, तो इस बार वो
कैसे पीछे रह जाती? वो कुछ ही दे र म मेरे होठ को चूसने लगी। जा हर सी बात थी,
आरती भी उ े जत थी।
“ओह मेरी रानी! तू ब त सै सी है! म आदमी होती तो तुझे यही पटक कर ठोक डालती!
हाय!”
म या बोलती? बस उसके चु बन म साथ दे ती रही। कुछ दे र बाद उसने अपनी बाह मेरी
कांख के नीचे डाल कर मुझे अपने ऊपर क तरफ आने को कहा। म इशारा समझ कर
उसके ऊपर आ गई और अपनी यो न को उसक यो न पर दबाने रगड़ने लगी। आरती मेरे
होठ को ह के ह के काटती ई, अपने ह ठ म दबा कर चूस रही थी।
आरती मु कुराई। उसने कुछ जगह सी बना कर पहले मेरी, और फर अपनी ट -शट उतार
द । उसके सांवले सलोने और यारे खलौने मेरे सामने थे। म उनके प का वाद ले रही
थी, और उसी बीच उसने मेरे नत ब पर हाथ फेरते ए मेरी च ी भी नीचे कर द । मने
वयं ही उनको उतार दया और आरती के होठ को चूसने लगी।
आरती मुझको पलट कर नीचे लटा कर मेरे ऊपर चढ़ गयी, और अपनी च ी उतार कर
अपनी यो न से मेरी यो न को रगड़ने लगी। बीच म मने एक बार उसके एक तना को
अपनी उँ ग लय के बीच मसल दया। वो जोर से च क तो म हंसने लगी।
कहते ए आरती मेरे ऊपर झुक कर मुझे पुनः चूमने लगी। हम दोन लड़ कयाँ साथ ही
साथ अपने द न हाथ से एक सरे के तन का मदन कर रही थ । मेरी यो न वाकई ब त
गीली हो गयी थी, और मुझे वाकई एक तगड़े सहवास का मन होने लगा था। मने आरती के
तन को पकड़ कर अपने मुंह क तरफ ख चा और उसके चूचक चूसने लगी।
“आरती, तेरे तन कतने ब ढ़या ह! इनको दबाने और चूसने म कतना मज़ा आता है!”
“मेरी रानी! तुझे इतना मज़ा आता है, तो सोच, लड़क को कतना आता होगा?”
“अ ण के रहते तुझे और लड़के चा हए या?”
“ या? होओओओओ!”
और वो अपनी साँस संयत कर के मुझे फर से चूमने चाटने लगी। और धीरे धीरे मेरे चेहरे
से मेरे शरीर के नीचे क ओर जाने लगी।
“खीरा है या?”
“हं?”
म पीठ के बल लेट ई अपनी साँसे संयत करने लगी। कुछ ही दे र म आरती वापस आई..
उसके हाथ म एक खीरा था।
“ य डा?”
“नह यार! लीज! म ‘उनके’ अलावा और कुछ अपने अ दर नह लेना चाहती..”
“ओओ ह! तो आग इतनी भड़क है! मेरी रानी अपने जीजू को अपनी कुंवारी यो न का
उपहार दे ना चाहती है! हाय! ऐसी क मत सभी आ शको क हो! कसम से.. हा हा हा!”
आरती क नंगेपन से भरी इतनी बेशम बात सुन कर म शम से पानी पानी हो गयी।
“चुप कर..”
“ये खीरा इसक शकल बगाड़ दे गा! उं गली तो पतली सी होती है..”
“तो म या क ँ ?”
“आह! आरती..” म आनंद से मरी जा रही थी, “तू यह या जा कर रही है?” म जैसे तैसे
अपनी सांस स हालने क को शश कर रही थी।
मेरी आँख उ माद के मद म बंद हो गयी थ और म अपने नत ब जोर से चला रही थी। मन
म बस यही हो रहा था क अथव इसी समय आ जाएँ, और मुझे यार कर!
“अआ हह.. ओ ह!” मने अपना मुँह त कये म दबा लया। आरती कसी अनुभवी
खलाड़ी क तरह तेजी से मुझे अपनी उँ ग लय से ठोकती रही और म ज द ही र त-
न प को ा त हो गयी। मेरी यो न से नकल कर रस क बौछार आरती के हाथ, और
साथ ही साथ ब तर को भगोने लगी। जैसे ही आरती ने अपनी उं ग लयाँ बाहर नकाली,
म ब तर पर गर गई और जोर जोर से हांफने लगी।
आरती ने मुझे चूमते ए कहा, “अ नी मेरी जान, मेरे दमाग म एक आई डया है... तेरे
जीजू को पटाने का!”
“...जी हाँ!”
“आप?”
“कहा न...”
“खबर ठ क नह है।“
“... या मतलब...?”
“ले कन या...?”
“बचने क कोई उ मीद नह है। खून ब त नकल चुका है.. और.. और दे र भी काफ हो
गयी है..।“
ले कन मुझे कुछ समझ नह आता, कुछ सुनाई नह दे ता, कुछ दखाई नह दे ता। बार बार
आँख के सामने कुछ ही दन पहले ए आतंक के च खच जाते। म वापस वैसे
पर तयां झेलने के लए बलकुल भी तैयार नह थी। इतने बड़े संसार म ऐसे नतांत
अकेली रहना...!! बस मन म एक ख़याल रहता क भगवान्, इनको ठ क कर दो.. ज द !
न अ का दाना खाया जाता, न ही जल क एक बूँद पी जाती! ले कन जीने के लए करना
पड़ता है.. जैसे तैसे अ जल को अपने उदर के अ दर धकेल कर वापस आई सी यु के
सामने बैठ जाती, क न जाने कब इनको होश आ जाए!
‘बचना मु कल है..’
‘खून ब त बह चुका..’
‘ब त दे र से हॉ टल लाये जा पाए..’
‘ आ करो क बच जाएँ..’
एक.. दो.. तीन.. ऐसे कर के पूरे अ ारह दन बीत गए! न जाने इस कार के कतने बयान
सुने! डॉ टर भी या करे! वो कोई भगवान् या अ तयामी थोड़े ही होते ह.. और फर
अंततः..
सुन कर मेरी आँख से आंसू ढलक गए! ऐसे य कह रहे ह डॉ टर? म इनक प नी ँ
नह .. ले कन... ले कन... ओह!
“आप भले मेरी बात को मज़ाक मा नए, ले कन मने यह सब कहना अपना फ़ज़ समझा..
आगे इनका खूब ख़याल र खएगा.. यू शुड ट भी अलाइव!”
“ओह! आई ऍम सॉरी! मुझे लगा क आप इनक बीवी ह.. ऐसी चता, ऐसी सेवा तो आज
कल बी वयां भी नह करत ।”
“इट इस ओके!”
“जी?” मेरे दल ने राहत क सांस ली.. मने उनका हाथ पकड़ लया।
“थक यू!”
दल के सारे बाँध टू ट गए.. म उनके हाथ को अपने दोन हाथ म थाम कर अपने आंसु
से भगोने लगी।
‘हे भगवान्! आपका लाख लाख शु है!’
२५
अगले स ताह मुझे अ ताल से छु मल गयी। हादसे क गंभीरता के वपरीत, मेरे शरीर
म टू ट ई ह य क सं या काफ कम थी – बस हाथ, पैर और पस लय म कुछ टू ट फूट
ई थी। इस घटना ने मान सक और भावना मक तौर पर कतनी चोट प ंचाई थी, वो तो
समय के सतह ही मालूम होना था। ले कन, हाल फलहाल, सभी का (और मेरा भी) उ े य
मुझे वापस अपनी पहले वाली शारी रक दशा तक लाना था। अ ताल म पड़े रहने से कोई
लाभ नह था – वहाँ जतना वा य लाभ उठाना था, वो तो हो गया था। इस लए अब घर
म ही रहने का आदे श आ था। एक बड़ी सम या यह थी क मेरी दे खभाल कौन करेगा –
ऐसी ऐसी जगह पर ह याँ टू ट थ , क म खुद से तो अपनी दे खभाल तो या, ठ क से
उठ या चल फर नह सकता था। अ नी ने तुरंत ही मेरी दे खभाल करने के लए आ ह
कया, ले कन मने ही मना कर दया। उसक पढाई लखाई का हजा कर के मुझे कोई
ख़ुशी नह मलने वाली थी। और वैसे भी मुझे एक ऐसी नस चा हए थी तो मेरे साथ अगर
सारे चौबीस घंटे नह तो उसके यादातर समय तक तो रहे ही।
“अरे वाह! आपको तो ह द बोलनी भी आती है? और.. आपके बोलने से लग रहा है क
आप उ र भारत क ह..?”
“आपको कैसे पता? दरअसल, मेरे अ बू लखनऊ से ह! वो यहाँ बगलोर म कोई पतीस
साल पहले आये थे.. काम के लए। वो रटायर हो गए ह.. शॉप- लोर पर एक ए सीडट म
उनका हाथ कट गया था। तब से वो रटायर हो गए ह। घर चलाने और उनक दवाइय के
खच के लए पशन पूरा नह पड़ता न.. इस लए म भी काम करती ँ।“
बना कहे ही उसको जैसे मेरी मन क बात समझ म आ गयी। इतना तो मुझे समझ म आ
गया क इस लड़क से आराम से बात चीत क जा सकती है। यह एहसास अपने आप म
ब त सुखद था.. इतने दन गहरे मान सक अवसाद म गुजारने, और फर एक ाणघातक
घटना झेलने के बाद मुझम वापस जीवन जीने क इ ा बल हो गयी थी।
मने पूछा क वो और आगे नह पढना चाहती, तो उसने बताया क बलकुल पढना चाहती
है.. ले कन बीएससी न सग का कोस दो साल का है.. और इस समय वो अपने काम से
मु नह हो सकती।
“दै ट इस ेट, आयशा! आपसे बात करके मुझे लग रहा है क अब मेरा केयर ठ क से होगा,
एंड दै ट आई ऍम इन सेफ हड् स!”
मेरी इस बात पर वो ख़ुशी से मु कुराई। हम तीन कुछ दे र तक इधर उधर क बात करते
रहे। आयशा ने मुझे आराम करने को कहा, ले कन मने यह कह कर मना कर दया क
पछले न जाने कतने महीनो से कसी से ढं ग से बात नह कया – न घर के बाहर, और न
ही घर के अ दर! इस लए, आज रोको मत.. अगर थक गया, तो मने खुद ही चुप हो कर सो
जाऊँगा। मेरी इस दलील पर दोन ही लड़ कयाँ चुप हो गयी, और हमने कुछ और दे र तक
बात चीत जारी रखी।
“हाँ, पू छए न?”
“ओह! हा हा.. आयशा शायद अरबी या फ़ारसी श द है.. और इसका मतलब है.. उ म..
सुशील, स य, है पीनेस, आनंद, मेजे ट .. ए चुअली ब त सारे मी न स ह.. ले कन
लड़ कय के लए यूज़ होने से इसका मतलब है पीनेस होना चा हए..”
कोई दो तीन मनट को शश करने के बाद, जससे मुझे कम से कम तकलीफ़ हो, आयशा
मुझे सहारा दे कर टॉयलेट तक प ँचाया। इतना तो तय था क बना उसके सहारे के म यह
सब मामूली काम भी नह कर सकता था, ले कन ऐसे ही कसी अनजान लड़क (जो क
उ म मुझसे काफ छोट हो) के सामने नव कैसे आ जा सकता है? एक वय क पु ष
के लए इससे यादा लाचारी और ल ा का वषय और या हो सकता था?
“नाउ वेट अ मनट! आई थक वी नीड टू टॉक एंड सॉट आउट सम थग। म आपक नस ,ँ
तो सबसे पहला ल यह है क आपको मेरे सामने शमाने क कोई ज़ रत नह है। आपके
हाथ और पैर पर ला टर चढ़ा आ है, और र स पर भी चोट ह.. अगर आप पूरी तरह से
ठ क होते तो मेरी ज़ रत ही नह थी.. है न?”
“हाँ.. वो सब तो ठ क है ले कन..”
खैर, जब मेरा पजामा यथो चत री तक सरक गया, तो उसने मुझे सहारा दे कर कमोड पर
बैठाया। मने कुछ दे र तक को शश करी, ले कन आयशा क उप त म मेरे लए मू
करना संभव ही नह हो रहा था।
“..आयशा?”
“जी.. आई..”
अ दर आकर उसने सबसे पहले बाथ म म नज़र दौड़ाई। एक तरफ उसको वेट- ट यु
मल गए। उसने उसम से एक ट यु नकाल कर आधा फाड़ा, और मेरी तरफ मुखा तब
ई। उसने मुझे सहारा दे कर उठाया, और फर मेरे लग को पकड़ कर उसके श ा द
को धीरे से पीछे क तरफ सरकाया उसको तीन-चार बार झटका दया, जससे मू क
बची ई कुछ बूँद नकल गई। फर उसने वेट- ट यु क मदद से लग के सुपाड़े को ठ क से
प छ दया। इसके बाद हम दोन वापस अपने कमरे म आ गए।
कमरे म आकर लेटने के कुछ दे र तक हमने कोई बात नह करी। इसी बीच कामवाली आ
गयी। आयशा ने उसको वशेष नदश दए क घर और खासतौर पर मेरे कमरे क सफाई
कैसे करी जाय, और यह भी क खाना कैसे बनाया जाय। यह नदश दे ते समय उसका
अंदाज़ ध स दे ने वाला नह था.. ब क यह साफ़ दख रहा था क वो मेरी और कामवाली
क मदद ही करना चाहती थी। सच म.. पहले ही दन म आयशा का व, उसके बात
करने का अंदाज़ और उसक मु कान मेरे दल-ओ- दमाग पर छा गई।
“गुड मो नग!”
मने उसक आँख म दे खा। वही मु कुराती ई आँख, खला आ चेहरा! म भी मु कुरा
उठा। बगल म अ नी भी खड़ी ई थी.. मने साइड टे बल पर रखी घडी पर नज़र डाली तो
दे खा क सवेरे के छः बजे थे!
“जी..”
“वो कर लेते ह.. और खाना पीना हमारे पड़ोसी पका दे ते ह.. इस लए द कत नह होती।“
“ह म..”
“आप ऐसे य कहते ह जैसे मुझे आपक इस हालत से कोई मु कल है? म भी आपक
सेवा करना चाहती .ँ .”
“अरे अ नी.. तुम नाराज़ मत हो! तु हारे कारण ही तो म बच सका .ँ . ले कन तुम जानती
हो न क मुझे यादा ख़ुशी तब मलेगी, जब तुम अपनी पढाई पर यादा यान लगाओगी!
है न? और मेरा या? म तो यहाँ चौबीस घंटे पड़ा र ँगा! हा हा!”
“आप ज द से ठ क हो जाओ.. आयशा और म, दोन ही आपको ज द से ठ क कर दगे..
है न आयशा?”
फर आयशा ने मुझे सहारा दे कर बाथ म प ँचाया। कल इतनी बार उसके सामने नंगा
होना पड़ा था, क आज मुझे ब त कम शम आ रही थी। खैर, इस त को मन ही मन
ज़ त कर के मने अपनी न य या करी, और वापस ब तर पर आ लेटा। आयशा ने मेरी
साफ़ सफाई कर के मुझे ब तर पर लटाया। तब तक अ नी चाय और सड वच बना कर
ले आई, जसको हम तीन ने साथ मल कर खाया। उसका कॉलेज सवेरे ज द शु हो
जाता था, इस लए उसने ज द ही हमसे वदा ली।
“ ंज बाथ?”
“ओह गॉड! नॉट अगेन! हमने कल ही तो इस बारे म बात करी है.. आप बलकुल सब कुछ
क रयेगा, ले कन पूरी तरह से ठ क होने के बाद.. ओके?”
फर इधर उधर दे ख कर, “म अभी आती ँ..”
“यू हैव अ नाईस म कुलर बॉडी! नवस तो.. मुझे होना चा हए!” कह कर आयशा जोर से
मु कुराई।
खैर, मने बात को आगे न ख चने का नणय लया, और आयशा को उसका काम करने क
छू ट दे द । वो तौ लये को भगो कर मेरे पूरे शरीर को रगड़-रगड़ कर साफ करने लगी।
गदन, सीना, पेट और बाह साफ़ होने के बाद उसने मुझे धीरे से करवट बदलवाई, और
पीठ, कमर, पु और जांघ को उतने ही सावधानी से ंज बाथ दे ने लगी। म अचानक ही
उछल गया – वो मेरी रीढ़ पर बारी-बारी से गम और ठं डा ंज करने लगी थी। उसने मुझे
बताया क ऐसा करने से दल और साँस के के उ े जत हो जाते ह, यह कई तरह के
रोग के नवारण करने म मदद करता है। एक बार फर से उसने मेरी करवट बदल कर मुझे
पीठ के बल लटाया, और एक अलग छोटे तौ लये से मेरा चेहरा और सर प छकर सुखाने
लगी।
उसने मेरा लग अपने हाथ म पकड़ा और उसक सफाई करने लगी। उसके छू ते ही मुझे
एक झटका सा लगा.. वैसे यह झटका मुझे ही नह , उसको भी लगा। जब मेरा लग पूरी
तरह से जीवंत होता है, तो उसका आकार, उसका घन व और उसक ढ़ता कभी कभी
मुझे भी आ यच कत कर दे ती है। मुझे यह तो नह मालूम, क आयशा ने ऐसा लग... या
फर कोई भी लग कभी भी अपने हाथ म पकड़ा है या नह , ले कन इतना तो तय है क
उस पर असर बखूबी हो रहा था।
उसने मुझे उस दन के बारे म बताया, जब उसको बतौर नस पहली नौकरी मली थी। बंधी
ई तन वाह और अ बू क मदद करने के ख़याल से ही रोमांच हो गया था उसको। कतनी
खुश थी वह नौकरी पा कर! पहली बार नौकरी के लए वो सफ़ेद यू नफाम पहनना, और
फर आइने के सामने खड़े होकर खुद को नहारना.. उसको आज भी याद है!
