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♡ एक नया संसार ♡

Author - Shubham Kumar


Editing - Siraj Patel

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आप सभी को मेरा नमस्कार दोस्ोों,,
इस साइट पर मैं अपनी एक स्टोरी शु रू करने जा रहा हूॅ, आशा करता हूॅ कक मेरी
स्टोरी आप सबको पसंद आएगी। मैं कोई ले खक नही ं हूॅ किर भी आप सभी बडे
ले खकों के सामने अपनी तरि से कुछ प्रस्तुत करने की कहम्मत कर रहा हूॅ।

आप सबका सहयोग तथा मागग दशग न ही मुझे कहानी को आगे बढाने में प्रेररत करता
रहेगा। आप सब मेरी कहानी के बारे में अपने किचार खुले कदल से तथा बेकझझक दे ते
रकहयेगा। मेरी ग़लकतयों पर पदाग डालने की बजाय मुझे उनसे अिगत कराते रकहएगा
कजससे मुझे और बे हतर कलखने में उससे मदद कमल सके।

अंत में यही कहूॅगा कक मैं रोजाना अपडे ट तो नही ं दे सकूॅगा ककन्तु आपको कनराश
भी नही ं करूॅगा। जब भी समय कमलेगा आपकी अदालत में अपडे ट हाक़िर करने की
पू री कोकशश करूॅगा।

धन्यिाद।

2
अपडे ट.......{01}

मेरा नाम विराज है , विराज वसों ह बघे ल। मुम्बई में रहता हूॅ और यहीों एक मल्टीनेशनल
कम्पनी में नौकरी करता हूॅ। कम्पनी में मेरे काम से मेरे आला अविकारी ही नहीों बल्कि मेरे
साथ काम करने िाले भी खु श रहते हैं । सबके सामने हसते मुस्कुराते रहने की आदत बडी
मुल्किल से डाली है मैंने। कोई आज तक ताड नहीों पाया वक मे रे हसते मुस्कुराते हुए चेहरे
के पीछे मैंने ग़मोों के कैसे कैसे अजाब पाल रखे हैं ।

अरे मैं कोई शायर नहीों हूों बस कभी कभी वदल पगला सा जाता है तभी शे रो शायरी वनकल
जाती है बेतुकी और बेमतलब सी। मेरे खानदान में कभी कोई ग़ावलब पैदा नहीों हुआ। मगर
मैं..????न न न न

अच्छा ये ग़जल मैंने खु द वलखी है जरा ग़ौर फ़रमाइए.....

वजन्दगी भी क्या क्या गुल ल्कखलाती है ।


वकतने ग़म वलए हाॅथ में मुझे बुलाती है ।।

कोई हसरत कोई चाहत कोई आरज़ू नहीों,


मेरी नीोंद हर शब क्योों ख़्वाब सजाती है ।।

खु दा जाने वकससे जुदा हो गया हूॅ यारो,


वकसकी याद है जो मुझे आॅस़ू दे जाती है ।।

मैंने तो हर स़ू फक़त अपने क़ावतल दे खे,


वकसकी मोहब्बत मुझे पास बुलाती है ।।

हर रोज ये बात प़ूॅछता हूों मौसमे वखजा से ,


वकसकी खु शब़ू साोंसोों को महका जाती है ।।

हा हा हा हा बताया न मैं कोई शायर नहीों हूों यारो, जाने कैसे ये हो जाता है .?? मैं खु द
है रान हूॅ।

छः महीने हो गए हैं मुझे घर से आए हुए। वपछली बार जब गया था तो हर चीज को अपने


वहसाब से ब्यिल्कथथत करके ही आया था। कभी कभी मन में खयाल आता है वक काश मैं
कोई सु पर हीरो होता तो वकतना अच्छा होता। हर नामुमवकन चीज को पल भर में मु मवकन
बना दे ता मगर ये तो मन के वसफफ खयाल हैं वजनका िास्विकता से द़ू र द़ू र तक कोई नाता
नहीों। वपछले दो सालोों में इतना कुछ हो गया है वक सोचता हूों तो डर लगता है । मैं िो सब
याद नहीों करना चाहता मगर यादोों पर मेरा कोई जोर नहीों।

माॅ ने फोन वकया था, कह रही थी जल्दी आ जाऊ उसके पास। बहुत रो रही थी िह,

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िैसा ही हाल मेरी छोटी बहे न का भी था। दोनो ही मेरे वलए मे री जान थी। एक वदल थी तो
एक मेरी िडकन। बात जरा गम्भीर थी इस वलए मजब़ूरन मुझे छु ट्टी लेकर आना ही पड रहा
है । इस िक्त मैं टर े न में हूॅ। बडी मुल्किल से तत्काल का ररजिेशन वटकट वमला था। सफ़र
काफी लम्बा है पर ये सफर कट ही जाएगा वकसी तरह।

टर े न में ल्कखडकी के पास िाली सीट पर बैठा मैं ल्कखडकी के बाहर का नजारा कर रहा था।
काम की थकान थी और मैं सीट पर लेट कर आराम भी करना चाहता था, इस वलए ऊपर
िाले बथफ के भाई साहब से हाॅथ जोड कर कहा वक आप मेरी जगह आ जाइए। भला
आदमी था िह तुरोंत ही ऊपर के बथफ से उतर कर मेरी जगह ल्कखडकी के पास बडे आराम
से बैठ गया। मैं भी जल्दी से उसकी जगह ये सोच कर बैठ गया वक िो भाई साहब मेरी
जगह नीचे बैठने से कहीों इों कार न कर दे ।

प़ूरी सीट पर लेटने का मजा ही कुछ अलग होता है । बडा सु क़ून सा लगा और मैंने अपनी
आों खें बोंद कर ली। आॅख बोंद करते ही बोंद आॅखोों के सामने िही सब वदखना शु रू हो
गया जो न दे खना मेरे वलए दु वनयाों का सबसे कवठन कायफ था। इन कुछ सालोों में और कुछ
वदखना मानो मे रे वलए कोई ख़्वाब सा हो गया था। इन बोंद आॅखोों के सामने जैसे कोई
फीचर वफल्म शु रू से चाल़ू हो जाती है ।

चवलए इन सब बातोों को छोोंवडए अब मैं आप सबको अपनी बोंद आॅखोों में चल रही वफल्म
का आॅखोों दे खा हाल बताता हूॅ।

जैसा वक मैं पहले ही बता चुका हूॅ वक मेरा नाम विराज है , विराज वसों ह बघे ल। अच्छे
पररिार से था इस वलए वकसी चीज का अभाि नहीों था। कद कठी वकसी भी एों गल से छः
फीट से कम नहीों है । मेरा वजस्म गोरा है तथा वनयवमत कसरत करने के प्रभाि से एक दम
आकर्फक ि बवलस्ठ है । मैंने ज़ूडो कराटे एिों मासल आटटफ स में ब्लै क बैल्ट भी हावसल वकया
है । ये मेरा शौक था इसी वलए ये सब मैंने सीखा भी था मगर मेरे घर में इसके बारे में कोई
नहीों जानता और न ही कभी मैंने उन्हें बताया।

मेरा पररिार काफी बडा है , वजसमें दादा दादी, माता वपता बहे न, चाचा चाची, बुआ फ़ूफा,
नाना नानी, मामा मामी तथा इन सबके लडके लडवकयाॅ आवद।

कहने को तो मैं इतने बडे पररिार का वहस्सा हूों मगर िास्ि में ऐसा नहीों है । खै र कहानी
को आगे बढाने से पहले आप सबको मैं अपने प़ूरे खानदान िालोों का पररचय दे द़ू ॅ।

मेरे दादा दादी का पररिार.....


गजेन्द्र वसों ह बघे ल (दादा67) एिों इन्द्राणी वसों ह बघेल (दादी60)
1, अजय वसों ह बघे ल (दादा दादी के बडे बेटे)(50)
2, विजय वसों ह बघे ल (दादा दादी के द़ू सरे बेटे)(45)
3, अभय वसों ह बघे ल (दादा दादी के तीसरे बेटे)(40)
4, सौम्या वसों ह बघे ल (दादा दादी की बडी बेटी)(35)
5, नैना वसों ह बघे ल (दादा दादी की सबसे छोटी बेटी)(28)

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1, अजय वसों ह बघे ल का पररिार.....
अजय वसों ह बघे ल (मेरे बडे पापा)(50)
प्रवतमा वसों ह बघे ल (बडे पापा की पत्नी)(45)
● ररत़ू वसों ह बघे ल (बडी बेटी)(24)
● नीलम वसों ह बघे ल (द़ू सरी बेटी)(20)
● वशिा वसों ह बघे ल (बेटा)(18)

2, विजय वसों ह बघे ल का पररिार....


विजय वसों ह बघे ल (मेरे पापा)(45)
गौरी वसों ह बघे ल (मेरी माॅ)(40)
● विराज वसों ह बघे ल (राज)....(मैं)(20)
● वनवि वसों ह बघे ल (मेरी छोटी बहे न)(^^)

3, अभय वसों ह बघे ल का पररिार....


अभय वसों ह बघे ल (मेरे चाचा)(40)
करुणा वसों ह बघे ल (मेरी चाची)(37)
● वदव्या वसों ह बघे ल (मेरे चाचा चाची की बेटी)(^^)
● शगुन वसों ह बघे ल (मेरे चाचा का बेटा जो वदमाग से वडस्टबफ है )(^^)

4, सौम्या वसों ह बघे ल का पररिार.....


सौम्या वसों ह बघे ल (मेरी बडी बुआ35) जो वक शादी के बाद उनका सर नेम बदल गया। अब
िो सौम्या वसों ह बस हैं ।
* राघि वसों ह (सौम्या बुआ के पवत और मेरे फ़ूफा जी)(38)
● अवनल वसों ह (सौम्या बुआ का बेटा)(^^)
● अवदवत वसों ह (सौम्या बुआ की बेटी)(^^)

5, नैना वसों ह बघे ल (मेरी छोटी बुआ 28) जो शादी के बाद अब नैना वसों ह हैं । इनकी शादी
अभी दो साल पहले हुई है । अभी तक कोई औलाद नहीों है इनके। नैना बुआ के पवत का
नाम आवदत्य वसों ह(32) है।

तो दोस्ोों ये था मेरे खानदान िालोों का पररचय। मे रे नाना नानी लोगोों का पररचय कहानी में
आगे द़ू ों गा जहाों इन लोगोों का पाटफ आएगा।

मेरे दादा जी के पास बहुत सी पुस्ैनी जमीन जायदाद थी। दादा जी खु द भी दो भाई थे ।
दादा जी अपने वपता के दो बेटोों में बडे बेटे थे । उनके द़ू सरे भाई के बारे में वकसी को कुछ
भी पता नहीों। दादा जी बताया करते थे वक उनका छोटा भाई राघिेन्द्र वसों ह बघे ल जब 20
िर्फ का था तभी एक वदन घर से कहीों चला गया था। पहले सबने इस पर ज्यादा सोच विचार
नहीों वकया वकन्तु जब िह एक हप्ते के बाद भी िापस घर नहीों आया तो सबने उन्हें ढ़ूॅढना
शु रू वकया। ये ढ़ूॅढने का वसलवसला लगभग दस िर्ों तक जारी रहा मगर उनका कभी कुछ
पता न चला। वकसी को ये भी पता न चल सका वक राघिेन्द्र वसों ह आवखर वकस िजह से घर

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छोोंड कर चला गया है ? उनका आज तक कुछ पता न चल सका था। सबने उनके िापस
आने की उम्मीद छोोंड दी। िो एक याद बन कर रह गए सबके वलए।

दादा जी उस जायदाद के अकेले हक़दार रह गए थे । समय गुजरता गया और जब मेरे दादा


जी के बेटे पढ वलख कर बडे हुए तो सबने अपना अपना काम भी सम्हाल वलया। बडे पापा
पढने में बहुत तेज थे उन्होोंने िकालत की पढाई प़ू री की और सरकारी िकील बन गए। मेरे
वपता जी पढने वलखने में हमेशा ही कमजोर थे , उनका पढाई में कभी मन ही नहीों लगता
था। इस वलए उन्होोंने पढाई छोोंड दी और घर में रह कर इतनी बडी जमीन जायदाद को
अकेले ही सम्हालने लगे। छोटे चाचा जी बडे पापा की तरह तो नहीों थे वकन्तु पढ वलख कर
िो भी सरकारी स्क़ूल में अध्यापक हो गए।

उस समय गाॅि में वशक्षा का बहुत ज्यादा क्रेज नहीों था। वकन्तु इतना कुछ जो हुआ िो सब
दादा जी के चलते हुआ था। आगे चल कर सबकी शावदयाों भी हो गई। बडे पापा सरकारी
िकील थे िो शहर में ही रहते थे , और शहर में ही उन्हें एक लडकी पसों द आ गई वजससे
उन्होोंने शादी कर ली। हलाॅवक बडे पापा के इस तरह शादी कर लेने से दादा जी बहुत
नाराज हुए थे । वकन्तु बडे पापा ने उन्हें अपनी बातोों से मना वलया था।

छोटे चाचा जी ने भी िही वकया था यावन अपनी पसों द की लडकी से शादी। दादा जी उनसे
भी नाराज हुए वकन्तु वफर उन्होोंने कुछ नहीों कहा। चाचा जी से पहले मेरे वपता जी ने दादा
जी की पसों द की लडकी से शादी की। मेरे वपता पढे वलखे भले ही नहीों थे लेवकन मेहनती
बहुत थे । िो अकेले ही सारी खे ती बाडी का काम करते थे और इतना ज्यादा जमीनोों से
अनाज की पैदािार होती वक जब उसे शहर ले जा कर बेचते तो उस समय में भी हजारो
लाखोों का मुनाफ़ा होता था।

मेरे वपता जी बहुत ही सों तोर्ी स्वभाि िाले इों सान थे । सबको ले कर चलने िाले ब्यल्कक्त थे ,
सब कहते वक विजय वबलकुल अपने बाप की तरह ही है । मेरी माॅ एक बहुत ही सु न्दर
लेवकन सािारण सी मवहला थीों। िो खु द भी पढी वलखी नहीों थी लेवकन समझदार बहुत थी।
मेरे माता वपता के बीच आपस में बडा प्रेम था। बडे पापा बडे ही लालची और मक्कार टाईप
के इों सान थे । िो हर चीज में वसफ़फ अपना फायदा सोचते थे । जबवक छोटे चाचा ऐसे नहीों थे ।
िो ज्यादा वकसी से कोई मतलब नहीों रखते थे । अपने से बडोों की इज्जजत करते थे । लेवकन ये
भी था वक अगर कोई वकसी बात के वलए उनका कान भर दे तो िो उस बात को ही सच
मान लेते थे ।

बडे पापा सरकारी िकील तो थे लेवकन उस समय उन्हें इससे ज्यादा आमदनी नहीों हो पाती
थी। िो चाहते थे वक उनके पास ढे र सारा पैसा हो और तरह तरह का ऐसो आराम हो।
लेवकन ये सब वमलना इतना आसान न था। वदन रात उनका वदमाग इन्हीों सब चीजोों में लगा
रहता था। एक वदन वकसी ने उन्हें खु द का वबजनेस शु रू करने की सलाह दी थी। लेवकन
वबजनेस शु रू करने के वलए सबसे पहले ढे र सारा पैसा भी चावहए था। वजसने उन्हे खु द का
वबजनेस शु रू करने की सलाह दी थी उसन उन्हें वबजनेस के सों बोंि में कुछ महत्वप़ूणफ
जानकारी भी दी थी।

कहानी जारी रहे गी,,,

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बडे पापा के वदमाग में खु द का वबजनेस शु रू करने का जैसे भ़ूत सिार हो गया था। िो रात
वदन इसी के बारे में सोचते। एक रात उन्होोंने इस बारे में अपनी बीिी प्रवतमा को भी बताया।
बडी माों ये जान कर बडा खु श हुईों। उन्होोंने बडे पापा को इसके वलए तरीका भी बताया।
तरीका ये था वक बडे पापा को खु द का वबजनेस शु रू करने के वलए दादा जी से पैसा
माॅगना चावहए। दादा जी के पास उस समय पैसा ही पैसा हो गया था ये अलग बात है वक
िो पैसा मेरे वपता जी की जी तोड मेहनत का नतीजा था।

अपनी बीिी की ये बात सु न कर बडे पापा का वदमाग दौडने लगा। वफर क्या था द़ू सरे ही
वदन िो शहर से गाॅि दादा जी के पास पहुों च गए और दादा जी से इस बारे में बात की।
दादा जी उनकी बात सु न कर नाराज भी हुए और पैसा दे ने से इों कार भी वकया। उन्होोंने कहा
वक तुमने अपनी नौकरी से आज तक हमें वकतना रुपया ला कर वदया है ? हमने तुम्हें पढाया
वलखाया और इस कावबल बनाया वक आज तुम शहर में एक सरकारी िकील बन गए तथा
अपनी मज़ी से शादी भी कर ली। हमने कुछ नहीों कहा। सोच वलया वक चलो जीिन तुम्हारा
है तुम जैसा चाहो जीने का हक़ रखते हो। मगर ये सब क्या है बेटा वक तुम अपनी नौकरी
से सों तुष्ट नहीों? और खुद का कारोबार शु रू करना चाहते हो वजसके वलए तुम्हें ढे र सारा पैसा
चावहए?

दादा जी की बातोों को सु न कर बडे पापा अिाकट रह गए। उन्हें उम्मीद नहीों थी वक दादा जी
पैसा दे ने की जगह ये सब सु नाने लगेंगे। कुछ दे र बाद बडे पापा ने उन्हें समझाना शु रू कर
वदया। उन्होोंने दादा जी को बताया वक िो ये वबजने स साइड से शु रू कर रहे हैं और िो
अपनी नौकरी नहीों छोोंड रहे । बडे पापा ने दादा जी को भविष्य के बारे में आगे बढने की
बहुत सी बातें समझाईों। दादा जी मान तो गए पर ये जरूर कहा वक ये सब रुपया विजय(मेरे
वपता जी) की जी तोड मेहनत का नतीजा है । उससे एक बार बात करना पडे गा। दादा जी
की इस बात से बडे पापा गुस्सा हो गए बोले वक आप घर के मावलक हैं या विजय? वकसी
भी चीज का फैसला करने का अविकार सबसे पहले आपका है और आपके बाद मेरा क्योोंवक
मैं इस घर का सबसे बडा बेटा हूों । विजय होता कौन है वक आपको ये कहना पडे वक
आपको और मुझे उससे बात करना पडे गा?

बडे पापा की इन बातोों को सु नकर दादा जी भी उनसे गुस्सा हो गए। कहने लगे वक विजय
िो इों सान है वजसकी मेहनत के चलते आज इस घर में इतना रुपया पैसा आया है । िो तुम्हारे
जैसा ग्रेजुएट होकर सरकरी नौकरी िाला भले ही न बन सका लेवकन तुमसे कम नहीों है िह।
तुमने अपनी नौकरी से क्या वदया है कमा कर आज तक ? जबवक विजय ने वजस वदन से
पढाई छोोंड कर जमीनोों में खे ती बाडी का काम सम्हाला है उस वदन से इस घर में लक्ष्मी ने
अपना डे रा जमाया है । उसी की मेहनत से ये रुपया पैसा हुआ है वजसे तुम माॅगने आए हो
समझे ?

दादा जी की गुस्से भरी ये बातें सु न कर बडे पापा चुप हो गए। उनके वदमाग में अचानक ही
ये खयाल आया वक मेरे इस प्रकार के ब्योहार से सब वबगड जाएगा। ये खयाल आते ही
उन्होोंने जल्दी से माफी माॅगी दादा जी से और वफर दादा जी के साथ मेरे वपता जी से

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वमलने खे तोों की तरफ बढ गए।

खे तोों में पहुॅच कर दादा जी ने मेरे वपता जी को पास बुला कर उनसे इस बारे में बात की
और कहा वक अजय(बडे पापा) को खु द का कारोबार शु रू करने के वलए रुपया चावहए। इस
पर वपता जी ने कहा वक िो इन सब चीजोों के बारे में कुछ नहीों जानते आप जो चाहें करें ।
आप घर के मुल्कखया हैं हर फैसला आपको ही करना है । वपता जी की बात सु न कर दादा जी
खु श हो गए। उन्हें मेरे वपता जी पर गिफ भी हुआ। जबवक बडे पापा मन ही मन मेरे वपता
को गावलयाों दे रहे थे ।

खै र उसके बाद बडे पापा ने खु द का कारोबार शु रू कर वदया। वजसके उदट घाटन में सब
कोई शावमल हुआ। हलावक उन्होोंने मेरे माता वपता को आने के वलए नहीों कहा था वफर भी
मेरे माता वपता खु शी खु शी सबके साथ आ गए थे । दादा जी के प़ूछने पर बडे पापा ने बताया
था वक एक शे ठ की िर्ों से बोंद पडी कपडा मील को उन्होोंने सस्े दामोों में खरीद वलया है
अब इसी को नए वसरे से शु रू करें गे। दादा जी ने दे खा था उस कपडा मील को, उसकी
हालत खराब थी। उसे नया बनाने में काफी पैसा लग सकता था।

च़ूॅवक दादा जी दे ख चुके थे इस वलए मील को सही हालत में लाने के वलए वजतना पैसा
लगता दादा जी दे ते रहे । करीब छः महीने बाद कपडा वमल सही तरीके चलने लगी। ये अलग
बात थी उसके वलए ढे र सारा पैसा लगाना पडा था।

इिर मेरे वपता जी की मेहनत से काफी अच्छी फसलोों की पैदािार होती रही। िो खे ती बाडी
के विर्य में हर चीज का बारीकी से अध्ययन करते थे । आज के पररिेश के अनुसार वजस
चीज से ज्यादा मुनाफा होता उसी की फसल उगाते। इसका नतीजा ये हुआ वक दो चार सालोों
में ही बहुत कुछ बदल गया। मेरे वपता जी ने दादा जी की अनुमवत से उस पुराने घर को
तुडिा कर एक बडी सी हिेली में पररिवतफत कर वदया।

कहानी जारी रहे गी,,,,,

हलाॅवक दो मोंवजला विसाल हिेली को बनिाने में भारी खचाफ लगा। घर में वजतना रुपया पैसा
था सब खतम हो गया बाॅवक का काम करिाने के वलए और पैसोों की जरूरत पड गई।
दादा जी ने बडे पापा से बात की लेवकन बडे पापा ने कहा वक उनके पास रुपया नहीों है
उनका कारोबार में बहुत नुकसान हो गया है । दादा जी को वकसी के द्वारा पता चल गया था
वक बडे पापा का कारोबार अच्छा खासा चल रहा है और उनके पास रुपयोों का कोई अभाि
नहीों है ।

बडे पापा के इस प्रकार झ़ूॅठ बोलने और पैसा न दे ने से दादा जी बहुत दु खी हुए। मेरे वपता
जी ने उन्हें सम्हाला और कहा वक ब्यथफ ही बडे भइया से रुपया माॅगने गए थे । हम कोई
द़ू सरा उपाय ढ़ूोंढ लेंगे।

छोटे चाचा स्क़ूल में सरकारी वशक्षक थे । उनकी इतनी सै लरी नहीों थी वक िो कुछ मदद कर

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सकते। मेरे वपता जी को वकसी ने बताया वक बैंक से लोोंन में रुपया ले लो बाद में ब्याज के
साथ लौटा दे ना।

उस आदमी की इस बात से मेरे वपता जी खु श हो गए। उन्होोंने इस बारे में दादा जी से बात
की। दादा जी कहने लगे वक कजफ चाहे जैसा भी हो िह बहुत खराब होता है और वफर इतनी
बडी रकम ब्याज के साथ चुकाना कोई गुड्डा गुड्डी का खे ल नहीों है । दादा जी ने कहा वक घर
का बाकी का बचा हुआ कायफ बाद में कर लेंगे जब फसल से मुनाफ़ा होगा। मगर मेरे वपता
जी ने कहा वक हिेली का काम अि़ू रा नहीों रहने द़ू ों गा, िो हिेली को प़ूरी तरह तैयार करके
ही मानेंगे। इसके वलए अगर कजाफ होता है तो होता रहे िो जमीनोों में दोगुनी मेहनत करें गे
और बैंक का कजफ चुका दें गे।

दादा जी मना करते रह गए लेवकन वपता जी न माने। सारी काग़जी कायफिाही प़ूरी होते ही
वपता जी को बैंक से लोोंन के रूप में रुपया वमल गया। हिेली का बचा हुआ कायफ वफर से
शु रू हो गया। मेरे वपता जी पर जैसे कोई जुऩून सा सिार था। िो जी तोड मेहनत करने लगे
थे । जाने कहाों कहाों से उन्हें जानकारी हावसल हो जाती वक फला फसल से आजकल बडा
मुनाफ़ा हो रहा है । बस वफर क्या था िो भी िही फसल खे तोों में उगाते।

इिर दो महीने के अन्दर हिेली प़ूरी तरह से तैयार हो गई थी। दे खने िालोों की आों खें खु ली
की खु ली रह गईों। हिेली को जो भी दे खता वदल खोल कर तारीफ़ करता। दादा जी का वसर
शान से उठ गया था तथा उनका सीना अपने इस वकसान बेटे की मेहनत से वनकले इस फल
को दे ख कर खु शी से फ़ूल कर गुब्बारा हुआ जा रहा था।

हिेली के तैयार होने के बाद दादा जी की अनुमवत से वपता जी ने एक बडे से भण्डारे का


आयोजन वकया वजसमें सम्प़ू णफ गाॅि िावसयोों को भोज का न्यौता वदया गया। शहर से बडे
पापा और बडी माॅ भी आईों थीों।

बडे पापा ने जब हिेली को दे खा तो दे खते रह गए। उन्होोंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी वक


उनका घर कभी इस प्रकार की हिेली में पररिवतफत हो जाएगा। वकन्तु प्रत्यक्ष में िे हिेली को
दे ख दे ख कर कहीों न कहीों कोई कमी या वफर ग़लती वनकाल ही रहे थे । बडी माॅ का हाल
भी िैसा ही था।

हिेली को इस प्रकार से बनाया गया था वक भविष्य में वकसी भी भाई के बीच वकसी प्रकार
का कोई वििाद न खडा हो सके। हिेली का क्षेत्रफल काफी बडा था। भविष्य में अगर कभी
तीनो भाईयोों का बटिारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और वडजाइन का वहस्सा समान
रूप से वमले। हिेली काफी चौडी तथा दो मोंवजला थी। तीनो भाईयोों के वहस्से में बराबर और
समान रूप से आनी थी। हिेली के सामने बहुत बडा लाॅन था। कहने का मतलब ये वक
हिेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मोंवजला इमारतोों को एक साथ जोड वदया गया हो।

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अपडे ट......... 02

अब तक......

बडे पापा ने जब हिेली को दे खा तो दे खते रह गए। उन्होोंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी वक


उनका घर कभी इस प्रकार की हिेली में पररिवतफत हो जाएगा। वकन्तु प्रत्यक्ष में िे हिेली को
दे ख दे ख कर कहीों न कहीों कोई कमी या वफर ग़लती वनकाल ही रहे थे । बडी माॅ का हाल
भी िैसा ही था।

हिेली को इस प्रकार से बनाया गया था वक भविष्य में वकसी भी भाई के बीच वकसी प्रकार
का कोई वििाद न खडा हो सके। हिेली का क्षेत्रफल काफी बडा था। भविष्य में अगर कभी
तीनो भाईयोों का बटिारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और वडजाइन का वहस्सा समान
रूप से वमले। हिेली काफी चौडी तथा दो मोंवजला थी। तीनो भाईयोों के वहस्से में बराबर और
समान रूप से आनी थी। हिेली के सामने बहुत बडा लाॅन था। कहने का मतलब ये वक
हिेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मोंवजला इमारतोों को एक साथ जोड वदया गया हो।

अब आगे..........

इसी तरह सबके साथ हसी खुशी समय गुजरता रहा। बडे पापा और बडी माॅ का ब्यौहार
वदन प्रवतवदन बदलता जा रहा था। उनका रहन सहन सब कुछ बदल गया था। इस बीच
उनको एक बेटी भी हुई वजसका नाम ररतु रखा गया, ररतु वसों ह बघे ल। बडे पापा और बडी
माॅ अपनी बच्ची को लेकर शहर से घर आईों और दादा दादी जी से आशीिाफद वलया। उन्होोंने
एक बवढया सी कार भी खरीद ली थी, उसी कार से िो दोनोों आए थे ।

दादा जी बडे पापा और बडी माॅ के इस बदलते रिैये से अोंजान नहीों थे वकन्तु बोलते कुछ
नहीों थे । िो समझ गए थे वक बेटा कारोबारी आदमी हो गया है और उसे अब रुपये पैसे का
घमण्ड होने लगा है । दादा जी ये भी महस़ू स कर रहे थे वक उनके बडे बेटे और बडी बहू
का मेरे वपता के प्रवत कोई खास बोलचाल नहीों है । जबवक छोटे चाचा जी से उनका सों बोंि
अच्छा था। इसका कारण शायद यह था वक छोटे चाचा भले ही वकसी से ज्यादा मतलब नहीों
रखते थे लेवकन स्वभाि से बहुत गुस्से िाले थे । िो अन्याय बरदास् नहीों करते थे बल्कि िो
इसके ल्कखलाफ़ लड पडते थे ।

अपने अच्छे खासे चल रहे कारोबार के पैसोों से बडे पापा ने शहर में एक बवढया सा घर भी
बनिा वलया था वजसके बारे में बहुत बाद में सबको पता चला था। दादा जी बडे पापा से
नाराज भी हुए थे इसके वलए। पर बडे पापा ने उनको अपनी लच्छे दार बातोों द्वारा समझा भी
वलया था। उन्होोंने दादा जी को कहा वक ये घर बच्चोों के वलए है जब िो सब बडे होोंगे तो
शहर में इसी घर में रह कर यहाॅ अपनी पढाई करें गे।

समय गुजरता रहा, और समय के साथ बहुत कुछ बदलता भी रहा। ररतु दीदी के पैदा होने
के चार साल बाद बडे पापा को एक और बेटी हुई जबवक उसी समय मैं अपने माता वपता
द्वारा पैदा हुआ। मेरे पैदा होने के एक वदन बाद ही बडे पापा को द़ू सरी बेटी यानी नीलम
पैदा हुई थी। उस समय प़ूरे खानदान में मैं अकेला ही लडका था। मेरे पैदा होने पर दादा

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जी ने बहुत बडा उत्सि वकया था तथा प़ूरे गाॅि िालोों को भोज करिाया था। हलाॅवक मेरे
माता वपता ये सब वबिुल नहीों चाहते थे क्योों वक इससे बडे पापा और बडी माॅ के वदल
ओ वदमाग में ग़लत िारणा पैदा हो जानी थी। लेवकद दादा जी नहीों माने बल्कि इन सब बातोों
की परिाह वकए बग़ैर िो ये सब करते गए। इसका पररणाम िही हुआ वजसका मेरे माता वपता
जी को अोंदेशा था। मेरे पैदा होने की खु शी में दादा जी द्वारा वकये गए इस उत्सि से बडे
पापा और बडी माॅ बहुत नाराज हुईों। उन्होोंने कहा वक जब उनको बल्कच्चयाों पैदा हुई तब ये
जश्न क्योों नहीों वकया गया? वजसके जिाब में दादा जी ने नाराज हो कर कहा वक तुम लोग
हमें अपना मानते ही कहाॅ हो? सब कुछ अपनी मज़ी से ही कर लेते हो। कभी वकसी चीज
के वलए हमारी मज़ी हमारी पसों द या हमारी सहमवत के बारे में सोचा तु म लोगोों ने? तुम लोगोों
ने अपनी मज़ी से शहर में घर बना वलया और वकसी को बताया भी नहीों, अपनी मज़ी या
पसों द से गाडी खरीद ली और वकसी को बताया तक नहीों। इन सब बातोों का कोई जिाब है
तुम लोगोों के पास? क्या सोचते हो तुम लोग वक तु म्हारी ये चीजें कहीों हम लोग माॅग न लें?
या वफर तुमने ये सोच वलया है वक जो तुमने बनाया है उसमे वकसी का कोई हक़ नहीों है ?

दादा जी की गुस्से से भरी ये सब बातें सु न कर बडे पापा और बडी माॅ चुप रह गए।
उनके मुख से कोई लफ्जज नहीों वनकला। जबवक दादा जी कहते रहे , तुम लोगोों ने खु द ही
हम लोगोों से खु द को अलग कर वलया है । आज तुम्हारे पास रुपया पैसा आ गया तो खु द को
तोप समझने लगे हो। मगर ये भ़ूल गए वक वजस रुपये पैसे के नशे में तुमने हम लोगोों को
खु द से अलग कर वलया है उस रुपये पैसे की बुवनयाद हमारे ही ख़ू न पसीने की कमाई के
पैसोों से तैयार की है तुमने। अब चाहे वजतना आसमान में उड लो मगर याद रखना ये बात।

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,

दादा जी और भी जाने क्या क्या कहते रहे । बडे पापा और बडी माॅ कुछ न बोले। द़ू सरे
वदन िो लोग िापस शहर चले गए। लेवकन इस बार अपने वदल ओ वदमाग में जहर सा भर
वलया था उन लोगोों ने।

छोटे चाचा और चाची सब जानते थे और उनकी मानवसकता भी समझते थे लेवकन सबसे छोटे
होने के कारण िो बीच में कोई हस्ाक्षेप करना उवचत नहीों समझते थे । िो मेरे माता वपता
की बहुत इज्जजत करते थे । िो जानते थे वक ये सब कुछ मेरे वपता जी के कठोर मेहनत से
बना है । हमारी सम्पन्नता में उनका ही हाॅथ है । मेरी माॅ और वपता बहुत ही शान्त स्वभाि
के थे । कभी वकसी से कोई िाद वििाद करना मानो उनकी वफतरत में ही शावमल न था।

मेरे जन्म के दो साल बाद बडे पापा और बडी माॅ को एक बेटा हुआ था। वजसका नाम
वशिा वसों ह रखा गया था। उसके जन्म पर जब िो लोग घर आए तो दादा जी ने वशिा के
जन्म की खु शी में उसी तरह उत्सि मनाया तथा प़ूरे गाॅि िालोों को भोज करिाया जैसे मेरे
जन्म की खु शी में वकया था। मगर इस बार का उत्सि पहले के उत्सि की अपेक्षा ज़्यादा ताम
झाम िाला था क्योोंवक बडे पापा यही करना या वदखाना चाहते थे । दादा जी इस बात को
बख़ू बी समझते थे ।

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समय गुजरता रहा और य़ूों ही पाॅच साल गुजर गए। मैं पाॅच साल का हो गया था। सब घर
िाले मुझे बहुत प्यार करते थे । मेरे जन्म के चार साल बाद ही मुझे मेरे माता वपता द्वारा एक
बहे न वमल गई थी। उसका नाम वनवि रखा गया। छोटे चाचा और चाची को भी एक बेटी हो
गई थी जो अब एक साल की थी। उसका नाम वदव्या था। वदव्या ऊम्र में मेरी बहे न वनवि से
मात्र दस वदन छोटी थी। दोनोों एक साथ ही रहती। उन दोनोों की वकलकाररयोों से प़ूरी हिेली
में रौनक रहती। वदव्या वबिुल चाची पर गई थी। एक दम गोरी वचट्टी सी। वदन भर मैं उनके
साथ खे लता, िो दोनो मेरा ल्कखलौना थीों। हमेशा उनको अपने पास ही रखता था।

बडे पापा और बडी माॅ मेरी बहे न वनवि और चाचा चाची की बेटी वदव्या दोनो के जन्म पर
उन्हें दे खने आए थे। खास कर छोटे चाचा चाची की बेटी को दे खने। सबकी मौज़ूदगी में
उन्होोंने मुझे भी अपना प्यार वदया। िो सबके वलए उपहार स्वरूप कपडे लाए थे । इस बार
उनका रिैया तथा िताफि पहले की अपे क्षा बहुत अच्छा था। िो सबसे हस बोल रहे थे । उनकी
बडी बेटी ररतु जो मुझसे चार साल बडी थी िो वबिुल अपनी माॅ पर गई थी। उसके
स्वभाि में अपनी माॅ की तरह ही अकड़ूपन था जबवक उसकी छोटी बहे न जो मेरी ऊम्र की
थी िो उसके विपरीत वबलकुल सािारण थी। खै र दो वदन रुकने के बाद िो लोग िापस शहर
चले गए।

मैं पाॅच साल का हो गया था इस वलए मेरा चाचा जी के स्क़ूल में ही पढाई के वलए नाम
वलखिा वदया गया था। मेरा अपने ल्कखलौनोों अथाफतट वनवि और वदव्या को छोोंड कर स्क़ूल जाने
का वबलकुल मन नहीों करता था वजसके वलए मेरी वपटाई भी होती थी। छोटे चाचा को उनके
गुस्सैल स्वभाि के चलते सब डरते भी थे । मैं भी डरता था उनसे और इसी डर की िजह से
मुझे उनके साथ ही स्क़ूल जाना पडता। हलाॅवक चाचा चाची दोनोों ही मुझ पर जान वछडचते
थे लेवकन पढाई के मामले में चाचा जी जरा ल्कस्टरक्ट हो जाते थे ।

मेरे माता वपता दोनो ही पढे वलखे नहीों थे इस वलए मेरी पढाई की वजम्मेदारी चाचा चाची की
थी। चाचा चाची दोनो ही मुझे पढाते थे । इसका पररणाम ये हुआ वक मै पढाई में शु रू से ही
तेज हो गया था। जब मैं दो साल का था तब मेरी बडी बुआ यानी सौम्या वसों ह की शादी हुई
थी जबवक छोटी बुआ नैना वसों ह स्क़ूल में पढती थीों। मेरी दोनोों ही बुआओों का स्वभाि अच्छा
था। छोटी बुआ थोडी ल्कस्टरक्ट थी िो वबलकुल छोटे चाचा जी की तरह थीों। मैं जब पाॅच साल
का था तब बडी बुआ को एक बेटा यानी अवनल पैदा हुआ था।

प़ूरे गाॅि िाले हमारी बहुत इज्जजत करते थे । एक तो गाॅि में सबसे ज्यादा हमारे पास ही
जमीनें थी द़ू सरे मेरे वपता जी की मेहनत के चलते घर हिेली बन गया तथा रुपया पैसा हो
गया। हमारे घर से दो दो आदमी सरकारी सविफस में थे । खुद का बहुत बडा करोबार भी चल
रहा था। उस समय इतना कुछ गाॅि में वकसी और के पास न था। दादा जी और मेरे वपता
जी का ब्यौहार गाॅि में ही नहीों बल्कि आसपास के गािोों में भी बहुत अच्छा था। इस वलए
सब लोग हमें इज्जजत दे ते थे ।

इसी तरह समय गुजरता रहा। कुछ सालोों बाद मेरे छोटे चाचा चाची और बडी बुआ को एक
एक सों तान हुईों। चाचा चाची को एक बेटा यानी शगुन वसों ह बघे ल और बडी बुआ को एक
बेटी यानी अवदवत वसों ह हुई। चाचा चाची का बेटा शगुन बडा ही सु न्दर था। उसके जन्म में भी
दादा जी ने बहुत बडा उत्सि मनाया तथा प़ूरे गाॅि िालोों को भोज कराया। बडे पापा और

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बडी माॅ ने भी कोई कसर नहीों छोोंडी थी खचाफ चरने में। सबने बडी बुआ को भी बहुत सारा
उपहार वदया था। सब लोग बडा खुश थे।

कुछ सालोों बाद छोटी बुआ की भी शादी हो गई। िो अपने ससु राल चली गईों। हम सभी बच्चे
भी समय के साथ बडे हो रहे थे।

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,,

बडे पापा और बडी माॅ ज्यादातर शहर में ही रहते। िो लोग तभी आते थे गाॅि जब कोई
खास कायफक्रम होता। उनके कारोबार और उनके पै सोों से वकसी को कोई मतलब नहीों था। मेरे
माता वपता के प्रवत उनके मन में हमेशा एक द्वे श तथा नफरत जैसी बात कायम रही।
हलाॅवक िो इसका कभी वदखािा नहीों करते थे लेवकन सच्चाई कभी वकसी पदे की गुलाम बन
कर नहीों रहती। िो अपना चेहरा वकसी न वकसी रूप से लोगोों को वदखा ही दे ती है । दादा
जी सब जानते और समझते थे लेवकन बोलते नहीों थे कभी।

मेरे माता वपता के मन में बडे पापा और बडी माॅ के प्रवत कभी कोई बुरी भािना या ग़लत
विचार नहीों रहा बल्कि िो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे । मेरे वपता जी उसी
तरह जमीनोों में खे ती करके फसल उगाते थे , अब फकफ ये था वक िो ये सब मजद़ू रोों से
करिाते थे । जमीनोों में बडे बडे आमोों के बाग़ हो गए थे , साग सल्कियोों की भी पैदािार होने
लगी थी। खे तोों के बीच एक बडा सा घर भी बनिा वलया गया था। कहने का मतलब ये वक
हर सु वििा हर सािन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलोों के साथ हल द्वारा खे तोों की
जुताई होती थी अब िहाॅ टर ै क्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो टर ै क्टर हो गए
थे । दादा जी के वलए वपता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के वलए
एक बुलेट मोटर साइवकल वजससे िे स्क़ूल जाते थे । दादा दादी बडे गिफ ि शान से रहते थे।
मेरे वपता जी से िो बहुत खु श थे ।

मगर कौन जानता था वक इस हसते खे लते पररिार की खु वशयोों पर एक वदन एक ऐसा त़ूफ़ान
कहर बन कर बरपेगा वक सब कुछ एक पल में आईने की तरह ट़ू ट कर वबखर जाएगा????

अपडे ट........ 《03》

अब तक.....

मेरे माता वपता के मन में बडे पापा और बडी माॅ के प्रवत कभी कोई बुरी भािना या ग़लत

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विचार नहीों रहा बल्कि िो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे । मेरे वपता जी उसी
तरह जमीनोों में खे ती करके फसल उगाते थे , अब फकफ ये था वक िो ये सब मजद़ू रोों से
करिाते थे । जमीनोों में बडे बडे आमोों के बाग़ हो गए थे , साग सल्कियोों की भी पैदािार होने
लगी थी। खे तोों के बीच एक बडा सा घर भी बनिा वलया गया था। कहने का मतलब ये वक
हर सु वििा हर सािन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलोों के साथ हल द्वारा खे तोों की
जुताई होती थी अब िहाॅ टर ै क्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो टर ै क्टर हो गए
थे । दादा जी के वलए वपता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के वलए
एक बुलेट मोटर साइवकल वजससे िे स्क़ूल जाते थे । दादा दादी बडे गिफ ि शान से रहते थे।
मेरे वपता जी से िो बहुत खु श थे ।

मगर कौन जानता था वक इस हसते खे लते पररिार की खु वशयोों पर एक वदन एक ऐसा त़ूफ़ान
कहर बन कर बरपेगा वक सब कुछ एक पल में आईने की तरह ट़ू ट कर वबखर जाएगा????

अब आगे.....

"ओ भाई साहब! क्या आप मेरे इस समान को दरिाजे तक ले जाने में मे री मदद कर दें गे
?" सहसा वकसी आदमी के इस िाक्य को सु न कर मैं अपने अतीत के गहरे समोंदर से बाहर
आया। मैंने ऊपर की सीट से खुद को जरा सा उठा कर नीचे की तरफ दे खा।

एक आदमी टर े न के फसफ पर खडा मेरी तरफ दे ख रहा था। उसका दावहना हाॅथ मेरी सीट
के वकनारे पर था जबवक बाॅया हाॅथ नीचे फसफ पर रखी एक बोरी पर था। मुझे कुछ
बोलता न दे ख उसने बडे ही अदब से वफर बोला "भाई साहब प्ले टफारम आने िाला है , टर े न
बहुत दे र नहीों रुकेगी यहाॅ और मेरा सारा सामान यहीों रह जाएगा। पहले ध्यान ही नहीों वदया
था िरना सारा सामान पहले ही दरिाजे के पास ले जा कर रख लेता।"

उसकी बात सु न कर मुझे प़ूरी तरह होश आया। लगभग हडबडा कर मैंने अपने बाएों हाॅथ
पर बिी घडी को दे खा। घडी में वदख रहे टाइम को दे ख कर मेरे वदलो वदमाग़ में झनाका
सा हुआ। इस समय तो मुझे अपने ही शहर के प्लेटफामफ पर होना चावहए। मैं जल्दी से नीचे
उतरा, तथा अपना बैग भी ऊपर से वनकाला।

"क्या ये टर े न गुनगुन पहुॅच गई ?" वफर मैंने उस आदमी से तपाक से प़ूॅछा।


"बस पहुॅचने ही िाली है भाई साहब।" उस आदमी ने कहा "आप कृपा करके जल्दी से
मेरा ये सामान दरिाजे तक ले जाने में मे री मदद कर दीवजए।"

"ठीक है , क्या क्या सामान है आपका?" मैंने प़ूॅछा।


"चार बोररयाॅ हैं भाई साहब और एक बडा सा थै ला है ।" उसने अपने सभी सामानोों पर बारी
बारी से हाॅथ रखते हुए बताया।

मैंने एक बोरी को एक हाॅथ से उठाया वकन्तु भारी लगा मुझे। मैंने उस बोरी को ठीक से
उठाते हुए उससे प़ूछा वक क्या पत्थर भर रखा है इनमें? िह हसते हुए बोला नहीों भाई साहब
इनमें सब में गेहूॅ और चािल है । वपछली रबी बरसात न होने से हमारी सारी फसल बरबाद
हो गई। अब घर में खाने के वलए कुछ तो चावहए ही न भाई साहब इस वलए ये सब हमें

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हमारी ससु राल िालोों ने वदया है । ससु राल िालोों से ये सब लेना अच्छा तो नहीों लगता लेवकन
क्या करें मुसीबत में सब करना पड जाता है ।"

टर े न स्टे शन पर पहुॅच ही चुकी थी लगभग, हम दोनोों ने वमल कर सीघ्र ही सारा सामान


दरिाजे पर रख चुके थे । थोडी ही दे र में टर े न प्ले टफामफ पर पहुचकर रुक गई। िो आदमी
जल्दी से उतरा और मैंने ऊपर से एक एक करके उसका सामान उसे पकडाता गया। सारा
सामान सही सलामत नीचे उतर जाने के बाद मैं भी नीचे उतर गया। िो आदमी हाॅथ जोड
कर मुझे िन्यिाद करता रहा। मैं मुस्कुरा कर एक तरफ बढ गया।

स्टे शन से बाहर आने के बाद मैंने बस स्टै ण्ड जाने के वलए एक आॅटो पकडा। लगभग बीस
वमनट बाद मैं बस स्टै ण्ड पहुॅचा। यहाॅ से बस में बैठ कर वनकल वलया अपने गाॅि
'हल्दीपुर'।

हल्दीपुर पहुॅचने में बस से दो घण्टे का समय लगता था। बस में मैं सीट की वपछली पुस्
से वसर वटका कर तथा अपनी दोनो आॅखें बोंद करके बैठ गया। आॅख बोंद करते ही मुझे
मेरी माॅ और बहन का चेहरा नजर आ गया। उन्हें दे ख कर आॅखें भर आईों। बोंद आॅखोों
में चेहरे तो और भी नजर आते थे जो मेरे बेहद अजीज थे लेवकन मैं उनके वलए अब अजीज
न था।

सहसा तभी बस में कोई गाना चाल़ू हुआ। दरअसल ये बस िालोों की आदत होती है जैसे ही
बस वकसी सफर के वलए वनकलती है बस का डर ाइिर गाना बजाना शु रू कर दे ता है तावक
बस में बैठे यावत्रयोों का मनोरों जन भी होता रहे ।

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,

अरे ! ये ग़जल तो ग़ुलाम अली साहब की है । ग़ुलाम अली साहब मेरी रग रग में बस गए थे
आज कल। आप क़यामत तक सलामत रहें खान साहब आपकी ग़जलोों ने मुझे एक अलग ही
सु क़ून वदया है िरना ददफ -वदल और ददे -वजोंदगी ने कब का मुझे फना कर वदया होता। वफर
आ गया हूॅ उसी शहर उसी गली क़ूचे में वजसने जाने क्या क्या अता कर वदया है मुझे।
उफ्जफ़ ये बस का डर ाइिर भी यारो, क्या मेरे वदल का हाल जान गया था जो उसने मुझे
सु क़ून दे ने के वलए ये ग़जल शु रू करके वसफ़फ और वसफ़फ मुझे सु नाने लगा था? अच्छा ही
हुआ कुछ पल ही सही सु क़ून तो वमल जाएगा मुझे। चलो अब कुछ न कहूॅगा, ग़जल सु न
ल़ूॅ पहले वफर आगे का हाल सु नाऊगा आप सबको।

हम तेरे शहर में आए हैं मुसावफ़र की तरह।


वसफ़फ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ।।

मेरी मों वजल है कहाॅ, मेरा वठकाना है कहाॅ,


सबहो तक तुझसे वबछड कर मुझे जाना है कहाॅ।

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सोचने के वलए इक रात का मौका दे दे ।। हम तेरे शहर में.....

अपनी आखोों में छु पा रखे हैं जुगऩूॅ मैंने,


अपनी पलकोों पे सजा रखे हैं आॅस़ू मैंने।
मेरी आखोों को भी बरसात का मौका दे दे ।। हम तेरे शहर में.....

आज की रात मे रा ददे -मोहब्बत सु न ले,


कपकपाते हुए होठोों की वशकायत सु न ले।
आज इजहारे -खयालात का मौका दे दे ।। हम तेरे शहर में.....

भ़ूलना था तो ये इक़रार वकया ही क्योों था?


बेिफ़ा त़ूने मुझे प्यार वकया ही क्योों था ?
वसफ़फ दो चार सिालात का मौका दे दे ।। हम तेरे शहर में......

अरे ! क्योों बोंद हो गई ये ग़जल? खान साहब कुछ दे र और गाते न...मेरे वलए। हाय, क्या
कहूॅ अब वकसी को? वदल में इक त़ूफान मानो इों कलाब वजन्दाबाद का नारा सा लगाने लगा
था। बहुत सी बातें बहुत सी यादें वदलो वदमाग़ को डसने लगी थी। मैं शायर तो नहीों उस वदन
भी कहा था आप सबसे , आज भी कहता हूॅ। ऐसा लगता है जैसे मेरा वदल खु द ही लफ्जजोों
में वपरो कर अपना हाल आप सबको सु नाने लगेगा। मगर अभी नहीों दोस्ो, अपनी खु द की
वलखी ग़जल आगे कहीों सु नाऊगा।

खै र िक़्त को तो गुजरना ही था आवखर, सो गुजर गया और मैं अपने गाॅि हल्दीपुर पहुॅच
गया। ये िही गाॅि है वजसके वकसी छोर पर मेरे वपता जी द्वारा बनिाई गई हिेली मौज़ूद है ।
मगर मैं,मेरी माॅ और बहन अब उस हिेली में नहीों रहते। मेरे वपता जी तो अब इस
दु वनयाॅ में हैं ही नहीों। जी हाॅ दोस्ो मेरे वपता जी अब इस जहाों में नहीों हैं ।

हम तीन लोग यानी मैं मेरी माॅ और बहन अब खे तोों के पास बने घर में रहते हैं । मगर
बहुत जल्द हम लोगोों का अब यहाॅ से भी तबादला होने िाला है ।

उस समय शाम होने लगी थी जब मैं अपनी माॅ बहन के पास पहुॅचा। मुझे दे ख कर दोनो
ही मुझसे वलपट गईों और फ़ूट फ़ूट कर रोने लगीों। मैंने थोडी दे र उन्हें रोने वदया। वफर दोनो
को खु द से अलग करके पास ही रखी एक चारपाई पर बैठा वदया। मेरी छोटी बहन वनवि ने
पास ही रखे एक घडे से ग्लास में मुझे पानी वदया।

"माॅ, क्या वफर बडे पापा ने?" अभी मेरी बात प़ूरी भी न हुई थी वक माॅ ने कहा "बेटा
अब हम यहाॅ नहीों रहें गे। हमें अपने साथ ले चल। हम तेरे साथ मुम्बई में ही रहें गे। यहाॅ
हमारे वलए कुछ नहीों है और न ही कोई हमारा है ।"

"माॅ, क्या वफर बडे पापा ने आपको कुछ कहा है ?" मेरे अोंदर क्रोि उभरने लगा था।
"सब भाग्य की बातें हैं बेटा।" माॅ ने गोंभीरता से कहा "जब तक हमारे भाग्य में दु ख
तक़लीफें वलखी हैं तब तक ये सब सहना ही पडे गा।"

"माॅ चुप बैठने से कुछ नहीों होता।" मैंने कहा "वकसी के सामने झुकना अच्छी बात है

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लेवकन इतना भी नहीों झुकना चावहये वक हम झुकते झुकते एक वदन ट़ू ट ही जाएों । अपने हक़
के वलए लडना पडता है माॅ। ये मान मयाफदा की बातें वसफ़फ हम ही बस क्योों सोचें? िो क्योों
नहीों सोचते ये सब?"
"सब एक जैसे अच्छे विचारोों िाले नहीों होते बेटा।" माॅ ने कहा "अगर िो ये सब सोचते तो
क्या हमें इस तरह यहाॅ रहना पडता?"

"यहाॅ भी कहाॅ रहने दे रहे हैं माॅ।"मैं आिेश मे बोला "उन्होोंने हमें इस तरह वनकाल कर
बाहर फेंक वदया है जैसे कोई द़ू ि पर वगरी मक्खी को वनकाल कर फेंक दे ता है । सारा गाॅि
जानता है वक िो हिेली मे रे वपता जी के ख़ू न पसीना बहा कर कमाए हुए रुपयोों से बनी है ।
और उनका िो कारोबार भी मेरे वपता जी के रुपयोों की बुवनयाद पर ही खडा है । ये कहाॅ
का न्याय है माॅ वक सब कुछ छीन कर हमें दर दर का वभखारी बना वदया जाए?"

"हमें कुछ नहीों चावहए बेटे।" माॅ ने कहा "मेरे वलए तुम दोनोों ही मे रा सब कुछ हो।"
"आपकी िजह से मैं कुछ कर नहीों पाता माॅ।" मैंने हतास भाि से कहा"िरना इन लोगोों
को इनकी ही जुबान से सबक वसखाता मैं।"

"वकसी को कुछ कहने की जरूरत नहीों है बेटे।" माॅ ने कहा "जो जैसा करे गा उसे िैसा
ही एक वदन फल भी वमलेगा। ईश्वर सब दे खता है ।"

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,,

"तो क्या हम हर चीज के वलए ईश्वर का इन्तजार करते बैठे रहें ?" मैने कहा "ईश्वर ये नहीों
कहता वक तुम कोई कमफ ही न करो। अपने हक़ के वलए लडना कोई गुनाह नहीों है ।"

"भइया कल बडे पापा ने।" वनवि ने अभी अपनी बात भी प़ूरी न की थी वक माॅ ने उसे
चुप करा वदया "त़ू चुप कर, तुझे बीच में बोलने को वकसने कहा था?"
"उसे बोलने दीवजए माॅ।" मैंने कहा मुझे लगा वनवि कुछ खास बात कहना चाहती है । "त़ू
बता गुवडया क्या वकया बडे पापा ने कल ?"

"कुछ नहीों बेटा ये बेकार ही जाने क्या क्या अनाप सनाप बकती रहती है ।" माॅ ने जल्दी से
खु द ही ये कहा।
"मैं अनाप सनाप नहीों बक रही हूॅ माॅ।" इस बार वनवि की आखोों में आॅस़ू और लहजे में
आिेश था बोली "कब तक हर बात को सहते रहें गे हम? कब तक हर बात भइया से
वछपाएों गी आप? इस तरह कायर बन कर जीना कहाॅ की समझदारी है ?"

"तो त़ू क्या चाहती है ?" माॅ ने गुस्से से कहा "ये वक ऐसी हर बातें तेरे भाई को बताऊों
वजससे ये जा कर उनसे लडाई झगडा करे ? बेटा उन लोगोों से लडने का कोई फायदा नहीों
है । उनके पास ताकत है पैसा है हम अकेले कुछ नहीों कर सकते। लडाई झगडे में कभी

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वकसी का भला नहीों हुआ मेरे बच्चोों। मैं नहीों चाहती वक वकसी िजह से मैं तुम लोगोों को खो
द़ू ॅ।"

कहने के साथ ही माॅ रोने लगी। मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। माॅ को य़ूों बेबसी में रोते
दे ख मुझे ऐसा लग रहा था वक सारी दु वनया को आग लगा द़ू ॅ। मेरे माता वपता जैसा द़ू सरा
कोई नहीों था। िो हमेशा द़ू सरोों की खु शी के वलए जीते थे । कभी वकसी की तरफ आॅख
उठा कर नहीों दे खा। कभी वकसी को बुरा भला नहीों कहा।

"हम कल ही यहाॅ से कहीों द़ू र चले जाएों गे बेटा।" माॅ ने अपने आों स़ू पोोंछते हुए कहा
"मुझे वकसी से कुछ नहीों चावहए, दो िक़्त की रोटी कहीों भी रह कर कमा खा लेंगे।"
"ठीक है माॅ।" मैं भला कैसे इों कार करता। "जैसा आप कहें गी िैसा ही होगा। यहाॅ जो भी
आपका और गुवडया का जरूरी सामान हो िो ले लीवजए। हम कल सु बह ही वनकलेंगे।"

"िैसे तो कोई जरूरी सामान यहाॅ नहीों है बेटा।" माॅ ने कहा "बस पहनने िाले हमारे
कपडे ही हैं ।"
"और आपके गहने जेिर िगैरा ?" मैंने प़ूॅछा।
"गहने जेिर मुझ विििा औरत के वकस काम के बेटा?" माॅ ने कहा।
"भइया कल बडे पापा और बडी माों यहाों आईों थी।" वनवि ने कहा "िो माॅ के सब जेिर
उठा ले गईों और बहुत ही बुरा सु ल़ूक वकया हमारे साथ। और पता है भइया िो वशिा मुझे
गोंदे तरीके से छ़ू रहा था। बडे पापा भी माॅ को बहुत गोंदा बोल रहे थे ।"

"कट क्या ?????" मेरा पारा एक पल में चढ गया। "उन लोगोों की ये जुरफत वक िो मे री
माॅ और बहन के साथ इस नीचता के साथ पेश आएों ? छोड़ूॅगा नहीों उन हरामजादोों को
मैं।"
"न नहीों बेटा नहीों।" माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड कर कहा "उनसे उलझने की कोई जरूरत
नहीों है । िो बहुत खराब लोग हैं , हम कल यहाॅ से चले जाएों गे बेटा बहुत द़ू र।"

माॅ ने मुझे सख़्ती से पकडा हुआ था, जबवक मेरी रगोों में दौडता हुआ लहू उबाल मार रहा
था। मुझे लग रहा था वक अभी जाऊों और सबको भ़ूॅन कर रख द़ू ॅ।

"मुझे छोोंड दीवजए माॅ।" मैंने खु द को छु डाने की कोवशश करते हुए कहा "मैं इन कमीनोों
को वदखाना चाहता हूों वक मेरी माॅ और बहन पर गोंदी हरकत करने का अोंजाम क्या होता
है ?"
"न नहीों बेटा त़ू कहीों नहीों जाएगा।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरा दावहना हाॅथ पकड कर
अपने वसर पर रखा और कहा "तुझे मेरी क़सम है बेटा। त़ू उन लोगोों से लडने झगडने का
सोचेगा भी नहीों।"

"मुझे अपनी कसम दे कर कायर और बुजवदल न बनाइए माॅ।" मैंने झुोंझला कर कहा "मेरा
जमीर मेरी आत्मा मर जाएगी ऐसे में।"
"सब कुछ भ़ूल जा मेरे लाल।" माॅ ने रोते हुए कहा "एक त़ू ही तो है हम दोनोों का
सहारा। तुझे कुछ हो गया तो क्या होगा हमारा?"

18
माॅ ने मुझे समझा बुझा कर शान्त कर वदया। मैं िहीों चारपाई पर आॅखें बोंद करके लेट
गया। जबवक माॅ िहीों एक तरफ खाना बनाने की तैयारी करने लगी और मेरी बहन वनवि मेरे
ही पास चारपाई में आ कर बैठ गई।

इस िक़्त जहाॅ हम थे िो खे त िाला घर था। घर तो काफी बडा था वकन्तु यहाॅ रहने के


वलए भी वसफफ एक कमरा वदया गया था। बाोंकी हर जगह ताला लगा हुआ था। खे तोों में काम
करने िाले मजद़ू र इस िक़्त नहीों थे और अगर होोंगे भी तो कहीों नजर नहीों आए। पता नहीों
उन लोगोों के साथ भी जाने कैसा िताफ ि करते होोंगे ये लोग?

खै र जो रूखा स़ूखा माॅ ने बनाया था उसी को हम सबने खाया और िहीों सोने के वलए लेट
गए। चारपाई एक ही थी इस वलए उसमें एक ही ब्यल्कक्त लेट सकता था। मैंने चारपाई पर
माॅ को वलटा वदया हलाॅवक माॅ नीचे ही जमीन पर सोने के वलए जोर दे रही थी पर मैं
नहीों माना और मजब़ूरन माॅ को ही चारपाई पर लेटना पडा। नीचे जमीन पर मैं और वनवि
एक चादर वबछा कर ले ट गए।

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,

मेरी आॅखोों में नीोंद का कहीों द़ू र द़ू र तक नामो वनशान न था। यही हाल सबका था। मुझे
रह रह कर गुवडया की बात याद आ रही थी वक बडे पापा और उनके बेटे ने मेरी माॅ और
बहन के साथ गोंदा सु ल़ूक वकया। इन सब बातोों से मेरा ख़ू न खौल रहा था मगर माॅ की
क़सम के चलते मैं कुछ कर नहीों सकता था।

मगर मैं ये भी जानता था वक माॅ की ये क़सम मुझे कुछ करने से अब रोोंक नहीों सकती थी
क्योोंवक इन सब चीचोों से मेरा सब्र ट़ू टने िाला था। मेरे अोंदर की आग को अब बाहर आने से
कोई रोोंक नहीों सकता था। मैं अब एक ऐसा खे ल खे लने का मन बना चुका था वजससे सबकी
तक़दीर बदल जानी थी।

अपडे ट...........《 04 》

अब तक....

मेरी आॅखों में नी ंद का कही ं दू र दू र तक नामो कनशान न था। यही हाल सबका था।
मुझे रह रह कर गु कडया की बात याद आ रही थी कक बडे पापा और उनके बे टे ने मेरी
माॅ और बहन के साथ गं दा सुलूक ककया। इन सब बातों से मेरा खून खौल रहा था
मगर माॅ की क़सम के चलते मैं कुछ कर नही ं सकता था।

मगर मैं ये भी जानता था कक माॅ की ये क़सम मुझे कुछ करने से अब रोंक नही ं

19
सकती थी क्ोंकक इन सब चीचों से मेरा सब्र टू टने िाला था। मेरे अंदर की आग को
अब बाहर आने से कोई रोंक नही ं सकता था। मैं अब एक ऐसा खेल खेलने का मन
बना चुका था कजससे सबकी तक़दीर बदल जानी थी।

अब आगे..........

दू सरे कदन लगभग आठ बजे । किराज अपनी माॅ गौरी और बहन कनकध को ले कर घर से
बाहर कनकल कर आया ही था कक सामने से उसे एक मोटर साइककल आती नजर आई।

"किर आ गया कमीना।" कनकध ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।


"गु कडया।" माॅ याकन गौरी ने लगभग डाटते हुए कनकध से कहा__"ऐसे गं दे शब्द ककसी
को भी नही ं बोलना चाकहए और िो तो किर भी तुम्हारा भाई है।"

"माॅ कशिा भइया ने भाई होने का कौन सा ि़िग कनभाया है?" कनकध ने कहा__"और
िो हमें अपना समझते ही कहाॅ हैं? उनके कलए तो हम बाजार की रं ....।"
"गु कडया.....।" गौरी जोर से चीखी थी। अभी िह कुछ और भी कहती कक उससे
पहले ही उसने दे खा कक सामने से मोटर साईककल से आता हुआ कशिा पास आ गया
था। उसने शख्ती से अपने होंठ भी ंच कलए।

कशिा ने एक एक ऩिर उन सब पर डाली और बहुत ही कमीने ढं ग से मुस्कुराते हुए


बोला__"अरे भाई भी आ गया। िाह भाई िाह लगता है धंधे का समय हो गया है तुम
लोगों का। सुबह सुबह दु कान तो सभी खोलते हैं मगर मुझे जरा ये तो बताओ कक तुम
लोगो की दु कान ककस जगह खुलेगी? िो दरअसल क्ा है न कक मैं सोच रहा हूॅ कक
तुम लोगों की दु कान की बोहनी मैं ही कर दू ॅ अपने कुछ दोस्तों को साथ लाकर।"

कशिा की बातें ऐसी नही ं थी कजनका मतलब उनमें से कोई समझ न सकता था। किराज
का चेहरा गुस्से से आग बबू ला हो चुका था। उसकी मुकियाॅ कस गई थी ं। ये दे ख गौरी
ने िौरन ही अपने बे टे का हाॅथ पकड कलया था। उसे पता था कक किराज ये सब सहन
नही ं कर सकता और गुस्से में न जाने क्ा कर डाले ।

"दे खो तो कैसे िडिडा रहा है भाई।" किराज को गु स्से में उबलता दे ख कशिा ने
चहकते हुए कहा__"अरे ठं ड रख भाई ठं ड रख। तुम्हारे इस धंधे में इसकी कोई
जरूरत नही ं है। बल्कि इस धंधे में तो बडे प्यार और धैयग की ़िरूरत होती है। ़िबान
में शहद सी कमठास डालनी होती है कजससे ग्राहक को लु भाया जा सके। खैर छोंडो ये
बात..सब सीख जाओगे भाई। धीरे धीरे ही सही मगर धंधा करने का तरीका आ ही
जाएगा। अच्छा ये तो बता दो यार कक अपनी माॅ बहन को ले कर ककस जगह दु कान
खोलने िाले हो?"

"आपको ़िरा भी शमग नही ं आती भइया ऐसी बातें कहते हुए।" कनकध ने रुॅधे गले से
कहा__"आपको ़िरा भी एहसास नही ं है कक हम आपके अपने हैं और आप अपनों के
कलए ही ऐसा बोल रहे हैं?"
"अले लेलेले।" कशिा ने पु चकारते हुए कहा__"मेरी कनकध डाकलिंग ये कैसी बातें कह रही

20
है? मैं तो अपना समझ कर ही ऐसा बोल रहा हूॅ। तुम सबका भला चाहता हूॅ तभी
तो चाहता हूॅ कक तुम्हारी दु कान की बोहनी सबसे पहले मैं ही करूॅ।"

इससे पहले कक कोई कुछ और बोल पाता कशिा मोटर साईककल से नीचे औंधा पडा
ऩिर आया। उसके मुह से खून की धारा बहने लगी थी। ककसी को समझ ही नही ं
आया कक पलक झपकते ही ये कैसे हो गया। गौरी और कनकध हैरत से आं खें िाडे कशिा
को दे खने लगी थी। होश तब आया जब कि़िा में कशिा की चीखें गू ॅजने लगी थी।
दरअसल कशिा की अश्लीलतापू र्ग बातों से किराज ने गु स्से से अपना आपा खो कदया था
और माॅ के हाथ से अपना हाथ छु डा कर कशिा पर टू ट पडा था। गौरी को तो पता
भी नही ं चला था कक किराज ने उसके हाथ से अपना हाथ कब छु डाया और कब िह
कशिा की तरि झपटा था?

उधर कशिा की ददग नाक चीखें िातािरर् में गूॅज रही थी। किराज बुरी तरह कशिा की
धुनाई कर रहा था। ऐसा नही था कक कशिा कमजोर था बल्कि िह खुद भी तन्दु रुस्त
तकबयत का था ककन्तु किराज मासल आटग में ब्लैक बै ल्ट होल्डर था। कशिा उसे छू भी
नही पा रहा था जबकक किराज उसे जाने ककस ककस तरह से मारे जा रहा था। गौरी
और कनकध मुह और आखें िाडे दे खे जा रही थी। कनकध की खुशी का तो कोई कठकाना
ही न था। उसने ऐसी मार धाड भरी िाइकटं ग किल्ों में ही दे खी थी और आज तो
उसका अपना सगा बडा भाई खुद ही ककसी हीरो की तरह िाईकटं ग कर रहा था।
उसका मन कर रहा था कक िह ये दे ख कर खुशी से नाचने लगे ककन्तु माॅ के रहते
उसने अपने जज़्बातों को शख्ती से दबाया हुआ था।

"न नही ं.....।" अचानक ही गौरी चीखी, उसे जै से होश आया था। दोड कर उन
दोनो के पास पहुॅची िह और किराज को पकडने लगी__"छोंड दे बे टा उसे। भगिान
के कलए छोंड दे । िो मर जाएगा तुझे मेरी कसम छोंड दे उसे।"

माॅ की कसम सुनते ही किराज के हाथ पाॅि रुक गए। मगर तब तक कशिा की हालत
खराब हो चुकी थी। लहूलु हान हो चुका था िह। कजस्म का ऐसा कोई कहस्सा नही बचा
था जहाॅ से खून और चोंट न ऩिर आ रही हो। अधमरी सी हालत में िह जमीन पर
पडा था। मुह से कोई आिा़ि नही ं कनकल रही थी शायद बे होश हो चुका था िह।

किराज के रुकते ही गौरी ने जाने ककस भािना के तहत किराज के दोनो गालों पर
थप्पडों की बरसात कर दी।

"ये तूने क्ा ककया, तू इतना क्रूर और कनदग यी कैसे हो गया?" गौरी रोए जा रही
थी__"क्ा मैंने तुझे यही संस्कार कदए थे कक तू ककसी को इस तरह क्रुरता से मारे ?"

कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,,

21
"ये इसी लायक था माॅ।" माॅ का मारना जब रुक गया तो विराज कह उठा, उस पर
गुस्सा अब भी विद्यमान था बोला__"इसने आपको और मेरी गुवडया को वकतना गोंदा बोला था
माॅ। वकसी के सामने इतना भी नहीों झुक सकता मैं। मेरे सामने कोई आपको और गुवडया
को ऐसी सोच के साथ अपशब्द कहे मैं हवगफज भी बरदास् नहीों करूॅगा। मैं ऐसी गोंदी जुबान
बोलने िाले का वकस्सा ही खतम कर द़ू ॅगा।"

"ये त़ूने ठीक नहीों वकया बेटे।" गौरी की आखें नम थी__"उसकी हालत तो दे ख। ऐसी हालत
में उसे जब उसके माॅ बाप दे खेंगे तो िो चैन से नहीों बैठेंगे।"
"क्या करें गे िो?" विराज के लहजे मे पत्थर सी कठोरता थी__"मैं वकसी से नहीों डरता। वजसे
जो करना है करे अब मैं भी पीछे हटने िाला नहीों हूॅ माॅ और.....और आप भी अब
मुझे अपनी कसम दे कर रोकेंगी नहीों। हर बार आपकी कसम मुझे कुछ भी करने से रोोंक
लेती है । आपको ये एहसास भी नहीों है माॅ वक उस हालत में मुझ पर क्या गुजरती है ? मुझे
खु द से ही नफरत होने लगती है माॅ। मैं अपने आपसे नजरें नहीों वमला पाता। मुझे ऐसे बोंिन
में मत बाॅिा कीवजए माॅ िरना मैं जी नहीों पाऊगा।"

"नहीों मेरे बच्चे ।" गौरी उसे अपने सीने से लगा कर रो पडी__"ऐसा मत कह मैं माॅ हू
तेरी। तुझे कुछ हो न जाए इस वलए डर कर तुझे अपनी कसम में बाॅि दे ती हूॅ। मुझे माफ
कर दे मेरे लाल, मैं जानती हूॅ वक मेरा बेटा एक सच्चा मदफ है। मेरी कसम में बि कर
तेरी मरदानगी ि खु द्दारी को चोोंट लगती है । मगर, मैं तेरे वपता और अपने सु हाग को खो
चुकी हूॅ अब तुझे नहीों खोना चाहती। त़ू हम दोनो माों बेटी का एक मात्र सहारा है बेटा। इस
दु वनया में कोई हमारा नहीों है ।"

"मुझे कुछ नहीों होगा माॅ।" विराज ने माॅ के सीने से अलग हो कर तथा अपने दोनोों हाथोों
से माों का मास़ू म सा चेहरा सहलाते हुए बोला__"इस दु वनया की कोई भी ताकत मेरा कुछ
नहीों वबगाड सकती। अब समय आ गया है ऐसे बुरे लोगोों को उनके वकये की सजा दे ने का।"

"ये त़ू क्या कह रहा है बेटा ?" गौरी के चेहरे पर न समझने िाले भाि उजागर हो
उठे __"नही नही, हमें वकसी को कोई सजा नहीों दे ना है बेटा। हम यहाॅ अब एक पल भी
नहीों रुकेंगे। इससे पहले वक वशिा की हालत के बारे में वकसी को कुछ पता चले हमें यहाॅ
से वनकल जाना चावहए।"

"माॅ सही कह रही हैं भइया।" वनवि ने भी पास आते हुए कहा__"अब हमें यहाॅ एक पल
भी नहीों रुकना चावहए। आप नहीों जानते हैं हम लोगोों की पल पल की खबर बडे पापा को
होती है और इसमें कोई शक नहीों वक उन्हें अब तक ये न पता चल गया हो वक यहाॅ क्या
हुआ है ?"

"हाॅ बेटा चल जल्दी चल यहा से ।" गौरी ने घबराते हुए कहा__"उनका कोई भरोसा नहीों है
वक िो कब यहा आ जाएों ।"
"मैं भी दे खना चाहता हूों माॅ वक बडे पापा क्या कर लेंगे मेरा और आप दोनोों का?" विराज
ने कहा__"बहुत हो गया अब। िो समझते होोंगे वक हम उनसे डरते हैं । आज मैं उन्हें
वदखाऊोंगा वक मैं कायर और डरपोोंक नहीों हूॅ। अब तक इस वलए चुप था क्योोंवक आपने
मुझे अपनी कसम से बाॅिे रखा था। मगर अब और नही माॅ, मैं कायर और डरपोोंक नहीों

22
बन सकता। मेरा जमीर मुझे चैन से जीने नहीों दे गा। क्या आप चाहती हैं माॅ वक मैं घु ट घु ट
कर वजऊ?"

"नहीों मेरे लाल।" गौरी मानो तडप उठी, बोली__"मैं ये कैसे चाह सकती हूों भला वक मेरे
वजगर का टु कडा मे री आॅखोों का ऩूर य़ूॅ घु ट घु ट कर वजये िो भी वसफफ मेरी िजह से ?
मगर त़ू तो जानता है बेटा वक मै एक माॅ हूों , दु वनया की कोई भी माॅ ये नहीों चाहती वक
उसके लाल के ऊपर वकसी भी तरह का कोई सों कट आए।"

"वफक्र मत कीवजए माॅ।" विराज ने कहा__"आपका प्यार और आशीिाफद इतना कमजोर नहीों
है वजससे कोई बला मुझे वकसी तरह का नुकसान पहुॅचा सके।"
"बहुत बडी बडी बातें करने लगा है त़ू तो।" गौरी ने विराज के चेहरे को अपने दोनो हाथोों में
लेकर कहा__"लगता है मेरा बेटा अब बडा हो गया है ।"

"हाॅ माॅ, भइया अब बहुत बडे हो गए हैं।" वनवि ने मुस्कुराते हुए कहा__"और इतना ही
नहीों मेरे भइया वकसी सु पर हीरो से कम नहीों हैं । मेरे अच्छे और प्यारे भइया।" कहने के
साथ ही वनवि विराज की पीठ से वचपक गई।
"ये वकतना ही बडा हो गया हो गुवडया।"गौरी ने कहा__"मगर मेरे वलए तो ये आज भी मेरा
छोटा सा बच्चा ही है ।"

"और मैं?" वनवि ने विराज की पीठ से वचपके हुए ही शरारत से कहा।


"त़ू तो हम सबकी छोटी सी गुवडया है ।" विराज ने कहा और उसे अपनी पीठ से खीोंच कर
गले से लगा वलया। ये दे ख गौरी की आखें भर आईों।

"ऐसे ही तुम दोनो भाई बहन में स्नेह और प्यार बना रहे मेरे बच्चोों।"गौरी ने अपनी छलक
आई आखोों को अपने आॅचल के छोर से पोोंछते हुए कहा__"मगर इस स्नेह और प्यार में
अपनी इस अभागन माॅ को न भ़ू ल जाना तुम दोनो।"

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,

किराज ने अपनी माॅ की इस बात को जब सुना तो उसने अपना एक हाथ िैला कदया।
गौरी ने जब ये दे खा तो िो भी अपने बे टे के चौडे सीने से जा लगी। कुछ दे र यू ही
सब एक दू सरे से गले कमले रहे किर सब अलग हुए।

"अब हमें चलना चाकहए बे टा।" गौरी ने गं भीर भाि से कहा__"ज्यादा दे र यहाॅ पर
रुकना अब ठीक नही ं है।"
"पर माॅ, ।" किराज अपनी बात भी न पूरी कर पाया था कक गौरी ने उसकी बात को
काटते हुए कहा__"अभी यहां से चलो बे टा। अभी सही समय नही ं है ये ककसी ची़ि के
कलए। यहाॅ हम उनका कुछ नही ं कबगाड सकते क्ोकक यहा उनकी ताकत ज्यादा है।
पु कलस प्रसासन भी उनका ही कहना मानेंगे इस कलए कह रही हूं कक यहां रह कर कुछ

23
भी करना ठीक नही ं है। मैं जानती हूं कक तुम्हारे अंदर प्रकतशोध की आग है और जब
तक िो आग तुम्हारे अंदर रहेगी तुम चैन से जी नही सकोगे । इस कलए अब मैं तुम्हें
ककसी बात के कलए रोकूॅगी नही ं, हाॅ इतना जरूर कहूॅगी कक जो कुछ भी करना ये
ध्यान में रख कर ही करना कक तुम्हारे कबना हम माॅ बे टी का क्ा होगा?"

"आप दोनो की सुरक्षा मेरी पहली प्राथकमकता होगी माॅ।" किराज को जै से उसकी मन
की मुराद कमल गई थी। अंदर ही अंदर कुछ भी करने की आ़िादी के एहसास को
महसूस करके ही िह खुश हो गया था ककन्तु प्रत्यक्ष में बोला__"अब िह होगा माॅ
कजससे आपको अपने इस बे टे पर गिग होगा। चकलए अब चलते हैं यहाॅ से।"

इसके बाद तीनों ही चल पडे िहाॅ से। सामान ज्यादा कुछ था नही ं। पै दल चलते हुए
लगभग बीस कमनट में तीनो मेन रोड के उस जगह पहुॅचे जहाॅ से बस कमलती थी।
हलाकक ये जगह उनके गाॅि के पास की नही ं थी ककन्तु गौरी ने ही घू म कर इधर से
आने को कहा था। शायद उसके मन में इस बात का अंदेशा था कक अगर कशिा की
कपटाई का पता उसके घर िालों को हो गया होगा तो िो लोग उसे ढू ॅढते हुए आ भी
सकते थे।

हलाकक ये गौरी के मन का िहम ही साकबत हुआ। क्ोकक अभी तक कोई भी उन्हें


ढं ढने नही ं आया था जबकक िो बस में सिार हो कर शहर के कलए कनकल भी चुके थे।
कदाकचत कशिा की हालत के बारे में अब तक ककसी को पता न चला था। िरना अब
तक िो शहर के कलए कनकल न पाते। मगर गौरी के मन में उन लोगों के आ जाने का
ये डर तब तक बना ही रहा जब तक कक टर े न में बै ठ कर मुम्बई के कलए कनकल न गए
थे। जबकक किराज और कनकध ऐसे ितागि कर रहे थे जै से उन्हें इस सबका कोई भय ही
न था।

टर े न जब स्टे शन से बहुत दू र कनकल गई तब जा कर गौरी के मन से थोडा भय कम


हुआ और िह भी सामान्य हो गई। कदलो कदमाग मे किचारों का बिंडर सा चल रहा था।
कैसा समय आ गया था उनके जीिन में कजसकी शायद उन्होंने स्वप्न में भी कल्पना न
की थी। अपने ही घर से बे दखल कर कदया गया था उन्हें और आज ये आलम था कक
उन्हें अपनी जान तथा इज्जत बचाने के कलए भी बहुत दू र कही ं कछप जाने पर कबिस
होना पड रहा था। गौरी किचारों के सागर में गोते लगा रही थी। उसका चेहरा बे हद ही
किचकलत और उदास हो उठा था। आखों में आसू तैरने लगे थे। किराज अपनी माॅ को
ही दे खे जा रहा था। उसे एहसास था कक उसकी माॅ के कदलो कदमाग मे इस समय
क्ा चल रहा है। उसके माता कपता हमेशा ही उसके कलए एक आदशग थे। िह अपनी
माॅ और बहन को एक पल के कलए भी किचकलत या उदास नही ं दे ख सकता था।
उसकी बहन कनकध उसकी एक बाह थामे उसके कंधे में अपना कसर कटकाए बै ठी थी।
आज उसे अपने बडे भाई पर पहले से कही ं ज्यादा स्नेह और प्यार आ रहा था। उसे
लग रहा था कक उसके भइया के रहते अब दु कनया की कोई बला उन पर अपना असर
नही ं कदखा सकती थी।

किराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई
संकल्प सा ले कलया था। आखों में खून सा उतरता हुआ नजर आया। नथुने िूलने

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कपचकने लग गए थे। सहसा गौरी की नजर अपने बे टे पर पडी। बे टे की हालत का
अंदाजा होते ही उसकी आखें भर आईं। उसने शीघ्रता से किराज को अपने सीने में छु पा
कलया। माॅ का ह्रदय ममता के किसाल सागर से भरा होता है कजसकी ठं डक से तुरंत
ही किराज शान्त हो गया। 'किक्र मत कीकजए माॅ अब ऐसा तां डि होगा कक हमारा बुरा
करने िालों की रूह काॅप जाएगी।' किराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बं द
कर ली।

अपडे ट......... 《 05 》

अब तक.....

विराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई
सों कल्प सा ले वलया था। आखोों में ख़ू न सा उतरता हुआ नजर आया। नथु ने फ़ूलने वपचकने
लग गए थे । सहसा गौरी की नजर अपने बेटे पर पडी। बेटे की हालत का अोंदाजा होते ही
उसकी आखें भर आईों। उसने शीघ्रता से विराज को अपने सीने में छु पा वलया। माॅ का ह्रदय
ममता के विसाल सागर से भरा होता है वजसकी ठों डक से तुरोंत ही विराज शान्त हो गया।
'वफक्र मत कीवजए माॅ अब ऐसा ताों डि होगा वक हमारा बुरा करने िालोों की रूह काॅप
जाएगी।' विराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बोंद कर ली।

अब आगे.......

किराज अपनी माॅ और बहन को ले कर मुम्बई के कलए कनकल चुका था। जबकक यहाॅ
हिे ली में माहौल बडा ही गमग था। कशिा का जब शाम तक कोई अता पता न चला तो
उसके कपता अजय कसंह तथा माॅ प्रकतमा को कचंता हुई। अजय कसंह ने अपने आदकमयों
को कशिा की तलाश मे पूरे गाॅि तथा आस पास के गािों में भेज कदया और खुद
अपने खेत में बने मकान की तरि चल कदया। उसके साथ कुछ आदमी और थे।

अजय कसंह अपनी िकील की नौकरी छोंड चुका था। अब िह कबजनेस मैन था तथा
सारी जमीनों पर मजदू रों द्वारा िसल उगाता था। उसने अपने सबसे छोटे भाई अभय
को भी अपनी तरि कर कलया था। ये कैसे हुआ ये तो खैर बाद में पता चलेगा।

अजय कसंह अपने आदकमयों के साथ जब खेत िाले मकान पर पहुचा तो िहा का नजारा
दे ख कर हक्का बक्का रह गया। मकान में जो कमरा किराज की माॅ और उसकी बहन
के कलए कदया गया था िो खुला पडा था और बाहर कशिा की मोटर साईककल एक तरि
पडी थी। कुछ दू री पर अजय कसंह का बे टा अधमरी हालत मे पडा था खून से तथपथ।
अपने बे टे की ऐसी हालत दे ख कर अजय कसंह की मानो नानी मर गई।

अजय कसंह को समझ न आया कक उसके बे टे की ये हालत कैसे हो गई? उसने शीघ्र
ही अपने बे टे को उठाया और अपनी गोंद मे कलया। एक आदमी जल्दी ही ट्यूब बे ल से

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पानी लाया और कशिा के चेहरे पर हिे हिे कछडका। थोडी ही दे र मे कशिा को होश
आ गया। अजय कसंह ने अपने आदकमयों से कह कर उसे अपनी कार मे कबठाया और
हाल्किटल की तरि बढ गया।

रास्ते में अजय कसंह के पू छने पर कशिा ने सुबह की सारी राम कहानी अपने कपता को
बताई। अजय कसंह ये जान कर चौ ंका कक उसका भतीजा किराज यहा आया था और
उसने ही कशिा की ये हालत की है। इतना ही नही िो ये सब करने के बाद उसकी
जानकारी में आए बग़ै र बडी आसानी से अपनी माॅ और बहन को अपने साथ ले भी
गया। अजय कसंह को ये सब जानकर बे हद गुस्सा आया। उसने तुरंत ही ककसी को िोन
लगाया और कुछ दे र बात करने के बाद िोन काट कदया।

"तुम किक्र मत करो बे टे।" किर उसने कशिा से कहा__"बहुत जल्द िो हराम़िादा
तुम्हारे कदमों के नीचे होगा। मैंने पु कलस को इनिामग कर कदया है और कह कदया है कक
उन सबको ककसी भी हालत में पकड कर हमारे पास ले कर आएॅ।"

"उस कमीने ने मुझे बहुत मारा है डै ड।" कशिा ने कराहते हुए अपने कपता से
कहा__"मैं उसे छोडूॅगा नही ं, जान से मार दू ॅगा उस हरामजादे को।"
"कचन्ता मत करो बे टे।" अजय कसंह ने भभकते हुए लहजे में कहा था__"सबका कहसाब
दे ना पडगा उसे। अभी तक मै नरमी से पे श आ रहा था। मगर अब मै उन्हें कदखाऊगा
कक मुझसे और मेरे बे टे से उलझने का अंजाम क्ा होता है?"

"माकलक हम हाल्किटल पहुॅच गए हैं।" डर ाइकिं ग करते हुए एक आदमी ने कहा।

उस आदमी की बात सुन कर अजय कसंह ने कार से उतर कर कशिा को भी सहारा


दे कर नीचे उतारा और हाल्किटल के अंदर की तरि बढ गया।

एक घं टे बाद अजय कसंह अपने बे टे के साथ हिे ली मे पहुचा। कशिा की हालत अब


बे हतर थी क्ोकक हाल्किटल में उसकी डर े कसंग हो गई थी। अजय कसंह ने अपनी पत्नी
प्रकतमा को सब बताया कक क्ा क्ा हो गया है आज। सारी बाते सुन कर प्रकतमा की
भी भृकुटी तन गई। उसने तो सर पर आसमान ही उठा कलया।

"ये सब आपकी िजह से हो रहा है।" प्रकतमा ने गु स्से से कहा__"मैं तो उस कदन भी


कह रही थी कक नाग नाकगन और उनके सपोलों को कुचल दीकजए मगर आप ही नही ं
माने।"
"धीरे बोलो प्रकतमा।" अजय ने सहसा तपाक से बोला__"दीिारों के भी काॅन होते हैं।"

"मुझे ककसी की परिाह नही है।" प्रकतमा ने कहा__"आज अगर मेरे बे टे को कुछ हो
जाता तो आग लगा दे ती इस हिे ली को।"
"मैने उनका इं तजाम कर कदया है।"अजय कसंह ने कहा__"िो हमसे बच कर कही ं नही
जा पाएं गे । बस इं तजार करो िो सब तुम्हारे सामने होंगे किर जो कदल करे करना उन
सबके साथ।"

"डै ड मैं तो बस कनकध को चाहता हू।" कशिा कमीने ढं ग से मुस्कुराया था बोला__"बाकी

26
का आप और माॅम जानो।"
"जो कुछ करना सोच समझ कर करना बे टे।" अजय कसंह ने राजदाराना लहजे में
कहा__"तुम्हारे दादा दादी की कचन्ता नही ं है हमें। बस अपने चाचा अभय से जरा
सािधान रहना। उसे ये सब पता न चल पाए कक हम क्ा कर रहे हैं? हमने बडी
मुल्किल से उसे अपनी तरि ककया है।"

"िो तो ठीक है डै ड।" कशिा ने कहा__"ले ककन ऐसा कब तक चले गा? आल्कखर चाचा
लोगो को हम अपने सभी कामों मे शाकमल कब करें गे ?"
"बे टा ये इतना आसान नही ं है।" अजय ने कहा__"तुम्हारे चाचा और चाची लोग जरा
अलग तकबयत के हैं।"

"अगर ऐसा नही हो सकता तो।" प्रकतमा ने कहा__"तो किर हमारे पास एक ही रास्ता
है।"
"हमें कोकशश करते रहना चाकहए।"अजय ने कहा__"तुम भी करुर्ा पर कोकशश करती
रहो।"

तभी अजय का मोबाइल बजा।


"लो लगता है उन लोगों को ढू ॅढ कलया गया है।" अजय कसंह ने अपनी कोट की जेब
से मोबाइल कनकालते हुए कहा और मोबाइल की काॅल को ररसीि कर कान से लगा
कलया। उधर से जाने क्ा कहा गया कजसे सुन कर अजय कसंह के चेहरे पर गु स्से के
भाि आ गए।

कहानी जारी रहेगी,,,,,,,

"ऐसा कैसे हो सकता है ?"अजय वसों ह गुराफया__"िो लोग टर े न से कैसे गायब हो गए? तुम
उन्हें ढ़ू ॅढो और शीघ्र हमारे पास लेकर आओ िरना ठीक नहीों होगा समझे ?"
"-----------------"
"अरे जाएगे कहाॅ?" अजय ने कहा__"ठीक से ढ़ू ॅढो उन्हें ।" कहने के साथ ही अजय ने
फोन काट वदया।
"क्या हुआ?" प्रवतमा ने प़ूछा__"वकससे बात कर रहे थे आप?"
"डीसीपी अशोक पाठक से ।" अजय ने बताया__"उसका कहना है वक विराज अपनी माॅ
और बहन सवहत टर े न से गायब हैं ।"

"कट क्या...???" प्रवतमा और वशिा एक साथ उछल पडे ___"ऐसा कैसे हो सकता है भला?
िो सब मुम्बई के वलए ही वनकले थे ।"
"हो सकता है वक िो लोग टर े न में बैठे ही न होों।" प्रवतमा ने सोचने िाले भाि से
कहा__"कदावचत उन्हे ये अोंदेशा रहा हो वक उनकी करत़ू त का पता चलते ही उन्हे पकडने
के वलए आप उनके पीछे पुवलस को या अपने आदवमयोों को लगा दें गे। इस वलए िो टर े न से
सफर करना बेहतर न समझे होों।"

27
"ऐसा नहीों है ।" अजय ने कहा__"क्योवक विराज ने तत्काल ररजिेशन की तीन वटकटें ली थीों।
रे लिे कमफ चाररयोों के पास इसका सब़ूत है वक उन्होने तत्काल ररजिेशन की तीन वटकटें ली थी
मुम्बई के वलए।"

"तो वफर िो कहाॅ गायब हो गए?" वशिा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान


वनगल गया?
"वचोंता मत करो।" अजय वसों ह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढ़ू ों ढट लेंगे।"

अपडे ट.............. 《 06 》

अब तक,,,,,,

"ऐसा नहीों है ।" अजय ने कहा__"क्योवक विराज ने तत्काल ररजिेशन की तीन वटकटें ली थीों।
रे लिे कमफ चाररयोों के पास इसका सब़ूत है वक उन्होने तत्काल ररजिेशन की तीन वटकटें ली थी
मुम्बई के वलए।"

"तो वफर िो कहाॅ गायब हो गए?" वशिा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान


वनगल गया?
"वचोंता मत करो।" अजय वसों ह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढ़ूोंढट लेंगे।"

अब आगे,,,,,,,

उधर किराज अपनी माॅ और बहन को टर े न से उतार कर अब बस पकड चुका था।


उसका खयाल था कक बस से िह ककसी अन्य शहर जाएगा और किर िहाॅ से ककसी
दू सरी टर े न से मुम्बई जाएगा।

"तुम हमें टर े न से उतार कर बस में क्ों लाए बेटा?" माॅ गौरी ने सबसे पहले यही
सिाल पू छा था।
"टर े न में जाने से खतरा था माॅ।" किराज ने कहा__"बडे पापा ने हमें पकडने के कलए
अपने आदमी भेजे थे जो सभी जगह चेक कर रहे थे।"
"क् क्ा..???" गौरी बुरी तरह चौ ंकी___"पर तुम्हें कैसे पता?"

"मुझे इस बात का पहले से अंदेशा था माॅ।" किराज ने कहा__"इस कलए मैंने अपने
एक दोस्त को बडे पापा की हर गकतकिकध की खबर रखने के कलए कह कदया था िोन
के जररए। जब हम लोग टर े न मे बै ठ कर चले थे तब तक ठीक था। आप जानती है टर े न
िहा से कनकलने के बाद एक जगह रुक गई थी और किर छ: घं टे रुकी रही। क्ोंकक
उसमें कोई तकनीकी खराबी थी। मेरे दोस्त का िोन शाम को आया था उसने बताया
कक बडे पापा ने हमे ढू ढने के कलए हर जगह अपने आदमी भेज कदये हैं। मुझे पता था

28
टर े न मे उनके आदमी हमे बडी आसानी से ढू ढ लें गे क्ोकक उन्हे रे ल कमगचाररयो से हमारे
बारे में पता चल जाता और हम पकडे जाते। इस कलए मैंने आप सबको टर े न से उतार
कर ककसी अन्य तरीके से मुम्बई ले जाने का सोचा।"

"आपने बहुत अच्छा ककया भइया।"कनकध ने कहा__"अब िो हमें नही ढू ढ पाएं गे ।"
"इतना लम्बा चक्कर लगाने का यही मतलब है कक िो हमें उस रूट पर ढू ढे गे जबकक
हम यहा हैं।" किराज ने कहा__"मैं अकेला होता तो ये सब नही करता बल्कि खुल कर
उन सबका मुकाबला करता मगर आप लोगों की सुरक्षा जरूरी थी।"

"अभी मुकाबला करने का समय नही है बे टा।" गौरी ने कहा__"जब सही समय होगा
तब मैं खुद तुझे नही रोकूॅगी।"
"आप बस दे खती जाओ माॅ।" किराज ने कहा__"कक अब क्ा करता हूॅ मैं?"

"हाॅ भइया आप उन्हें छोंडना नही ं।" कनकध ने कहा__"बहुत गं दे लोग हैं िो सब। हमे
बहुत दु ख कदया है उन्होने।"
"किक्र मत कर मेरी गु कडया।" किराज ने कहा__"मैं उन सबसे चुन चुन कर कहसाब
लू ॅगा।"

ऐसी ही बातें करते हुए ये लोग दू सरे कदन मुम्बई पहुॅच गए। किराज उन दोनो को
सुरकक्षत अपने फ्लैट पर ले गया। ये फ्लैट उसे कम्पनी द्वारा कमला था कजसमें दो कमरे
एक डराइं ग रूम एक डायकनंग रूम एक लेकटर न बाथरूम तथा एक ककचेन था। पीछे की
तरि बडी सी बालकनी थी। कुल कमलाकर इन सबके कलए इतना पयाग प्त था रहने के
कलए।

किराज चूॅकक यहाॅ अकेला ही रहता था इस कलए िो साि सिाई से ज्यादा मतलब
नही रखता था। हलाॅकक सिाई िाली आती थी ले ककन िो सिाई नही करिाता था ऐसे
ही रहता था। फ्लैट की गं दी हालत दे ख कर दोनो माॅ बे टी ने पहले फ्लैट की साि
सिाई की। किराज ने कहा भी कक सिर की थकान है तो पहले आराम कीकजए,
सिाई का काम िह कल करिा दे गा जब सिाई िाली बाई आएगी तो ले ककन माॅ बे टी
न मानी और खुद ही साि सिाई में लग गईं।

इस बीच किराज माकेट कनकल गया था ककराना का सामान लाने के कलए। हलाकक
कंपनी से रहने खाने का सब कमलता था ले ककन किराज बाहर ही होटल मे खाना खाता
था। फ्लैट में गै स कसलें डर और चूल्हा िगैरा सब था ककन्तु राशन नही था। दो कमरों मे
से एक कमरे में ही एक बे ड था। ककचेन बडा था कजसमें एक कि़ि भी था। डर ाइं ग रूम
मे एक बडा सा एल सी डी टीिी भी था।

लगभग दो घं टे बाद किराज माकेट से लौटा। उसने दे खा कक फ्लैट की काया ही पलट


गई है। हर चीज अपनी जगह ब्यिल्कथथत तरीके से रखी गई थी। किराज को इस तरह
हर जगह आॅखें िाडे दे खता दे ख कनकध ने कहा__"न आप खुद का खयाल रखते हैं
और न ही ककसी और चीज का। ले ककन अब ऐसा नही होगा, अब हम आ गए हैं तो
आपका अच्छे से खयाल रखेंगे।"

29
"ओहो क्ा बात है।"किराज मुस्कुराया__"हमारी गु कडया तो बडी हो गई लगती है।"
"हाॅ तो?" कनकध किराज के बगल से सट कर खडी हो गई__"दे ल्कखए आपके कंधे तक
बडी हो गई हूॅ।"

"हाॅ हाॅ तू तो मेरी भी अम्मा हो गई है न।" गौरी ने कहा__"धेले भर की तो अकल


है नही ं और बडी बडी बाते करने लगी है।"
"दे ल्कखए भइया जब दे खो माॅ मुझे डाॅटती ही रहती हैं।"कनधी ने बुरा सा मुह बनाते
हुए कहा।

"मत डाॅटा कीकजए माॅ गु कडया को।" किराज ने कनकध को अपने सीने से लगाते हुए
कहा__"ये जै सी भी है मेरी जान है ये।"
"सुन कलया न माॅ आपने?" कनकध ने किराज के सीने से कसर उठा कर अपनी माॅ
गौरी की तरि दे ख कर कहा__"मैं भइया की जान हूॅ और हाॅ...भइया भी मेरी
जान हैं...हाॅ नही ं तो।"

"अच्छा ठीक है बाबा।" गौरी ने हस कर कहा__"अब भाई को छोंड और जा जाकर


नहा ले , किर मुझे भी नहाना है और खाना भी बनाना है।"
"मैं खाना बाहर से ही ले आया हूॅ माॅ।" किराज ने कहा__"आप लोग खा पी कर
आराम कीकजए कल से यही ं खाना पीना बनाना।"

"अब ले आया है तो चल कोई बात नही ं।" गौरी ने कहा__"ले ककन आज के बाद बाहर
का खाना पीना बं द। ठीक है न??"

"जै सा आप कहें माॅ।" किराज ने कहा और सारा सामान अंदर ककचन में रख कदया।

गौरी के कहने पर कनकध नहाने चली गई। जबकक किराज िही ं डर ाइं ग रूम में रखे सोिे
पर बै ठ गया। अचानक ही उसके चेहरे पर गं भीरता के भाि गकदग श करने लगे थे। गौरी
ककचेन में सामान सेट कर रही थी।

किराज के मोबाइल पर ककसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर


रहे नाम को दे खा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।

"मैं आ गया हूॅ।" किराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के कलए, बोलो
कहाॅ कमलना है?""
"__________________"
"ठीक है किर।" किराज ने कहा और िोन काट कदया। 'अजय कसंह बघे ल अब अपनी
बरबादी के कदन कगनने शु रू कर दे क्ोकक अब किराज कद ग्रे ट का क़हर तुम पर और
तुमसे जु डी हर ची़ि पर टू टे गा'

30
अपडे ट..............《 07 》

अब तक,,,,,

विराज के मोबाइल पर वकसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे
नाम को दे खा तो होठोों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।

"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के वलए, बोलो
कहाॅ वमलना है ?""
"__________________"
"ठीक है वफर।" विराज ने कहा और फोन काट वदया। 'अजय वसों ह बघे ल अब अपनी
बरबादी के वदन वगनने शु रू कर दे क्योवक अब विराज वद ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे
जुडी हर चीज पर ट़ू टे गा'

अब आगे........

उस ब्यल्कक्त का नाम जगदीश ओबराय था। ऊम्र यही कोई पचपन(55) के आसपास की।
वसर के नब्बे प्रवतशत बाल वसर से गायब थे। शरीर भारी भरकम था उसका वकन्तु उसे मोटा
नही कह सकते थे क्योवक कद की लम्बाई के वहसाब से उसका शरीर औसतन ठीक नजर
आता था। भारी भरकम शरीर पर कीमती कपडे थे । गले में सोने की मोटी सी चैन तथा दाएों
हाॅथ की चार उगवलयोों में कीमती नगोों से जडी हुई सोने की अग़ूवठयाॅ। इसी से उसकी
आवथफ क ल्कथथत का अोंदाजा लगाया जा सकता था वक िह वनहायत ही कोई रुपये पैसे िाला
रईश ब्यल्कक्त था।

"तो तुम तैयार हो बरखु दाफर?" जगदीश ओबराय ने कीमती मेज के उस पार कीमती सोफे पर
बैठे विराज की तरफ एक गहरी साॅस लेते हुए प़ूछा।
"जी वबलकुल सर।" विराज ने सपाट स्वर में कहा।
"तुम हमें सर की जगह अोंकल कह सकते हो विराज बेटे।" जगदीश ने अपनेपन से
कहा__"िैसे भी हम तुम्हें अपने बेटे की तरह ही मानते हैं । बल्कि ये कहें तो ज्यादा अच्छा
होगा वक तुम हमारे वलए हमारे बेटे ही हो।"

"आप मुझे अपना समझते हैं ये बहुत बडी बात है अोंकल।"विराज ने गोंभीर होकर
कहा__"िनाफ अपने कैसे होते हैं ये मुझसे बेहतर कौन जानता होगा?"
"इस युग में कोई वकसी का नहीों होता बेटे।" जगदीश ने कहा__"हर इों सान अपने मतलब के
वलए ररश्ते बनाता है और ररश्तोों को तोडता है । हम भी इसी युग में हैं इस वलए हमने भी
अपने मतलब के वलए तुमसे एक ररश्ता बना वलया। ये आज के युग की सच्चाई है बेटे।"

"आपके मतलबीपन में एक अच्छाई है अोंकल।"विराज ने कहा__"आप अपने मतलबीपन में


वकसी का अवहत नहीों करते हैं और न ही वकसी को तकलीफ दे कर खु द के वलए कोई खु शी
हावसल करते हैं ।"

31
"ये तुम्हारा नजररया है बेटा।" जगदीश ने कहा__"जो तुम हमारे बारे में ऐसा बोल रहे हो।
मगर सोचो सच्चाई तो कुछ और ही है , हम जो करते हैं उससे भी तो सामने िाले को
तकलीफ होती है वफर भले ही िह खु द कोई दे श समाज के वलए वकसी अवभशाप से कम न
हो।"

"बुरे लोगोों को मार कर या उन्हें तकलीफ दे कर अच्छे लोगोों को खु वशया दे ना कोई अपराि
तो नहीों है ।"विराज ने कहा।
"खै र, छोडो इन बातोों को।" जगदीश ने पहल़ू बदला__"हम अपने मुख्य विर्य पर बात
करते हैं ।"

"जी अोंकल।" विराज ने अदब से कहा।


"हमने सारे कागजात तैयार करिा वदये हैं बेटे।" जगदीश ने बडी सी मेज पर रखे अपने एक
छोटे से ब्रीफकेस को खोलते हुए कहा__"तुम एक बार खु द दे ख लो। वफर हम आगे की
बात करें गे।"

"इसकी क्या जरूरत थी अोंकल।" विराज ने कहा।


"जरूरत थी बेटे।" जगदीश ने कहा__"इतने बडे वबजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हालने
िाला हमारा अपना कोई नहीों है । तुम तो सब जानते हो वक एक हादसे ने हमारा सब कुछ
तबाह कर वदया था। हम नहीों जानते वक हमारे साथ ईश्वर ने ऐसा क्योों वकया? हमने तो कभी
वकसी का बुरा नहीों चाहा...हाॅ शायद ये हो सकता है वक हमारे वपछले जन्मोों में वकये गए
वकन्हीों पापोों का ये फल वमला है हमें।"

विराज कुछ न बोला, बस दे खता रह गया उस शख्स को वजसके चेहरे पर इस िक्त जमाने
भर का ग़म छलकने लगा था।

"तुम हमारी कोंपनी में दो साल पहले आए थे ।" जगदीश ओबराय कह रहा था__"तुम्हारे काम
से हर कोई प्रभावित था वजसमे हम भी शावमल थे । कोंपनी की जो ब्राॅच अत्यविक नुकसान
में चल रही थी िो तुम्हारी मेहनत और लगन से काफी मुनाफे के साथ आगे बढ गई। तुमने
उन सभी का पदाफफाश वकया जो कोंपनी को नुकसान पहुॅचा रहे थे और मजे की बात ये वक
वकसी को पता भी नहीों चल पाया वक वकसने उनका भोंडाफोड कर वदया।" जगदीश ने कुछ
पल रुक कर एक गहरी साॅस ली वफर बोला__"हम तुमसे बहुत प्रभावित थे बेटे और बहुत
खु श भी। हमने तुम्हारे बारे में अपने तरीके से पता लगाया और जो जानकारी हमें वमली उससे
हमें बहुत दु ख भी हुआ। हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता चल चुका था। हम जान चुके थे
वक सबके सामने खु श रहने िाला ये लडका अोंदर से वकतना और क्योों दु खी है ? हमारा
हमेशा से ही ये ध्ये य रहा था वक हम हर उस सच्चे ब्यल्कक्त की मदद करें गे जो अपनो तथा
िक्त के द्वारा सताया गया हो। हमने फैसला वकया वक हम तुम्हारे वलए कुछ करें गे। हम एक
ऐसे इों सान की तलाश में भी थे वजसे हम खु द अपना बना सकें और जो हमारे इतने बडे
वबजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हाल सके।"

"आज के समय में वकसी ग़ैर के वलए इतना कुछ कौन सोचता और करता है अोंकल?"
विराज गोंभीर था बोला__"जबवक आज के युग में अपने ही अपने अपनोों का बुरा करने में
जरा भी नहीों सोचते या वहचवकचाते हैं । मेरे साथ मेरे अपनोों ने जो कुछ वकया है उसका

32
वहसाब मैं वसफफ अपने दम पर करना चाहता था अों कल।"

"हम तुम्हारी वहम्मत और बहादु री की कद्र करते हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"लेवकन ये
वहम्मत और बहादु री वबना वकसी मजब़ूत आिार के वसफफ हिा में लावठयाॅ घु माने से ज्यादा
कुछ नहीों होता। तुम वजनसे टकराना चाहते हो िो आज के समय में तुमसे कहीों ज्यादा
ताकतिर हैं । उनके पास ऊची पहुॅच तथा वकसी भी काम को करा लेने के वलए रुपया पैसा
है । जबवक तुम इन दोनो चीजोों से विहीन हो बेटे। वकसी से जब भी जोंग करो तो सबसे पहले
अपने पास एक ठोस और मजब़ूत बैकप बना के रखो वजससे तुम्हारे आगे बढते हुए कदमोों
पर कोई रुकािट न आ सके।"

विराज कुछ न बोला जबवक जगदीश ने उसके चेहरे पर उभर रहे सै कडोों भािोों को दे खते हुए
कहा__"हम जानते हैं वक तुम खु ल कर प़ूरी वनडरता से उनका मुकाबला करना चाहते हो िो
भी उनके ही तरीके से । कुछ चीजें अनैवतक तथा पाप से पररप़ूणफ तो हैं लेवकन चलो कोई बात
नहीों। तुम सब कुछ अपने तरीके से करना चाहते हो मतलब 'जैसे को तैसा' िाली तजफ
पर।"

"मैं आपके कहने का मतलब समझता हूॅ अोंकल।" विराज ने अजीब भाि से कहा___"और
यकीन मावनये ये सब करने में मुझे कोई खु शी नहीों होगी पर वफर भी िही करूॅगा वजसे
आप अनैवतक और पाप से पररप़ूणफ कह रहे हैं । आज के समय में जैसे को तैसा िाली तजफ
पर अमल करना पडता है अोंकल तभी सामने िाले को ठीक से समझ और एहसास हो पाता
है वक िास्ि में उसने क्या वकया था।"

"खै र छोडो इन बातोों को।" जगदीश ने पहल़ू बदला__"ये बताओ वक उनके ल्कखलाफ तुम्हारा
पहला कदम क्या होगा?"
"मेरा पहला कदम उनके उस ताकत और पहुॅच का मदफ न करना होगा वजसके बल पर िो
ये सब कर रहे हैं ।"विराज ने कठोर स्वर में कहा।

"तुम्हारी सोच ठीक है ।" जगदीश ने कहा__"मगर हम ये चाहते थे वक तुम िैसा करो वजससे
उन्हें ये पता ही न चल सके वक ये क्या और कैसे हुआ?"
"पता तो ऐसे भी न चलेगा अोंकल।" विराज ने कहा__"आप बस िो कीवजएगा जो करने का
मैं आपको इशारा करूॅ।"

"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"िही होगा जो तुम कहोगे। हम तुम्हारे साथ हैं ।" कहने
के साथ ही जगदीश ने विराज की तरफ एक कागज बढाया__"इस कागज पर साइन कर दो
बेटे और अपने पास ही रखो इसे ।"

"इस सबकी क्या जरूरत है अोंचल?" विराज ने कागज को एक हाॅथ से पकडते हुए कहा।
"हमारे जीिन का कोई भरोसा नहीों है बेटे।" जगदीश ने कहा__"दो बार हमें हटफ अटै क आ
चुका है , अब कौन जाने कब अटै क आ जाए और हम इस दु वनयाॅ से ......"

"न नहीों अोंकल नहीों।" विराज तु रोंत ही जगदीश की बात काटते हुए बोल पडा__"आपको
कुछ नहीों होगा। ईश्वर करे आपको मेरी उमर लग जाए। आप हमेशा मेरे सामने रहें और मेरा

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मागफदशफ न करते रहें ।"
"हा हा हा बेटे तुम्हारी इन बातोों ने हमें ये बता वदया है वक तुम्हारे वदल में हमारे वलए क्या
है ?" जगदीश के चेहरे पर खु शी के भाि थे __"तुम हमें यकीनन अब अपना मानने लगे हो
और हमें ये जान कर बेहद खुशी भी हुई है । एक मुद्दत हो गई थी अपने वकसी अजीज के
ऐसे अपनेपन का एहसास वकये हुए। तुम वमल गए तो अब ऐसा लगने लगा है वक हम अब
अकेले नहीों हैं िनाफ इतने बडे बगले में तन्हाईयोों के वसिा कुछ न था। सारी दु वनया िन दौलत
के पीछे रात वदन भागती है बेटे िो भ़ूल जाती है वक इों सान की सबसे बडी दौलत तो उसके
अपने होते हैं ।"

"ये बातें कोई नहीों समझता अोंकल।" विराज ने कहा__"समझ तथा एहसास तब होता है जब
हमें वकसी चीज की कमी का पता चलता है । वजनके पास अपने होते हैं उन्हें अपनोों की
अहवमयत का एहसास नहीों होता और वजनके पास अपने नहीों होते उन्हें सों सार की सारी दौलत
महज बेमतलब लगती है , िो चाहते हैं वक इस दौलत के बदले काश कोई अपना वमल
जाए।"

"सों सार में हमारे पास वकसी चीज का जब अभाि होता है तभी हमें उसकी अहवमयत का
एहसास होता है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हलाॅवक दु वनयाॅ में ऐसे भी लोग हैं वजनके पास
सब कुछ होता है मगर िो सबसे ज्यादा अपनोों को अहवमयत दे ते हैं , िन दौलत तो महज
हमारी आवथफ क जरूरतोों को प़ूरा करने का जररया मात्र होती है ।"

विराज कुछ न बोला ये अलग बात है वक उसके चेहरे पर कई तरह के भाि उभरते और
लुप्त होते नजर आ रहे थे ।

"हम चाहते हैं वक।" जबवक जगदीश कह रहा था__"तुम अपनी माॅ और बहन के साथ
अब हमारे साथ इसी घर में रहो बेटे। कम से कम हमें भी ये एहसास होता रहे गा वक हमारा
भी अब एक भरा प़ूरा पररिार है ।"

"मैं इसके वलए माॅ से बात करूॅगा अोंकल।" विराज ने कहा।


"हम खु द चल कर तुम्हारी माॅ से बात करें गे बेटे।" जगदीश ने गोंभीरता से कहा__"हम
उससे कहें गे वक िो हमें अपना बडा भाई समझ कर हमारे साथ ही रहे ।"

"आप वफक्र न करें अोंकल।" विराज ने कहा__"मैं माॅ से बात कर ल़ूॅगा। िो इसके वलए
इों कार नहीों करें गी।
"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हम तुम सबके यहाॅ आने का इों तजार करें गे।"

कुछ दे र और ऐसी ही कुछ बातें हुईों वफर विराज िहाॅ से अपने फ्लैट के वलए वनकल गया।
विराज ने अपनी माॅ गौरी से जगदीश से सों बोंवित सारी बातें बताई, वजसे सु न कर गौरी के
वदलो वदमाग में एक सु क़ून सा हुआ।

"आज के समय में इतना कुछ कौन करता है बेटा?" गौरी ने गोंभीरता से कहा__"मगर हमारे
साथ हमारे अपनोों ने इतना कुछ वकया है वजससे अब आलम ये है वक वकसी पर भरोसा नहीों
होता।"

34
"जगदीश ओबराय बहुत अच्छे इों सान हैं माॅ।" विराज ने कहा__"इस सोंसार में उनका अपना
कोई नहीों है , िो मुझे अपने बेटे जैसा मानते हैं । अपनी सारी दौलत तथा सारा कारोबार िो
मेरे नाम कर चुके हैं , अगर उनके मन में कोई खोट होता तो िो ऐसा क्योों करते भला?"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी बुरी तरह चौोंकी__"उसने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर
वदया?"
"हाॅ माॅ।" विराज ने कहा__"यही सच है और इस िक्त िो सारे कागजात मेरे पास हैं
वजनसे ये सावबत होता है वक अब से मैं ही उनके सारे कारोबार तथा सारी दौलत का मावलक
हूॅ। अब आप ही बताइए माॅ...क्या अब भी उनके बारे में आपके मन में कोई शों का है ?"

"यकीन नहीों होता बेटे।" गौरी के जेहन में झनाके से हो रहे थे, अविश्वास भरे लहजे में कहा
उसने__"एक ऐसा आदमी अपनी सारी दौलत ि कारोबार तुम्हारे नाम कर वदया वजसके बारे
में न हमें कुछ पता है और न ही हमारे बारे में उसे ।"

"सब ऊपर िाले की माया है माॅ।" विराज ने कहा__"ऊपर िाले ने कुछ सोच कर ही ये
अविश्वसनीय तथा असों भि सा कारनामा वकया है । जगदीश अोंकल इसके वलए मुझे बहुत पहले
से मना रहे थे वकन्तु मैं ही इों कार करता रहा था। वफर उन्होोंने मुझे समझाया वक वबना मजब़ूत
आिार के हम कोई लडाई नहीों लड सकते। उन्होोंने ये भी कहा वक उनकी सारी दौलत उनके
बाद वकसी टर स्ट या सरकार के हाॅथ चली जाती। इससे अच्छा तो यही है वक िो ये सब
वकसी ऐसे इों सान को दे दें वजसे िो अपना समझते भी होों और वजसे इसकी शख्त जरूरत भी
हो। मैं उनकी कोंपनी में ऐज अ मैनेजर काम करता था, िो मुझसे तथा मेरे काम से खु श
थे । उनके वदल में मेरे वलए अपनेपन का भाि जागा। उन्होोंने मेरे बारे में सब कुछ पता वकया
और जब उन्हें मेरी सच्चाई ि मेरे साथ मेरे अपनोों के वकये गए अन्याय का पता चला तो एक
वदन उन्होोंने मुझे अपने बगले में बुला कर मुझसे बात की।"

"तुमने ये सब मुझे पहले कभी बताया क्योों नहीों बे टा?" गौरी ने विराज के चेहरे की तरफ
दे खते हुए कहा__"इतना कुछ हो गया और तमने मुझसे वछपा कर रखा। क्या ये अच्छी बात
है ?"

"आपने भी तो मुझसे िो सब कुछ छु पाया माॅ।" विराज ने सहसा गमगीन भाि से


कहा__"जो बडे पापा और छोटे चाचा लोगोों ने आपके और मेरी बहन के साथ वकया। मेरे
वपता जी की मौत कैसे हुई ये छु पाया गया मुझसे। मगर मैं सब जानता हूॅ माॅ, आपने भले
ही मुझसे छु पाया मगर मैं सब जानता हूॅ।"

"कट कट क्या जानते हो तुम?" गौरी हडबडा गई।


"जाने दीवजये माॅ।" विराज ने फीकी मु स्कान के साथ कहा__"अब इन सब बातोों का समय
नहीों है , अब समय है उन लोगोों से बदला लेने का।"

"जाने कैसे द़ू ॅ बेटा?" गौरी ने अजीब भाि से कहा__"मुझे जानना है वक तुम्हें ये सब कैसे
पता चला?"
"इतना कुछ हो गया।" विराज कह रहा था__"एक हसता खे लता सों सार कैसे इस तरह

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वतनका वतनका हो कर वबखर गया? मैं कोई बच्चा नहीों था माॅ वजसे इन सब बातोों का
एहसास नहीों था बल्कि सब समझता था मैं।"

"हमारे भाग्य में यही सब कुछ वलखा था बेटे।" गौरी की आॅखें छलक पडी__"शायद
ऊपरिाला हमसे खफा हो गया था।"
"कोई बात नहीों माॅ।" विराज ने कहा__"अब उन लोगोों का भाग्य मैं वलख़ू ॅगा। साॅपोों से
खे लने का बहुत शौक है न तो मैं उन्हें बताऊगा वक साॅप को जो द़ू ि वपलाते हैं एक वदन
िही साॅप उन्हें भी डस कर मौत दे दे ता है ।"

"क्या कहना चाहते हो तु म?" गौरी मुह और आखें फाडे दे खने लगी थी विराज को।
"हाॅ माॅ।" विराज कह रहा था__"मुझे सब पता है । मेरे वपता जी की मौत सपफ के काटने
से हुई थी लेवकन िो स्वावभक रूप से नहीों हुआ था बल्कि सब कुछ पहले से सोचा समझा
गया एक प्लान था। एक सावजश थी माॅ, मेरे वपता जी को अपने रास्े से हमेशा के वलए
हटा दे ने की।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?" गौरी उछल पडी, आखोों से झर झर आॅस़ू बहने लगे
उसके__"ये सब उन लोगोों की सावजश थी?"
"हाॅ यही सच है माॅ।" विराज ने कहा__"आपको इस बात का पता नहीों है लेवकन मुझे
है । मैं तो ये भी जानता हूॅ माॅ वक ये सब क्योों हुआ?"

"कट कट क्या जानते हो तुम?" गौरी के चेहरे पर अविश्वास के भाि थे ।


"िही जो आप भी जानती हैं ।" विराज ने अपनी माॅ गौरी की आखोों मे झाॅकते हुए
कहा__"कवहये तो बता भी द़ू ॅ आपको।"

"न नहीों नहीों" गौरी के चेहरे पर घबराहट के साथ साथ लाज और शमफ की लाली छाती चली
गई। उसका वसर नीचे की तरफ झुक गया।
"आपको नजरें चुराने की कोई जरूरत नहीों है माॅ।" विराज ने अपने दोनोों हाथोों से माॅ
गौरी का शमफ से लाल वकन्तु ख़ू बस़ू रत सा बेदाग़ चेहरा थामते हुए कहा__"आपने ऐसा कोई
काम नहीों वकया है वजससे आपको मुझसे ही नहीों बल्कि वकसी से भी नजरें चु राना पडे । आप
तो गोंगा की तरह पवित्र हैं माॅ, वजसकी वसफफ प़ूजा की जा सकती है ।"

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,,

"ब बेटे।" गौरी बुरी तरह रोते हुए अपने बेटे के चौडे सीने से जा लगी। उसने कस कर
विराज को जकडा हुआ था। विराज ने भी माॅ को छु पका वलया वफर बोला__"नहीों माॅ,
अब आप रोएों गी नहीों। रोने िोने िाला िक्त गुजर गया। अब तो रुलाने िाला िक्त शु रू
होगा।"

"वकतनी नासमझ थी मैं।" गौरी ने विराज के सीने से लगे हुए ही गोंभीरता से कहा__"मैं वजस

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बेटे को छोटा और अबोि समझ रही थी तथा ये भी वक िो बहुत मास़ू म है नासमझ है अभी,
मगर िो तो अपनी छोटी सी ऊम्र में भी कहीों ज्यादा समझदार और वजम्मेदार हो गया है ।
मैंने सब कुछ अपने बेटे से छु पाया, वसफफ इस वलए वक मैं अपने बेटे को खो दे ने से डरती
थी।"

"आप एक माॅ हैं माॅ।" विराज ने कहा__"और आपने जो कुछ भी वकया अपनी ममता से
मजब़ूर हो कर वकया। इस वलए इसके वलए मुझे आपसे कोई वशकायत नहीों है । लेवकन हाॅ
एक वशकायत जरूर है ।"
"अच्छा।" गौरी ने विराज के सीने से अपना वसर अलग वकया तथा ऊपर बेटे के की आखोों
मे प्यार से दे खते हुए कहा__"ऐसी क्या वशकायत है मेरे बेटे को मुझसे , जरा मुझे भी तो
पता चले।"

"वशकायत यही है वक।" विराज ने कहा__"आप हर पल खु द को दु खी रखती हैं और अपनी


आॅखोों पर तरस खाने की बजाय उन्हें रुलाती रहती हैं । ये हवगफज भी अच्छी बात नहीों है ।"

"अब से ऐसा नहीों होगा।" गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब मैं न तो खु द को दु खी रख़ू ॅगी
और न ही अपनी आखोों को रुलाऊगी। अब ठीक है न?"
"यही बात आप मेरी कसम खा कर कवहए।" विराज ने कहने के साथ ही माॅ गौरी का
दावहना हाॅथ पकड कर अपने वसर पर रखा।

"न नहीों नहीों।" गौरी ने विराज के वसर से तुरोंत ही अपना हाॅथ खीोंच वलया__"मैं इसके वलए
तुम्हारी कसम नहीों खा सकती मेरे लाल। तुम तो जानते हो एक माॅ अपने बच्चोों के वलए
वकतना सों िेदनशील होती है । उसका ममता से भरा हुआ ह्रदय इतना कोमल और कमजोर
होता है वक अपने बच्चोों के वलए एक पल में वपघल जाता है । सीने में पल भर में भािना का
ऐसा त़ूफान उठ पडता है वक उसे रोोंकना मु ल्किल हो जाता है , और आों खें तो जैसे इस
इों तजार में ही रहती हैं वक कब िो छलक पडें ।"

विराज माॅ की बात सु न कर मुस्करा उठा। माॅ के सुों दर चहरे और नील सी झीली आखोों में
खु द के वलए बेशुमार स्नेह ि प्यार दे खता रहा और हौले से झुक कर पहले उन आखोों को
वफर माॅ के माॅथे को प्यार से च़ूॅम वलया।

"क्या बात है ?" गौरी विराज के इस कायफ पर मुस्कुराई तथा अपनी आखोों की दोनो भौहोों को
ऊपर नीचे करके कहा__"आज अपनी इस ब़ूढी माॅ पर बडा प्यार आ रहा है मेरे बेटे
को।"
"प्यार तो हमेशा से था माॅ।" विराज ने कहा__"और हमेशा रहे गा भी। मगर आपने खु द को
ब़ूढी क्योों कहा?"

"अरे पगले! अब मैं ब़ूढी हूॅ तो ब़ूढी ही कहूॅगी न खु द को।" गौरी ने हस कर कहा।
"नहीों माॅ।" विराह कह उठा__"आप ब़ूढी वबलकुल भी नहीों हैं । आप तो गुवडया की बडी
बहन लगती हैं । आप खु द दे ख लीवजए।" कहने के साथ ही विराज ने माॅ गौरी को कमरे में
एक तरफ दीिार से सटे एक बडे से आदम कद आईने के सामने ला कर खडा कर वदया।

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"ये ये सब क्या कर रहा है बेटा?" गौरी हसते हुए बोली, उसने सामने लगे आईने में खु द
को दे खा। उसके पीछे ही विराज उसे उसके दोनो कोंिोों से पकडे हुए खडा था।

"अब गौर से दे ल्कखए माॅ।" विराज ने आईने में अपनी माॅ को दे खते हुए मुस्कुरा कर
कहा__"दे ल्कखए अपने आपको। आप अब भी मेरी माॅ नहीों बल्कि मेरी बडी बहन लगती हैं
न?"
"हे भगिान!" गौरी ने हसते हुए कहा__"तुम्हें मैं तुम्हारी बडी बहन लगती हूॅ? कोई और
सु ने तो क्या कहे ?"

"मुझे वकसी से क्या मतलब?" विराज ने कहा__"जो सच है िो बोल रहा हूॅ। गुवडया
आपकी ही फोटो काॅपी है माॅ। मतलब आप जब गुवडया की उमर में रहीों होोंगी तब आप
वबलकुल गुवडया जैसी ही वदखती रही होोंगी।"

"हाॅ तुम्हारी ये बात तो सच है बेटे वक गुवडया मु झ पर ही गई है ।" गौरी ने कहा__"सब


कोई यही कहता था वक गुवडया की शक्लो स़ू रत मुझसे वमलती जुलती है । लेवकन मैं उसके
जैसी अल्हड और मुहफट नहीों थी।"

"िो अभी बच्ची हैं माॅ।"विराज ने कहा__"उसमें अभी बहुत बचपना है । उसे य़ूॅ ही हसने
खे लने दीवजए, िो ऐसे ही अच्छी लगती हैं ।"
"उसकी उमर में मैंने वजम्मेदारी और समझदारी से रहना सीख वलया था बेटा।" गौरी ने
सहसा गोंभीर होकर कहा__"अब िो बच्ची नहीों रही, भले ही वदल और वदमाग से िह बच्ची
बनी रहे । मगर,,,,,"

"िैसे वदख नहीों रही िो।" विराज ने कहा__"कहाॅ है िह?"


"ऊपर छत पर गई थी कपडे डालने।" गौरी ने कहा।
"कोई हमें याद करे और हम तुरोंत उसके सामने न आएों ऐसा कभी हो सकता है क्या?"
सहसा कमरे के दरिाजे से अोंदर आते हुए वनवि ने कहा__"िैसे वकस वलए याद वकया गया है
हमें? जल्दी बताया जाए क्योोंवक हम बहुत वबजी हैं , हमें अभी कपडे डालने जाना है ऊपर
छत पर।"

"इस लडकी का क्या करूॅ मैं?" गौरी ने अपना माथा पीट वलया।
"बस प्यार कीवजए माॅ प्यार।" वनवि ने अपने दोनो हाॅथोों को इिर उिर घु माते हुए
कहा__"हम आपके बच्चे हैं , हमें बस प्यार कीवजए।"

"त़ू रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।" गौरी उसे मारने के वलए वनवि की तरफ लपकी, जबवक
वनवि वजसे पहले ही पता था वक क्या होगा इस वलए िह तुरोंत ही विराज के पीछे जा छु पी
और बोली__"भईया बचाइए मुझे नहीों तो माॅ मारें गी मुझे। मैं आपकी जान हूॅ न? अब
बचाइये अपनी जान को, हाॅ नहीों तो।"

"रुक जाइए माॅ।" विराज ने माॅ को रोोंक वलया__"मत माररए इसे । आपने दे खा न इसके
आते ही िातािरण वकतना खु शनुमा हो जाता है ।"
"हाॅ माॅ।" वनवि तुरोंत बोल पडी__"मेरी बात ही अलग है । आप समझती ही नहीों हैं जबवक

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भइया मुझे अच्छे से समझते हैं, हाॅ नहीों तो।"

"तेरे भइया ने ही तुझे वबगाड रखा है ।" गौरी ने कहा__"अब जा कपडे डाल कर आ
जल्दी।"
"आपकी जान का इतना बडा अपमान।" वनवि ने पीछे से विराज की तरफ अपना वसर करते
हुए कहा__"बडे दु ख की बात है वक आप कुछ नहीों कर सकते मगर, हम चुप नहीों रहें गे
एक वदन इस बात का बदला जरूर लेंगे, दे ख लीवजयेगा, हाॅ नहीों तो।"

"क्या बडबडा रही है त़ू?" गौरी ने आखें वदखाते हुए कहा।


"कुछ नही माॅ।" वनवि ने जल्दी से कहा__"िो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ
करने को कह रही थी।"

"िो क्योों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पडता चला गया। जबवक वनवि की इस बात से
विराज की हसी छ़ूट गई। िो ठहाके लगा कर जोर जोर से हसने लगा था। वनवि अपनी हसी
को बडी मु ल्किल से रोोंके इस तरह मुॅह बनाए खडी थी जैसे िो महाम़ूखफ हो। इिर विराज
के इस प्रकार हसने से गौरी को कुछ समझ न आया वक उसका बेटा वकस बात इतना हसे
जा रहा है ?

अपडे ट...........《 08 》

अब तक....

"क्या बडबडा रही है त़ू?" गौरी ने आखें वदखाते हुए कहा।


"कुछ नही माॅ।" वनवि ने जल्दी से कहा__"िो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ
करने को कह रही थी।"

"िो क्योों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पडता चला गया। जबवक वनवि की इस बात से
विराज की हसी छ़ूट गई। िो ठहाके लगा कर जोर जोर से हसे जा रहा था। वनवि अपनी
हसी को बडी मुल्किल से रोोंके इस तरह मुह बनाए खडी थी जैसे िो महाम़ूखफ हो। इिर
विराज के इस प्रकार हसने से गौरी को कुछ समझ न आया वक उसका बेटा वकस बात इतना
हसे जा रहा है ?

अब आगे,,,,,,

इसी तरह एक हप्ता गु ़िर गया। इस बीच किराज अपनी माॅ और बहन को ले कर
जगदीश ओबराय के बगले में आकर रहने लगा था। जगदीश ओबराय इन लोगों के आने
से बहुत खुश हुआ था। गौरी को अपनी छोटी बहन के रूप में पाकर उसे बे हद खुशी
हुई, गौरी भी उसे अपने बडे भाई के रूप में पाकर खुश हो गई थी। कनकध तो सबकी

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लाडली थी ही, अब जगदीश के कलए भी िह एक गु कडया ही थी।

कनकध का स्वभाि चंचल था। उसमें बचपना था तथा िह शरारती भी बहुत थी ककन्तु
पढाई कलखाई में उसका कदमाग बहुत ते़ि था। उसने दसिी ं क्लास 90% मार्क्ग के साथ
पास ककया था। इसके आगे िह पढ न सकी थी क्ोकक तब तक हालात बहुत खराब हो
चुके थे। गाॅि में दसिी ं तक ही स्कूल था। आगे पढने के कलए उसे पास के शहर जाना
पडता, हलाॅकक शहर जाने में उसको कोई समस्या नही ं थी ककन्तु हालात ऐसे थे कक
उन माॅ बे टी का घर से कनकलना मुल्किल हो गया था। आए कदन अजय कसंह का बे टा
कशिा गलत इरादों से उसे छें डता था। ये दोनो बाप बे टे एक ही थाली में खाने िाले थे।
अजय कसंह की नीयत गौरी पर खराब थी। जबकक गौरी उसके मझले स्वगीय भाई किजय
कसंह की बे िा थी तथा कनकध उसकी बे टी समान थी। ये दोनो बाप बे टे अपने ही घर की
इज्जत से खेलना चाहते थे। पै से और ताकत के घमंड में दोनो बाप बे टे ररश्ों की मान
मयाग दा भूल चुके थे।

जगदीश ओबराय ने कनकध की पढाई को ध्यान में रखते हुए उसका एडमीशन सबसे
अच्छे स्कूल में करिा कदया था। अभी िक्त था इस कलए स्कूल में दाल्कखला बडी आसानी
से हो गया था। अब कनकध रोजाना स्कूल जाती थी। अपनी पढाई के पु नः प्रारम्भ हो
जाने से कनकध बहुत खुश थी।

किराज अब चूॅकक खुद ही जगदीश ओबराय की सारी सम्पकि का इकलौता माकलक था


इस कलए अब िह कंपनी में मैनेजर के रूप में नही ं बल्कि कंपनी के एम डी के रूप में
जाता था। कंपनी में काम करने िाला हर ब्यल्कक्त ये जान कर आश्चयग चककत था कक
कंपनी में काम करने िाला एक मैनेजर आज इस कंपनी का माकलक है, यानी उन
सबका माकलक। ककसी को ये बात हजम ही नही ं हो रही थी। हर ब्यल्कक्त किराज और
किराज की ककस्मत से रक़्श कर रहा था। किराज के उच्च अकधकारी जो पहले किराज को
हुक्म दे ते थे तथा उसे तुच्छ समझते थे िो अब किराज के सामने उसके महज एक इशारे
से ककसी गु लाम की तरह सर झुकाए खडे हो जाते थे। कोई भी उच्च अकधकारी किराज
के सामने ककसी गु लाम की तरह झुकना नही चाहता था और न ही उसको अपना बाॅस
मानना चाहता था ककन्तु अब ये संभि नही था। सच्चाई सबके सामने थी और उस
सच्चाई को स्वीकार करके उसको अपनाना सभी के कलए अब अकनिायग था। किराज ये
सब बातें अच्छी तरह जानता था। इस कलए उसने सबसे पहले एक मीकटं ग रखी कजसमें
कंपनी के सभी उच्च अकधकारी शाकमल थे। मीकटं ग में किराज ने बडी शालीनता से सबके
सामने ये बात रखी कक अगर ककसी के कदलो कदमाग में कोई बात है तो िो खुल कर
जाकहर करे । िो अब ओबराय कंपनीज का माकलक है इससे अगर ककसी को कोई
तकलीि हो तो िो बता दे अन्यथा बाद में ककसी का भी गलत ब्यौहार या ककसी भी
तरह की गलत बात का पता चलते ही उसे कंपनी से आउट कर कदया जाएगा।

किराज ने ये भी कहा कक आज िह भले ही ओबराय कंपनी़ि का माकलक बन गया है


ले ककन िह कंपनी में काम करने िाले सभी कमगचाररयों को हमेशा अपना दोस्त या भाई
ही समझे गा।

किराज की इन बातों से मीकटं ग रूम में बै ठे कािी उच्च अकधकारी प्रभाकित हुए और

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कुछों के चेहरे पर अब भी अजीब से भाि थे। सबके चेहरों के भािों को बारीकी से
जाॅचने के बाद किराज ने अंत मे ये भी कहा कक अगर ककसी के कदलो कदमाग में ऐसी
बात है कक िो इस सच्चाई को स्वीकार नही ं कर रहे हैं तो िो शौक से अपना अपना
स्तीिा दे कर जा सकते हैं।

कुछ लोग हालातों से बडा जल्दी समझौता करके आगे बढ जाते हैं ककन्तु कुछ ऐसे भी
होते हैं जो कबना मतलब का खोखला सम्मान और गुरूर ले कर खाली हाॅथ बै ठे रह जाते
हैं। कहने का मतलब ये कक मीकटं ग के बाद एक हप्ते के अंदर अंदर कंपनी के कािी
उच्च अकधकाररयों ने स्तीिा दे कदया। किराज जैसे जानता था कक यही होगा। इस कलए
उसने पहले से ही ऐसे लोगों को उनकी जगह किट ककया जो उसकी ऩिर में इमानदार
ि ििादार होने के साथ साथ उसके अपने कमत्र भी थे।

ऐसे ही पन्द्रह बीस कदन गु ़िर गए। किराज अब कुशलतापू िगक कंपनी का सारा कारोबार
सम्हालने लगा था। जगदीश ओबराय उसकी हर तरह से मदद भी कर रहा था। उसने
एक ग्राण्ड पाटी रखी कजसमें शहर के सभी बडे बडे लोग आमंकत्रत थे। यहाॅ तक कक
मंत्री कमकनस्टर तथा पु कलस महकमें के उच्च अकधकारी िगै रा सब। इस पाटी को रखने
का एक खास मकसद था और िो था किराज को सबके सामने प्रमोट करना। जगदीश
ने स्टे ज में जा कर तथा एनाउं समेन्ट कर सबको बताया कक उसकी सारी कमल्कियत का
अब से किराज ही अकेला िाररस तथा माकलक है। सब ये सुन कर हैरान भी थे और
खुश भी। सभी बडे बडे लोगों से किराज को कमलिाया गया।

कहानी जारी रहे गी,,,,,,,

अब विराज कोई आम इों सान नहीों रह गया था बल्कि अब उसे सारा शहर जानता था। प्रेस
और मीवडया िालोों को कुछ सोचकर जगदीश ने पाट़ी में आने नहीों वदया था। अब उसका
सम्मान और रुतबा िैसा ही हो गया था जैसे खु द जगदीश ओबराय का था। गौरी ि वनवि इस
सबसे बहुत ही खुश थीों। उनके मन में जगदीश के प्रवत बडा आदर और सम्मान हो गया था।
अब ये सब जगदीश को प़ूरी तरह अपना मानने लगे थे । उन्होोंने ये ख्वाब में भी नहीों सोचा
था वक ऐसा असों भि कायफ भी कभी होगा लेवकन सच्चाई अब उनके सामने थी। आज गौरी का
बेटा हजारोों करोडोों रूपये की सम्पवि का मावलक था। गौरी इस बात के वलए भगिान का
लाख लाख शु वक्रया अदा कर रही थी।

जगदीश ओबराय हाटफ का मरीज था। उसने अपने जीिन में एक ही झटके में अपनोों को
खोया था। उसके एक ही बेटा था, अमरीश ओबराय। अमरीश की नई नई शादी हुई थी और
िो अपनी बीिी के साथ हनीम़ून के वलए इटली जा रहा था। वकन्तु इटली जा रहा विमान क्रैस
हो गया और एक ही झटके में विमान में बैठे सभी पैसेंजर मौत को प्राप्त हो गए थे । उस
हादसे से जगदीश की मुकम्मल दु वनया ही तबाह हो गई। उसका अपना कोई नहीों बचा था।
उसकी इतनी बडी दौलत और इतने बडे कारोबार को सम्हालने िाला कोई नहीों बचा था।
उसकी पत्नी तो पहले ही गुजर गई थी वजससे िह बेहद प्यार करता था। इस सबसे जगदीश
वदल का मरीज बन गया था, उसे दो बार वदल का दौरा पड चु का था वजसमें िह बडी

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मुल्किल से बचा था। िह रात वदन इसी सोच में मरा जा रहा था वक उसके बाद उसकी
वमल्कियत का अब क्या होगा? उसके कम्पटीटर कहीों न कहीों इस बात से खुश थे और जो
उसके घवनष्ठ वमत्र थे िो जगदीश की इस हालत से दु खी थे । िह चाहता तो इस उमर में भी
द़ू सरी शादी कर सकता था वजसके वलए उसके खास चाहने िाले वमत्रोों ने सु झाि भी वदया था।
वकन्तु जगदीश ने द़ू सरी शादी करने से साफ मना कर वदया था। उसका कहना था वक इस
उमर में िह वकसी से शादी नहीों करे गा, लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे वक उसने अपनी
बेटी की उमर िाली लडकी से शादी की।

अपनोों के खोने का दु ख और उसके द्वारा रात वदन सोचते रहने की िजह से िह वदल का
मरीज बन गया था। इतने बडे बगले में िह अकेला रहता था, ये अकेलापन उसे वकसी सपफ
की भाॅवत रात वदन डसता रहता था। नौकर चाकर तो बहुत थे लेवकन वजनसे उसके मन को
तथा आत्मा को सु क़ून ि त्रल्कप्त वमलती िो उसके अपने नहीों थे । विराज के आने से उसे ऐसा
लगा जैसे उसे उसका खोया हुआ बेटा अमरीश वमल गया था। उसने विराज के बारे में गुप्त
रूप से सारी मालुमात की थी। विराज के अपनोों ने उसके और उसकी माॅ बहन के साथ
क्या अत्याचार वकया ये उसको पता चला था। विराज का नेचर उसे बहुत अच्छा लगा। विराज
एक होनहार तथा मेहनती लडका था। जगदीश ने फैसला कर वलया था वक विराज ही अब
उसका 'अपना' होगा। उसने विराज को अपने बगले में बुलिाया और तसल्ली से उससे बात
की। उसने विराज से उसके बारे में सब बातें प़ूछी और खु द भी अपने मन की बात विराज
को बताई वक िह क्या चाहता है । अपने बाॅस ि मावलक की ये बातें सु न कर विराज चवकत
था, उसे यकीन ही नहीों हो रहा था वक कोई ऐसा भी कर सकता है ।

विराज ने जगदीश की बातें सु नकर ये कहा वक उसे सोचने के वलए िक्त चावहए। जगदीश ने
उसे िक्त वदया और विराज िहाॅ से चला आया था। उसने अकेले में इस बारे में बहुत
सोचा। उसे जगदीश के प्रवत ऐसा कुछ भी नहीों लगा वक इस सबके पीछे जगदीश का कोई
गलत इरादा या मकसद हो। कोंपनी में काम करने िाले सभी कमफचाररयोों की तरह िह भी ये
बात जानता था वक उसके मावलक जगदीश ओबराय वनहायत ही एक सच्चे ि नेकवदल इों सान
हैं । उनकी नेकनीयती ि नरमवदली का कोंपनी के कुछ उच्च अविकारी लोग ग़लत फायदा उठा
रहे थे । वजनका उसने बडी सफाई से पदाफफाश वकया था। वकसी को इस बात का पता तक
न चला था। विराज ने पक्के सब़ूत इकट्ठा करके सीिा जगदीश ओबराय के सामने रख वदया
था। जगदीश ओबराय विराज के इस कायफ और उसकी इस इमानदारी से बेहद प्रभावित हुए
थे । उन्होोंने विराज को अपनी सभी कोंपवनयोों की गु प्तरूप से जाॅच पडताल का काम सौोंप
वदया वकन्तु प्रत्यक्ष रूप में िह कोंपनी का एक मै नेजर ही रहा।

जगदीश ओबराय के द्वारा सौोंपे गए इस गुप्त कायफ को उसने बडी ही कुशलता तथा सफाई से
अोंजाम वदया। एक महीने के अोंदर अोंदर ही उन सबको तगडे नोवटश के साथ कोंपनी से
तत्काल वनकाल वदया गया। वकसी को कुछ सोचने समझने का मौका तक नहीों वमला और न
ही वकसी को ये समझ आया वक ये अचानक उनके साथ क्या और कैसे हो गया? सब़ूत
क्योोंवक पक्के थे इस वलए उन सबको िो सब भारी हरजाने के साथ दे ना पडा जो उन सबने
कोंपनी से खाया था। एक झटके में ही सबके सब भीख माॅगने की हालत में आ गए थे ।
बात अगर इतनी ही बस होती तो भी ठीक था वकन्तु उनके द्वारा वकये गए इन कायों के वलए
उन सबको जेल का दाना पानी भी वमलना नसीब हो गया था।

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विराज द्वारा वकये गए इस अविश्वसनीय कायफ से जगदीश ओबराय बहुत खुश हुए। उनके मन
में विचार आया वक विराज के बारे में उन्होोंने जो फैसला वलया है िो हवगफज भी ग़लत नही है ।

दोस्ो आप सब समझ सकते हैं वक ये सब बताने के पीछे मेरा क्या मकसद हो सकता है ?
और अगर नहीों समझे हैं तो बता दे ता हूॅ,,, दरअसल बात ये है वक वकन पररल्कथथवतयोों की
िजह से विराज को आज ये सब प्राप्त हुआ ? आल्कखर विराज में जगदीश को ऐसा क्या नजर
आया वक उसने उसे अपना सब कुछ मान भी वलया और सब कुछ दे भी वदया? हलाॅवक
आज के युग की सच्चाई ये है वक आप भले ही वकसी के वलए अपना सब कुछ वनसार कर
दीवजए वकन्तु बदले में आपको कुछ वमलने की तो बात द़ू र आपके द्वारा वकये गए इस
बवलदान का कोई एहसान तक नहीों मानता। खै र, जाने दीवजए.....हम कहानी पर चलते
हैं ।

कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

"डै ड मुझे इसके आगे की पढाई मुम्बई से करना है ।"नीलम ने बडी मास़ू वमयत से कहा
था__"मेरी सब दोस् भी िहीों जा रही हैं ।"
"अरे बेटा।" अजय वसों ह चौोंका था__"मगर यहाॅ क्या परे शानी है भला? यहाॅ भी तो पास
के शहर में बहुत अच्छा काॅलेज है ?"

"यहाॅ के काॅलेजोों में वकतनी अच्छी वशक्षा वमलती है ये तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं
डै ड।" नीलम ने कहा__"मुझे अपनी डाक्टरी की बेहतर पढाई के वलए बेहतर वशक्षा की
आिश्यकता है ।"
"अच्छी बात है बेटी।" अजय वसों ह ने कहा__"लेवकन मुम्बई से अच्छा तो तुम्हारे वलए वदल्ली
रहे गा। क्योवक वदल्ली में तुम्हारी बडी बुआ भी है । तुम अपनी सौम्या बुआ के साथ रह कर
िहाॅ बेहतर पढाई कर सकती हो।"

"नहीों डै ड।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया__"मैं मुम्बई में अपनी मौसी के यहाॅ रह कर
पढाई करूॅगी। आप तो जानते हैं वक मौसी की बडी बेटी अोंजली दीदी आजकल मुम्बई में
ही एक बडे हाल्किटल में एज अ डाक्टर काम करती हैं । उनके पास रहूॅगी तो उनसे मुझे
बहुत कुछ सीखने को भी वमलेगा।"

"ये सही कह रही है डै ड।" ररतु ने कहा__"अोंजली दीदी के पास रह कर इसे अपनी पढाई
के वलए काफी कुछ जानने समझने को भी वमल जाएगा। आप इसे बडी मौसी के पास ही
जाने दीवजए।"

"ठीक है बेटी।" अजय वसों ह ने कहा__"तुम्हारी भी यही राय है तो नीलम अब मुम्बई ही


जाएगी।"
"ओह थैंक्य़ू सो मच डै ड एण्ड।" नीलम ने खु श हो कर अजय वसों ह से कहने के बाद ररत़ू
की तरफ पलट कर कहा__"एण्ड थैं क्स य़ू ट़ू दीदी।"

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"कौन कहाॅ जा रहा है डै ड?" बाहर से डर ाइों ग रूम में आते हुए वशिा ने कहा।
"तुम्हारी नीलम दीदी मुम्बई जा रही है अपनी बडी मौसी प़ूनम के पास।" अजय वसों ह ने
कहा__"ये िहीों रह कर अपनी डाक्टरी की पढाई करे गी।"

"क क्या..???" वशिा उछल पडा__"नीलम दीदी मुम्बई जाएों गी? नहीों डै ड आप इन्हें मुम्बई
कैसे भेज सकते हैं ? जबवक आप जानते हैं वक हमारा सबसे बडा दु श्मन विराज मुम्बई में ही
है ।"

"अरे उससे कोई फकफ नहीों पडता बेटे।" अजय वसों ह ने कहा__"और उससे डरने की भी
कोई जरूरत नहीों है । और िैसे भी उसे क्या पता चलेगा वक नीलम कहाॅ है ? िो तो वकसी
होटल या ढाबे में कप प्ले ट िो रहा होगा। उसे इस काम से फुसफ त ही कहाॅ वमलेगी वक िो
नीलम को खोजेगा?"

"हा हा हा आप सच कहते हैं डै ड।" वशिा ठहाका लगा कर जोरोों से हसते हुए कहा__"िो
यकीनन वकसी होटल या ढाबे में कप प्ले ट ही िो रहा होगा।"
"खै र छोोंडो।" अजय वसों ह ने नीलम की तरफ दे ख कर कहा__"तो तुम्हें कब जाना है
मुम्बई?"

"मैं तो कल ही जाने का सोच रही हूॅ डै ड।" नीलम ने कहा__"मैंने सारी तैयारी भी कर ली
है ।"
"चलो ठीक है ।" अजय वसों ह ने कहा__"मैं तुम्हारे वलए टर े न की वटकट का बोल दे ता हूॅ।"

"जी डै ड।" नीलम ने कहा और ऊपर अपने कमरे की तरफ पलट कर चली गई।
"त़ू भी कुछ करे गा वक ऐसे ही आिारागद़ी करता इिर उिर घ़ू मता रहे गा?" सहसा वकचेन से
आती हुई प्रवतमा ने कहा__"सीख कुछ इनसे। ऐसे कब तक चलेगा?"

"इतना ज्यादा पढ वलख कर क्या करना है माॅम?" वशिा ने बेशम़ी से खीसें वनपोरते हुए
कहा__"डै ड की दौलत काफी है मेरे उज्वल भविष्य के वलए। मैंने सही कहा न डै ड?"
अोंवतम िाक्य उसने अजय वसों ह की तरफ दे खते हुए कहा था।

"बात तो तुम्हारी ठीक है शहजादे ।" अजय वसों ह पहले मुस्कुराया वफर थोडा गोंभीर हो कर
बोला__"लेवकन जीिन में उच्च वशक्षा का होना भी बहुत जरूरी होता है । माना वक मैने तुम्हारे
वलए बहुत सारी दौलत बना कर जोड दी है लेवकन ये दौलत कब तक तुम्हारे वलए बची
रहे गी? दौलत कभी वकसी के पास वटकी नहीों रहती। उसको बनाए रखने के वलए काम करके
उसे कमाना भी जरूरी है । आज वजतना हम उसे खचफ करते हैं उससे कहीों ज्यादा उसे प्राप्त
करना भी जरूरी है ।"

"ओह डै ड आप तो बेकार का लेक्चर दे ने लगे मुझे।" वशिा ने बुरा सा मुह बनाते हुए
कहा__"इतना तो मुझे भी पता है वक दौलत को पाने के वलए काम करना भी जरूरी है और
अच्छे काम के वलए अच्छी वशक्षा का होना जरूरी है । तो डै ड, मैं पढ तो रहा हूॅ न?"

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"वजस तरह की तुम पढाई कर रहे हो न।" प्रवतमा ने तीखे लहजे में कहा__"उसका पता है
मुझे।"
"ओह माॅम अब आप भी डै ड की तरह लेक्चर मत दे ने लग जाना।" वशिा ने कहा।

"ये लेक्चर तुम्हारे भले के वलए ही वदया जा रहा है बेटे।" अजय वसों ह ने कहा__"इस पर
ग़ौर करो और अमल भी करो।"
"जी डै ड कर तो रहा हूॅ न?" वशिा ने कहा और सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ
चला गया। वकन्तु िह ये न दे ख सका वक उसके पैन्ट की बाॅई पाॅकेट से उसकी कौन सी
चीज वगर कर सोफे पर रह गई थी।

अजय वसों ह और प्रवतमा की नजरें एक साथ उस चीज पर पडीों। और उस चीज को पहचानते


ही दोनो अपनी अपनी जगह बैठे उछल पडे । प्रवतमा ने अपना हाॅथ आगे बढा कर उस चीज
को उठा वलया। िो कण्डोम का पैवकट था। पैवकट खु ला हुआ था मतलब उसमे मौज़ूद
कण्डोमोों में से कुछ का इस्े माल हो चुका था। प्रवतमा ने अपने पवत अजय वसों ह की तरफ
अजीब भाि से दे खा।

"ये है आपके शहजादे की पढाई।" प्रवतमा के लहजे में कठोरता थी बोली__"और ये सब


वसफफ आपके लाड प्यार का नतीजा है ।"
"इस उमर में ये नेचुरल बात है प्रवतमा।" अजय वसों ह ने कहा__"क्या तुम भ़ूल गई वक हम
दोनोों ने खु द शादी के पहले इसका वकतना इस्े माल वकया था?"

"हाॅ मगर तब आप नौकरी पेशा थे ।" प्रवतमा के चेहरे पर कुछ पल के वलए शमफ की लाली
छाई थी वकन्तु उसने शीघ्र ही खु द को नाॅमफल करते हुए कहा था__"लेवकन वशिा अभी पढ
रहा है । अगर इसी तरह चलता रहा तो िो क्या कर पाएगा भविश्य में?"

"तुम बेिजह छोटी सी बात को इतना त़ूल दे रही हो यार।" अजय वसों ह ने कहा__"मुझे
तुमसे ज्यादा वचोंता है उसके भविश्य की, अगर नहीों होती तो ये सब नहीों करता। और अब
इस बारे में कोई बात नही होगी समझी न?"

प्रवतमा कुछ न बोली। इसके साथ ही डर ाइों ग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ दे र की खामोशी
के बाद अजय वसों ह ने कहा__"अब य़ूॅ मुह न फुलाओ मेरी जान, आज रात तुम्हें खु श कर
द़ू ॅगा वचन्ता मत करो।"

"क्या सच में?" प्रवतमा के चेहरे पर खु शी छलक पडी__"लेवकन दो राउण्ड से पहले नहीों


सोने द़ू ॅगी मैं आपको ये सोच लेना।"
"ठीक है मेरी जान।" अजय वसों ह मुस्कुराया__"एक एक राउण्ड तुम्हारे आगे पीछे से अच्छे से
ल़ूॅगा।"

"अच्छा जी?" प्रवतमा मुस्कुराई__"आप तो जब दे खो मेरे वपछिाडे के पीछे ही पडे रहते हो।"
"औरत को पीछे से रगड रगड कर ही ठोोंकने में हम मदों को मजा आता है वडयर।" अजय
वसों ह ने कहा__"और तुम्हारे वपछिाडे की तो बात ही अलग है यार।"

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"और वकसके वकसके वपछिाडे की बात अलग है ?" प्रवतमा ने अथफ प़ूणफ ढों ग से मुस्कुराते हुए
कहा__"जरा ये भी तो बताइए।"
"तुम अच्छी तरह जानती हो मेरी जान।" अजय वसों ह के चेहरे पर अजीब से भाि थे __"वफर
क्योों प़ूॅछ रही हो?"

"बताने में हजफ ही क्या है ?" प्रवतमा हसी__"बता ही दीवजए।"


"तुम्हारे बाद अगर वकसी और के वपछिाडे में अलग बात है तो िो है हमारी बडी बेटी ररत़ू।
हाय क्या वपछिाडा है जावलम का वबलकुल तु म्हारी तरह ही है उसका वपछिाडा।"

"अपनी ही बेटी पर नीयत बुरी है आपकी?" प्रवतमा ने कहने के साथ ही मैक्सी के ऊपर से
अपने एक हाॅथ से अपनी च़ूॅत को बुरी तरह मसला वफर बोली__"मगर ये जान लीवजए वक
ररत़ू का वपछिाडा इतनी आसानी से वमलने िाला नही है आपको।"

"यही तो रोना है यार।" अजय वसों ह आह सी भरते हुए बोला__"तुमको मे री ख्वावहश का पता
है वफर भी अब तक कुछ नहीों वकया।"
"वचोंता मत कीवजए।" प्रवतमा ने कहा__"आपके वलए एक नई च़ूॅत और एक नए वपछिाडे
का इों तजाम कर वदया है मैंने।"

"कट क्या सच में..???"अजय वसों ह खु शी से झ़ूम उठा__"ओह वडयर आल्कखर तुमने कर ही


वदया। मगर, ये तो बताओ वकसकी च़ू त और वपछिाडे का इों तजाम वकया है तुमने?"
"अभी थोडी कसर बाॅकी है जनाब।" प्रवतमा ने कहा__"मगर मुझे यकीन है वक एक दो
वदन में काम हो जाएगा आपका।"

"काश! गौरी को हावसल कर पाता मैं।" अजय वसों ह बोला__"उस पर तो मेरी तब से नजर
थी जब िह ब्याह कर इस घर में आई थी। एक झलक उसके वजस्म की दे खी थी मैंने। एक
दम द़ू ि सा गोरा रों ग था उसका और बनािट ऐसी वक उसके सामने कुदरत की हर कृवत
फीकी पड जाए।"

"कम से कम मेरे सामने उसकी ख़ू बस़ू रती का बखान मत वकया कीवजए आप।" प्रवतमा ने
तीखे भाि से कहा__"आपको वकतनी बार ये कहा है मैने। वफर भी आप उस हरामजादी की
तारीफ करके मे रा ख़ू न जलाने से बाज नहीों आते हैं ।"

"क्या करूॅ मेरी जान?" अजय वसों ह कह उठा__"तुम्हारे बाद मुझे अगर वकसी से प्यार हुआ
है तो िो थी गौरी। मैं चाहता तो कब का उसकी ख़ू बस़ू रती का रसपान कर लेता वकन्तु मैने
ऐसा नही वकया। मैं उसे प्यार से हावसल करना चाहता था। तभी तो मैंने ये सब वकया,
उसको इतने दु ख वदए और उसके वलए सारे रास्े बोंद कर वदए। मगर वफर भी कुछ हावसल
नहीों हुआ और अब होगा भी वक नहीों क्या कहा जा सकता है ?"

"आपने तो उन लोगोों की खोज में अपने आदमी लगाए थे न?" प्रवतमा ने कहा__"उन लोगोों
ने क्या ररपोटफ दी उनके बारे में?"
"मेरे आदमी खाली हाॅथ िापस आ गए थे ।" अजय वसों ह के चेहरे पर कठोरता के भाि
उजागर हुए__"िो हरामी की औलाद विराज बडा ही चतुर ि चालाक वनकला। उसने अपनी

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माॅ और बहन को वकसी द़ू सरे शहर के रूट से उन्हें मुम्बई ले जाने में कामयाब हो गया
था।"

"शायद उसे अोंदेशा था वक आप उन्हें पकडने के वलए अपने आदवमयोों को भेजेंगे।" प्रवतमा ने
सोचप़ूणफ भाि से कहा।
"हाॅ यही बात रही होगी।" अजय वसों ह बोला__"िनाफ िो ऐसा काम क्योों करता? मगर कब
तक मुझसे वछपा कर रखे गा िो अपनी माॅ और बहन को? मैं चैन से बैठा नहीों हूॅ प्रवतमा,
बल्कि आज भी मेरे आदमी उनकी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं ।"

"ये आपने अच्छा वकया है ।" प्रवतमा ने सहसा आिेशयुक्त स्वर में कहा था__"जब आपके
आदमी उन सबको पकड कर यहा लाएों गे तो मैं अपने हाॅथोों से उस कुिे को गोली मारू
ों गी
वजसने उस वदन मेरे बेटे का िो हाल वकया था।"

"तुम्हारी ये इच्छा जरूर प़ूरी होगी वडयर।" अजय वसों ह ने भभकते लहजे में कहा__"और अब
मैं भी गौरी को बीच चौराहे पर रगड रगड कर ठोोंक़ूॅगा। अब बात प्यार की नहीों रह गई
बल्कि अब प्रवतशोि की है । मेरे उस प्रण की है जो मैंने िर्ों पहले वलया था।"

"वकस प्रण की बात कर रहे हैं डै ड?" ररत़ू ऊपर से सीवढया उतरते हुए प़ूछी।
"कुछ नहीों बेटी बस ऐसे ही बात कर रहे थे हम लोग।" प्रवतमा ने जल्दी से बात को टालने
की गरज से कहा। जबवक अजय वसों ह अपनी बडी बेटी को एकटक दे खे जा रहा था।

ररत़ू नहा िो कर तथा एक दम फ्रेस होकर आई थी। इस िक्त उसके गोरे वकन्तु मादकता से
भरे वजस्म पर एक दम टाइट वफवटों ग िाले कपडे थे । वजसमें उसकी भरप़ूर जिानी साफ
उभरी हुई नजर आ रही थी। अजय वसों ह मोंत्रमुग्ध सा उसे दे खे जा रहा था। उसकी आखोों में
हिस और िासना के कीडे वगजवबजाने लगे थे । अपने पवत को अपनी ही बेटी की तरफ य़ूों
हिस भरी नजरोों से दे खते दे ख प्रवतमा ने तुरोंत ही उसे खुद की हालत को सम्हाल लेने की
गरज से कहा__"आपको आज वपता जी और माता जी से वमलने जाना था न?"

अजय वसों ह प्रवतमा के इस िाक्य को सु न कर चौोंका तथा तुरोंत ही िास्विक माहौल में लौटते
हुए कहा__"हाॅ जाना तो है । क्या तुम साथ नहीों चलोगी?"
"नहीों आप हो आइए।" प्रवतमा ने कहा__"वपछली बार गई थी उनसे वमलने आपके साथ।
उनसे वमलने का कोई फायदा तो है नहीों। न िो कुछ बोलते हैं और न ही वहलते डु लते हैं
वफर क्या फायदा उनसे वमलने का?"

"डै ड क्या कुछ सों भािना है वक कब तक दादा दादी ठीक होोंगे?" ररत़ू ने प़ूछा।
"बेटा डाॅ. की तरफ से यही कहना है वक कुछ कहा नहीों जा सकता इस बारे में।" अजय
वसों ह बोला__"याददास् का मामला होता ही ऐसा है ।"

"डै ड आपके दोस् कवमश्नर अोंकल तो अब तक पता नहीों लगा पाए वक दादा दादी की कार
को वकसने और क्योों टक्कर मारी थी?" ररत़ू ने सहसा तीखे भाि से कहा__"आज दो साल
हो गए इस बात को और पुवलस के हाॅथ कोई छोटा सा सु राग तक नहीों लगा। बडा गुस्सा
आता है मुझे अपने दे श की इस वनकम्मी पुवलस पर। आज अगर मैं होती पुवलस वडपाटफ मेन्ट

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में तो इस केस को कब का ल्कक्लयर करके मुजररमोों को जेल की सलाखोों के पीछे पहुॅचा
वदया होता। लेवकन कोई बात नहीों डै ड...जल्द ही इस वनकम्मी पुवलस के बीच मुझ जैसी
एक तेज तराफर पुवलस आवफसर इन्टर ी करे गी। वफर मैं खु द इस केस पर काम करूॅगी, और
केस को प़ूरा साल्व करूॅगी।"

ररत़ू की ये बातें सु नकर अजय वसों ह और प्रवतमा को साॅप सा स़ू ॅघ गया। चेहरे पर घबराहट
के भाि गवदफ श करते नजर आने लगे थे । वकन्तु जल्द ही उन दोनोों ने खु द को सम्हाला।

"मतलब मेरे लाख मना करने और समझाने पर भी तुमने पुवलस फोसफ ज्वाइन करने का
अपना इरादा नहीों बदला?" अजय वसों ह ने नाराजगी भरे स्वर में कहा__"तुम जानती हो बेटी
वक मुझे तुम्हारा पुवलस फोसफ ज्वाइन करने का फैसला वबलकुल भी पसों द नहीों है । तुम्हें कोई
जरूरत नहीों थी कोई नौकरी करने की, भला क्या कमी की है हमने तुम्हें कुछ दे ने में?"

"ये नौकरी मैं वकसी चीज के अभाि में नहीों कर रही हूॅ डै ड।" ररत़ू ने शान्त भाि से
कहा__"आप जानते हैं वक पुवलस आवफसर बनना मेरा एक ख्वाब था। पुवलस आवफसर बन
कर मैं उन लोगोों का िज़ूद वमटाना चाहती हूों जो इस दे श और समाज के वलए अवभशाप
हैं ।"

"तुम ये भ़ूल रही हो बेटी वक तुम एक लडकी हो, एक औरत जात वजसे खु द कदम कदम
पर वकसी मदफ के द्वारा मजब़ूत सु रक्षा की आिश्यकता होती है ।" प्रवतमा ने समझाने िाले भाि
से कहा__"और पुवलस फोसफ तो ऐसी है वक इसमें रोज एक से बढ कर एक खतरनाक
अपरावियोों का सामना करना पडता है वजसका मुकाबला करना तुम्हारे वलए बेहद मुल्किल है ।"

"आप मुझे एक आम लडकी समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबवक ररत़ू वसों ह बघे ल
कोई आम लडकी नहीों है ।" ररत़ू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं वमस्टर अजय वसों ह
बघे ल की शे रनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में वकसी अपरािी को हजार बार सोचना
पडे गा। आप जानती हैं न माॅम वक मैंने मासल आटटफ स में ब्लै क बैल्ट हावसल वकया है ।
क्योोंवक मुझे पता है वक एक आम लडकी पु वलस में वकसी अपरािी का सामना नहीों कर
सकती। इसी वलए मैंने वकसी भी तरह के अपरावियोों से डटकर कर मुकाबला करने के वलए
मासल आटटफ स की टर े वनोंग ली थी।"

अजय वसों ह और प्रवतमा दोनोों जानते थे वक ररत़ू अपने कदम अब िापस नहीों करे गी। इस वलए
चुप रह गए वकन्तु अोंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे वक अगर ररत़ू ने पुवलस
आवफसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडें ट िाला केस अपने हाॅथ में वलया तो क्या
होगा?????"

अपडे ट.............《 09 》

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अब तक....

"आप मुझे एक आम लडकी समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबवक ररत़ू वसों ह बघे ल
कोई आम लडकी नहीों है ।" ररत़ू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं वमस्टर अजय वसों ह
बघे ल की शे रनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में वकसी अपरािी को हजार बार सोचना
पडे गा। आप जानती हैं न माॅम वक मैंने मासल आटटफ स में ब्लै क बैल्ट हावसल वकया है ।
क्योोंवक मुझे पता है वक एक आम लडकी पु वलस में वकसी अपरािी का सामना नहीों कर
सकती। इसी वलए मैंने वकसी भी तरह के अपरावियोों से डटकर कर मुकाबला करने के वलए
मासल आटटफ स की टर े वनोंग ली थी।"

अजय वसों ह और प्रवतमा दोनोों जानते थे वक ररत़ू अपने कदम अब िापस नहीों करे गी। इस वलए
चुप रह गए वकन्तु अोंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे वक अगर ररत़ू ने पुवलस
आवफसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडें ट िाला केस अपने हाॅथ में वलया तो क्या
होगा?????"

अब आगे,,,,,,,

अजय कसंह अपने आॅकिस के शानदार केकबन में ररिाल्कवंग चेयर पर बै ठा कुछ िाइलों
को इधर उधर रख रहा था कक तभी उसके केकबन का डोर नाॅक हुआ।

"कम इन।" उसने कबना सर उठाए ही कहा।

इसके साथ ही केकबन का डोर खुला और एक ब्यल्कक्त अंदर दाल्कखल हुआ। पचास से
पचपन की उमर का िो मोटा सा आदमी था, आखों पर मोटे लैं स का चश्मा लगा रखा
था उसने। उसके दाकहने हाॅथ में एक िाइल थी। चेहरे पर बारह बजे हुए थे। बडी ही
दयनीय ल्कथथकत में अपनी जगह खडा था िह।

केकबन के अंदर पै ना सन्नाटा छाया रहा। अजय कसंह को जब ध्यान आया कक अभी कोई
उसके केकबन में आया है तो उसने कसर उठा कर सामने दे खा। ऩिर केकबन में आने
िाले ब्यल्कक्त पर पडी, साथ ही उसकी िस्तुल्कथथकत पर, तो अजय कसंह चौ ंका।

"क्ा बात है दीनदयाल?" अजय कसंह ने पूॅछा__"तुम्हारे चेहरे पर इतना पसीना क्ों
आ रहा है? तुम्हारी तकबयत तो ठीक है न?"
"स सर ि िो िो।" दीनदयाल हकलाते हुए बोलना चाहा।
"क्ा हुआ?" अजय कसंह बोला__"तुम इस तरह हकला क्ों रहे हो भई?"

"सर बहुत बडी गडबड हो गई।" दीनदयाल रो दे ने िाले लहजे में बोला__"हम बरबाद
हो गए।"
"ये क्ा बक रहे हो तुम?" अजय कसंह बुरी तरह चौ ंका__"तुम होश में तो हो न?"
"मैं पू री तरह होश में हू सर।" दीनदयाल बोला__"सब कुछ बरबाद हो गया सर।"

"साि साि बोलो दीनदयाल।" अजय कसंह तीखे स्वर में बोला__"यू पहेकलयाॅ न
बु झाओ। ऐसा क्ा हुआ है कजससे तुम सब कुछ बरबाद हो जाने की बात कर रहे हो?"

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"सर कपछले महीने।" दीनदयाल बोला__"हमें जो करोडों का टें डर कमला था िह सब
महज एक िाड ही कनकला।"

"क क्ा मतलब?" अजय कसंह बुरी तरह चौ ंका था।


"मतलब साि है सर।" दीनदयाल बोला__"हमें कजस िाॅरे न की पाटी से करोडों का
टें डर कमला था िो सब झूॅठ था। हमें बरबाद करने के कलए यह ककसी की सोची समझी
चाल थी। हमने उस टें डर के कहसाब से आज एक महीने से भारी मात्रा में कपडे तैयार
ककये हैं कजसके कलए हमें करोडों की लागत का खचग करना पडा ककन्तु अब सब कुछ
बरबाद हो गया।"

अजय कसंह ये सुनकर ककसी स्टे चू की तरह कबना कहले डु ले बै ठा रह गया। ऐसा लग
रहा था जै से ये सब जानकर उसे साॅप सूॅघ गया हो। चेहरा कनस्तेज हो गया था
उसका।

"हमने यकीनन बहुत बडा धोखा खाया है सर।" दीनदयाल हतास भाि से बोला__"हमें
इस बारे में सोचना चाकहये था। अब क्ा होगा सर, हम इतने बडे नुकसान की भरपाई
कैसे कर सकेंगे ?"
"उसके बारे में कुछ पता ककया क्ा तुमने?" अजय कसंह ने अजीब भाि से पूछा।

"एक हप्ते से मैं कसिग इसी काम में लगा हुआ था सर।" दीनदयाल ने कहा__"मगर
उस िाॅरे नर का कही ं कुछ पता नही ं चल सका। उसकी हर एक बात झूठी ही साकबत
हुई सर। होटल सनशाइन में पता ककया तो होटल के मैनेजर ने बताया कक स्टीि
जाॅनसन ि एॅजेला जाॅनसन नाम के कोई भी िाॅरे नर यहाॅ कपछले एक महीने से
नही ं ठहरे थे। ये दोनो पकत पत्नी कजस कंपनी को अपनी कह रहे थे उसका कही ं कोई
िजू द ही नही ं, जबकक अब से एक हप्ते पहले कंपनी की बाकायदा िे बसाइट हमने खुद
दे खी थी, कजसमें सब कडटे ल्स थी।"

"कौन ऐसा कर सकता है हमारे साथ?" अजय कसंह मानो खुद से ही पू छ रहा
था__"हमारी तो ककसी से इस तरह की कोई दु श्मनी भी नही ं है किर कौन इतना बडा
नुकसान कर सकता है हमारा?"

"कजसने भी ये सब ककया है सर।" दीनदयाल बोला__"उसने इस सबकी तैयारी बहुत


पहले से कर रखी थी। हर ची़ि सोची समझी थी। एक एक प्वाइं ट को बारीकी से
जाॅच कर उस पर काम ककया गया था िनाग क्ा हमें कुछ पता न चलता? "

"नुकसान तो हो ही गया दीनदयाल।" अजय कसंह बोला__"लेककन इसका पता करना भी


सबसे ज्यादा जरूरी है। हमें हर हाल में पता करना होगा कक िो दोनों कौन थे तथा
हमारे साथ इतना बडा धोखा करके आकखर क्ा कमला उन्हें?"

"एक बु री खबर और भी है सर।" दीनदयाल दीन हीन लहजे के साथ बोला__"समझ में
नही ं आता कक कैसे कहूॅ आपसे?"
"आज क्ा हो गया है तुम्हें दीनदयाल?" अजय कसंह एक झटके से अपनी चेयर से

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उठते हुए बोला__"ये क्ा मनहूस खबरें ले कर आए हो आज हमारे पास?"

"माफ़ कीकजए सर।" दीनदयाल ने सर झुका कलया__"मगर मैं क्ा करूॅ? मुझे खुद
भी समझ में नही ं आ रहा है कक ये सब क्ा हो रहा है?"
"अब बताओ भी कक तुम्हारी दू सरी बुरी खबर क्ा है?" अजय कसंह ने कहा।
"सर अरकिं द सर्क्ेना जी हमारी कंपनी से अपनी पाटग नरकशप तोड रहे हैं।" दीनदयाल ने
ये कह कर जै से धमाका सा ककया था।

"क् क्ा..????"अजय कसंह बुरी तरह चौ ंका__"ये क्ा कह रहे हो दीनदयाल? भला
सर्क्ेना हमसे पाटग नरकशप क्ों तोड रहा है? उसने इसके बारे में हमसे तो कोई बात
नही ं की अब तक? सर्क्ेना को िोन लगाओ हम उससे बात करें गे अभी।"

"सर िो यही ं आ रहे हैं।" दीनदयाल ने कहा__"मुझे िोन करके उन्होंने मुझसे आपके
बारे में पू छा की आप कहां हैं तो मैंने बता कदया कक आज आप यही ं हैं तो बोले ठीक
है आ रहे हैं। उनका लहजा बडा अजीब था सर, मैंने िजह पूछी तो बोले कक आपसे
पाटग नरकशप तोडना है। उनकी ये बात सुन कर मेरा तो कदमाग ही सुन्न पड गया था"

अभी अजय कसंह कुछ कहने ही िाला था कक केकबन के डोर में नाॅक हुआ। दीनदयाल
ने कहा__"लगता है कमस्टर सर्क्ेना ही हैं।"
"ठीक है तुम जाओ अब।" हम बाद में तुमसे बात करें गे ।"
"ओके सर।" दोनदयाल ने कहा और केकबन का डोर खोला तो बाहर से सर्क्ेना अंदर
दाल्कखल हुआ जबकक दीनदयाल सर्क्ेना को नमस्कार कर बाहर कनकल गया।

"आओ आओ सकसेना।" अजय कसंह ने सर्क्ेना का इस्तकबाल करते हुऐ कहा और


हैण्डशे क ककया उससे।
"कैसे हो अजय कसंह?" सर्क्ेना ने हाॅथ कमलाने के बाद कहा।
"बे हतर।" अजय कसंह ने संकक्षप्त सा जिाब कदया।
"मेरे यहाॅ आने की िजह तो तुम्हें पता चल ही गई होगी?" सर्क्ेना ने कहा।

"हाॅ मुझे दीनदयाल अभी यही बता रहा था।" अजय कसंह ने गं भीरता से कहा__"और
ये जानकर दु ख भी हुआ कक तुम मुझसे पाटग नरकशप तोड रहे हो। जहाॅ तक मेरा
अंदा़िा है मैंने ऐसा कुछ नही ं ककया है कजसकी िजह से तुम पाटग नरकशप तोड रहे हो।"

"मुझे पता है कक तुमने िाकई कुछ नही ं ककया है।" सर्क्ेना ने सपाट लहजे में
कहा__"ले ककन किर भी मैं ये पाटग नरकशप तोड रहा हूॅ, क्ोकक मुझे अब किदे श में
सेटल होना है अपने पररिार के साथ। यहाॅ का सब कुछ बेच कर अब किदे श में ही
रहूगा तथा िही ं कारोबार करूगा।"

"तो पाटग नरकशप तोडने की ये िजह है?" अजय कसंह ने कहा।


"कबलकुल।" सर्क्ेना ने कहा__"और अब मैं चाहता हूॅ कक तुम मेरा सब कारोबार खुद
खरीद लो तथा मेरे कहस्से का जो कुछ है उसे मुझे दे कर मुझे जाने दो।"

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"यार ऐसा भी तो ककया जा सकता है कक तुम किदे श में रह कर भी मेरे साथ
पाटग नरकशप में ये कारोबार चला सकते हो।" अजय कसंह ने एक साॅस में ही सारी बात
कर दी__"उसके कलए पाटग नरकशप तोडने की क्ा बात है?"

"तुम्हारी बात अपनी जगह कबलकुल ठीक है अजय कसंह।" सर्क्ेना ने कहा__"लेककन
मेरा इरादा अब इस कारोबार को करने का कबलकुल भी नही ं है। कोई दू सरा कारोबार
करने का सोचा है मैंने।"

"अब जब तुमने मन बना ही कलया है तो कोई क्ा कर सकता है भला?" अजय कसंह
बोला__"खैर कब जा रहे हो?"
"तुम कहसाब ककताब ल्कक्लयर कर लो।"सर्क्ेना ने कहा__"तब तक मैं कुछ और इं तजाम
कर ले ता हूॅ"

"ठीक है सर्क्ेना।" अजय कसंह ने कहा__"कहसाब ककताब भी हो जाएगा। मगर यार


मेरा कुछ तो खयाल ककया होता।"
"क्ा करूॅ यार?" सर्क्ेना ने कहा__"तुम्हारे कलए अिसोस तो हो रहा है मगर अब
और नही ं रुक सकता। ये सब तो मैं बहुत पहले से करने की सोच रहा था ककन्तु हर
बार तुम्हारा खयाल आ जाने से मैंने खुद को रोंके रखा।"

"कहसाब ककताब तो ठीक है।" अजय कसंह ने कहा__"ले ककन कुछ समय की मोहलत
चाहता हूॅ क्ोंकक इस िक्त पै से का बडा लोचा हो रखा है ये तो तुम्हें भी पता चल ही
गया होगा?"
"हाॅ पता चला है मुझे इस बारे में।" सर्क्ेना ने कहा__"पर यार इतने नुकसान से
क्ा िकग पडता है तुम्हें? और िै से भी कारोबार में निा नुकसान तो चलता ही रहता
है।"

"बात ये नही ं है कक क्ा िकग पडता है?" अजय कसंह ने कहा__"बात है रे पु टेशन की।
लोग क्ा सोचेंगे कक अजय कसंह बघे ल को कोई ब्यल्कक्त चुकतया बना कर चला गया और
उसे इसका पता भी नही ं चला।"
"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।"सर्क्ेना ने कहा__"इज्ज़ित का कचरा हो गया।"

कहानी जारी रहेगी,,,,,,,

"मैं उस हरामजादे को छोंडूॅगा नही ं सर्क्ेना।" अजय कसंह ने एकाएक गु स्से में
बोला__"उसको ढू ॅढ कर उसे ऐसी मौत दू ॅगा कक उसकी रूह किर दु बारा ऐसे ककसी
शरीर को धारर् नही ं करे गी। मुझे अपने नुकसान का कोई ग़म नही ं है सर्क्ेना,ये
करोडों का नुकसान मेरे कलए कोई मायने नही ं रखता। मगर मेरी इज्ज़ित को शहर भर
में यूॅ दाग़दार करके उसने ये अच्छा नही ं ककया। उसे इसकी कीमत अपनी जान दे कर
चुकानी पडे गी।"

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"उसके साथ ऐसा होना भी चाकहए अजय कसंह।" सर्क्ेना ने एक कसगरे ट सुलगाई और
किर एक गहरा कस ले कर उसका धुआॅ ऊपर की तरि उछालने के बाद कहा__"िै से
क्ा लगता है तुम्हें, ये ककसका काम हो सकता है?"

"ये तो पक्की बात है सर्क्ेना कक िो दोनों किदे शी नही ं थे।" अजय कसंह बोला__"बल्कि
िो दोनों हमारे ही दे श के और हमारे ही शहर के कोई पहचान िाले ही थे।"
"ये बात तुम इतने किश्वास और दािे के साथ कैसे कह सकते हो अजय कसंह?" सर्क्ेना
हिे से चौक ं ा था किर बोला__"जबकक तुम्हारे पास इस बात का कोई छोटा सा सबू त
तक नही ं है।"

"ग़लती मेरी भी है सर्क्ेना।" अजय कसंह ने कहा__"एक महीने पहले जब उनसे हमें ये
टें डर कमला था तब हमें ये अंदा़िा नही ं था, बल्कि हम सोच भी नही ं सकते थे कक हम
इन लोगों द्वारा ककसी साकजश का कशकार होने जा रहे हैं। हम तो खुश थे कक हमारे
कपडों की खाकसयत से प्रभाकित होकर कोई किदे शी हमसे डील कर रहा है और इतनी
ज्यादा मात्रा में हमसे कपडे की माॅग कर रहा है। उस समय कदलो कदमाग में यही था
कक अब हमारा संबंध किदे शी लोगों से हो रहा है कजससे कनकट भकिश्य में हमारे
कारोबार को और भी िायदा होगा। ककसी साकजश का हम सोच ही नही ं सके थे
क्ोकक उन लोगों का सब कुछ परिेक्ट था। और िै से भी हमें इससे क्ा ले ना दे ना था
कक िो ककतनी बडी कंपनी के माकलक थे, हमें तो उनकी डील से मतलब था कजसके
कलए हमे करोडों का मुनाफ़ा होने िाला था।"

"िो सब तो ठीक है अजय।" सर्क्ेना बीच में ही अजय की बात काट कर कह


उठा__"मगर तुम कह रहे हो कक िो किदे शी नही ं थे ये बात तुम दािे के साथ कैसे कह
सकते हो?"

"मैं बताते हुए िही ं आ रहा था सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"खैर अब जबकक ये सब
हो गया उससे यही समझ आता है कक ये काम ककसी िाॅरे नर का नही ं है। क्ोंकक
आज तक हमारा ककसी भी तरह का ले न दे न ककसी किदे शी से नही ं हुआ और जब कोई
ले न दे न ही नही ं हुआ ककसी किदे शी से तो ककसी तरह की रं कजश के तहत ककसी
िाॅरे नर का ये सब करने का सिाल ही पै दा नही ं होता। अब सोचने िाली बात है कक
जब हमारा ककसी किदे शी से कोई ब्यौसाकयक संबंध ही नही ं था तो कोई किदे शी ककस
िजह से हमारे साथ इतनी बडी साकजश करके हमें धोखा दे गा अथिा हमारा इतना बडा
नुकसान करे गा?"

"तुम्हारा तकग कबलकुल दु रुस्त है अजय।" सर्क्ेना सोचपू र्ग भाि के साथ बोला__"किर
तो यकीनन ये काम ककसी ऐसे ब्यल्कक्त का है जो तुम्हें अच्छी तरह जानता भी है और
तुम्हारा बु रा भी चाहता है। कौन हो सकता है ऐसा ब्यल्कक्त?"

"यही तो सोच रहा हूॅ सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"मगर जे हन में ऐसे ककसी ब्यल्कक्त
का चेहरा नही ं आ रहा।"
"ये काम तुम्हारे ककसी कम्पटीटर का ही हो सकता है।" सर्क्ेना ने कहा__"ये एक
ब्यौसाकयक मामला है अजय। ब्यौसाय से जु डे तुम्हारे ककसी कम्पटीटर ने ही इस काम

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को अंजाम कदया हो सकता है, कजनके बारे में किलहाल तुम ठीक से सोच नही ं पा रहे
हो। इस कलए अच्छी तरह सोचो कक ये ककसने ककया हो सकता है?"

"मुझे तो कुछ और ही लगता है सर्क्ेना।" अजय कसंह ने सोचपू र्ग भाि से कहा__"ये
काम मेरे ककसी कम्पटीटर का भी नही ं है क्ोकक इन सबसे मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं।"
"ये क्ा कह रहे हो तुम?" सर्क्ेना चौकं ा__"अगर ये सब तुम्हारे ककसी कम्पटीटर का
नही ं है तो किर ककसका है? कही ं तुम इन सबके कलए मुझे तो नही ं कजम्मेदार ठहरा रहे
हो?"

"हाॅ ये भी हो सकता है सर्क्ेना।" अजय कसंह ने सपाट लहजे में कहा__"इस सब में
सबसे पहले उगली तो तुम पर ही उठे गी। आकखरकार तुम मेरे कबजनेस पाटनर हो"

"क्ा मेरे बारे में तुम ऐसा सोचते हो कक मैं अपने घकनष्ठ कमत्र के साथ ऐसा नीच काम
करूॅगा?" सर्क्ेना ने कहा__"तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हो अजय कक मैं ऐसा
ककसी के भी साथ नही ं कर सकता। मेरी कितरत इस तरह ककसी को धोखा दे ने की
नही ं है।"

"रुपये पै से के कलए कोई भी ब्यल्कक्त ककसी के भी साथ कुछ भी कर सकता है


सर्क्ेना।" अजय कसंह ने अजीब भाि से कहा__"मैं तुम पर कोई इल्जाम नही ं लगा रहा
ले ककन इस तरह का सिाल तो खडा होगा ही। कानून का कोई भी नुमाइं दा तुमसे ये
सिाल कर सकता है कक तुम अचानक ही अजय कसंह से पाटग नकशप तोड कर तथा
अपना कहसाब ककताब करके हमेशा के कलए किदे श क्ों जा रहे हो जबकक हाल ही में
अजय कसंह के साथ ऐसा संगीन िाक्ा हो गया?"

"तुम तो मुझ पर साि साि इल्जाम लगाते हुए कानून के लपे टे में डालने की बात कर
रहे हो अजय कसंह।" सर्क्ेना दु खी भाि से बोला__"जबकक भगिान जानता है कक मैंने
ऐसा कुछ भी नही ं ककया।"

"भगिान तो सबके किषय में सब जानता है सर्क्ेना।" अजय कसंह ने कहा__"ले ककन
इं सान नही ं जानता। इं सान तो िही जानता है जो उसे या तो ऩिर आता है या किर जो
समझ आता है। आज जो हालात बने हैं उससे साि तौर पर यही समझ आता है कक ये
सब तुम्हारे अलािा दू सरा कौन और क्ों कर सकता है भला?"

अरकिन्द सर्क्ेना मूखों की तरह दे खता रह गया अजय कसंह को। उसके चेहरे पर ऐसे
भाि थे जै से कक िह अभी अपने कसर के बाल नोंचने लगे गा।

"मुझे समझ नही ं आ रहा अजय कसंह कक मैं तुम्हें कैसे इस बात का यकीन कदलाऊ?"
सर्क्ेना असहाय भाि से बोला__"कक ये सब मैं करने के बारे में सोच तक नही ं सकता।
तुम जानते हो हम दोनो ऐसे हैं कक एक दू सरे का सब कुछ जानते हैं। हम दोनों के
संबंध तो ऐसे हैं कक हम अपनी अपनी बीकियों को भी आपस में बाॅट ले ते हैं। क्ा
कोई इतना भी घकनष्ठ कमत्र हो सकता है ककसी का? कजसके साथ ऐसे संबंध हों िो भला
अपने दोस्त का इतना बडा अकहत कैसे कर दे गा यार?"

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"तुम तो यार एक दम से सीररयस ही हो गए सर्क्ेना।" अजय कसंह ने मुस्कुराते हुए
कहा__"मैं तो बस एक तकगसंगत बात कह रहा था कक इस िाक्े के बाद ककसी भी
ब्यल्कक्त के मन में सबसे पहले यही किचार उठे गा जो अभी मैने तकग के द्वारा कहा था।"

"तुम मुझे जान से मार दो अजय कसंह मुझे ़िरा भी िकग नही ं पडे गा ले ककन ऐसे
इल्जाम लगा कर मारोगे तो मैं मर कर भी कही ं चैन नही ं पाऊगा।" सर्क्ेना ने कहा।

"छोडो इस बात को और ये बताओ कक किदे श कब जा रहे हो?" अजय कसंह ने पूछा।


"दो कदन बाद।" सर्क्ेना ने कहा__"कल तक यहाॅ के सारे करोबार का रुपया मेरे
एकाउं ट में आ जाएगा और परसों यहाॅ से कनकल जाऊगा। लेककन.....।"

"ले ककन..??" अजय कसंह ने पू छा।


"ले ककन उससे पहले मैं चाहता हूॅ कक।" सर्क्ेना ने कहा__"हम लोगों का एक शानदार
प्रोग्राम हो जाए।"

"जाने से पहले मेरी बीिी के मजे ले ना चाहते हो।" अजय कसंह हसा।
"हाॅ तो बदले में तुम्हें भी तो मेरी बीिी से मजे ले ना है।" सर्क्ेना ने भी हसते हुए
कहा__"और िै से भी मेरी बीिी तो रात कदन तुम्हारा ही नाम जपती रहती है। पता नही ं
क्ा जादू कर कदया है तुमने? साली मुझे बडी मुल्किल से हाॅथ लगाने दे ती है।"

"अच्छा ऐसा क्ा?" अजय कसंह जोरों से हसा।


"हाॅ यार।" सर्क्ेना बोला__"और पता है किदे श जाने के कलए तो मान ही नही ं रही थी
िो। जब मैने उसे ये कहा कक तुम हर महीने हमसे कमलने तथा मस्ती करने आओगे तब
कही ं जाकर मानी थी िो।"

"मतलब कक अब मुझे हर महीने तुम्हारे पास इस सबके कलए आना पडे गा?"अजय कसंह
मुस्कुराया।
"हाॅ कबलकुल।" सर्क्ेना ने कहा__"और िो भी भाभी जी के साथ।"

"सोचना पडे गा सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"और िै से भी अभी मेरे पास कसिग एक
ही अहम काम है, और िो है उन लोगों का पता लगाना कजनकी िजह से आज मुझे
करोडों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सर्क्ेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ़िरूरत पडे तो बेकझझक याद
करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊगा।"

"ठीक है सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा कहसाब ककताब करके
तुम्हारे एकाउं ट में पै से डाल दू ॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचाररक बातों के बाद सर्क्ेना िहाॅ से चला गया। जबकक अजय
कसंह ये न दे ख सका कक जाते समय सर्क्ेना के होठों पर ककतनी जानदार मुस्कान थी?

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अपडे ट.............《 10 》

अब तक.....

"सोचना पडे गा सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"और िै से भी अभी मेरे पास कसिग एक
ही अहम काम है, और िो है उन लोगों का पता लगाना कजनकी िजह से आज मुझे
करोडों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सर्क्ेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ़िरूरत पडे तो बेकझझक याद
करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊगा।"

"ठीक है सर्क्ेना।" अजय कसंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा कहसाब ककताब करके
तुम्हारे एकाउं ट में पै से डाल दू ॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचाररक बातों के बाद सर्क्ेना िहाॅ से चला गया। जबकक अजय
कसंह ये न दे ख सका कक जाते समय सर्क्ेना के होठों पर ककतनी जानदार मुस्कान थी?

अब आगे......

"ये सब क्ा है डै ड?" कशिा डर ाइं ग रूम में दाल्कखल होते हुए तथा उिे कजत से स्वर में
बोला__"दे ल्कखए आज के अखबार में क्ा खबर छपी है?"
"क्ा हुआ बे टे?" सोिे पर बै ठे अजय कसंह ने सहसा चौक ं ते हुए पू ॅछा__"कैसी खबर
की बात कर रहे हो तुम?"

"आप खुद ही दे ख लीकजए डै ड।" कशिा ने अपने हाॅथ में कलए अखबार को अपने कपता
की तरि एक झटके से बढाते हुए कहा__"दे ख लीकजए कक ककस तरह अखबार िालों ने
आपकी इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडाई हैं?"

अजय कसंह कशिा के हाॅथ से अखबार ले ने के बाद उस पर ऩिरें दौडाई। अखबार के


िंट पे ज पर ही बडे अच्छरों में छपी हेडलाइन को पढ कर उसके होश उड गए।
अखबार में छपी हेडलाइन कुछ इस प्रकार की थी।

"मशहूर कबजनेसमैन अजय कसंह ककसी अग्यात शख्स द्वारा धोखे का कशकार"
हल्दीपु र(गु नगु न): शहर के मशहूर कबजनेसमैन अजय कसंह को ककसी अग्यात ब्यल्कक्त द्वारा
करोडों रुपये का चूना लगाने का संगीन मामला सामने आया है। प्राप्त सूत्रों के अनुसार
ये जानकारी कमली है कक मशहूर कबजनेसमैन अजय कसंह ककसी किदे शी ब्यल्कक्त के साथ
कपछले महीने करोडों रुपये की डील की थी। उस डील के तहत अजय कसंह द्वारा किदे शी
ब्यल्कक्त को करोडों रुपये के बे हतरीन कपडों के थान सौप
ं े जाने थे। ककन्तु कपछले कदन

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ही शाम को अजय कसंह के पीए को ये पता चला कक उनका कजस किदे शी ब्यल्कक्त के
साथ करोडों का सौदा हुआ था िो दरअसल कसरे से ही ि़िी था। कहने का मतलब ये
कक किदे शी ब्यल्कक्त ने करोडों के कपडे तैयार करिाए और उन कपडों के थान को ले ने
की बजाय कबना कुछ बताए लापता हो गया। कमली जानकारी के अनुसार किदे शी ब्यल्कक्त
ने खुद को दू सरे दे श का मशहूर कबजनेसमैन बताया कजसके सबू त के तौर पर खुद
अजय कसंह द्वारा उस किदे शी ब्यल्कक्त की कंपनी प्रोिाइल भी दे खी गई थी। किश्वस्त सूत्रों
द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार अजय कसंह को करोडों रूपये के धोखे का पता तब
चला जब उनकी िैक्टर ी में तैयार कपडों का करोडों रुपये के थान कजनमें और भी बहुत
सी ची़िें शाकमल थी डील के कलए तैयार था। ककन्तु उस सब को ले ने िाला किदे शी
नदारद था। उसके साथ कंटै क्ट करने की सारी कोकशशें जब नाकाम हो गईं और जब
दो कदन तक भी किदे शी डीलर का पता न चला तो तब अजय कसंह को समझ आया कक
उनके साथ कोई गे म खेल गया। मगर अब हो भी क्ा सकता था? कमली जानकारी के
अनुसार अजय कसंह की िैक्टर ी से तैयार करोडों की थान का अब कोई ले नदार न होने
की िजह से भारी नुकसान हुआ है। ये किचार करने योग्य बात है कक किदे शी
कबजनेसमैन के साथ ब्यौसाकयक संबंध बनाने के चक्कर में अजय कसंह जै से पढे कलखे ि
सुलझे हुए कबजनेसमैन कबना सोचे समझे करोडों की डील करके खुद का नुकसान कर
बै ठे। कदाकचत् बाहरी मुिों से ब्यौसाकयक संबंध बनाने के लालच में ही इतने बडे धोखे
और नुकसान के भागीदार बन बै ठे।

अखबार में छपी इस खबर को पढकर अजय कसंह का कदमाग़ सुन्न सा पड गया था।
उसे समझ नही ं आया कक ये बात अखबार िालों को ककसने बताया हो सकता है?
कािी दे र तक अजय कसंह के कदमाग के घोडे इस बात की खोज में भटकते रहे।

"ककस सोच में पड गए डै ड?" सहसा कशिा ने कपता की तरि गौर से दे खते हुए
कहा__"और ये सब आकखर है क्ा ? अखबार में छपी इस खबर का क्ा मतलब है
डै ड??

अजय कसंह को समझ न आया कक अपने बे टे को क्ा जिाब दे । किर पता नही ं जाने
क्ा सोच कर उसने अपना मोबाइल कनकाला और ककसी को िोन लगा कर मोबाइल
कान से लगा कलया।

कुछ दे र कानों में ररं ग जाने की आिा़ि सुनाई दे ती रही किर उधर से काल ररसीि की
गई।

"ये सब क्ा है दीनदयाल?" काल ररसीि होते ही अजय कसंह लगभग आिे श में
बोला__"आज के अखबार में हमारे संबंध में ये क्ा बकिास छापा है अखबार िालों
ने??"
"--------------"उधर से जाने क्ा कहा गया।
"हम कुछ नही ं सुनना चाहते।" अजय कसंह पूिगत आिे श में ही बोला__"आकखर इस बात
की खबर अखबार िालों को ककसने दी?"
"_________________"
"अरे तो पता लगाओ दीनदयाल।" अजय कसंह ने कहा__"अखबार िालों को क्ा कोई

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ख़्वाब चमका है जो उन्हें इस बारे में ये सब पता चला?"

"_______________"
"िही तो कह रहे हैं हम दीन के दयाल।" अजय कसंह बोला__"अखबार िालों को ये
खबर दे ने िाला िही है कजसने इस साकजश को रच कर इसे अंजाम कदया है। तुम जल्द
से जल्द पता लगाओ कक कौन है ये नामुराद जो हमारी इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडाने पर
तुला हुआ है?"

"_______________"
"हम कुछ नही ं जानते दीनदयाल।" अजय कसंह इस बार गु राग या__"24 घं टे के अंदर उस
शख्स को ढू ॅढ कर हमारे सामने हाक़िर करो। िनाग तुम्हारे कलए अच्छा नही ं होगा।"

इतना कहने के बाद अजय कसंह ने िोन काट कर मोबाइल को सोिे पर लगभग िेंक
कदया था। इस िक्त अजय कसंह के चेहरे पर क्रोध और अपमान का कमला जु ला भाि
गकदग श करता ऩिर आ रहा था।

"क्ा बात है डै ड?" कशिा अपने कपता के चेहरे के भािों को गौर से दे खते हुए
बोला__"आप कुछ परे शान से लग रहे है?"
"अभी हम ककसी से बात करने के मूड में नही ं हैं बे टे।" अजय कसंह ने अजीब लहजे मे
कहा__"इस कलए तुम जाओ यहाॅ से, हमें कुछ दे र अकेले में रहना है।"

कशिा पू छना तो बहुत कुछ चाहता था ककन्तु अपने कपता का खराब मूड दे ख कर
चुपचाप िहाॅ से अपने कमरे की तरि बढ गया।

"बे टे को तो टाल कदया आपने।" सहसा प्रकतमा ने डर ाइं गरूम में आते हुए कहा__"मगर
मुझे इस तरह टाल नही ं सकते आप।"

"प्रकतमा प्ली़ि।" अजय कसंह ने झु झलाते हुए कहा__"मैं इस िक्त ककसी से कोई बात
नही ं करना चाहता।"
"ये तो कोई बात न हुई।" प्रकतमा ने कहा__"ककसी बात को ले कर अगर आप परे शान
हैं तो आपको दे खकर हम सब भी परे शान हो जाएं गे । इस कलए जो भी बात है बता
दीकजए कम से कम मन को शाल्कन्त तो कमलेगी।"

अजय कसंह जानता था कक प्रकतमा बात को कबना जाने नही ं मानेगी, इस कलए उसने उसे
सबकुछ बता दे ना ही बे हतर समझा। एक गहरी साॅस ले कर उसने प्रकतमा को सारी
बातें बता दी जो कपछले महीने से अब तक उसके साथ हुआ था। सब कुछ जानने के
बाद प्रकतमा भी गं भीर हो गई।

"ले ककन आप ये कैसे पता लगाएं गे कक ककसने आपके साथ ये सब ककया है?" प्रकतमा ने
कहा__"जबकक आपके पास उसके बारे में कोई सबू त नही ं है। अगर आप ये समझते हैं
कक उनके चेहरे की कबना पर उन्हें खोजेंगे तो तब भी आप उन्हें नही ं खोज पाएं गे ।"

"तुम ऐसा कैसे कह सकती हो भला?" अजय कसंह चौक


ं ते हुए बोला था।

58
"सीधी सी बात है।" प्रकतमा ने कहा__"िो जो भी थे आपसे या आपके पीए से हमेशा
िाॅरे नर की िे शभूसा या शक्ल में ही कमले थे। मतलब साि है कक िो लोग शु रू से ही
आपसे या आपके पीए से अपनी असकलयत छु पाना चाह रहे थे, ये भी कक आपको तथा
आपके पीए को उनके बारे में ़िरा सा भी ककसी प्रकार का शक न हो। आज ये आलम
है कक िो अपने मकसद में उसी तरह कामयाब हो कर गायब हो गए जै सा उन्होंने कर
गु ़िरने का प्लान बनाया रहा होगा।"

अजय कसंह अपनी बीिी की इस बात को सुन कर अिाक् सा रह गया। प्रकतमा को इस


तरह दे खने लगा था िह जै से प्रकतमा की गदग न अपने धड से अलग हो कर हिा में
कत्थक करने लगी हो।

"क्ा मैंने कुछ ग़लत कहा कडयर?" प्रकतमा ने मुस्कुराते हुए पू छा।
"कभी कभी तुम्हारा कदमाग़ भी ककसी सिल जासूस की तरह चलता है।" अजय कसंह
बोला__"यकीनन तुम्हारा येतकग अपनी जगह एक दम दु रुस्त है। तुम्हारी बातों में िजन
है, और अगर तुम्हारी इस बात के अनुसार सोचा जाए तो अब हमारे कलए ये बे हद
मुल्किल काम है उन लोगों को ढू ॅढ पाना।"

"िकालत की पढाई आपने ही नही ं बल्कि मैंने भी की है जनाब।" प्रकतमा ने हस कर


कहा__"ये अलग बात है कक मैंने इस पढाई के बाद िकील बन कर ककसी कोटग में
ककसी के पक्ष में िकालत नही ं की।"

"अच्छा ही ककया न।" अजय कसंह ने भी हस कर कहा__"िनाग बडे बडे िकीलों की


छु ट्टी हो जाती।"
"ऐसा आप कह सकते हैं।" प्रकतमा ने अथगपूर्ग लहजे में कहा__"क्ोंकक आपको ही
अपनी छु ट्टी हो जाने का अंदेशा हुआ ऩिर आया है।"

"तुम ऐसा सोचती हो तो चलो ऐसा ही सही।" अजय कसंह बोला__"ले ककन इस बारे में
अब तुम्हारा क्ा खयाल है, मेरा मतलब कक अब हम कैसे उन लोगों का पता
लगाएं गे?"

"सब कुछ बहुत सोच समझ कर पहले से ही प्लान बना कलया था उन लोगों ने।"
प्रकतमा ने सोचने िाले भाि से कहा__"इस कलए इस बारे में पक्के तौर पर कुछ कहा
नही ं जा सकता कक िो हमारे द्वारा पता कर ही कलए जाएं गे ।"

अजय कसंह का खयाल भी यही था इस कलए कुछ बोला नही ं िह।जबकक,,,,

"िै से आपका अपने उस भतीजे के बारे में क्ा खयाल है?" प्रकतमा ने कहा__"हो
सकता है ये सब उसी का ककया धरा हो?"

"नही ं यार।" अजय कसंह कह उठा__"उससे इस सब की उम्मीद मैं नही ं करता। क्ोंकक
कजस तरह से सोच समझ कर तथा प्लान बना कर हमसे धोखा ककया गया है िै सा
करना किराज के बस का रोग़ नही ं है। िो साला तो ककसी होटल या ढाबे में अपने साथ

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साथ अपनी माॅ बहन को भी कप प्ले ट धोने के काम में लगा कदया होगा। इतना कुछ
करने के कलए कदमाग़ चाकहए और िाॅरे नर लु क पाने के कलए ढे र सारा पै सा जो उसके
पास होने का कोई चान्स ही नही ं है। तुम बेिजह ही इस सबके पीछे उसको ही
कजम्मेदार ठहरा रही हो प्रकतमा।"

"हमें हर पहलू पर गौर करना चाकहए कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा ने कहा__"एक अच्छा
इन्वेल्कस्टगे टर िही होता है जो हर पहलू के बारे में सोच किचार करे । ़िरा सोकचए...इस
तरह की घटनाएं तभी से शु रू हुईं हैं जबसे किराज अपने साथ अपनी माॅ बहन को
ले कर यहाॅ से मुम्बई गया है। इसके पहले आज तक कभी भी ऐसी कोई बात नही ं
हुई। उसका हमारे बे टे को बु री तरह मार पीटकर यहाॅ से जाना, टर े न से अपनी माॅ
बहन सकहत रहस्यमय तरीके से गायब हो जाना, और अब ये.....आपका ककसी के
द्वारा इस तरह धोखा खा कर नुकसान हो जाना। ये तो आपको भी पता है कक कोई
दू सरा आपके साथ ऐसा नही ं कर सकता किर बचता कौन है??"

अजय कसंह के कदलो कदमाग़ में अचानक ही मानो धमाके से होने लगे । प्रकतमा द्वारा कहा
गया एक एक शब्द उसके मनमल्कस्तष्क पर गहरी चोंट कर रहा था। जबकक....

"ितगमान समय में अगर कोई आपके ल्कखलाि खडा हो सकता है तो िो है किराज।"
प्रकतमा गं भीरता से कह रही थी__"आपसे कजसे सबसे ज्यादा तक़लीि है तो िो है
किराज। बात भी सही है कडयर हस्बैण्ड...हमने उनके साथ क्ा क्ा बु रा नही ं ककया।
हर दु ख कदये उन्हें, यहां तक कक हमारी िजह से आज िो अपने ही घर से बेघर हैं।
खैर...इन सब बातों के कहने का मतलब यही है कक मौजू दा हालात में इस सबके
पीछे अगर ककसी पर सबसे ज्यादा उगली उठती है तो कसिग किराज पर।"

अजय कसंह के पास कहने के कलए जै से कुछ था ही नही,ं जबकक उसकी खामोशी और
उसके चेहरे पर तैरते ह़िारों भािों को बारीकी से परखते हुए प्रकतमा ने पु न:
कहा__"आप हमेशा इस बात पर ़िोर दे ते हैं कक किराज मुम्बई में ककसी होटल या ढाबे
में कप प्ले ट धोता होगा और अब अपनी माॅ बहन को भी इसी काम में लगा कदया
होगा। ले ककन क्ा आपके पास अपकी इस बात का ठोस सबू त है? क्ा आपने कभी
अपनी आॅखों से दे खा है कक किराज मुम्बई में ककसी होटल या ढाबे में कप प्ले ट धोने
का काम करता है...नही ं न?? बल्कि ये कसिग आपकी अपनी सोच है जो ग़लत भी हो
सकती है।"

"तुमने तो यार मेरा ब्रे न िाश ही कर कदया।" अजय कसंह गहरी साॅस ली, उसकी
आॅखों में अपनी पत्नी के प्रकत प्रसंसा के भाि थे__"यकीनन तुममें एक अच्छे
इन्वेल्कस्टगे टर होने के गु र् हैं। तो तुम्हारे मतानुसार ये सब जो कुछ हुआ है उसका
कजम्मेदार कसिग किराज है?"

"मै ये नही ं कहती कडयर हस्बैण्ड कक ये सब किराज ने ही ककया है।" प्रकतमा ने अजीब
भाि से कहा__"बल्कि मैं तो कसिग संभािना ब्यक्त कर रही हूॅ कक ककसने क्ा ककया
हो सकता है। पक्के तौर पर तो तभी कहा जाता है न जब हमारे पास ककसी बात का
ठोस ि पुख्ता सबू त हो??"

60
"आई एग्री किद यू माई कडयर।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो हम अब इस थ्योरी
के साथ चलें गे कक ये सब किराज ने ककया हो सकता है। ले ककन अब सिाल ये है
कक...कैसे?? इतना कुछ िो कैसे कर सकता है भला जबकक इतना कुछ कर गुजरने
की काकबकलयत उसमे है ही नही ं इतना तो मुझे यकीन है?"

"आपका ये यकीन बे मतलब भी तो हो सकता है कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा ने तकग


ककया__"क्ोकक आपके पास अपने इस यकीन की भी ठोस िजह नही ं है ये मुझे पता
है।"

"अब बस भी करो यार।" अजय कसंह ने बु रा सा मुॅह बनाया__"आज क्ा मूॅग की


दाल में भीमसेनी काजल कमला कर खाया है तुमने? मेरी हर बात की हर किचार की
धल्कज्जयाॅ उडाए जा रही हो तुम।"

"मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नही ं था कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा मुस्कुराई__"मैने तो
बस अपने किचार और तकग पे श ककये हैं, और अपने कडयर हस्बैण्ड को सही राह की
तरि जाने का मागग बताने की कोकशश की है।"

अजय कसंह को प्रकतमा पर बे हद प्यार आया, और उसने आगे बढ कर अपनी पत्नी को


अपनी बाॅहों मे भर कलया। कुछ पल उसकी आॅखों में झाॅकने के बाद उसने झुक
कर प्रकतमा के रस भरे अधरों को अपने होठों के बीच भर कर उन्हें चूमने चूसने लगा।

प्रकतमा के कजस्म में आनंद की मीठी मीठी लहरें तैरने लगी। उसने भी अपने दोनो हाॅथ
अजय कसंह के गले में डालकर इन होठों के चुंबन तथा चुसाई का भरपूर आनंद ले ने
लगी। िे दोनो भूल गये कक इस िक्त िे अपने बे डरूम में नही ं बल्कि डर ाइं गरूम में हैं
जहाॅ पर ककसी के भी द्वारा दे ख कलए जाने का खतरा था।

अजय कसंह बुरी तरह प्रकतमा के होठों को चूस रहा था। उसका बाॅया हाॅथ सरकते हुए
सीथा प्रकतमा के दाॅएं बोबे पर आकर बडे आकार के बोबे को सख्ती से अपनी मुिी में
भर कर मसलना शुरू कर कदया। अपनी चूॅची को इस तरह मसले जाने से प्रकतमा के
मुॅह से एक ददग युक्त ककन्तु आनंद से भरी हुई आह कनकल गई जो अजय कसंह के
होठों के बीच ही दब कर रह गई। ये दोनों जैसे सब कुछ भूल चुके थे, ये भी कक
अपने कमरे से डर ाइं गरूम की तरि आता हुआ उनका बे टा कशिा अपने माॅम डै ड को
इस हालत में दे ख कर भी िापस नही ं पलटा था बल्कि िही ं छु पकर इस ऩिारे का म़िा
ले ने लगा था। उसके होठों पर बे शमी से भरी मुस्कान तैरने लगी थी तथा साथ ही अपने
दाएॅ हाथ से पै न्ट के ऊपर से ही सही मगर अपने लौडे को मसले भी जा रहा था।

........

61
अपडे ट........... 《 11 》

अब तक,,,,,,,

अजय कसंह बुरी तरह प्रकतमा के होठों को चूस रहा था। उसका बाॅया हाॅथ सरकते हुए
सीथा प्रकतमा के दाॅएं बोबे पर आकर बडे आकार के बोबे को सख्ती से अपनी मुिी में
भर कर मसलना शुरू कर कदया। अपनी चूॅची को इस तरह मसले जाने से प्रकतमा के
मुॅह से एक ददग युक्त ककन्तु आनंद से भरी हुई आह कनकल गई जो अजय कसंह के
होठों के बीच ही दब कर रह गई। ये दोनों जैसे सब कुछ भूल चुके थे, ये भी कक
अपने कमरे से डर ाइं गरूम की तरि आता हुआ उनका बे टा कशिा अपने माॅम डै ड को
इस हालत में दे ख कर भी िापस नही ं पलटा था बल्कि िही ं छु पकर इस ऩिारे का म़िा
ले ने लगा था। उसके होठों पर बे शमी से भरी मुस्कान तैरने लगी थी तथा साथ ही अपने
दाएॅ हाथ से पै न्ट के ऊपर से ही सही मगर अपने लौडे को मसले भी जा रहा था।

अब आगे,,,,,,,

"तु म दोनों ने बहुत ही बे हतर तरीके से इस काम को अं जाम कदया है मेरे


बच्चो।" डर ाइं गरूम में सोिे पर बै ठे जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए
कहा__"अजय कसं ह सोच भी नही ं सकता है कक उसके साथ ये खे ल खे लने
िाले िो दो िाॅरे नर कौन थे ?"

"खे ल ऐसा ही होगा अं कल जो ककसी को समझ में ही न आए।" किराज ने


प्रभािशाली स्वर में कहा__"और अजय कसं ह के साथ अब िो होगा जो
उसने सोचा भी न होगा।"

"मैं तो बे िजह ही तु म्हें इसके कलए ककसी ऐक्टर या माॅडल का सजेशन दे


रहा था बे टे।" जगदीश ने कहा__"मुझे लगता था कक इस काम के कलए
एक ऐक्टर ही बे हतर हो सकता है क्ोकक उन्हें हर तरह के ककरदार
कनभाने का तरीका और अनु भि होता है। जबकक तु मने खु द ही इस काम
को करने का ़िोर कदया।"

"मेरे ़िोर दे ने की िजह आप अच्छी तरह जानते हैं अं कल।" किराज ने


कहा__"आप जानते हैं कक ये जं ग मेरी है और इस जंग में मु झे ही कहस्सा
ले कर इसे इसके अं जाम तक पहुचाना है। रही बात िाॅरे नर बन कर
अजय कसं ह से खे ल खे लने की तो इसमें िाॅरे नर के रोल के कलए ककसी
ऐक्टर की ़िरूरत ही नही ं थी, हाॅ िाॅरे नर लु क की आिश्यकता ़िरूर
थी तो उसके कलए आपने मेकअप आकटग स्ट को बु लिाया ही था। उसने मुझे

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स्टीि जाॅनसन और गुकडया(कनकध) को एॅकजला जाॅनसन का मेकअप
करके लु क दे कदया। उसके बाद आपने दे खा ही कक कैसे हम दोनों भाई
बहन ने अजय कसं ह के साथ ये खे ल खे ला। मुझे गुकडया(कनकध) की किक्र
़िरूर थी ले ककन उसने भी अपना एॅकजला जाॅनसन का रोल बे हतरीन
तरीके से अदा ककया। हलाकक मैं ये नही ं चाहता था कक एॅकजला जाॅनसन
के रूप में मेरी पत्नी का ककरदार गुकडया कनभाए क्ोंकक िो मेरी बहन है,
ले ककन गुकडया की ही क़िद थी कक ये ककरदार िही कनभाएगी। खै र जो हुआ
अच्छे तरीके से हो गया।"

"अजय कसं ह उन दोनो िाॅरे नर को ढू ॅढने की जी तोड कोकशश कर रहा


होगा।" जगदीश ने कहा__"मगर ढू ॅढ नही ं पाएगा। ढू ॅढ भी कैसे पाएगा,
जबकक स्टीि जाॅनसन और एॅकजला जाॅनसन नाम के इन लोगों का कही ं
कोई िजूद ही नही ं है। ये बात तो िो सोच ही नही ं सकता कक कजन दो
िाॅरे नर से िह कमला था िो कोई और नही ं बल्कि उसके ही अपने हैं
कजनके साथ उसने बु रा करने में कोई कसर नही ं छोंडी।"

"हर ची़ि का कहसाब लू ॅगा अं कल हर ची़ि का।" किराज ने कहा__"ये तो


अभी टर े लर है, अभी आगे खु लकर खे ल होगा।"

"अरकिन्द सर्क्े ना को इस खे ल में कैसे शाकमल ककया तु मने ?" जगदीश के


मन में ये सिाल पहले से था__"िो तो अजय कसं ह का ही कबजने स पाटग नर
है न?"

"सर्क्े ना को इस खे ल में शाकमल नही ं ककया अं कल।" किराज जाने क्ा


सोच कर मुस्कुराया था बोला__"बल्कि उसे अजय कसं ह से अलग हो जाने
के कलए मजबू र ककया था मैंने।"

"क्ा मतलब?" जगदीश ने चौंकते हुए कहा__"और िह तु म्हारे द्वारा भला


कैसे इस सबके कलए मजबू र हो गया??"

"ककसी की कम़िोर नस अगर आपके पास आ जाए तो आप उससे कुछ


भी करा सकते हैं अं कल।" किराज ने कहा__"सर्क्े ना के साथ िही मामला
हुआ है।"

"बात कुछ समझ में नही ं आई बे टे।" जगदीश ने उलझन भरे भाि से
कहा__"़िरा बात को िष्ट करके बताओ।"

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"दरअसल बात ये है अं कल कक अजय कसं ह और सर्क्े ना कबजने स पाटग नर
के अलािा भी बहुत कुछ हैं।" किराज ने कहा__"आप यूॅ समकझए कक ये
दोनो हर ची़ि कमल बाॅटकर खाते पीते हैं। किर िो ची़ि चाहे ककतनी ही
पशग नल क्ों न हो। अगर िष्ट रूप से कहा जाए तो ये कक उन दोनों में
उस तरह का सं बंध है कजसे ये समाज अनै कतक करार दे ता है। ये दोनों
अपनी खु शी और आनं द को पाने के कलए एक दू सरे की बीकियों के साथ
कजस्मानी सं बंध बनाते हैं।"

"क् क्ा?????" जगदीश ओबराय ये बात सु नकर इस तरह उछला था


जैसे कक कजस सोिे पर िह बै ठा था िो अचानक ही गमग शोलों में तब्दील
हो गया हो, बोला__"ये तु म क्ा कह रहे हो बे टे?"

"यही सच है अं कल।" किराज ने ़िोर दे कर कहा__"अब आप समझ


सकते हैं कक अजय कसं ह ककस हद तक कमीना इं सान है।"

जगदीश ओबराय मु ह और आखें िाडे दे खता रह गया था किराज को। उसे


यकीन नही ं हो रहा था कक अजय कसं ह इस हद तक कगर सकता है।
जबकक,,,,

"मेरे पास सर्क्े ना की यही कम़िोरी थी अं कल।" किराज कह रहा


था__"मैंने बडी मुल्किल से ककसी के द्वारा सर्क्े ना के कुछ ऐसे िोटोग्राफ्स
हाॅकसल कर कलए थे कजनमें सर्क्े ना की अपनी बीिी ककसी गैर के साथ
से र्क् कर रही थी और सर्क्े ना एक दू सरे आदमी द्वारा से र्क्(गाॅड मरिा
रहा था) कर रहा था। इन िोटोग्राफ्स के आथार पर ही मैंने सर्क्े ना को
मजबू र ककया कक िो अजय कसं ह से अलग हो जाए िनाग उसके इन
िोटोग्राफ्स को सािग जकनक कर कदया जाएगा। किर क्ा था, सर्क्े ना को
अजय कसं ह से अलग होना पडा। अजय कसं ह तो ये भी नही ं जानता कक
सर्क्े ना के ही द्वारा अभी और क्ा होने िाला है?"

"क्ा मतलब?" जगदीश चौंका__"अभी और क्ा करिा रहे हो तु म


सर्क्े ना से ?"
"आपको भी पता चल जाएगा अं कल।" किराज ने मुस्कुराते हुए कहा__"बस
इं त़िार कीकजए थोडा।"

"कम से कम मुझे बताने में तो तु म्हें कोई ह़िग नही ं होना चाकहए।"

64
जगदीश ने हस कर कहा।
"इन बातों में म़िा तभी आता है अं कल जब िो ची़ि हो जाए जो हम
चाहते हैं।" किराज ने कहा__"और िै से भी सिेन्स नाम की ची़ि कुछ
समय तक तो रहना ही चाकहए।"

"तु म और तु म्हारी बातें ।" जगदीश ने मुस्कुरा कर कहा__"इतना जल्दी


समझ में कहाॅ आती हैं? खै र तु म्हारे कलए एक खबर है हमारे पास।"

"कैसी खबर अं कल?" किराज ने पू ॅछा।


"अजय कसं ह की बडी बे टी ररतू अब पु कलस आकिसर बन गई है।"

"ये तो अच्छी बात है न उनके कलए।" किराज ने कहा__"िै से भी बहुत


जल्द उन्हें नए पु कलस िालों से सं बंध बनाना पडे गा कजससे उसके ककसी
काम में ककसी तरह की रुकािट न हो सके।"

"जो भी हो।" जगदीश ने कहा__"मुझे पता चला है कक तु म्हारे दादा दादी


का केस बहुत जल्द ररतू अपने हाॅथ में ले ने िाली है।"
"उससे कुछ नही ं होगा अं कल।" किराज के चे हरे पर गंभीरत थी__"अजय
कसं ह अपनी पहुॅच और पािर से इस केस को इसके अं जाम तक पहुॅचने
ही नही ं दे गा। ररतू दीदी अपने सीकनयर के आदे श के ल्कखलाि कुछ नही ं
कर सकती।"

"दे खते हैं क्ा होता है?" जगदीश ने कहा__"खै र छोंडो ये सब...अभी
आकिस जा रहे हो क्ा?"
"हाॅ कुछ ़िरूरी काम भी है।" किराज कुछ सोचते हुए बोला।

जगदीश ने बडे गौर से किराज के चे हरे की तरि दे खा, कजसमें कभी कभी
पीडा के भाि आते और लु प्त होते ऩिर आ रहे थे । किराज ने जगदीश को
जब इस तरह अपनी तरि दे खते पाया तो कह उठा__"ऐसे क्ों दे ख रहे
हैं अं कल?"

"दे ख रहा हूॅ कक ककतनी सिाई से तु म अपने उस ददग को छु पा ले ते हो


जो तु म्हारे कदल में है।" जगदीश ने कहा__"िो ददग पाररिार से सं बंकधत
नही ं है िो तो ककसी से बे पनाह मोहब्बत करने िाला है।"

"ऐसा कुछ नही ं है अं कल।" किराज ने नजरें चु रा कर कहा और एक

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झटके से सोिे से उठ कर खडा हो गया।

"आखें सब बयां कर दे ती हैं बे टे।" जगदीश ने कहा__"हमने बहुत दु कनयाॅ


दे खी है, इतना तो हम महसू स कर सकते हैं कक सामने िाले के कदल में
क्ा है? और िै से भी मोहब्बत एक ऐसी ची़ि होती है जो हर हाल में
अपने होने का सबू त दे ती है।"

"पता नही ं आप क्ा कह रहे हैं अं कल?" किराज ने कहा__"चलता हूॅ


मैं।"

किराज िहाॅ से बाहर कनकल गया, जबकक जगदीश िही ं बै ठा रहा आॅखों
में आॅसु ओ ं के कतरे कलए।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

"आइये दीदी।" करुर्ा ने दरिा़िे से हटकर प्रकतमा को अं दर की तरि


आने का रास्ता दे ते हुए कहा__"मैं कल आपका इं त़िार कर रही थी
ले ककन आप आई ही नही ं।"

"हाॅ िो कमर में ददग था तो नही ं आ पाई।" प्रकतमा ने कहा और अं दर


की तरि आ कर डर ाइं गरूम में रखे सोिे पर बै ठ गई, किर करुर्ा की
तरि दे ख कर कहा__"अगर कोई ़िरूरी काम था तो तु म ही आ जाती
मेरे पास। अब इतना दू र भी तो नही ं है कक तु म आ न सको।"

(आप सब दोस्तों को तो पता ही होगा कक इन लोगों का घर कैसा है? ये


घर नही ं बल्कि हिे ली थी जो किराज के कपता किजय कसं ह ने बनिाई थी।
आपने पढा होगा कक हिे ली तीनो भाइयों के कहस्से को ध्यान में रख कर
बनिाई गई थी। जैसे तीन दो मंकजला किशाल घर को आपस में जोड कदया
गया हो।)

"आप तो जानती हैं दीदी कक इन्हें (अभय कसं ह बघेल) मेरे कही ं आने जाने
से तक़लीि होती है।" करुर्ा ने कहा__"और िै से भी घर का इतना सारा
काम हो जाता है कक उसी में सारा समय कनकल जाता है।"

"मैंने तो अभय से जाने ककतनी बार कहा है कक घर के काम के कलए एक


दो नौकरानी रखिा दो।" प्रकतमा ने कहा__"मगर न िो मेरी सु नते हैं और

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न ही अपने बडे भाई अजय की सु नते हैं। आकखर हम कोई ग़ैर नही ं अपने
ही तो हैं। भला क्ा ़िरूरत है अभय को स्कूल में पढाने की? माना कक
सरकारी नौकरी है मगर इस नौकरी कमलता क्ा है? अपना पररिार भी
ढं ग से नही ं चला सकते इस नौकरी के रुपये पै से से । अजय ने ककतनी
बार कहा है कक अभय कबजने स में उनका हाॅथ बटाए कजससे रुपये पै से
की कोई कमी न आए। मगर,,,,,

"जाने दीकजए दीदी।" करुर्ा ने बे चैनी से पहलू बदला__"आप तो जानती


हैं कक िो इस नौकरी और इस नौकरी से कमलने िाली तनख्वाह से खु श
हैं। मैंने भी तो उन्हें बहुत समझाया है मगर िो हमेशा की तरह मेरी बात
पर मुझे नसीहतें दे ने लगते हैं कक 'मैं एक कशक्षक हूॅ, गुरू
हूॅ.....स्कूल में बच्चों को अच्छी कशक्षा दे कर उनका उज्वल भकिश्य
बनाना मेरा ि़िग है। स्कूल के बच्चे हमारे दे श का भकिश्य हैं। और भी न
जाने क्ा क्ा भाषर् दे ने लगते हैं।"

"हाॅ जानती हूॅ मु झे भी कभी कभी जब मैं उससे बात करूॅगी तो इसी
तरह भाषर् दे ने लगते हैं।" प्रकतमा ने कहा__"कदव्या तो अभी अभय के
साथ ही स्कूल में होगी न?"

"जी िो तो शाम को उनके साथ ही आएगी।" करुर्ा ने कहा__"और


सु नाइए क्ा हो गया था आपकी कमर को??"
"मत पू ॅछो करुर्ा।" प्रकतमा ने अथग पूर्ग ढं ग से मुस्कुराते हुए कहा__"कल
तो सारा बदन टू ट रहा था ले ककन....हाय म़िा भी बहुत आया था।"

"मतलब भाई साहब ने कल आपकी हालत कबगाड दी।" करुर्ा मु स्कुराई।


"और नही ं तो क्ा।" प्रकतमा ने कहा__"पू रे चार राउण्ड में बु री तरह रगडे
हैं मुझे।"

"अच्छा तो है न।" करुर्ा ने एकाएक कुछ उदास भाि से कहा__"आपको


शाल्कन्त तो कमल जाती है।"
"अभय से उसके इलाज के सं बंध में बात ककया कक नही ं तु मने ?" प्रकतमा
ने पू ॅछा।

"िो नही ं मानते हैं दीदी।" करुर्ा ने अजीब भाि से कहा__"कहते हैं कक
अब ़िरूरत ही क्ा है? दो बच्चे तो हो ही गए हैं हमारे । अब इला़ि की
कोई ़िरूरत नही ं है।"

67
दोस्तो बात दरअसल ये है कक दो साल पहले अभय कसं ह अपनी मोटर
साइककल (बु लेट जो किराज के कपता ने खरीद कर दी थी) से स्कूल जा
रहा था, पता नही ं उसका ध्यान कहाॅ था, उसे पता ही नही ं चला और
मोटर साइककल सडक से नीचे उतर गई। अभय कसं ह कुछ कर न सका
क्ोंकक तब तक दे र हो चु की थी। भारी भरकम बु लेट के साथ लु ढकते हुए
अभय कसं ह नीचे पहुॅच गया। ़िमीन से कािी ऊची सडक थी। इस छोटे
से एर्क्ीडे न्ट में अभय कसं ह को कािी चोंटें लगी तथा दाकहना हाॅथ भी
टू ट गया। खै र ये सब तो इला़ि में ठीक हो जाना था ककन्तु दो कदन बाद
जब अभय कसं ह अपनी पत्नी करुर्ा के साथ सं भोग करना चाहा तो उसका
कलं ग ही न खडा हुआ। करुर्ा ने कई तरह से कलं ग को खडा करने की
कोकशश की ककन्तु कोई िायदा न हुआ। तब ये बात सामने आई कक
एर्क्ीडे न्ट में अभय कसं ह के प्राइिे ट पाटग में भी अं दरूनी चोंट लगी थी,
अभय कसं ह चू ॅकक बे होश हो गया था इस कलए उसे पता ही नही ं चला।
खै र अब समस्या हो गई कक अभय कसं ह का कलं ग ही नही ं खडा हो रहा,
इस बात से अभय कसं ह से ज्यादा करुर्ा परे शान हो गई। करुर्ा ने इसके
कलए अभय कसं ह को इला़ि करिाने का कहा ले ककन लाज और शरम के
कारर् अभय कसं ह इसके कलए तै यार ही न हुआ। करुर्ा ने उसे बहुत
समझाया, ये तक कहा कक िो से र्क् के कबना कैसे रह पाएगी? इस पर
अभय कसं ह नारा़ि भी हुआ, और कहा कक दो बच्चे हो गए हैं। रही बात
से र्क् की तो खु द पर काबू रखना सीखो, जीिन में से र्क् ही सब कुछ
नही ं होता। अभय कसं ह िै से भी गुस्सैल स्वभाि का था इस कलए करुर्ा
बे चारी मन मार रह गई। ये बात अभय के अलािा कसिग करुर्ा ही जानती
थी, बाॅकी ककसी को कुछ पता नही ं था। किर ऐसे ही लगभग एक साल
बाद बे ध्यानी में ये रा़ि की बात करुर्ा के मुख से प्रकतमा के सामने
कनकल गई। बाद में करुर्ा ने किनती करते हुए प्रकतमा से कहा भी कक ये
बात िो ककसी से न बताएं । औरत़िात के पे ट में कहाॅ दे र तक कोई बात
रह पाती है, नतीजतन उसने उसी कदन अजय कसं ह से ये सब बता कदया।
अजय कसं ह ये जानकर हैरान हुआ कक उसका छोटा भाई अभय कसं ह अब
अपनी बीिी के साथ सं भोग करने के काकबल नही ं रहा। ककन्तु अगले ही
पल उसे खु शी भी हुई इस बात से । िो जानता था कक करुर्ा अभी भरपू र
जिानी में है और िो से र्क् के कबना रह नही ं पाएगी। हलाॅकक ये उसकी
सोच ही थी, और इसी सोच के आधार पर िह जाने क्ा क्ा ख्वाब सजा
बै ठा। उसने प्रकतमा से इस बारे में बात की कक िह करुर्ा को उसके साथ
सं भोग के कलए तै यार करे । प्रकतमा अपने पकत को अच्छी तरह जानती थी

68
कक अजय कसं ह औरत की चू त का ककतना कदिाना है, अगर नही ं होता तो
अपनी ही बे टी पर नीयत खराब नही ं करता। खै र प्रकतमा तो खु द ही
चाहती थी कक अभय ि करुर्ा उनके साथ हर काम में शाकमल हो जाएं ।
इस कलए उसने दू सरे कदन से ही करुर्ा से ऩिदीककयाॅ बढाना चालू कर
कदया। करुर्ा ककसी भी मामले में प्रकतमा से कम न थी। बल्कि ऊपर ही
थी, प्रकतमा के मुकाबले िह अभी जिान ही थी। ककन्तु स्वभाि से सरल ि
बहुत कम बोलने िाली औरत थी। अभय कसं ह से उसने प्रे म कििाह ककया
था। अभय के अलािा ककसी दू सरे मदग के बारे में िह सोचना भी गुनाह
मानती थी।

प्रकतमा पढी कलखी तथा खे ली खाई औरत थी, ककसी को कैसे िसाना है
ये उसे अच्छी तरह आता था। काम मु ल्किल तो था ले ककन असं भि नही ं।
मगर प्रकतमा की सारी कोकशशें बे कार गईं अथागत् िह करुर्ा को इस सबके
के कलए तै यार न सकी। दरअसल िह खुल कर ये तो कह नही ं सकती थी
कक 'आओ और मेरे पकत से सं भोग कर लो।' इस कलए उसने उससे से र्क्
से सं बंकधत अपनी लाइि के बारे में बता बता कर ही करुर्ा के मन में
से र्क् की िीकलं ग्स भरने का प्रयास करती रही। िह अजय के साथ अपनी
से र्क् लाइि के बारे में खु ल कर उससे बात करती थी। शु रू शु रू में तो
करुर्ा ऐसी बातें सु नती ही नही ं थी कदाकचत उसे प्रकतमा के मुख से ऐसी
अश्लीलतापू र्ग बातों से बे हद शरम आती थी। इस कलए हर बार िह प्रकतमा
के सामने हाॅथ जोड कर उससे ऐसी बातें न करने को कहने लगती थी,
ले ककन प्रकतमा भला कहाॅ मानने िाली थी? िह तो उसके पास आती ही
एक मकसद के साथ थी। खै र धीरे धीरे करुर्ा को भी इन सब बातों को
सु नने की आदत हो गई।

"ये तो कोई बात न हुई करुर्ा।" प्रकतमा कह रही थी__"आल्कखर कब तक


ऐसा चले गा? अभय को तु म्हारे बारे में कुछ तो सोचना चाकहए। उसे सोचना
चाकहए कक अभी तु म्हारी उमर ही क्ा हुई है? अभी तो तु म जिान हो,
और शादीशु दा जिान औरत कबना से र्क् के कैसे रहेगी?"

"जाने दीकजए दीदी।" करुर्ा ने एक गहरी साॅस ली__"अब तो आदत हो


गई है। अब इन बातों की तरि ध्यान ही नही ं जाता मेरा। घर के काम
और बच्चों में ही सब समय कनकल जाता है।"

"और जब रात होती है तथा अभय के साथ एक ही कबस्तर पर ले टती हो


तब क्ा इस तरि ध्यान नही ं जाता होगा?" प्रकतमा ने कहा__"जरूर जाता

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होगा छोटी, और ये सोच कर दु ख भी होता होगा कक कुछ हो ही नही ं
सकता।"

"ऐसा नही ं है दीदी।" करुर्ा ने भािहीन स्वर में कहा__"मैं तो


इनके(अभय) साथ सोती ही नही ं। बल्कि मैं तो हमेशा अपने बे टे शगुन के
साथ ही सोती हूॅ। आप तो जानती हैं िो कदमाग से कडस्टबग है, रात में
उसे दे खना पडता है िनाग जागने के बाद िह कब ककधर चला जाए पता
ही नही ं चलता।"

"किर भी करुर्ा।" प्रकतमा ने कहा__"मन को ककतना भी बहला लो


ले ककन जो तक़लीि और दु ख का कारर् है उसका ख्याल तो आ ही जाता
है। जिान औरत को अपनी से र्क् की गमी को बदागस्त कर पाना ़िरा
मुल्किल होता है।"

"ककया भी क्ा जा सकता है? करुर्ा ने कसर झुकाते हुए कहा__"इन्होंने


तो जैसे कसम खा ली है कक इला़ि नही ं करिाएं गे। क्ा उनकी इच्छा नही ं
होती होगी इसकी? मगर जैसे उन्होंने खु द की इच्छाओं को दबा कलया है
िै से ही मैने भी दबा कलया है।"

"हाय कैसे रह ले ती हो तु म?" प्रकतमा ने कहने के साथ ही साडी के ऊपर


से करुर्ा की ऩिर में अपनी चू त को मसला__"मुझसे तो एक कदन भी
बगैर लं ड के नही ं रहा जाता। हर रात रगड रगड कर चु दिाना पडता है
कशिा के डै ड से । मौका कमलता है तो कदन में भी चु दिा ले ती हूॅ। कसम
से करुर्ा कशिा के डै ड का लं ड घोडे जैसा है और जब तक उस घोडे
जैसे लं ड से अपने आगे पीछे पे लिा नही ं ले ती न तब तक चै न नही ं
आता।"

"आपके म़िे हैं किर तो।" करुर्ा ने हसते हुए कहा__"आपका भाग्य
अच्छा है दीदी, जो आपको इतना कुछ कमल रहा है।"
"भाग्य बनाना पडता है छोटी।" प्रकतमा ने कहा__"तु मने अपना भाग्य खु द
ही कबगाड रखा है तो कोई क्ा कर सकता है?"

"मैंने कैसे अपना भाग्य कबगाड कलया भला?" करुर्ा के माॅथे पर


अनायास ही बल पडता चला गया__"आप तो जानती हैं कक....ये,
"एक ही बात है।" प्रकतमा ने करुर्ा की बात को काटकर कहा__"िनाग
चार कदन की क़िन्दगी में हर ची़ि का म़िा कलया जा सकता है।"

70
"मतलब???" करुर्ा ने नासमझने िाले भाि से पू ॅछा।
"अब अगर मैं कुछ कहूॅगी तो तु म्हें लगेगा कक ये मैं क्ा ऊल जलू ल बक
रही हूॅ?" प्रकतमा ने अजीब भाि से कहा था।

"मैं ऐसा क्ों कहूॅगी दीदी?" करुर्ा ने हस कर कहा।


"तु म भी जानती होगी कक बडे बडे शहरों में कैसे लोग हर पल का आनं द
ले ते हैं?" प्रकतमा ने धडकते कदल के साथ कहा__"िहाॅ शहरों में कोई
औरत तु म्हारी तरह इस तरह नही ं बै ठी नही ं रह जाती हैं बल्कि ऐसे हालात
में भी अपने कजस्म की भू ॅख को कमटाने के कलए रास्ता खोज ले ती हैं।"

"क्ा मतलब??" करुर्ा ने हैरानी से पू ॅछा था__"ककस तरह का रास्ता


दीदी??"
"ज्यादा भोली न बनो तु म।" प्रकतमा ने कहने के साथ ही अजीब सा मु ॅह
बनाया किर मुस्कुरा कर बोली__"तु म भी अच्छी तरह जानती हो कक मेरे
कहने का क्ा मतलब था?"

"कसम से दीदी मेरी कुछ समझ में नही ं आया कक आप क्ा कह रही
हैं?" करुर्ा ने कहा।
"जैसे लडके लडककयाॅ गलग िैण्ड ब्वायिैण्ड बना कर शादी के पहले ही
सब कुछ कर लेते हैं न।" प्रकतमा ने कहा__"उसी तरह शादीशु दा औरत
मदग भी करते हैं। िकग ये है कक कोई खु शी खु शी करता है और कोई यही
सब मजबू री में करता है।"

"ओह! तो आप ये कहना चाहती हैं कक जैसे शहर के औरत मदग शादी के


बाद भी ककसी को गलग िैण्ड ि ब्वायिैण्ड बना कर सब कुछ करते हैं।"
करुर्ा कह रहक थी__"िै से ही उनकी तरह मुझे भी करना चाकहए?"

"तो इसमें ग़लत क्ा है?" प्रकतमा ने कह कदया ये अलग बात है कक इसके
साथ ही उसके कदल की धडकन भयिश बढ गई थी।

"क्ा???" करुर्ा ने बु री तरह उछलते हुए कहा__"मतलब आप इस ची़ि


को ग़लत नही ं मानती हैं??"
"कबलकुल।" प्रकतमा ने िष्ट लहजे में कहा__"हर इं सान की अपनी ़िरूरतें
और चाहतें हैं, और ़िरूरतों तथा अपनी चाहतों को पू रा करना ग़लत नही ं

71
हो सकता।"

"मतलब आप अगर मेरी जगह होती ं तो िो सब ़िरूर करती?"


ं करुर्ा ने
चककत भाि से कहा__"जो आज के समय में शहर िाले करते हैं?"

"बे शक।" प्रकतमा ने कहा__"जैसा कक मैने पहले ही बताया कक अपनी


़िरूरतों और चाहतों को पू रा करना कोई ग़लत नही ं है। जैसे मदग अपनी
खु शी के कलए हम पकत्नयों के रहते हुए भी बाहरी औरत से कजस्मानी सं बंध
बना ले ते हैं िै से ही हम औरते ककसी गैर मदग से सं बंध क्ों नही ं बना
सकती?ं आकखर इन सबके कलए हम औरतों पर ही पाबं दी क्ों? क्ा
हमारी इच्छाओं तथा ख्वाकहशों का कोई मोल नही?" ं

करुर्ा चककत थी प्रकतमा की बातें सु न कर। उसका मुॅह भाड की तरह


खु ला रह गया था।

"इतना हैरान न हो छोटी।" प्रकतमा कह रही थी__"आज के समय की यही


सच्चाई है और यही माॅग भी है। ये सब बातें ऐसी नही ं हैं कजनके बारे में
तु म्हें पता नही ं होगा।"

"हाॅ सु ना तो मैंने भी है दीदी।" करुर्ा ने कहा__"मगर ये भी जानती


हूॅ कक हर इं सान की अपनी अपनी सोच होती है, कजसे जो अच्छा लगता
है िो िही करता है।"

"अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर जीना कोई बु ल्किमानी नही ं है।" प्रकतमा
ने एक लम्बी साॅस खी ंचते हुए कहा__"मदग अगर हमारी ़िरूरत पू री नही ं
कर सकता तो ये उसकी ग़लती है। ककसी ची़ि की कुबागनी दे ना अच्छी
बात है ले ककन इस तरह नही....
ं अगर इला़ि सं भि है तो उसका इला़ि
करिाना ही चाकहए।"

करुर्ा भला क्ा कहती? उसका कदमाग़ तो जैसे जाम हो गया था। प्रकतमा
बडे ग़ौर से करुर्ा को दे खने लगी थी। उसने मन ही मन सोचा कक ऐसा
क्ा करूॅ कक ये शीशे में उतर जाए? कुछ समय तक जब कोई कुछ न
बोला तो सहसा करुर्ा चौंकी, जाने ककन खयालों में खो गई थी िह?

"आप बै कठए दीदी।" करुर्ा ने सहसा उठते हुए कहा__"मैं आपके कलए
चाय बना कर लाती हूॅ।"

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"अरे रहने दो छोटी।" प्रकतमा ने कहा__"मैं चाय पीकर आई थी।"

"तो क्ा हुआ दीदी।" करुर्ा ने हस कर कहा__"मेरे हाॅथ की भी पी


लीकजए चाय।"
"अच्छा ठीक है मगर एक शतग पर।" प्रकतमा ने मुस्कुराकर कहा।

"शतग ???" करुर्ा चकराई__"कैसी शतग दीदी?"


"यही कक चाय िेशल दू ध की होनी चाकहए।" प्रकतमा ने कहा।
"दू ध तो अच्छा ही है दीदी।" करुर्ा ने हस कर कहा__"ये(अभय) सु बह
शाम भैं स का ता़िा दू ध ही ले कर आते हैं, उसमें पानी नही ं डालते ।"

"ओफ्फो।" प्रकतमा ने बु रा सा मु ह बना कर कहा__"भैं स का दू ध िेशल


कहाॅ हुआ?"
"हाॅ तो मेरे पास भैं स का ही दू ध है।" करुर्ा ने कहा__"आप कहें तो
दु कान से कोई दू सरा दू ध मगिा दू ॅ चाय के कलए।"

"अरे जब घर में ही िेशल दू ध है तो दु कान से मगिाने की क्ा ़िरूरत


है?" प्रकतमा ने कद्वअथी भाि से कहा।
"घर में तो भैं स का ही है।" करुर्ा ने भोले पन से कहा__"आपको बताया
तो था अभी।"

"अरे मैं तु म्हारे दू ध की बात कर रही हूॅ छोटी।" प्रकतमा हसी__"तु म्हारे
अपने दू ध की।"
"मेरे अपने दू .....?" करुर्ा को जब समझ आया तो बु री तरह झेंप गई
िह। लाज और शरम की लाली चे हरे पर िैलती चली गई। किर खु द को
सम्हाल कर बोली__"क्ा दीदी आप भी।"

"अरे ठीक ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रकतमा ने हसते हुए कहा__"तु म्हारे
अपने दू ध से िेशल कोई और दू ध भला कहाॅ होगा?"
"इस तरह तो आपका भी दू ....ध।" करुर्ा ने मुस्कुरा कर
कहा__"िेशल हुआ न?"

"अरे मेरा दू ध अब िेशल कहाॅ रहा मे री प्यारी बहन।" प्रकतमा ने आह


सी भरी।
"क्ों क्ा हुआ आपके दू ....ध को?" दू ध शब्द पर करुर्ा की ़िुबान
लडखडा जाती थी कदाकचत ये सोच कर कक ये दू ध िाली बात खु द के ही

73
दू ध की थी।

"क्ा बताऊ छोटी?" प्रकतमा ने कहा__"मेरे दू ध की तो हालत ही खराब


रहती है।"
"ऐसा क्ों दीदी?" करुर्ा चकरा गई।
"क्ोंकक रात भर कशिा के डै ड मेरे दू ध को बु री तरह मसलते जो हैं।"
प्रकतमा ने कहने के साथ ही अपने दोनों हाॅथों से अपने बडे बडे खरबू जों
को पहले ़िोर से मुकियों में मसला किर हिे हिे सहलाने लगी। ये दे ख
कर करुर्ा बु री तरह शरमा गई।

"दे ख न करुर्ा।" प्रकतमा ने अपने खरबूजों को दोनों हाॅथों से तौलते हुए


कहा__"कैसे मसल मसल कर इतने बडे बडे कर कदये हैं िो।"
"आपके कदमाग में तो जब दे खो तब यही सब बातें होती हैं।" कहने के
साथ ही करुर्ा ककचे न की तरि बढ गई। उसके पीछे पीछे प्रकतमा भी
चल दी।

"तु म्हारे भी दू ध खरबू जे जैसे ही हैं करुर्ा।" प्रकतमा ने ककचे न में पहुॅच
कर तथा करुर्ा के सीने की तरि गौर से दे खते हुए कहा__"बस मसले
कम गए हैं ये। जाने कब से अभय ने इन्हें दे खा तक न होगा, है न
छोटी??"

"अब बस भी कीकजए दीदी।" करुर्ा लाज ि शरम से गडी जा रही थी।


"ओये होये।" प्रकतमा ने उसे पीछे से पकड कर अपनी बाहों में ले कलया
तथा पीछे से ही अपने गालों को करुर्ा के गालों से रगडते हुए
कहा__"दे खो तो कैसे नई निे ली दु ल्हन की तरह शरमा रही है। सच
कहती हूॅ छोटी तु म्हें दे खकर कोई नही ं कह सकता कक तु म दो बच्चों की
माॅ हो।"

"अच्छा तो किर चार बच्चों की माॅ कहें गे।" करुर्ा ने शरारत से कहा।
"चार क्ों?" प्रकतमा ने कहने के साथ ही करुर्ा के पे ट में कचहुॅटी
काटी__"बल्कि दस कहेंगे। अब ठीक है न?"

"आआआआहहह दीदी।" कचहुॅटी काटने से करुर्ा एक दम से चीखते हुए


उछल पडी थी बोली__"प्लीज दीदी कचहुॅटी मत काकटये न।"
"अच्छा तो किर क्ा काटू ॅ?" प्रकतमा ने कहने के साथ ही अपने दाकहने
हाॅथ की अगुली को करुर्ा के सपाट नं गे पे ट में हौले हौले तथा गोल

74
गोल घुमाना शु रू कर कदया।

"उउउउििििि दीदी।" करुर्ा ने कसमसाते हुए कहा__"ये क्ा कर


रही हैं आप?"
"तु म चाय बनाने पर ध्यान दो छोटी।" प्रकतमा ने उसी हालत में कहा__"मैं
तो अपनी प्यारी बहन को लाड कर रही हूॅ।"

"ये लाड नही ं है दीदी।" करुर्ा ने बडी ही चतु राई से खु द को प्रकतमा के


बाहुपाश से आ़िाद करते हुए कहा__"ये तो कुछ और ही लगता है। और
अब आप मुझे तसल्ली से चाय बनाने दीकजए, कोई छे डखानी नही ं करें गी
आप।"

"ठीक है।" प्रकतमा ने मन ही मन ह़िारों गाकलयाॅ दी उसे ककन्तु प्रत्यक्ष में


कहा__"तु म्हें तो मेरा यानी अपनी बडी बहन का प्यार भी कुछ और लगता
है।"

"ऐसा नही ं है दीदी।" आप तो बे िजह ही नारा़ि हो रही ं हैं ।"


"रहने दो।" प्रकतमा ने छोटे बच्चे की तरह तु नक कर कहा__"सब जानती
हूॅ मैं।"

तब तक चाय बन चु की थी। करुर्ा ने चाय को दो कप में डाला तथा एक


कप करुर्ा को थमाया और एक कप खु द ले कर उसे धीरे धीरे पीने लगी।
जबकक प्रकतमा के मन में यही चल रहा था कक 'आज किर एक बार मेरी
कोकशश बे कार रही।'

अपडे ट............ 《 12 》

अब तक,,,,,,

"ठीक है।" प्रकतमा ने मन ही मन ह़िारों गाकलयाॅ दी उसे ककन्तु प्रत्यक्ष में


कहा__"तु म्हें तो मेरा यानी अपनी बडी बहन का प्यार भी कुछ और लगता
है।"

"ऐसा नही ं है दीदी।" आप तो बे िजह ही नारा़ि हो रही ं हैं ।"

75
"रहने दो।" प्रकतमा ने छोटे बच्चे की तरह तु नक कर कहा__"सब जानती
हूॅ मैं।"

तब तक चाय बन चु की थी। करुर्ा ने चाय को दो कप में डाला तथा एक


कप करुर्ा को थमाया और एक कप खु द ले कर उसे धीरे धीरे पीने लगी।
जबकक प्रकतमा के मन में यही चल रहा था कक 'आज किर एक बार मेरी
कोकशश बे कार रही।'

अब आगे,,,,,,,,

उिर मु म्बई में इस िक्त डर ाइों ग रूम में रखे सोफोों पर क्रमशः जगदीश
ओबराय, विराज, गौरी तथा वनिी आवद बैठे हुए थे ।

"इस सब की क्या जरूरत है अों कल?" विराज ने कहा__"आप जानते हैं वक


जीिन में मे रा वसफफ एक ही मकसद है और िो है अजय वसोंह का खात्मा। मैं
अपने इस मकसद को प़ू रा करने के वलए अब वकसी भी प्रकार का ब्यििान
नहीों चाहता।"

"जगदीश भैया ठीक ही कह रहे हैं बे टे।" गौरी ने समझाने िाले लहजे से
कहा__"उच्च वशक्षा का होना भी जरूरी है । इस वलए तुम अपनी पढाई को भी
प़ू रा करो। हम में से कोई तुम्हें ये नहीों कह रहा वक तुम अपने मकसद से
पीछे हटो, बल्कि िो तो तुम्हारा अब प्रण बन गया है उसे तुम जरूर प़ू रा
करो। ले वकन साथ साथ अपनी पढाई भी करते रहोगे तो कुछ ग़लत नहीों हो
जाएगा।"

"हाॅ भइया।" वनवि ने विराज के दावहने बाज़ू को मजब़ू ती से पकडते हुए


कहा__"माॅ और अों कल सही कह रहें हैं आपको अपनी पढाई कान्टीन्य़ू रखनी
चावहए। और वफर हम दोनोों साथ में ही काॅले ज जाया करें गे । काले ज में अगर
मु झे कोई छे डे तो आप उसकी जम कर िु नाई भी वकया करना वबलकुल वफल्म
के हीरो की तरह, हाॅ नहीों तो।"

"गु वडया ने भी कह वदया तो ठीक है अों कल मैं अपनी पढाई जारी करता हूॅ।"
विराज ने वनवि के वसर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"मैं कल ही वकसी
मे वडकल काॅले ज में एडमीशन करिा ले ता हूॅ।"

76
"उसकी जरूरत नहीों है बे टे।" जगदीश ने हस कर कहा__"मैं ने आलरे डी
तुम्हारा एडमीशन एक बवढया से मे वडकल काॅले ज में करिा वदया है ।"

"कट क्या???" विराज ने चौोंकते हुए कहा।


"हाॅ बे टे।" जगदीश ने हस कर कहा__"मु झे पता था वक तुम्हें इसके वलए
मानना ही पडे गा, इस वलए मैं ने पहले ही तुम्हारा एडमीशन करिा वदया है ।
कल काले ज जा कर सबसे पहले वप्रों वसपल से वमल ले ना। दरअसल एडमीशन तो
मैं ने करिा वदया है वकन्तु फामफ िगै रा में साइन तो तुम्हारे ही लगें गे न। इस वलए
जा कर पहले ये सब ल्कक्लयर कर ले ना। बाॅकी वकसी चीज की वफक्र मत
करना। य़ू ॅ समझना वक अपना ही काॅले ज है ।"

"शु वक्रया अों कल।" विराज एकाएक सहसा गों भीर हो गया__"आपने इतना कुछ
हमारे वलए कर वदया है वजसकी कोई कल्पना नहीों कर सकता। आप हमारे
जीिन में भगिान बन कर आए हैं िनाफ हर चीज से बे बस ि लाचार हम आल्कखर
क्या कर पाते?? ये मे रे ऊपर आपका कजफ है वजसे मैं वकसी भी जनम में
उतार नहीों सकता।"

"ये सब कह कर तुमने मु झे पराया कर वदया बे टे।" जगदीश भािु क होकर


बोला था__"जबवक मैं तुम सबको अपना पररिार ही मानने लगा हूॅ।"

"नहीों अों कल।" विराज सोफे से उठ कर तु रोंत ही जगदीश के पै र पकड वलया,


बोला__"मे रे कहने का मतलब िो नहीों था। आप पराए कैसे हो जाएों गे भला?
आप हमारे वलए पराए हो भी नहीों सकते हैं । आप तो अपने ि पराए से परे हैं
अों कल। आप इस कवलयु ग के अद्वतीय इों सान हैं वजनके अों दर वसफफ और वसफफ
ने कवदली और सच्चाई है ।"

"ये सच है भैया।" गौरी की आॅखोों में आॅस़ू थे , बोली__"आप हमारे वलए


अपनोों से भी बढ कर हैं , अपने कैसे होते हैं ये भी हमने दे खा है मगर आप
ग़ै र होकर भी अपने से बढ कर हैं । राज तो नासमझ है आप उसकी बात पर
ये वबलकुल न समझें वक हम आपको पराया समझते हैं । बल्कि अगर वदल की
सच्चाई बताऊ तो िो ये है वक अब आपके वलए अपनी जान तक कुबाफ न करने
का मन करने लगा है । हमारे ह्रदय में आपका थथान बहुत ऊचा है
भैया...बहुत ऊचा।"

"तुमने ये सब कह कर मु झे िो खुशी दी है बहन जो सोंसार भर की दौलत


वमल जाने पर भी न होती।" जगदीश ने अपनी आॅखोों में छलक आए आॅसु ओों

77
को पोोंछते हुए कहा__"इसके पहले ऐसा लगता था जै से ये सोंसार महज एक
कवब्रस्ान है जहाॅ कोई इों सान तो क्या पररों दा तक नहीों है । कदावचतट सब कुछ
खोकर और अकेले पन में ऐसा ही महस़ूस होता है । मगर तुम सबके आ जाने से
ये िीरान सा जीिन जै से वफर से हरा भरा और खुशहाल हो गया है ।"

"मैं तो आपको अपने भाई के रूप में पाकर िन्य ही हो गई हूॅ भैया।" गौरी
ने कहा__"मे रा अपना कोई भाई न था, एक भाई के वलए तथा उसकी कमी
से हमे शा वदल में ददफ रहा था। आपके वमलने से अब मन को त्रल्कप्त वमल गई
है ।"

"ये सब ईश्वर की ही कृपा है बहन।" जगदीश ने कहा__"िो जो भी करता है


बहुत कुछ सोच कर ही करता है । इसके पहले कौन वकसे जानता था वकन्तु
आज ऐसा है जै से हम सब कभी गै र थे ही नहीों। सच कहता हूॅ बहन ईश्वर
की इस इनायत से बहुत खुश हूॅ मैं ।"

"अच्छा अब बहुत हो गया ये इमोशनल डर ामा।" वनवि ने भोले पन से


कहा__"कुछ खाने पीने की बात कीवजए न। मे रे पे ट में पता नहीों वकतने च़ू हे हैं
जो काफी दे र से उछल क़ूद कर रहे हैं । आप में से वकसी को इसका खयाल
ही नहीों है ....जाओ नहीों बात करना वकसी से अब, हाॅ नहीों तो।"

"च़ू हे तो मे रे पे ट में भी क़ूद रहे हैं गु वडया।" विराज ने अजीब सा मु ह बना


कर कहा__"मु झे भी वकसी से बात नहीों करना अब, हाॅ नहीों तो।"

"क्या??????" वनवि उछल पडी__"आपने मे री नकल की? मतलब आपने मु झे


वचढाया? जाओ आपसे तो वबलकुल बात नहीों करनी, हाॅ नही तो।"

"ठीक है वफर।" विराज ने सोफे पर से उठते हुए कहा__"मैं अकेले ही चला


जाता हूॅ आइसक्रीम खाने ।"
"नननहीहीों।" वनवि चीखी और उछल कर फौरन ही खडी हो गई__"आप
अकेले आइसक्रीम खाने नहीों जा सकते मैं भी चल़ू ॅगी आपके साथ और अगर
आप अपने साथ मु झे न ले गए तो सोच लीवजएगा, हाॅ नहीों तो।"

"जो मु झसे बात नहीों करता मैं उसे अपने साथ कहीों नहीों ले कर जाता।" विराज
ने अकडते हुए कहा__"तुम मु झसे बात नहीों कर रही तो तुम्हें अपने साथ ले कर
क्योों जाऊ??"

78
"अरे मैं तो ऐसे ही कह रही थी।" वनवि ने चापल़ू सी िाले अों दाज में
कहा__"और िै से भी मैं आपकी जान हूॅ न? आप अपनी जान के वबना कैसे
चले जाएॅगे , हाॅ नहीों तो।"

"कोई कहीों नहीों जाएगा।" गौरी ने कहा__"चु प चाप बै ठो दोनो, मैं खाना ले कर
आती हूॅ।"
"नहीों नहीों।" वनवि ने बच्चोों की तरह क़ूदते हुए इों कार वकया__"मु झे आइसक्रीम
ही खाना है , हाॅ नहीों तो।"

"हा हा हा इन्हें जाने दो बहन।" जगदीश ने हसते हुए कहा__"जाओ बे टे, तुम
गु वडया को आइसक्रीम ल्कखला कर आओ।"
"भैया आप नहीों जानते हैं ।" गौरी ने जगदीश से कहा__"इसे आइसक्रीम की
लत वफर से पड जाएगी। पहले ये वबना आइसक्रीम के एक वदन नहीों रहती थी।
बडी मु ल्किल से तो इसकी आइसक्रीम छ़ूटी है ।"

"एक वदन में कुछ नहीों होता।" जगदीश ने गौरी से कहने के बाद वनवि की
तरफ मु खावतब हो कर कहा__"और हाॅ बे टी, ज्यादा आइसक्रीम मत खाना।
सेहत के वलए अच्छी नहीों होती।"

"जी अों कल।" कहने के साथ ही वनवि ने विराज का बाज़ू पकडा और बाहर की
तरफ खीोंचते हुए ले जाने लगी।
..................

द़ू सरे वदन विराज काॅले ज पहुॅचा। वनवि उसके साथ ही थी। हलाॅवक ये
उसका काॅले ज नहीों था वकन्तु वफर भी उत्सु कतािश िह विराज के साथ वजद
करके आई थी।

काॅले ज को दे खकर दोनो भाई बहन चवकत रह गए। विराज की आॅखोों में
जाने क्या सोच कर आॅस़ू आ गए वजसे उसने बडी ही सफाई से पोोंछ वलया
था। वनवि तो काले ज की ख़ूबस़ूरती में ही खोई हुई थी।

कुछ दे र काॅले ज को दे खने के बाद विराज वनवि के साथ काले ज के अों दर


गया। काले ज में थोडी दे र इिर उिर घ़ू मने के बाद वनवि को विराज ने काले ज
की कन्टीन में बै ठा कर खुद वप्रों वसपल से वमलने उसके आवफस की तरफ बढ
गया।

79
रास्े में एक आदमी से उसने वप्रों वसपल का आवफस प़ू ॅछा और आगे बढ गया।
कुछ दे र बाद ही िह वप्रोंवसपल के आवफस में वप्रों वसपल के सामने खडा था।
उसने अपना नाम बताया, हलाॅवक जगदीश ओबराय ने सबकुछ पहले ही सेट
कर वदया था। इस वलए विराज को ज्यादा परे शानी नहीों हुई।

सारी फारमे वलटी प़ू री करने के बाद तथा अपने कोसफ से सोंबोंवित कुछ महत्वप़ू णफ
जानकारी ले ने के बाद िह वप्रोंवसपल के आवफस से बाहर आकर काले ज की
कन्टीन की तरफ बढ गया। कन्टीन से वनवि को साथ ले कर िह काले ज से
बाहर आ गया।

"तो आवखर आपको आपके पसोंद का काॅले ज वमल ही गया न भइया?" रास्े
में बाइक पर पीछे बै ठी वनवि ने विराज से सट कर तथा विराज के कान के
पास मु ह ले जाकर बोली__"एक ऐसा काॅले ज वजसमें पढने की कभी आपने
तमन्ना की थी, और आज जब आपकी तमन्ना प़ू री हुई तो आपकी आॅखोों से
आॅस़ू छलक पडे । है न ?"

"न नहीों तो।" बाइक चला रहा विराज वनवि की बात पर बु री तरह चौोंका था,
बोला__"ऐसा कुछ नहीों है ।"
"आप समझते हैं वक।" वनवि ने कहा__"मुझे कुछ पता ही नहीों चला जबवक
मैं ने अपनी आॅखोों से दे खा भी और वदल से महस़ूस भी वकया।"

"बहुत बडी बडी बातें करने लगी है गु वडया।" विराज ने हस कर कहा__"ऐसी


जै से वक कोई सयाना हो जाने पर करता है ।"
"हाॅ तो मैं बडी हो गई न।" वनवि ने भोले पन से कहा__"आपने दे खा था न
उस वदन? मैं आपके कोंिे से थी, और अब कुछ वदन बाद आपके काॅन से
भी हो जाऊगी..दे ख लीवजएगा, हाॅ नहीों तो।"

"हाॅ त़ू तो कुछ वदन में मे रे वसर के ऊपर से भी वनकल जाएगी गु वडया।"
विराज ने हसते हुए कहा।
"मु झे ऐसा क्योों लगता है जै से ये कह कर आपने मे रा मजाक उडा वदया है ?"
वनवि ने सोचने िाले भाि से कहा__"और अगर ऐसा ही है तो बहुत गों दे हैं
आप। जाइए नहीों बात करना अब आपसे, हाॅ नहीों तो।"

"अरे ये क्या बात हुई गु वडया??" विराज बुरी तरह हडबडा गया।
"बात मत कीवजए अब।" वनवि जो अब तक विराज से वचपकी हुई थी अब
पीछे हट गई, वफर बोली__"िै से तो बडा कहते हैं वक मैं आपकी जान हूॅ,

80
और अब अपनी ही जान का मजाक उडा रहे हैं , हाॅ नहीों तो।"

"अच्छा बाबा ग़लती हो गई।" विराज ने खेद भरे स्वर में कहा__"क्या अपने
भइया को माफ़ नहीों करे गी गु वडया??"
"अब आप माफ़ी मत माॅवगए।" वनवि तुरोंत ही ल्कखसक कर विराज से वफर
वचपक गई__"मु झे वबलकुल अच्छा नहीों लगता।"

"त़ू सचमु च मे री जान है गु वडया।" विराज ने भािु क होकर कहा__"तेरी एक


पल की भी बे रुखी मैं सह नहीों सकता। मु झसे अगर कोई ग़लती हो जाए तो त़ू
मु झे उसकी सजा दे दे ना ले वकन न ही कभी मु झसे नाराज होना और न ही ये
कहना वक मु झसे बात नहीों करना।"

"भइया...।" वनवि की रुलाई फ़ूट गई, उसने अपने दोनो हाॅथ विराज के
दोनो साइड से वनकाल कर विराज के पे ट पर कस वलया। वफर बोली__"आपसे
नाराज होकर या आपसे बात न करके क्या मैं भी एक पल रह पाउगी? अगर
मैं आपकी जान हूॅ तो आप भी तो मे री जान हैं भइया।"

"चल अब त़ू रो मत गु वडया।" विराज ने माहौल को बदलने की गरज से


कहा__"हम दु कान के पास आ गए हैं । यहाों पर मु झे कुछ वकताबें िगै रा ले नी
हैं । त़ू बता तुझे क्या चावहए?"
"मु झे न।" वनवि ने खुशी से कहा__"मु झे न एक टच स्क्रीन िाला मोबाइल ले ना
है और हाॅ आप भी टच स्क्रीन िाला मोबाइल ले लीवजए। ये की-पै ड को अब
ररटायर कर दीवजए, हाॅ नहीों तो।"

"क्योों अच्छा तो है ये मोबाइल।" विराज ने कहा__"इसमें क्या खराबी है भला?


तुझे पता है इसकी बै टरी हप्तोों तक चलती है ।"
"मैं कुछ नहीों जानती।" वनवि ने कहा__"मैंने कह वदया है वक ले ना है तो ले ना
है बस, हाॅ नहीों तो।"

"अब तो ले ना ही पडे गा।" विराज ने मु स्कुरा कर कहा__"मे री गु वडया, मे री


जान ने कह वदया है तो।"
"हाॅ नहीों तो।" वनवि खुश हो गई।
"चलो पहले मोबाइल ही ले ले ते हैं ।" विराज ने कहा__"उसके बाद वकताबें
खरीद ल़ू ॅगा।"

ये कह विराज ने बाइक को मोबाइल स्टोर की तरफ मोड वलया। लगभग पाॅच

81
वमनट बाद ही िो दोनो मोबाइल स्टोर में थे।

"गु वडया।" विराज ने िीरे से कहा__"वकस कोंपनी का ले ना है मोबाइल और


वकतने रुपये िाला??"
"मैं क्या बताऊ?" वनवि ने भी विराज की तरह िीरे से ही कहा__"मु झे इस
बारे में तो िै से भी कुछ नहीों पता।"

"वफर अब क्या करें ??" विराज ने कहा__"ये तो कमाल ही हो गया गु वडया।


मोबाइल खरीदने आ गए हैं ले वकन हमें यही पता नहीों है वक कौन सी कोंपनी
का तथा वकतने रुपये तक का मोबाइल ले ना है ?"
"दु कान िाले से प़ू ॅछ ले ते हैं न।" वनवि ने बु ल्कि दी__"उसे तो सब कुछ पता
ही होगा।"

"अरे हाॅ गु वडया।" विराज ने अपने वसर में हाॅथ की थपकी लगा कर
कहा__"ये तो मै ने सोचा ही नहीों था। अच्छा हुआ तुमने बता वदया िनाफ यहाॅ
से िापस जाना पडता। है न???"
"अब ज्यादा डर ामा मत कीवजए।" वनवि ने हस कर कहा__"मु झे पता है आप
बु दटि़ू बनने का नाटक कर रहे हैं ।"

"मतलब त़ूने पकड वलया??" विराज मु स्कुराया।


"और नहीों तो क्या।" वनवि हसी__"सरलाॅक होम्स एक जमाने में हमसे जास़ूसी
की टर े वनों ग ले ने आता था, हाॅ नहीों तो।"

"एक्सक्य़ूजमी सर।" तभी सहसा उन लोगोों के पास शोरूम का एक ब्यल्कक्त


आकर बोला__"व्हाट कैन आई हे ल्प य़ू ??"
"हमें वकसी अच्छी कोंपनी का सबसे अच्छा मोबाइल या आईफोन वदखाइए।"
विराज ने उस ब्यल्कक्त से कहा।

उस ब्यल्कक्त ने आज के चलन के वहसाब से कई तरह के मोबाइल लाकर टे बल


पर रख वदया तथा उन वडब्बोों पर वलखी बातोों को बता बता कर मोबाइल फोन
की खावसयत बताने लगा। वफर उसने आईफोन के कुछ से ट वदखाने लगा।

लगभग आिे घों टे बाद दोनो ही शोरूम से बाहर वनकले । उन दोनोों के हाॅथ में
एक एक मोबाइल था।

"भइया आप मु झे वसखा दीवजये गा वक कैसे चलाते हैं ??" वनवि ने रास्े में

82
कहा।
"ठीक है गु वडया।" विराज ने कहा__"चल अभी वकताबें भी ले ना है ।"
"िै से आपका काॅले ग कब से शु रू होगा?" वनवि ने प़ू ॅछा।

"एक हप्ते बाद।" विराज ने कहा।


"भइया मु झे भी आपके साथ इसी काॅले ज में पढना है ।" वनवि ने कहा।
"अगले साल से त़ू भी इसी काले ज में आ जाना।" विराज ने कहा।

ऐसी ही बातें करते हुए दोनो बहन भाई बाइक से घर पहुॅच गए। विराज अपने
मन पसोंद काले ज में पढने से बे हद खुश था। मगर िह नहीों जानता था वक अब
आगे क्या होने िाला था??????

अपडे ट.........《 13 》

अब तक,,,,,,

"भइया आप मु झे कसखा दीकजयेगा कक कैसे चलाते हैं??" कनकध ने रास्ते में


कहा।
"ठीक है गुकडया।" किराज ने कहा__"चल अभी ककताबें भी ले ना है।"
"िै से आपका काॅले ग कब से शु रू होगा?" कनकध ने पू ॅछा।

"एक हप्ते बाद।" किराज ने कहा।


"भइया मुझे भी आपके साथ इसी काॅले ज में पढना है।" कनकध ने कहा।
"अगले साल से तू भी इसी काले ज में आ जाना।" किराज ने कहा।

ऐसी ही बातें करते हुए दोनो बहन भाई बाइक से घर पहुॅच गए। किराज
अपने मन पसं द काले ज में पढने से बे हद खु श था। मगर िह नही ं जानता
था कक अब आगे क्ा होने िाला था??????

अब आगे,,,,,,,

उस िक्त रात के एक बज रहे थे । अजय वसोंह अपने कमरे में अपनी बीिी
प्रवतमा के साथ घमासान सेक्स करने में ब्यस् था। दोनो ही मादरजात नों गे थे ।

83
इस िक्त अजय वसोंह प्रवतमा को वपछिाडे से ठोोंके जा रहा था।

"ले मे री जान और ले ।" अजय वसोंह प्रवतमा को घोडी बनाकर तथा एक हाॅथ
से उसके वसर के बाल पकडे उसके वपछिाडे में दनादन पे लते हुए
बोला__"अपने वपछिाडे को और टाइट कर मे री रों डी साली।"

"आहहहहह ऐसे ही आआआहहहह और जोर से अों दर तक घु सा न भडिे


साले ।" प्रवतमा मजे में बोलती जा रही थी__"आआहहह हाॅ ऐसे ही..हुमच
हुमच के बजा मे री गाॅड को िनाफ तेरे लों ड को काट कर फेंक द़ू ॅगी
आआआहहहहह।"

"साली मे रा लों ड काट कर फेंक दे गी तो वफर वकससे अपनी च़ू ॅत और गाॅड


मरिाएगी बोल मादरचोद साली रों डी?"अजय वसोंह ने प्रवतमा के गोरे गोरे वकन्तु
गद्दे दार गाॅड पर जोर से थप्पड मारते हुए कहा।

"आआआहहहह उसकी वचों ता त़ू मत कर अजय वसोंह।" प्रवतमा ने


कहा__"दु वनयाॅ बहुत बडी है , वजसको भी अपनी च़ू त और गाॅड वदखाऊगी
िो साला कुिे की तरह अपनी लार टपकाते हुए दौडा चला आएगा।"

"अच्छा....मतलब त़ू सारी दु वनया से अपनी च़ू त और गाॅड मरिा ले गी?"


अजय वसोंह ने वफर से उसके वपछिाडे पर जोर से थप्पड मारते हुए
कहा__"और वकस वकस से मरिाएगी साली?"

"आआआहहहह और जोर से पे ल न भडिे की औलाद साले दम नहीों है क्या?"


प्रवतमा ने अपने वसर को उठा पीछे अजय वसोंह की तरफ दे ख कर कहा__"मैं
तो विजय से भी अपनी च़ू त और गाॅड मरिाना चाहती थी और इसके वलए मैं ने
वकतनी कोवशश की, मगर िो हरामी साला हररश्चों द्र था न। उसने हर बार मु झे
इज्जत मयाफ दा का पाठ पढा कर दु त्कार वदया। मे रे जै सी ख़ूबस़ूरत सेक्सी औरत
को दु त्कार वदया था उस वहों जडे ने । आआहहहह तभी तो मर गया हरामी।"

"अरे सही सही बोल कुवतया।" अजय वसोंह ने प्रवतमा की गाॅड से अपने
हवथयार को वनकाल कर उसे पलटा कर वबस्र पर सीिा ले टाया और वफर
उसकी दोनो टाॅगोों को उठा कर प्रवतमा के वसर के दोनो तरफ झुका वदया
वजससे उसका वपछिाडा अच्छे से उठकर पोजीशन में आ गया। अजय वसोंह ने
वफर से उसकी गाॅड में लों ड डाल कर पे लना शु रू कर वदया।

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"आआहहहह हाॅ सही से ही तो बोल रही हूॅ आआआहहह।" प्रवतमा ने मजे
में आहें भरकर कहा।
"सही सही कहाॅ बोल रही है साली?" अजय वसोंह अपने एक हाॅथ से प्रवतमा
की एक च़ू ॅची को जोर से मसल कर कहा__"मे रा भाई क्या ऐसे ही मर गया
था??"

"आआआहहहह और जोर जोर से मसल न साले भडिे ।" प्रवतमा ने अपने एक


हाॅथ को नीचे से बढा कर अपनी च़ू ॅत के दाने को मसलते हुए मजे में
कहा__"आआआहहहह हाॅ ऐसे ही...हाय इस मजे के वलए तो मैं सबकी रों डी
बनने को तैयार हूॅ अजय। मे री िो ख्वावहश कब प़ू री करोगे तुम??"

"कर द़ू ॅगा मे री जान।" अजय वसोंह झुक कर प्रवतमा के होठोों पर एक जोरदार
चुों बन वलया वफर बोला__"मु झे याद है ....तेरी ख्वावहश...वक त़ू तीन तीन
लों ड से एक साथ मजे करना चाहती है ...अपने सभी छें द पर एक साथ लों ड
डलिाना चाहती है । रुक जा कुछ वदन करता हूॅ कुछ। मगर पहले ये तो बता
वक कैसे मे रा भाई मर गया था?"

"आआआहहहहहह मरना ही था उस कमीने को..आआहहह मे री बात मान ले ता


तो आज वजों दा होता और ऐस भी करता। मगर सत्यिादी बने रह कर मर जाना
ही वनयवत में वलखा वलया था उसने ....आआआहहह मगर एक बात है उसका
लों ड तुमसे भी बडा था..प़ू रा का प़ू रा साॅड था िो।"

"तुमने कब दे खा उसके लों ड को?" अजय वसोंह ने एक पल रुक कर प़ू छा और


वफर से िक्के लगाने लगा।
"आआआहहह एक वदन दोपहर में खेत पर गई थी अपनी गरमा गरम च़ू त
ले कर।" प्रवतमा ने कहा__"सोच वलया था वक आज इस कमीने से अपनी च़ू त
और गाॅड दोनो मरिा कर ही जाऊगी। उस समय खेत मे कोई नहीों था। खेत
के मकान के एक कमरे में िो विजय कमीना दोपहर को आराम फरमा रहा
था। मैं चु पके से अों दर कमरे मे पहुॅची...आआआहहहह....दे खा तो िो
गहरी नीोंद में सोया हुआ नजर आया। बदन में ऊपर एक बवनयान तथा नीचे
लुों गी लगा रखी थी उसने । मु झे लगा इससे बवढया सुनहरा मौका इससे चु दने का
वफर नहीों वमले गा। ये सोचकर मैं ने जल्दी से अपने बदन से सारे कपडे उतार
कर नों गी हो गई और चु पके से विजय की तरफ बढी जो पास ही चारपाई पर
सोया हुआ था।"

"क्या हुआ रुक क्योों गई?" अजय वसोंह प्रवतमा के एकाएक चु प हो जाने पर

85
कहा__"आगे क्या हुआ था वफर??"
"तुम रुक गए तो मैं भी रुक गई।" प्रवतमा ने कहा__"तुम मे री कुटाई करते
रहो...तभी तो मजे में बताऊगी न।"

"ओह हाॅ।" अजय वसोंह चौोंका और वफर से िक्के लगाते हुए बोला__"अब
बताओ।"
"आआहहहहह हाॅ ऐसे ही आआआहहह जोर जोर से चोदो मु झे।" प्रवतमा ने
मजे से आों खें बों द करते हुए कहा__"विजय चारपाई पर च़ू ॅवक गहरी नीोंद में
सोया हुआ था इस वलए उसे ये पता नहीों चला वक उसके कमरे में कौन क्या
करने आया है ? मैं उसके हट्टे कट्टे शरीर को दे ख कर आहें भरने लगी थी।
चारपाई के पास पहुॅच कर मैं ने दोनोों हाॅथोों से विजय की लुों गी को उसके
छोरोों से पकड कर आवहस्ा से इिर और उिर वकया। वजससे विजय के नीचे
िाला वहस्सा नग्न हो गया। लुों गी के अों दर उसने कुछ नहीों पहन रखा था। मैं ने
दे खा गहरी नीोंद में उसका घोोंडे जै सा लों ड भी गहरी नीोंद में सोया पडा था।
ले वकन उस हालत में भी िह लम्बा चौडा नजर आ रहा था। उसका लों ड काला
या साॅिला वबलकुल नहीों था बल्कि गोरा था वबलकुल अों ग्रेजोों के लों ड जै सा
गोरा। कसम से अजय उसे दे ख कर मे रे मु ॅह में पानी आ गया था। मैं ने बडी
साििानी से उसे अपने दावहने हाॅथ से पकडा। उसको इिर उिर से अच्छी
तरह दे खा। िो वबलकुल वकसी मास़ूम से छोटे बच्चे जै सा सुोंदर और प्यारा लगा
मु झे। मैं ने उसे मु ट्ठी में पकड कर ऊपर नीचे वकया तो उसका बडा सा सुपाडा
जो हिा वसोंद़ूरी रों ग का था चमकने लगा और साथ ही उसमें कुछ हलचल सी
महस़ूस हुई मु झे। मैं ने ये महस़ूस करते ही नजर ऊपर की तरफ करके गहरी
नीोंद में सोये पडे विजय की तरफ दे खा। िो पहले की तरह ही गहरी नीोंद में
सोया हुआ लगा। मैं ने चै न की साॅस ली और वफर से अपनी नजरें उसके लों ड
पर केंवद्रत कर दी। मे रे हाॅथ के िशफ से तथा लों ड को मु ट्ठी में वलए ऊपर
नीचे करने से लों ड का आकार िीरे िीरे बढने लगा था। ये दे ख कर मु झमें
अजीब सा नशा भी चढता जा रहा था, मे री साॅसें तेज होने लगी थी। मैं ने
दे खा वक कुछ ही पलोों में विजय का लों ड वकसी घोडे के लों ड जै सा बडा होकर
वहनवहनाने लगा था। मु झे लगा कहीों ऐसा तो नहीों वक विजय जाग रहा हो और
ये दे खने की कोवशश कर रहा हो वक उसके साथ आगे क्या क्या होता है ?
मगर मु झे ये भी पता था वक अगर विजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने
ही न पाता क्योोंवक िह उच्च विचारोों तथा मान मयाफ दा का पालन करने िाला
इों सान था। िो कभी वकसी को ग़लत नजर से नहीों दे खता था, ऐसा सोचना भी
िो पाप समझता था। मे रे बारे में िो जान चु का था वक मैं क्या चाहती हूॅ
उससे इस वलए िो हिे ली में अब कम ही रहता था। वदन भर खेत में ही

86
मजद़ू रोों के साथ िक्त गु जार दे ता था और दे र रात हिे ली में आता तथा खाना
पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था। िह मु झसे द़ू र ही
रहता था। इस वलए ये सोचना ही ग़लत था वक इस िक्त िह जाग रहा होगा।
मैं ने दे खा वक उसका लों ड मे री मु ट्ठी में नहीों आ रहा था तथा गरम लोहे जै सा
प्रतीत हो रहा था। अब तक मे री हालत उसे दे ख कर खराब हो चु की थी। मु झे
लग रहा था वक जल्दी से उछल कर इसको अपनी च़ू त के अों दर प़ू रा का प़ू रा
घु सेड ल़ू ॅ। वकन्तु जल्दबाजी में सारा खेल वबगड जाता इस वलए अपने पर
वनयों त्रण रखा और उसके सुोंदर मगर वबकराल लों ड को मु ट्ठी में वलए आवहस्ा
आवहस्ा सहलाती रही। उसको अपने मु ह में भर कर च़ू सने के वलए मैं पागल
हुई जा रही थी, वजसका सब़ू त ये था वक मैं अपने एक हाथ से कभी अपनी
बडी बडी च़ू वचयोों को मसलने लगती तो कभी अपनी च़ू ॅत को। मे रे अों दर
िासना अपने चरम पर पहुॅच चु की थी। मुझसे बरदास् न हुआ और मैं ने एक
झटके से नीचे झुक कर विजय के लों ड को अपने मु ह में भर वलया....और
यही मु झसे ग़लती हो गई। मैं ने ये सब अपने आपे से बाहर हो कर वकया था।
विजय का लों ड वजतना बडा था उतना ही मोटा भी था। मैं ने जै से ही उसे झटके
से अपने मु ह में वलया तो मे रे ऊपर के दाॅत तेजी से लों ड में गडते चले गए
और विजय के मु ख से चीख वनकल गई साथ ही िह हडबडा कर तेजी से
चारपाई पर उठ कर बै ठ गया। अपने लों ड को मे रे मु ख में दे ख िह भौचक्का
सा रह गया वकन्तु तुरोंत ही िह मे रे मु ह से अपना लों ड वनकाल कर तथा
चारपाई से उतरकर द़ू र खडा हो गया। उसका चे हरा एक दम गु स्से और घ्रणा
से भर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ वक कुछ दे र तो मु झे कुछ समझ ही न
आया वक ये क्या और कैसे हो गया। होश तो तब आया जब विजय की गु स्से
से भरी आिाज मे रे कानोों से टकराई।

"ये क्या बे हूदगी है?" विजय लुों गी को सही करके तथा गु स्से से दहाडते हुए
कह रहा था__"अपनी हिस में तुम इतनी अों िी हो चु की हो वक तुम्हें ये भी
खयाल नहीों रहा वक तुम वकसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही
दे िर से मु ह काला कर रही हो तुम। अरे दे िर तो बे टे के समान होता है ये
खयाल नहीों आया तुम्हें?"

मैं च़ू ॅवक रगे हाॅथोों ऐसा करते हुए पकडी गई थी उस वदन इस वलए मे री
जु बान में जै से ताला सा लग गया था। उस वदन विजय का गु स्से से भरा िह
खतरनाक रूप मैं ने पहली बार दे खा था। िह गु स्से में जाने क्या क्या कहे जा
रहा था मगर मैं वसर झुकाए िहीों चारपाई के नीचे बै ठी रही उसी तरह
मादरजात नों गी हालत में । मु झे खयाल ही नहीों रह गया था वक मैं नों गी ही बै ठी

87
हूॅ। जबवक,,,

"आज तुमने ये सब करके बहुत बडा पाप वकया है ।" विजय कहे जा रहा
था__"और मु झे भी पाप का भागीदार बना वदया। क्या समझता था मैं तुम्हें और
तुम क्या वनकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हिस में अों िी
होकर अपने ही दे िर से मु ह काला करने लगी। तुम्हारी नीयत का तो पहले से
ही आभास हो गया था मु झे इसी वलए तुमसे द़ू र रहा। मगर ये नहीों सोचा था
वक तुम अपनी नीचता और हिस में इस हद तक भी वगर जाओगी। तुममें और
बाजार की रों वडयोों में कोई फकफ नहीों रह गया अब। चली जाओ यहाॅ
से...और दु बारा मु झे अपनी ये गों दी शकल मत वदखाना िनाफ मैं भ़ूल जाऊगा
वक तुम मे रे बडे भाई की बीिी हो। आज से मे रा और तुम्हारा कोई ररश्ता
नहीों...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...दे खो तो कैसे बे शमों की तरह नों गी
बै ठी है ?"

विजय की बातोों से ही मु झे खयाल आया वक मैं तो अभी नों गी ही बै ठी हुई हूॅ


तब से। मैं ने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढकने के वलए अपने कपडोों की तरफ
नजरें घु माई। पास में ही मे रे कपडे पडे थे । मैं ने जल्दी से अपनी साडी ब्लाउज
पे टीकोट तथा ब्रा पैन्टी को समे टा वकन्तु वफर मे रे मन में जाने क्या आया वक मैं
िहीों पर रुक गई।

विजय की बातोों ने मे रे अों दर जहर सा घोल वदया था। जो हमे शा मु झे इज्जजत


और सम्मान दे ता था आज िही मु झे आप की जगह तुम और तुम के बाद त़ू
कहते हुए मे री इज्जजत की िल्कज्जयाॅ उडाए जा रहा था। मु झे बाजार की रों डी
तक कह रहा था। मे रे वदल में आग सी ििकने लगी थी। मु झे ये डर नहीों था
वक विजय ये सब वकसी से बता दे गा तो मेरा क्या होगा। बल्कि अब तो सब
कुछ खु ल ही गया था इस वलए मैं ने भी अब पीछे हटने का खयाल छोोंड वदया
था।

मै ने उसी हालत में ल्कखसक कर विजय के पै र पकड वलए और वफर


बोली__"तुम्हारे वलए मैं कुछ भी बनने को तैयार हूॅ विजय। मु झे इस तरह अब
मत दु त्कारो। मैं तुम्हारी शरण में हूॅ, मु झे अपना लो विजय। मु झे अपनी दासी
बना लो, मैं िही करूॅगी जो तुम कहोगे । मगर इस तरह मु झे मत
दु त्कारो...दे ख लो मैं ने ये सब तुम्हारा प्रे म पाने के वलए वकया है । माना वक
मैं ने ग़लत तरीके से तुम्हारे प्रे म को पाने की कोवशश की ले वकन मैं क्या करती
विजय? मु झे और कुछ स़ूझ ही नहीों रहा था। पहले भी मैं ने तुम्हें ये सब जताने
की कोवशश की थी लेवकन तुमने समझा ही नहीों इस वलए मैं ने िही वकया जो

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मु झे समझ में आया। अब तो सब कुछ जावहर ही हो गया है ,अब तो मु झे
अपना लो विजय...मु झे तुम्हारा प्यार चावहए।"

"बों द करो अपनी ये बकिास।" विजय ने अपने पै रोों को मे रे चों गुल से एक


झटके में छु डा कर तथा दहाडते हुए कहा__"तुझ जै सी वगरी हुई औरत के मैं
मु ह नहीों लगना चाहता। मु झे है रत है वक बडे भइया ने तुझ जै सी नीच और
हिस की अों िी औरत से शादी कैसे की? जरूर त़ूने ही मे रे भाई को अपने
जाल में फसाया होगा।"

"जो मज़ी कह लो विजय।" मैं ने सहसा आखोों में आॅस़ू लाते हुए कहा__"मगर
मु झे अपने से द़ू र न करो। वदन रात तुम्हारी सेिा करूॅगी। मैं तुम्हें उस गौरी
से भी ज्यादा प्यार करूॅगी विजय।"

"खामोशशशश।" विजय इस तरह दहाडा था वक कमरे की दीिारें तक वहल


गईों__"अपनी गों दी जु बान से मे री गौरी का नाम भी मत ले ना िनाफ हलक से
जु बान खीोंचकर हाॅथ में दे द़ू ॅगा। त़ू है क्या बदजात औरत...ते री औकात
आज पता चल गई है मु झे। तेरे जै सी रों वडयाॅ कौडी के भाि में ऐरोों गै रोों को
अपना वजस्म बें चती हैं गली चौराहे में । और त़ू गौरी की बात करती है ...अरे
िो दे िी है दे िी...वजसकी मैं इबादत करता हूॅ। त़ू उसके पै रोों की ि़ू ल भी
नहीों है समझी?? अब जा यहाॅ से िनाफ िक्के मार कर इसी हालत में तुझे
यहाॅ से बाहर फेंक द़ू ॅगा।"

मैं समझ चु की थी वक मे री वकसी भी बात का विजय पर अब कोई प्रभाि पडने


िाला नहीों था। उल्टा उसकी बातोों ने मु झे और मे रे अों तमफ न को बु री तरह शोलोों
के हिाले कर वदया था। उसने वजस तरीके से मु झे दु त्कार कर मे रा अपमान
वकया था उससे मे रे अों दर भीर्ण आग लग चु की थी और मैं ने मन ही मन एक
फैंसला कर वलया था उसके और उसके पररिार के वलए।

"ठीक है विजय वसोंह।" वफर मैं ने अपने कपडे समे टते हुए ठण्डे स्वर में कहा
था__"मैं तो जा रही हूों यहाॅ से मगर वजस तरह से तुमने मु झे दु त्कार कर
मे रा अपमान वकया है उसका पररणाम तुम्हारे वलए कतई अच्छा नहीों होगा। ईश्वर
दे खेगा वक एक औरत जब इस तरह अपमावनत होकर रुष्ट होती है तो भविष्य
में उसका क्या पररणाम वनकलता है ??"

इतना कह कर मैं िहाॅ से कपडे िगै रा पहन कर चली आई थी। वफर उसके
बाद क्या हुआ ये तो तुम्हें पता ही है अजय।

89
"हाॅ मे री जान।" अजय वसोंह जो जाने कब से रुका हुआ था अब वफर से
प्रवतमा की गाॅड में लों ड डाल कर िक्के लगाने लगा था, बोला__"मे रे कहने
पर तुमने इस सबकी कोवशश तो बहुत की मगर िो बे िक़ूफ का बे िक़ूफ ही
रहा। सोचा था वक वमल बाॅट कर सब खाएों गे वपयें गे मगर उसकी वकस्मत में
मरना ही वलखा था तो मर गया।"

"आआआआहहहह अब जरा मे री च़ू ॅत का भी कुछ खयाल करो।" प्रवतमा ने


सहसा वससकते हुए कहा__"इसके साथ भी इों साफ करो न आआआहहहह।"

अजय ने प्रवतमा के वपछिाडे से लों ड वनकाल कर उसकी च़ू ॅत में एक ही


झटके से पे ल वदया और दनादन िक्के लगाने लगा।

"आआआहहहहह अअअअजजजयययय ऐसे ही जोर से करते रहो।" प्रवतमा ने


आनों द में वससकते हुए कहा__"आआहह बहुत मजा आ रहा है ।"

"ले मे री रों डी और ले ।" अजय के िक्कोों की रफ्तार बढती जा रही


थी__"करुणा की च़ू ॅत और गाॅड कब वदलाओगी यार। अब इों तजार नहीों होता
मु झसे।"

"आआआआहहह कोवशश तो कर ही रही हूॅ मैं ।" प्रवतमा ने कहा__"कल भी


गई थी उसके पास। पहले तो कुछ समय के वलए मु झे लगा वक िह शीशे में
उतर गई है ले वकन जल्द ही मे री सारी कोवशशोों पर पानी भी वफर गया।"

"मु झे लगता है तुम्हारी सारी कोवशशें य़ू ही बे कार जाती रहें गी।" अजय ने जोर
का शाॅट मारते हुए कहा__"जबवक मैं अब और इों तजार नहीों कर सकता।
कसम से जब भी उसे दे खता हूॅ तो लगता है वक अभी उसे जबरजस्ी अपने
नीचे ले टा कर उसकी च़ू ॅत और गाॅठ की ठोोंकाई शु रू कर द़ू ॅ।"

"आआआआहहहहह थोडा और जोर से िक्के मारो।" प्रवतमा ने कहा__"ऐसा


सोचना भी मत अजय। िो ऐसी िै सी औरत नहीों है । जबरजस्ी करने से मु सीबत
भी हो सकती है । अभय को जरा भी पता चला तो अों जाम अच्छा नहीों होगा।"

"तो वफर क्या करूॅ मैं ?" अजय ने आिे श में कहने के साथ ही प़ू री रफ्तार
से िक्के लगाने लगा था__"तुमसे तो कुछ हो ही नहीों रहा।"

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"आआआआहहहहहह मे रे पपपपास एएएक प्लललान है अजय।" प्रवतमा िक्कोों
की िजह से बु री तरह पडी पडी वहल रही थी__"उससे शायद तुम्हाहाहारा काम
होहोहो सकता है ।"

"अरे तो जल्दी बताओ न वडयर।" अजय वसोंह अपने चरम पर पहुॅचते हुए
बोला__"क्या प्लान है तुम्हारे पास?"
"आआआआआहहहहह अजय और जोर से करो मैं छ़ूटने िाली हूॅ
आआआहह।" प्रवतमा ने कहने के साथ ही जबरदस् झटका खाया। उसकी
कमर कमान की तरह झटके खाते हुए तनी हुई थी और कुछ ही पल में िह
शान्त पड गई।

"आआआहहह प्रवतमा मैं भी आया।" अजय वसोंह भी झडते हुए प्रवतमा के ऊपर
पसर गया।

अभी ये दोनो अपनी अपनी साॅसें बहाल ही कर रहें थे वक बे ड के एक तरफ


टे बल पर रखे लै ण्डलाइन फोन की घण्टी घनघना उठी। फोन की घण्टी से दोनोों
ही चौोंके।

"इतनी रात को भला वकसका फोन हो सकता है ?" दोनो के मन में एक ही


सिाल उभरा।

"उठ कर दे खो न वकसका फोन है ?" अजय के नीचे दबी प्रवतमा ने कसमसाते


हुए कहा।

अजय वसोंह वकसी तरह उठ कर केवडर ल से ररसीिर को उठाकर काॅन से


लगाने के साथ ही कहा__"ह है लो।"
".............................."
"क क्या???" उिर से कुछ कहा गया वजसे सुन कर अजय बु री तरह उछल
पडा था।
".............................."
"ये तुम क्या कह रहे हो?" अजय का चे हरा सफेद फक्क पडता चला
गया__"और और कैसे हुआ ये सब?"
".............................."
"ओके ओके हम आ रहे हैं ।" कहने के साथ ही अजय ने ररसीिर को िापस
केवडर ल पर पटका और तुरोंत ही उठ कर बाथरूम की तरफ बढ गया।

91
कुछ दे र बाद अजय वसोंह बाथरूम से हाॅथ मु ॅह िोकर वनकला और आनन
फानन में अपने कपडे पहने उसने ।

"अरे क्या बात है अजय?" प्रवतमा बु री तरह चौोंकते हुए बे ड पर उठकर बै ठते
हुए बोली__"इतनी रात को कहाॅ जा रहे हो तुम? और और अभी वकसका
फोन आया था?"

"अभी कुछ बताने का समय नहीों है ।" अजय वसोंह कार की चाभी अपने एक
हाॅथ में थामते हुए बोला__"अभी मु झे यहाॅ से फौरन ही वनकलना होगा, मे रा
इों तजार मत करना।"

कहने के साथ ही अजय वसोंह कमरे से बाहर वनकल गया जबवक प्रवतमा नों गी
हालत में ही भाड की तरह अपनी आॅखें और मु ॅह फाडे दरिाजे की तरफ
दे खती रह गई इस बात से बे खबर की दो आॅखें वनरों तर उसके नों गे वजस्म को
दे खे जा रही हैं ।

अपडे ट........《 14 》

अब तक,,,,,,

"अरे क्ा बात है अजय?" प्रकतमा बु री तरह चौ ंकते हुए बे ड पर उठकर


बै ठते हुए बोली__"इतनी रात को कहाॅ जा रहे हो तु म? और और अभी
ककसका िोन आया था?"

"अभी कुछ बताने का समय नही ं है।" अजय कसं ह कार की चाभी अपने
एक हाॅथ में थामते हुए बोला__"अभी मुझे यहाॅ से िौरन ही कनकलना
होगा, मेरा इं त़िार मत करना।"

कहने के साथ ही अजय कसं ह कमरे से बाहर कनकल गया जबकक प्रकतमा
नं गी हालत में ही भाड की तरह अपनी आॅखें और मुॅह िाडे दरिाजे की
तरि दे खती रह गई इस बात से बे खबर की दो आॅखें कनरं तर उसके नं गे
कजस्म को दे खे जा रही हैं।

92
अब आगे.......

अजय वसोंह को शहर में अपनी कपडा मील की फैक्टरी पहुॅचते पहुॅचते
लगभग सुबह हो गई थी। दे र रात तक तो िह खुद ही अपनी पत्नी प्रवतमा के
साथ मौज मस्ी में ब्यस् रहा था।

अजय वसोंह ने जब फैक्टरी के सामने अपनी कार रोोंकी तो िहाॅ का माहौल ही


अलग था। हर तरफ आग और िु एॅ का साम्राज्य नजर आ रहा था। फैक्टरी के
चारो तरफ भीर्ण आग की लपटें आसमान को छ़ूती नजर आ रही थी। दमकल
की कई गावडयाॅ इस आग को बु झाने की कोवशश में लगी हुई थी। फैक्टरी में
काम करने िाले कुछ मजद़ू र भी इिर उिर नजर आ रहे थे ।

अजय वसोंह की हालत तो फोन में वमली जानकारी से ही खराब थी वकन्तु खुद
अपनी आॅखोों से ऐसा भयानक मों जर दे ख कर उसकी रही सही कसर भी
काफ़ूर हो गई। उसके चे हरे पर उसी तरह के भाि थे जै से सब कुछ लु ट जाने
पर होते हैं ।

अजय वसोंह लु टे वपटे भाि के साथ कार से नीचे उतरा और फैक्टरी की तरफ
चल वदया। अभी िह कुछ ही कदम आगे बढा था वक उसका पीए दीनदयाल
शमाफ उसकी तरफ ही आता हुआ नजर आया। उसके चे हरे पर भी बडे अजीब
से भाि थे ।

"सब कुछ बरबाद हो गया सर।" दीनदयाल करीब पहुॅचते ही हताश भाि से
बोला__"कुछ भी शे र् नहीों बचा। फैक्टरी के हर वहस्से में भीर्ण आग लगी हुई
है । वपछले दो घों टे से फायर वब्रगे ड िाले इस आग पर काब़ू पाने की कोवशश में
लगे हुए हैं ।"

"क कैसे हुआ दीनदयाल?" अजय वसोंह की आिाज ऐसी थी जै से वकसी गहरे
कुएॅ से बोल रहा हो__"आवखर कैसे हुआ ये सब? फैक्टरी में आग कैसे लग
गई?"

"मु झे खुद भी कुछ समझ में नहीों आ रहा सर वक ये सब कैसे हो गया?"


दीनदयाल दीन हीन लहजे से ही कहा__"फैक्टरी के अों दर आग लगने का
सिाल ही नहीों था क्योवक इसके काफी तगडे इतजामात थे । यहाॅ तक वक
फैक्टरी में काम करने िाले मजद़ू रोों को भी फैक्टरी के अों दर बीडी वसगरे ट
तम्बाक़ू या गु टका खाने की इजाजत नहीों थी।"

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"तो वफर कैसे लगी ये आग?" अजय वसोंह आिे श मे बोला__"मु झे इस बारे में
ठोस सब़ू त के साथ जानकारी चावहए दीनदयाल। तुम जानते हो वक इससे हमें
वकतना बडा नु कसान हुआ है । वजस तरह आग लगी हुई नजर आ रही है उससे
साफ जावहर होता है वक फैक्टरी के अों दर की हर चीज खाक़ में वमल चु की है ।
तुम अों दाजा लगा सकते हो वक वकतना नु कसान हो गया है ।"

"मैं जानता हूॅ सर।" दीनदयाल ने कहा__"प़ू री की प़ू री फैक्टरी ही जल गई


है , ये कोई माम़ू ली बात नहीों है । ये करोडोों से भी ऊपर का नु कसान है ।"

"पु वलस को स़ूवचत वकया?" अजय वसोंह ने प़ू ॅछा।


"जी सर पु वलस को स़ूवचत कर वदया गया है और पु वलस का एक इन्स्िेक्टर
अों दर आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा है ।" दीनदयाल ने कहा__"िो कह रहा है वक
आज के बाद से यहाॅ के थाने से उसका तबादला हो जाएगा और अब उसकी
जगह पर आपकी बे टी ररत़ू वसोंह बघे ल इों िेक्टर का चाजफ सम्हालें गी।"

"ओह आई सी।" अजय वसोंह के चे हरे पर सोचप़ू णफ भाि नु मायाों हुए__"तो िही
हुआ जो हम नहीों चाहते थे , खैर।"

कहने के साथ ही अजय वसोंह फैक्टरी की तरफ बढ गया। ये वलखने की


आिश्यकता नहीों वक उसके पीछे पीछे ही उसका पीए दीनदयाल भी बढ गया
था।

कुछ दे र में ही अजय वसोंह उस इों िेक्टर के सामने था वजसकी पु वलस की िद़ी
पर लगी ने म प्ले ट पर उसका नाम अवनल िमाफ वलखा नजर आया। कद काठी
से ठीक ठाक ही नजर आ रहा था िह। तीस से बिीस की उमर का रहा
होगा। उसने अजय वसोंह को दे ख कर बडे ही अदब से नमस्े वकया।

"ठाकुर साहब बडे ही अफसोस की बात है ।" वफर उस इों िेक्टर ने कहा__"वक
आपकी फैक्टरी में लगी आग से द़ू र द़ू र तक कुछ भी साबु त बचा हुआ नजर
नहीों आ रहा है । इससे इस बात का अों दाजा लगाना जरा भी मु ल्किल नहीों है
वक इस हादसे से आपको भारी भरकम नु कसान हो गया है , अगर...।"

अजय वसोंह ने उसके 'अगर' पर अचानक ही कहते हुए रुक जाने पर उसकी
तरफ सिावलया वनगाहोों से दे खा।

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"अगर आपने अपनी इस फैक्टरी का जीिन बीमा पहले से नहीों करिाया हुआ
है तो।" वफर उसने ये कह कर अपने वपछले कथन को प़ू रा वकया__"िै से
प़ू छना तो नहीों चावहए मगर वफर भी आपसे प़ू ॅछने की ये वहमाक़त कर ही
ले ता हूॅ, ड्य़ूटी इज ड्य़ूटी भले ही आज ही बस के वलए यहाों के एररये का
इों चाजफ हूॅ कल से तो आपकी बे टी ही इस सबकी तहकीक़ात करें गी न। खै र,
तो मैं ये प़ू छने की वहमाक़त कर रहा था वक..क्या लगता है आपको...ये
आग वकसने लगाई हो सकती है आपकी इस विसाल फैक्टरी में ?"

"ये पता लगाना तो तुम्हारा काम है इों िेक्टर।" अजय वसोंह ने तवनक कठोरता
से कहा था, उसे इस इों िेक्टर का वबहै वियर आज कुछ बदला हुआ लगा था,
इसके पहले तो ये सब खुद उसके ही पालत़ू कुिे जै से थे , बोला__"और अगर
नहीों पता लगा सकते तो यहाॅ तुम्हारी कोई जरूरत नहीों है समझे ?"

"अरे आप तो नाराज हो गए लगते हैं ठाकुर साहब।" इों िेक्टर ने मु स्कुराकर


कहा__"माफ कीवजये गा। पर सिाल तो मैं ने ठीक ही प़ू ॅछा था आपसे।"

"हाॅ तो हमें भी इस बारे में भला कैसे पता होगा वक ये आग वकसने लगाई
है ?" अजय वसोंह उखडे हुए लहजे से बोला__"अगर पता होता तो क्या िो अब
तक वजन्दा बचा होता?"

"हाॅ ये तो है ।" इों िेकटर ने अजीब भाि से अपने वसर को वहलाया__"आपके


हाॅथोों अब तक तो उसका कल्याण हो जाना वनवश्चत ही था।"
"िै से ये तुम कैसे कह सकते हो?" सहसा इस बीच दीनदयाल ने सिाल
वकया__"वक फैक्टरी में लगी ये आग वकसी के द्वारा लगाई गई है?"

"दे खा आपने ठाकुर साहब।" इों िेक्टर ने तपाक से कहा__"आपका ये पीए


वकतना वदमाग़दार है ? मे रे प़ू ॅछने पर जो सिाल आपको पहले ही मु झसे
प़ू ॅछना चावहये था िो आपने नहीों प़ू ॅछा लेवकन आपके इस दीन के दयाल ने
प़ू ॅछ वलया। खैर, अब जबवक प़ू ॅछ ही वलया है तो मु झे भी सिाल का जिाब
दे ने में कोई ऐतराज नहीों है । बात दरअसल ये है ठाकुर साहब वक फैक्टरी में
लगी आग अगर सािारण रूप से लगी होती तो उसका रूप इतना उग्र न
होता, ऐसा मे रा मानना है..जोवक बाॅवक सबके नजररये से ग़लत भी हो सकता
है । खैर....अब जबवक आग इस प्रकार भीर्ण रूप से लगी हुई है वक
फैक्टरी का कोई कोना तक खाली नहीों बचा है तो कहीों न कहीों मन में ये बात
आ ही जाती है वक हो सकता है ये आग वकसी के द्वारा सोच समझ कर तथा

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तसल्ली से इस प्रकार लगाई गई हो वक आपकी फैक्टरी का कोई भी वहस्सा
राम नाम सत्य होने से न बच सके।"

अजय वसोंह को इों िेक्टर की ऊल जल़ू ल बातोों से गु स्सा तो बहुत आ रहा था


वकन्तु िो उसकी इन सब बातोों से सहमत भी था। यकीनन ऐसा हो सकता था।
क्योोंवक वपछले कुछ समय से वजस तरह की घटनाएों उसके साथ घट रही थी
उससे यही जावहर होता था वक एक बार वफर वकसी ने उसके साथ इस प्रकार
का नु कसानदायी खेल खेला है । ये अलग बात है वक इस बार इस खेल में
उसकी सम़ू ची फैक्टरी को ही आग के हिाले कर वदया गया था। अजय वसोंह
को समझ नहीों आ रहा था वक आवखर कौोंन है जो उसके साथ ये सब कर रहा
है ?

"ठाकुर साहब इसी दु वनयाॅ में हैं न आप?" उिर इों िेक्टर ने अजय वसोंह को
गहरी सोच में ड़ूबे हुए दे खकर कहा__"अगर हैं तो प्लीज जरा ग़ौर फरमाइये ,
मु झे आपसे कुछ सिालात करने हैं ।"

"कैसे सिालात इों िेक्टर?" अजय वसोंह बोला।


"यही वक फैक्टरी में लगी इस भीर्ण आग में वकसी की जान तो नहीों गई न?"
इों िेक्टर ने प़ू छा__"क्योोंवक अगर ऐसा हो गया तो आपके वलए मु सीबत हो
सकती है । फैक्टरी तो जल ही गई ऊपर से इस आग में वजनकी जान चली गई
होगी उससे लम्बा बखेडा भी खडा हो जाएगा। अच्छा खासा केस बने गा और
आपको काऩू न की वगरफ्त में भी ले ना पड सकता है ।"

"ज्यादा बकिास करने की जरूरत नहीों है इों िेक्टर।" अजय वसोंह गु राफ या__"जो
भी होगा हम दे ख लें गे। तुम अपना काम करो और फुटास की गोली लो,
समझे ??"

"जै सी आपकी मज़ी ठाकुर साहब।" इों िेक्टर ने कहा और एक तरफ बढ गया।

"दीनदयाल।" इों िेक्टर के जाने के बाद अजय वसोंह दीनदयाल से मु खावतब


होकर कहा__"इस सबका न्य़ू ज और मीवडया िालोों को पता नहीों चलना
चावहए।"

"िै से तो अब तक ये बात लगभग फैल ही चु की होगी सर।" दीनदयाल ने


कहा__"वफर भी न्य़ू ज और मीवडया िालोों से कुछ भी छु पा नहीों रह सकेगा।
क्योोंवक ये कोई सािारण मामला नहीों है , िो तो अच्छा हुआ वक हमारी फैक्टरी

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शहर से हट कर तथा शहर की आबादी से बहुत द़ू र थी वजससे फैक्टरी के
अलािा बाकी और वकसी का कुछ भी नु कसान नहीों हुआ। िनाफ सोवचए अगर ये
फैक्टरी शहर में वकसी आबादी िाली जगह पर होती तो क्या होता? आग की
भीर्ण लपटोों से आस पास के मकानोों या और भी बहुत सी चीजोों पर आग
लग जाती वजसके पररणाम की कल्पना ही बडी भयों कर है । इस सबके बाद हम
कहीों मु ॅह छु पाने के कावबल नहीों रह जाते। जनता और काऩू न हमारे पीछे ही
पड जाते।"

"जो नहीों हुआ उसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीों है
दीनदयाल।"अजय वसोंह ने गहरी साॅस ली__"य़ू ॅ तो काऩू नी रूप से इस बात
की जाॅच तो होगी ही वक फैक्टरी में आग लगने की मु ख्य िजह क्या थी?
मगर....हमें तो पहले से ही इस बात का अों देशा है वक इस सबमें उसी का
हाॅथ है वजसने वपछले कुछ समय से हमारे साथ खेल खेलना शु रू वकया है ।
समझ में नहीों आता वक आवखर क्योों कर रहा है िो ऐसा? क्योों हमें बरबाद
करने पर तु ला हुआ है िो?"

"है रत की बात है सर।" दीनदयाल ने गों भीरता से कहा__"हमें अब तक उसके


बारे में कुछ पता नहीों चल पाया। िो हर बार िोखे से हमारा कुछ न कुछ
नु कसान कर दे ता है और हम कुछ नहीों कर पाते।"

ये दोनो ऐसे ही अपना माथा पच्ची करने में लगे रहे । फैक्टरी के अों दर अब
काफी हद तक आग पर काब़ू पा वलया गया था।
....................

