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वर्ष २०११ उत्तरी दिल्ली की एक घटना

क्या पशु पक्षी! सभी की दिनचयाि में जैसे ववराम लग जाता था िोपहर होते ही! ऐसे ही एक

वे गर्मियों क े दिन थे, गमी अपने शीर्ि पर थी, बर ु ा हाल था सभी का, क्या मनष् ु य और

दिन शाम को मै और शमाि जी अपने स्थान पर बैठे हुए थे, तभी उनक े पास एक फ़ोन आया, ये फ़ोन श्रीमती महाजन का था, वे दिल्ली में ही रहा करती थीीं और उनका भरापर ू ा पररवार था, एक लड़का और एक लड़की थे उनक े पास, पतत उनक े क ु वैत में नौकरी ककया करते थे, उन्होंने क ु छ ऐसा बताया कक वो गले नहीीं उतरा, कहानी काफी टे ढ़ी-मेढ़ी सी थी! आखिर शमाि जी ने उनको र्मलने क े र्लए बल े साथ हमाए पास आ गयीीं, ु ा र्लया, अगले दिन वो अपने बेटे क

नमस्कार आदि से फाररग हुए तो बात आगे चली, उन्होंने बताया कक उनकी बेटी रूचच की एक सहे ली है नील, े पररवारवाले राजस्थान क े धौलपर ू नीलू क ु में रहने वाले एक बाबा को गरु ु मानते हैं, एक बार वो गुरु जी जब नीलू क े घर आये थे तो उनसे रूचच भी र्मली थी, तब उन गुरु जी ने रूचच को क ु छ बातें बताएँ, बातें काफी परे शान करने वाली और ववचचत्र थीीं! "क्या बताया उन्होंने?" मैंने पछ ू ा,

"उन्होंने कहा कक रूचच पर एक प्रेत का साया है, करीब छह महीनों से" वे बोलीीं. "क्या? प्रेत का साया?" मझ ु े है रत सी हुई, "हाँ जी" वे बोलीीं,

"उनको क ै से लगा कक ककसी प्रेत का साया है?" मैंने पछ ू ा, "हमेशा?" मैंने पछ ू ा, "हाँ जी" वे बोलीीं,

"उन्होंने कहा कक वो प्रेत उसक े साथ रहता है हमेशा" वो बोलीीं, बड़ी अजीब सी बात थी! "चर्लए माना, लेककन उनसे पछ ै से हटे गा उस से?" मैंने पछ ू ा नहीीं, कक ये प्रेत क ू ा,

"वे चले गए थे वावपस, कफर रूचच ने ये बात मझ ु े बताई, मझ ु े चचींता हुई, डर लगा, मैंने नीलू की मम्मी से बात की, तो उन्होंने उनका नींबर िे दिया मझ े वे बोलीीं, ु " "अच्छा, आपने बात की?" मैंने पछ ू ा, "हाँ जी" वो बोलीीं,

"क्या बताया उन्होंने?" मैंने पछ ू ा, "अच्छा! कफर?" मैंने पछ ू ा,

"यही कक लड़की चपेट में है, जल्िी ही इलाज करवाओ उसका" वो बोलीीं, "उन्होंने कहा कक लड़की को लेक े धौलपर ु आ जाइये" उन्होंने बताया, "अच्छा, वैसे उम्र क्या है रूचच की?" मैंने पछ ू ा, "जी बाइस साल" उन्होंने बताया,

"हम्म! अच्छा, तो कफर, ले गए आप?" मैंने पछ ू ा, ले गयी उसको वहाँ" वे बोलीीं, "अच्छा, कफर?" मैंने पछ ू ा,

"मैंने पहले रूचच क े पापा से बातें कीीं इस बारे में , वे भी घबरा गए, उन्होंने हाँ कर िी, तब मै

"जी उन्होंने क े ऊपर, क ु छ ककया उसक ु छ कियाएीं आदि" वे बोलीीं, "ठीक हो गयी कफर वो?" मैंने पछ ू ा, "नहीीं" उन्होंने बताया,

"नहीीं??'' मझ ु े है रत हुई अब! "हाँ गरु ु जी, नहीीं हुई ठीक बल्ल्क........" वे थोडा रुआींसी हो गयीीं अब,

"बताइये, क्या हुआ?" मैंने पछ ू ा, "उसक े बाि, रूचच रात को जाग जाती है अचानक, कफर कभी रोती है, कभी हीं सती है, कभी सकपकायीीं अब ये बताते हुए, "अच्छा?'' मैंने पछ ू ा, "हाँ गुरु जी" वो बोलीीं,

गुस्सा करती है, कभी गाली-गलौज करने लगती है, अपने भाई को भद्दी-भद्दी गार्लयाँ िे ती है " वे

"एक बात बताइये, जब रूचच को वहाँ ले गए थे आप, तब वो क ै सी थी?" मैंने पछ ू ा, "तब ठीक थी" वो बोलीीं, "ह्म्म्म्म!" मैंने क ु छ सोचते हुए कहा, "एक बात और बताइये, क ू ा, ु छ और बिलाव?" मैंने पछ भी" वे बोलीीं,

"हाँ, अब श्रग ीं र ार करती रहती है, दिन में कई बार कपडे बिलती है , बात नहीीं करती ककसी से "अच्छा! कोई और बात?'' मैंने पछ ू ा,

"और तो क ु छ नहीीं िे िा, कमरे में ही रहती है अपने" उन्होंने कहा,

"िाना सही िाती है?" मैंने पछ ू ा, "हाँ" उन्होंने कहा, "ये जो गुरु है, इसका नाम क्या है?" मैंने पछ ू ा, "क्या उम्र है उसकी?" मैंने पछ ू ा, "अच्छा!" मैंने कहा,

"जी नाम का तो पता नहीीं, लेककन लोग उसको धौर्लया बाबा कहते हैं" वे बोलीीं, "कोई पचास साल का होगा" वे बोलीीं, "आपने धौर्लया को बताया इसक े बारे में, क्या कहा उसने?" मैंने पछ ू ा, प्रेत भड़क जाएगा" वे बोलीीं, "जी गुरु जी" उन्होंने कहा, चले गए!

"कह रहे हैं इलाज चल रहा है उसका अभी, कोई िो महीने और चलेगा इलाज, जोर लगाने पर "अच्छा! ठीक है, कोई बात नहीीं, मै एक बार िे िना चाहूँगा रूचच को" मैंने कहा, कफर मैंने उनको अगले दिन कह दिया उनक े घर आने को! और वे िोनों वहाँ से वविा ले

वे िोनों माँ-बेटा चले गए, अब शमाि जी ने मझ ु े िे िा और बोले,"ये क्या चक्कर है गरु ु जी?" "चक्कर तो है शमाि जी" मैंने हीं स क े कहा, "क ै सा चक्कर?" उन्होंने पछ ू ा,

"ककसी की शराफत का फायिा उठाया जा रहा है" मैंने कहा, "हाँ! वही गुरु जी" मैंने बताया,

"कौन उठा रहा है? वो मािर** धौर्लया?" उन्होंने गुस्से से कहा, "इसकी माँ की **!" उन्हें गस् ु सा आया अब!

"अभी रुक जाइये शमाि जी!" मैंने समझाया उनको! उनको और गुस्सा आया!

"उस बहन** को क े वल वो एक लड़की दििाई िे रही होगी, ककसी की बेटी या बहन नहीीं?'' "पहले मझ ु े जाींचने िील्जये, जल्िबाजी से कोई फायिा नहीीं" मैंने कहा, "नहीीं! उसको अभी तक क ु छ नहीीं पता!" मैंने बताया, "पता मतलब?" उन्होंने पछ ू ा,

"अरे गुरु जी, जल्िबाजी ना की तो वो क ु त्ते का बीज फायिा ना उठा ले उसका?" उन्होंने कहा,

"मतलब उसने अभी तक कोई टक्कर नहीीं िे िी इस मामले में , इसीर्लए तनल्चचन्त है " मैंने बताया, "इसकी माँ क ै से ** जाती है, मै बताऊ ीं गा साले हरामज़ािे को" उन्होंने गुस्से से कहा, "ठीक है, कल चलते हैं!" उन्होंने कहा! सो गए!

"अभी रुक जाइये, कल िे िते हैं कक क ु त्ते की औलाि ने क्या प्रपींच लड़ाया है!" मैंने कहा, उसक े बाि हमने अपना महा-भोग और मदिरापान आरम्भ ककया! प्रेत-भोग दिया और कफर

सब ु ह उठे , िै तनक-कमों से फाररग हुए, मैंने थोड़ी पज ू ा की और कफर जब नौ बजे तो शमाि जी ने गाड़ी स्टाटि कर ली, हम गाड़ी में सवार हुए, श्रीमती महाजन को अपने आने की इत्तला िे िी! करीब एक घींटे में हम पहुँच गए उनक े घर!

घर में श्रीमती महाजन और उनका बेटा र्मला! नमस्कार आदि हुई! उन्होंने चाय तैयार कर रािी थी, सो सबसे पहले चाय पी हमने, कफर हमने रूचच क े बारे में पछ ू ा, तो बताया उन्होंने कक वो सब ु ह उठ जाती है जल्िी ही, अब कमरे में लेटी है, मैंने रूचच से र्मलने की इच्छ ज़ादहर की तो वो हमे अन्िर ले जाने क े र्लए तैयार हो गयीीं! वो आगे चलीीं और हम पीछे ! कमरे में रूचच पेट क े बल लेटी थी, श्रीमती महाजन क े कहने पैर वो उठ क े बैठ गयी, रूचच काफी अच्छी और सग ि आम्र-मींजरी सी अठिेर्लयाँ ु दठत िे ह वाली लड़की थी, यौवन से पर् ू , करती िे ह थी उसकी! चेहरा लार्लमा र्लए हुए और गौर-वर्ि! इसी पर रीझ गया था वो बाबा धौर्लया! "रूचच?" मैंने कहा, "जी?" उसने मझ ु से बड़े अजीब से लहजे में जवाब दिया! "क ै सी हो?" मैंने पछ ू ा, "आप कौन हैं?" उसने पछ ू ा, मेरे प्रचन का उत्तर ही नहीीं दिया उसने!

"मै कौन हूँ! इसक े बारे में आपकी माता जी बता िें गी" मैंने कहा, "वो क्यँू बतायेंगी? आप बताइये? मैंने सवाल ककया है आपसे?" उसने आँिें र्मला क े सवाल िाग़ा! "मै धौर्लया का बाप हूँ!" मैंने कहा, "ओये! तनकल जा यहाँ से अभी?" वो नीचे उतरी पलींग से!

इतने में श्रीमती महाजन ने रूचच को रोका तो वो नहीीं रुकी और तेजी से उनसे बोली "हट जा?" और ये बोलते हुए आई मेरे पास! जैसे ही मेरे पास आई वो ठहर गयी! और कफर तेजी से पीछे हटी! और पलींग पर चगर गयी! िो र्मनट चगरे रही और कफर िो बार झटक े िा क े बैठ गयी! "आप भी बैदठये ना?" अब तमीज से पेश आई वो! हो गया है?" वो िि े बोलीीं! ु ी होक "मम्मी?" उसने कहा और अपनी माँ का हाथ िीींच क े नीचे बबठा र्लया उनको पलींग पर! "गरु े साथ, सारे इलाज करा र्लए, लेककन मेरी बेटी को ना जाने क्या ु जी, ऐसा होता है इसक "मै जान गया हूँ! अब आप तनल्चचन्त रदहये!" मैंने कहा, "तुम्हे क ू ा, ु छ याि है रूचच?" मैंने पछ "क्या?' उसने पछ ू ा, "धौर्लया?" मैंने कहा,

"वो धौलपर ु वाले बाबा हैं" उसने बताया,

"अच्छा! इलाज कर रहा है तम् ु हारा?" मैंने कहा,

"पता नहीीं, मै मम्मी क े साथ गयी थी वहाँ" उसने कहा, "नहीीं गुरु जी" उन्होंने कहा, "कौन?" उसने पछ ू ा, "नील" ू मैंने बताया,

"क्या आपने इसको बताया है इसक े बारे में ?" मैंने रूचच की माँ से पछ ू ा, "तुम्हारी सहे ली कहाँ है अब?" मैंने रूचच से पछ ू ा,