जहाँ उसको काम मला था, वो एक न सग होम था। वहाँ पहले से काम करने वाली नस ने
उसे धीरे-धीरे काम समझाना और सखाना शु कर दया। शु शु म वो मरीज को
इंजे न दे ती थी, उनके चाट दे ख कर दवाई दे ती, आपरेशन के समय रो गय को
स हालती थी। वो ऑपरेशन होने पर शरीर से नकला कचरा और लोथड़े उठा कर फकने
का भी काम करती। कई बार उस कचरे म साबूत ब ा भी होता। सो चए.. एक पूरा सबूत
ब ा! शु शु म इस काम म उबकाई आती, जी मचलाता और वापस काम पर आने का
मन नह करता। ले कन, धीरे धीरे वह इसक आद हो गई। अब वो सब बदा त कर लेती
थी।
यह सब बताने के बाद उसने मेरे बारे म पूछा। मने उ र म अपने काम के बारे म उसको
बताया।
उसने फर कुछ गत सवाल पूछे..
“आई ऍम सॉरी..”
“अरे! आप ऐसे कैसे बोल रहे ह? ज़रा सो चये, ज त से मैडम आपको इस हालत म
दे खगी, तो या उनको अ ा लगेगा? वो तो आपके लए बस ख़ु शयाँ ही चाहती रही
ह गी.. आपको ऐसे ःख म दे ख कर उनको भी तो ब त ःख होगा न?”
“याद तो आनी ही चा हए! ले कन उनको याद करके उदास मत होइए.. ब क खुश होइए..
साथ बताये ए ख़ुशी के मौके याद क रए.. और.. आप ऐसे ही उदास मत होइए। म ँ न?
म आपक अ दो त बन सकती ँ! आप मुझसे दो ती करगे?”
“आयशा! आप पहले ही मेरी दो त बन चुक ह!” म मु कुराया।
बस.. ऐसे ही मेरे सुधार क गाडी आगे चल नकली। अ ताल म तो समय बीतता ही नह
था.. ले कन यहाँ पर आयशा मेरे साथ मेरी छाया क तरह बनी रहती। लगता ही नह था
क वो नस है.. ब क लगता क वो.. क वो.. मेरी प नी है! मेरी हर ज़ रत को मुझसे भी
पहले महसूस कर पूरा करने क को शश करती, हर लहाज से मेरा पूरा ख़याल रखती।
दोपहर बाद अ नी कॉलेज से आती, और वो भी मेरे साथ ही रहती। मेरा जीवन वापस
ेम से लबालब होने लगा। दोपहर बाद ही लगभग हर दन कोई न कोई आ ही जाता -
कभी नीचे मे डकल टोर से कोई आ जाता, कभी कोई प र चत, कभी कोई ऑ फस से...
तो कभी कोई पड़ोसी! अब तो जैसे आदत हो गयी.. दोपहर बाद आने वाल क ती ा
करना! ले कन यह तो है क अब तक मुझे संसार और यहाँ के लोग के बारे म जतनी भी
गलतफह मयां थ , वो सब ख़तम हो ग । म समझ गया क नया कठोर नह , ब क
संवेदनशील है। मेरे ए सीडट के बारे म जसने भी सुना, वो सुनकर परेशान हो गया। भागा
भागा चला आया दे खने!
ऐसा कोई दन नह गया जब या क याद न आई हो... उसक याद आती तो म आँख मूँद
कर अतीत के संसार क या ा कर आता, उसके बारे म सोच कर आँसू भी ढु लका लेता,
और भ व य क चता म भी डू ब जाता। कभी दद, तो कभी पीड़ा-भरी याद म जब म
अचानक ही च ला उठता, तो आयशा एक झटके से कसी फ़ र ते क तरह मुझे स हाल
लेती।
कभी कभी उसक बाते मुझे बोर भी करत । ले कन उससे बात करना दन का सबसे
सुखद अनुभव होता था। वो रोज़ मुझसे बात करती, मुझे दवा दे ती, नहलाती, साफ़-सफाई
करती, कभी कभार मुझे उप यास पढ़ कर सुनाती, तो कभी अखबार! वो मेरी
फ जयोथेरेपी भी करती। ये सल सला चलता रहा। और उसी के साथ मेरी सेहत भी
वापस आने लगी। हाथ और पैर क ह याँ जुड़ ग , और उनम ताकत वापस आने लगी।
म अब खुद से चल फर सकता था, और कई सारे छोटे मोटे काम कर सकता था.. ले कन
आयशा क आदत मुझे कुछ ऐसी लग गयी थी क म उसको मना नह कर पाता था। मेरी
हालत म सुधार के बारे म उसको भी मालूम था, ले कन वो भी कभी ऐसे नह दखाती थी
क उसको मुझे नहलाने इ या द म कोई झझक नह महसूस होती थी।
एक दन सवेरे वो मुझको ंज बाथ दे रही थी। वो हाँला क मेरे घर म ही रहती थी, ले कन
फर भी पूरी इमानदारी से वो अपनी यू नफाम पहन कर ही मेरी दे खभाल करती थी।
ले कन, आज जब वो नहा कर बाथ म से बाहर आई, तो उसने आरामदायक, कैसुअल
कपड़े पहने ए थे। उसको ट -शट और होसरी पजामा पहने दे ख कर मुझे अच ा आ,
और अ ा भी लगा।
वो मु कुराई।
“जी.. वो.. म.. दो जोड़ी यू नफाम है.. और दोन ही धोने म डाली ई है..”
“मेरे पास रहो..” न जाने कैसे मेरे मुँह से यह तीन श द नकल गए। न त है, मेरी आँख
म वासना के डोरे आयशा को साफ़ दख रहे ह गे!
आयशा कुछ नवस दख रही थी। उसके ह ठ कांप से रहे थे, और ह ठ के ऊपर पसीने क
एक पतली सी परत साफ़ दख रही थी। म भी नवस था.. ंज-बाथ के बाद न नाव ा म
लेटा आ था। न जाने या होने वाला था आज..!
“अथव..?”
“हम दोन दो त ह न?” वो पूछ रही थी, क बता रही थी? कुछ समझ नह आया.. ले कन
यह तो तय था क वो नवस ब त थी।
चूमते ए ही मेरा हाथ उसके सर और उसके बाल म फरने लगा.. एकदम कोमल,
मुलायम बाल!
“तु हारे बाल ब त सु दर ह.. एकदम कामुक!” इस श द का योग उसके सामने मने एक
तो पहली बार कया और सरा, जान-बूझ कर कया। म चाहता था क हमारी आपस म
हचक र हो जाय। ले कन आयशा नवस ही रही..
“हाँ.. सफ बाल ही ह..” शायद वो आगे ‘कामुक’ कहना चाहती थी, ले कन हचक रही
थी।
उसको चूमते ए मेरा हाथ उसके एक तन पर आ गया। जैसा मने बताया था, उसने ा
नह पहनी थी और उ ेजना के मारे उसके तना खड़े ए थे। उसने झट से अपने हाथ से
मेरे हाथ को पकड़ लया। ले कन उसके पकड़ने से म क नह सकता था, लहाजा, मने
उसका तन दबाना शु कया। कुछ ही दे र म उसक पकड़ कमज़ोर हो गयी और वो आह
भरने लगी। मने चु बन लेना जारी रखा, और साथ ही साथ उसक ट -शट को ऊपर उठाने
लगा।
“और कुछ भी कामुक नह है.. मने आपको बताया न!” आयशा वरोध नह कर रही थी..
मुझे ऐसा लग रहा था क यह एक सामा य सा वातालाप है।
म कसी भूखे ब े क तरह आयशा से लपट कर उसका तन पी रहा था, और उनसे खेल
रहा था। आयशा आँख बंद कये ए इस अनोखे अनुभव का मज़ा ले रही थी। उसक भी
उ ेजना बढ़ती जा रही थी – जो क उसक भारी होती सांस से प रल त हो रहा था। वो
खुद भी मेरे सर को अपने तन से सटा कर रखे ए थी। उसने मेरे शरीर को सहलाना
आर कया, और ऐसे सहलाते ए उसका हाथ मेरे लग पर प ंचा! साफ़ सफाई करते
समय वो बलकुल भी संकोच नह करती थी, ले कन इस समय उसने अपना हाथ तुरंत
हटा लया।
“ या आ?”
“ ये ब त बड़ा है।“
एक बार मने एक चुटकुला सुना था, जसमे नया के सबसे बड़े झूठ म एक यह बताया
गया था क जब औरत कसी मद को कहे क तु हारा पु षांग ब त बड़ा है।
“पता नह ..” फर कुछ दे र क कर, “.. मुझे डर लग रहा है, अथव! अभी जो हो रहा है, म
उसके लए बलकुल भी रेडी नह थी... समझ नह आ रहा है क म या क ँ ..!”
“तुमको कुछ भी करने से डर लग रहा है?” मने पूछा। आयशा वाकई डरी ई लग रही थी।
मेरी बात से आयशा कुछ तो शांत ई.. ले कन फर उसक आँख मेरे पूरी तरह से सूजे ए
लग पर पड़ी।
मेरी इस बात पर आयशा मुझसे और चपक सी गई, और उसने मेरे सीने पर अपना हाथ
रख दया। म इस समय उसके दल क धड़कन सुन सकता था। फर उसने एक गहरी सी
सांस भरी और सर हला कर हामी भरी।
“ या आ आयशा?”
“रज़ामंद है..”
“हंय?”
“आयशा, डरो मत! म तुमको दद नह होने ं गा... बस, को शश कर के मजे करो! चलो,
अभी जू नयर से कुछ जान पहचान बढ़ाओ..” मने मु कुराते ए उसको हौसला दया।
उसने हचकते ए मेरे लग को अपनी हथेली म पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी, उधर
मने भी उसके पजामे के ऊपर से ही उसक यो न को धीरे धीरे सहलाना शु कया। ऐसा
अनुभव उसको पहली बार हो रहा था, इस लए कुछ ही दे र म आयशा बेकाबू हो गयी।
ले कन मने उसक यो न का मदन जारी रखा। उसका रस नकलने लग गया था, य क
पजामे के सामने का ह सा गीला और चप चपा हो गया था। फर कोई दस मनट बाद
मने अपना हाथ उसके पजामे के अ दर डाल कर उसक यो न क टोह लेनी आर करी।
आयशा कामुक आनंद के शखर पर प ँच गयी थी।
कुछ ही ण म मने अपनी उं गली ज़ोर-ज़ोर से उसक यो न पर रगड़ना शु कया, और
वहाँ का गीलापन, और गम अपनी उं गली पर महसूस कया। वो इस समय अपनी पीठ के
बल ब तर पर नढाल लेट गयी थी और साथ ही साथ अपनी टाँग भी कुछ खोल द थ ,
जससे मेरे हाथ को अ धक जगह मल सके। मने अपनी तजनी उं गली को उसक यो न म
घुसाने लगा। एक पल तो आयशा ने अपनी साँस रोक ली, ले कन उं गली पूरी अ दर घुस
जाने के बाद उसने राहत म सांस छोड़ी। उसक यो न या क यो न के जैसे क कसी ई
थी! उतनी ही तंग! ले कन आ य क बात है क वो कोमल भी ब त थी! और, वहाँ पर
काफ बाल भी थे.. आनंद आने वाला है!
“अभी कहाँ ख़तम? अभी तो हम ‘कने ट’ होना है.. तभी तो पूरा होगा..”
खैर, अंततः मने अपना लग उसक टाँग के बीच यो न के ार पर टकाया, और धीरे धीरे
अंदर डालने लगा। उसक यो न काफ कसी ई थी। आयशा गहरी गहरी साँसे भरते ए
मेरे लग को हण करना आर कया। खैर मने धीरे धीरे लग क पूरी ल बाई उसक
यो न म डाल द , और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। न तो मेरे पैर म इतनी ताकत ही,
और न ही हाथ म, क वो मेरे शरीर का बोझ ठ क से उठा सके और ध के भी लगाने म
मदद कर सके.. ले कन जब इ ाएं बलवती हो जाती ह तो फर कस बात का बस चलता
है मानुस पर? वैसे भी, कामो ेजना इतनी दे र से थी क गने चुने ध को म ही मेरा काम हो
जाना था। दमाग म बस यही बात चल रही थी क कतनी ज द और कैसे अपना वीय
आयशा के अ दर ख लत कर ं । यह एक नहायत ही मतलबी सोच थी, ले कन या
करता? उस समय शरीर पर मेरा अपना बस लगभग नह के बराबर ही था। आयशा अगर
मदद न करती, तो कुछ भी नह कर पाता.. उसी ने खुद-ब-खुद अपनी टाँगे इतनी खोल द
थ जससे मेरी ग त व ध आसान इसे हो जाय। मुझे नह मालूम क उसको अपने जीवन
के पहले सहवास से या आशाएं थ , ले कन जब मने उसको दे खा तो उसक आँख बंद थ
और उसके चेहरे के भाव ने लग रहा था क उसको भी सहवास का आनंद आ रहा था।
“ या आ?”
“आपको पता है, क आपक इसी बात पर तो म आपसे ‘करने’ के लए तैयार ई। मुझे
हमेशा से मालूम था क आप मेरा कसी भी तरीके से नुकसान नह होने दगे.. ले कन मुझे
इस बात क कोई चता नह है। म एक नस .ँ .. एंड, आई नो हाऊ टू क प सेफ! नाउ
लीज, गो बैक इन..”
म उसक बात से थोड़ा भावुक हो गया, उसको कुछ दे र यार से दे खा, और वापस उसक
यो न क फाँक को अपनी उँ ग लय क सहायता से अलग कर के अपना लग अ दर डाल
दया। इस घषण से आयशा क पुनः आह नकल ग । अब बस चंद ध क क ही बात
थी.. मेरे भीतर का महीनो से सं चत वीय बह नकला और आयशा क कोख म समां गया।
“गाट यू.. गाट यू...” उसने मुझे स हालते ए कहा। वाकई उसने मुझे स हाल लया था..
उसक बाह मेरे पीठ पर लपट ई थ , और उसक टाँगे मेरे नत ब पर।
मने उसके माथे पर एक दो बार चूमा और कहा, “आर यू योर.. आई मीन, आर यू ओके
वद आवर यू रलेशन शप?”
आयशा मु कुराई, “आई ऍम! आपको जब मन करे, मुझे बताइयेगा! और मुझे लगता है क
मुझे भी इसक (मेरे लग क तरफ इशारा करते ए) ब त ज़ रत पड़ने वाली है! ही ही
ही!”
२६
अ नी क नजर म :
म दबे पांव चलते ए अथव के कमरे तक प ंची, और दरवाज़े पर अपने कान सटा दए।
“गलत तो है.. आह... शाद शुदा न होते ए भी यह सब.. ओ ह.. धीरेएएए..!” आयशा
ठु नकते ए कह रही थी।
“ छः! कैसे कैसे बोल रहे हो! ग द ग द बात! आअऊऊऊ! आप न, बड़े ‘वो’ हो.. अभी,
जब आपके हाथ पांव ठ क से नह चल रहे ह, तब मेरी ऐसी हालत करते ह.. जब सब ठ क
हो जाएगा तो...”
“अ ाआआआ... तो ये नस मेरे ठ क होने के बाद भी मुझे नस करना चाहती है?”
“हाँ... य ? ठ क होने के बाद मुझसे क ी काट लोगे या?” आयशा ने शकायत भरे
लहजे म कहा।
“अरे! बलकुल नह !”
आयशा अथव क सवारी करते ए सहवास कर रही थी। उसके नत ब के बार बार ऊपर
नीचे आने जाने पर अथव का लग दखाई दे ता था – आयशा क यो न रस से सराबोर वह
लग कमरे क लाइट और बाहर क रौशनी से ब ढ़या चमक रहा था। आयशा अथव के
ऊपर झुक ई थी, जससे अथव उसके तन पी सक। हो भी वही रहा था – अथव के मुंह
म उसका एक तना था, और सरे तन पर उनका हाथ! म वही खड़े खड़े अथव और
आयशा के संगम का अनोखा य दे ख रही थी।
“जानू.. जानू.. बस.. ब स.. आह! दद होने लगा अब... अब छोड़ अआ ह.. दो!”