उिर मु म्बई में आज एक बार वफर सब लोग एक साथ डर ाइों गरूम में रखे
कीमती सोफोों पर बै ठे हुए थे ।

"शहर के मशहूर वबजने स मै न अजय वसोंह की फैक्टरी में लगी आग, वजसमें
सबकुछ जल कर खाक़ हो गया।" वनवि ने अखबार में छपी खबर को पढते हुए
कहा__"वमली जानकारी के अनु सार ये आग उस समय लगी जब सारा शहर
रात के अिे रे में गहरी नीोंद सोया पडा था। रात दो से तीन बजे के बीच
फैक्टरी में आग लगी, और िीरे िीरे सम़ू ची फैक्टरी भीर्ण आग की चपे ट में
आ गई। फैक्टरी में मौज़ू द िकफर खुद इस बात से अों जान हैं । फैक्टरी में लगी
आग के उग्र रूप िारण करने से पहले ही फायर वब्रगे ड िालोों को स़ूवचत वकया
गया, जब तक दमकल की गावडयाॅ िहाॅ पहची तब तक फैक्टरी में लगी

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आग भयों कर रूप िारण कर चु की थी। लगभग चार घों टे की मसक्कत के बाद
फायर वब्रगे ड द्वारा इस भयों कर आग पर काब़ू पाया गया। फैक्टरी में आग लगने
की स़ूचना फैक्टरी के मावलक अजय वसोंह बघे ल को दे दी गई थी। फैक्टरी में
आग लगने से जो करोडोों का नु कसान हुआ है उससे फैक्टरी के मावलक अजय
वसोंह गहरे सदमे में हैं । हमें विश्वस् स़ूत्रोों द्वारा ये पता चला है वक फैक्टरी के
मावलक अजय वसोंह ने अपनी फैक्टरी का कोई जीिन बीमा िगै रा नहीों करिा
रखा था, इस वलए अब आप समझ सकते हैं वक आग लगने की िजह से
फैक्टरी के मावलक अजय वसोंह का वकतना नु कसान हुआ होगा। फैक्टरी में आग
लगने की िजह अभी तक सामने नहीों आई है । इस बारे में अभी पु वलस द्वारा
जाॅच पडताड की जा रही हैं ।"

"कैसी रही अों कल?" विराज ने होठोों पर मनमोहक मु स्कान वबखेरते हुए
कहा__"अजय वसोंह को एक और झटका दे वदया मैं ने।"
"तो क्या यही िो काम था वजसे तुम अजय वसोंह के वबजने स पाटफ नर अरविों द
सक्से ना द्वारा अों जाम दे ने की बात कह रहे थे ?" जगदीश ने है रत से
कहा__"पर कैसे हुआ ये सब?"

"हाॅ राज कैसे वकया तुमने ये सब?" गौरी ने भी चौोंकते हुए प़ू छा।
"सब कुछ शु रू से और अच्छे से आप लोगोों को बताता हूॅ।" विराज ने एक
लम्बी साॅस खीोंचते हुए कहा__"जब अजय वसोंह का वबजने स पाटफ नर अरविों द
सक्से ना अपने उन फोटोग्राफ्जस की िजह से मे रे इशारोों पर काम करने को तैयार
हो गया तो मै ने उससे अजय वसोंह के वबजने स से सोंबोंवित और भी कुछ
महत्वप़ू णफ जानकारी हाॅवसल की वजसका वकसी को कुछ पता नहीों था।"

"क्या मतलब??" विराज की इस बात पर सब एक साथ चौोंके थे __"कैसी


जानकारी??"

"अरविों द सक्से ना के अनु सार।" विराज ने इत्मीनान से कहा__"अजय वसोंह


कपडा मील की आड में गै र काऩू नी िों िा भी करता है । वजसमें गाॅजा,
अफीम, चरस, आवद कई चीजें शावमल हैं । इन सबसे उसे लाखोों करोडोों का
भारी मु नाफा होता है । च़ू ॅवक ये गै र काऩू नी िों िा है इस वलए इसमें उसे काऩू न
का भी डर था मगर उसने अपनी चतुराई से काऩू न को भी इसमें शावमल कर
वलया। कहने का मतलब ये वक इस िों िे से होने िाले मु नाफे में पु वलस और
काऩू न के कई सारे नु माइों दोों का भी वहस्सा होता था। पु वलस और काऩू न का
साथ वमलते ही ये िों िा और भी जोर शोर से चलने लगा मगर वछप वछपाकर
ही। अजय वसोंह की फैक्टरी शहर से बाहर ऐसी जगह पर है जहाॅ आबादी न

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के बाराबर ही है इस वलए फैक्टरी में ही इन सब चीजोों का भी एक अलग से
कारखाना बनाया गया था जो फैक्टरी के नीचे तहखाने में था। अब आप समझ
सकते हैं वक अजय वसोंह क्या है ? कपडा मील की कमाई से इतना मु नाफा नहीों
था वजतना इस गै र काऩू नी िोंिे से था। ये तो खैर शु रूआत है , अभी और भी
बहुत सी चीजें हैं वजनके बारे में कोई नहीों जानता।"

"तुम तो जान ही गए होगे न?" जगदीश ने कहा__"वफर तो कोई समस्या ही


नहीों है ।"
"मु झे भी उतना ही पता है वजतना सक्से ना को पता था।" विराज ने कहा।

"क्या मतलब??" जगदीश चौोंका।


"सक्से ना अजय वसोंह का पाटफ नर जरूर था अों कल।" विराज कह रहा
था__"लेवकन उसे खुद ये नहीों पता था वक उसका वबजने स पाटफ नर अजय वसोंह
िास्ि में है क्या? अरविों द सक्से ना एक फटट ट़ू वकस्म का इों सान था तथा साफ
वदल का, ये अलग बात है वक उसका कैरे क्टर बाॅकी चीज में अजय वसोंह से
जु दा नहीों था। हाॅ ये जरूर था वक सक्से ना गै र काऩू नी काम करने से डरता
था, और शायद यही िजह रही थी वक अजय वसोंह ने इस िों िे में सक्से ना को
शावमल न करके उसे इससे द़ू र ही रखा। खैर, एक वदन सक्से ना को वकसी
िजह से ये पता चल गया वक अजय वसोंह गै र काऩू नी िों िा भी करता है । उसने
अपनी आखोों से फैक्टरी के बे समें ट में बने एक अलग ही कारखाने को दे खा
था। अजय वसोंह को ये पता नहीों था वक सक्से ना उसकी असवलयत जान चु का
है । सक्से ना ने कभी अजय वसोंह से इस बात का वजक्र भी नहीों वकया। क्योवक
िह जानता था वक इस िों िे में कोई वकसी का नहीों होता, अगर बात इिर से
उिर हो गई तो उसकी जान भी जा सकती है । सक्से ना उस वदन से परे शान
भी रहने लगा वकन्तु उसने ये सब अजय वसोंह पर जावहर न होने वदया। िो अब
वकसी तरह अजय वसोंह से पाटफ नरवशप तोडकर उससे कहीों द़ू र चला जाना
चाहता था, मगर सिाल था वक कैसे करे ये सब? वफर एक वदन िो मे री
पकड में आ गया, मै ने जब उसे अपने तरीके से टाचफ र करके उससे अजय
वसोंह के बारे में प़ू ॅछा तथा उससे पाटफ नरवशप तोडने की बात कही तो िह कुछ
दे र न नु कुर करने के बाद इसके वलए तैयार हो गया। उसने मु झसे शतफ रखी
वक इस सबमें उसका नाम नहीों आना चावहए और उसे सु रवक्षत इस दे श से
बाहर पररिार सवहत भेज वदया जाए। मु झे उसकी शतफ से कोई आपवि नहीों थी
इस वलए मैं ने भी उसकी शतफ मान ली।"

"तो अजय वसोंह का एक सच ये भी बाहर आ गया वक िह अपने इस वबजने स

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की आड में गै र काऩू नी काम भी करता है ।" जगदीश ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा__"खैर तो तुमने इस सबके बाद सक्से ना से कैसे इस काम को अों जाम
वदलिाया?"

"हे भगिान।" गौरी आश्चयफ चवकत भाि के साथ कह उठी__"वकतना वगरा हुआ
इों सान है ये , ऐसा कोई काम नहीों बचा जो इसने वकया नहीों है ।"

"मे रा बस चले तो।" वनवि ने बु रा सा मु ॅह बनाते हुए कहा__"ऐसे ब्यल्कक्त को


बीच चौराहे पर गोली मार द़ू ॅ, हाॅ नहीों तो।"

"सक्से ना के बाॅकी जो छोटे मोटे कारोबार थे उन्हें मैं ने आपके द्वारा खरीद
वलया।" विराज कह रहा था__"और उसके एकाउन्ट में पै सा भी डलिा वदया
गया। साथ ही उसको उसके पररिार सवहत विदे श जाने का इों तजाम भी कर
वदया गया था। अब सक्से ना के पास एक ही काम रह गया था वजसे िो मे रे
कहने पर करने िाला था। कल रात उसने फैक्टरी जा कर बे समें ट में तीन
टाइम बम्ब वफट वकये थे । ये काम उसने बडी साििानी से तथा वकसी की नजर
में आए वबना वकया था। इस बात का खयाल वकया गया था वक उस समय
फैक्टरी में कोई न हो क्योोंवक इससे बाॅकी तमाम िकफसफ की या बहुत से
बे कस़ू र लोगोों की जान जाने का भी भीर्ण खतरा था। वफर सक्से ना ने बताया
वक फैक्टरी में हप्ते में एक वदन का अिकाश होता है और इिे फाक़ से कल
अिकाश ही था। तीन घों टे के टाइम के बाद बमोों को फटना था। बमोों के फटने
से पहले ही सक्से ना अपने पररिार के साथ विदे श जाने िाली फ्लाइट पर बै ठ
कर वनकल वलया था और इिर तीन घों टे बाद फैक्टरी के अों दर िमाका हो जाना
था और खेल खतम।"

"बहुत ख़ूब बे टे।" जगदीश के चे हरे पर प्रसोंसा के भाि थे , बोला__"जब


वदमाग़ से ही काम हो जाए तो हाॅथ पै र चलाने की जरूरत ही क्या है ? िे ल
डन बे टे....आई एम प्राउड आफ य़ू ।"

"िाह भइया िाह आपने तो कमाल ही कर वदया।" वनवि ने खुशी में झ़ूमते हुए
कहा__"और साडी को फाड कर रुमाल कर वदया, हाॅ नहीों तो।"

"बे टा जो कुछ भी करना बहुत सोच समझ कर करना।" गौरी अों दर ही अों दर
अपने बे टे के इस सराहनीय कायफ से खुश तो थी वकन्तु प्रत्यक्ष में उसने यही
कहा__"क्योोंवक तुम वजसके साथ ये जों ग कर रहे हो िो बहुत खराब आदमी
है ।"

100
"वफक्र मत कीवजए माॅ।" विराज ने सहसा ठों डे स्वर में कहा__"उस खराब
आदमी के पर ही तो कुतर रहा हूॅ और एक वदन उसे अपावहज भी कर
द़ू ॅगा। उसके वलए बहुत कुछ सोच रखा है मैं ने। समय आने पर आप दे खेंगी
वक उसका क्या हस्र करता हूॅ मैं ।"

"इस िमाके के बाद तो उसकी हालत खराब हो गई होगी बे टे।" जगदीश ने


कहा__"सोंभि है वक इस हादसे की जाॅच ही न करिाए िो।"
"आपने वबलकुल ठीक कहा अों कल।" विराज ने कहा__"फैक्टरी में हुए इस
भीर्ण काण्ड की जाॅच नहीों करिाएगा िो। क्योवक इससे उसे वमले गा तो कुछ
नहीों बल्कि उल्टा जाॅच से फस जरूर जाएगा। पु वलस और फाॅरें वसक
वडपाटफ मेंट िाले हर चीज को बारीकी से जाॅचें गे परखेंगे। उस दौरान िो लोग
फैक्टरी का चप्पा चप्पा छान मारें गे और इस सबसे उन्हें िो सब़ू त भी वमलें गे जो
इस बात की चीख चीख कर गिाही दें गे वक शहर का मशहूर वबजने स मै न ग़ै र
काऩू नी िों िा भी करता था। बस खेल खतम।"

"दे खते हैं क्या होता है ?" जगदीश ने कहने के साथ ही पहल़ू बदला__"िै से
अब आगे का क्या करने का विचार है ?"
"अभी और कुछ नहीों करना है ।" सहसा गौरी ने हस्ाक्षेप वकया__"अपनी
पढाई पर भी ध्यान दे ना कुछ, ये काम तो होता ही रहे गा।"

"गौरी बहन सही कह रही है राज।" जगदीश ने अपने पन से कहा__"कुछ वदन


में तुम्हारा काॅले ज भी शु रू हो जाएगा इस वलए अपने मन को थोडा शान्त भी
रखो।"

"मैं भी यही सोच रहा हूॅ।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"कुछ वदन अजय
वसोंह को भी अपनी हालत पर काब़ू पा ले ना चावहए। िनाफ कहीों ऐसा न हो वक
हादसे पर हादसे दे ख कर िह हाटफ अटै क से ही मर जाए। वफर वकससे मैं
अपने तरीके से इों तकाम ले सक़ूॅगा?"

"एक के मर जाने से क्या होता है भइया?" वनवि ने कहा__"सब उसके जै से


ही तो हैं , उनका भी िही हाल करना, हाॅ नहीों तो।"

वनवि की बात पर सब मु स्कुरा कर रह गए।

101
अपडे ट.........《 15 》

अब तक......

"दे खते हैं क्ा होता है?" जगदीश ने कहने के साथ ही पहलू
बदला__"िै से अब आगे का क्ा करने का किचार है?"
"अभी और कुछ नही ं करना है।" सहसा गौरी ने हस्ताक्षे प ककया__"अपनी
पढाई पर भी ध्यान दे ना कुछ, ये काम तो होता ही रहेगा।"

"गौरी बहन सही कह रही है राज।" जगदीश ने अपने पन से कहा__"कुछ


कदन में तु म्हारा काॅले ज भी शु रू हो जाएगा इस कलए अपने मन को थोडा
शान्त भी रखो।"

"मैं भी यही सोच रहा हूॅ।" किराज ने मुस्कुरा कर कहा__"कुछ कदन


अजय कसं ह को भी अपनी हालत पर काबू पा ले ना चाकहए। िनाग कही ं ऐसा
न हो कक हादसे पर हादसे दे ख कर िह हाटग अटै क से ही मर जाए। किर
ककससे मैं अपने तरीके से इं तकाम ले सकूॅगा?"

"एक के मर जाने से क्ा होता है भइया?" कनकध ने कहा__"सब उसके


जैसे ही तो हैं, उनका भी िही हाल करना, हाॅ नही ं तो।"

कनकध की बात पर सब मुस्कुरा कर रह गए।

अब आगे.......

अजय वसोंह की हिे ली में इस िक्त बडा ही अजीब सा माहौल था। डर ाइों गरूम में
रखे सोफोों पर इस िक्त पररिार के लगभग सभी सदस्य बै ठे हुए थे । अजय
वसोंह, प्रवतमा, वशिा, अभय वसोंह, करुणा, वदव्या तथा अभय ि करुणा का
वदमाग़ से वडस्टबफ बे टा शगु न। शगु न अपनी माॅ करुणा के साथ की इस िक्त
शान्त बै ठा था कदावचत सब कोई खामोश ि गु मसुम बै ठे हुए थे इस वलए उन
सबको दे खकर िह भी चु पचाप बै ठा था िनाफ आम तौर पर िह कोई न कोई
विवचत्र सी हरकतें करता ही रहता था। इन लोगोों के बीच पररिार के दो सदस्य

102
अभी अनु पल्कथथत थे , और िो थीों अजय वसोंह ि प्रवतमा की दोनोों बेवटयाॅ। अजय
की छोटी बे टी नीलम मु म्बई में है , हलाॅवक उसे फैक्टरी में लगी आग की
िजह से हुए भारी नु कसान की स़ूचना दे दी गई थी और िह मु म्बई से वनकल
भी चु की थी यहाॅ आने के वलए। जबवक अजय वसोंह की बडी बे टी ररत़ू सुबह
पु वलस स्टे शन चली गई थी, क्योोंवक आज उसे चाजफ सम्हालना था। ररत़ू को
अपने वपता के साथ हुए हादसे का दु ख तो था ले वकन िो कर भी क्या सकती
थी? हाॅ ये जरूर उसके वदमाग़ में था वक इस केस की छान बीन िो बारीकी
से खुद करे गी तथा इसके साथ ही यह पता भी लगाएगी वक ये सब कैसे
हुआ??

(आप सबको बताने की जरूरत नहीों है वक ये सब लोग इस तरह गु मसुम से


क्योों बै ठे हुए थे । वफर भी बताना तो हर ले खक का फजफ होता है वक िो हर
बात को विस्ार से अपने पाठकोों को बताए भी और समझाए भी।)

"क्या कुछ पता चला भैया वक फैक्टरी में वकस िजह से आग लगी थी?"
सहसा िहाॅ पर फैले इस सन्नाटे को अभय वसोंह ने अपने कथन से चीरते हुए
कहा__"आपने तो कहा था न वक पु वलस और फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट के लोग
इसकी बारीकी से छान बीन कर रहे थे ?"

"वकसी को कोई सुराग़ नहीों वमला छोटे ।" अजय वसोंह ने गों भीरता से
कहा__"सबका यही कहना है वक शाटफ सवकफट की िजह से फैक्टरी में आग
लगी थी। उस वदन क्योोंवक अिकाश था इस वलए फैक्टरी में काम करने िाले
िकफसफ नहीों थे । फैक्टरी के अों दर कोई नहीों था और जो िहाॅ पर गाडटफ स िगै रा
थे िो सब तो बाहर ही रहते हैं इस वलए वकसी को पता ही नहीों चला वक
फैक्टरी के अों दर कब क्या हुआ? जब तक पता चला तब तक फैक्टरी के अों दर
भरे कपडोों के स्टाक में आग पकड चु की थी। फैक्टरी का इन्टर ी गे ट बाहर से
लाॅक था वजसकी चाभी मै नेजर के पास थी उस रात। मै नेजर वकसी काम से
बाहर था, तो आनन फानन में लाॅक तोडने की कोवशश की गई। लाक ऐसा
था वक दरिाजे के अों दर से कने क्टेड था वजसे खोल पाना आसान न था इस
लोहे के दरिाजे को वफर वकसी तरह टर क द्वारा तोडना पडा। इस काम में
समय लग गया वजस िजह से आग ने उग्र रूप िारण कर वलया। वफर फायर
वब्रगे ड िालोों को स़ूवचत वकया गया। जब तक दमकल की गावडयाॅ िहाॅ
पहुॅची तब तक फैक्टरी के अों दर लगी आग बे काब़ू हो चु की थी और वफर सब
कुछ खाक़ हो गया।"

(आप लोग समझ ही गए होोंगे वक अजय वसोंह ये सब बातें अपने से बना कर

103
ही अभय से कही थी। भला िो और क्या बताता उन लोगोों से?)

"मैं इस बात को नहीों मानती डै ड।" सहसा तभी डर ाइों गरूप में इों िेक्टर की
िद़ी पहने हुए अजय वसोंह की बे टी इों िेक्टर ररत़ू ने दाल्कखल होते हुए कहा।

पु वलस इों िेक्टर की िद़ी में बला की ख़ूबस़ूरत लग रही थी ररत़ू। ऐसा लगता था
जै से ये पु वलस की िद़ी जन्म जन्माों तर से बनी ही उसके वलए थी। उसे इस रूप
में दे खकर िहाॅ बै ठे सब लोगोों की आॅखें फटी की फटी रह गईों। एकटक,
अपलक दे खते ही रह गए थे सब लोग उसे । िद़ी की टाइट वफवटों ग में उसके
बदन के िो सब उभार िष्ट नजर आ रहे थे वजससे उसके भरप़ू र जिान हो
जाने का पता चल रहा था। अजय वसोंह तथा वशिा की आों खें कुछ अलग ही
नजारा कर रही थी। ये बात वकसी ने महस़ूस की हो या न की हो वकन्तु उन
बाप बे टोों की वफतरत से बाख़ूबी पररवचत प्रवतमा ने साफ तौर पर महस़ूस
वकया। और अभय ि करुणा की मौज़ू दगी को ध्यान में रखते हुए उसने तुरोंत ही
उन बाप बे टोों को उनकी िास्विक ल्कथथत में ले आने की गरज से वकन्तु
साििानी से कहा__"िाह मे री बे टी पु वलस की िद़ी में वकतनी सुन्दर लग रही
है , कहीों वकसी की नजर न लग जाए तुझे। चल मैं तेरे कान के नीचे नजर का
काला टीका लगा दे ती हूॅ।"

"इसकी कोई जरूरत नहीों है माॅम।" ररतु ने हस कर कहा__"यहाॅ पर सब


अपने ही तो बै ठे हैं । भला अपनोों की भी कहीों नजर लगती है क्या?"

"क्या पता?" प्रवतमा ने एक सरसरी सी नजर अपने पवत ि बे टे पर डाली वफर


बोली__"लग भी सकती है ।"

अजय वसोंह और वशिा दोनो ही प्रवतमा की इस बात पर चौोंके और सम्हल कर


बै ठ गए। ये दे ख प्रवतमा मन ही मन मु स्कुराई थी।

"बहुत बहुत बिाई हो ररत़ू।" करूणा ने मुस्कुराकर कहा__"आज से तुम पु वलस


िाली बन गई हो।"
"िन्यिाद चाची जी।" ररत़ू ने कहा तथा एक हाॅथ में पकडे हुए पु वलस रुल
को अपने द़ू सरे हाॅथ की हथे ली पर हिे से मारते हुए कहा__"मैं आपकी
इस बात को नहीों मानती डै ड वक आपकी फैक्टरी में लगी आग वकसी शाटफ
सवकफट की िजह से लगी है ।"

"ये तुम क्या कह रही हो बे टी?" अजय वसोंह मन ही मन उसकी इस बात से

104
चौोंका था वकन्तु चे हरे पर उन भािोों को उजागर न करते हुए प्रत्यक्ष में कहा
__"अगर आग शाटफ सवकफट की िजह से नहीों लगी है तो वफर वकस िजह से
लगी है ? जबवक पुवलस और फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट के लोग अपनी छान बीन में
इसी बात की पु वष्ट करके गए थे ?"

"यही तो है रानी की बात है डै ड।" ररत़ू ने चहलकदमी करते हुए कहा__"िो


लोग उस बात की पु वष्ट कर गए वजसका कहीों कोई िज़ू द ही नहीों था, जबवक
उस तरफ उन लोगोों ने जरा भी ग़ौर नहीों वकया वजस तरफ वकसी बात के
प्रमाण वमल जाने के वकसी हद तक चान्से स थे ।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" अजय वसोंह इस बार लाख कोवशशोों के बाद भी


अपने चे हरे पर बु री तरह चौोंकने के भाि न वछपा सका। िह तो चवकत भी हो
गया था वक उसकी बे टी जो अब तक सािारण सी थी िो अब इस रूप में
ऐसी बातें भी करने लगी थी। उसे समझ न आया वक उसकी बे टी के अों दर
कौन सा जास़ूसी कीडा समा गया है ?

"मे रा मतलब तो स्वीवमों गपु ल में भरे पानी की तरह साफ ही है डै ड।" उिर
ररत़ू अजीब से अों दाज में अपने ही बाप की िडकने बढाते हुए कह रही
थी__"मु झे तो ऐसा लगता है जै से फैक्टरी में छान बीन करने आए पु वलस तथा
फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट के लोग छान बीन की महज औपचाररकता वनभा कर चले
गए हैं । िनाफ इतने भीर्ण काण्ड की इतनी माम़ू ली सी िजह बता कर नहीों चले
जाते बल्कि कुछ और ही पता करते।"

अजय वसोंह अपनी पु वलस की िद़ी पहने बे टी को मु ॅह बाए दे खता रह गया।


कानोों में कहीों द़ू र से हथौडे की चोोंट का एहसास करने लगा था िो। वफर
सहसा जै से उसे िस्ु ल्कथथत का खयाल आया तो बोला__"मतलब क्या है बे टी?
क्या तुम ये कहना चाहती हो वक तुम्हारे ही पु वलस वडपाटफ मेंट के लोगोों ने अपनी
छान बीन में ग़लत ररपोटफ दी है ? जबवक तुम्हारे अनु सार उनकी इस ररपोटफ के
उलट कुछ और ही ररपोटफ वनकल सकती थी? इससे तो यही जावहर होता है वक
तुम्हें अपने ही पु वलस वडपाटफ मेंट की इस छान बीन के फलस्वरूप बनाई गई
ररपोटफ पर शक है ?"

"मैं ने ये कब कहा डै ड वक मु झे अपने वडपाटफ मेंट द्वारा तैयार की गई ररपोटफ पर


शक है ?" ररत़ू ने कहा__"मैं ने तो वसफफ अपनी बात रखी है इस वसलवसले में
वक अगर औपचाररकता की बजाय ठीक तरह से छान बीन की जाती तो शायद
वनष्कशफ कुछ और ही वनकलता।"

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"तुम्हारे कहने का मतलब तो िही हुआ बे टी।" अजय वसोंह जाने क्या सोच कर
पल भर को मु स्कुराया था, वफर बोला__"तुम्हें लगता है वक तुम्हारे वडपाटफ मेंट
िालोों ने अपनी छान बीन में महज अपनी औपचाररकता वनभाई है । इसका
मतलब तो यही हुआ वक उन्होोंने तुम्हारी नजर में गों भीरता से छानबीन ही नहीों
की।"

"वबलकुल।" ररत़ू ने कहा__"पर ये उन पर मे रा कोई आरोप नहीों है डै ड।


क्योोंवक मु झे पता है सबका अपना अपना वदमाग़ होता है , और सब अपने उसी
वदमाग़ की िजह से वकसी भी चीज का ररजल्ट वनकालते हैं । वजसका वजतना
वदमाग़ चलता है िो उतना ही बता पाता है, मगर जरूरी नहीों होता वक कोई
सच उतने ही वदमाग़ से वनकलने िाला सच कहलाए। खैर जाने दीवजए...मैं
आपको ये खुशखबरी सुनाने आई हूॅ वक इस केस को मैं ने ररओपे न वकया है
वजसके वलए मैं ने कवमश्नर से बडी वमन्नते की थी। मु झे अों देशा है वक मे रे
वडपाटफ मेंट ने ठीक तरह से छान बीन नहीों की। इस वलए अब ये केस मैं ने खुद
अपने हाॅथ में वलया है और अब मैं खुद इसकी छानबीन करूॅगी।"

"क क्या????" अजय वसोंह उछल पडा, चहरे पर पसीने की ब़ू ॅदे वझलवमला
उठीों। वफर जल्दी ही उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__"भला इसकी क्या
जरूरत थी बे टी? मे रा मतलब है वक मान लो ये पता लग भी जाए वक फैक्टरी
में आग िास्ि में वकस िजह से लगी थी तो भी क्या होगा? क्या इससे िो सब
िापस वमल जाएगा जो जल कर खाक़ मे वमल चु का है ?"

"मैं मानती हूॅ डै ड वक अब िो सब कुछ नहीों वमल सकता जो जल कर खाक़


हो गया है ।" ररतु ने कहा__"ले वकन छान बीन से हकीक़त का पता भी तो
चलना चावहए। आल्कखर पता तो चलना ही चावहए वक फैक्टरी में आग खुद लगी
थी या वकसी के द्वारा लगाई गई थी?"

"वकसी के द्वारा?" सहसा इस बीच अभय ने कहा__"इसका क्या मतलब हुआ


ररत़ू बे टी?"
"मतलब साफ है चाचा जी।" ररत़ू ने अभय से मु खावतब होकर कहा__"फैक्टरी
में आग अगर खुद नहीों लगी रही होगी तो जावहर है वकसी के द्वारा आग लगाई
गई थी। उस स़ूरत में सिाल यही उठता है वक वकसने और वकस िजह से
फैक्टरी में आग लगाई? आप ही बताइए क्या ये जानना जरूरी नहीों है वक हम
ऐसे इों सान का पता लगाएों वजसने हमारी फैक्टरी को आग लगा कर हमारा सब

106
कुछ बरबाद कर वदया?"

"वबलकुल बे टा।" अभय ने कहा__"अगर छानबीन में यही सच सामने आता है


तो इसका पता तो चलना ही चावहए वक वकसने ये सब वकया और क्योों वकया?"

अजय वसोंह के काॅनोों में सीवटयाॅ सी बजने लगी थी। उसकी समझ में नहीों आ
रहा था वक अब िह ऐसा क्या करे वक उसकी बे टी फैक्टरी की दु बारा छानबीन
न करे ? क्योोंवक उसे पता था वक अगर ररत़ू ने दु बारा छानबीन शु रू की तो िो
सच्चाई भी सामने आ जाएगी वजसको िह वकसी भी कीमत पर सामने नहीों लाना
चाहता। पहले जो छानबीन हुई थी उसमें अजय वसोंह ने ऊपर ऊपर से ही
फैक्टरी की छानबीन करिाई थी िो भी वसफफ औपचाररकता के वलए। सब उसके
ही आदमी थे , पु वलस भी और फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट के लोग भी। वकन्तु अब ये
केस वफर से ररओपे न हो गया, िो भी उसकी अपनी ही बे टी के द्वारा। उसे
समझ नहीों आ रहा था वक अपनी बे टी को दु बारा से छानबीन करने से कैसे
रोोंके?

"ररत़ू दीदी ठीक ही कह रही हैं डै ड।" सहसा इस बीच काफी दे र से चु पचाप
बै ठा वशिा भी अपने अों दाज में कह उठा__"फैक्टरी की दु बारा से छानबीन तो
होनी ही चावहए। कम से कम असवलयत तो सामने आ ही जाए वक वकसने ये
सब वकया है ? कसम से डै ड...वजसने भी ये वकया होगा उसको छोड़ूॅगा नहीों
मैं । कुिे से भी बदतर मौत मारूॅगा उसे।"

"खामोशशशशश।" अजय वसोंह लगभग चीखते हुए कहा था__"चु पचाप बै ठो,
नहीों तो कमरे में जाओ अपने । तुम्हें बीच में बोलने की कोई जरूरत नहीों है
समझे ??"

"पर डै ड मैं ने ऐसा क्या ग़लत कह वदया?" वशिा ने बु रा सा मु ॅह बनाते हुए


कहा__"वजसकी िजह से आप मु झे इस तरह डाॅटकर चु प करा रहे हैं ।"

अजय वसोंह का जी चाहा वक िह अपने इस नालायक बे टे को गोली मार दे ,


वकन्तु वफर बडी मु ल्किल से अपने गु स्से को काब़ू में वकया उसने ।

"मैं तो कहता हूॅ बे टी वक बे िजह ही तुम इसके वलए परे शान हो रही हो।"
अजय वसोंह ने बात को वकसी तरह सम्हालने की गरज से कहा__"क्योोंवक अगर
ये पता चल भी गया वक फैक्टरी में आग खुद नहीों लगी थी बल्कि वकसी के
द्वारा लगाई गई थी तो तब भी ये कैसे पता लगाओगी वक वकसने ये सब वकया?

107
िो जो कोई भी रहा होगा िो इतना बे िक़ूफ नहीों रहा होगा वक इतना बडा
काण्ड करने बाद अपने पीछे अपने ही ल्कखलाफ कोई सब़ू त या कोई सुराग़ छोोंड
गया होगा। क्योवक ये तो उसे भी भली भाॅवत पता होगा वक इतना कुछ करने
के बाद अगर िह पकडा जाएगा तो उसके वलए अच्छा नहीों होगा, बल्कि पकडे
जाने पर जे ल की सलाखोों के पीछे पहुॅचा वदया जाएगा।"

"जु मफ चाहे वजतनी होवशयारी या सफाई से वकया जाए डै ड।" ररतु ने


कहा__"िह कहीों न कहीों वकसी न वकसी रूप में ऐसा सब़ू त या सुराग़ जरूर
छोोंड जाता है वजसकी वबना पर जु मफ करने िाले को काऩू न के हाॅथोों पकड
कर जे ल की सलाखोों के पीछे पहुॅचा वदया जा सके। मु झे प़ू रा यकीोंन है
डै ड...वजसने भी ये सब वकया है िो अपने पीछे अपने ही ल्कखलाफ सब़ू त या
सुराग़ जरूर छोोंड कर गया होगा। आप खुद सरकारी िकील रह चु के हैं इस
वलए ये बात आप भी अच्छी तरह जानते हैं वक मु जररम के ल्कखलाफ जब कोई
एक सब़ू त या सुराग़ काऩू न के हाॅथ लग जाता है तो वफर ज्यादा समय नहीों
लगता उस मु जररम को पकड कर जे ल की सलाखोों के पीछे डाल दे ने में ।"

अजय वसोंह है रान भी था और परे शान भी। है रान इस वलए वक उसकी बे टी के


मु ख से वजस तरह के डायलाॅग वनकल रहे थे उसकी उसने कल्पना तक न
की थी और परे शान इस वलए वक अपनी ही बे टी द्वारा इस छानबीन को करने
से िह वकसी भी तरीके से रोोंक नहीों पा रहा था। अपनी बे टी द्वारा छानबीन
करने की उसकी वजद को दे ख उसका वदल बै ठा जा रहा था। हलाॅवक िह
चाहता तो बे टी को ठे स लहजे में कह कर इसके वलए मना कर दे ता वकन्तु तब
हालात और बात दोनो ही वबगड जाते। उसकी बे टी के मन में ये वबचार जरूर
उठता वक उसका बाप उसके द्वारा इस छानबीन को न करने पर इतना जोर
क्योों दे रहा है ? बे टी क्योोंवक अब पु वलस िाली बन चु की थी इस वलए अब
उसके सोचने का नजररया बदल चु का था। उसे तो अब हर आदमी में एक
मु जररम नजर आने लगा था वजससे उसकी वनगाह अब सबको शक की दृवष्ट से
दे खने लगी थी। इस वलए अजय वसोंह अब ये वकसी कीमत पर भी नहीों चाह
सकता था वक वकसी भी िजह से उसके प्रवत उसकी बे टी के सोचने का
नजररया बदल जाए।

"चलती हूॅ डै ड।" सहसा ररत़ू ने अपनी ख़ू बस़ूरत कलाई पर बिी एक कीमती
घडी पर नजरें डालते हुए कहा__"मैं आपका पु वलस स्टे शन में इों तजार
करूॅगी।" वफर उसने अभय की तरफ भी दे ख कर कहा__"चाचा जी आपका
भी।"

108
इतना कहने के बाद ही िह ख़ूबस़ूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती
हुई डर ाइों गरूम से बाहर वनकल गई। वकन्तु उसके जाते ही िहाॅ पर ब्लेड की
िार जै सा पै ना सन्नाटा भी ल्कखोंच गया।

अजय वसोंह का वदल जै से िडकना भ़ूल गया था। उसे अपनी आों खोों के सामने
अिे रा सा नजर आने लगा। जाने क्या सोचकर िह तवनक चौोंका तथा साथ ही
घबरा भी गया। वफर एक ठों डी साॅस खीोंचते हुए, तथा अपनी आॅखोों को
म़ू ॅद कर सोफे की वपछली पु श्त से अपना पीठ ि वसर वटका वदया। आॅख
बों द करते ही उसे फैक्टरी के बे समें ट मे बने उस कारखाने का मों जर वदख गया
जहाों पर वसफफ और वसफफ ग़ै र काऩू नी चीजें मौज़ू द थी। ये सब नजर आते ही
अजय वसोंह ने पट से अपनी आों खें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से
उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमोों से बढ गया।

अपडे ट.........《 16 》

अब तक.......

"चलती हूॅ डै ड।" सहसा ररत़ू ने अपनी ख़ू बस़ूरत कलाई पर बिी एक कीमती
घडी पर नजरें डालते हुए कहा__"मैं आपका पु वलस स्टे शन में इों तजार
करूॅगी।" वफर उसने अभय की तरफ भी दे ख कर कहा__"चाचा जी आपका
भी।"

इतना कहने के बाद ही िह ख़ूबस़ूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती


हुई डर ाइों गरूम से बाहर वनकल गई। वकन्तु उसके जाते ही िहाॅ पर ब्लेड की
िार जै सा पै ना सन्नाटा भी ल्कखोंच गया।

अजय वसोंह का वदल जै से िडकना भ़ूल गया था। उसे अपनी आों खोों के सामने
अिे रा सा नजर आने लगा। जाने क्या सोचकर िह तवनक चौोंका तथा साथ ही
घबरा भी गया। वफर एक ठों डी साॅस खीोंचते हुए, तथा अपनी आॅखोों को
म़ू ॅद कर सोफे की वपछली पु श्त से अपना पीठ ि वसर वटका वदया। आॅख
बों द करते ही उसे फैक्टरी के बे समें ट मे बने उस कारखाने का मों जर वदख गया
जहाों पर वसफफ और वसफफ ग़ै र काऩू नी चीजें मौज़ू द थी। ये सब नजर आते ही

109
अजय वसोंह ने पट से अपनी आों खें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से
उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमोों से बढ गया।

अब आगे......

उस िक्त दोपहर के लगभग साढे ग्यारह या बारह के आसपास


का समय था जब अजय वसोंह, प्रवतमा ि अभय वसोंह ररत़ू के
कहे अनुसार फैक्टरी पहुॅचे। इन लोगोों के साथ अजय वसोंह का
बेटा वशिा भी आना चाहता था वकन्तु अजय वसोंह उसे अपने साथ
नहीों लाया था। उसे डर था वक कहीों िह वकसी समय ऐसा िैसा
न बोल बैठे वजससे कोई बात वबगड जाए। वशिा इस बात से
अपने स्वभाि के चलते नाराज तो हुआ लेवकन वपता के द्वारा
सख़्ती से मना कर दे ने पर िह मन मसोस कर रह गया था।

फैक्टरी के अोंदर जाने से पहले की तरह ही काऩूनन अभी


प्रवतबोंि लगा हुआ था। हलाॅवक पहले हुई छानबीन के मुतावबक
प्रवतबोंि हटाया ही जा रहा था वक ऐन समय पर ररत़ू के द्वारा
जब केस वफर से ररओपेन हो गया तो प्रवतबोंि प़ूिफतट लगा ही
रहा। इसके साथ ही जाने क्या सोच कर इों िेक्टर ररत़ू ने िहाॅ
की वसक्योररटी भी टाइट करिा दी थी।

अजय वसोंह ने अपनी तरफ से कोवशश तो बहुत की वक उसे एक


बार फैक्टरी के अोंदर जाने वदया जाए लेवकन उसकी एक न चली
थी। उसे इस बात ने भी बुरी तरह है रान ि परे शान कर वदया था
वक इस शहर का प़ूरा पुवलस वडपाटफ मेंट ही बदल वदया गया है ।
ऊची रैं क के सभी अफसरोों का तबादला हो चुका था एक वदन
पहले ही। सब-इों िेक्टर से लेकर कवमश्नर तक सबका तबादला
कर वदया गया था। अजय वसोंह इस बात से बेहद परे शान हो
गया था, पुवलस कवमश्नर उसका पक्का यार था वजसके एक
इशारे पर उसका हर काम चुटवकयोों में हो जाता था। अजय वसोंह

110
अपनी हार न मानते हुए प्रदे श के मुख्यमोंत्री से भी सोंबोंि थथावपत
कर इस केस को रफा दफा करने का दबाि बढाने को कहा
वकन्तु मुख्यमोंत्री ने ये कह कर अपने हाॅथ खडे कर वदये थे वक
िह ऐसा चाह कर भी नहीों कर सकता क्योोंवक ऊपर से हाई
कमान का शख्त आदे श था वक इस केस से सोंबोंवित वकसी भी
प्रकार की बात वकसी के द्वारा नहीों सुनी जाएगी और न ही वकसी
के द्वारा कोई हस्ाक्षेप वकया जाएगा। पुवलस को प़ूरी इमानदारी
के साथ इस केस की छानबीन करने की छ़ूट दी जाए।

प्रदे श के मुख्यमोंत्री की इस बात ने अजय वसोंह की रही सही


उम्मीद को भी तोड वदया था। उसकी हालत उस ब्यल्कक्त से भी
कहीों ज्यादा गई गुजरी हो गई थी वजसे चलने के वलए दो दो
बैसाल्कखयोों का भी मोहताज होना पडता है । अजय वसोंह की समझ
में नहीों आ रहा था वक एक ही वदन में ये क्या हो गया है ?
शहर के सारे पुवलस वडपाटफ मेंट का क्योों तबादला कर वदया
गया?? और....और ऐसा क्या है वजसके चलते प्रदे श के सीएम
तक को अपने हाॅथ मजब़ूरीिश खडे कर दे ने पडे ? लाख वसर
खपाने के बाद भी ये सब बातें अजय वसोंह की समझ में नहीों आ
रही थीों। िह इतना ज्यादा परे शान ि हताश हो गया था वक उसे
हर तरफ वसफफ और वसफफ अिेरा ही अिेरा वदखाई दे ने लगा था।
ऐसा लगता था वक िह चक्कर खा कर अभी वगर जाएगा।
हलाॅवक िो ये सब अपने चेहरे पर से जावहर नहीों होने दे ना
चाहता था वकन्तु िह इसका क्या करे वक लाख कोवशशोों के बाद
भी वदलो वदमाग़ में ताण्डि कर रहे इस त़ूफान को िह अपने
चेहरे पर उभर आने से रोोंक नहीों पा रहा था।

इों िेक्टर ररतु पुवलस की िद़ी पहने कुछ ऐसे पोज में खडी थी
वक अजय वसोंह को िह वकसी यमराज की तरह नजर आ रही
थी।

111
अजय वसोंह अपनी ही बेटी से बुरी तरह भयभीत हुआ जा रहा
था। बार बार िह अपने रुमाल से चेहरे पर उभर आते पसीने को
पोछ रहा था।

"मैं आप सबको ये बताना चाहती हूॅ वक फैक्टरी की इसके


पहले हुई छानबीन से मेरा कोई मतलब नहीों है ।" ररतु ने अजय
वसोंह के साथ आए बाॅकी सब पर एक एक नजर डालने के बाद
अजय वसोंह से कहा__"अब क्योोंवक ये केस वफर से मेरे द्वारा
ररओपेन हुआ है तो इस केस की छानबीन मैं शुरू से और नए
वसरे से ही करूॅगी। उम्मीद करती हूॅ वक आपको इस सबसे
कोई ऐतराज नहीों होगा बल्कि इस छानबीन में आप खुद पुवलस
का प़ूरा प़ूरा सहयोग दें गे।"

"तुमने बेकार ही इस केस को ररओपेन वकया है बेटी।" अजय


वसोंह ने नपे तुले भाि से कहा__"मैं तो कहता हूॅ वक अभी भी
कुछ नहीों हुआ है , अभी भी इस केस की फाइल बोंद की जा
सकती है । कोई जरूरत नहीों है इस सबकी, क्योोंवक इससे िो

112
सब कुछ मुझे िापस तो वमलने से रहा जो जल कर खाक़ हो
गया है ।"

"अब ये केस ररओपेन हो चुका है ठाकुर साहब।" ररतु ने अपने


ही बाप को ठाकुर साहब कह कर सोंबोवित वकया। अजय वसोंह
इस बात से हैरान रह गया, जबवक ररतु कह रही थी__"और
जब तक इस केस से सोंबोंवित कोई ररजल्ट सामने नहीों आता तब
तक ये केस क्लोज नहीों हो सकता। केस को क्लोज करना मेरे
बस में नहीों है बल्कि ये ऊपर से ही आदे श है वक केस को अब
अच्छी तरह से ही वकसी नतीजे के साथ बोंद वकया जाए।"

"ठीक है ररतु बेटी।" सहसा प्रवतमा ने कहा__"तुम अपनी ड्य़ूटी


वनभाओ, हम भी दे खना चाहते हैं वक इस सबके पीछे वकसका
हाॅथ है ?"

"मुआफ़ कीवजये , इस िक्त मैं आपकी बेटी नहीों बल्कि एक


पुवलस आॅवफसर हूॅ और अपनी ड्य़ूटी कर रही हूॅ।" ररतु ने
सपाट लहजे से कहा__"एनीिे, तो शुरू करें ठाकुर साहब??"

ररतु की बात से जहाॅ प्रवतमा को एक झटका सा लगा िहीों


अजय वसोंह की घबराहट बढने लगी थी।

"मेरा सबसे पहला सिाल।" ररतु ने कहा__"फैक्टरी में आग


लगने की स़ूचना सबसे पहले आपको कैसे हुई?"

अजय वसोंह क्योोंवक समझ चुका था इस वलए अब उसने भी अपने


आपको इस केस से सोंबोंवित वकसी भी प्रकार की छानबीन या
तहकीकात के वलए तैयार कर वलया।

"फैक्टरी में आग लगने की स़ूचना उस रात लगभग तीन बजे मेरे

113
पीए के द्वारा मुझे वमली।" अजय वसोंह ने कहा__"मैं अपनी पत्नी
के साथ अपने कमरे में उस िक्त सोया हुआ था, जब मेरे पीए
का फोन आया था। उसने ही बताया वक हमारी फैक्टरी में आग
लग गई है ।"

"इसके बाद आपने क्या वकया?" ररत़ू ने प़ूछा।


"मैने िही वकया।" अजय वसोंह कह रहा था__"जो हर इों सान इन
हालातोों में करता है । अपने पीए के द्वारा फोन पर वमली स़ूचना
के तुरोंत बाद ही मैं िहाों से शहर के वलए वनकल पडा। जब
सुबह के प्रहर मैं यहाॅ पहुॅचा तो सब कुछ तबाह हो चुका
था।"

"फैक्टरी पहुॅच कर आपने क्या ऐक्शन वलया?" ररत़ू ने प़ूछा।


"वकसी प्रकार का ऐक्शन लेने की हालत ही नहीों थी उस िक्त
मेरी।" अजय वसोंह बोला__"अपनी आॅखोों के सामने अपना सब
कुछ खाक़ में वमल गया दे ख होश ही नहीों था मुझे। कुछ समझ
में ही नहीों आ रहा था वक क्या करूॅ क्या न करूॅ? िो तो
मेरे पीए ने ही बताया वक फैक्टरी में आग लगने के बाद उसने
इस सोंबोंि में क्या क्या वकया है ?"

"मैं आपके पीए का बयान लेना चाहती हूॅ।" ररत़ू ने


कहा__"आप उन्हें बुला दीवजए प्लीज।"

अजय वसोंह को बुलाने की जरूरत ही नहीों पडी क्योों पीए िहीों


था, और पीए ही बस क्योों बल्कि फैक्टरी के स्टाफ का लगभग
हर ब्यल्कक्त िहाॅ मौज़ूद था। सबको पता हो चुका था वक फैक्टरी
की दु बारा छानबीन हो रही है इस वलए हर ब्यल्कक्त उत्सुकतािश
िहाॅ मौज़ूद था।

114
अजय वसोंह ने इशारे से पीए को बुलाया। िह तुरोंत ही हावजर हो
गया।

"आपका नाम?" ररतु ने पीए के हावजर होते ही सिाल वकया।


"जी मेरा नाम दीनदयाल शमाफ है।" पीए ने बताया।

"ठाकुर साहब की फैक्टरी में कब से ऐज अ पीए काम कर रहे


हैं ?" ररत़ू ने प़ूछा।

"जी लगभग छः साल हो गए।" दीन दयाल ने कहा।


"छः साल काफी लम्बा समय होता है ये तो आप भी जानते
होोंगे?" ररतु ने अजीब भाि से कहा__"कहने का मतलब ये वक
इन छः सालो में आपको अपने मावलक और उनके काम के बारे
अच्छी तरह जानकारी होगी।"

"जी शायद।" दीनदयाल ने अवनवश्चत भाि से कहा__"शायद शब्द


इस वलए कहा वक छः साल अपने मावलक के नजदीक रह कर
भी ये बात मैं दािे के साथ नहीों कह सकता वक मैं उनके और
उनके काम के बारे में प़ूरी तरह ही जानता हूॅ। बहुत सी बातें
ऐसी होती हैं जो कोई भी मावलक अपने वकसी नौकर को बताना
जरूरी नहीों समझता।"

"आपने वबलकुल ठीक कहा।" ररत़ू ने कहा__"खैर, तो अब


आप बताइये वक उस रात क्या क्या और वकस तरह हुआ?"

"ज जी क्या मतलब?" दीनदयाल चकराया।


"मेरे कहने का मतलब है वक वजस रात फैक्टरी में आग लगी
थी।" ररत़ू ने कहा__"उस रात की सारी बातें आप विस्ार से
बताइए।"

115
दीनदयाल ने कुछ पल सोचा वफर िो सब बताता चला गया जो
उस रात हुआ था। उसने िही सब बताया जो हिेली में अभय
वसोंह से प़ूछने पर अजय वसोंह ने उसे बताया था और उिर मुम्बई
में वनवि ने सबको अखबार के माध्यम से बताया था। (दोस्ो,
आप सबको भी पता ही होगा)

सब कुछ सुनने के बाद ररत़ू ने गहरी साॅस ली और िहीों पर


चहलकदमीों करते हुए कहा__"तो आपकी और पुवलस की
छानबीन के बाद तैयार की गई ररपोटफ के अनुसार फैक्टरी में
आग लगने की मुख्य िजह वसफफ साटफ शवकफट ही है ?"

"जी पुवलस ने तो अपनी यही ररपोटफ छानबीन के बाद तैयार


करके दी थी।" दीनदयाल ने कहा।

"क्या आपने इस बात पर विचार नहीों वकया या वफर क्या आपने


इस नजररये से नहीों सोचा वक फैक्टरी में आग वकसी के द्वारा
लगाई गई भी हो सकती है ?" ररत़ू ने प़ूछा था।

"इस बारे में न सोचने की भी िजह थी इों िेक्टर।" सहसा अजय


वसोंह ने कमान सम्हालते हुए कहा__"दरअसल वजस वदन फैक्टरी
में आग लगी थी उस वदन सभी िकफसफ के वलए अिकाश था। इस
वलए उस रात फैक्टरी में कोई था ही नहीों। और जब कोई था ही
नहीों तो भला इस बारें में कैसे कह सकते थे वकसी अन्य के
द्वारा फैक्टरी में आग लगी?"

"चवलए मान वलया वक उस रात अिकाश के चलते कोई भी


िकफर फैक्टरी में नहीों था।" ररत़ू ने कहा__"वकन्तु सिाल ये है
वक अिकाश के चलते क्या कोई भी फैक्टरी में नहीों था? जहाॅ

116
तक मुझे पता है तो इतनी बडी फैक्टरी में अिकाश के चलते
हर कोई फैक्टरी से नदारद नहीों हो सकता। मतलब फैक्टरी की
सुरक्षा ब्यिथथा के वलए िहाॅ गाडटफ स मौज़ूद होते हैं और बहुत
मुमवकन है वक फैक्टरी के स्टाफ में से भी कोई न कोई फैक्टरी
में मौज़ूद रहता है।"

"वबलकुल इों िेक्टर।" अजय वसोंह ने कहा__"हप्ते में एक वदन


फैक्टरी बोंद रहती है इस वलए फैक्टरी में काम करने िाले
मजद़ू रोों को अिकाश दे वदया जाता है । लेवकन उस अिकाश िाले
वदन ऐसा नहीों होता वक प़ूरी फैक्टरी सुनसान हो जाती है , बल्कि
फैक्टरी की दे ख रे ख और उसकी सुरक्षा ब्यिथथा के वलए िहाॅ
पर चौबीसोों घोंटे वसक्योररटी गाडटफ स रहते हैं तथा फैक्टरी स्टाफ के
भी कई मेंबर फैक्टरी में रहते हैं ।" इतना कहने के बाद अजय
वसोंह एक पल रुका वफर कुछ सोच कर बोला__"अगर तुम्हारा
खयाल ये है इों िेक्टर वक इन्हीों सब लोगोों में से ही वकसी ने
फैक्टरी में आग लगाई हो सकती है तो तुम्हारा खयाल ग़लत है ।
क्योवक ये सब मेरे सबसे ज्यादा फरोसेमोंद आदमी हैं वजनकी
ईमानदारी पर मुझे लेस मात्र भी शक नहीों है ।"

"अपने आदवमयोों पर भरोसा करना बहुत अच्छी बात है ठाकुर


साहब।" ररत़ू ने कहा__"लेवकन अोंिा विश्वास करना कोई
सबझदारी नहीों है । खैर, तो आपके कहने का मतलब है वक
फैक्टरी से ररलेटेड वकसी भी ब्यल्कक्त ने फैक्टरी में आग नहीों
लगाई हो सकती?"

"वबलकुल।" अजय वसोंह ने जोर दे कर कहा__"इन पर मेरा ये


भरोसा ही है िनाफ अगर भरोसा नहीों होता तो मैं पहले ही इन
सब पर इस सबके वलए शक जावहर करता और तुम्हारे पुवलस

117
वडपाटफ मेंट से इस बारे में तहकीकात करने की बात कहता। और
एक पल के वलए अगर मैं ये मान भी ल़ूॅ वक मेरे आदवमयोों में
से ही वकसी ने ये काम वकया हो सकता है तब भी ये सावबत
नहीों हो सकता। क्योवक अिकाश िाले वदन फैक्टरी में ताला लगा
होता है और बाकी के फैक्टरी स्टाफ मेंबर फैक्टरी से अलग
अपनी अपनी डे स्क या केवबन में होते हैं । यहाॅ पर अगर ये
तकफ वदया जाए वक अिकाश से पहले ही या फैक्टरी में ताला
लगने से पहले ही वकसी ने ऐसा कुछ कर वदया हो वजससे
फैक्टरी के अोंदर आग लग जाए तब भी ये तकफसोंगत नहीों है ।
क्योवक ये तो हर स्टाफ मेंबर जानता है वक फैक्टरी में हुए वकसी
भी हादसे से सबसे पहले उन्हीों पर ही शक वकया जाएगा, उस
स़ूरत में उन पर कडी कायफिाही भी की जाएगी और अोंततः िो
पकडे ही जाएॅगे। इस वलए कोई भी स्टाफ मेंबर जानब़ूझ कर
अपने ही पैर में कुल्हाडी मार लेने िाला काम करे गा ही नहीों।"

"आपके तकफ अपनी जगह वबलकुल ठीक हैं ठाकुर साहब।" ररतु
ने एक हाॅथ में पकडे हुए पुवलवसया रुल को अपने द़ू सरे हाॅथ
की हथेली पर हिे से मारते हुए कहा__"अब इसी बात को
अपने फैक्टरी स्टाफ के नजररये से दे ख कर जरा ग़ौर कीवजए।
कहने का मतलब ये वक मान लीवजए वक मैं ही िो फैक्टरी की
स्टाफ मेंबर हूॅ वजसने फैक्टरी में आग लगाई है और मैं ये बात
अच्छी तरह जानती हूॅ वक मेरे द्वारा वकए गए काण्ड से आपका
शक सबसे पहले मुझ पर ही जाएगा जो वक स्वाभाविक ही है ,
इस वलए आपके मुतावबक मैं ये काम नहीों कर सकती, क्योोंवक
सबसे पहले मुझ पर ही शक जाने से मैं फस जाऊगी, ये आप
सोचते हैं। जबवक मैंने आपकी सोच के उलट ये काम कर ही
वदया है और आप सोचते रहें वक मैंने ये काम नहीों वकया हो
सकता।"

118
"वदमाग़ तो तुमने कावबले -तारीफ़ लगाया है इों िेक्टर।" अजय
वसोंह ने मुस्कुराकर कहा__"यकीनन तुमने दोनो पहलुओों के बारे
में बारीकी से सोच कर तकफसोंगत विचार प्रकट वकया है लेवकन ये
एक सोंभािना मात्र ही है , कोई जरूरी नहीों वक इसमें कोई
सच्चाई ही हो।"

"सच्चाई का ही तो पता लगाना है ठाकुर साहब।" ररतु ने


कहा__"और उसके वलए हर वकसी के बारे में दोनोों पहलुओों पर
सोचना ही पडे गा। खैर, मुझे ऐसा लगता है वक आप ही इस
प्रकार से सोच विचार नहीों करना चाहते, जबवक ऐसा होना नहीों
चावहए। ये सोचने िाली बात है ।"

अजय वसोंह ये सुन कर एक पल के वलए गडबडा सा गया। वफर


तुरोंत ही सहल कर बोला__"ऐसा कुछ नहीों है इों िेक्टर। मैं तो
बस इस वलए नहीों सोच विचार कर रहा क्योोंवक मेरे वहसाब से
इस सबका ररजल्ट पहले वनकाला जा चुका है ।"

अजय वसोंह की इस बात से ररत़ू ने कुछ न कहा बल्कि बडे ग़ौर


से अपने वपता के चेहरे की तरफ दे खती रही। ऐसा लगा जैसे वक
िह अपने वपता के चेहरे पर उभर रहे कई तरह के भािोों को
समझने की कोवशश कर रही हो। िहीों अजय वसोंह ने जब अपनी
बेटी को अपनी तरफ इस तरह गौर से दे खते हुए दे खा तो उसे
बडा अजीब सा महस़ूस हुआ। उससे नजरें वमलाने में उसकी
वहम्मत जिाब दे ने लगी। उसे लगा कहीों ऐसा तो नहीों वक उसकी
बेटी उसके चेहरे के भािोों को पढ कर ही सारा सच जान गई
हो। इस एहसास ने उसे अोंदर तक कपकपा कर रख वदया। बडी
मुल्किल से उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__"क्या हुआ
इों िेक्टर, इस तरह क्योों दे ख रही हो मुझे? अपनी कायफिाही को
आगे बढाओ।"

119
"दे ख रही हूॅ वक आपके चेहरे पर उभरते हुए अनवगनत भाि
वकस बात की गिाही दे रहे हैं ?" ररत़ू ने अजीब से भाि से
कहा।
"क क्या मतलब??" अजय वसोंह बुरी तरह चौोंका था।

"जाने दीवजए।" ररत़ू ने कहा__"दे ल्कखए फारें वसक वडपाटफ मेंट िाले
भी आ गए। आइए फैक्टरी के अोंदर चलते हैं ।"

अजय वसोंह एकाएक अोंदर ही अोंदर बुरी तरह घबरा सा गया।


उसे तो लगने लगा था वक बातें अब तक उसके पक्ष में ही हैं
और इतनी प़ूछताॅछ के बाद कायफिाही बोंद कर दी जाएगी।
लेवकन उसे अब महस़ूस हुआ वक ये सब तो महज एक
औपचाररक प़ूछताॅछ थी असली छानबीन तो अब शुरू होगी।

फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट की टीम आ चुकी थी तथा खोजी दस्ा भी।
गावडयोों से वनकल कर सब बाहर आ गए। अजय वसोंह उस िक्त
और बुरी तरह चौोंका जब गावडयोों के अोंदर से कुछ कुिे बाहर
वनकले। अजय वसोंह को समझते दे र न लगी वक ये कुिे इस
सबकी छानबीन मे उन सबकी सहायता के वलए ही हैं ।

पल भर में ही अजय वसोंह की हालत खराब हो गई। इस सबके


बारे में उसने ख्वाब तक में न सोचा था। आज पहली बार उसे
लगा वक अपनी बेटी ररत़ू को पैदा करके उसने बहुत बडी भ़ूल
की थी।

120
अपडे ट...........《 17 》

अब तक......

"दे ख रही हूॅ कक आपके चे हरे पर उभरते हुए अनकगनत भाि ककस बात
की गिाही दे रहे हैं?" ररतू ने अजीब से भाि से कहा।
"क क्ा मतलब??" अजय कसं ह बु री तरह चौ ंका था।

"जाने दीकजए।" ररतू ने कहा__"दे ल्कखए िारें कसक कडपाटग मेंट िाले भी आ
गए। आइए िैक्टरी के अं दर चलते हैं।"

अजय कसं ह एकाएक अं दर ही अं दर बु री तरह घबरा सा गया। उसे तो


लगने लगा था कक बातें अब तक उसके पक्ष में ही हैं और इतनी पू छताॅछ
के बाद कायगिाही बं द कर दी जाएगी। ले ककन उसे अब महसू स हुआ कक ये
सब तो महज एक औपचाररक पू छताॅछ थी असली छानबीन तो अब शु रू
होगी।

िाॅरें कसक कडपाटग मेंट की टीम आ चु की थी तथा खोजी दस्ता भी। गाकडयों
से कनकल कर सब बाहर आ गए। अजय कसं ह उस िक्त और बु री तरह
चौ ंका जब गाकडयों के अं दर से कुछ कुिे बाहर कनकले । अजय कसं ह को
समझते दे र न लगी कक ये कुिे इस सबकी छानबीन मे उन सबकी
सहायता के कलए ही हैं।

पल भर में ही अजय कसं ह की हालत खराब हो गई। इस सबके बारे में


उसने ख्वाब तक में न सोचा था। आज पहली बार उसे लगा कक अपनी
बे टी ररतू को पै दा करके उसने बहुत बडी भू ल की थी।

अब आगे......

इों िेक्टर ररत़ू के वनदे शानुसार पुवलस और बाॅकी विभाग की


टीम्स फैक्टरी की तरफ बढ चली, और साथ ही बढ चली थी
अजय वसोंह की हृदय गवत। हलाॅवक उसके साथ आए बाॅकी
सब नामफल थे। प्रवतमा और अभय के चेहरे पर गोंभीरता के भाि
जरूर थे वकन्तु ये दोनो अजय वसोंह की तरह अपनी हालत से

121
लाचार या परे शान नहीों थे।

छानबीन करने आई बाॅकी सब टीमोों के पीछे पीछे अजय,


प्रवतमा ि अभय भी चल रहे थे वकन्तु अजय वसोंह के कदम बडी
मुल्किल से उठ रहे थे।

"सब ठीक हो जाएगा अजय।" सहसा प्रवतमा ने अजय की हालत


दे ख उसे वदलाशा दे ने की गरज से कहा__"अब तो हमारी बेटी
ने खुद ही इस केस को अपने हाॅथ में ले वलया है । मुझे प़ूरा
यकीन है वक िो सब कुछ पता कर लेगी। हमारी फैक्टरी में
आग लगाने के पीछे तथा हमें बरबाद करने के पीछे वजस वकसी
का भी हाॅथ होगा िह उसे जरूर पकड लेगी। तुम बस खुद
को सम्हालो और अपनी ऐसी शकल न बनाए रखो।"

"भाभी वबलकुल ठीक कह रही हैं बडे भइया।" अभय ने


कहा__"आपको अब इस तरह परे शान होने की कोई जरूरत
नहीों है। यकीनन ररत़ू बेटी के चलते सब कुछ ठीक हो जाएगा।
मुझे अपनी भतीजी पर गिफ है वक उसने पुवलस फोसफ ज्वाइन
वकया और ज्वाइन करते ही उसे अपनी ही फैक्टरी में लगी आग
का ये केस वमल गया। मुझे उसकी कावबवलयत पर प़ूरा भरोसा
है । आप बेवफक्र हो जाइए भइया...इिरीवथोंग विल िी
आलराइट।"

अजय वसोंह इन दोनो को भला क्या कहता??? िह भला क्या


कहता वक िह वकस बात से परे शान है ? िह भला क्या कहता
वक वजस भतीजी पर िह गिफ कर रहा है उसकी उसी भतीजी
की िजह से आज िह पल पल इस हालत से मरा जा रहा है ।
हालात ने वकतना बेबस ि लाचार बना वदया था उसे वक सक्षम
होने के बािज़ूद भी िह कुछ नहीों कर सकता था। वहन्स्द़ू िमफ के

122
वजतने भी दे िी दे िताओों का उसे पता था उसने उन सबको मन
ही मन याद करके उनसे ये फररयाद कर डाली थी वक ये केस
तथा ये छानबीन बस यहीों पर रुक जाए मगर ऐसा होता उसे
अब तक नजर नहीों आया था। इतना बेबस तथा इतना परे शान
आज से पहले िह अपनी वजन्दगी में कभी न हुआ था। उसने तो
ये तक सोच वलया था वक अगर ये छानबीन रुक जाए तथा ये
केस बोंद हो जाए तो िह अब से इस गैर काऩूनी काम को करने
से हमेशा के वलए तौबा कर लेगा। मगर ये भी सच है न दोस्ो
वक जब हम वकसी चीज के बीज बो चुके होते हैं तो वफर बाद
में हमें उस बीज के द्वारा उत्पन्न हुई फसल को काटना भी पडता
है या उस बीज से उग आए फल को खाना भी पडता है। यही
वनयवत बन गई थी अजय वसोंह की, मगर अब िह अपने ही द्वारा
बोये हुए बीज से उत्पन्न हुए फल को खाना नहीों चाहता था।

उिर फैक्टरी के इों टरी गेट पर लगे ताले को पुवलस के एक


हिलदार ने अपनी जेब से चाभी वनकाल कर खोला। ताला खोलने
के बाद भारी भरकम लोहे के गेट को दो आदमी की मदद से
खोला गया। गेट के खुलते ही सब अोंदर की तरफ बढ गए।
पुवलस के साथ आए खोजी कुिे भी एक पुवलस िाले के हाथ में
थमी जोंजीर के सहारे फैक्टरी के अोंदर चले गए। ये वलखने की
आिश्यकता नहीों वक इन सबके पीछे अजय, प्रवतमा ि अभय भी
अोंदर चले गए।

ये एक बहुत बडा फामफ हाउस हुआ करता था पहले। अजय वसोंह


ने जब इस वबजनेस की शुरुआत की थी तो वकसी द़ू सरे सेठ की
िर्ों से बोंद कपडा फैक्टरी को सस्े दामोों में खरीदा था। (ये
सब बातें कहानी के पहले या द़ू सरे अपडे ट में बताई जा चुकी
हैं ) उस समय ये कपडा फैक्टरी शहर के बीच ही बनी हुई थी।
कुछ सालोों बाद जब अजय वसोंह की इस वबजनेस से अच्छे खासे

123
मुनाफे के रूप में तरक्की हुई तो उसने इस फैक्टरी को नये
वसरे से तथा नई मशीनोों के साथ शुरू करने का विचार वकया।
अजय वसोंह क्योोंवक बहुत ही लालची ि महत्वाकाोंक्षी आदमी था,
और बढती आय के साथ उसकी बुरी आदतोों में भी इजाफा हुआ
इस वलए पैसे के वलए िह उन रास्ोों को भी अपना वलया वजसे
गैर काऩूनी कहा जाता है । इस रास्े में उसके कई अपने गैर
काऩूनी लोग भी थे। वकन्तु गैर काऩूनी काम में ररि बहुत था
तथा शहर के बीच उस छोटी सी फैक्टरी में इस काम को
अोंजाम दे ने में आसानी नहीों होती थी। कभी भी लोगोों के बीच
खुद की असवलयत सामने आ जाने का खतरा बना रहता था। इस
वलए उसने बहुत सोच समझ कर शहर से बाहर एक बहुत बडी
जमीन खरीदी तथा िहाॅ पर इसने नये तरीके से फैक्टरी का
वनमाफ ण वकया। फैक्टरी काफी बडी थी तथा उसके नीचे एक बडा
बेसमेंट भी बनिाया गया था जो वसफफ गैर काऩूनी चीजोों के
उपयोग में ही आता था। यहाॅ पर उसे वकसी चीज का खतरा
नहीों था। फैक्टरी में मजद़ू रोों को हप्ते में एक वदन अिकाश दे ने
के पीछे भी उसका एक मकसद था। िो मकसद ये था वक
अिकाश िाले वदन ही िह स्वतोंत्र रूप से अपने गैर काऩूनी िोंिे
को चलाता था। वजसके बारे में कभी वकसी को भनक तक न
लगी थी। फैक्टरी को बहुत सोच समझ कर ही बनिाया गया था।
फैक्टरी के अोंदर वसफफ मशीनें थी जहाॅ पर मजद़ू र काम करते
थे, जबवक फैक्टरी के आला अफसर या बाॅकी स्टाफ फैक्टरी
से द़ू र कुछ फाॅसले पर बने एक बडे से आवफस में होते थे।

अजय वसोंह ने कदावचत ख़्वाब में भी न सोचा था वक कभी ऐसा


भी समय उसके जीिन में आ जाएगा जब उसकी इस विसाल
फैक्टरी में आग लग जाएगी और इस सबकी छानबीन खुद
उसकी ही बेटी पुवलस इों िेक्टर बन कर करे गी। काऩून का डर
उसे कभी नहीों था क्योोंवक उसने काऩून के नुमाइों दोों को अपने

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िश में कर वलया था। हर महीने िह अच्छी खासी रकम पुवलस
के आला अफसरोों तक पहुॅचिा दे ता था। उसके मोंत्री तक से
अच्छे सोंबोंि थे इस वलए उसे इस िोंिे में वकसी का कोई डर
नहीों था। मगर होनी को कौन टाल सकता था भला? होनी तो
अटल होती है , वबना बताए तथा वबना वकसी स़ूचना के िो अपना
काम कर डालती है। यही अजय वसोंह के साथ हुआ था।

खैर ये सब तो बीती बातें हैं दोस्ो, आइए हम सब ितफमान की


तरफ चलते हैं और दे खते हैं वक आगे क्या हो रहा है ?

फैक्टरी के अोंदर का नजारा ही कुछ अलग था। जैसा वक आप


सब जानते हैं वक फैक्टरी में भीर्ण आग लगी हुई थी वजसमें
सब कुछ जल कर खाक़ में वमल चुका था। अोंदर हर चीज
कोयला बन चुकी थी। हर जगह पानी में सनी हुई राख तथा ट़ू टे
हुए बहुत से टु कडे पडे थे। कुछ पल के वलए तो ररत़ू को भी
समझ न आया वक इस राख में िह क्या तलाश करे ? वकन्तु कुछ
तो करना ही था, केस ररओपेन हुआ था। इस वलए वबना वकसी
नतीजे के िह बोंद नहीों हो सकता था। ऊपर से आदे श था वक
छानबीन अच्छे से होनी चावहए।

पुवलस के खोजी कुिे तथा फाॅरें वसक वडपाटफ मेंट के लोग अपने
अपने काम में लग गए। खुद ररत़ू भी िहाॅ की हर चीज को
बारीकी से दे ख दे ख कर जाॅच करने लगी। जबवक इिर अजय,
प्रवतमा ि अभय चुपचाप उन सबकी कायफप्रणाली को दे खते रहे ।

बडी बडी मशीनोों पर जले हुए कपडोों की राख तथा टु कडे वलपटे
हुए थे। कहीों कहीों पर वपघले हुए शीशे एिों प्लाल्कस्टक नजर आ
रहे थे। अजय वसोंह ये सब होने के बाद पहली बार ये सब ध्यान
से दे ख रहा था तथा साथ ही अोंदर ही अोंदर दु खी भी हो रहा

125
था। कुछ भी हो आल्कखर उसकी मेहनत का पैसा था िह, वफर
चाहे गैर काऩूनी िाला हो या वफर सच्चाई िाला।

"मैडम, यहाॅ पर कुछ है ।" सहसा एक हिलदार ररत़ू को द़ू र


से ही वचल्लाते हुए कहा।

ररतु के साथ साथ सबके कान खडे हो गए। अजय वसोंह की बढी
हुई िडकन मानोों उसे रुकती हुई प्रतीत हुई। चेहरे पर तुरोंत ही
ढे र सारा पसीना उभर आया, तथा चेहरा भय ि घबराहट की
िजह से पीला पडता चला गया। उसने जल्दी से खुद को
सम्हाला। अपने दावहने हाॅथ में वलए रुमाल से उसने तुरोंत ही
अपने चेहरे का पसीना पोोंछा और सरसरी तौर पर इिर उिर
दे खा। प्रवतमा उसे दे ख कर तुरोंत ही उसके करीब गई तथा हौले
से प़ूछा__"क्या बात है अजय, तुम इतना परे शान और घबराए
हुए क्योों लग रहे हो?"

"म मैं क कहाॅ परे शान हूॅ?" अजय वसोंह हकलाते हुए
बोला__"मैं ठीक हूॅ? ऐसा क्योों लगता है तुम्हें वक मैं परे शान ि
घबराया हुआ हूॅ?"

प्रवतमा ने उसे बडे ग़ौर से दे खा, वफर कहा__"मुझे ऐसा क्योों


लगता है अजय वक जैसे तुम मुझसे कुछ छु पा रहे हो? या वफर
ऐसा वक तुम वकसी बात से इस वलए घबरा रहे हो वक वकसी को
िो बात पता न चल जाए।"

अजय वसोंह हडबडा गया, आॅखें फाडे प्रवतमा को दे खने लगा।


मन में विचार उभरा 'बेटी क्या कम थी जो अब उसकी माॅ भी
मेरी जान लेने पर उतारू हो गई है'।

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"ऐसे क्योों दे ख रहे हो मुझे?" प्रवतमा ने कहा__"क्या मैंने कुछ
ग़लत कह वदया है ?"
"दे खो प्रवतमा।" अजय वसोंह ने खुद को सम्हाल कर कहा__"मैं
इस िक्त वकसी से कुछ नहीों कहना चाहता, इस वलए बेहतर
होगा वक तुम भी मुझसे कोई सिाल जिाब न करो।"

"मैं तुम्हारी पत्नी हूॅ अजय।" प्रवतमा ने एकाएक अिीरता से


कहा__"तुम्हें इस तरह परे शानी की हालत में नहीों दे ख सकती।
तुम जानते हो वक हर काम में मैं तुम्हारे साथ हूॅ, वफर चाहे िो
काम कैसा भी क्योों न हो। तुम्हारी खुशी के वलए हर िो काम
कर जाती हूॅ वजसे करने का तुम मुझसे कहते हो। मैं ये भी
जानती हूॅ वक तुम मुझसे कोई भी बात नहीों छु पाते वफर ऐसी
क्या बात हो गई है वजसे तुम मुझसे छु पा कर खुद अोंदर ही
अोंदर घुटे जा रहे हो?"

"ऐसी कोई बात नहीों है ।" अजय वसोंह ये सोच कर घबराया जा


रहा था वक कहीों कोई ये सब बातें सुन न ले, इस वलए िह
बोला__"अब चुप हो जाओ प्लीज।"

"अगर ऐसी कोई बात नहीों है तो यही बात तुम मेरे वसर पर
हाॅथ रख कर कहो।" प्रवतमा ने कहने साथ ही अजय वसोंह का
एक हाॅथ पकड कर अपने वसर पर रख वलया।

"ये क्या पागलपन है यार?" अजय वसोंह ने तुरोंत ही प्रवतमा के


वसर से अपना हाॅथ एक झटके में खीोंच कर थोडी ऊची आिाज
में कहा था। उसकी आिाज सुन कर अभय का ध्यान उनकी
तरफ गया तो िह सीघ्र ही उनके पास आकर ब्याकुलता से
बोला__"क्या हुआ भइया? कुछ परे शानी है क्या?"

127
"न नहीों छोटे ।" अजय वसोंह मन ही मन झुोंझला उठा था वकन्तु
प्रत्यक्ष मे उसने यही कहा__"ऐसी कोई बात नहीों है ।"

अभय ने उसके चेहरे की तरफ कुछ पल दे खा वफर िह िापस


अपनी जगह पर आकर खडा हो गया। जबवक अभय के जाते ही
अजय वसोंह ने प्रवतमा की तरफ दे ख कर कहा__"फार गाड
शेक..अब कुछ मत बोलना।"

"ये तुम वबलकुल भी अच्छा नहीों कर रहे हो अजय।" प्रवतमा ने


कहा__"अगर कोई बात है तो तुम्हें मुझसे बेवझझक बता दे ना
चावहए, हो सकता है वक मैं तुम्हारी कोई मदद कर सक़ूॅ।"

"अगर कोई बात है भी तो।" अजय वसोंह ने गहरी साॅस


ली__"तो इस िक्त नहीों बता सकता, बट वबलीि मी तुम्हें सब
कुछ जरूर बताऊगा। अब जाओ यहाॅ से और मुझे अकेला मेरे
हाल पर छोोंड दो।"

प्रवतमा ने कुछ दे र अजय की आों खोों में दे खा और वफर पलट


कर अभय के पास आ गई। उसके मन में हजारोों विचार वकसी
वबच्छ़ू की तरह डों क मार मार कर उछल क़ूद कर रहे थे।

उिर हिलदार के वचल्लाने पर ररत़ू तेजी से उसके करीब


पहुॅची। ररत़ू के आते ही हिलदार ने सामने की तरफ इशारा
वकया। ररत़ू ने हिलदार की बताई हुई जगह को दे खा तो चौोंक
गई। दरअसल वपघले हुए प्लाल्कस्टक के नीचे कोई चीज थी लाल
रों ग की। ररत़ू फसफ पर बैठ कर उसे ध्यान से दे खने लगी। अपने
हाॅथोों में ग्लव्स पहन कर उसने उस लाल रों ग की चीज को उठा
वलया। अभी िह उसे ध्यान से दे ख ही रही थी वक फाॅरें वसक

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टीम का एक ब्यल्कक्त उसके नजदीक आकर बोला__"मैडम,
यहाॅ पर एक बेसमेंट भी है ।"

"क्या??" ररत़ू चौोंकी।


"यस मैडम।" उस ब्यल्कक्त ने कहा__"खोजी कुिे के द्वारा पता
चला है ।"

" चलो वदखाओ।" ररत़ू तुरोंत ही उठकर चल दी। कुछ दे र में ही


िो ब्यल्कक्त ररत़ू को लेकर उस जगह पहुॅचा। ररत़ू ने दे खा
सचमुच िो तहखाना ही था। वकन्तु िह ये दे ख कर चौोंकी वक िह
अस् ब्यस् हुआ लग रहा था जैसे वकसी चीज से उसे उडाया
गया हो। उसे तुरोंत ही अपने हाॅथ में ली हुई चीज का खयाल
आया। उसने अपने हाॅथ में ली हुई चीज को उस ब्यल्कक्त को
वदखाकर प़ूछा__"इस चीज को दे खो और बताओ ये क्या है ?"

"अजयययययय।" अचानक ही एक जोरदार चीख वफजा को


चीरती हुई सबके कानोों से टकराई।

चीख बाहर से आई थी, ररत़ू के साथ साथ सबने सुना वकन्तु ररत़ू
बाहर की तरफ ये कह कर दौड पडी वक__"माॅम।"

यकीनन ये चीख प्रवतमा की ही थी। ररत़ू ने बाहर आकर दे खा


उसकी माॅ और अभय चाचा उसके डै ड के पास अजीब हालत
में बैठे थे। अजय वसोंह जमीन में पडा था। अभय ने तुरोंत ही उसे
अपनी गोोंद मे वलटा वलया था।

"माॅम।" ररत़ू करीब पहुॅचते ही बोली__"ये क्या हुआ? डै ड


इस तरह जमीन में कैसे?"
"पता नहीों बेटा अचानक ही खडे खडे िडाम से वगर गए।"

129
प्रवतमा ने रोते हुए कहा__"शायद फैक्टरी की ये हालत दे ख इन्हें
गहरा सदमा लगा है वजसके चलते ये चक्कर खाकर वगर गए
हैं ।"

अजय वसोंह पानी से सनी राख पर वगरा था। जमीन में हर तरफ
छोटे बडे पत्थर भी पडे थे जो अजय वसोंह के वसर पर लगे थे
और उसके वसर से ख़ून बहने लगा था।

"इन्हें हाल्किटल लेकर जाना पडे गा ररत़ू बेटा।" अभय ने कहने के


साथ ही अजय वसोंह को दोनो हाथोों से पकड कर उठा वलया
और तेज कदमोों के साथ लोहें िाले गेट से बाहर वनकल गया।

"मैं भी उनके साथ हाल्किटल जा रही हूों बेटी।" प्रवतमा ने


कहा__"तुझे अपनी ड्य़ूटी करना है तो कर या त़ू भी अपने डै ड
के साथ चल।"

"साॅरी माॅम।" ररत़ू की आॅख में आॅस़ू आ गए__"इस िक्त


मैं आनड्य़ूटी पर हूॅ और केस के वसलवसले में यहाॅ अपनी
टीम्स के साथ हूॅ इस वलए मैं डै ड के साथ नहीों जा सकती।
लेवकन डै ड से कहना वक मुझे उनकी इस हालत से बहुत
तकलीफ हो रही है ।"

"अच्छी बात है ।" प्रवतमा ने कहा और बाहर की तरफ दौड


पडी। जबवक अपने आॅस़ू पोोंछते हुए ररत़ू पलटी और फैक्टरी के
अोंदर की तरफ बढ गई।

"मैडम ये तो वकसी टाइम बम्ब के टु कडे जैसा लगता है ।" ररत़ू


के आते ही फारें वसक टीम के उस आदमी ने कहा।
"क्या???" ररत़ू उछल पडी__"ये क्या कह रहे हैं आप??"

130
"जी पक्के तौर पर तो नहीों कह सकता मगर ज्यादातर सोंभािना
यही है।" उस आदमी ने कहा__"और अगर इस सोंभािना को
सच मान वलया जाय तो ऐसा भी लगता है वक वकसी टाइम बम्ब
द्वारा ही इस बेसमेंट को उडाया गया है । बेसमेंट की हालत इस
बात का सब़ूत है मैडम।"

ररत़ू को उस आदमी की बात में सच्चाई के ढे र सारे अोंश


महस़ूस हुए। क्योवक बेसमेंट की हालत सचमुच ऐसी थी जैसे उसे
बम्ब के द्वारा उडाया गया हो।

"अगर ऐसा है तो।" ररत़ू ने कहा__"ये सावबत हो गया वक


फैक्टरी में लगी आग महज साटफ शवटफ क से नहीों बल्कि वकसी के
द्वारा बम्ब से लगाई गई।"

"वबलकुल।" उस आदमी ने कहा।


"मतलब साफ है वक वकसी ने टाइम बम्ब को तहखाने में वफट
वकया।" ररत़ू कह रही थी__"और िो बम्ब अपने वनिाफ ररत समय
पर फट गया। बम्ब के फटते ही बेसमेंट उड गया और इसके
साथ ही उसके अोंदर से तेजी से आग का झोोंका बाहर आकर
यहाॅ चारो तरफ फैले कपडोों और मशीनोों से टकराया। कपडोों
पर लगी आग ने तेजी से अपना काम वकया और दे खते दे खते
सारी फैक्टरी में आग ने अपना साम्राज्य थथावपत कर वलया।"

"वनःसोंदेह।" आदमी ने कहा__"और क्योोंवक फैक्टरी बाहर से


अिकाश के चलते बोंद थी इस वलए जब तक वकसी को पता
चलता तब तक आग ने उग्र रूप िारण कर सबकुछ बरबाद कर
वदया।"

"बेसमेंट के अोंदर की क्या पोजीशन है ?" ररत़ू ने कहा__"अगर

131
अोंदर जाने लायक है तो चलकर जाॅच शुरू करते हैं । दे खते हैं
और क्या पता चलता है ?"

कहने के साथ ही ररत़ू और िो आदमी बेसमेंट के अोंदर की


तरफ दे खने लगे। बेसमेंट के अोंदर पुवलस और फाॅरें वसक के
कुछ लोग थे। ररत़ू भी उनके बीच पहुॅच गई।

उिर अजय वसोंह को आनन फानन में अभय ने कार में वपछली
सीट पर प्रवतमा की गोोंद में वलटाया और खुद डर ाइविोंग सीट पर
बैठकर कार स्टाटफ की। लगभग बीस वमनट बाद िो सब हाल्किटल
में थे।

अजय वसोंह को तुरोंत ही एक रूम में ले जाया गया और डाक्टर


ने उसका चेकअप शुरू कर वदया।

अपडे ट............《 18 》

अब तक......

"कनःसं देह।" आदमी ने कहा__"और क्ोंकक िैक्टरी बाहर से अिकाश के


चलते बं द थी इस कलए जब तक ककसी को पता चलता तब तक आग ने
उग्र रूप धारर् कर सबकुछ बरबाद कर कदया।"

"बे समेंट के अं दर की क्ा पोजीशन है?" ररतू ने कहा__"अगर अं दर जाने


लायक है तो चलकर जाॅच शु रू करते हैं। दे खते हैं और क्ा पता चलता
है?"

कहने के साथ ही ररतू और िो आदमी बे समेंट के अं दर की तरि दे खने


लगे। बे समेंट के अं दर पु कलस और िाॅरें कसक के कुछ लोग थे । ररतू भी

132
उनके बीच पहुॅच गई।

उधर अजय कसं ह को आनन िानन में अभय ने कार में कपछली सीट पर
प्रकतमा की गोंद में कलटाया और खु द डर ाइकिं ग सीट पर बै ठकर कार स्टाटग
की। लगभग बीस कमनट बाद िो सब हाल्किटल में थे ।

अजय कसं ह को तु रंत ही एक रूम में ले जाया गया और डाक्टर ने उसका


चे कअप शु रू कर कदया।

अब आगे.......

शाम होने से पहले पहले अजय वसोंह को हाल्किटल से वडथचाजफ


कर वदया गया था। डाॅक्टर ने बताया था वक अजय वसोंह को
वकसी गहन वचन्ता तथा वकसी सदमे की िजह से चक्कर आया
था। बाॅकी उन्हें कोई बीमारी नहीों है । हाल्किटल से वडथचाजफ होने
के बाद अजय वसोंह अपनी पत्नी प्रवतमा तथा छोटे भाई अभय के
साथ सीिा हिेली ही आ गया था। फैक्टरी में हो रही छानबीन
का क्या नतीजा वनकला ये उसे पता नहीों था। हलाॅवक उसका
पीए और बाॅकी स्टाफ फैक्टरी में ही थे। हाल्किटल से हिेली
लौटते समय सारे रास्े अजय वसोंह खामोश रहा। अभय वसोंह कार
को डर ाइि कर रहा था जबवक अजय वसोंह ि प्रवतमा कार की
वपछली सीट पर बैठे थे।

प्रवतमा ने इस समय अभय की मौज़ूदगी में अजय वसोंह से कुछ


भी प़ूॅछना उवचत नहीों समझा था इस वलए िह भी चुप ही रही।
ये अलग बात है वक उसके वदलो वदमाग़ में विचारोों का बिोंडर
चल रहा था।

हिेली पहुॅच कर िो सब कुछ दे र डर ाइों ग रूम में बैठे रहे ।


अभय वसोंह थोडी दे र बाद अपने घर की तरफ चला गया। अजय
वसोंह ि प्रवतमा का बेटा वशिा इस िक्त हिेली में नहीों था।

133
सोफे पर बैठा अजय वसोंह खामोश था वकन्तु अब उसके चेहरे पर
गहन सोच और वचन्ता के भाि वफर से नुमायाॅ होने लगे थे।
उसका ध्यान फैक्टरी में हो रही छानबीन पर ही लगा हुआ था।

"इस तरह वचन्ता करने से कुछ नहीों होगा अजय।" प्रवतमा अपने
सोफे से उठकर अजय िाले सोफे पर उसके करीब ही बैठ कर
बोली__"अब जो होना है िो तो होकर ही रहे गा। हलाॅवक मैं ये
नहीों जानती वक ऐसी कौन सी बात है वजसकी िजह से तुमने
अपनी ये हालत बना ली है वकन्तु इतना जरूर समझ गई हूॅ वक
ये वचन्ता या ये सदमा वसफफ फैक्टरी में आग लगने से हुए
नुकसान बस का नहीों है , बल्कि इसकी िजह कुछ और ही है ।"

अजय वसोंह कुछ न बोला, बल्कि ऐसा लगा जैसे उसने प्रवतमा
की बात सुनी ही न हो। िह प़ूिफत उसी तरह सोफे पर बैठा
रहा। जबवक उसके चेहरे की तरफ ग़ौर से दे खते हुए तथा उसके
दोनो कोंिोों को पकड कर वझोंझोडते हुए प्रवतमा ने जरा ऊचे स्वर
में कहा__"होश में आओ अजय, क्या हो गया है तुम्हें? प्लीज
मुझे बताओ वक ऐसी कौन सी बात है वजसकी वचन्ता से तुमने
खुद की ऐसी हालत बना ली है ?"

प्रवतमा के इस प्रकार वझोंझोडने पर अजय वसोंह चौोंकते हुए गहन


सोच और वचन्ता से बाहर आया। उसने अजीब भाि से अपनी
पत्नी की तरफ दे खा वफर एकाएक ही उसके चेहरे के भाि
बदले।

"इस छानबीन को होने से रोोंक लो प्रवतमा।" अजय वसोंह भराफ ए


से स्वर में कहता चला गया__"अपनी बेटी से कहो वक िह
फैक्टरी की छानबीन न करे , िनाफ सब कुछ बरबाद हो जाएगा।
ये सब रोोंक लो प्रवतमा, मैं तुम्हारे पैर पडता हूॅ। प्लीज रोोंक लो

134
अपनी बेटी को।"

प्रवतमा है रान रह गई अपने पवत का ये रूप दे ख कर। वकसी के


सामने न झुकने िाला तथा वकसी से न डरने िाला और न ही
वकसी से हार मानने िाला इों सान इस िक्त दु वनया का सबसे
कमजोर ि दीन हीन नजर आ रहा था। प्रवतमा को कुछ पल तो
समझ ही न आया वक िह क्या करे वकन्तु वफर तुरोंत ही जैसे
उसे िस्ुल्कथथत का आभास हुआ।

"कैसे इस सबको रोोंक़ूॅ अजय?" प्रवतमा ने अिीरता से


कहा__"तुमने तो मुझे कुछ बताया भी नहीों वक बात क्या है ?
आज तक अपनी हर बात मुझसे शेयर करते रहे मगर ऐसी क्या
बात थी वजसे तुमने मुझसे कभी शेयर करने के बारे में सोचा
तक नहीों? क्या तुम ये समझते थे वक तुम्हारी वकसी बात से मुझे
कोई ऐतराज होता? या वफर तुम ये समझते थे वक मैं तुम्हें वकसी
काम को करने से रोोंक दे ती?? तुम जानते हो अजय वक मैं
तुमसे वकतना प्यार करती हूॅ तथा ये भी जानते हो वक तुम्हारे
कहने पर दु वनयाॅ का हर नामुमवकन ि असोंभि काम करने को
तुरोंत तैयार हो जाती हूॅ, वफर िो काम चाहे जैसा भी हो। मगर
इसके बािज़ूद तुमने मुझसे कोई बात छु पाई अजय। क्योों वकया
तुमने ऐसा?"

"मुझे माफ कर दो प्रवतमा।" अजय वसोंह ने प्रवतमा के दोनो


हाॅथोों को थाम कर कहा__"मुझसे बहुत बडी ग़लती हो गई।
तुम चाहो तो इस सबके वलए मुझे जो चाहे सजा दे दो लेवकन
इस सबको रोोंक लो प्रवतमा...िनाफ बहुत बडा अनथफ हो जाएगा।
मैं अपनी ही बेटी की नजरोों में वगर जाऊगा, उसका और उसके
काऩून का मुजररम बन जाऊगा।"

135
"ऐसी क्या बात है अजय?" प्रवतमा ने झुॅझलाकर
कहा__"आल्कखर तुम कुछ बताते क्योों नहीों? जब तक मुझे
बताओगे नहीों तो कैसे मुझे समझ आएगा वक आगे क्या करना
होगा मुझे?"

"क्या बताऊ प्रवतमा।" अजय वसोंह ने हताश भाि से कहा__"और


वकन शब्दोों से बताऊ? मुझे कुछ समझ में नहीों आ रहा है ।"

"भला ये क्या बात हुई अजय?" प्रवतमा ने उलझ कर


कहा__"जो जैसा है उसे िैसा ही बताओ न।"

अजय वसोंह ने एक गहरी साॅस ली। अोंदाज ऐसा था उसका जैसे


वकसी जोंग के वलए खुद को तैयार कर रहा हो।

"मुझसे िादा करो प्रवतमा।" सहसा अजय वसोंह ने प्रवतमा का


हाॅथ अपने हाॅथ में लेकर कहा__"वक मेरे द्वारा सब कुछ
जानने के बाद तुम मुझसे न तो नाराज होओगी और ना ही मुझे
ग़लत समझोगी।"

"ठीक है मैं िादा करती हूॅ।" प्रवतमा ने कहा__"अब बताओ


क्या बात है ??"

"म मैं अपने इस वबजनेस के साथ साथ ही।" अजय वसोंह ने


िडकते वदल के साथ कहा__"एक और वबजनेस करता हूॅ
प्रवतमा लेवकन िो वबजनेस गैर काऩूनी है ।"

"क क्या????" प्रवतमा बुरी तरह उछल पडी__"य..ये तुम क्या


कह रहे हो अजय? तुम गैर काऩूनी वबजनेस भी करते हो??"

"मुझे माफ कर दो प्रवतमा।" अजय वसोंह ने भारी स्वर में

136
कहा__"पर यही सच है । मैं शुरू से ही इस िोंिे में था।"

प्रवतमा आश्चयफचवकत अिथथा में मुह और आॅखें फाडे अजय वसोंह


को दे खे जा रही थी। उसे यकीन नहीों हो रहा था वक अजय वसोंह
गैर काऩूनी काम भी करता है । कुछ दे र तक िह अिाकट सी
दे खती रही उसे वफर एक गहरी साॅस लेते हुए गोंभीरता से
बोली__"क्योों अजय क्योों...आवखर क्या जरूरत थी तुम्हें ऐसा
काम करने की? तुम्हें तो पता था वक ऐसे काम का एक वदन
बुरा ही नतीजा वनकलता है । वफर क्योों वकया ऐसा?? आल्कखर
वकस चीज की कमी रह गई थी अजय वजसके वलए तुम्हें गैर
काऩूनी काम भी करना पड गया??"

"ये सब मेरी ही ग़लती से हुआ है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने


कहा__"मेरी ही महत्वाकाोंछाओों के चलते हुआ है । मैं हमेशा इसी
ख्वावहश में रहा वक मेरे और मेरे बच्चोों के पास िन दौलत ि
ऐश्वयफ की कोई कमी न हो। मेरा एक बहुत बडा नाम हो और
सारी दु वनयाॅ मुझे पहचाने। इसके वलए मैं कुछ भी करने को
तैयार था, इस बारे में कभी नहीों सोचा वक मेरी इन चाहतोों से
कभी मुझे ऐसा भी वदन दे खना पड सकता है।"

"अब क्या होगा अजय?" प्रवतमा ने कहा__"तुम्हारी ख्वावहशोों ने


आज क्या वसला वदया है तुम्हें और तुम्हारे साथ साथ हम सबको
भी। क्या होगा जब सबको ये माल़ूम होगा वक तुम गैर काऩूनी
िोंिा भी करते हो?"

"मुझे और वकसी की परिाह नहीों है प्रवतमा।" अजय वसोंह


बोला__"मुझे तो बस इस बात की वचन्ता है वक इस सबके बाद
मैं अपनी ही बेटी की नजरोों में वगर जाऊगा। काऩून के प्रवत
उसकी ईमानदारी और आथथा दे ख कर यही लगता है वक िह

137
मुझे इस काम की िजह से जेल की सलाखोों के पीछे भी डाल
सकती है ।"

"ये कैसे कह सकते हो तुम?" प्रवतमा ने चौोंकते हुए


कहा__"हमारी बेटी भला ऐसा कैसे कर सकती है ?"
"िो यकीनन ऐसा ही कर सकती है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने
कहा__"क्योों वक फैक्टरी में हो रही छानबीन में उसे िो सब
वमल जाएगा जो ये सावबत करे गा वक मैं गैर काऩूनी िोंिा करता
हूॅ।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है वक फैक्टरी में ही तुमने अपने गैर


काऩूनी िोंिोों के सब़ूत छोोंड रखे हैं ?" प्रवतमा की िडकनें रुकती
सी प्रतीत हुई उसे__"और िो सब सब़ूत अब ररत़ू के हाॅथ लग
जाएों गे ?"

"वबलकुल।" अजय वसोंह के चेहरे पर वचोंता के भाि थे__"यही


सच है प्रवतमा। फैक्टरी में ही मैंने एक गुप्त तहखाना बनिाया
हुआ था, और उसी तहखाने में मैं गुप्तरूप से अपना ये गैर
काऩूनी िोंिा करता था। इस िोंिे में काऩून के द्वारा पकडे जाने
का मुझे कोई डर नहीों था क्योोंवक मेरे सोंबोंि काऩून तथा मोंवत्रयोों
से थे। ये सब मेरे इस िोंिे से होने िाले मुनाफे से वहस्सा पाते
थे। अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा वक इन्हीों लोगोों की कृपा से
मेरा ये िोंिा चल रहा था।"

"अगर ऐसी बात है तो तुम्हें इतना परे शान और वचन्ता करने की


क्या जरूरत है ?" प्रवतमा ने कहा__"ये सब तुम रोोंकिा भी तो
सकते हो। काऩून और मोंवत्रयोों में तो सब तुम्हारे ही आदमी हैं ,
तो उनसे कह कर इस छानबीन को रुकिाया भी तो जा सकता
है ?"

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"अब ऐसा नहीों हो सकता प्रवतमा।" अजय वसोंह बोला__"क्योोंवक
इसके पहले जो छानबीन हुई थी िो मेरे अनुरूप हुई थी। उसमें
सब मेरे ही आदमीों थे लेवकन अब जो छानबीन हो रही है उसमें
मैं कुछ नहीों कर सकता।"

"क्योों?" प्रवतमा चौोंकी__"क्योों नहीों कर सकते? अब क्या हो गया


है ऐसा?"
"अब िो हुआ है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने गहरी साॅस
छोोंडी__"वजसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीों सकता था।"

"क्या मतलब??" प्रवतमा है रान।


"मतलब वक रातोों रात सारे पुवलस वडपाटफ मेंट को बदल वदया
गया।" अजय वसोंह कह रहा था__"पुवलस में कवमश्नर तक जो भी
मेरे आदमी थे उन सबका तबादला कर वदया गया है । अब तुम
समझ सकती हो वक इन हालात में मैं क्या कर सकता हूॅ। मोंत्री
से मदद माॅगी लेवकन उसने भी अपने हाॅथ खडे कर वलए।
मोंत्री ने कहा वक िो कुछ नहीों कर सकता क्योोंवक ये सब ऊपर
हाई कमान के आदे श पर हो रहा है ।"

"हे भगिान!" प्रवतमा चवकत भाि से बोली__"ये तो बहुत ही


सीररयस मामला हो गया है।"
"िही तो।" अजय वसोंह ने कहा__"मुझे समझ में नहीों आ रहा
वक ऐसा क्योों हो रहा है ? आल्कखर क्या िजह है जो इस सबके
वलए हाई कमान से आदे श वदया गया? आल्कखर वकस िजह से
रातोों रात इस शहर के सारे पुवलस विभाग का तबादला कर वदया
गया?"

"यकीनन अजय।" प्रवतमा ने कुछ सोचते हुए कहा__"ये तो बडा

139
ही पेंचीदा मामला हो गया है । लेवकन ररतु ने तो कहा था वक
इस केस को उसने ररओपेन करिाया है , उस स़ूरत में मामले को
इतना सीररयस नहीों होना चावहए था। कहीों ऐसा तो नहीों वक
हमारी बेटी ने ही हाई कमान को वकसी जररये इस सबके वलए
स़ूवचत वकया हो?"

"हो भी सकता है और नहीों भी?" अजय वसोंह ने सोचने िाले


अोंदाज से कहा।
"क्या मतलब?" प्रवतमा के माथे पर वसलिटें उभरी।

"सािारण रूप से अगर हम ये सोच कर चलें।" अजय वसोंह


बोला__"वक ररत़ू ने वसफफ अपने वपता की फैक्टरी में आग लगने
से हुए भारी नुकसान के चलते ये सोच कर इस केस को
ररओपेन करिाया है वक कदावचत ये सब हमारे वकसी दु श्मन के
द्वारा ही वकया गया हो सकता है तो इस मामले की छानबीन
सािारण तरीके से ही होती। लेवकन अगर हम ये सोचें वक हो
सकता है ररत़ू को वकसी िजह से ये पता चला हो वक उसका
बाप इस वबजनेस की आड में गैर काऩूनी िोंिा भी करता है तो
यकीनन इस केस की छानबीन का ये मामला सोंगीन है ।"

"बात तो तुम्हारी वबलकुल दु रुस् है अजय।" प्रवतमा ने


कहा__"लेवकन सिाल ये उठता है वक ररत़ू को ये कैसे पता चल
सकता है वक उसका बाप ये सब भी करता है ??"

"सोंभि है वक पुवलस में आते ही थाने में उसने बारीकी से सभी


फाइलोों का अध्ययन वकया हो?" अजय वसोंह ने कहा__"उन्हीों
फाइलोों में कहीों उसे कोई ऐसा सब़ूत वमला हो वजससे उसे इस
सबका पता चल गया हो। काऩून में आथथा रखने िाली हमारी
बेटी ने इस सबके पता चलते ही ये सोच वलया हो वक उसे अपने

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बाप को गैर काऩूनी िोंिा करने के जुमफ में वगरफ्तार करके जेल
की सलाखोों के पीछे डाल दे ना चावहए।"

"ये सब तो ठीक है अजय।" प्रवतमा ने कहा__"लेवकन क्या ये


सोंभि है वक वकसी थाने में तुम्हारे ल्कखलाफ कोई ऐसा सब़ूत
फाइल के रूप में कहीों दबा हो सकता है ? जैसा वक तुमने कहा
था वक इसके पहले इस शहर में पुवलस महकमें में कवमश्नर तक
की रैं क का काऩूनी नुमाइों दा तुम्हारा ही आदमी था, तो क्या ये
सोंभि है वक पुवलस के तुम्हारे ही आदवमयोों ने अपने थाने में कहीों
तुम्हारे ही ल्कखलाफ़ कोई सब़ूत बना कर रखा हुआ हो सकता
था?"

"इस बारे में कुछ भी नहीों कहा जा सकता।" अजय वसोंह ने


कहा__"ऐसा हो भी सकता है । सोंभि है वकसी पुवलस के नुमाइों दे
ने गुप्त रूप से मेरे ल्कखलाफ़ वकसी प्रकार का सब़ूत बना कर
रखा रहा हो। आल्कखरकार पुवलस तो पुवलस ही होती है , िो न तो
वकसी की दोस् हो सकती है और न ही दु श्मन।"

"इन सब बातोों के बाद तो यही वनष्कसफ वनकलता है ।" प्रवतमा ने


गोंभीरता से कहा__"वक हमारी बेटी को वकसी िजह से अपने
वपता के ल्कखलाफ कोई सब़ूत वमला और अब िह पक्के तौर पर
बारीकी से छानबीन करके कुछ और ठोस सब़ूत हावसल करना
चाहती है वजससे उसे तुमको जेल की सलाखोों के पीछे डालने में
कोई अडचन न हो सके।"

"हो सकता है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने कुछ सोचते हुए


कहा__"लेवकन एक बात समझ में नहीों आ रही।"
"कौन सी बात अजय?" प्रवतमा ने ना समझने िाले भाि से

141
अजय वसोंह की तरफ दे खते हुए कहा था।

"यही वक रातोों रात सारे पुवलस वडपाटफ मेंट का तबादला क्योों कर


वदया गया?" अजय वसोंह बोला__"ये छानबीन तो िैसे भी हो
जाती। कोई भी पुवलस का अफसर इस छानबीन में वकसी भी
प्रकार का हस्ाक्षेप नहीों करता। वफर क्योों तबादला कर वदया
गया सबका?"

"अगर इस बात को हम अपनी इों िेक्टर बेटी के वहसाब से सोचें


तो सोंभि है उसी ने इस सबके वलए ऊपर हाई कमान को अज़ी
वलख कर गुजाररश की हो या वफर इसकी माॅग की हो?"
प्रवतमा ने सोंभािना ब्यक्त की__"क्योवक शायद उसे इस बात की
खबर हो वक इस शहर का सारा पुवलस विभाग तुम्हारे हाॅथोों में
है ।"

"नहीों प्रवतमा।" अजय वसोंह ने मजब़ूती से अपने वसर को इों कार


के भाि से वहलाते हुए कहा__"रातोों रात शहर के सारे पुवलस
विभाग का तबादला कर दे ना कोई माम़ूली बात नहीों है , और
उस स़ूरत में तो वबलकुल भी नहीों जबवक हमारी बेटी ने अभी
अभी पुवलस फोसफ ज्वाइन वकया हो। वकसी भी नये पुवलस िाले
के वलए इतनी द़ू र तक पहुॅच रखना नामुमवकन है प्रवतमा।
पुवलस में रह कर बहुत वदन तक पहले पुवलस के दाॅि पेंच
सीख कर उसका अनुभि करना पडता है । मैं ये बात मानता हूॅ
वक हमारी बेटी ने पुवलस में आते ही वकसी मझे हुए पुवलस
अफसर की भावत पुवलवसया तौर तरीका अपना वलया है और
उसका अोंदाज भी अनुभिी लगता है लेवकन वफर भी इस बात को
हजम करना मुल्किल है वक उसने ही शहर के सारे पुवलस
विभाग को बदल दे ने की अपील की हो सकती है ।"

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"तो वफर।" प्रवतमा ने कहा__"तुम्हारे खयाल से ये सब वकसने
वकया हो सकता है ?"
"यही तो समझ नहीों आ रहा।" अजय वसोंह ने कहा__"वदमाग़
की नशें ददफ करने लगी हैं इस सबके बारे में सोचते सोचते।"

"तुम एक शख्स को तो भ़ूल ही गए हो अजय।" प्रवतमा ने मानो


िमाका करने िाले भाि से कहा__"ये सब उसने भी तो वकया हो
सकता है ?"

"वकसकी बात कर रही हो तुम?" अजय वसोंह चौोंका था।


"तुम्हारे भतीजे विराज की बात कर रही हूॅ मैं।" प्रवतमा ने
कहा।

"िो साला इस मामले में कहाॅ से वफट होता है प्रवतमा?" अजय


वसोंह ने अजीब भाि से कहा।
"बात इस मामले में उसके वफट होने की नहीों है अजय।" प्रवतमा
ने गहरी साॅस लेकर कहा__"बल्कि बात है ऐसे मामले में हर
तरह की सोंभािना की। हमें भले ही लगता है वक विराज का इस
मामले में कोई हाॅथ नहीों हो सकता वकन्तु सिाल है वक क्योों
नहीों हो सकता उसका हाॅथ?"

"बेिक़ूफोों की तरह बात मत करो प्रवतमा।" अजय वसोंह ने


झुोंझलाते हुए कहा__"मामले की गोंभीरता और उसकी पेंचीदवगयोों
को समझो। उसकी कोई औकात नहीों हो सकती इस सबमें शहर
के सारे पुवलस विभाग का तबादला करिा दे ने की और न ही ये
औकात हो सकती है वक िह सीिा हाई कमान से इस सबके
वलए बात कर सके। तुम्हारा वदमाग़ वफर गया लगता है।"

"चलो मान वलया वक उसकी कोई औकात नहीों हो सकती इन

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सब कामोों को करिाने की।" प्रवतमा ने जोर दे कर कहा__"मगर
क्या ये नहीों हो सकता वक उसने ही हमारी फैक्टरी में बम्ब लगा
कर सब कुछ आग के हिाले कर वदया हो? तुम हर बार उसकी
औकात की बात करके उसे तुच्छ समझ लेते हो अजय जबवक
उसे तुच्छ समझ लेने का भी तुम्हारे पास कोई सब़ूत नहीों है ।
जबवक कम से कम उसकी इतनी तो औकात हो ही सकती है
वक िह फैक्टरी में वकसी भी तरह ही सही लेवकन आग लगा
सके।"

अजय वसोंह खामोश रह गया। प्रवतमा की बातोों में उसे सौ मन


की सच्चाई नजर आई। और इस एहसास ने ही उसे वहला कर
रख वदया वक ये सब उसके भतीजे विराज ने वकया हो सकता है।

"ये तो तुम भी अच्छी तरह समझते हो अजय वक िो हमें अपना


सबसे बडा दु श्मन समझता है ।" प्रवतमा कह रही थी__"उसे
लगता है वक हमने उसे और उसके पररिार को बरबाद कर वदया
है । इस वलए इस सबका प्रवतशोि लेने के वलए िह क्या नहीों कर
सकता? िह हर उस काम को कर गुजरने पर अमादा हो सकता
है वजस काम से िह हमारा बाल भी बाॅका कर सके।"

अजय वसोंह कुछ कह न सका। वकसी गहरी सोच में ड़ू बा नजर
आने लगा था िह।

"तुमने कहा था वक तुम्हारे आदमी उन्हें ढ़ू ॅढने के वलए मुम्बई


की खाक़ छान रहे है ।" प्रवतमा मजब़ूत लहजे में कहती जा रही
थी__"जबवक आज तक तुम्हारे आदवमयोों के हाॅथ में उनसे
सोंबोंवित कोई छोटा सा सुराग़ भी नहीों लग सका। इस बारे में
क्या कहोगे तुम, बताओ?"

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"क्या कहूॅ यार?" अजय वसोंह के चेहरे पर कठोर भाि
उभरे __"जाने कहाॅ गुम हो गए हैं िो सब? उन सुअर की
औलादोों को ये जमीन खा गई है या आसमान वनगल गया है ।
एक बार....वसफफ एक बार मेरे हाॅथ लग जाएॅ वफर दे खना
क्या हस्र करता हूॅ मैं उन सबका।"

"मुझे नहीों लगता अजय वक तुम उन लोगोों का कुछ कर लोगे।"


प्रवतमा ने अजीब भाि से कहा__"जबवक लग ये रहा है वक िो
कमीना रों डी की औलाद विराज हमारा ही बेडा गक़फ कर रहा
है ।"

अभी ये सब बातें ही कर रहे थे वक बाहर से वकसी के आने की


आहट सुनाई दी। कुछ ही पल में इों िेक्टर ररत़ू डर ाइों ग रूम में
दाल्कखल हुई। उसके चेहरे पर थकान के भाि गवदफ श करते नजर
आ रहे थे। अजय वसोंह अपनी बेटी को दे खकर घबरा सा गया।
उसे लगा फैक्टरी की छानबीन में ररत़ू को उसके काले कारनामोों
का सारा काला वचट्ठा वमल गया है और अब िह उसे वगरफ्तार
करने आई है।

"आई एम साॅरी डै ड।" ररत़ू ने आते ही अजय वसोंह का हाॅथ


पकड कर तथा खेद भरे लहजे में कहा__"मैं आपके साथ
हाल्किटल नहीों जा सकी। आप तो मेरी मजब़ूरी समझ सकते हैं
डै ड, उस िक्त मैं अपनी ड्य़ूटी को छोोंड कर नहीों जा सकती
थी आपके साथ। उस स़ूरत में तो हवगफज नहीों जब वकसी केस
की छानबीन चल रही हो। एनीिे, अब आपकी तवबयत कैसी
है ?"

अजय वसोंह को समझ नहीों आ रहा था वक ररत़ू को दे ख कर


अब िह कैसा ररऐक्ट करे ? मनो-मल्कस्ष्क में हजारोों खयाल मानो

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ताण्डि सा करने लगे थे। पल भर में ढे र सारा पसीना उसके
सफेद पड चुके चेहरे पर उभर आया था। दोनो कानोों में वदल
पर िम्म िम्म करके पडने िाली वकसी भारी हथौडे की चोोंट
उसकी हृदय की गवत को रोोंक दे ने के वलए काफी थी जो सुनाई
दे रही थी। जबवक उसके अोंदर की हालत से अनवभज्ञ ररतु ने
अपने वपता को खामोश दे ख कर पुनः कहा__"प्लीज डै ड, अब
माफ भी कर दीवजए न अपनी इस बेटी को। आपको पता है
आपकी उस हालत से मैं वकतना परे शान और दु खी हो गई थी।
लेवकन घटना थथल पर मौज़ूद रहना मेरी मजब़ूरी थी, आप तो
समझ सकते हैं न डै ड? लेवकन इस सबसे फुसफत होकर मैं सीघ्र
ही पुवलस स्टे शन से भागी भागी आपसे वमलने आई हूॅ।"

अजय वसोंह के मन मल्कस्ष्क में एकाएक मानो झनाका सा हुआ।


वदमाग़ की सारी बवियाॅ जल उठीों। वदमाग़ ने सही तरीके से
काम करना शुरू कर वदया। मन में वबजली की सी तेजी से ये
खयाल उभरा वक 'उसकी बेटी इस तरह वबहैि क्योों कर रही है
जैसे कहीों कुछ हुआ ही न हो? इसके मास़ूम बताफि से तो यही
लग रहा है जैसे छानबीन करते हुए तहखाने में इसे कुछ नहीों
वमला िनाफ उसके हाथ अगर कोई गैर काऩूनी चीज लग गई होती
तो ये यहाॅ अपने पीछे पुवलस फोसफ लेकर तथा अपने हाॅथ में
हथकडी लेकर उसे वगरफ्तार करने आती। लेवकन ऐसा तो द़ू र द़ू र
तक होता हुआ वदखाई नहीों दे ता। इसका क्या मतलब हो सकता
है ?'

अजय वसोंह के वदमाग़ में एकाएक जैसे हजार तरह के सिाल


खडे हो गए थे लेवकन जिाब वकसी का नहीों था उसके पास। मन
में ये खयाल बार बार वकसी हथौडे की भाॅवत चोोंट मार रहे थे
वक आवखर क्या हुआ फैक्टरी की छानबीन में? उसकी बेटी को
तहकीकात में उसके ल्कखलाफ क्या कोई गैर काऩूनी चीज वमली?

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"क्या बात है डै ड?" अपने वपता को गहरे समुद्र में ड़ू बे दे ख
ररत़ू ने इस बार अपने दोनोों हाॅथोों की मदद से वझोंझोडते हुए
कहा था__"आप कुछ बोलते क्योों नहीों है ? कहाॅ खोए हुए हैं
आप?"

"आॅ..हाॅ...तु..तुमने कुछ कहा क्या बेटी?" अजय वसोंह बुरी


तरह चौोंकते हुए कहा था। एकाएक ही उसके मन में ये खयाल
उभरा वक 'ये क्या बेिक़ूफी कर रहा है अजय वसोंह, अपने
आपको सम्हाल िनाफ तेरी हालत और तेरे चेहरे की ये हालत दे ख
कर तेरी बेटी को कहीों सचमुच कुछ पता न चल जाए।' इस
खयाल के द्वारा खुद को समझाए जाने पर अजय वसोंह ने तुरोंत
ही अपने आपको सम्हाला। और वफर मुस्कुरा कर उसने अपनी
बेटी की तरफ दे खा।

"मैं ये कह रही हूॅ डै ड वक आप कुछ बोल क्योों नहीों रहे थे?"


ररत़ू कह रही थी__"पता नहीों कहाॅ खोए हुए थे आप?"

"कुछ नहीों बेटा।" अजय वसोंह ने एक नजर अपनी पत्नी की


तरफ डालने के बाद कहा__"तुम सुनाओ, कैसा रहा पुवलस के
रूप में आज का तुम्हारा पहला वदन?"

अजय वसोंह ये प़ूॅछने से वहचवकचाने के साथ साथ डर भी रहा


वक 'आज तहकीकात में क्या हुआ?' इस वलए ये न प़ूछ कर
कुछ और ही प़ूॅछ बेठा था।

"बहुत अच्छा था डै ड।" ररत़ू ने मुस्कुरा कर कहा__"बस थोडा


थक गई हूॅ।"
"अभी आदत नहीों है न।" सहसा इस बीच प्रवतमा कह

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उठी__"जब इस सबकी आदत हो जाएगी तो सब ठीक हो
जाएगा।"

"आप ठीक कहती हैं माॅम।" ररत़ू ने कहा__"िीरे िीरे सब


ठीक हो जाएगा। लेवकन अभी तो आप मुझे मस् गरमा गरम
काॅफी वपलाइए प्लीज।"

"अभी बना कर लाती हूॅ बेटी।" प्रवतमा ने हस कर कहा और


सोफे से उठ कर अोंदर वकचेन की तरफ चली गई।

इिर अजय वसोंह सोच रहा था वक आज की छानबीन के सोंबोंि में


उसकी बेटी ने अभी तक कोई बात क्योों नहीों की?? िह खुद
इस बारे में प़ूॅछने से वहचवकचा भी रहा था और डर भी रहा
था। लेवकन ये भी सच था वक उसके वलए इस सबके बारे में
जानना वनहायत ही जरूरी था। मगर सबसे बडा सिाल था वक
िह अपनी बेटी से प़ूॅछें कैसे???

"डै ड, आपने अभी तक मुझसे प़ूछा नहीों।" सहसा ररत़ू ने अजीब


से अोंदाज में कहा__"वक आज फैक्टरी में हुई छानबीन में क्या
नतीजा वनकला??"

अजय वसोंह मन ही मन बुरी तरह चौोंका भी और घबरा भी गया,


वकन्तु अपने वकसी भी भाि को चेहरे पर उभरने नहीों वदया। खुद
को मजब़ूती से सम्हाल कर सोंतुवलत लहजे से कहा__"प़ूॅछ कर
क्या करूॅगा बेटी? इस सबसे कुछ होने िाला तो है नहीों। क्या
इस सबसे िो सब कुछ िापस वमल जाएगा जो जल कर खाक़ में
वमल चुका है ?"

"बात सब कुछ वमल जाने की नहीों है डै ड।" ररत़ू ने

148
कहा__"बल्कि इस बात की है वक ये सब वकसने और वकस
िजह से वकया? आपको ये जानकर है रानी के साथ साथ शायद
खुशी भी होगी वक फैक्टरी में आग वकसी साटफ शवकफट की िजह
से नहीों बल्कि फैक्टरी के तहखाने में वकसी के द्वारा लगाए गए
टाइम बम्ब के भीर्ण िमाके से उत्पन्न हुई आग से लगी थी।"

"कट क्या????" अजय वसोंह बुरी तरह चौोंकने का बेहतरीन नाटक


वकया था वफर बोला__"ये ये क्या कह रही हो तुम?"

"ये सच है डै ड।" ररत़ू ने कहा__"मगर मैं इस बात से है रान


हूॅ वक इसके पहले हुई छानबीन में ये सब क्योों नहीों बताया
पुवलस ने अपनी ररपोटफ में? जबवक ये सब बातें कोई भी सािारण
ब्यल्कक्त जाॅच करके बता सकता था। ये अपने आप में एक बहुत
बडा सिाल है डै ड। खैर पुवलस इों क्वायरी में इस सबका जिाब
उन पुवलस आवफससफ को ही दे ना पडे गा वजन्होोंने इसके पहले
फैक्टरी की छानबीन की थी। मगर इस सबका जिाब आपको भी
दे ना पडे गा डै ड। मुझे पक्का यकीन है वक पुवलस द्वारा इस प्रकार
की छानबीन करके ररपोटफ आपके कहने पर ही बनाई गई थी।"

अजय वसोंह अिाकट सा दे खता रह गया अपनी बेटी को। वफर


तुरोंत ही खुद को सम्हालते हुए कहा__"ये सब झ़ूॅठ है बेटी।
हमने ऐसी कोई ररपोटफ बनाने के वलए नहीों कहा।"

"आप अपनी इस बात को सावबत नहीों कर पाएों गे डै ड।" ररत़ू ने


कहा__"सारे हालात इस बात की चीख चीख कर गिाही दे रहे
हैं वक इसके पहले की गई छानबीन महज एक औपचाररकता बस
थी। िनाफ कोई भी पुवलस िाले अोंिे नहीों थे जो उन्हें ये न वदखता
वक फैक्टरी में लगी आग वकसी के द्वारा लगाए गए टाइम बम्ब
की मेहरबानी थी। इसके बािज़ूद उन्होोंने अपनी ररपोटफ में यही

149
वदखाया वक फैक्टरी में आग वसफफ शाटफ शवकफट की िजह से लगी
थी। यहाॅ पर कोई भी सिाल खडा कर सकता है डै ड वक सब
कुछ िष्ट नजर आते हुए भी पुवलस ने ऐसी ररपोटफ क्योों बनाई?
इसमें पुवलस का क्या मकसद था? या वफर एक ही बात हो
सकती है वक पुवलस को ऐसी ही ररपोटफ बनाने के वलए खुद
आपने कहा हो। अगर यही सच है तो वफर यहाॅ पर सिाल
खडा हो जाता है वक आपने पुवलस को ऐसी ररपोटफ बनाने के
वलए क्योों कहा??? बात यहीों पर खत्म नहीों हो जाती डै ड,
बल्कि ऐसी ल्कथथवत में वफर और भी सिाल खडे होने लगते हैं
वजनका जिाब वमलना जरूरी हो जाता है ।"

अजय वसोंह को लगा वक अभी जमीन फटे और िह उसमें पाताल


तक समाता चला जाए। हलाॅवक ररत़ू ने कोई तीर नहीों मार वलया
था ये सब करके क्योोंवक फैक्टरी की छानबीन अगर पहले ही प़ूरी
ईमानदारी से की गई होती तो पहले ही पुवलस को ये सब पता
चल जाता। लेवकन क्योोंवक ऐसा हुआ नहीों था। बल्कि अजय वसोंह
अपने तरीके से ररपोटफ बनिा कर चैन से बैठ गया था। िो भला
कैसे इस बात की कल्पना कर लेता वक अगले ही वदन उसकी
अपनी बेटी इन गडे मुदों को वनकाल कर उसकी हालत को
खराब करना शुरू कर दे गी।

"आपकी खामोशी इस बात का सब़ूत है डै ड वक आप ही ने


पुवलस को ऐसी ररपोटफ बनाने को कहा था।" ररत़ू ने कहा__"क्या
आप बताने का कष्ट करें गे वक आपने ऐसा क्योों वकया?"

अजय वसोंह क्योोंवक जानता था वक इस सोंबोंि में अब झ़ूॅठ बोलने


का कोई मतलब नहीों है इस वलए सच बताना ही बेहतर समझा
उसने।

150
"ये सच है बेटी वक मेरे ही कहने पर पुवलस ने िैसी ररपोटफ
बनाई थी।" अजय वसोंह ने गोंभीरता से कहा__"लेवकन ये सब
करना मेरी मजब़ूरी थी बेटी क्योोंवक मैं इस सबको और अविक
उछालना नहीों चाहता था। मैं नहीों चाहता था बेटी वक मेरी इज्जत
का अब और कचरा हो। सब कुछ तो जल ही गया था, कुछ
वमलना तो था नहीों, इस वलए कम से कम अपनी इज्जत को तो
नीलाम होने से बचा लेता। इसी िजह से बेटी...वसफफ इसी िजह
से मैंने पुवलस अविकाररयोों से वमन्नतें कर करके ऐसी ररपोटफ बनाने
को कहा था।"

ररत़ू दे खती रही अपने वपता के चेहरे की तरफ। अोंदाज ऐसा था


जैसे परख रही हो वक उसके बाप की बातोों में वकतनी सच्चाई
है ? जबवक अपनी बेटी को इस तरह अपनी तरफ दे खते हुए दे ख
अजय वसोंह के वदल की िडकनें तेज हो गईों थी।

"िाह डै ड िाह!" ररत़ू ने अजीब भाि से कहा__"आपने तो ये


सब करके कमाल ही कर वदया। मतलब आपने ये भी नहीों सोचा
वक अगर इस सबकी पुवलस द्वारा बारीकी से तहकीकात करिाई
जाए तो इससे आपको कुछ हावसल भी हो सकता है ?"

तभी प्रवतमा हाॅथ में टर े वलए डर ाइों गरूम में दाल्कखल हुई। उसने
एक एक कप सबको पकडाया और खुद भी एक कप लेकर िहीों
सोफे पर बैठ गई।

"इससे भला क्या हावसल होता बेटी?" अजय वसोंह ने कहा था।
"छानबीन से ये तो पता चल ही गया है डै ड वक फैक्टरी में आग
टाइम बम्ब के फटने से लगी थी।" ररत़ू ने कप में भरी काॅफी
का एक वसप लेकर कहा__"अब ये पता लगाना पुवलस का काम
है वक फैक्टरी में टाइम बम्ब वकसने वफट वकया था? आपके

151
अनुसार उस वदन और रात अिकाश के चलते फैक्टरी बोंद थी
तथा बाहर से फैक्टरी में ताला भी लगा था। अब सोचने िाली
बात है वक कोई बाहरी आदमी कैसे ये सब कर सकता है ?
क्योोंवक सबसे पहले तो उसे फैक्टरी के अोंदर पहुॅच पाना ही
नामुमवकन था, कारण फैक्टरी में जो ताला लगा था िो कोई
सािारण झ़ूलने िाला ताला नहीों था वजसे आराम से तोड कर
फैक्टरी अोंदर जाया जा सके, बल्कि गेट पर जो ताला था िो
लोहे िाले गेट के अोंदर वफक्स था।"

"ताला खोलना कोई बडी बात या कोई समस्या नहीों है बेटी।"


सहसा प्रवतमा ने हस्ाक्षेप वकया__"आज के समय में एक से बढ
कर एक खलीफा हैं जो पलक झपकते ही कोई भी ताला खोल
भी सकते हैं और उसे तोड भी सकते हैं ।"

"य़ू आर अब्सोल्य़ूटली राइट माॅम।" ररत़ू ने मुस्कुरा कर


कहा__"पर उस ल्कथथवत में ये सोंभि नहीों है जबवक फैक्टरी के
गेट पर दरबान मौज़ूद होों। मैंने इसकी जाॅच की है और पता
चला है वक गेट पर दरबान मौज़ूद था। अब सिाल ये है वक
दरबान की मौज़ूदगी में कोई बाहरी आदमी अोंदर कैसे जा सकता
है ?"

"इसका मतलब तो यही हुआ वक गेट पर तैनात दरबान झ़ूॅठ


बोल रहा है।" प्रवतमा ने कहा__"या वफर ऐसा भी हो सकता है
वक फैक्टरी का ही कोई स्टाफ मेंबर फैक्टरी के अोंदर गया हो।
स्टाफ के अोंदर जाने पर गेट में मौज़ूद दरबान को कोई ऐतराज
नहीों हो सकता था।"

"अगर कोई स्टाफ का ही आदमी फैक्टरी के अोंदर गया था।"


ररत़ू ने कहा__"तो दरबान को इस बात की जानकारी पुवलस के

152
प़ूछने पर दे नी चावहए थी। मगर इस सोंबोंि में दरबान का हर
बार यही कहना है वक रात कोई भी ब्यल्कक्त फैक्टरी के अोंदर
नहीों गया।"

"बडी है रत की बात है ये।" प्रवतमा कह उठी__"जब फैक्टरी के


अोंदर कोई गया ही नहीों तो फैक्टरी के अोंदर, िो भी तहखाने में
टाइम बम्ब क्या कोई भ़ूत लगा कर चला गया था???"

"यही तो सोचने िाली बात है माॅम।" ररत़ू ने हस कर


कहा__"खैर, पता चल ही जाएगा दे र सिेर ही सही। मैं तो डै ड
से ये कह रही थी वक उन्होोंने इस सबके बारे में जानना जरूरी
क्योों नहीों समझा? आल्कखर ये जानना तो जरूरी ही था वक वकसने
ये सब वकया?"

अजय वसोंह के मन में वसफफ यही सिाल चकरा रहे थे, और िो


ये थे वक 'तहखाने में उसकी बेटी को और क्या वमला? क्या
उसके हाॅथ कोई ऐसी चीज लगी वजससे उसकी असवलयत ररत़ू
को पता चल सके? इस बारे में ररत़ू ने अभी तक कोई बात नहीों
की, इसका मतलब उसे कुछ भी नहीों वमला। मगर ऐसा कैसे हो
सकता है ???? तहखाने में तो गैर काननी िस्ुओों का अच्छा
खासा स्टाक था। क्या िह सब भी आग में जल गया है ??? कहीों
ऐसा तो नहीों वक ररतु को सब पता चल गया हो वकन्तु इस िक्त
िह अोंजान बनी होने का नाटक कर रही हो? हे भगिान! कैसे
पता चले इस सबके बारे में??? मेरे गले में तो अभी भी जैसे
कोई तलिार लटक रही है ।

153
अपडे ट............《 19 》

अब तक......

"बडी हैरत की बात है ये।" प्रकतमा कह उठी__"जब िैक्टरी के अं दर


कोई गया ही नही ं तो िैक्टरी के अं दर, िो भी तहखाने में टाइम बम्ब
क्ा कोई भू त लगा कर चला गया था???"

"यही तो सोचने िाली बात है माॅम।" ररतू ने हस कर कहा__"खै र, पता


चल ही जाएगा दे र सिे र ही सही। मैं तो डै ड से ये कह रही थी कक
उन्होंने इस सबके बारे में जानना ़िरूरी क्ों नही ं समझा? आल्कखर ये
जानना तो ़िरूरी ही था कक ककसने ये सब ककया?"

अजय कसं ह के मन में कसिग यही सिाल चकरा रहे थे , और िो ये थे कक


'तहखाने में उसकी बे टी को और क्ा कमला? क्ा उसके हाॅथ कोई ऐसी
ची़ि लगी कजससे उसकी असकलयत ररतू को पता चल सके? इस बारे में
ररतू ने अभी तक कोई बात नही ं की, इसका मतलब उसे कुछ भी नही ं
कमला। मगर ऐसा कैसे हो सकता है???? तहखाने में तो गैर काननी
िस्तु ओ ं का अच्छा खासा स्टाक था। क्ा िह सब भी आग में जल गया
है??? कही ं ऐसा तो नही ं कक ररतु को सब पता चल गया हो ककन्तु इस
िक्त िह अं जान बनी होने का नाटक कर रही हो? हे भगिान! कैसे पता
चले इस सबके बारे में??? मेरे गले में तो अभी भी जैसे कोई तलिार
लटक रही है।

अब आगे........

अभी ये सब बातें ही कर रहे थे वक बाहर से वकसी के आने की


आहट सुनाई दी उन्हें । पलट कर दे खा तो अभय और वशिा के
साथ नीलम अपने हाथ में एक है ण्डबैग वलए आ रही थी।

"डै ड...।" अपने वपता को दे खते ही नीलम दौड कर आई और


अजय वसोंह से वलपट गई। अजय वसोंह ने उसके वसर पर प्यार से
हाॅथ फेर कर कहा__"कैसी है मेरी बेटी??"

154
"मैं वबलकुल अच्छी हूॅ डै ड।" नीलम ने कहा__"आपकी याद
बहुत आती थी िहाॅ।"

"ओह अच्छा जी।" अजय वसोंह ने मुस्कुरा कर कहा और वफर


नीलम को साइड से छु पका वलया।

अभय ि वशिा भी आकर िहाॅ पर रखे सोफोों पर बैठ गए।


अपने डै ड से अलग होने के बाद नीलम अपनी माॅ और बहन
से गले वमली।

"कन्स्ग्रैटटस दी।" नीलम ने ररत़ू के गले वमलते हुए कहा__"आवखर


आपकी ख़्वावहश प़ूरी हो ही गई। आप अब एक पुवलस इों िेक्टर
बन गई हैं ।"

"थैंक्य़ू छोटी।" ररत़ू ने मुस्कुरा कर कहा__"और बता, मुम्बई में


तेरी पढाई कैसी चल रही है ? काॅलेज अच्छा है न? और माॅसी
लोग सब कैसे हैं ?"

"सब अच्छे हैं दी।" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा__"और


काॅलेज भी अच्छा ही होगा?"
"अच्छा होगा?" ररत़ू ने ना समझने िाले भाि से कहा__"इस
बात से क्या मतलब है तेरा?"

"मतलब ये वक काॅलेज जाना अभी शुरू नहीों वकया है मैने।"


नीलम ने कहा__"क्योोंवक काॅलेज खुलने में अभी पाॅच वदन का
समय शेर् है ।"
"ओह।" ररत़ू ने कहा__"चल कोई बात नहीों। त़ू बैठ, मैं जरा
कपडे चेन्स्ज कर ल़ूॅ। अभी भी पुवलस की य़ूनीफामफ ही पहन
रखी हूॅ मैं।"

155
"ओके दी।" नीलम ने कहा और एक बार वफर अपने वपता की
तरफ पलटते हुए कहा__"डै ड, ये सब कैसे हुआ?"
"बस हो गया बेटी।" अजय वसोंह भला अब उसे क्या
बताता__"सब नसीब की बातें हैं ।"

"ऐसा क्योों कहते हैं डै ड?" नीलम ने अजय वसोंह का हाॅथ


अपने हाॅथ में लेकर कहा__"वबना िजह के कैसे हमारी फैक्टरी
में आग लग सकती है ? जरूर कोई िजह रही होगी। आप पुवलस
के द्वारा पता लगिाइए डै ड।"

"पुवलस पता लगा रही है दी।" सहसा वशिा कह उठा__"और


आपको पता है , ररत़ू दीदी ही इस सबका पता लगा रही हैं ?
दे खना सब कुछ पता लग जाएगा जल्द ही। वजसने भी ये सब
वकया होगा न मैं उसे छोोंड़ूॅगा नहीों।"

"ज़्यादा स़ूरमा बनने की जरूरत नहीों है तुम्हें।" नीलम ने


कहा__"अपनी पढाई पर ध्यान दो। और ये तो अच्छी बात है वक
इस सबकी जाॅच दीदी कर रही हैं, है न डै ड?" अोंवतम िाक्य
उसने अपने वपता की तरफ दे ख कर कहा था।

"ह हाॅ बेटी।" अजय वसोंह चौोंकते हुए बोला था__"यकीनन इस


सबका पता चल ही जाएगा।"

"क्या अभी तक कुछ पता नहीों चला भइया?" अभय ने


कहा__"मेरा मतलब है वक ररत़ू ने इस बारे में अभी तक क्या
कुछ नहीों बताया वक उसकी छानबीन में क्या नतीजा वनकला?"

"नतीजा वसफफ इतना ही वनकला है चाचा जी वक हमारी फैक्टरी

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में आग वकसी के द्वारा फैक्टरी के तहखाने में लगाए गए टाइम
बम्ब से लगी थी।" अोंदर की तरफ से आते हुए ररत़ू ने
कहा__"और आपको ये जानकर हैरानी होगी वक फैक्टरी के
तहखाने में लगभग दो से तीन टाइम बम्ब लगाए गए थे।"

"क्या??????" लगभग िहाॅ मौज़ूद हर कोई बुरी तरह चौोंका


था, वफर अभय ने प़ूॅछा__"लेवकन फैक्टरी के अोंदर तहखाना
कहाॅ से आ गया और तो और उस तहखाने के अोंदर जाकर
वकसने टाइम बम्ब लगाया हो सकता है ??"

"ये सिाल तो मेरे पास भी है चाचा जी वक फैक्टरी में कोई


तहखाना कैसे था?" ररत़ू ने अभय से कहने के बाद अपने वपता
की तरफ दे खा__"क्या आप बताएॅगे डै ड वक फैक्टरी में
तहखाने का क्या काम था?"

अजय वसोंह बुरी तरह घबरा गया, लेवकन तुरोंत ही सहल कर


बोला__"फैक्टरी के अोंदर अगर कोई तहखाना था तो इसमें कौन
सी बडी बात है बेटी? मैंने तो बस शौक के वलए बनिाया था।
क्या तहखाना बनिाना भी कोई काऩूनन जुमफ है ?"

"जुमफ तो नहीों है डै ड।" ररत़ू ने सपाट लहजे में कहा__"लेवकन


तहखाने का वनमाफ ण आम तौर पर लोग अपनी वकसी प्राइिेसी के
चलते बनिाते हैं । खैर, क्योोंवक तहखाने में तीन तीन टाइम बम्ब
लगाए गए थे और जब िो फटे तो सब कुछ जल कर खाक़ में
वमल गया। हलाॅवक तहखाने में शायद कुछ नहीों था क्योोंवक अगर
होता तो हमारे हाॅथ कुछ न कुछ जरूर लगता। िहाॅ तो बस
फैक्टरी के जले हुए कुछ अिशेर् ही पडे थे।"

ररत़ू की ये बात सुन कर वक 'तहखाने में कुछ नहीों था' अजय

157
वसोंह बुरी तरह मन ही मन चौोंका था। उसके वदमाग़ का फ्य़ूज
उड गया। वफर जब वदमाग़ ने काम करना शुरू वकया तो सबसे
पहले उसके वदमाग़ में यही सिाल उभरा वक ऐसा कैसे हो
सकता है ? तहखाने में मौज़ूद उसकी गैरकाऩूनी चीजें कहाॅ गईों?
क्या सब कुछ जल गया??? मगर सिाल ये है वक अगर जल
गया होता तो ररत़ू को कुछ तो उसके अिशेर् सब़ूत के तौर पर
वमलते?

अजय वसोंह कुछ समझ नहीों पा रहा था वक ये सब क्या है ?


कहीों ऐसा तो नहीों वक उसकी बेटी इस बारे में झ़ूॅठ बोल रही
हो वक तहखाने में उसे कुछ नहीों वमला है ? मगर ररत़ू उससे
झ़ूॅठ क्योों बोलेगी? बल्कि होना तो ये चावहए था वक अगर उसके
ल्कखलाफ कोई सब़ूत उसे वमल जाता तो अब तक ररत़ू को उसे
हथकडी लगा कर वगरफ्तार कर लेना चावहए था। मगर उसने ऐसा
कुछ भी नहीों वकया, क्योों? आवखर क्या चक्कर है ये? अजय
वसोंह वजतना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था। यहाॅ तक
वक सोचते सोचते उसका वदमाग़ हैं ग सा होने लगा था।

"ये तो बहुत ही गोंभीर बात है ररत़ू बेटी।" अभय ने


कहा__"फैक्टरी में बम्ब लगाया वकसी ने और सब कुछ जला
कर खाक़ कर वदया। भला ये सब वकसने वकया होगा? क्या ये
वकसी दु श्मन का वकया िरा है ?"

"ये तो डै ड ही बता सकते हैं ।" ररत़ू ने कहा__"डै ड को ये


अच्छी तरह पता होगा वक इस वबजनेस में उनका कौन दु श्मन
है ? वजसने इतने बडे काम को अोंजाम वदया है ।"

"मैं खुद इस बात से है रान ि परे शान हूॅ बेटी।" अजय वसोंह
बोला__"क्योोंवक मेरी समझ में मेरा ऐसा कोई भी शत्ऱू नहीों है

158
वजसने ये सब वकया हो। मेरे सबसे बहुत अच्छे सोंबोंि थे और हैं
बेटी। भला मैं वबना िजह और वबना सब़ूत के वकसका नाम ल़ूॅ
वक हाॅ इसी ने मेरी फैक्टरी में आग लगाई है ?"

"लेवकन वबना िजह के ये भी तो सोंभि नहीों है भइया वक कोई


भी शख्स हमारे साथ इतना बडा कारनामा करे ?" अभय ने
कहा__"मैं समझ सकता हूॅ और जानता हूॅ वक यकीनन
आपका कोई दु श्मन नहीों है लेवकन आप खुद सोवचए वक वबना
वकसी िजह के ये सब कोई क्योों करे गा?"

"मैं नहीों जानता छोटे ।" अजय वसोंह हताश भाि से बोला__"मैं
नहीों जानता वक वकसने ये सब करके मुझसे अपनी दु श्मनी
वनकाली है ? अगर जानता तो क्या मैं इस तरह चुप चाप बैठा
होता? बल्कि अगर जानता वक ये सब वकसने वकया है तो अपने
हाथोों से उसे गोली मार दे ता। ये भी न प़ूॅछता गोली मारने से
पहले उससे वक ये सब उसने क्योों वकया था?"

"आप परे शान मत होइए डै ड।" ररत़ू ने कहा__"मैं इस सबका


पता लगा कर ही रहूॅगी वक वकसने ये सब वकया है ?"

इसके साथ ही डर ाइों ग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ दे र बाद


सब िहाॅ से चले गए। अजय वसोंह अपने कमरे में चला गया,
उसका वसर बडा जोरोों से ददफ कर रहा था। कमरे में आकर िह
बेड पर आखें बोंद करके लेट गया।

"क्या हुआ अजय?" कमरे के अोंदर आते ही प्रवतमा ने कमरे का


दरिाजा बोंद करने के बाद कहा__"तबीयत तो ठीक है न
तुम्हारी?"
"वसर में बडा ददफ हो रहा है प्रवतमा जरा कोई टे बलेट तो दो।"

159
अजय वसोंह ने कहा__"ऐसा लगता है जैसे वसर फट जाएगा।"

प्रवतमा ने पास ही रखी आलमारी से एक बाक्स मे रखी कुछ


दिाइयोों से एक गोली वनकाली और अजय वसोंह की तरफ बढा
वदया।

"अरे क्या गोली ऐसे ही खाऊगा?" अजय वसोंह बोला__"पानी भी


दो न।"
"पानी बगल से टे बल में रखा है।" प्रवतमा ने कहा__"मैं पहले
पानी ही लाई थी यहाॅ, जानती थी वक तुम्हारा वसर ददफ कर
रहा है और तुम्हें इसके वलए गोली खानी पडे गी।"

अजय वसोंह कुछ न बोला। बगल में टे बल पर रखे पानी के ग्लास


को एक हाॅथ से उठाया और गोली को मुह में डालने के बाद
उसे पानी के साथ वनगल गया। जबवक प्रवतमा बेड पर उसके
समीप ही बैठ गई।

"अब तो तुम्हें इतना परे शान नहीों होना चावहए अजय।" प्रवतमा ने
हिे स्वर में कहा__"क्योोंवक तुम वजस बात से डर रहे थे िो तो
हुई ही नहीों। हमारी बेटी को फैक्टरी के तहखाने में कुछ भी
ऐसा नहीों वमला वजससे ये सावबत हो वक तुम गैर काऩूनी िोंिा भी
करते हो। इस वलए अब जब ऐसा कुछ उसे वमला ही नहीों तो
वकसी बात से डरने या परे शान होने की अब कोई जरूरत नहीों
है तुम्हें। बस शुकर मनाओ वक फैक्टरी के साथ साथ िो सब भी
जल गया।"

"तुम सबसे बडी बात पर ग़ौर ही नहीों कर रही हो प्रवतमा।"


अजय वसोंह ने कहा__"तुम इस बात की तरफ ध्यान क्योों नहीों दे
रही हो वक फैक्टरी के तहखाने में बम्ब वफट वकया था वकसी

160
ने?"

"हाॅ तो?" प्रवतमा ने लापरिाही से कहा।


"तो ये वक वजसने भी तहखाने में बम्ब लगाया।" अजय वसोंह
बोला__"क्या उसने न दे खा होगा वक तहखाने में क्या क्या चीजें
मौज़ूद हैं ? बल्कि यकीनन दे खा होगा उसने। अब अगर हमारी
बेटी ये कह रही है वक उसे तहखाने में कुछ नहीों वमला तो
इसका क्या मतलब हो सकता है ? इसके तो दो ही मतलब हो
सकते हैं , और िो ये वक या तो हमारी बेटी हमसे झ़ूॅठ बोल
रही है वक उसे तहखाने में कुछ नहीों वमला या वफर ऐसा हो
सकता है वक वजसने तहखाने में बम्ब लगाया उसने ही तहखाने में
मौज़ूद सारी गैर काऩूनी चीजोों को गायब कर वदया।"

प्रवतमा चवकत सी दे खती रह गई अजय वसोंह को। कुछ दे र य़ूॅ


ही दे खने के बाद उसने कहा__"ओह माई गाड अजय, ये तो
मैंने सोचा ही नहीों था। हद हो गई, भला इस बात पर मेरा
ध्यान क्योों नहीों गया?"

"क्योोंवक औरतोों का वदमाग़ उसके घुटनोों में होता है न।" अजय


वसोंह हस पडा।
"ज्यादा शुभम कुमार बनने की कोवशश मत करो।" प्रवतमा ने
बुरा सा मुह बनाया था।

"शु शुभम कुमार???" अजय वसोंह चकरा गया__"ये वकस


वचडीमार का नाम है ?"
"तुम शुभम कुमार को नहीों जानते ?" प्रवतमा ने है रत से
कहा__"अरे ये बहुत बडा वडटे ल्कक्टि है । जास़ूसी टाइप के
उपन्यास भी वलखता है ये। इसके आगे जेम्स बाॅण्ड िगैरा सब
फेल हैं । ऐसा इसका मानना है , हलाॅवक मैं इसे ज्यादा भाि

161
नहीों दे ती"

"हाहाहाहा ज्यादा भाि दे ना भी नहीों मेरी जान।" अजय वसोंह


हसा__"िनाफ उसका जास़ूसी वदमाग़ तुम्हारे वपछिाडे में घुस
जाएगा।"

"उसके बारे में ऐसा मत बोलो वडयर।" प्रवतमा ने कहा__"िो


बडा शरीफ लडका है ।"
"लडका है ???????" अजय वसोंह चौोंका__"ये क्या कह रही
हो?"

"अरे अभी िो लडका ही है ।" प्रवतमा ने कहा__"बेचारा अभी


कुिाॅरा है न इस वलए।"
"हाहाहाहा अच्छा अब छोडो इस लडके की बात को।" अजय
वसोंह ने एकाएक गोंभीर होकर कहा__"मैं ये कह रहा था वक
हमारी बेटी को अगर तहखाने से कुछ नहीों वमला तो इसकी यही
दो िजह हो सकती हैं ।"

"लेवकन ररत़ू इस बात को क्योों छु पाएगी भला?" प्रवतमा ने


कहा__"बल्कि अगर उसके पास कोई ऐसा सब़ूत होता तो िह
वकसी भी समय तुम्हारे हाॅथ में हथकडी डाल दे ती। मुझे तो
लगता है वक ररत़ू को सचमुच तहखाने से कुछ नहीों वमला है।
बल्कि तुम्हारा ये खयाल ज्यादा सही लगता है वक तहखाने में
टाइम बम्ब लगाने िाले ने ही उन सब चीजोों को गायब वकया
है ।"

"लेवकन ये है रत के साथ साथ अविश्वास िाली बात भी है वक बोंद


फैक्टरी के अोंदर तथा तहखाने का भी लाॅक तोड कर िो शख्स
अोंदर पहुॅच कैसे गया?" अजय वसोंह ने कहा__"और तहखाने से

162
सारी चीजें गायब कैसे वकया उसने ? क्या िो सब चीजें िह अपने
साथ ले गया? जबवक फैक्टरी के गेट पर तैनात दरबान के
अनुसार गेट पर बाहर से ताला ही लगा था। कहने का मतलब ये
वक ये सब अगर उसने ही वकया है तो कैसे वकया ये?"

"यकीनन अजय।" प्रवतमा ने गहरी साॅस लेते हुए कहा__"ये


बडे ही आश्चयफ की बात है । कोई बोंद फैक्टरी के तहखाने में
आसानी से पहुॅच गया और अपना सारा काम बडी आसानी से
ही करके उडनछ़ू हो गया। वकसी को इस सबकी कानोों कान
भनक तक न लगी। यकीन नहीों होता।"

"अगर ऐसा ही है ।" अजय वसोंह कह रहा था__"तो सबसे बडी


परे शानी की बात तो अब हुई है प्रवतमा। जरा सोचो वजसने भी ये
सब वकया है िो कभी भी हमारे ल्कखलाफ िो सब चीजें पुवलस
तक पहुॅचा सकता है , या वफर उन सब चीजोों के आिार पर
िह कभी भी हमें ब्लैकमेल कर सकता है । हमारा जीना हराम
कर सकता है प्रवतमा...समझ में नहीों आता वक अब क्या करूॅ
मैं??"

"अब तो यही कर सकते हैं वक हम उस शख्स के ब्लैकमेल


करने का इों तजार करें ।" प्रवतमा ने कहा__"इसके वसिा द़ू सरा
कोई रास्ा भी नहीों है ।"

अजय वसोंह वचोंता ि परे शान सा बैठा रह गया। उसे क्या पता था
वक ये सब चक्कर चलाने िाला िही है वजसे िह होटल या ढाबे
में कप प्लेट िोने िाला समझता है ।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

163
"ये क्या कह रहे हो तुम?" जगदीश ने चौोंकते हुए सामने सोफे
पर बैठे विराज की तरफ दे ख कर कहा__"अजय वसोंह की
फैक्टरी के तहखाने से िो सारी चीजें तुमने गायब करिाई
थी???"

"यही सच है अोंकल।" विराज ने अजीब भाि से कहा__"और ये


सब करने के पीछे भी मेरा एक मकसद था।"
"कैसा मकसद राज?" गौरी ने हैरानी से अपने बेटे की तरफ
दे खते हुए कहा।

"मैं नहीों चाहता था वक अजय वसोंह अपनी ही बेटी की िजह से


इतना जल्दी काऩून के हाॅथ लग जाए।" विराज ने कहा__"अगर
ऐसा हो जाता तो खेल का मजा ही खराब हो जाता अोंकल। जेल
में पहुॅच कर अजय वसोंह को िो मजा नहीों वमल पाता जो मजा
आने िाले समय में मेरे द्वारा उसे वमलने िाला है । उसकी जगह
जेल में नहीों है अोंकल बल्कि जेल के बाहर ही है । मैं उसे कभी
भी कोई वशकायत का मौका नहीों दे ना चाहता, िनाफ जेल में बोंद
होने पर िो ये कहे गा वक मुझे तो अपने हाॅथ पैर चलाने का
मौका ही नहीों वदया गया। अब आप ही बताइए अोंकल, क्या ऐसा
करना सही होगा? नहीों न......इसी वलए मैंने उसे उसकी बेटी
द्वारा जेल जाने से बचा वलया।"

"िो सब तो ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"मगर मुझे ये


समझ नहीों आ रहा वक तहखाने से िो सब चीजें तुमने कैसे और
कब गायब करिाई?"

"आपके सभी सिालोों का जिाब आपको द़ू ॅगा अोंकल।" विराज


ने हस कर कहा__"लेवकन उससे पहले मैं गरमा गरम चाय पीना
चाहता हूॅ। वफर तसल्ली से आपको समझा समझा कर सब कुछ

164
बताऊगा।"

"ये तो चीवटों ग है भइया।" वनवि ने बुरा सा मुॅह बना कर


कहा__"वकतना अच्छा मजा आ रहा था मुझे और आपने इों टरिल
करके सारा मजा ही खराब कर वदया मेरा। जाइए मुझे बात ही
नहीों करना आपसे, हाॅ नही तो।"

"तुमने वबलकुल ठीक कहा बेटी इसने सारा मजा खराब कर


वदया।" जगदीश ने हस कर कहा__"मैं भी अब इससे बात नहीों
करूॅगा। अपने आपको बडा स़ूरमा समझने लगा है ये। है न
बेटी?"

"वबलकुल।" ररत़ू ने मुॅह फुला कर कहा__"हाॅ नहीों तो।"


"चुप कर।" सोफे से उठते हुए गौरी ने वनिी को वझडका__"हाॅ
नहीों तो की बच्ची, िनाफ लगाऊगी एक।"

"भइया।" वनिी ने विराज की तरफ मास़ूवमयत से दे खकर


कहा__"दे ख लीवजए आपकी जान को माॅ एक लगाने को कह
रही हैं । आप ऐसे कैसे चुप बैठ सकते हैं ? हाॅ नहीों तो।"

गौरी तब तक अोंदर वकचेन की तरफ जा चुकी थी। जबवक वनवि


की इस बात से विराज बोला__"मैं चुप नहीों बैठा हूॅ लेवकन
माॅ को कुछ कह भी तो नहीों सकता न गुवडया। समझा कर
न।"

"हाों एॅ।" वनवि एक दम से विराज से द़ू र हटते हुए बोली__"अब


तो पक्का आपसे बात नहीों करूॅगी। दे ख लेना, हाॅ नहीों तो।"
इतना कहने के बाद िह उठी और जगदीश िाले सोफे पर जा
कर जगदीश के वबलकुल पास बैठ गई मुॅह फुला कर।

165
"आपको पता है अोंकल।" विराज ने वनवि की तरफ दे खते हुए
कहा__"आज शाम को मैं वशप द्वारा समोंदर में घ़ूमने का मजा
लेने की सोच रहा था गुवडया के साथ, लेवकन कोई बात नहीों मैं
माॅ को लेकर चला जाऊगा। ठीक रहे गा न अोंकल..माॅ भी
समोंदर में घ़ूमने का आनोंद ले लेंगी।"

"िाॅि, समोंदर में बहुत मजा आएगा न भइया?" वनवि वबजली


की िीड से जगदीश िाले सोफे से उठकर विराज के पास उससे
वचपक कर बैठते हुए बोली__"मैं न वशप के ऊपर बैठ़ूॅगी जैसे
वफल्मोों में हीरो वहरोईन बैठते हैं , हाॅ नहीों तो।"

"त़ू कैसे बैठ जाएगी भला?" विराज ने कहा__"त़ू तो मेरे साथ


जाएगी ही नहीों। मैं माॅ को लेकर जाऊगा।"
"ऐसा नहीों हो सकता।" वनवि ने अकड कर कहा__"मैं जाऊगी
और आपके ही साथ जाऊगी, और अगर आप मुझे अपने साथ
नहीों जाएॅगे तो ये आपके वलए अच्छा नहीों होगा। दे ख लेना, हाॅ
नहीों तो।"

"नहीों िो माॅ कह रही थीों वक गुवडया यहीों रह कर अपनी पढाई


करे गी।" विराज ने कहा__"और िो मेरे साथ वशप में घ़ूमने
जाएों गी। इस वलए तुम मेरे साथ नहीों जा पाओगी।"

"मैं कुछ नहीों जानती।" वनवि ने सहसा रुआॅसे होकर


कहा__"मैं आपके साथ ही जाऊगी। क्या आप मुझे नहीों ले चलेंगे
अपने साथ....मैं आपकी जान हूॅ ना?" कहते कहते वनवि की
आॅखोों से आॅस़ू छलक गए, ये दे ख विराज का कलेजा
हाहाकार कर उठा। उसे खुद पर बेहद गुस्सा आया वक िो
अपनी गुवडया को इस तरह भला कैसे रुला सकता है ?

166
विराज ने उसे अपने सीने से छु पका वलया, वनवि खुद भी उससे
वकसी फेिीकोल की तरह वचपक गई थी।

"मुझे माफ कर दे मेरी गुवडया।" वफर विराज ने भराफ ए गले से


कहा__"मैं तो बस मजाक कर रहा था। तुझे वचढा रहा था और
कुछ नहीों। चल अब रोना नहीों...त़ू जानती है न वक मैं अपनी
जान की आॅखोों में आॅस़ू नहीों दे ख सकता। और हाॅ...वशप
में जाने का कोई प्रोग्राम नहीों था िो तो बस ऐसे ही कह रहा था
मैं लेवकन अब जरूर हम दोनो सोंडे को वशप में बैठ कर समोंदर
में घ़ूमेंगे और ख़ूब मजा करें गे ठीक है न?"

"हाॅ नहीों तो।" वनवि ने हिा सा वसर उठा कर विराज की


तरफ मुस्कुरा कर कहा और वफर से उसके सीने में अपना चेहरा
छु पा वलया। सामने बैठा जगदीश ओबराय ये सब दे ख कर
मुस्कुरा रहा था। उसकी आॅखोों में भी आॅस़ू थे।

"कहाॅ घ़ूमने जाने और मजा करने की बात कर रहे हो तुम


दोनो?" हाॅथ में टर े वलए आते हुए गौरी ने कहा।

"पता है माॅ।" वनवि ने विराज के सीने से वसर उठा कर तथा


मारे खुशी के कहा__"सोंडे को मैं और भइया समुोंदर में वशप में
बैठ कर घ़ूमेंगे और ख़ूब मस्ी करें गे। हाॅ नहीों तो।" वनवि की
इस बात से विराज ने अपना वसर पीट वलया जबवक......

"क्या???" गौरी ने है रानी से वनवि और विराज की तरफ दे ख


कर कहा__"नहीों तुम लोग कहीों नहीों जाओगे। समुोंदर में तो
वबलकुल भी नहीों।"

167
गौरी ने सबको चाय दी और खुद भी एक कप लेकर िहीों सोफे
पर बैठ गई। जबवक उसकी इस बात से वनवि का चेहरा उतर
गया। उसने कातर भाि से विराज की तरफ दे खा। विराज ने
इशारे से कहा वक 'त़ू वचन्ता मत कर हम जरूर चलेंगे'। विराज
के इस इशारे से वनवि का चेहरा वफर से ल्कखल उठा। और अब
िह मुस्कुराते हुए आराम से चाय पीने लगी। उसे य़ूॅ मुस्कुराता
दे ख गौरी का माथा ठनका, बोली__"अब इस तरह मुस्कुरा क्योों
रही है ? चुप चाप चाय पी।"

"अब क्या मैं मुस्कुरा भी नहीों सकती माॅ?" ररत़ू ने हस कर


कहा__"आप भी कमाल करती हैं ।" इतना कहने के बाद
एकाएक ही उसने विराज की तरफ दे खा और िीरे से
बोली__"हाॅ नहीों तो।"

उसकी इस वक्रया से चाय पी रहे विराज को जोर का ठस्का लग


गया और िह खाॅसने लगा। खाॅसने के साथ साथ िह हस भी
रहा था। जबवक उसके इस प्रकार एकाएक खाॅसने से वनवि
हडबडा गई। जानती तो िह भी थी वक उसके भाई को अचानक
ठस्का क्योों लगा था वजसकी िजह से उसे खाॅसी आने लगी थी
इस वलए पकडे जाने के डर से हडबडा गई थी िह।

"क्या हुआ बेटा?" गौरी ने चौोंकते हुए प़ूछा।


"ये दोनो एक नम्बर के शैतान हैं गौरी बहन।" जगदीश ठहाका
लगा कर हसते हुए बोला था__"तुम नहीों समझ पाई वक इन
दोनो ने आपस में क्या ल्कखचडी पका ली है ?"

"मैं सब जानती हूॅ भइया।" गौरी ने भी हस कर कहा__"ये


दोनो सोचते हैं वक ये मुझे बेिक़ूफ बना लेते हैं । ये दोनो ये भ़ूल
जाते हैं वक इन्होोंने मुझे नहीों बल्कि मैंने इन दोनो को पैदा वकया

168
है ।"

विराज और वनवि ने एक द़ू सरे की तरफ अजीब भाि से इस


तरह दे खा जैसे चोरी पकडी गई हो।

"खैर, अब बताओ राज।" जगदीश ने कहा__"वक फैक्टरी के


तहखाने से िो सब चीजें तुमने कब और कैसे गायब करिाई थी
और ये भी वक वकसके द्वारा?"

"आपको याद होगा अोंकल।" विराज ने कहना शुरू वकया__"मैंने


आपसे कहा था वक 'अजय वसोंह तो ये सोच भी नहीों सकता वक
मैं अरविोंद सक्सेना के द्वारा अभी और क्या खेल खलने िाला
हूॅ'। जैसा वक मैने आपको बताया था वक सक्सेना की कमजोरी
फोटोग्राफ्जस के रूप में मेरे पास थी। इस वलए िह मेरे कहने पर
कुछ भी करने को मजब़ूर था, और बदले में मैं उसे उसके
पररिार सवहत सुरवक्षत विदे श भेजिा द़ू ॅगा। अजय वसोंह की नजर
में सक्सेना पहले ही उससे अपना वहसाब वकताब करके विदे श जा
चुका था जबवक सच्चाई कुछ और ही थी। सक्सेना तो उस वदन
विदे श जाने िाली फ्लाइट पर बैठा था वजस रात अजय वसोंह की
फैक्टरी में आग लगी थी। मुझे सक्सेना के द्वारा ये पता था वक
हप्ते में एक वदन ि रात फैक्टरी में मजद़ू रोों का अिकाश रहता
है , यानी फैक्टरी बोंद रहती है । इसी बात का खयाल रख कर ही
प्लान बनाया गया था। सक्सेना के अनुसार फैक्टरी का मेन गेट
जो वक लोहे से बना हुआ है , उसकी चाभी मैनेजर या अजय
वसोंह के पीए के पास रहती है । सक्सेना ने उस चाभी की
डु प्लीकेट चाभी पहले ही बनिा ली थी। इस वलए फैक्टरी के
अोंदर जाने की समस्या नहीों रह गई थी। समस्या थी तहखाने के
अोंदर पहुॅचने की। क्योोंवक तहखाने के गेट पर वपनकोड वसस्टम
िाला लाॅक था, वजसका वपनकोड वसफफ अजय वसोंह ही जानता

169
था। इस वलए वपनकोड हावसल करने के वलए वदमाग़ का प्रयोग
वकया गया। सक्सेना को ये तो पता ही था वक अजय वसोंह
अिकाश िाले वदन या रात ही अपने गैर काऩूनी िोंिे िाला काम
करता था। मैने सक्सेना के द्वारा वपनकोड हावसल करने के वलए
उस रात तहखाने के वपनकोड लाॅक वसस्टम पर एक पाॅवलवथन
नम्बरोों के ऊपर इस प्रकार वचपकिा दी वक अजय वसोंह ग़ौर से
दे खने पर भी ताड न पाए वक वसस्टम के ऊपर पाॅवलवथन चढी
हुई है । अजय वसोंह जब तहखाने के अोंदर जाने के वलए वसस्टम
पर वपन नम्बर डालता तो िो सब वपन नोंबसफ उस पाॅवलवथन में
अजय वसोंह के वफोंगर वप्रोंटटस के रूप में छप जाते। यहाॅ पर
एक सिाल ये भी था वक अगर वपन का कोई नम्बर यानी सोंख्या
एक से दो या तीन बार अजय वसोंह के द्वारा डाल दी जाती तो
कैसे पता चलता वक उस सोंख्या के वकतने नोंबर थे? एक्सपटफ ने
बताया था वक जो नोंबर एक बार डाला जाएगा िो पाॅवलवथन पर
कम दबाि के साथ छपेगा जबवक अगर कोई नोंबर दो या तीन
बार दबाया जाएगा िो ज्यादा दबाि के साथ छपेगा। इसके बाद
उन नोंबरोों को चेक कर वलया जाएगा। मैं एक्सपटफ की इस बात
से मुतमईन न था क्योोंवक इससे नोंबर इिर उिर भी हो सकते
थे। इस वलए पाॅवलवथन के साथ साथ मैने िहाॅ पर एक वमनी
कैमरा इस प्रकार लगिाया वक उसमें अजय वसोंह का वपन कोड
डालना िष्ट वदखाई दे । बस वफर क्या था..अजय वसोंह जब
िहाॅ आया तो सब कुछ ररकाडफ हो गया। अजय वसोंह कभी सोच
भी नहीों सकता था वक कोई उसके वलए वकतना बडा खेल रच
रहा है । ये सब काम तब हुआ था जब सक्सेना ने पाटफ नरवशप
नहीों तोडी थी अजय वसोंह से।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है ।" जगदीश ने बीच में ही विराज की


बात काटते हुए कहा__"वक ये सब तुम सक्सेना से पहले ही
करा चुके थे? लेवकन इस बीच अगर अजय वसोंह वपनकोड बदल

170
दे ता तो क्या करते तुम?"

"मेरे वदमाग़ में भी यही सिाल था अोंकल।" विराज ने


कहा__"इस वलए जब द़ू सरा अिकाश हुआ फैक्टरी में तो सक्सेना
ने मेरे कहने पर वफर से िहाॅ पर वमनी कैमरा लगा वदया था,
कारण यही जानना था वक अजय वसोंह ने वपनकोड बदल वदया है
या पहले िाला ही है । मगर बाद में पता चला वक वपनकोड पहले
िाला ही था।"

"चलो ये तो ठीक है।" जगदीश ने कहा__"लेवकन इतना कुछ


पता करने के बाद तुमने ये सब पहले ही क्योों नहीों कर वदया
था? मेरा मतलब है वक पहले ही फैक्टरी में आग क्योों नहीों
लगिाई थी, इतने वदन बाद ही क्योों वकया ऐसा?"

"इसमें भी एक मजेदार खेल छु पा था अोंकल।" विराज ने मुस्कुरा


कर कहा था__"मुझे पता था वक अजय वसोंह की बेटी पुवलस की
टर े वनोंग कर रही है , उसकी टर े वनोंग के बाद सीिा उसे वकसी थाने
में चाजफ सम्हाल लेना था। मैंने सोचा क्योों न अजय वसोंह की बेटी
को उसके थाना इों चाजफ बनते ही उसके बाप की फैक्टरी का केस
सौोंप कर उसे एक तोहफा वदया जाए। बस यही सोच कर कुछ
वदन रुका रहा था मैं। आपसे कहा था वक मोंत्री जी से बात
करके ररत़ू वसोंह बघेल को िहीों का थाना उसकी पहली पोल्कस्टोंग में
वमले। बस सब कुछ सेट करने के बाद प्लान के अनुसार काम
शुरू हो गया। फैक्टरी के बाहर गेट पर एक ही दरबान था उस
रात, द़ू सरा दरबान नहीों था। पता चला था वक उस रात उसकी
बीिी को बच्चा होने िाला था इस वलए िह छु ट्टी लेकर चला गया
था। उसकी जगह द़ू सरा कोई दरबान था ही नहीों। एक दरबान
बचा था िह भी डबल ड्य़ूटी की िजह से उस रात आिी रात के

171
समय कुस़ी में बैठा बार बार जम्हाई ले रहा था। उसे इस तरह
जम्हाई लेता दे ख सक्सेना ने उसे क्लोरोफाॅम डाला हुआ रुमाल
सुॅघा वदया। कुछ ही पल में बेचारा अोंटा गावफल हो गया। उसके
बाद कोई समस्या ही नहीों थी। सक्सेना डु प्लीकेट चाभी की
सहायता से फैक्टरी का गेट खोल कर अोंदर गया उसके साथ
चार आदमी और थे उसकी सहायता के वलए। सबके अोंदर आते
ही सक्सेना ने अोंदर से गेट भी बोंद कर वलया। तहखाने के पास
पहुॅच कर उसने तहखाने के गेट पर लगे वपन वसस्टम पर कोड
नोंबर डाला और दरिाजा खोल कर तहखाने के अोंदर पहुॅच
गया। सभी ने तहखाने में मौज़ूद गैर काऩूनी सामान को अपने
साथ लाई हुई बोररयोों में भरना शुरू कर वदया। एक घोंटे बाद िो
सब लोग तहखाने में रखी हर गैर काऩूनी चीज को बोररयोों में भर
वलया था। उसके बाद िहाॅ तीन टाइम बम्ब लगा कर िो सब
सुरवक्षत बाहर आ गए। फैक्टरी का बाहर िाला गेट उसी तरह
बाहर से लाॅक करके िो सब िहाॅ से लौट आए। अपने पीछे
कोई सब़ूत नहीों छोोंडा था उन्होने। हलाॅवक बम्ब के फटने पर
कोई सब़ूत रह ही नहीों जाना था लेवकन बाहर गेट पर सब़ूत हो
सकते थे इसके वलए उन लोगोों ने पहले से ही अपने हाथोों में
दस्ाने पहन रखे थे। इतनी बडी बात को अोंजाम वदया गया
लेवकन वकसी को उस रात कोई भनक तक न हुई। कारण एक
तो रात का समय, द़ू सरे बाॅकी स्टाफ फैक्टरी से द़ू र बने
आवफसोों में था और सबसे बडी बात वकसी को गुमान ही नहीों था
वक कोई इस सबके वलए शहर से द़ू र यहाॅ आएगा।"

"तो आवखर इस तरह तुमने सक्सेना और कुछ आदवमयोों के द्वारा


ये सब करिाया था?" जगदीश ओबराय ने कहा__"सक्सेना तो
उसी रात अपने पररिार के साथ बम्ब फटने के तीन घोंटे पहले
ही विदे श जाने के वलए फ्लाइट में बैठ चुका था, वकन्तु िो
आदमी कौन थे? उन सबको इस बारे में पता है , हो सकता है

172
िो इस सबका कभी भाॅडा फोड दें तो क्या करोगे तुम?"

"पहली बात तो िो ये सब करें गे नहीों क्योोंवक िो यही जानते हैं


वक ये सब उन्होने वकसी मावफया गैंग के वलए वकया है।" विराज
ने कहा__"सक्सेना भी उन सबकी तरह ही उस रात अपने चेहरे
पर नकाब पहना हुआ था। सक्सेना ने उनसे यही कहा था वक िो
मावफया का आदमी है। इस सबका कोई डर नहीों है । द़ू सरी बात
ये है वक मैं खुद भी ज्यादा वदनोों तक इस सबको अजय वसोंह से
छु पा कर नहीों रख़ूॅगा। बल्कि डों के की चोोंट पर उसके सामने
जाकर उसे बताऊगा वक उसके साथ जो कुछ भी अब तक हुआ
है िो सब मैंने वकया है ।"

"िो सब तो ठीक है राज।" जगदीश ने कहा__"लेवकन इों िेक्टर


ररत़ू तो छानबीन कर ही रही है न? सोंभि है वक िह वकसी तरह
इस सबका पता लगा ले वक ये सब तुमने वकया है तो??"

"उससे कुछ भी फकफ नहीों पडता अोंकल।" विराज ने


कहा__"क्योोंवक आगे चल कर मैं खुद ही ये सब उन लोगोों को
बताऊगा वक मैंने ही ये सब वकया है । और यकीन मावनए अोंकल
उनमें से कोई भी मेरा बाल भी बाॅका नहीों कर सकेगा। रही
बात उस पुवलस िाली की तो िो भी मेरा कुछ नहीों वबगाड
सकती, क्योोंवक सब कुछ जान लेने से या पता कर लेने से कुछ
नहीों होता। बल्कि वकसी भी चीज को सावबत करने के वलए उस
काऩून िाली के पास सब़ूत और गिाह होने चावहए, वबना सब़ूत
के िो मेरा कुछ नहीों वबगाड सकती। और सब़ूत उसे इस जनम
में तो क्या वकसी भी जनम में नहीों वमलेंगे।"

"जुमफ चाहे वजतनी सफाई से वकया जाए राज।" जगदीश ने


कहा__"िो अपने पीछे कोई न कोई ऐसा सब़ूत जरूर छोोंड

173
जाता है वजसकी िजह से िो एक वदन काऩून की वगरफ्त में आ
जाता है ।"

"आप बताइए अोंकल।" विराज ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैंने इस


सबके पीछे क्या सब़ूत छोडा है ? जबवक मैंने अभी तक जो कुछ
भी वकया िो भी यहीों बैठे बैठे वकया है । इस सबको अोंजाम दे ने
िाले तो कोई और ही थे।"

"अरविोंद सक्सेना तुम्हारे वलए एक कमजोर प्वाइों ट है बेटे।"


जगदीश ने कहा__"मान लो तहकीकात में ररत़ू को ये पता चल
जाए वक इस सबमें सक्सेना का हाॅथ है तो? िह सक्सेना को
शक की वबना पर िर लेगी और वफर उससे सारा सच उगलिा
लेगी। सक्सेना को पुवलस के सामने ये कब़ूल करना ही पडे गा वक
ये सब उसने तुम्हारे कहने पर वकया था।"

"इतनी द़ू र तक जाने की जरूरत ही नहीों पडे गी अोंकल।" विराज


ने कहा__"क्योों वक उससे पहले मैं ही मैदान में आ जाऊगा। मैं
खुद उन लोगोों के सामने इस सबका इकबाले जुमफ करूॅगा। और
पता है अोंकल, अजय वसोंह को ये भी एहसास वदलाऊगा वक
उसका गैर काऩूनी सामान अभी भी मेरे पास ही है , तथा उसके
ल्कखलाफ ऐसे ऐसे सब़ूत भी हैं मेरे पास वजससे उसको काऩून के
लपेटे में आने के वलए जरा भी दे र नहीों लगेगी। बेचारा खुद ही
इस सबके डर से अपनी इों िेक्टर बेटी से मेरी पैरिी करने
लगेगा।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है ।" जगदीश हस पडा__"सोंभािनाओों पर


कुछ नहीों होता, काऩून को तो सब़ूत चावहए। और सब़ूत कोई है
नहीों। िाह....ये तो कमाल हो गया बेटे।"

174
"अभी तो वदमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है
अोंकल।" विराज ने कहा__"जबवक मैदान में खुल कर आना अभी
बाॅकी है । वजस वदन आमने सामने का खेल होगा न उस वदन से
अजय वसोंह हर पल रोएगा, वगडवगडाएगा, रहम की भीख
माॅगेगा मुझसे और मेरी माॅ से।"

"उसके साथ यही होना चावहए राज बेटे।" जगदीश ने


कहा__"जो अपने माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके
साथ इतना वघनौना कमफ वकया ऐसे गोंदे इों सान के साथ वकसी भी
कीमत पर रहम नहीों होना चावहए।"

"उनके वलए रहम शब्द मैंने अपनी वडक्शनरी से वनकाल कर


फेंक वदया है अोंकल।" विराज ने एकाएक ठों डे स्वर में
कहा__"एक एक चीज का वहसाब ल़ूॅगा मैं।"

"मैं तो उस कमीने वशिा को अपने हाथोों से कुिे की तरह


मारूॅगी।" सहसा वनवि ने तपाक से कहा__"मुझे उसकी शकल
से भी नफरत है। हाॅ नहीों तो।"

वनवि के इस तवकया कलाम को सुन कर सब मुस्कुरा कर रह


गए।

अपडे ट.............《 20 》

अब तक.......

"बात तो तु म्हारी ठीक है।" जगदीश हस पडा__"सं भािनाओं पर कुछ नही ं

175
होता, कानू न को तो सबू त चाकहए। और सबू त कोई है नही ं। िाह....ये
तो कमाल हो गया बे टे।"

"अभी तो कदमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है अं कल।" किराज


ने कहा__"जबकक मैदान में खु ल कर आना अभी बाॅकी है। कजस कदन
आमने सामने का खे ल होगा न उस कदन से अजय कसं ह हर पल रोएगा,
कगडकगडाएगा, रहम की भीख माॅगे गा मु झसे और मेरी माॅ से ।"

"उसके साथ यही होना चाकहए राज बे टे।" जगदीश ने कहा__"जो अपने
माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके साथ इतना कघनौना कमग
ककया ऐसे गंदे इं सान के साथ ककसी भी कीमत पर रहम नही ं होना
चाकहए।"

"उनके कलए रहम शब्द मैंने अपनी कडक्शनरी से कनकाल कर िेंक कदया है
अं कल।" किराज ने एकाएक ठं डे स्वर में कहा__"एक एक ची़ि का कहसाब
लू ॅगा मैं।"

"मैं तो उस कमीने कशिा को अपने हाथों से कुिे की तरह मारूॅगी।"


सहसा कनकध ने तपाक से कहा__"मुझे उसकी शकल से भी निरत है।
हाॅ नही ं तो।"

कनकध के इस तककया कलाम को सु न कर सब मुस्कुरा कर रह गए।

अब आगे......

ऐसे ही कुछ वदन गुजर गए। अजय वसोंह अब अपनी हालत पर


काब़ू पा चुका था। बल्कि ये कवहये वक हर बात से काफी हद
तक बेवफक्र हो चुका था। उसकी बेटी ररत़ू द्वारा उसे पता चल
चुका था वक तहखाने में बाॅकी कुछ नहीों वमला था। हलाॅवक
ररत़ू को इस बात के पता होने का सिाल ही नहीों था वक उसका
बाप गैर काऩूनी काम करता है । उसने तो फाॅरें वसक ररपोटफ को
दे खकर यही बताया था वक फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के द्वारा
ही लगी थी। अब उसकी तहकीकात वसफफ इसी तरफ थी वक
फैक्टरी के अोंदर जाकर तहखाने में टाइम बम्ब वकसने लगाया

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था??

ररत़ू को एक सिाल ये भी परे शान कर रहा था वक इस केस की


बारीकी से जाॅच पडताल कराने के पीछे होम वमवनस्टर का क्या
मकसद था?? उसने तो वसफफ केस को ररओपेन करने की
अप्लीकेशन बस दी थी। उसका मकसद तो वसफफ ये पता करना
था वक इस केस में पुवलस ने इस प्रकार की ररपोटफ क्योों बनाई
थी?? द़ू सरी बात ये थी वक उसे लगता था वक फैक्टरी में लगी
आग महज कोई इिेफाक़ की बात नहीों थी। बल्कि उसके वपता
के वकसी दु श्मन द्वारा लगाई गई थी। इस वलए िह इस सबका
पता करके उस ब्यल्कक्त द्वारा अपने वपता के हुए भारी नुकसान
की भरपाई करना चाहती थी। उसे तो इस बात से भी है रानी थी
वक रातोों रात इस शहर के सारे पुवलस वडपाटफ मेंट का तबादला
क्योों कर वदया गया था??? इसके पीछे क्या वसफफ ये िजह थी
वक इस केस की पुवलस ने अपनी प़ूरी ईमानदारी के साथ
छानबीन नहीों की, बल्कि वकसी के कहने पर ऐसी ररपोटफ तैयार
की?? क्या वसफफ यही िजह थी या वफर इसके पीछे भी कोई
ऐसा कारण है जो वफलहाल अभी उसकी समझ से बाहर नजर
आ रहा है ??

अजय वसोंह बेवफक्र जरूर हो गया था वकन्तु इस बात का उसे


एहसास था वक एक तलिार अभी भी उसकी गदफ न पर लटकी
हुई है , जो कभी भी उसका गला रे त सकती है । िह पक्के तौर
पर समझ चुका था वक तहखाने से िह सब चीजें तहखाने में
टाइम बम्ब लगाने िाले ने ही गायब की हैं । िह नहीों जानता था
वक ये सब वकसने वकया है लेवकन इतना अिश्य जानता था वक
दे र सिेर उस ब्यल्कक्त का इस सोंबोंि में कोई न कोई मैसेज
जरूर आएगा। अजय वसोंह उसी मैसेज के इन्तजार में था। द़ू सरी
बात अपने वबजनेस को वफर से खडा करने के वलए िह कायफरत

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भी हो गया था। फैक्टरी भले ही जल गई थी उसकी लेवकन
उसके पास पैसोों की कमी नहीों थी। गैर काऩूनी िोंिे में उसने
बडी िन दौलत इकट्ठी कर ली थी। उसने फैक्टरी को वफर से
शुरू करने के वलए उसकी मरम्मत का काम शुरू करिा वदया
था। इस समय िह रात वदन इसी में ब्यस् रहता था। उसकी
छोटी बेटी नीलम िापस मुम्बई जा चुकी थी। अजय वसोंह फैक्टरी
को वफर से शुरू करने के वलए कायफरत था, इस बात से अोंजान
वक उसके पीछे उसका बेटा वशिा अपने आचरण से क्या होंगामा
खडा करने जा रहा था???

वशिा का ज्यादातर समय अपने आिारा दोस्ोों के साथ मस्ी


करने और गाॅि की वकसी न वकसी लडकी को पटा कर उनके
साथ अपने अोंदर की हिस वमटाने में जाता था। माॅ बाप की
तरह िो भी अपने ही घर की औरतोों ि लडवकयोों को गोंदी नजरोों
से दे खता था और रात वदन अपनी ही माॅ बहनोों तथा चाची को
अपने नीचे लेटाने की सोचता रहता था।

ऐसे ही एक वदन उसकी हरकतोों की िजह से हों गामा हो गया।


अपने बाप की तरह ही उसकी नीयय अपनी चाची करुणा पर
वबगडी हुई थी। करुणा की बेटी वदव्या भी जिान हो रही थी,
हलाॅवक अभी िह स्क़ूल में पढती थी वकन्तु आज की जनरे शन
जरा एडिाॅस होती है , ये अपनी ऊम्र से पहले ही जिान हो
जाते हैं । खेला खाया वशिा चाची की बेटी वदव्या को भी हिस
भरी नजरोों से दे खता था। चाची के गदराए ि ख़ूबस़ूरत वजस्म का
िह शुरू से ही वदिाना था। वकन्तु कुछ कर नहीों सकता था
क्योोंवक िह अपने चाचा अभय के गुस्सैल स्वभाि के चलते डरता
था, द़ू सरी बात उसकी चाची करुणा भी ऐसी िैसी औरत नहीों थी
वजससे िह अपने इरादोों में कामयाब हो पाता। उससे वजतनी हो
सकती थी उतनी कोवशश िह वफर भी वकया करता था। मतलब

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चाची के पास उठना बैठना तथा उनके द्वारा वदये गए हर काम
को खुशी खुशी करना। उनसे हसना बोलना, बातोों के बीच यदा
कदा मजाक भी कर लेना। करुणा ज्यादातर वदन में अकेली ही
होती थी, उसके साथ उसका बारह साल का वदमाग़ से वडस्टबफ
बेटा शगुन रहता था। उसका पवत और बेटी वदव्या सुबह स्क़ूल
चले जाते थे, वफर शाम चार बजे के आस पास ही आते थे।
सुबह दस बजे से चार बजे तक करुणा अकेली ही घर में रहती
थी। हलाॅवक वदन भर िह कोई न कोई काम करती ही रहती
थी तावक उसका समय पास हो जाए।

एक वदन की बात है , उस वदन गुरूिार था। अभय ि वदव्या


रोज की तरह स्क़ूल गए हुए थे। वशिा की आदत थी वक िह
करुणा के घर तभी जाता था जब उसका चाचा और चाचा चाची
की बेटी स्क़ूल चले जाते थे। उसे अपनी चाची करुणा की
वदनचयाफ का बख़ूबी पता था। िह जानता था वक चाचा और वदव्या
के स्क़ूल जाने के बाद ही करुणा नहाने जाती थी बाॅथरूम में।
बाहर मेन गेट बोंद रहता था वकन्तु अोंदर से कुोंडी नहीों लगी होती
थी। करुणा कुोंडी नहीों लगाती क्योोंवक उसे पता होता था वक वशिा
आएगा। खैर, रोज की तरह ही वशिा उस वदन भी अपने
वनिाफ ररत समय पर पहुॅचा। दरिाजे को हिे से खोल कर िह
अोंदर दाल्कखल हो गया। अपनी चाची के नहाने के समय पर िह
इसी वलए आता था वक िह वकसी तरह अपनी चाची को बाथरूम
में नहाते हुए दे ख सके। हलाॅवक ऐसा कभी हुआ नहीों था बल्कि
िह हमेशा अपने मनस़ूबोों में नाकामयाब रहा था। यानी उसकी
चाची कमरे से अटै च बाथरूम में जाने से पहले अपने उस कमरे
का दरिाजा बोंद करके अोंदर से कुोंडी लगा दे ती थी। वशिा को
अपनी चाची को नहाते दे खने के वलए पहले चाची के कमरे में
जाना पडता वफर बाथरूम में। जबवक दरिाजा ही बोंद रहता था
इस वलए िह कुछ कर ही नहीों सकता था। िह अपनी चाची से

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कह भी नहीों सकता था वक आप अपने कमरे का दरिाजा अोंदर
से बोंद मत वकया कीवजए।

मगर कहते हैं न वक होनी अटल होती है । यानी वजस िक्त जो


होना होता है िो होकर ही रहता है। कहने का मतलब ये वक
करुणा बाथरूम में नहाने जाने से पहले आज अपने कमरे का
दरिाजा अोंदर से बोंद करना भ़ूल गई, या य़ूॅ कवहए वक वनयवत
के चलते उससे ये भ़ूल हो गई।

वशिा जब भी आता था तो सबसे पहले ये जरूर चेक करता था


वक उसकी चाची ने दरिाजा अोंदर से बोंद वकया है या नहीों।
हलावक िह जानता था वक चाची दरिाजा खुला रखने की ग़लती
कभी नहीों करती हैं , वफर भी िह अपनी तसल्ली के वलए एक
बार जरूर चेक करता था। आज भी उसने ऐसा ही वकया, और
दरजाजा जब उसकी उम्मीद के विपरीत उसके द्वारा वदए गए
हिे से दबाि में बेआिाज तथा वबना वकसी विरोि के खुलता
चला गया तो िह पहले तो है रान हुआ मगर जल्द ही उसका मन
मय़ूर ख़ूशी से नाचने भी लगा। िह दबे पाॅि कमरे में दाल्कखल
हुआ। उसकी िडकने एकाएक बढ गई थीों वजसके िक िक
करने की हर थाप उसे अपनी कनपवटयोों में बजती महस़ूस हो
रही थी।

कमरे में पहुॅचते ही उसने दे खा वक बेड पर उसकी चाची के िो


कपडे रखे हैं वजन्हें उसकी चाची नहाने के बाद पहनने िाली थी।
वशिा ने आगे बढ कर उन कपडोों को ग़ौर से दे खा। साडी
ब्लाउज पेटीकोट ि ब्रा पैन्टी सब बडे सलीके से रखे हुए थे।
वशिा की नजर ब्रा और पैन्टी पर पडी। उसने वबना कुछ सोचे
समझे तथा वबना एक पल गिाॅए अपना हाॅथ बढा कर बेड से
चाची की लाल रों ग की ब्रा को उठा वलया। ब्रा अच्छी क्वावलटी की

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थी, उसके कप दे ख कर वशिा की आॅखोों में अजीब सी चमक
आ गई। उसने ब्रा को अच्छी तरह से उलटा पलटा कर दे खा।
36D पर नजर पडते ही िह अजीब तरह से मुस्कुराया और वफर
उस ब्रा को अपनी नाॅक के पास लाकर उसे स़ूॅघने लगा। ब्रा
की सुगोंि ने अपना असर वदखाया और वशिा की आॅखें एक
अजीब सी खुमारी से बोंद होती चली गई। उसका रोम रोम
रोमाॅच से भरता चला गया। कुछ दे र इसी तरह िह ब्रा को
स़ूॅघता रहा वफर उसने अपनी आॅखें खोली और ब्रा से नजर
हटा कर उसने बेट पर पडी चाची की पैन्टी की तरफ दे खा।
तुरोंत ही उसने पैन्टी को उठा वलया और उसे भी उलट पलट
कर दे खने लगा 38 साइज पर नजर पडी तो एक बार वफर िह
अजीब तरह से मुस्कुराया और वफर सीघ्र ही पैन्टी के उस भाग
को अपनी नाॅक के पास लाकर स़ूॅघने लगा वजस भाग में
उसकी चाची का योवन भाग होता है। पैन्टी के योवन भाग को
स़ूॅघते ही उसकी आॅखें पुनः बोंद होती चली गई। िह अपनी
नाॅक से जोर जोर से साॅसे खीोंचने लगा। तभी िह वकसी आहट
से बुरी तरह चौोंका, उसने तुरोंत अपनी आॅखें खोल कर इिर
उिर दे खा वकन्तु कहीों कोई नहीों था, बस कानोों में कमरे से
अटै च बाथरूम में पानी वगरने की आिाज सुनाई दे रही थी।

वशिा को सहसा खयाल आया वक चाची तो अोंदर बाॅथरूम में


है । वजसे नहाते हुए दे खने के वलए िह न जाने कब से तडप रहा
था। आज उसे ये सुनहरा मौका वमला है तो उसे ये मौका वकसी
भी कीमत पर गिाॅना नहीों चावहए। ये सोचते ही उसने अपने
हाॅथ में ली हुई ब्रा पैन्टी को बेड पर उसी तरह सलीके से रख
वदया और वफर पलट कर दबे पाॅि बाथरूम के दरिाजे की
तरफ बढा।

बाथरूम के दरिाजे के पास पहुॅच कर उसने दे खा वक बाथरूम

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का दरिाजा बोंद तो था वकन्तु अोंदर से कुोंडी नहीों लगी थी।
बल्कि हिा सा खुला ही नजर आ रहा था। करुणा ने शायद
इस वलए बाथरूम की कुोंडी अोंदर से नहीों लगाई थी वक उसकी
समझ में कमरे का दरिाजा अोंदर से बोंद है , इस वलए वकसी के
अोंदर आने का कोई सिाल ही नहीों है । जबवक इिर वशिा ये
दे ख कर हैरानी के साथ साथ खुश हो गया वक उसकी चाची ने
आज हर तरफ से उसका रास्ा खुला रखा है ।

वशिा ने अपने जोर जोर से िडक रहे वदल के साथ बाथरूम के


दरबाजे में बाहर इस तरफ लगे हैण्डल को आवहस्ा से पकड
कर दरिाजे को बाथरूम की तरफ हिे से ढकेला।
पररणामस्वरूप दरिाजा बेआिाज खुलता चला गया वकन्तु वशिा ने
दरिाजे को ज्यादा खोलना मुनावसब न समझा बल्कि उतना ही
खोला वजतने में िह अोंदर नहाती हुई अपनी चाची को आराम से
दे ख सके। वशिा ने िाड िाड बजती हुई अपने वदल की िडकनोों
के साथ बाथरूम के अोंदर की तरफ दे खा....और यहीों पर दो
चीजें एक साथ हुईों। इिर वशिा ने अोंदर नहाती हुई अपनी चाची
के बेपदाफ वजस्म को दे खा और उिर बाहर से कमरे में दाल्कखल
होकर अभय ने बाथरूम में अोंदर की तरफ झाॅकते अपने भतीजे
वशिा को दे खा। और....और.....

"वशिाऽऽऽऽऽऽऽऽ।" अभय ने शेर की तरह दहाडते हुए आकर


वशिा को पीछे से उसके शटफ की कालर से पकड कर अपनी
तरफ एक झटके से खीोंचा, और खीोंचते हुए ही कमरे से बाहर
बडे से डर ाइों गरूम में ले गया। और इसके बाद शुरू हुई वशिा
की लात घ़ूॅसोों से िुनाई।

"तेरी वहम्मत कैसे हुई हरामखोर अपनी चाची को बाथरूम में इस


तरह नहाते हुए दे खने की??" अभय ने गुस्से से कहने के साथ

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ही वशिा को उठा कर पक्के फसफ पर पटक वदया। वशिा की ददफ
भरी चीख प़ूरे घर में ग़ूॅज गई।

"बोल हरामजादे बोल।" फसफ पर ददफ से कराहते वशिा के पेट में


अभय ने जोर से लात जमाते हुए कहा__"तेरी वहम्मत कैसे हुई
ये नीच काम करने की?? बोल िनाफ यहीों पर वजदा दफन कर
द़ू ॅगा।"

"मु मुझे माफ आहहहह कर दीऽऽवजए चाचा जी।" लात घ़ूॅसोों


के वनरों तर पडने से कराहते हुए वशिा ने अपने हाॅथ जोडने का
प्रयास करते हुए कहा__"मुझे माफ कर दीवजए, मुझसे ग़लती हो
गई। आहहहहह माफ कर दीवजए चाचा जी...अब दु बारा ऐसा
कभी नहीों करूॅगा चाचा जी। आहहहहह एक बार माफ कर
दीवजए आहहहह।"

"तुझे माफ कर द़ू ॅ कुिे ???" वशिा को कालर से पकड कर


उठाते हुए अभय ने गुराफ ते हुए कहा__"नहीों हवगफज नहीों। त़ू माफी
के लायक नहीों है। त़ूने जो नीच काम करने का दु स्साहस वकया
है उसके वलए तो तुझे वजदा मार दे ना चावहए।"

इिर अभय लात घ़ूॅसोों से वशिा की कुटाई वकये जा रहा था


उिर करुणा की हालत भी खराब हो गई थी। दरअसल अभय
जब पहली बार कमरे में आकर वशिा को बाथरूम में झाॅकते
दे ख दहाडा था तभी करुणा उछल पडी थी। अभय के मुख से
वशिा का नाम सुनते ही िह समझ गई थी वक क्या माजरा है ?
उसे इस खयाल ने ही बुरी तरह वहला कर रख वदया था वक
उसकी जेठानी का लडका वशिा जो खुद भी उसके बेटे के समान
ही है िो उसे नोंगी हालत में नहाते हुए बाहर से वछप कर दे ख
रहा था। इतना ही नहीों िह अभय के द्वारा ये नीच काम करते

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हुए रगे हाथोों पकडा भी गया था।

करुणा मारे शमफ के तथा इस हादसे से बाथरूम के फसफ में उसी


तरह नोंगी हालत में बैठी तथा अपने दोनो घुटनोों के बीच मुॅह
छु पाए बुरी तरह रोए जा रही थी। उसकी मारे शमफ और अभय
के डर से वहम्मत ही नहीों हो रही थी वक िह यहाॅ से बाहर
कमरे में जाए। उसे जैसे खुद का होश ही नहीों रहा था वक िह
इस िक्त वकस हालत में है । उसके कानोों में बाहर से आती
आिाजें साफ सुनाई दे रही थी। वजन आिाजोों में वशिा की ददफ
भरी चीखें और अभय का शेर की तरह गरजना शावमल था।

इिर अभय वसोंह वशिा को लात घ़ूॅसोों से मारते मारते अिमरा


कर वदया। वशिा इतनी कुटाई के बाद बेहोश हो चुका। उसके
वजस्म में कई जगह नीले वनशान पड चुके थे। आॅख नाॅक
मुॅह सब फ़ूल गए थे, तथा नाॅक ि होोंठ फट गए थे जहाॅ से
ख़ून बह रहा था। वशिा के बेहोश होने के बाद भी अभय वसोंह
का गुस्सा शान्त नहीों हुआ था। उसने वशिा को उठा कर अपने
कोंिे में डाला और घर से बाहर वनकल गया।

घर से बाहर आकर अभय अपने बडे भाई अजय वसोंह के घर


की तरफ बढता चला जा रहा था। कछ ही दे र में िह अजय
वसोंह के घर के अोंदर डर ाइों गरूम में पहुॅच गया। डर ाइों ग रूम में
इस िक्त कोई नजर न आया।

"भाभीऽऽऽऽ।" अपने कोंिे पर वशिा को उसी तरह वलए हुए


अभय डर ाइों ग रूम में खडे होकर प़ूरी शल्कक्त से वचल्लाया था।

उसके इस तरह वचल्लाने का असर ये हुआ वक दो पल में ही


कमरे से बाहर लगभग दौडती हुई प्रवतमा डर ाइों गरूम में दाल्कखल

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होती नजर आई।

"कट क्या हुआ अभय???" प्रवतमा ने आते ही अभय से


प़ूछा__"क्या बात है तुम इस तरह वचल्लाए क्योों???"

प्रवतमा की बात सुन कर अभय वसोंह ने अपने कोंिे से वशिा को


उतार कर सामने रखे सोफे के पास जाकर सोफे पर वशिा को
लगभग पटक वदया। प्रवतमा की नजर जैसे ही अपने बेटे की
अिमरी हालत पर पडी तो उसके हलक से चीख वनकल गई।

"ये ये क्या हो गया मेरे बेटे को?" प्रवतमा दौड कर वशिा के


चेहरे को अपने हाॅथोों में लेकर रोते हुए बोली__"वकसने की मेरे
बेटे की ऐसी हालत??? अभय इसे कहाॅ से लेकर आए हो
तुम?? प्लीज बताओ क्या हुआ है इसे?? वकसने वकया ये
सब??"

"मैंने की है इसकी ये दु दफसा।" अभय ने बफफ की मावनोंद ठों डे


स्वर में कहा__"और जी तो चाहता है वक इसे अभी जान से मार
द़ू ॅ।"

"अभऽऽऽय।" प्रवतमा एक झटके में खडी होकर वचल्लाते हुए


कहा__"तुम होश में तो हो? ये क्या बोल रहे हो तुम??"
"शुकर मनाइए भाभी वक मैंने अपना होश नहीों खोया था।" अभय
ने पहली बार अपनी भाभी की आॅखोों में आॅखें डाल कर तथा
गुराफ ते हुए कहा__"िनाफ वजस बेटे को बेटा कहते हुए आपकी
जुबान नहीों थकती न उसे आज वजन्दा ही जमीन के अोंदर दफन
कर वदया होता।"

"तुम्हारी वहम्मत कैसे हुई मुझसे इस लहजे में बात करने की?"

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प्रवतमा ने चीखते हुए कहा__"तुम भ़ूल गए हो वक तुम वकससे
बात कर रहे हो? अपने से बडोों की तमीज भ़ूल गए हो तुम?
और.....और मेरे बेटे के बारे में ऐसा बोलने की वहम्मत कैसे
हुई तुम्हारी??"

"मुझे तमीज और सोंस्कार न बताइए भाभी।" अभय ने कठोर


भाि से कहा__"बल्कि इसकी सबसे ज़्यादा जरूरत आपके बेटे
को है , इस हरामजादे को वसखाइए तमीज और सोंस्कार। आज
इसने जो नीच हरकत की है , इसकी जगह कोई और होता तो
अब तक मेरे हाॅथोों जान से मार वदया गया होता। आपका और
बडे भइया का खयाल कर वलया इस वलए इसे वजन्दा छोोंड वदया
है मैंने। मगर आइों दा अगर इसने मेरे घर की तरफ दे खने की भी
जुरफत की तो इसके वलए अच्छा नहीों होगा।"

प्रवतमा को एकाएक झटका सा लगा। सारा गुस्सा सारा चीखना


वचल्लाना साबुन के झाग की तरह डण्डा पडता चला गया। अभय
की इस बात ने उसे अोंदर ही अोंदर बुरी तरह चौोंका वदया वक
उसके बेटे ने कोई नीच हरकत की है । अपने पवत ि बेटे की
रग रग से िावकफ प्रवतमा समझ गई वक उसके बेटे ने कोई
ग़लत हरकत की है , मगर क्या??

"आवखर ऐसा क्या वकया है मेरे बेटे ने अभय??" प्रवतमा ने


तवनक हिे लहजे से कहा__"जो तुम इसे जान से मार दे ने की
बात कर रहे हो?"

"क्या बताऊ आपको?" अभय ने अजीब भाि से कहा__"मुझे तो


आपसे बताने में भी शमफ आती है लेवकन इस हरामजादे को उस
नीच काम करने में जरा भी शमफ नहीों आई।"

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"अभय प्लीज, बताओ मुझे वक क्या वकया है इसने ??" प्रवतमा
का वदल बुरी तरह िडकने लगा था वकसी आशोंकािश।

"ये करुणा को उसके बाथरूम में वछप कर नहाते हुए दे ख रहा


था।" अभय ने गुराफ ते हुए कहा__"आज स्क़ूल में एक मास्टर की
मृत्यु हो गई थी इस वलए स्क़ूल में सभी बच्चोों की छु ट्टी कर दी
गई। मैं भी घर लौट आया, मगर मुझे क्या पता था वक घर आते
ही मुझे इसकी गोंदी करत़ूत दे खने को वमलेगी? जैसे ही मैं कमरे
में दाल्कखल हुआ तो मेरी नजर बाथरूम के दरिाजे से वछप कर
बाथरूम में दे खते आपके इस नीच बेटे पर पडी। ये करुणा को
नहाते हुए जाने कब से दे ख रहा था। इसे इस बात का भी
खयाल नहीों रहा वक करुणा इसकी चाची है जो खुद इसके माॅ
के ही समान है उसे यह इस नीचता से कैसे दे ख सकता है ??"

"सचमुच अभय।" प्रवतमा ने सारी बात सुनते ही दु खी भाि से


कहा__"इसने बहुत बडा पाप वकया है । इसे ऐसा करने की तो
बात द़ू र बल्कि ऐसा करने की सोचना भी नहीों चावहए था। अच्छा
वकया तुमने जो इसे इसकी नीचता की सजा दे दी। ये माफी के
लायक नहीों है अभय....मगर मैं तुमसे हाॅथ जोड कर माफी
माॅगती हूॅ इसकी तरफ से। आइों दा ये ऐसा कुछ नहीों करे गा।"

"वजसके मन में इस तरह के नीच और बुरे विचार एक बार पैदा


हो जाते हैं िो इतना जल्दी जहन से नहीों जाते।" अभय ने
कहा__"इस वलए इससे मेरा भरोसा अब उठ चुका है , और अब
अगर ये मेरे घर के आस पास भी नजर आया तो मुझसे बुरा
कोई नहीों होगा?"

"अब ये कुछ भी ऐसा िैसा नहीों करे गा अभय।" प्रवतमा ने


कहा__"मैं इस बात का िचन दे ती हूॅ तुम्हें। मैं बहुत शवमिंदा

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हूॅ वक मेरे बेटे ने ऐसी नीच ि घवटया हरकत की।"

"ये सब आप और बडे भइया के लाड प्यार का नतीजा है


भाभी।" अभय ने कहा__"आप लोगोों ने हमेशा इसकी ग़लवतयोों
पर पदाफ डाला है , िनाफ ये ऐसा न बनता। मुझे इसकी करत़ूतोों के
बारे में सब पता है , ये गाॅि की हर लडकी और औरत पर
गोंदी नजर रखता है । लेवकन मुझे ये नहीों पता था वक इसकी गोंदी
नजर अपनी ही माॅ समान चाची पर भी हैं , और क्या पता
इसकी ये गोंदी नजरें पररिार की वकन वकन लडवकयोों और औरतोों
पर हैं ??? वजसे अपनी हिस के आगे ररश्तोों का कोई खयाल ही
न हो िो पररिार की वकसी भी औरत के बारे में कुछ भी सोच
और कर सकता है।"

"ऐसा नहीों है अभय।" प्रवतमा की ये सोच कर अब हालत खराब


होने लगी थी वक अभय उसके बेटे की करत़ूतोों को जानता है
और उसके बारे में अब ऐसा बोल रहा है । िो तो जानती ही थी
वक उसका बेटा अपने बाप की तरह ही पररिार की हर लडकी
ि औरत को अपने नीचे लेटाना चाहता है । उसका बस चले तो
िो अपनी माॅ को भी अपने नीचे लेटाने में एक पल भी जाया न
करे । आज उसी बेटे की करत़ूतोों से सारा बना बनाया खेल वबगड
गया था। अभय के सामने ये सब हो गया इस वलए हालातोों को
सम्हालने की गरज से उसने कहा__"मेरा बेटा इतना नीच और
वगरा हुआ नहीों है वक िो पररिार की औरतोों के बारे में ऐसा
सोचे। मैं मानती हूॅ वक उसने ग़लती की है , और इस उमर में
ऐसा हो जाता है , लेवकन ये सच है वक उसे अपनी माॅ समान
चाची को ऐसे वछप कर नहाते हुए नहीों दे खना चावहए था। मैं
समझाऊगी उसे वक ऐसा सोचना भी पाप है। तुम प्लीज ये सब
बातें अजय से मत कहना िो इस सबके वलए इसे माफ नहीों
करें गे , बल्कि इसे मार मार कर घर से वनकाल दें गे।"

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"आप अब भी इसे बचाने के बारे में सोच रही हैं ?" अभय ने
एकाएक आिेशयुक्त लहजे से कहा__"इसकी ऐसी नीच हरकतोों
को बडे भइया से छु पाने की बात कर रही हैं आप? नहीों भाभी
नहीों...इसने जो वकया है उसका पता बडे भइया को भी चलना
चावहए। उन्हें भी तो पता चले वक उनका सप़ूत वकतने बडे बडे
काम करता है , तावक उनका वसर गिफ से उठ जाए।"

प्रवतमा उससे क्या कहती??? उससे क्या कहती वक वजन बातोों


को िह अपने बडे भाई से बताने की बात कर रहा है , उन सब
बातोों का उसके भाई को पहले से ही सब पता है । बल्कि अगर
ये कहा जाए तो जरा भी ग़लत न होगा वक इस सबका असली
कताफ िताफ ही िही है । मगर प्रवतमा ये सब अभय से कह नहीों
सकती थी बल्कि उसने तो प्रत्यक्ष में बस यही कहा__"मैं तुम्हारे
आगे हाॅथ जोडती हूॅ अभय, प्लीज इस सबके बारे में तुम
अजय से कुछ मत कहना। िो इसे घर से वनकाल दें गे। मैं मानती
हूॅ वक इसने जो वकया है िो माफी के कावबल नहीों है लेवकन
प्लीज अभय इसे इसकी पहली और आवखरी ग़लती समझ कर
माफ़ कर दो, और इस सबको भ़ूल जाओ। मैं तुमसे िादा करती
हूॅ वक अब से ये तुम्हारे घर की तरफ कभी दे खेगा भी नहीों।"

अभय गुस्से से भरी आॅखोों से प्रवतमा की तरफ दे खता रहा।


कुछ बोला नहीों उसने जबवक उसके इस प्रकार गुस्से से दे खने
पर प्रवतमा ने कहा__"अभय, शान्त हो जाओ प्लीज। तुम चाहो
तो इसके कुकमफ की मुझे जो चाहे सजा दे दो। इसने तुम्हारी
पत्नी ि अपनी चाची को वजस नीचता से वछप कर नहाते हुए
दे खा है उसके वलए तुम जो चाहे मुझे सजा दे दो। तुम्हारी हर
सजा को मैं वबना कुछ बोले स्वीकार कर ल़ूॅगी। मगर इस
सबको भ़ूल कर इसे माफ कर दो प्लीज।"

189
"भगिान जानता है वक मैंने कभी अपने पररिार के बारे में ग़लत
नहीों सोचा, बल्कि हमेशा सबको अपना मान कर उन्हें यथोवचत
सम्मान वदया है ।" अभय कह रहा था__"विजय भइया की मौत
तथा माॅ बाब़ू जी के कोमा में चले जाने के बाद इस हिेली में
रहने िालोों की सोच को न जाने क्या हो गया है ?? मुझे नहीों
पता वक गौरी भाभी, तथा उनके बच्चोों ने ऐसा क्या कर वदया था
वक उन्हें उसकी कीमत इस हिेली से तथा सबसे ररश्ता तोड कर
चुकानी पडी। मुझे यकीन नहीों होता वक विजय भइया और गौरी
भाभी ने कभी कोई ग़लत कदम उठाया रहा होगा। बल्कि िो तो
ऐसे थे वक उन्हें अगर दे िी दे िता की तरह प़ूजा भी जाता तो
ग़लत न होता। विजय भइया की मौत के बाद ऐसा क्या हो गया
था वक गौरी भाभी को उनके बच्चोों सवहत इस हिेली से बाहर
हमारे खेत में बने मकान के वसफफ एक ही कमरे में रह कर
अपना जीिन यापन करना पडा। बात यहीों पर खत्म नहीों हो
जाती बल्कि सोचने िाली बात ये भी है उन लोगोों ने इस सबके
बाद भी ऐसा क्या कर वदया था वक उन्हें खेत के उस कमरे को
भी छोोंड कर जाना पडा??? जहाॅ तक मुझे पता है विराज
आया था अपनी माॅ और बहन से वमलने। सुबह वशिा के साथ
उसकी मार पीट हुई थी। शायद यही िजह रही होगी वक िो
लोग इस डर से िहाॅ से भी पलायन कर गए वक वशिा के साथ
मार पीट करने से अजय भइया उन पर गुस्सा करें गे। मैं सोचता
था वक विराज ने वशिा के साथ मार पीट क्योों की थी?? मगर
अब समझ गया हूॅ वक वशिा को मार मार कर अिमरा कर दे ने
की िजह इसकी ही कोई नीच हरकत रही होगी। इस नीच की
गोंदी नजर गौरी भाभी या वनवि वबवटया पर भी रही होगी। गौरी
भाभी ने अपने बेटे को इसकी इन नीच हरकतोों के बारे में
बताया होगा और कहा होगा वक बेटा हमें यहाॅ से ले चल।
यकीनन यही सब बातें हुई रही होोंगी।"

190
अभय वसोंह क्या क्या बोले जा रहा था ये सब अब प्रवतमा के
वसर के ऊपर से जाने लगा था। उसके पैरोों तले से जमीन कब
की वनकल चुकी थी। वदलो वदमाग़ में भयोंकर विस्फोट हो रहे थे।
वदल की िडकनें रुक रुक कर इस तरह चल रही थीों जैसे उसे
वजोंदा रखने के वलए उस पर कोई एहसान कर रही होों। आॅखोों
के सामने अिेरा छाने लगा था। जहन में एक ही खयाल कत्थक
कर रहा था वक 'सब कुछ खत्म'।

"आज इसने ये सब करके मुझे इस सबके बारे में सोचने पर


मजब़ूर कर वदया है भाभी।" अभय वसोंह नाॅनस्टाप कहे जा रहा
था__"और अब मैं खुद पता करूॅगा वक सच्चाई क्या है ? मैं
गौरी भाभी और उनके बच्चोों को खोज़ूॅगा, और उनसे प़ूॅछ़ूॅगा
वक उन्होोंने ऐसा क्या वकया था वक उन लोगोों को अपने ही घर
से सब कुछ छोोंड कर जाना पडा?? अब से मेरे पास वसफफ यही
एक काम होगा भाभी, मैं हर कीमत पर इस सच्चाई का पता
लगाऊगा।"

इतना कह कर अभय वसोंह िहाॅ से चला गया अपने घर की


तरफ, इस बात से अोंजान वक घर में कौन सी आफत उसका
इन्तजार कर रही है ?? जबवक उसकी इन बातोों से प्रवतमा को
लगा वक उसे चक्कर आ जाएगा। उसने बडी मुल्किल से खुद को
सम्हाला और असहाय अिथथा में िम्म से सोफे पर लगभग वगर
सी पडी।

इिर करुणा अब अपने कपडे िगैरा पहन चुकी थी। तथा बेड पर
गुमसुम सी बैठी थी। उसके पास ही उसकी बेटी वदव्या बैठी थी।
वदव्या उमर में छोटी भले ही थी वकन्तु हमेशा शान्त रहने िाली
ये लडकी सब बातोों को समझती थी। उसे अपने बडे पापा ि

191
बडी माॅ का ये बेटा वशिा कभी पसोंद नहीों आया था। िह इतनी
नासमझ नहीों थी वक वशिा की हरकतोों तथा उसकी आॅखोों में
वगजवबजाते हिस के कीडोों को पहचान न पाती। उसने हजारोों
बार अपनी आॅखोों से दे खा था वक वशिा हमेशा उसकी माॅ
और खुद उसे भी कभी कभी गोंदी नजर से दे खता था। िह
उसकी हिस से भरी नजरोों को हमेशा अपने सीने पर मौज़ूद
छोटे छोटे उभारोों पर महस़ूस करती थी। वकन्तु डर ि सोंकोच की
िजह से िह कभी इस सबके बारे में अपनी माॅ से नहीों बताती
थी।

अभय और वदव्या दोनो साथ ही स्क़ूल से घर आए थे। और आते


ही जो हों गामा हुआ था उस सबको वदव्या ने अपनी डरी सहमी
आॅखोों से दे खा था। िह समझ गई थी वक उसका बाप वशिा
को वकस बात पर इतनी बुरी तरह मार रहा था। उसने चुपके से
अपनी माॅ के कमरे में जा कर बाथरूम में दे खा था। बाथरूम
में उसकी माॅ नग्न अिथथा में फसफ पर अपने दोनो घुटनोों के
बीच मुह छु पाए बैठी रो रही थी। अपनी माॅ को नग्न अिथथा में
बैठे इस तरह रोते दे ख िह है रान रह गई थी। पहली बार अपनी
ही माॅ को नोंगी हालत में दे खा था उसने। जबवक खुद के वजस्म
को अपने सामने भी दे खने का कभी उसे खयाल ही नहीों आया
था।

डरी सहमी हालत में िह कुछ दे र अपनी माॅ को दे खती रही


वफर वहम्मत करके िह पलटी और बेड से अपनी माॅ के सारे
कपडे उठा कर उसने बाथरूम के बाहर से ही करुणा की तरफ
उछाल वदया। अपने नोंगे बदन पर अचानक कपडोों के पडने से
करुणा बुरी तरह हडबडा गई। उसकी नजर पहले खुद के ऊपर
वगरे हुए कपडोों पर पडी वफर बाथरूम के गेट पर डरी सहमी
खडी अपनी बेटी पर। वदव्या पर नजर पडते ही िह चौोंकी।

192
एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने
हडबडाकर अपने नोंगे बदन को वछपाने के वलए उन कपडोों से
अपने बदन के गुप्ताों गोों को ढका। जबवक बाथरूम के गेट पर
खडी वदव्या सीघ्र ही अपनी नजरें अपनी माॅ पर से हटा कर
िापस पलट गई। बाहर वशिा की िुनाई और उसकी ददफ में ड़ू बी
हुई चीखें चाल़ू थी। कुछ दे र बाद करुणा अपने कपडे पहन कर
बाथरूम से बाहर वनकली और बेड पर बैठी अपनी बेटी वदव्या
को दे ख कर उसके वजस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महस़ूस
होती चली गई। चेहरे पर लाज और शमफ की लाली फैल गई और
उसका वसर झुक गया। अपनी ही बेटी से नजर वमलाने की
वहम्मत न हुई उसमें।

"मम्मी।" वदव्या बेड से उठकर तथा दौडते हुए आकर अपनी


माॅ से वलपट गई। उसकी आॅखोों से आॅस़ू बहने लगे थे।
करुणा को समझ न आया वक िह अपने सीने से वलपटी तथा
आॅस़ू बहाती बेटी से क्या कहे ?? उसके वदलो वदमाग़ में अोंिड
सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब कोई आिाज नहीों आ
रही थी। शायद अभय वशिा को लेकर जा चुका था।

करुणा कुछ पल बुत बनी खडी रही वफर जाने क्या सोच कर
उसने अपने सीने से वदव्या को अलग करके कहा__"जाओ अपने
कमरे में और अपनी इस स्क़ूली डर े स को चेंज कर लो।"

वदव्या ने अजीब भाि से अपनी माॅ के चेहरे की तरफ दे खा,


और वफर पलट कर कमरे से बाहर वनकल गई। इिर वदव्या के
जाते ही करुणा के चेहरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ
कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे उसने वकसी बात का बहुत बडा
फैंसला कर वलया हो।

193
अपडे ट.........《 21 》

अब तक.......

डरी सहमी हालत में िह कुछ दे र अपनी माॅ को दे खती रही किर कहम्मत
करके िह पलटी और बे ड से अपनी माॅ के सारे कपडे उठा कर उसने
बाथरूम के बाहर से ही करुर्ा की तरि उछाल कदया। अपने नं गे बदन
पर अचानक कपडों के पडने से करुर्ा बु री तरह हडबडा गई। उसकी
ऩिर पहले खु द के ऊपर कगरे हुए कपडों पर पडी किर बाथरूम के गेट
पर डरी सहमी खडी अपनी बे टी पर। कदव्या पर ऩिर पडते ही िह चौंकी।
एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने हडबडाकर अपने
नं गे बदन को कछपाने के कलए उन कपडों से अपने बदन के गुप्तांगों को
ढका। जबकक बाथरूम के गेट पर खडी कदव्या सीघ्र ही अपनी ऩिरें अपनी
माॅ पर से हटा कर िापस पलट गई। बाहर कशिा की धुनाई और उसकी
ददग में डूबी हुई चीखें चालू थी। कुछ दे र बाद करुर्ा अपने कपडे पहन
कर बाथरूम से बाहर कनकली और बे ड पर बै ठी अपनी बे टी कदव्या को
दे ख कर उसके कजस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महसू स होती चली गई।
चे हरे पर लाज और शमग की लाली िैल गई और उसका कसर झुक गया।
अपनी ही बे टी से ऩिर कमलाने की कहम्मत न हुई उसमें।

"मम्मी।" कदव्या बे ड से उठकर तथा दौडते हुए आकर अपनी माॅ से


कलपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगे थे । करुर्ा को समझ न
आया कक िह अपने सीने से कलपटी तथा आॅसू बहाती बे टी से क्ा कहे??
उसके कदलो कदमाग़ में अं धड सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब
कोई आिा़ि नही ं आ रही थी। शायद अभय कशिा को ले कर जा चु का था।

करुर्ा कुछ पल बु त बनी खडी रही किर जाने क्ा सोच कर उसने अपने
सीने से कदव्या को अलग करके कहा__"जाओ अपने कमरे में और अपनी
इस स्कूली डर े स को चें ज कर लो।"

कदव्या ने अजीब भाि से अपनी माॅ के चे हरे की तरि दे खा, और किर


पलट कर कमरे से बाहर कनकल गई। इधर कदव्या के जाते ही करुर्ा के
चे हरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे
उसने ककसी बात का बहुत बडा िैंसला कर कलया हो।

194
अब आगे,,,,,,,

अभय गु स्से में तथा भभकते हुए अजय वसोंह के घर से बाहर आकर अपने घर
की तरफ जाने लगा। अभी िह अपने घर की बाउों डरी पार ही वकया था वक उसे
उसकी बे टी वदव्या भागते हुए घर से बाहर उसकी तरफ ही आती वदखी। बु री
तरह रोये जा रही थी िह। अभय को दे ख कर िह उससे रोते हुए वलपट गई,
वफर तुरोंत ही अपने वपता से अलग हुई।

"पापा िो म मम्मी...मम्मी ने ।" वदव्या रोये जा रही थी। उसके मु ख से कुछ


वनकल ही नहीों रहा था।
"क्या हुआ बे टी...क्या कह रही है त़ू?" अभय अों जानी आशों का से घबरा गया।
"पापा, िो मम्मी कमरे का दरिाजा ही नहीों खोल रही हैं ।" वदव्या ने रोते हुए
कहा__"मै ने बहुत बार मम्मी को पु कारा ले वकन मम्मी न तो दरिाजा खोल रही
हैं और ना ही कुछ बोल रही हैं । पापा मम्मी ने कहीों कुछ कर तो नहीों वलया?
आप उन्हें बचा लीवजए जल्दी से।"

"क्याऽऽऽ???" अभय बु री तरह चौोंका, और साथ ही दौड पडा घर के अों दर


की तरफ। उसके पीछे वदव्या भी रोते हुए दौड पडी थी।

अभय वजतना तेज दौड सकता था उतना ते ज दौड कर ही उस कमरे के पास


पहुॅचा था वजस कमरे के अों दर करुणा थी।

"करुणाऽऽऽ दरिाजा खोलो।" अभय ने चीखते हुए कहा__"ये क्या बे िक़ूफी


है ??? दरिाजा खोलो जल्दी। करुणाऽऽऽ।"

अभय के वचल्लाने का कोई असर न हुआ। िह कुछ दे र इसी तरह करुणा को


पु कारता रहा। मगर ना तो दरिाजा खुला और ना ही अों दर से करुणा ने कुछ
कहा। अभय को वकसी अवनष्ट की आशों का हुई। उसने दरिाजे को तोडने की
कोवशश करने लगा।

"करुणा, प्लीज दरिाजा खोलो।" अभय दरिाजे को तोडने के साथ साथ कहता
भी जा रहा था__"ये तुम क्या पागलपन कर रही हो? अगर तुम ये समझती हो
वक इस सबमें तुम्हारा कोई दोस है तो तुम ग़लत समझ रही हो करुणा। तुम
मे री करुणा हो, मु झे तुम पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है । तुम कभी ग़लत
नहीों हो सकती। मैं जानता हूॅ वक उस हरामजादे ने ही तुम्हें ग़लत इरादे से

195
दे खने की कोवशश की है । तुम तो उसे अपना बे टा ही मानती हो करुणा। तुम
कहीों भी ग़लत नहीों हो, प्लीज ऐसा िै सा कुछ मत करना।"

अभय प़ू री शल्कक्त से कमरे के दरिाजे को तोडने के वलए िक्के मार रहा था।
पास में ही उसकी बे टी वदव्या भी खडी थी, जो वससक वससक कर रोये जा
रही थी। अों दर ही वकसी कमरे में शगु न के रोने की भी आिाज आ रही थी।
ले वकन उसके रोने की तरफ वकसी का ध्यान नहीों था।

"तुम मु झे सुन रही हो न करुणा?" अभय अिीर भाि से कह रहा था__"तुम्हें


मे री कसम है , तुम कोई भी ग़लत क़दम नहीों उठाओगी। तुम मे री जान हो
करुणा, तुम्हारे वबना जीने की मैं सोच भी नहीों सकता। तुम्हें ये सब करने की
या सोचने की कोई जरूरत नहीों है । तुम मेरी नजर में उसी तरह गों गा की तरह
पवित्र हो करुणा। प्लीज ऐसा िै सा कुछ मत करना, िनाफ तुम्हारी कसम सारी
दु वनयाॅ को आग लगा द़ू ॅगा मैं ।"

बडी मु ल्किल से और भीर्ण प्रहार के बाद आवखर दरिाजा ट़ू ट ही गया। कमरे
के अों दर की तरफ ट़ू ट कर वगरा था दरिाजा। अभय ने एक भी पल नहीों
गिाया। वबजली की सी तेजी से िह कमरे के अों दर दाल्कखल हुआ।
और.......

"न नहीोंऽऽऽऽ।" अभय के हलक से चीख वनकल गई। कमरे में पहुॅचते ही
उसने दे खा वक करुणा कमरे की छत पर लगे पों खे के नीचे रस्सी के सहारे
झ़ूल रही थी। रस्सी का फोंदा उसके गले में था तथा रस्सी का द़ू सरा वसरा
कमरे की छत पर बीचो बीच लगे लोहे के कुोंडे में फसा था। नीचे फसफ पर
एक स्ट़ू ल लु ढका हुआ पडा था।

िष्ट था वक करुणा ने आत्म हत्या करने के वलए ही ये सब वकया था। िह इस


घटना के बाद खुद को ही इस सबका दोसी मानती थी। िो समझती थी वक
अब िह वकसी को मु ॅह वदखाने के कावबल नहीों रही है । िह समझती थी वक
इस सबके बाद उसके पवत उसे ग़लत समझें गे। शायद इसी िजह से उसने ये
क़दम उठाया था।

अभय बु री तरह उसके पै रोों से वलपटा रोये जा रहा था, उसकी बे टी वदव्या का
भी िही हाल था। अचानक अभय को जाने क्या स़ूझा वक उसने तुरोंत ही बे ड
को खीोंचा और करुणा के पै रोों के नीचे उसी लु ढके पडे स्ट़ू ल को रखा। वजससे
करुणा के गले में फसा रस्सी का फोंदा टाइट न हो। अभय खुद बे ड पर चढ

196
गया और करुणा के गले से रस्सी के फोंदे को छु डाने लगा।

कुछ ही पल में करुणा के गले से रस्सी का फोंदा वनकल गया। करुणा के गले
में फोंदा फसा हुआ था वजसकी िजह से करुणा की आॅखें ि जीभ बाहर आ
गई थी। अभय ने करुणा को अपने दोनो हाथोों से सम्हाल कर उसी बे ड पर
आवहस्ा से वलटाया, और करुणा की नि चे क करने लगा। अभय ये महस़ू स
करते ही खुश हो गया वक करुणा की नि अभी चल रही है । मतलब उसने
करुणा को सही समय पर सही सलामत बचा वलया था। अगर थोडी दे र और हो
जाती तो शायद भगिान भी करुणा को मौत से बचा नहीों पाते। अभय ने खुश
हो कर करुणा को खुद से वचपका वलया। वदव्या भी दौड कर अपनी माॅ से
वलपट गई।

करुणा अभी बे होशी की अिथथा में थी। अभय के कहने पर वदव्या ने तुरोंत ही
एक ग्लास में पानी लाकर अभय को वदया। अभय उस पानी से हिे हिे
छीटे डालकर करुणा को होश में लाने की कोवशश करने लगा। कुछ ही दे र में
करुणा को होश आ गया। उसने गहरी गहरी साॅसे ले ते हुए अपनी आॅखें
खोली। सबसे पहले नजर अपने पवत पर ही पडी उसकी। िस्ु ल्कथथत का खयाल
आते ही उसका चे हरा वबगडने लगा। आॅखोों से आॅस़ू बहने लगे ।

"मु झे क्योों बचाया अभय आपने ?" वफर उसने उठकर रोते हुए कहा__"मु झे मर
जाने वदया होता न। इस सबसे मु ल्कक्त तो वमल जाती मु झे।"
"तुमने ये सब करने से पहले क्या एक बार भी नहीों सोचा था करुणा वक
तुम्हारे बाद मे रा और हमारे बच्चोों का क्या होता?" अभय ने भराफ ए स्वर में
कहा__"तुमने क्या सोच कर ये सब वकया करुणा? क्या तुम ये समझती थी वक
इस सबकी िजह से मैं तुम पर वकसी प्रकार का शक या तुम पर कोई लाों छन
लगाऊगा?? नहीों करुणा नहीों..हमारा प्यार इतना कमजोर नहीों है जो इतनी सी
बात पर तुम्हें मु झसे जु दा कर दे गा। मु झे तो हर हाल में तुम पर यकीन है
करुणा ले वकन शायद तुम्हें मु झ पर यकीन नहीों रहा। तुम्हें मु झ पर भरोसा नहीों
था, अगर होता तो इतना बडा फैसला नहीों करती तुम।"

"मु झे माफ कर दीवजए अभय।" करुणा ने रोते हुए कहा__"मैं जानती हूॅ वक
आपको मु झ पर हर तरह से भरोसा है । मगर हालात ऐसे बन गए थे वक मु झे
यही लग रहा था वक इस सबकी िजह से मैं अब कहीों भी वकसी को मु ह
वदखाने के कावबल नहीों रही। इसी वलए मैं इस सबको सहन नहीों कर पाई और
खुद को खत्म करने का फैसला कर वलया था।"

197
"आज अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो।" अभय ने एकाएक ठों डे स्वर में
कहा__"मैं उस हरामजादे को वजों दा नहीों छोोंडता वजसकी िजह से ये सब
हुआ।"
"मु झे नहीों पता था अभय वक िो कमीना मुझे इस नजर से दे खता है ।" करुणा
ने कहा__"अगर पता होता तो कभी उसे इस घर में घु सने ही नहीों दे ती।"

"पापा, वशिा भइया बहुत गों दे हैं ।" सहसा इस बीच वदव्या ने भी वहम्मत करके
कहा__"िो अक्सर अकेले में मु झे गों दी नजर से दे खते हैं ।"
"क्याऽऽ???" अभय बु री तरह उछल पडा, वफर गु राफ ते हुए बोला__"उस
हरामखोर की ये वहम्मत थी की िो मे री बे टी को भी गों दी नजर से दे खता था??
नहीों छोोंड़ूॅगा उस नीच और घवटया इों सान को, अभी उसे जान से मार द़ू ॅगा
मैं ।"

अभय ये सब कह कर बे ड से उठने ही लगा था वक करुणा ने हडबडा कर


तुरोंत ही अभय का हाॅथ पकड वलया, वफर बोली__"नहीों अभय, आप ऐसा
कुछ भी नहीों करें गे । जो कुछ हुआ उससे ये तो पता चल ही गया है वक िो
कैसा लडका है । इस वलए अब उससे कोई मतलब नहीों रखेंगे हम, और ना ही
उसे इस घर में आने दें गे।"

"करुणा उस नीच की वहम्मत तो दे खो,िो हमारी इस नन्हीों सी बच्ची के बारे में


भी ऐसी नीयत रखता है ।" अभय ने मारे गु स्से के उफनते हुए कहा__"उसने
एक बार भी नहीों सोचा होगा वक िो ये सब क्या सोचता है और करने का
इरादा रखता है ? नहीों करुणा, ऐसे नीच और वगरी हुई सोच िाले लडके को
एक पल भी जीवित रखना पाप है । मु झे भइया भाभी की कोई परिाह नहीों है ,
मैं उसे वकसी भी कीमत पर अब वजों दा नहीों छोोंड़ूॅगा।"

"नहीों अभय, प्लीज रुक जाइए। आपको मे री कसम।" करुणा ने भारी स्वर में
कहा__"सबसे पहले हमें उसके माता वपता से इस बारे में बात करना चावहए।
उन्हें बताना चावहए वक उनका बे टा कैसी सोच रखता है अपने ही घर की माॅ
बहनोों के वलए। जल्दबाजी में उठाया हुआ क़दम अच्छा नहीों होता अभय। खुद
को शान्त कीवजए"

"मैं भाभी से बोल आया हूॅ वक आज के बाद अगर उनके इस नीच बे टे ने


मे रे घर की तरफ दे खा भी तो उसके वलए अच्छा नहीों होगा।" अभय ने कहा।

"ये आपने अच्छा वकया।" करुणा ने कहा__"दीदी जरूर इस सोंबोंि में बडे

198
भइया से बात करें गी।"
"हमसे बहुत बडी ग़लती हुई है करुणा।" अभय ने एकाएक अिीर होकर
कहा__"आज मु झे एहसास हो रहा है वक क्योों मे री दे िी समान गौरी भाभी हम
सबको छोोंड कर इस हिे ली से अलग खेतोों में बने उस मकान पर रहती थी?
वसफफ इसी हरामजादे की िजह से करुणा। उस रात विराज आया था मु म्बई से,
और सु बह उसने ही वशिा को मार मार कर अिमरा वकया था। तब हमने सोचा
था वक उसने बे िजह ही वकसी खुोंदक में वशिा को मारा था। जबवक अब मु झे
सब बातोों की समझ आई है वक क्योों विराज ने वशिा को मारा था?"

"क्या मतलब है आपका?" करुणा चौोंकी।


"इसी नीच की िजह से करुणा।" अभय ने आिे श में कहा__"ये तो समझ ही
गई हो तुम वक वशिा अपने ही घर की माॅ बहनोों के बारे में ऐसी नीयत
रखता है । उसने उसी नीयत से गौरी भाभी और हमारी फ़ूल सी बच्ची वनवि पर
भी यही सब वकया रहा होगा। इसी िजह से ये सब हुआ है ।"

"ले वकन अगर ऐसी बात थी तो।" करुणा ने सोचने िाले भाि से कहा__"गौरी
दीदी को इस बारे में बडी दीदी और बडे भइया को बताना चावहए था। अगर
िो ये सब उनसे बताती तो िो अपने बे टे पर लगाम लगाती। ले वकन िो तो
हिे ली ही छोोंड कर खेतोों िाले मकान में गु वडया के साथ रहने लगी थी। क्या
वसफफ इतनी सी बात की िजह से??"

"िजह तो हमें यही बताया था भइया भाभी ने वक गौरी भाभी ने प्रवतमा भाभी
के कमरे से उनके जे िर चु राए थे ।" अभय ने कहा__"और इतना ही नहीों
बल्कि बडे भइया को अपने रूप जाल में फसाने की कोवशश भी की थी। इस
वलए बडे भइया ने उन लोगोों को हिे ली से वनकाल वदया था।"

"हाॅ तो ग़लत क्या था अभय?" करुणा ने अजीब भाि से कहा__"गौरी दीदी


ने तो सच में बडे भइया के साथ ग़लत करने की कोवशश की थी। इस सबका
सब़ू त भी वदखाया था प्रवतमा दीदी ने हम लोगोों को। उन फोटोग्राफ्जस में साफ
साफ वदखता था वक कैसे गौरी दीदी ने बडे भइया को उनके ही कमरे में
अपनी बाहोों में जकडा हुआ था।"

"क्या ये स्वाभाविक बात लगती है करुणा वक बडे भइया गौरी भाभी के साथ
उस ल्कथथत में होों और द़ू सरा कोई उस ल्कथथवत में उनकी फोटो खीोंचे?" अभय ने
सोचने िाले भाि से कहा__"जबवक उस ल्कथथवत में होना तो ये चावहए था वक
अगर गौरी भाभी ने बडे भइया को ग़लत नीयत से जकडा हुआ था तो इस

199
सबका बडे भइया विरोि करते, और गौरी भाभी को इस सबके वलए डाॅटते।
द़ू सरी बात उन लोगोों की उस िक्त की फोटो बनाने िाला कौन था?? अगर
फोटो खीोंचने िाली प्रवतमा भाभी थी तो उन्हें फोटो खीोंचने की बजाय इस सबको
रोोंकना था। आल्कखर फोटो खीोंचने के पीछे उनका क्या उद्दे श्य था? क्या वसफफ ये
वक हम सब उन फोटोज को दे ख कर ये यकीन कर सकें वक गौरी भाभी सच
में बडे भइया के साथ ये सब करने की नीयत रखती हैं या ये सब करती भी
हैं ???"

"आप कहना क्या चाहते हैं अभय??" करुणा ना समझने िाले भाि से बोली।
"आज के इस हादसे से मे रे सोचने का नजररया बदल गया है करुणा।" अभय
ने गों भीर लहजे में कहा__"हम सब जानते थे वक विजय भइया और गौरी भाभी
वकसी दे िी दे िता से कम नहीों थे । उन्होोंने भ़ूल से भी वकसी के साथ कभी भी
कुछ ग़लत नहीों वकया था। िो पढाई वलखाई में भले ही जीरो थे , ले वकन जब
से उन्होने खेती बाडी का काम सम्हाला था तब से हमारे घर के हालात हजार
गु ना बे हतर हो गए थे । यहाॅ तक वक उनकी मे हनत और लगन से वकसी भी
चीज की कभी कोई कमी न रही थी। उनकी ही मे हनत और रुपये पै से से
इतनी बडी हिे ली बनी और उनके ही पै सोों से बडे भइया ने अपने कारोबार की
बु वनयाद रखी थी। माॅ बाब़ू जी विजय भइया और गौरी भाभी को सबसे ज्यादा
मानते थे । विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी भी मु झे वकसी बात के वलए
कुछ नहीों कहा, बल्कि विजय भइया ने तो उस समय के वहसाब से मु झे एक
बु लेट मोटर साइवकल खरीद कर दी थी। प़ूरे गाॅि में वकसी के पास बु लेट नहीों
थी। इतना ही नहीों उन्होोंने अपने ही पै सोों से बाब़ू जी के वलए एक शानदार कार
खरीदी थी तावक बाब़ू जी बडे शान से उसमें सिारी करें । घर का बडा बे टा होने
का जो फजफ अजय भइया को वनभाना चावहये था िो फजफ विजय भइया वनभा
रहे थे िो भी अपनी प़ू री वनष्ठा के साथ। मुझे याद है करुणा वक अजय भइया
और प्रवतमा भाभी कभी भी विजय भइया और गौरी भाभी से ठीक से बात नहीों
करते थे । बल्कि उनके हर काम में कोई न कोई नु क्स वनकालते ही रहते थे ।
वफर समय गु जरा और एक रात विजय भइया को वकसी जहरीले सपफ ने काट
वलया और िो इस दु वनया से चल बसे। उनके इस दु वनया से जाते ही हम
सबकी खुवशयोों पर ग्रहण सा लग गया करुणा। माॅ बाब़ू जी को उनकी मौत से
गहरा सदमा लगा था। हम सब उनके सदमे की िजह से परे शान हो गए थे ।
बडे भइया और भाभी ने ही उन्हें सम्हाला था। एक वदन माॅ बाब़ू जी उसी कार
से शहर जा रहे थे तो रास्े में उनका एक्सीडें ट हो गया और िो दोनो उस
एक्सीडें ट की िजह से कोमा में चले गए। समझ में नहीों आ रहा था वक ये सब
क्या हो रहा था हम सबके साथ?"

200
"इन सब बातोों को सोचने का क्या मतलब है अभय?" करुणा ने कहा__"जो
होना था िो तो हो ही गया। इसमें कोई क्या कर सकता था भला?"

"मैं ये सब कभी नहीों भ़ूला करुणा।" अभय ने कहा__"मैं कभी वकसी से कुछ
कहता नहीों मगर मे रे अों दर हमे शा ये सब ग़ू ॅजता रहता है । आज के इस हादसे
ने मे री आॅखें खोल दी है करुणा। इस हादसे ने ये सोचने पर मजब़ू र कर
वदया है मु झे वक ये जो कुछ भी हुआ िो सब क्या सच था या वफर वकसी
झ़ूॅठ को छु पाने के वलए उस पर इन सब बातोों को गढ कर पदाफ डाला गया
था? ये तो सच है करुणा वक माॅ बाप का ख़ून और उनके अच्छे सोंस्कारोों की
िजह से ही कोई औलाद सही रास्ोों पर चलते हुए भविश्य में अपने अच्छे काम
और नाम की िजह से अपने माॅ बाप और कुल का नाम रोशन करते हैं ।
वशिा को दे ख कर अों दाजा लगाना कोई मु ल्किल नहीों है वक उसकी परिररश
और उसके ख़ून में वकतनी गों दगी है । दु वनयाॅ में बहुत से ऐसे माॅ बाप हैं
वजनके एक ही बे टा होता है मगर िो अपने एक ही बे टोों को क्या ऐसे सोंस्कार
दे ते हैं वजसकी िजह से िो अपने ही घर की माॅ बहनो पर बु री नीयत रखे??
नहीों करुणा नहीों....कम से कम मे री जानकारी में तो ऐसे माॅ बाप और ऐसे
बे टे नहीों हैं । जरूर इनमें ही कहीों न कहीों कोई खराबी है । मै ने फैंसला कर
वलया है वक मैं खुद सारी सच्चाई का पता लगाऊगा।"

"सच्चाई???" करुणा चौोंकी__"कैसी सच्चाई अभय?"


"िहीों सच्चाई करुणा।" अभय ने मजब़ू त लहजे में कहा__"जो हमसे छु पाई गई
और उसके बदले कुछ और ही हमें वदखाया गया। उस समय मैं ने इस सबका
पता करने की कोवशश इस वलए नहीों की थी क्योों जो कुछ मु झे सब़ू त के साथ
वदखाया गया था उससे मैं अत्यविक क्रोि और गु स्से में था। उस स़ूरत में मैं
उन लोगोों की शकल तक नहीों दे खना चाहता था। मगर अब नहीों, अब मैं पता
लगाऊगा इस सबका। मैं मु म्बई जाऊगा करुणा...और गौरी भाभी तथा उनके
दोनो बच्चोों को ढ़ू ढ़ू ॅगा। उनसे ही सच्चाई का पता चले गा। मै ने अपने गु स्से और
नाराजगी की िजह से इतने साल बबाफ द कर वदये । कभी सोचा तक नहीों वक
एक बार गौरी भाभी से भी प़ू छ ले ना चावहए वक उन पर जो आरोप लगाया गया
था िो सच भी था या झ़ूॅठ? काश! मैं ने ये सब उनसे प़ू छा होता। अरे काऩू न
भी हर मु जररम को अपनी सफाई में कुछ कहने का अिसर दे ता है , जबवक
मैं ने तो प़ू ॅछा तक नहीों था। मान लो वक अगर गौरी भाभी पर लगाए गए सारे
आरोप वसरे से ही ग़लत होों तो सोचो क्या होगा करुणा? मैं अपनी ही नजरोों में
वगर जाऊगा। वकतना बडा पापी कहलाऊगा वक अपनी दे िी समान भाभी पर
लगे झ़ूॅठे आरोपोों को सच मान कर उनके बारे में क्या क्या सोच वलया था

201
मैं ने?? मु झे नरक में भी जगह नहीों वमले गी करुणा....मैं तो शमफ से ही मर
जाऊगा।"

"खुद को सम्हावलए अभय।" करुणा की आॅखें छलक पडी थी__"यकीनन


हमसे बहुत बडी भ़ूल हो गई है । मगर अब जो हो गया उसे लौटाया भी तो
नहीों जा सकता न? ईश्वर जानता है वक इस सबके बाद भी हमने कभी उनका
बु रा नहीों चाहा है । हमें जो कुछ बताया गया था उससे हमें दु ख जरूर पहुॅचा
मगर इसके बािज़ू द हमने कभी उनके बारे में बु रा नहीों चाहा। आज आपने
अगर इस सबका पता लगाने का फैसला कर ही वलया है तो ये अच्छी बात है
अभय। सच्चाई का पता तो चलना ही चावहए।"

"तुम वचन्ता मत करो करुणा।" अभय ने कहा__"मैं ने अब इस बात को जानने


का फैसला कर वलया है वक इस सबके पीछे की सच्चाई क्या है । मैं कल ही
स्क़ूल में लम्बी छु ट्टी की अज़ी दे द़ू ॅगा। अब मे रे पास वसफफ यही काम
रहे गा..वकसी भी हाल में सच्चाई का पता लगाना।"

"आप हर सच्चाई का जरूर पता लगाइये अभय।" करुणा ने कहा__"ले वकन


इस बात का भी ध्यान दीवजए वक िो लोग भी शान्त नहीों बै ठेंगे वजन्होोंने गौरी
दीदी पर ये सब आरोप लगाये थे । सोंभि है वक अपनी पोल खुल जाने के डर
से िो कोई भी कठोर कदम उठा लें । इस वलए उन लोगोों से सतकफ और
साििान रवहएगा।"

"वचन्ता मत करो करुणा।" अभय ने कठोर भाि से कहा__"मु झे पता है वक


अपने रास्े पर आने िाली रुकािट से कैसे वनपटना है ।"
"वफर भी साििान रवहएगा।" करुणा ने कहा__"क्योोंवक इस सबसे ये तो समझ
आ ही गया है वक िो लोग वकसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं ।"

"कुछ भी करने िालोों को मैं दे ख ल़ू ॅगा करुणा।" अभय ने कहा__"मे रे मु म्बई
जाने के बाद तुम यहाॅ सबकी दे ख भाल अच्छे से करना। वदव्या तब तक
स्क़ूल नहीों जाएगी जब तक मैं मु म्बई से लौट नहीों आता।"

"क्या ऐसा नहीों हो सकता वक हम सब ही मु म्बई चलें ?" करुणा ने


कहा__"कौन जाने आपके जाने के बाद यहाॅ कैसे हालात बन जाएॅ? उस
ल्कथथवत में मैं अकेली औरत भला वकसी का कैसे मु काबला करूॅगी??"

"मैं तुम सबको मु म्बई नहीों ले जा सकता क्योोंवक मु म्बई में तुम लोगोों को वलए

202
मैं कहाॅ कहाॅ भटक़ूॅगा? अों जान शहर में अपना कहीों कोई वठकाना भी तो
होना चावहए।" अभय ने कहा__"इस वलए तुम ऐसा करो वक कुछ वदन के वलए
वदव्या और शगु न को ले कर अपने मायके चली जाओ। िहाॅ तुम सब सुरवक्षत
रहोगे , और मैं भी तुम लोगोों के वलए वनवश्चोंत रहूॅगा।"

"हाॅ ये ठीक रहे गा।" करुणा ने कहा__"आप मे रे भाई को फोन कर दीवजए


िो आ जाएगा और हम लोगोों को अपने साथ ले जाएगा।"
"ठीक है ।" अभय ने कहा__"मैं बात करता हूॅ तुम्हारे भाई से, तब तक तुम
जरा चाय तो बना कर वपला दो मु झे।"
"जी अभी लाई।" करुणा ने बे ड से उठते हुए कहा।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अपडे ट...........《 22 》

अब तक,,,,,,,

"कचन्ता मत करो करुर्ा।" अभय ने कठोर भाि से कहा__"मुझे पता है


कक अपने रास्ते पर आने िाली रुकािट से कैसे कनपटना है।"
"किर भी सािधान रकहएगा।" करुर्ा ने कहा__"क्ोंकक इस सबसे ये तो
समझ आ ही गया है कक िो लोग ककसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं।"

"कुछ भी करने िालों को मैं दे ख लू ॅगा करुर्ा।" अभय ने कहा__"मेरे


मुम्बई जाने के बाद तु म यहाॅ सबकी दे ख भाल अच्छे से करना। कदव्या
तब तक स्कूल नही ं जाएगी जब तक मैं मुम्बई से लौट नही ं आता।"

"क्ा ऐसा नही ं हो सकता कक हम सब ही मुम्बई चलें ?" करुर्ा ने


कहा__"कौन जाने आपके जाने के बाद यहाॅ कैसे हालात बन जाएॅ? उस
ल्कथथकत में मैं अकेली औरत भला ककसी का कैसे मुकाबला करूॅगी??"

"मैं तु म सबको मुम्बई नही ं ले जा सकता क्ोंकक मुम्बई में तु म लोगों को


कलए मैं कहाॅ कहाॅ भटकूॅगा? अं जान शहर में अपना कही ं कोई कठकाना
भी तो होना चाकहए।" अभय ने कहा__"इस कलए तु म ऐसा करो कक कुछ
कदन के कलए कदव्या और शगुन को ले कर अपने मायके चली जाओ। िहाॅ
तु म सब सु रकक्षत रहोगे, और मैं भी तु म लोगों के कलए कनकश्चंत रहूॅगा।"

203
"हाॅ ये ठीक रहेगा।" करुर्ा ने कहा__"आप मेरे भाई को िोन कर
दीकजए िो आ जाएगा और हम लोगों को अपने साथ ले जाएगा।"
"ठीक है।" अभय ने कहा__"मैं बात करता हूॅ तु म्हारे भाई से , तब तक
तु म ़िरा चाय तो बना कर कपला दो मुझे।"
"जी अभी लाई।" करुर्ा ने बे ड से उठते हुए कहा।

अब आगे,,,,,,,,

जै सा वक अभय ने वनणफ य ले वलया था इस वलए उसने ससुराल में अपने साले


यु िराज वसोंह को फोन कर वदया था और उसे जल्द से जल्द यहाॅ से करुणा
के साथ वदव्या तथा शगु न को ले जाने के वलए कह वदया था। अभय के साले
यु िराज ने अचानक इस तरह यहाॅ आने और वफर अपने साथ उसकी बहन ि
भाों जा भाों जी को घर ले जाने का कारण प़ू ॅछा तो अभय ने कुछ नहीों बताया।
बस यही कहा वक िह कुछ वदनोों के वलए बाहर जा रहा है ।

अभय ने करुणा तथा वदव्या से भी कह वदया था वक इस बात की चचाफ िो


लोग अपने मायके तथा नवनहाल में वकसी से नहीों करें गी। अभय की ससुराल
हल्दीपु र से ज्यादा द़ू र नहीों थी। बल्कि एक घों टे की द़ू री पर थी। इस वलए
उसके साले को आने में ज़्यादा दे र नहीों हुई।

करुणा ने अपने पवत अभय के वलए शाम का खाना बना कर रख वदया था


वजसे िह गरम करके शाम को खा ले गा और खुद भारी मन से अपने बच्चोों को
ले कर अपने भाई के साथ अपने मायके मवणपु र चली गई थी। अभय ने उसे
बता वदया था वक िह अगले वदन सुबह ही यहाॅ से मु म्बई के वलए वनकले गा।
अभय ने अपनी पत्नी और बच्चोों को अपने साले के साथ बे हद ही गु प्त रूप से
भेजा था। वकसी को भनक तक न लगने दी थी वक उसकी पत्नी और बच्चे
वकसके साथ कब कहाॅ गए हैं ?

करुणा ने अभय से कहा था वक िह आज रात यहाॅ हिे ली में न रहे बल्कि


अपने वकसी दोस् या वमत्र के यहाॅ रात रुक जाए और सुबह िहीों से मु म्बई
के वलए रिाना हो जाएों । करुणा ये सब वकसी अों जानी आशों का की िजह से कह
रही थी जबवक उसकी इस सलाह पर अभय ने आिे श में कहा था__"मैं वकसी
से बाल बराबर भी नहीों डरता करुणा। मैं ने वकसी के साथ कोई ग़लत काम
नहीों वकया है, इस वलए वकसी से डरने का सिाल ही नहीों है । रही बात बडे

204
भइया की तो उन्हें भी दे ख ल़ू ॅगा। मैं भी तो दे ख़ूॅ वक वकतने बडे तीसमारखाॅ
हैं िो???" करुणा अभय की इस बात पर कुछ न बोल सकी थी।

उिर प्रवतमा ने अपने पवत अजय वसोंह को फोन करके आज हुई इस घटना के
बारे में सब कुछ बता वदया था। वजसे सुन कर अजय वसोंह के पै रोों तले से
जमीन वनकल गई थी। उसे अपने बे टे पर बे हद गु स्सा आ रहा था। उसी की
िजह से ये सब हुआ था िनाफ अभय ये सब कभी न सोचता वक उससे क्या
कुछ छु पाया गया था??

अजय वसोंह अपने बे टे के इस कायफ पर गु स्सा तो बहुत हुआ था वकन्तु िह ये


भी जानता था वक अब गु स्सा करने का कोई मतलब नहीों है । यानी जो होना था
िो तो हो ही चु का था। अब तो उसे ये करना था वक इससे आगे कोई बात
बढे ही न और ना ही उस पर कोई बात आए।

अजय वसोंह अपनी फैक्टरी को वफर से चाल़ू करने की कोवशशोों में लगा हुआ
था इस वलए िह ज्यादातर हिे ली से बाहर ही रहता था। वकन्तु आज हुई इस
घटना की जानकारी जब उसकी पत्नी द्वारा फोन के माध्यम से उसे वमली तो
िह शहर से हिे ली आने के वलए कह वदया था प्रवतमा से। उसने ये भी वहदायत
दी थी वक आज की घटना के बारे में उसकी बे टी ररत़ू को पता न चले । जबवक
अपने बे टे वशिा को कुछ वदन के वलए शहर में बने मकान पर रहने के वलए
कह वदया था। ऐसा इस वलए था क्योोंवक वशिा की बु री हालत दे खकर कोई भी
ढे रोों सिाल प़ू ॅछने लगता। जबवक ररत़ू तो अब पु वलस िाली थी, हर बात पर
शक करना उसका पे शा था। द़ू सरी बात िह अपने भाई की आिारा गद़ी करने
िाली इस असवलयत से अों जान भी नहीों थी। इस वलए िह कई तरह के सिाल
प़ू छने लगती सबसे । अजय वसोंह ने प्रवतमा से ये भी कह वदया था वक िह हिे ली
में रहने िाले नौकर ि नौकरावनयोों को भी इस बात की ठोस शब्दोों में वहदायत
दे दे वक िो लोग आज हुई इस घटना के बारे में एक लफ्जज भी ररत़ू से न
कहें या उनके द्वारा वकसी तरह ररत़ू के कानोों तक ये बात न पहुॅचे ।

अजय वसोंह शाम को हिे ली पहुॅचा था। हिे ली में शमशान की तरह सन्नाटा
फैला हुआ था। ऐसा लगता था जै से इतनी बडी हिे ली में वकसी जीि का कहीों
कोई िज़ू द ही न हो। अजय वसोंह समझ सकता था वक हिे ली में ये सन्नाटा क्योों
फैला हुआ है । उसकी बे टी ररत़ू वकसी केस के वसलवसले में बाहर ही थी, यानी
अभी तक िह हिे ली नहीों लौटी थी पु वलस थाने से। जबवक वशिा अजय वसोंह के
पालत़ू कुछ आदवमयोों के साथ शहर िाले मकान में कुछ वदन रहने के वलए
चला गया था।

205
अजय वसोंह खामोशी से अपने कमरे की तरफ बढ गया। कमरे में पहुॅचते ही
अजय वसोंह ने दे खा वक उसकी बीिी प्रवतमा बे ड पर पडी है । बे ड पर पडी
प्रवतमा एकटक ि वनरों तर कमरे की छत पर झ़ूल रहे पों खे को घ़ू रे जा रही थी।
बल्कि अगर ये कहें तो जरा भी ग़लत न होगा वक िह पों खे को भी नहीों घ़ू र
रही थी िह तो बस श़ू न्य में ही दे खे जा रही थी। उसका मन कहीों और ही
भटका हुआ नजर आ रहा था। कदावचतट यही िजह थी वक उसे कमरे में अजय
वसोंह के दाल्कखल होने का जरा भी एहसास न हुआ था।

अजय वसोंह ने गौर से अपनी बीिी की तरफ दे खा वफर उसने अपने वजस्म पर
मौज़ू द कोट को उतार कर उसे दीिार पर लगे एक हैं गर पर लटका वदया।
इसके बाद िह बे ड की तरफ बढा। प्रवतमा अभी भी कहीों खोई हुई श़ू न्य में
घ़ू रे जा रही थी।

"ऐसे वकन खयालोों में गु म हो प्रवतमा?" अजय वसोंह ने उसे दे खते हुए
कहा__"वजसकी िजह से तुम्हें ये भी एहसास नहीों हो रहा वक मैं कब से इस
कमरे में आया हुआ हूॅ?"

"सब कुछ खत्म हो गया अजय।" प्रवतमा उसी मु द्रा में तथा अजीब से भाि के
साथ वबना अजय की तरफ दे खे ही बोली__"सब कुछ खत्म हो गया। कुछ भी
शे र् नहीों बचा। हमने गु जरे हुए कल में जो कुछ भी अपने वहत के वलए वकया
था िो सब अब बे पदाफ हो चु का है । कैसी अजीब सी ल्कथथत हो गई है हमारी। मैं
और तुम वजों दा तो हैं मगर ऐसा लगता है जै से हमारी एक एक साॅस हमारे
मरे हुए होने की गिाही दे रही है । हम ऐसे जी रहे हैं अजय जै से हर साॅस
हमने वकसी से उिार ली हुई है । आज आलम ये है वक हम अपने ही बच्चोों के
बीच डर डर कर जीिन का एक एक पल गु जार रहे हैं । कहीों ऐसा तो नहीों
अजय वक हमने जो कुछ भी अपने सुख सु वििा के वलए अपनोों के साथ वकया
है उसी का प्रवतफल आज हमें इस रूप में वमल रहा है?"

"ये तुम क्या कह रही हो प्रवतमा?" अजय वसोंह पहले तो चौोंका था वफर अजीब
भाि से प्रवतमा की तरफ दे खते हुए कहा__"यकीन नहीों होता यार। अरे इतनी
सी बात पर तुम इतना हताश ि विचवलत हो गई??? नहीों वडयर, तुम इतनी
वनराशािादी बातें नहीों कर सकती। तुमने तो गु जरे हुए कल में मे रे कहने पर
ऐसे ऐसे कवठन ि है रतअों गेज कामोों को अों जाम वदया है वजसे करने के वलए
कोई सािारण औरत सोच भी न सके।"

206
"मैं भी तो एक इों सान हूॅ, एक औरत ही हूॅ अजय।" प्रवतमा ने बे ड से उठ
कर तथा गों भीर होकर कहा__"भले ही गु जरे हुए कल में मैं ने तुम्हारे कहने पर
या हमारे वहत के वलए है रतअों गेज कामोों को अों जाम वदया हो मगर मु झे इस बात
का भी एहसास है वक िह सब जो मै ने वकया था िो वनहायत ही ग़लत था। ये
एक सच्चाई है अजय वक इों सान जो कुछ भी कमफ करता है उसके बारे में िो
इों सान भी भली भाॅवत जान रहा होता है वक िह वकस प्रकार का कमफ कर रहा
है ? इों सान जान रहा होता है वक िह ग़लत कमफ कर रहा है इसके बािज़ू द िह
रुकता नहीों है बल्कि ग़लत कमफ को करता ही चला जाता है । कदावचतट इस
वलए वक उसमें ही उसका वहत होता है । जब इों सान वसफफ अपने ही वहत के
वलए जोर दे ता है तब िह ये नहीों दे खता वक अपने वहत में उसने वकस वकस
की खुवशयोों की या वकस वकस के जीिन की बवल चढा दी है ?"

"ये आज तुम्हें क्या हो गया है प्रवतमा?" अजय वसोंह है रान परे शान होकर
बोला__"कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो तुम?"

"सच्चाई वकसी भी तरह की हो अजय उसे सुन कर ऐसा ही लगता है सबको।"


प्रवतमा ने फीकी सी मु स्कान के साथ कहा__"क्या ये सच नहीों है वक हमने
वसफफ अपने स्वाथफ ि वहत के वलए अपने ही ररश्तोों के साथ अवहत वकया है ? ये
बात तुम भी भली भाॅवत जानते और समझते हो अजय। हाॅ ये अलग बात है
वक तुम इस सब को स्वीकार न करो।"

"इन सब बातोों का अब कोई मतलब नहीों रह गया है प्रवतमा।" अजय ने बे चैनी


से पहल़ू बदलते हुए कहा__"और मत भ़ूलो इसके पहले तुमने भी इन सब
बातोों के बारे में नहीों सोचा था। आज ऐसा क्या हो गया है वजसकी िजह से
तुम वकसी के साथ सही ग़लत और वहत अवहत की बातें करने लगी? "

"आज हालात बदल गए हैं अजय।" प्रवतमा ने कहा__"पहले हम द़ू सरोों के साथ
अवहत कर रहे थे इस वलए कुछ भी नहीों सोच रहे थे । मगर आज जब हमारे
साथ अवहत होने लगा है तब हमें इन सबका एहसास होना स्वाभाविक ही है । ये
इों सानी वफतरत है अजय, जब तक कोई बात खुद पर नहीों आती तब तक हमें
वकसी बात का एहसास ही नहीों होता।"

"ये सब बे कार की बातें हैं प्रवतमा।" अजय वसोंह ने कहा__"आज की घटना से


तुम जरा विचवलत हो गई हो। जबवक इस सबसे इतना परे शान या दु खी होने
की कोई जरूरत नहीों है ।"

207
"तुम्हें आज के समय की िस्ु ल्कथथत का एहसास ही नहीों है अजय।" प्रवतमा ने
कहा__"अगर होता तो समझते वक हालात वकस कदर वबगड गए हैं । जरा सोचो
अजय...जो अभय आज तक हमारी ही कही बातोों पर आॅख बों द करके
यकीन करता आया था िही आज हमारी हर बात पर शक करने लगा है । इतना
ही नहीों उसने तो हर सच्चाई का पता लगाने के वलए कदम भी उठाने की बात
कर रहा था। अगर उसने ऐसा वकया और इस सबसे उसे सारी सच्चाई का पता
चल गया तो सोचो क्या होगा अजय?"

"कुछ नहीों होगा प्रवतमा।" अजय ने बडी सहजता से कहा__"तुम बे कार ही


इतना परे शान हो रही हो। तुम्हें मैं ने बताया नहीों है ...हमारी सारी जमीन और
जायदाद अब वसफफ हमारे ही बच्चोों के नाम पर हैं । ये हिे ली भी मैं ने तुम्हारे
नाम पर करिा दी है । मैं जब चाहूॅ तब अभय को इस हिे ली और सारी
जमीनोों से बे दखल कर सकता हूॅ। य़ू ॅ समझो वक िो वसफफ मे रे रहमो करम
पर इस हिे ली पर है । मु म्बई में वकसी होटल या ढाबे पर अपनी माॅ बहन के
साथ कप प्ले ट िोने िाले उस हरामजादे विराज का तो पिा ही साफ है । इस
वलए काऩू नन कोई कुछ भी नहीों कर सकता मे रा। अभय को अगर सच्चाई का
पता चल भी गया तो क्या कर ले गा हमारा??"

प्रवतमा अिाकट सी दे खती रह गई अजय की तरफ। उसे कुछ कहने के वलए


तुरोंत कुछ स़ूझा ही नहीों। जबवक.....

"मै ने कहा था न वक तुम बे कार ही इतना परे शान हो रही हो।" अजय वसोंह ने
मु स्कुराते हुए प्रवतमा के ख़ूबस़ूरत चे हरे को सहला कर कहा__"तुमने तो खुद
मे रे साथ काऩू न की एल एल बी की है । इस वलए जानती हो वक काऩू नन कोई
कुछ नहीों कर सकता। मैं ने सारी जमीनें हमारे बच्चोों के नाम कर दी हैं । और
अगर कोई बात होगी भी तो इनमें से वकसी के पास इतनी क्षमता ही नहीों है
वक ये लोग जमीन जायदाद को पाने के वलए मे रे साथ कोई मु कदमा िगै रह कर
सकें। और अगर इन लोगोों ने मु कदमा चलाने की कोवशश भी की तो सारी
वजन्दगी इनसे कोटफ कचहरी का चक्कर लगिाऊगा। इतने में ही इन सबका म़ू त
वनकल जाएगा।"

"िो सब तो ठीक है अजय।" प्रवतमा के चेहरे पर पहली बार राहत के भाि


उभरे थे , वकन्तु वफर तु रोंत ही असहज होकर बोली__"ले वकन हम अपनी बेवटयोों
को इस सबके वलए कैसे कल्कवोंस करें गे ? नीलम का तो भरोसा है वक िो हमसे
कोई सिाल जिाब नहीों करे गी, ले वकन ररत़ू का कुछ कह नहीों सकते । िो शु रू
से ही तेज तराफ र रही हैं और न्यायवप्रय भी। अब तो िह पु वलस िाली भी बन

208
गई है इस वलए इस सबका पता चलते ही िह कहीों हम पर ही न कोई केस
ठोोंक दे ।"

"हद करती हो यार।" अजय वसोंह ठहाका लगा कर हसते हुए बोला__"अपनी
ही बे टी से इतना डरने लगी हो तुम।"
"ज्यादा शे खी न बघारो तुम।" प्रवतमा ने अजीब भाि से कहा__"आज भले ही
इतना हस रहे हो तुम, मगर थोडे वदन पहले तुम्हारी भी जान हलक में अटकी
पडी थी जब ररत़ू ने फैक्टरी िाला केस ररओपे न वकया था।"

"यार सच कह रही हो तुम।" अजय वसोंह ने मु स्कुराते हुए कहा__"यकीनन उस


समय मे री हालत की िाट लगी हुई थी। वकतनी अजीब बात थी वक मे री ही
बे टी मे री ही*****मारने पर तुली हुई थी। भला उस बे चारी को क्या पता था
वक उसके द्वारा इस प्रकार से मे री*****मारने से मु झे वकतनी तक़लीफ हो रही
थी।"

"अब आए न लाइन पर।" प्रवतमा ल्कखलल्कखला कर हसते हुए बोली__"बडा उडने


लगे थे अभी तो।"
"यार मे रा तो के एल पी डी भी हो गया।" अजय वसोंह ने उदास भाि से
कहा__"मे रे बे टे ने ही सारा काम खराब कर वदया िनाफ करुणा की आगे पीछे
से ले ने का चान्स बन ही जाना था। अब तो ये असोंभि नहीों तो नामु मवकन
जरूर हो गया है ।"

"असोंभि क्योों नहीों??" प्रवतमा चौोंकी।


"असोंभि इस वलए नहीों क्योों वक मैं चाहूॅ तो अभी भी उसको आगे पीछे से
ठोोंक सकता हूॅ।" अजय वसोंह ने कहा__"ले वकन ये सब अब प्यार या उसकी
रजामों दी से नहीों हो सकेगा बल्कि इसके वलए मु झे बल का प्रयोग करना
पडे गा।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रवतमा है रान।


"साली को उठिा ल़ू ॅगा वकसी वदन।" अजय वसोंह सहसा कठोर भाि से
बोला__"और शहर में अपने नये िाले फामफहाउस पर रख़ूॅगा उसे । िहीों रात
वदन उसकी आगे पीछे से ल़ू ॅगा। इतना ही नहीों अपने आदवमयोों को भी मजा
करने का कह द़ू ॅगा। मे रे आदमी उसकी आगे पीछे से बजा बजा कर
उसकी***** का ****** बना दें गे।"

"ऐसा सोचना भी मत।" प्रवतमा ने आॅखें फैलाकर कहा__"िनाफ अभय तुम्हें

209
कच्चा चबा जाएगा।"
"अभय की माॅ की ***** साले की।" अजय ने कहा__"उसने अगर ज्यादा
उछल क़ूद करने की कोवशश की तो उसका भी िही अों जाम होगा जो विजय
का हुआ था, ले वकन जरा अलग तरीके से।"

"उसकी छोोंडो अजय।" प्रवतमा ने सहसा पहल़ू बदलते हुए कहा__"हमारी बे टी


ररत़ू के बारे में सोचो। उसे इस झमे ले के वलए कैसे मनाएों गे ?"

"उसकी भी वफक्र मत करो वडयर।" अजय वसोंह ने कुछ सोचते हुए


कहा__"तुम तो जानती हो वक मु झे अपने रास्ोों पर वकसी तरह के काॅटें
पसोंद नहीों हैं । हम दोनो उसे इस सबके वलए पहले प्यार से समझाएों गे , अगर
उसे हमारी बातें समझ आ गईों तो ठीक है िनाफ मजब़ू रन उसके साथ भी हमें
बल का प्रयोग करना ही पडे गा।"

"न नहीों अजय नहीों।" प्रवतमा ने सहसा घबरा कर कहा__"तुम उसके वलए
ऐसा कैसे कह सकते हो? िह हमारी अपनी बे टी है । हर ब्यल्कक्त की अपनी एक
वफतरत होती है , ररत़ू की वफतरत हम जै सी नहीों है तो इसमें उसकी क्या
ग़लती है ? इों सान का स्वभाि जन्म से ही बनने लगता है , और वफर हर इों सान
का अपना एक प्रारब्ध भी तो होता है । सब एक जै सी सोच विचार के नहीों हो
सकते अजय, ये प्रकृवत के वनयमोों के ल्कखलाफ है ।"

"मु झे पता है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने गों भीरता से कहा__"मैं जानता हूॅ वक
हमारी बे टी उनमें से है वजनकी रगोों में सच्चाई और ईमानदारी का ख़ून दौडता
है । ले वकन हमारे साथ मामला जरा जु दा है, यानी हमारी बे टी का ये सच्चाई
और ईमानदारी िाला ख़ून भविस्य में हमारे वलए बडी मु सीबत भी खडी कर
सकता है ।"

"ऐसा कुछ नहीों होगा अजय।" प्रवतमा ने मजब़ू ती से कहा__"मैं अपनी बे टी को


अपने तरीके से समझाऊगी। िो जरूर मे री बात को समझे गी और माने गी भी।"

"अच्छी बात है ।" अजय ने कहा__"तुम उसे अपने तरीके से जरूर समझा
दे ना। क्योोंवक तुम्हारे बाद अगर मु झे समझाना पडा उसे तो हो सकता है मे रा
समझाना तुम्हें पसोंद न आए।"

"मैं जरूर समझाऊगी अजय।" प्रवतमा के वजस्म में ठण्डी सी वसहरन दौडती

210
चली गई थी, वफर बोली__"ले वकन अब अभय के बारे में भी तो सोचो। उसने
साफ शब्दोों में कहा है वक िह इस सच्चाई का पता लगाएगा वक गौरी और
उसके बच्चोों के साथ िास्ि में हुआ क्या था? इस वलए िह इस सबका पता
लगाने के वलए मु म्बई में विराज तथा विराज की माॅ बहन के पास जाने का
बोल रहा था। अगर उसे सारी बातोों का पता चल गया तो क्या होगा अजय??"

"उसे जाने दो मे री जान।" अजय ने अजीब से लहजे में कहा__"उसे सारी


सच्चाई का पता लग भी जाएगा तो अब कोई कुछ भी नहीों कर सकेगा। वजस
चीज के वलए हमने ये सब वकया था िो तो हमें हावसल हो ही चु का है । इस
वलए जाने दो वजसे जहाॅ जाना हो। विराज के साथ साथ उसकी माॅ बहन को
तो मे रे आदमी भी ढ़ू ॅढ रहे हैं । अच्छा है वक अभय भी उन्हें तलाश करे गा
िहाॅ मु म्बई में । साला इतनी बडी मु म्बई में कहाॅ ढ़ू ॅढे गा उन कप प्ले ट िोने
िालोों को?"

"इस बारे में कुछ कहा नहीों जा सकता।" प्रवतमा ने कहा__"सोंभि है वकसी
सोंयोग के चलते अभय उन लोगोों को ढ़ू ॅढ ही ले ।"
"अगर ऐसा है तो मैं अपने कुछ आदवमयोों को अभय के पीछे लगा दे ता हूॅ।"
अजय ने कुछ सोचते हुए कहा__"यवद अभय उन लोगोों को ढ़ू ॅढने में कामयाब
हो जाएगा तो मे रे आदमी तुरोंत ही इस बात की मु झे स़ूचना दे दें गे।"

"हाॅ ये वबलकुल ठीक रहे गा अजय।" प्रवतमा ने खुश होकर कहा__"उस स़ूरत
में तुम अपने आदवमयोों को आदे श दे दे ना वक िो इन सबको वकसी भी तरह
यहाॅ हमारे पास ले आएों । उसके बाद हम अपने तरीके से उन सबका कल्याण
करें गे ।"

"ऐसा ही होगा मे री जान।" अजय वसोंह ने मु स्कुराते हुए कहा__"सब कुछ


हमारे वहसाब से ही होगा और अभय के यहाॅ से जाते ही मैं उसकी ख़ूबस़ूरत
बीिी करुणा को भी अपने आदवमयोों के द्वारा उठिा ल़ू ॅगा।"

"ऐसा करना हमारे वलए कहीों खतरे का सबब न बन जाए अजय।" प्रवतमा ने
अजय को अजीब भाि से दे खते हुए कहा__"मु झे लगता है वक इस काम में
तुम्हें अभी इतनी जल्दी इतना बडा क़दम नहीों उठाना चावहए।"

"एक वदन तो ये होना ही है प्रवतमा।" अजय वसोंह ने कहा__"और िै से भी


आज वजस तरह के हालात बन गए हैं उससे सारी बातें सबके सामने आ ही
जाएॅगी। इस वलए जब सारी बातोों को खुल ही जाना है तो इस काम में मैं

211
दे री क्योों करूॅ? मु झे हर हाल में अपनी ख्वावहशोों को परिान चढाना है वडयर।
मे री शु रू से ही ये ख्वावहश थी वक मैं गौरी तथा करुणा को अपने इसी बे ड
पर अपने नीचे वलटाऊ और उन दोनो के ख़ूबस़ू रत वकन्तु गदराए हुए मादक
वजस्म का भोग करूॅ।"

"ख्वावहश तो तुम्हारी अपनी बे वटयोों को भी अपने नीचे वलटाने की है अजय।"


प्रवतमा ने मु स्कुराते हुए कहा__"तो क्या अपनी बे वटयोों के साथ भी अपने छोटे
भाईयोों की बीवियोों की तरह जबरदस्ी करोगे ?"

"अगर जरूरत पडी तो ऐसा भी करुॅगा मे री जान।" अजय ने िष्ट भाि से


कहा__"ले वकन हमारी बेवटयोों को मे रे नीचे लाने की वजम्मेदारी तुम्हारी है । तुम
अगर इस काम में सफल हो जाती हो तो अच्छी बात है िनाफ घी वनकालने के
वलए मु झे अपनी उगली को टें ढा करना ही पडे गा।"

प्रवतमा है रान परे शान सी दे खती रह गई अपने पवत को। िह समझ नहीों पा रही
थी वक उसका पवत वकस तरह का इों सान है ??????
-------------------------

उिर मु म्बई में ।


विराज अपने िादे के अनु सार रवििार यानी स्क़ूल की छु ट्टी के वदन वनवि को
बडे से वशप में समुों दर घु माने ले आया था। वनवि बेहद खुश थी इस सबसे।
पता नहीों क्या क्या उसके वदमाग़ में चलता रहता था। कदावचतट वफल्में दे खने का
असर ज्यादा हो गया था उस पर।

वपछली सारी रात िह विराज के कमरे में रही थी। सारी रात उसने तरह तरह
की योजनाएों बना बना कर विराज को बताती रही थी वक कल समुों दर में वकस
वकस तरह से हम मस्ी करें गे । उसकी ऊल जु ल़ूल बातोों से विराज बु री तरह
परे शान हो गया था। वकन्तु िह उसे कुछ कह नहीों सकता था क्योोंवक वनवि
उसकी जान थी। उसकी खुशी के वलए िह कुछ भी कर सकता था। विराज ने
उसकी सभी बातोों पर अमल करने का उसे िचन वदया और वफर प्यार से उसे
अपने सीने से छु पका कर कहा था__"गुवडया अब हम लोग सो जाते हैं , कल
सुबह हमें जल्दी वनकलना भी है न।" विराज की इस बात से और उसको इस
तरह सीने से छु पका ले ने से वनवि खुश हो गई और खुशी खुशी ही नीोंद की
आगोश में चली गई थी।

सुबह हुई तो दोनो ने नास्ा पानी वकया और कुछ जरूरी चीजें ले कर घर से

212
वनकल पडे । गौरी के द्वारा उन्हें शख्त वहदायतें भी दी गई थी वक िहाॅ पर
साििानी से ही काम ले ना और शाम होने से पहले पहले घर िावपस आ जाना।
विराज वनवि को ले कर कार से वनकल गया था।

जगदीश ओबराय की अच्छी जान पहचान थी वजसकी िजह से विराज को वकसी


बात की कोई परे शानी नहीों हुई थी। कहने का मतलब ये वक विराज ने एक
बे हतरीन सुख सुवििा सम्पन्न वशप को शाम तक के वलए बु क करिा वलया था।

वशप मे दो चालक और एक गाइड करने िाला था बाॅकी प़ू रा वशप खाली ही


था। इस ख़ूबस़ूरत वशप में चढ कर वनवि खुशी से फ़ूली नहीों समा रही थी।
उसका बस चलता तो िह मारे खुशी के आसमान में उडने लगती। िह विराज
से वचपकी हुई थी। वफर िह उससे अलग होकर वशप के वकनारे पर आ गई
तथा यहीों से हर तरफ का नजारा करने लगी थी। विराज उसे इस तरह खुश
होते दे ख खुद भी खुश था। उसे आज पहली बार यहाॅ खुले आसमान के नीचे
समुों दर में इस तरह अपनी बहन के साथ आकर खुशी हुई थी। िह अपनी बहन
को ही दे ख रहा था, जो कभी कहीों दे खती तो कभी कहीों और दे खने लगती।
उसके वलए ये सब नया था, हलाॅवक वफल्मोों में उसने जाने वकतनी दफा एक
से बढकर एक सीन्स दे खे थे । वकन्तु यह नजारा उसके जीिन का पहला और
िास्विक था। विराज अपनी गु वडया को इस तरह खुश होते दे ख खुद भी खुश
था। वफर एकाएक ही जाने क्या सोच कर उसकी आॅखोों में आॅस़ू आ गए।
कदावचतट ये सोच कर वक इसके पहले उन लोगोों ने ऐसी वकसी खुशी को पाने
की कल्पना भी न की थी। उसके अपनोों ने वकस तरह उसे और उसकी माॅ
बहन को हर चीज से बे दखल कर वदया था। कुछ ददफ ऐसे भी थे जो अक्सर
तन्हाई में उसे रुलाते थे ।

अभी िह ये सब सोच कर आॅस़ू बहा ही रहा था वक वनवि उसके सामने आ

213
गई। उसने वनवि को दे खकर जल्दी से मु ह फेर वलया तावक िह उसकी आॅखोों
में आॅस़ू न दे ख सके।

"आप क्या समझते हैं मु झे कुछ पता नहीों चलता??" वनवि ने भराफ ए गले से
कहा__"अगर आप ऐसा समझते हैं तो ग़लत समझते हैं आप। सोंसार की ऐसी
कोई चीज नहीों है वजसे दे ख कर मैं अपने होश खो द़ू ॅ और मु झे ये भी न
पता चल सके वक जो मे री जान है उसे वकस पल वकस ददफ ने आकर रुला
वदया है । आप कहीों भी रहें ले वकन मैं ये महस़ूस कर ले ती हूॅ वक आप वकस
लम्हें में वकस ददफ से गु जरे हैं ।"

"ये सब क्या बोल रही है पगली?" विराज ने खुद को सम्हालते हुए तथा हसते
हुए कहा__"चल छोोंड ये सब और आ हम दोनोों एों ज्वाय करते हैं ।"

"आप बातोों को टावलये मत।" वनवि ने विराज के चे हरे की तरफ एकटक दे खते
हुए कहा__"मु झे िचन दीवजए वक आज के बाद आप कभी भी अपनी आॅखोों
में आॅस़ू नहीों लाएॅगे ।"

"वजन चीजोों पर वकसी इों सान का कोई बस ही न हो उन चीजोों के वलए कैसे


भला कोई िचन दे सकता है गु वडया?" विराज ने फीकी सी मु स्कान के साथ
कहा__"हाॅ इतना जरूर कह सकता हूॅ वक आइों दा ऐसा न हो ऐसी कोवशश
करूॅगा।"

वनवि एक झटके से विराज से वलपट गई, उसकी आॅखोों में आॅस़ू थे ,


बोली__"क्योों उन सब चीजोों के बारे में इतना सोचते हैं आप वजनके बारे में
सोचने से हमें वसफफ दु ख और आॅस़ू वमलते हैं ? मत सोचा कीवजए न िो
सब...आप नहीों जानते वक आपको इस तरह दु ख में आॅस़ू बहाते दे ख कर
मु झ पर और माॅ पर क्या गु जरती है ? सबसे ज्यादा मु झे तक़लीफ होती
है ...आप उसे भ़ूल जाइए न भाईया...क्योों उसे इतना याद करते हैं वजसे
आपकी पाक मोहब्बत की कोई क़दर ही न थी कभी।"

विराज के वदलो वदमाग़ को जबरदस् झटका लगा। ये क्या कह गई थी उसकी


गु वडया?? उसे ऐसा लगा जै से उसके पास में ही कोई बम्ब बडे जोर से फटा
हो और वफर सब कुछ खत्म ि शान्त। कानोों में वसफफ साॅय साॅय की ध्ववन
ग़ू ॅजती महस़ूस हो रही थी। विराग वकसी बु त की तरह खडा रह गया था।
उसकी पथराई सी आॅखें वनवि के उस चे हरे पर जमी हुई थी वजस चे हरे को
आॅसुओों ने िो डाला था। वफर सहसा जै से उसे होश आया। उसने वनवि के

214
मास़ूम से चे हरे को अपनी दोनोों हथे वलयोों के बीच वलया और झुक कर उसके
माॅथे पर एक चु बन वलया। इसके बाद िह पलटा और वशप के अों दर की तरफ
चला गया। जबवक वनवि िहीों पर खडी रह गई।

जब काफी दे र हो जाने पर भी विराज अों दर से न आया तो वनवि के चे हरे पर


वचों ता ि परे शानी के भाि गवदफ श करने लगे । उसे अपने भाई के वलए वचन्ता होने
लगी और उसका वदलो वदमाग बे चैन हो उठा। िह तुरोंत ही अों दर की तरफ बढ
गई। समुों दर में उठती हुई लहरोों के बीच तैरता हुआ वशप बढता ही जा रहा
था। वनवि जब अों दर पहुॅची तो वशप में मौज़ू द गाइड करने िाला आदमी बाहर
की ही तरफ आता वदखाई वदया। वनवि ने उससे विराज के बारे में प़ू छा तो
उसने हाथ के इशारे से एक तरफ सों केत वकया और बाहर वनकल गया। जबवक
वनवि उसकी बताई हुई वदशा की तरफ बढ गई। एक कमरे में दाल्कखल होते ही
उसकी नजर जै से ही अपने भाई पर पडी तो उसे झटका सा लगा। उसके
पाॅि िहीों पर वठठक गए। उसकी आॅखोों से बडे तेज प्रिाह से आॅस़ू बहने
लगे । उसका वदल बु री तरह हाहाकार कर उठा था।

अपडे ट...........《 23 》

अब तक,,,,,,

कनकध एक झटके से किराज से कलपट गई, उसकी आॅखों में आॅसू थे ,


बोली__"क्ों उन सब ची़िों के बारे में इतना सोचते हैं आप कजनके बारे में
सोचने से हमें कसिग दु ख और आॅसू कमलते हैं? मत सोचा कीकजए न िो
सब...आप नही ं जानते कक आपको इस तरह दु ख में आॅसू बहाते दे ख
कर मुझ पर और माॅ पर क्ा गु़िरती है? सबसे ज्यादा मुझे तक़लीि
होती है...आप उसे भू ल जाइए न भाईया...क्ों उसे इतना याद करते हैं
कजसे आपकी पाक मोहब्बत की कोई क़दर ही न थी कभी।"

किराज के कदलो कदमाग़ को ़िबरदस्त झटका लगा। ये क्ा कह गई थी


उसकी गुकडया?? उसे ऐसा लगा जैसे उसके पास में ही कोई बम्ब बडे ़िोर
से िटा हो और किर सब कुछ खत्म ि शान्त। कानों में कसिग साॅय
साॅय की ध्वकन गू ॅजती महसू स हो रही थी। किराग ककसी बु त की तरह

215
खडा रह गया था। उसकी पथराई सी आॅखें कनकध के उस चे हरे पर जमी
हुई थी कजस चे हरे को आॅसु ओ ं ने धो डाला था। किर सहसा जैसे उसे
होश आया। उसने कनकध के मासू म से चे हरे को अपनी दोनों हथे कलयों के
बीच कलया और झुक कर उसके माॅथे पर एक चु बन कलया। इसके बाद
िह पलटा और कशप के अं दर की तरि चला गया। जबकक कनकध िही ं पर
खडी रह गई।

जब कािी दे र हो जाने पर भी किराज अं दर से न आया तो कनकध के चे हरे


पर कचं ता ि परे शानी के भाि गकदग श करने लगे। उसे अपने भाई के कलए
कचन्ता होने लगी और उसका कदलो कदमाग बे चैन हो उठा। िह तु रंत ही
अं दर की तरि बढ गई। समुंदर में उठती हुई लहरों के बीच तै रता हुआ
कशप बढता ही जा रहा था। कनकध जब अं दर पहुॅची तो कशप में मौजूद
गाइड करने िाला आदमी बाहर की ही तरि आता कदखाई कदया। कनकध ने
उससे किराज के बारे में पू छा तो उसने हाथ के इशारे से एक तरि सं केत
ककया और बाहर कनकल गया। जबकक कनकध उसकी बताई हुई कदशा की
तरि बढ गई। एक कमरे में दाल्कखल होते ही उसकी ऩिर जैसे ही अपने
भाई पर पडी तो उसे झटका सा लगा। उसके पाॅि िही ं पर कठठक गए।
उसकी आॅखों से बडे ते ़ि प्रिाह से आॅसू बहने लगे। उसका कदल बु री
तरह हाहाकार कर उठा था।

अब आगे,,,,,,

कमरे के दरिाजे पर अपनी आॅखों से डबडबाते आॅसू के साथ खडी


कनकध अपने भाई किराज को दे खे जा रही थी जो अपने दाकहने हाॅथ में
महगी शराब की बोतल को मु ॅह से लगाए गटागट कपये जा रहा था। दे खते
ही दे खते सारी बोतल खाली हो गई। किराज ने खाली बोतल को बार
काउं टर पर पटका और किर से एक बोतल उठा ली उसने ।

कनकध को जैसे होश आया, िह कबजली की सी ते ़िी से कमरे के अं दर


किराज के पास पहुॅची और हाॅथ बढा कर एक झटके से किराज के हाॅथ
से बोतल खी ंच ली।

"ये क्ा पागलपन है भइया?" कनकध ने रोते हुए ककन्तु चीख कर


कहा__"आप शराब को हाॅथ कैसे लगा सकते हैं? क्ा उसका ग़म इतना
बडा है कक उसके ग़म को भु लाने और कमटाने के कलए आपको इस शराब
का सहारा ले ना पड रहा है? क्ों भइया क्ों...क्ों उसको याद करके

216
घुट घुट के जी रहे हैं? एक ऐसी बे ििा के कलए कजसको आपके सच्चे प्यार
की कोई कद्र ही न थी। कजसने आपकी गुरबत को दे ख कर आपका साथ
दे ने की बजाय आपका साथ छोंड कदया। क्ों भइया....क्ों ऐसे इं सान
को याद करना? क्ों ऐसे इं सान की यादों में तडपना कजसको प्यार और
मोहब्बत के मायने ही पता नही?"

किराज खामोश खडा था। उसका चे हरा आॅसु ओ ं से तर था। चे हरे पर


़िमाने भर का ददग जैसे तांडि कर रहा था। आॅखें शराब के नशे में लाल
सु खग हो चली थी ं। कनकध क्ा बोल रही थी उसकी कुछ समझ में नही ं आ
रहा था। जबकक कनकध ने उसे पकड कर आराम से िही ं रखे एक सोिे पर
कबठाया और खु द भी उसके पास ही बै ठ गई।

"तु तु झे ये सब कैसे पता चला गुकडया?" किर किराज ने लरजते हुए स्वर
में कहा।
"आप सारी दु कनयाॅ को बहला सकते हैं भइया,ले ककन अपनी गुकडया को
नही ं।" कनकध ने कहा__"मु झे इस बात का आभास तो पहले से ही था कक
आप जो हम सबको कदखा रहे हैं िै सा असल में है नही ं। मैंने अर्क्र रातों
में आपको रोते हुए दे खा था। एक कदन जब आप ककसी काम से बाहर गए
हुए थे तो मैंने आपके कमरे की तलाशी ली। उस समय मैं खु द नही ं
जानती थी कक आपके कमरे में मैं क्ा तलाश कर रही थी? ककन्तु इतना
़िरूर जानती थी कक कुछ तो कमले गा ही ऐसा कजससे ये पता चल सके कक
आप अर्क्र रातों में क्ों रोते हैं? कािी तलाश करने के बाद जो ची़ि
मुझे कमली उसने अपनी आस्तीन में छु पाई हुई सारी दास्तां को मेरे सामने
रख कदया। मेरे हाॅथ आपकी डायरी लग गई थी....उसी से मुझे सारी
बातें पता चली ं। डायरी में आपके द्वारा कलखा गया एक एक हफ़ग ऐसा था
कजसने मुझे और मेरी अं तआग त्मा तक को झकझोर कर रख कदया था
भइया। अच्छा हुआ कक िो डायरी मुझे कमल गई थी िनाग भला मैं कैसे
जान पाती कक आप अपने सीने में ककतना बडा ददग छु पा कर हम सबके
सामने हसते बोलते रहते हैं?"

"ये सब माॅ से मत बताना गुकडया।" किराज ने बु झे स्वर में कहा__"िनाग


माॅ को बहुत दु ख होगा। उन्होंने बहुत दु ख सहे हैं, मैं उन्हें अब ककसी भी
तरह दु खी नही ं दे ख सकता।"

"और मुझे???" कनकध ने किराज की आॅखों में बडी मासू कमयत से दे खते
हुए कहा__"क्ा मुझे दु खी सकते है आप??"

217
"नही,ं हकगग ़ि नही ं गु कडया।" किराज ने कहने के साथ ही कनकध के चे हरे
को अपनी दोनों हथे कलयों के बीच कलया__"तू तो मेरी जान है रे । ते री
तरि तो दु ख की परछाई को भी न िटकने दू ॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो क्ों खु द को इतनी तकलीफ़ दे ते हैं आप?" कनकध


ने रुआॅसे स्वर में कहा__"आप भी तो मेरी जान हैं, और मैं भला अपनी
जान को दु ख में दे ख कर कैसे खु श रह सकती हूॅ, कभी सोचा है
आपने ? आप तो हमेशा उसी की याद में दु खी रहते हैं, उसी के बारे में
सोचते रहते हैं। आपको इस बात का खयाल ही नही ं रहता कक जो सचमुच
आपसे प्यार करते हैं िो आपको इस तरह दु खी दे ख कर कैसे खुश रह
सकते हैं?"

किराज कुछ न बोला। सोिे की कपछली पु श् से पीठ कटका कलया उसने


और अपनी आॅखें बं द कर ली। उस पर अब नशा हािी हो गया था। दु ख
ददग जब असहनीय हो जाता है तो िह कुछ भी कर गु़िरने पर उतारू हो
जाता है। आज तक उसने शराब को हाथ भी न लगाया था। अपने इस ददग
को ककसी से बयां भी न ककया था, ककन्तु आज अपनी ये सच्चाई जब
कनकध के मुख से सु नी तो उसे जाने क्ा हुआ कक उसके जज्बात हद से
ज्यादा मचल गए और उसने शराब पी। हलाकक िह अं दर इस कलए आया
था क्ोंकक िह कनकध के सामने खु द को इस हाल में नही ं कदखा सकता
था। जब िह कमरे में आया तो ऩिर कमरे में ही एक तरि लगे बार
काउं टर पर पडी। अपनी हालत को छु पाने के कलए उसने पहली बार शराब
की तरि अपना रुख ककया था। जुनून के हिाले हो चु के उसने शराब की
बोतल ही मुख से लगा ली और सारी बोतल डकार गया। ककन्तु अब उस
पर शराब का नशा तारी हो चु का था।

कनकध कोई बच्ची नही ं थी बल्कि सब समझती थी। उसे एहसास था कक


शराब ने उसके भाई पर अपना असर कदखा कदया है। क्ा सोच कर आए
थे दोनो यहाॅ ले ककन क्ा हो गया था। कनकध को अपने भाई की इस
हालत पर बडा दु ख हो रहा था। िह आॅखे बं द ककये अपने भाई को ही
दे खे जा रही थी। उसने उसे झकझोर कर पु कारा, तो किराज हडबडा कर
उठा। इधर उधर दे खा किर ऩिर कनकध पर पडी तो एकाएक ही िह
चौंका। उसे कनकध के चे हरे पर ककसी और का ही चे हरा ऩिर आ रहा था।
िह एकटक दे खे जा रहा था उसे । किर एकाएक ही उसके चे हरे के भाि
बदल गए।

218
"अब यहाॅ क्ा दे खने आई हो किकध?" किराज भािािे श में कह रहा
था__"दे ख लो तु मने जो ग़म कदये थे िो थोडा कम पड गए िनाग आज मैं
क़िंदा नही ं रहता बल्कि कब का मर गया होता या किर पागल हो गया
होता। ले ककन कचन्ता मत करो, क्ोंकक क़िन्दा भी कहाॅ हूॅ मैं? हर पल
घुट घुट कर जीता हूॅ मैं। इससे अच्छा तो ये होता कक तु म मु झे ़िहर दे
दे ती। कम से कम एक बार में ही मर जाता।"

इधर किराज जाने क्ा बोले जा रहा था जबकक उधर कनकध पहले तो बु री
तरह चौंकी थी किर जब उसे सब कुछ समझ आया तो उसका कदल तडप
उठा। उसने कुछ कहा नही ं बल्कि अपने भाई को बोलने कदया ये सोच कर
कक ये उसके अं दर का गुबार है। इस गुबार का कनकलना भी बहुत ़िरूरी
है। उसे जाने क्ा सू झी कक उसने इस सबके कलए खु द किकध का रोल प्ले
करने का सोच कलया।

"क्ों ककया ऐसा किकध?" किराज भरागए गले से कह रहा था__"क्ा यही
प्यार था? क्ा तु म्हें मेरे धन दौलत से प्यार था? और जब तु मने दे खा कक
मेरे अपनों ने मुझे मेरी माॅ बहन सकहत हर ची़ि से बे दखल कर कदया है
तो तु मने भी मुझे दु त्कार कदया? क्ों ककया ऐसा किकध....?"

"प्यार व्यार ये सब िालतू की बाते हैं कमस्टर किराज।" किकध का रोल कर


रही कनकध ने अजीब भाि से कहा__"समझदार आदमी इनके चक्करों में
पड कर अपना समय बबागद नही ं करता। मैने तु मसे प्यार ककया था क्ोंकक
तु म उस समय अमीर थे । तु म्हारे पास धन था दौलत थी। उस समय तु म
मेरे कलए कुछ भी खरीद कर दे सकते थे। तु मसे शादी करती तो सारी
क़िन्दगी ऐश करती। मगर तु म तो अपनों के द्वारा दर दर का कभखारी बना
कदये गए। भला कोई कभखारी मेरी ़िरूरतों को कैसे पू रा कर पाता? इस
कलए मैंने समझदारी से काम कलया और तु मसे जो प्यार का चक्कर चलाया
था उसे खत्म कर कदया। हर ब्यल्कक्त अपने सु ख और कहत के बारे में
सोचता है। मैं ने भी तो यही सोचा था, इसमें भला मेरी क्ा ग़लती?"

"ककतनी आसानी से ये सब कह कदया तु मने ?" किराज के अं दर जैसे कोई


हूक सी उठी थी, बोला__"क्ा एक पल के कलए भी तु म्हारे मन में ये
खयाल नही ं आया कक तु म्हारे इस तरह के कठोर बतागि से मुझ पर क्ा
गु़िरी रही होगी? क्ा तु म्हें एक पल के कलए भी नही ं लगा कक तु म ये जो
कुछ कर रही हो िह ककतना ग़लत है? क्ा तु झे एक पल के कलए भी नही ं

219
लगा था कक ते रे इस तरह दु त्कार दे ने से सारी ऊम्र मैं सु कून से जी नही ं
पाऊगा? बता बे ििा....बता बे हया लडकी?"

किराज एकाएक ही बु री तरह चीखने कचल्लाने लगा था। जुनून और


पागलपन सा सिार हो गया था उस पर। उसने एक झटके में कनकध की
गदग न को अपने दोनो हाॅथों से दबोच कलया। कनकध को इस सबकी उम्मीद
नही ं थी। इस कलए जैसे ही किराज ने अपने दोनो हाॅथों से उसकी गदग न
दबोची िै से ही िह बु री तरह घबरा गई। जबकक किराज जुनूनी हो चु का।
इस िक्त उसके चे हरे पर निरत घृडा और गुस्सा जैसे कत्थक करने लगा
था। आॅखें तो नशे में िै से ही लाल सु खग हो गई थी पहले से अब चे हरा
भी सु खग पड गया था।

कनकध ने तो स्वप्न में भी नही ं सोचा था कक ऐसा भी हो सकता है। किराज


ने उसकी गदग न को शख्ती से दबोचा हुआ था। कनकध बु री तरह सहम गई
थी। डर और भय के चलते उसका चे हरा कनस्ते ़ि का हो गया था।
जबकक.....

"अब बोलती क्ों नही ं खु दग़िग लडकी? बोल क्ों ककया मेरे कदल के साथ
इतना बडा ल्कखलिाड?" किराज भभकते स्वर में बोले जा रहा था__"बोल
क्ों मेरी पाक भािनाओं को पै रों तले रौंदा था? बोल ककतनी धन दौलत
चाकहए तु झे? आज तो मैं किर से अमीर हो गया हूॅ....मेरे पास आज
इतनी दौलत है कक ते रे जैसी जाने ककतनी लडककयों को एक साथ उस
दौलत से तौल दू ॅ। कही ं ऐसा तो नही ं कक तु झे पता चल गया हो कक मैं
किर से धन दौलत िाला हो गया हूॅ और इस कलए तू किर से अपना
िरे बी प्यार मेरे आगे परोसने आ गई? नही ं नही...
ं अब मु झे ते रे इस
कघनौने प्यार की ़िरूरत नही ं है। बल्कि अब तो मैं ते रे जैसी लडककयों को
अपनी उसी दौलत से दो कौडी के दामों में खरीद कर अपने नीचे
सु लाऊगा और रात कदन रगडूॅगा उन्हें समझी तू ???"

"भ भइया...ये क् क्ा हो गया है आ आपको?" कनकध बडी मुल्किल से


बोल पा रही थी__"मैं कि किधी नही ं बल्कि मैं आ आपकी गुकडया हूॅ
भइयाऽऽ।"

किराज इस तरह रुक गया जैसे स्टै चू में तब्दील हो गया हो। कानों में कसिग
एक यही िाक् गूॅज रहा था 'मैं कि किधी नही ं बल्कि मैं आ आपकी

220
गुकडया हूॅ भइयाऽऽ।' बार बार यही िाक् कानों में गूॅज रहा था। एक
झटके से किराज ने कनकध की गदग न से अपने हाॅथ खी ंचे । एक पल में ही
उसकी बडी अजीब सी हालत हो गई। आॅखें िाड कर कनकध को दे खा
उसने । और किर िूट िूट कर रो पडा िह। कनकध को अपने सीने से
छु पका कलया उसने ।

"मुझे माि कर दे ...माि कर दे मुझे।" किराज ने कनकध को अपने सीने


से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड कर कहा__"ये मैं क्ा कर रहा था
गुकडया? अपने इन्ही ं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी
गुकडया का गला दबा रहा था मैं । मुझे माि कर दे गुकडया, मु झसे ककतना
नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके कलए कठोर से भी कठोर स़िा
दे गुकडया।"

"भइयाऽऽ।" कनकध का कदल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से


किराज को खु द से कचपका कलया। बु री तरह रोये जा रही थी िह। िह
जानती थी कक ये जो कुछ भी हुआ उसमें किराज की कही ं कोई ग़लती
नही ं थी। िो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से कनकध को ही किधी
समझ कर उसके अं दर से िट पडा था।

जाने ककतनी ही दे र तक यही आलम रहा। कनकध अपने भाई को शान्त


कराती रही। शराब के नशे में किराज िही ं कनकध की गोंद में कसर रख कर
सो गया था। कनकध बडे प्यार से उसके कसर के बालों पर उगकलयाॅ िेरती
जा रही थी। उसकी ऩिरें अपने भाई के उस चे हरे पर जमी हुई थी कजस
चे हरे पर इस िक्त सं सार भर की मासू कमयत किद्यमान थी।

'आप कचन्ता मत कीकजए भइया, आपकी ये गुकडया आपको इतना प्यार


करे गी कक आप सं सार के सारे दु ख सारे ग़म भू ल जाएॅगे। आप मेरी जान
हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस कलए आज से आपकी खु शी के कलए मैं
िो सब कुछ करूॅगी कजससे आपको खु शी कमले ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

221
अपडे ट............《 24 》

अब तक,,,,,,

"मुझे माि कर दे ...माि कर दे मुझे।" किराज ने कनकध को अपने सीने


से अलग करके अपने दोनो हाथ जोड कर कहा__"ये मैं क्ा कर रहा था
गुकडया? अपने इन्ही ं हाॅथों से अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी
गुकडया का गला दबा रहा था मैं । मुझे माि कर दे गुकडया, मु झसे ककतना
नीच काम हो गया...तू तू मुझे इस सबके कलए कठोर से भी कठोर स़िा
दे गुकडया।"

"भइयाऽऽ।" कनकध का कदल हाहाकार कर उठा, उसने एक झटके से


किराज को खु द से कचपका कलया। बु री तरह रोये जा रही थी िह। िह
जानती थी कक ये जो कुछ भी हुआ उसमें किराज की कही ं कोई ग़लती
नही ं थी। िो तो बस एक गुबार था, जो इस प्रकार से कनकध को ही किधी
समझ कर उसके अं दर से िट पडा था।

जाने ककतनी ही दे र तक यही आलम रहा। कनकध अपने भाई को शान्त


कराती रही। शराब के नशे में किराज िही ं कनकध की गोंद में कसर रख कर
सो गया था। कनकध बडे प्यार से उसके कसर के बालों पर उगकलयाॅ िेरती
जा रही थी। उसकी ऩिरें अपने भाई के उस चे हरे पर जमी हुई थी कजस
चे हरे पर इस िक्त सं सार भर की मासू कमयत किद्यमान थी।

'आप कचन्ता मत कीकजए भइया, आपकी ये गुकडया आपको इतना प्यार


करे गी कक आप सं सार के सारे दु ख सारे ग़म भू ल जाएॅगे। आप मेरी जान
हैं और मैं आपकी जान हूॅ। इस कलए आज से आपकी खु शी के कलए मैं
िो सब कुछ करूॅगी कजससे आपको खु शी कमले ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

अब आगे,,,,,,,,

किराज को लगभग चार घंटे बाद होश आया। कनकध की गोद में कसर रखे
िह उसी तरह ले टा हुआ था। उसके कसर पर कनकध का हाॅथ था और िह
खु द भी िही ं पर यूॅ ही सो गई थी। दोनो ही नही ं जानते थे कक कजस
कशप में िो दोनो इस िक्त थे िह कहाॅ से कहाॅ घूमते हुए पहुॅच गया

222
था।

किराज को जब होश आया तो उसने अपने कसर को कनकध की गोद में


कटका हुआ पाया। उसने दे खा कक उसकी जान उसके कसर पर अपना हाॅथ
रखे यूॅ ही सो गई थी। उसके खू बसू रत चे हरे पर सं सार भर की
मासू कमयत किद्यमान थी। किराज को उस पर बडा प्यार आया। िह आकहस्ता
से कनकध की गोद से उठा और किर कनकध को बडी ही आसानी से अपनी
बाजुओ ं में उठा कलया। पास में ही एक तरि रखे सोिे पर उसने कनकध
को आकहस्ता से कलटाया। उसके बाद िह खु द भी उसके चे हरे के समीप ही
बै ठ गया और अपनी गुकडया को सोते दे खने लगा। कुछ दे र यूॅ ही दे खने
के बाद िह झुका और कनकध के माथे पर आकहस्ता से चू ॅमा किर उठ कर
बाथरूम की तरि बढ गया।

किराज के जाते ही कनकध ने मुस्कुराते हुए पट से अपनी आॅखें खोल दी।


कुछ पल जाने क्ा सोचती रही किर उसने बहुत ही धीमे स्वर में
कहा__"आपको तो ये भी नही ं पता जान जी कक ककस ककसी लडकी के
माथे पर नही ं बल्कि उसके होंठो पर ककया जाता है। ले ककन आप कचन्ता
मत कीकजए....आप ये भी जानने लगेंगे...मैं सब बताऊगी न आपको,
हाॅ नही ं तो।" ये कह कर िह हस पडी किर सहसा शमाग भी गई िह।
अपने दोनो हाथों द्वारा तु रंत ही अपना चे हरा छु पा कलया उसने ।

कुछ दे र बाद किराज जब बाथरूम से िापस आया तो उसने अपनी गुकडया


को अपने ही हाथों अपने चे हरे को छु पाये हुए पाया। उसे लगा गुकडया अभी
भी उसके कलए दु खी है, इस कलए िह तु रंत ही उसके पास पहुॅचा और
िसग पर उसके घुटनों के पास बै ठ गया।

"तू दु खी मत हो गुकडया।" किराज ने अपने हाॅथों द्वारा कनकध के चे हरे से


उसके हाॅथों को हटाते हुए कहा__"मैं तु झसे िादा करता हूॅ कक अब से
मैं खु द को दु खी नही ं करूॅगा। उसकी यादों पर तो मेरा कोई ़िोर नही ं
है ले ककन अब उसकी यादों से मैं खु द को किचकलत नही ं करूॅगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है भइया।" कनकध ने कहा__"उस लडकी को याद


करके अपने कदल को क्ों तकलीफ़ दे ना कजसे प्यार की पररभाषा का ज्ञान
ही न हो।"
"तू सही कह रही है गु कडया।" किराज के चे हरे पर एकाएक ़िल़िले के से
भाि आए, बोला__"ले ककन इसका कहसाब तो मैं उससे लू ॅगा गुकडया। उसे

223
मेरे साथ इस ल्कखलिाड को करने की स़िा ़िरूर कमले गी मेरे हाथों। ऐसा
हाल करूॅगा उसका कक किर ककसी के साथ ऐसा करने की कहम्मत भी
नही ं करे गी िो।"

"क्ा आपका ऐसा करना मेरा मतलब है कक उसे स़िा दे ना उकचत है


भइया?" कनकध ने कहा__"उसने जो ककया उसे उसका िल भगिान खु द
ही दे दे गा। आपने उससे सच्चा प्यार ककया था, इस कलए आप उसके कलए
अपने मन में ऐसा किचार कैसे रख सकते हैं??"

"मैं जानता हूॅ गु कडया कक प्यार में बदले की ऐसी भािना या किचार रखना
उकचत नही ं है।" किराज ने कहा__"ले ककन ककसी को आईना कदखाना तो
सिग था उकचत है न। िही करना चाहता हूॅ मैं।"

"ठीक है आपको जो अच्छा लगे िो कीकजये भइया।" कनकध ने


कहा__"शायद इससे आपके कदल को सुकून कमल जाए।"
"माफ़ करना गुकडया।" किराज ने खे द भरे स्वर में कहा__"मैं तु झे यहाॅ
ककस कलये लाया था और क्ा हो गया। ले ककन तू किक्र मत कर, अभी तो
बहुत समय है। चल हम दोनो अब इस टू र का आनन्द ले ते हैं।"

"कोई बात नही ं भइया।" कनकध ने प्यार भरे लहजे में कहा__"आपसे बढ
कर मेरे कलए कुछ भी नही ं है। आप मेरी जान हैं, और जब मेरी जान ही
खु श नही ं रहेगी तो भला मैं कैसे ककसी ची़ि से खु श रह सकती हूॅ?"

"तू और ते री ये बातें ।" किराज ने मुस्कुरा कर कहा__"मेरी समझ से बाहर


हैं गुकडया।"
"ऐसा क्ों?" कनकध ने किराज की तरि गौर से दे खते हुए कहा था।

"कभी कभी मुझे ऐसा लगा करता है जै से ते रे अलािा भी तु झ में कोई


और कैरे क्टर है जो कुछ और कहने लगता है।" किराज ने कहा__"कुछ
ऐसा कहने लगता है जो मेरी समझ में ही नही ं आता।"

"अच्छा, ऐसा आपको क्ों लगता है भइया?" कनकध ने धडकते कदल से


कहा__"कक मेरे अं दर कोई और भी कैरे क्टर है जो कुछ और ही कह
डालता है?"

"पता नही ं गुकडया।" किराज ने कहा__"कभी कभी लगता है जैसे तू अब

224
मेरी िो गुकडया नही ं रही जो हर ची़ि को अपनी मधुर ि चु लबु ली बातों से
हस कर उडा दे ती थी बल्कि अब तू बडी हो गई लगती है। इतनी बडी कक
ते री बातों में अब ककसी रहस्य तथा ककसी दू सरे ही अथग का आभास होता
है जो समझ से परे होता है।"

कनकध अपलक दे खती रह गई किराज को। उसके कदल की धडकने अनायास


ही बढ गई थी। उसे समझ में न आया कक िो क्ा जिाब दे ???

"मैं सच कह रहा हूॅ न गुकडया?" उसे चु प दे ख किराज ने कहा__"ऐसी


ही बात है न तु झ में?"
"पता नही ं भइया।" कनकध ने कसर झुका कर कहा__"जाने क्ों ऐसा लगता
है आपको, जबकक ऐसी तो कोई बात ही नही ं है।"

"चल कोई बात नही ं गुकडया।" किराज ने कनकध के चे हरे को अपने दोनो
हाॅथों में ले ते हुए कहा__"पर तू इतना समझ ले कक ते रा ये भाई तु झसे
बहुत प्यार करता है और तु झे हमेशा खु कशयों से चहकती ि िुदकती हुई
ही दे खना चाहता है।"

किराज की बातें सु न कर कनकध की आॅखें भर आई। उसके कदल में भािना


का एक तीब्र भू चाल सा आ गया। उसी भािना के िशीभू त होकर िह
किराज से कलपट गई। किराज के सीने में चे हरा छु पाए हुए ही बोली__"पर
ये तभी सं भि है जब आप भी खु श रहेंगे। अगर आप ककसी बात से दु खी
होंगे तो मैं भी दु खी हो जाऊगी।"

"ऐसा क्ों भला?" किराज ने कुछ सोचते हुए पू छा था।


"क्ोंकक मैं आपसे प्या....।" कनकध कहते हुए अचानक ही रुक गई। उसे
एकाएक ही ध्यान आया था कक िह ये क्ा बोलने िाली थी। उसकी हालत
पल भर में खराब हो गई। कदल की धडकने इतनी तीब्र हो गई उसकी
धमक कनपकटयों में िष्ट सु नाई दे ने लगी थी। उसने तु रंत ही बात को
सम्हालते हुए बडी मु ल्किल से कहा__"क्ों कक आप हमारे कलए सब कुछ
हैं भ भइया...अगर आप ही इस तरह दु खी रहेंगे तो हम माॅ बे टी कैसे
खु श रह सकेंगे भला?"