"अपने घर में होगी" उसने कहा, "कहाँ?" मैंने पछ ू ा,

"वो गयी थी तम् ु हारे साथ?" मैंने पछ ू ा, "धौर्लया क े यहाँ?" मैंने पछ ू ा,

"जी उसक े मम्मी-पापा गए थे" रूचच क े माँ ने बताया! अब मैंने रूचच की माता जी से प्रचन ककया," एक बात जानना चाहूँगा, ये नीलू क े मातावपता कब से इस बाबा क े चक्कर में हैं? मेरा मतलब कब से सींपक ि में हैं?" "मैंने जब पछ ू ा तो उन्होंने बताया कक लगभग सात-आठ साल तो हो ही गए हैं" वे बोलीीं,

"अच्छा! क्या मेरी नीलू की माता या वपता से बात सींभव है?" मैंने पछ ू ा,

"जी मै फ़ोन करक े पछ ू लेती हूँ" उन्होंने कहा और बाहर चली गयीीं, अब मेरी तनगाह रूचच पर जा दटकीीं! वो मारे शमि क े नज़र ही नहीीं उठा रही थी, तब मैंने उस से प्रचन ककया, मैंने पछ े पास जाने को?" ू ा," रूचच? तुमको ककसने कहा था बाबा धौर्लया क "जी नीलू की मम्मी ने" उसने बताया, बात बड़ी अजीब सी थी! पछ ू ा,

"तो क्या नीलू की मम्मी ने ही तम् ु हारी मम्मी से बात की थी तम ु को वहाँ ले जाने की?" मैंने "जी हाँ" उसने कहा,

'अच्छा, तो जब तुमको वहाँ ले जाया गया तो धौर्लया ने क्या बताया?" मैंने पछ ू ा, मझ ु े र्लटाया और क ु छ पढ़ते रहे " वो बोली, "क े वल एक बार ही" उसने कहा,

"जी उन्होंने मझ ु े और मम्मी को एक जगह बबठाया और कफर मोर-पींि से झाड़ा ककया मझ ु पर, "ककतनी बार गयीीं तम े पास अभी तक?" मैंने पछ ु उसक ू ा, "क्या तम ु को पता है, तम ु को क्यँू ले जाया गया वहाँ?" मैंने पछ ू ा,

"मझ ु े नीलू की मम्मी ने कहा कक जीवन की सारी परे शातनयाीं समाप्त हो जायेंगी और मेरी ठीक है "

पढ़ाई आदि में कोई समस्या नहीीं होगी, नीलू क े साथ भी बाबा ने ऐसा ही ककया था, अब वो "ठीक है मतलब?" मैंने पछ ू ा,

"मतलब उसकी पढ़ाई अच्छी हो गयी है अब पहले क े दहसाब से" उसने बताया, "तो तुम वहाँ पढ़ाई क े ववर्य में गयी थीीं" मैंने कहा, "हाँ जी" उसने कहा,

नीलू की मम्मी से बात हो गयी है और वो नीलू क े साथ यहीीं आ रही हैं र्मलने क े र्लए, और वो यहीीं पास में ही रहती हैं, तब मै वहाँ से हटा और उनक े ड्राइींग-रूम में आक े बैठ गया! रूचच क े साथ गड़बड़ अवचय

अभी उसने जवाब दिया ही था कक रूचच की माता जी आ गयीीं वहाँ, उन्होंने बताया कक

थी, ये बात या तो नीलू की माता जी जानती थीीं या अनर्भज्ञ थीीं इस से, मै इसी कारर् से उनसे र्मलना चाहता था!

क े पचचात नीलू तो चली गयी रूचच क े कमरे में और उसकी माता जी बैठ गयीीं वहाँ, हमारे साथ! अब मैंने नीलू की माता जी से प्रचन ककया, "जी मै जानना चाहूँगा कक आपक े ये गुरु जी धौर्लया कहाँ रहते हैं?" "जी वो धौलपर ु में रहते हैं" वे बोलीीं, क्या कहा था?" मैंने पछ ू ा, वे बोलीीं,

कोई बीस र्मनट गज ु रे होंगे कक नीलू और उसकी माता जी वहाँ आ गयीीं, नमस्कार आदि

"जी, धन्यवाि, एक बात और, जब आपक े गरु ु जी ने पहली बार रूचच को िे िा था तब उन्होंने "वे िे िते ही बोले कक इस लड़की क े पीछे कोई प्रेत पड़ा है, और मौका र्मलते ही 'वार' करे गा" "जी, क ै सा 'वार'?" मैंने ल्जज्ञासावश पछ ू ा, इस तरह की बातें " वो बोलीीं,

"वो उसको बीमार कर सकता है, उसक े साथ 'खिलवाड़' कर सकता है, पढ़ाई में बाधा डालेगा, "अच्छा! तो कफर उन्होंने कहा कक रूचच को उनक े स्थान पर लाया जाए ताकक उस प्रेत से छ े ?" मैंने पछ ु टकारा र्मल सक ू ा, "जी हाँ" उन्होंने कहा, कहा,

"अच्छा, आप उनक े कहने पर रूचच और उसकी माता जी को लेकर धौलपर ु चली गयीीं" मैंने "जी हाँ, जैसा उन्होंने कहा था" वे बोलीीं,

"हम्म! तो कफर वहाँ पहुँच क े बाबा जी ने क्या ककया?" मैंने पछ ू ा, "तो किया की उन्होंने?'' मैंने पछ ू ा, "जी हाँ" वो बोलीीं,

"जी उन्होंने कहा कक वो रात क े समय उस पर क े वे बोलीीं, ु छ किया करें ग"

"तो आप उस समय वहाँ मौजि ू थीीं?" मैंने पछ ू ा,

"जी नहीीं, क े वल रूचच की मम्मी थीीं वहाँ" वो बोलीीं, अब मै रूचच की माता जी की ओर घम ू ा!

मेरे लगातार प्रचन पछ ू ने से क ु छ िीझती सी दििाई िीीं अब नीलू की माता जी! "मझ ु े बतायेंगी आप कक बाबा जी ने क्या ककया था?" मैंने प्रचन ककया,

"जी उन्होंने पहले उसको र्लटाया, कफर एक चाक़ ू उस पर कई बार कफराया, कफर क ु छ मींत्र से पढ़े " उन्होंने बताया, "वहाँ और कौन कौन था आप तीनों क े अलावा?" मैंने पछ ू ा, "और कोई नहीीं था वहाँ" वो बोलीीं, "अच्छा कफर?" मैंने बात आगे बढाने क े र्लए प्रचन ककया,

"जी, कफर उन्होंने उसकी नार्भ में चाक़ ू की नोंक लगाई और क ु छ मींत्र पढ़े , कफर ककसी से बातें करने लगे, कफर रूचच को िड़ा ककया और एक र्मट्टी क े बतिन में से क ु छ द्रव्य उसको वपला दिया" वो बोलीीं, "हम्म! कफर?" मैंने पछ ू ा, "और क ू ा, ु छ?" मैंने पछ "अच्छा!" मैंने कहा,

"कफर जी उन्होंने मोरपींिी से झाड़ा कर दिया उसका" वे बोलीीं, "हाँ, जाते समय उन्होंने उसक े बाल काट र्लए थे, कहा कक ये किया में काम आयेंगे" वे बोलीीं! "वैसे आप कहाँ से हैं?" नीलू की माँ ने सवाल ककया, "जी मै यहीीं दिल्ली से ही हूँ" मैंने उत्तर दिया, "क्या आप भी तींतर-मींतर करते हैं?" उन्होंने पछ ू ा,

"जी थोडा बहुत" मैंने उत्तर दिया, "वैसे हमारे बाबा ठीक कर िें गे रूचच को, अभी िो दिन बाि कफर ले जाना है रूचच को वहाँ" वे बोलीीं, "धौलपर ु ?" मैंने पछ ू ा, "जी हाँ" वे बोलीीं, 'अच्छा! ठीक है " मैंने कहा!

और र्मत्रो, क े पररवार की अींध-भल्क्त थी ु छ और बातें हुईं वहाँ, एक बात पता चली नीलू क धौर्लया क े साथ! इसीर्लए मैंने उस बाबा को क ु छ भी उल्टा-सीधा नहीीं कहा वहाँ! उसक े बाि हम वावपस आ गए वहाँ से! क ु छ समझा दिया था मैंने रूचच की माता जी को!

को िे िा था तो उसमे कोई पहरे िारनी थी, जो मेरे तींत्राभर् ू र् की गींध ले मैिान छोड़ भागी थी!

हम बाहर आये थे, अपनी गाड़ी में बैठे और चल दिए अपने स्थान की ओर, मैंने जब रूचच

इसका अथि था कक धौर्लया को अब पता चल गया होगा कक कहीीं से टक्कर र्मली है उसको, और वो अब या तो नीलू की माँ को सींपक ि करे गा अथवा श्रीमती महाजन को! और कफर ऐसा ही हुआ, हम अभी आधे रास्ते में ही आये थे कक श्रीमती महाजन का फ़ोन आ गया, बताया गया कक धौर्लया ने शीघ्राततशीघ्र रूचच को धौलपर ु बल ु ाया है, कारर् ये बताया उसने कक वो प्रेत अब भड़क गया है, और अब उसको ज़बरन तनकालना होगा! तब मैंने उनको समझा दिया कक वो उस से कहें कक वो अभी नहीीं आ सकते, एक और व्यल्क्त आये हैं, वो इलाज कर रहे हैं उनका! उन्होंने ऐसा ही कहा और बात उस समय समाप्त हो गयी!

हम अपने स्थान पर पहुींचे तो श्रीमती महाजन का फ़ोन कफर आया, उन्होंने बताया कक नीलू की माँ लड़ने-झगड़ने आई थी, कह रही थी कक जब इलाज ही नहीीं कराना था तो उनक े गुरु जी क े पास क्या करने गयी थीीं वो, और उन्होंने मन करक े ना क े वल नीलू क े पररवार की बल्ल्क उनक े गुरु जी की भी बेईज्जती कर िी है! इसका अथि स्पष्ट था! धौर्लया का प्रपींच हम जान गए थे! उसने कभी ऐसा सोचा भी ना

होगा कक ऐसा भी कभी हो जाएगा! अब वो सब तो ठीक था, परन्तु अब मझ ु े रूचच की चचींता हुई, क्यींक े वल रूचच पर! अब मैंने किया में ू क वो कमीन बाबा अब वार कर सकता था तो क बैठने का तनचचय ककया! मैंने शमाि जी से कह क े सारी सामग्री माँगा ली और प्रबींध होते ही अपने किया-कक्ष में चला गया!

मैंने और शमाि जी ने शमशान-भोग िे ने क े पचचात मदिरापान आरम्भ ककया! और तिोपरान्त मै अब मैंने अलि उठायी, अलि भोग दिया और चौमींडल-पज ू न आरम्भ ककया! अपना बत्रशल ू

वामावस्था में अपने घट ु नों पर रिा! अब मैंने अपना िबीस हाल्ज़र ककया! ये मेरा सबसे काबबल िबीस है ! इबु िबीस! इबु हाल्ज़र हुआ अँगड़ाई लेता हुआ! मैंने उसको उसका भोग दिया! उसको उसका उद्देचय बताया और इबु उड़ चला अपनी मींल्ज़ल की तरफ!

उसक े अनस े वल एक चेला था! चेला बाबा गाज़ी का!! बाबा गाज़ी एक औघड़ ु ार धौर्लया तो क हमारा सामना धौर्लया से नहीीं बाबा गाज़ी से था! मैंने इबु को और भोग दिया और इबु लोप हुआ!

करीब पींद्रह र्मनट क े बाि इबु वावपस आया! उसने जो बताया वो है रान कर िे ने वाला था!

था! रहता वहीीँ धौलपर े अब ु में परन्तु र्मलता ककसी से नहीीं था! बस, यही जानकारी र्मली मझ ु !

अब मै बाहर आया, स्नानादि से तनबट कर मै शमाि जी क े पास पहुींचा! उन्हें इस असर्लयत से वाककफ करवाया! उनको भी अब चचींता हुई! उन्होंने कहा, "इसका अथि ये हुआ कक ये गाज़ी बाबा भी उस से र्मला हुआ है " "कह नहीीं सकते शमाि जी" मैंने कहा, "गरु ु जी, यदि धौर्लया कमीन है तो ये साला गाज़ी महाकमीन है !" उन्होंने कहा, "ऐसा भी तो हो सकता है, कक गाज़ी को पता ही ना हो?" मैंने कहा, "हो सकता है ऐसा भी, लेककन मझ ु े नहीीं लगता" वे बोले, "तो शमाि जी, तैयार हो जाइये!" मैंने कहा, "मै तो तैयार हूँ!" उन्होंने कहा, "कल िे खिये, कल क्या होता है !" मैंने कहा, "आपका मतलब रूचच से है?" उन्होंने पछ ू ा, "हाँ!" मैंने कहा,

"िे िते हैं, धौर्लया क्या करता है?" वे बोले, "हाँ, अब कल ही पता चलेगा" मैंने कहा! कफर हम इस ववर्य पर बातें करते रहे और कफर तनन्द्रालीन हो गए!