अथव को ऐसी भाषा म बात करते ए सुन कर मुझे बुरा सा लगा – उनके मुंह से ऐसी
भाषा वाकई शोभा नह दे ती है।
अथव और आयशा, दोन ही समागम के लए तड़प रहे थे। अथव ने आयशा क टांगो को
खोला और अपना श ा उसक यो न के खुले ए मुख पर रख दया। उनका लग
कतना मोटा था! सच म! यह लग अगर मेरी यो न म जाएगा, तो अपार क तो होना ही
है! ले कन आयशा क यो न क अब तक इतनी कुटाई हो चुक थी क अथव के एक ही
झटके म उनके लग का आधा ह सा उसके अ दर चला गया। आयशा के चेहरे पर मा
ह का सा क का भाव आया, और उसने अथव का लग अपनी यो न म सही तरह से ले
लया। अथव नीचे झुक कर उसके तन पर भोग लगाने लगे और साथ ही साथ नीचे क
तारफ अपनी कमर को एक झटका और दे कर के अपने लग को उसके अ दर पूरी तरह
व कर दया। आयशा ने अपने हाथ उनक कमर के गद लपेट कर अपनी तरफ और
ख चने लगी। अथव पूरे जोशो खरोश के साथ सहवास करने लगे... उधर आयशा भी नीचे
से अपनी कमर को उछाल कर उनका साथ दे रही थी।
कुछ दे र के बाद (कोई पं ह मनट के बाद) मुझे उनके कमरे का दरवाज़ा खुलने क
आवाज़ आई। म दम साध कर लेट रही – जैसे अभी भी सो रही ँ। मुझे वाकई बुखार सा
हो गया था। ऐसे ही नाटक करते करते न जाने कब आँख लग गयी, मुझे कुछ याद नह है।
ले कन मेरी न द तब खुली जब मने अपने गाल और माथे पर कसी के छू ने का एहसास
आ।
मैने आँख खोल ... सामने आयशा बैठ ई थी...! वो मेरे गाल को यार से सहला रही थी।
"आयशा! आप?"
“त बयत?”
“हाँ.. बुखार से तप रहा था तु हारा शरीर! मने कोई दवाई नह द , ले कन सोचा क पहले
तुमको जगा लूं। कैसा लग रहा है अभी?”
“तप रहा था? मेरा शरीर?” फर अचानक याद आया क वो तो मेरे शरीर क कामा न क
तपन थी। मने सोचा क आज आयशा से इस बारे म बात कर ही ली जाय।
“ओह!” मैने कहा, “वो कुछ भी नह है... अथव कहाँ ह?”
“वो तो बाथ म म ह! य ?”
“हाय अ लाह!” कहते ए आयशा ने अपने दोन हाथ से अपना चेहरा ढँ क लया।
“बताइए न?”
“म भी तो या?”
“आप मेरी इस बात का बुरा मत मानना, ले कन पूछना ज़ री है। आप उनसे उनक दौलत
के लए शाद करना चाहती ह?”
आयशा मु कुराई, “हा हा! नह .. मने तु हारी बात का कोई बुरा नह माना। मुझे मालूम है
क अथव ने अपनी सब जायदाद आपके नाम कर द है। नह ... दौलत के लए नह ! मेरी
नस क नौकरी म यादा तो नह , ले कन कम कमाई भी नह होती। आराम से चल जाता
है। नह ... उ ह ने जस तरह से मुझे औरत होने का एहसास दलाया है, मुझे जस तरह से
मान स मान दया है, उसके लए! ... कौन सी औरत नह करेगी उनके जैसे मद से
मोह बत? अथव न केवल ज म से ही एक भरपूर मद ह, ब क दल से भी ह।"
“हा हा! हाँ भाई... मालूम है तु हारा वो मतलब नह था! हाँ.. पराये धम क ँ.. अ बू कुछ
न कुछ नाटक कर सकते ह!”
“अ नी, अगर तुम उनसे यार करती हो, तो तुमको उ ह बताना चा हए!”
“अ नी यारी, मेरी तो बस यही सलाह है क तुम उनको बताओ। उनको बताओ क तुम
उ ह यार करती हो! बाक तो सब अ लाह का रहम!”
आयशा क ऐसी बात सुन कर मुझे ब त राहत ई – एक अरसे के बाद कसी से इस तरह
बात करी। इस कारण मन का ःख आँख के रा ते, आंसूं बन कर बाहर नकल आये।
आयशा ने मुझे अपने गले से लगा लया। और मुझे दलासा दे ने लगी। कुछ दे र के बाद वो
ही बोली,
“ य न हम एक काम कर?”
“ या! आप भी न !”
“ध ...”
“अरे! ध या! बेटा, अगर अथव मान गए, तो तेरा ऐसा बाजा बजेगा न, क तुझे ऐसा
लगेगा क सात ज त क सैर करके आई हो! बाप रे! थका दे ते ह वो तो! ... और, उनका
औज़ार भी तो कतना तगड़ा...”
मने आगे कुछ भी सुनने से पहले अपने कान हाथ से बंद कर लए, और अपनी आँख भी
मचल!
आयशा बात म तो मा हर थी। उससे भी अ धक उसम नेह था। जो सारी बात अभी
आयशा ने कही थी, वो सारी बात मेरे लए भी उतनी ही सच थ । अगर अथव आयशा को
पसंद कर ल, तो मुझे भी ब त ख़ुशी मलेगी – ःख होगा, ले कन वाकई, ख़ुशी भी ब त
मलेगी। एक बार तो मन आ क य न आयशा भी हमारे साथ ही रहे। शाद कसी क
भी हो, ले कन साथ तो हम तीन ही रह सकते ह! ले कन इस लान म एक अड़चन यह थी
क आयशा क शाद म द कत आएगी...
ह! कमाल है! म पहले से ही सोच रही ँ क अथव मुझे ही पसंद करगे, और मुझ ही से
शाद करना चाहगे! मज़े क बात है, क मने अभी तक उनको अपने मन क बात भी नह
बताई!
आयशा मुझे ऐसे दे ख कर मेरे पास आई, और मेरे दोन हाथ को पकड़ कर ब त ही धीमे
वर म बोली, “अ नी, मुझसे शरमाओ मत! म तु हारी दो त !ँ और, तुमने मुझे आज
नंगा दे खा है... और वो सब करते दे खा है, जो नह दे खना चा हए! इस लए, अब इतना तो
बनता है न?”
आयशा क बात तो सही थी। मने अपने सूखे गले को थूक क एक घूँट से तर कया, और
अपने कपडे उतार दए। अ दर कुछ पहना आ था नह , इस लए म तुरंत ही पूण न न हो
गयी। मुझे इस हालत म दे ख कर आयशा भी एक बार हत भ हो गयी।
“ईई ष! आयशा, मने इसे धोया नह था!” उसके इस काम से मुझे हलक सी घन आ
गयी।
मुझे सहरन सी होने लगी। आयशा ने मेरे सामने क तरफ मा लश शु कर द थी। पहले
तो उसने मेरी गदन और कंधे क मा लश करी, और फर दोन तन पर काफ तेल लगा
कर कुछ यादा ही जोर शोर से मा लश करने लगी। कहने क आव यकता नह क मेरी
उ ेजना अब काफ बढ़ गयी थी। आयशा के हाथ क हरकत के साथ साथ मेरी
ससका रयाँ भी बढती जा रही थ ।
ले कन, आयशा का मन भरा नह था – उसका खेल जारी रहा। कुछ दे र त बयत से मेरे
तन क मा लश करने के बाद वो मेरे चूचक के साथ भी खलवाड़ करने लगी। वो कभी
उनको अपनी तजनी और अंगूठे के बीच पकड़ कर मसलती, तो कभी उनको बाहर क
तरफ ह के से ख चती । उसने ऐसा न जाने कतनी बार कया – ले कन मेरी हालत खराब
हो गयी। मेरी आह और भी भारी और तेज हो गई। हार कर मने उसका हाथ पकड़ कर
उसको रोक दया। तब कह जा कर उसके मेरे तन का पीछा छोड़ा।
अगली बारी पेट क थी। मने राहत क सांस ली। कोई पांच मनट के बाद उसने
आ खरकार मेरी यो न क मा लश आर कर द । डर के मारे मने अपने दोन पैर एकदम
सटा लए थे, जससे वो यो न से खलवाड़ न कर सके। ले कन उसक उं गली रह रह कर
जाँघ क बीच क दरार म लुका छपी खेल रही थी। अथव के साथ रह रह कर आयशा को
कुछ तरीके तो आ ही गए थे। उसक इन हरकत से म फर से उ े जत हो गई, और मेरे पैर
खुद ब खुद खुलते चले गए। आयशा को मेरी यो न साफ़ साफ़ दखने लगी।
“मज़ा आ रहा है न अ नी?” उसने धीरे धीरे से मेरे भगनासे सहलाते ए पूछा।
“मज़ा आया?”
म मु कुरा द ।
मने इंतज़ार कया जब अथव नहा धो कर बाहर नकलगे, तब म उनसे बात क ं गी। कमरे
क आहात से पता चल गया क वो कुछ ही दे र म बाहर आ जायगे... उसके पहले म ही
कमरे म चली गयी।
“आप कैसे ह?”
“नह अ नी! तुम सही ही तो कह रही हो! मेरी हरकत के लए मेरे पास कोई बहाना नह
है.. हो सके तो माफ़ कर दो!”
“मुझे मालूम है अ नी! तु ही तो हो, जो मेरा इतना ख़याल रखती है!” उ ह ने मु कुराने
क को शश करी! मु कुराते ए ये कतने सु दर लगते ह!!
“ब ढ़या!”
“हाँ! ब त से ह!”
“मुझे तो बस आरती का ही पता है!”
“लड़के भी?”
“हाँ!”
“अरे य ?”
“मेरी गल ड? हा हा!”
“सच सच बताइयेगा?”
“ह म.. अ नी, कोई और होता तो झूठ बोल दे ता.. ले कन तुमसे झूठ नह कह सकता!
आयशा अ लगती है मुझे!”
“हाँ! आयशा तो है भी अ !”
“हः! पुराना वाला अथव तो तु हारी द द के साथ ही चला गया, अ नी।“ अथव क
आँख से खामोश आंसूं नकलने लगे, ”वो तो मेरी आ मा थी। अब तो बस मेरा ढाँचा ही
बच रहा है!”
“नह .. बात सफ आयशा क नह है... मुझे नह लगता क कसी भी लड़क के साथ मुझे
अब या जैसा लग सकेगा!”
“मतलब?”
मेरा गला सूख गया,
“ तो या आ?”
“अथव! मेरी तरफ दे खए... मुझे मालूम है, क आपने मुझे उस नज़र से कभी नह दे खा,
ले कन मने पहली ही नज़र से आपसे हमेशा ेम ही कया है.. हाँ – यह सच है क उस ेम
के प बदलते चले गए। अगर द द न होती, तो म आपसे ही शाद करती। उनके बाद, मने
इतने दन तक अपने मन म यह बात रखी ई है.. ले कन, अब और नह होगा। मने मन ही
मन आपको अपना प त माना आ है! बाक सब आपके हाथ म है!”
कैसी कमाल क बात है न? हम दोन इतने साल से साथ म ह, ले कन मुझे कभी इस बात
का भान भी नह आ क अ नी मुझको ले कर ऐसे सोचती है। खैर, भान भी कैसे होता?
म तो अपने ही ग़म म इतना घुला आ था क आस पास का यान भी कहाँ था? ले कन
अब जब यह बात खुल कर सामने आ ही गयी है तो इस पर वचार करना ही पड़ रहा है –
या अ नी के साथ मेरा होना ठ क रहेगा? म उससे कई साल बड़ा .ँ .. कई साल! उसने
बोला था क “तो या आ?” एक तरह से दे खो तो वाकई, तो या आ? या भी मुझसे
कई साल छोट थी....। ले कन इन दो बात म या समानता है? या से मुझे ेम आ था।
जब ेम होता है, तो उ , जा त, बरादरी, धम इ या द का कोई ान नह होता – बस
पु ष और नारी का! (और कुछ लोग म पु ष पु ष और नारी नारी का!) इस लहाज से
दे खा जाय तो या कोई बड़ी अनहोनी नह थी। अ नी को भी मुझसे ेम आ था। अब मेरे
सामने एक ही है, और वो यह क या मुझे भी उससे ेम है? मतलब, ेम तो है..
ले कन वो ेम, जसक प रण त ववाह हो?
“आपको यूँ कमरे के अ दर बैठे रहने क कोई ज़ रत नह ! आइए, लंच कर लेते ह?”
कह कर उसने बना मेरे उ र क ती ा कये, मेरे हाथ पकड़ कर मुझे ब तर से उठाने
लगी। म भी एक अ े ब े क तरह उठ गया, और न जाने कतने दन के बाद डाइ नग
टे बल पर उसके साथ बैठ कर खाना खाया। कभी कभी छोट छोट बात भी कतनी सु दर
लगती ह! दमाग म या के साथ वाले सुख भरे दन का य घूम गया। होनी कतनी
बल है! उसको कौन टाल सकता है?
अगली सुबह जब आयशा घर आई, तो अ नी को वहां उप त दे ख कर थोड़ा अचरज म
आ गई .. फर उसको तुरंत समझ म आ गया।
उसको लग गया क अब फैसले क घड़ी है, तो उसने भी कोई न नुकुर न करते ए हमारे
साथ होने म भलाई समझी। ले कन, म कुछ कहता, उससे पहले ही आयशा ने अ नी से
पूछा,
“अथव,” आयशा ने मेरी तरफ मुखा तब होते ए कहा, “आपको कुछ कहने क ज़ रत
नह है.. बस इतना बता द जए, क आप अ नी से शाद करगे?”
अचानक ही मेरा ल बा चौड़ा भाषण दे ने का लान चौपट हो गया! मेरी बोलती कुछ ण
के लए बंद हो गयी।
“आयशा...”
“हाँ, या ना?”
“ हान!” मेरे मुँह से बेसा ता नकल गया।
आयशा मु कुरा द .. उसक आँख से आंसू भी नकल आये! भरे ए गले से उसने मुझे
बधाई द ...
“वैरी गुड चॉइस! सच म! अगर तुम अ नी से शाद न करते, तो मुझसे बुरा कोई न होता!
..” वो रोने लगी, “कम, गव मी अ हग!”
“मेरे सामने नंगा होने म शम नह आती, ले कन मुझे हग करने म शम आती है? कम... हग
मी ोपरली..” आयशा ने रोते ए हच कय के बीच म मुझे झाड़ लगाई।
आयशा ने बीच म कुछ कहना चाह तो अ नी ने कहा, “मुझे बोल लेने द जए, लीज! मेरे
लए आपका दजा मेरी द द के जैसा है! इस घर म आपक इ ज़त उ ही के जैसे होगी।
मेरी एक वनती है आपसे – आप यह पर र हए!”
मलने आया तो उसक हम सभी से मुलाक़ात ई। मुझे तुरंत ही समझ आ गया क उसको
आयशा म दलच ी है। मने उसको पूछा क वो कहाँ ठहरा आ है, तो उसने होटल का
नाम बताया। मने जद से वहां क बु कग क सल कर द , और हज़ार कसम दे कर उसको
यह मेरे घर पर रहने को कहा। इससे एक लाभ यह था क मेरे पुराने म से म दे र तक
बात कर पाऊँगा, और सरा यह क आयशा और अमर को एक सरे से बात करने का भी
अवसर मलेगा।
हमारी बात म मने जान बूझ कर आयशा का कई बार ज़ कया, जससे वो उसके बारे
म और पूछे, और उसके बारे म ठ क से जान जाय। बाक सब तो भु क इ ा! एक
और बात थी – वो मने कसी को नह बताई थी, और वो यह, क अमर का लग मेरे लग
से बड़ा था। ल बाई म भी, और मोटाई म भी। मुझे कैसे मालूम? अरे दो त , बी टे क का
हाल अब न ही पू छए! भाई को एक बार दा पीना का शौक चराया था। न जाने कतनी
ही बार मद म लड़खड़ाते ए अमर को मने टॉयलेट म ले जा कर मुताया था। पै ट् स म से
उसका लग बाहर नकालने पर कई बार खड़ा आ भी रहता था। ऐसे म मुताने के लए....
अब छो डये भी!
अगर इन दोन क शाद हो जाय, तो वाकई, आयशा क आह भरने का परमानट इंतजाम
हो जाए! और सबसे बड़ी बात यह, क अमर एक ब त अ ा लड़का, मेरा मतलब
आदमी, भी है। वो इस समय अपने क रयर और जीवन के उस मुकाम पर है, जहाँ पर
उसको एक साथी क आव यकता थी। उसके वापस द ली जाने के दो दन बाद जब
आयशा के लए उसका फोन आया, तो मुझे जैसे मन मांगी मुराद मल गयी! उसके एक
स ताह के बाद, आयशा ने शाद के लए उससे हाँ कर द ! भले ही उन दोन को एक सरे
के बारे म ब त कुछ न मालूम हो, ले कन मुझे यक न था क लड़क वाकई, ब त खुश
रहेगी! और अमर भी!