कनकध ने भले ही अपनी समझ में बात को सम्हाल कलया था ककन्तु उसके
पहले अधूरे िाक् ने ही सारी सच्चाई िष्ट कर दी थी। किराज ने पू छा ही
इस तरह था कक जल्दबाजी और बे ध्यानी में उसके मुख से िो कनकल गया

225
था जो िषों से उसके कदल में पनप रहा था। किराज ये सु न कर तथा ये
जान कर बु री तरह कहल गया था कक उसकी जान उसकी गुकडया उससे
प्यार करती है। यही िो बातें थी जो कद्वअथी होती थी और किराज को
समझ में नही ं आती थी। ककन्तु आज सं योगिश सब कुछ सामने आ गया
था। कनकध खु द ही बे खयाली में बोल गई थी।

अपने भाई को खामोश जान कर कनकध को झटका सा लगा। उसे समझते


दे र न लगी कक सब गडबड हो चु का है। मतलब उसका भाई उसके पहले
ही अधूरे िाक् को सु न कर समझ चु का है कक उसकी सच्चाई क्ा है।
बात को सम्हालने की उसकी कोकशश बे कार हो चु की थी। हालत ये हो गई
उसकी कक अपने भाई से ऩिर कमलाने की उसकी कहम्मत नही ं हो रही थी
अब। भाई के सीने में चे हरा छु पाए िह िै सी ही खडी रही। उसे लग रहा
था कक ये ़िमीन िटे और िह पाताल तक उसमे समाती चली जाए। मगर
चाह कर भी तो िह ऐसा न कर सकी। उसके होंठ घबराहटिश बु री तरह
थरथरा रहे थे ।

िातािरर् में अजीब सी शाल्कन्त छा गई थी। कािी दे र तक यही आलम


रहा। दोनो में से कोई भी कुछ न बोल रहा था। किराज तो जैसे िहाॅ था
ही नही ं बल्कि ककसी गहरे खयालों के समंदर में डूबा हुआ ऩिर आ रहा
था। बार बार उसके ़िेहन में यही बात गूॅज रही थी कक उसकी गुकडया
उसकी अपनी बहन उससे प्यार करती है।

"भ भइया।" सहसा कनकध ने कहम्मत जुटा कर तथा किराज के सीने से


अपना चे हरा उठा कर किराज की तरि दे खते हुए धीमे स्वर में
कहा__"क्ा बात है...आप एकदम से चु प क्ों हो गए? क्ा मु झसे कोई
ग़लती हो गई? अगर ऐसा है तो मुझे माफ़ कर दीकजए प्ली़ि।"

किराज के कानों में कनकध की जब ये बातें पडी ं तो िह खयालों के गहरे


समुद्र से बाहर आया। िस्तु ल्कथथत का आभास होते ही उसने कनकध की तरि
अजीब भाि से दे खा। कनकध खु द भी उसी की तरि दे ख रही थी ककन्तु
सीघ्र ही उसकी ऩिरें झुक गईं। जाने क्ों अपने भाई की आॅखों से
आॅखें न कमला सकी िह। कदाकचत् इस कलए कक उसके कदल का भे द
उसके भाई के सामने खु ल चु का था।

"आज का कपककनक टू र यही ं पर खत्म हो चु का गुकडया।" सहसा किराज ने


सपाट भाि से कहा__"अब हम िापस घर चल रहे हैं।"

226
इतना कह कर किराज ने कनकध को खु द से अलग ककया और बाहर की
तरि चल कदया। कनकध को जाने क्ों ऐसा लगा जैसे उसका सब कुछ लु ट
गया है, उसके सीने में बडा ते ़ि ददग उठा। आॅखों के सामने अधेरा सा
छा गया। ऐसा लगा जैसे िह अभी गश खा कर िही ं िसग पर कगर पडे गी।
ले ककन अं कतम समय में उसने बडी मु ल्किल से खु द को सम्हाल कलया। कदल
में उमडते हुए जज़्बातों में प्रबलता आ गई कजसकी िजह से उसकी रुलाई
िूट गई। िह जी जान से किराज की तरि दौडी और पीछे से किराज की
पीठ से कलपट कर ़िार ़िार रोने लगी।
___________________________

"ये तु म क्ा कह रहे हो हररया?" अजय कसं ह बु री तरह चौंका था__"तु मने
अच्छी तरह पता ककया तो है न ?"
"जी हाॅ माकलक।" हररया नाम का एक आदमी जो कक अजय कसं ह का ही
आदमी था बोला__"मैने अच्छी तरह पता ककया है। आपके छोटे भाई कल
ही यहाॅ से बम्बई के कलए कनकल गए थे । उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों
को कल ही उदयपु र भे ज कदया था। मेरे एक खास आदमी ने अपनी
आॅखों से उनको जाते हुए दे खा था। उसी ने बताया कक छोटी
मालककन(करुर्ा) के भाई उनके साथ ही थे ।"

अजय कसं ह ये सब जान कर बु री तरह कभन्ना गया। उसने तो सोचा था कक


अभय के जाते ही िह करुर्ा को उठिा ले गा और उसे अपने नये
िामग हाउस पर रखे गा। उसके बाद िह कजस तरह चाहेगा करुर्ा के गदराए
हुए ि मादक से कजस्म का म़िा लू टेगा। ककन्तु हररया की इस खबर ने
उसके सभी अरमानों पर पानी नही ं िेरा था बल्कि बाल्टी भर पे शाब कर
कदया था। उसे इस बात की कतई उम्मीद नही ं थी कक उसका छोटा भाई
अभय इतना शाकतर कदमाग़ कनकले गा जो इतना आगे का सोच कर अपना
खे ल खे ल जाएगा।

अजय कसं ह चाहता तो करुर्ा को उसके मायके से भी उठिा सकता था


ककन्तु उस सू रत में बहुत बडा बिाल हो जाता। इस कलए अब िह अपने
हाथ मलने के अलािा कुछ नही ं कर सकता था। करुर्ा नाम की खू बसू रत
कचकडया अब उसके हाॅथ से कनकल गई थी।

अजय कसं ह ने सोचा था कक अभय के पीछे अपने आदकमयों को लगा दे गा


ककन्तु िो भी न कर सका िह। क्ोंकक उसे पता ही न चल पाया था कक

227
अभय कसं ह ने कब क्ा ककया था?

"तु म पता करो हररया।" किर उसने कुछ सोचते हुए कहा__"अभय मुम्बई
जा चु का है या नही?"

"िो तो कल ही यहाॅ से चले गए थे माकलक।" हररया ने कहा__"और
आज तो िो बम्बई पहुॅच भी गए होंगे।"

"अरे बे िकूि कल िो मुम्बई कैसे जा सकता है?" अजय कसं ह ने हुडकी


दी__"शाम से पहले तक तो िो यही ं था, और शाम को भला कौन सी
टर े न इस शहर से मुम्बई जाती है। िह तो दोपहर को जाती है। मतलब
साि है कक अभय कल नही ं आज गया होगा मुम्बई।"

"ये तो मैने सोचा ही नही ं माकलक।" हररया ने कसर झुका कर कहा__"छोटे


माकलक अगर आज गए होंगे तो कल ही पहुॅचें गे बम्बई। अब हम क्ा करें
माकलक?"

"अभी भी कुछ नही ं कबगडा है हररया।" अजय कसं ह ने कहा__"ये तो तु म्हें


भी मालू म है कक हमारे कुछ आदमी मु म्बई में ही हैं जो किराज और
उसकी माॅ बहनों की खोज में लगे हुए हैं। हम अपने उन आदकमयों को
िोन करके कह दें गे कक िो अभय पर ऩिर रखें । अभय कल मुम्बई
पहुॅचे गा। मुम्बई में जैसे ही िह टर े न से उतरे गा िै से ही हमारे आदमी
उसके पीछे लग जाएं गे।"

"ये तो बहुत बकढया आइकडयिा है माकलक।" हररया ने इं ल्किश की माॅ


बहन एक करते हुए कहा__"छोटे माकलक जहाॅ जहाॅ जाएॅगे हमारे
आदमी ं भी उनके पीछे जाएॅगे।"

"अब तु म जाओ हररया।" अजय कसं ह ने कहा__"हम भी ककसी ़िरूरी


काम से बाहर जा रहे हैं।"
"ठीक है माकलक।" कहते हुए हररया चला गया िहाॅ से ।

अजय कसं ह ने मोबाइल कनकाल कर मुम्बई में ल्कथथत अपने आदकमयों को


िोन लगाया। अपने आदकमयों को सारी बातें समझाने के बाद उसने िोन
काट कदया।

अभी िह इस सबसे िाररग़ ही हुआ था कक सामने से उसकी इं िेक्टर

228
बे टी ररतू आती हुई कदखी। अजय कसं ह उसे दे ख कर बस आह सी भर कर
रह गया। पु कलस की चु स्त दु रुस्त िदी में उसकी बे टी ग़़िब ढा रही थी।
कजस्म का एक एक उभार साि ऩिर आ रहा था। अजय कसं ह की आॅखें
एकटक ररतू के सीने पर कटकी हुई थी। जहाॅ पर ररतू के सीने के दो
ठोस ककन्तु बडे बडे िक्ष उसके चलने के कारर् एक ररदम पर ऊपर नीचे
कूद से रहे थे ।

अजय कसं ह अपनी बे टी के िक्षों को ललचाई ऩिरों से दे ख ही रहा था कक


तभी अं दर से आती हुई प्रकतमा की ऩिर अजय कसं ह पर पडी। अपने पकत
को अपनी ही बे टी के बडे बडे पिग त कशखरों को ललचाई ऩिरों से दे खते
दे ख िह मन ही मन कह उठी 'उफ्फ अजय तु म कभी नही ं सु धर सकते ।'

"अरे ...तु म अभी तक यही ं बै ठे हो?" प्रकतमा ने तु रंत ही अजय कसं ह का


ध्यान भं ग करने की गरज से कहा__"तु म तो कह रहे थे कक शहर जाना
था?"

अजय कसं ह चौंका, उसने तु रंत ही अपनी बे टी पर से ऩिरे हटा ली। कुछ
पल के कलए उसके चे हरे पर ऐसे भाि उभरे जैसे इस सबसे िह बे हद
शमगसार हुआ हो ककन्तु किर अगले ही पल खु द को सम्हाल कर बोला__"ह
हाॅ हाॅ बस कनकल ही रहा हूॅ मैं।"

तब तक ररतू भी आकर िहाॅ पर रखे एक सोिे पर लगभग पसर सी


गई। अपने कसर से पु कलस की कैप उतार कर तथा हाथ में कलए पु कलस
रुल को उसने एक तरि रख कदया और किर अपनी माॅ की तरि दे खते
हुए कहा__"माॅम एक कप काॅिी कमले गी क्ा??"

"अभी लाई बे टी।" कहते हुए प्रकतमा िापस पलट गई और ककचे न की


तरि चली गई।
"लगता है मेरी बे टी के सीने में काम और कजम्मेदारी का बोझ बहुत ही
ज्यादा है।" अजय कसं ह ने पु नः ररतू के सीने की तरि एक ऩिर डाल कर
कहा था।

"सीने पर?????" ररतू ने चकरा कर कहा__"काम और कजम्मेदारी का


बोझ तो कंधों पर होता है ना डै ड??"

229
"ओह हाॅ हाॅ बे टी।" अजय कसं ह बु री तरह हडबडा गया। उसके चे हरे पर
घबराहट के भाि भी उभरे ककन्तु किर तु रंत ही सम्हल कर बोला__"यू
आर राइट....अब्सोल्यूटली राइट।"

"डै ड कल से कशिा कही ं ऩिर नही ं आ रहा?" ररतु ने पहलू बदलते हुए
कहा__"और ना ही चाचा चाची जी िगैरा कही ं ऩिर आ रहे हैं?"

"कशिा तो शहर में है बे टी।" अजय ने राहत की साॅस ले ते हुए


कहा__"बाॅककयों का मु झे पता नही ं। सब अपनी म़िी के माकलक हैं। कही ं
आने जाने के कलए िो ककसी से पू छना ़िरूरी नही ं समझते । खै र तु म
बताओ, तु म्हारे केस का क्ा हुआ? मेरा मतलब है कक क्ा ये पता चल
सका कक हमारी िैक्टरी में ककसने बम्ब किट ककया था?"

"नही ं डै ड।" ररतू ने कहा__"बडा ही पें चीदा मामला है । इस मामले में कुछ
भी पता नही ं चल सका कक िो कौन था? हाॅ इतना जरूर पता ककया कक
िैक्टरी के गेट के बाहर मौजूद गाडग झठ ू बोल रहा था। दरअसल कजस
रात ये हादसा हुआ था उस रात गेट पर एक ही गाडग था और िो भी
चौबीस घंटे की ड्यूटी पर। इस कलए रात में िह गेट के बाहर रखी कुसी
पर बै ठा बै ठा ही ऊघ रहा था। इसके बाद उसने ये बताया कक उसे ये
आभास हुआ कक कोई ची़ि उसकी नाॅक के पास लाई गई थी। कजसके
असर से उसे पता ही नही ं चला कक िह कब बे होश हो गया था? उसके
बाद तब उसे होश आया जब िैक्टरी में लगी आग से अिरा तिरी मची
हुई थी। यकीनन जो ची़ि उसके नाॅक के पास लाई गई थी िह
क्लोरोिाॅम डाला हुआ कोई रुमाल रहा होगा या किर खु द क्लोरोिाॅम
की बाॅटल। इस हादसे से िह गाडग बहुत ज्यादा डर गया था इसी कलए
शु रू में उसने यही कहा था कक िह रात भर जागता रहा था और उसके
सामने कोई भी ऐसा ब्यल्कक्त नही ं आया था जो िैक्टरी के अं दर गया हो।"

"तो किर क्ा िायदा हुआ तु म्हारे द्वारा केस को ररओपन करने से ?"
अजय कसं ह ने ररतू की तरि अजीब भाि से दे खते हुए कहा__"आकखर
क्ा नतीजा कनकला बे टी? िरना कजस तरह से तु मने इस केस को ररओपन
ककया था उससे तो यही ़िाकहर हो रहा था कक इस बार कोई न कोई
सु राग़ ़िरूर पु कलस के हाथ लगेगा। दू सरी बात ये भी मुझे पता चली थी
कक इस केस के ररओपन होने के तु रंत बाद ही रातों रात शहर के सारे
पु कलस कडपाटग मेन्ट का तबादला कर कदया गया था। सिाल है कक ऐसा क्ों
हुआ था?"

230
"ये सिाल तो मेरे कलए भी सोचने का किषय बना हुआ है डै ड।" ररतू ने
सोचने िाले भाि से कहा__"मुझे खु द ये बात समझ में नही ं आ रही कक
गृह मंत्री ने शहर के सारे पु कलस किभाग का रातों रात तबादले का आदे श
ककस िजह से कदया था? अगर हम ये सोचें कक इसकी िजह ये है कक
कपछली बार िैक्टरी के केस में पु कलस ने अपनी पू री ईमानदारी से
तहकीकात नही ं की थी बल्कि ग़लत ररपोटग तै यार की थी तो भी ये इतनी
बडी िजह नही ं हो सकती कक इसकी िजह से शहर के सारे पु कलस किभाग
का इस तरह तबादला कर कदया जाए। कपछली ररपोटग पर ऊपर से इं क्वायरी
भी हुई थी। कजसमें पु कलस के उस अिसर ने ये बयान कदया था कक ऐसी
ररपोटग बनाने के कलए आपने कहा था क्ों कक आप नही ं चाहते थे कक
इसकी िजह से आपकी इज्जत नीलाम हो जाए। खै र, आपके कहने पर
उस अिसर ने भले ही ग़लत ररपोटग बनाई थी ले ककन इसके कलए उसे
ज्यादा से ज्यादा सिेंड ककया जा सकता था मगर ऐसा नही ं हुआ बल्कि
शहर का सारा पु कलस किभाग ही बदल कदया गया। यही िो बात है डै ड
कजसने कदमाग़ का दही ककया हुआ है।"

"हम्म...यकीनन।" अजय कसं ह ने गहन सोच के साथ कहा__"बात तो


िाकई बडी ही चक्करदार है बे टी। और सबसे बडी समस्या तो ये है कक
इस बारे में गृहमंत्री से पू छा भी नही ं जा सकता।"

तभी प्रकतमा हाथ में टर े कलए हुई आई। उसने कािी का कप ररतू को कदया
और चाय का एक कप अजय कसं ह को और चाय का ही एक कप खु द
ले कर िही ं सोिे पर बै ठ गई।

"क्ा बातें हो रही हैं बाप बे टी के बीच?" प्रकतमा ने मुस्कुरा कर कहा था।

अजय कसं ह ने सं क्षेप में उसे बता कदया। सु न कर प्रकतमा ने कहा__"ये तो


सचमुच बडी सोचने िाली बात है। इस केस में आकखर ऐसा क्ा था
कजसके कलए खु द गृहमंत्री को भी हस्ताक्षे प करना पडा? इतना ही नही ं
बल्कि उन्होंने रातो रात शहर के सारे पु कलस किभाग का तबादला भी कर
कदया था।"

प्रकतमा की इस बात के बाद िहाॅ पर सन्नाटा छा गया। कोई कुछ न


बोला, कदाकचत् इस कलए कक ककसी के पास इसका कोई जिाब नही ं था।
ये अलग बात थी सबके मन में ये बात गहन रूप से किचाराधीन थी।

231
_________________________

"नही...
ं प्ली़ि रुक जाइये...आप इस तरह कैसे जा सकते हैं?" कनकध ने
रोते हुए कहा था__"हम तो कपककनक टू र पर आए थे न, किर इतनी
जल्दी ये टू र कैसे समाप्त हो जाएगा? और....और ये अचानक क्ा हो
गया है आपको जो ये कह रहे हैं कक हम अब घर चलें गे???"

"मुझे कुछ नही ं हुआ है।" किराज ने अजीब भाि से कहा__"हम घर जा


रहे हैं बस और कोई बात नही ं।"

ये कह किराज ने कनकध को अपनी पीठ पर से अलग कर आगे बढने के


कलए कदम बढाया। ककन्तु ज्यादा दू र जा नही ं सका िह। क्ोंकक उसके
कानों में तु रंत ही कनकध का करुर्ायुक्त िाक् टकराया__"आपको मेरी
कसम है अगर आपने एक क़दम भी आगे बढाया तो मैं अपनी जान दे
दू ॅगी। मुझे बताइये कक आकखर क्ा हो गया है ऐसा कजसकी िजह से
आप अचानक ही इस तरह का बतागि करने लगे। अगर मुझसे कोई ग़लती
हो गई है तो आप उसके कलए मुझे जो चाहे स़िा दे दीकजए....मुझे
आपकी हर स़िा मं जूर है। ले ककन अपने प्रकत आपकी ऐसी बे रुखी मैं सह
नही ं सकती।"

"मेरी इस बे रुखी की िजह तु म अच्छी तरह जानती हो।" किराज ने एक


झटके में पलट कर कहा था__"तु म जानती हो कक ककस िजह से मेरा
बतागि अचानक ही बदल गया है। अगर नही ं जानती तो इस तरह रोती नही ं
और ना ही मु झे अपनी कसम दे ती।"

कनकध दे खती रह गई किराज को। उसे तु रंत कोई जिाब न सू झा था।


आॅखों में आॅसू कलए िह बडी मुल्किल से अपने कदल के जज़्बातों को
काबू में करने की नाकामयाब कोकशश कर रही थी। उसे समझ नही ं आ
रहा था कक िो किराज से क्ा कहे?

"तु म ऐसा कैसे कर सकती हो गुकडया?" उसे चु प दे ख किराज ने


कहा__"क्ा एक बार भी तु म्हें ये खयाल नही ं आया कक तु म ये क्ा कर
रही हो? क्ा एक बार भी ये नही ं सोचा कक मैं तु म्हारा सगा भाई हूॅ?
क्ा एक बार भी नही ं सोचा कक जो ररश्ा तु म बना रही हो िो भाई बहन
के बीच नही ं हो सकता? क्ों गुकडया, क्ों ककया ऐसा?"

232
"मुझे माि कर दीकजये।" कनकध की रुलाई िूट गई, बोली__"मैंने जान
बू झ कर ये सब नही ं ककया। ये तो बस हो गया। कब कैसे मुझे खु द पता
नही ं चला। आप यकीन कीकजए भइया, मैने ये नही ं ककया। आप तो जानते
हैं न कक कोई ककसी से जान बू झ कर या सोच समझ कर प्यार नही ं
करता बल्कि लोगों को ककसी खास ब्यल्कक्त से प्यार खु द ही हो जाता है।
और उसे स्वयं इस बात का पता नही ं चल पाता। िै सा ही मेरे साथ हुआ
है भइया।"

"ले ककन ये ग़लत है मेरी गुकडया।" किराज ने कहा__"क्ा तू नही ं जानती ये


बात?"

"मैं जानती हूॅ कक ये ग़लत है।" ररतु ने ऩिरें झुका कर ककन्तु भारी स्वर
में कहा__"ये भी जानती हूॅ कक दे श समाज भाई बहन के बीच इस ररश्े
को कभी मान्यता नही ं दे सकता बल्कि ऐसे ररश्े को पाप समझ कर ऐसा
ररश्ा रखने िाले को गाॅि समाज से बकहस्कृत कर दे ता है। इसी कलए
मैने कभी आपके सामने ये ़िाकहर नही ं होने कदया कक मेरे कदल में आपके
कलए क्ा है? मैने अकेले में खु द को लाखों बार समझाया कक मु झे अपने
कदलो कदमाग़ से आपके प्रकत ऐसे खयाल कनकाल दे ना चाकहए क्ों कक ये
ग़लत था। मगर मेरा कदल खु द के द्वारा लाखों बार समझाने के बाद भी
मेरी नही ं सु नता। मैं क्ा करूॅ भइया....हाय ककतनी बु री हूॅ मैं और
ककतनी बद् ककस्मत भी हूॅ कक कजससे मु झे जीिन में पहली बार कदलो जान
से प्यार हुआ िो मेरे भाई हैं तथा एक ही माॅ की कोख से जन्में हैं। मेरे
कदल ने कजनकी अटू ट चाहत ि हसरत पाल बै ठा िो उसे कभी कमल ही
नही ं सकते ।"

कहते कहते कनकध िही ं िसग पर असहाय अिथथा में बै ठ कर ़िार ़िार रोने
लगी। जाने कब से उसके कदल में ये गुबार बाहर कनकलने के कलए मचल
रहा था। आज उस गुबार ने कदल की कैद से बाहर कनकल आने का जैसे
रास्ता ढू ॅढ कलया था। हमेशा हसती खे लती ि शरारतें करने िाली कनकध
आज जैसे इस सबके बाद दु ख का दपग र् बन गई थी। कजस कदन उसे इस
बात का एहसास हुआ था कक उसे अपने ही भाई से प्यार हो गया है उस
कदन िह खू ब रोई थी। क्ोंकक िह इस बात को भली भाॅकत जानती और
समझती थी कक ये ग़लत है। अपने ही भाई को अपना महबू ब बना ले ना
कतई उकचत नही ं है। इस सं बंध को समाज कनम्न दृकष्ट से दे खता है। उसने
इस बारे में अपने आपको बहुत समझाया था। सबके सामने उसी तरह

233
हसती मुस्कुराती रहती ककन्तु अपने कमरे में रात की तन्हाई में जब उसका
मन भटकते हुए अपने भाई तक पहुॅच जाता तो सहसा उसको झटका सा
लग जाता था। धडकने रुक सी जाती उसकी और ये खयाल उसे पल में
रुला दे ता कक ये उसके कदल ने क्ा कर कदया? िह रात रात भर इस बारे
में सोचती रहती और भािना ि जज़्बातों के भिर में खु द को रुलाती
रहती। कदल के हाॅथों मजबू र हो चु की थी िह। छोटी सी इस ऊम्र में
उसके कदल ने ये कैसा रोग़ लगा कलया था, और लगाया भी था तो
ककसका.....खु द अपने ही भाई का? जो उसका कभी हो ही नही ं सकता
था।

उस कदन तो िह बहुत रोई थी कजस कदन उसे ये पता चला था कक उसका


भाई ककसी ऐसी लडकी से प्यार करता है कजसने उसके भाई को कसिग इस
कलए दु त्कार कर छोंड कदया है कक अब िह धन दौलत िाला नही ं रहा।
इस बात ने कनकध के कदल में जाने क्ों जलन पै दा कर दी थी उस िक्त।
ले ककन िही ं इस बात से उसके मन को थोडा राहत भी हुई थी कक िह
लडकी अब उसके भाई को छोंड कर उसके जीिन से जा चु की है। कनकध
खु द से ये सिाल करती कक उसको इस बात से क्ा िकग पडता है कक
उसके भाई के जीिन से कोई लडकी जा चु की है या नही ं। पर कदल के
ककसी कोने से उसे ये आिा़ि भी आती कक 'बहुत िकग पडता है....राज
कसिग मेरे हैं'

अपने कदल की इस आिा़ि को सु न कर उसके रोंगटे खडे हो जाते ।


उसका मन मयूर नाचने लग जाता था। मगर जब उसे इस बात का बोध
होता कक िो कजसे प्यार करती है तथा कजसको अपना बनाने की हसरत
रखती है िो तो उसका सगा भाई है कजसे िो ककसी भी कीमत पर अपना
नही ं बना सकती तो उसका कदल बै ठ जाता। ये एहसास उसे एक ही पल
में क़िन्दा लाश में तब्दील कर दे ता। उसके अं दर एक हूक सी उठती और
किर आॅखों से मानो गंगा जमुना बहने लग जाती ं। उसे लगता कक इस
दु कनया में उससे ज्यादा कोई दु खी नही ं है।

कनकध को इस तरह ़िार ़िार रोते दे ख किराज तडप कर रह गया। आकखर


थी तो उसकी बहन ही। ऐसी बहन कजसकी आॅखों में आॅसू का एक
कतरा भी िह नही ं दे ख सकता था। हालातों ने भले ही अपना चे हरा बदल
कलया था और ये बता कदया था कक उसकी बहन के मन में िो जाने कब
से एक महबू ब बन कर बै ठा हुआ था ले ककन िह तो अभी भी यही
समझता था न कक कनकध उसकी बहन ही है। कजसको िह ककसी भी तरह

234
दु ख में नही ं दे ख सकता। इस कलए इसके पहले जो उसने बे रुखी का
आिरर् धारर् कर कलया था उस आिरर् को उसने सीघ्र ही दरककनार कर
कदया और तु रंत ही झुक कर िसग पर बै ठी रो रही अपनी बहन को उसके
दोनो कंधों से पकड कर हौले से उठाया और अपने सीने से लगा कलया।

"बस कर अब।" किराज ने भरागए हुए गले से कहा__"तू जानती है ना कक


मैं ते री आॅखों में आॅसू का एक कतरा भी नही ं दे ख सकता। इस तरह
रो कर क्ों मेरे हृदय को चोंट पहुॅचा रही है गु कडया? चल अब शान्त हो
जा।"

"मुझे माफ़ कर दीकजए भइया।" कनकध ने किराज के सीने से लगे हुए


कहा__"ले ककन ये सच है कक मैं आपसे बे इंतहा प्यार करती हूॅ और
आपके कबना एक पल भी जीने का सोच भी नही ं सकती। मैं जानती हूॅ
भइया कक ये ग़लत है पर आप मेरी बे बसी को भी समकझये। आप मेरे मन
मंकदर में इस हद तक बस चु के हैं कक अब मैं ही क्ा बल्कि खु द भगिान
भी मेरे मन मंकदर से आपको नही ं कनकाल सकता। आप मेरे नही ं हो सकते
और ना ही मैं आपको इस बात के कलए मजबू र करूॅगी कक आप मेरे हो
जाइये। बस एक ही किनती है आपसे कक आप मुझे ये नही ं कहेंगे कक मैं
आपसे प्यार का ररश्ा न रखू ॅ, क्ोंकक ये मेरे बस में नही ं है भइया।"

"ये हमारे भाग्य की कैसी किडम्बना है गु कडया?" किराज ने अत्यंत गंभीर


होकर ककन्तु दु खी भाि से कहा__"मैं समझ सकता हूॅ ते रे कदल की हालत
को क्ोंकक मैं उस हालत से आज भी गु ़िर रहा हूॅ। मगर ़िरा हम दोनो
भाई बहन के नसीब का खे ल तो दे खो...कजसको मैने टू ट कर चाहा उसने
मुझे कसिग इस कलए ठु करा कदया कक मैं रुपये पै से िाला नही ं रहा था और
कजसे तु म टू ट कर चाहती हो िो तु म्हारा हो ही नही ं सकता। ये प्यार
मोहब्बत क्ों ऐसी होती है? इसके नसीब को क्ों इस तरह का बना कदया
है भगिान ने कक ये कजस ककसी से होगी िो उसका हो ही नही ं सकेगा?
क्ों ऐसी मोहब्बत बनाई बनाने िाले ने ? क्ा कसिग इस कलए कक मोहब्बत
करने िाले अपने महबू ब के किरह में जीिन भर तडपें ??"

"शायद इसी कलए राज।" कनकध ने कही ं खोए हुए कहा था। उसे इस बात
का आभास ही नही ं था कक िह अपने बडे भाई को उसके नाम से
सं बोकधत कर ये कहा था। जबकक...

"र राज..???" किराज बु री तरह चौंका था। उसने कनकध को खु द से अलग

235
कर उसके चे हरे की तरि हैरानी से दे खा।
"क क्ा हुआ भइया??" कनकध चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कक
उसके भाई ने अचानक उसे खु द से अलग क्ों ककया।

"क्ा बताऊ??" किराज ने अजीब भाि से उसे दे खते हुए कहा__"सु ना है


इश्क़ जब ककसी के सर चढ जाता है तो उस ब्यल्कक्त को कुछ खयाल ही
नही ं रह जाता कक िह ककससे क्ा बोल बै ठता है?"

"आप ये क्ा कह रहे हैं?" कनकध ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ
नही ं आ रहा?"
"अरे पागल तू ने अभी अभी मुझे मेरा नाम ले कर पु कारा है।" किराज ने
कहा__"हाय मेरी बहन प्रे म में कैसी बािली और बे शमग हो गई है कक अब
िो अपने बडे भाई का नाम भी ले ने लगी।"

"क क्ाऽऽ????" कनकध बु री तरह उछल पडी। हैरत और अकिश्वास से


उसका मुॅह खु ला का खु ला रह गया। किर सहसा उसे एहसास हुआ कक
उसके भाई ने अभी क्ा कहा है। उसका चे हरा लाज और शमग से लाल
सु खग पडता चला गया। ऩिरें िसग पर गड गईं उसकी। छु ईमुई सी ऩिर
आने लगी िह। उसे इस तरह खडे न रहा गया। कही ं और मुह छु पाने को
न कमला तो पु नः िह किराज से छु पक कर उसके सीने में चे हरा छु पा कलया
अपना। किराज को ये अजीब तो लगा ककन्तु अपनी बहन की इस अदा पर
उसे बडा प्यार आया। जीिन में पहली बार िह अपनी बहन को इस तरह
और इतना शमागते दे खा था।

अपडे ट....... 《 26 》

अब तक,,,,,,,,

"शायद इसी कलए राज।" कनकध ने कही ं खोए हुए कहा था। उसे इस बात
का आभास ही नही ं था कक िह अपने बडे भाई को उसके नाम से
सं बोकधत कर ये कहा था। जबकक...

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"र राज..???" किराज बु री तरह चौंका था। उसने कनकध को खु द से अलग
कर उसके चे हरे की तरि हैरानी से दे खा।
"क क्ा हुआ भइया??" कनकध चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कक
उसके भाई ने अचानक उसे खु द से अलग क्ों ककया।

"क्ा बताऊ??" किराज ने अजीब भाि से उसे दे खते हुए कहा__"सु ना है


इश्क़ जब ककसी के सर चढ जाता है तो उस ब्यल्कक्त को कुछ खयाल ही
नही ं रह जाता कक िह ककससे क्ा बोल बै ठता है?"

"आप ये क्ा कह रहे हैं?" कनकध ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ
नही ं आ रहा?"
"अरे पागल तू ने अभी अभी मुझे मेरा नाम ले कर पु कारा है।" किराज ने
कहा__"हाय मेरी बहन प्रे म में कैसी बािली और बे शमग हो गई है कक अब
िो अपने बडे भाई का नाम भी ले ने लगी।"

"क क्ाऽऽ????" कनकध बु री तरह उछल पडी। हैरत और अकिश्वास से


उसका मुॅह खु ला का खु ला रह गया। किर सहसा उसे एहसास हुआ कक
उसके भाई ने अभी क्ा कहा है। उसका चे हरा लाज और शमग से लाल
सु खग पडता चला गया। ऩिरें िसग पर गड गईं उसकी। छु ईमुई सी ऩिर
आने लगी िह। उसे इस तरह खडे न रहा गया। कही ं और मुह छु पाने को
न कमला तो पु नः िह किराज से छु पक कर उसके सीने में चे हरा छु पा कलया
अपना। किराज को ये अजीब तो लगा ककन्तु अपनी बहन की इस अदा पर
उसे बडा प्यार आया। जीिन में पहली बार िह अपनी बहन को इस तरह
और इतना शमागते दे खा था।

अब आगे,,,,,,,

किराज अपनी बहन को अभी इस तरह शमागते दे ख ही रहा था कक उसकी


पै न्ट की पाॅकेट में पडा मोबाइल बज उठा। दोनो ही मोबाइल की ररं गटोन
सु न कर चौंके।

"आपका मोबाइल भी न।" कनकध ने बु रा सा मुह बना कर कहा__"ग़लत


समय पर ही बजता है ।"
"अरे ! ऐसा क्ों कह रही है तू ?" किराज ने पाॅकेट से मोबाइल कनकालते
हुए कहा था।

237
"अब जाने दीकजए।" कनकध किराज से अलग होकर बोली__"आप दे ल्कखये,
जाने कौन कबाब में हड्डी बन गया है, हाॅ नही ं तो।"

किराज उसकी बात पर मुस्कुराया और मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर


रहे नाम को दे ख तकनक चौंका किर मुस्कुरा कर काॅल को ररसीि कर
कानों से लगा कलया।

".................।" उधर से जाने क्ा कहा गया कजसे सु न कर


किराज बु री तरह चौंका।
"ये क्ा कह रहे हो तु म?" किराज ने है रानी से कहा था।
"...............।" उधर से किर कुछ कहा गया।
"भाई तू ने बहुत अच्छी खबर दी है।" किराज खु श होकर बोला__"चल ठीक
है मैं दे ख लू ॅगा।"
"..............।"
"ओह तो ये बात है।" किराज ने सहसा सपाट भाि से कहा__"चल कोई
बात नही ं भाई। दे ख लें गे सबको। और हाॅ...सु न, मैने ते रा काम कर
कदया है ठीक है न? चल रख िोन।"

"ककससे बात कर रहे थे आप?" कनकध ने उत्सुकतािश पू छा।


"अपना ही एक आदमी था गुकडया।" किराज ने कहा__"उसने िोन करके
बहुत अच्छी खबर सु नाई है। हमें अब इस टू र को यही ं खत्म करना होगा।
क्ोंकक बहुत ़िरूरी काम से मुझे कही ं जाना है।"

"क्ा मुझे नही ं बताएॅगे?" कनकध ने कतरछी ऩिर से दे खते हुए ककन्तु इक
अदा से कहा__"कक ऐसी क्ा खबर सु नाई आपके उस आदमी ने कजसकी
िजह से आपको अब जल्दी यहाॅ से कनकलना होगा??"

"अरे पागल तु झसे भला क्ों कोई बात छु पाऊगा मैं?" किराज हसा__"चल
रास्ते में बताता हूॅ सब कुछ।"

इसके बाद दोनो भाई बहन कशप के पायलट को सू कचत कर कशप को


िापस लौटने के कलए कह कदया। लगभग आधे घंटे बाद िो समुंदर के
ककनारे पर पहुॅचे । इस बीच किराज ने कनकध को िोन पर हुई बातों के
बारे में बता कदया था कजसे सु न कर िह भी खु श हो गई थी।

कशप से बाहर आकर किराज उस जगह कनकध को ले कर गया जहाॅ पर

238
उसकी कार पाकग की हुई थी। दोनो कार में बै ठ कर घर की तरि ते ़िी से
बढ गए थे । इस बीच किराज ने िोन लगा कर ककसी से बातें भी की थी।

शाम होने से पहले ही जब दोनो घर के अं दर पहुॅचे तो माॅ गौरी को


डर ाइं गरूम में एक तरि की दीिार पर लगी बडी सी एल ई डी टीिी पर
सीररयल दे खते पाया। गौरी ने जब अपने बच्चों को दे खा तो पहले तो िो
चौंकी किर मु स्करा कर बोली__"आ गए तु म दोनो? चलो अच्छा ककया जो
जल्दी ही आ गए। जाओ दोनो खु द को साि सु थरा कर लो तब तक मैं
चाय बना कर लाती हूॅ।"

कनकध और किराज दोनो अपने अपने कमरे की तरि बढ गए। कुछ ही दे र


में दोनो िेस होकर आए और सोिों पर बै ठ गए। तभी गौरी हाथ में टर े
कलए आई और दोनो को चाय दी और खु द भी एक कप चाय ले कर िही ं
सोिे पर बै ठ गई।

"माॅ चाचा जी आ रहे हैं आज।" किराज ने चाय की एक चु िी ले कर


कहा__"और मुझे जल्द ही रे लिे स्टे शन जाना होगा उन्हें ररसीि करने के
कलए।"

"क्ा कह रहा है तू ......अभय आ रहा है???" गौरी बु री तरह चौंकी


थी, बोली__"पर तु झे कैसे पता इसका?"
"गाॅि के एक दोस्त ने मुझे िोन पर इस बात की सू चना दी है माॅ।"
किराज ने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसने बताया कक अभय चाचा
चु पचाप ही हमसे कमलने के कलए गाॅि से कनकले हैं। उसने ये भी बताया
कक कपछले कदन हिे ली में कोई बातचीत हो गई थी और अभय चाचा बहुत
गुस्से में भी थे ।"

"ऐसी क्ा बातचीत हुई होगी?" गौरी ने मानो खु द से ही सिाल ककया


था, किर तु रंत ही बोली__"और क्ा बताया ते रे उस दोस्त ने ?"
"मुझे तो ऐसा लगता है माॅ कक कोई गं भीर बात है।" किराज ने
कहा__"मेरा दोस्त कह रहा था कक बडे पापा ने अभय चाचा के पीछे
अपने आदकमयों को लगाया हुआ है। इससे तो यही लगता है कक िो अभय
चाचा के द्वारा हम तक पहुॅचना चाहते हैं।"

"ठीक कहता है तू ।" गौरी ने कहा__"ऐसा ही होगा। और अगर कोई बात


हो गई है तो उससे अभय और उसके बीिी बच्चों पर खतरा भी होगा।

239
उन्हें पता नही ं है कक उनका बडा भाई ककतना बडा कमीना है।"

"इसी कलए तो मैं उन्हें ले ने जा रहा हूॅ माॅ।" किराज ने कहा__"चाचा जी


को तो शायद इस बात का अं देशा भी न होगा कक उनके पीछे उनके बडे
भाई साहब ने अपने आदमी लगा रखे हैं ।"

"अगर ये सच है कक अभय के पीछे ते रे बडे पापा ने अपने आदमी लगा


रखे हैं तो तू कैसे अभय को उन आदकमयों की ऩिरों से बचा कर
लाएगा?" गौरी ने कहा__"तु झे तो पता भी नही ं है कक िहाॅ पर ककन
जगहों पर िो आदमी मौजूद होकर अभय पर ऩिर रखे हुए हैं?"

"आप किक्र मत कीकजए माॅ।" किराज ने कहा__"मैं चाचा जी को सु रकक्षत


िहाॅ से ले आऊगा और उन आदकमयों को इसकी भनक भी नही ं
लगेगी।"
"ठीक है बे टे।" गौरी ने सहसा किक्रमंद हो कर कहा__"सम्हल कर जाना
और अपने चाचा को सु रकक्षत ले कर आना।"

"ऐसा ही होगा माॅ।" किराज ने कहा__"आप कबलकुल भी किक्र मत


कीकजए। मैं उन्हें सु रकक्षत ही ले कर आऊगा।"

ये कह किराज सोिे से उठ कर बाहर की तरि चला गया। कुछ ही दे र


में उसकी कार हिा से बातें कर रही थी। लगभग पन्द्रह कमनट बाद उसकी
कार मेन रोड से उतर कर एक तरि को मुड गई। कुछ दू र जाने के बाद
किराज ने कार को सडक के ककनारे लगा कर उसे बं द कर कदया और
बाॅई कलाई पर बधी ररस्टिाच पर ़िरा बे चैनी से ऩिर डाली। उसके बाद
राइट साइड की तरि बनी हुई सडक की तरि दे खने लगा। उसके चे हरे
पर ऐसे भाि थे जैसे ककसी के आने का इन्त़िार कर रहा हो।

कुछ ही दे र में उस सडक से उसे चार आदमी आते हुए कदखे । उन चारो
आदकमयों में एक की िे शभू सा सामान्य थी ककन्तु बाॅकी के तीनों आदकमयों
के कजस्म पर कुली की पोशाक थी। थोडी ही दे र बाद िो चारो किराज की
कार के डर ाइकिं ग डोर के पास आकर खडे हो गए।

"आने में इतना समय क्ों लगा कदया तु म लोगों ने ?" किराज ने
कहा__"मैने तु म लोगों को िोन पर बोला था न कक मुझे एकदम तै यार
होकर यही ं पर कमलना।"

240
"साहब िो रामू की बे टी की तकबयत बहुत खराब थी।" एक आदमी ने
कहा__"इस कलए उसे अिताल ले कर जाना पड गया था। उसके पास पै से
नही ं थे तो हम सबने पै सों की ब्यिथथा की किर उसे अिताल ले गए।
उसी में समय लग गया साहब।"

"क्ा हुआ उसकी बे टी को?" किराज ने चौंकते हुए पू छा था।


"पता नही ं साहब।" उस ब्यल्कक्त ने कहा__"एक हप्ते से बु खार थी उसे ।
थोडी बहुत गोली दिाई करिाई थी रामू ने । ले ककन आज दोपहर उसकी
तबीयत कुछ ज्यादा ही कबगड गई इस कलए उसे अिताल ले कर जाना पड
गया।"

"चलो कोई बात नही ं।" किराज ने कहा__"रामू को बोलो कक पै सों की


कचन्ता न करे । उसकी बे टी के इलाज में जो भी पै सा लगेगा उसे हमारी
कंपनी दे गी। उसको बोलो कक िो अपनी बे टी का इलाज बे हतर तरीके से
करिाए।"

"जी साहब।" उस आदमी ने खु श होकर कहा__"मैं अभी उसे बोलता


हूॅ।"

कहने के साथ ही उस आदमी ने अपनी सटग की पाॅकेट से एक छोटा सा


कीपै ड िाला िोन कनकाला और उस पर रामू का नम्बर दे ख उसे लगा
कदया। उसने रामू को सारी बात बताई। उसके बाद उसने िोन बं द कर
कदया।

किराज ने कार की डै सबोडग पर रखा एक कलिािा उठाया। उसमे से उसने


जो ची़िें कनकाली िो कोई िोटोग्राफ्स थे ।

"इनमें से एक एक िोटोग्राफ्स तु म चारो अपने पास रखो।" किराज ने


कहा__"इस िोटो में जो आदमी है उसे अच्छी तरह दे ख लो। क्ोंकक इस
आदमी को बडी सािधानी से रे लिे स्टे शन के बाहर लाना है तु म लोगों
को।"

"पर साहब इतनी भीड में हम उन्हें खोजेंगे कैसे ?" एक आदमी ने
कहा__"दू सरी बात क्ा पता कौन से कडब्बे में होंगे िो?"
"िो जनरल कडब्बे में ही हैं।" किराज ने कहा__"इस कलए तु म लोग कसिग

241
जनरल कडब्बे में ही उन्हें खोजोगे। कही ं और खोजने की ़िरूरत नही ं है।
बाॅकी तो सब कुछ तु म्हें िोन पर समझा ही कदया था मैने।"

"ठीक है साहब।" दू सरे आदमी ने कहा__"हम सब इस बात का खयाल


रखें गे कक उनके पीछे लगे हुए उन आदकमयों को पता न चल सके कक िो
कजनका पीछा कर रहे हैं िो उनकी आॅखों के सामने से कैसे गायब हो
गया??"

"िै री गुड शं कर।" किराज ने कहा__"अभी टर े न के आने में समय है। तब


तक मैं तु म्हें एक ककराए की टै र्क्ी का इन्तजाम भी कर दे ता हूॅ। तु म
उन्हें रे लिे स्टे शन से बाहर लाओगे, एक आदमी बाहर टै र्क्ी में बै ठा तु म
लोगों का इन्त़िार करे गा। जैसा कक अभी तु म में से एक आदमी को छोंड
कर बाकी तीनो कुली के िे श में हो इस कलए तु म तीनो में से कजसे भी िो
कमलें तो उनके पास जाकर बडी सािधानी से कसिग िही कहना जो िोन
पर समझाया था।"

"ऐसा ही होगा साहब।" एक अन्य आदमी ने कहा__"आप बे किक्र रकहए।"


"अच्छी बात है।" किराज ने कहा__"चलो बै ठो सब, हमें कनकलना भी है
अब।"

किराज के कहने पर चारो आदमी खु शी से बै ठ गए जबकक किराज ने कार


को स्टाटग कर आगे बढा कदया।
---------------------

मुम्बई जाने िाली टर े न के उस जनरल कोच में भीड तो इतनी नही ं थी


ककन्तु नाम तो जनरल ही था। कोई ककसी को भी बै ठने के कलए सीट दे ने
को तै यार नही ं था। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ़िबरदस्ती लड झगड
कर अपने बै ठने के कलए सीट का जुगाड कर ही ले ते हैं। यहाॅ प्यार
इज्जत या अनु नय किनय करने िाले को कोई सीट नही ं दे ता और ना ही
सीट के ़िरा से भी कहस्से में कोई बै ठने दे ता है। जनरल कोच में तो ऐसा
है कक अगर आप गाली गलौच या लडना जानते हैं या किर तु रंत ही ककसी
भी ब्यल्कक्त पर हािी हो जाना जानते हैं तो बे हतर है। क्ोंकक उससे आपको
जल्द ही कही ं न कही ं सीट कमल जाती है बै ठने के कलए। ले ककन उसमें भी
शतग ये होती है कक आपके पास अपनी सु रक्षा के कलए अपने साथ कुछ
लोगों का बै कप होना ़िरूरी है िरना अगर आप अकेले हैं और अकेले ही
तोपकसं ह बनने की कोकशश कर रहे हैं तो समकझये आपका बु री तरह कपट

242
जाना तय है।

अभय कसं ह गरम कम़िाज का आदमी था। उसे कब ककस बात पर क्रोध आ
जाए ये बात िो खु द ही आज तक जान नही ं पाया था। मगर आज उस
पर कोई क्रोध हािी न हुआ था। उसने सीट के कलए ककसी से कुछ नही ं
कहा था, बल्कि हाॅथ में एक छोटा सा थै ला कलए िह दरिाजे के पास ही
एक तरि कभी खडा हो जाता तो कभी िही ं पर बै ठ जाता। सारी रात
ऐसे ही कनकल गई थी उसकी।

टर े न अपने कनयकमत समय से चार घंटे ले ट थी। ये तो भारतीय रे लिे की


कोई नई बात नही ं थी ककन्तु इस सबसे याकत्रयों को जो परे शानी होती है
उसका कोई कुछ नही ं कर सकता, ये एक सबसे बडी समस्या है। यद्यकप
अभय को समय का आभास ही इतना नही ं हुआ था क्ोंकक िो तो अपने
पररिार और अपने बीिी बच्चों के बारे में ही सोचता रहा था। रह रह कर
उसके मन में ये किचार उठता कक उसने अपनी दे िी समान भाभी के साथ
अच्छा नही ं ककया। उसे अपने भतीजे का भी खयाल आता कक कैसे िह
उसे हमेशा इज्जत ि सम्मान दे ता था। पररिार में िही एक लडका था कजस
पर सं स्कार और कशष्टाचार कूट कूट कर भरे हुए थे । उसे अपने इस भतीजे
पर बडा स्नेह और िक्र भी होता था। उसकी भतीजी कनकध उसकी लाडली
थी। िह पररिार में सबसे ज्यादा कनकध को ही प्यार और स्ने ह दे ता था। सब
जानते थे कक अभय गुस्सैल स्वभाि का था ककन्तु उसका गुस्सा कपू र की
तरह उस िक्त कािूर हो जाता जब उसकी लाडली भतीजी अपनी चं चल ि
नटखट बातों से उसे पहले तो मनाती किर खु द ही रूठ जाती उससे ।
उसका अपनी ककसी भी बात के अं त में 'हाॅ नही ं तो' जोड दे ना इतना
मधुर और हृदय को छू ले ने िाला होता कक अभय का सारा गुस्सा पल में
दू र हो जाता और िह अपनी लाडली भतीजी को खू ब प्यार करता। पररिार
की बाॅकी दो भतीकजयाॅ उसके पास नही ं आती थी, क्ों कक िो सब
उससे डरती थी।

अभय का कदलो कदमाग़ गु ़िरी हुई बातों को सोच सोच कर बु री तरह दु खी


होता और उसकी आॅखें भर आती ं। िह अपने मन में कई तरह के सं कल्प
ले ता हुआ खु द के मन को हिा करने की कोकशश करता रहा था।

आकखर िह समय भी आ ही गया जब टर े न मुम्बई के कुलाग स्टे शन पर


पहुॅची। अभय अपनी सोचों के अथाह समुद्र से बाहर आया और उठ कर

243
गेट की तरि चल कदया। कािी भीड थी अं दर, लोग जल्द से जल्द नीचे
उतरने के कलए जैसे मरे जा रहे थे । अभय खु द भी लोगों के बीच धक्के
खाते हुए गेट की तरि आ रहा था। हलाॅकक खडा िह गेट के थोडा पास
ही था ककन्तु िह इसका क्ा करता कक पीछे से आॅधी तू िान बन कर
आते हुए लोग बार बार उसे पीछे धकेल कर खु द आगे कनकल जाते थे ।
िह बे चारा बे ़िुबान सा हो गया था। कदाकचत् उसकी मानकसक ल्कथथत उस
िक्त ऐसी नही ं थी कक िह लोगों के द्वारा खु द को बार बार पीछे धकेल
कदये जाने पर कोई प्रकतकक्रया कर सके।

कुछ दे र बाद आकखर िह गेट के पास पहुॅचा और टर े न से नीचे उतर


गया। प्लेटिामग पर आदमी ही आदमी ऩिर आए उसे । उसे समझ न आया
कक ककस तरि जाए? इतने बडे मुम्बई शहर में िह अपनी भाभी ि उनके
दोनो बच्चों को कहाॅ और कैसे ढू ॅढे गा? उसका तो खु द का कही ं कठकाना
नही ं था। उसे अब महसू स हुआ कक िो ककतना असहाय और थका हुआ
लग रहा है। भू ख और प्यास ने जैसे उस पर अब अपना असर कदखाना
शु रू कर कदया था। िह अपने साथ खाने पीने की कोई ची़ि ले कर नही ं
चला था। कल अपने दोस्त के घर से खाकर ही चला था। हलाॅकक इतने
बडे सिर के कलए उसके दोस्त की बीिी ने खाने का एक कटकिन तै यार
कर कदया था ककन्तु अभय ने जाने क्ा सोच कर मना कर कदया था।

टर े न से उतर कर अभय ने उसी तरि चलने के कलए अपने कदम बढाए


कजस तरि सारे लोग जा रहे थे । अभी िह कुछ कदम ही चला था कक
एक कुली उसके पास आया और उसके अत्यंत कनकट आकर बडे ही
रहस्यमय ककन्तु सं तुकलत स्वर में बोला__"साहब जी! आपके भतीजे किराज
जी आपको लाने के कलए हमें भे जे हैं। कृपया आप मेरे साथ जल्दी चलें ।"

अभय कसं ह को पहले तो कुछ समझ न आया किर जब उसके कििे क ने


काम ककया तो कुली की इस बात को समझ कर िह बु री तरह चौंका।
उसके चे हरे पर अकिश्वास के भाि नाच उठे । उसके मुख से हैरत में डूबा
हुआ स्वर कनकला__"क् कौन हो तु म? और कहाॅ है मेरा भतीजा?"

"साहब जी अभी आप ज्यादा कुछ न बोकलए।" उस कुली ने कहा__"बस


मेरे साथ चकलए और अपना ये बै ग मुझे दीकजए। और हाॅ, आप चे हरे से
ऐसा ही दशागइये जैसे आप अपना सामान कुली को दे कर उसके साथ बाहर
जा रहे हैं। इधर उधर कही ं मत दे ल्कखएगा।"

244
"अरे ...ऐसे कैसे भाई?" अभय को कुछ समझ नही ं आ रहा था कक ये
क्ा हो रहा है उसके साथ__"कौन हो तु म और ये सब क्ा है?"
"ओह साहब जी समझने की कोकशश कीकजए।" कुली ने कचल्कन्तत स्वर में
कहा__"यहाॅ पर खतरा है आपके कलए। इस कलए जल्दी से चकलए मेरे
साथ। स्टे शन से बाहर आपके भतीजे किराज जी आपकी प्रतीक्षा कर रहे
हैं।"

अभय के कदलो कदमाग़ में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके कदमाग़ की


बिी जल उठी। उसके मन में किचार उठा कक ये आदमी मु झे जानता है
और मेरे कलए ही आया है, िरना दू सरे ककसी आदमी को ये सब भला
कैसे पता होता? दू सरी बात ये किराज का नाम ले रहा है और कह रहा है
कक मेरा भतीजा स्टे शन से बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। ले ककन खतरा
ककस बात का है यहाॅ??

अभय को पू रा मामला तो समझ न आया ककन्तु उसने इतना अिश्य ककया


कक अपना बै ग उस कुली को दे कदया। कुली उसका बै ग ले कर तु रंत ही
पलटा और स्टे शन के बाहर की तरि चल कदया। उसके पीछे पीछे अभय
भी चल कदया। कदमाग़ में कई तरह के किचारों का अं धड सा मचा हुआ था
उसके।

स्टे शन से बाहर आकर िो कुली अभय को कलए एक टे र्क्ी के पास


पहुॅचा। टै र्क्ी के अं दर बै ग रख कर कुली ने अभय को टै र्क्ी के अं दर
बै ठने को कहा। ले ककन अभय न बै ठा, उसने सशं क भाि से दे खा कुली
की तरि। तब कुली ने एक तरि हाॅथ का इशारा ककया। अभय ने उस
तरि दे खा तो चौंक गया, क्ोंकक कजस तरि कुली ने इशारा ककया था
उस तरि उसका भतीजा किराज खडा था। किराज ने दू र से ही टै र्क्ी में
बै ठ जाने के कलए इशारा ककया।

अभय अपने भतीजे को दे ख खु श हो गया और उसने राहत की सास भी


ली। िह जल्द ही टै र्क्ी में बै ठ गया। टै र्क्ी के अं दर चार आदमी थे ।
अभय के बै ठते ही टै र्क्ी तु रंत आगे बढ गई। अभय को ऐसा प्रतीत हुआ
जैसे ये सब पहले से ही प्लान बनाया हुआ था। ककन्तु उसे ये समझ न
आया कक इस सबकी क्ा ़िरूरत थी? आकखर ये क्ा चक्कर है?

"तु म सब लोग कौन हो भाई?" टै र्क्ी के कुछ दू र जाते ही अभय ने


पू छा__"और ये सब क्ा चक्कर है? मेरा मतलब है कक मुझे इस तरह

245
रहस्यमय तरीके से क्ों ले जाया जा रहा है?"

"साहब जी ये तो हम भी नही ं जानते कक क्ा चक्कर है?" कुली बने


शं कर ने कहा__"हम तो िही कर रहे हैं जो करने के कलए किराज साहब
ने हमे आदे श कदया था।"

अभय ये सु न कर मन ही मन चौंका कक ये किराज को साहब क्ों कह


रहा है? ककन्तु किर प्रत्यक्ष में बोला__"ओह, तो अभी हम कहाॅ चल रहे
हैं? और मेरा भतीजा किराज कहाॅ गया? िो इस टै र्क्ी में क्ों नही ं
आया?"

"िो अपनी कार में हैं साहब जी।" शं कर ने कहा__"िो हमें आगे एक
जगह कमलें गे।"
"अ अपनी..क..कार में?" अभय लगभग उछल ही पडा था। उसे इस
बात ने उछाल कदया कक उसके भतीजे के पास कार कहाॅ से आ गई? िह
तो खु द भी यही समझ रहा था कक किराज कोई मामूली सा काम करता
होगा यहाॅ।

"जी साहब जी।" उधर अभय के मनोभािों से अं जान शं कर ने


कहा__"आगे एक जगह पर हमें किराज साहब कमल जाएॅगे। किर आपको
उनके साथ उनकी कार में बै ठा कर हम इस टै र्क्ी को िापस कर दें गे
जहाॅ से लाए थे ।"

"क्ा मतलब?" अभय चौंका, झटके पर झटके खाते हुए पू छा__"कहाॅ से


लाए थे इसे ? क्ा ये टै र्क्ी तु म्हारी नही ं है?"
"नही ं साहब जी, ये टै र्क्ी तो हमने ककराए पर ली थी।" शं कर ने
कहा__"किराज साहब ने ऐसा ही कहा था। बाॅकी सारी बातें िही बताएॅगे
आपको।"

अभय उसकी बात सु नकर चु प रह गया। उसे समझ में आ चु का था कक


सारी बातें किराज से ही पता चलें गी। क्ोंकक इन्हें ज्यादा कुछ पता नही ं है।
शायद किराज ने इन्हें नही ं बताया था। पर ये लोग किराज को साहब क्ों
कह रहे हैं? क्ा िो इन लोगों का साहब है? अभय का कदमाग़ जैसे जाम
सा हो गया था।

अभय को ये बात हजम नही ं हो रही थी। ले ककन उसने किर कुछ न कहा।

246
टै र्क्ी ते ़ि रफ्तार से कई सारे रास्तों में इधर उधर चलती रही। कुछ ही
दे र में टै र्क्ी एक जगह पहुॅच कर रुक गई। टै र्क्ी के रुकते ही शं कर
नीचे उतरा और पीछे का गेट खोल कर अभय को उतरने का सं केत कदया।
अभय उसके सं केत पर टै र्क्ी से उतर आया। अभी िह टै र्क्ी से उतर कर
़िमीन पर खडा ही हुआ था कक तभी।

"प्रर्ाम चाचा जी।" अभय के उतरते ही एक तरि से आकर किराज ने


अभय के पै र छूकर कहा__"माफ़ कीकजएगा आपको इस तरह यहाॅ लाना
पडा।"

"अरे राज तु म?? सदा ही खु श रहो।" अभय ने कहा और एकाएक ही


भािना में बह कर उसने किराज को अपने गले से लगा कलया, किर
बोला__"आ मेरे गले लग जा मेरा शे र पु िर। कदाकचत् मेरे कदल को ठं डक
कमल जाए।"

अभय की आॅखों में आॅसू छलक आए थे । उसने बडे ़िोर से किराज को


भी ंच कलया था। किराज को भी आज अपने चाचा जी के इस तरह गले
लगने से बडा सु कून कमल रहा था। आज मुद्दतों बाद कोई अपना इस तरह
कमला था। कशकिे कगले तो बहुत थे ले ककन सब कुछ भू ल गया था किराज।
कुछ दे र ऐसे ही दोनो गले कमले रहे। किर अलग हुए। अभय अपने दोनो
हाॅथों से किराज का सुं दर सा चे हरा सहला कर उसके शरीर के बाॅकी
कहस्सों को दे खने लगा।

"ककतना दु बला हो गया है मेरा बे टा।" अभय ने भरागए स्वर में


कहा__"पगले अपना ठीक से खयाल क्ों नही ं रखता है तू ? और भ भाभी
कैसी हैं...और...और िो मेरी लाडली गुकडया कैसी है..बता मुझे??"

"सब लोग एकदम ठीक हैं चाचा जी।" किराज ने कहा__"चकलए हम िही ं
चलते हैं।"
"हाॅ हाॅ चल राज।" अभय ने तु रंत ही कहा__"मुझे जल्दी से ले चल
उनके पास। मुझे भाभी के पास ले चल...मुझे उनसे ....।"

िाक् अधूरा रह गया अभय कसं ह का..क्ों कक कदलो कदमाग़ में एकाएक
ही तीब्रता से जज्बातों का उबाल सा आ गया था। कजसकी िजह से उसका
गला भारी हो गया और उसके मुख से अल्फा़ि न कनकल सके।

247
किराज अपने साथ अभय को कलए कुछ ही दू री पर खडी अपनी कार के
पास पहुॅचा। किर उसने कार का दू सरी तरि िाला गेट खोल कर अं दर
अभय को बै ठाया। इस बीच शं कर ने अभय का बै ग किराज की कार के
अं दर रख कदया था। किराज खु द डर ाइकिं ग डोर खोल कर डर ाइकिं ग शीट पर
बै ठ गया। ल्कखडकी के पास आ गए शं कर से उसने कहा__"उस टै र्क्ी को
िापस कर दे ना। और ये पै से रामू को दे दे ना, और ये तु म सब के कलए।"

किराज ने कार में ही रखे एक छोटे से ब्रीिकेस को खोल कर उसमे से


दो ह़िार के नोटों की एक गड्डी शं कर को पकडाया था जो रामू की बे टी
के इला़ि के कलए था बाॅकी अलग से दो सौ के नोटों की एक गड्डी उन
चारों के कलए। पै से ले कर चारो ही खु शी खु शी िहाॅ से चले गए।

किराज ने कार स्टाटग की और आगे चल कदया। अभय ये सब दे ख कर


हैरान भी था और खु श भी।

"ये सब क्ा चक्कर था राज?" अभय ने पू छा__"उन लोगों ने बताया कक


ये सब करने के कलए उन्हें तु मने कहा था, ले ककन इस सबकी क्ा ़िरूरत
थी भला?"

"ऐसा करना ़िरूरी था चाचा जी।" किराज ने डर ाइकिं ग करते हुए


कहा__"क्ोंकक आपके पीछे कुछ ऐसे आदमी लगे थे जो आपकी कनगरानी
के कलए लगाए गए थे , बडे पापा जी के द्वारा।"

"क क्ा मतलब??" अभय बु री तरह चौंका था, बोला__"बडे भइया ने


अपने आदमी मेरे पीछे लगा रखे थे ? ले ककन क्ों और कैसे ? और...और
तु झे कैसे पता ये सब?"

"मुझे सबका पता रहता है चाचा जी।" किराज ने कहा__"िक्त और हालात


ने सब कुछ कसखा कदया है आपके इस बे टे को। कल जब आप गाॅि से
चले थे तब आपके िहाॅ से चलने की सूचना मुझे मेरे एक दोस्त ने िोन
पर दी थी। उसने बताया था कक हिे ली में कुछ बातचीत हो गई थी और
आप हम लोगों से कमलने के कलए मुम्बई कनकल चु के हैं। उसने ये भी
बताया कक आपके पीछे बडे पापा ने अपने आदमी भी लगा कदये हैं जो
यही ं मुम्बई में हमारी खोज में न जाने कब से मौजूद थे ।"

"ओह तो भइया ने ऐसा भी कर कदया मे रे पीछे ?" अभय का चे हरा

248
एकाएक सु लगता सा प्रतीत हुआ__"खै र कोई बात नही,ं उनसे उम्मी ंद भी
क्ा की जा सकती है? खै र, तो तु म्हें इस सबकी जानकारी तु म्हारे दोस्त
ने दी थी िोन के माध्यम से ?"

"जी चाचा जी।" किराज ने कहा__"मुझे लगा कही ं आप पर ककसी प्रकार


का कोई खतरा न हो इस कलए मैने ऐसा ककया। मैं खु द स्टे शन के अं दर
नही ं गया क्ोंकक सं भि है बडे पापा के आदकमयों की ऩिर मुझ पर पड
जाती, उसके बाद उनके कलए हर काम आसान हो जाता। इस कलए मैंने
उन सबसे बचने का ये उपाय ककया। कुली के िे श में मेरे आदमी आपको
सु रकक्षत स्टे शन से बाहर ले आएॅगे। उसके बाद आपको टै र्क्ी में बै ठा कर
मेरे आदमी शहर में तब तक इधर उधर सडकों में घूमते जब तक कक उन्हें
ये एहसास न हो जाए कक ककसी के द्वारा उनका पीछा अब नही ं ककया जा
रहा है। कहने का मतलब ये कक अगर बडे पापा के आदमी ककसी तरह
आपको दे ख कलये हों और आपका पीछा करने लगे हों तो मेरे आदमी
टै र्क्ी को ते ़ि रफ्तार में इधर उधर घुमा कर उन आदकमयों को गोली दे
दें गे। उसके बाद मेरे आदमी सीधा िहाॅ आ जाते जहाॅ पर मैंने उन्हें
अपने पास आने को बोला था। यहाॅ से मैं आपको अपनी कार में बै ठा
कर ले जाता। बडे पापा के आदमी ढू ॅढते ही रह जाते उस टै र्क्ी को।"

"ओह तो ये प्लान था तु म्हारा?" अभय ये सोच सोच कर हैरान था कक


उसका इतना सं स्कारी और भोला भाला भतीजा आज इतना कुछ सोचने
लगा है, बोला__"बहुत अच्छा ककया तु मने राज। मैं तु म्हारी इस समझदारी
से बहुत खु श हूॅ।" अभय कुछ पल रुका और किर एकाएक ही उसके
चे हरे पर दु ख के भाि आ गए, बोला__" ककतना ग़लत था मैं....अपने
क्रोध और अकििे क के कारर् कभी नही ं सोच सका कक िास्ति में क्ा
सही था क्ा ग़लत? अपने दे िता जैसे किजय भइया और दे िी जैसी अपनी
गौरी भाभी पर शक ककया और उनसे ये भी न जानने की कोकशश की
कभी कक उन पर लगाए गए आरोप सच भी हैं या ये सब आरोप ककसी
साकजश के तहत उन पर थोपे गए थे ? राज बे टे, अपने दे िी दे िता जैसे
भईया भाभी के साथ मैने ये अच्छा नही ं ककया। भगिान मुझे इस सबके
कलए कभी माफ़ नही ं करे गा।"

ये कहने के साथ ही अभय की आिा़ि भराग गई। उसका चे हरा दु ख और


िाकनिश कबगड गया। उसकी आॅखों से आॅसू बह चले । किराज अपने
चाचा जी के इस रूप को दे ख कर खुद भी दु खी हो गया था। िह जानता

249
था कक उसके चाचा चाची का कही ं कोई दोष नही ं था। उनका अपराध तो
कसिग इतना था कक उन्हें जो कुछ बताया और कदखाया गया था उसी को
उन्होंने सच मान कलया था। अपने क्रोध की िजह से चाचा ने कभी ये
जानने की कोकशश ही नही ं की थी कक सच्चाई िास्ति में क्ा थी?

खै र कुछ ही समय में किराज अपने घर पहुॅच गया। एक बडे से मेन गेट
पर दो गाडग खडे थे । किराज की कार दे खते ही दोनो गाड्ग स ने मेन गेट
खोला। उसके बाद किराज ने कार को अं दर की तरि बढा कदया। लम्बे
चौडे लान से चलते हुए उसकी कार पोचग में आकर खडी हो गई। दोनो
चाचा भतीजा अपनी अपनी तरि का गुट खोल कर नीचे उतरे । अभय की
ऩिर जब सामने बडे से बगला टाइप घर पर पडी तो िह आश्चयगचककत सा
होकर दे खने लगा उसे । इधर उधर दृकष्ट घुमा कर दे खने लगा हर ची़िों
को।

"राज बे टा ये कहाॅ आ गए हम?" अभय ने अजीब भाि से पू ॅछा__"ये


तो ककसी बहुत ही बडे आदमी का बगला लगता है।"
"आपने कबलकुल सही कहा चाचा जी ये ककसी बहुत बडे आदमी का ही
बगला है ले ककन।" किराज ने कहा__"ले ककन अब ये बगला और ये सब
प्रापटी आपके इस राज बे टे की ही है।"

"क् क्ाऽऽ?????" अभय बु री तरह चौंका था। आश्चयग और अकिश्वास से


उसका मुह खु ला का खु ला रह गया, बोला__"ये ये सब ते रा है?? ले ककन
ये सब ते रा कैसे हो गया राज? क्ा तू सच कह रहा है?"

"चकलए अं दर चलते हैं।" किराज ने हिे से मुस्कुरा कर कहा__" माॅ


और गुकडया आपका इन्त़िार कर रही हैं ।"

अभय किराज की इस बात पर उसके साथ बगले के अं दर की तरि बढा


ही था कक कोई ते ़िी से आया और एक झटके से उससे कलपट गया।
अभय इस सबसे पहले तो हडबडाया किर जब उसकी ऩिर कलपटने िाले
पर पडी तो अनायास ही मुस्कुरा उठा िह।

"अरे ये तो मेरी लाडली गुकडया है।" अभय ने कनकध के कसर पर स्नेह से


हाथ िेरते हुए कहा__"राज, ये मेरी गुकडया है, ये...।"

अभय का गला भर आया, उसके जज्बात उसके काबू में न रहे। उसने

250
कनकध को अपने से छु पका कलया और रो पडा िह। उसे इस खयाल ने बु री
तरह रुला कदया कक आज मुद्दतों के बाद उसने अपनी गुकडया पर अपना
प्यार लु टाने को कमला है। इसके पहले तो िह जैसे पत्थर का बन गया था।
उसके कदलो कदमाग़ में इन सबके कलए क्रोध और घृर्ा भर दी गई थी।
पहले जब उसकी भाभी और गुकडया खे तों पर बने मकान के एक कमरे में
रहती थी ं तो िह ककसी ककसी कदन जाता था ले ककन किर जैसे ही उसे उस
सबका खयाल आता िै से ही उसका मन क्रोध और गुस्से से भर जाता और
िह पत्थर का बन कर िापस चला आता। अपनी लाडली को प्यार ि स्नेह
दे ने के कलए िह तडप जाता ले ककन आगे बढने से हमेशा ही खु द को रोंक
ले ता था िह।

"आप आ गए न चाचू " कनकध ने रोते हुए कहा__"मैं जानती थी कक आप


मेरे कबना ज्यादा कदन नही ं रह सकेंगे िहाॅ पर। ले ककन आने में इतनी दे र
क्ों कर दी आपने ? जाइये आपसे बात नही ं करना मुझे, हाॅ नही ं तो।"

ये कह कर कनकध अपने चाचू से अलग हो गई और रूठ कर एक तरि


को मुह कर कलया। अभय को लगा कक उसका हृदय िट जाएगा। अपनी
गुकडया के मुख से बस यही सु नने के कलए तो तरस गया था िह। 'हाॅ
नही ं तो' जाने इन शब्दों में ऐसा क्ा था कक सु न कर अभय को लगा कक
इन शब्दों को सु नने के बाद इस िक्त अगर उसे मृत्यु भी आ जाए तो उसे
कोई ग़म न होगा।

"तू रूठ जाएगी तो मैं समझॅ


ू गा कक मु झसे ये सारा सं सार रूठ गया मेरी
बच्ची।" अभय ने तडप कर कहा__"यहाॅ तक कक िो ईश्वर भी। और किर
उसके बाद मेरे कलए एक पल भी जीने का कोई मतलब नही ं रह जाएगा।"

"न नही ं चाचू नही ं।" कनकध तु रंत ही अभय से कलपट गई। उसकी आॅखों
से आॅसू बह चले । रोते हुए बोली__"प्लीज ऐसा मत ककहए। आप तो मेरे
सबसे अच्छे चाचू हैं। मैं आपसे नारा़ि नही ं हूॅ। और हाॅ आज के बाद
ऐसा कभी मत बोकलयेगा नही ं तो सच में मैं आपसे बात नही ं करूॅगी,
हाॅ नही ं तो।"

जाने ककतनी ही दे र तक अभय अपनी लाडली को स्नेह और प्यार के


िशीभू त हुए खु द से छु पकाए रहा। उसके कसर पर प्यार से हाॅथ िेरता
रहा। किराज ये सब नम आॅखों से दे खता रहा।

251
"अगर अपनी लाडली भतीजी से कमलना जुलना हो गया हो तो अपनी
भाभी से भी कमल लो अभय।" सहसा गौरी की ये आिा़ि गूॅजी थी िहाॅ।
िह कािी दे र से बगले के मुख्य दरिाजे पर खडी ये सब दे ख रही थी।
उसकी आॅखों में भी आॅसू थे ।

गौरी की इस आिा़ि को सु न कर अभय और कनकध एक दू सरे से अलग


हुए। अभय ने पलट कर गौरी की तरि दे खा। जो उसी की तरि करुर्
भाि से दे ख रही थी। उसकी आॅखों में अपने कलए िही आदर िही स्ने ह
दे ख कर अभय का कदलो कदमाग़ अपराध बोझ से भर गया। उसे खु द पर
इतनी शमग और िानी महसू स हुई कक उसे लगा ये धरती िटे और िह
उसमें रसातल तक समाता चला जाए। कदलो कदमाग़ में भािनाओं का ते ़ि
तू िान चलने लगा। हृदय की गकत तीब्र हो गई। उसे अपनी जगह पर खडे
रहना मुल्किल सा प्रतीत होने लगा।

बडी मुल्किल से उसने खु द को सम्हाला और नयनों में नीर भरे िह ते ़िी


से गौरी की तरि बढा। गौरी के पास पहुॅचते ही िह अपनी दे िी समान
भाभी के पै रों में लगभग लोट सा गया। उसके जज्बात उसके काबू से
बाहर हो गए। िूट िूट कर रो पडा िह। मुह से कोई िाक् नही ं कनकल
रहे थे उसके।

अपने पु त्र समान दे िर को इस तरह बच्चों की तरह रोते दे ख गौरी का


हृदय हाहाकार कर उठा। िह जल्दी से नीचे झुकी और अभय को उसके
दोनो कंधों से पकड कर बडी मुल्किल से उठाया उसने । अभय उससे ऩिर
नही ं कमला पा रहा था। उसका समूचा चे हरा आॅसु ओ ं से तर था।

"अरे ऐसे क्ों रहे हो पागल?" गौरी खु द भी रोते हुए बोली__"चु प हो


जाओ। तु म जानते हो कक मैने हमेशा तु म्हें अपने बे टे की तरह समझा है।
इस कलए तु म्हें इस तरह रोते हुए नही ं दे ख सकती। चु प हो जाओ अभय।
अब कबलकुल भी नही ं रोना।"

ये कह कर गौरी ने अभय को अपने सीने से लगा कलया। अपनी भाभी की


ममता भरी इन बातों से अभय और भी कससक कससक कर रो पडा।
उसकी आत्मा चीख चीख कर जैसे उससे कह रही थी 'दे ख ले अभय
कजस दे िी समान भाभी पर तू ने शक ककया था और उनके ऊपर लगाए गए
आरोपों को सच समझ कर उनसे मुह मोड कलया था, आज िही दे िी
समान भाभी तु झे अपने बे टे की तरह प्यार ि स्नेह दे कर अपने सीने से

252
लगा रखी है। उसके मन में ले श मात्र भी ये खयाल नही ं है कक तु मने
उनके और उनके बच्चों से ककस तरह मुह मोड कलया था?'

अभय अपनी आत्मा की इन बातों से बहुत ज्यादा दु खी हो गया। उसे खु द


से बे हद घृर्ा सी होने लगी थी।

"मुझे इस प्रकार अपने ममता के आचल में मत छु पाइये भाभी।" अभय


गौरी से अलग होकर बोला__"मैं इस लायक नही ं हूॅ। मैं तो िो पापी हूॅ
कजसके अपराधों के कलए कोई क्षमा नही ं है। अगर कुछ है तो कसिग स़िा।
हाॅ भाभी....मुझे स़िा दीकजए। मैं आप सबका गुनहगार हूॅ।"

"ये कैसी पागलपन भरी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दोनो हाॅथों के
बीच अभय का चे हरा ले कर कहा__"ककसने कहा तु मसे कक तु मने कोई
अपराध ककया है? अरे पगले , मैंने तो कभी ये समझा ही नही ं कक तु मने
कोई अपराध ककया है। और जब मैने ऐसा कुछ समझा ही नही ं तो क्षमा
ककस बात के कलए? हाॅ ये दु ख अिश्य होता था कक कजस अभय को मैं
अपने बे टे की तरह मानती थी िह जाने क्ों अपनी भाभी माॅ से अब
कमलने नही ं आता? क्ा उसकी भाभी माॅ इतनी बु री बन गई थी कक िो
अब मुझसे बात करने की तो बात ही दू र बल्कि ऩिर भी ना कमलाए?"

"इसी कलए तो कह रहा हूॅ भाभी।" अभय रो पडा__"इसी कलए


तो....कक मैं अपराधी हूॅ। मेरा ये अपराध क्षमा के लायक नही ं है। मुझे
इसके कलए स़िा दीकजए।"

"मैंने तु म्हें हमेशा अपना बे टा ही समझा है अभय।" गौरी ने अभय की


आॅखों से आॅसू पोंछते हुए कहा__"इस कलए माॅ अपने बे टे की ककसी
ग़लती को ग़लती नही ं मानती। बल्कि िह तो उसे नादान समझ कर प्यार
ि स्नेह ही करने लगती है। चलो, अब अं दर चलो।"

गौरी ने ये कह अभय को उसके कंधों से पकड कर अं दर की तरि चल


दी। उसके पीछे किराज और कनकध भी अपनी अपनी आॅखों से आॅसू पोंछ
कर चल कदये।
-----------------------

"तु म लोग सब के सब एक नम्बर के कनकम्मे हो।" उधर हिे ली में अजय


कसं ह िोन पर दहाडते हुए कह रहा था__"ककसी काम के नही ं हो तु म

253
लोग। कपछले एक महीने से तु म लोग िहाॅ पर केिल मेरे रुपयों पर ऐश
िरमा रहे हो। एक अदना सा काम सौंपा था तु म लोगों को और िह भी
तु म लोगों से नही ं हुआ। हर बार अपनी नाकामी की दास्तान सु ना दे ते हो
तु म लोग।"
"......................।" उधर से कुछ कहा गया।
"कोई ़िरूरत नही ं है।" अजय कसं ह गस्से में गरजते हुए बोला__"तु म लोगों
के बस का कुछ नही ं है। इस कलए िौरन चले आओ िहाॅ से ।"

ये कह कर अजय कसं ह ने मारे गुस्से के लैं ड लाइन िोन के ररसीिर को


केकडर ल पर लगभग पटक सा कदया था। उसके बाद डर ाइं गरूम के िसग पर
कबछे कीमती कालीन को रौंदते हुए आकर िह िही ं सोिे पर धम्म से बै ठ
गया।

सामने के सोिे पर बै ठी प्रकतमा क्रोध और गुस्से में उबलते अपने पकत को


एकटक दे खती रही। इस िक्त कुछ भी बोलने की कहम्मत नही ं हुई थी
उसमे। जबकक अजय कसं ह का चे हरा गु स्से में तमतमाया हुआ लाल सु खग
पड गया था। कुछ पल शू न्य में घूरते हुए िह लम्बी लम्बी साॅसें ले ता
रहा। उसके बाद उसने कोट की जेब से कसगारकेस कनकाला और उससे
एक कसगार कनकाल कर होठों के बीच दबा कर उसे लाइटर से सु लगाया।
दो चार लम्बे लम्बे कश ले ने के बाद उसने उसके गाढे से धुएॅ को अपने
नाक और मुह से कनकाला।

"तु झे तो कुिे से भी बदतर मौत दू ॅगा हराम़िादे ।" सहसा िह दाॅत


पीसते हुए कह उठा__"बस एक बार मेरे हाॅथ लग जा तू । उसके बाद
दे ख कक क्ा हस्र करता हूॅ ते रा?"

"क्ा बात है अजय?" प्रकतमा ने सहसा मौके की ऩिाक़त को दे खकर


पू छा__"िोन पर क्ा बातें बताई तु म्हारे आदकमयों ने ?"

"सबके सब हराम़िादे कनकम्मे हैं।" अजय कसं ह कुढते हुए बोला__"आने दो


सालों को एक लाइन से खडा करके गोली मारूॅगा मैं"

"अरे पर बात क्ा हुई अजय?" प्रकतमा चौंकी थी__"तु म इतना गुस्से में
क्ों पगलाए जा रहे हो?"
"तो क्ा करूॅ मैं?" अजय कसं ह जैसे कबिर ही पडा, बोला__"अपने

254
आदकमयों की एक और नाकामी की बात सु न कर क्ा मैं कत्थक करने
लग जाऊ?"

"एक और नाकामी???" प्रकतमा उछल सी पडी थी, बोली__"ये क्ा कह


रहे हो तु म?"
"हाॅ प्रकतमा।" अजय कसं ह बोला__"िोन पर मेरे आदकमयों ने बताया कक
अभय उन्हें गच्चा दे गया।"

"गच्चा दे गया??" प्रकतमा ने ना समझने िाले भाि से कहा__"इसका क्ा


मतलब हुआ?"
"मेरे आदकमयों के अनु सार।" अजय कसं ह ने कहा__"अभय उन्हें टर े न से
उतरते हुए कदखा। उसके बाद िह ककसी कुली को अपना बै ग दे कर उसके
साथ स्टे शन के बाहर चला गया। बाहर आकर िह एक टै र्क्ी में बै ठा और
िहाॅ से आगे बढ गया। मेरे आदमी भी उस टै र्क्ी के पीछे लग गए।
ले ककन उसके बाद िो टै र्क्ी अचानक ही कही ं गायब हो गई। मेरे उन
आदकमयों ने उस टै र्क्ी को बहुत ढू ॅढा मगर कही ं उसका पता नही ं चल
सका।"

"ये तो बडी ही अजीब बात है।" प्रकतमा ने हैरानी से कहा__"कही ं ऐसा तो


नही ं कक अभय को इस बात का शक़ हो गया हो कक कोई उसका पीछा
कर रहा है और उसने टै र्क्ी िाले से कहा हो कक िह पीछा करने िालों
को गच्चा दे दे ।"

"हो सकता है।" अजय कसं ह ने सोचने िाले भाि से कहा__"मेरे आदमी ने
बताया कक अभय के पास जब कुली आया तो उनके बीच पता नही ं क्ा
बातें हुईं थी कजसकी िजह से अभय के चे हरे पर चौंकने िाले भाि उभरे
थे । ऐसा लगा जैसे िह ककसी बात पर चौका हो और िह उस कुली के
साथ जाने के कलए तै यार न हुआ था। ले ककन किर बाद में िह आसानी से
अपना बै ग कुली को दे कदया और चु पचाप उसके पीछे पीछे चल भी कदया
था। चलते समय भी उसके चे हरे पर गहन सोच ि उलझन के भाि थे ।"

"हाॅ तो इसमें इतना किचार करने की क्ा बात है भला?" प्रकतमा ने


कहा__"ऐसा तो होता ही है कक आम तौर पर कुकलयों की बात पर यात्री
लोग इतनी आसानी से आते नही ं हैं। दू सरी बात अभय की उस समय की
मानकसक ल्कथथत भी ऐसी नही ं रही होगी कक िह इस तरह ककसी कुली के
साथ कही ं चल दे ।"

255
"हो सकता है कक तु म्हारी बात ठीक हो ले ककन।" अजय कसं ह
बोला__"ले ककन इसमें भी सोचने िाली बात तो है ही कक कुली ने ऐसा क्ा
कहा कक सु नकर अभय बु री तरह चौंका था और किर बाद में रहस्यमय
तरीके से उस कुली के साथ चल कदया था? कहने का मतलब ये कक
उसकी हर एक्टीकिटी रहस्यमय लगी थी।"

"अगर ऐसा है भी तो इसमें हम क्ा कर सकते हैं?" प्रकतमा ने


कहा__"क्ोंकक अभय नाम का पं छी तो आपके आदकमयों की आॅखों के
सामने से गायब ही हो चु का है अब।"

"ये सब मेरे उन हराम़िादे आदकमयों की िजह से ही हुआ है प्रकतमा। खै र


छोडो ये सब।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले कर कहा__"ये बताओ कक
तु मने अपना काम कहाॅ तक पहुॅचाया?"

"अ अपना काम??" प्रकतमा ने ना समझने िाले भाि से कहा__"कौन से


काम की बात कर रहे हो तु म?"
"तु म अच्छी तरह जानती हो प्रकतमा कक मैं ककस काम के बारे में पू छ रहा
हूॅ तु मसे ?" अजय कसं ह का लहजा सहसा पत्थर की तरह कठोर हो
गया__"और अगर तु म इस काम में सीररयस नही ं हो तो बता दो
मुझे।अपने तरीके से कशकार करना भली भाॅकत आता है मु झे।"

"ओह तो तु म उस काम के बारे में पू छ रहे हो?" प्रकतमा को जैसे खयाल


आया__"यार तु म तो जानते हो कक ये करना इतना आसान नही ं है। भला
मैं कैसे अपनी बे टी से ये कह सकूॅगी कक बे टी अपने बाप के पास जा
और उनके नीचे ले ट जा। ताकक ते रे मदमस्त यौिन का ते रा बाप भोग कर
सके।"

"अच्छी बात है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने ठं डे स्वर में कहा__"अब तु म कुछ


नही ं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नही ं नही ं अजय।" प्रकतमा बु री तरह घबरा गई, बोली__"तु म खु द से
कुछ नही ं करोगे। मैं अकतसीघ्र ही अपनी बे टी को तु म्हारे नीचे सु लाने के
कलए तै यार कर लू ॅगी।"

"अब तु म्हारी इन बातों पर ़िरा भी यकीन नही ं है मु झे।" अजय ने


कहा__"बहुत दे ख ली तु म्हारी कोकशशें । तु मने करुर्ा के बारे में भी यही

256
कहा था और अब अपनी बे टी के कलए भी यही कह रही हो। तु म्हारी
कोकशशों का क्ा नतीजा कनकलता है ये मैं दे ख चु का हूॅ। इस कलए अब
मैं खु द ये काम करूॅगा और तु म मु झे रोंकने की कोकशश नही ं करोगी।"

"पर अजय ये तु म ठीक...।" प्रकतमा का िाक् बीच में ही रह गया।


"बस प्रकतमा, अब कुछ नही ं सु नना चाहता हूॅ मैं।" अजय कसं ह कह
उठा__"अब तु म कसिग दे खो और उसका म़िा लो।"

प्रकतमा दे खती रह गई अजय को। उसका कदल बु री तरह घबराहट के


कारर् धडकने लगा था। चे हरा अनायास ही ककसी भय के कारर् पीला
पड गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बे टी की
सलामती की दु िा की।

अपडे ट.........《 27 》

अब तक,,,,,,,

"अच्छी बात है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने ठं डे स्वर में कहा__"अब तु म कुछ नही ं
करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नही ं नही ं अजय।" प्रकतमा बु री तरह घबरा गई, बोली__"तु म खु द से कुछ नही ं
करोगे। मैं अकतसीघ्र ही अपनी बे टी को तु म्हारे नीचे सु लाने के कलए तै यार कर
लू ॅगी।"

"अब तु म्हारी इन बातों पर ़िरा भी यकीन नही ं है मु झे।" अजय ने कहा__"बहुत दे ख


ली तु म्हारी कोकशशें । तु मने करुर्ा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बे टी
के कलए भी यही कह रही हो। तु म्हारी कोकशशों का क्ा नतीजा कनकलता है ये मैं दे ख
चु का हूॅ। इस कलए अब मैं खु द ये काम करूॅगा और तु म मुझे रोंकने की कोकशश
नही ं करोगी।"

"पर अजय ये तु म ठीक...।" प्रकतमा का िाक् बीच में ही रह गया।


"बस प्रकतमा, अब कुछ नही ं सु नना चाहता हूॅ मैं।" अजय कसं ह कह उठा__"अब तु म
कसिग दे खो और उसका म़िा लो।"

257
प्रकतमा दे खती रह गई अजय को। उसका कदल बु री तरह घबराहट के कारर् धडकने
लगा था। चे हरा अनायास ही ककसी भय के कारर् पीला पड गया था उसका। मन ही
मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बे टी की सलामती की दु िा की।
--------------------

अब आगे,,,,,,,,
अभय को अपने साथ कलए गौरी डर ाइं ग रूम में दाल्कखल हुई, उसके पीछे पीछे किराज
और कनकध भी थे । गौरी ने अभय को सोिे पर बै ठाया और खु द भी उसी सोिे पर
उसके पास बै ठ गई। किराज और कनकध सामने िाले सोिे पर एक साथ ही बै ठ गये।

अभय कसं ह का मन बहुत भारी था। उसका कसर अभी भी अपराध बोझ से झुका हुआ
था। गौरी इस बात को बखू बी समझती थी, कदाकचत इसी कलए उसने बडे प्यार से
अपने एक हाथ से अभय का चे हरा ठु ड्डी से पकड कर अपनी तरि ककया।

"ये क्ा है अभय?" किर गौरी ने अधीरता से कहा__"इस तरह कसर झुका कर बै ठने
की कोई आिश्यकता नही ं है। तु म अपने कदलो कदमाग़ से ऐसे किचार कनकाल दो
कजसकी िजह से तु म्हें ऐसा लगता है कक तु मने कोई अपराध ककया है। तु म्हारी जगह
कोई दू सरा होता तो िह भी िही करता जो उन हालातों में तु मने ककया। इस कलए मैं
ये समझती ही नही ं कक तु मने कोई ग़लती की है या कोई अपराध ककया है। इस कलए
अपने मन से ये खयाल कनकाल दो अभय और अपने कदल का ये बोझ हिा करो, जो
बोझ अपराध बोझ बन कर तु म्हें शाल्कन्त और सु कून नही ं दे पा रहा है।"

"भाभी आप तो महान हैं इस कलए इस सबसे आप पर कोई प्रभाि नही ं पडता।"


अभय ने भारी स्वर में कहा__"ककन्तु मैं आप जैसा महान नही ं हूॅ और ना ही मेरा
हृदय इतना किशाल है कक उसमें ककसी तरह के दु ख सहजता से जज़्ब हो सकें। मैं तो
बहुत ही छोटी बु ल्कि और किचारों िाला हूॅ कजसे कोई भी ब्यल्कक्त जब चाहे और जैसे
भी चाहे अपनी उगकलयों पर नचा दे ता है। शायद इसी कलए तो....इसी कलए तो मैं
समझ ही नही ं पाया कक कभी कभी जो कदखता है या जो सु नाई दे ता है िह कसरे से
ग़लत भी हो सकता है।"

"ये तु म कैसी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दु खी भाि से कहा__"भगिान के कलए


ऐसा कुछ मत कहो। अपने अं दर ऐसी िानी मत पै दा करो और ना ही इन सबसे खु द
को इस तरह दु खी करो।"

"मुझे कहने दीकजए भाभी।" अभय ने करुर् भाि से कहा__"शायद ये सब कहने से

258
मेरे अं दर की पीडा में कुछ इ़िािा हो। आप तो मु झे स़िा नही ं दे रही हैं तो कम से
कम मैं खु द तो अपने आपको स़िा और तकलीफ़ दे लू ॅ। मुझे भी तो इसका एहसास
होना चाकहए न भाभी कक जब हृदय को पीडा कमलती है तो कैसा लगता है? हमारे
अपने जब अपनों को ही ऐसी तक़लीफ़ दे ते हैं तो उससे हमारी अं तआग त्मा ककस हद
तक तडपती है?"

"नही ं अभय नही ं।" गौरी ने रोते हुए अभय को एक बार किर से खी ंच कर खु द से
छु पका कलया, बोली__"ऐसी बातें मत करो। मैं नही ं सु न सकती तु म्हारी ये करुर्
बातें । मैंने तु म्हें अपने बे टे की तरह हमेशा स्ने ह कदया है। भला, मैं अपने बे टे को कैसे
इस तरह तडपते हुए दे ख सकती हूॅ? हकगग़ि नही ं....।"

दे िर भाभी का ये प्यार ये स्ने ह ये अपनापन आज ढू ॅढने से भी शायद कही ं न कमले ।


किराज और कनकध आॅखों में नीर भरे उन्हें दे खे जा रहे थे । ककतनी ही दे र तक गौरी
अभय को खु द से छु पकाए रही। सचमुच इस िक्त ऐसा लग रहा था जैसे अभय दो दो
बच्चों का बाप नही ं बल्कि कोई छोटा सा अबोध बालक हो।

"राज।" सहसा गौरी ने किराज की तरि दे ख कर कहा__"तु म अपने चाचा जी को


उनके रूम में ले जाओ। लम्बे सिर की थकान बहुत होगी। नहा धो कर िेस हो
जाएॅगे तो मन हिा हो जाएगा।"

"जी माॅ।" किराज तु रंत ही सोिे से उठ कर अभय के पास पहुॅच गया। गौरी के
़िोर दे ने पर अभय को किराज के साथ कमरे में जाना ही पडा। जबकक अभय और
किराज के जाने के बाद गौरी उठी और अपनी आॅखों से बहते हुए आॅसु ओ ं को
पोंछते हुए ककचे न की तरि बढ गई।
--------------------

हिे ली में डोर बे ल की आिा़ि सु नकर प्रकतमा ने जाकर दरिाजा खोला। दरिाजे के
बाहर खडे कजस चे हरे पर उसकी ऩिर पडी उसे दे ख कर िह बु री तरह चौंकी।

"अरे नै ना तु म??" प्रकतमा का हैरत में डूबा हुआ स्वर__"आओ आओ अं दर आओ।


आज इतने महीनों बाद तु म्हें दे ख कर मुझे बे हद खु शी हुई।"

दोस्तो ये नै ना है ....आप सबको तो बताया ही जा चु का है पररिार के सभी सदस्यों के


बारे में। किर भी अगर आप भू ल गए हैं तो आप एक बार इस कहानी का पहला
अपडे ट चे क कर सकते हैं। पहले अपडे ट में आपको पता चल जाएगा कक नै ना कौन
है?

259
नै ना जैसे ही दरिाजे के अं दर आई प्रकतमा ने उसे अपने गले से लगा कलया। प्रकतमा ने
महसू स ककया कक नै ना के हाि भाि बदले हुए हैं। प्रकतमा की बात का उसने मुख से
कोई जिाब नही ं कदया था बल्कि िह कसिग हिा सा मु स्कुराई थी। उसकी मुस्कान
भी शायद बनािटी ही थी। क्ोंकक चे हरे के भाि उसकी मु स्कान से कबलकुल अलग
थे ।

"दामाद जी कहाॅ हैं?" नै ना से अलग होकर प्रकतमा ने दरिाजे के बाहर झाॅकने के


बाद पू छा था।
"मैं अकेली ही आई हूॅ भाभी।" नै ना ने अजीब भाि से कहा__"सब कुछ छोंड कर।"

"क्ाऽऽ???" नै ना की बात सु नकर प्रकतमा ने चौंकते हुए कहा__"सब कुछ छोंड कर


से क्ा मतलब है तु म्हारा??
"मैंने आकदत्य को तलाक दे कदया है ।" नै ना ने कठोरता से कहा__"अब उससे और
उसके घर िालों से मेरा कोई ररश्ा नही ं रहा।"

"त तलाऽऽक????" प्रकतमा बु री तरह उछल पडी__"ये क्ा कह रही हो तु म?"


"हाॅ भाभी।" नै ना ने कहा__"मैने उस बे ििा को तलाक दे कदया है , और उससे सारे
ररश्े नाते तोड कर िापस अपने माॅ बाप ि भइया भाभी के पास आ गई हूॅ।"

प्रकतमा की अजीब हालत हो गई उसकी बातें सु नकर। हैरत ि अकिश्वास से मु ह िाडे


िह अपनी छोटी ननद नै ना को अपलक दे खे जा रही थी। किर सहसा उसकी तं द्रा
तब भं ग हुई जब उसके कानों में अं दर से आई उसके पकत अजय की आिा़ि गूॅजी।
अं दर से अजय कसं ह ने आिा़ि लगा कर पू छा था कक कौन आया है बाहर?

अजय कसं ह की आिा़ि से प्रकतमा को होश आया जबकक नै ना अपने हाॅथ में पकडा
हुआ बडा सा बै ग िही ं छोंड कर अं दर की तरि भागी। नै ना को इस तरह भागते दे ख
प्रकतमा चौंकी किर पलट कर पहले दरिाजे को बं द ककया उसके बाद नै ना के बै ग को
उठा अं दर की तरि बढ गई।

उधर भागते हुए नै ना डर ाइं ग रूम में पहुॅची। उसी समय अजय कसं ह भी अपने कमरे
से इधर ही आता कदखा। नै ना अपने बडे भाई को दे ख एक पल को कठठकी किर ते ़िी
से दौडती हुई जा कर अजय कसं ह से कलपट गई।

"भइयाऽऽ।" नै ना अजय से कलपट कर बु री तरह रोने लगी थी। अजय कसं ह उसे इस
तरह दे ख पहले तो चौंका किर उसे अपनी बाॅहों में ले प्यार ि स्नेह से उसके कसर ि
पीठ पर हाॅथ िेरने लगा।

260
"अरे क्ा हुआ तु झे?" अजय कसं ह उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला__"इस तरह
क्ों रोये जा रही है तू ?"

अजय कसं ह के इस सिाल का नै ना ने कोई जिाब नही ं कदया, बल्कि िह ़िार ़िार
िै सी ही रोती रही। नै ना अपने भाई के सीने से कस के लगी हुई थी। ऐसा लगता था
जैसे उसे इस बात का अं देशा था कक अगर िह अपने भाई से अलग हो जाएगी तो
कयामत आ जाएगी।

प्रकतमा भी तब तक पहुॅच गई थी। अपने भाई से कलपटी अपनी ननद को इस तरह


रोते दे ख उसकी आॅखों में भी पानी आ गया। कािी दे र तक यही आलम रहा।
अजय कसं ह ने उसे बडी मु ल्किल से चु प कराया। किर उसे उसके कंधे से पकड कर
चलते हुए आया और उसे सोिे पर आराम से बै ठा कर खु द भी उसके पास ही बै ठ
गया।

"प्रकतमा दामाद जी कहाॅ हैं?" किर अजय ने प्रकतमा की तरि दे खते हुए
पू छा__"उन्हें अपने साथ अं दर क्ों नही ं लाई तु म?"
"दामाद जी नही ं आए अजय।" प्रकतमा ने गंभीरता से कहा__"नै ना अकेली ही आई
है।"

"क्ा???" अजय चौंका__"ले ककन क्ों? दामाद जी साथ क्ों नही ं आए? मेरी िूल
जैसी बहन को अकेली कैसे आने कदया उन्होंने? रुको मैं अभी बात करता हू उनसे ।"

"अब िोन करने की कोई ़िरूरत नही ं है अजय।" प्रकतमा ने कहा__"नै ना अब हमारे
पास ही रहेगी....।"
"हमारे पास ही रहेगी??" अजय चकराया, बोला__"इसका क्ा मतलब हुआ भला?"

"िो...िो नै ना ने दामाद जी को तलाक दे कदया है।" प्रकतमा ने धडकते कदल के साथ


कहा__"इस कलए अब ये यही ं रहेंगी।"
"व्हाऽऽट???" अजय कसं ह सोिे पर बै ठा हुआ इस तरह उछल पडा था जैसे उसके
कपछिाडे के नीचे सोिे का िह कहस्सा अचानक ही ककसी बडी सी नोंकदार सु ई में
बदल गया हो, बोला__"ये सब क्ा...ये तु म क्ा कह रही हो प्रकतमा? नै ना ने दामाद
जी को तलाक दे कदया है? अरे ले ककन क्ों??"

प्रकतमा के कुछ बोलने से पहले ही नै ना एक झटके से उठी और रोते हुए अं दर की


तरि भाग गई। अजय कसं ह मूखों की तरह उसे जाते दे खता रहा।

"प्रकतमा सच सच बताओ।" किर अजय ने उकद्दग्नता से कहा__"आकखर ऐसी क्ा बात

261
हो गई है कजसकी िजह से नै ना ने दामाद जी को तलाक दे कदया है?"

"सारी बातें मुझे भी नही ं पता अजय।" प्रकतमा ने कहा__"नै ना ने अभी कुछ भी नही ं
बताया है इस बारे में।"
"उससे पू छो प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा__"उससे पू छो कक क्ा मैटर है? उसने
अपने पकत को ककस बात पर तलाक दे कदया है ?"

"ठीक है मैं बात करती हूॅ उससे ।" प्रकतमा कहने के साथ ही उठ कर उस कदशा की
तरि बढ गई कजधर नै ना गई थी। जबकक अजय कसं ह ककसी गहरी सोच में डूबा ऩिर
आने लगा था।
---------------------

"कमस्टर चौहान।" हाल्किटल की गैलरी पर दीिार से सटी बें च पर बै ठे एक ऐसे शख्स


के कानों से ये िाक् टकराया कजसके चे हरे पर इस िक्त गहन परे शानी ि दु ख के
भाि थे । उसने कसर उठा कर दे खा। उसके सामने एक डाक्टर खडा उसी की तरि
सं जीदगी से दे ख रहा था।

"कमस्टर चौहान।" डाक्टर ने कहा__"प्लीज आप मेरे साथ आइए। मुझे आपसे कुछ
़िरूरी बातें करनी है।"
"डाक्टर मेरी बे टी कैसी है अब?" बे न्च से एक ही झटके में उठते हुए उस शख्स ने
हडबडाहट से पू छा था__"िो अब ठीक तो है ना?"

"अब िो कबलकुल ठीक है कमस्टर चौहान ले ककन।" डाक्टर का िाक् अधूरा रह गया।
"ल ले ककन क्ा डाक्टर?" शख्स ने असमंजस से पू छा।

"आप प्ली़ि मेरे साथ आइए।" डाक्टर ने ़िोर दे कर कहा__"मु झे आपसे अकेले में
बात करनी है। प्ली़ि कम हेयर...।"

कहने के साथ ही डाक्टर एक तरि बढ गया। उसे जाते दे ख िो शख्स भी ते ़िी से


उसके पीछे लपका। चे हरे पर ह़िारों तरह के भाि एक पल में ही गकदग श करते ऩिर
आने लगे थे उसके। कुछ ही दे र में डाक्टर के पीछे पीछे िह उसके केकबन में
पहुॅचा।

"कमस्टर चौहान।" डाक्टर अपनी चे यर के पास पहुॅच कर तथा अपने सामने बडी सी
टे बल के पार रखी ं चे यर की तरि हाथ के इशारे के साथ कहा__"हैि ए सीट प्ली़ि।"

डाक्टर के कहने पर िो शख्स कजसे डाक्टर उसके सर ने म से सं बोकधत कर रहा था

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ककसी यं त्रचाकलत सा आगे बढा और एक हाथ से चे यर को पीछे कर उसमें बै ठ गया।
उसके बै ठ जाने के बाद केकबन में दोनो के बीच कुछ दे र के कलए खामोशी छाई रही।

"कहो डाक्टर।" किर खामोशी को चीरते हुए उस शख्स ने भारी स्वर में कहा__"क्ा
़िरूरी बातें करनी थी आपको?"
"कमस्टर चौहान।" डाक्टर ने भू कमका बनाते हुए ककन्तु सं तुकलत लहजे में कहा__"मैं
चाहता हूॅ कक आप मेरी बातों को शान्ती और बडे धै यग के साथ सु नें।"

"आकखर बात क्ा है डाक्टर?" शख्स ने सहसा अं जाने भय से घबरा कर कहा था,
बोला__"मु झे पता है कक मेरी बे टी के साथ ककसी ने रे प ककया है कजसकी िजह से
उसकी आज ये हालत है। मैं धरती आसमान एक कर दू ॅगा उस हराम़िादे को ढू ढने
में कजसने मेरी बे टी को आज इस हालत में पहुॅचाया है । उसे ऐसी मौत दू ॅगा कक
िररश्े भी दे ख कर थर थर काॅपें गे।"

"प्ली़ि कंटर ोल योरसे ल्फ कमस्टर चौहान प्लीज।" डाक्टर ने कहा__"आपको इसके
आगे जो भी करना हो आप करते रकहये गा, ले ककन उसके पहले शान्ती और धैयग के
साथ आप मेरी बातें सु न लीकजए।"

"ठीक है ककहए।" उस शख्स ने गहरी साॅस ली।


"ये तो आप जानते ही हैं कक आपकी बे टी के साथ क्ा हुआ है।" डाक्टर ने
कहा__"पर ये आधा सच है।"
"क्ा मतलब?" चौहान चौंका।

"आपकी बे टी के साथ एक से ज्यादा लोगों ने रे प की िारदात को अं जाम कदया है?"


डाक्टर ने सं जीदगी से कहा__"उसने खु द शराब पी थी या किर उसे कपलाई गई थी।
ऐसी शराब कजसमें डर ग्स कमला हुआ था। इससे यही साकबत होता है कक ये सब कजन
लोगों ने भी ककया है पहले से ही सोच समझकर ककया है।"

"ये आप क्ा कह रहे हैं डाक्टर?" चौहान की हालत खराब थी, बोला__"मेरी बे टी के
साथ इतना कुछ ककया उन हराम़िादों ने ।"
"ये सब तो कुछ भी नही ं है।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"बल्कि अब जो बात मैं
आपको बताना चाहता हूॅ िो बहुत ही गंभीर बात है। मैं चाहता हूॅ कक आप मेरी उस
बात को सु नकर अपना धै यग नही ं खोएं गे।"

"आकखर ऐसी क्ा बात है डाक्टर?" चौहान हतोत्साकहत सा बोला__"क्ा कहना


चाहते हैं आप? साि साि बताओ क्ा बात है ?"

263
"आपकी बे टी प्रे ग्नेन्ट है।" डाक्टर ने मानो धमाका सा ककया था__"िह भी दो महीने
की।"
"क्ाऽऽ????" चे यर पर बै ठा चौहान ये सु न कर उछल पडा था, बोला__"ये आप क्ा
कह रहे हैं डाक्टर? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"इस बारे में भला मैं कैसे बता सकता हूॅ कमस्टर चौहान?" डाक्टर ने कहा__"ये तो
आपकी बे टी को ही पता होगा। मैंने तो आपको िही बताया है जो आपकी बे टी की
जाॅच से हमें पता चला है।"

चौहान भौचक्का सा डाक्टर को दे खता रह गया था। उसके कदलो कदमाग़ में अभी तक
धमाके हो रहे थे । असहाय अिथथा में बै ठा रह गया था िह।

तभी केकबन का गेट खु ला और एक नसग अं दर दाल्कखल हुई।


"सर िो पु कलस बाहर आपका इन्त़िार कर रही है।" नसग ने डाक्टर की तरि दे ख
कर कहा था।

"ठीक है हम आते हैं।" डाक्टर ने उससे कहा किर चौहान की तरि दे ख कर


कहा__"कमस्टर चौहान आइए चलते हैं।"

उसके बाद दोनो केकबन के बाहर आ गए। चौहान के चे हरे से ही लग रहा था कक िह


दु खी है, ककन्तु अपने इस दु ख को िह जज़्ब करने की कोकशश कर रहा था।

बाहर गैलरी में आते ही डाक्टर को पु कलस के कुछ कशपाही कदखाई कदये। िह चौहान
के साथ चलता हुआ ररसे शन पर पहुॅचा। जहाॅ पर इं िेक्टर की िदी में ररतू खडी
थी। कसर पर पी-कैप ि दाकहने हाॅथ में पु कलकसया रुल था कजसे िह कुछ पलों के
अन्तराल में अपनी बाॅई हथे ली पर हिे से मार रही थी।

"हैलो इं िेक्टर।" डाक्टर ररतू के पास पहुॅचते ही बोला था।


"क्ा उस लडकी को होश आ गया डाक्टर?" ररतू ने पु कलकसया अं दा़ि में पू छा__"मु झे
उसका स्टे टमेन्ट ले ना है।"

"कमस ररतू ।" डाक्टर ने कहा__"बस कुछ ही समय में उसे होश आ जाएगा किर आप
उसका बयान ले सकती हैं ।" डाक्टर ने कहने के साथ ही चौहान की तरि इशारा
करते हुए कहा__"ये उस लडकी के कपता हैं। कमस्टर शै लेन्द्र चौहान।"

"ओह आई सी।" ररतू ने चौहान की तरि दे खते हुए कहा__"मु झे दु ख है अं कल कक


आपकी बे टी के साथ ऐसा हादसा हुआ?"

264
"सब भाग्य की बातें हैं बे टा।" चौहान ने हारे हुए ल्कखलाडी की तरह बोला__"हम चाहे
सारी ऊम्र सबके साथ अच्छा करते रहें और सबका अच्छा भला सोचते रहें ले ककन
हमें हमारे भाग्य से जो कमलना होता है िो कमल ही जाता है।"

"हाॅ ये तो है अं कल।" ररतू ने कहा__"खै र, आपकी बे टी का ये केस िाइल हो चु का


है, बस आपके साइन की ़िरूरत है। लडकी के बयान के बाद पु कलस इस केस को
अच्छी तरह दे ख ले गी। कजसने भी इस कघनौने काम को अं जाम कदया है उसको बहुत
जल्द जे ल की सलाखों के पीछे अधमरी अिथथा में पाएं गे आप।"

"उससे क्ा होगा बे टी?" चौहान ने गंभीरता से कहा__"क्ा िो सब िापस हो जाएगा


जो लु ट गया या बरबाद हो गया है?"
"आप ये कैसी बातें कर रहे हैं अं कल?" ररतू ने हैरत से कहा__"क्ा आप नही ं चाहते
कक कजसने भी आपकी बे टी के साथ ये ककया है उसे कानू न के द्वारा शख्त से शख्त
स़िा कमले ?"

"उसे कानू न नही ं।" चौहान के चे हरे पर अचानक ही हाहाकारी भाि उभरे __"उसे मैं
खु द अपने हाथों से स़िा दू ॅगा। तभी मेरी और मेरी बे टी की आत्मा को शान्ती
कमले गी।"

"तो क्ा आप कानू न को हाथ में लें गे?" ररतू ने कहा__"नही ं अं कल, ये पु कलस केस है
और उसे कानू नन ही स़िा प्राप्त होगी।"
"तु म अपना काम करो बे टी।" चौहान ने कहा__"और मु झे मेरा काम अपने तरीके से
करना है।"

तभी िहाॅ पर एक नसग आई। उसने बताया कक उस लडकी को होश आ गया है और


उसे दू सरे रूम में कशफ्ट कर कदया गया है। नसग की बात सु नकर डाक्टर ने ररतू को
उससे बयान ले ने की परमीशन दी ककन्तु ये भी कहा कक पे शेन्ट को ज्यादा ककसी बात
के कलए मजबू र न करें । चौहान साथ में जाना चाहता था ककन्तु ररतू ने ये कह कर उसे
रोंक कलया कक ये पु कलस केस है इस कलए पहले पु कलस उससे कमले गी और उसका
बयान ले गी।

इं िेक्टर ररतू अपने साथ एक मकहला कशपाही को कलए उस कमरे में पहुॅची कजस
कमरे में उस लडकी को कशफ्ट ककया गया था। डाक्टर खु द भी साथ आया था। ककन्तु
किर एक नसग को कमरे में छोंड कर िह बाहर चला गया था।

हाल्किटल िाले बे ड पर ले टी िह लडकी आॅखें बं द ककये ले टी थी। ये अलग बात है

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कक उसकी बं द आॅखों की कोरों से आॅसू ॅ की धार सी बहती कदख रही थी। उसके
शरीर का गले से नीचे का सारा कहस्सा एक चादर से ढ् का हुआ था। कमरे में कुछ
लोगों के आने की आहट से भी उसने अपनी आॅखें नही ं खोली थी। बल्कि उसी तरह
पु िगत् ले टी रही थी िह।

"अब कैसी तकबयत है तु म्हारी?" ररतू उसके करीब ही एक स्टू ल पर बै ठती हुई बोली
थी। उसके इस प्रकार पू ॅछने पर लडकी ने अपनी आॅखें खोली और ररतू की तरि
चे हरा मोड कर दे खा उसे । ररतू पर ऩिर पडते ही उसकी आॅखों में हैरत के भाि
उभरे । ये बात ररतू ने भी महसू स की थी।

"अब कैसा िील कर रही हो?" ररतु ने पु नः उसकी तरि दे ख कर ककन्तु इस बार
हिे से मु स्कुराते हुए पू छा__"अगर अच्छा िील कर रही हो तो अच्छी बात है। मुझे
तु मसे इस िारदात के बारे में कुछ पू छताॅछ करनी है। ले ककन उससे पहले मैं तु म्हें ये
बता दू ॅ कक तु म्हें मु झसे भयभीत होने की कोई ़िरूरत नही ं है। मैं भी तु म्हारी तरह
एक लडकी ही हूॅ और हाॅ तु म मुझे अपनी दोस्त समझ सकती हो, ठीक है ना?"

लडकी के चे हरे पर कई सारे भाि आए और चले भी गए। उसने ररतू की बातों का


अपनी पलकों को झपका कर जिाब कदया।

"ओके, तो अब तु म मु झे सबसे पहले अपना नाम बताओ।" ररतू ने मु स्कुरा कर कहा।


"कि कि...किधी।" उस लडकी के थरथराते होठों से आिा़ि आई।

उसका नाम सु न कर ररतू को झटका सा लगा। मल्कस्तष्क में जैसे बम्ब सा िटा था।
चे हरे पर एक ही पल में कई तरह के भाि आए और किर लु प्त हो गए। ररतू ने सीघ्र
ही खु द को नामगल कर कलया।

"ओह....ककतना खू बसू रत सा नाम है तु म्हारा।" ररतू ने कहा। उसके कदमाग़ में कुछ
और ही खयाल था, बोली__"किधी...किधी चौहान, राइट?"

लडकी की आॅखों में एक बार पु नः चौंकने के भाि आए थे । एकाएक ही उसका


चे हरा सिेद िक्क सा पड गया था। चे हरे पर घबराहट के कचन्ह ऩिर आए। उसने
अपनी गदग न को दू सरी तरि मोड कलया।

"तो किधी।" ररतू ने कहा__"अब तु म मु झे बे कझझक बताओ कक क्ा हुआ था तु म्हारे


साथ?"

ररतू की बात पर किधी ने कोई प्रकतकक्रया नही ं दी। िह दू सरी तरि मुह ककये ले टी

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रही। जबकक उसकी खामोशी को दे ख कर ररतू ने कहा__"दे खो ये ग़लत बात है
किधी। अगर तु म कुछ बताओगी नही ं तो मैं कैसे उस अपराधी को स़िा कदला पाऊगी
कजसने तु म्हारी यानी मेरी दोस्त की ऐसी हालत की है? इस कलए बताओ मु झे....सारी
बातें किस्तार से बताओ कक क्ा और कैसे हुआ था?"

"मु मु झे कुछ नही ं पता।" किधी ने दू सरी तरि मुह ककये हुए ही कहा__"मैं नही ं
जानती कक ककसने कब कैसे मेरे साथ ये सब ककया?"
"तु म झॅू ठ बोल रही किधी।" ररतू की आिा़ि सहसा ते ़ि हो गई__"भला ऐसा कैसे
हो सकता है कक तु म्हारे साथ इतना कुछ हुआ और तु म्हें इस सबके बारे में थोडा सा
भी पता न हुआ हो?"

"भला मैं झॅ ू ठ क्ों बोलू ॅगी आपसे ?" किधी ने इस बार ररतू की तरि पलट कर
कहा था।
"हाॅ ले ककन सच भी तो नही ं बोल रही हो तु म?" ररतू ने कहा__"आकखर िो सब
बताने में परे शानी क्ा है? दे खो अगर तु म नही ं बताओगी तो सच जानने के कलए
पु कलस के पास और भी तरीके हैं। कहने का मतलब ये कक, हम ये पता लगा ही लें गे
कक तु म्हारे साथ ये सब ककसने ककया है?"

बे ड पर ले टी किधी के चे हरे पर असमंजस ि बे चैनी के भाि उभरे । कदाकचत् समझ


नही ं पा रही थी कक िह ररतू की बातों का क्ा और कैसे जिाब दे ?

"तु म्हारे चे हरे के भाि बता रहे हैं किधी कक तु म मेरे सिालों से बे चैन हो गई हो।" ररतू
ने कहा__"तु म जानती हो कक तु म्हारे साथ ये सब ककसने ककया है। ले ककन बताने में
शायद डर रही हो या किर कहचककचा रही हो।"

किधी ने कमरे में मौजूद ले डी कशपाही ि नसग की तरि एक एक दृकष्ट डाली किर
िापस ररतू की तरि दयनीय भाि से दे खने लगी। ररतू को उसका आशय समझते दे र
न लगी। उसने तु रंत ही ले डी कशपाही ि नसग को बाहर जाने का इशारा ककया। नसग ने
बाहर जाते हुए इतना ही कहा कक पे शेन्ट को ककसी बात के कलए ज्यादा मजबू र मत
कीकजएगा क्ोंकक इससे उसके कदलो कदमाग़ पर बु रा असर पड सकता है। नसग तथा
ले डी कशपाही के बाहर जाने के बाद ररतू ने पलट कर किधी की तरि दे खा।

"दे खो किधी, अब इस कमरे में हम दोनो के कसिा दू सरा कोई नही ं है।" ररतू ने प्यार
भरे लहजे से कहा__"अब तु म मु झे यानी अपनी दोस्त को बता सकती हो कक ये सब
तु म्हारे साथ कब और ककसने ककया है?"

"क..क कल मैं अपने एक दोस्त की बथग डे पाटी में गई थी।" किधी ने मानो कहना

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शु रू ककया, उसकी आिा़ि में लडखडाहट थी__"िहाॅ पर हमारे काॅले ज की कुछ
और लडककयाॅ थी जो हमारे ही ग्रुप की िैण्ड् स थी और साथ में कुछ लडके भी।
पाटी में सब एं ज्वाय कर रहे थे । मेरी दोस्त पररकध ने मनोरं जन का सारा एरे न्जमेन्ट
ककया हुआ था। कजसमें कबयर और शराब भी थी। दोस्त के ़िोर दे ने पर मैंने थोडा
बहुत कबयर कपया था। ले ककन मुझे याद है कक उस कबयर से मैने अपना होश नही ं
खोया था। हम सब डान्स कर रहे थे , तभी मेरी एक िैण्ड ने मेरे हाॅथ में काॅच का
प्याला पकडाया और मस्ती के ही मूड में मु झे पीने का इशारा ककया। मैंने भी मु स्कुरा
कर उसके कदये हुए प्याले को अपने मु ह से लगा कलया और उसे धीरे धीरे करके पीने
लगी। ककन्तु इस बार इसका टे स्ट पहले िाले से अलग था। किर भी मैंने उसे पी
कलया। कुछ ही दे र बाद मेरा सर भारी होने लगा। िहाॅ की हर ची़ि मुझे धुंधली सी
कदखने लगी थी। उसके बाद मु झे नही ं पता कक ककसने मेरे साथ क्ा ककया? हाॅ
बे होशी में मुझे असह पीडा का एहसास ़िरूर हो रहा था, इसके कसिा कुछ नही ं।
जब मु झे होश आया तो मैंने अपने आपको यहाॅ हाल्किटल में पाया। मु झे नही ं पता
कक यहाॅ पर मैं कैसे आई? ले ककन इतना जान चु की हूॅ कक मेरा सबकुछ लु ट चु का
है, मैं ककसी को मु ह कदखाने के काकबल नही ं रही।"

इतना सब कहने के साथ ही किधी बे ड पर पडे ही ़िार ़िार रोने लगी थी। उसकी
आॅखों से आॅसू थमने का नाम नही ं ले रहे थे । इं िेक्टर ररतू उसकी बात सु नकर
पहले तो हैरान रही किर उसने उसे बडी मुल्किल से शान्त कराया।

"तु म्हें यहाॅ पर मैं ले कर आई थी किधी।" ररतू ने गंभीरता से कहा__"पु कलस थाने में
ककसी अं जान ब्यल्कक्त ने िोन करके हमें सू कचत कर बताया कक शहर से बाहर मेन
सडक के नीचे कुछ दू री पर एक लडकी बहुत ही गंभीर हालत में पडी है। िो जगह
हल्दीपु र की अं कतम सीमा के पास थी, जहाॅ से हम तु म्हें उठा कर यहाॅ हाल्किटल
लाए थे ।"

"ये आपने अच्छा नही ं ककया।" किधी ने कससकते हुए कहा__"उस हालत में मुझे िही ं
पर मर जाने कदया होता। कम से कम उस सू रत में मु झे ककसी के सामने अपना मु ह
तो न कदखाना पडता। मेरे घर िाले , मेरे माता कपता को मुझे दे ख कर शमग से अपना
चे हरा तो न झुका ले ना पडता।"

"दे खो किधी।" ररतू ने समझाने िाले भाि से कहा__"इस सबमें तु म्हारी कोई ग़लती
नही ं है और ये बात तु म्हारे पै रेन्ट् स भी जानते और समझते हैं। ग़लती कजनकी है उन्हें
इस सबकी शख्त से शख्त स़िा कमले गी। तु म्हारे साथ ये अत्याचार करने िालों को मैं
कानू न की सलाखों के पीछे जल्द ही पहुचाऊगी।"

268
किधी कुछ न बोली। िह बस अपनी आॅखों में नीर भरे दे खती रही ररतू को। जबकक,,

"अच्छा ये बताओ कक तु म्हारी दोस्त की पाटी में उस िक्त कौन कौन मौजूद था
कजनके बारे में तु म जानती हो?" ररतू ने पू छा__"साथ ही ये भी बताओ कक तु म्हें उनमें
से ककन पर ये शक़ है कक उन्होने तु म्हारे साथ ऐसा ककया हो सकता है? तु म बे कझझक
होकर मुझे उन सबका नाम पता बताओ।"

किधी कुछ दे र सोचती रही किर उसने पाटी में मौजूद कुछ लडके लडककयों के बारे में
ररतू को बता कदया। ररतू ने एक काग़ज पर उन सबका नाम पता कलख कलया। उसके
बाद कुछ और पू छताछ करने के बाद ररतू कमरे से बाहर आ गई।

ररतू को डाक्टर ने बताया कक िो लडकी दो महीने की प्रै ग्नेन्ट है । ये सु न कर ररतू बु री


तरह चौंकी थी। हलाॅकक कमस्टर चौहान ने डाक्टर को मना ककया था कक ये बात िह
ककसी को न बताए। ककन्तु डाक्टर ने अपना ि़िग समझ कर पु कलस के रूप में ररतू
को बता कदया था।

ररतू ने कमस्टर चौहान को एक बार थाने में आने का कह कर हाल्किटल से कनकल गई


थी। उसके मल्कस्तष्क में एक ही खयाल उछल कूद मचा रहा था कक 'क्ा ये िही किधी
है कजसे किराज प्यार करता था'???? ररतू ने कभी किधी को दे खा नही ं था, और नाही
उसके बारे में उसके भाई किराज ने कभी बताया था। उसे तो बस कही ं से ये पता
चला था कक उसका भाई किराज ककसी किधी नाम की लडकी से प्यार करता है। इस
कलए आज जब उसने उस लडकी के मुख से उसका नाम किधी सु ना तो उसके कदमाग़
में तु रंत ही उस किधी का खयाल आ गया कजस किधी नाम की लडकी से उसका भाई
प्यार करता है। ररतु के मन में पहले ये किचार ़िरूर आया कक िह एक बार उससे ये
जानने की कोकशश करे कक क्ा िह किराज को जानती है? ले ककन किर उसने तु रंत
ही अपने मन में आए इस किचार के तहत उससे इस बारे में पू छने का खयाल कनकाल
कदया। उसे लगा ये िक्त अभी इसके कलए सही नही ं है।
-------------------

रात में कडनर करने के बाद एक बार किर से सब डर ाइं ग रूम में एककत्रत हुए। अभय
ककसी सोच में डूबा हुआ था। गौरी ने उसे सोच में डूबा दे ख कर कहा__"करुर्ा और
बच्चे कैसे हैं अभय?"

"आं ..हाॅ सब ठीक हैं भाभी।" अभय ने चौंकते हुए कहा था।
"शगुन कैसा है?" गौरी ने पू छा__"क्ा अभी भी िै सी ही शरारतें करता है िह?
करुर्ा तो उसकी शरारतों से परे शान हो जाती होगी न? और...और मेरी बे टी कदव्या
कैसी है...उसकी पढाई कैसी चल रही है?"

269
"सब अच्छे हैं भाभी।" अभय ने ऩिरें चु राते हुए कहा__"कदव्या की पढाई भी अच्छी
चल रही है।"
"क्ा बात है?" गौरी उसे ऩिरें चु राते दे ख चौंकी__"तु म मुझसे क्ा छु पा रहे हो
अभय? घर में सब ठीक तो हैं ना? मु झे बताओ अभय....मेरा कदल घबराने लगा है।"

"कोई ठीक नही ं है भाभी कोई भी।" अभय के अं दर से मानो गुबार िट


पडा__"हिे ली में कोई भी ठीक नही ं हैं। करुर्ा और बच्चों को मैं करुर्ा के मायके
भे ज कर ही यहाॅ आया हूॅ। इस समय घर के हालात बहुत खराब हैं भाभी। ककसी
पर भरोसा करने लायक नही ं रहा अब।"

"आकखर हुआ क्ा है अभय?" गौरी के चे हरे पर कचन्ता के भाि उभर आए__"साि
साि बताते क्ों नही ं?"

सामने सोिे पर बै ठे किराज और कनकध भी परे शान हो उठे थे । कदल ककसी अं जानी
आशं काओं से धडकने लगा था उनका।

"क्ा बताऊ भाभी?" अभय ने असहज भाि से कहा__"मु झे तो बताने में भी आपसे
शरम आती है।"
"क्ा मतलब?" गौरी ही नही ं बल्कि अभय की इस बात से किराज और कनकध भी बु री
तरह चौंके थे ।

"एक कदन की बात है।" किर अभय कहता चला गया। उसने िो सारी बातें बताई जो
कशिा ने ककया था। उसने बताया कक कैसे कशिा उसके न रहने पर उसके घर आया
था और अपनी चाची को बाथरूम में नहाते दे खने की कोकशश कर रहा था। इस
सबके बाद कैसे करुर्ा ने आत्म हत्या करने की कोकशश की थी। अभय ये सब बताए
जा रहा था और बाॅकी सब आश्चयग से मुह िाडे सु नते जा रहे थे ।

"हे भगिान।" गौरी ने रोते हुए कहा__"ये सब क्ा हो गया? मेरी िूल सी बहन को
भी नही ं बक्शा उस नासपीटे ने ।"
"ये तो कुछ भी नही ं है भाभी।" अभय ने भारी स्वर में कहा__"उस हराम़िादे ने तो
आपकी बे टी कदव्या पर भी अपनी गंदी ऩिरें डालने में कोई सं कोच नही ं ककया।"

"क्ा?????" गौरी उछल पडी।


"हाॅ भाभी।" अभय ने कहा__"ये बात खु द कदव्या ने मु झे बताई थी।"
"जैसे माॅ बाप हैं िै सा ही तो बे टा होगा।" गौरी ने कहा__"माॅ बाप खु द ही अपने
बे टे को इस राह पर चलने की शह दे रहे हैं अभय।"

270
"क्ा मतलब?" इस बार बु री तरह उछलने की बारी अभय की थी, बोला__"ये आप
क्ा कह रही हैं?"
"यही सच है अभय।" गौरी ने गंभीरता से कहा__"आपके बडे भाई साहब और भाभी
बहुत ही शाकतर और घकटया ककस्म के हैं। तु म उनके बारे में कुछ नही ं जानते । ले ककन
मैं और माॅ बाबू जी उनके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। तु म्हें तो िही बताया और
कदखाया गया जो उन्होंने गढ कर तु म्हें कदखाना था। ताकक तु म उनके ल्कखलाि न जा
सको।"

"उस हादसे के बाद से मुझे भी ऐसा ही कुछ लगने लगा है भाभी।" अभय ने बु झे स्वर
में कहा__"उस हादसे ने मेरी आॅखें खोल दी। तथा मु झे इस सबके बारे में सोचने पर
मजबू र कर कदया। इसी कलए तो मैं सारी बातों को जानने के कलए आप सबके पास
आया हूॅ। मुझे दु ख है कक मैंने सारी बातें पहले ही आप सबसे जानने की कोकशश
क्ों नही ं की? अगर ये सब मैने पहले ही पता कर कलया होता तो आप सबको इतनी
तक़लीफ़ें नही ं सहनी पडती। मैं आप सबके कलए बडे भइया भाभी से लडता और
उन्हें उनके इस कृत्य की स़िा भी दे ता।"

"तु म उनका कुछ भी न कर पाते अभय।" गौरी ने कहा__"बल्कि अगर तु म उनके


रास्ते का काॅटा बनने की कोकशश करते तो िो तु म्हें भी उसी तरह अपने रास्ते से
हमेशा हमेशा के कलए हटा दे ते जैसे उन्होंने राज के कपता को हटा कदया था।"

"क्ा???????" अभय बु री तरह उछला था, बोला__"मझले भइया को.....???"


"हाॅ अभय।" गौरी की आॅखें छलक पडी__"तु म सब यही समझते हो कक तु म्हारे
मझले भइया की मौत खे तों में सपग के काटने से हुई थी। ये सच है ले ककन ये सब सोच
समझ कर ककया गया था। िरना ये बताओ कक खे त पर बने मकान के कमरे में कोई
सपग कहाॅ से आ जाता और उन्हें डस कर मौत दे दे ता? सच तो ये है कक कमरे में ले टे
तु म्हारे भइया को सपग से कटाया गया और जब िो मृ त्यु को प्राप्त हो गए तो उन्हें
कमरे से उठा कर खे तों के बीच उस जगह डाल कदया गया कजस जगह खे त में पानी
लगाया जा रहा था। ये सब इस कलए ककया गया ताकक सबको यही लगे कक खे तों में
पानी लगाते समय ही तु म्हारे भइया को ककसी ़िहरीले सपग ने काटा और िही ं पर
उनकी मृ त्यु हो गई।"

"हे भगिान।" अभय अपने दोनो हाथों को कसर पर रख कर रो पडा__"मेरे दे िता जैसे
भाई को इन अधकमगयों ने इस तरह मार कदया था। नही ं छोंडूॅगा....क़िंदा नही ं
छोडूॅगा उन लोगों को मैं।"

271
"नही ं अभय।" गौरी ने कहा__"उन्हें उनके कुकमों की स़िा ़िरूर कमले गी।"
"पर ये सब आपको कैसे पता भाभी कक मझले भइया को इन लोगों ने ही सपग से
कटिा कर मारा था?" अभय ने पू छा__"और िो सब भी बताइए भाभी जो इन लोगों
ने आपके साथ ककया है? मैं जानना चाहता हूॅ कक इन लोगों ने मेरे दे िी दे िता जैसे
भइया भाभी पर क्ा क्ा अनाचार ककये हैं? मैं जानना चाहता हूॅ कक शे र की खाल
ओढे इन भे कडयों का सच क्ा है?"

"मैं जानती हूॅ कक तु म जाने बग़ैर रहोगे नही ं अभय।" गौरी ने गहरी साॅस
ली__"और तु म्हें जानना भी चाकहए। आकखर हक़ है तु म्हारा।"
"तो किर बताइए भाभी।" अभय ने उत्सुकता से कहा__"मु झे इन लोगों का कघनौना
सच सु नना है।"

अभय की बात सु न कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली। उसके चे हरे पर अनायास ही


ऐसे भाि उभर आए थे जैसे अपने आपको इस पररल्कथथकत के कलए तै यार कर रही हो।
--------------------

प्रकतमा हिे ली में ऊपरी कहस्से पर बने उस कमरे में पहुॅची कजस कमरे के बे ड पर
इस िक्त नै ना औंधी पडी कससककयाॅ ले ले कर रोये जा रही थी। प्रकतमा उसे इस
तरह रोते दे ख उसके पास पहुॅची और बे ड के एक साइड बै ठ कर उसे उसके कंधों
से पकड अपनी तरि खी ंच कर पलटाया। नै ना ने पलटने के बाद जैसे ही अपनी
भाभी को दे खा तो झटके से उठ कर उससे कलपट कर रोने लगी। प्रकतमा ने ककसी
तरह उसे चु प कराया।

"शान्त हो जाओ नै ना।" प्रकतमा ने गंभीरता से कहा__"और मु झे बताओ कक आकखर


ऐसा क्ा हुआ है कजसकी िजह से तु मने दामाद जी को तलाक दे कदया है? दे खो पकत
पत्नी के बीच थोडी बहुत अनबन तो होती ही रहती है। इस कलए इसमें तलाक दे दे ना
कोई समझदारी नही ं है। बल्कि हर बात को तसल्ली से और समझदारी से सु लझाना
चाकहए।"

"भाभी इसमे मेरी कही ं भी कोई ग़लती नही ं है ।" नै ना ने दु खी भाि से कहा__"मैं तो
हमेशा ही आकदत्य को कदलो जान से प्यार करती रही थी। सब कुछ ठीक ठाक ही था
ले ककन कपछले छः महीने से हमारे बीच सं बंध ठीक नही ं थे । इसकी िजह ये थी
आकदत्य ककसी दू सरी लडकी से सं बंध रखने लगे थे । जब मुझे इस बात का पता चला
और मैंने उनसे इस बारे में बात की तो िो मु झ पर भडक गए। कहने लगे कक मैं
बाॅझ हूॅ इस कलए अब िो मुझसे कोई मतलब नही ं रखना चाहते हैं। मैने उनसे
ह़िारो बार कहा कक अगर मैं बाॅझ हूॅ तो मु झे एक बार डाक्टर को कदखा दीकजए।

272
पर िो मेरी सु नने को तै यार ही नही ं थे । तब मै ने खु द एक कदन डाक्टर से चे क अप
करिाया। बाद में डाक्टर ने कहा कक मैं कबलकुल ठीक हूॅ यानी बाॅझ नही ं हूॅ। मैंने
डाक्टर की िो ररपोटग लाकर उन्हें कदखाया और कहा कक मैं बाॅझ नही ं हूॅ। बल्कि
बच्चे पै दा कर सकती हूॅ। इस कलए एक बार आप भी अपना चे क अप करिा
लीकजए। मेरी इस बात से िो गु स्सा हो गए और मुझे गाकलयाॅ दे ने लगे। कहने लगे
कक तू क्ा कहना चाहती है कक मैं ही नामदग हूॅ? बस भाभी इसके बाद तो कपछले छः
महीने से यही झगडा चलता रहा हमारे बीच। इस सबका पता जब मेरे सास ससु र को
चला तो िो भी अपने बे टे के पक्ष में ही बोलने लगे और मु झे उल्टा सीधा बोलने लगे।
अब आप ही बताइए भाभी मैं क्ा करती? ऐसे पकत और ससु राल िालों के पास मैं
कैसे रह सकती थी? इस कलए जब मु झमें ़िु ल् सहने की सहन शल्कक्त न रही तो तं ग
आकर एक कदन मैने उन्हें तलाक दे कदया।"

नै ना की सारी बातें सु नने के बाद प्रकतमा भौचक्की सी उसे दे खती रह गई। कािी दे र
तक कोई कुछ न बोला।

"ये तो सच में बहुत ही गंभीर बात हो गई नै ना।" किर प्रकतमा ने गहरी साॅस ले कर
कहा__"तो क्ा आकदत्य ने तलाक के पे पसग पर अपने साइन कर कदये?"

"पहले तो नही ं कर रहा था।" नै ना ने अधीरता से कहा__"किर जब मैंने ये कहा कक


मेरे भइया भाभी खु द भी एक िकील हैं और िो जब आपको कोटग में घसीट कर ले
जाएॅगे तब पता चले गा उन्हें । कोटग में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊगी कक
आकदत्य कसं ह नामदग है और बच्चा पै दा नही ं कर सकता तब तु म्हारी इज्जत दो कौडी
की भी नही ं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने किर तलाक के पे पसग
पर अपने साइन ककये थे ।"

"ले ककन मुझे ये समझ में नही ं आ रहा कक तु म्हें इस बात का पता पहले क्ों नही ं चला
कक आकदत्य नामदग है?" प्रकतमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्ों हुआ?
क्ा आकदत्य का पे कनस बहुत छोटा है या किर उसके पे कनस में इरे क्शन नही ं होता?
आकखर प्राब्लेम क्ा है उसमें?"

"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नै ना ने कसर झुकाते हुए कहा__"ले ककन मुझे लगता है
कक उसके िमग में कमी है। कजसकी िजह से बच्चा नही ं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा
कक एक बार िो डाक्टर से चे क अप करिा लें ले ककन िो इस बात को मानने के कलए
तै यार ही नही ं हैं।"

"ओह, चलो कोई बात नही ं।" प्रकतमा ने उसके चे हरे को सहलाते हुए कहा__"अब तु म

273
िेश हो जाओ तब तक मैं तु म्हारे कलए गरमा गरम खाना तै यार कर दे ती हूॅ।"

नै ना ने कसर को कहला कर हामी भरी। जबकक प्रकतमा उठ कर कमरे से बाहर कनकल


गई। बाहर आते ही िह चौंकी क्ोंकक अजय कसं ह दरिाजे की बाहरी साइड दीिार से
कचपका हुआ खडा था। प्रकतमा को दे ख कर िह अजीब ढं ग से मुस्कुराया और किर
प्रकतमा के साथ ही नीचे चला गया।

सदमा तो है मुझे भी कक तु झसे जुदा हूॅ मैं,,,

सदमा तो है मु झे भी वक तुझसे जु दा हूूँ मैं


ले वकन ये सोचता हूूँ वक अब तेरा क्या हूूँ मैं

वबखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा िज़ू द


बे कार महवफलोों में तुझे ढ़ू ों ढता हूूँ मैं

मैं खुदकशी के जु मफ का करता हूूँ ऐतराफ़


अपने बदन की कब्र में कबसे गडा हूूँ मैं

वकस-वकसका नाम लाऊूँ जबान पर की ते रे साथ


हर रोज एक शख्स नया दे खता हूूँ मैं

क्या जाने वकस अदा से वलया त़ूने मे रा नाम


दु वनया समझ रही है के सच मु च तेरा हूूँ मैं

पहुूँ चा जो तेरे दर पे महस़ूस ये हुआ


लम्बी सी एक कतार मे जै से खडा हूूँ मैं

ले मे रे तजु बों से सबक ऐ मे रे रकीब


दो चार साल उम्र में तुझसे बडा हूूँ मैं

जागा हुआ जमीर िो आईना है ‘क़तील’


सोने से पहले रोज वजसे दे खता हूूँ मैं

274
अपडे ट..........《 28 》

अब तक,,,,,,,

"पहले तो नही ं कर रहा था।" नै ना ने अधीरता से कहा__"किर जब मैंने ये कहा कक


मेरे भइया भाभी खु द भी एक िकील हैं और िो जब आपको कोटग में घसीट कर ले
जाएॅगे तब पता चले गा उन्हें । कोटग में सबके सामने मैं चीख चीख कर बताऊगी कक
आकदत्य कसं ह नामदग है और बच्चा पै दा नही ं कर सकता तब तु म्हारी इज्जत दो कौडी
की भी नही ं रह जाएगी। बस मेरे इस तरह धमकाने से उसने किर तलाक के पे पसग
पर अपने साइन ककये थे ।"

"ले ककन मुझे ये समझ में नही ं आ रहा कक तु म्हें इस बात का पता पहले क्ों नही ं चला
कक आकदत्य नामदग है?" प्रकतमा ने उलझन में कहा__"बल्कि ये सब अब क्ों हुआ?
क्ा आकदत्य का पे कनस बहुत छोटा है या किर उसके पे कनस में इरे क्शन नही ं होता?
आकखर प्राब्लेम क्ा है उसमें?"

"और सबकुछ ठीक है भाभी।" नै ना ने कसर झुकाते हुए कहा__"ले ककन मुझे लगता है
कक उसके िमग में कमी है। कजसकी िजह से बच्चा नही ं हो पा रहा है। मैंने बहुत कहा
कक एक बार िो डाक्टर से चे क अप करिा लें ले ककन िो इस बात को मानने के कलए
तै यार ही नही ं हैं।"

"ओह, चलो कोई बात नही ं।" प्रकतमा ने उसके चे हरे को सहलाते हुए कहा__"अब तु म
िेश हो जाओ तब तक मैं तु म्हारे कलए गरमा गरम खाना तै यार कर दे ती हूॅ।"

नै ना ने कसर को कहला कर हामी भरी। जबकक प्रकतमा उठ कर कमरे से बाहर कनकल


गई। बाहर आते ही िह चौंकी क्ोंकक अजय कसं ह दरिाजे की बाहरी साइड दीिार से
कचपका हुआ खडा था। प्रकतमा को दे ख कर िह अजीब ढं ग से मुस्कुराया और किर
प्रकतमा के साथ ही नीचे चला गया।
-------------------

अब आगे,,,,,,,

गौरी को एक दम से चु प और कुछ सोचते हुए दे ख अभय कसं ह से रहा न गया। उसके


चे हरे पर बे चैनी और उत्सुकता प्रकतपल बढती ही चली जा रही।

275
"आप चु प क्ों हो गईं भाभी?" अभय ने अधीरता से कहा__"बताइये न, मेरे मन में िो
सब कुछ जानने की तीब्र उत्सुकता जाग उठी है। मैं जल्द से जल्द सब कुछ आपसे
जानना चाहता हूॅ।"

अभय की उत्सुकता और बे चैनी दे ख गौरी के चे हरे पर अजीब से भाि उभरे तथा


गुलाब की कोमल कोमल पं खुकडयों जैसे होठों पर िीकी सी मु स्कान उभर आई।
उसने अभय की तरि दे खने के बाद अपने सामने कही ं शू न्य में दे खने लगी।

"तु म मेरे बच्चों की तरह ही हो।" गौरी शू न्य में घूरते हुए ही बोली__"और कोई भी
माॅ अपने बच्चों के सामने या किर खु द बच्चों से ऐसी बातें नही ं कर सकती कजन्हें
कहने के कलए ररश्े और मयागदा इसकी इ़िा़ित ही न दे । ले ककन किर भी कहूॅगी
अभय। िक्त और हालात हमारे सामने कभी कभी ऐसा रूप ले कर आ जाते हैं कक
हम िक़त बे बस से हो जाते हैं। हमें िो सब कुछ करना पड जाता है कजसे करने के
बारे में हम कभी कल्पना भी नही ं करते । खै र, अब जो कुछ भी मैं कहने जा रही हूॅ
उसमें कई सारी बातें ऐसी भी हैं कजन्हें मैं िष्ट रूप से तु म लोगों के सामने नही ं कह
सकती, ककन्तु हाॅ तु म लोग उन बातों का अथग ़िरूर समझ सकते हो।"

इतना कह कर गौरी ने एक गहरी साॅस ली और किर से उसी तरह शू न्य में घूरते हुए
कहने लगी__"ये सब तब से शु रू हुआ था जब मैं ब्याह कर अपने पकत यानी किजय
कसं ह जी के घर आई थी। उस समय हमारा घर घर जैसा ही था आज की तरह हिे ली
में तब्दील नही ं था। मैं एक ग़रीब घर की लडकी थी। मेरे माॅ बाप ग़रीब थे , खे ती
ककसानी करते थे । अपने माता कपता की मैं अकेली ही सं तान थी। मेरा ना तो कोई
भाई था और ना ही कोई बहन। ईश्वर ने मेरे कसिा मेरे माॅ बाप को दू सरी कोई
औलाद दी ही नही ं थी। इसके बाद भी मेरे माॅ बाप को भगिान से कोई कशकायत
नही ं थी। िो मु झे कदलो जान से प्यार ि स्ने ह करते थे । जब मैं बडी हुई तो सभी बच्चों
की तरह मु झे भी मेरे माॅ बाप ने गाॅि के स्कूल में पढने के कलए मेरा दाल्कखला करा
कदया। मैं खु शी खु शी स्कूल जाने लगी थी। ककन्तु एक हप्ते बाद ही मेरा स्कूल में
पढना कलखना बं द हो गया। दरअसल मैं छोटी सी बच्ची ही तो थी। एक कदन मास्टर
जी ने मु झसे क ख ग घ सु नाने को कहा तो मैं सु नाने लगी। ले ककन मुझे आता नही ं था
इस कलए जैसे आता िै से ही सु नाने लगी तो मास्टर जी मु झे ़िोर से डाॅट कदया।
उनकी डाॅट से मैं डर कर रोने लगी। मैं अपने माॅ बाप इकलौती लाडली बे टी थी।
मेरे माॅ बाप ने कभी मु झे डाॅटा नही ं था शायद यही िजह थी कक जब मास्टर जी ने
मुझे ़िोर से डाॅटा तो मुझे बे हद दु ख ि अपमान सा महसू स हुआ और मैं रोने लगी
थी। मु झे रोते दे ख मास्टर जी ने मु झे चु प कराने के कलए किर से ़िोर से डाॅटा।
उनके द्वारा किर से डाॅटे जाने से मैं और भी ते ़ि ते ़ि रोने लगी थी। मास्टर जी ने
दे खा कक मैं चु प नही ं हो रही हूॅ तो उन्होंने मु झ पर छडी उठा दी। दो तीन छडी लगते

276
ही मेरा रोना जैसे चीखों में बदल गया। पू रे स्कूल में मेरा रोना कचल्लाना गू ॅजने लगा।
मेरे इस तरह रोने और कचल्लाने से मास्टर जी बहुत ज्यादा गु स्से में आ गए। उसी
िक्त एक दू सरे मास्टर जी मेरा रोना और कचल्लाना सु न कर आ गए। दू सरे मास्टर
जी को दे ख कर पहले िाले मास्टर जी रुक गए और इस बीच मैं रोते हुए ही स्कूल से
भाग कर अपने घर आ गई। घर में उस िक्त मेरे कपता जी भोजन कर रहे थे । मु झे
इस तरह रोता कबलखता दे ख िो चौंके। मैं रोते हुए आई और अपने कपता जी से कलपट
गई। मेरे कपता मु झसे पू छने लगे कक ककसने मु झे रुलाया है तो मैंने रोते रोते सब कुछ
बता कदया। सारी बात सु न कर मेरे कपता जी बडा गु स्सा हुए ले ककन माॅ के समझाने
पर शान्त हो गए। ले ककन इस सबसे हुआ ये कक मेरे कपता जी ने दू सरे कदन से मुझे
स्कूल नही ं भे जा। उन्होंने साि कह कदया था कक कजस स्कूल में मेरी बे टी मार कर
रुलाया गया है उस स्कूल में मेरी बे टी अब कभी नही ं पढे गी। बस इसके बाद मैं घर में
ही पलती बढती रही। उस समय मेरी उमर पन्द्रह साल थी जब एक कदन बाबू
जी(गजेन्द्र कसं ह बघेल) हमारे घर आए। बाबू जी को आस पास के सभी गाॅि िाले
जानते थे । उन्हें कही ं से पता चला था कक इस गाॅि में हेमराज कसं ह(कपता जी) की
बे टी है जो बहुत ही सुं दर ि सु शील है । बाबू जी अपने मझले बे टे किजय कसं ह जी के
कलए लडकी दे खने आए थे । मेरे कपता जी ने बाबू जी को बडे आदर ि सम्मान के साथ
बै ठाया। घर में जो भी रुखे सू खे जल पान की ब्यिथथा उन्होंने िो सब बाबू जी के
कलए ककया। बाबू जी ने मेरे कपता जी का मान रखने के कलए थोडा बहुत जल पान
ककया उसके बाद उन्होने अपनी बात रखी। मे रे कपता ये जान कर बडा खु श हुए कक
ठाकुर साहब अपने बे टे के कलए उनकी लडकी का हाॅथ खु द ही माॅगने आए हैं ।
भला कौन बाप नही ं चाहेगा कक उसकी बे टी इतने बडे घर में न ब्याही जाए? और
किर ररश्ा जब खु द ही चलकर उनके द्वार पर आया था तो इं कार का सिाल ही नही ं
था। ककन्तु कपता जी की आकथग क ल्कथथत अच्छी नही ं थी इस कलए ले ने दे ने िाली बात से
घबरा रहे थे । बाबू जी जानते थे इस बात को इस कलए उन्होंने साि कह कदया था कक
हेमराज हमें कसिग तु म्हारी लडकी चाकहए कजसे हम अपनी बे टी और बहू बना सकें।
बस किर क्ा था। सब कुछ तय हो गया और एक अच्छे ि शु भ मु हूतग को मेरी शादी
हो गई। मु झे नही ं पता था कक मैं ककस तरह के घर में और ककस तरह के लोगों के
बीच आ गई हूॅ? माॅ बाप ने बस यही सीख दी थी कक अपने पकत को परमेश्वर
मानना। अपने सास ससु र की मन से से िा करना। बडों का आदर ि सम्मान करना
तथा छोटों को प्यार ि स्ने ह दे ना।

एक लडकी का नसीब ककतना अजीब होता है कक बचपन से जिानी तक अपने माॅ


बाप के पास हसी खु शी से रहती है और किर शादी हो जाने के बाद िह एक नये घर
में अपने पकत के साथ एक नया सं सारबनाने के कलए चली जाती है। अपने माॅ बाप
के घर में उनका कनश्छल प्यार और स्ने ह पा कर पली बढी िो लडकी एक कदन उन
सबसे दू र चली जाती है।

277
शादी के बाद जब मैं इस घर में आई तो मेरे मन में डर ि भय के कसिा कुछ न था।
अपने माॅ बाप से यूॅ अचानक ही दू र हो जाने से हर पल बस रोना ही आ रहा था।
पर ये सब तो हर लडकी की कनयकत होती है। हर लडकी के साथ एक कदन यही होता
है। खै र, रात हुई तो एक ऐसे इं सान से कमलना हुआ जो ककसी िररश्े से कम न था।
उन्होंने मु झे प्यार कदया इज्जत दी और इस क़ाकबल बनाया कक जब सु बह हुई तो मु झे
लगा जैसे ये घर शकदयों से मेरा ही था। मुझे लग ही नही ं रहा था कक मैं ककसी दू सरे के
घर में ककसी अजनबी के पास आ गई हूॅ। राज के कपता ऐसे थे कक उन्होने मु झे इतना
बदल कदया था। मुझे उनसे प्रे म हो गया और मैं जानती थी कक उन्हें भी मुझसे उतना
ही प्रे म हो गया था।

मेरी दोनो ननदें यानी सौम्या और नै ना कदन भर मेरे पास ही जमी रहती थी। उन्होने
ये एहसास ही नही ं होने कदया कक िो दोनो मेरे कलए अजनबी हैं। माॅ बाबू बडा खु श
थे । आकखर उनकी पसं द की लडकी उनकी बहू बन कर उस घर में आई थी। ऐसे ही
एक हप्ता गु़िर गया। इन एक हप्तों में मेरे मन से पू री तरह डर ि कझझक जा चु की
थी। मु झे घर के सभी लोग अच्छे लगने लगे थे । किजय जी से इतना प्रे म हो गया था कक
उनके कबना एक पल भी नही ं रहा जाता था। िो कदन भर खे तों पर काम में ब्यस्त रहते
और शाम को ही घर आते । जब िो कमरे में मे रे पास आते तो मुझे रूठी हुई पाते ।
किर िो मु झे मनाते । हर कदन मेरे कलए छु पा कर िूलों का गजरा खु द बना कर लाते
और मेरे बालों में खु द ही लगाते । आईने के सामने ले जाकर मुझे खडा कर दे ते और
मेरे पीछे खडे होकर तथा आईने में दे खते हुए मुझसे कहते "मैं सारे सं सार के सामने
चीख चीख कर ये कह सकता हूॅ कक इस सं सार में तु मसे खू बसू रत दू सरा कोई नही ं।
मैं तो बे कार ि कनकम्मा था जाने ककन पु न्य प्रतापों का ये िल था जो तु म मुझे कमली
हो" उनकी इन बातों से मैं गदगद हो जाती। मु झे ध्यान ही न रहता कक मैं उनसे रूठी
हुई थी। सब कुछ जैसे भू ल जाती मैं।

इस बीच मैंने महसू स ककया था कक बडे भइया और बडी दीदी इन दोनो का ब्यौहार
सबसे अलग था। बडे भइया किजय जी से ज्यादा बात नही ं करते थे । उसी तरह
प्रकतमा दीदी मुझसे ज्यादा बात नही ं करती थी। हलाॅकक िो उस समय शहर में ही
रहते थे । पर जब भी िो दोनो आते तो उनका ब्यौहार ऐसा ही होता हम दोनो से ।

ऐसे ही चलता रहा। हम सब खु श थे ककन्तु ये सच था कक बडे भइया और दीदी किजय


जी और मु झसे हमेशा से ही उखडे से रहते । मै ने अर्क्र दे खा था कक बडे भइया
ककसी न ककसी बात पर किजय जी को उल्टा सीधा बोलते रहते थे । ये अलग बात थी
कक किजय जी उनकी ककसी भी बात का बु रा नही ं मानते थे और ना ही पलट कर
कोई जिाब दे ते थे ।

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एक कदन की बात है मैं अपने कमरे में नहाने के बाद कपडे पहन रही थी, मु झे ऐसा
लगा जैसे कछप कर कोई मु झे कपडे पहनते हुए दे ख रहा है। मैंने पलट कर दे खा तो
कही ं कोई नही ं था। मैंने इसे अपना िहम समझ कर किर से कपडे पहनने लगी।
तभी कमरे के बाहर से मेरी बडी ननद सौम्या की आिा़ि आई। िो कह रही थी "बडे
भइया आप यहाॅ, भाभी के कमरे के दरिाजे के पास कछप कर क्ों खडे हैं?" सौम्या
की इस बात को सु न कर मैं सन्न रह गई। ये जान कर मेरे पै रों तले से ़िमीन कनकल
गई कक जेठ जी कछप कर मु झे कपडे पहनते हुए दे ख रहे थे । मुझे ध्यान ही नही ं था
कक मेरे कमरे का दरिाजा खु ला हुआ है। मेरी हालत ऐसी हो गई जैसे काटो तो एक
बू द भी खू न न कनकले । किर जब मु झे होश आया तो अनायास ही जाने ककस भािना
के तहत मु झे रोना आ गया। सौम्या जब मेरे कमरे में आई तो उसने मु झे रोता पाया।
िह मु झे रोते दे ख हैरान रह गई। उसे ककसी अकनष्ट की आशं का हुई। उसने तो दे खा
ही था कक उसका बडा भाई मेरे कमरे के बाहर दरिाजे के पास कछप कर खडा था।
उसे समझते दे र न लगी कक कुछ तो हुआ है। उसने तु रंत ही मु झे शान्त करने की
कोकशश की और पू छने लगी क्ा हुआ है? मैंने रोते हुए यही कहा कक मुझे तो कुछ
पता ही नही ं था कक कौन दरिाजे के पास कछपकर मुझे कपडे पहनते दे ख रहा है , िो
तो तब पता चला जब तु मने बाहर जेठ जी से िो सब कहा था। मेरी बातें सु न कर
सौम्या भी स्तब्ध रह गई। किर उसने कहा कक ये बात मैं ककसी से न कहूॅ क्ों कक
घर में हंगामा हो जाएगा। इस कलए इस बात को भू ल जाऊ ले ककन आइं दा से ये
खयाल ़िरूर रखू ॅ कक दरिाजा खु ला न रहे।

उस कदन के बाद जेठ जी का मु झे दे खने का ऩिररया बदल चु का था। िो ककसी न


ककसी बहाने मुझे दे ख ही ले ते। मैं पन्द्रह साल की नासमझ ही थी। मु झे कसर पर साडी
द्वारा घूॅघट करने का भू ल जाता था। जेठ जी मुझे दे खते और जब मेरी ऩिर उन पर
पडती तो िो बस मु स्कुरा दे ते। मुझे ये सब बडा अजीब लगता और मैं इस सबसे डर
भी जाती।

उधर किजय जी खे तों में कदन रात मे हनत करते और ज्यादा से ज्यादा मात्रा में िसल
उगाते । शहर में बें च कर जो भी मुनािा होता िो उस सारे पै सों को बाबू जी के हाॅथ
में पकडा दे ते। उन पर तो जैसे पागलपन सिार था खे तों में कदन रात मेहनत करने
का। उनकी मेहनत ि लगन से अच्छा खासा मुनािा भी होता। मैं अर्क्र उनके पास
खे तों में उन्हें खाना दे ने के बहाने चली जाती। मुझे उनके साथ रहना अच्छा लगता था
किर चाहे िो ककसी भी जगह हों। हम दोनो खे तों में नये नये पौधे लगाते और खू ब
सारी बातें करते ।

समय गु ़िरता रहा। समय के साथ साथ उनका स्वभाि जो पहले से ही बदला हुआ
था िो और ज्यादा बदल गया था। जे ठ जी जब भी बडी दीदी के साथ शहर से आते तो

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उनका बस एक ही काम होता था...मु झे ज्यादा से ज्यादा दे खना। घर में अगर कोई न
होता तो िो मु झसे बातें करने की कोकशश भी करते । ककन्तु मैं उनकी ककसी बात को
कोई जिाब न दे ती बल्कि अपने कमरे में आकर दरिाजा अं दर से लगा ले ती। जैसा
की गाॅिों में होता है कक जेठ ि ससु र के सामने घूॅघट करके ही जाना है और उनके
सामने कोई आिा़ि नही ं कनकालना है, बात करने की तो बात दू र। इस कलए जेठ जी
जब खु द ही मुझसे बातें करने और करिाने की कोकशश करते तो मैं डर जाती और
भाग कर अपने कमरे में जाकर अं दर से दरिाजा बं द कर ले ती। इतना तो मैं समझ
गई थी कक जेठ जी की नीयत मेरे प्रकत सही नही ं है। मगर ककसी से कह भी नही ं
सकती थी। मैं नही ं चाहती थी कक मेरी िजह से घर में कोई कलह शु रू हो जाए।

उधर किजय जी की मे हनत से घर में ढे र सारा पै सा आने लगा था। बाबू जी अपने इस
बे टे से बडा खु श थे । मु झसे भी खु श थे क्ोंकक मैं उनकी ऩिर में एक आदशग बहू थी।
एक बार जेठ जी किर आए शहर से । ककन्तु इस बार िो पै सों के कलए आए थे क्ोंकक
उन्हें शहर में खु द का कारोबार करना था। उन्होने बाबू जी से इस बारे में बात की
और उनसे पै से मागे। इस बाबू जी नारा़ि भी हुए। पै सों के बारे में उन्होने यही कहा
कक ये सब पै से किजय की मे हनत का नतीजा है इस कलए उससे पू छना पडे गा। बाबू
जी की इस बात ने जेठ जी के मन में किजय जी के कलए और भी ़िहर भर गया। मुझे
आज भी नही ं पता कक ऐसी क्ा िजह थी कजसकी िजह से जेठ जी के मन में अपने
इस भाई के कलए इतना ़िहर भरा हुआ था? जबकक सब जानते थे कक किजय जी
हमेशा उनका आदर ि सम्मान करते थे । उनकी ककसी भी बात का बु रा नही ं मानते
थे । खै र, पै सा ले कर जे ठ जी शहर चले गए। इस बार जब िो आए थे तो ककसी भी
कदन उन्होंने िो हरकतें नही ं की जो इसके पहले करते थे मुझे दे खने की। शहर में जेठ
जी ने खु द का कारोबार शु रू कर कलया। इधर किजय जी के ़िे हन में ये भू त सिार हो
गया था कक घर को तु डिा कर इसे नये कसरे से बनिा कर हिे ली का रूप कदया जाए।
उन्होने बाबू की सहमकत से हिे ली की बु कनयाद रखी। हिे ली को तै यार करने में भारी
पै सा खचग हुआ। यहाॅ तक की बाद में हिे ली का बाॅकी काम कजग ले कर करना
पडा। जेठ जी ने पै सा दे ने से इं कार कर कदया।

इस बीच बडी दीदी को एक बे टी हुई। इसका पता भी हम सबको बाद में चला था।
खै र, जब िो शहर से आए तो बाबू जी इस खबर से नारा़ि तो हुए ककन्तु किर हमेशा
की तरह ही चु प रह गए।

मैं इस बात से खु श थी कक जेठ जी अब चोरी कछपे मुझे दे खने िाली हरकतें करना बं द
कर कदये थे । इस बीच अभय ने भी अपनी पसं द की लडकी से शादी कर ली। बाबू जी
इस बात से नारा़ि हुए ले ककन कर भी क्ा सकते थे ? ले ककन करुर्ा का आचरर्

280
बहुत अच्छा था, िो पढी कलखी थी ले ककन उसमें सं स्कार भी थे । मैं उसे अपनी छोटी
बहन बना कर खु श थी। हम दोनों का आपस में बडा प्रे म था। कोई कह ही नही ं
सकता था कक िो मेरी दे िरानी है। अभय गु स्सैल स्वाभाि के ़िरूर थे ककन्तु उनके
अं दर अपने से बडों का आदर सम्मान करने की भािना थी। प्रे म के चक्कर में छोटी
ऊम्र ही उन्होने शादी कर ली थी। ले ककन बाबू जी शायद इस कलए चु प रह गए थे
क्ोंकक िो अपने पै रों पर खडे थे । गाॅि के ही सरकारी स्कूल में अध्यापक थे िो।

इधर हिे ली बन कर तै यार हो चु की थी। क़िग भी कािी हो गया था ले ककन किजय जी


के कलए तो जैसे ये क़िग कोई मायने ही नही ं रखता था। बाबू जी ने हिे ली के तै यार
होने पर बडे धूमधाम से गृ ह प्रिे श का उत्सि मनाया। शहर से बडे भइया और दीदी
भी आईं। हिे ली दे ख कर िो दोनो ही हैरान थे ककन्तु प्रत्यक्ष में हमेशा की तरह ही
ग़लकतयाॅ बता रहे थे । बाबू जी सब जानते भी थे और समझते भी थे ककन्तु हमेशा
चु प रहते ।

ऐसे ही चार साल गु़िर गए और मु झे एक बे टा हुआ। मेरे बे टे के जन्म के चार कदन


बाद बडे भइया और दीदी को किर से एक बे टी हुई। बाबू जी ने अपने पोते के जन्म
पर बडे धू मधाम से उत्सि मनाया। बडे भइया और दीदी इससे नारा़ि हुए। उनका
कहना था कक उनकी बे कटयों के जन्म उत्सि नही ं मनाया जबकक किजय के बे टे के
जन्म पर बडा उत्सि मना रहे हैं आप। उनकी इन बातों से बाबू जी का गुस्सा उस
कदन जैसे िट पडा था। उन्होंने गुस्से में बहुत कुछ सु ना कदया उन दोनो को। बात भी
सही थी। दरअसल िो दोनो खु द को हम सबसे अलग कर कलए थे । शहर में खु द का
कारोबार और बडा सा एक घर था उनके पास। शायद इसी का घमंड होने लगा था
उन्हें । िो सोचते थे कक कही ं हम लोग उनके कारोबार और शहर के मकान में कहस्सा
न मागने लगें इस कलए िो हमेशा हम सबसे कटे कटे से रहते । जबकक यहा हिे ली
और ़िमीन जायदाद में अपना हक़ समझते थे ।

गौरी कुछ पल के कलए रुकी और गहरी साॅसें ले ने लगी। सब लोग साॅस बाधे
उसकी बातें सु न रहे थे ।

"मैं जानती हूॅ अभय कक मैने अभी जो कुछ कहा उस सबको तु म जानते हो।" गौरी
ने कहा__"तु म सोच रहे होगे कक मैं ये सब तु म्हें क्ों बता रही हूॅ जबकक मु झे तो कसिग
िो सब बताना चाकहए जो इन लोगों ने मेरे और मेरे पकत के साथ ककया था। खै र, ये
सब बताने का मतलब यही था कक जो कुछ हुआ उसकी बु कनयाद उसकी शु रूआत
यही ं से हुई थी। ़िहर के बीज यही ं से बोना शु रू हुए थे ।

राज जब दो साल का हुआ तो मेरी बडी ननद सौम्या की शादी की बात चली। बाबू

281
जी ने बडे भइया को सं देश भे जिाया और कहा कक िो अपनी बहन की शादी के कलए
अपनी तरि से क्ा खचाग कर सकते हैं? बाबू जी बात से बडे भइया ने पै सा दे ने से
साि इं कार कर कदया था। उनका कहना था कक उनका कारोबार आजकल बहुत
घाटे में चल रहा है इस कलए िो पै से नही ं पाएॅगे। बाबू जी उनकी इस बात से बे हद
दु ख हुआ। बाबू जी के दु ख का जब किजय जी को पता चला तो िो खे तों से आकर
हिे ली में बाबू जी से कमले । उन्होने बाबू जी से कहा कक आप ककसी बात की किक्र न
करें , सौम्या की शादी बडे धूमधाम से ही होगी। बाबू जी जानते थे कक हिे ली बनाने में
जो कजाग हुआ था उसे किजय जी ने ककतनी मे हनत करके चु काया था। इसके बाद
कही ं किर से न क़िाग हो जाए। खै र, सौम्या की शादी हुई और िै से ही धू मधाम से हुई
जैसा कक किजय जी ने बाबू जी से कहा था। शहर से बडे भइया और दीदी भी थे , िो
दोनो हैरान थे ककन्तु सामने पर यही कहते किलते बाबू जी से कक इतना खचग करने
की क्ा ़िरूरत थी? इससे जो क़िग हुआ है उसे मेरे कसर पर मत मढ दीकजएगा। बाबू
जी इस बात से बे हद गुस्सा हुए। कहने लगे कक तु म तो िै से ही खु द को सबसे अलग
समझते हो, तु म्हें ककसी बात की कचन्ता करने की कोई ़िरूरत नही ं है। मेरे दो दो
सपू त अभी बाॅकी हैं जो मेरा हर तरह से साथ दें गे और दे भी रहे हैं। सौम्या की
शादी के तीसरे कदन बडे भइया ने बाबू जी से कहा कक अगर आप ये समझते हैं कक मैं
आप सबसे खु द को अलग समझता हूॅ तो आप मुझे सचमुच ही अलग कर दीकजए।
ये रोज रोज की बे ज्जती मुझसे नही ं सु नी जाती। बाबू जी ने कहा कक तु म तो अलग ही
हो अब ककस तरह अलग करें तु म्हें? तो बडे भइया ने कहा कक मेरे कहस्से में जो भी
आता हो उसे मु झे दे दीकजए। हिे ली में और ़िमीनों में जो भी मेरा कहस्सा हो। बाबू जी
उनकी इस बात पर गुस्सा हो गए। कहने लगे कक तु म्हारा हिे ली में तभी कहस्सा हो
सकता है जब तु म अपने कहस्से की कीमत दोगे । क्ोंकक हिे ली में तु मने अपनी तरि
से एक रुपया भी नही ं लगाया। हिे ली में जो भी रुपया पै सा लगा और जो भी क़िाग
हुआ उस सबको अकेले किजय ने चु कता ककया है। हाॅ अगर किजय चाहे तो अपनी
म़िी से तु म्हें कबना कीमत चु काए हिे ली में कहस्सा दे सकता है।

बाबू जी की बात से बडे भइया नारा़ि हो गए। कहने लगे कक किजय होता कौन है
मुझे कहस्सा दे ने िाला। उस मजदू र के सामने मैं हाॅथ िैलाने नही ं जाऊगा। मु झे
आपसे कहस्सा चाकहए। उनकी इन बातों से बाबू जी भी गुस्सा हो गए। कहने लगे कक
अगर ऐसी बात है तो तु म्हें भी अपने कारोबार और शहर के मकान में दोनो भाइयों
को कहस्सा दे ना होगा। तु म्हारा कारोबार तो िै से भी किजय के ही पै सों की बु कनयाद
पर खडा हुआ है। बाबू जी इस बात से बडे भइया ने साि कह कदया कक मेरे कारोबार
और शहर के मकान में ककसी का कोई कहस्सा नही ं है। तो बाबू जी ने भी कह कदया
कक किर तु म भी ये भू ल जाओ कक तु म्हारा इस हिे ली में और ़िमीनों में कोई कहस्सा
है।

282
बाबू जी की इस बात से बडे भइया गुस्सा हो गए। कहने लगे कक ये आप ठीक नही ं
कर रहे हैं। आप बाप होकर भी अपने बे टों के बीच पक्षपात कर रहे हैं। बाबू जी ने
कहा कक तु म अपने आपको होकशयार समझते हो कक तु म सबके कहस्सा ले लो और
तु मसे कोई न ले । ये कहाॅ का न्याय कर रहे हो तु म? अरे तु म तो बडे भाई हो, तु म्हें
तो खु द सोचना चाकहए कक तु म अपने छोटे भाइयों का भला करो और भला ही सोचो।

बाबू जी की इन बातों से बडे भइया कुछ न बोले और पै र पटकते हुए िापस शहर
चले गए। उधर ये सारी बातें जब किजय जी को पता चली ं तो िो बाबू जी से बोले कक
आपको बडे भइया से ऐसा नही ं कहना चाकहए था। भला क्ा ़िरूरत थी उनसे ये
कहने की कक हिे ली में कहस्सा तभी कमले गा जब िो अपने कहस्से की कीमत
चु काएॅगे? मैने ये सोच कर ये सब नही ं ककया था कक बाद में मैं अपने ही भाइयों से
हिे ली की कीमत िसू ल करूॅ। बाबू जी बोले इतना महान मत बनो बे टे। ये दु कनया
बहुत बु री है , यहाॅ बडे खु दग़िग लोग रहते हैं। समय के साथ खु द को भी बदलो बे टा।
िरना ये दु कनया तु म जैसे ने क और सच्चे ब्यककत को जीने नही ं दे गी। बाबू जी की इस
बात पर किजय जी बोले जैसे सू रज अपना रोशनी िैलाने िाला स्वभाि नही ं बदल
सकता िै से ही मेरा स्वभाि भी नही ं बदल सकता। आप और माॅ की से िा करूॅ
छोटे भाई के कलए खु द की सारी खु कशयाॅ कनसार कर दू ॅ। भला क्ा ले कर जाऊगा
इस दु कनयाॅ से ? सब यही ं तो रह जाएगा न बाबू जी। इं सान की सबसे बडी दौलत ि
पू ॅजी तो िो है कजसे पु न्य कहते हैं। एक यही तो ले कर जाता है िह भगिान के पास।

किजय जी की इन बातों से बाबू जी अिाक् रह गए। कुछ दे र बाद बोले तू तो कोई


िररश्ा है बे टे। मन से बै रागी है तू । तु झे ककसी धन दौलत का मोह नही ं है। जब तू
पढता कलखता नही ं था न तो कदन रात कोसता था तु झे। सोचता था कक कैसा कनकम्मा
बे टा कदया था मुझे भगिान ने ले ककन भला मु झे क्ा पता था कक िही कनकम्मा बे टा
एक कदन इतना महान कनकले गा। मु झे तु झपे गिग है बे टे। ले ककन मेरी एक बात हमेशा
याद रखना कक दू सरों खु श रखने के कलए खु द का बने रहना भी ़िरूरी होता है।

बाबू जी की इस बात को सु न कर किजय जी मु स्कुराए और किर से अपनी कमगभूकम


यानी खे तों पर चले गए। बाबू जी की बातों में छु पे ककसी अथग को शायद किजय जी
समझ नही ं पाए थे । ले ककन बाबू जी को शायद भकिष्य कदख गया था।

उधर शहर में बडे भइया और दीदी इस बार कुछ और ही ल्कखचडी पका रहे थे ।
सौम्या की शादी को एक महीना हो गया था जब बडे भइया और दीदी को तीसरी
औलाद के रूप में एक बे टा हुआ था। िो दोनो शहर से आए थे घर। इस बार बाबू जी
ने उनके बे टे के जन्म पर राज के जन्मोत्सि से भी ज्यादा उत्सि मनाया कारर् यही
था कक बडे भइया और दीदी को ये न लगे कक हमें कोई खु शी नही हुई है उनके बे टे के

283
जन्म पर। बडे भइया खु द भी उत्सि में खू ब पै सा बहा रहे थे । िो कदखाना चाहते थे
कक िो ककसी से कम नही ं हैं । खै र, इस बार एक नई ची़ि दे खने को कमली। िो ये थी
कक बडे भइया और दीदी हम सब से बडे अच्छे तरीके से कमल जुल रहे थे । किजय जी
से भी उन्होने अच्छे तरीके से बातें की। एक कदन बडे भइया खे तों पर घूमने गए।
िहाॅ पर उन्होने दे खा कक ़िमीनों पर कािी अच्छी िसल उगी हुई थी। बगल से जो
बं ़िर सा पहले बडा सा मैदान हुआ करता था अब िहाॅ पर अच्छे खासे पे ढ लगाए
जा चु के थे । खे तों पर एक तरि बडा सा मकान भी बन रहा था। खे तों पर बहुत से
मजदू र काम कर रहे थे । किजय जी ने बडे भइया को िहाॅ पर दे खा तो िो भाग कर
उनके पास आए और बडे आदर ि सम्मान से उन्हें खे तों के बारें में तथा िसलों से
होने िाली आमदनी के के बारे में बताने लगे। उन्होंने ये भी बताया कक दू सरी तरि
जो बीस एकड की खाली ़िमीन पडी थी उसमें मौसमी िलों के बाग़ लगाने की
तै यारी हो रही है। उससे कािी ज्यादा आमदनी होगी।

ऐसे ही बातें चलती रही किर बातों ही बातों में जब हिे ली का क़िक्र आया तो किजय
जी ने खु द कहा कक हिे ली में सबका बराबर का कहस्सा है िो जब चाहें ले सकते हैं।
उन्हें कोई कीमत नही ं चाकहए। ये सब अपनो के कलए ही तो बनाया गया है। किजय जी
की इन बातों से बडे भइया खु श हो गए। ककन्तु उनके मन में शायद कुछ और ही था
जो उस िक्त समझ नही ं आया था।

ऐसे ही िक्त गु ़िरता रहा। इसी बीच मुझे एक बे टी हुई और दस कदन बाद करुर्ा ने
भी एक सुं दर सी बच्ची को जन्म कदया। राज उस िक्त चार साल का हो गया था। िो
कदन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हसता
खे लता। शहर से बडे भइया और दीदी भी आए थे । सबके कलए कपडे भी लाए थे ।
हम सब बे हद खु श थे इस सबसे ।

इस बीच एक पररितग न ये हुआ कक बडे भइया शहर से हप्ते में एक दो कदन के कलए
हिे ली आने लगे थे । माॅ बाबू जी से िो बडे सम्मान से बातें करते और खे तों पर भी
जाते । िहाॅ दे खते सु नते सब। मैं और करुर्ा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं
खे त चली जाती किजय जी के पास। खे तों में जो मकान बन रहा था िो बन गया था।

इस बीच बच्चे भी बडे हो रहे थे । राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में
दाल्कखला करा कदया अभय ने । गकमग यों में जब स्कूल की छु कट्टयाॅ होती तो बडे भइया
और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅि हिे ली में आ जाते । सब बच्चे एक साथ खे लते
और खे तों में जाते । बडे भइया की बडी बे टी ररतू अपनी माॅ पर गई थी। िो ज्यादा
हम लोगों से घुलती कमलती नही ं थी। कशिा अपने बाप पर ही गया था। िह अपनी
ची़िें ककसी को नही ं दे ता था और दू सरों की ची़िें लड झगड कर ले ले ता था। राज से

284
अर्क्र उसकी लडाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बु रे का ज्ञान
कहाॅ होता है। इस कलए अगर इनकी आपस में कभी लडाई होती तो जेठानी जी
अर्क्र नारा़ि हो जाती थी ं। बडी मु ल्किल से गकमगयों की छु कट्टयाॅ कटती और
जेठानी जी अपने बच्चों को ले कर शहर चली जाती ं।

अपडे ट..........《 29 》

अब तक,,,,,,,,,,

ऐसे ही िक्त गु ़िरता रहा। इसी बीच मुझे एक बे टी हुई और दस कदन बाद करुर्ा ने
भी एक सुं दर सी बच्ची को जन्म कदया। राज उस िक्त चार साल का हो गया था। िो
कदन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हसता
खे लता। शहर से बडे भइया और दीदी भी आए थे । सबके कलए कपडे भी लाए थे ।
हम सब बे हद खु श थे इस सबसे ।

इस बीच एक पररितग न ये हुआ कक बडे भइया शहर से हप्ते में एक दो कदन के कलए
हिे ली आने लगे थे । माॅ बाबू जी से िो बडे सम्मान से बातें करते और खे तों पर भी
जाते । िहाॅ दे खते सु नते सब। मैं और करुर्ा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं
खे त चली जाती किजय जी के पास। खे तों में जो मकान बन रहा था िो बन गया था।

इस बीच बच्चे भी बडे हो रहे थे । राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में
दाल्कखला करा कदया अभय ने । गकमग यों में जब स्कूल की छु कट्टयाॅ होती तो बडे भइया
और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅि हिे ली में आ जाते । सब बच्चे एक साथ खे लते
और खे तों में जाते । बडे भइया की बडी बे टी ररतू अपनी माॅ पर गई थी। िो ज्यादा
हम लोगों से घुलती कमलती नही ं थी। कशिा अपने बाप पर ही गया था। िह अपनी
ची़िें ककसी को नही ं दे ता था और दू सरों की ची़िें लड झगड कर ले ले ता था। राज से
अर्क्र उसकी लडाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बु रे का ज्ञान
कहाॅ होता है। इस कलए अगर इनकी आपस में कभी लडाई होती तो जेठानी जी
अर्क्र नारा़ि हो जाती थी ं। बडी मु ल्किल से गकमगयों की छु कट्टयाॅ कटती और
जेठानी जी अपने बच्चों को ले कर शहर चली जाती ं।
___________________________

285
अब आगे,,,,,,,,,,,,

प्रकतमा अपने पकत के साथ जब अपने कमरे में पहुॅची तो अचानक ही पीछे से अजय
ने उसे अपनी कगरफ्त में ले कलया साथ ही अपने होठों को उसकी गदग न पर लगा कर
करते हुए अपने दोनो हाथों से प्रकतमा के बडे बडे चू ॅचों को बु री तरह मसलने लगा।

"आऽऽऽह धीरे से प्ली़ि।" प्रकतमा की ददग और म़िे में डूबी आह कनकल गई थी,
बोली___"़िरा धीरे से आहहहहह मसलो न अजय। मुझे ददग हो रहा है।"

"ये धीरे से मसलने िाली ची़ि नही ं है मेरी जान।" अजय कसं ह ने उसी तरह प्रकतमा के
चू ॅचों को मसलते हुए कहा__"इन्हें तो आटे की तरह गूॅथा और मसला जाता है।
दे ख लो मैं िही कर रहा हूॅ।"

"िो तो मैं दे ख ही रही हूॅ।" प्रकतमा ने आहें भरते हुए कहा___"पर मुझे ये नही ं समझ
आ रहा कक इस समय तु म ये सब इतने उतािले पन से क्ों कर रहे हो? आकखर ककस
बात का जोश चढ गया है तु म्हें?"

"मत पू छो कडयर।" अजय कसं ह ने खु द आह सी भरते हुए कहा___"इस हिे ली में आज


एक और चू ॅत आ गई है। मेरी छोटी बहन की प्यारी प्यारी सी चू ॅत। हाय काश!
उसकी उस चू ॅत को पे लने का मौका कमल जाए तो कसम से म़िा आ जाए प्रकतमा।"

"हे भगिान।" प्रकतमा उछल पडी__"तो इस िजह से जोश चढा हुआ है तु म्हें? कसम
से अजय तु म न कभी नही ं सु धर सकते । तु म्हारे ही नक्शे कदम पर हमारा बे टा भी
चल रहा है। मैने ह़िार बार दे खा है उसे , उसकी ऩिरें अपनी बहनों पर ही नही ं खु द
मुझ पर भी गड जाती हैं। उसे ये भी खयाल नही ं कक मैं उसकी माॅ हूॅ। ये सब
तु म्हारी िजह से है अजय। तु म खु द उसकी ग़लकतयों को ऩिरअं दा़ि करते रहते
हो।"

"अरे तो क्ा हो गया मेरी जान?" अजय ने प्रकतमा को उठाकर बे ड पर ले टा कदया


और किर उसके ऊपर आकर बोला___"ऩिरें तो होती ही हैं ऩिारा करने के कलए।
तु म तीनो माॅ बे कटयाॅ हो ही इतनी हाॅट एण्ड से र्क्ी कक हमारे बे टे का भी
इमानडोल गया।"

"तु म्हारे बे टे का बस चले तो अपनी माॅ बहनों को भी अपने नीचे ले टा कर पे ल दे ।"


प्रकतमा ने हस कर कहा था।
"तो इसमें कदक्कत क्ा है कडयर?" अजय ने बे शमी से हसते हुए कहा__"उसे भी
अपनी कुण्ड का अमृत कपला दो। शायद उसकी प्यास और तडप कमट ही जाए।"

286
"ओह अजय कुछ तो शमग करो।" प्रकतमा ने है रानी से दे खा__"भला ऐसा मैं कैसे कर
सकती हूॅ? िो मेरा बे टा है , मैने उसे पै दा ककया है।"
"तो क्ा हुआ मेरी जान?" अजय ने अपना एक हाॅथ सरका कर प्रकतमा की साडी
को ऊपर कर उसकी नं गी चू ॅत को मसलते हुए कहा___"इसी रास्ते से ही पै दा ककया
ना अपने बे टे को? अब इसी रास्ते का स्वाद भी चखा दो उसे । यकीन मानो मेरी जान
उसके बाद तु म्हारा बे टा तु म्हारा गुलाम ना हो जाए तो कहना।"

"उिििि अजय तम्हें ़िरा भी एहसास नही ं है कक तु म क्ा बकिास ककये जा रहे
हो?" प्रकतमा ने नारा़िगी भरे लहजे से कहा__"तु म मुझे ऐसा करने के कलए कैसे कह
सकते हो? क्ा तु म्हें ़िरा सी भी इस बात से तक़लीफ़ नही ं होगी कक हमारा बे टा
तु म्हारी ची़िों का भोग करे ? ककस कमट्टी के बने हो तु म यार?"

"यार तो कौन सा कघस जाएगी तु म्हारी ये रस से भरी हुई चू त?" अजय ने अपने हाॅथ
की दो उगकलयाॅ प्रकतमा की ररस रही चू त में अं दर तक डाल कर कहा___"एक बार
अपने बे टे का हकथयार भी तो डलिा कर म़िा लो। सर्क्े ना के साथ तो बडा म़िा
करती थी तु म। दो दो हकथयारों से आगे पीछे से पे लिाती थी तु म। कसम से कडयर,
अगर ऐसा हो जाए तो म़िा ही आ जाए। हम दोनो बाप बे टे एक साथ कमल कर
तु म्हारी आगे पीछे से ठु काई करें गे।"

"आआआहहहहह अजय।" प्रकतमा ने मदहोशी में कहा___"मत करो ऐसी बातें । मु झे


कुछ हो रहा है।"
"हाहाहाहा जब ऐसी बातों से ही तु म्हें कुछ होने लगा है तो ़िरा सोचो डाकलिं ग।"
अजय ने हसते हुए कहा___"सोचो कडयर तब क्ा होगा जब हम दोनो बाप बे टों के
हकथयार तु म्हारी पे लाई करें गे?"

"शशशशशशश कुछ करो अजय।" प्रकतमा की हालत खराब___"जल्दी से कुछ करो।


मेरी चू त में आग जलने लगी है। इसे बु झाओ जल्दी। िरना मैं इस आग में जल
जाऊगी।"

"क्ा करूॅ कडयर?" अजय मु स्कुराया था।


"कुछ भी करो।" प्रकतमा ने बे ड सीट को दोनो हाथों की मुकियों में भी ंचते हुए
कहा___"पर मेरी इस आग को शान्त करो जल्दी। उििि ये आज क्ा हो रहा है
मुझे??"

"आज बे टे के हकथयार की बात चली है ना इस कलए शायद ऐसा हो रहा है तु म्हें।"


अजय ने कहा__"पर बे टे का हकथयार तो इस िक्त यहाॅ नही ं है मेरी जान। कहो तो

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िोन करके शहर से बु ला लू ॅ उसे ?"

"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रकतमा ने आहें भरते हुए कहा___"तु म्हें ही इस
आग को शान्त करना पडे गा। शशश जल्दी मु झे पे लो ना अजय।"

"इसका मतलब तु म्हें अपने बे टे से पे लिाने में अब कोई ऐतरा़ि नही ं है।" अजय
मुस्कुराया।
"मुझे तु म्हारी ककसी बात से कभी कोई ऐतराज हुआ है क्ा?" प्रकतमा ने झटके से उठ
कर अजय के कपडे उतारना शु रू कर कदया था, बोली___"मैं तो तु म्हारी हर जाय़ि
नाजाय़ि बात को अब तक मानती ही आ रही हूॅ। अब जल्दी से मु झे आगे पीछे
पे लो। बहुत आग लगी हुई है।"

"ठीक है किर कल हम दोनो शहर चलें गे और िही ं पर अपने बे टे के साथ थ्रीसम


करें गे।" अजय ने कहा।
"जो तु म्हारी म़िी ले ककन अभी तो मुझे शान्त करो।" प्रकतमा ने अजय को नं गा कर
कदया था।

अजय ने प्रकतमा की दोनो टाॅगों को अपने दोनों कंधों पर रखा और पोजीशन बना
कर प्रकतमा पर छाता चला गया। कमरे के अं दर जैसे एकाएक कोई भारी तू िान आ
गया था।
_______________________
फ्लैशबैक________
उधर मुम्बई में,

कुछ पल रुकने के बाद गौरी ने गहरी साॅस ली उसके बाद किर से कहा___"ऐसे ही
कुछ साल गु़िर गए। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। रा़ि अब बडा हो गया था।
उस समय िह दस जमात में पढ रहा था। पढने कलखने में िह शु रू से ही ते ़ि था
क्ोंकक उसकी पढाई की सारी कजम्मेदारी अभय और करुर्ा पर थी। किजय जी ने
बाबू जी के कलए एक बकढया सी कार खरीद दी थी तथा अभय के कलए एक बु लेट
मोटर साइककल।

अब की बार जब गकमगयों की छु कट्टयाॅ हुईं तो किर से जेठ जेठानी अपने बच्चों के साथ
शहर से गाि आए। ककन्तु इस बार हालातों में बहुत बडा बदलाि हो चु का था।

गौरी की ऩिरें सामने एक बडे से टे बल पर रखे काॅच के एक बडे से जार में कटकी
थी। कजस जार में भरे हुए पानी पर रं ग कबरं गी मछकलयाॅ तै र रही थी। उसी काॅच के

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जार में गौरी एकटक दे खे जा रही थी। जैसे िहाॅ कोई किल् चल रही हो। एक ऐसी
किल् जो गु ़िरे हुए कल का एक कहस्सा थी।

"कल से ही तु म अपने काम में लग जाओ मेरी जान।" अपने कमरे में बे ड के एक
तरि बै ठे अजय ने प्रकतमा से कहा___"हमें ककसी भी कीमत पर उस मजदू र को
अपने काबू में करना है।"

"और अगर उसने कोई हं गामा खडा कर कदया तो?" प्रकतमा ने तकग कदया___"तब तो
मैं इस घर में ककसी को मु ह कदखाने के काकबल भी न रह जाऊगी।"
"ऐसा कुछ नही ं होगा।" अजय ने पु ऱिोर लहजे में कहा___"मुझे पता है िो साला इस
बारे में ककसी को कुछ नही ं बताएगा। और अगर उसने इस सबमें ज्यादा चू ॅ चाॅ की
तो उसके इला़ि के कलए भी किर प्लान बी अपनाया जाएगा।"

"और प्लान बी क्ा है?" प्रकतमा ने मुस्कुराते हुए पू छा था।


"प्लान बी ये है कक तु म्हारी उन हरकतों से अगर िह घर में ककसी से कुछ कहता है
और अगर सारी बात तु म पर ही आती है तो तु म उल्टा उस पर ही इल्जाम लगाना।"
अजय कसं ह उसे समझा रहा था___"चीख चीख कर सबसे यही कहना कक किजय खु द
कई कदन से तु म्हारी इज्जत लू टने के चक्कर में था। बाद में किर मैं हूॅ ही इन हालातों
को अं जाम तक ले जाने के कलए।"

"तु म क्ा करोगे उस सू रत में?" प्रकतमा ने पू छा।


"िो सब तु म मुझ पर छोंड दो।" अजय ने कहा___"अभी उतना ही करो कजतना कहा
है। इधर मैं भी अपने काम में लग जाता हूॅ।"

"ठीक है।" प्रकतमा ने कहा___"ले ककन अभय और करुर्ा से सािधान रहना। अभय
की तरह करुर्ा भी ़िरा ते ़ि तरागर है ।"
"कचन्ता मत करो।" अजय ने कहा___"सबको दे ख लू ॅगा एक एक करके। पहले इन
दोनो से तो कनपट लू ॅ।"

"ठीक है।" प्रकतमा ने कहा___"आज किजय का खाना ले कर मैं जाऊगी। गौरी की


तकबयत बु खार के चलते परसो से कुछ खराब है। कल तो नै ना गई थी किजय को
खाना दे ने। आज मैं जाऊगी।"

"ठीक है।" अजय ने कहा__"और हाॅ ब्लाउज कबलकुल बडे गले िाला पहन कर
जाना। बाॅकी तो तु म समझदार ही हो।"

प्रकतमा मु स्कुरा कर बे ड से उठी और कमरे से बाहर कनकल गई। जबकक अजय के

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होठों पर एक ़िहरीली मु स्कान तै र उठी। िह उसी बे ड पर आराम से ले ट कर ऊपर
छत में कंु डे पर ते ़ि रफ्तार से घू म रहे पं खे की तरि घूरने लगा था।

प्रकतमा जब ककचे न में पहुॅची तो उसकी छोटी ननद नै ना किजय के कलए कटकिन
तै यार कर रही थी। नै ना उस िक्त बाइस ते इस साल की थी। उसने अपनी पढाई
छोड दी थी और बीएस सी करने बाद अब घर में ही रहती थी। उसकी शादी के कलए
बाबू जी लडका तलाश कर रहे थे ।

"क्ा कर रही हो नै ना?" प्रकतमा ने बडे प्यार से नै ना से पू छा था।


"मझले भइया के कलए खाने का कटकिन तै यार कर रही हूॅ भाभी।" नै ना ने
कहा__"मझली भाभी की तकबयत ठीक नही ं है न इस कलए ये कटकिन मैं ही ले जा रही
हूॅ कल से । खै र छोकडये आप बताइये आप ककस काम से ककचे न में आई हैं?"

"मैं भी इसी कलए यहाॅ आई थी कक अपने दे िर के कलए खाना पहुॅचा दू ॅ।" प्रकतमा
ने मुस्कुराते हुए कहा___"बे चारी रात कदन जी तोड मे हनत करते हैं।"

"हीहीहीही आप तो शहर िाली हैं भाभी आप खे तों पर कटकिन ले कर जाएॅगी तो


लोग क्ा कहेंगे?" नै ना ने हसते हुए कहा___"जाने दीकजए भाभी ये आपको शोभा
नही ं दे गा। कटकिन तै यार हो गया है अब चलती हूॅ मैं। आज तो िै से भी दे र हो गई है।
मझले भइया के पे ट में तो अब तक चे हे भी कूदने लगे होंगे।"

"तो तु म भी मु झे ताना मारने लगी हो?" प्रकतमा ने अपने चे हरे पर दु ख के भाि प्रकट
करते हुए कहा___"क्ा मेरा इतना भी हक़ नही ं बनता कक मैं अपनी इच्छा से इस घर
में कुछ कर सकूॅ?"

"ये आप क्ा कह रही हैं भाभी?" नै ना ने हडबडाते हुए कहा___"भला मैं क्ों आपको
ताना मारूॅगी। और बाकी सब भी कहाॅ आपको ताना मारते हैं?"

"सब समझती हूॅ मैं ।" प्रकतमा ने कहा___"लोग मेरे सामने मेरे मुख पर नही ं बोलते
ले ककन मेरे पीठ पीछे तो सब यही बोलते हैं न। एक मैं हूॅ जो हर बार यही ं सोच कर
आती हूॅ कक घर में इस बार सबका हाॅथ बटाऊगी और सबसे खू ब हसू ॅगी
बोलू ॅगी। ले ककन हर बार यहाॅ आने पर मेरी इन सभी इच्छाओं पर ग्रहर् लग जाता
है।"

"ओह भाभी प्ली़ि।" नै ना कह उठी__"आप ये सब बे कार ही सोचती हैं। आपके बारे


कोई कुछ नही ं बोलता है और ना ही सोचता है ऐसा िै सा।"
"तो किर क्ों मु झे इन सब कामों को करने से मना कर रही हो तु म?" प्रकतमा ने

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कहा__"मुझे करने दो ना कजसे करने का मेरा बहुत मन करता है। मैं भी सबकी तरह
ये सब काम खशी खु शी करना चाहती हूॅ।"

"पर भाभी आप ये।" नै ना का िाक् अधूरा रह गया।


"दे खा, किर से िही शु रू कर कदया।" प्रकतमा ने कहा__"तु म अभी भी यही समझती
हो कक मैं ये सब करूॅगी तो लोग क्ा सोचें गे। अरे हर काम की शु रूआत पर लोग
ऐसा ही सोचते हैं। तो क्ा हम लोगों की सोच को ले कर कोई काम ही ना करें ? दू सरे
लोग सोचें या न सोचें ककन्तु इस घर के लोग सबसे पहले सोच ले ते हैं।"

नै ना हैरान परे शान दे खती रह गई प्रकतमा को। उसे समझ नही ं आ रहा था कक अपनी
भाभी को क्ा कहे।

"मैं तो ये सब इसी कलए कह रही थी भाभी क्ोंकक आपको इन सब कामों की आदत


नही ं है।" नै ना ने कहा__"बाहर कजस्म को जला दे ने िाली धूप है और गमी इतनी कक
पू छो ही मत। आप बे िजह इस धूप और गरमी में परे शान हो जाएॅगी।"

"कुछ नही ं होगा मुझे।" प्रकतमा ने कहा__"और क्ा अपने दे िर के कलए इतना भी
नही ं कर सकती मैं?"
"अच्छा ठीक है भाभी।" नै ना ने कहा__"पर मैं भी आपके साथ चलू ॅगी। आप अकेले
इस धूप में परे शान हो जाएॅगी।"

"नही ं नै ना।" प्रकतमा ने कहा__"मुझे अकेले ही जाने दो। अकेली जाऊगी तो दे िर जी


को भी लगेगा कक उनकी भाभी को उनकी किकर है। िरना अगर तु म्हारे साथ
जाऊगी तो िो यही सोचें गे कक मैं िहाॅ कोई एहसान जताने आई थी।"

"किजय भइया ऐसे नही ं हैं भाभी।" नै ना ने हस कर कहा__"िो ककसी के भी बारे में
कुछ भी बु रा नही ं सोचते । बल्कि िो तो हमारे दे श के पू िग प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन
कसं ह की तरह एकदम चु प ि शान्त रहने िाले हैं।"

"चलो छोडो ये सब।" प्रकतमा ने कहने के साथ ही नै ना के हाॅथ से कटकिन ले


कलया__"जब तक गौरी अच्छी तरह से ठीक नही ं हो जाती तब तक खे तों में किजय को
खाना पहुॅचाने की कजम्मेदारी मेरी है। और तु म्हारी कजम्मेदारी ये है कक तु म ररतू और
नीलम यहाॅ हैं तब तक उनको पढाओ।"

"ठीक है भाभी जैसा आप कहें।" नै ना ने हसते हुए कहा__"आप सच में बहुत स्वीट
हैं। आई लि यू माई स्वीट ऐण्ड ब्यू टीिुल भाभी।"
"ओह लि यू टू माई स्वीट ननद रानी।" प्रकतमा ने भी मु स्कुराकर कहा__"चलो अब मैं

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चलती हूॅ।"

इतना कह कर प्रकतमा ककचे न से बाहर आ कर अपने कमरे की तरि बढ गई।


जबकक नै ना अपने कमरे की तरि मुस्कुराते हुए चली गई। इधर कमरे में आकर
प्रकतमा ने कटकिन को बे ड के पास दीिार तरि सटे एक टे बल पर रखा और किर
आलमारी की तरि बढ गई।

"क्ा हुआ तु म यही ं हो?" अजय कसं ह ने चौंकते हुए कहा था___"अभी तक खे तों पर
गई नही ं???"
"तु म तो इस सबको इतना आसान समझते हो जबकक तु म्हें पता होना चाकहए कक
कहने और करने में ़िमीन आसमान का िकग होता है।" प्रकतमा ने आलमारी से एक
झीनी सी साडी कनकालते हुए कहा था।

"िो तो मु झे भी पता है।" अजय कसं ह ने कहा___"ले ककन मेरे कहने का मतलब ये था
कक कटकिन तै यार करने में बे िजह इतना समय क्ों लगा कदया तु मने ?"

"यार जब मैं ककचे न में गई तो िहाॅ पर नै ना आलरे डी कटकिन तै यार कर चु की थी।"


प्रकतमा ने कहा___"और िह कटकिन ले कर खे तों पर जाने ही िाली थी। इस कलए मु झे
उसे इमोशनली ब्लैकमे ल करना पडा।"

"क्ा मतलब??" अजय कसं ह चौंका।

प्रकतमा ने उसे ककचे न में नै ना और खु द के बीच हुई सारी बातें बता दी। सारी बातें
सु नने के बाद अजय कसं ह बोला___"ये कबलकुल सही ककया तु मने । और अब इसके
आगे का भी ऐसा ही परिेक्ट हो तो म़िा ही आ जाए।"

"ऐसा ही होगा कडयर।" प्रकतमा ने अपने कजस्म से पहले िाले कपडे उतार कदये। अब
िह ऊपर मात्र ब्रा में थी जबकक नीचे पे टीकोट था।

"इस ब्रा को भी उतार दो ना कडयर।" अजय कसं ह मु स्कुराया__"अपने बडे बडे तरबू जों
के ऊपर कसिग ये लोकट िाला ब्लाउज ही पहन कर जाओ। ताकक उस साले मजदू र
को ऩिारा करने में आसानी हो।"

"बडे बे शमग हो सच में।" प्रकतमा ने हसते हुए कहा और अपने हाॅथों को पीछे अपनी
पीठ पर ले जाकर ब्रा का हुक खोल कर उसे अपने शरीर से अलग कर कदया।

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"हाय, इन भारी भरकम तरबू जों पर जब उस मजदू र की दृकष्ट पडे गी तो यकीनन उस
साले की आॅखें िटी की िटी रह जाॅएॅगी।" अजय ने आह सी भरते हुए कहा
था___"सारा इमान पल भर में चकनाचू र हो जाएगा उसका।"

"काश! ऐसा ही हो।" प्रकतमा ने ब्लाऊज को पहनते हुए कहा___"अगर बात बन गई


तो मु झे भी एक नई ची़ि कमल जाएगी।"
"कबलकुल बात बने गी कडयर।" अजय कसं ह ने ़िोर दे कर कहा___"तु म तो उिग शी या
मेनका से भी सुं दर ि मालदार हो। भला तु म्हारे सामने िो मजदू र कब तक कटका
रहेगा?"

"तु म हर बात पर उसे मजदू र क्ों बोल रहे हो अजय?" प्रकतमा ने कहा___"जबकक िह
भी तु म्हारी तरह ठाकुर गजेन्द्र कसं ह बघेल की औलाद है और तु म्हारा सगा भाई है।"

"जो भी हो।" अजय कसं ह बोला__"है तो एक मजदू र ही ना? अब मजदू र को मजदू र


ना कहूॅ तो और क्ा कहूॅ?"
"चलो अब मैं जा रही ं हूॅ।" प्रकतमा ने आदमकद आईने में खु द को दे खने के बाद
कहा__"अब मेरा डर े स ठीक है ना?"
"एकदम झक्कास है मेरी जान।" अजय कसं ह ने कहा___"इस डर े स में तु म्हें दे ख कर
अब तो मुझे ऐसा लग रहा है कक अभी एक बार तु म्हें इसी बे ड पर पटक कर पे ल दू ॅ
पर जाने दो।"

प्रकतमा उसकी इस बात पर हस पडी और किर टे बल से कटकिन उठा कर कमरे से


बाहर जली गई।
________________________
ितगमान_______
हल्दीपु र पु कलस स्टे शन !

"तो क्ा जानकारी कमली तु म्हें?" अपनी कुसी पर बै ठी ररतू ने सामने खडे हिलदार
से पू छा था।
"मैडम कजन लडके लडककयों की कलस्ट आपने दी थी।" िह हिलदार कह रहा था
कजसकी िदी की ने म प्लेट पर उसका नाम राम कसं ह कलखा हुआ था, बोला___"उनमें
से कुछ तो उसी काॅले ज के हैं कजस काॅले ज में िो पीकडता यानी किधी चौहान पढती
है जबकक बाॅकी के सब बाहरी हैं। मेरा मतलब कक उस काॅले ज के नही ं हैं।"

"बाहर से कौन से लडके लडककयाॅ हैं?" ररतू ने पू छा था।

293
"बाहर के तो सब लडके ही हैं मैडम।" हिलदार रामकसं ह ने कहा___"िो भी दो ही हैं ।
एक तो िही सं पत है जो इसी इलाके का एक छोटा मोटा ग़ुडा मिाली है जबकक
दू सरा सं दीप अकग्नहोत्री है, ये दू सरे काॅले ज में बीए लास्ट इयर का छात्र है।"

"ओके बाकी के सब लोगों के बारे में क्ा पता चला?" ररतू ने पू छा।
"किधी के साथ काॅले ज में पढने िाली कजस लडकी की बथग डे पाटी थी उस रात,
उसका नाम खु शी कजन्दल है। बडे बाप की औलाद है। माॅ बाप पू र्े में रहते हैं।
यहाॅ पर िह अपनी एक आया के साथ रहती है और िो मकान भी उसके बाप ने ही
उसे खरीद कर कदया था। ताकक िह अपनी आया के साथ रह कर काॅले ज में पढाई
कर सके। पाटी में दोस्तों के रूप में चार लडके थे और पाॅच लडककयाॅ, कजनमे से
एक लडकी खु शी कजन्दल की आया की थी। दो लडके बाहरी थे । सभी लडकों की
कडटे ल इस प्रकार है____

1, सू रज चौधरी, 22 साल का किधी के ही काले ज में एम ए का छात्र है। इसके बाप


का नाम कदिाकर चौधरी है। ये शहर का पोकलटीकसयन है। इसके बारे में सारा शहर
जानता है कक ये कैसा आदमी है। इसके कई गैर कानू नी धंधे भी कानू न के नाक के
नीचे से चलते हैं। सू रज चौधरी अपने बाप की कबगडी हुई औलाद है। पता चला है कक
इसने कई लडककयों की क़िंकदकगयाॅ बरबाद की हैं। अपनी सुं दर पशग नाकलटी और
पै सों की िजह से कोई भी लडकी इसकी तरि आककषग त हो जाती है। ये लडककयों
को प्यार के जाल में िसा कर उनकी अश्लील िीकडयो बना कर उन्हें हर तरह के
काम करने के कलए ब्लैकमेल करता है। किधी चौहान इससे प्यार करती है।

2, अलोक िमाग , ये भी सू रज के साथ ही पढता है। सू रज का पक्का यार है ये। बाप


बहुत साल पहले गंभीर बीमारी से चल बसा था तब से यह अपनी किधिा माॅ के साथ
ही रहता है। इसकी माॅ ककसी प्राइिे ट कंपनी में काम करती है।

3, ककशन श्रीिास्ति, ये भी सू रज के साथ ही काले ज में पढता है। इसके बाप का नाम
अिधेश श्रीिास्ति है। ये इसी शहर का एक कक्रकमनल लायर है। इसके कदिाकर
चौधरी से बडे गहरे सं बंध हैं। कदिाकर चौधरी के हर ग़ैरकानू नी काम में ये उसकी हर
तरह से मदद करता है।

4, रोकहत मेहरा, ये भी सू रज के साथ ही उस काले ज में पढता है। इसके बाप ईआ


नाम अशोक मे हरा है। ये शहर का कबल्डर है। पै सों की कोई कमी नही ं है इसके
पास। सु ना है कई ़िमीनों पर इसने अिै ध कब्जा ककया हुआ है। इसके भी कदिाकर
चौधरी और िकील अिधेश श्रीिास्ति से बडे गहरे सं बंध हैं ।

5, नीता ब्यास, ये 20 साल की है और किधी के साथ ही उस काले ज में पढती है। ये

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इन्दौर की रहने िाली है। यहाॅ पर ये अपने मामा जी के यहाॅ रह कर ही पढाई कर
रही है।

6, अनीता ब्यास, ये नीता की जुडिा बहन है तथा ये भी अपनी बहन के साथ ही मामा
जी के यहाॅ रहकर पढाई कर रही है।

7, स्नेहा शमाग, ये 20 साल की है, ये भी किधी के साथ ही काले ज में पढती है। इसका
बाप सरकारी बैं क में मैनेजर है ।

8, सं जना कसं ह, ये 20 साल की है, और किधी के साथ ही काले ज में पढती है। इसके
बाप का इसी शहर में एक बडा सा माॅल है। ये दो भाई बहन है। इसका भाई सं जय
कसं ह इससे छोटा है और अभी इस साल हाई स्कूल में है।

"मैडम ये थे उस काले ज में किधी के साथ एक ग्रुप में रहने िाले लडके लडककयाॅ।"
रामदीन ने कहा___"मैने अपने तरीके से पता ककया है कक किधी के साथ जो घटना
घकटत हुई उसमें सू रज चौधरी मुख्य आरोपी है । सू रज के साथ ही इस हादसे को
अं जाम दे ने में उसके ये चारों दोस्त और उस बथग डे गलग यानी खु शी कजन्दल का भी
बराबर का हाॅथ है। बात दरअसल ये थी कक किधी एक अच्छे घर की और अच्छे
सं स्कारों िाली लडकी थी। िह खू बसू रत थी। कभी ककसी लडके को भाि नही ं दे ती
थी। आज से दो तीन साल पहले िह ककसी किराज कसं ह नाम के लडके से प्यार करती
थी जो उसके साथ ही स्कूल में पढता था। िो स्कूल और ये काले ज लगभग पास में ही
थे इस कलए सू रज की ऩिर इस पर बहुत पहले से ही थी। उसने बडी मुल्किल से
ककसी तरह इससे दोस्ती कर ली थी। उसके बाद ऐसे ही एक कदन इसने अपने
जन्मकदन पर अपने सभी दोस्तों को िामगहाउस पर इन्वाइट ककया था। किधी को भी
उसने खासतौर पर इन्वाइट ककया था। किधी जब इसके िामगहाउस पर उस शाम गई
तो पाटी में सब कािी एं ज्वाय कर रहे थे । इस बीच सू रज ने किधी को अपनी दोस्ती
का िास्ता दे कर इसे कोल्ड कडर ं क कपला कदया। उस कोल्ड कडर ं क में हिा डर ग्स भी
कमला हुआ था। किधी ने जब उस कोल्ड कडर ं क को कपया तो उसे कुछ दे र बाद चक्कर
से आने लगे। सू रज अपनी चाल में कामयाब हो चु का था, उसने अपनी एक दोस्त
कजसका नाम ररया सचदे िा था उससे कह कर किधी को कमरे में ले गई और उसे बे ड
पर कलटा कदया। किधी को कुछ होश नही ं था। इधर सू रज कमरे में आया और किधी के
कजस्म से सारे कपडे उतार कर और खु द भी पू री तरह कनिग स्त्र होकर किधी के साथ
गंदा काम ककया। इस सबकी िीकडयो सू रज का ही एक दोस्त अलोक िमाग बना रहा
था। खै र जब किधी को होश आया तो िह अपने घर में अपने ही बे डरूम थी। उसे
कपछली शाम का सब कुछ याद आया। उसे इस बात की हैरानी हुई कक िह अपने घर
कैसे आई? तब उसकी माॅ ने बताया कक उसकी एक दोस्त कजसका नाम ररया था

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िह उसे छोंड कर गई थी। किधी की माॅ ने उसे इस बात के कलए डाॅटा भी था कक
उसने शराब क्ों पी थी? किधी ने कहा िो शराब नही ं बस कोल्ड कडर ं क ही था शायद
ककसी ने ग़लती से उसमें कुछशराब कमला दी होगी। खै र ये बात तो चली गई। ले ककन
माॅ के जाने के बाद जब किधी बे ड से उठकर बाथरूम की तरि जाने के कलए बे ड से
नीचे उतरी तो उसकी चीख कनकलते कनकलते रह गई। अपने पै रों पर उससे खडे ही
ना हुआ गया। उसे समझते दे र न लगी कक उसके साथ क्ा हुआ है । ककन्तु अब
समझने से भला क्ा हो सकता था? िह तो लु ट चु की थी। बरबाद हो चु की थी। िह
इस बात को अपने माॅ बाप से बता भी नही ं सकती थी। अकेले में िह खू ब रोती।
इस बात कई कदन गु़िर गए। िह स्कूल नही ं गई थी कई कदन से । माॅ से उसने बता
कदया था कक उसकी तकबयत ठीक नही ं है। किर एक कदन उसके मोबाइल पर एक
अं जान नं बर से एम एम एस आया। कजसे दे ख कर उसके पै रों तले से ़िमीन कनकल
गई। उसे सारा सं सार अं धकारमय कदखने लगा था। तभी उसी नं बर से काल भी
आया। उसने जब उस काल को ररसीि ककया तो सामने से सू रज की आिा़ि को सु न
कर चौंक गई। िह उसे बडी बे शमी से कह रहा था कक कैसी लगी हम दोनो की
किल्? किधी रोती कगडकगडाती रही और पू छती रही कक उसने उसके साथ उसकी
दोस्ती के साथ इतना बडा छल क्ों ककया? आकखर क्ों उसने उसे इस तरह बरबाद
कर कदया? मगर िो तो कशकारी था। खू बसू रत लडककयों का कशकारी। सू रज ने
धमकी दे ते हुए कहा कक अगले कदन स्कूल आए और उसके साथ उसके िामग हाउस
पर चले िरना िह ये एम एम एस उसके बाप के मोबाइल पर भे ज दे गा। किधी मरती
क्ा न करती िाली ल्कथथत में आ चु की थी। बस यही ं से उसकी बरबादी की दास्तां
शु रू हो गई। िह हर बार सू रज के द्वारा ब्लैकमेल होती रही। किधी कजस किराज नाम
के लडके से प्यार करती थी उससे उसने सं बंध तोड कलया था। ऐसे ही कदन महीने
साल गुजर गए। किधी पढने में होकशयार थी। काले ज में हमेशा िह अपनी ग्रुप की
लडककयों से टाप करती थी। खु शी कजन्दल इस बात से उससे बे हद जलती थी। इस
कलए उसने सू रज के साथ कमलकर कपछली रात इस गंभीर हादसे को अं जाम कदया
था।"

"मामला तो पू री तरि पहले ही साि था रामदीन।" ररतू ने कहा___"मैने दू सरी


मुलाक़ात में किधी से इस सबकी सारी सच्चाई जानने की बहुत कोकशश की ले ककन
उसने कुछ नही ं बताया। इस कलए मु झे तु म्हें इस काम में लगाना पडा। खै र, यकीनन
तु मने शानदार जानकारी हाकसल की है।"

"शु कक्रया मैडम।" रामदीन खु श हो गया, बोला___"पर मुझे ये समझ में नही ं आ रहा
कक किधी ने आपको इस सबकी सारी बातें क्ों नही ं बताई? जबकक होना तो ये चाकहए
था कक उसे अब ऐसे हराकमयों के ल्कखलाि सारा सच उगल कर उन्हें कानू न के ले पेटे
में डलिा दे ना चाकहए था।"

296
"सबकी अपनी कुछ न कुछ मजबू ररयाॅ होती हैं रामदीन।" ररतू ने गंभीरता से कुछ
सोचते हुए कहा___"कुछ ऐसी भी बातें होती हैं कजन्हें ककसी भी हाल में कह पाना
सं भि नही ं हो पाता। या किर ये सोच कर उसने मुझे कुछ नही ं बताया कक कानू न भी
भला उन लोगों का क्ा कर ले गा? िह जानती है कक कजन लोगों ने उसके साथ ये
कुकमग ककया िो बडे बडे लोगों की कबगडी हुई औलादें हैं। कानू न उन तक पहुॅच ही
नही ं सकता।"

"तो क्ा इस केस की िाइल ऐसे ही बं द कर दी जाएगी मैडम?" रामदीन


चौंका___"क्ा उस बे चारी लडकी के साथ इं साि नही ं हो पाएगा?"
"मैने ऐसा तो नही ं कहा रामदीन।" ररतू कुसी से उठ कर तथा िही ं पर चहल कदमी
करते हुए बोली___"लडकी के साथ इं साि ़िरूर होगा। किर भले ही उसके कलए
कोई दू सरा रास्ता ही क्ों ना चु नना पडे ।"

"मैं कुछ समझा नही ं मैडम?" रामदीन ने उलझनपू र्ग भाि से कहा।
"सब समझ जाओगे रामदीन।" ररतू के चे हरे पर कठोरता आ गई थी___"बस समय
का इं त़िार करो।"

रामदीन को कबलकुल भी समझ ना आया कक उसकी ये आला अिसर क्ा कहे जा


रही है? जबकक ररतू ने टे बल पर रखी पीकैप को उठा कर उसे कसर पाया ब्यिल्कथथत
ककया और किर लम्बे लम्बे डग भरती हुई थाने से बाहर कनकल गई।
________________________
फ्लैशबैक अब आगे______
नै ना ने सच ही कहा था कक बाहर ते ़ि धूप और भयानक गमी में िह परे शान हो
जाएगी। प्रकतमा की हालत खराब हो चली थी। कसर पर पडी ते ़ि धूप और गमी ने
उसका बु रा हाल कर कदया था। आसमान में सिेद बादल छाए थे और हिा भी न के
बराबर ही चल रही थी। कजसकी िजह से िह पसीना पसीना हो चली थी।

पतली सी कपं क कलर की साडी तथा उसी से मैच करता बडे गले का ब्लाउज। कजसमें
कैद उसकी भारी भरकम चू कचयाॅ उसके चलने पर एक लय से ऊपर नीचे कथरक
रही थी। ब्लाउज के ऊपरी कहस्से से उसकी सु डौल चू कचयों का एक चौथाई कहस्सा
िष्ट कदख रहा था। गोरे सफ्फाक बदन पर ये कलबास उसकी खू बसू रती और
मादकता पर जैसे चार चाॅद लगाए हुए था। प्रकतमा तीन बच्चों की माॅ थी ले ककन
मजाल है कक कोई ये ताड सके कक ये खू बसू रत बला तीन तीन बच्चों की माॅ है।

297
ऐसा नही ं था कक िह कभी खे तों पर नही ं गई थी। एक दो बार िह पहले ही कभी गई
थी। इस कलए उसे खे तों के रास्ते का पता था। हिे ली से एक ककलो मीटर की दू री पर
खे त थे । इधर का कहस्सा गाॅि के उिर कदशा की तरि तथा गाॅि से हट कर था।

प्रकतमा जब खे तों पर पहुॅची तो उसने दे खा कक हर तरि सु न्नाटा िैला हुआ है। बहुत
से खे तों पर गे हूॅ की िसल पक कर तै यार खडी थी और एक तरि से उसकी कटाई
भी चालू थी। हलाॅकक इस िक्त िहाॅ पर कही ं भी कोई मजदू र िसल काटते हुए
कदख नही ं रहा था। शायद ते ़ि धूप के कारर् काम बं द था या किर सभी मजदू र
दोपहर में खाना खाने के कलए खए होंगे।

प्रकतमा की हालत भले ही खराब हो चु की थी ककन्तु जब उसने खे तों पर हर जगह


सु नापन दे खा तो िह इससे खु श भी हो गई। उसे लगा चलो कजस मकसद से िह
यहाॅ आई है िह बे कझझक हो जाएगा। कोई दे खने सु नने िाला भी नही ं है यहाॅ।
उसने दे खा एक तरि खे तों पर ही बडा सा पक्का मकान बना था। मकान के बाहर
दो स्वराज कंपनी के टर ै क्टर ि थ्रे शर मशीन खडी थी। मकान का मुख्य दरिाजा खु ला
हुआ था।

प्रकतमा ने धडकते कदल से मुख्य दरिाजे के अं दर कदम रखा ही था कक ककसी से बडे


़िोर से टकराई। उसकी भारी भरकम छाकतयों में ककसी पु रूष का िौलाद जैसा
सीना टकराया था। प्रकतमा इस अचानक हुई घटना से बु री तरह घबरा गई। टक्कर
लगते ही िह पीछे की तरि बडी ते ़िी से कगरने ही लगी थी कक सामने नजर आए
पु रूस ने बडी सीघ्रता से उसका हाॅथ पकड कर उसे पीछे कगरने से बचा कलया।

प्रकतमा का कदल बु री तरह धडके जा रहा था। खै र सम्हलने के बाद उसकी ऩिर
सामने खडे शख्स पडी तो चौंक गई। सामने उसका दे िर किजय कसं ह कसर झुकाए
खडा था। उसे इस तरह कसर झुकाए दे ख प्रकतमा को समझ न आया कक ये कसर
झुकाए क्ों खडा है?

"क्ा बात है दे िर जी?" प्रकतमा ने मु स्कुराते हुए कहा___"़िरा दे ख कर तो चला


कीकजए। भला कोई इतनी भी ़िोर से टक्कर मारता है क्ा??"
"माफ़ कर दीकजए भाभी।" किजय कसं ह ने कसर झुकाए हुए ही शकमिंदगी से
बोला__"मु झे उम्मीद ही नही ं थी कोई इस तरह सामने से आ जाएगा।"

"चलो कोई बात नही ं किजय।" प्रकतमा ने माहौल को समान्य बनाने की गरज से
कहा___"ग़लती कसिग तु म्हारी ही बस नही ं है, मेरी भी है क्ोंकक मैने भी तो ये आशा
नही ं की थी कोई मेरे सामने से इस तरह आ टकराएगा।"

298
"पर मुझे दे ख कर बाहर आना चाकहए था न भाभी।" किजय कसं ह ने खे द भरे भाि से
कहा।
"ओहो किजय।" प्रकतमा ने कहा___"इसमें इतना खे द प्रकट करने की कोई ़िरूरत
नही ं है। ले ककन हाॅ एक बात तो कहूॅगी मैं।"

"जी ककहए भाभी।" किजय ने कहा__"अगर आप कोई स़िा दे ना चाहती हैं तो ़िरूर
दीकजए। ऐसी धृ ष्ठता के कलए मुझे स़िा तो कमलनी ही चाकहए।"
"ओफ्फो किजय किर िही बात।" प्रकतमा हैरान थी कक किजय ककस टाइप का इं सान
है। क्ा दु कनयाॅ में कोई इतना भी शरीफ़ हो सकता है? किर बोली___"मु झे तु मसे
कोई कशकायत नही ं है किजय। मैं तो बस ये कहने िाली थी कक क्ा िौलाद का सीना
है तु म्हारा जो मेरी कोमल छाकतयों का कचू मर बना कदया था?"

"ज जी क्ा मतलब?" किजय बु री तरह चौंका था। कसर उठाकर हैरानी से अपनी
भाभी की तरि दे खने लगा था िह।
"इतने भोले ना बनो किजय।" प्रकतमा ने हसते हुए कहा___"तु म भी अच्छी तरह समझ
गए हो कक मेरे कहने का क्ा मतलब था?"

"अरे ये सब बे कार की बातें छोंकडए भाभी और ये बताइये कक आप यहाॅ इतनी धूप ि


गमी में क्ों आई हैं?" किजय ने बे चैनी से पहलू बदला था___"नै ना क्ों नही ं आई?
और आपको भी इतना तकल्लुि करने की क्ा ़िरूरत थी भला?"

"क्ा तु म्हें मेरा यहाॅ आना अच्छा नही ं लगा किजय?" प्रकतमा ने दु खी भाि का नाटक
करके कहा___"क्ा मैं यहाॅ नही ं आ सकती?"
"न नही ं भाभी ऐसी कोई बात नही ं है।" किजय ने हडबडाकर कहा___"मैं बस इस
कलए ऐसा कह रहा हूॅ क्ोंकक ते ़ि धूप और गमी बहुत है। ऐसे माहौल की आपको
आदत नही ं है ना?"

"दे खो किजय तु म भी नै ना की तरह मुझे ताना मत मारने लग जाना।" प्रकतमा ने


कहा__"तु म सब मुझे ऐसा कह कर दु खी क्ों करते हो? मेरा भी कदल करता है कक मैं
भी तु म सबकी तरह ये सब करूॅ। ले ककन तु म सब अपनी इन बातों से मु झे ये सब
करने ही नही ं दे ते। मैं ही पागल हूॅ जो बे कार में इस हिे ली के लोगों को अपना
मानती हूॅ और चाहती हूॅ कक सब मु झे भी अपना समझें ।"

"ये आप क्ा कह रही हैं भाभी?" किजय हैरान परे शान सा बोला___"भला हम सब
आपके कलए ऐसा क्ों सोचें गे? माॅ बाबू जी के बाद आप दोनो ही तो हम सबसे बडी
हैं इस कलए हम सब यही चाहते हैं आप कुछ ना करें बल्कि आराम से बै ठ कर खाइये

299
और हम छोटों को से िा करने का भाग्य प्रदान करें ।"

"बस बस सब समझती हूॅ मैं।" प्रकतमा ने तु नकते हुए कहा__"अब क्ा यही ं पर खडे
रहेंगे या अं दर भी चलें गे? चकलए अं दर और हाॅ हाॅथ मु ह धोकर जल्दी से आइये।
तब तक मैं थाली लगाती हूॅ।"
"जी ठीक है भाभी।" किजय ने कहा और बाहर की तरि बढ गया। जबकक प्रकतमा
अं दर की तरि बढ गई।

अपडे ट...........《 30 》

अब तक,,,,,,,,,

"क्ा तु म्हें मेरा यहाॅ आना अच्छा नही ं लगा किजय?" प्रकतमा ने दु खी भाि का नाटक
करके कहा___"क्ा मैं यहाॅ नही ं आ सकती?"
"न नही ं भाभी ऐसी कोई बात नही ं है।" किजय ने हडबडाकर कहा___"मैं बस इस
कलए ऐसा कह रहा हूॅ क्ोंकक ते ़ि धूप और गमी बहुत है। ऐसे माहौल की आपको
आदत नही ं है ना?"

"दे खो किजय तु म भी नै ना की तरह मुझे ताना मत मारने लग जाना।" प्रकतमा ने


कहा__"तु म सब मुझे ऐसा कह कर दु खी क्ों करते हो? मेरा भी कदल करता है कक मैं
भी तु म सबकी तरह ये सब करूॅ। ले ककन तु म सब अपनी इन बातों से मु झे ये सब
करने ही नही ं दे ते। मैं ही पागल हूॅ जो बे कार में इस हिे ली के लोगों को अपना
मानती हूॅ और चाहती हूॅ कक सब मु झे भी अपना समझें ।"

"ये आप क्ा कह रही हैं भाभी?" किजय हैरान परे शान सा बोला___"भला हम सब
आपके कलए ऐसा क्ों सोचें गे? माॅ बाबू जी के बाद आप दोनो ही तो हम सबसे बडी
हैं इस कलए हम सब यही चाहते हैं आप कुछ ना करें बल्कि आराम से बै ठ कर खाइये
और हम छोटों को से िा करने का भाग्य प्रदान करें ।"

"बस बस सब समझती हूॅ मैं।" प्रकतमा ने तु नकते हुए कहा__"अब क्ा यही ं पर खडे
रहेंगे या अं दर भी चलें गे? चकलए अं दर और हाॅ हाॅथ मु ह धोकर जल्दी से आइये।
तब तक मैं थाली लगाती हूॅ।"

300
"जी ठीक है भाभी।" किजय ने कहा और बाहर की तरि बढ गया। जबकक प्रकतमा
अं दर की तरि बढ गई।
___________________________

अब आगे,,,,,,,,,,,

फ्लैशबैक आगे_______
थोडी ही दे र में किजय कसं ह हाॅथ मुह धोकर आया और जैसे ही िह अं दर एक बडे
हाल से होते हुए एक कमरे में दाल्कखल हुआ तो बु री तरह चौंका। कारर् कमरे के
अं दर प्रकतमा लकडी की एक बे न्च पर झुक कर कटकिन से खाना कनकाल कनकाल कर
उसे अलग अलग करके रख रही थी। ककन्तु झुकने की िजह से उसकी साडी का
आॅचल कंधे से ल्कखसक कर ़िमीन पर कगरा हुआ था। उसने आॅचल को आलकपन
के सहारे ब्लाउज पर िसाया हुआ नही ं था। ऐसा उसने जानबू झ कर ही ककया था।
ताकक िह जब चाहे बडी आसानी से झुक कर अपना आॅचल कगरा कर किजय को
अपनी खरबू जे जैसी बडी बडी ककन्तु ठोस चू कचयाॅ कदखा सके। उसने जो ब्लाउज
पहना था िह बडे गले का था, पीठ पर भी कािी ज्यादा खु ला हुआ था। अं दर ब्रा ना
होने के कारर् उसकी आधे से ज्यादा चू कचयाॅ कदख रही थी। िह जानती थी कक
किजय हाथ मु ह धोकर आ चु का है और अब िह कमरे के दरिाजे के पास उसके द्वारा
कदखाए जाने िाले हाहाकारी ऩिारे को दे ख एकदम से बु त बन गया है।

प्रकतमा कबलकुल भी ़िकहर नही ं कर रही थी कक िो ये सब जानबू झ कर रही है। बल्कि


िह यही दशाग रही थी कक उसे अपनी हालत का पता ही नही ं है। उसने एक बार भी
कसर उठा कर दरिाजे पर खडे किजय की तरि नही ं दे खा था। बल्कि िह उसी तरह
झुकी हुई कटकिन से खाना कनकाल कर अलग अलग रख रही थी।

किजय कसं ह मुकम्मल मदग था ककन्तु उसमें कशष्टाचार और सं स्कार कूट कूट कर भरे
हुए थे । उसे अपने से बडों का आदर सम्मान करना ही आता था। अपनी पत्नी के
अलािा िह ककसी भी औरत पर ऐसी ऩिर नही ं डालता था। खे तों पर काम करने
िाली हर ऊम्र की औरतें भी थी मगर मजाल है जो किजय कसं ह ने कभी उन पर गंदी
ऩिर डाली हो। ये तो किर भी उसकी सगी भाभी थी। कहते हैं बडी भाभी माॅ
समान होती है, उस पर गंदी दृकष्ट डालना पाप है।

किजय कसं ह को तु रंत ही होश आया। िह एकदम से हडबडा गया और साथ ही उसके
अं दर अपराध बोझ सा बै ठता चला गया। उसका मन भारी हो गया। अपने ़िहन से
इस दृष्य को तु रंत ही झटक कदया उसने । मन ही मन भगिान से ह़िारों बार तौबा की

301
उसने । उसके बाद िह बे िजह ही खाॅसते हुए कमरे के अं दर दाल्कखल हुआ। उसका
खाॅसने का तात्पयग यही था कक उसकी भाभी उसके खाॅसने की आिा़ि से अपनी
ल्कथथकत को सम्हाल ले । मगर किजय की हालत उस िक्त खराब हो गई जब उसके
खाॅसने का प्रकतमा पर कोई असर ही न हुआ। बल्कि िह तो अभी भी यही ़िाकहर
कर रही थी कक उसे अपनी हालत का पता ही नही ं है। उसने तो जब किजय को दे खा
तो बस यही कहा___"लो किजय मैने तु म्हारा स्वाकदष्ट भोजन अलग अलग करके लगा
कदया है। चलो शु रू हो जाओ, दे ख लो अभी गरमा गरम है।"

किजय को कसर झुका चु पचाप बे न्च के इस तरि ही रखी कुसी पर बै ठ गया और


चु पचाप खाना खाने लगा।

"उफ्फ किजय यहाॅ खे तों में इस गमी में भी ककतनी मेहनत करते हो तु म।" प्रकतमा ने
आह सी भरते हुए कहा___"पर शायद तु म्हारी इस सबकी आदत हो गई है। इस कलए
तु म पर जैसे कुछ िकग ही नही ं पडता। मेरा तो गमी के मारे बु रा हाल हुआ जा रहा
है। ऐसा लगता है जैसे सारे कपडे उतार कर िेंक दू ॅ अभी।"

प्रकतमा की इस बात से किजय कसं ह को ठसका लग गया। िह ़िोर ़िोर से खाॅसने


लगा।
"अरे क्ा हुआ आराम से खाओ किजय।" प्रकतमा मन ही मन मुस्कुराई थी।

उसे खाॅसता दे ख प्रकतमा तु रंत ही एक तरि मटके में रखे पानी को िास में भर
कर िास किजय के मु ह से लगा कदया। किजय की ऩिर एक बार किर से प्रकतमा के
खरबू जों पर पड गई। इस बार तो िह उसके बहुत ही पास थी। उसके खरबू जे किजय
की आॅखों से बस एक िुट ही दू र थे । इतने पास से िह उन्हें िष्ट दे ख रहा था। गोरे
गोरे खरबू जों पर एक एक ककन्तु छोटा सा कतल जो उन्हें और भी ज्यादा रसदार ि
हालत को खराब करने िाला बना रहा था। प्रकतमा इस सारी कक्रया में यही दशाग रही
थी कक उसे अभी भी अपनी हालत का कुछ पता नही ं है। और इस बार तो जैसे िह
किक्रिश ऐसा कर रही थी।

बडी मुल्किल से किजय के गले से पानी नीचे उतरा। उसे कुछ समझ नही ं आ रहा था
कक िह क्ा करे ? आज पहली बार िह ऐसी से चुएशन के बीच िसा था। किजय जब
पानी पी चु का तो प्रकतमा ने भी उसके मुख से िास हटा कलया, हलाॅकक ये उसकी
मजबू री ही थी। क्ोकक अगर िो ऐसा न करती तो किजय को शक भी हो सकता था
कक िह इस तरह उसके इतने पास झुकी क्ों है?

ककन्तु किजय कसं ह पर रहम तो उसने अभी भी नही ं ककया। िह अभी भी अपना
आॅचल कगराए हुए ही थी। अं दा़ि िही ं था जै से उसे इसका पता ही न हो। िह जानती

302
थी कक किजय उसे इस तरह दे ख कर बहुत ज्यादा असहज महसू स कर रहा है।

उसके मन में आया कक कही ं किजय ये न सोच बै ठे कक मुझे अपनी हालत का इतने दे र
से पता क्ों नही ं हो रहा? या किर ऐसा मैं जानबू झ कर उसे कदखा रही हूॅ। अगर
किजय को ये शक हो गया या उसने ऐसा महसू स कर कलया तो काम पहले ही खराब
हो जाएगा। जबकक मु झे ये सब बहुत आगे तक करना है। शु रुआत में इतना ज्यादा
कदखािा ठीक नही ं होगा। ये सोच कर ही िह सम्हल गई।

"हाय दै या।" उसने चौंकने और सकपकाने की बडी शानदार ऐल्कक्टंग की___"मेरा


आॅचल कैसे कगर गया।"

इतना कह कर उसने जल्दी से अपने आॅचल को पकड कर उसे अपने खरबू जों
ढकते हुए कंधे पर डाल कलया। किर जैसे उसने माहौल को बदलने की गरज से
किजय से कहा___"कल से मैं तु म्हारे कलए दू ध भी ले आया करूॅगी किजय।"

"ज जी,,,,।" किजय बु री तरह चौंका था___"दू दू ध...मगर ककस कलए भाभी?"
"तु म भी हद करते हो किजय।" प्रकतमा ने कहा___"खे तों में रात कदन इतनी मे हनत
करते हो और रूका सू खा खाओगे तो कम़िोर नही ं पड जाओगे? इस कलए मे हनत के
कहसाब से उस तरह का आहार भी ले ना चाकहए।"

"भाभी, इसकी कोई ़िरूरत नही ं है।" किजय ने कझझकते हुए कहा___"और िै से भी
मुझे दू दू ध पसं द नही ं है।"
"क्ाऽऽ????" प्रकतमा ने चौंकने का नाटक ककया___"हे भगिान! कैसे आदमी हो तु म
किजय? तु म्हें दू ध नही ं पसं द?? अरे दू ध के कलए सारी दु कनयाॅ पागल है।"

"क्ा मतलब???" किजय गडबडा गया, बोला___"भला इसके कलए सारी दु कनयाॅ कैसे
पागल हो सकती है???"
"तु म भी ना बु द्धू के बु द्धू ही रहोगे ।" प्रकतमा ने बु रा सा मु ह बनाया___"ये बताओ कक
आज कल दू ध के कबना ककसी का गु़िारा है क्ा? नही ं ना? सु बह उठते ही सबसे
पहले दू ध की ही बनी चाय चाकहए होती है। और इतना ही नही ं बल्कि एक कदन में
कम से कम चार बार आदमी चाय पीता है। बाॅकी बहुत सी ची़िें जो दू ध से ही
बनती हैं उनका तो कहसाब ही अलग है। अब जब यही दू ध ककसी को न कमलो तो
सोचो दु कनया पागल हो जाएगी कक नही ं?"

"हाॅ ये तो है।" किजय ने कहा।


"इसी कलए कहती हूॅ।" प्रकतमा ने कहा__"कल से तु म्हारे कलए दू ध लाया करूॅगी
और किर मैं खु द ही तु म्हें दू ध कपलाऊगी। दे खूॅगी कैसे नही ं कपयोगे तु म?"

303
किजय कसं ह की हिा शं ट। िह हैरान परे शान सा प्रकतमा को दे खने लगा। जबकक
उसकी इस हालत को दे ख कर प्रकतमा मन ही मन हस रही थी। ककन्तु प्रत्यक्ष में यही
कदखा रही थी िो ये सब उसकी से हत का ध्यान में रख कर कह रही थी। पर चू ॅकक
इन बातों में उसके दो अथग कनकल रहे थे जो किजय कसं ह को असमंजस में डाल कर
असहज कर रहे थे ।

"क्ा हुआ चु प क्ों हो गए किजय?" प्रकतमा ने कहा___"दू ध की बातों से तो नही ं


घबरा गए तु म?"
"न न नही ं तो।" किजय सकपका गया।
"दे खो किजय।" प्रकतमा ने कहा___"तु म जो मेहनत करते हो उसके कलए दू ध घी का
से िन करना बहुत ़िरूरी है । िरना बु ढापे में ककसी काम के नही ं रह जाओगे तु म।
आज गौरी को भी बोलू ॅगी कक तु म्हारे खाने पीने का अच्छी तरह से खयाल रखा
करे । अभी जब तक बच्चों की छु कट्टयाॅ हैं तब तक मैं रो़िाना तु म्हें खु द अपने हाथ से
कटकिन तै यार करके लाऊगी।"

"आ आप तो बे िजह परे शान हो रही हैं भाभी।" किजय ने बे चैनी से कहा___"मैं
रो़िाना स्वाकदष्ट और िायदे मंद भोजन ही करता हूॅ।"
"िो तो मु झे कदख ही रहा है।" प्रकतमा ने घूर कर दे खा किजय कसं ह को, बोली___"अगर
िै सा ही भोजन करते तो अपने शरीर की ऐसी हालत नही ं बना ले ते तु म।"

"ऐसी हालत????" किजय ने चौंकते हुए कहा___"क्ा हुआ भला मेरी हालत को??
अच्छा भला तो हूॅ भाभी।"
"बस बस रहने दो तु म।" प्रकतमा ने कहा__"पोज तो ऐसे दे रहे हो जैसे दारा कसं ह
तु म्ही ं हो।"

किजय कसं ह को समझ न आया कक िो क्ा कहे? दरअसल उसे अपनी भाभी से ऐसी
बात करने का ये पहला अिसर था। शादी के बाद कभी ऐसे मधुर सं बंध ही नही ं रहे
थे कक िो अपनी प्रकतमा भाभी से कभी बात करता या घुलता कमलता। खै र किजय कसं ह
ने ककसी तरह खाना खाया और सीघ्र ही उठ कर कमरे से बाहर चला गया। कमरे से
बाहर जब िह आया तब उसने जैसे राहत की साॅस ली। िह बाहर भी रुका नही ं
बल्कि खे तों की तरि ते ़ि ते ़ि करमों से बढता चला गया। जबकक कमरे से भागते हुए
बाहर आई प्रकतमा ने जब किजय को दू र खे तों पर जाते दे खा तो उसके होठों पर
कमीनी मुस्कान रें ग गई।

"आज तो इतना ही कािी था किजय।" प्रकतमा ने अजीब भाि से कहा___"मगर इतने

304
से डोज में ही तु म्हारी ये हालत बता रही है कक तु म ज्यादा कदनों तक मेरे सामने कटक
नही ं पाओगे। मेरे इस हुस्न के जाल में जल्द ही िस जाओगे। हाय किजय, थोडा जल्दी
िस जाना मेरी जान क्ोंकक ज्यादा दे र तक बदागस्त नही ं कर पाऊगी मैं।"

यही सब बडबडाती हुई प्रकतमा िापस कमरे में गई। और बे न्च से कटकिन िाले सब
बतग न इकिा करके िह कमरे से बाहर आ गई। कमरे के दरिाजों को ढु लका कर िह
मकान से बाहर आ गई और किर हिे ली की तरि बढ चली। मन में कई तरह के
खयाल बु ने जा रही थी िह।
__________________________

इधर हिे ली में दोपहर को हर कोई अपने अपने कमरे में होता था। बच्चों को भी
दोपहर की धूप में कही ं बाहर नही ं जाने कदया छाता था। माॅ बाबू जी हमेशा की तरह
नीचे िाले कहस्से पर बने अपने कमरे में ही रहते थे । बाबू जी को महाभारत पढने का
बडा शौक था। िो खाली समय में महाभारत की मोटी सी ककताब ले कर आरामदायी
कुसी पर बै ठ जाते थे अपने कमरे में। जबकक माॅ जी कबस्तर पडी रहती। उनके
घुटनों में बात की कशकायत थी इस कलए िो ज्यादा चलती किरती नही ं थी।

राज और गुकडया ज्यादातर अपने चाचा चाची के पास ही रहते थे । करुर्ा उन दोनो
को पढाती थी। राज से उसे बडा प्यार था। हिे ली में सबका अपना अपना कहस्सा था।
हलाॅकक उस िक्त बटिारा नही ं हुआ था ले ककन तीनो रहते उसी तरह थे अलग
अलग। जबकक खाना पीना सबका साथ में ही होता था। उस समय हिे ली में ऐसा था
कक अं दर से ही सबके कहस्से में जाया जा सकता था। उसके कलए हर पाकटग शन में एक
बडा सा दरिाजे थे जो ज्यादातर खु ले ही रहते थे । किजय कसं ह कजस कहस्से पर रहता
था उसी कहस्से में माॅ बाबू जी भी नीचे रहते थे । किजय और गौरी का कमरा ऊपर
िाले फ्लोर पर था। सबका खाना भी यही ं पर बनता था। नै ना अजय कसं ह िाले कहस्से
पर रहती थी। क्ोंकक िो स्कूल के समय पर खाली ही रहता था इस कलए िह उस
कहस्से में ही अकेली रहती थी। हलाॅकक उसके साथ बच्चों में से कोई भी रो़ि सोने के
कलए चला जाता था।

किजय कसं ह कदन में खे तों पर ही रहता था और किर रात में ही हिे ली आता था।
दोपहर का खाना उसे पहुॅचा कदया जाता था। हप्ते में एक दो कदन िह खे तों पर भी
रात में रुक जाता था। पर ये तभी होता था जब रुकने की ़िरूरत हो अन्यथा नही ं।

प्रकतमा के जाने के कुछ दे र बाद ही अजय कसं ह बे ड से उठा और कमरे से बाहर आ


गया। इस िक्त िह अपने कहस्से की तरि ही था। उसे पता था कक उसकी छोटी बहन
नै ना उसके कहस्से पर ही ऊपर अपने कमरे में है। िह कमरे से कनकल कर ऊपर

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जाने के कलए सीकढयों की तरि बढ गया। सीकढयाॅ चढते हुए िह ऊपर नै ना के कमरे
के पास पहुॅचा। उसने बं द दरिाजे पर आकहस्ता से हाॅथ रखा और उसे कमरे की
तरि पु श ककया। ककन्तु कमरा अं दर से बं द था। अजय कसं ह ने झुक कर दरिाजे के
की-होल सें अपनी दाकहनी आॅख सटा दी। कमरे के अं दर नै ना बे ड पर ले टी हुई
कदखी उसे । उसके हाॅथ में कोई मोटी सी ककताब थी कजसे िह मन ही मन पढ रही
थी। ये दे ख अजय कसं ह ने राहत की साॅस ली और किर दबे पाॅि िह नीचे उतर
आया।

नीचे आकर उसने पाटीशन िाले दरिाजे के पास पहुॅचा। ककन्तु उससे पहले िह
बाएॅ साइड के पाटीशन िाले दरिाजे की तरि भी दे खा। उसने ये दरिाजा बं द कर
कदया था ताकक उधर से कोई इधर का दे ख न सके। बाएॅ साइड िाला कहस्सा अभय
कसं ह ि करुर्ा का था, तथा दाएॅ साइड किजय कसं ह का जबकक बीच का कहस्सा
अजय कसं ह का था।

दाएॅ तरि िाले कहस्से के पाटीशन पर लगे दरिाजे को पार कर िह दबे पाॅि ऊपर
की तरि जाने के कलए सीकढयों की तरि बढा। उसे पता था कक सीकढयों के पास जाने
के कलए उसे माॅ बाबू जी के कमरे के सामने से होकर ही गु ़िरना पडे गा। उसका
कदल अनायास ही धडकने लगा था। माॅ बाबू जी के कमरे के पास से होकर िह दबे
पाॅि ही सीकढयों के पास पहुॅचा। उसके बाद आकहस्ता से सीकढयाॅ चढता चला
गया िह।

ऊपर आकर िह दाकहने साइड चौडी बालकनी से होते हुए गौरी के कमरे के पास
पहुॅचा। धाड धाड बजती धडकनों को काबू में रखने की असिल कोकशश भी कर
रहा था िह। ककन्तु कहते हैं ना कक चोर का कदल बे हद कम़िोर होता है, िही हाल
अजय कसं ह का था। कमरे के पास पहुॅच कर उसने दरिाजे पर हाॅथ रख कर उसे
कमरे की तरि धकेला। कमरा बे आिा़ि अं दर की तरि पु श हो गया।

ये दे ख कर अजय कसं ह की आॅखें चमक उठी ं। उसने दरिाजे बहुत ही आकहस्ता से


थोडा और अं दर की तरि धकेला ताकक िह थोडी सी कझरी से ही पहले कमरे के
अं दर की िस्तु ल्कथथकत का पता लगा सके। खै र, कझरी के बनते ही अजय कसं ह ने कमरे
के अं दर उस थोडी सी कझरी से दे खा। अं दर एक कोने की तरि रखे बे ड पर गौरी
दू सरी तरि को करिट कलए पडी थी। ऊपर छत पर पं खा मध्यम िीड से घूम रहा
था कजसकी हिा से उसकी साडी का एक कसरा कहल रहा था। गमी के कदन थे इस
कलए गौरी ने साडी को अपने बदन के ऊपरी कहस्से से हटाया हुआ था। ऊपर कसिग
ब्लाउज ही था। गदग न के नीचे पीठ की तरि िाला एक कतहाई भाग कदख रहा था तथा
नीचे कमर कदख रही थी। कमर के नीचे उसका कपछिाडा था जो कक साडी से ढका

306
हुआ ही था। उसके नीचे उसकी साडी पे टीकोट सकहत उटनों तक ऊपर ल्कखसकी हुई
थी कजसके कारर् उसकी दू ध सी गोरी कपं कडकलयाॅ िष्ट कदख रही थी। पै रों में मोटी
सी ककन्तु घुंघुरूदार पायल थी।

अजय कसं ह दरिाजे पर खडा न रह सका। िह आकहस्ता से दरिाजे को खोला और


अं दर दबे पाॅि कमरे के अं दर दाल्कखल हो गया। अं दर आकर िह दबे पाॅि ही बे ड
की तरि बढा। उसके कदल की धडकनें पू री गकत से दौड रही थी कजसकी धमक
ककसी हथौडे की तरह उसे अपनी कनपकटयों पर िष्ट बजती सु नाई पड रही थी।

बे ड के बे हद करीब पहुॅच कर अजय कसं ह रुक गया। कमरे में ल्कखडकी से आता हुआ
प्रकाश िैला हुआ था कजसकी िजह से कमरे में मौजूद हर ची़ि िष्ट कदखाई दे रही
थी। बे ड के करीब पहुॅच कर अजय कसं ह ने दे खा कक गौरी दू सरी तरि करिट कलए
पडी थी। उसने अपना बायाॅ हाॅथ मोड कर अपनी बाॅई कनपटी के नीचे रखा
हुआ था जबकक दाकहना हाॅथ उसके पे ट के आगे बे ड पर कटका हुआ था। अजय कसं ह
धडकते कदल के साथ झुक कर गौरी के चे हरे की तरि दे खा तो उसे पता चला कक
गौरी की आॅखें बं द हैं। अजय कसं ह को यकीन करना मु ल्किल था कक गौरी सो रही है
या किर उसने यू ॅ ही अपनी आॅखें बं द की हुई हैं ।

गौरी के चाॅद जैसे चे हरे पर इस िक्त ़िमाने भर की मासू कमयत थी। आज कल


उसकी तबीयत ़िरा नाशाद थी इस कलए उसके चे हरे पर िो नू र नही ं कदख रहा था जो
हमेशा रहता था। ककन्तु अजय कसं ह को तो जै से ऐसा चे हरा भी ककसी नू र से कम न
था। िह ये मान चु का था कक गौरी दु कनयाॅ की सबसे खू बसू रत औरत है। उसकी खु द
की बीिी भी खू बसू रती में कम न थी ले ककन गौरी के सामने उसकी खू बसू रती जैसे
िीकी पड जाती थी। पररिार की हर औरत खू बसू रती में एक दू सरे को मात दे रही
थी। ले ककन अजय कसं ह का कदल गौरी के कलए धडकता था। िह समझ नही ं पा रहा
था कक ये िह गौरी की खू बसू रती पर हिस की िजह से आककशग त था या किर उसे
गौरी से प्रे म था।

अजय कसं ह ने थोडा और आगे की तरि झुक कर दे खा तो एकाएक ही उसके मन में


सं गीत सा बज उठा। गौरी के सीने के दोनो बडे बडे उभार आपस में दबे होने की
िजह से उसकी ब्लाउज से बाहर झाॅक रहे थे । अजय कसं ह जैसे उनमें ही खो गया।
तभी िह बु री तरह डर भी गया। क्ोंकक उसी िक्त गौरी ने एक गहरी साॅस ले ते हुए
पहले तो हिी सी अगडाई ली और किर सीधी ले ट गई। अजय कसं ह की धडकन जो
बु री तरह बढ गई थी िो अब इस दृश्य को दे ख कर जैसे रुक ही गई। गौरी सीधी ले ट
गई थी। जैसा कक बताया जा चु का है कक गौरी ने गमी के चलते अपनी साडी को अपने
ऊपरी भाग से हटाया हुआ था। इस कलए उसके सीधा ले टते ही ब्लाउज में कैद

307
उसकी भारी छाकतयाॅ एकदम से तन गई थी। नीचे दू ध सा गोरा नं गा पे ट और उस
पर उसकी गहरी नाभी। अजय कसं ह की हालत एक पल में खराब हो गई। उसका जी
चाहा कक िह तु रंत झुक कर गौरी के पे ट और नाभी को अपनी जीभ से चू सना चाटना
शु रू कर दे ककन्तु िह ऐसा कुछ चाह कर भी नही ं कर सकता था।

गौरी की छाकतयाॅ कबना ब्रा के ककसी कुतु ब मीनार की तरह तनी हुई थी। अजय कसं ह
की नापाक ऩिरें गौरी के पू रे कजस्म को जैसे स्कैन सा कर रही थी ं। उसका खू बसू रत
चे हरा और कबना कलकपल्कस्टक के ही लाल सु खग होंठ थे उसके। कजन्हें अपने होंठो में भर
ले ने के कलए जैसे उसे आमंकत्रत कर रहे थे । और अजय कसं ह ने उस कनमंत्रर् को
स्वीकार भी कर कलया। िह मानो सम्मोकहत सा हो गया था। िह सम्मोकहत सा होकर
ही आकहस्ता आकहस्ता गौरी के चे हरे की तरि झुकने लगा। उसके हृदय की गकत
प्रकतपल रुकती हुई महसू स हो रही थी। िह गौरी के चे हरे के बे हद करीब झुक गया।
उसके नथु नों में गौरी की गमग साॅसें पडी। उसकी साॅसों की महक से जैसे िह
मदहोश सा होने लगा। उसकी साॅस भारी हो गई। उसने गहरी साॅस खी ंचकर उसे
ते ़िी से ही बाहर छोंडा और जैसे यही ं पर उससे बडी भारी ग़लती हो गई। एक तो
गहरी साॅस ले ने की आिा़ि और दू सरी ते ़िी से ही उस लम्बी साॅस को नाक के
रास्ते बाहर कनकालने से गौरी के चे हरे पर गमग साॅस का तीब्र िे ग से िशग हुआ।
कजससे गौरी की नी ंद टू ट गई। उसने पलकें झपकाते हुए अपनी आॅखें खोल दी
और....और अपने चे हरे के इतने करीब ककसी को झुके दे ख िह बु री तरह डर गई
साथ ही हडबडा भी गई। इधर अजय कसं ह को भी जैसे साॅप सा सू ॅघ गया। िह
बडी ते ़िी से सीधा खडा हो गया। ककन्तु तब तक दे र हो चु की थी।

गौरी ने जब दे खा कक उसके चे हरे पर झुका हुआ शख्स कोई और नही ं बल्कि उसका
जेठ है तो उसकी हालत खराब हो गई। मारे घबराहट के उसे समझ ही न आया कक
क्ा करे िह। किर जैसे ही कदमाग़ ने काम ककया तो उसने हडबडा कर सीघ्रता से
अपनी साडी को अपने बदन पर डाला।

"माफ़ करना गौरी।" अजय कसं ह मानो तब तक खु द को सम्हाल चु का था, इस कलए


बडी शालीनता बोला___"िो मैं दरअसल दे खने आया था कक क्ा हुआ है तु म्हें? मैने
सु ना कक कई कदन से तु म्हारी तबीयत ठीक नही ं है इस कलए दे खने चला आया था।"

गौरी बोली तो कुछ न। बोलने िाली हालत में ही नही ं थी िह। अपने कसर पर साडी
का घूॅघट डाल कर िह ते ़िी से ही बे ड से नीचे उतर आई थी और अजय कसं ह से दू र
जाकर खडी हो गई थी। उसका कदल धाड धाड करके सरपट दौडे जा रहा था।
अपनी जगह पर खडी िह थरथर काॅप रही थी। उसे लग रहा था कक उसकी
काॅपती हुई टाॅगें उसका भार ज्यादा दे र तक सह नही ं पाएॅगी। िह बडी मु ल्किल

308
से खु द को सम्हाले खडी थी।

"अरे घबराने की कोई ़िरूरत नही ं है गौरी।" उधर अजय कसं ह उसकी हालत का
बखू बी अं दा़िा लगाते हुए बोला___"तु म मेरी छोटी बहन के समान हो। मैंने कहा न
कक तु म्हें बस दे खने आया था यहाॅ। तु म आराम से सो रही थी तो मैने तु म्हें जगाना
उकचत नही ं समझा। मैं दे ख रहा था कक कैसे सारे सं सार भर की मासू कमयत अपने
चे हरे पर कलए तु म सो रही हो। अगर तु म्हें मेरा इस तरह दे खना अच्छा नही ं लगा तो
माफ़ कर दे ना अपने इस बडे भइया को।"

गौरी ने इस बार भी कुछ नही ं कहा। बल्कि िह पू िग की भाॅकत ही खडी रही। अजय
कसं ह उसका जेठ था और यहाॅ का ये ररिा़ि था कक जेठ और ससु र के सामने घू ॅघट
में ही रहना है और उनसे बोलना नही ं है। यही एक भारतीय बहू के कलए कनयम था
यहाॅ गाॅिों में।

"पता नही ं ककस शदी में जी रहे हैं ये सब लोग?" अजय कसं ह कह रहा था___"आज भी
िही पु रानी परं पराएॅ और कि़िूल के कनयम कानू न ि रीकत ररिा़िों में बधे हुए हैं
सब। शहरों में ये सब रूकढिाकदता नही ं है और ना ही िहाॅ पर इस सबको उकचत
मानता है कोई। शहर में सब लोग एक दू सरे से बोलते हैं। ककसी के ऊपर ककसी तरह
की कोई पाबं दी नही ं रहती। भारतीय कानू न ने भी हर मदग ि औरत को समानता का
अकधकार कदया हुआ है। इस कलए ये सब बे कार की परं पराएॅ छोडो तु म सब। इज्जत
सम्मान दे ने के कलए ये ़िरूरी नही ं होता कक कोई बहू अपने जेठ या ससु र के सामने
चार हाथ का घूॅघट करे और उनसे बात न करे । बल्कि इज्जत सम्मान ये सब ककये
बग़ैर भी कदया जा सकता है।"

अजय कसं ह की इन सब बातों का भला गौरी क्ा जिाब दे ती? हलाॅकक उसे भी पता
था कक शहर में िही सब कनयम चलते हैं कजसके बारे में उसका जेठ उससे कह रहा
है। ककन्तु ये सब कनयम कानू न गाॅि दे हातों में लागू नही ं हो सकते थे । ये सब यहाॅ
इतना आसान नही ं था बल्कि ऐसा करने िाली बहू को समाज के ये लोग चररत्रहीन
की सं ज्ञा दे दे ते हैं।

"खै र छोंडो ये सब।" अजय कसं ह ने कहा___"गाॅि दे हात में तो ये सब चल ही नही ं


सकता। पता नही ं कब समझेंगे ये लोग? दे श समाज की उन्नकत में बाधा ऐसी सोच ही
डालती है। खै र, मैं अभय को बोल दू ॅगा कक तु म्हें शहर ले जाए और िहाॅ ककसी
अच्छे डाक्टर से तु म्हारा इला़ि करिा दे । चलो जाओ अब तु म आराम करो।"

इतना सब कह कर अजय कसं ह कमरे से बाहर की तरि कनकल गया। जबकक गौरी

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उसके जाने के बाद भी कािी दे र तक बु त बनी खडी रही। मन में यही खयाल बार
बार डं क मार रहा था कक जेठ जी यहाॅ ककस कलए आए थे ? क्ा किर से पहले की
तरह बु री नीयत से या सच में िो उसकी तबीयत के बारे में ही जानने आए थे ? िो इस
तरह मेरे इतने करीब कैसे आ सकते थे ? क्ा मतलब हुआ इस सबका?
____________________

गौरी के पास से आकर अजय कसं ह पु नः अपने कमरे में बे ड पर ले ट गया था। उसका
कदल अभी तक सामान्य नही ं हुआ था। अं दर अभी भी घबराहट के कनसां शे ष थे । बे ड
पर पडे पडे िह इन्ही ं सब बातों के बारे में सोचे जा रहा था। बार बार िह इस खयाल
से डर जाता था कक अच्छा हुआ समय रहते उसने िस्तु ल्कथथकत को सम्हाल कलया था
िरना कुछ भी हो सकता था। अपनी बातों से उसने गौरी को जता कदया था कक िो
कसिग उसकी तबीयत के बारे में ही जानने के कलए आया था उसके कमरे में। ककन्तु
उसके मन में बार बार ये सिाल भी उठ जाता था कक क्ा िह अपनी बातों से गौरी
को सं तुष्ट कर पाया था? कही ं ऐसा तो नही ं कक गौरी को उस पर अभी भी कोई सं देह
है? िह ककसी कनष्कशग पर न पहुॅचा था।

अपने कमरे में िह जाने ककतनी ही दे र तक इस सबके बारे में सोचता रहा। उसे होश
तब आया जब उसके कमरे का दरिाजा खोल कर उसकी पत्नी प्रकतमा अं दर दाल्कखल
हुई। धूप और गमी से आने के कारर् उसकी हालत खराब थी। पसीने से उसका
कजस्म चमक रहा था। पतली सी साडी उसके शरापा बदन से कचपकी हुई थी। कमरे
में आते ही प्रकतमा ने पहले कमरे का दरिाजा बं द ककया उसके बाद सीधा बे ड पर
आकर चारो खाने कचि होकर पसर गई। ले टते ही गहरी गहरी साॅसें ले ने लगी िह।
बडे गले के ब्लाउज से उसकी भारी चू कचयाॅ आधे से ज्यादा कदख रही थी।

अजय कसं ह ने जब उसे इस हालत में दे खा तो उससे रहा न गया। गौरी को दे खकर ही
उसके अं दर आग सी लग गई थी और अब अपनी पत्नी को इस तरह दे खा तो होश
खो बै ठा िह। प्रकतमा आॅखें कर गहरी साॅसें ले रही थी जबकक अजय कसं ह ने उसे
पल भर में दबोच कलया। िह इतना उतािला हो चु का था कक िह प्रकतमा के ब्लाउज
को उसके ऊपरी गले के भाग िाले कसरों को पकड कर एक झटके से िाड कदया।
ना़िुक सा ब्लाउज था बे चारा िह अजय कसं ह झटका नही ं सह सका। ब्लाउज के सारे
बटन एक साथ टू टते चले गए। अजय कसं ह पागल सा हो गया था। ब्लाउज के अलग
होते ही प्रकतमा की भारी भरकम चू कचयाॅ उछल कर बाहर आ गईं। अजय ने उन
दोनो िुटबालों को दोनो हाथों से शख्ती से दबोच कर उनके कनप्पल को अपना मु ह
खोल कर भर कलया और बु री तरह से उन्हें चु भलाने लगा।

प्रकतमा एकाएक ही हुए इस हमले से हतप्रभ सी रह गई। ककन्तु अजय की रग रग से

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िाककि थी इस कलए बस मुस्कुरा कर रह गई। अजय कसं ह उसकी चू कचयों को बु री
तरह मसल रहा था और साथ ही साथ उनको अपने दाॅतों से काटता भी जा रहा था।
िह पल भर में जानिर ऩिर आने लगा था।

"आहहहहह धीरे से अजय।" प्रकतमा की ददग में डूबी कराह कनकल गई___"ददग हो रहा
है मु झे। ये कैसा पागलपन है? क्ा हो गया है तु म्हें?"
"चु पचाप ले टी रह मेरी राॅड।" अजय कसं ह मानो गुराग या___"िरना ब्लाउज की तरह
ते रा सब कुछ िाड कर रख दू ॅगा।"

"अरे तो िाड ना भडिे ।" प्रकतमा भी उसी लहजे में बोली___"लगता है गौरी का भू त
किर से सिार हो गया तु झे। चल अच्छा हुआ, जब जब ये भू त सिार होता है तु झ पर
तब तब तू मेरी मस्त पे लाई करता है। आहहहह हाय िाड दे रे ....मु झ पर भी बडी
आग लगी हुई है। शशशश आहहहह रं डे के जने नीचे का भी कुछ खयाल कर। क्ा
चू कचयों पर ही लगा रहेगा?"

"हराम़िादी साली।" अजय कसं ह उठ कर प्रकतमा की साडी को पे टीकोट सकहत एक


झटके में उलट कदया। साडी और पे टीकोट के हटते ही प्रकतमा नीचे से पू री तरह नं गी
हो गई।

"साली पे न्टी भी पहन कर नही ं गई थी उस मजदू र के पास।" अजय कसं ह ने ़िोर से


प्रकतमा की चू त को अपने एक हाॅथ से दबोच कलया। प्रकतमा की कससकारी गूॅज
उठी कमरे में।

"आहहहह दबोचता क्ा है रं डी के जने उसे मु ह लगा कर चाट ना।" प्रकतमा अपने
होशो हिाश में नही ं थी___"उस हरामी किजय ने तो कुछ न ककया। हाय अगर एक
बार कहता तो क्ा मैं उसे खोल कर दे न दे ती? आहहह ऐसे ही चाट.....शशशशश
अं दर तक जीभ डाल भडिे की औलाद।"

अजय कसं ह पागल सा हो गया। उसे इस तरह की गाली गलौज िाला से र्क् बहुत
पसं द था। प्रकतमा को भी इससे बडा आता था। और आज तो दोनो पर आग जैसे
भडकी हुई थी। अजय कसं ह प्रकतमा की चू त में मानो घुसा जा रहा था। उसका एक
हाॅथ ऊपर प्रकतमा की एक चू ची पर कजसे िह बे ददी से मसले जा रहा था जबकक
दू सरा हाथ प्रकतमा की चू त की िाॅकों पर था कजन्हें िह ़िरूरत के कहसाब से िैला
रहा था।

कमरे में हिस ि िासना का तू िान चालू था। प्रकतमा की कससकाररयाॅ कमरे में

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गूॅजती हुई अजीब सी मदहोशी का आलम पै दा कर रही थी। अजय कसं ह उसकी चू त
पर कािी दे र तक अपनी जीभ से चु हलबाजी करता रहा।

"आहहहह ऐसे ही रे बडा म़िा आ रहा है मु झे।" प्रकतमा बडबडा रही थी। उसकी
आॅखें म़िे में बे द थी। बे ड पर पडी िह कबन पानी के मछली की तरह छटपटा रही
थी।

"शशशश आहहह अब उसे छोंड और जल्दी से पे ल मु झे भडिे हरामी।" प्रकतमा ने


हाॅथ बढा कर अजय कसं ह के कसर के बालों को पकड कर ऊपर उठाया। अजय कसं ह
उसके उठाने पर उठा। उसका पू रा चे हरा प्रकतमा के चू त रस से भी ंगा हुआ था। ऊपर
उठते ही िह प्रकतमा के होठों पर टू ट पडा। प्रकतमा अपने ही चू त रस का स्वाद ले ने
लगी इस कक्रया से ।

प्रकतमा ने खु द को अलग कर बडी ते ़िी से अजय कसं ह के कपडों उतारना शु रू कर


कदया। कुछ ही पल में अजय कसं ह मादरजाद नं गा हो गया। उसका हकथयार िनिना
कर बाहर आ गया। प्रकतमा उकडू ले ट कर तु रंत ही उसे एक हाथ से पकड कर मु ह में
भर कलया।

अजय कसं ह की म़िे से आॅखें बं द हो गई तथा मुह से आह कनकल गई। िह प्रकतमा के


बालों को मजबू ती से पकड कर उसके मु ह में अपनी कमर कहलाते हुए अपना
हकथयार पे लने लगा। िह पू री तरह जानिर ऩिर आने लगा था। ़िोर ़िोर से िह
प्रकतमा के गले तक अपना हकथयार पे ल रहा था। प्रकतमा की हालत खराब हो गई।
उसका चे हरा लाल सु खग पड गया। आॅखें बाहर को आने लग जाती थी साथ ही
आॅखों से आॅसू भी आने लगे। तभी अजय ने उसके कसर को पीछे की तरि से
पकड कर अपने हकथयार की तरि मजबू ती से खी ंचा। नतीजा ये हुआ कक उसका
हकथयार पू रा का पू रा प्रकतमा के मु ह मे गले तक चला गया। प्रकतमा की आॅखें बाहर
को उबल पडी। आॅखों से आॅसू बहने लगे। साॅस ले ना मुल्किल पड गया उसे ।
उसका कजस्म झटके खाने लगा। उसके मु ह से लार टपकने लगी।

प्रकतमा को लगा कक उसकी साॅसें टू ट जाएॅगी। अजय कसं ह उसे मजबू ती से पकडे
हुए था। िह अपने मुह से उसके हकथयार को कनकालने के कलए छटपटाने लगी।
अजय को उसकी इस हालत का ़िरा भी खयाल नही ं था, िह तो म़िे में आॅकें बं द
ककये ऊपर की तरि कसर को उठाया हुआ था।

प्रकतमा के मु ह से गूॅ गूॅ की अजीब सी आिा़िे कनकल रही थी। जब उसने दे खा कक


अजय कसं ह उसे मार ही डाले गा तो उसने अपने दोनो हाॅथों से अजय कसं ह के पे ट पर

312
पू री ताकत से कचकोटी काटी।

"आहहहहहहह।" अजय कसं ह के मु ह से चीख कनकल गई। िह एक झटके से उसके


कसर को छोंड कर तथा उसके मुह से अपने हकथयार को कनकाल कर अलग हट गया।
म़िे की कजस दु कनयाॅ में िह अभी तक परिा़ि कर रहा था उस दु कनया से कगर कर
िह हकीकत की दु कनयाॅ में आ गया था। बे ड के दू सरी तरि घुटनो पर खडा िह
अपने पे ट के उस कहस्से को सहलाए जा रहा था जहाॅ पर प्रकतमा ने कचकोटी काटी
थी। उसे प्रकतमा की इस हरकत पर बे हद गु स्सा आया था ककन्तु जब उसने प्रकतमा की
हालत को दे खा तो हैरान रह गया। प्रकतमा का चे हरा लाल सु खग तमतमाया हुआ था।
िह बे ड पर पडी अपनी साॅसें बहाल कर रही थी।

"तु मको ़िरा भी अं दा़िा है कक तु मने क्ा ककया है मेरे साथ?" प्रकतमा ने गुस्से से
िंु कारते हुए कहा___"तु म अपने म़िे में ये भी भू ल गए कक मेरी जान भी जा सकती
थी। तु म इं सान नही ं जानिर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना िरना
मुझसे बु रा कोई नही ं होगा।"

अजय कसं ह उसकी ये बातें सु नकर हैरान रह गया था। ककन्तु जब उसे एहसास हुआ
कक िास्ति में उसने क्ा ककया था तो िह शकमिंदगी से भर गया। िह जानता था कक
प्रकतमा िह औरत थी जो उसके कहने पर दु कनया का कोई भी काम कर सकती थी
और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रकत प्यार था िरना कौन ऐसी औरत है जो
पकत के कहने पर इस हद तक भी कगरने लग जाए कक िह ककसी भी ग़ैर मदग के नीचे
अपना सब कुछ खोल कर ले ट जाए???? अजय कसं ह को अपनी ग़लती का एहसास
हुआ। िह तु रंत ही आगे बढ कर प्रकतमा से मािी माॅगने लगा तथा उसको पकडने
के कलए जैसे ही उसने हाथ बढाया तो प्रकतमा ने झटक कदया उसे ।

"डोन्ट टच मी।" प्रकतमा गुरागई और किर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई िह बे ड से
नीचे उतरी और बाथरूम के अं दर जाकर दरिाजा बं द कर कलया उसने । अजय कसं ह
शकमिंदा सा उसे दे खता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस कलए उसकी कहम्मत न
हुई कक िह प्रकतमा को रोंक सके। उधर थोडी ही दे र में प्रकतमा बाथरूम से मु ह हाॅथ
धोकर कनकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज कनकाल कर पहना, तथा उसी साडी
को दु रुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में दे ख कर अपने हुकलये को सही
ककया। सब कुछ ठीक करने के बाद िह कबना अजय की तरि दे खे कमरे से बाहर
कनकल गई। अजय कसं ह समझ गया था कक प्रकतमा उससे बे हद नारा़ि हो गई है।
उसका नारा़ि होना जाय़ि भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले ले ने
िाला से र्क् करता है?? अजय कसं ह असहाय सा नं गा ही बे ड पर पसर गया था।

313
अपडे ट...........《 31 》

अब तक,,,,,,,

"तु मको ़िरा भी अं दा़िा है कक तु मने क्ा ककया है मेरे साथ?" प्रकतमा ने गुस्से से
िंु कारते हुए कहा___"तु म अपने म़िे में ये भी भू ल गए कक मेरी जान भी जा सकती
थी। तु म इं सान नही ं जानिर हो अजय। आज के बाद मेरे करीब भी मत आना िरना
मुझसे बु रा कोई नही ं होगा।"

अजय कसं ह उसकी ये बातें सु नकर हैरान रह गया था। ककन्तु जब उसे एहसास हुआ
कक िास्ति में उसने क्ा ककया था तो िह शकमिंदगी से भर गया। िह जानता था कक
प्रकतमा िह औरत थी जो उसके कहने पर दु कनया का कोई भी काम कर सकती थी
और करती भी थी। ये उसका अजय के प्रकत प्यार था िरना कौन ऐसी औरत है जो
पकत के कहने पर इस हद तक भी कगरने लग जाए कक िह ककसी भी ग़ैर मदग के नीचे
अपना सब कुछ खोल कर ले ट जाए???? अजय कसं ह को अपनी ग़लती का एहसास
हुआ। िह तु रंत ही आगे बढ कर प्रकतमा से मािी माॅगने लगा तथा उसको पकडने
के कलए जैसे ही उसने हाथ बढाया तो प्रकतमा ने झटक कदया उसे ।

"डोन्ट टच मी।" प्रकतमा गुरागई और किर उसी तरह गुस्से में तमतमाई हुई िह बे ड से
नीचे उतरी और बाथरूम के अं दर जाकर दरिाजा बं द कर कलया उसने । अजय कसं ह
शकमिंदा सा उसे दे खता रह गया। उसमें अपराध बोझ था इस कलए उसकी कहम्मत न
हुई कक िह प्रकतमा को रोंक सके। उधर थोडी ही दे र में प्रकतमा बाथरूम से मु ह हाॅथ
धोकर कनकली। आलमारी से एक नया ब्लाउज कनकाल कर पहना, तथा उसी साडी
को दु रुस्त करने के बाद उसने आदमकद आईने में दे ख कर अपने हुकलये को सही
ककया। सब कुछ ठीक करने के बाद िह कबना अजय की तरि दे खे कमरे से बाहर
कनकल गई। अजय कसं ह समझ गया था कक प्रकतमा उससे बे हद नारा़ि हो गई है।
उसका नारा़ि होना जाय़ि भी था। भला इस तरह कौन अपनी पत्नी की जान ले ले ने
िाला से र्क् करता है?? अजय कसं ह असहाय सा नं गा ही बे ड पर पसर गया था।

अब आगे,,,,,,,,,,
फ्लैशबैक अब आगे______

उस कदन और उस रात प्रकतमा ने अजय कसं ह की तरि दे खा तक नही ं बात करने की

314
तो बात दू र। अजय कसं ह अपनी पत्नी के इस रिै ये बे हद परे शान हो गया था, िह अपने
ककये पर बे हद शकमिंदा था। िह जानता था कक उसने ग़लती की थी ककन्तु अब जो हो
गया उसका क्ा ककया जा सकता था? उसने कई बार प्रकतमा से उस कृत्य के कलए
माफ़ी माॅगी ले ककन प्रकतमा हर बार उसे गु स्से से दे ख कर उससे दू र चली गई थी।

खै र दू सरा कदन शु रू हुआ। आज प्रकतमा का रिै या एकदम सामान्य था। कदाकचत्


रात के बाद अब उसका गुस्सा उतर गया था। कपछली रात िह दू सरे कमरे में अं दर से
कंु डी लगा कर सोई थी। िह जानती थी अजय उसे मनाने उसके पास आएगा और
हुआ भी िही ले ककन प्रकतमा कमरे का दरिाजा नही ं खोला था। अजय कसं ह मु ह
लटकाए िापस चला गया था। रात में प्रकतमा ने इस बारे में बहुत सोचा और इस
कनष्कसग पर पहुॅची कक अजय कसं ह का इसमें भला क्ा दोष हो सकता है? उस सू रत
में कोई भी मदग िही करता जो उसने ककया। म़िे की चरम सीमा का एक रूप ऐसा
भी हो सकता है कक िह उस सू रत में सब कुछ भू ल बै ठता है। अजय कसं ह के साथ भी
तो िही हुआ था। प्रकतमा उससे प्यार भी बहुत करती थी, िह उससे इस तरह बे रूखी
अल्कख्तयार नही ं कर सकती थी बहुत दे र तक।

सु बह जब हुई तो सबसे पहले िह अजय कसं ह से बडे प्यार से कमली। अजय कसं ह इस
बात से बे हद खु श हुआ। खै र, दोपहर में प्रकतमा किर से किजय कसं ह के कलए खाने का
कटकिन तै यार कर तथा एक प्लाल्कस्टक के बोतल में पका हुआ दू ध ले कर खे तों की
तरि चल दी। आज भी उसने कपछले कदन की ही तरह कलबास पहना हुआ था।
खू बसू रत गोरे बदन पर आज उसने पतली सी पीले रं ग की साडी और उसी से मैच
करता बडे गले का ब्लाउज पहना था। ब्लाउज के अं दर आज भी उसने ब्रा नही ं पहना
था।

प्रकतमा मदमस्त चाल से तथा मन में ह़िारों खयाल बु नते हुए खे तों पर बने मकान में
पहुॅची। कपछले कदन की ही तरह आज भी आस पास खे तों पर कोई मजदू र ऩिर
नही ं आया उसे ,अलबिा किजय कसं ह ़िरूर उसे दाईं तरि लगे बोरबे ल पर ऩिर
आया। िह बोर के पानी से हाॅथ मु ह धो रहा था।

प्रकतमा ने ग़ौर से उसे दे खा किर मु स्कुरा कर मकान के अं दर की तरि बढ गई।


कमरे में पहुॅच कर उसने कपछले कदन की ही तरह बे न्च पर कटकिन से कनकाल कर
खाना लगाने लगी। आज उसने अपना आॅचल ढु लकाया नही ं था। शायद ये सोच
कर कक किजय कही ं ये न सोच बै ठे कक रो़ि रो़ि मैं अपना आॅचल क्ों कगरा दे ती
हूॅ?

कुछ ही दे र में किजय कसं ह कमरे में आ गया। कमरे में अपनी भाभी को दे ख कर िह

315
चौंका किर सामान्य होकर िही ं बे न्च के पास कुसी पर बै ठ गया।

"आज भी आपको ही कस्ट उठाना पडा भाभी।" किजय कसं ह ने कहा___"ककतनी ते ़ि


धूप और गमी होती है , कही ं आपको लू लग गई और आप बीमार हो गई तो??"

"अरे कुछ नही ं होगा मु झे।" प्रकतमा ने कहा___"इतनी भी ना़िुक नही ं हूॅ जो इतने से
ही बीमार हो जाऊगी। और अगर हो भी जाऊगी तो क्ा हुआ? मेरी दिाई करिाने
तु मको ही जाना पडे गा। जाओगे न मुझे ले कर?"

"अरे क्ा बात करती हैं आप?" किजय कसं ह गडबडाया___"भगिान करे आपको कभी
कुछ न हो भाभी।"
"हमारे चाहने से क्ा होता है?" प्रकतमा ने कहा___"कजसको जब जो होना होता है िो
हो ही जाता है। इस कलए कह रही हूॅ कक अगर मैं बीमार पड जाऊ तो तु म मु झे ले
चलोगे न डाक्टर के पास??"

"इसमें भला पू छने की क्ा बात है?" किजय कसं ह ने कहा___"और हाॅ आपको
डाक्टर के पास ले जाने की ़िरूरत नही ं पडे गी बल्कि डाक्टर को मैं खु द आपके
पास ले आऊगा।"

"ऐसा शायद तु म इस कलए कह रहे हो कक तु म मुझे अपने साथ ले जाना ही नही ं


चाहते ।" प्रकतमा ने बु रा सा मु ह बनाया___"सोचते होगे कक मुझ बु कढया को कौन ढोता
किरे गा?"

"बु बु कढया???" किजय कसं ह को किर से ठसका लग गया। िह ़िोर ़िोर से खाॅसने
लगा। प्रकतमा ने सीघ्रता से उठ कर मटके से िास में पानी कलये उसके मु ह से लगा
कदया। इस बीच उसे सच में ध्यान न आया कक उसका आॅचल नीचे कगर गया है।

"क्ा हुआ आज भी ठसका लग गया तु म्हें?" प्रकतमा ने कहा___"क्ा रो़ि ऐसे ही


होता है खाते समय?"

किजय कसं ह कुछ बोल न सका। उसकी आॅखों के बहुत पास प्रकतमा की बडी बडी
चू कचयाॅ आधे से ज्यादा ब्लाउज से झल
ू ती कदख रही थी। किजय कसं ह की हालत पल
भर में खराब हो गई। िह पानी पीना भू ल गया था।

"क्ा हुआ पानी कपयो न?" प्रकतमा ने कहा किर अनायास ही उसका ध्यान इस तरि
गया कक किजय उसके सीने की तरि एकटक दे खे जा रहा है। ये दे ख िह मु स्कुराई।
"आज दू ध ले कर आई हूॅ तु म्हारे कलए।" प्रकतमा ने मु स्कुराते हुए कहा___"और हाॅ

316
जहाॅ दे ख रहे हो न िहाॅ सू खा पडा है। इस कलए तो अलग से लाई हूॅ।"

किजय कसं ह को जबरदस्त झटका लगा। प्रकतमा को लगा कही ं उसने ज्यादा तो नही ं
बोल कदया। अं दर ही अं दर घबरा गई थी िह ककन्तु चे हरे से ़िाकहर न होने कदया
उसने । बल्कि सीधी खडी होकर उसने अपने आॅचल को सही कर कलया था।

"अरे ऐसे आॅखें िाड िाड कर क्ा दे ख रहे हो मु झे?" प्रकतमा हसी___"मैं तो
म़िाक कर रही थी तु मसे । दे िर भाभी के बीच इतना तो चलता है न? चलो अब जल्दी
से खाना खाओ।"

किजय कसं ह चु पचाप खाना खाने लगा। इस बार िह बडा जल्दी जल्दी खा रहा था।
ऐसा लगता था जैसे उसे कही ं जाने की बडी जल्दी थी।

"तु म खाना खाओ तब तक मैं बाहर घूम ले ती हूॅ।" प्रकतमा ने कहा___"और हाॅ दू ध
़िरूर पी ले ना।"
"जी भाभी।" किजय ने नीचे को कसर ककये ही कहा था।

उधर प्रकतमा मु स्कुराती हुई कमरे से बाहर कनकल गई। पता नही ं क्ा चल रहा था
उसके कदमाग़ में?"
_______________________

ितगमान________

"अरे नै ना बु आ आप??" ररतू जैसे ही हिे ली के अं दर डर ाइं ग रूम में दाल्कखल हुई तो
सोिे पर नै ना बै ठी कदखी___"ओह बु आ मैं बता नही ं सकती कक आपको यहाॅ दे ख
कर मैं ककतना खु श हुई हूॅ।"

"ओह माई गाड।" नै ना सोिे से उठते हुए ककन्तु हैरानी से बोली___"तू तो पु कलस
िाली बन गई। ककतनी सु न्दर लग रही है ते रे बदन पर ये पु कलस की िदी। आई एम
सो प्राउड आि यू। आ मेरे गले लग जा ररतू ।"

दोनो एक दू सरे के गले कमली। किर दोनो एक साथ ही सोिे पर बै ठ गई।

"मुझे डै ड ने बताया ही नही ं कक आप आईं हैं यहाॅ।" ररतू ने खे द भरे भाि से


कहा___"िरना मैं पु कलस थाने से भाग कर आपके पास आ जाती। खै र, आब बताइये
कैसी हैं आप और िूिा जी कैसे हैं?"

317
"मैं तो ठीक ही हूॅ ररतू ।" नै ना ने सहसा गंभीर होकर कहा___"ले ककन ते रे िूिा जी
का पू छो ही मत।"
"अरे ऐसा क्ों कह रही हैं आप?" ररतू ने चौंकते हुए कहा____"िूिा जी के बारे में
क्ों न पू छूॅ भला?"

"क्ों कक अब िो ते रे िूिा जी नही ं रहे।" नै ना ने कहा___"मैने उस नामदग को तलाक़


दे कदया है और अब यही ं रहूॅगी अपने घर में।"
"त...ला...क़????" ररतू बु री तरह उछल पडी थी___"ले ककन क्ों बु आ? ऐसी भी भला
क्ा बात हो गई कक आपने उन्हें तलाक़ दे कदया?"

नै ना ने कुछ पल सोचा और किर सारी बात बता दी उसे जो उसने प्रकतमा को बताई
थी। सारी बातें सु नने के बाद ररतू सन्न रह गई।

"ठीक ककया आपने ।" किर ररतू ने कहा___"ऐसे आदमी के पास रहने का कोई
मतलब ही नही ं है जो ऐसी सोच रखता हो।"
"ररतू मैं सोच रही हूॅ कक मैं कोई ज्वाब कर लू ॅ।" नै ना ने कहचककचाते हुए
कहा___"अगर ते री ऩिर में मेरे कलए कोई ज्वाब हो तो कदलिा दे मुझे।"

"आपको ज्वाब करने की क्ा ़िरूरत है बु आ?" ररतू ने हैरानी से कहा___"क्ा आप


ये समझती हैं कक आप हमारे कलए बोझ बन जाएॅगी?"
"ऐसी बात नही ं है ररतू ।" नै ना ने कहा__"बस मेरा मन बहलता रहेगा। सारा कदन बे ड
पर पडे पडे इस सबके बारे में सोच सोच कर कुढती रहूॅगी। इस कलए अगर कोई
ज्वाब करने लगू ॅगी तो मेरा कदन आराम से कट जाया करे गा।"

"क्ा इस बारे में आपने डै ड से बात की है?" ररतू ने कहा।


"भइया और भाभी से मैने अभी इस बारे में कोई बात नही ं की है ।" नै ना ने
कहा___"पर मैं जानती हूॅ कक भइया मु झे ज्वाब करने की इजा़ित कभी नही ं दें गे।
िो भी यही समझेंगे कक मैं उनके कलए बोझ बन जाऊगी ऐसा मैं सोच रही हूॅ।"

"हाॅ ये बात है ही।" ररतू ने कहा___"हम में से कोई नही ं चाहेगा कक आप कोई ज्वाब
करें ।"
"नही ं ररतू प्ली़ि।" नै ना ने ररतू के हाॅथ को अपने हाथ में ले कर कहा___"समझने
की कोकशश कर मेरी बच्ची। क्ा तू चाहती है कक ते री बु आ उस सबके बारे में सोच
सोच कर दु खी हो?"

"नही ं बु आ हकगग ़ि नही ं।" ररतू ने मजबू ती से इं कार में कसर कहलाया___"मैं तो चाहती
हूॅ कक मेरी प्यारी बु आ हमेशा खु श रहें।"

318
"तो किर कोई ज्वाब कदलिा दे मु झे।" नै ना ने कहा___"मैं कोई भी काम करने को
तै यार हूॅ। बस काम ऐसा हो कक मुझे एक से कण्ड के कलए भी कुछ सोचने का समय
न कमले ।"

"ज्वाब तो मैं आपको कदलिा दू ॅगी।" ररतू ने कहा____"ले ककन उससे पहले एक बार
डै ड से भी इसके कलए पू छना पडे गा।"
"ठीक है मैं बात करूॅगी भइया से ।" नै ना ने कहा___"अब जा तू भी चे न्ज कर ले तब
तक मैं ते रे कुछ खाने का बं दोबस्त करती हूॅ।"

"आप परे शान मत होइये बु आ।" ररतू ने कहा____"माॅम हैं ना इस सबके कलए।"
"इसमें परे शानी की क्ा बात है?" नै ना ने कहा___"शादी से पहले भी तो मैं यही
करती थी ते रे कलए भू ल गई क्ा?"

"कैसे भू ल सकती हूॅ बु आ?" ररतू ने मु स्कुरा कर कहा___"मु झे सब याद है । आप हम


तीनो बहन भाई को पढाया करती थी और कपटाई भी करती थी।"
"अरे िो तो मैं प्यार से मारती थी।" नै ना हस पडी___"और िो ़िरूरी भी तो था न?"
"सही कह रही हैं आप।" ररतू ने कहा__"जब तक हम बच्चे रहते हैं तब तक हमें ये
सब बु रा लगता है और जब बडे हो जाते हैं तो लगता है कक बचपन में पढाई के कलए
जो कपटाई होती थी िो हमारे भले के कलए ही होती थी।"

"मैने घर के सभी बच्चों को पढाया था।" नै ना ने कुछ सोचते हुए कहा___"ककन्तु उन


सभी बच्चों में एक ही ऐसा बच्चा था जो मेरे हाॅथों मार नही ं खाया और िो था हमारा
राज। मैं सोचा करती थी कक ऐसा कौन सा सिाल उससे करूॅ जो उससे न बने और
किर मैं उसकी कपटाई करूॅ मगर हाय रे ककतना ते ़ि था राज। हर किषय उसका
कम्प्प्लीट रहता था। छोटे भइया भाभी ने उसे बचपन से ही पढाई में जीकनयस बना
रखा था। िै सी ही कनधी भी थी। जाने कहाॅ होंगे िो सब?"

कहते कहते नै ना की आॅखों में आॅसू आ गए। ररतू के चे हरे पर बे हद ही गंभीर भाि
आ गए थे । उसके मुख से कोई शब्द नही ं कनकला बल्कि शख्ती से उसने मानो लब
सी कलए थे ।

"क्ा हो गया है इस घर की खु कशयों को?" नै ना ने गंभीरता से कहा___"न जाने


ककसकी ऩिर लग गई इस घर के हसते मु स्कुराते हुए लोगो पर? सब कुछ कबखर
गया। किजय भइया क्ा गए जैसे इस घर की रूह ही चली गई। माॅ बाबू जी उनके
सदमें में कोमा में चले गए। गौरी भाभी और उनके बच्चे जाने दु कनयाॅ के ककस कोने
में जी रहे होंगे? बडी भाभी ने बताया कक करुर्ा भाभी भी अपने बच्चों के साथ अपने

319
मायके चली गईं हैं जबकक अभय भइया ककसी काम से कही ं बाहर गए हैं। इतनी बडी
हिे ली में कगनती के चार लोग हैं। ये भाग्य की कैसी किडम्बना है ररतू ???"

"ये सिाल ऐसा है बु आ जो हर शख्स की ़िुबां पर रक्श करता है।" ररतू ने


कहा___"ले ककन उसका कोई जिाब नही ं है।"
"जबाि तो हर सिाल का होता है ररतू ।" नै ना ने कहा___"सं सार में ऐसा कुछ है ही
नही ं कजसका जिाब न हो।"

"आप कहना क्ा चाहती हैं बु आ?" ररतू ने हैरानी से दे खा था।


"कहने को तो बहुत कुछ है ररतू ।" नै ना ने गहरी साॅस ली___"ले ककन कहने का कोई
मतलब नही ं है।"

"प्लीज ककहए न बु आ।" ररतू ने कहा__"अगर कोई बात है मन में तो बे कझझक


ककहये।"
"जाने दे ररतू ।" नै ना ने पहलू बदला___"तू सु ना कैसी चल रही है ते री पु कलस की
नौकरी??"

"बस ठीक ही है बु आ।" ररतू की आॅखों के सामने किधी का चे हरा नाच


गया___"आप तो जानती ही हैं इस नौकरी में कदन रात भागा दौडी ही होती रहती है।
कभी इस मुजररम के पीछे तो कभी ककसी क़ाकतल के पीछे ।"

"हाॅ ये तो है।" नै ना ने कहा___"ले ककन पु कलस आिीसर बनने का सपना तो तू ने ही


दे खा था न बचपन से ।"
"बचपन में तो बस ये सब एक बचपना टाइप का था बु आ।" ररतू ने कहा___"ले ककन
जब बडे होने पर हर ची़ि की समझ आई तो लगा कक सचमुच मुझे पु कलस आिीसर
बनना चाकहए। मेरी ख्वाकहश थी कक पु कलस आिीसर बन कर मैं दादा दादी जी के
एर्क्ीडे न्ट िाला केस किर से ररओपे न करके उसकी तहकीक़ात करूॅगी। मगर
सब कुछ जैसे एक ख्वाकहश मात्र ही रह गया।"

"क्ा मतलब???" नै ना चौंकी।


"मतलब ये बु आ कक मैं दादा जी के एर्क्ीडे न्ट िाले केस में कुछ नही ं कर सकती।"
ररतू ने असहाय भाि से कहा___"क्ोंकक मैने उस केस की िाइल को बहुत बारीकी
से पढा है , उसमें कही ं पर भी ये नही ं कदखाया गया कक िो एर्क्ीडे न्ट एक सोची
समझी साकजश का नतीजा था बल्कि ये ररपोटग बना कर िाइल बं द कर दी गई कक िो
एर्क्ीडे न्ट महज एक हादसा या दु घगटना थी जो कक सामने से आ रहे टर क से टकराने
से हो गई थी। टर क का डर ाइिर नशे में था कजसकी िजह से उसने ध्यान ही नही ं कदया

320
और साइड होने बजाय उसने दादा जी की कार से टकरा गया था।"

"ले ककन सिाल ये है कक तु झे ऐसा क्ों लगता है कक िो एर्क्ीडे न्ट महज दु घगटना नही ं
बल्कि ककसी की सोची समझी साकजश थी?" नै ना ने हैरानी से कहा___"यानी कोई
बाबू जी को जान से मार दे ना चाहता था।"

"मुझे शु रू में इस बात का कसिग अं देशा था बु आ।" ररतू कह रही थी___"िो भी इस


कलए क्ोंकक ऐसा शहरों में होता है। दादा जी की ककसी से कोई दु श्मनी नही ं थी।
किर भी उनके साथ ये हादसा हुआ। उस समय इसके बारे में इस एं गल से मेरा कसिग
सोचना था। मैं नही ं जानती थी मैं ऐसा क्ों सोचती थी? शायद इस कलए कक शु रू से
ही मेरे ़िहन में क्राइम के प्रकत सोचने का ऐसा ऩिररया था। ककन्तु पु कलस की नौकरी
ज्वाइन करने बाद जब मैने उस केस की िाइल को बारीकी से अध्ययन ककया तो
मुझे यकीन हो गया कक िो एर्क्ीडे न्ट महज कोई दु घगटना नही ं थी बल्कि जान बू झ
कर दादाजी की कार में टक्कर मारी गई थी।"

"ऐसा क्ा था उस िाइल में?" नै ना की आॅखें हैरत से िटी पडी थी____"कजससे


तु झे यकीन हो गया कक ये सब सोच समझ कर ककया गया था?"
"िाइल में कजस जगह पर एर्क्ीडे न्ट यानी कक दादा जी की कार का एर्क्ीडे न्ट हुआ
था उस जगह पर जाकर मैने खु द कनरीक्षर् ककया है।" ररतू ने कहा___"मेन हाइिे पर
उस जगह भले ही ज्यादातर िाहनों का आना जाना नही ं है ले ककन किर भी इक्का
दु क्का िाहन तो आते जाते ही रहते हैं िहाॅ पर। इतनी चौडी सडक पर कोई टर क
िाला अपनी ले न से आकर कैसे ककसी कार को टक्कर मार सकता है? ये ठीक है कक
िो टू -ले न सडक नही ं थी बल्कि टू -इन-िन थी। किर भी इतनी चौडी सडक पर कोई
टर क िाला अपनी ले न से हट कर कैसे टक्कर मार दे गा। िाइल में कलखा है कक टर क
का डर ाइिर नशे में था तो सिाल है कक नशे की उस हालत में उसने एक ही एर्क्ीडे न्ट
क्ों ककयों ककया? बल्कि एक से ज्यादा एर्क्ीडे न्ट हो सकते थे उससे मगर ऐसा नही ं
था। अब चू ॅकक िाइल में ना तो उस टर क िाले का कोई अता पता है और ना ही कोई
ऐसा सबू त कजसके तहत आगे की कोई कायगिाही की जा सके इस कलए मैं कुछ नही ं
कर सकती।"

"क्ा कसिग यही एक िजह है कजससे तु झे लगता है कक बाबू जी का एर्क्ीडे न्ट महज
दु घगटना नही ं थी?" नै ना ने कहा___"या किर कोई और भी िजह है ते रे पास??"

अभी ररतू कुछ बोलने ही िाली थी कक उसकी पै न्ट की जेब में पडा मोबाइल बज
उठा। उसने पाॅकेट से मोबाइल कनकाल कर स्क्रीन में फ्लैश कर रहें नं बर को दे खा
किर काल ररसीि कर उसे कान से लगा कर कहा___"हाॅ रामदीन बोलो क्ा बात

321
है?"

"....................." उधर से पता नही ं क्ा कहा गया।


"ओह चलो ठीक है।" ररतू ने कहा___"मैं िौरन पहुॅच रही हूॅ।"

िोन काटने के बाद ररतू एक झटके से सोिे से खडी हो गई और किर नै ना से


कहा__"माफ़ करना बु आ मुझे तत्काल पु कलस स्टे शन जाना होगा।"

"ठीक ररतू आराम से जाना।" नै ना ने कहा___"शाम को जल्दी आना।"


"जी कबलकुल बु आ।" ररतू ने मु स्कुरा कर कहा___"रात में हम दोनो खू ब सारी बातें
करें गे।"

इसके बाद ररतू िहाॅ से चली गई। जबकक नै ना िही ं सोिे पर बै ठी उसे बाहर की
तरि जाते दे खती रही। इस बात से अं जान कक पीछे दीिार के उस तरि खडा अजय
कसं ह इन दोनो की बातें सु न रहा था। उसके पीछे प्रकतमा भी खडी थी।
___________________

फ्लैशबैक अब आगे_______
किजय कसं ह खाना खाने के बाद तथा दू ध पीने के बाद थोडी दे र िही ं एक तरि रखे
कबस्तर पर आराम करना चाहता था। ककन्तु उसने सोचा कक उसकी भाभी बाहर धूप
में जाने कहाॅ घूम रही होंगी? इस कलए उसे दे खने के कलए तथा ये कहने के कलए कक
िो अब घर जाएॅ बहुत धूप ि गमी है, िह कमरे से कनकल कर बाहर आ गया।

बाहर आकर उसने आस पास दे खा ले ककन प्रकतमा उसे कही ं ऩिर न आई। ये दे ख
कर िह कचल्कन्तत हो उठा। िह तु रंत ही आगे बढते हुए आस पास दे खने लगा। चलते
चलते िह आमों के बाग़ की तरि बढ गया। यहाॅ लगभग दस एकड में आमों के पे ड
लगाए गए थे । आधु कनक प्रकक्रया के तहत बहुत कम समय में ही ये बडे हो कर िल
दे ने लगे थे । ये मौसम भी आमों का ही था।

किजय कसं ह जब बाग़ के पास पहुॅचा तो दे खा कक कप्रकतमा एक आम के पे ड के पास


खडी ऊपर की तरि दे ख रही थी। उसने अपने पल्लू को कमर में घुमा कर खोंसा
हुआ था। उसके दोनो हाॅथ ऊपर थे । किजय कसं ह के दे खते ही दे खते िह ऊपर की
तरि उछली और किर नीचे आ गई। किजय कसं ह उसे ये हरकत करते दे ख मुस्कुरा
उठा। उसे दे ख कर कोई नही ं कह सकता था कक ये तीन तीन बच्चों की माॅ है बल्कि
इस िक्त िह कजस तरह से उछल उछल कर ऊपर लगे आम को तोडने का प्रयास
कर रही थी उससे यही लगता था कक िो अभी भी कोई अल्हड सी लडकी ही थी। िह

322
बार बार पहले से ज्यादा ़िोर लगा कर ऊपर उछलती ले ककन िह नाकाम होकर नीचे
आ जाती। आम उसकी पहुच से दू र था ककन्तु किर भी िो मान नही ं थी। उछल कूद
के चक्कर में िह पसीना पसीना हो गई थी। उसकी दोनो काख पसीने से भीगी हुई
थी तथा ब्लाउज भी भीग गया था। चे हरे और कनपकटयों पर भी पसीना ररसा हुआ
था।

किजय कसं ह उसके पास जाकर बोला___"तो आप यहाॅ आम तोडने का प्रयास कर


रही हैं। मैं ढू ॅढ रहा था कक जाने आप कहाॅ गायब हो गई हैं?"
"अरे भला मैं अब कहाॅ गायब हो जाऊगी किजय?" प्रकतमा ने मुस्कुरा कर
कहा__"इस ऊम्र में तु म्हारे भइया को छोंड कर भला कहाॅ जा सकती हूॅ?"

"चकलये मैं आपको आम तोड कर दे दे ता हूॅ किर आप आराम से बै ठ कर


खाइयेगा।" उसकी बात पर ़िरा भी ध्यान कदये बग़ैर किजय ने कहा था।
"नही ं किजय।" प्रकतमा ऊपर थोडी ही दू री पर लगे आम को दे खती हुई बोली___"इसे
तो मैं ही तोडूॅगी।"

"पर िो तो आपकी पहुॅच से दू र है भाभी।" किजय भी आम की तरि दे खते हुए


बोला___"भला आप उस तक कैसे पहुॅच पाएॅगी? और जब पहुॅचें गी ही नही ं तो
उसे तोडें गी कैसे ?"

"कह तो तु म भी ठीक ही रहे हो।" प्रकतमा ने बडी मासू कमयत से दोनो हाथ कमर पर
रख कर कहा___"सचमुच मैं कािी दे र से प्रयास कर रही हूॅ इस मुए को तोडने का
ले ककन ये मेरे हाॅथ ही नही ं लग रहा।"

"इसी कलए तो कहता हूॅ कक मैं तोड दे ता हूॅ भाभी।" किजय ने कहा___"आप िालतू
में ही इस गमी में परे शान हो रही हैं।"
"ले ककन मैं इसे अपने हाॅथ से ही तोडना चाहती हूॅ किजय।" प्रकतमा ने
कहा___"मु झे बहुत खु शी होगी अगर मैं इसे अपने से तोड कर खाऊगी तो।"

"किर तो ये सं भि नही ं है भाभी।" किजय ने कहा___"या किर ऐसा कीकजए कक नीचे


से एक पत्थर उठाइये और उस आम को कनशाना लगा कर पत्थर मार कर तोड
लीकजए।"
"उफ्फ किजय ये तो मु झसे और भी नही ं होगा।" प्रकतमा ने आहत भाि से
कहा___"क्ा तु म मेरी मदद नही ं कर सकते ?"

"म मैं...????" किजय चौंका___"भला मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूॅ?"
"कबलकुल कर सकते हो किजय।" प्रकतमा ने खु श होकर कहा___"तु म मु झे अपनी

323
बाहों से ऊपर उठा सकते हो। उसके बाद मैं बडे आराम से उस आम को तोड
लू ॅगी।"

"क क्ा????" किजय कसं ह बु री तरह उछल पडा, हैरत से उसकी आॅखें िैलती चली
गई थी, बोला___"ये आप क्ा कह रही हैं भाभी? नही ं नही ं ये मैं नही ं कर सकता।
आप कोई दू सरा आम दे ख लीकजए जो आपकी पहुॅच पर हो उसे तोड लीकजए।"

"अरे तो इसमें क्ा है किजय?" प्रकतमा ने लापरिाही से कहा___"थोडी दे र की तो बात


है। तु म मु झे बडे आराम से उठा सकते हो, मैं इतनी भी भारी नही ं हूॅ। तु म्हारी गौरी
से तो कम ही हूॅ।"

"पर भाभी मैं आपको कैसे उठा सकता हूॅ?" किजय की हालत खराब___"नही ं भाभी
ये मु झसे हकगग़ि भी नही ं हो सकता।"
"क्ों नही ं हो सकता किजय?" प्रकतमा उसके पास आकर बोली___"बल्कि मु झे तो
बडी खु शी होगी किजय कक तु म्हारे द्वारा ही सही ककन्तु मैं अपने हाॅथों से उस आम
को तोडूॅगी। प्ली़ि किजय....मेरे कलए...मेरी खु शी के कलए ये कर दो न?"

किजय कसं ह को समझ नही ं आ रहा था कक िह क्ा करे ? िह तो खु द को कोसे जा


रहा था कक िह यहाॅ आया ही क्ों था?

"उफ्फ किजय पता नही ं क्ा सोच रहे हो तु म?" प्रकतमा ने कहा___"भला इसमें इतना
सोचने की ़िरूरत है? तु म कोई ग़ैर तो नही ं हो न और ना ही मैं तु म्हारे कलए कोई ग़ैर
हूॅ। हम दोनो दे िर भाभी हैं और इतना तो बडे आराम से चलता है। मैं तो कुछ नही ं
सोच रही हूॅ ऐसा िै सा। किर तु म क्ों सोच रहे हो?"

"पर भाभी ककसी को पता चले गा तो लोग क्ा सोचें गे हमारे बारे में?" किजय कसं ह ने
कहचककचाते हुए कहा।
"सबसे पहली बात तो यहाॅ पर हम दोनो के अलािा कोई तीसरा है ही नही ं।"
प्रकतमा कह रही थी___"और अगर होता भी तो मुझे उसकी कोई परिाह नही ं होती
क्ोंकक हम कुछ ग़लत तो कर नही ं रहे होंगे किर ककसी से डरने की या ककसी के
कुछ सोचने से डरने की क्ा ़िरूरत है? दे िर भाभी के बीच इतना प्यारिश चलता
है। अब छोडों इस बात को और जल्दी से आओ मेरे पास।"

किजय कसं ह का कदल धाड धाड करके बज रहा था। उसे लग रहा था कक िह यहाॅ से
भाग जाए ककन्तु किर उसने भी सोचा कक इसमें इतना सोचने की भला क्ा ़िरूरत
है? उसकी भाभी ठीक ही तो कह रही है कक इतना तो दे िर भाभी के बीच चलता है।
किर िो कौन सा कुछ ग़लत करने जा रहे हैं।

324
"ओफ्फो किजय ककतना सोचते हो तु म?" प्रकतमा ने खीझते हुए कहा____"तु म्हारी
जगह अगर मैं होती तो एक पल भी न लगाती इसके कलए।"
"अच्छा ठीक है भाभी।" किजय उसके पास जाते हुए बोला___"ले ककन इसके बारे
आप ककसी से कुछ मत ककहये गा। बडे भइया से तो कबलकुल भी नही ं।"

"अरे मैं ककसी से कुछ नही ं कहूॅगी किजय।" प्रकतमा हस कर बोली___"ये तो हमारी
आपस की बात है न। अब चलो जल्दी से मु झे उठाओ। सम्हाल कर उठाना, कगरा मत
दे ना मुझे। पता चले कक लगडाते हुए हिे ली जाना पडे ।"

किजय कसं ह कुछ न बोला बल्कि कझझकते हुए िह प्रकतमा के पास पहुॅचा। प्रकतमा की
हालत ये सोच सोच कर रोमाॅच से भरी जा रही थी कक किजय उसे अपनी बाहों में
उठाने िाला है । अं दर से थराथरा तो िह भी रही थी ककन्तु दोनो की मानकसक
अिथथा में अलग अलग हलचल थी।

किजय कसं ह झुक कर प्रकतमा को उसकी दोनो टाॅगों को अपने दोनो बाजुओ ं से
पकड कर ऊपर की तरि खडे होते हुए उठाना शु रू ककया। प्रकतमा ने झट से अपने
दोनो हाॅथों को किजय कसं ह के दोनो कंधो पर रख कदया। िह एकटक किजय को दे खे
जा रही थी। उस किजय को कजसके चे हरे पर इस बात की ़िरा भी कशकन नही ं थी कक
उसने कोई बोझ उठाया हुआ है। ये अलग बात थी कक कदल में बढी घबराहट की
िजह से उसके चहरे पर पसीना छलछला आया था।

प्रकतमा बडी शाकतर औरत चालाक औरत थी। उसने किजय को उसके कंधो पर से
पकडा हुआ था। जैसे ही किजय ने उसे ऊपर उठाना शु रू ककया तो िह झट से खु द
को सम्हालने के कलए अपने सीने के भार को किजय के कसर पर कटका कदया। उसकी
भारी भारी चू कचयाॅ जो अब तक पसीने से भी ंग गई थी िो किजय के माथे से जा
टकराई। किजय के नथु नों में प्रकतमा के कजस्म की तथा उसके पसीने की महक
समाती चली गई। किजय को ककसी नशे के जै सा आभास हुआ।

"िाह किजय तु मने तो मु झे ककसी रुई की बोरी की तरह उठा कलया।" प्रकतमा ने ह कर
कहा___"अब और ऊपर उठाओ ताकक मैं उस आम को तोड सकूॅ।"

किजय ने उसे पू रा ऊपर उठा कदया। प्रकतमा का नं गा पे ट किजय के चे हरे के पास था।
उसकी गोरी सी ककन्तु गहरी नाभी किजय की ऑखों के कबलकुल पास थी। उसका
पे ट एकदम गोरा और बे दाग़ था। किजय इस सबको दे खना नही ं चाहता था मगर क्ा
करे मजबू री थी। उसे अपने अं दर अजीब सी मदहोशी का एहसास हो रहा था। उधर

325
प्रकतमा मन ही मन मु स्कुराए जा रही थी। आम का िो िल तो उसके हाॅथ में ही छू
रहा था कजसे िह बडे आराम से तोड सकती थी ककन्तु िह चाहती थी इस पररल्कथथकत
में किजय उसके साथ कुछ तो करे ही। ये सच था कक अगर किजय उसे िही ं पर ले टा
कर उसका भोग भी करने लग जाता तो उसे कोई ऐतरा़ि न होता मगर ये सं भि नही ं
था।

किजय प्रकतमा के पे ट पर अपने चे हरे को छूने नही ं दे ना चाहता था। िह जानता था कक


गमी ककसी के सम्हाले नही ं सम्हलती। गमी जब कसर चढने लगती है तो सबसे पहले
कििे क का नास होता है। उसके बाद सब कुछ तहस नहस हो जाता है। उधर प्रकतमा
बखू बी समझती थी कक किजय ककलयुग का हररश्चन्द्र है, यानी िो ककसी भी कीमत िो
नही ं करे गा जो िह चाहती है। मतलब जो कुछ करना था उसे स्वयं ही करना था।

प्रकतमा ने महसू स ककया कक किजय उसके नं गे पे ट से अपने चे हरे को दू र हटाने की


कामयाब कोकशश कर रहा है। ये दे ख कर प्रकतमा ने अपने कजस्म को अजीब से
अं दा़ि में इस तरह कहलाया कक किजय को यही लगे कक िह अपना सं तुलन बनाए
रखने के कलए ही ऐसा ककया है। प्रकतमा ने जैसे ही अपने कजस्म को कहलाया िै से ही
उसका पे ट किजय के चे हरे से जा लगा। उसका मु ह और नाॅक कबलकुल उसकी
गहरी नाभी में मानो दब सा गया था। किजय कसं ह इससे बु री तरह किचकलत हो गया।
उसने पु नः अपने चे हरे को दू र हटाने की कोकशश की ककन्तु इस बार िह कामयाब न
हुआ। क्ोंकक प्रकतमा ऊपर से उससे कचपक सी गई थी। किजय कसं ह की हाॅथ की
पकड ढीली पड गई। पररर्ामस्वरूप प्रकतमा का कजस्म नीचे ल्कखसकने लगा।

"क्ा कर रहे हो किजय?" प्रकतमा ने सीघ्रता से कहा___"ठीक से पकडो न मु झे।"


"आपने आम तोड कलया कक नही ं?" किजय ने उसे किर सै ऊपर उठाते हुए
कहा___"जल्दी तोकडये न भाभी।"

"क्ा हुआ किजय?" प्रकतमा हस कर बोली___"मेरा भार नही ं सम्हाला जा रहा क्ा
तु मसे ?"
"ऐसी बात नही ं है भाभी।" किजय ने कझझकते हुए कहा___"पर एक आम तोडने में
ककतना समय लगे गा आपको?"