सब ु ह हुई! करीब िस बजे श्रीमती महाजन का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कक रूचच अब ठीक हो गयी है ऐसा लगता है! ये िबर थी तो प्रसन्नता वाली, पर इसक े पीछे एक िेल चल फ़ोन काट दिया!

रहा था! और इसका खिलाड़ी था धौर्लया और मोहरा थी रूचच! क े शमाि जी ने ु छ िे र बात करक करीब तीन दिन बीत गए! रूचच ठीक थी, व्यवहार सामान्य हो गया था! परन्तु मेरे ह्रिय

में कहीीं शींका का पौधा धीरे धीरे वक्ष र का रूप ले रहा था! तीन दिन और सक ु ू न से बीते!

ने घर में आतींक काट दिया है, अनाप-शनाप बक रही है, अपना िरवाज़ा बींि कर रिा है, और अजीब अजीब सी भार्ा बोल रही है, वो अभी आ रहे हैं मेरे पास! जो शींका मेरे ह्रिय में थी, वो अब वक्ष ु ी थी! फल भी आ गए थे उसमे तो अब! र बन चक थी! मै और शमाि जी फ़ौरन ही िौड़ पड़े रूचच क े घर!

कफर अगली रात करीब िो बजे मेरे पास शमाि जी का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कक रूचच

शमाि जी मेरे पास कोई पौन घींटे में आ गए, मै तैयार हो चक ु ा था और तैयारी भी कर ली

रूचच क े घर पहुींचे तो बाहर भी क ु छे क पडोसी िड़े र्मले, ये तमाशबीन लोग होते हैं, जो िस ू रे की व्यथा में आनींि महसस ू करते हैं! हम फ़ौरन ही अन्िर गए! श्रीमती महाजन रोती हुई आयीीं हमारे पास! उनका बेटा बे हतप्रभ था! मैंने िे र ना की, फ़ौरन ही उसक े कमरे की तरफ बढ़ा! जैसे ही उसक े कमरे क े िरवाज़े पर िड़ा हुआ, शाल्न्त छा गयी वहाँ! "रूचच?" मैंने आवाज़ िी! अन्िर से कोई आवाज़ नहीीं आई! "रूचच?" मैंने कफर से आवाज़ िी,

कोई आवाज़ ना आई और ना ही कोई हरक़त हुई! मैंने िरवाज़े को छ ु आ, और जैसे ही छ ु आ िरवाज़ा िुल गया अपने आप! अन्िर से मानव मल-मत्र े बाहर ही िड़े ू की बिबू आई! मै अन्िर गया, शमाि जी को अपने हाथ से इशारा करक रहने दिया, मेरे अन्िर जाते ही वहाँ का दृचय मैंने िे िा! रूचच पर् ि या नग्न थी, उसक े शरीर ू त पर, बालों पर, हाथों पर, ववष्ठा र्लपटी हुई थी! पलींग, फशि आदि पर मत्र ू बबिरा हुआ था! उसने मझ े िे िा और कफर िड़ी हो गयी! ु े घर ू क "रूचच?' मैंने आवाज़ िी उसको, उसने आँिें फाड़ क े घर े ू ा मझ ु ! "रूचच?" मैंने गुस्से से कहा, "कौन है त? ू " मैंने पछ ू ा,

उसने अपने चेहरे पर आये बाल अपने हाथों से साफ़ ककये और कफर जोर जोर से हीं सने लगी! अब वो नीचे झक ु ी, और ऐसी मद्र ु ा में हो गयी जैसे कोई बालक घट ु ने चलता है, वो धीरे

धीरे ऐसे चलती हुई मेरी तरफ आई, रुकी और बालक की तरह से रोने लग गयी!

कक ये कौन है परन्तु बबना पर् ि सींज्ञान र्लए प्रततवार करना अनच ू ु चत था अतः मैंने कफर से प्रचन िोहराया, "कौन है त? ू " उसने ऐसे भाव बनाए जैसे मेरा प्रचन सन ु ा ही ना हो! इस से पहले कक मै उस से और

वो मेरे सामने घट े बल बैठ गयी और बाल-ि ीं िन करने लगी! मै जान तो गया था ु नों क

प्रचन करता उसने िड़े हो कर मत्र ू -त्याग कर दिया! सच कहता हूँ र्मत्रो, यदि उस समय वहाँ कोई साधारर् व्यल्क्त होता तो बिबू क े मारे पछाड़ िा जाता, परन्तु मझ ु े इसका अनभ ु व है,

उसने मत्र ू -त्याग ककया और कफर से नीचे झक ु गयी, वो अपने हाथों को फशि में पड़े मत्र ू में छपका रही थी, िोनों हाथों को! कफर अपने हाथों को अपने सर क े बालों में पोंछ लेती थी! "कौन है हरामज़ािी त? ू " मैंने अब िोध से पछ ू ा, उसने कफर से ठहाका लगाया! "नहीीं बताएगी?" मैंने धमकाया उसे, "ठीक है, अब िे ि त! ू " मैंने कहा,

उसने गिि न दहला क े मना कर दिया! उसने मेरी बात सन े बैठ गयी! ु कर सीधा पलींग पर छलाींग लगाई! और आलती-पालती माक

अब मैंने शमाि जी को अन्िर बल ु ा र्लया! उन्होंने अन्िर आते ही जैसे ही दृचय िे िा, मींह ु में थक ू भर आया, वो सीधा भागे बाहर और थक ू कर आये कफर मेरे पास! "क्या हाल कर दिया इसका उस हरामज़ािे ने" उन्होंने कहा, "ककसने ककया, इसका अभी पता नहीीं" मैंने बताया, ख़याल नहीीं बस मिोन्माि!

वहाँ बबस्तर पर बैठी रूचच हीं स रही थी! ऐसे जैसे शराब पी कर मस्त हो गयी हो! कोई अब मैंने उस क े ऊपर एक मींत्र-प्रहार ककया और थक ू दिया! उसको जैसे ककसी ने जोर की

लात मारी हो, वो अपनी छाती िबाये पीछे लेट गयी और कफर गस् ु से में िड़ी हो गयी! और बोली, "जान प्यारी है तो तनकल जा यहाँ से" अब मै हीं सा! ठहाका लगाया! "तू मारे गी मझ े " मैंने हँ सते हुए कहा! ु ? "सन ु ा नहीीं?" उसने कहा,

"नहीीं सन ु ा, िब ु ारा बोल" मैंने कहा और कफर से ठहाका लगाया! "सलामती चाहता है तो भाग जा यहाँ से" उसने कहा, से कहा उसको! "सन ु हो हरामज़ािी! तझ ु े अगर भस्म ना होना हो तो अभी तनकल जा यहाँ से" मैंने भी गस् ु से अब वो हीं सी और बोली, "तू मझ ु े नहीीं पहचान रहा है?"

"पहचान गया हूँ तुझे मै रीं डी!" मैंने कहा, "पहचान गया तो भाग जा, जा छोड़ दिया तुझको" सन े कहा, ु े कफर हीं सक "भागँग ू ा मै नहीीं, क ु ततया! तू भागेगी!" मैंने कहा! "तू भगाएगा मझ े " उसने गुस्से से कहा, ु ?

"हाँ! मै!" मैंने कहा!

"अच्छा! िेलना चाहता है तू मझ ु से!" उसने कहा,

"तू िेलेगी ही नहीीं बल्ल्क नाचेगी भी अभी!" मैंने कहा,

अपने हाथ में डाल ली तनकाल कर! और कफर से उसको एक और मींत्र से अर्भमींबत्रत कर दिया! आग लगा िी हो! वो बबस्तर पर चगरी, कभी इधर करवट ले, कभी उधर! "अब बता हरामज़ािी?" मैंने कहा, "चला जा! चला जा!" उसने तड़पते हुए कहा! "मैंने कहा था, जाऊ ँ गा मै नहीीं, तू जायेगी!" मैंने कहा, "िून पी जाउीं गी तेरा!" मरीमरी आवाज़ से कहा उसने! ''अच्छा! िून पीयेगी त! े रुक जा!" मैंने कहा, ू वपलाता हूँ िून तझ ु ,

और कफर मैंने अपनी जेब से एक पोटली तनकाली, उसको िोल और अर्भमींबत्रत भस्म

और मैंने पास जाकर फ े ऊपर! वो ऐसे चचल्लाई जैसे उसपर तेल तछड़क कर ें क िी भस्म रूचच क

वो तडपी! अपना सर मारे बार बार बबस्तर पर और ऐसे चचल्लाये जैसे कोई बकरा ल्जबह होने से पहले डरता है!

मैंने कफर से भस्म तनकाली और उसको अर्भमींबत्रत कर कफर से बबिेर दिया उस पर! अब

"क्या हुआ? तनकल गयी हे कड़ी?" मैंने पछ ू ा, वो लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी जैसे उसकी जान कभी भी तनकल सकती है ! मींत्र-प्रहार ने अशक्त कर दिया था उसको! "अब बता? कौन है तू?" मैंने पछ ू ा, उसने!

"मै..................मै.............." उसने कहा और कम से कम बीस-पच्चीस बार ऐसा ही कहा "मींह ु िोल हरामज़ािी?" मैंने कहा,

"मत जला मत जला!" अब बोली वो!

"िे ि, अब अगर भस्म नहीीं होना चाहती तो फ़ौरन भाग जा यहाँ से!" मैंने कहा,

"जाती हूँ! जाती हूँ, जा रही हूँ!" वो चचल्लाई अब! और ऐसा कहते हुए उसने लेटे लेटे अपना पेट ऊपर ककया और कफर तेजी से नीचे कमर लगाई, उसने ऐसा कई बार ककया! कफर एक जोर का झटका िाया उसने और वो महामसानी तनकल गयी वहाँ से! ऐसा करते हुए उसने ववष्ठा त्याग कर दिया!

और शमाि जी बाहर आये वहाँ!

परन्तु अब रूचच ठीक हो गयी थी! मैंने घडी िे िी तो साढ़े पाींच का वक़्त हो चला था, मै बाहर आते ही श्रीमती महाजन रोते रोते आयीीं तो शमाि जी ने उनको दहम्मत बींधवा कर

शाींत करवाया और सारी बात कह सन े बारे में ु ाई, वे घबराई! उनको मैंने रूचच की साफ़-सफाई क बताया और कहा कक वो उसको नहलाएीं-धल ु ायें और सोने िें ! हम कफर िोपहर में आयेंगे िब ु ारा र्मलने! और हम वहाँ से तनकल आये!

रास्ते में शमाि जी ने कहा, "गरु ु जी, अब तो तोड़ डालो साले इस धौर्लया को, बस बहुत हुआ" "हाँ! आज मै करता हूँ ये शमाि जी!" मैंने कहा, "इन बहन क े ** को र्सिाना है सबक! साले हरामज़ािे !" वे बोले, "सबक नहीीं, इनका बोररया-बबस्तर बाँध िीं ग ू ा मै!" मैंने कहा, "आप िे िते रदहये अब!" मैंने कहा,

"गुरु जी, इस धौर्लया क े माँ को मै ***!!! इसक े ही सामने!" उन्होंने गुस्से से कहा, "माँ ** सालों की!" उन्होंने कफर से गुस्से से कहा, हरामजािों की!"

"शमाि जी, मै आज िोपहर को सबसे पहले सर े बाि बखिया उधेड़ िीं ग ँ गा, उसक ु क्षक्षत करू ू ा इन

र्लया, ये काले रीं ग का कपडा था, इसको फाड़कर मैंने सात कत्तर बनायीीं, और छह को मैंने करीब एक घींटा लग गया!

हम अपने स्थान पर आये वावपस, मै सीधा अपने कायि-स्थल में गया और एक कपडा

एक मींत्र से अर्भमींबत्रत ककया और सातवीीं को मैंने एक रक्षा-मींत्र से अर्भमींबत्रत ककया, इसमें में मै सीधा शमाि जी क े पास आया, वो उठे और बोले, "हो गया काम पर ू ा?" "हाँ शमाि जी, चर्लए अब, यमन ु ा ककनारे " मैंने कहा, तभी शमाि जी ने गाड़ी तनकाली, और हमने िौड़ लगा िी यमन े र्लए, कोई ु ा ककनारे जाने क

आधे-पौने घींटे में वहाँ पहुींच, े अब मैंने वो छह कत्तर अलग अलग कीकर क े पेड़ पर बाँध िीीं और कफर से वावपस आकर गाड़ी में बैठ गया! "चर्लए, अब अपने स्थान की ओर चलें हम" मैंने कहा, "ठीक है " वे बोले, हम वावपस आ गए कफर अपने स्थान पर!