अमर और आयशा क शाद जैसे आंधी तूफ़ान क तरह ई! दोन ने कोट म जा कर शाद
करी थी – आयशा के अ बू ने फ़ज़ूल क न नुकुर तो करी, ले कन अमर के लायक न होने
का कोई कारण न ढूं ढ सके। अब बस ह पराये धम क के फक के कारण ऐसी शाद तो
कोई नह छोड़ सकता है न? लहाजा, दोन क शाद आराम से हो गयी। वैसे भी अमर
दखावे के स त खलाफ है – इस लए शाद म अ नी, म, आयशा के अ बू, और पांच
और म के अ त र और कोई नह आमं त था। शाद द ली म ई, और वह पर
र ज टर भी। वैसे तो काफ सारा पंच करना पड़ता है कोट क शाद म, ले कन उसने
कुछ दे दला कर ह ते भर म ही दन नकलवा लया। कसी को उनक शाद पर भला
या आप हो सकती थी।
हम सभी ने ब त मज़े कये। शाद के बाद, एक पांच सतारा होटल म खाना पीना आ,
नृ य भी – हम चार ने एक सरे के साथ डांस भी कया। अ नी भी पूरा समय अमर को
जीजू जीजू कह कर छे ड़ती रही। फर हम सबने वदा ली, और उनको अकेला छोड़ दया।
वापसी क लाइट म अ नी ने पूछा,
२८
अ नी क नजर म :
मने र ट (जंग लगे लाल) रंग का लहंगा चोली पहना आ था – आरती के कहने पर चोली
इस कार सली गयी थी जसमे से पीठ का लगभग सारा ह सा एक गोल से दखता था।
ऐसे म म उसके अ दर कुछ नह पहन सकती थी। इस लए आगे क तरफ तन को संबल
दे ने के लए पै डग लगाई गयी थी।चोली को पीछे क तरफ से बाँधने के लए ऊपर नीचे
डोरी क जोड़ी थी। नंगी पीठ को ढं कने के लए सर पर उसी रंग क चुनरी थी। लहंगा कुछ
कुछ अनारकली टाइप का था। पूरे प रधान पर कुंदन क कारीगरी क गई थी.. इस समय
म वाकई कसी राजकुमारी जैसी लग रही थी।
X Night Clubs
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
Adult Comics Club
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
18 Vargin Girls
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
मेरी नजर म :
सुहागरात आ ही गई। मेरी सरी सुहागरात! अपनी बीवी क छोट बहन के साथ! मन म
अजीब सा लग रहा था – एक अजीब सी बेचैनी! एक होता है ेम करना – बना कसी
तक के, बना कसी वाद तवाद के, बना कसी लाभ हा न के हसाब के! या के साथ
मने ेम कया था। अ नी से भी मुझे ेम था, ले कन एक ेमी के जैसा नह ! अभी तक
नह । वो अभी भी मुझे या क छोट बहन ही लगती – वो ही छोट सी लड़क जो मुझे
‘दाजू’ कह कर बुलाती थी, और फर जीजू कह कर! अब वही लड़क मुझे प त कह कर
बुलाएगी? प त बना ,ँ तो प त धम भी नभाना पड़ेगा। या के साथ मुझे ब त आ म-
व ास था, ले कन अ नी के बारे म सोच सोच कर ही नवस होता जा रहा ँ!
ले कन मुझे उसक बेशम का ान नह था। मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोली, “आय
हाय जीजा जी, आपक बीवी ब तर पर बैठ है, और आप उसक सहेली क मारना चाहते
ह! वैरी बैड!! पहले उसक सील तो खोल द जए... जब आप बाहर नकलगे, तो म भी
‘खोल’ कर रखूंगी! ही ही ही!”
आरती क ग द बात से मूड ऑफ हो गया!
“जीजू! आपक साली !ँ हमारे र ते म छे ड़खानी करने का बनता है न?” मेरी डांट के डर
से उसका चहकना कुछ कम तो आ। मुझे भी लगा क आज के दन कसी को डांटना
नह चा हए।
“ले कन आप तो..”
कह कर मने उसको अपने गले से लगा लया। उसको इस तरह से गले से लगाने से मुझे
पहली बार उसके तन का आभास आ – कैसे ठोस गोला ! अचानक ही मन क
इ ाएँ जागृत हो ग !
“आपको अ लगी?”
अ नी हौले से मु कुराई।
“हाँ! पांव पर भी..” कह कर उसने अपना पांव आगे बढ़ाया। पांव और आधी टांग पर
मेहंद सजी ई थी। कुछ दे र वहां क डज़ाइन का नरी ण करने के बाद मुझे लगा क
अब चांस लेना चा हए।
“यह लाउज का कपड़ा ब त कोमल है.. ले कन, यहाँ (उसके तन क तरफ इशारा करते
ए) से अ धक यह यहाँ ( ब तर के कनारे क तरफ इशारा करते ए) यादा अ ा
लगेगा!”
वो शम से मु कुराई।
“ या?”
अरे हाँ! वो मुँह- दखाई क र म! कैसे भूल गया! मुझे तो ए सपी रयंस भी है!
“टे न टे ना!”
हे दे व! ये तो गुनाहे अज़ीम हो गया मुझसे! एकदम से मेरी भी बोलती बंद हो गई। मने
ज द से इधर उधर दे खा – स र दान तो बगल टे बल पर दख गया। मने उसको उठाया।
वो सौ ाम का ड बा कतना भारी तीत हो रहा था उस समय, म यह बयां नह कर
सकता। कोट म एक सरे को वरमाला पहनाना, और यहाँ पर उसक मांग म स र
डालना – दो बलकुल भ बात थ । अ नी क मांग को भरते समय मुझे अचानक ही नई
ज मेदारी का भान होने लगा। ऐसा नह क कोट क शाद का कोई कम मायने है.. ले कन
स र जैसी पर राएँ ब त गंभीर होती ह। मने दे खा क अ नी के ह ठ भावना के
आवेश म कांप रहे थे।
मने दराज खसकाई तो उसम छोटे छोटे काले मो तय से सजा सोने का मंगलसू दखा।
सच क ,ं यह मेरे लाये गए हार से कह अ धक सु दर था। सरल, साद चीज़ का अपना
अलग ही आकषण होता है। मेरे खुद के हाथ अब तक हलके से कांपने लग गए थे। मने
अ नी को मंगलसू भी पहना दया – हाँ, अब हो गयी वो पूरी तरह से मेरी प नी!
“अब आपको जो मन करे, उतार ली जए!” उसने आँख नीची कये आ कहा।
“सच म?”
अब वो बेचारी या कहती? म भी या ही करता? ऐसी सु दर, अ सरा जैसी प नी अगर
मल जाय, तो कोई कैसे खुद पर काबू रखे? इतना तो समझ आ रहा था क उसक चोली
पीछे से खुलेगी। ले कन म अपना नाटक कुछ दे र और करना चाहता था। और मने बटन
ढूँ ढने के बहाने उसक चोली के सामने क तरफ कुछ दे र तक पकड़म पकड़ाई करी। वैसे,
अ नी को इस कार से छे ड़ने म मुझे अभी भी सहजता नह आई!! आयशा के साथ तो
आराम से हो गया था.... फर अभी य ..?
“प प पीछे से...”
हाँ! पीछे से ही डोरी खुलनी थी। चोली क डोर पीछे से चोलने के दो तरीके ह – या तो
लड़क क पीठ को अपने सामने कर दो, या फर लड़क के सामने से चपका कर! मने
सरा रा ता ठ क समझा, और अ नी से चपक कर उसक चोली क डोर खोलने का
उप म शु कया। दो गांठ खोलने म कतना ही समय लगता है? झट-पट अ नी क
पीठ नंगी हो गई। ले कन मने आगे जो कया, उससे अ नी भी आ यच कत हो गई होगी
– म पहले ही उससे चपका आ था, और फर उसी अव ा म मने अ नी को जोर से
अपने सीने से लगाया। ऐसा करते ही अचानक ही मेरे अ दर ेम क भावना बलवती हो
गई – मने कहा ेम क , न क भोग क ! मने अ नी को दल से ध यवाद कया – हर काम
के लए, जो उसने मेरे लए कया था।
“अ नी, लीज तुम बुरा मत मानो! न जाने य मुझे ऐसा लग रहा है जैसे या अभी यहाँ
दरवाज़े पर आ खड़ी होगी। न जाने य ऐसा लग रहा है जैसे हम दोन उसक पीठ पीछे
चोरी कर रहे ह..”
“आपको ऐसा य लग रहा है? ... मेरी तरफ दे खए... मुझे भी आज दन म कोट म ऐसे
ही लग रहा था .. जैसे माँ, पापा और द द हमको वहां ऊपर से दे ख रहे ह ! ले कन, मुझे
ऐसे नह लगा क वो हमारी शाद पर बुरा मानगे! हम दोन ने एक सरे से शाद करी है।
चोरी नह ! द द के जाने के बाद आपने जो ःख झेले ह, वो मुझसे छु पे ह या? मुझे
यक न है, क द द का, और माँ पापा का आशीवाद हमको ज़ र मलेगा!”
कह कर उसने मुझे जोर से अपने गले से लगा लया। कुछ दे र मुझसे ऐसे ही चपके रहने
के बाद, मुझे पकडे ए ही उसने कहा,
अ नी ने मु कुराते ए हर हलाया।
उसने कोई उ र नह दया, तो मने चोली के ऊपर से ही उसके दोन तन को थाम लया।
अ नी क वतः त या पीछे हटने क थी, ले कन उसने वयं को रोका। ले कन, आज
पहली बार मेरे हाथ के श को अपने तन पर महसूस करके उसको भी अ ा लग रहा
था। मने मन ही मन उसके और या के तन क तुलना करी – अ नी के तन या के
तन से बस कुछ ही बड़े थे। छू ने से समझ आया क वाकई दोन एकदम गोल और ठोस
थे! मन तो उसके तन क बनावट, तापमान और छु वन को अपने हाथ म महसूस करने
का था, इस लए कपड़े के ऊपर से मज़ा कम आ रहा था।
उसका इशारा पा कर मने उसक चोली के सरे को दोन कंधे से पकड़ कर सामने क तरफ
ख चा – तन तुरंत वतं हो गए! जैसा सोचा था, ये दोन वो उससे भी कई कई गुना
सु दर नकले! बलकुल युवा, गोल और ठोस तन – गु व के भाव से पूरी तरह अछू ते!
गोरे गोरे चकने गोला ।
आपने कभी लाल गुड़हल क कली दे खी है? खले से कोई दो घंटा पहले वो कली एक इंच
के आस पास ल बी होती है, और बेलनाकार होती है। इसी समय कली के बीच म से यो न-
छ (पु प का मादा भाग) नकल रहा होता है। ठ क इसी कार के चूचक थे मेरी अ नी
के!
“ओह गॉड!” मेरे मुँह से बेसा ता नकल गया, “कहाँ छु पा कर रखा था तुमने इनको अभी
तक?”
इसी समय मेरे साथ वो आ, जसक मने क पना भी नह करी थी – मेरे लग से वीय
नकल पड़ा! मुझे घोर आ य आ! ऐसा कैसे हो गया? म तो खुद को ल बी रेस का घोड़ा
मानता था, जो कभी कता ही नह था! खैर, वीय नकलने पर भी लग का कड़ापन कम
नह आ – यह अ बात थी। न जाने अ नी का या हाल होगा?
कुछ भी हो, मने ज दबाज़ी बलकुल भी नह करी। उससे भला या लाभ? बीवी तो
अपनी ही है – कह भागी थोड़े ही जा रही है!! मने उसक कमर को पकड़ कर अपने
नजद क बुलाया, और उसके अधन न शरीर का अपनी आँख से आ वादन करने लगा।
अ नी ने दे ख क म या कर रहा ँ – इस पर वो शरमा कर नीचे क तरह दे खने लगी।
मने कुछ दे र खेलने और छे ड़ने क सोची। उसका जूड़ा बंधा आ था – सामा य सा था –
कोई ब त ज टल बंदोब त नह था। मने उसमे से गजरा नकाला, और उसके बाल को
खोल कर बखेर दया। अब उसक मूरत दे खते बन रही थी – एक अ यंत सु दर, अ सरा
जैसी कम सन लड़क , अपना लहँगा पकडे मेरे सामने अधन न खड़ी ई थी – उसक साँसे
तेजी से चल रही थ , और उनके साथ ही उसके उ त तन ऊपर नीचे हो रहे थे, बाल खुल
कर आवारा हो रहे थे... शरीर का रंग ऐसा जैसे कसी ने संगमरमर म मूंगे का रंग मला
दया हो! जैसे ध म केसर मल गया हो!
वह एक अ तसु दर तमा जैसी लग रही थी। और मुझे ऐसे लुभा रही थी, क जैसे मुझे
बुला रही हो!
अब मुझे खुद पर वाकई संयम नह रहा। म उसको कमर से पकड़ कर धीरे धीरे अपनी
तरफ ख चा, और उसके दोन हाथ को उसके लहँगे से हटाने का यास करने लगा। उसके
हाथ ठ े हो गए थे। यह सब होना तो आज क रात अव य ावी था – यह उसको भी
मालूम था, और मुझे भी! ले कन इस सं ान म भी सब कुछ नया था। म तो खेला खाया
त ,ँ फर भी सब कुछ नया सा लग रहा था। एकदम से उसका हाथ अपने लहँगे के
सरे से हट गया। मुझे उ मीद थी क गु वाकषण वयं ही उसको नीचे सरका दे गा –
ले कन हो सकता है क उसका नाड़ा पूरी तरह से ढ ला नह आ था, या यह क लहंगा
उसक कमर के बल पर अटक गया हो!
मने धीरे से उसके नत ब पर चूम लया, और अपनी जीभ को उसक दरार पर फराया।
मजा आया और रोमांच भी! अ नी सच म एक जवान कली थी, और उस पर अभी
जवानी का पूरा रंग चढ़ना बाक था। ले कन फर भी उसके शरीर म रस भरा आ था –
जैसे फूल म सार भरा आ होता है! वैसा ही! उस रस का मद मुझ पर चढ़ गया था – मेरे
हाथ से उसका लहँगा छू ट गया।
“कठोर पीन तन भारन ा सुम यमा चंचल खंजना ी, हेम तकाले र मता न येन, वृथा गतं
त य नर य जी वतम्..”
अ नी अभी मुझसे इस ोक का अथ पूछने क हालत म नह थी, इस लए मने खुद ही
बताना शु कर दया, “हेमंत ऋतु म, ठोस और भरे ए तन के भार से झुक ई, पतली
कमर वाली, चंचल और धारदार चाकू जैसी नैन वाली ी से जस कसी पु ष ने संभोग
नह कया, उसका जीवन थ ही चला गया..”
“त..तो क रए न...”
कह कर मने उसके हाथ म अपना लग पकड़ा दया। र चाप के कारण लग पूरी तरह से
तना आ था, और तप रहा था। वो तो जैस जड़ हो गई – बस लग को हाथ म पकडे ए
हत भ सी दे ख रही थी। मने उसके हाथ को अपने लग पर पीछे क तरफ सरकाया। ऐसा
करने से उसक चमड़ी पीछे क तरफ खच गयी, और लाल गुलाबी सुपाड़ा भी उसको
दखने लगा। जो वीय नकला आ था, उसका कुछ शेष अभी भी बूंद के प म बाहर
नकल रहा था।
“जो आ ा दे वी!” कह कर मने अपने दोन हाथ जोड़ लए। अ नी मु कुरा द । प त-प नी
म सबसे पहला मह वपूण काय है उन दोन का संयोग! दोन का मलन! अब हम दोन के
मन क यही इ ा थी।
इतना इशारा काफ था। हम दोन ही कुछ दे र म पागल क तरह एक सरे के शरीर के
अंग को सहला, छू और मसल रहे थे। मने पुनः अपनी जीभ उसके एक तन के चूचक पर
फराया – अ नी अब नल हो कर जोर से सी कार करने लगी। अगर बाहर कोई जाग
रहा होगा, तो उसको अ नी क कामो ेजक आवाज सुनाई दे रही ह गी! वैसे इससे या
फक पड़ता है? अगर यह सब आज नह , तो कब होगा? उसने मेरा लग पकड़ लया, और
उसको सहलाने लगी।
मने उसक टाँगे कुछ फैला जससे उसक यो न का अ भगम कुछ आसान हो सके।
उसक यो न तो अब तक न जाने कतना सारा रस नकाल चुक थी – वहां का गीलापन
साफ़ दख रहा था। इसके बाद म उसक मालपुए के सामान मीठ , रसीली और मुलायम
यो न का रसा वादन करने लगा। मने अपनी जीभ उसक नम गम यो न म वेश कराया –
अ नी कसी जानवर क तरह भराती गुराती ई कराह नकालने लगी। मने अपनी जीभ
को उसम ज द ज द अंदर बाहर कर के उसके आगे आने वाले ो ाम के बारे म अवगत
कराया। अ नी तो आज जैसे वासना पी परमाणु बम के भ डार पर बैठ ई थी – एक
के बाद एक चरमो कष ा त कर रही थी। कुछ ही दे र म अनवरत ज ा-मैथुन के बाद,
अ नी पुनः कांपते, कराहते आह भरने लगी। मुझे अपने मुँह म पुनः गम व का अनुभव
आ। म समझ गया क अ नी फर से ख लत हो गई है।
उसको मने कुछ दे र आराम करने दया। मुझे खुद पर भी नयं ण नह था। इतना दे र भला
कब तक चलता? मेरे अ दर का लावा भी बाहर नकलने को उ त था। म अंततः उसके
ऊपर आ गया। मने लग को उसक यो न मुझ पर टकाया और एक ध के से उसक यो न
म वेश करा दया। अ नी क कोरी, कुँवारी यो न ब त छोट भी थी। ध के के कारण
मेरा करीब दो इंच लग उसक यो न म वेश कर गया – ले कन उधर उसक चीख नकल
पड़ी। गलती यह ई क मने उसके ह ठ पर अपने ह ठ नह रखे। अब तक तो सभी को
मालूम हो गया होगा, क अ नी अब लड़क नह रही!