"अरे मैं एक आम थोडी न तोड रही हूॅ किजय।" प्रकतमा ने कहा___"कई सारे तोड
रही हूॅ ताकक तु म्हें बार बार उठाना ना पडे मु झे।"
"ठीक है भाभी।" किजय ने कहा___"पर ़िरा जल्दी कीकजए न क्ोंकक खे तों में काम
करने िाले मजदू रों के आने का समय हो गया है।"

326
"अच्छा ठीक है।" प्रकतमा ने कहा___"अब और आम नही ं तोडूॅगी। अब आकहस्ता से
नीचे उतारो मुझे।"

किजय कसं ह तो जैसे यही चाहता था। उसने अपनी पकड ढीली कर दी कजससे प्रकतमा
नीचे ल्कखसकने लगी। उसने दोनो हाॅथों में आम कलया हुआ था इस कलए सहारे के
कलए उसने कोहनी कटकाया हुआ था किजय पर। प्रकतमा का भारी छाकतयाॅ किजय के
चे हरे पर से रगड खाती हुई घप्प से उसके सीने में जा लगी। प्रकतमा के मुह से मादक
कससकारी कनकल गई। किजय ने उसकी इस कससकारी को िष्ट सु ना था।

"उफ्फ किजय बडे चालू हो तु म तो।" प्रकतमा ने हस कर कहा___"मेरे दोनो हाॅथों में
आम हैं इस कलए ठीक से सं तुलन नही ं बना पाई और तु म इसी का िायदा उठा रहे
हो। चलो कोई बात नही ं। कम से कम आम तो कमल ही गए मु झे। चलो दोनो बै ठ कर
खाते हैं यही ं पे ड की ठं डी छाॅि के नीचे बै ठ कर।"

"आप खा लीकजए भाभी।" किजय ने असहज भाि से कहा___"मैं तो रो़ि ही खाता


हूॅ। अभी ठीक से पके नही ं हैं। एक हप्ते बाद इनमें मीठापन आ जाएगा।"

"दे खो न किजय यहाॅ ककतना अच्छा लग रहा है।" प्रकतमा ने कहा___"पे डों की छाॅि
और मदमस्त करने िाली ठं डी ठं डी हिा। इस हिा के सामने तो एसी भी िेल है।
मन करता है यही ं पर सारा कदन बै ठी रहूॅ। घर में पं खा और कुलर में भी गमी शान्त
नही ं होती और ऊपर से बीच बीच में लाइट चली जाती हो तो किर समझो कक प्रार् ही
कनकलने लगते हैं।"

"हाॅ गाॅिों में तो लाइट का आना जाना लगा ही रहता है।" किजय ने कहा___"मैं
सोच रहा हूॅ कक हिे ली में एक दो जनरे टर रखिा दे ता हूॅ ताकक अगर लाइन न रहे
तो उसके द्वारा कबजली कमल सके और ककसी को इस गमी में परे शान न होना पडे ।"

"ये तो तमने बहुत अच्छा सोचा है।" प्रकतमा ने कहने के साथ ही िही ं पे ड के नीचे
साि करने के बाद साडी के पल्लू को कबछा कर बै ठ गई। उसे इस तरह पल्लू को
कबछाकर बै ठते दे ख किजय हैरान रह गया। उसकी भारी छाकतयाॅ उसके बडे गले
िाले ब्लाउज से िष्ट नु मायाॅ हो रही थी।

"आओ न किजय तु म भी मेरे पास ही बै ठ जाओ।" प्रकतमा ने एक आम को उठाकर


कहा__"ऐसा लगता है कक इन्हें पहले पानी से धोना पडे गा।"
"जी कबलकुल भाभी।" किजय ने कहा__"इन्हें धोना ही पडे गा िरना इनका जो रस
होता है िो अखर बदन में लग जाएगा तो िहाॅ इनिेक्शन होने की सं भािना होती
है।"

327
"तो अब क्ा करें किजय?" प्रकतमा ने कहा__"मेरा मतलब पानी तो यहाॅ पर है
नही ं।"
"दीकजए मैं इन्हें धोकर लाता हूॅ।" किजय ने कहा और उन सारे आमो को उठा कर
बाग़ से बाहर चला गया।

"ककतने भोले हो किजय।" किजय के जाने के बाद प्रकतमा बडबडाई___"ककन्तु समझते


सब कुछ हो। और शायद ये भी समझ ही गए होगे कक तु म्हारी भाभी एक नं बर की
कछनाल या राॅड है। उफ्फ किजय क्ा करूॅ तु म्हारा? तु म्हारी जगह कोई और होता
तो अब तक मुझे मेरे आगे पीछे से पे ल चु का होता था। तु म भी मु झे पे लोगे
किजय....बस थोडा और मे हनत करनी पडे गी तु म्हें पटाने में। और अगर उससे भी न
पटे तो किर आकखर में एक ही चारा रह जाएगा। हाय किजय आ जाओ न....समझ
क्ों नही ं रहे हो कक तु म्हारी ये राॅड भाभी यहाॅ बाग़ में अकेले तु म्हारे साथ म़िे
करना चाहती है। मु झे अपनी मजबू त बाहों में कस लो न किजय....मेरे कजस्म से ये
कपडे चीर िाड कर कनकाल दो और टू ट पडो मुझ पर। आहहहहहह शशशशश
किजय मुझे तब तक पे लो जब तक की मेरा दम न कनकल जाए। दे ख लो
किजय....तु म्हारी ये राॅड भाभी कसिग तु म्हारे कलए यहाॅ आई है। मु झे मसल
डालो.....मु झे रगड डालो.....हाय मेरे अं दर की इस आग को शान्त कर दो किजय।"

पे ड के नीचे बै ठी प्रकतमा हिश ि िासना के हाथों अं धी होकर जाने क्ा क्ा


बडबडाए जा रही थी। कुछ ही दे र में किजय कसं ह आ गया और उसने धुले हुए आमों
को एक बाॅस की टोकरी में रख कर लाया था। उसने प्रकतमा की तरि दे खा तो
चौंक पडा।

"आपको क्ा हुआ भाभी?" किजय ने हैरानी से कहा___"आपका चे हरा इतना लाल
सु खग क्ों हो रखा है? कही ं आपको लू तो नही ं लग गई। हे भगिान आपकी तबीयत
तो ठीक है न भाभी।"
"मैं एकदम ठीक हूॅ किजय।" किजय को अपने कलए किक्र करते दे ख प्रकतमा को पल
भर के कलए अपनी सोच पर िानी हुई उसके बाद उसने कहा___"और मेरे कलए
तु म्हारी ये किक्र दे ख कर मु झे बे हद खु शी भी हुई। मैं जानती हूॅ तु म सब हमें अपना
समझते हो तथा हमारे कलए तु म्हारे अं दर कोई मैल नही ं है। एक हम थे कक अपनो से
ही बे गाने बन गए थे । मुझे माफ़ कर दो किजय.... ।" कहने के साथ ही प्रकतमा की
आॅखों में आॅसू आ गए और िह एक झटके से उठ कर किजय से कलपट गई।

किजय उसकी इस हरकत से हैरान रह गया था। ककन्तु प्रकतमा की कससककयों का सु न


कर िह यही समझा कक ये सब उसने भािना में बह कर ककया है। ले ककन भला िह

328
क्ा जानता था कक औरत उस बला का नाम है कजसका रहस्य दे िता तो क्ा भगिान
भी नही ं समझ सकते ।

अपडे ट.........《 32 》

अब तक,,,,,,,,,

पे ड के नीचे बै ठी प्रकतमा हिश ि िासना के हाथों अं धी होकर जाने क्ा क्ा


बडबडाए जा रही थी। कुछ ही दे र में किजय कसं ह आ गया और उसने धुले हुए आमों
को एक बाॅस की टोकरी में रख कर लाया था। उसने प्रकतमा की तरि दे खा तो
चौंक पडा।

"आपको क्ा हुआ भाभी?" किजय ने हैरानी से कहा___"आपका चे हरा इतना लाल
सु खग क्ों हो रखा है? कही ं आपको लू तो नही ं लग गई। हे भगिान आपकी तबीयत
तो ठीक है न भाभी।"
"मैं एकदम ठीक हूॅ किजय।" किजय को अपने कलए किक्र करते दे ख प्रकतमा को पल
भर के कलए अपनी सोच पर िानी हुई उसके बाद उसने कहा___"और मेरे कलए
तु म्हारी ये किक्र दे ख कर मु झे बे हद खु शी भी हुई। मैं जानती हूॅ तु म सब हमें अपना
समझते हो तथा हमारे कलए तु म्हारे अं दर कोई मैल नही ं है। एक हम थे कक अपनो से
ही बे गाने बन गए थे । मुझे माफ़ कर दो किजय.... ।" कहने के साथ ही प्रकतमा की
आॅखों में आॅसू आ गए और िह एक झटके से उठ कर किजय से कलपट गई।

किजय उसकी इस हरकत से हैरान रह गया था। ककन्तु प्रकतमा की कससककयों का सु न


कर िह यही समझा कक ये सब उसने भािना में बह कर ककया है। ले ककन भला िह
क्ा जानता था कक औरत उस बला का नाम है कजसका रहस्य दे िता तो क्ा भगिान
भी नही ं समझ सकते ।
__________________________

अब आगे,,,,,,,,,,,

फ्लैशबैक अब आगे_______

329
उस कदन के बाद से तो जैसे प्रकतमा का यह रो़ि का काम हो गया था। िह हर रो़ि
किजय कसं ह के कलए खाने का कटकिन और दू ध ले कर खे तों पर जाती और िहाॅ पर
किजय को अपना अधनं गा कजस्म कदखा कर उसे अपने रूपजाल में िाॅसने की
कोकशश करती। ककन्तु किजय कसं ह उसके जाल में िस नही ं रहा था। ये बात प्रकतमा
को भी समझ में आ गई थी कक किजय कसं ह उसके जाल में िसने िाला नही ं है। उधर
गौरी की तबीयत अब ठीक हो चु की थी इस कलए खाने का कटकिन िह खु द ही ले कर
जाने लगी थी। प्रकतमा अपना मन मसोस कर रह गई थी। अजय कसं ह खु द भी
परे शान था इस बात से कक किजय कसं ह कैसे उसके जाल में िसे ?

अजय कसं ह ये भी जानता था कक उसके भाई के जैसी ही उसकी मझली बहू यानी
गौरी थी। िह भी उसके जाल में िसने िाली नही ं थी। ऐसे ही कदन गु़िर रहे थे । गौरी
की तबीयत सही होने के बाद प्रकतमा को किर खे तों में जाने का कोई अच्छा सा
अिसर ही नही ं कमल पाता था। इधर गौरी भी अपने पकत किजय कसं ह को खाना ले कर
हिे ली से खे तों पर चली जाती और किर िह िही ं रहती। शाम को ही िह िापस
हिे ली में आती थी। इस कलए अजय कसं ह भी कोई मौका नही ं कमल पाता था उसे
िसाने के कलए।

कपछले एक महीने से प्रकतमा किजय कसं ह को अपने रूप जाल में िसाने की कोकशश
कर रही थी। शु रू शु रू में तो उसने अपने मन की बातों को उससे उजागर नही ं
ककया था। बल्कि हर कदन िह किजय कसं ह से ऐसी बाते करती जैसे िह उसकी ककतनी
किक्र करती है। भोला भाला किजय कसं ह यही समझता कक उसकी भाभी ककतनी
अच्छी है जो उसकी किक्र करती है और हर रो़ि समय पर उसके कलए इतनी भीषर्
धूप ि गमी में खाना ले कर आती है। इन बीस कदनों में किजय कसं ह भी कुछ हद तक
सहज िील करने लगा था अपनी भाभी से । प्रकतमा उससे खू ब हसती बोलती और
बात बात पर उसके गले लग जाती। किजय कसं ह को उसका इस तरह अपने गले लग
जाना अच्छा तो नही ं लगता था ककन्तु ये सोच कर िह चु प रह जाता कक प्रकतमा शहर
िाली औरत है और इस तरह अपनो के गले लग जाना शायद उसके कलए आम बात
है। ऐसे ही एक कदन बातों बातों में प्रकतमा ने किजय कसं ह से कहा__"हम दोनो दे िर
भाभी इतने कदनों से खु शी खु शी हसते बोलते रहे और किर एक कदन मैं चली जाऊगी
शहर। िहाॅ मुझे ये सब बहुत याद आएगा। मु झे तु म्हारे साथ यहाॅ इस तरह हसना
बोलना और म़िाक करना बहुत अच्छा लग रहा है। रात में भी मैं तु म्हारे बारे में ही
सोचती रहती हूॅ। ऐसा लगा करता है किजय कक ककतनी जल्दी सु बह हो और किर
ककतनी जल्दी मैं दोपहर में तु म्हारे कलए खाना ले कर जाऊ? हाय ये क्ा हो गया है
मुझे? क्ों मैं तु म्हारी तरि इस तरह ल्कखंची चली आती हूॅ किजय? क्ा तु मने मुझ पर
कोई जादू कर कदया है?"

330
प्रकतमा की ये बातें सु न कर किजय कसं ह को ़िबरदस्त झटका लगा। उसकी तरि
दे खते हुए इस तरह खडा रह गया था जैसे ककसी ने उसे पत्थर बन जाने का श्राप दे
कदया हो। मनो मल्कस्तष्क में धमाके से हो रहे थे उसके। जबकक उसकी हालत से
बे खबर प्रकतमा कहे जा रही थी___"इन चं द कदनों में ये कैसा ररश्ा बन गया है हमारे
बीच? तु म्हारा तो पता नही ं किजय ले ककन मु झे अपने अं दर का समझ आ रहा है। मुझे
लगता है कक मु झे तु मसे प्रे म हो गया है। हे भगिान! कोई और सु ने तो क्ा कहे?
प्ली़ि किजय मुझे ग़लत मत समझना। ऐसा हो जाता है कक कोई हमें अच्छा लगने
लगता है और उससे प्यार हो जाता है। कसम से किजय मु झे इसका पता ही नही ं
चला।"

किजय कसं ह के कदलो कदमाग़ होने िाले धमाके अब और भी ते ़ि हो गए थे । प्रकतमा का


एक एक शब्द कपघले हुए शीशे की तरह उसके हृदय पर पड रहा था। उसकी हालत
दे खने लायक हो गई थी। चे हरे पर बारह क्ा पू रे के पू रे चौबीस बजे हुए थे । पसीने से
तर चे हरा कजसमें हल्दी सी पु ती हुई थी।

सहसा प्रकतमा ने उसे ध्यान से दे खा तो बु री तरह चौंकी। उसे पहले तो समझ न आया
कक किजय कसं ह की ये अचानक ही क्ा हो गया है किर तु रंत ही जैसे उसके कदमाग़
की बिी जल उठी। उसे समझते दे र न लगी कक उसकी इस हालत का कारर् क्ा है?
एक ऐसा इं सान कजसे ररश्ों की क़दर ि उसकी मान मयागदाओं का बखू बी खयाल हो
तथा जो कभी भी ककसी कीमत पर ककसी पराई औरत के बारे में ग़लत खयाल तक न
लाता हो उसकी हालत ये जान कर तो खराब हो ही जाएगी कक उसकी अपनी भाभी
उससे प्रे म करती है। ये बात उससे कैसे पच सकती थी भला? अभी तक कजतना कुछ
हो रहा था िही उससे नही ं पच रहा था तो किर इतनी सं गीन बात भला कैसे पच
जाती?

"कि किजय।" प्रकतमा ने उसे उसके कंधों से पकड कर ़िोर से झकझोरा___"ये ये क्ा
हो क्ा हो गया है तु म्हें?"

प्रकतमा के झकझोरने पर किजय कसं ह बु री तरह चौंका। उसके मनो मल्कस्तष्क ने ते ़िी
से काम करना शु रू कर कदया। अपने ऩिदीक प्रकतमा को अपने दोनो कंधे पकडे
दे ख िह ते ़िी से पीछे हट गया। इस िक्त उसके चे हरे पर बहुत ही अजीब से भाि
गकदग श करते ऩिर आने लगे थे ।

"किजय क्ा हुआ तु म्हें?" प्रकतमा ने चककत भाि से कहा___"दे खो किजय मुझे खलत
मत समझना। इसमे मेरी कोई ग़लती नही ं है।"
"ये ये अच्छा नही ं हुआ भाभी।" किजय कसं ह ने आहत भाि से कहा___"आप ऐसा कैसे

331
सोच सकती हैं? जबकक आपको पता है कक ऐसा सोचना भी पाप है?"

"मैं जानती हूॅ किजय।" प्रकतमा ने दु खी होने की ऐल्कक्टं ग की, बोली___"मु झे पता है
कक ऐसा सोचना भी ग़लत है। ले ककन ये कैसे हुआ मु झे नही ं पता किजय। शायद इतने
कदनों से एक साथ हसने बोलने से ऐसा हुआ है । तु म्हारी मासू कमयत, तु म्हारा भोलापन
तथा तु म्हारी अच्छाईयाॅ मेरे कदलो कदमाग़ में उतरती चली गईं हैं। ककसी के कलए कदल
में भािनाएॅ जाग जाना भला ककसके अल्कख्तयार में होता है? ये तो कदल का दखल
होता है। उसे जो अच्छा लगता उसके कलए धडकने लगता है। इसका पता इं सान को
तब चलता है जब उसका कदल अं दर से अपने महबू ब के कलए बे चैन होने लगता है।
िही मेरे साथ हुआ है किजय। कदाकचत तु म मे रे इस नादान ि नासमझ कदल को भा
गए इस कलए ये सब हो गया।"

"आप जाइये भाभी यहाॅ से ।" किजय कसं ह ने कहा___"इस बात को यही ं पर खत्म
कर दीकजए। अगर आपको अपने अं दर का पता चल गया है तो अब आप िही ं पर
रुक जाइए। अपने क़दमों को रोंक लीकजए। मैं आपके किनती करता हूॅ भाभी।
कृपया आप जाइये यहाॅ से ।"

"इतनी कठोरता से मु झे जाने के कलए मत कहो किजय।" प्रकतमा ने मगरमच्छ के


आॅसू छलका कदये, बोली___"तु म भी समझ सकते हो इसमें मेरा कोई दोष नही ं है।
और अपने क़दमों को रोंकना इतना आसान नही ं होता। ये प्रे म बडा अजीब होता है
किजय। ये ककसी की नही ं सु नता, खु द अपनी भी।"

"मैं कुछ सु नना नही ं चाहता भाभी।" किजय कसं ह ने कहा___"मैं कसिग इतना जानता
हूॅ कक ये ग़लत है और मैं ग़लत ची़िों के पक्ष में कभी नही ं हो सकता। आप भी इस
सबको अपने ़िहन से कनकाल दीकजए और हो सके तो कभी भी मेरे सामने मत
आइये गा।"

"ऐसा तु म कैसे कह सकते हो किजय?" प्रकतमा ने रोने का नाटक ककया__"मैने इतना


बडा गुनाह तो नही ं ककया है कजसकी स़िा तु म इस तरह दे रहे हो? प्रे म तो हर इं सान
से होता है। क्ा दे िर भाभी के बीच प्रे म नही ं हो सकता? कबलकुल हो सकता है
किजय...प्रे म तो िै से भी सबसे पाक होता है।"

"ये सब ककताबी बातें हैं भाभी।" किजय कसं ह ने कहा___"आज के यु ग में प्रे म की
पररभाषा कुछ और ही हो गई है। अगर नही ं होती तो आपको अपने पकत के अलािा
ककसी और से प्रे म नही ं होता। प्रे म तो िही है जो ककसी एक से ही एक बार होता है
और किर ताऊम्र तक िह कसिग उसी का होकर रहता है। ककसी दू सरे के बारे में

332
उसके कदल में किचार ही नही ं उठता कभी।"

"ये सबके सोचने का ऩिररया है किजय कक िो प्रे म के बारे में कैसी पररभाषा को
मानता है और समझता है?" प्रकतमा ने कहा___"मेरा तो मानना ये है कक प्रे म बार बार
होता है। कदल भले ही ह़िारों बार टू ट कर कबखर जाए मगर िह प्रे म करना नही ं
छोंडता। िह प्रे म करता ही रहता है।"

"सबकी अपनी सोच होती है भाभी।" किजय कसं ह ने कहा___"लोग अपने मतलब के
कलए ग़लत को भी सही ठहरा दे ते हैं और उसे साकबत भी कर दे ते हैं। मगर मेरी सोच
ऐसी नही ं है। मेरे कदल में मेरी पत्नी के अलािा कोई दू सरा आ ही नही ं सकता। मैं
उससे बे इंतहां प्रे म करता हूॅ, उसे से मरते दम िफ़ा करूॅगा। ककसी और से मुझे
िै सा प्रे म हो ही नही ं सकता। प्रे म में कसिग कदल का ही नही ं कदमाग़ का भी दखल होना
़िरूरी है। मन में दृढ सं कल्पों का होना भी ़िरूरी है। अगर ये सब है तो आपको
ककसी दू सरे प्रे म हो ही नही ं सकता।"

"हो सकता ककसी और के पास तु म्हारे जैसी इच्छा शल्कक्त या दृढ सं कल्प न हो।"
प्रकतमा ने कहा___"और िह मेरे जैसे ही ककसी दू सरे से भी प्रे म कर बै ठे।"
"तो मैं यही कहूॅगा कक उसका िो प्रे म कनम्न दृकष्ट का है।" किजय कसं ह ने कहा___"जो
अपने पहले प्रे मी के कलए िफ़ा नही ं कर सका िह अपने दू सरे प्रे मी के साथ भी िफ़ा
नही ं कर सकेगा। क्ोंकक सं भि है कक कभी ऐसा भी समय आ जाए कक उसे ककसी
तीसरे इं सान से भी प्रे म हो जाए। तब उसके बारे में क्ा कहा जाएगा? सच्चा प्रे म और
सच्ची िफ़ा तो िही है भाभी जो कसिग अपने पहले प्रे मी से ही की जाए। उसी हो कर
रह जाए।"

प्रकतमा को समझ ना आया कक अब िह किजय से क्ा कहे? ये बात तो िह खु द भी


समझती थी कक किजय ठीक ही कह रहा है। ककन्तु उसे तो किजय को िाॅसना था
इस कलए भला कैसे िह हार मान ले ती? ये दाॅि बे कार चला गया तो कोई दू सरा
दाॅि सही।

"तो तु म ये कहना चाहते हो कक मैं तु म्हारे बडे भइया और अपने पकत के कलए िफ़ादार
नही ं हूॅ? प्रकतमा ने कहा___"क्ोंकक मुझे उनके अलािा तु मसे प्रे म हुआ?"
"मैं ककसी एक के कलए नही ं कह रहा भाभी बल्कि हर ककसी के कलए कह रहा हूॅ।"
किजय कसं ह ने कहा___"क्ोंकक मेरी सोच यही है। मैं इस जीिन में कसिग एक का ही
होकर रहना चाहता हूॅ और भगिान से ये प्राथग ना भी करता हूॅ िो अगले जन्मों में
भी मु झे मेरी गौरी का ही रहने दे ।"

"ठीक है किजय।" प्रकतमा ने सहसा पहलू बदला___"मैं तु मसे ये नही ं कह रही कक तु म

333
गौरी को छोंड कर मुझसे प्रे म करो। ककन्तु इतना ़िरूर चाहती हूॅ कक मुझे खु द से
इस तरह दू र रहने की स़िा न दो। मैं तु मसे कभी कुछ नही ं मागू ॅगी बस कदल के
ककसी कोने में मेरे कलए भी थोडी जगह बनाए रखना।"

"ऐसा कभी नही ं हो सकता भाभी।" किजय कसं ह दृढता से कहा___"क्ोंकक ये ररश्ा
ही मेरी ऩिर में ग़लत है और ग़लत मैं कर नही ं सकता। हाॅ आप मेरी भाभी हैं और
मेरे कलए पू ज्यनीय हैं इस कलए इस ररश्े के कलए हमेशा मेरे अं दर सम्मान की भािना
रहेगी। दे िर भाभी के बीच कजस तरह का स्नेह होता है िो भी रहे गा। मगर िो नही ं
कजसकी आप बात कर रही हैं।"

"ऐसा क्ों कह रहे हो किजय?" प्रकतमा ने रुआॅसे भाि की ऐल्कक्टंग की___"क्ा मैं
इतनी बु री लगती हूॅ तु म्हें? क्ा मैं इस काकबल भी नही ं कक तु म्हारा प्रे म पा सकूॅ?"

"ऐसी बातें आपको करनी ही नही ं चाकहए भाभी।" किजय कसं ह ने बे चैनी से पहलू
बदला___"आप मु झसे बडी हैं हर तरह से । आपको खु द समझना चाकहए कक ये ग़लत
है। जानते बू झते हुए भी आप ग़लत राह पर चलने की बात कर रही हैं। जबकक
आपको करना ये चाकहए कक आप खु द को समझाएॅ और इससे पहले कक हालात
कबगड जाएॅ आप उस माहौल से जल्द से जल्द कनकल जाइये।"

प्रकतमा की सारी कोकशशें बे कार रही ं। किजय कसं ह को तो जैसे उसकी कोई बात ना
माननी थी और ना ही माना उसने । थक हार कर प्रकतमा िहाॅ से हिे ली लौट आई
थी। हिे ली में उसने अपने पकत से आज की सारी महाभारत बताई। उसकी सारी बातें
सु न कर अजय कसं ह हैरान रह गया। उसे समझ न आया कक उसका भाई आकखर
ककस कमट्टी का बना हुआ है? ककन्तु आज की बातों से कही ं न कही ं उसे ये उम्मीद
़िरूर जगी कक आज नही ं तो कल किजय कसं ह प्रकतमा के सामने अपने हकथयार डाल
ही दे गा। अगले कदन जब प्रकतमा किर से किजय के कलए कटकिन तै यार करने ककचे न में
गई तो गौरी को उसने ककचे न में कटकिन तै यार करते दे खा।

"अब कैसी तबीयत है गौरी?" प्रकतमा ने ककचे न में दाल्कखल होते हुए पू छा था।
"अब ठीक हूॅ दीदी।" गौरी ने पलट कर दे खते हुए कहा___"इस कलए मैने सोचा कक
उनके कलए कटकिन तै यार करके खे तों पर चली जाऊ।"

"अरे तु म अभी थोडे कदन और आराम करो गौरी।" प्रकतमा ने कहा___"अभी अभी तो
ठीक हुई हो। बाहर बहुत ते ़ि धूप और गमी है । ऐसे में किर से बीमार हो जाओगी
तु म। मैं तो रो़ि ही किजय को खाना दे आती हूॅ। लाओ मुझे मैं दे कर आती खाना
किजय को।"

334
"अरे अब मैं कबलकुल ठीक हूॅ दीदी।" गौरी ने कहा___"आप कचन्ता मत कीकजए। दो
चार कदन से आराम ही तो कर रही थी मैं।"
"अरे तो अभी और कुछ कदन आराम कर लो गौरी।" प्रकतमा ने कहा___"और िै से भी
मैं कुछ कदनों बाद चली जाऊगी क्ोंकक बच्चों के स्कूल खु लने िाले हैं । मु झे अच्छा
लगता है खे तों में। िहाॅ पर आम के बाग़ों में ककतनी मस्त हिा लगती है। ककतना
सु कून कमलता है िहाॅ। मैं तो किजय को खाना दे ने के बाद िही ं चली जाती हूॅ और
िही ं पर पे डों की घनी छाॅि में बै ठी रहती हूॅ। यहाॅ से तो लाख गुना अच्छा है
िहाॅ।"

"हाॅ ये तो आपने सही कहा दीदी।" गौरी ने मुस्कुरा कर कहा___"िहाॅ की बात ही


अलग है। इसी कलए तो मैं कदन भर िही ं उनके पास ही रहती हूॅ।"
"तु म तो हमेशा ही रहती हो गौरी।" प्रकतमा ने मुस्कुरा कर कहा__"और िही ं पर तु म
दोनो म़िा भी करते हो। है ना??"
"क्ा दीदी आप भी कैसी बातें करती हैं?" गौरी ने शरमा कर कहा___"ये सब खे तों में
थोडी न अच्छा लगता है।"

"खै र छोडो।" प्रकतमा ने कहा___"दो चार कदन बचे हैं तो मु झे िहाॅ की ठं डी छाॅि
का आनन्द ले ले ने दो। उसके बाद तु म जाती रहना।"
"हाॅ तो ठीक है न दीदी।" गौरी ने कहा__"हम दोनो चलते हैं और िहाॅ की ठं डी
छाॅि का आनं द लें गे।"

"तु म अभी अभी बीमारी से बाहर आई हो गौरी।" प्रकतमा ने कहा___"इस कलए तु म्हें
अभी इतनी धूप में बाहर नही ं कनकलना चाकहए। मैं तु म्हारे स्वाथथ के भले के कलए ही
कह रही हूॅ और तु म हो क़िद ककये जा रही हो? अपनी दीदी का कबलकुल भी कहा
नही ं मान रही हो तु म। या किर तु म्हारी ऩिर में मेरी कोई अहकमयत ही नही ं है। ठीक
है गौरी करो जो तु म्हें अच्छा लगे।"

"अरे नही ं दीदी।" गौरी ने जल्दी से कहा___"आपकी अहकमयत तो बहुत ज्यादा है हम


सबकी ऩिर में। मैं तो बस इस कलए कह रही थी कक आप इतने कदनों से धूप और
गमी में परे शान हो रही हैं। और भला मैं कैसे आपकी बात टाल सकती हूॅ दीदी?
मुझे तो बे हद खु श हूॅ कक आप मेरे कहत की बारे में सोच रही ं हैं।"

"तो किर लाओ िो कटकिन मु झे दो।" प्रकतमा ने जो इमोशनली उसे ब्लैकमेल ककया
था उसमें िह सिल हो गई थी, बोली___"मैं किजय को खाना दे ने जा रही हूॅ और
तु म अभी आराम करो अपने कमरे में।"
"जी ठीक है दीदी।" गौरी ने मु स्कुरा कहा और कटकिन प्रकतमा को पकडा कदया।

335
प्रकतमा कटकिन ले कर ककचे न से बाहर कनकल गई। जबकक गौरी खु शी खु शी ऊपर
अपने कमरे की तरि बढ गई।

प्रकतमा जब खे तों पर पहुॅची तो िहाॅ का माहौल दे ख कर उसके सारे अरमानों पर


पानी किर गया। दरअसल आज कपछले कदनों के किपरीत किजय कसं ह खे तों पर
अकेला नही ं था। बल्कि उसके साथ कई मजदू र भी खे तों पर आज ऩिर आ रहे थे ।
कदाकचत किजय कसं ह को अं देशा था कक प्रकतमा आज भी उसके कलए कटकिन ले कर
आएगी और किर यहाॅ पर िह किर से अपने प्रे म का बे कार ही राग अलापने लगेगी।
इस कलए किजय कसं ह ने कुछ मजदू रों को कल ही बोल कदया था कक िो अपने कलए
दोपहर का खाना घर से ही ले आएॅगे और यही ं पर खाएॅगे। किजय कसं ह के कहे
अनु सार कई मजदू र आज यही ं पर थे ।

प्रकतमा ये सब दे ख कर अं दर ही अं दर जल भु न गई थी। उसे किजय कसं ह से ऐसी


उम्मीद हकगग ़ि नही ं थी। िह तो उसे कनहायत ही शान्त और भोला समझती थी। ककन्तु
आज उसे भोले भाले किजय ने अपना कदमाग़ चला कदया था कजसका असर ये हुआ था
कक प्रकतमा अब कुछ नही ं कर सकती थी।

प्रकतमा जैसे ही मकान के पास पहुॅची तो एक मजदू र उसके पास आया और बडे
अदब से बोला___"मालककन, मझले माकलक हमका बोले कक आपसे उनके खाने का
कटकिनिा ले आऊ। काह है ना मालककन आज मझले माकलक हम मजदू रों के साथ
ही खाना खाय चाहत हैं। ई हमरे कलए बहुतै सौभाग्य की बात है। दीकजए मालककन या
कटकिनिा हम ले जात हैं।"

प्रकतमा भला क्ा कह सकती थी। िह तो अं दर ही अं दर जल कर खाक़ हुई जा रही


थी। उसने आए हुए मजदू र को कटकिन पकडाया और पै र पटकते हुए मकान के
अं दर चली गई और कमरे में जाकर चारपाई पर पसर गई। गुस्से से उसका चे हरा
लाल सु खग पड गया था।

"ये तु मने अच्छा नही ं ककया किजय।" प्रकतमा खु द से ही बडबडा रही थी___"तु म कजस
ची़ि को अपनी समझदारी या होकशयारी समझ रहे हो िो दरअसल मेरा अपमान है।
तु म कदखाना चाहते हो कक तु म्हारी ऩिर में मेरी कोई अहकमयत ही नही ं है। ककतना
अपने प्रे म का मैने तु मसे कल रोना रोया था ककन्तु तु मने उसे ठु करा कदया ये कह कर
कक ये ग़लत है। अरे सही ग़लत आज के यु ग में कौन दे खता है किजय? चार कदन का
जीिन है उसे हस खु शी और आनं द के साथ कजयो। मगर तु म तो सच्चे प्रे म का राग
अलापे जा रहे हो। क्ा है इस सच्चे प्रे म में? बताओ किजय क्ा हाकसल कर लोगे इस

336
सच्चे प्रे म में? अरे एक ही औरत के पल्लू में बधे हो तु म। ये कैसा प्रे म है कजसने तु म्हें
बाॅध कर रखा हुआ है?"

जाने ककतनी ही दे र तक प्रकतमा यू ॅ ही बडबडाती रही और ऐसे ही सो गई िह। किर


जब उसकी नीद खु ली तो हडबडा कर चारपाई से उठी िह। अभी िह उठ कर कमरे
से बाहर ही जाने िाली थी कक तभी किजय ककसी काम से कमरे में आ गया।

कमरे में अपनी भाभी को दे ख कर किजय कसं ह हैरान रह गया। उसने तो सोचा था कक
प्रकतमा उसी समय िापस चली गई होगी ककन्तु यहाॅ तो िह अभी भी है। प्रकतमा को
दे खकर किजय हैरान हुआ किर जल्द बाहर जाने के कलए पलटा।

"रुक जाओ किजय।" प्रकतमा ने सहसा ठं डे स्वर में कहा___"क्ा समझते हो तु म


अपने आपको? क्ा सोच कर तु मने यहाॅ मजदू रों को बु लाया हुआ था बताओ?"

"क कुछ भी तो नही ं भाभी।" किजय कसं ह हडबडा गया था___"मैंने उन्हें नये िलों की
िसल के बु लाया था। ताकक खे तों को उनके कलए तै यार ककया जा सके।"

"झठ ू मत बोलो किजय।" प्रकतमा ने आिे श मे ः कहा___"मु झे अच्छी तरह पता है कक


तु मने मजदू रों को यहाॅ दोपहर में क्ों बु लाया था? तु म समझते थे कक तु म्हें हर कदन
की तरह यहाॅ अकेले दे ख कर मैं किर से अपने प्रे म की बातें तु मसे करूॅगी। इसी
सबसे बचने के कलए तु मने ये सब ककया है ना?"

"आप बे िजह बातें बना रही हैं भाभी।" किजय कसं ह ने कहा___"जबकक सच्चाई यही है
कक मैने िलों की िसल के कलए ही मजदू रों को यहाॅ बु लाया है।"
"झठ ू , सरासर झठ ू है ये।" प्रकतमा एक झटके से चारपाई से उठ कर किजय के पास
आ गई, किर बोली___"जो इं सान हमेशा सच बोलता है िो अगर कभी ककसी िजह से
झठ ू बोले तो उसका िह झठ ू तु रंत ही पकड में आ जाता है किजय। मैं कोई अनपढ
गिार नही ं हूॅ बल्कि कानू न की पढाई की है मैने। मनोकिज्ञान का बारीकी से
अध्ययन ककया है मैने। मैं पल में बता सकती हूॅ कक कौन ब्यल्कक्त कब झठ ू बोल रहा
है?"

"चकलये मान कलया कक यही सच है।" किजय कसं ह ने कहा___"यानी मैने आपसे बचने
के कलए ही मजदू रों को यहाॅ बु लाया था। तब भी क्ा ग़लत ककया मैने? मैने तो िही
ककया जो ऐसी पररल्कथथकत में ककसी समझदार आदमी को करना चाकहए। मैं िो नही ं
सु नना चाहता और ना ही होने दे ना चाहता जो आप कहना या करना चाहती हैं। मैने
कल भी आपसे कहा था कक ये ग़लत है और हमेशा यही कहता भी रहूॅगा। मैं खै र

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अनपढ ही हूॅ ले ककन आप तो पढी कलखी हैं न? आपको तो ररश्ों के बीच के सं बंधों
का अच्छी तरह पता होगा कक ककन ररश्ों के बीच ककन ररश्ों को दे श समाज सही
ग़लत अथिा जाय़ि नाजाय़ि ठहराता है? अगर पता है तो किर ये सब सोचने ि
करने का क्ा मतलब हो सकता है? आपको तो पता है कक आपके कदल में मेरे प्रकत
क्ा है तो क्ों नही ं उसे कनकाल दे ती आप? क्ों ररश्ों के बीच इस पाप को थोपना
चाहती हैं आप?"

"ककस युग में तु म जी रहे हो किजय ककस यु ग में?" प्रकतमा ने कहा___"आज के युग के
अनु सार जीना सीखो। पररितग न प्रकृकत का कनयम है। तु म भी प्रकृकत के कनयमों के
अनु सार खु द को बदलो। जो समय के साथ नही ं बदलता उसे िक्त बहुत पीचे छोंड
दे ता है।"

"अगर पररितग न इसी ची़ि के कलए होता है तो माफ़ करना भाभी।" किजय ने
कहा__"मुझे आज के इस युग के अनु सार खु द को बदलना गिारा नही ं है। िक्त मु झे
पीछे छोंड कर कहाॅ चला जाएगा मु झे इसकी कोई कचन्ता नही ं है। मेरी आत्मा तथा
मेरा ़िमीर कजस ची़ि को स्वीकार नही ं कर रहा उस ची़ि को मैं ककसी भी कीमत
पर अपना नही ं सकता। अब आप जा सकती हैं, क्ोंकक इससे ज्यादा मैं इस बारे में
कोई बात नही ं करना चाहता।"

इतना कह कर किजय बाहर की तरि जाने ही लगा था कक प्रकतमा झट से उसके पीछे


से कचपक गई और किर दु खी होने का नाटक करते हुए बोली___"ऐसे मुझे छोंड कर
मत जाओ किजय। मैं खु द को समझाऊगी इसके कलए। शायद मेरे कदल से तु म्हारा
प्रे म कमट जाए। ले ककन तब तक तो हम कम से कम पहले जैसे हस बोल सकते है
ना?"

"अब ये सं भि नही ं है भाभी।" किजय ने तु रंत ही खु द को उससे अलग करके


कहा__"अब हालात बदल चु के हैं। आप मु झे ककसी बात के कलए मुजबू र मत कीकजए।
मैं नही ं चाहता कक ये बात हमारे बीच से कनकल कर घर िालों तक पहुॅच जाए।"

किजय कसं ह के अं कतम िाक्ों में धमकी साि तौर पर महसू स की जा सकती थी।
प्रकतमा जैसी शाकतर औरत को समझते दे र न लगी कक अब इससे आगे कुछ भी
करना उसके कहत में नही ं होगा। इस कलए िह कबना कुछ बोले कमरे से कटकिन उठा
कर हिे ली के कलए कनकल गई।

गमी में बच्चों के स्कूल की छु कट्टयाॅ खत्म होने में कुछ ही कदन शे ष रह गए थे । किजय
कसं ह शाम को हिे ली आ जाता था। एक कदन ऐसे ही प्रकतमा किजय के कमरे में पहुॅच

338
गई। उस िक्त गौरी ककचे न में करुर्ा के साथ खाना बना रही थी। जबकक नै ना सभी
बच्चों को अजय कसं ह िाले कहस्से में ऊपर अपने कमरें में पढा रही थी। माॅ जी हमेशा
की तरह अपने कमरे में थी और बाबू जी गाॅि तरि कही ं गए हुए थे । अभय कसं ह भी
हिे ली में नही ं था।

अपने कमरे में किजय कसं ह लुं गी बकनयान पहने हुए ऑख बं द ककये ले टा था। तभी
उसने ककसी की आहट से अपने ऑखें खोली। ऩिर प्रकतमा पर पडी तो िह बु री तरह
चौंका। एक झटके से िह बे ड पर उठ कर बै ठ गया। ये पहली बार था कक उसके
कमरे में प्रकतमा आई थी िो भी इस तरह जबकक कमरे में िह अकेला ही था। उसे
समझ न आया कक प्रकतमा यहाॅ ककस कलए आई है? उसके कदल की धडकन रे ल के
इं जन की तरह दौड रही थी। उसे डर था कक कही ं उसकी पत्नी गौरी न आ जाए।
हलाॅकक इसमें इतना डरने या घबराने की बात नही ं ककन्तु उनके बीच हालात ऐसे थे
कक हर बात से डर लग रहा था उसे ।

"क्ा कर रहे हो किजय?" प्रकतमा ने मुस्कुरा कर कहा___"मैने सोचा एक बार तु म्हारा


दीदार कर लू ॅ तो कदल को सु कून कमल जाए थोडा। कई कदन से दे खा नही ं था तु म्हें तो
कदल बडा बे चैन था। अब तो तु म्हारे कलए गौरी ही कटकिन ले कर जाती है। पता नही ं
क्ों तु म मु झसे कटे कटे से रहते हो। अपनी एक झलक भी दे खने नही ं दे ते मु झे। सच
कहती हूॅ किजय, तु मको तो ़िरा भी मेरी कचन्ता नही ं है।"

"ऐसी बातें करते हुए आपको शमग नही ं आती भाभी?" किजय कसं ह को जाने क्ों आज
पहली बार उस पर गुस्सा आया था, उसी गुस्से िाले लहजे में बोला___"अपनी ऊम्र
का कुछ तो कलहाज कीकजए। तीन तीन बच्चों की माॅ हैं आप और इसके बाद भी मन
में ऐसी िालतू बातें कलए किरती हैं आप।"

"इश्क़ की न कोई जात होती है किजय और ना ही कोई ऊम्र होती है।" प्रकतमा ने
दाशग कनकों िाले अं दा़ि में कहा___"इश्क़ तो कभी भी ककसी से भी ककसी भी ऊम्र में
हो सकता है । मु झे एक बार किर से इस ऊम्र में तु मसे हो गया तो क्ा करूॅ मैं? ये
तो मेरे कदल की खता है किजय, इसमें मेरा कोई कसू र नही ं है।"

"दे ल्कखये भाभी।" किजय ने कहा___"मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूॅ। और मैं चाहता
हूॅ कक मेरे कदल में आपके कलए ये इज़्ज़त ऐसी ही बनी रहे। इस कलए बे हतर होगा कक
आप खु द भी अपने मान सम्मान की बात सोचें । अब आप जाइये यहाॅ से ।"

"इतने कठोर तो नही ं थे किजय तु म?" प्रकतमा ने उदास भाि से कहा__"हमारे बीच
ककतना हसी म़िाक होता था पहले । ककतना खु श रहते थे न हम दोनो िहाॅ खे तों

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पर? िो भी तो एक प्रे म ही था किजय। अगर नही ं होता तो क्ा हमारे बीच िै सा हसना
बोलना होता?"

"िो सब दे िर भाभी के पाक ररश्ों का प्रे म था भाभी।" किजय ने कहा___"जबकक


आज का आपका ये प्रे म उस पाक प्रे म से बहुत जुदा है।"
"कैसे जुदा है किजय?" प्रकतमा ने कहा__"िै सा ही तो है आज भी। तु म्हें ऐसा क्ों
लगता है कक िो प्रे म इस प्रे म से बहुत जुदा है?"

"मैं इस बारे में कोई बात नही ं करना चाहता भाभी।" किजय ने बे चैनी से कहा__"और
अब आप जाइये यहाॅ से । मैं आपके पै र पडता हूॅ, कृपया जाइये यहाॅ से ।"

प्रकतमा दे खती रह गई किजय कसं ह को। उस किजय कसं ह को कजसके इरादे तथा
कजसके सं कल्प ककसी िौलाद से भी ज्यादा ठोस ि मजबू त थे । कुछ दे र एकटक
किजय को दे खने के बाद प्रकतमा िहाॅ से अं दर ही अं दर जलती भु नती चली आई।
________________________

ितगमान______
हल्दीपु र पु कलस स्टे शन!!
ररतू अपनी पु कलस कजप्सी से नीचे उतरी और थाने के अं दर लम्बे लम्बे कदमों के साथ
बढ गई। आस पास मौजूद पु कलस के कसपाकहयों ने उसे सै ल्यूट ककया कजसका जबाि
िह अपनी गदग न को हिा सा खम करते हुए दे रही थी। कुछ ही पल में िह अपने
केकबन में पहुॅची और टे बल के उस पार रखी कुसी पर बै ठ गई। तभी उसके केकबन
में हिलदार रामदीन दाल्कखल हुआ।

"कहो रामदीन क्ा ररपोटग है लोकेशन की?" ररतू ने पू छा उससे ।


"मैडम पक्की खबर है ।" रामदीन ने कहा__"उस ने ता का िो हरामी कपू त अपने
िामग हाउस पर अपने कुछ लिंगे दोस्तों के साथ ऐश िरमा रहा है।"

"खबर पक्की है ना?" ररतू ने गहरी ऩिर से रामदीन की तरि दे खा।


"सौ टका पक्की है मैडम।" रामदीन ने खी ंसें कनपोरते हुए कहा__"अपनी बे ििा बीिी
की कसम।"

"बे िफ़ा बीिी???" ररतू ने हैरानी से रामदीन की तरि दे खा___"ये क्ा बोल रहे हो
तु म रामदीन?"
"अब बे ििा को बे ििा न बोलू ॅ तो और क्ा बोलू ॅ मैडम?" रामदीन ने सहसा दु खी
भाि से कहा___"मेरा एक पडोसी है...नाम है चालू राम। जैसा नाम िै सा ही है िो

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मैडम। चालू राम बडी चालाकी से मेरी बीिी को िसा ले ता है और किर उसके साथ
चालू हो जाता है। इतना ही नही ं मेरी बीिी भी उसके साथ चालू हो जाती है। इन दोनो
के चालू पन ने मेरा जीना हराम कर रखा है मै डम।"

"ओफ्फो रामदीन।" ररतू का कदमाग़ मानो चकरा सा गया___"ये क्ा बकिास कर


रहे हो तु म? कौन चालू राम और कैसा चालू पन?"
"जाने दीकजए मैडम।" रामदीन ने गहरी साॅस ली___"मेरी तो बडी दु खभरी दास्तां
है।"

"अच्छा छोडो ये सब।" ररतू ने कहा___"दो चार हिलदार को लो हाथ में और मेरे
साथ चलो जल्दी।"
"जी मैडम।" रामदीन ने नाटकीय अं दा़ि में सै ल्यूट बजाया और केकबन से बाहर
कनकल गया। उसके पीछे ररतू भी बाहर आ गई।

बाहर चलते हुए ररतू ने पाॅकेट से मोबाइल िोन कनकाला और उसमें कोई नं बर
डायल कर उसे कान से लगा कलया।

"जय कहन्द सर।" ररतू ने कहा___"मुझे इमेकडएटली एक सचग िारं ट चाकहए।"


"............"
"आप किक्र मत कीकजए सर।" ररतू कह रही थी____"मैं सब सम्हाल लू ॅगी। आप
बस दो कमनट के अं दर मुझे िारं ट का काग़ज िैर्क् कर दीकजए।"

"..............."
"डोन्ट िरी सर।" ररतू ने कहा___"आई किल है ण्डल इट।"
"............"
"जय कहन्द सर।" ररतू ने कहा और काल कडस्कने क्ट करके मोबाइल पु नः पाॅकेट में
डाल कलया।

ठीक दो कमनट बाद ही िैर्क् मशीन से एक काग़ि कनकला। ररतू के इशारे पर िही ं
खडे रामदीन ने उस काग़ि को िैर्क् मशीन से ले कर ररतू को पकडा कदया। ररतू ने
ध्यान से काग़ि में कलखे मजमून को दे खा और किर उसे िोल्ड करके पाॅकेट में
डाल कलया।

"रामदीन सबको ले कर मेरे साथ चलो।" ररतू ने कहा थाने के बाहर खडी कजप्सी के
पास आ गई। डर ाईकिं ग सीट पर खु द बै ठी िह। चार हिलदारों के बै ठते ही उसने
कजप्सी को स्टाटग कर मेन रोड की तरि दौडा कदया।

341
लगभग आधे घंटे बाद िह हल्दीपु र की आबादी से बाहर दू र बने एक िामगहाउस के
पास पहुॅची। यहाॅ पर रोड के दोनो साइड कई सारे िामग हाउस बने हुए थे । ककन्तु
ररतू की कजप्सी कजस िामगहाउस के गेट के पास रुकी उस पर चौधरी िामगहाउस
कलखा हुआ था तथा नाम के नीचे िामग हाउस का नं बर पडा था।

िामग हाउस के गेट पर दो बं दूखधारी गाडग तै नात थे । पु कलस कजप्सी को दे खते ही िो


दोनो चौंके साथ ही दोनो के चे हरे सिेद िक्क भी पड गए। ररतू कजप्सी से उतर कर
तु रंत उन दोनो के करीब पहुॅची। तब तक चारो हिलदार भी आ चौके थे ।

एकाएक ही जैसे कबजली सी चमकी। पलक झपकते ही दोनो बं दूखधाररयों के कंठ से


घुटी घुटी सी चीख कनकली और िो लहरा कर िही ं ़िमीन पर कगर पडे । िो दोनो
बे होश हो चु के थे । ये सब इतनी ते ़िी से हुआ था कक कोई कुछ समझ भी न पाया था
कक ये सब कब और कैसे हो गया। हुआ यूॅ था कक ररतू उनके पास पहुॅची और
कबना कोई बात ककये कबजली की सी ते ़िी से उसने अपने दोनो हाॅथों को कराटे की
शक्ल दे कर दोनो बं दूखधाररयों की कनपटी पर कबजली की िीड से प्रहार ककया था।
िो दोनो कुछ समझ ही नही ं पाए थे और ना ही उन्हें इस सबकी कोई उम्मीद थी।

"इन दोनो की बं दूखों को अपने कब्जे में ले लो।" ररतू ने आदे श कदया___"और उसके
बाद इन दोनो को उठा कर कजप्सी में डाल दो।"

ररतू के आदे श का िौरन ही पालन हुआ। चारो हिलदार अभी तक हैरान थे कक


उनकी मैडम ने पलक झपकते ही दो दो बं दूखधाररयों को अचे त कर कदया। बे चारे
क्ा जानते थे कक बला की खू बसू रत ये लडकी ककतनी खतरनाक भी है।

सब कुछ होने के बाद चारो हिलदार ते ़िी से गेट के अं दर की तरि दौडे क्ोंकक ररतू
तब तक गेट के अं दर जा चु की थी। िामग हाउस कािी बडा था और कािी खू बसू रत
भी। हर तरि रं ग कबरं गे िूलों की क्ाररयाॅ लगी हुई थी तथा एक से बढ एक दे शी
किदे शी पे ड पौधे लगे हुए थे । लम्बे चौडे लान में किदे शी घास लगी हुई थी। कुल
कमलाकर ये कह सकते हैं कक चौधरी ने अपनी काली कमाई का अच्छा खासा उपयोग
ककया हुआ था।

गेट से ले कर िामग हाउस की इमारत के मुख्य द्वार तक लगभग आठ िुट चौडी सिेद
मारबल की सडक बनी हुई थी तथा इमारत के पास से ही लगभग बीस िुट की ही
चौडाई पर भी इमारत के चारो तरि मारबल लगा हुआ था। बाॅकी हर जगह लान में
हरी घास, पे ड पौधे ि िूलों की क्ाररयाॅ थी।

मुख्य द्वार के बगल से जो कक पोचग का ही एक कहस्सा था िहाॅ पर दो कारें खडी थी

342
इस िक्त। एक ब्लैक कलर की इनोिा थी तथा दू सरी ल्कस्वफ्ट कडजायर थी। मुख्य द्वार
बं द था। ररतू को कही ं पर बे ल लगी हुई न कदखी। इस कलए उसने दरिाजे पर हाथ से
ही दस्तक दी। ककन्तु अं दर से कोई दरिाजा खोलने नही ं आया। ररतू ने कई बार
दस्तक दी। परं तु पररर्ाम िही। ऐसा तो हो ही नही ं सकता था कक अं दर कोई है ही
नही ं क्ोंकक बाहर खडी दो कारें इस बात का सबू त थी कक इनसे कोई आया है जो
इस िक्त इमारत के अं दर है।

जब ररतू की दस्तक का कोई परार्ाम सामने नही ं आया तो उसने इमारत से थोडा
दू र आकर इमारत की तरि ध्यान से दे खा। इमारत दो मंकजला थी। मुख्य द्वार के
कुछ ही िासले पर दोनो साइड काच की बडी सी ककन्तु ब्लैक कलर की ल्कखडककयाॅ
थी। कजनके ऊपर साइड बरसात के मौसम में पानी की बौछार से बचने के कलए रै क
बनाया गया था। मुख्य द्वार पर एक लम्बा चौडा पोचग था जो दोनो तरि की उन कान
की ल्कखडककयों तक था। पोचग के ऊपर का भाग खाली था उसके बाद स्टील की रे कलं ग
लगी हुई थी।

अभी ररतू ये सब दे ख ही रही थी कक मुख्य द्वार खु लने की आहट हुई। ररतू ने बडी
ते ़िी से चारो हिलदारों को इमारत के बगल साईड की दीिार के पीछे छु प जाने का
इशारा ककया जबकक खु द मुख्य द्वार के पास पहुॅच गई।

तभी दरिाजा खु ला और सबसे पहले रोकहत मे हरा बाहर कनकला। उसके चे हरे पर
अजीब से भाि थे , िह पीछे की तरि ही दे ख कर हसते हुए बाहर आ रहा था। उसके
पीछे अलोक िमाग ि ककशन श्रीिास्ति था और अं त में सू रज चौधरी था। इसका बाप
कदिाकर चौधरी शहर का एम एल ए था।

"भाई तु म सब यही ं रुको मैं अपनी िाली उस राॅड को भी ले कर आता हूॅ।" रोकहत
मेहरा ने कहा___"साली का िोन ल्कस्वच ऑि बता रहा है। अब तो उसे ले ने ही जाना
पडे गा। आज तो इसकी अच्छे से बजाएॅगे हम सब।"

"ठीक है जल्दी आना।" अलोक ने कहा___"तब तक हम इनके होश में लाने का


प्रयास करते हैं। और हाॅ सु न........।" आगे बोलते बोलते िह रुक गया क्ोंकक
दरिाजे के पार खडी पु कलस की िदी पहने ररतू पर उसकी ऩिर पड गई।

"क्ा हुआ बे बोलते बोलते रुक क्ों गया तू ?" रोकहत मेहरा हसा___"कोई भू त दे ख
कलया क्ा?"
"ऐसा ही समझ ले ।" अलोक ने ऑखों से बाहर की तरि इशारा ककया।

343
उसके इशारे से सबने दे खा बाहर की तरि और पु कलस इं िेक्टर ररतू पर ऩिर पडते
ही उन सबकी नानी मर गई। शराब और शबाब का सारा नशा कहरन हो गया
उनका। ककन्तु ये कुछ दे र के कलए ही था अगले पल िो सब मु स्कुराने लगे।

"ले भाई तू अपनी िाली को ले ने जा रहा था यहाॅ तो एक ़िबरदस्त माल खु द ही


पु कलस की िदी में चल कर आ गया।" ककशन ने हसते हुए कहा___"अब तु झे कही ं
जाने की ़िरूरत नही ं है। हम सब इसके साथ ही अब म़िा करें गे।"

"सही कह रहा है यार।" रोकहत मे हरा ने ररतू को ऊपर से नीचे तक दे खते हुए
कहा__"क्ा िाडू किगर है इसका। कसम से म़िा आ जाएगा आज तो।"
"तो किर दे र ककस बात की भाई?" अलोक ने कहा___"उठा ले चल इसे अं दर।"

"ओये एक कमनट।" ककशन ने कहा___"मत भू लो कक ये पु कलस िाली है। इस िक्त


अकेली कदख रही है मगर सं भि है इसके साथ कोई और भी पु कलस िाले हों। ऐसे में
बडी प्रोब्लेम हो जाएगी।"

"अबे साले तू कब अपने िकील बाप की तरह सोचना बं द करे गा?" अलोक
घुडका___"ये हमारा बाल भी बाॅका नही ं कर सकती। अब चल उठा इसे और ले चल
अं दर।"

ररतू चु पचाप खडी इन सबकी बातें सु न रही थी। ये अलग बात थी कक अं दर ही अं दर


िह गुस्से भभक रही थी। इधर सबसे आगे रोकहत मे हरा ही था सो िही बढा पहले ।
उसके बाद सभी दरिाजे के बाहर आ गए।

िो चारो ररतू के चारो तरि िैल गए और उसके चारो तरि गोल गोल चक्कर लगाने
लगे।

"भाई हर तरि से पटाखा है ये तो।" अलोक ने कहा___"सू रज भाई पहले कौन


इसकी ले ....आहहहहहह।"

अलोक के हलक से ददग भरी चीख गू ॅज गई थी। ररतु ने कबजली की सी िुती से पलट
कर बै क ककक अलोक के सीने पर जडा था। ककक पडते ही िह चीखते हुए तथा हिा
में लहराते हुए पोचग से बाहर जाकर कगरा था। ररतू के सब्र का बाॅध जैसे टू ट गया था।
िह इतने पर ही नही ं रुकी बल्कि पलक झपकते ही बाॅकी तीनों भी पोचग के अलग
अलग कहस्सों पर पडे कराह रहे थे ।

"तु म जैसे कहजडों की औलादों को सु धारने के कलए मैं आ गई हूॅ।" ररतू ने भभकते

344
हुए कहा___"तु म चारों की ऐसी हालत करूॅगी कक दोबारा जन्म ले ने से इं कार कर
दोगे।"

"भाई ये क्ा था?" ककशन ने उठते हुए कहा__"ये तो लगता है करें ट मारती है। हमें
इसे अलग तरीके से काबू में करना होगा।"
"सही कह रहा है तू ।" अलोक ने कहा__"अब तो कशकार करने में म़िा आएगा भाई
लोग।"

"आ जाओ तु म चारो एक साथ।" ररतू ने कहा___"मैंने तु म चारों का हुकलया न कबगाड


कदया तो मेरा भी नाम ररतू कसह बघेल नही ं।"
"चलो दे ख ले ते हैं कडयर।" सू रज ने पोजीशन में आते हुए कहा___"कक तु ममें कोई
बात है या हममें।"

चारों ने ररतू को किर से घेर कलया। ककन्तु इस बार िो पू री तरह सतकग थे । उनकी
पोजीशन से ही लग रहा था कक िो चारो जू डो कराटे जानते थे । ररतू खु द भी पू री तरह
सतकग थी।

चारो उसे घेरे हुए थे तथा उनके चे हरों पर कमीने पन की मुस्कान थी। चारो ने ऑखों
ही ऑखों में कोई इशारा ककया और अगले ही पल चारो एक साथ ररतू की तरि
झपटे ककन्तु ये क्ा??? िो जैसे ही एक साथ चारो तरि से ररतू पर झपटे िै से ही ररतू
ने ऊपर की तरि जम्प मारी और हिा में ही कलाबा़िी खाते हुए उन चारों के घरे से
बाहर आ गई। उसके बाहर आते ही चारो आपस में ही बु री तरह टकरा गए। उधर
ररतू ने मानों उन्हें सम्हलने का मौका ही नही ं कदया बल्कि कबजली की सी िीड से
उसने लात घूसों और कराटों की बरसात कर दी उन पर। िातािरर् में चारों की
चीखें गूॅजने लगी। कुछ दू री पर खडे िो चारो पु कलस हिलदार भी ये हैरतअं गेज
कारनामा दे ख रहे थे ।

ऐसा नही ं था कक चारो लडके कुछ कर नही ं रहे थे ककन्तु उनका हर िार खाली जा
रहा था जबकक ररतू तो मानो रर्चं डी बनी हुई थी। जू डो कराटे ि माशग ल आटग के
हैरतअं गेज दाॅि आजमाए थे उसने । पररर्ाम ये हुआ कक थोडी ही दे र में उन चारो
की हालत खराब हो गई। ़िमीन में पडे िो बु री तरह कराह रहे थे ।

"क्ों सारी हेकडी कनकल गई क्ा?" ररतू ने अलोक के पे ट में पु कलकसये बू ट की ते ़ि


ठोकर मारते हुए कहा___"उठ सु अर की औलाद। कदखा न अपनी मदागनगी। साला
एक पल में ही पे शाब कनकल गया ते रा।"

ररतू सच कह रही थी, अलोक की पै न्ट गीली हो गई थी। बू ट की ठोकर लगते ही िह

345
हलाल होते बकरे की तरह कचल्लाया था। साथ ही अपने दोनो हाॅथ जोडकर
बोला___"मुझे माफ़ कर दो प्ली़ि। आज के बाद मैं ऐसा िै सा कुछ नही ं कहूॅगा।"

"कहेगा तो तब जब कहने लायक तू बचे गा भडिे की औलाद।" ररतू ने एक और


ठोकर उसके पे ट में जमा दी। िह किर से कचल्ला उठा था। तभी ररतू के हलक से
चीख कनकल गई। दरअसल उसका सारा ध्यान अलोक की तरि था इस कलए िह
दे ख ही नही ं पाई कक पीछे से ककशन ने उसकी पीठ पर चाकू का िार कर कदया था।
पु कलस की िदी को चीरता हुआ चाकू उसकी पीठ को भी चीर कदया था। पलक
झपकते ही उसकी िदी उसके खू न से नहाने लगाने थी।

"साली हमसे पं गा ले रही है तू ।" ककशन ने गुरागते हुए कहा___"अब दे ख ते री क्ा


हालत बनाते हैं हम?"

बडी हैरानी की बात थी कक कुछ ही दू री पर खडे चारो हिलदार तमाशा दे ख रहे थे ।


उनकी हालत ऐसी थी जैसे जूडी के मरी़ि हों। हाॅथों में पु कलस की लाठी कलए िो
चारो डरे सहमें से खडे थे । और उस िक्त तो उनकी हालत और भी खराब हो गई
जब ककशन ने पीछे से ररतू की पीठ पर चाकू से िार ककया था। चाकू का िार चीरा
सा लगाते हुए कनकल गया था, अगर ककशन उसे पीठ पर ही पे िस्त कर दे ता तो
मामला बे हद ही गंभीर हो जाता।

"रुक क्ों गया ककशन?" सू रज ने उठते हुए कहा___"चीर कर रख दे इस साली की


िदी को। यही ं पर इसे नं गा करें गे हम और यही ं पर इसकी इज्जत लू टेंगे।"
"सू रज सही कह रहा है ककशन।" रोकहत भी उठ चु का था___"इसे सम्हलने का मौका
मत दे और चाकू से चीर दे इसकी िदी को।"

ककशन ने किर से अपना दाकहना हाथ हिा में उठाया ररतू पर िार करने के कलए।
उधर ररतू की पीठ में ते ़िी से पीडा उठ रही थी। खू न बु री तरह ररस रहा था। जैसे ही
ककशन ने उस पर िार ककया उसने एक हाथ से उसके िार को रोंका और दू सरे
हाॅथ से एक ़िबरदस्त मुक्का उसकी नाॅक में जड कदया। ककशन के नाॅक की
हड्डी टू टने की आिा़ि आई साथ ही उसकी भयंकर चीख िातािरर् में िैल गई।
उसकी नाक से भल्ल भल्ल करके खू न बहने लगा था। चाकू उसके हाॅथ से छूट गया
और िह ़िमीन पर धडाम से कगरा। उधर ककशन की ये हालत दे ख कर बाॅकी तीनो
हरकत में आ गए। ररतू ने ते ़िी से झुक कर ़िमीन से चाकू उठाया और जैसे ही िो
तीनो उसके पास आए उसने चाकू िाला हाॅथ ते ़िी से चला कदया उन पर। सबकी
चीखें कनकल गई।

346
हालात बदल चु के थे । ररतू जानती थी कक उसकी हालत खु द भी अच्छी नही ं है और
अगर िह कम़िोर पड गई तो ये चारो ककसी कुिे की तरह नोच कर खा जाएॅगे।
इस कलए उसने अपने ददग की परिाह न करते हुए एक बार से उन पर टू ट पडी और
तब तक उन्हें लात घूॅसों पर रखा जब तक कक िो चारो अधमरे न हो गए।

ररतू बु री तरह हाॅि रही थी। उसकी िदी पीक की तरि से खू न में नहा चु की थी।
उसे कम़िोरी का एहसास होने लगा था।उसने दू र खडे अपने हिलदारों की तरि
दे खा जो ककसी पु तलों की तरह खडे थे । ररतू को उन्हें दे ख कर बे हद क्रोध आया। िह
ते ़िी से उनके पास पहुॅची और किर दे दना दन थप्पडों की बरसात कर दी न पर।
उन चारों के हलक से चीखें कनकल गई।

"मैं तु मको यहाॅ पर क्ा तमाशा दे खने के कलए ले कर आई थी नामदो?" ररतू ककसी
शे रनी की भाॅती गरजी थी, बोली___"तु म चारो यहाॅ पर खडे बस तमाशा दे ख रहे
थे । तु म दोनो को पु कलस में रहने का कोई हक़ नही ं है। आज और अभी से तु म चारो
को कढसकमस ककया जाता है। अब दिा हो जाओ यहाॅ से और कभी अपनी शकल
मत कदखाना।"

ररतू की गु स्से भरी ये िातें सु नकर चारो की हालत खराब हो गई। िो चारो ररतू के
पै रों पर कगर कर माफ़ी मागने लगे। ककन्तु ररतू को उन पर इतना ज्यादा गु स्सा आया
हुआ था कक उसने अपने पै रों पर कगरे उन चारों को लात की ठोकरों पर रख कदया।

"हट जाओ मेरे सामने से ।" ररतू ने गुरागते हुए कहा___"तु म जैसे कनकम्मों और नामदों
की मेरे पु कलस थाने में कोई जगह नही ं है। अब दिा हो जाओ िरना तु म चारो को
गोली मार दू ॅगी।"

ररतू का रौद्र रूप दे ख कर िो चारो बु री तरह ठर गए और किर िहाॅ से नौ दो ग्यारह


हो गए। उनके जाते ही ररतू ने उन चारो लडकों को एक एक करके ककसी तरह
अपनी पु कलस कजप्सी पर पटका और किर िह िापस उस जगह आई जहाॅ पर अभी
कुछ दे र पहले ये सं ग्राम हुआ था। उसने दे खा कक पोचग के िसग पर कई जगह खू न
िैला हुआ था। उसने इधर उधर दृकष्ट घु मा कर दे खा ककन्तु उसे ऐसा कुछ भी न
कदखा जो उसके काम का हो। िह मुख्य द्वार से अं दर की तरि चली गई। अं दर
सामने ही एक कमरा कदखा उसे । िह उस कमरे की तरि बढ गई। कमरे का
दरिाजा हिा खु ला हुआ था। ररतू ने अपने पै रों से दरिाजे को अं दर की तरि
धकेला। दरिाजा बे आिा़ि खु लता चला गया।

अं दर दाल्कखल होकर उसने दे खा कक कमरा कािी बडा था तथा कािी शानदार

347
तरीके से सजा हुआ था। एक कोने में बडा सा बे ड था कजसमें तीन लडककयाॅ
मादरजाद नं गी पडी हुई थी। ऐसा लगता था जैसे गहरी नीद में हों। ररतू ने नफ़रत से
उन्हें दे खा और किर कमरे में उसने अपनी ऩिरें दौडाईं। बगल की दीिार पर एक
तस्वीर टगी हुई थी। तस्वीर कोई खास नही ं थी बस साधारर् ही थी। ररतू के मन में
सिाल उभरा कक इतने अलीशान िामगहाउस पर इतनी मामूली तस्वीर कैसे रखी जा
सकती है?

ररतू ने आगे बढ कर तस्वीर को ध्यान से दे खा। तस्वीर सच में कोई खास नही ं थी।
ररतू को जाने क्ा सू झा कक उसने हाॅथ बढा कर दीिार से तस्वीर को कनकाल कलया।
तस्वीर के कनकलते ही दीिार पर एक ल्कस्वच ऩिर आया। ररतू ये दे ख कर चकरा गई।
भला दीिार पर लगे ल्कस्वच के ऊपर तस्वीर को इस तरह क्ों लगाया गया होगा? क्ा
ल्कस्वच को तस्वीर द्वारा छु पाने के कलए??? ररतू को अपना ये किचार कही ं से भी ग़लत
नही ं लगा। उसने तस्वीर को एक हाॅथ से पकड कर दू सरे हाॅथ को दीिार पर लगे
ल्कस्वच बटन को ऊपर की तरि पु श ककया। बटन को ऊपर की तरि पु श करते ही
कमरे में अजीब सी घरघराहट की आिा़ि हुई। ररतू ये दे ख कर बु री तरह चौंकी कक
उसके सामने ही दीिार पर एक दरिाजा ऩिर आने लगा था।

उसे समझते दे र न लगी कक ये कदिाकर चौधरी का गु प्त कमरा है। िह धडकते कदल
के साथ कमरे में दाल्कखल हो गई। अं दर पहुॅच कर उसने दे खा बहुत सारा कबाड
भरा हुआ था यहाॅ। ये सब दे ख कर ररतू हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कक
कोई कबाड को ऐसे गुप्त रूप से क्ों रखे गा?? ररतू ने हर ची़ि को बारीकी से दे खा।
उसके पास समय नही ं था। क्ोंकक उसकी खु द की हालत खराब थी। कािी दे र तक
खोजबीन करने के बाद भी उसे कोई खास ची़ि ऩिर न आई। इस कलए िह बाहर
आ गई मखर तभी जैसे उसे कुछ याद आया। िह किर से अं दर गई। इस बार उसने
ते ़िी से इधर उधर दे खा। जल्द ही उसे एक तरि की दीिार से सटा हुआ एक टे बल
कदखा। टे बल के आस पास तथा ऊपर भी कािी सारा कबाड सा पडा हुआ था।
ककन्तु ररतू की ऩिर कबाड के बीच रखे एक छोटे से ररमोट पर पडी। उसने तु रंत ही
उसे उठा कलया। िो ररमोट टीिी के ररमोट जै सा ही था।

ररतू ने हरा बटन दबाया तो उसके दाएॅ तरि हिी सी आिा़ि हुई। ररतू ने उस
तरि दे खा तो उछल पडी। ये एक दीिार पर बनी गुप्त आलमारी थी जो आम सू रत
में ऩिर नही ं आ रही थी। ररतू ने आगे बढ कर आलमारी की तलाशी ले नी शु रू कर
दी। उसमें उसे कािी मसाला कमला। कजन्हें उसने कमरे में ही पडे एक गंदे से बै ग में
भर कलया। उसके बाद उसने ररमोट से ही उस आलमारी को बं द कर कदया।

ररतू उस बै ग को ले कर िापस बाहर आ गई और डर ाइकिं ग सीट पर बै ठ कर कजप्सी

348
को िामगहाउस से मेन सडक की तरि दौडा कदया। इस िक्त उसके चे हरे पर पत्थर
जैसी कठोरता तथा नफ़रत किद्यमान थी। कदलो कदमाग़ में भयंकर चक्रिात सा चल
रहा था। उसकी कजप्सी ऑधी तू िान बनी दौडी चली जा रही थी।

अपडे ट..........《 33 》

अब तक,,,,,,,

उसे समझते दे र न लगी कक ये कदिाकर चौधरी का गु प्त कमरा है। िह धडकते कदल
के साथ कमरे में दाल्कखल हो गई। अं दर पहुॅच कर उसने दे खा बहुत सारा कबाड
भरा हुआ था यहाॅ। ये सब दे ख कर ररतू हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कक
कोई कबाड को ऐसे गुप्त रूप से क्ों रखे गा?? ररतू ने हर ची़ि को बारीकी से दे खा।
उसके पास समय नही ं था। क्ोंकक उसकी खु द की हालत खराब थी। कािी दे र तक
खोजबीन करने के बाद भी उसे कोई खास ची़ि ऩिर न आई। इस कलए िह बाहर
आ गई मखर तभी जैसे उसे कुछ याद आया। िह किर से अं दर गई। इस बार उसने
ते ़िी से इधर उधर दे खा। जल्द ही उसे एक तरि की दीिार से सटा हुआ एक टे बल
कदखा। टे बल के आस पास तथा ऊपर भी कािी सारा कबाड सा पडा हुआ था।
ककन्तु ररतू की ऩिर कबाड के बीच रखे एक छोटे से ररमोट पर पडी। उसने तु रंत ही
उसे उठा कलया। िो ररमोट टीिी के ररमोट जै सा ही था।

ररतू ने हरा बटन दबाया तो उसके दाएॅ तरि हिी सी आिा़ि हुई। ररतू ने उस
तरि दे खा तो उछल पडी। ये एक दीिार पर बनी गुप्त आलमारी थी जो आम सू रत
में ऩिर नही ं आ रही थी। ररतू ने आगे बढ कर आलमारी की तलाशी ले नी शु रू कर
दी। उसमें उसे कािी मसाला कमला। कजन्हें उसने कमरे में ही पडे एक गंदे से बै ग में
भर कलया। उसके बाद उसने ररमोट से ही उस आलमारी को बं द कर कदया।

ररतू उस बै ग को ले कर िापस बाहर आ गई और डर ाइकिं ग सीट पर बै ठ कर कजप्सी


को िामगहाउस से मेन सडक की तरि दौडा कदया। इस िक्त उसके चे हरे पर पत्थर
जैसी कठोरता तथा नफ़रत किद्यमान थी। कदलो कदमाग़ में भयंकर चक्रिात सा चल
रहा था। उसकी कजप्सी ऑधी तू िान बनी दौडी चली जा रही थी।
_____________________________

349
अब आगे,,,,,,,,,,

ितगमान अब आगे_______

ररतू की पु कलस कजप्सी कजस जगह रुकी िह एक बहुत ही कम आबादी िाला एररया
था। सडक के दोनो तरि यदा कदा ही मकान कदख रहे थे । इस िक्त ररतू कजस जगह
पर आकर रुकी थी िह कोई िामग हाउस था। कजप्सी की आिा़ि से थोडी ही दे र में
िामग हाउस का बडी सी बाउं डरी पर लगा लोहे का भारी गेट खु ला। गेट के खु लते ही
ररतू ने कजप्सी को आगे बढा कदया, उसके पीछे गेट पु नः बं द हो गया। कजप्सी को बडे
से मकान के पास लाकर ररतू ने रोंक कदया और किर उससे नीचे उतर गई।

ररतू की हालत बहुत खराब हो चु की थी। बदन में जान नही ं रह गई थी। गेट को बं द
करने के बाद दो लोग भागते हुए उसके पास आए।

"अरे क्ा हुआ कबकटया तु म्हें?" एक लम्बी मू ॅछों िाले ब्यल्कक्त ने घबराकर कहा___"ये
क्ा हालत बना ली है तु मने ? ककसने की तु म्हारी ये हालत? मैं उसे क़िन्दा नही ं
छोंडूॅगा कबकटया।"
"काका इन सबको अं दर तहखाने में बं द कर दो।" ररतू ने उखडी हुई साॅसों से
कहा__"और ध्यान रखना ककसी को इन लोगों का पता न चल सके। ये तु म्हारी
कजम्मेदारी है काका।"

"िो सब तो मैं कर लू ॅगा कबकटया।" काका की ऑखों में ऑसू तै रते कदखे ___"ले ककन
तु म्हारी हालत ठीक नही ं है। तु म्हें जल्द से जल्द हाल्किटल ले कर जाना पडे गा। मैं बडे
ठाकुर साहब को िोन लगाता हूॅ कबकटया।"

"नही ं काका प्ली़ि।" ररतू ने कहा___"कजतना कहा है पहले उतना करो। मैं ठीक
हूॅ..बस काकी को िस्ट एड बार्क् के साथ मेरे कमरे में भे ज दीकजए जल्दी। ले ककन
उससे पहले इन्हें तहखाने में बं द कीकजए।"

"ये सब कौन हैं बे टी?" एक अन्य आदमी ने पू छा___"इन सबकी हालत भी बहुत
खराब लग रही है ।"
"ये सब के सब एक नं बर के मुजररम हैं शं भू काका।" ररतू ने कहा___"इन लोगों बडे
से बडा सं गीन गुनाह ककया है।"

"किर तो इनको जान से मार दे ना चाकहए कबकटया।" काका ने कजप्सी में बे होश पडे
सू रज और उसके दोस्तों को दे ख कर कहा।

350
"इन्हें मौत ही कमले गी काका।" ररतू ने भभकते हुए कहा___"ले ककन थोडा थोडा
करके।"

उसके बाद ररतू के कहने पर उन दोनो ने उन सभी लडको को उठा उठा कर अं दर


तहखाने में ले जाकर बं द कर कदया। जबकक ररतू अं दर अपने कमरे की तरि बढ
गई। थोडी ही दे र में काकी िस्टग एड बार्क् ले कर आ गई। ररतू के कहने पर काकी
ने कमरे का दरिाजा अं दर से बं द कर कदया।

ररतू ने िदी की शटग ककसी तरह अपने बदन से उतारा। काकी हैरत से दे खे जा रही
थी।उसके चे हरे पर कचन्ता और दु ख साि कदख रहे थे ।

"ये सब कैसे हुआ कबकटया?" काकी ने आगे बढ कर शटग उतारने में ररतू की मदद
करते हुए कहा___"दे खो तो ककतना खू न बह गया है, पू री शरट भी ंग गई है।"

"अरे काकी ये सब तो चलता रहता है ।" ररतू ने बदन से शटग को अलग करते हुए
कहा__"इस नौकरी में कई तरह के मु जररमों से पाला पडता रहता है।"
"अरे तो ऐसी नौकरी करती ही क्ों हो कबकटया?" काकी ने कहा___"भला का कमी है
तु म्हें? सब कुछ तो है।"

"बात कमी की नही ं है काकी।" ररतू ने कहा___"बात है शौक की। ये नौकरी मैं अपने
शौक के कलए कर रही हूॅ। खै र ये सब छोकडये और मैं जैसा कहूॅ िै सा करते
जाइये।"

कहने के साथ ही ररतू बे ड पर उल्टा होकर ले ट गई। इस िक्त िह ऊपर से कसिग एक


कपं क कलर की ब्रा में थी। दू ध जैसी गोरी पीठ पर हर तरि खू न ही खू न कदख रहा
था। ब्रा के हुक के ऊपरी कहस्से पर दाएॅ से बाएं चाकू का चीरा लगा था। जो कक
दाकहने कंधे के थोडा नीचे से टें ढा बाएॅ तरि लगभग दस इं च का था। काकी ने जब
उस चीरे को दे खा तो उसके शरीर में कसहरन सी दौड गई।

"हाय दइया ये तो बहुत खराब कटा है।" काकी ने मुह िाडते हुए कहा___"ये सब
कैसे हो गया कबकटया? पू री पीठ पर चीरा लगा है।"
"ये सब छोडो आप।" ररतू ने गदग न घुमा कर पीछे काकी की तरि दे ख कर
कहा___"आप उस बार्क् से रुई लीकजए और उसमे डे टाॅल डाल कर मेरी ठीठ पर
िैले इस खू न को साि कीकजए।"

"पर कबकटया तु म्हें ददग होगा।" काकी ने कचल्कन्तत भाि से कहा___"मैं ये कैसे कर
पाऊगी?"

351
"मुझे कुछ नही ं होगा काकी।" ररतू ने कहा__"बल्कि अगर आप ऐसा नही ं करें गी तो
़िरूर मु झे कुछ हो जाएगा। क्ा आप चाहती हैं कक आपकी कबकटया को कुछ हो
जाए?"

"नही ं नही ं कबकटया।" काकी की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये क्ा कह रही हो तु म?
तु म्हें कभी कुछ न हो कबकटया। मेरी सारी उमर भी तु म्हें लग जाए। रुको मैं करती
हूॅ।"

ररतू काकी की बातों से मु स्कुरा कर रह गई और अपनी गदग न िापस सीधा कर


तककये में रख कलया। काकी ने बार्क् से रुई कनकाला और उसमे डे टाॅल डाल कर
ररतू की पीठ पर डरते डरते हाॅथ बढाया। िह बहुत ही धीरे धीरे ररतू की पीठ पर
िैले खू न को साि कर रही थी। कदाकचत िह नही ं चाहती थी कक ररतू को ़िरा भी
ददग हो।

"आप डर क्ों रही हैं काकी?" सहसा ररतू ने कहा___"अच्छे से हाॅथ गडा कर साि
कीकजये न। मुझे कबलकुल भी ददग नही ं होगा। आप किक्र मत कीकजए।"

ररतू के कहने पर काकी पहले की अपे क्षा अब थोडा ठीक से साि कर रही थी। मगर
बडे एहकतयात से ही। कुछ समय बाद ही काकी ने ररतू की पीठ को साि कर कदया।
ककन्तु चीरा िाला कहस्सा उसने साि नही ं ककया। ररतू ने उससे कहा कक िो चीरे िाले
कहस्से को भी अच्छी तरह साि करें । क्ोंकक जब तक िो अच्छी तरह साि नही ं होगा
तब तक उस पर दिा नही ं लगाई जा सकती। काकी ने बडी सािधानी से उसे भी
साि ककया। किर ररतू के बताने पर उसने बार्क् से कनकाल कर एक मल्हम चीरे पर
लगाया और किर उसकी पट्टी की। चीरे िाले थथान से कजतना खू न बहना था िह बह
चु का था ककन्तु बहुत ही हिा हिा अभी भी ररस रहा था। हलाॅकक अब पट्टी हो
चु की थी इस कलए ररतू को आराम कमल रहा था। उसने ददग की एक टे बले ट खा ली
थी।

"अब तु म आराम करो कबकटया।" काकी ने कहा___"तब तक मैं तु म्हारे कलए गरमा
गरम खाना बना दे ती हूॅ।
"नही ं काकी।" ररतू ने कहा___"आप खाना बनाने का कस्ट न करें । बस एक कप
कािी कपला दीकजए।"

"ठीक है जैसी तु म्हारी म़िी।" काकी ने कहा और ररतू के ऊपर एक चद्दर डाल कर
कमरे से बाहर कनकल गई। जबकक ररतू ने अपनी आॅखें बं द कर ली। कुछ दे र ऑखें
बं द कर जाने िह क्ा सोचती रही किर उसने अपनी ऑखें खोली और बे ड के बगल
से ही एक छोटे से स्टू ल पर रखे लै ण्डलाइन िोन की तरि अपना हाथ बढाया।

352
ररसीिर कान से लगा कर उसने कोई नं बर डायल ककया। कुछ ही पल में उधर बे ल
जाने की आिा़ि सु नाई दे ने लगी।

"हैलो ककमश्नर जगमोहन दे साई हे यर।" उधर से कहा गया।


"जय कहन्द सर मैं इं िेक्टर ररतू बोल रही हूॅ।" ररतू ने उधर की आिा़ि सु नने के
बाद कहा।
"ओह यस ऑकिसर।" उधर से ककमश्नर ने कहा___"क्ा ररपोटग है?"

"सर एक िेिर चाकहए आपसे ।" ररतू ने कहा।


"िेिर???" ककमश्नर चकराया__"कैसा िेिर हम कुछ समझे नही ं।"
"सर सारी कडटे ल मैं आपको आपसे कमल कर ही बताऊगी।" ररतू ने कहा___"िोन
पर बताना उकचत नही ं है ।"

"ओकेनो प्राब्ले म।" ककमश्नर ने कहा__"अब बताओ कैसे िेिर की बात कर रही थी
तु म?"
"सर मैं चाहती हूॅ कक इस केस की सारी जानकारी कसिग आप तक ही रहे।" ररतू
कह रही थी___"आप जानते हैं कक मैंने किधी के रे प केस की अभी तक कोई िाइल
नही ं बनाई है। बस आपको इस बारे में इन्फामग ककया था।"

"हाॅ ये हम जानते हैं।" ककमश्नर ने कहा__"पर तु म करना क्ा चाहती हो ये हम


जानना चाहते हैं?"
"कल आपसे कमल कर सारी बातें बताऊगी सर।" ररतू ने कहा___"इस िक्त मैं आपसे
बस ये िेिर चाहती हूॅ कक कदिाकर चौधरी के बे टे और उसके दोस्तों के बारे में
अगर आपके पास कोई बात आए तो आप यही ककहएगा कक पु कलस का इस बात से
कोई सं बंध नही ं है।"

"क्ा मतलब??" ककमश्नर बु री तरह चौंका था__"आकखर तु म क्ा कर रही हो


ऑकिसर? उस समय भी तु मने हमसे इमेकडएटली सचग िारं ट के कलए कहा था और
हमने उसका तु रंत इं तजाम भी ककया। ले ककन अब तु म ये सब बोल रही हो आकखर
हुआ क्ा है?"

"सर मैं आपको सारी बातें कमल कर ही बताऊगी।" ररतू ने कहा___"प्ली़ि सर टर ाई टू


अं डरस्टै ण्ड।"
"ओके िाइन।" ककमश्नर ने कहा__"हम कल तु म्हारा िे ट करें गे आकिसर।"
"जय कहन्द सर।" ररतू ने कहा और ररसीिर िापस केकडर ल पर रख कदया।

353
ररतू ने किर से आॅखें बं द कर ली। तभी कमरे में काकी दाल्कखल हुई। उसके हाथ में
एक टर े था कजसमें एक बडा सा कप रखा था। आहट सु न कर ररतू ने ऑखें खोल कर
दे खा। काकी को दे खते ही िह बडी सािधानी से उठ कर बे ड पर बै ठ गई। उसके
बै ठते ही काकी ने ररतू को कािी का कप पकडाया।

कािी पीने के बाद ररतू को थोडा बे हतर िील हुआ और िह बे ड से उतर आई।
आलमारी से उसने एक ब्लू कलर का जीन्स का पै न्ट और एक रे ड कलर की टी-शटग
कनकाल कर उसे पहना तथा ऊपर से एक ले दर की जाॅकेट पहन कर उसने आईने
में खु द को दे खा। किर पु कलस की िदी िाले पै न्ट से होले स्टर सकहत सकिग स ररिावर
कनकाल कर उसे जीन्स के बे ल्ट पर िसाया तथा आलमारी से एक रे ड एण्ड ब्लैक
कमर्क् गाॅगल्स कनकाल कर उसे ऑखों पर लगाया और किर बाहर कनकल गई।

बाहर उसे काकी कदखी। उसने काकी से कहा कक िह जा रही है। काकी उसे यूॅ दे ख
कर हैरान रह गई। उसे समझ में न आया कक ये लडकी तो अभी थोडी दे र पहले
गंभीर हालत में थी और अब एकदम से टीम टाम होकर चल भी दी।

मकान के बाहर आकर ररतू पु कलस कजप्सी की तरि बढी। िह ये दे ख कर खु श हो


गई कक काका ने कजप्सी को अच्छे से धोकर साि सु थरा कर कदया था। ररतू को
काका की समझदारी पर कायल होना पडा। कजप्सी को स्टाटग कर ररतू मेन गेट की
तरि बढ चली।

"काका उन लोगों का ध्यान रखना।" ररतू ने गेट के पास खडे काका और शं भू काका
दोनो की तरि दे ख कर कहा___"आज रात का खाना उन्हें नही ं दे ना। कल मैं दोपहर
को आऊगी।"

"ठीक है कबकटया।" काका ने कहा__"तु म कबलकुल भी कचन्ता न करो। िो अब यहाॅ


से कही ं नही ं जा पाएॅगे।"
"चलो किर कल कमलती हूॅ आपसे ।" ररतू ने कहने के साथ ही कजप्सी को गेट के
बाहर की तरि कनकाल कदया और मेन रोड पर आते ही कजप्सी हिा से बातें करने
लगी।
_____________________
फ्लैशबैक अब आगे_______
कमरे से प्रकतमा के जाने के बाद किजय कसं ह िापस अपने कबस्तर पर ले ट गया। उसके
़िहन में यही खयाल बार बार उभर रहा था कक िह अपनी भाभी का क्ा करे ? िह
िष्टरूप से उससे कह चु की थी कक िो उससे प्रे म करती है और िह अपने कदल में

354
उसके कलए भी थोडी सी जगह दे । भला ऐसा कैसे हो सकता था? किजय कसं ह इस
बारे में सोचना भी ग़लत ि पाप समझता था। उधर प्रकतमा उसकी कोई बात सु नने या
मानने को तै यार ही नही ं थी। िह प्रकतमा से बहुत ज्यादा परे शान हो गया था। उसे डर
था कक कही ं ककसी कदन ये सब बातें उसके माॅ बाबू जी को न पता चल जाएॅ िरना
अनथग हो जाएगा। आज िो जो मु झे सबसे अच्छा और अपना सबसे लायक बे टा
समझते हैं , तो इस सबका पता चलते ही मेरे बारे में उनकी सोच बदल जाएगी। िो
यही समझेंगे कक िासना और हिस के कलए मै ने ही अपनी माॅ समान भाभी को
बरगलाया है या किर ़िबरदस्ती की है उनसे । कोई मेरी बात का यकीन नही ं करे गा।
बडे भइया को तो और भी मौका कमल जाएगा मेरे ल्कखलाि ़िहर उगलने का।

किजय कसं ह ये सब सोच सोच कर बु री तरह परे शान ि दु खी भी हो रहा था। उसे
समझ नही ं आ रहा था कक िह क्ा करे ? िह अब ककसी भी सू रत में प्रकतमा के सामने
नही ं आना चाहता था। उसने तय कर कलया था कक अब िह दे र रात में ही खे तों से
हिे ली आया करे गा और अपने कमरे में ही खाना मगिा कर खाया करे गा।

अगले कदन से किजय की कदनचयाग यही हो गई। िह सु बह जल्दी हिे ली से कनकल


जाता, दोपहर में गौरी उसके कलए खाना ले जाती। गौरी उसके साथ खे तों पर कदन
ढले तक रहती किर िह हिे ली आ जाती जबकक किजय कसं ह दे र रात को ही हिे ली
लौटत। गौरी कई कदन से गौर कर रही थी कक किजय कसं ह कुछ कदनों से कुछ परे शान
सा रहने लगा है। उसने उसकी परे शानी का पू छा भी ककन्तु किजय कसं ह हर बार इस
बात को टाल जाता। भला िह क्ा बताता उसे कक िह ककस िजह से परे शान रहता
है आजकल?

किजय कसं ह की इस कदनचयाग से प्रकतमा को अब उसके पास जाने की तो बात ही दू र


बल्कि उसे दे ख पाने तक को नही ं कमलता था। इस सबसे प्रकतमा बे हद परे शान ि
नाखु श हो गई थी। अजय कसं ह भी परे शान था इस सबसे । उसकी भी कोई दाल नही ं
गल रही थी। गौरी के चलते प्रकतमा को खे तों पर जाने का मौका ही नही ं कमलता था।
ऐसा नही ं था कक िह जा नही ं सकती थी ले ककन िह चाहती थी कक िह जब भी खे तों
पर जाए तो खे तों पर गौरी न हो बल्कि िह और किजय कसं ह बस ही हों िहाॅ। ताकक
िह बडे आराम से किजय पर प्रे म बाॅर् चलाए।

एक कदन प्रकतमा को मौका कमल ही गया। दरअसल सु बह सु बह जब गौरी अपने कमरे


के बाथरूम में नहा रही तो िसग पर उसका पै र किसल गया और िह बडा ़िोर से
कगरी थी। कजससे उसकी कमर में असह पीडा होने लगी थी। इस सबका पररर्ाम ये
हुआ कक गौरी खे तों पर किजय के कलए खाना ले कर न जा सकी बल्कि प्रकतमा को

355
जाने का सु नहरा मौका कमल गया। प्रकतमा पहले की भाॅकत ही पतली साडी और
कबना ब्रा का ब्लाउज पहना और किजय के कलए कटकिन ले कर खे तों पर चली गई।

प्रकतमा को पता था कक ये मौका उसे बडे सं जोग से कमला है इस कलए िह इस मौके


को खोना नही ं चाहती थी। उसने सोच कलया था कक आज िह किजय से अपने प्रे म के
कलए कुछ न कुछ तो करे गी ही। उसके पास समय भी नही ं बचा था। बच्चों के स्कूल
की छु कट्टयाॅ दो कदन बाद खत्म हो रही थी।

कनयकत को जो मंजूर होता है िही होता है। ये सं जोग था कक गौरी का पै र किसला और


उसने कबस्तर पकड कलया कजसके कारर् प्रकतमा को खे तों में जाने का अिसर कमल
गया और एक ये भी सं जोग ही था कक आज खे तों पर किर कोई मजदू र नही ं था।
सारी रात जुती हुई ़िमीन पर पानी लगाया और लगिाया था उसने । सु बह नौ बजे
सारे मजदू र गए थे । आज के कलए सारा काम हो गया था।

प्रकतमा जब खे तों पर पहुॅची तो हर तरि सन्नाटा िैला हुआ पाया। आस पास कोई
न कदखा उसे । िह मकान के अं दर नही ं गई बल्कि आस पास घूम घूम कर दे खा उसने
हर तरि। न कोई मजदू र और ना ही किजय कसं ह उसे कही ं ऩिर न आए। प्रकतमा को
खु शी हुई कक खे तों पर कोई मजदू र नही ं है और अब िह बे किक्र होकर कुछ भी कर
सकती है।

मकान के अं दर जाकर जब िह कमरे में पहुॅची तो किजय को कबस्तर पर सोया हुआ


पाया। उसके मुख से हिे खरागटों की आिा़ि भी आ रही थी। इस िक्त उसके
शरीर पर नीचे एक सिेद धोती थी और ऊपर एक बकनयान। िह पक्का ककसान था।
पढाई छोंडने के बाद उसने खे तों पर ही अपना सारा समय गु ़िारा था। ये उसकी
कमगभूकम थी। यहाॅ पर उसने खू न पसीना बहाया था। कजसका पररर्ाम ये था कक
उसका शरीर पत्थर की तरह शख्त था। छः किट लम्बा था िह तथा हट्टा कट्टा शरीर
था। ककन्तु चे हरे पर हमेशा सादगी किद्यमान रहती थी उसके। उसका ब्यल्कक्तत्व ऐसा
था कक गाॅि का हर कोई उसे प्रे म ि सम्मान दे ता था।

प्रकतमा सम्मोकहत सी दे खे जा रही थी उसे । किर सहसा जैसे उसे होश आया और
एकाएक ही उसके कदमाग़ की बिी जल उठी। जाने क्ा चलने लगा था उसके मन में
कजसे सोच कर िह मस्कुराई। उसने कटकिन को बडी सािधानी से िही ं पर रखे एक
बे न्च पर रख कदया और सािधानी से किजय की चारपाई के पास पहुॅची।

किजय चारपाई पर चू ॅकक गहरी नी ंद में सोया हुआ था इस कलए उसे ये पता नही ं चला
कक उसके कमरे में कौन आया है? प्रकतमा उसके हट्टे कट्टे शरीर को इतने करीब से

356
दे ख कर आहें भरने लगी। उसने ऩिर भर कर किजय को ऊपर से नीचे तक दे खा।
उसके अं दर काम िासना की अगन सु लग उठी। कुछ दे र यूॅ ही ऑखों में िासना के
लाल लाल डोरे कलए िह उसे दे खती रही किर सहसा िह िही ं िसग पर घुटनों के बल
बै ठती चली गई। उसके हृदय की गकत अनायास ही बढ गई थी। उसने किजय के चे हरे
पर गौर से दे खा। किजय ककसी कुम्भकर्ग की तरह सो रहा था। प्रकतमा को जब
यकीन हो गया कक किजय ककसी हिी आहट पर इतना जल्दी जगने िाला नही ं है तो
उसने उसके चे हरे से ऩिर हटा कर किजय की धोती यानी लुं गी के उस कहस्से पर
ऩिर डाली जहाॅ पर किजय का कलं ग उसकी लुं गी के अं दर कछपा था। कलं ग का
उभार लुं गी पर भी िष्ट ऩिर आ रहा था।

प्रकतमा ने धडकते कदल के साथ अपने हाॅथों को बढा कर किजय की लुं गी को उसके
छोरों से पकड कर आकहस्ता से इधर और उधर ककया। कजससे किजय के नीचे िाला
कहस्सा नग्न हो गया। लुं गी के अं दर उसने कुछ नही ं पहन रखा था। प्रकतमा ने दे खा
गहरी नी ंद में उसका घोंडे जैसा लं ड भी गहरी नी ंद में सोया पडा था। ले ककन उस
हालत में भी िह लम्बा चौडा ऩिर आ रहा था। उसका लं ड काला या साॅिला
कबलकुल नही ं था बल्कि गोरा था कबलकुल अं ग्रेजों के लं ड जैसा गोरा। उसे दे ख कर
प्रकतमा के मुॅह में पानी आ गया था। उसने बडी सािधानी से उसे अपने दाकहने
हाॅथ से पकडा। उसको इधर उधर से अच्छी तरह दे खा। िो कबलकुल ककसी मासू म
से छोटे बच्चे जैसा सुं दर और प्यारा लगा उसे । उसने उसे मुिी में पकड कर ऊपर
नीचे ककया तो उसका बडा सा सु पाडा जो हिा कसं दूरी रं ग का था चमकने लगा और
साथ ही उसमें कुछ हलचल सी महसू स हुई उसे । उसने ये महसू स करते ही ऩिर
ऊपर की तरि करके गहरी नी ंद में सोये पडे किजय की तरि दे खा। िो पहले की
तरह ही गहरी नी ंद में सोया हुआ लगा। प्रकतमा ने चै न की साॅस ली और किर से
अपनी ऩिरें उसके लं ड पर केंकद्रत कर दी। उसके हाॅथ के िशग से तथा लं ड को
मुिी में कलए ऊपर नीचे करने से लं ड का आकार धीरे धीरे बढने लगा था। ये दे ख कर
प्रकतमा को अजीब सा नशा भी चढता जा रहा था उसकी साॅसें ते ़ि होने लगी थी।
उसने दे खा कक कुछ ही पलों में किजय का लं ड ककसी घोडे के लं ड जैसा बडा होकर
कहनकहनाने लगा था। प्रकतमा को लगा कही ं ऐसा तो नही ं कक किजय जाग रहा हो और
ये दे खने की कोकशश कर रहा हो कक उसके साथ आगे क्ा क्ा होता है? मगर उसे ये
भी पता था कक अगर किजय जाग रहा होता तो इतना कुछ होने ही न पाता क्ोंकक
िह उच्च किचारों तथा मान मयागदा का पालन करने िाला इं सान था। िो कभी ककसी
को ग़लत ऩिर से नही ं दे खता था, ऐसा सोचना भी िो पाप समझता था। उसके बारे
में िो जान चु का था कक िह क्ा चाहती है उससे इस कलए िो हिे ली में अब कम ही
रहता था। कदन भर खे त में ही मजदू रों के साथ िक्त गु़िार दे ता था और दे र रात
हिे ली में आता तथा खाना पीना खा कर अपने कमरे में गौरी के साथ सो जाता था।
िह उससे दू र ही रहता था। इस कलए ये सोचना ही ग़लत था कक इस िक्त िह जाग

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रहा होगा। प्रकतमा ने दे खा कक उसका लं ड उसकी मुिी में नही ं आ रहा था तथा गरम
लोहे जैसा प्रतीत हो रहा था। अब तक प्रकतमा की हालत उसे दे ख कर खराब हो चु की
थी। उसे लग रहा था कक जल्दी से उछल कर इसको अपनी चू त के अं दर पू रा का पू रा
घुसेड ले । ककन्तु जल्दबाजी में सारा खे ल कबगड जाता इस कलए अपने पर कनयंत्रर्
रखा उसने और उसके सुं दर मगर कबकराल लं ड को मु िी में कलए आकहस्ता आकहस्ता
सहलाती रही।

प्रकतमा को जाने क्ा सू झी कक िह धीरे से उठी और अपने कजस्म से साडी कनकाल


कर एक तरि िेंक दी। इतना ही ं नही ं उसने अपने ब्लाउज के हुक खोल कर उसे
भी अपने कजस्म से कनकाल कदया। ब्लाउज के हटते ही उसकी खरबू जे जैसी भारी
चू कचयाॅ उछल पडी ं। इसके बाद उसने पे टीकोट को भी उतार कदया। अब प्रकतमा
कबलकुल मादरजाद नं गी थी। उसका चे हरा हिस तथा िासना से लाल पड गया था।

अपने सारे कपडे उतारने के बाद प्रकतमा किर से चारपाई के पास घुटनों के बल बै ठ
गई। उसकी ऩिर लुं गी से बाहर उसके ही द्वारा कनकाले गए किजय कसं ह के हलब्बी
लं ड पर पडी। अपना दाकहना हाॅथ बढा कर उसने उसे आकहस्ता से पकडा और
किर आकहस्ता आकहस्ता ही सहलाने लगी। प्रकतमा उसको अपने मु ह में भर कर चू सने
के कलए पागल हुई जा रही थी, कजसका सबू त ये था कक प्रकतमा अपने एक हाथ से
कभी अपनी बडी बडी चू कचयों को मसलने लगती तो कभी अपनी चू ॅत को। उसके
अं दर िासना अपने चरम पर पहुॅच चु की थी। उससे बरदास्त न हुआ और उसने एक
झटके से नीचे झुक कर किजय के लं ड को अपने मुह में भर कलया....और जैसे यही ं पर
उससे बडी भारी ग़लती हो गई। उसने ये सब अपने आपे से बाहर होकर ककया था।
किजय का लं ड कजतना बडा था उतना ही मोटा भी था। प्रकतमा ने जैसे ही उसे झटके
से अपने मु ह में कलया तो उसके ऊपर के दाॅत ते ़िी से लं ड में गडते चले गए और
किजय के मुख से चीख कनकल गई साथ ही िह हडबडा कर ते ़िी से चारपाई पर उठ
कर बै ठ गया। अपने लं ड को इस तरह प्रकतमा के मुख में दे ख िह भौचक्का सा रह
गया ककन्तु किर तु रंत ही िह उसके मुह से अपना लं ड कनकाल कर तथा चारपाई से
उतर कर दू र खडा हो गया। उसका चे हरा एक दम गुस्से और घ्रर्ा से भर गया। ये
सब इतना जल्दी हुआ कक कुछ दे र तक तो प्रकतमा को कुछ समझ ही न आया कक ये
सब क्ा और कैसे हो गया? होश तो तब आया जब किजय की गुस्से से भरी आिा़ि
उसके कानों से टकराई।

"ये क्ा बे हूदगी है?" किजय लुं गी को सही करके तथा गुस्से से दहाडते हुए कह रहा
था__"अपनी हिस में तु म इतनी अं धी हो चु की हो कक तु म्हें ये भी खयाल नही ं रहा कक
तु म ककसके साथ ये नीच काम कर रही हो? अपने ही दे िर से मु ह काला कर रही हो
तु म। अरे दे िर तो बे टे के समान होता है ये खयाल नही ं आया तु म्हें?"

358
प्रकतमा चू ॅकक रगे हाॅथों ऐसा करते हुए पकडी गई थी उस कदन, इस कलए उसकी
़िुबान में जैसे ताला सा लग गया था। उस कदन किजय का गुस्से से भरा िह खतरनाक
रूप उसने पहली बार दे खा था। िह गु स्से में जाने क्ा क्ा कहे जा रहा था मगर
प्रकतमा कसर झुकाए िही ं चारपाई के नीचे बै ठी रही उसी तरह मादरजात नं गी हालत
में। उसे खयाल ही नही ं रह गया था कक िह नं गी ही बै ठी है। जबकक,,,

"आज तु मने ये सब करके बहुत बडा पाप ककया है।" किजय कहे जा रहा था__"और
मुझे भी पाप का भागीदार बना कदया। क्ा समझता था मैं तु म्हें और तु म क्ा
कनकली? एक ऐसी नीच और कुलटा औरत जो अपनी हिस में अं धी होकर अपने ही
दे िर से मुह काला करने लगी। तु म्हारी नीयत का तो पहले से ही आभास हो गया था
मुझे इसी कलए तु मसे दू र रहा। मगर ये नही ं सोचा था कक तु म अपनी नीचता और
हिस में इस हद तक भी कगर जाओगी। तु ममें और बा़िार की रं कडयों में कोई िकग
नही ं रह गया अब। चली जाओ यहाॅ से ...और दु बारा मुझे अपनी ये गंदी शकल मत
कदखाना िनाग मैं भू ल जाऊगा कक तु म मेरे बडे भाई की बीिी हो। आज से मेरा और
तु म्हारा कोई ररश्ा नही ं...अब जा यहाॅ से कुलटा औरत...दे खो तो कैसे बे शमों की
तरह नं गी बै ठी है?"

किजय की बातों से ही प्रकतमा को खयाल आया कक िह तो अभी नं गी ही बै ठी हुई है


तब से । उसने सीघ्रता से अपनी नग्नता को ढकने के कलए अपने कपडों की तरि
ऩिरें घुमाई। पास में ही उसके कपडे पडे थे । उसने जल्दी से अपनी साडी ब्लाउज
पे टीकोट को समेटा ककन्तु किर उसके मन में जाने क्ा आया कक िह िही ं पर रुक
गई।

किजय की बातों ने प्रकतमा के अं दर मानो ़िहर सा घोल कदया था। जो हमेशा उसे
इज्ज़ित और सम्मान दे ता था आज िही उसे आप की जगह तु म और तु म के बाद तू
कहते हुए उसकी इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडाए जा रहा था। उसे बाजार की रं डी तक
कह रहा था। प्रकतमा के कदल में आग सी धधकने लगी थी। उसे ये डर नही ं था कक
किजय ये सब ककसी से बता दे गा तो उसका क्ा होगा। बल्कि अब तो सब कुछ खु ल
ही गया था इस कलए उसने भी अब पीछे हटने का खयाल छोंड कदया था।

उसने उसी हालत में ल्कखसक कर किजय के पै र पकड कलए और किर बोली__"तु म्हारे
कलए मैं कुछ भी बनने को तै यार हूॅ किजय। मु झे इस तरह अब मत दु त्कारो। मैं
तु म्हारी शरर् में हूॅ, मु झे अपना लो किजय। मु झे अपनी दासी बना लो, मैं िही
करूॅगी जो तु म कहोगे। मगर इस तरह मुझे मत दु त्कारो...दे ख लो मैंने ये सब
तु म्हारा प्रे म पाने के कलए ककया है। माना कक मैं ने ग़लत तरीके से तु म्हारे प्रे म को पाने

359
की कोकशश की ले ककन मैं क्ा करती किजय? मुझे और कुछ सू झ ही नही ं रहा था।
पहले भी मैंने तु म्हें ये सब जताने की कोकशश की थी ले ककन तु मने समझा ही नही ं इस
कलए मैंने िही ककया जो मु झे समझ में आया। अब तो सब कुछ जाकहर ही हो गया
है,अब तो मु झे अपना लो किजय...मु झे तु म्हारा प्यार चाकहए।"

"बं द करो अपनी ये बकिास।" किजय ने अपने पै रों को उसके चं गुल से एक झटके में
छु डा कर तथा दहाडते हुए कहा__"तु झ जैसी कगरी हुई औरत के मैं मुह नही ं लगना
चाहता। मुझे हैरत है कक बडे भइया ने तु झ जै सी नीच और हिस की अं धी औरत से
शादी कैसे की? ़िरूर तू ने ही मेरे भाई को अपने जाल में िसाया होगा।"

"जो म़िी कह लो किजय।" प्रकतमा ने सहसा आखों में आॅसू लाते हुए कहा__"मगर
मुझे अपने से दू र न करो। कदन रात तु म्हारी से िा करूॅगी। मैं तु म्हें उस गौरी से भी
ज्यादा प्यार करूॅगी किजय।"

"खामोशशशश।" किजय इस तरह दहाडा था कक कमरे की दीिारें तक कहल


गईं__"अपनी गंदी ़िुबान से मेरी गौरी का नाम भी मत ले ना िनाग हलक से ़िुबान
खी ंचकर हाॅथ में दे दू ॅगा। तू है क्ा बदजात औरत...ते री औकात आज पता चल
गई है मुझे। ते रे जैसी रं कडयाॅ कौडी के भाि में ऐरों गैरों को अपना कजस्म बें चती हैं
गली चौराहे में। और तू गौरी की बात करती है ...अरे िो दे िी है दे िी...कजसकी मैं
इबादत करता हूॅ। तू उसके पै रों की धूल भी नही ं है समझी?? अब जा यहाॅ से िनाग
धक्के मार कर इसी हालत में तु झे यहाॅ से बाहर िेंक दू ॅगा।"

प्रकतमा समझ चु की थी कक उसकी ककसी भी बात का किजय पर अब कोई प्रभाि


पडने िाला नही ं था। उल्टा उसकी बातों ने उसे और उसके अं तमगन को बु री तरह
शोलों के हिाले कर कदया था। उसने कजस तरीके से उसे दु त्कार कर उसका अपमान
ककया था उससे प्रकतमा के अं दर भीषर् आग लग चु की थी और उसने मन ही मन
एक िैंसला कर कलया था उसके और उसके पररिार के कलए।

"ठीक है किजय कसं ह।" किर उसने अपने कपडे समेटते हुए ठण्डे स्वर में कहा
था__"मैं तो जा रही हूं यहाॅ से मगर कजस तरह से तु मने मु झे दु त्कार कर मेरा
अपमान ककया है उसका पररर्ाम तु म्हारे कलए कतई अच्छा नही ं होगा। ईश्वर दे खेगा
कक एक औरत जब इस तरह अपमाकनत होकर रुष्ट होती है तो भकिष्य में उसका क्ा
पररर्ाम कनकलता है??"

प्रकतमा की बात का किजय कसं ह ने कोई जिाब नही ं कदया बल्कि गुस्से से उबलती हुई
ऑखों से उसे दे ख गर िही ं मानो कहकारत से थू ॅका और किर बाहर कनकल गया।

360
जबकक बु री तरह ़िलील ि अपमाकनत प्रकतमा ने अपने कपडे पहने और हिे ली जाने
के कलए कमरे से बाहर कनकल गई। उसके अं दर प्रकतशोध की ज्वाला धधक हुई उठी
थी।

हिे ली पहुॅच कर प्रकतमा ने अपने पकत अजय कसं ह से आज किजय कसं ह से हुए
कारनामे का सारा व्रिान्त कमचग मशाला लगा कर सु नाया। उसकी सारी बातें सु न कर
अजय कसं ह सन्न रह गया था। उसे यकीन नही ं हो रहा था कक आज इतना बडा काण्ड
हो गया है।

"मुझे उस हराम़िादे से अपने अपमान का प्रकतशोध ले ना है अजय।" प्रकतमा ने ककसी


़िहरीली नाकगन की भाॅकत िंु कारते हुए कहा___"जब तक मैं उससे अपमान का
बदला नही ं लू ॅगी तब तक मेरी आत्मा को शाल्कन्त नही ं कमले गी।"

"़िरूर कडयर।" अजय कसं ह ने सहसा कठोरता से कहा___"तु म्हारे इस अपमान का


बदला ़िरूर उससे कलया जाएगा। आज के इस हादसे से ये तो साकबत हो ही गया कक
िो मजदू र हमारे झाॅसे में आने िाला नही ं है । सोचा था कक सब कमल बाॅट कर
खाएॅगे और म़िा करें गे ले ककन नही ं उस मजदू र को तो ककलयुग का हररश्चन्द्र बनना
है। इस कलए ऐसे इं सान का जीकित रहना हमारे कलए अच्छी बात नही ं है। उसके रहते
हम अपनी हसरतों को पू रा नही ं कर पाएॅगे प्रकतमा। िो मजदू र हमारे रास्ते का
सबसे बडा काॅटा है। इस काॅटे को अब जड से उखाड कर िेंकना ही पडे गा।"

"जो भी करना हो जल्दी करो अजय।" प्रकतमा ने कहा___"मैं उस कमीने की अब


शकल भी नही ं दे खना चाहती कभी। साला कुिा मुझे दु त्कारता है। कहता था कक मैं
उसकी गौरी की पै रों की धूल भी नही ं हूॅ। मु झे रं डी बोलता है। मैं कदखाऊगी उसे कक
मेरे सामने उसकी िो राॅड गौरी कुछ भी नही ं है। उसे सबके नीचे न ले टाया तो मेरा
भी नाम प्रकतमा कसं ह बघेल नही ं। उसे कोठे की नही ं बल्कि बीच चौराहे की रं डी
बनाऊगी मैं ।"

"शान्त हो जाओ प्रकतमा।" अजय कसं ह ने उसे खु द से लगा कलया___"सब कुछ िै सा ही


होगा जैसा तु म चाहती हो। ले ककन ़िरा तसल्ली से और सोच समझ कर बनाए गए
प्लान के अनु सार। ताकक ककसी को ककसी बात का कोई शक न हो पाए।"

"ठीक है अजय।" प्रकतमा ने कहा___"ले ककन मैं ज्यादा कदनों तक उसे जीकित नही ं
दे खना चाहती। तु म जल्दी ही कुछ करो।"
"किक्र मत करो मेरी जान।" अजय ने कुछ सोचते हुए कहा___"आज से और अभी से
प्लान बी शु रू। अब चलो गु स्सा थू ॅको और मे रे साथ प्यार की िाकदयों में खो

361
जाओ।"

ये दोनो तो अपने प्यार और िासना में खो गए थे ले ककन उधर खे तों में किजय कसं ह
बोर बे ल के पास बने एक बडे से गड्ढे में था। उस गड्ढे में हमेशा बोर का पानी भरा
रहता था। किजय कसं ह उसी पानी से भरे गड्ढे में था। उसके ऊपर बोर का पानी कगर
रहा था। िह एकदम ककसी पु तले की भाॅकत खडा था। उसका ़िहन उसके पास नही ं
था। बोर का पानी कनरं तर उसके कसर पर कगर रहा था।

किजय कसं ह के की ऑखों के सामने बार बार िही मं़िर घूम रहा था। उसे ऐसा
महसू स हो रहा था जैसे अभी भी उसका लं ड प्रकतमा के मु ह मे हो। इस मं ़िर को
दे खते ही उसके कजस्म को झटका सा लगता और िह खयालों की दु कनयाॅ से बाहर
आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दु खी हो गया था। उसे यकीन नही ं आ रहा
था कक उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घकटया काम कर सकती है । किजय कसं ह
के मन में सिाल उभरता कक क्ा यही ं प्रे म था उसका?

किजय कसं ह ये तो समझ गया था कक उसकी भाभी ़िरा खु ले किचारों िाली औरत थी।
शहर िाली थी इस कलए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ कदन से उसकी
हरकतें ऐसी थी कजससे साि पता चलता था कक िह किजय से िास्ति में कैसा प्रे म
करती है। ककन्तु किजय कसं ह को उससे इस हद तक कगर जाने की उम्मीद नही ं थी।
किजय कसं ह को सोच सोच कर ही उस पर कघन आ रही थी कक ककतना घकटया काम
कर रही थी िह।

उस कदन किजय कसं ह सारा कदन उदास ि दु खी रहा। उसका कदल कर रहा था कक िह
कही ं बहुत दू र चला जाए। ककसी को अपना मु ह न कदखाए ककन्तु हर बार गौरी और
बच्चों का खयाल आ जाता और किर जैसे उसके पै रों पर ़िंजीरें पड जाती ं।ककसी ने
सच ही कहा है कक बीिी बच्चे ककसी भी इं सान की सबसे बडी कम़िोरी होते हैं। जब
आप उनके बारे में कदल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कक चाहे कुछ भी हो जाए
पर इन पर ककसी तरह की कोई पराशानी न हो।

किजय कसं ह हमेशा की तरह ही दे र से हिे ली पहुॅचा। अन्य कदनों की अपे क्षा आज
उसका मन ककसी भी ची़ि में नही ं लग रहा था। उसने खु द को सामान्य रखने बडी
कीकशश कर रहा था िो। अपने कमरे में जाकरिह िेश हुआ और बे ड पर आकर बै ठ
गया।

362
अपडे ट.........《 34 》

अब तक,,,,,,,,,,

किजय कसं ह के की ऑखों के सामने बार बार िही मं़िर घूम रहा था। उसे ऐसा
महसू स हो रहा था जैसे अभी भी उसका लं ड प्रकतमा के मु ह मे हो। इस मं ़िर को
दे खते ही उसके कजस्म को झटका सा लगता और िह खयालों की दु कनयाॅ से बाहर
आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दु खी हो गया था। उसे यकीन नही ं आ रहा
था कक उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घकटया काम कर सकती है । किजय कसं ह
के मन में सिाल उभरता कक क्ा यही ं प्रे म था उसका?

किजय कसं ह ये तो समझ गया था कक उसकी भाभी ़िरा खु ले किचारों िाली औरत थी।
शहर िाली थी इस कलए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ कदन से उसकी
हरकतें ऐसी थी कजससे साि पता चलता था कक िह किजय से िास्ति में कैसा प्रे म
करती है। ककन्तु किजय कसं ह को उससे इस हद तक कगर जाने की उम्मीद नही ं थी।
किजय कसं ह को सोच सोच कर ही उस पर कघन आ रही थी कक ककतना घकटया काम
कर रही थी िह।

उस कदन किजय कसं ह सारा कदन उदास ि दु खी रहा। उसका कदल कर रहा था कक िह
कही ं बहुत दू र चला जाए। ककसी को अपना मु ह न कदखाए ककन्तु हर बार गौरी और
बच्चों का खयाल आ जाता और किर जैसे उसके पै रों पर ़िंजीरें पड जाती ं।ककसी ने
सच ही कहा है कक बीिी बच्चे ककसी भी इं सान की सबसे बडी कम़िोरी होते हैं। जब
आप उनके बारे में कदल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कक चाहे कुछ भी हो जाए
पर इन पर ककसी तरह की कोई पराशानी न हो।

किजय कसं ह हमेशा की तरह ही दे र से हिे ली पहुॅचा। अन्य कदनों की अपे क्षा आज
उसका मन ककसी भी ची़ि में नही ं लग रहा था। उसने खु द को सामान्य रखने बडी
कीकशश कर रहा था िो। अपने कमरे में जाकरिह िेश हुआ और बे ड पर आकर बै ठ
गया।
___________________

अब आगे,,,,,,,,,,,

ितगमान अब आगे________

363
इं िेक्टर ररतू उस हाल्किटल में पहुॅची जहाॅ पर रे प पीकडता किधी को एडकमट
ककया गया था। किधी की हालत पहले से कािी ठीक थी। ररतू के पहुॅचने के पहले
ही किधी के पररिार िाले उससे कमल कर गए थे । इस िक्त किधी के पास उसकी माॅ
गायत्री थी। गायत्री अपनी बे टी की इस हालत से बे हद दु खी थी।

ररतू जब उस कमरे में पहुॅची तो उसने किधी के पास ही एक कुसी पर गायत्री को


बै ठै पाया। ररतू ने औपचाररक तौर पर उससे नमस्ते ककया और उसे अपने बारे में
बताया। ररतू के बारे में जानकर गायत्री पहले तो चौंकी किर सहसा उसके चे हरे पर
अजीब से भाि आ गए।

"मेरी बे टी के साथ जो कुछ हुआ है िो तो िापस नही ं लौट सकता बे टी।" गायत्री ने
अधीरता से कहा___"ऊपर से इस सबका केस बन जाने से हमारी समाज में बदनामी
ही होगी। इस कलए मैं चाहती हूॅ कक तु म ये केस िे स का चक्कर बं द कर दो। मैं
जानती हूॅ कक इस केस में आगे क्ा क्ा होगा? िो सब बडे लोग हैं बे टी। िो बडे से
बडा िकील अपनी तरि से खडा करें गे और बडी आसानी से केस जीत जाएॅगे। िो
कुछ भी कर सकते हैं, िो तो जज को भी खरीद सकते हैं। अदालत के कटघरे में
खडी मेरी िूल जैसी बे टी से उनका िकील ऐसे ऐसे सिाल करे गा कजसका जिाब
दे ना इसके बस का नही ं होगा। िो सबके सामने मेरी बे टी की इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ
उडाएं गे। ये केस मेरी बे टी के साथ ही एक म़िाक सा बन कर रह जाएगा। इस कलए
मैं तु मसे किनती करती हूॅ बे टी कक ये केस िे स िाला चक्कर छोड दो। हमें कोई केस
िे स नही ं करना।"

"आप कजस ची़ि की कल्पना कर रही हैं आॅटी जी।" ररतू ने किनम्रता से कहा__"मैं
उस सबके बारे में पहले ही सोच चु की हूॅ। मैं जानती हूॅ कक आप जो कह रही हैं िो
सोलह आने सच है। यकीनन ऐसा ही होगा मगर, आप कचन्ता मत कीकजए आॅटी।
किधी अगर आपकी बे टी है तो ये मेरी भी दोस्त है अब। इसके साथ जो कुछ भी उन
लोगों ने कघनौना कमग ककया है उसकी उन्हें ऐसी स़िा कमले गी कक हर जन्म में उन्हें ये
स़िा याद रहेगी और िो अपने ककसी भी जन्म में ककसी की बहन बे कटयों के साथ
ऐसा करने का सोचें गे भी नही ं।"

"बात तो िही हुई बे टी।" गायत्री ने कहा__"तु म उन्हें कानू नन इसकी स़िा
कदलिाओगी जबकक मैं जानती हूॅ कक उन लोगों के बाप लोगों के हाॅथ तु म्हारे
कानू न से भी ज्यादा लम्बे हैं। तु म उनका कुछ नही ं कबगाड पाओगी बे टी। उल्टा होगा
ये कक इस सबके चक्कर में खु द तु म्हारी ही जान का खतरा पै दा हो जाएगा।"

"मुझे अपनी जान की कोई परिाह नही ं है आॅटी।" ररतू ने सहसा मु स्कुराकर

364
कहा__"और मेरी जान इतनी सस्ती भी नही ं है जो यू ॅ ही ककसी ऐरे गैरे के हाॅथों
कशकार हो जाएगी। खै र, मै ये कहना चाहती हूॅ कक उन लोगों को कानू नन स़िा
कदलिाने का िैसला मैने बदल कदया है।"

"क्ा मतलब??" गायत्री के साथ साथ बे ड पर ले टी किधी भी चौंक पडी थी।


"ये तो मुझे भी पता है ऑटी कक िो लोग ककतने बडे खे त की पै दाइस हैं।" ररतू ने
अजीब भाि से कहा___"कहने का मतलब ये कक कानू नी तौर पर यकीनन मैं उन्हें
िै सी स़िा नही ं कदला सकती जैसी स़िा के िो लोग हक़दार हैं। इस कलए अब स़िा
अलग तरीके से दी जाएगी उन्हें । कबलकुल िै सी ही स़िा जैसी स़िा ऐसे नीच लोगों
को दे नी चाकहये।"

"तु म क्ा कह रही हो बे टी मु झे कुछ समझ में नही ं आ रहा।" गायत्री का कदमाग़
मानो जाम सा हो गया था।
"ये सब छोंकडये ऑटी।" ररतू ने कहा__"मैं बस आपसे ये कहना चाहती हूॅ कक अगर
आपसे कोई इस बारे में कुछ भी पू छे तो आप यही ककहये गा कक हमने कोई केस
िगैरा नही ं ककया है। ये मत ककहयेगा कक मैं आपसे या किधी से कमली थी। यही बात
आप किधी के डै ड को भी बता दीकजएगा। मेरी तरि से उनसे कहना कक कदल पर
कोई बोझ या मलाल रखने की कोई ़िरूरत नही ं है। बहुत जल्द कुछ ऐसा उन्हें
सु नने को कमले गा कजससे उनकी आत्मा को असीम तृ ल्कप्त का एहसास होगा।"

"तु म क्ा करने िाली हो बे टी?" गायत्री का कदल अनायास ही ़िोर ़िोर से धडकने
लगा था, बोली___"दे खो कुछ भी ऐसा िै सा न करना कजससे पु नः मेरी बे टी पर कोई
सं कट आ जाए।"

"आप बे किक्र रकहए ऑटी।" ररतू ने गायत्री का हाथ पकड कर उसे हिा सा दबाते
हुए कहा___"मैं किधी पर अब ककसी भी तरह का कोई सं कट नही ं आने दू ॅगी। मुझे
भी उसकी किक्र है।"

गायत्री कुछ बोल न सकी बस अजीब भाि से ररतू को दे खती रही। बे ड पर ले टी किधी
का भी िही हाल था। तभी कमरे में एक नसग आई। उसने ररतू से कहा कक डाक्टर
साहब उसे अपने केकबन में बु ला रहे हैं। ररतू नसग की बात सु नकर गायत्री से ये कह
कर बाहर कनकल गई कक िह डाक्टर से कमल कर आती है अभी। कुछ ही दे र में ररतू
डाक्टर के केकबन में उसके सामने टे बल के इस पार रखी कुसी पर बै ठी थी।

"ककहए डाक्टर साहब।" ररतू ने कहा__"ककस कलए आपने बु लाया है मु झे?"


"दे खो बे टा।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"तु म मेरी बे टी के समान हो। मैं तु मको
तु म्हारे बचपन से जानता हूॅ। ठाकुर साहब से मेरे बहुत अच्छे सं बंध हैं आज भी।

365
मुझे ये जान कर बे हद खु शी हुई है कक तु म आज पु कलस आकिसर बन गई हो।
ले ककन, इस केस में कजन लोखों पर तु मने हाॅथ डालने का सोचा है या सोच कर
अपना कदम बढा कलया है िो कनहायत ही बहुत खतरनाक लोग हैं। इस कलए मैं
चाहता हूॅ कक तु म इस केस को यही ं पर छोंड दो। क्ोंकक मैं नही ं चाहता कक तु म पर
कोई ऑच आए। तु म हमारे ठाकुर साहब की बे टी हो।"

"मैं आपके जज़्बातों की कद्र करती हूॅ डाक्टर अं कल।" ररतू ने कहा___"ले ककन
आप बे किक्र रकहए मैने किधी के केस की कोई िाइल बनाई ही नही ं है अब तक।
क्ोंकक मु झे भी पता है कक कजनके ल्कखलाि केस बनाना है िो कैसे लोग हैं। इस कलए
आप बे किक्र रकहए।"

"ये तो अच्छी बात है बे टी।" डाक्टर ने खु श होकर कहा__"ले ककन तु म यहाॅ पर किर
आई ककस कलए हो? अगर केस नही ं बनाया है तो तु म्हारे यहाॅ पर आने का क्ा
मतलब है? जबकक होना तो ये चाकहये कक तु म्हें इस सबसे दू र ही रहना चाकहए था।"

"इं साकनयत नाम की कोई ची़ि भी होती है डाक्टर अं कल।" ररतू ने कहा___"इसी
कलए आई हूॅ यहाॅ। िरना यू ॅ िारमल डर े स में न आती बल्कि पु कलस की िदी में
आती।"
"चलो ठीक है।" डाक्टर ने कहा__"पर डर े स बदल दे ने से तु म्हारा काम तो नही ं बदल
जाएगा न। आकखर हर रूप में तो तु म पु कलस िाली ही कहलाओगी। अब अगर
आरोपी के के आकाओं को पता चल जाए कक तु म यहाॅ हो तो िो तो यही समझेंगे
कक तु म केस के कसलकसले में ही यहाॅ आई हो।"

"दे ल्कखए अं कल।" ररतू ने कहा___"िारमे कलटी तो करनी ही पडती है। िरना पु कलस
की नौकरी के साथ इं साि नही ं हो पाएगा। और इसी िाॅरमे कलटी के तहत अभी
मुझे कदिाकर चौधरी से भी कमलने जाना है। मु झे पता है कक िो पु कलस को बहुत तु च्छ
ही समझेगा। इस कलए उससे कमल कर मैं भी िौरी तौर पर यही कहूॅगी कक
िाॅरमे कलटी तो करनी ही पडती है न सर। बाॅकी आप इस बात से बे किक्र रहें कक
आपके बे टे और उसके दोस्तों का कोई केस बने गा। और केस भी तो तभी बने गा न
जब पीकडता या उसके घरिाले चाहेंगे। अगर िो लोग ही केस नही ं करना चाहें गे तो
भला कैसे कोई केस बन जाएगा? मेरी इन सब बातों से िो खु श हो जाएगा अं कल।
िो यही समझे गा कक उसके रुतबे और डर से पीकडता या उसके घर िालों ने उसके
ल्कखलाफ़ केस करने की कहम्मत ही नही ं कर सके।"

"ओह आई सी।" डाक्टर ने कहा___"मगर मु झे ऐसा क्ों लगता है कक असल चक्कर


कुछ और ही है कजसे तु म चलाने िाली हो या किर चलाना शु रू भी कर कदया है।"

366
"ये सब छोकडये आप ये बताइये कक आपने और ककस कलए बु लाया था मु झे?" ररतू ने
पहलू बदल कदया।

"पु कलस की नौकरी में आते ही कािी शापग कदमाग़ हो जाता है न?" डाक्टर मु स्कुराया
किर सहसा गंभीर होकर बोला___"बात ़िरा सीररयस है बे टी।"
"क्ा मतलब?" ररतू चौंकी।

"किधी की ररपोटग आ चु की है।" डाक्टर ने कहा___"और ररपोटग ऐसी है कजसके बारे में
जानकर शायद तु म्हें यकीन न आए।"
"ऐसी क्ा बात है ररपोटग में?" ररतू की पे शानी पर बल पडे ___"़िरा बताइये तो सही।"

"किधी को ब्लड कैंसर है बे टी।" डाक्टर ने जै से धमाका ककया___"िो भी लास्ट स्टे ज


में है ।"
"क्ाऽऽऽ????" ररतू बु री तरह उछल पडी___"ये आप क्ा कह रहे हैं अं कल?"
"यही सच है बे टी।" डाक्टर ने कहा___"िो बस कुछ ही कदनों की मेहमान है। मु झे
समझ नही ं आ रहा कक ये बात मैं उसके पै रेन्ट् स को कैसे बताऊ? एक तो िै से भी िो
अपनी बे टी की इस हालत से बे हद दु खी हैं दू सरे अगर उन्हें ये पता चल गया कक
उनकी बे टी को कैंसर है और िो बस कुछ ही कदनों की मेहमान है तो जाने उन पर
इसका क्ा असर हो?"

ररतू के कदलो कदमाग़ में अभी भी धमाके हो रहे थे । अनायास ही उसकी ऑखें नम हो
गई थी। हलाॅकक किधी से उसका कोई ररश्ा नही ं था। उसने तो बस उसे दोस्त कह
कदया था ताकक िह आसानी से कुछ बता सके। बाद में उसे ये भी पता चल गया कक ये
िही किधी है कजससे किराज प्यार करता था। ले ककन किर िो दोनो अलग हो गए थे ।
ररतू के मन में एकाएक ही ह़िारों सिाल उभर कर ताण्डि करने लगे थे ।

"इसके साथ ही किधी जो दो महीने की प्रे ग्नेन्ट है तो उसके पे ट में पनप रहे कशशु का
भी पतन हो जाएगा।" डाक्टर ने कहा___"यानी एक साथ दो लोगों की जान चली
जाएगी।"
"ये तो सचमुच बहुत बडी बात है डाक्टर अं कल।" ररतू गंभीरता से बोली___"पर
सोचने िाली बात है कक इतनी कम उमर में उसे ब्लड कैंसर हो गया।"

"आज कल ऐसा ऐसा सु नने को कमलता बे टा कजसकी आम इं सान तो क्ा हम डाक्टर


लोग भी कल्पना नही ं कर सकते ।" डाक्टर ने कहा___"खै र, मैंने यही बताने के कलए
तु म्हें बु लाया था। अभी मु झे कमस्टर चौहान को भी इस बात की सू चना दे नी होगी। िो
बे चारे तो सु न कर ही गहरे सदमे में आ जाएॅगे।"

367
"आप सही कह रहे हैं।" ररतू ने कहा___"िै से क्ा ये कैंसर िाली बात किधी को पता
है??"
"पता नही ं।" डाक्टर ने कहा___"हो भी सकता है और नही ं भी।"
"अच्छा मैं चलती हूॅ अं कल।" ररतू ने कुसी से उठते हुए कहा___"मु झे किधी से अकेले
में कुछ बातें करनी है।"
"ओके बे टा।" डाक्टर ने कहा।

ररतू भारी मन से डाक्टर के केकबन से बाहर कनकल गई। उसे ये बात हजम ही नही ं
हो रही थी कक किधी को लास्ट स्टे ज का कैंसर है। उसे किधी के कलए इस सबसे बडा
दु ख सा हो रहा था। उसके मन में कई तरह की बातें चल रही थी। कजनके बारे में उसे
किधी ही बता सकती थी। इस कलए िह ते ़िी से उस कमरे की तरि बढ गई।

किधी के कमरे में पहुॅच कर ररतू ने गायत्री से बडे ही किनम्र भाि से कहा कक उसे
किधी से अकेले में कुछ बातें करनी है। इस कलए अगर आपको ऐतरा़ि न हो तो आप
बाहर थोडी दे र के कलए चले जाइये। गायत्री उसकी ये बात सु न कर कुछ पल तो उसे
दे खती रही किर कुसी से उठ कर कमरे से बाहर चली गई। ररतू ने दरिाजे की कंु डी
लगा दी और किर आ कर िह गायत्री िाली कुसी पर ही किधी के बे ड के पास ही बै ठ
गई। किधी उसे बडे ग़ौर से दे ख रही थी। ररतू भी उसके चे हरे की तरि दे खने लगी।

"तो डाक्टर ने आपको बता कदया कक मुझे लास्ट स्टे ज का कैंसर है?" किधी ने िीकी
सी मु स्कान के साथ कहा था।
"तु म्हें कैसे पता कक डाक्टर ने मु झे ककस कलए बु लाया था?" ररतू मन ही मन बु री तरह
चौंकी थी उसकी बात से ।

"बडी सीधी सी बात है।" किधी ने कहा__"जब कोई ब्यल्कक्त मरी़ि बन कर हाल्किटल
में आता है तो उसकी हर तरह की जाॅच होती है। उसके बाद ये जान जाना कौन सी
बडी बात है कक मु झे असल में क्ा है? ये तो मैं जानती थी कक यहाॅ पर मेरी जाॅच
हुई होगी और जब उसकी ररपोटग आएगी तो डाक्टर को पता चल ही जाएगा कक मु झे
लास्ट स्टे ज का कैंसर है। इस कलए जब नसग आपको बु लाने आई तो मु झे अं दा़िा हो
गया कक डाक्टर यकीनन आपको उस ररपोटग के बारे में ही बताएगा। इस कमरे में
आते िक्त आपके चे हरे पर जो भाि थे िो दशाग रहे थे कक आप अं दर से ककतनी गंभीर
हैं मेरे बारे में जान कर। इस कलए आपसे कहा ऐसा।"

"यकीनन काकबले तारीफ़ कदमाग़ है।" ररतू ने कहा___"थोडे से सबू तों पर कैसे
ककडयों को जोडना है ये तु मने कदखा कदया। पु कलस किभाग में होती तो जकटल से

368
जकटल केस बडी आसानी से सु लझा ले ती तु म।"

"आपने तो बे िजह ही तारीफ़ कर दी।" किधी ने कहा___"जबकक ऐसा कुछ भी नही ं


है।"
"तो इस कलए ही तु मने मेरे भाई किराज से बे ििाई की थी?" ररतू के मन में सबसे
ज्यादा यही सिाल उछल रहा था___"तु मको पहले से पता था कक तु म्हें कैंसर है इस
कलए तु मने ये रास्ता अपनाया। है न?"

"कि किरा...ज??" किधी का चे हरा िक्क पड गया। लाख कोकशशों के बाद भी उसकी
़िुबान लडखडा गई____"क कौन कि..रा..ज? आप ककसकी बात कर रही हैं?"
"अब भला झॅ ू ठ बोलने की क्ा ़िरूरत है किधी।" ररतू ने कहा___"मुझे बहुत अच्छी
तरह पता है कक तु म मेरे भाई किराज से आज भी बे पनाह मोहब्बत करती हो।
बे ििाई तो तु मने जान बू झ कर की उससे । ताकक िो तु म्हारी उस क़िंदगी से चला
जाए जो बस कुछ ही समय की मे हमान थी। उसे अपने से दू र करने का यही तरीका
अपनाया तु मने । जब मेरे डै ड ने उसे और उसके पररिार को हिे ली से कनकाल कदया
तब तु म्हें भी मौका कमल गया और तु मने उसी मौके में उससे ऐसी बातें कही कक उसे
तु मसे निरत हो जाए।"

"तो और क्ा करती मैं?" किधी के अं दर का बाॅध मानो ज्वारभाॅटा बन कर िूट


पडा। िह िूट िूट कर रो पडी। रोते हुए ही उसने कहा___"मैं उसकी क़िंदगी में चं द
महीनों की मे हमान थी। िो मुझे इतना चाहता था कक िह मेरे कबना जीिन की कल्पना
भी नही ं करता था। प्यार तो मैं भी उससे उतना ही करती थी और आज भी करती हूॅ
मगर, उस प्यार से क्ा हो सकता था भला? हम हमेशा साथ तो नही ं रह सकते थे न।
मेरी मौत पर िह टू ट जाता। मैने सोचा कक उसके अं दर से अपने प्रकत चाहत कनकाल
दू ॅ ककसी तरह ताकक िो ककसी और के साथ अपने जीिन में आगे बढने का सोच
सके। मुझे जो सही लगा िो मैने ककया। मैने अपने आपको पत्थर बना कलया और
उससे उस तरह की दो टू क बातें की। उसके अं दर अपने प्रकत निरत पै दा करने के
कलए मैने सू रज नाम के लडके से दोस्ती भी कर ली। मैं जानती थी कक सू रज कैसा
लडका है मगर अब मेरे पास जीिन ही कहाॅ बचा था और ना ही मुझमें जीने की
चाह रह गई थी। मु झे ये भी पता है कक मेरे पे ट में सू रज का ही पाप है ले ककन मु झे
इसकी कोई परिाह नही ं है क्ोंकक इस पाप का भी मेरे साथ ही अं त हो जाएगा।
सू रज ने मेरे शरीर को भोगा मगर मेरे कदल में मेरे मन में तो हर जन्म में कसिग किराज
ही रहेगा।"

"ये सब तो ठीक है।" ररतू ने कहा___"ले ककन क्ा तु मने ये नही ं सोचा कक तु म्हारे ऐसा
करने से किराज ककस हद तक टू ट कर कबखर जाएगा? तु मने तो ये सोच कर उससे

369
बे ििाई की कक िह ककसी और के साथ जीिन में आगे बढ जाएगा, ले ककन ये क्ों
नही ं सोचा कक अगर उसने ऐसा नही ं ककया तो???"

"मैने बहुत कुछ सोचा था ररतू दीदी।" किधी ने िीकी सी मु स्कान के साथ कहा___"ये
कदल बडा ही अजीब होता है। कोई ह़िारों बार चाहे इसके साथ ल्कखलौने की तरह
खे ल कर इसे टु कडों में कबखे र दे किर भी ये मोहब्बत करना बं द नही ं करता। इसके
अं दर हर रूप में मोहब्बत किद्यमान रहती है किर चाहे िो निरत के रूप में ही क्ों
न हो। निरत से पत्थर बन जाओ किर भी मोहब्बत से कपघल जाओगे। किराज िो
कोकहनू र है कजसे हर लडकी मोहब्बत करना चाहेगी और करती भी थी। मोहब्बत एक
एहसास है दीदी, पत्थर भी इस एहसास से कपघल जाते हैं । आपको किर से कब ककसी
से मोहब्बत हो जाए ये आपको भी पता नही ं चले गा। मोहब्बत करने िाला पत्थर कदल
में भी मोहब्बत का एहसास जगा दे ता है। बस यही सोच कर मैने ये सब ककया था।
मुझे पता था उसके जीिन में कोई न कोई ऐसी लडकी ़िरूर आ जाएगी जो अपनी
मोहब्बत से उसकी निरत को कमटा दे गी और किर से उसके टू टे हुए कदल को जोड
कर उसे मोहब्बत करना कसखा दे गी।"

"क्ा पता ऐसा हुआ भी है कक नही ं?" ररतू ने कहा___"क्ा तु मने कभी पता करने की
कोकशश की कक किराज ककस हाल में है?"
"कोकशश करने का सिाल ही कहाॅ रह गया दीदी?" किधी ने कहा___"मैंने तो ये सब
ककया ही उससे दू र होने के कलए था। दु बारा उसके पास जाने का या ये पता करने का
कक िो ककस हाल में है ये सिाल ही नही ं था। क्ोंकक मैने बडी मुल्किल से िो सब
ककया था, मु झमें इतनी कहम्मत नही ं थी कक मैं अपने महबू ब के उदास चे हरे को दु बारा
दे ख पाती।"

"खै र, ये बताओ कक जब तु मको पता चल गया था कक तु मको कैंसर है तो तु मने अपने


माता कपता को क्ों नही ं बताया?" ररतू ने पहलू बदलते हुए पू छा___"अगर बता दे ती
तो सं भि था कक तु म्हारा इलाज होता और तु म ठीक हो जाती?"

"ऐसा कुछ न होता दीदी।" किधी ने कहा__"क्ोंकक मेरे कपता उस हालत में ही नही ं थे
कक िो मेरा कैंसर का इलाज करिा पाते । आप तो बस यही जानती हैं कक िो बडे
आदमी हैं मगर ये नही ं जानती हैं कक उस बडे आदमी के साथ उसके बडे भाईयों ने
ककतना बडा अत्याचार ककया है? दादा जी के मरते िक्त बडे ताऊ ने धोखे से सारी
प्रापटी पर उनके हस्ताक्षर करिा कलया। उसके बाद दादा जी की ते रिी ं होने के बाद
ही अगले कदन ताऊ और उनके दोगले भाई ने मेरे माता कपता को सारी प्रापटी से
बे दखल कर कदया। अब आप ही बताइये कक कैसे मेरे पापा मेरा इलाज करिा सकते
थे ?"

370
ररतू को समझ ही न आया कक िह क्ा बोले ? किधी की कहानी ही ऐसी थी कक िह
बे चारी हर तरह से मजबू र थी। उसके ठीक होने का कही ं कोई चाॅस ही नही ं था।

"अगर मैं अपने कैंसर की बात पापा से बताती तो िो बे चारे बे िजह ही परे शान हो
जाते ।" किधी कह रही थी___"कजसकी कंपनी में लोग काम करते थे और जो खु द
कभी ककसी का माकलक हुआ करता था िो आज खु द ककसी दू सरे की कंपनी में बीस
हजार की नौकरी करता है। बीस ह़िार में अपने तीन बच्चों और खु द दोनो प्राकर्यों
का खचाग चला ले ना सोकचये ककतना मु ल्किल होगा? ऐसे में िो कैसे मेरा इलाज करिा
पाते ? इससे अच्छा तो यही था दीदी कक मैं मर ही जाऊ। दो चार कदन मेरे कलए रो लें गे
उसके बाद किर से उनका जीिन आगे चल पडे गा।"

"इतनी छोटी सी उमर में इतनी बडी सोच और इतना बडा त्याग ककया तु मने ।" ररतू
की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये सब कैसे कर कलया तु मने ?"

ररतू ने झपट कर उसे अपने सीने से छु पका कलया। किधी को उसके गले लगते ही
असीम सु ख कमला। भािना में बह गई िह। िषों से अपने अं दर कैद िे दना को िह
रोंक न पाई बाहर कनकलने से । िह कहचककयाॅ ले ले कर रोने लगी थी।

"मेरी आपसे एक किनती है दीदी।" किर किधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों
से कहा।
"किनती क्ों करती है पागल?" ररतू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्ा कहना
है तु झे?"

"मु मु झे एक बार।" किधी की रुलाई िूट गई, लडखडाती आिा़ि में कहा___"मु झे
बस ए एक बार कि..किरा...ज से कमलिा दीकजए। मु झे मेरे महबू ब से कमलिा दीकजए
दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने ककये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे
बताना चाहती हूॅ कक मैं बे ििा नही ं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टू ट टू ट कर प्यार
करती हूॅ। उसे बु लिा दीकजए दीदी। मेरी ख़्वाकहश है कक मेरा अगर दम कनकले तो
उसकी ही बाहों में कनकले । मेरे महबू ब की बाॅहों में दीदी। आप बु लिाएॅगी न दीदी?
मुझे एक बार दे खना है उसे । अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती
हूॅ मैं। अपने महबू ब की सुं दर ि मासू म सी तस्वीर।"

"बस कर रे ।" ररतू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी कहम्मत नही ं है कक मैं
ते री ऐसी करुर् बातें सु न सकूॅ। मैं तु झसे िादा करती हूॅ कक ते रे महबू ब को मैं ते रे
पास ़िरूर लाऊगी। मैं धरती आसमान एक कर दू ॅगी किकध और उसे ढू ॅढ कर ते रे
सामने हाक़िर कर दू ॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का

371
इं त़िार करना।"

ररतू ने कसी से उठ कर बे ड पर ले टी किधी के माॅथे को झुक कर चू ॅमा और अपने


ऑसू पोंछते हुए बाहर कनकल गई।
__________________

फ्लैशबैक अब आगे_______
किजय कसं ह खाना पीना खा कर अपने कमरे में ले टा हुआ था। उसके कदलो कदमाग़ से
आज की घटना हट ही नही ं रही थी। उसे यकीन ही नही ं हो रहा था कक उसकी माॅ
समान भाभी उसके साथ इतनी कगरी हुई तथा नीचतापू र्ग हरकत कर सकती है।
उसकी ऑखों के सामने िो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रकतमा ने उसके लं ड को
अपने मुह में कलया हुआ था। किजय कसं ह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के
चकराते ही बहुत अजीब सा महसू स करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी
के प्रकत तीब्र घृर्ा और नफ़रत भरती जा रही थी।

उधर अजय कसं ह और प्रकतमा को ये डर भी सता रहा था कक किजय कसं ह आज की


इस घटना का क़िक्र कही ं ककसी से कर न बै ठे। हलाॅकक उसकी कितरत के कहसाब
से उन दोनो को यही लग रहा था कक िो इस बारे में ककसी से कुछ कहेगा नही ं। पर
कहते हैं न कक अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका कदमाग़ एक जगह ल्कथथर
नही ं रह सकता। िही हाल प्रकतमा ि अजय कसं ह का था। दोनो ने िैसला कर कलया
था कक कल ही अपने बच्चों को ले कर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पु रानी हो
जाएगी तो किर उस कहसाब से दे खा जाएगा।

रात को सारे कामों से िुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे
क्ोंकक अब बडे हो गए थे इस कलए िो सब अब अलग कमरों में सोते थे । कनकध हमेशा
की तरह अपने भइया किराज के साथ ही सोती थी।

गौरी जब कमरे में पहुॅची तो किजय कसं ह को बे ड पर पडे हुए ककसी गहरी सोच में
डूबा हुआ पाया। िो खद भी कपछले कािी कदनों से महसू स कर रही थी कक किजय
कसं ह कािी उदास ि परे शान सा रहने लगा है । उसके द्वारा पू छने पर भी उसने कुछ
न बताया था।

"कपछले कुछ कदनो की अपे क्षा आज कुछ ज्यादा ही परे शान ऩिर आ रहे हैं आप।"
गौरी ने बे ड के ककनारे पर बै ठते हुए ककन्तु किजय के चे हरे पर दे खते हुए कहा___"मैं
जब भी आपसे इस परे शानी की िजह पू छती हूॅ तो आप टाल जाते हैं किजय जी।
क्ा आप पर मेरा इतना भी हक़ नही ं कक मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"

372
"ऐसा क्ों कहती हो गौरी?" किजय ने चौंक कर कहा था___"तु म्हारा तो मुझ पर सारा
हक़ है। मेरे कदल में और मेरे मन में भी। ले ककन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं कजन्हें
अगर ़िुबान से बाहर कनकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तु म्हारे पू छने पर
हर बार मैं टाल दे ता हूॅ, यकीन मानो मु झे तु म्हारी बातों का जिाब न दे पाने पर
बे हद दु ख होता है। पर मैं क्ा करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी िो सब तु म्हें बता नही ं
सकता।"

"अगर आप बताना नही ं चाहते हैं किजय जी तो कोई बात नही ं।" गौरी ने गंभीरता से
कहा___"मैं तो बस इस कलए जानना चाहती थी कक मैं आपको इस तरह उदास और
परे शान नही ं दे ख सकती। हर िक्त सोचती रहती हूॅ कक आकखर ऐसा क्ा हो गया है
कजसकी िजह से आपके चे हरे का िो नू र खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"

"समय हमेशा एक जैसा नही ं रहता।" किजय ने गहरी साॅस ली___"ये तो बदलता ही
रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इं सान से जु डी हर ची़ि भी बदलने
लगती है ।"

"आपने कहा कक कुछ बातें ऐसी होती हैं कजन्हें अगर ़िुबान से बाहर कनकाल दी
जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये
जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कक ऐसी भला कौन सी बातें हैं कजनके बाहर आ
जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धमग पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक
ककसी का कोई रा़ि रा़ि नही ं रहा किर क्ा बात है कक आज कोई बात मेरे सामने
रा़ि ही रख रहे हैं?"

"मैं जानता हूॅ गौरी कक जब तक तु म उस बात को जान नही ं लोगी तब तक तु म्हारे


मन को शाल्कन्त नही ं कमले गी।" किजय कसं ह ने गंभीरता से कहा___"इस कलए मैं तु म्हें िो
सब बता ही दे ता हूॅ ले ककन उससे पहले तु म्हें मुझे एक िचन दे ना होगा।"

"िचन??" गौरी के माॅथे पर बल पडा___"कैसा िचन चाहते हैं आप मु झसे ?"


"यही कक जो कुछ मैं तु म्हें बताने िाला हूॅ उस बात को कभी ककसी से कहोगी
नही ं।" किजय कसं ह ने कहा___"िो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही िचन
चाकहए तु मसे ।"

"ठीक है किजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको िचन दे ती हूॅ कक आपके द्वारा कही
गई ककसी भी बात का क़िक्र मैं कभी ककसी से नही ं करूॅगी।"

373
गौरी के िचन दे ने पर किजय कसं ह कुछ पल तक उसे दे खता रहा किर एक लम्बी ि
गहरी साॅस ले कर उसने िो सब कुछ गौरी को बताना शु रू कर कदया। उसने गौरी
से कुछ भी नही ं छु पाया। शु रू से ले कर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी
को किस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सु न कर गौरी की हालत ककसी
कनजीि पु तले की माकनन्द हो गई। उसके चे हरे पर ऐसे भाि थे जैसे उसे इन सारी
बातों पर ़िरा सा भी यकीन न हो रहा हो।

"आज की इस घटना ने तो मुझे अं दर से बु री तरह कहला कर रख कदया है गौरी।"


किजय कसं ह ने कहा___"समझ में नही ं आ रहा कक क्ा करूॅ मैं? मैं सोच भी नही ं
सकता था कक िो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घकटया हरकत भी कर
सकती थी।"

"ये सब मेरी िजह से हुआ है किजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं
बीमार ना होती तो कभी भी िो औरत खे तों में आपको खाने का कटकिन दे ने न जा
पाती। आज तो मैं खु द ही आपको खाना ले कर आने िाली थी ले ककन उसने ही मु झे
जाने नही ं कदया। कहने लगी कक अभी मु झे और आराम करना चाकहये। भला मैं क्ा
जानती थी कक उसके मन में क्ा ल्कखचडी पक रही थी?"

"इसका चररत्र तो कनहायत ही घकटया है गौरी।" किजय कसं ह ने कहा__"ये बहुत शाकतर
औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में िसाया रहा होगा। मेरे भइया तो
ऐसे नही ं हैं। िो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"

"आपके बडे भाई का चररत्र भी कुछ ठीक नही ं है किजय जी।" गौरी ने कहा___"हो
सकता है कक आपको मेरी इस बात से बु रा लगे मगर सच्चाई तो यही है कक आपके
बडे भाई साहब खु द भी आपकी भाभी की तरह ही चररत्रहीन हैं।"

"ये क्ा कह रही हो तु म गौरी?" किजय कसं ह ने हैरतअं गेज लहजे में कहा___"बडे
भइया के बारे में तु म ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नही ं बताया था कक आपको बु रा
लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चररत्र का िर्ग न
ककया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चररत्र के बारे में बताने का सोच कलया।"

"आकखर ऐसा क्ा ककया है बडे भइया ने तु म्हारे साथ?" किजय कसं ह का लहजा
एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मु झे सबकुछ साि साि बताओ गौरी।"

गौरी ने किजय कसं ह को शु रू से ले कर अब तक की बात बता दी। सु न कर किजय


कसं ह ठगा सा बै ठा रह गया बे ड पर। ऑखों में आश्चयग के साथ साथ दु ख के भाि भी

374
नु मायां हो गए थे ।

"पहले मु झे लगा करता था कक ये सब शायद मेरा िहम है।" गौरी धीर गंभीर भाि से
कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कक ये िहम नही ं बल्कि सच्चाई है।
जेठ जी की नीयत में ही खोट है। िो अपने छोटे भाई की बीिी पर ग़लत नीयत से
हाॅथ डालना चाहते हैं।"

"ये सब तु मने मु झे पहले क्ों नही ं बताया गौरी?" किजय कसं ह ने कहा___"भगिान
जानता है कक मैंने कभी भू ल से भी अपने बडे भाई ि भाभी का कभी बु रा नही ं सोचा।
बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान ककया है। मगर
मुझे क्ा पता है कक ये दोनो राम ि सीता जैसे कभी थे ही नही ं। मैं कल ही बाबू जी से
इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नही ं है कजसे चु पचाप सहन करते रहें।
हमारे आदर सम्मान दे ने को िो लोग हमारी कम़िोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा
नही ं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाकहए कक उनका बडा
बे टा और बडी बहू कैसी सोच रखते हैं?"

"नही ं किजय जी।" गौरी बु री तरह घबरा गई थी, बोली___"भगिान के कलए शान्त हो
जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से कबलकुल भी नही ं बताएॅगे। बडी मु ल्किल से तो
उन्हें ऐसा कदन दे खने को कमला है जब उनके बडे बे टे और बहू खु शी खु शी हम सबसे
कमल जुल रहे हैं। इस कलए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें किर से दु खी नही ं करें गे।"

"क्ों न बताऊ गौरी?" किजय कसं ह ने आिे श में कहा___"ये ऐसी बात नही ं है जो
अगले कदन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कक ये आगे चलती ही रहेगी। जब ककसी का
मन इन बु री ची़िों से भर जाता है तो िो ब्यल्कक्त ककसी के कलए किर अच्छा नही ं सोच
सकता। अभी तो ये शु रूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे
हालात होंगे?"

"सब ठीक हो जाएगा किजय जी।" गौरी ने समझाने िाले भाि से कहा___"आप बस
उनसे दू र रकहयेगा। माॅ बाबू जी से आप इस सबका क़िक्र नही ं करें गे।"
"क़िक्र तो होगा गौरी।" किजय कसं ह ने कनर्ाग यक भाि से कहा___"अब तो रात कािी
हो गई है िरना अभी इस बात का क़िक्र होता। मगर सु बह सबसे पहले इसी बात का
क़िक्र होगा।"

"आप ऐसा कुछ भी नही ं करें गे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है
किजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नही ं कहेंगे।"
"मेरे बे टे की कसम दे कर तु मने ये ठीक नही ं ककया गौरी।" किजय कसं ह असहाय भाि

375
से कहा था।

"मुझे माि कर दीकजए किजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी


तो सोचना चाकहए था न। सोचना चाकहये था कक इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्ा
गु़िरे गी जब उन्हें ये पता चले गा कक उनका बडा बे टा और बडी बहू क्ा करतू त कर
रहे हैं?"

किजय कसं ह कुछ न बोला बल्कि बे ड पर एक तरि करिट ले कर ले ट गया। गौरी को


समझते दे र न लगी कक किजय कसं ह उससे नारा़ि हो गया है। आज जीिन में पहली
बार ऐसा हुआ था कक किजय कसं ह गौरी से नारा़ि हो गया था।

कुछ दे र गौरी उसे एकटक दे खती रही किर िह भी उसके बगल में ले ट गई। ऑखों
में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कक मु झे माि कर दीकजए किजय जी।

सु बह जब गौरी की नीद खु ली तो बगल में किजय कसं ह को न पाया उसने । िह समझ


गई कक हर कदन की तरह किजय कसं ह खे तों पर चले गए हैं। मगर तु रंत ही उसे रात की
बायों का खयाल आया। िह एकदम से हडबडा गई। उसे आशं का हुई कक किजय
कसं ह कही ं अपनी कसम तोड कर माॅ बाबू जी से िो सब बताने तो नही ं चले गए? ये
सोच कर गौरी झट से बे ड से उठी। अपनी सारी को दु रुस्त करके िह कबना हाॅथ
मुॅह धोए ही कमरे से बाहर कनकल गई।

नीचे आकर दे खा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कही ं पर भी कुछ महसू स न हुआ
कक जैसे कुछ बात हुई हो। ये दे ख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खु शी के
भाि भी जागृत हो गए, ये सोच कर कक किजय जी ने बे टे की कसम नही ं तोडी।

हिे ली के मुख्य द्वार की तरि जाकर उसने बाहर लान में दे खा तो चौंक पडी। बाहर
अजय कसं ह प्रकतमा ि उसके बच्चे सब कार में बै ठ रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे िो
लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते दे र न लगी कक िो लोग इतना जल्दी क्ों
यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कक जब भी उसके जेठ ि जेठानी
शहर जाते थे तब िह उनके पाॅि छूकर आशीिागद ले ती थी। मगर आज उसने ऐसा
नही ं ककया। बल्कि दरिाजे से तु रंत ही पलट गई िह, ताकक ककसी की ऩिर न पडे
उस पर। जेठ जेठानी के कलए उसके मन में निरत ि घृर्ा सी भर गई थी अचानक।
िह पलटी और िापस अपने कमरे की तरि बढ गई।

376
अपडे ट.........《 35 》

अब तक,,,,,,,,,,,,

सु बह जब गौरी की नीद खु ली तो बगल में किजय कसं ह को न पाया उसने । िह समझ


गई कक हर कदन की तरह किजय कसं ह खे तों पर चले गए हैं। मगर तु रंत ही उसे रात की
बायों का खयाल आया। िह एकदम से हडबडा गई। उसे आशं का हुई कक किजय
कसं ह कही ं अपनी कसम तोड कर माॅ बाबू जी से िो सब बताने तो नही ं चले गए? ये
सोच कर गौरी झट से बे ड से उठी। अपनी सारी को दु रुस्त करके िह कबना हाॅथ
मुॅह धोए ही कमरे से बाहर कनकल गई।

नीचे आकर दे खा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कही ं पर भी कुछ महसू स न हुआ
कक जैसे कुछ बात हुई हो। ये दे ख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खु शी के
भाि भी जागृत हो गए, ये सोच कर कक किजय जी ने बे टे की कसम नही ं तोडी।

हिे ली के मुख्य द्वार की तरि जाकर उसने बाहर लान में दे खा तो चौंक पडी। बाहर
अजय कसं ह प्रकतमा ि उसके बच्चे सब कार में बै ठ रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे िो
लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते दे र न लगी कक िो लोग इतना जल्दी क्ों
यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कक जब भी उसके जेठ ि जेठानी
शहर जाते थे तब िह उनके पाॅि छूकर आशीिागद ले ती थी। मगर आज उसने ऐसा
नही ं ककया। बल्कि दरिाजे से तु रंत ही पलट गई िह, ताकक ककसी की ऩिर न पडे
उस पर। जेठ जेठानी के कलए उसके मन में निरत ि घृर्ा सी भर गई थी अचानक।
िह पलटी और िापस अपने कमरे की तरि बढ गई।
_______________________

अब आगे,,,,,,,,,,,
ितगमान अब आगे________
ररतू किधी से कमलने के बाद शाम को अपने घर हिे ली पहुॅची। किधी की कहानी और
उसकी बातों ने उसे सच में अं दर तक कहला कदया था। िह प्यार मोहब्बत जैसी ची़िों
को बकिास ही मानती थी। ककन्तु किधी से कमलने के बाद उसे इस प्यार मोहब्बत की
अहकमयत समझ आई थी। उसे समझ आया कक कैसे लोग ककसी के प्यार में इस
क़दर पागल से हो जाते हैं कक अपने महबू ब की खु शी के कलए िो कोई भी काम ककस
हद से बाहर तक कर सकते हैं। किधी से कमलकर और उसके प्यार की सच्चाई ि

377
गहराई को जानकर उसे एहसास हुआ कक आज के युग में भी अभी ऐसे लोग हैं जो
प्यार के कलए क्ा नही ं कर डालते ?

किधी की हालत और उसके प्यार की दास्तां ने ररतू के अं तमगन को झकझोर कर रख


कदया था। एक ते ़ि तरागर लडकी जो खु द को ककसी भी मामले में लडकों से कम नही ं
समझती थी आज किधी की असकलयत ने उसके कदल को छू कलया था। उसके हृदय में
किधी के प्रकत पीडा जाग गई थी और कजस पीडा ने उसकी ऑखों से ऑसू छलका
कदये थे ।

िह आज तक नही ं समझ पाई और ना ही कभी समझने की कोकशश की कक क्ों िह


अपने चाचा चाची के लडके किराज से नफ़रत करती थी? क्ों उसने कभी उससे बात
करना ़िरूरी नही ं समझा? क्ों उसने हमेशा किराज को अपना भाई नही ं समझा?
आकखर क्ा अपराध ककया था उसने उसके साथ? जहाॅ तक उसे याद था जब कभी
भी किराज उससे बात ककया था तो बडी इज्ज़ित से ककया था। हमेशा उसे दीदी और
आप कह कर सं बोकधत करता था।

किधी से कमलने के बाद ररतू हिे ली में जाकर सीधा अपने कमरे में बे ड पर ले ट गई
थी। उसकी माॅ ने तथा उसकी छोटी बु आ नै ना ने उससे बात करना चाहा था मगर
उसने सबको ये कह कर अपने पास से िापस लौटा कदया था कक िह कुछ दे र अकेले
रहना चाहती है।

बे ड पर पडी हुई ररतू ऊपर छत के कंु डे पर लगे हुए पं खे को घूर रही थी अपलक।
उसकी ऑखों के सामने किधी का िो रोता कबलखता हुआ चे हरा और उसकी िो
करुर् बातें घूम रही थी।

"मेरी आपसे एक किनती है दीदी।" किर किधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों
से कहा।
"किनती क्ों करती है पागल?" ररतू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्ा कहना
है तु झे?"

"मु मु झे एक बार।" किधी की रुलाई िूट गई, लडखडाती आिा़ि में कहा___"मु झे
बस ए एक बार कि..किरा...ज से कमलिा दीकजए। मु झे मेरे महबू ब से कमलिा दीकजए
दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने ककये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे
बताना चाहती हूॅ कक मैं बे ििा नही ं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टू ट टू ट कर प्यार
करती हूॅ। उसे बु लिा दीकजए दीदी। मेरी ख़्वाकहश है कक मेरा अगर दम कनकले तो
उसकी ही बाहों में कनकले । मेरे महबू ब की बाॅहों में दीदी। आप बु लिाएॅगी न दीदी?
मुझे एक बार दे खना है उसे । अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती

378
हूॅ मैं। अपने महबू ब की सुं दर ि मासू म सी तस्वीर।"

"बस कर रे ।" ररतू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी कहम्मत नही ं है कक मैं
ते री ऐसी करुर् बातें सु न सकूॅ। मैं तु झसे िादा करती हूॅ कक ते रे महबू ब को मैं ते रे
पास ़िरूर लाऊगी। मैं धरती आसमान एक कर दू ॅगी किकध और उसे ढू ॅढ कर ते रे
सामने हाक़िर कर दू ॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का
इं त़िार करना।"

ये सब बातें ररतू की ऑखों के सामने मानो ककसी चलकचत्र की तरह बार बार चलने
लगती थी। कजतनी बार ये दृष्य उसकी ऑखों के सामने से गु़िरता उतनी बार ररतू के
अं दर एक हूक सी उठती और उसके समूचे अल्कस्तत्व को कहला कर रख दे ती।

"क्ा सचमुच प्यार ऐसा होता है किधी?" ररतू ने सहसा करिट बदल कर मन ही मन
में कहा___"क्ा सचमुच प्यार में लोग अपने महबू ब की खु शी के कलए इस हद से
बाहर तक गु़िर जाते हैं? तु म्हें दे ख कर और तु म्हारी बातें सु न कर तो ऐसा ही लगता
है किधी। तु म सच में बहुत महान हो किधी। मेरे उस भाई से तु मने इस हद तक प्यार
ककया कजस भाई से मैं बात तक करना अपनी शान के ल्कखलाफ़ समझती थी। और
एक िो था कक हमेशा मुझे इज्ज़ित दे ता था, मु झे दीदी कहते हुए उसका मुह नही ं
थकता था। जब भी िो मुझसे बात करने की कोकशश करता तो हर बार मैं उसे
दु त्कार दे ती थी। मु झे याद है किधी, जब मैं उसे दु त्कार कर भगा दे ती थी तब उसकी
ऑखों में ऑसू होते थे । कजन्हें िह ऑखों से छलकते नही ं दे ता था बल्कि उन्हें ऑखों में
ही जज़्ब कर ले ता था। मैने ते रे किराज को बहुत दु ख कदये हैं किधी। हो सके तो मु झे
माफ़ कर दे ना।"

एकाएक ही ररतू की ऑखों से ऑसू छलक कर उसके कपोलों को कभगोने लगे।


सहसा जैसे उसे कुछ याद आया। िह तु रंत ही बे ड से उठी और ते ़िी से बगल में
दीिार से सटी हुई आलमारी के पास पहुॅची। उसने आलमारी का हैण्डल घु माया
ले ककन िो न घूमा। मतलब साि था कक आलमारी लाॅक थी।

ररतू दू सरी साइड रखे एक टे बल की तरि बढी और उसकी कबड को खोल कर


उसमें से एक चाभी का गुच्छा कनकाला। गुच्छा ले कर िह तु रंत आलमारी के पास
िापस पहुॅची और गुच्छे से एक चाभी को चु न कर उसने आलमारी के की-होल पर
डाल कर घु माया। आलमारी एकदम से अनलाॅक हो गई। ररतू ने हैण्डल पकड कर
घुमाया और किर आलमारी के दोनो िटकों को दोनो साइड खोल कदया।

आलमारी के अं दर कई सारे पाट्ग स थे कजनमें कुछ पर कपडे ि कुछ पर कुछ ककताबें


ि िाइलें रखी हुई थी। ककन्तु ररतू की ऩिर उन सब पर नही ं बल्कि आलमारी के

379
अं दर मौजूद एक और लाॅकर पर थी। उसने एक दू सरी चाभी से उस लाकर को
खोला। उसके अं दर भी कुछ काग़जात जैसे ही थे । एक प्लाल्कस्टक का कडब्बा था। ररतू
ने उन काग़जातों को एक ही बार में सारा का सारा बाहर कनकाल कलया।

उन सबको कनकाल कर िह पलटी और बे ड पर उन सभी काग़जातों को िैला कदया।


उनमें कुछ रसीदें थी, कुछ एग्रीमेंट जैसे काग़जात थे और कुछ कलिािे थे । ररतू ने
झट से एक कलिािा उठा कलया। उसे खोल कर दे खा तो उसमें कुछ िोटोग्राफ्स थे ।
ररतू ने कलिािे से सारे िोटोग्राफ्स कनकाल कलये और किर एक एक कर दे खने
लगी। पाॅच छः िोटोग्राफ्स को दे खने के बाद ररतू एक दम से रुक गई। एक
िोटोग्राफ्स पर उसकी ऩिर जैसे गड सी गई थी। कुछ दे र दे खने के बाद उसने
बाॅकी सारे िोटोग्राफ्स को बे ड पर कगरा कदया और बस एक िोटोग्राफ्स को कलए
िह बे ड पर एक साइड बै ठ गई।

िोटोग्राफ्स में उसके माॅम डै ड, नीलम, कशिा एिं िह खु द भी थी। ककन्तु ररतू की
ऩिर उन सबके पीछे कुछ दू री पर खडे किराज पर कटकी हुई थी। ये िोटोग्राफ्स
कुछ साल पहले का था। हिे ली में कोई कायग क्रम था तब ही शहर से ककसी
िोटोग्रािर को बु लिाया गया था और ये तस्वीरें खी ंची गई थी। अन्य तस्वीरों में
बाॅकी सबकी तस्वीरें थी ले ककन किजय कसं ह गौरी ि उनके बच्चों की कोई तस्वीरें
नही ं थी। इस तस्वीर में भी ग़लती से ही किराज की िोटो आ गई थी। ररतू को याद
आया कक कशिा बार बार किराज से इस बात पर लड पडता था कक िो उसके साथ
िोटो न ल्कखंचिाए। मगर उत्सुकतािश िो आ ही जाता था।

"कि..राज मेरे भाई।" ररतू ने अपने एक हाॅथ से तस्वीर में किराज के चे हरे पर हाॅथ
िेरा। उसकी ऑखों से ऑसू बह चले , बोली__"मैं जानती हूॅ कक तु झे भाई कहने का
भी मु झे कोई अकधकार नही ं होना चाकहए। मगर बस एक बार मुझे कमल जा भाई।
अपनी इस दीदी के कलए नही ं बल्कि अपनी उस किधी के कलए कजसे तू आज भी उतना
ही प्यार करता होगा मैं जानती हूॅ। मुझे पता है कक आज भी अगर तू मु झे कमल जाए
तो तू मु झे उतनी ही इज्ज़ित से के साथ दीदी कहेगा जैसे पहले कहा करता था। और
सच कहूॅ तो मुझे ना़ि है तु झ पर कक मेरा भाई है । एक मेरा है कजसने मु झे इज्ज़ित तो
दी ले ककन उसकी उस इज्ज़ित में भी ककतनी इज्ज़ित होती है ये मुझसे बे हतर भला
और कौन जानता होगा भाई। पर ये तो मेरी सोच और मेरे नसीब की बात है मेरे भाई
कक कजसने मु झे सच में इज्ज़ित दी उसे मैने हमे शा दु त्कारा और कजसकी इज्ज़ित में भी
गंदगी भरी थी उसे अपने सीने से लगा कर भाई कहा। खै र, ये सब छोड भाई। ये
बता कक कहाॅ है तू ? मुम्बई में ऐसी कौन सी जगह पर है जहाॅ से मु झे ते रा पता कमल
जाए? मैने ते री किधी से िादा ककया है भाई कक मैं उसके सामने तु झे ले आऊगी। इस
कलए भाई मु झे ककसी तरह से कमल जा।"

380
ररतू उस तस्वीर से जाने क्ा क्ा कहे जा रही थी मगर भला िो तस्वीर उसको
किराज का पता कैसे बताती?

"मैने कभी इस बात पर ग़ौर नही ं ककया भाई कक क्ों मेरे अं दर ते रे कलए ये नफ़रत
थी? क्ों मैं तु झसे हमेशा मु ह मोड ले ती थी?" ररतू करुर् भाि से कह रही
थी___"इसकी िजह शायद ये हो सकती है कक बचपन से ही मेरे माॅम डै ड ने मु झे
और मेरे भाई बहनों को तु झसे और ते रे माता कपता ि बहन से दू र ही रहने की कशक्षा
दी। िो हमेशा हमें यही बताते थे कक तु म लोग अच्छे लोग नही ं हो। बचपन से हमें यही
सब कसखाया पढाया गया था भाई, इस कलए हम भी उनके कहे अनु सार तु म लोगो से
दू र ही रहे। और जब चाची पर िो सब इल्जाम लगा और उन्हें हिे ली से कनकाल कदया
गया तो हम बच्चों के मन में और भी ये बात बै ठ गई कक तु म लोग िाकई में अच्छे लोग
नही ं हो। मगर आज जब मैंने किधी से उसके और तु म्हारे प्यार के बारे में जाना तो
जाने क्ों ऐसा लगा कक तु म उतने बु रे तो नही ं हो सकते मेरे भाई कजतना कक आज
तक हम तु म्हें समझते आ रहे थे । अगर होते तो कोई भी लडकी तु म्हारे कलए प्यार में
इस हद तक अपनी कुबागनी नही ं दे ती। इं सान की बु राई कभी ककसी से नही ं कछपती
भाई। अगर तु म िास्ति में बु रे होते तो क्ा ये बात किधी को कभी पता न चलती?
़िरूर चलती भाई, मगर ऐसा नही ं था। िो पागल तो कह रही है कक िो तु म्हारी ही
बाॅहों में अपनी आकखरी साॅस ले ना चाहती है। आकखर कुछ तो खू बी होगी ही न
तु झमें भाई। मैने कभी तु झे समझा ही नही ं भाई...मु झे माफ़ कर दे किराज।"

ररतू उस तस्वीर को अपने सीने से लगा कर रोए जा रही थी। इस िक्त उसे इस
हालत में दे ख कर कोई नही ं कह सकता था कक ये िही ते ़ि तरागर ररतू है जो अकेले
चार चार हट्टे कट्टे लडकों धूल चटा दे ती है। हौंसले ऐसे बु लंद कक आसमान की बु लंदी
भी क्ा ची़ि है।

तभी उसका मोबाइल बजा। उसने दे खा बे ड के एक साइड पर रखे आईिोन की


स्क्रीन पर कोई नम्बर फ्लैश कर रहा था। ररतू ने िोन उठाया और काल ररसीि कर
उसे कनपटी से सटा कर कहा___"हैलो।"

"..............." उधर से कुछ कहा गया।


"ये क्ा कह रहे हो तु म?" ररतू के चे हरे पर चे हरे पर चौंकने िाले भाि थे ।
"..............." उधर से किर कुछ कहा गया।
"पू री बात बताओ साि साि।" ररतू ने कहा।
".............." उधर से कुछ दे र तक बताया गया।
"ओह चलो ठीक है।" ररतू ने कहा__"तु मने बहुत अच्छा काम ककया है। अब एक

381
काम और तु म्हें दे रही हूॅ। और िो काम क्ा है ये तु म्हें तु म्हारे िोन पर मेरे द्वारा
भे जे गए मैसेज से पता चल जाएगा। सारे काम छोंड कर तु म्हें ये काम करना है।
तु म्हारे पास कसिग और कसिग आज रात बस का समय है। कल माकनिं ग में मेरी ऑख
तु म्हारे िोन करने पर ही खु ले। ये बात भू लना मत।"

ररतू ने कहा और िोन काट कदया। उसने बे ड पर कबखरे हुए काग़जातों की तरि
दे खा और किर उसकी ऩिर किराज िाली तस्वीर पर पडी। उस तस्वीर को एक
तरि रख कर बाॅकी सारी ची़िें उसने उठा कर िापस उसी लाॅकर के अं दर रख
दी और आलमारी बं द कर दी। किराज िाली तस्वीर को तककये के नीचे सरका िह
बे ड से नीचे उतरी और अपने कपडे उतारने लगी। कुछ ही दे र में िह कसिग पै न्टी और
ब्रा में थी। कपडे उतारने में उसे थोडी तक़लीि हुई थी। क्ोंकक पीठ पर चाकू का
लछा चीरा आज ही का तो था। िह ब्रा पै न्टी में ककसी हालीिु ड की सु पर माॅडल से
कम नही ं लग रही थी। उसने तु रंत ही बाथरूम की तरि रुख ककया। बाथरूम से
िेश होने के बाद िह पु नः कमरे में आई और दू सरे कपडे पहन कर िह कमरे से
बाहर कनकल गई। बे ड से मोबाइल िोन उठाना नही ं भू ली थी िह। पीछे साइड कमर
में सकिग स ररिावर छु पा हुआ था उसके।

कुछ ही दे र में िह डायकनं ग हाल में पहुॅच कर एक कुसी पर बै ठ गई।


"माॅम अगर खाना रे डी हो तो जल्दी से दे दीकजए मु झे।" उसने ककचे न की तरि मु ह
करके ़िरा ऊची आिा़ि में कहा था।
"बस दो कमनट बे टी।" ककचे न से प्रकतमा की आिा़ि आई।

ठीक दो कमनट बाद ही ररतू के सामने बडी सी टे बल पर एक थाली रख दी गई। थाली


लाने िाली नै ना थी।
"तो अकेले रहने से उकता गई हमारी पु कलस िाली ररतू बे टी?" नै ना ने ़िरा मु स्कुराते
हुए कहा था।

"कुछ ची़िों के कलए तन्हाॅई सबसे अच्छी होती है बु आ।" ररतू ने रोटी का एक
कनिाला तोडते हुए कहा___"अगर यही तन्हाई हमें काटती है तो यही तन्हाई कभी
कभी हमें बडा सु कून भी दे ती है।"

"ओहो क्ा बात कही है तु मने ।" नै ना ने हैरानी से कहा___"इतनी गहरी बात यू ॅ ही
तो तु म्हारे कदमाग़ में नही ं आई होगी? आई नो कुछ तो िजह है इसकी। इस कलए
अगर उकचत समझो तो अपनी इस बु आ को बताओ किर।"

"़िरूर बताऊगी बु आ।" ररतू ने अजीब भाि से कहा___"पर आज नही ं। पहले मैं खु द

382
भी तो इसकी िजह समझ लू ॅ। आकखर मु झे भी तो समझ आए कक इतनी गहरी बात
मेरे कदमाग़ में आई कैसे ? क्ोंकक ये सब बातें तो उनके ही कदमाग़ में आती हैं जो ़िरा
गंभीर तबीयत का होता है किर सबसे अलग रहना पसं द करता है।"

"ओहो अनादर िन।" नै ना मु स्कुराई___"सच सच बता ककसी लडके से कोई चक्कर


िक्कर तो नही ं चल गया? िै से जहाॅ तक मैं तु झे समझती हूॅ तो ऐसा प्वाकसबल है
नही ं। कोई पागल ही होगा जो तु मसे प्यार का राग अलापे गा। िरना अपने हाॅथ पै र
की हकड्डयाॅ तो सबको प्यारी ही होती हैं।"

"व्हाट डू यू मीन बु आ?" ररतू की ऑखें िैल गई___"मतलब आप ये समझती हैं कक मैं
कोई बैं कडड क्वीन हूॅ जो ककसी की भी हकड्डयाॅ तोड दू ॅगी?"
"अरे तु म तो नारा़ि हो गई मेरी डाल।" नै ना ने हस कर कहा___"मेरा िो मतलब नही ं
था रे । आई िाज जस्ट कककडं ग कडयर।"

"कोई बात बे िजह ही मुख से नही ं कनकला करती बु आ।" ररतू सहसा गंभीर हो
गई__"हर बात के पीछे उसका कोई न कोई मतलब भी कछपा होता है। और ये बात
भी आपने मेरे कैरे क्टर को दे ख कर ही कही है । मैं मानती हूॅ बु आ कक मु झे लडके
लडककयों के बीच की ये चोंचले बा़िी शु रू से ही पसं द नही ं थी मगर ये भी सच है बु आ
कक मेरे सीने में भी एक कदल है। जो धडकना जानता है। उसको भी ये एहसास होता
है कक प्यार क्ा है और नफ़रत क्ा है?"

नै ना कुछ बोल न सकी बल्कि आश्चयग से ररतू को दे खती रह गई। उसे अहसास हुआ
कक उसकी बडी भतीजी आज गंभीर है। और शायद बहुत ज्यादा गंभीर है। पर ककस
कलए ये उसे समझ न आया।

"क्ा बातें हो रही हैं बु आ भतीजी के बीच ़िरा मुझे भी बताओ?" प्रकतमा ने ककचे न से
आते हुए कहा था।
"कुछ नही ं माॅम।" ररतू ने सहसा सामान्य होकर कहा___"बु आ पू छ रही थी कक अब
रात में मैं कहाॅ जा रही हूॅ?"

"क्ा???" प्रकतमा तो चौंकी ही ले ककन नै ना उससे ज्यादा चौंकी थी, जबकक प्रकतमा ने
कहा___"तु म इस िक्त अब कहाॅ जा रही हो?"
"कुछ ़िरूरी काम है माॅम।" ररतू ने सामान्य भाि से कहा___"आप तो जानती हैं
कक पु कलस की नौकरी में ककसी भी िक्त कही ं भी जाना पड जाता है।"

"मुझे तो तु म्हारा ये पु कलस की नौकरी करना शु रू से ही नापसं द था बे टी।" प्रकतमा ने

383
बु रा सा मुह बना कर कहा__"मगर मेरी बात मानता ही कौन है यहाॅ? कजसे जो
करना है करे ।"
"शु रू से आपकी और डै ड की बात मानते ही तो आ रहे हैं माॅम।" ररतू के मुह से
जाने ये कैसे कनकल गया__"अब अगर एक काम मैने अपनी खु शी से कर कलया तो
क्ों ऐतरा़ि हो गया आपको?"

"क्ा मतलब है तु म्हारा?" प्रकतमा ने हैरानी से ऑखें िैला कर कहा___"और ये ककस


लहजे में बात कर रही हो तु म? कदमाग़ तो सही है ना तु म्हारा?"
"पता नही ं माॅम।" ररतू ने हाॅथ धोते हुए अजीब भाि से कहा___"कभी कभी
सोचती हूॅ कक इसी हिे ली के अं दर कभी पररिार के सारे लोग ककतना हसी खु शी से
रहा करते थे । मगर जाने ऐसा क्ा हो गया कक आज इस हिे ली में कसिग हम रह गए।
बाॅककयों को ये ़िमीन खा गई या किर आसमान कनगल गया कुछ समझ ही नही ं
आया आजतक?"

"आज ये क्ा हो गया है तु झे?" प्रकतमा की हिा कनकल गई थी अं दर ही अं दर,


बोली__"ये कैसी िालतू की बातें कर रही है तू ?"
"कमाल है न माॅम?" ररतू ने िीकी सी मु स्कान के साथ कहा___"आज आपको
अपनी ही बे टी की बात िालतू लग रही है। सु ना है कक कोई अगर ग़लती कर दे तो
उसे आकखर में माफ़ ही कर कदया जाता है। मगर कुछ ऐसे भी बे चारे बदनसीब होते
हैं कजनको कोई माफ़ भी नही ं करता। सु ना तो ये भी है माॅम कक पररिार अगर
ककसी कारर् से एक दू सरे से अलग हो जाता है या कबखर जाता है तो पररिार के
मुल्कखया हर सं भि यही प्रयास करता है कक उसका कबखरा हुआ पररिार किर से जुड
जाए। कदाकचत तभी एक सच्चे मुल्कखया के कदल को सु कून कमलता है। कहते हैं कक हर
पररिार के बीच कभी न कभी कोई न कोई अनबन हो ही जाती है मगर उसका
मतलब ये तो नही ं होता न कक किर उनसे हर ररश्ा ही तोड कलया जाए? या किर उस
अनबन को दू र ही न ककया जाए।"

"तू आकखर कहना क्ा चाहती है?" प्रकतमा ने तीखे भाि से कहा___"क्ा चल रहा है
ते रे मन में? अगर कोई बात है तो उसे साि साि कह। यूॅ घुमा किरा कर कहने का
क्ा मतलब है ते रा?"

"जाने दीकजए माॅम।" ररतू कुसी से उठते हुए बोली___"मैं क्ा कह रही हूॅ िो आप
समझ तो गई ही हैं न? किर साि साि कहने की क्ा ़िरूरत है? खै र चलती हूॅ
माॅम। बाय कडयर बु आ जी।"
"बाय बे टा।" नै ना ने रुॅधे हुए गले से कहा। उसकी ऑखों में ऑसू तै र रहे थे ।

384
"पु कलस की नौकरी क्ा करने लगी इसका सारा कदमाग़ ही खराब हो गया है।"
प्रकतमा भु नभु नाते हुए टे बल से थाली उठाते हुए कहा___"पता नही ं कहाॅ से ऐसी
बे कार की बातें सीख कर आती है ये?"

"सच ही तो कह रही थी िो।" नै ना ने गंभीरता से कहा___"भला ऐसा ककस पररिार में


होता है भाभी कक अगर पररिार में ककसी से कोई ग़लती हो जाए तो उसे कभी माफ़
ही न ककया जाए? ककतनी खु कशयाॅ थी इस घर में। हम सब ककतना हसी खु शी से
रहते थे सबके साथ। पररिार में सबकी एकता को दे ख कर माॅ बाबू जी ककतना खु श
थे । मगर आज इस घर में न िो खु कशयाॅ हैं और न ही खु कशयाॅ िैलाने िाला
पररिार का कोई बाॅकी सदस्य। किजय भइया की मौत क्ा हुई मानो इस घर से
खु कशयाॅ ही चली गई। माॅ बाबू जी आज भी कोमा से बाहर नही ं आए। अगर कोई
पू छे कक इस सबका कजम्मेदार कौन है तो ककसका नाम कलया जाए?"

"अभी एक यही राग अलाप कर गई है और अब तु म भी यही राग अलापने लगी


नै ना?" प्रकतमा की भृ कुटी तन गई__"और ये क्ा कह रही हो तु म कक इस सबका
कजम्मेदार कौन है और ककसका नाम कलया जाए? इस बात का क्ा मतलब हुआ? क्ा
तु म ये कहना चाहती हो कक इस सबके कजम्मेदार हम हैं?"

"मैने ऐसा तो नही ं कहा भाभी।" नै ना ने अधीरता से कहा___"पर एक बात तो सही है


न कक जो पररिार का बडा सदस्य होता है उसे सबको एक साथ में ले कर चलना
चाकहए? घर के मुल्कखया तो अजय भइया और आप ही हैं। गाॅि समाज के लोग तो
यही कहेंगे न कक छोटे अगर नासमझ थे या कोई ग़लती कर रहे थे तो ये बडे का ि़िग
था कक छोटे को उसकी ग़लती पर एक बार माफ़ ही कर दे ना चाकहये था। लोग तो
कहेंगे न भाभी कक ककसी ग़लती की इतनी बडी स़िा नही ं दे ना चाकहए कक छोटे से हर
ररश्ा तोड कर उसे घर से बे दखल ही कर कदया जाए।"

"कुछ ग़लकतयाॅ ऐसी होती हैं नै ना कजनके कलए कोई मु आफ़ी नही ं होती।" प्रकतमा ने
ठोस लहजे में कहा___"बल्कि अगर उन ग़लकतयों को ऩिरअं दा़ि कर कदया जाए तो
उससे सब कुछ बरबाद हो जाता है। तु म्हारे भइया ने क्ा नही ं ककया इस पररिार के
लोगों को एक करने के कलए मगर हुआ क्ा? नै ना, हमारी अच्छाईयाॅ और
कुबागकनयाॅ कोई नही ं दे खेगा बल्कि कसिग यही दे खेगा कक हम पररिार को एक नही ं
कर पाए।"

"कल पडोस की िो कमला भाभी मु झे कमली थी आते िक्त।" नै ना ने कहा___"मुझे


दे ख कर उसने आिा़ि दी मु झे। उससे थोडी दे र बातें हुई। उसकी बातों का असल
मुद्दा हमारे पररिार से ही था।"

385
"क्ा कह रही थी िो?" प्रकतमा के कान खडे हो गए।
"कह रही थी कक मझली ठकुराईन(गौरी) तो ऐसी थी ही नही ं।" नै ना ने कहा___"िो
दोनो कमयां बीिी तो बडे धमागत्मा इं सान थे । दू र दू र तक उनकी अच्छाई और उनके
उच्च आचरर् की चचाग होती थी। आज भी कोई यकीन नही ं करता कक मझली
ठकुराइन ने ऐसा कोई नीच काम अपने जेठ के साथ ककया होगा।"

"उस कलमुही को क्ा पता?" प्रकतमा ने सहसा गुस्से में कहा___"िो क्ा यहाॅ दे खने
आई थी कुकतया? जबकक मैने अपनी ऑखों से दे खा है। पहले भी कई बार मैने गौरी
को ऐसे ही चोरी चोरी अजय के कमरे में जाते दे खा था। मैने इस बारे में अजय से भी
बताया था और अजय से ये भी कहा था कक उससे दू र रहना। पकत मर गया है तो अब
उससे अपने कजस्म की गरमी बदागस्त ही नही ं हो रही है। इसी कलए अब िो मेरे पकत
पर डोरे डाल रही है। एक कदन तो मैने अपने कमरे ही उसे सारी उतारे हुए अपने
भोसडे में उगली करते हुए पकड कलया था। िो तो अच्छा था कक मैं कमरे में पहुॅच
गई थी िरना अगर कही ं तु म्हारे भइया पहुॅच गए होते तो क्ले श ही हो जाना था उस
कदन। मुझे समझ नही ं आ रहा था कक गौरी को उसकी इस नीच हरकत करने से कैसे
रोंकूॅ? ककसी से कह भी नही ं सकती थी। क्ोंकक कोई मेरी बातों का यकीन ही नही ं
करता। उल्टा मु झ पर ही दोषारोपर् लग जाता। इस कलए मैने सोचा कक इस बार जब
गौरी ऐसी कोई हरकत करे गी तो मैं उसकी इस नीचता का सबू त तै यार करूॅगी।
अजय कशिा के कलए एक कैमरा लाए थे । कुछ कदन बाद ही मुझे किर से गौरी की
हरकत का पता चल गया। मैं जब कमरे में गई तो अं दर से आिाजें आ रही थी। मैने
कमरे को हिा अं दर की तरि धकेल कर दे खा तो गौरी अजय के ऊपर चढी हुई
थी। जबकक अजय उसे डाॅटे जा रहे थे और उसे अपने से दू र कर रहे थे । मैने सोचा
इससे बडा सबू त और क्ा होगा। मैं तु रंत कशिा के कमरे में गई और उसका कैमरा
उठा लाई। अपने कमरे के दरिाजे के पास पहुॅच कर मैने अं दर चल रहे काण्ड की
िोटो खी ंची। मैं और भी िोटो खी ंचना चाहती थी। मगर कैमरे में रील खत्म हो चु की
थी। शायद कशिा ने पहले ही सारी रील खत्म कर दी थी। शु कर था लास्ट की एक
बची थी। उसमें एक ही िोटो खी ंची मैने। उसके बाद किर मैं अं दर गई और उस
गौरी की चु कटया पकड कर उसे अजय के ऊपर से खी ंच कर नीचे लाई। मैं बहुत गुस्से
में थी इस कलए पहले मैने उसे िही ं पर पीटा किर बाहर ले कर आई। साली ककतनी
कमीनी और कनलग ज्ज थी कक िै सा नीच काम करने के बाद भी उल्टा यही बोले जा रही
थी कक मैने कुछ नही ं ककया मुझे िसा रहे हैं ये सब कमलकर। तो ये थी उस जलील
और कुलटा औरत की करतू त।"

नै ना प्रकतमा की ये लम्बी चौडी बात सु न कर है रान नही ं हुई क्ोंकक ये बात प्रकतमा
पहले भी सबसे बता चु की थी। पर उसे न पहले उसकी बात पर यकीन था और ना ही

386
आज यकीन हो रहा था। मगर िो इसके ल्कखलाफ़ कुछ कह नही ं सकती थी। क्ोंकक
उसके ल्कखलाफ़ कुछ बोलने के कलए भी कोई न कोई आधार के रूप में सबू त चाकहए
था जो कक उसके पास भला कैसे हो सकता था। नै ना और सौम्या दोनो बहनों को तो
ये सब बाद में बताया गया था।

"ये बात तो िो कमला भाभी भी कह रही थी कक मझली ठकुराईन को जान बू झ कर


िसाया गया था।" नै ना ने कहा___"िो कह रही थी गाॅि का हर ब्यल्कक्त यही कहता
है कक उन्हें िसाया गया था।"

"भला उसे कोई क्ों िसाएगा नै ना?" प्रकतमा ने झुॅझला कर कहा___"िो हमारी
कोई दु श्मन तो नही ं थी और ना ही हमारा उससे कोई बै र था। किर भला उसे क्ों
कोई जान बू झ कर िसाएगा? गाॅि के लोगों को तो बस बातें बनाना आता है नै ना।
ये ककसी के भी बारे में अच्छा नही ं सोच सकते ।"

"खै र जाने दीकजए भाभी।" नै ना भला अब क्ा कहती___"सब कुछ समय पर छोड
दीकजए। जो जैसा करे गा िो उसका िल तो पाएगा ही।"
"ये अजय अब तक नही ं आए।" प्रकतमा ने पहलू बदला___"िो भी आ जाते तो हम सब
कमल कर कडनर कर ले ते।"
"आते ही होंगे भाभी।" नै ना ने कहा___"िैक्टरी को ररन्यू कराने में कािी ब्यस्त हैं िो
आजकल।"

इनके बीच बस ऐसी ही थोडी दे र बातें होती रही। कुछ दे र बाद ही अजय कसं ह आ
गया था।
______________________

उस िक्त रात के नौ बजे थे जब ररतू पु नः अपने िामगहाउस पर पहुॅची थी। लोहे


िाले गेट पर दो बं दूखधारी ब्यल्कक्त खडे । ररतू की कार को दे खते ही दोनो ने गेट को
खोल कदया। गेट के खु लते ही ररतू ने कार को गेट के अं दर की तरि बढा कदया और
किर िो सीधा पोचग में ही रुकी। कार से बाहर आ कर ररतू ने कार को लाॅक ककया।
तब तक िो दोनो बं दूखधारी भी आ गए।

"क्ा समाचार है काका?" ररतू ने एक से पू छा।


"समाचार बकढया है कबकटया।" काका ने कहा___"जैसा तु मने कहा था िै सा ही कर
कदया है हमने । िो सब िही ं तहखाने मा रस्सी से बधे हुए हैं। कुछ दे र पहले ही हम
जाकर दे खे थे तो सब होश में आ गए थे । सबने जब खु द को अजनबी जगह पर इस
तरह रल्कस्सयों से बधा हुआ पाया तो सब के सब रोने लगे कबकटया। हमका दे ख के
पू छन लगे कक ये हमें कहाॅ ले आया गिा है और ई तरह रस्सी से काहे बाॅथा गिा

387
है?"

"अच्छा, चलो किर उनको जिाब भी दे दे ते हैं न काका।" ररतू ने ़िहरीली मुस्कान के
साथ कहा___"क्ा किचार है आपका?"
"हम तो एक ही बात जानत हैं कबकटया कक ऐसे ससु र के नाकतयों को बीच चौराहे पर
नं गा करके गोली मार दैं ।" काका ने गमगजोशी से कहा___"ऐसे लोगन का जीयै का
कौनि अकधकार नही ं है।"

"बात तो आपकी कबलकुल दु रुस्त है काका।" ररतू ने कहा___"ले ककन ये तो बहुत


आसान मौत होगी न उन सबके कलए?"
"हाॅ ई बात तो है कबकटया।" शं कर काका ने कहा___"तो किर ऐसा करत हैं कक
ससु रों को तडपा तडपा के मारते हैं।"

"शं कर काका ये तो आपने कबलकुल ठीक कहा।" ररतू मु स्कुराई___"हररया काका तो


एक ही बार में गोली मार दे ने को कह रहे थे ।"
"अरे ऊ ता हम जल्दबा़िी मा अउर एकदम से गुस्से मा कह कदये रहे कबकटया।"
हररया काका ने झेंपते हुए कहा___"िरना ई बात ता हम ई सरिा शं कर से पहले ही
कह दे ते।"

"चलो कोई बात नही ं काका।" ररतू ने कहा__"अब तो कह कदये न आप? अब चलो
उनको दे खे ़िरा।"
"अउर कुछू साथ मा ले के चलैं का है का कबकटया?" हररया काका झट बोल पडा था।
"और क्ा ले चलना है भला?" ररतू चकराई।
"अरे बाल्टी मा पानी ले चलत हैं ना कबकटया।" हररया ने कहा__"ऊ का है ना, हमका
अइसन लागत है कक उहाॅ जाइके तु म उन सबको बहुतै धुनाई करोगी। ता थु नाई मा
कउनौ सारे बे होश होई गै तो? उनका होश मा लाने की खाकतर पानी ता चाकहए ना
कबकटया।"

"क्ा बात है काका।" ररतू हस पडी___"क्ा कदमाग़ लगाया है आपने । मानना पडे गा
आपको। कदमाग़ बहुत ते ़ि है आपका।"

ररतू की प्रसं सा पाने से हररया काका तन कर चलने लगा। िह शं कर को इस तरह


दे खने लगा था जैसे अब उसके सामने उसकी कोई औकात ही नही ं है । शं कर उसे
इस तरह अकडते हुए चलते दे ख बु रा सा मुह बना कर रह गया।

"पर काका।" ररतू ने कहा___"मुझे लगता है कक आपका ये कदमाग़ काकी की िजह से

388
ते ़ि हुआ है।"
"अरे का बात करती हो कबकटया?" हररया काका ने नागिारी भरे भाि से कहा___"ऊ
ससु री तो शु रू से ही कदमाग़ से पै दल है। हमरे साथ रह रह के ही तो थोडा बहुत
कदमाग़ आ गिा है उसमे।"

"ओए तू ने भाभी जी को ससु री बोला?" शं कर ने झडप कर कहा हररया से ___"रुक


अभी जा के बताता हूॅ उनसे ।"
"अबे रुक जा बे खबीस।" हररया काका की सारी अकड ते ल ले ने चली गई___"सरिा
मरिाएगा का हमका?"

"हाॅ तो भाभी जी को ससु री क्ों बोला?" शं कर अभी भी उसे घुडकता बोला__"और


क्ा बोला कक ते रे साथ रह रह कर ही उनमें थोडा बहुत अकल आई है। साला झॅ ू ठा
कही ं का।"
"तू ना अब मुह बं द ही कर ले समझा।" हररया भी ताि खा गया___"िरना उल्टा तु झे
ही कपटिा दू ॅगा मैं उस ससु री से ।"

"िो कैसे भला?" शं कर बु री तरह हैरान।


"अरे हम कह दें गे कक ये शं करिा तु झे कहत रहा कक अब भौजी ससु री बु ड्ढी होई गई
है।" हररया ने कहा___"अउर ये भी कह दें गे कक मोटी भै स जइसन होई गई है।"

"ओये ये मैने कब कहा?" शं कर परे शान।


"नही ं कहा ता का हुआ?" हररया बोला__"हम ता कह दें गे न कक ई शं करिा अइसनै
कहत रहा।"
"दे खा ररतू कबकटया।" शं कर ने मानो ररतू से गु हार लगाई___"ये जबरदस्ती मु झे अपनी
जोरू से कपटिाना चाहता है।"

"कचन्ता मत कीकजए काका।" ररतू ने कहा___"कसिग आप ही बस नही ं कपटें गे बल्कि


आपके साथ साथ हररया काका भी काकी से कपटें गे।"
"अरे ई का कहत हो कबकटया?" हररया काका ने हडबडा कर कहा___"हम भला काहे
कपटें गे ऊ ससु री से ?"

"िो इस कलए कक मैं काकी से बताऊगी कक काका आपको जब दे खो तब कदमाग़ से


पै दल और ससु री ससु री कहते रहते हैं।" ररतू ने कहा___"आपकी तो कोई इज्ज़ित ही
नही ं करते ये दोनो। किर दे खना काका, कैसे आप दोनो का हाल बनाएॅगी काकी।"
"अरे हमका माफ़ कर दो कबकटया।" काका ने दोनो हाॅथ जोड कलए बोला___"ई सब
ना ई शं करिा की कारर् होई जात है। िरना हम ता कबं कदया की बहुत इज्जत करत

389
हैं। ऊ ता हमरी जान है, प्रार् प्यारी है कबकटया।"

"अच्छा छोडो ये सब।" ररतू ने कहा__"अब चकलये उन सबका हाल चाल भी तो


दे खना है।"
"ठीक है कबकटया चलो।" हररया ने कहा और किर िो ररतू के पीछे चल कदया। जबकक
शं कर लोहे िाले गेट की तरि बढ गया।

कुछ ही दे र में ररतू और हररया काका तहखाने में पहुॅचे । तहखाना कािी बडा था।
िहाॅ पर सामान तो कुछ नही ं था बस ़िमीन पर सीलन जैसा प्रतीत होता था। दीिार
के चारो तरि बल्ब लगे हुए थे । एक तरि की दीिार से सटे िो चारो रस्सी में बधे
खडे थे । सभी के हाॅथों को ऊपर करके बाॅधा गया था और पै रों को नीचे किश्राम
की पोजीशन में चारों लडकों के पै रों से जोडते हुए बाॅधा गया था। ले ककन उनमें से
कोई भी अपने पै रों को कहला नही ं सकता था। दोनो तरि की दीिारों पर एक एक
तरि से पै रों में बधी रस्सी को खी ंच कर बाॅधा गया था।

उन चारों की हालत बहुत ही अजीब हो गई थी। डर और दहशत से उन सभी का बु रा


हाल था। पहले से ही ररतू की मार से लहू लु हान थे िो चारो और अब इस डर ि भय
ने उनकी हालत खराब कर दी थी जाने िो यहाॅ कैसे और क्ों लाए गए हैं। ये तो िो
भी समझ चु के थे कक उनके साथ कुछ बहुत ही बु रा होने िाला है।

तहखाने में दो तरि के बल्ब जल रहे थे । इस कलए तहखाने में कािी रोशनी थी।
पसीने तथपथ उन चारों के चे हरों को बखू बी दे खा जा सकता था। ररतू और हररया
काका जैसे ही तहखाने में पहुॅचे तो उन चारो ने उनकी आहट से अपनी अपनी गदग न
उठा कर सामने दे खा। ररतू पर ऩिर पडते ही सबकी कघग्घी बध गई। चे हरे पर डर
के मारे हल्दी सी पु त गई। जू डी के मरी़ि की तरि एकदम से काॅपने लगे थे िो
चारो।

"काका इन लोगों की खाकतरदारी नही ं की क्ा आपने ?" ररतू ने उन चारों को एक


एक ऩिर दे खने के बाद हररया से कहा था।
"अरे हमरा मन ता बहुत रहा कबकटया।" हररया ने कहा___"ले ककन ऊ का है न हमका
परमीशनिा ही कमला था। िरना हम ता इन ससु रन की अइसन पे लाई करते कक ई
ससु रे यही ं पषर टट्टी कर दे ते।"

"चलो अच्छा हुआ काका जो मैने आपको परमीशन नही ं दी थी।" ररतू ने
कहा___"िनाग अगर ये टट्टी कर दे ते तो साि भी तो आपको ही करना पडता न?"
"अरे हाॅ कबकटया।" हररया ने हैरानी से कहा___"ई ता हम सोचे ही नही ं। पर कउनि

390
बात नही ं कबकटया। हम ता साि न करते ले ककन ई सब ससु रे लोग जरूर साि
करते । अउर ना करते तो हम ई ससु रन का अउर अच्छे से पे लते ।"

ररतू ने हररया की बात पर ज्यादा ध्यान नही ं कदया बल्कि िह ऑखों में आग कलए उन
चारो की तरि बढी। उन सबकी हालत बडी ही दयनीय हो गई। उन सबकी टाॅगें
इस तरह काॅपने लगी थी जैसे उन पर अब उनका कोई ़िोर ही न रह गया हो।

"क्ा सोचा था तु म सबने ? ररतू के मुख से शे रनी की सी गुरागहट कनकली___"इतने


सारे गुनाह करके तु म सब बडे म़िे में रहोगे?? कोई तु म्हारा बाल बाॅका कर ही नही ं
सकता?"

"ह हमें माफ़ कर दो।" सू रज चौधरी ने कगडकगडाते हुए कहा___"हम ककसी के साथ
कोई भी ग़लत काम नही ं करें गे अब।"
"करोगे तो तब जब करने के कलए क़िंदा बचोगे ।" ररतू ने बिग की माकनन्द ठं डे स्वर में
कहा___"अब तो तु म चारों का रऱििे शन हो गया है नरक में जाने का। ले ककन कचन्ता
मत करो क्ोंकक नरक में यहाॅ से ज्यादा तु म लोगों को यातनाएॅ नही ं सहनी
पडे गी।"

"नही ं नही ं।" रोकहत बु री तरह रो पडा__"हमें कुछ मत करो प्ली़ि। हम मरना नही ं
चाहते । आ आकखर ककस िजह से तु म हमारे साथ ये सब कर रही हो? हमें यहाॅ से
जाने दो इं िेक्टर िरना तु म नही ं जानती कक हमें इस तरह यहाॅ बं धक बना कर
रखने से तु म्हारा क्ा अं जाम हो सकता है?"

"और तु म्हें भी ये अं दा़िा नही ं है लडके कक मैं तु म सबके बापों के साथ क्ा कर
सकती हूॅ?" ररतू ने सहसा रोकहत के कसर के बाल को मुिी मे पकड कर खी ंचते हुए
कहा___"अगर मैं चाहूॅ तो इसी िक्त तु म्हारे बापों बीच चौराहे पर नं गा करके
दौडाऊ। मगर किलहाल ये बाद में अभी तो तु म सबके साथ ही कहसाब ककताब करना
है।"

"हराम़िादी कुकतया साली हमारे बाप को बीच चौराहे पर नं गा दौडाएगी तू ।" सहसा
सू रज चौधरी गुराग उठा___"एक बार मेरे हाॅथ पै र खोल दे किर दे ख ते रा क्ा हस्र
करता हूॅ मैं?"
"दे खा था सु अर की औलाद।" ररतू नोंकदार बू ट की ठोकर ़िोर से सू रज के पे ट में
मारते हुए कहा। सू रज के मुख से हलाल होते बकरे की सी चीखें कनकली जबकक ररतू
बोली__"उस कदन ते री मदागनगी भी दे खी थी। तु म सबकी दे खी थी। उसी का नतीजा
है कक आज यहाॅ बधे पडे हो।"

391
"हमें छोड दो इं िेक्टर।" ककशन ने गु हार लगाते हुए कहा___"आकखर हमने ककया
क्ा है? ककस कलए हमें यहाॅ लाकर हमारे साथ ये सब कर रही हो तु म?"
"काका, इसे पता ही नही ं है कक इसने ककया क्ा है?" ररतू ने कहा___"ये साला ऐसा
शरीि बन रहा है बहनचोद जैसे इसने कभी ककसी ची ंटी तक को चोंट न पहुॅचाई
हो।"

"़िुबान सम्हाल कर बात करो इं िेक्टर।" सहसा सू रज कह उठा___"और याद रखो


कक अगर हममें से ककसी को भी कुछ हुआ तो उसका खाकमयाजा तु म्हें और तु म्हारे
पू रे खानदान को भु गतना होगा।"

"मेरे खानदान की तू किक्र मत कर।" ररतू ने कहा___"मेरे खानदान तक जाने की


़िरूरत नही ं है। क्ोंकक ते रे और ते रे बाप को कुिे की मौत मार दे ने के कलए मैं ही
कािी हूॅ। तु म चारों को ऐसा तडपा तडपा कर मारूॅगी कक मौत की भीख माॅगोगे
मगर मौत दू ॅगी नही ं आसानी से ।"

"पर ये तो बताओ इं िेक्टर।" अलोक िमाग के कतरपन काॅप गए, बोला___"हमने


ऐसा ककया क्ा है कजसके कारर् तु म हमारे साथ ऐसा ब्यौहार कर रही हो?"
"हाॅ हाॅ बताती क्ों नही ं हमें?" ककशन ने अलोक की बात में कहा___"हमें भी तो
पता चले कक हमने ऐसा ककया क्ा है?"

"किधी चौहान याद है???" ररतू ने अलोक का कगरहबान पकड कर कझंझोडा___"िही


किधी चौहान जो तु म लोगों के साथ ही काॅले ज में पढती थी, और कजसके साथ तु म
चारों ने कमल कर गैंग रे प ककया था? कुछ याद आया या किर इतना जल्दी भू ल गए
सब?"

चारों के कदलो कदमाग़ में जैसे किष्फोट हुआ। कदमाग़ की बिी एक साथ सबकी जल
उठी। अब समझ आया था उन्हें कक ये सब उनके साथ क्ों हो रहा था। सब कुछ
समझ में आते ही चारों के चे हरे पीले पड गए। ककसी के भी मुख से बोल न िूटा।

"ककसी की बहन बे कटयों की इज्ज़ित से इस तरह खे लने का बहुत शौक है न?" ररतू ने
गुरागते हुए कहा___"ककतनी लडककयों की क़िंदकगयाॅ बरबाद कर दी है तु म सब हराम
के कपल्लों ने । उन सब लडककयों की बरबादी का कहसाब दे ना होगा तु म लोगों को।"

"ये सब झठ ू है।" सू रज पू री शल्कक्त से चीखा था, बोला___"सरासर झॅ


ू ठ है इं िेक्टर।
हम में से ककसी ने भी उसके साथ कुछ नही ं ककया। तु म बे िजह ही हमें इस तरह
यहाॅ पकड कर ले आई हो। हमने कुछ नही ं ककया। हमें छोड िरना बहुत
पछताओगी तु म दे ख ले ना।"

392
"तू साले रं डी की औलाद मु झे पछताने का बोल रहा है बहनचोद।" ररतू ने सू रज के
पे ट में दो चार घू ॅसे एक साथ ही जड कदये । सू रज बु री तरह ददग से कबलकबलाया था,
जबकक ररतू ने कहा___"ते री भी एक बहन है न। मु झे सब पता है। ते री बहन का नाम
रचना चौधरी है न। सु ना है िो बहुत ही जिान है। तू कचन्ता मत कर बहुत जल्द िो ते रे
सामने यही ं पर होगी और तु म चारो खु द एक एक करके उसका रे प करोगे।"

"इं िेक्टर।" सू रज गीदड की तरह चीखा___"अगर तू ने मेरी बहन को हाॅथ भी


लगाया तो दे ख ले ना।"
"क्ों कपछिाडे में आग लगी क्ा ते रे?" ररतू ने एक झन्नाटे दार थप्पड सू रज के गाल
पर रसीद करते हुए कहा___"और जब तू दू सरों की बहन बे कटयों को बरबाद करता
तब क्ा म़िा आता है मादरचोद?"

"कबकटया हम का कहत हैं कक ये बाल्टी का पानी जो हम ले के आए हैं।" सहसा हररया


काका ने कहा___"ऊ का बे कार मा ले के आए हैं? हम ता सोचत रहे कक तु म इन
ससु रों को मार मार कर बे होश करती जाओगी अउर हम इन ससु रन का ई पानी से
होश मा ले आते रहेंगे।"

"कचन्ता मत करो काका।" ररतू गुरागई__"बहुत जल्द ऐसा भी होने िाला है।
"िेर ता ठीक है कबकटया।" काका ने कहा___"अगर कहौ ता हमहू इन ससु रन का जी
भर कै धुन दे ई? ऊ का है ना हमरा हाॅथ मा बहुतै खु जली होई रही है।"

"तो ठीक है काका आप ही अपने हाॅथ की खु जली कमटा लो।" ररतू ने कहा___"मैं
इन कुिों से कल कमलू ॅगी। तब तक आप इनकी अच्छे से खाकतरदारी करना। बस
इतना याद रहे कक इनमें कोई भी मरने न पाए।"

"अइसनै होई कबकटया।" काका ने खु श होते हुए कहा___"हम ई ससु रन केर अम्मा
चोद दे ब। तु म किकर ना करो कबकटया। अब जाओ तु म इहाॅ से । अब ई.....कड...अरे
कबकटया ऊ का कहत हैं एखा...? अरे हाॅ याद आई गा। अब ई कडपारटमेंट हमरा है।
हाॅ कडपारटमेंट।"
"कडपारटमेंट नही ं काका उसे कडपाटग मेन्ट कहते हैं।" ररतू ने मु स्कुराकर कहा।

"अरे हाॅ कबकटया उहै।" काका ने कहा___"तु म समझ गई हौ ना। ई है बहुत है।"
"अच्छा काका मैं चलती हूॅ।" ररतू ने कहा__"आप सम्हाल ले ना ओके?"
"अरे तु म कउनि कचन्ता न करा कबकटया ई ता हमरे बाएं हाथ का चीज है।" काका ने
गिग से कहा___"ई ससु रन का मार मार के हम इनकर टट्टी कनकाल दे ब। अउर का।"

393
ररतू हररया काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने से बाहर कनकल गई। जबकक
ररतू के जाते ही काका ने तहखाने का गेट बं द ककया और किर अपने दोनो हाॅथ
मलते हुए रोकहत मेहरा के पास पहुॅचा।

"का रे मादरचोद।" काका ने कहा___"तोरे केतनी अम्मा है अउर केतने बाप हैं?"
"तमी़ि से बात करो ओके।" रोकहत डर तो गया था ले ककन कितरत के चलते बोल ही
गया था।
"तोरी माॅ की चू त मारूॅ ससु रे के।" काका के हाॅथ में जो मोटा सा लि था उसने
घुमा कर रोकहत की टाॅग में ़िोर से धमक कदया। रोकहत ददग से बु री तरह चीखने
कचल्लाने लगा। काका तो बहुत दे र से सब्र ककये बै ठा था। उसे इस बात का बे हद
गुस्सा भी था कक इन लोगों ने ररतू उल्टा सीधा भी बोला था।

हररया काका उन चारों पर कपल पडा। किर तो तहखाने में बस रोने और चीखने की
आिा़िें ही आ रही थी। हररया काका तब तक उन सबकी धुनाई करता रहा जब तक
कक उसका पे ट न भर गया था। धुनाई करने के बाद िह उन चारों को अधमरी हालत
में छोंड कर तहखाने से बाहर चला गया और बाहर से तहखाने को लाॅक कर कदया।

अपडे ट.........《 36 》

अब तक,,,,,,,,,

ररत़ू हररया काका की बात पर मु स्कुराती हुई तहखाने से बाहर वनकल गई। जबवक ररत़ू के
जाते ही काका ने तहखाने का गे ट बों द वकया और वफर अपने दोनो हाॅथ मलते हुए रोवहत
मे हरा के पास पहुॅचा।

"का रे मादरचोद।" काका ने कहा___"तोरे केतनी अम्मा है अउर केतने बाप हैं ?"
"तमीज से बात करो ओके।" रोवहत डर तो गया था ले वकन वफतरत के चलते बोल ही गया
था।
"तोरी माॅ की च़ू त मारूॅ ससुरे के।" काका के हाॅथ में जो मोटा सा लट्ठ था उसने घु मा
कर रोवहत की टाॅग में जोर से िमक वदया। रोवहत ददफ से बु री तरह चीखने वचल्लाने लगा।
काका तो बहुत दे र से सब्र वकये बै ठा था। उसे इस बात का बे हद गु स्सा भी था वक इन लोगोों
ने ररत़ू उल्टा सीिा भी बोला था।

394
हररया काका उन चारोों पर वपल पडा। वफर तो तहखाने में बस रोने और चीखने की आिाजें
ही आ रही थी। हररया काका तब तक उन सबकी िु नाई करता रहा जब तक वक उसका
पे ट न भर गया था। िु नाई करने के बाद िह उन चारोों को अिमरी हालत में छोोंड कर
तहखाने से बाहर चला गया और बाहर से तहखाने को लाॅक कर वदया।
________________________

अब आगे,,,,,,,,,
फ्लैशबैक अब आगे______
गौरी अभी ये सब बता ही रही थी कक सहसा डोर बे ल की आिा़ि से सबका ध्यान
भं ग हो गया। डोर बे ल की आिा़ि से ही उन सबको ये एहसास हुआ कक समय
ककतना हो चु का था। िरना डर ाइं गरूम में रखे सोिों पर बै ठे हुए उन्हें समय का
आभास ही न हुआ था। िो सब तो गौरी के द्वारा सु नाए जा रहे अतीत के ककस्सों में ही
डूबे हुए थे ।

"लगता है कक जगदीश भाई साहब आ गए हैं।" गौरी ने गहरी साॅस ले ते हुए


कहा__"जा गुकडया दरिा़िा खोल दे ।"
"जी माॅ।" कनधी ने भी गहरी साॅस ले कर कहा और सोिे से उठ कर मुख्य द्वार की
तरि बढ गई।

"रात के नौ बज गए हैं।" गौरी ने सामने दीिार पर लगी घडी पर दे खते हुए


कहा___"इस कहानी के चक्कर में रात का खाना बनाना भी रह गया अभय। चलो ये
कहानी अब कल बताऊगी। अभी खाना बना लू ॅ िटािट। जगदीश भाई साहब को
दस बजे तक खाना खाकर सो जाने की आदत है।"

"ठीक है भाभी आप जाइए।" अभय ने गंभीर भाि से कहा था। िो अभी भी उन


अतीत के दृष्यों में खोया हुआ लगा। उसके ऐसा कहने पर गौरी उठ कर ककचे न की
तरि बढ गई।

तभी डर ाइं गरूम में जगदीश ओबराय दाल्कखल हुआ। उसके पीछे पीछे ही कनधी भी आ
गई। जगदीश ओबराय की ऩिर अभय कसं ह पर पडी तो उसने बगल से रखे सोिे
पर बै ठे किराज की तरि दे खा।

"ये मेरे अभय चाचा जी हैं अं कल।" किराज ने जगदीश का आशय समझ कर
कहा___"आज सु बह करीब ग्यारह बजे के आस पास आए हैं।"
"ओह ये तो बहुत अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय के चे हरे पर खु शी के भाि

395
नु मायां हुए, किर उसने अभय की तरि दे खते हुए कहा___"कैसे हैं भाई साहब?"

अभय ने हिी मुस्कान के साथ पहले उसे नमस्ते ककया किर बोला___"जी मैं ठीक
हूॅ आप सु नाइये।"
"मैं तो बहुत ज्यादा ठीक हूॅ भाई साहब।" जगदीश ने हस कर कहा___"जब से ये
बच्चे और गौरी बहन यहाॅ आए हैं तब से क़िंदगी खु शहाल लगने लगी है। िनाग इतने
बडे बगले में नौकर चाकर रहने के बाद भी अकेलापन ही महसू स होता था।"

"ऐसा क्ों कहते हैं आप?" अभय कसं ह चौंका था___"इसके पहले अकेलापन क्ों
महसू स होता था आपको?"
"अरे भाई अब मेरे कसिा मेरा कोई था ही नही ं तो अकेलापन महसू स तो होगा ही।"
जगदीश ने कहा___"नसीब और भाग्य बहुत अजीब होते हैं। अच्छा खासा पररिार
हुआ करता था मेरा। मगर किर सब कुछ खत्म हो गया। धन दौलत तो नसीब से
बहुत कमली हमें ले ककन उस दौलत को भोगने िालों को नसीब ने छीन कलया हमसे ।
जी जान से प्यार करने िाली बीिी थी, िो भी हमें छोंड कर इस िानी दु कनयाॅ को
अलकिदा कह कदया। एक बे टा और बहू थे तो िो भी चले गए हमें छोंड कर। बस तब
से अकेले ही थे । मगर किर शायद भगिान को हमारे अकेले पन पर तरस आ गया
और उसने हमारे उजडे हुए गुलशन में किर से बहार लाने के कलए इन सबको भे ज
कदया। अब लगता है कक अपना भी कोई है।"

अभय कसं ह जगदीश ओबराय की बातें सु न कर हैरान था। उसे याद आया कक किराज
ने उससे कहा था कक ये सब अब अपना ही है। तो इसका मतलब िो सही कह रहा
था। यानी मेरा भतीजा अब करोडों की सम्पकि का माकलक है? अभय कसं ह को यकीन
नही ं हो रहा था मगर हक़ीक़त तो उसके सामने ही थी इस कलए यकीन करना ही पडा
उसे । िह सोचने लगा कक उसका बडा भाई यानी अजय कसं ह तो अर्क्र यही कहता
था कक किराज ककसी होटल या ढाबे में कप प्ले ट धोता होगा। मगर भला िो भी कैसे ये
कल्पना कर सकता था कक किराज आज के समय में ककतना बडा आदमी बन चु का
था। िह चाहे तो चु टककयों में उसे और उसकी पू री प्रापटी को खरीद सकता था।

"ये सब भगिान की अजब लीला ही है भाई साहब।" किर अभय कसं ह ने गहरी साॅस
ले कर कहा___"िो जो कुछ भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। ककस इं सान
कब कहाॅ और ककस ची़ि की ़िरूरत होती है िो उसे उस जगह पहुॅचा ही दे ता है।
हम नासमझ होते हैं जो ये समझ बै ठते हैं कक भगिान ने हमें कदया ही क्ा है?"

"हाॅ ये बात तो है।" जगदीश ने कहा___"और सच पू छो तो भगिान की इस लीला से


मैं खु श हूॅ भाई साहब। पहले ़िरूर उससे कशकायतें थी कक उसने मेरा सब कुछ

396
छीन कलया मगर आज कोई कशकायत नही ं है। ये सब मु झे अपना समझते हैं। मुझे
िै से ही चाहते हैं जैसे कोई सगा अपनों को चाहता है। यूॅ तो इस दु कनयाॅ में अपने
भी अपनों के कलए नही ं होते । मगर कोई अजनबी भी ऐसा कमल जाता है जो अपनों से
कम नही ं होता। चार कदन का जीिन है, इसे सबके साथ खु शी खु शी जी लो तो आत्मा
तृ प्त हो जाती है। क्ा ले कर हम इस दु कनयाॅ में थे और क्ा ले कर जाएॅगे? ये धन
दौलत तो सब यही ं रह जाएगी मगर हमारे कमग ़िरूर हमारे साथ जाएॅगे।"

"आप ठीक कहते हैं भाई साहब।" अभय ने कहा___"आप तो िै से भी ककसी िररश्े
से कम नही ं हैं िरना कौन ऐसा है जो ककसी ग़ै र को अपना सब कुछ दे दे ?"
"अगर मैने अपना सब कुछ किराज बे टे को दे कदया है तो उससे मु झे कमला भी तो
बहुत कुछ है भाई साहब।" जगदीश ने कहा___"मुझे िो कमला है कजसके कलए मैं िषों
से तडप रहा था। मैं ककसी अपने के कलए तडप रहा था, तथा अपनों के बीच रह कर
जो खु शी कमलती है मैं उसके कलए तरस रहा था। आज मेरे पास ये सब खु कशयाॅ है
भाई साहब और ये सब मु झे ककसी ररश्वत के चलते नही ं कमला है। बल्कि मेरे नसीब से
कमला है। मैं तो किराज को बहुत पहले से अपनी सारी प्रापटी का िाररस बनाना
चाहता था मगर ये ही मना कर रहा था। एक अच्छे ि खु द्दार इं सान का बे टा जो था।
ककसी की ऐसी मे हरबानी को कबू ल कैसे कर सकता था ये? मगर मैं चाहता था कक
किराज ही मेरा िाररस बने । क्ोंकक इसके चे हरे पर ही मु झे अपने बे टे की झलक
कदखती थी। अगर ये मेरी बात नही ं मानता तो मैं इसके सामने अपनी झोली िैला कर
भीख भी माॅग ले ता भाई साहब।"

अभय कसं ह जगदीश की ये सब बातें सु न कर चककत रह गया। उसे यकीन नही ं हो


रहा था कक दु कनयाॅ कोई इं सान ऐसा भी हो सकता है। खै र इन दोनों के बीच ऐसी ही
बातें होती रही ं। कुछ समय बाद ही गौरी ने सबको खाने का कहा। सब डायकनं ग हाल
में आ गए और कुकसग यों में बै ठ गए। गौरी ने सबको खाना सिग ककया। सबके खाने के
बाद गौरी ने भी खाना खाया और किर सब अपने अपने कमरे में सोने के कलए चल
कदये। रास्ते में चलते समय किराज से गौरी ने पू छा___"ते रा काॅले ज कब से शु रू हो
रहा है??"

"कल से माॅ।" किराज ने कहा___"कल सु बह मुझे थोडा जल्दी उठा दीकजएगा। ऐसा
न हो कक पहले कदन ही मैं ले ट हो जाऊ।"
"चल ठीक है।" गौरी ने कहा___"मैं तु झे भोर के समय पर ही उठा दू ॅगी। अब जा
आराम से सो जाना।"

गौरी के कहने पर किराज अपने कमरे की तरि बढ गया। उधर गौरी भी पलट कर
अपने कमरे की तरि चली गई।

397
_______________________

ितगमान अब आगे______
हररया काका को उन चारों की खाकतरदारी करने का कह कर ररतू तहखाने से बाहर
आकर सीधा अपने कमरे में चली गई थी। थोडी ही दे र में हररया काका की बीिी
कबं कदया ररतू के कमरे में खाना खाने को पू छने आई तो ररतू ने मना कर कदया।
कबं कदया के जाने के बाद ररतू ने दरिाजा बं द ककया और बे ड पर जाकर ले ट गई।
कािी दे र तक िह इस सबके बारे में सोचती रही। किर जाने कब उसकी ऑख लग
गई।

सु बह उसकी ऑख उसके मोबाइल िोन के बजने पर खु ली। उसने अलसाए हुए से


मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नम्बर को दे खा तो उसका सारा आलस पल
भर में ही दू र हो गया। साथ ही उसके होठों पर एक मु स्कान तै र गई।

"हैलो।" किर उसने काल ररसीि करते ही कहा।


"................." उधर से कुछ कहा गया।
"िै री गुड।" ररतू ने कहा___"सारी कडटे ल मुझे से न्ड कर दो। एण्ड थैं र्क्।"

ररतू ने इतना कह कर काल कट कर दी। उसके चे हरे पर एक मुस्कान थी। िह तु रंत


ही बे ड से उठ कर बाथरूम की तरि चली गई। करीब आधे घंटे बाद ररतू डर ाइं गरूम
में सोिे पर बै ठी काॅिी पी रही थी। कबं कदया ने हिा िुिा नास्ता बना कदया था
उसके कलए। ररतू नास्ता और कािी पीकर कर के बाहर कनकल गई। लोहे िाले गूट
के पास शं कर और हररया काका बं दूख कलए कमल गए उसे ।

"क्ा हाल समाचार है काका?" ररतू ने हररया काका की तरि दे ख कर कहा___"उन


लोगों की खाकतरदारी में कोई कमी तो नही ं की न आपने ?"
"अइसन होई सकत है का कबकटया?" हररया काका ने मुस्कुरा कर कहा___"हम ता
ऊ ससु रन अइसन पे लेन है कक उन सबकी अम्मा चु द गई है।"

"काका कभी कभी आप बहुत गंदा बोल जाते हैं।" ररतू ने बु रा सा मुह
बनाया___"आप ये भी नही ं दे खते हैं कक मैं आपकी बे टी जैसी हूॅ और आप भी तो
मुझे अपनी बे टी जैसी ही मानते हैं न? किर भला आप कैसे मेरे सामने ऐसे गंदे शब्द
बोल सकते हैं?"

"हमका माि कर दो कबकटया।" हररया ने तु रंत ही दोनो हाॅथ जोड कलये___"ई ससु री
जबान हमरे काबू न रह पाित है। अउर हमहु सरिा जोश जोश मा बोल ही जात हैं।

398
बस अबकी बारी माि कर दो कबकटया। अगली बारी से अइसन गलती ना होई। हमार
कसम।"

"कोई बात नही ं काका।" ररतू ने कहा__"अब बताओ उन लोगों का हाल कैसा है
अब?"
"कल रात ता खाकतरदारी करे रहे हम उनकी ऊके बाद हम अभी तक ना गए हैं।"
हररया ने कहा___"पर ई ता पक्का है कबकटया कक ऊ ससु रन के हाल बे हाल होईगा
होई अब तक।"

"चकलए चल कर दे खते हैं एक बार।" ररतू ने कहा और पलट िापस अं दर की तरि


जाने लगी। हररया भी उसके पीछे पीछे चल कदया। थोडी दे र बाद ही िो दोनो
तहखाने का दरिाजा खोल कर अं दर पहुॅचे । अं दर पहुॅचते ही ररतू और हररया की
नाॅक में बदबू भरती चली गई।

दोनो ने जल्दी से अपने मुह पर रुमाल लगा ली। अं दर का दृश्य बडा ही अजीब था।
एक तरि की दीिार पर चारो लडके बधे हुए बे होशी की हालत में कसर नीचे झुलाए
खु द भी झल
ू से रहे थे । दू सरी तरि की दीिार में दो बं दूखधारी थे जो सू रज के
िामग हाउस पर गाडग थे ।

"काका इन लोगो ने तो यहाॅ गंध िैला रखी है?" ररतू ने कहा___"क्ा इतनी ज्यादा
खाकतरदारी की है आपने इन सबकी?"
"अरे ना कबकटया।" हररया कह उठा__"इनकी खाकतरदारी ता कहसाबै से भई रही।"
"तो किर ये गंध क्ों है यहाॅ?" ररतू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे इन लोगों का टट्टी
पे शाब सब छूट गया है।"

"िा ता छु टबै करी कबकटया।" हररया ने कहा___"खु द सोचौ ई ससु रे कल से ईहाॅ बधे
हैं। अब जब ई ससु रन का टट्टी पे शाब लागी ता का कररहैं ई लोग? कब तक ई सारे
ऊ का दबा के रल्कखहैं? ई ची़ि ता अइसन है कबकटया जे सरकार भी ना रोक पाइहैं, ई
ससु रे ता अभी निा निा लौंडा हैं।"

"ओह ये तो कबलकुल सही कहा आपने काका।" ररतू ने कहा___"ले ककन इन लोगों की
इस गंदगी को भी तो दू र करना पडे गा िरना ये सब इसी से मर जाएॅगे और मैं इन्हें
इतना जल्दी मरने नही ं दे सकती। इस कलए आप यहाॅ की इस गंदगी को हटाने का
तु रंत काम शु रू करो।"

"ठीक है कबकटया।" हररया ने कहा___"पाईप ता लगा ही है। बस मोटरिा का चालू

399
करै का है। ई ता दु ई कमनट मा होई जाई कबकटया।"
"ठीक है काका।" ररतू ने कहा___"आप ये सब साि करिा दीकजए मैं पाॅच कमनट में
आती हूॅ।"

ररतू ये कह कर बाहर कनकल गई। उन लोगों की ये दु दगशा दे ख कर उसके मन को


बडी खु शी कमल रही थी। उसने सोचा कक ऐसे हराकमयों के साथ ऐसा ही होना
चाकहए। पर अभी तो ये शु रूआत है। कुछ दे र बाद ही हररया काका ररतू को बु लाने
आया। ररतू उसके साथ पु नः तहखाने में पहुॅची। इस बार का दृश्य कािी अलग था।
तहखाने में जो गं ध िैली हुई थी िो अब नही ं थी। काका ने मोटे पाइप से जो पानी का
प्रे सर कनकलता था उससे तहखाने का पू रा िसग और दीिारें साि कर कदया था। िसग
की दीिारों के चारो तरि ककनारे ककनारे बडे बडे छें द बने हुए थे । उसमें ही पानी के
साथ सारी गंदगी को कनकाल कदया था काका ने । उसके बाद तहखाने में रूम िशनर
कर कदया था ताकक गं ध दू र हो जाए या समझ में न आए।

दीिारों पर रस्सी से बधे चारो लडके और िो दोनो गाड्ग स अब होश में आ चु के थे ।


ररतू ये दे ख कर चौंकी थी कक उन सभी के कजस्मों पर नीचे कमर से एक लगोट टाइप
का कपडा बाॅध कदया था काका ने बाॅकी पू रा कजस्म नं गा था। ऐसा शायद इस कलए
था क्ों कक उन सभी के कपडे गंदे हो चु के थे और बदबू िैला रहे थे ।

इस िक्त िो सभी होश में थे । पाइप के पानी से िो सब नहाए हुए थे । मगर कल से न


कुछ खाया था न ही कुछ कपया था उन लोगों ने इस कलए उन सबकी हालत खराब
थी।

"हमें छोंड दो इं िेक्टर।" रोकहत ने रोते हुए कहा___"हम तु म्हारे पै र पकडते हैं। हमें
जाने दो यहाॅ से । हम कसम खाते हैं कक कभी भी ककसी लडकी के साथ ऐसा िै सा
कुछ नही ं करें गे।"
"हाॅ हाॅ हम कुछ नही ं करें गे।" अलोक ने बु री तरह कगडकगडाते हुए कहा___"हमें
इस नकग से कनकाल दो इं िेक्टर। यहाॅ हमारा दम घुटा जा रहा है। कल से हम
यहाॅ िै से के िै से ही बधे हुए हैं। न हमारे पै रों में जान है ना ही हाॅथों में ताकत।
हमसे अब और नही ं खडा हुआ जा रहा इं िेक्टर। प्लीज हमें छोंड दो।"

"अभी तो ये शु रूआत है।" ररतू ने कठोर भाि से कहा___"मैं तु म लोगों का िो हाल


करूॅगी कजसके बारे में ककसी ने सोचा भी नही ं होगा आज तक। तु म लोगों ने जो
कुकमग ककया है उसके कलए कानू न तु म्हारा कुछ भी नही ं कबगाड सकता क्ोंकक तु म
लोगों के हरामी बाप बडी आसानी से तु म लोगों को कानू न की कगरफ्त से कनकाल
ले ते। इस कलए मैंने सोचा कक तु म लोगों को कानू नन स़िा कदलाने से कोई िायदा

400
नही ं होगा बल्कि तु म लोगों को कानू न के बाहर आकर ही स़िा दी जा सकती है।
िही मैने ककया है। तु म्हारे बाप दादाओं को पता ही नही ं चले गा कभी कक उनके बच्चे
कहाॅ गए हैं?"

"नही ं नही ं ऐसा मत करो।" ककशन रो पडा___"हम मानते हैं कक हमने अपराध ककया
है मगर एक बार माफ़ कर दो। एक बार तो सब कोई माफ़ कर दे ता है इं िेक्टर।"
"अगर तम लोगों ने अपने जीिन में कसिग एक ही अपराध ककया होता तो ़िरूर तु म
लोगों को माफ़ कर दे ती।" ररतू ने कहा___"मगर तु म लोगों ने तो एक के बाद एक
सं गीन अपराध ककये हैं। दू सरों की बहन बे कटयों की इज्जत खराब कर उनकी क़िदगी
बरबाद की है तु म लोगों ने । मेरे पास तु म सबका काला कचिा मौजूद है। इतना ही नही ं
तु म लोगों के बाप का भी। मेरे पास ऐसे ऐसे सबू त हैं कक तु म लोगों के बापों को मैं
सबके सामने नं गा दौडा सकती हूॅ।"

ररतू की ये बातें सु न कर उन सबकी रूह काॅप गई। उन्हें अपनी ल्कथथत और अपने
बापों की ल्कथथत का अं दा़िा अब हुआ था। उनके बाप तो जानते भी नही ं थे कक उनके
बच्चे उनकी ही अश्लील िीकडयो बनाए हुए हैं। खु किया कैमरे से िीकडयो बनाई गई
थी और इन सबका मास्टर माइं ड सू रज चौधरी था।

"काका इन सबको आज का भोजन दे दो।" ररतू ने हररया से कहा___"मगर भोजन


भी िही दे ना जो हम कुिों को दे ते हैं। छलनी में आटा छालने से जो छलनी में बचता
है ना उसी की मोटी रोकटया बनिाना और इन चारों को कसिग एक एक सू खी रोटी
दे ना। जबकक इन दोनों गाड्ग स को ठीक ठाक भोजन दे दे ना। क्ोंकक इन लोगों इन
हराकमयों के जैसा कोई अपराध नही ं ककया है। ये तो बस गेहूॅ के साथ घुन की तरह
यहाॅ कपसने आ गए हैं। इन्हें छोंडा नही ं जा सकता िरना ये दोनो उस चौधरी को
यहाॅ की सारी बातें बता दें गे।"

"हम ककसी से कुछ नही ं कहेंगे बे टी।" एक गाडग शालीनता से बोला___"हम इन


सबके बारे में सबकुछ जानते हैं। ये लोग सचमुच बहुत ही गंदे लोग हैं। हम तो ग़रीब
आदमी हैं। दो पै सों के कलए इनके यहाॅ गाडग की नौकरी कर रहे थे । ये लोग और इन
लोगों के बाप जब भी िामग हाउस आते थे तो उन लोगों के साथ हर बार कोई दू सरी
लडककयाॅ होती थी। रात भर ये लोग अं दर अय्याकशयाॅ करते । कुछ लडककयों को ये
लोग जबरदस्ती उठा लाते थे और उनकी इज्जत को तार तार करते थे । ये सब बडे
लोग हैं बे टी। पै सों की गरमी ने इन्हें शै तान बना कदया है।"

"साले हरामजादे हमारा नमक खाता है और हमारे ही बारे में ऐसी बातें करता है?"
सू रज गुस्से में चीखा था।

401
"मेरे हाॅथ बधे हैं छोरे ।" गाडग ने कहा___"िरना तु झे बताता कक मु झे हरामजादा
कहने का क्ा अं जाम होता। नमक खाता था तो मुफ्त का नही ं खाता था समझे। बीस
बीस घंटे चौकीदारी करता था तब ते रे बाप का नमक खाता था मैं। बात करता है
साला रं डी की औलाद।"

"अपनी जुबान को लगाम दे कुिे ।" सू रज पू री शल्कक्त से चीखा था।


"कुिा तो तू है साले गस्ती की औलाद।" गाडग ने भी ताि खाते हुए बोला___"इसी कलए
ते रे कलए ऐसी रोटी बनने िाली है।"

सू रज खू न के ऑसू पीकर रह गया। उसकी ऑखों में ज्वाला धधकने लगी थी। ररतू
उन दोनो की बाते सु न रही थी और सोच भी रही थी कक गाडग तो बे चारे बे कसू र ही हैं।
पर िो उन्हें छोंड कर कोई ररि नही ं ले ना चाहती थी। क्ोंकक ये भी हो सकता था
कक िो दोनो अच्छा बनने का नाटक कर रहे हों। यानी सू रज ने उन लोगों को
कसखाया पढाया हो कक उसके आते ही हमें आपस में कैसी बातें करनी है। ताकक ररतू
यही समझे कक गाड्ग स बे कसू र हैं और िो उन्हें छोंड दे ने का किचार करे । और अगर
िो छोंड दे गी तो किर िो यहाॅ से जाकर सीधा चौधरी को सारी बात बता दें गे। उसके
बाद चौधरी ररतू का कहसाब ककताब कर ले ता।

"काका, अभी भी इसमें गरमी बाॅकी है " ररतू ने कहा___"इस कलए ल्कखला कपला कर
़िरा अच्छे से किर खाकतरदारी करना। भोजन में कुिे िाली कसिग एक रोटी ही दे ना
इन्हें । इसके बाद कल ही इन्हें खाना दे ना। अब चलती हूॅ मैं।"
"ठीक कबकटया।" हररया खाकतरदारी का सु न कर खु श हो गया था।

ररतू पलट कर तहखाने के दरिाजे से बाहर कनकल गई। उसके जाते ही हररया ने
तहखाने का दरिाजा बं द ककया। एक कोने में रखे मोटे डं डे को उठाया और उन
चारों की तरि बढा। हररया को अपने करीब आते दे ख उन चारों की रूह काॅप गई।

"का रे मादरचोद।" हररया ने सू रज की टाॅग में मोटा डं डा घुमा कर जड


कदया___"बहुतै गरमी चढ रखी है न तोही। हम लोगन की गरमी को बहुतै अच्छे से
उतारता हूॅ।"
"माि कर दो काका।" सू रज ने सहसा हररया से ररश्े दारी जोडते हुए कह
उठा___"ग़लती हो गई। अब कुछ नही ं कहूॅगा। प्ली़ि माफ़ कर दो न।"

"माफ़ी ता हम दे दू ॅगा बछु िा।" हररया ने डं डे को सू रज के कपछिाडे पर हौले हौले


सहलाते हुए कहा___"पर एखर कीमत दे का पडी। बोल दे सकत है तू कीमत?"
"कैसे कीमत काका?" सू रज ने नासमझने िाले भाि से कहा।

402
"ऊ का है ना बछु िा।" हररया ने कहा___"हमका अपने जीिन मा एक बार ता जरूर
केहू के गाॅड मारै का मन रहा। जब हमरी तोहरे काकी से शादी हुई ता हम बडा
खु श हुए। सु हागरात मा हम तोहरे काकी से बोल कदये कक हमका तोर गाॅड मारै का
है। पर ऊ ससु री हमरी ई बात पर कबगड गै। िेर ता अइसनै चलत रहा बछु िा अउर
हम आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन। एसे हम कहत हैं कक कीमत मा
तोही आपन गाॅड हमसे मरािै का पडी।"

"नही ं नही ं।" सू रज हररया की ये बात सु न कर अं दर तक काॅप गया।


"दे ख बछु िा ई ता तोही करै का पडी।" हररया ने कठोरता से कहा__"ई हमरे खु शी
का बात है। सरिा आज तक केहू केर गाॅड मारै का ना पायन हम। पर आज ता हम
तोर गाॅड मार के रहब बछु िा। अब ई तै सोच ले कक तू ई सब खु शी मा कररहे या
रोई रोई के। हीहीहीहीही।"

हररया ़िोर ़िोर से हसे जा रहा था। उसकी हसी ने तहखाने में बडा ही भयानक
िातािरर् पै दा कर कदया था। उन चारी की अं तरआत्मा तक काॅप गई। सू रज तो
हररया को इस तरह दे खने लगा था जैसे िह उसका काल हो।

"हमरे कबकटया केर बात ता तू लोग सु न ही कलये हो ना।" हररया कह रहा था___"तू
सब अब इहैं रहने िाले हो। अउर हम अब तू ससु रन के रोज बारी बारी से गाॅड
मारब।"
"ऐसा मत करो काका हम तु म्हारे हाथ जोडते हैं प्लीज।" रोकहत सहमे हुए से बोला।

"हाॅथ जोडै का कौनि िायदा ना होई बछु िा।" हररया ने कहा___"काहे से के ई


हमरे ख्वा....अरे ऊ का कहत हैं...ख्वाकहश...हाॅ ईहैं...हाॅ ता ई हमरे ख्वाकहश का
बात है। गाॅड मारै का हमरा बहुतै ख्वाकहश है बछु िा। अब ई बात मा हम कौनि
केर बात ना मानब। चल रे पकहले तोरै गाॅड का उद् घाटन हम करब हीहीही।"

सू रज की गाॅड में हररया ने ़िोर से मोटा डं डा जड कदया। सू रज ददग के मारे पू री


शल्कक्त से चीखने लगा था। जबकक हररया ने सू रज की कमर में बधे कपडे को खोल
कर एक तरि उछाल कदया। सू रज बु री तरह इधर उधर हो रहा था। मगर दोनो हाथ
ऊपर बधे थे और दोनो पै र िैलाए हुए चारों के पै रों से बधे हुए थे ।

"ई का रे रं डी केर दु म।" हररया सू रज की लु ल्ली को दे ख कर कहा___"ई ता बच्चन


जइसन है रे । मादरचोद नामरद है का रे ?"
"आहहहहह।" अपनी लु ल्ली पर डं डे की हिी मार पडते ही सू रज कबलकबला उठा
था।

403
इधर हररया ने ऊपर खू ॅटी से रस्सी की गाॅठ खोल कर सू रज के ऊपर उठे हुए
हाॅथों को नीचे की तरि कर कदया। सू रज का बाजू बु री तरह अकड गया था। कल
से एक ही पोजीशन में बधा था िह। इस िक्त िह जन्मजात नं गा था। िह बु री तरह
कहल रहा था और हररया से अपनी गाॅड न मारने के कलए किनती कर रहा था। मगर
हररया मानने िालों में से नही ं था।

"हमने कहा ना बछु िा।" हररया ने सू रज की मुंडी पकड कर आगे की तरि झुका
कदया, किर बोला___"हम कौनि बात ना मानब। ई हमरे ख्वाकहश केर बात है। एसे
हम तोर गाॅड ता मरबै करब।"

हररया ने अपनी सिेद धोती की गाॅठ छोरी और धोती को खोल कर ऊपर खू ॅटी
पर टाॅग कदया। सू रज थर थर काॅप रहा था। उसके हाॅथ आपस में अभी भी बधे
हुए थे इस कलए िह ज्यादा कुछ कर नही ं सकता था। इस िक्त िह हररया से ये सब न
करने के कलए कगडकगडाए जा रहा था।

"काहे बछु िा।" हररया ने सू रज की नं गी गाॅड में ़िोर से एक थप्पड लगाया,


बोला___"अब काहे कगडकगडाय रहा है। कछू याद है? अइसनै ऊ लडककयन लोग भी
तोहरे सामने कगडकगडाती रही होंगी। मगर तू उन मा से केहू केर बात न माने रहे होई
है ना? ता मादरजोद िेर हमसे कइसन या उम्मीद करत है कक हम तोर बात मान
जाब रे िै श्या के जने सारे ?"

सू रज के बगल से बधे बाॅकी तीनों ये सब डरे सहमे से दे ख रहे थे । उनकी हालत


बहुत खराब थी। िो ये सोच सोच कर मरे जा रहे थे कक सू रज के बाद उनके साथ भी
यही सब होगा। कभी स्वप्न में भी उन लोगों ने ये नही ं सोचा था कभी ऐसा भी िक्त
उनके जीिन में आएगा।

"आआआहहहहह।" सू रज के मुख से ददग भरी कराह कनकल गई। हररया उसके


सामने आकर सू रज के कसर के बाल पकड कर उठाया था, बोला___"ले दे ख
मादरचोद कक लौडा केही कहत हैं। दे ख न रं डी के पू त। हम चाहू ता अपने ई लौडे से
तु म सबकी एकै बार मा गाॅड िाड दू ॅ मगर िाडूॅगा नही ं। हम ता एक एक करके
अउर तसल्ली से तु म चारोन की गाॅड मारब ससु रे लोग।"

हररया नीचे से नं गा हो चु का था और इस िक्त अपने मोटे तगडे लौडे को सू रज के


चे हरे के बे हद पास सहला रहा था। सू रज झुका हुआ था क्ोकक हररया ने एक हाॅ से
उसके कसर के बाल पकड कर उसे नीचे झुकाया हुआ था।

404
दे खते ही दे खते हररया का लौडा अकड कर खडा हो गया। बाॅकी तीनों आश्चयग से
हररया के लौडे की तरि दे खे जा रहे थे । उन लोगों की ये सोच कर नानी मर गई कक
यही लौडा उन लोगों की भी गाॅड मारे गा। हररया सू रज के पीछे आ गया। अपने
पीछे जाते दे ख सू रज किर से बु री तरह कहलने लगा। िह बार बार हररया से कमन्नतें
करने लगता था।

"कचन्ता ना कर बछु िा।" हररया ने सू रज की गाॅड को िैलाते हुए कहा___"बस एकै


बार तीनौ लोकन के दशग न होई हैं ऊखे बाद ता मजा कमली। अउर हाॅ गाॅड का
अपने ढीलै रल्कखहे नाही ं ता ससु रे िाट जाई ता हमरा दोष ना दीहे।"

सू रज बु री तरह छटपटाए जा रहा था। मगर हट्टे कट्टे हररया का एक हाॅथ सू रज के


कसर पर था कजसे िह सू रज को नीचे झुके रहने के कलए मजबू र ककये हुए था। जबकक
दू सरे हाॅथ से िह ढे र सारा थू ॅक ले कर उसे अपने लौडे पर लगाया और किर लौडे
पकड कर सू रज की गाॅड में से ट ककया।

तहखाने में मौजूद बाॅकी तीनो िो लडके और िो दोनो गाड्ग स िटी ऑखों से ये दृश्य
दे खे जा रहे थे । हररया ने लौडा से ट कर गाॅड की तरब दबाि बढाया।

"आआआहहहहह।" सू रज को ददग होने लगा। उसकी गाॅड बे हद टाइट थी। जबकक


हररया का लौडा मोटा तगडा था। हर पल के साथ सू रज की हालत हलाल होते बकरे
जैसी होती जा रही थी। िह बु री तरह छटपटा रहा मगर हररया की मजबू त पकड से
िह छूट नही ं पा रहा था। बडी मुल्किल से हररया के लौडे का टोपा सू रज की गाॅड में
घुसा। इतने में ही सू रज गला िाडे कचल्लाने लगा था।

"सबर कर बछु िा।" हररया ने कहा___"गला िाडने से का होई? ऊ ता कहम्मत रखै से


होई। अउर ई ता अबे शु रूआतै हुआ है। अबे ता मंकजल बहुत बाॅकी है बछु िा।"
"आआहहहहहह मममममम्मी रे रे एएएएएए।" हररया ने ़िोर का झटका कदया। सू रज
की गाॅड को चीरता हुआ हररया का लौडा लगभग आधा घुस गया था। सू रज के
मुख से बडी भयंकर चीख कनकली थी। उसकी ऑखों के सामने अधेरा छा गया।
सू रज बे होश हो चु का था। उसकी हालत दे ख कर बाकी सब के होश उड गए। सू रज
के दोस्त थर थर काॅपने लगे। िो अनायास ही ़िोर ़िोर से पागलों की तरह रोने
कचल्लाने लगे।

"अबे चु प करा मादरचोदो िरना ई लौडा इसकी गाॅड से कनकाल के तु म्हरी गाॅड में
घुसेड दू ॅगा हम।" हररया गुराग या तो िो डर के मारे एक दम से चु प हो गए। उनके
चु प हो जाने के बाद हररया ने सू रज की गाॅड में थप्पड मारते हुए बोला___"का बे

405
मादरचोद। ससु रे इतने से ही टाॅय बोल गया रे । अभी ता हम पू रा लौडा डाला भी
नही ं हूॅ।"

हररया सू रज की गाॅड में धक्के लगाना शु रू कर कदया। हर धक्के के साथ िह थोडा


बहुत लौडे को सू रज की गाॅड में घुसेडता ही रहा था। सू रज बे होशी की हालत में भी
कराह रहा था। हररया एक बार ते ़िे से धक्का लगाया तो एच ़िोरदार चीख के साथ
सू रज होश में आ गया। होश में आते ही िह बु री तरह रोने कबलखने लगा। रहम की
भीख माॅगने लगा िह। मगर हररया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका
िह। तहखाने में सू रज का रोना और कचल्लाना ़िारी रहा।

अपडे ट........《 37 》

अब तक,,,,,,,,

"सबर कर बछु िा।" हररया ने कहा___"गला िाडने से का होई? ऊ ता कहम्मत रखै से


होई। अउर ई ता अबे शु रूआतै हुआ है। अबे ता मंकजल बहुत बाॅकी है बछु िा।"
"आआहहहहहह मममममम्मी रे रे एएएएएए।" हररया ने ़िोर का झटका कदया। सू रज
की गाॅड को चीरता हुआ हररया का लौडा लगभग आधा घुस गया था। सू रज के
मुख से बडी भयंकर चीख कनकली थी। उसकी ऑखों के सामने अधेरा छा गया।
सू रज बे होश हो चु का था। उसकी हालत दे ख कर बाकी सब के होश उड गए। सू रज
के दोस्त थर थर काॅपने लगे। िो अनायास ही ़िोर ़िोर से पागलों की तरह रोने
कचल्लाने लगे।

"अबे चु प करा मादरचोदो िरना ई लौडा इसकी गाॅड से कनकाल के तु म्हरी गाॅड में
घुसेड दू ॅगा हम।" हररया गुराग या तो िो डर के मारे एक दम से चु प हो गए। उनके
चु प हो जाने के बाद हररया ने सू रज की गाॅड में थप्पड मारते हुए बोला___"का बे
मादरचोद। ससु रे इतने से ही टाॅय बोल गया रे । अभी ता हम पू रा लौडा डाला भी
नही ं हूॅ।"

हररया सू रज की गाॅड में धक्के लगाना शु रू कर कदया। हर धक्के के साथ िह थोडा


बहुत लौडे को सू रज की गाॅड में घुसेडता ही रहा था। सू रज बे होशी की हालत में भी
कराह रहा था। हररया एक बार ते ़िे से धक्का लगाया तो एच ़िोरदार चीख के साथ

406
सू रज होश में आ गया। होश में आते ही िह बु री तरह रोने कबलखने लगा। रहम की
भीख माॅगने लगा िह। मगर हररया को तो अब जैसे न रुकना था और नाही रुका
िह। तहखाने में सू रज का रोना और कचल्लाना ़िारी रहा।
_____________________________

अब आगे,,,,,,,,,

उधर मुम्बई में भी सु ॅुॅु ॅु बह हुई।


गौरी ने सु बह पाॅच बजे ही किराज को उठा कदया था। सु बह उठ कर उसने थोडी
बहुत एर्क्रसाइज की और किर बाथरूम में िेश होने के कलए चला गया। िेश होने
के बाद िह कमरे में आया तो दे खा कक उसकी बहन कनकध बे ड पर बै ठी हुई है ।

"अरे तु झे स्कूल नही ं जाना क्ा?" मैने तौकलये से अपने कसर के बालों को पोंछते हुए
कहा।
"जाना है।" कनकध ने गौर से मेरे शरीर को दे खते हुए कहा___"मैं तो बस आपको बे स्ट
ऑि लक कहने आई थी।"

"अच्छा तो ये बात है।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"मेरी गुकडया मेरी जान मु झे बे स्ट
ऑि लक कहने रूम में आई है?"
"हाॅ ले ककन अपने तरीके से ।" कनकध ने मु स्कुरा कर कहा।
"अपने तरीके से ?" मैं उसकी बात से नासमझने िाले अं दा़ि से बोला___"ककस तरीके
की बात कर रही है तू ?"

"िो मैं कर के बताऊगी भइया।" कनकध ने कहा___"बस आपको अपनी दोनो ऑखें
बं द करना पडे गा। और खबरदार ग़लती से भी अपनी ऑखें मत खोकलयेगा। िरना मैं
आपसे बात नही ं करूॅगी। हाॅ नही ं तो।"

"अरे ये क्ा कह रही है गु कडया?" मैं उसकी बात से हैरान हुआ___"आकखर क्ा चल
रहा है ते रे मन में?"
"कुछ नही ं चल रहा भइया।" कनकध एकाएक ही हडबडा गई थी, बोली___"बस आप
अपनी ऑखें बं द कीकजए न।"

मैं उसे ग़ौर से दे खता रहा। उसके चे हरे पर इस िक्त सं सार भर की मासू कमयत
किद्यमान थी। खू बसू रती में िह कबलकुल मेरी माॅ की काबग न काॅपी ही थी।
हलाॅकक उसका चे हरा और उसका पू रा रं गरूप मेरी माॅ गौरी की तरह ही था। िो
माॅ की हमशक्ल टाइप की थी।

407
"क्ा हुआ भइया?" कनकध कह उठी___"क्ा सोचने लगे आप? बं द कीकजए न अपनी
ऑखें ।"
"अच्छा ठीक है बं द करता हूॅ।" मैने कहा__"पर कोई उटपटाॅग हरकत मत
करना।"
"मैं ऐसा िै सा कुछ नही ं करूॅगी भइया।" कनकध ने कहा___"और अगर कर भी दू ॅ
तो मेरी भू ल समझ कर मु झे माफ़ कर दे ना। हाॅ नही ं तो।"

मैं उसकी नटखट बातों पर मुस्कुरा उठा और अपनी ऑखें बं द कर ली। कुछ पल
बाद ही मु झे अपने होठों पर कोई बहुत ही कोमल ची़ि महसू स हुई। अभी मैं कुछ
समझ भी न पाया था कक उस कोमल ची़ि ने मेरे होठों को जोर से दबोच कर दो
से कण्ड तक अपने अं दर रख कर उस पर कुछ ककया उसके बाद छोंड कदया। मेरे
कदमाग़ में किस्फोट सा हुआ। एकाएक ही मेरे कदमाग़ की बिी जली। मैने झट से
अपनी ऑखें खोल दी। सामने दे खा तो कनकध भागते हुए कमरे के दरिाजे पर ऩिर
आई मुझे। दरिाजे के पास पहुॅच कर िह रुकी और किर पलटी। उसके बाद
मुस्कुराते हुए कहा__"बे स्ट ऑि लक भइया।" इतना कह कर िह दरिाछे के बाहर
की तरि हिा की तरह कनकल गई। जबकक मैं बु त बना खडा रह गया।

मुझे यकीन नही ं हो रहा था कक मेरी बहन ने इन कुछ पलों के भीतर मेरे साथ क्ा
कर कदया था। िह मेरे होठों को बडी चतु राई से चू म कर मुझे बे स्ट ऑि लक कहा
और भाग भी गई। मु झे उससे इस सबकी उम्मीद नही ं थी। किर मुझे ध्यान आया कक
िो मु झसे प्यार करती है कजसका उसने इ़िहार भी ककया था।

मैं कािी दे र तक बु त बना खडा रहा। मेरी तं द्रा तब टू टी जब माॅ कमरे में आकर
बोली___"तू अभी तक तै यार नही ं हुआ काॅले ज जाने के कलए? चल तै यार होकर आ
जल्दी। मैने नास्ता तै यार करके लगा कदया है।"

मैं माॅ की आिा़ि सु न कर चौंक पडा था। उसके बाद मैंने माॅ से कहा कक आप
चकलए मैं आता हूॅ। मेरे कदमाग़ में अभी तक यही चल रहा था कक गु कडया ने ऐसा क्ों
ककया? मुझे अपने होठों पर अभी भी उसके ना़िुक होठों का एहसास हो रहा था।
मैने अपने होठों पर जीभ किराई तो मु झे मीठा सा लगा। उफ्फ ये क्ा है? मेरी
गुकडया के मुख और होठों का लार इतना मीठा था। मु झे अपने अं दर बडा अजीब सा
रोमाॅच होता महसू स हुआ। मेरा रोम रोम गनगना उठा था।

खै र मैं काॅले ज की यूनीिामग पहन कर कमरे से बाहर आया और किर नीचे


डायकनं ग हाल की तरि बढ गया। डायकनं ग टे बल पर इस िक्त सब लोग बै ठे हुए थे ।
जगदीश अं कल, अभय चाचा, गुकडया और माॅ। मैं भी एक कुसी खी ंचकर बै ठ गया।

408
मेरी ऩिर कनकध पर पडी तो उसने जल्दी से अपना चे हरा झुका कलया। उसके गोरे
गोरे और िूले हुए गाल कश्मीरी से ब की तरह सु खग हो गए थे लाज और शमग की
िजह से ।

"ये बहुत अच्छा ककया राज जो तु मने अपनी पढाई जारी कर दी।" सहसा सामने कुसी
पर बै ठे अभय चाचा ने कहा___"मु झे खु शी है कक इतना कुछ होने के बाद भी तु म
अपने रास्ते से नही ं भटके। मुझे तु म पर िक्र है राज और मेरा आशीिागद है कक तु म
हमेशा कामयाबी और सिलता के नये और ऊची बु लंकदयों को प्राप्त करो।"

"शु कक्रया चाचा जी।" मैने कहा___"भले ही चाहे जो हुआ हो ले ककन मैं जानता था कक
आपके कदल में हमारे कलए इतनी भी नफ़रत नही ं होगी कजतनी कक बडे पापा और
बडी माॅ के कदलों में है हमारे कलए।"

"समय बहुत बलिान होता है राज।" अभय चाचा ने कहा___"और बहुत बे रहम भी।
िो हमसे िो सब भी करिा ले ता है कजसे करने की हम कभी कल्पना भी नही ं करते ।
पर कोई बात नही ं बे टे, इं सान िही श्रे ष्ठ और महान होता है जो हर तरह के कस्टों को
पार करके आगे बढता है।"

"राज बे टा मैने तु म्हारे कलए काॅले ज जाने के कलए एक नई और शानदार कार मगिा
दी है जो कक बाहर ही खडी है।" जगदीश अं कल ने मु स्कुराते हुए कहा___"हम चाहते
हैं कक तु म अपने नये सिर की शु रूआत उसी से करो।"

"इसकी क्ा ़िरूरत थी अं कल?" मैने कहा___"मैं िहाॅ पर पढने जा रहा हूॅ ना कक
ककसी को अपनी अमीरी कदखाने । माफ़ करना अं कल ले ककन मैं चाहता हूॅ कक मैं भी
उसी तरह काले ज जाऊ जैसे सभी आम लडके जाते हैं। बाॅकक ऑकिस के कामों के
कलए मैं ये सब यूज करूॅगा। मुझे खु शी है कक आपने मेरे कलए एक नई कार लाकर
दी।"

"ठीक है बे टे जैसी तु म्हारी इच्छा।" जगदीश अं कल ने कहा___"मु झे ये जान कर


अच्छा लगा कक तु म ऐसी सोच रखते हो।"
"िै से राज ककस काॅले ज में एडमीशन कलया है तु मने ?" अभय चाचा ने कुछ सोचते
हुए पू छा।
"..............में चाचा जी।" मैने बताया।
"अरे इस काॅले ज में तो नीलम ने भी एडमीशन कलया हुआ है।" अभय चाचा चौंके
थे ___"और कनश्चय ही तु म्हारी मुलाक़ात उससे होगी ही िहाॅ। िो जब तु म्हें िहाॅ पर
दे खेगी तो जरूर बडे भइया को बताएगी कक तु म भी उसी काॅले ज में पढ रहे हो

409
जहाॅ पर िो पढ रही है। उसके बाद तु म पर खतरा भी हो सकता है बे टे। इस कलए
़िरा सम्हल कर रहना।"

"कचन्ता मत कीकजए चाचा जी।" मैने अजीब भाि से कहा___"मैं तो चाहता ही हूॅ कक
अब धीरे धीरे बडे पापा को ये पता लगे कक मैं ककस जगह पर हूॅ। उन्होने तो मेरी
तलाश में जाने कब से अपने आदकमयों को लगाया हुआ है। उनके आदमी आज
महीने भर से मेरी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"

"तु म्हें ये सब कैसे पता?" अभय चाचा बु री तरह चौंके थे ।


"मैं उनकी हर गकतकिकध पर ऩिर रखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहा___"आप अभी
कुछ नही ं जानते हैं कक मैंने यहाॅ पर बै ठे बै ठे ही उनकी कैसी कैसी खाकतरदारी की
है।"

"क्ा मतलब?" अभय चाचा के माथे पर बल पडता चला गया, बोले ___"ककस
खाकतरदारी की बात कर रहे हो तु म?"
"ये सब आपको जगदीश अं कल बता दें गे चाचा जी।" मैने कहा___"किलहाल तो मैं
अभी काॅले ज जा रहा हूॅ। आज मेरा पहला कदन है। इस कलए मु झे आशीिागद दीकजए
कक मैं अपने इस सिर पर कामयाब होऊ।"

"मेरा आशीिागद सदा तु म्हारे साथ ही रहेगा राज।" अभय चाचा ने कहा।
उसके बाद हम सबने नास्ता ककया और किर नास्ता करके मैंने अपना बै ग कलया।
सबसे आशीिागद ले कर मैं कनकध को ले कर बाहर आ गया।

मैने गैराज से अपनी बाइक कनकाली और कनकध को पीछे बै ठा कर लान से होते हुए
मेन गेट से बाहर कनकल गया। कनकध मेरे साथ इस कलए थी क्ोंकक उसे भी स्कूल
जाना था। जोकक मेरे काॅले ज के रास्ते पर ही था। कनकध मेरे पीछे चु पचाप बै ठी हुई
थी। िो कुछ बोल नही ं रही थी। ये बडी आश्चयग की बात थी िरना िह चु प रहने िालों
में से न थी।

"तो मैडम आज चु प चु प सी क्ों है भई?" मैने बाइक चलाते हुए कहा___"िै से आज


तो मैडम ने ग़जब ही कर कदया है।"
"आप ककससे बात कर रहे हैं भइया?" कनकध ने कहा।
"ककससे का क्ा मतलब है मैडम?" मैने कहा___"आप ही से बात कर रहा हूॅ।"

"अच्छा।" कनकध ने कहा___"तो मैं मैडम हूॅ?"


"और नही ं तो क्ा।" मैने कहा___"मेरी गु कडया ककसी मैडम से कम है क्ा?"
"ओहो ऐसा क्ा?" कनकध एकदम से सरक कर मुझसे कचपक गई, बोली___"ले ककन

410
आपकी टोन बदली हुई क्ों लग रही है मु झे?"

"क्ा बताऊ गुकडया?" मैने कहा___"आज सु बह सु बह एक कबल्ली ने मेरे होठों को


काट कलया था।"
"क्ा?????" कनकध चीख पडी___"आपने मु झे कबल्ली कहा? अपनी जान को कबल्ली
कहा? जाइए नही ं बात करना आपसे । हाॅ नही ं तो।"

"अरे तो तु म क्ों नारा़ि हो रही हो?" मैने कहा___"मैं तो उस कबल्ली की बात कर


रहा हूॅ कजसने आज मेरे होठों को काटा था।"
"िाॅर काइण्ड योर इन्फोरमेशन।" कनकध ने कहा___"आप कजसे कबल्ली कह रहे हैं
िो मैं ही थी। और आपने मुझे कबल्ली कहा। बहुत गंदे हैं आप। हाॅ नही ं तो।"

"ओह माई गाॅड।" मैने कहा___"तो िो तु म थी?"


"ज्यादा डर ामें मत कीकजए।" कनकध एकाएक मु झसे अलग होकर बाइक में पीछे सरक
गई, बोली___"मु झे आपसे बात नही ं करनी बस। आपने अपनी जान को कबल्ली कहा
है। ये तो मेरी इनसल्ट है, हाॅ नही ं तो।"

"ले ककन मुझे ये सब अच्छा नही ं लगा गु कडया।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"तु झे
िै सा नही ं करना चाकहए था मेरे साथ। ये ग़लत है।"

मेरी इस बात पर कनकध की तरि से कोई प्रकतकक्रया न हुई। िो एकदम से चु प थी।


"तू जानती है न कक भाई बहन के बीच ये सब ग़लत होता है।" मैने कहा___"मैने उस
कदन भी तु झसे कहा था। किर आज तू ने ऐसा क्ों ककया गुकडया? तु झे पता है अगर ये
सब माॅ को पता चल गया तो उन पर क्ा गु ़िरे गी?"

इस बार भी कनधी कुछ न बोली। मैं उसकी चु प्पी दे ख कर बे चैन ि परे शान सा हो
गया। मैंने तु रंत ही सडक के ककनारे पर बाइक को रोंक दी और पीछे पलट कर दे खा
तो चौंक गया। कनकध का चे हरा ऑसु ओ ं से तर था। उसकी ऑखें लाल हो गई थी। मैं
उसकी इस हालत को दे ख कर कहल सा गया। िो मेरी बहन थी, मेरी जान थी।
उसकी ऑखों में ऑसू ॅ ककसी सू रत में नही ं दे ख सकता था मैं। मैं तु रंत बाइक से
नीचे उतरा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा कलया।

"ये क्ा है गु कडया?" मैने दु खी भाि से कहा___"तू जानती है न कक मैं ते री ऑखों में
ऑसू नही ं दे ख सकता। किर क्ों तू ने अपनी ऑखों को रुलाया? क्ा मुझसे कोई
ग़लती हो गई है? बता न गु कडया।"
"ये ऑसू तो अब मेरी तक़दीर में कलखने िाले हैं भइया।" कनकध ने भरागए गले से
कहा__"जब से होश सम्हाला था तब से आप ही को दे खा था, आपको ही अपना

411
आदशग माना था। किर हमारे साथ िो सब कुछ हो गया। आप हमसे दू र यहाॅ नौकरी
करने आ गए। मगर दो कदल तो हमेशा रोते रहे। एक अपने बे टे के कलए तो एक अपने
भाई की मोहब्बत के कलए। मैं नही ं जानती भइया कक कब मेरे कदल में आपके कलए
उस तरह का प्रे म पै दा हो गया। किर मैने आपकी िो डायरी पढी। कजसमें आपने
अपनी मोहब्बत की दु खभरी दास्तां कलखी थी। किधी की बे ििाई से आप अं दर ही
अं दर ककतना दु खी थे ये मु झे उस डायरी को पढ कर ही पता चला था। उस कदन जब
हम दोनो घू मने समंदर गए थे । तब आपने िहाॅ शराब पी और अपनी हालत खराब
कर ली थी। आपको मेरे चे हरे में किधी ऩिर आई और आपने अपने कदल का सारा
गुबार कनकाल कदया। मैं आपकी उस दशा को दे ख कर बहुत दु खी हो गई थी। आप
तो शु रू से ही मेरी जान थे । मुझे उस कदन लगा कक आपको सहारे की ़िरूरत है।
मैंने जो अब तक अपने कदल में उस प्रे म को छु पाया हुआ था उसे बाहर लाने का
िैसला कर कलया। मुझे ककसी की परिाह नही ं थी कक लोग मेरे बारे में क्ा कहें गे या
क्ा सोचें गे? मु झे तो बस इस बात की किक्र थी कक मेरे भइया दु खी न रहें। मैं अपकी
खु शी के कलए ककसी भी हद तक जाने को तै यार हो गई थी। इसी कलए उस कदन मैने
आपसे अपने प्रे म का इ़िहार कर कदया था। मु झे पता है कक भाई बहन के बीच ये सब
नही ं हो सकता इसके बािजूद मैंने ये अनै कतक कदम उठा कलया। आपने भी तो बाद
में मु झसे यही कहा था न कक ठीक है तु झे जो करना है कर। मोहब्बत तो ककसी से भी
हो सकती है । ले ककन आज किर आपने कह कदया कक ये सब ग़लत है। अब तो ऐसा
हाल हो चु का है कक मेरे कदल से आपके कलए िो चाहत जा ही नही ं सकती। मुझे इस
बात पर रोना आया भइया कक आप कभी मेरे नही ं हो सकते । ये दे श ये समाज कभी
मेरी झोली में आपको जायज बना कर नही ं डाल सकता। तो किर ये ऑसू ॅ तो अब
मेरी तक़दीर ही बन गए न भइया। इन ऑसु ओ ं पर आज तक भला ककसी का ़िोर
चला है जो मेरा चल जाएगा।"

मैं कनकध की बातें सु न कर चककत रह गया था। मुझे उसकी हालत का एहसास था।
क्ोंकक इश्क़ के अ़िाब तो मु झे पहले से ही हाकसल थे । कजनका असर आज भी ऐसा
है कक कदल हर पल तडप उठता है। ले ककन मैं अपनी बहन की मोहब्बत को कैसे
स्वीकार कर ले ता? मेरी माॅ एक आदशग िादी और उच्च किचारों िाली है। उसे अगर
ये पता चल गया कक उसकी अपनी औलादें ऐसा अनै कतक कमग कर रही हैं तो िो तो
जीते जी मर जाएगी। मु झे समझ नही ं आ रहा था कक मैं ककसे चु नूॅ? अपनी बहन की
मोहब्बत को या किर माॅ को?

"सब कुछ समय पर छोड दो गु कडया।" मैने कहा___"और हर पल यही कोकशश करो
कक ये सब तु म्हारे कदल से कनकल जाए।"
"नही ं कनकले गा भइया।" कनकध ने रोते हुए कहा___"मैने बहुत कोकशश की मगर नही ं

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कनकाल सकी मैं अपने कदल से आपको। खै र जाने दीकजए भइया। आप परे शान न
होईये। आज के बाद आपको कशकायत का मौका नही ं दू ॅगी।"

मैने कनकध को ध्यान से दे खा। उसके चे हरे पर दृढता के भाि कदखाई दे ने लगे थे । जैसे
उसने कोई िैंसला कर कलया हो। मैने उसकी ऑखों से ऑसू पोछे और किर िापस
बाइक पर आ गया। बाइक स्टाटग कर मैं आगे बढ गया। सारे रास्ते कनकध चु प रही।
मुझे भी समझ न आया कक मैं क्ा बातें करूॅ उससे । थोडी ही दे र में उसका स्कूल
आ गया। मैने उसे स्कूल के गेट पर उतारा और प्यार से उसके कसर पर हाॅथ िेर
कर आगे बढ गया। कनकध के बारे में सोचते सोचते ही मैं काॅले ज पहुॅच गया।
____________________________

पु कलस हेडक्वाटग र गुनगुन।


लम्बी चौडी मे ज के उस पार पु कलस ककमश्नर बै ठा हुआ था। कजसकी िदी पर लगी
ने म प्लेट में उसका नाम कुलभू षर् घोरपडे कलखा हुआ था। पचास से पचपन के बीच
की ऊम्र का िह एक प्रभािशाली ब्यल्कक्तत्व िाला इं सान था। उसके बाएॅ साइड की
एक कुसी पर इं िेक्टर ररतू बै ठी हुई थी। बाॅकी पू रा ऑकिस खाली था।

ररतू ने ककमश्नर से गु़िाररश की थी कक िो अपनी बात कसिग उनसे ही करे गी। उन


दोनो के बीच कोई तीसरा नही ं होना चाकहए। ककमश्नर चू ॅकक अच्छी तरह जानता था
कक ररतू हल्दीपु र के बघे ल पररिार की ठाकुर अजय कसं ह की बे टी है। इस कलए
उसकी इस गु़िाररश को उसने स्वीकार कर कलया था िरना पु कलस की एक मामूली
सी इं िेक्टर रैं क की ऑकिसर की इस कडमाण्ड को स्वीकार करना कदाकचत
ककमश्नर की शान में गुस्ताखी करने जैसा होता।

"सो ऑकिसर, अब बताओ कक ऐसी क्ा खास बात करनी थी तु म्हें कजसके कलए
तु मने हमसे ऐसी गु़िाररश की थी?" पु कलस ककमश्नर ने कहा___"ये तो हम समझ गए
हैं कक मामला यहाॅ के मंत्री और उसके बे टे का है। ले ककन ये समझ नही ं आया कक
अचानक से तु म्हारा प्लान कैसे बदल गया?"

"आप तो जानते हैं सर कक हमारा कानू न आज के समय में बडे बडे लोगों के हाथ की
कठपु तली बन कर रह गया है।" ररतू ने कहना शु रू ककया___"मंत्री के कजस बे टे ने
अपने दोस्तों के साथ उस मासू म लडकी के साथ िो कघनौना कुकमग ककया था उसके
कलए उसे कानू नन कोई स़िा कमल ही नही ं पाती। क्ोंकक उन सभी लडकों के बाप
इस शहर की नामची़ि हल्कस्तयाॅ हैं। उनके एक इशारे पर हमें पु कलस के लाॅकअप
का ताला खोल कर उन लडकों को छोंड दे ना पडता। हमारे पास भले ही चाहे कजतने
सबू त ि गिाह होते मगर हम उन सबू तों और गिाहों के बाद भी उन्हें कानू नी तौर

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कोई स़िा नही ं कदला पाते । उल्टा होता ये कक उन पर हाॅथ डालने िालों के साथ ही
कुछ बु रा हो जाता। िो लडकी बग़ैर इं साि पाए ही इस दु कनयाॅ से अलकिदा हो
जाती। आप नही ं जानते सर, उस लडकी को ब्लड कैंसर है। िह बस कुछ ही कदनों
की मे हमान है। उन दररं दों को उस पर ़िरा सी भी दया नही ं आई। आप उस लडकी
की कहानी सु नेंगे तो कहल कर रह जाएॅगे सर। इस छोटी सी ऊम्र में उसने ककतना
बडा त्याग ककया है इसकी आप कल्पना भी नही ं कर सकते हैं। ऐसे कुककमग यों का
एक ही इला़ि है सर___स़िा ए मौत। ऐसे लोगों को ह़िार बार क़िंदा करके ह़िारों
बार तडपा तडपा कर मारा जाए तब भी कम ही होगा। इस कलए सर मैने उन सबको
ऐसी ही स़िा दे ने का िैंसला ककया है।"

"दे खो ऑकिसर भािनाएॅ और जज़्बात रखना बहुत अच्छी बात है।" ककमश्नर ने
कहा___"ले ककन हमारे कानू न में भािनाओं और जज़्बातों के आधार पर ककसी का
िैंसला नही ं हुआ करता। बल्कि ठोस सबू तों और गिाहों के आधार पर ही िैंसला
होता है। तु म कानू न की एक रक्षक हो तु म्हें इस तरह का गैरकानू नी िैसला ले ने का
कोई हक़ नही ं है। ककसे स़िा दे नी है और कैसे दे नी है ये िैसला अदालत करे गी।
तु मने अपनी म़िी से ये जो क़दम उठाया है इसके कलए तु म्हें सिेण्ड भी ककया जा
सकता है। इस कलए बे हतर होगा कक तु म ये सब करने का किचार छोंड दो।"

"ये सब मैं आपको बताए बग़ैर भी कर सकती थी सर।" ररतू ने कहा___"मगर मैने
ऐसा ककया नही ं। आपको इस बारे में बताना अपना कानू नी ि़िग समझा था मैने।
िरना उन लडकों के साथ कब क्ा हो जाता ये कभी कोई जान ही नही ं पाता। ये बात
आप भी जानते हैं सर कक मंत्री खु द भी ग़ैर कानू नी काम धडल्ले के साथ करता है
और हमारा पु कलस कडपाटग मेंट उसके ल्कखलाि कोई कायगिाही करने की तो बात दू र
बल्कि ऐसा सोचता तक नही ं। ऐसा कौन सा अपराध नही ं है सर कजसे िो चौधरी
अं जाम नही ं दे ता? मगर आज तक उस पर कानू न ने हाथ नही ं डाला। कसिग इस डर
से कक कही ं उसका क़हर हमारे कडपाटग मेंट पर न बरस पडे । िाह सर िाह, क्ा कहने
हैं इस पु कलस कडपाटग मेंट के। अरे इतना ही डरते हैं उससे तो पु कलस की नौकरी ही न
करनी थी सर।"

"सब तु म्हारे जैसा नही ं सोचते हैं ऑकिसर।" ककमश्नर ने कहा___"और अगर सोचते
भी हैं तो बहुत जल्द उनकी िो सोच बदल भी जाती है। क्ोंकक कडपाटग मेंट में ऐसे कुछ
लोग भी होते हैं जो िदी तो पु कलस की पहनते हैं मगर नौकरी उस चौधरी के यहाॅ
करते हैं। उसकी जी हु़िूरी करते हैं। क्ोंकक इसी में िो अपना भला समझते हैं। हमें
सब पता है ऑकिसर ले ककन कुछ कर नही ं सकते । अगर करना भी चाहेंगे तो दू सरे
कदन ही हमारे सामने टर ाॅसिर ऑडग र आ जाएगा। ये सब तो आम बात हो गई है
ऑकिसर।"

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"कमाल की बात है सर।" ररतू ने कहा___"इस तरह में तो कोई काम ही नही ं हो
सकता। पु कलस की अकमगण्ड्ड्यता से नु कसान ककसका होगा? उन मासू म लोगों का
जो कदन रात अपने बीिी बच्चों के कलए खू न पसीना बहाते हैं, इसके बाद भी भर पे ट
िो अपने पररिार को खाना नही ं ल्कखला पाते । चरस और अिीम जैसे ़िहर का हर
कदन िो इसी तरह कशकार होते रहेंगे। ऐसे ही न जाने ककतनी लडककयों का रे प होता
रहेगा। और ये सब कुकमग करने िाले अपनी हर जीत का जश्न मनाते रहेंगे।"

"कानू न ने अपनी ऑखों पर पट्टी बाॅधी हुई है तु म भी ऑखों पर पट्टी बाॅध लो।"
ककमश्नर ने कहा___"इसी में इस कडपाटग मेंट का भला है ऑकिसर।"
"हकगग़ि नही ं सर।" ररतू के मुख से शै रनी की भाॅकत गुरागहट कनकली। एक झटके से
िह कुसी से खडी हो गई थी, बोली___"मैं इतनी कम़िोर नही ं हूॅ जो ऐसे गीदडों से
डर जाऊगी। आपको अपनी कचं ता है और इस कडपाटग मेंट की तो करते रकहए कचं ता।
मगर मैं चु प नही ं बै ठूॅगी सर। मैं उन हराम के कपल्लों को ऐसी स़िा दू ॅगी की
िररश्ों का भी कले जा कहल जाएगा।"

"कबहैि योरसे ल्फ ऑकिसर।" ककमश्नर ने शख्त भाि से कहा___"तु म कानू न को


अपने हाथों में नही ं ले सकती।"
"आपने मजबू र कर कदया है सर।" ररतू ने आहत भाि से कहा___"बडी उम्मीद के
साथ आई थी आपके पास। सोचा था कक आप मेरी मदद करें गे। मगर आप तो.....खै र
जाने दीकजए सर। मु झे बस एक सिाल का जिाब चाकहए आपसे । क्ा आप नही ं
चाहते हैं कक ऐसे लोगों को स़िा कमले ?"

"कबलकुल चाहते हैं ऑकिसर।" ककमश्नर ने कहा___"मगर हमारे चाहने से क्ा होता
है? हम तो बस मजबू र कर कदये जाते हैं कुछ न करने के कलए।"
"अगर आप सच में चाहते हैं सर।" ररतू ने कहा___"तो किर मेरा साथ दीकजए।
आपको करना कुछ नही ं है। बस इतना करना है कक अगर ऊपर से कोई बात आए
तो आप यही कहेंगे कक किधी रे प केस पर कोई कायगिाही नही ं की गई है। सबू त के
तौर पर आप उन्हें िाइलें भी कदखा सकते हैं। मैं आपको यकीन कदलाती हूॅ सर कक
आप पर और आपके इस कडपाटग मेंट पर ककसी भी तरह की कोई बात नही ं आएगी।
क्ोंकक मेरे पास उस मंत्री के ऐसे ऐसे सबू त हैं कक िो चाह कर भी हमारा कुछ बु रा
नही ं कर सकता। आप बस िो करते जाइये जो मैं कहूॅ। किर आप दे ल्कखए कक कैसे
मैं शहर से इस गंदगी और इस अपराध का नामो कनशान कमटाती हूॅ।"

"कैसे सबू त हैं तु म्हारे पास?" पु कलस ककमश्नर चौंका था।


"बस आप ये समकझए सर कक उस मंत्री की और उस जैसे लोगों की जान अब मेरी

415
मुिी में है।" ररतू ने कहा___"िो सब अपने हाथ पै र चलाना तो चाहेंगे मगर चला नही ं
पाएॅगे।"

"अगर ऐसी बात है ऑकिसर तो हम यकीनन तु म्हारे साथ हैं।" ककमश्नर ने एकाएक
गमगजोशी से कहा___"तु मने हमें पहले क्ों नही ं बताया कक तु म्हारे पास इन लोगों के
ल्कखलाफ़ इतने पु ख़्ता सबू त हैं?"

"आप मेरी बात ही कहाॅ सु न रहे थे सर।" ररतू ने सहसा मु स्कुरा कर कहा__"बस
जाने क्ा क्ा कहे जा रहे थे ।"
"ओह साॅरी ऑकिसर।" ककमश्नर हसा__"तो अब बताओ क्ा करना है आगे?"

"मैंने तो पहले ही करना शु रू कर कदया था सर।" ररतू ने कहा___"बस आपको इस


बात की जानकारी दे ना चाहती थी। अब तो आप बस आराम से यही ं पर बै ठ कर
न्यूज आने का इं त़िार कीकजए।"
"ओके ऐज योर किश।" ककमश्नर ने कंधे उचकाए___"एण्ड हमें बे हद खु शी हुई कक तु म
एक ईमानदार और बहादु र ऑकिसर हो। बे स्ट ऑि लक।"
"थैं क्ू सर।" ररतू ने कहा और किर ककमश्नर को सै ल्यूट कर िह ऑकिस से बाहर
कनकल गई।

बाहर आकर िह अपनी पु कलस कजप्सी में बै ठ कर हैडक्वाटग र से बाहर कनकल गई।
उसके चे हरे पर इस िक्त खु शी और जोश दोनो ही भाि गकदग श कर रहे थे । सडक पर
उसकी कजप्सी हिा से बातें करते हुए एक मोबाइल स्टोर की दु कान पर रुकी। ले ककन
किर जाने क्ा सोच कर उसने किर से कजप्सी को आगे बढा कदया।

आधे घंटे से कम समय में ही िह एक मकान के सामने आकर रुकी। उसने अपनी
पाॅकेट से अपना आईिोन कनकाला और उसमें कोई नं बर डायल ककया।

"बाहर आओ।" उसने काल कने क्ट होते ही कहा, और किर कबना उधर का जिाब
सु ने काल कट कर कदया। थोडी दे र बाद ही उसके पास एक आदमी आकर खडा हो
गया। िो आदमी यही कोई पच्चीस या तीस की उमर के आस पास का रहा होगा।

"जी मैडम ककहए क्ा आदे श है?" उस आदमी ने बडी शालीनता से कहा।
"एक काम करो अगर यहाॅ पास में कही ं कोई मोबाइल स्टोर हो तो एक मोबाइल
िोन खरीद कर ले आओ।" ररतू ने जेब से दो ह़िार के पाॅच नोट कनकाल कर उसे
दे ते हुए कहा__"और एक नई कसम भी। कोकशश करना कक कसम ऐसे ही कमल जाए
और तु रंत एल्कक्टिे ट भी हो जाए। तु म समझ रहे हो न?"

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"जी मैं समझ गया मैडम।" आदमी ने कसर कहलाते हुए कहा___"आप किक्र मत
कीकजए। यही ं पास में ही एक मोबाइल स्टोर है । मैं अभी दोनो ची़िें ले कर आता
हूॅ।"
"ठीक है।" ररतू ने दो नोट और उसकी तरि बढाए___"इन्हें भी ले लो। अगर कम
पडें तो लगा दे ना नही ं तो खु द रख ले ना।"

"ठीक है मैडम।" आदमी ने खु श होकर कहा___"मैं अभी ले कर आता हूॅ। आप यही ं


पर इं त़िार कीकजए।"
"ओके ठीक है।" ररतू ने कहा।

िो आदमी हिा की तरह िहाॅ से गायब हो गया। ररतू उसे यूॅ ते जी से जाते दे ख
बरबस ही मु स्कुरा पडी। सडक के ककनारे कजप्सी को खडे कर िह जाने ककन
खयालों में खो गई। चौंकी तब जब उस आदमी ने िापस आकर उसे आिा़ि दी।

"ये लीकजए मैडम।" आदमी ने एक छोटा सा थै ला पकडाते हुए कहा___"इसमें


सै मसं ग का एक मोबाइल है और एक कसम भी। दु कानदार ने कहा है कक आधे घंटे में
कसम चालू हो जाएगी"
"ओह िै री गुड।" ररतू ने कहा___"एण्ड थै र्क्। अब जाओ तु म।"
"अच्छा मैडम।" आदमी ने सलाम बजा कर कहा और चला गया।

ररतू थै ले को अपने बगल से रख कर कजप्सी को यू टनग कदया और आगे बढ गई। अब


उसकी कजप्सी का रुख शहर से बाहर की तरि था।
___________________________

मैं काॅले ज की पाककिंग में अपनी बाइक को खडी कर काॅले ज के अं दर की तरि


बढ गया। ये मुम्बई का सबसे बडा और टाप क्लास का काॅले ज था। मु झे पता था
काॅले जों में रै कगंग होना आम बात है। इस कलए मैं खु द भी इसके कलए तै यार था।
काॅले ज के अं दर कािी सारे स्टू डें ट्स थे । ले ककन मैं ये दे ख कर थोडा हैरान हुआ कक
एक जगह कािी भीड सी थी।

मैं समझ तो गया कक िो भीड ककस बात के कलए थी। मुमककन था कक िहाॅ पर
सीकनयर लोग ककसी जूकनयर की रै कगंग ले रहे होंगे। ले ककन हैरानी की बात ये थी कक
इतनी भीड क्ों थी िहाॅ पर। उत्सुकतािश मैं उसी तरि बढता चला गया।

थोडी ही दे र में मैं उस भीड के पास पहुॅच गया। ले ककन भीड की िजह से समझ
नही ं आया कक भीड के अं दर क्ा चल रहा है? तभी मेरे कानों में ़िोरदार चीख सु नाई

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पडी। ये ककसी लडकी की चीख थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसके साथ कोई ़िोर
़िबरदस्ती की जा रही थी। मेरा रोम रोम खडा हो गया। ककसी कम़िोर लडकी पर
़िोर ़िबरदस्ती? मु झसे ये सहा न गया। मैं एकदम से उस भीड का कहस्सा बने लोगों
को खी ंच कर दू र हटाने लगा। बडी मुल्किल से मैं उन लोगों के बीच से कनकलते हुए
अं दर की तरि पहुॅचा। अं दर का दृष्य ऐसा था कक मेरा कदमाग़ खराब हो गया।

अं दर कोई लडका ककसी लडकी के ऊपर चढा हुआ था। नीचे पडी लडकी बु री तरह
रोते हुए छटपटा रही थी और चीख रही थी। िो लडका उस लडकी के कपडे िाडने
पर तु ला हुआ था। उसके चारो तरि खडे कुछ लडके हस रहे थे । मु झे लडकी का
चे हरा ऩिर नही ं आ रहा था। मगर ये दृष्य दे ख कर मेरे अं दर गुस्से की आग धधक
उठी।

मैने ़िोर से एक लात उस लडके के पे ट के बगल में मारी। िो उस लडकी से हट कर


तथा लहराते हुए भीड के पास कगरा। चारो तरि िैली हुई भीड एकदम से कछतर
कबतर हो गई। मैने कजसे लात मारी थी उसके मुख से ़िोरदार चीख कनकल गई थी।
मगर िह जल्दी से उठ कर मेरी तरि पलटा।

"ककसकी मौत आई है?" िो लडका गरजते हुए बोला___"ककसकी इतनी कहम्मत हुई
कक मु झे मारा? आशू राना पर हाथ उठाया?"
"उस भीड की तरि क्ा दे ख रहा है?" मैने कहा___"ये सब तो नामदग हैं। नपुं षक
लोंग हैं ये। कसिग तमाशा दे खना जानते हैं। तु झे कुिे की तरह मारने िाला मदग तो
इधर खडा है।"

"तू ने मुझे मारा?" आशू राना ने अजीब भाि से ऑखें नचाते हुए कहा___"तु झे पता है
मैं कौन हूॅ? अबे मेरे बारे में जान जाएगा न तो मूत कनकल जाएगा ते रा, समझा
क्ा?"
"चल बता किर।" मैं उसकी तरि बढने लगा___"बता कौन है तू ? मैं भी तो दे खूॅ कक
ते रे बारे में जान कर मेरा मूत कनकलता है कक नही ं। चल बता जल्दी।"

"ये समझा रे इसे ।" आशू राना ने इधर उधर दे खते हुए कहा___"इसे समझाओ रे
कोई। ये साला आशू राना को नही ं जानता। ओ रहमान समझा बे इसे कक मैं कौन
हूॅ? इसे बता कक मेरा बाप कौन है?"
"क्ों ते रे क्ा बहुत सारे बाप हैं जो ये बोल रहा है कक ते रा बाप कौन है?" मैं उसके
करीब पहुॅच गया था। झपट कर उसकी गदग न दबोच ली मैने। अपनी गदग न दबोचे
जाने पर िह छटपटाने लगा। मु झ पर अपने दोनो हाॅथों से िार करने लगा।

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"ओए खडे क्ा हो सालो।" उसने कतरछी ऩिर से अपने साकथयों की तरि दे खते हुए
कहा___"मारो इसे । इसने मुझ पर हाथ उठाया है। इसका काम तमाम करना ही
पडे गा अब।"

चारो तरि खडे उसके साथी एक साथ मेरी तरि दौड पडे । मैंने आशू राना की गदग न
को छोंड कर एक पं च उसकी नाॅक पर ठोंक कदया। िह बु री तरह चीखते हुए जमीन
पर कगर गया। इधर चारो तरि से जैसे ही उसके साथी मेरे पास आए तो मैं एकदम से
पोजीशन में आ गया। जैसे ही एक मेरी तरि बढा मैने घूम कर बै क ककक उसके
चे हरे पर रसीद कर दी। िह उलट कर धडाम से कगरा। दू सरे के हाॅथ में मु झे चाकू
नजर आया। उसने चाकू िाला हाॅथ घु मा कदया मुझ पर। मैने बाएॅ हाथ से उसके
उस िार को रोंका और दकहने हाथ से एक मु क्का उसकी नाॅक में जड कदया। उसके
नाक से भल्ल भल्ल करके खू न बहने लगा। बु री तरह चीखते हुए िह भी लहराते हुए
कगर गया। मैं तु रंत पलटा और जल्दी से नीचे झुक भी गया। अगर नही ं झुकता तो
तीसरे िाले का हाॅकी का डं डा सीधा मेरे कसर पर लगता। मगर मैं ऐन िक्त पर झुक
गया था। हाॅकी का िार जैसे ही मेरे कसर के ऊपर से कनकल चु का तो मैं सीधा होकर
उछलते हुए उसकी पीठ पर एक ककक जमा दी। िह मु ह के बल जमीन चाटने लगा।
किर तो जैसे िहाॅ पर उन सबकी चीखों का शोर गूॅजने लगा। कुछ ही दे र में आशू
राना के सभी साथी जमीन पर पडे बु री तरह कराह रहे थे । मैं चलते हुए आशू राना
के पास गया और झुक कर उसका कालर पकड कर उठा कलया।

"अब एक बात मेरी भी सु न तू ।" मैने ठं डे स्वर में कहा___"तू चाहे यमराज का भी
बे टा होगा न तब भी मैं तु झे ऐसे ही धोऊगा। इस कलए आज के बाद ककसी लडकी के
साथ कुछ बु रा करने की सोचना भी मत। अब दिा हो जा यहाॅ से । आज के कलए
इतना कािी है मगर दू सरी बार तू सोच भी नही ं सकता कक मैं ते रा और ते रे इन
साकथयों का क्ा हाल करूॅगा।"

आशू राना के चे हरे पर डर कदखाई कदया मु झे। िो मेरे छोंडते ही िहाॅ से भाग कलया।
उसके पीछे उसके सभी साथी भी भाग कलए। कुछ दू र जाकर आशू राना रुका और
किर पलट कर बोला___"ये तू ने ठीक नही ं ककया। इसका अं जाम तो तु झे भु गतना ही
पडे गा।"
"अबे जा।" मैं दौडा उसकी तरि तो िो सरपट भागा बाहर की तरि।

उन लोगों के जाने के बाद मैं िापस पलटा। मै ने उस लडकी की तरि दे खा। िो


दू सरी तरि कसर झुकाए खडी थी। उसका दु पट्टा मेरे सामने कुछ ही दू री पर जमीन
में पडा हुआ था। मैं आगे बढ कर उसका पीले रं ग का दु पट्टा उठाया और उस लडकी
की तरि बढ गया।

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"ये लीकजए कमस।" मैने पीछे से उसे उसका दु पट्टा दे ते हुए बोला___"आपका दु पट्टा।"
"जी धन्यिाद आपका।" उसने मेरे हाॅथ से दु पट्टा कलया, और किर मेरी तरि पलटते
हुए बोली____"अगर आप नही ं आते तो िो न जाने मेरे सा...........।"

उसका िाक् अधूरा रह गया। मुझ पर ऩिर पडते ही उसकी ऑखे िैल गई। िह
आश्चयगचककत भाि से मुझे दे खने लगी। मेरा भी हाल कुछ िै सा ही था। जैसे ही िह
मेरी तरि पलटी तो मेरी ऩिर उसके चे हरे पर पडी। और मैं उसका चे हरा दे ख कर
उछल ही पडा था।

"नी..लम???" मेरे मुख से लरजता हुआ स्वर कनकला।


"रा......ज।" उसके मुख से अकिश्वसनीय भाि से कनकला।
"ओह साॅरी।" मैने एकदम से खु द को सम्हालते हुए कहा___"आपका दु पट्टा।"

मैने उसे उसका दु पट्टा पकडाया और तु रंत पलट गया। मैं उसके पास रुकना नही ं
चाहता था। मैं ते ज ते ज चलते हुए उस जगह से दू र चला गया। जबकक नीलम बु त बनी
िही ं पर खडी रह गई।

अपडे ट........《 38 》

अब तक,,,,,,,,,

उन लोगों के जाने के बाद मैं िापस पलटा। मै ने उस लडकी की तरि दे खा। िो


दू सरी तरि कसर झुकाए खडी थी। उसका दु पट्टा मेरे सामने कुछ ही दू री पर जमीन
में पडा हुआ था। मैं आगे बढ कर उसका पीले रं ग का दु पट्टा उठाया और उस लडकी
की तरि बढ गया।

"ये लीकजए कमस।" मैने पीछे से उसे उसका दु पट्टा दे ते हुए बोला___"आपका दु पट्टा।"
"जी धन्यिाद आपका।" उसने मेरे हाॅथ से दु पट्टा कलया, और किर मेरी तरि पलटते
हुए बोली____"अगर आप नही ं आते तो िो न जाने मेरे सा...........।"

उसका िाक् अधूरा रह गया। मुझ पर ऩिर पडते ही उसकी ऑखे िैल गई। िह
आश्चयगचककत भाि से मुझे दे खने लगी। मेरा भी हाल कुछ िै सा ही था। जैसे ही िह

420
मेरी तरि पलटी तो मेरी ऩिर उसके चे हरे पर पडी। और मैं उसका चे हरा दे ख कर
उछल ही पडा था।

"नी..लम???" मेरे मुख से लरजता हुआ स्वर कनकला।


"रा......ज।" उसके मुख से अकिश्वसनीय भाि से कनकला।
"ओह साॅरी।" मैने एकदम से खु द को सम्हालते हुए कहा___"आपका दु पट्टा।"

मैने उसे उसका दु पट्टा पकडाया और तु रंत पलट गया। मैं उसके पास रुकना नही ं
चाहता था। मैं ते ज ते ज चलते हुए उस जगह से दू र चला गया। जबकक नीलम बु त बनी
िही ं पर खडी रह गई।
_____________________________

अब आगे,,,,,,,,,,

उधर ररतू अपने िामगहाउस पर पहुॅची। हररया काका से उसने उन चारों का हाल
चाल पू छा और किर अपने कमरे की तरि बढ गई। कमरे में पहुॅच कर उसने
दरिाजा बं द ककया और कमरे में एक तरि रखी आलमारी की तरि बढी। आलमारी
को खोल कर उसने उस बै ग को कनकाला कजसे िह चौधरी के िामगहाउस से ले कर
आई थी। बै ग को बे ड पर रख कर उसने उसमें से कई सारी ची़िें कनकाल कर बे ड
पर रखा।

कुछ िोटोग्राफ्स थे उसमें, कुछ ले टसग और कई सारी पे नडर ाइव्स। ररतू ने उठ कर


आलमारी से अपना ले पटाॅप कनकाला। उसे ऑन ककया। कुछ दे र बाद जब िह ऑन
हो गया कदया तो ररतू ने उसमें एक पे नडर ाइि लगाया। कुछ ही पल में ले पटाॅप की
स्क्रीन पर पे नडर ाइि को ओपे न करने का ऑप्शन आया। ररतू ने उस पर ल्कक्लक
ककया। पर भर में ही स्क्रीन पर उसे बहुत सारी िोटोज और िीकडयोज कदखने लगी।

िोटोज दे ख कर ररतू का कदमाग़ खराब होने लगा। िो सारी िोटो न्यूड रूप में कई
सारी लडककयों की थी। ररतू उन लडककयों को पहचानती तो नही ं थी ले ककन िोटो में
उन लडककयों के पोज से उसे पता चल रहा था कक इन लडककयों की म़िी से ही ये
िोटोज खी ंचे गए थे । ररतू के चे हरे पर उन लडककयों के प्रकत नफ़रत और घ्रर्ा के
भाि उभर आए।

उसके बाद उसने एक िीकडयो पर ल्कक्लक ककया। ल्कक्लक करते ही िो िीकडयो चालू हो
गई। इस िीकडयो में जो लडका था िह रोकहत था। िो ककसी लडकी के साथ से र्क्
कर रहा था। लडकी अपनी दोनो टाॅगों को कैंची शक्ल दे कर रोकहत की कमर पर
जकडा हुआ था। ररतू ने िौरन ही िीकडयो को बं द कर कदया और दू सरी िीकडयो को

421
ओपे न ककया। इस िीकडयो में अलोक लडकी की चू ॅत चाट रहा था। ररतू ने तु रंत ही
िीकडयो बं द कर कदया। उसके अं दर गुस्सा बढने लगा था।

एक एक करके ररतू ने सारे िीकडयो दे ख कलए। िो सारे िीकडयो इन चारो लडकों के


ही थे जो अलग अलग लडककयों के साथ बनाए गए थे । ररतू ने ले पटाॅप से पे नडर ाइि
कनकाल कर अलग साइड पर रखा और दू सरा पे नडर ाइि ले पटाॅप पर लगा कदया।
कुछ ही दे र में उसने दे खा कक इस पे नडर ाइि में भी यही चारो लडके ककसी न ककसी
लडकी के साथ से र्क् कर रहे थे । ररतू ने उस पे नडर ाइि को भी अलग रख कदया। इसी
तरह ररतू एक एक पे नडर ाइि को ले पटाॅप पर लगा कर दे खती रही। कुछ पे नडर ाइव्स
में उसने दे खा कक इन चारों लडकों ने लडककयों को उनकी बे होशी में उनके सारे
कपडे उतारे और किर उनके साथ अलग अलग पोजीशन में से र्क् ककया था। ररतू
समझ सकती थी कक इन लडककयों के साथ इन लोगों ने धोखे से ये सब ककया था।
ज्यादातर पे नडर ाइव्स में इन लडकों के ही िीकडयोज थे ।

ररतू ने एक और पे नडर ाइि ले पटाॅप पर लगाया। इस पे नडर ाइि में कई िोल्डर बने
हुए थे । कजन पर नाम डाला हुआ था। एक िोल्डर पर कलखा था "डै डी"। ररतू ने तु रंत
ही इस िोल्डर को ओपे न ककया। स्क्रीन पर कई सारे िीकडयोज आ गए। एक
िीकडयो पर ल्कक्लक ककया ररतू ने । ल्कक्लक करते ही िीकडयो चालू हो गई। िीकडयो में
सू रज का बाप कदिाकर चौधरी ककसी लडकी के साथ से र्क् कर रहा था। ये िीकडयो
कसिग एक ही एं गल से कलया गया था। मतलब साि था कक कही ं पर िीकडयो कैमरा
छु पाया गया था और कदिाकर चौधरी को इस बात का पता ही नही ं था। िरना िो
अपनी ऐसी िीकडयो बनाने की सोचता भी नही ं।

ररतू ने िौरन ही िो िीकडयो काॅपी कर एक अलग से िोल्डर बना कर उसमें डाल


कदया। उसके बाद ररतू ने एक एक करके सभी िीकडयो दे खे। सभी िीकडयों में
कदिाकर चौधरी लडकी के साथ से र्क् कर रहा था। ररतू ने दू सरा िोल्डर खोला।
उसमें भी िीकडयोज थे । ररतू समझ गई कक ये उन लोगों के काले कारनामों के
िीकडयोज हैं कजनका सं बंध कदिाकर चौधरी से है।

उन चारो लडकों बापों के िीकडयोज भी इसमें थे । ररतू के कलए ये कािी मसाला था


कदिाकर चौधरी को काबू में करने के कलए। उसने उन चारो लडकों के बापों का एक
एक िीकडयो अपने लै पटाॅप में बनाए गए उस िोल्डर में डाल कलया।

सारे सामान को िापस बै ग में भर कर उसने उस बै ग को िापस आलमारी में रख कर


आलमारी को लाॅक कर कदया। इसके बाद िह पलटी और एक तरि रखे उस छोटे
से थै ले को उठाया कजसमें आज का खरीदा हुआ मोबाइल िोन और कसम था। उसने

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थै ले से िोन कक कडब्बा कनकाला और उसे खोलने लगी। मोबाइल कनकाल कर उसने
मोबाइल के चाजगर को भी कनकाला। चाजगर में एक अलग से केबल थी। उसने उस
केबल को मोबाइल में लगाया और दू सरा कसरा लै पटाॅप में। तु रंत ही लै पटाॅप की
स्क्रीन पर एक ऑप्शन आया। मोबाइल की स्क्रीन पर भी शो हुआ। ररतू ने से कटं ग
सही की और किर उन िीकडयोज को काॅपी कर मोबाइल के स्टोरे ज पर पे स्ट कर
कदया। चारो िीकडयोज कुछ ही दे र में मोबाइल में अपलोड हो गई।

इसके बाद ररतू ने केबल कनकाल कर िापस मोबाइल के कडब्बे पर रख कदया। एक


ऩिर उसने मोबाइल की बै टरी पर डाली तो पता चला कक मोबाइल पर अभी 27%
बै टरी है। ररतू ने िौरन ही चाजगर कनकाल कर मोबाइल िोन को चाकजिंग पर लगा
कदया। इसके बाद िह कमरे का दरिाजा खोल कर बाहर कनकल गई।

बाहर आकर उसने काकी से काका को बु लिाया। थोडी ही दे र में हररया काका ररतू
के पास आ गया।
"का बात है कबकटया?" काका ने कहा__"ऊ कबं कदया ने हमसे कहा कक तु म हमका
बु लाई हो।"

"हाॅ काका।" ररतू ने कहा___"मैने सोचा कक एक ऩिर मैं भी दे ख लू ॅ उन चारो


कपल्लों को। िै से उन सबकी खाकतरदारी में कोई कमी तो नही ं की न आपने ?"
"अइसन होई सकत है का कबकटया?" हररया काका ने अपनी बडी बडी मू ॅछों पर
ताि दे ते हुए कहा___"तु म्हरे हर आदे श का हम बहुतै अच्छी तरह से पालन ककया हूॅ।
ऊ ससु रन केर अइसन खाकतरदारी ककया हूॅ कक ससु रन केर नानी का नानी केर
नानी भी याद आ गई रहे।"

"अगर ऐसी बात है तो बहुत अच्छा ककया है आपने ।" ररतू ने कहा___"उनकी
खाकतरदारी करने की कजम्मेदारी आपकी है। उनकी खाकतरदारी के कलए आप शं कर
काका को भी बु ला लीकजएगा।"

"अरे ना कबकटया।" हररया काका ने झट से कहा___"ऊ ससु रे शं करिा केर कौनि


जरूरत ना है। हम खु दै कािी हूॅ ऊ ससु रन केर खाकतरदारी करैं केर खाकतर। ऊ
का है ना कबकटया ऊ शं करिा से ई काम होई नही ं सकत है। ई ता हम हूॅ जो यतनी
अच्छी तरह से खाकतरदारी कर सकत हूॅ।"

"ओह ऐसी बात है क्ा?" ररतू मु स्कुराई।


"अउर नही ं ता का।" काका ने सीना तान कर कहा___"हम ता ई काम मा बहुतै
एकसपरट हूॅ कबकटया।"

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"काका िो एकसपरट नही ं बल्कि एर्क्पटग होता है।" ररतू ने हसते हुए कहा।

"हाॅ हाॅ ऊहै कबकटया।" हररया काका ने झेंपते हुए कहा___"ऊहै एर्क्परट हूॅ।"
"अच्छा चकलए अब।" ररतू ने कहा___"मैं भी तो दे खूॅ कक आपने कैसी खाकतरदारी
की है उन लोगों की?"
"कबलकुल चला कबकटया।" काका ने बडे ही आत्मकिश्वास के साथ कहा___"ऊ लोगन
का दे ख के तु म्हरे समझ मा जरूर आ जई कक हम खाकतरदारी करैं मा केतना
एकसपरट हूॅ हाॅ।"

ररतू , काका की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने में पहुॅची। तहखाने का ऩिारा पहले
की अपे क्षा ़िरा अलग था इस िक्त। उन चारों की हालत बहुत खराब थी। उन लोगों
से ठीक से खडे नही ं हुआ जा रहा था। सबसे ज्यादा सू रज चौधरी की हालत खराब
थी। िह कबलकुल बे जान सा जान पडता था। बाॅकी तीनों उससे कुछ बे हतर थे । उन
सभी की गदग नें नीचे झुकी हुई थी। जबकक उनके सामने िाली दीिार पर बधे दोनो
गाड्ग स की हालत खराब तो थी पर उन चारो जैसी दयनीय नही ं थी। इसकी िजह ये
थी कक हररया या ररतू ने उन पर ककसी भी तरह से हाॅथ नही ं उठाया था। िो तो बस
बधे हुए थे ।

"काका एक बात समझ में नही ं आई।" ररतू ने उन चारों को ध्यान से दे खते हुए
कहा__"इन चारों में से सबसे ज्यादा इस मंत्री के हरामी बे टे की हालत खराब क्ों हैं
जबकक बाॅकी ये तीनों इससे तो ठीक ठाक ही ऩिर आ रहे हैं।"

ररतू की ये बात सु न कर हररया काका बु री तरह हडबडा गया। उससे तु रंत कुछ
कहते न बना। भला िह कैसे बताता ररतू को कक उसने सू रज चौधरी की गाॅड मार
कर ऐसी बु री हालत की थी जबकक बाॅकी िो तीनो तो उसे दे ख दे ख कर ही अपनी
हालत खराब कर बै ठे थे । हररया ने उन तीनों की अभी गाॅड नही ं मारी थी। उसने
सोचा था कक एक कदन में एक की ही तबीयत से गाॅड मारे गा।

"ऊ का है न कबकटया।" हररया काका ने झट से कहा___"हम ई सोचत रहे कक ई


ससु रन केर एक एक करके खाकतरदारी करूॅगा। कल ता हम ई ससु रे की
खाकतरदारी ककया हूॅ अउर आज दु सरे केर नम्बर हाय।"
"ओह तो ये बात है।" ररतू ने कहा__"चलो ठीक है जैसे आपको ठीक लगे िै सा
खाकतरदारी कररये। बस इतना ़िरूर ध्यान दीकजएगा कक इनमें से कोई मर न जाए।"

"कचन्ता ना करा कबकटया।" काका ने कहा__"ई ससु रे कबना हमरी इजाजत के मर


नाही ं सकत। जब तक हम इन सब केर पे ल न लू ॅगा तब तक ई कउनि ससु रे मर

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नाही ं सकत हैं।"
"क्ा मतलब?" ररतू को समझ न आया।
"अरे हम ई कह रहा हूॅ कबकटया कक जब तक हम ई ससु रन केर अच्छे से खाकतरदारी
न कर लू गाॅ।" काका ने बात को सम्हालते हुए कहा___"तब तक ई ससु रे कउनि
नाही ं मर सकत। काहे से के ई हमरी ख्वाईश केर बात है हाॅ।"

"ख्वाकहश के बात?" ररतू चौंकी___"इसमें आपकी कौन सी ख्वाकहश की बात है


काका?"
"अरे हमरा मतबल है कबकटया कक खाकतरदारी करैं केर ख्वाईश िाली बात।" काका
मन ही मन खु द पर गुस्साते हुए और ल्कखकसयाते हुए बोला___"ई ता तु मको भी पता है
कबकटया कक हमका केहू केर खाकतरदारी करैं का केतना शौक है। उहै बात हम
करथैं ।"

तहखाने में इन लोगों की आिा़ि गूॅजते ही उन चारों को होश आया। दरअसल िो


उस हालत में ही ऊघ रहे थे । इन लोगों की आिा़ि काॅनों में टकराने से उन लोगों
को होश सा आया था। उन चारों ने कसर उठा कर ररतू और काका की तरि दे खा।
काका को दे ख कर िो चारो बु री तरह घबरा गए। ले ककन जैसे ही उनकी ऩिर ररतू
पर पडी तो उनमें उम्मीद की कोई आसा ऩिर आई।

"इ इं िेक्टर इं िेक्टर।" अलोक ने मरी मरी सी आिा़ि में कचल्लाते हुए कहा___"हमें
यहाॅ से कनकालो प्ली़ि। हमें छोंड दो इं िेक्टर, हमे यहाॅ जाने दो िरना ये आदमी
हमारी जान ले ले गा।"

"हाॅ हाॅ इं िेक्टर हमे जल्दी से यहाॅ से कनकालो। ये आदमी बहुत खतरनाॅक
है।" रोकहत मेहरा कगडकगडा उठा___"इसने सू रज की बहुत बु री हालत कर दी है।
प्ली़ि इं िेक्टर हमें इस आदमी से बचा लो। हम तु म्हारे आगे हाॅथ जोडते हैं। तु म्हारे
पै र पडते हैं । हमें छोड दो प्ली़ि।"

"अबे चु प।" हररया काका इस तरह उन चारों की तरि दे ख कर गरजा था जैसे कोई
शे र दहाडा हो___"हम कहता हूॅ चु प कर ससु रे िरना हमका ता जान गए हो न।
ससु रे टें टुआ दबा दू गा हम तु म सबकेर।"

हररया की दहाड का तु रंत असर हुआ। उन चारों की बोलती इस तरह बं द हो गई जैसे


कबजली के ल्कस्वच से बटन बं द कर दे ने पर बजते हुए टे पररकाडग र का बजना बं द हो
जाता है। मगर िो चु प ़िरूर हो गए थे मगर उन सबकी ऑखों में करुर् याचना और
किनती करने जैसे भाि िष्टरूप से कदख रहे थे ।

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"तु म लोगों के कलए अब कोई रहम नही ं हो सकता समझे?" ररतू ने कठोरता से
कहा___"तु म लोगों ने जो पाप ककया है और जो भी अपराध ककया उसके कलए तु म
सबको अब यही ं पल पल मरना है।"

"हमें मारना ही है तो एक ही बार में हमारी जान ले लो इं िेक्टर।" कनल्कखल ने


कहा__"पर इस आदमी के हिाले मत करो हमे। ये आदमी बहुत बे रहम है। इसने
सू रज के साथ बहुत बु रा ककया है।"

"कचन्ता मत करो।" ररतू ने कहा___"अभी इससे भी बु रा होगा तु म सबके साथ। दू सरों


की बहन बे कटयों की इज्ज़ित लू टने का बहुत शौक है न तु म लोगों को तो अब खु द भी
भु गतो। तु म सबका िो हाल होगा कजसकी कभी ककसी ने कल्पना भी न की होगी।"

"ई लोगन का का करना है कबकटया?" काका ने उन दो गाडों की तरि दे खते हुए


कहा__"हमका लागत है ई ससु रे िालतू मा ईहाॅ कस्ट उठाय रहे हैं।"
"इन दोनो को छोंड नही ं सकते हैं।" ररतू ने कहा___"क्ोंकक ये दोनो हमारा काम
खराब कर दें गे। इस कलए इन लोगों को यही ं पर रहने दो। बस इन पर हाॅथ नही ं
उठाना। इन्होने कोई अपराध नही ं ककया है।"

"हम ककसी से कुछ नही ं कहेंगे बे टी।" एक गाडग ने कहा___"हम अपने बाल बच्चों की
कसम खाकर कहते हैं कक हम ककसी से भी आपके और इन लोगों के बारे में कुछ
नही ं बताएॅगे। हम इस शहर से ही बहुत दू र चले जाएॅगे। ताकक इन लोगों के बाप
हमें ढू ॅढ ही न पाएॅ।"

"हम आप दोनो पर कैसे यकीन करें ?" ररतू ने कहा___"आप खु द सोकचए कक अगर
आप हमारी जगह होते तो क्ा करते ?"
"हम सब समझते हैं कबकटया।" दू सरे गाडग ने कहा___"मगर यकीन तो करना ही
पडे गा न कबकटया। क्ोंकक हम अगर चाहें भी तो यकीन नही ं कदला सकते । हमारे पास
कोई सबू त भी नही ं है कजसकी िजह से हम आपको यकीन कदला सकें। पर आपको
सोचना चाकहए बे टी कक कोई बाप अपने बाल बच्चों की झॅ ू ठी क़सम नही ं खाया
करता। अधमी से अधमी आदमी भी अपनी औलाद की झठ ू ी कसम नही ं खाता। हम
तो गरीब आदमी है बे टी। दो पै से के कलए इनके यहाॅ काम करते थे । मंत्री ने हमारे
हाॅथ में बं दूखें पकडा दी। हम तो उन बं दूखों को चलाना भी नही ं जानते थे ।"

दोनो गाडों की बातें सु न कर ररतू और हररया सोच में पड गए। िो दोनो ही इन्हें सच्चे
लग रहे थे । उनकी बातों में सच्चाई की झलक थी। मगर हालात ऐसे थे कक उन्हें
छोंडना भी नीकत के ल्कखलाफ़ था। मगर किर भी ररतू ने ये सोच कर उनको छोंड दे ने

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का िैसला कलया कक कजनसे ये लोग बताएॅगे िो लोग तो खु द ही बहुत जल्द इसी
तहखाने में आने िाले हैं।

ठीक है।" ररतू ने कहा___"हम तु म दोनो को छोंड रहे हैं। कसिग इस कलए कक तु म
दोनों ने अपने बच्चों की कसम खा कर कहा हैं तु म लोग यहाॅ के बारे में या इन चारों
के बारे में ककसी से कुछ नही ं कहोगे।"

"ओह धन्यिाद बे टी।" गाडग ने खु श होते हुए कहा___"हम सच कह रहे हैं हम ककसी
से कुछ नही ं कहें गे। हम आज ही अपने गाि अपने प्रदे श चले जाएॅगे। काम ही तो
करना है कही ं भी कर लें गे।"

"काका इन दोनो को छोंड दो।" ररतू ने हररया से कहा___"और यहाॅ से इन्हें ले


जाकर शं कर काका के पास ले जाओ। काका से कहना कक इन्हें नहला धुला कर तथा
अच्छे से खाना ल्कखलाकर रे लिे स्टे शन ले जाएॅ और इनके राज्य की तरि जाने
िाली टर े न में बै ठा आएॅ।"

"ठीक है कबकटया।" हररया ने कहा___"हम अभी इनका छोंड दे ता हूॅ।" कहने के


साथ ही हररया आगे बढा और किर कुछ ही दे र में उन दोनो को रल्कस्सयों के बं धन से
मुक्त कर कदया। उन दोनो के हाॅथ अकड से गए थे । नीचे लाने में थोडी तक़लीफ़
हुई।

"बे टी एक ची़ि की इजा़ित चाहते हम।" एक गाडग ने ररतू से कहा था।


"कहो क्ा चाहते हो?" ररतू ने कहा।
"इन चारों को एक एक थप्पड लगाना चाहते हैं हम।" उस गाडग के लहजे में एकाएक
ही आक्रोश कदखा___"ये अधमी ि दु राचारी लोग हैं। इन लोगों की िजह से सच में
ककतनी ही मासू म लडककयों की कजदगी बरबाद हो गई।"

ररतू ने उन्हें इजा़ित दे दी। इजा़ित कमलते ही दोनो उन चारों की तरि बढे और किर
खी ंच कर एक थप्पड उन चारों के गालों पर रसीद कर कदया। चारों के हलक से चीखें
कनकल गई। ऑखों से पानी छलक पडा।

"धन्यिाद बे टी।" दू सरे गाडग ने कहा__"इन लोगों के साथ बदतर से बदतर सु लूक
करना। हररया भाई, आप कबलकुल ठीक कर रहे हैं।"

इसके बाद हररया उन दोनो को ले कर तहखाने से बाहर कनकल गया। ररतू खु द भी


तहखाने से बाहर आ गई थी। तहखाने का गेट बं द कर िो अपने कमरे की तरि बढ
गई।

427
______________________________

नीलम को उसका दु पट्टा पकडा कर मैं एक झटके से पलट कर काले ज की कंटीन


की तरि बढता चला गया था। इस िक्त मेरे मन में तू िान चालू था। मैं सोच भी नही ं
सकता था कक आज काले ज में नीलम से मेरी इस तरह से मुलाक़ात होगी। नीलम को
दे ख कर मेरी ऑखों के सामने किर से कपछली क़िंदगी की ढे र सारी बातें ककसी
चलकचत्र की माकनन्द कदखती चली गई थी। कजनमें प्यार था, घ्रर्ा थी, धोखा था। मेरा
कदलो कदमाग़ एकदम से ककसी भिर में िसता हुआ महसू स हुआ मु झे।

कंटीन में पहुॅच कर मैं एक कुसी पर चु पचाप बै ठ गया और अपनी ऑखें बं द कर


ली। मु झे अपने अं दर बहुत बे चैनी महसू स हो रही थी। मुझे कुछ भी अच्छा नही ं लग
रहा था। मेरा कदल रह रह कर दु खी होता जा रहा था। मेरी ऑखों में ऑसु ओ ं का
सै लाब सा उमडता हुआ लगा मुझे। मैने अपने अं दर के जज़्बात रूपी तू िान को बडी
मुल्किल से रोंका हुआ था। मैं नही ं जानता कक मेरे िहाॅ से चले आने के बाद नीलम
पर क्ा प्रकतकक्रया हुई।

मुझे नही ं पता कक मैं उस हालत में कंटीन पर ककतनी दे र तक बै ठा रहा। होश तब
आया जब ककसी ने पीछे से मेरी पीठ पर ़िबरदस्त तरीके से िार ककया। उस िार से
मैं कुसी समेत जमीन पर मुह के बल पछाड गया। अभी मैं उठ भी न पाया था कक मेरे
पे ट पर ककसी के जूतों की ़िोरदार ठोकर लगी। मैं उछलते हुए दू र जाकर कगरा।

मगर कगरते ही उछल कर खडा हो गया मैं। मे री ऩिर मेरे सामने से आते एक हट्टे
कट्टे आदमी पर पडी। उसकी ब्वाडी ककसी भी मामले में ककसी रे सलर से कम न थी।
मुझे समझ न आया कक ये कौन है, कहाॅ से आया है और मु झ पर इस तरह अटै क
क्ों ककये जा रहा है।

"हीरो बनने का बहुत शौक है न तु झे?" उस आदमी ने अजीब भाि से कहा___"साले


मेरे छोटे भाई पर हाॅथ उठाया तू ने। तु झे इसका अं जाम भु गतना ही पडे गा। ऐसी
ऐसी जगह से ते री हकड्डयाॅ तोडूॅगा कक दु कनयाॅ का कोई डाॅक्टर ते री हकड्डयों को
जोड नही ं पाएगा।"

"ओह तो तु म उस हराम के कपल्ले के बडे भाई हो।" मैने कहा___"और मुझसे अपने
छोटे भाई का बदला ले ने आए हो। अच्छी बात है, ले ना भी चाकहए। मगर, मेरी एक
िरमाइश है भाई।"
"क्ा बक रहा है तू ?" िो आदमी शख्ती से गुरागया___"कैसी िरमाइश?"