की वो महामसानी ककसने भेजी थी रूचच क े ऊपर? धौर्लया ने या कफर बाबा गाज़ी ने?" रूचच की हालत बेहि िराब हो जाती शमाि जी" मैंने कहा, "हाँ, ये भी बात सही है " वे बोले,

चाय-आदि का प्रबींध ककया गया, चाय पीते पीते शमाि जी ने पछ ू ा,"गुरु जी, ये पता चला

"नहीीं, ये नहीीं पता चला, मझ े और िे र उसमे रहने से ु े उसको भगाना था सो भगाना पड़ा, उसक

"मै पता कर लँ ग ू ा, अभी सबसे पहले मझ ु े रूचच को सर ु क्षक्षत करना है, इस समय यही है प्राथर्मकता हमारी शमाि जी" मैंने कहा, "हाँ गुरु जी, सही कहा आपने" वे बोले,

और कफर उसको अमल में क ै से लाया जाए इस पर चचाि करते!

उसक े बाि हम इस ववर्य पर अनेकों बातें करते रहे , रर्नीतत बनाते, उसमे सींशोधन करते

िैर, िोपहर हुई, थोडा-बहुत आराम कर र्लया था, सो अब योजना थी रूचच क े घर जाने की और वो कत्तर उसकी कमर में बाँधने की, यही योजना बनाई और हम कफर से एक बार हमारी ही प्रतीक्षा कर रही थीीं!

रूचच क े घर क े र्लए प्रस्थान कर गए! श्रीमती महाजन को इसकी िबर कर िी गयी थी, वे भी हम वहाँ पहुींच, े साफ़-सफाई करा िी गयी थी, अब रूचच ठीक थी, अपनी माँ क े कमरे में सो रही थी, मैंने श्रीमती महाजन को वो कत्तर िी और कहा की ये कत्तर उसक े कमर में बाँध िील्जये, ऐसी कक िुले नहीीं, उसक े ऊपर कोई नहीीं आ सकता कफर! आते ही भाग जाएगा! उन्होंने फ़ौरन ही जाकर सोती हुई रूचच की कमर में वो कत्तर बाँध िी! अब रूचच ककसी भी लपेट-झपेट से सर ु क्षक्षत थी! परन्तु ये अस्थायी तनिान था, स्थायी गया था, मै अब इस समस्या का पर् ि तनिान कर सकता था! ू -

तनिान क े र्लए वार करने वाले को रोकना था! परन्त, ु इस से मझ ु े क ु छ समय अवचय र्मल अभी हम बात कर ही रहे थे कक रूचच की माँ क े पास रूचच क े वपता जी का फ़ोन आ

गया, उन्होंने सारी बातें तो बता ही िी थीीं पहले ही, मेरे बारे में भी बता दिया गया था, लेककन वो बात करना चाहते थे हमसे, सो, मैंने उनसे बातें कीीं, एक बाप का अपनी बेटी क े प्रतत प्रेम से मेरा ह्रिय भी द्रववत हो उठा, वो बेचारे रो रो क े गुहार लगा रहे थे, मैंने उन्हें समझा दिया और दहम्मत बींधवाई! उनको पर् ि या आचवस्त कर दिया! मैंने श्रीमती महाजन को चेताया कक ू त

हर र्लहाज से वे नीलू क े पररवार क े सींपक ि में न आयें, जब तक कक मै न कहूँ उनको, उन्होंने मेरी बात को बल दिया और मेरी बात मान ली!

अपना आवचयक सामान िरीिा और कफर तैयारी करने क े र्लए क ु छ आवचयक सामग्री भी िरीि ली, और हम वावपस आ गए!

अब उनसे वविा ली और वहाँ से वावपस चल पड़े हम अपने स्थान क े र्लए! रास्ते से हमने

बैठा! अपना बत्रशल ू सीधे हाथ की तरफ भर् ू म में गाड़ा, उसका नमन ककया और कफर अलि टुकड़े डाले! और कफर किया आरम्भ की!

िबीस तो क ु छ नहीीं कर सका था, हाँ उसने जानकारी काम की िी थी! अब मै किया में

उठाई, अलि-भोग दिया! उसक े बाि मैंने चमि-पत्र तनकाला, उस पर मैंने अर्भमींबत्रत अल्स्थ क े मेरे मींत्रजाप से वहाँ का स्थान गींज ु ायमान हो गया! मींत्रजाप ल्क्लष्ट से ल्क्लष्टतम होते

चले गए! ताींबत्रक-मींत्र कठोर ध्वतन वाले होते हैं, आप उनक े कान में पड़ते ही जान जायेंगे कक ये तामर्सक-मींत्र हैं! मै ककसी महा-शल्क्त का आह्म्वान कर रहा था, उस महा-शल्क्त की सहोिरी का आह्म्वान था

ये, भोग आदि पर् ू ि था वहाँ! करीब चार घींटे की अटूट साधना पचचात वो सहोिरी प्रकट हुई! मैंने उसका नमन ककया! और उसक े िशिन-मात्र से ही मझ ु में अथाह शल्क्त का सींचार हो गया! भोग अवपित ककया गया और कफर वो लोप हो गयी! जो मै चाहता था वो जान गया था! मझ ु पर उस समय! िड़ा होना तक मल् ु चकल लग रहा था! की किया से अवगत करवाया! "हाँ शमाि जी!" मैंने कहा, अब मै उठा वहाँ से! और कफर स्नानादि पचचात मै सीधे ही सोने चला गया, थकावट हावी थी मै प्रातःकाल उठा!तनत्य-कमों से फाररग होकर मै शमाि जी से र्मला और उनको गत-राबत्र

उन्होंने पछ ू ा, "गुरु जी, अब आगे?" "रूचच क े घर बात करू ँ ?" उन्होंने पछ ू ा,

"हाँ, क ै सी है वो, ततनक पछ ू लील्जये" मैंने कहा,

है ! घर में सभी प्रसन्न हैं! परन्तु नीलू क े वपता जी आये थे अपनी पत्नी क े साथ, रूचच को िे िने, अचधक बातें नहीीं की उन्होंने बस िे िा रूचच को और चले गए! "ये क्या करने आये थे?" उन्होंने फ़ोन काटते हुए पछ ू ा, "धौर्लया ने ही भेजा होगा उनको शमाि जी!" मैंने कहा,

तिोपरान्त शमाि जी ने रूचच क े घर फ़ोन ककया और पता चला कक रूचच एकिम से ठीक

"इस धौर्लया का प्रबींध कील्जये गुरु जी आप सबसे पहले!" वे बोले,

"हाँ करता हूँ इसका प्रबींध!" मैंने कहा, "क्योंकक जब तक ये नहीीं मानेगा, क ुछ न क ु छ करता ही रहे गा" वे बोले, "मै जानता हूँ शमाि जी" मैंने कहा, "अभी नहीीं!" मैंने कहा, "क्यों?" उन्होंने पछ ू ा, "तो कफर िे र ककस बात की है? चलें धौलपर ु ? कोई ज्यािा िर ू तो है नहीीं?' वो बोले,

"धौर्लया भी बेचन ै है ! वो आएगा दिल्ली, नीलू क े पररवार से र्मलने!" मैंने बताया, 'अच्छा! इसका मतलब उसको हम यहाँ धरिबोचें ग! े " उन्होंने कहा, "हाँ!" मैंने कहा, "लेककन गुरु जी वो कब आएगा?'' उन्होंने सवाल ककया, "मै बल ीं गा उसको!" मैंने कहा, ु ाऊ "क ै से?" उन्होंने अचरज से पछ ू ा,

"मै उस पर वार करू े बाि मै नीलू क े पररवार में से ककसी ँ गा! वो भौंचक्का रह जाएगा, उसक को मोहरा बनाऊ ीं गा!" मैंने उनको बताया! "वाह! ये योजना सही रहे गी" उन्होंने कहा और मस् ु क ु राए! इस िेल का!" मैंने कहा,

"कफर भी काम अधर ू ा रहे गा शमाि जी, हमे बाबा गाज़ी से भी तनपटना है! असली खिलाड़ी वही है "हाँ! ये बात तो है !" उन्होंने सहमतत जताई! उन्होंने सींशय जताया,

"गुरु जी? हो भी सकता है कक गाज़ी को इस बारे में गलत बताया गया हो धौर्लया द्वारा?" "हाँ, सींभव है " मैंने उत्तर दिया,

"बड़ी उलझी हुई कहानी है ये गरु ु जी!" वे बोले! "हाँ, है तो उलझी ही हुई" मैंने एक लम्बी साींस छोड़ते हुए कहा, "ये साल धौर्लया हाथ आ जाए तो सब पहे ली हल हो जायेगी!" उन्होंने कहा, "हाँ! अच्छा. शमाि जी?" मैंने कहा, "जी? कदहये?" उन्होंने पछ ू ा,

"आप श्रीमती महाजन को फ़ोन कील्जयेगा" मैंने कहा, "ककसर्लए गुरु जी?" उन्होंने पछ ू ा,

"उनसे पत े पास? या ककसी अन्य सिस्य की हो?" मैंने ू छए कक क्या नीलू की कोई फोटो है उनक पछ ू ा, "अच्छा! मै अभी पछ ू लेता हूँ" उन्होंने कहा, साथ! बस!!

शमाि जी ने तभी फ़ोन कर दिया, िबर र्मली कक नीलू की क े ु छ तस्वीरें हैं घर पर, रूचच क

ये काफी था! जो मै चाहता था वही हुआ था! ये पयािप्त था! "शमाि जी, आज आप जाइये वहाँ, या रूचच क े भाई को यहाँ बल ु ा लील्जये, वो फोटो लेता आये!" मैंने कहा, "जी, मै कह िीं ग ँ गा!" वे बोले, ू ा उसको, मझ ु े जाना पड़ा तो मै चले जाऊ "फोटो आते ही मै खिलाता हूँ इनको िेल!" मैंने कहा, "हाँ गुरु जी!" उन्होंने कहा, को!" मैंने बताया,

"फोटो आते ही, मै डराऊ ीं गा नीलू को और उसक े घरवालों को! हारक े वो बल ु ायेंगे उस धौर्लया "ये ठीक है अब!" उन्होंने कहा!

"ठीक है आप बात कर लील्जये उनसे" मैंने कहा,

"जी अभी करता हूँ" उन्होंने कहा! और कफर उन्होंने श्रीमती महाजन को फ़ोन कर दिया! उनका बेटा शाम तक वो तस्वीरें िे क े जाने वाला था! "गुरु जी?' उन्होंने पछ ू ा, "हाँ?" मैंने कहा, "जब धौर्लया यहाँ आएगा, तो गाज़ी क े सरीं क्षर् में होगा, है या नहीीं?" उन्होंने पछ ू ा, "हाँ होगा! परन्तु उस से कोई लाभ नहीीं उसको" मैंने बताया, "क ै से?" उन्होंने पछ ू ा,

"वो ऐसे, कक गाज़ी सोच रहा होगा कक उसकी कोई 'पकड' नहीीं है अभी तक, जबकक उसकी 'पकड़' हमने ले ली है!" मैंने कहा, "हाँ! हाँ! सही कहा आपने!" वो बोलते हुए मस् ु क ु राए! "अब चारा फ ीं सती है !" मैंने कहा, ें का जा चक ु ा है ! िे खिये मछली कब फ "अब तो फ ीं स ही जायेगी मछली गुरु जी!" वे बोले,

"कफर िे खिएगा आप" मैंने कहा,

"इस साले धौर्लया को एक बार मेरे सामने कर िे ना बस!" उन्होंने कहा, "हाँ! पक्का! साले का मै चेलापन तनकालँ ग ू ा!" मैंने कहा, "और मै साले की तनकालँ ग े ू ा हवा! कमीन इींसान ऐसा ही करता होगा ये, न जाने ककतनों क साथ इसने ऐसा ही ककया होगा इलाज क े नाम पर, क ु से से कहा! ु त्ता कहीीं का!" उन्होंने गस् "हाँ शमाि जी, ककतने तो न जाने बेचारे इज्ज़त बचाने क े र्लए बताते भी नहीीं होंगे" "इसीर्लए मै इस साले की माँ *** चाहता हूँ, हरामज़ािे , क ु त्ते की! साले को एक बार मेरे सामने िड़ा कर िे ना बस!" वो िोधावेश में बोले! "ऐसा ही होगा!" मैंने भी हीं स क े कहा!