मने उसको दो तीन चु बन दए, और उसके गाल को सहलाते ए बोला, “शाबाश अ नी!
बस.. अब हो गया! वेलकम टू वुमन ड! बस.. कुछ ही दे र म सब ठ क हो जाएगा! ओके
हनी? अभी मज़ा आने लगेगा! बाक अ दर जाने दो! ड ट रे स ट! अब और तकलीफ़ नह
होगी। ठ क है?”
अ नी ने सर हला कर जवाब दया।
“ बाप रे! अआआपने इसक शकल बगाड़ द ! उफ़...” मने लग को बाहर ख चा।
बात तो सही थी – उसक छोट सी यो न म मेरा मोटा सा लग ऐसे ही लग रहा था! उसक
यो न का वा ह सा इतना खच गया था, क वो अभी एक पतले छ ले के समान लग
रहा था। इसम भला या आनंद आएगा कसी को? बेचारी को कतना दद हो रहा होगा!!
“बोल दोगी, तो जोश आएगा मुझ!े और फर हम दोन को ही मज़ा आएगा.. बोल न!”
“बोल न या क ँ ?”
“ठु का..ई”
“तुमको दद तो नह आ न?”
ये आ खरी वाली ाथना पर मेरा लग तुरंत तैयार हो गया। म मु कुराया – अगर ाथनाएँ
इसी तरह से तुरंत वीकार हो जाएँ, तो या बात है! मन के कह कसी कोने म एक बार
यह आवाज़ भी नकली क काश या भी आ जाय! ले कन या कभी आशा पर ही
नभर कोई कामना पूरी होती है भला? मने एक गहरी साँस छोड़ी – या के साथ साथ ही
हमारे अन गनत मधु- मलन क कई सारी छ वयाँ मेरे आँख के सामने एक चल च के
समान चलने लग ! अ नी को भोगने के लए म एक बार पुनः तैयार था।
“ कस भगवान् क ?”
“अरे...! सबक !”
‘ओ हो! जब लड़ कयाँ सी रयस होती है तो कुछ न कुछ गड़बड़ होता है..’ मने सोचा।
“हाँ!”
“तो फर ॉ मस क रए!”
मेरे ऐसा बोलते ही अ नी एकदम से खुश हो गई। उसने मुझे ब तर पर एक तरफ बैठने
को कहा। बाद म मने यान दया क उसने मुझे पूव क दशा के स मुख बैठाया था। उसने
कमरे क खड़क और परदे भी खोल दए। उस समय कोई साढ़े पांच हो रहे ह गे। बाहर
अभी भी अँधेरा था – इस लए अ नी ने कमरे क लाइट भी जला द ।
“बैठे र हएगा... बस दो मनट..” कह कर वो ऐसे नंगी ही, दबे पांव कमरे से बाहर नकल
गई। घर म और लोग भी थे... ले कन, अभी तो सभी सो रहे ह गे! म सोच रहा था क या
करने वाली है! खैर, मेरे सोचते सोचते, जैसा क उसने कहा था, सफ दो मनट म वापस
आ गयी। उसके हाथ म एक छोट थाली थी – उसमे आरती का सामान था – दया, च दन,
फूल इ या द! म भ च क था!
“आप ही मेरे भगवान् ह.. मेरे सब कुछ!” कह कर वो मेरे सामने घुटन के बल बैठ गई और
झुक कर मेरे पैर पर अपना सर टका दया! मुझे तो जैसे काटो खून नह ! ये या कर रही
है! म इस लायक नह !ँ ले कन म कुछ भी कहने और करने क अव ा म नह था।
अ नी एक अलग ही नया म थी – ऐसा लग रहा था!
मने अ नी को अपने पास बुला कर अपनी जांघ पर बैठाया, और यार से उसके गाल को
सहलाते ए कहा,
“और एक बात.. अगर तुम मुझे अपना भगवान मानती हो, तो म भी तुमको अपना दे वी
मानता !ँ ” कह कर मने उसके माथे को चूम लया, और नीचे झुक कर उसके पैर को छू
कर अपने माथे पर लगा लया। अ नी मेरी इस हरकत पर ससक उठ ,
अ नी कुछ दे र तक चुप हो कर मुझे दे खती रही। मुझे लगा क वो कुछ कहना चाहती है।
उसने हामी म सर हलाते ए कहा, “हाँ.. म ‘इसको’ एक बार ठ क से दे ख लू?ं ” उसने मेरे
लग क तरफ इशारा कया।
वो मु कुराती ई, लगभग उछल कर मेरी गोद से नीचे उतरी, और उ साह के साथ मेरे लग
को अपने हाथ म लेकर उसका नकटता से नरी ण करने लगी। इस तरह से छू ने-टटोलने
से वो कुछ ही दे र म पुनः तं भत हो गया।
“न बाबा.. जसके हाथ म ऐसा वाला हो, उसको कसी और ‘के’ क या ज़ रत?”
“भगवान करे क ऐसा ही हो!” फर कुछ क कर, “मुझे तो लगता है.. जब आपने ‘ये’
पूरा अ दर डाल दया था, तो मेरा वज़न कम से कम एक कलो तो बढ़ ही गया होगा!”
“आपके यहाँ (उसने श ा के नीचे इशारा कया) और यहाँ (मेरे दा हने वृषण क तरफ
इशारा कया) पर तल है...”
“जी हाँ.. मने तो जब पहली ही बार आपको दे खा था, तभी आप मुझे ब त पसंद आ गए
थे!”
“ या कहती? म तो छोट थी, और आपको द द पसंद थी! तो मने सोचा क आपके जैसा
ही कोई चा हए मुझको! ले कन फर द द के जाने के बाद...”
“आपसे एक बात क ?ँ ”
“मुझे मालूम है क तुम या कहना चाह रही हो! और मुझे ख़ुशी है क तुम मुझसे यह सब
कह रही हो! मुझे भी तुमसे ेम है... और म तु हारी ब त इ ज़त करता ँ। इस लए ही नह
क तुम मेरी प नी हो.. ब क इस लए भी क तुम एक ब त अ इंसान हो, और म
तु हारी सेवा कर उ भर कज़दार र ँगा।“
“ओओओ.. मेरी यारी बीवी नाराज़ हो गई? इसको कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ... म..
सुहागरात म तो बीवी को मनाने का बस एक ही तरीका है..”
“वो या?”
“जानेमन! तुमको मालूम है क तु हारी यो न का वाद कतना मीठा मीठा है? इसम शहद
डाल दया था या?”
“सच म?”
“हाँ!”
"मुझे नंगी दे खकर आपको या कोई ए ा खुशी मलेगी?” अ नी ने मुझे छे ड़ा, “आपने
पहले तो द द , और फर आयशा - उनको तो लगभग हर रोज़ ही नंगी दे खा होगा!"
"हाँ! और तुम भी तो मेरी प नी हो! वो कोई बौड़म ही होगा, जो तुम जैसी प नी को नंगा न
रखना चाहे! खुशी तो मलेगी ही, और शारी रक संतु भी मलेगी मुझे! या से भी
मलती थी, और आयशा से भी! और अब, तुमको दे ख कर तुमसे भी वही खुशी पाना
चाहता ँ।"
"हाँ"
“अरे! स ता या? हर बार तु हारा वज़न एक कलो बढाऊँगा न!” मने भी उसको छे ड़ा।
"अ ा! तो बीवी क नुमाइश लगने वाली है! और अगर दे खने वालो म से कसी ने ऐसा ही
कुछ करने क सोची तो?”
“ध ! गंदे!”
“अरे सुन तो ले पूरा... और अगर औरत ई, तो उसको तु हारी नतंब चाटने को क ँगा,
और म तु हारी यो न म डालूँगा!
“आप इतनी ग द बाते य कर रहे हो?” अ नी ने मेरे चेहरे हो अपनी हथे लय म भरते
ये कहा।
मने उसका चेहरा अपने हाथ म भरकर कहा, “अ नी, तुम ब त अ हो!”
“हाँ... मुझे पता है क म य अ !ँ मने नंगी रहने का वायदा कया है, इसी लए न?”
“हाँ...वो भी है।“
"कामुक! और टे ट !”
“इनको पीने का लान है अब!”, मने कहा, और उसके एक चूचक को अपने मुँह म ले
लया!
“आह! हाँ! आ ह.. आराम से जानू!!” अ नी अपने सीने को आगे क तरफ ठे लते ए
बोली।
मने जी भर कर और जोश म उसके चूचक चूसना शु कर दया। अ नी आह भरने
लगी।
"हा हा! अ ा जी... आपके इरादे बड़े नेक ह! ले कन इसके लए तो आपको मुझे े नट
करना पड़ेगा।" अ नी हँसते ए बोली।
“ या?”
अ नी ने अपने दोन हाथ से मेरे लग को पकड़ा और सहलाने लगी। उसी समय मने भी
उसको पुनः चूमना शु कर दया और ब तर पर लटा दया।
"ज़रा और फैलाओ जानेमन.. अपनी मालपुए जैस यो न थोड़ा ढं ग से दखाओ मुझ!े ” मने
उसक यो न पर अपनी नगाह जमाये ये कहा।
"अभी ठ क से दख रही है?“ अ नी ने टांग को और फैलाते ए पूछा।
“अब और कतनी दे र तक इसे दे खते रहगे? मुझे माँ बनाने का इंतजाम कब करगे?”
अ नी ने हँसते ये पूछा।
“ को.. बताता !ँ ”
मने झटपट अपना कैमरा नकला, और दनादन कई सारी त वीर उतार ल । उसके बाद मने
अ नी क कमर को आ लगन म लेकर उसक ना भ, और फर उसक कमर को करधनी
के ऊपर से चूमा। फर खड़े हो कर उसके दोन चूचक को चूमा, और अंत म उसके ह ठ
पर एक चु बन दया।
अ नी उ र म सफ मु कुरा द !!
मने आँख मारते ए उसको उसी के अंदाज़ म छे ड़ा, “आजा तू भी.. दे खते ह, मेरे संग का
या असर होता है तुझ पर!”
“तो या? तू भी बहती गंगा म हाथ धो लेना.. लगे हाथ तेरी यो न क भी कुटाई हो
जाएगी!”
“ओये होए! नई नई बीवी, वो भी नंगी नंगी, आपके पहलू म बैठ ई है, और आपक ग द
नज़र उसक सहेली पर है!”
“नह ! मुझे कुछ मत बताओ...” वो भागी, “आप दोन ठु को-ठु काओ.. इसम मेरा या
काम? म य कबाब म ह ी बनू?ँ ” यह कहते ए वो खल खलाती ई कमरे से भाग खड़ी
ई। इस पूरे वातालाप के दौरान अ नी पहले तो सफ मु कुराती रही, ले कन बाद म
हँसते हँसते दोहरी हो गई।
“हंसी नकालूँ और?” मने अपनी आवाज़ म नकली ू रता मलाते आ कहा। अ नी
कुछ सहम गई।
“ये भी कैसे मु कुराएंगे? आपका अंग लेने म तो ये पूरी तरह से खुल जाते ह!”
“अ ा जी?”
अब तक मेरी न कर उतर चुक थी। या न अब हम दोनो ही नंगे हो चुके थे। मने अपनी
प नी को जी भर कर दे खा – वो भी कभी मुझ,े तो कभी मेरे लग को दे ख रही थी। वो सोचे
बना न रह सक क द द को कैसा लगता रहा होगा जब वो इस लग को अपने अंदर लेती
थ ! इस बार शु आत अ नी ने करी। उसने मेरे लग को अपनी हथे लय म लेकर
सहलाने का उप म शु कया। उसक नरम गरम हथे लय का श पा कर मेरा लग भी
तुरंत ही पूण त न क त म आ गया। मने भी उसके तन को सहलाना और
मसलना शु कर दया।
“ओह अ नी! तुम नह जानती क म कतना खुश !ँ तुमको पाकर मुझे अपने मन क
खोई ई खुशी मल गई है! और.. जीने का सहारा भी!”
“हाँ जीजू.. आपक आधी घरवाली!” कह कर उसने मुझे जीभ दखा कर चढाया।
“डेढ़ घरवा लयाँ ह आपक ... डेढ़!! वैसे आप चता न क रए – ये व डयो म इंटरनेट पर
नह डालूँगी। ब क आप दोन को मेरी तरफ से ग ट ँ गी। .. और अपने पास भी रखूंगी।
जब भी मेरे कामुक से जीजू क याद आएगी, इसको दे ख कर खुश हो लया क ं गी..।“
उसने नहायत ही नाटक य अंदाज म यह बात कही। मुझे भी हंसी आये बना न रही।
“ या कह रही है तू कमीनी?”
“तू कमीनी है.. यहाँ हम दोन नंगे पड़े ह, और तू पूरे कपड़ म खड़ी है..”
अ नी के कुछ कहने से पहले ही आरती बोली, “कोई कामुक नह ह.. जैसा सभी का
होता है, वैसा ही है!”
मने कहा, “तु हारा भी ऐसा ही है या?” मने अ नी के तन क तरफ इशारा कया।
“आरती, डरो मत! म कुछ नह क ं गा.. अ नी भी तो यही ह न..!” मने उसको सां वना
द।
“तेरी तो..”
“ या? म उतावला..!”
“कहा नह था तून?े ”
“न बाबा! तू ही पला ध वूध... ये सब मेरे अ ण क अमानत ह... ले कन... अपने यारे
जीजू को भी कुछ न कुछ तो ँ गी ही!”
कोई पं ह मनट बाद डॉ टर स हा, बतीस नंबर क पेशट क जांच कर रहे थे। न ज़ और
आँख इ या द दे खते ए वो मरीज़ से पूछते जा रहे थे,
“अ ताल म? य ?”
“नाम? मेरा नाम.. या? मेरा नाम या है?” मरीज़ को कुछ समझ नह आ रहा था।
“कोई बात नह .. कोई बात नह .. आराम से!” कहते ए डॉ टर ने अपने नोट पैड म कुछ
लख लया, और फर नी लमा से कहा, “इनके वाइटल टै ट्स सब ठ क ह.. ले कन, इतने
महीने कोमा म रहने के कारण लगता है याददा त स ेस हो गयी है। कोई बात नह .. तीन
दन ऑ जरवेशन पर रखते ह – अगर हालत ठ क रही तो पेशट को रलीव कर दे सकते
ह.. मेमोरी गेन म टाइम लग सकता है और उसके लए हॉ टल म रहने क ज़ रत नह !
इनके घर इ ला कर द ?”
“हाँ! सतीश जी... म नी लमा बोल रही ँ... नस नी लमा!” टे लीफोन पर नी लमा कह रही
थी,
“हाँ हाँ.. अ ताल से.. आपके लए खुश खबरी है.. हाँ! आपक प नी को होश आ गया
है.. हाँ हाँ! ... आप बलकुल आ सकते ह दे खने उसको! या नाम बताया था आपने
उसका? ... समा? हाँ? ओके! उनको ए चुअली फलहाल याद नह आ रहा है! कोमा का
असर लगता है.. आप आ जाइए, फर आराम से बात कर लगे.. ओके .. ओके!”
सतीश कोई इ क स बाइस साल का गढ़वाली युवक था। उसक इले ॉ न स रपेयर क
कान थी – कान या थी, बस महीने का खच नकल जाता था। पो लटे क नक क पढाई
करते ही उसने अपना खेत बेच दया, और यह काम करने लगा। माँ बाप उसके थे नह ,
इस लए कसी ने रोका भी नह ! मौज से कट रही थी। ले कन आमदनी अ धक तो नह
थी। रहने सहने का काम हो जाता था। बाक लोग क तरह उसको भी यह मन होने लगा
था क तनहा रात म वो अकेला न सोये! यूँ ही अकेले, ठ े ब तर म पड़े रहने से अ ा
था क कोई एक गरम शरीर उसके बगल म हो, जसके संग वो साहचय कर सके! ऐसे ही
नाहक अपने वीय को वो कब तक नाली म बहाता रहेगा?
महीनो पहले वो केदारनाथ जी के दशन के लए गया था यह म त मांगने क उसको एक
सु दर सी प नी मल जाय। प नी व नी का तो पता नह , ले कन वो उस ाकृ तक आपदा
क चपेट म आ गया। जैसे तैसे वो जान बचा कर भागा। चोट ब त सी आ , ले कन फर
भी वो न जाने कैसे पहाड़ क तरफ ऊपर क ओर प ँच गया। र ते म उसने न जाने कतने
ही अभाग के शव को दे खा। हर शव उसको यही याद दलाता क अंत म उसक भी यही
दशा होने वाली थी, ले कन फर भी उसने ह मत न हारी।
खैर, दोपहर के नकट म ट वी लगाए चैनल इधर उधर कर रहा था। ट वी दे खने क आदत
नह थी, ले कन समय काटने के लए कुछ तो करना ही था। सैकड़ चैनल तीन चार बार
इधर उधर करने के बाद नेशनल जयो ा फक चैनल पर रोक दया – रोक या दया, मेरी
उं ग लयाँ वतः क ग । सामने ट वी न पर उ राखंड ासद क एक डा यूम चल
रही थी। वो ासद मेरे जीवन का सबसे बड़ा घाव थी – मेरे हाथ खुद ही क गए, और म
दे खने लगा। दमाग कह और ही मंडरा रहा था। डा यूम म या कहा जा रहा था, मुझे
सुनाई नह दे रहा था – मेरा म त क वयं ही सामने के च म कभी तो अथाह जलरा श
क गड़गड़ जैसी आवाज़ भरता जा रहा था, तो कभी चो टल य क कराह क
आवाज़! मन म तो आ क ट वी बंद कर ं – ले कन वो कहते ह न, आदमी को अपने
व से दो-चार होना चा हए। और कुछ न हो, कम से कम तस ली तो मल ही जाती है।
उस अ ताल के एक ब तर पर या थी!!