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"मेरी िरमाइश ये है कक एक एक करके आने का कोई मतलब नही ं है।" मैने
कहा__"ऐसे में कसिग िक्त की बबागदी होगी। इस कलए एक काम करो। तु म्हारे पास
कजतने भी आदमी हों उन सबको यही ं पर बु ला लो। उसके बाद मुकाबला करें तो
थोडा म़िा भी आए।"

"साले बहुत बोलता है तू ।" िो आदमी मेरी तरि बढते हुए बोला___"ते रे कलए मैं ही
कािी हूॅ। अभी ते री हकड्डयों का चू रमा बनाता हूॅ रुक।"

िो मेरे पास आते ही मु झ पर अपनी बकलस्ट भु जा का िार कर कदया। मैं तो पहले से


ही चौकन्ना हो गया था और जानता भी था कक अगर इसका एक िार भी मु झे लग गया
तो मेरी हालत खराब हो जानी थी। खै र, जैसे ही उसने ते जी से अपना दाकहना हाथ
घुमाया, मैं िौरन ही नीचे झुक गया। उसका हाथ मेरे ऊपर से कनकल गया। उसके
सम्हलने से पहले ही मैने उछल कर एक फ्लाइं ग ककक उसकी कनपटी पर जड दी।
िो धडाम से जमीन पर कगरा। मु झे हैरानी हुई मगर मु झे उसके कगरने का कारर्
समझ आ गया। गुस्से में यही होता है। मुझे मारने के कलए जब उसने गु स्से से अपना
हाथ घुमाया था तो मैं झुक गया था। उसका हाथ जैसे ही मेरे कसर से कनकला िै से ही
उछल कर मैने ़िोरदार फ्लाइं ग ककक उसकी कनपटी पर जडी थी। िो सम्हल नही ं
पाया था। अपने ही प्रहार के िे ग में िह मेरे प्रहार के लगते ही धडाम से कगरा था।

उसके कगरते ही मैंने उछल कर उसके ऊपर जंप मारी मगर िह पलट गया। जैसे ही
मेरे दोनो पै र जमीन पर आए उसकी एक टाॅग घूम गई और मेरी एक टाॅग पर
लगी। नतीजा ये हुआ कक मैं कपछिाडे के बल कगर गया मगर पल भर में ही उछल कर
खडा भी हो गया। और सच कहूॅ तो ये मेरा भाग्य ही अच्छा था कक मैं उछल कर
खडा हो गया था। क्ोंकक जैसे ही मैं कगरा था िै से ही उसने ते ़िी अपनी दाकहनी
कोहनी का िार मेरी छाती की तरि ककया था। मगर मेरे उछल कर खडे हो जाने पर
उसका िो िार जमीन पर ते जी से लगा। कोहनी का तीब्र िार जब पक्की ़िमीन से
टकराया तो उसके हलक से चीख कनकल गई। अपनी कोहनी को दू सरे हाथ से जल्दी
जल्दी सहलाने लगा था िह। ऐसा अिसर छोंडना कनहायत ही बे िकूिी थी। मैने
अपनी दाकहनी टाॅग पू री शल्कक्त से घु मा दी। जो कक उसकी कनपटी पर लगी। िो
दू सरी कनपटी के बल ़िमीर पर कगर गया। उसका कसर ़िोर से ़िमीन से टकराया
था। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख कनकल गई। कनकश्चत ही उसकी ऑखों के
सामने कुछ पल के कलए अधेरा छा गया होगा।

अब मैने रुकना मुनाकसब न समझा। मैं एकदम से कपल पडा उस पर। लात घूॅसों से
उसकी जमकर ठोकाई की मैने। िो बचने के कलए इधर उधर हाॅथ पै र मार रहा था।
जबकक मैं कबजली की िीड से उस पर िार ककये जा रहा था। अचानक ही उसके

429
हाथ में मेरी टाॅग आ गई। उसने मेरी उस टाॅग को पकड कर पू री शल्कक्त से उछाल
कदया। मैं हिा में लहराते हुए एक टे बल पर कगरा। मेरी पीठ पर टे बल का ककनारा
बडी ते ़िी से लगा। मैं चाह कर भी उस ददग से कनकलने िाली चीख को रोंक न सका।
तभी मेरी ऩिर सामने पडी और मैं पलक झपकते ही ददग को बरदास्त करके टे बल से
हट गया। नतीजा ये हुआ कक मेरे हटते ही टे बल पर कुसी का ते ़ि प्रहार पडा और
टे बल ि कुसी दोनो ही टू टती चली गई।

इधर प्रहार करने के बाद िो आदमी सम्हल भी न पाया था कक एक कुसी उठा कर


मैने बडी ते ़िी से उसके कसर पर िार कर कदया। िार ़िबरदस्त था। हाॅथ में टू टी हुई
कुसी कलए िह सामने टू टी हुई ही टे बल पर मु ह के बल कगर गया। कसर से भल्ल भल्ल
करके खू न बहने लगा था उसके। मु झे समझते दे र न लगी कक उसका कसर िट गया
है। िह बु री तरह चीखा था। कंटीन में उसकी चीख गूॅज गई थी। ले ककन मैं रुका
नही ं। मैंने िही कुसी एक बार किर से अपने कसर से ऊपर तक उठा कर उस पर
पटक दी। इस बार उसकी पीठ पर कुसी लगी थी। लकडी की कुसी थी िो। उसके
दो पाए चटाक से टू ट गए। िो आदमी धडाम से िही ं पर पसर गया।

अभी मैं उस पर किर से िार करने ही िाला था कक मैंने दे खा कक िो आदमी एकदम


से कसकथल पड गया था। मैने अपने हाॅथ में ली हुई कुसी िेंक दी। झपट कर मैं
उसके पर पहुॅचा। िो बु री तरह खू न में नहाये जा रहा था। उसके मुख से कराहटें
कनकल रही थी। मु झे लगा साला कही ं मर ही न जाए। िरना पं गा हो जाएगा।

मैने दे खा उसकी ऑखें बं द होती जा रही थी। मैं ये दे ख कर बु री तरह घबरा गया।
इधर उधर दे खा तो चौंक गया। पू री कंटीन में लडके लडककयों की भीड जमा थी।
सब लोग िटी िटी ऑखों से दे खे जा रहे थे ।

"भाईऽऽऽ।" तभी उस भीड से आशू राना चीखते हुए आया, बु री तरह रोने लगा था
िह___"ये क्ा हो गया भाई तु म्हें? उठो भाई, मेरी तरि दे खो ना भाई।"
"दे खो इस तरह रोने से कुछ नही ं होगा समझे ।" मैने कहा___"इसे जल्दी से
हाल्किटल ले जाना पडे गा िरना ये मर जाएगा।"

"तु मने मारा है मेरे भाई को तु मने ।" आशू राना ने कबिरे हुए लहजे में कहा___"अगर
मेरे भाई को कुछ भी हुआ तो आग लगा दू ॅगा मैं इस पू रे काॅले ज में।"
"दे खो ये सब बातें तु म बाद में भी कर ले ना भाई।" मैने उसके भाई की हालत को
दे खते हुए कहा___"पहले एम्बू लेंस को बु लाओ।"

"एम्बू लेंस की ़िरूरत नही ं है।" आशू राना ने रोते हुए कहा___"मेरा भाई अपनी
गाडी से आया था। बाहर खडी है।"

430
"ओह ठीक है किर।" मैने कहा___"इसे गाडी तक ले चलने में मेरी मदद करो। ये
बहुत भारी है मैं अकेले इसे कैसे ले जाऊगा?"

मेरे कहने पर आशू राना ने अपने भाई को एक तरि से पकडा, दू सरी तरि से मैंने
उसे पकडा। कािी मे हनत के बाद आल्कखर मैं और आशू राना उसके भाई को गाडी
तक ले आकर उसे कार की कपछली सीट पर ले टा कदया।

"कार की चाभी दो मुझे।" मैने आशू राना से कहा___"तु म अपने भाई को ले कर पीछे
बै ठ जाओ। मैं कार को जल्दी से हाल्किटल ले चलता हूॅ।"
"पहले तो मेरे भाई को मार कर इस हालत में पहुॅचा कदया और अब उसे हाल्किटल
भी ले जा रहे हो।" आशू राना ने गुस्से मे कहा__"ये बहुत अच्छा कर रहे हो तु म, है न?
मगर याद रखना कक इसका कहसाब तु म्हें दे ना होगा।"

"हाॅ ठीक है यार ले ले ना कहसाब।" मैने उसके हाथ से चाभी खी ंचते हुए
कहा___"पहले जो ़िरूरी है िो तो करने दो।"

मैं कार की डर ाइकिं ग सीट पर बै ठ कर कार के इग्नीशन में चाभी लगाया और घुमाकर
उसे स्टाटग ककया। मैने दे खा कक काॅले ज के कािी सारे लडके लडककयाॅ बाहर आ
गए थे । उनमें एक चे हरा नीलम का भी था। िह मु झे दे खकर हैरान थी। मैने उससे
ऩिर हटाई और कार को एक झटके से आगे बढा कदया।

ऑधी तू िान बनी कार बहुत जल्द हाल्किटल के सामने आकर खडी हो गई। मैं झट
से गेट खोल कर बाहर आया। कपछला गेट खोल कर मैने आशू राना को बाहर आने
को कहा। मैने ऩिर घुमा कर दे खा तो दो लोग एक खाली स्टरे चर को कलए जा रहे थे ।
मैंने झट से उनको आिा़ि दी। िो मुड कर मे री तरि दे खने लगे।

"अरे जल्दी स्टरे चर ले आओ।" मैने कचल्लाते हुए कहा___"इट् स अजेन्ट।"


मेरी बात सु नकर िो तु रंत ही हमारी तरि दौडते हुए आए। हम चारों ने आशू राना के
भाई को सीट से कनकाल कर स्टरे चर पर कलटाया। हाल्किटल िाले आदमी उसे उठा
कर ले जाने लगे। मैं और आशू राना भी उनके पीछे हो कलए।

कुछ ही दे र में िो लोग आशू के भाई को ओटी में ले गए। इधर आशू राना ऑखों में
ऑसू कलए हाल्किटल की गैलरी में इधर से उधर बे चैनी और परे शानी में टहलने लगा।

"उम्मीद है कक बहुत जल्द तु म्हारा भाई पहले के जैसा हो जाएगा।" मैने आशू राना
की तरि दे ख कर कहा था।
"बात मत करो तु म मुझसे ।" आशू राना अजीब भाि से गुरागया___"मेरे भाई की इस

431
हालत के तु म ही कजम्मेदार हो।"

"दे ख भाई, ये जो कुछ भी हुआ है न उसका कजम्मेदार कसिग तू है समझा?" मैने भी


शख्त भाि से कहा___"तू ने काले ज में उस लडकी की इज्ज़ित पर हाथ डाला। इस
कलए मैने उस लडकी की इज्ज़ित बचाने के कलए तु झ पर हाथ उठाया। और तू ने क्ा
ककया? तू गया तो अपने बडे भाई को बु ला लाया अपनी हार और अपनी मार का
बदला ले ने के कलए। इस कलए ये तो होना ही था। हम दोनो में से ककसी एक के साथ
तो ये होना ही था। िक्त और हालात की बात है। मेरा दाॅि चल गया और मैने ते रे
भाई की ये हालत बना दी। िरना कोई नही ं सोच सकता था कक ते रे उस मु स्टंडे भाई
से मैं बचू ॅगा।"

अभी आशू राना कुछ बोलने ही िाला था कक सहसा हमारे पास डाॅक्टर आ गया।
"दे ल्कखये कसर पर गहरी चोंट लगी है।" डाक्टर कह रहा था___"कसर िट गया है
कजसकी िजह से खू न कािी मात्रा में कनकल गया है। हमने ब्लड टे स्ट ककया तो
उनके ग्रुप का ब्लड हमारे हाल्किटल में इस िक्त अिायले िल नही ं है। जबकक उनको
बल्ड चढाना बहुत ़िरूरी है। िरना उनकी जान भी जा सकती है।"

"डाक्टर आप मेरा खू न ले लीकजए।" आशू राना ने कहा___"मगर मेरे भाई को बचा


लीकजए प्ली़ि।"
"ठीक है आइये।" डाक्टर ने कहा___"मैं पहले आपके ब्लड का टे स्ट लू ॅगा अगर
उनके ब्लड से मैच हो गया तो आपका ही ब्लड उनको चढा दें गे।"

डाक्टर आशू राना को ले कर चला गया। जबकक मैं परे शानी की हालत में आ गया
था। मैं भगिान से दु आ करने लगा कक राना के भाई को कुछ न हो। थोडी दे र में ही
डाक्टर के साथ आशू राना बाहर आ गया।

"क्ा हुआ डाक्टर साहब?" मैंने हैरानी से दे खते हुए कहा___"आप इसे बाहर क्ों ले
आए?"
"इनका ब्लड ग्रुप उनके ब्लड ग्रुप से मैच नही ं कर रहा है।" डाक्टर ने कहा___"हमने
िोन द्वारा दू सरे हाल्किटलों में भी पता कर कलया है मगर इस िक्त यहाॅ आस पास
के ककसी भी हाल्किटल में उस ग्रुप का ब्लड उपलब्ध नही ं है।"
"डाक्टर साहब मेरा ब्लड भी चे क कर लीकजए न।" मैने कहा___"शायद मैच हो
जाए।"
"ठीक है चकलए।" डाक्टर ने कहा___"आपका भी दे ख ले ते हैं।"

मैं डाक्टर के साथ चला गया। अं दर डाक्टर ने मेरा ब्लड टे स्ट ककया और

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आश्चयग जनक रूप से मेरा ब्लड मैच कर गया। डाक्टर और मैं दोनो ही खु श हो गए।
"ओह िै री गुड यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"ये तो कमाल हो गया। आपका ब्लड
इनके ब्लड से मैच कर रहा है।"

"तो किर दे र ककस बात की है डाक्टर?" मैने कहा___"जल्दी से इसको मेरा खू न चढा
दीकजए।"
"ओह यस यंगमैन।" डाक्टर ने कहा__"आइये मेरे साथ।"

मैं उस कमरे से कनकल कर डाक्टर के साथ उस कमरे में गया जहाॅ पर राना के
भाई को बे ड पर कलटाया गया था। िहाॅ दो नसें मौजूद थी।
"अं ककता।" डाक्टर ने एक नसग से कहा___"इस यंगमैन का ब्लड ग्रुप इनके ग्रुप से
मैच कर रहा है इस कलए िौरन प्रोसे स शु रू करो।"

उसके बाद मु झे भी राना के भाई के बगल िाले बे ड पर ले टा कदया गया। मैंने भगिान
का शु कक्रया अदा ककया और अपनी ऑखें बं द कर ली। कुछ ही दे र में मु झे अपने
हाॅथ में सु ई चु भती महसू स हुई।

लगभग दो घंटे बाद !


डाक्टर ने आकर बताया कक आशू का भाई अब ठीक है। मेरे शरीर से खू न की उकचत
मात्रा ले ने के बाद मु झे डाक्टर ने बाहर भे ज कदया था। मु झे कम़िोरी का एहसास हो
रहा था। मगर कदल में ये खु शी थी कक मेरे खू न से आशू के भाई की जान बच गई थी।

आशू राना जो अब तक मु झसे कचढा कचढा सा था अब िह मुझसे बडे सलीके से बात


कर रहा था। उसने ये स्वीकार ककया कक इस सबके कलए सच में िही कजम्मेदार था।
डाक्टर ने आशू राना के भाई के कसर पर टाॅके लगा कर उस पर पट्टी कर दी थी।

मैं आशू राना के साथ उस हाल्किटल में तब तक रहा जब तक कक उसके भाई को


होश नही ं आ गया था। डाक्टर ने आकर बताया कक राना के भाई को होश आ चु का
है तो हम दोनो खु शी खु शी उससे कमलने गए।

कमरे में पहुॅच कर आशू राना अपने भाई को ठीक ठाक दे ख कर बे हद खु श हुआ।
मैं आगे बढ कर उसके भाई से बोला___"कैसे हो भाई?"
"अब तो ठीक हूॅ।" उसने कहा___"मुझे डाक्टर ने बताया कक तु मने मु झे बचाने के
कलए अपना खू न मुझे कदया। ऐसा क्ों ककया तु मने भाई? भला क्ा लगता था मैं
तु म्हारा जो तु मने अपना खू न दे कर मु झे मरने से बचाया?"

433
"कोई न कोई ररश्ा तो बन ही गया था हम दोनो के बीच में।" मैने कहा___"किर
चाहे िो दु श्मनी का ररश्ा ही क्ों न हो। सब जानते थे कक मैं तु म्हारे सामने एक पल
के कलए भी कटक नही ं पाऊगा मगर ये मेरी ककस्मत थी कक मु झे कुछ नही ं हुआ बल्कि
मैने खु द को कुछ होने से बचा कलया। मगर तु म्हारी ककस्मत में ये सब होना था सो हो
गया और मजे की बात दे खो कक मेरे ही खू न से तु म्हें जीकित भी बच जाना था।"

"सच कहा तु मने ।" राना के बडे भाई ने कहा___"ये ककस्मत ही तो थी। मैने भी तो
यही उम्मीद की थी कक दो कमनट के अं दर तु म्हारी हकड्डयाॅ तोड कर काले ज से चला
जाऊगा। मगर क्ा पता था कक उल्टा मुझे ही इस हाल में पहुॅच जाना होगा। मैं
हैरान था कक एक मामू ली सा लडका मुझे इस तरह कैसे मात दे रहा था। मतलब
साि है कक तु म भी कम नही ं थे ।"

"चलो छोडो उस बात को।" मैने कहा___"सबसे अच्छी बात ये है कक तु म सही


सलामत हो भाई।"
"भाई इस सबका कजम्मेदार मैं हूॅ।" आशू राना ने दु खी भाि से कहा___"सारे िसाद
की शु रुआत तो मैने ही की थी। मैं उस लडकी की रै कगंग कर रहा था। मेरी कुछ बातों
से उस लडकी को गुस्सा आया और उसने मु झे सबके सामने थप्पड मार कदया था।
उसके थप्पड मारने की िजह से ही मु झे गुस्सा आया हुआ था कजसकी िजह से मैं
उसके साथ िो सब कर रहा था। तभी ये भाई आया और मु झे मारने लगा था। इससे
मार और मात खा कर ही मैं तु म्हारे पास आया था कक तु म इसे सबक कसखा कर मेरा
बदला लो। मगर कुछ और ही हो गया भाई।"

"तु मने ग़लत ककया और उस ग़लती में मुझे भी शाकमल करिा कलया।" राना के भाई
ने कहा__"इसका नतीजा ये तो होना ही था छोटे । ककतनी बार तु झे समझाया है कक
ऐसे काम मत ककया कर बल्कि पढाई ककया कर। मगर तू तो पापा पर गया है न।
कहाॅ ककसी की सु नोगे?"

"अब से कसिग तु म्हारी ही बात सु नूॅगा भाई कसम से ।" आशू ने कहा___"मैं िो सब
ग़लत काम छोड दू ॅगा।"
"ये सब तो तु मने पहले भी जाने ककतनी बार मु झसे कहा था छोटे ।" आशू के भाई ने
कहा___"मगर क्ा तु म कभी अपने िैसले पर अटल रहे? नही ं न? रह भी नही ं सकते
छोटे । तु म कबलकुल पापा की तरह हो जैसे उन्हें अपने गुरूर में ककसी की परिाह नही ं
थी। उसी का नतीजा था कक आज हम कबना माॅ के हैं। तु म भी उनकी तरह ही हो
छोटे । आज अगर मैं मर भी जाता तो तु म पर और पापा पर कोई असर नही ं होता।"

"नही ं भाई ऐसा मत कहो प्लीज।" आशू रो पडा था, बोला___"मु झे याद है भाई कक

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आज तक तु मने कैसे मेरी माॅ बन कर मु झे पाला पोषा है। पापा ने तो कभी ध्यान भी
नही ं कदया कक उनके बे टे ककस हालें हैं। मैं आपकी कसम खा कर कहता हूॅ भाई कक
मैं अब से आपका एक अच्छा भाई बन कर कदखाऊगा।"

"चल मान ली ते री ये बात भी।" आशू के भाई ने कहा___"और अगर सचमुच ऐसा हो
गया तो मैं तहे कदल से तु म्हारा शु क्रगुजार हूॅ दोस्त कक तु मने मेरी आज ये हालत कर
दी। िरना भला कैसे मेरा भाई सही रास्ते पर चलने की बात करता।"

"बडे बु जुगग कहते हैं कक जो कुछ भी होता है अच्छे के कलए ही होता है।" मैने मु स्कुराते
हुए कहा___"हो सकता है ये जो कुछ भी हुआ आज िो इसी अच्छे के कलए हुआ हो।"
"हाॅ दोस्त।" आशू के भाई ने कहा___"आज से तु म मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और
मेरे इस नालायक भाई के भी। इसे अपने साथ ही रखना। और अगर कही ं ग़लती करे
तो िही ं पर इसकी धुनाई भी कर दे ना। मैं कुछ नही ं बोलू ॅगा।"

"भाई ये आप क्ा कह रहे हैं?" आशू राना की ऑखें िैल गईं___"मु झे इसके साथ
रहने को कह रहे हैं? ये हर रो़ि मेरी कुटाई करे गा भाई। प्लीज ऐसा मत कीकजए।"

"यार तु म ऐसा क्ों सोचते हो कक मैं तु म्हारी कुटाई करूॅगा?" मैने कहा___"तु म
आज से मेरे दोस्त हो। हम सब साथ में ही पढें गे। ले ककन एक बात ़िरूर याद रखना
कक भू ल से भी ककसी के साथ कोई बु रा बतागि नही ं करोगे। िरना सु न ही कलया है न
कक भू षर् भाई ने क्ा कहा है। खै र, मैं तु मसे ये कहना चाहता हूॅ कक एक ऐसा
इं सान बनो आशू कजससे हर ब्यल्कक्त के कदल में तु म्हारे कलए इज्ज़ित हो, प्यार हो और
सम्मान हो। ककसी का बु रा करने से या सोचने से कभी भी तु म लोगों की ऩिर में
अच्छे नही ं बन सकते । तु म खु द सोचो कक तु मने अपने ग़लत दोस्तों की शोहबत में
अपनी क्ा इमेज बना ली है सबके बीच? सब लोग तु मसे दू र भागते हैं। कोई भी
अच्छा ब्यल्कक्त तु मसे ककसी तरह का ताल्लुक नही ं रखना चाहता। लोग तु मसे तु म्हारे
ग़लत ब्यौहार की िजह से कतराते हैं। ककसी को डरा धमका कर तु म ये समझते हो
कक लोगों के बीच तु म्हारा दबदबा है। जबकक ऐसी सोच कसरे से ही ग़लत है। क्ोंकक
िो लोग तु मसे डरते नही ं हैं बल्कि तु म जैसे बु रे इं सान के मु ह नही ं लगना चाहते । इस
कलए िो सब तु मसे दू र भागते हैं। इस कलए दोस्त ऐसा इं सान बनो कजसमें हर कोई
तु म्हारे पास खु द आने के कलए रात कदन सोचे । और ये सब तभी होगा जब तु म सबके
कलए अच्छा सोचोगे। ककसी को अपने से कम़िोर नही ं समझोगे।"

"िाह दोस्त।" भू षर् राना प्रसं सा के भाि से कह उठा___"ककतनी गहरी बातें कही है
तु मने । काश तु म्हारी ये बातें मेरे इस छोटे को समझ आ जाएॅ और ये उसी राह पर
चल पडे कजस राह पर चलने से ये एक अच्छा इं सान बन जाए।"

435
"मैं चलू ॅगा भाई।" आशू राना कह उठा__"अब से आपको कोई कशकायत का मौका
नही ं दू ॅगा। इस भाई की बात मेरी समझ में आ गई है। मुझे एहसास हो रहा है भाई
कक इसने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा िो एक कडिा सच है। सच ही तो कहा है भाई
ने कक सब लोग मेरे बु रे आचरर् की िजह से मुझसे दू र भागते हैं। मगर अब ऐसा
नही ं होगा भाई। मैं इसके साथ रह कर एक अच्छा इं सान बनू ॅगा और ़िरूर
बनू ॅगा।"

"ये हुई न बात।" मैने कहा___"चल आजा इसी बात पर गले लग जा मेरे। ककतनी बडी
बात है कक आज काॅले ज के पहले ही कदन में पहले दु श्मनी हुई और किर दोस्ती भी
हो गई।"

आशू मेरे गले लग गया। मैने दे खा बे ड पर पडे भू षर् राना की ऑखों में खु शी के
ऑसू ॅ थे । कुछ दे र और िहाॅ पर रुकने के बाद मैने भू षर् राना से जाने की
इजा़ित माॅगी तो उसने पहले मु झसे मेरा िोन नं बर कलया और मैने भी उसका
कलया। किर भू षर् के कहने पर आशू मु झे भू षर् की कार से काॅले ज तक छोंडा। पू रे
रास्ते आशू राना का चे हरा ल्कखला ल्कखला ऩिर आया मु झे। मैं समझ गया कक ये अब
़िरूर सु धर जाएगा।

काॅले ज के गेट के पास उतार कर आशू िापस लौट गया जबकक मैं पाककिंग की तरि
बढ गया अपनी बाइक को ले ने के कलए। पाककिंग से अपनी बाइक पर सिार होकर
अभी मैने बाइक को स्टाटग करने के कलए से ल्फ पर अगूठा रखा ही था कक मेरा
मोबाइल िोन बज उठा। मैने पैं ट की जेब से मोबाइल कनकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश
कर रहे नं बर को दे खा तो मेरे चे हरे पर सोचने िाले भाि उजागर हो गए।

अपडे ट.......《 39 》

अब तक,,,,,,,,

"मैं चलू ॅगा भाई।" आशू राना कह उठा__"अब से आपको कोई कशकायत का मौका
नही ं दू ॅगा। इस भाई की बात मेरी समझ में आ गई है। मुझे एहसास हो रहा है भाई
कक इसने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा िो एक कडिा सच है। सच ही तो कहा है भाई

436
ने कक सब लोग मेरे बु रे आचरर् की िजह से मुझसे दू र भागते हैं। मगर अब ऐसा
नही ं होगा भाई। मैं इसके साथ रह कर एक अच्छा इं सान बनू ॅगा और ़िरूर
बनू ॅगा।"

"ये हुई न बात।" मैने कहा___"चल आजा इसी बात पर गले लग जा मेरे। ककतनी बडी
बात है कक आज काॅले ज के पहले ही कदन में पहले दु श्मनी हुई और किर दोस्ती भी
हो गई।"

आशू मेरे गले लग गया। मैने दे खा बे ड पर पडे भू षर् राना की ऑखों में खु शी के
ऑसू ॅ थे । कुछ दे र और िहाॅ पर रुकने के बाद मैने भू षर् राना से जाने की
इजा़ित माॅगी तो उसने पहले मु झसे मेरा िोन नं बर कलया और मैने भी उसका
कलया। किर भू षर् के कहने पर आशू मु झे भू षर् की कार से काॅले ज तक छोंडा। पू रे
रास्ते आशू राना का चे हरा ल्कखला ल्कखला ऩिर आया मु झे। मैं समझ गया कक ये अब
़िरूर सु धर जाएगा।

काॅले ज के गेट के पास उतार कर आशू िापस लौट गया जबकक मैं पाककिंग की तरि
बढ गया अपनी बाइक को ले ने के कलए। पाककिंग से अपनी बाइक पर सिार होकर
अभी मैने बाइक को स्टाटग करने के कलए से ल्फ पर अगूठा रखा ही था कक मेरा
मोबाइल िोन बज उठा। मैने पैं ट की जेब से मोबाइल कनकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश
कर रहे नं बर को दे खा तो मेरे चे हरे पर सोचने िाले भाि उजागर हो गए।
____________________________

अब आगे,,,,,,,,

"हम कुछ भी नही ं सु नना जानते ककमश्नर हमारे बच्चे जहाॅ भी हों उन्हें ढू ॅढ कर
हमारे सामने तु रंत हाक़िर करो।" कदिाकर चौधरी िोन पर गुस्से में कह रहा
था___"िरना तु म सोच भी नही ं सकते कक हम क्ा कर सकते हैं? हमें पता चला है कक
बच्चों ने ककसी लडकी के साथ रे प ककया है। मगर ये सब तो चलता ही रहता है इस
उमर में। अगर हमें पता चला कक इस रे प की िजह से ही हमारे बच्चे गायब हैं तो
समझ ले ना ककमश्नर इस शहर में कोई इं सान क़िदा नही ं बचे गा।"

".................."उधर से कुछ कहा गया।


"तो अगर पु कलस ने उस लडकी के रे प पर कोई केस नही ं बनाया तो कहाॅ गए हमारे
बच्चे?" कदिाकर चौधरी गजाग___"आज दो कदन हो गए ककमश्नर। अभी तक बच्चों का
कही ं कोई अता पता नही ं है।"

"............." उधर से किर कुछ कहा गया।

437
"तु म्हारे पास चौबीस घंटे का टाइम है ककमश्नर।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"अगर
चौबीस घंटे के अं दर हमारे बच्चे हमारी ऑखों के सामने न कदखे तो समझ ले ना कक
हम क्ा करते हैं किर।"

कहने के साथ ही कदिाकर चौधरी ने िोन के ररसीिर को केकडर ल पर पटक कदया।


गुस्से से तमतमाया हुआ आया और िही ं सोिे पर बै ठ गया। इस िक्त िहाॅ रखे
बाॅकी सोिों पर उसके सभी कमत्र यार बै ठे हुए थे । सबके चे हरों पर कचं ता ि परे शानी
साि कदखाई दे रही थी।

"क्ा कहा ककमश्नर ने ?" अशोक मेहरा ने उत्सुकता से पू छा था।


"क्ा उस रे प की िजह से हमारे बच्चे गायब हैं ?" सु नीता िमाग ने कहा___"़िरूर
पु कलस िालों ने ही उन सबको कगरफ्तार ककया होगा।"

"पु कलस की इतनी कहम्मत नही ं है सु नीता कक िो हमारे बच्चों को छू भी सके।"


कदिाकर चौधरी ने कहा___"मुझे लगता है कक हमारे बच्चे खु द ही अं डरग्राउण्ड हो गए
हैं। उन्होंने सोचा होगा कक इस हादसे से कही ं उनको पु कलस न पकड ले । इस कलए िो
कही ं छु प गए होंगे। उन बे िकूिों का इतना भी कदमाग़ नही ं चला कक उनको ककसी से
डरने की कोई ़िरूरत ही नही ं थी। खै र, तु म लोग कचन्ता मत करो। हमारे बच्चे जहाॅ
भी होंगे सही सलामत ही होंगे।"

"पर चौधरी साहब।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"उन लोगों को हमें एक बार िोन
तो कर ही दे ना चाकहये था। मगर दो कदन से िोन ही बं द हैं उन सबका। समझ में नही ं
आ रहा कक कहाॅ गए होंगे िो। आपके िामग हाउस पर भी नही ं हैं। हमारे आदमी
दे ख आए हैं िहाॅ। ले ककन हैरानी की बात है कक आपके िामग हाउस के िो दोनो
गाड्ग स भी िहाॅ नही ं हैं। इसका क्ा मतलब हो सकता है?"

"भाग गए होंगे साले कामचोर।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"उस समय जब उनके


हाॅथ में बं दूखें थमाई थी तभी समझ आ गया था कक ये इस काम के कलए बे हद
कम़िोर हैं। खै र छोडो। ककमश्नर को हमने डोज दे दी है। िो ़िरूर पता करे गा बच्चों
का।"

"आप तो ऐसे बे किक्र हैं चौधरी साहब जैसे आपको अपने बच्चों की कोई कचं ता ही
नही ं है।" सु नीता िमाग ने कहा___"पर मुझे कचं ता है। क्ोंकक मुझ किधिा का एक िही
तो सहारा है। अगर उसे कुछ हो गया तो ककसके कलए कजयूॅगी मैं?"

"ओफ्फो सु नीता।" कदिाकर चौधरी ने सहसा उसे अपनी तरि खी ंच कलया। एक


हाॅथ से उसकी ठु ड्डी पकड कर बोला___"िै से तो उसे कुछ नही ं होगा। और अगर

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थोडे पल के कलए मान भी कलया जाए तो कचं ता क्ों करती हो? हम हैं न तु म्हारे सहारे
के कलए। अब तक भी तो सहारा ही बने हुए थे हम और आगे भी बने ही रहेंगे।"

"आपको तो बस हर िक्त मस्ती ही सू झती रहती है चौधरी साहब।" सु नीता ने


कहा__"जबकक इस िक्त हालात ककस क़दर गंभीर हैं इसका आपको अं दा़िा भी नही ं
है।"
"तु म भू ल रही हो सु नीता डाकलिं ग कक हम कौन हैं?" कदिाकर चौधरी ने कहा__"हम
इस शहर की िो हस्ती हैं कजसकी इजा़ित के कबना एक पि भी नही ं कहल सकता।
इस कलए तु म इस बात की कचं ता करना छोंड दो कक बच्चों के साथ कोई बु रा करे गा।"

"चौधरी साहब कबलकुल ठीक कह रहे हैं सु नीता।" अशोक मे हरा ने कहा___"हमारे
बच्चे ़िरूर ककसी दू सरे शहर में मौज मस्ती कर रहे होंगे।"
"मौज मस्ती हमें भी तो करनी चाकहए न अशोक?" कदिाकर ने कहा___"बहुत कदन हो
गए सु नीता के साथ भरपू र मस्ती नही ं की हमने ।"

"आपने तो मेरे मन की बात कह दी चौधरी साहब।" अिधेश श्रीिास्ति ने मु स्कुराते


हुए कहा___"आज हो ही जाए मस्ती।"
"क्ा कहती हो डाकलिं ग?" कदिाकर चौधरी ने सु नीता के एक भारी बोबे को ़िोर से
मसलते हुए कहा___"हो जाए िन टू का िोर?"

"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ कक आप सब मु झे मसल कर रख दो।" सु नीता ने अपने


होठों को दाॅतों तले दबाते हुए कहा___"मेरे कजस्म में तो हर िक्त आग लगी रहती है।
अलोक का बाप तो कमीना मुझे भरी जिानी में छोंड कर मर गया। िो तो भगिान
का शु कर था कक आप लोग मेरे जीिन में आ गए िरना जाने क्ा होता मेरा?"

"भगिान सब अच्छे के कलए ही करता है मेरी राॅड सु नीता।" कदिाकर चौधरी ने


सु नीता के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा___"और आज तो हम सब ते री आगे
पीछे दोनो साइड से अच्छे से लें गे।"

"हाॅ तो ठीक है न।" सु नीता ने अपना हाथ बढा कर कदिाकर के पजामें के ऊपर से
ही उसके लौडे को पकड कलया___"मेरा कोई भी छें द खाली न रखना।"
"आज तो साली ते री चीखें कनकालें गे हम तीनों।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"चलो
भाई लोग अं दर कमरे में चलो। आज इस राॅड को तबीयत से पे लते हैं।"

कदिाकर चौधरी की बात सु न कर बाॅकी तीनो भी मु स्कुराते हुए सोिों से उठ खडे


हुए।
"चौधरी साहब आपकी बे टी तो नही ं है न बगले में?" अशोक मेहरा ने पू छा__"िरना

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उसे पता चल जाएगा कक हम सब क्ा कर रहे हैं।"
"नही ं है यार।" कदिाकर ने कहा___"शायद कही ं बाहर गई हुई है।"

अभी िे सब कमरे की तरि बढे ही थे कक सहसा पीछे से कदिाकर के पीए ने आिा़ि


दी।
"चौधरी साहब, चौधरी साहब।" पीए ने बदहिास से लहजे में कहा था।

"क्ा बात है मनोहर लाल?" कदिाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी__"क्ों गला
िाड रहे तु म? दे ख नही ं रहे, हम ़िरूरी काम से कमरे में जा रहे हैं?"
"़िरूर जाइये चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने अजीब भाि से कहा___"ले ककन उससे
पहले इसे तो दे ख लीकजए।"

"क्ा है ये?" कदिाकर चौधरी की भृ कुटी तन गई, बोला___"तु म हमें मोबाइल दे खने
का कह रहे हो इस िक्त? कदमाग़ तो ठीक है न तु म्हारा?"
"आप एक बार दे ख लीकजए न चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने किनती भरे भाि से
कहा___"उसके बाद आपको जो करना है करते रकहएगा।"

"कदखाओ क्ा है ये?" कदिाकर चौधरी ने मनोहर लाल के हाथ से मोबाइल छी ंन


कलया था। मोबाइल की स्क्रीन पर कोई िीकडयो पु श मोड पर ऩिर आ रहा था।
"तु मने हमें ये कदखाने के कलए रोंका है मनोहर लाल?" कदिाकर चौधरी ने गु स्से से
कहा।
"गुस्सा मत कीकजए चौधरी साहब।" मनोहर लाल ने कहा___"एक बार उस िीकडओ
को प्ले तो कीकजए।"

कदिाकर चौधरी ने पहले तो खा जाने िाली ऩिरों से मनोहर लाल को दे खा किर


मोबाइल की स्क्रीन पर दे खते हुए उस िीकडओ को प्ले कर कदया। बडे से स्क्रीन टच
मोबाइल में िीकडओ के प्ले होते ही जो कुछ ऩिर आया उसे दे ख कर कदिाकर चौधरी
के होश उड गए। कदलो कदमाग़ सु न्न सा पडता चला गया। ये सच है कक उसके हाॅथ
से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। कसर पर एकाएक ही जैसे पू रा आसमान ही भरभरा
कर कगर पडा था उसके।

चौधरी की हालत एक पल में ऐसी हो गई जैसे उसका सब कुछ लु ट गया हो। चे हरा
िक्क पड गया था उसका। बाॅकी दोनो और सु नीता भी चौधरी की ये दशा दे ख कर
बु री तरह चौंके। उन्हें समझ न आया कक अचानक चौधरी साहब को क्ा हो गया है।

"क्ा हुआ चौधरी साहब?" अिधेश श्रीिास्ति ने हैरानी से कहा__"आप इस तरह बु त


से क्ों बन गए? क्ा है उस मोबाइल में?"

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"आं हा, लो तु म भी दे ख लो।" कदिाकर चौधरी ने मोबाइल पकडा कदया उसे ।

अिधेश के साथ साथ अशोक ि सु नीता ने भी मोबाइल में चालू िीकडयो को दे खा।
और अगले ही पल उनकी भी हालत खराब हो गई।
"ये सब क्ा है मनोहर लाल?" अशोक िमाग ने गुस्से से कहा___"चौधरी साहब का
ऐसा िीकडयो इस मोबाइल में कहा से आया?"

"ये िीकडयो ककसी अं जान नं बर से भे जा गया है सर।" मनोहर ने कहा___"अभी पाॅच


कमनट पहले ही आया है। इतना ही नही ं अलग अलग चार िीकडयो और भी हैं।
बाॅककयों को भी प्ले करके दे ख लीकजए।"

अशोक ने िै सा ही ककया। कहने का मतलब ये कक चारो िीकडयो अलग अलग


ब्यल्कक्तयों के थे । पहला कदिाकर चौधरी का, दू सरा अशोक मेहरा का, तीसरा सु नीता
िमाग का और चौथा अिधेश श्रीिास्ति का।

चारो िीकडयो दे खने के बाद उन चारों की हालत बे हद खराब हो गई। सबके पै रों तले
से ़िमीन कोसों दू र कनकल गई थी।

"चौधरी साहब ये सब िीकडयो हम लोगों के कैसे बन गए?" अशोक मे हरा ने


कहा__"और इन िीकडयोज में जो जगह है िो तो आपके िामग हाउस की ही है।
मतलब साि है कक िही ं पर हमारे ऐसे िीकडयो बनाए गए। मगर सिाल है कक ककसने
बनाए ऐसे िीकडयो? क्ा हमारे बच्चों ने ? यकीनन चौधरी साहब, ये उन लोगों ने ही
बनाया है।"

"अशोक सही कह रहे हैं चौधरी साहब।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"हमारे बच्चों
ने ही ये िीकडयो बनाया। क्ोंकक बाहरी कोई िहाॅ जा ही नही ं सकता।"
"ये सब छोंडो और ये सोचो कक ये िीकडयो ककसने भे जा हमारे िोन पर?" कदिाकर
चौधरी ने कहा___"हमारे बच्चे तो ऐसा करें गे नही ं। क्ोंकक ऐसा करने की उनके पास
कोई िजह ही नही ं है। उन्होंने ये सोच कर िीकडयो बनाया कक हम अपने बाप िोगों
की मौज मस्ती अपनी ऑखों से दे खेंगे। उनके कदमाग़ में ऐसे िीकडयोज हमारे पास
भे जने का कोई सिाल ही नही ं है क्ोंकक उनकी हर इच्छाओं की पू कतग हम बखू बी
करते हैं। ये ककसी और का ही काम है अिधेश। हमारे िोन में िीकडयो भे जने का
मतलब है कक सामने िाला हमें बताना चाहता है कक उसके पास हमारी इस करतू त
का सबू त है और िो हमें जब चाहे एर्क्पोज कर सकता है। अब सिाल ये है कक िो
कौन है कजसने ये िीकडयो भे जा और ककस मकसद के तहत भे जा?"

"मामला बे हद गंभीर हो गया है चौधरी साहब।" सु नीता ने कहा___"हमारे बच्चों ने तो

441
हमें बडी भारी मुसीबत में डाल कदया है।"
"मुसीबत तो अब हो ही गई है मगर इससे कनपटने का रास्ता तो अब ढू ढना ही पडे गा
न?" कदिाकर चौधरी ने कहा__"सबसे पहले ये पता करना होगा कक ये िीकडयो उसके
पास कैसे आए और उसने हमें ककस मकसद से भे जा है?

"िीकडयो आपके िामग हाउस के उसी कमरे में बनाया गया है चौधरी साहब कजस
कमरे में हम लोग अर्क्र शबाब का म़िा लू टा करते हैं।" अशोक ने कहा___"मतलब
साि है िीकडयो भे जने िाले को ये िीकडयो िही ं से कमले होंगे। अब सबसे बडा सिाल
ये है कक आपके िामगहाउस पर ऐसा कौन ब्यल्कक्त गया और ये सब िीकडयोज िहाॅ से
उठा कर चं पत हो गया? आपके िामगहाउस के िो गाड्ग स कहाॅ थे उस िक्त जब
कोई बाहरी िहाॅ आकर ये सब काण्ड कर गया?"

अशोक मे हरा की इन बातों से सन्नाटा छा गया हाल में। सबका कदमाग़ मानो
चकरकघन्नी बन कय रह गया था। ककसी को कुछ समझ में नही ं आ रहा था कक ये सब
अचानक कौन सी आित आ गई थी। कजसने उन सब महारकथयों को अपं ग सा बना
कदया था।

"मनोहर लाल पता करो ककसने ये कहमाकत की है?" कदिाकर चौधरी ने


कहा___"कजस नं बर से ये िीकडयोज आईं हैं उस नं बर पर िोन करो।"
"मैने बहुतों बार िोन लगाया चौधरी साहब ले ककन नं बर बं द बता रहा है।" मनोहर
लाल ने कहा___"आप कहें तो पु कलस को ये नं बर दे दू ॅ िो जल्द ही पता कर लें गे कक
ये नं बर ककसका है और ककस जगह से इस नं बर के द्वारा ये िीकडयोज भे जी गई हैं?"

"तु म्हारा कदमाग़ तो नही ं खराब हो गया मनोहर लाल।" कदिाकर गुस्से से बोला__"ये
घकटया खयाल आया कैसे तु म्हारे ़िहन में? सोचो अगर हमने पु कलस को नं बर कदया
तो उसका अं जाम क्ा हो सकता है? कजसने भी ये दु स्साहस ककया है िो कोई मामूली
ब्यल्कक्त नही ं हो सकता। उसे भी ये पता होगा कक हम उसका पता लगाने के कलए
उसका नं बर पु कलस को दे सकते हैं। उसने पु कलस को नं बर न दे ने की कोई चे तािनी
भले ही हमें नही ं दी है मगर हमें तो सोचना समझना चाकहए न? अगर हमने ऐसा
ककया तो सं भि है कक िो हमारे ये िीकडयो पु कलस को दे दे या सािग जकनक कर दे । उस
सू रत में हमारा सारा ककस्सा ही खत्म हो जाएगा। शहर की जनता और ये पु कलस
प्रशासन सब हमारे ल्कखलाफ़ हो जाएॅगे। इस कलए हमें ठं डे कदमाग़ से इसके बारे में
सोचना होगा। कबना मतलब के या कबना मकसद के कोई ककसी के साथ ऐसा नही ं
करता। उसने ऐसा ककया है तो दे र सिे र ़िरूर उसका कोई मैसेज या िोन भी
आएगा। तब हम उससे पू छेंगे कक िह क्ा चाहता है हमसे ?"

442
"इसका मतलब अब हम उस ब्यल्कक्त के ककसी िोन या मैसेज का इं त़िार करें कजसने
ये िीकडयोज हमें भे जा है?" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा।
"इसके अलािा हमारे पास दू सरा कोई रास्ता भी तो नही ं है।" कदिाकर ने
कहा___"हमें एक बार उससे बात तो करनी पडे गी। आकखर पता तो चले कक उसने
ऐसा ककस मकसद से ककया है? उसके बाद ही हम कोई अगला क़दम उठा सकते
हैं।"

"ठीक है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जैसा आप उकचत समझें िै सा


कीकजए। मगर ये मैटर ऐसा है कक हम सबके होश उडा दे गा। सब कुछ बरबाद कर
दे गा।"
"बस एक बार उसका कोई िोन या मैसेज तो आने दो।" कदिाकर ने कहा___"उसके
बाद हम बताएॅगे उसे कक हमारे साथ ऐसी हरकत करने का अं जाम ककतना भयािह
होता है।"

कदिाकर चौधरी की इस बात से एक बार किर हाल में सन्नाटा छा गया। ककन्तु सबके
मन में जो तू िान उठ चु का था उसे रोंकना उनके बस में न था।
___________________________

"चौधरी आज से ते रे बु रे कदन शु रू हो गए हैं। मासू म और मजलू मों पर तू ने, ते रे


साकथयों ने और ते रे हराम के कपल्लों ने जो भी ़िुल् ढाए हैं उनका कहसाब दे ने का
समय आ गया है।" ररतू की कार ऑधी तू िान बनी िामग हाउस की तरि दौडी जा
रही थी। साथ ही मन ही मन िह ये सब कहती भी जा रही थी।

ररतू ने ऐसी जगह से अपने नये मोबाइल िोन द्वारा िो िीकडयोज चौधरी के मोबाइल
पर भे जे थे कजस जगह पर एक नई कबल्कल्डंग का कनमागर् कायग चल रहा था। ककन्तु इस
िक्त िहाॅ पर कोई न था। यही ं से उसने चौधरी को िोकडयोज भे जे थे । िीकडयो
भे जने के बाद उसने िोन को ल्कस्वचऑि कर कदया था। उसका खु द का जो
आईिोन था िो पहले से ही ल्कस्वचऑि था। उसके कदमाग़ में हर ची़ि से बचने की
भी सोच थी।

ऑधी तू िान बनी उसकी कजप्सी उसके िामग हाउस पर रुकी। कजप्सी से उतर कर
िह ते ़िी से अपने कमरे की तरि बढ गई। बाहर मेन गेट पर शं कर काका ऩिर
आया था उसे ककन्तु हररया काका ऩिर नही ं आया था। कमरे में जाकर उसने नया
िाला िोन आलमारी में रखा और उसे लाॅक कर तु रंत पलटी।

कजप्सी में बै ठी ररतू का रुख अब अपने हिे ली की तरि था। उसके कदमाग़ में बडी

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ते ़िी से कई सारी ची़िें चल रही थी। उसके ़िहन में ये बात हर पल बनी हुई थी कक
उसने किधी से िादा ककया था कक किराज को उसके पास ़िरूर लाएगी।

ररतू के पास किराज का कोई काॅन्टै क्ट करने का ़िररया न था। इस कलए उसने ये
पता लगाने के कलए ककसी आदमी को लगाया हुआ था कक उसके ककसी दोस्तों के
पास किराज का कोई अता पता हो। दू सरे कदन सु बह ही उसके आदमी ने उसे बताया
था कक किराज के दो ही लडके खास दोस्त हुआ करते थे । एक का नाम कदने श कसं ह
था जो कक आजकल दे श के ककसी दू सरे राज्य में नौकरी कर रहा है। दू सरे दोस्त का
नाम है पिन कसं ह चं देल। ये किराज का स्कूल के समय से ही दोस्त था। ग़रीब है, आज
कल हल्दीपु र में ही बस स्टै ण्ड के पास पान की दु कान खोल रखा है। घर में किधिा
माॅ के अलािा एक बहन है जो ऊम्र में उससे बडी है। मगर आकथग क परे शानी की
िजह से िह अपनी बडी बहन की शादी नही ं करा पा रहा है।

ररतू के खबरी ने उसे पिन कसं ह का नं बर लाकर कदया था। ररतू ने पिन को िोन
लगा कर उसे अपना पररचय कदया और कमलने का कहा था। खै र, रातू जब पिन से
कमली तो उससे किराज के बारे में पू छा तो पिन ने बडा अजीब सा जिाब कदया था
उसे ।

"आप मेरे दोस्त राज की बडी बहन हैं इस कलए आप मेरी भी बडी बहन के समान ही
हैं।" पिन ने कहा था___"आप मेरे घर पर आई हैं , आपका तहे कदल से स्वागत है।
ले ककन अगर आप मुझसे मेरे कजगरी यार का पता या िोन नं बर पू छने आई हैं तो
माफ़ कीकजएगा दीदी। मैं आपको ना तो उसका पता बताऊगा और ना ही उसका
िोन नं बर दू ॅगा।"

"ले ककन क्ों पिन क्ों?" ररतू ने चककत भाि से कहा था___"तु म एक बहन को
उसके भाई का अता पता क्ों नही ं बताओगे?"
"बहन.....भाई???" पिन कसं ह बडे अजीब भाि से हसा था, उसकी उस हसी में ररतू ने
साि साि ददग महसू स ककया____"कौन बहन भाई दीदी? अरे मेरे यार ने तो सबको
हमेशा अपना ही माना था मगर उसके खु द के माॅ बाप और बहन के अलािा ककसी
भी पररिार िाले ने उसे अपना नही ं माना। और और आप???? आप भी बताइये दीदी,
आप ने राज को कब अपना भाई माना था? अरे उसे तो आपने बचपन से ले कर आज
तक कसिग दु त्कारा है दीदी। खै र, जाने दीकजए। आपसे ये सब कहने का मुझे कोई
हक़ नही ं है। माफ़ करना दीदी, आपको दे ख कर जाने कैसे गुस्सा सा आ गया था
और कदल का गुबार मुख से कनकल गया। मगर, कजस काम के कलए आप यहाॅ आई
हैं िो हकगग़ि नही ं होगा। मु झे सब पता है दीदी, मेरे दोस्त राज और उसकी माॅ बहन
को खोजने के कलए आपके डै ड ने अपने आदकमयों को जाने कब से लगाया हुआ है।

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मगर कोई भी उनका आदमी उसे ढू ॅढ नही ं पाएगा।"

"तु म ग़लत समझ रहे हो पिन।" ररतू ने बे चैनी भरे भाि से कहा था___"मैं ये मानती
हूॅ कक मैने अपने उस भाई को कभी अपना नही ं माना था ले ककन आज ऐसा नही ं है
भाई। आज तु म्हारी ये दीदी बहुत प्यार करने लगी है अपने उस भाई से । इस िक्त
अगर राज मेरे सामने आ जाए तो मैं उसके पै रों में पड कर उससे अपने ककये की
मुआफ़ी माॅग लू ॅगी। ये सब समय समय की बातें हैं पिन। हम जब बच्चे होते हैं तो
कबलकुल कुम्हार के पास रखी हुई उस गीली और कच्ची कमट्टी की तरह होते हैं। हमारे
माता कपता कुम्हार की तरह ही होते हैं। िो जै से चाहें अपने बच्चों को ककसी कमट्टी के
घडे की तरह ढाल दे ते हैं। कहने का मतलब ये कक, मेरे माॅम डै ड ने हम बहन भाइयों
को बचपन से जो कसखाया पढाया हम उसी को करते चले गए। ले ककन िक्त हमेशा
एक जैसा नही ं रहता पिन। हर सच्चाई को एक कदन पदे से कनकल कर बाहर आना
ही पडता है। यही उसकी कनयकत होती है। और सच्चाई क्ा है क्ा नही ं ये मु झे समझ
आ गया है। मु झे पता है पिन कक मेरा भाई राज िो कोकहनू र है कजसका कोई मोल हो
ही नही ं सकता।"

"िाह दीदी िाह।" पिन कह उठा___"आज आपके मुख से ये अमृत िार्ी कैसे
कनकल रही है? हैरत की बात है, खै र मु झे क्ा है। मगर इतना जान लीकजए कक मैं
आपकी इन मीठी बातों के जाल में िसने िाला नही ं हूॅ। मेरी िजह से मेरे दोस्त को
कोई नु कसान नही ं पहुॅचा सकता। अब आप जाइये दीदी। मुझे आपसे और कोई
बात नही ं करनी है।"

"कैसे यकीन कदलाऊ पिन?" ररतू की ऑखों में ऑसू आ गए___"आल्कखर कैसे तु म्हें
यकीन कदलाऊ कक मैं अब िै सी नही ं रही? मैं हनु मान जी की तरह अपना सीना चीर
कर नही ं कदखा सकती मगर भगिान जानता है कक मेरे सीने में मेरा भाई ़िरूर
मौजूद हो गया है। तु म मु झे उसका गुनहगार समझते हो तो चलो ठीक है पिन। तु म
मुझे राज का अता पता भी न दो मगर इतना तो उसे बता ही सकते हो न िो कुछ दे र
के कलए अपनी उस किधी के पास आ जाए कजससे िह आज भी उतना ही प्यार करता
होगा कजतना पहले करता था।"

"नाम मत लीकजए उस बे िफ़ा का।" पिन ने सहसा आिे शयुक्त लहजे में
कहा___"उसी की बे िफ़ाई की िजह से मेरा दोस्त रात रात भर मेरे पास रोता रहता
था। ककतना चाहता था िो उसे । मगर उस कदन पता चला कक दु कनयाॅ भर की कसमें
और दलीलें दे ने िाली िो लडकी ककतनी झठ
ू ी और मक्कार थी कजस कदन आप लोगों
ने मेरे दोस्त को और उसके माॅ बहन को हिे ली से बाहर धकेल कदया था। उधर आप
लोगों ने हिे ली से धकेला और इधर उस कम्बख्त ने मेरे दोस्त को अपने कदल से

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धकेल कदया। एक पल में कगरकगट की तरह रं ग बदल कलया था उस लडकी ने । रुपये
पै से से मोहब्बत थी उसे ना कक मेरे दोस्त से ।"

"सच्चाई क्ा है इसका तु म्हें पता नही ं है पिन।" ररतू ने दु खी भाि से कहा__"तु म
और किराज ही क्ा बल्कि नही ं समझ सकता कक उसने ऐसा क्ों ककया था?"
"अरे दौलत के कलए दीदी दौलत के कलए।" पिन ने झट से कहा___"उसने मेरे दोस्त
की सच्ची मोहब्बत को अपने पै रों तले रौंदा था।"

"ये सच नही ं है पिन।" ररतू ने कहा__"अगर सच्चाई जान लोगे न तो पै रों तले से
़िमीन गायब हो जाएगी तु म्हारे । उसने ये सब इस कलए ककया था ताकक किराज उससे
नफ़रत करने लगे और ककसी दू सरी लडकी के साथ प्यार मोहब्बत करने का सोचे ।
माना कक ये आसान नही ं था मगर िक्त और हालात हर ़िख्म भर दे ता और एक नया
मोड भी जीिन में ले आता है।"

"आप कहना क्ा चाहती हैं दीदी?" पिन ने कहा___"और इन सब बातों का आज


कहने का क्ा मतलब है?"
"किधी को ब्लड कैंसर था पिन।" ररतू ने मानो धमाका ककया___"और िो भी लास्ट
स्टे ज का। इसी कलए उसने ये सब ककया था राज के साथ। ताकक िह उसे भू ल जाए
और दू र हो जाए उससे ।"

"क क्ा?????" पिन बु री तरह चौंका था___"ये ये आप क्ा कह रही हैं दीदी? किधी
को कैंसर?? नही ं नही ं ऐसा नही ं हो सकता। ये सब झठ ू है।"
"अगर तु म्हें मेरी बात का यकीन नही ं है तो मेरे साथ चल कर खु द अपनी ऑखों से
दे ख लो तु म।" ररतू ने कहा___"इस िक्त भी िह हाल्किटल में ही है। तु मने शायद
सु ना नही ं होगा उस रे प के बारे में जो अभी कुछ कदनों पहले ही हुआ था। किधी के
साथ ये हादसा हुआ था कजससे उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी। हाल्किटल में
जब उसे भती ककया गया तभी उसके चे कअप से डाक्टर को ये पता चला कक किधी
को लास्ट स्टे ज का ब्लड कैंसर है। जबकक कैंसर िाली बात किधी को पहले से ही पता
थी।"

पिन कसं ह ररतू को अजीब भाि से इस तरह दे खने लगा था जैसे ररतू का कसर धड से
अलग होकर ऊपर हिा में अचानक ही कत्थक करने लग गया हो। अकिश्वास से िटी
हुई उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू आ गए।

"हे भगिान! ये क्ा हो गया?" पिन ने ऊपर की तरि दे ख कर दु खी भाि से


कहा__"एक और सच्चे प्रे म की ये दशा कर दी तू ने। बहुत बे रहम और बे ददग है तू ।

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दीदी, मु झे उस महान लडकी को दे खना है। उससे मुआफ़ी माॅगना है। हे भगिान
ककतना बु रा भला कहा मैने उसे और आज तक बु रा भला सोचता भी रहा हूॅ।"

ररतू पिन को ले कर हाल्किटल पहुॅची तो पिन ने दे खा किधी को। किधी की कुरुर्


हालत दे ख कर पिन का कले जा मु ह को आ गया। िह किधी के पै रों में अपना कसर
रख कदया और माफ़ी माॅगने लगा। पिन बहुत ही भािु क ककस्म का लडका था, इस
कलए ज्यादा दे र तक िह किधी के पास न रह सका था। उसे रह रह कर रोना आने
लगता था।

हाल्किटल से बाहर आकर उसने खु द को और अपने अं दर के जज़्बातों को शान्त


ककया। तभी पीछे से ररतू ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलट कर दे खा उसे ।

"क्ा अब भी तु म्हें लगता है पिन कक मैं तु मसे झॅ


ू ठ बोल रही हूॅ?" ररतू ने कहा था।
"नही ं दीदी, प्लीज माफ़ कर दीकजए।" पिन ने अपने हाथ जोड कर कहा था।
"इसी किधी ने मुझे एहसास कराया कक मैं ककतना ग़लत सोचती थी अब तक अपने
भाई किराज के कलए।" ररतू ने कहा___"किधी की कहानी ने मु झे ये एहसास कराया
भाई कक मेरा अपने भाई के कलए आज तक अनु कचत ब्यौहार करना ककतना ग़लत था।
इसको मैने िचन कदया है पिन कक इसके महबू ब को इसके पास ़िरूर लाऊगी। मैं
इसी कलए तु म्हारे पास आई थी पिन। मैंने अपने भाई के साथ क्ा ककया है अबतक
उसका िल मु झे ़िरूर कमले गा और कमलना भी चाकहए।"

"ऐसा मत ककहए दीदी।" पिन ने कहा__"ये सब समय समय की बातें हैं। जो बीत
गया उसे भू ल जाइये और एक नया सं सार बनाने की सोकचये। मैं अभी किराज को
िोन करता हूॅ और उसे किधी के बारे में सब बताता हूॅ।"

"नही ं नही ं पिन।" ररतू ने झट से कहा__"उसे ये मत बताना कक किधी को क्ा हुआ


है। बल्कि कुछ और बोलो। कुछ ऐसा कक िो दू सरे कदन मुंबई से यहाॅ आने के कलए
चल दे ।"
"ठीक है दीदी।" पिन ने कहा था__"मैं ऐसा ही करता हूॅ।"

कहने के साथ ही पिन ने किराज को िोन को िोन लगा कदया था। उसका कदल बु री
तरह धडके जा रहा था। ररं ग जाने की आिा़ि सु नाई दे रही थी। और तभी,

"हाॅ भाई बोल कैसे याद ककया?" उधर से किराज ने कहा था।
"भाई अगर ते रे पास टाइम हो तो तू जल्दी से गाॅि आ जा।" पिन ने कहा था।
"अरे क्ा हुआ भाई?" किराज के चौंकने जैसी आिा़ि आई___"सब ठीक तो है ना?"

447
"बस भाई तू कल ही आजा यहाॅ।" पिन ने गंभीरता से कहा___"तु झे मेरी क़सम है
भाई। तू कल यहाॅ आएगा।"
"पर बात क्ा है पिन?" किराज का कचं कतत स्वर उभरा___"दे ख तू मु झसे कुछ भी मत
छु पा ओके। चाची(पिन की माॅ) की तबीयत तो ठीक है ना? पू जा दीदी ठीक तो हैं
ना मेरे भाई? सच सच बता न क्ा बात है?"

"भाई परे शान न हो।" पिन ने कहा__"बस तू कल आजा भाई। बाॅकी सब कुछ तु झे
यहाॅ आने पर ही पता चले गा। तू आएगा न कल?"
"मैं आज ही रात की टर े न से कनकल लू ॅगा यहाॅ से ।" किराज ने कहा___"कल दोपहर
तक पहुॅच जाऊगा।"

"ठीक है भाई मैं तु झे बस स्टै ण्ड पर ही कमलू ॅगा।" पिन ने कहा___"मु झे पहुॅचते ही
िोन कर दे ना।"
"आल्कखर बात क्ा है यार?" किराज की आिा़ि आई___"तू बता क्ों नही ं रहा है?"
"तू आजा बस।" पिन ने कहा___"चल रखता हूॅ िोन।"

पिन ने िोन काट कदया। एक गहरी साॅस ली उसने और किर ररतू की तरि दे खते
हुए कहा___"लीकजए दीदी। मेरा यार कल दोपहर को आ जाएगा यहाॅ।"

"तु मने मेरे िचन को झठ


ू ा होने से बचा कलया मेरे भाई।" ररतू ने की ऑखें भर आई।
उसने झपट कर पिन को अपने गले से लगा कलया।
"आपने भी तो मु झे पाप करने से बचाया दीदी।" पिन ने कहा___"आज तक मैं अपने
मन में उस किधी को जाने ककतना बु रा भला कहता था कजस किधी को मु झे प्रर्ाम
करना चाकहए था।"

"ऐसी बातें मेरे भाई किराज का एक अच्छा दोस्त ही कह सकता है।" ररतू ने पिन से
अलग होकर कहा___"इतने ऊचे सं स्कार उसके ही दोस्तों में हो सकते हैं। मुझे अपने
भाई और उसके ऐसे दोस्तों पर ना़ि है। चलो अब मैं चलती हूॅ भाई। ले ककन एक
किनती है तु मसे , किराज से ये मत कहना कक ये सब मैने कहा था तु मसे ।"

"अरे मगर क्ों दीदी?" पिन चौंका था__"आप ऐसा क्ों चाहती हैं? अब तो आप उसे
अपने गले से लगा लीकजए दीदी। क्ों अपनी बे रुखी और बे ददी से उसका कदल
दु खाना चाहती हैं? या किर मैं ये समझॅ
ू कक आपने िो सब जो कहा था िो सब एक
झठ ू था?"

448
"नही ं मेरे भाई।" ररतू ने कहा___"मैं तो चाहती हूॅ कक अपने भाई को मैं अपने कले जे
से लगा लू ॅ मगर मुझे ये भी पता है कक उसकी जान को खतरा भी है। अगर मेरे डै ड
को पता चल जाए कक किराज गाॅि आया हुआ है तो सोचो क्ा होगा? इस कलए मैं
सबसे पहले उसकी से फ्टी का खयाल रखू ॅगी।"

"ओह दीदी सचमुच।" पिन ने कहा__"ये तो मैं भू ल ही गया था। तो आप उसकी


से फ्टी के कलए क्ा करें गी दीदी?"
"िो तु म मु झ पर छोंड दो भाई।" ररतू ने कहा___"मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी
नही ं सकेगा।"

ररतू के चे हरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शे रनी की


भाॅकत ़िल़िला ऩिर आने लगा था उसके चे हरे पर। पिन कसं ह एक बार को तो
काॅप ही गया था उसे इस रूप में दे ख कर।

ररतू के मन में यही सब किल् की तरह चल रहा था। उसकी कजप्सी ऑधी तू िान
बनी हिे ली की तरि दौडी जा रही थी। उसे पता था कक उसका बाप किराज को
खोजने के कलए अपने आदकमयों को लगाया हुआ है। सं भि है कक अजय कसं ह ने अपने
आदकमयों को गाॅि हल्दीपु र और शहर गुनगु न में भी िैला रखा हो। ररतू के मन में
कसिग एक ही किचार था कक किराज को ककसी भी हालत में अपने बाप और उसके
आदकमयों की ऩिर में नही ं आने दे ना है। ये उसकी कजम्मेदारी थी कक किराज पर
ककसी तरह का कोई सं कट न आ पाए। क्ोंकक िास्तकिकता तो यही थी न कक किराज
को उसने ही पिन कसं ह के द्वारा बु लिाया है।

ररतू की कजप्सी हिे ली के गेट से अं दर दाल्कखल होते हुए पोचग में जाकर रुकी। कजप्सी
से उतर कर िह अं दर की तरि बढ गई।

अपडे ट........《 40 》

अब तक,,,,,,,,

"ओह दीदी सचमुच।" पिन ने कहा__"ये तो मैं भू ल ही गया था। तो आप उसकी


से फ्टी के कलए क्ा करें गी दीदी?"
"िो तु म मु झ पर छोंड दो भाई।" ररतू ने कहा___"मेरे रहते मेरे भाई को कोई छू भी

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नही ं सकेगा।"

ररतू के चे हरे पर एकाएक ही कठोरता आ गई थी। पलक झपकते ही शे रनी की


भाॅकत ़िल़िला ऩिर आने लगा था उसके चे हरे पर। पिन कसं ह एक बार को तो
काॅप ही गया था उसे इस रूप में दे ख कर।

ररतू के मन में यही सब किल् की तरह चल रहा था। उसकी कजप्सी ऑधी तू िान
बनी हिे ली की तरि दौडी जा रही थी। उसे पता था कक उसका बाप किराज को
खोजने के कलए अपने आदकमयों को लगाया हुआ है। सं भि है कक अजय कसं ह ने अपने
आदकमयों को गाॅि हल्दीपु र और शहर गुनगु न में भी िैला रखा हो। ररतू के मन में
कसिग एक ही किचार था कक किराज को ककसी भी हालत में अपने बाप और उसके
आदकमयों की ऩिर में नही ं आने दे ना है। ये उसकी कजम्मेदारी थी कक किराज पर
ककसी तरह का कोई सं कट न आ पाए। क्ोंकक िास्तकिकता तो यही थी न कक किराज
को उसने ही पिन कसं ह के द्वारा बु लिाया है।

ररतू की कजप्सी हिे ली के गेट से अं दर दाल्कखल होते हुए पोचग में जाकर रुकी। कजप्सी
से उतर कर िह अं दर की तरि बढ गई।
___________________________

अब आगे,,,,,,,,

पिन से िोन पर बात करने के बाद मैं थोडी दे र के कलए गहरी सोच में डूब गया था।
मुझे समझ नही ं आ रहा था कक पिन ने आकखर ककस िजह से मु झे गाॅि आने के
कलए कहा था? पू छने पर भी उसने कुछ नही ं बताया था। कािी दे र तक इस बारे में
सोचने के बाद भी जब मु झे कुछ समझ न आया तो मैने अपने कदमाग़ से इस बात को
झटक कर बाइक स्टाटग की और घर की तरि चल कदया।

रास्ते में मैं ये सोच रहा था कक गाॅि जाने के कलए माॅ से कैसे अनु मकत कमले गी मु झे?
क्ोंकक मेरे गाॅि जाने का सु न कर ही उनके होश उड जाना है और ये भी कनकश्चत था
कक िो मुझे गाॅि जाने की इजा़ित ककसी भी हाल में नही ं दें गी। ले ककन मेरा गाॅि
जाना तो अब ़िरूरी हो गया था।

घर पहुॅच कर मैने बाइक को गैराज में लगाया और मुख्य दरिाजे के पास आ गया।
डोर बे ल पर उगली से पु श ककया। अं दर बे ल की आिा़ि गई। कुछ ही पलों में
दरिाजा खु ला। मेरी माॅ मेरे सामने दरिाजा खोल कर खडी थी। मुझ पर ऩिर
पडते ही उनके गुलाबी होंठो पर मु स्कान िैल गई।

450
"आ गया मेरा बे टा।" माॅ ने मेरे कसर से ले कर चे हरे तक अपना हाॅथ िेरते हुए
कहा__"चल आजा हम सब ते रे आने का ही इन्त़िार कर रहे थे ।"

मैं के साथ चलते हुए डर ाइं ग रूम में पहुॅचा। िहाॅ पर रखे सोिों पर जगदीश अं कल
और अभय चाचा बै ठे हुए थे । कनकध शायद अपने कमरे में थी।
"तो कैसा रहा हमारे राज का काॅले ज में पहला कदन?" जगदीश अं कल ने मु स्कुरा
कर कहा___"आई होप, बहुत ही बे हतर रहा होगा।"

"आपने सही कहा अं कल।" मैने एक सोिे पर बै ठते हुए कहा___"और आपको पता
है आज पहले ही कदन मेरी दोस्ती कुछ खास लोगों से हो गई है।"
"ओह ये तो बहुत अच्छी बात है बे टे।" अं ईल ने कहा___"िै से मैने सु ना है कक
काॅले जों में रै कगंग िगैरा होती है। कजसमें सीकनयर स्टू डे न्ट्स अपने जू कनयसग को कई
तरह से परे शान करते हैं। सो तु म्हें तो ककसी सीकनयर ने परे शान नही ं ककया न?"

"नही ं अं कल ऐसा कुछ नही ं था और थोडा बहुत तो चलता है।" मैने कहा।
"िै से राज क्ा नीलम से भी तु म्हारी मुलाक़ात हुई क्ा?" अभय चाचा ने पू छा।
"हाॅ चाचा जी।" मैने कहा___"ले ककन बस हमने एक दू सरे को दे खा ही है। कोई बात
चीत न मैने की उससे और ना ही उसने ।"

"तु म्हें िहाॅ पर दे ख कर हैरान तो बहुत हुई होगी िो।" चाचा ने कहा___"और अब िो
़िरूर िोन करके बडे भइया को बताएगी कक तु म भी उसी काॅले ज में पढ रहे हो।
उसके बाद भगिान ही जाने कक क्ा होगा?"

"कुछ नही ं होगा भाई साहब।" सहसा जगदीश अं कल ने कहा___"ये मुम्बई है मुम्बई।
यहाॅ पर आपके बडे भाई साहब का राज नही ं चले गा। यहाॅ अगर उन्होंने राज को
छूने की भी कोकशश की तो पल भर में उनको ने स्तनाबू त कर कदया जाएगा।"

जगदीश अं कल की बात सु न कर अभय चाचा कुछ न बोले । कदाकचत िो समझ गए


थे कक जगदीश अं कल सच कह रहे थे । आज के िक्त में मैं कोई मामूली इं सान नही ं
था। बल्कि मुम्बई शहर के टाॅप धन कुबे रों में मेरा नाम द़िग हो चु का था।

खै र, इन सब बातों के बीच मैं ये सोच रहा था कक गाॅि जाने की बात माॅ से कैसे
कहूॅ? मेरे पास िै से भी ज्यादा समय नही ं रह गया था। मैं अपनी जगह से उठ कर
माॅ के पास उनके सोिे पर बै ठ गया। मु झे अपने पास बै ठते दे ख माॅ ने प्यार से
एक बार किर मेरे कसर पर हाॅथ िेरा। मेरे चे हरे की तरि कुछ पल दे खने के बाद
कहा___"क्ा बात है राज? कुछ कहना है क्ा तु झे?"

451
"िो माॅ िो...मु झे न..िो मुझे।" मेरी आिा़ि अटक सी रही थी___"मुझे न आज और
इसी समय गाॅि जाना होगा। बहुत ़िरूरी है ।"
"क्ा?????" माॅ मेरी बात सु न कर उछल ही पडी थी, बोली__"ये तू क्ा कह रहा है?
नही ं हकगग़ि नही ं। तू गाॅि नही ं जाएगा। ते रे मन में गाॅि जाने का खयाल आया
कैसे ?"

मेरी बात से माॅ तो उछली ही थी ककन्तु उनके साथ ही साथ जगदीश अं कल और


अभय चाचा भी बु री तरह चौंके थे ।
"ये तु म क्ा कह रहे हो राज?" जगदीश अं कल ने हैरानी से कहा___"तु म्हें गाॅि
ककस कलए जाना है? आकखर ऐसा क्ा ़िरूरी काम आ गया?"

"िो पिन का िोन आया था मु झे काॅले ज से आते समय।" मैने कहा___"पिन मेरा
बचपन का बहुत ही गहरा दोस्त है। उसी का िोन आया था। उसने मु झे अजेटली
गाॅि बु लाया है। मैने उससे िजह पू छी मगर उसने बस इयना ही कहा कक तू बस
आजा।"

मैने उन सबको पिन से हुई सारी बात बता दी। मेरी बातें सु नने के बाद डर ाइं गरूम में
सन्नाटा सा छा गया।
"ककसी का भी िोन हो और चाहे कजतना भी ़िरूरी हो।" माॅ ने सन्नाटे को चीरते
हुए कहा___"तू गाॅि नही ं जाएगा बस। मैं तु झे मौत के मु ह में जाने की हकगग ़ि भी
इजा़ित नही ं दू ॅगी।"

"ले ककन तु म्हारे दोस्त को कोई िजह तो बताना ही चाकहये था राज।" जगदीश अं कल
ने कहा___"भला ये क्ा बात हुई कक िोन घुमा कदया और कह कदया कक तु म्हें यहाॅ
आना है बस?"

"कही ं ऐसा तो नही ं भाई साहब कक राज का दोस्त अजय भइया के हाथ लग गया हो
और ये सब बातें उसने उनके ही कहने पर की हों?" अभय चाचा ने कुछ सोचते हुए
कहा___"यकीनन ऐसा हो सकता है। उन्होंने कही ं से पता कर कलया होगा कक गाॅि
में राज का कोई दोस्त है जो अर्क्र राज से िोन पर बातें करता रहता है। इस कलए
उन्होंने उसे पकड कलया होगा और डरा धमका कर िोन करिाया होगा।"

"आपकी बातों में यकीनन िजन है भाई साहब।" जगदीश अं कल ने


कहा___"यकीनन ऐसा हुआ होगा। उन्होंने राज के दोस्त को मजबू र ककया होगा इस
सबके कलए।"
"उसने जब मु झसे िोन पर बात की थी तब ऐसा कबलकुल भी नही ं लग रहा था कक

452
िो ककसी के द्वारा मजबू र ककया गया है।" मैने कहा___"िो कबलकुल नामगली ही बातें
कर रहा था। हाॅ थोडा थोडा दु खी और उदास सा ़िरूर समझ में आ रहा था।"

"ये सब बातें छोंकडये आप लोग।" सहसा माॅ ने कहा___"राज कही ं नही ं जाएगा
बस। ये मेरा आकखरी फ़ैसला है।"
"ले ककन बहन।" जगदीश अं कल ने कहा___"पता तो चलना ही चाकहए कक बात क्ा
है? मान लो कक सचमुच कोई ऐसी बात हो कजससे राज का िहाॅ पर जाना बहुत
़िरूरी ही हो तब क्ा? ये सब सं भािनाएॅ हैं। हमें सच्चाई जानना ़िरूरी है। एक
काम करो राज तु म अभी अपने दोस्त को िोन लगाओ और उससे बात करो। हम
सब सु नेंगे कक बात क्ा है।"

मुझे जगदीश अं कल की बात सही लगी इस कलए मैने िोन कनकाल कर तु रंत पिन
को िोन लगा कर िीकल ऑन कर कदया। कुछ दे र िोन की ररं ग जाने की आिा़ि
आती रही।

"हाॅ भाई चल कदया क्ा िहाॅ से ?" उधर से पिन का स्वर उभरा।
"यार मेरी समझ में ये नही ं आ रहा कक आकखर ऐसा क्ा ़िरूरी काम है कजसकी
िजह से तू ने मु झे िहाॅ अजेंट बु लाया है?" मैने कहा।

"मेरे भाई मैं तु झे िोन पर नही ं बता सकता। तू बस आजा और खु द अपनी ऑखों से
दे ख सु न ले ।" उधर से पिन अधीर भाि से कह रहा था___"मुझे पता है भाई कक ते रा
यहाॅ पर आना खतरे से खाली नही ं है। मैं खु द भी तु झे ककसी ऐसे खतरे में डालने
का सोच भी नही ं सकता। ले ककन भाई बात ही ऐसी है कक तु झे बु लाना पड रहा है
यहाॅ। भाई तु झे हमारी दोस्ती की कसम है , तू आजा भाई। चाहे दो पल के कलए ही
आजा ले कन आजा भाई। मैं ते रे हाॅथ जोडता हूॅ, तू आजा मेरे यार।"

"अच्छा ये बता कक तू ककसी के दबाि में या ककसी के द्वारा मजबू र हो कर तो नही ं


बु ला रहा न मु झे?" मैने बाॅकी सबकी तरि ऩिरें घुमा कर दे खते हुए कहा था।
"ये तू क्ा कह रहा है राज?" पिन के स्वर में हैरानी थी, बोला___"भाई तू सोच भी
कैसे सकता है कक मैं ककसी के द्वारा मजबू र होकर तु झे खतरे में डाल दू ॅगा? मैं मर
जाऊगा भाई ले ककन ऐसा कभी नही ं कर सकता।"

"चल ठीक है भाई मैं आने की कोकशश करूॅगा।" मैने कहा।


"कोकशश नही ं भाई।" पिन ने कहा__"तु झे ़िरूर आना है। कल मैं तु झे बस स्टै ण्ड
पर ही कमलू ॅगा। ते रे बडे पापा के आदमी कािी समय से यहाॅ आस पास नही ं कदखे
हैं। शायद उन्हें यकीन हो गया है कक अब तू गाॅि नही ं आएगा। ककसी को कानो
कान खबर नही ं होगी ते रे आने की। तू किक्र मत ईर भाई। तू बस आजा।"

453
"चल ठीक है।" मैने कहा और िोन काट कदया।
"तु म्हारे दोस्त की बातचीत से तो साि पता चलता है कक िो ये सब ककसी के द्वारा
मजबू र होकर नही ं बल्कि अपनी स्वेच्छा से कह रहा है।" जगदीश अं कल ने
कहा___"ले ककन अब सिाल यही है कक आकखर ककस अजेन्ट काम के कलए उसने तु म्हें
गाॅि आने के कलए कहा हो सकता है? उसने इस बारे में कुछ भी नही ं बताया। बस
यही कहा कक तु म खु द अपनी ऑखों से दे ख सु न लो। भला ऐसी क्ा बात हो सकती
है कजसे अपनी ऑखों और कानों से दे खने सु नने की बात की उसने ?"

"ये तो िहाॅ जाकर ही पता चले गा अं कल।" मैने कहा___"मेरा ये दोस्त ऐसा है कक
मेरे बारे में कभी भी अकहत नही ं सोच सकता। यही िो दोस्त है कजसने अब तक मुझे
हिे ली में रहने िाले लोगों की पल पल की खबर दी। चाचा जी जब आप यहाॅ आ रहे
थे तब भी इसी ने िोन करके मुझे बताया था कक आप यहाॅ आ रहे हैं। हिे ली में कुछ
बात हो गई थी कजसकी िजह से हिे ली में उस समय तनाि हो गया था।"

"कोई भी िजह हो तू गाॅि नही ं जाएगा मेरे बच्चे।" माॅ की ऑखों में ऑसू आ
गए__"मैं तु झे नही ं जाने दू ॅगी। तू यही ं मेरी ऩिरों के सामने ही रहे गा।"
"आपकी इजा़ित के कबना तो मैं िै से भी कही ं नही ं जाऊगा माॅ।" मैने माॅ की
ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___"ले ककन ये तो आपको भी पता है न कक जो खे ल
शु रू हो चु का है उसको अं जाम तक ले जाना मेरा सं कल्प है और ि़िग भी। आपका
बे टा न पहले कायर और बु जकदल था और ना ही अब है। उन्होंने धोखे से हम पर िार
ककया था जबकक मैं सामने से उनके सीने पर िार करूॅगा।"

"ऐसा ही होगा राज बे टे।" अभय चाचा ने कहा___"मु झे सारी सच्चाई का भाभी से
पता चल चु का है। इस कलए अब इस लडाई में मैं भी तु म्हारे साथ हूॅ। बस कचं ता एक
ही बात की है कक ते री चाची और ते रे भाई बहन भले ही ते रे मामा जी के यहाॅ हैं
ले ककन िो सु रकक्षत नही ं हैं िहाॅ। काश! मुझे पता होता तो उन्हें भी अपने साथ ही ले
आता यहाॅ।"

"अभी भी कुछ नही ं कबगडा है भाई साहब।" जगदीश अं कल ने कहा___"करूर्ा


बहन और उसके बच्चों को सु रकक्षत यहाॅ बु लाया जा सकता है।"
"िो कैसे भाई साहब?" चाचा जी के माथे पर बल पडता चला गया।

"गौरी बहन।" जगदीश अं कल ने माॅ की तरि दे खते हुए कहा___"तु म राज की ़िरा
भी किक्र मत करो। राज यहाॅ से गाॅि ़िरूर जाएगा ले ककन अकेला नही ं। मैं राज
के साथ एक ऐसे शख्स को भे जूॅगा जो हर पल राज के साथ उसका सु रक्षा किच

454
बन कर रहे गा। अभय भाई साहब अपने ससु राल में िोन कर दें गे, और समझा दें गे
कक कैसे उन लोगों को िहाॅ से यहाॅ आना है ।"

"भइया आप भी??" माॅ ने किक्रमंदी से कहा___"आप भी इसे भे जने की ही बात कर


रहे हैं?"
"मेरी बहन मैने कहा न तु म राज की कबलकुल भी कचं ता न करो।" जगदीश अं कल ने
कहा___"राज अगर तु म्हारा बे टा है और तु म्हारे प्रार् उस पर बसते हैं तो ये समझ लो
कक मेरे प्रार् भी राज पर ही बसते हैं। मैं राज के ऊपर ले श मात्र का भी खतरा नही ं
चाह सकता। मगर मैं ये भी जानता हूॅ कक राज के सामने प्यार और ममता की
दीिार खडी करके उसे उसके कतग ब्य पथ पर जाने से रोंकना भी उकचत नही ं है ।
खतरा तो इं सान के जीिन का एक कहस्सा है बहन। इं सान का हर कदन एक नया जन्म
होता है और हर कदन एक मृ त्यु होती है। सु बह की पहली ककरर् के साथ ही इं सान के
नये जीिन की शु रूआत हो जाती है और किर जब इं सान रात में सो जाता है तो िह
एक तरह से मृत समान ही हो जाता है। खै र, मैं ये कह रहा हूॅ कक तु म अपने इस
भाई पर यकीन रखो। मैं राज पर ककसी भी तरह का सं कट नही ं आने दू ॅगा।"

जगदीश अं कल की बात सु न कर माॅ कुछ न बोली। बस ऑखों में नीर भरे दे खती
रही उन्हें ।
"राज तु म जाने की तै यारी करो।" जगदीश अं कल ने कहा___"तब तक मैं भी उस
शख्स को िोन कर के बु ला ले ता हूॅ और तु म दोनो के कलए टर े न की कटकट का भी
इं तजाम कर दे ता हूॅ।"

जगदीश अं कल की बात सु न कर मैने माॅ की तरि दे खा। माॅ ने अपने कसर को


हिा सा कहला कर मु झे जाने की इजा़ित दे दी। मैं तु रंत ही उठ कर अपने कमरे की
तरि ते ़िी से बढ गया। लगभग पन्द्रह कमनट बाद मैं तै यार होकर तथा एक छोटे से
कपट् ठू बै ग में कुछ कपडे ि कुछ ़िरूरी ची़िें डाल कर कमरे से बाहर आ गया।

कमरे से बाहर आकर मुझे कनकध का खयाल आया। मैं उसके कमरे की तरि बढ
गया। दरिाजे को बाहर से नाॅक कर उसे आिा़ि दी मगर अं दर से कोई प्रकतकक्रया
न हुई। मैंने दरिाजे को अं दर की तरि धकेला तो िो खु लता चला गया। कमरे के
अं दर दाल्कखल होकर मैने दे खा कक कनकध बे ड पर करिट कलए सो रही थी। सोते हुए िो
कबलकुल मासू म सी बच्ची लग रही थी। मु झे उस पर बडा प्यार आया। मैने झुक कर
उसके माथे पर हिे से चू ॅमा और किर झुके हुए ही कहा___"अपना खयाल रखना
गुकडया। मैं गाॅि जा रहा हूॅ अभी। जल्द ही िापस आऊगा।"

इतना कह कर मैंने एक बार किर से उसके माथे को चू मा किर पलट कर कमरे से

455
बाहर आ गया। इस बात से अं जान कक मेरे बाहर आते ही कनकध ने अपनी ऑखें खोल
दी थी। उन समंदर सी गहरी ऑखों में ऑसू तै र रहे थे ।

डर ाइं गरूम में जब मैं पहुॅचा तो दे खा एक अं जान ब्यल्कक्त एक तरि सोिे पर बै ठा


था। कदखने में हट्टा कट्टा था। ऊम्र यही कोई तीस या पैं तीस के बीच रही होगी
उसकी। चे हरे पर पत्थर जैसी कठोरता किद्यमान थी। जबडे कसे हुए लग रहे थे ।

"राज बे टा इनसे कमलो।" मुझे दे खते ही जगदीश अं कल ने उस ब्यल्कक्त की तरि


इशारा करते हुए कहा___"ये हैं आकदत्य चोपडा। ये कािी अच्छे माशग ल आकटग स्ट हैं।
ये सबको कसक्ोररटी प्रोिाइड करते हैं। मैने इन्हें सबकुछ समझा कदया है। अब से ये
हर पल तु म्हारे साथ तु म्हारा साया बन कर रहें गे।"

"ओह हैलो।" मैने कहने के साथ ही उसकी तरि है ण्ड शे क करने के कलए हाथ
बढाया। उसने भी हैलो करते हुए मुझसे हाथ कमलाया। उसके हाॅथ कमलाने से ही
मुझे महसू स हो गया कक ये बं दा कािी ठोस ि मजबू त है।

खै र सबसे आशीिागद ले कर मैं बाहर की तरि चल कदया। मेरे साथ ही बाॅकी सब भी


बाहर आ गए। कार की तरि जाने से पहले माॅ ने मु झे अपने सीने से लगा कर प्यार
कदया। आकदत्य ने कार की डर ाइकिं ग शीट सम्हाली। जबकक मैं और जगदीश अं कल
कार की कपछली शीट पर बै ठ गए। उसके बाद कार रे लिे स्टे शन की तरि ते ़िी से
बढ चली। जगदीश अं कल मेरे साथ इस कलए थे ताकक िापसी में िो स्टे शन से कार
िापस ला सकें।

रे लिे स्टे शन पहुॅच कर मैने जगदीश अं कल को िापस घर जाने का कह कदया।


उन्होंने मु झे कुछ कहदायतें दी और शु भकामनाएॅ भी। उनके जाने के बाद मैं और
आकदत्य प्लेटिामग की तरि बढ गए। प्लेटिामग में जब हम पहुॅचे तो टर े न जाने ही
िाली थी। इस कलए हम दोनो एसी िस्टग क्लास की तरि दौड चले । कुछ ही दे र में
हम दोनो अपनी अपनी शीटों पर आ गए थे ।
_____________________________

काॅले ज में हुई घटना से नीलम मानकसक रूप से कािी दु खी हो गई थी और कजस


तरह से किराज ने िहाॅ पर आकर उसकी इज्ज़ित को तार तार होने से बचाया था िो
उसके कलए कनहायत ही अकिश्वसनीय था। उसने तो कल्पना भी न की थी कक उसके
चाचा का लडका यानी कक उसका भाई जो उमर में उससे मात्र दस कदन बडा था िो
यहाॅ पर आएगा और इस तरह से उसकी इज्ज़ित को कमट्टी में कमल जाने से बचाएगा।

456
उसने तो माॅम डै ड के मुख से अर्क्र यही सु ना था कक किराज मुम्बई में ककसी
होटे ल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा। मगर मुम्बई के इतने बडे काॅले ज में जहाॅ
पर एडमीशन ले ने के कलए हाई पशे न्टेज मार्क्ग का होना और अच्छे खासे पै से का
होना अकनिायग था उस काॅले ज में किराज को एक स्टू डें ट के रूप में दे ख कर नीलम
के आश्चयग की कोई सीमा न रही थी।

किराज को अपने इस काॅले ज में दे ख कर नीलम को ये तो समझ में आ गया था कक


उसके माॅम डै ड किराज के बारे में जो सोच और किचार रखे हुए हैं िो कसरे से ही
ग़लत है। आज काॅले ज में हुई घटना के बाद नीलम जैसे पत्थर की मूकतग में पररिकतग त
हो गई थी। उसने दे खा था कक कैसे किराज ने उन लडकों को दो कमनट में धूल चटाया
था उसके बाद उसने उसका दु पट्टा उसे लौटाया था। ककन्तु जब उसने दे खा कक कजसे
िह दु पट्टा दे रहा था िो उसी की चचे री बहन थी तो उसने तु रंत उससे मु ह िेर कलया
था और उसके पास से चला गया था।

नीलम को तो कािी दे र तक कुछ समझ न आया था कक िह क्ा करे ? िो तो बु त बन


गई थी। अपने भाई के सामने उसकी ल्कथथत दो कौडी की न रह गई थी। उस भाई के
सामने कजसे उसके माॅम डै ड दो कौडी का भी नही ं समझते थे और िो खु द भी कभी
उसे अपने भाई का दजाग नही ं दे ती थी।

कािी दे र बाद जब नीलम की तं द्रा टू टी तो िह बदहिास सी होकर कंटीन की तरि


ल्कखंची चली गई थी। मगर कंटीन में जो ऩिारा उसे दे खने को कमला उसने उसे और
भी ज्यादा हैरान कर कदया। कजस किराज को िो आज तक एक सीधा सादा और दो
कौडी का भी नही ं समझती थी िो आज इतना खतरनाक कदख रहा था कक आशू राना
के हट्टे कट्टे भाई को अधमरा कर कदया था। उसकी ऑखों के सामने उसने भू षर् को
पहले तो अधमरा ककया और किर उसे खु द ही आशू के साथ हाल्किटल भी ले गया।

काॅले ज में पहले कदन ही इस तरह की घटना से सनसनी सी िैल गई थी। िो खु द


भी मानकसक रूप से ब्यकथत थी इस कलए िह काॅले ज से सीधा अपनी बडी मौसी
पू नम के घर चली गई थी। इस िक्त िह अपने कमरे में बे ड पर पडी हुई थी। उसकी
ऑखें ऊपर छत पर घूम रहे पं खे को अपलक दे खे जा रही थी।

नीलम की ऑखों के सामने बार बार िही मं़िर आ रहा था। उसे अभी भी यकीन
नही ं हो रहा था कक िो किराज ही था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने खु ली ऑखों
से कोई ख्वाब दे खा था। मगर हकीक़त उसे अच्छी तरह पता थी। काॅले ज से जल्दी
आ जाने पर उसकी मौसी ने पू छा था कक इतना जल्दी काॅले ज से कैसे आ गई िह?
मगर उसने गोल मोल जिाब दे कदया था और सीधा अपने कमरे में बे ड पर ले ट गई

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थी।

िह किराज से नफ़रत तो नही ं करती थी ककन्तु हाॅ उसे िह अपना भाई भी नही ं
मानती थी और ना ही उसकी ऩिर में उसकी कोई अहकमयत थी। उसके माॅम डै ड
बचपन से ही ये कहदायत दे ते थे कक किराज, कनकध और उसके माॅ बाप अच्छे लोग
नही ं हैं। इनसे न कभी बात करना और ना ही कभी इनके पास जाना। ये हमारे कुछ
नही ं लगते हैं। बचपन से एक ही पाठ पढाया गया था इन्हें । समय के साथ साथ उसी
तरह की सोच भी बन गई थी इनकी। हालात ऐसे बनाए गए थे कक इन लोगों ने कभी
ये सोचा ही नही ं कक हम कजनके बारे में ऐसी धारर्ा बनाए बै ठे हैं िो िास्ति में िै से हैं
भी या नही ं? समय गु़िरा और किर िो सब हादसे हुए कजनसे इनकी सोच में और भी
ज्यादा िो सब बातें बै ठ गईं।

मगर आज के हादसे ने नीलम के अल्कस्तत्व को कहला कर रख कदया था। उसे उस सोच


और धारर्ा के महासागर से बाहर कनकाल कदया कजस महासागर में आज तक िो
डूबी हुई गोते लगा रही थी। कहते हैं कक समय हमेशा एक जैसा नही ं रहता। समय
बदलता रहता है और बदलते हुए समय के साथ ही साथ इं सान की सोच भी बदलती
रहती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक ही बात को गाॅठ बाॅध कर जीिन भर ढोते
रहते हैं। उन्हें ककसी की बात सही नही ं लगती। िो हमेशा अपनी ही सोच को यथाथग
और हकीक़त मान कर जीते हैं। उन्हें अपनी सोच और धारर्ा के ग़लत होने का तब
पता चलता है जब िक्त खु द उन्हें आईना कदखाता है या एहसास कराता है।

नीलम के पास आज िही िक्त आईना कदखाने आया था और आईना कदखा कर


उसने उसे एहसास करा कदया था कक अब तक िो ककतना ग़लत थी जो अपने माता
कपता के द्वारा कमली सीख और कनदे शों पर चल रही थी। िक्त ने आकर उसे आईना
कदखाया, एहसास कराया और उससे एक सिाल भी कर गया कक 'अगर ये इतना ही
बु रा होता तो आज ककसी काॅले ज में ककसी लडकी की इज्ज़ित बचाने के कलए इतनी
भीड में से अकेला नही ं आता। ये तो उसे बाद में पता चला कक िो लडकी कोई और
नही ं बल्कि उसकी बहन ही थी। अपनी जान को खतरे में डाल कर आज के युग में
कौन ककसी के कलए ऐसा करता है? ये तो िही कर सकता है जो सच्चा होता है और
जो ककसी बे कसू र ि मजलू म पर अत्याचार होते नही ं दे ख सकता। बल्कि अत्याचार
करने िाले से कभड जाता है किर चाहे भले ही खु द उसकी जान ही क्ों न चली जाए।

नीलम की ऑखों के सामने बचपन से ले कर अब तक की सारी यादें ककसी किल् की


तरह चलने लगी। उसे याद आया कक एक बार हिे ली में उससे एक कीमती मूकतग कगर
कर टू ट गई थी, उस िक्त नीलम और कशिा ही थे । आिा़ि सु न कर किराज भी आ
गया था। िो मू कतग के टु कडों को पास से जाकर दे खने लगा था। उसी िक्त किजय

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चाचा और नै ना बु आ भी आ गई थी। किजय चाचा ने मूकतग को टू ट कर कबखरी हुई दे ख
कर पू छा था कक ये ककसने तोडा तो कशिा जो कक छोटा ही था उस िक्त उसने
भोले पन में डर की िजह से तु रंत नीलम की तरि उगली कर कदया था। मगर तभी
किराज ने कहा था कक उससे ही कगर कर टू ट गई थी िो मूकतग । उसकी बात सु नकर
किजय चाचा ने किराज की कािी ज्यादा कपटाई कर दी थी। किराज कपटता रहा मगर
मुख से ये न बताया था कक मूकतग असल में नीलम से टू टी थी।

़िोरदार कपटाई के चलते किराज की हालत खराब हो गई थी, जबकक िो और उसके


भाई बहन उसके कपट जाने पर बहुत खु श थे । एक बार अजय कसं ह की जेब से कशिा
ने पै से चु रा कलए थे और चु राकर कशिा ने कमरे में सो रहे किराज की शटग की जेब में
िो पै सा डाल कदया था। ये सब कसिग इस कलए कमली भगत द्वारा ककया गया था ताकक
किराज की किर से कपटाई हो और िही हुआ भी। कशिा नीलम को ले कर अपने बाप
के पास गया और उससे बोला कक डै ड किराज ने आपकी जेब से पै सा चु राया है कजसे
उसने अपनी ऑखों से दे खा है। बस किर क्ा था अजय कसं ह को तो बहाना चाकहए
होता था किजय कसं ह और उसके बच्चों को उल्टा सीधा बोलने के कलए। तलाशी में िो
पै सा किराज की शटग की जे ब में कमल ही गया। उसके बाद किजय कसं ह ने सोते हुए
किराज की कपटाई शु रू कर दी। बे चारे को समझ ही न आया था कक िो ककस बात पर
मार खा रहा था। जबकक उसकी कपटाई से नीलम कशिा और ररतू ये तीनों बडा खु श
हो रहे थे ।

ऐसी बहुत सी बातें थी जो इस िक्त नीलम की ऑखों के सामने घू म रही थी। किराज
में एक खाकसयत ये थी कक िो अपनी सिाई में कभी कुछ नही ं बोलता था। मार खाने
के बाद और इतना ज्यादा जलील होने के बाद भी िह इन लोगों के साथ खे लने के
कलए आ जाता था। ये अलग बात थी कक ये लोग उसे दु त्कार कर भगा दे ते थे ।

नीलम को पता ही नही ं चला कक कब उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे । पता तो तब


चला जब िो ऑसू दोनो ऑखों की कोरों से बहते हुए कानों कगरे । एक हूक सी उठी
कदलो कदमाग़ में उसके। मनो मल्कस्तष्क झनझना कर रह गया। भािनाओ और
जज़्बातों का एकाएक ही तीब्र तू िान उठ खडा हुआ। हृदय का जब पररितग न होता है
तो एक नये युग का प्रारं भ हो जाता है। पररितग न अगर नफ़रत के कलए होता है तो
बहुत जल्द एक बडे अकनष्ट की कनयकत बन जाती है और अगर प्रे म के कलए होता है तो
एक नया सं सार बनने लगता है।

"मुझे माफ़ कर दे भाई।" भािना या जज़्बात जब प्रबल हो जाते हैं तो कोई धैयग कोई
सं यम नही ं हो सकता। बल्कि हर दरो दीिार को तोडते हुए हृदय में ताण्डि करते हुए
जज़्बात ऑखों के रास्ते से ऑसू बन कर बहने लग जाते हैं_____"माफ़ कर दे मुझे।

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ककतना ग़लत सोचती थी आज तक मैं ते रे बारे में। मगर तू तो पहले भी हीरा था भाई
और आज भी हीरा है। बचपन से ले कर आज तक हमेशा तु झे जलील ककया
अपमाकनत ककया और न जाने कैसे कैसे इल्जाम लगा कर तु झे ते रे ही कपता जी से
कपटिाया। कोई इतना बु रा कैसे हो सकता है भाई? और तू इतना अच्छा कैसे हो
सकता है? आज कजस तरह से तू ने मु झे अनदे खा कर के अजनबीपन कदखाया उसने
मुझे समझा कदया है भाई कक मेरी औकात ते रे सामने कुछ भी नही ं है।"

नीलम खु द से ही बडबडाये जा रही थी और ऑसू बहाए जा रही थी। अभी िह रो ही


रही थी कक सहसा ककसी ने उसके कंधे पर हाॅथ रखा। िह बु री तरह उछल पडी।
पलट कर दे खा तो बगल से ही उसकी मौसी की दू सरी बे टी सोनम उसकी तरि
झुकी हुई खडी थी।

दोस्तो यहाॅ पर मैं नीलम की मौसी और उसके पररिार का संकक्षप्त


पररचय दे ना चाहूॅगा,,,,,,,,,
●पू नम कसं ह, ये नीलम की माॅ यानी प्रकतमा की बडी बहन है। इस नाते ये नीलम की
मौसी लगती है। ऊम्र पचास के आसपास। प्रकतमा की तरह ही कदखने में बे हद सुं दर
है।

●महेश कसं ह, ये नीलम के मौसा और पू नम के पकत हैं। ऊम्र पचपन के आसपास।


पे शे से डाॅक्टर हैं।

● अं जली कसं ह, ये नीलम की मौसी की बडी बे टी है। ऊम्र पच्चीस के आसपास।


कदखने में बहुत ही खू बसू रत है। पे शे से ये भी डाॅक्टर है। अभी शादी नही ं हुई है
इसकी।

●सोनम कसं ह, ये नीलम के मौसी की दू सरी बे टी है। ऊम्र बाईस साल है। अपनी बहन
की ही तरह खू बसू रत है। ये काॅले ज में साइं स से एम एस सी कर रही है।

● किकास कसं ह, ये नीलम की मौसी का इकलौता ि सबसे छोटा बे टा है। ऊम्र उन्नीस
के आसपास। अपने बाप महेश की तरह ही ये भी डाॅक्टर बनना चाहता है।

दोस्तो ये था नीलम की मौसी का सं कक्षप्त पररचय। अब कहानी की तरि चलते


हैं,,,,,,,

"दीदी आप।" सोनम पर ऩिर पडते ही नीलम लगभग हडबडा गई थी।


"हूॅ तो मैं ही।" सोनम ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तू चाहे तो कुछ और भी समझ

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सकती है। खै र, ये बता कक कौन है िो?"

"क क्ा मतलब??" नीलम बु री तरह चौंकी थी।


"मतलब कक िो कौन है कजसकी याद में तू ऑसू बहा रही है?" सोनम कहने के साथ
ही बे ड पर बै ठ गई____"तू मु झे बता सकती है नीलम। मैं ते री बडी बहन से कही ं
ज्यादा ते री दोस्त की तरह हूॅ। अब चल बता कक कौन है िो कजसने मेरी प्यारी सी
दोस्त की ऑखों को रुलाया है?"

"ऐसा कुछ नही ं है दीदी।" नीलम ने कहा__"ये ऑसू तो पश्चाताप के हैं। आज तक


कजसे अजनबी समझकर उसे जलील और दु त्कारती रही थी उसी ने आज मेरी इज्ज़ित
बचाई दीदी।"

"क्ा???" सोनम उछल पडी___"ये तू क्ा कह रही है नीलम? क्ा हुआ था आज


काॅले ज में ते रे साथ? सच सच बता मु झे।"

नीलम ने उसे सब कुछ बता कदया कक कैसे आशू राना नाम का लडका अपने कुछ
दोस्तों के साथ उसकी रै कगंग कर रहा था। उसने उसे कहा था कक िो उसके साथ
साथ उसके दोस्तों के होठों को भी चू मे। उसकी इस बात पर उसने आशू राना को
थप्पड मार कदया था। कजससे आशू राना ने सबके सामने उसकी इज्ज़ित लू टने की
कोकशश की। तभी उस भीड से कनकल कर कोई आया और उसने आशू राना के
साथ साथ उसके सभी दोस्तों की खू ब कपटाई कर उसकी इज्ज़ित को लटने से बचाया
था। नीलम ने सारी बात सोनम को बता दी। नीलम की सारी बातें सु नकर सोनम
हैरान रह गई थी।

"तो िो लडका ते रा चचे रा भाई है?" सोनम ने कहा___"कजसे आज तक तू भाई नही ं


मानती थी। बात कुछ समझ में नही ं आई नीलम। भला ऐसा तू कैसे कर सकती है?"
"िही तो दीदी।" नीलम की ऑखें छलक पडी ं___"अपने िररश्ा जैसे भाई के साथ
मैने आज तक िो सब कैसे ककया? आज की उस घटना ने मु झे एहसास करा कदया
दीदी कक ककतनी बु री हूॅ मैं। कजसकी ऑखों में अपने कलए हमेशा प्यार और सम्मान
दे खा था आज उसी ऑखों में अपने कलए कहकारत के भाि दे खा है मैने। िो ऐसे मु ह
िेर कर चला गया था जैसे उससे मेरा कोई दू र दू र नाता नही ं है। उस िक्त मुझे
पहली बार लगा दीदी कक मैं उसकी ऩिर में क्ा रह गई हूॅ। सच ही तो है, आकखर
उसकी ऩिर में मेरी कोई औकात हो भी कैसे सकती है? मैने और मेरे माॅ बाप ने
हमेशा उसे और उसके माॅ बाप को तु च्छ समझा था।"

"ये तू क्ा कह रही है नीलम?" सोनम बु री तरह हैरान थी, बोली___"ये तू कैसी बातें
कर रही है? आकखर बात क्ा है?"

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"सारी बातें तो मु झे भी नही ं पता दीदी ले ककन इतना समझ गई हूॅ कक बचपन से मेरे
माॅम डै ड ने कजनके बारे में ऐसा करने की सीख दी थी िो ग़लत था।" नीलम ने
कहा___"ककसी के बारे में खु द भी तो जाॅचा परखा जाता है न? ऐसा तो नही ं होना
चाकहए न कक हमें ककसी ने जो कुछ बता कदया उसे ही सच मान लें और किर सारी
ऊम्र उसी को कलए बै ठे रहें। कीचड अगर इतना ही गंदा होता तो उसमें कमल जैसा
िूल कभी नही ं ल्कखलता। गंदगी तो िहाॅ भी होती है दीदी कजस जगह को लोग पाक़
समझते हैं।"

"मेरी तो कुछ समझ में नही ं आ रहा नीलम कक तू ये सब क्ा कहे जा रही है?" सोनम
ने उलझनपू र्ग भाि से कहा था।
"बताऊगी दीदी।" नीलम ने कहा___"सब कुछ बताऊगी आपको। ले ककन इस िक्त
नही ं। इस िक्त मुझे अकेला छोंड दीकजए। मु झे अकेला छोंड दीकजए दीदी।"

कहने के साथ ही नीलम िूट िूट कर रोने लगी थी। सोनम ने उसे खी ंच कर अपने
से छु पका कलया था।
___________________________

उथर हिे ली में।


ररतू जब हिे ली पहुॅची तो शाम हो चु की थी। अजय कसं ह हिे ली में नही ं था बल्कि
िैक्टरी में था। िैक्टरी का काम लगभग पू रा ही हो गया था। बस कुछ ही कदनों में
िैक्टरी चालू हो जानी थी। ररतू अं दर आते ही अपने कमरे की तरि बढ गई। ककचे न
में प्रकतमा और नै ना कडनर तै यार कर रही थी।

कमरे में पहुॅच कर ररतू ने अपने कपडे बदले और किर बाथरूम की तरि बढ गई।
बीस कमनट बाद जब िह बाथरूम से बाहर आई तो उसकी ऩिर बे ड पर पडे आई
िोन पर पडी। आई िोन पर ककसी का काॅल आ रहा था। िोन साइले न्ट मोड पर
था।

ररतू टाॅिे ल को अपने सं गमरमरी बदन पर लपे ट कर ते ़िी से बे ड के पास पहुॅची


और िोन को उठा कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहा नं बर को दे खा। नं बर को दे ख कर
उसके होठों पर हिी सी मु स्कान उभ आई।

"हैलो।" किर उसने काॅल ररसीि करते ही कहा।


".............. ।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्ा सच कह रहे हो तु म?" ररतू के चे हरे पर खु शी के भाि उभर आए थे ।
".............।" उधर से किर कुछ कहा गया।

462
"ठीक है भाई।" ररतू ने धीमे स्वर में कहा___"तु म उसे ररसीि कर ले ना और अपने
साथ ही पहले घर ले जाना। उसके बाद मैं तु म्हें िोन करूॅगी और बताऊगी कक अब
तु म उसे अपने साथ िहाॅ पर ले आओ।"

"..............।" उधर से किर कुछ कहा गया।


"डोन्ट िरी भाई।" ररतू ने कहा___"मैं सब दे ख लू ॅगी। चलो अब रखती हूॅ िोन।"
ररतू ने कहा और िोन कट कर कदया। किर मन ही मन कहा___"आजा मेरे भाई।
ते री किधी तु झे बस एक बार दे खने के कलए ही क़िदा है। अपने आपको सम्हालना मेरे
भाई। मैं जानती हूॅ कक िो लम्हाॅ ते रे कलए बे हद ददग नाक होगा। मगर खु द को
सम्हालना भाई। काश! ये सब न हुआ होता। हे भगिान ये तू ने मेरे भाई के साथ क्ा
कर कदया है। ककतना दु ख ददग दे गा तू उसे ? नही ं नही,ं मैं अपने भाई को कोई दु ख ददग
सहने नही ं दू ॅगी। उसको अपने सीने से लगा कर खू ब प्यार दू ॅगी मैं। अब तक तो
मैने उसे नफ़रत ही दी थी ले ककन अब बे इंतेहां प्यार दू ॅगी उसे । हाॅ हाॅ खू ब प्यार
दू ॅगी उसे ।"

ऑखों से छलक आए ऑसु ओ ं को पोंछा ररतू ने और किर आलमारी की तरि बढ


गई। आलमारी से रात में पहनने िाले कपडे कनकाल कर उसने उन्हें पहना और किर
कमरे से बाहर आ गई।

रात में सबने एक साथ कडनर ककया। ररतू ने दे खा कक उसका भाई कशिा भी आ गया
था। िह उससे बडे प्यार ि चापलू सी के से अं दा़ि में कमला था। ररतू को उसे और
उसके इस अं दा़ि पर आज पहली बार नफ़रत सी हुई थी। हलाॅकक िो जैसा भी था
उसका सगा भाई ही था। अजय कसं ह भी िैक्टर ी से आ गया था। सबने कडनर ककया
और इसी बीच थोडी बहुत बातें भी हुईं। उसके बाद सब अपने अपने कमरों में सोने
के कलए चले गए।

उस िक्त रात के बारह बजे के आस पास का िक्त था। हिे ली में हर तरि सन्नाटा
छाया हुआ था। हिे ली के अं दर अधेरा तो था मगर पू री तरह नही ं क्ोंकक ल्कखडककयों
से चाॅद की रोशनी और अं दर लगे नाइट बल्ब की धीमी रोशनी थी। किराज के आने
की खु शी में ररतू को नी ंद नही ं आ रही थी। उसके मन में तरह तरह के खयाल बन रहे
थे । कभी उसका चे हरा खु शी से चमकने लगता तो कभी एकदम से उदास सा हो
जाता। बे ड पर इधर से उधर करिट बदलते हुए पल पल गु़िरता जा रहा था। मगर
उसे ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे रात का ये िक्त तो जैसे एक जगह ठहर ही गया था। ररतू
को लग रहा था कक ये रात ककतना जल्दी गु ़िर जाए और सु बह हो जाए। ऐसे ही
बारह बज गए थे ।

उसे प्यास लगी तो िह बे ड से उठ कर दरिाजे की तरि बढी। दरिाजे को खोल कर

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िह बाहर आ गई। गैलरी से चलते हुए उसे नै ना बु आ का कमरा कदखा। उसके बाद
नीचे जाने के कलए सीकडयाॅ। सीकढयों से उतरते हुए िह ककचे न की तरि बढ गई।
ककचे न में रखे कि़ि को खोलकर उसने ठं डे पानी का एक बाॅटल कनकाला और
उसका ढक्कन खोल कर उसे मुख से लगा कलया।

पानी पीकर िह िापस ककचे न से बाहर आ गई। बाएॅ साइड पर डर ाइं गरूम था।
उसने सोचा कक नी ंद तो आ नही ं रही इस कलए थोडी दे र डर ाइं गरूम में ही बै ठ जाती
हूॅ, मगर किर जाने क्ा सोच कर उसने अपना ये इरादा बदल कदया। िह िापस
दाकहने साइड सीकढयों की तरि बढी ही थी कक सहसा रुक गई। सीकढयों की तरि से
बाएं साइड पर पाटीशन की दीिार पर लगे दरिाजे की तरि दे खा उसने । दरिाजा
पू री तरह तो नही ं मगर खु ला हुआ िष्ट ऩिर आया उसे ।

पाटीशन की दीिार पर लगे दरिाजे को इस तरह खु ला दे ख कर ररतू के पु कलकसया


मन में सिाल उभरा कक आज ये दरिाजा इस िक्त खु ला क्ों है? आम तौर पर िह
बं द ही रहता था। उस तरि का कहस्सा किजय चाचा का था। पु कलकसया कदमाग़ में जब
कोई सिाल उभरता है तो िह उस सिाल का जिाब तु रंत ही खोजने लग जाता है।

ररते सीकढयों की तरि से पलट कर पाटीशन के उस खु ले हुए दरिाजे की तरि बढ


चली। कुछ ही पल में िह दरिाजे के पास पहुॅच गई। कुछ पल दरिाजे के पास खडे
होकर उसने उस जगह का मुआयना ककया किर अपना हाॅथ बढा कर उसने दरिाजे
का दाकहने साइड िाला पल्ला पकड कर आगे की तरि पु श ककया। दरिाजे का िो
पल्ला बे आिा़ि खु लता चला गया। अब एक पल्ले में ही इतना िेस बन गया था कक
एक आदमी आराम से इधर से उस तरि जा सकता था। ररतू ने िही ककया। िो उस
िेस से उस तरि दाल्कखल हो गई।

उस तरि जाकर उसने बारीकी से हर तरि का मु आयना ककया और किर आगे की


तरि बढ गई। मेरे पाठकों को पता है कक ये हिे ली ककस तरह बनाई गई थी। दो
मंकजला इमारत के अलग अलग तीन कहस्सों को आपस में जोड कदया गया था। तीनों
कहस्सों में एक जैसा ही कडजाइन था।

आगे बढते हुए ररतू डर ाइं गरूम की तरि आ गई। यहाॅ पर भी नाइट बल्ब का
प्रकाश था। यहाॅ पर भी सन्नाटा िैला हुआ था। डर ाइं गरूम में आकर ररतू खडी हो
गई। उसे समझ नही ं आ रहा था यहाॅ पर कौन आया होगा इस िक्त और ककस
कलए? जबकक इस तरि आने का कोई सिाल ही नही ं था। डर ाइं गरूम के उस तरि
ऊपर जाने के कलए िै सी ही सीकढयाॅ बनी हुई थी जैसी इस तरि बनी हुई थी।
डर ाइं गरूम के के पीछे साइड एक तरि ककचे न था और एक साइड की तरि िो
कमरा था कजसमें दादा दादी रहते थे । ररतू की कनगाह जब ककचे न से होते हुए जब

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दू सरी साइड दादा दादी के कमरे की तरि गई तो िह चौंक गई।

दादा दादी के कमरे में इस िक्त बल्ब की पयाग प्त रोशनी हो रखी थी जोकक ऊपर छत
के पास ही बने रोशनदान से समझ में आ रही थी। कमरे के दरिाजा बं द था। ररतू ये
दे ख कर हैरान थी कक इतनी रात को िहाॅ उस कमरे के अं दर कौन हो सकता है?
जबकक उसे जहाॅ तक पता था इस तरि के कहस्से पर कोई नही ं आता था। किजय
कसं ह के बीिी बच्चों को हिे ली से कनकालने के बाद ये कहस्सा पू री तरह बं द ही रहता
था। किर आज इस िक्त यहाॅ पर कौन हो सकता है? ये सिाल ऐसा था जो ररतू के
मल्कस्तष्क में कत्थक सा करने लगा था।

अपने मन उठे इस सिाल और खु द की उत्सु कता को कमटाने के कलए ररतू उस कमरे


की तरि बहुत ही सं तुकलत कदमों से बढ गई। कुछ ही पलों में िह उस कमरे के
दरिाजे के पास पहुॅच गई। उसका कदल अनायास ही ़िोरों से धडकने लगा था।
तभी उसके कानों में कमरे के अं दर मौजूद ब्यल्कक्त की आिा़ि पडी। उस आिा़ि को
सु न कर ररतू बु री तरह चौंकी। ये आिा़ि उसकी अपनी माॅ प्रकतमा की थी। ररतू ने
दरिाजे से अपने कान लगा कदये।

"आहहहहह ऐसे ही मेरे बे टे।" अं दर से प्रकतमा की मादकता से भरी हुई आिा़ि


उभरी____"ऐसे ही आहहहह हचक हचक के चोद मुझे। आज बहुत कदनों बाद दो दो
लं ड का म़िा कमला है मुझे। ओहे भडिे हरामी साले नीचे से पे ल न मेरी गाॅड में
अपना लौडा। आहहहहह हाय बडा म़िा आ रहा है रे ।"

"ये लो माॅम आज डै ड के साथ साथ अपने इस बे टे का भी लं ड लो अपनी चू त में।"


कशिा की आिा़ि आई___"आज मेरी िषों की िो ख्वाकहश पू री हो रही है। थैं र्क् डै ड
जो आपने मु झे शहर से बु ला कलया और आज मुझे अपनी माॅम को चोदने का
सौभाग्य कदया।"

"थैं र्क् की कोई बात नही ं है बे टे।" अजय कसं ह की आिा़ि उभरी___"ये तो ते रे माॅम
की ही इच्छा थी कक तू भी इसे रगड कर चोदे ।"
"अब बातें मत करो तु म दोनो।" प्रकतमा की आिा़ि आई___"मु झे रगड रगड कर
चोदना शु रू करो िरना तु म दोनो के लं ड को काट कर िैंक दू ॅगी।"

"ओके माॅम।" कशिा ने कहा___"तो किर ये लो।"


"आहहहहहह शशशशशश हाय ऐसे ही चोदो मुझे।" प्रकतमा की आहें और
कससकाररयाॅ गू जने लगी अं दर___"पू री रात मुझे आगे पीछे से चोदो। िाड कर रख
दो मेरी चू त और गाॅड को। हाय रे ककतना म़िा आ रहा है। काश! एक और लं ड
होता तो उसे अपने मु ह में भर ले ती मैं।"

465
दरिाजे पर कान लगाए खडी ररतू के पै रों तले दू र दू र तक ़िमीन का नामो कनशान न
था। कदलो कदमाग़ में जैसे सारा आसमान भर भरा कर कगर पडा था। मनो मल्कस्तष्क
सु न्न सा पडता चला गया। उसे लगा कक उसके पै रों में कोई जान ही न बची हो। उसे
चक्कर सा आने लगा था। बडी मु ल्किल से उसने खु द को सम्हाला। ऑखों ने
ऑसु ओ ं की बाढ सी कर दी। कमरे के अं दर इतना बडा पाप हो रहा था। एक माॅ
अपने ही बे टे से नाजायज सं बंध बना रही थी िो भी अपने पकत की सहमकत से । ररतू
को यकीन नही ं हो रहा था कक ये उसके माॅ बाप और भाई थे ।

अं दर से आती मादक कससकाररयों की आिा़िें उसके कानों को छलनी करती जा


रही थी ं। हिस और िासना का इतना भयािह चे हरा उसने आज अपने ही पै दा करने
िालों के द्वारा दे खा था। सहसा उसके मन में ये किचार उठा कक नही ं नही ं ये मेरे
माॅम डै ड और भाई नही ं हो सकते बल्कि ये कोई और ही हैं। कोई छलािा है या
किर कोई ख्वाब है।

पल भर में पगलाई सी ररतू ने अपने हाथ से बहुत ही धीमे और सं तुकलत अं दा़ि से


दरिाजे को अं दर की तरि धकेला। दरिाजा बे आिा़ि कुलता चला गया। दरिाजे पर
बस थोडी सी ही कझरी बनाकर ररतू ने अं दर की तरि दे खा। मगर उस कझरी में उसे
कुछ ऩिर न आया बल्कि ये ़िरूर हुआ कक अं दर से आती हुई आिाजें ़िरा ते ़ि हो
गई थी।

ररतू ने दरिाजे को थोडा और अं दर की तरि धकेला। अपने कसर को दरिाजे के


अं दर की तरि ले जाकर उसने अं दर आिा़ि की कदशा में दे खा तो उसके होश उड
गए। आश्चयग और अकिश्वास से उसकी ऑखें िटी की िटी रह गई थी। अं दर बे ड पर
उसके माॅम डै ड ि भाई पू री तरह नं गी हालत में थे । सबसे नीचे उसके डै ड थे किर
उसकी माॅम उनके ऊपर पीठ के बल ले टी हुई थी। उसकी दोनो टाॅगें कशिा के
दोनो हाॅथों के सहारे ऊपर उठी हुई थी। कशिा उसके ऊपर था जो कक माॅम की
दोनो टाॅगों को पकडे ते ़ि ते ़ि धक्के लगा रहा था। नीचे से उसके डै ड अपने दोनो
हाथों से प्रकतमा की कमर को थामे धक्का लगे रहे थे । ये हैरतअं गेज ऩिारा दे ख कर
ररतू पत्थर बन गई थी। होश तब आया जब उसकी माॅम की ़िोरदार आह की
आिा़ि उसके कानों में पडी। ररतू ने तु रंत ही अपना कसर अं दर से बाहर कर कलया।
दरिाजे को उसी तरह बं द कर िह पलटी और ऑसु ओ ं से तर चे हरा कलए िह दरिाजे
से हट गई।

कुछ ही दे र में िह अपने कमरे मे पहुॅच गई। िह यहाॅ तक कैसे आई थी ये िही


जानती थी। उसके पै र इतने भारी हो गए थे कक उससे उठाए नही ं जा रहे थे । बे ड पर

466
औंधे मु ह कगर कर िह ़िार ़िार रोये जा रही थी। उसे लग रहा था कक िो क्ा कर
डाले । उसके कदलो कदमाग़ में अपने माता कपता और भाई के कलए नफ़रत ि घृर्ा भर
गई थी। िह एक बहादु र लडकी थी। उसने अपने आपको सम्हाला और तु रंत बे ड से
उठ बै ठी। चे हरा पत्थर की तरह कठोर हो गया उसका। बे ड से उतर कर िह
आलमारी की तरि बढी। आलमारी खोल कर उसने अपना सकिग स ररिावर
कनकाला। लाॅक खोल कर उसने चै म्बर को दे खा तो खाली था। उसने तु रंत ही अं दर
लाॅकर से गोकलयाॅ कनकाली और उसमें पू री छहो गोकलयाॅ भर दी। उसके बाद िह
चे हरे पर ़िल़िला कलए दरिाजे की तरि बढी ही थी कक ककसी की आिा़ि सु न कर
चौंक पडी।

अपडे ट.........《 41 》

अब तक,,,,,,,,,

ररतू ने दरिाजे को थोडा और अं दर की तरि धकेला। अपने कसर को दरिाजे के


अं दर की तरि ले जाकर उसने अं दर आिा़ि की कदशा में दे खा तो उसके होश उड
गए। आश्चयग और अकिश्वास से उसकी ऑखें िटी की िटी रह गई थी। अं दर बे ड पर
उसके माॅम डै ड ि भाई पू री तरह नं गी हालत में थे । सबसे नीचे उसके डै ड थे किर
उसकी माॅम उनके ऊपर पीठ के बल ले टी हुई थी। उसकी दोनो टाॅगें कशिा के
दोनो हाॅथों के सहारे ऊपर उठी हुई थी। कशिा उसके ऊपर था जो कक माॅम की
दोनो टाॅगों को पकडे ते ़ि ते ़ि धक्के लगा रहा था। नीचे से उसके डै ड अपने दोनो
हाथों से प्रकतमा की कमर को थामे धक्का लगे रहे थे । ये हैरतअं गेज ऩिारा दे ख कर
ररतू पत्थर बन गई थी। होश तब आया जब उसकी माॅम की ़िोरदार आह की
आिा़ि उसके कानों में पडी। ररतू ने तु रंत ही अपना कसर अं दर से बाहर कर कलया।
दरिाजे को उसी तरह बं द कर िह पलटी और ऑसु ओ ं से तर चे हरा कलए िह दरिाजे
से हट गई।

कुछ ही दे र में िह अपने कमरे मे पहुॅच गई। िह यहाॅ तक कैसे आई थी ये िही


जानती थी। उसके पै र इतने भारी हो गए थे कक उससे उठाए नही ं जा रहे थे । बे ड पर
औंधे मु ह कगर कर िह ़िार ़िार रोये जा रही थी। उसे लग रहा था कक िो क्ा कर
डाले । उसके कदलो कदमाग़ में अपने माता कपता और भाई के कलए नफ़रत ि घृर्ा भर
गई थी। िह एक बहादु र लडकी थी। उसने अपने आपको सम्हाला और तु रंत बे ड से

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उठ बै ठी। चे हरा पत्थर की तरह कठोर हो गया उसका। बे ड से उतर कर िह
आलमारी की तरि बढी। आलमारी खोल कर उसने अपना सकिग स ररिावर
कनकाला। लाॅक खोल कर उसने चै म्बर को दे खा तो खाली था। उसने तु रंत ही अं दर
लाॅकर से गोकलयाॅ कनकाली और उसमें पू री छहो गोकलयाॅ भर दी। उसके बाद िह
चे हरे पर ़िल़िला कलए दरिाजे की तरि बढी ही थी कक ककसी की आिा़ि सु न कर
चौंक पडी।
____________________________

अब आगे,,,,,,,,

आिा़ि की कदशा में ररतू ने पलट कर दे खा तो बगल से दीिार से सट कर रखे डर े कसं ग


टे बल के आदमकद आईने में खु द को एक अलग ही रूप में खडे पाया। ये दे ख कर
ररतू के चे हरे पर हैरत ि अकिश्वास के कमले जु ले भाि उभरे । आदमकद आईने में ररतू
का अक्श एक अलग ही रूप और अं दा़ि में खडा था।

"ये तु म क्ा करने जा रही हो ररतू ?" आदम कद आईने में कदख रहे ररतू के अक्श ने
ररतू से कहा___"क्ा तु म इस ररिावर से अपने माॅ बाप और भाई का खू न करने
जा रही हो?"
"हाॅ हाॅ मैं उन हिस के पु जाररयों का खू न करने ही जा रही हूॅ।" ररतू के मुख से
मानो दहकते अं गारे कनकले ___"ऐसे नीच और घृकर्त कमग करने िालों को जीने का
कोई अकधकार नही ं है। आज मैं उन सबको अपने हाॅथों से मौत के घाट उतारूॅगी।
मगर तु म कौन हो? और मुझे रोंका क्ों?"

"मैं तु म्हारा अक्श हूॅ। मु झे तु म अपना ़िमीर भी समझ सकती हो। और हाॅ, मौत
के घाट उतरना तो अब उन सबकी कनयकत बन चु की है ररतू ।" अक्श ने कहा___"मगर
ये ने क काम तु म्हारे हाॅथों नही ं होगा।"
"क्ों नही ं होगा?" ररतू गुरागई___"मैं अभी जाकर उन तीनों को गोकलयों से भू न कर
रख दू ॅगी। आज मेरे हाॅथों उन्हें मरने से कोई नही ं बचा सकता। खु द भगिान भी
नही ं।"

"क्ा तु म भी अपने बाप की तरह दू सरों का हक़ छीनोगी ररतू ?" अक्श ने
कहा___"अगर ऐसा है तो तु ममें और तु म्हारे बाप में क्ा अं तर रह गया?"
"ये तु म क्ा बकिास कर रही हो?" ररतू के गले से गुस्से मे डूबा स्वर कनकला___"मैं
कहाॅ ककसी का हक़ छीन रही हूॅ?"

"तु म कजन्हें जान से मारने जा रही हो न उन सबको जान से मारने का अकधकार


तु म्हारा नही ं है ररतू ।" अक्श ने कहा___"बल्कि उसका है कजसके साथ तु म्हारे बाप ने

468
हद से कही ं ज्यादा अत्याचार ककया है। हाॅ ररतू , ये सब किराज और उसकी माॅ
बहन के दोषी हैं। इस कलए इन लोगों स़िा या मौत दे ने का अकधकार उनको ही है
तु म्हें नही ं। अब ये तु म पर है कक तु म उनका ये हक़ छीनती हो या किर उनका
अकधकार उन्हें दे ती हो।"

आदमकद आईने में कदख रहे अपने अक्श की बातें सु न कर ररतू के मनो मल्कस्तष्क में
झनाका सा हुआ। उसे अपने अक्श की कही हर बात समझ में आ गई और समझ में
आते ही उसका क्रोध और गुस्सा साबु न के झाग की तरह बै ठता चला गया।

"तु म यकीनन सच कह रही हो।" ररतू ने गहरी साॅसे ले ते हुए कहा___"ऐसे पाकपयों
को स़िा या मौत दे ने का अकधकार कसिग और कसिग मेरे भाई किराज को है । मैं दु िा
करती हूॅ कक बहुत जल्द इन पाकपयों को इनके पापों की स़िा दे मेरा भाई। कजन
माॅ बाप को मैं इतना अच्छा समझती थी आज उन लोगों का इतना गंदा चे हरा दे ख
कर मुझे नफ़रत हो गई है उनसे । मुझे शमग आती है कक मैं ऐसे पाप कमग करने िाले
माॅ बाप की औलाद हूॅ। ले ककन अब मैं क्ा करूॅ?"

"समय का इन्त़िार करो ररतू ।" अक्श ने कहा___"और इस िक्त तु म किर से उन


लोगों के पास जाओ। दरिाजे के पास कान लगा कर सु नो। हो सकता है कक कुछ
ऐसा जानने को कमल जाए तु म्हें कजन ची़िों से आज भी बे खबर होगी तु म।"

"हकगग़ि नही ं।" ररतू के जबडे शख्ती से कस गए___"मैं उन लोगों के पास उनकी गंदी
रासलीला दे खने सु नने नही ं जाऊगी।"
"मैं तु म्हें उनकी रासलीला दे खने सु नने को नही ं कह रही ररतू ।" अक्श ने कहा__"मैं
तो बस ये कह रही हूॅ कक ऐसे माहौल में इं सान के मुख से कभी कभी ऐसा कुछ
कनकल जाता है कजससे उसका कोई रहस्य या रा़ि पता चल जाता है। ऐसा रा़ि कजसे
आम हालत में कोई भी इं सान अपने मुख से नही ं कनकालता।"

"यकीनन, तु म्हारी बात में सच्चाई है।" ररतू ने कहा___"ऐसा हो भी सकता है। इस
कलए मैं जा रही हूॅ किर से उन लोगों के पास।"
"ये हुई न बात।" अक्श ने मु स्कुराते हुए कहा___"चलो अब मैं भी िापस तु म्हारे अं दर
चली जाती हूॅ। तु म्हें सही रास्ता कदखा रही थी सो कदखा कदया और अब तु म भी ़िरा
सतकग रहना।"

ररतू के दे खते ही दे खते आदमकद आईने में कदख रहा उसका अक्श आईने पर से
गायब हो गया। अक्श के गायब होते ही ररतू ने पहले एक गहरी साॅस ली किर पलट
करिापस आलमारी की तरि बढी। ररिाल्बर से गोकलयाॅ कनकाल कर उसने

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ररिावर और ररिावर की गोकलयाॅ अं दर लाॅकर में रख कर आलमारी बं द कर
दी।

इसके बाद पलट कर िह कमरे से बाहर कनकल कर थोडी दे र में किर िही ं पहुॅच गई
जहाॅ पर उसके माॅ बाप और भाई तीनो एक साथ सं भोग कक्रया कर रहे थे । ररतू
दबे पाॅि कमरे के दरिाजे के पास पहुॅच गई थी। अं दर से अभी भी कससकाररयों
की आिा़िें आ रही थी। ररतू ने दरिाजे को हिा सा खोल कदया था ताकक उसके
कानों में उन लोगों के बोलने की आिा़ि िष्ट सु नाई दे सके।

"एक बात तो है डै ड कक न आप और ना ही मैं पररिार की ककसी भी औरत या लडकी


को अपने नीचे कलटा नही ं सके अब तक।" कशिा की आिा़ि आई____"इसे हमारा
दु भागग्य कहें या उन लोगों की अच्छी ककस्मत?"

"ये उन रं कडयों की ककस्मत ही है बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"जो अब तक हम बाप


बे टों के लं ड की सिारी न कर सकी हैं। दू सरी बात तु म्हारी इस रं डी माॅ ने भी अपना
काम सही से नही ं ककया। िरना हम दोनो बाप बे टे गौरी और करुर्ा की जिानी का
म़िा ़िरूर लू टते ।"

"ओये भडिे की औलाद साले कुिे ।" प्रकतमा बीच में सै ण्डकिच बनी बोल उठी___"मैने
क्ा नही ं ककया इन सबको जाल में िाॅसने के कलए। आआआहहहह मादरचोद धीरे
से मसल न मेरी चू ची को ददग भी होता है मु झे। हाॅ तो मैं ये कह रही थी कक क्ा नही ं
ककया मैने। तु म्हारे ही कहने पर उस रं डी के जने किजय को अपने हुस्न के जाल में
िाॅसने की कोकशश की, यहाॅ तक कक एक कदन सोते समय उसके घोडे जैसे लं ड
को अपने मुह में भी भर कलया था। मगर िो कुिा तो हररश्चन्द्र था। ककलयुग का
हररश्चन्द्र। उसने मुझे उस सबके कलए ककतना बु रा भला कहा और जलील ककया था ये
मैं ही जानती हूॅ। उसने मुझ जैसी हूर की परी औरत को उस कुलमुही गौरी के कलए
ठु करा कदया था। तभी तो अपने उस अपमान का बदला ले ने के कलए मैने तु मसे कहा
था कक अब इसको जीकित रहने का कोई अकधकार नही ं है।"

"ओह माई गाड ये तु म क्ा कह रही हो माॅम?" धक्के लगाता हुआ कशिा हैरान
होकर बोल पडा था____"इसका मतलब किजय चाचा की िो मौत ने चुरल नही ं थी?"
"हाॅ बे टे ये सच है।" नीचे से ़िोर का शाॅट मारते हुए अजय ने कहा___"उस हादसे
के बाद हम डर गए थे कक किजय िो सब कही माॅ बाबू जी से न बता दे । इस कलए
दू सरे कदन ही हम सब शहर चले गए थे । शहर आ तो गए थे मगर एक पल के कलए
सु कून की साॅस नही ं ले पा रहे थे । हर पल यही डर सता रहा था कक किजय िो सब
माॅ बाबू जी से बता दे गा। उस सू रत में हमारी इज्ज़ित का कचरा हो जाता। माॅ

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बाबू जी के सामने खडा होने की भी हम में कहम्मत न रहती। इस कलए हमने तय ककया
कक इस मुसीबत से जल्द से जल्द छु टकारा पा ले ना चाकहए। ये सोच कर मैं दू सरे कदन
ही गुप्त तरीके से शहर से िापस गाॅि आ गया। प्रकतमा को तु म बच्चे लोगों के पास
ही रहने कदया। ले ककन अपने साथ में यहाॅ से एक ़िहरीला सपग भी ले गया मैं। मु झे
पता था कक आजकल खे तों में िलों का सीजन था इस कलए मंडी ले जाने के कलए
िलों की तु डाई चालू थी। किजय कसं ह रात में िही ं रुकता था। मैं जब गाॅि पहुॅचा
तो हिे ली न जाकर सीधा खे तों पर ही पहुॅच गया। खे तों पर किजय के साथ एक दो
मजदू र रह रहे थे उस समय। उस रात जब मैं िहाॅ पहुॅचा तो रात कािी हो चु की
थी। किजय और दोनो मजदू र सो रहे थे । मैं सीधा किजय के कमरे में गया और उसे
पहले बे होशी की दिा सु ॅघाई। िो सोते हुए ही बे होश हो गया। उसके बाद मैने अपने
थै ले से िो बं द पु ॅगडी कनकाली कजसमें मैं शहर से ़िहरीले सपग को भर कर लाया था।
किजय के पै रों के पास जाकर मैने पु ॅगडी का ढक्कन खोल कदया। ढक्कन खु लते ही
उसमे से जीभ लपलपाता हुआ उस ़िहरीले सपग ने अपना कसर कनकाला किर िो
किजय के पै रों और टाॅगों की तरि दे खने लगा। मैने पु ॅगडी को किजय के पै रों के
और पास कर दी। मगर हैरानी की बात थी कक िो ़िहरीला किजय के पै रों को दे खने
के कसिा कुछ कर ही नही ं रहा था। ये दे ख कर मैने पु ॅगडी को हिा झटका कदया
तो िो सपग डर गया और डर की िजह से ही उसने किजय के घुटने के नीचे दाकहनी
टाॅग पर काट कलया। सपग के काटते ही मैने जल्दी से पु ॅगडी का ढक्कन बं द कर
कदया। उधर किजय की टाॅग में कजस जगह सपग ने काटा था उस जगह दो कबं दू बन
गए थे जो कक किजय के लाल सु खग खू न में डूबे ऩिर आने लगे थे । दे खते ही दे खते
किजय का बे होश कजस्म कहलने लगा। उसका पू रा कजस्म नीला पडने लगा। मु झ से
सिेद झाग कनकलना शु रू हो गया और कुछ ही दे र में किजय का कजस्म शान्त पड
गया। मैं समझ गया कक मेरे छोटे भाई की जीिन लीला समाप्त हो चु की है । उसके
बाद मैने मृत किजय के कजस्म को ककसी तरह उठाया और कमरे से बाहर ले आया।
बाहर आकर मैं किछय को उठाये उस तरि बढता चला गया कजस जगह पर खे तों पर
उस समय पानी लगाया जा रहा था। मैं किजय को कलए उस पानी लगे खे त के अं दर
दाल्कखल हो गया और एक जगह किजय के मृत कजस्म को उतार कर उसी पानी लगे
खे त में ऐसी पोजीशन में कचि ले टाया कक उसके मुख पर कदख रहा झाग साि ऩिर
आए। खे त के कीचड में ले टाने के बाद मैने किजय के दोनो हाॅथों और पै रों में खे त
का िही कीचड लगा कदया। ताकक लोगों को यही लगे कक किजय खे त में पानी लगा
रहा था और उसी दौरान ककसी ़िहरीले सपग ने उसे काट कलया था कजसकी िजह से
उसकी मौत हो गई है। ये सब करने के बाद मैं कजस तरह गुप्त तरीके से शहर से
आया था उसी तरह िापस शहर लौट भी गया। ककसी को इस सबकी भनक तक
नही ं लगी थी।"

दरिाजे से कान लगाए खडी ररतू का चे हरा ऑसु ओ ं से तर था। उसके चे हरे पर दु ख

471
और पीडा के बहुत ही गहरे भाि थे । आज उसे पता चला कक उसके माॅ बाप ककतने
बडे पापी हैं। अपनी खु शी और अपने पाप को छु पाने के कलए उसके बाप ने अपने
सीधे सादे और दे िता समान भाई को सपग से कटिा कर उसकी जान ले ली थी।
इतना बडा कुकमग और इतना बडा घृकर्त काम ककया था उसके माॅ बाप ने । ररतू को
लग रहा था कक िो क्ा कर डाले अपने माॅ बाप के साथ। उसे लग रहा था कक ये
़िमीन िटे और िह उसमे समा जाए। आज अपने माॅ बाप की िजह से िो अपने
भाई किराज और उसकी माॅ बहन की ऩिरों में बहुत ही छोटा और तु च्छ समझ रही
थी। अभी िो ये सोच ही रही थी कक उसके कानों में किर से आिा़ि पडी।

"ओह तो ये बात है डै ड।" कशिा के चककत भाि से कहा___"उसके बाद क्ा हुआ?"
"होना क्ा था?" अजय कसं ह ने कहा__"िही हुआ कजसकी मुझे उम्मीद थी। अपने
इतने प्यारे और इतने अच्छे बे टे की मौत पर माॅ बाबू जी की हालत बहुत ही ज्यादा
खराब हो गई थी। अभय ने शहर में हमे भी किजय की मौत की सू चना भे जिाई।
उसकी सू चना पाकर हम सब तु रंत ही गाि आ गए और किर िै सा ही आचरर् और
ब्यौहार करने लगे जैसा उस कसचु एशन पर होना चाकहए था। खै र, जाने िाला चला
गया था। ककसी के जाने के दु ख में जीिन भर भला कौन शोग़ मनाता है? कहने का
मतलब ये कक धीरे धीरे ये हादसा भी पु राना हो गया और सबका जीिन किर से
सामान्य हो गया। मगर माॅ बाबू ॅ जी सामान्य नही ं थे । बे टे की मौत ने उन दोनो को
गहरे सदमें डाल कदया था।"

"तु म लोगों की ये महाभारत अगर खत्म हो गई हो तो आगे का काम भी करें अब?"


तभी प्रकतमा ने खीझते हुए कहा___"सारे म़िे का सत्यानाश कर कदया तु म दोनो बाप
बे टों ने ।"
"अरे मेरी जान सारी रात अपनी है।" अजय कसं ह ने नीचे से अपने दोनो हाथ बढा कर
प्रकतमा की भारी चू कचयों को धर दबोचा था, किर बोला___"बे टे को सच्चाई जानना है
तो जान ले ने दो न। आकखर हर ची़ि जानने का हक़ है उसे । मेरे बाद इस हिे ली का
अकेला िही तो िाररश है। इस घर की सभी औरतों और लडककयों को हमारा बे टा
भोगेगा प्यार से या किर ़िबरदस्ती।"

"डै ड मुझे सबसे पहले उस रं डी करुर्ा को पे लना है।" कशिा ने कहा___"उसकी


िजह से ही उस मादरचोद अभय ने मुझे कुिे की तरह मारा था। इस कलए जब तक मैं
उसकी उस राॅड बीिी और बे टी को आगे पीछे से ठोंक नही ं ले ता तब तक मु झे चै न
नही ं आएगा।"

"ते री ये ख्वाकहश ़िरूर पू री होगी मेरे कजगर के टु कडे ।" अजय कसं ह ने कहा___"और

472
ते रे साथ साथ मेरी भी ख्वाकहश पू री होगी। ते री माॅ ने तो कोई जुगाड नही ं ककया
ले ककन अब मैं खु द अपने तरीके से िो सब करूॅगा। हाय मेरी बडी बे टी ररतू की िो
िूली हुई मदमस्त गाॅड और उसकी बडी बडी चू कचयाॅ। कसम से बे टे जब भी उसे
दे खता हूॅ तो ऐसा लगता है कक साली को िही ं पर पटक कर उसे उसके आगे पीछे
से पे लाई शु रू कर दू ॅ।"

"यस डै ड यू आर राइट।" कशिा ने मु स्कुराते हुए कहा___"ररतू दीदी को पे लने में बहुत
म़िा आएगा। आप जल्दी से कुछ कीकजए न डै ड।"
"करूॅगा बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"मगर सोच रहा हूॅ कक उससे पहले अपनी
बहन नै ना को पे ल दू ॅ। बे चारी लं ड के कलए तडप रही होगी। उसके पकत और उसके
ससु राल िालों ने उसे बाॅझ समझकर घर से कनकाल कदया है। इस कलए मैं सोच रहा
हूॅ कक उसे अपने बच्चे की माॅ बना दू ॅ और किर से उसे उसके ससु राल कभजिा
दू ॅ।"

"ये तो आपने बहुत अच्छा सोचा है डै ड। ले ककन आप अपने इस बे टे को भू ल मत


जाइयेगा।" कशिा ने कहा___"बु आ को पे लने का सु ख मु झे भी कमलना चाकहए।"
"अरे ते रे कलए तो इस घर की हर लडकी और औरत हैं बे टे।" अजय कसं ह ने
कहा___"सबकी चू तों पर कसिग ते रे ही लं ड की मुहर लगेगी।"

"ओह डै ड थै क्ू सो मच।" कशिा खु शी से झम


ू उठा___"यू आर ररयली कद ग्रेट
पसग न।"
"उफ्फ अब बस भी करो तु म लोग।" प्रकतमा ने कुढते हुए कहा___"इस तरह बीच में
लटके लटके मेरा बदन दु खने लगा है अब।"
"चल बे टा अब ़िरा इस राॅड का भी खयाल कर कलया जाए।" अजय कसं ह ने
कहा__"तू ऊपर से हट तो ़िरा मुझे भी पोजीशन चें ज करना है।"

अजय कसं ह से कहने पर कशिा प्रकतमा के ऊपर से हट गया। अजय कसं ह ने प्रकतमा को
पलट कर अपनी तरि मु ह करके अपने ऊपर ही ले टने को कहा। प्रकतमा ने िै सा ही
ककया। नीचे से अजय ने अपने लं ड को पकड कर प्रकतमा की चू त में डाल कदया।

"बे टे अब तू भी आजा और अपनी राॅड माॅ की गाॅड में लं ड डाल दे ।" अजय कसं ह
ने कहा तो कशिा िौरन अपना लं ड पकड कर अपनी माॅ की गोरी कचट्टी गाॅड के
गुलाबी छें द पर डाल कदया। कशिा ने हाॅथ बढा कर अपनी माॅ के बालों को मु िी में
पकड कलया था। अब दोनो बाप बे टे ऊपर नीचे से प्रकतमा की पे लाई शु रू कर कदये
थे । कमरे में प्रकतमा की आहें और मदमस्त करने िाली कससकाररयाॅ किर से गू ॅजने
लगी थी।

473
दरिाजे से अं दर कसर करके ररतू ने एक ऩिर उन तीनों को दे खा किर अपना चे हरा
िापस बाहर खी ंच कलया। उसकी ऑखों में आग थी और आग के शोले थे जो धधकने
लगे थे । चे हरे पर गुस्सा और नफ़रत के भाि ताण्डि सा करने लगे थे ।

"तु म लोग अपने मंसूबों पर कभी कामयाब नही ं होगे कुिो।" ररतू ने मन ही मन उन
लोगों को गाकलयाॅ दे ते हुए कहा___"बल्कि अब मैं कदखाऊगी कक प्यार और नफ़रत
का अं जाम ककस तरह से होता है?"

ररतू मन ही मन कहते हुए उस जगह से पलट कर िापस चल दी। कुछ ही दे र में िह


अपने कमरे में पहुॅच चु की थी। दरिाजे की कुण्डी लगा कर िह बे ड पर ले ट गई।
कदलो कदमाग़ में एक ऐसा तू िान उठ चु का था जो हर ची़ि उडा कर ले जाने िाला
था।

कािी दे र तक ररतू बे ड पर पडी इस सबके बारे में सोच सोच कर कभी रो पडती तो
कभी उसका चे हरा गुस्से से भभकने लगता। किर सहसा उसके अं दर से आिा़ि
आई कक इस सबसे बाहर कनकलो और शान्ती से ककसी ची़ि के बारे में सोच कर
िैंसला लो।

ररतू ने ऑखें बं द करके दो तीन बार गहरी गहरी साॅसें ली तब कही ं जाकर उसे कुछ
सु कून कमला और उसका मन शान्त हुआ। उसे खयाल आया कक कल उसका सबसे
अच्छा भाई किराज आ रहा है। किराज का खयाल ़िहन में आते ही ररतू का मन एक
बार किर दु खी हो गया।

"मेरे भाई, कजतने भी दु ख मैने तु झे कदये हैं न उससे कही ं ज्यादा अब प्यार दू ॅगी
तु झे।" ररतू ने छलक आए ऑसु ओ ं के साथ कहा__"मैं जानती हूॅ कक तू इतने बडे
कदल का है कक तू एक पल में अपनी इस दीदी को माफ़ कर दे गा और मेरी सारी
खताएॅ भु ला दे गा। ते रे कहस्से के दु ख ददग बहुत जल्द तु झसे दू र चले जाएॅगे भाई।
बस किकध को दे ख कर तू अपना आपा मत खो बै ठना। अपने आपको सम्हाल ले ना
मेरे भाई। िै से मैं तु झे किर से कबखरने नही ं दू ॅगी। ते रा हर तरह से खयाल रखू ॅगी
मैं।"

बे ड पर पडी ररतू अपने मन में ये सब कहे जा रही थी। उसकी ऑखों के सामने बार
बार किराज का िो मासू म और सुं दर चे हरा घू म जाता था। कजसकी िजह से पता नही ं
क्ों मगर ररतू के होठों पर हिी सी मु स्कान उभर आती थी।

"तू जल्दी से आजा मेरे भाई।" ररतू ने मन में ही कहा___"तु झे दे खने के कलए मेरी ये

474
ऑखें तरस रही हैं। िै से कैसा होगा तू ? मेरा मतलब कक आज भी िै सा ही मासू म ि
सुं दर है या किर बे रहम िक्त ने तु झे इसके किपरीत कठोर ि बे रहम बना कदया है?
नही ं नही ं मेरे भाई, तू ऐसा मत होना। तू पहले की तरह ही मासू म ि सुं दर रहना। तू
िै सा ही अच्छा लगता है मेरे भाई। मैं तु झे उसी रूप में दे खना चाहती हूॅ। तु झे अपने
सीने से लगा कर िूट िूट कर रोना चाहती हूॅ। अब मु झे इन पाकपयों के साथ नही ं
रहना है भाई। ये तो अपनी ही बहन बे टी को लू टना चाहते हैं। मु झे इनके पास नही ं
रहना अब। मु झे भी अपने साथ ले चल मुम्बई। मैं ये नौकरी छोंड दू ॅगी और ते रे साथ
ही हर िक्त रहूॅगी। अपने प्यारे से भाई के साथ। बस तू जल्दी से आजा यहाॅ।"

जाने क्ा क्ा मन में कहती हुई ररतू आकखर कुछ दे र में अपने आप ही सो गई। िक्त
और हालात बडी ते ़िी से बदल रहे थे । आने िाला समय ककसकी झोली में कौन सी
सौगात डालने िाला था ये भला ककसे पता हो सकता था।

खै र, रात गु ़िर गई और सु बह का आगा़ि हुआ। बे ड पर गहरी नी ंद में सोई हुई ररतू


को ऐसा लगा जैसे कुछ बज रहा है। नी ंद के साथ ही ल्कथथर और सोया हुआ मन
मल्कस्तष्क िौरन ही सकक्रय अिथथा में आ गया। कजसकी िजह से ररतू की ऑख खु ल
गई। ऑख खु लते ही उसके कानों में उसके आई िोन की ररं ग टोन उसे िष्ट सु नाई
दी। ररतू ने बाई तरि करिट ले कर मोबाईल को उठाया और जब तक उस पर आ
रही ककसी की काल को कपक करने के कलए अपने अगूठे को हरकत दी तब तक काल
अपने कनकश्चत समय सीमा के चलते कट गई।

ररतू ने ररसीि काल की कलस्ट को ओपे न ककया तो उसमें उसे पिन कसं ह कलखा ऩिर
आया। ये दे ख कर ररतू के कदमाग़ की बिी जली। उसे ध्यान आया कक आज उसका
भाई किराज मुम्बई से यहाॅ आ रहा है। ये बात कदमाग़ मे आते ही ररतू ने िौरन पिन
कसं ह को िोन लगा कदया। पहली ही घंटी पर पिन ने काल कपक कर ली।

"ओफ्फो दी, आप िोन क्ों नही ं उठा रही थी?" उधर से पिन ने कहा___"चार बार
आपको काल कर चु का हूॅ मैं।"
"ओह आई एम सो स्वारी भाई।" ररतू ने खे द भरे भाि से कहा___"िो मैं गहरी नी ंद में
सो रही थी न। कल रात नीद ही नही ं आ रही थी। इस कलए दे र से सोई थी मैं। खै र
छोडो, तु म बताओ ककस कलए िोन कर रहे थे मुझे?"

"िो मेरी किराज से िोन पर बात हुई है िो बता रहा था कक िो सही समय पर गुनगुन
रे लिे स्टेशन पहुॅच जाएगा।" उधर से पिन कह रहा था___"मैने सोचा आपको इस
बारे में बता दू ॅ। मगर,....।"
"मगर क्ा भाई?" ररतू के माथे पर बल पडा।

475
"मगर यही कक मैने आपके कहने पर अपने जां से भी ज्यादा अ़िी़ि दोस्त को यहाॅ
बु ला तो कलया है।" पिन की आिा़ि में गंभीरता और अधीरता दोनो थी,
बोला____"मगर, यकद उसकी जान को या उस पर ले श मात्र का भी सं कट आया तो
सोच लीकजएगा। उस सू रत में मु झसे बु रा कोई नही ं होगा। आप मेरी बात समझ रही
हैं न?"

"मुझे बे हद खु शी है कक मेरे भाई को तु म जैसा चाहने िाला दोस्त कमला है।" ररतू की
ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"मैं तु म्हारी बातों का मतलब समझ गई हूॅ भाई।
तु मको कदाकचत अभी भी अपनी इस बहन पर यकीन नही ं है, और सच कहूॅ तो
होना भी नही ं चाकहए। आकखर यकीन करने लायक मैने अब तक कीई काम ककया ही
कहाॅ है? मगर इतना ़िरूर कहूॅगी मेरे भाई कक ते री ये बहन पहले से बहुत ज्यादा
बदल गई है। ते री इस बहन को समझ आ गया है कक कौन सही है और कौन ग़लत?
आज मेरे कदल में अगर ककसी के कलए बे पनाह प्यार है तो कसिग और कसिग अपने उस
भाई के कलए कजसको मैने कभी अपना भाई नही ं माना था।"

"अगर ऐसी बात है तो मु झे खु शी है दीदी कक अब मेरे यार को आप के रहते कोई


खतरा नही ं हो सकता।" पिन ने उधर से खु श हो कर कहा___"अच्छा अब िोन
रखता हूॅ दीदी। किराज जब हल्दीपु र पहुॅचे गा तो मैं उसे ले ने बस स्टै ण्ड पर पहुॅच
जाऊगा। आप तो जानती ही हैं कक मेरी दु कान बस स्टै ण्ड पर ही है। किराज को
ले कर मैं अपने घर चला जाऊगा। किर जब आपका िोन आएगा तब मैं उसे ले कर
किधी के पास हाल्किटल आ जाऊगा।"

"ठीक है भाई।" ररतू ने कहा___"तब तक मैं भी उसकी सु रक्षा के कलए कोई इं तजाम
करती हूॅ।" ये कहने के बाद ररतू ने काल कट कर दी। इस िक्त उसके चे हरे पर
बहुत ही ज्यादा खु शी झलक रही थी। उसके गोरे और खू बसू रत से चे हरे पर ग़जब
का नू र उतर आया था। कुछ दे र बे ड पर िह जाने क्ा क्ा सोच कर मु स्कुराती रही
किर बे ड से उठ कर बाथरूम की तरि बढ गई।
_____________________________

उधर मुम्बई से टर े न में बै ठने के बाद मैं और मेरे साथ जगदीश अं कल के द्वारा भे जे हुए
बाॅडीगाडग आकदत्य चोपडा दोनो चल कदये थे । कुछ दू र तक का सफ़र तो हम दोनो
के बीच की खामोशी के साथ ही कटता रहा। उसके बाद हम दोनो के बीच बातें शु रू
हो गई थी। ये अलग बात है कक बात करने की पहल मैने ही की थी। आकदत्य चोपडा
कुछ खामोश तबीयत का इं सान था। िो ज्यादा ककसी से बोलता नही ं था। अब ये
खामोशी उसकी कितरत का कहस्सा थी या किर उसके खामोश रहने की कोई ऐसी

476
िजह कजसके बारे में किलहाल मुझे कुछ पता नही ं था।

ले ककन जब हमारे बीच कान्टीन्यू बातें होती रही तो आकदत्य का स्वभाि थोडा बदल
गया था। हलाॅकक शु रू शु रू में िह मेरी ककसी भी बात का जिाब हाॅ या ना में
सं कक्षप्त रूप से ही दे ता था। ककसी ककसी पल िह मेरी बातों से परे शान भी ऩिर
आया मगर मैने उसे बडे प्यार ि इज्ज़ित से समझाया कक खामोश रहने से ककसी भी
समस्या से छु टकारा नही ं कमलता। किर मैने उसे सं क्षेप में अपनी और अपने पररिार
की कहानी सु नाई। मेरी कहानी सु न कर आकदत्य चोपडा बे हद सं जीदा सा हो गया
था। उसने मु झसे कहा कक अभी तक तो िो मे रे बाॅडीगाडग की हैं कसयत से साथ था
ले ककन अब िो मेरे साथ मेरा सच्चा दोस्त बन कर रहेगा और मु झे हर सं कट से
बचाएगा।

उसके बाद हम दोनो हसी खु शी टर े न में बातें करते रहे। मेरे पू छने पर ही उसने अपने
बारे में बताया। आकदत्य चौपडा के पास ककसी ची़ि की कोई कमी ं नही ं थी। जब िो
पच्चीस साल का था तब उसे ककसी लडकी से प्यार हो गया था। ले ककन बाद में पता
चला कक िो लडकी हर पल कसिग उसका स्ते माल कर रही थी। दरअसल उस लडकी
का पहले से ही ककसी किदे शी लडके से चक्कर था। लडकी का बाप अपनी बे टी को
बग़ैर ककसी कसक्ोररटी के कही ं जाने नही ं दे ता था। आकदत्य चोपडा उस लडकी का
ब्वाडीगाडग था। उस चक्कर में िो लडकी अपने उस किदे शी ब्वायिैण्ड से कमल नही ं
पाती थी। लडकी ने ककसी योजना के तहत आकदत्य को अपने प्यार के जाल में
िसाया। और किर उस लडकी ने आकदत्य को अपने प्यार में इस हद तक पागल कर
कदया कक उसके कहने पर आकदत्य उसे ले कर किदे श तक जाने को तै यार हो गया।
किदे श जाने के कलए सारी तै याररयाॅ करने के बाद एक कदन आकदत्य और िो लडकी
कजसका नाम कोमल कसं हाकनया था दोनो ही कसं हाकनया किला से िुरग हो गए।
एयरपोटग के रास्ते पर ही एक जगह कोमल ने टै र्क्ी रुकिाई। आकदत्य को समझ न
या कक कोमल ने टै र्क्ी क्ों रुकिाई थी। टै र्क्ी के उतरते ही कोमल टै र्क्ी से उतर
गई और टै र्क्ी डर ाइिर से अपना सामान भी टे र्क्ी से कनकालने को कह कदया। हैरान
परे शान आकदत्य ने उससे पू छा कक ये सब क्ा है? हम बीच रास्ते में टै र्क्ी से इस
तरह क्ों उतर रहे हैं?

आकदत्य के सिाल का जिाब दे ने से पहले ही उस जगह पर एक और टै र्क्ी आकर


रुकी। उस टै र्क्ी का दरिाजा खोल कर कोमल का किदे शी ब्वायिैण्ड बाहर आ
गया। कोमल के पास आकर उस किदे शी ने कोमल को अपने गले से लगाया और
किर आकदत्य के सामने ही उसने कोमल के रस भरे होठों को ़िोर से चू ॅमा। ये दे ख
कर आकदत्य के पै रों तले से ़िमीन गायब हो गई। उसके कदलो कदमाग़ को ़िबरदस्त
झटका लगा था। उसकी हालत गहरे सदमे में डूब जाने जैसी हो गई थी।

477
"ओह ररलै र्क् आकदत्य।" कोमल ने खनकती हुई आिा़ि से कहा___"इस तरह
ररऐक्ट करने की कोई ़िरूरत नही ं है। एण्ड साॅरी िार आल कदस। बट यू नो व्हाट,
इसमें मेरी कोई ग़लती नही ं है। मु झे उस कैदखाने से हमेशा के कलए आ़िाद होना था
और अपने इस ब्वायिैण्ड के साथ किदे श में अपनी से टल हो कर लाइि एं ज्वाय
करना था। मगर ये तभी हो सकता था जब मैं उस कैदखाने से और इस कसक्ोररटी
से बाहर कनकलती। इस कलए मैने मजबू री में तु म्हें अपने प्यार में पागल ककया और
इस हद तक ककया कक तु म मेरे एक इशारे पर मुझे कही ं भी ले चलने को तै यार हो
जाओ। िही तु मने ककया, ले ककन जो मैने ककया िो कसिग अपने प्यार और अपनी
खु शी को पाने के कलए ककया है। इस कलए प्लीज आकदत्य इस सबके कलए मु झे माफ़
कर दे ना।"

कोमल की बातें आकदत्य के कानों में ़िहर सा घोल रही थी और उसके कदल को
चकनाचू र कर रही थी। मगर आकदत्य मजबू त तबीयत का माशग ल आकटग स्ट था। उसने
खु द को सम्हाला और किर मुस्कुरा कर कोमल से कसिग इतना ही कहा कक जहाॅ भी
रहना खु श रहना।

उसके बाद आकदत्य अपने ऑसु ओ ं को छु पाते हुए पु नः उसी टै र्क्ी में बै ठ गया और
टै र्क्ी डर ाइिर से िापस चलने को कहा। कसं हाकनयाॅ को आकदत्य ने सब कुछ सच
सच बता कदया और उससे ये भी कहा कक अगर िो ये समझते हैं कक उसने कोई
अपराध ककया है तो िो उसे जो चाहे स़िा दे सकते हैं। आकदत्य की बातें सु न कर
कसं हाकनयाॅ को गुस्सा तो बहुत आया मगर किर उसने खु द को शान्त ककया और
आकदत्य से कहा कक तु म ईमानदार हो, सच्चे हो। कोमल की खु शी के कलए तु मने उसे
उसके उस किदे शी ब्वायिैण्ड के साथ जाने कदया। ये भी नही ं सोचा कक इस काम के
कलए तु म्हारे साथ क्ा सु लूक हो सकता है। खै र, हम तु म्हें कोई स़िा नही ं दें गे।
क्ोंकक जब अपना ही खू न इस तरह का धोखे बा़ि था तो दू सरों को क्ा कहें? हम
समझ सकते हैं कक तु म्हारे कदल पर इस सबसे क्ा गु़िर रही है। मगर यं गमैन, तु म
हमारी उस लडकी के पीछे अपनी क़िंदगी बरबाद मत करना। बल्कि खु शी खु शी
ककसी अच्छी लडकी से शादी कर ले ना।

बस उसके बाद आकदत्य कभी कसं हाकनया के घर नही ं गया और कोमल के द्वारा कमले
झटके ने उसे हमेशा के कलए खामोश कर कदया था। तो ये थी आकदत्य चोपडा के
खामोश रहने की िजह मगर अब िो खामोश नही ं था। बल्कि मेरा दोस्त बन चु का था
और हम दोनो हसी खु शी बातें करते हुए आ रहे थे । रात में हम दोनो ने थोडा बहुत
खाना खाया और आराम से ले ट कर सो गए थे ।

478
सु बह आकदत्य ने ही मुझे उठाया। उसके दोनो हाथों में गरमा गरम चाय के दो छोटे
छोटे िास दे ख कर मैं भी उठ बै ठा।

"गुड माकनिं ग कडयर िैण्ड।" आकदत्य ने मु स्कुराते हुए अपने एक हाथ में पकडे हुए
चाय के उस छोटे से िास को मेरी तरि बढा कदया,___"हाक़िर हैं गरमा गरम चाय।"
"एक कमनट भाई मैं ़िरा हाथ मुह धोकर आता हूॅ।" मैने कहा और उठ कर
बाथरूम की तरि चला गया।

थोडी दे र बाद मैं बाथरूम से िापस आया और आकदत्य के सामने िाली सीट पर बै ठ
गया। आकदत्य ने मु झे चाय पकडाई तो मैं उसके हाॅथ से चाय ले कर पीने लगा।

"िै से ककतने बजे तक हम तु म्हारे गाि पहुॅचें गे?" आकदत्य ने कहा अपने बाएॅ हाथ
पर बधी ररस्टिाच पर टाइम दे खते हुए कहा___"अभी तो सु बह के सात ही बजे हैं।"
"अगर टर े न अपने राइट समय पर चल रही है तो हम लगभग ग्यारह बजे गुनगुन
स्टे शन पहुॅच जाएॅगे।" मैने बताया उसे ।

"ओह इसका मतलब अभी कािी समय बाॅकी है पहुॅचने में।" आकदत्य ने ठं डी
साॅस ली।
"हाॅ, मेरा दोस्त पिन हल्दीपु र के बस स्टै ण्ड पर कमले गा।" मैने कहा___"टर े न से हम
गुनगुन स्टे शन पर उतरें गे उसके बाद िहाॅ से ऑटो करके हम बस स्टै ण्ड जाएॅगे।
बस से हम हल्दीपु र पहुॅचें गे। जहाॅ पर हमें पिन कमले गा।"

"ओह यार ये तो कािी लम्बा चक्कर लग रहा है।" आकदत्य बोला___"िै से गुनगुन
स्टे शन से क्ा हम ककसी टै र्क्ी द्वारा तु म्हारे गाॅि तक नही ं जा सकते ?"

आकदत्य की बात सु नकर मेरे कदमाग़ की बिी जली। टै र्क्ी से जाने में कािी सु रक्षा
िाली बात रहेगी। क्ोंकक एक पल के कलए अगर ये मान कलया जाए कक मेरे बडे पापा
अपने आदकमयों की यहाॅ लगा रखा होगा तो िो सब मु झे बस में ही खोजेंगे और
टै र्क्ी में मेरे मौजूद होने की िो कल्पना भी न करें गे। मु झे आकदत्य की ये बात बहुत
जची।

"क्ा हुआ यार?" मुझे सोचों में गुम दे ख कर आकदत्य कह उठा___"कहाॅ खो गए


तु म?"
"मैं ये सोच रहा हूॅ कक हम गुनगुन स्टे शन पर टर े न से उतर कर ककसी टै र्क्ी के द्वारा
ही हल्दीपु र चलें ।" मैने कहा___"तु म्हारी इस बात से मु झे यही लग रहा है कक टै र्क्ी में
हम ज्यादा से ि रहेंगे।"

479
"अगर ऐसा है तो हम टै र्क्ी में ही चलें गे तु म्हारे गाॅि।" आकदत्य ने कहा___"हर
जगह िाहन बदलने का चक्कर भी नही ं रहेगा।"
"सही कहा तु मने ।" मैने कहा___"मैं पिन को भी बता दे ता हूॅ कक मैं टै र्क्ी से
डायरे क्ट हल्दीपु र आऊगा।"

मैने अपना िोन कनकाल कर पिन को सब बता कदया। उसके बाद मैं और आकदत्य
समय गु ़िारने के कलए किर से ककसी न ककसी ची़ि के बारे में बातें करने लगे। उधर
टर े न अपनी रफ्तार से दोडी जा रही थी। मुझे नही ं पता था कक आने िाला समय मुझे
क्ा कदखाने िाला था या किर ककस तरह का झटका दे ने िाला था?

अपडे ट.........《 42 》

अब तक,,,,,,,,

"ओह यार ये तो कािी लम्बा चक्कर लग रहा है।" आकदत्य बोला___"िै से गुनगुन
स्टे शन से क्ा हम ककसी टै र्क्ी द्वारा तु म्हारे गाॅि तक नही ं जा सकते ?"

आकदत्य की बात सु नकर मेरे कदमाग़ की बिी जली। टै र्क्ी से जाने में कािी सु रक्षा
िाली बात रहेगी। क्ोंकक एक पल के कलए अगर ये मान कलया जाए कक मेरे बडे पापा
अपने आदकमयों को यहाॅ लगा रखा होगा तो िो सब मु झे बस में ही खोजेंगे और
टै र्क्ी में मेरे मौजूद होने की िो कल्पना भी न करें गे। मु झे आकदत्य की ये बात बहुत
जची।

"क्ा हुआ यार?" मुझे सोचों में गुम दे ख कर आकदत्य कह उठा___"कहाॅ खो गए


तु म?"
"मैं ये सोच रहा हूॅ कक हम गुनगुन स्टे शन पर टर े न से उतर कर ककसी टै र्क्ी के द्वारा
ही हल्दीपु र चलें ।" मैने कहा___"तु म्हारी इस बात से मु झे भी यही लग रहा है कक
टै र्क्ी में हम ज्यादा से ि रहेंगे।"

"अगर ऐसा है तो हम टै र्क्ी में ही चलें गे तु म्हारे गाॅि।" आकदत्य ने कहा___"हर


जगह िाहन बदलने का चक्कर भी नही ं रहेगा।"
"सही कहा तु मने ।" मैने कहा___"मैं पिन को भी बता दे ता हूॅ कक मैं टै र्क्ी से

480
डायरे क्ट हल्दीपु र आऊगा।"

मैने अपना िोन कनकाल कर पिन को सब बता कदया। उसके बाद मैं और आकदत्य
समय गु ़िारने के कलए किर से ककसी न ककसी ची़ि के बारे में बातें करने लगे। उधर
टर े न अपनी रफ्तार से दौडी जा रही थी। मुझे नही ं पता था कक आने िाला समय मुझे
क्ा कदखाने िाला था या किर ककस तरह का झटका दे ने िाला था?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

"आप एक बार किर से इस बारे में अच्छी तरह सोच लीकजए चौधरी साहब।" अिधेश
श्रीिास्ति ने समझाने िाले अं दा़ि में कह रहा था___"आपका इस मामले में पु कलस
को सू कचत करना कतई ठीक नही ं रहेगा। सं भि है कक आपके द्वारा इस मामले को
पु कलस को सू कचत कर दे ने से िो ब्लैकमेलर हमारे कलए कोई गंभीर मुसीबत खडी कर
दे । ये बात तो िो भी अच्छी तरह जानता और समझता ही होगा कक आप पु कलस को
उसके बारे में बताने की सोचें गे जो कक कनहायत ही ग़लत होगा। उस सू रत में िो
हमारे ल्कखलाफ़ कुछ भी कर सकता है और हम उसका कुछ भी नही ं कबगाड पाएॅगे।
क्ोंकक अभी तक हम यही नही ं जानते हैं कक हमें ऐसी िीकडयो़ि भे जने िाला िो
शख्स आकखर है कौन? उसने अब तक कोई िोन या मैसेज नही ं ककया ले ककन उसके
न करने से भी िो हमें यही समझा रहा है कक इस मामले में पु कलस को सू कचत करने
की मूखगता हम लोग हकगग ़ि भी न करें ।"

"तो आकखर हम क्ा करें अिधेश?" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"आज दो कदन हो
गए मगर उसकी तरि से हमारे पास कोई मै सेज तक नही ं आया। हम तो चाहते हैं
कक िो हमसे सं बंध बनाए और बताए कक आकखर िो ये सब करके हमसे चाहता क्ा
है? साला दो कदन से हमारे सु ख चै न की माॅ बहन करके रखा हुआ है।"

"आप ़िरा धीरज से काम लीकजए चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने कहा___"आपकी
तरह हम सब भी इस बात से बहुत परे शान और बे चैन हैं। हमारी जान भी हलक में
अटक पडी है। मगर जैसा कक अिधेश भाई ने कहा कक इस बारे में पु कलस को सू कचत
करना ठीक नही ं है तो बात हमारे कहत में ही है । आप तो जानते हैं कक साले पु कलस
िाले बाल की खाल कनकालने िाले होते हैं। सं भि है कक िो हमसे ऐसे सिाल करने
लगें कजन सिालों के जिाब दे ना हमारे कलए खतरे से खाली नही ं होगा। ऐसे में हम
खु द ही उल्टा िस जाएॅगे। रही बात उस ब्लै कमेलर की कक उसने अब तक हमसे
कांटैक्ट नही ं ककया तो ये कोई समस्या नही ं है । कहने का मतलब ये कक िो दे र सिे र
ही सही मगर हमसे कांटैक्ट ़िरूर करे गा, क्ोंकक इन िीकडयो़ि को हमारे पास

481
भे जने का कोई न कोई मकसद उसका ़िरूर होगा। अपने उस मकसद को पू रा
करने के कलए िो हमसे कांटैक्ट ़िरूर करे गा। बस आप धैयग रखें चौधरी साहब।"

"बस एक बार।" कदिाकर चौधरी गुस्से से दाॅत ककटककटाते हुए बोला___"कसिग एक


िो हराम़िादा हमारे हाॅथ लग जाए उसके बाद हम बताएॅगे उसे कक हमारे साथ
ऐसी िाकहयात हरकत करने का क्ा अं जाम होता है। उस हराम के कपल्ले को ऐसी
मौत मारें गे कक उसे अपने पै दा होने पर अिसोस होगा।"

"इसका उल्टा भी तो हो सकता है चौधरी साहब।" सहसा इस बीच सहमी सी बै ठी


सु नीता ने अजीब भाि से कहा___"आप ये क्ों नही ं सोचते हैं कक कजसने भी आपके
या हमारे साथ ऐसे दु स्साहस से भरे काम को अं जाम कदया है िो कोई ऐरा गैरा ब्यल्कक्त
नही ं हो सकता? ये बात तो िो भी जानता होगा कक आप क्ा ची़ि हैं, इसके बािजूद
उसने ऐसा ककया। इसका मतलब साि है कक िो हमसे ़िरा भी खौि नही ं खाता है
बल्कि अपने ककसी मकसद को पू रा करने के कलए िो मौत के मु ह में ही आ पहुॅचा
है। दू सरी बात उसे हमसे डरने की ़िरूरत भी कहाॅ है जबकक उसके पास हमारे
कखलाि ऐसा सामान मौजूद है कजसके बल पर िो जब चाहे हमें बीच चौराहे पर नं गा
दौडा सकता है। इस कलए ये बात तो आप भू ल ही जाइये कक आप उसे ऐसी कोई मौत
दें गे कजससे उसे अपने पै दा होने पर अिसोस होगा।"

"साली रं डी की दु म हमें डरा रही है?" चौधरी ल्कखकसयानी कबल्ली की तरह सु नीता पर
चढ दौडा था, बोला___"तु झे पता नही ं है कक हम क्ा ची़ि हैं। हम चाहें तो यहाॅ बै ठे
बै ठे कदल्ली तक को कहला कर रख दें । िो हराम का जना साला तभी तक सलामत है
जब तक िो हमसे दू र कही ं छु पा बै ठा है। कजस कदन हमारे हाथ लग गया न उस कदन
हम बताएॅगे कक कदिाकर चौधरी के साथ ऐसी कहमाकत करने का हस्र क्ा होता
है?"

कदिाकर चौधरी का तमतमाया हुआ चे हरा दे ख कर और उसकी खतरनाक बातें


सु नकर सु नीता की कसट्टी कपट्टी गुम हो गई। डर ाइं गरूम कपन डर ाप सन्नाटा छा गया था।
ककसी की बोलने की कहम्मत न पडी। मगर तभी इस सन्नाटे को तोडने की कहमाकत
खु द कदिाकर चौधरी के मोबाइल िोन की घंटी ने कर दी। दो पल के कलए तो
कदिाकर चौधरी हडबडाहट में ही रहा। किर जल्दी से खादी के कुते की जेब से
मोबाइल िोन कनकाल कर उसने स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नं बर को दे खा। स्क्रीन पर
िही नं बर फ्लैश हो रहा था कजस नं बर से चौधरी के इसी िोन पर िो िीकडयो़ि भे जा
था उस ब्लैकमेलर ने ।

"क्ा हुआ चौधरी साहब?" अिधेश श्रीिास्ति ने शशं क भाि से कहा___"क्ा दे ख

482
रहे हैं? काल को ररसीि कीकजए।"
"ये तो िही नं बर है अिधेश।" चौधरी ने बडे उत्साकहत भाि से कहा___"कजस नं बर से
हमारे िोन पर िो िीकडयो भे जे गए थे ।"

"तो किर जल्दी से काल को ररसीि कीकजए चौधरी साहब।" अशोह मे हरा कह
उठा__"और िोन का िीकर भी ऑन कर दीकजए। हम सब भी सु नेंगे कक िो क्ा
कहता है?"

चौधरी ने काल ररसीि करके मोबाइल का िीकर ऑन कर कदया।


"कहो चौधरी कैसे हो?" उधर से मदागना स्वर में आिा़ि उभरी___"काल ररसीि करने
में इतना टाइम कैसे लगा कदया तु मने ? ओह शायद मेरा काल दे ख कर तु म्हें समझ में
ही न आया होगा कक क्ा करें और क्ा न करें ? होता है चौधरी, ऐसा तो यकीनन
होता है। और हाॅ ये बहुत अच्छा ककया जो अपने िोन का िीकर ऑन कर कदया
तु मने । आकखर तु म्हारे उन साकथयों को भी तो मेरी मधुर आिा़ि सु नने का हक़ है।"

"हमसे ऐसे लहजे में बात करने का अं जाम नही ं जानते हो तु म।" चौधरी ने दाॅत
पीसते हुए कठोर भाि से कहा___"अगर जानते तो ऐसी कहमाकत नही ं करते । और
अब हमारी बात कान खोल कर सु नो तु म। ये जो कुछ तु मने ककया है न उसकी स़िा
तो तु म्हें ़िरूर कमले गी। ये मत समझना कक िोकडयो भे ज कर तु मने हमे चू हा बना
कदया होगा।"

"ये गीदड भभककयाॅ ककसी और को दे ना चौधरी।" उधर से ठं डे लहजे में कहा


गया___"मैं तु म्हारी ककसी बात से बाल बराबर भी डरने िाला नही ं हूॅ। मैं चाहूॅ तो
पल भर में तु म्हारी ताकत और तु म्हारी शान को कमट्टी में कमला दू ॅ। इस कलए बे हतर
होगा कक मु झसे ज्यादा उडने की कोकशश मत करना और ना ही मु झ पर अपना रौब
झाडना।"

"क्ा चाहते हो तु म?" चौधरी को समझ आ गया था कक सामने िाला उससे डरने
िाला नही ं है इस कलए मुद्दे की बात करना ही कचत समझा उसने , बोला___"अगर
तु मने ये सब हमसे रुपया पै सा ऐंठने के कलए ककया है तो मु ह िाडो अपना और
बताओ कक ककतना रुपया चाकहए तु म्हें? मगर खबरदार, डील कसिग एक ही बार
होगी। तु म्हें कजतना भी रुपया चाकहए िो बोल दो, हम तु म्हें मु हमागा रुपया दे दें गे
मगर बदले में तु म हमें िो सारे िीकडयो़ि लौटा दोगे।"

"ये तु मने कैसे सोच कलया चौधरी कक ये सब मै ने तु मसे पै से ऐंठने के कलए ककया है?"
उधर से हस कर कहा गया___"अरे बु डबक, पै सा तो मेरे पास इतना है कक मैं खडे

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खडे तु म्हें और तु म्हारे पू रे खानदान को खरीद लू ॅ। खै र, तु म जैसे दो कौडी के भडिों
को खरीदे गा भी कौन? मैने तो ये सब कसिग इस कलए ककया कक तु म्हें बता सकूॅ अब
तु म्हारा और तु म्हारे साकथयों का खे ल खत्म हो चु का है। अब यहाॅ से तु म लोगों के
बु रे कमों का कहसाब शु रू होगा।"

"हराम़िादे तू है कौन साले ?" चौधरी बु री तरह गु स्से में चीख पडा था___"एक बार
हमारे सामने आ किर हम बताएॅगे कक हमसे ऐसी ़िुरगत करने का क्ा अं जाम होता
है?"
"हराम़िादा ककसे बोलता है रे मादरचोद साले रं डी की औलाद।" उधर से मानो शे र
की गुराग हट उभरी___"कचं ता मत कर साले बहुत जल्द ते री हेकडी कनकालू ॅगा मैं।
साले बकरे की तरह कमकमयाएगा मेरे सामने ।"

"़िुबान सम्हाल कर बात कर हमसे ।" चौधरी चीखा तो ़िरूर मगर उसने खु द
महसू स ककया कक उसके स्वर में कोई दम नही ं था, किर भी बोला___"हम तु म्हारे इस
अपराध को माफ़ कर दें गे। बस तु म हमें िो सब िीकडयो़ि लौटा दो।"

"भीख माॅगता है क्ा रे चौधरी?" उधर से ठहाके की आिा़ि आई___"अच्छा है


माॅगना शु रू ही कर दे अब। खै र जाने दे , मैं ये कह रहा हूॅ कक बहुत जल्द तु झे ऐसा
मं़िर दे खने को कमले गा कक तू उसे दे ख नही ं पाएगा और ते रे ही साथ बस क्ों ते रे
सभी साकथयों के साथ भी िही सब होगा। अपनी बरबादी को रोंक सकता है तो रोंक
ले तू ।"

अभी चौधरी कुछ कहना ही चाहता था कक उधर से िोन कट गया। चौधरी ने जल्दी
से उसी नं बर पर काल ककया मगर नं बर ल्कस्वच ऑि बताने लगा था। पल भर में
चौधरी की हालत ककसी लु टे हुए जुआॅरी जैसी ऩिर आने लगी थी। चौधरी जैसा
हाल बाॅकी उन सबका भी था जो िहाॅ पर बै ठे िोन की हर बात सु न रहे थे ।
सु नीता की हालत तो ऐसी हो गई थी जैसे उसे लकिा मार गया हो। बडे से डर ाइं गरूम
में गहन सन्नाटे के कसिा कुछ न रह गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हिे ली में।


गहरी सोच में डूबी हुई नै ना ररतू के कमरे में पहुॅची। कमरे में पहुॅच कर उसने दे खा
कक ररतू पु कलस की िदी पहने आईने के सामने खडी होकर कसर पर पीकैप को ठीक
से लगाते हुए खु द को दे ख रही थी।

"क्ा बात है ररतू तू ने मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से ककस कलए बु लाया है?" नै ना
ने ररतू की तरि दे खते हुए कहा था। उसकी बात सु न कर ररतू आईने की तरि से

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पलट कर अपनी नै ना बु आ की तरि दे खा।

"क्ा आपने अपना सब सामान ले कलया है बु आ जी?" ररतू ने पू छा।


"आकखर बात क्ा है मेरी बच्ची?" नै ना हैरान परे शान सी बोली___"मुझे अपना सारा
सामान ले ने के कलए क्ों कह रही है तू ? क्ा तू मुझे कही ं ले कर जा रही है?"

"हाॅ बु आ।" ररतू ने तकनक गंभीरता से कहा___"ले ककन इस िक्त आप मु झसे ये न


पू कछए कक ऐसा मैं क्ों कह रही हूॅ। बस आप िो कीकजए जो मैं कह रही हूॅ। यकीन
माकनये बु आ मैं आपको आपके सभी सिालों का जिाब दू ॅगी मगर अभी नही ं। अभी
आप िही कीकजए जो मैने कहा है प्ली़ि।"

"ठीक है ररतू ।" नै ना ने बे चैनी से कहा__"पर मैं भइया भाभी से क्ा कहूॅगी कक
अपना सामान ले कर मैं कहा जा रही हूॅ?"
"उनको बता दीकजएगा कक आप िापस अपने ससु राल जा रही हैं क्ोंकक आपके पास
आपके ससु राल से िोन आया था जो आपको आने के कलए कह रहे थे ।।" ररतू ने
जैसे तरीका बताया।

"िो तो ठीक है ।" नै ना ने कहा___"ले ककन अगर भइया ने मेरी ससु राल में िोन करके
इस बारे में पू छा तो क्ा होगा? उन्हें तो पता चल ही जाएगा कक मैं उनसे झॅ
ू ठ बोल
रही हूॅ।"
"िो ऐसा कुछ नही ं करें गे बु आ।" ररतू ने कहा___"आप बस जल्दी से सामान ले कर
हिे ली से बाहर आइये। मैं आपको बाहर ही कमलू ॅगी।"

"अरे नास्ता तो कर ले ।" नै ना ने कहा___"भाभी डायकनं ग टे बल में ते रा इन्त़िार कर


रही हैं।"
"नही ं बु आ मु झे ़िरा भी भू ॅख नही ं है।" ररतू ने कहा___"और आप भी मत
खाइयेगा। क्ोंकक उससे हमें जाने में दे र हो जाएगी।"

"बडी हैरानी की बात है ररतू ।" नै ना ने चककत भाि से कहा___"खै र, तू चल मैं आती
हूॅ।"
"ठीक है बु आ।" ररतू दरिाजे की तरि बढते हुए बोली___"जल्दी आइये गा।"

कहने के साथ ही ररतू लम्बे लम्बे डग भरते हुए दरिाजे के बाहर कनकल गई। उसके
पीछे पीछे ही नै ना भी चल दी। ये अलग बात है कक इस िक्त उसके मन में गहन
किचारों का आिागमन शु रू था।

"ररतू बे टा, बडी दे र कर दी आने में।" प्रकतमा ने ररतू को दे खते ही कहा__"चल आजा,

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नास्ता ठं डा हो रहा है।"
"नही ं माॅम, मुझे अजेंट थाने पहुॅचना है।" ररतू ने एक एक ऩिर िही ं कुकसग यों पर
बै ठे अपने भाई कशिा और अपने कपता अजय कसं ह पर डालते हुए कहा___"मैं बाहर ही
नास्ता कर लू ॅगी।"

"उफ्फ ते री ये नौकरी भी न।" प्रकतमा ने बु रा सा मु ह बनाते हुए कहा___"चै न से तु झे


नास्ता भी नही ं करने दे ती है। छोंड दे न ये नौकरी बे टा। आकखर क्ा कमी है हमारे
पास और क्ा कमी की है हमने ते री इच्छाओं को पू रा करने में?"

"बात ककसी भी ची़ि की कमी की नही ं है माॅम।" ररतू ने कहा___"बात है शौक की


और ये पु कलस की नौकरी मेरा शौक ही है। पाप और ़िुमग को खत्म करना मेरा शु रू
से कसिांत रहा है। खै र, आप नही ं समझेंगी मे री भािनाओं को।"

"माॅम ठीक ही तो कह रही हैं दीदी।" सहसा कशिा ने कहा___"आपको पु कलस की


नौकरी करने की क्ा ़िरूरत है? इस तरह का शौक रखना कनहायत ही बे कार की
बात है।"
"तू अपना मु ह बं द ही रख समझे।" ररतू ने कठोर भाि से कहा___"मेरा शौक ते रे
शौक से कही ं ज्यादा ऊचा और पाक़ है। पढ कलख कर अपने पै रों पर खडी हो गई
हूॅ और खु द कमा कर खा सकती हूॅ। ते री तरह डै ड के पै सों पर ऐश करना मुझे
हकगग ़ि पसं द नही ं है।"

"आप ़िरूरत से ज्यादा ही भाषर् दे रही हैं दीदी।" कशिा ने कहा___"बे हतर होगा
कक आप अपना ये भाषर् ककसी और को सु नाएॅ।"
"सच कहा तू ने।" ररतू ने कडिा ़िहर मानो खु द ही कनगलते हुए कहा___"ये भाषर्
तु झे रास नही ं आ सकता। ये भाषर् तो उसे ही रास आएगा जो इसके लायक होगा।"

"ये क्ा बे हूदा बातें कर रही हो बे टी?" सहसा अजय कसं ह कह उठा___"अपने
इकलौते भाई से इस तरह रुखाई से कौन बहन बात करती है? तु मने अपनी म़िी से
पु कलस की नौकरी कर ली हमें कोई प्राब्लेम नही ं हुई। मगर इस बात का भी खयाल
रखना बच्चों का ि़िग है कक िो अपने माता कपता के अरमानों के बारे में सोचें ।"

"िाह डै ड।" ररतू की ऑखों में ऑसू आ गए___"इस िक्त कौन सही है कौन ग़लत ये
तो आपने कबलकुल ही ऩिरअं दा़ि कर कदया। मुझे याद नही ं कक मैने कब अपने
माॅम डै ड की इज्ज़ित या सम्मान को चोंट पहुॅचाई है। बल्कि बचपन से ले कर अब
तक िही ं ककया जो आपने कहा। आज की दु कनयाॅ में अगर बे कटयाॅ अपने पै रों पर
खडे होकर कामयाबी का कोई आसमान छूती हैं तो माॅ बाप को अपनी उस बे टी पर

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गिग होता है मगर मेरे माॅम डै ड को मेरी पु कलस की नौकरी करना ़िरा भी पसं द नही ं
आया। खै र, जाने दीकजए डै ड। अगर आप नही ं चाहते हैं कक मैं ये पु कलस की नौकरी
करूॅ तो ठीक है छोंड दू ॅगी इसे ।"

"तु म बे िजह बातों का पतं गड बना रही हो ररतू बे टा।" प्रकतमा ने कहा___"अपने डै ड
से इस लहजे में बात करना तु म्हें ़िरा भी शोभा नही ं दे ता।"
"साॅरी माॅम।" ररतू ने अपने अं दर के जज़्बातों को बडी मुल्किल से दबाते हुए
कहा___"साॅरी डै ड, एण्ड साॅरी भाई।"

ररतू ने कहा और झटके से बाहर की तरि कनकल गई। कदल एकदम से छलनी सा हो
गया था उसका। कहना तो बहुत कुछ चाहती थी िो मगर ये समय सही नही ं था।
अपने अं दर के सु लगते हुए जज़्बातों को शख्ती से दबा कलया था उसने । कदल में अपने
माॅ बाप और भाई के कलए उसकी नफ़रत में जैसे और भी इ़िािा हो गया था।

हिे ली के बाहर आकर िह एक तरि खडी अपनी पु कलस कजप्सी की तरि बढती
चली गई। कजप्सी में बै ठ कर उसने उसे स्टाटग ककया और आगे बढा कर मुख्य दरिाजे
तक आ कर रुक गई। कदाकचत नै ना बु आ के आने का इन्त़िार करने लगी थी िह।
लगभग पन्द्रह कमनट के इन्त़िार के बाद नै ना बाहर आती कदखी उसे । नै ना के बाएॅ
हाथ में उसका बै ग दे ख कर ररतू ने मन ही मन राहत की मीलों लम्बी साॅस ली।
कजप्सी के पास आकर नै ना ने कपछली सीट पर बै ग रखा और किर घू म कर ररतू के
बगल िाली सीट पर आकर बै ठ गई। नै ना के बै ठते ही ररतू ने कजप्सी को झटके से
आगे बढा कदया।

"हिे ली से बाहर आने में कािी दे र लगा दी आपने ।" मेन सडक पर पहुॅचते ही ररतू
ने कहा नै ना से ।
"हाॅ िो भइया भाभी पू छने लगे थे न कक मैं अपना ये सामान ले कर कहाॅ जा रही
हूॅ?" नै ना ने बताया___"बडी मु ल्किल से उन्हें कल्कन्वंस ककया तब जाकर बाहर आ
पाई मैं। ले ककन मु झे ये समझ में नही ं आ रहा कक तु म मु झे इस तरह कहाॅ ले कर जा
रही हो?"

"बस ये समझ लीकजए बु आ कक मैं आपको ऐसी जगह ले कर जा रही हूॅ।" ररतू ने
अजीब भाि से कहा___"जहाॅ पर आप पू री तरह सु रकक्षत रहेंगी।"
"क्ा मतलब??" नै ना बु री तरह चौंकी थी।
"मतलब ककसी स्वीकमंग पु ल में भरे पानी की तरह साि है बु आ।" ररतू ने
कहा___"बस समझने की बात है।"

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"दे ख तू मुझसे ऐसे पु कलकसये लहजे में बात मत ककया कर।" नै ना ने कहा___"मु झे
कबलकुल समझ में नही ं आता कक तू क्ा बोल रही है?"
"अच्छा ये बताइये।" ररतू ने कहा__"कक डै ड ने आपके ससु राल िालों को िोन तो
नही ं ककया न िो सब पू छने के कलए?"

"नही ं िोन तो नही ं ककया।" नै ना ने कहा__"बस यही कहा कक ये अच्छी बात है अगर
मेरी ससु राल िाले मुझे किर से बु ला रहे हैं तो। मगर, ऐसा भी तो हो सकता है ररतू
कक िो मेरे यहाॅ आने के बाद मेरी ससु राल में िोन लगाएॅ। ये जानने के कलए कक मैं
िहाॅ पर समय पर और ठीक से पहुॅच गई हूॅ कक नही ं और जब उन्हें ये पता चले गा
कक मैं िहाॅ गई ही नही ं तो क्ा सोचें गे िो मेरे बारे में?"

"अब उनके कुछ भी सोचने से कोई िकग नही ं पडने िाला बु आ।" ररतू ने
कहा__"क्ों कक अब आप हिे ली से बाहर आ चु की हैं। मैं तो बस आपको उस हिे ली
से बाहर कनकालना चाहती थी।"
"क्ा मतलब है ते रा?" नै ना बु री तरह उछल पडी। हैरत से उसकी ऑखें िैल गईं
थी।

"अभी नही ं बु आ।" ररतू ने कहा___"बाद में आपको सब कुछ बताऊगी और तसल्ली
से बताऊगी।"
"पता नही ं क्ा अनाप शनाप बोले जा रही है तू ?" नै ना का कदमाग़ मानो चकरकघन्नी
बन गया था, बोली___"मुझे तो कुछ पल्ले ही नही ं पड रही ते री बातें ।"

नै ना की इस बात पर ररतू कुछ न बोली। बल्कि कजप्सी को टाॅप कगयर में डाल कर
उसे तू िान की तरह भगाती हुई िह कनयत समय से बहुत कम समय में अपने
िामग हाउस पहुॅच गई। िामगहाउस के अं दर दाल्कखल होकर ररतू ने पोचग के नीचे
जाकर कजप्सी को रोंक कदया।

"ये कौन सी जगह है ररतू ?" नै ना ने हैरानी से इधर उधर दे खते हुए कहा___"ये तू
कहाॅ ले आई है मु झे?"
"अपने एक अलग घर में बु आ।" ररतू ने कहा___"जहाॅ पर अपना अलग एक नया
सं सार बसता है।"

"एक नया सं सार?" नै ना चकरा सी गई, बोली___"इसका क्ा मतलब हुआ भला?"
"आईये अं दर चलते हैं ।" कजप्सी से उतरते हुए ररतू ने कहा___"अब से आप यही ं
रहेंगी।"
"ये तु म क्ा कह रही हो बे टा?" नै ना चककत स्वर में बोली___"मैं यही ं रहूॅगी? मगर

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क्ों ररतू ? ऐसा क्ा हो गया है कजसकी िजह से तु म मु झे यहाॅ ले कर आई हो।
आकखर बात क्ा है? क्ा छु पा रही है तू मुझसे ? दे ख ररतू मु झे सारी बात सच सच
बता, मेरा कदल बहुत घबरा रहा है।"

"अब आपको ककसी भी बात के कलए घबराने की ़िरूरत नही ं है बु आ।" ररतू ने
कपछली सीट से नै ना का बै ग कनकालते हुए कहा__"ये अपना ही घर है। यहाॅ पर
आपको ककसी बात का कोई खतरा नही ं है।"

"खतरा???" नै ना का कदमाग़ मानो कंु द सा पडता चला गया, बोली___"आकखर तू


ककस खतरे की बात कर रही है ररतू ? मु झे भला ककससे खतरा है और ककस बात का
खतरा है? मुझे बता बे टा, िरना ते री इन बातों से मैं पागल हो जाऊगी।"

"सब बताऊगी बु आ।" ररतू ने कहा__"अं दर तो चकलए।"


ररतू की इस बात से हैरान परे शान नै ना ककसी यंत्र चाकलत सी होकर ररतू के पीछे
पीछे अं दर की तरि चल पडी।

अं दर पहुॅचते ही उन्हें हररया काका की बीिी कबं कदया कमल गई।


"अरे कबकटया आ गई तु म?" कबं कदया ने बडे प्यार और सम्मान से कहा___"और ये
तु म्हारे साथ में बीिी जी कौन हैं?"

"काकी ये मेरी छोटी बु आ हैं।" ररतू ने कहा___"और आज से ये यही ं रहेंगी। इनका


हर तरह से खयाल रखना।"
"इसमें कहने िाली कौन सी बात है कबकटया?" कबं कदया ने कहा___"मेरे कलए तो ये भी
तु म्हारी तरह ही हैं।"

"इनके कलए मेरे बगल िाले कमरे को अच्छी तरह साि कर दीकजए।" ररतू ने
कहा__"तब तक मैं इन्हें अपने कमरे में कलये जा रही हूॅ। और हाॅ जल्दी से गरमा
गरम नास्ता भी तै यार कर दीकजए।"
"सब हो जाएगा कबकटया।" कबं कदया ने कहा___"तु म बस कुछ दे र का समय दो मुझे।"
"ठीक है काकी।" ररतू ने कहने के साथ ही नै ना की तरि दे ख कर कहा___"आइये
बु आ ऊपर कमरे में चलते हैं।"

ररतू ने कहा तो नै ना उसके पीछे चु पचाप चल दी। उसके मन में ह़िारों सिाल और
ह़िारों खयाल पै दा हो चु के थे । कमरे में पहुॅच कर ररतू ने नै ना को बे ड पर बै ठाया
और खु द भी उसके बगल में बै ठ गई।

"अब तो बता बे टा कक बात क्ा है?" नै ना ने ब्याकुलता से पू छा___"इस तरह तू मुझे

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यहाॅ ले कर क्ों आई है?"
"मुझे समझ नही ं आ रहा बु आ।" ररतू ने सहसा गंभीर होकर कहा___"कक आपको िो
सब बातें कैसे बताऊ और कहाॅ से बताऊ?"

"दे ख ररतू तू अब कोई बच्ची नही ं रही।" नै ना ने कहा___"बल्कि तू अब बडी हो गई


है। जो भी बात है तू मु झे बे कझझक बता सकती है। मु झे तू अपनी दोस्त या रा़िदार
समझ सकती है। मैं जातनी हूॅ कक तू कभी कोई ग़लत काम नही ं कर सकती है। मु झे
तु झ पर हमेशा से गिग रहा है। खै र, तू बे कझझक बता कक ऐसी क्ा बात है कजसकी
िजह से तू मु झे इस तरह यहाॅ ले कर आई है?"

"मुझे ककसी बात की भू कमका बनाना नही ं आता बु आ।" ररतू ने गंभीरता से कहा__"मैं
तो साि साि कहना जानती हूॅ। आप जानना चाहती हैं न कक मैं आपको इस तरह
यहाॅ क्ों ले कर आई हूॅ यो सु कनए___हिे ली में रहने िाले आपके भइया भाभी और
आपका भतीजा ये तीनो ही िासना और हिस के चलते इस क़दर अं धे हो चु के हैं कक
इन्हें अब ये भी नही ं कदखता कक ये लोग कजनके साथ कुकमग करने का मंसूबा बनाए
हुए हैं िो ररश्े में इनके क्ा लगते हैं।"

"ये तू क्ा कह रही है ररतू ?" नै ना की ऑखें है रत से िैल गईं, बोली___"तु झे कुछ
होश भी है कक तू ककनके बारे में क्ा बोल रही है?"
"होश तो अब आया है बु आ।" ररतू ने भारी लहजे में कहा___"बचपन से ले कर अब
तक तो मैं बे होश ही थी। अपने उन माता कपता को दे िता समझती रही कजनके हाॅथ
अपने ही घर के लोगों के खू न से सने हुए हैं। आपको नही ं पता बु आ, आपका भाई
और मेरा बाप अपने ही भाई किजय कसं ह का क़ाकतल है। आज तक हम सब यही
जानते रहे हैं कक किजय चाचा की मौत सपग के काटने से हुई थी जब िो खे त में पानी
लगा रहे थे । जबकक ये बात सरासर झॅ ू ठ है बु आ। सच्चाई ये है कक मेरे बाप ने उनकी
जानबू झ कर जान ली थी।"

"ये ये क्ा कह रही है तू ?" नै ना के पै रों तले से ़िमीन गायब हो गई___"नही ं नही ं
अजय भइया ऐसा नही ं कर सकते हैं। ये सब झठ ू है ररतू , कह दे कक ये सब झठ
ू है।"
"कैसे कह दू ॅ बु आ?" ररतू की ऑखें छलक पडी____"मैंने अपनी ऑखों से दे खा है
और कानों से सु ना है ।"

"कब दे खा सु ना तु मने ?" नै ना कह उठी।


"कल रात को।" ररतू ने कहा___"और ये अच्छा ही हुआ बु आ कक मु झे अपने माता
कपता की ये सच्चाई खु द उनके ही मुख से सु नने को कमल गई। कल रात मु झे नी ंद
नही ं आ रही थी। अपने बे ड पर पडी मैं करिटें बदल रही थी। किर मु झे प्यास लगी

490
तो मैं अपने कमरे से कनकल कर नीचे ककचे न में पानी पीने के कलए आई। पानी पीकर
जब मैं िापस अपने कमरे की तरि जाने लगी तो दे खा कक गौरी चाची की तरि जाने
िाला पाटीशन का दरिाजा खु ला हुआ था। मै ने सोचा ये खु ला हुआ क्ों है आज।
बस यही पता करने के कलए मैं उस तरि चली गई। मगर मु झे क्ा पता था कक उस
तरि मु झे कुछ ऐसा दे खने सु नने को कमले गा कजसे दे ख सु न कर मेरे पै रों तले से
धरती गायब हो जाएगी।"

"ऐसा क्ा दे खा सु ना तु मने ?" नै ना बे यकीनी भरे भाि से पू छा था। उसकी बात सु न
कर ररतू उसे िो सब कुछ बताती चली गई जो कुछ उसने उस तरि कमरे के अं दर
दे खा और सु ना था। उसने एक एक बात नै ना को बताई। सारी बातें सु नने के बाद
नै ना की हालत काटो तो खू न नही ं जैसी हो गई थी। किर जैसे उसे खु द ही होश
आया। उसका चे हरा पलक झपकते ही दु ख और पीडा में डूबता चला गया। ऑखों से
झर झर करके ऑसू बहने लगे।

"इतना बडा पाप।" किर िह कबलखते हुए बोली___"और इतना बडा गुनाह ककया इन
लोगों ने मेरे दे िता जैसे भाई के साथ। अरे उसके साथ ही क्ों रे , इन लोगों ने तो
ककसी को भी नही ं बक्शा। अपने पाप और गु नाह को छु पाने के कलए मेरे भाई की सपग
से कटिा कर जान ले ली। मेरी दे िी समान भाभी गौरी पर इतने सं गीन इल्जाम
लगाए और उन्हें हिे ली से कनकाल कदया। इन लोगों ने तो हिे ली को नकग बना कर रख
कदया है ररतू । अच्छा हुआ तू मु झे यहाॅ ले आई। िरना इन लोगों का कोई भरोसा
नही ं था कक ये लोग कब मेरी या तु म्हारी इज्ज़ित के साथ अपनी हिस की भू ख को
शान्त करते ।"

"मुझे नफ़रत हो गई है बु आ अपने माॅ बाप और भाई से ।" ररतू ने कहा___"मैं तो


कल ही अपने ररिावर से इन तीनो को जान से मार दे ना चाहती थी मगर मेरे ़िमीर
ने रोंक कदया मुझे। ये कह कर कक इनको जान से मारने का अकधकार मु झको नही ं
बल्कि उसे है कजनके साथ इन लोगों ने ग़लत ककया है। कसम से बु आ, मु झे ऐसे माॅ
बाप और भाई के मर जाने का ले श मात्र भी दु ख नही ं होगा।"

"मुझे तो अभी भी यकीन नही ं हो रहा ररतू कक ये सब इन लोगों ने ककया है।" नै ना ने


दु खी भाि से कहा___"पता नही ं मेरी दे िी समान गौरी भाभी और उनके दोनो बच्चे
ककस हाल में होंगे? कजस तरह से इन लोगों उन पर अत्याचार ककया है न उसकी इन्हें
स़िा ़िरूर कमले गी। ईश्वर के पास सबका कहसाब है। उसका क़हर जब इन पर
बरपे गा न तो इनके कजस्मों पर कीडे पड जाएॅगे।"

"िो लोग मुम्बई में जहाॅ भी होंगे यहाॅ से बहुत अच्छे होंगे बु आ।" ररतू ने

491
कहा___"और आपको पता है आज मेरा िो भाई आ रहा है कजसे मैने कभी अपना
भाई नही ं समझा था। ले ककन िो पगला हमेशा मुझे इज्ज़ित से दीदी ही कहा करता
था। मेरा सच्चा भाई आ रहा है बु आ। मेरा राज आ रहा है मुम्बई से ।"

"क्ा?????" नै ना उछल पडी___"मगर तु झे कैसे पता?"


"पता तो होगा ही बु आ।" ररतू ने िीकी सी मु स्कान के साथ कहा___"आकखर
बु लिाया तो मैने ही है उसे ।"
"ये क्ा कह रही है तू ?" नै ना ने बु री तरह चौंकते हुए कहा___"तू ने उसे बु लिाया है? ये
जानते हुए भी कक तु म्हारे बाप से उसकी जान को खतरा है?"

"उसे कुछ नही ं होगा बु आ।" ररतू ने दृढता से कहा___"उसकी तरि आने िाली हर
बाधा हर मौत को सबसे पहले मुझसे कमलना होगा। कसम से बु आ अगर खु द मेरा
बाप उसकी मौत बन उसके पास आया तो मौत रूपी उस बाप को भी मैं जीकित नही ं
छोंडूॅगी।"

"ले ककन तू ने उसे बु लिाया ककस कलए है ररतू ?" नै ना ने कहा___"आकखर बात क्ा है?"
"उसकी भी अजब कहानी है बु आ।" ररतू ने अजीब भाि से कहा___"पगले का नसीब
तो दे खो। कही ं पर भी उसे प्यार और खु कशयाॅ नसीब नही ं हुईं। दु ख ददग ने तो जैसे
उसका दामन ही थाम रखा है।"

"क्ा कह रही तू ?" नै ना ने ना समझने िाले भाि से कहा___"साि साि बता कक


बात क्ा है?"
"बु आ, मेरा भाई किराज एक खू बसू रत लडकी से प्यार करता था।" ररतू दु खी लहजे
में बोली___"मगर बाद में उस लडकी ने उसे छोंड कदया। और अब िही ं लडकी उसे
अं कतम बार दे खना चाहती है।"

"अं कतम बार???" नै ना का कदमाग़ चकरा गया___"इसका क्ा मतलब हुआ?"


ररतू ने नै ना को सारी बातें बताई। ये भी बताया कक उस लडकी का कुछ कदनों पहले
गैंग रे प हो चु का है। ररतू ने बताया कक कैसे उस लडकी ने किराज को छोंडा था और
अब लास्ट स्टे ज के कैंसर से अं कतम साॅसें ले रही है। िो चाहती है कक अं त समय में
िो अपने महबू ब को दे ख ले और उसी की बाहों में उसका दम कनकले । सारी बातें
सु नने के बाद नै ना एकदम अिाक् रह गई। उसकी ऑखों में किर से ऑसु ओ ं का
सै लाब सा आ गया।

"हे भगिान ये सब क्ा कर रहा है तू ?" नै ना ने ऊपर की तरि दे ख कर दु खी भाि से


कहा___"मेरे बच्चे को ककतना दु ख सं ताप दे गा तू । ररतू , िो किधी को उस हाल में दे ख

492
नही ं पाएगा। भगिान ही जाने क्ा गु़िरे गी उस िक्त उसके कदल पर। ये प्यार
मोहब्बत होती ही ऐसी ची़ि है बे टा कक इं सान को कम़िोर कदल का बना दे ती है। खु द
पर चाहे ह़िार चोंट खा ले इं सान मगर अपने कप्रयतम के कलए िो छोटी से छोटी चोंट
भी बरदास्त नही ं कर पाता। तू उसके पास ही रहना बे टा। नही ं तो तू मु झे ले चल
उसके पास। मैं अपने भतीजे को उस िक्त सम्हालू ॅगी। मैं उसे ककसी भी कीमत पर
कबखरने नही ं दू ॅगी रे ।"

"बस ईश्वर से दु िा कीकजए बु आ कक सब ठीक ही रहे।" ररतू ने भारी स्वर में


कहा__"मैं अपने भाई के पास ही रहूॅगी। मैं उसे अपने सीने से लगा लू ॅगी बु आ
ले ककन उसे कबखरने नही ं दू ॅगी।"
"मुझे तु झ पर पू रा भरोसा है ररतू ।" नै ना ने ररतू के चे हरे को अपनी दोनो हथे कलयों के
बीच ले कर कहा____"आज तु झे अपने उस भाई के कलए इतना प्यार और इतनी तडप
दे ख कर मुझे खु शी हुई, कजस भाई को तू ने कभी अपना नही ं समझा था।"

"िो मेरी सबसे बडी भू ल थी और नादानी थी बु आ।" ररतू की ऑखों में ऑसू भर
आए, बोली___"जो मैने अपने पारस जैसे भाई को कभी अपना नही ं समझा था।
ले ककन इसमें भी मेरा कोई कसू र नही ं है बु आ। ये सब तो मेरे उन्ही ं माॅ बाप की
िजह से हुआ है कजन्होंने बचपन से हम बहन भाई को यही कसखाते रहे कक ये हमारे
अपने नही ं हैं बल्कि ये बु रे लोग हैं। मगर कहते हैं न बु आ कक सच्चाई हमेशा के कलए
पदे के पीछे छु पी नही ं रह सकती। िो एक कदन उस पदे से कनकल कर हमारे सामने
आ ही जाती है। आज मु झे पता चल चु का है कक अच्छा कौन है और बु रा कौन है?
जीिन भर दू सरों को बु रा बताने िाला आज खु द मेरे सामने ककतना बु रा और पापी
कनकला कजसकी कोई सीमा नही ं है। जो बाप अपनी ही बे टी बहू और बहन को अपने
नीचे सु लाने की बात करे िो अच्छा कैसे हो सकता है बु आ। िो तो सबसे ऊचे द़िे का
पापी है , कुकमी है। ऐसे लोगों को इस धरती पर जीने का कोई अकधकार नही ं है।"

"बडे बडे पापी और कुककमगयों का इस धरती से सिग नाश हुआ है बे टी।" नै ना ने


कहा__"किर ये कैसे जीकित बच जाएॅगे। इनका भी िही हस्र होगा जो कंस और
रािर् का हुआ था। खै र, तू ये बता कक किराज कब पहुॅच रहा है यहाॅ? और तू ने
उसकी सु रक्षा के कलए क्ा इं तजाम ककया है?"

"मैने उसकी सु रक्षा के कलए इं तजाम कर कदया है बु आ।" ररतू ने कहा___"रे लिे
स्टे शन पर कसकिल िे श में पु कलस के आदमी मौजूद हैं। मु झे पिन ने िोन पर बताया
था कक िो टर े न से उतरने के बाद ककसी टै र्क्ी में हल्दीपु र आएगा।उसने ऐसा शायद
इस कलए ककया है कक डै ड के आदमी अगर िहाॅ कही ं हों भी तो िो सब उसे बस में
ढू ॅढें गे, जबकक उसके टै र्क्ी से आने की िो लोग उम्मीद भी न करें गे।"

493
"मेरा भतीजा होकशयार है।" नै ना ने खु श होकर कहा___"बहुत अच्छा सोचा है उसने ।
खै र, अब तू क्ा करने िाली है?"
"मैं पिन के िोन का इन्त़िार करूॅगी।" ररतू ने कहा___"क्ोंकक किराज सीधा
पिन के घर ही जाएगा। इधर मैं हाल्किटल किधी के पास जाऊगी। उधर से सब कुछ
ठीक करने बाद मैं पिन को िोन कर दू ॅगी कक अब िो किराज को ले कर हाल्किटल
आ जाए। मैने हाल्किटल के चारो तरि भी कसकिल डर े स में पु कलस िालों को मौजूद
रहने के कलए कह कदया है ।"

"ये बहुत अच्छा ककया तु मने ।" नै ना ने कहा___"और मु झे यकीन है कक ते रे रहते


किराज को कुछ नही ं होगा।"
"मैं अपनी जान दे दू ॅगी बु आ।" ररतू ने दृढता से कहा___"मगर अपने भाई को खरोंच
तक आने नही ं दू ॅगी।"

"क्ा इतना प्यार करती है तू अपने उस भाई से ?" नै ना की ऑखें भर आईं थी।
"ऐसे भाई को तो कसिग प्यार ही ककया जाता है न बु आ?" ररतू के जज़्बात बे काबू से हो
गए, खु द को बडी मुल्किल से सम्हाल कर कहा उसने ___"अगर कही ं भगिान कमले
मुझे तो उससे यही कहूॅगी कक मु झे हर जन्म में किराज जैसा ही भाई दे और कशिा के
जैसा भाई ककसी बै री को भी न दे ।"

नै ना ने तडप कर ररतू को अपने सीने से लगा कलया। दोनो की ऑखों से ऑसु ओ ं के


िो बाॅध िूट पडे जो भािनाओं और जज़्बातों के मचल उठने से बे काबू से हो गए थे ।
अभी ये दोनो एक दू सरे के गले ही लगे थे कक तभी कमरे में कबं कदया ने प्रिे श ककया।

"कबकटया, नास्ता तै यार कर कदया है मैने चलो नास्ता कर लो।" कबं कदया ने
कहा___"और हाॅ इनका कमरा भी साि कर कदया है मैने।"

कबं कदया की बात सु न कर दोनो अलग हुईं और बडी सिाई से अपनी अपनी ऑखों से
दोनो ने ऑसु ओ ं को साि कर कलया।
"आप चकलए काकी।" ररतू ने कहा___"हम बस दो कमनट में आते हैं।"
"ठीक है कबकटया।" कबं कदया ने कहा और दरिाजे से िापस पलट गई।

कबं कदया के जाने के बाद नै ना और ररतू दोनो ही बाथरूम की तरि बढ गईं। बाथरूम
में पानी से अपने अपने चे हरों को धोने के बाद िो दोनो िापस कमरे में आईं और
हुकलया सही करने के बाद नास्ते के कलए कमरे से बाहर चली गईं।

"काकी, आज काका कही ं कदखाई नही ं कदये अब तक।" नास्ते की टे बल पर बै ठी ररतू

494
ने कबं कदया से कहा___"बाहर गेट पर कसिग शं कर काका ही कदखे थे ।"
"अरे कबकटया अब क्ा बताऊ तु मसे ।" कबं कदया ने बु रा सा मुह बनाते हुए कहा__"िो
तो जब दे खो उन चारों की खाकतरदारी में ही लगा रहता है। तु मने काम जो सौंपा हुआ
है उसे ।"

"कौन चारो?" नै ना को समझ न आया था इस कलए पू छ बै ठी थी, बोली___"और


ककनकी खाकतरदारी?"
"उन्ही ं चारों की बु आ कजन्होंने किधी के साथ कुकमग ककया था।" ररतू ने कहा___"िो
सब बडे बाप की कबगडी हुई औलादें हैं। जैसे कुकमी बाप िै से ही कुकमी बे टे हैं।
किधी के साथ इन लोगों जो कुकमग ककया उसके कलए उन चारों को कानू नी तौर पर मैं
कोई स़िा नही ं कदला सकती थी, क्ोंकक िो सब अपने बाप की ऊची पहुॅच और
ताकत के बल पर बडी आसानी से कानू न की कगरफ्त से कनकल जाते । ऐसे में किधी
के साथ इं साि नही ं हो पाता बु आ इस कलए कानू न की रखिाली करने िाली आपकी
इस बे टी ने कानू न को अपने हाॅथ में ले कर खु द उन चारों को स़िा दे ने का िैंसला
ककया। ये इसी िैंसले का नतीजा है कक िो चारो आज यहाॅ कपछले कई कदनों से
रो़िाना स़िा के रूप में यातनाएॅ झेल रहे हैं। और म़िे की बात ये है बु आ कक ककसी
को इस बात की भनक तक नही ं है कक यहाॅ पर ककसी को ऐसी स़िा दी जा रही है।
इनके बाप लोगों को यही लगता है कक उनके बे टे कही ं बाहर गए हुए हैं और म़िे में
होंगे।"

"ये तो तु मने बहुत अच्छा काम ककया है ररतू ।" नै ना ने कहा___"ले ककन अगर इन
लोगों के बापों को पता चल गया कक उनके बे टों के साथ तु म यहाॅ क्ा कर रही हो
तब क्ा होगा?"
"उसका भी पु ख्ता इं तजाम कर रखा है मैने।" ररतू ने कहा___"बहुत जल्द इन लोगों
के बापों को भी ऐसी ही स़िा दे ने िाली हूॅ मैं । ककसी को पता भी नही ं चले गा कक इन
नामों के लोगों के साथ ककसने क्ा ककया है।"

नै ना, ररतू के चे हरे को दे खती रह गई अचरज भरी ऩिरों से । से यकीन ही नही ं हो


रहा था कक उसकी िूल जैसी ना़िुक सी भतीजी ऐसे खतरनाक काम भी करती है।
खै र, नास्ता करने के बाद ररतू ने नै ना से जाने की इजा़ित ली और बाहर की तरि
कनकल गई जबकक नै ना मन ही मन ईश्वर को याद कर ररतू और किराज की सलामती
की दु िाएं करने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर टर े न अपने कनधागररत समय पर ही गुनगुन स्टे शन पर पहुॅची थी। टर े न से उतरने
से पहले मैने अपने चे हरे को रुमाल से ढक कलया था। मेरे साथ मेरा नया दोस्त
आकदत्य था। उसको अपना चे हरा ढकने की कोई ़िरूरत नही ं थी। क्ोंकक उसे

495
यहाॅ पर कोई पहचानता ही नही ं था। हम दोनो टर े न से उतर कर स्टे शन से बाहर की
तरि बढ चले ।

प्लेटिामग पर इधर उधर मैने सरसरी तौर पर अपनी ऩिरें दौडाई तो सहसा एक ऐसे
चे हरे पर मेरी ऩिर पडी जो यकीनन बडे पापा का आदमी था। िो एल्किट गेट के
दाएॅ तरि खडा हर आने िालों को बडे ध्यान से दे ख रहा था। मैने उसकी तरि से
अपनी कनगाह हटा ली और बे किक्र होकर एल्किट गेट की तरि बढ चला। एल्किट
गेट के पास जब मैं और आकदत्य पहुॅचे तो सहसा टीटी ने हमें रोंक कलया और हमसे
कटकट कदखाने को कहने लगा। मैने जल्दी से अपने पाॅकेट से अपना पसग कनकाला
और उससे कटकट कनकाल कर टीटी को पकडा कदया। मैने पल भर के कलए दाएॅ
तरि कुछ ही दू री पर खडे बडे पापा के उस आदमी की तरि दे खा। िो आने िाले
आदकमयों की तरि बडे ध्यान से दे ख रहा था। मैं ये नही ं जानता कक उसने मेरी तरि
दे खा था या नही ं मगर इस िक्त उसकी ऩिर सामने से आने िाले अन्य याकत्रयों की
तरि ही थी। इधर टीटी ने मेरी कटकट चे क करने बाद मु झे िापस लौटा दी तो मेरे
पीछे आकदत्य ने भी टीटी को अपनी कटकट थमा दी। टीटी आकदत्य की कटकट दे खने
बाद आकदत्य को िापस कर कदया। मैने इशारे से आकदत्य को चलने का इशारा
ककया। तभी उस ब्यल्कक्त की ऩिर मुझ पर पडी। िो मुझे ध्यान से दे खने लगा। मैं
उसके दे खने पर एकदम से घबरा सा गया मगर किर जल्द ही मैने खु द को सम्हाला
और आकदत्य को ले कर बाहर की तरि बढ गया। मैं पीछे नही ं दे खना चाहता क्ोंकक
मुझे अं देशा था कक िो शायद मु झे ही दे ख रहा होगा और गर मैने पलट कर उसकी
तरि दे खा तो उसे ़िरूर मु झ पर शक हो सकता है।

बाहर आकर मैं और आकदत्य टै र्क्ी की तरि ते ़िी से बढ चले । हलाॅकक िहाॅ पर
बहुत से लोगों की भीड थी इस कलए मुझे यकीन था कक िो आदमी इतना जल्दी मु झे
ढू ॅढ नही ं पाएगा। टै र्क्ी के पास पहुॅचा ही था एक आदमी हमारे पास आया और
हमसे टै र्क्ी का पू ॅछा तो हमने तु रंत उस आदमी को हाॅ कह कदया। आदमी हमारी
हाॅ सु नते ही हमे ले कर अपनी टै र्क्ी के पास पहुॅचा और टै र्क्ी का गेट खोल कर
हमें अं दर बै ठने का इशारा ककया। हम दोनो उसमे बै ठ गए तो िो टै र्क्ी डर ाइिर भी
स्टे यररं ग सीट पर बै ठ गया।

"कहाॅ चलना है साहब?" डर ाइिर ने टै र्क्ी को स्टाटग करते हुए पू छा।


"हल्दीपु र।" मैने कहा तो डर ाइिर ने टै र्क्ी को आगे बढा कदया। मैने पलट कर स्टे शन
की तरि दे खा तो मुझे बडे पापा का िो आदमी कही ं ऩिर न आया। अभी मैं ये सब
दे ख ही रहा था कक तभी मेरा मोबाइल िोन बज उठा। मैने हडबडा कर मोबाइल को
कनकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को दे खा। पिन का िोन था। मैने काल
ररसीि की तो िो मु झसे पू छने लगा कक मैं इस िक्त कहाॅ हूॅ तो मैने उसे बता कदया

496
कक टै र्क्ी में बै ठ कर हल्दीपु र के कलए कनकल कलया हूॅ। मेरी बात सु न कर उसने
कहा कक ठीक है िो मु झे हल्दीपु र के बस स्टै ण्ड पर कमले गा जहाॅ पर उसकी दु कान
है। उसके बाद मैने काल कट कर दी।

"यहाॅ से ककतना समय लगेगा तु म्हारे गाॅि पहुॅचने में?" आकदत्य ने मुझसे पू छा।
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे का समय लगेगा।" मैने कहा___"हल्दीपु र के बस स्टै ण्ड
से पिन को साथ में ले कर ही उसके घर चलें गे।"

मेरी बात सु न कर आकदत्य कुछ न बोला। मैने एक बार पीछे मु ड कर टै र्क्ी के


कपछले शीशे के उस पार दे खा। एक जीप हमारी इस टै र्क्ी के पीछे आ रही थी। मैने
सोचा होगा कोई। मगर मु झे कोई उम्मीद नही ं थी कक इस तरह कोई जीप िाला एक
ररदम पर टै र्क्ी के पीछे चल रहा था। मैने कई बार नोट की िो जीप हमादे पीछे
उतनी ही रफ्तार से चलती हुई आ रही थी। मु झे समझ न आया कक ऐसा कौन हो
सकता है उस जीप में जो हमारे पीछे पीछे उतनी ही गकत से आ रहा था कजतनी गकत
से हमारी टे र्क्ी सडक पर दौडी जा रही थी। मेरा माथा ठनका कक कौन हो सकता है
उस जीप में?????

अपडे ट........《 43 》

अब तक,,,,,,,

"कहाॅ चलना है साहब?" डर ाइिर ने टै र्क्ी को स्टाटग करते हुए पू छा।


"हल्दीपु र।" मैने कहा तो डर ाइिर ने टै र्क्ी को आगे बढा कदया। मैने पलट कर स्टे शन
की तरि दे खा तो मुझे बडे पापा का िो आदमी कही ं ऩिर न आया। अभी मैं ये सब
दे ख ही रहा था कक तभी मेरा मोबाइल िोन बज उठा। मैने हडबडा कर मोबाइल को
कनकाल कर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को दे खा। पिन का िोन था। मैने काल
ररसीि की तो िो मु झसे पू छने लगा कक मैं इस िक्त कहाॅ हूॅ तो मैने उसे बता कदया
कक टै र्क्ी में बै ठ कर हल्दीपु र के कलए कनकल कलया हूॅ। मेरी बात सु न कर उसने
कहा कक ठीक है िो मु झे हल्दीपु र के बस स्टै ण्ड पर कमले गा जहाॅ पर उसकी दु कान
है। उसके बाद मैने काल कट कर दी।

"यहाॅ से ककतना समय लगेगा तु म्हारे गाॅि पहुॅचने में?" आकदत्य ने मुझसे पू छा।

497
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे का समय लगेगा।" मैने कहा___"हल्दीपु र के बस स्टै ण्ड
से पिन को साथ में ले कर ही उसके घर चलें गे।"

मेरी बात सु न कर आकदत्य कुछ न बोला। मैने एक बार पीछे मु ड कर टै र्क्ी के


कपछले शीशे के उस पार दे खा। एक जीप हमारी इस टै र्क्ी के पीछे आ रही थी। मैने
सोचा होगा कोई। मगर मु झे कोई उम्मीद नही ं थी कक इस तरह कोई जीप िाला एक
ररदम पर टै र्क्ी के पीछे चल रहा था। मैने कई बार नोट की िो जीप हमादे पीछे
उतनी ही रफ्तार से चलती हुई आ रही थी। मु झे समझ न आया कक ऐसा कौन हो
सकता है उस जीप में जो हमारे पीछे पीछे उतनी ही गकत से आ रहा था कजतनी गकत
से हमारी टे र्क्ी सडक पर दौडी जा रही थी। मेरा माथा ठनका कक कौन हो सकता है
उस जीप में?????
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उधर अजय कसं ह हिे ली से िैक्टर ी जाने के कलए कनकल ही रहा था कक तभी उसका
मोबाइल िोन बज उठा। अजय कसं ह ने कोट की पाॅकेट से मोबाइल कनकाल कर
स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे भीमा नाम को दे ख कर तकनक चौंका। उसने तु रंत ही काल
को ररसीि कर मोबाइल को कानों से लगा कलया।

"हाॅ भीमा बोलो क्ा खबर है?" कान से लगाते ही अजय कसं ह ने ़िरा उत्सुक भाि
से बोला था।
"............. ।" उधर से कुछ कहा भीमा ने ।
"ये तु म क्ा कह रहे हो भीमा?" अजय कसं ह ने तकनक चौंकते हुए कहा था___"िो
भला यहाॅ क्ों आएगा अब? तु मने अच्छी तरह से उसे दे खा है न?"

".............।" उधर से भीमा ने कुछ कहा।


"तो खाक़ दे खा तु मने ।" अजय कसं ह का लहजा एकाएक कठोर हो गया___"तु मको
खु द ठीक तरह से यकीन नही ं है उसका। पहले तु म उसे अच्छी तरह से दे खो और
जब तु म उसे पहचान जाओ तब हमे बताओ।"

".............।" उधर से भीमा ने किर कुछ कहा।


"ऐसे नही ं भीमा।" अजय कसं ह परे शान से लहजे में बोला___"हमें पक्के तौर पर खबर
चाकहए। हिा में लाकठयाॅ मत घु माओ समझे। तु म्हें उसके आने का कसिग अं देशा है।
जबकक हम ये अच्छी तरह जानते हैं कक उस कायर और डरपोंक में अब इतनी कहम्मत
नही ं है कक िो इस गाॅि में क़दम भी रख सके। उसे भी पता है कक यहाॅ क़दम
रखते ही उसकी जान उसके कजस्म से जुदा हो जाएगी। दू सरी बात ये है कक यहाॅ िो

498
आएगा ही क्ों? अपनी माॅ और बहन की िजह से आता था िो, मगर अब तो िो
दोनो उसके पास ही हैं। इस कलए अब उसके यहाॅ आने का कोई सिाल ही नही ं
उठता।"

"..........।" उधर से भीमा ने किर कुछ कहा।


"कसिग शक के आधार पर तु म हमें ये बता रहे हो भीमा।" अजय कसं ह ने कुछ सोचते
हुए कहा___"पर अगर तु म्हें लगता है कक िो िही था तो ठीक है तु म उसका पीछा
करो। पता करो िो कहाॅ जाता है और ककससे कमलता है?"

"...........।" भीमा ने कुछ कहा।


"तु म सब के सब कनकम्मे हो।" अजय कसं ह एकाएक बे हद गुस्से में बोला___"जब तु म्हें
उस पर शक हो ही गया था तो उसका पीछा करते तु म।"
"...........।" उधर से भीमा ने किर कुछ कहा।
"अरे तो कैसे गायब हो गया िो?" अजय कसं ह चीखा___"िो ़िरूर ककसी बस में या
ऑटो में बै ठ कर िहाॅ से कनकल गया होगा। इतना जल्दी कोई गायब नही ं होता
भीमा। िो यकीनन िही था। उसने तु म्हें पहचान कलया होगा और इसी कलए िो
तु म्हारी ऩिरों से इतना जल्दी ओझल हुआ है। मगर उसके साथ दू सरा िो आदमी
कौन हो सकता है?"

"..............।" भीमा ने कुछ कहा।


"हाॅ शायद यही बात है।" अजय कसं ह ने थोडा नरमी से कहा___"तु मने उसके साथ
ककसी अजनबी को दे खा इसी कलए तु म्हारे मन में दो तरह के किचार पै दा हुए। तु मने
सोचा होगा कक ककसी अजनबी के साथ उसका क्ा काम? इसी में तु म चू क गए
भीमा। खै र, कोई बात नही ं। अगर िो मुम्बई से यहाॅ आया है तो यकीनन िो गाॅि
की ही तरि आएगा। इस कलए अपने आदकमयों से कहो कक िटािट सारे रास्तों पर
िैल जाएॅ और गाॅि के रास्तों पर भी घेराबं दी कर लें । िो ़िरूर ककसी बस या
ऑटो में ही होगा। हर िाहन की अच्छी तरह से तलाशी लो। साला जाएगा कहाॅ
हमसे बच कर?"

"..........।" भीमा ने कुछ कहा।


"चलो अच्छी बात है।" अजय कसं ह ने कहा___"जैसे ही िो कमले हमें खबर कर दे ना
और हाॅ उसे पकड कर सीधा हमारे पास हिे ली ले कर आना। हम भी िैक्टर ी ही जा
रहे थे मगर अब नही ं जाएॅगे। यही ं तु म लोगों का इन्त़िार करें गे हम।"

ये कह कर अजय कसं ह ने मोबाइल से काल कट कर दी और किर अपने नथु ने िुलाते


हुए खु द ही बडबडाया___"आ बे टा आ। ते रा स्वागत हम ऐसा करें गे कक सारी दु कनयाॅ

499
हमारे स्वागत कायगक्रम की कायल हो जाएगी। हाहाहाहाहा आ सपोले जल्दी आ।"

अभी अजय कसं ह अपनी ही बातों से हस ही रहा था कक तभी िहाॅ पर प्रकतमा आ


गई। उसके साथ में कशिा भी था।
"क्ा बात है अजय?" प्रकतमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"अकेले अकेले ही म़िे ले रहे
हो। मगर ककस बात पर? हमे भी तो बताओ आकखर मा़िरा क्ा है?"

"अभी हमारे एक आदमी का िोन आया था डाकलिं ग।" अजय कसं ह ने कशिा की
मौजूदगी में भी उसे डाकलिं ग कहा___"उसने हमें बताया कक किराज यहाॅ आ रहा है ।"
"क्ाऽऽऽ???" प्रकतमा सोिे पर बै ठी इस तरह उछल पडी थी जैसे अचानक ही
उसके कपछिाडे पर ककसी ने गमग तिा रख कदया हो, बोली___"ये क्ा कह रहे हो तु म?
िो रं डी का जना यहाॅ ककस कलए आ रहा है?"

"उसे उसकी मौत यहाॅ ला रही है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"ककसी ने सच ही


कहा है कक जब गीदड की मौत आती है तो िो शहर की तरि भागता है। िही हाल
उस हराम़िादे का है। उसकी भी मौत आई हुई है इसी कलए िो भागता हुआ यहाॅ
आ रहा है।"

"अच्छा ही तो है डै ड।" सहसा कशिा भी गमगजोशी से कह उठा___"आने दीकजए उस


हराम के कपल्ले को। उससे कगन कगन के कहसाब लू ॅगा मैं। उस कदन उसने मु झे बहुत
मारा था न, आज उस सबका कहसाब मैं लू ॅगा। िो मेरा कशकार है डै ड, आप उसे मेरे
हिाले करें गे। मु झसे प्राॅकमस कीकजए डै ड।"

"तु म्हारे हिाले उसे ़िरूर करूॅगा बे टे ले ककन उसे अधमरा करने के बाद।" अजय
कसं ह ने कहा___"क्ोंकक अधमरी हालत में िो तु मसे जीत नही ं पाएगा। िरना बे हतर
हालत में तो तु म उसका कुछ नही ं कबगाड पाओगे।"
"डै ड आप मुझे उससे कम़िोर समझते हैं क्ा?" कशिा की भृ कुटी तन गई___"िो तो
उस कदन मेरा कदन ही खराब था डै ड इस कलए िो मु झे मार सका था। िरना तो िो मेरे
सामने कुछ भी नही ं है।"

"कदन खराब नही ं होते बे टे।" अजय कसं ह ने ल्कखकसयाते हुए कहा___"िो तो सब एक
जैसे ही होते हैं। रही बात उसकी कक तु म्हारे सामने िो कुछ भी नही ं है तो ये बात तु म
खु द को उससे ऊचा दशागने के कलए कह रहे हो। जबकक सच्चाई तु म भी जानते हो कक
अकेले तु म उसका बाल भी बाॅका नही ं कर पाओगे। खै र जाने दो।"

अजय कसं ह की इन बातों पर कशिा बगले झाॅकने लगा था। कदाकचत उसे समझ आ
गया था कक उसकी डी ंगें महज बकिास के कसिा कुछ भी नही ं है । सच्चाई यही है कक

500
किराज का अकेले िो बाल भी बाॅका नही ं कर सकता था। ये बात उसका बाप भी
बखू बी समझ चु का था।

"ले ककन अजय िो यहाॅ आ ककस कलए रहा है ?" प्रकतमा ने कहा___"उसके यहाॅ
आने की कोई ठोस िजह मु झे तो दू र दू र तक समझ में नही ं आ रही।"
"कोई तो िजह होगी ही प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सोचते हुए कहा___"मत भू लो कक
अभय भी मुम्बई गया हुआ है। हम ये नही ं जानते कक इतने कदनों से िो िहाॅ क्ा कर
रहा है? उसे किराज कमला भी है कक नही ं। पर आज की कसचु एशन को दे खा जाए तो
यही लगता है कक अभय को किराज और किराज की माॅ बहन कमल चु की हैं। उन
लोगों ने अभय को और अभय ने उन लोगों को आपस में सारी बातें बताई होंगी।"

"पर उनकी उन बातों से किराज के यहाॅ आने का क्ा कने क्शन हो सकता है?"
प्रकतमा ने तकग कदया।
"ये तो अभय को भी पता चल चु का होगा कक हमारी असकलयत क्ा है?" अजय कसं ह
ने समझाने िाले अं दा़ि में कहा___"गौरी से सारी बातें जानने के बाद अभय को लगा
होगा कक िो तो यहाॅ से मुम्बई चला आया है ले ककन उसके बीिी बच्चे तो अभी भी
गाॅि में ही हैं। अभय समझता होगा कक उसके बीिी बच्चों को मुझसे बडा भारी
खतरा है, इस कलए उसका पहला काम यही होगा कक िो अपने बीिी बच्चों को या तो
भरपू र तरीके से सु रकक्षत करे या किर ककसी तरह िो उन्हें भी अपने पास मुम्बई बु ला
ले । ले ककन सिाल ये पै दा हुआ होगा कक उसके बीिी बच्चों को यहाॅ से ले कर कौन
जाएगा िहाॅ? इस कलए उसने किचार किमषग करके किराज को उन्हें लाने के कलए भे जा
होगा।"

"तु म्हारी बातें और तु म्हारी सोच अपनी जगह यकीनन सही हैं अजय।" प्रकतमा ने
गंभीरता से कहा___"मगर, अगर तु म्हारी बातों के अनु सार सोचा जाए तो इन बातों में
भी एक पें च है। िो ये कक उस सू रत में अभय ये कभी नही ं चाहेगा कक किराज की जान
को कोई खतरा हो जाए। ये तो िो भी समझ ही गया होगा कक किराज की जान को
हमसे खतरा है। इस कलए अपने बीिी बच्चों को यहाॅ से ले जाने के कलए िो किराज
को िहाॅ से हकगग़ि नही ं भे जेगा, और अगर भे जना चाहेगा भी तो गौरी किराज को
यहाॅ आने ही नही ं दे गी। इस कसचु एशन में जान को खतरे में डालने का काम खु द
अभय ही करे गा। िो खु द यहाॅ आकर अपने बीिी बच्चों को यहाॅ से ले जाना उकचत
समझेगा ना कक किराज को भे जना।"

"ये बात भी सही है।" अजय कसं ह को मानना पडा कक प्रकतमा का तकग भी अपनी
जगह बे हद पु ख्ता है, बोला___"ले ककन ये भी सच है कक किराज के यहाॅ आने की
कोई न कोई ठोस िजह तो ़िरूर है। बे िजह अपनी जान को जोल्कखम में डालने की

501
मूखगता ना तो िो खु द करे गा और ना ही उसकी माॅ या उसका चाचा उसे करने की
इजा़ित दें गे।"

"कबलकुल सही कहा।" प्रकतमा ने कहा__"तो सिाल ये है कक िो आकखर यहाॅ आ


ककस िजह से रहा है?"
"िजह कोई भी हो उसके आने की।" अजय कसं ह ने कहा___"हमारे कलए अच्छी बात
यही है कक कजसे हम महीनों से खोज रहे थे िो खु द ही चल कर हमारे पास आ रहा
है। िो हमारे हाॅथ लग जाएगा तो बाॅकी के उसके चाहने िाले भी हमारे पास कसर
के बल दौडते हुए आ जाएॅगे। अब तो म़िा आएगा प्रकतमा। हर कोई हमारे हाथ में
खु द ही चला आएगा। किर हम अपने तरीके से उनके साथ कुछ भी कर सकेंगे। बस
एक ही बात की कचं ता है कक ररतू इन सबके बीच टपक न पडे । िो पु कलस िाली है
और ईमानदार पु कलस अिसर भी है िो। इस कलए उसके रहते हमारे कलए समस्या
भी हो सकती है।"

"अब कोई भी समस्या आए डै ड।" कशिा कह उठा___"ऐसा सु नहरा मौका अपने


हाॅथ से जाने नही ं दें गे हम। अगर हमारे इस अच्छे काम के बीच समस्या बन कर
ररतू दीदी आएॅगी तो उनका भी कहसाब ककताब कर कदया जाएगा।"

"पहली बार अकल िाली बात की है तु मने बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"ये यकीनन
हमारे कलए सु नहरा मौका ही है। अगर किराज हमारे हाॅथ लग जाएगा तो उसके
सभी चाहने िाले अपने आप ही चल कर हमारे पास आ जाएॅगे। इस कलए इस
सु नहरे मौके पर हम ककसी भी समस्या को तु रंत खत्म कर दे ने से पीछे नही ं हटें गे।"

"तो क्ा तु म अपनी बे टी को जान से मार दोगे अजय?" प्रकतमा अं दर ही अं दर काॅप


गई थी।
"ऐसा तो कसिग तब होगा कडयर।" अजय कसं ह ने अजीब भाि से कहा___"जब हमारे
पास ऐसा करने के कसिा दू सरा कोई रास्ता ही न बचे गा।"

प्रकतमा दे खती रह गई अजय कसं ह को। उसकी बातों से उसके कजस्म का रोयाॅ
रोयाॅ खडा हो गया था। उसकी ऑखों के सामने उसकी सुं दर सी बे टी ररतू का
खू बसू रत चे हरा कई बार फ्लैश कर उठा। इस एहसास ने ही उसे अं दर तक कहला
कर रख कदया कक उसकी बे टी को उसका ही बाप जान से मार भी सकता है। एक
पल के कलए उसकी ऑखों के सामने ररतू का मृत शरीर खू न से लथपथ ़िमीन में
पडा हुआ कदख गया उसे । ये दृष्य ऑखों के सामने चकराते ही प्रकतमा का कजस्म
एकदम से ठं डा पडता चला गया।

502
"अब आगे का क्ा प्रोग्राम है डै ड?" तभी कशिा की आिा़ि प्रकतमा के कानों से
टकराई तो जैसे उसे होश आया।
"हमने अपने आदकमयों को कनदे श दे कदया है बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"िो हर
रास्तों पर घेराबं दी कर दें गे। किराज उनसे बच कर ककसी भी हालत में कही ं जा नही ं
सकेगा और उनके पकड में आ ही जाएगा। उसके बाद हमारे आदमी उसे ले कर
सीधा हिे ली हमारे पास आएॅगे।"

"दै ट्स ग्रेट डै ड।" कशिा ने खु श होकर कहा___"अब आएगा म़िा। ले ककन डै ड
किराज के आने की खबर ररतू दीदी को नही ं लगनी चाकहए। हम उसे कही ं छु पा कर
रखें गे। इस हिे ली में उसे रखना मेरे खयाल से ठीक नही ं है।"
"ये भी सही कहा तु मने बे टे।" अजय कसं ह ने कहा__"आज तु म्हारा कदमाग़ भी सही
तरह से काम कर रहा है। मुझे इस बात से बे हद खु शी महसू स हो रही है। खै र, तु म
किकर मत करो बे टे, ररतू के आने से पहले ही हम किराज को ऐसी जगह छु पा दें गे
जहाॅ से ककसी को कभी कुछ पता ही नही ं चल पाएगा। एक काम करते हैं, हम
अपने आदकमयों को बोल दे ते हैं कक िो किराज को ले कर हिे ली न आएॅ बल्कि हमारे
नये िामग हाउस पर ले कर पहुॅचें । ऐसा इस कलए बे टे कक ररतू का कोई भरोसा नही ं है
कक िो कब हिे ली में टपक पडे । उस सू रत में उसे अं देशा भी हो सकता है इन सब
बातों का। पु कलस िाली है न इस कलए अगर एक बार उसके मन में शक का कीडा आ
गया तो िो उस शक के कीडे की कुलबु लाहट हो ़िरूर शान्त करने की कोकशश
करे गी। इस कलए बे हतर यही रहेगा कक हम किराज को अपने नये िामग हाउस पर ही
रखें ।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा डै ड।" कशिा ने कहा__"तो किर हमें भी अब सीधा िामगहाउस ही
चलना चाकहए।"
"यस ऑिकोसग माई कडयर सन।" अजय कसं ह ने मु स्कुराते हुए कहा, किर उसने
प्रकतमा की तरि दे खते हुए कहा___"चलो कडयर तै यार हो जाओ। हमें जल्द ही अपने
नये िामग हाउस के कलए कनकलना है।"

अजय कसं ह की बात पर प्रकतमा ने हाॅ में कसर कहलाया और अपने कमरे की तरि बढ
गई। जबकक अजय कसं ह और कशिा िही ं डर ाइं गरूम में रखे सोिों पर बै ठ कर प्रकतमा
के आने का इन्त़िार करने लगे। दोनो के चे हरे इस िक्त ह़िार िाॅट के बल्ब की
तरह चमक रहे थे ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर टै र्क्ी में बै ठे हुए मैं और आकदत्य आराम से बस स्टै ण्ड की तरि आए, जहाॅ
पर मैने पिन को भी अपने साथ टै र्क्ी में बै ठा कलया। पिन मेरे साथ आकदत्य को दे ख

503
कर थोडा परे शान सा कदखा तो मैने उसे आकदत्य के बारे में बता कदया। मेरी बात सु न
कर पिन के ़िहन से परे शानी ि कचं ता चली गई।

मैने पिन से बहुत पू छा कक उसने मु झे इतना अजेन्टली क्ों बु लाया था मगर पिन ने
यही कहा कक मैं खु द अपनी ऑखों से ही दे ख लू ॅगा। बस स्टै ण्ड से पिन को ले ने के
बाद हम अपने गाॅि हल्दीपु र के कलए कनकल चु के थे । इधर का रास्ता ऐसा था कक
दू र दू र तक खाली ही रहता था। यहाॅ रास्ते के दोनो तरि पहाड थे । ऐसे पहाड
कजनमें पे ड पौधे या झाड झंखाड नाम मात्र के ही थे । बस स्टै ण्ड से जब गाॅि की
तरि आओ तो लगभग दस ककलोमीटर के बाद बीच रास्ते में एक बडी सी नहर
पडती थी। कजसके बीच में एक पक्का पु ल बना हुआ था जो कक कािी पु राना था।

आस पास का सारा इलाका पथरीला था। बडी बडी चट्टाने थी। सडक के दोनो तरि
की सारी ़िमीनें पथरीली और बं जर थी। एक तरि के पहाड पर बार्क्ाइड था
कजसमें पहले के समय में यहाॅ से कािी सारा बार्क्ाइड टर कों में जाता था। एक बार
कुछ मजदू र पहाड के धसने से उसी में दब कर मर गए थे कजससे बडा बिाल हो गया
था। ठे केदार तो अपनी जान बचा कर िहाॅ से चं पत हो गया था। इसके बाद से िहाॅ
पर से बार्क्ाइड ले जाने का काम बं द करिा कदया गया था।

पहाड की दू सरी साइड पर एक अन्य सडक थी जो दू सरे गाॅि के कलए जाती थी।
उस पु ल को पार करने के बाद एक चौराहा कमलता था कजसमे से अलग अलग कदशा
में अलग अलग गाॅि की तरि जाने के कलए कच्ची सडक बनी हुई थी। हल्दीपु र
जाने के कलए सीधा ही जाना होता था। ककसी भी मोड से मुडने की ़िरूरत नही ं थी।
ले ककन अगर आप मुड भी गए हैं तो दू सरे गाॅि से भी आप एक अन्य कच्चे रास्ते से
हल्दीपु र जा सकते हैं। हल्दीपु र गाॅि आस पास के सभी गािों की मुख्य पं चायत था।
अन्य गाॅिों की अपे क्षा हल्दीपु र गाॅि में सु ख सु किधा ज्यादा थी और इस सब में
सबसे बडी बात ये थी कक आस पास के सभी गाॅिों का पु कलस थाना हल्दीपु र में ही
था। हल्दीपु र कहने के कलए गाॅि था िरना तो िो ककसी कस्बे जैसा ही था। बस
कस्बे की तरह थोडा शहरी ढाॅचे में ढला हुआ नही ं था।

बस स्टै ण्ड से लगभग बीस ककलोमीटर चलने के बाद टै र्क्ी से हम जैसे ही पु ल के


पास पहुॅचने िाले थे कक दू र से ही हमें सामने की तरि धूल उडाती हुई कुछ जीपें
हमारी तरि ही आती हुई कदखी ं। िो सब सीधे िाले रास्ते से ही आ रही थी ं। मु झे
समझते दे र न लगी कक ये सब जीपें असल में ककसकी हो सकती हैं। मेरी ऩिर पिन
पर पडी तो िो भी सामने ही दे ख रहा था। उसकी हालत डर और भय से खराब होने
लगी थी।

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"राज ये ये तो।" पिन ने सहमे हुए लहजे में कहा___"ये तो ते रे बडे पापा की ही जीपें
लगती हैं । लगता है उन्हें ते रे आने का पता चल गया है। मगर मगर कैसे ? कैसे पता
चल गया उन्हें ?"
"अब जो हो गया उसे छोड भाई।" मैने सामने की तरि दे ख कर कहा___"मु झे पता
है कक मेरे आने का कैसे पता चल गया होगा उस अजय कसं ह को? पर कोई बात नही ं
पिन। घबराने की कोई बात नही ं है। आने दे उन सबको। मैं भी तो दे खूॅ कक अजय
कसं ह और उसके आदकमयों में ककतना दम है?"

"क्ा हुआ भाई?" आकदत्य जो कक टै र्क्ी की ल्कखडकी से उस तरि के पहाडों को


दे ख रहा था, िो मेरी तरि पलट कर बोल पडा था___"ककसमे ककतना दम है?"
"सामने दे खो दोस्त।" मैने आकदत्य से कहा___"कजसका मु झे अं देशा था िही हुआ।"

"क्ा मतलब?" आकदत्य ने चौंकते हुए पू छा।


"ये जो सामने से कई सारी जीपें हमारी तरि आती हुई ऩिर आ रही हैं न।" मैने
कठोर भाि से कहा___"ये सब मेरे बडे पापा की ही हैं। इन सब में उनके आदमी हैं
और िो खु द भी हो सकते हैं । ये सब मुझे पकडने के कलए आ रहे हैं।"

"ओह इसका मतलब कक ऐक्शन का समय आ गया है।" आकदत्य एकदम से सतकग
भाि से कह उठा__"कचन्ता मत करना दोस्त। मेरे रहते इनमें से कोई तु म्हें छू भी नही ं
सकेगा।"
"मैं जानता हूॅ दोस्त।" मैने कहा__"मगर मैं ये भी नही ं चाहता कक तु म्हें ़िरा सी
खरोंच भी आए। आकखर तु म मेरे दोस्त हो अब।"

"मैं तु म जैसा दोस्त पा कर खु श हूॅ मेरे दोस्त।" आकदत्य ने सहसा भािपू र्ग लहजे में
कहा___"इस कलए मुझे अब ककसी भी ची़ि के कलए रोंकना मत। बहुत कदनों बाद
ककसी अपने के कलए कदल से कुछ करने का मौका कमला है।"
"किर भी दोस्त।" मैने आकदत्य के कंधे पर हाॅथ रखते हुए कहा___"मैं तु म्हें अकेले
कुछ नही ं करने दू ॅगा। बल्कि मैं भी तु म्हारे साथ ही इन सबका मुकाबला करूॅगा।"

"नही ं किराज।" आकदत्य बोला___"ये सब तु म्हारे बस का काम नही ं है। अगर तु म्हें मेरे
रहते कुछ हो गया तो मैं कभी भी अपने आपको मु आफ़ नही ं कर पाऊगा।"
"अपने इस दोस्त को इतना कम़िोर भी मत समझो भाई।" मैने मुस्कुरा कर
कहा__"अगर तु मसे ज्यादा नही ं हूॅ तो कम भी नही ं हूॅ।"

"क्ा मतलब??" आकदत्य ने नासमझने िाले भाि से पू छा था।


"यही कक थोडा बहुत माशग ल आट्ग स मैं भी जानता हूॅ।" मैने कहा__"और मु झे खु द

505
पर यकीन है कक मैं तु म्हारे साथ इन लोगों का डट कर मुकाबला कर सकता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दोस्त।" मेरी बात सु न कर आकदत्य ने कहा।


हम दोनो बात कर रहे थे जबकक मेरे बगल में बै ठा पिन सामने की तरि एकटक
दे खे जा रहा था। आकदत्य टै र्क्ी डर ाइिर के बगल िाली शीट पर बै ठा हुआ था। तभी
िो मेरे पीछे की तरि दे ख कर चौंका।

"अरे हमारे पीछे भी दो गाकडयाॅ लगी हुई हैं किराज।" आकदत्य ने कहा___"क्ा ये भी
तु म्हारे ही बडे पापा के आदमी हैं?"
"क्ाऽऽ???" मैने बु री तरह चौंकते हुए पीछे पलट कर दे खा, और पीछे आ रही दोनो
गाकडयों को ध्यान से दे खते हुए कहा__"ये तो कोई और ही हैं यार। पर हो सकता है
कक इसमे भी बडे पापा के ही आदमी हों।"

मेरे साथ साथ पिन ने भी पीछे मुड कर दे खा था। पीछे दे खने के बाद उसके चे हरे
पर तकनक राहत के भाि उभरे । ये बात मैने भी नोट की। मेरा माथा ठनका। इसका
मतलब पिन जानता है कक हमारे पीछे आ रही दोनो गाकडयाॅ ककसकी हैं। मेरे मन में
पिन से ये बात पू छने का खयाल तो आया मगर किर मैने तु रंत ही उससे पू छने का
अपना खयाल ़िहन से कनकाल कदया। मुझे पिन पर भरोसा था। िो मेरा बचपन का
सच्चा दोस्त था। मगर इस िक्त िो हमारे पीछे आ रही गाकडयों के बारे में जानते हुए
भी मु झे कुछ न बताया था। बल्कि राहत की साॅस ले कर िह आराम से बै ठ गया था।
मुझे समझ न आया कक एकदम से उसमें ऐसा बदलाि कैसे आ गया?

उधर पु ल को पार कर िो जीपें हमारे कािी ऩिदीक पहुॅच चु की थी। मेरी ऩिर
अचानक ही सामने बै ठे आकदत्य पर पडी। उसने अपने बै ग से एक ररिावर कनकाला
था। मतलब साि था कक आकदत्य हर तरह से चौकन्ना और चाकचौबं द ही था। दे खते
ही दे खते सामने से आ रही िो जीपें टै र्क्ी के बीस मीटर के िाॅसले पर आकर रुक
गईं। बीच सडक पर और सडक की पू री चौडाई पर दो जीपे इस तरह आकर खडी
हो गई थी कक अब सामने से टै र्क्ी कनकल नही ं सकती थी। उसके कलए डर ाइिर को
सडक के नीचे हिे से ढलान पर टै र्क्ी को उतारना पडता।

हमारे पीछे आ रही दोनो गाकडयाॅ भी टै र्क्ी के पीछे दस मीटर के िाॅसले पर


खडी हो गई थी। इधर सामने खडी जीपों के दरिाजे एक साथ एक झटके से खु ले
और उसमें से मेरे बडे पापा के कचरपररकचत आदमी बाहर कनकले । सबके हाॅथों में
लि थे । जीपों से उतर कर िो सब टै र्क्ी की तरि आने लगे। मैने दे खा कक बडे पापा
िहाॅ कही ं ऩिर नही ं आए मुझे। इसका मतलब उन्होंने इन लोगों को मुझे लाने के
कलए भे जा था।

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"पिन, तु म इस टै र्क्ी में आराम से बै ठे रहना।" मैने पिन से कहा__"और हाॅ कचन्ता
की कोई बात नही ं है। मैं और आकदत्य अभी इन लोगों से कनपट कर आते हैं। चलो
दोस्त।"
"चलो मैं तो एकदम से तै यार ही हूॅ।" आकदत्य ने कहा___"ले ककन एक समस्या है
यार।"

"समस्या?" मैने पू छा__"कैसी समस्या?"


"हमारे पीछे खडी गाकडयों में कौन हो सकता है?" आकदत्य ने कहा__"क्ा उसमें भी
दु श्मन ही हैं? ये जानना ़िरूरी है भाई। क्ोंकक िो पीछे से हम पर हमला करके हमें
नु कसान भी पहुॅचा सकते हैं ।"

"िो हम पर हमला नही ं करें गे दोस्त।" मैने एक ऩिर पिन पर डालने के बाद
कहा__"बल्कि मुझे लगता है कक िो लोग हमारी सु रक्षा के कलए हैं।"
"हमारी सु रक्षा के कलए?" आकदत्य के साथ साथ पिन भी चौंका था मेरी बात से ।
"हाॅ भाई।" मैने कहा___"पिन ने तो यही बोला है मु झसे ।"

"क्ा????" पिन बु री तरह हडबडा गया, बोला___"मैने ऐसा कब कहा तु झसे ?"
"यही तो ग़लत बात है न भाई।" मैने अजीब भाि से कहा___"कक तु मने कुछ कहा ही
नही ं। मगर मैं ते रे चे हरे से सब समझ गया हूॅ। तू बताना नही ं चाहता तो कोई बात
नही ं। चलो आकदत्य, िो टै र्क्ी के करीब ही आ गए हैं।"

मेरे कहते ही आकदत्य अपनी तरि का दरिाजा खोल कर टै र्क्ी से बाहर आ गया
और इधर मैं भी। पिन मूखों की तरह मुझे दे खता रह गया था। जब मैं उतरने लगा
तो उसने मु झे पकडने के कलए हाॅथ बढाया ़िरूर मगर मैं उसे बे किक्र रहने का कह
कर टै र्क्ी से बाहर आ गया। टै र्क्ी से उतर कर मैं और आकदत्य सामने की तरि बढ
चले ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हाल्किटल में!


ररतू समय से पहले ही हाल्किटल पहुॅच गई थी। हाल्किटल के बाहर हर तरि सादे
कपडों में पु कलस के आदमी तै नात कर कदये थे उसने । सबको शख्त आदे श था कक
कोई भी सं कदग्ध आदमी किराज को ककसी भी तरह का नु कसान न पहुॅचा सके। सब
कुछ ब्यिल्कथथत करने के बाद ही िह हाल्किटल के अं दर किधी के पास आ गई थी।
उसने किधी के माता कपता को भी िोन करके बु ला कलया था।

ररतू के कहने पर हाल्किटल की नसों ने किधी को एकदम से साि सु थरा करके नये

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कपडे पहना कदये थे । किधी के बार बार पू छने पर ही ररतू ने उसे बताया कक उसका
महबू ब उसका प्यार आज उसके पास आ रहा है। ररतू के मुख से ये बात सु न कर
किधी का मुरझाया हुआ चे हरा ताजे गुलाम की माकनं द ल्कखल उठा था मगर किर जाने
क्ा सोच कर उसकी ऑखें छलक पडी ं। ररतू उसकी भािनाओं और जज़्बातों को
बखू बी समझ सकती थी, कदाकचत यही िजह थी कक जैसे ही किधी की ऑखें छलकी ं
िै से ही ररतू ने उसे अपने सीने से लगा कलया था।

"हाय दीदी ये मेरे साथ क्ों हो गया?" किधी ने रोते हुए कहा___"मैने उस भगिान का
क्ा कबगाडा था जो उसने मेरी क़िदगी और मे री साॅसे कम कर दी? उसको ़िरा भी
मेरी खु कशयाॅ रास नही ं आईं। उसने मुझसे अपराध करिाया। मु झसे अपराध
करिाया कक मैने अपने प्यार को दु ख कदया और उसे खु द से दू र कर कदया। आज इस
हालत में मैं कैसे उसके सामने खु द को पे श करूॅगी? मैं जानती हूॅ कक िो मुझे इस
हाल में दे खेगा तो उसे मेरी इस हालत पर बहुत दु ख होगा। मैं उसे दु खी होते हुए नही ं
दे ख सकती दीदी। मु झसे ग़लती हो गई जो मै ने आपसे उसे बु लाने के कलए कहा। मैं
मर जाती तो उसे इसका पता ही नही ं चलता और ना ही उसे इस सबसे दु ख होता।
क्ा ऐसा नही ं हो सकता दीदी कक िो यहाॅ आए ही न? िापस िही ं लौट जाए जहाॅ
से िह आ रहा है।"

"ऐसी बातें मत कर पागल।" ररतू का हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कक इस


हाल में भी िो लडकी अपने महबू ब को खु श दे खना चाहती है, बोली___"कुछ मत
बोल तू । सब कुछ अच्छा ही होगा किधी और ये तो अच्छा ही हुआ जो तू ने मु झसे
किराज को बु लाने का कह कदया। तू नही ं जानती किधी कक ते रे कमलने से मु झे क्ा कमल
गया है। ते रा प्यार और ते रे प्यार की इस तडप ने मेरा समूचा अल्कस्तत्व ही बदल कदया
है। इसके कलए मैं ताऊम्र तक ते री आभारी रहूॅगी। मुझे दु ख है कक ते रे जैसी पाक़
कदल िाली लडकी को मैं ककसी भी तरह से बचा नही ं सकती। काश मेरे पास कोई
जादू की छडी होती कजससे मैं तु झे पल भर में ठीक कर दे ती और ते रे हाॅथों में ते रे
महबू ब का प्यार सौंप दे ती।"

"दीदी मेरे बाद आप मेरे राज का खयाल रल्कखएगा।" किधी ने कबलखते हुए
कहा__"उसे खू ब प्यार दीकजएगा। उसने अपने जीिन में कभी सु ख नही ं दे खा। उसके
अपनों ने उसे हर पल कसिग ददग कदया है। यहाॅ तक कक मैने भी उसे सबसे ज्यादा ददग
कदया है।"

"ऐसा मत कह किधी।" ररतू के अं दर हूक सी उठी थी, बोली__"ते रा हर शब्द मुझे


बे हद पीडा दे ता है। मैं चाहती हूॅ कक कजतना भी ते रे पास जीिन शे ष है उसे तू हसी
खु शी अपने महबू ब के साथ कजये। इस सं सार में जो भी आया है उसे एक कदन इस

508
दु कनयाॅ से सबको छोंड कर चले ही जाना है। यही सं सार का सबसे बडा सत्य है।
इस कलए किधी ये दु ख ये सं ताप अपने अं दर से कनकालने की कोकशश करो। तु मने
ककसी को कोई ददग नही ं कदया। ये सब तो इं सान के अपने भाग्य से कमलते हैं। कोई
ककसी को कुछ दे नही ं सकता। दे ने िाला कसिग ईश्वर है और ले ने िाला भी। खै र छोंड
ये सब बातें और चल मेरे साथ। उस कमरे में ते रे माॅम डै ड भी बै ठे हुए हैं।"

"आपने उन्हें क्ों बु ला कलया दीदी?" किधी ने ररतू के साथ चलते हुए कहा__"िो इस
सबके बारे में क्ा सोचें गे?"
"कुछ नही ं सोचें गे िो।" ररतू ने किधी को अपने एक हाथ से पकडे हुए कहा__"तु मने
कोई पाप नही ं ककया है। प्यार ही ककया है न, ये तो कुदरत की सबसे खास कनयामत
है। जब उन्हें ते रे प्यार की दास्तां पता चले गी तो यकीन मान िो भी ते रे इस पाक़ प्रे म
के सामने नतमस्तक हो जाएॅगे।"

"मुझे उनके सामने अपने महबू ब से कमलने में बहुत शमग आएगी दीदी।" किधी का
मुझाग या हुआ चे हरा एकाएक ही शमग की लाली से सु खग हो उठा था, बोली___"आप
प्ली़ि उन्हें उस िक्त ककसी दू सरे कमरे में या किर बाहर भे ज दीकजएगा।"

"तू भी न कबलकुल पागल है।" ररतू ने उसे रोंक कर उसके माॅथे पर प्यार से मगर
हिे से चू मते हुए कहा___"खै र, जैसा तु झे अच्छा लगे मैं िै सा ही करूॅगी। अब
खु श?"

ररतू की इस बात से किधी के मुझागए चे हरे पर हिी सी रं गत ऩिर आई और होठों


पर िीकी सी मु स्कान तै रती हुई कदखी। कुछ ही दे र में ररतू उसे हाल्किटल के एक
िेशल कमरे में ले आई और उसे बे ड पर आकहस्ता से ले टा कदया। कमरे में एक तरि
रखे सोिों पर किधी के माॅम डै ड बै ठे हुए थे । उनका चे हरा दे ख कर ही समझ आ
रहा था कक िो अकेले में खू ब रोए थे अपनी बे टी की इस हालत के कलए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

"कैसे हैं भीमा काका?" मैंने बडे पापा के एक आदमी को दे खते हुए कहा___"मु झे
ढू ढने में कोई परे शानी तो नही ं हुई न आपको?"
"ज्यादा शे खी मत झाड छोकरे ।" भीमा काका ने गुस्से से कहा___"िरना यही ं पर
क़िंदा गाड दू ॅगा समझे। शु कर कर कक मेरे माकलक का मु झे आदे श नही ं है िरना
पलक झपकते ही तू इस िक्त लाश में तब्दील हुआ यही ं पडा होता।"

"लगता है आपको अपने बाहुबल पर ़िरूरत से ज्यादा ही घमंड है।" मैने


कहा___"तभी तो आप अपने सामने ककसी को कुछ समझ ही नही ं रहे हैं ।"
"सही कहा छोकरे ।" भीमा ने कहा__"मु झे अपने बाहुबल पर घमंड तो होगा ही।

509
आकखर माकलक का मैं सबसे खास आदमी हूॅ।"

"तो क्ा आदे श कदया है आपके माकलक ने आपको?" मैने पू छा।


"यही कक तु झे घसीटते हुए यहाॅ से ले कर जाऊ।" भीमा कह रहा था___"और ले
जाकर उनके पै रों पर पटक दू ॅ।"
"बहुत खू ब।" मैं हसा___"तो किर खडे क्ों हो काका? मु झे घसीटते हुए यहाॅ से ले
चलो अपने माकलक के पास।"

"लगता है इस लडके को मरने की बडी जल्दी है भीमा।" भीमा के बगल से लि कलए


खडे एक अन्य आदमी ने हसते हुए कहा___"और शायद इसका भे जा भी किर गया
है। तभी तो ये अनाप शनाप बके जा रहा है। मैं तो कहता हूॅ ले चल इसे घसीटते
हुए।"

"सही कह रहा है तू मंगल।" भीमा काका ने उससे कहा___"जब ककसी की मौत


कनकट होती है न तो िो आदमी ऐसी ही मूखगतापू र्ग बातें करता है। खै र, पकड इसे ।
मैं इसके साथ आए इसके इस साथी को पकडता हूॅ।"

भीमा के कहने के साथ ही मंगल मेरी तरि बढा और भीमा आकदत्य की तरि। मंगल
ने जैसे ही मु झे पकडने के कलए अपना हाॅथ आगे बढाया िै से ही मैने कबजली की सी
िीड से उसका िो हाॅथ पकडा और उसकी तरि पीठ कर उसके हाथ को अपने
कंधे पर रख कर ़िोर का झटका कदया। कडकड की आिा़ि के साथ ही मंगल का
हाॅथ बीच से टू ट गया। हाॅथ टू टते ही मं गल हलाल होते बकरे की तरह चीखा।
जबकक उसका हाॅथ तोडने के बाद मैं पलटा और उसी िीड से उसके गंजे कसर को
दोनो हाॅथों से पकड कर शख्ती से एक तरि को झटक कदया। पररर्ामस्वरूप
मंगल की गदग न टू ट गई और उसकी जान उसके कजस्म से जुदा हो गई। उसका
बे जान हो चु का कजस्म लहराते हुए िही ं ़िमीन पर कगर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ
कक ककसी को कुछ समझ में ही नही ं आया कक पल भर में ये क्ा हो गया।

मेरी इस हरकत से आकदत्य जो भीमा की गदग न को अपने बाजु ओ ं में कसे झटके दे
रहा था िो चककत रह गया। उसने भी भीमा की गदग न को झटके दे कर तोड कदया था।
पलक झपकते ही दो हट्टे कट्टे आदकमयों को इस तरह मौत के मु ह में जाते दे ख
बाॅकी सब लोग पहले तो भौचक्के से रह गए किर जैसे उन्हें िस्तु ल्कथथत का एहसास
हुआ। सब के सब एक साथ हमारी तरि लि कलए दौड पडे ।

आकदत्य ने मेरी तरि दे खा, मैने भी उसकी तरि दे खा। ऑखों ऑखों में ही हमारी
बात हो गई। जैसे ही सामने से लि कलए िो लोग हमारे पास पहुॅचे िै से ही आगे के

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दो आदमी लि को पू री शल्कक्त से घु मा कर हम दोनो पर िार ककया। हम दोनो ही
झुक गए कजससे उनके लि का िार हमारे कसर से कनकल गया।

इससे पहले कक िो दोनो सम्हल पाते उनकी पीठ पर हम दोनो की फ्लाइं ग ककक
पडी। िो दोनो आदमी लि समेत ़िमीन की धू ल चाटने लगे। मैने एक आदमी के
कगरते ही उसके लि िाले हाथ में ़िोर से लात मारी। उसके हलक से चीख कनकल
गई। उसने लि छोंड कदया तो मैने जल्दी से उसका लि उठा कलया। यही कक्रया
आकदत्य ने भी की थी।

हम दोनो के हाॅथ में अब लि थी। उन दोनो के कगरते ही उनके पीछे आए बाॅकी के


आदमी भी हमारी तरि एक साथ दौड पडे । दे खते ही दे खते उन सब ने हम दोनो को
चारों तरि से घेर कलया। मैं और आकदत्य आपस में पीठ के बल जुड गए थे और घूम
रहे थे अपने थथान पर। उधर चारों तरि घूमते हुए उन सभी आदकमयों ने एक साथ
हम पर लि का िार ककया। मैने और आकदत्य ने तु रंत ही उनके िार को अपने अपने
लि से रोंका और पू री शल्कक्त से ऊपर की तरि झटका कदया। नतीजा ये हुआ कक
सब के सब इधर उधर लडखडा कर कगर पडे । उन लोगों के कगरते ही मैने और
आकदत्य ने उन्हें उठने का मौका नही ं कदया। हम दोनो ही उन सब पर कपल पडे । लि
के ़िोरदार िार उन सबके कजस्मों पर पडने लगे थे । िातािरर् में उन सबकी ददग में
डूबी हुई चीखें कनकलने लगी थी।

थोडी ही दे र में िो सब िही ं सडक पर पडे बु री तरह कराहे जा रहे थे । ककसी का कसर
िूटा, ककसी के हाॅथ टू टे तो ककसी के पै र। कहने का मतलब ये कक िो सब कुछ ही
दे र में अधमरी सी हालत में पहुॅच गए थे । तभी िातािरर् में हमे सामने की तरि
ककसी जीप के स्टाटग होने की आिा़ि सु नाई दी। हम दोनो ने सामने की तरि दे खा
तो सबसे पीछे की कतार में खडी जीप अपनी जगह से पीछे की तरि जाने लगी थी।

"लगता है उसमें कोई आदमी बचा हुआ है दोस्त।" आकदत्य ने सामने उस जीप की
तरि दे खते हुए कहा____"और िो इन सबका हाल दे ख कर यहाॅ से भागने की सोच
रहा है, बल्कि भाग ही रहा है िो।"
"िो यहाॅ से भागने न पाए दोस्त।" मैने कठोर भाि से कहा___"िनाग िो अजय कसं ह
को यहाॅ का सारा हाल बताएगा और अजय कसं ह किर से अपने कुछ आदकमयों को
भे जेगा या किर िो खु द हमें पकडने के कलए आ सकता है। मैं इस सबसे डर तो नही ं
रहा मगर इस िक्त मैं यहाॅ ककसी से लडने के उद्दे श्य से नही ं आया हूॅ बल्कि पिन
के बु लाने पर आया हूॅ। तु म समझ रहे हो न मेरी बात?"

"मैं समझ गया किराज।" आकदत्य ने अपनी कमर में जीन्स पर खोंसी हुई ररिावर

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को कनकालते हुए कहा___"तु म किकर मत करो। िो साला यहाॅ से क़िंदा िापस नही ं
जा सकेगा।"

इतना कहने के साथ ही आकदत्य ने ररिावर िाला हाॅथ ऊपर उठाया और कनशाना
साध कर सामने यू टनग ले चु की जीप के अगले िाले दाकहने टायर पर िायर कर
कदया। अचू क कनशाना था आकदत्य का। नतीजा ये हुआ कक टायर के िटते ही जीप
अनबै लेंस हो गई और िो सडक के ककनारे ढलान की तरि ते ़िी से बढी। ढलान में
उतरते ही कदाकचत डर ाइिर ने उसे जल्दी से मोड कर िापस सडक पर लाने की
कोकशश की थी, मगर ढलान पर बाएॅ साइड से अगले पकहये के उतर जाने से जीप
ढलान पर उलटती चली गई।

जीप को उलटती दे ख आकदत्य उस तरि को बढा ही था कक किर जाने क्ा सोच कर


िो रुक गया। मेरी तरि दे ख कर बोला__"तु म उसे दे खो, मैं इन लोगों का ककस्सा
खत्म करता हूॅ।"

मैं समझ गया कक आकदत्य मु झे इन लोगों के पास अकेला नही ं छोंडना चाहता था।
हलाॅकक अजय कसं ह के सभी आदमी इस िक्त सडक पर लहूलु हान हुए पडे कराह
रहे थे । उनमें से ककसी में अब उठने की शल्कक्त नही ं थी। मगर किर भी आकदत्य मु झे
उन सबके पास अकेला नही ं रहने दे ना चाहता था। इसी कलए उसने मु झे उस उलट
चु की जीप की तरि जाने का कहा था। िहाॅ पर तो िो कसिग एक डर ाइिर ही था।
मुझे आकदत्य की इस बात पर अं दर ही अं दर उसकी दोस्ती पर ना़ि हुआ। मैं उसकी
बात सु न कर उस तरि बढ गया कजस तरि िो जीप ढलान पर उलटती चली गई
थी।

उलटी हुई जीप के पास जब मैं पहुॅचा तो दे खा डर ाइिर िाले डोर पर नीचे की तरि
ढे र सारा खू न बहते हुए िही ं ़िमीन पर िैलता जा रहा था। मैने झुक कर दे खा
डर ाइिर मर चु का था। जीप के ऊपर लगे लोहे का एक सररया टू ट कर उसके कसर के
आर पार हो चु का था। उसी से खू न बहता हुआ नीचे ़िमीन पर िैलता जा रहा था।
जीप पू री की पू री उलट गई थी। उसके पकहये ऊपर की तरि थे और ऊपर का भाग
नीचे की तरि हो गया था।

डर ाइिर का ये हाल दे ख कर मैं िापस आकदत्य के पास आ गया। मैने आकदत्य को


डर ाइिर का हाल बता कदया। इधर आकदत्य ने ़िमीन पर कराह रहे सभी आदकमयों की
गदग नें तोड कर उन सबको यमलोक पहुॅचा चु का था।

"यार म़िा तो नही ं आया मगर खै र कोई बात नही ं।" मैने आकदत्य की तरि दे खते

512
हुए ककन्तु मुस्कुराते हुए कहा___"अब इन लाशों का क्ा करें ?"
"इन्हें यहाॅ खु ली जगह पर और सडक पर इस तरह छोंड कर जाना भी ठीक नही ं है
मेरे दोस्त।" आकदत्य ने कहा___"इससे मामला बहुत गंभीर हो सकता है। पु कलस इन
सबके क़ाकतलों को ढू ॅढने के कलए एडी से चोंटी तक का ़िोर लगा दे गी।"

"तो अब क्ा करें यार?" मैं एकाएक ही कचं ता में पड गया था, बोला___"इन लोगों को
कहाॅ ले जाएॅगे हम? दू सरी बात िो टै र्क्ी डर ाइिर भी इस सबका चश्मदीद गिाह
बन चु का है। ऐसे में यकीनन हम बहुत जल्द कानू न की कगरफ्त में आ सकते हैं।"

"िो सब हम लोग सम्हाल लें गे।" तभी ये िाक् पीछे से ककसी ने कहा था। मैं और
आकदत्य ये सु न कर चौंकते हुए पीछे की तरि पलटे । हमारे पीछे कुछ लोग खडे हुए
थे । मुझे समझते दे र न लगी कक ये सब िही लोग हैं जो हमारे पीछे आ रही गाकडयों
पर थे ।

"आप लोग कौन हैं?" मैने तकनक घबराते हुए एक से पू छा___"और ये आपने कैसे
कहा कक हम सब इन लोगों को सम्हाल लें गे? बात कुछ समझ में नही ं आई।"

मेरी बात सु न कर उस आदमी ने अपने शटग की ऊपरी जेब से एक आई काडग जैसा


कुछ कनकाला और हमारी तरि उसे कदखाते हुए बोला___"हम सब पु कलस िाले हैं
और आपके पीछे पीछे आपकी सु रक्षा के कलए ही लगे हुए थे ।"

मैं और आकदत्य उसकी ये बात सु न बु री तरह चौंक पडे थे । ये सच है कक उसकी ये


बात ऐसी थी कक कािी दे र तक हमारे पल्ले ही न पड सकी थी। मैं तो ये सोच कर
हैरान था कक ये सब पु कलस िाले हैं और इन लोगों ने हम दोनो को अजय कसं ह के
सभी आदकमयों का बे ददी से कत्ल करते हुए अपनी ऑखों से दे खा था। इसके
बािजूद ये लोग ये कह रहे हैं कक ये हमारी सु रक्षा के कलए ही हमारे पीछे लगे हुए थे ।
मेरे कदमाग़ की नशें तक ददग करने लगी ं ये सोचते हुए कक ये लोग हमारी सु रक्षा क्ों
कर रहे थे ? इनकी ऩिर में तो अब हम दोनो मुजररम ही बन चु के थे । इनकी ऑखों
के सामने ही तो हमने अजय कसं ह के सभी आदकमयों को जान से मारा था। उस सू रत
में तो इन लोगों हमें कगरफ्तार कर ले ना चाकहए। मगर नही,ं ये लोग तो ये कह रहे हैं
कक इन लाशों को ये सम्हाल लें गे। मु झे कुछ समझ में नही ं आ रहा था कक पु कलस िाले
भला ऐसा कैसे कह और कर सकते हैं? मैने आकदत्य की तरि दे खा तो उसका हाल
भी मु झसे जुदा न था। िो भी मेरी तरह हैरान परे शान सा उन सभी पु कलस िालों की
तरि इस तरह दे ख रहा था जैसे उन सबके कसर उनके धडों से कनकल कर ऊपर
हिा में कत्थक कर रहे हों।

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"बात कुछ समझ में नही ं आई।" मैने खु द को सम्हालते हुए अपने सामने खडे एक
पु कलस िाले से कहा___"आप पु कलस िाले हमारी सु रक्षा ककस िजह से कर रहे हैं और
ककसके कहने पर? इतना ही नही ं ये भी कह रहे हैं कक आप इन लाशों को सम्हाल
लें गे? जबकक आप लोगों को करना तो यही चाकहए कक ऐसे जघन्य हत्याकाण्ड के कलए
हमें तु रंत कगरफ्तार कर हिालात में बं द कर दें ।"

"िो सब छोंकडये।" मेरे सामने खडे एक पु कलस िाले ने कहा___"आप लोग यहाॅ से
आगे बकढये, ये सोच कर कक यहाॅ कुछ हुआ ही नही ं है। हमने आपके टै र्क्ी डर ाइिर
को भी समझा कदया है। िो इस मामले में अपना मुख ककसी के सामने जीिन भर नही ं
खोले गा। आपके पीछे कुछ दू री के िाॅसले पर हमारे कुछ आदमी आपकी सु रक्षा में
उसी तरह लगे रहेंगे जैसे अब तक लगे हुए थे ।"

"ये तो बडी ही हैरतअं गेज बात है।" मैं उसकी इस बात से चककत होकर
बोला___"कैसे पु कलस िाले हैं आप लोग कक इतना कुछ होने के बाद भी आप हमें
कगरफ्तार करने की बजाय यहाॅ से बडे आराम से चले जाने का कह रहे हैं? ऊपर से
हमारी सु रक्षा के कलए आप अपने पु कलस के कुछ आदकमयों को भी हमारे पीछे लगा
रहे हैं।"

"इस बारे में आप ज्यादा सोच किचार मत कीकजए।" पु कलस िाले ने कहा___"अब आप
ज्यादा दे र मत कीकजए और बे किक्र होकर यहाॅ से गाॅि जाइये।"

इतना कह कर िो पु कलस िाला पलट गया। उसके साथ बाॅकी के पु कलस िाले भी
पलट गए थे । जबकक हैरान परे शान हम दोनो उन्हें मूखों की तरह दे खते रह गए।
साला कदमाग़ का दही हो गया मगर पु कलस िालों का ये रिै या हमारी समझ में ़िरा भी
न आ सका था।

"किराज भाई।" उन लोगों के जाते ही आकदत्य कह उठा___"मैने अपनी इतनी बडी


लाइि में ऐसे किकचत्र ककस्म के पु कलस िाले आज तक नही ं दे खे। मतलब कक____यार
क्ा कहूॅ अब? मु झे तो कुछ समझ में ही नही ं आ रहा।"
"सही कह रहे हो दोस्त।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"ये तो हद से भी ज्यादा िाला
अं धेर हो गया। खै र जाने दो, हमारे तो हक़ में ही है न? अच्छा ही हुआ, िरना अगर ये
लोग हमें इस सबके कलए कगरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे डाल दे ते तो बडी
गंभीर समस्या हो जाती हमारे कलए।"

"हाॅ यार।" आकदत्य ने कहा___"ले ककन ये बात ऐसी है कक कुछ कदन तक ही क्ा
साला जीिन भर हमारे ़िहन में ककसी सपग की भाॅकत कुण्डली मार कर बै ठी रहेगी।

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हम जीिन भर इस सबके बारे में सोचते रहेंगे मगर इस सबका कारर् हमें समझ में
ही नही ं आएगा।"

"आएगा दोस्त।" मैने पू िगत सोचते हुए ही कहा___"इस सबका कारर् ़िरूर समझ में
आएगा और बहुत जल्द आएगा। किलहाल तो हमें यहाॅ से कनकलना ही चाकहए।"
"कबलकुल।" आकदत्य ने कहा___"चलो चलते हैं । ले ककन यार सामने जाने का रास्ता
तो बं द है। हमें सबसे पहले ये सारी जीपें सामने के रास्ते से हटानी पडें गी।"

"हाॅ तो चलो हटा दे ते हैं ।" मैने कहा__"उसमे क्ा है।"


मेरे इतना कहते ही आकदत्य मेरे साथ चल पडा। कुछ ही दे र में हमने उन जीपों को
रास्ते से हटा कदया। इस काम में एक दो पु कलस िाले भी हमारी मदद करने के कलए
आ गए थे । सभी जीपों को रास्ते से हटाने के बाद मैने और आकदत्य ने एक काम और
ककया। िो ये कक उन सभी जीपों के टायरों से हिा कनकाल दी। उसके बाद हम दोनो
आकर टै र्क्ी में बै ठ गए।

टै र्क्ी में आकर मैने दे खा कक पिन ककसी और ही दु कनयाॅ में खोया हुआ एकदम
शान्त बै ठा था। उसके चे हरे पर आश्चयग का सागर किद्यमान था। मैने उसे उसके कंधों
से पकड कर कहलाया, तब जाकर उसकी चे तना लौटी। चे तना लौटते ही िो मेरी तरि
अजीब भाि से दे खने लगा। अभी भी उसके चे हरे पर गहन हैरत के भाि थे ।

"ऐसे दीदें िाड कर क्ा दे ख रहा है?" मैने मु स्कुराते हुए कहा उससे ।
"ये ये सब क्ा था?" उसके मुख से अजीब सी आिा़ि कनकली___"ये तु म दोनो ने क्ा
और कैसे कर कदया? सबको मार कदया तु म दोनो ने । तु झे पता है ये बात जब ते रे बडे
पापा को पता चले गी तो क्ा होगा?"

"कुछ नही ं होगा भाई।" मैने कहा___"और अगर कुछ होगा भी तो िो ये होगा कक उस
अजय कसं ह की गाॅड िट के उसके हाॅथ में आ जाएगी समझा। खु द को बहुत बडा
सू रमा समझने िाले अजय कसं ह को जब अपने आदकमयों के बारे में ऐसी खबर
कमले गी तो उस समय उसकी हालत क्ा होगी इस बात का अं दा़िा लगा कर दे ख
भाई।"

"तू मेरा िही यार है या ते री जगह ते रा चोला पहन कर कोई और आ गया है?" पिन
ने चककत भाि से कहा था, बोला___"मेरा दोस्त इतना खतरनाक तो नही ं था। कजस
तरह तू ने एक ही झटके में अजय कसं ह के मु स्टंडे आदकमयों का कक्रया कमग कर कदया
है न उससे तो यही लगता है कक तू मेरा िो यार नही ं हो सकता।"

"मैं ते रा िही यार हूॅ भाई।" मैने कहा__"बस समय बदल गया है। इस कलए समय के

515
साथ साथ मैने खु द की भी बदल कलया है। मगर यकीन रख, मेरा ये बदलाि कसिग
उनके कलए है कजन्होंने मु झ पर और मेरे माॅ बहन पर अत्याचार ककया है। अपने
अ़िी़िों के कलए तो मैं आज भी िही हूॅ जैसा पहले हुआ करता था। खै र छोंड ये सब,
ये बता कक हमारे पीछे आ रहे ये पु कलस िालों का क्ा चक्कर है? ये लोग मेरी सु रक्षा
की बात क्ों कर रहे थे मु झसे ? और तो और इन लोगों ने तो हमे कगरफ्तार भी नही ं
ककया जबकक मैंने और आकदत्य ने अजय कसं ह के सभी आदकमयों को उनकी ऑखों
के सामने उन सबको जान से मार कदया है? ये सब क्ा चक्कर है भाई? दे ख मु झसे
कोई बात मत कछपा तू । जो भी बात है उसे साि साि बता दे मु झे। आकखर ऐसी क्ा
िजह थी कजसके कलए तू ने मुझे इस तरह यहाॅ आने को कहा था?"

"अब जब तू यहाॅ आ ही गया है तो थोडा और इन्त़िार कर ले मेरे यार।" पिन ने


कहने के साथ ही अपना चे हरा अपनी तरि के दरिाजे की ल्कखडकी की तरि िेर
कलया, किर बोला___"मैं अपने मुख से तु झे कुछ नही ं बता सकता और ना ही िो सब
बताने की मुझमें कहम्मत है। कुछ समय तक और धीरज रख ले , उसके बाद सब कुछ
पता चल जाएगा तु झे।"

पिन ये बातें सु न कर मैं उसे अजीब भाि से दे खता रह गया था। मु झे समझ नही ं आ
रहा था कक ऐसी क्ा बात है कजसे मेरा दोस्त इस हद तक मुझसे कछपा रहा है? मेरे
कदलो कदमाग़ में अनकगनत आशं काएॅ उत्पन्न हो गई थी। पिन अभी भी ल्कखडकी के
उस पार दे ख रहा था। उस िक्त तो मैं चौंक ही पडा जब पिन ने बडी सिाई से
अपनी ऑखों से ऑसू पोछने की कक्रया की थी। ये दे ख कर मेरे अं दर बडी ते ़िी से
कचं ता और बे चैनी बढती चली गई। सहसा मेरी ऑखों के सामने अभय चाचा के बीिी
बच्चों का चे हरा नाच गया। मेरे मल्कस्तष्क में जै से किष्फोट सा हुआ। मन में एक ही
खयाल उभरा कक छोटी चाची और उनके बच्चों के साथ कोई ऐसी बात तो नही ं हो
गई जो कक नही ं होनी चाकहए थी। ले ककन किर मेरे मन में सिाल भरा कक इस बात को
बताने में भला पिन को क्ा परे शानी हो सकती है? इसका मतलब मामला कुछ और
ही है। मगर ऐसा क्ा मामला हो सकता है?

मैंने इस बारे बहुत सोचा मगर मु झे कुछ समझ न आया। अं त में थक हार कर मैने
अपने ़िहन से ये सब बातें झटक दी, ये सोच कर कक कुछ समय बाद सब कुछ पता
तो चल ही जाएगा। पिन ने तो बार बार यही कहा था मु झसे । मैने एक बार पलट कर
पीछे की तरि दे खा। हमारे पीछे पु कलस िालों की एक गाडी कुछ िाॅसले पर लगी
हुई आ रही थी। उन लोगों को दे ख कर एक बार किर से मेरे मन में उनके बारे में ढे रों
सिाल चकरा उठे । आकखर ये पु कलस िाले मेरी सु रक्षा में क्ों लगे हुए हैं और ककसने
कहा होगा इन्हें ऐसा करने के कलए? सोचते सोचते मेरा कसर ददग करने लगा तो मैने
उनके बारे में सोचने का काम भी बं द कर कदया।

516
अभी मैं ररलै र्क् होकर बै ठा ही था कक एकाएक मेरे मल्कस्तष्क में धमाका हुआ। धमाके
का गुबार जब छटा तो एक चे हरा ऩिर आया मुझे। िो चे हरा था ररतू दीदी का। िो
भी तो पु कलस िाली थी। तो क्ा उन्होंने इन लोगों को मेरी सु रक्षा के कलए भे जा है?
नही ं नही ं हकगग़ि नही ं, िो भला ऐसा कैसे कर सकती हैं? मैं भला उनका लगता ही
क्ा हूॅ? आज तक कभी कजसने मु झे अपना भाई नही ं माना और ना ही मु झसे कभी
बात करना पसं द ककया। िो भला मेरी सु रक्षा की कचं ता क्ों करें गी? ये तो सू यग दे िता
के पकश्चम कदशा से उदय होने िाली बात है, जो कक कनहायत ही असं भि बात है। तो
किर और क्ा िजह हो सकती है? सहमा मु झे ध्यान आया कक मैं एक बार किर से
इन सब बातों पर अपना माथा पच्ची करने में लग गया हूॅ। इस खयाल के आते ही
मैने किर से अपने ़िहन से इन सब बातों को झटक कदया और किर आराम से
ररलै र्क् होकर बै ठ गया। मगर मैने महसू स ककया कक ररलै र्क् होना इस िक्त मेरे बस
में ही नही ं था। क्ोंकक मेरे मन में किर से तरह तरह के सोच किचार चलने लगे ।

लगभग दस कमनट बाद ही हल्दीपु र गाॅि ऩिर आने लगा था हमें और किर कुछ ही
दे र में हम गाॅि में दाल्कखल हो गए। पिन के कनदे श पर टै र्क्ी डर ाइिर ने टै र्क्ी को
पिन के घर की तरि जाने िाली गली में मोड कदया था। जबकक हमारी हिे ली उिर
की तरि थी।

कुछ ही दे र में हम पिन के घर के पास पहुॅच गए। गकमग यों का समय तो नही ं था
मगर इस िक्त आस पास ककसी भी घर के पास कोई इं सानी जीि कदख नही ं रहा था।
हलाॅकक गाॅि में जब हम दाल्कखल हुए थे तो दाएॅ तरि एक चौपाल पर कुछ लोगों
को बै ठे दे खा था हमने । मैने सबसे ़िरूरी काम ये ककया था कक गाॅि में दाल्कखल होने
से पहले ही अपने चे हरे को रुमाल से ढक कलया था। ताकक गाि का कोई ब्यल्कक्त मुझे
ककसी तरह से पहचान न सके।

पिन के घर के सामने टै र्क्ी रुकी तो डर ाइिर को छोंड कर हम तीनों जल्दी से टै र्क्ी


से बाहर कनकले और अपना अपना बै ग ले कर पिन के घर के अं दर आ गए। टै र्क्ी
डर ाइिर को मैने उसकी टै र्क्ी का भाडा पहले ही दे कदया था और उसे समझा भी
कदया था कक हम लोगों के उतरते ही िो िापस कबजली की िीड से चला जाएगा।
अगर यहाॅ कही ं कोई टै र्क्ी रुकिाए तो िो रोंके नही ं। िरना िो खु द बहुत बडी
मुसीबत में िस जाएगा।

टै र्क्ी डर ाइिर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कक िो हमसे पै सा भी नही ं ले रहा था।
एक ही बात बोल रहा था कक हम उसे जाने दें । िो हमारी कोई भी बात कभी भी
ककसी से नही ं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कक डरने की कोई ़िरूरत नही ं है।

517
खै र, हम लोगों को उतार कर उसने टै र्क्ी को िही ं पर ककसी तरह बै क करके िापसी
के कलए मोडा और िहाॅ से चं पत हो गया। मु झे यकीन था कक िो रास्ते में कही ं भी
रुकने िाला नही ं था।

पिन के घर के अं दर जैसे ही हम तीनो आए तो पिन ने जल्दी से घर का मुख्य


दरिाजा बं द कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पिन कसं ह मेरे बचपन का दोस्त था।
ग़रीब था और कबना बाप का था। उससे बडी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी
मुहबोली बहन थी। िो मु झे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक
उसकी शादी नही ं हो सकी थी। इसकी िजह ये थी कक पिन के पास रुपये पै से की
तं गी थी। आजकल लोग दहे ज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पिन की माॅ
बयाकलस साल की किधिा औरत थी। ककन्तु स्वभाि से बहुत अच्छी थी। िो मु झे अपने
बे टे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बै ठक में पहुॅचे और िहाॅ एक तरि ककनारे पर रखी एक


चारपाई पर बै ठ गए। जबकक पिन अं दर की तरि चला गया था। आकदत्य इधर उधर
बडे ग़ौर से दे ख रहा था। कदाकचत ये दे ख रहा था कक यहाॅ गाॅि में कच्चे खपरै लों
िाले मकान बने हुए थे । जबकक उसने आज तक ऐसे मकान कसिग किल्ों में ही दे खे
होंगे कभी।

अपडे ट........《 44 》

अब तक,,,,,,,

टै र्क्ी डर ाइिर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कक िो हमसे पै सा भी नही ं ले रहा था।
एक ही बात बोल रहा था कक हम उसे जाने दें । िो हमारी कोई भी बात कभी भी
ककसी से नही ं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कक डरने की कोई ़िरूरत नही ं है।
खै र, हम लोगों को उतार कर उसने टै र्क्ी को िही ं पर ककसी तरह बै क करके िापसी
के कलए मोडा और िहाॅ से चं पत हो गया। मु झे यकीन था कक िो रास्ते में कही ं भी
रुकने िाला नही ं था।

पिन के घर के अं दर जैसे ही हम तीनो आए तो पिन ने जल्दी से घर का मुख्य


दरिाजा बं द कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पिन कसं ह मेरे बचपन का दोस्त था।

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ग़रीब था और कबना बाप का था। उससे बडी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी
मुहबोली बहन थी। िो मु झे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक
उसकी शादी नही ं हो सकी थी। इसकी िजह ये थी कक पिन के पास रुपये पै से की
तं गी थी। आजकल लोग दहे ज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पिन की माॅ
बयाकलस साल की किधिा औरत थी। ककन्तु स्वभाि से बहुत अच्छी थी। िो मु झे अपने
बे टे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बै ठक में पहुॅचे और िहाॅ एक तरि ककनारे पर रखी एक


चारपाई पर बै ठ गए। जबकक पिन अं दर की तरि चला गया था। आकदत्य इधर उधर
बडे ग़ौर से दे ख रहा था। कदाकचत ये दे ख रहा था कक यहाॅ गाॅि में कच्चे खपरै लों
िाले मकान बने हुए थे । जबकक उसने आज तक ऐसे मकान कसिग किल्ों में ही दे खे
होंगे कभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उधर अजय कसं ह, प्रकतमा और कशिा अपने नये िामगहाउस में पहुॅच चु के थे । तीनों
के चे हरे ल्कखले हुए थे । ये सोच कर कक बहुत कदनों बाद कुछ अच्छा सु नने को कमला था
उन्हें । कजनकी तलाश में खु द अजय कसं ह और उसके आदमी जाने कहाॅ कहाॅ
भटक रहे थे िो खु द ही चल कर यहाॅ आया और उसके आदकमयों के द्वारा बहुत
जल्द उसे पकड कर उसके सामने उसे हाक़िर कर कदया जाएगा। उसके बाद िो जैसे
चाहेगा िै से किराज के साथ सु लूक कर सकेगा।

"डै ड मैने तो सोच कलया है कक मैं क्ा क्ा करूॅगा?" िामग हाउस के अं दर
डर ाइं गरूम में रखे सोिे पर बै ठे कशिा ने कहा___"उस किराज के हाथ लगते ही
बाॅकी के जब सब भी हमारे पास आ जाएॅगे तब मैं अपनी मनपसं द ची़िों का जी
भर के म़िा लू टूॅगा। सबसे पहले तो उस हराम़िादी करुर्ा को पे लूॅगा िो भी
उसके पकत के सामने । उसी की िजह से चाचा ने मु झे कुिे की तरह धोया था। इस
िामग हाउस पर सब औरतों और उनकी लडककयों को नं गा करूॅगा मैं।"

"कचं ता मत करो बे टे।" अजय कसं ह ने कशगार को सु लगाते हुए कहा___"जो कुछ तू
सोचे बै ठा है न िही सब मैने भी सोचा हुआ है। बहुत तरसाया है इन लोगों ने मुझे।
सबसे ज्यादा उस कमीनी गौरी ने । पता नही ं क्ों पर उससे कदल लग गया था बे टा।
मैं चाहता था कक िो अपने मन से अपना सब कुछ मुझे सौंप दे , इसी कलए तो कभी
उसके साथ ़िोर ़िबरदस्ती नही ं की थी मैने। मगर अब नही ं। अब तो बलात्कार होगा
बे टे। ऐसा बलात्कार कक दु कनयाॅ में उसके बारे में ककसी ने ना तो सोचा होगा और ना

519
ही सु ना होगा कही ं। इस िामग हाउस में उन दोनो औरतों को और उन दोनो लडककयों
को जन्मजात नं गी करके दौडाऊगा।"

"अभी दो लडककयों को आप भू ल रहे हैं डै ड।" कशिा ने कमीनी मु स्कान के साथ


कहा___"आपकी दोनो लडककयाॅ और मेरी प्यारी प्यारी मगर मदमस्त बहनें ।"
"उनका नं बर भी आएगा बे टे।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली___"मगर इन लोगों के
बाद। पहले इन लोगों के साथ तो म़िे कर लें । इन सबको इतना बजाएॅगे कक सब
की सब साली पनाह माॅग जाएॅगी। उसके बाद इन सबको रं कडयों के बा़िार में ले
जाकर मुफ़्त में बें च दें गे।"

"ये सही सोचा है डै ड।" कशिा ने ठहाका लगाते हुए कहा___"रं कडयों के बा़िार में
बें चने से ये सब जीिन भर लोगों को म़िा दे ती रहेंगी। ले ककन डै ड मेरी बहनों को मत
बें च दे ना। िो कसिग हमारी रं कडयाॅ बन कर रहेंगी जीिन भर। हम दोनो ही उनके
सब कुछ रहेंगे।"

"सही कहा बे टे।" अजय कसं ह ने कहा__"हम अपनी बे कटयों को नही ं बे चेंगे। िो तो
हमारी ही रं कडयाॅ बन कर रहें गी अपनी माॅ के साथ। क्ा कहती हो डाकलिं ग?"

अं कतम िाक् अजय कसं ह ने चु पचाप बै ठी प्रकतमा को दे ख कर कहा था। प्रकतमा जो


इतनी दे र से बाप बे टे की बातें सु न कर मन ही मन हैरान और चककत हो रही थी िो
अचानक ही अजय कसं ह के इस प्रकार कहने पर चौंक पडी थी। तु रंत उससे कुछ
कहते न बन पडा था। बल्कि अजीब भाि से िो दोनो बाप बे टों को दे खती रह गई थी।
ये दे ख कर अजय कसं ह और कशिा दोनो ही ठहाका लगा कर हस पडे थे ।

"क्ा हुआ प्रकतमा?" अजय कसं ह हसने के बाद बोला___"ककन खयालों में गु म हो भई?
हमारी बातों पर ध्यान नही ं है क्ा तु म्हारा?"
"मैं तु म दोनो की तरह खयाली पु लाि नही ं बनाती अजय।" प्रकतमा ने खु द को
सम्हालते हुए कहा___"मु झे इस सबमें खु शी तब होगी जब ऐसा सचमुच में होता हुआ
अपनी ऑखों से दे खूॅगी।"

"अरे ़िरूर दे खोगी मेरी जान।" अजय कसं ह ने हसते हुए कहा___"और बहुत जल्द
दे खोगी। बस कुछ ही दे र की बात है। मेरे आदमी उस हराम के कपल्ले को घसीटते
हुए लाते ही होंगे। उसके आने के बाद उसके बाॅकी चाहने िालों को भी बहुत जल्द
आना पडे गा मेरे पास।"

"इसी कलए तो चु पचाप उसके आने के इन्त़िार में बै ठी हूॅ मैं।" प्रकतमा ने
कहा___"़िरा िोन करके पता तो करो कक तु म्हारे आदमी उसे कलये कहाॅ तक

520
पहुॅचे हैं अभी? अपने आदकमयों से कहो कक ़िरा जल्दी आएॅ यहाॅ।"

"जो हुकुम डाकलिं ग।" अजय कसं ह ने कशगार को ऐश टर े में मसलते हुए कहा___"मैं
अभी भीमा को िोन करता हूॅ और उसे बोलता हूॅ कक भाई जल्दी ले कर आ उस
हराम़िादे को।"

कहने के साथ ही अजय कसं ह ने अपने कोट की जेब से मोबाइल कनकाला और उस


पर भीमा का नं बर डायल कर मोबाइल को कान से लगा कलया। मगर उसे अपने
कान में ये िाक् सु नाई कदया कक___"आपने कजस एयरटे ल नं बर पर िोन लगाया है
िो इस िक्त उपलब्ध नही ं है या अभी बं द है।"

ये िाक् सु नते ही अजय कसं ह का कदमाग़ घूम गया। उसने काल को कट करके किर
ररडायल कर कदया मगर किर से उसे कानो में िही िाक् सु नाई कदया। अजय कसं ह
कई बार भीमा के नं बर पर िोन लगाया मगर हर बार िही िाक् सु नने को कमला
उसे ।

"क्ा हुआ डै ड?" कशिा जो अजय कसं ह की ही तरि दे ख रहा था बोल उठा___"क्ा
भीमा का नं बर नही ं लग रहा?"
"हाॅ बे टे।" अजय कसं ह ने सहसा कठोर भाि से कहा___"इन सालों को कभी अकल
नही ं आएगी। ऐसे समय में भी साले ने िोन बं द करके रखा हुआ है।"

"तो ककसी दू सरे आदमी को िोन लगा कर पता कीकजए डै ड।" कशिा ने मानो ज्ञान
कदया।
"हाॅ िही कर रहा हूॅ।" अजय कसं ह ने नं बरों की कलस्ट में मंगल का नं बर खोज कर
उसे डायल करते हुए कहा।

मंगल का नं बर डायल करने के बाद उसने मोबाइल को कान से लगा कलया। मगर
इस नं बर पर भी िही िाक् सु नने को कमला उसे । अब अजय कसं ह का भे जा गरम हो
गया। किर जैसे उसने खु द के गुस्से को सम्हाला और अपने ककसी अन्य आदमी का
नं बर डायल ककया। मगर पररर्ाम िही ढाक के तीन पात िाला। कहने का मतलब ये
कक अजय कसं ह ने एक एक करके अपने सभी आदकमयों का नं बर डायल ककया मगर
सबक सब नं बर या तो उपलब्ध नही ं थे या किर बं द थे ।

अजय कसं ह को इस बात ने हैरान कर कदया और िह सोचने पर मजबू र हो गया कक


ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो उसे भी पता था कक उसके आदमी इतने लापरिाह हो
ही नही ं सकते क्ोंकक सब उससे बे हद डरते भी थे । ककन्तु इस िक्त सभी के नं बर
बं द होने की िजह से उसका माथा ठनका। मन में एक ही किचार आया कक कुछ तो

521
गडबड है। ककसी गडबडी के अं देशे ने अजय कसं ह को एकाएक ही कचं ता और
परे शानी में डाल कदया।

"क्ा बात है अजय?" सहसा प्रकतमा उसके चे हरे के बदलते भािों को दे खते हुए बोल
पडी___"ये अचानक तु म्हारे चे हरे पर कचन्ता ि परे शानी के भाि कैसे उभर आए?"
"बडी हैरत की बात है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"मैने एक एक करके अपने
सभी आदकमयों को िोन लगा कर दे ख कलया, मगर उनमें से ककसी का भी िोन नही ं
लग रहा। सबके सब बं द बता रहे हैं। इसका क्ा मतलब हो सकता है?"