बींगाल से! ये सार मामला मै ही िे िता हूँ, इसीर्लए मै उसक े साथ व्यस्त हो गया! शमाि जी मेरे कमरे में जाक े आराम करने लगे!

तिोपरान्त, एक और व्यल्क्त आ गया वहाँ, ये क ु छ आवचयक सामग्री लाता है असम और

कफर शाम हुई, शाम कोई साढ़े छह बजे करीब रूचच का भाई आ गया वहाँ, नीलू की तस्वीरें लेकर, ये पाींच थीीं! मैंने ले लीीं! और रि ली सींभाल कर! आज मेरा िेल शरू ु होना था! रूचच का भाई वावपस चला गया! बहुत सीधा सािा लड़का है वो! अपनी बहन को लेकर वो भी परे शान था! अब शमाि जी ने मझ े सर पर!" ु े कहा,"गुरु जी, आज तो फोड़ िो मटका साले इस धौर्लया क "आप िे िते जाइये शमाि जी आज!" मैंने कहा, हूँ!

वो उठे और मझ े स्नेह-भाव हैं! मै जानता ु े गले से लगा र्लया! आँिों में आींसू ले आये! ये उनक "मै ककतना सौभाग्यशाली हूँ गरु ु जी आपका साल्न्नध्य पाकर! मझ ु े से अचधक और मेरे र्सवा कोई नहीीं जान सकता ये!" उन्होंने कहा, जाता! अब छोडडये, सबसे पहले, आइये, योजना बनाएीं!" मैंने कहा, "उचचत है !" वे बोले,

"अरे शमाि जी! ये औघड़ आपक े र्सवा ककसी से बात भी नहीीं करता! न ककसी क े साथ आता, न

र्मत्रो, हमारे शमाि जी में मानवता क े भरी है! क्या मज़हब, क्या जात, क्या भेि! क ू ट-क ूट क ुछ नहीीं! बस मनष् ु य! यही है उनका वो अनमोल भाव, ल्जसकी वजह से मैंने उनको चन ु ा था! " शमाि जी, मै आज रात नीलू क े घर में कोहराम मचाने वाला हूँ" मैंने बताया,

"मचा िील्जये गुरु जी, अन्य कोई ववकल्प नहीीं है शेर्!" वे बोले, "ठीक है!" मैंने कहा, इसक े बाि मैंने क ु छ भोग-सामग्री आदि का प्रबींध ककया और कफर क ु छ प्रबल-मींत्र जागत र

ककये! उस समय नौ बजे थे राबत्र क े और मै ग्यारह बजे वहाँ उनको डराना चाहता था! मैंने नीलू का फोटो काट कर अलग ककया! अन्य व्यल्क्तयों से अलग ककया अथाित! रात क े ग्यारह बजे!

तस्वीर क े कपाल-पात्र में रिा, उस पैर शराब क े और रक्त क े छीींटे दिए और एक मींत्र पढ़ा!

मै अपने किया-कक्ष में गया! अलि उठायी और कफर अलि भोग दिया! मैंने नीलू की

कफर उस तस्वीर को तीन जगह से छे ि दिया, अब मैंने अपने एक महाप्रेत का आह्म्वान ककया! महाप्रेत प्रकट हुआ! रौद्र-रुपी प्रेत! मैंने उसको उसका भोग दिया और कफर मैंने उसको उसका उद्देचय बता कर रवाना कर दिया! उसक े ककसी का अदहत नहीीं करना था, बस डराना भर था!

महाप्रेत क ु छ ही क्षर्ों में वहाँ पहुींचा, उस समय राबत्र का एक बजा था! सभी तनल्चचन्त हो सो रहे थे! महाप्रेत ने सोती हुई नीले क े बाल जोर से पकड़ क े िीींच! े वो जाग पड़ी! आसपास िे िने लगी! कहीीं ककसी वास्तु में तो बाल नहीीं अटक गए? उसने हर सींभव प्रयास ककया समझने का, आखिर वहम या स्वपन जानकर कफर से लेट गयी! लेककन जब व्यल्क्त से साथ क ुछ अप्रत्यार्शत घटता है तब चेतन-मल्स्तष्क उसका कारर् ढूींढता है, जब वो सहज नहीीं रहता तो र्लए क़ ै ि हो जाती है ! यही नीलू क े साथ हुआ! नीींि उड़ चक ु ी थी उसकी! उसने करवट बिली! आँिें बींि कीीं! और तभी महाप्रेत ने उसक े सर पर हाथ फ े र दिया! अब तो वो चचल्ला पड़ी!

उसको भल े अवचेतन-मल्स्तष्क में सिा क े ू ने का प्रयास करने लगता है, परन्तु वो घटना उसक

चचल्ला क े भागी बाहर! उसक े माँ-बाप और भाई आये िौड़े िौड़े! नीलू क े मींह ु से शब्ि न तनकले!

बड़ी मल् े साथ घटा था! ये सन े तो उनक े होश उड़ गए! बड़ी ु चकल से उसने वो बताया जो उसक ु क दहम्मत करक े नीलू क े माँ-बाप नीलू क े कमरे में गए, वहाँ क ु छ न दििा उनको! और उधर नीलू क े साथ िड़े उसक े भाई को धक्का दिया महाप्रेत ने! अब वो चचल्लाया! जब उनक े माँ-बाप आये वहाँ तो महाप्रेत ने नीलू की माँ को चगरा दिया! वो मींह े बल चगरी नीचे! सर में चोट तो लगी ु क लेककन अचधक नहीीं! अब वो समझ गए कक घर में ज़रूर को अला-बला है ! तब नीलू क े वपता जी ने घर में रिी बाबा धौर्लया की िी हुई भस्म बबिेर िी! तब तक महाप्रेत वहाँ से जा चक ु ा था! मेरे पास हाल्जरी िे ने क े पचचात लोप हो गया था! जो मेरा उद्देचय था वो पर् ू ि हो चक ु ा था! नीलू क े घर में जैसे कोहराम सा मच गया! डर में मारे सभी र्सक ु ड़ने लगे थे!

अब मै किया-कक्ष से बाहर आया! स्नानादि से तनवत े पास गया! र हुआ और कफर शमाि जी क और शमाि जी को अब तक की ल्स्थतत से अवगत करा दिया! उनकी भी हीं सी छ ू ट गयी! अब क ु छ िे र बातें कीीं और कफर सोने चले गये!

हमे प्रतीक्ष थी कक कब नीलू क े माता-वपता धौर्लया को बताएीं ये सब और धौर्लया आये वहाँ! सब े माँु ह करीब ग्यारह बजे श्रीमती महाजन का फ़ोन आया, उन्होंने बताया कक नीलू क

बाप आये थे, कह रहे थे कक उनक े घर में भी कोई समस्या हो गयी है, और जहाीं से रूचच का इलाज करवाया है उनको एक बार बल ु वा र्लया जाए तो बदढ़या रहे गा! इस पर रूचच की माता आज, परसों आयेंगे, तब तक यदि हम आ जाएँ तो समस्या का तनवारर् हो जाए, इस पर श्रीमती महाजन ने उनको कह दिया कक हम तो बाहर गए हुए हैं कहीीं!!! परसों! अथाित िो दिन और िेल िेलना था इनक े साथ! "शमाि जी, अभी िो दिन और!" मैंने कहा, "हाँ जी" वे बोले, जी ने जब धौर्लया क े बारे में पछ े पास गए हैं ू ा तो उन्होंने बताया कक वो तो अपने गुरु जी क

"कोई बात नहीीं! िो दिन और मचाते हैं कोहराम!" मैंने कहा, "ठीक है!!" उन्होंने हीं स क े कहा, "अब मै आज दिन में भी िे िो क्या करता हूँ!" मैंने कहा, "नीलू क े वपता को छे ड़ो आप" उन्होंने सझ ु ाव दिया!

"ठीक है, आज नीलू क े वपता को दििवा िे ता हूँ अपना िबीस!" मैंने कहा! "कहीीं डर क े मारे मर न जाए! आप िबीस नहीीं कोई भत ू आदि भेज िील्जये!" उन्होंने कहा, कहा वो ही ठीक है !" मैंने कहा, "उचचत है गरु ु जी! वे बोले!

"हाँ हो भी सकता है, और अगर िबीस चचढ़ा तो समझो फ े रि िे गा! ठीक है, जैसा आपने ें ट क

जाते थे, कभी सामान चगर जाता था! आदि आदि! धौर्लया बाबा को िबर तो कर ही िी गयी थी, अतः उसने एक दिन बाि आने को कह दिया! बस! यही चाहता था मै!

और कफर र्मत्रगर्! िो दिनों तक मैंने नीलू क े घर पर िब ू हल्ला काटा! कभी बतिन चगर

एक दिन बीता!

उसक े आने की िबर लग गयी थी! नीलू क े माँ-बाप उसक े पाँव में पड़ गए! रो रो क े सारा हाल सन ु ा दिया! धौर्लया ने तभी वहाँ एक छोटी सी जाींच-किया की! उसको पता चल गया कक वहाँ अवचय ही प्रेत का साया है! ये सन े माँ-बाप को तारे नज़र आ गए! धौर्लया ने ु कर तो नीलू क बताया कक ककसी ने उनक े घर पर इन्ही प्रेतों का वास करवाया है ! और वो जाींच लेगा कक ये ककसने भेजे हैं यहाँ! उसने तब एक सीताफल मींगवाया, एक थाल में र्सरका डाला, और उस

और कफर अगले दिन िोपहर क े समय धौर्लया आ गया वहाँ अपने एक चेले क े साथ! मझ ु े

सीताफल क े उसने इक्कीस टुकड़े ककये, एक एक टुकड़ा र्सरक े में डुबोकर अर्भमींबत्रत ककया और घर में वो थाल बीचोंबीच रिवा दिया! उसने क्षार-अवरोधन किया की थी! एक छोटी सी औघड़ी किया!

थे! सब े समय सोया िूब धौर्लया! अपनी सफलता में चर ु ह क ू ! लें अब मै उसको जाींचने वाला था! उस सब ु ह! अब मैंने शमाि जी को बल ु ाया अपने पास! वो एक घींटे में मेरे पास पहुँच गए! मैंने उन्हें जब धौर्लया सब े घरवालों को बताया कक उसकी ु ह उठा तो उसने उठते ही, उसने नीलू क

उस रात धौर्लया ने स्वयीं जागे जागे काटी! कोई प्रेत वहाँ आये क ै से? वो मैंने भेजे ही नहीीं

सारी ल्स्थतत से अवगत करा दिया! िेल अब शरू ु होना था!

किया से प्रेत यहाँ से भाग चक ु े हैं, अब नहीीं आयेंगे! ये सन ु राहत की साींस ली उन्होंने! और अब! अब, उस लड़की रूचच क े बारे में पछ ू ा उनसे! उन्होंने बताया कक उन लोगों ने रूचच का

इलाज ककसी और से करवा र्लया है और लगता है कक प्रेत का साया उस से समाप्त हो चक ु ा वो नहीीं आएगी अब, रूचच की माँ ने मना कर दिया है! धौर्लया तमतमा उठा!

है ! अब धौर्लया ने ल्जि पकड़ी उस लड़की रूचच को बल े माँ-बाप ने बताया कक ु वाने की! नीलू क उसने तभी फ़ोन र्मलाया! फ़ोन र्मलाया अपने गुरु गाज़ी बाबा को! काफी िे र बातें हुईं उसकी उस से! उसने गाज़ी बाबा से रूचच क े बारे में ही बात की थी! इसका अथि हुआ कक गाज़ी आज बैठेगा अलि में वहाँ! ये चचींता का ववर्य था अब! मैंने शमाि जी से कहा कक वो श्रीमती महाजन को फ़ोन करें कक वे आज रात को रूचच को

लेकर मेरे स्थान पर आ जाएँ, ये अत्यींत आवचयक भी है और अहम ् भी, उन्होंने तभी फ़ोन कर दिया उनको और समझा दिया, वे लोग नौ बजे तक आ जाने थे मेरे पास! तींत्राभर् ू र् आदि सब सस ु ल्ज्जत ककये! अब मैंने अपना किया-स्थल सजाया, सामग्री, आवचयक वस्तुएीं, माींस-मदिरा और अपने

मै बाहर आया, तो शमाि जी वहीीँ बैठे थे, मैंने कहा, "लील्जये शमाि जी आज हुआ है द्वन्ि आरम्भ!" "हाँ गुरु जी! इस धौर्लया और उस गाज़ी का आज बेड़ा ग़क़ ि !" उन्होंने कहा, "िे िते हैं शमाि जी, िे िते हैं गाज़ी में ककतना सामर्थयि है !" मैंने कहा, "न्याय सिै व ववजयी रहता है, औ आज भी यही होगा!" वो बोले, "सही कहा आपने!" मैंने कहा, "आज वो रूचच को तनशाना बनाएगा!" मैंने कहा, "और वो रक्षा-सत्र ू ?'' उन्होंने पछ ू ा, "गाज़ी जैसा औघड़ उसको भेि िे गा शमाि जी!" मैंने बताया, "हम्म! इसीर्लए आपने रूचच को यहाँ बल ु ाया है!" वे बोले, "हाँ! यहाँ मै झेलँ ग ू ा उसका वार!" मैंने कहा, "अच्छा गुरु जी!" वे बोले, हो तो बताइये?"