म उ लु क भां त कभी उसक तरफ तो कभी कॉफ़ मग क तरफ दे ख रहा था। उसने
फर दोहराया, “कॉफ़ ..”
उसने कुछ कहा नह । बस मेरी बगल आकर मुझसे सट कर बैठ गयी। हम दोन ही शा त
से कॉफ़ पीने लगे। कॉफ़ समा त होने के बाद अ नी ने अपना और मेरा मग सामने क
टे बल पर रखा, और वापस आकर मेरी गोद म इस तरह बैठ गयी जससे क उसक दोन
टाँगे मेरे इधर उधर रह। गोद म बैठे बैठे ही उसने अपनी पहनी ई ट -शट उतार फक ।
अ दर कुछ भी नह पहना आ था – कोमल पहा ड़य के मा नद उसके सु दर तन तुरंत
ही वतं हो कर मेरे स मुख हो गए।
तो वो कुछ बोली नह , तो मने उसको अपनी गोद से उठाया और सामने खड़ा कर दया।
उसके बाद मने खुद उठा और अपना पजामा उतार दया और फर लगे हाथ अ नी का
पजामा भी उसके शरीर से अलग कर दया। उसने शम से अपनी आँख बंद कर ली।
अ नी ने उस समय काले रंग क च ी पहनी ई थी। मने दे खा क इतनी दे र तक लग
घसने के कारण च ी का नरम नरम कपड़ा उसके नत ब क दरार म अ दर घुस गया था।
मने जब उसके नतंबो को सहलाया, वो एकदम से कांप गयी। मने उसके नतंबो को कुछ
दे र तक सहला कर तीन चार बार दबाया और उसको कमर से ख च के फर से अपने लग
पर बैठा लया। पहली ही बार क तरह इस बार भी अ नी अपनी कमर हला रही थी। म
उसी के ताल म उसक नंगी जांघ को सहलाने लगा। एकदम चकनी जाँघ – म खन के
जैसी! कुछ दे र ऐसा ही करने के बाद मने एकदम से उसक च ी को पकड़ा और घुटन
तक ख च दया। मने एक हाथ से अपने लग को साधा, और सरे से अ नी को फर से
अपनी गोद म बैठा लया। उस समय मेरे लग के उसक न न गुदा के श से मुझे मन म
आया क य न गुदा मैथुन कया जाय? एक अजीब सा वासना पूण अहसास था वो। मने
अपने हाथ से उसके नतंबो को चौड़ा कया और उनके म य अपने लग को बैठाया।
“हाँ.. ले कन आज नह ! लीज!”
“ओके” मने कहा और उसको लटा कर, अपना मुँह उसक यो न पर रख दया। लोग
उ े जत यो न को ‘पाव रोट ’ क उपमा दे ते ह.. मुझे यह पसंद नह आता। मुझे उ े जत
यो न को मालपुए क उपमा दे नी अ लगती है। मालपुआ रसीला, और मीठा होता है।
अ नी क यो न भी उसी तरह क हो रही थी। अब मेरा भी लग उ ेजना के बल को
सहन नह कर पा रहा था। ले कन फर भी फोरे ले तो करना होता ही है न! म अपनी जीभ
उसक यो न के भीता डाल कर अ दर के वाद और वातावरण को महसूस कर रहा था,
और उं गली से उसके भगनासे को छे ड़ रहा था। अ नी उस शाम पहली बार ख लत ई।
उसक आवाज अब कामुक ससका रय म बदल गई थी।
म फर उसक टाँग के बीच आ गया। मने उसक टाँग उठा कर अपने कंध पर रख ली
और अपने लग को उसक यो न के मुहाने पर टका दया। आप लोग उस य क
क पना कर सकते ह। अ नी क कुछ ऐसी हालत थी उसक जांघ मुड़ कर लगभग
ै तज हो गयी थ , और यो न लगभग ऊ व! मने तेजी से अपना लग उसक यो न म
डालना शु कर दया। मने गु व के भाव से सारा काम ज द हो गया। और फर वही
चरंतन चली आ रही या करने लगा। अ नी भी म त हो कर अपनी ठु काई का आनंद
लेने लगी । मेरे ह ठ उसके मुँह और ह ठ को चूस रहे थे। करीब पं ह मनट के बाद मने
अपना वीय अ नी के अ दर ही छोड़ दया।
“ समा... रर रानी..” सतीश ने अटकते ए कहा, “तु तुम.. नहा लो.. अगर चाहो तो..”
जब समा नहा चुक , तो उसने पाया क नहा कर पहनने वाले कपडे तो वो लाई ही नह ।
कुछ असमंजस के बाद उसने अपने प त को आवाज़ लगाई,
“सु नए..?”
“मेरे कपडे..”
“बाहर आ जाओ..” उसने कहा, फर अपनी शैतानी क म के अंतगत उसने कहा, “तुम
वैसे भी घर म ऐसे ही रहती हो..”
‘ओह भु! यह तेरी कैसी कलाकृ त है! इतनी सु दर! कैसे सु दर तन!
सतीश यं वत उसक तरफ चल दया। समा वही रखे पीठे पर बैठ गई।
“क या?”
‘ध तेरे क ..’ वो नंगा होते ही लगता है सपना दे खने लगा था! एक पल को वो हाथ से
अपने छु ू को छु पाने को आ, ले कन फर क गया – बीवी से या छु पाना?
“द जए न..”
‘ओये! ये या हो गया..’
फर कुछ दे र बाद जब दरवाज़ा खुला, तो समा अपने सीने पर अंगौछा लपेटे बाहर
नकली। अंगौछा गीला था, और उसके शरीर पर पूरी तरह से लपटा आ था। और चूं क
उसक ल बाई और चौड़ाई ब त बड़ी नह थी, इस लए वो अंगौछा समा का शरीर छु पा
कम और दखा अ धक रहा था। सतीश को वह य ब त पसंद आया। समा के उस प
का अनुमोदन , उसके छु ू ने अपना छु हारे वाला प छोड़ कर, भ ी जैसा प धारण
कर के कया। समा ने दे खा क उसके प त का लग उसक म यमा उं गली के जतना ही
ल बा, और बस मु कल से कोई दो गुना मोटा था।
“अब द जए...”
“नह .. आपको लग सकता है क म कैसी फालतू बात कह रही ँ, और पूछ रही .ँ ..”
“इ क स साल..”
“और या!”
“आप गु सा य हो गए? मने कब मना कया इस बात से? बलकुल कया था आपने! वो
नस बता रही थ .. क हमारा ब ा..” कहते कहते समा क आँख म पानी आ गया।
“नह ! आप माफ़ मत पू छए... प त का आदर करना चा हए.. मने गलती करी है.. आप
मुझे माफ़ कर द जए!”
“ या आ?”
“कपड़े पहनने ह..”
“आपके सामने?”
“हाँ! य या हो गया?”
“ध झूठे..”
“अरे म झूठ य क ँगा? तुम तो मुझे दे खते ही अपना कुरता उतारने लगती हो!”
“अ ा जी! वो य भला?”
“सच म?”
एक पल को सतीश को लगा जैसे सपने वाली बात एकदम स च हो गयी! अगर सपने
इतनी ज द सच होते ह, तो वो और दे खेगा! यह छलकता आ सौ दय, ऐसा मीठा
आमं ण! सतीश समा के पास प ंचा, और उसके दा हने तन के एक तना को अपने
मुँह म ले कर चूसने लगा और सरे तन को सहलाने लगा! जा हर सी बात है क एक
वय क आदमी, तन को अलग तरीके से चूसेगा - ख़ास तौर से तब, जब क उसको अपने
जीवन म पहली बार ऐसे सु दर तन दे खने और भोगने को मले ह !
आज समा पहली बार कोमा के भाव से पूरी तरह से बाहर आ कर सो रही थी। न द
ब त गहरी आई – और न द म बड़े ही व च से सपने भी! सपनो ने ऐसे ऐसे ान और
ऐसे व तु के य थे, जो उसने अपने जीवन म पहले कभी भी नह दे खे थे – अथाह
समु , रेतीला बीच, समु क गहराइयाँ, ब त ही घना बसा शहर और उसके अन गनत
य, एक आलीशान सा घर.... और इन सभी य म प रल त होता एक पु ष! और
सफ यही नह ... वह पु ष उसके सपनो म सु प से दख रहा था – कभी इस वेश
म, तो कभी कसी और... और तो और कभी कभी न न भी! दो तीन य तो उसने उस
पु ष के साथ सहवास के भी दे खे! कौन है वो? उसने सपने म ही अपने दमाग पर जोर
डाला! ले कन न ा ने ववश कर के रखा आ था। और भी लोग दखे – एक लड़क ..
“अ नी!” उसके दमाग म क धा!
उसके मन म एक बात उठ क उन दोन क पहली रात कैसी रही होगी? कैसे सतीश ने
उसके कपड़े उतारे ह गे, और कैसे उसके साथ सहवास कया होगा!
“अ ा..” समा ने कुछ बुझे ए वर म कहा। अकेला रहना भला कसको पसंद आएगा?
“कब आयगे वापस?”
“शाम को..”
“ओह!”
“और?”
“पहले र खए तो सही..”
‘ब ढ़या!’
सतीश अपनी पट उतार रहा था। समा दे ख रही थी क आगे या होने वाला है। कुछ ही
दे र म उसका भ ी के आकर का श मु हो गया। वाकई अभूतपूव घटना थी क अभी
तक उसके लग ने वीय नह छोड़ दया था। सतीश ने समा का हाथ पकड़ कर अपने छु ू
पर रख दया। समा ने अपनी उं ग लयाँ उसके इद गद लपेट ल ।
सतीश गव से मु कुराया।
उं गली पूरी अ दर जाने के बाद उसने धीरे धीरे ही उसको बाहर नकाला और वापस अ दर
बाहर करने लगा। उसी ताल म समा भी अपने नत ब हलके हलके उछालने लगी।
सतीश समा के पास आया, और उसके कान म फुसफुसाते ए बोला, “इसको कहते ह
उं गल ठु काई..” और उं गली अ दर बाहर करने का म करते ए वो उसके तन भी चूसने
लगा। समा के अ दर का वार ब त दन से उठा आ था। सतीश ने उं गली डाल कर बस
जैसे कसी बाँध को तोड़ दया। दो मनट के भीतर ही समा यौन उ ेजना के चरमो कष
पर प ँच गयी... उसका शरीर कसी अ नयं त यं जैसे क त होने लगा।
सतीश बोला, “स हाल कर रानी! हाथ धो लेना पहले.. कह मेरे पानी से सना हाथ अपनी
यो न पर लगा लया तो गा भन हो जाओगी.. समझी?”
सतीश अपनी तरफ से पूरा यास कर रहा था क समा के बारे म उसके कसी पडोसी को
न पता चले। इस लए उसने समा को जैसी जैसी हदायद द थ , उनको सुन कर वो खुद
भी अचरज म पड़ गयी। वो अगर इस घर क माल कन थी, तो य नही वो छत पर जा
सकती थी? य नह वो अपने कपड़े धूप म सुखा सकती थी? य नह वो घर म बना
खट-पट के रह सकती थी.. इ या द! और सबसे बड़ी बात क सतीश घर के बाहर ताला
लगा कर य जाय? अगर उसको घर से बाहर नकलने क ज़ रत पड़ी तो? ले कन उसको
कोई उ र नह मला। समा ने भी कोई अ धक तवाद नह कया – कुछ तो सोचा होगा
सतीश ने!
कुछ ही दे र म समा पूरी तरह से नंगी हो गई, और सतीश उसको अपनी गोद म उठा कर
ब तर तक ले गया। ब तर पर लटा कर उसने समा क टाँग मोड़ कर, उसके घुटने उसके
सीने से लगा दए। इस अव ा म समा क यो न क दोन फांक पूरी तरह से खुल ग ,
और उनके बीच म से यो न का गुलाबी ह सा झाँकने लगा। समा को अपने गु तांग का
ऐसा नल दशन होते दे ख कर शम भी ब त आई और रोमांच भी! उसक अव ा
ऐसी थी क सतीश उसक यो न के पूरा भूगोल, और यहाँ तक क उसक गुदा को भी खूब
अ तरह से दे ख सकता था।
दो तीन बार जीभ फराने के बाद, सतीश सहज हो गया और त बयत से समा क यो न
चाटने लगा। उसको यो न क संरचना का कोई ख़ास ान नह था – उसको नह मालूम था
क बस थोड़ा ऊपर चाटने से उसक ‘ े मका’ ऐसी पागल हो जायेगी क उसने नाम क
माला अपने उ भर ज ती रहेगी। खैर, इस समय वो जो कुछ कर रहा था, वही समा के
लए काफ भारी होता जा रहा था। दोन के सहवास का पहला खलन समा को बुरी तरह
क त कर गया।
सतीश अनुभवहीन था, यह साफ़ दख रहा था। कसी लड़क से सहवास का यह पहला
अवसर था। उसको लगता था क यो न पर लग टका कर बस ध का लगा दे ने से काम हो
जाएगा। उसने वैसा ही कया – ले कन बार बार उसका लग फसल जा रहा था। अंत म
समा ने ही उसक मदद करी – उसने अपनी यो न के ह ठ को उँ ग लय क सहायता से
ह का सा फैलाया, और अपने हाथ से पकड़ कर सतीश के लग को वेश कराने म मदद
करी। उसका लग गम था, और साफ़ लग रहा था क बेहद उतावला हो रहा था। चाहे कुछ
भी हो – हर ी अपने ेमी को – वो चाहे प त के प म हो, या सफ ेमी के प म –
अपने लए ऐसे उतावला होते दे ख कर ख़ुशी से फूली नह समाएगी।
“आआआआआआ ह…”
“ समा समा! मेरी यारी! …आई लव यू… तू मेरी जान है! जान!”
इसके बाद होता दोन के बीच सहवास! भले ही उनक यौन या पांच मनट के आस
पास चलती, सतीश के लए एक ब त बड़ी उपल थी। उधर समा इस बात से संतु थी
क सतीश उसक सेवा और दे खभाल म कोई कसर नह रखता था। अपनी तरफ से खूब
ेम उस पर लुटाता था। पछले दो दन म उन दोन ने तीन बार सहवास कया था – समा
को हर बार आनंद आया था। येक सहवास से एक तरीके से उसको मान सक शा त
मल जाती थी। कुछ तो होता था, क संसग के कुछ ही दे र बाद समा आराम क अव ा
म आ जाती थी – और कब सो जाती थी, उसको खुद ही नह मालूम पड़ता।
बस दो बात थ जनके कारण उसको खटका लगा रहता – एक तो यह क उसके सपन
का पु ष हर बार दखता था। इससे समा को व ास हो गया क वो कोई मान सक
क पना नह था – ब क उसके अतीत का एक ह सा था। कब और कैसे, उसको समझ
नह आता। ले कन जस कार से वो दोन सपन म नभ क हो कर स कट रहते थे,
उससे न जाने य समा को लगता जा रहा था क समा उस पु ष क प नी रही होगी।
हर रोज़ क तरह सतीश घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला डाल कर काम पर चला गया।
जाने से पहले उसने दै नक सहवास क खुराक लेनी न भूली। सतीश के जाने के कोई पं ह
मनट के बाद समा ने कपडे पहने, और दरवाज़े पर घर के अ दर से द तक द । पहले धीरे
धीरे, और फर तेज़ से। कसी ने कोई जवाब नह दया।
कोई पं ह बीस मनट तक ऐसे ही खटखटाने के बाद समा बुरी तरह से नराश हो गयी,
और नरी हताशा, खीझ और गु से म आ कर दरवाज़े को पीटने लगी। अंत म बाहर से
आवाज़ आई,
“कौन है अ दर?”
“म .ँ . समा!”
“म यहाँ पड़ोस म रहता .ँ . मेरा नाम रामलाल है। तुम ब त दे र से दरवाज़ा पीट रही हो।
यहाँ मेरे साथ सात आठ और लोग ह.. तुम घबराओ मत.. मेरी बात का जवाब दो.. कौन हो
तुम?”
“जी.. म समा .ँ .”
“ कसक प नी?” रामलाल ने जोर से पूछा, जैसे उसको सुनाई न दया हो।
“सतीश क प नी?”
“जी!”
“जी.. ले कन..”
“दे खो बेट , अगर बाहर आना चाहती हो, तो बताओ.. हम तब ही कुछ कर पाएंगे।”
“जी.. म आना चाहती .ँ .”
कुछ दे र के बाद दरवाज़े पर जोर क खट-पट ई.. फर कुछ टू टने क आवाज़ आई। नह
दरवाज़ा नह , बस ताला ही टू टा था। दरवाज़ा खुल गया। समा को घोर आ य आ जब
उसने दे खा क घर के बाहर कम से कम बीस प ीस लोग क भीड़ लगी ई थी। वो ब त
डर गयी, और अपने आप म ही समट कर घर के कोने म बैठ गई।
इस बात का या उ र दे ती वो!