"ऐसा कैसे हो सकता है डै ड?" कशिा ने भी हैरानी से कहा___"एक साथ सबके िोन
कैसे बं द हो सकते हैं? कुछ तो बात ़िरूर है। हमें जल्द से जल्द इस सबका पता
लगाना चाकहए डै ड।"

"कशिा सही कह रहा है अजय।" प्रकतमा ने कहा___"हमारे आदमी इतने लापरिाह


नही ं हो सकते कक ऐसे माहौल में िो सब अपना िोन ही बं द कर लें । ़िरूर कोई बात
हुई है। िरना अब तक तो उनमें से ककसी ने तु म्हें िोन करके ये ़िरूर बताया होता
कक उन लोगों ने किराज को अपने कब्जे में ले कलया है और अब िो सीधा यही ं आ रहे
हैं। मगर ऐसा कुछ नही ं हुआ अब तक। इसका मतलब साि है कक कोई गंभीर बात
हो गई है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" अजय कसं ह ने कचं कतत भाि से कहा___"कोई तो बात हुई
है। मगर सिाल ये है कक ऐसी क्ा बात हो सकती है भला? उन पर ककसी प्रकार के
सं कट के आने का सिाल ही नही ं है क्ोंकक िो खु द भी कई सारे एक साथ थे और
खु द दू सरों के कलए सं कट ही थे ।"

"असकलयत का पता तो तभी चले गा अजय जब तु म इस सबका पता करने यहाॅ से


जाओगे।" प्रकतमा ने कहा___"यहाॅ पर बातों में समय गिाॅने का कोई मतलब नही ं
है।"
"माॅम ठीक कह रही हैं डै ड।" कशिा ने कहा__"हमें तु रंत ही इस सबका पता लगाने
के कलए यहाॅ से कनकलना चाकहए। िरना कही ं ऐसा न हो कक हम कजस सु नहरे मौके
की बात कर रहे थे िो हमारे हाॅथ से कनकल जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट।" अजय कसं ह ने कहा__"चलो चल कर दे खते हैं कक क्ा


बात हो गई है?"
"तु म दोनो जाओ।" प्रकतमा ने कहा__"मैं यही ं पर तु म दोनो का इं त़िार करूॅगी।"

प्रकतमा की बात खत्म होते ही दोनो बाप बे टे सोिों से उठ कर बाहर की तरि चल

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कदये। बाहर आकर अजय कसं ह अपनी कार का डर ाइकिं ग डोर खोल कर उसमें बै ठ
गया, जबकक कशिा उसके बगल िाली शीट पर बै ठ गया। कार को स्टाटग कर अजय
कसं ह ने कार को झटके से आगे बढा कदया। उसकी कार ऑधी तू िान बनी सडकों पर
घूमने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर पिन के घर में मैं और आकदत्य नहा धो कर िेश हो गए थे और अब हम सब


खाना खाने के कलए बै ठे हुए थे । पिन ने अपनी माॅ और बहन दोनो की मेरे आने का
पहले ही बता कदया था। बस ये नही ं बताया था कक उसने मु झे यहाॅ ककस कलए बु लाया
था? उनसे यही कहा था कक मैं बस घूमने आया हूॅ।

पिन की माॅ को मैं भी माॅ ही बोलता था शु रू से ही। मेरी ऩिर में माॅ से बडा
और पकित्र ररश्ा कोई नही ं हो सकता था। िो मुझे शु रू से ही बहुत चाहती थी और
प्यार ि स्नेह दे ती थी ं। पिन की बहन आशा दीदी मुझसे और पिन से उमर में बडी
थी। उनका स्वभाि कपछले कुछ सालों तक हस मुख और चं चल था ककन्तु अब िो
ज्यादा ककसी से बात नही ं करती थी। उनके चे हरे पर हर िक्त गंभीरता किद्यमान
रहती थी। इसकी िजह समझना कोई बडी बात नही ं थी। हर कोई समझ सकता था
कक उनके स्वभाि में ये तब्दीली ककस िजह से आई हुई थी।

खाना पीना से िुसग त होकर हम सब बाहर बै ठक में आ गए। मेरे मन में इस िक्त
कुछ और ही चल रहा था। इस कलए मैं बै ठक से उठ कर अं दर माॅ के पास चला
गया। मैने दे खा माॅ और आशा दीदी हम लोगों की खाई हुई थाकलयाॅ ऑगन में एक
जगह रख रही थी।

मुझे ऑगन में आया दे ख माॅ के होठों पर मु स्कान आ गई। आशा दीदी भी मु झे दे ख
कर हिा सा मु स्कुराई। किर िो िही ं पर बै ठ कर थाकलयाॅ धोने लगी। जबकक माॅ
मेरे पास आ गईं।

"चल आजा मेरे साथ।" माॅ एक तरि को बढती हुई बोली___"मु झे पता है तु झे मेरी
गोंद में कसर रख कर सोना है। ककतना समय हो गया मैने भी तु झे िै सा प्यार और स्ने ह
नही ं कदया। िक्त और हालात ऐसे बदल जाएॅगे ऐसा कभी ख्वाब में भी नही ं सोचा
था। बु रे लोगों का एक कदन ़िरूर नाश होता है बे टा। बस थोडा समय लग जाता है ।
अजय कसं ह को उसके बु रे कमों की स़िा ईश्वर ़िरूर दे गा।"

माॅ ये सब बडबडाती हुई अं दर कमरे मे आ गईं। मैं भी उनके पीछे पीछे आ गया
था। कमरे में रखी चारपाई पर माॅ पालथी मार कर बै ठ गईं और किर मेरी तरि
दे ख कर मुझे अपने पास आने का इशारा ककया। मैं खु शी से उनके पास गया और

523
चारपाई के नीचे ही उकडू बै ठ कर अपना कसर उनकी गोंद में रख कदया।

"अरे नीचे क्ों बै ठ गया बे टे?" माॅ ने मेरे कसर पर प्यार से हाथ िेरते हुए
कहा___"ऊपर आजा और किर ठीक से िै से ही ले ट जा जैसे पहले ले ट जाया करता
था मेरी गोंद में।"
"नही ं माॅ, मैं ऐसे ही ठीक हूॅ।" मैने कसर उठाकर उनकी तरि दे खते हुए
बोला__"मु झे आपसे कुछ बात करनी है माॅ।"

"हाॅ तो कह ना।" माॅ ने मेरे चे हरे को एक हाथ से सहलाया___"तु झे कोई भी बात


करने के कलए मु झसे पू छने की क्ा ़िरूरत है ? खै र, बता क्ा बात करना है तु झे?"
"सबसे पहले ये बताइये कक मैं आपका बे टा हूॅ कक नही ं?" मैने माॅ के चे हरे की
तरि दे खते हुए कहा।

"ये कैसा सिाल है बे टा?" माॅ के चे हरे पर ना समझने िाले भाि उभरे ___"तू तो मेरा
ही बे टा है। जैसे पिन मेरा बे टा है िै से ही तू भी मेरा बे टा है।"
"अगर मैं आपका बे टा हूॅ तो मु झे भी आपका बे टा होने का हर ि़िग कनभाना चाकहए
न?" मैने भोले पन से कहा था।

"ये तो बे टों की सोच और समझदारी पर कनभग र करता है बे टा।" माॅ ने हिा सा


मुस्कुराते हुए कहा___"कक िो अपने माता कपता ि पररिार के कलए कैसा किचार रखते
हैं? पर हाॅ कनयम और सं स्कार तो यही कहते हैं कक हर ब्यल्कक्त को अपना कतग ब्य ि
ि़िग सच्चे कदल से कनभाना चाकहए। जैसे माता कपता अपने बच्चों के कलए हर ि़िग सच्चे
कदल से कनभाते हैं।"

"मैं और तो कुछ नही ं जानता माॅ।" मैने कहा___"ले ककन इतना ़िरूर समझता हूॅ
कक एक बे टे को हमेशा ऐसा काम करना चाकहए कजससे कक उसके माता कपता को
अपने उस बे टे पर गिग हो। िो अपने बे टे के हर काम से खु श हो जाएॅ। इस कलए
माॅ, मैं भी अब िो ि़िग कनभाना चाहता हूॅ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है बे टा।" माॅ ने खु श होते हुए कहा___"तु म्हें ऐसा करना भी
चाकहए। मु झे खु शी है कक तू ने इतनी मुल्किलों और परे शाकनयों में भी अपने अच्छे
सं स्कारों का हनन नही ं होने कदया। तू अब बडा हो गया है , इस कलए तु झे अब अपने
कतग ब्यों और ि़िों की तरि ध्यान दे ना चाकहए। ते री माॅ और बहन ने बहुत दु ख ददग
झेला है बे टा। मैं चाहती हूॅ कक तू उन्हें हमेशा खु श रखे ।"

"िो दोनो अब खु श ही हैं माॅ।" मैने कहा__"ले ककन मैं अब अपनी दू सरी माॅ का
बे टा होने का भी ि़िग कनभाना चाहता हूॅ।"

524
"क्ा मतलब?" माॅ ने मेरी इस बात से हैरान होकर मेरी तरि दे खा___"ये तू क्ा
कह रहा है बे टा?"

"हाॅ माॅ।" मैने कहा___"आप मेरी दू सरी माॅ ही तो हैं और मैं आपका बे टा हूॅ।
इस कलए मैं आपका बे टा होने का ि़िग कनभाना चाहता हूॅ। आशा दीदी की शादी
बडे धूमधाम से ककसी बडे घर में ककसी अच्छे लडके के साथ करना चाहता हूॅ। आज
आशा दीदी के मुरझाए हुए चे हरे को दे ख कर मुझे ककतनी तक़लीफ़ हुई ये मैं ही
जानता हूॅ माॅ। ककतनी बदल गई हैं िो, हर समय कबं दास और चं चल रहने िाली
मेरी आशा दीदी ने आज खु द को गहन उदासी और गंभीरता की चादर में ढक कर
रख कलया है। मैं उन्हें इस तरह नही ं दे ख सकता माॅ। िो मेरी सबसे प्यारी बहन हैं।
मैं चाहता हूॅ कक उनके चे हरे पर किर से पहले जैसी चं चलता और खु कशयाॅ हों। इस
कलए माॅ, मैने िैंसला कर कलया है कक अब मैं िही करूॅगा जो मु झे करना चाकहए।"

"पर बे टा ये सब....।" माॅ ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनकी बात काट कर
कहा__"मैं आपकी कोई भी बात नही ं सु नूॅगा माॅ। अगर आप मुझे सच में अपना
बे टा मानती हैं तो मुझे मेरा ि़िग कनभाने से नही ं रोकेंगी।"

मेरी इस बात से माॅ मुझे दे खती रह गईं। उनकी ऑखों में ऑसू ॅ भर आए थे । मैने
उठ कर माॅ को अपने से छु पका कलया और किर बोला___"आप खु द को दु खी मत
कीकजए माॅ। दे ख ले ना, आपका ये बे टा सब कुछ ठीक कर दे गा।"

"मुझे खु शी है कक तू मेरा बे टा है।" माॅ ने मुझसे अलग होकर मेरे माथे पर हिे से
चू मते हुए कहा___"ले ककन बे टा तु झे अं दा़िा नही ं है कक शादी ब्याह में ककतना रूपया
पै सा खचग करना पडता है। ते रे पास भला इतना रुपया पै सा कहाॅ से आएगा कक तू
अपनी दीदी की शादी कर सके?"

"आपके इस बे टे के पास इतना पै सा है माॅ कक िो चाहे तो पू रे हल्दीपु र को खडे खडे


खरीद ले ।" मैने मु स्कुराते हुए कहा___"कजस कमल्कियत को पाने के कलए मेरे बडे
पापा ने हमारे साथ ये सब ककया है न उससे कही ं ज्यादा मेरे पास आज के समय में
कमल्कियत है।"

"क्ा????" माॅ की ऑखें आश्चयग से िट पडी थी, किर सहसा अकिश्वास भरे भाि से
बोली___"पर बे टा ते रे पास इतना पै सा कहाॅ से आ गया?"
"सब कुदरत के कररश्मे हैं माॅ।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"भगिान अगर
ककसी को दु ख तक़लीफ़ें दे ता है तो एक कदन उसे उस दु ख तक़लीफ़ से मुक्त भी कर
दे ता है। मेरे अपनों ने मेरे साथ क्ा ककया ये तो आप जानती हैं माॅ मगर ककसी ग़ैर
ने अपना बन कर मेरे कलए क्ा ककया ये आप नही ं जानती हैं। िो ग़ैर मेरे कलए

525
िररश्ा क्ा बल्कि भगिान बन कर आया और आज मुझे हर दु ख ददग से मुक्त कर
कदया।"

"ये तू क्ा कह रहा है बे टा?" माॅ ने गहन आश्चयग के साथ कहा___"मेरी समझ में ते री
ये बातें नही ं आ रही।"

मैने माॅ को सं क्षेप में सारी कहानी बताई। उन्हें बताया कक मुम्बई में मैं कजस
मल्टीने शनल कंपनी में काम करता था उस कंपनी के माकलक जगदीश ओबराय
मुझसे प्रभाकित होकर मु झे क्ा क्ा काम कदया और किर कैसे उनके कदल में मेरे
कलए प्यार और स्ने ह जागा। कैसे उन्होंने मुझे अपना बे टा बना कलया और किर कैसे
उन्होंने अपनी सारी प्रापटी जो करोडों अरबों में थी उसे मेरे नाम कर कदया और आज
मैं अपनी माॅ और बहन के साथ उनके ही अलीशान बगले में रहता हूॅ। मैने माॅ
को ये भी बताया कक कुछ कदन पहले अभय चाचा भी मुझे ढू ॅढते हुए िहाॅ पहुॅचे थे ।
पिन के बताने पर मैं उनको रे लिे स्टे शन से अपने बगले में ले गया और अब िो भी
मेरे साथ ही िहाॅ पर हैं। सारी बातें सु नने के बाद माॅ मु झे इस तरह दे खने लगी थी
जैसे मेरे कसर पर अचानक ही उन्हें कदल्ली का कुतु ब मीनार खडा हुआ ऩिर आने
लगा हो।

"अब आपका ये बे टा करोड क्ा बल्कि अरबपकत है माॅ।" मैने माॅ को उनके कंधों
से पकडते हुए कहा___"इस कलए आप इस बात की कबलकुल भी कचं ता मत कीकजए
कक आशा दीदी की शादी मैं कैसे क पाऊगा?"
"भगिान का लाख लाख शु कर है बे टा कक उसने तु झ पर इतनी अनमोल कृपा की।"
माॅ ने खु शी से छलक आई अपनी ऑखों को पोंछते हुए कहा___"कदन रात मैं यही
सोचती रहती थी कक ककस हाल में होगा तू िहाॅ पर और ककस तरह तू अपनी माॅ
बहन को अपने साथ रखा हुआ होगा? मगर ते री ये बातें सु न कर मेरे मन का बोझ
हिा हो गया है। मेरा बे टा इतना बडा आदमी बन गया है इससे ज्यादा खु शी की
बात एक माॅ के कलए क्ा हो सकती है?"

"सब आपकी दु िाओं और आशीिागद का िल है माॅ।" मैने कहा___"माॅ की दु िाओं


में बहुत असर होता है। भगिान माॅ की दु िाओं को कभी कििल नही ं होने दे
सकता।"

मेरी ये बात सु नकर माॅ ने मु झे अपने गले से लगा कलया। मेरे कसर पर प्यार से हाॅथ
िेरती रही ं िो। किर मैं उनसे अलग हुआ और बोला___"माॅ मैं दीदी से भी कमल
लू ॅ। उनके चे हरे पर किर से मु झे पहले िाली खु कशयाॅ दे खना दे खना है।"

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"ठीक है जा कमल ले उससे ।" माॅ ने कहा__"ते रे समझाने से शायद िो खु श रहने
लगे।"
"िो ़िरूर खु श रहेंगी माॅ।" मैने कहा__"मैं उनके चे हरे पर िही खु शी लाऊगा।
उनका ये भाई उनकी दामन में हर तरह की खु कशयाॅ लाकर डाल दे गा।"

मेरी बात सु न कर माॅ की ऑखें भर आईं कजन्हें उन्होंने अपनी सिेद सारी के ऑचल
से पोंछ कलया। मैं उनके पास से चल कर कमरे से बाहर आया और आशा दीदी के
कमरे की तरि बढ गया। दीदी के कमरे का दरिाजा हिा सा खु ला हुआ था। मैने
दरिाजे पर लगी साॅकल को पकड कर बजाया। ककन्तु अं दर से कोई प्रकतकक्रया न
हुई। मैने बाहर से ही आिा़ि लगाई उन्हें तब जाकर अं दर से दीदी की आिा़ि आई।
िो कह रही थी कक आजा राज दरिाजा तो खु ला ही है।

मैं अं दर गया तो दे खा दीदी चारपाई के ककनारे पर बै ठी हुई थी। उनका कसर नीचे
झुका हुआ था। मैं उनके पास जाकर उनके बगल से बै ठ गया और उनके कंधे पर
हाॅथ रखा। दीदी ने कसर उठा कर मेरी तरि दे खा तो मैं चौंक गया। उनका चे हरा
ऑसु ओ ं से तर था। उनकी इस हालत को दे ख कर मेरा कदल तडप उठा।

"ये क्ा दीदी?" मैने कहा___"मेरी इतनी प्यारी दीदी की ऑखों में इतने सारे ऑसू ?"
मेरी बात पू री भी न हुई थी कक आशा दीदी झपट कर मुझसे कलपट गई और िूट िूट
कर रोने लगी।

मुझे उनके इस तरह िूट िूट कर रोने से बडा दु ख हुआ। ले ककन मैने उन्हें रोने
कदया। शायद ये उनके अं दर का गुबार था। कजसका बाहर कनकल जाना बे हद ़िरूरी
था। मैं उनके कसर पर बडे प्यार ि स्नेह भाि से हाॅथ िेरता रहा।

सहसा मुझे उनके साथ कबताए हुए कुछ खु कशयों भरे पल याद आ गए। मैं ,पिन और
आशा दीदी हमेशा ऊधम मचाते थे इस घर में । माॅ हमारी शै ताकनयाॅ दे ख कर
खु स्सा करती, हलाॅकक हम तीनों जानते थे कक हम तीनों का ये प्यार दे ख कर माॅ
खु द भी अं दर ही अं दर खु श हुआ करती थी। मगर प्रत्यक्ष में माॅ हमेशा दीदी को
डाॅटने लगती। कहती कक िो तो हम दोनो से बडी है किर क्ों हमारे साथ बच्ची बन
जाती है। माॅ के डाॅटने से दीदी मु ह िुला कर बै ठ जाती। उसके बाद मैं और पिन
उन्हें मनाने लगते । हम दोनो के पास उन्हें मनाने का बडा ही साधारर् और खू बसू रत
सा तरीका होता था। इस िक्त िही तरीका मे रे ़िहन में आया तो बरबस ही मेरे होठों
पर मुस्कान उभर आई।

"दु कनयाॅ में सबसे सुं दर कौन?" मैने दीदी को अपने से छु पकाए हुए ही प्यार से
कहा।

527
"कसिग मैं।" मेरी बात सु नते ही दीदी को पहले तो झटका सा लगा किर उसी हालत में
बोल पडी थी।
"दु कनयाॅ में सबसे प्यारी कौन?" मैने किर से कहा।
"कसिग मैं।" दीदी ने लरजते स्वर में कहा।
"दु कनयाॅ में सबसे चं चल कौन?" मैने पू छा।
"कसिग मैं।" दीदी ने भारी स्वर में कहा।
"दु कनयाॅ में सबसे नटखट कौन?" मैने पू छा।
"कसिग मैं?" दीदी की आिा़ि लडखडा गई।
"और दु कनयाॅ में सबसे शै तान कौन?" मैने सहसा मुस्कुरा कर पू छा।
"कसिग मैं।" दीदी ने कहा तो मैं चौंक पडा। उन्हें खु द से अलग कर उनके चे हरे की
तरि बडे ध्यान से दे खा मैने।

आशा दीदी का दू ध सा गोरा चे हरा ऑसु ओ ं से तर था। ऩिरें झुकी हुई थी उनकी। मैं
हैरान इस बात पर हुआ था कक मेरे पू छने पर कक "दु कनयाॅ में सबसे शै तान कौन" का
जिाब भी उन्होंने यही कदया कक "कसिग मैं"। जबकक अर्क्र यही होता था कक इस
सिाल पर िो यही कहती कक शै तना तु म दोनो ही हो। मैं तो मासू म हूॅ। ले ककन आज
उन्होंने खु द को ही शै तान कह कदया था।

"ये तो कमाल हो गया दीदी।" मैने मु स्कुराते हुए कहा___"आज आपने खु द को ही


कह कदया कक आप ही सबसे शै तान हो। आज आपने ये नही ं कहा कक मैं और पिन ही
सबसे ज्यादा शै तान हैं। आप तो मासू म ही हैं।"
"हाॅ तो क्ा हुआ?" दीदी ने सहसा तु नक कर कहा___"आज मैं शै तान बन जाती
हूॅ। तु म दोनो मासू म बन जाओ।"

मैं उनकी इस बात को सु न कर मुस्कुराया। दीदी ने ये बात कबलकुल िै से ही अं दा़ि में


कही थी जैसा अं दा़ि उनका आज से पहले हुआ करता था। दीदी को भी इस बात का
एहसास हुआ और किर एकाएक ही उनकी रुलाई िूट गई।

"अरे अब क्ा हुआ दीदी?" मैने उनको अपने से छु पका कर कहा___"दे खो अब रोना
नही ं। मुझे कबलकुल पसं द नही ं कक आप मेरी इतनी प्यारी सी दीदी को बात बात पर
इस तरह रुला दो। चलो अब जल्दी से रोना बं द करो और अपनी िही मनमोहक
मुस्कान और नटखटपना कदखाओ मु झे ताकक मेरे मन को सु कून कमल जाए।"

"अब तू आ गया है न तो अब मैं नही ं रोऊगी राज।" आशा दीदी ने कहा___"तु झे पता
है मैं तु झे ककतना कमस करती थी। हम तीनो का िो बचपन जाने कहाॅ गुम हो गया
था? तु म दोनो मेरे ल्कखलौने थे कजनके साथ मैं हसती खे लती रहती थी।"

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"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैने उन्हें खु द से अलग करते हुए कहा___"मगर आप तो
जानती हैं कक समय हमेशा एक जैसा नही ं रहता। समय के साथ साथ सब कुछ बदल
जाता है। खै र, छोंकडये ये सब और मु झसे िादा कीकजए कक अब से आप हमेशा खु श
रहेंगी। अपने चे हरे पर िो उदासी और ककसी भी तरह के दु ख के भाि नही ं आने
दें गी।"

"हम्म।" दीदी ने हाॅ में कसर कहलाया।


"अब बताइये आपको अपने इस भाई से क्ा तोहफ़ा चाकहए?" मैने मु स्कुराते हुए
पू छा।
"तू आ गया है मेरे पास।" दीदी ने मेरे चे हरे को अपने हाथ से सहला कर
कहा___"इससे बडा तोहफ़ा मेरे कलए और क्ा होगा?"

"पर मैं तो आपके कलए आपकी मनपसं द ची़ि ले कर ही आया हूॅ।" मैने कहा__"अब
अगर आपको नही ं चाकहए तो ठीक है मैं उसे ककसी और को दे दू ॅगा।"
"खबरदार अगर ककसी और को कदया तो।" दीदी ने ऑखें कदखाते हुए कहा___"ला दे
मेरी ची़ि मु झे। िै से क्ा ले कर आया है राज?"

"सोकचये।" मैने मु स्कुराते हुए कहा___"क्ा हो सकती है िो ची़ि?"


मेरी ये बात सु नकर आशा दीदी सोच में पड गईं। मैने दे खा कक इस िक्त उनके चे हरे
पर िही चं चलता और िही कबं दासपन आ गया था। उनका चे हरा एकदम से अब
ल्कखला ल्कखला लग रहा था।

"सोच कलया मैने।" आशा दीदी एकदम से उछलते हुए बोली___"कक तू मेरे कलए कौन
सी ची़ि ले कर आया है?"
"अच्छा तो बताइये।" मैने हस कर कहा__"़िरा मैं भी तो जानू ॅ कक आपने क्ा सोच
कलया है?"

"तू न मेरे कलए।" आशा दीदी ने धीरे धीरे और आराम आराम से कहना शु रू
ककया__"तू न मेरे कलए......एक प्यारी सी, सुं दर सी सोने की घडी ले कर आया है।
कजसे मैं अपने इस हाॅथ में पहनू ॅगी। अब बता बच्चू, मैंने सही कहा न? हाॅ...बोल
बोल।"

मैं दीदी की इस बात पर और उनके इस अं दा़ि पर मुस्कुरा उठा। उन्होने जो कहा िो


यकीनन सच ही तो था। मैं उनके कलए एक सोने की घडी ले कर ही आया था। मुझे
याद है जब िो मेरे हाथ की कलाई में एक आम सी घडी दे खती तो यही कहती
कक__"अरे ये तो मामूली सी घडी है बे टा, आशा रानी तो अपने हाॅथ में सोने की घडी

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पहने गी एक कदन। दे ख ले ना। िरना सारी उमर घडी ही नही ं पहने गी। मैं और पिन
उनकी इस बात पर अर्क्र हसने लगते । हमारे हसने पर उन्हें लगता कक हम दोनो
उनका म़िाक उडा रहे हैं। इस कलए िो मु ह िुला कर एक तरि बै ठ जाती। उसके
बाद हम दोनो किर से उन्हें उसी तरीके से मनाने लगते और िो खु श हो जाती। ऐसी
थी आशा दीदी। िो हम लोगों से उमर में तीन चार साल बडी थी मगर हमारे साथ िो
हमसे भी छोटी बन जाती थी।

ये सब सोच कर सहसा मेरी ऑखों से ऑसू छलक पडे । आशा दीदी ने मेरी ऑखों से
छलके ऑसू ॅ को दे खा तो। उन्होंने मु झे खु द से छु पका कलया।
"ओये ये क्ा है अब?" किर उन्होंने कहा__"अभी तक तो बडा मु जसे कह रहा था कक
अब से मैं खु द को न रुलाऊ और अब तू क्ों रोने लगा? चल रोना नही ं िरना मैं भी
रो दू ॅगी।"

"ये तो खु शी के ऑसू हैं दीदी।" मैं उनसे अलग होते हुए बोला___"कुछ यादें ऐसी
होती हैं कजनके याद आने से बरबस ही ऑखें छलक पडती हैं। खै र, ये लीकजए
आपकी घडी। दे ख लीकजए सोने की ही है न?"

"मुझे पता है कक मेरा भाई मेरी कलाई में सोने के अलािा कोई और घडी नही ं
पहनाएगा।" दीदी ने कहा मु स्कुराकर कहा___"उसे पता है कक मैने क्ा प्रर् ककया
था?"
"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा__"मैं आपके प्रर् को कैसे भु ला सकता हूॅ? जब
मैं िहाॅ से चलने िाला था तो मुझे आपकी याद आई और किर सबकुछ याद आया।
इस कलए मैं गया और ज्वै लरी की दु कान से आपके कलए ये घडी खरीद लाया।"

मेरी बात से दीदी मुस्कुरा दी और किर उस पै ककट को खोलने लगी कजसमें मैं उनके
कलए घडी ले कर आया था। कुछ ही दे र में पै केट खोल कर उन्होने उस घडी को
कनकाल कर दे खा। िो सचमुच सोने की ही घडी थी। घडी दे ख कर दीदी की ऑखें
किर से भर आईं।

"राज, आज मैं बहुत खु श हूॅ।" किर उन्होने कहा___"इस कलए नही ं कक तू घडी
ले कर आया है बल्कि इस कलए कक तू यहाॅ आया और तु झे अपनी दीदी के प्रर् का
खयाल था। मुझे खु शी है कक ते रे जैसा लडका मेरा भाई है।"

"मुझे भी तो खु शी है दीदी।" मैने कहा__"कक आप मेरी सबसे प्यारी बहन हो।


आपको मैं गुकडया(कनधी) की तरह ही प्यार करता हूॅ।"
"हाॅ ये मैं जानती हूॅ।" दीदी ने मु स्कुरा कर कहा___"अच्छा राज, इस घडी को तू ही

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पहना दे न मु झे।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी इच्छा।"

मैने उनके हाॅथ से घडी ल। दीदी ने अपने बाएॅ हाथ की कलाई मेरी तरि बढा दी।
मैने उनकी खू बसू रत कलाई पर उस घडी को डाल कर पहना दी। ये दे ख कर आशा
दीदी खु श हो गई और एकदम से मु झसे कलपट गई।

"ककतनी अच्छी लग रही है न राज?" िो खु शी से मानो चहकती हुई बोली___"अच्छा


ये बता कक इसके अं दर पानी तो नही ं जाएगा न?"
"नही ं जाएगा दीदी।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"ये िुल िाटरप्रू ि है।"
"किर ठीक है।" दीदी ने मु झसे अलग होकर कहा___"अब न मैं इसे कभी भी अपनी
कलाई से नही ं उतारूॅगी।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी म़िी। अच्छा दीदी अब मैं चलता हूॅ
और हाॅ याद है न....अब से आप खु द को उदास या दु खी नही ं रखें गी।"
"हाॅ हाॅ याद है बाबा।" दीदी ने हस कर कहा___"और अब तो मेरे भाई ने मेरी
पसं द की ची़ि भी दे दी। किर ककस कलए खु द को उदास या दु खी रखना?"

"ये हुई न बात।" मैने दीदी के माथे पर हिे से चू मा और किर पलट कर िापस
दरिाजे की तरि चल कदया। अभी मैं दो ही क़दम दरिाजे की तरि बढा था कक मेरी
ऩिर दरिाजे पर खडे पिन और माॅ पर पडी। मैं उन्हें दे ख कर पहले तो चौंका किर
हौले से मु स्कुरा कदया। दरिाजे बाहर आकर मै ने दरिाजे के दोनो पाटों को आपस में
सटा कर चल कदया।

मेरे पीछे पीछे पिन और माॅ भी आने लगे। माॅ के कमरे में आकर मैं एक जगह
बै ठ गया।
"तो बहन को खु श कर कदया उसके भाई ने ?" माॅ ने ऑखों से अपने ऑसू पोंछते हुए
कहा___"आज कािी समय बाद उसे इतना खु श और चहकते हुए दे खा है मैने।"

"अब से िो हमेशा खु श ही रहेंगी माॅ।" मैने कहा___"और हाॅ बहुत जल्द मैं उनके
कलए एक अच्छा सा ररश्ा तलाश करूॅगा। उनकी शादी एक ऐसे घर में और एक
ऐसे लडके से करूॅगा जो उन्हें दु कनयाॅ की हर खु शी दे गा।"
"अब मुझे उसकी शादी की कचं ता नही ं है बे टे।" माॅ ने कहा___"उसका भाई आ गया
है तो अब सब िही ं सम्हाले गा।"

मैने पिन की तरि दे खा िो अपनी ऑखों में ऑसू कलये एक तरि खडा था। मैं
उसके पास जाकर उससे बोला___"तू ने मु झे बु ला कर बहुत अच्छा ककया है भाई।

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मगर आज जो कुछ भी रास्ते में हुआ है उस सबसे बहुत जल्द एक नई मुसीबत
सामने आने िाली है। बडे पापा को पता लगाने में ज्यादा समय नही ं लगे गा कक िो
सब ककसने ककया उनके आदकमयों के साथ? िो ये भी पता कर लें गे कक मैं यहाॅ
ककसके यहाॅ रुका हुआ हूॅ। इस कलए अब तु म ये भी समझ लो कक इस घर में रहते
हुए तु ममें से कोई भी सु रकक्षत नही ं है।"

"ये तु म क्ा कह रहे हो बे टा?" माॅ ने चककत भाि से कहा___"क्ा हुआ है आज


रास्ते में?"
मैने माॅ को सं क्षेप में सबकुछ बता कदया। मेरी बात सु न कर माॅ सकते में आ गई।
उनके चे हरे पर एकदम से डर ि भय के भाि गकदग श करते ऩिर आने लगे ।

"ये तो बहुत बडा अनथग हो गया है बे टा।" माॅ ने सहमे हुए लहजे में कहा___"तु मने
अजय कसं ह के आदकमयों को मार कर अच्छा नही ं ककया। अजय कसं ह इस सबका
बदला ़िरूर ले गा।"
"ये तो होना ही था माॅ।" मैने कहा___"आप खु द सोकचए कक अगर मैं और आकदत्य ये
सब नही ं करते तो उनके आदमी हमें अपने साथ ले जाकर बडे पापा के हिाले कर
दे ते। उस सू रत में बडे पापा हमारे साथ क्ा करते इसका अं दा़िा आप नही ं लगा
सकती माॅ। िो मु झे बं धक बना कर मु झसे ़िबरदस्ती मेरी माॅ बहन और अभय
चाचा को मुम्बई से यहाॅ बु लिा ले ते। उसके बाद क्ा होता ये आप सोच कर
दे ल्कखये।"

"राज सही कह रहा है माॅ।" पिन ने कहा__"रास्ते में इसके बडे पापा के आदमी
इसे पकडने के कलए ही आए थे और अगर िो लोग इसे पकड कर ले जाते तो सचमुच
बहुत बडा अनथग हो जाता। इस कलए अजय चाचा के आदकमयों को मारने के कसिा
दू सरा कोई रास्ता ही नही ं था इसके पास।"

"पर इसने अजय कसं ह के उतने सारे आदकमयों को कैसे खत्म कर कदया?" माॅ के
चे हरे पर हैरत के भाि थे ।
"आपको नही ं पता माॅ।" पिन कह रहा था___"इसने और आकदत्य ने पाॅच कमनट
में उन सबका काम तमाम कर कदया था। मैने िो सब अपनी ऑखों से दे खा था। मु झे
यकीन ही नही ं हो रहा था कक ये िही राज है जो इतना शान्त और भोला भाला हुआ
करता था।"

"ये सब छोडो।" मैने कहा___"मैं ये कह रहा हूॅ कक बडे पापा को इस बात का पता
बहुत जल्द चल जाएगा कक मैं यहाॅ पिन के घर में रुका हुआ हूॅ। इस कलए िो आप
सबको भी अपना दु श्मन समझ लें गे और आप लोगों के साथ कुछ भी बु रा कर सकते

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हैं। अतः अब आप लोगों का यहाॅ रहना ककसी भी तरह से ठीक नही ं है।"

"बात तो तु म्हारी ठीक ही है भाई।" पिन ने कहा___"ले ककन हम ते रे बडे पापा के डर


से अपना ये घर छोंड कर भला कहाॅ जाएॅगे ?"
"मुम्बई।" मैने कहा___"हाॅ पिन। अब आप लोगों का यहाॅ रहना खतरे से खाली
नही ं है। इस कलए अब आप लोग मेरे साथ मु म्बई चलोगे। तु म्हें पता है , अभय चाचा ने
भी मु झे कुरुर्ा चाची और उनके बच्चों को मु म्बई ले आने को कहा है। क्ोंकक उन्हें
भी पता है कक करुर्ा चाची और कदव्या ि शगु न सु रकक्षत नही ं हैं।"

"ले ककन बे टा।" माॅ ने कझझकते हुए कहा___"हम सब िहाॅ ते रे कलए बोझ बन
जाएॅगे। इतने सारे लोग िहाॅ कैसे रह पाएॅगे?"
"ये कह कर आपने मु झे पराया कर कदया माॅ।" मैने दु खी भाि से कहा___"भला
आप ऐसा कैसे सोच सकती हैं कक मेरे कलए आप लोग बोझ बन जाएॅगे?"

माॅ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ इस कलए उन्होंने मु झे अपने गले से लगा कर
कहा___"मेरा िो मतलब नही ं था बे टा। मैं तो बस ये कहना चाहती थी कक िहाॅ पर
हम सब इतने सारे लोग कैसे रहेंगे?"
"आप इस बात की किक्र मत कीकजए माॅ।" मैने कहा___"मुम्बई में जहाॅ मैं रहता
हूॅ िो एक बहुत बडा बगला है। िहाॅ पर सौ आदमी भी रहें गे न तब भी जगह बच
जाएगी।"

"क्ा????" माॅ ने हैरानी से कहा___"क्ा इतना बडा गर है िहाॅ?"


"हाॅ माॅ।" मैने कहा__"इसी कलए तो कह रहा हूॅ कक आप रहने की कचं ता मत
कीकजए। बस यहाॅ से िौरन चलने की तै यारी कीकजए। आप सब अपना ़िरूरी
सामान ले लीकजए, और चलने के कलए तै यार हो जाइये जल्दी।"

"क्ा हम आज ही यहाॅ से चल दें गे?" सहसा पिन ने कुछ सोचते हुए कहा था।
"कजतना जल्दी हो सके उतना जल्दी हमें से कनकल ले ना चाकहए भाई।" मैने
कहा__"यहाॅ ज्यादा समय तक रुकना ठीक नही ं है।"

"ठीक है भाई।" पिन ने कहा___"पर हम यहाॅ से इतने सारे सामान को ले कर


जाएॅगे कैसे ?"
"तू ककसी भी तरह से ककसी ऐसे िाहन का इं तजाम कर कजसमे सारा सामान भी आ
जाए और हम सब उसमें आराम से बै ठ भी जाएॅ।" मैने कहा___"और ये काम तु झे
बहुत जल्द करना है।"

"ठीक है भाई।" पिन ने कहा___"मैं कोकशश करता हूॅ ऐसे ककसी िाहन को लाने

533
की।"
ये कह कर पिन कमरे से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद मैने माॅ से कहा कक
िो भी अपना सब ़िरूरी सामान इकिा करके उसे पै क कर लें । मेरे कहने पर माॅ
ने हाॅ में कसर कहलाया और कमरे से बाहर चली गईं। मैं भी बाहर आकर बै ठक की
तरि बढ गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हाल्किटल में एकाएक ही ररतू का मोबाइल बजा। उसने मोबाइल को पाकेट से
कनकाल कर दे खा। स्क्रीन पर पिन कलखा आ रहा था। ये दे ख कर ररतू के होठों पर
हिी सी मुस्कान आ गई। िो मोबाइल को कलए किधी के पास से उठ कर बाहर की
तरि आ गई। किर मोबाइल पर आ रही काल को ररसीि कर कानो से लगा कलया
उसने ।

"हाॅ भाई बोलो।" किर उसने कहा__"सब रे डी है न?"


".............।" उधर से पिन ने कुछ कहा।
"ये तु म क्ा कह रहे हो पिन?" ररतू ने बु री तरह चौंकते हुए कहा___"तु म सब लोग
राज के साथ मुम्बई जाने िाले हो?"

"............।" उधर से पिन किर कुछ कहा।


"हाॅ मु झे पता चल गया उस बारे में।" ररतू ने कहा___"मेरे आदकमयों ने िोन पर
बताया है सब कुछ। ये भी बताया कक उन लोगों ने डै ड के आदकमयों को कठकाने लगा
कदया है। राज और उसके दोस्त ने सबको खत्म कर कदया था। अगर उन दोनो के बस
का न होता तो मेरे िो पु कलस के आदमी उन सबको गोकलयों से भू न कर रख दे ते।
मेरा उनके कलए यही आदे श था। खै र, सबसे अच्छी बात यही हुई कक तु म लोग
सकुशल घर गए। ले ककन खतरा अभी टला नही ं है पिन। डै ड अपने आदकमयों की
खोज खबर ले ने ़िरूर इधर उधर जाएॅगे। राज ने सही िैसला कलया है तु म लोगों
को अपने साथ ले जाने का। मगर उसका क्ा होगा कजसके कलए मैने राज की तु म्हारे
द्वारा बु लिाया था?"

"............।" उधर से पिन ने कुछ कहा।


"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ भाई।" ररतू ने ़िोर दे कर कहा___"तु म एक काम करो, राज
की ले कर यहाॅ आ जाओ। मैं तु म लोगों को यहाॅ से सु रकक्षत जाने का बं दोबस्त कर
दू ॅगी।"
"............।" उधर से पिन ने किर कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" ररतू ने कहा___"तु म उसे ले कर आओ। मैं अभी ककसी िाहन का
इं तजाम करती हूॅ। तु म ककसी भी प्रकार की कचं ता मत करो। बस उसे ले कर आ

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जाओ। यहाॅ मैने उसकी सु रक्षा का सारा इं तजाम ककया हुआ है। रास्तों पर भी
पु कलस के आदमी सादे कपडों में मौजूद हैं।"

".........।" उधर से पिन ने कुछ कहा।


"तु म बे किकर रहो भाई।" ररतू ने कहा___"उसे कुछ नही ं होने दू ॅगी मैं। अपनी जान
पर खे लकर भी मैं उसकी कहिा़ित करूॅगी। यहाॅ आने के बाद जो कुछ भी होगा
उसकी दे खभाल भी मैं कर लू ॅगी। तु म बस उसे ले कर आ जाओ। अब इं त़िार नही ं
होता मेरे भाई। जबसे तु मने बताया है कक राज आ गया है तब से उससे कमलने के
पागल हुई जा रही हूॅ मैं। कदल तो करता है कक अभी भाग कर तु म्हारे घर आ जाऊ
और अपने भाई को अपने सीने से लगा कर खू ब रोऊ। मगर, उससे कमलने का सबसे
पहला हक़ किधी का है मेरे भाई। मैने उसे िचन कदया है कक मैं उसके महबू ब से उसे
कमलाऊगी। इस कलए भाई, जल्दी से उसे ले कर आजा। मेरे िचन की लाज रख ले ।
किधी को उसके महबू ब से कमला दे जल्दी।"

".........।" उधर से पिन ने कुच कहा।


"ठीक है भाई जल्दी आना।" ररतू ने कहा और किर िोन कट कर कदया। उसकी
ऑखों में ऑसू भर आए थे । िोन को पाॅकेट में डालने के बाद िह िापस गैलरी की
तरि चल पडी। रास्ते मे एक तरि उसे श्री कृष्ण का छोटा सा मं कदर कदखा तो िह
उसी तरि बढ गई। मंकदर के पास पहुॅच कर िह घुटनों के बल बै ठ गई।

"हे कृष्णा अब सब कुछ आपके ही हिाले है ।" ररतू ने ऑखों में ऑसू कलए तथा दोनो
हाॅथ जोडे कहा___"सब कुछ ठीक कर दे ना कान्हा। मेरा भाई जब किधी से कमले तो
उसकी हालत को दे ख कर िो खु द को सम्हाल सके। उसके कदल को मजबू त बनाए
रखना कन्है या। िो अपनी प्रे यसी से कमलने आ रहा है । उसे हर दु ख ददग सहने की
शल्कक्त दे ना कृष्णा। मेरा भाई भी इस िक्त कृष्ण ही है जो अपनी राधा से कमलने आ
रहा है।"

इतना कहने के बाद ररतू उठी और कृष्ण की मूती के पास थाली में रखे िूलों से कुछ
िूल उठा कर कृष्ण के चरर्ों में अपग र् कर कदया।

"सब कुछ तु म ही तो करते हो कन्है या। इस सं सार में सब कुछ तु म्हारे ही इशारे से हो
रहा है।" ररतू ने कहा___"ये भी कक मेरा भाई कजसे टू ट कर प्रे म करता है उस लडकी
को ब्लड कैंसर के लास्ट स्टे ज पर पहुॅचा कदया आपने । ये कैसी लीला है कृष्णा? लोग
कहते हैं कक जो कुछ भी तु म करते हो िो सब अच्छे के कलए ही करते हो, तो बताओ
मुझे कक ऐसा करके कौन सा अच्छा कर रहे हो तु म? ले ककन खै र कोई बात नही ं। मैं

535
तु मसे यहाॅ इस सबकी कशकायत नही ं कर रही हूॅ। हाॅ इतनी किनती ़िरूर कर
रही हूॅ कक मेरे भाई को कभी कुछ न हो। िो यहाॅ आए तो किधी की हालत दे ख कर
िो खु द को सम्हाल सके। बस यही प्राथग ना करती हूॅ तु मसे ।"

इतना कहने के बाद ररतू अपने ऑसू पोंछते हुए कृष्णा को प्रर्ाम कर किधी के कमरे
की तरि बढ गई। उसका मन बहुत भारी हो गया था। रह रह कर उसके मन में आने
िाले िक्त के प्रकत घबराहट सी बढती जा रही थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर घर में पिन मुझे कलए बाहर आया। मैने दे खा कक बाहर एक मोटर साइककल
खडी थी। पिन ने मु झसे कहा कक मैं अपने चे हरे को रुमाल से ढक लू ॅ। मैं उसकी
बात सु न कर चौंका। उससे पू छा कक कहाॅ जा रहे हैं हम मगर उसने मु झे कुछ न
बताया। बल्कि मोटर साइककल में बै ठ कर से स्टाटग ककया और मुझे पीछे बै ठने को
कहा। मैं उसकी इस आनन िानन िाली कक्रया से हैरान था। बडा अजीब सा ब्यौहार
कर रहा था िो।

खै र, उसके बार बार ़िोर दे ने पर मैं उसके पीछे मोटर साइककल पर बै ठ गया।
आकदत्य दरिाजे पर खडा हैरानी से ये सब दे ख रहा था। उसने भी कई बार पिन से
पू छा कक िो मु झे ले कर कहाॅ जा रहा है मगर पिन ने कुछ न बताया। बल्कि उससे
यही कहा कक िो यही ं रहे, हम थोडी दे र में आते हैं। आकदत्य बे चारा हैरानी से दे खता
रह गया था उसे । माॅ और आशा दीदी अं दर सामान पै क करने में लगी हुईं थी। उन्हें
इस सबका कुछ पता ही नही ं था। आशा दीदी को जब पता चला कक िो सब लोग मेरे
साथ मुम्बई चल रहे हैं तो िो बडा खु श हुई थी।

इधर मेरे बै ठते ही पिन ने मोटर साइककल को आगे बढा कदया। जहाॅ तक मु झे पता
था पिन के पास कोई साइककल तक नही ं थी, इसका मतलब िो ये मोटर साइककल
ककसी जान पहचान िाले से माॅग कर ही लाया था।

"अब तो बता दे मेरे बाप कक हम कहाॅ जा रहे हैं?" रास्ते में मैने ये बात पिन से
खीझते हुए कही थी, बोला___"साले तू ने इस सिाल पर ऐसे अपना मुह बं द कर रखा
है जैसे अगर तू बता दे गा तो क़यामत आ जाएगी।"

"ऐसा ही समझ ले तू ।" पिन ने कहा__"अब चु पचाप बै ठा रह। ककतना बोलने लगा है
तू आजकल?"
"क्ा कहा तू ने?" मैने हैरत से दे खते हुए उसे पीछे से उसकी पीठ पर हिे से मुक्का
मारा, किर बोला___"मैं बहुत बोलने लगा हूॅ। हाॅ, और तू जैसे मौनी बाबा ही बन
गया है न।"

536
पिन मेरी इस बात पर मु स्कुरा कर रह गया। मगर कसिग एक पल के कलए। अगले ही
पल उसके चे हरे पर सं जीदगी के भाि नु मायाॅ हो गए। जैसे उसे कोई बात याद आ
गई हो। मैने एक बात नोट की थी कक िो जब से मुझे कमला था तब से मैने उसे सं जीदा
ही दे खा था। मु झे समझ नही ं आ रहा था कक इसकी क्ा िजह थी। मु झे याद आया
कक उसने मु झे सीघ्र मुम्बई से आने के कलए कहा था। इसका मतलब ये मु झे उसी
काम से कलए जा रहा है। ले ककन आकखर ककस काम से ? साला कदमाग़ का दही हो
गया मगर मु झे कोई िजह समझ में नही ं आई।

लगभग दस कमनट बाद पिन ने कजस जगह पर मोटर साइककल रोंकी उस जगह को
दे ख कर मैं चौंका तो ़िरूर मगर मु झे समझ में न आया कक पिन मु झे हाल्किटल
ले कर क्ों आया है? सहसा मेरे ़िहन में एक बार किर करुर्ा चाची और उनके बच्चों
का चे हरा नाच गया। मन में सिाल उभरा कक क्ा करुर्ा चाची या उनके बच्चों में से
ककसी को कुछ हो गया था जो िो यहाॅ हाल्किटल में शायद एडकमट हैं? मगर इस
बात को मुझसे कछपाने की भला क्ा ़िरूरत थी?

मोटर साइककल के खडे होते ही मैं उतर गया। मेरे बाद पिन भी उतर गया और
मोटर साइककल को स्टै ण्ड पर खडा कर िो मे री तरि दे खा और बोला____"तू यही ं
रुक मैं आता हूॅ दो कमनट में।"

"अरे अब कहाॅ जा रहा है तू मु झे यहाॅ पर अकेला छोंड कर?" मैंने हैरानी से पू छा।
"मैने कहा न यही ं रुक।" पिन ने शख्ती से कहा___"मैं आता हूॅ अभी।"

ये तो हद ही हो गई। पिन ने मु झे शख्ती से रुकने को कहा था। मेरा कदमाग़ घूम


गया। ये साला हो क्ा रहा है? मैने दे खा कक पिन हाल्किटल की सीकढयाॅ चढ कर
ऊपर िाली सीढी के पास जाकर रुक गया। उसके बाद उसने अपने पै न्ट की जेब से
मोबाइल कनकाल कर उससे ककसी को िोन ककया। मोबाइल को कान से लगा कर
उसने सामने िाले से जाने क्ा बात की। एक कमनट भी नही ं लगे उसे बात खत्म
करने में। मोबाइल को पु नः जेब के हिाले कर उसने मेरी तरि दे खा और मुझे अपनी
तरि आने का हाथ से इशारा ककया।

उसके इस इशारे पर मैं किर चौंका। मगर कर भी क्ा सकता था? मैं अपने मन में
ह़िारों तरह के किचार कलए उसकी तरि बढने लगा। कुछ ही दे र में सीकढयाॅ चढ
कर उसके पास पहुॅच गया।

"साला इतना ज्यादा सिेन्स तो ककसी जासू सी उपन्यास में भी मैने नही ं दे खा कजतना
तू कक्रयेट कर रखा है।" ऊपर उसके पास पहुॅचते ही मैने कहा उससे ___"मेरे कदमाग़

537
का कचू मर कनकाल कदया तू ने कसम से । अच्छा है तू ककसी जासू सी उपन्यास का
राइटर नही ं बन गया। िरना पाठकों के कदमाग़ की नसें ही िट जाती।"

"ज्यादा बकिास न कर।" मेरी बात पर पिन ने भािहीन स्वर में कहा___"और अब
चल मेरे साथ।"
"जो हुकुम माई बाप।" मैने अदब से कसर को झुकाते हुए कहा और चल कदया उसके
पीछे ।

पिन के पीछे चलते हुए मैं हाल्किटल के अं दर की तरि आ गया। मेरा मन अं जानी
आशं का के चलते ़िोर ़िोर से धडकने लगा था। पता नही ं क्ों पर मैं मन ही मन
भगिान से दु िा कर रहा था कक यहा हर कोई ठीक ही हो। खै र, पिन के साथ चलते
हुए मैने दे खा कक पिन एक कमरे के सामने आकर रुक गया।

कमरे के दरिाजे के पास रुक कर पिन ने कुछ पल कुछ सोचा किर मेरी तरि पलट
कर कहा___"तू जानना चाहता था न कक मैने तु झे इतना जल्दी यहाॅ आने के कलए
क्ों कहा था?"
"िो तो मैं तु झसे कब से पू छ रहा हूॅ?" मैने उससे कहा___"मगर तू बता ही नही ं रहा
था।"

"बताने की ़िरूरत नही ं है मेरे यार।" सहसा पिन की आिा़ि भराग गई, बोला___"तू
इस कमरे में जा और सब कुछ अपनी ऑखों से दे ख सु न ले । ले ककन उससे पहले तू
मुझसे िादा कर कक अं दर सब कुछ दे खने सु नने के बाद तू खु द को सम्हाल कर
रखे गा।"

"इस बात का क्ा मतलब हुआ?" मैंने सहसा चौंकते हुए कहा___"ऐसा क्ा है अं दर
कक मु झे उसे दे ख कर खु द को सम्हालना पडे गा?"
"अब जा तू ।" पिन ने कहने के साथ ही मु ह िेर कलया मु झसे , दो चार क़दम चलने के
बाद मेरी तरि पलट कर बोला___"मैं बाहर ही ते रा इन्त़िार करूॅगा।"

बस इसके बाद िो एक पल के कलए भी नही ं रुका। बल्कि ते ़ि ते ़ि क़दम बढाते हुए


बाहर की तरि चला गया। मु झे कुछ समझ न आया कक ये सब क्ा चल रहा है
यहाॅ? पिन जब मेरी ऩिरों से ओझल हो गया तो मैं उस कमरे के दरिाजे की तरि
पलटा कजस कमरे के अं दर जाने के कलए पिन ने मु झसे कहा था।

कुछ पल तक मैं उस दरिाजे को घूरता रहा। मेरा कदल अनायास ही बडी ते ़िी से
धडकने लगा था। मन में तरह तरह के खयाल उछल कूद मचाने लगे थे । मैने अपने
हाॅथों को दरिाजे की तरि बढाया। मैने दे खा मेरे िो हाॅथ काॅप रहे थे । पता नही ं

538
मगर, इन कुछ ही पलों में मेरी अजीब सी हालत हो गई थी। खै र, मैने दरिाजे पर
हाॅथ रख कर उसे अं दर की तरि आकहस्ता से धकेला तो दरिाजा बे आिा़ि खु लता
चला गया।

खु ल चु के दरिाजे अं दर की तरि मेरी ऩिर पडी तो सामने दीिार के पास एक टे बल


रखा कदखा मुझे कजस पर कुछ दिाइयाॅ और कुछ पे पर जैसे रखे हुए थे । बाॅकी
कुछ न कदखा मुझे। मेरे मन में सिाल उभरा कक इस कमरे में ऐसा क्ा है कजसे दे खने
के कलए कदाकचत पिन ने मुझे अं दर जाने को कहा था?

अपने मन में उठे सिाल की खोज के कलए मैंने दरिाजे के अं दर की तरि अपने
क़दम बढाए। दो ही क़दमों में मैं कमरे के अं दर दाल्कखल हो गया। अं दर आकर मैने
इधर उधर दे खा तो दाकहनी तरि एक बे ड कदखा कजस पर कोई पडा हुआ था। बे ड के
बगल से ही दो सोिा से ट रखे हुए थे ककन्तु उन पर कोई बै ठा हुआ ऩिर न आया
मुझे। बाॅकी पू रा कमरा खाली था। ये दे ख कर मेरा कदमाग़ हैं ग सा हो गया। कुछ
समझ न आया कक यहाॅ मु झे क्ा कदखाने के कलए पिन ने भे जा है?

बे ड पर पडे हुए ब्यल्कक्त पर मेरी ऩिर पु नः पडी। उसका चे हरा दू सरी तरि था इस
कलए मैं जान न सका बे ड पर कौन पडा हुआ है? ककन्तु इतना ़िरूर अब समझ आ
गया था कक शायद बे ड पर पडे हुए इं सान को दे खने के कलए ही मु झे पिन ने यहाॅ
भे जा है। अतः मैं धडकते हुए कदल के साथ बे ड की तरि बढा।

कुछ ही क़दमों में मैं बे ड के समीप पहुॅच गया। ककन्तु बे ड पर पडे हुए ब्यल्कक्त का
चे हरा दू सरी तरि था इस कलए मैं इस तरि से चलते हुए उस तरि उस ब्यल्कक्त के
चे हरे की तरि बढ गया। मैने महसू स ककया कक कमरे ही ं नही ं बल्कि पू रे हाल्किटल में
सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा सन्नाटा कक अगर कही ं सु ई भी कगरे तो उसके कगरने की
आिा़ि ककसी बम के धमाके से कम न सु नाई दे ।

बे ड पर पडे ब्यल्कक्त के चे हरे की तरि आकर मेरी ऩिर कजस चे हरे पर पडी उसे दे ख
कर मैं बु री तरह उछल पडा। हैरत और आश्चयग से मेरी ऑखें िट पडी ं। ककन्तु किर
जैसे एकदम से मु झे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गु ़िरा हुआ िो कल
घूमने लगा कजसमें मैं था एक किधी नाम की लडकी थी और उस लडकी के साथ
शाकमल मेरा प्यार था। किर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी किधी
नाम की लडकी का धोखा था, उसकी बे ििाई थी। उसी तस्वीर में मेरा िो रोना था
िो चीखना कचल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब ची़िें मेरी ऑखों के सामने कई
बार ते ़िी से घू मती चली गई।

539
मेरे चे हरे के भाि बडी ते ़िी से बदले । दु ख ददग और नफ़रत के भाि एक साथ आकर
ठहर गए। ऑखों में ऑसू ॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर
कलया। कदल में एक ते ़ि गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में
कचं गाररयाॅ सी जलने बु झने लगी ं।

मेरे कदल की धडकने और मेरी साॅसें ते ़ि ते ़ि चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई
अल्फा़ि नही ं कनकल रहे थे । ककन्तु ये सच है कक कुछ कहने के कलए मेरे होंठ
िडिडा रहे थे । मुझे ऐसा लग रहा था कक या तो मैं खु द को कुछ कर लू ॅ या किर
बे ड पर ऑखें बं द ककये आराम से पडी इस लडकी को खत्म कर दू ॅ। ककन्तु जाने
कैसे मैं कुछ कर नही ं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जू झ ही रहा था कक सहसा बे ड पर आराम से करिट


कलए पडी उस बला ने अपनी ऑखें खोली कजस बला को मैने टू ट टू ट कर चाहा था।

अपडे ट........《 45 》

अब तक,,,,,,,,,

बे ड पर पडे ब्यल्कक्त के चे हरे की तरि आकर मेरी ऩिर कजस चे हरे पर पडी उसे दे ख
कर मैं बु री तरह उछल पडा। हैरत और आश्चयग से मेरी ऑखें िट पडी ं। ककन्तु किर
जैसे एकदम से मु झे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गु ़िरा हुआ िो कल
घूमने लगा कजसमें मैं था एक किधी नाम की लडकी थी और उस लडकी के साथ
शाकमल मेरा प्यार था। किर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी किधी
नाम की लडकी का धोखा था, उसकी बे ििाई थी। उसी तस्वीर में मेरा िो रोना था
िो चीखना कचल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब ची़िें मेरी ऑखों के सामने कई
बार ते ़िी से घू मती चली गई।

मेरे चे हरे के भाि बडी ते ़िी से बदले । दु ख ददग और नफ़रत के भाि एक साथ आकर
ठहर गए। ऑखों में ऑसू ॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर
कलया। कदल में एक ते ़ि गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में
कचं गाररयाॅ सी जलने बु झने लगी ं।

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मेरे कदल की धडकने और मेरी साॅसें ते ़ि ते ़ि चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई
अल्फा़ि नही ं कनकल रहे थे । ककन्तु ये सच है कक कुछ कहने के कलए मेरे होंठ
िडिडा रहे थे । मुझे ऐसा लग रहा था कक या तो मैं खु द को कुछ कर लू ॅ या किर
बे ड पर ऑखें बं द ककये आराम से पडी इस लडकी को खत्म कर दू ॅ। ककन्तु जाने
कैसे मैं कुछ कर नही ं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जू झ ही रहा था कक सहसा बे ड पर आराम से करिट


कलए पडी उस बला ने अपनी ऑखें खोली कजस बला को मैने टू ट टू ट कर चाहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उथर, अभय चाचा की ससु राल में।


करुर्ा चाची इस िक्त अपने कमरे में आराम कर रही थी। दोपहर हो चु की थी। सब
लोगों के खाना खा ले ने के बाद उन्होंने भी खाया और किर आराम करने के कलए
अपने कमरे में चली गईं। करुर्ा चाची के मायके िालों का पररचय दे ने की यहाॅ पर
कदाकचत कोई ़िरूरत तो नही ं है पर किर भी पाठकों की जानकारी के कलए दे ही
दे ता हूॅ।

चन्द्रकान्त कसं ह राजपू त, ये करुर्ा चाची के दादा जी हैं। इनकी उमर इस समय पैं सठ
के ऊपर है। ये एक िौजी आदमी हैं। िौज में मेजर थे ये। अब तो खै र सरकारी
पें शन ही कमलती है इन्हें ककन्तु खु द भी घर पररिार और ़िमीन जायदाद से सम्पन्न हैं
ये।

हेमलता कसं ह राजपू त, ये करुर्ा चाची की दादी हैं। ये बाॅसठ साल की हैं।
चन्द्रकाॅत कसं ह और हेमलता कसं ह के तीन लडके और एक लडकी थी।

उदयराज कसं ह राजपू त, ये चन्द्रकाॅत कसं ह के बडे बे टे थे जो कुछ साल पहले गंभीर
बीमारी के चलते भगिान को प्यारे हो चु के हैं।
सु भद्रा कसं ह राजपू त, ये करुर्ा चाची की माॅ हैं। उमर यही कोई पचास के आस
पास। किधिा हैं ये। इनके दो ही बच्चे हैं। सबसे पहले करुर्ा चाची उसके बाद
हेमराज कसं ह राजपू त। हेमराज कसं ह की भी शादी हो चु की है और उसके दो बच्चे हैं।

मेघराज कसं ह राजपू त, ये करुर्ा चाची के चाचा हैं। इनकी उमर पचास के आस पास
है। पढे कलखे हैं ये। मगर अपनी सारी ़िमीनों पर खे ती बाडी का काम करिाते हैं।
इनकी पत्नी का नाम सरोज है जो कक पैं तालीस साल की हैं। इनके दो बे टे हैं जो शहर
में रह कर पढाई करते हैं।

541
कगररराज कसं ह राजपू त, ये करुर्ा चाची के छोटे चाचा हैं । ये पैं तालीस साल के हैं और
शहर में ही रहते हैं । शहर में ये एक बडी सी प्राइिे ट कंपनी में बडी पोस्ट पर कायगरत
हैं। इनकी पत्नी का नाम शै लजा है। इनके दो बच्चे हैं जो शहर में ही रहते हैं अपने
माॅ बाप के साथ।

पु ष्पा कसं ह, ये करुर्ा चाची की इकलौती बु आ हैं। उमर यही कोई चालीस के आस
पास। इनके पकत का नाम भरत कसं ह है। ये पे शे से सरकारी डाक्टर हैं। पु ष्पा बु आ के
दो बच्चे हैं। एक बच्चा पढाई करके एक बडी कंपनी में नौकरी कर रहा है जबकक
दू सरा बे टा अपने बाप की तरह डाक्टर बनना चाहता है इस कलए डाक्टरी की पढाई
कर रहा है।

तो ये था करुर्ा चाची के मायके िालों का सं कक्षप्त पररचय। अब कहानी की तरि


चलते हैं।
करुर्ा चाची अपने कमरे में बे ड पर पडी ककसी गहरे खयालों में गुम थी। कल उनके
पास उनके पकत अभय का िोन आया था। उन्होंने बताया था कक किराज ककसी काम
से गाि आया है, इस कलए िो बच्चों को ले कर उसके साथ ही मुम्बई आ जाए। अभय
ने करुर्ा को पहले ही बता कदया था कक िो मु म्बई में किराज के साथ ही रह रहा है।
उसने सारी राम कहानी करुर्ा को बता कदया था।

करुर्ा अपने पकत से असकलयत जान कर बहुत हैरान हुई थी और बे हद दु खी भी।


उसने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कक एक भाई अपने भाई को इस तरह जान से मार
सकता है। अपनी जेठानी प्रकतमा के चररत्र का सु न कर उसे लकिा सा मार गया था।
उसके मन में प्रकतमा के प्रकत घृर्ा ि नफ़रत पै दा हो गई थी। उसे याद आता कक कैसे
प्रकतमा उसके पास आकर उससे अश्लील बातें ककया करती थी।

करुर्ा को अब समझ में आया था कक उसकी जेठानी उससे ऐसी अश्लील बातें क्ों
ककया करती थी। उसका एक ही मकसद होता था कक िो करुर्ा से ऐसी बातें करके
उसके अं दर िासना की आग को भडका दे ताकक करुर्ा उस आग में जलते हुए कुछ
भी करने को तै यार हो जाए। करुर्ा ये सब सोच सोच कर हैरान थी कक उसकी
जेठानी उसके साथ क्ा करना चाहती थी।

करुर्ा ने भगिान का लाख लाख शु कक्रया अदा ककया कक अच्छा हुआ कक िो अपनी
जेठानी की उन बातों से खु द को सम्हाले रखा था। िरना जाने कैसा अनथग हो जाता।
अभय ने उसे सब कुछ बता कदया था। उसने करुर्ा को बता कदया था कक उसका
भतीजा किराज अब बहुत बडा आदमी बन गया है। उसने बताया कक कैसे एक ग़ैर

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इं सान ने उसे अपना बे टा बना कलया और उसके नाम अपनी अरबों की सं पकि कर
दी। करुर्ा ये सब जान कर बहुत खु श हुई थी। उसकी ऑखों से ऑसू छलक पडे थे
ये सब जान कर।

अभय ने जब उससे कहा कक िो बच्चों को ले कर किराज के साथ मुम्बई आ जाए तो िो


इस बात से बडा खु श हुई थी। उसे लग रहा था कक ककतना जल्दी िो मुम्बई पहुॅच
जाए और बडी बहन के समान अपनी जेठानी गौरी से कमले । उससे कमल कर िो
अपने बतागि के कलए माफ़ी मागना चाहती थी और उससे कलपट कर खू ब रोना चाहती
थी। जब से उसे अभय के द्वारा सारी सच्चाई का पता चला था तब से िह अकेले में
अर्क्र ऑसू बहाती रहती थी। उसे अपनी जे ठानी गौरी के साथ कबताए हर पल याद
आते । उसे याद आता कक कैसे गौरी उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और
उससे प्यार करती थी। उसे कोई काम नही ं करने कदया करती थी। िो हमेशा यही
कहती कक तु म पढी कलखी हो इस कलए तु म्हारा काम कसिग बच्चों को पढाना है। घर के
सारे काम िो खु द कर ले गी।

बे ड पर पडी करुर्ा ये सब सोच सोच कर ऑसू बहा ही रही थी कक सहसा उसका


मोबाइल बज उठा। िो खयालों के अथाह सागर से बाहर आई और कसरहाने रखे
मोबाइल को उठाकर उसकी स्क्रीन में फ्लैश कर रहे 'अभय जी' नाम को दे खा तो
तु रंत ही उसने काल को ररसीि कर मोबाइल को कान से लगा कलया।

"...........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।


"क्ा???" करुर्ा हिे से चौंकी____"आज ही कनकलना होगा मुझे? मगर बात क्ा है
जी? आप तो कह रहे थे कक कल जाना है।"
"........।" उधर से अभय ने किर कुछ कहा।
"ये क्ा कह रहे हैं आप?" करुर्ा के चे हरे पर एकाएक ही कचं ता के भाि आ
गए___"ऐसा कैसे हो सकता है?"

".......।" उधर से अभय कुछ दे र तक उससे कुछ कहता रहा।


"ठीक है आप कचं ता मत कीकजए।" करुर्ा ने कहा__"मैं हेमराज के साथ ही बच्चों को
ले कर यहाॅ से कनकलू ॅगी। उसके बाद मैं रे लिे स्टे शन पर किराज से कमल लू ॅगी।"

"..........।" उधर से अभय ने किर कुछ कहा।


"जी ठीक है ।" करुर्ा ने कहा___"मैं अभी माॅ और दादा जी से बात करती हूॅ।
सामान कुछ ज्यादा नही ं है। बस एक बै ग ही है । बाॅकी जैसा आप कहें ।"
"..........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" करुर्ा ने कसर कहलाया___"मैं सामान ज्यादा नही ं लू ॅगी। आप

543
हेमराज को समझा दीकजएगा।"

उधर से अभय ने कुछ और कहा कजस पर करुर्ा ने हाॅ कह कर कसर कहलाया


उसके बाद काल कट हो गई। काल कट होने के बाद करुर्ा ने गहरी साॅस ली और
किर बे ड से उतर कर कमरे से बाहर आ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर हाल्किटल में।


मेरे कदलो कदमाग़ में ऑधी तू िान चल रहा था। मुझ पर ऩिर पडते ही बे ड पर पडी
किधी के चे हरे पर ऐसे भाि उभरे जैसे िह मु झे दे ख कर एकदम से स्टे चू में तब्दील हो
गई हो। एकटक मेरी तरि दे खे जा रही थी िह। किर सहसा उसके चे हरे के भाि
एकाएक ही बदले । उस चे हरे पर दु ख और पीडा के भाि उभर आए। पथराई हुई
ऑखों ने अपने अं दर से ककसी टू टे हुए बाॅध की तरह ऑसु ओ ं को बाहर की तरि
ते ़ि प्रिाह से बहाना शु रू कर कदया।

उसके चे हरे के बदले हुए उन भािों को दे ख कर भी मेरे अं दर की नफ़रत और


आक्रोश में कोई कमी नही ं आई। मेरी ऑखों के सामने कोई और ही मं ़िर घू म रहा
था। गु़िरे हुए कल की तस्वीरें बार बार ऑखों के सामने घूम रही थी ं। अभी मैं इन
सब तस्वीरों को दे ख ही रहा था कक तभी बे जान हो चु के किधी के कजस्म में हिा सा
कंपन हुआ और उसके थरथराते हुए होठों से जो लडखडाता हुआ शब्द कनकला
उसने मुझे दू सरी दु कनयाॅ से लाकर इस हकीक़त की दु कनयाॅ में पटक कदया।

"र..राऽऽऽज।" बहुत ही करुर् भाि से मगर लऱिता हुआ किधी का ये स्वर मेरे
कानो से टकराया। हकीक़त की दु कनयाॅ में आते ही मेरी ऩिर किधी के चे हरे पर
किर से पडी तो इस बार मेरा समूचा अल्कस्तत्व कहल गया। किधी की ऑखों से ऑसू बह
रहे थे , उसके चे हरे पर अथाह पीडा के भाि थे । ये सब दे ख कर मेरा हृदय हाहाकार
कर उठा। पल भर में मेरे अं दर मौजूद उसके प्रकत मेरी नफ़रत घृर्ा और गु स्सा सब
कुछ साबु न के झाग की तरह बै ठता चला गया। मेरे टू टे हुए कदल के ककसी टु कडे में
दबा उसके कलए बे पनाह प्यार चीख उठा।

मैने दे खा कक करिट के बल ले टी किधी का एक हाॅथ धीरे से ऊपर की तरि ऐसे


अं दा़ि में उठा जैसे िो मु झे अपने पास बु ला रही हो। मेरा समूचा कजस्म ही नही ं बल्कि
अं दर की आत्मा तक में एक झंझािात सा हुआ। मैं ककसी सम्मोहन के िशीभू त
होकर उसकी तरि बढ चला। इस िक्त जैसे मैं खु द को भू ल ही चु का था। कुछ ही
पल में मैं किधी के पास उसके उस उठे हुए हाॅथ के पास पहुॅच गया।

"त तु म आ गए राज।" मुझे अपने करीब दे खते ही उसने अपने उस उठे हुए हाथ से

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मेरी बाॅई कलाई को पकडते हुए कहा___"मैं तु म्हारे ही आने का यहाॅ इन्त़िार कर
रही थी। मेरी साॅसें कसिग तु म्हें ही दे खने के कलए बची हुई हैं ।"

मेरे मुख से उसकी इन बातों पर कोई लफ़्ि न कनकला। ककन्तु मैं उसकी आकखरी
बात सु न कर बु री तरह चौंका ़िरूर। हैरानी से उसकी तरि दे खा मैने। मगर किर
अचानक ही जाने क्ा हुआ मु झे कक मेरे चे हरे पर किर से िही नफ़रत और गुस्सा
उभर आया। मैने एक झटके से उसके हाॅथ से अपनी कलाई को छु डा कलया।

"अब ये कौन सा नया नाटक शु रू ककया है तु मने ?" मेरे मुख से सहसा गुरागहट
कनकली___"और क्ा कहा तु मने कक तु म मेरा ही इन्त़िार कर थी? भला क्ों कर रही
थी मेरा इन्त़िार? कही ं ऐसा तो नही ं कक तु म्हें पता चल गया हो कक इस समय मैं किर
से रुपये पै से िाला हो गया हूॅ? इस कलए पै सों के कलए किर से मु झे बु ला कलया तु मने ।
िाह क्ा बात है जिाब नही ं है ते रा। अब समझ में आई सारी बात मु झे। मुझे मुम्बई
से बु लाने के कलए मेरे ही दोस्त का इस्ते माल ककया तू ने। क्ा कदमाग़ लगाया है तू ने
लडकी क्ा कदमाग़ लगाया है। मगर ते रे इस कदमाग़ लगाने से अब कुछ नही ं होने
िाला। मैं ते रे इस नाटक में िसने िाला नही ं हूॅ अब। इतना तो सबक सीख ही कलया
है मैने कक तु झ जैसी लडकी से कैसे दू र रहा जाता है। मु ल्किल तो था मगर सह कलया
है मैने, और अब उस सबसे बहुत दू र कनकल गया हूॅ। अब कोई लडकी मुझे अपने
रूप जाल में या अपने झठ ू े प्यार के जाल में नही ं िसा सकती। इस कलए लडकी, ये
जो तू ने नाटक रचा है न उसे यही ं खत्म कर दे । अब कुछ नही ं कमलने िाला यहाॅ।
मेरा यार भोला था नासमझ था इस कलए ते री बातों के जाल में िस गया और मु झे
यहाॅ बु ला कलया। मगर कचं ता मत कर मैं अपने यार को सम्हाल लू ॅगा।"

मैने ये सब कबना रुके मानो एक ही साॅस में कह कदया था और कहने के बाद उसके
पास एक पल भी रुकना गिाॅरा न ककया। पलट कर िापस चल कदया, दो क़दम
चलने के बाद सहसा मैं रुका और पलट कर बोला___"एक बात कहूॅ। आज भी तु झे
उतना ही प्यार करता हूॅ कजतना पहले ककया करता था मगर बे पनाह प्यार करने के
बािजूद अब तु झे पाने की मेरे कदल में ़िरा सी भी हसरत बाॅकी नही ं है।"

ये कह कर मैं ते ़िी से पलट गया। पलट इस कलए गया क्ोंकक मैं उस बे ििा को
अपनी ऑखों में भर आए ऑसु ओ ं को कदखाना नही ं चाहता था। मेरा कदल अं दर ही
अं दर बु री तरह तडपने लगा था। मुझे लग रहा था कक मैं हाल्किटल के बाहर दौडते
हुए जाऊ और बीच सडक पर घुटनों के बल बै ठ कर तथा आसमान की तरि चे हरा
करके ़िोर ़िोर से चीखू ॅ कचल्लाऊ और दहाडें मार मार कर रोऊ। सारी दु कनयाॅ
मेरा िो रुदन दे खे मगर िो न दे खे सु ने कजसे मैं आज भी टू ट कर प्यार करता हूॅ।

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"तु म्हारी इन बातों से पता चलता है राज कक तु म आज के समय में मु झसे ककतनी
नफ़रत करते हो।" सहसा किधी की करुर् आिा़ि मेरे कानों पर पडी____"और सच
कहूॅ तो ऐसा तु म्हें करना भी चाकहए। मु झे इसके कलए तु मसे कोई कशकायत नही ं है।
मैने जो कुछ भी तु म्हारे साथ ककया था उसके कलए कोई भी यही करता। मगर, मेरा
यकीन करो राज मेरे मन में ना तो पहले ये बात थी और ना ही आज है कक मैने पै सों
के कलए ये सब ककया।"

"बं द करो अपनी ये बकिास।" मैने पलट कर चीखते हुए कहा था, बोला___"ते री
कितरत को अच्छी तरह जानता हूॅ मैं । आज भी तू ने मु झे इसी कलए बु लिाया है
क्ोंकक तु झे पता चल चु का है कक अब मैं किर से पै से िाला हो गया हूॅ। पै सों से प्यार
है तु झे, पै सों के कलए तू ककसी भी लडके के कदल के साथ ल्कखलिाड कर सकती है।
मगर, अब ते री कोई भी चाल मु झ पर चलने िाली नही ं है समझी? मेरा कदल तो करता
है कक इसी िक्त तु झे ते रे ककये की स़िा दू ॅ मगर नही ं कर सकता मैं ऐसा। क्ोंकक
मुझसे ते री तरह ककसी को चोंट पहुॅचाना नही ं आता और ना ही मैं अपने मतलब के
कलए ते रे साथ कुछ करना चाहता हूॅ। तु झे अगर मैं कोई दु िा नही ं दे सकता तो
बद् दु िा भी नही ं दू ॅगा।"

मेरी बातें सु न कर किधी के कदल में कदाकचत टीस सी उभरी। उसकी ऑखें बं द हो गई
और बं द ऑखों से ऑसु ओ ं की धार बह चली। मगर किर जैसे उसने खु द को सम्हाला
और मेरी तरि कातर भाि से दे खने लगी। उसे इस तरह अपनी तरि दे खता पाकर
एक बार मैं किर से कहल गया। मेरे कदल में बडी ़िोर की पीडा हुई मगर मैने खु द को
सम्हाला। आज भी उसके चे हरे की उदासी और ऑखों में ऑसू दे ख कर मैं तडप
जाता था ककन्तु अं दर से कोई चीख कर मु झसे कहने लगता इसने ते रे प्यार की कदर
नही ं की। इसने तु झे धोखा कदया था। ते री सच्ची चाहत को म़िाक बना कर रख कदया
था। बस इस एहसास के साथ ही उसके कलए मेरे अं दर जो तडप उठ जाती थी िो
कही ं गुम सी हो जाती थी।

"तु मने तो मु झे कोई स़िा नही ं दी राज।" सहसा किधी ने पु नः करुर् भाि से
कहा___"मगर मेरी क़िदगी ने मुझे खु द स़िी दी है। ऐसी स़िा कक मेरी साॅसें बस
चं द कदनों की या किर चं द पलों की ही मे हमान हैं। ककस्मत बडी खराब ची़ि भी होती
है, एक पल में हमसे िो सब कुछ छीन ले ती है कजसे हम ककसी भी कीमत पर ककसी
को दे ना नही ं चाहते । ककस्मत पर ककसी का ़िोर नही ं चलता राज। ये मेरी
बदककस्मती ही तो थी कक मैने तु म्हारे साथ िो सब ककया। मगर यकीन मानो उस
समय जो मुझे समझ में आया मैने िही ककया। क्ोंकक मु झे कुछ और सू झ ही नही ं
रहा था। भला मैं ये कैसे सह सकती थी कक मे री छोटी सी क़िदगी के साथ तु म इस
हद तक मु झे प्यार करने लगो कक मेरे मरने के बाद तु म खु द को सम्हाल ही न पाओ?

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उस समय मैने तु म्हें धोखा कदया मगर उस समय के मेरे धोखे ने तु म्हें इतना भी टू ट
कर कबखरने नही ं कदया कक बाद में तु म सम्हल ही न पाते । मैं मानती हूॅ कक कदल जब
ककसी के द्वारा टू टता है तो उसका ददग हमेशा के कलए कदल के ककसी कोने में दबा
बै ठा रहता है। मगर, उस समय के हालात में तु म टू टे तो ़िरूर मगर इस हद तक
नही ं कबखरे । िरना आज मेरे सामने इस तरह खडे नही ं रहते । आज तु म कजस मुकाम
पर हो िहाॅ नही ं पहुॅच पाते ।"

किधी की बातें सु न कर मु झे कुछ समझ न आया कक ये क्ा अनाप शनाप बके जा


रही है? मगर उसके लहजे में और उसके भाि में कुछ तो ऐसा था कजसने मुझे कुछ
हद तक शान्त सा कर कदया था।

"तो तु म क्ा चाहती थी कक मैं टू ट कर कबखर जाता और किर कभी सम्हलता ही


नही ं?" मैने तीके भाि से कहा___"अरे मैं तो आज भी उसी हालत में हूॅ। मगर कहते
हैं न कक इं सान के जीिन में कसिग उसी बस का हक़ नही ं होता बल्कि उसके पररिार
िालों का भी होता है। मेरी माॅ मेरी बहन ने मुझे प्यार ही इतना कदया है कक मैं कबखर
कर भी नही ं कबखरा। मैने भी सोच कलया कक ऐसी लडकी के कलए क्ा रोना कजसने
प्यार को कभी समझा ही नही ं? रोना है तो उनके कलए रोओ जो सच में मु झसे प्यार
करते हैं।"

"ये तो खु शी की बात है कक तु मने ऐसा सोचा और खु द को सम्हाल कलया।" किधी ने


िीकी मु स्कान के साथ कहा__"मैं भी यही चाहती थी कक तु म उस सबसे खु द को
सम्हाल लो और जीिन में आगे बढ जाओ। ककसी एक के चले जाने से ककसी का
जीिन रुक नही ं जाता। समझदार इं सान को सबकुछ भू ल कर आगे बढ जाना
चाकहए। िही तु मने ककया, इस बात से मैं खु श हूॅ राज। यही तो चाहती थी मैं। यकीन
मानो तु म्हें आज इस तरह दे ख कर मेरे मन का बोझ उतर गया है। मैं तु मसे ये नही ं
कहूॅगी कक तु म मुझे उस सबके कलए माफ़ कर दो जो कुछ मैने तु म्हारे साथ ककया
था। अगर तु म ऐसे ही खु श हो तो भला मैं माफ़ी माॅग कर तु म्हारी उस खु शी को
कैसे कमटा सकती हूॅ? अब तु म जाओ राज, जीिन में खू ब तरक्की करो और अपनों
के साथ साथ खु द को भी खु श रखो। और हाॅ, जीिन में मु झे कभी याद मत करना,
क्ोंकक मैं याद करने लायक नही ं हूॅ।"

किधी की इन किकचत्र बातों ने मु झे उलझा कर रख कदया था। मुझे समझ नही ं आ रहा
था कक आज इसे हो क्ा गया है? ये तो ऐसी बातें कह रही थी जैसे कोई उपदे शक हो।
मेरे कदलो कदमाग़ में तरह तरह की बातें चलने लगी थी ं।

"जाते जाते मेरी एक आऱिू भी पू री करते जाओ राज।" किधी का िाक् मेरे कानों से

547
टकराया___"हलाॅकक तु मसे कोई आऱिू रखने का मुझे कोई हक़ तो नही ं है मगर मैं
जानती हूॅ कक तु म मेरी आऱिू ़िरूर पू री करोगे।" कहने के बाद किधी कुछ पल के
कलए रुकी किर बोली___"मेरे पास आओ न राज। मैं तु म्हें और तु म्हारे चे हरे को जी
भर के दे खना चाहती हूॅ। तु म्हारे चे हरे की इस सुं दर तस्वीर को अपनी ऑखों में
किर से बसा ले ना चाहती हूॅ। मेरी ये आऱिू पू री कर दो राज। इतना तो कर ही
सकते हो न तु म?"

किधी की बात सु न कर मेरे कदलो कदमाग़ में धमाका सा हुआ। मेरे पू रे कजस्म में
झुरझुरी सी हुई। पे ट में बडी ते जी से जैसे कोई गैस का गोला घूमने लगा था। कदमाग़
एकदम सु न्ना सा पडता चला गया। कानों में कही ं दू र से सीकटयों की अनिरत आिा़ि
गूॅजती महसू स हुई मुझे। पल भर में मेरे ़िहन में जाने ककतने ही प्रकार के खयाल
आए और जाने कहाॅ गु म हो गए। बस एक ही खयाल गु म न हुआ और िो ये था कक
किधी ऐसा क्ों चाह रही है?

ककसी गहरे खयालों में खोया हुआ मैं इस तरह किधी की तरि बढ चला जैसे मुझ पर
ककसी तरह का सम्मोहन हो गया हो। कुछ ही पल में मैं किधी के करीब उसके चे हरे
के पास जा कर खडा हो गया। मेरे खडे होते ही किधी ने ककसी तरह खु द को उठाया
और बे ड की कपछली पु श् से पीठ कटका कलया। अब िो अधले टी सी अिथथा में थी।
चे हरा ऊपर करके उसने मेरे चे हरे की तरि दे खा। उसकी ऑखों में ऑसु ओ ं का
गरम जल तै रता हुआ ऩिर आया मुझे। मैने पहली बार उसके चे हरे को बडे ध्यान से
दे खा और अगले ही पल बु री तरह चौंक पडा मैं। मु झे किधी के चे हरे पर मुकम्मल
ल्कख़िा कदखाई दी। जो चे हरा हर पल ताजे ल्कखले गुलाब की माकनन्द ल्कखला हुआ रहा
करता था आज उस चे हरे पर िीराकनयों के कसिा कुछ न था। ऐसा लगता था जैसे िो
शकदयों से बीमार हो।

उसे इस हालत में दे ख कर एक बार किर से मे रा कदल तडप उठा। जी चाहा कक अभी
झपट कर उसे अपने सीने से लगा लू ॅ मगर ऐन िक्त पर मु झे उसका धोखा याद आ
गया। उसका िो दो टू क जिाब दे ना याद आ गया। मु झे कभखारी कहना याद आ
गया। इन सबके याद आते ही मेरे चे हरे पर कठोरता छाती चली गई। एक बार किर
से मेरे अं दर से नफ़रत और गु स्सा उभर कर आया और मेरे चे हरे तथा ऑखों में
आकर ठहर गया।

"मैं तु म्हें दु िा में ये भी नही ं कह सकती कक तु म्हें मेरी उमर लग जाए।" तभी किधी ने
छलक आए ऑसु ओ ं के साथ कहा___"बस यही दु िा करती हूॅ कक तु म हमेशा खु श
रहो। जीिन में हर कोई तु म्हें कदलो जान से प्यार करे । कभी ककसी के द्वारा तु म्हारा
कदल न दु खे। खु दा कमले गा तो उससे पू छूॅगी कक मैने ऐसा क्ा गुनाह ककया था जो

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उसने मुझे ऐसी क़िंदगी बक्शी थी? खै र, अब तु म जाओ राज, मैने तु म्हारी तस्वीर को
इस तरह अपनी ऑखों में बसा कलया है कक अब हर जन्म में मुझे कसिग तु म ही ऩिर
आओगे।"

किधी की इस बात से एक बार किर से मेरे चे हरे पर उभर आए नफ़रत ि गु स्से में
कमी आ गई। मैंने उसे अजीब भाि से दे खा। मेरे अं दर कोई ़िोर ़िोर से चीखे जा
रहा था कक इसे एक बार अपने सीने से लगा ले राज। मगर मैने अपने अं दर के उस
शोर को शख्ती से दबा कदया और पलट कर कमरे के बाहर की तरि चल कदया। मैने
महसू स ककया कक मेरी कोई अनमोल ची़ि मु झसे हमेशा के कलए दू र हुई जा रही है।
मेरे कदल की धडकने अनायास ही ़िोर ़िोर से धडकने लगी। मनो मल्कस्तष्क में बडी
ते ़िी से कोई तू िान चलने लगा था। अभी मैं दरिाजे के पास ही पहुॅचा था कक.....

"रुक जाओऽऽ।" ये िाक् एक नई आिा़ि के साथ मेरे कानों से टकराया था।


दरिाजे के करीब बढते हुए मेरे क़दम एकाएक ही रुक गए। मैं कबजली की सी ते ़िी
से पलटा। कमरे में ही बे ड के पास खडी कजस शल्कख्सयत पर मेरी ऩिर पडी उसे दे ख
कर मैं हक्का बक्का रह गया। आश्चयग और अकिश्वास से मेरी ऑखें िटी की िटी रह
गईं। मु झे अपनी ऑखों पर यकीन नही ं हुआ कक कजस शल्कख्सयत को मेरी ऑखें दे ख
रही हैं िो सच में िही हैं या किर ये मेरी ऑखों का कोई भ्रम है।

"मुझे तु मसे ये उम्मीद नही ं थी राज।" सहसा ये नई आिा़ि किर से मेरे कानों से
टकराई___"तु म इस तरह कैसे यहाॅ से जा सकते हो? इतनी बे रुखी तो कोई अपने
ककसी दु श्मन से भी नही ं जाकहर करता कजतनी तु म किधी को दे ख कर ़िाकहर कर रहे
हो।"

इस बार मैं बु री तरह चौंका। ये तो सच में िही हैं। यानी ररतू दीदी। जी हाॅ दोस्तो, ये
िही ररतू दीदी हैं कजन्होंने अपने जीिन में कभी भी मुझे भाई नही ं माना और ना ही
मुझसे बात करना ़िरूरी समझा। मगर मैं इस बात से हैरान था कक िो यहाॅ कैसे
मौजूद हो सकती हैं? जब मैं आया था इस कमरे में तब तो ये यहाॅ नही ं थी, किर
अचानक ये कहाॅ से यहाॅ पर प्रकट हो गईं?

"प्ली़ि दीदी।" तभी बे ड पर अधले टी अिथथा में बै ठी किधी ने ररतू दीदी से


कहा___"कुछ मत ककहए उसे ।"
"नही ं किधी।" ररतू दीदी ने आिे शयुक्त भाि से कहा__"मु झे बोलने दे अब। माना कक
तू ने जो ककया िो उस समय के कहसाब से ग़लत था मगर इसका मतलब ये नही ं कक
कबना ककसी बात को जाने समझे ये तु झे इस तरह बोल कर यहाॅ से चला जाए।"

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"नही ं दीदी प्ली़ि।" किधी ने किनती करते हुए कहा___"ऐसा मत ककहए उसे । मु झे
ककसी बात की सिाई नही ं दे ना है उससे । आप जानती हैं कक मैं उसे ककसी भी तरह
का दु ख नही ं दे ना चाहती अब।"
"क्ों करती है रे ऐसा तू ?" ररतू दीदी की आिा़ि सहसा भारी हो गई, ऑखों में ऑसू
आ गए, बोली___"ऐसा मत कर किधी। िरना ये ़िमीन और िो आसमान िट
जाएगा। तू चाहती थी न कक तू अपने आकखरी समय में अपने इस महबू ब की बाहों में
ही दम तोडे ? किर क्ों अब इस सबसे मुकर रही हो तू ? अब तक तो तडप ही रही थी
न तो अब अपने अं कतम समय में क्ों इस तडप को ले कर जाना चाहती है? नही ं नही,ं
मैं ऐसा हकगग़ि नही ं होने दू ॅगी।"

ररतू दीदी की बातें सु न कर मेरे कदलो कदमाग़ में भयंकर किष्फोट हुआ। ऐसा लगा जैसे
आसमान से कोई कबजली सीधा मेरे कदल पर कगर पडी हो। पलक झपकते ही मेरी
हालत खराब हो गई। कदमाग़ में हर बात बडी ते ़िी से घूमने लगी। एक एक बात, एक
एक दृष्य मेरे ़िहन से टकराने लगे। पिन का मुझे िोन करके यहाॅ अजेन्ट बु लाना,
मेरे द्वारा िजह पू छने पर उसका अब तक चु प रहना। हाल्किटल के इस कमरे के
बाहर से ये कह कर चले जाना कक मैं यहाॅ जो कुछ भी दे खूॅ सु नूॅ उसे दे ख सु न
कर खु द को सम्हाले रखू ॅ। हाल्किटल के इस कमरे के अं दर किधी का मुझसे कमलना,
उसकी िो सब किकचत्र बातें और अब ररतू दीदी का यहाॅ मौजूद होकर ये सब
कहना। ये सब ची़िें मेरे कदलो कदमाग़ में बडी ते ़िी घू मने लगी थी।

मुझे अब समझ आया कक असल मा़िरा क्ा है। मेरे कदमाग़ ने काम करना शु रू कर
कदया और अब मु झे सब कुछ समझ में आने लगा था। दरअसल किधी को कुछ हुआ
है कजसके कलए पिन ने मु झे यहाॅ बु लाया था। मगर किधी को ऐसा क्ा हो गया है?
ररतू दीदी ने ये क्ा कहा कक____ "तू चाहती थी न कक तू अपने आकखरी समय में
अपने इस महबू ब की बाहों में ही दम तोडे ?" हे भगिान! ये क्ा कहा ररतू दीदी ने ?

"नननही ंऽऽऽऽ।" अपने ही सोचों में डूबा मैं पू री शल्कक्त से चीख पडा था, पल भर में
मेरी ऑखों से ऑसु ओ ं का जैसे कोई बाॅध टू ट पडा। मैं भागते हुए किधी के पास
आया। इधर मेरी चीख से ररतू दीदी और किधी भी चौंक पडी थी।

मैं भागते हुए किधी के पास आया था, बे ड के ककनारे पर बै ठ कर मैने किधी को उसके
दोनो कंधों से पकड कर खु द से छु पका कलया और बु री तरह रो पडा। मैं किधी को
अपने सीने से बु री तरह भी ंचे हुए था। मेरे मुख से कोई बोल नही ं िूट रहा था। मैं बस
रोये जा रहा था। मु झे समझ में आ चु का था कक किधी को कुछ ऐसा हो गया है कजससे
िो मरने िाली है। ये बात मेरे कलए मेरी जान ले ले ने से कम नही ं थी।

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"नही ं राज।" किधी मु झसे छु पकी खु द भी रो रही थी, ककन्तु उसने खु द को सम्हालते
हुए कहा___"इस तरह मत रोओ। मैं अपनी ऑखों के सामने तु म्हें रोते हुए नही ं दे ख
सकती। प्ली़ि चु प हो जाओ न।"
"नही ं नही ं नही ं।" मैंने तडपते हुए कहा___"तु म मु झे छोंड कर कही ं नही ं जाओगी।
तु म नही ं जानती कक तु म्हारे कलए ककतना तडपा हूॅ मैं। पर अब और नही ं किधी। मैं
तु म्हें कुछ नही ं होने दू ॅगा।"

"पागल मत बनो राज।" किधी ने मेरे कसर को सहलाते हुए कहा___"खु द को सम्हालो
और जीिन में आगे बढो।"
"मैं कुछ नही ं जानता किधी।" मैने कससकते हुए कहा___"मैं किर से तु म्हें खोना नही ं
चाहता। मुझे बताओ कक क्ा हुआ है तु म्हें? मैं तु म्हारा इला़ि करिाऊगा। दु कनयाॅ
भर के डाक्टरों को तु म्हारे इला़ि के कलए पल भर में ले आऊगा।"

"अब कुछ नही ं हो सकता राज।" किधी ने सहसा मु झसे अलग होकर मेरे चे हरे को
अपनी दोनो हथे कलयों में ले ते हुए कहा___"मैने कहा न कक मेरा सिर खत्म हो चु का
है। मुझे ब्लड कैंसर है िो भी लास्ट स्टे ज का। मेरी साॅसें ककसी भी पल रुक सकती
हैं और मैं भगिान के पास चली जाऊगी।"

"ननही ंऽऽऽ।" किधी की ये बात सु नकर मुझे ़िबरदस्त झटका लगा। ऑखों के
सामने अधेरा सा छा गया। हर ची़ि जैसे ककसी शू न्य में डूबती महसू स हुई मुझे।
कानों में कुछ भी सु नाई नही ं दे रहा था मुझे। कदल की धडकने रुक सी गई और मैं
एकदम से अचे त सी अिथथा में आ गया।

"राऽऽऽज।" किधी के हलक से चीख कनकल गई, िो मेरे चे हरे को थपथपाते हुए बु री
तरह रोने लगी। पास में ही खडी ररतू दीदी भी दौड कर मेरे पास आ गईं। मुझे पीछे
से पकडते हुए मुझे ़िोर ़िोर से आिा़िें लगाने लगी ं। सब कुछ एकदम से ग़मगीन
सा हो गया था। िक्त को एक जगह ठहर जाने में एक पल का भी समय नही ं लगा।

िो दोनो बु री तरह रोये जा रही थी। ररतू दीदी के कदमाग़ ने काम ककया। पास ही
टे बल पर रखे पानी के िास को उठा कर उससे मेरे चे हरे पर पानी कछडका उन्होंने।
थोडी ही दे र में मु झे होश आ गया। होश में आते ही मैं किधी से कलपट कर ़िार ़िार
रोने लगा।

"क्ों किधी क्ों?" मैने कबलखते हुए उससे कहा___"क्ों छु पाया तु मने मु झसे ? क्ा
इसी कलए तु मने मेरे साथ िो सब ककया था, ताकक मैं तु मसे दू र चला जाऊ? और मैं
मूरख ये समझता रहा कक तु मने मेरे साथ ककतना ग़लत ककया था। ककतना बु रा हूॅ मैं,

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आज तक मैं तु म्हें भला बु रा कहता रहा। तु म्हारे बारे में ककतना कुछ बु रा सोचता
रहा। मैने ककतना बडा अपराध ककया है किधी। हाय ककतना बडा पाप ककया मैने।
मुझे तो भगिान भी कभी माफ़ नही ं करे गा।"

"नही ं राज नही ं।" किधी ने तडप कर मु झे अपने से छु पका कलया, बोली___"तु मने कोई
अपराध नही ं ककया, कोई पाप नही ं ककया। तु मने तो बस प्यार ही ककया है मुझे, हर
रूप में तु मने मु झे प्यार ककया है राज। मु झे तु म पर ना़ि है। ईश्वर से यही दु िा
करूॅगी कक हर जन्म में मु झे तु म्हारा ही प्यार कमले ।"

"अपने आपको सम्हालो राज।" सहसा ररतू दीदी ने मु झे पीछे से पकडे हुए
कहा___"ईश्वर इस बात का गिाह है कक तु म दोनो ने कोई पाप नही ं ककया है। किधी ने
उस समय जो ककया उसमें भी उसके मन में कसिग यही था कक तु म उससे दू र हो
जाओ और एक नये कसरे से जीिन में आगे बढो। तु म खु द सोचो राज कक जो किधी
तु म्हें कदलो जान से प्यार करती थी उसने तु म्हें अपने से दू र करने के कलए खु द को
कैसे पत्थर कदल बनाया होगा? उसका कदल ककतना तडपा होगा? मगर इसके बाद भी
उसने तु म्हें खु द से दू र ककया। उस समय का िो दु ख आज के इस दु ख से भारी नही ं
था।"

"ले ककन दीदी इसने मु झसे ये बात छु पाई ही क्ों थी?" मैने रोते हुए कहा___"क्ा इसे
मेरे प्यार पर भरोसा नही ं था? मैं इसके इला़ि के कलए धरती आसमान एक कर दे ता
और इसको इस गंभीर कबमारी से बचा ले ता।"

"नही ं राज।" दीदी ने कहा___"तु म उस समय भी कुछ न कर पाते क्ोंकक तब तक


कैंसर इसके खू न में पू री तरह िैल चु का था। पहले इस बात का इसे पता ही नही ं था
और जब पता चला तो डाक्टर ने बताया कक इसके इलाज में ढे र सारा पै सा लगेगा
और इसका इलाज हमारे दे श में हो पाना भी मुल्किल था। उस समय ना तो तु म इतने
सक्षम थे और ना ही इसके माता कपता जो इसका इलाज करिा पाते । इस कलए किधी
ने िैंसला ककया कक िो तु मसे कजतना जल्दी हो सके दू र हो जाए। क्ोंकक तब तु म्हें
इस बात का भी दु ख होता कक तु म इसका इलाज नही ं करिा पाए। सब कुछ हमारे
हाॅथ में नही ं होता राज। कुछ ईश्वर का भी दखल होता है।"

"कुछ भी ककहये दीदी।" मैने कहा___"कम से कम मैं अपनी किधी के साथ तो रहता।
उसे खु द से अलग करके उसे दु खों के सागर में डूबने तो न दे ता।"
"नही ं राज तु म इस सबसे दु खी मत हो।" किधी ने कहा___"सब कुछ भू ल जाओ। मैं
बस ये चाहती हूॅ कक तु म मु झे खु शी खु शी इस दु कनयाॅ से अलकिदा करो। आज
तु म्हारी बाहों में हूॅ तो मेरे सारे दु ख ददग दू र हो गए हैं। मेरी ख्वाकहश थी कक मेरा दम

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कनकले तो कसिग मेरे महबू ब की बाहों में। तु म्हारी सुं दर छकि को अपनी ऑखों में बसा
कर यहाॅ से जाना चाहती थी। इस कलए दीदी से मैने अपनी ये इच्छा बताई और दीदी
ने मुझसे िादा ककया कक ये तु मको मेरे पास ले कर ़िरूर आएॅगी।"

मैं किधी की इस बात से चौंका। पलट कर ररतू दीदी की तरि दे खा तो ररतू दीदी की
ऩिरें झुक गईं। उनके चे हरे पर एकाएक ही िाकन और अपराध बोझ जैसे भाि उभर
आए।

"राज, तु म्हारी ररतू दीदी अब पहले जैसे नही ं रही ं।" सहसा किधी ने मु झसे कहा___"ये
तु मसे बहुत प्यार करती हैं। इन्हें कभी खु द से दू र न करना। इन्होंने जो कुछ ककया
उसमे इनका कोई दोष नही ं था। इन्होंने तो िही ककया था जो इन्हें बचपन से कसखाया
गया था। आज हर सच्चाई इनको पता चल चु की है इस कलए अब ये तु म्हें ही अपना
भाई मानती हैं। तु म इन्हें माफ़ कर दे ना। इनका मु झ पर बहुत बडा उपकार है राज।
ये मु झे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार दे ती हैं । जब से ये मुझे कमली हैं तब से मु झे यही
एहसास होता रहा है जैसे कक तु म मेरे पास ही हो।"

किधी की इन बातों से मु झे झटका सा लगा। मै ने एक बार किर से पलट कर ररतू दीदी


की तरि दे खा। उनका कसर पू िग की भाॅकत ही झुका हुआ था। मैने अपने दोनो
हाॅथों से उनके चे हरे को ले कर उनके चे हरे को ऊपर उठाया। जैसे ही उनका चे हरा
ऊपर हुआ तो मुझे उनका ऑसु ओ ं से तर चे हरा कदखा। मेरा कले जा कहल गया उनका
ये हाल दे ख कर। मैने उन्हें अपने सीने से लगा कलया। मेरे सीने से लगते ही ररतू दीदी
की रुलाई िूट गई। िो िूट िूट कर रोने लगी थी। जाने कब से उनके अं दर ये गुबार
दबा हुआ था और अब िो इस रूप में कनकल रहा था।

"ये क्ा दीदी?" मैने उनके कसर को प्यार से सहलाते हुए कहा___"चु प हो जाइये
दीदी। अरे आप तो मेरी सबसे प्यारी और बहादु र दीदी हैं। चकलये अब चु प हो
जाइये।"
"तू इतना अच्छा क्ों है राज?" ररतू दीदी का रोना बं द ही नही ं हो रहा था____"तु झे
मुझ पर गुस्सा क्ों नही ं आता? मैने तु झे कभी अपना भाई नही ं माना। हमेशा ते रा
कदल दु खाया मैने। मु झे िो सब याद है मेरे भाई जो कुछ मैने ते रे साथ ककया है। जब
जब मु झे िो सब याद आता है तब तब मु झे खु द से घृर्ा होने लगती है। मु झे ऐसा
लगने लगता है कक मैं अपने आपको क्ा कर डालू ॅ।"

"नही ं दीदी।" मैने उन्हें खु द से अलग करके उनके ऑसु ओ ं को पोंछते हुए
कहा___"ऐसा कभी सोचना भी मत। मेरे मन में कभी भी आपके प्रकत कोई बु रा
खयाल नही ं आया। कही ं न कही ं मु झे भी इस बात का एहसास था कक आप िही कर

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रही हैं जो आपको कसखाया जाता था।"

"ये सब तू मेरा कदल रखने के कलए कह रहा है न?" ररतू दीदी ने कहा___"जबकक मु झे
पता है कक तु झे मेरे उस बतागि से ककतनी तक़लीफ़ होती थी।"
"हाॅ बु रा तो लगता था दीदी।" मैने कहा___"मगर उस सबके कलए आप पर कभी
गुस्सा नही ं आता था। हर बार यही सोचता था कक इस बार आप मु झसे ़िरूर बात
करें गी।"

"और मैं इतनी बु री थी कक हर बार ते री उन मासू म सी उम्मीदों को तोड दे ती थी।"


ररतू ने कसर झुका कलया, बोली___"तू उस सबके कलए मुझे स़िा दे मेरे भाई। ते री हर
स़िा को मैं हसते हुए कुबू ल कर लू ॅगी।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"आपकी स़िा यही है कक अब से आप ये सब कबलकुल
भी नही ं सोचें गी और ना ही ये सब सोच कर खु द को रुलाओगी। यही आपकी स़िा
है।"

मेरी ये स़िा सु न कर ररतू दीदी दे खती रह गईं मुझे और सहसा किर से उनकी ऑखों
से ऑसू बह चले । िो मुझसे कलपट गईं। िो इस तरह मुझसे कलपटी हुई थी जैसे िो
मुझे अपने अं दर समा ले ना चाहती हों।

किधी अपना ऑसु ओ ं से तर चे हरा कलए हम दोनो बहन भाई को दे ख रही थी। उसके
होठों पर मुस्कान थी। सहसा तभी उसे ़िोर का धचका लगा। हम दोनो बहन भाई
का ध्यान किधी की तरि गया। किधी को आए उस ़िोर के धचके से अचानक ही
खाॅसी आने लगी। मैं बु री तरह चौंका। उधर किधी को लगातार खाॅसी आने लगी
थी। मैं ये दे ख कर बु री तरह घबरा गया। मेरे साथ साथ ररतू दीदी भी घबरा गई। मैने
किधी को अपनी बाहों में ले कलया।

"किधी, क्ा हुआ तु म्हें?" मैं बदहिाश सा कहता चला गया___"तु म ठीक तो हो न? ये
खाॅसी कैसे आने लगी तु म्हें। डाक्टरऽऽऽ.....डा डाक्टर को बु लाओ कोई।"

मैं पागलों की तरह इधर उधर दे खने लगा। मे री ऩिर ररतू दीदी पर पडी तो मैं उन्हें
दे ख कर एकाएक ही रो पडा___"दीदी, दे खो न किधी को अचानक ये क्ा होने लगा
है? प्ली़ि दीदी जल्दी से डाक्टर को बु लाइये। जाइये जल्दी.....डाक्टर बु लाइये। मेरी
किधी को ये खाॅसी कैसे आने लगी है अचानक?"

मेरी बात सु न कर ररतू दीदी को जैसे होश आया। िो बदहिाश सी होकर पहले इधर
उधर दे खी किर भागते हुए कमरे से बाहर की तरि लपकी। इधर मैं लगातार किधी
को अपनी बाहों में कलए उसे िुसला रहा था। मेरा कदलो कदमाग़ एकदम से जैसे कंु द

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सा पड गया था। उधर किधी को रह रह कर खाॅसी आ रही थी। सहसा तभी उसके
मुख से खू न कनकला। ये दे ख कर मैं और भी घबरा गया। मैं ़िोर ़िोर से डाक्टर
डाक्टर कचल्लाने लगा। किधी की हालत प्रकतपल खराब होती जा रही थी। उसकी
हालत दे ख कर मेरी जान हलक में आकर िस गई थी।

तभी कमरे में भागते हुए डाक्टर नसें और ररतू दीदी आ गई। उनके पीछे ही किधी के
माॅम डै ड भी आ गए। उनके चे हरे से ही लग रहा था कक उनकी हालत बहुत खराब
है। डाक्टर ने आते ही किधी को दे खा।

"दे ल्कखये इनकी हालत बहुत खराब है।" डाक्टर ने किधी को चे क करने के बाद
कहा___"ऐसा लगता है कक आज इनका बचना बहुत मुल्किल है।"
"डाऽऽऽऽक्टर।" मैं पू री शल्कक्त से चीख पडा था___"़िुबान सम्हाल कर बात कर
िरना हलक से ़िुबान खी ंच कर ते रे हाॅथ में दे दू ॅगा समझे? मेरी किधी को कुछ
नही ं होगा। इसे कुछ नही ं होने दू ॅगा मैं । मैं इसे ठीक कर दू ॅगा।"

"बे टीऽऽऽ।" किधी की माॅ भाग कर किधी के पास आई और रोते हुए बोली___"मैं
कैसे जी पाऊगी अगर तु झे कुछ हो गया तो?"
"ममाॅ।" खाॅसते हुए किधी के मुख से लरजते हुए शब्द कनकले ___"आज मैं बहुत
खु श हूॅ। अपने महबू ब की बाहों में हूॅ। ककतने अच्छे िक्त पर मेरा दम कनकलने
िाला है। उस भगिान से कशकायत तो थी मगर अब कोई कशकायत भी नही ं रह गई।
उसने मेरी आकखरी ख्वाकहश को जो पू री कर दी माॅम। मेरे जाने के बाद डै ड का
खयाल रल्कखयेगा।"

"नही ं नही ं।" मैं ़िार ़िार रो पडा___"तु म्हें कुछ नही ं होगा किधी और अगर कुछ हो
गया न तो सारी दु कनयाॅ को आग लगा दू ॅगा मैं। सबको जीिन मृत्यु दे ने िाले उस
ईश्वर से नफ़रत करने लगूॅगा मैं ।"
"ऐसा मत कहो राज।" किधी ने थरथराते लबों से कहा___"मरना तो एक कदन सबको
ही होता है, िकग कसिग इतना है कक कोई जल्दी मर जाता है तो कोई ़िरा दे र से ।
मगर हर कोई मरता ़िरूर है । मेरे कलए इससे बडी भला और क्ा बात हो सकती है
कक मैं अपने जन्म दे ने िाले माता कपता के सामने और अपने महबू ब की बाहों में मरने
जा रही हूॅ। मु झे हसते हुए किदा करो मेरे साजन। तु म्हारी ये दासी तु म्हारे इन
खू बसू रत अधरों की मु स्कान दे ख कर मरना चाहती है। मुझसे िादा करों मेरे महबू ब
कक मेरे जाने के बाद तु म खु द को कभी तक़लीफ़ नही ं दोगे। ककसी ऐसी लडकी के
साथ अपनी दु कनयाॅ बसा लोगे जो तु मसे इस किधी से भी ज्यादा प्यार करे ।"

"नही ं किधी नही ं।" मैंने रोते हुए झुक कर उसके माथे से अपना माथा सटा

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कलया___"मत करो ऐसी बातें । तु म मुझे छोंड कही ं नही ं जाओगी। मैं तु म्हारे कबना जीने
की कल्पना भी नही ं कर सकता।"
"क्ा यही प्यार करते हो मुझसे ?" किधी ने अटकते हुए स्वर में कहा___"बोलो मेरे
दे िता। ये कैसा प्यार है तु म्हारा कक तु म अपनी इस दासी की अं कतम इच्छा भी पू री
नही ं कर रहे?"

"मैं कुछ नही ं जानता किधी।" मैने मजबू ती से कसर कहलाते हुए कहा___"मु झे प्यार
व्यार कुछ नही ं कदख रहा। मैं कसिग इतना जानता हूॅ कक तु म मुझे अकेला छोंड कर
कही ं नही ं जाओगी बस।"
"अरे मैं तु म्हें छोंड कर कहाॅ जा रही हूॅ राज?" किधी ने मेरे चे हरे को सहला कर
कहा___"मेरा कदल मेरी आत्मा तो तु ममें ही बसी है। तु म मुझे हर िक्त अपने क़रीब ही
महसू स करोगे। ये तो कजस्मों की जुदाई है राज, और इस कजस्म का जुदा होना भी तो
़िरूरी है। क्ोंकक मेरा ये कजस्म तु म्हारे लायक नही ं रहा। ये बहुत मैला हो चु का है मेरे
महबू ब। इसका खाक़ में कमल जाना बहुत ़िरूरी हो गया है।"

"दीदी इसे समझाओ न।" मैने पलट कर दीदी की तरि दे खते हुए कहा___"दे ल्कखये
कैसी बे कार की बातें कर रही है ये। इससे ककहये न दीदी कक ये मुझे छोंड कही ं न
जाए। इससे ककहये न कक मैं इसके कबना जी नही ं पाऊगा।"

मेरी बात सु न कर दीदी कुछ बोलने ही िाली थी कक सहसा इधर किधी को किर से
खाॅसी का धचका लगा। मैने पलट कर किधी को दे खा। उसके मुख से खू न कनकल
कर बाहर आ गया था।

"रराऽऽज।" किधी ने उखडती हुई साॅसों के साथ कहा___"अब मु झे जाना होगा।


मुझे िचन दो मेरे हमदम कक तु म मेरे बाद कभी भी खु द को दु खी नही ं रखोगे। अपनी
इस दासी को िचन दो मेरे दे िता। मुझे हसते हुए किदा करो। और....और एक बार
अपनी िो मनमोहक मुस्कान कदखा दो न मु झे। मेरे पास समय नही ं है, मेरे प्रार् ले ने
के कलए दे िदू त आ रहे हैं। मैं उन्हें अपनी तरि आते हुए िष्ट दे ख रही हूॅ।"

"नही ंऽऽऽ।" मैं बु री तरह रो पडा___"ऐसा मत कहो। मु झे यूॅ छोंड कर मत जाओ


प्लीऽऽऽ़ि। मैं मर जाऊगा किधी।"
"हठ न करो मेरे महबू ब।" किधी को कहचककयाॅ आने लगी थी ं, बोली___"मुझे िचन
दो राज। मेरी अं कतम यात्रा को आसान बना दो मेरे दे िता।"

मेरे कदलो कदमाग़ ने काम करना मानों बं द कर कदया था। मगर किधी की करुर् पु कार
ने मुझे कबिश कर कदया। मैंने दे खा कक उसका एक हाथ मु झसे िचन ले ने के कलए हिा

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में उठा हुआ था। मैने उसके हाॅथ में अपना हाॅथ रख कदया। मेरे हाॅथ को पकड
कर उसने हिे से दबाया। उसके कनस्ते ज पड चु के चे हरे पर हिा सा नू र कदखा।

"अब अपने अधरों की िो खू बसू रत मुस्कान भी कदखा दो राज।" किधी ने बं द होती


पलकों के साथ साथ मगर टू टती हुई साॅसों के साथ कहा___"एक मुद्दत हो गई मैने
इन अधरों की उस मनमोहक मु स्कान को नही ं दे खा। दे र न करो मेरे दे िता, जल्दी से
कदखा दो िो मु स्कान मु झे।"

ये कैसा कसतम था मुझ पर कक इस हाल में भी मुझे िो मु स्कुराने को कह रही थी।


भला ये कैसे कर सकता था मैं और भला ये कैसे हो सकता था मु झसे ? मगर मेरी जान
ने ये ऱिा की थी मु झसे । उसकी आकखरी ख्वाकहश को पू रा करना मेरा ि़िग था, भले
ही ये मेरे कलए नामुमककन था। मैने खु द को बडी मुल्किल से सम्हाला। ररतू दीदी मेरे
पीछे ही मु झे पकडे बै ठी हुई थी। कसरहाने की तरि किधी के माॅम डै ड ऑसु ओ ं से
तर चे हरा कलए खडे थे । कुछ दू री पर िो डाक्टर और नसग खडी थी। कजनके चे हरों पर
इस िक्त दु ख के भाि गकदग श कर रहे थे ।

मैने दे खा कक मेरी बाहों में पडी किधी बडी मु ल्किल से अपनी ऑखें खोले मु झे ही
दे खने की कोकशश में लगी थी। मेरे ऑखों से रह रह कर ऑसू ॅ बह जाते थे । कदलो
कदमाग़ के जज़्बात मेरे बस में नही ं थे । मैने खु द को सम्हालने के कलए और अपने
अधरों पर मुस्कान लाने के कलए अपनी ऑखें बं द कर बे काबू ॅ हो चु के जज़्बातों पर
काबू पाने की नाकाम सी कोकशश की। उसके बाद ऑखें खोल कर मैने किधी की
तरि दे खा, मेरे होठों पर बडी मुल्किल से हिी सी मु स्कान उभरी। मेरी उस
मुस्कान को दे ख कर किधी के सू खे हुए अधरों पर भी हिी सी मुस्कान उभर आई।
और किर तभी.......

मैने महसू स ककया कक उसका कजस्म एकदम से ढीला पड गया है। हलाॅकक िो मुझे
उसी तरह एकटक दे खती हुई हिा सा मु स्कुरा रही थी। उसके कजस्म में कोई
हरकत नही ं हो रही थी। अभी मैं ये सब महसू स ही कर रहा था कक तभी मेरे कानों में
किधी की माॅ की ़िोरदार चीख सु नाई दी। उनकी इस चीख से जैसे सबको होश
आया और किर तो जैसे चीखों का और रोने का बा़िार गमग हो गया। मुझे मेरे कानों
में सबका रुदन िष्ट सु नाई दे रहा था मगर मे री कनगाहें अपलक किधी के चे हरे पर
गडी हुई थी। मैं एकदम से शू न्य में खोया हुआ था।

हाल्किटल के उस कमरे में मौजूद किधी के माॅम डै ड और ररतू दीदी बु री तरह किधी
से कलपटे रोये जा रहे थे । सबसे ज्यादा हालत खराब किधी की माॅम की थी। उसके
डै ड मानो सदमें में जा चु के थे । मेरे कानों में सबका रोना कचल्लाना ऐसे सु नाई दे रहा

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था जैसे ककसी अं धकूप में ये सब मौजूद हों।

सहसा ररतू दीदी का ध्यान मुझ पर गया। मैं एकटक किधी की खु ली हुई ऑखों को
और उसके अधरों पर उभरी हिी सी उस मु स्कान को दे खे जा रहा था। मेरा कदलो
कदमाग़ एकदम से सु न्न पडा हुआ था। ररतू दीदी ने मुझे पकड कर ़िोर से कहलाया।
ककन्तु मु झ पर कुछ भी असर न हुआ। मेरे चे हरे पर कोई भाि नही ं थे , ऐसा लग रहा
था जैसे मैं क़िंदा तो हूॅ मगर मेरे अं दर ककसी प्रकार की कोई प्रकतकक्रया नही ं हो रही
है।

"राऽऽऽऽज।" ररतू दीदी मुझे पकड कर झकझोरते हुए चीखी___"होश में आ मेरे
भाई। दे ख किधी हमे छोंड कर चली गई रे । तू सु न रहा है न मेरी बात?"
"शान्त हो जाओ दीदी।" मैने धीरे से उनसे कहा___"मेरी किधी मु झे सु कून से दे ख
रही है। उसे दे खने दो दीदी। दे ल्कखये न दीदी, मेरी किधी के होंठो पर ककतनी सुं दर
मुस्कान िैली हुई है। इसे ऐसे ही मु स्कुराने दीकजए। अरे ....आप सब इतना शोर क्ों
कर रहे हैं? प्ली़ि चु प हो जाइये। िरना मेरी किधी को अच्छा नही ं लगेगा। उसे सु कून
से मुस्कुराने दीकजए।"

ररतू दीदी ही नही ं बल्कि किधी के माॅम डै ड भी मेरी इस बात से सन्न रह गए। जबकक
मैं बडे प्यार से किधी के चे हरे पर आ गई उसके बालों की लट को एक तरि हटाते
हुए उसे दे खे जा रहा था। मैं उसकी उस मु स्कान को दे ख कर खु द भी मु स्कुरा रहा
था।

सहसा पीछे से ररतू दीदी मु झसे कलपट गई और बु री तरह कससकने लगी ं। किधी की
माॅ ने मेरे कसर पर प्यार से अपना हाॅथ रखा। िो खु द भी कससक रही थी।
"बे टा, अपने आपको सम्हालो।" िो बराबर मे रे कसर पर हाॅथ िेरते हुए कससक रही
थी___"जाने िाली तो अब चली गई है। िो लौट कर िापस नही ं आएगी। कब तक तु म
अपनी इस किधी को इस तरह दे खते रहोगे?"

"चु प हो जाइये माॅ।" मैने कसर उठाकर बडी मासू कमयत से कहा___"कुछ मत
बोकलए। दे ल्कखए न किधी सु कून से कैसे मु झे दे ख कर मु स्कुरा रही है। इसे ऐसे ही
मुस्कुराने दीकजए माॅ। इसे कडस्टबग मत कीकजए।"

मेरी बातों से सब समझ गए थे कक मुझ पर पागलपन सिार हो चु का है। मैं इस बात


को स्वीकार नही ं कर रहा हूॅ कक किधी अब इस दु कनयाॅ में नही ं रही। ये दे ख कर
सबकी ऑखों से ऑसू छलकने लगे। किधी के डै ड मेरे पास आए और मुझे उन्होंने
अपने से छु पका कलया।

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"ये कैसा प्यार है बे टा?" किर िो रुॅधे हुए गले से बोल पडे ___"तु म दोनो का ये प्रे म
हमें पहले क्ों नही ं पता चल पाया? तु म्हारे जै सा दामाद मुझे कमलता तो जैसे मु झे
सारी दु कनयाॅ की दौलत कमल जाती। हे भगिान ककतना बे रहम है तू । मेरे मासू म से
बच्चों के साथ इतना बडा घात ककया तु मने ? ते रा कले जा ़िरा भी नही ं काॅपा?"

किधी के डै ड खु द को सम्हाल न सके और िो मुझे अपने से छु पकाए बु री तरह रो


पडे । पास ही में खडे डाक्टर और नसग भी हम सबकी हालत दे ख कर बे हद दु खी
ऩिर आ रहे थे । खै र, कािी दे र तक यही माहौल कायम रहा। हर कोई मु झे समझा
रहा था, बहला रहा था मगर मैं बस यही कहता जा रहा था कक___"आप सब शान्त
रकहए, मेरी किधी को यू ॅ शोर करके कडस्टबग मत कीकजए।"

उस िक्त तो मेरा कदमाग़ ही खराब हो गया जब सब लोग मु झे किधी से अलग करने


लगे। डाक्टर ने एम्बू लेन्स का इं तजाम कर कदया था। इस कलए किधी के डै ड अब
अपनी बे टी के मृत शरीर को हाल्किटल से ले जाने के कलए मु झे किधी से अलग करने
लगे। मैं किधी से अलग नही ं हो रहा था। सब मु झे समझा रहे थे । किधी की माॅ मेरे
इस पागलपन से बु री तरह रोते हुए मुझे अपने से छु पकाये हुए थी। ररतू दीदी मु झे
छोंड ही नही ं रही थी।

आकखर, सबके समझाने बु झाने के बाद और कािी मसक्कत करने के बाद मैं किधी
से अलग हुआ। मगर मैने किधी को हाथ नही ं लगाने कदया ककसी को। मैने खु द ही उसे
अपनी बाहों में उठा कलया और किर सबके ़िोर दे ने पर कमरे से बाहर की तरि बढ
चला। मेरे चे हरे पर दु ख ददग के कोई भाि नही ं थे । मैं अपनी बाहों में किधी को कलए
बाहर की तरि आ गया। किधी की जो ऑखें पहले खु ली हुई थी उन ऑखों को
उनकी पलकों के साथ किधी के डै ड ने अपनी हथे ली से बं द कर कदया था। ककन्तु
उसके अधरों पर िैली हुई िो मु स्कान अभी भी िै सी ही कायम थी।

थोडी ही दे र में हम सब हाल्किटल के बाहर आ गए। हाल्किटल के बाहर एम्बू लेन्स


खडी थी। बाएॅ साइड मोटर साइककल खडी थी कजसके पास ही खडा पिन ककसी
गहरे खयालों में खोया हुआ खडा था। हाल्किटल के बाहर आते ही जब कुछ शोर
शराबा हुआ तो बरबस ही पिन का ध्यान हमारी तरि गया। उसने पलट कर दे खा
हमारी तरि। मेरी बाहों में किधी को इस हालत में दे ख कर िह सकते में आ गया।
पलक झपकते ही उसकी हालत खराब हो गई। अपनी जगह पर खडा िो पत्थर की
मूकतग में तब्दील हो गया।

इधर थोडी ही दे र में मैं किधी को कलए एम्बू लेन्स में सिार हो गया। मेरे साथ ही ररतू
दीदी, किधी की माॅ और उसके डै ड बै ठ गए। हम लोगों के बै ठते ही एम्बू लेन्स का

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कपछला दरिाजा बं द ही ककया जा रहा था कक सहसा भागते हुए पिन हमारे पास
आया। एम्बू लेन्स के अं दर का दृष्य दे खते ही उसके होश िाख्ता हो गए। एक स्टरे चर
की तरह कदखने िाली लम्बी सी पाटरी पर किधी को सिेद किन में गले तक ढका
दे खते ही पिन की ऑखें छलछला आईं। िो बु री तरह मुझे दे खते हुए रोने लगा।
जबकक मैं एकदम शान्त अिथथा में किधी के होठों पर उभरी उस मुस्कान को दे खे जा
रहा था।

पिन के रोने की आिा़ि जैसे ही मेरे कानों में पडी मैने तु रंत पिन की तरि दे खा
और उगली को अपने होठों पर रख कर उसे चु प रहने का इशारा ककया। मेरे चे हरे के
आि भाि दे ख कर पिन का कले जा िटने को आ गया। िो कबना एक पल गिाॅए
एम्बू लेन्स में चढ कर मेरे पास आ गया और मु झे शख्ती से पकड कर खु द से छु पका
कलया। उसकी ऑखों से ऑसू रुक ही नही ं रहे थे ।

ररतू दीदी ने पिन को समझा बु झा कर चु प कराया और उसे घर जाने को कहा।


ककन्तु पिन मु झे छोंड कर जाने को तै यार ही नही ं हो रहा था। इस कलए ररतू दीदी ने
उसे समझाया कक उसका घर में रहना बहुत ़िरूरी है। क्ोंकक उसके डै ड यानी
अजय कसं ह का कोई भरोसा नही ं था कक िो क्ा कर बै ठे। ये तो उसे पता चल ही
जाएगा कक राज यहाॅ पर ककसके यहाॅ आया है? अगर उसे पता चल गया कक िो
पिन के यहाॅ आया है तो उसके घर िालों के कलए खतरा हो जाएगा। ररतू दीदी के
बार बार समझाने पर पिन दु खी मन से एम्बू लेन्स से उतर गया।

पिन के उतरते ही एम्बू लेन्स चल पडी। किधी की माॅ अभी भी धीमी आिा़ि में
कससक रही थी। सामने की शीट पर किधी के माॅम डै ड बै ठे थे और इधर की शीट
पर मैं ि ररतू दीदी। हमारे बीच का पोशग न जो खाली था उसमें किधी को बडी सी
स्टरे चर रूपी पाटरी पर कलटाया गया था। मैं एकटक उसकी मु स्कान को घूरे जा रहा
था। मेरे कलए दु कनयाॅ जहान से जैसे कोई मतलब नही ं था।

ररतू दीदी को जैसे कुछ याद आया तो उन्होंने पाॅकेट से मोबाइल कनकाल कर ककसी
से कुछ दे र कुछ बात की और किर काल कट करके मोबाइल पु नः अपनी पाॅकेट में
डाल कलया। कुछ समय बाद ही एम्बू लेन्स रुकी और थोडी ही दे र में कपछला गेट खु ला
तो किधी के माॅम डै ड बाहर आ गए। उनके साथ ही ररतू दीदी भी एम्बू लेन्स से बाहर
आ गई। ररतू दीदी ने मेरा हाॅथ पकड कर बाहर आने का इशारा ककया। मैं बाहर
की तरि अजीब भाि से दे खने लगा। सब मु झे ही दु खी भाि से दे ख रहे थे ।

खै र, हाल्किटल से आए दो कमगचाररयों ने उस स्टरे चर को बाहर कनकाला कजस पर


किधी ले टी हुई थी। स्टरे चर को बाहर कनकाल कर उन्होंने उसे ़िमीन पर रखना ही

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चाहा था कक मैंने उन्हें पकड कलया। कजससे हिा में ही उन लोगों ने स्टरे चर को उठाये
रखा। मैने किधी को अपनी बाहों में उठा कलया। किधी के माॅम डै ड ये दे ख कर एक
बार किर से रो पडे ।

किधी को ले कर मैं किधी के घर की तरि बढा तो किधी के माॅम डै ड भी आगे आ


गए। आस पास के लोगों ने दे खा तो कुछ ही समय में िहाॅ भीड जमा हो गई। आस
पास के कजन लोगों से इनके अच्छे सं बंध थे उन लोगों ने ये सब दे ख कर भारी दु ख
जताया। लगभग एक घण्टे बाद किर से किधी को एक लकडी की स्टरे चर बना कर
उसमे कलटाया गया। इन सब कामों के बीच मैं बराबर किधी के पास ही था और मेरे
पास ररतू दीदी मौजूद रही ं।

उस िक्त कदन के चार बज रहे थे जब मैं किधी के जनाजे को तीन और आदकमयों के


साथ कलए मरघट में पहुॅचा था। आगे की तरि मैं और किधी के डै डी अपने अपने
कंधे पर जनाजे का एक एक छोर रखा हुआ था। कािी सारे लोग हमारे साथ थे । मेरे
चे हरे पर कोई भाि नही ं था। इतना कुछ होने के बाद भी मैं आश्चयगजनक रूप से
एकदम शान्त कचि था। मरघट में पहुॅच कर हमने किधी के जनाजे को िही ं ़िमीन
पर रखा। कुछ औरतें साथ आई हुई थी। उन लोगों ने िहाॅ पर कपडों के द्वारा चारो
तरि से पदाग करके किधी को नहलाया धुलाया और किर उसे कपडे पहनाए। इसके
बाद उसे लकडी की कचता पर ले टा कदया गया।

किधी को कचता में ले टे दे ख सहसा मु झे ़िोर का झटका लगा। मेरी ऑखों के सामने
कपछली सारी बातें बडी ते ़िी से घू मने लगी ं। कचता के चारो तरि सिेद कपडों में खडे
लोगों पर मेरी दृकष्ट पडी। उन सबको दे खने के बाद मेरी ऩिर कचता पर सिेद कपडों
में कलपटी किधी पर पडी। उसे उस हालत में दे खते ही सहसा मेरे अं दर ़िोर का
चक्रिात सा उठा।

"किधीऽऽऽऽऽ।" मैं पू री शल्कक्त से चीख पडा और भागते हुए कचता के पास पहुॅच
गया। सिेद कपडों में ऑखें बं द ककये ले टी किधी के चे हरे को दे ख कर मैं उससे
कलपट गया और िूट िूट कर रोने लगा। पल भर में मेरी हालत खराब हो गई। किधी
के चे हरे को दोनो हाॅथों से पकडे मैं दहाडें मार मार कर रोये जा रहा था।

मुझे इस तरह किधी से कलपट कर रोते दे ख कुछ लोग भागते हुए मेरे पास आए और
मुझे किधी के पास से खी ंच कर दू र ले जाने लगे। मैने उन सबको झटक कदया, िो सब
दू र जाकर कगरे । खु द को उनके चं गुल से छु डाते ही मैं किर से भागते हुए किधी के
पास आया और किर से उससे कलपट कर रोने लगा। मु झे इस हालत में ये सब करते

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दे ख किधी के डै ड और ररतू दीदी दौड कर मेरे पास आईं और मु झे किधी के पास से
दू र ले जाने लगी ं।

"खु द को सम्हालो राज।" ररतू दीदी बु री तरह रोते हुए बोली___"ये क्ा पागलपन है?
तु म ऐसा कैसे कर सकते हो? तु म अपनी किधी को कदये हुए िचन को कैसे तोड सकते
हो? क्ा तु म भू ल गए कक अं कतम समय में किधी ने तु मसे क्ा िचन कलया था?"

"दीदी किधी मुझे छोंड कर कैसे जा सकती है?" मैं उनसे कलपट कर रोते हुए
बोला___"उससे कहो कक िो उठ कर मेरे पास आए।"
"अपने आपको सम्हालो बे टा।" सहसा किधी के डै ड ने दु खी भाि से कहा___"इस
तरह किलाप करने से तु म अपनी किधी की आत्मा को ही दु ख दे रहे हो। ़िरा सोचो,
िो तु म्हें इस तरह दु खी होकर रोते हुए दे ख रही होगी तो उस पर क्ा गु़िर रही
होगी? क्ा तु म अपनी किधी को उसके मरने के बाद भी दु खी करना चाहते हो?"

"नही ं हकगग ़ि नही ं पापा जी।" मैंने पू री ताकत से इं कान में कसर कहलाया___"मैं उसे
़िरा सा भी दु ख नही ं दे सकता और ना ही उसे दु खी दे ख सकता हूॅ।"
"तो किर ये पागलपन छोंड दो बे टे।" किधी के डै ड मेरे कसर पर हाथ िेरते हुए
बोले ___"अगर तु म इस तरह दु खी होगे और रोओगे तो किधी को कबलकुल अच्छा नही ं
लगेगा बल्कि उसे बहुत ज्यादा दु ख होगा इस सबसे । इस कलए बे टा, अपने अं दर के
जज़्बातों को शान्त करने की कोकशश करो और खु शी खु शी अपनी किधी को कचताकग्न
दो। हाॅ बे टे, अब तु म्हें ही उसे कचताकग्न दे नी है । तु म दोनो का ररश्ा आत्माओं से
जुडा हुआ है इस कलए उसे कचताकग्न दे ने का हक़ कसिग तु म्हारा ही है। मेरी बे टी भले ही
अब इस दु कनयाॅ में नही ं है, मगर मेरे कलए तु म ही मेरे दामाद ि बे टे रहोगे हमेशा।
अब चलो बे टा और अपनी किधी को कचताकग्न दो।"

"अगर आप खु द इस बात को इस तरह कुबू ल करके कहते हैं तो ठीक है पापा जी।"
मैने दु खी भाि से कहा___"मगर मैं भी उसे यू ॅ ही कचताकग्न नही ं दू ॅगा। बल्कि उसे
पहले सु हागन बना कर अपनी पत्नी बनाऊगा। किर उसे कचताकग्न दू ॅगा।"

मेरी ये बातें सु न कर किधी के डै ड की ही नही ं बल्कि हर ककसी की ऑखों से ऑसू


छलक पडे । किधी के डै ड ने मु झे अपने सीने से लगा कलया। पं कडत िहाॅ पर मौजूद
था ही इस कलए सबकी सहमकत से मैं किधी के पास गया और एक औरत के हाॅथ में
मौजूद कसं दूर की कडकबया से अपनी दो चु टककयों में कसं दूर कलया और किर उसे किधी
की सू नी माॅग में भर कदया। मैंने अपने अं दर के जज़्बातों को लाख रोंका मगर मेरे
ऑसु ओ ं ने जैसे ऑखों से बगाित कर दी।

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ररतू दीदी और किधी के डै ड दोनो ने मुझे कंधों से पकडा। मैने किधी की माॅग में
कसं दूर भर कर उसे सु हागन बनाया, किर उसके माथे को चू म कर पीछे हट गया।
शान्त पडे मरघट में एकाएक ही ते ़ि हिा चली और किर दो कमनट में ही शान्त हो
गई। ये कदाकचत इशारा था किधी का कक मेरी इस कक्रया से िह ककतना खु श हो गई
है।

पं कडत ने कुछ दे र कुछ पू जा करिाई और किर उसने मु झसे अं कतम सं स्कार की सारी
किकध करिाई। तत्पश्चात मेरे हाथ में एक मोटा सा डण्डा पकडाया कजसके ऊपरी छोर
पर मशाल की तरह आग जल रही थी। पं कडत के ही कनदे श पर मैने उस मशाल से
किधी को कचताकग्न दी।

दे खते ही दे खते लकडी की उस कचता पर आग ने अपना प्रभाि कदखाया और िह उग्र


से उग्र होती चली गई। मैं भारी मन से किधी की जलती हुई कचता को दे खे जा रहा था।
मेरे पास ररतू दीदी और किधी के माॅम डै ड खडे थे । कुछ समय बाद िहाॅ पर मौजूद
लोग िहाॅ से धीरे धीरे जाने लगे। अं त में कसिग हम चार लोग ही रह गए।

किधी के डै ड के ़िोर दे ने पर ही मैं उनके साथ घर की तरि िापस चला। मेरे अं दर


भयंकर तू िान चल रहा था। मगर मैने शख्ती से उसे दबाया हुआ था। मुझे लग रहा
था कक मैं दहाडें मार मार कर खू ब रोऊ। उस ऊपर िाले से चीख चीख कर कहूॅ कक
िो मेरी किधी को सही सलामत िापस कर दे मुझे। मगर कदाकचत ऐसा होना अब
सं भि नही ं था। खै र भारी मन के साथ ही हम सब घर आ गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इस सब में शाम हो चु की थी। ररतू दीदी के िोन पर पिन का बार बार काल आ रहा
था। इस िक्त मैं और ररतू दीदी किधी के घर पर ही थे । घर में कोई न कोई बाहरी
आदमी आता और शोग प्रकट करके चला जाता। धीरे धीरे शाम का अधेरा भी छाने
लगा था। किधी के माॅम डै ड ने मु झे और ररतू दीदी को भी घर जाने को कहा। हम
लोगों का िहाॅ से आने का मन तो नही ं था पर मजबू री थी। इस कलए ररतू दीदी मुझे
ले कर िहाॅ से चल दी।

रास्ते में ररतू दीदी के मोबाइल पर ककसी का काल आया तो उन्होने दे खा उसे और
काल को कपक कर मोबाइल कान से लगा कलया। कुछ दे र तक उन्होंने जाने क्ा बात
की किर उन्होंने काल कट कर दी।

हाल्किटल के पास आते ही मैने दे खा कक उनके सामने एक पु कलस कजप्सी आकर


रुकी। ररतू दीदी ने मु झे उस पर बै ठने को कहा तो मैं चु पचाप बै ठ गया। पु कलस
कजप्सी से एक आदमी बाहर कनकला। उसने दीदी को सै ल्यूट ककया।

563
"अब तु म जाओ रामकसं ह।" ररतू दीदी ने उससे कहा___"बाॅकी लोगों को भी सू कचत
कर दे ना कक सािधान रहेंगे और उन पर ऩिर रखे रहें गे।"
"यह मैडम।" उस आदमी ने कहने के साथ ही पु नः सै ल्यूट ककया और एक तरि बढ
गया।

उस आदमी के जाते ही दीदी कजप्सी की डर ाइकिं ग शीट पर बै ठी ं और उसे यूटनग दे कर


एक तरि को बढा कदया। दीदी के बगल िाली शीट पर मैं चु पचाप बै ठा था। मेरी
ऑखें शू न्य में डूबी हुई थी। मुझे पता ही नही ं चला कक कजप्सी कहाॅ कहाॅ से चलते
हुए कब रुक गई थी। चौंका तब जब दीदी की आिा़ि मेरे कानों में पडी। मैने इधर
उधर दे खा तो पता चला कक ये तो पिन के घर के सामने कजप्सी पर बै ठा हुआ हूॅ मैं ।

ये दे ख कर मैं कजप्सी से कबना कुछ बोले उतर गया और पिन के घर के अं दर की


तरि बढा ही था कक सहसा दीदी ने कहा___"मेरी बात सु नो राज।"

दीदी की इस बात से मैने पलट कर उन्हें दे खा। िो कजप्सी से उतर कर मेरे पास ही
आ गई। तब तक कजप्सी की आिा़ि सु न कर अं दर से पिन और आकदत्य भी आ गए
थे । पिन और आकदत्य मु झे दे खते ही मु झसे कलपट कर रोने लगे। शायद पिन ने
आकदत्य को सारी कहानी बता दी थी। कुछ दे र िो दोनो मु झसे कलपटे रोते रहे । उसके
बाद ररतू दीदी के कहने पर िो दोनो अलग हुए।

"मैं जानती हूॅ कक इस िक्त तु म लोग कही ं भी जाने की हालत में नही ं हो।" दीदी ने
गंभीरता से कहा___"खास कर राज तो कबलकुल भी नही ं। मगर मैं ये भी जानती हूॅ
कक तु म लोगों का यहाॅ पर रुकना भी सही नही ं है। इस कलए तु म सब मेरे साथ ऐसी
जगह चलो जहाॅ पर तु म लोगों के होने की उम्मीद मेरे डै ड कर ही नही ं सकते । हाॅ
पिन, तु म सब मेरे िामग हाउस पर चल रहे हो अभी के अभी।"

"शायद आप ठीक कह रही हैं दीदी।" पिन ने बु झे मन से कहा___"मगर इतने सारे


सामान के साथ हम सब एकसाथ कैसे िहाॅ जा सकेंगे? और कैसे जा सकेंगे?
क्ोंकक सं भि है कक रास्ते में ही कही ं हमे अजय चाचा या उनके आदमी कमल जाएॅ।"
"उसकी कचं ता तु म मत करो भाई।" दीदी ने कहा___"मैने िाहन का इं तजाम कर
कदया है। लो िो आ भी गया।"

दीदी के कहने पर पिन ने पलट कर दे खा तो सच में एक ऐसा िाहन उसे कदखा कजसे
दे ख कर िो चौंक गया। दरअसल िो िाहन एक एम्बू लेन्स था। मेरी ऩिर भी
एम्बू लेन्स पर पडी तो उसे दे ख कर अनायास ही मेरा मन भारी हो गया। लाख रोंकने
के बािजूद मेरी ऑखों से ऑसू छलक गए। ये दे ख कर ररतू दीदी ने मु झे अपने सीने

564
से लगा कलया।

"नही ं मेरे भाई।" ररतू दीदी ने तडप कर कहा__"ऐसे मत रो। तू नही ं जानता कक ते री
ऑखों से अगर ऑसू का एक कतरा भी कगरता है तो मेरे कदल में नस्तर सा चल जाता
है। मैं जानती हूॅ कक इस सबको भू लना या इससे बाहर कनकलना इतना आसान नही ं
है ते रे कलए मगर खु द को सम्हालना तो पडे गा ही भाई। ककसी और के कलए न सही
मगर अपनी उस किधी के कलए कजसको तु मने िचन कदया है।"

"कैसे दीदी कैसे ?" मेरी रुलाई िूट गई___"कैसे मैं उस सबको भु ला दू ॅ? मुझे तो
अभी भी यकीन नही ं हो रहा है कक ऐसा कुछ हो गया है।"
"बस कुछ मत बोल मेरे भाई।" ररतू दीदी ने मे री ऑखों से ऑसू पोंछते हुए
कहा___"शान्त हो जा। सब कुछ ठीक हो जाएगा। भगिान जब दु ख दे ता है तो उसे
सहने की शल्कक्त भी दे ता है। तू अपने अं दर उस शल्कक्त को महसू स कर भाई।"

मैं कुछ न बोला। मेरी इस हालत से पिन और आकदत्य की ऑखों से भी ऑसू बहने
लगे थे ।
"पिन तु मने ये बात चाची और आशा को तो नही ं बताई न?" दीदी ने पिन से पू छा
था।

दीदी के पू छने पर पिन ने अपना कसर झुका कलया। दीदी को समझते दे र न लगी कक
उसने ये बातें सबको बता दी है। अभी दीदी कुछ कहने ही िाली थी कक अं दर से रोने
की आिा़िें आने लगी ं जो प्रकतपल तीब्र होती जा रही थी। ररतू दीदी ते ़िी से मु झे कलये
अं दर की तरि बढी। उनके पीछे पिन और आकदत्य भी बढ चले ।

अं दर बै ठक तक भी न पहुॅचे थे कक रास्ते में ही पिन की माॅ और बहन रोते हुए


कमल गईं। शायद उनको पता चल गया था कक मैं आ गया हूॅ। इस कलए दोनो ही रोते
हुए बाहर की तरि भागी चली आ रही थी। मु झ पर ऩिर पडते ही िो दोनो मुझसे
कलपट कर बु री तरह रोने लगी ं। आशा दीदी की हालत तो बहुत खराब थी। िो मु झसे
कलपटी बहुत ज्यादा रो रही थी। उन दोनो को दे ख कर मेरी भी रुलाई िूट पडी थी।
ररतू दीदी ने बडी मुल्किल से हम तीनों को चु प कराया। मगर आशा दीदी कससकती
रही ं।

"चाची आप तो समझदार हैं न।" ररतू दीदी कह रही थी___"आपको तो समझना


चाकहए न कक इस तरह रोने से राज को और भी ज्यादा तक़लीफ़ होगी। ये तो िै से भी
इसी सदमें में डूबा हुआ है। आपको तो इसे सम्हालना चाकहए पर आप दोनो तो खु द
रो रो कर इसके दु ख को बढा रही हैं।"

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ररतू दीदी की बात माॅ के समझ में आ गई थी इस कलए उन्होंने जल्दी से अपने ऑसू
पोंछ कलए और मुझे अपने से छु पका कर मुझे प्यार दु लार करने लगी ं।

"पिन तु म दोनो सामान को जल्दी से उस िाहन पर रखो और जल्द से जल्द यहाॅ से


चलने की तै यारी करो।" ररतू दीदी ने पिन की तरि दे खते हुए कहा। दीदी के कहने
पर पिन और आकदत्य दोनो अं दर की तरि बढ गए। कुछ ही दे र में जो कुछ भी
़िरूरी सामान पै क कर कदया गया था उसे लाकर बाहर खडी एम्बू लेन्स में रख कदया
उन दोनो ने ।

सामान रख जाने के बाद ररतू दीदी ने हम सबको उस एम्बू लेन्स में बै ठने को कहा
और खु द अकेले कजप्सी में बै ठ गईं। घर से बाहर आकर माॅ ने दरिाजे पर ताला
लगा कदया और मुझे साथ में कलये एम्बू लेन्स में बै ठ गईं। पिन आकदत्य और आशा
दीदी पहले ही उसमें बै ठ चु के थे । हम लोगों के बै ठते ही ररतू दीदी ने एम्बू लेन्स के
डर ाइिर को अपने पीछे आने का इशारा कर कदया।

ररतू दीदी के कदमाग़ की दाद दे नी होगी, क्ोंकक उन्होंने बहुत कुछ सोच कर िाहन के
रूप में एम्बू लेन्स को चु ना था। उनकी सोच थी कक एम्बू लेन्स में हम लोगों के बै ठे होने
की उनके डै ड कल्पना भी न कर सकेंगे। और ऐसा हुआ भी। रास्ते में कही ं पर भी
हमें अजय कसं ह या उसका कोई आदमी नही ं कमला। एक जगह कमला भी पर उन
लोगों ने एम्बू लेन्स पर ज्यादा ध्यान नही ं कदया। एम्बू लेन्स के सौ मीटर की दू री पर ररतू
दीदी की कजप्सी आगे आगे चल रही थी। इतनी दू री इस कलए ताकक कोई ये भी शक
न करे कक एम्बू लेन्स ररतू दीदी के साथ ही है।

ऐसे ही हम हल्दीपु र गाॅि से बाहर आ गए और उस नहर के पु ल के पास से हम


लोग पू िग कदशा की तरि मु ड गए। लगभग बीस कमनट बाद हम सब दीदी के
िामग हाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चु का था कक मेरे साथ करुर्ा
चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने
मेरे िोन से करुर्ा चाची को िोन कर कह कदया था कक मैं आज नही ं जा रहा बल्कि
िो अपने भाई के साथ यही ं पर आ जाएॅ कल।

िामग हाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बू लेन्स से सारा सामान उतरिा कर अं दर


रखिा कदया। एम्बू लेन्स के जाने के बाद हम सब अं दर की तरि बढ चले । अं दर
डर ाइं गरूम में ही सोिे पर बै ठी नै ना बु आ पर मेरी ऩिर पडी तो मैं हिे से चौंका।
नै ना बु आ मु झे दे खते ही सोिे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से
मुझे अपने सीने से लगा कलया। उनकी ऑखों में ढे र सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने
उन्हें छलकने नही ं कदया। अपने जज़्बातों को बडी मुल्किल से दबाया हुआ था उन्होंने।

566
शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता कदया था और समझा भी कदया था कक मु झसे कमल
कर िो ज्यादा रोयें नही ं।

खै र, ऐसे माहौल में हम सब बे हद दु खी थे इस कलए उस रात ककसी ने अन्न का एक


दाना तक अपने मुख में नही ं डाला। रात में मे रे साथ बे ड पर मेरे एक तरि ररतू दीदी
थी ं तो दू सरी तरि आशा दीदी। सारी रात ककसी भी ब्यल्कक्त को नी ंद नही ं आई।
सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया
था। बे ड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच ले टा ऊपर घू म रहे पं खे को दे खता रहा।
सारी रात ऐसे ही गु़िर गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रकत दु ख छु पाए मु झे
अपनी अपनी तरि से छु पकाए यूॅ ही ले टी रह गईं थी। आने िाली सु बह मेरे जीिन
में और कैसे दु ख ददग की भू कमका बनाएगी इसके बारे में िक्त के कसिा कोई नही ं
जानता था।

अपडे ट.......《 46 》

अब तक,,,,,,,,

ऐसे ही हम हल्दीपु र गाॅि से बाहर आ गए और उस नहर के पु ल के पास से हम


लोग पू िग कदशा की तरि मु ड गए। लगभग बीस कमनट बाद हम सब दीदी के
िामग हाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चु का था कक मेरे साथ करुर्ा
चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने
मेरे िोन से करुर्ा चाची को िोन कर कह कदया था कक मैं आज नही ं जा रहा बल्कि
िो अपने भाई के साथ यही ं पर आ जाएॅ कल।

िामग हाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बू लेन्स से सारा सामान उतरिा कर अं दर


रखिा कदया। एम्बू लेन्स के जाने के बाद हम सब अं दर की तरि बढ चले । अं दर
डर ाइं गरूम में ही सोिे पर बै ठी नै ना बु आ पर मेरी ऩिर पडी तो मैं हिे से चौंका।
नै ना बु आ मु झे दे खते ही सोिे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से
मुझे अपने सीने से लगा कलया। उनकी ऑखों में ढे र सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने
उन्हें छलकने नही ं कदया। अपने जज़्बातों को बडी मुल्किल से दबाया हुआ था उन्होंने।
शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता कदया था और समझा भी कदया था कक मु झसे कमल
कर िो ज्यादा रोयें नही ं।

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खै र, ऐसे माहौल में हम सब बे हद दु खी थे इस कलए उस रात ककसी ने अन्न का एक
दाना तक अपने मुख में नही ं डाला। रात में मे रे साथ बे ड पर मेरे एक तरि ररतू दीदी
थी ं तो दू सरी तरि आशा दीदी। सारी रात ककसी भी ब्यल्कक्त को नी ंद नही ं आई।
सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया
था। बे ड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच ले टा ऊपर घू म रहे पं खे को दे खता रहा।
सारी रात ऐसे ही गु़िर गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रकत दु ख छु पाए मु झे
अपनी अपनी तरि से छु पकाए यूॅ ही ले टी रह गईं थी। आने िाली सु बह मेरे जीिन
में और कैसे दु ख ददग की भू कमका बनाएगी इसके बारे में िक्त के कसिा कोई नही ं
जानता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

उधर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई मगर अजय कसं ह और कशिा को अपने
उन आदकमयों का कही ं कोई सु राग़ तक न कमल सका कजन आदकमयों ने उन्हें किराज
के आने की खबर दी थी। कहने का मतलब ये कक भीमा और मंगल आकद में से कोई
भी अजय कसं ह का भरोसे मंद आदमी अजय कसं ह को न कमला। इस बात से दोनो बाप
बे टे बे हद परे शान हो चु के थे । उनकी समझ में नही ं आ रहा था कक उसके आदमी एक
साथ सारे के सारे कैसे गायब हो गए?

अजय कसं ह के बाॅकी के आदमी तो उसे कमले ले ककन उन लोगों को ना तो किराज का


कोई सु राग़ कमला था और ना ही उन्हें ये पता था कक भीमा और मंगल के साथ साथ
रहे बाॅकी आदमी कहाॅ और कैसे गायब हो गए? हैरान परे शान दोनो बाप बे टे
िापस अपने नये िाले िामग हाउस पर लौट आए थे । अपने बाॅकी बचे आदकमयों को
शख्त आदे श भी दे आए थे कक किराज के साथ साथ अपने उन गायब हुए आदकमयों
की भी खोज खबर करते रहें।

इस िक्त अजय कसं ह और कशिा अपने िामगहाउस के डर ाइं गरूम में रखे सोिों पर
कचं कतत ि परे शान हालत में बै ठे थे । उन दोनो के सामने िाले सोिे पर प्रकतमा भी
बै ठी हुई थी। उसकी ऩिरें दोनो बाप बे टों के चे हरों पर उभरे हुए भािों पर थी। उसे
समझते ़िरा भी दे र न लगी थी कक दोनो बाप बे टे कशकस्त खाकर आए हैं। पर जाने
क्ों प्रकतमा को इस बात का पहले से ही अं देशा था कक ऐसा ही कुछ होगा।

"ये तो कमाल ही हो गया न अजय।" प्रकतमा ने अजीब भाि से कहा___"तु म्हारे इतने
सारे हट्टे कट्टे आदकमयों ने एक बार किर से तु म्हें नीचा कदखा कदया। तु म्हारी बडी बडी
िो बातें महज कोरी बकिास के कसिा कुछ न थी। तु मने और तु म्हारे आदकमयों ने

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आज तक िो काम ककया ही नही ं कजस काम को 'ितह' के नाम से जाना जाता है।
हर बार तु म अपने मंसूबों पर नाकामयाब ही हुए हो अजय। तु म्हारे पास कपछला ऐसा
कोई काम नही ं है कजसका हिाला दे कर तु म ये कह सको कक तु मने उस काम को
सिलतापू िगक ककया था।"

प्रकतमा की इन बातों पर दोनो बाप बे टों के चे हरे झुक से गए थे । ऐसा लग रहा था जैसे
उन दोनो में से ककसी में भी बोलने की कहम्मत शे ष न हो। ये अलग बात थी कक अजय
कसं ह के चे हरे पर भू कंप के से भाि अनायास ही गकदग श करते ऩिर आते और किर िो
लु प्त हो जाते ।

"एक अदने से लडके को पकडने गए थे तु म्हारे आदमी और खु द ही सारे के सारे गधे


के कसर से सी ंग की तरह गायब हो गए।" प्रकतमा ने किर कहना शु रू ककया___"इस
बात को कौन हजम कर पाएगा अजय? क्ा तु म खु द हजम कर पा रहे हो कक तु म्हारे
इतने सारे आदकमयों के रहते हुए भी िो किराज को पकडने की तो बात दू र बल्कि
खु द अपना ही खयाल नही ं रख सके? क्ा तु म ये कल्पना कर सकते हो कक अकेले
किराज ने तु म्हारे इतने सारे आदकमयों को इस तरह से गायब कर कदया कक तु म दोनो
बाप बे टे उनका पता भी नही ं लगा सके?"

"यकीनन प्रकतमा।" सहसा अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"ये सच है कक


इस सबकी कल्पना तक नही ं की जा सकती। ये सब जो कुछ भी हुआ है और जैसे भी
हुआ है उसके बारे में कोई सोच भी नही ं सकता था। मगर, इस सब में अकेले किराज
बस का हाॅथ नही ं हो सकता।"

"क्ा मतलब है तु म्हारा?" प्रकतमा हिे से चौंकी थी।


"मतलब साि है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सोचने िाले अं दा़ि से कहा___"मेरे इतने
सारे आदकमयों को एक साथ गायब कर दे ना कोई आसान बात नही ं है। मगर ये भी
सच है कक ऐसा ही हुआ है। इस कलए इस काम को किराज खु द अकेले नही ं कर
सकता। इस काम में ़िरूर उसकी ककसी ने मदद की है। तु म खु द सोचो प्रकतमा कक
मेरे बारह मु स्टंडे जैसे आदकमयों को परास्त करना या उन्हें उस हालत पर ले आना
कक िो अधमरे ही हों जाएॅ ये काम ककतना मु ल्किल हो सकता है? नही ं प्रकतमा नही ं,
मैं ककसी सू रत में नही ं मान सकता कक ये सब अकेले किराज ने ककया है ।"

"चलो मान कलया कक ये सब अकेले किराज नही ं कर सकता।" प्रकतमा ने


कहा___"बल्कि इस काम में ककसी ने उसकी मदद की, मगर सिाल ये है कक ककसने
की उसकी मदद? यहाॅ पर ऐसा कौन है जो इस तरीके से किराज की मदद कर
सकता है?"

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"मुझे लगता है कक इस बारे में हमें शु रू से सोच किचार करना चाकहए।" अजय कसं ह
ने कहने के साथ ही कशगार सु लगा कलया___"हाॅ प्रकतमा, हमें इस बारे में शु रू से
किचार किमषग करना होगा, िो भी बडी बारीकी से । ग़लती तो यकीनन हुई है हमसे ।
हमने शु रू से ही किराज को बहुत छोटा समझा था। हमारे मन में ये बात बै ठी हुई थी
कक िो ये सब कर ही नही ं सकता। हमने हमेशा उसकी औकात पर सिाल उठाया,
शायद इसी का ये पररर्ाम है कक हम शु रू से हर बात में नाकामी का स्वाद चख रहे
हैं। मगर अब हमें समझ आ चु का है कडयर। हमें समझ आ चु का है कक हमारे साथ ये
सब एक खे ल ही हो रहा है शु रू से । एक अच्छा ल्कखलाडी िही होता है जो अपने
प्रकतद्वं दी को कभी भी कम करके न ऑके, बल्कि उसे भी अपनी तरह ही उच्च कोकट
का ल्कखलाडी समझे । तभी हमें समझ आता है कक अब हमें ककस तरह की अब हमें
ककस तरह की चाल चलना चाकहए? मगर ये सब बातें मैने कभी भी सोचने की जहमत
नही ं की।"

"शु कर है अजय।" प्रकतमा ने कहा___"कक तु म्हें ये बात समझ में आ गई कक तु म्हारा


हमेशा से किराज को तु च्छ समझना सरासर ग़लत और नासमझी थी। हलाॅकक इस
बारे में मैने तु म्हें पहले भी कहा था कक किराज को तु च्छ समझना कनहायत ही ग़लत
बात है। क्ोंकक मौजूदा हालात में अगर तु म्हारा कोई दु श्मन हो सकता था तो कसिग
किराज। खै र, अब जब ये बात तु म्हारी समझ में आ ही गई है तो अब क्ा सोच किचार
करना चाहोगे इस बारे में तु म?"

"सोच किचार करने के कलए बहुत सारी बातें हैं ।" अजय कसं ह ने कशगार का गहरा कश
ले कर उसका धु ऑ ऊपर हिा में छोंडते हुए कहा___"पर बात चू ॅकक शु रू से सोच
किचार करने की है इस कलए शु रू से ही शु रू करते हैं। मैं सिाल खडा करूॅगा और
तु म उस पर अपनी राय ब्यक्त करना।"

"ओके आई एम रे डी।" प्रकतमा ने सम्हल कर बै ठते हुए कहा___"यू मे प्रोसीड।"


"हमारे साथ ये खे ल िैक्टर ी में आग लगने से शु रू हुआ था।" अजय कसं ह ने सोचते हुए
कहा___"इसमें कई सिाल हैं, पहला ये कक िैक्टर ी में आग कैसे लगी या ककसने लगाई
थी? दू सरा सिाल ये कक िैक्टर ी में बने उस गु प्त तहखाने के अं दर मौजूद मेरा िो ग़ैर
कानू नी सामान ररतू द्वारा छानबीन करने पर क्ों नही ं कमला? िो सारा सामान उस
गुप्त तहखाने से ककसने गायब ककया? यहाॅ ये सिाल नही ं पै दा हो सकता कक िो सब
ची़िें बमों के धमाके से लगी भीषर् आग में जल गई होंगी, क्ोंकक जली हुई ची़ि के
अिशे ष ़िरूर कमलते हैं और िाॅरें कसक जाॅच से ये बात भी पता चल जाती है कक
जो ची़ि जली थी िो असल में क्ा थी? खै र, मैं ये कह रहा हूॅ िैक्टर ी में लगी आग के
बारे में और तहखाने से उन सारी ची़िों के गायब हो जाने के बारे में तु म्हारी क्ा राय

570
है?"

"सबसे पहली बात तो ये है कक िैक्टर ी में लगी आग का मामला ़िरा पें चीदा था।"
प्रकतमा ने बे चैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"पें चीदा इस कलए क्ोंकक उसमें ककसी
के भी बारे में कोई ठोस कनष्कशग नही ं कनकल सकता था। घुमा किरा कर बात कसिग
किराज पर ही आकर रुकती थी। हलाॅकक ये बात ग़लत हो ऐसा कम ही लगता था।
ले ककन मेरे ़िहन में एक बात ये भी है कक कजस समय िैक्टर ी में आग लगने का
मामला आया था उसी समय तु म्हारे पाटग नर सर्क्े ना ने भी पाटग नरकशप तोडने की
बात की ही नही ं बल्कि तोड ही दी थी। सर्क्े ना ने पाटग नरकशप तोडने की िजह ये
बताई थी कक िो किदे श में से टल होना चाहता है और िही ं पर अपना कोई कबजने स
करना चाहता है। इस बात पर ककतना इिे िाक़ रखा जा सकता है?"

"तु म आकखर कहना क्ा चाहती हो?" अजय कसं ह का कदमाग़ मानो चकरा सा गया
था।
"मैं ये कहना चाहती हूॅ कक सर्क्े ना ने पाटग नरकशप तोडने की जो िजह बताई थी
उसमें ककतनी सच्चाई थी?" किर प्रकतमा ने कहा___"तु म्हारे अनु सार उसे ये पता नही ं
था कक िैक्टरी में कोई गु प्त तहखाना है जहाॅ पर तु म अपना गैर कानू नी सामान
छु पा कर रखते थे । जबकक ऐसा भी तो हो सकता है कक ये सब उसे ककसी तरह से
पता चल ही गया रहा हो। उस सू रत में िो डर गया हो कक ऐसे काम में िह ककसी कदन
तु म्हारे साथ साथ खु द भी न कानू न की कगरफ्त में आ जाए। इस कलए उसने तु मसे
पाटग नरकशप तोड ले ने में ही अपनी भलाई समझी हो, ककन्तु उसे लगा होगा कक
पाटग नरकशप तोडने की कोई माकूल िजह भी होनी चाकहए तभी उसे अपना सारा
पै सा तु मसे कमल सकता था।"

"ले ककन इसमें ऐसा तो नही ं हो सकता था न कक सारा कहसाब ककताब चु कता होने के
बाद सर्क्े ना मेरी िैक्टर ी में आग लगा दे ता।" अजय कसं ह ने कहा___"सीधी सी बात है
कडयर, तु म्हारे अनु सार सर्क्े ना को कानू न का डर सताया इस कलए उसने मु झसे
पाटग नरकशप तोडी और अपना कहसाब ककताब चु कता कर कलया। ले ककन इस सबके
बाद िो भला मेरी िैक्टर ी में आग क्ों लगाएगा? उसे कजस ची़ि का डर था िो तो
पाटग नरकशप टू टते ही दू र हो गया था। अगर तु म ये समझती हो कक िैक्टर ी में आग
सर्क्े ना ने लगाई थी तो मैं इस बात से सहमत नही ं हूॅ।"

"इसका मतलब तु म इस मामले में सर्क्े ना को क्लीन कचट दे रहे हो?" प्रकतमा ने
गहरी ऩिर से दे खा उसे ।
"बे शक।" अजय कसं ह ने पू रे आतमकिश्वास के साथ कहा।
"और कोई दू सरा ऐसा कर ही नही ं सकता?" प्रकतमा ने कहा___"मेरा मतलब तु म्हारे

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ककसी कबजने स कम्पटीटर से है।"

"यस आिकोसग ।" अजय कसं ह ने कहा___"मेरा ऐसा कोई कबजने स कम्पटीटर ही
नही ं है जो मेरी िैक्टर ी में आग लगा कर मेरा इतना बडा नु कसान कर दे ।"
"तो किर बचा कौन?" प्रकतमा ने कहा।
"क्ा मतलब??" अजय कसं ह एकाएक ही चौंक पडा।

"अरे कडयर, हम हर ची़ि के बारे में किचार किमषग कर रहे हैं न?" प्रकतमा मुस्कुराई।
"ओह हाॅ।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली___"खै र, तो किर बचा कौन का क्ा
मतलब है तु म्हारा?"
"तु म्हारी लाइि में तु म्हारा सबसे बडा दु श्मन कौन है?" प्रकतमा ने पू छा था।

"किराज और उसकी माॅ बहन।" अजय कसं ह के भाि बडी ते ़िी से कठोर हो गए थे ।
"कबलकुल सही।" प्रकतमा ने कहा___"किराज एक ऐसा शख्स है जो मौजूदा िक्त में
तु म्हारे साथ कुछ भी कर सकता है। इस कलए अगर िैक्टर ी में लगी आग में कसिग और
कसिग किराज का ही हाॅथ है तो इसमें कोई आश्चयग की बात नही ं है।"

"ले ककन सिाल ये है कक उसने इतना बडा अकिश्वसनीय काम ककया कैसे होगा?"
अजय कसं ह के माथे पर सोच के भाि उभर आए___"दू सरी और सबसे महत्वपू र्ग बात
ये कक उसे कैसे पता कक िैक्टर ी में कोई गु प्त तहखाना है और उस तहखाने के अं दर
मैने एक अलग ही जु मग की दु कनयाॅ बना रखी है?"

"ककसी तरह उसने इस सबका पता तो कर ही कलया होगा माई कडयर हस्बैण्ड।"
प्रकतमा ने कहा___"काम जब ऐसे बडे बडे करने होते हैं न तो उसके बारे में अपने
पास हर ची़ि की जानकारी का होना भी ़िरूरी होता है।"
"यही तो सिाल है कडयर।" अजय कसं ह ने कहा__"भला उसे इस बात की जानकारी
कैसे हो गई कक िैक्टर ी के अं दर मैने क्ा क्ा ची़िें छु पाई हुईं हैं? जबकक ये भी सच है
कक िह कभी मेरी िैक्टर ी में गया ही नही ं था। किर कैसे ये सब पता हो सकता है उसे ?
दू सरी बात, िो तो मुम्बई में है किर िो िहाॅ से ये काम कैसे कर सकता है?"

"सं भि है कक किराज उस समय मुम्बई से यहाॅ आया रहा हो।" प्रकतमा ने तकग कदया।
"अगर िो मुम्बई से यहाॅ आता तो क्ा िो मे रे आदकमयों की ऩिर में नही ं आ
जाता?" अजय कसं ह बोला__"आज भी तो िो मे रे आदमी भीमा की ऩिर में आ ही
गया था।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कक उसने तु म्हारे आदकमयों को चकमा दे कदया रहा हो उस


समय।" प्रकतमा ने पु नः तकग कदया___"क्ोंकक कबना उसके यहाॅ आए िह हमारी

572
िैक्टर ी में कैसे आग लगा दे ता? या किर ऐसा हो सकता है कक उसके इशारे पर ये
काम उसके ही ककसी साथी ने ककया होगा।"

"हाॅ ऐसा हो सकता है।" अजय कसं ह के मल्कस्तष्क में जैसे झनाका सा हुआ,
बोला___"ये यकीनन हो सकता है प्रकतमा। बचपन से जिानी तक िो इस गाॅि में
रहा है, इस कलए ऐसा तो हो ही नही ं सकता कक यहाॅ पर उसका कोई घकनष्ठ दोस्त
या कमत्र न बना हो, बल्कि ़िरूर बना होगा। सबका कोई न कोई घकनष्ठ कमत्र ़िरूर
होता है, उसका भी कोई ऐसा ही खास कमत्र होगा यहाॅ। इस कलए ये सं भि है कक
किराज ने ये काम अपने ककसी ऐसे ही कमत्र द्वारा करिाया हो सकता है। इस बारे में
तो हमें पहले ही सोचना चाकहए था कडयर। िो भले ही मुम्बई में है ले ककन अपने ककसी
खास दोस्त के द्वारा िो ़िरूर हमारी पल पल की खबर ले ता रहा होगा। अब भी ले
रहा होगा।"

"आपने कबलकुल सही कहा डै ड।" सहसा इतनी दे र से चु प बै ठा कशिा कह


उठा___"उस कमीने के कई दोस्त हैं यहाॅ। ले ककन एक दोस्त तो उसका बहुत ही
खास है। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूॅ। कई बार मैने उसके दोस्त को उसके साथ
दे खा भी था। उसके उस दोस्त का नाम शायद पिन है, यस डै ड...पिन कसं ह। यही
नाम है उसके दोस्त का।"

"िै री गुड।" अजय कसं ह के चे हरे पर बडी मुद्दत के बाद राहत के भाि उभरे ,
बोला___"इसका मतलब िो हराम़िादा अपने उस दोस्त पिन के ़िररये ये सब करिा
रहा था। नही ं छोंडूॅगा उस मादरचोद को। उसके सारे खानदान का नामो कनशान
कमटा दू ॅगा मैं।"

"तु म्हें क्ा लगता है अजय?" प्रकतमा ने सहसा अजीब भाि से कहा___"ये कक किराज
महामूखग है?"
"व्हाट डू यू मीन?" अजय कसं ह की ऑखें िैली।
"कजस किराज ने अपने दोस्त को इतने बडे काम को करने के कलए कहा होगा उसने
क्ा अपने दोस्त और उसके पररिार की सु रक्षा का खयाल नही ं रखा होगा?" प्रकतमा
एक ही साॅस में कहती चली गई___"ये तो किराज को भी पता है कक अगर िो ककसी
के द्वारा अपना कोई काम करिाएगा तो दे र सिे र तु म्हें इसका पता चल ही जाएगा।
उस सू रत में तु म उसके साथ क्ा सु लूक करोगे इसका अं दा़िा उसने पहले ही लगा
कलया होगा। हाॅ अजय, किराज ये कभी नही ं चाहेगा कक उसके काम की िजह से
उसके दोस्त के साथ साथ उसके दोस्त के पररिार िालों की क़िंदगी भी खतरे में पड
जाए। इस कलए मेरा खयाल यही है कक किराज ने अपने दोस्त और उसके पररिार की
सु रक्षा के बारे में सोचते हुए कुछ तो ऐसा ़िरूर ककया होगा कजससे तु म्हारा क़हर उन

573
पर न टू टने पाए।"

"तु म्हारी इस बात में यकीनन सच्चाई की झलक कदख रही है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने
कहा___"मगर एक बार पता तो करना ही चाकहए हमें। क्ोंकक अगर एक पल के कलए
ये मान लें कक िै सा कुछ ककया ही नही ं होगा किराज ने जैसे की तु म बात कर रही हो
तो इस िक्त ़िरूर उसका दोस्त इसी गाॅि में अपने घर पर होगा। मैं एक बार इस
बात की पक्के तौर पर जाॅच करिा ले ना चाहता हूॅ।"

"़िरूर जाॅच करिाओ अजय।" प्रकतमा ने अजीब भाि से कहा___"मगर मेरा


अनु मान यही है कक तु म्हारे हाथ कुछ नही ं लगने िाला।"
"माॅम ये आप क्ा कह रही हैं?" कशिा के स्वर में नारा़िगी थी, बोला___"क्ा आप
चाहती हैं कक हमारे हाॅथ कुछ न लगे?"

"बात ये नही ं है बे टे कक मैं चाहती नही ं हूॅ।" प्रकतमा ने शख्त भाि से कहा___"बात ये
है कक अब तक हाॅकसल भी क्ा हुआ है? हर बार तो नाकामी ही हाॅथ लगी है हमें
और अब तो ये आलम हो गया है कक ककसी भी ची़ि के हाॅकसल होने की उम्मीद ही
नही ं होती।"

"मैं तु म्हारे जज़्बातों को समझ सकता हूॅ माई स्वीट डाकलिं ग।" अजय कसं ह ने
कहा___"मैं जानता हूॅ कक हर बार कमली नाकामी से तु म कनराश हो गई हो। मगर
यकीन मानो कडयर, हमेशा ऐसा नही ं होता है। एक कदन ऐसा ़िरूर आता है जब हमें
कामयाबी भी कमलती है। तु म दे खना कक कजस कदन हमें कामयाबी कमली उस कदन हम
अपनी उस कामयाबी को ककस ककस तरीके से से लीब्रे ट करें गे?"

अजय कसं ह की बात का प्रकतमा ने कोई जिाब न कदया। िो बस अजय कसं ह को


अजीब भाि से दे खती रही। जबकक अजय कसं ह ने उसके चे हरे से ऩिर हटा कर
कशिा से पिन कसं ह के घर के बारे में पहले पू ॅछा किर अपनी कोट की पाॅकेट से
मोबाइल कनकाला। मोबाइल पर उसने ककसी को िोन लगाया। दू सरी तरि से काल
ररिीि ककये जाने के बाद अजय कसं ह ने उसे पिन कसं ह के घर का पता बताया और
उससे जल्द से जल्द पिन कसं ह का पता लगाने का हुक्म कदया। उसके बार उसने
काल कट करके मोबाइल को अपने सामने रखी टे बल पर रख कदया।

"तो कडबे ट को आगे बढाएॅ कडयर?" अजय कसं ह ने प्रकतमा की तरि दे ख कर


कहा___"मैने अपने एक आदमी को पिन कसं ह का पता करने के कलए बोल कदया है।
िो जल्द ही इस बारे में हमें सू कचत करे गा। तब तक हम अपनी कडबे ट को आगे बढते
हैं।"

574
"ठीक है जैसी तु म्हारी म़िी।" प्रकतमा ने भािहीन स्वर में कहा___"शु रू करो।"
"यहाॅ पर इन सब बातों को सं क्षेप में ये कनर्ग य कनकालते हैं कक बाहरी कोई भी
ब्यल्कक्त मेरे साथ ये सब नही ं कर रहा है।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले कर
कहा__"बल्कि ये सब करने िाला कसिग एक ही शख्स है और िो है किराज। पिन कसं ह
का नाम जु डने से जो बात सामने आई िो ये है कक मुम्बई में रहते हुए किराज ने अपने
दोस्त के द्वारा ये सब करिाया। ककन्तु यहाॅ सिाल ये है कक किराज के इस काम में
उसके और ककतने दोस्त शाकमल थे ? क्ोंकक ये काम कसिग एक आदमी से तो हो नही ं
सकता। इस कलए ये जानना ़िरूरी है उसने ककस ककस को अपने इस काम पर
लगाया हुआ है?"

"तु म एक बात भू ल रहे हो अजय।" प्रकतमा ने कहा__"िो ये कक िैक्टर ी में आग लगने


से पहले भी एक खे ल तु म्हारे साथ खे ला गया था। याद है , िो किदे शी ब्यापारी। जो
अपनी बीिी के साथ आया था और उसने तु म्हें भारी मात्रा में कपडा तै यार करने को
कहा था। डील पक्की होने के बाद जब कडलीिरी का समय आया तो उस किदे शी
ब्यापारी का कही ं कोई पता ही नही ं था। अगले कदन अखबार में खबर छपी कक शहर
के मशहूर कबजने स मैन अजय कसं ह को ककसी किदे शी ब्यल्कक्त ने करोडों का चू ना
लगाया।"

"ओह हाॅ यार।" अजय कसं ह की ऑखों के सामने दो किदे शी पकत पत्नी की शक्ल घूम
उठी___"उसका तो मुझे खयाल ही नही ं रहा था।"
"होना चाकहए अजय।" प्रकतमा ने कहा___"क्ोंकक तु म्हारे साथ खे ल खे लने का
आग़ा़ि तो िही ं से शु रू हुआ था न? खै र, मेरा खयाल ये है कक िो किदे शी ब्यल्कक्त कोई
और नही ं खु द किराज ही था और उसकी पत्नी के रूप में खु द उसकी ही बहन कनधी
थी।"

"व्हाऽऽऽट???" अजय कसं ह उछल पडा___"ऐसा तु म यकीन से कैसे कह सकती हो?"


"नायकीनी की भी कोई िजह बता दो मुझे?" प्रकतमा ने बडे आत्मकिश्वास से
कहा___"तु म यकीन इस कलए नही ं कर पा रहे क्ोंकक तु म अब भी यही समझते हो
कक किराज ककसी ढाबे या होटल में कप प्लेट धो रहा होगा और उसकी औकात नही ं
कक िो ये सब अिोडग कर सके। ले ककन मैं इस बात को अलग तरह से सोचती हूॅ
अजय। मैं ये सोचती हूॅ कक किराज एक पढा कलखा लडका है। िो बचपन से ही पढने
कलखने में सभी बच्चों से आगे था। उसका माइं ड बडा शापग था। कहने का मतलब ये
कक कजतना िो पढा कलखा था उससे उसे कोई नौकरी कमल जाना कोई मुल्किल काम
नही ं था। सं भि है कक उसे कोई ऐसी नौकरी कमल गई हो कजसके तहत िो इतना तो
अिोडग कर ही सके कक िो तु म्हारे साथ ऐसा खे ल खे ल सके। अगर तु म इस एं गल से
सोचोगे अजय तो तु म्हें भी लगने लगे गा कक हाॅ िो लडका ऐसा कर सकता है।"

575
प्रकतमा की इन सब बातों से अजय कसं ह को भी एहसास हुआ कक प्रकतमा की बात में
सच्चाई है। इस बात को उसे भी स्वीकार करना ही पडा कक किराज सभी बच्चों में
सबसे ज्यादा पढने में ते ़ि था। उसे ये भी मानना पडा कक उसे कोई ऐसी नौकरी
़िरूर कमल गई रही होगी कजससे िो ये सब कर सके। अजय कसं ह की ऑखों के
सामने कशिा का िो अधमरी हालत कमलना घू म गया। इस बात से ये साि ़िाकहर
होता है कक किरा़ि के मन में इन लोगों के प्रकत आक्रोश और बदले की भािना है। इस
कलए उसका तो ये हमेशा प्रयास रहे गा कक िो अपने साथ हुए अत्याचार का बदला ले
सके।

अजय कसं ह के मनो मल्कस्तष्क में ये सब बातें बडी ते ़िी से चलने लगी थी, कजसका
असर ये हुआ कक उसने इस सब को स्वीकार कर कलया कक ये सब कुछ किराज ने ही
ककया हो सकता है। किर चाहे उसका िो किदे शी बनना हो या किर िैक्टर ी में आग
लगाना। अभी अजय कसं ह ये सब सोच ही रहा था कक सामने टे बल पर रखा उसका
मोबाइल बजने लगा। उन तीनों ध्यान एक साथ मोबाइल पर गया।

अजय कसं ह ने हाॅथ बढा कर मोबाइल उठाया और उस पर आ रही काल को ररसीि


कर उसे कान से लगा कलया। उस तरि से कुछ दे र तक िो कुछ सु नता रहा उसके
बाद उसने ये कह कर काल कट कर कदया कक___"अपने सब आदकमयों से कहो कक
िो सब उन लोगों का पता लगाएॅ। मु झे हर हाल में उन सबका पता चाकहए।"

"क्ा बात हुई तु म्हारी अपने उस आदमी से ?" प्रकतमा ने पू छा।


"तु म्हारा कहना कबलकुल सही था प्रकतमा।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस
ली___"किराज ने सच में अपने उस दोस्त और उसके पररिार की सु रक्षा का खयाल
रखा हुआ था।"

"आकखर क्ा बताया तु म्हारे आदमी ने ?" प्रकतमा ने कहा___"पू री बात साि साि
मुझे भी बताओ।"
"मेरा आदमी पिन कसं ह के घर पर गया था।" अजय कसं ह ने बताना शु रू
ककया___"ककन्तु जब िो पिन ने घर के दरिाजे पर पहुॅचा तो दे खा कक िहाॅ बडा
सा ताला लगा हुआ था। उसके बाद मेरे उस आदमी ने आस पास िालों से पिन और
उसके घर िालों के बारे में पू छा तो कुछ लोगों ने उसे बताया कक शाम को पिन के
घर के सामने एक एम्बू लेन्स आई थी। उस एम्बू लेन्स में घर के अं दर से कुछ सामान
लाकर रखा गया था और किर उस एम्बू लेन्स में पिन, पिन की किधिा माॅ और
उसकी एक बे टी बै ठ गईं थी। इन लोगों के साथ दो आदमी और थे । िो दोनो भी उस
एम्बू लेन्स में बै ठ गए थे । एम्बू लेन्स के आगे ही एक जीप खडी थी। उस जीप के चलते

576
ही िो एम्बू लेन्स भी चल पडी थी। इसके बाद िो लोग कहाॅ गए इसका ककसी को
कोई पता नही ं।"

"ओह इसका मतलब उन लोगों को पता था कक तु म्हें दे र सिे र ये पता चल ही जाएगा


कक किराज मुम्बई से आने के बाद पिन के घर पर ही ठहरा था।" प्रकतमा ने सोचने
िाले भाि से कहा___"इस कलए, इससे पहले कक उन लोगों तक तु म्हारे आदमी पहुॅचें
िो पहले ही िहाॅ से कूच कर गए। खै र, अब तो तु म्हें यकीन आ गया न कक किराज ने
ही ये सब ककया है?"

"िो सब तो ठीक है कडयर।" अजय कसं ह के चे हरे पर गहन सोच के भाि थे ,


बोला___"मैंने मान कलया कक ये सब किराज ने ही ककया होगा। मगर सोचने िाली बात
है कक ये सब उसने ककतना शाकतराना ढं ग से ककया है। पिन और उसकी माॅ बहन
को िो िहाॅ से एम्बू लेन्स जैसे िाहन से ले गया। कोई सोच भी नही ं सकता कक
एम्बू लेन्स के अं दर कोई मरी़ि नही ं बल्कि ये सब मौजूद हो सकते हैं। मगर यहाॅ पर
दो ची़िें हैं जो समझ में नही ं आ रही ं।"

"कौन सी दो ची़िें डै ड?" कशिा ने चककत भाि से पू ॅछा था।


"पहली ची़ि ये कक किराज के पास एम्बू लेन्स कहाॅ से आई?" अजय कसं ह ने
कहा___"साधारर्रूप से यहाॅ पर उसके कलए एम्बू लेन्स का कमलना असं भि नही ं तो
नामुमककन बात तो है ही। दू सरी ची़ि ये कक एम्बू लेन्स के आगे जो जीप थी िो
ककसकी थी और उसमें कौन बै ठा था? ये बात मेरे आदमी को पू छने पर भी ककसी ने
नही ं बताई कक उस जीप पर कौन कौन बै ठा हुआ था? इसका मतलब तो यही हुआ
कक पिन कसं ह के अलािा भी कोई और है जो किराज की मदद कर रहा है।"

"किराज को एम्बू लेन्स कैसे कमल गई ये तो चलो साधारर् बात हो सकती है।" प्रकतमा
ने भी मानो अपने कदमाग़ के घोडे दौडाए___"हो सकता है कक उसने ज्यादा पै से दे कर
एम्बू लेन्स का जुगाड कर कलया होगा। मगर सोचने िाली बात तो उस जीप की है ।
यकीनन ये एक नया प्वाइं ट है अजय। तु मने सही पकडा। पिन के अलािा भी कोई
है जो इस समय किराज की मदद कर रहा है। पर कौन हो सकता है ऐसा ब्यल्कक्त? इस
गाॅि में ऐसा कौन है कजसके पास खु द की जीप हो सकती है?"

"तु म्हारा मतलब है कक इस गाॅि में कजसके पास खु द की जीप होगी।" अजय कसं ह ने
चौंकते हुए कहा___"िही किराज की मदद कर रहा है?"
"हाॅ कबलकुल।" प्रकतमा ने झट से कहा___"क्ा ऐसा नही ं हो सकता?"

"हो तो सकता है कडयर।" अजय कसं ह ने कहा___"मगर ये भी तो हो सकता है कक

577
किराज ने िो जीप ककराये पर हायर की हुई हो।"
"अगर किराज को अलग से कोई जीप हायर ही करना था तो पिन और उसकी माॅ
बहन के साथ खु द भी एम्बू लेन्स से इस गाॅि से कनकलने की क्ा ़िरूरत थी?"
प्रकतमा एक ही साॅस में कहती चली गई___"या तो िो ककराये पर ली गई जीप से ही
सबको साथ ले जाता या किर कसिग एम्बू लेन्स के द्वारा ही सबको यहाॅ से ले जाता।
दो अलग अलग िाहन साथ में रखने का क्ा मतलब हो सकता है?"

"बात तो तु म्हारी सही है कडयर।" अजय कसं ह ने कहा___"मेरे आदमी ने बताया कक


किराज सबको ले कर एम्बू लेन्स में ही बै ठ गया था, ऐसा मेरे आदमी के पू छने पर कुछ
लोगों ने उसे बताया है। जबकक दू सरी जीप में कौन बै ठा था ये पता नही ं चला। इसका
मतलब शायद ये भी हो सकता है कक पिन के अलािा जो दू सरा ब्यल्कक्त किराज की
मदद कर रहा है िही उस जीप में था। एम्बू लेन्स के आगे आगे चलने का भी यही
मतलब हो सकता है कक िो किराज एण्ड पाटी को सु रक्षापू िगक गाॅि से बाहर कनकाल
दे ना चाहता था। अब सिाल ये है कक िो जीप िाला दू सरा ब्यल्कक्त किराज एण्ड पाटी
को ले कर कहाॅ गया हो सकता है? शहर या किर अपनी ही ककसी सु रकक्षत जगह
पर?"

"सिाल तो ये भी है अजय कक किराज मुम्बई से यहाॅ आया ककस कलए था?" प्रकतमा ने
कहा___"यहाॅ पर उसका ऐसा क्ा ़िरूरी काम था कजसके कलए उसने अपनी जान
को भी खतरे में डाल कदया? किराज की माॅ गौरी ने उसे यहाॅ आने की इजा़ित कैसे
दे दी होगी उसको?"

"सं भि है कक िो अभय के बीिी बच्चों को ले ने यहाॅ आया हो।" अजय कसं ह ने


सं भािना ब्यक्त की थी।
"अगर उसके आने की यही िजह थी तो िो यहाॅ नही ं बल्कि सीधा अभय की
ससु राल जाता।" प्रकतमा ने कहा___"करुर्ा तो अपने बच्चों के साथ अपने मायके में
ही है। किराज सीधा िही ं जाता, और हमें उसके आने का पता भी नही ं चल पाता।
मगर ऐसा हुआ नही ं बल्कि िो यही ं आया है। इसका मतलब यही हुआ कक िो कजस
ककसी भी काम से यहाॅ आया था िो कोई दू सरा ही काम था।"

"अब इसका पता तो खु द किराज ही बता सकता था या किर उसका दोस्त पिन।"
अजय कसं ह ने एक नया कशगार सु लगाते हुए कहा___"मेरे आदमी उनकी खोज में लगे
हैं। दे खते हैं क्ा नतीजा सामने आता है? खै र, तब तक हम कडबे ट को आगे बढाते
हैं।"

"अब कैसी कडबे ट अजय?" प्रकतमा के माथे पर बल पडता चला गया___"ये बात तो

578
ल्कक्लयर हो ही गई न उस सबमें किराज का ही हाॅथ था। उसने ही अपने दोस्त की
मदद से िो सब ककया था। किर अब ककस बात की कडबे ट?"

"अभी तो बहुत कुछ बाॅकी है माई कडयर।" अजय कसं ह ने कशगार का गहरा कश
कलया, बोला___"किचार किमषग के कलए और भी कई बातें शे ष हैं।"
"अब और क्ा बातें शे ष हैं?" प्रकतमा ने पू छा।
"अभी तो एक सिाल ऐसा भी है कडयर कजसे हम इग्नोर नही ं कर सकते ।" अजय कसं ह
बोला___"जैसा कक हमारी कडबे ट पर ये नतीजा कनकला कक िैक्टर ी में आग किराज ने
ही लगाई या लगिाई हो सकती है। इसमें भी दो बातें हैं, पहली ये कक क्ा किराज को
ये भी पता था कक िैक्टर ी में कोई गु प्त तहखाना है कजसके अं दर ग़ैर कानू नी ची़िों का
़िखीरा मौजूद है? अगर हाॅ तो, क्ा उसी ने उस ग़ैर कानू नी ़िखीरे को गायब
ककया या करिाया? या किर दू सरी बात ये कक इस सबमें ककसी और का भी हाॅथ
था? क्ोंकक सिाल इसी से कनकल रहा है कक किराज को ये बात कैसे पता चली कक
िैक्टर ी के अं दर कोई गुप्त तहखाना है कजसके अं दर मेरी ग़ैर कानू नी ची़िें मौजूद हैं?"

"तु म कहना क्ा चाहते हो अजय?" प्रकतमा ने उलझनपू र्ग भाि से पू छा था।
"बहुत साि बात है कडयर।" अजय कसं ह ने कहा__"अगर ये मान कर चलें कक किराज
मुझसे बदला ले ना चाहता है तो उस सू रत में िो मेरी िैक्टर ी में यकीनन आग लगा
सकता है और उस आग में िैक्टर ी के अं दर का सब कुछ जल कर खाक़ में कमल
जाएगा। उसे इस बात से कोई मतलब नही ं होगा कक इस सबमें मेरा क्ा क्ा और
ककतना नु कसान हो जाएगा? बदला ले ने के रूप में ये एक ने चुरल बात हो गई। मगर,
तहखाने से उन सब ची़िों के गायब हो जाने से एक नई और सोचपू र्ग बात सामने
आती है कक किराज ने उस सबको क्ों गायब ककया और उस सबके बारे में उसे पता
कैसे चला? मतलब साि है कडयर कक किराज को इस बात का अच्छी तरह से पता था
कक िैक्टर ी के अं दर एक गुप्त तहखाना है और उस तहखाने के अं दर मेरी एक ग़ैर
कानू नी दु कनयाॅ मौजूद है। अब सिाल ये उठता है कक किराज को इस सबका कैसे
पता था? क्ोंकक िो तो कभी िैक्टर ी गया ही नही ं था, दू सरी बात िो मौजूदा िक्त में
यहाॅ था भी नही ं तो कैसे उसे इतनी गुप्त बात का पता चल गया? इसका मतलब तो
यही हुआ कक कोई ऐसा ब्यल्कक्त उसे कमला कजसने उसे िैक्टर ी के अं दर की इतनी बडी
गुप्त बात बताई। िरना क्ा उसे कोई ख़्वाब चमका था कजसमें उसने ये सब दे ख
कलया होगा?"

"यकीनन तु म्हारी इस बात में प्वाइं ट है।" प्रकतमा ने प्रभाकित होने िाले भाि से
कहा___"ये एक ़िबरदस्त प्वाइं ट है अजय। िैक्टर ी में आग लगने िाले हादसे की
ककडयाॅ ऐसी हो सकती हैं____ किराज को सब कुछ पहले से ही ककसी के द्वारा पता
चल चु का था कक िैक्टर ी के अं दर मौजूद तहखाने में तु म्हारे द्वारा ग़ैर कानू नी धंधा भी

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ककया जाता है। इस कलए उसने उस कहसाब से ही प्लान बनाया। मतलब ये कक िैक्टर ी
में आग लगाने से पहले ही उसने तहखाने से िो सब ची़िें कनकाल कर अपने कब्जे में
की, उसके बाद उसने तहखाने में टाइम बम किट ककया। कुछ टाइम बम उसने
िैक्टर ी के अं दर उन जगहों पर भी किट ककये जहाॅ पर कपडों का स्टाॅक था और
मशीनें थी। सारे टाइम बमों के िटने का टाइम एक ही था। सारी कक्रया करने के
बाद िो िैक्टर ी के अं दर से बडी ही आसानी से बाहर कनकल गया। उसके बाद क्ा
हुआ ये सबको पता ही है।"

"कबलकुल यही हुआ था।" अजय कसं ह ने कहा___"अब सिाल यही है कक ऐसा िो
कौन शख्स था कजसने किराज को तहखाने से सं बंकधत जानकारी दी? तहखाने के बारे
में मेरे अलािा ककसी को भी पता नही ं था। इस बात के पता होने का तो सिाल ही
नही ं उठता कक उसके अं दर क्ा मौजूद है ।"

"कोई तो ऐसा ब्यल्कक्त ़िरूर था अजय।" प्रकतमा ने सोचने िाले भाि से


कहा___"कजसने किराज को इतनी बडी गुप्त जानकारी दी। एक कमनट
अजय.......कजस कदन िैक्टर ी में िो हादसा हुआ था उसी कदन या रात को तु म्हारा
भू तपू िग पाटग नर किदे श जाने के कलए प्लेन में बै ठा था। एक बार इस बारे में किर से
सोचो कडयर, क्ा ऐसा नही ं हो सकता कक सर्क्े ना को पता चल गया हो कक िैक्टर ी के
अं दर तहखाना भी है और उस तहखाने में तु म क्ा धंधा करते हो? ऐसा कबलकुल हो
सकता है अजय, सर्क्े ना के पास दू सरी कोई ठोस िजह नही ं थी यहाॅ से रिूचक्कर
हो जाने की। िो तो तु म्हारा कजगरी यार भी था, ऐसा कजगरी कक उससे हमारे बडे
गहरे सं बंध थे । उसकी बीिी तौम्हारे नीचे और तु म्हारी ये बीिी यानी कक मैं उसके
नीचे । हम सब एक साथ ककतना इन सबमें एन्ज्वाय करते थे । ऐसे म़िेदार ररश्ों को
अनायास ही छोंड कर किदे श चले जाने का दू सरा और क्ा मतलब हो सकता है
भला?"

"तु म ये कहना चाहती हो कक सर्क्े ना को िैक्टर ी के अं दर मौजूद तहखाने से सं बंकधत


सबकुछ पता था।" अजय कसं ह बोला___"उसके बाद िो मुझसे पीछा छु डाने के कलए
कोई जु गत लगाने लगा। और किर सं योग से उसकी मुलाक़ात किराज से हुई। उसने
किराज को सब कुछ बता कदया और किर िह मुझसे अपना कहसाब ककताब करके
यहाॅ से रिूचक्कर हो गया?"

"मेरा मतलब यकीनन यही है कडयर हस्बैण्ड मगर इसमें बात इस तरह नही ं हुई जैसी
कक तु मने सोच कर बयां की है।" प्रकतमा ने कहा___"बल्कि ऐसी हुई है, मेरी थ्योरी ये
है ____किराज को तु मसे ककसी भी तरह से बदला ले ना था ये एक सच बात है। मगर
उसने सोचा कक तु मसे अपना बदला ले ने की उसमें क्षमता नही ं है। इस कलए उसने

580
कदमाग़ लगाया। उसने तु मको अं दर से कम़िोर करने का प्लान बनाया। सबसे पहले
उसने अपनी बहन के साथ कमल कर किदे शी कबजने स मैन का गेटअप बनाया और
किर तु मसे िो डील की। बाद में कडलीिरी के िक्त िो गायब हो गया। इसका नतीजा
ये हुआ कक भारी मात्रा में तै यार ककया गया कपडा कबक नही ं पाया और जो तु मने उसे
तै यार करिाने में पै सा लगाया िो िसू ल नही ं हो पाया। इससे तु म्हें कािी नु कसान
हुआ। इसका एक नु कसान ये भी हुआ कक कबजने स के क्षे त्र में इस तरह ककसी किदे शी
के हाॅथों धोखा खा जाने से तु म्हारी रे पु टेशन पर इसका बु रा असर पड गया। उसके
बाद िैक्टर ी में आग लग जाने से जो भारी नु कसान हुआ उससे तु म पू री तरह कहल
गए। इतना कुछ होने के बाद भी तु म ये नही ं समझ पाए कक ये सब तु म्हारे क्ों और
कौन कर रहा है? मगर किराज ने अपनी तरि से तु म्हारे कलए एक क्लू भी छोंडा, िो
क्लू ये था कक तहखाने के अं दर से उसने तु म्हारी सारी ग़ैर कानू नी ची़िें गायब कर
दी। यहाॅ उसने तु म्हें ये जता कदया कक ऐसा कैसे और कौन कर सकता है? ये अलग
बात है कक ये बात तु म आज समझे हो। खै र, इस बार तो िो खु द ही यहाॅ आया और
तु म्हारे इतने सारे आदकमयों को आश्चयगजनक रूप से पता नही ं कहाॅ और कैसे
गायब कर कदया?"

"ओह िै री गुड।" अजय कसं ह मु स्कुराया___"यकीनन इस थ्यौरी में दम है कडयर। अब


ये भी बता दो कक किराज ने तहखाने से मेरी िो सब ग़ैर कानू नी ची़िें क्ों गायब की?
उनसे उसे क्ा िायदा हो सकता है भला?"
"कमाल करते हो अजय।" प्रकतमा चौंकी___"इतनी सी बात का मतलब पू छते हो
मुझसे । खु द सोचो कक किराज ने िो सब क्ों गायब ककया होगा? सीधी सी बात है
अजय, िो सब ची़िें तु म्हारे काले कारनामों का पु ख्ता सबू त हैं। किराज अगर चाहे तो
आज तु म्हें उन सब ची़िों के आधार पर जे ल पहुॅचिा सकता है। तु म्हें ये बताने की
़िरूरत नही ं है कक ग़ैर कानू नी धंधा करने के जुमग में कानू न तु म्हें ककतनी बडी स़िा
सु ना सकता है? कहने का मतलब ये कक तु म्हारी स्वतं त्रता किराज के हाॅथों में है। िो
अगर चाहे तो तु म कानू न की कगरफ्त से दू र रहोगे और अगर िो चाहे तो आज इसी
िक्त तु म कानू न के कशकंजे में िस जाओ। मगर चू ॅकक अब तक उसने ऐसा कुछ
नही ं ककया है इस कलए अभी तु म कानू न की पहुॅच से बाहर हो। मगर इसका मतलब
ये नही ं है भकिष्य में भी ऐसा ही रहे गा। सं भि है कक किराज ककसी ऐसे िक्त पर ये सब
करे जब उसे लगे कक यही सही िक्त है। दै ट्स इट।"

प्रकतमा की ये बातें सु न कर अजय कसं ह के समू चे कजस्म में झुरजुरी सी दौड गई। बगल
से ही सोिे पर बै ठे कशिा की ऑखों के सामने उसके बाप के दोनो हाॅथ कानू न की
हथकडी में बधे ऩिर आए। इस दृष्य के घू मते ही कशिा की धडकने एकाएक ही बढ
चली थी। अभी ये सब ये लोग सोच ही रहे थे कक तभी एक बार किर से अजय कसं ह
का मोबाइल बज उठा। हडबडा कर अजय कसं ह ने मोबाइल की काल को ररसीि कर

581
मोबाइल को कान से लगा कलया।

".........।" उधर से कुछ दे र तक कुछ कहा गया। कजसे सु न कर अजय कसं ह के चे हरे
पर चौंकने के भाि उभरे । उधर की बातें सु नने के बाद अजय कसं ह ने ये कह कर
िोन रख कदया कक____"ठीक है, तु म अपने कुछ आदकमयों को गुनगुन रे लिे स्टे शन
जाने को बोल दो और बाॅकी के लोग आस पास के क्षे त्र की अच्छे से छानबीन करते
रहो।"

"क्ा कहा तु म्हारे आदमी ने ?" अजय कसं ह के िोन रखते ही प्रकतमा ने पू छा था।
"उसने जो कुछ भी मु झे बताया है।" अजय कसं ह ने अजीब भाि से कहा___"उसे जान
कर मुझे यकीन नही ं हो रहा है प्रकतमा।"
"क्ा मतलब??" प्रकतमा के चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे ___"ककस बात का यकीन
नही ं हो रहा तु म्हें?"

प्रकतमा के पू छने पर अजय कसं ह ने तु रंत कोई जिाब नही ं कदया। बल्कि चे हरे पर
गंभीरता कलए उसने एक नया कशगार सु लगाया और दो तीन जल्दी जल्दी कश ले ने के
बाद उसने नाॅक ि मुह से ढे र सारा धु आॅ उगला। प्रकतमा और कशिा दोनो ही
उसके मुख से जिाब सु नने के कलए बे चैन से होने लगे थे । ककन्तु अजय कसं ह ने कशगार
पी ले ने के बाद भी कोई जिाब नही ं कदया। िो ककसी गहरी सोच में डूबा ऩिर आया।
प्रकतमा उसके चे हरे पर इस तरह सोच के भाि दे ख कर चौंकी। उसने अजय कसं ह को
आिा़ि दे कर सोच के सागर से कनकाला। हक़ीक़त की दु कनयाॅ में आकर अजय कसं ह
ने गहरी साॅस ली और एक झटके से सोिे पर से उठ कर खडा हो गया। उसने
कशिा और प्रकतमा दोनो को हिे ली चलने को कहा और बाहर की तरि बढता चला
गया। दोनो माॅ बे टा भौचक्के से दे खते रह गए थे अजय कसं ह को।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर ररतू दीदी के िामग हाउस पर!


सु बह हुई और एक नये कदन तथा एक नये जीिन की शु रूआत हुई। सबके प्यार ने
और सबके समझाने का असर ये हुआ था कक कपछले कदन की अपे क्षा आज मेरी
हालत में कािी हद तक सु धार था। कल तो मैं सदमे में ही डूबा हुआ था। ककसी से
कोई मतलब ही नही ं था और ना ही ककसी से कोई बात करने का कदल कर रहा था।
मगर आज मैं कािी हद तक नामगल था।

जब मेरी नी ंद खु ली तो मैने दे खा मेरे दोनो तरि मु झसे छु पकी हुई मेरी दोनो बहनें
सु कून से सो रही थी। उन दोनो के खू बसू रत तथा मासू म से चे हरों को दे ख कर ही
मेरा मन खु श सा हो गया। िो दोनो मु झसे ऐसे छु पकी हुई थी मानो उन्हें डर हो कक मैं
उन्हें छोंड कर कही ं दू र चला जाऊगा। मैं कािी दे र तक उन दोनो को एकटक

582
दे खता रहा। आशा दीदी की तो खै र बात ही अलग थी ककन्तु ररतू दीदी की बात सबसे
जुदा थी। िो इस कलए क्ोंकक बचपन से ले कर अब तक मैं उनके मुख से राज या भाई
सु नने को तरस गया था। िो मु झे दे खना तक गिाॅरा नही ं करती थी बात करने की
तो बहुत दू र की बात है। मगर आज मेरी िही ररतू दीदी मु झसे छु पकी हुई सो रही
थी। उनके कदल में मेरे कलए बे पनाह प्यार ि स्ने ह था।

उन्हें इस तरह सु कून से सोते दे ख जाने क्ों मे री ऑखों में ऑसू भर आए। मेरे कदल में
ददग की एक ते ़ि लहर सी दौड गई। अभी मैं इस लहर से ब्यकथत हुआ ही था कक
सहसा ररतू दीदी के सम्पू र्ग कजस्म में हरकत हुई और दे खते ही दे खते उनकी ऑखें
खु ल गईं। उनकी ऩिर सबसे पहले मुझ पर ही पडी। मेरी ऑखों में ऑसू दे खते ही
िो बे चैन सी ऩिर आने लगी ं। उन्होंने अपना हाॅथ बढा कर मेरे चे हरे को सहलाया
और कसर को ना में कहलाते हुए मु झे इशारा ककया कक मैं दु खी न होऊ।

इधर आशा दीदी की भी ऑखें खु ल गई थी। कसर को ऊपर की तरि उठा कर


उन्होंने मु झे दे खा और मेरी ऑखों में ऑसू दे खते ही उन पर भी िही प्रकतकक्रया हुई
जो ररतू दीदी पर हुई थी। दोनो ने एक साथ ऊपर की तरि ल्कखसक कर मेरे माथे पर
हिे से चू मा। मैं अपनी दोनो बहनों का ये प्यार दे ख कर अं दर ही अं दर गदगद सा
हो गया। मु झे एक अलग ही तरह का एहसास हुआ। ऐसा लगा कक अब मैं यहाॅ पर
अकेला नही ं हूॅ बल्कि यहाॅ भी मेरे अपने हैं, जो मुझे इस हद तक प्यार करते हैं।

"तू इस तरह अब कभी दु खी मत होना राज।" ररतू दीदी ने गंभीरता से कहा___"मैं


मानती हूॅ कक अभी जो कुछ भी हुआ उससे तु झे गहरा सदमा लगा है। मगर तु झे
खु द को सम्हालना होगा मेरे भाई। तू मुझे भाई के रूप में कमल गया है इस कलए मैं
चाहती हूॅ कक मेरा भाई हमेशा खु श रहे। ते रे पास ककसी भी प्रकार का दु ख ददग न
आए। मैने भी ठान कलया है कक मैं तु झे कभी भी दु खी नही ं होने दू ॅगी, और इसके
कलए मैं ककसी भी हद तक गु़िर जाऊगी।"

"ररतू सही कह रही है राज।" आशा दीदी ने कहा__"अब से हम दोनो बहनें तु झे कभी
भी दु खी नही ं होने दें गे। उसके कलए चाहे हमें जो भी करना पडे हम करें गे।"
"इसकी ़िरूरत नही ं पडे गी दीदी।" मैने हिे से मु स्कुरा कर कहा___"क्ोंकक
कजसके पास आप जैसी इतना प्यार करने िाली दो दो बहनें हों उसको कोई दु ख
तक़लीि कैसे हो जाएगी? आप कचन्ता मत कीकजए धीरे धीरे सब ठी हो जाएगा।"

"ये हुई न बात।" ररतू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"मु झे पता है कक मेरा स्वीट सा भाई
ककतना समझदार है। खै र, चल अब तू िेश हो ले । हम दोनो भी िेश हो जाते हैं,

583
उसके बाद नास्ता करें गे साथ में। मुझे भी थाने जाना पडे गा न।"
"मुबारक हो दीदी।" मैने कहा___"आप पु कलस ऑिीसर बन गई हैं। मु झे पता है
आपका शु रू से ही ये सपना था कक आप एक कदन पु कलस ऑकिसर बनो। इस कलए
इसके कलए आपको ढे र सारी बधाईयाॅ दीदी।"

"थैं र्क् राज।" दीदी ने कहा___"ले ककन मेरे माॅम डै ड को मेरा पु कलस ऑिीसर
बनना कबलकुल पसं द नही ं आ रहा है। आए कदन इस बारे में कोई न कोई बात होती
रहती है घर में। मैने भी िैंसला कर कलया है कक अब ये पु कलस की नौकरी छोंड
दू ॅगी।"

"अरे ऐसा क्ों दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा___"नही ं नही ं आप ऐसा कबलकुल नही ं
करें गी। पु कलस ऑिीसर बनना आपका ख़्वाब था और जब ये ख़्वाब पू रा हो ही गया
है तो इसे इस तरह छोड कर अं दर ही अं दर हमेशा के कलए दु खी रहने िाला काम मत
कीकजए। रही बात बडे पापा और बडी माॅ की तो मुझे पता है िो ऐसा क्ों चाह रहे
हैं?"

"अच्छा क्ा पता है तु झे?" ररतू दीदी ने मुस्कुरा कर पू छा___"़िरा मैं भी तो सु नूॅ।"
"कजनके हाॅथ खू न से रगे हों।" मैने कहा___"और जो जु मग की दु कनयाॅ से ताल्लुक
रखता हो, िो तो पु कलस और कानू न से डरे गा ही। आप तो िै से भी एक ते ़ि तरागर
पु कलस ऑिीसर हैं। उन्हें भी पता है कक आपको अगर ये पता चल जाए उनके डै ड
जुमग की दु कनयाॅ से ताल्लुक रखते हैं तो आप से कण्ड भर का भी समय नही ं
लगाएॅगी उन्हें कानू न की कगरफ्त में ले ने में। इस कलए िो नही ं चाहते हैं कक आप
पु कलस की नौकरी करें ।"

मेरी ये बातें सु न कर ररतू दीदी ही नही ं बल्कि आशा दीदी भी बु री तरह उछल पडी
थी। ररतू दीदी मु झे इस तरह दे ख रही थी ं जैसे मैं कोई अजूबा हूॅ।

"तू ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकता है कक मेरे डै ड जुमग की दु कनयाॅ से


ताल्लुक रखते हैं?" ररतू दीदी ने चककत भाि से पू छा था।
"मुझे उनके बारे में हर ची़ि पता है दीदी।" मै ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"और
मैं ये भी जानता हूॅ कक आप भी अपने डै ड के बारे में बहुत कुछ जान चु की हैं ।"

"क्ा मतलब????" ररतू दीदी की ऑखें आश्चयग से िैल गईं___"मैं बहुत कुछ क्ा जान
चु की हूॅ?"
"जाने दीकजए दीदी।" मैने पहलू बदलने की गऱि से कहा___"उन सब बातों को
़िुबाॅ पर लाने का कोई मतलब नही ं है। आप ये पू कछये कक मु झे कैसे पता कक आप

584
भी हुत कुछ जानती हैं?"

"हाॅ हाॅ बता न राज।" ररतू दीदी के आश्चयग का कोई कठकाना नही ं था, बोली___"मैं
जानना चाहती हूॅ कक ये सब तु झे कैसे पता है ?"
"बडी सीधी सी बात है दीदी।" मैने कहा___"सबसे पहले तो यही कक आपका मेरे प्रकत
इतना प्यार ही ये ़िाकहर कर दे ता है कक आपको उनकी असकलयत के बारें में कुछ तो
ऐसा पता चला ही कजसके तहत आपके कदल में मेरे प्रकत प्यार जाग गया। दू सरी बात
ये कक आप इस िामग हाउस में नै ना बु आ के साथ रह रही हैं। इससे साकबत हो जाता
है कक आपको अपने माॅम डै ड के बारे में कुछ तो ऐसा पता चल ही चु का है। िरना
नै ना बु आ को साथ कलए यहाॅ रहने का क्ा कारर् हो सकता है? तीसरी बात, मेरे
दोस्त पिन से कह कर मु झे किधी से कमलाने के कलए मुम्बई से बु लाना। पिन और
किकध के द्वारा भी आपको कुछ तो ऐसा पता चल ही चु का होगा कजससे आपको ये
लगने लगा कक मैं और मेरी माॅ बहन इतने बु रे नही ं हो सकते कजतना आपको बताया
गया था बचपन से ।"

ररतू दीदी मेरी ये बातें सु न कर हैरान रह गईं। किर सहसा उनके चे हरे पर प्रशं सा के
भाि उभर आए। होठों पर हिी सी मु स्कान भी िैल गई।
"यकीनन तू ने बडी खू बसू रती से इन सब बातों का अं दा़िा लगाया है राज।" किर
उन्होंने कहा___"और ये सच है कक मुझे अपने माॅम डै ड की असकलयत के बारे में
पता चल चु का है। ककन्तु अभी भी कुछ बातें हैं कजनका मुझे शायद पता नही ं है।"

"डोन्ट िरी दीदी।" मैने कहा___"जब इतना कुछ पता चल गया है तो बाॅकी का भी
आपको पता चल ही जाएगा।"
"चल ठीक है मेरे प्यारे भाई।" ररतू दीदी ने मेरे चे हरे को प्यार से सहलाया___"मैं तो
बस इस बात से ही खु श हूॅ कक मु झे मेरा िो भाई कमल गया है जो सच में मुझे अपनी
दीदी मानता है और मेरी इज्ज़ित करता है। आने िाले समय में क्ा होने िाला है ये तो
िक्त ही बताएगा। मैं बस ये चाहती हूॅ कक कजतने कदन तू यहाॅ है उतने कदन तक
तु झ पर ककही भी तरह के खतरे को न आने दू ॅ।"

"आप किक्र मत कीकजए दीदी।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"आपका ये भाई कोई दू ध


पीता बच्चा नही ं है कजसे कोई भी चोंट पहुॅचा दे गा। इतना तो अब मु झमें सामथग है
कक मैं अपनी सु रक्षा खु द कर सकूॅ।"
"हाॅ मु झे पता है।" ररतू दीदी हस कर बोली___"मुझे पता है कक मेरे भाई ने दो कमनट
के अं दर मेरे डै ड के उतने सारे आदकमयों का खात्मा कर कदया था।"

"िो तो बस हो गया दीदी।" मैने कहा___"पर आपके सामने तो कुछ भी नही ं हूॅ मैं ।

585
आपने भी तो मेरी सु रक्षा के कलए क्ा कुछ नही ं ककया है। मैं सोच भी नही ं सकता था
कक आप मेरे कलए इतना कुछ कर सकती है।"
"ते रे कलए तो अब कुछ भी कर सकती हूॅ मेरे भाई।" दीदी की आिा़ि भारी हो
गई___"बचपन से ले कर अब तक मैने ते रे साथ क्ा ककया है ये सोच कर ही मु झे खु द
से घृर्ा होने लगती है। इस कलए अब मैं ते रे कलए और अपने भाई के कलए कुछ भी
करूॅगी।"

मैने दे खा कक ये सब कहते हुए दीदी की ऑखों में ऑसू आ गए थे इस कलए मैने उन्हें
खु द से छु पका कलया। िो खु द भी मु झसे ककसी जोंक की तरह कचपक गई थी।

"तु म दोनो का हो गया हो तो मेरा भी कुछ खयाल कर लो।" सहसा आशा दीदी ने
कहा___"मु झे तो भु ला ही कदया तु म दोनो ने ।"
"क्ा आप सोच सकती हैं दीदी कक हम आपको भु ला दें गे?" मैने आशा दीदी को खु द
से छु पकाते हुए कहा था।

ऐसे ही कुछ दे र तक हम तीनो भाई बहन एक दू सरे से छु पके रहे किर हम तीनो
अलग हुए। ररतू दीदी ने मु झे िेश हो जाने का कहा और खु द भी िेश होने के कलए
आशा दीदी को ले कर कमरे से बाहर कनकल गईं। उन दोनो के जाने के बाद मैं कुछ
दे र यूॅ ही बे ड पर ले टा ककसी सोच में डूबा रहा किर मैं उठ कर बाथरूम में चला
गया।

नास्ते की टे बल पर सब कोई साथ में ही बै ठ कर नास्ता कर रहा था। ककचे न में


हररया काका की बीिी कबं कदया और पिन की माॅ ने नास्ता तै यार ककया था। मैं
अपनी नै ना बु आ से ठीक तरह से कमला। उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर बहुत
प्यार कदया और हमेशा खु श रहने की दु िाएॅ दी।

ररतू दीदी ने बताया कक आज करुर्ा चाची भी बच्चों के साथ यही ं आ रही हैं। उनको
सु रक्षा पू िगक यहाॅ पर लाने की कजम्मेदारी खु द ररतू दीदी ने ही ली। हलाॅकक मैने
उन्हें समझाया भी कक आप आराम से ड्यूटी जाइये, मैं और आकदत्य करुर्ा चाची को
उनके बच्चों के साथ सु रकक्षत यहाॅ ले आएॅगे , मगर दीदी नही ं मानी। इस कलए मैने
भी ज्यादा ़िोर नही ं कदया। दीदी ने मु झे यही ं पर आराम करने की सलाह दी थी।
हलाॅकक मैं चाहता था कक मैं एक बार किधी के घर जाऊ और उसके माॅम डै ड का
हाल चाल दे ख लू ॅ मगर ररतू दीदी ने कहा कक िो सब दे ख सु न लें गी।

नास्ता करने के बाद ररतू दीदी अपनी पु कलस कजप्सी में बै ठ कर थाने चली गईं। नै ना
बु आ, आशा दीदी और पिन की माॅ ये तीनो एक साथ ही बातें करने में लग गईं।

586
जबकक मैं पिन और आकदत्य िामगहाउस के बाहर की तरि आ गए। मैने दे खा कक
िामग हाउस कािी लं बा चौडा था। बाहर िंट गेट पर दो बं दूखधारी खडे थे । गेट के
बगल से ही एक छोटी सी चौकी बनी हुई थी। जो शायद उन दोनो बं दूखधाररयों के
आराम करने के कलए थी।

हम तीनो एक साथ बाॅई तरि बढ गये। उस तरि एक सुं दर सा पे ड था कजसके


नीचे हरी हरी घास उगी हुई थी तथा पे ड के पास ही स्टील की बडी बडी दो तीन बें च
रखी हुई थी बै ठने के कलए। हम तीनो जाकर उन बें चों पर बै ठ गए। कल किधी िाले
मैटर के बाद से हम तीनो कुछ बु झे बु झे से थे । मुझे रह रह कर किधी के बारे में िो
सब याद आ जाता था कजसकी िजह से मेरा कदल दु खने लगता था।

"िै से किराज।" सहसा आकदत्य ने कहा___"हम यहाॅ से कब कनकलने िाले हैं? ये जो


कुछ भी हुआ िो यकीनन बहुत दु खद हुआ है मगर ये भी सच है दोस्त कक हमें जीिन
में आगे बढना ही होता है। ये सब तु म्ही ं ने मुझसे कहा था न? इस कलए दोस्त किधी की
खू बसू रत यादों को कदल में ही दबा के रखो और आगे बढो।"

"मैं जानता हूॅ आकदत्य।" मैने भारी मन से कहा___"मु झे पता है कक इस सबको


ले कर बै ठ जाने का कोई मतलब नही ं कनकलने िाला है। मगर एक दो कदन मैं यही ं रह
कर खु द को और अपने कदल को शान्त कर ले ना चाहता हूॅ। मैं नही ं चाहता कक मेरे
चे हरे पर छाई उदासी या ककसी दु ख के भाि को दे ख कर मुम्बई में मेरी माॅ और
बहन को कुछ पता चल जाए। िो मु झे ककसी भी कीमत पर दु खी नही ं दे ख सकती
हैं।"

"बात तो तु म्हारी ठीक है दोस्त।" आकदत्य ने कहा__"पर ये भी तो सोचो कक यहाॅ पर


ज्यादा कदन तु म्हारा रुकना ठीक नही ं है। तु म्हारी जान को हर िक्त खतरा बना
रहेगा।"
"मैं ककसी खतरे से नही ं डरता आकदत्य।" सहसा मेरे चे हरे पर कठोरता आ
गई___"पहले मुझे कुछ पता नही ं था और मैं ककसी दू सरे उद्दे श्य से यहाॅ आया था
इस कलए मैं अजय कसं ह या उसके आदकमयों से उलझना नही ं चाहता था। मगर अब
मुझे ककसी की कोई परिाह नही ं है। मैं भी तो दे खूॅ कक अजय कसं ह कैसे मेरा बाल
बाॅका करता है?"

"ये सब तु म आिे श में कह रहे हो दोस्त।" आकदत्य ने कहा___"जबकक तु म भू ल रहे हो


कक इस िक्त तु म्हारी कई कम़िोररयाॅ तु म्हारे साथ साथ हैं। अगर तु म अकेले होते
तो मान सकता था कक तु म धडल्ले के साथ उन सबका मुकाबला कर ले ते मगर इस
िक्त तु म अकेले नही ं हो। पिन और उसकी माॅ बहन भी तु म्हारे साथ हैं और तु म्हारे

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अभय चाचा के बीिी बच्चे भी तु म्हारे साथ तु म्हारी कम़िोरी के रूप में जुड जाएॅगे।
उस सू रत में तु म खु द की सु रक्षा करोगे या उन लोगों की जो इस िक्त तु म्हारे साथ
जुड गए हैं?"

"आकदत्य सही कह रहा है राज।" पिन ने भी हस्ताक्षे प ककया___"इस िक्त तु म ककसी


से उलझने की पोजीशन में नही ं हो। दू सरी बात ये भी है कक मान लो अगर तु म्हारे बडे
पापा को ये पता चल गया कक तु म्हारे हर काम में तु म्हारी मदद ररतू दीदी भी कर रही
हैं तो सोचो क्ा होगा? अरे ररतू दीदी के कलए भी उनका खतरा हो जाएगा। भला
अजय चाचा ये कैसे बरदास्त कर पाएॅगे कक उनकी बे टी उनके सबसे बडे दु श्मन का
साथ दे रही है? कजस तरह का कैरे क्टर तु म्हारे बडे पापा का है उससे यही बात सामने
आती है कक िो ये सब जानने के बाद अपनी बे टी को ककसी भी सू रत में माफ़ नही ं
करें गे।"

"मैं पिन की इस बात से पू री तरह सहमत हूॅ।" आकदत्य ने कहा___"तु म अपनी


िजह से भला अपनी ररतू दीदी की जान को भी सं कट में कैसे डाल सकते हो? उनके
कहत के बारे में सोचना तु म्हारा सबसे बडा ि़िग होना चाकहए दोस्त। उन्होंने तु म्हारी
सु रक्षा के कलए क्ा कुछ नही ं ककया है?"

"कभी कभी िक्त और हालात के कहसाब से भी कोई िैंसला ले ना चाकहए राज।"


पिन ने कहा___"किधी के जाने का दु ख हम सबको है मगर खु द किधी भी ये नही ं
चाहेगी कक तु म पर या तु म्हारी िजह से ककसी और पर कोई ऐसा सं कट आए। इस
कलए मैं यही कहूॅगा कक कजतना जल्दी हो सके हमें यहाॅ से कनकल जाना चाकहए। मैं
तु म्हें जंग के कलए नही ं रोंक रहा भाई, िो तो तसल्ली से और सबको सु रकक्षत करने के
बाद भी की जा सकती है।"

"ठीक है यार।" मैने उन दोनो की बातों पर किचार करते हुए कहा___"जैसा तु म दोनो
कहोगे मैं िै सा ही करूॅगा। हम सब कल ही यहाॅ से मुम्बई के कलए कनकलें गे।
सबकी कटकटों का इं तजाम करिाता हूॅ मैं।"
"उसकी ़िरूरत नही ं है दोस्त।" आकदत्य ने कहा__"सबकी कटकटों का इं तजाम हो
गया है। मैने कल ही सर(जगदीश ओबराय) से बात की थी। उन्हें मैने यहाॅ कुछ बातें
सं क्षेप में बताई थी, और ये भी कहा था कक िो हम सबकी कटकटों का इं तजाम करिा
दें । आज सु बह मेरे मोबाइल पर उन्होंने सबकी कटकट की कपक व्हाट् सएप पर भे ज दी
हैं।"

"चलो ये अच्छा हुआ।" मैने कहा___"ले ककन एक बात अभी भी सोचने िाली है। िो ये
कक दे र सिे र अजय कसं ह को ये पता चल भी सकता है कक ररतू दीदी मेरी हर तरह से

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मदद कर रही थी। इस कलए अगर ऐसा हुआ तो ररते दीदी के कलए भी खतरा हो
सकता है।"

"तो तु म अब क्ा चाहते हो?" आकदत्य ने पू छा।


"मैं तो यही चाहूॅगा यार कक ररतू दीदी पर कोई सं कट न आए।" मैने
कहा___"हलाॅकक िो एक पु कलस ऑकिसर हैं और ककसी भी खतरे से कनपटने के
कलए िो खु द ही सक्षम हैं मगर किर भी उन्हें यहाॅ अकेला छोंड दे ने का मेरा कदल
नही ं करता है। दू सरी बात उनके साथ नै ना बु आ भी तो हैं। ररतू दीदी के साथ िो भी
तो अजय कसं ह के लपे टे में आ सकती हैं।"

"मेरे खयाल से इस में इतना सोच किचार करने की ़िरूरत नही ं है राज।" पिन ने
कहा___"ररतू दीदी के रहते ये सब हो जाने का चान्स बहुत ही कम है। किर भी अगर
उन्हें लगेगा कक उन दोनो पर खतरा है तो िो अपनी सु रक्षा के कलए अपने आला
अकधकाररयों से पु कलस प्रोटे क्शन भी ले सकती हैं। मु झे यकीन है कक अजय चाचा उस
सू रत में उनका और नै ना बु आ का कुछ नही ं कबगाड सकेंगे।"

"यस पिन इज राइट।" आकदत्य ने कहा___"इस कलए तु म्हें ररतू दीदी और नै ना बु आ


की किक्र नही ं करनी चाकहए।"
"ठीक है भाई।" मैने गहरी साॅस ली___"तो िाइनल हो गया कक हम सब कल यहाॅ
से मुम्बई के कलए कनकल लें गे।"

मेरी इस बात से पिन और आकदत्य मुस्कुरा कर रह गए। मैंने इधर उधर ऩिरें घुमाई
तो मेरी ऩिर िामग हाउस के गेट पर खडे दोनो बं दूखधाररयों पर पडी। िो दोनो हस
हस के कुछ बातें कर रहे थे । एक ब्यल्कक्त दू सरे िाले की पीठ भी ठोंक रहा था। मु झे
समझ न आया कक ये दोनो ऐसी कौन सी बात पर हस रहे हैं और दू सरा उसकी पीठ
ठोंक रहा है।

खै र, कुछ दे र तक हम िही ं बें च पर बै ठे रहे। उसके बाद हम तीनो उठे और िापस


अं दर की तरि बढने लगे। अभी मैं दो चार क़दम ही आगे बढा था कक उन दो
बं दूखधाररयों में से एक उससे कुछ बोला और किर एक बार हम तीनों की तरि
सरसरी ऩिर से दे खा। उसके बाद िो मुस्कुराते हुए ही िामग हाउस के बाएॅ साइड
बने एक अलग दरिाजे की तरि बढ गया। मे री ऩिर बराबर उसी पर थी, िो आदमी
उस दरिाजे के पास पहुॅच कर एक बार पहले िाले आदमी की तरि मु स्कुरा कर
दे खा उसके बाद दरिाजे के अं दर दाल्कखल हो गया। मेरे मन में उसकी इन सब
कक्रयाओं से सं देह पै दा हो गया।

589
मुख्य द्वार के पास पहुॅचते ही मैने पिन और आकदत्य को अं दर जाने का कह कदया
और खु द बाहर ही थोडी दे र बै ठने का बोल कर िही ं खडा रह गया। मेरे कहने पर
पिन और आकदत्य दोनो ने मु झे अजीब भाि से दे खा तो मैने अपनी पलकें झपका
कर उन्हें तसल्ली रखने का इशारा ककया। मेरे इस इशारे से िो दोनो अं दर की तरि
बढ गए। उनके जाने के कुछ दे र बाद ही मैंने पहले िाले की तरि दे खा तो िो मु झे
गेट के पास बनी चौकी की तरि मुड कर हाॅथों में खै नी मलता ऩिर आया। मैं बडी
ते ़िी से उस दरिाजे की तरि बढ गया कजस तरि िो दू सरा आदमी गया था।

दरिाजे के पास पहुॅच कर मैने आकहस्ता से दरिाजे को अं दर की तरि धकेला तो


िो हिी सी आिा़ि के साथ खु ल गया। दरिाजे के खु लते ही मैं उसके अं दर दाल्कखल
हो गया। अं दर आते ही मैने इधर उधर दे खा तो मु झे दाईं तरि एक गैलरी कदखी तो
मैं उस गै लरी में आगे की तरि बढ चला। कुछ ही दू री पर मु झे एक कमरा ऩिर
आया कजसका दरिाजा हिा सा खु ला हुआ था। मैं उस खु ले हुए दरिाजे के पास
पहुॅच कर उसके खु ले हुए भाग से अं दर की तरि का मुआयना ककया और किर
दरिाजे को खोल कर अं दर की तरि दाल्कखल हो गया।

इस कमरे में मध्यम सी रोशनी थी। बाईं तरि एक ऐसा दरिाजा ऩिर आया जैसा
कक िो ककसी ऐसे िोल्ट का हो कजसके अं दर सरकार का बहुत सारा गोल्ड रखा गया
हो। ये दे ख कर मेरे चे हरे पर नासमझने िाले भाि उभरे । उत्सुकतािश मैं उस
दरिाजे की तरि बढ गया। दरिाजे के पास पहुॅच कर मैने ध्यान से उस दरिाजे को
दे खा तो पता चला कक ये दरिाजा ककसी मोटे लोहे से बना बहुत ही मजबू त दरिाजा
है। ककन्तु मैने दे खा कक एक ही तरि खु लने िाले उस दरिाजे पर भी हिी सी कझरी
थी। इसका मतलब िो आदमी जो अं दर आया था िो इसके अं दर ही गया है।

मेरा कदल ने अनायास ही ककसी अं जानी आशं कािश ़िरा ते ़िी से धडकना शु रू कर
कदया था। मैने उस कझरी पर अपने कान सटा कदये। मैं अं दर की आिा़ि सु नने की
कोकशश कर रहा था मगर मैं उस िक्त चौंका जब अं दर से ककसी के ़िोर से चीखने
की आिा़ि आई। अं दर की तरि ककसी चीख की आिा़ि से मेरा कदमाग़ घूम गया।
मैंने कबना कुछ सोचे समझे दरिाजे को हाथ बढा कर खोल कदया और अं दर की तरि
बढा ही था कक अचानक ही मैं एकदम से रुक गया। कारर् दरिाजे के अं दर तीन िुट
की दू री पर ही सीकढयाॅ बनी हुई थी जो कक नीचे की तरि जा रही थी। इसका
मतलब ये कोई तहखाना था।

इस िामगहाउस पर ककसी तहखाने के मौजूद होने का दे ख कर ही मैं सोच में पड


गया। खै र, मैने खु द को सम्हाला और नीचे की तरि जा रही सीकढयों पर उतरता

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चला गया। नीचे तहखाने में एक अलग ही ऩिारा कदखा मु झे। कजसे दे ख कर मैं
भौचक्का सा रह गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उस िक्त दोपहर के एक बज रहे थे जब ररतू अपनी पु कलस कजप्सी में बै ठी हिे ली


पहुॅची थी। यहाॅ पर िो आना तो नही ं चाहती थी ककन्तु िो ये नही ं चाहती थी कक
उसके न आने से उसके माॅम डै ड उसके बारे में कोई अलग धारर्ा बना बै ठें। िो
इस बात को बखू बी समझती थी कक बहुत जल्द ऐसा कुछ होने िाला है कजससे हिे ली
का हर ब्यल्कक्त दहल जाएगा। िो आने िाले उस समय के कलए खु द को पू री तरह
तै यार कर चु की थी।

कजप्सी से उतर कर ररतू हाॅथ में पु कलकसया रुल कलए मुख्य द्वार की तरि बढ चली।
दरिाजे के पास पहुॅच कर उसने बं द दरिाजे को उसकी कंु डी से पकड कर
बजाया। कुछ ही दे र में दरिाजा खु ला तो उसे अपने सामने कशिा खडा ऩिर आया।
कशिा पर ऩिर पडते ही उसके चे हरे पर अकप्रय भाि उभरे मगर तु रंत ही उसने उन
भािों को दबा कर दरिाजे के अं दर की तरि बढ गई।

कुछ ही पलों में िो डर ाइं गरूम में पहुॅच गई। डर ाइं गरूम में इस िक्त अपने डै ड
अजय कसं ह को बै ठे दे ख िो मन ही मन चौंकी। बगल के सोिे पर प्रकतमा भी बै ठी
थी। ररतू ने खु द को एकदम से नामगल दशागते हुए एक अलग सोिे पर बै ठ कर अजय
कसं ह की तरि दे खा, किर बोली__"कैसे हैं डै ड? आज आप िैक्टर ी नही ं गए?"

"हाॅ िो आज ़िरा थोडा ले ट ही जाना था न।" अजय कसं ह ने कहा___"इस कलए


सु बह नही ं गया। खै र, छोडो ये बताओ तु म्हें भी हमारी कुछ खै र खबर रहती है कक
नही ं?"
"आप ऐसा क्ों कह रहे हैं डै ड?" ररतू ने हैरानी ़िाकहर करते हुए कहा___"भला
आपकी खै र खबर क्ों नही ं होगी मुझे?"

"अब ये तो तु म ही जानो बे टा।" अजय कसं ह ने अजीब भाि से कहा___"क्ोंकक कपछले


कुछ समय से हर ची़ि बदली हुई ऩिर आ रही है मु झे। पता नही ं पर जाने क्ों ऐसा
लगता है मु झे कक मेरे जो अपने हैं िही मु झसे दू र जा रहे हैं।"
"क्ा मतलब डै ड??" ररतू ने मन में एकाएक ही हैरत के भाि उभरे थे ___"ये आज
आप कैसी बाते कर रहे हैं? कही ं आप उस कदन की बात पर तो ऐसा नही ं कह रहे जब
मैने कशिा को दो बातें सु ना दी थी?"

"िो सब तो नामगल बात है बे टा।" अजय कसं ह ने बे चैनी से पहलू बदला___"तु मने अपने
भाई से जो कुछ कहा िो बडी बहन होने के नाते तु म्हारा हक़ था।"

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"तो किर और क्ा बात है डै ड?" ररतू ने कहा___"मुझे बताइये कक आपकी ऐसा क्ों
लग रहा है कक आपके अपने आपसे दू र जा रहे हैं? अगर आपका इशारा मेरी तरि है
तो ये मेरे कलए शमग की ही बात होगी कक मेरी िजह से आपको ऐसा लगा और आपके
मन को ठे स पहुॅची है। प्ली़ि डै ड बताइये न कक मु झसे ऐसा क्ा हो गया है कजससे
आपको मेरे बारे में ऐसा लग रहा है?"

"शायद तु म्हें इस बात का एहसास नही ं है बे टा कक मैं तु म सबसे ककतना प्यार और


दु लार करता हूॅ।" अजय कसं ह ने सहसा भारी आिा़ि में कहा___"बचपन से ले कर
अब तक हर िो ची़ि तु म सबके क़दमों में लाकर रखी कजन ची़िों की तु म लोगों ने
मुझसे िरमाईश की थी। इसके बािजूद मेरे प्यार में क्ा कमी रह गई कक आज मेरी
बे टी अपने ही माॅ बाप और भाई को बे गाना समझने लगी है?"

अजय कसं ह की इस बात से ररतू तो चौंकी ही मगर अलग अलग सोिों पर बै ठे दोनो
माॅ बे टा भी चौंक पडे थे । दोनो कल से पू ॅछ रहे थे कक क्ा बताया था िोन पर उस
आदमी ने मगर अजय कसं ह ने उन दोनो के सिाल पर अब तक अपने होंठ कसले हुए
थे । कदाकचत िो ये सब ररतू के आने के बाद ही उससे कहना चाहता था।

"ये आप क्ा कह रहे हैं डै ड?" ररतू ने चककत भाि से कहा___"भला मैं ऐसा क्ों
समझने लगूॅगी? मैं तो इस बारे में सोच भी नही ं सकती समझने की तो बात ही दू र
है।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता था बे टी।" अजय कसं ह ने दु खी भाि से कहा___"मैं भी यही
सोचा करता था कक मेरे बच्चे ऐसा कभी सोच भी नही ं सकते । मगर...मगर मेरी सारी
सोच और सारी उम्मीदों को तोड कदया है तु मने ।"

"नही ं डै ड ऐसा मत ककहए प्ली़ि।" ररतू की ऑखें भर आईं____"अगर आपको मेरा


पु कलस की नौकरी करना अच्छा नही ं लगता है तो मैं इस नौकरी को छोंड दू ॅगी डै ड।
आपकी खु शी में ही मेरी खु शी है।"
"बात तु म्हारी नौकरी की नही ं है बै टा।" अजय कसं ह ने कहा___"मु झे तु म्हारी पु कलस
की नौकरी से कोई परे शानी नही ं है। यहाॅ पर बात हो रही है भरोसे की, किश्वास
की। मु झे बहुत भरोसा था कक मेरे बच्चे कभी भी मेरे ल्कखलाफ़ नही ं जा सकते । मगर
मेरी ये भरोसा उसी तरह टू ट कर कबखर गया जैसे कीई आईना टू ट कर कबखर जाता
है।"

"आकखर आप कहना क्ा चाहते हैं डै ड?" ररतू ने गंभीरता से कहा___"मैने ऐसा क्ा
कर कदया है कजससे आपका भरोसा टू ट गया है? मु झे बताइये डै ड, अगर मु झसे कही ं
कोई ग़लती हुई है तो मैं उसे सु धार लू ॅगी।"

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"ये बात तो तु म्हें भी पता चल ही गई होगी।" अजय कसं ह ने ररतू के चे हरे की तरि
़िरा गहरी ऩिर से दे खते हुए कहा___"कक हमारा सबसे बडा दु श्मन किराज यहाॅ
हल्दीपु र आया हुआ था?"

"कि किराज??" ररतू ने चौंकने की लाजिाब ऐल्कक्टं ग की, बोली___"किराज यहाॅ आया?
ये आप क्ा कह रहे है डै ड? भला िो कमीना यहाॅ ककस कलए आएगा?"
"ओह, हैरत की बात है।" अजय कसं ह ने िीकी सी मु स्कान के साथ कहा___"मतलब
कक इस बारे में तु म्हें कुछ पता ही नही ं है। जबकक मेरे आदमी का िष्ट रूप से कहना
है कक कल शाम कजस एम्बू लेन्स में बै ठ कर किराज, उसका दोस्त, पिन और पिन की
माॅ बहन अपने घर से कनकले थे उस एम्बू लेन्स के आगे आगे एक जीप भी चल रही
थी।"

"ये आप क्ा कह रहे हैं डै ड?" ररतू अं दर ही अं दर बु री तरह घबरा गई थी, ककन्तु
प्रत्यक्ष में खु द को सम्हालते हुए कहा___"मेरी तो कुछ समझ में नही ं आ रहा।"
"मैं कजस जीप की बात कर रहा हूॅ बे टा।" अजय कसं ह ने सहसा शख्त भाि से
कहा___"िो जीप असल में तु म्हारी पु कलस कजप्सी ही थी। इस गाॅि में हमारे अलािा
ककसी और के पास ऐसी कोई जीप है ही नही ं। हमारे आदकमयों का अपनी जीप में
बै ठ कर किराज की उस एम्बू लेन्स के आगे आगे चलने का कोई सिाल ही पै दा नही ं
होता। किर िो जीप ककसकी हो सकती थी? हल्दीपु र में ऐसी कोई जीप पु कलस थाने
में कसिग तु म्हें कमली हुई है। अब तु म सच सच बताओ कक तु म्हारा एम्बू लेन्स के आगे
आगे चलने का क्ा मतलब था?"

"ये तो हद हो गई डै ड।" ररतू की ऑखों से ऑसू छलक पडे ____"आप सरासर अपनी
बे टी पर इल्जाम लगा रहे हैं कक उस एम्बू लेन्स के आगे आगे चल रही जीप में मैं थी।
जबकक आप अच्छी तरह जानते हैं कक ऐसा कुछ करने के बारे में मैं सोच भी नही ं
सकती हूॅ। सबसे पहली बात तो मु झे यही पता नही ं था कक िो कमीना किराज यहाॅ
आया हुआ है कजसने कुछ समय पहले मेरे भाई कशिा को बु री तरह मारा था। अगर
पता होता तो मैं उसे खोज कर सबसे पहले अपने भाई की मार का बदला ले ती
उससे । उसके बाद उसे आपके हिाले कर दे ती। और आप कह रहे हैं कक मैं िो जीप
मेरी थी जो उस एम्बू लेन्स के आगे आगे चल रही थी। इसका मतलब तो ये हुआ डै ड
कक आप ये समझ रहे हैं कक मैं उस किराज की पु कलस प्रोटे क्शन दे रही थी। ओह माई
गाड....ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप? आप मु झे अपने उस आदमी से कमलिाइये डै ड
कजसने आपको ये खबर दी है। मैं उससे पू छूॅगी कक उसने ये कैसे समझ कलया उस
जीप में थी?"

ररतू की इस बात से अजय कसं ह का कदमाग़ चकरा गया। उसे समझ न आया कक िो

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ककसकी बात पर यकीन करे ? अपने उस आदमी की बात पर या अपनी बे टी की बातों
पर? ये तो सच बात थी कक उसके आदमी को भी पक्के तौर पर ये पता नही ं चल पाया
था कक उस जीप में कौन बै ठा था। उसने भी यही सोच कर अनु मान में ही अजय से
बताया था कक उस जीप में शायद उसकी बे टी ररतू थी। क्ोंकक यहाॅ पर अजय कसं ह
के अलािा अगर ककही और के पास कोई जीप थी तो िो कसिग पु कलस इं िेक्टर ररतू
के पास। अजय कसं ह के आदमी ने यही सोच कर उसे बताया था। पक्के तौर पर उसे
भी पता नही ं था। दू सरी बात िो खु द जानता था कक ररतू किराज को प्रोटे क्ट करने
जैसा काम कर ही नही ं सकती थी क्ोंकक िो किराज से कभी कोई मतलब ही नही ं
रखती थी। किराज का क़िक्र आते ही उसके अं दर गुस्सा भर जाता था।

ररतू ने ये सब बातें कजस आत्मकिश्वास और भािपू र्ग लहजे में कही थी उससे अजय
कसं ह को यही लगा कक ररतू सच कह रही है। मगर उसके मन में अपने आदमी की भी
बातें चल रही थी। इस कलए िो समझ नही ं पा रहा था कक कौन सच बोल रहा है?

"इस बात पर तो मैं भी यकीन नही ं कर सकती अजय कक ररतू किराज को प्रटे क्ट
करने िाला काम करे गी।" सहसा इस बीच प्रकतमा ने भी कहा___"मु झे समझ नही ं आ
रहा कक तु म अपने आदमी की उस बात पर यकीन कैसे कर सकते हो? क्ा उसने
अपनी ऑखों से दे खा था कक उस जीप पर ररतू ही बै ठी थी या किर ये बात ककसी ने
पक्के तौर पर पू छने पर ककसी ने उसे बताई थी?"

"माॅम, ऐसा सं भि ही नही ं है।" ररतू ने अपनी माॅ की तरि दे ख कर कहा___"मैं


कसर पटक कर मर जाना पसं द करूॅगी मगर उस कमीने को प्रोटे क्ट करने के बारे
में सोचू ॅगी भी नही ं। पता नही ं कैसे उस आदमी की उन कि़िू ल बातों पर यकीन कर
कलया डै ड ने ? क्ा आपने अपनी बे टी को इतना ही जाना समझा है डै ड?"

"पर बे टा ग़लत िो भी तो नही ं है न।" अजय कसं ह ने बात को सम्हालते हुए


कहा___"उसने ये सब कसिग इसी कलए कहा क्ोंकक इस गाॅि में हमारे अलािा कसिग
तु म्हारे ही पास पु कलस की जीप है। इस कलए उसने सोचा कक शायद तु म ही थी उस
एम्बू लेन्स के आगे।"
"कमाल है डै ड।" ररतू ने मन ही मन राहत की साॅस ले ते हुए कहा___"आप पढे
कलखे और िकालत कर चु के होने के बािजूद भी इतना नही ं सोच सके कक अगर इस
गाॅि में ककसी के पास जीप नही ं तो क्ा उसे कही ं भी जीप नही ं कमलती? ऐसा भी तो
हो सकता है कक उस किराज ने शहर से ही ककसी जीप को ककराये पर हायर ककया
रहा होगा।"

"चलो मान कलया बे टा कक िो कमबख्त उस जीप को शहर से ककराये पर ले आया

594
होगा।" अजय कसं ह ने कहने के साथ ही कशगार सु लगा कलया था, बोला___"मगर उसे
लाने की भला क्ा ़िरूरत थी? जबकक उसे इस बात का बखू बी अं दा़िा था कक जीप
में िो कही ं हमारे आदकमयों द्वारा पकडा जा सकता है। एम्बू लेन्स तो उसके कलए
सबसे बकढया और सु रकक्षत िाहन था, कजसमें िो सबको बै ठा कर बडे आराम से
हल्दीपु र से कनकल जाता। तो किर अलग से जीप हायर करने का क्ा मतलब हो
सकता है भला?"

"आपकी ये बात यकीनन काकबले ग़ौर है डै ड।" ररतू ने सोचने िाले भाि से
कहा___"अलग से ककसी जीप को हायर करना यकीनन बे िकूिी िाली बात है। मगर
मौजूदा हालात में क्ा िो ऐसी बे िकूिी कर सकता है?"
"यही तो सोचने िाली बात है बे टा।" अजय कसं ह ने कशगार का कश ले ने के बाद
उसका धुऑ ऊपर छोंडते हुए कहा___"उससे ऐसी बे िकूिी की उम्मीद हकगग़ि भी
नही ं की जा सकती। मगर ये तो सच है न कक उसके आगे आगे जीप चल रही थी।"

"हो सकता है कक ऐसा उसने ककसी किशे ष प्लान के तहत ककया हो डै ड।" ररतू ने
अपने चे हरे पर गहन सोच के भाि दशागते हुए कहा___"ये तो आप भी जानते हैं डै ड
कक िो आपसे खु ल कर टकराने की कहम्मत नही ं कर सकता। इस कलए उसने सोचा
होगा कक िो हमारे बीच ककसी प्रकार की दरार या अकिश्वास पै दा कर दे गा। उससे
होगा ये कक हम आपस में ही एक दू सरे से उलझने लगें गे। जबकक िो अपना काम
करके कनकल जाएगा।"
"बात कुछ समझ में नही ं आई बे टी।" प्रकतमा के माथे पर कसलिटें उभर
आई___"हमारे बीच िो भला कैसे दरार या अकिश्वास पै दा कर सकता है?"

"ठीक िै से ही माॅम।" ररतू ने कहा___"जैसे अभी कुछ दे र पहले डै ड के मन में


अपनी बे टी के प्रकत हो गया था। ़िरा सोकचए माॅम___ये तो उसे भी पता ही था कक
अलग से जीप हायर करने का कोई मतलब नही ं है जबकक एम्बू लेन्स में िो सबको
ले कर बडी आसानी से यहाॅ से कनकल ही जाता। मगर इसके बाद भी उसने ऐसा
ककया। मतलब कक उसने अलग से एक जीप इस कलए हायर की ताकक जब आपको
उसके यहाॅ से जाने का पता चले तो आपके आदमी उसका पता करके आपको
उसके बारे में किस्तार से बताएॅ। यानी िो आपको बताएॅ कक एम्बू लेन्स में तो िो
अपने साथ सबको कलए बै ठा ही था ककन्तु उसके आगे आगे अलग से एक जीप भी
चल रही थी। जीप का सु न कर आप या आपके आदमी यही सोच बै ठेंगे कक जीप तो
आपके अलािा कसिग मेरे ही पास है , इस कलए उस जीप में मैं ही थी जो उस एम्बू लेन्स
के आगे आगे चल रही थी। आप ये जानते हुए भी कक आपकी बे टी ऐसा करने का
सोच भी नही ं सकती है, ऐसा सोच बै ठेंगे और बाद में आप मु झ पर शक़ करते हुए
मुझसे इसके बारे में ऐसा सब कुछ कहने लगें गे या पू छने लगें गे। यही उसका प्लान

595
हो सकता था डै ड। अब आप ही बताइये क्ा ऐसा नही ं हो सकता?"

ररतू की बातें सु न कर अजय तो अजय बल्कि खु द को कदमाग़ की सू रमा समझने िाली


प्रकतमा भी आश्चयग चककत रह गई थी। दोनो ही कमयाॅ बीिी अपनी इं िेक्टर बे टी की
तरि ऐसी ऩिरों से दे खने लगे थे जैसे ररतू के कसर पर अचानक ही आगरा का
ताजमहल आकर कत्थक करने लगा हो। कािी दे र तक दोनो के मुख से कोई बोल
न िूटा था। किर जैसे उन दोनो को होश आया। िस्तु ल्कथथत का एहसास होते ही दोनो
के चे हरों पर अपनी बे टी की बु ल्कि पर प्रशं सा के भाि उभर आए।

"अगर िो िै सा ही कर सकता है जैसा कक तु मने अभी बताया मु झे।" अजय कसं ह ने


गहरी साॅस ली___"तो किर यकीनन उसके कदमाग़ की दाद दे नी पडे गी। हलाॅकक
मुझे पहली बार में अभी भी यकीन नही ं हो रहा कक िो ऐसा सोच सकता है मगर
ितग मान में मैने उसके बारे में कजतना किचार ककया है उससे यही पता चला है कक
यकीनन िो ऐसा सोच भी सकता है और कर भी सकता है।"

"ले ककन डै ड िो कमीना यहाॅ आया ककस कलए है?" ररतू ने जानबू झ कर ऐसा सिाल
ककया___"और आपको कैसे पता चला कक िो यहाॅ आया है?"
"हमारी ह़िारों ऑखें हैं बे टी।" अजय कसं ह ने बडे गिग से कहा___"हमें सबकी खबर
होती है। खै र छोंडो ये सब। जाओ तु म भी आराम कर लो। पता नही ं कहाॅ कहाॅ
ड्यूटी के चक्कर में घू मती रहती हो तु म? बे टा कुछ अपना भी खयाल रखा करो। हमे
हर िक्त तु म्हारी किक्र रहती है।"

"जी डै ड।" ररतू ने कहने के साथ ही सोिे से उठ कर खडी हो गई___"पर आप तो


जानते हैं न कक पु कलस की नौकरी का कोई टाइम टे बल नही ं होता। इस कलए कही ं न
कही ं तो भटकना ही पडता है।"

ये कहने के साथ ही ररतू लम्बे लम्बे क़दम बढाती हुई अपने कमरे की तरि बढ गई।
जबकक िो तीनो उसे जाते हुए दे खते रह गए। उसके जाने के बाद अजय कसं ह ने एक
नया कशगार सु लगा कलया और उसके दो तीन गहरे गहरे कश ले ने के बाद उसका
धुऑ ऊपर की तरि उछाल कदया। चे हरे पर सोचो के भाि गकदग श करते ऩिर आने
लगे थे उसके।

"तु म्हें क्ा लगता है अजय?" सहसा प्रकतमा ने उसके चे हरे के भािों को रीड करते हुए
कहा___"ररतू की बातों में ककतनी सच्चाई है?"
"मतलब तु म्हें भी इस बात का शक है कक हमारी बे टी हमसे झॅ ू ठ बोल रही है?"
अजय कसं ह ने भािहीन स्वर में कहा___"ये भी कक उसने बडी सिाई से अपनी बात

596
साकबत भी कर दी।"

"ये बात तो मैं तु मसे पू छ रही हूॅ कडयर।" प्रकतमा ने पहलू बदला___"तु मने ही तो
उससे कहा था कक जीप में िही बै ठी थी ऐसा तु म्हारे आदमी ने िोन पर तु मसे कहा
था। अब जबकक ररतू ने अपनी सिाई दे दी है तो तु म्हें क्ा लगता है अब?"
"मुझे यकीन तो नही ं हो रहा प्रकतमा कक ररतू ने किराज को प्रोटे क्ट ककया होगा।"
अजय कसं ह ने कहा___"मगर उसके बदले हुए कबहैकियर की िजह से ऐसा सोचने पर
मजबू र भी हो गया हूॅ। उसकी बातों में ककतनी सच्चाई है इसका पता लगाना भी
़िरूरी है। इस कलए मैने सोच कलया है कक उस पर ऩिर रखने के कलए अपने ककसी
आदमी को उसके पीछे लगा दू ॅगा। इससे कोई न कोई सच्चाई तो पता चल ही
जाएगी हमे।"

"हाॅ ये सही सोचा है तु मने ।" प्रकतमा ने कहा___"इससे दू ध का दू ध और पानी का


पानी हो जाएगा। खै र, छोंडो ये सब। मेरा तो इस सबसे बहुत कसर ददग कर रहा है
अब। इस कलए मैं जा रही हूॅ अपने कमरे में।"
"ठीक है कडयर।" अजय कसं ह ने सोिे से उठते हुए कहा___"मैं भी िैक्टर ी के कलए
कनकल रहा हूॅ।"

ये कह कर अजय कसं ह बाहर की तरि बढ गया। उसके जाते ही प्रकतमा ने कशिा की


तरि गहरी ऩिरों से दे खा और मु स्कुरा दी। कशिा उसकी मु स्कुराहट का मतलब
समझ कर खु द भी मु स्कुरा उठा। प्रकतमा सोिे से उठ कर अपने कमरे की तरि बढ
गई। उसके जाने के कुछ दे र बाद कशिा भी उसी कमरे की तरि बढ गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.........《 47 》

अब तक,,,,,,,,

"तु म्हें क्ा लगता है अजय?" सहसा प्रकतमा ने उसके चे हरे के भािों को रीड करते हुए
कहा___"ररतू की बातों में ककतनी सच्चाई है?"
"मतलब तु म्हें भी इस बात का शक है कक हमारी बे टी हमसे झॅ ू ठ बोल रही है?"
अजय कसं ह ने भािहीन स्वर में कहा___"ये भी कक उसने बडी सिाई से अपनी बात

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साकबत भी कर दी।"

"ये बात तो मैं तु मसे पू छ रही हूॅ कडयर।" प्रकतमा ने पहलू बदला___"तु मने ही तो
उससे कहा था कक जीप में िही बै ठी थी ऐसा तु म्हारे आदमी ने िोन पर तु मसे कहा
था। अब जबकक ररतू ने अपनी सिाई दे दी है तो तु म्हें क्ा लगता है अब?"
"मुझे यकीन तो नही ं हो रहा प्रकतमा कक ररतू ने किराज को प्रोटे क्ट ककया होगा।"
अजय कसं ह ने कहा___"मगर उसके बदले हुए कबहैकियर की िजह से ऐसा सोचने पर
मजबू र भी हो गया हूॅ। उसकी बातों में ककतनी सच्चाई है इसका पता लगाना भी
़िरूरी है। इस कलए मैने सोच कलया है कक उस पर ऩिर रखने के कलए अपने ककसी
आदमी को उसके पीछे लगा दू ॅगा। इससे कोई न कोई सच्चाई तो पता चल ही
जाएगी हमे।"

"हाॅ ये सही सोचा है तु मने ।" प्रकतमा ने कहा___"इससे दू ध का दू ध और पानी का


पानी हो जाएगा। खै र, छोंडो ये सब। मेरा तो इस सबसे बहुत कसर ददग कर रहा है
अब। इस कलए मैं जा रही हूॅ अपने कमरे में।"
"ठीक है कडयर।" अजय कसं ह ने सोिे से उठते हुए कहा___"मैं भी िैक्टर ी के कलए
कनकल रहा हूॅ।"

ये कह कर अजय कसं ह बाहर की तरि बढ गया। उसके जाते ही प्रकतमा ने कशिा की


तरि गहरी ऩिरों से दे खा और मु स्कुरा दी। कशिा उसकी मु स्कुराहट का मतलब
समझ कर खु द भी मु स्कुरा उठा। प्रकतमा सोिे से उठ कर अपने कमरे की तरि बढ
गई। उसके जाने के कुछ दे र बाद कशिा भी उसी कमरे की तरि बढ गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

तहखाने के अं दर का ऩिारा ही कुछ अलग था कजसे मैं ऑखें िाडे अपलक दे खे जा


रहा था। कुछ दे र के कलए तो जैसे मेरा कदमाग़ ही कंु द पड गया था। तहखाने के अं दर
चारो तरि छत पर लगे सिेद एल ई डी बल्बों की तीब्र रोशनी थी। अं दर मौजूद एक
एक ची़ि िष्ट दे खी जा सकती थी। ककन्तु मेरी ऑखें कजस ऩिारे को दे ख कर हैरत
से िट गई थी िो कुछ अलग ही ककस्म का था। राइट साइड की दीिार से सटे हुए
चार लडके थे । उन चारों लडकों के दोनो हाॅथ मजबू त रस्सी से बधे हुए जो कक
ऊपर ही उठे हुए थे । चारों लडकों कजस्म पर इस िक्त कपडे का कोई रे सा तक न था
बल्कि िो चारो जन्मजात नं गे थे । उन चारों की शक्ल सू रत से ही पता चल रहा था कक
उन चारों ने यहाॅ ककतनी ददग नाक यातनाएॅ सही होंगी।

बाहर से तहखाने में आया हुआ िो आदमी भी इस िक्त पू री तरह नं गा था और उन

598
चारों में से एक लडके को उसके कसर के बालों से मजबू ती से पकड कर अपने लं ड
पर झुकाया हुआ था। मैं साि दे ख रहा था कक िो आदमी उस लडके के मुख में अपने
लं ड को ़िबरदस्ती डाले अपनी कमर को आगे पीछे कर रहा था। उसका कसर ऊपर
की तरि था और उसकी दोनो ऑखें म़िे में बं द थी।

ये सब दे ख कर मेरा कदमाग़ कुछ दे र के कलए हैंग सा हो गया था। किर जैसे मु झे होश
आया। मेरे अं दर क्रोध और गुस्से की आग कबजली की सी ते ़िी से बढती चली गई।
मेरे जबडे कस गए और मुकिया कभं च गई। मैं ते ़िी से बढते हुए उस आदमी के पास
पहुॅचा और अपनी पू री शल्कक्त से एक लात उसके बाजू में जड दी। पररर्ामस्वरूप
िो आदमी उछलते हुए पीछे की दीिार से टकराया और किर भरभरा कर नीचे
तहखाने के पक्के िसग पर कगरा। उसके हलक से ददग में डूबी हुई चीख कनकल गई
थी।

िसग पडा िो आदमी बु री तरह कराहने लगा था। उसकी दोनो टाॅगें आपस में जु ड
कर मुड गई थी और उसके दोनो हाॅथ उसकी टाॅगों के बीच उसके प्राइिे ट पाटग
पर थे । मु झे समझते दे र नही ं लगी कक अचानक हुए इस हमले से उसका जो प्राइिे ट
पाटग उस लडके के मुख में था िो झटके से कनकल गया था और झटके से कनकलने से
शायद उसके प्राइिे ट पाटग में उस लडके के दाॅत गड गए होंगे या किर दाॅतों से
उसका लं ड कछल गया होगा।

इधर अचानक हुए इस हमले से िो लडका भी िसग पर लु ढक कर कगर गया था, और


बाॅकी के तीन लडके जो दीिार से सटे रल्कस्सयों में बधे खडे थे िो इस सबसे बु री
तरह घबरा गए थे । मेरे अं दर गुस्से की आग धधक रही थी इस कलए उस आदमी को
एक लात जडने के बाद मैं उसकी तरि बढा और झुक कर उसके कसर के बालों को
पकड कर उसे झटके से उठा कलया। िो आदमी किर से ददग में कराह उठा। अभी िो
सम्हला भी नही ं था कक मैने एक पं च उसके चे हरे पर जड कदया कजससे िो किर से
उछलते हुए दू र जाकर कगरा। मैने इतने पर ही बस नही ं ककया बल्कि मैंने तो उसकी
धुनाई में कोई कसर ही नही ं छोंडी। िो खु द भी अपने हाथ पै र चला रहा था मगर
उसकी मेरे सामने एक नही ं चल रही थी। कुछ ही दे र में िो अधमरी हालत में पहुॅच
गया था। जब मैने दे खा कक िो िसग पर पडा अब कहल डु ल भी नही ं रहा है तो मैने उसे
मारना बं द कर कदया।

मुझे उस पर इस कलए इतना गुस्सा आया हुआ था कक िो उस लडके के साथ


़िबरदस्ती इतना कघनौना काम कर रहा था। मैं ये भी समझ चु का था कक िो ये काम
उस लडके के अलािा बाॅकी उन तीनों के साथ भी करता होगा। बस इसी बात पर
मुझे उसके ऊपर इतना गुस्सा आया था और मैने उसे मारते मारते अधमरा कर कदया

599
था।

उस आदमी के शान्त पडने के बाद मैने अपने गुस्से को काबू करने की कोकशश की
और किर ते ़िी से पलटा। मेरी ऩिर िशग पर कगरे उस लडके पर पडी कजसके साथ
िो आदमी िो कघनौना काम कर रहा था। मैने दे खा कक िो लडका बु री तरह डर से
काॅप रहा था। मुझे उस पर बडा तरस आया और उसकी हालत दे ख कर उस
आदमी पर किर से गु स्सा आ गया। मगर मैने अपने गुस्से को काबू ककया और उस
लडके के पास उकडू होकर बै ठ गया।

"कौन है ये आदमी?" मैने उस लडके से पू ॅछा___"और िो तु म्हारे साथ इतना


कघनौना काम क्ों कर रहा था? मु झे सब कुछ साि साि बताओ।"

िो लडका मेरी ये बात सु न कर कुछ न बोला बल्कि डरी सहमी हुई ऑखों से दे खते
रहा मुझे। मैं समझ गया कक इन चारों को उस आदमी ने इतना डरा कदया है कक ये
लोग अपनी ़िुबान तक नही ं खोल पा रहे हैं। इस बात पर मु झे उस आदमी पर किर
से बडा ते ़ि गुस्सा आ गया। मैने अपनी ऑखें बं द कर अपने गुस्से को शान्त ककया।

"दे खो अब तु म्हें ककसी से डरने की कोई ़िरूरत नही ं है समझे?" मैने उससे ़िरा
अपनापन कदखाते हुए कहा__"तु म मुझे सब कुछ साि साि बताओ कक ये आदमी
तु म लोगों के साथ ये सब क्ों कर रहा था और तु म लोग इस तहखाने में कब से कैद
हो?"

"प् प्ली़ि हमें बचा लीकजए।" सहसा उस लडके की ऑखों से ऑसू छलछला आए
और िो बु री तरह रोते हुए बोल पडा___"हमें इस नकग से कनकाल दीकजए। इस आदमी
ने हम चारो को बहुत बु री तरह से टाचग र ककया है। ये हर रो़ि कदन में चार बार आता
है और हमारे साथ यही सब कघनौना काम करके चला जाता है। हम चारो इससे अपने
ककये की लाखों दिा मु आफ़ी माॅग चु के हैं मगर किर भी ये आदमी हमारे साथ ये
सु लूक करता है। प्ली़ि हमे इस आदमी से बचा लीकजए। हमें यहाॅ से कनकाल कर
हमें हमारे घर जाने दीकजए। हम आपके पै र पकडते हैं , प्ली़ि प्ली़ि।"

उस लडके का ये रुदन दे ख कर मैं अं दर तक काॅप गया। मैं इस बात की कल्पना


कर सकता था कक इन चारों के साथ ककस हद तक उस आदमी ने अत्याचार ककया
होगा। ककन्तु सहसा मेरे मन में सिाल उभरा कक िो आदमी इन लोगों के साथ ये सब
ककस िजह से कर रहा है? जबकक ये िामग हाउस उसका नही ं बल्कि ररतू दीदी का है?
क्ा ररतू दीदी को इस सबका पता है? या किर ये सब उनकी जानकारी में ही हो रहा
है? नही ं नही ं, ररतू दीदी ऐसे कघनौने काम का सोच भी नही ं सकती हैं। तो किर उनके

600
िामग हाउस के तहखाने में ये सब कैसे हो सकता है? मेरे मन में ह़िारों सिाल एक
साथ आकर खडे हो गए। मगर जिाब ककसी का भी नही ं था मेरे पास।

"मैने तु मसे जो कुछ पू छा है उसका सही सही जिाब दो पहले ।" मैने उस लडके से
कहा___"आकखर ककस िजह से ये सब तु म लोगों के साथ कर रहा है िो आदमी? तु म
सब कुछ मु झे साि साि बताओ। और हाॅ ककसी से डरने की कोई ़िरूरत नही ं है।
तु मने दे खा है न कक मैने कैसे उस आदमी का दो कमनट में काम तमाम कर कदया है?
इस कलए तु म अब बे किक्र रहो कक कोई तु म पर अब दु बारा ऐसा कर सकेगा। मैं तु म्हें
यहाॅ से कनकाल कर तु म लोगों को घर भी भे जिा दू ॅगा। मगर उससे पहले तु म मु झे
बताओ कक ये सब क्ों हो रहा है तु म लोगों साथ? ऐसा क्ा अपराध ककया है तु म
लोगों ने ? और अगर ये सब तु म लोगों के साथ बे िजह ही हो रहा है तो यकीन मानो मैं
अपने हाॅथों से इस आदमी को मौत दू ॅगा। चलो अब बताओ सारी बात।"

"ये सच है कक हम चारों ने एक साथ बराबर का अपराध ककया था।" उस लडके ने


ऩिरें झुका कर कहना शु रू ककया___"मगर, उस अपराध के कलए हमें कानू नी तरीके
से स़िा भी तो कदलिाई जा सकती थी, मगर इन लोगों ने ऐसा कुछ नही ं ककया।
बल्कि हम चारों को पकड कर यहाॅ ले आए और किर हर रो़ि हमारे साथ ये
कघनौना काम करते रहे। हमने इन लोगों से अपने ककये की लाखों दिा मुआफ़ी
माॅगी। ये तक कहा कक आप हमें गोली मार कर खत्म कर दो उस अपराध के कलए
मगर ये लोग हमारी कोई भी बात नही ं माने और हमारे साथ यही सब करते रहे।"

"ओह आई सी।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"ले ककन तु म लोगों ने आकखर ककस
तरह का अपराध ककया था कजसकी कीमत तु म लोगों को इस रूप में चु कानी पड रही
है? और तु मने अभी ये कहा कक "इन लोगों ने " मतलब इस आदमी के अलािा भी
कोई है जो तु म लोगों के साथ ये सब कर रहा है? कौन कौन हैं इस आदमी के साथ
बताओ मु झे?"

"एक लडकी है।" उस लडके ने कहा___"उसका नाम ररतू है और िो पु कलस में


इं िेक्टर है। िही ं हम चारों को पकड कर यहाॅ लाई थी। उसके बाद उसने इस
आदमी को हमारी खाकतरदारी करने का काम दे कदया था। बस उसके बाद से ही ये
आदमी हमारी खाकतरदारी के रूप में हमारे साथ ये सब कर रहा है।"

मैं उसके मुख से ररतू दीदी का नाम सु न कर मन ही मन बु री तरह उछल पडा था।
मुझे समझ न आया कक ररतू दीदी ने इन लोगों को ककस कलए पकडा होगा और किर
पकड कर यहाॅ लाया होगा? अपने आदमी को इन लोगों की खाकतरदारी करने का
काम सौंप कदया। इसका मतलब ररतू दीदी को भी ये पता नही ं होगा कक उनका ये

601
आदमी इन लोगों की कैसी खाकतरदारी करता है? मुझे यकीन था कक मुजररम को
स़िा दे ने के कलए ररतू दीदी भले ही कानू न की थडग कडग्री का स्ते माल कर ले ती ं मगर
ऐसा कघनौना काम करने को अपने आदमी से ककसी सू रत में न कहती। अरे कहने
की तो बात ही दू र िो तो इस बारे में सोचती ही नही ं। मतलब साि है कक खाकतरदारी
की आड में ये कघनौना काम दीदी का ये आदमी अपनी म़िी से ही कर रहा है,
कजसका दीदी को पता ही नही ं है। अब सिाल ये था कक इन लडकों ने ऐसा कौन सा
जघन्य अपराध ककया था कजसकी िजह से ररतू दीदी इन लोगों को कानू नन स़िा
कदलाने की बजाय यहाॅ अपने िामग हाउस के तहखाने में लाकर बं द कर कदया था?

"यकीनन तु म लोगों के साथ बहुत बु रा हुआ है ।" किर मैने उससे कहा___"उस
इं िेक्टर को ऐसा नही ं करना चाकहये था। उसे तो तु म लोगो को कानू न के सामने
ले कर जाना चाकहए था। खै र, अब तु म बे किक्र हो जाओ। ये बताओ कक तु म लोगों एक
साथ ऐसा कौन सा अपराध ककया था?"

"िो िो हम चारों ने एक साथ एक लडकी की इज्ज़ित लू टी थी।" उस लडके ने ऩिरें


चु राते हुए कहा___"और किर उसे शहर के बाहर ऐसे ही अधमरी हालत में िेंक आए
थे ।"
"क्ा?????" उसकी ये बात सु न कर मैं बु री तरह चौंका___"तु म लोगों ने ककसी लडकी
की इज्ज़ित लू टी थी? िो भी इस तरीके से कक उसे बाद में अधमरी हालत में कही ं िेंक
भी आए? ये तो सच में तु म लोगों ने बहुत बडा अपराध ककया है। खै र, उसके बाद क्ा
हुआ था? मेरा मतलब कक तु म लोग उस इं िेक्टर ररतू के द्वारा पकडे कैसे गए?"

"तीसरे कदन हम चारो दोस्त अपने िामग हाउस पर मौज मस्ती कर रहे थे ।" उस
लडके ने कहा___"तभी िो इं िेक्टर हमारे उस िामग हाउस पर आ धमकी थी। उसने
हम चारों को पहले िही ं पर खू ब मारा उसके बाद हम चारों को अपनी जीप में डाल
कर यहाॅ ले आई तब से हम यही ं हैं और इस आदमी के द्वारा यातनाएं झेल रहे हैं।
प्ली़ि हमें यहाॅ से कनकाल लो भाई, हम जीिन भर तु म्हारी गुलामी करें गे।"

"उस लडकी का क्ा हुआ?" मैने उसकी अं कतम बात पर ध्यान न कदया___"कजसकी
तु म चारों ने इज्ज़ित लू टी थी?"
"इस बारे में मु झे कुछ पता नही ं है।" उस लडके ने असहाय भाि से कहा___"हमने
उसे उस कदन से दे खा ही नही ं है और ना ही ककसी ने हमें उसके बारे में बताया।"

"क्ा तु म्हें इस बात का एहसास है कक कजस लडकी की तु म लोगों ने इज्ज़ित लू टी है?"


मैने ़िरा शख्त भाि से कहा___"उस पर क्ा गु़िर रही होगी? उसके माॅ बाप पर
क्ा गु़िर रही होगी? अपनी हिस के कलए तु म लोगों ने ककसी की लडकी का जीिन

602
बरबाद कर कदया। तु म लोगों को तो सीधा िाॅसी पर लटका दे ना चाकहए।"

"हम सबको िाॅसी की स़िा मं़िूर है भाई।" उस लडके ने कहा___"हमें इस बात


का एहसास हो चु का है कक हमसे बहुत बडा गु नाह हुआ है। जब से जिानी की
दे हली़ि पर हमने क़दम रखा था तब से ककसी न ककसी लडकी का जीिन हमने
बरबाद ही तो ककया है। इस कलए भाई िाॅसी से भी बढ कर अगर कोई स़िा है तो
हम चारों को िो स़िा भी मंजूर है।"

"बहुत खू ब।" मैने नाटकीय अं दा़ि से कहा___"ऐसी बातें अपराध करते िक्त मन में
क्ों नही ं आती हैं? ये तब क्ों समझ में आती हैं जब मौत कसर पर आकर खडी हो
जाती है या किर जब िै सा ही कुकमग खु द के साथ हुआ करता है? खै र, ये बताओ कक
ये एहसास अब क्ा इस कलये हुआ है कक खु द पर जब िै सा ही गु ़िरने लगा या किर
सच में लगता है कक हाॅ तु म लोगों ने ग़लत ककया था उस लडकी के साथ?"

"ये तो सच बात है भाई कक इं सान को कोई बात तभी समझ में आती है जब उसे
ठोकर लगती है।" उस लडके ने कहा___"ये बात मु झ पर भी लागू होती है। मगर मु झे
इस बात का अब गहरा दु ख हो रहा है भाई कक मैने उस लडकी के साथ इतना बडा
नीच काम ककया था। प्यार मोहब्बत दोस्ती ये सब ककतनी खू बसू रत ची़िें हैं कजनके
कलए और कजनके आधार पर इं सान ककतना कुछ कर जाता है । अगर किश्वास हो तो
कोई भी ब्यल्कक्त ककसी के भी साथ कही ं भी आ जा सकता है या किर िो आपके
भरोसे आपके ऊपर ककतनी ही बडी कजम्मेदारी सौंप दे ता है। मगर ये छल कपट और
ये धोखा ककतनी खराब ची़िें हैं जो प्यार मोहब्बत दोस्ती, और भरोसा आकद सबको
नस्ट कर दे ता है।"

"िाह तु म तो यार ककसी बहुत बडे उपदे शक की तरह बडी बडी बातें करने लगे।"
मैने सहसा ब्यं गात्मक भाि से कहा___"काश! ये सब बडी बडी बातें तब भी तु म करते
और समझते जब तु म ककसी लडकी का जीिन नष्ट कर रहे थे । कम से कम इससे तु म
दोनो का भला तो होता। िै से प्यार मोहब्बत दोस्ती और भरोसा जैसी बातें तु म्हारे मन
में कैसे आ गईं? क्ा तु मने इन्ही ं के आधार पर उस लडकी का जीिन बरबाद ककया
है?"

"कबलकुल सही कहा भाई।" उस लडके ने बे चैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"मेरे
जीिन में लडककयाॅ तो बहुत आईं थी कजनके साथ मैने अपने इन तीनों दोस्तों के
साथ मौज मस्ती की थी। िो सब लडककयाॅ मे रे पै सों के लालच में अपना सब कुछ
खोल कर हमारे सामने बे ड पर ले ट जाती थी ं मगर इस लडकी में बात ही कुछ खास
थी। ये एक ऐसे लडके से बे पनाह प्यार करती थी कजसका नाम किराज था, किराज

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कसं ह बघेल। मैं भी इससे प्यार करता था पर कभी कह न सका था इससे । हलाॅकक
दोस्ती के ररश्े से हमारी हैलो हाय हो जाती थी। एक कदन जाने क्ा हुआ इसे कक ये
मुझे ले कर उस किराज के पास गई और उससे दो टू ट भाि से कह कदया कक िो उससे
प्यार नही ं करती थी बल्कि उसकी दौलत से प्यार करती थी। और अब जबकक िो
कंगाल हो चु का है तो उसका उससे कोई ररश्ा नही ं। मैं उसकी इस बात से मन ही
मन हैरान तो था मगर खु श भी हुआ कक चलो अब तो ये मेरे पास ही आएगी। िही
हुआ भी। िो अपने एर्क् ब्वायिैण्ड को छोंड कर मेरे साथ ही काले ज में रहने लगी।
मगर मु झे जल्द ही पता चल गया कक ये मेरे साथ रहते हुए भी मेरे साथ नही ं है। मैं
अर्क्र दे खता था कक िो अकेले में बे हद उदास और दु खी रहती थी। मु झे लगा कक ये
कही ं किर से न उस किराज के पास लौट जाए, इस कलए मैने इसे अपने साथ हमेशा
के कलए रखने का सोच कलया। मेरे ये तीनो दोस्त बार बार मुझसे कहते कक प्यार व्यार
का चक्कर छोंड बस म़िे ले और हमें भी म़िा करिा। मैने भी सोचा कक यार ऐसे
प्यार का क्ा मतलब जो अपना है ही नही ं। बस उसके बाद मैने िही ककया जो अब
तक दू सरी अन्य लडककयों के साथ ककया था। अपनी बथग डे िाली शाम मैने इसे भी
इन्वाइट ककया था। जब ये उस शाम मेरे िामग हाउस पर आई तो मैने इसको कोल्ड
कडर ं क का िो िास प्यार हे कदया कजस िास में मैने नी ंद की दिा कमलाई हुई थी।
कोल्ड कडर ं क पीने के कुछ दे र बाद ही िो नीद के नशे में झम
ू ने लगी। मैने सबकी ऩिर
बचा कर उसे अपने कमरे में ले गया और उस कमरे में मैने उसके सारे कपडे उतार
कर उसकी इज्ज़ित से खू ब खे ला। मेरा एक दोस्त इस सबकी िीकडयो भी बना रहा
था। बस उसके बाद तो उसे अपनी ही बने रहना था, इस कलए िो बनी रही और हम
जब भी उसे बु लाते तो उसे आना पडता और हम सबको खु श रखना पडता उसे ।
यही सब चलता रहा मगर कुछ कदन पहले की बात है। मैने उसे किर से अपने बथग डे
पर इन्वाइट ककया मगर उसने आने से इं कार कर कदया। कहने लगी कक उसकी
तबीयत खराब है। मैं समझ गया कक िो बहाने बना रही है न आने का। इस कलए मैने
उसे किर से िीकडयो को उसके डै ड के पास भे ज दे ने की धमकी दी। मेरी इस धमकी
से उसे मेरे िामगहाउस पर आना पडा। उस कदन भी मैंने अपने इन तीनो दोस्तों के
साथ कमल कर उसके साथ से र्क् ककया और और उसी हालत में सो गए थे । रात के
लगभग तीन या चार बजे के करीब मेरी ऑख खु ली तो दे खा कक किधी की हालत
बहुत खराब थी। उसके प्राइिे ट पाटग से ब्लड कनकला हुआ था और उसके मुख से
भी। ये दे ख कर मैं बहुत ज्यादा घबरा गया। मु झे लगा कही ं ये मर न जाए। मगर उसे
उस हालत में ले कर हम भला उतने समय कहाॅ जाते । इस कलए मैने अपने इन
दोस्तो को जगाया और इन लोगों को भी किधी की हालत के बारे में बताया। ये तीनो
भी किधी की िो हालत दे ख कर घबरा गए थे । किर हम चारों ने सोच किचार करके
िैंसला कलया कक इसे कही ं छोंड आते हैं। इस िैंसले के साथ ही हम चारों ने किधी
को ककसी तरह कपडे पहनाए और उसे उसी हालत में उठा कर बाहर खडी अपनी
कार की कडक्की में डाल कदया। उसके बाद हम चारो उस तरि चल पडे कजस तरि

604
कपछले कुछ साल पहले ही एक नये हाइिे का कनमागर् हुआ था। रात के उस सन्नाटे में
ककसी के भी द्वारा दे ख कलए जाने का कोई खतरा नही ं था। हाइिे में पहुॅच कर हमने
कुछ दू री पर सडक के ककनारे झाकडयों के पास ही किधी को कडक्की से कनकाल कर
चु पचाप कलटा कदया और किर हम चारों िहाॅ से िापस िामगहाउस आ गए। उसके
बाद क्ा हुआ इसका हमें आज तक कुछ भी पता नही ं है।"

"क्ा तु म जानते हो कक मैं कौन हूॅ?" उसकी बात सु नने के बाद मैने सहसा कठोर
भाि से उससे पू छा___"ठीक से दे खो मुझे। मे रा दािा है कक तु म मु झे ़िरूर पहचान
जाओगे कक मैं कौन हूॅ?"

मेरी इस बात को सु न कर िो लडका जो कक िास्ति में सू रज चौधरी ही था मेरी तरि


बडे ध्यान से दे खने लगा। उसके चे हरे पर पहले तो उलझन के भाि उभरे थे ककन्तु
जल्द ही उसके चे हरे पर चौंकने के भाि उभरे और किर एकाएक ही आश्चयग से मेरी
तरि ऑखें िाडे दे खने लगा। पल भर में उसका चहेरा डर और दहशत से पीला ़िदग
पडता चला गया। िह एकदम से ही जूडी के मरी़ि की तरह काॅपने लगा था।

"क्ा हुआ सू रज चौधरी?" मेरे मुख से एकाएक शे र की सी गुराग हट


कनकली___"पहचाना मु झे या मैं खु द अपने तरीके से बताऊ तु झे कक मैं कौन हूॅ??"
"कि...कि...किराऽज।" सू रज चौधरी के मुख से दहशत में डूबा स्वर कनकला___"तु म
कि..किराज हो। िही किराज कजसे िो किधी बे पनाह मोहब्बत करती थी।"

"और कजसके साथ तू ने इतना बडा िहकशयाना कुकमग ककया है।" मैंने गुस्से में आग
बबू ला होते ही उसे उसके कसर के बालों से पकड कर उठा कलया और किर पीछे से
उसकी गदग न में अपने दोनो हाॅथ जमाते हुए मैने पू री ताकत से झटका कदया। सू रज
चौधरी के हलक से हृदय किदारक चीख कनकल गई। दीिार पर कंु डे में बधी रस्सी
एक झटके में ही टू ट गई थी और इधर झटका लगते ही सू रज के दोनो हाॅथों में िो
रस्सी गड सी गई थी।

"हराम़िादे ।" मैंने कहने के साथ ही सू रज को अपने कसर के ऊपर तक उठा कलया
और पू री ताकत से सामने की दीिार की तरि उछाल कदया, किर बोला___"तू ने मेरी
किधी के साथ इतना कघनौना कुकमग ककया। नही ं छोंडूॅगा तु झे....तु म चारों को एक
एक करके ऐसी भयािह मौत दू ॅगा कक उसे दे ख कर ये ़िमीन और िो आसमां तक
थराग जाएॅगे।"

उधर दीिार से टकरा कर सू रज नीचे िशग पर मुह के बल कगरा। कगरते ही उसके मुख
से ददग भरी चीख कनकल गई। उसके दोनो हाथ अभी भी रस्सी से बधे हुए थे इस कलए

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िो सहारे के कलए अपने हाॅथ आगे या इधर उधर नही ं कर सकता था। इधर सू रज
का ये हाल दे ख कर बाॅकी तीनों लडकों के दे िता कूच कर गए। िो मेरी तरि बु री
तरह घबराए हुए से दे खने लगे थे ।

आगे बढ कर मैने सू रज के कसर के बाल पकड कर उसे उठाया और कहा___"ते री


कहानी सु नने से पहले मुझे लग रहा था कक ते रे साथ िो आदमी बहुत ग़लत कर रहा
था मगर अब समझ में आया कक िो ककतना अच्छा कर रहा था। तू कजस इं िेक्टर
ररतू की बात कर रहा था न िो मेरी बडी बहन है। मैं सब कुछ समझ गया अब कक ते रे
यहाॅ होने का असल मा़िरा क्ा था?"

कहने के साथ ही मैने सू रज के पे ट में अपने घु टने का ़िबरदस्त िार ककया तो िो


हलाल होते बकरे की तरह कचल्लाया। उसके झुकते ही मैने उसकी पीठ पर दु हत्थड
जड कदया, कजससे िो िशग पर मुह के बल कगरा। नीचे झुक कर मैने किर उसे उसके
बालों से पकड कर उठाया, किर बोला___"अब सारी कहानी समझ गया हूॅ मैं। तू
अपने इन कमीने दोस्तों के साथ किधी को उस कदन िहाॅ हाइिे के ककनारे झाकडयों
के पास छोंड आया। सु बह हुई तो हाइिे से गु ़िर रहे ककसी िाहन में आ रहे ब्यल्कक्त
की ऩिर किधी पर पडी होगी तो उसने इसकी सू चना पु कलस को दी होगी। ये मामला
चू ॅकक हल्दीपु र का था इस कलए हल्दीपु र पु कलस थाने में मेरी बडी बहन ररतू दीदी ही
थी, उनको जब इस सबकी सू चना ककसी अज्ञात ब्यल्कक्त द्वारा कमली तो िो उस जगह
पर पहुॅच गईं। किधी की उस गंभीर हालत को दे ख कर दीदी ने किधी को तु रंत ही
हल्दीपु र के सरकारी हाल्किटल में एडकमट कर कदया। दीदी को शायद कही ं से ये पता
था कक मैं ककसी किधी नाम की लडकी से प्यार करता था। इस कलए हाल्किटल में जब
दीदी को डाक्टर द्वारा किधी के बारे में पता चला होगा तो उनके कदमाग़ में तु रंत ही ये
बात आई होगी कक ककसी किधी नाम की लडकी से ही उनका भाई किराज प्यार
करता था। ककन्तु उन्होंने किधी को दे खा तो था नही ं पहले इस कलए उन्होंने इस बारे में
कन्फमग करने के कलए किधी से पू छताॅछ की होगी। दीदी के पू छने पर आकखर किधी
ने बता ही कदया होगा कक हाॅ िो ही िो किधी है कजसे उनका भाई किराज प्यार करता
था। बस उसके बाद ही दीदी का मेरे प्रकत भी हृदय पररितग न हुआ होगा या किर खु द
किधी ने बताया होगा उन्हें कक सच्चाई क्ा है? खै र, उसके बाद किधी ने दीदी से
अपनी अं कतम इच्छा की बात कही और दीदी ने उससे िादा ककया कक िो उसके
महबू ब को उसके पास ़िरूर ले कर आएॅगी। दीदी ने मेरी खोज करना शु रू ककया
और उन्हें मेरा दोस्त पिन कमला। पिन से दीदी ने सारी बातें बताईं होंगी। तभी तो
पिन मुझसे िो सब बता नही ं रहा था बल्कि यही कहे जा रहा था कक मैं आ जाऊ।
िाह ररतू दीदी! आप ग्रेट हो दीदी। आपने मुझे मेरी किधी से कमलिाया िरना मैं तो
उसे अं कतम समय में भी दे ख न पाता। आपने ये बहुत बडा उपकार ककया है दीदी।

606
आज आप मेरी ऩिर में बहुत महान हो गईं हैं ।"

मैं भािािे श में जाने क्ा क्ा कहे जा रहा था जबकक मेरे चं गुल में िसा सू रज बडी
मुल्किल से अपनी पलकें उठा कर मेरी तरि हैरत से दे खे जा रहा था। शायद िो मेरी
कुछ बातें समझने की कोकशश कर रहा था मगर समझ नही ं पा रहा था।

"इतना कुछ मेरी किधी के साथ हो गया और मुझे इसका आभास तक न था।" मेरी
ऑखों से ऑसू छलक पडे । मेरे कदल में हूक सी उठी। किधी के साथ हुए इस घृ कर्त
कुकमग का सोच कर ही मेरी आत्मा काॅप उठी, मेरा कदल तडप उठा। एकाएक ही
मेरे चे हरे पर गुस्से की आग धधक उठी। मैने सू रज को उसकी गदग न से पकड कर
एक ही हाॅथ से ऊपर उठा कलया, किर बोला___"ते रा और ते रे साकथयों का मैं िो
हाल करूॅगा कक दु बारा इस धरती पर पै दा होने से मना कर दोगे।"

"मुझे माफ़ कर दो किराज।" सू रज की ऑखें बाहर को कनकली आ रही थी, किर भी


ककसी तरह बोला__"मैं मानता हूॅ कक मुझसे बहुत बडा अपराध हो गया है कजसके
कलए कोई मुआफ़ी हो ही नही ं सकती। मगर.....
"हराम़िादे जब जानता है कक कोई मु आफ़ी नही ं हो सकती तो क्ों माॅग रहा है
मुआफ़ी?" मैने ऊपर से ही उसे उछाल कदया। िो लहराते हुए उस जगह पर कगरा
कजस जगह पर िो आदमी बे हश अिथथा में पडा था। सू रज जब िशग से टकराया तो
उसके हलक से चीख कनकल गई और उसका बाजू ़िोर से उस आदमी के कजस्म पर
लगा।

उस आदमी के कजस्म में हरकत हुई और िो कुछ ही पलों में होश में आ गया। ऑख
खु लते ही उसने अपनी तरि बढते हुए मु झे दे खा तो एकाएक ही उसके चे हरे पर
घबराहट के भाि उभर आए। जबकक मेरा ध्यान तो सू रज की तरि था जो उस
आदमी के ही पास पडा कराह रहा था। उसके पास पहुॅच कर मैने उसे किर से
उसके बालो से पकड कर उठाया।

"तू ने मेरी किधी के साथ जो कुकमग ककया है उसके कलए मैं मुआफ़ी कैसे दे दू ॅगा
तु झे?" मैने गुराग कर उसे झकझोरते हुए कहा___"तू ये सोच भी कैसे सकता है कक तु झे
मुआफ़ी कमल जाएगी। तु झे अगर कुछ कमले गा तो कसिग िो कजसे तडप तडप कर और
सड सड कर मरना कहते हैं ।"

दीिार से सटे बाॅकी तीनों लडकों की ये सब दे ख कर ही हालत खराब थी। मेरे चे हरे
पर इस िक्त कहंसक दररं दे जैसे भाि थे । उधर िशग पर पडा िो आदमी मेरी बातें सु न
कर हैरान रह गया था। किर सहसा उसे खु द का खयाल आया। िो सू रज की तरह ही

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जन्मजात नं गा था। ये दे ख कर िो ककसी तरह उठा और एक तरि रखे अपने कपडों
की तरि बढ गया। कपडे उठा कर िो जल्दी जल्दी उन्हें पहनने लगा।

इधर मैने गुस्से में उबलते हुए सू रज के चे हरे पर ़िोर का घूॅसा मारा तो िो पीछे की
दीिार में ़िोर से टकराया और किर िशग पर लु ढकता चला गया। उसके नाॅक और
मुख से भल्ल भल्ल करके खू न बहने लगा था। िशग पर कगरते ही उसकी ऑखें बं द
होती चली गई। मैं समझ गया कक ये बे होश हो चु का है।

बे होश हो चु के सू रज के कजस्म पर मैने पै र की एक ठोकर जमाई और पलट कर


बाएॅ साइड दीिार की तरि दे खा। दीिार से सटे िो तीनो लडके रल्कस्सयों में बधे
ऊपर की तरि हाॅथ ककये खडे थरथर काॅप रहे थे । ऑखों में आग और चे हरे पर
़िल़िला कलए मैं उनकी तरि बढा।

मुझे अपनी तरि आते दे ख उन तीनों की हालत खराब हो गई। ककनारे साइड की
तरि जो बधा खडा हुआ था उसका डर के मारे पे शाब छूट गया। उनके क़रीब
पहुॅच मैने पहले एक एक घूॅसा उन तीनों के जबडों पर रसीद ककया। तीनो ही ददग
में कबलकबला उठे । मु झसे रहम की भीख माॅगने लगे ककन्तु मैं इन लोगों को भला
कैसे माफ़ कर सकता था? ये मेरी किधी के रे कपस्ट थे , उसके हत्यारे थे ये। इनको तो
अब ऐसी मौत मरना था कजसके बारे में आज तक ककसी ने सु ना तक न होगा।

"तु म सबको ऐसी मौत मारूॅगा ककसके बारे में ककसी कल्पना तक न की होगी।"
मैने भभकते हुए कहा__"तु म सब ने मेरी मासू म किधी के साथ ऐसा कघनौना अपराध
ककया है कजसके कलए मैं तु म लोगों को अगर कुछ दू ॅगा तो है कसिग ददग नाक मौत।
इसके कसिा और कुछ नही ं। रहम के बारे में तो सोचो ही मत। क्ोंकक िो मैं ब्रम्हा के
कहने पर भी नही ं करने िाला।"

मेरी ये बात सु न कर उन तीनों के चे हरे डर से पीले ़िदग पड गए। पल भर में ऐसी


सू रत ऩिर आने लगी उन तीनो की जैसे लकिा मार गया हो। इधर मैं पलटा। मेरी
ऩिर उस आदमी पर पडी जो सू रज के मुख में अपना लं ड डाले हुए था। िो मेरी
तरि सकते ही हालत में दे खे जा रहा था। मैं उसकी तरि बढा तो िो एकदम से
भयभीत सा हो गया।

"मुझे माफ़ कर दो काका।" उसके पास पहुॅचते ही मैने किनम्र भाि से कहा___"मैने
कबना कुछ जाने समझे आप पर हाॅथ उठा कदया। उसके कलए आप चाहें तो मुझे स़िा
दे सकते हैं।"
"अ अरे ना ना बे टिा।" हररया काका हडबडाते हुए एकदम से बोल पडा___"ई का

608
कहत हो तु म? तोहरे से कउनि ग़लती ना हुई है। एसे मािी मागे के कउनि जरूरत
ना है। हमहू का कहाॅ पता रहे बे टिा कक तु म असल मा हमरे ररतू कबकटया के छोट
भाई हो।"

"आप बहुत अच्छे हैं काका।" मैने हररया काका के दाएॅ कंधे पर हाथ रखते हुए
कहा___"आपने इन लोगों की िै सी ही खाकतरदारी की है जैसी इन लोगों की करनी
चाकहए थी।"
"अब का करें बे टिा हमरे मन मा एखे अलािा र कउनि बात आईये न रही।" काका
ने कहा___"ररतू कबकटया जब हमसे कहा कक ई ससु रन केर अच्छे से खाकतरदारी करै
का है ता हमरे मन मा इहै बात आई। बस ऊखे बाद हम शु रू होई गयन। ई ससु रन
के कपछिाडे से बजािै मा बडी म़िा आई बे टिा। ले ककन अब एकै बात केर कचन्ता है
कक कही ं ई बात ररतू कबकटया का पता न चल जाय। ऊ का है ना बे टिा, ई अइसन
काम है कक केहू का पता चल जाय ता बहुतै शरम केर बात होई जाथै न। अउर हम ई
नाही ं चाही कक ई बात ररतू कबकटया का पता चलै । काहे से के ई बात पता चले मा
सरिा हमरी इज्जत का बहुतै कचरा होई जाई।"

"कचन्ता मत करो काका।" मैं मन ही मन उसकी बात पर और उसकी भाषा पर


मुस्कुराते हुए बोला___"इस बात का पता ररतू दीदी को कबलकुल भी नही ं चले गा।
ले ककन एक बात अब आप भी सु न लीकजए। िो ये कक आपने अपना काम कर कलया
अब बारी मेरी है। मैं इन्हें ऐसी मौत दू ॅगा कक आपने उसके बारे में कभी सोचा भी
नही ं होगा। इस कलए अब आप कसिग तमाशा दे खेंगे।"

"ठीक है बे टिा।" काका ने कसर कहलाया___"हमहू ईहै चाकहथे कक ई ससु रन का


कुिन जइसन मौत हो। कजतना बडा अपराध ई लोगन ने ककया है न उसके कलए ई
लोगन का कौनि परकार केर ररयाइत ता कमलबै न करै ।"
"ऐसा ही होगा काका।" मैने उन चारों पर एक एक ऩिर डालते हुए कहा___"मुझे
कुछ सामान चाकहए आपसे । और हाॅ बाॅकी ककसी और को मत बताइयेगा कक मैं
यहाॅ हूॅ।"

"ठीक है बे टिा।" काका ने कहा___"अउर सामान का चाहै का है तु मका?"


"एक रे ़िर ब्लेड।" मैने कहा___"और एक प्लास चाकहए काका।"
"ठीक है बे टिा।" हररया काका ने कहा___"हम अभी लािथैं दु ई कमनट मा।"

कहने के साथ ही हररया काका तहखाने के दरिाजे से बाहर चला गया। जबकक
उनके जाते ही मैं सू रज के पास पहुॅचा और उसे उठा कर किर से एक अलग रस्सी
जोड कर उसे िै से ही बाॅध कदया जैसे बाॅकी तीनो बधे हुए थे । सू रज को बाॅधने के

609
बाद मैं पलटा और एक तरि रखी पानी की बाल्टी से एक मग पानी ले कर सू रज के
चे हरे पर ़िोर से उलट कदया। पानी का ते ़ि प्रहार पडते ही सू रज होश में आ गया।
होश में आते ही िो ददग से चीखने लगा।

"तु म हमारे साथ क्ा करने िाले हो?" बाॅकी तीन मे से एक ने घबराते हुए
पू छा___"दे खो, हम मानते हैं कक हमने बहुत बडा गुनाह ककया है और उसके कलए
अगर तु म हमे गोली मार कर जान से मार भी दो तो हमें मंजूर है मगर ऐसे तडपा
तडपा कर मत मारो भाई। प्ली़ि कुछ तो रहम करो। उस आदमी ने तो िै से भी हम
लोगों के िो सब करके हमें जान से ही मार कदया है। तु म क्ा जानो कक उस हिशी ने
हमारे कपछिाडों की क्ा दु गगत की है?"

"जब अपने पर बीतती है तभी एहसास होता है कक ददग और तक़लीफ़ क्ा होती है।"
मैने उससे गुरागते हुए कहा___"तु म लोगों को तब इस बात का एहसास नही ं हुआ था
कक कजन कजन लडककयों के साथ तु म सबने कुकमग ककया है उन पर उस िक्त क्ा
गु़िरी रही होगी?"

"सच कहा भाई।" एक दू सरे लडके ने कहा___"ले ककन अब जो हो गया उसे लौटाया
तो नही ं जा सकता न। हमें हमारे गुनाहों की इतनी स़िाएॅ तो कमल ही चु की हैं। तु म
हमें एक ही बार में जान से मार दो। मगर िो सब न करो भाई जो तु म अपने मन सोचे
बै ठे हो। प्लीज भाई हम पर रहम करो।"

"शट-अऽऽऽप।" मैं पू री शल्कक्त से दहाडा___"यहाॅ तु म लोगों की म़िी से कुछ नही ं


होगा, बल्कि िही होगा जो मैं चाहूॅगा। मैं क्ा चाहता हूॅ इसका पता जल्द ही तु म
चारो को चल जाएगा।"

मैने इतना कहा ही था कक हररया काका तहखाने में पु नः दाल्कखल हुए। उनके हाॅथ में
िो सामान था जो मैने उनसे मगिाया था। यानी कक रे ़िर ब्लेड और प्लास। मेरे हाॅथ
में सामान पकडाने के बाद हररया काका ने तहखाने का दरिा़िा बं द कर कदया और
किर एक तरि खडे हो गए। इधर सामान कलए मैं उस सामान को सरसरी तौर पर
दे ख ही रहा था कक मेरा मोबाइल िोन बज उठा।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

हिे ली पर!
अपने कमरे में ररतू आराम कर रही थी। ऊपर छत के कुण्डे पर घू म रहे पं खे को
एकटक घूर रही ररतू के चे हरे पर इस िक्त गहन सोचो के भाि थे । उसके मन में कई
सारी बाॅतें चल रही थी ं। आज जब िह हिे ली में आई तो उसका सामना अपने डै ड
से उस कहसाब से हो ही गया था कजसका उसे अं देशा था कक दे र सिे र ऐसा होगा ही।

610
उसके डै ड ने उससे जो कुछ कहा था उससे अब ये बात खु ल ही चु की थी उनकी बे टी
उनके पक्ष में नही ं है। उनके आदमी ने जो खबर उसके बारे में उसके डै ड को दी थी
उसका उसके पास कोई पु ख्ता सबू त तो नही ं था ककन्तु ़िहन में ये बात तो पड ही गई
थी कक ररतू ककस तरि करिट ले सकती है? हलाॅकक उसने अपनी तरि से अपनी
सिाई में अपने डै ड को समझा बु झा तो कदया था ककन्तु उसे ये भी एहसास था कक
मौजूदा हालात में इस िक्त भले ही उसका बाप कोई कठोर क़दम उसके साथ न
उठाये मगर कजस िक्त उसे पक्के तु र पर पता चल जाएगा कक उसके आदमी की िो
खबर यकीनन सच ही थी तो िक्त अजय कसं ह कोई भी कठोर क़दम उठा सकता है।

ररतू के ़िहन में ये सारी बातें चल रही थी ं। उसे इस बात का भी अं देशा हो चु का था


कक अब उसका बाप सच्चाई का पता लगाने के कलए सं भि है कक उसके पीछे अपने
आदमी लगा दे । उस सू रत में ररतू को क्ा करना था ये उसने भली भाॅकत सोच कलया
था। ररतू अभी ये सब सोच ही रही थी कक तभी उसका मोबाइल बज उठा। मोबाइल
के बजने से िो सोच के गहरे सागर से हक़ीक़त की दु कनयाॅ में आई और कसरहाने
रखे मोबाइल को एक हाॅ से उठा कर उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे
हररया काका नाम को दे खा तो उसके चे हरे पर सोच के भाि उभर आए।

"ककहए काका क्ा बात है?" किर उसने काल को ररसीि करते ही कहा।
"..........।" उधर से हररया काका ने उसे जो कुछ बताया उसे सु न कर ररतू बु री तरह
चौंक पडी थी। उसके चे हरे पर पल भर में कचं ता ि परे शानी के भाि उभर आए थे ।

"ये आपने बहुत अच्छा ककया काका।" ररतू ने कहा___"जो मु झे िोन कर कदया
आपने । खै र, आप बाॅकी सबका ध्यान रल्कखये गा मैं बात करती हूॅ उससे ।"

ये कह कर ररतू ने काल कट कर दी। उसके चे हरे पर कचं ता ि परे शानी के भाि कम


नही ं हो रहे थे । हररया काका ने उसे िोन पर सारी बात बता दी थी कक किराज
तहखाने में उन चारों लडकों के साथ क्ा करने िाला है। उसने ये भी बताया कक
किराज इस िक्त गु स्से में आग बबू ला हुआ पडा है और उससे रे ़िर ब्लेड के साथ
साथ एक प्लास भी मगिाया है। हररया काका से बातें जानने के बाद ररतू समझ गई
कक किराज को अब सब कुछ पता चल गया है। इस कलए अब उसे डर था कक कही ं
किराज उससे इस बात के कलए नारा़ि न हो जाए कक किधी के साथ इतना कुछ हुआ
कजसे उसने किराज से नही ं बताया। इस पररल्कथथकत में िो क्ा क़दम उठा ले गा इसका
अं दा़ि लगाना मुल्किल था। यही बात थी कक ररतू एकाएक कचल्कन्तत ि परे शान हो गई
थी। कािी दे र तक िो इन्ही ं सब खयालों में खोई रही, उसके बाद उसने मोबाइल पर
किराज का नं बर दे ख कर उसे काल लगा कदया। उसे अं दर से डर भी लग रहा था कक

611
किराज जाने कैसा ररयेक्ट करे उससे ।

".........।" उधर से काल ररसीि ककये जाने पर ही ररतू के कानो में किराज की आिा़ि
पडी। उसने उधर से कुछ कहा।
"तु म्हें मेरी कसम है मेरे भाई।" ररतू ने बहुत ही सं तुकलत लहजे में कहा___"तु म जहाॅ
पर हो िहाॅ से ककसी को भी कुछ ककये बग़ैर िापस बाहर आ जाओ। मैं जब आऊगी
तो तु म्हें सब कुछ समझा दू ॅगी।"

".........।" उधर से किराज ने कुछ कहा।


"प्ली़ि भाई।" ररतू ने किनती सी की___"अपनी इस बहन की बात मान जाओ। बस
एक बार। उसके बाद मैं खु द तु म्हें उस सबके कलए इजा़ित दे दू ॅगी। मगर अभी मेरी
बात मान जाओ और िहाॅ से बाहर आ जाओ।"

"..........।" उधर से किराज ने किर से कुछ कहा।


"अभी तु झे कुछ पता नही ं है मेरे भाई।" ररतू ने सहसा गंभार होकर कहा___"तू मेरे
आने का इं त़िार कर मैं तु झे सारी बातें बताऊगी और ये भी कक उससे और क्ा
करना चाहती हूॅ मैं?"