थोड़ी िे र शाींत रहे हम िोनों! कफर शमाि जी बोले,"गुरु जी? क ु छ सामान आदि की आवचयकता "नहीीं, अभी पयािप्त है सामान" मैंने कहा, "ठीक है " मैंने उत्तर दिया,

"अच्छा गुरु जी, मै अभी चलँ ग ँ गा" उन्होंने कहा, ू ा, नौ बजे से पहले आ जाऊ "और श्रीमती महाजन से क ु छ कहना हो तो बताइये?" वे बोले, "जी कह िे ता हूँ" उन्होंने कहा, मैंने चेताया,

"उनसे कदहयेगा कक एक जोड़ी कपडे लायें अततररक्त रूचच क े " मैंने बताया, "और हाँ, एक बात और, महाजन-पररवार ककसी भी तरह से नीलू क े पररवार से सींपक ि न करें " "जी कह िे ता हूँ" वे बोले, कफर उन्होंने बात की और सब क ु छ बता दिया! और चले गए! इधर मै अपनी तैयाररयों में जुट गया!

और करीब सवा नौ बजे श्रीमती महाजन रूचच और अपने बेटे क े साथ वहाँ आ गयीीं, नमस्कार आदि हुई, तिोपरान्त मैंने रूचच को उसकी माँ और भाई क े साथ एक अलग कमरे में बबठा

नौ बजने से पहले ही शमाि जी आ गए मेरे पास वहाँ, साथ में क ु छ 'प्रसाि' भी ले आये थे,

दिया, कह दिया कक वो कहीीं भी बाहर न तनकले! शमाि जी को ताक़ीि ककया कक वो रूचच कक ल्स्थतत पर नज़र बनाए रिें, उसे कहीीं भी बाहर न जाने िें , उन्होंने मान र्लया! अब मै अपने किया-स्थल क े र्लए चला, मैंने चमािसन लगाया, और अलि उठा िी! अलि

उठते ही भड़की! मैंने रौद्रनाि ककया! अलि भोग दिया! अपना बत्रशल ू , नमन कर भर् ू म में गाड़ दिया! और सामने पाींच थालों में माींस, मदिरा आदि परोस िी! अब मैंने एक चगलास में मदिरा

डाल कर, कच्ची कलेजी का टुकड़ा चबाया और चगलास गटक गया! अब मैंने कर्ि-वपशाचचनी का आह्म्वान ककया! मैंने मींत्रोच्चार आरम्भ ककया और महाभोग तैयार ककया! मझ ु े क ु छ समय लगा और कफर 'झनाक' की आवाज करती हुई, रौद्र-रुपी कर्ि-वपशाचचनी प्रकट हुई! मैंने भोग अवपित ककया उसको! अब मझ े प्रहार की! प्रकट हो लोप हुई! वो ु े कोई चचींता नहीीं थी उस बाबा गाज़ी क तत्पर थी! मै उस से प्रशन करता और मझ े उत्तर मेरे कर्ि-पटल पर र्मल जाते! ु े उनक मैंने बाबा गाज़ी पर ध्यान लगाया! कर्ि-वपशाचचनी से प्रचन ककये और उसक े तनिे शानस ु ार

प्रशस्त होता गया! गाज़ी की िबर आई, वो अपने दटल्ले पर आ बैठा था! साथ में एक और औघड़ भी था उसक े ! इसका नाम था गरुड़ नाथ! ये गरुड़ नाथ इसका प्रधान र्शष्य था!

िरअसल समस्त कायि ये गरुड़ नाथ ही करता था, गाज़ी मात्र तनिे शन करता था! गरुड़ नाथ ने पर ू ी तैयारी कर रािी थी! गाज़ी तक िबर आ चक ु ी थी! गाज़ी बेहि क ु शल और वचिस्व वाला हीं सा और अलि क े पास िड़ा हो कर मत्र ू -त्याग ककया! कफर उस गीली भर् ू म पर बैठ गया! पड़ता था! ल्जतनी मेरी आयु है उतनी तो उसकी साधना ही थी! उन िोनों ने एक लोटे में औघड़ था! गाज़ी ने मेरी िबर भी ले ली थी! उसे मेरे मींसब ू े भी ज्ञात हो गए थे! वो उस समय गीली र्मट्टी से स्वयीं अपना एवीं गरुड़ नाथ का मसान-टीका ककया! वो द्वन्ि में क ू ु शल मालम मदिरा डाली और आधा आधा लोटा िीींच गए! अब गरुड़ नाथ ने सप्त-भज ु पररिमा की अलि की और कफर एक जगह जा कर मत्र ू त्याग ककया! उसने भी र्मट्टी उठाई और अपने शरीर पर नेव िीींच डाले! ये नेव शत्रु प्रहार से रक्षा करते हैं िे ह की! कफर वावपस आया! अपना बत्रशल ू

उठाया और भर् ू म में गाड़ दिया! अब गरुड़ ने एक झोले से क ु छ कपडे में र्लपटा हुआ सामान तनकाला! उसने धीरे से इसका कपडा हटाया, ये मेढ़े का सर था! अब उसने मेढ़े क े सर को एक

थाल में रिा और क े टुकड़े तनकाले अपने झोले से! उनको अर्भमींबत्रत ककया और ु छ अल्स्थयों क किया!

उस मेढ़े क े मींह ु , कान और सर पर वो टुकड़े रि दिए! ये शत्रु भेिन कायि होता है ! तीक्ष्र् मारर् जैसे मझ ु े पल-पल की िबर र्मल रही थी, ऐसे ही वो बाबा गाज़ी भी िे ि रहा था! वो

िे िता और अट्टहास लगाता!

मेढ़े का!

अब यहाँ मैंने सामान तनकाला! इस सामान में तीन सर थे मेरे पास िो बकरे क े और एक मैंने एक बकरे क े सर में से चाक़ ू की सहायता से उसकी आँिें बाहर तनकालीीं और थाल में

रि िीीं! कफर तीनों सरों क े जीभ बीच में से चीर िी, सपि-ल्जव्हा रूप में ! और अल्स्थ क े क ुछ

टुकड़े लेकर मैंने अर्भमींबत्रत कर उन तीनों क े मींह ु में डाल दिए! आज मै अपने साथ एक फरसा भी लाया था! ये फरसा तींत्र में एक ववर्भन्न आकार का होता है ! ये फरसा मैंने अपने बत्रशल े ू क साथ ही रिा था! अब मैंने मींत्रोच्चार आरम्भ ककया! मैंने अब महानाि ककया और बत्रशल ू भर् ू म से उिाड़ा! अलि की पररिमा की और कफर से

बत्रशल ू भींजन-मद्र ु ा में गाड़ दिया वहाँ! मै वहाँ से हटा और एक जगह जाकर मत्र ू -त्याग ककया! कफर वहाँ की र्मट्टी ली और उस र्मट्टी को चारों दिशाओीं में फ ें क दिया!

में फ ें क दिया था! इसका अथि था मै जमघड़ शमशानी औघड़ था!! उसने तार्लयाँ पीटीीं! गरुड़ नाथ भी चौंका उसको तार्लयाँ पीटते िे ि! अब गाज़ी गरजा, "होम होम जींू जींू .....................................................!!!" गाज़ी ने अट्टहास लगाया! मैंने भी अट्टहास लगाया!

ये िे ि गाज़ी थोडा चौंका! वो इसर्लए कक मैंने उसक े नेव नहीीं िीींच! े बल्ल्क चारों दिशाओीं

यहाँ मै गरजा, "होम होम जींू जींू ख्राम...................................................!!!"

गाज़ी ने भर् ू म पर बैठे बैठे अपने िोनों हाथ आगे बढाए कफर िड़ा हुआ और अपना बत्रशल ू लेकर उसको उल्टा कर दिया! सपष्ट था, ये प्रथम चेतावनी थी कक अर्भ भी समय है मै हट जाऊ ीं उसक े रास्ते थे! मैंने एक कपाल उठाया! उसक े अन्िर मदिरा डाली और पी गया! कफर बत्रशल े ऊपर वो ू क

कपाल लटका दिया! अथाित मै नहीीं हटने वाला पीछे ! तन ू े हटना है तो अभी भी समय है ! नहीीं तो मत् ु वरर् करना होगा! र यगाज़ी अपनी जाँघों पे हाथ मारते हुए िहाड़ा! अट्टहास ककया! उसने माींस का एक टुकड़ा उठाया और उसको शराब में डुबोया! कफर अलि में डाल दिया! अलि चढ़चड़ा उठी उसकी! उसने उसकी भस्म से अब अपना वक्ष-स्थल पोता! यहाँ मैंने चचता-भस्म तनकाली और समस्त िे ह पर लीप र्लया उसको! कफर रक्त-पात्र से

रक्त अींजुल में लेकर पी गया! गीले हाथों से माथा सजा र्लया! रक्त-सज्जा अत्यींत महत्वपर् ू ि होती है तींत्र में र्मत्रो!

क े र्लए शाल्न्त हो गयी! ु छ पलों क

रात कोई सवा बारह बजे होंगे उस समय! अब गाज़ी उठा और उसने कपाल-कटोरे में शराब डाली! और मींत्र पढता हुआ सारी शराब गटक गया! उसने अपना बत्रशल े अपना बत्रशल ू उिाड़ा, तीन बार अलि-पररिमा की और मझ ु , ू थी! अब गाज़ी ने अलि-भोग िे ते हुए, नटनी का आह्म्वान ककया! नटनी बहुत आिान्त, शल्क्तशाली, िच े लोथड़ों से ु चर और िोधी होती है! गले में अल्स्थ-माल धारर् ककये, माींस क हर एक साधक क े बस की बात नहीीं है! इसकी साधना घोर और ल्क्लष्ट मानी जाती है ! ये

उठाक े चन ु ौती िे डाली! मैंने भी अपना बत्रशल ू उठाया और लहराया! मैंने चन ु ौती स्वीकार कर ली

सस े मि ु ल्ज्जत रहती है ! इसक ु से सिै व रक्त की धार टपकती रहती है! नटनी को र्सद्ध करना औघड़ गाज़ी बहुत शल्क्तशाली और प्रबल था, उसने सबसे पहले नटनी का ही आह्म्वान कर दिया था! मै उसक े इस नटनी-आह्म्वान से थोड़ा चककत हो गया था और ये स्वाभाववक भी था! मझ े आगमन से पहले उसकी काट करनी थी, अतः मैंने काल-रूपा का आह्म्वान ु े यहाँ नटनी क ककया! ये भी महाप्रबल, िोधी और भयावह होती है! उधर गाज़ी भी ववल्स्मत हुआ! तभी अचानक वहाँ एक रौशनी चमकी, सन ु हरी रौशनी! नटनी-सिी आने को थी! ये िे ि मैंने तुरींत ही काल-रूपा का मींत्रोच्चार तीव्र कर दिया! 'भम्म-भम्म' की आवाज़ आने लगी! वातावरर् में ताप बढ़ गया! वहाँ राबत्र-काल ववचरर् करते पक्षी, चमगािड़ भाग छ ू टे ! वे भयािाींत थे! घोर-शाल्न्त हुई परन्तु मेरे ह्रिय क े स्पींिन मै सन ु सकता था! 'काल-रूपा, क्लीम क्लीम...........' का उच्चारर् प्रबल हुआ! और तभी!