“चार दन पहले!”
“कहाँ से?”
“म अ ताल म थी न.. कोमा म.. कोई दो साल के आस पास..”
“कोमा म..?”
“ ी..”
“नह ..”
“उ ह ने ही बताया..”
“अ ा?”
“हाँ!”
‘शाद नह .. नपुंसक..?’
समा को लगा क वो दहाड़ मार कर रोए.. ले कन उसको तो जैसे काठ मार गया हो। न
रोई, न च लाई.. बस चुप चाप बुत बनी बैठ रही.. और खामोश आंसू बहाती रही।
समा ने दे खा – सतीश का सर ल -लुहान था, उसक कमीज़ फट गयी थी, और कुह नयाँ
और बाह र रं जत हो गई थी। घसीटे जाने से उसक पै ट भी जगह जगह से घस और
फट गयी थी। सवेरे का आ म व ास से भरपूर सतीश इस समय वैसे ही डरा आ लग रहा
था, जैसे हलाल होने के ठ क पहले कोई बकरा। समा ने उसको दे खा तो मन घृणा से भर
उठा। सतीश ने उसक तरफ दे खा – पता नह उसको समा दखी या नह , ले कन उसक
ाकुल और कातर नगाह कसी भी हमदद भरी क यासी हो रही थ । कोई तो हो,
जो इस अ याचार को रोक सके!
समा ने उस तरफ दे खा। सतीश को वही एक तरफ पेड़ से टका कर बाँध दया गया था।
वो इस समय पूरी तरह से नंगा था। वो कहते ह न, आदमी शु क मार क पीड़ा से डरता
है.. बाद म गनती भी कहाँ याद रह जाती है? सतीश एकदम नरीह सा लग रहा था! वो
कुछ बोल नह पा रहा था, ले कन उसक आँख च ला च ला कर अपने लए रहम क
भीख मांग रही थ ।
“अरे सोच या रहे हो.. साले को ब धया कर दो! वैसे ही नपुंसक है.. गो टय का या
काम?” कसी ने सुझाया।
“सही कह रहे हो.. अबे शोभन.. ज़रा दरांती तो ला.. इस मादरठोक का या-करम यह
कर दे ते ह..” एक और यायाधीश बोला।
एकाएक जैसे अफ म के नशे म धु भीड़ को कसी ने झझोड़ के जगा दया हो। सारे
यायाधीश लोग एकाएक सकते म आ गए।
“ जसको अपनी उ भर जाना, उसके साथ यह सब करोगे? कोई मानवता बची ई है?
इसको तुम नपुंसक कहते हो? तो तुम लोग या हो? मद हो? ऐसे दखाते ह मदानगी?”
समा चीखती जा रही थी.. अचानक ही उसक आवाज़ आना बंद हो गई। जस वीभ स
य से वो अभी दो-चार ई थी, उसके डर से समा का गला भर गया। उसक हच कयाँ
बंध गयी, और वो रोने लगी। सतीश अचेत होने से पहले बस इतना समझ पाया क उसक
जान बच गई थी।
३५
म शाम को अ नी से बात कर रहा था क जस ोजे ट को करने नकला ,ँ वो अगर
ठ क से हो गया, तो हम दोन क ज़ दगी बदल जाएगी! उ र म अ नी ने मुझसे कहा
क उसको पूरा यक न है क मेरा ोजे ट ज़ र पूरा होगा। मने हंस कर उसक बात आई
गयी कर द । अगर उसको मालूम होता क मेरा ोजे ट या है, तब भी या वो ऐसे
कहती? सच म हम दोन क ही ज़ दगी बदल जाएगी! यह बात मने पहले सोची ही नह ।
अगर वाकई या जी वत है, और उसको मल जाती है, तो अ नी और मेरे वैवा हक
जीवन म ब त सी ज टलताएं आ जाएँगी! और तो और, हमारे ववाह पर ही एक
सवा लया नशान लग जायेगा।
इस बार उसने भारी मेहनत और अ न ा से त वीर पर नज़र डाली – जैसे मने उसको एक
मन अनाज क बोरी ढोने को कह दया हो।
“ या साब! एकदम कंचा सामान है..” उसके श द कपटता से भरे ए थे, “इसको यहाँ
अ ताल म य ढूं ढ रहे ह?”
और दोन ठठा कर हंसने लगे। उन दोन नक म क धूततापूण बात सुन कर मेरे शरीर म
आग लग गयी। मेरा बायाँ हाथ व ुत् क ग त से आगे बढ़ा और पहले वाले वाड बॉय क
गदन पर जम गया; दा हना हाथ उससे भी तेज ग त से उठा और उसका उ टा साइड सरे
वाले वाड बॉय के गाल पर कसी कोड़े के सरे के जैसे बरसा।
तड़ाक!
मने पहले वाड बॉय के टटु ए को दबाया, सरा वाला अभी अपने गाल को बस सहला ही
रहा था।
“तमीज से बात करोगे, तो ज़ दगी म ब त आगे जाओगे.. नह तो जदगी भी आगे नह
जा पाएगी..”
म दांत पीस पीस कर बोल रहा था। मेरी या क बेई ज़ती करी थी उसने। वो तो म स
कर गया, नह तो दोन क आज खैर नह थी।
“ये अ ताल है.. अ ताल.. तु हारे मारा पीट का अ ा नह .. चलो नकालो यहाँ से..”
उसने ढ़ श द म कहा।
“मै न.. मुझे मालूम है, ये अ ताल है! और मेहरबानी कर के इन दोन को भी यह बात
सखा द जए। ये दोन महा नक मे ही नह , ब क एक नंबर के धूत भी ह..”
“सतीश? समा?”
“मै न लीज! आप लीज मेरी बात पूरी तरह से सुन ली जए.. लीज!” मने हाथ जोड़
लए।
“आपने मेरी पूरी बात सुन ली है.. अब लीज आप बताइए.. ये समा कौन है?”
“जी ये लड़क , जसक त वीर आपके पास है, हमारे यहाँ भत थी – जब ये यहाँ थी, तब
से वो कोमा म थी। जस डा यूम क आप बात कर रहे ह, शायद यह क ही हो.. म कह
नह सकती.. ले कन वो लड़क ब इस त वीर से मलती है। एक सतीश नाम का मरीज़
भी भत आ था उसी लड़क के साथ.. वो खुद को उसका प त कहता था। और उसको
समा!”
“तो फर?”
“अभी कोई पांच-छः दन पहले.. कए, म आपको उसका डटे ल बताती ँ..”
“दे खए म टर...”
“अथव.. आप मुझे सफ अथव क हए..”
“अथव.. हमसे ब त बड़ी गलती हो गयी.. ले कन हमारे पास ॉस-चेक करने का कोई
तरीका नह था.. उस बदमाश ने कहानी ही ऐसी ब ढ़या बनाई थी! काश आप हमारे पास
पहले आ जाते..”
“मै न! इसम आपक कोई गलती नह है.. म खुद ही या को भगवान के पास गया आ
समझ रहा था.. म तो बस इतना चाहता ँ क वो सही सलामत हो, और मेरे पास वापस
आ जाय..”
“लेट रह बेट , लेट रह.. तुम कल दोपहर अचेत हो गयी थी.. याद है?” रामलाल क प नी
ने समा को पुचकारा।
“हमको बताओगी?”
“जी हाँ! य ?”
“ ी कग! ऍम आई टा कग टू ?”
“ ही फाउं ड हर..”
“ या?” या मल गई है! ओह भु! आपका करोड़ करोड़ ध यवाद! “कहाँ है वो? कैसी
है?”
“नह जानू!” मने आंसू प छते ए कहा, “ य रोऊँगा भला! आज तो मेरे लए सबसे ख़ुशी
का दन है..”
“आप कहाँ ह?” मुझे उसक आवाज़ से लगा क वो मु कुरा रही है।
“आई लव यू!”
“सबसे यादा जानू.. सबसे यादा!”
“जी हाँ.. य ?”
“ या?”
“जी ओके ओके! मुझे भी आपको कुछ बाते बतानी ह.. आप ज द से आ जाइए” इतना
कह हर उ ह ने फ़ोन कॉल व े द कर दया।
“ कधर साहब?”
“सुगी.. म रा ता बताता .ँ .”
“डॉ टर बाबू, या बात है? या आ है इस लड़क को? और अचानक ही पछले कुछ
दन क बात याद य नही है?” स हा को बाहर कोने म ले जा कर रामलाल ने चतातुर
होते ए पूछा।
"हाँ! यह बात तो वाकई ब त नराली है.. ऐसा लग रहा है जैसे पछले एक स ताह क बात
इसके दमाग क लेट से कसी ने प छ द है.. सच क ं, मेरे पास आपके सवाल का कोई
जवाब नह है। एक तरीके से अ ा है.. ये अब अपनी पछली जदगी मे वापस प ँच गई
है। ज़रा सो चए – अगर इसको सारी बात याद रहती, तो सतीश वाला केस बगड़ सकता
था.. और आप लोग भी ल बा नप जाते! इस लए अ ा ही है, क यह बात यह दब जाय,
और ये लड़क अपने घर वापस चली जाय..”
“रामलाल जी, एक बात क ँ.. आप बुरा मत मा नयेगा.. वो नपुंसक है, तो उसमे उसका
कोई अपराध नह । आप ठ े दमाग से सो चएगा कभी... उसने कभी भी कसी का भी
नुकसान कया है? इस लड़क को भी उसी ने तो बचाया.. मेरी मा नए, जो आ उसको
भूल जाइए, और उसको भी इ ज़त से जीने का मौका द जए..”
रामलाल को य तः डॉ टर स हा क बात अ तो नह लगी, ले कन उसको मालूम
था क वो सोलह आने सही बात कह रहे ह! इस लए वो चुप ही रहा।
सतीश अपने शरीर पर प याँ बंधवाए, अपने घर म चारपाई पर लेटा आ था। कल जस
कार से सारे क बे वाल ने जस बेदद से उसक ठु काई करी थी, उसको पूरा यक न हो
गया था क उसको वहां कोई भी पसंद नह करता। एक समा ही थी – नह समा नह ..
या! हाँ, यही नाम है उसका। एक वही थी, जसने उसको अपने पास आने का मौका
दया, और उसको वो सुख दया जो उसे समा से पहले कभी नह मल सका, और अब
लगता है क जीवन पयत नह मलेगा।
कसी ने उसको बताया क समा को अब उसके बारे म कुछ याद नह है.. इस बात क भी
पीड़ा रह रह कर उसके दल म उठ रही थी। उसक आँखो मे आँसू आ गये – कुछ शरीर के
दद के कारण, और कुछ भा य के स मुख उसक ववशता के कारण! संभव है, आंसू क
कुछ बूँद प ाताप क भी ह !
“ म टर शेखावत?”
“डॉ टर स हा?”
“सतीश,” मने कहा, “तुमने मेरी या के लए जो कुछ कया, उसका एहसान म अपनी
पूरी जदगी नह भूलूंगा! यह तु हारा एक क़ज़ है मुझ पर.. जसको म चुका नह सकता।
म तो यही सोच कर रह गया था क वो अब इस नया म नह है.... ले कन वो आज मुझे
मली है, तो बस सफ तु हारे कारण!”
“मुझे मालूम है, क तुमने या के साथ सहवास कया है। ले कन वो तु हारी नादानी थी।
वैसे भी या को उस बारे म कुछ याद नह .. और य क कल उसी ने तु हारी जान बचाई
थी, इस लए म मान कर चल रहा ँ क उसने तुमको माफ़ कर दया..”
“सतीश, माफ़ के लए कुछ भी नह है! अगर तुम माफ़ चाहते ही हो, तो मेरी एक बात
सुनो, और हो सके तो अमल करो।“
“बताइए सर!”
इतने दन के बाद.. ओह भगवान् म ख़ुशी से पागल न हो जाऊं! पैर म मेरे पंख जैसे
नकल आये..
जान बचाते लोग ने उनको पहाड़ पर ऊंचाई क तरफ जाने क सलाह द । काफ सारे
लोग वही काम कर रहे थे – मतलब लोग पहाड़ क ढलान के ऊपर क तरफ जा रहे थे।
उ ही क दे खा दे खी वो तीन भी ऊपर क चढ़ाई करने लगे। पवत क संतान होने के
बावजूद उस चढ़ाई को तय करने म ब त समय लग गया। न तो पताजी ही ठ क से चल
पा रहे थे, और न ही खुद या। वैसे भी गभाव ा म ऐसे क ठन काम करने से मु कल
और बढ़ जाती ह। चलते चलते अचानक ही उसक ह मत जवाब दे गई, और वो वह एक
जगह भहरा कर गर गई। जब होश आया तो उसने दे खा क पताजी उसको पानी पलाने
क को शश कर रहे ह।
ले कन अथव के आने से पहले उसको लोग क दबी आवाज़ म कही गई बात सुनाई दे
ग । उसने डॉ टर स हा पर दबाव डाला क वो उसे सब कुछ सच सच बताएं – उसको
सब सच जानने का पूरा हक़ था। स हा और रामलाल ने उसको सारी बात, हचकते ए ही
सही, बता द । उसको यक न ही नह आ क उसके दमाग म जो बात अभी तक जी वत
थी, वो कोई दो साल पुरानी याद थ , और यह क पछले ह ता दस दन तक उसके साथ
जो कुछ भी आ, वो उसको याद ही नह था! उसने यह भी जाना क उसने ऐसे आदमी
क जान बचाई थी, जसने उसक याददा त का फायदा उठा कर उसके साथ शारी रक
याद तयां करी थ । अब या मुँह दखाएगी वो अथव को?
ऐसी ही न जाने कतनी बात सोचती ई, उ मीद और नाउ मीद के झूले म झूलते ए,
अ नी का अंतमन बेहद आंदो लत होता जा रहा था। वो ब त बेस ी से अथव क ती ा
कर रही थी।
‘अथव!’
‘हे भगवान्! कतनी बदल गयी है!’ उसका गुलाब जैसे खला खला चेहरा, एकदम
कु हला गया था; सदा मु कुराती ई आँख न जाने कस ःख के बोझ तले बुझ ग थ ।
“ओह जानू!”
ऐसे भाव व ल मलन का असर या पर खुद भी वैसे आ, जैसे अथव पर! अथव को
अपने आ लगन म बांधे या क आँख बंद हो ग । वो नःश द रोने लगी। उन आंसु के
मा यम से वो पछले दो वष क भयानक याद भुला दे ना चाहती थी – अपनी भी, और
संभवतः अथव क भी। अथव को इस तरह से रोते ए उसने कभी नह दे खा था – वो
कभी कभी भावुक हो जाते थे, ले कन, रोना!! या को तो याद भी नह है क अथव कभी
रोए भी ह! या को अपने आ लगन म बांधे अथव रोते जा रहे थे। एक छोटे ब े के
मा नद! गाँव वाले पहले तो तमाशा दे खने के लए उन दोन को घेर कर खड़े रहे, ले कन
रामलाल ने जब आँख तरेर , तो सब चुपचाप खसक लए।
पता नह कब तक दोन एक सरे को थामे, रोते रहे और एक सरे के आंसूं प छते रहे।
ले कन आंसु का या कर? थमने का नाम ही नह ले रहे थे। अथव वगत दो वष क
नराशा, ःख, हताशा, और सब कुछ खो जाने के संताप से रो रहा था, और या उ ही
सब बात को सोच सोच कर! वो अथव के लए रो रही थी, अ नी के लए रो रही थी,
अपने माता पता के लए रो रही थी, और अपनी अज मी संतान के लए रो रही थी। कैसा
था वो समय.. और कैसे होगा आने वाला कल?
रोते रोते एक समय ऐसा भी आता है जब रोने के लए आँसूं भी नह बचते है... उस गहरे
अवसाद म अथव ने ही सबसे पहले खुद को स हाला,
“अ है..”