".........।" उधर से किराज ने कुछ कहा।


"हाॅ भाई।" ररतू ने कहा___"मैं जल्द ही ते रे पास आ रही हूॅ। मगर किलहाल तू
िहाॅ से बाहर आ जा।"
"...........।" उधर से किराज ने किर से कुछ कहा।
"थैं र्क् मेरे स्वीट भाई।" ररतू के चे हरे पर राहत के भाि उभरे ___"यू आर सो स्वीट।
लि यू सो मच।"

ये कह कर ररतू ने मुस्कुराते हौए काल कट कर दी। कुछ दे र तक जाने क्ा सोचती


रही िो। उसके बार िह बे ड से उठी और बाथरूम की तरि बढ गई। लगभग दस
कमनट बाद िह बाथरूम से बाहर कनकली और किर पु कलस की यूनीिामग पहन कर
तथा कसर पर पीकैप ि हाथ में पु कलकसया रुल कलये िह कमरे से बाहर आ गई।

ररतू जैसे ही अपनी कजप्सी में बै ठ कर हिे ली से बाहर गई िै से ही इधर प्रकतमा के


कमरे की ल्कखडकी से बाहर दे खते हुए कशिा ने होठों पर मु स्कान सजाते हुए अपनी
जेब से मोबाइल कनकाला और ककसी को िोन लगाया। एक कमनट से भी कम समय
तक उसने ककसी से िोन पर बात की उसने बाद उसने काल कट कर दी।

इधर हिे ली से बाहर कनकलते ही ररतू ने भी ककसी को िोन लगाया और उससे कुछ

612
दे र बात की। उसकी कजप्सी गाॅि से बाहर की तरि जा रही थी। गाि से बाहर जाने
िाले रास्ते से कुछ दू र जाने पर ही ररतू को अपनी कजप्सी के पीछे एकाएक ही एक
ब्लैक जीप आती बै क कमरर में कदखी। ये दे ख कर ररतू के होठों पर मु स्कान िैल गई।

सौ मीटर के िाॅसले पर पीछे से आ रही कार ररतू को बराबर बै क कमरर में कदख
रही थी। हलाॅकक ररतू समझ गई थी कक पीछे आ रही जीप में यकीनन उसके बाप
का ही कोई आदमी है, ले ककन किर भी पक्के तौर पर जाॅचने के कलए ररतू ने मन
बनाया। नहर पर बने पु ल के पास पहुॅचते ही ररतू ने बाॅए साइड िाले रास्ते की
तरि अपनी कजप्सी की मोड कलया। जबकक दाएॅ साइड के रास्ते में आगे उसका
िामग हाउस पडता था।

सौ मीटर आगे जाने पर ही ररतू को कमरर में िो जीप उसी रास्ते की तरि मु डती
कदखी। आगे लगभग पाॅच ककलो मीटर की दू री पर मोड था और िही ं से दू सरे गाॅि
की आबादी शु रू होती थी। कजसकी िजह से मोड पर मु डने के बाद पीछे िाले को
आगे िाला िाहन कदखाई नही ं दे ता था। आगे कुछ दू री पर एक चौराहा पडता था।
ररतू ने कजप्सी को चौराहे पर एक साइड रोंका और उतर कर बगल में एक दु कान
थी। िो दौकान तरि बढ गई। दु कान से उसने एक पे प्सी की बाट ली और िही ं पर
खडे खडे पीने लगी।

कुछ ही दे र में उसे चौराहे की तरि आती हुई िो जीप कदखी कजसमें उसके बाप का
एक आदमी डर ाइकिं ग शीट पर बै ठा था। चौराहे पर ररतू की कजप्सी को दे ख उसके
चे हरे पर चौंकने के भाि उभरे और किर िो एकदम से जीप को ते ़ि रफ्तार से दौडाते
हुए चौराहे के पार कनकल गया। उसकी इस हडबडाहट को दे ख कर ररतू के होठों पर
मुस्कान उभर आई।

पे प्सी को पीकर ररतू ने दु कान िाले को पै से कदये और किर सामने चौराहे के उस


तरि एक बार सरसरी तौर पर अपनी ऩिर दौडाई कजस तरि उसके बाप के
आदमी की िो जीप गई थी। उसके बाद िो अपनी कजप्सी की तरि बढी तथा उसमें
बै ठ कर कजप्सी को यू टनग कदया और किर िापस उसी रास्ते की तरि बढ चली कजस
तरि से िो आई थी। इस बार ररतू की कजप्सी की रफ्तार ज्यादा थी।

पु ल के बगल से सीधा जो रस्ता था उसी तरि उसकी कजप्सी ऑधी तू िान बनी जा
रही थी। बै क कमरर में उसकी ऩिर बराबर थी। उसके पीछे लगी िो जीप उसे कही ं
ऩिर न आई। पु ल से कािी दू र आकर ररतू ने कजप्सी को एक ऐसी जगह पर सडक
से अलग करके खडी ककया कजस जगह पर दाएॅ साइड कािी सारे पे ड पौधे ि
झाकडयाॅ थी। यहाॅ से सडक पर से चल रहा कीई िाहन दे खा तो जा सकता था

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ककन्तु सडक से इस तरि का आसानी से दे खा नही ं जा सकता था।

कजप्सी से उतर कर ररतू ने सबसे पहले होले स्टर में दबे अपने सकिग स ररिावर को
कनकाला। ररिावर का चे म्बर खोल कर उसने चे म्बर के सभी खानों को दे खा। सभी
खानों में गोकलयाॅ मौजूद थी ं। ये दे ख कर उसने चे म्बर को िापस बं द कर ररिावर
को होले स्टर के हिाले ककया और एक आगे बढ कर सडक के कुछ पास ही एक पे ड
की ओट में खडी हो गई। इस िक्त उसके चहरे पर बे हद कठोरता के भाि थे । बहुत
ही धीमी आिा़ि में उसके मुख से कनकला____"साॅरी डै ड, अब आपका कोई भी
आदमी मेरी खबर आप तक नही ं पहुॅचा पाएगा। इतना ही नही ं आप िो सब हकगग़ि
भी नही ं कर पाएॅगे कजस ककही भी ची़ि के करने का आपने मंसूबा बनाया हुआ है।
मेरे भाई के पास पहुॅचने िाले हर शख्स को सबसे पहले मुझसे टकराना होगा।"

चे हरे पर कठोरता और ऑखों में आग कलए ररतू चु पचाप पे ड के ओट में खडी उस


जीप के आने का इन्त़िार करने लगी थी। इन्त़िार करते करते लगभग पन्द्रह कमनट
गु़िर गए मगर अभी तक िो जीप इस तरि आती समझ न आई। ररतू को लगा िो
जीप में बै ठा आदमी आएगा भी या नही ं। ककन्तु ऐसा नही ं था, क्ोंकक तभी ररतू के
कानों में ककसी िाहन के आने की आिा़ि सु नाई दे ने लगी थी।

कुछ ही दे र में मोड से इस तरि मु डती हुई िो जीप कदखी। ररतू ने महसू स ककया कक
जीप की रफ़्तार कम थी। शायद िो आदमी धीमी रफ़्तार से इधर उधर का मुआयना
करते हुए आ रहा था। उसे समझ नही ं आ रहा था कक कजसका िो पीछा कर रहा था
िो इतना जल्दी कहाॅ गायब हो गई? इस तरि मु डने के बाद आगे का रास्ता कािी
दू र तक सीधा ही था। उस सीधे रास्ते पर दू र दू र तक उसे ररतू कदखाई नही ं दे रही है।
ये दे खते दे खते ही उसने जीप की रफ़्तार कम कर दी। ररतू को लगा कक कही ं िो यही ं
पर ही न रुक जाए और िही हुआ भी। उस आदमी ने सामने की तरि दे खते हुए ही
जीप को एकदम से खडी कर कदया।

जीप खडी करने के बाद उसने इधर उधर दे खा और किर सहसा उसने अपनी शटग
की जेब से मोबाइल कनकाला। ररतू को समझते न लगी कक िो शायद इस बात की
सू चना उसके बाप को दे ना चाहता है कक ररतू एकाएक ही उसकी ऩिरों से ओझल हो
गई है। ररतू के मन में खयाल आया कक उस आदमी को इस बात की सू चना नही ं दे
पाना चाकहए। इस खयाल के आते ही उसने कबजली की सी ते ़िी से ऐक्शन कलया।

कजस जगह पर ररतू पे ड के पीछे खडी थी िहाॅ से िो आदमी आगे की तरि बाएॅ
साइड से जीप में बै ठा था। जीप ऊपर से पू री तरह बे पदाग टाइप की थी। डर ाइकिं ग
शीट पर बै ठा िो आदमी दाकहने हाॅथ पर मोबाइल कलए कुछ कर रहा था। ररतू

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समझ गई कक िो उसके बाप को िोन लगाने ही िाला है। ये दे ख कर ररतू ने होले स्टर
से ररिावर कनकाल कर कनशाना लगाया और किर.....धाॅयऽऽ।"

अचू क कनशाना, ररिावर से कनकली गोली सीधा उस आदमी के दाकहने हाॅथ में
मौजूद उसके मोबाइल की स्क्रीन के कचथडे उडाती हुई पार होकर सामने जीप के
शीशे से टकराई थी। अचानक हुए इस हमले से िो आदमी मानो सकते में आ गया
था। दाकहने हाॅथ को अपने बाएॅ हाॅथ से थामे िह उसे सहलाने लगा था। डर ाइकिं ग
शीट पर बै ठा िो इधर उधर दे खे जा रहा था।

इधर ररतू िायर करते ही ते ़िी से जीप की तरि बढी। कुछ ही दे र में िो जीप के
पास पहुॅच गई। अपने इतने क़रीब इस तरह अचानक ररतू के आ जाने से िो आदमी
एकदम से हक्का बक्का रह गया था। चे हरे पर डर और घबराहट के भाि कत्थक
करते ऩिर आने लगे थे

ररतू ने दे र नही ं की बल्कि कबना ककसी भू कमका के उसने दोनो हाॅथो से उस आदमी
की शटग के कालर को पकडा और किर एक झटके मे ही खी ंच कर डर ाइकिं ग शीट से
बाहर खी ंच कलया। उस हट्टे कट्टे आदमी को बाहर खी ंच कर ररतू ने उसे िही ं सडक
पर लगभग िटक कदया। आदमी के हलक से चीख कनकल गई। ररतू जानती थी कक
उस आदमी ने अगर ररतू को अपनी मजबू त बाहों में पकड कलया तो किर उससे छूट
पाना आसान नही ं होगा। इस कलए ररतू ने उसे सम्हलने का मौका ही नही ं कदया।
बल्कि लात घू ॅसों पर रख कदया उसे ।

सडक पर कगरे हुए उस आदमी की कसिग चीखें कनकल रही थी। सहसा उसके हाॅथ
में ररतू का पाॅि आ गया और उसने झटके से ररतू का िो पाॅि पकड कर उछाल
कदया। नतीजा ये हुआ कक ररतू लहराते हुए सडक पर पीठ के बल कगरी। ररतू के मुख
ददग में डूबी हिी सी चीख कनकली। उधर उस आदमी को जैसे मौका कमल गया था।
इस कलए िो झट से उठा और सम्हल कर उठ रही ररतू के कसर के बाल पकड कर
उसे जीप की तरि ही झटके से धकेल कदया। ररतू का कसर जीप के ककनारे पर लगे
मोटे लोहे के पाइप से टकराया। ररतू की ऑखों के सामने तारे नाचने लगे और सहसा
उसे अपनी ऑखों के सामने अधेरा सा कदखने लगा।

लोहे का िो पाइप ररतू के कसर पर ़िोर से लगा था। कजसके कारर् तु रंत ही ररतू के
कसर से खू न ररसने लगा था। अभी ररतू ददग को सहते हुए खु द को सम्हाल ही रही थी
कक उस आदमी ने एक बार से उसके कसर को उसी लोहे के पाइप पर झटक कदया।
ररतू की चीख कनकल गई। चोंट पर चोंट लगने से खू न का ररसाि ते ़ि हो गया।

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"मैने माकलक से झॅ
ू ठ नही ं बोला था लडकी।" उस आदमी ने दाॅत पीसते हुए गुस्से
से कहा___"उस कदन तू ही थी उस जीप में जो उस एम्बू लेन्स के आगे आगे चल रही
थी। मगर पक्के तौर पर चू ॅकक ककसी को पता नही ं था इस कलए मुझे भी लगा कक
शायद उस जीप में ते रे कसिा कोई ही न रहा हो। दू सरी बात हम में से कोई ये सोच ही
नही ं सकता था कक हमारे माकलक से गद्दारी करने िाली खु द माकलक की ही छोकरी
होगी।"

ये सब कहने के साथ ही उस आदमी ने पीछे से एक मु क्का ररतू के पे ट के बगल पर


रसीद कर कदया। हट्टे कट्टे आदमी का मुक्का लगते ही ररतू को भयानक ददग हुआ।
उसकी घुटी घुटी सी चीख कि़िा में िैल गई।

"तु झे पता है आज माकलक ने मुझे साि साि कहा है कक अगर गद्दार के रूप में तू ही
कनकले तो तु झे मैं खु द ही इस गद्दारी की स़िा दू ॅ।" उस आदमी ने कहा___"माकलक
को इस बात से अब कोई मतलब नही ं रह गया है कक गद्दार कौन है। उनके कलए
अपना और पराया सब बराबर हैं। इस कलए ऐ छोकरी, तू अब स़िा पाने के कलए
तै यार हो जा। मैं पहले ते रे इस खू बसू रत कजस्म का म़िा लू टूॅगा और किर ते री
इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडाऊगा। हाहाहाहाहा कसम से पहली बार लग रहा है कक
माकलक की से िा करने का कुछ अच्छा िल कमल रहा है।"

ररतू के कानों से उस आदमी की ये सब बातें टकराई तो उसके अं दर गस्से की ज्वाला


धधक उठी। उसने अपने दाकहने हाॅथ को पीछे ले जाकर उस आदमी के कसर को
उसके बालों से पकडा और पू री ताकत से ऊपर से आगे की तरि खी ंचा। िो आदमी
तो पीछे से आगे न आ पाया क्ोंकक िो िजनदार और हट्टा कट्टा था ककन्तु कसर के
बाल इतनी ते ़िी से खी ंचे जाने पर उसके मुख से ददग भरी सीत्कार गूॅज उठी। इसके
साथ ही ररतू के कसर के बालों पर से उसकी पकड ढीली पड गई।

ररतू ने एक पल का भी समय नही ं गिाॅया। उसके हाॅथ के नीचे से कनकल कर


उसने कबजली की सी ते ़िी से उस आदमी के बगल से आकर अपने दाकहने हाॅथ की
कराट ़िोर से उसकी गदग न के कपछले भाग पर लगाई। नतीजा ये हुआ कक झोंक में
उस आदमी का माॅथा उसी लोहे के पाइप से टकराया कजस पाइप पर अभी कुछ दे र
पहले ररतू का कसर टकराया था। माॅथे पर लोहे का पाइप लगते ही िो आदमी ददग से
कबलकबलाया और दोनो हाॅथों से अपना माॅथा सहलाने लगा। पलक झपकते ही
उसके माथे पर एक गोल सा गोला उभर आया जो हिे नीले रं ग का था।

ररतू को ते ़ि गुस्सा आया हुआ था। इस बार िो रुकी नही ं बल्कि जूडो कराटे और
कंु गिू के ऐसे करतब कदखाए कक दो कमनट में ही उस आदमी को धरासाई कर कदया।

616
एक बार पु नः िो हट्टा कट्टा आदमी सडक पर पडा था, ककन्तु इस बार िो ददग से बु री
तरह कराह रहा था।

"ते रे जैसे पालतू कुिों का इला़ि बहुत अच्छी तरह से करना आता है मु झे।" ररतू
ककसी शे रनी की भाॅकत गुरागई___"चल आज तु झे इसका टर े लर भी और इसका अं जाम
भी कदखाऊगी। ते रे जैसे कुिों का और अपने उस हरामी बाप का क्ा हस्र होगा ये
िक्त ही बताएगा।"

ररतू की बात उस आदमी ने कोई जिाब न कदया, बल्कि िो जिाब दे ने की हालत में ही
नही ं रह गया था। ररतू ने नीचे झुक कर उस आदमी की कनपटी के पास मौजूद एक
ऐसी खास जगह पर कराट मारी कक पल भर में िो आदमी बे होश हो गया। उसके
बे होश होते ही ररतू ने उस आदमी के एक हाॅथ को पकड कर खी ंचते हुए सडक के
ककनारे पर लगाया और किर पलट कर उस तरि बढ चली कजस तरि उसने अपनी
कजप्सी को झाकडयों और पे डों के पीछे छु पाया था।

थोडी ही दे र में ररतू कजप्सी को ले कर सडक पर आ गई। कजप्सी को उस आदमी के


पास खडी कर िो कजप्सी से नीचे उतरी और किर उस आदमी के बे होश कजस्म को
ककसी तरह उठा कर कजप्सी के पीछे डाल कदया। उसके बाद िो उस जीप के पास गई
कजसमें बै ठ कर िो आदमी यहाॅ आया था। उस जीप के इग्नीशन से चाभी कनकाल
कर ररतू ने अपनी पै न्ट की पाॅकेट में डाला और िापस कजप्सी के पास आकर
डर ाइकिं ग शीट पर बै ठ गई।

उस आदमी को िही ं पर छोंड कर ररतू ने अपनी कजप्सी को िामग हाउस की तरि


दौडा कदया। ऑधी तू िान बनी कजप्सी कुछ ही समय में िामगहाउस पहुॅच गई।
िामग हाउस के मेन गेट पर ही हररया और शं कर काका खडे कदखे ररतू को। ररतू को
आते दे ख शं कर ने लोहे िाला गेट खोल कदया। गेट खु लते ही ररतू ने कजप्सी को गेट के
अं दर की तरि बढा कदया। हररया काका के पास कजप्सी को रोंक कर ररतू ने अपनी
पै न्ट की पाॅकेट से चाभी कनकाली और शं कर की तरि दे खते हुए कहा___"शं कर
काका मेरी गाडी से इस आदमी को बाहर कनकाल कर िही ं तहखाने में डाल कर
िटािट आइये।"

"अच्छा कबकटया।" शं कर ने कहा और अपनी बं दूख को हररया के हिाले कर कजप्सी


के पास आया और उस आदमी को अपनी मजबू त बाहों से खी ंच कर बाहर कनकाला।
बाहर कनकाल कर उसे उसने अपने कंधे पर लादा और अं दर तहखाने िाले कहस्से की
तरि बढ गया।

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"काका आप ये चाभी लीकजए।" ररतू हररया की तरि चाभी उछालते हुए
कहा___"और मेरी इस गाडी से शं कर काका को भी साथ ले जाइये। बीच रास्ते पर
ही उस आदमी की जीप खडी कमले गी आपको। उसे िहाॅ से यहाॅ ले कर आना है।"

"ठीक है कबकटया।" हररया ने कहा___"हम अभी शं करिा का लइके जाथैं । ले ककन


कबकटया ऊ ससु रा आदमी कउन है? अउर कहाॅ से कमल गिा ऊ तु मका?"
"मेरे डै ड का पालतू कुिा है काका।" ररतू ने नफ़रत के भाि से कहा___"मेरे डै ड ने
उसे मेरे पीछे लगाया हुआ था मेरी कनगरानी के कलए। मैने उस कमीने को बीच में ही
धर कलया और यहाॅ ले आई। अब आप इसकी भी खाकतरदारी कीकजएगा।"

"अरे कबलकुल कबकटया।" हररया के चे हरे पर एकाएक ही खु शी के भाि उभरे ले ककन


किर जैसे उसे कुछ याद आया तो उसने किर नामगल भाि से कहा___"ऊ ससु रे की
खाकतरदारी हम बहुत अच्छे से करूॅगा।"

तभी शं कर काका आता हुआ कदखाई कदया। उसके पास आते ही ररतू ने उसे भी
समझा कदया और हररया के साथ अपनी कजप्सी से भे ज कदया। उन दोनो के जाते ही
ररतू अं दर मकान की तरि बढ चली।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मैं ररतू दीदी के कमरे में बडी बे चैनी से इधर से उधर टहल रहा था। रह रह कर सू रज
की बातें मेरे ़िहन में ़िहर सा घोल रही थी। मुझे उन चारों पर भयानक गु स्सा आ
रहा था। ककन्तु दीदी ने िोन करके मु झे तहखाने से बाहर आ जाने के कलए कह कदया
था। मु झे इस बात से बे हद तक़लीफ़ हो रही थी कक मेरी किधी के साथ ककतना
कघनौना कुकमग ककया गया था कजसके बारे में मुझे कुछ पता ही नही ं था और ना ही ये
सब ककसी ने मु झसे बताया था। मैं सोच रहा था की अगर इिे िाक़ से या सं योगिश
मैं हररया काका के पीछे उस तहखाने में न जाता तो मुझे पता भी न चलता कक मेरी
किधी के साथ और क्ा हुआ था।

मुझे इस सबके कलए पिन और दीदी दोनो पर गुस्सा भी आ रहा था मगर मैं इस बात
से खु द को तसल्ली कदये हुए था कक इन्ही ं की िजह से ही तो मैं अपनी किधी को
अं कतम बार कमल सका था। उसके त्याग और बकलदान को जान सका था िरना सारी
क़िंदगी मैं उस मासू म ि कनदोष को कोसता रहता। इस कलए ये सब सोच कर मैं अपने
गुस्से को शान्त ककये हुए था। मैने खु द को बहुत समझाया था तब जाकर मु झे कुछ
राहत कमली थी और सबसे ज्यादा ररतू दीदी पर प्यार आया कक उन्होंने मेरे और किधी
के खाकतर ककतना कुछ ककया था।

मुझे एहसास था कक ररतू दीदी अब पहले जैसी नही ं रही थी बल्कि अब िो बदल गई

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थी। बचपन से ले कर अब तक मेरे प्रकत जो उनके अं दर द्वे ष या नफ़रत का भाि था िो
अब बे पनाह प्यार ि स्नेह में पररिकतग त हो गया था। कजस ररतू दीदी से बात करने के
कलए मैं अर्क्र तरसता था आज िही दीदी मु झे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने
लगी हैं। इस बात से मैं बे हद खु श भी था। ककन्तु हालात के मद्दे ऩिर मैं अपनी इस
खु शी को ़िाकहर नही ं कर पा रहा था। इस िक्त मैं उनके कमरे में टहलते हुए उनके
आने का बे सब्री से इन्त़िार कर रहा था।

तभी कमरे का दरिाजा खु ला और पु कलस इन्िेक्टर की िदी में ररतू दीदी ने कमरे में
प्रिे श ककया। मैं उन्हें आज पु कलस की िदी में दे ख कर दे खता ही रह गया। उनके
खू बसू रत बदन पर ये पु कलस की िदी कािी जच रही थी। ऐसा लगता था कक पु कलस
की ये िदी कसिग उन्ही ं के कलए ही बनी थी। मु झे अपनी तरि अपलक दे खता दे ख
दीदी के होठों पर मु स्कान उभर आई और किर सहसा उनके चे हरे पर हया की सु खी
भी ऩिर आने लगी।

"ऐसे क्ों दे ख रहा है राज?" ररतू दीदी ने मीठी सी आिा़ि में ऩिरें झुकाते हुए कहा।
"दे ख रहा हूॅ कक मेरी ररतू दीदी इस पु कलस की िदी में ककतनी खू बसू रत लग रही
हैं।" मैने सहसा मु स्कुराते हुए कहा___"ऐसा लगता है कक ये िदी दु कनयाॅ में कसिग
आपके कलए ही बनी है।"

"अच्छा जी।" ररतू दीदी हस दी, बोली___"क्ा सच कह रहा है भाई?"


"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"आप तो मेरी िै से भी दु कनयाॅ की सबसे अच्छी और
खू बसू रत दीदी हैं, ऊपर से इस पु कलस की यूनीिामग पहने हुए। कसम से दीदी आप
बहुत ही क्ूट और ब्यू टीिुल लग रही हैं। मेरी आपसे गु ़िाररश है कक आपने ये जो
पु कलस की नौकरी छोंड का सोचा हुआ है उस सोच को आप अपने ़िहन से कनकाल
दें । मैं आपको हमेशा ऐसे ही पु कलस की इस िदी में दे खना चाहता हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है मेरे प्यारे भाई।" ररतू दीदी ने आगे बढ कर मेरे गालों पर सहलाते
हुए कहा___"तो किर अब ते री ये दीदी पु कलस की नौकरी मरते दम तक नही ं छोंडेगी।
भले ही चाहे जैसी भी पररल्कथथकत आ जाए। तु झे पता है राज, मेरी इस नौकरी से मेरे
माॅम डै ड और िो कमीना कशिा कोई भी खु श नही ं हैं। आज ते रे मुख से ये बात सु न
कर मुझे बहुत खु शी हो रही है। मैं खु श हूॅ कक तु झे मेरा नौकरी करना और पु कलस
की इस िदी में दे खना अच्छा लग रहा है। काश! ये सब मैने बहुत पहले सोचा होता।
मैने सोचा होता कभी ते रे बारे में तो कभी भी मैं तु झसे दू र न रहती। भाई क्ा होता है
ये मु झे अब पता चला है राज। िरना तो भाई के नाम से ही नफ़रत हो गई थी मुझे।
तु झसे एक ही किनती है अपनी इस दीदी को कभी खु द से दू र न करना। मैंने अपने
उन ररश्ों से नाता तोड कलया है कजन ररश्ों के द्वारा मेरा ये िजूद दु कनयाॅ में आया

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है। अब अगर मेरा कोई है तो कसिग तू है मेरे भाई। जो गु़िर गया उसे तो मैं लौटा नही ं
सकती राज मगर आज जो है और जो आने िाला है उसे सिाॅरने की पू री कोकशश
करूॅगी मैं। बस तू और ते रा साथ बना रहे। बोल न भाई, तू मु झे अपने साथ रखे गा
न?"

ये सब कहते हुए ररतू दीदी की ऑखों से ऑसू बहने लगे थे । मैने तडप कर उन्हें अपने
सीने से लगा कलया। िो मुझसे कस के कलपट गईं और खु द को ़िार ़िार न रोने की
नाकाम कोकशश करने लगी ं। मैं उन्हें इस तरह रोते हुए नही ं दे ख सकता था। उनका
कैरे क्टर हमेशा से ही बहादु र लडकी का रहा था मगर इस िक्त कोई दे खे तो ककसी
कीमत पर यकीन करे कक ये लडकी बहादु र भी सकती है। बाहर से पत्थर की तरह
कठोर कदखने िाली इस लडकी के सीने में भी एक नन्हा सा कदल है जो धडकना भी
जानता है अपनों के कलए।

"मत रोइये दीदी।" मैने उनकी पीठ को सहलाते हुए कहा___"आप रोते हुए कबलकुल
भी अच्छी नही ं लगती हैं। आप तो मेरी सबसे ज्यादा बहादु र दीदी हैं। चकलए अब चु प
हो जाइये।"
"मुझे रो ले ने दे राज।" दीदी मु झसे और भी कस के कलपट गईं, बोली_ं ___"तु झे नही ं
पता कक जब से मुझे असकलयत का पता चला है तब से मैं ककतना अं दर ही अं दर इन
िे दनाओं में झुलस रही हूॅ। िो कैसे लोग हैं मे रे भाई जो अपनी ही बहन बे टी के बारे
में इतना गंदा सोच सकते हैं? िो कैसे लोग हैं राज कजनको ररश्ों की कोई क़दर ही
नही ं है? कसिग अपनी हिस के कलए िो ककसी भी हद तक जाने को तै यार बै ठे हैं।"

"अब कुछ मत ककहए दीदी।" मैने दीदी को खु द से अलग कर उनके ऑसु ओ ं से तर


चे हरे को अपनी दोनो हथे कलयों के बीच ले कर कहा___"पाप करने िालों की उमर
बहुत लम्बी नही ं होती है उनकी कनयकत में बहुत जल्द सड सड के मर जाना कलखा
होता है। जो गुनाह जो पाप उन्होने ककया है उसकी उन्हें ़िरूर स़िा कमले गी दीदी।
बस िक्त का इन्त़िार कीकजए।"

"तू उन सबको अपने हाॅथों से मौत की स़िा दे गा।" ररतू दीदी ने कहा___"मैंने उन
सबको कसिग ते रे कलए ही छोंड कदया था। मैं चाहती थी कक इन्होंने कजनके साथ पाप
ककया िही इन्हें अपने हाॅथों से स़िा दें । और हाॅ, तू अपने मन में पल भर के कलए
भी ये खयाल मत लाना कक तू ऐसा करे गा तो मैं तु झे कुछ कहूॅगी। मैं सच कहती हूॅ
राज, मुझे इस बात का ़िरा सा भी दु ख नही ं होगा कक तू ने मेरे माॅम डै ड और कशिा
को मौत दी।"

620
"आप शायद दु कनयाॅ की पहली ऐसी लडकी हैं दीदी कजसे इस सबसे कोई दु ख नही ं
होगा।" मैने दीदी की ऑखों में दे खते हुए कहा___"ककन्तु आप ऐसा कह रही हैं ये
हैरत की बात है मेये कलए।"
"इसमें हैरत कैसी राज?" ररतू दीदी ने कहा___"हर इं सान को अपने अच्छे बु रे कमों
का िल कमलता है। मेरे घर िालों को भी कमले गा। तक़लीफ़ तो तब होती है जब अच्छे
कमों का िल बु रा कमलता है, ले ककन इन लोगों ने तो कसिग बु रा कमग ही ककया है
अपनी क़िंदगी में । इन लोगों के मर जाने से मु झे कोई दु ख नही ं होगा मेरे भाई, बल्कि
इस बात का मलाल ़िरूर रहेगा कक ईश्वर ने मुझे ऐसे माॅ बाप और ऐसा भाई क्ों
कदया था?"

ररतू दीदी की इन बातों को सु न कर मैं हैरानी से उनकी तरि दे खता रह गया था।
मुझे उन पर बडा स्ने ह आया। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हिे से चू ॅम कलया। मेरे
इस तरह चू मने पर िो हौले से मु स्कुराईं।

"तू सच में बडा हो गया है राज।" ररतू दीदी ने मेरे चे हरे को एक हाॅथ से सहलाते हुए
कहा___"इस बात से मुझे खु शी है कक तू बडा हो गया है और समझदार भी। हलाॅकक
ये बात तो मैं पहले भी जानती थी कक तू एक समझदार लडका है। सबके प्रकत ते रे
कदल में प्यार इज्ज़ित ि सम्मान की भािना है। खै र छोंड इन सब बातों को, ये बता कक
तू तहखाने में कैसे पहुॅच गया था?"

"िो हररका काका के कबहै कियर से मु झे उन पर सं देह हुआ।" मैने गहरी साॅस ले ने
के बाद कहा___"आप तो जानती ही हैं कक अगर ककसी के मन में ककसी तरह का
सं देह हो जाता है तो िो हर पल यही प्रयास करता रहता है कक उसे कजस ची़ि पर
सं देह हुआ है िो उसके सामने साि तौर पर खु ल जाए या उसकी हकीक़त पता चल
जाए। बस हररया काका के मामले में यही हुआ था। मु झे उन पर सं देह हुआ और जैसे
ही िो तहखाने िाले रास्ते की तरि गए तो मैं भी शं कर काका की ऩिरों से खु द को
छु पा कर हररया काका के पीछे चला गया। उनके पीछे जाने से तहखाने में जो सच्चाई
मुझे पता चली उसने मु झे मुकम्मल तौर पर कहला कर रख कदया। मु झे पता चला कक
तहखाने में मौजूद उन चारो हराम़िादो ने मेरी किधी के साथ क्ा ककया था? उसके
बाद किर मु झे िही करना था जो ऐसी पररल्कथथकत में कोई भी करता। मगर ऐन िक्त
पर आपका िोन आ गया और मैं उन कमीनों के साथ िो न कर पाया जो करने का
मैने िैंसला कर कलया था।"

"मुझे माफ़ कर दे राज।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"पर तु झे नही ं पता कक उन


लोगों के साथ साथ मैं और ककन ककन लोगों के साथ क्ा क्ा करने िाली हूॅ? इन
चारों को आसान मौत मारने का कोई मतलब नही ं है मेरे भाई। मैंने ऐसा कुछ करने

621
का सोचा हुआ है कजसके बारे ककसी ने सोचा भी नही ं होगा।"

"क्ा करने का सोचा है आपने ?" मैने दीदी के चे हरे को ग़ौर से दे खते हुए
कहा___"क्ा मु झे नही ं बताएॅगी आप?"
"बात कुछ ऐसी है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने सहसा पलट कर दू सरी तरि अपना
चे हरा करते हुए कहा___"कक मैं तु झे बता नही ं सकती। बस इतना समझ ले कक इन
लोगों ने अगर नीचता की हद को पार ककया था तो मैं इन्हें स़िा दे ने में इनके साथ
नीचता की इन्ते हां कर दू ॅगी।"

"क्ा मतलब???" मैं दीदी की बात सु न कर बु री तरह चौंका था___"ऐसा क्ा करने
िाली हैं आप??"
"मैने कहा न राज।" ररतू दीदी ने दू सरी तरि मुॅह ककये हुए ही कहा___"कक मैं तु झे
इस बारे में कुछ बता नही ं सकती।"
"ले ककन दीदी।" मैं उनके पास जाते हुए बोला___"आपने तो सोच कलया है कक आपको
उन चारों को क्ा स़िा दे ना है ले ककन बात जब नीचता की हो तो मैं ये कैसे सह
सकता हूॅ कक मेरी बहन कोई नीचता िाला काम करे ? नही ं दीदी आप ऐसा कुछ भी
नही ं करें गी। आप मु झे बताइये कक उन चारों के साथ साथ और कौन कौन ऐसे हैं
कजनको उनके गुनाहों की स़िा दे नी है? मैं खु द अपने हाॅथों से उन्हें बद से बदतर
स़िा दू ॅगा।"

"मुझे मजबू र मत कर मेरे भाई।" ररतू दीदी सहसा मेरी तरि पलट कर मेरे चे हरे की
तरि दे खते हुए कहा__"तू मेरा भाई है, इस कलए मैं तु झे िो बात कैसे बता सकूॅगी
कजसे बताने में मुझे शमग आए। दू सरी बात तू भी यही सोचे गा कक ते री दीदी कैसे गंदे
किचारों की है?"

"ऐसा कुछ नही ं है दीदी।" मैने उनके चे हरे को अपनी दोनो हथे कलयों के बीच ले कर
कहा___"मु झे पता है कक आपका मन और कदल गंगा मइया की तरह साि और
कनमगल है। आपने अपने जीिन कभी कोई ऐसा काम नही ं ककया है कजसके कलए
आपको ककसी के सामने शकमिंदा होना पडे । सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे आप पर
ना़ि है। इस कलए आप मु झे बे कझझक होकर बताइये कक इन लोगों के साथ और कौन
कौन हैं कजनको आप ऐसी स़िा दे ने का मन बनाया हुआ है?"

"सू रज चौधरी को तो तू जानता ही है कक िो कौन है और ककसका कपू त है?" ररतू


दीदी ने गहरी साॅस ले ने के बाद कहा___"इस प्रदे श का मं त्री है िो। सू रज के साथ
बाॅकी तीन जो लडके और हैं िो सब भी ककसी न ककसी बडे बाप की औलाद हैं।
जब किधी िाला हादसा इन लोगों ने अं जाम कदया और मुझे उन सबके बारे में पता

622
चला तो मुझे ये समझते दे र न लगी कक इन लडकों को कानू नन स़िा कदलिाने से भी
कुछ नही ं होने िाला। क्ोंकक इनके सबके बाप बडे बडे लोग हैं। सारी कानू न
ब्यिथथा को इन लोगों ने अपने हाॅथों पर रखा हुआ है। अगर मैं इन लोगों को
कगरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल भी दे ती तो पलक झपकते ही मु झे
उन लोगों को छोंडना भी पड जाता। ऊपर से यही आडग र आता कक मंत्री साहब का
बे टा और उसके तीनो साकथयों मैने बे िजह ही कगरफ़्तार कर जेल में बं द ककया है।
कहने का मतलब ये कक कानू नी तौर पर मैं इन्हें कोई स़िा कदला ही नही ं पाती। इस
कलए मैंने कानू न की मुहाकि़ि होते हुए भी कानू न को अपने हाॅथ में ले ने का मन
बना कलया। ककन्तु मैं ये भी जानती थी कक ये सब इतना आसान नही ं था। तब मैने
अपने आला अिसर से इस सं बंध में बात की। उन्हें मैंने इस बात का भी हिाला कदया
कक प्रदे श का मंत्री कहने को तो मंत्री है मगर ऐसा कोई गुनाह या अपराध नही ं है
कजसे इसने अपने बाॅकी साकथयों के साथ कमल कर अं जाम न कदया हो। मेरी बात
सु न कर ककमश्नर साहब रा़िी तो हुए मगर मंत्री के ल्कखलाि कोई पु ख्ता सबू त न होने
की िजह से उस पर हाॅथ डालने से मु झे मना भी करने लगे। तब मैने उन्हें बताया
कक मेरे पास मं त्री के ल्कखलाफ़ ऐसे ऐसे ठोस सबू त हैं कजनकी कबना पर मैं जब चाहूॅ
तब उसे और उसके सभी साकथयों को बीच चौराहे पर नं गा दौडा दे ने पर मजबू र कर
दू ॅ। मेरी बातें सु न कर ककमश्नर साहब ने मु झे खु ली छूट दे दी और कह कदया कक मेरा
जो कदल करे िो मैं कर सकती हूॅ।"

"ओह तो इसका मतलब बात कसिग इतनी ही नही ं है कजतनी कक मुझे ऩिर आ रही
है।" मैने चककत भाि से दीदी की तरि दे खते हुए कहा___"इस सब में प्रदे श का मंत्री
और उसके कुछ साथी भी इनिाल्ब हैं?"
"इन्वाल्ब नही ं है राज।" ररतू दीदी ने कहा___"बल्कि इस खे ल में उन सबको भी
लपे टना पडा मुझे। मैं चाहती थी कक एक ही काम में दोनो काम हो जाएॅ। सारा
प्रदे श उस मंत्री के अत्याचार से भी दु खी है। इस कलए बाप बे टों को एक साथ लपे टने
का मन बनाया मैने।"

"तो इसमें ऐसी क्ा बात थी दीदी कजसे आप बताना नही ं चाहती थी?" मैने सोचने
िाले भाि से कहा।
"ये तो मैने ककरदारों के बारे में बताया है तु झे।" ररतू दीदी ने कहा___"ये नही ं बताया
कक इन सब ककरदारों के साथ क्ा करूॅगी मैं?"

"ओह आई सी।" मैने कहा___"आप बताना नही ं चाहती तो कोई बात नही ं दीदी। मैं
कसिग ये चाहता हूॅ कक इस सब में आपको कुछ न हो। आपकी बातों से मैं ये बात
समझ गया हूॅ कक कजन लोगों की आपने बात की है िो कनहायत ही खतरनाक लोग
हैं। इस कलए उन पर हाॅथ डालने से यकीनन बे हद खतरा है और मैं ये हकगग ़ि नही ं

623
चाह सकता कक ऐसे खतरों के बीच मेरी दीदी अकेले िस जाएॅ। अच्छा हुआ कक
आपने मु झे इस बारे में बता कदया। अब मैं खु द आपको इस खतरे के बीच अकेला
नही ं रहने दू ॅगा। ये लडाई अब हम दोनो बहन भाई कमल कर लडें गे और जीत कर
कदखाएॅगे दु कनयाॅ को।"

"ये तू क्ा कह रहा है मेरे भाई?" ररतू दीदी एकाएक ही चौंक पडी थी, बोली___"नही ं
नही ं, तू इस सबसे दू र ही रह। मैं तु झे ऐसे खतरे के बीच में आने की इजा़ित हकगग़ि
नही ं दू ॅगी। बडी मुल्किल से तो मेरा भाई मुझे कमला है। सारी उमर मैने तु झे दु ख
तक़लीफ़ें दी थी अब और नही ं मेरे भाई। मैं तु झे ककसी भी खतरे में नही ं डालू ॅगी। तू
इस सबसे दू र रहेगा और इन सबको साथ ले कर िापस मुम्बई चला जाएगा। तू मेरी
किक्र मत कर राज, ते री दीदी इतनी कम़िोर नही ं है कक कोई भी ऐरा गैरा उसे हाथ
भी लगा सके।"

"मैं जानता हूॅ कक मेरी दीदी दु कनयाॅ की सबसे बहादु र लडकी है।" मैने दीदी को
उनके दोनो कंधों से पकड कर कहा___"मगर, एक भाई होने के नाते मेरा भी कुछ
ि़िग बनता है । मैं सक्षम होते हुए भी आपको अकेले ऐसे खतरे में कैसे जाने दू ॅ? मेरे
कदल मेरा ़िमीर हमेशा इस बात के कलए मुझे कधक्कारे गा कक मैंने अकेले आपको
इतने बडे खतरे में जाने कदया और खु द अपनी जान बचा कर मुम्बई चला गया। नही ं
दीदी, ऐसा कायर और बु जकदल नही ं है आपका भाई। आप भी तो मु झे मुद्दतों बाद
कमली हैं। आप जानती हैं कक बचपन से अब तक मैं आपसे बात करने के कलए तरस
रहा था और आज जब मुझे मेरी सबसे प्यारी दीदी कमल गई है तो मैं कैसे आपको यू ॅ
अकेला मौत के मुह में छोंड कर चला जाऊगा? कभी नही ं दीदी....कभी नही ं। मैं मर
जाऊगा मखर आपको यूॅ अकेला छोंड कर यहाॅ से कही ं नही ं जाऊगा।"

"नही ंऽऽऽ।" मेरे मुख से मरने की बात सु न कर तु रंत ही दीदी के मुख से चीख
कनकल गई। झपट कर मु झे अपने गले से लगा कलया उन्होंने, किर बोली ं___"खबरदार
अगर ऐसी अशु भ बात दु बारा कही तो। मरें गे ते रे दु श्मन। तु झे कुछ नही ं होने दू ॅगी
मैं।"

"तो किर मुझे अपने पास रहने दीकजए दीदी।" मैने उनके गले लगे हुए ही
कहा___"मु झे अपना ि़िग कनभाने दीकजए। अपने इस भाई को कायर और बु जकदल
मत बनाइये। िरना यकीन माकनये मैं कभी भी सु कून से जी नही ं पाऊगा। हम दोनो
साथ कमल कर हर खतरे का मुकाबला करें गे। सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब
साथ में ही रहें गे। मुझे आपसे बहुत सारी बातें भी करनी हैं। प्ली़ि दीदी, मु झे अपने
साथ रहने दीकजए न।"

624
"उफ्फ राज।" दीदी ने मु झे कस के पकडते हुए कहा___"तू इतना अच्छा क्ों है रे ?
इतना प्यार क्ों करता है तू अपनी इस दीदी से ? क्ा तू भू ल गया कक ये िही दीदी है
कजसने तु झे कभी अपना भाई नही ं माना और हमेशा तु झे जलील करके ते रा कदल
दु खाया है। ऐसी दीदी से क्ों इतना प्यार करता है पगले ?"

"मुझे आपसे कभी कोई दु ख नही ं कमला दीदी।" मैं उनसे अलग होकर तथा उनके
खू बसू रत चे हरे को अपनी हथे कलयों पर ले कर कहा___"और ना ही आपने कभी मु झे
कोई दु ख कदया है। हर इं सान के जीिन में अच्छा बु रा समय आता है। इस कलए जो
बीत गया मुझे उसका ले श मात्र भी रं ़ि नही ं है , बल्कि आज इस बात की बे हद खु शी
है कक मु झे िो दीदी कमल गई है कजसे मैं सबसे ज्यादा पसं द करता था।"

मेरी बात सु न कर ररतू दीदी ििक कर रो पडी। उनकी ऑखों से झर झर करके


ऑसू ॅ बहने लगे। ये दे ख कर मैं तडप उठा। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनकी ऑखों
से बहते हुए ऑसु ओ ं को पोंछा।

"ऐसी बातें मत कर मेरे भाई।" दीदी ने कससकते हुए कहा___"मैं अपने अं दर के


जज़्बातों को सम्हाल नही ं पाऊगी। मेरा कदल धडकना बं द कर दे गा। आज मु झे
एहसास हुआ कक सच्चा प्यार ि स्ने ह कैसा होता है? क्ों इस प्यार में लोग अपने
ककसी कप्रय के कलए खु द को कुबागन कर दे ते हैं? तू प्यार मोहब्बत और प्रे म का जीता
जागता प्रमार् है राज। मैं अपने भाई के इस सच्चे प्रे म में बह जाना चाहती हूॅ। मु झे
अपने से दू र मत करना मेरे भाई।"

"शान्त हो जाइये दीदी।" मैने दीदी को अपने सीने से लगा कलया किर बोला___"अब
कबलकुल भी आप रोएॅगी नही ं। चकलए जाइये िेश हो जाइये उसके बाद हम सब
साथ में खाना खाएॅगे।"
"हम्म।" दीदी ने बस इतना ही कहा और मु झसे अलग हो गईं। उनकी ऑखें रोने से
हिा सू झ गई थी। मेरी खु द की ऑखें भी नम थी।

"िो दीदी, करुर्ा चाची और उनके बच्चे कब तक आएॅगे यहाॅ?" मैने पहलू बदलते
हुए पू छा दीदी से ।
"अरे हाॅ मैं तो भू ल ही गई थी राज।" ररतू दीदी सहसा चौंकते हुए बोली ं___"उन्होंने
कल िोन पर बताया था कक िो बच्चों को ले कर मामा जी के साथ आज यहाॅ शाम से
पहले लगभग तीन बजे तक हल्दीपु र के पहले जो नहर का पु ल है िहाॅ पहुॅच
जाएॅगी।"

"ओह ठीक है दीदी।" मैने अपनी कलाई पर बधी घडी की तरि दे खते हुए

625
कहा___"अभी तो ढाई बज रहे हैं। मतलब आधे घण्टे में िो लोग पु ल के पास पहुॅच
जाएॅगे। एक काम करता हूॅ मैं आपकी कजप्सी ले कर उन्हें ले ने जा रहा हूॅ।"
"नही ं नही ं।" ररतू दीदी झट से बोल पडी ं___"तू कही ं नही ं जाएगा। मैं हररया काका
को बोल दू ॅगी िो ले आएॅगे उनको।"

"आपको नही ं लगता दीदी कक उन्हें ले ने हमें खु द जाना चाकहए?" मैने


कहा___"आकखर िो हमारी चाची हैं। हररया काका के भरोसे कैसे रह सकते हैं हम?"
"तो ठीक है राज।" दीदी ने कहा___"मैं खु द जा रही हूॅ उन्हें ले ने।"
"मैं ये कह रहा हूॅ दीदी कक हम दोनो साथ में उन्हें ले ने चलते हैं।" मैने
कहा___"प्ली़ि दीदी मान जाइये न।"

"अच्छा ठीक है चल।" दीदी के होठों पर उनकी खू बसू रत सी मु स्कान उभर


आई___"अपनी क़िद तो तु झे छोंडना है नही ं न।"
"हाॅ तो।" मैने भी इस बार इठलाते हुए कहा___"आपसे छोटा हूॅ तो इतनी क़िद तो
आपसे करूॅगा ही और आपको मेरी क़िद माननी ही पडे गी। हाॅ नही ं तो।"
"अरे तू ये तककया कलाम कब से करने लगा?" ररतू दीदी ने एकाएक ही चौंकते हुए
कहा___"ये तककया कलाम तो गुकडया(कनधी) का है न?"

"हाॅ दीदी।" मेरी ऑखों के सामने एकाएक ही कनधी का चे हरा घूम गया___"हर बात
में ये बोलना उसकी आदत बन चु की है और पता है बहुत लाडली हो गई है। अपनी
हर बात मनिा ले ती है िो।"
"हाॅ िो ऐसी ही थी।" ररतू दीदी कही ं खोई हुई सी ऩिर आईं, बोली___"कैसी है अब
िो?"

"सब कोई अच्छे से हैं दीदी।" मैने कहा___"माॅ गुकडया और अभय चाचा सब।"
"काश मैं उन्हें दे ख पाती राज।" दीदी के चे हरे पर पीडा के भाि भर आए___"गौरी
चाची और गुकडया से मुआफ़ी माॅग पाती मैं।"
"ओफ्फो दीदी।" मैने बु रा सा मुह बनाते हुए कहा__"ये सब आप क्ों कह रही हैं?
प्ली़ि ये सब आप अपने ़िहन से कनकाल दीकजए। अब इस बारे में आप खु द को
दु खी नही ं करें गी। अब चकलए िरना हम ले ट हो जाएॅगे जाने में।"

मेरी बाय सु न कर दीदी ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनके होठों पर अपनी उगली
रख कर उन्हें चु प करा कदया और उन्हें िेश होने के कलए कह कर मैं कमरे से बाहर
आ गया। बाहर आया तो मेरी ऩिर दरिाजे के एक साइड खडी नै ना बु आ पर पडी।
उनका चे हरा ऑसु ओ ं से तर था। शायद उन्होंने हमारी सारी बातें सु न ली थी। मु झे
दे खते ही उन्होंने जल्दी से अपनी साडी का एक छोर पकड कर अपने ऑसु ओ ं को

626
पोंछा। मैं उन्हें ये करते दे ख िही ं पर खडा हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.........《 48 》

अब तक,,,,,,,,

"अच्छा ठीक है चल।" दीदी के होठों पर उनकी खू बसू रत सी मु स्कान उभर


आई___"अपनी क़िद तो तु झे छोंडना है नही ं न।"
"हाॅ तो।" मैने भी इस बार इठलाते हुए कहा___"आपसे छोटा हूॅ तो इतनी क़िद तो
आपसे करूॅगा ही और आपको मेरी क़िद माननी ही पडे गी। हाॅ नही ं तो।"
"अरे तू ये तककया कलाम कब से करने लगा?" ररतू दीदी ने एकाएक ही चौंकते हुए
कहा___"ये तककया कलाम तो गुकडया(कनधी) का है न?"

"हाॅ दीदी।" मेरी ऑखों के सामने एकाएक ही कनधी का चे हरा घूम गया___"हर बात
में ये बोलना उसकी आदत बन चु की है और पता है बहुत लाडली हो गई है। अपनी
हर बात मनिा ले ती है िो।"
"हाॅ िो ऐसी ही थी।" ररतू दीदी कही ं खोई हुई सी ऩिर आईं, बोली___"कैसी है अब
िो?"

"सब कोई अच्छे से हैं दीदी।" मैने कहा___"माॅ गुकडया और अभय चाचा सब।"
"काश मैं उन्हें दे ख पाती राज।" दीदी के चे हरे पर पीडा के भाि भर आए___"गौरी
चाची और गुकडया से मुआफ़ी माॅग पाती मैं।"
"ओफ्फो दीदी।" मैने बु रा सा मुह बनाते हुए कहा__"ये सब आप क्ों कह रही हैं?
प्ली़ि ये सब आप अपने ़िहन से कनकाल दीकजए। अब इस बारे में आप खु द को
दु खी नही ं करें गी। अब चकलए िरना हम ले ट हो जाएॅगे जाने में।"

मेरी बाय सु न कर दीदी ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनके होठों पर अपनी उगली
रख कर उन्हें चु प करा कदया और उन्हें िेश होने के कलए कह कर मैं कमरे से बाहर
आ गया। बाहर आया तो मेरी ऩिर दरिाजे के एक साइड खडी नै ना बु आ पर पडी।
उनका चे हरा ऑसु ओ ं से तर था। शायद उन्होंने हमारी सारी बातें सु न ली थी। मु झे
दे खते ही उन्होंने जल्दी से अपनी साडी का एक छोर पकड कर अपने ऑसु ओ ं को

627
पोंछा। मैं उन्हें ये करते दे ख िही ं पर खडा हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

किराज के कमरे से जाते ही ररतू ने अपने कजस्म से पु कलस की िदी कनकाली और एक


टाॅिे ल ले कर बाॅथरूम में घुस गई। उसके कसर पर जो चोंट लगी थी िो बहुत ज्यादा
ददग कर रही थी। ककन्तु उसने अपने उस ददग को बडी मु ल्किल से जज़्ब ककया हुआ
था। खू न तो ररसा था ककन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल कनकाल कर उसे पहले ही साि
कर कलया था। चोंट इतनी भी गहरी नही ं थी कजससे बात गंभीर होती। जीप के ककनारे
पर लगा लोहे का पाइप उसके कसर के ककनारे िाले भाग के थोडा सा ऊपर लगा था।
उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने कसर से ररस रहे खू न को रुमाल से
साि ककया था। उसके बाद उसने कसर पर िापस पीकैप पहन ली थी कजससे चोंट से
ररसा हुआ खू न और चोंट कदखनी बं द हो गई थी। िो नही ं चाहती थी कक उसको लगी
ककसी भी प्रकार की चोंट िामग हाउस में ककसी को भी ऩिर आए या पता चले ।

बाथरूम में ररतू ने खु द को िेश ककया और किर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक
नई िदी पहनी और किर पीकैप लगा कर खु द को पू री तरह तै यार ककया। आलमारी
से उसने एक ददग की टै बले ट ली और िही ं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने
उस टै बले ट को खाया। उसके बाद िो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायकनं ग हाल में इस िक्त खाना खाने के कलए कसिग तीन ही लोग थे । किराज,
आशा, और ररतू । ररतू के आने के बाद पिन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा।
तीनों ने बडे आराम से खाना खाया। बाॅकक सब अपने अपने कमरे में थे । कुछ ही
दे र में तीनों ने खाना खा कलया।

"तू क्ा किर से ड्यूटी पर जा रही है ररतू ?" आशा दीदी ने पू छा___"मैने तो सोचा था
कक हम सब यहाॅ गप्पें लडाएं गे। मगर अब जबकक तू जा रही है तो किर मैं क्ा
करूॅगी इसके कसिा कक कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ़िरूरत नही ं है आशा।" ररतू दीदी ने कहा___"शाम को तु म


सबको राज के साथ मुम्बई के कलए कनकलना है। इस कलए सामान की पै ककंग करके
रे डी रहना।"
"क्ाऽऽ???" आशा दीदी बु री तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से
जाएॅगे???"

ररतू दीदी की बात सु नकर मैं भी बु री तरह चौंक पडा था। मैं तो कुछ और ही सोचे

628
हुए था। ररतू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के कलए कहने िाला था
ताकक अपनी सभी कटकटें कैंकसल करिा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे कहला
कर रख कदया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थी ं___"तु म लोगों का यहाॅ से सु रकक्षत मुम्बई
कनकलना ़िरूरी है। क्ोंकक आने िाला हर पल एक नये खतरे को अपने साथ ले कर
आ रहा है। तु म सबके यहाॅ रहते हुए ककसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है।
इस कलए मैं चाहती हूॅ कक तु म सब यहाॅ से मु म्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है ररतू ।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता दे ती हूॅ इस बारे
में।"
"ठीक है ।" ररतू दीदी ने कहा___"पिन और राज के उस दोस्त को भी बता दे ना।
चल राज।"

अं कतम िाक् मुझे दे ख कर कहने के साथ ही ररतू दीदी कुसी से उठ कर बाहर की


तरि चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बु झे मन से चल कदया। बाहर आकर दीदी
अपनी कजप्सी की तरि बढ गईं। कजप्सी की डर ाइकिं ग शीट पर बै ठ कर दीदी ने मु झे
भी साथ में बै ठने को कहा तो मैं भी चु पचाप बै ठ गया। मेरे बै ठते ही दीदी ने कजप्सी
मेन गेट की तरि दौडा कदया।

"काका, यहाॅ सबका खयाल रखना।" लोहे िाले गेट के पास रुक कर दीदी ने
हररया काका से कहा___"हम आते है कुछ दे र में।"
"किकर ना करो कबकटया।" हररया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू
न होई।"

हररया काका की बात सु न कर दीदी मु स्कुराई और किर कजप्सी को आगे बढा कदया।
मैं उतरा हुआ चे हरा कलये दू सरी तरि दे ख रहा था। सच कहूॅ तो मु झे दीदी का
आशा दीदी से ये कहना कक िो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी
कबलकुल अच्छा नही ं लगा था।

"क्ा हुआ मेरा भाई नारा़ि है मुझसे ?" सहसा ररतू दीदी ने मेरी तरि दे ख कर कहा
था। उनकी ये बात सु न कर मैने उनकी तरि एक ऩिर दे खा और किर कबना कुछ
बोले किर से दू सरी तरि दे खने लगा।

"अपने से दू र तो मैं भी तु झे नही ं जाने दे ना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस
ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कक मु झे ये सब करना पड रहा है। मगर मैं ये
नही ं कह रही राज कक इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नही ं नही ं बल्कि हम दोनो साथ

629
साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरि एक झटके से दे खा। िो मुझे दे ख कर


मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को दे ख कर मेरी सारी नारा़िगी दू र हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने किर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खे ल में काम करें गे।
मगर....
"मगर क्ा दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कक तू अभी इन सबको ले कर मुम्बई सु रकक्षत पहुॅच जा।" दीदी ने
कहा___"जब ये सब िहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सु रक्षा की कचं ता से हम दोनो ही
मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तु म िहाॅ से िापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली
से किर इस खे ल को अं जाम तक पहुॅचाएॅगे ।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतं त्रतापू िगक ये जंग तभी लड सकेंगे
जब हमारी ये सारी कम़िोररयाॅ हमारे दु श्मन की ऩिर से या पहुॅच से बहुत दू र हो
जाएॅगी। क्ोंकक हमारे दु श्मन ने अगर हमारी एक भी कम़िोरी को नु कसान
पहुॅचा कदया तो िो नु कसान हम हकगग़ि भी सह नही ं सकेंगे।"

"कबलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" ररतू दीदी ने मु स्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही
हूॅ। मैं चाहती हूॅ कक तू हमारी इन सारी कम़िोररयों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर
उन्हें सु रकक्षत कर दे । उसके बाद तू िापस यहाॅ आ जाना, उस सू रत में हम दोनो
बहन भाई खु ल कर और तसल्ली से अपनी जं ग लड सकेंगे।"

"मैं समझता था कक ये जंग कसिग मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर
कहा___"और इस जंग को अकेले ही मु झे इसके अं जाम तक पहुॅचाना है। मगर
आपसे कमल कर ये पता चला कक इस जंग में मैं अकेला नही ं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे
हर क़दम में मेरा साथ दे ने के कलए मेरी सबसे अ़िी़ि दीदी भी तै यार बै ठी हैं। ये मेरे
कलए ऐसी खु शी है दीदी कजसका मैं बयान नही ं कर सकता।"

"चल अब तू किर से न मु झे इमोश्नल कर दे ना।" ररतू दीदी ने हौले से हसते हुए


कहा___"िरना मैं किर रोने लग जाऊगी।"
"नही ं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नही ं। आपकी ऑखों में ऑसू दे खते
ही मेरे अं दर कुछ टू टने सा लगता है । कजससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड भाई।" ररतू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं किर सहसा
बे चैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तु झसे कुछ पू छूॅ?"
"ये क्ा बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरि दे खा__"कोई बात पू छने के कलए भला

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आपको मु झसे इजा़ित माॅगने की क्ा ़िरूरत है?"

"अच्छा नही ं माॅगती इजा़ित।" दीदी किर मु स्कुराई, बोली___"मैं तु झसे जो कुछ भी
पू छना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जिाब दे गा न?"
"हाॅ कबलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सिाल का सच सच जिाब दू ॅगा।
पू कछए क्ा पू छना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" ररतू दीदी ने सामने रास्ते की तरि दे खते हुए
कहा___"और उन्ही ं कई सारी बातों में कई सारे सिाल भी हैं कजनके बारे में मुझे
जानना है। तू तो जानता है कक मैं एक पु कलस ऑकिसर भी हूॅ इस कलए हर सिालों
का सही सही जिाब पाना मेरी इस पु कलकसया कितरत में भी शाकमल है।"

"कोई बात नही ं दीदी।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है


मुझसे आप बे कझझक पू ॅछ सकती हैं। अगर आपके सिालों के जिाब मेरे पास होंगे
तो ़िरूर मैं आपके हर सिाल का जिाब दू ॅगा।"
"सबसे पहला सिाल तो यही है कक तू मुम्बई में कहाॅ और ककस हाल में गौरी चाची
और गुकडया को साथ कलए रहता है?" ररतू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको
भी अपने साथ ही कलए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जाय़ि ही है कक इतने सारे लोगों
को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सु रकक्षत रखे गा?"

"बडे पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कक
मैं मुम्बई में कही ं ककसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने िाला काम करता होऊगा।
जबकक मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पै रों तले से ये ़िमीन
गायब हो जाएगी।"

"क्ा मतलब???" ररतू दीदी बु री तरह चौंक कर मेरी तरि दे खने लगी थी।
"मतलब साि है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बडा कोई नही ं होता
दु कनयाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कक मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खडे खडे ही पू रा
हल्दीपु र गाॅि खरीद लू ॅ। कजस मामूली सी प्रापटी को पाने के कलए बडे पापा ने ये
सब ककया था न उस प्रापटी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्ा कह रहा है राज?" ररतू दीदी बु री तरह उछल पडी थी। ब्रे क पै डल पर
लगभग िो खडी ही हो गई थी। कजसके चलते कजप्सी के टायर ़िोर से चीखते हुए
सडक पर ल्कथथर हो गए थे । मेरी तरि आश्चयग चककत ऩिरों से दे खते हुए बोली ं___"ते रे
पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू ....तू ने कही ं कोई ग़लत काम करके तो
नही ं ये दौलत अकजगत की है??"

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"हाहाहाहा अरे नही ं दीदी।" मैने हसते हुए कहा___"क्ा आपको लगता है कक
आपका ये भाई दौलत पाने के कलए कोई ग़लत काम करे गा?"
"लगता तो नही ं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी िैली हुई थी, बोली___"मगर
सिाल तो खडा होता ही है कक इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ कमल जाना कैसे
सं भि हो सकता है?"

"इस दु कनयाॅ में सब कुछ सं भि है दीदी।" मै ने कहा___"और इसका जीता जागता


प्रमार् मैं खु द हूॅ।"
"ले ककन कैसे मेरे भाई??" ररतू दीदी चककत भाि से बोल पडी ं____"ये असं भि सं भि
कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत खु शी की बात है।"

मैने दीदी को सं क्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कक कैसे एक अरबपकत
इं सान ने मुझे अपना बे टा बना कलया और अपनी सारी सं पकि मेरे नाम कर दी। मैने
उन्हें बताया कक मैं उसी अरबपकत आदमी की मल्टीने शनल कंपनी में नौकरी करता
था। मेरे काम और मेरे ने चर से प्रभाकित होकर िो आदमी एक कदन मेरा मसीहा बन
गया।
मैने उन्हें बताया कक आज मैं अपने पू रे पररिार के साथ उसी आदमी के अलीशान
बगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सु न कर दीदी आश्चयगचककत रह गईं थी।
कािी दे र तक उनके मुख से कोई बोल न िूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" किर दीदी ने खु शी से िूली न समाते हुए


कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तु झे ते रे
अच्छे कमों का िल कदया है। उससे ते री दु ख तक़लीफ़ें नही ं दे खी गई और इसी कलए
उसने उस आदमी को ते रा मसीहा बना कर भे ज कदया ते रे पास। हाॅ भाई, यही सच
है। मैं बहुत खु श हूॅ ते रे कलए राज।"

"अब तो आप इस बात से बे किक्र हैं न कक इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखू ॅगा?"
मैने मु स्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने कजप्सी को आगे बढाते हुए कहा__"अब मु झे इन लोगों की कोई
कचन्ता नही ं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्ा जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढाया।

"मैं नही ं जानती राज कक जो मैं तु झसे कहने िाली हूॅ या जानने िाली हूॅ उसका
तु झे पता है भी या उसका तु झसे कोई ताल्लुक है भी कक नही ं।" दीदी ने
कहा___"मगर किर भी इस कलए कह रही हूॅ कक तू मेरा भाई है और तु झे भी जानने
का हक़ है कक घर पररिार के बीच या ते री बहन के साथ क्ा क्ा हुआ?"

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"जी ककहए न दीदी।" मैने कहा___"आप बे कझझक अपनी बात मुझसे शे यर कर
सकती हैं।"
"मैने पु कलस की नौकरी अपने शौक के कलए तो की ही थी राज।" ररतू दीदी ने जैसे
कहना शु रू ककया___"मगर कदल में ये भी हसरत थी कक मैं ये नौकरी पू री ईमानदारी
के साथ करूॅगी। खै र, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कक मैं
चा़िग सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता
लगाऊगी कक उनका एर्क्ीडे न्ट िास्ति में एक हादसा ही था या किर ककसी की सोची
समझी चाल थी? चा़िग सम्हालते ही मैने ऐसा ककया भी, मगर पु कलस ररकाडग में मुझे
कही ं कोई ऐसा सु राग़ या क्लू तक नही ं कमला कजससे मु झे सं देह भी हो सके कक
उनका एर्क्ीडे न्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये
कक मैने दादा दादी िाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक
हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा कलया। ये अलग बात थी कक कदल में ये
मलाल अब भी है कक मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद ररतू दीदी कुछ पल के कलए रुकी और एक ऩिर मेरे चे हरे
की तरि दे खने के बाद किर से सामने की तरि दे खने लगी ं।

"उसके बाद किर डै ड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगी ं।" ररतू दीदी ने गहरी
साॅस ले ने के बाद किर से कहना शु रू ककया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब
घटना हुई िो ये थी कक कोई किदे शी ब्यल्कक्त उन्हें करोंडो का चू ना लगा कर कही ं
गायब हो गया। अखबार में इस बात की खबर भी छपी थी। कजसके चलते डै ड की
इज्ज़ित पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कक डै ड ने उस किदे शी की खोज में धरती
आसमान एक कर कदया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। खै र, इस अजीब
घटना के बाद डै ड के साथ किर से एक घटना घटी। उनकी िैक्टर ी में आग लग गई।
िैक्टर ी में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करिाई थी और ररपोटग भी
अपने तरीके से ही बनिाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस कलए ककया था ताकक उनकी
रे पु टेशन पर किर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकक धब्बा लगने से िो तब भी नही ं
रोंक पाए थे । मैने जब दे खा कक कोई नतीजा ही नही ं कनकला है तो मैने िैक्टर ी की
जाॅच करने का खु द ही बीडा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की कसिग दो
ही िजहें थी। पहला ये जानना कक ऐसा कौन है कजसने डै ड की िैक्टर ी में आग लगाई?
दू सरा ये कक डै ड के हुए उस भारी नु कसान की भरपाई करना। ़िाकहर सी बात है कक
अगर मुजररम का पता चल जाता तो उससे इस नु कसान की भरपाई कर ली जाती।
मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी िाली बात ये हुई थी कक
जब मैने खु द जाॅच करने के कलए केस ररओपन करिाया तब गुनगुन शहर का सारा
पु कलस महकमा ही बदल कदया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ

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में ककसी को कुछ न आया था। दू सरी हैरानी की बात ये कक लाख कोकशशों के बाद
भी उस केस में ये नही ं पता चल सका कक िैक्टर ी में आग आकखर ककसने लगाई थी?
हलाॅकक इसमें एक कम़िोरी ये थी कक डै ड ने पू री ईमानदारी से कोऑपरे ट नही ं
ककया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद ररतू दीदी चु प हो गईं। मैने सोचा शायद िो कुछ और
बोलें गी मगर ऐसा न हुआ। उनकी ऩिरें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें ।" तभी उन्होंने किर से कहना शु रू ककया___"और ये


सब मैने तु झसे इस कलए शे यर ककया राज ताकक तू भी जान सके कक ये केस मेरी
नाकामी का भी कहस्सा हैं। कजन्हें मैं सु लझा नही ं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शु रू
हुए तब से मैने हिे ली के अं दर भी कान लगाना शु रू कर कदया था। उससे ज्यादा तो
नही ं मगर इतना ़िरूर सु ना मैने कक ते रा क़िक्र बार बार हिे ली के अं दर मेरे माॅम
डै ड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सु ना कक ये सब तु मने ककया है । मैं ये सु न
कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नही ं कदया कभी। क्ोंकक तब मेरे कदमाग़ में भी
यही बातें थी कक तू ये सब कर ही नही ं सकता। मगर ज्यादा कदनों तक मैं तु झे भी
ऩिरअं दा़ि नही ं कर पाई। क्ोंकक कही ं न कही ं मेरे भी कदमाग़ में ये बात आ ही गई
थी कक मेरे डै ड का अगर कोई सबसे ज्यादा बु रा करना चाहेगा तो िो कसिग तू ही था।
इस कलए मैंने उन सभी घटनाओं में तु झे जोडना शु रू ककया और किर मु झे भी ये
लगने लगा कक ते रा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"

ये सब कहने के बाद ररतू दीदी एकदम से चु प हो गईं। कजप्सी पु ल के पास पहुॅच


चु की थी। इस कलए कजप्सी रोंक कर ररतू दीदी मेरी तरि अजीब भाि से दे खने लगी
थी ं। जैसे मेरे चे हरे से ही समझ जाना चाहती हों कक सच्चाई क्ा है।

"मेरा ही तो इन सभी घटनाओं में ताल्लुक था दीदी।" मैने गहरी साॅस ले ते हुए जैसे
उनके ऊपर बम िोडा__"हाॅ दीदी। आपने कजन घटनाओं का क़िक्र ककया उन
सबका कताग धताग मैं ही तो था। िो किदे शी डीलर भी मैं ही था कजसने बडे पापा से िो
डील की और किर कबना कुछ बताए गायब हो गया था। उसके बाद उनकी िैक्टर ी में
आग भी मैने ही लगाई थी। कहने का मतलब ये कक बडे पापा के साथ जो कुछ भी
अभी तक बु रा हुआ है उसका कजम्मेदार कसिग मैं ही रहा हूॅ और आगे भी जो कुछ
उनके साथ बु रा होगा उसका भी कजम्मेदार मैं ही होऊगा।"

"क्ाऽऽऽ????" ररतू दीदी मेरी बात सु न कर बु री तरह उछल पडी थी ं, बोली___"नही ं


नही ं मैं नही ं मान सकती राज। भला तू ये सब कैसे कर सकता था? तू तो यहाॅ था ही
नही ं।"

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"आपके मानने या न मानने से सच्चाई बदल नही ं जाएगी दीदी।" मैने कहा___"और
हाॅ, आपको तो अभी ये भी नही ं पता कक िैक्टर ी के तहखाने में कुछ था भी या नही ं?"
"क्ा मतलब??" ररतू दीदी की ऑखें िैली___"िैक्टर ी के तहखाने में भला क्ा था
कजसकी बात कर रहा है तू ?"

"आपको क्ा लगता है दीदी?" मैने िीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आपके डै ड


इतने कम कमीने इं सान हैं? अरे नही ं दीदी, िो तो ऊचे द़िे के पापी हैं। कपडा मील
का ब्यापार ि िैक्टर ी तो महज कदखािा मात्र थी जबकक उनका असल कारोबार तो
डर ग्स अिीम चरस आकद का था। ककन्तु ये कारोबार चू ॅकक कानू न की ऩिर में ग़ैर
कानू नी होता है इस कलए बडे पापा इस कारोबार को सबकी ऩिरों से छु पा कर करते
थे । िैक्टर ी के अं दर मौजूद उस तहखाने में उनकी िही काली दु कनयाॅ का काला
कचिा मौजूद था कजसे मैने िैक्टर ी में टाइम बम लगाने से पहले ही गायब कर कदया था।
मैं नही ं चाहता था कक उनका ये कारनामा कानू न की ऩिर में आए। मैं तो अपने
हाॅथों से उन्हें हर स़िा दे ना चाहता हूॅ। कानू न की चपे ट में आने से भला मैं कैसे
उन्हें अपने तरीके से स़िा दे सकता था? इस कलए मैने तहखाने से उनका िो सारा
़िखीरा गायब कर कदया जो ग़ैर कानू नी था।"

मेरी ये बातें सु न कर ररतू दीदी की ऑखें हैरत से िटी की िटी रह गई थी। उनके
चे हरे पर हैरत और अकिश्वास का सागर मानो कहलोरें ले रहा था।

"क्ा सच में इस सबमें ते रा ही हाॅथ था राज?" ररतू दीदी ने अकिश्वास भरे लहजे से
कहा___"मगर ये सब कैसे मुमककन हो सकता है मेरे भाई? ये सब कैसे कर कलया
तू ने? बं द िैक्टर ी के अं दर और िो भी तहखाने के अं दर पहुॅचना इतनी आसान बात
तो न थी। उस सू रत में तो कबलकुल भी नही ं जबकक तू कभी िैक्टर ी गया ही नही था।
किर कैसे ये सब कर कलया तू ने?"

"मन में सच्ची लगन हो तो सब कुछ मुमककन हो जाता है दीदी।" मैने कहा___"ऊपर
िाला भी किर आपके कलए राहें आसान कर दे ता है। ये तो मुझे पता ही था कक बडे
पापा की शहर में कही ं पर कपडा मील की िैक्टर ी है। पर चू ॅकक मैं कभी िैक्टर ी गया
नही ं था इस कलए मैने िैक्टर ी के सं बंध में जानकारी हाॅकसल करने के कलए अपने
दोस्त पिन को लगाया। उसने मु झे िैक्टर ी के सं बंध में सारी बातें बताई। उसके बाद
मैने प्लान बनाया और इस प्लान में गुकडया(कनधी) ने भी मेरा साथ दे ने के कलए
़िबरदस्ती मेरी िाइि का रोल ककया। उसके बाद मुझे पिन ने बताया कक बडे पापा
का एक कबजने स पाटग नर है कजसका नाम अरकिं द सर्क्े ना है, इतना ही नही ं इन दोनो
पाटग नसग के बीच बहुत ही गहरे सं बंध हैं। पिन ने जब गहरे सं बंधों की बात की तो मैं

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समझ न पाया था कक ये कैसे सं बंधों की बात कर रहा है। मेरे पू छने पर उसने बताया
कक बडे पापा और सर्क्े ना आपस में एक दू सरे की बीकियों के साथ सब कुछ कर ले ते
हैं। ये बात जान कर मेरे पै रों तले से ़िमीन कनकल गई। मैने सोचा कक बडे पापा भला
ऐसा कैसे कर सकते हैं?? मगर मैं जानता था कक ऐसे ब्यल्कक्त से भला अच्छे कमग की
उम्मीद कैसे की जा सकती है? खै र, पिन से अरकिं द सर्क्े ना के बारे में सु नकर मैने
पिन से कहा कक सर्क्े ना के ल्कखलाफ़ कोई ऐसा सबू त हाॅकसल करे कजसके आधार
पर िो कुछ भी करने को तै यार हो जाए। मेरे कहने पर पिन ने िै सा ही ककया और
किर एक कदन पिन ने मु झे बताया कक उसने सर्क्े ना के घर से कुछ िोटोग्राफ्स और
िीकडयो़ि हाॅकसल ककये हैं। कजनमें सर्क्े ना बे हद आपकिजनक ल्कथथत में है। मैने
पिन से उन िोटु ओ ं को कुररयर द्वारा मगिा कलया। इसके बाद मैने सर्क्े ना को ते ल
की धार पर ले ने में ़िरा भी दे री न की। कहने का मतलब ये कक मैने उन िोटोग्राफ्स
के आधार पर सर्क्े ना को इतना मजबू र कर कदया कक िो कुछ भी कर सकता था।
सबसे पहले मैने उससे बडे पापा के कारोबार की सारी जानकारी ली उसके बाद मैने
उससे बडे पापा की और भी बहुत सारी जानकारी हाॅकसल की। सर्क्े ना दरअसल
थोडा िट् टू ककस्म का आदमी था। उसे इस बात का पता चल गया था कक उसका
पाटग नर उसकी ग़ैर जानकारी में ग़ैर कानू नी धं धा भी करता है और उसके कई ऐसे
खतरनाॅक लोगों से भी सं बंध हैं कजनका ररकाडग कानू न की िाइलों में िषों से दबा
पडा है।"

मैं इतना कुछ कहने के बाद कुछ पल के कलए रुका और किर कहना शु रू
ककया___"सर्क्े ना को डर था कक कही ं िो ककसी कदन कानू न की चपे ट में न आ जाए।
इस कलए िो बडे पापा से पाटग नरकशप तोडना चाहता था मगर िो ऐसा कर नही ं पा
रहा था। उसे ये भी डर था कक कही ं उसके पाटग नर को उस पर शक न हो जाए और
उसे भी इस धंधे में न लपे ट लें । ये बात मुझे तब पता चली थी जब मैं खु द सर्क्े ना से
कमला था। सर्क्े ना से मैने एक सौदा ककया। िो सौदा यही था कक मैं उसे और उसकी
िैकमली को सु रकक्षत किदे श भे जने का बं दोबस्त कर दू ॅगा, इसके बदले उसे िो
करना पडे गा जो मैं कहूॅगा। मैने उसे अपना सारा प्लान समझाया। सारी बात सु न
कर पहले तो िो मेरी बात मानने से इं कार करने लगा। उसे डर था कक कही ं इस
सबमें उसकी जान पर न बन आए। पर मैने उसे अच्छी तरह समझाया और उसे
इसके कलए रा़िी ककया।"

"इसका मतलब िैक्टर ी में लगी आग तू ने सर्क्े ना के द्वारा लगिाई थी?" सहसा ररतू
दीदी मेरी बात के बीच में ही बोल पडी___"मगर जैसा कक तू ने बताया कक तहखाने में
डै ड का ग़ैर कानू नी ़िखीरा मौजूद था तो उसे कैसे गायब करिाया तू ने? क्ा उसे भी
सर्क्े ना के द्वारा ही गायब ककया?"

636
"सर्क्े ना के साथ पिन था।" मैने बताया___"सर्क्े ना को तहखाने के लाॅक का
पासिडग पता था। उसका काम था तहखाने का लाॅक खोल कर तहखाने में टाइम
बम लगाना। पिन का काम कसिग यही था कक तहखाने में मौजूद उस ग़ैर कानू नी
़िखीरे को तहखाने से कनकाल कर अपने कब्जे में ले ले । प्लान के अनु सार पिन उस
सारे सामान को पु कलस हेडक्वाटग र में ककमश्नर के हिाले कर दे गा। पु कलस ककमश्नर को
ऊपर से आदे श था कक उस सामान को ब्यल्कक्तगत तौर पर रखे और जब उस सामान
की ़िरूरत पडे तो उसे उसी तरह मेरे हिाले कर दें जैसे िो सामान पिन के द्वारा
उन्हें सौंपा गया था।"

"ये तू क्ा कह रहा है राज?" ररतू ने बु री तरह चौंकते हुए कहा___"भला पु कलस का
ककमश्नर ऐसा कैसे कर सकता है? दू सरी बात ऊपर से उसे ऐसा करने का आदे श
कैसे कमल सकता है? ये तो बडी ही अकिश्वसनीय बात है?"

"यही तो म़िेदार बात है दीदी।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"कजस शख्स ने मु झे अपना


बे टा मान कर अपनी अरबों की सं पकि मेरे नाम की उसका नाम जगदीश ओबराय
है। जगदीश ओबराय एक बहुत बडा कबजने स टाइकून है और उसका सं बंध ऐसे ऐसे
लोगों से है कजसके बारे में आदमी सोच भी नही ं सकता। उसी के कहने पर ऊपर से
यहाॅ ककमश्नर के पास िो आदे श आया था और इसके पहले भी सारा पु कलस
महकमा भी बदला गया था। सारा पु कलस महकमा बदलने का कसिग यही मकसद था
कक बडे पापा इतनी आसानी से पु कलस महकमें में कोई सें ध न लगा सकें। पहले िाले
उनके सारे पु कलस के कने क्शन खत्म करना भी ़िरूरी था। इसी कलए ऐसा ककया
गया था। ये अलग बात है कक आज भी बडे पापा और आपके कलए ये सारी बातें रहस्य
बनी हुई थी।"

"ओह माई गाड।" ररतू दीदी की ऑखें आश्चयग से िटी पडी थी, बोली___"कोई सोच
भी नही ं सकता कक तू ने इतना बडा कारनामा अं जाम कदया होगा। मु झे तो अभी भी
यकीन नही ं हो रहा है कक ये सब तू ने ककया है। खै र, जैसा कक तू ने बताया कक डै ड का
सारा ग़ैर कानू नी सामान आज भी पु कलस ककमश्नर के पास सु रकक्षत मौजूद है, और िो
उस सामान को ते रे हिाले तभी करें गे जब तु झे उस सामान की ़िरूरत होगी। मेरा
सिाल ये है कक उस सामान के द्वारा आने िाले समय में क्ा करने िाला है तू ?"

"आपके इस सिाल का जिाब बहुत ही सीधा और साि है दीदी।" मैने सपाट भाि
से कहा___"मैं चाहूॅ तो आज यही ं पर खडे खडे बडे पापा को कानू न की ऐसी चपे ट
में ला सकता हूॅ जहाॅ से िो सात जन्मों में भी उबर नही ं पाएॅगे। मगर मैं ये काम
इतना जल्दी करूॅगा नही ं। क्ोंकक एक ही बार में मैं उन्हें ऐसा झटका नही ं दे ना

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चाहता कक िो उस झटके से एक ही बार में खाक़ में कमल जाएॅ। बल्कि मैं तो उन्हें
थोडा थोडा करके झटका दे ना चाहता हूॅ और उन्हें ये मौका भी दे ना चाहता हूॅ कक
िो अपनी तरि से कजतनी भी कोकशश करनी हो कर लें अपने बचाि के कलए।"

"ओह तो ये बात है।" ररतू दीदी को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, बोली___"डै ड
का िो सारा ग़ैर कानू नी सामान ते रे कलए ककसी तु रुप के इक्के से कम नही ं है। खै र,
तो अब आगे का क्ा प्लान है ते रा?"
"अभी का तो यही प्लान है दीदी कक पहले इन सब लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर इन
सबको सु रकक्षत कर दू ॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"उसके बाद मैं यहाॅ िापस
आऊगा और आपके साथ कमल कर कुछ अलग और अनोखा करने की कोकशश
करूॅगा।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कक तभी िहाॅ पर एक टै र्क्ी आकर रुकी। हम दोनो


का ध्यान उस तरि गया। कुछ ही पलों में टै र्क्ी से करुर्ा चाची, कदव्या, शगुन और
हेमराज मामा उतरे । मैं और दीदी भी कजप्सी से उतर कर उनके पास गए। टै र्क्ी
िाले को उसका पै सा दे ने के बाद िो सब हमारी तरि मुडे। करुर्ा चाची की ऩिर
जैसे ही मुझ पर पडी तो उनकी ऑखों में ऑसू तै रते कदखाई दे ने लगे। िो ते ़िी से मेरी
तरि बढी ं और किर मु झे अपने सीने से लगा कलया। मैं भी अपनी चाची से कमल कर
थोडा भािु क सा हो गया ककन्तु किर मैने अपने जज़्बातों को काबू ककया और किर
उनसे अलग हो गया। मेरी ऩिर कदव्या पर पडी तो िो मुझे ही दे ख रही थी। मैने
अपनी बाहें िैला दी तो िो एकदम से मेरी तरि दौड पडी और मु झसे कलपट गई।
उससे कमलने के बाद मैने शगुन को प्यार कदया।

थोडी दे र सबसे कमलने के बाद मैने उन्हें कजप्सी में बै ठने को कहा तो िो सब कजप्सी में
बै ठ गए। सबके बै ठते ही दीदी ने कजप्सी को िापस मोड कर आगे बढा कदया। मैं दीदी
के साथ आगे ही बै ठा था बाॅकी सब कपछली शीट् स पर बै ठे थे । कुछ ही समय में हम
सब िामग हाउस पहुॅच गए। िामग हाउस के अं दर जाकर करुर्ा चाची नै ना बु आ से
कमली और पिन की माॅ बहन आकद से । उसके बाद नै ना बु आ ने चाची और मामा
जी से खाने का पू ॅछा तो िो बोली ं कक िो घर से खा पी कर ही चले थे । खै र, ले डीज
पाटी एक जगह बै ठ कर बातों में लग गईं जबकक मैं अपने दोस्त पिन और आकदत्य
के पास आ गया। शाम को हमे मुम्बई के कलए कनकलना भी था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

प्रकतमा अपने कमरे के अटै च बाथरूम से बाहर कनकली। सामने बे ड पर पू री तरह से


कनिग स्त्र पडे कशिा की ऩिर जैसे ही अपनी माॅ पर पडी तो उसके मुझ से आह
कनकल गई। प्रकतमा के गोरे सफ्फाक बदन पर इस िक्त मात्र एक कपं क कलर का

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टािे ल था। कजसे िह अपनी भारी भरकम छाकतयों को आधे से ढके थी तथा नीचे
उसकी मोटी कचकनी और गोरी जाघों तक को ढका हुआ था। जब से ररतू हिे ली से
गई थी तब से दोनो माॅ बे टा कमरे में िासना और हिस के खे ल में डूबे हुए थे ।
प्रकतमा खु श थी कक उसे बे टे के रूप में एक जिान मदग कमल गया था जो उसके कजस्म
की गमी को शान्त करने में कोई कसर नही ं छोंडेगा। अजय कसं ह अब जिानी के दौर
से बाहर कनकल चु का था। उसके साथ से र्क् करने में प्रकतमा को म़िा तो आता था
ककन्तु पू र्ग सं तुकष्ट नही ं कमलती थी।

कशिा, जो कक अजय कसं ह की ही काबग न काॅपी था। गुर् और शक्ल से िो अपने बाप
पर ही गया था। जब से उसने जिानी की दे हली़ि पर क़दम रखा था तब से उसकी
ऩिरें घर की लडककयों और औरतों पर ही जमी रहती थी। िो उन सभी के कजस्मों
को भोगने की लालसा में रात कदन लगा रहता था। मगर डर ि भय की िजह से िो
कभी ज्यादा आगे बढ नही ं पाया था। अपनी माॅ पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था।
अर्क्र िो अपने बाप को प्रकतमा को पे लते हुए दे खा करता था। प्रकतमा के भारी
भरकम बू ब्स और गदराया हुआ कजस्म उसके अं दर बु री तरह िासना की आग
भडका दे ता था।

ककन्तु उसकी चाहत आज िषों बाद पू री हो चु की थी। कजस औरत पर उसका सबसे
ज्यादा क्रश था उस औरत के कजस्म को िह भोग रहा था। िो अपने बाप का शु क्र
गु़िार था कक उसने उसे ये अनमोल तोहिा कदया था। ररतू जैसे ही हिे ली से कनकली
थी िै से ही कशिा और प्रकतमा एक दू सरे की बाहों में समा गए थे । हिे ली में उन दोनो
के अलािा दू सरा कोई न था। नौकर चाकर दोपहर में अपने अपने कमरों में चले जाते
थे । इस कलए इस तन्हाई का भरपू र िायदा उठाया था इन दोनो ने ।

कशिा को याद नही ं कक पहले कदन से अब तक िो ककतनी बार अपनी माॅ को भोग
चु का था। उसे तो बस इतना समझ आ रहा था कक उसका अभी कदल नही ं भरा है। ये
सोच कर िो किर से अपनी माॅ पर चढ जाता और अलग अलग पोजीशन में अपनी
माॅ को रौंदता रहता। प्रकतमा को भी जिान मदग का ये जोश बहुत म़िा दे रहा था।
इस कलए िो खु द भी उसी जोश से अपने बे टे का पू री तरह से साथ दे ती थी।

"ऐसे क्ा दे ख रहे हो कशि?" अपने सामने प्रकतमा अपने बे टे को ऐसे ही सं बोकधत
करने लगी थी, बोली___"क्ा कदल नही ं भरा अभी?"
"हाॅ मेरी रं डी माॅ।" कशिा ने अपने लं ड को ़िोर से मसलते हुए कहा___"तु मको
कजतना भी पे लूॅ उतना ही लगता है कक अभी और पे लूॅ। कसम से आज तक कजतनी
लडककयों को अपने नीचे सु लाया है उन सभी में से तु म सबसे ऊपर हो। तु म्हारे जैसा
कजस्म और तु म्हारे जैसी अदा ककसी और में नही ं दे खी मैने।"

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"कैसे दे खते मेरे कशि।" प्रकतमा ने बडी अदा से कशिा के पास आते हुए कहा___"िो
सब लडककयाॅ तु म्हारी माॅ तो नही ं थी न? िो सब तु म्हें एक माॅ कजतना प्यार और
समपग र् भाि कैसे कर सकती थी ं?"
"हाॅ ये बात तो सच कही तु मने ।" कशिा ने प्रकतमा के टािे ल के छोर को पकड कर
अपनी तरि ़िोर से खी ंचा तो टािे ल प्रकतमा के बदन से अलग होता चला गया और
प्रकतमा भी उसी झोंक में कशिा के ऊपर आ गई। जबकक अपने ऊपर प्रकतमा के आते
ही कशिा ने कहा___"तु म एक औरत के साथ साथ मेरी माॅ भी तो हो। इसी कलए
इतना प्यार और समपग र् है तु ममें। तभी तो मेरा कदल बार बार यही कहता है कक एक
बार और हो जाए।"

"तो करो न कशि।" प्रकतमा ने कहने के साथ ही झुक कर कशिा के होठों को चू म


कलया___"रोंका ककसने है तु म्हें? मैं तो खु द भी यही चाहती हूॅ कक तु म मुझे इस हिे ली
के हर ़िरे पर ले जाकर बु री तरह से प्यार करो। मु झे ऐसे ऐसे तरीके से पे लो कक पू री
हिे ली में मेरी चीखें गूॅजने लगें।"

"उफ्फ ककतना किल्ड पसं द है तु म्हें?" कशिा ने प्रकतमा की एक छाती को बु री तरह


मसल कदया, बोला___"तु म तो िो ची़ि हो कडयर मदर कक तु म्हें एक अकेला मदग सं तुष्ट
नही ं कर सकता। तभी तो डै ड तु म्हारे कलए अपने साथ साथ एक और मदग को ले कर
आते थे । क्ा नाम था उसका? अरे हाॅ सर्क्े ना.... हाय रे िो साला कैसे कैसे मेरी
इस राॅड माॅम को पे लता रहा होगा।"

"क्ों जलन हो रही है तु म्हें??" प्रकतमा ने सहसा मु स्कुरा कर पू छा।


"जलन ककस बात की कडयर मदर?" कशिा ने कहा__"ये तो तु म्हारी ख्वाकहशों की बात
है। सबको अपनी ख्वाकहशें पू रा करना चाकहए। तु मने भी िही ककया, सो मु झे इसमें
जलने की क्ा ़िरूरत है?"

"मतलब मुझे अगर बाहर का कोई भी आदमी पे ले तो तु म्हें कोई परे शानी नही ं है??"
प्रकतमा ने कहा।
"जब डै ड को ही कोई परे शानी नही ं हुई तो मु झे क्ों होगी भला?" कशिा ने
कहा___"खै र छोंडो इन बातों को और आओ एक बार और घमासान पे लाई हो
जाए।"
"क्ों नही ं कशि।" प्रकतमा ने मु स्कुराते हुए कहा__"मु झे भी एक बार और करने की
इच्छा है।"

कहने के साथ ही प्रकतमा ने अपने एक हाॅथ को सरका कर नीचे कशिा के मुरझाए

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हुए लं ड को पकड कलया और उसे सहलाने लगी। इधर कशिा ने भी प्रकतमा की
छाकतयों को हाथों से पकड कर मसलने लगा। अभी ये सब ये दोनो कर ही रहे थे कक
बगल से एक स्टू ल पर रखे िोन की घंटी बज उठी। िोन के बज उठने से दोनो के ही
चे हरे पर अकप्रय भाि उभरे ।

"हैलो।" िोन उठाते ही कशिा ने कहा।


".........।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्ाऽऽऽ???" कशिा अपने डै ड की बात सु न कर बु री तरह चौंका था।
".........।" उधर से किर कुछ कहा गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है डै ड?" कशिा के चे हरे पर परे शानी के भाि उभर आए,
बोला___"कही ं ऐसा तो नही ं कक दीदी को उसका पता चल गया हो और किर उन्होंने
उसे अपने रास्ते से हटा कदया हो? अगर ऐसा कर भी कदया होगा तो हम उन पर शक
तो कर सकते हैं मगर उनके सामने उन पर इस बात का इल्जाम नही ं लगा सकते ।"

"..........।" उधर से कुछ दे र तक कहा गया।


"ऐसा कब तक चले गा डै ड?" कशिा के चे हरे पर सहसा गुस्से के भाि आए___"हर
बार हमारे हाथ नाकामी ही लगती है। हमें अब खु द मैदान में उतरना पडे गा। इस
तरह तो हमारा एक एक आदमी लापता होता रहेगा और हम कुछ कर ही नही ं
पाएॅगे। इस कलए हमें सीररयसली ये सब खु द ही करना पडे गा। ररतू दीदी की
गकतकिकधयाॅ िष्ट समझ में आ रही हैं कक िो हमारे ल्कखलाफ़ हैं। अगर किराज से िो
कमल चु की हैं तो साि है कक उन्हें हमारे बारे में सब कुछ पता चल गया होगा और अब
िो उस कमीने किराज का साथ दे रही हैं। हाॅ डै ड, दीदी भले ही आपकी बे टी हैं
मगर बात जब अन्याय और जुमग की आएगी तो िो हमारा साथ नही ं दें गी। ये उनके
कैरे क्टर से साि पता चलता है।"

"......।" उधर से किर कुछ कहा गया।


"यस डै ड।" कशिा कह उठा___"अब तो साि साि और खु ल कर खे ल होना
चाकहए।"
".........।" उधर से अजय कसं ह ने कुछ कहा।
"ओके डै ड।" कशिा ने कहा___"आप आ जाइये। मैं और माॅम हिे ली में ही हैं।"

इसके साथ ही सं बंध किच्छे द हो गया। कशिा ने ररसीिर को केकडर ल पर रखा और


धम्म से बे ड पर कचि ले ट गया। प्रकतमा उसी को एकटक दे खे जा रही थी।

"क्ा बात हुई डै ड से ?" प्रकतमा ने पू छा।


"डै ड बता रहे थे कक उन्होंने कजस आदमी को दीदी के पीछे लगाया था।" कशिा ने

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कहा___"उस आदमी का िोन कािी दे र से बं द बता रहा है।"
"क्ाऽऽ???" प्रकतमा हैरान____"इसका मतलब हमारा ये आदमी भी बली का बकरा
साकबत हो गया।"

"ये सब आपकी बे टी की िजह से हो रहा है माॅम।" कशिा ने कठोर भाि से


कहा___"उसी ने हमारे उस आदमी का गेम बजाया होगा। उसे पता है कक अगर िो
ऐसा करे गी तो हम उस पर बे िजह और कबना सबू त के कोई इल्जाम नही ं लगा
सकेंगे। मगर अब हम भी बताएॅगे उसे कक हमसे गद्दारी करने का क्ा अं जाम होता
है? डै ड ने भी यही कहा है कक ये काम ररतू दीदी का ही है और अब डै ड ने भी िैंसला
कर कलया है कक िो खु द इस सब का पता करें गे और दीदी को उनके ककये की स़िा
दें गे।"

"उफ्फ क्ा करूॅ इस लडकी का?" प्रकतमा ने कसमसाते हुए अपने माॅथे पर
हथे ली मारी___"अपने ही माॅ बाप को गतग में डु बाने पर तु ली हुई है ये।"
"अब आपकी उस बे टी के साथ कोई ररयायत नही ं होगी माॅम।" कशिा ने गु स्से से
कहा___"अभी तक यही सोच कर हमने उस पर कोई कठोर क़दम नही ं उठाया था
कक चलो कोई बात नही ं हमारी अपनी है िो, मगर अब नही ं। उसने हमसे बगाित की
है माॅम। अपने ही माॅ बाप का सिग नाश करने पर तु ली हुई है िो। इस कलए अब
उसे उसके इस जघन्य अपराध की शख्त स़िा कमले गी।"

प्रकतमा कुछ कह न सकी। अं दर ही अं दर काॅप कर रह गई िो। उसे अपनी बे टी के


कलए दु ख तो हुआ था ककन्तु उसे भी इस बात का एहसास था कक उसकी बे टी ने अपने
पै रेंट् स के ल्कखलाफ़ जा कर ग़लत ककया है। िो अपने पकत और बे टे को अच्छी तरह
जानती थी। िो अब ककसी भी सू रत में ररतू को मुआफ़ करने िाले नही ं थे । उसे खु द
भी ररतू के इस कृत्य पर गुस्सा आया हुआ था। मगर िो कर भी क्ा सकती थी? अब
तो बस िो मन ही मन भगिान से प्राथग ना कर सकती थी कक सब कुछ ठीक हो जाए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर ररतू के िामग हाउस पर!


मैं, आकदत्य और पिन आपस में बातें ही कर रहे थे कक सहसा कमरे के दरिाजे पर
बाहर से नाॅक हुई। पिन ने उठ कर दरिाजा खोला तो दे खा बाहर ररतू दीदी खडी
थी। दीदी को दे खते ही पिन एक तरि हट गया तो दीदी अं दर आ गई। मैने दीदी के
चे हरे पर हिा परे शानी के भाि दे खे तो चौंका।

"क्ा बात है दीदी?" मैंने उनके पास आकर पू छा__"सब ठीक तो है ना?"
"हाॅ सब ठीक है राज।" ररतू दीदी ने कहा___"मैं ये कहने आई हूॅ कक तु म सबको
अभी यहाॅ से कनकलना होगा गुनगुन के कलए। क्ोंकक बाद में सं भि है कक डै ड अपने

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ककसी अन्य आदकमयों को यहाॅ रास्तों पर घेरा बं दी के कलए लगा दें । हलाॅकक उन्हें ये
पता नही ं है कक तू अभी यही ं है या यहाॅ से जा चु का है। मगर हालात बदल चु के हैं।"

"ये आप क्ा कह रही हैं दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा__"हालात तो बदले हुए ही थे
उसमें अब क्ा हो गया है?"
"बहुत कुछ हुआ है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने कहा___"डै ड को मुझ पर पहले से शक
था इस कलए आज उन्होंने मेरे पीछे अपना एक आदमी लगाया हुआ था कजसे मैने बीच
रास्ते पर ही धर कलया था और किर उसे बे होश करके यहाॅ ले आई थी। अब ़िाकहर
सी बात है कक डै ड ने अपने आदमी से िोन पर जानकारी प्राप्त करनी चाही होगी
मगर जब िो ये जानें गे कक उनके आदमी का िोन ही बं द है तो उन्हें समझते दे र नही ं
लगेगी कक मैने उनके आदमी को कगरफ्तार कर कलया है या किर उसे कठकाने लगा
कदया है। उस सू रत में िो मुझ पर बे हद गुस्सा होंगे और सं भि है कक मेरी तलाश में
घर से खु द ही कनकल लें । अगर उन्होंने ऐसा ककया तो समझ लो उनके साथ और भी
आदमी होंगे जो यहाॅ के हर रास्तों पर िैल जाएॅगे। ऐसे में तु म लोगों का यहाॅ से
गुनगुन के कलए कनकलना मुल्किल हो जाएगा। इसी कलए कह रही हूॅ कक तु म सब
कजतना जल्दी हो सके यहाॅ से िौरन कनकलने की तै यारी करो। बाहर मेरी कजप्सी
को कमला कर दो गाकडयाॅ हैं। उन दोनो गाकडयों में तु म सब आराम से आ जाओगे।
ले ककन सामान कुछ भी नही ं जा पाएगा। इस कलए सामान को यही ं छोंड दे ना। सारा
सामान यहाॅ सु रकक्षत ही रहेगा।"

"आपने तो कह कदया दीदी।" मैने सहसा दु खी भाि से कहा___"कक मैं इन सबको


ले कर यहाॅ से चला जाऊ। मगर मैं जानता हूॅ कक आज के िक्त में आप ककतने बडे
खतरे में हैं। मैं आपको ऐसे अकेले छोंड कर कैसे यहाॅ से चला जाऊ दीदी? मेरे जाने
के बाद अगर आपको कुछ हो गया तो सारी क़िंदगी मैं अपने आपको माफ़ नही ं कर
पाऊगा।"

"चु प कर तू ।" दीदी ने मुझे ़िबरदस्ती कझडक कदया, हलाॅकक मैं जानता था कक िो
अपने अं दर के जज़्बातों को शख्ती से दबा रही थी, बोली___"जब दे खो इमोशनल
होता रहता है। अब ज्यादा बोलना नही ं और चु पचाप यहाॅ से सबको ले कर कनकल।"

"मैं कही ं नही ं जाऊगा आपको अकेला छोंड कर।" मेरी ऑखों में ऑसू आ गए।
"तु झे मेरी क़सम है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने झटके से मेरा हाॅथ पकड कर अपने
कसर पर रख कलया था___"तू यहाॅ से सबको ले कर अभी इसी िक्त जाएगा। मेरी
कचन्ता मत कर। ते री दीदी कोई इतनी भी गैर मामूली नही ं है कजसे कोई भी ऐरा ग़ैरा
हजम कर जाएगा। अरे मैं ते री बहन हूॅ राज। कजसका भाई इतना प्यार करता हो
उसका भगिान भी कुछ न कर सकेंगे। और किर बस दो कदन की ही तो बात है न

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मेरे भाई। किर तो तू आ ही जाएगा न मेरे पास। तू कचन्ता मत कर, मैं खु द को ऐसी
जगह छु पा लू ॅगी कक ते रे आने से पहले मेरा बाप तो क्ा कोई भी माई का लाल मु झे
ढू ॅढ नही ं पाएगा। चल अब तू बे किक्र होकर जा।"

ये कह कर दीदी एक पल के कलए भी नही ं रुकी ं। बल्कि कहने के साथ ही कमरे से


बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद भी कुछ दे र तक मैं भौचक्का सा खडा रह गया
था। होश तब आया जब आकदत्य ने मेरे कंधे पर अपना हाॅथ रख कर हिे से
दबाया।

"चलो दोस्त।" आकदत्य ने भारी स्वर में कहा___"यहाॅ से चलने की तै यारी करो।
अपनी इस महान दीदी की बात मानो। मैं इतने कदनों से दे ख रहा हूॅ कक ररतू कसिग
अपने भाई के कलए ही जी रही है। हर िक्त उसे कसिग तु म्हारी ही किक्र रहती है।
आज भी िो कसिग तु म्हारी और इन सबकी किक्र की िजह से ही तु म्हें यहाॅ से सीघ्र
चलने को कह कर गई है। उसे अपने ऊपर मडरा रहे भीषर् खतरे की कोई किक्र
नही ं है। मैं तु मसे कसिग एक ही बात कहूॅगा दोस्त____और िो ये कक इन सबको
मुम्बई में सु रकक्षत पहुॅचाने के बाद तु म एक पल के कलए भी िहाॅ नही ं रुकना।
बल्कि उल्टे पै र िापस सीधा यही ं आओगे। मैं खु द भी तु म्हारे साथ ही आऊगा।"

"आकद मेरे दोस्त।" मैने भािना में बह कर आकदत्य को गले से लगा कलया। उसने खु द
भी मु झे ़िोर से कस कलया था।
"ककतना ग़लत सोचा करता था मैं ररतू दीदी के बारे में।" तभी पिन कह उठा___"हर
पल शक की ऩिर से दे खता था उनको। मगर यहाॅ आकर पता चला कक िो ककतनी
अच्छी हैं और उनके अं दर ते रे कलए ककतना प्यार है। उन्होंने सच का साथ दे ने के कलए
अपने ही माॅ बाप और भाई से हर ररश्ा तोड कलया। सच में राज, हमारी ररतू दीदी
बहुत महान हैं।"

मैने पिन को भी खु द से छु पका कलया। कुछ दे र ऐसे ही एक दू सरे के गले लगे रहने
के बाद हम तीनो अलग हुए और िेश होने के कलए अपने अपने कमरों में चले गए।
अपने कमरे में पहुॅच कर मैने जगदीश अं कल को िोन लगाया और उनसे कुछ
़िरूरी बातें की। उनको यहाॅ के हालात के बारे में बताया और ये भी बताया कक मैं
इन लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर िापस आ जाऊगा। इस कलए मेरे और आकदत्य दोनो
के लौटने की कटकट का इं तजाम िो कर दें गें। जगदीश अं कल से मैने ये भी कहा कक
इस सबके बारे में िो माॅ को ़िरूर मना लें गे िरना िो मु झे िापस आने नही ं दें गी।

जगदीश अं कल से बात करने के बाद मैं बाथरूम में िेश होने के कलए चला गया।
कुछ ही दे र में हम सब बाहर लान में खडी कजप्सी में थे । कजप्सी में ररतू दीदी के साथ

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मैं, करुर्ा चाची, कदव्या और शगुन थे । जबकक दू सरी जीप में शं कर काका जो कक
डर ाइकिं ग शीट पर थे उनके साथ आकदत्य, पिन, आशा दीदी और माॅ आकद बै ठे थे ।
सबसे कमल कर और हररया काका को िामगहाउस की सु रक्षा का कह कर हम सब
िामग हाउस से बाहर कनकल पडे ।

िामग हाउस में इस िक्त हररया काका, कबं कदया, नै ना बु आ और हेमराज मामा थे ।
हेमराज मामा को आज यही ं पर रुकने का कह कदया था करुर्ा चाची ने । रास्ते में
ररतू दीदी ने मोबाइल पर िोन लगा कर अपने महकमे में ककसी से बात की और कुछ
पु कलस के आदमी सादे कपडों में उनके आस पास ही रहने के कलए कहा।

दोनो गाकडया ऑधी तू िान बनी गुनगुन के कलए उडी जा रही थी। आस पास हर
तरि हमारी ऩिरें भी दौड रही थी ं। ताकक अगर कही ं बडे पापा या उनके आदमी हमें
कदखें तो हम पहले से ही उनसे कनपटने के कलए तै यार हो जाएॅ। लगभग दस कमनट
बाद ही दो पु कलस की गाकडयाॅ हमें ऩिर आईं। एक हमारी गाडी को ओिरटे क
करके हमारे आगे आगे चलने लगी और दू सरी गाडी हमारे पीछे पीछे चलने लगी।

आधे घंटे बाद हम सब गुनगुन के रे लिे स्टे शन पहुॅच गए। यहाॅ से मुम्बई जाने के
कलए शाम को पाॅच बजे टर े न थी। इस िक्त साढे तीन बजे थे । रे लिे स्टे शन पहुॅच
कर ररतू दीदी ने हम सबको िे कटं ग रूम में बै ठाया और िही ं पर पु कलस के कुछ
आदकमयों को भी बै ठाया। मैं दीदी के पास चु पचाप बै ठा था। दीदी एकटक मु झे ही
दे ख रही थी।

"नारा़ि है मुझसे ???" दीदी ने मेरे कसर पर हाॅथ िेरते हुए कहा___"चल कोई बात
नही ं मेरे भाई। तू कही ं भी रहे बस सलामत रहे तो ते री हर नारा़िगी भी सह लू ॅगी
मैं। तू जब लौट के आएगा न तब तु झे मना लू ॅगी मैं। किर दे खूॅगी कक तू मुझसे
ककतनी दे र तक नारा़ि रह पाता है? बच्चूलाल मुझे ऐसे िै से मत समझना तू । मु झे भी
नारा़ि भाई को मनाना बहुत अच्छे से आता है । समझे न मेरे प्यारे भाई?"

ररतू दीदी की बात पर मु झे अं दर ही अं दर हसी तो आई मगर मैने अपने चे हरे पर उन


भािों को ़िाकहर न होने कदया। ऐसे ही बै ठे बै ठे और इधर उधर की बातों से समय
ब्यतीत हो गया और पाॅच बज गए। मुम्बई जाने िाली टर े न का एनाउं समेन्ट होने लगा
तो हम सब िे कटं गरूम से बाहर आ गए। कुछ ही दे र में टर े न प्लेटिामग पर आकर
खडी हो गई। हम सब एसी िाले कडब्बों की तरि बढ चले और कुछ ही दे र में हम
सब एसी के िस्टग क्लास कडब्बे में आ गए। हम सब की शीटें पास पास ही थी ं। सबके
बै ठ जाने के बाद मैं ररतू दीदी के साथ बाहर आ गया।

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"मैं परसों ककसी भी हाल में यहाॅ आ जाऊगा दीदी।" बाहर आते ही मैने दीदी से
कहा___"आप खु द का बहुत अच्छे से खयाल रखें गी। कुछ कदनों के कलए ड्यूटी पर
जाना भी बं द कर दीकजएगा। हलाॅकक मैंने भी ऐसा कुछ इं तजाम कर कदया है कक
बडे पापा कुछ कर ही नही ं पाएॅगे।"

"क्ा मतलब??" ररतू दीदी ने चौंक कर मेरी तरि दे खा___"क्ा कर कदया है तू ने??"
"बहुत जल्द आपको भी पता चल जाएगा दीदी।" मैने अजीब भाि से कहा___"कािी
कदन हो गए हैं बडे पापा को झटका कदये हुए। इस कलए मैने सोचा कक इस मौके पर
उन्हें एक झटका दे ना कबलकुल उकचत और िायदे मंद है। आकखर मु झे भी तो आपकी
किक्र है दीदी। ऐसे खतरे में अकेला छोंड कर जा रहा हूॅ, तो कुछ तो आपकी सु रक्षा
का इं तजाम कर दू ॅ।"

"अरे पर तू ने ककया क्ा है राज?" ररतू दीदी ने ना समझने िाले भाि से कहा___"क्ा
तू मुझे नही ं बता सकता?"
"बता तो सकता हूॅ दीदी।" मैने शरारत से उनकी सु खग हो चु की नाॅक पर हिे से
उगली मारते हुए कहा___"मगर ये एक सरप्राइ़ि है । इस कलए बता नही ं सकता।
मगर डोन्ट िरी कल आपको भी पता चल जाएगा।"

"तू न बहुत बदमाश हो गया है।" ररतू दीदी ने तो मेरी नाॅक ही पकड ली,
बोली___"खै र, दे खती हूॅ कल कक तू ने क्ा शरारत की है मेरे डै ड के साथ?"
"यस ऑिकोसग ।" मैं मु स्कुराया और किर एकाएक ही मैने गंभीरता से
कहा___"दीदी एक बार किधी के घर भी हो आइयेगा आप। उस कदन के बाद आज
तक नही ं जा पाया हूॅ मैं। जबकक ये मेरा ि़िग था कक मैं अपनी पत्नी की हर कक्रया को
खु द अपने हाॅथों से करता।"

"तू कचं ता मत कर मेरे भाई।" ररतू दीदी ने कहा___"मैने सब कुछ कर कदया है। बस ये
सब एक बार ठीक हो जाए उसके बाद तू खु द अपने हाॅथों से किधी की अल्कथथयों को
पािन गंगा में किसकजगत कर दे ना।"
"क्ा कहा आपने ?" मैं खु शी से चौंकते हुए बोला___"आप ने किधी की अल्कथथयाॅ
एककत्रत कर रखी हैं?"

"हाॅ राज।" ररतू दीदी ने कहा___"मैं भला कैसे भू ल सकती थी उसे ? ते रा बाहर
कनकलना खतरे से खाली नही ं था इस कलए ते रे नाम से मैं खु द ही किधी के घर गई थी
और किर किधी के डै ड के साथ उसकी अल्कथथयाॅ ले ने गई थी। किधी की अल्कथथयों को
मैने िामग हाउस में सु रकक्षत रखा हुआ है।मैने सोचा था कक जब ये सब िसाद खत्म हो

646
जाएगा तब मैं तु झसे कहूॅगी कक जा राज अपनी किधी की अल्कथथयों को पकित्र गंगा में
बहा दे ।"

"ओह दीदी, आप सच में बहुत महान हैं।" कहते हुए मेरी ऑखों में ऑसू आ
गए___"आपको मेरी हर ची़ि का ककतना खयाल है ।"
"किधी अगर ते री प्रे कमका या पत्नी थी तो िो मे री भी तो कुछ लगती थी राज।" दीदी ने
गंभीर भाि से कहा__"मेरे जीिन में उसकी अहकमयत बहुत ज्यादा है मेरे भाई। उसी
की िजह से मेरा हृदय पररितग न हुआ। उसी की िजह से मुझे पता चला कक सच्चा
प्यार क्ा होता है। उसी ने मु झे बताया कक कजस भाई को मैने कभी दे खना तक
गिाॅरा नही ं ककया था िो िास्ति में ककतना अच्छा है। हाॅ राज, किधी ने सब बताया
मुझे। उसके बाद जब उसने मुझसे कहा कक उसे एक बार अपने महबू ब से कमलना है
और उसी की बाहों में अपने जीिन की अं कतम साॅस ले नी है तो उस िक्त मेरा
कले जा दहल गया। मेरे अं दर से ककसी ने चीख चीख कर कहा कक दे ख ले ररतू , एक
ये है कक अपने प्यार के कलए इसने ककतने दु ख सहे और खु द को खाक़ में भी कमला
कदया और एक तू है कक एक ऐसे भाई को कभी दे खना तक पसं द नही ं ककया कजसका
कही ं कोई दोष ही नही ं था। कजसने ते रे साथ कभी बु रा ही नही ं ककया। बल्कि हमेशा
इज्ज़ित और सम्मान के साथ तु झे दीदी कहते हुए थकता नही ं था। कसम से भाई, उस
िक्त मुझे अपनी ग़लकतयों का बडी कशद्दत से एहसास हुआ और मैने इस सबके बारे
में अलग तरह से सोचना शु रू ककया। मैने किधी से िादा ककया कक उसके महबू ब को
उसके पास ़िरूर लाऊगी। उसके बाद मैने ते रे दोस्तों के बारे में पता ककया तो मु झे
ते रे गहरे दोस्त के रूप में पिन का पता चला। मैं पिन से कमली और उससे ते रे बारे में
पू छा। मगर िो मु झे ते रे बारे में कुछ भी बताने को तै यार ही नही ं हो रहा था। उसे
लगता था कक मैं ते रे बारे में इस कलए पू छ रही हूॅ ताकक ते रा पता करके मैं अपने डै ड
को बता दू ॅ कक तू िला थथान पर है। जब पिन मुझे कुछ भी बताने से इं कार कर
कदया तो मैने उसे सारी बातें बताई और खु द उसे किधी के पास ले आई। ये साकबत
करने के कलए कक मैं जो कुछ भी उससे कह रही थी िो सब सच है और इसके पीछे
मेरे अं दर कोई भी बु री भािना नही ं है। किधी को दे खने बाद ही पिन को एहसास
हुआ कक मैं सच कह रही हूॅ और तभी उसने तु झसे बात की थी।"

दीदी की बातें सु न कर मैं किर से कपछली यादों में खो गया था। तभी दीदी की आिा़ि
किर से मेरे कानों में पडी___"इस सबकी िजह से ही मु झे लगा कक तू और गौरी चाची
इतने भी ग़लत या बु रे नही ं हैं कजतना कक बचपन से माॅम डै ड ने हम तीनो भाई
बहनों को बताया था या कसखाया था। उसके बाद मैने अपने माॅम डै ड और भाई पर
ऩिर रखना शु रू ककया तो जल्द ही मुझे सच्चाई का पता चल गया कक िास्ति में बु रा
कौन है। बस उसके बाद तो ते री ये दीदी कसिग ते री ही बहन बन कर रह गई मेरे
भाई। मैने अपने माॅम डै ड ि भाई सबसे ररश्ा तोड कदया। ऐसे ररश्ों से नाता जोडे

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रखने का मतलब भी क्ा था कजन ररश्ों में िासना और हिस के कसिा कुछ था ही
नही ं।"

मैने ररतू दीदी को अपने सीने से लगा कलया। िो बु री तरह भािनाओं और जज़्बातों में
बहने लगी थी कजसकी िजह से उनकी ऑखों से ऑसू बहने लगे थे । एसी के उस
कडब्बे के पास ही हम दोनो भाई बहन एक दू सरे से गले लगे हुए थे । आस पास से
आते जाते लोग हमें अजीब भाि से दे खने लगे थे । ये दे ख कर मैने दीदी को खु द से
अलग अलग ककया और उन्हें ले कर कडब्बे के अं दर आ गया।

ररतू दीदी एक बार किर सबसे कमली और किर टर े न के चलते ही िो टर े न से उतरने के


कलए बाहर की तरि जाने लगी ं। मैं भी उनके पीछे पीछे गेट तक आ गया। गेट के
पास पहुॅच कर जब दीदी टर े न से उतरने लगी तो मु झे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई
अनमोल ची़ि मुझसे छूटने िाली है। मैने हौले से दीदी को दीदी कह कर आिा़ि दी
तो िो तु रंत मेरी तरि पलटी ं, जैसे उन्हें मेरे पु कारने का ही इन्त़िार था। जब पलट
कर उन्होंने मेरी तरि दे खा तो ये दे ख कर मेरा कदल बै ठ गया कक उनका चे हरा
ऑसु ओ ं से तर था। मैने उन्हें खी ंच कर खु द से छु पका कलया, िो खु द भी मुझसे कस
कर कलपट गई। ले ककन तु रंत ही िो मु झसे अलग भी हो गईं।

"अब तू जा राज।" किर उन्होने खु द को सम्हालते हुए कहा___"सबका खयाल


रखना। मैं ते रे आने का इं त़िार करूॅगी और हाॅ गुकडया को मेरा प्यार दे ना।"
"आप भी अपना खयाल रल्कखयेगा।" मैने कहा___"और अब आप सीधा िामग हाउस
जाएॅगी। दो कदन के कलए ड्यूटी से छु ट्टी ले लीकजएगा। मैं जब आऊ तो आपको
िामग हाउस पर ही हसते मु स्कुराते हुए पाऊ।"

"मेरी मु स्कुराहट तो तू ही है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने मेरे चे हरे को सहलाया___"जब तू


आ जाएगा न तो मेरा ये चे हरा अपने आप ही ल्कखल उठे गा।"

मैं उनकी इस बात पर हौले से मु स्कुराया और किर झुक कर उनके माथे पर हिे से
चू म कलया। मेरी इस कक्रया से िो भी मुस्कुरा दी और किर मेरे गाल पर हलके से चू म
कर िो सािधानी से धीरे धीरे चल रही टर े न से उतर गईं। मैं गेट पर खडा उन्हें तब
तक दे खता रहा जब तक कक आगे मोड आ जाने की िजह से दीदी मेरी ऩिरों से
ओझल न हो गईं। उनके ओझल होते ही मैं दरिाजे से पीछे की तरि हटकर िही ं पर
टर े न के उस कडब्बे की कपछली पु श् से टे क लगाये हुए ऑखें बं द कर खडा हो गया।
कुछ दे र यूॅ ही खडे रहने के बाद मैंने एक गहरी साॅस ली और किर मैं अं दर अपनी
शीट की तरि आ गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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किराज के ओझल होते ही ररतू प्लेटिामग से बाहर की तरि ते ़ि ते ़ि क़दमों के साथ
बढती चली गई। कदलो कदमाग़ में ़िबरदस्त तू िान तारी हो गया था उसके। कदल में
भडकते हुए जज़्बात उसके काबू से बाहर होने लगे थे कजसकी िजह से उसकी रुलाई
िूटने को आतु र थी। मगर बडी मु ल्किल से उसने खु द को सम्हाला हुआ था। स्टे शन
से बाहर आते ही िो अपनी कजप्सी की तरि बढ गई। कजप्सी के पास ही एक और
जीप थी कजसमें शं कर काका बै ठे हुए थे । ररतू ने शं कर काका को िापस लौटने का
कह कदया। पु कलस के जो आदमी आगे पीछे आए थे उनमें से एक जीप िाले पु कलस
िालों को ररतू ने शं कर के साथ जाने का कह कदया जबकक दू सरे जीप िालों को अपने
आस पास ही रहने को कहा।

शं कर काका के जाने के बाद ररतू ने भी कजप्सी को आगे बढा कदया। ककन्तु उसकी
कजप्सी का रुख हल्दीपु र की तरि न होकर ककसी और ही तरि था। उसके पीछे
कुछ ही िाॅसले पर एक अलग गाडी में दू सरे पु कलस िाले भी थे जो सादे कपडों में
थे । लगभग दस कमनट बाद ररतू ने कजस जगह पर कजप्सी को रोंका उसके पास ही
एक "कजम" था।

कजम के बाहर कुछ ही दू री के िाॅसले पर उसने अपनी कजप्सी को खडी कर िो


नीचे उतरी और पास ही एक दु कान के पास जाकर उसने दु कान से कमनरल िाटर
का एक बाटल खरीदा और िापस आकर कजप्सी में बै ठ गई। अपनी बाईं कलाई पर
बधी ररस्टिाच पर उसने एक ऩिर डाली। शाम के पाॅच बज कर बीस कमनट हो रहे
थे ।

कजप्सी में बै ठी ररतू थोडी थोडी दे र के अं तराल में बाटल से पानी पीती रही। उसकी
ऩिर कजम के मुख्य दरिाजे पर थी। मतलब साि था कक िो ककसी ऐसे ब्यल्कक्त का
इन्त़िार कर रही थी जो उस कजम से बाहर आने िाला था। कुछ दे र और गु़िरने के
बाद एक बार किर से ररतू ने अपनी कलाई पर बधी ररस्टिाॅच में ऩिर डाली। पाॅच
बज कर तीस कमनट हो चु के थे । उसके पीछे कुछ ही दू री पर दू सरी गाडी में बै ठे दू सरे
पु कलस िाले ररतू की तरि ना समझने िाले भाि से दे खे जा रहे थे ।

उस िक्त ररतू के होठों पर अजीब सी मु स्कान उभरी कजस िक्त कजम के मुख्य द्वार से
कुछ लडके और लडककयाॅ बाहर कनकले । ररतू की ऩिर एक ऐसी लडकी पर ल्कथथर
हो गई कजसके खू बसू रत बदन पर इस िक्त कजम िाले कपडे थे । एकदम चु स्त
दु रुस्त। उसको दे ख कर ही लग रहा था कक इसकी ऊम्र अिारह या बीस से ज्यादा
नही ं होगी।

ररतू ने दे खा कक िो लडकी कजम से कनकलने के बाद पाककिंग एररया की तरि बढ गई

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है। कुछ ही दे र में िो लडकी एक नई निे ली स्कूटी में पाककिंग से बाहर आती हुई
कदखी और किर ररतू की ऑखों के सामने से ही िो दाकहने तरि के रास्ते की तरि
सरपट जाती हुई ऩिर आई। उसके जाते ही ररतू ने कजप्सी को स्टाटग ककया और उस
लडकी के पीछे चल पडी। उसके पीछे दू सरी गाडी में बै ठे बाॅकी के पु कलस िाले भी
बढ चले ।

मेन माकेट से कनकलने के बाद ररतू ने दे खा कक सामने जा रही िो लडकी एक मोड


पर मुड गई है। ररतू ने भी कजप्सी को उस मोड पर मोड कदया। ररतू की ऩिर बराबर
उस लडकी पर थी। सामने एक अधेड सा आदमी इस तरि अचानक ही आता
कदखा। शायद ककसी दु कान या ककसी घर से कनकला था िो। उसके दोनो हाॅथों में
एक एक ब्लैक कलर की प्वाकलकथन थी। िो अधेड आदमी अपनी साइड की तरि
आने के कलए पहले पीछे की तरि दे खा और किर रोड क्राॅस करने के कलए जैसे ही
आगे बढा िै से ही िो उस लडकी की स्कूटी से टकरा गया।

ररतू ने साि तौर पर दे खा था कक अधे ड ब्यल्कक्त के पास पहुॅचते पहुॅचते उस लडकी


ने स्कूटी की रफ्तार को कािी कम कर कलया था मगर कदाकचत उसका ध्यान कही ं
और था इस कलए हडबडाहट में उसे समझ ही न आया कक िो अब क्ा करे ? कजतना
उससे हो सकता था उतना उसने ककया था। ककन्तु अब िो इसका क्ा करती कक
लाख कोकशशों के बाद भी उसकी स्कूटी उस अधेड ब्यल्कक्त के कजस्म से छू ही गई
थी। कजसका पररर्ाम ये हुआ कक िो अधेड ब्यल्कक्त बीच सडक पर भरभरा कर कगर
गया था। उसके दोनो हाॅथों पर मौजूद प्वालीकथन छूट गई थी और पक्की सडक पर
कगरते ही प्वालीकथन के अं दर मौजूद सामान िूट गया था। प्वालीकथन में दिाई की
बोतलें थी जो िूट गईं थी और अब सारी दिा सडक पर िैलती जा रही थी।

अधेड के कगरते ही उस लडकी ने पहले स्कूटी को खडी ककया उसके बाद िो एकदम
से पै र पटकते हुए उस अधे ड के कसर पर आ धमकी।

"दे ख कर नही ं चल सकते थे तु म?" किर उसकी करकस आिा़ि िातािरर् में
गूॅजी___"अभी मर जाते तो क्ा करते किर? सडक को क्ा अपने बाप की जागीर
समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकते हो?"

लडकी अनाप शनाप बोलने में लगी ही थी कक आस पास से कई सारे लोग आकर
िहाॅ पर इकिा हो गए। सब एक दू सरे से पू छने लगे कक क्ा हुआ??? सडक पर
कगरा हुआ िो अधेड आदमी ककसी तरह उठा और कुछ ही दू री पर अपनी दिाईयों
का हाल दे ख कर उसके चे हरे पर बे हद पीडा के भाि उभर आए। उसने कसर उठा
कर अपने चारों तरि करुर् भाि से दे खा और किर उसकी ऩिर उस लडकी पर

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पडी जो उसके कसर पर आ धमकी थी।

"लगता है इस लडकी ने इस अधे ड ब्यल्कक्त को अपनी स्कूटी से टक्कर मारी है।"


आस पास खडे लोगों के बीच से एक आदमी ने कहा___"दे खो तो बे चारे की सारी
दिाइयाॅ सडक पर िूट कर िैल गई हैं।"

"आज कल तो सडक पर चलना भी दू भर हो गया है भाई।" एक अन्य ब्यल्कक्त ने तं ज


कसा___"मोटर साइककल और गाडी िाले आम आदमी को जब दे खो तब टक्कर मार
दे ते हैं और उल्टा उसी पर चढ दौडते हैं। दे ख रहे हो न इस लडकी को। इसने इस
बे चारे बू ढे आदमी को टक्कर मार दी और अब उल्टा इसे ही डाॅट रही है ।"

"ऐ कमस्टर।" लडकी ये सु नते ही उस आदमी की तरि पलटी___"इसमें मेरी कोई


ग़लती नही ं है समझे। ये बु ड्ढा खु द ही मरने के कलए मेरी स्कूटी के सामने आया था।
िो तो अच्छा हुआ कक मैने टाइम पर ब्रे क मार कदया िरना इसका तो यही ं पर राम
नाम सत्य हो जाना था आज।"

"अरे दे खो तो कैसे बात कर रही है ये लडकी?" एक अन्य ने कहा___"एक तो खु द ही


टक्कर मारी इसने और ऊपर से इस बू ढे आदमी का दोष लगा रही है ये।"
"बडे बाप की लगती है भाई।" एक दू सरे ने कहा__"बडे बाप की बे टी है तभी इतना
तीखा बोलती है। तमी़ि नाम की तो कोई बात ही नही ं है इसमें।"

"हाऊ डे यर यू टाक टु मी लाइक कदस?" लडकी ने गु स्से से कचल्लाते हुए


कहा___"तु म्हें पता है कक तु म ककससे बात कर रहे हो? अगर जान जाओगे न तो यही ं
पर खडे खडे पे शाब कर दोगे समझे। मैं इस शहर के मंत्री की बे टी हूॅ। इस शहर के
मंत्री को तो तु म सब अच्छी तरह जानते ही होगे न?"

लडकी के इतना कहते ही आस पास खडे लोगों को साॅप सा सू ॅघ गया। पलक


झपकते ही िो सब िहाॅ से इस तरह गायब हो गए जैसे गधे के कसर से सी ंग गायब
हो जाते हैं। उन सबके जाते ही लडकी के होठों पर किजयी मु स्कान उभरी और किर
उसने कहकारत के से भाि से उस अधे ड की तरि दे खा। सडक पर बै ठा िो अधे ड
अपनी उस दिा की तरि दे ख रहा था जो सडक पर िैल गई थी। उसकी तरि दे ख
कर लडकी ने "हुॅह" कहा और किर पलट कर अपनी स्कूटी की तरि आ गई।
स्कूटी को स्टाटग कर िो आगे बढ चली।

ये सब तमाशा दे ख ररतू ने मोबाइल पर ककसी से कुछ कहा और लडकी की तरि


ते ़िी से कजप्सी को दौडा कदया। उसके चे हरे पर बे हद गु स्से के भाि थे । सीघ्र ही
उसकी कजप्सी उस लडकी की स्कूटी के पास आ गई और किर ररतू ने पीछे से

651
टक्कर मार दी उसे । पररर्ामस्वरूप लडकी और उसकी स्कूटी उछलते हुए सडक
पर कगरे और कुछ दू र तक कघसटते हुए चले गए। कि़िा में लडकी की चीख गू ॅज गई
थी। यहाॅ पर आस पास कोई दु कान या घर नही ं था। माकेट एररया पीछे ही था।
हलाॅकक कुछ ही दू री पर बडी बडी कबल्कल्डंग्स कदख रही थी। ़िाकहर था उन्ही ं बडी
बडी कबल्कल्डंग्स में से ककसी एक कबल्कल्डंग पर इस लडकी का अलीशान घर होगा।

ररतू ने कजप्सी को आगे बढा कर लडकी के पास रोंका और उतर कर लडकी के पास
गई। लडकी सडक के बाएॅ साइड उल्टी पडी ददग से कराह रही थी। बडी मुल्किल
से िो उठ कर बै ठी और किर अपने बदन पर लगी चोटों को दे खने लगी।

"दे ख कर नही ं चल सकती थी क्ा?" ररतू ने उसी का िाक् उसी के लहजे में
दोहराया____"अभी मर जाती तो क्ा करती तु म? सडक को क्ा अपने बाप की
जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकती हो?"

ररतू की बात सु नकर उस लडकी ने ददग से कराहते हुए ररतू की तरि दे खा और किर
एकाएक ही उसके चे हरे पर गुस्सा उतर आया। इस हालत में भी िो सडक पर से
ककसी ल्करंग लगे ल्कखलौने की तरह उछल कर खडी हो गई और किर कबना कुछ बोले
ही घूम कर एक फ्लाइं ग ककक का िार ररतू पर कर कदया। मगर उसका ये िार उसे
खु द ही भारी पड गया। क्ोंकक जैसे ही उसने फ्लाइं ग ककक चलाई िै से ही झुक कर
ररतू ने उसकी उस टाॅग पर अपनी टाॅग चला दी थी जो नीचे सडक पर जमी थी।
नतीजा ये हुआ कक जमीन से लडकी का पै र हटते ही उस लडकी का बै लेंस कबगडा
और िो गुडीमुडी होकर सडक पर औंधे मुह कगरी। उसके मुख से ददग में डूबी चीख
कनकल गई।

"ते रे जैसी दो कौडी की िाइटर लडककयाॅ मे रे पास ट्यू शन ले ने आती हैं मूखग
लडकी।" ररतू ने उसके कसर के बाल अपनी मु कियों में कस कर ऊपर उठाते हुए
कहा___"ते रे अं दर अपने हरामी बाप का गंदा खू न भरा है न। चल तु झे भी िही ं ले
चलती हूॅ जहाॅ ते रा िो हरामी भाई और उसके हरामी दोस्त हैं।"

"मुझे छोंड दो िरना इसका अं जाम बहुत बु रा होगा तु म्हारे कलए।" लडकी ने
छटपटाते हुए कहा___"तु म्हें पता नही ं है कक तु मने ककसकी बे टी पर हाॅथ उठाने की
़िुरगत की है?"
"यही, बस यही अकड तो कनकालनी है ते री और ते रे बाप की भी।" ररतू ने घुटने का
िार ़िोर से लडकी के पे ट पर ककया तो कहचक कर रह गई िो, जबकक ररतू ने उसके
बालों को और ़िोर से खी ंचते हुए कहा___"बहुत जल्द तु म सबकी ऐसी हालत होने
िाली है कजसकी तु म लोगों ने कभी कल्पना भी न की होगी।"

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"बहुत पछताओगी तु म?" लडकी ने चीखते हुए कहा___"मेरा बाप तु म्हारा िो हाल
करे गा कक तु म अपना चे हरा दु कनयाॅ को कदखाने के काकबल नही ं रहोगी।"
"ये तो िक्त ही बताएगा मेरी जान।" ररतू ने लडकी की कनपटी के एक खास कहस्से
पर अचानक ही कराट मारी थी, कजसका नतीजा ये हुआ कक लडकी बे होश होती चली
गई। जबकक ररतू ने कहा___"कक मु ह कदखाने के काकबल कौन नही ं रहता।"

ररतू ने लडकी के बे होश कजस्म को उठा कर अपनी कजप्सी में डाला और कपछली शीट
के नीचे से एक ब्लैक कलर की बडी सी प्लाल्कस्टक की पन्नी कनकाल कर उसके ऊपर
ऐसे तरीके से डाल कदया कक कोई ये न सोच सके कक उसके नीचे कोई इं सानी कजस्म
भी हो सकता है। ये सब करने के बाद ररतू पलटी और आस पास का बारीकी से
मुआयना ककया तो कुछ ही दू री पर उसे लडकी का मोबाइल पडा कदखा। सडक पर
कगरने से मोबाइल की स्क्रीन चटक गई थी। ररतू ने ककनारे साइड की एक बटन को
दबाया तो तु रंत ही स्क्रीन फ्लैश कर उठी। इसका मतलब िो चालू हालत में था
अभी। ये दे ख कर ररतू ने मोबाईल का किर कनकाल कर मोबाइल के ढक्कन को
खोला और बै टरी कनकाल ली। उसके बाद सारी ची़िें पाॅकेट में डालने के बाद उसने
अपने दू सरे पाॅकेट से अपना आई िोन कनकाला। उसे याद आया कक उसने आई
िोन िामग हाउस पर ही ल्कस्वच ऑि कर कदया था। ये ध्यान आते ही उसके होठों पर
एक जानदार मु स्कान उभरी। उसने अपने आईिोन को िापस पाॅकेट में रखा और
आकर कजप्सी में बै ठ गई। कजप्सी को स्टाटग कर उसने यूटनग कलया और िापस चल
दी।

माकेट के पास आते ही उसे दू सरी गाडी पर िो पु कलस िाले कदखे । उनमें से एक
पु कलस िाले ने ररतू को बताया कक उसने उस अधेड आदमी को दू सरी दिाइयाॅ
खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सु न कर ररतू आगे बढ गई। उसके पीछे दू सरे पु कलस
िाले भी अपनी गाडी में चल पडे । उनकी ऩिर ररतू की कजप्सी पर थोडा सा िैली हुई
उस ब्लैक कलर की प्लाल्कस्टक की पन्नी पर पडी कजसके नीचे ररतू ने उस लडकी को
छु पा कदया था। ककन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न कदया। उनको अपने आला
अिसर का आदे श था कक इं िेक्टर ररतू के आस पास ही रहना है और उसकी
ककसी भी गकतकिधी पर कोई सिाल जिाब नही ं करना है।

ररतू की कजप्सी ऑधी तू िान बनी हल्दीपु र की तरि बढी चली जा रही थी। उसके
पीछे ही दू सरी गाडी पर िो पु कलस िाले भी थे । ररतू को अं देशा था कक हल्दीपु र के
पास िाले रास्तों पर कही ं उसका बाप या उसके आदमी कमल न जाएॅ मगर हल्दीपु र
के उस पु ल तक तो कोई नही ं कमला था। पु ल से दाकहने साइड कजप्सी को मोड कर
ररतू िामगहाउस की तरि बढ चली। कुछ दू री पर आकर ररतू ने कजप्सी को रोंक

653
कदया। कुछ ही पलों में उसके पीछे िाली गाडी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से िापस लौट जाइये।" ररतू ने एक पु कलस िाले की तरि दे ख


कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ़िरूरत पडी तो िायरले स या िोन
द्वारा सू कचत कर कदया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पु कलस िाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय कहन्द।"

उन सबने ररतू को सै ल्यूट ककया और किर अपनी गाडी को िापस मोड कर िहाॅ से
चले गए। उनके जाते ही ररतू ने भी अपनी कजप्सी को िामग हाउस की तरि बढा
कदया। आने िाला समय अपनी आस्तीन में क्ा छु पा कर लाने िाला था ये ककसी को
पता न था।"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.........《 49 》

अब तक,,,,,,,

माकेट के पास आते ही उसे दू सरी गाडी पर िो पु कलस िाले कदखे । उनमें से एक
पु कलस िाले ने ररतू को बताया कक उसने उस अधेड आदमी को दू सरी दिाइयाॅ
खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सु न कर ररतू आगे बढ गई। उसके पीछे दू सरे पु कलस
िाले भी अपनी गाडी में चल पडे । उनकी ऩिर ररतू की कजप्सी पर थोडा सा िैली हुई
उस ब्लैक कलर की प्लाल्कस्टक की पन्नी पर पडी कजसके नीचे ररतू ने उस लडकी को
छु पा कदया था। ककन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न कदया। उनको अपने आला
अिसर का आदे श था कक इं िेक्टर ररतू के आस पास ही रहना है और उसकी
ककसी भी गकतकिधी पर कोई सिाल जिाब नही ं करना है।

ररतू की कजप्सी ऑधी तू िान बनी हल्दीपु र की तरि बढी चली जा रही थी। उसके
पीछे ही दू सरी गाडी पर िो पु कलस िाले भी थे । ररतू को अं देशा था कक हल्दीपु र के
पास िाले रास्तों पर कही ं उसका बाप या उसके आदमी कमल न जाएॅ मगर हल्दीपु र
के उस पु ल तक तो कोई नही ं कमला था। पु ल से दाकहने साइड कजप्सी को मोड कर
ररतू िामगहाउस की तरि बढ चली। कुछ दू री पर आकर ररतू ने कजप्सी को रोंक
कदया। कुछ ही पलों में उसके पीछे िाली गाडी भी उसके पास आकर रुक गई।

654
"अब आप सब यहाॅ से िापस लौट जाइये।" ररतू ने एक पु कलस िाले की तरि दे ख
कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ़िरूरत पडी तो िायरले स या िोन
द्वारा सू कचत कर कदया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पु कलस िाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय कहन्द।"

उन सबने ररतू को सै ल्यूट ककया और किर अपनी गाडी को िापस मोड कर िहाॅ से
चले गए। उनके जाते ही ररतू ने भी अपनी कजप्सी को िामग हाउस की तरि बढा
कदया। आने िाला समय अपनी आस्तीन में क्ा छु पा कर लाने िाला था ये ककसी को
पता न था।"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरि!
एक लम्बे चौडे हाल के बीचो बीच एक बडी सी टे बल के चारो तरि कुकसग याॅ लगी
हुई थी। उन सभी कुकसग यों पर इस िक्त कई सारे अजनबी चे हरे बै ठे कदख रहे थे ।
सामने िंट की मुख्य कुसी खाली थी। हर शख्स के सामने कमनरल िाटर से भरे हुए
काॅच के िास रखे हुए थे । लम्बे चौडे हाल में इस िक्त ब्लेड की धार की माकनन्द
पै ना सन्नाटा िैला हुआ था। िो सब अजनबी चे हरे ऐसे थे कजन्हें दे ख कर ही प्रतीत हो
रहा था कक ये सब ककसी न ककसी अपराध की दु कनयाॅ ताल्लुक ़िरूर रखते हैं। उन
अजनबी चे हरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चे हरे थे जो शक्ल सू रत से किदे शी ऩिर आ
रहे थे ।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में िैले हुए सन्नाटे को भे दते हुए
कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्त़िार करिाना कबलकुल भी पसं द
नही ं आता। हर बार यही होता है कक हम सब टाइम से कान्िेन्स हाल में मीकटं ग के
कलए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार कनधागररत समय से
आधा घंटे ले ट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्ा कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यल्कक्त ने मानो
असहाय भाि से कहा___"िो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्त़िार
करिाने में िो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकक ऐसा होना नही ं चाकहए, क्ोंकक
यहाॅ पर कोई भी ककसी से कम नही ं है। हम सबको एक दू सरे का बराबर आदर ि
सम्मान करना चाकहए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट कमस्टर पाकटल।" सहसा एक किदे शी कह


उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह िे ट करिाना पसं द नही ं आता हाय। िो क्ा

655
समझता हाय कक हम लोगों की कोई औकात नही ं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी
िक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी कलए चु प रहता हाय कक तु म
सब भी चु प रहता हाय।"

"इट् स ओके कमस्टर लारे न।" पाकटल ने कहा___"ये आकखरी बार है। आज ठाकुर से
हम सब इस बारे में एक साथ चचाग करें गे और उनसे कहेंगे कक हम सबकी तरह िो
भी टाइम पर मीकटं ग हाल में आया करें । इस तरह हमसे िे ट करिा कर हमारी तौहीन
करने का उन्हें कोई हक़ नही ं है। अगर आप मे री इस बात से सहमत हैं तो प्लीज
जिाब दीकजए।"

पाकटल की इस बात पर सबने अपनी प्रकतकक्रया दी। जो कक पाकटल की बातों पर


सहमकत के रूप में ही थी। कुछ दे र और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय कसं ह
दाल्कखल हुआ और मुख्य कुसी पर आकर बै ठ गया। उसने सबकी तरि दे ख कर बडे
रौबीले अं दा़ि से हैलो ककया। उसकी इस हैलो का जिाब सबने इस तरह कदया जैसे
बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खु द अजय कसं ह ने भी महसू स ककया।

"साॅरी िैण्ड् स हमें आने में ़िरा दे र हो गई।" अजय कसं ह ने बनािटी खे द प्रकट
करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से कडस्टबग नही ं हुए होंगे। एनीिे ़ि....
"ठाकुर साहब कदस इज टू मच।" एक अन्य ब्यल्कक्त कह उठा___"आप हर बार ऐसा
ही करते हैं और किर बाद में ये कह दे ते हैं कक साॅरी िैण्ड् स हमें आने में ़िरा दे र हो
गई। आप हर बार ले ट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक
आपके आने का िे ट करते रहते हैं। आपको क्ा लगता है कक हम लोगों के पास
दू सरा कोई काम ही नही ं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर
टाइम से कही ं भी पहुॅचने के कलए समय पहले से ही कनकाल ले ते हैं। इस कबजने स में
हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बडा नही ं है। हम सबने आपको मेन कुसी पर
बै ठने का अकधकार अपनी खु शी से कदया था। मगर इसका मतलब ये नही ं कक आप
उसका नाजाय़ि मतलब कनकाल लें । हम सबने कडसाइड कर कलया है कक अगर
आपका रिै या ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे कबजने स का अपना अपना कहस्सा
िापस ले लें गे। दै ट्स आल।"

उस ब्यल्कक्त की ये सारी बातें सु न कर अजय कसं ह अं दर ही अं दर बु री तरह कतलकमला


कर रह गया था। ये सच था कक हर बार िो इन सबसे इन्त़िार करिा कर यही जताता
था कक उसके सामने इन लोगों की कोई अहकमयत नही ं है। बल्कि िो इन सबसे
ज्यादा अहकमयत रखता है। आज तक इस कबजने स से जु डे ये सब लोग उसकी इस
आदत पर कोई सिाल नही ं खडा ककये थे कजसकी िजह से उसे यही लगता रहा था
कक यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़ित ि अहकमयत दे ते हैं और इसी कलए िो ऐसा करता

656
रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैयग का बाॅध टू ट गया था। कजसका नतीजा इस
रूप में उसके सामने आया था। उस शख्स की बातों से उसके अहं को ़िबरदस्त चोंट
पहुॅची ले ककन िो ये बात अच्छी तरह जानता था कक इस बारे में अगर उसने कुछ
उल्टा सीधा बोला तो काम कबगड जाने में पल भर की भी दे र नही ं लगेगी। इस कलए
िो उस शख्स की उन सभी कडिी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो कमस्टर ते िकतया।" अजय कसं ह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब


हकगग ़ि भी नही ं है कक हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब िैण्ड् स हैं
और हम में से कोई छोटा बडा नही ं है। हर बार हम मीकटं ग में दे र से पहुॅचते हैं
इसका हमें यकीनन बे हद अिसोस होता है। मगर क्ा करें हो जाता है। मगर हमें ये
भी पता होता है कक आप सब हमारी इस ग़लती को ऩिरअं दा़ि कर दें गे।"

"इट् स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रल्कखयेगा कक अगली


बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा
हो तो मूड खराब होना स्वाभाकिक बात है।"

"यस ऑिकोसग कमस्टर कमलनाथ।" अजय कसं ह एक बार किर गुस्से और अपमान
का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजा़ित हो तो काम की बात करें ?"
"जी कबलकुल।" पाकटल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कक समय से पहले इस तरह अचानक मीकटं ग
रखने की क्ा िजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कक मौजूदा िक्त में हमारे हालात कबलकुल
भी ठीक नही ं हैं।" अजय कसं ह ने बे बस भाि से कहा___"कपछले कुछ समय से हमारे
साथ बे हद गंभीर और बे हद नु कसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे
कौन है ये भी हम पता लगा चु के हैं । इस कलए अब हम चाहते हैं कक आप सब हमारे
इस बु रे िक्त में हमारा साथ दें ।"

"िै से तो आप खु द ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाकटल ने कहा___"ककन्तु इसके बाद


भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तै यार हूॅ। आकखर हम सब एक ही
तो हैं। हर तरह की मसीबत ि परे शानी का एक साथ कमल कर मुकाबला करें गे तो
हर जं ग में हमारी ितह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यल्कक्त ने


कहा___"इस कलए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कक हमें क्ा करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ दे ने के कलए तै यार हैं इससे बडी बात ि खु शी और क्ा होगी

657
भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय
के कलए या किर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीकजए जो हर तरह के िन में माकहर
हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं
और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के िन में माकहर हैं।
अब से आपकी परे शानी हमारी परे शानी है। क्ों िैण्ड् स आप सब क्ा कहते हैं??"

कमलनाथ के अं कतम िाक् पर सबने अपनी प्रकतकक्रया सहमकत के रूप में दी। ये सब
दे ख कर अजय कसं ह अं दर ही अं दर बे हद खु श हो गया था।

"कमस्टर कसं ह।" सहसा इस बीच एक किदे शी ने कहा___"कपछली डील अभी तक


कम्प्प्लीट नही ं हुआ। क्ा हम जान सकता हाय कक इतना कडले करने का तु म्हारा क्ा
मतलब हाय? बात थोडी बहुत की होती तो हम उसको भू ल भी सकता था बट एज यू
नो िो सारी ची़िें लाखों करोडों में हाय। सो हाउ कैन आई िारगेट?"

"हम जानते हैं कमस्टर लाॅरे न।" अजय कसं ह ने बे चैनी से पहलू बदला___"कक िो सब
करोडों का सामान है। ले ककन मौजूदा िक्त में हम ऐसी ल्कथथत में नही ं हैं कक आपका
पै सा आपको दे सकें। इसके कलए आपको तब तक रुकना पडे गा जब तक कक हमारे
कसर पर से ये मुसीबत और ये परे शानी न हट जाए। प्ली़ि टर ाई टू अण्डरस्टै ण्ड
कमस्टर लाॅरे न।"

"ओखे ।" लाॅरे न ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तु म्हारी हर तरह से मदद करे गा। बट
सारी प्राब्ले म किकनश होने के बाद तु म हमारा पू रा पै सा दे गा। इस बात का प्राकमस
करना पडे गा तु मको।"
"कमस्टर लाॅरे न।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप
जानते हैं कक ठाकुर साहब के पास इस समय ककतनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद
भी आप कसिग अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकक आपको करना तो ये चाकहए
था कक आप सब कुछ भू ल कर कसिग ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर
कनकालें ।"

"तो हमने कब मना ककया इस बात से कमस्टर कमलनाथ?" लाॅरे न ने कहा___"हम


कह ओ रहा है कक हम हर तरह से इनकी मदद करे गा।"
"हाॅ ले ककन यहाॅ पर आपको अपने पै सों की बात करना उकचत नही ं है न।"
कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाकहए कक पै सा कसिग आपका ही
बस बकाया नही ं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। ले ककन हमने तो इनसे

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पै सों के बारे में कोई बात नही ं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरे न ने बे चैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब


बताइये क्ा करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कक हम सबको क्ा करना
होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता कदया है कक आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें
दीकजए जो हर तरह के काम में माकहर हों।" अजय कसं ह ने कहा___"उसके बाद हम
खु द ही तय करें गे कक हमें उन आदकमयों से क्ा और कैसे काम ले ना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाकटल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन


सबको आपके पास भे ज दें गे।"
"ओह थै क्ू सो मच टू आल ऑि यू कडयर िैण्ड् स।" अजय कसं ह ने खु श होकर
कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे िादा करते हैं कक इस सबसे कनपट ले ने के बाद
हम बहुत जल्द आप सबके पै सों का कहसाब ककताब कर दें गे।"

अजय कसं ह की इस बात के साथ ही मीकटं ग खत्म हो गई। सबने अजय कसं ह को अपने
आदमी भे जने का कहा और किर सब एक एक करके मीकटं ग हाल से बाहर की तरि
चले गए। सबके जाने के बाद अजय कसं ह भी बाहर की तरि कनकल गया। बाहर
पाककिंग में खडी अपनी कार में बै ठ कर अजय कसं ह घर की तरि कनकल गया।

कुछ ही समय में अजय कसं ह हिे ली पहुॅच गया। अं दर डराइं गरूम में रखे सोिों पर
प्रकतमा और कशिा बै ठे थे । अजय कसं ह भी िही ं रखे एक सोिे पर बै ठ गया। उसने
प्रकतमा को चाय बनाने का कहा तो प्रकतमा रसोई की तरि बढ गई। जबकक अजय
कसं ह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोिे की कपछली पु श् से पीठ
कटका कर लगभग ले ट सा गया।

कशिा को समझ न आया कक अपने बाप से बातों का कसलकसला कैसे और कहाॅ से


शु रू करे ? ऐसा कदाकचत इस कलए था क्ोंकक आज सारा कदन उसने अपनी माॅ के
साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारर् कही ं न कही ं हिी सी कझझक उसके
अं दर मौजूद थी।

"आप इतना ले ट कैसे हो गए डै ड?" आकखर कशिा ने बात शु रू कर ही दी,


बोला___"आपने तो कहा था कक जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ़िरूरी मीकटं ग में ब्यस्त हो गया था बे टे।" अजय कसं ह ने उसी हालत में
कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माकहर

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होंगे। अब मैं भी दे खूॅगा कक िो हराम़िादा किराज और ररतू कैसे उन आदकमयों को
कठकाने लगाते हैं?"

"ऐसे िो कौन से आदमी हैं डै ड?" कशिा ने ना समझने िाले भाि से कहा___"क्ा
आप अभी भी ऐसे ककन्ही ं आदकमयों पर ही भरोसा करें गे? जबकक पालतू आदकमयों
का क्ा हस्र हुआ है ये आपको बताने की ़िरूरत नही ं है।"

"हमारे आदमी कदमाग़ से पू री तरह पै दल थे बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"िो सब


अपने शारीररक बल को महत्व दे ते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही
नही ं कक शरीररक बल से कही ं ज्यादा कदमाग़ी बल कारगर होता है। खै र, अब जो
आदमी यहाॅ आएॅगे िो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर िक्त हर तरह के खतरे
िाले कामों को ही अं जाम दे ते हैं । दू सरी बात ये है कक ररतू एक आम लडकी नही ं है
कजसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यल्कक्त आसानी से पकड ले गा, बल्कि िो एक पु कलस िाली भी
है। कजसके पास सारा पु कलस कडपाटग मेन्ट भी है । ऐसे में अगर हम खु द उस पर हाॅथ
डालें गे तो िो हमें कानू न की चपे ट में डाल सकती है। इस कलए हमने सोचा है कक हम
पहले ऐसे आदकमयों के द्वारा उसे पकड लें कक कजनसे िो आसानी से मुकाबला भी न
कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कक मे रे िो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर
पकडें गे कजसके बारे में उसे अं देशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" कशिा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही
रर्नीत है डै ड। अगर िो सब आदमी िै से ही हर काम में माकहर हैं जैसा कक आप
बता रहे हैं तो किर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय कसं ह कुछ बोलने ही िाला था कक तभी ककचे न से आती हुई प्रकतमा हाॅथ
में चाय का टर े कलए िहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बे टे को एक एक कप चाय
पकडाई और एक कप खु द ले कर िही ं एक सोिे पर बै ठ गई।

"कौन से आदकमयों की बात चल रही है अजय?" प्रकतमा ने सोिे पर बै ठने के साथ ही


पू छा था। उसके पू छने पर अजय कसं ह ने उसे भी िही सब बता कदया जो अभी उसने
कशिा को बताया था। सारी बात सु नने के बाद प्रकतमा कुछ दे र गंभीरता से सोचती
रही।

"तो अब तु मने बाहर से आदमी मगिाए हैं।" किर प्रकतमा ने कतरछी ऩिर से दे खते
हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तु म्हें कक िो तु म्हें इस बार नाकामी का नही ं
बल्कि ितह का स्वाद चखाएॅगे?"
"कबलकुल।" अजय कसं ह ने िष्ट भाि से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं कजनका

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िास्ता अपराध की हक़ीक़त दु कनयाॅ से है और ये सब उस अपराध की दु कनयाॅ के
सिल ल्कखलाडी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी दे ख ले ते हैं।" प्रकतमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"िै से


इस बात पर भी ध्यान दे ना कक समय हर िक्त इसी बस के कलए नही ं रहता।"
"क् मतलब??" अजय कसं ह चकराया।
"मतलब ये कक हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सिल ल्कखलाडी की पहचान
नही ं होती।" प्रकतमा ने समझाने िाले भाि से कहा__"ऐसे में सामने िाले ल्कखलाडी के
कदमाग़ में ये मैसेज जाता है कक उसका प्रकतद्वं दी कम़िोर है जो कसिग एक ही तरह की
चाल चलना जानता है और उसकी ये बे िकूिी भी कक उसी एक तरह की चाल से िह
खे ल को जीत ले ने की उम्मीद भी करता है। इस कलए एक अच्छे ल्कखलाडी को चाकहए
कक बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी ले ना चाकहए।"

"बात तो तु म्हारी ठीक है कडयर।" अजय कसं ह ने चाय का खाली कप सामने काॅच
की टे बल पर रखते हुए बोला___"ले ककन इसको इस एं गल से भी तो सोच कर दे खो
़िरा। मतलब ये कक सामने िाले ल्कखलाडी के कदमाग़ में हम जानबू झ कर ये मैसेज
डाल रहे हैं कक हमारे पास कसिग एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो।
जबकक हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात दें गे कक उसे
इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे । कजसे िो हमारी कम़िोरी समझेगा िो दरअसल
हमारी चाल का ही एक कहस्सा होगा।"

"ओहो क्ा बात है कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्ा तकग
कनकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान दे ने िाली बात ये है
कक हमारे पास समय नही ं है समय बबागद करने के कलए भी। सोचने िाली बात है कक
हम अब भी िही ं हैं जहाॅ पर थे जबकक हमारा दु श्मन बहुत कुछ करके यहाॅ कनकल
भी चु का है। हाॅ अजय, िो रं डी का जना किराज अब यहाॅ नही ं होगा। बल्कि कजस
काम से िो यहाॅ आया था उस काम को करके िो िापस मुम्बई चला गया होगा।
आकखर इस बात का एहसास तो उसे भी है कक उसने हमारे इतने सारे आदकमयों का
कक्रयाकमग करके गायब ककया है कजसका अं जाम ककसी भी सू रत में उसके कहत में
नही ं होगा। इस कलए अपना काम पू रा करने के बाद िो यहाॅ पर एक पल भी रुकना
गिाॅरा नही ं करे गा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डै ड।" सहसा इस बीच कशिा ने भी अपना पक्ष रखा___"िो
यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे खतरे के बीच रुकने की कहाॅ की
समझदारी ।होगी? अब ये भी िष्ट हो गया है कक उसके बाद यहाॅ कसिग ररतू दीदी
ही रह गई हैं।"

661
"ररतू ही बस नही ं है बे टे।" अजय कसं ह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तु म्हारी नै ना
बु आ भी है।"
"क्ाऽऽ???" अजय कसं ह की इस बात से कशिा और प्रकतमा दोनो ही बु री तरह चौ ंके
थे , जबकक प्रकतमा ने कहा___"तु म ये कैसे कह सकते हो अजय? नै ना तो िापस अपने
ससु राल चली गई थी न उस कदन?"

"िो ससु राल नही ं।" अजय कसं ह ने कहा___"बल्कि ररतू के साथ कही ं और गई थी।
नै ना ने तो ससु राल जाने का कसिग बहाना बनाया था जबकक हक़ीक़त ये थी कक ररतू
उसे खु द यहाॅ से कनकाल कर ले गई थी। ये सब ररतू का ही ककया धरा था।"

"ले ककन ये सब तु म्हें कैसे पता अजय?" प्रकतमा ने चककत भाि से कहा___"और ररतू ने
भला ऐसा क्ों ककया होगा?"
"उस कदन नै ना जब ररतू के साथ गई तो ये सच है कक एक भाई होने के नाते मुझे
खु शी हुई थी कक चलो अच्छा हुआ कक नै ना को उसके ससु राल िालों ने बु लाया है।"
अजय कसं ह कह रहा था___"मगर जब दो कदन बाद भी नै ना का कोई िोन नही ं आया
तो मैने सोचा कक मैं ही िोन करके पता कर लू ॅ कक िहाॅ सब ठीक तो है न? इस
कलए मैने नै ना के ससु राल में नै ना को िोन लगाया मगर नै ना का िोन बं द बता रहा
था। कई बार के लगाने पर भी जब नै ना का िोन बं द ही बताता रहा तो मैने नै ना के
हस्बै ण्ड को िोन लगाया और उनसे पू छा नै ना के बारे में तो उसने साि साि
कठोरता से मना कर कदया कक उसके यहाॅ नै ना नही ं आई और ना ही उसका नै ना
से कोई ले ना दे ना है अब। नै ना के पकत की ये बात सु न कर मेरा कदमाग़ घूम गया।
मुझे समझते दे र न लगी कक नै ना को हिे ली से कनकाल कर ररतू ही ले गई है। उसे
शायद ये बात कही ं से पता चल गई होगी कक हम दोनो बाप बे टे की गंदी ऩिर नै ना
पर है। इस कलए ररतू ने उसे इस हिे ली से बडी चालाकी से कनकाल कलया और अपनी
बु आ को ककसी ऐसी जगह पर सु रकक्षत रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी
से पहुॅच भी न सकें।"

"हे भगिान! इतना बडा खे ल खे ल गई ररतू ।" प्रकतमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये


बात सच है तो यकीनन हमारी बे टी ने हमें उल्लू बना कदया है। उसने बडी सिाई और
चतु राई से आपके मु ह से आपका मन पसं द कनिाला छीन कलया है कजसका हमें
एहसास तक नही ं हो सका।"

"जब हमारी बे टी ने ही हमें धोखा दे कदया तो कोई क्ा कर सकता है?" अजय कसं ह ने
कहा___"ले ककन अब जो हम उसके साथ करें गे उसकी उसने कल्पना भी न की
होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से ले कर अब तक क्ा कुछ नही ं

662
कदया। उसने कजस ची़ि की आऱिू की हमने पल भर में उस ची़ि को लाकर उसके
क़दमों में डाल कदया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये कसला कदया हमें। इतने
सालों का लाड प्यार उसके कलए कोई मायने नही ं रखता। दे ख लो प्रकतमा, ये है
तु म्हारी बे टी का अपने माॅ बाप के प्रकत प्रे म और लगाि। जो अपने बाप के दु श्मन के
साथ कमल कर खु द अपने ही पै रेंट् स के कलए मौत का सामान जुटाने पर तु ली हुई है।
इस हाल में अगर तु म मुझसे ये कहो कक मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दू ॅ तो
ऐसा हकगग़ि नही ं हो सकता अब। तु म्हारी बे टी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी
मौत को चु न कलया है कजसके ददग का ककसी को एहसास नही ं हो सकता।"

"पहले मु झे भी लगता था अजय कक िो आकखर हमारी बे टी है।" प्रकतमा ने कठोरता


से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बे हद गु स्सा आया हुआ है।
मैं जानती हूॅ कक िो अब दू ध पीती बच्ची नही ं रही है कजसके कारर् उसे हर ची़ि का
पाठ पढाना पडे गा। बल्कि अब िो बडी हो गई है। कजसे अपने और अपनों के अच्छे
बु रे का बखू बी खयाल है। इसके बाद भी िो अपने ही पै रेंट् स का बु रा चाहने िाला
काम ककया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कक उसे उसके इस अपराध की शख्त से
शख्त स़िा कमले । दै ट्स आल।"

कुछ दे र और तीनो के बीच बातें होती रही ं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया
और सोने के कलए कमरों में चले गए। इस बात से अं जान कक आने िाली सु बह उनके
कलए क्ा धमाका करने िाली है????
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ररतू की कजप्सी िामगहाउस पहुॅची।


लोहे िाले गेट के पास ही शं कर और हररया काका बं दूख कलए खडे थे । ररतू की
कजप्सी को दे खते ही दोनो ने गेट खोल कदया। गेट खु लते ही ररतू ने कजप्सी की गेट के
अं दर बढा कदया। कुछ ही पल में ररतू की कजप्सी पोचग में जाकर रुकी। कजप्सी से उतर
कर ररतू ने हररया काका को आिा़ि दे कर बु लाया। हररया के आते ही ररतू ने उससे
कजप्सी के पीछे बडी सी प्वालीकथन के नीचे ढकी मंत्री की बे टी को उठा कर तहखाने
में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कक तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही
रखे ।

ररतू के कहने पर हररया ने िै सा ही ककया। आज एक लडकी को इस तरह तहखाने में


ले आते दे ख हररया काका अं दर ही अं दर बे हद खु श हो गया था। लडकी को दे ख कर
उसके मन में ढे र सारे लड् डू िूट रहे थे । कािी कदन से लडकी गाॅड मार मार कर
िो अब उकता सा गया था। अब उसे एक िेश माल की ़िरूरत महसू स हो रही थी।
कबं कदया को ज्यादा से र्क् करना पसं द नही ं था इस कलए हररया को िह रोज रोज

663
अपने पास नही ं आने दे ती थी। कजसकी िजह से हररया उससे खू ब नारा़ि हो जाया
करता था। मगर कर भी क्ा सकता था??

मन में ढे र सारे खु शी के लड् डू िोडे िह लडकी को तहखाने में ले जाकर उसे िही ं
तहखाने के िसग पर ले टा कदया। लडकी अभी भी बे होश ही थी। तहखाने में रल्कस्सयों
से बधे िो चारो असहाय अिथथा में लगभग झल ू से रहे थे । उन चारों की हालत ऐसी
हो गई थी कक पहचान में नही ं आ रहे थे । कजस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के
और कुछ नही ं। इस िक्त चारो के कसर नीचे की तरि झुके हुए थे । उनमें इतनी भी
कहम्मत नही ं थी कक कसर उठा कर सामने की तरि दे ख भी सकें कक कौन ककसे ले कर
आया है? हररया काका ने एक ऩिर उन चारों पर डाली उसके बाद िो लडकी की
तरि एक बार दे खने के बाद तहखाने से बाहर की तरि चला गया। कुछ दे र में जब
िो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकडी की कुसी थी।

लकडी की कुसी को तहखाने में एक तरि रख कर िो पलटा और किर लडकी उठा


कर उस कुसी पर बै ठा कदया। उसने लडकी के दोनो हाथों को कुसी के दोनो साइड
एक एक करके रस्सी से बाॅध कदया। उसके बाद उसके पै रों को भी नीचे कुसी के
दोनो पािों पर एक एक कर बाॅध कदया। लडकी के झुके हुए कसर को ऊपर उठा कर
उसने कुसी की कपछली पु श् से कटका कदया। कुछ दे र तक हररया काका उस लडकी
को ललचाई ऩिरों से दे खता रहा उसके बाद िो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने
का गेट बं द कर िो बाहर गेट के पास खडे शं कर के करीब आ गया।

उधर, मंत्री की बे टी को हररया के हिाले करने के बाद ररतू अं दर अपने कमरे की


तरि बढ गई। कमरे में आकर उसने अपनी िदी को उतारा और बाथरूम में घुस
गई। जब िह िेश होकर बाहर आई तो कमरे में नै ना बु आ को दे ख कर िह चौ ंकी।
दरअसल इस िक्त िह कसिग एक हिे कपं क कलर के टाॅिे ल में थी।

बाॅथरूम का दरिाजा खु लने की आिा़ि से बे ड पर बै ठी नै ना का ध्यान उस तरि


गया तो ररतू को मात्र टाॅिे ल में दे ख कर िह हौले से मु स्कुराई। उसके यूॅ मु स्कुराने
से ररतू के चे हरे पर अनायास ही लाज और हया की सु खी िैल गई। होठों पर हिी
मुस्कान के साथ ही उसकी ऩिरें झुकती चली गईं। ररतू का इस तरह शरमाना नै ना
को कािी अच्छा लगा। उसे पता था कक उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से ककतनी
ही कठोर हो ककन्तु अं दर से िह एक शु ि भारतीय लडकी है जो ऐसी पररल्कथथकत में
शरमाना भी जानती है।

"चल मुझसे शरमाने की ़िरूरत नही ं है ररतू ।" नै ना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू
आराम से अपने कपडे पहन ले । किर हम बातें करें गे।"

664
"शमग तो आएगी ही बु आ।" ररतू ने इजी िील करने के बाद ही हौले से मु स्कुराते हुए
कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी ककसी के सामने नही ं आई। भले ही िो मेरे घर
का ही कोई सदस्य हो।"

"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नै ना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी


बच्ची। सो िील इजी एण्ड कम्प्िटे बल।"
नै ना की इस बात से ररतू बस मु स्कुराई और किर पास ही एक साइड रखी आलमारी
से उसने अपने कपडे कनकाले और किर िापस बाथरूम में घुस गई। ये दे ख कर नै ना
एक बार पु नः मुस्कुरा उठी।

थोडी दे र बाद ररतू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खू बसू रत से बदन


पर भारतीय लडककयों का शु ि सलिार सू ट था और सीने पर दु पट्टा। िो इन कपडों
में बहुत ही खू बसू रत लग रही थी। नै ना ने उसे गहरी ऩिर से एक बार ऊपर से नीचे
तक दे खा किर बे ड से उठ कर ररतू के पास आई और ररतू का कसर पकड कर अपनी
तरि ककया और उसके माथे पर हिे चू म कलया।

"बहुत खू बसू रत लग रही है मेरी बच्ची।" किर नै ना ने मु स्कुरा कर कहा___"ककसी की


ऩिर न लगे । ईश्वर हर बला से दू र रखे तु झे।"
"आप भी न बु आ।" ररतू ने हसते हुए कहा___"खै र छोकडये ये बताइये आपको यहाॅ
अच्छा तो लगता है न? कही ं ऐसा तो नही ं कक आप यहाॅ पर इजी िील नही ं करती हैं
और खु द को यहाॅ मजबू रीिश रहने का सोचती हैं?"

"अरे नही ं ररतू ।" नै ना ने ररतू का हाॅथ पकड कर उसे बे ड पर बै ठाने के बाद खु द भी
बै ठते हुए कहा___"यहाॅ मु झे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परे शानी से दू र
हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त ि साि िातािरर् मन को बे हद सु कून दे ता है। यहाॅ
कबं कदया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्ा चाकहए? कपछले कुछ कदनों में
अपने कुछ अ़िी़िों से भी कमल कलया, ऐसा लगा जैसे किर से इस घर में िही पु राना
िाला दौर लौट आया है।"

"कचन्ता मत कीकजए बु आ।" ररतू ने कहा___"पु राना िाला समय किर से आएगा। किर
से पहले जैसी ही खु कशयाॅ हमारे बीच रक्श करें गी। बस इन खु कशयों को बरबाद
करने िालों का एक बार ककस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद किर से िही हमारा िही
सं सार होगा मगर एक नये सं सार के रूप में। कजसमें सबके बीच कसिग बे पनाह प्यार
होगा। जहाॅ ककसी घृर्ा अथिा ककसी प्रकार की नफ़रत के कलए कोई थथान ही ं नही ं
होगा।"

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"क्ा सच में तू ने अपने माता कपता के कलए उनका अं जाम बु रा ही सोचा हुआ है?"
नै ना ने पू छा___"क्ा ऐसा नही ं हो सकता कक उन्हें उनके कमों की स़िा भी कमल
जाए और िो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इं सानों की तरह?"

"ये असं भि है बु आ।" ररतू ने कठोरता से कहा__"जो इं सान इतना ज्यादा अपने सोच
और किचार से कगर जाए कक िो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का
सोच डाले उससे भकिष्य में अच्छाई की उम्मीद हकगग ़ि नही ं करनी चाकहए। दू सरी
बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के कलए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं ककसी सू रत पर
उन्हें माफ़ नही ं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के कलए कही ं पर भी कोई रास्ता नही ं
छोंडा है। उन्होंने हर ररश्े के कलए कसिग गंदा सोचा है और गंदा ककया है। उन्होने
अपने स्वाथग के कलए अपने दे िता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे
भाई की पत्नी पर बु री ऩिर डाली। सबसे बडी बात तो उन्होंने ये की कक अपने ही बे टे
के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शाकमल ककया कजस काम को ककसी भी जाकत
धमग में उकचत नही ं माना जाता बल्कि सबसे ऊचे द़िे का पाप माना जाता है। ऐसे
इं सानों को माफ़ी कैसे कमल सकती है बु आ? नही ं हकगग़ि नही ं। ना तो मैं माफ़ करने
िाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घकटया लोगों को माफ़ करे गा। एक पल के
कलए अगर ऐसा हो जाए कक राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नही ं माफ़ कर
सकती। हाॅ बु आ....मेरे अं दर उनके प्रकत इतना ़िहर और इतनी नफ़रत भर चु की है
कक अब ये उनकी मौ से ही दू र होगी। मुझे दु ख इस बात का नही ं होगा कक मेरे माॅ
बाप दु कनयाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कक ऐसे गंदे
इं सानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मु झे इस धरती पर भे ज कदया था।"

ररतू की इन बातों से नै ना चककत भाि से दे खती रह गई उसे । उसे एहसास था कक


ररतू के अं दर इस िक्त ककस तरह की भािनाओं का चक्रिात चालू था कजसके तहत
िो इस तरह अपने ही माॅ बाप के कलए ऐसा बोल रही थी। नै ना खु द भी यही
समझती थी कक ररतू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इं सान के मर जाने का कोई
दु ख या सं ताप नही ं हो सकता।

"माॅ बाप तो िो होते हैं बु आ जो अपने बच्चों को अच्छी कशक्षा दे ते हैं।" ररतू दु खी
भाि से कहे जा रही थी__"बाल्य अिथथा से ही अपने बच्चों के अं दर अच्छे सं स्कार
डालते हैं। सबके प्रकत आदर ि सम्मान करने की भािना के बीज बोते हैं। सबके कलए
अच्छा सोचने की सीख दे ते हैं । कभी ककसी के बारे में बु रा न सोचने का ज्ञान दे ते हैं।
मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से कसिग यही पाठ पढाया था
कक हिे ली के अं दर रहने िाला हर ब्यल्कक्त बु रा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और
ना ही इन्हें अपने पास आने दे ना। कहते हैं इं सान िही दे ता है जो उसके पास होता है।
सच ही तो है बु आ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को दे ने के कलए।

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िो खु द ऊचे द़िे के बु रे इं सान थे , उनके अं दर पाप और बु राईयों का भण्डार था। िही
सब उन्होंने अपने बच्चों को भी कदया। ये तो समय की बात है बु आ कक िो हमेशा एक
जैसा नही ं रहता। हर ची़ि की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के कलए समय ़िरूर
आपको ऐसे मोड पर ले आता है जहाॅ आपको हर ची़ि की असकलयत का पता चल
जाता है। इस कलए ये अच्छा ही हुआ कक समय मुझे ऐसे मोड पर ले आया। िरना मैं
जीिन भर इस बात से बे खबर रहती कक कजन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ
पढाया गया था कक ये सब बु रे लोग हैं िो िास्ति में ककतने अच्छे थे और गंगा की तरह
पकित्र थे ।"

"हर इं सान की सोच अलग होती है ररतू ।" नै ना ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"और
हर इं सान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं । कुछ लोग अपनी इच्छा और खु शी के कलए
अनै कतकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दू सरों की खु शी और भलाई के
कलए अपनी हर खु शी और इच्छाओं का गला घोंट दे ते हैं। अनै कतकता की राह पर
चलने िाले ये सोचना गिाॅरा नही ं करते कक जो कमग िो कर रहे हैं उससे जाकत
समाज और खु द के घर पररिार पर ककतना बु रा प्रभाि पडे गा? उन्हें तो बस अपनी
खु कशयों से मतलब होता है। जबकक इसके किपरीत अच्छे इं सान अपने अच्छे कमों से
आदशग के नये नये कीकतग मान थथाकपत करते हैं । खै र छोंड इन बातों को और ये बता
कक आगे का क्ा सोचा है?"

"सोचना क्ा है बु आ?" ररतू ने कहा___"मेरा भाई मु झसे कह गया है कक मैं उसके
िापस आने का इन्त़िार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस ककस्से का
खात्मा करें गे।"
"पर ये सब होगा कैसे ?" नै ना ने कहा___"तु म दोनो इस काम को अकेले कैसे अं जाम
तक पहुॅचाओगे?"

"मुझे खु द पर और अपने भाई राज पर पू रा भरोसा है बु आ।" ररतू ने गिग से


कहा___"आप दे खना हम दोनो कैसे इस सबको किकनश करते हैं? अब तो ररतू राज
िेशल गे म होगा बु आ। मैं बस राज के आने का बे सब्री से इन्त़िार कर रही हूॅ।"

"तु म तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है ।" नै ना ने हैरानी से


कहा___"जबकक मेरा तो सोच सोच कर ही कदल बु री तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने िाली क्ा बात है बु आ?" ररतू ने िष्ट भाि से कहा___"सीधी और
साि बात है कक जो लोग कसर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं िो किर ककसी
ची़ि से घबराते नही ं हैं। बल्कि मौत से भी डट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक
मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सु रक्षा में चली जाए तो कोई ग़म
नही ं है। बल्कि मु झे बे हद खु शी होगी कक मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के कलए

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िना हो गई कजसने िास्ति में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मु झे इज्ज़ित
ि सम्मान कदया।"

"ऐसा मत कह ररतू ।" नै ना की ऑखों से ऑसू छलक पडे , बोली____"तु झे कुछ नही ं
होगा और खबरदार अगर दु बारा से ऐसी िालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी
बच्ची। तु झे कुछ नही ं होगा क्ोंकक तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धमग की राह पर
मुकीम है तू । अगर ककसी को कुछ होगा तो िो उन्हें होगा जो इस दे श समाज और
पररिार के कलए कलं क हैं।"

"खै र जाने दीकजए बु आ।" ररतू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्ा रखा है?
होना तो िही है जो हर ककसी की कनयकत में कलखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते
हैं। कबं कदया काकी ने खाना तै यार कर कदया होगा।"

ररतू की ये बात सु न कर नै ना उसे कुछ दे र अजीब भाि से दे खती रही, किर ररतू के
उठते ही िो भी बे ड से उठ बै ठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायकनं ग हाल की तरि
बढ चली ं। जहाॅ पर करुर्ा का भाई और अभय कसं ह का साला बै ठा इन्ही ं का
इन्त़िार कर रहा था। ये दोनो भी िही ं रखी एक एक कुकसग यों पर बै ठ गई। कुछ ही
दे र में कबं कदया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों
की तरि सोने के कलए चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

सु बह हुई!
उस िक्त सु बह के लगभग साढे आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उडाती हुई कई
सारी गाकडयाॅ आकर हिे ली के बाहर एक एक करके रुकी ं। िो तीन गाकडयाॅ थी।
एक सिारी, एक इनोिा, और एक आई20 थी। तीनों गाकडयों के रुकते ही सभी
गाकडयों के दरिाजे एक साथ खु ले और खु ल चु के दरिाजे से एक एक दो दो करके
कई सारे आदमी गाकडयों से बाहर कनकले ।

बाहर आते ही िो सब एक साथ हिे ली के उस कहस्से के मुख्य दरिाजे की तरि बढे


जो कहस्सा अजय कसं ह का था। इस िक्त दरिाजा बं द था। आस पास कुछ ऐसे
आदमी भी बाहर मौजूद थे कजनके हाॅथों में बं दूख, ररिावर आकद हकथयार थे ।
गाकडयों से आने िाले सभी लोग मुख्य दरिाजे की तरि मुड चले । आस पास खडे
अजय कसं ह के बं दूखधारी आदकमयों के चे हरों पर अजीब से भाि उभरे । अजीब से
इस कलए क्ों कक गाकडयों से आने िाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य
दरिाजे की तरि बढ चले थे ।

आस पास खडे बं दूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को दे ख उन्हें रोंकने के

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कलए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पू छने लगे कक िो कौन
लोग हैं और इस तरह कैसे कबना कुछ पू छे अं दर की तरि बढे चले जा रहे हैं? ककन्तु
बं दूखधाररयों के पू छने पर उन लोगों ने कोई जिाब नही ं कदया बल्कि अपने अपने
कोट की सामने िाली पाॅकेट से अपना अपना आई काडग कनकाल कर बं दूखधाररयों
को कदखा कदया। बं दूखधारी ये दे ख कर बु री तरह चौ ंके कक िो सब सी बी आई की
िेशल ऑिीसर थे । बं दूखधाररयों को कबलीउल भी समझ न आया कक िो लोग
यहाॅ क्ों आए हैं और िो खु द अब क्ा करें ? उधर आई काडग कदखाने के बाद िो
लोग मुख्य दरिाजे के पास पहुॅच गए और दरिाजे पर लगी कुण्डी को ़िोर से बजा
कदया।

कुछ ही दे र में दरिाजा खु ला। दरिाजे पर नाइट गाउन पहने प्रकतमा ऩिर आई।
अपने सामने इतने सारे अजनबी आदकमयों को दे ख कर िो चौ ंकी। उसके चे हरे पर
ना समझने िाले भाि उभरे ।

"जी ककहए।" किर उसने अजीब भाि से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ
ककस काम से आए हैं?"
"हमें अं दर तो आने दीकजए मैडम।" एक आदमी ने ़िरा शालीन भाि से
कहा___"कमस्टर अजय कसं ह से कमलना है।"

"पर आप लोग हैं कौन?" प्रकतमा ने दरिाजे पर खडे खडे ही पू छा___"ये तो बताया
नही ं आपने ।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब कमस्टर अजय कसं ह के
गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें ककहए कक हम उनसे कमलने आए हैं।"

प्रकतमा उस आदमी की बात सु न कर दे खती रह गई उसे । उसके चे हरे पर ऐसे भाि


थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कक ये लोग अछय कसं ह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ
दे र उस आदमी को दे खते रहने के बाद जाने क्ा सोच कर प्रकतमा दरिाजे से हट कर
पलटी और अं दर की तरि बढती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल कदये।

कुछ ही दे र में प्रकतमा के पीछे पीछे ये सब डराइं ग रूम में पहुॅच गए। प्रकतमा ने सोिों
की तरि हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बै ठने के कलए कहा। प्रकतमा के इस
प्रकार कहने पर िो सब लोग सोिों पर बै ठ गए जबकक प्रकतमा अं दर कमरे की तरि
बढ गई।

थोडी ही दे र में अजय कसं ह डराइं ग रूम में दाल्कखल हुआ। डराइं ग रूम में सोिों पर बै ठे
इतने सारे लोगों पर ऩिर पडते ही उसके चे हरे पर अजनबीयत के भाि उभरे । जैसे

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पहचानने की कोकशश कर रहा हो कक ये सब लोग कौन हैं?

"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नही ं।" किर उसने एक अलग सोिे
पर बै ठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे कमले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान ले ते।"
एक कोटधारी ने अजीब भाि से कहा___"खै र, आपकी जानकारी के कलए हम बता दें
कक हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अिीम, और डरग्स का धंधा
करने के जुमग में कगरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके ल्कखलाफ़ िेशल िारं ट
भी है। इस कलए आप कबना कुछ सिाल जिाब ककये हमारे साथ चलने का कस्ट
करें ।"

सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सु न कर अजय कसं ह के पै रों के नीचे से


़िमीन ल्कखसक गई। बु त सा बन गय था िह। मुख से कोई बोल न िूटा। कजस्म के
सभी मसामों ने पल भर में ढे र सारा पसीना उगल कदया। चे हरा इस तरह ऩिर आने
लगा था जैसे धमकनयों में दौडते हुए लहू की एक बू ॅद भी शे ष न बची हो। एकदम
िक्क पड गया था।

"ये...ये ...क्...क्ा बकिास कर रहे हैं आप?" किर सहसा बदहिाश से अजय कसं ह ने
जैसे खु द को सम्हाला था और किर िापस ठाकुरों िाले रौब में आते हुए बोला था। ये
अलग बात है कक उसके उस रौब में रिी भर भी रौब कदखाई न कदया, बोला___"आप
होश में तो हैं न? आप जानते हैं कक आप ककसके सामने क्ा बकिास कर रहे हैं?"

"हम तो पू री तरह होशो हिाश में ही हैं कमस्टर अजय कसं ह।" सीबीआई ऑकिसर ने
कहा___"ककन्तु आपके होशो हिाश ़िरूर कही ं खो गए से ऩिर आने लगे हैं। रही
बात आपकी कक आप कौन हैं और हम आपसे क्ा कह रहे हैं तो इससे कोई िक़ग
नही ं पडता। क्ोंकक हम कानू न के नु माइं दे हैं। हमारे कलए छोटे बडे सब एक जैसे ही
होते हैं। खै र, हमने आपके शहर िाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानू नी ़िखीरा
बरामद ककया है। सारी जाॅच पडताल के बाद जब हमें ये पता चला कक िो सब
आपकी सं मकि है तो हम कोटग से िेशल िारं ट ले कर आपको यहाॅ कगरफ्तार करने
चले आए। इस कलए अब आपके पास हमारे साथ चलने के कसिा दू सरा कोई चारा
नही ं है।"

ऑिीसर की ये बात सु न कर एक बार किर से अजय कसं ह की हालत खराब हो गई।


िो सोच भी नही ं सकता था कक उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तु रंत ही
िैक्टर ी में लगी आग का िाक्ा याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानू नी सामान
गायब होने का पता चला था उसे । िो ये भी समझ गया था कक ये सब किराज ने ही

670
ककया था। प्रकतमा ने इस बात का अं देशा भी ब्यक्त ककया था कक ककसी ऐसे मौके पर
िो ये सब कानू न के हिाले कर सकता है जबकक हम कुछ भी करने की ल्कथथकत में ही
न रह जाएॅगे। मतलब साि था कक प्रकतमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी
किराज ने उस सारे सामान को उसके शहर िाले मकान में रखा और किर इसकी
सू चना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई िाले अजय कसं ह के पास िेशल िारं ट
ले कर आ गए थे । अजय कसं ह खु द भी सरकारी िकील रह चु का था इस कलए जानता
था कक ऐसे मौके पर िह कुछ भी नही ं कर सकता था। कोई दू सरा जुमग होता तो
कदाकचत िो कोई जु गाड लगा कर अपनी ़िमानत करिा भी ले ता मगर यहाॅ तो जुमग
ही सं गीन था।

"ककस सोच में डूब गए कमस्टर अजय कसं ह?" तभी उसे सोचो में गुम दे ख ऑिीसर ने
कहा___"आप अपनी म़िी से हमारे साथ चलें गे तो बे हतर होगा, िरना आप जानते है
कक हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के कलए।"

"ऑिीसर।" सहसा अजय कसं ह ने अजीब भाि से कहा___"ये सब झॅ ू ठ हैं। हम ऐसा


कोई काम नही ं करते कजसे कानू न की ऩिर में जुमग कहा जाए। ये यकीनन ककसी की
साकजश है हमें िसाने की। हाॅ ऑिीसर, ये साकजश ही है। कािी समय से हमारा
शहर िाला मकान खाली पडा है इसकलए सं भि है कक ककसी ने ये सब गैर कानू नी
ची़िें िहाॅ पर छु पा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई ले ना दे ना नही ं है।"

"सच और झठ ू का िैसला तो अब अदालत ही करे गी कमस्टर अजय कसं ह।" ऑकिसर


ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कक प्राप्त सबू तों के आधार पर आपको
कगरफ्तार कर अदालत के समक्ष खडा कर दें । इस कलए अब आपकी कोई दलील
हमारे सामने चलने िाली है।"

अभी अजय कसं ह कुछ कहने ही िाला था कक तभी अं दर से प्रकतमा और कशिा आकर
िही ं पर खडे हो गए। दोनो के चे हरों पर हल्दी पु ती हुई थी। मतलब साि था कक
यहाॅ की सारी िातागलाप उन दोनो ने सु न ली थी।

"ये सब क्ा है डै ड?" कशिा ने अं जान बनते हुए पू छा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ
ककस कलए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बे टे।" अजय कसं ह ने बु झे मन से कहा___"और ये हमे
कगरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कक हमारे शहर िाले मकान से इन्होंने भारी
मात्रा में चरस अिीम डरग्स आकद ची़िें बरामद की हैं।"

"व्हाऽऽट??" कशिा ने चौ ंकते हुए कहा___"ये आप क्ा कह रहे हैं डै ड? भला ऐसा

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कैसे हो सकता है? हमारे शहर िाले मकान में िो सब ची़िें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कक तु म शहर िाले उस मकान को बें च दो।" प्रकतमा ने जाने
क्ा सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सु नते कहाॅ हो तु म? अब दे ख लो
इसका अं जाम। जाने कब से खाली पडा था िह। आज कल ककसी का क्ा भरोसा
कक िो मकान के अं दर आकर क्ा क्ा खु रािात करने लग जाएॅ।"

"अरे तो भला हमें क्ा पता था प्रकतमा कक ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय कसं ह
ने प्रकतमा की चाल को बखू बी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस
मकान की दे ख रे ख के कलए कोई आदमी रख दे ते न।"
"ककसने ककया होगा ये सब?" प्रकतमा ने कहा___"भला हमसे ककसी की ऐसी क्ा
दु श्मनी हो सकती है कजसके तहत उसने हमारे साथ इतना बडा काण्ड कर कदया?"

"कमस्टर अजय कसं ह।" सहसा ऑकिसर ने हस्ताक्षे प करते हुए कहा___"ये सब बातें
आप बाद में सोकचएगा। इस िक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्ली़ि।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डै ड को?" सहसा कशिा आिे शयुक्त भाि से बोल
पडा___"मेरे डै ड कबलकुल बे गुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कही ं नही ं ले जा सकते । ये तो
हद ही हो गई कक करे कोई और भरे कोई और।"

"तु म शान्त हो जाओ बे टे।" अजय कसं ह ने अपने कूढमगज बे टे की बातों पर मन ही


मन कुढते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो ले ककन हमें इनके साथ जाना ही पडे गा।
ये सब कानू न के रखिाले हैं। दू सरी बात इन्हें हमारे मकान से िो सब ची़िें कमली हैं
इस कलए पहली ऩिर में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कक िो सब ची़िें हमारी
हैं। यानी हम ग़ैर कानू नी धंधा भी करते हैं । दू सरा ब्यल्कक्त ये नही ं सोचे गा कक कोई
अन्य ब्यल्कक्त ये सब ची़िें हमारे मकान में रख कर हमें िसा भी सकता है। अतः
मौजूदा हालात में हमें कानू न का हर कहा मानना पडे गा और उसका साथ दे ना
पडे गा। तु म किक्र मत करो बे टे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पू ॅछताछ
करें गे। इस सबके कलए हमें तभी स़िा कमले गी जब ये साकबत हो जाएगा कक िो सब
ची़िें िास्ति में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानू नी धंधा भी करते हैं।"

अजय कसं ह की बात सु न कर कशिा कुछ बोल न सका। प्रकतमा ने भी कुछ न कहा।
कदाकचत िो खु द भी अजय कसं ह की इस बात से सहमत थी। दू सरी बात, िो तो
जानती ही थी कक िो सब ची़िें सच में अजय कसं ह की ही हैं। इस कलए ये सब सोच
कर और इसके अं जाम का सोच कर िो अं दर ही अं दर बु री तरह घबराए भी जा रही
थी। िो अच्छी तरह जानती थी कक ऐसे मामले में कानू न की कगरफ्त से बचना असं भि
नही ं तो नामुमककन ़िरूर था।

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इधर अजय कसं ह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कक इससे
बचना बहुत मुल्किल काम है। इस कलए िो कोई न कोई जुगाड लगाने भी सोच रहा
था। मगर चू ॅकक उसके पु राने कानू नी कने क्शन पहले ही खत्म हो चु के थे इस कलए
िो कुछ कर पाने की हालत में नही ं था। दू सरी सबसे बडी बात ये थी कक उसे इस
बात का एहसास हो चु का था कक अगर ककसी तरह िो पु कलस ककमश्नर अथिा प्रदे श
के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नही ं होनी थी।
क्ोंकक उसने दे खा था कक उसके साथ घटी कपछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था
कक ऊपर से ही शख्त आदे श कमला था।

अजय कसं ह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके कदमाग़ में कोई बे हतर जुगाड आ नही ं
रहा था। िक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रं ग बदल कलया था कक
उसको कुछ करने लायक छोंडा ही नही ं था। उसने कल्पना तक न की थी कक िो
इतना बे बस ि लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानू न की चपे ट में आ
जाएगा।

"तो चलें कमस्टर अजय कसं ह?" सहसा डराइं ग रूम में छाए सन्नाटे को भे दते हुए उस
ऑकिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कक ये सब ककसी ने आपको िसाने के
उद्दे श्य से ककया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नही ं है तो किक्र मत कीकजए।
हम सच्चाई का पता लगा लें गे। ककन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही
पडे गा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पडे गा।"

उस ऑकिसर के इतना कहते ही अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली और किर सोिे से


उठ खडा हुआ। इस िक्त उसके बदन पर नाइट डरेस ही था इस कलए उसने
ऑकिसर से डरेस बदल ले ने की परमीशन माॅगी। ऑकिसर ने परमीशन दे दी।
परमीशन कमलते ही अजय कसं ह कमरे की तरि बढ गया। उसके जाते ही ऑकिसर
ने एक अन्य ऑकिसर की तरि दे ख कर ऑखों से कुछ इशारा ककया। ऑकिसर का
इशारा समझ कर दू सरा ऑकिसर तु रंत ही अजय कसं ह के पीछे कमरे की तरि बढ
गया। मतलब साि था कक ऑकिसर को इस बात का अं देशा था कक अं दर कमरे
अजय कसं ह कही ं िोन पर ककसी से कोई बात िगैरा न करने लगे। जबकक मौजूदा
हालात में ऐसा करना हकगग़ि भी जाय़ि बात न थी।

कुछ ही दे र में ऑकिसर के साथ ही अजय कसं ह कमरे से आता कदखाई कदया। उसके
आते ही सभी लोग सोिों पर से उठे और अजय कसं ह के साथ ही बाहर आ गए।
जबकक पीछे बु त बने अजय कसं ह की बीिी और बे टा खडे रह गए थे । किर जैसे प्रकतमा
को होश आया। िो एकदम से ते ़ि क़दमों के साथ बाहर की तरि भागते हुए गई।
जब िो बाहर आई तो उसने दे खा कक सीबीआई के सभी ऑकिसर अपनी अपनी

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गाकडयों में बै ठ रहे थे । एक अन्य गाडी की कपछली शीट पर अजय कसं ह को कबठाया
जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑकिसर बै ठ गया था।

प्रकतमा के दे खते ही दे खते सीबीआई िालों का िो क़ाकिला अजय कसं ह को साथ कलए
हिे ली से दू र चला गया। प्रकतमा को ऐसा महसू स हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दु कनयाॅ
ही ने स्तनाबू त हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रकतमा की ऑखें छलक पडी ं और
किर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। िो दरिाजे पर खडी खडी ही िूट
िूट कर रो पडी। तभी उसके पीछे कशिा नमू दार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को
उसके कंधे से पकड कर अपनी तरि घु माया और किर उसे अपने सीने से लगा
कलया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर ररतू के िामगहाउस पर भी सु बह हो गई थी। अपने कमरे के अटै च बाथरूम में


नहाने के बाद ररतू कपडे पहन रही थी जब उसके कमरे का दरिाजा बाहर से कुण्डी
के दिारा बजाया गया था। ररतू ने पू छा कौन है तो बाहर से नै ना की आिा़ि आई थी
कक मैं हूॅ बे टा जल्दी से दरिा़िा खोलो। बस, उसके बाद ररतू ने आनन िानन में
अपने कपडे पहने और किर जाकर कमरे का दरिा़िा खोला। दरिा़िा खु लते ही
नै ना बु िा पर ऩिर पडी तो िह हिे से चौ ंकी।

"क्ा बात है बु आ?" ररतू ने शशं क भाि से पू छा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है


न?"
"ये ले ।" नै ना ने जल्दी से अपना दाकहना हाथ ररतू की तरि बढाया___"ये अखबार
पढ। इसमें ऐसी खबर छपी है कछसे पढ कर ते रे होश न उड जाएॅ तो कहना।"

"अच्छा।" ररतू ने अखबार अपने हाॅथ में ले ते हुए कहा___"भला ऐसी क्ा खबर
छपी है इस अखबार में कजसे पढने पर मेरे होश ही उड जाएॅगे?"
"तू पढ तो सही।" नै ना कहने के साथ ही दरिाजे के अं दर ररतू को खी ंचते हुए ले
आई, बोली___"बताने में िो बात नही ं होगी कजतना कक खु द खबर पढने से होगी।"

नै ना, ररतू को खी ंचते हुए बे ड के क़रीब आई और उसमें ररतू को बै ठा कर खु द भी


बै ठ गई और ररतू के चे हरे के भािों को बारीकी से दे खने लगी। ररतू ने अखबार की
िंट पे ़ि पर छपी खबर पर अपनी दृकष्ट डाली और खबर की हेड लाईन पढते ही िो
बु री तरह उछल पडी। अखबार में छपी खबर कुछ इस प्रकार थी।

*शहर के मशहूर कपडा ब्यापारी अजय कसं ह के मकान से करोडों का ग़ैर कानू नी
सामान बरामद*

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(गुनगुन): हल्दीपु र के रहने िाले ठाकुर अजय कसं ह बघेल िल्द गजेन्द्र कसं ह बघेल जो
कक एक मशहूर कपडा ब्यापारी हैं उनके गुनगु न ल्कथथत मकान पर कल शाम को
सीबीआई िालों ने छापा मारा। मकान के अं दर से भारी मात्रा में चरस अिीम डरग्स
आकद जानले िा ची़िें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कक गुनगुन ल्कथथत
ठाकुर अजय कसं ह का िो मकान कुछ समय से खाली पडा था, इस कलए ये िष्ट रूप
से नही ं कहा जा सकता कक ग़ैर कानू नी ची़िों का इतना बडा ़िखीरा उनके मकान में
कहाॅ से आ गया? ऐसा इस कलए क्ोंकक ठाकुर अजय कसं ह जैसे मशहूर कारोबारी
से ऐसे सं गीन धंधे की बात सोची नही ं जा सकती जो कक जुमग कहलाता है। इस कलए
सं भि है कक ये सब उनके ककसी दु श्मन की सोची समझी साकजश का ही नतीजा हो।
खै र, अब दे खना ये होगा कक सीबीआई िालों की जाॅच पडताड से क्ा सच्चाई
सामने आती है? अब ये तो कनकश्चत बात है कक ठाकुर अजय कसं ह के मकान से कमले
इतने सारे ग़र कानू नी सामान के तहत सीबीआई िाले बहुत जल्द ठाकुर अजय कसं ह
को अपनी कहरासत में ले कर इस बारे में पू छताॅछ करें गे। ककन्तु अगर सीबीआई की
जाॅच में ये बात सामने आई कक िो सब ग़ैर कानू नी सामान ठाकुर अजय कसं ह का ही
है तो यकीनन ठाकुर अजय कसं ह को इस सं गीन जुमग में कानू न के द्वारा शख्तसे
शख्त स़िा कमले गी।

अखबार में छपी इस खबर को पढ कर यकीनन ररतू के होश उड ही गए थे । उसके


कदमाग़ की बिी बडी ते ़िी से जली थी और साथ ही उसे किराज की िो बात याद आई
जब उसने गुनगुन रे लिे स्टे शन पर ररतू से कहा था कक बहुत जल्द अजय कसं ह को
एक झटका लगने िाला है। ये भी कक उसकी से फ्टी के कलए िह भी ऐसा करे गा कक
अजय कसं ह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नही ं पाएगा।

"इसका मतलब तो यही हुआ बु आ कक अब तक डै ड को सीबीआई िाले कगरफ्तार


कर कलए होंगे।" ररतू ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा
तो यकीनन डै ड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में िो कानू न की ऐसी चपे ट में
आ जाएॅगे जहाॅ से कनकल पाना असं भि नही ं तो नामुमककन ़िरूर है।"

"ये तो अच्छा ही हुआ न ररतू ।" नै ना ने कहा___"बु रे काम करने का ये अं जाम तो


होना ही था। ले ककन सबसे बडा सिाल ये है कक ये सब हुआ कैसे ?
"ये सब राज की िजह से हुआ है बु आ।" ररतू ने बताया___"उसने कल रे लिे स्टे शन में
मुझसे कहा था कक िो कुछ ऐसा करे गा कजससे डै ड मुझ तक पहुॅच ही नही ं पाएॅगे।
ये तो सच है बु आ कक डै ड ग़ैर कानू नी धं धा करते थे और िैक्टर ी में मौजूद तहखाने में
उनका ये सब ग़ैर कानू नी सामान भी था कजसे राज ने ही गायब ककया था। ऐसा उसने
इस कलए ककया था ताकक िह उस सामान के आधार पर जब चाहे डै ड को कानू न की
कगरफ्त में डलिा सके। इस कलए उसने ऐसा ही ककया है बु आ ले ककन मुझे लगता है

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कक ये सब महज डै ड को डराने और मौजूदा हालात से कनपटने के कलए राज ने ककया
है। क्ोंकक राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की स़िा दे गा, नाकक कानू न
द्वारा उन्हें ककसी तरह की स़िा कदलिाएगा।"

"ले ककन बे टा।" नै ना ने तकग सा कदया___"कानू न की चपे ट में आने के बाद बडे भइया
भला कानू न की कगरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और किर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों
से स़िा दे गा?"
"उसका भी इं तजाम राज ने ककया ही होगा बु आ।" ररतू ने कहा___"आज के इस
अखबार में छपी खबर के अनु सार ग़ैर कानू नी सामान डै ड के मकान से बरामद
़िरूर हुआ है ले ककन ये भी बताया गया है कक चू ॅकक गुनगुन ल्कथथत मकान कािी
समय से खाली था इस कलए सं भि है कक डै ड को िसाने के कलए उनके ककसी दु श्मन
ने ऐसा ककया होगा। इस कलए सीबीआई िाले इस बारे में कसिग पू ॅछताछ करें गे। अब
आप खु द समझ सकती हैं बु आ कक राज ने केस को इतना कम़िोर क्ों बनाया हुआ
है कक डै ड कानू न की कगरफ्त से मामूली पू छताछ के बाद छूट जाएॅ?।"

"ले ककन ये सिाल तो अपनी जगह खडा ही रहेगा न ररतू कक बडे भइया के मकान में
िो ग़ैर कानू नी सामान कैसे पाया गया?" नै ना ने कहा___"इस कलए इस सिाल के
साव हुए कबना बडे भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"

"बहुत आसान है बु आ।" ररतू ने कहा___"पै सों के कलए आजकल लोग बहुत कुछ कर
जाते हैं। कहने का मतलब ये कक िो ककसी ऐसे ब्यल्कक्त को ढू ॅढ लें गे जो पै सों के कलए
कुछ भी करने को तै यार हो जाए। िो ब्यल्कक्त इस बात को खु द स्वीकार करे गा कक िो
सारा ग़ैर कानू नी सामान उसका खु द का है और उसने डै ड के मकान में उसे इस
कलये छु पाया हुआ था क्ोंकक िो मकान कािी समय से खाली था तथा उसके कलए
एक सु रकक्षत जगह की तरह था।"

"चलो ये तो मान कलया कक ऐसा हो सकता है।" नै ना ने मानो तकग ककया___"ककन्तु


सबसे बडा सिाल ये ये है कक तु म्हारे डै ड ऐसे ककसी ब्यल्कक्त को लाएॅगे कहाॅ से ?
जबकक िो खु द ही सीबीआई िालों की कनगरानी में रहेंगे और उनके पास ककसी से
सं पकग थथाकपत करने के कलए कीई ़िररया ही नही ं होगा।"

"सिाल बहुत अच्छा है बु आ।" ररतू ने कुछ सोचते हुए कहा__"ककन्तु अगर हम ये
सोच कर दे खें कक ये सब राज का ही ककया धरा है तो ये भी कनकश्चत बात है कक िो खु द
ही ऐसा कुछ करे गा कजससे डै ड सीबीआई या कानू न के चं गुल से बाहर आ जाएॅ।"

"ऐसे मामलों में कानू न के चं गुल से ककसी का बाहर आ जाना नामु मककन तो नही ं

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होता ररतू ।" नै ना ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"ककन्तु अगर तू ये कह रही है कक
राज ते रे डै ड को ककसी हैरतअं गेज कारनामे की िजह से बाहर कनकाल ही ले गा तो
सिाल ये उठता है कक ऐसा क्ा करे गा राज? दू सरी बात, जब उसे कानू न की कगरफ्त
से कनकाल ही ले ना है तो किर ते रे डै ड की कानू न की चपे ट में लाने का मतलब ही
क्ा था?"

"खजूर पर चढे इं सान को ़िमीन पर पटकने का मकसद था उसका।" ररतू ने


कहा___"िो कहते हैं न कक जब तक ऊट पहाड के सामने नही ं आता तब तक उसे
यही लगता है कक उससे ऊचा कोई है ही नही ं। यही हाल मेरे डै ड का था बु आ। राज
का मकसद कदाकचत यही है कक िो डै ड को एहसास कदलाना चाहता है कक इस
दु कनयाॅ में उनसे भी बडे बडे खलीिा मौजूद हैं। िो चाहे तो उन्हें एक पल में
चु टककयों में मसल सकता है। आज के इस िाक्े के बाद सं भि है कक डै ड की
किचारधारा में कुछ तो पररितग न ़िरूर आया होगा।"

"ये तो सच कहा तू ने।" नै ना ने कहा___"अगर सीबीआई िाले बडे भइया को अपने


साथ ले गए होंगे तो ये सच है कक बडे भइया को आज आटे दाल के भाि का पता चल
जाएगा।"

"हाॅ बु आ।" ररतू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखू बी एहसास था।


कदाकचत उसे ये अं देशा था कक इतनी नाकाकमयों के बाद डै ड अब खु द मैदान में
उतरें गे और हमें खोज कर हमारा कक्रया कमग करें गे। इसी कलए राज ने ये क़दम
उठाया कक जब डै ड ही कानू न की कगरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर ककसी तरह का
उनकी तरि से कोई सं कट आएगा ही कैसे ?"

"तो इसका मतलब ये हुआ कक बडे भइया को राज ने कानू न की कगरफ्त में िसाया।"
नै ना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"कसिग इस कलए कक िो ते रे डै ड
को एहसास कदला सके कक िो कजसे कपद्दी का शोरबा समझते हैं िो दरअसल ऐसा है
कक उनको छठी का दू ध याद कदला सकता है। खै र, इन बातों से ये भी एक बात
समझ में आती है कक राज ने तु झको से ि करने के कलए भी ते रे डै ड को कुछ कदनों के
कलए कानू न की कगरफ्त में िसाया है। दो कदन बाद तो िो खु द ही यहाॅ आ जाएगा
और सं भि है ऐसा कुछ कर दे कजससे उसका कशकार कानू न की चपे ट से बाहर आ
जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बु आ।" ररतू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो


सकता है। खै र, अब तो इस बात की किक्र करने की कोई ़िरूरत नही ं है कक डै ड या
उनके ककसी आदमी से हमें कोई खतरा है।"

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"ले ककन एक बात सोचने िाली है ररतू ।" नै ना ने सोचने िाले भाि से चहा___"ते रे डै ड
की इस कगरफ्तारी से ते री माॅ और ते रे भाई पर इसका गहरा प्रभाि पडा होगा।
प्रकतमा भाभी ने खु द भी िकालत की पढाई की है इस कलए सं भि है कक िो ते रे डै ड
को कानू न की कगरफ्त से कनकालने का कोई जुगाड लगाएॅ।"

"कोई िायदा नही ं होने िाला बु आ।" ररतू ने कहा__"कजसे कजतना ़िोर लगाना है
लगा ले मगर हाॅथ कुछ नही ं आएगा। क्ोंकक एक तो मामला ही इतना सं गीन है
दू सरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच कािी लम्बी है, इस कलए उसकी
पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैं तरा काम नही ं करने िाला। ये तो पक्की बात
है कक होगा िही ं जो राज चाहेगा।"

"हाॅ ये तो है।" नै ना ने कहा___"खै र दे खते हैं क्ा होता है? िै से इस बारे में क्ा अभी
तक तु मने राज से बात नही ं की??"
"अभी तो नही ं की बु आ।" ररतू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी।
िास्ति में उसने बडा हैरतअं गेज काम ककया है । मु झे तो उससे ये उम्मीद ही नही ं
थी।"

"िक्त और हालात एक इं सान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा दे ते हैं और उससे क्ा


क्ा करिा दे ते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नै ना ने
जाने क्ा सोच कर कहा___"सोचने िाली बात है कक राज जो एक बे हद ही सीधा
सादा लडका हुआ करता था आज िो इतना जहीन तथा इतना शाकतर कदमाग़ का भी
हो गया है।"

"इसमें उसकी कोई ग़लती नही ं है बु आ।" ररतू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह
का बनाने िाले भी मेरे ही पै रेंट् स हैं । इं सान अपनों का हर कहा मानता है और
उसका जु ल् भी सह ले ता है ले ककन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ
कजसके साथ हुआ हो िो ऐसा भी न बन सके तो किर कैसा इं सान है िो?"

नै ना, ररतू की बात सु न कर उसे दे खती रह गई। कुछ दे र और ऐसी ही बातों के बाद
िो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टे बल पर आकर बै ठ गईं।
जहाॅ पर करुर्ा का भाई हे मराज पहले से ही मौजूद था। ररतू अपनी नै ना बु आ के
साथ अलग अलग कुकसग यों पर बै ठी ही थी कक उसका आई िोन बज उठा। उसने
मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को दे खा तो उसके होठों पर
अनायास ही नफ़रत ि घृर्ा से भरी मु स्कान िैल गई। कुछ से कण्ड तक िो मोबाइल
की स्क्रीन को दे खती रही किर उसने आ रही काल को कट कर कदया। काल कट
करते िक्त उसके चे हरे पर बे हद कठोरता के भाि थे ।

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~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर मुम्बई में!


सु बह हुई!
अजय कसं ह ि प्रकतमा की दू सरी बे टी नीलम की ऑखें गहरी नी ंद से खु ल तो गईं थी
मगर िो खु द बे ड से न उठी थी अभी तक। हसती मुस्कुराती हुई रहने िाली मासू म
सी नीलम एकाएक ही जैसे बे हद गु मसु म सी रहने लगी थी। काॅले ज में हुई उस
घटना को आज हप्ता से ज्यादा कदन गु़िर गया था ककन्तु उस घटना की ता़िगी आज
भी उसके ़िहन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़ित के तार तार हो जाने का इतना
दु ख न होता कजतना आज उसे इस बात पर हो रहा था कक उसका चचे रा भाई उसे
नफ़रत और घृर्ा की दृकष्ट से दे ख कर इस तरह उसके सामने से मु ह िेर कर चला
गया था जैसे िो उसे पहचानता ही न था। नीलम और किराज दोनो ही हमउमर थे
ककन्तु नीलम का कबहैकियर भी ररतू की तरह रहा था किराज के साथ।

उस कदन की घटना ने नीलम के मुकम्मल िजू द को कहला कर रख कदया था। उसने


इस घटना के बारे में अपने खु द के पै रेंट् स को कबलकुल भी नही ं बताया था। मौसी की
लडकी को बस बताया था ककन्तु उसने उससे भी िादा ले कलया था कक िो उसके
घरिालों को ये बात न बताए कभी।

उस कदन की घटना के बाद पहले तो दो कदन नीलम काॅले ज नही ं गई थी ककन्तु किर
तीसरे कदन से जाने लगी थी। काॅले ज में हर जगह उसकी ऩिरें बस अपने चचे रे भाई
किराज को ही ढू ॅढती ं मगर कपछले कई कदनों से उसे अपना िो चचे रा भाई काॅले ज
में कही ं न कदखा था। उसे समझ नही ं आ रहा था कक आकखर किराज काॅले ज क्ों
नही ं आ रहा? कही ं ऐसा तो नही ं कक उसकी िजह से उसने ये काॅले ज ही छोंड कदया
हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर िस जाती। िो सोचती
कक अगर किराज ने सच में उसकी ही िजह से काॅले ज छोंड कदया होगा तो ये ककतनी
बडी बात है । मतलब कक आज के समय में किराज उससे इतनी नफ़रत करता है कक
िो उसे दे खना तक गिाॅरा नही ं करता। ये सब बातें नीलम को रात कदन ककसी
़िहरीले सपग की भाॅकत डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात कनकलती____"कसिग एक


बार किर से मुझे कमल जाओ मेरे भाई। तु मसे कमल कर मैं अपने ककये की माफ़ी
माॅगना चाहती हूॅ। मु झे एहसास है कक मेरे भाई कक मैने बचपन से ले कर अब तक
तु म्हें कसिग दु ख कदया है। तु म्हें तरह तरह की बातों से जलील ककया था। मगर एक तु म
थे कक मेरी उन कडिी बातों का कभी भी बु रा नही ं मानते थे । जबकक कोई और होता
तो जीिन भर मु झे दे खना तक पसं द न करता। मु झे सब कुछ अच्छी तरह से याद है

679
भाई। मेरे माॅम डै ड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही कसखाया था कक तु म सब बु रे
लोग हो इस कलए हम तु मसे दू र रहें और कभी भी ककसी तरह का कोई मेल कमलाप न
रखें । हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप कसखाते थे उसी को सच मान ले ते थे
और किर इस सबकी आदत ही पड गई थी। मगर उस कदन तु मने मेरी इज्ज़ित बचा
कर ये जता कदया कक तु म बु रे नही ं हो सकते । कजस तरह से तु म मु झे दे ख कर नफ़रत
ि घृर्ा से अपना मु ह मोड कर चले गए थे , उससे मुझे एहसास हो चु का था कक तु मने
जो ककया िो एक ऊचे द़िे का कमग था और जो मैंने अब तक ककया था िो हद से भी
ज्यादा कनचले द़िे का कमग था। मु झे बस एक बार कमल जाओ राज। मैं तु मसे अपने
गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तु म जो भी स़िा दोगे उस स़िा को मैं खु शी
खु शी कुबू ल कर लू ॅगी। प्ली़ि राज, बस एक बार मु झे कमल जाओ। तु म काॅले ज
क्ों नही ं आ रहे हो? क्ा इतनी नफ़रत करते हो तु म अपनी इस बहन से कक कजस
काॅले ज में मैं हूॅ िहाॅ तु म पढ ही नही ं सकते ? ऐसा मत करना मेरे भाई। िरना मैं
अपनी ही ऩिरों में इस क़दर कगर जाऊगी कक किर उठ पाना मेरे कलए असं भि हो
जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की कदनचयाग में शाकमल हो गया था।
उसके मौसी की लडकी उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों
का कोई असर न होता। काॅले ज में हुई घटना से नीलम थोडा गुमसु म सी रहने लगी
थी। मगर इसका कारर् यही था कक किराज काॅले ज नही ं आ रहा था। िो हर रो़ि
समय पर काॅले ज पहुॅच जाती और सारा कदन काॅले ज में रुकती। उसकी ऩिरें हर
कदन अपने भाई को तलाश करती मगर अं त में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ
ऑसू भर आते और किर िो दु खी भाि से घर लौट जाती। काले ज के बाॅकी स्टू डें ट्स
नामगल ही थे । उस घटना के बाद ककसी ने कभी कोई टीका कटप्पर्ी न की थी।

कुछ दे र ऐसे ही सोचो में गुम िह बे ड पर पडी रही उसके बाद िो उठी और बाथरूम
की तरि बढ गई। बाथरूम में िेश होने के बाद िो िापस कमरे में आई और
काॅले ज के यूनीिामग पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइ़ि का बै ग ले कर िो
कमरे से बाहर की तरि बढी ही थी कक उसका मोबाइल बज उठा। उसने बै ग के
ऊपरी कहस्से की चै न खोला और अपना मोबाइल कनकाल कर स्क्रीन पर ऩिर आ रहे
"माॅम" नाम को दे खा तो उसने काल ररसीि कर मोबाइल कानों से लगा कलया।

"............।" उधर से प्रकतमा ने कुछ कहा।


"क्ाऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से
जैसे चीख सी कनकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्ा कह रही हैं माॅम? डै ड को
सीबीआई िाले ले गए? मगर क्ों??? आकखर ऐसा क्ा ककया है डै ड ने ?"

680
"............।" उधर से प्रकतमा ने किर कुछ कहा।
"ओह अब क्ा होगा माॅम?" प्रकतमा की बात सु नने के बाद नीलम ने सं जीदगी से
कहा___"क्ा ररतू दीदी ने कुछ नही ं ककया? िो भी तो एक पु कलस ऑकिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रकतमा ने कुछ दे र तक कुछ बात की।

"क्ाऽऽ???" नीलम बु री तरह उछल पडी____"ये आप क्ा कह रही हैं? दीदी भला
ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नही ं नही ं, आपको और डै ड को ़िरूर कोई
ग़लतिहमी हुई है। ररतू दीदी ये सब कर ही नही ं सकती हैं । आप तो जानती हैं कक
दीदी ने कभी उसकी तरि दे खना तक पसं द नही ं ककया था। किर भला आज िो कैसे
उसका साथ दे ने लगी ं? ये तो इम्पाॅकसबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रकतमा ने किर कुछ कहा।


"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे
पू छूॅगी कक आकखर िो ये सब क्ों कर रही हैं ?"
"............।" उधर से प्रकतमा ने झट से कुछ कहा।
"क्ों नही ं पू ॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ़िरा चौ ंकते हुए कहा___"आकखर पता तो
चलना ही चाकहए कक उनके मन में क्ा है अपने पै रेंट् स के प्रकत? इस कलए मैं उनसे
िोन लगा कर ़िरूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रकतभा ने किर कुछ कहा।


"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डै ड
के पास ही रहना है। दू सरी बात मैं दे खना चाहती हूॅ कक ररतू दीदी ये सब कैसे करती
हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के ल्कखलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रकतमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर कदया।

इस िक्त उसके कदलो कदमाग़ में एकाएक ही तू िान सा चालू हो गया था। मन में तरह
तरह के सिाल उभरने लगे थे । कजनका जिाब किलहाल उसके पास न था ककन्तु
जानना आिश्यक था उसके कलए। दरिाजे की तरि न जाकर िह िापस पलट कर
बे ड पर बै ठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डै ड को सीबीआई िाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही


थी___"िजह ये कक उनके शहर िाले मकान से भारी मात्रा में चरस अिीम ि डरग्स
जैसी गैर कानू नी ची़िें सीबीआई िालो को बरामद हुई। सिाल ये उठता है कक क्ा
सच में डै ड इस तरह का कोई ग़ैर कानू नी धंधा करते हैं? िही ं दू सरी तरि ररतू दीदी

681
आज कल अपने ही पै रेंट् स के ल्कखलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये
असं भि काम सं भि कैसे हो सकता है? आकखर ऐसा क्ा हुआ है कक दीदी माॅम डै ड
के सबसे बडे दु श्मन का साथ दे ने लगी हैं? माॅम ने बताया कक राज गाॅि आया था,
इसका मतलब इसी कलए िो काॅले ज नही ं आ रहा था। मगर िो गाॅि गया ककस
कलए था? और गाॅि में ऐसा क्ा हुआ है कक दीदी अपने उस चचे रे भाई का साथ दे ने
लगी ं कजसे िो कभी दे खना भी पसं द नही ं करती थी ं?"

नीलम के ़िहन में ह़िारों तरह के सिाल इधर उधर घू मने लगे थे मगर नीलम को ये
सब बातें हजम नही ं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के कदमाग़ की बिी
जली। उसके मन में किचार आया कक िो खु द भी तो कभी राज को अपना भाई नही ं
समझती थी जबकक आज हालात ये हैं कक िो अपने उसी भाई से कमल कर अपने उन
गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कही ं न कही ं उसका अपने इस भाई के
प्रकत हृदय पररितग न हुआ था तभी तो उसके कदल में ऐसे भािनात्मक भाि आए थे ।
दू सरी तरि ररतू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ
है कजसके चलते दीदी का भी राज के प्रकत हृदय पररितग न हुआ है और िो आज
उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नही ं अपने ही पै रेंट् स के ल्कखलाफ़ राज के साथ
लडाई लड रही हैं।

नीलम को अपना ये किचार जचा। उसको एहसास हुआ कक कुछ तो ऐसी बात हुई
कजसका उसे इस िक्त कोई पता नही ं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर
ररतू दीदी का नं बर ढू ॅढा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा कलया। काल
जाने की ररं ग बजती सु नाई दी उसे । कुछ ही दे र में उधर से ररतू ने काल ररसीि
ककया।

"............।" उधर से ररतू ने कुछ कहा।


"मैं तो कबलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से ररतू ने किर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅले ज अच्छा चल रहा है और साथ में पढाई भी अच्छी चल रही है।"
नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का िोन आया
था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया कजसे सु न कर मेरे होश ही उड गए हैं। िो कह
रही थी कक डै ड को सीबीआई िाले ग़ैर कानू नी सामान के चलते अपने साथ ले गए
हैं। ये भी कक आप किराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्ा चक्कर है दीदी? प्ली़ि
बताइये न कक ऐसा क्ा हो गया है कक आप अपने ही पै रेंट् स के ल्कखलाफ़ हैं? माॅम
कह रही थी कक आपने उनका काल भी ररसीि नही ं ककया। िो आपको भी डै ड के
बारे में सू कचत करना चाहती थी।"

682
".............।" उधर से ररतू ने कािी दे र तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बु रा सा मु ह बनाया____"साि
साि बताइये न कक आकखर क्ा बात हो गई है कजसकी िजह से आप माॅम डै ड के
ल्कखलाफ़ हो कर उस किराज का साद दे रही हैं ?"

"...........।" उधर से ररतू ने किर कुछ कहा।


"इसका मतलब आप खु द मुझे कुछ भी बताना नही ं चाहती हैं।" नीलम ने
कहा___"और ये कह रही हैं कक सच्चाई का पता मैं खु द लगाऊ। ठीक है दीदी, मैं आ
रही हूॅ। क्ा आपसे कमल भी नही ं सकती मैं?"

"............।" उधर से ररतू ने कुछ कहा।


"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"ले ककन मैं इतना ़िरूर जानती हूॅ कक बात भले
ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नही ं होना चाकहए कक बच्चे अपने माॅ बाप से
इस तरह ल्कखलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर कदया और किर दु खी भाि से बे ड पर


कुछ दे र बै ठी जाने क्ा सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई िैसला ककया और
किर उठ कर काॅले ज की यूकनिामग को उतारने लगी। कुछ ही दे र में उसने दू सरे
कपडे पहन कलए और किर कमरे से बाहर कनकल गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर किराज एण्ड पाटी की टर े न अपने कनधाग ररत समय से कुछ ही समय की दे री से
आकखर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग टर े न से बाहर आए और किर प्लेटिामग से
बाहर की तरि कनकल गए। किराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय
को िोन कर कदया था। इस कलए जैसे ही ये लोग स्टे शन से बाहर आए िै से ही
जगदीश ओबराय बाहर कमल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे
बै ठ कर घर के कलए कनकल गए।

रास्ते में जगदीश अं कल ने मु झे बताया कक उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो


माॅ मेरी िापसी की बात सु न कर नारा़ि हुईं। मगर जगदीश अं कल ने उन्हें सारी
बात तरीके से बताई और ये यकीन कदलाया कक मुझे कुछ नही ं होगा तब जाकर िो
रा़िी हुई थी। ले ककन उन्होंने ये भी कहा कक िो एक बार मुझे दे खना चाहती हैं। अतः
अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। िरना मेरा प्लान ये था कक मैं यहाॅ
से िापस उसी टर े न से लौट जाता।

मुम्बई से िापसी के कलए इसी टर े न को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस कलए मैं
बडे आराम से गर जाकर माॅ से कमल सकता था। खै र, कुछ ही समय बाद हम सब

683
घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दू सरे से कमले । करुर्ा चाची जब माॅ से कमली तो
बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माकफ़याॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने
सीने से लगा कलया था। करुर्ा चाची को िो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह
मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल कमलाप
हुआ। कमलने कमलाने में ही कािी समय ब्यतीत हो गया था।

मैं अपने कमरे में जाकर िेश हो गया था। आकदत्य भी िेश हो गया था। उसे मेरे
साथ ही िापस गाॅि जाना था। कनधी भी सबसे कमली। करुर्ा चाची ने उसे ढे र सारा
प्यार ि स्नेह कदया था। कदव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छु पकाया हुआ
था। अभय चाचा खु श थे कक उनके बीिी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे । अब
उन्हें उनके कलए कोई किक्र नही ं थी। शायद यही िजह थी कक िो खु द भी मेरे साथ
चलने की बात करने लगे थे । उनका कहना था कक िो खु द भी इस जंग में कहस्सा लें गे
और अपने बडे भाई से इस सबका बदला लें गे। मगर मैने और जगदीश अं कल ने
उन्हें समझा बु झा कर मना कर कदया था।

मैने एक बात महसू स की थी कक कनधी का कबहैकियर मेरे प्रकत कुछ अलग ही था।
इसके पहले िह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोकशश करती थी जबकक अब िो
मुझसे दू र दू र ही रह रही थी। यहाॅ तक कक मेरी तरि दे ख भी नही ं थी िो। मुझे
समझ नही ं आ रहा था कक िो ऐसा क्ों कर रही थी। मैने एक दो बार खु द उससे बात
करने की कोकशश की मगर िो ककसी न ककसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती
थी। मु झे उसके इस रूखे ब्यिहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। िो मेरी जान थी, मैं
उसकी बे रुखी पल भर के कलए भी सह नही ं सकता था मगर सबके सामने भला मैं
उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास िक्त नही ं था, इस कलए मैने मन में
सोच कलया था कक सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी
ककसी भी प्रकार की नारा़िगी को दू र करूॅगा।

मैं माॅ से कमला तो माॅ मेरी िापसी की बात से भािु क हो गईं। उन्हें पता था कक मैं
िापस ककस कलए जा रहा हूॅ इस कलए िो मुझे बार बार अपना खयाल रखने के कलए
कह रही थी। खै र मैने उन्हें आश्वस्त कराया कक मैं खु द का खयाल करूॅगा और मु झे
कुछ नही ं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीिागद कलया और किर आकदत्य के साथ िापसी के कलए
चल कदया। मेरे साथ जगदीश अं कल भी थे । पिन और आशा दीदी मुझे अपना
खयाल रखने का कहा और खु शी खु शी मु झे किदा ककया। हलाॅकक मैं जानता था कक
िो अं दर से मेरे जाने से दु खी हैं। उन्हें मेरी किक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर
रहने को कहा। करुर्ा चाची ने मु झे प्यार कदया और किजयी होने का आशीिागद

684
कदया। मैं कदव्या और शगुन को प्यार ि स्ने ह दे कर कनधी की तरि दे खा तो िो कही ं
ऩिर न आई। मैं समझ गया कक िो मु झसे कमलना नही ं चाहती है। इस बात से मुझे
तक़लीफ़ तो हुई ककन्तु किर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब ककया और जगदीश अं कल
के साथ कार में बै ठ कर िापस रे लिे स्टे शन की तरि चल कदया।

रे लिे स्टे शन पहुॅच कर मैं और आकदत्य कार से उतरे । जगदीश अं कल ने मुझे एक


पै ककट कदया और कहा कक मैं उसे अपने बै ग में चु पचाप डाल लू ॅ। मैने ऐसा ही
ककया। उसके बाद जगदीश अं कल से मेरी कुछ ़िरूरी बातें हुईं और किर मैं और
आकदत्य प्लेटिामग की तरि बढ गए। टर े न िापसी के कलए बस चलने ही िाली थी। हम
दोनो टर े न में अपनी अपनी शीट पर बै ठ गए। मैने मोबाइल से ररतू दीदी को िोन
ककया और उन्हें बताया कक सब लोगों को मैने सु रकक्षत पहुॅचा कदया है और अब मैं
िापस आ रहा हूॅ। ररतू दीदी इस बात से खु श हो गईं। किर उन्होंने मु झे अखबार में
छपी खबर के बारे में बताया और पू ॅछा कक ये सब क्ा है तो मैने कहा कक कमल कर
बताऊगा।

ररतू दीदी से बात करने के बाद मैं आकदत्य से बातें करने लगा। तभी मेरी ऩिर एक
ऐसे चे हरे पर पडी कजसे दे ख कर मैं चौ ंक पडा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सिाल
उठा कक क्ा उसने मुझे दे ख कलया होगा????? मैने अपनी पैं ट की जेब से रुमाल
कनकाल कर अपने मुख पर बाॅध कलया और किर आराम से आकदत्य से बातें करने
लगा। ककन्तु मेरी ऩिर बार बार उस चे हरे पर चली ही जाती थी। कजस चे हरे पर मैं
एक अजीब सी उदासी दे ख रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 50 》

अब तक,,,,,,,,

मैं माॅ से कमला तो माॅ मेरी िापसी की बात से भािु क हो गईं। उन्हें पता था कक मैं
िापस ककस कलए जा रहा हूॅ इस कलए िो मुझे बार बार अपना खयाल रखने के कलए
कह रही थी। खै र मैने उन्हें आश्वस्त कराया कक मैं खु द का खयाल करूॅगा और मु झे
कुछ नही ं होगा।

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चलने से पहले मैने सबसे आशीिागद कलया और किर आकदत्य के साथ िापसी के कलए
चल कदया। मेरे साथ जगदीश अं कल भी थे । पिन और आशा दीदी मुझे अपना
खयाल रखने का कहा और खु शी खु शी मु झे किदा ककया। हलाॅकक मैं जानता था कक
िो अं दर से मेरे जाने से दु खी हैं। उन्हें मेरी किक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर
रहने को कहा। करुर्ा चाची ने मु झे प्यार कदया और किजयी होने का आशीिागद
कदया। मैं कदव्या और शगुन को प्यार ि स्ने ह दे कर कनधी की तरि दे खा तो िो कही ं
ऩिर न आई। मैं समझ गया कक िो मु झसे कमलना नही ं चाहती है। इस बात से मुझे
तक़लीफ़ तो हुई ककन्तु किर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब ककया और जगदीश अं कल
के साथ कार में बै ठ कर िापस रे लिे स्टे शन की तरि चल कदया।

रे लिे स्टे शन पहुॅच कर मैं और आकदत्य कार से उतरे । जगदीश अं कल ने मुझे एक


पै ककट कदया और कहा कक मैं उसे अपने बै ग में चु पचाप डाल लू ॅ। मैने ऐसा ही
ककया। उसके बाद जगदीश अं कल से मेरी कुछ ़िरूरी बातें हुईं और किर मैं और
आकदत्य प्लेटिामग की तरि बढ गए। टर े न िापसी के कलए बस चलने ही िाली थी। हम
दोनो टर े न में अपनी अपनी शीट पर बै ठ गए। मैने मोबाइल से ररतू दीदी को िोन
ककया और उन्हें बताया कक सब लोगों को मैने सु रकक्षत पहुॅचा कदया है और अब मैं
िापस आ रहा हूॅ। ररतू दीदी इस बात से खु श हो गईं। किर उन्होंने मु झे अखबार में
छपी खबर के बारे में बताया और पू ॅछा कक ये सब क्ा है तो मैने कहा कक कमल कर
बताऊगा।

ररतू दीदी से बात करने के बाद मैं आकदत्य से बातें करने लगा। तभी मेरी ऩिर एक
ऐसे चे हरे पर पडी कजसे दे ख कर मैं चौंक पडा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सिाल
उठा कक क्ा उसने मुझे दे ख कलया होगा????? मैने अपनी पैं ट की जेब से रुमाल
कनकाल कर अपने मुख पर बाॅध कलया और किर आराम से आकदत्य से बातें करने
लगा। ककन्तु मेरी ऩिर बार बार उस चे हरे पर चली ही जाती थी। कजस चे हरे पर मैं
एक अजीब सी उदासी दे ख रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

उधर ररतू के िामगहाउस पर!


सु बह का नास्ता पानी करने के बाद ररतू बाहर की तरि कनकल गई। बाहर आकर
उसने दे खा कक सामने मेन गेट पर हररया काका और शं कर काका आपस में कुछ
बातें कर रहे थे । ररतू उन दोनो को दे खते ही उनकी तरि बढ चली। कुछ ही समय में
िो उन दोनो के पास पहुॅच गई। ररतू को अपनी तरि आता दे ख उन दोनों ने अपनी
बात बं द कर दी और सम्हल कर खडे हो गए।

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"क्ा हाल चाल हैं आप दोनो के काका?" ररतू ने उन दोनों की तरि दे ख कर
मुस्कुराते हुए कहा___"आप दोनों ने नास्ता पानी ककया कक नही ं?"
"हम दोनों ने अभी थोडी दे र पहले ही नास्ता पानी ककया है कबकटया।" शं कर ने
कहा___"कबं कदया भाभी हमारा कािी बे हतर तरीके से खयाल रखती हैं ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है काका।" ररतू ने कहा___"काकी हैं ही इतनी अच्छी कक
उन्हें सबकी किक्र रहती है।"
"हाॅ ये बात तो सच है कबकटया।" शं कर ने कहा___"हररया बहुत ककस्मत िाला है जो
इसे कबं कदया भाभी जैसी जोरू कमली हैं।"

"अरे ई का कहथो रे बु डबक?" हररया ने बु रा सा मु ह बनाते हुए कहा___"ककस्मत


िाली ता ऊ है ससु री जो हमरे जइसन मरद कमल गिा है ऊखा। हम ता पकहले से ही
ककस्मत िाला हूॅ रे ।"
"दे खा कबकटया।" शं कर ने ररतू से कहा___"ये अपने आपको जाने क्ा समझता रहता
है? जबकक सच्चाई तो यही है कक जबसे कबं कदया भाभी से इसका ब्याह हुआ है तब से
इसके भाग्य खु ल गए हैं।"

"खू ब समझ रहा हूॅ रे तोहरी बातन का।" हररया ने कसर कहलाते हुए कहा___"तू
ससु रे ऊखर बहुतै बडाई करथै रे । तोहरे मन मा का है ई हम बहुतै अच्छी तरह से
जानत हूॅ। इतना बु डबक न हूॅ हम। पर तू ससु रे हमरी एक बात कान खोल के सु न
ले , अउर ऊ या के कउनि कदन सारे हमरी मे हरारू का लइके भाग न जइहे समझा
का?"

"ओए ये क्ा बकिास कर रहा है तू ?" शं कर ने एकदम से आिे श में आकर


कहा__"ऐसा तू सोच भी कैसे सकता है मेरे बारे में? तू अच्छी तरह जानता है कक मेरे
मन में ऐसी बदनीयती नही ं है। मैं तो भाभी की बहुत इज्ज़ित करता हूॅ और उन्हें
भाभी माॅ जैसा ही मानता हूॅ।"

"ई ता ससु रे तू मु ह से बोल रहा है न।" हररया ने कहा__"केहू के मन मा का है ई


कउन जानथै भला, हाॅ?"
"तू जैसा है िै सा ही दू सरे को भी समझता है।" शं कर ने कहा___"इस कलए मुझे अपने
कलए सिाई दे ने की कोई ़िरूरत नही ं है। ईश्वर जानता है कक मेरे अं दर क्ा है?"

"मैं जानती हूॅ काका कक आपके मन में ककसी के कलए कोई मैल नही ं है।" ररतू ने
कहा___"हररया काका तो आपको बस छे ड रहे हैं ले ककन मैं ये कह रही हूॅ आप भी
शादी कर लीकजए और मेरे कलए एक अच्छी सी काकी ले आइये।"

687
"ये क्ा कह रही हो कबकटया?" शं कर हसा___"अब भला इस उमर में कौन लडकी
मुझसे ब्याह करे गी? अब तो ये जीिन ऐसे ही कटे गा।"
"अरे अभी भी आप शादी कर सकते हैं काका।" ररतू ने कहा___"और आपको करना
ही पडे गा। जब आप शादी कर लें गे तब हररया काका आपको ये सब कह कर छे डें गे
नही ं।"

"हम ता ई ससु रे का समझाय समझाय के थक गयन कबकटया।" हररया ने कहा___"पर


ई ससु रा हमरी कउनि बात मानतै नाही ं है। कहैं का ता ई हमका आपन बहुतै बडका
पक्का यार मानथै पर ई बात भी सच हाय कक ई हमरी बात भी नाही ं सु नत है।"

"आप समझ नही ं रहे हैं काका।" ररतू ने सहसा मु स्कुराते हुए कहा___"शं कर काका
को दरअसल कबं कदया काकी जैसी बीिी चाकहए। बात भी सही है काका अगर कबं कदया
काकी जैसी बीिी शं कर काका को भी कमल जाए तो इनका जीिन और भी ज्यादा
सिर जाए।"

"कारे ईहै बात हा का?" हररया काका ने कतरछी ऩिर से शं कर की तरि


दे खा___"अउर अगर ईहै बात हा ता ससु रे ई बात तै हमका पकहले काहे ना बताए रहे?
सरिा बे कार मा अब तक ते रडिा घूमत रहे। चल अउनि बात ना हा। हम तोहरे
खाकतर ऊ ससु री कबं कदया जइसनै जोरू ढू ॅढब। हमरे इहाॅ अइसन मे हरारू केर
कउनि कमी ना हा।"

"ये तो अच्छी बात है काका।" ररतू ने मु स्कुरा कर कहा__"आप जल्दी से िधू का


इं तजाम कीकजए। उसके बाद चट मगनी पट ब्याह हो जाएगा। और हाॅ शं कर काका
की शादी का सारा खचाग मैं करूॅगी।"

"ये तु म क्ा कह रही हो कबकटया?" शं कर काका एकदम से चौंक पडा__"भला मैं


तु मसे कैसे खचाग करिा सकता हूॅ? अरे तु मको तो मैं अपनी बे टी ही मानता हूॅ और
बे टी से इस तरह अपने काम के कलए धन खचाग करिाना अच्छी बात नही ं है। मु झे पाप
लगेगा कबकटया।"

"आप भी कमाल करते हैं काका।" ररतू ने कहा__"जीिन भर माॅ बाप अपने बच्चों
के ऊपर अपनी पाई पाई खचग करते रहते हैं तो क्ा बच्चों का ि़िग नही ं बनता कक िो
भी अपने माॅ बाप के ऊपर अपनी कमाई का पाई पाई खचग कर दें ? अगर आप मु झे
अपनी बे टी मानते हैं तो मैं भी तो आपको अपने कपता जैसा ही मानती हूॅ। और ये
मेरी इच्छा ही नही ं बल्कि खु शी की बात है कक मैं अपने शं कर काका की शादी में खू ब
पै सा खचग करूॅ। मैने िैंसला कर कलया है, इस कलए अब आप इस बारे में कुछ भी

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नही ं कहेंगे? िरना कभी बात नही ं करूॅगी आपसे ।"

ररतू की बातें सु न कर शं कर हैरत से दे खता रह गया उसे । किर सहसा जाने उसके
अं दर कैसा भािनाओं का तू िान उठा कक उसकी ऑखों से झर झर करके ऑसू बह
चले । उसके चे हरे पर एकाएक ही गहन पीडा और दु ख के भाि उभर आए। ये दे ख
कर ररतू आगे बढी और उसकी ऑखों से बह रहे ऑसु ओ ं को अपने हाॅथ से पोंछा।

"ये क्ा काका?" ररतू ने कहा__"आप रों रहे हैं ? क्ा मुझसे कुछ ग़लती हो गई?"
"नही ं नही ं कबकटया।" शं कर एकदम से कह उठा___"तु मसे भला कोई ग़लती कैसे हो
सकती है? तु म तो एक ने क कदल बच्ची हो कबकटया। आज िषों बाद इतनी खु शी
महसू स हुई कक िो खु शी ऑसू बन कर इन ऑखों से छलक पडी। इस दु कनयाॅ में
इससे पहले बहुत दु ख ददग सहे थे मैने। मगर जबसे यहाॅ आया हूॅ तो ऐसा लगा जैसे
मैं अकेला नही ं हूॅ बल्कि मेरा भी कोई अपना है। कजसे मेरी किक्र है।"

"मैं तो शु रू से ही आपको अपना ही मानती आ रही हूॅ काका।" ररतू ने


कहा___"मगर आप आज भी मुझे अपना नही ं मानते हैं । अगर मानते तो मेरे और
हररया काका के पू छने पर अपने बारे में िो सब कुछ बताते कजसकी िजह से आप
कभी अपने घर नही ं जाते हैं।"

"उस सबको बताने का कोई मतलब नही ं है कबकटया?" शं कर ने कहा___"अतीत


ककसी का भी हो िो जब भी याद आता है तो हमें दु ख और उदाकसयाॅ ही दे ता है। मैं
उस सबको याद नही ं करना चाहता। क्ोंकक बडी मुल्किल से मैने खु द को इस हद
तक सम्हाला है।"

"अपने अं दर के ददग को बयाॅ कर दे ने से मन का बोझ कािी हिा हो जाता है


काका।" ररतू ने कहा___"ये तो अच्छी बात है कक आप अपने उस ददग से उबर कर
आज सम्हल चु के हैं। ले ककन ये भी सच है कक अपने अं दर इतने सारे दु ख ददग को दबा
के रखना भी अच्छी बात नही ं है। ऐसे में िो ददग नासू र बन जाता है और हमें एक पल
भी सु कून से जीने नही ं दे ता। इस कलए आप अपने के उस दु ख ददग को बाहर कनकाल
दीकजए और किर नये कसरे से अपने जीिन की नई शु रूआत कीकजए।"

"ररतू कबकटया बहतै भले की बात करथै शं करिा।" हररया ने कहा___"जो बीत गया हा
उसे ता भू ला दे मा ही भलाई हा। हम सरिा तोसे कब से रहा हूॅ के तू अपना ब्याह
करके जीिन मा आगे बढ। पर तू ससु रा हमरी सु नतै नाही ं है?"
"अब तो कबकटया ने अपना िैंसला सु ना ही कदया है हररया।" शं कर ने कहा___"और
कजस अपने पन से सु नाया है उसे अगर मैं ना मानू ॅ तो किर कधक्कार ही होगा मु झ

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पर। इस कलए अब मैं ़िरूर ब्याह करूॅगा यार।"

"हाॅ ले ककन उससे पहले ।" ररतू ने कहा___"मैं ये भी जानना चाहती हूॅ काका कक
आपके साथ ऐसा क्ा हो गया था कजसकी िजह से आप कभी अपने घर नही ं जाते
और ना ही अपने घर िालों से कभी कोई मतलब रखते हैं? आप हमें िो सब कुछ
अभी बताएॅगे काका।"

"ठीक है कबकटया।" शं कर ने गहरी साॅस ली___"तु म अगर इतना ही ़िोर दे रही हो


तो सब कुछ बताता हूॅ तु म्हें। मैं उिर प्रदे श के एक छोटे से गाॅि महोबा का
कनिासी हूॅ। मैं छोटी जाकत का हूॅ। मेरा बाप बल्ली राित एक कमस्त्री था। जो
मकानों में ईंटे की जोडाई का काम करता था। हम तीन भाई और दो बहन थे । मेरी
माॅ बहुत शान्त स्वभाि की थी। अपने सभी बच्चों को िह बहुत प्यार करती थी।
भाई बहनों में मैं सबसे बडा था। मैं माॅ पर गया था इस कलए मेरा स्वभाि भी सबके
प्रकत प्यार भरा ही था। उस िक्त मैं पच्चीस साल का हो गया था और अपने बापू के
साथ रह कर कमस्त्रीगीरी पू री तरह सीख चु का था। इस कलए जहाॅ भी काम कमलता
मैं बापू के साथ ही रह कर उनके काम में हाॅथ बटाता था। मेरे सहयोग का असर ये
हुआ की घर के आकथग क हालात पहले की अपे क्षा कािी बे हतर हो गए। हमारी जात
कबरादरी के कुछ लोग मेरे बापू से अर्क्र मेरा ब्याह कर दे ने को कहते रहते थे । पर
पता नही ं बापू उन सबकी बातों को क्ों अनसु ना कर दे ता था? इधर पास के ही एक
गाॅि में हमारी ही जात कबरादरी में एक लडकी थी चं दा। कजसे मैं कािी पसं द करता
था। िो भी मु झे बहुत पसं द करती थी। हमें जब भी समय कमलता हम एक दू सरे से
़िरूर कमल कलया करते थे । कहते हैं कक इश्क़ मुश्क़ कभी छु पता नही ं इस कलए इस
बात का पता मेरे बापू को भी हो गया था। कजससे बापू मु झे इसके कलए डाॅट भी दे ता
था कभी कभी। खै र सब कुछ ठीक ही चल रहा था कक एक कदन हर कदन की भाॅकत
मैं बापू के साथ काम पर गया हुआ था। गाॅि में ही काम चालू था तो दोपहर के
समय सहसा मेरी बहन रीना भागते हुए आई और बताया कक अम्मा मर गई है।
उसकी बात सु न कर हम दोनो बाप बे टा भौचक्के से रह गए। मु झे तो यकीन ही नही ं
हुआ कक अम्मा मर गई है। रीना ने बताया कक अम्मा नहाने के कलए बाल्टी को रस्सी
से बाॅध कर कुएॅ से पानी खी ंच रही थी। तभी जाने कैसे उसका पाॅि किसल गया
और िो कुएॅ में कगर गई। अम्मा को तै रना नही ं आता था इस कलए िो पानी में डूब
गई और मर गई। रीना ने बताया कक जब कािी दे र तक अम्मा नहा कर न आई तो
िह घर के कपछिाडे पर बने कुएॅ में ये दे खने गई कक अम्मा अब तक आई क्ों नही ं?
ले ककन कुएॅ में अम्मा को न पा कर रीना कुएॅ के आस पास दे खने लगी। किर
सहसा उसकी ऩिर कुएॅ के अं दर पडी तो अम्मा को पानी की सतह पर औधे मु ॅह
ले टी पाया। रीना को समझते दे र न लगी कक अम्मा मर गई है, बस ये कहानी थी
अम्मा के मर जाने की। रीना की सारी बातें सु न कर हम दोनो बाप बे टा काम छोंड

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कर घर आ गए। गाॅि के कुछ लोगों की मदद से मेरे भाईयों ने अम्मा को कुएॅ से
कनकाल कलया था।

अम्मा के मर जाने का दु ख सबसे ज्यादा मुझे था। ले ककन अब हो भी क्ा सकता था।
अम्मा का कक्रया कमग ककया गया और कुछ कदन में किर से हमारी कदन चयाग पहले
जैसी चलने लगी। अब घर में रोटी पानी मेरी दोनो बहनें ही बनाती थी। मेरे सभी भाई
बहन बडे हो गए थे और जिान भी। अम्मा के मर जाने का दु ख मेरे अं दर बना ही रहा
पर मैं ककसी के सामने उस दु ख को कदखाता नही ं था। कुछ कदन बाद एक बदलाि ये
हुआ कक बापू अर्क्र रात को दे सी ठराग(शराब) लगा कर घर आने लगा और घर में
सबको अनाप शनाप बकने लगा और गाकलयाॅ भी दे ने लगा। हम सब बापू के दारू
पीने से परे शान से होने लगे। इधर एक बदलाि ये भी हुआ कक बापू मु झे काम पर
लगा कर खु द चार चार घंटे के कलए गायब हो जाता। जबकक मैं सारा कदन काम में
लगा रहता और किर कदन ढले ही घर िापस आता। ऐसे ही कदन गु़िरते रहे।

ऐसे ही एक कदन मैं शाम को घर पहुॅचा। हाथ मुह धोकर खाया कपया और किर घर
के बाहर मैदान में चारपाई लगा कर उसमें ले ट गया। कदन भर के काम से मैं कािी
थक जाता था इस कलए ले टते ही मु झे नी ंद आ गई। अभी मु झे सोये हुए कुछ ही समय
गु़िरा था कक सहसा ककसी ने मेरी पीठ पर ़िोर की लात मारी। कजससे मैं चारपाई के
नीचें कगर गया। अचानक हुए इस हमले से पहले तो मुझे कुछ समझ न आया ककन्तु
किर तु रंत ही मेरे अं दर गुस्से का उबाल आ गया। मेरी ऩिर मुझे लात मारने िाले पर
पडी। दे खा तो चारपाई के उस पार नशे में झम ू ता बापू खडा था।

"बापू तु मने मु झे मारा क्ों?" मैं लगभर नारा़िगी भरे भाि से पू छा___"और ये क्ा
तु म हर रो़ि दे सी दारू चढा के आ जाते हो। ये अच्छी बात नही ं है बापू ।"
"बकिास ना कर समझा।" बापू नशे में झम ू ता हुआ गरजा___"मैं कुछ भी करू तु झे
इससे क्ा मतलब? मैं अपने पै सों की दारू पीता हूॅ ते रे बाप की नही ं समझा।"

"मेरे बाप तो तु म ही हो बापू ।" मैने कहा___"मैं ये नही ं कहता कक तु म दारू न कपयों
मगर रोज रोज पीना अच्छी बात नही ं है। इससे तु म्हारी तकबयत खराब हो जाएगी।"
"अरे िो सब छोंड।" बापू ने हाॅथ को ऊपर से नीचे की तरि झटकते हुए
कहा___"ये बता कक तू अपनी नई निे ली अम्मा से कमला कक नही ं?"

"नई निे ली अम्मा??" मैं एकदम से चकरा गया__"ये तु म क्ा बोल रहे हो बापू ?"
"ठीक ही तो बोल रहा हूॅ बु डबक।" बापू लडखडा सा गया___"अरे आज मैं तु म
सबके कलए एक नई अम्मा ले आया हूॅ। मैं जानता हूॅ कक अपनी अम्मा के मर जाने
से तु म सब बहुत दु खी थे इस कलए मैने किर से ब्याह कर कलया और तु म सबके कलए

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एक अम्मा ले आया।"

मैं बापू की बात सु न कर उछल पडा था। हैरत से ऑखें िाडे नशे में झमू ते बापू को
दे खे जा रहा था। ककन्तु तभी मु झे एहसास हुआ कक लगता है बापू को दारू ज्यादा चढ
गई है इस कलए अनाप शनाप बके जा रहा है।

"अं दर जाओ बापू ।" किर मैने कहा___"तु म्हें दारू आज ज्यादा चढ गई है। इस कलए
अं दर जाओ और जो थोडा बहुत खाना खाना हो खाओ और आराम से सो जाओ।"
"तू साले मु झे बता रहा है कक मु झे चढ गई है?" बापू एकदम से चीख पडा था,
बोला___"अरे इतनी सी बार बराबर दारू मुझे नही ं चढती मादरचोद। मैं जो कह रहा
हूॅ उसे मानता क्ों नही ं? चल आ मेरे साथ तु झे कदखाता हूॅ कक अं दर ते री नई अम्मा
है कक नही ं।"

बापू मेरा हाॅथ पकड कर अं दर की तरि खी ंच कर ले जाने लगा। मैं चाहता तो


अपना हाॅथ एक झटके में उससे छु डा ले ता मगर मैं कोई बखे डा नही ं करना चाहता
था इस कलए उसके खी ंचने पर उसके पीछे पीछे अं दर की तरि ल्कखंचता चला गया।
अं दर बरामदे में मेरे सभी भाई बहन बै ठे थे । घर कच्चे मकान का था। बाहर से आने
पर पहले बडा सा बरामदा पडता था, उसके बाद दो कमरे थे । कजसमे एक कमरे में
सामान िगैरा रखा रहता था। जबकक दू सरा कमरा बापू का था। कमरे में जो लकडी
का दरिाजा था उसमें अं दर की तरि कुण्डी नही ं थी।

बापू मु झे खी ंचते हुए उसी कमरे की तरि बढा और झटके से कमरे का दरिाजा
खोल कर अं दर दाल्कखल हो गया। जबकक मैंने तु रंत ही अपना हाॅथ छु डा कलया था।
अं दर दाल्कखल होते ही बापू ऊची आिा़ि में एक तरि उगली का इशारा करते हुए
बोला___"ये दे ख शं कर, ये है ते री नई अम्मा। अरे दे ख न बे टीचोद तु झे यकीन नही ं हो
रहा था न। दे ख ये बै ठी है ते री अम्मा चारपाई पर।"

मैंने अं दर की तरि कसर करके चारपाई की तरि दे खा तो चौंक पडा। सच में अं दर


रखी चारपाई पर कोई औरत बै ठी थी। नई साडी में बडा सा घू ॅघट ककये थी िह।
इस कलए मैं उसका चे हरा न दे ख सका। पर इतना कािी था मु झे हैरत में डालने के
कलए। मैं उस औरत को दे खने के बाद आश्चयग से बापू की तरि दे खा। मु झे अपनी
तरि दे खता दे ख बापू बडे अजीब भाि से मु स्कुराया और किर कमरे से बाहर
बरामदे में आ गया।

"क्ों बापू ?" मैने भारी आिा़ि में कहा__"क्ों ककया ऐसा? हम कोई बच्चे तो नही ं थे
जो हम अम्मा के कबरा जी नही ं सकते थे । तु म तो दे ख ही रहे हो बापू कक तु म्हारे बच्चे

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खु द अब ब्याह करने लायक हो गए हैं किर खु द ब्याह करने की क्ा ़िरूरत थी
तु म्हें?"

"़िरूरत थी बे टिा।" बापू ने कहा___"बल्कि बहुत ़िरूरत थी मुझे। ते री अम्मा तो


मर गई मगर मेरी जज्ञस्मानी ़िरूरतों को अब कौन पू री करता? िै से ते री अम्मा के
रहते हुए भी कुछ नही ं होता था। अच्छा हुआ साली मर गई। मु झ पर और मेरे लौडे
पर ़िरा सा भी तरस नही ं आता था उसे । जब भी उससे कहता कक आज बहुत कदल
कर रहा है एक बार दे दो तो साली ऐसी कबदकती थी जैसे दु धारू गाय हो।"

"ये तु म क्ा बकिास कर रहे हो बापू ?" मैने पू री शल्कक्त से चीखते हुए कहा___"शमग
आनी चाकहए तु म्हें अपने बे टे के सामने उसकी अम्मा के कलए ऐसा बोलने पर।"
"इसमें शमग कैसी बछु िा?" बापू कढठाई से मु स्कुराया___"जो सच बात है िही तो बोल
रहा हूॅ मैं।"

"मुझे नही ं सु नना तु म्हारी ये बे हूदा बातें ।" मैने गुस्से से कहा और पलट कर बाहर की
तरि अपनी चारपाई के पास आ गया। मेरा कदमाग़ बहुत ज्यादा खराब हो गया था।
मगर ये भी सच था कक अब हो भी क्ा सकता था?

मैं अपने अं दर ह़िारों तरह की बातें कलए चु पचाप चारपाई पर ले ट गया। मु झे बापू पर
बहुत गुस्सा आ रहा था। मगर मैं कुछ कर नही ं सकता था। इस कलए अपने गुस्से को
बडी मुल्किल से काबू ककये हुए ऑखें बं द करके सोने की कोकशश करने लगा था।
मगर कम्बख्त ऑखों में नी ंद का दू र दू र तक कोई आभास भी नही ं हो रहा था।

अभी मु झे ले टे हुए कुछ ही दे र हुई थी कक तभी अं दर से ककसी औरत की चीख सु नाई


दी। मेरी ऑखें खु ल गईं मगर मैं उठा नही ं। मैं समझ चु का था कक बापू अपनी नई
निे ली जोरू के पास ही होगा और उसके साथ िही कर रहा होगा जो हर शादी शु दा
मदग औरत करते हैं शादी के बाद। इस कलए मैं चु पोआप ले टा रहा। मैं इस बात से
हैरान ़िरूर हुआ कक बापू को ़िरा भी शमग नही ं है कक घर में उसके पाॅ पाॅच जिान
बच्चे मौजूद हैं और िो कमरे से क्ा सु ना रहा है उन्हें ।

मैं ये सब सोच ही रहा था कक एक बार किर से मेरे कानों में औरत की चीख सु नाई दी
साथ ही बापू की गाकलयाॅ भी। ककन्तु इस बार मैं चीख सु न कर बु री तरह उछल पडा
था। क्ोंकक चीख में शाकमल मेरा नाम था। उस आिा़ि को मैं लाखों में पहचान
सकता था। ये चं दा की चीख थी। जी हाॅ, ये चं दा ही थी। मगर मैं चककत इस बात पर
था कक िो यहाॅ कैसे ? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कक एक बार किर से ़िोरदार
चीख मेरे कानों पर पडी। इस बार मुझे िष्ट सु नाई कदया और मु झे कबलकुल भी सं देह

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न हुआ। ये यकीनन चं दा ही थी, मेरी चं दा। ये जान कर कक िो चीख मेरी चं दा की ही
है मैं एकदम से पागल सा हो गया और चारपाई से उतर कर कबजली की सी ते ़िी से
अं दर की तरि भागा। पलक झपकते ही मैं बरामदे में पहुॅच गया।

मेरी ऩिर कमरे के दरिाजे के पास खडे मेरे मझले भाई जगन पर पडी। िो अधखु ले
दरिाजे से कमरे के अं दर की तरि दे ख रहा था। ये दे ख कर मेरा खू न खौल गया।
मुझे लगा कक िो अं दर िो सब दे ख रहा है जो कदाकचत मेरा बापू मेरी चं दा के साथ
करने की कोकशश कर रहा होगा। मैं भला ये कैसे बदागस्त कर सकता था? मैने दे खा
कक बरामदे के दाकहनी तरि मेरी दोनो बहने यानी रीना तथा मीना ़िमीन पर ही एक
पु राना चद्दर कबछा कर ले टी हुई थी और उनके बगल से ही मेरा छोटा भाई मदन ले टा
हुआ था। बरामदे के बाईं तरि कोने में रसोई थी।

जगन को इस तरह चोरी छु पे अं दर की तरि दे खते हुए दे ख कर मैं ते ़िी से उसकी


तरि बढा और पीछे से ही उसकी शटग का कालर पकड कर अपनी तरि खी ंचा और
किर उसे पलटा कर एक झन्नाटे दार थप्पड उसके गाल पर रसीद कर कदया। उसको
इस सबकी उम्मी ंद हकगग़ि भी न थी। इधर मैं इतने पर ही न रुका था, बल्कि उसको
पकड कर पू री शल्कक्त से एक तरि उछाल कदया। िो लडखडाता हुआ दीिार से
टकराया और नीचे कगर गया। तभी मेरे कानों में चं दा की चीख किर से पडी। मेरा
ध्यान उस तरि गया तो मैं जगन की तरि न जा कर पलटा और ते ़िी से कमरे के
अं दर की तरि दौड गया।

कमरे के अं दर का ऩिारा दे ख कर मैं गुस्से से पागल हो गया। मेरा बापू चं दा के


ऊपर चढा हुआ उसका ब्लाऊज िाड रहा था। नशे की हालत में उसे ़िरा भी होश
नही ं था कक िो क्ा कर रहा है? बापू के नीचे दबी चं दा बु री तरह छटपटाए जा रही थी
और चीखे जा रही थी। ये सब दे ख कर मैं उस तरि कबजली की सी ते ़िी से लपका
और किर मैने बापू को पीछे से पकड कर पू री ताकत से अपनी तरि खी ंचा और
किर कमरे के िशग पर लगभग िेंक कदया। बापू नशे में लडखडाता ़िमीन पर
लु ढकता चला गया था।

"ते री कहम्मत कैसे हुई मेरी चं दा को इस तरह हाॅथ लगाने की?" मैने गुस्से से चीखते
हुए झुका और बापू को दोनो हाॅथों से पकड कर उठा कलया___"तू इतना कगर गया है
कक तु झे ये भी होश नही ं आया कक तू ककसके साथ ये नीचता कर रहा है?"

"अबे छोंड मादरचोद।" बापू नशे में ़िोर से कचल्लाया__"मु झे अपनी नई निे ली
मेहररया के साथ सु हागरात मना ले ने दे । साला कैसा बे टा है तू कक अपने बाप को

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उसकी मे हरारू के पास भी नही ं जाने दे ता?"
"़िुबान को लगाम दे बापू ।" मैने बापू के कालर को पकड कर उसे झकझोरते हुए
कहा___"िरना यही ं पर क़िंदा गाड दू ॅगा तु झे। तु झे पता था न कक मैं चं दा को पसं द
करता हूॅ और उसी से शादी करना चाहता हूॅ इसके बािजूद तू ने मेरी चं दा से ब्याह
कर कलया। ऐसा क्ों ककया बापू ? चं दा तो ते री अपनी बे टी के समान ही थी किर क्ों
उससे ब्याह ककया तू ने? तु झे अपने इस बे टे की खु कशयों का ़िरा भी खयाल नही ं
आया?"

"बकिास ना कर हरामखोर।" बापू मु झसे छूटने की कोकशश करते हुए चीखा___"िो


ते री अम्मा है समझे। बार बार मेरी चं दा मेरी चं दा की रट क्ों लगा रहा है तू ?"
"क्ोंकक चं दा मेरी ही थी बापू ।" मैने चीखा___"मैं उससे प्रे म करता था और करता
रहूॅगा। तू भी तो जानता था ये सब। किर क्ों उससे ब्याह रचाया तू ने? क्ों अपने
बे टे का गर बसने से पहले ही उजाड कदया तू ने? अरे तु झे अपना ब्याह ही करना था तो
ककसी दू सरी लडकी से कर ले ता बापू । चं दा से ब्याह करके तू ने मेरी खु कशयों का गला
क्ों घोंट कदया?"

"अरे मुझे कुछ नही ं पता था इस बारे में।" बापू ने कहा__"और किर अगर तू चं दा को
पसं द ही करता था और उससे ब्याह ही करना चाहता था तो तु झे बताना चाकहये था
न। पर तू ने तो कभी बताया ही नही ं। अब अगर मैने उससे ब्याह कर कलया तो इसमे
मेरी क्ा ग़लती है?"

"सारी ग़लती है ते री।" मैं पू री शल्कक्त से चीखा___"तू ने चं दा से उसकी म़िी के कबना


ब्याह ककया है। ये बात मैं अच्छी तरह जानता हूॅ। तू ने चं दा के बाप को पै सों का
लालच कदया होगा। तभी चं दा के बाप ने अपनी बे टी का ब्याह तु झसे ककया होगा। उस
कसाई को भी अपनी बे टी की खु कशयों से कोई ले ना दे ना नही ं था। तभी तो ऑख बं द
करके उसने एक बू ढे से अपनी कम उमर बे टी का ब्याह कर कदया। मुझे पता है कक
चं दा इस ब्याह हे खु श नही ं है। अगर खु श होती तो िो इस तरह चीखती नही ं।"

"अरे शु रू शरु में हर औरत थोडा बहुत चीखती है उर घबराती है।" बापू ने
कहा___"मगर जब एक बार लौडा अं दर गया तो सारी घबराहट और सारा चीखना
बं द हो जाता है । िही तो करने जा रहा था मैं। मगर ससु री ज्यादा ही उछल रही थी।
ले ककन कोई बात नही,ं सु हागरात तो मैं मना के ही रहूॅगा।"

मैं बापू की इस बात से बु री तरह कतलकमला गया। मेरे अं दर गुस्से की ज्वाला धधक
उठी। मैं बापू को खी ंच कर कमरे से बाहर लाया और बरामदे में लाकर ़िोर का
झटका दे कर ़िमीन पर पटक कदया। बापू के मुख से ददग में डूबी चीख कनकल गई।

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िो मु झे गंदी गंदी गाकलयाॅ बकने लगा। मेरा गुस्सा और बढ गया। मैंने उसे उठा कर
दीिार से सटा कदया और उसकी गदग न पर अपने दोनों हाॅथ ताकत से जमा कदये।
नतीजा ये हुआ कक बापू बु री तरह छटपटाने लगा। उसकी ऑखें बाहर को कनकलने
के कलए आतु र हो उठी ं। मु झे गु स्से में अब कुछ भी कदखाई नही ं दे रहा था। मैं मजबू ती
से बापू का गला दबाए जा रहा। तभी पीछे से ककसी ने मेरे कसर पर ककसी ठोस ची़ि
का िार ककया। मेरे हलक से चीख कनकल गई। ऑखों के सामने पहले तो रं ग कबरं गे
तारे नाचे उसके बाद ऑखों के सामने अधेरा सा छाता चला गया। मैं दोनो हाॅथों से
अपना कसर थामे लहरा कर िही बरामदे की ़िमीन पर धडाम से कगर पडा। उसके
बाद मुझे याद नही ं कक आगे क्ा हुआ?

जब मु झे होश आया और मेरी ऑखें खु ली ं तो एकाएक ही ते ़ि प्रकाश से मेरी ऑखें


चु ॅकधया गईं। मैने धीरे धीरे करके अपनी ऑखें खोली ं तो ऑखों के सामने खु ला
आसमान ऩिर आया। पहले तो मु झे कुछ समझ न आया इसके बाद जब मैने ग़ौर से
हर ची़ि को दे खा तो थोडा थोडा समझ आया। मैने झटके से उठने की कोकशश की
तो मेरे मुख से ददग भरी कराह कनकल गई। कसर के कपछले भाग में ते ़ि पीडा हुई थी।
मेरा एक हाॅथ स्वतः ही उस चोंट िाले कहस्से पर चला गया। मु झे मेरे हाॅथ में कुछ
कचपकचपा सा महसू स हुआ। मैं धीरे धीरे करके उठा और िही ं पर बै ठ गया।

बै ठ कर मैने इधर उधर दे खा तो पता चला कक मैं ककसी खे त के बीच पर बै ठा हुआ


हूॅ। एक तरि लगभग दो सौ गज की दू री पर गाॅि की आबादी कदख रही थी।
ककनारे पर बने अपने घर को पहचानने में मुझ ़िरा भी दे र न लगी। इसका मतलब मैं
अपने घर के कपछिाडे ही दो सौ गज की दू री पर था। मेरे कदमाग़ ने काम करना शु रू
ककया तो मेरी ऑखों के सामने कपछली रात की सारी घटना ककसी चलकचत्र की
भाॅकत घूमने लगी।

सब कुछ याद आते ही मु झे सबसे पहले चं दा का खयाल आया। मेरे मन में किचार
उठा कक चं दा कैसी होगी अब? कपछली रात बापू ने क्ा ककया होगा उसके साथ?
कही ं बापू ने चं दा की इज्ज़ित तो तार तार तो नही ं कर कदया? हे भगिान, अब क्ा
होगा? मेरी चं दा लु ट गई होगी और मैं अपनी चं दा की सु रक्षा भी न कर सका। ये सब
किचार मन में आते ही मैं एकदम से दु खी हो गया और मेरी ऑखों से ऑसू बह चले ।
मुझे चं दा की बे हद किक्र होने लगी। इस कलए अपने ददग की परिाह ककये कबना मैं
उठा और अपने घर की तरि ते ़िी से बढ चला। मैने महसू स ककया कक ये सु बह का
िक्त था। आसमान में सू यग का प्रकाश अभी ज्यादा ते ़ि न हुआ था।

मैं अपने घर की तरि ते ़िी से बढता चला जा रहा था। मेरे मन में बस एक ही बात
चल रही थी कक चं दा कैसी होगी अब? मैं भगिान से प्राथग ना भी करता जा रहा था कक

696
चं दा को कुछ न हुआ हो। कुछ ही समय में मैं घर के कपछिाडे की तरि पहुॅच गया।
एक तरि िही कुआॅ था कजसमें कगर कर मेरी अम्मा मर गई थी। कुएॅ िाली जगह
से कुछ ही दू री के िाॅसले से चलते हुए मैं घर के कपछिाडे पर आ गया। पीछे की
दीिार से चलते हुए मैं उस कहस्से पर आया जहाॅ पर घर की दीिार खत्म हो जाती थी
और किर लकडी की बाउं डरी चारो तरि से बनाई गई थी। मैं लकडी की उस बाउं डरी
के शु रूआती कहस्से पर आया ही था कक मेरे कानों में मेरे मझले भाई जगन की
आिा़ि पडी तो मैं रुक गया।

"रीना ने सही िक्त पर शं कर के कसर पर लि मारी थी बापू ।" जगन की


आिा़ि___"िरना तु म्हारा तो कल्यार् ही कर कदया था शं कर ने ।"
"हाॅ ये तो सही कहा तू ने।" बापू की आिा़ि___"सब कुछ िै सा ही करना था जैसा
कक हमने तरकीब बनाई थी। मगर तू ने अपना काम सही से नही ं ककया जगन। िरना
शं कर को इतना गुस्सा नही ं आता और ना ही तु झे उससे मार खानी पडती।"

"ये दरिाजे से तु म्हारी और चं दा की किल् दे ख रहा था बापू ।" मदन कह


उठा___"जबकक मैने और रीना ने इसे मना भी ककया था कक तरकीब के अनु सार हमें
चु पचाप यही ं पर ले टे रहना है । मगर ये नही ं माना और अं दर की किल् दे खने लगा।
उधर जैसे ही चं दा की चीख शं कर के कानों में िै सी ही िो दौडते हुए यहाॅ आ गया
और दरिाजे पर जगन को इस तरह अं दर की तरि झाॅकते दे ख उसे क्रोध आ
गया। बस किर तो इसको कपटना ही था बापू ।"

"हाॅथ तो मैं भी उठा सकता मदन।" जगन ने तीखे भाि से कहा___"मगर मैने सोचा
कक उससे काम न कबगड जाए। इस कलए मैने उस कमीने शं कर पर हाॅथ नही ं
उठाया। िरना गु स्सा तो मु झे भी भयंकर आ गया था उस पर।"
"अच्छा हुआ कक तु मने हाॅथ नही ं उठाया उस पर।" रीना ने कहा___"िरना कुछ
और ही होने लगता और हमारा खे ल कबगड जाता।"

"ये सब तो ठीक है बापू ।" मीना की आिा़ि___"मगर मु झे अब तक ये समझ नही ं


आया कक ये सब चक्कर क्ा है? मतलब ये कक अम्मा के रहने पर भी और उसके
मरने के बाद भी तु म्हारी कजस्मानी ़िरूरत तो हम दोनो बहनें कमल कर पू री कर ही
दे ती थी ं। किर तु म्हें चं दा से ब्याह करने की क्ा ़िरूरत पड गई? क्ा इस कलए कक
अब तु म्हारा हमसे कदल भर गया है? दू सरी बात शं कर भाई को इसमें लपे टने का क्ा
मतलब है?"

"ये सारा चक्कर तो इस जगन की िजह से ही चलाना पडा मेरी राॅड बे टी।" बापू की
आिा़ि___"असल बात ये थी कक इसे भी पता चल गया था कक शं कर चं दा से प्रे म

697
करता है और उससे ब्याह करना चाहता है। अब भला जगन ये कैसे बरदास्त कर
ले ता कक उसका बडा भाई कजसे िो बचपन से ही पसं द नही ं करता है िो ककसी िजह
से खु श हो जाए? इस कलए शं कर और चं दा के किषय में पता चलते ही ये मेरे पास
आया और मु झसे बोला कक शं कर का ब्याह चं दा से ककसी भी कीमत पर नही ं होना
चाकहए। इसने एक दो बार चं दा को दे खा था इस िजह से ये भी उसे पसं द करने लगा
था। मगर इसे ये बात अच्छी तरह पता थी कक चं दा इसके प्रे म को स्वीकार नही ं
करे गी। इस कलए इसने सोचा कक अगर चं दा इसकी नही ं तो शं कर की भी नही ं होगी।
मैने इससे पू छा कक किर ये चाहता क्ा है तो इसने कहा कक कुछ ऐसा करो बापू कक
चं दा इस घर में हमेशा के कलए आ जाए और हम सब कमल कर जीिन भर उसे भोगें।
बात क्ोंकक सबके भले की थी इस कलए मुझे भी इसकी बात पसं द आई। मगर
सिाल ये था कक ऐसा होगा कैसे ? क्ोंकक चं दा तो शं कर से प्रे म करती थी और शं कर
उससे ब्याह भी करना चाहता था। मैं भले ही उसे ब्याह से इं कार कर दे ता मगर
उसकी िो सती साकित्री अम्मा उसकी खु शी ही दे खती और नतीजा ये होता कक िो
शं कर का ब्याह उस चं दा से ़िरूर करा दे ती। जबकक ऐसा हम चाहते ही नही ं थे । इस
कलए हमने सोचा कक सबसे पहले हमें अपने रास्ते से शं कर की उस ससु री अम्मा को
ही हटाना पडे गा। िै से भी िो साली ककसी काम की तो थी नही ं। खु द तो मु झे कभी
दे ती नही ं थी ऊपर से उसके डर से हम आपस में भी म़िा नही ं कर पाते थे । इस कलए
उसे अपने रास्ते से हटाने का सोच कलया हमने । ये बात तो तु म सबको पता ही है कक
कैसे हम लोगों ने कमल शं कर की अम्मा को अपने रास्ते से हटाया था। िो शं कर साला
आज भी यही समजता है कक उसके अम्मा की मौत महज एक हादसा था जो भगिान
के किधान के कहसाब से हो गया था। मगर उसे क्ा पता कक उसकी अम्मा को हमने
कैसे सोच समझ कर अपने रास्ते से हटाया है? हर कदन की तरह उस कदन भी मैं
शं कर को ले कर काम पर चला गया था और तु म सबको समझा कदया था कक कब क्ा
करना है। बस तु म लगों ने िै सा ही ककया था। यानी कक जैसे ही शं कर की अम्मा
नहाने के कलए कुएॅ में गई तो जगन और मदन भी छु प कर उस तरि चल कदये ।
शं कर की अम्मा ने जब बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ में डाला और पानी से
भरी बाल्टी को खी ंचना शु रू ककया तो तभी जगन और मदन दोनो ने कमल कर अम्मा
को पीछे से धक्का दे कदया। कजससे अम्मा रस्सी बाल्टी सकहत कुएॅ में जा कगरी।
उसको तै रना तो आता नही ं था इस कलए थोडी ही दे र में साली पानी में डूब गई। कुछ
घंटे बाद जब िो िापस पानी की सतह पर आ गई तो जगन और मदन दोनो ही समझ
गए कक अम्मा का राम नाम सत्य हो चु का है। इस कलए तु रंत ही अं दर आकर रीना को
कह कदया कक अब िो आगे का काम करे । रीना भागती हुई हमारे पास आई और
अम्मा के मरने की सू चना हमें दी। बस उसके बाद का तो सबको पता ही है कक क्ा
कैसे हुआ?"

"अम्मा के मरने का तो पता है बापू ।" मीना ने कहा___"मैं चं दा िाले चक्कर का पू छ

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रही हूॅ। उसके बारे में बताओ।"
"अम्मा के मर जाने से हमारा रास्ता साि हो गया था।" बापू ने कहा___"मगर शं कर
बे चारा ़िरूर अपनी अम्मा के मर जाने से ग़म़िदा हो गया था। जब कुछ कदन उसकी
अम्मा को मरे हो गए तो हमने आगे का काम शु रू ककया। मैं हर कदन शं कर को काम
पर लगा कर चार चार घंटे के कलए गायब हो जाता और सीधा चं दा के गाॅि उसके
घर पहुॅच जाता। चं दा का बाप मं गा साकेत थोडा लालची ककस्म का था और गजे डी
भी था। काम धाम करके जो भी कमाता उसे िह गाॅजा पीकर और दे सी चढा कर
उडा दे ता था। मैने उसकी इसी आदत का िायदा उठाया और रो़ि उसे दे सी दारू
कपलाता और खु द भी पीता। कुछ ही कदन में मे री उससे खू ब बनने लगी। एक तरह से
मैं उसका पक्का यार बन गया था। खै र, इसी तरह कुछ कदन गु़िर गए। जब मुझे
लगने लगा कक अब मुख्य बात आगे बढाने से नु कसान नही ं है तो मैने उससे मुद्दे की
बात छें ड दी। सबसे पहले तो मैने बस उसके मन और किचार का ही पता कलया। चं दा
के ब्याह के बारे में पू छा उससे तो कहने लगा कक उसे चं दा के ब्याह की ही कचं ता है।
मगर आकथग क हालत बहुत ज्यादा खराब होने की िजह से िो चं दा का ब्याह कर नही ं
पा रहा है। मैंने उसे एक सु झाि कदया कक ककसी ऐसे शख्स से िह चं दा का ब्याह कर
दे जो उमर में चं दा से थोडा बहुत बडा हो। इससे उसे ज्यादा दहे ज भी नही ं दे ना
पडे गा। मेरी बात उसे जच गई। आकखर उसे अपने हालात का तो पता ही था इस कलए
बे बसी मे ही सही ककन्तु उसे इस बारे में सोचना ही पडा। उसने मु झसे पू छा कक ऐसा
कौन ब्यल्कक्त है जो चं दा से उमर में थोडा बहुत बडा हो और उसे दहे ज न दे ना पडे तो
मैने यू ॅ ही म़िाक में उससे कह कदया कक मेरे साथ ही कर दे अपनी चं दा का ब्याह।
मैं दहेज में उससे कुछ नही ं मागूॅगा बल्कि उल्टा उसे ही थोडा बहुत रुपया पै सा दे
दू ॅगा। मैने ये बात उससे बस उसका मन दे खने के उद्दे ष्य से कही थी िो भी हसते
हुए। िो मेरी ये बात सु न कर हैरान तो हुआ मगर किर बोला कक यार अगर सच में
तु म मेरी चं द से ब्याह कर लो तो मु झे कोई ऐतरा़ि न होगा। हाॅ उमर ़िरूर तु म्हारी
थोडी क्ा बहुत ज्यादा है मगर कोई बात नही ं। लडके बच्चे तो पहले से ही हैं तु म्हारे
तो बच्चे के कलए कोई झंझट ही नही ं रहेगी। कहने का मतलब ये कक म़िाक में कही
हुई मेरी बात चल गई। बस किर क्ा था? मैने ़िरा भी दे र नही ं की और िटािट
चं दा से ब्याह कर कलया मैने। इस ब्याह में मैने चं दा के बाप को पू रे पचास ह़िार रुपये
कदये थे । कुछ ब्याह के खचग के कलए और कुछ खु शी से । इतने सारे पै से एक साथ
पाकर चं दा का बाप भी खु श हो गया था। इस ब्याह में कोई ताम झाम करने का मैने
पहले ही मना कर कदया था। इस कलए ककसी को ज्यादा कुछ पता भी नही ं चला। उस
कदन भी मैं चं दा के बाप को दे सी दारू कपलाकर और पीकर आया था कजस कदन मैने
चं दा से ब्याह रचा कर उसे घर लाया था। मुझे पता था कक शं कर को जब ये सब पता
चले गा तो िो पागल सा हो जाएगा। मगर कुछ कर नही ं पाएगा। क्ोंकक सबसे बडी
सच्चाई तो यही बन जाएगी न कक चं दा अब उसकी प्रे कमका नही ं बल्कि अम्मा है।
अगर उसमें ़िरा सी भी ग़ैरत होगी तो िो खु द ही इस गर की छोंड कर कही ं चला

699
जाएगा या किर जीिन भर अपनी चं दा को अम्मा के रूप में दे ख कर अं दर ही अं दर
तडपता रहेगा। जबकक हम सब हर कदन हर रात उसकी चं दा का भोग लगाएॅगे।"

बाहर दीिार की ओट में खडा मैं बापू की ये सब बातें सु न रहा था। मेरा चे हरा
ऑसु ओ ं से तर था। अपनी जगह पर मैं इस तरह खडा रह गया था जैसे ककसी ऋषी ने
मुझे पत्थर बन जाने का श्राप दे कदया हो। इतना बडा छल, इतना बडा अपराध ककया
था इन लोगों ने कमल कर कजसकी कोई सीमा नही ं थी। एक बाप के अपनी ही बे टी के
साथ नाजाय़ि सं बंध थे और मेरे दोनो भाइयों के अपनी बहनों के साथ। ये एक ऐसी
सच्चाई थी कजसे मैं सब कुछ सु न ले ने के बािजूद हजम नही ं कर पा रहा था। मेरे
अं दर जज़्बातों का भयंकर तू िान चालू था। ऐसा लग रहा था जैसे सारी कायनात को
एक झटके में शोलों के हिाले कर दू ॅ। मगर ऐसा करना मुझसे सं भि न था। जबकक
उधर,,,,

"ये सब छोंडो बापू ।" तभी जगन की आिा़ि मेरे कानों में पडी___"अब तो जो होना
था िो तो हो ही गया। हमने कल रात जी भर के चं दा के म़िे कलए। कसम से बापू
बडा ही कडक माल थी चं दा। साली ने ग़जब का म़िा कदया।"
"म़िा तो हमने ़िबरदस्ती कलया भाई।" मदन ने कहा___"िो तो हमें हाॅथ भी नही ं
लगाने दे रही थी। बार बार हमसे रहम की भीख माॅग रही थी और अपनी इज्ज़ित
की दु हाई दे रही थी। मगर हमने तो म़िा करना था सो ककसी तरह कर ही कलया।
बाद में तो उसके भी कस बल ढीले पड गए थे । साली ऐसे ले टी रह गई थी जैसे कह
रही हो कक आओ और कर लो जो करना हो। हाहाहाहा।"

"नया माल कमल गया तो कल रात हम बहनों की तरि दे खा भी तु म लोगों ने ।" रीना
की आिा़ि में कशकायत थी, बोली___"सच कहती हैं औरतें कक सब मदग एक जैसे ही
होते हैं। नया और ता़िा कबल कमल गया तो भोसडे की तरि किर दे खते भी नही ं
मदग ।"

"अरे ऐसी कोई बात नही ं है मेरी रं डी बे टी।" बापू की आिा़ि___"बस कल रात की
़िरा बात ही अलग थी न इस कलए। बाॅकी ये तो तू भी जानती है न कक नया नौ कदन
तो पु राना सब कदन। इस कलए कचं ता मत कर तु म दोनो हमारी असली माल ही हो।"

"बापू बडा कदल कर रहा है।" जगन की आिा़ि___"ऐसा लगता है कक किर से चं दा


रानी के पास जाऊ और तबीयत से उसकी बजा कर आऊ।"
"भाई तू ने तो मेरे मुह की बात कह दी।" मदन की आिा़ि सु नाई दी___"मेरा भी बहुत
कदल कर रहा है चं दा को पे लने का। चल दोनो एक एक बार तबीयत से पे ल कर आते
हैं उसे । क्ों बापू तु म्हें भी चलना है???"

700
"अरे नही ं भई।" बापू की हसी की आिा़ि___"तु म दोनो ही जाओ। मुझमें अभी इतनी
शल्कक्त नही ं है कक तु म लोगों का साथ दे सकूॅ। साला कल रात दारू के नशे में समझ
में ही नही ं आया ककतनी मेहनत हो गई मु झसे । अब जब दारू उतरी तो समझ आ
रहा है कक टाॅगों में जान ही नही ं है।"

"हाहाहाहाहा ले भाई।" मदन के ठहाकों की आिा़ि गूॅजी___"बापू तो गया काम


से । चल हम दोनो ही ककला ितह करके आते हैं।"
"हाॅ हाॅ जाओ जाओ।" मीना की आिा़ि___"कर लो ककला ितह। मगर याद
रखना लौट कर हमारे पास ही आओगे।"

"जाने दे मेरी राॅड कबकटया।" बापू बोला___"नया माल है न इस कलए उसकी चु लुक
कुछ ज्यादा ही होती है। याद कर जब इन लोगों तु म दोनो के साथ जब ककया था तो
कैसे सारा कदन तु म दोनो के पीचे पीछे घूमते रहते थे ?"
"अच्छी तरह याद है बापू ।" मीना के हसने की आिा़ि आई___"ये दोनो हम दोनो
बहनों के पीछे पीछे लगे ही रहते थे । इन लोगों को तो ये भी होश नही ं रहता था कक
अम्मा को अगर पता चल गया तो क्ा ग़जब हो जाएगा?"

बाहर खडा मैं ये सब सु न रहा था और अं दर ही अं दर गुस्से की आग में जला जा रहा


था। मु झे लग रहा था कक अभी जाऊ और सबको एक साथ खत्म कर दू ॅ। मेरे हाॅथों
की दोनों मुकियाॅ कस गईं थी। जबडे शख्ती से कभं च गए थे । नथु ने िूल कर गुब्बारा
हुए जा रहे थे । तभी,,,,

"ओएऽऽ बाऽऽऽपू ग़जब हो गया रे ।" जगन की लगभग बदहिाशी से भरी आिा़ि
सु नाई दी___"सब गडबड हो गया। अब क्ा होगा बापू ???"
"अरे क्ा हुआ?" बापू ने घुडकी सी दी___"क्ों कचल्ला रहा है? क्ा गडबड हो
गया???"

"बापू िो िो चं दा।" मदन की लडखडाती हुआ आिा़ि सु नाई दी___"अं दर िो चं दा


ऐसे पडी है जैसे मर गई है।"
"क्ा बकता है मादरचोद??" बापू की जैसे चीख ही कनकल गई थी,
बोला___"बहनचोद साले शु भ शु भ बोल।"

"मदन सच कह रहा है बापू ।" जगन की आिा़ि__"हम दोनों जब अं दर गए तो दे खा


चं दा चारपाई पर आधी लटकी हुई पडी थी एकदम िै सी ही नं गी हालत में जैसे कल
रात हम छोंड कर आए थे उसे । मैने उसकी नाॅक के पास उगली रखी और उसकी

701
कलाई की नब्ज भी दे खी। मगर ना ही उसके नाॅक से साॅस आ जा रही है और ना
ही नब्ज चलती हुई महसू स हो रही है। इसी कलए हमें लग रहा है कक चं दा का राम
नाम सत्य हो गया है। अब क्ा होगा बापू ? चं दा अगर सच में मर गई और ये बात
गाॅि िालों को पता लग गई तो हम कही ं के न रह जाएॅगे बापू ।"

जगन की इन बातों के बाद कुछ दे र तक कोई आिा़ि न आई। जैसे उधर सबको
साॅप सू ॅघ गया हो। बाहर खडा मैं भी ये सु न कर जैसे बे जान लाश में तब्दील हो
गया था। कजसका डर था िो तो हो ही चु का था ककन्तु इस सबका पररर्ाम ये
कनकले गा ये मैने स्वप्न में भी नही ं सोचा था। मु झे लगा कक मैं दहाडें मार कर रो पडूॅ
मगर मैने अपने अं दर के मचलते हुए जज़्बातों को बडी मु ल्किल से दबाया हुआ था।
जबकक उधर,

"ये तो सच में बहुत ही बु रा हुआ।" बापू की आिा़ि में डर ि भय झलक रहा था___"ये
सब हमारी िजह से ही हुआ है। हमने अपने म़िे के चक्कर में ये भी नही ं सोचा कक
कच्ची उमर की उस चं दा के साथ इतना कुछ एक ही बार में नही ं करना चाकहए था।
िरना उसका पररर्ाम यकीनन यही कनकले गा। दू सरी बात हमने शं कर को रात में
खे तों पर िेंक आए थे । िो उस िक्त बे होशी हालत में था। सं भि है कक उसे अब तक
होश भी गया होगा। अब अगर इस पररल्कथथकत में िो यहाॅ आ गया तो हम सोच भी
नही ं सकते हैं कक िो क्ा कर डाले गा? चं दा को इस हाल में दे खेगा तो िो यकीनन
हम सबके कलए काल बन जाएगा।"

"बापू शं कर की इस बात से मेरे कदमाग़ में एक ़िबरदस्त तरकीब आई है।" जगन की


आिा़ि___"अगर कहो तो उगलू ॅ मुख से ??"
"अरे तो उगल ना मादरचोद।" बापू चीखा__"क्ा तब उगले गा जब ते री अम्मा चु द
जाएगी साले ??"
"मेरी दोनो अम्मा को तो तु मने ही चोद डाला है बापू ।" जगन के हहने की
आिा़ि___"ये अलग बात है कक तु मने हमें हमारी पहली अम्मा को पे लने का मौका
नही ं कदया जबकक उसको पे लने की हमारी हसरत साली धरी की धरी रह गई।"

"बकिास ना कर बहनचोद।" बापू गुराग या___"पहले तरकीब उगल मुख से । साला


सत्यानाश हो गया हमारा।"
"बापू तरकीब ये है" जगन की आिा़ि___"कक चं दा की इस मौत में हम उस
मादरचोद शं कर को िसा दे ते हैं।"
"िो कैसे ?" बापू का चौंका हुआ स्वर उभरा__"मेरा मतलब कक हम शं कर को चं दा की
मौत में कैसे िसा सकते हैं?"

702
"बडी सीधी सी बात है बापू ।" जगन ने कहा___"हम सबको बताएॅगे कक ये सब
शं कर ने ही ककया है। हम गाॅि िालों को बताएॅगे कक तु मने कजस चं दा से ब्याह
ककया उसे शं कर पहले से ही पसं द करता था और उससे ब्याह भी करना चाहता था।
जबकक चं दा तो शं कर को जानती भी नही ं थी। शं कर ने जब दे खा कक िो कजसे पसं द
करता था और कजससे ब्याह करना चाहता था िो तो खु द उसके ही बाप की जोरू
बन गई तो शं कर ये सहन न कर सका। उससे ये सहन न हुआ कक कजसे िो खु द
अपनी जोरू बनाना चाहता था िो खु द उसके बाप की ही जोरू बन कर उसकी
अम्मा बन गई। इस कलए िो रात को दे शी दारू पी कर आया और ़िबरदस्ती बापू के
कमरे में घुस गया। कमरे में उसने जबरदस्ती चं दा की इज्जत को लू टा और किर
उसकी जान भी ले ली।"

"तरकीब तो अच्छी है बे टिा।" बापू की आिा़ि___"पर गाॅि िाले यकीन कैसे


करें गे? िो तो पू छेंगे न कक शं कर ने ये सब हम सबकी मौजूदगी में कैसे कर कलया?
तब क्ा जिाब दे गा तू ?"
"हम उनसे कहेंगे कक शं कर ने कमरे के दरिाजे पर इस तरह मोटी सी लकडी से टे क
लगा कदया था कक उस दरिाजे को लाख कोकशशों के बाद भी हम सब खोल नही ं
पाए।" जगह कह रहा था___"कमरे का िो दरिाजा तभी खु ला जब शं कर ने चं दा का
काम तमाम कर कदया था। उसके बाद िो खु द ही बाहर आ गया था। उसके हाथ में
मोटी सी िही लकडी थी कजससे उसने दरिाजे पर टे क लगाया हुआ था। हम सब ये
डर से कुछ न बोल सके थे कक कही ं िो गुस्से में हम लोगों को मारना न शु रू कर दे ।
बस इतनी बात कािी है गाॅि के लोगों को यकीन कदलाने के कलए।"

"ऐसा तु झे लग रहा है।" बापू की आिा़ि___"जबकक कुछ लोग ये भी पू छ सकते हैं


कक जब हमारे घर में ये सब हो रहा था तो हमने शोर शराबा करके गाॅि िालों को
क्ों नही ं बु ला कलया? तब क्ा कहेंगे हम?"
"हम कह दें गे बापू कक हमें उस िक्त कुछ सू झ ही नही ं रहा था कक क्ा करें और क्ा
न करें ?" जगन ने कहा__"बस गाॅि िालों को हमारी बात पर यकीन करना ही
पडे गा। िै से भी गाॅि के लोगों को ये उम्मीद भला कहाॅ होगी इस सबकी जो हम
लोगों ने ककया है। दू सरी महत्वपू र्ग बात ये भी हमारी बात को साकबत करे गी जब
शं कर यहाॅ पर मौजूद नही ं रहेगा। शं कर की ग़ैर मौजूदगी भी गाॅि िालों को
यकीन कदलाने में पु ख्ता िजह रहे गी।"

"ले ककन शं कर यहाॅ मौजूद क्ों नही ं होगा भला?" बापू की आिा़ि___"िो भला
कहाॅ चला जाएगा?"
"ग़ौर करने िाली बात है बापू ।" जगन ने कहा__"शं कर की जानकारी में और उसके
सामने इतना कुछ हो गया है उसकी प्रे कमका के साथ। तो भला िो अब यहाॅ ककस

703
िजह से लौट कर आएगा? कदल का मामला बडा किकचत्र होता है बापू । उसका इस
सं सार में उसके प्रे मी के अलािा दू सरा कोई नही ं रह जाता और जब उसके रहते
उसकी प्रे कमका का ये हाल हो जाए तो भला िो अपना मुह कदखाने के कलए यहाॅ क्ों
रहेगा? बल्कि िो तो कही ं पर चु ल्लू भर पानी की तलाश करे गा ताकक उसमें डूब कर
िो मर सके।"

"िाह भाई िाह क्ा लच्छे दार बात कही है मेरे मादरचोद बे टे ने ।" बापू की प्रशं शा में
डूबी हुई आिा़ि__"ये तो कमाल ही हो गया। इतनी बडी और इतनी गहरी बात मेरे
कदमाग़ में नही ं आई। जबकक तू ने साकबत कर कदया कक तू इस सं सार का सबसे बडा
िाला कमीना इं सान है।"

"बापू तारीफ़ करने का भला ये कौन सा तरीका है?" मदन ने हसते हुए
कहा___"जगन ने ग़लत क्ा कहा भला? सारी बातों को सोच कर उसने इस सबसे
बचने की जो तरकीब बताई है िो यकीनन लाजिाब है। इस कलए अब हमें कबलकुल
भी दे र नही ं करना चाकहए। बल्कि तु रंत ही जगन की इस तरकीब पर अमल करना
चाकहए।"

"सही कह रहा है तू ।" बापू की आिा़ि___"इसके कसिा दू सरा कोई चारा भी तो नही ं
है हमारे पास। अतः अब हम जगन की इस तरकीब के अनु सार ही काम शु रू करते
हैं। अब जो होगा दे खा जाएगा।"

उधर िो सब तरकीब पर अमल करने की बातें कर रहे थे जबकक इधर मेरे गु स्से की
जैसे इं तहां हो गई थी। इतनी घकटया सोच और ऐसे पापी लोगों का इस समाज में
जीकित रहने का कोई अकधकार नही ं रह गया था। मेरे कदलो कदमाग़ उन सबके कलए
घृर्ा और नफ़रत में कनरं तर इ़िािा होता चला गया था। मैं तु रंत ही अपनी जगह से
कहला और लकडी की उस बाउं डरी के इस पार से चलते हुए घर के सामने की तरि
आया और सामने से अं दर की तरि बढ चला।

बरामदे के बाहरी तरि दीिार पर टे क लगा कर रखी हुई कुल्हाडी पर मेरी ऩिर
पडी। मेरे कजस्म में दौडते हुए लहूॅ में जैसे एकदम से उबाल आ गया। मैं ते ़िी से उस
कुल्हाडी की तरि बढा और उसे दाकहने हाॅथ से उठा कर बरामदे की तरि बढा।
अं दर दाल्कखल होते ही मु झे जगन और मदन मे री तरि पीठ ककये खडे ऩिर आए।
इससे पहले कक कोई कुछ महसू स कर पाता मेरा कुल्हाडी िाला हाॅथ कबजली की
तरह चला और खचाऽऽक से जगन की गदग न पर पडा। कुल्हाडी िार लगते ही जगन
की गदग न आगे की तरि झल ू गई। उसके कटे हुए धड से खू न का मानो िब्बारा सा
उठ गया। इधर मैं इतने पर ही नही ं रुका। बल्कि ककसी के होश में आने से पहले ही

704
एक बार पु नः मेरा कुल्हाडी िाला हाॅथ कबजली की सी ते ़िी से चला और इस बार
मदन के सीने में गडता चला गया। सीने में इस कलए कक िो ऐन िक्त पर मेरी तरि
घूम गया था।

पल भर में इस सबको दे खते ही मेरी दोनो बहनों के हलक से ची ंखें कनकल गई। बापू
के सामने ही उसके पै रों के पास जगन मृत अिथथा में खू न से लथ पथ पडा था। ये
दे ख कर बापू को जैसे लकिा सा मार गया था। उसकी कघग्घी बध गई थी। इधर मेरी
एक बहन मीना बाहर की तरि ते जी से भागी। मैने पलट कर ते ़िी से कुल्हाडी चला
दी। कुल्हाडी उडते हुए मीना की पीठ पर गडती चली गई और िो प्रहार के िे ग में मु ह
के बल ़िमीन पर कगरी। िो मछली की तरह कुछ दे र तडपी और किर शान्त पड गई।
मैने आगे बढ कर उसकी पीठ से एक ही झटके में कुल्हाडी को खी ंच कलया।

उधर रीना के कचल्लाने से जै हे बापू को होश आया। अतः िो तु रंत उठा और कमरे के
अं दर की तरि शोर मचाते हुए भागा। उसके पीछे ही रीना भी भागी। कमरे के अं दर
जा कर दोनो ने दरिाजे को बं द कर अपने अपने हाॅथों से दरिाजे पर ताकत से
दबाि बढा कदया।

"दरिाजा खोल बापू ।" मैं कुल्हाडी कलए शे र की तरह गरज उठा था___"आज मेरे
हाॅथों तु म सबकी मौत कनकश्चत है।"
"ये तू ने ककया शं कर?" अं दर से बापू की भय से काॅपती हुई आिा़ि आई___"तू ने
अपने हाॅथों अपने ही भाई और बहन को काट कर मार डाला। आकखर ऐसा क्ा हो
गया है तु झे कक तू ने ये नरसं घार कर कदया?"

"मुझसे क्ा पू छता है हराम़िादे ?" मैने दहाडते हुए कहा___"इस सबका कारर् तो तू
ही है। मैने ते री और ते रे इन कपल्लों की सारी बातें सु न ली हैं। तू ने अपने मतलब के
कलए मेरी अम्मा को कुएॅ में कगरा कर मार डाला। उसके बाद तू ने मेरी मासू म चं दा के
भोले भाले बाप को िसा कर उसकी बे टी से ब्याह ककया। कसिग इस कलए कक तू उस
मासू म और कनदोष के साथ म़िे कर सके और ये सब तू ने उस मादरचोद जगन के
कहने पर ककया। ये बता कक तु झे एक बार भी नही ं लगा कक जो ते कहने जा रहा है िो
सबसे बडा पाप है? अपनी ही बे कटयों के साथ तू मुह काला करता है। ते रे दोनो बे टे
अपनी ही बहन के साथ नाजाय़ि सं बंध बनाते हैं। इतना ही नही ं तू खु द भी उन के
साथ ये सब करता है। अरे तु झसे बडा इस सं सार में कौन होगा बापू ? तू ने दो पल के
म़िे के कलए ररश्ों को भी नही ं बक्शा। मेरी दे िी जै ही माॅ को मार डाला तू ने और
ते रे इन कपल्लों ने ।"

"ये सब झॅ
ू ठ है शं कर भाई।" रीना रोते कबलखते हुए कचल्ला पडी___"तु म जो समझ

705
रहे हो िै से कुछ भी नही ं है।"
"तू चु प कर बदजात लडकी।" मैं पू री शल्कक्त से कचल्लाया था, बोला___"तु झे तो अपनी
बहन कहते हुए भी मु झे शमग आती है ऐ बे हया। तु झमें इतनी ही हिश की आग भरी
हुई थी तो कही ं भाग जाती ककसी के साथ। कम से कम ररश्ों पर कलं क तो न
लगता। मगर नही ं, तू अपने बाप और भाई की राॅड बन गई न। नही ं छोंडूॅगा,
ककसी को भी क़िंदा नही ं छोंडूॅगा। दरिाजा खोल िरना इसी कुल्हाडी से इस
दरिाजे को काट काट कर टु कडे टु कडे कर दू ॅगा और किर िै से ही टु कडे तु म दोनो
नाली के कीडों के करूॅगा।"

"हमें माफ़ कर दे शं कर।" बापू ने रोते कगडकगडाते हुए कहा___"हमसे सच में बहुत
बडा पाप हो गया है। ले ककन आकखरी बार माफ़ कर दे हमें। अब दु बारा ऐसा कभी
नही ं करें गे हम। दे ख तू ने अपने ही दो भाई और एक बहन को मार डाला। अब कम
से कम हमें तो छोंड दे ।"

"तू बाहर कनकल बे टीचोद।" मैने कचल्लाया___"उसके बाद बताता हूॅ कक कैसे माफ़
करता हूॅ मैं?"
"भगिान के कलए भाई।" रीना बु री तरह रो रही थी__"बस एक बार माफ़ कर दे । सच
कहती हूॅ जीिन भर ते री टट्टी खाऊगी मैं।"

"मैं आकखरी बार कह रहा हूॅ कक दरिाजा खोल।" मैं गु स्से में चीखा___"िरना
दरिाजे को काटने में मुझे ज्यादा समय नही ं लगेगा। उसके बाद मैं तु म दोनो का क्ा
हस्र करूॅगा तु म सोच भी नही ं सकते ।"
"बे टा माफ़ कर दे न।" बापू कगडकगडाया___"अरे मैं ते रा बाप हूॅ रे । तु झे बचपन से
पाल पोष कर बडा ककया है।"

"तो कौन सा बडा काम ककया है तू ने?" मैने कहा__"तू मुजे बचपन में ही मार दे ता तो
अच्छा होता। कम से कम आज ये सब दे खने सु नने को तो न कमलता। मेरी मासू म सी
चं दा को तु म लोगों ने रौंद रौंद कर मार डाला। मेरी दे िी जैसी अम्मा को मार डाला
तु म लोगों ने । अगर तु म लोग मेरी अम्मा और चं दा को िापस मुझे लाकर दे दो तो
माफ़ कर दू ॅगा। िरना भू ल जाओ कक मैं माफ़ कर दू ॅगा तु म दोनो को।"

अं दर से कोई िाक् न िूटा उन दोनों के मुख से । बस दोनो के रोने की आिा़िें


गूॅजती रही। मेरा गु स्सा प्रकतपल बढता ही जा रहा था। मु झसे बरदास्त न हुआ तो मैं
कुल्हाडी का िार दरिाजे पर करने लगा। मेरे ऐसा करते ही रीना और बापू ़िोर ़िोर
से चीखने लगे और रहम की भीख माॅगने लगे। मगर मैं न रुका बल्कि लगातार
कुल्हाडी का िार दरिाजे पर करता चला गया। नतीजा ये हुआ कक कुछ ही दे र में

706
लकडी का िो दरिाजा कट कट कर टु कडों में कनकलने लगा। थोडी ही दे र में मुझे
रीना का हाॅथ ऩिर आया जो दरिाजे पर कटका हुआ था। मैने गुस्से में आि दे खा न
ताि, कुल्हाडी का िार सीधा उसके हाॅथ पर ककया। खचाऽऽऽच की आिा़ि के
साथ ही रीना का हाॅथ उसकी कलाई से कट गया। खू न का ते ़ि िब्बारा उछल कर
िैल गया। कलाई से हाॅथ कटते ही रीना की हृदय किदारक चीख गूॅज गई। िो
दरिाजे से हट कर अपने दू सरे हाॅथ से कटे हुए हाॅथ को पकडे पीछे हटती चली
गई। उसका ये हाल दे ख कर बापू भी मारे डर के पीछे की तरि भागा। दोनो के जाते
ही दरिाजे पर से उन दोनो का दबाि हट गया।

मैने दरिाजे पर ़िोर से एक लात मारी तो दरिाजा खु लता चला गया और इसके साथ
ही उन दोनो की चीखना कचल्लाना भी बढ गया। मैं दरिाजे के अं दर दाल्कखल हुआ
और उन दोनो की तरि बढने ही िाला था कक मेरी ऩिर बगल से रखी चारपाई पर
आधी लटकी हुई चं दा की नं गी लाश पर पडी। मेरे अं दर पीडा की तीब्र लहर दौडती
चली गई। मेरी मोहब्बत का ये हाल ककया था इन लोगों ने । ये दे ख कर ही मेरे अं दर
भयंकर गुस्सा भर गया। मैं ते ़िी से उन दोनो की तरि बढा।

बापू और रीना रोने और चीखने की मशीन बन गए थे । उन दोनो के चे हरे मौत के डर


से पीले ़िदग पड गए थे । कमरे में हर तरि रीना के कटे हुए हाॅथ का खू न िैला हुआ
था। मैं आखे बढते हुए बापू के क़रीब गया यो बापू मेरे पै रों में कगर पडा। मैने अपने
उस पै र को ़िोर से झटक कदया कजस पै र पर बापू कगरा पडा था। झटका खाते ही बापू
उछल कर कपछली दीिार से टकराया। मैं आगे बढ कर उसके पास गया और एक
हाथ से उसके कसर के बालों को पकड कर उठा कलया। मैने दे खा बापू के चे हरे पर
मौत का भय साक्षात ताण्डि करता ऩिर आ रहा था।

"अब बता मेरे हरामी बापू ।" मैं गुरागया___"इस कुल्हाडी से ते रे ककतने टु कडे करूॅ?"
"नही ं नही ं शं कर।" बु री तरह काॅपते हुए कहा बापू कबलकबला उठा___"मुझे माफ़
कर दे बे टा। मैं ते रा बाप हूॅ। अपने आस पापी बाप को बस एक बार माफ़ कर दे ।"

खचाऽऽऽक! कुल्हाडी का िार कबजली की सी ते ़िी से हुआ और कुल्हाडी का िल


बापू की जाॅघ में घुस गया। बापू के हलक से हलाल होते बकरे जैसी आिा़ि
कनकली। जाॅघ से भल्ल भल्ल करके खू न बहने लगा। तभी एक चीख मुझे अपने
पीछे की तरि सु नाई दी। मैं ते ़िी से पलटा तो दे खा अपनी कलाई थामें रीना बाहर
की तरि भागी जा रही थी। उसके बाहर कनकलते ही मैं भी पलट कर उसके पीछे
भागा ककन्तु तभी बाहर से कुछ लोग आ गए और मु झे पकड कलए। मैं उन लोगों की
पकड से छूटने के कलए ़िोर आजमाईश करने लगा। साथ ही चीखते हुए कहे भी जा
रहा था कक___"मु झे छोंड दो िरना तु म सबको काट डालू ॅगा इस कुल्हाडी से ।"

707
मगर िो मु झे छोंड नही ं रहे थे । दे खते ही दे खते मेरे उस घर में लोगों का ताॅता लग
गया। हर ब्यल्कक्त मेरे घर के इस भयानक दृष्य को दे ख कर आश्चयगचककत था। उनकी
ऑखें हैरत से िटी पडी थी ं। मु झे पकडे हुए लोग मु झसे पू छे जा रहे थे कक ये सब क्ा
है? मैने ये सब क्ों ककया? मैने चीखते हुए उन सबको सारी बात सं क्षेप में बताई।
कजसे सु न कर हर कोई हक्का बक्का रह गया। कुछ लोगों की ऩिर कमरे के अं दर
कराह रहे बापू पर पडी तो िो भागते हुए बापू के पास गए। लोगों को दे खते ही बापू
की जान में जान आई और िो डर ि भय से एक ही बात रटने लगा। िो ये कक मु झे
इस लडके से दू र ले चलो। ये मुझे मार डाले गा, काट डाले गा।

कुछ लोगों ने कमल कर बापू को सहारा दे कर उठा कलया और कमरे से बाहर ले गए।
इधर मैं कािी दे र तक उन लोगों के चं गुल से कनकलने की कोकशश करता रहा मगर
कनकल न सका। थक हार कर मैंने ़िोर आजमाईश करना बं द कर कदया। ऐसे ही िो
कदन गु़िर गया।

उस कदन गाॅि में इतना बडा सं गीन काण्ड हुआ मगर ककसी ने भी इस सबकी
सू चना पु कलस को न दी। मैं हैरान भी था कक ऐसा लोगों ने क्ों ककया? कुछ लोग रीना
के पीछे भी गए थे मगर िो लोग खाली हाॅथ िापस आ गए। उन्हें रीना कही ं भी न
कमली थी। बापू को इलाज के कलए तु रंत अिताल ले गए थे कुछ लोग। मेरे दोनो भाई
और एक बहन मीना की लाश को एक जगह कलटा कर उन्हें सिेद क़िन से ढक
कदया गया था। कुछ औरतें कमरे के अं दर जाकर चं दा के नं गे कजस्म को ककसी तरह
ढक कदया था।

गाॅि िालों ने मु झसे सबकी कचता को आग दे ने के कलए कहा तो मैंने कसिग चं दा की


कचता को आग लगाई जबकक अपने दोनो भाई ि बहन को कचताकग्न दे ने से ये कह कर
साि मना कर कदया कक ये मेरे कोई नही ं थे । मेरे ऐसा कहने पर गाॅि के मेरी ही
कबरादरी के एक आदमी ने आग दी थी। उस कदन पू रा कदन मेथे घर में लोगों की भीड
रही। मैं एक जगह गुमसु म बै ठा था। खै र धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को चले
गए।

उसी रात मैने िो गाॅि और िो घर हमेशा हमे शा के कलए त्याग कदया था। मु झे नही ं
पता मैं कहाॅ कहाॅ बे िजह भटकता रहा? धीरे धीरे समय गु़िरा और इस घटना को
घटे पाॅच साल गु ़िर गए। मैं इन पाॅच सालों में कुछ हद तक सम्हल गया था। दो
िक्त की रोटी के कलए जैसा भी काम कमलता तो करता और दो िक्त की रोटी खाकर
कदन काटने लगा था।

708
ऐसे ही एक कदन एक ऐसे आदमी से मेरी मुलाक़ात हुई जो िौज में मेजर की पोस्ट से
ररटायर होकर आया था। मु झमें अब तक कािी बदलाि आ गया था। सब कुछ भु ला
कर मैं अपने मन म़िी से जी खा रहा था। खै र, उस मे ़िर से मुलाक़ात हुई तो मैने
उससे काम माॅगा। दरअसल मैं हर जगह भटकते भटकते उकता सा गया था इस
कलए चाहता था कक कही ं ऐसी जगह कोई काम कमल जाए कजससे मुझे बार बार जगह
न बदलना पडे । मेरे काम माॅगने पर मेजर ने मेरी तरि ग़ौर से दे खा। मेरी कद
काठी ठीक ठाक ही थी। िो मु झे दे ख कर मु स्कुराया और पू छा क्ा काम कर सकते
हो? मैने कहा कक मैं दु कनयाॅ का हर काम कर लू ॅगा ले ककन कोई ग़लत काम तो मैं
हकगग ़ि भी न करूॅगा भले ही चाहे भू ॅखा मर जाऊ।

मेरी इस बात से मेजर प्रभाकित हुआ और मु झे अपने घर ले गया। मे जर का घर घर


जैसा नही ं बल्कि कोई बगला कदख रहा था। मे जर ने मुझसे कहा कक आज से तु म इस
बगले की दे ख रे ख करोगे । किर क्ा था मैं मे जर के कहे अनु सार बगले की दे ख रे ख
करने लगा। बगले से कुछ दू री पर सिे न्ट क्वाटग र बना हुआ था जहाॅ पर मु झे रहने के
कलए मे जर ने कह कदया था। मे जर के अपने पररिार में उसकी एक जिान बे टी बस ही
थी। उसकी बीिी कुछ साल पहले भगिान को प्यारी हो गई थी। उसने दू सरी शादी
नही ं की थी। उसके कलए उसकी बे टी ही सब कुछ थी। मे जर का और भी पररिार था
जैसे कक उसके बडे भाई िगैरा।

मेजर ने मु झे बं दूख चलाना कसखा कदया था और चू ॅकक िो िौजी बं दा था इस कलए


उसके कनयम कानू न भी शख्त और पक्के थे । हर सु बह चार बजे उठना और किर
उसके साथ एर्क्रसाइ़ि करना, उसके साथ दौड लगाना। ये सब जैसे एक रुटीन सा
बन गया था। मु झे अपने आप में ऐसा महसू स होता जैसे मैं भी मे जर की तरह एक
िौजी आदमी था। मे जर की बे टी बहुत ही प्यारी बच्ची थी। रुपये पै से का ़िरा भी
घमंड नही ं था उसे । मैं भले ही छोटी जाकत का था मगर कोई भी मु झे कही ं आने जाने
से रोंकता नही ं था। एक तरह से मैं भी उस घर का सदस्य बन गया था। मे जर की
बे टी मुझे कदन भर चाचू चाचू कह कर पु कारती रहती थी। पता नही ं उसे मु झमें ऐसा
क्ा ऩिर आता था कजसकी िजह से िो मुझे बहुत स्नेह दे ती थी। िो कबलकुल ककसी
गुकडया की तरह थी। मैं शु रू शु रू में उससे ज्यादा बात नही ं करता था। इसकी िजह
ये थी कक मु झे लडकी ि औरत जात से नफ़रत सी हो गई थी।

धीरे धीरे ऐसे िक्त गु़िरने लगा और मेजर के यहाॅ रहते हुए मुझे चार साल गु ़िर
गए। इन चार सालों में मैं मे जर और उसकी बे टी से इतना घुल कमल गया था कक मु झे
लगता ही नही ं था कक मैं इनके कलए कोई पराया हूॅ। मे जर की बे टी को मैं अपनी बे टी
की तरह मानता था और हर पल उसे खु श रहने की भगिान हे दु िाएॅ करता रहता
था। उसे दे ख कर हर दु ख दू र हो जाता था। मैं तो जैसे अपने अतीत का हर ककस्सा

709
भू ल गया था। मगर किर से एक बार मेरे नसीब में बु रा कदन आ गया। मे जर के बडे
भाई का लडका पढाई के कसलकसले में आया और किर मे जर के ही बगले पर रहने
लगा। मु झे उसकी शक्ल दे ख कर अजीब सा एहसास होता। हलाॅकक िो दे खने में
सुं दर गबरू जिान था ककन्तु उसकी ऑखों में जाने ऐसा क्ा था कक मु झे िो खटकने
लगा था। खै र, कुछ ही कदनों में मु झे समझ आ गया कक मु झे ऐसा क्ों लगता था।

मेजर का भतीजा बडा ही शाकतर ककस्म का लडका था। िो मेजर के सामने उससे
बहुत ही सलीके से बातें करता और ऐसा दशाग ता कक उसके जैसा सं स्कारी लडका
दु कनयाॅ जहाॅन में कही ं ढू ॅढने पर भी नही ं कमले गा। ककन्तु मेजर के न रहने पर िो
हमेशा मेजर की बे टी को जो कक खु द उसके सगे चाचा की ही बे टी थी यानी कक
उसकी बहन थी तो िो उसे ताडता रहता था। उसकी ऑखों में हिस िष्ट कदखाई
दे ती थी। मैं कदन में ज्यादातर बगले के बाहर मु ख्य द्वार पर ही रहता था। बीच बीच में
मैं इधर उधर का चक्कर लगाता और कभी कभी बगले के अं दर भी घू म आता। यही
मेरे काम का तरीका कनयम बि था।

मैं मे जर के उस भतीजे के चलते मेजर की बे टी कुमुद के कलए बे हद कचं कतत ि परे शान
होने लगा था। मैं अच्छी तरह समझ चु का था कक उस नामुराद लडके की नीयत कुमुद
बे कटया पर खराब हो चु की थी। मैने इस बारे में मेजर से इस कलए कुछ भी नही ं बताया
था क्ोंकक मेरे पास उस लडके के ल्कखलाफ़ कीई सबू त नही ं था। मेजर अपने भतीजे
के प्रकत मेरी िो सब बातें कभी न मानता बल्कि उल्टा मु झ पर ही गुस्सा करता और
मुझे काम से भी कनकाल दे ता। इस कलए मैं बस बे बस हो चु का था ककन्तु मेरी पू री
कोकशश थी कक मेरे रहते िो लडका अपने नापाक़ इरादों कभी कामयाब न हो सके।
इस कलए िो जब भी अपने स्कूल या काॅले ज से िापस बगले में आता तो मैं कुछ दे र
के अं तराल में बगले के अं दर का चक्कर ़िरूर लगा आता और जाॅच परख ले ता कक
सब ठीक है कक नही ं।

ऐसे ही एक कदन की बात है कक िो लडका अपने काॅले ज से जल्दी ही आ गया। मु झे


उसके जल्दी आ जाने पर हैरानी तो हुई ककन्तु मैं कर भी क्ा सकता था। पर मु झे
ऐसा आभास ़िरूर हुअ जैसे आज कुछ होने िाला है। खै र, उसके अं दर जाने के
कुछ दे र बाद ही मैं भी अं दर चला गया। मैने बडे एहकतयात से हर जगह का मु आयना
ककया। मैं ये महसू स करके चौंका कक लडका अपने कमरे में नही ं है। ये महसू स होते
ही मैं सीधा कुमुद के कमरे की तरि बढ गया। कुमुद के कमरे के पास आकर मैने
दे खा कक कमरे का दरिाजा हिा खु ला हुआ है। ये दे ख कर मैं चौंका। आमतौर पर
कुमुद के कमरे का दरिाजा बं द ही रहता था। मैने हिे खु ले हुए दरिाजे से अं दर की
तरि झाॅका तो मेरी ऩिर उस लडके पर पडी। मैं ये दे ख कर बु री तरह चौंका कक

710
िो लडका कुमुद के कमरे के अटै च बाथरूम के दरिाजे के पास खडा है। उसका
एक हाॅथ दरिाजे के ऊपरी कहस्से पर था जबकक दू सरा हाथ नीचे की तरि था। मुझे
उसके दू सरे हाॅथ की कुहनी कहलती हुई प्रतीत हो रही थी। मेरे कदमाग़ ने काम
ककया। मैं समझ गया कक िो कमीना कुमुद कबकटया को नहाते हुए दे ख रहा है। बस
इसके आगे मु झसे बरदास्त न हुआ। मु झे बे हद गुस्सा आ गया उस पर। मैं झटके से
दरिाजा खोल कर अं दर की तरि ते ़िी से बढा।

कमरे के अं दर आहट महसू स होते ही िो लडका बु री तरह चौंक कर पलटा और मुझे


दे खते ही हक्का बक्का रह गया। मगर उसकी ये हालत कसिग कुछ पलों तक ही रही।
उसके बाद उसने इस तरह से अपना रं ग बदला कक भला कगरकगट क्ा बदलता होगा।
यहाॅ पर उसने इस कहाित को पू री तरह कसि कर कदया कक "उल्टा चोर कोतिाल
को डाॅटे "। ऐसे माहौल में उसके साथ जो कुछ मुझे कहना चाकहए था िही सब िो
मुझे ऊची आिा़ि में कहने लगा था। उसके मु ख से अपने कलए ये सब सु न कर मैं
भौचक्का सा रह गया। हैरत ि अकिश्वास से मे रा मु ह तथा मेरी िट पडी थी। जबकक
िो बराबर मुझ गरजे जा रहा था। कुछ ही दे र में बाथरूम से कुमुद कबकटया कपडे
पहन कर बाहर कनकली। मैने उसकी तरि दे खा तो चौंक गया, उसका चे हरा
ऑसु ओ ं से तर था और िो मु झे इस तरह दे खे जा रही थी जैसे कबना कुछ बोले ही
ऑखों से कह रही हो कक___"क्ों चाचू , ऐसा क्ों ककया तु मने ? मैं तो आपकी बे टी
जैसी ही हूॅ और आपको अपने कपता जैसा ही सम्मान दे ती हूॅ। किर आपने मु झ पर
गंदी ऩिर डाली। क्ों चाचू क्ों? क्ा आप हिस में इतने अं धे हो गए कक आपको
मुझमें आपकी कुमुद कबकटया की जगह एक ऐसी लडकी कदखने लगी कजसके साथ
अपनी हिस को कमटाया जाए?"