पर भयानक जोर पड़ा! ये िे िा अब गाज़ी ने! गरुड़ नाथ और गाज़ी अचींर्भत रह गए! वे मान गए कक सामने वाला भी कोई है!!!! अब मझ े वल गाज़ी क े वार की! नटनी ु े प्रतीक्षा थी तो क प्रकट हो गयी! गाज़ी और गरुड़ नाथ ने नमन ककया उसको! परन्तु गाज़ी ने नटनी को मझ ु

वज्र-िे ह वाली काल-रूपा की सिी यामा प्रकट हो गयी! मैंने नमन ककया! मेरे कर्ि-पटल

तक नहीीं पहुींचाया! बल्ल्क वावपस कर दिया! गाज़ी सब्र क े साथ लड़ना चाहता था! अब मैंने भी यामा को नमन कर वावपस ककया! मेरे शरीर में पन ु ः जीव-सींचरर् आरम्भ हुआ! गया, सत्तर-अस्सी वर्ि का ये प्रबल औघड़ अपनी हार नहीीं मानना चाहता था! उसने भर् ू म में उधर, गाज़ी ने अब गरुड़ नाथ को िड़ा ककया वहाँ से और स्वयीं अपने आसन पर बैठ

अपने बत्रशल े टुकड़े उस गड्ढे में ू से एक गड्ढा ककया और कफर उसमे शराब डाली, कफर माींस क डाले, अलि से तनकाल कर क ु छ जलते हुए कोयले डाले, कोयले डलते ही गड्ढे में आग भड़क गयी! उसने मींत्र पढना आरम्भ ककया! अपने बत्रशल ू को िोनों हाथों से उठाकर उसने मींत्रोच्चार अपना बत्रशल ू गाड़ दिया!

ककया! और कफर आग क े बझ े पास ु ते ही उसने वो गड्ढा र्मट्टी से ढाींप दिया! और वहाँ उसी क उसक े इस करत्य से मै भाींप गया कक उसका अगला चरर् क्या है! वो जो कर रहा था वो

अतत-तीक्ष्र् था! ये घींटक-बौने का आह्म्वान था! ककसी भी पल वो घींटक-बौना उसी गड्ढे से सर अनस े शत्रु का वेध करता! ये घींटक-बौना मात्र ढाई फीट का होता है ! परन्तु बेहि ु ार गाज़ी क

तनकालता बाहर आता और कफर गाज़ी का रक्तपान करने क े पचचात वो उसक े दिशा-तनिे शन क े चपल, िि े ु ाांत, िोधी और भयानक वार करने वाला! अच्छे से अच्छा ताींबत्रक भी घींटक-बौने क सामने अपनी हार स्वीकार कर लेता है और अपना जीवन बचा लेता है! घींटक-बौना सविप्रथम अपने आह्म्वान करने वाले क े रक्त से अपनी क्षुधा र्मटाता है और कफर बाि में साधक क े कायि में सफल होने पर स्त्री-सींसगि माींगता है ! नहीीं दिया तो समझो मत् र यु-तनल्चचत है साधक की! ये गाज़ी द्वारा की हुई ववचध उसी घींटक-बौने का आह्म्वान थी! मझ ु े घींटक-बौने को र्शचथल करना था, वो द्रत ु -गतत से चलता है ! अदृचय और चक्षु-हीन

होकर! सीधा अपने लक्ष्य पर वार करता है ! अपने शत्रे शरीर क े आर-पार चला जाता ु लक्ष्य क ही क्षर्ों में शत्रु धराशायी हो जाता है !

है ! जहाीं से गज ु रता है वहीीँ से िोिला कर िे ता है! अल्स्थयाँ भी काले रीं ग की हो जाती हैं! क ुछ उसको रोकने क े र्लए मझ ु े शोभना-सिी व्यत् ु पाला का आह्म्वान करना था! मैंने आसन

छोड़ा और अलि क े पास जाकर बैठ गया! बकरे की तनकाली हुई आँिें लीीं और उनको फोड़कर एक सए े साथ! इसको चक्षु-बल ु ँ से धागे में प्रोकर अपने गले में धारर् कर र्लया अर्भमन्त्रर् क कहा जाता है, कई अलौककक जो अदृचय रूप में रहती हैं, उनका साक्षात दृचय स्पष्ट हो जाता है ! यही मैंने ककया था! मैंने 'जीं जीं होम जीं. ू .................................." का अटूट मींत्रोच्चार ककया!

थी! शरीर में वाये साथ साथ भर् ु सींचरर् से शरीर भारी होता जाता था! मै मींत्रोच्चार क ू म पर तींत्र-चचन्ह अींककत करता जाता था अपने चारों ओर अपनी तजिनी ऊ ँ गली से! ये शोभना-सिी व्यत् े र्लए ककया जाता है ! ु पाला का आह्म्वान करने क

एक एक मींत्र क े साथ मेरी ध्वतन तीव्र होती जाती थी! मेरे शरीर में जैसे वायु भरती जाती

गड्ढे पर फ ें का! गड्ढे से चवेत-धम्र ू उठा और ज़मीन फाड़ता हुआ घींटक-बौना प्रकट हो गया! गाज़ी ने ठहाका लगाया! चीरा लगाया और टपकता हुआ रक्त घींटक-बौने को चटा दिया!

वहाँ गाज़ी ने अपने नेत्र िोले! नेत्र िोलते ही उसने अपनी मट्ठ ु ी में रक्त भरा और उस

घींटक-बौने ने एक अींगडाई सी ली! गाज़ी ने अपने हाथ क े अींगूठे में अपने चाक़ ू से एक

शाींत िड़ा हो गया! गाज़ी उस समय शाींत िड़ा हुआ आगे की रूप-रे िा बना रहा था! उसने औघड़ी-ववद्या से मझ ु े िे िा!

रक्त चाटने क े साथ ही गाज़ी ने कफर से अट्टहास ककया! वो घींटक-बौना हवा में उठा और

दिए! उसका भेजा तनकाला और एक पात्र में रि दिया! मैंने कफर से मींत्रोच्चार ककया! और आधा सर मैंने अलि से तनकाली हुई एक बड़ी सी लकड़ी पर रि दिया! वायम ु ींडल में भन ू ते हुए माींस की गींध फ़ ै ल गयी! यही समय होता है और ऐसा ही माहौल जब शोभना-सिी व्यत् ु पाला का

यहाँ मैंने घोरतम मींत्रोच्चार करक े फरसा उठाया और कफर मेढ़े क े सर पर मार िो फाड़ कर

आगमन होना होता है तो! तभी 'तराड' जैसी तेज आवाज़ हुई! मैंने ऊपर िे िा! अनप ु म-प्रकाश वाली व्यत् े औघड़ ने र्सद्ध करवाई थी! मैंने ु पाला प्रकट हो गयी! ये व्यत ु पाला मझ ु े एक असम क िोनों हाथ जोड़ कर उसका नमन ककया! उचचत समय पर व्यत ु पाला प्रकट हो गयी थी! परन्तु उसी समय जब 'तराड' की आवाज हुई थी, घींटक-बौना गाज़ी से तनिे श ले कर चल पड़ा था शत्रु भेिन को! मैंने िर ू आकाश में घींटक-बौना आते िे िा! वो तीर की भाींतत नीचे आया और आते ही

दठठक गया! उसने व्यत े यहाँ ु पाला को िे िा और वावपस हुआ उसी क्षर्! वो प्रकट हुआ गाज़ी क और फ़ौरन से उसी गड्ढे में समा गया! ये िे ि गाज़ी और गरुड़ नाथ ने झटका िाया! घींटकबौना वावपस चला गया था! बबना शत्रु भेिन ककये! गाज़ी ने आँिें बींि कीीं और सारी सच्चाई से अवगत हो गया! अब उसने पाँव पटक े ! पास

पड़े बतिनों में ठोकरें मारीीं! गस् े और मट्ठ ु से में गार्लयाँ िीीं मझ ु ! ु ी भीींचे अपनी छाती पर मारीीं! से भागा और करीब पाींच र्मनट में वावपस आया, वो अपने स्थान से क ु छ लाया था, काली

उसक े गुस्से ने भयानक रूप र्लया! उसने चचल्ला क े गरुड़ नाथ से क ु छ माँगा, गरुड़ नाथ वहाँ पन्नी में र्लपटा हुआ! गाज़ी ने गुस्से उस पन्नी को फाड़ा! उस पन्नी में से उसने बकरे की ततल्ली तनकाली और उसक े टुकड़े करने लगा! उसने उसक े कई टुकड़े ककया! ये िरअसल मेरा

मारर् था! उसने अपना आसन उठाया और अलि क े पास रि दिया! कफर उसने उसने अपने

बत्रशल े टुकड़े लगाए और कफर उनको आग में भन ू पर उस माींस क ू ा! जब उसने तो टुकड़े भन ू र्लए तो उसने िो टुकड़े गरुड़ नाथ को खिला दिए! गरुड़ नाथ वो टुकड़े िाता जाता और उस पर नशा हावी होता जाता! ये गाज़ी क े अहम ् चाल थी! वो गरुड़ नाथ क े अन्िर ककसी शल्क्त शराब से भरा एक चगलास गरुड़ नाथ क े मींह ु पर लगाया और उसको वपला दिया! गरुड़ नाथ आसन पर लेट गया!

को जागत र करना चाहता था और उस से मेरा मारर्! बेहि चालाक औघड़ था ये गाज़ी! गाज़ी ने

नाथ क े होंठों पर अपनी ऊ ँ गली, रक्त से डुबोई हुई लगाता जाता था! कफर अचानक उसने एक अट्टहास ककया और िड़ा हो गया! िड़ा हो कर वो गरुड़ नाथ की छाती पर चढ़ गया! अब गरुड़ नाथ ने तेज तेज साँसें भरीीं! गाज़ी उतरा और अपना चचमटा िडकाया! बड़बड़ाते हुए गरुड़ नाथ बैठ गया! मींह े सामने और रक्त क े ु िुला हुआ और आँिें पर ू ी फटी हुईं! अब गाज़ी बैठा उसक छीींटे डालता गया उस पर! वो जैसे चचींघाड़ता! और कभी लेट जाता और कभी बैठ जाता! कभी हँ सता और कभी रोता! मै समझ गया था! गाज़ी ने अब कौन सी चाल चली है ! उसने अपना मै इसको महाप्रेत ही कहूँगा) बल ु ा र्लया था! अब मै और अचधक मस् ु तैि हुआ! तभी मझ ु े िबर लगी कक वो मेरा मारर् नहीीं, बल्ल्क रूचच का मारर् करे गा परोक्ष रूप में ! ये मेरे र्लए चचींता का ववर्य था!

अब गाज़ी ने कफर से मींत्र पढने आरम्भ ककये! और प्रत्येक मींत्र की समाल्प्त पर वो गरुड़

एक महाभट्ट महाप्रेत( इस शल्क्त का मै नाम नहीीं ले सकता, और ये उचचत भी नहीीं, इसीर्लए

ववद्या से पोवर्त ककया और उसक े बीच में रूचच की तस्वीर रि िी, क े छीींटे दिए ु छ रक्त क और इस प्रकार रक्षर्-ववद्या जागत र हो गयी! वहाँ गाज़ी ने भोग लगवाया गरुद्नाथ क े अन्िर समाये हुए महाप्रेत को! वातािलाप हुआ उनक े बीच और महाप्रेत उसको छोड़ चला पड़ा अपने गींतव्य की ओर!

मैंने तब रक्षर्-ववद्या जागत र की और ज़मीन पर एक घेरा बनाया! उस घेरे को उस रक्षर्-

वो यहाँ पहुींचा! मझ े से काम ु े िबर लगी! ये जो महाप्रेत था ये बलशाली, यल् ु क्तपर् ू ि तरीक करने वाला महाभीर्र् था! जैसे ही वो शमशान की सरहि में आया, ठहर गया! रुक गया! उसने एक र्सींह सामान वो प्रबल महाप्रेत जायजा ले रहा था!

लक्ष्य की गींध ली! शमशान क े भत े वहीीँ क े वहीीँ िड़े हो गए! मग े झण् ू -प्रेत थम क ु ड में आये र ों क मैंने तब अपना तमींग-महाप्रेत हाल्ज़र कर र्लया! तमींग उस से कम नहीीं था! ये शमशान

का रक्षक है ! तमींग-महाप्रेत चल पड़ा उस आगींतुक से र्मलने! रक्षर्-ववद्या की गींध से वो वहीीँ जमा पड़ा था! मैंने तमींग को उस से लड़ने नहीीं बस उसका मागि रोकने क े र्लए भेजा था!