मेरे गले म अपराध बोध वाली फाँस बन गयी, “बड़ी हो गई है काफ ..” जैसे तैसे वा य
ख़तम कर के मने बस यही सोचा क या अब अ नी के बारे म और पूछ-ताछ न करे।
तकद र ने साथ दया, या मेरी बात मान गयी, और उसने आगे कुछ नह पूछा। मने
ज द ज द कई सारी औपचा रकताएँ पूरी कर , सारे ज़ री कागज़ात इक े कए,
ानीय पु लस थाने म जा कर या से स बं धत जानका रय का लेखा जोखा पूरा कया
और वहां से भी ज़ री कागज़ात इक े कए और फर वापसी का ख कया। नकलते
नकलते ही काफ शाम हो गई थी, और गाँव वाल ने कने क सलाह द , ले कन मेरा मन
नह माना। मेरा मन हो रहा था क उस जगह से ज द नजात पाई जाय – और यह क
वहां का नज़ारा दोबारा न हो! मने अपने ाईवर से पूछ क या वो गाडी चला सकता है,
तो उसने हामी भरी। हम लोग तुरंत ही वहां से नकल गए।
तो ऐसे गुमसुम हालात म मेरे से तो गाडी नह चलाई जा पाती। इस लए ाईवर साथ होने
से ब त स लयत हो गई। हमारे पास वैसे भी कोई सामान नह था। मेरे पास बस दो जोड़ी
कपडे थे, और या के पास कुछ भी नह – जो उसने पहना आ था, बस वही था। मने
दमाग म नोट कर लया क उसके लए द ली म कपड़े खरीदने ह। ब त दे र क चु पी के
बाद मने ाईवर को गाड़ी म लगे संगीत तं को चलाने को कहा – कम से कम हम दोन
लोग अपनी अपनी चता के दायरे से बाहर नकालगे! मुझे तो लगा क बस कोई एक घंटा
चले थे, ले कन जब मने बाहर यान दया, तो घुप अँधेरा हो गया था, और अब मेरे हसाब
से गाड़ी चलाना ब त सुर त नह था।
“भाई, आगे कोई होटल या धमशाला आये, तो रोक लेना!”, मने ाईवर से कहा, “अब
अँधेरा बढ़ गया है, और ऐसे म गाड़ी चलाना ठ क नह । आज रात वह क जायगे, और
कल आगे का सफ़र करगे। य , ठ क है न?“
“ बलकुल ठ क है साहब! म भी यही कहने वाला था.. जैसे ही कोई सही होटल दखेगा म
वैसे ही रोक लूँगा। रात म ाइव करते रहने का कोई इरादा नह है मेरा।“
ऐसे ही बात करते ए मुझे एक बंगलेनुमा होटल दखा। मुझे अचानक ही पुरानी बात याद
हो आ – शाद के बाद जब म या को वदा कर के ला रहा था तो हम इसी होटल म के
थे। मने ाईवर को उसी होटल के ांगण म पाक करने को कहा, और उसको कहा क
आज हम यह पर कगे।
जैसा क मने पहले भी लखा है, यह एक व टो रयन शैली म बनाया गया बंगला था,
जसम चार बड़े बड़े हाल नुमा कमरे थे। हर कमरे ही छत ऊंची-ऊंची थ , जनको लकड़ी
क मोट मोट शहतीर स हाले ई थी। ब तर पहले के ही जैसे साफ़ सुथरे थे। क मत क
बात थी, एक कमरा खाली मल गया हम लोग को। होटल के सभी कमर म मेहमान थे,
ले कन फर भी वहां का माहौल ब त शांत था। ाईवर को खाने के लए पैसे दे कर या
और म अपने कमरे म आ गए। पहले क ही भां त मने वहां के प रचारक को कुछ पये
दए और गरमा-गरम खाना बाहर से लाने को कह ही रहा था क या ने माना कर दया –
उसने कहा क हम दोन बाहर ही चले जायगे।
मने कोई तरोध नह कया – इतनी दे र के बाद या ने वापस कुछ कहना बोलना शु
कया था – मेरे लए वही ब त था। बात उसी ने शु करी,
“कैसे रखता? आपक आदत जो है..” यह वा य बोलते बोलते गले म फाँस सी हो गयी।
“ पछली बार जब हम यहाँ आये थे, तो मेरा मन आ था क आपको यहाँ लाया जाए...”
“ह म... तो फर लाई य नह ?”
सारी बात पूरी करते करते मेरी आँख से आंसूं गर गए। या ने कुछ कहा नह – बस मेरी
बाँह को पकड़ कर मुझसे कस कर चपक गई।
“अब तुम मुझे छोड़ कर कह मत जाना..” ब त दे र के बाद मने ब त ही मु कल से अपने
दल क बात या को कह द , “चाहे कुछ हो जाय..”
“हाँ?”
“म तो आप जो कह वो सब कुछ ँ..”
“ले कन, म तो नह भूला .. भूली तो आप..”
“हा हा..”
“नह .. म कै..” मेरे पूरा कहने से पहले ही या ने अपना कुरता उतार दया।
या से मने इतने साहस क उ मीद नह करी थी। एकदम नया था यह मेरे लए। और
आ यजनक भी। सुखद आ यजनक!
मुझे उस हार क वैसे भी कोई आव यकता नह थी। मने या के पैर थोड़े से फैलाए।
और अपनी उं गली को उसक यो न क दरार पर फराने लगा। या एक प र चत छु वन से
कांप गयी। इतने अरसे से दबी ई कामुक लालसा इस समय उसके अ दर पूरे चरम पर
थी। कुछ दे र यो न क दरार पर उं गली चलाने के बाद मने अपनी उं गली को अ दर क
तरफ व कया – उं गली जैसे ही अ दर गयी, या क यो न ने तुरंत ही उसके इद गद
घेरा डाल कर उसे कस कर पकड़ लया। म मु कुराया।
वा द !
या बड़े यार से मेरे बाल म हाथ फराती ई मेरा उ साह-वधन कर रही थी। आज एक
अरसे के बाद म या क यो न चाट रहा था, इस लए मुझे ब त रोमांचक आनंद आ रहा
था। थोड़ी ही दे र बाद मेरा लग खड़ा हो गया।
मने धीरे धीरे लग को अ दर घुसाया; या क कराह नकल रही थी, ले कन उसके खुद म
ही उसको ज़ त कर लया। या क यो न सचमुच संकरी हो गई थी। अ नी से भी
अ धक कसावट लए! उस घषण से लग के ऊपर क चमड़ी पीछे खसक गयी – अब मेरा
मोटा सुपाड़ा या क यो न क द वार को रगड़ रहा था। हम दोन का ही उ माद से बुरा
हाल हो गया। म अ दर के तरफ दबाव दे ता गया जब तक लग पूरी तरह से या के अ दर
समां नह गया।
“तैयार हो?”
"हाँ... आप ऐसे मत सताइए! मेरे पूरे शरीर म आग सी लगी ई है। बुरी तरह...”, या ने
कहा।
एक और नई बात!
“आज तो मज़ा आ गया।” जब या ने अपना काम ख़तम कया तो मेरे मुँह से अनायास
ही नकल गया।
“जी म जड़ी-बूट बेचने वाला ँ... तरह तरह क जड़ी-बू टयाँ बेचता .ँ . आप लोग को
दे खा तो क गया।“
संभवतः उसने मेरे चेहरे पर उ प होने वाले झुंझलाने वाले भाव दे ख लए थे,
“अभी खुश नह थ ?”
“अ ा..” अपनी मदाना ताकत पर ऐसी टप णी होते सुन कर मुझे अ ा नह लगा, “तू
खाता है ये जड़ी?”
“अरे! ब ी से..!?”
कह कर वो मेरे लग को पकड़ कर, ख च कर, दबा कर जांच करने लगा। न तो उसने मेरी
सहम त क परवाह करी और न ही कसी हील त क । जब वो अपनी जांच से संतु
हो गया तो बोला, “ब त गुंट अंग है भैना आपका... थोड़ा सा बांग है.. ले कन उससे कोई
द कत नह होगी। आप चाह तो उसके लए एक अक दे सकता .ँ . उससे मा लश कर के
थोड़ा सा सीधा हो जायेगा.. वैसे उसक कोई ख़ास ज रत नह है.. आप बस यह जड़ी
खाया कर। आप तो ज़ र ली जए.. अ ा वा य है, असर अ धक आएगा..”
“द द भी आपक ही तरह एकदम गुंट है, भैना। आपको बस थोड़ा पूरक क ज रत है।
मेरा मतलब ज़ रत तो नह है, ले कन अगर लगे तो अ ा रहेगा। यह जड़ी न केवल वीय
व क है, ब क आरो य और ल बी आयु के लए भी ठ क है..“
“ म.. अ ा.. अगर म इसको अभी खरीद लूं, तो बाद म या होगा? मतलब एक पु डया
से तो कुछ नह होने वाला न?”
“बाद के लए या तो म आपको इसको बनाने क व ध बता ं गा, या फर आप मुझे कोई
पता बता द जए, जस पर म आपको डाक से भेज ं गा..”
हमने अपने कपडे पहने, और साथ म होटल चल दए, जहाँ पर मने उससे जड़ी ली, उसको
पैसे दए और सो गए।
३७
अ नी क नजर म :
'Heading Back home... with huge huge surprise. Love You!'
अगले एस एम एस म लाइट नंबर लखा आ था। अथव हमेशा ही उसको अपनी लाइट
का नंबर लख कर भेजते थे। एक दन मज़ाक मज़ाक म उ ह ने कहा था क अगर कभी
मेरी लाइट ै श हो जाय तो कम से कम तुमको मालूम तो रहे क पूछ-ताछ कहाँ करनी
है! उनक इस बात पर अ नी खूब रोई थी; पूरा दन खाना भी नह खा सक । अथव क
लाख मनुहार के बाद ही उसके गले से खाने का एक नवाला उतर सका।
वो ल ा से मु कुरा द ।
“अ नी है घर पर?” या ने पूछा।
‘ र ता तो गहरा ही है!’
कोई बीस सेकंड (जो क मुझे घंटे भर ल बे लगे) के बाद दरवाज़ा खुला।
“बस कर मेरी ब ी... बस कर! ... कैसी है तू?” या ने बड़े लाड से पूछा, और बड़े यार
से अ नी के चेहरे को अपने दोन हाथ म लए नहारने लगी।
“हाँ हाँ ठ क है.. बहाने मत बनाइए। अब आ गई ँ, तो सब कुछ डटे ल म सुन लूंगी! कहाँ
ह तेरे ह बड?”
वतः ेरणा से अ नी ने इस पर मेरी तरफ दे खा, और मने उसक तरफ। मने ‘न’ म
सर हला कर एक दबा छु पा इशारा कया।
या ने जाते ही अ नी भी उठ खड़ी ई।
“'अपने' कमरे म...” उसने थोड़े से उदास और आँसे वर म कहा। उसक आवाज़ म मुझे
शकायत क भी एक झलक सी महसूस ई।
“अपने कमरे म? अपने?” मुझे समझ आ गया क अ नी सरे कमरे म जाने वाली है।
“अ नी.. इधर आओ.. लीज!” कह कर मने उसको अपनी बाँह म भर लया।
“हमने शाद करी है.. वो भी व धवत। तुम मेरी बीवी हो। ठ क या क ही तरह। इस लए
इस कमरे पर, इस घर पर, मुझ पर और मेरी हर चीज़ पर तु हारा उतना ही अ धकार है,
जतना क या का है!”
“आप समझ नह रहे ह... बहन से सौतन तो बना जा सकता है, ले कन सौतन से बहन
नह । आपको मुझे पहले ही बता दे ना चा हए था।“ अ नी ने बुझे ए वर म कहा।
“आपने सोचा भी है, क स ाई जानने के बाद द द या सोचेगी? या करेगी?”
“सब वीकार है.. फलहाल आप दोन यह चाय वीकार क जए। वहां मु कु रखे ए थे,
वो भी म ले आई। अ नी, आज डनर के लए या सोचा है?”
“वो द द ..”
“ या.. जानू..,” मने झझकते ए यह कहा, “अभी चाय पी लो, डनर का दे ख लगे।
ओके?”
या को लगा जैसे उसके पैर तले क ज़मीन ही नकल गई हो। ‘शाद कर ली है..! यह
कैसे मुम कन है?’ या क शकल दे ख कर साफ़ दख रहा था क उसको यक न ही नह
आ है।
“शाद कर ली है..?”
“अ नी से?”
मने फर से सर हलाया।
“ या सच म? आप और अ नी?”
ये जो तुम मुझे इस हाल म दे ख रही हो, वो मेरा पुनज म है, और उसका सारा ेय सफ
अ नी को जाता है। तु हारे बाद य द मेरा कोई वक प हो सकता था – एक नेचुरल
वक प, तो वो सफ और सफ अ नी ही हो सकती थी। यह कहते कहते मुझे आयशा
क याद हो आई.. वो भी एक वक प थी। ले कन नेचुरल नह !
‘हाँ...’
‘ऐसे मु कुराते ए कतनी यारी लगती है..! सोच रही होगी क इ होने छु आ है...’
“जी, द द !”
अ नी उठ ।
“ले पाओगी तलाक? सच म? अरी पगली.. कैसी बात करती है? तू अनायास हमारे बीच म
आ गई? अनायास? अरे मेरी सयानी बहन, अगर तू न होती, तो सच कह रही ,ँ अथव भी
न होते। मेरा सुहाग न होता। उनको अँधेरे से नकाल कर लाने वाली तू है.. सच क ?ँ उन
पर अगर कसी का हक़ है, तो वह सफ तु हारा है! ले कन मुझे यह भी मालूम है, क
अथव हम दोन से ही ब त यार करते ह! ज़रा कुछ दे र क कर यह सोच, हम दोन
कतने भा यशाली ह क हम दोन को ही उनका यार मला, उनका साथ मला। ख़बरदार
तुमने कभी अथव से अलग होने क सोची।“
ऐसे भावना मक वातालाप करते ए दोन ही बहने फूट फूट कर रोने लग । ऐसे ही रोते
रोते या ने कहा,
“द द यह कोई पूछने वाली बात है? म इनसे ब त यार करती ँ। अगर वो कहे तो म तो
उनके लए अपनी जान भी दे सकती ँ...”
“तो मेरी सयानी बहन, अब मेरी बात सुन... अगर अब से हम तीन ही एक साथ रह, तो
या तु हे कोई ा लम है?”
“ या द द ?”
“ या द द ?”
“ या द द ! ही ही ही..”
“अरे बोल न?”
“ज रत का तो कभी नह मलता...”
“अरे, तेरा ‘मन’ भरते भरते इनके पास मेरा भरने क ताक़त बचेगी भला?”
“अरे इसम कैसा कैसा वाला या है... मयान ही तो कहा है... यो न थोड़े ही कहा... अब
तेरा ही दे ख न.. कुछ साल पहले तक तेरी पोक ठ क से दखती तक नह थी.. और अब
तो एकदम रसीली हो गई है! फूल कर बलकुल कु पा!”
“द द !”
“अरे! मुझसे या शमाना? मेरी भी ऐसी ही हालत हो गई थी मेरी बहना! इनके बेदद लग
ने इतनी कुटाई करी मेरी सहेली क क साल भर तक ठ क से ले भी नह पाती थी.. ले कन
बाद म आदत हो गई, और जगह भी बन गई!”
“कुछ नह द द ... म सोच रही थी क हम दोन बहन का कतना कुछ साझा है – माँ बाप
भी एक और प त भी..”
“हाँ..” या मु कुराई, “और उनका छु ू.. हम दोन के अ दर बारी बारी से! सोच!”
“ही ही.. द द , वो उसको लग कहते ह..”
“हाँ..”
“अब और नह ! अब बलकुल भी और नह !”
“हा हा हा हा... हाँ.. इ होने हमारे हनीमून पर एक वदे शी लड़क के साथ कर लया था...”
“ या कह रही हो द द ?”
“अरे कैसे रोकती? इतनी कामुक सीन थी क या बताऊँ! वो सीन दे ख कर मेरे बदन म
ऐसी आग लग गई थी क कुछ कहते, करते न बना!”
“मतलब इ होने चार चार लड़ कय को...”
“ या? हा हा!”
“हाँ द द ... ये तो उससे शाद भी करना चाहते थे.. अगर मने ही इनको ोपोज़ न कर दया
होता तो ये तो गए थे हाथ से...!”
दोन बहन फर आयशा क बात, और इधर उधर क गप-शप करने लग । पुरानी बात को
याद करने लग । जो भी गले शकवे, डर और संदेह बचे ए थे, सब नकल गए!
𝐈𝐍𝐃𝐈𝐀𝐍 𝐁𝐄𝐒𝐓 𝐓𝐄𝐋𝐄𝐆𝐑𝐀𝐌 𝐄-𝐁𝐎𝐎𝐊𝐒 𝐂𝐇𝐀𝐍𝐍𝐄𝐋
(𝑪𝒍𝒊𝒄𝒌 𝑯𝒆𝒓𝒆 𝑻𝒐 𝑱𝒐𝒊𝒏)
सा ह य उप यास सं ह
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐀𝐮𝐝𝐢𝐨 𝐁𝐨𝐨𝐤𝐬 𝐌𝐮𝐬𝐞𝐮𝐦
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
𝐶𝑙𝑖𝑐𝑘 𝐻𝑒𝑟𝑒
४०
मुझे फोन पर एस एम एस मला ।समय दे खा, रात के साढ़े दस बजे थे। मुझे मालूम नह
था क दोन बहन आपस म या कर रही थ – झगड़ा या यार! कुछ भी समझ नह आ
रहा था। खाने पीने का भी कुछ ठकाना नह मालूम हो रहा था, इस लए मने बाहर ही
खाना खा लया – खाना या खाया, बस पेट म कुछ डाल लया। भूख तो वैसे भी नह लग
रही थी।
“कस के ठोकना उसे... कम से कम तीन चार बार! समझ गए मेरे शेर? अब जाओ..”
या ने तुरंत ही अपना कू हा चला कर मेरी ताल म ताल मलाई। बना कसी रोक
कावट के मेरा लग सरकते ए उसक यो न क पूरी गहराई तक घुस गया। मीठे मीठे
दद से या कसमसा गई और उसने मुझे जोर से पकड़ लया। उ ेजना के अ तरेक से वह
कभी मेरी पीठ पर हाथ फराती, तो कभी नाखून भी गड़ा दे ती थी। एक अलग तरह का
जंगलीपन था आज उसम। मुझ म भी था! इसके कारण मुझे चुभन का दद नह , ब क
मजा आ रहा था। म उ माद म आ कर ध के लगाने लगा। मने या के नतंबो को पकड़
लया और तेजी से उसक यो न क पूरी गहराई तक जा जा कर उसक ठु काई करने लगा।