वहाँ गरुड़ नाथ अचेत पड़ा था! औए गाज़ी ध्यान लगाए बैठा था! यहीीं गाज़ी ने चक ू कर िी थी! और ये चक ू उसे अब महँ गी पड़ने वाली थी! अब मै बैठा अलि क े सामने! अब मै वार करना चाहता था गाज़ी पर! गाज़ी क े ध्यान का

तार उस समय अपने महाप्रेत से बींधा था और मझ ु से बेिबर था! जब बव ु द्ध साथ छोडती है तो उसक े लक्षर् पहले ही दििाई िे ने लगते हैं! गाज़ी क े साथ भी यही होना था अब! वहाँ गाज़ी आँिें मींि ू े , लक्ष्य-भेिन का इींतज़ार कर रहा था! मींत्र लगातार जपे जा रहा था! िो थाल रि दिया था गरुड़ नाथ क े ऊपर!

गया था मींत्रोच्चार में ! उसने भोग वाला थाल पहले से ही सजा क े रि दिया था थाल में ! और

अब झाग तनकालने लगा था! मैंने फ़ौरन कपाल-मार्लनी का आह्म्वान ककया! तमींग डटा हुआ था उस महाप्रेत क े सामने! न उसने पहल की और न ही िस ू रे ने! महाप्रेत गींध ले रहा था िड़ा िड़ा! तमींग वहीीँ जमा था! अमोघ-मारर् क े साने डट गया था! गाज़ी महाप्रेत को आगे बढाता पकड़ छ ू ट जाती है ! अब मेरे पास अवसर था, मैंने भोग आदि सस ु ल्ज्जत ककया! और कफर मदिरा का एक चगलास गटक कर माींस िा कर मैंने उसका आह्म्वान ककया! और मेरे शशाीं की सरहि पर आक े उसकी पकड़ छ ै से ू ट जाती! ये एक रहस्य है र्मत्रगर् कक क

गाज़ी का मत्रोच्चार तनरीं तर चल रहा था! वो गहन-ध्यान में था! गरुड़ नाथ नाक-मींह ु से

"घडाम" जैसे ध्वतन हुई! कपाल-मार्लनी क े सेवकगर् प्रकट हो गए! उसकी सहोिाररयाँ प्रकट हो गयीीं! मैंने तर ु ीं त ही उन्हें अपने मींत्रोच्चार से नमन ककया और तभी कपाल-मार्लनी कपाल-मार्लनी, मींड ु -माल धारर् ककये प्रकट हो गयी थी!

प्रकट हो गयी! रौद्र-रूवपर्ी, अत्यींत चयाम-वर्ी, रक्ताभ ल्जव्हा तनकाले, पीले गोल नेत्रों वाली मैंने मिोन्मत्त अवस्था में ककसी प्रकार से उसक े समक्ष िीं डवत हुआ! मैंने ततदहत्रा को, कपाल-मार्लनी की सेववका सहोिरी को अपना उद्देचय बता दिया! वे फ़ौरन लोप हुए! जा पहुींचे गाज़ी क े पास! गाज़ी का ध्यान टूटा, उसने गींध ली पारलौककक अल्स्तत्व की, वो िड़ा हुआ और चारों तरफ नज़र िौड़ायीीं उसने! अब जब तक वो ववमोचचनी का आह्म्वान करता तब तक कपाल-मार्लनी क े िो सेवकों ने उसका उठा क े फ ें का ज़मीन पर! वो कम से कम िस फीट हवा में उछला और धड़ाम से चगरा नीचे! गरुड़ नाथ को उसक े बालों से पकड़ कर फ े मारा ें क क दटल्ले से नीचे! वो वैसे ही अवचेतन अवस्था में था, उसका सर फट गया, हाथ टूट गए, लेककन मींह ु से एक आवाज़ नहीीं तनकली उसकी! गाज़ी, सत्तर-अस्सी साल का वो औघड़ उठा ककसी तरह से और कफर अपने हाथ जोड़ क े बैठ गया! उसकी हवाइयाीं उड़ गयीीं थीीं! मैंने तभी उनका

पक्ष-आह्म्वान ककया! वे वहाँ से लोप हुए! और मेरे समक्ष प्रकट हुए! मैंने उनको नमन कर, भोग चिा कर, िीं डवत होकर प्रर्ाम ककया! मेरे सर ऊपर उठाने तक वे लोप हो गए! था! अब मै िड़ा हुआ! ववजय नाि ककया! बत्रशल े चारों और ू उठाया और लहराते हुए अलि क नाचने लगा! औघड़-नत् र य! मिोन्मत्त तो था ही, ववजयोन्मत्त का रस-पान भी कर र्लया था! मैंने शाींत हुआ और अलि पर बैठा! अब बचा था वो धौर्लया!

मेरी ववजय हो गयी थी! गाज़ी ने हाथ जोड़ र्लए थे! वो हाथ जोड़ने क े बाि बेहोश हो गया

मैंने उसी समय तातार िबीस को हाल्ज़र ककया! तातार िबीस हाल्ज़र हुआ! उसने अपना भोग र्लया और मेरे बताये लक्ष्य की ओर उड़ चला!

जब तातार-िबीस पहुींचा वहाँ, उस समय राबत्र क े पौने चार बज चक ु े थे! धौर्लया छत पर बने कमरे में सो रहा था अपने चेले क े साथ इत्मीनान से! इत्मीनान इस्तना कक आज रात

गाज़ी बाजी जीत लेगा! सोते हुए धौर्लया को तातार ने उठाया उसकी कमर से, धौर्लया की जब तक चीि तनकलती तब तक उसकी कमर और सर ऊपर छत पर लग चक े मह ींु से ु े थे! उसक कराह तनकली! चेले की आँि िल ु ी तो उसने अपने गरु ु को अिा पलींग पर और आधा ज़मीन पर पाया! धौर्लया को क ु छ समझ न आया, अब जैसे ही चेला आगे बढ़ा िबीस ने एक लात

जमाई उसकी छाती पर! वो सीधा िरवाजे से बाहर गया और गस े िीवार से टकराया! ु लिाने क उठाया और उठाक े फ ें का िरवाजे से बाहर! अब धौर्लया रोया! घर में बाततयाँ जल पड़ीीं!

ककसी लाचार मनष् े बालों से पकड़ क े ु य की तरह चचलाया चेला! अब िबीस ने धौर्लया को उसक पड़ोर्सयों ने भी बल्त्तयाीं जल लीीं! िबीस ने एक बार कफर से उनका उठाया और फ े मारा ें क क साथ वाली िीवार पर! चेले का जबड़ा टूट गया और धौर्लया की पसर्लयाँ कड़कड़ा गयीीं! सर फट गया उसका! रक्त की धरा फ े मारे गराि रहा था और उधर धौर्लया ू ट पड़ी वहाँ! चेला ििि क बेहोश हो गया था! नीलू क े माँ बाप िौड़े िौड़े आये ऊपर, उन िोनों का हाल िे िा तो पाँव तले ज़मीन खिसक गयी उनक े ! रोना-पीटना शरू ु हो गया! कौन आया, ककसने मारा, ककसने पटका, उसका भोग िे वावपस कर दिया!

क े ठहाका मारा! मैंने उसको ु छ पता न चला! अब तातार उड़ा वावपस और आया मेरे पास! जमक ककस्सा ख़तम हो गया था! मै वहीीँ ज़मीन पर लेट गया! लेटे-लेटे अपने गुरु की वींिना की,

अघोर-परु ु र् का आभार जताया और अपने महा-ईष्ट की वींिना की! अश्रु र्लए आँिों में अलि

की ओर िे िा, मेरे अश्रु पर् ू ि नेत्रों में उसकी पीली पीली लपटें खझलर्मला गयीीं! यदि अलि बझ ु ी

तो समझो मत् र यु से साक्षात्कार हुआ उसी क्षर्! अलि अभी जवान थी! उन्मत्त! मैंने हाथ जोड़े अलि क े! बोतल िोलीीं और कलेजी चबाते हुए मै मदिरापान करने लगा! ववक्षक्षप्त-अवस्था क े मनष् ु य भाींतत मै हँ सता और कफर चचल्लाता, गाली-गलौज करता! गाज़ी, गरुड़ नाथ और धौर्लया को बार बार िड़े हो हर अपने बत्रशल ू से इशारा करता और कफर बैठ जाता! और जैसे ही गाज़ी का ख़याल आता मझ ु े ताप चढ़ जाता और मै गाली गलौज करता उन्हें ! मदिरा पीते पीते भत े र्लए टुकड़े फ ें क िे ता! भल ू आदि टोह लेटे तो मै उनक ू गया था वे मै उठा और अपने कीकर क े पेड़ क े नीचे एक बोरा बबछाया, उस पर बैठा, मदिरा की

ऐसे नहीीं िाते, लेककन मेरी अवस्था उन्मत्त अवस्था थी तब! कोई मझ ु से बात भी करता तो मै उसे भी गाली-गलौज कर िे ता! ये औघड़-मि है र्मत्रगर्!

प्रातःकाल शमाि जी वहाँ आये, मझ ु े अचेत समझ घबरा गए, आते ही मझ ु े पक ु ारा, एक बार, िो

मै नशे में धत् ु त वहीीँ लेट गया था! लेता तो तनन्द्रालीन हो गया! कोई होश नहीीं, सब सन् ु न!

बार! मैंने अपने नेत्र िोले और उठ क े िड़ा हुआ! कीकर और बेरी क े पेड़ क े पत्तों से सय ि रल्चम ू छन क े मझ ु े पर पड़ रही थी! उन्होंने अपना हाथ िे मझ ु े उठाया और मैंने कफर अपना क ु रता पहना तब! "सब क ू ा, ु शल तो है ना गुरु जी?" उन्होंने पछ

"हाँ! शमाि जी, वे तीनों हटा दिए गए हैं! शत्रु भेिन हो चक ु ा है! हम ववजयी हुए हैं!" "मझ ु े पर् ू ि ववचवास था गुरु जी" उन्होंने कहा, "अब रूचच को कोई ितरा नहीीं, वैसे क ै सी है अब?" मैंने पछ ू ा, "वो क ि है! अभी सो रही है " उन्होंने बताया! ू क ु शलपव

मझ ु े ये सन ु परम सींतोर् हुआ! मैंने वहाँ से अपना सामान उठाया और शमाि जी को िे दिया! और स्वयीं स्नान करने क े र्लए चला गया! वावपस आया अपने कमरे में स्नान-पचचात, राबत्र की सभी घटनाएीं याि आ गयीीं! जो क ु ा था! गाजी, धौर्लया और गरुड़ नाथ का क्या हुआ, ु छ हुआ था अब समाप्त हो चक ये मै पता करना चाहता था, पर सबसे पहले मै रूचच क े पास गया! उसने नमस्कार की, वो क ि थी, श्रीमती महाजन को शमाि जी ने सभी बातों से अवगत करा दिया गया था! ू क ु शलपव उन्होंने मेरा धन्यवाि ककया! मैंने अपना कत्तिव्य तनभा दिया था! ककसी मासम ू को गति में जाने से रोक र्लया था! परन्तु अफ़सोस, आज भी ऐसे ताींबत्रक हैं जो इसी काम-लोभ में आसक्त हैं!

र्मत्रगर्! रूचच आज ठीक है, उसक े माँ-बाप आते रहते हैं मेरे पास, जब भी रूचच क े वपता जी वविे श से वावपस आते हैं तो! गाज़ी ने जब कपाल-मार्लनी की सहोिरी क े समक्ष हाथ जोड़े थे, समपिर् ककया था, तभी

उसकी ववद्यायों का कीलन हो गया था! अब वो एक प्रकार से िाली ही था! गरुड़ नाथ क े साथ जो हुआ वो, वो बिािचत ना कर सका, वो वहाँ से चला गया था, धौर्लया क े पेट की आींतें फट गयी थीीं, उसको उसक े ककये का सबक र्मल गया था, आज तक पेट पर बेल्ट बाींधे रहता है, क े माँ-बाप ने उस दिन क े बाि से महाजन पररवार से कभी सींपक ि नहीीं ककया!

उसका र्मर्थया-सींसार धल े पास ही! नीलू ू धर्ित हो गया था, हाँ रहता वहीीँ है आज भी गाज़ी क र्मत्रो! शल्क्त कोई भी अल्जित कर सकता है, परन्तु उसको साधना अथाित उचचत सींतुलन

बनाना, हर एक क े बस की बात नहीीं! अपनी आयु क े चौथे चरर् में आया हुआ बाबा गाज़ी इसका उिाहरर् है! अभी भी कई गाज़ी, गरुड़ नाथ और धौर्लया अपना डेरा जमाये बैठे हैं, और मै उनक े

अपने समक्ष आने की ताक में बैठा हूँ! स्मरर् रहे , ववजय सिै व सत्य की ही होती है! असत्य डरा तो सकता है, हावी भी हो सकता है, परन्तु सिै व अल्स्तत्व-ववहीन होता है ! ----------------------------------------------------------------

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