उसकी ऑखों ने जैसे सब कुछ कह कदया था मुझे। उसे अपने मुख से कहने की कीई
़िरूरत नही ं रह गई थी और मैं भी जैसे उसकी ऑखों के द्वारा कही हुई हर बात
समझ गया था। उसके चे हरे पर तु रंत ही कहकारत के भाि उभरे तथा उसमें शाकमल
हो गई घृर्ा। कजसके तहत उसने तु रंत ही अपना मु ह िेर कलया जैसे अब िो मु झे
दे खना भी न चाहती हो। सच कहूॅ तो इन कुछ ही पलों में मेरी सारी दु कनयाॅ बरबाद
हो गई। चार सालों का मेरा किश्वास मेरा प्यार ि स्ने ह एक पल में ही जैसे ने स्तनाबू त
हो गया था।

ये एहसास होते ही मेरे अं दर तीब्र पीडा हुई। मे री ऑखों से ऑसू छलक पडे । मैने
अपनी सिाई में कुछ भी कहना गिाॅरा न ककया और मैं आगे भी कहना नही ं
चाहता था। क्ोंकक सबसे बडा होता है किश्वास। अगर किश्वास ही नही ं रहा तो सिाई
दे ने का कोई मतलब ही नही ं रह गया था। मु झे तक़लीि इसी बात पर हुई कक उस
लडकी ने ये कैसे यकीन कर कलया कक मैंने उस पर गंदी ऩिर डाली थी? उसे अपने

711
भाई पर सं देह क्ों न हुआ कजसने सचमुच ही िो काम ककया था। क्ा कसिग इस कलए
कक िो उसका भाई था और मैं कोई ग़ैर था?

िो लडका मु झे ़िबरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर लाया और बगले से कनकल


जाने के कलए कह कदया। मैं भी दु खी मन से उठा और अपनी बं दूख सम्हाले बगले से
बाहर कनकल गया। ककन्तु मैं बगले के मुख्य द्वार से बाहर न गया। मुझे मेजर साहब
के आने का इन्त़िार था। मु झे उनका सामना करना था। मैं ऐसे ही िहाॅ से जाकर ये
साकबत नही ं करा दे ना चाहता था कक मैं िास्ति में गुनहगार हूॅ बल्कि उनके सामने
जाकर ये दशागना चाहता था कक मैं गुनहगार नही ं हूॅ।

शाम के लगभग आठ बजे मेजर साहब बगले पर लौट कर आए। मैं सारा कदन भू खों
प्यासा मुख्य दरिाजे पर ककसी गुलाम की तरह खडा रह गया था। रह रह कर मेरे
मन में खयाल आता कक यहाॅ से कही ं ऐसी जगह चला जाऊ जहाॅ से कोई इं सान
दु बारा िापस नही ं आ पाता। मगर मैं ऐसा भी न कर सका था। मुझे मेजर साहब को
अपना चे हरा कदखाना एक बार। मेरे अं दर औरत जात के प्रकत जो नफ़रत कही ं खो
सी गई थी िो किर से उभर कर आ गई थी। खै र, मेजर साहब आए और बगले के
अं दर चले गए। मु झे पता था कक िो लडका और कुमुद मे जर साहब को कमचग मशाला
लगा कर आज की घटना के बारे में बताएॅगे। ले ककन मुझे परिाह नही ं थी अब। मु झे
उम्मीद थी कक मेजर साहब मेरे बारे में ऐसा हकगग़ि भी नही ं सोच सकते । आकखर दे श
दु कनयाॅ दे खी थी उन्होंने। उनको इं सानों की पहचान थी।

मगर मेरी उम्मीदों पर कबजली उस िक्त कगरी जब मे जर साहब ने मु झे बु लाया और


मुझे डाॅटना शु रू ककया।
"हमें तु मसे ऐसे गंदे कमग की ़िरा भी उम्मीद नही ं थी शं कर।" मे जर साहब ने कडी
आिा़ि में कहा___"हमें तु म पर ककतना भरोसा था। हम तु म्हें कभी ग़ैर नही ं समझते
थे । मगर तु मने अपनी ़िात कदखा दी। शु रू में जब तु मने कहा था कक तु म दु कनयाॅ
का हर काम कर सकते हो ले ककन कोई ग़लत काम नही ं करोगे भले ही चाहे भू ॅखों
मर जाओ तो हम तु म्हारी उस बात से बे हद प्रभाकित हुए थे । मगर आज जो कुछ
तु मने ककया है उससे हमें बहुत दु ख पहुॅचा है । हमारी बे टी तु म्हें हमारे जैसा ही कपता
का सम्मान दे ती थी और तु मसे लाड प्यार करती मगर तु मने उस पर ही गंदी ऩिर
डाल दी। मन तो करता है कक तु मसे ये बं दूख छीन कर इसकी सारी गोकलयाॅ तु म्हारे
सीने में उतार दें मगर नही ं करें गे ऐसा। इतने साल की िफ़ादारी का अगर यही इनाम
ले ना तो कोई बात नही ं। मगर अब तु म्हारे कलए यहाॅ कोई जगह नही ं है। कनकल
जाओ यहाॅ से और दु बारा कभी अपनी शक्ल मत कदखाना हमें िरना हमसे ये
उम्मीद न करना कक हम तु म्हें क़िंदा छोंड दें गे।"

712
बस, मेजर साहब की ये बातें सु न कर मैं बु री तरह अं दर से टू ट कर कबखर गया। मैं
अब एक पल भी यहाॅ लु कना नही ं चाहता था। इस कलए घुटनों के बल बै ठ कर मैने
अपने कंधे से बं दूख कनकाली और मे जर साहब के क़दमों में रख दी। उसके बाद मैने
उन्हें अपने दोनों हाॅथ जोड कर नमस्कार ककया और किर धीरे धीरे खडा हो गया।
मेरे अं दर ऑधी तू िान मचा हुआ था। मु झे ऐसा लग रहा था कक मैं दहाडें मार कर
रोऊ मगर मैने अपने मचलते हुए जज़्बातों को शख्ती से काबू ककया हुआ था। खडे
होकर मैने एक बार कुमुद कबकटया की तरि दे खा तो उसने जल्दी से अपना मुह िेर
कलया। मेरी ऑखों से ऑखू का कतरा टू ट कर हाल के िशग पर कगर गया।

उसके बाद मैं एक पल के कलए भी नही ं रुका। िहाॅ से बाहर आकर मैं सिे न्ट क्वाटग र
की तरि अपने कमरे में गया और िहाॅ से अपना सामान एक थै ले में भर कर कमरे
से बाहर आ गया। बगले के मुख्य द्वार से बाहर कनकल कर मैं एक तरि बढता चला
गया। उसके बाद बगले में क्ा हुआ इसका मु झे कुछ पता नही ं। िहाॅ से आने के
बाद मैं एक सु नसान जगह पर कदन भर यूॅ ही दु खी मन से बै ठा रहा। ये सं सार बहुत
बडा था मगर इस सं सार में ऐसा कोई भी नही ं था कजसे मैं अपना कहता। जो मुझे
समझता और मेरे दु खों को महसू स करता। िषों पहले एक दु ख से उबरा था, आज
किर एक दु ख ने मुझे िही ं पर ले जाकर पटक कदया था। खै र, समय का काम है
बदलना। इस कलए धीरे धीरे समय के साथ मैं भी उस सबको भू लने की कोकशशें
करने लगा। ऐसे ही एक साल गु़िर गया। मैं कोई न कोई काम कर ले ता कजससे मुजे
दो िक्त की रोटी कमल सके और रातों को कही ं भी ले ट कर सो जाता। यही ं मेरी
क़िंदगी बन गई थी। ऐसे ही एक कदन हररया से मेरी मुलाक़ात हो गई। इसने जाने
मुझमें ऐसा क्ा दे खा कक ये मुझे यहाॅ ले आया और किर मैं तब से यही ं का रह गया।
यहाॅ पर हररया से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई। कबं कदया भाभी में मुझे एक माॅ की
झलक कदखने लगी और ररतू कबकटया के रूप में एक ऐसी ने क कदल लडकी कमल गई
जो मुझे काका कहती है और मेरी आदर सम्मान करती है। मु झे उसमें अपनी बे टी ही
ऩिर आती है। एक तरह से यहाॅ पर मुझे एक भरपू र पररिार ही कमल गया है।
ले ककन हमेशा इस बात का डर बना रहता है कक ककसी कदन मेरी ककस्मत और सबका
िो भगिान किर से न मुझसे रूठ जाए और मु झे किर से उसी दु ख ददग में ले जाकर
पटक दे जहाॅ से उबरने में मु झे एक युग लग जाता है।"

अपने गु़िरे हुए कल की दु ख भरी कहानी बता कर शं कर ने गहरी साॅस ली और


अपने गमछे से अपनी ऑखों से बह चले ऑसु ओ ं को पोंछा। उसके सामने ही खडे
हररया ि ररतू की ऑखों में भी ऑसू थे । शं कर की कहानी में िो इतना डूब गए थे कक
उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ उनकी ऑखों के सामने ही िो सब घट रहा
था।

713
हररया को जाने क्ा सू झा कक िो झपट कर शं कर को अपने गले से लगा कलया और
िूट िूट कर रो पडा। शं कर उसे इस तरह रोता दे ख मु स्कुराया। ये अलग बात थी
कक उसकी ऑखें भी बह चली थी। ररतू आगे बढ कर उन दोनो को एक दू सरे से
अलग ककया।

"काका आपने अपने अं दर इतना बडा दु ख छु पा के रखा हुआ था।" ररतू ने दु खी मन


से कहा___"कजसका हमें एहसास तक न था। यकीनन आपके साथ जो कुछ हुआ िो
बहुत ही दु खदायी था। मगर आप कचं ता मत कीकजए। अब इसके आगे ऐसा कुछ भी
नही ं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मैं कभी भी आपको ऐसे दु ख में जाने
नही ं दू ॅगी कजससे आपको जीने में तक़लीि हो।"

"भगिान करे ऐसा ही हो कबकटया।" शं कर ने कहा__"मैं भी तु म लोगों को छोंड कर


कही ं नही ं जाना चाहता। तु म सबसे इतना लगाि हो गया है कक अब अगर ऐसा कुछ
हुआ तो यकीनन ये दु ख सहन नही ं कर पाऊगा मैं।"
"अरे तू किकर काहे करथै ससु रे?" हररया ने कहा__"हम अइसन अब कउनि सू रत
मा न होंय दे ब। चल अब ई सब छोंड अउर आपन मन का खु श रख। अउर हाॅ ई
हमरा िादा हा कक हम बहुत जल्द तोहरा ब्याह एको सुं दर लडकी से करब जउन
तोहरी ऊ ससु री कबं कदया भौजी जइसनै होई।"

हररया की ये बात सु न कर शं कर और ररतू दोनो ही मुस्कुरा कर रह गए। कुछ दे र


ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सहसा ररतू को कुछ याद आया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर हिे ली में !


कई सारी गाकडयाॅ हिे ली के बाहर किसाल मै दान में आकर रुकी ं। सभी गाकडयों के
सभी दरिा़िे एक साथ खु ले और उनमें से कई सारे अजनबी लोग बाहर कनकले ।
सभी आदकमयों में ज्यादातर आदमी हट्टे कट्टे ि बाॅडी कबल्डथ टाइप के थे । जबकक
कुछ आदमी साधारर् कद काठी के थे । िो सब हट्टे कट्टे आदकमयों से कघरे हुए थे ।

हिे ली के बाहर अजय कसं ह के कुछ आदमी हाॅथों में बं दूख कलए खडे थे । उन लोगों
ने जब इतने सारे आदकमयों को एक साथ हिे ली की तरि आते दे खा तो उनके चे हरों
का रं ग सा उडने लगा। उन्हें लगने लगा अब ये कौन सी नई मुसीबत आ गई यहाॅ?
सब एक दू सरे की तरि दे खने लगे थे । जैसे एक दू सरे से पू छ रहे हों कक ये सब क्ा
है? ककन्तु जिाब ककसी के पास नही ं था।

"ठाकुर साहब से कहो कक हम लोग उनके कहे अनु सार अपने आदकमयों को यहाॅ

714
ले कर आ गए हैं।" एक आदमी ने अजय कसं ह के एक आदमी से कहा___"हमारे पास
ज्यादा समय नही ं है । इस कलए अभी हमें जाना होगा ककन्तु हमारे ये आदमी उनके
ककसी भी आदे श का पालन करने के कलए पू री तरह तै यार रहेंगे।"

उस आदमी की ये बात कदाकचत गाडग की समझ में न आई थी। इसी कलए िह मूखों
की तरह उस आदमी को दे खता रह गया। उसके चे हरे पर उलझन के से भाि उभर
आए थे ।

"अरे भाई ऐसे क्ों दे ख रहे हो हमें?" आदमी ने चौंकते हुए कहा__"हम सब ठाकुर
साहब के कबजने स िाले िैण्ड् स हैं। अतः जल्दी जाओ और उन्हें बताओ कक कमस्टर
कमलनाथ और उनके साथ सभी उनके दोस्त यहाॅ आए हुए हैं ।"

गाडग के चे हरे पर िैले उलझन के भाि कम तो न हुए ककन्तु उसने इतना अिश्य
ककया कक पाॅककट से मोबाइल कनकाल कर ककसी को िोन लगाया। उधर से काल
ररसीि करते ही उसने कहा___"मालककन, कुछ लोग माकलक से कमलने आए हैं। कह
रहे हैं कक उनके कबजने स से सं बंकधत िैण्ड् स हैं। मेरे कलए क्ा आदे श है माकलकन?"
"............।" उधर से कुछ कहा गया और इसके साथ ही काल कट हो गई।

"आप कृपया एक कमनट रुककये ।" किर उस गाडग ने बडी किनम्रता से


कहा___"मालककन आ रही हैं बाहर।"
"ओके नो प्राब्लेम।" उस आदमी ने कहा और दू सरी तरि पलट कर इधर उधर
दे खने लगा।

कुछ ही दे र में हिे ली का दरिाजा खु ला और प्रकतमा उसमे से बाहर कनकली। उसके


पीछे ही उसका बे टा कशिा भी था। हिे ली के बाहर इतनी सारी गाकडयाॅ और इतने
सारे लोगों को दे ख कर िो चौंकी। मनो मल्कस्तष्क में एक ही बात चकरकघन्नी की तरह
नाचने लगी कक 'कही ं किर से कोई सीबीआई िाले नही ं आ गए यहाॅ'।

प्रकतमा की दे खते ही गाडग ने उस आदमी के पास जाकर उसे बताया कक मालककन आ


गई हैं। िो आदमी पलट कर प्रकतमा के पास आया।
"नमस्कार भाभी जी।" उस आदमी ने खु शकदली से हाॅद जोड कर नमस्कार करते
हुए बोला__"हम सब ठाकुर साहब के िैण्ड सकगल के लोग हैं। ठाकुर साहब से कल
मीकटं ग में हमारी कुछ बातें हुई थी। कजसके तहत उन्होंने हमसे हमारे कुछ बे हतरीन
आदकमयों की माॅग की थी। सो इस िक्त हम उसी कसलकसले में यहाॅ आए हैं।
हमारे पास ज्यादा समय नही ं है इस कलए हम ठाकुर साहब से कमल कर तु रंत ही
यहाॅ से जाना चाहेंगे। उसके बाद ये उनका काम है कक िो हमारे इन आदकमयों के

715
द्वारा क्ा काम ले ते हैं?"

प्रकतमा उस आदमी की बातों से समझ गई कक कल अजय कसं ह ककसी ़िरूरी मीकटं ग


में था इसी कलए शाम को दे र से आया था। तो इसका मतलब मीकटं ग इस सबके कलए
थी। ककन्तु समस्या ये थी कक ये लोग कजससे कमलने आए थे उसे तो सीबीआई िाले
सु बह ही अपने साथ ले गए थे । इस कलए अब िो इन्हें क्ा जिाब दे यही उसकी समझ
में नही ं आ रहा था। सच्चाई बताने पर सं भि है कक बात कबगड जाती। अगर इन लोगों
को अभी पता चल जाए कक अजय कसं ह को सीबीआई िाले ले गए हैं तो ये लोग तु रंत
ही यहाॅ से रिूचक्कर हो जाएॅगे।

"क्ा बात है भाभी जी?" उस आदमी ने कहा___"आप ककसी गहरी सोच मे डूबी हुई
प्रतीत हो रही हैं। ककहए सब ठीक तो है न? ठाकुर साहब को बु लाइये हम उनसे
कमलना चाहते हैं।"
"ठाकुर साहब तो इस िक्त हिे ली के अं दर नही ं हैं।" किर प्रकतमा को बहाना बनाना
पडा___"सु बह ही कही ं चले गए थे । कहाॅ गए हैं इस बारे में कुछ बताया भी नही ं
उन्होंने।"

"ओह आई सी।" उस आदमी ने कहा___"कोई बात नही ं भाभी जी। हम िोन पर


बात कर लें गे उनसे । अच्छा अब हम चलते हैं। हम अपने इन आदकमयों कों यही ं पर
छोंडे जा रहे हैं।"
"अरे ऐसे कैसे चले जाएॅगे आप लोग?" प्रकतमा ने औपचाररकता के भाि से
कहा___"अं दर आइये और कम से कम चाय या काॅिी तो पीकर ही जाइये। िरना
आपके ठाकुर साहब मु झे ही डाॅटें गे कक मैने आप लोगों को कबना चाय पानी करिाए
ही जाने कदया।"

"इसकी ़िरूरत नही ं है भाभी जी।" आदमी ने हसते हुए कहा___"आपने कह कदया
इतना ही बहुत है हमारे कलए। अच्छा अब हम चलते हैं, नमस्कार।"
"नमस्कार जी।" प्रकतमा ने भी प्रत्युिर में अकभिादन ककया।

इसके बाद िो कजतने भी साधारर् कद काठी के आदमी सू ट बू ट पहने आए थे िो सब


गाकडयों में सिार होकर िहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद प्रकतमा ने बाॅकी बचे
हट्टे कट्टे ि बाॅडी कबल्डर आदकमयों की तरि दे खा।

"बे टा इन सबको सिें ट क्वाटग र में ले जाओ।" किर प्रकतमा ने कशिा से कहा___"और
इनके रहने का इं तजाम करो। तब तक मैं सकिता(नौकरानी) से कह कर इन लोगों के
कलए चाय पानी का उकचत बं दोबस्त कराती हूॅ।"

716
"ओके माॅम।" कशिा ने कहा और हिे ली की सीकढयाॅ उतर कर नीचे आ गया उन
लोगों के पास।

उन सबको ले कर कशिा हिे ली के पू िग कदशा की तरि बने सिें ट क्वाटग र की तरि बढ


गया। ये सिें ट क्वाटग र अजय कसं ह ने साल भर पहले ही बनिाया था। उन लोगों के
जाने के बाद प्रकतमा भी अं दर की तरि चली गई। उसके चे हरे पर सहसा गहन कचं ता
ि परे शानी के भाि गकदग श करते ऩिर आने लगे थे । उसे पता था कक अजय कसं ह के
जो कबजने स सं बंधी दोस्त आए थे िो अजय कसं ह से िोन पर ़िरूर बात करें गे।
ले ककन जब अजय कसं ह का िोन नही ं लगेगा तो िो सब परे शान भी हो जाएॅगे। उस
सू रत में उनका क्ा ररऐक्शन होगा इसका कुछ भी अं दा़िा लगाना मुल्किल था।

प्रकतमा को समझ नही ं आ रहा था कक इस पररल्कथथकत में िो क्ा करे ? उसने मदद के
उद्दे श्य से ही अपनी इं िेक्टर बे टी ररतू को िोन लगाया था ककन्तु उसने काल को
ररसीि न करके कट कर कदया था। ये प्रकतमा के कलए शायद आकखरी सबू त था कक
उसकी बे टी ने सचमुच ही अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़ बगाित कर दी थी।

अं दर प्रकतमा ने सकिता को उन आदकमयों के कलए चाय का कह कदया और खु द


आकर डर ाइं ग रूम में रखे सोिे पर बै ठ गई। उसके चे हरे से कचन्ता ि परे शानी के
भाि जा ही नही ं रहे थे । िो कुछ भी करके अजय कसं ह को सीबीआई के चं गुल से
बाहर कनकालना चाहती थी। हलाॅकक उसे पता था कक ऐसे मामलों में अपराधी का
कानू न की कगरफ्त से बाहर आना बे हद मु ल्किल काम होता है ककन्तु इसके बािजूद
प्रकतमा अजय कसं ह को बाहर कनकालना चाहती थी।

सहसा प्रकतमा को अपने कपता जगमोहन कसं ह का खयाल आया। प्रकतमा का बाप
जगमोहन कसं ह आज कल इलाहाबाद हाई कोटग में बतौर कक्रकमनल लायर था। ऊम्र से
ज्यादा अधेड नही ं लगता था। कहा जाता है कक जगमोहन कसं ह बहुत ही काकबल ि
ते ़ि तरागर िकील था। चाहे जैसा भी केस हो, मुहमाॅगी िीस कमलने पर िह अपने
मुिल्कक्कल को बाइज्ज़ित बरी करा ले ता था। मगर यहाॅ पर प्रकतमा के कलए सबसे
बडी समस्या ये थी कक िो अपने बाप से मदद माॅगे तो माॅगे कैसे ?

दरअसल, जब प्रकतमा ने अपने बाप को बताया कक िह अजय कसं ह से प्यार करती है


और उससे शादी करना चाहती है तो जगमोहन कसं ह बु री तरह भडक गया। उसे
प्यार शब्द से ही नफ़रत थी। पता नही ं ऐसा क्ा था कक प्रे म प्रसं ग होने पर िह आपे
से बाहर हो जाता था। उसके घर में कनयम कानू न बडे शख्त थे । उसकी दो ही
बे कटयाॅ थी। कजनमें से प्रकतमा छोटी िाली थी। जबकक पहली बे टी मुम्बई में रहती थी,
जहाॅ आजकल अजय कसं ह की बे टी नीलम रहती है। जगमोहन कसं ह को कोई बे टा

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नही ं था। धन दौलत की शु रू से ही कोई कमी नही ं थी। खै र, बाप के साि इं कार कर
दे ने पर प्रकतमा ने पहली बार अपने बाप से मु ह़िुबानी की थी और साि शब्दों में कह
कदया था कक िो शादी करे गी तो अजय कसं ह से ही िरना िो कभी ककसी से शादी नही ं
करे गी। जगमोहन को अपनी इस बे टी की धृष्टता पर बे हद गुस्सा आया और उसने
उसी िक्त कह कदया उससे कक आज के बाद िो उसके कलए मर गई है। बस प्रकतमा ने
आि दे खा न ताि, बाप का घर छोंड कदया और सीधा अजय कसं ह के पास पहुॅच गई।
अजय कसं ह के साथ ही िह रहने लगी। इस बीच िो प्रग्नेन्ट हो गई तो आनन िानन में
अजय कसं ह और प्रकतमा ने आपस में कोटग मैररज कर ली थी।

तब से ले कर अब तक प्रकतमा ने कभी भी अपने बाप से कोई मतलब नही ं रखा था


और ना ही उसके बाप जगमोहन ने । प्रकतमा की इस बगाित से उसकी बडी बहन को
धक्का तो ़िरूर लगा था ककन्तु िो कर भी क्ा सकती थी? ऐसे ही समय गु़िरता
गया। प्रकतमा अपनी बडी बहन से िोन पर ही हाल समाचार ले कलया करती थी।
दोनो बहनें िषों से एक दू सरे से न कमली थी।

डर ाइं ग रूम में सोिे पर बै ठी प्रकतमा इन्ही ं सब यादों में खोई थी। उसकी ऑखों में
ऑसू भर आए थे । माॅ का साया तो पहले ही उसके कसर से उठ गया था। दोनो
बहनों में ये सबसे ज्यादा लाड प्यार में पली पढी थी और शायद यही िजह थी कक
कजद्दी हो गई थी। कजसका नतीजा ये हुआ था कक उसने अपने बाप के ल्कखलाफ़ जाकर
अजय कसं ह से शादी कर ली थी। मगर आज के हालात बहुत और तब के हालात में
बहुत िक़ग हो गया था। आज के हालात में प्रकतमा ककसी के भी सामने झुकने और
ककसी के भी नीचे ले टने को तै यार थी। बदले में उसे अजय कसं ह सीबीआई की कगरफ्त
से बाहर चाकहए था।

प्रकतमा की कहम्मत नही ं हो रही थी कक िो दु बारा अपने बाप से बात कर सके। शादी
िाली बात को तो िषों हो गए थे । ककन्तु इन िषों में उसने एक बार भी अपने बाप से
बात करना ़िरूरी नही ं समझा था। और आज जब बु रा िक्त आया तो उसे अपने
बाप का खयाल आया और उससे मदद माॅगने का भी। प्रकतमा को पहली बार लगा
कक उसे अपने बाप से इस तरह मुह़िुबानी नही ं करनी चाकहए थी और ना ही तै श में
आकर इस तरह बाप के घर की दहली़ि को छोंड दे ना चाकहए था। मामले को प्यार
से और समझा बु झा कर भी सु लझाया जा सकता था। आज अगर ग़ौर ककया जाए तो
दो दो बे कटयाॅ होने के बाद भी उसका बाप घर में अकेला ही था। सोचने िाली बात है
कक उतने बडे घर में उसका बाप कपछले ककतने ही िषों से अकेला रह रहा है। क्ा
उसे अपने उस अकेले पन से दु ख नही ं होता होगा? क्ा उसे इस बात का दु ख नही ं
होगा कक उसकी बे टी ने आज तक उसकी सु कध तक न ली। अपनी खु कशयों को गले
लगा कर अपने बाप को अकेला छोंड कदया। तन्हाई इं सान को जीते जी मार डालती

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है। मगर उसने कभी अपनी इस बे टी को िोन करके उस सबका कगला न ककया था।

प्रकतमा को बडी कशद्दत से एहसास हुआ कक उससे ककतनी बडी भू ल हुई है। कहते हैं
कक माॅ बापप का गुस्सा या नारा़िगी जीिन भर के कलए नही ं होती। आकखर बाप
को औलाद के आगे हार जाना ही होता है। मगर यहाॅ तो जगमोहन दोनो तरि से
हारा हुआ बाप बन चु का था। प्रकतमा की ऑखों से पश्चाताप के ऑसू बह रहे थे । उसे
इस बात का बखू बी एहसास था कक भले ही उसके बाप ने उसे त्याग कदया था मगर
आज भी िो अपनी बे कटयों के मं गलमय जीिन की कामना करता होगा। ये सब सोच
सोच कर प्रकतमा को भारी दु ख हो रहा था। उसे अपनी अज्ञानता और अपने छोटे पन
का कशद्दत से एहसास हो रहा था मगर अब रोने से क्ा हो सकता था? पच्चीस साल
का िक्त थोडा सा नही ं होता अपने बाप से अनबन ककये हुए।

प्रकतमा को लगने लगा कक ये जो कुछ भी आज उसके और उसके पररिार के साथ हो


रहा है िो सब उसी का िल है जो उसने इतने िषों से बाप को दु खी ककया हुआ है। ये
सब सोच कर ही प्रकतमा को चक्कर सा आने लगा। उसने अपना कसर दोनो हाॅथों से
पकड कलया। तभी डर ाइं ग रूम में कशिा दाल्कखल हुआ। अपनी माॅम को इस तरह
पीडा में दे ख िह घबरा सा गया। तु रंत ही प्रकतमा के पास पहुॅचा िह और उसे उसके
कंधों से पकड कर झकझोरा।

"क्ा हुआ माॅम?" कशिा ने घबरा कर कहा___"आप ठीक तो हैं न माॅम? प्ली़ि
बताइये न क्ा हुआ है आपको?"
"कुछ नही ं बे टा।" प्रकतमा ने खु द को सम्हालते हुए कहा___"बस थोडा चक्कर सा आ
गया था।"
"आप इतना टें शन क्ों ले ती हैं माॅम?" कशिा ने प्रकतमा के चे हरे को दोनो हथे कलयों
में ले कर कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। डै ड बहुत जल्द िापस आ जाएॅगे।"

"हाॅ बे टा।" प्रकतमा ने कही ं खोए हुए से कहा___"सब कुछ ठीक हो जाएगा। ते रे डै ड
जल्द ही हमारे पास िापस आ जाएॅगे।"
"आप चकलये माॅम।" कशिा ने प्रकतमा को उठाते हुए कहा___"अपने कमरे में आराम
कीकजए आप और हाॅ ज्यादा सोच किचार मत ककया कीकजए।"

कशिा की बात का प्रकतमा ने िीकी सी मु स्कान के साथ जिाब कदया और कमरे की


तरि कशिा के साथ बढ गई। कमरे में बे ड पर प्रकतमा को ले टा कर कशिा रसोई की
तरि बढ गया। रसोई में सकिता चाय बनाकर केतली में डाल रही थी। ये दे ख कर
कशिा िापस बाहर की तरि आया और हिे ली से बाहर आ गया। बाहर उसने एक
आदमी को बु लाया और अं दर ले गया उसे । अं दर आकर उसने सकिता से कहा कक िो

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चाय नास्ता काका को पकडा दे । सकिता ने िै सा ही ककया। कशिा और िो आदमी
दोनो ही चाय नास्ता का सामान कलये सिें ट क्वाटग र की तरि बढ गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर िामगहाउस पर!


शं कर काका की कहानी से माहौल थोडा गंभीर सा हो गया था ककन्तु हररया काका
की म़िेदार बातों से किर से खु शनु मा हो गया था। ररतू को सहसा कुछ याद आया तो
उसने हररया काका की तरि दे खा।

"अरे काका।" किर उसने कहा___"इन सब बातों के बीच हम ये तो भू ल ही गए कक


तहखाने में मंत्री की बे टी कैद है और िो कल से भू खी प्यासी भी होगी।"
"हाॅ कबकटया।" हररया काका के चे हरे पर चौंकने िाले भाि उभरे ___"ई ता सही मा
हम भु लाय दीन्हें रहे। ऊ ससु री मंत्रीिा की छोकररया अबे तक ता ़िरूरै भू ख कपयास
से मरत होई।"

"आप भी कमाल करते है काका।" ररतू ने कहा___"ऐसा लगता है जैसे आप उस


बे चारी को ऐसे ही मार दें गे। जबकक अभी तो मुझे उसके अं दर की गमी कनकालनी है।
चकलये दे खें तो सही क्ा हाल चाल हैं उसके?"
"हाॅ हाॅ चला कबकटया।" हररया काका ने बं दूख को शं कर के हाथ में थमाते हुए
कहा___"अब ता दे खकहन का पडी कक ऊ ससु री अबे क़िंदा बा के मर गईल है।"

ररतू हररया की बात पर मुस्कुराती हुई तहखाने की तरब बढ गई। उसके पीछे पीछे
हररया भी चल रहा था। कुछ ही दे र में िो दोनो तहखाने के दरिाजे के पास खडे थे ।
हररया ने चाभी हे तहखाने का दरिाजा खोला और एक साइड हट गया। ररतू दरिाजे
के अं दर की तरि दाल्कखल हो गई। अभी िो दो तीन सीकढयाॅ ही नीचे उतरी थी कक
सहसा उसे रुक जाना पडा और जल्दी से पै न्ट की जेब से रुमाल कनकाल कर अपने
मुह ि नाॅक पर रखना पडा।

तहखाने में ते ़ि दु गिंध िैली हुई थी। मतलब साि था अं दर मौजूद सू रज और उसके
दोस्त या किर सू रज की बहन में से ककसी का टट्टी पे शाब छूट गया था कजसकी िजह
हे अं दर दु गिंध िैली हुई थी। ररतू से बदाग स्त न हुआ तो िो िापस तहखाने से बाहर आ
गई।

"काका इन लोगों ने तो यहाॅ गंध िैला रखी है।" ररतू ने बु रा सा मुह बनाते हुए
कहा___"ऐसे में अं दर जाया नही ं जाएगा। इस कलए सबसे पहले आप तहखाने का
हाल सही करिाइये। उसके बाद ही आगे का कायगक्रम होगा।"

720
"ठीक है कबकटया।" हररया ने कहा___"हम इहाॅ की सिाई करिाता हूॅ तब तक तू
बाहर रहा।"
"ठीक है काका।" ररतू ने कहा___"मैं कुछ दे र के कलए कमरे में जा रही हूॅ। जब
यहाॅ का सब ठीक हो जाए तो आप मु झे बु ला लीकजएगा।"

ये कह कर ररतू िहाॅ से बाहर आकर इस तरि से अं दर गई और अपने कमरे की


तरि बढ गई। कमरे में आकर ररतू बे ड पर ले ट गई। अभी िह ले टी ही थी कक नै ना
बु आ भी कमरे में आ गई और बे ड के ककनारे भाग में बै ठ गई।

"आइये बु आ।" ररतू ने अधले टी अिथथा में कहा__"आप भी आराम से ले ट जाइये ।"
"चल ठीक है तू कहती है तो ले ट जाती हूॅ।" नै ना ने ररतू के इस तरि आते हुए
कहा___"अच्छा ये बता कक ते रे इस िामग हाउस पर और क्ा क्ा होता है?"
"क्ा मतलब??" ररतू बु री तरह चौंकी___"यहाॅ क्ा क्ा होता है से आपका क्ा
मतलब है?"

"इतनी नासमझ ि बु द्धू नही ं हूॅ मैं कजतना तू समझ रही है मुझे।" नै ना ने
कहा___"यहाॅ आए मु झे कुछ समय तो हो ही गया है। मैने महसू स ककया है कक ये
िामग हाउस असल में मु जररम लोगों के कलए एक ऐसी जेल की तरह है कजसकी कैद से
मुजररम का कनकल पाना नामुमककन ही नही ं बल्कि असं भि है। कह दे भला कक मैं
झॅू ठ कह रही हूॅ?"

ररतू चककत भाि से दे खती रह गई अपनी बु आ को। ककन्तु किर तु रंत ही सम्हल भी
गई। चे हरे पर शशं क भाि लाते हुए बोली___"ये सब आपने खु द महसू स ककया है या
ये सब बातें ककसी के द्वारा पता चली है आपको?"

"बात अगर सच है तो इस बात से कोई मतलब ही नही ं रह जाता मेरी बच्ची कक मु झे


ये सब कैसे पता चला?" नै ना ने िष्ट भाि से कहा___"दू सरी बात मुझे इस बात से
कोई ऐतरा़ि नही ं है कक तू इस िामगहाउस पर क्ा कर रही है। बल्कि खु शी है कक
मुजररमों को उकचत स़िा दे रही है तू । मगर मैं बस यही कहूॅगी कक ऐसे कामों में
अपनी जान का खतरा भी बहुत होता है इस कलए अपना भी खयाल रखना।"

"खतरा तो हर इं सान के जीिन में होता है बु आ।" ररतू ने कहा___"चाहे िो कोई आम


इं सान हो या किर कोई ऐसा इं सान जो हर िक्त खतरों के बीच ही रहता है। मैं इस
िामग हाउस पर इसके पहले कभी भी ककसी मु ़िररम को कानू न अपने हाॅथ में ले कर
नही ं आई बु आ और नाही ऐसा करने का मैने कभी सोचा था। मगर ये सब तो मैने तब
ककया जब किधी का मामला आया। हमारे दे श में ककसी मुजररम को उसके सं गीन से

721
भी सं गीन अपराध के कलए कोई शख्त स़िा नही ं हो पाती। इसकी कई सारी िजहें हैं
मगर मुख्य िजहें ये हैं कक हमारा कानू नी कसस्टम बहुत कम़िोर ि ढीला है। कोटग में
आज भी लाखों ऐसे सं गीन अपराधों के केस िाइलों के नीचे दबे हुए हैं कजनकी
समयािधी का पता चलते ही हमारा कानू न पर से किश्वास उठने लगता है। दू सरी बात
हमारा यही कानू नी कसस्टम बडे लोगों और मं त्री कमकनस्टरों के हाॅथ की कठपु तली
बना हुआ है। जबकक सच्चाई ये है कक कानू न की ऩिर में कोई भी छोटा बडा नही ं
होता। अगर अपराध दे श के सबसे बडे ब्यल्कक्त ने ककया है तो उसे भी िै सी ही स़िा
कमलनी चाकहए जो ककसी आम मुजररम को कमलती है। मगर ये सब कहने की बातें हैं
बु आ, हकीक़त में ऐसा होता नही ं है। कानू न के इसी कम़िोर कसस्टम की िजह से
एक शरीि आदमी मजबू रीिश जुमग का दामन थाम बै ठता है।"

"तु म कजन ची़िों की बात कर रही हो बे टा।" नै ना ने गहरी साॅस ली___"िो हमेशा
ऐसी ही रहेंगी। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कक इससे भी बदतर बन
जाएॅगी। इस कलए इस किषय पर बात करने का कोई मतलब नही ं है। तु मने कहा कक
किधी का मामला जब सामने आया तब तु मने ऐसा क़दम उठाया। किधी के बारे में भी
तु मने ही मु झे बताया था कक उसके साथ चार ऐसे लडकों ने कघनौना कुकमग ककया था
जो बडे बाप की पै दाईश हैं। मैं ये कहना चाहती हूॅ कक ऐसे बडे बाप की औलादों को
यहाॅ लाकर और उनको स़िा दे ने से कही ं तु म पर तो कोई खतरा नही ं आ जाएगा।
आकखर सिाल तो बडे लोगों का है न। कजनके ये बच्चे हैं उन्हें अगर पता चल जाए कक
उनके बच्चों को तु मने क्ा और कैसे स़िा दी है तो यकीनन िो बडे लोग तु झ पर
कबजली बन कर कगरें गे।"

"किक्र मत कीकजए बु आ।" ररतू ने सहसा कठोर भाि से कहा___"मैंने उन सबका


अच्छा खासा इं तजाम ककया हुआ है । आप यू ॅ समकझये कक उन बडे बडे खलीिाओं
की जान मेरी मु िी में कैद है। आज की डे ट में िो सब ऐसी कठपु तकलयाॅ बने हुए हैं
जो कसिग मेरे ही इशारे पर नाचने के कलए मजबू र हैं। िो अपनी म़िी से ऐसा कोई
काम नही ं करें गे जो मुझे पसं द ही न आए।"

"ऐसा ते रे पास उनके ल्कखलाि क्ा है?" नै ना ने चककत भाि से पू छा___"कजसकी


िजह से िो सब बडे बडे सू रमा ते रे इशारों पर नाचने के कलए मजबू र बन गए हैं?"

नै ना के पू छने पर ररतू ने कुछ पल सोचा और किर उसने िीकडयो िाली सारी बात
बता दी उसे । ये भी बताया कक उसने खु द मदग की आिा़ि में िोन पर मंत्री से बात भी
की थी और कल तो िो मं त्री की कबगडै ल बे टी को भी पकड कर ले आई है जो इस
िक्त तहखाने में बं द है। सारी बातें जानने के बाद नै ना का मु ह आश्चयग से खु ला का
खु ला रह गया।

722
"हे भगिान!।" किर उसके मुख से कनकला___"ये तू क्ा कर रही है ररतू ? लडकों की
बात तक तो ठीक था और लडकों के बापों तक भी ठीक था ककन्तु लडकी को क्ों
कैद कर ककया तू ने? ये ठीक नही ं है मेरी बच्ची। उन लोगों ने घृकर्त कमग ककया
क्ोंकक िो उनकी कितरत थी मगर ते री कितरत तो ऐसी नही ं है न बे टा? इस कलए
मेरी बात मान और मंत्री की बे टी को छोंड दे तू ।"

"आपने बहुत दू र तक का सोच कलया बु आ।" ररतू ने मु स्कुरा कर कहा___"जबकक


मेरा ऐसा करने का कोई इरादा ही नही ं है। मे रा मकसद तो बस ये है कक मैं उन्हें भी
उस ची़ि का एहसास कराऊ कजस ची़ि को करने में उन्हें सबसे ज्यादा म़िा आता
है। मैं उन्हें कदखाना चाहती हूॅ बु आ कक जब िै सा ही सब कुछ अपने साथ होता है
तब कैसा प्रतीत होता है? जब अपने ऊपर िै सा जु ल् होता है तो ककतनी तक़लीफ़
होती है? हाॅ बु आ यही, बस यही एहसास कराना चाहती हूॅ मैं उन सबको।"

"अगर ऐसी बात है तो किर ठीक है ।" नै ना ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"जो भी
करना इस बात का खयाल रखते हुए करना कक तु म एक अच्छे सं स्कारों िाली लडकी
हो जो ककसी का भी बु रा नही ं कर सकती।"
"अच्छा अब आप आराम कीकजए बु आ।" ररतू ने बे ड से उतरते हुए कहा___"मैं ़िरा
तहखाने में उन सबका हाल चाल दे ख लू ॅ।"
"ठीक है जाओ।" नै ना ने कहा और आराम से ले ट गई।

ररतू कमरे से कनकल कर बाहर आ गई। उसने अपने आईिोन के बाईब्रे शन को


महसू स ककया था। िो समझ गई थी कक हररया काका ने ही उसे कमस काल कदया था।
मतलब साि था कक उसने तहखाने की गंदगी को साि कर कदया था। खै र, कुछ ही
दे र में ररतू तहखाने में पहुॅच गई। अब िहाॅ पर कोई गंध नही ं थी। बल्कि सबकुछ
एकदम से साि सु थरा हो गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर मंत्री कदिाकर चौधरी की तरि!


इस िक्त मंत्री के सभी साथी डर ाइं गरूम में जमा हुए बै ठे थे । सबके बीच ब्लेड की धार
की माकनन्द पै ना सन्नाटा िैला हुआ था। अभी थोडी दे र पहले ही मं त्री कदिाकर
चौधरी अपने आिास पर अपने साकथयों के साथ आया था। कदिाकर चौधरी कल
शाम से कचं कतत ि परे शान था। कल शाम को ही आया ने बताया था कक रचना बे टी
कजम से नही ं लौटी है। चौधरी को पहले इस बात पर ज्यादा कचं ता की बात ऩिर नही ं
आई थी। उसे लगा था कक रचना अपनी िैण्ड् स के साथ होगी। ककन्तु जब आधी रात
गु़िर जाने पर भी रचना न आई तो चौधरी को कचं ता सताने लगी। उसने रचना की
जान पहचान िाली सभी लडककयों को िोन लगा कर रचना के बारे में पू ॅछा था।

723
मगर सबने यही कहा कक रचना उनके पास नही ं है। एक लडकी ने बताया कक शाम
को कजम से बाहर आते समय रचना उसके साथ ही थी ककन्तु किर िो अपनी स्कूटी
ले कर घर के कलए कनकल गई थी।

कदिाकर चौधरी को कल सारी रात नी ंद नही ं आई थी। अपनी बे टी के लौटने के


इं त़िार में िह जागता ही रहा था। मगर रात गु ़िर गई और अब ये दू सरा कदन शु रू
होकर दोपहर भी हो रही थी। किर भी रचना के बारे में कोई खबर न कमली थी उसे ।
चौधरी के कलए कचं ता िाली सबसे ज्यादा बात ये थी कक रचना का मोबाइल िोन कल
से लगातार बं द बता रहा था। कदिाकर चौधरी को अब अपनी बे टी की बहुत ज्यादा
कचं ता सता रही थी। उसने अपनी तरि से पू री कोकशश कर ली थी मगर रचना को
ढू ॅढ पाने में िह नाकाम रहा था। दू सरी कचं ता की बात ये थी कक उसका बे टा और बे टे
के तीनों दोस्तों का भी कही ं कोई पता नही ं चल रहा था। ये सब बातें चौधरी की रातों
की नी ंद उडाए हुई थी।

"बडी हैरत की बात है चौधरी साहब।" अिधे श श्रीिास्ति कह उठा___"पहले हम


अपने बच्चों के कलए कचं कतत ि परे शान थे । उसके बाद हम अपने कलए परे शान हो गए
उन िीकडयो़ि की िजह से और अब रचना बे टी के कलए परे शान हो गए हैं। कपछले
कुछ समय से ये सब हमारे साथ क्ा होने लगा है इसका अं दा़िा भी है ककसी को?"

"हमसे सबसे बडी ग़लती ये हुई कक हमने हर ची़ि को तु च्छ ि ग़ैरमामूली समझा।"
अशोक मे हरा ने कहा__"पर अब हमें गंभीरता से इस सबके बारे में सोचना पडे गा
चौधरी साहब। हमें शु रू से हर घटना पर ग़ौर करना होगा। हमारे साथ राहू कुतू का
ये चक्कर तब से शु रू हुआ जबसे हमारे बच्चों ने उस लडकी का रे प ककया था। उस
रे प के बाद से ही हमारे बच्चे गायब हुए हैं और अब तक हमें उनकी कोई खोज खबर
नही ं लगी है। उसके बाद उस अं जान ब्यल्कक्त का हमें िो िीकडयो़ि भे जना, साथ ही
उसकी िो धमकी भरी बात। और अब रचना बे टी का अकस्मात गायब हो जाना। ये
सारी घटनाएॅ इस बात की तरि िष्ट रूप से इशारा करती हैं कक इन सभी
घटनाओं का कताग धताग एक ही ब्यल्कक्त है । दू सरा कोई शख्स ऐसा करने का सोच भी
नही ं सकता है।"

"मैं अशोक की इन बातों से पू री तरह सहमत हूॅ चौधरी साहब।" अिधेश श्रीिास्ति
ने कहा___"ये सच है कक सारी घटनाओं का केन्द्र कबन्दु उस लडकी के रे प िाली िो
घटना ही है। ऐसे मामलों में आम तौर पर िही होता है जो ऐसे हर रे कपस्ट के साथ
होता है। यानी रे प पीकडता के घरिाले पु कलस में एिआईआर द़िग करिाते हैं और
अदालत से इं साि की गु हार लगाते हैं। हलाॅकक ऐसा कम ही होता है क्ोंकक कोई
भी शरीि ब्यल्कक्त अपनी बदनामी नही ं कराना चाहता इस कलए केस को रिा दिा

724
करिा ले ता है ककन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बदनामी से नही ं डरते और इं साि के
कलए सु प्रीम कोटग तक का दरिाजा पार कर जाते हैं। मगर हैरत की बात है कक कजस
लडकी के साथ हमारे बच्चों ने रे प ककया उस पर ककसी ने कोई ऐक्शन ही नही ं
कलया। जबकक कानू न के ही डर से हमारे बच्चे शायद कही ं छु प गए और आज तक
लौट कर घर नही ं आए। दू सरी बात ये कक हमने भी ये जानने की कोकशश नही ं की
कक रे प के बाद उस लडकी का क्ा हुआ? जबकक हमें ऐसे मामले की पल पल की
खबर रखनी चाकहए थी। आज उस घटना को घटे क़रीब क़रीब दो हप्ते हो गए होंगे।"

"ये सच है कक हमने हर ची़ि को मामूली ही नही ं समझा बल्कि उसे ऩिरअं दा़ि भी
ककया।" कदिाकर चौधरी ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"कजसका नतीजा आज हमें
इस रूप में दे खने को कमल रहा है। मगर, अब भी शायद कुछ नही ं कबगडा है। हमें
इस मामले में अपनी तरि से जाॅच पडताल करनी चाकहए। सबसे ज्यादा उस
लडकी के बारे में, क्ोंकक घटनाओं का कसलकहला उस रे प से ही शु रू हुआ है। सं भि
है कक हमें कोई ऐसा सु राग़ कमल जाए कजससे हमें सारी बातों का पता चल जाए।
हलाॅकक हमने उस कदन पु कलस ककमश्नर से िोन पर पू ॅछा था कक हमारे बच्चों के
लापता होने में अगर पु कलस का हाॅथ हुआ तो अच्छा नही ं होगा। इस पर ककमश्नर ने
साि साि कहा था कक हमारे बच्चों पर कानू न का हाॅथ तभी पड सकता था जबकक
रे प पीकडता के घरिालों ने थाने में एिआईआर द़िग करिाया होता। इस कलए जब
ऐसा कुछ हुआ ही नही ं है तो हमारे बच्चों पर कानू न कोई कायगिाही कैसे कर दे गा?
इस कलए ये तो साि है कक हमारे बच्चों के गायब होने में नु कलस या कानू न का कोई
हाॅथ नही ं है। मगर बच्चे गायब हैं ये सच बात है। इस कलए अब इसका पता लगाना
बे हद ़िरूरी है कक ये सब ककसने ककया है हमारे बच्चों के साथ? दू सरा मामला िो
िीकडयो भे जने िाला है। िीकडयो भे जने िाले ने उस कदन िोन पर िष्ट कहा था कक
उसके पास हमारे ल्कखलाि ऐसे ऐसे सबू त हैं कजनके बे स पर िो हमें जब चाहे बीच
चौराहे पर नं गा दौडा सकता है। उसकी इस बात पर हमने ये कनष्कशग कनकाला था
कक सं भि है कक उसी ने हमारे बच्चों को पकडा हो और किर उन्हें टाचग र करके उनसे
हमारे ल्कखलाफ़ उन िीकडयो के रूप में सबू त प्राप्त ककया होगा।"

"किर तो ये साकबत हो गया चौधरी साहब कक इन सभी घटनाओं का कताग धताग एक


ही ब्यल्कक्त है।" अशोक मेहरा बीच में बोल पडा___"आपकी बातों में यकीनन ठोस
सच्चाई है। यकीनन हमारे बच्चे उस िीकडयों भे जना िाले के पास ही हैं। इस बात से ये
भी सोचा जा सकता है कक रचना बे टी को भी उसी ने ककडनै प ककया होगा।"

"कबलकुल ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"अभी तक


हमें िस्तु ल्कथथत का ़िरा भी एहसास नही ं था ककन्तु अब हो रहा है और समझ में भी
आ रहा है कक िोकडयो भे जने िाला हमसे चाहता क्ा है?"

725
"क्ा चाहता है िह??" कदिाकर चौधरी किरककनी की माकनं द अिधेश की तरि घूम
कर पू छा था।
"हो सकता है कक इन मामलों के तहत उस िीकडयो भे जने िाले के सं बंध में जो थ्यौरी
मेरे कदमाग़ में बनी है िो ग़लत भी हो।" अिधे श श्रीिास्ति ने कहा___"ककन्तु किर भी
प्रकट कर रहा हूॅ। बात उस लडकी के रे प से ही शु रू हुई। रे प पीकडता के घरिालों
को जब इस बात का पता चला होगा कक रे प करने िाले लडके बडे बाप की औलाद हैं
तो िो समझ गए कक पु कलस में एिआईआर द़िग कराने का कोई िायदा नही ं होगा।
क्ोंकक बडे लोगों के प्रभाि से सीघ्र ही इस केस को इतना कम़िोर बना कदया जाएगा
कक उसमें कोई दम नही ं रह जाएगा। बल्कि ऐसा भी हो सकता है कक उल्टा लडकी
को ही कोटग में चररत्रहीन और बदचलन साकबत कर कदया जाए। उस सू रत में इं साि
तो कमलने से रहा ही ऊपर से समाज के बीच उनकी जो इज्ज़ित खाक़ में कमले गी
उसकी भरपाई इस जन्म में तो सं भि नही ं हो सकती थी। इस कलए लडकी के
घरिालों ने अपनी बे टी के साथ हुए रे प का बदला ले ने के कलए दू सरा तरीका
अपनाया। दू सरा तरीका ये था कक ककसी तरह िो हमारे बच्चों को पकड लें और किर
अपने तरीके से जो चाहे स़िा दें उन्हें । अब तक िो इसी कलए अपने हर काम में
सिल रहे क्ोंकक हमने इन सब ची़िों की तरि ध्यान ही न कदया था। ध्यान तो तब
आया जब मामला हमारे हाॅथ से कनकल गया। हाॅ चौधरी साहब, मामला हमारे
हाॅथ से कनकल ही तो गया है। क्ोंकक उस ब्यल्कक्त के पास हमारे ल्कखलाि जो सबू त
है िो हमें ककसी भी पल बीच चौराहे पर नं गा होकर दौडने पर मजबू र कर दे गा।"

"तो तु म्हारे कहसाब से ये सब लडकी के घरिालों ने ककया है?" चौधरी ने


कहा___"मतलब कक उन लोगों ने हमारे बच्चों को पकडा और उनसे हमारे ल्कखलाफ़
सबू त भी प्राप्त कर कलए?"
"जी कबलकुल।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"आप खु द सोकचए कक ऐसा करने की
उनके कसिा भला ककसके पास िजह थी? ये तो एक यथाथग सच्चाई है न चौधरी साहब
कक बे िजह कभी कुछ नही ं होता है। इस कलए ये सब करने की िजह कसिग और कसिग
रे प पीकडता के घरिालों के पास थी। दू सरा ब्यल्कक्त ऐसा करने का शौक तो नही ं रख
सकता न?"

"चलो मान कलया कक ये सब उस रे प पीकडता लडकी के घरिालों ने ककया है।" चौधरी


ने कहा___"ककन्तु सिाल ये है कक उन्हें हमारी बे टी को भी ककडनै प या पकडने की
क्ा ़िरूरत थी? हमारी बे टी ने तो कोई गुनाह नही ं ककया था न? किर क्ों उसे
पकडा उन्होंने?"

"सं भि है कक रचना बे टी के ़िररये।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"िो हमें ये एहसास

726
कदलाना चाहते हों कक जब िै सा ही रे प केस हमारे साथ हो तो हमें कैसा लगेगा? हमें
उससे ककतनी तक़लीफ़ होगी?"

अिधेश श्रीिास्ति के इस तकग से कदिाकर चौधरी कुछ बोल न सका। जैसे कनरुिर हो
गया था िह या किर कदाकचत उसे बात समझ में आ गई थी कक अिधेश का तकग
कबलकुल सही था। खै र, अिधेश श्रीिास्ति की उस बात से कुछ दे र सन्नाटा छाया
रहा।

"तो अब क्ा ककया जाए?" सहसा अशोक मेहरा ने उस सन्नाटे को चीरते हुए
कहा___"अगर हम सही लाइन पर हैं तो हमारा अगला क़दम अब क्ा होना चाकहए?"
"बडा सीधा ि सरल जिाब है अशोक।" अिधे श श्रीिास्ति ने कहा___"हमारा अगला
क़दम ये होना चाकहए कक हमें जल्द से जल्द उस रे प पीकडता लडकी के घरिालों को
धर ले ना चाकहए। उसके बाद खु द ही हम अपने तरीके से उनका कक्रया कमग करें गे।"

"तु म तो ऐसे कह रहे हो अिधेश जैसे कक ये सब िै सा ही आसान काम हो जैसे थाली


से दाल चािल का कनिाला बना कर उसे खा ले ना आसान होता है।" अशोक ने
कहा___"जबकक हमें इस बात पर भी ़िरा ग़ौर कर ले ना चाकहए कक कजस ब्यल्कक्त को
हम धर ले ने के कलए अपने क़दम बढाने जा रहे हैं उसने क्ा इस सबके बारे में नही ं
सोचा होगा? बल्कि ़िरूर सोचा होगा भाई, उसे भी इस बात का अच्छी तरह से पता
है कक हम क्ा ची़ि हैं। अगर िो हमारे बच्चों को धर ले गा तो सबसे पहले हमारा शक़
उसी पर ही जाएगा। उस सू रत में हम उसकी उस धृष्टता के कलए उसका क्ा हस्र
करें गे ये बात भी उसने ़िरूर सोची होगी। अब सोचने िाली बात ये है कक जब उसने
ये सब सोचा होगा तो अपने बचाि का कोई न कोई रास्ता भी सोचा होगा। ऐसे ही तो
नही ं कोई साॅप के कबल में अपना हाॅथ डाल दे ता है।"

"यकीनन तु म्हारी बात में दम है।" अिधेश श्रीिास्ति ने जैसे स्वीकार ककया__"और
उसके कजस बचाि िाले रास्ते की तु म बात कर रहे हो िो यकीनन यही हो सकता है
कक आज की डे ट में उसके पास हमारे ल्कखलाफ़ सबू त के रूप में िो िीकडयो रूपी
ब्रम्हास्र है।"

"कबलकुल ठीक समझे।" अशोक ने कहा__"इस कलए अब हम अगर कोई क़दम भी


उठाएॅ तो ़िरा सोच समझ कर उठाएॅ। क्ोंकक अगर उसे पता चल गया कक हम
उसके ल्कखलाफ़ कुछ करने जा रहे हैं तो सं भि है कक अगले ही पल िो हम पर
क़यामत बरपा दे ।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कक हम कुछ कर ही नही ं सकते ।" सहसा चौधरी आिे श

727
में कह उठा__"उस साले ने हमें पं गु बना कर रख कदया है। मगर ऐसा कब तक चले गा
यार? हमें कुछ तो करना ही पडे गा न? िरना िो कदन दू र नही ं जबकक हम चारों ककसी
चौराहे पर नं गे दौड लगा रहे होंगे।"

"कुछ तो करना ही पडे गा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नु कसान तो


दोनो तरि से होना ही है । इस कलए कुछ करके ही नु कसान झेलते हैं। शायद ऐसा
भी हो जाए कक सारा खे ल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तु मने ।" चौधरी ने कहा___"मगर सिाल ये है कक हम करें गे क्ा?"

"िही जो करने का सजेशन थोडी दे र पहले अिधेश भाई ने कदया था।" अशोक ने
कहा___"मगर उसमें थोडा चें ज करना पडे गा। िो ये कक लडकी के घरिालों को पहले
हम कदले री से धरने जा रहे थे जबकक अब िही काम हम इस तरीके से करने की
कोकशश करें गे कक उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अिधेश श्रीिास्ति बोला__"मगर मु झे लगता है कक हमें एक बार ये


सब करने से पहले किर से इस बारे में सोच ले ना चाकहए। कही ं ऐसा न हो कक हम
खु द ही धर कलए जाएॅ।"
"कायर ि डरपोंक जैसी बातें मत करो अिधे श।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब
हम चु प भी नही ं बै टना चाहते हैं। साला कहं जडा बना कर रख कदया है उसने हमें।
मगर अब और नही ं। अब जो होगा दे खा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे िैंसला सु ना कदया था। ककसी में भी इस िैंसले के


ल्कखलाफ़ जाने की कहम्मत न थी। इस कलए अब इस काम को अं जाम दे ने की समय
सीमा पर किचार किमषग ककया गया और उसके बाद अशोक और अिधेश अपने अपने
घर चले गए। मगर आगे ककसके साथ क्ा होने िाला है ये ककसी को कुछ पता न था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........ 《 51 》

अब तक,,,,,,,,

"कुछ तो करना ही पडे गा चौधरी साहब?" अशोक ने कहा___"साला नु कसान तो


दोनो तरि से होना ही है । इस कलए कुछ करके ही नु कसान झेलते हैं। शायद ऐसा

728
भी हो जाए कक सारा खे ल हमारे हक़ में हो जाए।"
"बात तो सच कही तु मने ।" चौधरी ने कहा___"मगर सिाल ये है कक हम करें गे क्ा?"

"िही जो करने का सजेशन थोडी दे र पहले अिधेश भाई ने कदया था।" अशोक ने
कहा___"मगर उसमें थोडा चें ज करना पडे गा। िो ये कक लडकी के घरिालों को पहले
हम कदले री से धरने जा रहे थे जबकक अब िही काम हम इस तरीके से करने की
कोकशश करें गे कक उस कम्बख्त को इसकी भनक तक न लग सके।"

"ओह आई सी।" अिधेश श्रीिास्ति बोला__"मगर मु झे लगता है कक हमें एक बार ये


सब करने से पहले किर से इस बारे में सोच ले ना चाकहए। कही ं ऐसा न हो कक हम
खु द ही धर कलए जाएॅ।"
"कायर ि डरपोंक जैसी बातें मत करो अिधे श।" चौधरी ने कठोरता से कहा___"अब
हम चु प भी नही ं बै टना चाहते हैं। साला कहं जडा बना कर रख कदया है उसने हमें।
मगर अब और नही ं। अब जो होगा दे खा जाएगा।"

बस चौधरी की इस बात ने जैसे िैंसला सु ना कदया था। ककसी में भी इस िैंसले के


ल्कखलाफ़ जाने की कहम्मत न थी। इस कलए अब इस काम को अं जाम दे ने की समय
सीमा पर किचार किमषग ककया गया और उसके बाद अशोक और अिधेश अपने अपने
घर चले गए। मगर आगे ककसके साथ क्ा होने िाला है ये ककसी को कुछ पता न था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

उधर तहखाने में ररतू जब पहुॅची तो िहाॅ की साि सिाई दे ख कर खु श हो गई।


अब यहाॅ पर पहले जैसी गंद नही ं थी। एक तरि सू रज और उसके तीनो दोस्त हाथ
ऊपर ककये रस्सी से बधे खडे थे । ररतू को तहखाने में आया दे ख कर उन चारों की
कनगाह स्वयमेि ही उस तरि उठती चली गई थी। चे हरों पर घबराहट के भाि
एकाएक ही उजागर हो गए थे । चारों की हालत कािी खराब हो चु की थी। ठीक से
भोजन न कमलने की िजह से उनके कजस्म कम़िोर से कदखाई दे रहे थे । दाढी मू ॅछें
बढ गई थी कजससे पहचान में नही ं आ रहे थे िो। िही ं दू सरी तरि दीिार के पास ही
लकडी की एक कुसी पर मं त्री की बे टी रचना बै ठी हुई थी। उसके दोनो हाॅ तथा
दोनो पै र कुसी से इस तरह बधे हुए थे कक िह कहल डु ल भी नही ं सकती थी।

"िाह काका।" तहखाने के िशग पर चलते हुए ररतू ने हररया की तरि दे ख कर


कहा___"आपने तो कमाल ही कर कदया है। यहाॅ की साि सिाई दे ख कर लगता
ही नही ं है कक अभी थोडी दे र पहले यहाॅ गंदगी का ककतना बडा साम्राज्य कायम
था।"

729
"ई सु सरे लोगन ने इहाॅ बडका िाला गंदगी िेरे रहे कबकटया।" हररया काका ने
कहा___"यसे साि तो करइन का परत ना। बस थोडी कदक्कत ता हुई पर हम सब
बहुत अच्छे से कर कलया हूॅ।"
"हाॅ िो तो कदख ही रहा है काका।" ररतू ने सहसा पहलू बदलते हुए कहा___"खै र,
इन लोगों की खाकतरदारी अच्छी चल रही है न?"

"अरे कबकटया।" हररया ने अजीब भाि से कहा___"ई कइसन सिाल हा? ई बात ता ई
ससु रा लोगन का दे ख के ही समझ मा आ जई कक हम ककतना अच्छे से ई लोगन केर
खाकतरदारी ककया हूॅ। बस ई ससु री छोकररया बहुतै उछलत रही।"

"ऐसा क्ों काका?" ररतू चौंकी।


"अरे ऊ का है ना कबकटया।" हररया ने ़िरा ऩिरें झुकाते हुए कहा___"ई चारो लोगन
के जइसन एखरौ टट्टी पे शाब छूट गइल रहे। एसे हमका एखर नीचे का कपडा उतारैं
का परा। पर हम सच कहत हूॅ कबकटया। हम एखे बदनिा का कछू नाही ं दे खेन। एखे
बािजूदि ई ससु री कचल्लात रही यसे हम भी गुस्सा मा एक लािा दै कदये इसको।
ससु री बहुतै गंदा गररयाित रही हमका। पर हमहू तबकहनै माने जब एखर सब कुछ
साि कर के चकाचक कर कदहे।"

"ओह तो ये बात है।" ररतू मन ही मन मु स्कुराते हुए बोली___"कोई बात नही ं काका।
आपने अपना काम बहुत अच्छे से ककया है। िरना तो ये सब गंद िैलाते ही रहते न?"
"एक बार मेरे हाॅथ पै र को इस रस्सी से आ़िाद कर के दे ख कुकतया।" सहसा रचना
ने एकाएक कबिरे हुए अं दा़ि से चीखते हुए कहा___"ते रे हाथ पै र तोड कर ते रे हाॅथ
में न दे दू ॅ तो कहना।"

रचना की इस बात से जहाॅ हररया का पारा गरम हो गया था िही ं ररतू उसे दे ख कर
बस मुस्कुरा कर रह गई। किर उसने सू रज और उसके दोस्तों की तरि इशारा करते
हुए रचना से कहा___"इन चारों को ग़ौर से दे खो और पहचानो कक ये चारो कौन हैं?"

"मुझे नही ं पहचानना ककसी को।" रचना ने पू िग की भाॅकत ही तीखे भाि से


कहा___"ये सब ते रे यार हैं तू ही पहचान इन्हें ।"
"मैं चाहूॅ तो इसी िक्त ते री इस गंदी ़िुबान को काट कर ते रे कपछिाडे में डाल दू ॅ।"
ररतू के मुख से शे रनी की भाॅकत गुराग हट कनकली___"मगर उससे पहले तु झे ये
कदखाना चाहती हूॅ और बताना चाहती हूॅ कक तू कजनके दम पर इतना उछल रही है
न उनकी औकात मेरे सामने कीडे मकोडों से भी बदतर है। ग़ौर से दे ख इन चारों
को। इनमें ते रा ही कोई अपना ऩिर आएगा।"

730
ररतू की ये भात सु न कर रचना ने पहले तो उसे आग्ने य ने त्रों से घूरा उसके बाद उसने
उन चारों की तरि अपनी कनगाह डाली। सू रज अपनी बहन को ग़ौर से अपनी तरि
दे खते दे ख बु री तरह घबरा गया। िो नही ं चाहता था कक उसकी बहन उसे पहचाने ।
क्ोंकक उसे पता था कक उस सू रत में उसकी बहन भयभीत हो जाएगी। उसने जब
पहली बार ऑखें खोल कर रचना को दे खा था तो बु री तरह चौंका था साथ ही डर भी
गया था। उसे ररतू से इस सबकी उम्मीद नही ं थी। हलाॅकक ररतू ने उससे कहा ज्ररूर
था कक िो उसकी बहन को भी यहाॅ ले आएगी और िो सब उसके साथ बलात्कार
करें गे। मगर उसे लगा था कक ये सब ररतू महज गुस्से में कह रही थी। जबकक ऐसा िो
करे गी नही ं। मगर अब उसे समझ आ गया था कक ररतू ने उस समय कोई कोरी
धमकी नही ं दी थी बल्कि सच ही कहा था। कजसका प्रमार् इस िक्त रचना के रूप में
उसके सामने कुसी पर बधा हुआ मौजूद था। खै र उधर,

ररतू की ये बातें सु न कर रचना ने जब ग़ौर से उन चारों की तरि दे खा तो एकाएक ही


उसके चे हरे पर चौंकने के भाि आए और किर जैसे एकाएक ही जैसे उसके कदलो
कदमाग़ में किष्फोट हुआ। उसने पलट कर ररतू की तरि दे खा।

"ते रे चे हरे के ये भाि चीख चीख कर इस बात की गिाही दे रहे हैं कक तू ने इन चारों
को पहचान कलया है।" रचना के दे खते ही ररतू ने अजीब भाि से कहा___"और अब
जब तू ने पहचान ही कलया है तो पू छ इन चारों से कक ये सब यहाॅ कैसे और क्ों
मौजूद हैं?"

ररतू की इस बात का असर रचना पर तु रंत ही हुआ। उसके चे हरे पर एकाएक ही ऐसे
भाि उभरे जैसे उसे उन चारों को इस हालत में दे ख कर बे हद दु ख हुआ हो। ऑखों में
पानी तै रता हुआ ऩिर आने लगा था उसके।

"भ भाई।" किर उसके मुख से लऱिता हुआ स्वर कनकला___"ये सब क्ा है? आप
चारो यहाॅ कैसे ??"

रचना के इस सिाल पर सू रज चु प न रह सका। बल्कि ये कहना चाकहए कक अब


उसके सामने कोई चारा ही नही ं रह गया था। इस कलए उसे अब अपनी बहन के
सामने अपनी यहाॅ पर मौजूदगी का कारर् बताना ही था। इस कलए चे हरे पर दु ख
के भाि कलए िह रचना को अपनी राम कहानी शु रू से ले कर अं त तक बताता चला
गया। सारी बातें जानने के बाद रचना भौचक्की सी रह गई थी।

"और हम सब ये समझ रहे थे कक आप लोग उस घटना के चलते कही ं ऐसी जगह छु प


गए हैं जहाॅ पर आप पु कलस ि कानू न की पहुॅच से दू र होंगे।" सारी बातें सु नने के

731
बाद रचना ने आहत भाि से कहा___"मगर आप तो यहाॅ हैं भाई। खै र, दे ख कलया न
भाई बु रे का काम का बु रा अं जाम। ककतना कहती थी आप लोगों को कक इस तरह
ककसी की क़िंदकगयों से मत खे लो। मगर आप लोग कभी मेरी बात नही ं सु नते थे ।
बल्कि हमेशा यही कहते थे कक लाइि को एं ज्वाय करो और मस्त रहो। मु झे भी ऐसा
ही करने की नसीहत दे ते थे । मगर इससे हुआ क्ा भाई? आज आप चारो यहाॅ इस
हालत में मौजूद हैं। डै ड को तो ख़्वाब में भी ये उम्मीद नही ं है कक उनके साहब़िादे
ककस जगह ककस हाल में हैं इस िक्त?"

"तू ने सच कहा मेरी बहन।" सू रज ने रुॅधे हुए गले के साथ बोला___"ये सब मेरे पापों
का ही प्रकतिल है। मैने कभी इस बारे में नही ं सोचा था कक जो कुछ मैं कर रहा था
उसका अं जाम ऐसा भी होगा। हमेशा िही करता था कजसे करने में कदाकचत मु झे
दु कनयाॅ का सबसे बडा और ज्यादा आनं द आता था। खै र, मु झे अपने इस अं जाम का
दु ख नही ं है रचना क्ोंकक ये मैने खु द ही कमाया है। दु ख तो इस बात का है कक मेरी
िजह से आज तू भी यहाॅ आ गई है और मैं ये सोच कर ही अं दर से बु री तरह
भयभीत हुआ जा रहा हूॅ कक जाने ते रे साथ ये इं िेक्टरनी क्ा करे गी?"

"ये कुछ नही ं करे गी भाई।" रचना ने सहसा पु नः तीखे भाि अल्कख़्तयार कर
कलए___"इसे पता नही ं है कक इसने ककसके बच्चों पर हाॅथ डाला है? इसने अब तक
जो कुछ भी आपके और मेरे साथ ककया है उसका अं जाम इसे ़िरूर भु गतना पडे गा।
इसे इस बात का ़िरा सा भी एहसास नही ं है कक इसके साथ क्ा क्ा होगा?"

"रस्सी जल गई पर बल नही ं गया अब तक।" ररतू ने रचना के कसर के बालों को


पकड कर झटका कदया__"मुझे पता है कक तू ये सब ककसके दम पर बोल रही है।
मगर तु झे पता ही नही ं है कक तू कजसके दम पर ये राग अलापे जा रही है िो खु द बहुत
जल्द यहाॅ ते रे सामने हाक़िर होने िाला है। मै ने ते रे बाप कदिाकर चौधरी और उसके
उन सभी दोगले दोस्तों को िो िीकडयो़ि भे ज कदये हैं कजन िीकडयो़ि पर उनकी काली
करतू तों का सामान मौजूद है। ककतनी म़िे की बात है कक एक बे टा अपने ही बाप की
ऐसी अश्लील िीकडयो बना कर रखे हुए था जो अगर ककसी के हाॅथ लग जाएॅ तो
िो बडी आसानी से इसके बाप को बीच चौराहे पर नं गा दौडा दे ।"

ररतू की ये बात सु न कर रचना तो चौंकी ही साथ ही साथ सू रज और उसके दोस्त भी


बु री तरह चौंक पडे थे । पलक झपकते ही उनके चे हरों पर से रहा सहा रं ग भी उड
गया।

"कुछ समझ आया तु झे?" इधर ररतू ने रचना के बालों को ़िोर से खी ंचा___"सारे
शहर को अपनी मुिी में रखने िाला ते रा बाप और उसके दोस्त अब मेरी गुलामी

732
करने पर मजबू र हैं। मैं अगर उसे कहूॅ कक टट्टी खा तो उसे खाना पडे गा। अब बता
ककसके दम पर इतना उछल रही है तू ? जबकक मैने तो यहाॅ तक सोचा हुआ कक
कजस कदन ते रा बाप और दोस्त यहाॅ आएॅगे तो उनके स्वागत में तु झे ही नं गी करके
उनके सामने डाल दू ॅगी। किर दे खूॅगी कक नं गी और गोरी चमडी को उस हालत में
दे ख कर कैसे उनके खू न में उबाल आता है?"

"नही ंऽऽ।" ररतू की बात को समझते ही तहखाने में रचना के साथ साथ सू रज और
उसके दोस्तों का आतग नाद गूॅज उठा, जबकक सू रज कगडकगडाया___"प्लीज ऐसा मत
करना इं िेक्टर। मैं तु म्हारे आगे हाॅथ जोडता हूॅ। हर ची़ि के अपराधी मैं और मेरा
बाप है ये सच है मगर मेरो बहन बे कसू र है। उसे इस सबमें मत घसीटो प्लीज।"

"हाहाहाहाहा ई का?" सहसा िही ं पर खडा हररया ़िोर से हस पडा___"ई का


कबकटया। ई सरिा ता एतने मा ही गला िाडै लाग। कउनि सच ही कहे रहा कक जब
बात ससु री अपने मा आिथै तबकहन समझ मा आिथै कक ओसे का म़िा कमलथै ? ई
ससु रन के साथ ता इहै होय का चाही कबकटया। हम भी दे खूॅगा कक ऊ सबसे ई
लोगन केर का हाल होथै ?"

"कबलकुल काका।" ररतू ने कहा___"ये काम भी आपको ही करना है और कैसे करना


है ये आप जानो।"
"अरे कचं ता न करा कबकटया।" हररया अं दर ही अं दर खु शी से झम
ू ता हुआ बोल
पडा___"ई काम ता हम बहुतै अच्छे से करूॅगा। कउनि कशकायत ना होई तोहरा
के, ई तोहरे हररया काका के िादा बा। ऊ ससु रे मंत्रीिा केर ओखे ई छोकररया के
साथ बहुतै अच्छे से खाकतरदारी करूॅगा हम।"

"शाबाश काका।" ररतू मु स्कुराई___"मु झे आपसे यही उम्मीद है। मु झे पता है आप


अपना काम बहुत अच्छे से करते हैं।"
"हाॅ ई ता हा कबकटया।" हररया काका गिग से अकडते हुए बोला___"हम आपन काम
बहुतै अच्छे से करता हूॅ। कउनि परकार केर कशकायत का मौका नाही ं दे ता हूॅ।
समय आिैं ता पकहले िेर तू दे ख लीहा। हम ई ससु रन के नानी केर नानी ना याद
कदलाई ता कहना।"

"नही ं नही ं।" रचना तो भयभीत होकर चीखी ही ककन्तु सू रज बु री तरह भयभीत
होकर रो पडा था___"ये सब मत करो इं िेक्टर। ये आदमी बहुत ़िाकलम है। प्लीज
मेरी बहन के साथ कुछ भी ऐसा िै सा मत करो। जो कुछ करना है हमारे साथ करो।"

"और चीखो।" ररतू कबजली की तरह सू रज के पास पहुॅची थी, गरजते हुए

733
बोली___"और तडपो। मगर कोई िायदा नही ं होगा। मैं तु म सबका िो हाल करूॅगी
कक ककसी भी जन्म में ये सब करने के बारे में सोचोगे भी नही ं और अगर सोचोगे भी
तो कर नही ं पाओगे। क्ोंकक नामदग कुछ कर नही ं सकते और तु म सब हर जन्म में
नामदग ही पै दा होगे।"

"अगर ये बात है।" सहसा सू रज ने अजीब भाि से कहा___"तो मु झमें और तु ममें क्ा
िक़ग रह गया इं िेक्टर? हर अपराध की तो यकीनन स़िा होती है मगर उस स़िा में
िो सब तो नही ं होता न कजस स़िा को पाप कहा जाए या उसे अनै कतक करार कदया
जाए? तु मने जो कुछ करने का सोचा हुआ है िो तो हर तरह से अनै कतक है, पाप है।"

"तु म्हारे मुख से अनै कतक ि पाप पु न्य की ये बातें अच्छी नही ं लगती कमस्टर।" ररतू ने
कहा___"मु झे तु मसे ज्यादा इन ची़िों का ज्ञान है। मुझे पता है कक मैं क्ा करने जा
रही हूॅ। तु म्हें इस बात से कोई िक़ग नही ं पडना चाकहए क्ोंकक तु म तो अनै कतक ि
पाप कमग करने के आदी हो। इस कलए बस खु ली ऑखों से उस सबको दे खने के कलए
तै यार हो जाओ जो बहुत जल्द यहाॅ कदखने िाला है।"

"इस कुकतया के सामने मत कगडकगडाओ भाई।" सहसा रचना बोल पडी___"ये खु द


भी िै सा ही कमग करने िाली लगती है, िरना ऐसी बातें इसके कदमाग़ आती ही नही ं।
पु कलस िाली है न, इस कलए हर ककसी के नीचे ले ट जाती होगी। ऐसी नौकरी में होता
ही यही है आहहहहह।"

"तोहरी माॅ को चोदू ॅ कछनाल।" रचना की बात सु नते ही हररया आग बबू ला होकर
उसको धर दबोचा था___"तोहरी ई कहम्मत की हमरी कबकटया के बारे मा अइसन
कहथो। रुक अबकहन हम तोहरा का बताथैं कक कउन केखर सामने ले टत है?" हररया
ने सहसा ररतू की तरि दे खा__"कबकटया तू जा इहाॅ से । हम एखर ई ़िबान बोलैं का
अं जाम कदखािथैं ।"

"नही ं प्लीज उसे छोंड दो।" ररतू के कुछ कहने से पहले ही सू रज चीख पडा
था___"उसकी तरि से मैं माफ़ी माॅगता हूॅ। प्लीज इं िेक्टर इस आदमी को कहो
कक मेरी बहन को कुछ न करे ।"
"काका इसे बस थोडा सा डोज दे ना।" ररतू ने सू रज की बात की तरि ध्यान कदये
कबना हररया से कहा___"बाॅकी इसके साथ आग़ा़ि तो इसका बाप करे गा। आप
समझ रहे हैं न मेरी बात?"

"हम सब समझ गया हूॅ कबकटया।" हररया ने कहा__"अब तू जा इहाॅ से । हम ई


ससु री का बतािथैं कक तोहसे अइसन बोलैं का अं जाम का होथै ?"

734
"मेरे साथ अगर कोई बद्दतमीजी की तो अं जाम अच्छा नही ं होगा तु म्हारे कलए।" रचना
चीखी___"छोंड दो मुझे। िरना बहुत पछताओगे तु म सब।"

ररतू ने उसकी तरि कहकारत भरी दृकष्ट से दे खा और तहखाने के बाहर की तरि


चली गई। उसके इस तरह जाते ही सू रज गला िाड कर कचल्लाने लगा था। बार बार
कह रहा था कक उसकी बहन को छोंड दो। मगर ररतू न रुकी। जबकक ररतू के जाते
ही हररया ने लपक कर तहखाने का दरिाजा अं दर से बं द ककया और किर िापस
पलट कर सू रज की तरि बढा।

"का रे मादरचोद।" हररया ने सू रज के पे ट में एक लात जमाते हुए कहा___"काहे


अइसन गला िाड रहा है? अब बता तोहरी ई राॅड बहन केर का खाकतरदारी करूॅ
हम? हमरा ता बहुतै मन करथै कक तोरी ई बहकनया केर मदमस्त जलानी केर मजा
लू ॅ मगर हमरी कबकटया ने ऊ सब केर इजाजत ना कदये रही। एसे अब हम तोरे साथै
आपन ऊ पसं द िाला काम करूॅगा।"

"नही ं नही ं प्लीज काका।" हररया की बात समझ कर सू रज बु री तरह कहल गया,
बोला___"िो सब मत करो। मैं अपनी बहन के सामने िो सब नही ं करना चाहता।"
"अबे बु डबक।" हररया ने सू रज के चे हरे पर अपनी हथे ली िेरते हुए कहा___"हम
ससु रे तोहरी इच्छा थोडी न पू छत हूॅ। हम ता अपनी पसं द केर बात करत हूॅ। अउर
ऊ ता होबै करी बछु िा काहे से के ऊ हमरी ख्वाकहश केर बात हा। एसे चल अपना
कपछिाडा खोल।"

सू रज नही ं नही ं करता ही रह गया मगर हररया भला कहाॅ मानने िाला था। उसने
सू रज की रस्सी को ऊपर से छोरा और मजबू ती से पकड कर उसके कच्छे को एक
हाॅथ से नीचे सरका कदया। रचना ये सब अपनी खु ली ऑखों से दे ख रही थी। जैसे ही
हररया ने उसके भाई के कच्छे को नीचे ककया िै से ही उसे झटका लगा। आश्चयग से
उसकी ऑखें िटी रह गईं। किर सहसा जैसे उसे होश आया उसने झट से अपनी
ऑखें बं द कर ली। भला िो अपने भाई को नग्न हालत में कैसे दे ख सकती थी?

उधर हररया ने सू रज को पकडे ही उसे रचना के पास खी ंच कर लाया और उसके


सामने लाकर रचना की तरि दे ख कर बोला___"ई दे ख ससु री हम तोहरे ई भाई के
साथ का करथू ॅ। हम चाहूॅ ता अबकहन दु ई कमनट मा तोहरे भाई का ई दु ई इन्च का
लौडा तोहरी चू ॅत मा पाल दू ॅ मगर पे लूॅगा नाही ं। ऊ ता तोहरा बाप अपने लौडा से
तोहरी चू त का पे लेगा। ई बखत ता हम तोहरे ई भाई की गाड पे लूॅगा। ई दे ख।"

हररया की बातों ने रचना के होश उडा कदये थे । उसे पहली बार एहसास हुआ कक िो

735
ककतनी खतरनाक जगह पर आ गई है। यहाॅ पर उसकी उसके भाई की और उसके
बाप की चलने िाली नही ं थी। ये सोच सोच कर ही िह थरथर काॅपे जा रही थी।
उसने शख्ती से अपनी ऑखें बं द की हुई थी। उधर सू रज शमग की इं तेहां की हद से
गु़िर रहा था। आत्मिानी और अपमान में डूबा था िह। िह बु री तरह हररया से
छूटने की मसक्कत कर रहा था। ककन्तु छूट नही ं पा रहा था। उसमें अब इतनी ताकत
भी न बची थी कक िो कोई ़िोर आजमाइश कर सके।

हररया ने मजबू ती से पकड कर उसे आगे की तरि झुका कदया और अपनी धोती को
एक साइड कर अपने हलब्बी लौडे को बाहर कनकाल कलया। एक हाथ से अपने लौडे
को पकड कर उसने सू रज की गाड में कनशाना लगा कदया। इसके साथ ही सू रज की
हृदय किदारक चीख तहखाने में गूॅज गई। सू रज के लाख प्रयासों के बािजूद उसके
हलक से चीख कनकल गई थी और िो हो गया कजसे िह ककसी सू रत में होने नही ं दे ना
चाहता था। इधर अपने भाई की इतनी भयानक चीख सु नकर रचना बु री तरह डर
गई। उसने पट्ट से अपनी ऑखें खोल कर अपने भाई की तरि दे खा और ये दे ख कर
तो उसकी ऑखें ही बाहर की तरि उबल पडी कक उसके भाई की गाड में हररया का
मोटा तगडा लौडा जड तक घुसा पडा था। जबकक सामने की तरि झुका हुआ
उसका भाई झटके खा रहा था। उसकी ऑखों से ऑसू बह रहे थे । रचना को अपने
भाई की इस दसा पर बडा अजीब सा लगा। उसकी अं तआग त्मा तक काॅप गई थी ये
भयािह मं़िर दे ख कर। उसे एकाएक ही एहसास हुआ कक उसके भाई की ये दसा
उसकी िजह से ही हुई है। अगर उसने ररतू को िो सब न कहा होता तो शायद ये सब
न होता। उसे खु द पर बे हद गुस्सा आया। मगर अब क्ा हो सकता था। अपने भाई
को इस दीनहीन दसा में दे ख कर उसकी ऑखों से ऑसू बहने लगे।

उधर हररया थोडी दे र रुकने के बाद अपनी कमर को झटका दे ना शु रू कर कदया


था। सहसा उसने अपने कसर को ़िरा सा घु मा कर रचना की तरि दे खा। रचना और
हररया की ऑखें आपस में टकरा गईं। रचना ने घबरा कर तु रंत ही अपनी ऑखें बं द
कर अपने कसर को झुका कलया। ये दे ख कर हररया मुस्कुरा उठा। उसके बाद तो जैसे
तहखाने में हररया के झटकों से कनकलती थाप थाप की आिा़िें और सू रज की घुटी
घुटी सी गूॅजती रही ं। जहाॅ एक तरि अपने दोस्त की इस दसा पर उसके तीनो
दोस्त बे हद दु खी थे िही ं दू सरी तरि रचना अपने भाई की इस दसा पर थरथर काॅपे
जा रही थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तहखाने से बाहर आकर ररतू ते ़ि ते ़ि क़दमों के साथ अपने कमरे की तरि बढ गई
थी। कमरे में आते ही उसने आलमारी से अपना िो मोबाइल कनकाला कजसे उसने
अपने एक मुखकबर से खररदिाया था। उस िोन को अपनी पाॅकेट में डाल कर
उसने अपने आईिोन को ल्कस्वच ऑि ककया और उसे भी अपनी जेब में डाल कलया।

736
उसके बाद उसने आलमारी से अपना सकिग स ररिावर कनकाल कर उसे चे क ककया
तत्पश्चात उसे भी अपनी जीन्स की बे ल्ट में खोंस कलया। टाप के ऊपर उसने एक ले दर
की जाकेट पहना और टे बल से कजप्सी की चाभी ले कर िह कमरे से बाहर कनकल
गई।

बाहर लान में एक तरि खडी कजप्सी में बै ठ कर उसने कजप्सी को स्टाटग ककया और
मेन गेट से बाहर आ गई। इस बार उसकी कजप्सी का रुख पु ल की तरि न होकर
उस तरि था कजस तरि िामगहाउस के बगल से एक अन्य रास्ता ककसी दू सरी जगह
की तरि जाता था। ररतू ने इस रास्ते को जानबू झ कर चु ना था क्ोंकक उसे पता था
कक नहर पर बने पु ल की तरि िाले रास्ते पर आगे खतरा था। उसके बाप के आदमी
कही ं भी उसे कमल सकते थे । हलाॅकक ररतू को पता था कक उसके बाप को सीबीआई
िाले ले गए थे । ककन्तु किर भी उसे ये तो एहसाह था ही कक उसके बाप के आदमी
खु ले घूम रहे हैं।

लगभग दस कमनट बाद ररतू ने कजप्सी को एक ऐसी जग। पर रोंका जहाॅ पर एक


पिन चक्की लगी थी। दाकहने तरि दू र एक पहाड था जो कक गेरुए रं ग का था।
बाॅकी दू र दू र तक सु नसान इलाका पडा हुआ था। पिन चक्की से लगभग पचास
गज की दू री पर ही ररतू ने मेन सडक हे उतार कर कजप्सी को रोंका हुआ था। कुछ
दे र आस पास का जायजा ले ने के बाद उसने अपने जीन्स की पाॅकेट से नये
मोबाइल को कनकाला और उसे ल्कस्वच ऑन ककया। ल्कस्वच ऑन होते ही उसने उस पर
कोई नं बर डायल कर उसने मोबाइल को कान से लगा कलया।

"क्ा हाल चाल हैं ते रे मंत्री?" उधर से िोन उठाते ही ररतू ने मदागना आिा़ि में कहा
था।
"मेरे हाल की छोंड।" उधर से मंत्री का लगभग तीखा स्वर उभरा__"तू अपने हाल की
कचन्ता कर।"
"ओहो ऐसा क्ा?" ररतू ने नाटकीय अं दा़ि से कहा___"मेरे हाल का क्ा होने िाला है
भला?"

"कचं ता मत कर।" उधर से मंत्री ने कहा___"बहुत जल्द ते रा हाल बे हाल करने िाला
हूॅ मैं। मुझे पता चल गया है कक मेरे साथ ऐसा दु स्साहस करने िाला तू कौन है। इस
कलए अब मैं ते रा िो अं जाम करूॅगा जो आज तक ककसी ने ना तो सोचा होगा और
ना ही सु ना होगा।"

मंत्री कदिाकर चौधरी की इस बात से ररतू बु री तरह चौंकी। उसके मन में सिाल
उभरा कक मंत्री को भला उसके बारे में कैसे पता चल गया? क्ा ककमश्नर साहब ने

737
उसे उसके बारे में बताया? नही ं नही ं ऐसा नही ं हो सकता। ककमश्नर साहब उसके बारे
में उसको तो क्ा बल्कि ककसी को भी कुछ नही ं बता सकते । उन्हें पता है कक मं त्री
इस प्रदे श के कलए ककतना हाकनहारक है। उन्होंने मंत्री के ल्कखलाफ़ इस जंग को
अं जाम तक पहुॅचाने का खु द हुक्म कदया था। किर भला िो कैसे उसके बारे में उसे
बता दें गे? नही ं नही ं ऐसा सं भि नही ं है। तो किर मंत्री को उसके बारे में कैसे पता चल
गया? ररतू का कदमाग़ ते ़िी से इधर उधर भाग दौड कर रहा था। मगर उसे कुछ
समझ नही ं आ रहा था। सहसा उसके मन में खयाल आया कक कही ं ऐसा तो नही ं कक
उसके ही पु कलस कडपाटग मेन्ट का कोई पु कलस िाला मंत्री को सब कुछ बताया हो।
मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्ोंकक ये केस बहुत ही गोपनीय था। इसके बारे में
ककमश्नर के कसिा ककसी को कुछ पता नही ं था। सहसा ररतू को उन पु कलस िालों की
याद आई कजन्हें उसने सू रज के िामग हाउस में सू रज से लडाई करने के बाद सिे ण्ड
ककया था। ररतू की लगा कक यकीनन उन्ही ं ने मंत्री को सब कुछ बताया होगा। क्ोंकक
उन्हें तो पता ही था कक उसने सू रज और उसके दोस्तों से िामग हाउस पर लडाई की
थी और उन चारों को अधमरा कर कदया था। ररतू को यकीन हो गया कक उन पु कलस
िालों ने ही मंत्री को सब कुछ बताया है और अब मंत्री उसके कलए काल बन कर
अपना क़हर बरसाने िाला है।

"क्ा हुआ चौहान के बच्चे?" ररतू को इतनी दे र से खामोश जान कर उधर से मंत्री ने
चहकते हुए कहा___"हिा कनकल गई क्ा ते री?"

मंत्री का ये िाक् सु न कर ररतू के ़िहन में जै से किष्फोट सा हुआ। सारा मामला पल


भर में उसकी समझ में आ गया। उसे समझ में आ गया कक मं त्री ने उस रे प पीकडता
लडकी यानी किधी के चलते ये पता लगाया है। उसने पता ककया होगा कक उसके
बच्चों ने कजस लडकी के साथ रे प को अं जाम कदया था िो लडकी किधी थी जो उसके
ही बच्चों के काॅले ज में पढती थी। मंत्री ने अपनी तरि से छानबीन की होगी कक इस
मामले में पु कलस ने तो अपना हाॅथ नही ं डाला और ना ही कोई केस िगैरह हुआ।
मगर लडकी के साथ जो कुछ हुआ उसे उसके घर िाले सहन नही ं कर सके। इस
कलए सं भि है कक लडकी के बाप ने अपनी बे टी के साथ हुए इस अत्याचार का बदला
ले ने के कलए ये सब ककया है। ररतू ने स्वीकार ककया कक मं त्री का सोचना एकदम
जाय़ि है। क्ोंकक उसके साथ ये सब करने की िजह कसिग और कसिग किधी के बाप
के पास ही थी और अब िह इस मामले को जान कर किधी के घर िालों के ऊपर
क़हर बन कर टू टने िाला है।

ररतू ने राहत की साॅस तो ली ककन्तु उसे अब किधी के माॅ बाप की कचं ता सताने
लगी थी। िो जानती थी कक इस केस से किधी के घर िालों का कोई ले ना दे ना नही ं है।
िो बे चारे तो बे क़सू र हैं। ररतू किधी के पै रेन्ट् स के कलए किक्रमंद हो उठी थी। मगर

738
किर जैसे उसे खयाल आया कक उसे इतना कचं ता करने की क्ा ़िरूरत है? उसके
पास तो मं त्री और उसके साकथयों के ल्कखलाफ़ सबू त के रूप में ऐसा डायनामाइट है
जो अगर पल्कब्लक के सामने आ जाए तो मंत्री और उसके साथी एक ही पल में उस
डायनामाइट के किष्फोट से तहस नहस हो जाएॅगे। इस खयाल के आते ही ररतू के
खू बसू रत होठों पर मुस्कान िैल गई। जबकक,

"लगता है ते रे सभी दे िता कूच कर गए हैं चौहान।" उधर से मंत्री का ठहाका


गूॅजा___"तु झे समझ आ गया होगा कक अब ते रे साथ क्ा होने िाला है। मगर कचं ता
मत कर। मैं तु झे एक सु नहरा मौका दे ता हूॅ। सु ना है कक ते री बीिी बहुत सुं दर है ,
कबलकुल िै सी ही जैसी ते री िो बे टी थी कजसे हमारे बच्चों ने रगड रगड कर पे ला था।
हो भी क्ों न, आकखर खू बसू रत माॅ की काबग न काॅपी जो थी। खै र, मैं ये कह रहा
हूॅ कक अगर तु झे अपनी और अपने पररिार की ़िरा सी भी किक्र है तो तू अपनी
उस खू बसू रत बीिी को हमारे हरम में ले आ। अगर ते री बीिी ने मु झे और मेरे सभी
साकथयों को खु श कर कदया तो सोचू ॅगा कक तु झे ते री इस कहमाक़त के कलए माफ़ कर
दू ॅ।"

"ज्यादा उड मत रं डी की औलाद।" ररतू ने मदागना आिा़ि में गरजते हुए कहा___"तू ने


अगर मेरे बारे में ऐसा िै सा सोचने की कोकशश की तो सोच ले ना कक ते री बे टी मेरे
कब्जे में ही है। उसके साथ मैं क्ा क्ा करूॅगा ये तू सोच भी नही ं सकता। मुझे
अपनी ़िरा सी भी परिाह नही ं है क्ोंकक मैं छोटा आदमी हूॅ और बे टी के मरने के
बाद िै से भी अब मु झमें जीने की कोई ख्वाकहश नही ं है। मगर ते रा क्ा होगा नाली के
कीडे ? तू तो इस प्रदे श की नाॅक और कान है न। ते रे िो रं गीन िीकडयो अभी भी मेरे
पास हैं। मैं चाहूॅ तो इसी िक्त उन्हें सोसल मीकडया पर डाल कर ते री और ते री
इज्ज़ित की धल्कज्जयाॅ उडा दू ॅ। उसके बाद ते रे पीछे प्रदे श की जनता और पु कलस इस
तरह कुिों की तरह दौड पडे गी कक साले तु झे कही ं पर छु पने की जगह भी न
कमले गी।"

ररतू की इन खतरनाक बातों से उधर सन्नाटा सा छा गया। ऐसा लगा जैसे मंत्री को
साॅप सू ॅघ गया हो। सच ही तो था। उसे कदाकचत इस बात का ध्यान ही नही ं रह
गया था कक उसके सबसे बडे रक़ीब के पास उसके ल्कखलाफ़ ककतना बडा
डायनामाइट मौजूद है।

"अब बोलता क्ों नही ं हराम़िादे ?" ररतू ने पु नः दहाडते हुए कहा___"ते री अम्मा मर
गई क्ा? एक बात कान खोल कर सु न ले । तू ये मत समझना कक मैं यहाॅ पर
अकेला हूॅ और ते रे आदमी मु झे पल भर में हजम कर जाएॅगे। इतना कम़िोर भी

739
नही ं हूॅ मैं। मु झे ते रे कक्रया कलाप की पल पल की खबर है और मैने अपने चारो
तरि गुप्त रूप से ऐसे आदमी लगा रखे हैं जो मुझे सु रक्षा भी प्रदान करते हैं और ये
भी बताते हैं कक ते रा अगला क़दम क्ा होने िाला है। इस कलए तू कुछ भी करने या
सोचने से पहले ये ़िरूर सोच ले ना कक ते री कोई भी छोटी बडी हरकत ते रा िो
अं जाम कर दे गी कजसके बारे में अभी मैने तु झे बताया था। ते री बे टी और िो चारो
लडके मेरे कब्जे में हैं और मैं चाहूॅ तो ते री बे टी के साथ ते रे ही बच्चों की िै सी
िीकडयो ल्कक्लप बना कर तु झे भे ज दू ॅ जैसी िीकडयो ते रे पास मैं पहले भी भे ज चु का
हूॅ। यकीन न हो तो बोल, मुझे ते री बे टी की हाॅट िीकडयो बनाने में ़िरा भी िक्त
नही ं लगेगा।"

"नही ं नही ं प्लीज ऐसा ग़़िब मत करना।" उधर से मंत्री का कगडकगडाहट से भरा स्वर
उभरा___"मैं तु म्हारे आगे हाॅथ जोडता हूॅ। मुझसे ग़लती हो गई जो मैने तु म्हें िो सब
कहा। मैं ऐसा कुछ भी नही ं करूॅगा कजससे मुझे खु द ही गतग में डूब जाना पडे ।
मगर,,,,

"अटक क्ों गया कहजडे ?" ररतू गुराग ई___"बोल न, मगर क्ा?"
"मगर मैं ये जानना चाहता हूॅ।" मंत्री ने कहा___"कक ये सब कब तक चले गा? मेरा
मतलब है कक तु म्हें जो चाकहए िो मैं कबना सोचे समझे दे ने को तै यार हूॅ। मगर तु म
मेरे बच्चों को कुछ भी नही ं करोगे।"

"तू मेरे सामने कोई कंडीशन रखने की पोजीशन में कहाॅ है कुिे ?" ररतू ने
कहा___"और तू भला मु झे दे गा क्ा? ते री औकात क्ा है मु झे कुछ दे ने की? तू तो
साले खु द ही कभखारी है। हर पाॅच साल में कभखारी की तरह जनता के सामने हाॅथ
िैलाए पहुॅच जाता है। ये अलग बात है कक जनता की भीख का तू गंदे तरीके से िल
दे ता है। उसी का अं जाम तो भु गतना है तु झे। इस प्रदे श से ते रे जैसे लोगों की सल्तनत
ही नही ं बल्कि नामो कनशान तक कमटाने का सोच कलया है मैने। और हाॅ, ककसी भी
तरह की ररयायत की उम्मीद मत करना। क्ोंकक िो ते रे जैसों के कलए मेरी अदालत
में है ही नही ं।"

"मैं मानता हूॅ कक मेरे बच्चों ने तु म्हारी बे टी के साथ बहुत बु रा सु लूक ककया था।"
उधर से मंत्री का धीर गंभीर स्वर उभरा___"और ये भी मानता हूॅ कक मैने अपने
कायगकाल में प्रदे श की जनता के साथ बहुत बु रा ककया है। मगर जो गु़िर गया उसे
तो लौटाया नही ं जा सकता न? हाॅ इतना िचन ़िरूर दे ता हूॅ कक आइं दा से प्रदे श
की जनता के साथ कुछ भी बु रा नही ं करूॅगा बल्कि हर दम हर पल अच्छा करने
की कोकशश करे गा। मैने कजसका जो भी बु रा ककया है उसका नु कसान मैं दोगुने भाि
से भरूॅगा।"

740
"तू क्ा भरे गा दोगले इं सान।" ररतू ने िटकार सी लगाते हुए कहा___"तू तो कसिग
जनता का खू न चू सना जानता है। आज ये सब इस कलए बक रहा है क्ोंकक मैने ते रे
कपछिाडे में डं डा घुसाया हुआ है। िरना तू अपनी िही औकात कदखाता जो हमेशा से
सबको कदखाता आया है। मैं ते री ककसी भी बातों पर आने िाला नही ं हूॅ। ते रा और
ते रे साकथयों का अं जाम मेरे द्वारा कलखा जा चु का है चौधरी। इस कलए मु झसे रहम की
भीख मत माॅग। बल्कि मरने से पहले अगर कुछ अच्छा करना चाहता है तो उन
मजलू म लोगों के कुछ कर कजनका तू ने खाया है और कजन पर तू ने अत्याचार ककया
है। सं भि है कक ते रे ऐसा करने पर मैं ते रे अं जाम को बदतर न होने की सू रत पर
किचार करूॅ।"

"मैं करूॅगा चौहान।" उधर से मंत्री के स्वर में राहत के भािों की झलक
कदखी___"़िरूर करूॅगा मैं। मैं हर उस ब्यल्कक्त का भला करूॅगा जो मेरे द्वारा
ककसी भी तरह से सताया गया है और ये काम मैं आज से ही नही ं बल्कि अभी से
करना शु रू कर दू ॅगा। बस तु म मेरे बच्चों के साथ कुछ बु रा मत करना।"

"पहले जो कह रहा है उसे करके तो कदखा चौधरी।" ररतू ने कहा___"अगर मु झे ऩिर


आया कक ते री िजह से प्रदे श की समूल जनता खु श हो गई है तो यकीन मान ते रे
अं जाम की ल्कथथत में ़िरूर कुछ कमी कर दू ॅगा।"
"ओह बहुत बहुत शु कक्रया चौहान।" मंत्री ने खु श होकर कहा___"मैं तु म्हें यकीन
कदलाता हूॅ कक बहुत जल्द तु म प्रदे श की इस जनता को मेरी िजह हे खु श होते हुए
दे खोगे।"
"ओके बे स्ट ऑि लक।" ररतू ने कहा और काल कट कर दी।

मंत्री कदिाकर चौधरी से बात करने के तु रंत बाद ही ररतू ने उस मोबाइल िोन को
ल्कस्वच ऑि कर कदया था। इस िक्त उसके चे हरे पर असीम राहत के भाि थे । राहत
के भाि इस कलए कक उसने किधी के माॅ बाप को चौधरी के क़हर से ककसी तरह बचा
कलया था। मगर उसे पता था कक चौधरी बहुत ही दोगला इं सान है। सं भि है कक उसने
उसे झॅ ू ठा आश्वासन कदया हो। जबकक िो करे िही जो उसने उससे शु रू में कहा था।
अतः ररतू का अब पहला काम यही था कक ककसी तरह से किधी के माॅ बाप को मंत्री
के क़हर से सु रकक्षत करे । मगर समस्या ये थी कक कैसे ? क्ोंकक किधी का गाॅि
हल्दीपु र के बाद पडता था। कजसका रास्ता दो तरि से था। एक हल्दीपु र से तो दू सरा
नहर के पास से जो दू सरा रास्ता गया था। ये दोनो रास्ते ऐसे थे कजन पर मौजूदा
हालात में जाना खतरे से खाली नही ं था। क्ोंकक ररतू को पता था कक उसका बाप
भले ही इस िक्त सीबीआई के कसकंजे में था मगर उसके साथी और उसके आदमी
तो आ़िाद ही थे जो हर तरि िैले हुए होंगे।

741
ररतू के कलए आज बस का कदन और रात ककसी तरह गु़िारनी थी। कल तो उसका
भाई किराज आ ही जाएगा। हलाॅकक िो चाहती तो पु कलस प्रोटे क्शन ले सकती थी
और धडल्ले से कही ं भी आ जा सकती थी ककन्तु िह अपने प्यारे भाई राज की बात
को टालना नही ं चाहती थी। उसने भी तो िादा ककया था उससे कक िो ये जंग उसके
साथ ही कमल कर लडे गी। मगर अब चू ॅकक किधी के माॅ बाप की सु रक्षा का सिाल
था तो उसे कुछ तो करना ही था। इस कलए अब िो यही सोच रही थी कक किधी के
माॅ बाप को ककस तरह से सु रकक्षत करे ?

पिन चक्की के पास कजप्सी में बै ठी ररतू कुछ दे र तक इस समस्या के बारे में सोचती
रही। उसके बाद उसने इस सबको अपने कदमाग़ से झटका और कजप्सी को स्टाटग कर
िापसी के कलए मुड गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर हिे ली में !
सु बह से दोपहर और दोपहर से अब शाम होने िाली थी। प्रकतमा अपने कमरे में बे ड
पर पडी हुई थी। सारा कदन उसने इसी सोच किचार में गु ़िार कदया था कक िो अपने
बाप से कैसे बात करे ? हलाॅकक इस बीच उसने मुम्बई में अपनी बडी बहन से िोन
पर अपने बाप जगमोहन कसं ह का मोबाइल नं बर ले कलया था। उसकी बहन इस बात
से हैरान भी हुई थी। उसके पू छने पर प्रकतमा ने उसे सारी बातें बता दी थी कुछ बातों
को छोंड कर। ककन्तु अपने बाप का मोबाइल नं बर ले ने के बाद भी प्रकतमा की कहम्मत
नही ं हो रही थी कक िो अपने कपता को िोन लगाए।

उसकी इस हालत से कशिा भी परे शान था। उसने उन आदकमयों का गेस्ट हाउस में
रहने का इं तजाम भी कर कदया था। कचं कतत ि परे शान तो िो खु द भी था अपने बाप के
कलए मगर उसे समझ नही ं आ रहा था कक िो खु द ऐसा क्ा करे कजससे सारी
समस्याएॅ खत्म हो जाएॅ।

इस िक्त भी िो अपनी माॅ के कमरे में ही आया हुआ था और कमरे में ही एक तरि
रखे सोिे पर बै ठा हुआ था। उसकी ऩिरें अपनी माॅ के मुरझाए हुए चे हरे पर
केल्कन्द्रत थी ं। उसे इस बात से तक़लीि भी हो रही थी कक िो कुछ कर नही ं पा रहा
था। उसे आज समझ आ रहा था कक खु द कोई काम करना ककतना मु ल्किल होता है ।
आज तक तो िह बनी बनाई जले बी ही खा रहा था। मगर जब खु द ही जले बी बनाने
का नं बर आया तो उसका कदलो कदमाग़ जैसे कंु द सा पड गया था। उसे पहली बार
लगा कक बे बसी क्ा होती है? सब कुछ होते हुए भी कुछ न कर पाना ककसे कहते हैं?

"ऐसे कब तक हताश बै ठी रहें गी माॅम?" किर उसने प्रकतमा को दे खते हुए ही

742
कहा___"ये तो आपको भी पता है कक हम अगर कुछ करना भी चाहें तो नही ं कर
सकते । इस कलए अगर नाना जी के द्वारा हमारी समस्या का समाधान हो सकता है तो
क्ों नही ं बात करती आप उनसे ? दोपहर से दे ख रहा हूॅ मैं आपको। आप इसी तरह
गहरी सोच में डूबी बै ठी हुई हैं। इस तरह भला कब तक बै ठी रहेंगी आप? आप
जानती हैं कक डै ड को सीबीआई के चं गुल से कनकालना ककतना ़िरूरी है। डै ड के
कबजने स से सं बंकधत साकथयों ने अपने आदमी हमारी मदद के कलए भे ज कदये हैं। अब
उनको हम यूॅ ही तो चु पचाप यहाॅ नही ं बै ठाए रह सकते न? इस कलए माॅम आप
अपने कदमाग़ से सारी बातों को कनकाकलए और नाना जी को िोन लगा कर उनसे
बात कीकजए।"

"कैसे िोन लगा दू ॅ बे टा?" प्रकतमा ने सहसा हताश भाि से कहा___"और ककस मु ह
से िोन लगाऊ अपने बाप को?"
"क्ा मतलब माॅम??" कशिा चकराया।
"तु म इस सब को कजतना आसान समझते हो न िो इतना आसान नही ं है बे टा।"
प्रकतमा ने कहा___"़िरा सोचो कक अपने बाप से सं बंध तोडे मु झे ककतने साल हो गए।
अपनी खु शी ि अपने स्वाथग के कलए मैने अपने उस कपता को त्याग कदया था कजनका
इस दु कनयाॅ में हम दोनो बहनों के कसिा दू सरा और कोई नही ं था। मैं ही सबसे
ज्यादा अपने कपता की लाडली थी और मैने ही उन्हें सबसे ज्यादा दु ख कदया और
कनराश भी ककया। आज मुझे इस बात का बखू बी एहसास है बे टा कक अपनी औलाद
की बे रुखी के चलते एक बाप ने आज तक ककतनी तक़लीफ़ और ककतना दु ख सहा
होगा। ये सिाल तो उठे गा ही बे टा कक इसके पहले मुझे अपने बाप की याद क्ों नही ं
आई? इसके पहले मैने क्ों ये जानना भी ़िरूरी नही ं समझा कक जगमोहन कसं ह
नाम का कोई ब्यल्कक्त जो कक मेरा बाप है िो क़िंदा भी है या कक मर गया है? आज
अगर मु झ पर ये मुसीबत न आती तो ़िाकहर है कक आइं दा भी मैं अपने बाप से बात
करने के बारे में सोचती भी नही ं। ये ऐसी बात है बे टा कजसकी िजह से मेरी कहम्मत
नही ं पड रही कक मैं अपने बाप को िोन लगा कर उससे बात कर सकूॅ। जबकक इस
बात का मुझे पू र्ग किश्वास है कक मेरी समस्या के बारे में जानकर मेरा बाप मेरी मदद
करने से हकगग़ि भी इं कार नही ं करे गा।"

"ये सच है माॅम कक आपने अपने कपता जी से बात न करके अब तक बहुत बडी भू ल


ही की है।" कशिा ने गंभीरता से कहा___"मगर ये भी सच है कक इस बारे में सोचते
रहने से भी क्ा होगा? िो सब अपनी जगह से गायब तो नही ं हो जाएगा। भू ल इं सान
से ही होती है, आपसे भी हुई है। भले ही आपकी िो भू ल माफ़ी के लायक हो या ना
हो। मगर ककसी भी भू ल या अपराध के चलते यूॅ चु प तो नही ं बै ठे रहा जा सकता।
उसके कलए सबसे पहले अपने अपराधों के कलए नाना जी से माफ़ी माॅगनी होगी
आपको। िो जो भी इसके कलए स़िा दें उसे आपको स्वीकार करना ही पडे गा।

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हलाॅकक मु झे ऐसा लगता है कक नाना जी आपको कोई स़िा दें गे ही नही ं। मगर
औपचाररकता तो करनी ही पडे गी आपको। उन्हें भी इस बात का बोध होगा कक चलो
मुसीबत में ही सही ककन्तु उनकी बे टी को उनका खयाल तो आया। बस, उसके बाद
तो सब कुछ आसान ही हो जाना है माॅम। इस कलए मैं तो यही कहूॅगा कक आप ये
सब सोचना छोंकडये और नाना जी को कहम्मत बाॅध कर िोन लगाइये।"

प्रकतमा अपने बे टे कशिा की इस सू झ बू झ भरी बातें सु न कर चककत रह गई थी। उसे


यकीन नही ं हो रहा था कक उसका बे टा ऐसी समझदारी भरी बातें भी कर सकता है।
मगर चू ॅकक कशिा की बातें न्यायपू र्ग ि तकगसं गत थी इस कलए उसे भी इस बात का
एहसास हुआ कक इस तरह सोचते रहने से भला क्ा होगा? आकखर कबना िोन ककये
अथिा कबना बात ककये ककसी भी समस्या का समाधान तो होने िाला नही ं है। उसके
कलए शारीररक और मानकसक कमग तो करना ही पडे गा।

"तु मने कबलकुल ठीक कहा बे टे।" किर प्रकतमा ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"जो
हो गया और जो कुछ मैने ककया है उसका सामना तो मु झे करना ही पडे गा। अतः मैं
अब ़िरूर अपने कपता जी को िोन लगाऊगी। उनसे अपने ककये की माफ़ी भी
मागूॅगी। उनसे कहूॅगी कक अपनी बे टी की इस सं गीन भू ल को हो सके तो माि कर
दें और अपनी कृपा मुझ पर बरसा दें ।"

"ये हुई न बात।" कशिा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा__"मुझे यकीन है माॅम कक नाना
जी आपको कुछ नही ं कहें गे। दु ख तो होगा उन्हें मगर उससे भी ज्यादा खु शी भी होगी
उन्हें कक उनकी लाडली बे टी ने आकखर उन्हें याद करके िोन तो ककया।"

"ते रे मुह में घी शक्कर हो बे टा।" प्रकतमा ने प्रसन्नतापू र्ग भाि से कहा___"ईश्वर करे तू
जैसा कह रहा है िै सा ही हो।"
"ऐसा ही होगा माॅम।" कशिा ने जोशीले अं दा़ि के साथ कहा___"आप कबलकुल भी
इस सबकी कचं ता न करें । बस मोबाइल कनकाकलये और लगा दीकजए नाना जी को
िोन।"

प्रकतमा ने अपने बे टे के उस चे हरे को कुछ दे र तक दे खा जो इस िक्त ह़िार ह़िार


िाॅट के बल्बों की तरह रोशन था। किर बे ड के कसरहाने पर ही रखे अपने मोबाइल
को एक हाथ से उठाया और अपने कपता का नं बर ढू ॅढ कर काॅपते हाॅथों से उसे
डायल कर कदया। काल लगाते ही प्रकतमा के हृदय की गकत असाधारर् रूप से ते ़ि हो
गई। कदलो कदमाग़ में एक अजीब सा एहसास मानो ताण्डि सा करने लगा। मन में
एक अं जाना सा भय अपने पाॅि पसारने लगा। उधर काल लगाते ही ररं ग जाने की
आिा़ि प्रकतमा के कानों में सु नाई दे ने लगी। उसकी ऩिर जब कशिा पर पडी तो

744
कशिा को मोबाइल का िीकर ऑन करने का इशारा करते हुए पाया। प्रकतमा ने
हडबडा कर जल्दी से मोबाइल का िीकर ऑन कर कदया। तभी,,,,

"यस जगमोहन कसं ह िीककंग कहयर।" उधर से बहुत ही खु रागटदार आिा़ि उभरी।
प्रकतमा को उस आिा़ि से ही ऐसा लगा जैसे उसकी हिा शं ट हो गई हो। प्रत्युिर में
उसके मुख से कोई लफ़्ि न िूट सका। जबकक,

"हैलो हू इज दे यर?" जगमोहन की आिा़ि पु नः उभरी।


"कप..कपता...जी।" प्रकतमा ने बहुत कहम्मत करके आकखर टू टे हुए शब्दों से कह ही
कदया___"म..मैं आ..आपकी बे टी प्रकतमा बोल..रही हूॅ।"

प्रकतमा की इस बात से उस तरि सन्नाटा सा छा गया। जबकक उधर के छा गए इस


सन्नाटे ने प्रकतमा की हृदय गकत को मानो रोंक सा कदया। उसके मनो मल्कस्तष्क में तरह
तरह की आशं काएॅ पल भर में उत्पन्न हो गईं।

"आ..आपने ..सु ना कपता जी??" प्रकतमा ने उस तरि की खामोशी से भयभीत होकर


पु नः लऱिते हुए स्वर में कहा___"मैं..आपकी बे टी प्रकतमा बोल रही हूॅ।"
"हाॅ सु न तो कलया है मैने।" उधर से जगमोहन का अजीब सा अं दा़ि
झलका___"मगर सोच रहा हूॅ कक ऐसा कैसे हो सकता है और क्ों हो सकता है?"

"ज जी मैं कुछ समझी नही ं कपता जी।" प्रकतमा का मनो मल्कस्तष्क जैसे चकरा सा
गया।
"समझने की ़िरूरत भी क्ा है तु म्हें?" उधर से जगमोहन के लहजे में एकाएक ही
जैसे कशकायत और नारा़िगी के भाि एक साथ घुल कमल गए थे ___"जब समझने का
िक्त था तो तु मने उस िक्त बे हतर तरीके समझ तो कलया ही था। अब और कुछ
समझने की भला तु म्हें क्ा ़िरूरत पड गई?"

"मु मु झे माफ़ कर दीकजए कपता जी।" प्रकतमा की ऑखों से सहसा ऑसू छलक पडे ,
उसकी आिा़ि एकदम से भारी हो गई, बोली___"मैने आपका बहुत कदल दु खाया है।
जबकक मु झे पता है कक बचपन से ले कर युिा अिथथा तक आपने मेरी हर इच्छा को
ऑख बं द करके पू री की थी। बदले में मैने आपको दु ख तक़लीफ़ और रुसिाई के
कसिा कुछ भी नही ं कदया।"

"अरे ये क्ा???" जगमोहन का ऐसा स्वर उभरा जैसे उसे प्रकतमा की इस बात पर
़िरा भी यकीन न आया हो। अतः बोला___"ये मैं क्ा सु न रहा हूॅ भई? आज मेरी
बे टी के मुख से इस लहजे में ऐसी बातें कनकल रही हैं कजन बातों का मेरी बे टी के मुख
से कनकलने का कोई सिाल ही पै दा नही ं हो सकता था। सबसे पहले मु झे ये बता कक

745
ते री तबीयत तो ठीक है न?"

प्रकतमा कुछ बोल न सकी। अपने कपता की इन बातों में चु पे तं ज को समझ कर


उसकी रुलाई िूट गई। उसे अपने कपता की इन तं जपू र्ग बातों का ़िरा भी बु रा नही ं
लगा था। बल्कि रुलाई तो उसकी इस बात पर िूटी थी आज उसका िही बाप उससे
इस लहजे में बात कर रहा था जो बाप इसके पहले उससे कसिग प्यार से बातें करता
था। कबना माॅ की थी दोनों बहनें । मगर उस बाप नें माॅ बनकर भी अपनी बे कटयों
की परिररश की थी। उसने दू सरी शादी नही ं की, बल्कि पना सम्पू र्ग जीिन और
अपनी सम्पू र्ग खु कशयाॅ अपनी बे कटयों पर कुबागन कर कदया था। जगमोहन अपनी
दोनो बे कटयों को जी जान से चाहता था मगर उसकी जान तो जैसे उसकी छोटी बे टी
प्रकतमा पर बसती थी। इसका कारर् ये था कक प्रकतमा कबलकुल अपनी माॅ पर गई
थी। मगर प्रकतमा पर कजसकी जान बसती थी आज िही बाप अपनी बे टी से तं जपू र्ग
बातें कर रहा था। प्रकतमा को इस बात का एहसास था कक उसके बाप का ये तं ज
दरअसल उसके अं दर छु पे ददग रूपी गुबार का महज एक मामूली सा कहस्सा है।

"ये क्ा बे टा?" उधर से जगमोहन का स्वर एकदम से भारी सा हो गया___"अपने


बाप के अं दर कछपे ददग रूपी इस गुबार को क्ा ़िरा सा भी नही ं कनकलने दे ना
चाहती तू ? इसे कनकल जाने दे ती तो कदाकचत कदल का ददग कुछ कम हो जाता। मगर
खै र, जाने दे । मैं तो ख्वाब में भी तु झे रुलाने का सोच नही ं सकता, ये तो किर भी
हक़ीक़त है।"

प्रकतमा का हृदय बु री तरह काॅप कर रह गया। िो ये सोच कर बु री तरह ििक


ििक कर रो पडी कक उसके बाप का कदल ककतना किसाल है। अपने अं दर छु पे
असहनीय ददग के बािजूद िह अपनी बे टी को रुलाना नही ं चाहता। बाप की इस
महानता ने प्रकतमा को इतना छोटा और मामू ली बना कर रख कदया कक उसे अपने
आप से एकाएक घृर्ा सी होने लगी। उसकी ऑखों के सामने पल भर में िो सारे
मं़िर घू म गए जो अब तक उसने ककया था और उस मं ़िर को दे खते ही प्रकतमा को
लगा जैसे दु कनयाॅ में उससे बडा कोई पापी नही ं है। प्रकतमा का जी चाहा कक ये
़िमीन िटे और िो उसमें पाताल तक समाती चली जाए। मगर हाए रे ककस्मय! ऐसा
भी नही ं हो सकता था। उसके कदल में भािनाओं और जज़्बातों का इतना भयंकर
ज्वारभाॅटा मचल उठा कक उसे लगा कक कही ं उसका कदल उसका सीना िाड कर
बाहर न उछल पडे । अगले ही पल उसे ़िोर का चक्कर आया और िह बे ड पर एक
तरि कगर गई।

"माॅऽऽऽम।" कशिा जो एकटक प्रकतमा को ही दे ख रहा था िो अपनी माॅ को इस


तरह चक्कर खा कर कगरते दे ख बु री तरह चीखते हुए सोिे से उठ कर प्रकतमा की

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तरि लपका था, बदहिाश सा प्रकतमा के चे हरे को थपथपाते हुए बोला___"क्ा हुआ
माॅम? आप ठीक तो हैं न? प्लीज बताइये न माॅम...क्ा हो गया आपको? प
पानी..पानी स सकिता ऑटी...कहाॅ हैं आप? प्लीज जल्दी से पानी लाइये। डाॅक्टर
को बु लाईये।"

कशिा बु री तरह घबरा गया था और उसी घबराहट में चीखे जा रहा था। िही ं बे ड पर
ही पडे प्रकतमा के मोबाइल से भी जगमोहन की घबराई हुई आिा़ि गू ॅज रही थी। िो
उधर से पू छे जा रहा था___"क्ा हुआ बे टी? तू ठीक तो है न? तू कचं ता मत कर मेरी
बे टी। मैं तु झसे ़िरा सा भी नारा़ि या गुस्सा नही ं हूॅ। अरे तू तो मेरी लाडली बे टी है
न।"

उधर कशिा के कचल्लाने का असर जल्द ही हुआ था। सकिता जो कक नौकरानी थी िो


तु रंत ही हाॅथ में पानी का िास कलए भागते हुए आई। िो खु द भी बु री तरह घबराई
हुई लग रही थी।

"कशिा बे टे क्ा हुआ है मालककन को?" सकिता ने पानी का ख्लास कशिा को पकडाते
हुए बोली थी।
"पता नही ं ऑटी।" कशिा ने दु खी भाि से कहा___"माॅम तो नाना जी से िोन पर
बातें कर रही थी। किर जाने क्ा हुआ इन्हें कक चक्कर खा कर बे ड पर कगर गई हैं।
आप प्लीज जल्दी से डाक्टर को िोन कीकजए और उनसे ककहए कक िो दो कमनट के
भीतर यहाॅ आ जाएॅ।"

"ठीह है बे टा।" सकिता ने कहा___"मैं अभी डाक्टर साहब को िोन लगाती हूॅ।" ये
कह कर सकिता िहाॅ से चली गई। जबकक इधर कमरे में मोबाइल में से गू ॅजती
जगमोहन की आिा़ि पर सहसा कशिा का ध्यान गया। उसने लपक कर मोबाइल
उठा कलया।

"नाना जी मैं कशिा बोल रहा हूॅ।" किर कशिा ने सीघ्रता से कहा___"दे ल्कखए न माॅम
को क्ा हो गया है? कुछ बोल ही नही ं रही हैं। ऐसा क्ा कह कदया है आपने कजसकी
िजह से मेरी माॅम की ये हालत हो गई है?"
"ब बे टा मैने तो ऐसा िै सा कुछ नही ं कहा था।" उधर से जगमोहन का भारी स्वर
उभरा___"मगर तु म कचं ता मत करना बे टे। तु म्हारी माॅ को बस चक्कर आया हुआ है
और कुछ नही ं। डाक्टर आएगा िो अच्छे से चे कअप कर ले गा। तु म मु झे बताओ कक
कहाॅ से बोल रहे हो? मैं सारे काम धाम छोंड कर अभी यहाॅ से तु म लोगों के पास
आ रहा हूॅ।"

747
"नाना जी मैं कजला गुनगुन के हल्दीपु र गाॅि से बोल रहा हूॅ।" कशिा ने मन ही मन
खु श होते हुए कहा था___"आप जब यहाॅ पहुॅचें गे तो ककसी से भी पू छ लीकजएगा
कक ठाकुर साहब की हिे ली जाना है। बस कोई न कोई आपको हिे ली तक छोंडने
़िरूर आ जाएगा आपके साथ।"
"ओह ठीक है बे टा।" उधर से जगमोहन ने कहा___"बस तु म अपनी माॅ का अच्छे से
खयाल रखना। मैं कल तक तु म्हारे पास हर हालत में पहुॅच जाऊगा।"

इसके साथ ही उधर से जगमोहन ने काल को कट कर कदया। जबकक कशिा के होठों


पर मुस्कान उभर आई। उसने पलट कर प्रकतमा को दे खा और िास में भरे पानी को
अपनी हथे ली में ले कर प्रकतमा के चे हरे पर कछडकना शु रू कर कदया। कुछ ही दे र में
प्रकतमा को होश आ गया। उसने पलकों को लपलपाते हुए अपनी ऑखें खोल दी।
कशिा ने उसे बे ड पर अच्छे से कलटाया और बे ड के ककनारे पर ही बै ठ गये।

"कप कपता जी।" होश में आते ही प्रकतमा दु खी भाि से कह उठी थी।
"डोन्ट िरी माॅम।" कशिा ने प्रकतमा के हाथ को पकड कर हिा सा
दबाया___"इिरीकथं ग इज अब्सोल्यूटली िाइन एण्ड िार काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन
आपके कपता जी कल यहाॅ आ जाएॅगे।"

"क्ाऽऽ???" कशिा की बात सु न कर प्रकतमा बु री तरह उछल पडी थी।


"यस माॅम।" कशिा ने मुस्कुराते हुए कहा___"एण्ड यू नो व्हाट आपके इस चक्कर ने
कमाल कर कदया।"
"क्ा मतलब???" प्रकतमा हैरान।
"मतलब ये कक जो ची़ि बातों में नही ं हो सकती थी िो ची़ि आपके इस चक्कर से हो
गई।" कशिा ने उत्साकहत भाि से कहा___"क्ा सही समय पर आपको चक्कर आया
माॅम।"

"ये तू क्ा बकिास कर रहा है??" प्रकतमा के चे हरे पर एकाएक शख्त भाि उभर
आए___"ये सब तु झे म़िाक लग रहा है? तु झे मेरे और मेरे कपता की भािनाओं का
़िरा सा भी एहसास नही ं हुआ? कैसा बे टा है तू मेरा? तु झे इस सब में भी एक चाल
ऩिर आई? मेरा यू चक्कर खाकर कगर जाना भी तु झे ककसी कामयाबी का कहस्सा
ऩिर आया? िाह बे टा िाह...आज तू ने साकबत कर कदया कक तू कसिग और कसिग अपने
बाप पर गया है। ते रे कलए ककसी के जज़्बात ककसी के दु ख ददग कोई मायने नही ं
रखते । आज अगर मुझे चक्कर की िजह से कदल का दौरा पड जाता तब भी शायद
तु झे और ते रे बाप को कोई िक़ग नही ं पडता।"

748
"म माॅम।" कशिा बु री तरह से झेंपते हुए बोला___"ये आप क्ा कह रही हैं?"
"शटअप।" प्रकतमा ़िोर से चीखी थी। उसकी ऑखों से एकाएक ऑसू बह
चले ___"क्ा नही ं ककया मैने और क्ा नही ं कदया मैने तु म दोनो बाप बे टों को? मगर
मेरे त्याग और बकलदान का कोई मोल नही ं है तु म दोनो की ऩिर में। मैने िो काम भी
ककया कजसके कलए कोई भी भारतीय औरत ककसी भी सू रत में तै यार नही ं हो सकती।
मैने अपने साथ साथ अपनी आत्मा तक को जहन्नुम में झोंक कदया मगर उसका भी
कोई मोल नही ं तु म लोगों की ऩिर में। अभी तक तो नही ं मगर अब एहसास हो रहा
है कक मेरे कमों की स़िा मु झे कमलनी शु रू हो गई है।"

"आई एम स्वारी माॅम।" कशिा ने कसर झुकाते हुए कहा___"मेरा िो मतलब हरकग़ि
भी नही ं था जो आप समझ बै ठी हैं। मैं तो.....
"बस।" प्रकतमा ने अपना दाकहना हाथ उठा कर अपने पं जे से उसे रुकने का सं केत
दे ते हुए कहा___"कुछ भी सिाई दे ने की ़िरूरत नही ं है। मैं कोई बच्ची नही ं हूॅ कजसे
ककसी भी तरह की बातों से बहला िुसला कदया जाए। मेरे सीने में भी एक कदल है
कजसमें प्यार मोहब्बत और ममता का सागर उछाल मारता है। मगर तू ने और ते रे बाप
ने कभी उसकी कद्र नही ं की।"

"आप बे िजह बातों का पतं गड बना रही हैं माॅम।" कशिा ने कहा___"जबकक मैं
क़सम खा कर कहता हूॅ कक मेरे कहने का िो मतलब नही ं था। हाॅ मैं ये मानता हूॅ
कक मैंने िो सब उस समय कह कदया जबकक हालात िै से नही ं थे । इसी कलए मैं आपसे
उसके कलए माफ़ी भी माॅग रहा हूॅ। और दू सरी बात मुझे पहली ऩिर में यही लगा
कक आपने चक्कर खा कर कगरने का नाटक ककया है। इस कलए आपके नाटक को
़िारी रखने के कलए मैं भी ़िोर से चीखते हुए आपके पास आकर िो सब आपसे
कहने लगा था। क्ोंकक ये तो मु झे पता ही था कक मोबाइल चालू हालत में है और
नाना जी को िो सब कुछ साि साि सु नाई दे गा जो कुछ हम यहाॅ करें गे और ऐसा
हुआ भी। तभी तो जब मैने दे खा कक आपके चक्कर खाने से उधर नाना जी भी
कचं कतत ि परे शान हो उठे हैं तो मैने जल्दी से मोबाइल उठा कर उनसे बात की थी
और उन्हें आपके बारे में सब कुछ बताया था। उसके बाद उन्होंने यहाॅ आने के कलए
कहा और यहाॅ का पता पू छा मुझसे तो मैने बता कदया। बस, यही हुआ था। उसके
बाद मुझे लगा कक नाटक खत्म हो गया है तो मैने आपके चे हरे पर पानी कछडक कर
आपको होश में ले आया और आपसे िो सब कहा। मगर आपने तो कुछ और ही मुझे
सु ना कदया।"

"तभी तो कहती हूॅ कक तु म दोनो बाप बे टों को ककसी के दु ख ददग का एहसास नही ं
है।" प्रकतमा ने दु खी भाि से कहा__"अगर होता तो उसी िक्त समझ जाते कक िो कोई
नाटक नही ं बल्कि हक़ीक़त था। तु म्हें समझना चाकहए था कक िषों की कबछडी एक

749
बे टी अपने बाप से बात कर रही थी। उस िक्त बाप बे टी के कदलों में भािनाओं का
कैसा ज्वार भाॅटा ताण्डि कर रहा होगा? ये उन प्रबल भािनाओ का ही असर था
कक मेरा कदल उन भीषर् जज़्बातों को सहन न कर पाया और मैं चक्कर खा कर कगर
गई थी। मगर, जैसा कक मैने कहा तु म दोनो बाप बे टों को ककसी के दु ख ददग का
एहसास नही ं है। तभी तो मेरी उस हालत को भी नाटक समझ कलया।"

"मुझे माफ़ कर दीकजए माॅम।" कशिा ने सहसा भारी लहजे में कहा___"मु झसे सच में
बहुत बडी ग़लती हो गई है। मगर आइं दा ऐसा नही ं होगा माॅम, ये मेरा िादा है
आपसे । आप तो जानती हैं कक आपकी अहकमयत मेरी लाइि में ककतनी है। मैं ऐसा
कोई काम कर ही नही ं सकता कजससे आपके कदल को ठे स पहुॅचे । बस एक बार
माफ़ कर दीकजए न।"

प्रकतमा ने इस िक्त कशिा के चे हरे पर उभरे हुए मासू म से भािों को दे खा तो सहसा


उसकी ममता जाग गई। उसने तु रंत ही कशिा को पकड कर अपने ऊपर खी ंच कलया
और कस कर अपने सीने से भी ंच कलया। तभी ककसी के आने की आहट से दोनो ही
अलग हुए। कुछ ही पलों में सकिता ने कमरे एं प्रिे श ककया। उसने बताया कक डाक्टर
साहब आ गए हैं। सकिता की बात सु न कर कशिा बे ड से उठ कर कमरे से बाहर की
तरि चला गया। थोडी ही दे र में अजय कसं ह का िैकमली डाक्टर अकनल जैन कशिा के
साथ कमरे में दाल्कखल हुआ। अकनल जैन चालीस की उमर का तथा मध्यम कद काठी
का ब्यल्कक्त था। अजय कसं ह जैसे इं सान से सं बंध रखने िाला ये पहला ऐसा ब्यल्कक्त था
जो शक्ल और सीरत से शरीफ़ था।

कशिा ने अकनल को प्राथकमक बातें बताईं कक क्ा हुआ था उसकी माॅम को। उसके
बाद अकनल ने चे कअप करना शु रू ककया। थोडी दे र तक प्रकतमा को चे क करने के
बाद उसने कुछ दिाईयाॅ दी और उन्हें से िन करने की किकध बताई। किर उसने
कशिा को अपने साथ बाहर आने का इशारा करते हुए कमरे से बाहर की तरि चल
कदया।

"क्ा बात है डाक्टर अं कल?" कशिा ने बाहर आते ही सहसा गंभीरता से


पू छा___"मेरी माॅम पू री तरह ठीक तो हैं न?"
"कचं ता की कोई बात नही ं है बे टा।" अकनल ने कहा__"बस थोडी कम़िोरी थी इस
िजह से उन्हें चक्कर आया था। ठाकुर साहब आएॅ तो उनसे कहना कक मैने उन्हें
याद ककया है। अगर उनके पास समय हो तो कुछ समय के कलए मेरे पास ़िरूर
आएॅ िो।"
"जी कबलकुल डाक्टर अं कल।" कशिा ने किनम्रता से कहा___"मैं डै ड को ़िरूर
आपके पास जाने के कलए कहूॅगा।"

750
उसके बाद डाक्टर अकनल जैन हिे ली से अपना थै ला कलये चला गया। कशिा भी
िापस अपने माॅम के पास आ गया। सकिता रात के कलए खाना बनाने चली गई थी।
उसे प्रकतमा ने कह कदया था कक कुछ और लोगों को साथ में ले कर उन लोगों के कलए
भी खाना बना ले ना जो लोग आज गेस्टरूम में ठहरे हुए हैं। कुछ दे र अपनी माॅ के
पास बै ठने के बाद कशिा प्रकतमा के ही कहने पर गेस्टरूम की तरि चला गया।
जबकक प्रकतमा अपने कपता के आने के बाद उससे कमलने के सु नहरे खयाल बु नने
लगी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर किराज की तरि!
रात हुई तो किराज और आकदत्य ने थोडा बहुत खाना खाया। हलाॅकक खाना पीना िो
लोग ले कर नही ं चले थे इस कलए एक स्टे शन पर जब टर े न रुकी तो िही ं इन दोनो ने
अपने कलए खाने की कुछ ची़िें ले कलये थे और किर टर े न में ही दोनो ने बै ठ कर खा
कलया था।

नीलम की मौजूदगी में मैने इतना ़िरूर ककया कक अपनी शीट पर आकदत्य को बै ठा
कदया था और आकदत्य की शीट पर मैं बै ठ गया था। इससे हुआ ये कक अब नीलम की
तरि मेरी पीठ हो गई थी। हलाॅकक इस तरि बै ठने से मेरी पीठ भी उसे कदखाई
नही ं दे नी थी। खै र खाना पीना करके हम दोनो ही आराम से ले ट कर सो गए थे । नी ंद
भी ़िबरदस्त लगी थी क्ोंकक हम दोनो लगातार यात्रा ही कर रहे थे ।

रात के ककसी प्रहर हमें शोर सा सु नाई कदया। ऐसा लगा जैसे कुछ लोग आपस में
झगडा कर रहे थे । ये एसी का कडब्बा नही ं था। मैने जानबू झ कर एसी में कटकट
बनिाने को नही ं कहा था जगदीश अं कल से । ररजिे शन िाले कडब्बे में भी कुछ लोग
जनरल कडब्बे की भीड दे ख कर घुस आते थे । खै र, उस शोर शराबे की िजह से
हमारी नी ंद टू ट गई और हमारी ऑखें खु ल गई।

शोर शराबा मेरे पीछे की तरि से सु नाई दे रहा था। आकदत्य जैसे ही उठ कर अपनी
शीट पर बै ठा िै से ही उसकी ऩिर मेरे पीछे उस तरि पडी कजस तरि शोर हो रहा
था। आकदत्य ने दे खा कक चार पाॅच लडके मेरे पीछे की तरि िाली शीट के पास
िशग पर खडे थे और शीट पर बै ठे हुए याकत्रयों को अनाप शनाप बके जा रहे थे । उन
लडकों की आिा़िों के बीच कुछ औरतों ि लडककयों की भी आिा़िें आ रही थी। इस
बीच मैं भी उठ कर अपनी शीट पर बै ठ गया था। मैने ये सोच कर अपने पीछे की
तरि नही ं दे खा कक कही ं नीलम की ऩिर मु झ पर न पड जाए। ककन्तु उस िक्त मैं
चौंका जब नीलम की ते ़ि ते ़ि आिा़ि मेरे कानों पर पडी। उसकी आिा़ि से ऐसा
प्रतीत हो रहा था जैसे िो बस रोने ही िाली हो।

751
ये जान कर मेरे मनो मल्कस्तष्क में झनाका सा हुआ। मु झे समझते दे र न लगी कक उन
लडकों से नीलम तथा अन्य लोगों की कहा सु नी हो रही है। मु झे ये तो समझ न आया
कक आकखर बात क्ा हुई है ककन्तु इतना ़िरूर समझ गया कक नीलम इस तरह
ककसी से झगडा करने िाली लडकी नही ं है। उस हालत में तो कबलकुल भी नही ं
जबकक िो टर े न में अकेली सिर कर रही हो। मुझे लगा नीलम इस िक्त बे हद परे शान
हालत में है। मेरे अं दर का भाई जाग गया। बात भले ही चाहे जो हो मगर मैं ये हकगग़ि
भी बरदास्त नही ं कर सकता था कक कोई ऐरा गैरा मेरी बहन को कुछ उल्टा सीधा
कहे या उससे ककसी तरह का झगडा करे ।

मैने आकदत्य को इशारा ककया। आकदत्य मेरा इशारा समझ गया। उसके बाद हम
दोनो ही उस तरि चल कदये। इस बीच मैने जल्दी से अपने मुख और नाक को रुमाल
से ढक कलया था। कुछ ही पल में हम दोनो उन लडकों के पास पहुॅच गए। मैने एक
लडके को हिा सा दबाि दे कर एक तरि ककया और शीट की तरि दे खने की
कोकशश की। मैं दे ख कर चौंका कक नीलम अपनी शीट पर बै ठी कससक रही थी।
उसके बगल से ही एक और लडकी बै ठी हुई थी। उसकी हालत भी नीलम जैसी ही
थी। मु झे समझ न आया कक नीलम और िो लडकी कससक क्ों रही हैं? जबकक उन
दोनो के बगल से एक औरत भी बै ठी थी कजसके साथ एक दस बारह साल का लडका
था। नीलम की सामने की शीट पर दो आदमी ि दो औरतें बै ठी हुई थी। उनके चे हरों
पर लगभग बारह बजे हुए थे ।

"ओये कौन है बे तू ?" सहसा उस लडके ने मु झे धक्का दे ते हुए कहा कजसे दबाि दे कर
मैं अं दर शीट की तरि दे खने लगा था, बोला___"और तू मु झे एक तरि करके अं दर
कहाॅ घुसा आ रहा है? क्ा तु झे भी ये दोनो लौंकडयाॅ पसं द आ गई हैं?"

"पसं द तो आएॅगी ही कदने श।" एक अन्य लडके ने हस कर कहा___"आकखर माल


तो ़िबरदस्त ही है न।"
"अरे तो पहले हमें तो चखने दे भाई।" कदने श नाम के उस लडके ने कहा___"उसके
बाद ये भी चख ले गा।"
"कैसे चख ले गा यार?" तीसरे लडके ने कहा___"हम साले इतनी दे र से इन मालों से
कह रहे हैं कक बाथरूम चलो मगर ये हैं कक सु नती ही नही ं हैं हमारी बात।"

उन लडकों की इन बातों से ही ़िाकहर हो गया था कक मा़िरा क्ा है। मगर मैं हैरान
इस बात पर था कक िहाॅ पर बै ठे बाॅकी सब उन लडकों की बददमीची सहन कैसे
कर रहे थे ? या किर िो सब डर रहे थे कक ये लडके कही ं उनकी औरतों या बे कटयों को
कुछ कहने न लगें। ये यो हद ही हो गई थी। सबको अपनी किक्र थी, कोई ये नही ं

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सोच रहा था कक दू सरी लडककयाॅ भी तो ककसी की बहन बे टी होंगी। इस सबसे मेरा
कदमाग़ बे हद खराब हो चु का था। मैने पलट कर आकदत्य की तरि दे खा। िो मुझे
दे खते ही समझ गया कक क्ा करना है।

"ओ भाई ़िरा बात तो सु न।" मैने अपनी आिा़ि बदलते हुए कहा कदने श नाम के
उस लडके से कहा___"ते रे अगर और भी साथी इस टर े न में हों तो िोन करके बु ला ले
उन्हें । क्ोंकक अब जो तु म लोगों के साथ होने िाला है उसके बाद तु म लोगों हाल्किटल
पहुॅचाने िाला भी तो कोई होना चाकहए न।"

"ओये कचकने ।" कदने श से पहले ही उसका एक अन्य साथी बोल पडा___"ज्यादा
हीरोपं ती करने का शौक चढा है क्ा ते रे को? चल िूट ले इधर से िरना हम लोगों से
पं गा ले ने का अं जाम अच्छा नही ं होगा समझा? और हाॅ आपन के और भी छोकरे
लोग इस टर े न में मौजूद हैं। इस कलए आपन एक ही बार ते रे से बोले गा कक इधर से
ल्कखसक ले तू ।"

"ककसी ने सच ही कहा है कक लातों के भू त बातों से नही ं मानते ।" मैने गुस्से से उबलते
हुए उस लडके का कालर पकडा और ़िोर से अपनी तरि खी ंच कलया___"तु म जैसे
गटर के कीडों को मसलना ही बे हतर होता है।"

मैने जैसे ही उस लडके को अपनी तरि खी ंचा तो एक अन्य हरकत में आ गया।
अभी िो हरकत में आया ही था कक आकदत्य ने धर कलया उसे । इधर मैने उस लडके
के चे हरे पर ़िोर का पं च जड कदया। उनमें से ककसी को भी इस सबकी उम्मीद नही ं
थी। चे हरे पर ़िोरदार पं च पडते ही उस लडके की नाक की हड्डी टू ट गई और भल्ल
करके खू न बहने लगा। िो बु री तरह कबलकबलाते हुए अपनी नाक को अपने दोनो
हाॅथों से पकड कलया। अचानक हुए इस हमले से दो लडके जो अभी खाली थे िो भी
हरकत में आ गए। आस पास िशग पर खडे हुए लोग एकदम से उस जगह से दू र
हटते चले गए।

आकदत्य ने कजस लडके को धरा था उसका एक हाॅथ पकड कर ़िोर से उमेठ कदया।
कजससे िो ददग में चीखा। हाॅथ उमेठते ही आकदत्य ने पीछे से अपने घुटने का िार
उसके कपछिाडे पर ककया तो उसका कसर ऊपर की शीट पर लगे लोहे के पाइप से
टकराया। उसके हलक से चीख कनकल गई। इधर दो लडको के हाथ में पलक
झपकते ही जाने कहाॅ से चाकू प्रकट हो गया था। मतलब साि था कक िो चारो
पे शेिर अपराधी थे । मगर उन्हें क्ा पता था कक आज उनका पाला उनसे भी बडे
खलीिा से पड गया था।

753
एक लडके ने जैसे ही अपना चाकू िाला हाथ ऊपर हिा में उठा कर मुझ पर चलाया
तो मैने उसके उस हाॅथ को एक हाॅथ से हिा में ही रोंका और दू सरे हाॅथ से
उसकी कलाई पर कराट का िार ककया कजससे उसके हाथ से चाकू छूट कर िशग पर
कगर गया। चाकू के कगरते ही मैने उसके पे ट में ़िोर की लात मारी तो िो झोंक में ही
बाएॅ साइड के डं डे से टकरा कर िशग पर कचि कगर पडा। उधर ऐसा ही हाल
आकदत्य की तरि भी था। कहने का मतलब ये कक दो कमनट के अं दर ही िो चारो
लडके टर े न के िशग पर पडे बु री तरह कराह रहे थे और हम दोनो से रहम की भीख
माॅगने लगे थे ।

"जी तो करता है कक।" मैने खूं खार भाि से कहा__"जो कघनौना कमग तु म लोगों ने
ककया है उसके कलए तु म सबके हाथ पै र तोड कर तु म सबके हाॅथों में दे दू ॅ। मगर मैं
यहाॅ पर ज्यादा बखे डा नही ं करना चाहता। इस कलए कजतना जल्दी हो सके यहाॅ से
दिा हो जाओ िरना ये भी सोच ले ना कक कजस बखे डे की अभी मैं बात कर रहा हूॅ
उससे मैं डरता भी नही ं हूॅ।"

मेरी इस बात का असर िौरन ही हुआ। िो चारो बु री तरह लडखडाते हुए िशग से
उठे और नौ दो ग्यारह हो गए। उन चारों के जाते ही मैं िापस पलटा और नीलम की
दे खा तो चौंक गया। िो मु झे ही दे खे जा रही थी। उसकी ऑखों में ढे र सारे ऑसू थे ।
अभी मैं उसे दे ख ही रहा था कक सहसा िह अपनी जगह से उठी और कबजली की
तरह दौड कर मु झसे कलपट गई।

"राऽऽज मेरे भाई।" किर िो मु झसे कलपटी िूट िूट कर रोने लगी थी। उसकी इस
कक्रया से जहाॅ मैं भौचक्का रह गया था िही ं शीट पर बै ठी िो दू सरी लडकी भी हैरान
रह गई थी। तभी मुझे ध्यान आया कक उन लडकों से लडते िक्त जाने कब मेरे मुख से
रुमाल कनकल गया था। शायद यही िजह दी कक नीलम जान गई थी कक मैं िास्ति में
कौन हूॅ।

"ओह राज।" मुझसे कलपटी नीलम रोते हुए कह रही थी___"तु म यहाॅ भी मेरी इज्ज़ित
बचाने के कलए पहुॅच गए। इतने अच्छे और इतने महान कैसे हो सकते हो तु म? ये
सच है कक अगर तु म नही ं होते तो कदाकचत िो लडके मुझे और सोनम दीदी को
अपनी उन अश्लील बातों से ही मार दे ते।"

"बस चु प हो जाओ।" मैने उसे खु द से अलग कर उसके चे हरे को अपने दोनो हाॅथ
की हथे कलयों में ले ते हुए कहा___"कुछ नही ं होता। मैं जब तक क़िंदा हूॅ तु म्हारा कीई
भी बु रा नही ं कर सकता।"

754
मेरी ये बात सु न कर नीलम एकटक मेरी ऑखों में दे खने लगी। कुछ इस तरह जैसे
मेरी ऑखों में कुछ तलाश कर रही हो। आस पास मौजूद लोग हमारी तरि ऑखें
िाडे दे ख रहे थे । मुझे ये सब बडा अजीब सा लगने लगा।

"जाओ अब अपनी शीट पर बै ठ जाओ।" मैंने सहसा गंभीर भाि से कहा___"सब


लोग अजीब तरह से इधर ही दे ख रहे हैं।"
"दे खने दो राज।" कहने के साथ ही नीलम पु नः मु झसे छु पक गई, किर बोली___"मुझे
ककसी की कोई परिाह नही ं। मैं बस इतना जानती हूॅ कक मैं ऐसे शख्स की पनाहों में
हूॅ कजसना मेरी अस्मत की दो दो बार रक्षा की है। इस पनाह में आकर मु झे ऐसा
एहसास हो रहा है मेरे भाई जैसे ये जगह मेरे कलए दु कनयाॅ की सबसे महिू़ि और
सबसे सुं दर जगह है। राज, मुझे अपनी इस पनाह से अब कभी जुदा न करना।"

"हाॅ बाबा नही ं करूॅगा।" मैने नीलम को खु द से अलग करके कहा___"अब जाओ
अपनी शीट पर बै ठ जाओ। और हाॅ मैं अगली शीट पर ही हूॅ। अगर ककसी तरह
की कोई परे शानी हो तो मुझे आिा़ि लगा दे ना।"

"तु म भी मेरे पास ही बै ठ जाओ न राज।" नीलम ने ककसी बच्ची की तरह क़िद करते
हुए कहा___"या किर ऐसा करो कक मु झे भी अपने पास बै ठा लो। मैं तु म्हारे पास ही
रहना चाहती हूॅ। प्लीज मेरी इतनी सी बात मान जाओ न।"

नीलम की इस बात से मैं एकदम से उसकी तरि दे खता रह गया। किर मैने चे हरा
घुमा कर आकदत्य की तरि दे खा और सामने शीट पर बै ठी सोनम की तरि भी।
दोनो मु झे ही दे ख रहे थे । मुझे समझ न आया कक अब मैं क्ा करूॅ?

"तु म अपनी सोनम दीदी को अकेला छोंड कर कैसे मेरे पास बै ठ सकती हो?" मैने
कहा___"और उधर मेरे साथ मेरा दोस्त आकदत्य भी तो है। मैं उसे अकेला छोंड कर
तु म्हारे पास भला कैसे बै ठ जाऊगा? इस कलए ये बे कार की क़िद छोंडो और अपनी
शीट पर बै ठ जाओ। मैं पास में ही तो हूॅ।"

"हाॅ ले ककन मुझे तब भी तु म्हारे पास ही बै ठना है।" नीलम ने बु रा सा मु ह बना


कलया___"अपने दोस्त से कह दो कक यहाॅ मेरी शीट पर सोनम दीदी के साथ बै ठ
जाएॅ।"
"ये कैसी क़िद है नीलम?" मैने हैरान___"अगर सोनम दीदी को इस बात से ऐतरा़ि
हुआ तो?"

मेरी बात सु न कर नीलम ने झट से पलट कर सोनम की तरि दे खा और किर


कहा___"दीदी, क्ा आपको इनके यहाॅ बै ठने से ऐतरा़ि है?"

755
"क क्ा मतलब??" नीलम के द्वारा एकाएक ही इस तरह पू छने पर सोनम लगभग
हडबडा गई थी।
"मैं ये पू छ रही हूॅ आपसे ।" नीलम ने मानो अपने िाक् को दोहराया___"कक क्ा
आपको राज के दोस्त के यहाॅ पर बै ठने से ऐतरा़ि है?"

सोनम ने नीलम की इस बात पर बडे अजीब भाि से उसकी तरि दे खा। नीलम को
दे खने के बाद मेरी तरि और किर आकदत्य की तरि। सबको दे खने के बाद पु नः
नीलम की तरि दे खते हुए कहा___"अगर तू यही चाहती है तो ठीक है। मु झे कीई
ऐतरा़ि नही ं है इनके यहाॅ बै ठ जाने से ।"

"ओह थैं क्ू सो मच दीदी।" नीलम ने खु श होकर कहा___"आप सच में बहुत अच्छी
हैं।"
"चल चल अब मस्का मत लगा।" सोनम ने कहा___"जा बै ठ जा राज के पास। मगर
उसे परे शान मत करना ज्यादा।"
"ओ हैलो।" मैं एकदम से बोल पडा___"कोई मेरे दोस्त से भी जानना चाहेगा कक उसे
यहाॅ बै ठने से ऐतरा़ि है कक नही ं?"

मेरी इस बात से नीलम ि सोनम एकदम से चु प हो गई। मैने आकदत्य की तरि दे खा


तो उसे मु स्कुराते हुए पाया। तभी नीलम ि सोनम की ऩिरें एकदम से आकदत्य की
तरि दौड गईं। जैसे उसे दे ख कर ही ऑखों से पू छ रही हों कक आपको ऐतरा़ि है
क्ा यहाॅ बै ठने से ? आकदत्य उनकी ऑखों में उभरे सिाल का आशय समझ कर
बोला__"ठीक है मैं सोनम जी के पास ही बै ठ जाता हूॅ।"

"लो राज।" आकदत्य के मुख से ये सु नते ही नीलम ने मेरी तरि दे ख कर


कहा___"अब तो ककसी को कोई ऐतरा़ि नही ं है। सो अब मैं तु म्हारे साथ ही अगली
िाली शीट पर बै ठूॅगी। चलो अब हम जल्दी से अपनी शीट पर चलते हैं।"

मरता क्ा न करता की त़िग पर मैं हैरान परे शान होकर नीलम के साथ िापस अपनी
शीट पर आ गया। जबकक आकदत्य सोनम के पास ही नीलम िाली शीट पर बै ठ गया।
इधर मेरी शीट पर आते ही नीलम मेरे बगल से ही धम्म से बै ठ गई। बै ठते ही उसने
अपना एक हाथ मेरी काख से डाल कर मेरा एक हाॅथ मानो अपने कब्जे में ले कलया
था।

"अरे अब ये क्ा है?" नीलम के ऐसा करते ही मैने हैरानी से कहा___"सोना नही ं है
क्ा? चलो जाओ ऊपर िाली शीट पर ले ट कर सो जाओ।"
"मुझे नी ंद नही ं आ रही है राज।" नीलम ने एकदम से बल्कच्चयों िाले अं दा़ि से

756
कहा___"तु म भी मत सोना। हम सारी रात ढे र सारी बातें करें गे। मु झे तु मसे बहुत
सारी बातें करनी हैं।"

"िो सब तो ठीक है।" मैने एकाएक अजीब भाि से कहा___"मगर क्ा तु म्हें ऐसा
महसू स नही ं हो रहा कक आज सू रज पकश्चम कदशा से कनकल रहा है? ये तो कमाल हो
गया न कक जो नीलम मु झसे कभी बात करना तो दू र कभी मुझे दे खना तक गिाॅरा
नही ं करती थी आज िही नीलम मुझसे सारी रात ढे र सारी बातें करें गी? यकीन नही ं
हो रहा मु झे। ये चमत्कार है या किर खु ली ऑखों का मेरा कोई ख़्वाब?"

मेरी इन बातों से नीलम को झटका सा लगा। अभी तक जो चे हरा एकदम से ता़िे


गुलाब की माकनं द ल्कखला हुआ कदख रहा था िो मेरी इन बातों से पलक झपकते ही
मुरझा गया था। उसके चे हरे पर पल भर में गहन पीडा ि दु ख के भाि उभर आए
और ऑखों में ऑसू रूपी समंदर मानों कहलोरें ले ने लगा था। कुछ कहने के कलए
उसके होंठ बस थरथरा कर रह गए थे ।

"मुझे मेरे उन सभी बु रे कमों की स़िा दो राज।" नीलम ने रुऑसे स्वर में
कहा___"यकीन मानो, तु म्हारी हर स़िा को मैं खु शी खु शी क़बू ल कर लू ॅगी। मगर
अब तु म्हारी ककसी भी तरह की बे रुखी सहन नही ं कर पाऊगी मैं। मु झे पता है कक
मैने तु म्हारे साथ अब तक क्ा ककया था। ककन्तु अगर ग़ौर से सोचोगे तो इस सबमें
तु म्हें ़िरूर समझ आएगा कक उस सबमें मेरी कोई ग़लती नही ं थी। मैने तो िही ककया
था अब तक जो बचपन से हमें कसखाया गया था। सही ग़लत का पाठ तो हमें हमारे
माॅ बाप ने ही बचपन से पढाया था। जबकक िास्ति में सही ग़लत क्ा है िो अब
समझ आया है मुझे। मैं सच कहती हूॅ मेरे भाई कक मैं अपने उन सभी कमों के बारे
में सोच सोच कर बे हद दु खी हूॅ। मु झे अपने आप से घृर्ा होती है ।"

"इं सान कजन्हें कदल से चाहता है।" मैने कहा___"िही अगर ऐसा करें तो तक़लीफ़ तो
यकीनन होती है नीलम। मैने कभी भी तु म सबके बारे में ग़लत नही ं सोचा था। बल्कि
हमेशा यही चाहता था तु म सब मु झसे उसी तरह बातें करो हसो बोलो जैसे बाॅकी
सब करते थे । मगर मु झे आज तक समझ न आया कक हमने ऐसा कौन सा गुनाह
ककया था हमें आप सबकी कसिग नफ़रत कमली। खै र, ये सब तो कल की बातें है मगर
मैं ये जानना चाहता हूॅ कक आज ऐसा क्ा हो गया है कक तु म्हें िही राज अपना भाई
लगने लगा और इतना ही नही ं बल्कि दु कनयाॅ का सबसे अच्छा इं सान भी लगने
लगा। क्ा कसिग इस कलए कक मैने इिे िाक़ से दो बार तु म्हारी इज्ज़ित की रक्षा की या
किर इसकी कोई दू सरी िजह है?"

"इं सान का चररत्र जैसा भी हो राज।" नीलम ने गंभीर भाि से कहा___"िो दू सरों के

757
सामने उजागर हो ही जाता है। ये अलग बात है कक इसमें थोडा बहुत समय लग जाता
है। तु म लोगों के कजस चररत्र का पाठ हम भाई बहनों को बचपन से पढाया गया था
उसे हमने ये सोच कर यकीन के साथ मान कलया क्ोंकक हम यही समझते थे कक
कोई भी माॅ बाप अपने बच्चों को ग़लत नसीहत नही ं दे ते हैं। मगर जो ग़लत होता है
उसका भी पदाग िाश हो ही जाता है एक कदन। तु मने मेरी दो बार इज्ज़ित बचाई इसे
सं योग समझो या समय का बदलाि, कजसके िलस्वरूप मुझे ये समझ आया कक
अपने कजस माॅ बाप से मैने तु म लोगों के चररत्र का पाठ पढा था िो दरअसल झॅ ू ठा
भी तो हो सकता था। क्ोंकक एक बु रे इं सान से अच्छे कमग की उम्मीद नही ं की जा
सकती। जबकक तु मने जो ककया िो कनहायत ही अच्छे कमग की पराकाष्ठा थी। तु म्हारे
उस कमग ने मु झे ये सोचने पर कबिश कर कदया कक तु म िै से नही ं हो जैसा मेरे माॅ
बाप ने अब तक समझाया था। बस, इं सान जब ककसी के बारे में गहराई से सोचता है
तो उसे कुछ न कुछ तो एहसास होता ही है कक हक़ीक़त क्ा है? अब तक तो मैने
तु म्हारे बारे में उस तरीके से सोचा ही नही ं था राज मगर उस हादसे के बाद जब मैने
तु म्हारे बारे में आकद से अं त तक सोचा तो मु झे एहसास हुआ कक तु म बु रे नही ं हो
सकते । इं सान को अपनी सिाई में कुछ भी कहने का अकधकार है जबकक हमने तो
तु म लोगों की ककसी बात को सु नना ही कभी गिाॅरा नही ं ककया था। ऐसे में भला हमें
कैसे समझ आता कक सच क्ा है? हमसे यकीनन ग़लती हुई है राज और मैं इस
ग़लती को ़िरूर सु धारूॅगी। घर पहुॅचते ही माॅम डै ड से बताऊगी कक कैसे तु मने
दो दो बार उनकी बे टी की इज्ज़ित की रक्षा की है।"

"तु म्हारे बताने से कुछ नही ं होने िाला नीलम।" मैने िीकी सी मुस्कान के साथ
कहा___"तु म्हें तो अभी सारी असकलयत का पता ही नही ं है। मगर मेरा दािा है कक
जब तु म्हें सारी सच्चाई का पता चले गा तो तु म्हारा कदल हाहाकार कर उठे गा।"

"क्ा मतलब??" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"तु म्हारी इन बातों का क्ा मतलब है
राज? तु म ककस असकलयत की बात कर रहे हो?"
"मैं तु म्हें इस बारे में खु द कुछ नही ं बताऊगा।" मैने गंभीर भाि से कहा___"क्ोंकक
मेरे बताने पर तु म्हें यही लगे गा कक मैं तु म्हारे माॅम डै ड के किषय में बे िजह ही अनाश
शनाप बक रहा हूॅ। इस कलए इस सबके बारे में तु म्हें खु द ही पता करना होगा
नीलम। जब तक तु म्हें खु द सारी बातों का पता नही ं चले गा या तु म खु द अपनी ऑखों
से नही दे ख लोगी तब तक तु म दू सरे की बताई हुई बात का यकीन नही ं कर
सकोगी।"

"आकखर ऐसी कौन सी बातें हैं राज?" नीलम के चे हरे पर गहन कचं ता के तथा सोचने
िाले भाि उभरे ___"कजनके बारे में तु म बात कर रहे हो? तु म मु झे बताओ राज, मु झे
तु म्हारी हर बात पर यकीन होगा।"

758
"नही ं होगा नीलम।" मैने पु ऱिोर लहजे में कहा__"कुछ बातें ऐसी होती हैं कजन पर
यकीन करना बे हद मुल्किल होता है। यहाॅ तक कक अगर इं सान खु द अपनी ऑखों
से भी दे ख ले तो यकीन नही ं कर पाता। इस कलए मेरे कुछ भी बताने का कोई मतलब
नही ं है। तु म खु द सारी बातों का पता लगाओ और किर उन पर किचार करो।"

"क्ा ररतू दीदी भी उन सारी बातों को जानती हैं?" नीलम ने कहा___"कजनके बारे में
तु म बात कर रहे हो?"
"हाॅ।" मैने कहा___"ररतू दीदी को आरी असकलयत का पता है।"
"तो क्ा यही िजह है कक।" नीलम ने कहा___"आजकल िो माॅम डै ड के कखलाि
हैं?"
"हाॅ यही िजह है।" मैने कहा___"अब तु म सोच सकती हो कक भला ऐसी िो क्ा
बातें होंगी कजसके चलते तु म्हारी अपनी दीदी अपने ही माॅम डै ड के ल्कखलाि हो गई
हैं?"

मेरी बात सु न कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरि दे खती रही। मैं
समझ सकता था कक िो इन सब बातों के चलते अपने कदलो कदमाग़ को किचारों भिर
में डु बा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रही ं। उसके बाद मैने उसे सो
जाने का कह कदया। हलाॅकक मैं जानता था कक अब उसे सारी रात नी ंद नही ं आने
िाली थी। िो रात भर इन्ही ं बातों को सोचती रहेगी कक आकखर ऐसी कौन सी सच्चाई
है कजसकी मैं बात कर रहा हूॅ और कजस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी
अपने ही माॅम डै ड के ल्कखलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बथग पर कलटाने के बाद मैं भी अपने नीचे िाले बथग पर ले ट गया
और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आकखर क्ा करे गी नीलम जब
उसे अपने माॅ बाप और भाई की असकलयत का पता चले गा? िो कैसा ररऐक्ट करे गी
जब उसे पता चले गा कक उसके माॅ बाप ने ककस तरह इस हसते खे लते पररिार को
बरबाद ककया था? सब कुछ जानने के बाद क्ा नीलम भी अपनी बडी बहन की तरह
अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था।
तभी सहसा मु झे अजय कसं ह का खयाल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश
अं कल को िोन करके अजय कसं ह के साथ एक धाॅसू खे ल खे लने का कह कदया था।
ये उसी का पररर्ाम था कक इस िक्त अजय कसं ह सीबीआई की कगरफ्त में था। मगर
अब जबकक मैं कल दोपहर तक हल्दीपु र ररतू दीदी के िामग हाउस पहुॅच जाऊगा तो
अजय कसं ह को भी सीबीआई की कगरफ्त से आ़िाद कर दे ने का समय आ जाएगा।

अजय कसं ह जब सीबीआई की कगरफ्त से कनकल कर अपनी हिे ली पहुॅचे गा तब िो


प्रकतमा को जो कुछ बताएगा उसे सु न कर सबके पै रों के नीचे से ़िमीन गायब हो

759
जाएगी। अजय कसं ह का कदमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते िटने को आ जाएगा
मगर उसे कुछ समझ नही ं आएगा। िो इस तरह ककंकतग ब्यकिमू ढ सी ल्कथथत में बै ठा
रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शू न्य में खोया हुआ सा
रह जाता है।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.........《 52 》

अब तक,,,,,,,,

मेरी बात सु न कर नीलम कुछ बोल न सकी, बस एकटक मेरी तरि दे खती रही। मैं
समझ सकता था कक िो इन सब बातों के चलते अपने कदलो कदमाग़ को किचारों भिर
में डु बा रही है। कुछ और हमारे बीच ऐसी ही बातें होती रही ं। उसके बाद मैने उसे सो
जाने का कह कदया। हलाॅकक मैं जानता था कक अब उसे सारी रात नी ंद नही ं आने
िाली थी। िो रात भर इन्ही ं बातों को सोचती रहेगी कक आकखर ऐसी कौन सी सच्चाई
है कजसकी मैं बात कर रहा हूॅ और कजस सच्चाई को जान कर उसकी अपनी दीदी
अपने ही माॅम डै ड के ल्कखलाफ़ हो गई है?

नीलम को ऊपर के बथग पर कलटाने के बाद मैं भी अपने नीचे िाले बथग पर ले ट गया
और नीलम के साथ हुई बातों के बारे में सोचने लगा। आकखर क्ा करे गी नीलम जब
उसे अपने माॅ बाप और भाई की असकलयत का पता चले गा? िो कैसा ररऐक्ट करे गी
जब उसे पता चले गा कक उसके माॅ बाप ने ककस तरह इस हसते खे लते पररिार को
बरबाद ककया था? सब कुछ जानने के बाद क्ा नीलम भी अपनी बडी बहन की तरह
अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़ हो जाएगी? मैं इन्ही सब बातों के बारे में सोच रहा था।
तभी सहसा मु झे अजय कसं ह का खयाल आया। मैने परसों आने से पहले ही जगदीश
अं कल को िोन करके अजय कसं ह के साथ एक धाॅसू खे ल खे लने का कह कदया था।
ये उसी का पररर्ाम था कक इस िक्त अजय कसं ह सीबीआई की कगरफ्त में था। मगर
अब जबकक मैं कल दोपहर तक हल्दीपु र ररतू दीदी के िामग हाउस पहुॅच जाऊगा तो
अजय कसं ह को भी सीबीआई की कगरफ्त से आ़िाद कर दे ने का समय आ जाएगा।

अजय कसं ह जब सीबीआई की कगरफ्त से कनकल कर अपनी हिे ली पहुॅचे गा तब िो

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प्रकतमा को जो कुछ बताएगा उसे सु न कर सबके पै रों के नीचे से ़िमीन गायब हो
जाएगी। अजय कसं ह का कदमाग़ उस सबके बारे में सोचते सोचते िटने को आ जाएगा
मगर उसे कुछ समझ नही ं आएगा। िो इस तरह ककंकतग ब्यकिमू ढ सी ल्कथथत में बै ठा
रह जाएगा जैसे कोई मौत के मुह से अचानक बचने के बाद शू न्य में खोया हुआ सा
रह जाता है।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,,

उधर ररतू मं त्री कदिाकर चौधरी से िोन पर बातें करने के बाद अपने िामग हाउस
पहुॅची। उसने कजप्सी को ते ़ि रफ्तार से दौडाया था और पाॅच कमनट में ही
िामग हाउस पहुॅच गई थी। उसे मंत्री की बातों पर ़िरा सा भी ऐतबार नही ं था।
हलाॅकक उसने धमकी के रूप में मंत्री को तगडी डोज दी थी। मगर इसके बािजूद
िो इस बात से सं तुष्ट नही ं हो पाई थी कक मंत्री की िजह से किधी के माॅ बाप अब
सु रकक्षत हैं। उसे पता था कक मौजूदा िक्त में भले ही मं त्री ने उससे िादा कर कलया था
कक किधी के माॅ बाप को कुछ नही ं कहे गा मगर िो अपने इस िादे पर ज्यादा दे र
तक कायम नही ं रह सकता था। क्ोंकक िो मं त्री था, िो ये बरदास्त नही ं कर पाएगा
कक कोई ऐरा ग़ैरा उसे ककसी ची़ि के कलए कबिश करे ।

िामग हाउस पर पहुॅच कर ररतू ते ़ि क़दमों से चलती हुई अपने कमरे में पहुॅची।
कमरे में पहुॅच कर सबसे पहले उसने अपनी पाॅकेट से उस मोबाइल की कनकाल
कर आलमारी में रखा कजस नये मोबाइल से उसने मंत्री से बात की थी। उसके बाद
उसने अपने आईिोन को ल्कस्वच ऑन ककया। िोन के ल्कस्वच ऑन होते ही उसने
पु कलस ककमश्नर को काल लगाया और मोबाइल कान से सटा कलया।

"यस ऑकिसर।" उधर से ककमश्नर का प्रभािशाली स्वर उभरा___"क्ा प्रोग्रेस चल


रही है तु म्हारे ऑपरे शन की?"
"ऑपरे शन तो अभी सिलता पू िगक चल ही रहा है सर।" ररतू ने सहसा गंभीर भाि
से कहा___"मगर इस बीच एक प्रोब्ले म आ गई है।"

"व्हाट??" उधर से ककमश्नर का चौंकता हुआ स्वर उभरा___"कैसी प्रोब्लेम आ गई है?


इिरीकथं ग ओके न?"
"यस सर।" ररतू ने कहा___"बट प्रोब्लेम ये है कक मंत्री कदिाकर चौधरी के साथ जो
कुछ मौजूदा समय में हो रहा है उसके िजह का उसने अपने तरीके से पता लगाया
है। मेरा मतलब है कक िो ये समझता है कक उसकी इस बरबादी के पीछे किधी के
घरिालों का हाॅथ है। उसे लगता है कक उसके बच्चों को किधी के बाप ने ककडनै प

761
ककया है।"

"ऐसा तो उसे लगेगा ही ऑिीसर।" ककमश्नर का स्वर उभरा___" मऐसे मामले में
कोई भी ब्यल्कक्त सिग प्रथम किधी के घर िालों पर ही शक करे गा, क्ोंकक मंत्री के साथ
ये सब करने की िजह कसिग किधी के घर िालो के पास ही है। इस कलए अगर मंत्री
सारी बातों पर किचार करके ये नतीजा कनकाला है कक ये सब उस रे प पीकडता लडकी
के घर िाले ही कर रहें हैं तो उसका सोचना ग़लत नही ं है। खै र, तु म बताओ कक अब
तु म क्ा चाहती हो?"

"़िाकहर सी बात है सर।" ररतू ने कहा___"कक मंत्री के इस नतीजे के बाद अब किधी


के माॅ बाप पर मं त्री का खतरा हो गया है। आप जानते हैं कक इस मामले में उन
बे चारों का दू र दू र तक कोई हाॅथ नही ं है। िो तो बे कार में ही इस मौत रूपी खतरे में
िस पडे हैं। इस कलए मैं चाहती हूॅ सर कक किधी के माॅ बाप को जल्द से जल्द
सु रक्षा मुहय्या कराएॅ आप।"

"ऐसा करना सही नही ं होगा ऑकिसर।" ककमश्नर ने समझाने िाले भाि से
कहा___"क्ोंकक अगर हम किधी के माॅ बाप को पु कलस प्रोटे क्शन दें गे तो मंत्री के
सामने सारी बातें ओपे न हो जाएॅगी। उस सू रत में उनके ऊपर खतरा और भी बढ
जाएगा। ये ऑपरे शन चू ॅकक सीक्रेट है इस कलए इसकी सारी ची़िें सीक्रेट ही रहें तो
बे हतर होगा।"

"मगर सर।" ररतू ने कहा___"किधी के घर िालों को सु रकक्षत तो ईरना ही होगा हमें।


िरना उनके ऊपर मंत्री का क़हर कभी भी टू ट पडे गा।"
"एक काम करो तु म।" ककमश्नर ने कहा___"किधी के माॅ बाप को भी अपने पास ही
रखो।"

"ले ककन सर।" ररतू ने कहा___"उन्हें मैं अपने पास ले कर कैसे आऊगी? सं भि है कक
मंत्री ने अपने आदमी उनके आस पास कनगरानी में लगा कदये हों। उस सू रत में जब िो
दे खेंगे कक कमस्टर एण्ड कमसे स चौहान ककसी के द्वार ले जाए जा रहे हैं तो िो ़िरूर
उस बात की सू चना मं त्री को दे दें गे और हमारा पीछा भी कर सकते हैं।"

"ररस्क तो ले ना ही पडे गा ऑकिसर।" ककमश्नर का गंभीर स्वर___"तु म चौहान को


िोन करके कहो कक िो तु म्हें ककसी खास जगह पर आकर कमलें उसके बाद उस
खास जगह पर हमारे पु कलस के आदमी सादे कपडों में उन्हें िहाॅ से ररसीि कर
लें गे। पु कलस के िो आदमी चौहान और उनकी पत्नी को ककसी खास जगह पर ही
ले कर आ जाएॅगे जहाॅ से तु म उन्हें ररसीि कर अपने साथ ले जाना।"

762
"दै ट्स ए गुड आइकडया सर।" ररतू ने कहा___"हलाॅकक ररस्की तो ये भी है ककन्तु
जैसा कक आपने कहा ररस्क तो ले ना ही पडे गा। इस कलए ऐसा ही करते हैं सर।"
"ठीक है।" ककमश्नर ने कहा___"तु म ऐसा ही करो। मगर होकशयारी और सतकगता
से ।"
"यस सर।" ररतू ने कहा।

इसके साथ ही काल कट गई। ररतू के चे हरे पर इसके पहले जहाॅ कचं ता ि परे शानी
के भाि थे िही ं अब राहत के भाि झलकने लगे थे । यद्यकप उसे पता था कक ऐसा
करना भी ररस्की ही था। क्ोंकक मंत्री ने अगर अपने आदकमयों को किधी के माॅ बाप
की कनगरानी में लगा कदया होगा तो यकीनन िो लोग जान जाएॅगे और पीछा करें गे।
मगर ये भी सच था कक किधी के माॅ बाप को सु रकक्षत करना ़िरूरी था। अतः ररतू ने
मोबाइल में किधी के पापा का नं बर खोज कर काल लगा कदया।

"हैलो अं कल मैं ररतू बोल रही हूॅ।" उधर से काल ररसीि ककये जाते ही ररतू ने कहा
था।
"ओह हाॅ ररतू बे टा।" उधर से कमस्टर चौहान का तकनक चौंका हुआ स्वर
उभरा___"कैसी हो तु म? उस कदन के बाद से किर आई नही ं तु म। क्ा किधी के जाने
से सारे ररश्े खत्म हो गए? मेरा दामाद तो अपनी मरहूम पत्नी की अल्कथथयाॅ तक ले ने
नही ं आया। ऐसी उम्मीद तो न थी मु झे उससे ।"

"राज की जगह उसके नाम से अल्कथथयाॅ ले ने मैं ही तो आई थी अं कल।" ररतू ने


कहा___"आप से बताया तो था हालातों के बारे में।"
"ओह हाॅ हाॅ बताया था तु मने बे टा।" उधर से चौहान का स्वर उभरा___"क्ा
करूॅ बे टी कुछ याद ही नही ं रहता। जब से बे टी हमें छोंड कर गई है तब से एकदम
अकेले हो गए हैं हम दोनो। सच कहें तो कुछ भी अच्छा नही ं लगता। ये क़िंदगी तो
बस बोझ सी लगने लगी है।"

"ऐसा मत ककहए अं कल।" ररतू ने दु खी भाि से कहा___"किधी के चले से आप दु खी


मत होइये। मैं भी तो आपकी बे टी ही हूॅ। आप मुझे अपनी किधी ही समकझये अं कल।
मैने तो उसी कदन आप सबसे ररश्ा बना कलया था कजस कदन किधी को मैने अपनी
छोटी बहन बनाया था। उसके जाने का हम सबको बे हद दु ख है मगर ये भी सच है
कक इस दु ख को ले कर बै ठा तो नही ं रहा जा सकता न। आप कबलकुल भी दु खी मत
होइये और ना ही ये समकझए कक आप अब अकेले हो गए हैं। हम सब आपके ही तो
हैं। आपका हम पर िै सा ही हक़ है जैसा कक किधी पर था आपका।"

"ओह शु कक्रया बे टी।" चौहान का लऱिता हुआ स्वर उभरा___"तु मने ये कह कर सच

763
में मु झे अकेले पन के एहसास से मुक्त करिा कदया। मेरे कदल में जीने की चाह जाग
उठी है। खै र, ये बताओ बे टी कक अब कैसे हालात हैं िहाॅ पर?"

"हालात तो अभी काबू में ही हैं अं कल।" ररतू ने कहा___"मगर एक गंभीर समस्या
पै दा हो गई है।"
"क कैसी समस्या बे टा?" चौहान के स्वर में एकाएक कचं ता के भाि आ गए थे ___"सब
ठीक तो है न?"

ररतू ने सं क्षेप में चौहान को मंत्री से सं बंकधत सारी बातें बता दी। चौहान ये जान कर
चककत था हो गया था कक उसकी बे टी के साथ कुकमग करने िालों को ररतू खु द स़िा
दे रही है। इस बात से चौहान को बडी खु शी भी हुई। ककन्तु ररतू ने मौजूदा हालातों के
बारे में जो कुछ भी उसे बताया उससे िो कचं कतत भी हो उठा था।

"इस कलए अं कल।" सारी बातें बताने के बाद किर ररतू ने कहा___"मैं चाहती हूॅ कक
आप और ऑटी कजतना जल्दी हो सके तो घर से कनकल कर मेरे पास आने की
कोकशश कीकजए।"
"ले ककन बे टा।" उधर से चौहान ने कहा___"उस मंत्री ने हमारे आस पास कनगरानी के
कलए अपने आदकमयों को लगाया होगा तो उस सु रत में हम भला कैसे कनकल पाएॅगे
यहाॅ से ?"

"उसका भी इं तजाम कर कदया है मैने।" ररतू ने कहा___"आप बस िो करते जाइये जो


मैं कहूॅ।"
"ठीक है बे टा।" चौहान ने कहा___"बताओ क्ा करना है हमें?"
"आप अपना ़िरूरी सामान ले कर इसी िक्त तै यार हो जाइये।" ररतू ने
कहा___"थोडी ही दे र में मेरे पु कलस कडपाटग मेन्ट के आदमी सादे कपडों में आपको ले ने
आएॅगे। आप उनके साथ चले आइये गा। उसके बाद का काम मेरे पु कलस के िो
आदमी और मैं सम्हाल लें गे।"

"ठीक है बे टा।" उधर से चौहान ने कहा___"जै सा तु म कहो।"


"ओके किर आप जल्दी से तै यारी कर लीकजए।" ररतू ने कहा___"मैं अपने आदकमयों
को भे जती हूॅ आपके पास।"

इसके साथ ही ररतू ने काल कट कर दी। कुछ पल रुकने के बाद उसने किर से ककसी
को िोन लगाया और थोडी दे र तक ककसी से कुछ बातें की। उसके बाद काल कट
करके बे ड पर आराम से ले ट गई। अभी िह ले टी ही थी कक उसका िोन बज उठा।
उसने मोबाइल िोन उठाकर स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को दे खा तो सहसा

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उसके चे हरे पर सोचो के भाि उभरे ।

"कहो प्रकाश क्ा खबर है?" ररतू ने सोचने िाले भाि से काल ररसीि करते ही पू छा।
"...........। उधर से कुछ कहा गया।
"ओह तो ये बात है।" ररतू ने कुछ सोचते हुए कहा__"िै से ककतने आदमी होंगे िो
लोग?"
"...........।" उधर से प्रकाश नाम के आदमी ने किर कुछ कहा।

"चलो अच्छी बात है।" ररतू ने कहा___"और कुछ?"


"...........। उधर से किर कुछ कहा गया।
"क्ा???" ररतू चौंकी___"डाक्टर भला ककस कलए आया था िहाॅ?"
"...........।" उधर से पु नः कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" ररतू ने कहा___"ले ककन माॅम को चक्कर कैसे आ गया था? क्ा
तु मने पता नही ं ककया?"

"..........।" उधर से प्रकाश ने कुछ बताया।


"ओह तो ये बात है।" ररतू चौंकने के साथ मु स्कुराई भी___"चलो ठीक है प्रकाश।
बहुत अच्छी खबर दी है तु मने । ऐसी ही अं दर की खबर दे ते रहना और हाॅ ़िरा
होकशयार और सतकग रहना।"

ये कह कर ररतू ने िोन काट कदया। उसके चे हरे पर इस िक्त कई तरह के भािों का


आिागमन चालू हो गया था। खै र उसके बाद ररतू अपने कडपाटग मेन्ट के पु कलस िालों
के िोन काल का इन्त़िार करने लगी। लगभग बीस कमनट बाद ररतू का आईिोन
बजा। ररतू ने तु रंत काल को ररसीि ककया। काल पु कलस के आदकमयों का ही था।
उन्होंने बताया कक िो लोग कमस्टर एण्ड कमसे स चौहान को ले कर चल कदये हैं और
बताई हुई जगह पर आ रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया कक आस पास ऐसा कोई आदमी
नही ं कदखा कजस पर ककसी तरह का ़िरा सा भी सं देह ककया जा सके।

पु कलस के उस आदमी से बात करने के बाद ररतू भी बे ड से उठी और कजप्सी की


चाभी ले कर कमरे से बाहर की तरि कनकल पडी। सीकढयों से उतर कर जब िो नीचे
आई तो डर ाइं गरूम में रखे सोिों पर नै ना और कुरुर्ा का भाई बै ठा कदखा उसे । ररतू
नीचे आते दे ख नै ना ने उससे कहा___"ररतू बे टा, तु म्हारे ये मामा जी कह रहे हैं कक
इन्हें अब अपने घर िापस जाना है। कह रहे हैं बहुत काम बाॅकी है घर में।"

"क्ों मामा जी इतना जल्दी?" ररतू ने कहा___"अभी तो हमने आपसे ठीक से बातें भी
नही ं की है और आप जाने की बात करने लगे।"

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"बातें तो हो ही गई हैं ररतू बे टा।" हे मराज ने कहा__"अब मु झे जाने दो। बहुत काम
है। तु म्हें तो पता है दू सरे की नौकरी में अपनी मनम़िी तो नही ं चलती न।"

"ठीक है मामा जी।" ररतू ने कहा___"जैसा आपको अच्छा लगे। तो कब जा रहे हैं
आप?"
"मैं तो तै यार ही बै ठा हूॅ बे टा।" हेमराज ने कहा___"बस तु म्हारे आने का ही इन्त़िार
कर रहा था।"
"ओह।" ररतू ने कहा___"चकलए किर। मैं भी उधर ही जा रही हूॅ। सो आपको भी
छोंड दू ॅगी।"

ररतू के कहने पर हेमराज सोिे से उठा और बगल से ही रखे एक छोटे से बै ग को


पीठ पर लाद कर बाहर की तरि चल कदया। उसके पीछे ररतू भी चल दी। थोडी ही
दे र में िो दोनो कजप्सी में सिार सडक पर चल रहे थे । दोनो के बीच थोडी बहुत बात
चीत होती रही और किर िो नहर िाली जगह के पास बने पु ल के इसी तरि रुक
गए।

लगभग बीस कमनट बाद सामने से एक टोयटा आती कदखी। ररतू को पहचानने में
़िरा भी दे री न हुई कक उस गाडी में उसके पु कलस के ही आदमी हैं। कुछ ही दे र में िो
गाडी ररतू के पास आकर रुकी। गाडी के आगे पीछे के दरिाजे खु ले। अगले दरिाजे
से पु कलस का एक आदमी उतरा जबकक पीछे के दरिाजे से किधी के माॅ बाप उतरे ।

ररतू उनके पास जाकर उन्हें नमस्ते ककया और उन्हें अपने साथ ला कर अपनी कजप्सी
की कपछली शीट पर बै ठने का इशारा ककया। उन दोनो के बै ठने के बाद ररतू ने
पु कलस िालों से कहा कक िो हे मराज को हरीपु र छोंड आएॅ जो यहाॅ से लगभग तीस
ककलो मीटर की दू री पर था। ररतू के कहने पर िो पु कलस िाले हेमराज की अपनी
गाडी में बै ठा कर िहाॅ से चले गए। उनके जाने के बाद ररतू भी अपनी कजप्सी को
स्टाटग कर िापस िामगहाउस की तरि चल दी।

किधी के माता कपता की सु रकक्षत करके ररतू अब बे किक्र हो चु की थी। अब िो बे किक्री


से कोई भी काम कर सकती थी। रास्ते में ररतू ने किधी के माॅ बाप को किराज के बारे
में भी बता कदया कक िो कल दोपहर तक मुम्बई से िापस आ जाएगा। ऐसे ही बातें
करते हुए ये लोग कुछ ही समय में िामग हाउस पहुॅच गए। कजप्सी से उतर कर ररतू
किधी के माता कपता को अं दर ले गई। जहाॅ पर नै ना बु आ बै ठी थी। ररतू ने नै ना को
किधी के माॅ बाप का पररचय कदया और कहा कक इनके रहने के कलए एक कमरा
साि सु थरा करिा दें । थोडी दे र डर ाइं ग रूम में उन सबसे बातचीत करने के बाद ररतू
अपने कमरे में चली गई।

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~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अजीब सं योग था।
जैसा कक ररतू को पहले से ही अं देशा था कक मं त्री अपनी हरकतों से बाज नही ं
आएगा। कहने का मतलब ये कक जैसे ही कमस्टर एण्ड कमसे स चौहान ररतू के
िामग हाउस पहुॅचे थे िै से ही मंत्री ने अपने आदकमयों को गुप्त तरीके से किधी के घर
के आस पास कनगरानी के कलए लगा कदया था। ककन्तु मुल्किल से आधे घंटे बाद ही
मंत्री के आदमी ने मंत्री को िोन करके बताया कक कजस ब्यल्कक्त की कनगरानी में हम
लोग यहाॅ आए थे उसके घर में तो ताला लगा हुआ है। कुछ लोगों ने बताया कक एक
सिेद रं ग की गाॅडी आई थी कजसमे चौहान अपनी बीिी को कलए बै ठ गया था।
उसके हाॅथ में एक बडा सा बै ग भी था। उन दोनों के बै ठते ही िो सिेद रं ग की
गाडी चली गई थी।

िोन पर अपने आदमी की ये खबर सु न कर मंत्री भौचक्का सा रह गया था। िो


समझ गया कक भले ही उसने अपने बच्चों के ककडनै पर से िादा ककया था इसके बाद
भी ककडनै पर को उसके िादे पर ऐतबार न हुआ था। शायद यही िजह थी कक
ककडनै पर ने िक्त रहते अपनी सु रक्षा के मद्दे ऩिर अपने घर में ताला लगा कर कही ं
ऐसी जगह नया कठकाना बना कलया था कजस जगह के बारे मंत्री को पता तक न चल
सके। िोन पर अपने आदमी की खबर सु नने के बाद इस िक्त मंत्री अपने उन्ही ं
तीनों साकथयों के साथ डर ाइं गरूम में गंभीर मुद्रा में बै ठा हुआ था।

"कशकार हमारे हाॅथ से बहुत ही आसानी से कनकल गया चौधरी साहब।" अिधेश
श्रीिास्ति ने कहा___"उसे आपके िादे के बािजूद पता था कक आप ऐसा कोई क़दम
उठाएॅगे। इसी कलए तो उसने िौरन ही अपनी सु रक्षा का इं तजाम कर कलया। सबसे
बडी बात ये कक आपको ऐसे िक्त में ऐसा कोई क़दम उठाना ही नही ं चाकहए था।
क्ोंकक सं भि है कक इससे हमें भारी खाकमयाजा भु गतना पड जाए। दू सरी बात जब
आपको पता चल ही गया था तो उस बात को िोन पर उस ककडनै पर को बताना ही
नही ं चाकहए था बल्कि आपको जो करना था िो उस ककडनै पर की जानकारी में आए
बग़ैर ही करना चाकहए था।"

"ग़लती तो हमसे यकीनन हो गई है अिधेश।" कदिाकर चौधरी ने अिसोस भरे भाि


से कहा___"हमें लगा कक जब हम उसे बताएॅगे कक उसकी असकलयत हम जान गए
हैं तो उसके होश उड जाएॅगे और अपने बु रे अं जाम का सोच कर िो सब कुछ हमारे
हिाले कर दे गा कजसके बलबू ते पर िो इतना उछल रहा है। इतना ही नही ं िो हमारे
बच्चों को भी सही सलामत हमारे पास भे ज दे गा। इसके बाद िो हमसे अपने उस
अपराध की माफ़ी माॅगेगा। मगर ऐसा हुआ नही ं बल्कि िो तो हम पर और भी
ज्यादा हािी हो गया था।"

767
"अब जो होना था िो तो हो ही गया चौधरी साहब।" सहसा अशोक मे हरा ने
कहा___"और इस पर अब बहस करने का कोई िायदा नही ं है। इस कलए हमें अब ये
सोचना चाकहए कक अब आगे हमें क्ा करना है ? िै से उस चौहान के अचानक अपने
घर से गायब हो जाने से एक बात तो साि हो गई है कक िो अकेला इस काम में नही ं
है। बल्कि कोई और भी है जो उसकी मदद कर रहा है।"

"ये तु म कैसे कह सकते हो?" कदिाकर चौधरी के माथे पर बल पडा___"और भला


कौन ऐसे मामले में उसकी मदद कर सकता है? जबकक सब जानते हैं कक ये मामला
हमसे सं बंकधत है। भला हमसे दु श्मनी मोल ले ने का दु स्साहस दू सरा कौंन कर सकता
है?"

"कोई तो होगा ही चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने सोचने िाले अं दा़ि से


कहा___"मैने भी अपने तरीके से उस लडकी के बारे में पता लगाया है।"
"क्ा मतलब?" चौधरी के साथ साथ सु नीता ि अिधेश भी चौंके थे , जबकक अिधेश
ने ही पू छा___"क्ा पता लगाया है उस लडकी के बारे में?"

"यही कक िो लडकी हमारे बच्चों के ही काले ज में पढती थी।" अशोक मे हरा कह रहा
था___"और हमारे बच्चों की िैण्ड ही थी। ककन्तु उसके बारे में एक बात ये भी पता
चली कक िो लडकी ककसी दू सरे लडके को चाहती थी और किर एक कदन
अकिश्वसनीय तरीके से उस लडके से प्रे म सं बंध तोड कलया था। उस लडके से अलग
होने के बाद ही िो सू रज के क़रीब आई थी। सू रज के ही एक दू सरे दोस्त ने इस बारे
में बताया कक किधी नाम की िो लडकी उस लडके से सं बंध ़िरूर तोड कलया था कक
ककन्तु अकेले में अर्क्र िो उस लडके की याद में ही रोती रहती थी।"

"ले ककन इस मैटर से उस बात का कहाॅ सं बंध है अशोक भाई कजसकी बात तु म कर
रहे हो कक चौहान की मदद कोई दू सरा भी कर रहा है?" अिधेश ने कहा था।

"सं बंध क्ों नही ं हो सकता भाई?" अशोक मे हरा ने कहा___"खु द सोचो कक जो
लडकी अपने प्रे मी से अलग होकर उसकी याद में इस तरह रोती थी तो क्ा ऐसा
नही ं हो सकता कक िो किर से अपने प्रे मी से कमलने की चाह कर बै ठे और कमल ही
जाए? दू सरी ग़ौर करने िाली बात ये भी है कक इश्क़ मुि कभी दु कनयाॅ से नही ं
छु पता। सं भि है कक किधी और उसके प्रे मी के उन प्रे म सं बंधों की खबर दोनो के घर
िालों को भी रही हो। ले ककन ककसी कारर्िश कमल न पाएॅ हों िो दोनो या किर
कमलने िाले रहे हों। मगर तभी लडकी के साथ रे प सीन हो गया। लडकी के साथ हुए
हादसे का पता किधी के प्रे मी को लगा होगा और उसने अपनी प्रे कमका के साथ हुए

768
इस जघन्य अपराध का बदला ले ने के कलए उतारू हो गया हो। कजसका नतीजा आज
इस रूप में हमारे सामने है।"

"तम्हारी बातों में िजन तो है अशोक।" अिधे श श्रीिास्ति ने कहा___"मगर ये महज


तु म्हारी सं भािनाएॅ हैं जो कक ग़लत भी हो सकती हैं। किर भी अगर तु म्हारी बातों
को मान भी कलया जाए तो इसका मतलब ये हुआ कक हमारे बच्चों को ककडनै प करने
िाला चौहान नही ं बल्कि उस लडकी का प्रे मी है।"

"कबलकुल।" अशोक ने कहा___"एक पल के कलए ये सोचा जा सकता है कक लडकी


के बाप ने अपनी बे टी के साथ हुए उस कुकमग का बदला ये सोच कर न कलया कक
बदला ले ने से िो सब तो िापस कमलने से रहा जो इज्ज़ित के रूप में लु ट चु का है। या
किर ये भी सोच कलया होगा कक कानू नन भी िो हमारा कुछ नही ं कर पाएगा। मगर
लडकी का प्रे मी बदला ले ने के कसिा कुछ और सोचे गा ही नही ं और िही िो कर रहा
है।"

अशोक मे हरा की इस बात से डर ाइं ग रूम में कुछ दे र के कलए ब्लेड की धार की
माकनं द सन्नाटा छा गया। सभी के चे हरों पर गहन सोचों के भाि नु मायाॅ हो उठे थे ।

"मुझे लगता है कक अशोक भाई साहब का ये सोचना एकदम सही है।" सहसा इस
बीच पहिी बार सु नीता ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"क्ोंकक कजस प्रकार से उसने
इतने कम समय में हमारे बच्चों को और हमारी रचना बे टी को ककडनै प ककया है उस
तरह से िो चौहान तो कम से कम कर ही नही ं सकता। िो लडका जिान है और गरम
खू न है। रे प केस होने के दू सरे कदन ही कजस तरह से उसने हमारे बच्चों को हमारे ही
िामग हाउस से ककडनै प ककया और इतना ही नही ं बल्कि हमारे ल्कखलाफ़ ऐसा
खतरनाक सबू त िहाॅ से प्राप्त ककया िो चौहान के बस का तो हकगग़ि नही ं था। आज
जब उसे चौधरी साहब से ये पता चला कक मंत्री महोदय उसकी ये असकलयत जान गए
हैं कक िो दरअसल चौहान ही है तो उसे चौहान की किक्र हुई इसी कलए उसने िक्त
रहते चौहान को सु रकक्षत कर कदया और हमारी पहुॅच से शायद दू र भी कर कदया
है।"

"अरे िाह।" कदिाकर चौधरी ने हैरत से ऑखें िैलाते हुए कहा___"क्ा खू ब कदमाग़
लगाया है मेरी राॅड ने । असकलयत भले ही कुछ और ही हो मगर कजस तरह से
अशोक और सु नीता ने अपनी बातें रखी ं उससे यही लगता है कक ये सब लडकी के
उस प्रे मी का ही ककया धरा है। खै र, अब सिाल ये है कक लडकी का िह प्रे मी कौन है
कजसके कपछिाडे में इतनी ज्यादा कमची लग गई कक िो अपनी जाने बहार के साथ हुए

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उस काण्ड का बदला ले ने लगा है। आकखर पता तो चले कक िो ककस खे त की पै दाईश
है कजसने हम पर हाॅथ डालने का दु स्साहस ककया है।"

"मैने उस लडके का पता भी करिाया है चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने


कहा___"िो लडका हल्दीपु र का है। बडे घर पररिार से ताल्लुक रखता है ककन्तु।"
"ककन्तु क्ा अशोक?" चौधरी के माथे पर कशकन पै दा हुई।
"पता चला है कक लडके के ताऊ ने उसे और उसकी माॅ बहन को हर ची़ि से
बे दखल कर रखा है।" अशोक मे हरा ने कहा___"लडके के ताऊ का नाम ठाकुर
अजय कसं ह है । हल्दीपु र में बडी भारी ककन्तु शानदार हिे ली है तथा अच्छी खासी
़िमीन जायदाद भी है। खु द अजय कसं ह एक बडा कारोबारी इं सान है। पररिार की
आपसी कलह की िजह से उसने अपने मझले ककन्तु स्वगगिाशी भाई किजय कसं ह के
उस लडके को और लडके की माॅ बहन को हिे ली से बे दखल कर कदया है।"

"ओह बडी अजीब बात है ये तो।" चौधरी ने सोचने िाले भाि से कहा___"किर तो िो
लडका दर दर का कभखारी ही है। ऐसी हालत में िो ये सब हमारे साथ कैसे रहा पा
रहा है? ये तो हैरत की बात है।"

"हैरत िै रत की कोई बात नही ं है चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने कहा___"ताऊ के


द्वारा हिे ली से बे दखल होने के बाद िो लडका आजकल मुम्बई में रहता है अपनी
किधिा माॅ और बहन के साथ।"
"अच्छा।" चौधरी ने कहा___"तो क्ा िो मुम्बई में रहते हुए ये सब कर रहा है?"

"इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नही ं कहा जा सकता मगर।" अशोक मे हरा ने
कहा___"मगर सं भि है कक उसे अपनी प्रे कमका के साथ हुए काण्ड का पता चला हो
और िो मुम्बई से यहाॅ आया हो। उसके बाद उसने ये सब शु रू ककया हो।"

"ओह।" चौधरी को जैसे बात समझ आ गई___"सं भि है ऐसा ही हो। खै र उस लडके


के पररिार में और कौन कौन लोग हैं?"
"लडके का बाप तीन भाई थे ।" अशोक ने कहा___"सबसे बडा अजय कसं ह, किर
लडके का बाप किजय कसं ह और उसके बाद अभय कसं ह। अजय कसं ह के दो बे कटयाॅ
और एक लडका है। उसकी बडी बे टी हल्दीपु र थाने में थाने दार है।"

"क क्ा????" चौधरी ही नही ं बल्कि सभी बु री तरह चौंके थे , किर चौधरी ने ही
कहा___"उस ठाकुर की बे टी थाने दार है। मतलब की पु कलस िाली है िो?"
"हाॅ मगर आप ये हकगग़ि भी न सोचें कक।" अशोक मेहरा ने कहा____"कक उसका
इस मामले में कोई हाथ है।"

770
"अरे , क्ों नही ं हो सकता ऐसा?" चौधरी से पहले अिधेश बोल पडा था___"िो अपने
चचे रे भाई की मदद तो यकीनन कर सकती है भाई।"
"ऐसा नही ं है अिधेश भाई।" अशोक ने कहा___"क्ोंकक अजय कसं ह ही नही ं बल्कि
उसकी औलादें भी उस लडके और उसकी माॅ बहन से नफ़रत करती हैं।"

"एक कमनट अशोक भाई।" सहसा अिधेश श्रीिास्ति ने कुछ सोचते हुए
कहा___"एक कमनट। हमारे बच्चों ने उस लडकी के साथ रे प सीन को अं जाम कदया
उसके बाद िो कचमनी में बने अपने िामग हाउस पर चले गए। जहाॅ से उन्हें ककडनै प
कर कलया गया। कचमनी हल्दीपु र के बाद ही पडता है। खै र रे प की िारदात हल्दीपु र
के आस पास के ही क्षे त्र में हुई या किर ऐसा होगा कक हमारे बच्चों ने अपने
िामग हाउस पर ही उस लडकी से सामूकहक रे प ककया और उसके बाद उसे हल्दीपु र
की सीमा के अं दर ले जा कर छोंड आए होंगे। ये सब मैं इस कलए कह रहा हूॅ कक िो
रे प सीन उस समय कािी िैल गया था उस क्षे त्र में। खै र अब सोचने िाली बात ये है
कक अगर रे प पीकडता लडकी हल्दीपु र की सीमा में पाई गई तो क्ा हल्दीपु र के थाने
में मौजूद िो थाने दारनी चु प बै ठी रही होगी? उसने शु रुआती ऐक्शन तो कलया ही
होगा।"

"तु म आकखर कहना क्ा चाहते हो?" अशोक मेहरा ने पू छा___"इस मामले में
अचानक तु म इस एं कगल से क्ों सोचने लगे?"
"दरअसल मैं भी तु म्हारी तरह सं भािनाएॅ ही ब्यक्त कर रहा हूॅ भाई।" अिधेश ने
कहा___"मामला कािी पे चीदा है। मगर मैं इधर उधर की ककडयाॅ समेटने की
कोकशश कर रहा हूॅ।"

"साि साि बोलो क्ा कहना चाहते हो तु म?" सहसा चौधरी कर उठा___"यूॅ बातों
को घुमाने का क्ा मतलब है?"
"जैसा कक अशोक भाई ने कहा।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"कक थाने दारनी
अपने भाई की मदद नही ं कर सकती क्ोंकक िो भी अपने माॅ बाप की तरह ही
उससे नफ़रत करती है। मगर सिाल ये है कक थाने दारनी के क्षे त्र में ररप पीकडता पाई
गई तो क्ा थाने दारनी ने इस पर कोई ऐक्शन नही ं कलया होगा?"

"अगर उसने कोई ऐक्शन कलया होता तो उसका पता हमें ़िरूर चलता।" कदिाकर
चौधरी ने कहा___"ये तो सच है कक िो रे प स्कैण्डल एक पु कलस केस ही था मगर उस
स्कैण्डल का कोई पु कलस केस नही ं बना। इस बात खु लासा ककमश्नर खु द कर चु का
है।"

"या किर ऐसा हुआ होगा कक उस थाने दारनी ने केस बनाने की कोकशश की होगी।"

771
अशोक ने कहा___"मगर ककमश्नर ने उसे केस बनाने या उस िारदात पर कोई
ऐक्शन ले ने से मना कर कदया होगा। थाने दारनी भला अपने आला अिसर के
ल्कखलाफ़ कैसे कोई क़दम उठाती? "

"हाॅ ऐसा भी हो सकता है।" चौधरी ने कहा___"और आम जनता ने इस पर हो


हल्ला इस कलए नही ं ककया क्ोंकक उसे भी पता है कक मामला सीधा मंत्री के बे टे और
उसके बे टे के दोस्तों का था। यानी कक हमारे डर की िजह से जनता खामोश रह
गई।"

"तो इन बातों का कनष्कसग ये कनकला।" सहसा सु नीता ने गहरी साॅस ले ने के बाद


कहा___"कक िो लडका कजसे कक उसके ताऊ ने उसकी माॅ बहन के साथ घर से दर
बदर ककया िही इस सबके पीछे है। यानी िो अपनी प्रे कमका के साथ हुए उस रे प का
बदला ले रहा है।"

"कबलकुल।" अशोक ने पु ऱिोर लहजे में कहा__"किधी के माॅ बाप के अलािा िही
एक ऐसा है जो ये सब कर सकता है। यानी ये सब करने की िजह उसके पास भी
है।"
"अगर ये िाकई सच है।" अिधेश ने कहा___"तो अब हमें उस लडके का पता लगाना
होगा। मगर इस बार पहले जैसी ग़लती हकगग़ि भी नही ं होनी चाकहए। िरना इस बार
इसका खाकमयाजा हमें भारी कीमत पर चु काना पड सकता है।"

"बडी हैरत की बात है।" कदिाकर चौधरी के लहजे में कठोरता थी, बोला___"एक
कपद्दी से इं सान ने हमें इस तरह अपने कशकंजे में कसा हुआ है कक हम आ़िाद होते
हुए भी आ़िाद ि बे किक्र नही ं हैं। िो जब चाहे हम सबको बीच चौराहे पर नं गा दौडा
सकता है और हम कुछ कर नही ं सकते । सारे प्रदे श में हमारी एकछत्र हुकूमत है।
हमारी इजा़ित के कबना इस प्रदे श में कही ं का कोई पिा भी नही ं कहल सकता। मगर
कमाल दे खो कक हम सब जो खु द को सबसे बडा सू रमा समझ रहे हैं आज उस
हराम़िादे की मु िी में कैद हो कर रह गए हैं। लानत है हम पर और हमारे सू रमा होने
पर।"

"आप कचं ता मत कीकजए चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने कहा___"बकरे की अम्मा


कब तक खै र मनाएगी? आज भले ही उस कमीने का पलडा हम पर भारी है मगर
ककसी कदन तो उससे भी कोई चू क होगी कजसके तहत िो हमारे हत्थे चढे गा। उसके
बाद हम बताएॅगे कक हमारे साथ इतना बडा दु स्साहस करने का ककतना खू बसू रत
अं जाम होता है।"

772
"बकिास मत करो अशोक।" चौधरी ने कबिरे हुए से लहजे में लगभग चीखते हुए
कहा___"तु म्हारा ये डायलाग हम इसके पहले भी जाने ककतनी बार सु न चु के हैं मगर
अब तक ऐसा कोई पल नही ं आया कजससे हमें लगे कक हाॅ अब हालात हमारे हक़ में
हैं। मादरचोद ने अपाकहज बना के रख कदया है हमे । ककसी से ठीक से कमल नही ं
सकते । ककसी समारोह में नही ं जा सकते । साला हर पल डर लगा रहता है कक ऐसी
ककसी जगह पर िो हराम़िादा कोई ऐसी िै सी हरकत न कर दे कक सबके सामने
हमारी इज्ज़ित का कचरा हो जाए।"

"बु रा मत माकनएगा चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"मगर हमें इतना बे बस बना


दे ने में सबसे बडा हाॅथ आपके बे टे सू रज का है।"
"क्ा मतलब है तु म्हारा?" चौधरी एक झटके से अशोक की तरि घूमते हुए कहा था।

"आप खु द सोकचए।" अशोक ने कहा___"हमारे सभी बच्चों का लीडर कौन


है___आपका बे टा ही न?"
"हाॅ तो।" चौधरी चकराया।
"आप ये बताइये कक िामगहाउस पर हमारे ऐसे सं बंधों की िीकडयो ल्कक्लप बनाने की
क्ा ़िरूरत थी उसे ?" अशोक ने कहा___"क्ा उसे इतना भी एहसास नही ं था कक
ऐसे िीकडयो ककसी डायनामाइट से कम नही ं होते । हम जैसे लोगों के ह़िारो प्रकतद्वं दी
होते हैं कजन्हें हमारी ऐसी ही ककसी कम़िोरी की तलाश रहती है। आज उन्ही ं
िीकडयोज की िजह से हम इतना बे बस ि लाचार बने बै ठे हैं। अगर िो िीकडयोज बने
ही न होते तो आज ककसी की कहम्मत ही न होती हमें इतना मजबू र करने की।"

"हाॅ हम जानते हैं कक हमारे बे टे ने ऐसे िीकडयोज बना कर बहुत बडी ग़लती की
है।" चौधरी ने खे द भरे भाि से कहा___"मगर अब जो हो गया उसका कोई कर भी
क्ा सकता है? हमें तो सारे बच्चों की किक्र है । जाने उनके साथ कैसा सु लूक कर
रहा होगा िो हराम़िादा?"

"हम खु द तो कुछ कर नही ं सकते हैं।" अिधे श ने कहा___"मगर ककसी और को इस


काम में ़िरूर लगा सकते हैं।"
"क्ा मतलब??" अशोक के माथे पर कशकन उभरी।
"मुझे लगता है कक हमें इस काम के कलए ककसी क़ाकबल ि बहादु र कडटे ल्कक्टि को
हायर करना चाकहए।" अिधेश ने कहा___"जासू स लोग गुप्त तरीके से काम करने में
कािी माकहर होते हैं। िो अपने और अपनी गकतकिकधयों के बारे में ककसी को तब तक
पता नही ं चलने दे ते जब तक कक िो खु द न चाहें। अगर यही काम हम अपने
आदकमयों से कराएॅगे तो हमारी ककसी गकतकिधी का उस लडके को पता चलने में
दे र नही ं लगेगी। अब तक के उसके कक्रया कलाप से ये ़िाकहर हो चु का है कक िो

773
अपने हर काम में बे हद होकशयारी और सतकगता रखता है और हमारी पल पल की
खबर रखता है । इस कलए हमें ककसी कडटे ल्कक्टि को हायर करना चाकहए।"

"आइकडया बु रा नही ं है।" अशोक ने कहा___"मैं तु म्हारी इस सलाह से सहमत हूॅ।


यकीनन इस काम में एक कडटे ल्कक्टि ही कुछ कर सकता है। िो उस लडके की सारी
जन्मकुण्डली भी कनकाल ले गा और हमारे बच्चों का पता भी लगा ले गा।"

"तो किर दे र ककस बात की है?" चौधरी ने कहा___"अगर तु म दोनों को लगता है कक


कोई कडटे ल्कक्टि इस काम को बखू बी सिलतापू िगक कर सकता है तो किर ऐसे ककसी
कडटे ल्कक्टि को िौरन हायर करो।"

"मेरी जानकारी में ऐसा एक कडटे ल्कक्टि है।" अिधेश ने कहा___"मैं आज ही उससे
िोन पर बात करता हूॅ और उसे जल्द से जल्द यहाॅ बु लाता हूॅ।"
"अच्छी बात है।" चौधरी ने कहा___"उसे बोलो िौरन हमारे सामने हाक़िर हो जाए।
उसको उसके काम की मु हमाॅगी िीस के रूप में रकम कमले गी।"

अिधेश ने चौधरी की बात सु नकर अपने कोट की पाॅकेट से मोबाइल कनकाला और


उसमें से ककसी को िोन लगाया। थोडी दे र बात करने के बाद उसने मोबाइल िापस
अपनी पाॅकेट में डाल कलया।

"चौधरी साहब।" किर उसने मंत्री की तरि दे खते हुए कहा___"मैने कडटे ल्कक्टि से
बात कर ली है । िो कल तक हमारे पास पहुॅच जाएगा। अब आप ककसी बात की
किक्र मत करें । बहुत जल्द हमारा दु श्मन हमारे कब्जे में होगा और हमारे बच्चे हमारे
पास होंगे।"

"अच्छी बात है अिधेश।" चौधरी ने कहा___"अब तो हमें तु म्हारे उस कडटे ल्कक्टि पर ही


भरोसा करना है। इसके कसिा दू सरा कोई चारा भी नही ं है।"
"आप कनकश्चंत हो जाइये चौधरी साहब।" अिधे श ने कहा___"कडटे ल्कक्टि बहुत ही
क़ाकबल ब्यल्कक्त है। मु झे यकीन है कक कबना कोई नु कसान हुए हमारा हर काम हो
जाएगा।"

"इससे ज्यादा हमें और चाकहए भी क्ा?" चौधरी ने कहने के साथ ही सहसा सु नीता
की तरि दे खा___"इतने कदनों में आज पहली बार एक नई उम्मीद पै दा हुई है। इस
कलए हम चाहते हैं कक आज तबीयत खु श कर दो तु म।"
"हाय।" सु नीता ने दाॅतों तले अपने होंठ दबा कर आह सी भरते हुए
कहा___"ककतनी सुं दर बात कही है मेरे बलम ने । मैं तो कब से इसके कलए तडप रही
हूॅ। अब जब मूड बन ही गया है तो चकलए कमरे में और तबीयत हरी कर लीकजए।"

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सु नीता की इस बात से चौधरी तो मु स्कुराया ही उसके साथ अशोक ि अिधेश भी
मुस्कुरा पडे । इसके बाद चारो ही सोिों से उठ कर कमरे की तरि बढ गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सु बह हुई और एक नये जीिन के नये सफ़ की शु रुआत हुई। टर े न की शीट पर सोते
हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर कोई झुका हुआ है। मुजे मेरे चे हरे पर गरम गरम
हिा लगती हुई प्रतीत हो रही थी साथ ही ककसी औरत के बदन पर लगे परफ्यूम की
खु शबू भीमेरे नथु नों में समा रही थी। मेरी नी ंद टू टने की यही िजह थी। मैने पट से
अपनी ऑखें खोल दी और अगले ही पल मैं ये दे ख कर बु री तरह चौंका कक नीलम
मेरे चे हरे के पास झुकी हुई थी।

उधर यही हाल नीलम का भी हुआ था। उसे कदाकचत उम्मीद नही ं थी कक मैं इस तरह
झटके से ऑखें खोल दू ॅगा और किर जैसे ही मैने पट से अपनी ऑखें खोली तो िो
एकदम से हडबडा गई थी। मगर हैरत की बात ये हुई कक उसने पलक झपकते ही
खु द को सम्हाल भी कलया था।

"गुड माॅकनिं ग राज।" किर उसने मु स्कुराते हुए बडी ऩिाक़त से कहा___"सोते हुए
ककतने मासू म लगते हो तु म। मैं कािी दे र से यही दे ख रही थी कक मेरा भाई सोते
िक्त ककसी छोटे से बच्चे की तरह मासम ि क्ूट सा कदखता है । पहले मैने सोचा कक
तु म्हें जगाऊ मगर किर जब मैने दे खा कक तु म गहरी नीद में हो और एकदम से मासू म
कदख रहे हो तो मैने तु म्हें जगाना उकचत नही ं समझा। बल्कि एकटक तु म्हें दे खने लगी
थी।"

"अच्छा तो मैं तु म्हें।" मैने उठते हुए ककन्तु शरारत से कहा___"छोटा सा बच्चा ऩिर
आ रहा था सोते िक्त?"
"हाॅ कबलकुल।" नीलम ने मु स्कुराई___"तभी तो उस छोटे से बच्चे की मासू कमयत को
एकटक कनहारे जा रही थी मैं ।"
"पर मैने जब तु म्हें दे खा रात में।" मैने पु नः शरारत से ही कहा___"तो तु म सोते िक्त
ऐसी कदख रही थी जैसे कोई अस्सी साल की बु कढया सो रही हो। मैं तो टोटली
कन्फ्यूज हो गया था उस िक्त।"

"क्ा कहा???" नीलम एकदम से राशन पानी ले कर चढ दौडी___"मैं तु म्हें बु कढया


ऩिर आ रही थी। रुको अभी बताती हूॅ तु म्हें?"
"अरे नही ं यार।" मैंने एकदम से हडबडाते हुए कहा__"मैं तो म़िाक कर रहा था। तु म
बु कढया तो ककसी एं कगल से नही ं लगती हो मगर...।"

"मगर क्ा???" नीलम ने ऑखें कदखाई।

775
"मगर दादी माॅ ़िरूर लगती हो।" मैने हसते हुए कह कदया।
"क्ा बोला???" नीलम एकदम से मेरे ऊपर चढ कर मेरे पे ट पर बै ठ गई, और किर
मेरे सीने में मुक्के मारते हुए बोली___"मैं दादी माॅ लगती हूॅ। रुक बे टा बताती हूॅ
अब तु झे मैं।"

नीलम मेरे सीने में मुक्के मारे जा रही थी। मैं भी उससे बचने का कोई खास प्रयास
नही ं कर रहा था। मैने तो उसे छें डा ही इस कलए था कक िो ये सब करे । दरअसल
इन्ही ं सब ची़िों के कलए तो मैं तरसा था। अब तक तो ररतू और नीलम ने कभी मुझे
अपना भाई समझा ही नही ं था। भाई बहन के बीच कैसी कैसी शरारतें होती हैं उस
सबका मैने कभी स्वाद ही नही ं चखा था। मगर आज और इस िक्त िही सब मेरे
और नीलम के बीच हो रहा था। सच कहूॅ तो मुझे इस सबसे बे हद खु शी हो रही थी।
कदल में भडकते हुए जज़्बात जाने क्ों मु झे रुलाने पर उतारू हो रहे थे । मेरा कदल
कर रहा था कक इस िक्त भािनाओं में बहते हुए मैं नीलम से कलपट कर खू ब रोऊ
मगर मैं ऐसा नही ं करना चाहता था। क्ोंकक उससे माहौल दु खी सा हो जाता जबकक
मैं इस पल को जी भर के जीना चाहता था।

उधर हम दोनो बहन भाई की इस धमा चौकडी से आस पास बै ठे टर े न के सब लोग


आश्चयग से ऑख ि मुह िाडे एकटक दे खे जा रहे थे । हम दोनो को भी जैसे उन सबसे
कोई मतलब नही ं था और ना ही कोई परिाह थी। नीलम ़िोर ़िोर से जाने क्ा क्ा
बोले जा रही थी और मेरे ऊपर चढी हुई मु झ पर मुक्कों की बरसात ककये जा रही थी।
उसकी इस आिा़ि और मेरे ते ़ि हसी को सु न कर पीछे साइड ऊपर नीचे बथग पर
सो रहे सोनम और आकदत्य को भी जगा कदया। िो दोनो िौरन ही भाग कर हमारे
पास आ गए और इधर का ऩिारा दे ख कर है रान रह गए।

"ये तु म दोनो क्ा ऊधम मचा रखे हो?" सहसा सोनम ने लगभग ऊची आिा़ि में
कहा___"तु म दोनो को कुछ होश भी है कक इस िक्त कहाॅ हो तु म दोनो और तु म
दोनो की इस हरकत से आस पास िाले ककतना कडस्टबग हो रहे हैं।"

"दीदी इसने मु झे दादी माॅ बोला।" नीलम ने मुक्के मारना बं द करके कशकायत भरे
लहजे मे कहा___"पहले कह रहा था कक मैं बु कढया लगती हूॅ किर बात बदल कर
बोला कक मैं दादी माॅ लगती हूॅ।"
"हाॅ तो क्ा हो गया?" सोनम दीदी ने हाॅथ नचाते हुए कहा___"उसके ऐसा कहने
से क्ा तु म सच में दादी माॅ लगने लगी? दे खो तो अभी उसके ऊपर बै ठी हुई है
बे शरम। चल उतर राज के ऊपर से िरना दो चार लगाऊगी अभी।"

776
"नही ं उतरूॅगी।" नीलम ने दो टू क भाि से कहा___"इसने मुझे दादी माॅ क्ों
कहा? इससे पहले बोकलए कक ये मु झे बोले कक मैं हूर की परी लगती हूॅ। िरना आप
भी दे ल्कखये कक कैसे मैं इसे मार मार के इसका भु ताग बनाती हूॅ?"

"हूर की परी और तू ???" मैंने सहसा नीलम की ल्कखल्ली उडाने िाले अं दा़ि से
कहा___"कभी आईने में अपनी शक्ल दे खी है तू ने? दादी माॅ तो मैने ऐसे ही कह
कदया था तु झे, िरना तो तू कबलकुल बं दररया लगती है। यकीन न हो तो पू छ ले सोनम
दीदी से ।"

मेरी इस बात से जहाॅ सोनम दीदी ने अपना कसर पीट कलया िही ं नीलम की
त्यौररयाॅ चढ गईं। िह एकदम से तमतमाए हुए बोली___"क्ा कहा बं दररया लगती
हूॅ? रुक अब तो तु झे सच में नही ं छोंडूॅगी। दीदी आप हमारे बीच में मत पडना। इसे
तो मैं आज छोंडूॅगी नही ं।"

सोनम दीदी कचल्लाती रह गईं जबकक नीलम ने किर से मु झ पर मुक्कों की बरसात


कर दी। मैं महसू स कर रहा था कक िो मु झे मार ़िरूर रही थी मगर बस हिे हिे।
कदाकचत उसे भी इस सबमें म़िा आ रहा था। ककन्तु िो यही ़िाकहर कर रही थी कक
िो मेरी बातों से बे हद गुस्सा हो गई है।

"सोनम दीदी इससे ककहए कक ज्यादा झाॅसी की रानी न बने ।" मैने हसते हुए
कहा___"िरना अगर मैं महारार्ा प्रताप बन गया तो किर ये रोने के कसिा कुछ न कर
पाएगी, बं दररया कही ं की।"
"ओये तू महारार्ा प्रताप बन के तो कदखा।" नीलम ने ऑखें कनकाली___"मैं भी
झाॅसी की रानी से माॅ दु गाग न बन जाऊ तो कहना। बडा आया महारार्ा प्रताप
बनने , बं दर कही ं का।"

"ओये बं दर कौन??" मैने सहसा उसके दोनो हाॅथ पकडते हुए कहा___"ठीक से दे ख
आई एम किराज कद ग्रेट।"
"किराज कद ग्रेट माई िुट।" नीलम ने मेरे हाॅथ से अपना हाथ छु डाने की कोकशश
करते हुए कहा___"छोंड मेरे हाथ िरना नीलम परी को गुस्सा आ जाएगा और किर
किराज कद ग्रेट को मुगाग बना दे गी समझा?"

"मैं क्ों ते रे हाथ छोंडूॅ??" मैने कहा___"तू खु द ही छु डा ले न। मैं भी तो दे खूॅ कक


इस बं दररया में ककतना दम है।"
"ओये तू न दम की बात न कर।" नीलम ने कहा___"मैं चाहूॅ तो दो पल में अपने हाथ
छु डा लू ॅ समझा।"

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"अच्छा छु डा के तो कदखा।" मैने ताि कदया उसे ।

"रहने दे रहने दे ।" नीलम ने कहा___"िरना बाद में सब तु झ पर ही हसें गे कक खु द को


महारार्ा प्रताप कहने िाला एक मासू म सी लडकी से हार गया।"
"कोई बात नही ं।" मैने कहा___"तु झसे हारना मंजूर है। आकखर तू मेरी प्यारी सी
बहन है न।"

"अब ये मस्का क्ों लगा रहा है?" नीलम ने चौंकते हुए कहा___"क्ा नीलम परी से
डर गया है?"
"डरता तो मैं उस परिर कदगार से भी नही ं।" मैने नीलम का हाथ छोंड कर अपने
हाथ की उगली को ऊपर की तरि करते हुए कहा___"मगर मु झे लगता है कक अब
बाॅकी सबको बक्श दे ना चाकहए जो बे चारे हमारी िजह से शायद कडस्टबग हो रहे हैं।
दू सरी बात सोनम दीदी ने डं डा उठा कलया तो किर हम दोनो की खै र नही ं रहे गी।
कुछ समझ में आया नीलम परी जी?"

"अगर ऐसी बात है।" नीलम ने इस तरह कहा जैसे अहसान कर रही हो___"तो चल
बक्श ही दे ती हूॅ तु झे भी और बाॅकी सबको भी। मगर आइं दा नीलम परी से
टकराने की सोचना भी मत िरना खांमाखां बे इज्जती हो जाएगी ते री।"

"ओये अब ज्यादा उड मत समझी।" मैने उसका हाथ पकड कर उसे अपने ऊपर से
उठाते हुए कहा___"चल अब उतर नीचे ।"

मेरे ऐसा कहने पर नीलम मु स्कुराते हुए मेरे ऊपर से उतर गई मगर अं दा़ि ऐसा था
उसका जैसे अभी भी जता रही हो कक आइं दा याद रखना। मु झे उसके इस अं दा़ि पर
बडी ़िोर की हसी आई मगर मैने खु द को रोंक कलया। उधर सोनम दीदी और
आकदत्य भी ये सब दे ख कर मुस्कुरा रहे थे । खै र कुछ ही पलों में मैं और नीलम शीट
पर आराम से बै ठ गए। आकदत्य और सोनम भी हमारी ही शीट पर बै ठ गए। आस
पास बै ठे सब लोग अभी भी हमें हैरानी से दे ख रहे थे । मैने दे खा कक नीलम का चे हरा
अब एकदम से ल्कखला ल्कखला लग रहा था। उसके होठों पर बहुत ही हिी सी मुस्कान
थी। िो बार बार मेरी तरि दे खने लगती थी। पता नही ं क्ा चल रहा था उसके मन
में?

"चलो सु बह तो हो गई है।" सोनम दीदी ने मानो बातों का कसलकसला शु रू


ककया___"इस िक्त अगर गरमा गरम चाय या काॅिी कमल जाती तो ककतना अच्छा
होता।"
"हाॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"मगर यहाॅ पर अभी ये सब कैसे कमल सकता है

778
भला?"

"कचं ता मत करो।" मैने कहा___"अगले स्टाप पर जब टर े न रुकेगी तो चाय या काॅिी


का बं दोबस्त करने की कोकशश करूॅगा मैं।"
"किराज भाई।" सहसा आकदत्य ने कहा___"मैं ़िरा िेश होकर आता हूॅ।"

"ओके भाई तु म जाओ।" मैने कहा___"उसके बाद मुजे भी िेश होना है।"
"और हम भी तो िेश होंगे।" नीलम बोल पडी___"इस कलए इनके बाद सबसे पहले मैं
जाऊगी।"
"हकगग़ि नही ं।" मैने कहा___"आकद के बाद मैं ही जाऊगा।"

"तू जा के कदखाना भला।" नीलम ने मानो धमकी सी दी मु झे।


"ऐ अब तु म दोनो किर से न शु रू हो जाओ।" सोनम दीदी ने कहा था।
"पर दीदी से कण्ड नं बर पर मैं ही जाऊगी।" नीलम ने बु रा सा मु ह बनाया___"इसे
कह दीकजए कक ये मेरे बाद चला जाएगा।"

आकदत्य हम दोनो की इस बात से मुस्कुराता हुआ उठ कर िेश होने चला गया।


जबकक मैने सोनम दीदी के कुछ बोलने से पहले ही कहा___"हाॅ ठीक है तु म ही चली
जाना। िै से भी मुझे इतनी जल्दी नही ं है ते रे जै से। पहले बता दे ती तो आकदत्य को
रोंक दे ता।"

"ओये अब तू बकिास न कर समझे।" नीलम ने ऑखे कदखाते हुए कहा___"मु झे भी


इतनी जल्दी नही ं है।"
"उफ्फ।" सोनम दीदी कह उठी___"तु म दोनो किर से शु रू हो गए। ओके िाइन
अगर तु म दोनो को इतनी जल्दी नही ं है तो मैं चली जाऊगी एण्ड कदस इज ल्कक्लयर।"

"ये सही कहा दीदी आपने ।" मैने हसते हुए कहा___"अब आप ही जाना िेश होने ।
सबसे लास्ट में यही जाएगी।"
"नही ंऽऽ।" नीलम एकदम से हडबडा गई___"आकद भै या के बाद मैं ही जाऊगी।"
"क्ों अब क्ा हुआ तु झे?" सोनम दीदी ने मु स्कुराते हुए कहा___"अभी तो कह रही
थी न कक तु झे कोई जल्दी नही ं है तो अब क्ा हुआ?"

"मैं कुछ नही ं जानती।" नीलम ने मानो िैंसला सु ना कदया___"आकद भै या के बाद मैं
ही जाऊगी और अगर आपने दोनो ने मु झे नही ं जाने कदया तो मैं यही ं पर हडताल कर
दू ॅगी।"
"उसे हडताल नही ं।" मैने हसते हुए कहा___"पोट्टी कर दे ना कहते हैं पगली।"

779
"ओये चु प कर तू ।" नीलम पहले तो सकपकाई किर घु डकी सी दी मु झे___"ज्यादा
चपड चपड मत कर िरना टर े न के नीचे िेंक दू ॅगी तु झे।"
" िै से बात तो राज ने सही कही है ।" सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"उसे
हडताल करना थोडी न कहते हैं।"

सोनम दीदी की इस बात से मेरी हसी छूट गई और मेरे साथ ही साथ सोनम दीदी भी
हसने लगी थी। हम दोनो के हसने से नीलम का चे हरा दे खने लायक हो गया। ऐसा
लगा जैसे िो अभी रो दे गी। सामने की शीट पर बै ठे लोग भी मु स्कुरा उठे थे । मैने जब
दे खा कक नीलम कही ं सच में ही न रो दे तो मैने अपनी हसी रोंक कर झट से उसे
खी ंच कर खु द से छु पका कलया।

"तु म दोनो बहुत गंदे हो।" नीलम मु झसे अलग होने की कोकशश करते हुए ककन्तु रूठे
हुए भाि से बोली___"जाओ मुझे तु म दोनो से अब कोई बात नही ं करनी।"
"अरे ऐसा मत करना तू ।" मैने उसे मजबू ती से छु पकाए हुए कहा___"हडताल भले ही
यही ं पर कर दे ना।"

मेरी इस बात से इस बार सोनम दीदी की भी ़िोरदार हसी छूट गई। जबकक मैं नही ं
हसा क्ोंकक मु झे पता था कक मेरे इस बार हसने से नीलम की हालत खराब हो
जाएगी। मैं नही ं चाहता था कक उसका कदल दु ख जाए। मुद्दतों बाद तो िो मु झे ऐसे
कमली थी। नीलम ने थोडी दे र मुझसे नारा़िगीिश अलग होने की कोकशश की किर
िो खु द ही मु झसे छु पक कर मु झे कस के पकड कलया। िो कुछ बोल नही ं रही थी
बल्कि उसने अपनी ऑखें बं द कर ली थी।

ऐसे ही हसी म़िाक करते हुए हम चारो ही बारी बारी से िेश हो गए। अगले स्टाप
पर टर े न रुकी तो मैं और आकदत्य टर े न से उतर कर उन दोनो के कलए चाय ले आए। हम
चारों ने चाय पी और किर से बातों में मशगूल हो गए। टर े न अपनी गकत से चलती रही।
बातों बातों में समय का पता ही नही ं चला और सु बह से दोपहर होने को आ गई।

हम गुनगुन स्टे शन के पास पहुॅचने िाले थे । इस बीच नीलम किर से गंभीर हो गई


थी। मैने उसे समझा कदया कक िो सोनम दीदी को ले कर आराम से गाॅि जाए। मैने
उसे खासकर ये कहा कक सारी बातों पता िो खु द ही लगाए तो बे हतर होगा। नीलम
और सोनम दीदी ने मु झे अपना अपना मोबाइल नं बर कदया और मु झसे भी कलया।

गुनगुन स्टे शन पहुॅच कर टर े न रुकी तो हम सब टर े न से नीचे उतरने के कलए गेट की


तरि आए। मैने आस पास का मु आयना ककया और आकदत्य के साथ नीचे उतर
आया। हम दोनो के उतरने के बाद नीलम भी सोनम दीदी के साथ उतर आई। मैने

780
नीलम को बता कदया था कक यहाॅ से अब हम साथ नही ं रह सकते क्ोंकक यहाॅ से
मेरे कलए खतरा शु रू था। खै र, उसके बाद मैं और आकदत्य बडी सािधानी ि सतकगता
से स्टे शन से बाहर की तरि बढ चले । जबकक नीलम ि सोनम दीदी हमारे कािी
पीछे पीछे आ रही थी।

बाहर आकर मैने आस पास का मु आयना ककया तो मु झे एक आदमी हमारी तरि ही


आता कदखा। उसकी कनगाह हमारी तरि ही थी। मैं उसे अपनी तरि आते दे ख पहले
तो हडबडा सा गया, ककन्तु जैसे ही िो कुछ पास आया तो मैं उसे पहचान गया। िो
ररतू दीदी के पु कलस कडपाटग मेन्ट का आदमी था। पास आते ही उसने मु झे अपने पीछे
आने का इशारा ककया। मैं और आकदत्य उसके पीछे चल कदये। मैं आस पास भी ऩिरें
घुमा रहा था कक कही ं कोई ऐसा आदमी तो यहाॅ मौजूद नही ं है जो अजय कसं ह से
सं बंध रखता हो। मगर मुझे ऐसा कोई ऩिर न आया।

उस पु कलस िाले के पीछे चलते हुए हम एक टीयटा कार के पास पहुॅचे । उस आदमी
ने हमें कार की कपछली शीट पर बै ठने का इशारा ककया। उसके इशारे पर हम दोनो
कार का कपछला दरिाजा खोल कर अं दर बै ठ गए। इस बीच िो पु कलस िाला भी
डर ाइकिं ग शीट पर बै ठ चु का था। कुछ ही पल में कार मंक़िल की तरि बढ चली। कार
के अं दर बै ठ कर मैने एक बार पीछे मुड कर दे खा मगर नीलम ि सोनम दीदी कही ं
ऩिर न आईं मुझे। मैं उन दोनों के कलए कचं कतत भी था कक िो गाॅि तक कैसे
जाएॅगी? हलाॅकक मु झे पता था कक उन्हें ले ने कोई न कोई बडे पापा का आदमी
आया ही होगा। मगर मैं एक बार पता कर ले ना चाहता था। इस कलए मैने मोबाइल
कनकाल कर नीलम को िोन लगाया। दू सरी ररं ग पर ही नीलम ने िोन उठा कलया।
मैने उससे पू छा कक िो कहाॅ है अभी तो उसने बताया कक उसके डै ड का एक
आदमी जीप ले कर आया है और अब िो उसमें बै ठ कर गाॅि जाने िाली है। नीलम
की ये बात सु न कर मैं बे किक्र हो गया और किर काल कट कर दी।

टोयटा कार ते ़ि रफ्तार से मंक़िल की तरि दौडी जा रही थी। मैने ररतू दीदी को
िोन करके बताया कक मैं उनके द्वारा भे जे गए आदमी के साथ आ रहा हूॅ। ररतू
दीदी मेरी ये बात सु न कर खु श हो गईं और कहने लगी कक मैं जल्दी आ जाऊ। मैने
उन्हें नीलम ि सोनम दीदी के बारे में भी बताया और टर े न में हुई सारी बातों के बारे में
भी बताया। सारी बातें सु न कर िो पहले तो खामोश रही ं किर बोली चलो जो हुआ
अच्छा ही हुआ। ररतू दीदी से बात करने के बाद मैने जगदीश अं कल से थोडी दे र बात
की। उन्होंने बताया कक उन्होंने अपना िो काम कर कदया है कजसके कलए मैने उन्हें
कहा था। जगदीश अं कल से बात करने के बाद मैं आराम से शीट की कपछली पु श् से
पीठ कटका कर तथा ऑखें बं द कर लगभग ले ट सा गया। मेरे कदमाग़ में आने िाले
समय की कई सारी बातें चल रही थी ं।

781
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस िक्त दोपहर के एक या डे ढ बज रहे थे जब अजय कसं ह टै र्क्ी के द्वारा अपनी
हिे ली पहुॅचा था। उसका कदलो कदमाग़ बु री तरह भन्नाया हुआ था। उसके अं दर
इतना ज्यादा गु स्सा भरा हुआ था कक अगर उसका बस चले तो सारी दु कनयाॅ को
आग लगा दे मगर अिसोस िह ऐसा कुछ भी नही ं कर सकता था। कुछ करे तो तब
जब उसे पता हो कक करना ककसके साथ है? और कजसके साथ करना भी है तो िो है
कहाॅ???

नीलम और सोनम तो बारह बजे ही हिे ली पहुॅच गई थी ं। प्रकतमा अपनी बडी बहन
की बे टी को आज पहली बार ऑखों के सामने दे ख कर बे हद खु श भी हुई थी और
थोडा दु खी भी। सोनम अपनी मौसी से इस तरह कमली थी जैसे िह उससे पहली बार
नही ं बल्कि पहले भी कमल चु की हो। कशिा तो अपनी मौसी की बे टी सोनम की
खू बसू रती और उसके साॅचे में ढले कजस्म को दे ख कर आहें भरने लगा था। उसे
अपनी मौसी की लडकी पहली ऩिर में ही भा गई थी। उसका मन कर रहा था कक
जाए और उसे अपनी बाहों में उठा कर सीधी बे ड पर पटक कर उसके ऊपर चढ बै ठे
मगर ऐसा सं भि नही ं था। प्रकतमा अपने बे टे की मनोदशा को तु रंत ही ताड गई थी,
इस कलए उसे अकेले में ले जाकर समझाया था कक िो ऐसी कोई भी हरकत न करे
कजससे उसके साथ साथ हम सबको बाद में पछताना पडे । प्रकतमा के समझाने पर
कशिा समझ तो गया था मगर ये तो िही जानता था कक बहुत दे र तक िो प्रकतमा के
समझाने पर रह नही ं पाएगा।

सफ़र की थकान के कारर् नीलम ि सोनम ने नहा धो कर थोडा बहुत खाना खाया
और नीलम के कमरे में दोनों एक ही बे ड पर सो गईं थी। उधर अजय कसं ह टै र्क्ी से
उतर कर टै र्क्ी िाले को उसका भाडा ककराया कदया। यद्दकप उसके पास पै से के नाम
पर चिन्नी भी नही ं थी मगर जहाॅ से उसे छोंडा गया था िहाॅ से उसे इतना तो
रुपया दे ही कदया गया था कक िो आराम से अपने घर पहुॅच जाए। उसका मोबाइल
िोन भी उसे िापस लौटा कदया गया था। ये अलग बात थी कक उसके िोन से कसम
काडग कनकाल कलया गया था और िोन के कैन्टै क्ट कलस्ट से सारे िोन नं बसग कडलीट
कर कदये गए थे । कहने का मतलब ये कक उसका मोबाइल िोन किलहाल महज एक
डमी बन कर रह गया था। ना तो िो ककसी को िोन कर सकता था और ना ही उसके
पास ककसी का िोन आ सकता था। यही िजह थी कक अजय कसं ह का कदमाग़ बु री
तरह भन्नाया हुआ था।

टै र्क्ी से जब अजय कसं ह उतरा तो हिे ली में तै नात उसके आदमी हैरान रह गए। भाग
कर उसके पास आए और हाल अहिाल पू छने लगे। मगर भन्नाए हुए अजय कसं ह ने
सबको डाॅट डपट कर अपने पास से भगा कदया और पै र पटकते हुए मुख्य दरिाजे

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के पहुॅचा। दरिाजे को ़िोर से लात मारी उसने । दरिाजा कदाकचत अं दर से बं द
नही ं था इसी कलए लात का ़िोरदार प्रहार पडते ही उसके दोनो पल्ले खु लते चले गए।
दरिाजे के खु लते ही अजय कसं ह ़िमीन को रौंदते हुए अं दर की तरि बढ गया।

उधर डर ाइं गरूम में बै ठी प्रकतमा बाहर ़िोर की आिा़ि सु नकर चौंक पडी थी। अभी
िह ये दे खने के कलए सोिे से उठने ही िाली थी सहसा उसे कठठक जाना पडा।
सामने से आते अजय कसं ह पर ऩिर पडते ही िह हैरत से बु त सी बन गई। जबकक
अजय कसं ह आते ही सोिे पर धम्म से लगभग कगर सा पडा। धम्म की आिा़ि से ही
प्रकतमा की तं द्रा टू टी और िह किरककनी की माकनं द अपनी एकडयों पर घू मी। सोिे पर
पसरे अपने पकत को अस्त ब्यस्त हालत में दे ख कर एक बार िो पु नः हैरान हुई किर
जैसे उसने खु द को सम्हाला और एकदम से मानो बदहिाश सी होकर अजय कसं ह
की तरि ते ़िी से बढी।

"अ...अजय।" अजय कसं ह के पास पहुॅचते ही िह लरजते हुए स्वर में बोल
पडी___"तु ..तु म अ आ गए???"
प्रकतमा के इस तरह पू छने पर अजय कसं ह कुछ न बोला बल्कि अपनी ऑखें बं द ककये
सोिे की कपछली पु श् से पीठ कटकाए अधले टा सा पसरा रहा। उसके कुछ न बोलने
पर प्रकतमा बु री तरह घबरा गई। िो झट से अजय कसं ह के बगल से बै ठी और अजय
कसं ह के कंधे पर अपना एक हाॅथ रखते हुए बोली___"तु म कुछ बोलते क्ों नही ं
अजय? तु म ठीक तो हो न? और...और इस तरह अचानक तु म िहाॅ से कैसे आ
गए?"

प्रकतमा के दू बारा पू छने पर भी अजय कसं ह कुछ न बोला। उसकी ये खामोशी प्रकतमा
की मानो जान कलए जा रही थी। उसका गला भर आया। आिा़ि भारी हो गई तथा
ऑखों में ऑसू उमड आए।

"अजऽऽऽय।" किर उसने रुॅधे हुए गले से ककन्तु अजय कसं ह को झकझोरते हुए
लगभग चीख ही पडी___"क्ा हो गया है तु म्हें? कुछ तो बोलो। तु म इस तरह यहाॅ
कैसे आ गए? तु म तो सीबीआई की कगरफ्त में थे न किर तु म यहाॅ कैसे ? कही ं....कही ं
तु म उनकी कगरफ्त से भाग कर तो नही ं आ गए हो? अगर ऐसा है तो ये तु मने ठीक
नही ं ककया अजय। कानू न तु म्हें इसके कलए मु आफ़ नही ं करे गा। बल्कि इस तरह भाग
कर आने से तु म्हें शख्त से शख्त स़िा दे गा।"

"मैं कही ं से भाग कर नही ं आया हूॅ प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सहसा खीझते हुए
कहा___"बल्कि मु झे उन लोगों ने खु द ही छोंड कदया है।"
"क..क..क्ा????" प्रकतमा बु री तरह उछल पडी___"उन लोगों ने तु म्हें खद ही छोंड

783
कदया? ऐसा कैसे हो सकता है? सीबीआई के िो लोग तु म्हें ऐसे कैसे छोंड सकते हैं?
बात कुछ समझ में नही ं आई अजय। आकखर ये क्ा मा़िरा है? क्ा चक्कर है ये?"

"सच कहा प्रकतमा।" अजय कसं ह अजीब भाि से कह उठा___"ये चक्कर ही तो है।"
"क्ा मतलब??" प्रकतमा चौंकी।
"सच्चाई सु नोगी तो तु म्हारे पै रों तले से ये ़िमीन गायब हो जाएगी।" अजय कसं ह ने
कहा___"ये सीबीआई का जो मामला हुआ है न ये सब महज एक चाल थी मु झे ककसी
मकसद के तहत इस सबसे दू र करके कैद करने की।"

"ये क्ा कह रहे तु म अजय?" प्रकतमा की के चे हरे पर आश्चयग मानो ताण्डि करने लगा
था___"ये सब एक चाल थी? पता नही ं क्ा अनाप शनाप बोल रहे हो तु म।"
"मैं अनाप शनाप नही ं बोल रहा प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सहसा आिे श में आकर
कहा___"यही सच है। जो सीबीआई िाले मु झे कगरफ्तार करने आए थे िो सब नकली
थे । उनका सीबीआई से कोई ताल्लुक नही ं था। जबकक मैं और तु म सब यही समझे थे
कक िो सब सीबीआई के ऑकिसर थे ।"

"हे भगिान।" प्रकतमा ने मुख से बे शाख्ता कनकल गया___"इतना बडा धोखा। अगर
िो सीबीआई के लोग नही ं थे तो किर कौन थे िो? और िो लोग तु म्हें यहाॅ से पकड
कर क्ों ले गए थे और कहाॅ ले गए थे ? आकखर ये सब करने के पीछे उनका क्ा
मकसद था? कही ं ये सब हमारी बे टी ररतू ने तो नही ं करिाया?"

"नही ं प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"ये काम ररतू का नही ं है बल्कि ये सब उस


हराम़िादे किराज ककया धरा था।"
"ये क्ा कह रहे हो तु म?" प्रकतमा बु री तरह चौंकी थी, बोली___"भला िो ये सब कैसे
कर सकता है?"
"क्ों नही ं कर सकता?" अजय कसं ह उल्टा प्रकतमा पर ही हिाल ले कर चढ
बै ठा___"तु म्ही ं तो कहा करती थी न कक इस सबके पीछे अगर कोई हो सकता है तो
िो है किराज। िही है जो हमारा अकहत करना चाहता है क्ोंकक हमने उसके साथ
अत्याचार ककया है?"

"हाॅ मगर।" प्रकतमा गडबडा सी गई___"ये सब भी कर सकता है िो ये तो


नामुमककन सी बात है अजय।"
"ये सब उसी ने करिाया है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"क्ोंकक कजस जगह मुझे
रखा गया था िो सब उसी का क़िक्र कर रहे थे । मैं ये सोच सोच कर आश्चयगचककत था
कक उस नामुराद के ऐसे लोगों से सं बंध कैसे हो सकते हैं। आकखर िो कमीना इतने
कम समय में ऐसा कौन सा सू रमा बन गया है कजसके इशारे पर उसका हर काम हो

784
जाए?"

"तु म क्ा कह रहे हो अजय मु झे कुछ भी समझ में नही ं आ रहा।" प्रकतमा ने अपने
बाल नोंच ले ने िाले अं दा़ि से कहा था।
"कमाल की बात है।" अजय कसं ह ने कहा___"अपने आपको कदमाग़ की जादू गरनी
समझने िाली को आज मेरी ये बातें समझ में ही नही ं आ रही ं। खै र, बात ये है ये जो
कुछ भी हुआ है उसमें कसिग और कसिग उस गौरी के कपल्ले का ही हाॅथ है। मु झे ये
नही ं समझ में आ रहा कक उस कमीने ने आकखर ककस मकसद के तहत मुझे दो कदन
के कलए सीबीआई के नकली जाल में िसा कर कैद में रखा और किर आज छोंड भी
कदया।"

"ये तो सचमुच बडे आश्चयग की बात है अजय।" प्रकतमा ने चककत भाि से


कहा___"सचमुच ये सोचने िाली बात है कक उसने ककस िजह से ऐसा ककया होगा?
हलाॅकक िो चाहता तो बडी आसानी अपना बदला तु म्हारी जान ले कर ले सकता था
और तु म यकीनन कुछ नही ं कर सकते थे । मगर उसने ऐसा कुछ भी नही ं ककया
बल्कि उल्टा तु म्हें कबना कोई नु कसान पहुॅचाए छोंड भी कदया। ये ऐसी बात है अजय
जो आसानी से हजम नही ं हो सकती। हम कजस ची़ि को बे तुकी और ना क़ाकबले ग़ौर
बात समझ रहे हैं उसमें कुछ तो पें च ़िरूर है। बे िजह तो औसने ये सब नही ं ककया
होगा। ़िरूर ये सब करके उसने अपना कोई अहम कायग कसि ककया होगा। कोई
ऐसा कायग जो किलहाल हमारी सोच क्ा कल्पना से भी कोसों दू र है।"

"यकीनन तु म्हारी बात में सच्चाई है।" अजय कसं ह ने कहा___"इस सबसे एक बात ये
भी ़िाकहर होती है कक िो अब भी यही ं है और शायद इस िक्त ररतू के साथ ही है।"
"अच्छा ये बताओ।" प्रकतमा ने पहलू बदला___"कक जो सीबीआई के लोग बन कर
आए थे िो लोग तु म्हें ले कर कहाॅ गए थे ?"

"इस बारे में मु झे कुछ भी नही ं पता चल सका।" अजय कसं ह ने हताश भाि से कहा
था।
"क्ा मतलब??" प्रकतमा पु नः बु री तरह चौंकी थी।

"उन लोगों ने सब कुछ पहले से प्लान ककया हुआ था प्रकतमा।" अजय कसं ह ने गहरी
साॅस ली___"जब िो लोग मु झे यहाॅ से अपनी कार में बै ठा कर ले जा रहे थे तभी
ककसी ने पीछे से मु झे बे होश कर कदया था और किर जब मेरी ऑख खु ली तो मु झे
कुछ भी समझ में नही ं आया कक मैं ककस जगह आ गया हूॅ? िहाॅ कजस जगह पर मैं
था िहाॅ एक कमरा था जो कक ककसी िाइि स्टार होटल के कमरे से हकगग़ि भी कम
न था। कमरे में दू सरा कोई नही ं था। ऐसा नही ं था कक मैं िहाॅ पर कही ं आ जा नही ं

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सकता था। बल्कि कही ं भी आ जा सकता था मगर उस जगह से बाहर की दु कनयाॅ
में जाने का जैसे कोई रास्ता ही नही ं था। कमरे से बाहर जहाॅ भी गया हर तरि
ब्लैक कलर की िदी में नकाबपोश अपने हाथों में गन कलए तै नात थे । िो ककसी से
कोई बात नही ं करते थे । जो सीबीआई के ऑकिसर बन कर आए थे उनका कही ं
पता ही नही ं था। मैं उन गनधारी नकाबपोशों से चीख चीख कर पू छता रहा कक मु झे
यहाॅ ककस कलए लाया गया है मगर कोई कुछ बोलता ही नही ं था। उस कदन तो सारा
कदन और रात मैं पागलों की तरह ही उन सबके सामने चीखता कचल्लाता रहा। किर
जब मु झे लगा कक यहाॅ पर मेरे चीखने कचल्लाने का कोई असर नही ं होने िाला तो मैं
खामोश हो गया। इतना तो मु झे भी पता था कक िजह कोई भी हो िो मेरे सामने
़िरूर आएगी। इस कलए ये सोच कर मैं िापस कमरे में चला गया और अपने िहाॅ
होने की िजह जानने का इन्त़िार करने लगा। िहाॅ पर जब भी मु झे ककसी ची़ि की
़िरूरत होती िो मु झे कमल जाती थी। मैं आ़िाद तो था मगर किर भी कैद ही था
िहाॅ। मेरा मोबाइल िोन मेरे पास से गायब था। अतः मैं ककसी अपने से कोई
काॅटै क्ट भी नही ं कर सकता था।"

"ओह तो किर आज तु म्हें उन लोगों ने कैसे छोंड कदया?" प्रकतमा ने पू छा___"क्ा तु म्हें
पता चला कक उन लोगों ने तु म्हें क्ों पकडा था? और सबसे बडी बात ये कक तु म्हें ये
कैसे पता चला कक िो सब किराज का ककया धरा था?"

"आज ही पता चला।" अजय कसं ह ने कहा___"मैं िहाॅ पर कमरे में रखे अलीशान
बे ड पर ले टा हुआ था कक तभी कमरे में दो गनधारी नकाबपोश आए और मैने पहली
बार उनके मुख से उनकी आिा़ि सु नी। उनमें से एक ने कहा कक मैं बाहर आऊ।
मुझसे कमलने उनके कुछ साहब लोग आए हैं। मैं उस गनधारी नकाबपोश की ये बात
सु नकर जल्दी से बे ड पर उठ बै ठा। अडतालीस घंटे में ये पहला अिसर था जब मु झे
ककसी से ये जानने का अिसर कमलने िाला था कक मुझे यहाॅ क्ों लाया गया है? अतः
मैं उन दोनो गनधाररयों के साथ कमरे से बाहर आ गया। बाहर लं बे चौडे हाल के
बीचो बीच एक मध्यम साइ़ि की टे बल रखी थी तथा उसके चारो तरि कुकसग याॅ
रखी हुई थी। मैने टे बल और कुकसग याॅ उस हाल में पहली बार ही दे खा था। टे बल के
एक तरि की चारों कुकसग यों पर एक एक कोटधारी आदमी बै ठा था। मैं जब उनके
पास पहुॅचा तो उनमें से एक ने मु झे अपने सामने बै ठने का इशारा ककया। ये िही
लोग थे जो मु झे यहाॅ से सीबीआई ऑकिसर बन कर ले गए थे । सच कहूॅ तो उस
िक्त उन चाओं को दे ख कर मु झे बे हद गु स्सा आया मगर मैंने किर खु द पर बडी
मुल्किल से काबू ककया।

"कहो अजय कसं ह।" उन चार में से एक ने बडी जानदार मु स्कान के साथ मु झसे
कहा___"यहाॅ ककसी प्रकार की कोई परे शानी तो नही ं हुई न तु म्हें?"

786
"मेरी परे शानी की अगर इतनी ही किक्र होती तु म लोगों को।" मैने आिे शयुक्त भाि
से कहा___"तो मु झे इस तरह धोखे से पकड कर नही ं लाते यहाॅ।"

"ओह आई सी।" उसने खे द प्रकट करते हुए कहा__"माफ़ करना अजय कसं ह। हमें
तु म्हारे साथ धोखे के रूप में िो िै सी ज्यादती करनी पडी। मगर इसमें भी हमारी
कोई ग़लती नही ं थी कडयर। दरअसल हमारे किराज सर का ही आदे श था हम तु म्हें
इस प्रकार हिे ली से कगरफ्तार करके यहाॅ ले आएॅ।"

"कि..किराज..सर???" मैं उसकी ये बात सु न कर एकदम से भौचक्का सा रह गया था।


"अरे तु म हमारे किराज सर को नही ं जानते क्ा?" एक अन्य ने मु स्कुराते हुए
कहा___"कमाल है अजय कसं ह। तु म अपने भतीजे को ही नही ं जातने । ये तो बडी हैरत
की बात है। जबकक हमारे किराज सर तु मसे इतना स्ने ह ि लगाि रखते हैं कक िो तु म्हें
यहाॅ पर ककसी भी तरह की तक़लीफ़ नही ं दे ना चाहते थे । उनका शख्त आदे श था
कक तु म्हें यहाॅ पर ककसी भी तरह की कोई परे शानी न होने पाए। तभी तो हमने
उनके कहने पर तु म्हारे कलए यहाॅ िाइि स्टार होटल से भी बे हतर सु किधाएॅ मु हैया
कराई थी।"

"तो तु म्हारा मतलब है कक ये सब तु मने किराज के आदे श पर ककया है?" मैं मन ही मन


हैरान था, ककन्तु प्रत्यक्ष में कठोर भाि से पू छ रहा था___"मगर क्ों?"
"तु म्हारे इस क्ों का जिाब तो हमारे पास है ही नही ं अजय कसं ह।" उस आदमी ने
कहा___"हमने तो बस उतना ही ककया है कजतना कक किराज सर ने हमें करने के कलए
कहा था। इसके पीछे उनकी क्ा मंशा थी ये तो िही ं बे हतर तरीके से बता सकते हैं
तु म्हें।"

"अच्छा।" मैने कहा___"तो किर बु लाओ उसे । मैं उससे पू छना चाहता हूॅ कक उसने
क्ा सोच कर ये सब ककया है?"
"उन्हें यहाॅ बु लाने की कहम्मत तो हममें नही ं है ।" एक अन्य ने कहा___"हाॅ मगर
एक आदे श और आया है उनका हमारे कलए। िो ये कक तु म्हें बाइज्ज़ित यहाॅ से
आ़िाद कर कदया जाए। इस कलए अब हम िही करने िाले हैं। यानी कक अब तु म्हें
आ़िाद कर कदया जाएगा। मगर क्ोंकक हम अपना हर काम सीक्रेट तरीके से करते
हैं इस कलए तु म्हें पु नः बे होश करना पडे गा हमें ।"

मैं उसकी ये बात सु नकर बु री तरह हैरान रह गया। तभी ककसी ने पीछे से मेरी नाॅक
में कुछ लगा कदया। जैसे ही मैने नाॅक से साॅस ली उसके कुछ ही पलों बाद मैं
बे होशी के समंदर में डूबता चला गया। जब मे री ऑख खु ली तो मैं अब ककसी दू सरी

787
जगह पर खु द को मौजूद पाया। मेरे आस पास बडे बडे पे ड पौधे लगे हुए थे । मैं ये
दे ख कर पहले तो चौंका किर उठ कर आस पास का जायजा ले ने लगा। मैं ये दे ख
कर उछल पडा कक मैं ककसी जंगल के कहस्से पर पडा था। बाएॅ तरि लगभग पचास
या साठ गज की दू री पर ही एक सडक ऩिर आ रही थी।

अस्त ब्यस्त हालत में मैं कुछ दे र िही ं पर बै ठा अपने साथ घटी कपछली सभी बातों के
बारे में सोचता रहा। उसके बाद मैं ककसी तरह उठा और कुछ दू री पर ऩिर आ रही
सडक की तरि चल कदया। मैं ये समझ चु का था कक उन लोगों ने मु झे आ़िाद कर
कदया था। मु झे बे होश इस कलए ककया गया था ताकक मैं उस जगह के बारे में कतई न
जान सकूॅ कक उन लोगों ने मु झे कहाॅ पर रखा था। मैं ये भी समझ चु का था कक मैं
चाह कर भी अब उन लोगों तक नही ं पहुॅच सकता जो लोग नकली सीबीआई के
ऑकिसर बन कर हिे ली से मु झे कगरफ्तार करके ले गए थे ।

सडक पर आकर मैं ककनारे पर ही खडा हो गया और सडक के दोनो तरि दे खने
लगा। मु झा अपने मोबाइल का खयाल आया तो अनायास ही मेरे दोनो हाथ मेरी पैं ट
के दोनो पाॅकेट पर रें ग गए। मैं ये जान कर चौंका तथा हैरान हुआ कक मोबाइल मेरी
बाई पाॅकेट में मौजूद है । मैने जल्दी से उसे कनकाला और ल्कस्वच ऑन ककया। मगर मैं
ये दे ख कर भौचक्का रह गया कक मोबाईल में मौजूद दोनो कसम काडग गायब थे ।
उसमे ने टिकग होने का सिाल ही नही ं था। मैने िोन में काॅटै क्ट कलस्ट दे खा तो मेरे
होश उड गए। क्ोंकक उसमे से सारे नं बर कटलीट कर कदये गए थे । कहने का मतलब
ये कक मैं मौजूदा हालत में ककसी को ना तो िोन कर सकता था और ना ही मेरे
मोबाइल िोन पर ककसी का िोन आ सकता था। ये दे ख कर मेरा खू न खौल गया।
उन लोगों पर मु झे भयानक गुस्सा आ गया। ऊपर से साले ऐसी जगह मु झे िेंक कदया
था जहाॅ से ककसी िाहन का आना जाना भी लगभग न के बराबर था।

सडक पर मैं घंटों खडा रहा ककसी िाहन के इन्त़िार में मगर कोई भी िाहन आता
जाता ऩिर न आया। प्रकतपल उस हालत में मे रे अं दर गुस्सा बढता ही जा रहा था।
आकखर डे ढ घंटे इन्त़िार करने के बाद एक टै र्क्ी आती हुई ऩिर आई। उसे दे ख
कर मुझे थोडी राहत तो हुई मगर अगले ही पल ये सोच कर मैं मायूस हो गया कक इस
िक्त ककसी िाहन में जाने के कलए मेरे पास िूटी कौडी भी नही ं है। इसके बािजूद
मैने अपनी सभी पाॅकेट पर हाॅथ िेरा और अगले ही पल मैं चौंका। पै न्ट की
कपछली जेब में मुझे कुछ महसू स हुआ। मैने िौरन ही उस ची़ि को कनकाला तो मु झे
एक पाॅच सौ का नोट ऩिर आया।

पाॅच सौ का नोट उस िक्त मैं इस तरह दे ख रहा था जैसे मैने कभी उसे दे खा ही न
हो और सोचने लखा था कक इस प्रकार का ये काग़ज आकखर है क्ा ची़ि? खै र, िो

788
टै र्क्ी जब मेरे क़रीब पहुॅचने को हुई तो मैने उसे रुकने के कलए हाॅथ से इशारा
ककया। मेरे इशारे पर िो टै र्क्ी मेरे पास पहुॅच कर रुक गई। मैने दे खा कक उसमें जो
डर ाइिर था िो कोई पैं तीस के आस पास का काला सा आदमी था। टै र्क्ी को रुकते
ही उसने किं डो से अपना कसर बाहर की तरि कनकाल कर मुझसे पू छा कहाॅ जाना
है? मैने उसे पता बताया तो उसने अं दर बै ठने का इशारा ककया। ले ककन उससे पहले
ये बताना न भू ला था कक भाडा पाॅच सौ रुपये लगेगा। मैं उसके भाडे का सु न कर
मन ही मन चौंका। मगर बोला यही कक ठीक है भाई ले ले ना मगर मु झे बताए गए पते
पर पहुॅचा दो। बस ये कहानी थी।"

"बडी हैरत ि बडी अजीब कहानी है।" प्रकतमा ने सोचने िाले भाि से कहा___"इसका
मतलब उन लोगों ने तु में ऐसी जगह छोंडा था जहाॅ से अगर कोई िाहन कमलता भी
तो िो तु मसे भाडे के रूप पाॅच सौ रुपये ही माॅगता और इसी कलए उन लोगों ने
तु म्हारी जेब में पाॅच सौ रुपये डाल कदये थे ताकक तु म आराम से यहाॅ तक पहुॅच
सको। ये तो कमाल ही हो गया अजय।"

"कमाल तो हो ही गया।" अजय कसं ह ने सोचने िाले अं दा़ि में कहा___"मगर मु झे


ऐसा लगता है जैसे िो टै र्क्ी िाला भी साला उन्ही ं का आदमी था। क्ोंकक कजस रास्ते
पर िो कमला था उस रास्ते पर डे ढ घंटे इन्त़िार करने के बाद ही उस टै र्क्ी के रूप
में िाहन कमला था। टै र्क्ी पर कोई दू सरी सिारी नही ं थी बल्कि डर ाइिर के अलािा
सारी टै र्क्ी खाली ही थी।"

"कबलकुल ऐसा हो सकता है अजय।" प्रकतमा के मल्कस्तष्क में जैसे झनाका सा हुआ
था, बोली___"यकीनन िो टै र्क्ी और िो टै र्क्ी डर ाइिर उन लोगों का ही आदमी था।
अगर ऐसा है तो इसका मतलब ये भी हुआ कक पाॅच सौ रुपया जहाॅ से आया था
तु म्हारे पास िो िापस िही ं लौट भी गया। क्ा कमाल का गेम खे ला है उन लोगों ने ।"

"उन लोगों ने नही ं प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"बल्कि उस हराम़िादे किराज ने ।


मुझे तो अब तक यकीन नही ं हो रहा कक िो सब किराज के आदमी हैं और किराज के
ही हुकुम पर उन लोगों ने ये सं गीन कारनामा अं जाम कदया था। तु म ही बताओ प्रकतमा
क्ा तु म सोच सकती हो कक कल का छोकरा कही ं पर बै ठे बै ठे ऐसा कोई कारनामा
कर सकता है?"

"बे शक नही ं सोच सकती अजय।" प्रकतमा ने गंभीरता से कहा___"मगर शु रू से ले कर


अब तक की उसकी सारी गकतकिकधयाॅ ऐसी रही हैं कक अब अगर िो कुछ भी
अकिश्वसनीय करे तो सोचा जा सकता है। इससे एक बात ये भी साकबत होती है कक िो
कोई मामूली ची़ि नही ं रह गया है। या तो उसे ककसी पहुॅचे हुए ब्यल्कक्त का

789
आशीिागद प्राप्त है या किर सच में िो इतना क़ाकबल हो गया है कक िो आज के समय
में हर ची़ि अिोडग कर सकता है।"

"यही तो हजम नही ं हो रहा प्रकतमा।" अजय ने झुंझलाहट के मारे कहा___"इतने कम


समय में आकखर उसने ऐसा क्ा पा कलया है कजसके बलबू ते पर िो कुछ भी कर
सकने की क्षमता रखता है? आज के समय में सच्चाई और ने की कक राह पर चलते
हुए इतनी बडी ची़ि अथिा कामयाबी नही ं पाई जा सकती। ़िरूर िो कोई ग़लत
काम कर रहा है। हाॅ प्रकतमा, ग़लत कामों के द्वारा ही कम समय में बडी बडी ची़िें
हाॅकसल होती हैं, किर भले ही चाहे उन बडी बडी ची़िों की ऊम्र छोटी ही क्ों न
हो।"

"यकीनन अजय।" प्रकतमा ने कहा___"ऐसा ही लगता है। मगर सबसे बडे सिाल का
जिाब तो अभी तक नही ं कमला न।"
"कौन सा सिाल?" अजय कसं ह चौंका।
"यही कक उसने तु म्हारे साथ।" प्रकतमा ने कहा___"मेरा मतलब है कक उसने तु म्हें
नकली सीबीआई िालों के द्वारा कगरफ्तार करिा के दो कदन तक ककसी गु प्त कैद में
रखा तो इसमें उसका क्ा मकसद कछपा था? आकखर उसने तु म्हें कैद करिा के
अपना कौन सा उल्लू सीधा ककया हो सकता है? हमारे कलए ये जानना बे हद ़िरूरी है
अजय। आकखर पता तो चलना ही चाकहए इस सबका।"

"पता चलना तो चाकहए।" अजय कसं ह ने कहा___"मगर कैसे पता चले गा? हमारे पास
ऐसा कोई छोटा से भी छोटा सबू त या क्लू नही ं है कजसके आधार पर हम कुछ जान
सकें।"
"एक सिाल और भी है अजय।" प्रकतमा ने कुछ सोचते हुए कहा___"जो कक कुछ
कदनों से मेरे कदमाग़ में चु भ सा रहा है।"

"ऐसा कौन सा सिाल है भला?" अजय कसं ह के माथे पर कशकन उभरी।


"यही कक हमारी बे टी ररतू ।" प्रकतमा ने कहा___"जब से हमसे ल्कखलाफ़ हुई है तब से
िो घर िापस नही ं आई। तो सिाल ये है कक िो रहती कहाॅ है? मुझे लगता है कोई
ऐसी जगह ़िरूर है जहाॅ पर िो नै ना और किराज के साथ रह रही है। ऐसी कौन सी
जगह हो सकती है?"

प्रकतमा की इस बात से अजय कसं ह उसे इस तरह दे खता रह गया था मानो प्रकतमा के
कसर पर अचानक ही कदल्ली का लाल ककला आकर खडा हो गया हो। किर जैसा उसे
होश आया।

790
"सिाल तो यकीनन िजनदार है।" किर अजय कसं ह ने कहा___"मगर सं भि है कक िो
यही ं कही ं आस पास ही ककसी के घर में कमरा ककराये पर कलया हो और हमारे पास
रह कर ही िो हमारी हर गकतकिधी पर बारीकी से ऩिर रख रही हो।"

"हो सकता है।" प्रकतमा ने कहा___"मगर हमारे इतने क़रीब रहने की बे िकूिी िो
हकगग ़ि भी नही ं कर सकती जबकक उसे बखू बी अं दा़िा हो कक पकडे जाने पर उसके
साथ साथ नै ना और किराज का क्ा हस्र हो सकता है। इस कलए इस गाॅि में िो
ककसी के घर में पनाह नही ं ले सकती।"

"इस गाॅि में न सही।" अजय कसं ह बोला___"ककसी ऐसे गाॅि में तो पनाह ले ही
सकती है जो हमारे इस हल्दीपु र गाॅि के करीब भी हो और िो बडी आसानी से
हमारी हर मूिमे न्ट को किरप कर सके।"
"हाॅ ये हो सकता है।" प्रकतमा ने कहा___"ककसी दू सरे गाॅि में िो यकीनन रह रही
है और हम पर बारीकी से ऩिर रखे हुए है । खै र छोंडो ये सब बातें , मैं ये कह रही हूॅ
कक आज तु म्हारे ससु र जी आ रहे हैं।"

"क क्ा???" अजय कसं ह उरी तरह चौंका___"स ससु र जी? मतलब कक तु म्हारे कपता
जगमोहन कसं ह जी??"
"हाॅ कडयर।" प्रकतमा ने सहसा खु श होते हुए कहा___"आज िषों बाद मैं अपने कपता
जी से कमलू ॅगी। मगर अजय मुझे अं दर से ऐसा लग रहा है जैसे मैं उनके सामने जा
ही नही ं पाऊगी। तु म तो जानते हो कक मैने तु मसे शादी उनकी म़िी के ल्कखलाफ़
जाकर तथा उनसे हर ररश्ा तोड कर की थी। इतने िषों के बीच कभी भी मैने उनसे
न कमलने की कोकशश की और ना ही कभी उनसे िोन पर बात करने की। ये एक
अपराध बोझ है अजय कजसके चलते मु झमें कहम्मत नही ं है कक मैं अपने कपता का
सामना कर सकूॅ।"

"पर मैं इस बात से हैरान हूॅ।" अजय कसं ह ने चककत भाि से कहा___"कक इतने िषों
बाद उन्हें अपनी बे टी की याद कैसे आई और यहाॅ आने का किचार कैसे आया उनके
मन में?"
"ये सब मेरी िजह से ही हुआ है अजय।" प्रकतमा ने कहा___"दरअसल जब तु म्हें
सीबीआई के िो लोग कगरफ्तार करके ले गए थे तब मैं बहुत परे शान ि घबरा गई थी।
मुझे कुछ समझ नही ं आ रहा था कक कैसे मैं तु म्हें सीबीआई की कैद से आ़िाद
कराऊ? तब पहली बार मुझे अपने कपता का खयाल आया। हाॅ अजय, तु म तो जातने
हो कक मेरे कपता जी बहुत बडे िकील हैं। कैसा भी केस हो उनके अं डर में आने के
बाद उनका मुिल्कक्कल बाइज्ज़ित बरी ही होता है। इस कलए मैने सोचा कक तु म्हें कानू न
की उस कगरफ्त से छु डाने के कलए मु झे अपने कपता से ही मदद ले नी चाकहए। मगर

791
चू ॅकक मैने उनसे अपने हारे सं बंध िषों पहले ही तोड कलये इस कलए कहम्मत नही ं हो
रही थी उनसे बात करने की।"

"ओह।" अजय कसं ह हैरत से बोला___"किर क्ा हुआ?"


अजय कसं ह के पू छने पर प्रकतमा ने सारा ककस्सा बता कदया उसे । ये भी कक कैसे उसके
चक्कर खा कर कगरने पर कशिा ने ररऐक्ट ककया कजसके तहत उसके कपता जी भी
घबरा गए और किर उन्होंने तु रंत यहाॅ आने के कलए कहा। उनके पू छने पर ही कशिा
ने उन्हें यहाॅ का पता भी बताया था। सारी बातें सु न कर अजय कसं ह अजीब सी
हालत में सोिे पर बै ठा रह गया।

"ये तु मने अच्छा नही ं ककया प्रकतमा।" किर अजय कसं ह मानो गंभीरता की प्रकतमूकतग
बना बोला___"मैं इस बात से दु खी नही ं हुआ हूॅ कक मेरे सु सर और तु म्हारे यहाॅ आ
रहे हैं बल्कि दु खी इस बात पर हुआ हूॅ कक ऐसे हालात में उनका आगमन हो रहा है।
तु में तो सब पता ही है कडयर हमारे हालातों के बारे में। तु म्हारे कपता एक ते ़ि तरागर ि
क़ाकबल िकील हैं तथा उनका कदमाग़ ते ़ि गकत से काम करता है। इस कलए अगर इस
हालातों के सं बंध में कोई एक बात शु रू हुई तो समझ लो कक किर उस बात से और
भी बहुत सी बातें शु रू हो जाएॅगी। उस सू रत में हमारी हालत और भी खराब हो
सकती है। हम भला ये कैसे चाह सकते हैं कक हमारी असकलयत उनके सामने फ़ाश
हो जाए?"

"तु म सच कह रहे हो अजय।" प्रकतमा को भी जैसे िस्तु - ल्कथथकत का एहसास


हुआ___"इस बारे में तो मैने सोचा ही नही ं था। सोचने का खयाल ही नही ं आया
अजय। हालात ही ऐसे थे कक मुझे मजबू र हो कर अपने कपता डी से बात करनी पडी
और उन्होंने यहाॅ आने का भी कह कदया। दू सरी बात मुझे तो ये ख्वाब में भी उम्मीद
नही ं थी कक तु म आज िापस इस तरह आ जाओगे। िरना मैं अपने कपता को िोन ही
नही ं करती।"

"इसमें तु म्हारी कोई ग़लती नही ं है कडयर।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली___"तु मने
जो कुछ भी ककया उसमें कसिग तु महारी अपने पकत के प्रकत कचं ता ि किक्र थी। खै र
अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बडी ही होकशयारी और सतकगता से काम
ले ना होगा। तु म उन्हें ये नही ं बताओगी कक कल तु मने उन्हें ककस िजह हे िोन ककया
था बल्कि यही कहोगी कक तु म्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दू सरी बात कशिा को
भी समझा दो कक िो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे कजससे ककसी भी तरह
की बात खु लने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दू सरी बे टी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से ।" प्रकतमा ने

792
कहा___"इतना ही नही ं उसके साथ में मेरी बहन की बे टी सोनम भी है।"
"क्ा????" अजय कसं ह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रकतमा ने बे चैनी से कहा___"िो दोनो ऊपर कमरे में इस िक्त सो रही
हैं।"

"अरे तो तु म उनके पास जाओ।" अजय कसं ह एकदम से किक्रमंद हो उठा था,
बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कक िो दोनो अपने नाना जी के
सामने हालातों के सं बंध में ककसी भी तरह की कोई बात नही ं करें गी।"
"ठीक है।" प्रकतमा ने सोिे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और
सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें ।"

ये कह कर प्रकतमा ते ़ि ते ़ि क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के कलए सीकढयों


की तरि बढ गई। जबकक उसके जाने के बाद अजय कसं ह एक बाथ पु नः असहाय सा
सोिे की कपछली पु श् से पीठ कटका कर पसर गया था। चे हरे पर कचं ता ि परे शानी
के भाि गकदग श करते हुए ऩिर आ रहे थे ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 53 》

अब तक,,,,,,,,

"इसमें तु म्हारी कोई ग़लती नही ं है कडयर।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली___"तु मने
जो कुछ भी ककया उसमें कसिग तु महारी अपने पकत के प्रकत कचं ता ि किक्र थी। खै र
अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बडी ही होकशयारी और सतकगता से काम
ले ना होगा। तु म उन्हें ये नही ं बताओगी कक कल तु मने उन्हें ककस िजह हे िोन ककया
था बल्कि यही कहोगी कक तु म्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दू सरी बात कशिा को
भी समझा दो कक िो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे कजससे ककसी भी तरह
की बात खु लने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दू सरी बे टी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से ।" प्रकतमा ने


कहा___"इतना ही नही ं उसके साथ में मेरी बहन की बे टी सोनम भी है।"
"क्ा????" अजय कसं ह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रकतमा ने बे चैनी से कहा___"िो दोनो ऊपर कमरे में इस िक्त सो रही
हैं।"

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"अरे तो तु म उनके पास जाओ।" अजय कसं ह एकदम से किक्रमंद हो उठा था,
बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कक िो दोनो अपने नाना जी के
सामने हालातों के सं बंध में ककसी भी तरह की कोई बात नही ं करें गी।"
"ठीक है।" प्रकतमा ने सोिे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और
सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें ।"

ये कह कर प्रकतमा ते ़ि ते ़ि क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के कलए सीकढयों


की तरि बढ गई। जबकक उसके जाने के बाद अजय कसं ह एक बाथ पु नः असहाय सा
सोिे की कपछली पु श् से पीठ कटका कर पसर गया था। चे हरे पर कचं ता ि परे शानी
के भाि गकदग श करते हुए ऩिर आ रहे थे ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

उधर पु कलस िालों की कार से मैं और आकदत्य भी सु रकक्षत ररतू दीदी के पास
िामग हाउस पर पहुॅच गए थे । सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में
बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से कभडना था। एक तो
अपने ताऊ अजय कसं ह से और दू सरा मंत्री से । ररतू दीदी ने मु झे मंत्री के सं बंध में
सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खु श था कक ररतू दीदी के पास मंत्री के ल्कखलाफ़
ऐसे सबू त हैं कक िो जब चाहे उस मंत्री और उसके साकथयों को बीच चौराहे पर नं गा
दौडने पर कबिश कर दें । इधर िही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय कसं ह के
ल्कखलाफ़ ऐसे सबू त थे कक उन सबू तों के आधार पर अजय कसं ह पलक झपकते ही
कानू न की ऐसी कगरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर कनकलना उसी तरह
नामुमककन था जैसे ककसी नदी के दो ककनारोउअं आपस कमलना नामु मककन ही नही ं
असं भि होता है।

मेरे मन में कभी कभी ये खयाल भी आता था कक इस खे ल को एक पल में खत्म कर


दू ॅ। यानी ग़ैर कानू नी धंधा करने और अिै ध गैर कानू नी ऐसा पदाथग रखने के जुमग में
अजय कसं ह ऊम्र भर का कलए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदाथग ककसी भी
इं सान की क़िंदगी खत्म करने के कलए कािी थे । मगर मैं ऐसा करना नही ं चाहता था
बल्कि मैं तो अजय कसं ह को खु द अपने हाथों से ऐसी स़िा दे ना चाहता था कक िो मौत
के कलए कगडकगडाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।

मुझे इस बात का भी एहसास था कक आज भले ही मं त्री सच्चाई को पू री तरह न


जानता हो मगर दे र सिे र उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। िो चु प नही ं बै ठेगा
बल्कि कुछ तो ऐसा करे गा ही कक उसके गले में िसी हुई हड्डी कनकल सके और

794
उसके बच्चे सही सलामत उसे िापस कमल सकें। मुझे एहसास था कक ये दोनो ही
ताकतें बहुत ही खतरनाक साकबत हो सकती है हमारे कलए। हम अभी तक इसी कलए
से ि रह सके थे क्ोंकक हमने खु ल कर तथा सामने आकर कोई काम नही ं ककया था।
बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एिं छु प कर ककया था। मगर
हालात ज्यादा कदन तक ऐसे ही नही ं बने रह सकते थे । इस कलए इन सब बातों पर
किचार करके मु झे सबसे पहले अपनी सु रक्षा का पु ख्ता इं तजाम करना था।

िामग हाउस पर हमें छोंड कर िो पु कलस के आदमी िापस चले गए थे । ररतू दीदी मु झे
िापस आया दे ख कर बे हद खु श हो गई थी। आकदत्य तो सीधा कमरे की तरि चला
गया था जबकक मैं और कुछ दे र िही ं डर ाइं गरूम में बै ठा सबसे बातें करता रहा। नै ना
बु आ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पू छा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की
तरि बढ गया।

कमरे के अटै च बाथरूम में मैं मस्त ठं डे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा
कर मैं टािे ल लपे टे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो
बे ड पर आराम से बै ठी ररतू दीदी पर मेरी ऩिर पडी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस
िक्त कसिग एक टािे ल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा कजस्म नं गा ही था मेरा।
ररतू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शमग सी महसू स हुई।

"ओहो क्ा बात है राज।" सहसा ररतू दीदी की चहकती हुई आिा़ि मेरे कानों से
टकराई___"क्ा बाॅडी शाॅडी बना रखी है तु मने । ओहो कसर्क् पै क भी है। पक्का
कजम करते होगे तु म, है न?"

"हाॅ थोडा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शमाग ते हुए कहा।
"अरे तु म शमाग क्ों रहे हो राज?" ररतू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे
ककस बात की शरम भाई? मैं तो ते री बहन हूॅ कोई ग़ैर लडकी नही ं कजससे तू
शरमाए।"

"पर दीदी।" मैने असहज भाि से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नही ं
आया न। इस कलए मु झे थोडी शरम आ रही है ।"

मेरी ये बात सु न कर ररतू दीदी बे ड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और किर मेरे चे हरे
को अपनी हथे कलयों के बीच ले ते हुए कहा___"ओए ये क्ा बात हुई भला? तू मेरा
सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तु झे मु झसे ककसी भी तरह से शरमाने की
या कझझकने की ़िरूरत नही ं है। तु झे पता है राज, अब तक मैं ऐसे ररश्ों के बीच थी
जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अं दर पाप और गंदगी भरी हुई थी।

795
ऐसे लोगों से मेरा कोई सं बंध नही ं है अब। दु कनयाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो िो
है तू । मेरी क़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और िो है ते रे साथ ग़लत करने
िालों सिग नाश करना और तु झे सं सार की हर खु शी दे ना। मेरा कदल करता है कक मैं
तु झ पर कुबागन हो जाऊ मेरे भाई, िना हो जाऊ तु झ पर।"

"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मु स्कुरा कर कहा___"कक आप मुझसे बहुत प्यार
करती हैं। इसका सबसे बडा सबू त यही है कक आज आप अपने ही माता कपता के
ल्कखलाफ़ हो गई हैं और अपने माता कपता के सबसे बडे दु श्मन का साथ दे रही हैं।
मुझे इस बात की खु शी नही ं है कक आपने मेरे कलए अपने माता कपता से बगाित की है
बल्कि इस बात की खु शी है कक मैं कजस ररतू दीदी से बात करने के कलए अब तक
तरस रहा था िो आज मेरे पास हैं।"

"काश ये सब मैं पहले ही सोच ले ती राज।" ररतू दीदी एकदम से दु खी होकर मुझसे
कलपट गईं। किर भारी स्वर में बोली ं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दू र न
रहती और ना ही ऐसे हालात पै दा होते ।"

"हालात तो तब भी ऐसे ही पै दा होते दीदी।" मै ने कहा___"क्ोंकक इं सानों की कितरत


कभी नही ं बदलती। िो अपनी कितरत से मजबू र होकर पहले भी िही करता जो
आज कर रहा है।"
"माना कक मेरे कपता अपनी कितरत के चलते िही सब करते जो आज कर रहे हैं।"
ररतू दीदी ने कहा___"मगर मैं ते री बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो कमल
जाता न? मेरी िजह से ते रे कदल को इतनी तक़लीि तो न होती कजतनी अब तक हुई
थी।"

"कोई बात नही ं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गु ़िर गया उसे भू ल जाइये और
आज की बात कररये तथा आज के माहौल में खु श रकहए।"
"तू साथ है तो अब मैं खु श ही रहूॅगी राज।" ररतू दीदी ने मेरी ऑखों में दे खते हुए
कहा___"तु झे पता है राज, इसके पहले मैं कभी ककसी लडके के क़रीब नही ं गई। पता
नही ं क्ों पर मु झे हर लडके से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लडका
लडकी एक दू सरे के जाने ककतने क़रीब आ जाते हैं मगर मु झे इन सब बातों से बे हद
कचढ थी। मगर किधी से कमलने के बाद और उसकी प्रे म कहानी सु नने के बाद मुझे
एहसास हुआ कक आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक कमसाल
बन जाते हैं। मैं बहुत खु श थी मेरे भाई कक ऐसा इं सान मेरा अपना भाई ही है और
किर मुझे एहसास हुआ कक ककतनी ग़लत थी मैं जो तु झे बचपन से ही ग़लत समझती
आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो ते रे कलए मेरे हृदय में और भी
जगह हो गई भाई। मेरी अं तआग त्मा से बस एक ही आिा़ि आती है और िो ये कक अब

796
तु झसे ही मेरी हर खु शी है और दु ख भी।"

"जो होता है सब अच्छे के कलए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज
मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नही ं
सकता कक इस बात से मैं ककतना खु श हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का कबलकुल
भी मन नही ं था। मगर सबको ले कर जाना भी ़िरूरी था। ले ककन िहाॅ से िापस
आपके पास आ जाने के कलए मैं उतािला हो रहा था। मुझे लग रहा था कक मैं पलक
झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊ।"

"ऐसी बातें मत कर राज।" ररतू दीदी की आिा़ि काॅप सी गई। िो मुझसे कस के


कलपट गईं और किर बोली___"तु झे नही ं पता कक ते री ऐसी बातों से मैं ककतनी
कम़िोर हो सकती हूॅ। कही ं ऐसा न हो जाए कक मैं ते रे कबना एक पल भी रह न
पाऊ।"

"तो क्ा हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही
तो रहेंगे। किर आप ऐसा क्ों कह रही हैं?"
"तू नही ं समझेगा राज।" ररतू दीदी ने सहसा बे चैनी से पहलू बदला___"खै र छोंड ये
सब। मैं ये कह रही हूॅ कक किधी के माता कपता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी कमल
ले ना तु म।"

"मैं आपसे एक ़िरूरी बात जानना चाहता हूॅ।" मैने दीदी से कहा___"और िो ये कक
ये िामग हाउस आपके पास कैसे है?"
"ये िामगहाउस डै ड ने मेरे नाम बहुत पहले ही कर कदया था।" ररतू दीदी ने
कहा___"ऐसे ही दो िामग हाउस और हैं। एक नीलम के कलए और दू सरा कशिा के
कलए। पर तू ये क्ों पू छ रहा है राज?"

"इसका मतलब।" राज को झटका सा लगा था___"इस िामगहाउस के बारे में बडे
पापा जानते हैं। जाने भी क्ों न आकखर कदया तो उन्होंने ही है आपको। इस कलए अब
आप ये भी जान लीकजए कक यहाॅ पर रहना भी हमारे कलए खतरे से खाली नही ं है।"

"क्ा????" ररतू दीदी भी बु री तरह कहल गईं, कदाकचत उन्हें भी अब तक इस बात का


एहसास नही ं था। ककन्तु अब हो गया था___"ये तो यकीनन सच कहा तू ने। ओह माई
गाड मु झे इस बारे में पहले ही सोच ले ना चाकहए था। सचमुच राज यहाॅ हममें से
कोई भी सु रकक्षत नही ं है। ये तो अच्छा हुआ कक अभी तक डै ड का ध्यान िामगहाउस
की तरि नही ं गया है। मगर इसमें अब ़िरा भी शक नही ं कक बहुत जल्द उन्हें इस
िामग हाउस का खयाल आ सकता है । िो सोच सकते हैं कक मैं और तु म यहाॅ छु पे हो

797
सकते हैं। अतः िो ़िरूर इसका पता लगाएॅगे। अब क्ा होगा राज?"

"किक्र मत कीकजए।" मैने कहा___"सारे रास्ते मैं यही सोच रहा था और किर मैने
इसका बं दोबस्त भी ककया है।"
"बं दोबस्त??" ररतू दीदी हैरान।

"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"इसका तो मु झे भी अं दा़िा था कक ये िामग हाउस आपके


पास बडे पापा की िजह से ही आया हो सकता है। इस कलए इसका खयाल दे र सिे र
उन्हें आ ही जाएगा। अतः मैने िौरन ही अपने एक दोस्त को िोन ककया। मेरा िो
दोस्त आजकल इं दौर में है अपने माता कपता ि भाई बहन के साथ। घर से और दौलत
से भी सम्पन्न है िो। उसके पापा इन्कमटै र्क् के बडे ऑकिसर हैं तथा उसका बडा
भाई पु कलस में एसीपी है। गुनगुन से क़रीब दस ककलोमीटर पहले ही उसका गाॅि है
रे िती। जहाॅ पर उसका बडा भारी पु श्ैनी घर है। ककन्तु उस घर में कोई नही ं रहता
है। घर की दे ख रे ख के कलए एक दो केयरटे कर रखे हुए हैं उसके डै ड ने । मैने अपने
उसी दोस्त से बात की थी तथा उसको सारी बातें भी बताई और कहा कक कुछ समय
के कलए मुझे उसके घर की ़िरूरत है रहने के कलए। मेरी सारी बातें सु नकर उसने
अपनी माॅम से बात ककया। उसकी माॅम मु झे अपने बे टे की तरह ही चाहती थी।
शे खर ने जब अपनी माॅ से मेरी सारी कहानी बताई तो िो मेरे कलए कचं कतत हो गईं
और िौरन ही उन्होंने कह कदया कक मुझे आज ही उनके घर में कशफ्ट हो जाना
चाकहए। उन्होंने घर के केयरटे कर को िोन करके मेरे बारे में बता कदया है। एक काम
उन्होंने ये भी ककया कक अपनी बहन को जो कक रे िती में ही रहती हैं भी सू कचत कर
कदया है। उनसे कहा कक िो अपने पकत को ककसी ऐसे िाहन के साथ मेरे पास भे ज दें
कजसमें हम सब और हमारा सामान आराम से आ सके।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है राज।" ररतू दीदी ने खु श होकर मेरे गाल पर चु म्बन जड
कदया___"तू ने सचमुच बहुत ही कमाल का और होकशयारी का काम ककया है। मगर
एक समस्या भी है।"
"कैसी समस्या दीदी?" मैं चकराया।
"यही कक हम सब और हमारा सामान िगैरह तो यहाॅ से िहाॅ कशफ्ट हो जाएगा।"
ररतू दीदी ने कहा___"मगर हम तहखाने में मौजूद उस मंत्री के कपल्लों को कैसे ले
जाएॅगे और िहाॅ उन्हें कैसे रखें गे? यहाॅ तो तहखाना था जहाॅ पर मैने उन
सबको कैद ककया हुआ है जबकक िहाॅ पर ऐसा कोई तहखाना नही ं हो सकता।"

"कोई ़िरूरी तो नही ं कक उन सबको तहखाने में ही रखा जाए।" मैने कहा___"हम
उन लोगों को ककसी कमरे में भी िै से ही बाध कर रख सकते हैं । बस इस बात का
खयाल रखना होगा कक िो चीख कचल्ला न सकें। िरना उनकी आिा़ि से बाहरी

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लोगों को पता भी लग सकता है।"

"हाॅ ये भी सही है।" ररतू दीदी ने कहा___"और हाॅ हररया काका और शं कर काका
भी हमारे साथ ही जाएॅगे। िो बे चारे मुझे अपनी बे टी की तरह ही चाहते हैं। मेरे कलए
िो कुछ भी कर सकते हैं। िो दोनो अच्छे इं सान है राज। यहाॅ पर उन्हें अकेले छोंड
चले जाना कतई उकचत नही ं है।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"हम उन्हें भी साथ ले चलें गे। मगर यहाॅ से चलने की
िौरन तै यारी कीकजए। मेरे दोस्त शे खर का कभी भी िोन आ सकता है ये बताने के
कलए कक उसके मौसा िाहन ले कर हमारे पास पहुॅचने ही िाले हैं।"

"क्ा हमें आज ही यहाॅ से कनकलना होगा?" ररतू दीदी ने हैरानी से कहा था।
"कबलकुल दीदी।" मैने कहा___"हम एक पल की भी दे री नही ं कर सकते । बडे पापा
का कुछ पता नही ं कक उनके मन में ककस पल इस िामगहाउस का खयाल आ जाए
और िो िौरन हम सबका पता लगाने के कलए यहाॅ आ धमकें। इस कलए बे हतर यही
है कक उनके यहाॅ धमकने से पहले ही हम लोग यहाॅ से कूच कर जाएॅ।"

"सही कह रहा है तू ।" ररतू दीदी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए


कहा___"िक्त और हालात का कोई भरोसा नही ं ककया जा सकता।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"अब आप जाइये और सबको बता दीकजए। मैं भी
कपडे पहन कर आता हूॅ हाथ बटाने ।"

"चल ठीक है।" दीदी ने कहा और िौरन ही कमरे से बाहर कनकल गईं। उनके जाने
के बाद मैने भी आनन िानन में कपडे पहने । तभी मेरा आई िोन बजा। (यहाॅ पर
मैं आप सबको (खास कर नै ना जी को) ये बता दू ॅ कक आई िोन कसिग ररतू दीदी के
पास ही नही ं था बल्कि मेरे और गुकडया (कनधी) के पास भी है)

मैने मोबाइल उठाकर दे खा तो शे खर का ही काल था। मैने तु रंत ही काल ररसीि कर


मोबाइल को कान से लगा कलया। उधर से शे खर ने बताया कक उसके मौसा कुछ ऐसे
आदकमयों को भी साथ में ले कर आ रहे जो तु म सबकी सु रक्षा का भी खयाल रखें गे।
मैं उसकी बात सु न कर मु स्कुराया और उसे इसके कलए धन्यिाद कदया। उसने बताया
कक दस से बीस कमनट के बीच उसके मौसा मे रे पास पहुॅच जाएॅगे। उसके बाद
काल कट हो गई।

मैं िौरन ही कमरे से कनकल कर नीचे आया और सबके साथ सामान को इकिा कर
उसे पै क करिाने लगा। मैने आकदत्य से कहा कक िो हररया काका को भी इस बात
का बता दे और उससे कहे कक िो तहखाने से उन चारों कपल्लों को तथा मं त्री की बे टी

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को बे होश कर तहखाने से बाहर कनकालने की तै यारी करें । मेरी बात सु नकर आकदत्य
िौरन ही हररया काका के पास चला गया। इधर नै ना बु आ तथा किधी के माता कपता
भी सारे सामान को पै क करने में लगे हुए थे । ररतू दीदी ने बताया कक पिन का
सामान भी पै क रखा हुआ है कजसे साथ ही यहाॅ से ले चलना है।

लगभग बीस कमनट बाद ही दो इनोिा कार तथा उसके पीछे एक टै म्पो िामगहाउस में
दाल्कखल हुए। मैं ये दे ख कर हैरान रह गया कक इतने सारे िाहन शे खर ने भे जिा कदये
थे । कदाकचत उसे अं दा़िा था कक सबको लाने में इतने ही िाहनों की ़िरूरत पड
सकती थी। टै म्पो में सारा सामान और दोनो कारों में हम सब लोग बै ठ कर आराम से
यहाॅ से जा सकता थे । खै र सामान तो पै क हो ही चु का था। अतः मैं और आकदत्य
जल्दी जल्दी सारे सामान को टै म्पो में लोड करने लगे। इस काम में मौसा के साथ
आए हुए चार पाॅच आदमी भी लग गए। कुछ ही दे र में सारा सामान टै म्पो में लोड
हो गया।

हररया काका और शं कर काका ने उन चारों कपल्लों और उस कपल्ली को भी टै म्पो में


ही ठूॅस कदया और खु द भी उसी टै म्पो में चढ गए। मौसा के तीन आदमी भी टै म्पो में
चढ गए। टै म्पो का कपछला िटका लगा कर ऊपर से मोटी कतरपाल को ढक कदया
गया। कजससे अं दर का कुछ भी दे खा नही ं जा सकता था।

उसके बाद मैने किधी के माता कपता, नै ना बु आ, तथा कबं कदया काकी को एक इनोिा में
बै ठा कदया। उस इनोिा में मौसा का एक आदमी भी आगे की शीट पर हाॅथ में बं दूख
कलए बै ठ गया। दू सरी इनोिा में मैं आकदत्य और ररतू दीदी बै ठ गए। आगे की शीट पर
आकखरी बचा बं दूकधारी भी बै ठ गया। उसके बाद सारा क़ाकिला चल कदया िहाॅ
से । इसके पहले हमने अच्छी तरह से चे क कर कलया था कक हमारी कोई ऐसी ची़ि तो
नही ं छूट गई जो ़िरूरी हो।

ररतू दीदी ने रास्ते में ककसी को िोन लगाया और उससे कहा कक उसके िामगहाउस
से पु कलस कजप्सी अपने साथ ले जाकर थाने में खडा कर दें । िामग हाउस में एक और
जीप थी जो कक अजय कसं ह की ही थी उसे िही ं खडे रहने कदया था। लगभग आधा
घंटे बाद हम रे िती पहुॅच गए। इस बीच रास्ते में हमें इक्का दु क्का िाहन तो कमले
मगर उनमें कोई मंत्री या अजय कसं ह का आदमी नही ं था। रे िती में शे खर के मकान
के सामने ही हमारा क़ाकिला रुका। घर के बाहर ही दो केयरटे कर खडे कदखे ।
िाहनों के रुकते ही िो हमारे पास आ गए।

हम सब िाहनों से उतर कर बाहर आए तो िो दोनो केयर टे कर हमें घर के अं दर की

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तरि ले गए। मैं और आकदत्य बाहर ही थे । टै म्पो से पहले उन पाॅचों कैकदयों को
कनकाल कर घर के अं दर एक ऐसे कमरे में ले आए जो सबसे अलग और आकखर में
था। उसके बाद हम सबने कमल कर टै म्पो से सारा सामान उतार कर अं दर ले गए।
उन बं दूखधाररयों हमारी बडी मदद की।

शे खर के मौसा, कजनका नाम केशि शमाग था िो बडे ही खु शकदल इं सान थे । मु झे


उनका ने चर बडा पसं द आया था। िो अं त तक हमारे पास ही रहे और हमारी हर
ब्यिथथा के बारे में दे खते सु नते रहे तथा हमारी हर ़िरूरों की कलस्ट बनाते रहे।
दरअसल यहाॅ रहता तो कोई था नही ं। दो केयरटे कर थे जो कक घर से अलग एक
तरि बने सिे न्ट क्वाटग र में रहते थे । िो सारा कदन सारे सामान को जमाने में और
रखने में चला गया। इस बीच शे खर की माॅम सु गंधा ऑटी का िोन भी आया था।
उन्होंने मु झसे बडे प्यार से बात की और ये भी कहा कक मैं यहाॅ पर ककसी भी ची़ि
के कलए सं कोच न करूॅ। ये घर अपना ही है और हर ची़ि का उपयोग बडे शौक से
कर सकते हैं हम। मैं सु गंधा ऑटी से बात करके मुतमईन हो गया था और खु श भी।
उसके बाद मैं और आकदत्य मौसा जी के साथ माकेट चले गए। जहाॅ से हमें राशन
पानी तथा और भी कई सारी ची़िें ले नी थी। मौसा जी ने कहा कक गैस कसले ण्डर िो
अपने यहाॅ से हमे दे दें गे।

सारी ब्यिथथा और सब कुछ सही करिाने के बाद मौसा जी ये कह कर अपने घर


चले गए कक हमें जब भी ककसी ची़ि की ़िरूरत पडे तो हम बे कझझक उनसे िोन
बता सकते हैं। उन्होंने कहा कक िो बीच बीच में आते रहेंगे हाल चाल के कलए। मौसा
जी का घर रे िती में ही था ककन्तु मुख्य सडक के पीछे था। पै दल चल कर जाने में
लगभग दस कमनट से भी कम का समय लगता था।

शे खर का ये घर दो मं कजला था तथा कािी बडा था। आज के समय का बना ये घर


िे ल डे कोरे टे ड था। अं दर से ऐसा लगता था जै से कोई बगला हो। हलाॅकक मुम्बई
िाले मेरे बगले के मुकाबले ये कुछ भी नही ं था। होता भी कैसे उस बगले की कीमत
भी तो डे ढ सौ करोड रुपये थी। खै र रात हो चु की थी इन सब कामों में । अतः कबं कदया
काकी ने अपनी रसोई सम्हाल ली थी। उनकी मदद के कलए नै ना बु आ भी साथ थी।
किधी की माॅ भी खाना बनाने में मदद करना चाहती थी मगर नै ना बु आ ने साि कह
कदया था कक िो बस आराम करें । उन्हें यहाॅ पर कोई काम करने की ़िरूरत नही ं
है।

रात का कडनर करने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में सोने के कलए चल कदये।
किधी के माता कपता ग्राउण्ड फ्लोर पर ही बने कमरे को चु ना था अतः िो उसी कमरे
में चले गए। नीचे तीन कमरे और भी थे । कजनमे से एक पर हररया काका ि कबं कदया

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काकी तथा दू सरे पर शं कर काका सोने के कलए चले गए। जबकक ऊपर के कमरों में
मैं आकदत्य नै ना बु आ ि ररतू दीदी चले गए।

इन सब कामों से हम सब कािी थक चु के थे अतः बे ड पर ले टते ही नी ंद को आन् ही


था। ककन्तु मु झे नी ंद नही ं आ रही थी। मेरे मन में कई सारी बातें चल रही थी।
िामग हाउस से यहाॅ कशफ्ट हो जाने से अब ककसी का खतरा नही ं था। बल्कि अब तो
खु ल कर हम कोई काम कर सकते थे । मैं ये सब सोच ही रहा था कक सहसा मुझे ऐसा
लगा जैसे दरिाजे पर बाहर से ककसी ने दस्तक दी हो। मैं ये सोचते हुए बे ड से उठ
कर दरिाजे की तरि चल कदया कक इस िक्त कौन हो सकता है?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर हिे ली में प्रकतमा का बाप ि अजय कसं ह का ससु र जगमोहन कसं ह उस िक्त
हिे ली पहुॅचा जब अजय कसं ह िेश होने के बाद खाना खाने के कलए डायकनं ग टे बल
के चारो तरि लगी कुकसग यों में से मुख्य कुसी पर बै ठा था। जगमोहन कसं ह को हिे ली
के बाहर तै नात अजय कसं ह का एक आदमी अं दर ले कर आया था।

अपने ससु र को आज िषों बाद दे ख कर अजय कसं ह िौरन ही अपनी कुसी से उठ


कर जगमोहन की तरि बढा और उसके पै र छू कर आशीिागद कलया। अभी अजय
कसं ह अपने ससु र के पाॅि छू कर खडा ही हुआ था कक तभी प्रकतमा भी ककचे न से
हाॅथ में थाली कलए आई। प्रकतमा की ऩिर जब अपने कपता पर पडी तो िो एकदम से
मानो बु त बन गई। कािी दे र बाद उसकी तं द्रा तब टू टी जब अजय कसं ह ने उससे
कहा कक दे खो प्रकतमा पापा जी आ गए।

हाॅथ में ली हुई थाली को प्रकतमा ने डायकनं ग टे बल पर रखा और किर भाग कर


जगमोहन की तरि बढी और अपने कपता के गले से लग गई। भािनाओं और
जज़्बातों ने मानो प्रबल रूप धारर् कर कलया कजसके प्रभाि से उसकी ऑखों से ऑसू
झर झर करके बहने लगे थे । प्रकतमा अपने कपता के सीने से छु पकी ़िार ़िार रोये जा
रही थी। जगमोहन खु द भी बे हद ग़मगीन हो गया था और हो भी क्ों न आकखर
प्रकतमा उसकी लाडली बे टी जो थी। अपनी बे टी को अपने कले जे से लगाए जगमोहन
को आज असीम सु ख शाल्कन्त कमल रही थी। िषों से उसके अं दर ददग से भरी हुई टीस
कम हो गई थी।

ककतनी ही दे र तक प्रकतमा अपने कपता के गले लगी रही उसके बाद जब उसके अं दर
का गुबार खत्म हुआ तो िो अपने कपता से अलग हुई और अपने कपता से उनका हाल
चाल पू छने लगी। कुछ दे र बाद अजय कसं ह ने प्रकतमा और अपने ससु र से कहा कक िो
िेश हो लें ताकक हम साथ में बै ठ कर ही खाना खाएॅ। अजय कसं ह की बात पर
जगमोहन कसं ह बोले कक िो बे टी के घर का अन्न कैसे खा सकते हैं? इस पर अजय

802
कसं ह ने हसते हुए कहा कक पापा जी आप भी क्ा बाबा आदम के रीकत ररिाज कलए
बै ठे हैं। आज के समय के सबसे बडे िकील होते हुए भी ऐसी बात करते हैं। आकखर
अपने दामाद और बे टी के बार बार कहने पर जगमोहन कसं ह को अजय कसं ह के साथ
बै ठ कर खाना ही पडा।

खाना खाने के बाद ससु र दामाद के बीच ढे र सारी बातें हुईं उसके बाद अजय कसं ह
प्रकतमा को बता कर अपनी िैक्टर ी के कलए कनकल गया। कािी कदन से िैक्टर ी नही ं
गया था िह। िै से भी िो चाहता था कक िषों के बाद बाप बे टी कमले हैं तो िो िी होकर
एक दू सरे से बातें करें । अजय कसं ह प्रकतमा को ककनारे पर बु ला कर उससे एक बार
पु नः ये कहा कक िो या कोई भी जगमोहन जी से हमारे हालातों के सं बंध में कोई बात
न करे । सब कुछ समझा बु झा कर अजय कसं ह हिे ली से बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसे कशिा इस तरि ही आता कदखाई कदया। अजय कसं ह उसे दे ख कर
कठठक गया। अपनी ही धुन में मस्ती से आता हुआ कशिा अपने बाप को दे ख कर
हैरान रह गया और किर एकदम से झपट कर उसके गला लग गया।

"ओह डै ड आप आ गए।" कशिा खु शी से झम ू ता हुआ बोला था।


"मैं तो आ ही गया बखुग रदार।" अजय कसं ह ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तु म इस
िक्त कहाॅ से इस तरह मस्ती में डूबे चले आ रहे थे ?"
"िो मैं गे स्टहाउस की तरि से आ रहा था डै ड।" कशिा ने कहा___"दरअसल आपके
कबजने स सं बंधी दोस्तों ने अपने आदमी हमारी मदद के कलए यहाॅ भे ज गए थे । इस
कलए मैं उन्ही ं के पास बै ठा हुआ था। माॅम ने कहा था कक उन्हें ककसी ची़ि की
़िरूरत हो तो उन सबका खयाल रखू ॅ।"

"ओह आई सी।" अजय कसं ह आदकमयों का सु न कर सहसा चौंक पडा था किर


बोला___"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है बे टे। मुझे खु शी हुई कक तु म अपनी
कजम्मेदाररयों को समझने लगे हो। खै र मैं ये कह रहा हूॅ कक आज तु म्हारे नाना जी
आए हुए हैं इस कलए तु म या कोई भी उनके सामने हमारे हालातों के सं बंध में कोई
भी बात नही ं करोगे। और हाॅ, तु म भी ़िरा सम्हल कर उनसे बात करना। िो बहुत
ही जहीन इं सान हैं। इं सान को पहचानने में उन्हें ़िरा भी िक्त नही ं लगेगा। अतः
सोच समझ कर और होकशयारी से उनके सामने जाना। ऐसा न हो कक तु म्हारे हाि
भाि से उन्हें ऐसा प्रतीत हो जाए कक तु म ककस टाइप के लडके हो? तु म समझ रहे हो
न कक मैं क्ा कहना चाहता हूॅ?"

"डोन्ट िरी डै ड।" कशिा ने कहा___"मेरी िजह से नाना जी को कुछ और सोचने का


मौका ही नही ं कमले गा और न ही उन्हें हमारे हालातों का कुछ पता चले गा।"

803
"गुड ब्वाय।" अजय कसं ह मु स्कुराया___"अब जाओ तु म। मैं भी ़िरा उन आदकमयों से
कमल लू ॅ, उसके बाद मुझे थोडी दे र के कलए िैक्टर ी भी जाना है।"
"ओके बाय डै ड।" ये कह कर कशिा हिे ली के अं दर की तरि बढ गया।

कशिा का जाने के बाद अजय कसं ह भी गे स्ट हाउस की तरि चल कदया। अभी िो कुछ
क़दम ही चला था कक सहसा पीछे से उसे प्रकतमा की आिा़ि सु नाई दी। उसने पलट
कर दे खा तो प्रकतमा हिे ली के मुख्य दरिाजे पर खडी थी। अजय कसं ह के पलटते ही
प्रकतमा ने उसे बताया कक लै ण्डलाइन िोन पर ककसी का काल आया हुआ है और िो
उससे बात करना चाहता है। प्रकतमा की बात सु न कर अजय कसं ह िापस हिे ली के
अं दर की तरि चल कदया। उसे याद आया कक उसके मोबाइल पर तो कसम काडग है ही
नही ं।

"हैलो।" अपने कमरे में रखे लै ण्डलाइन िोन के ररसीिर को कान से लगाते ही
अजय कसं ह ने अपनी आिा़ि को प्रतभािशाली बनाते हुए कहा था।
"ठाकुर।" उधर से ककसी की िष्ट आिा़ि उभरी__"हम इस प्रदे श के मंत्री कदिाकर
चौधरी बोल रहे हैं।"

"म..मंत्री???" अजय कसं ह उधर ईआ िाक् सु न कर बु री तरह चौंका था, किर लरजते
हुए स्वर में बोला____"क्ा सच में आप मं त्री जी ही बोल रहे हैं?"
"हाॅ ठाकुर।" उधर से कदिाकर चौधरी ने खास अं दा़ि में कहा___"क्ा तु म्हें हमारे
मंत्री होने पर शक़ है?"

"न..न..नही ं नही ं मंत्री जी।" अजय कसं ह बु री तरह सकपकाया___"म मैं तो बस इस


कलए ऐसा कह गया क्ोंकक मु झे उम्मीद ही नही ं थी कक प्रदे श की इतनी बडी
शल्कख्सयत का िोन मेरे पास आ सकता है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान हूॅ कक
भला मु झसे मं त्री जी का क्ा काम हो सकता है कजसके तहत आपने मु झे िोन ककया
है।"

"कुछ तो खास िजह होगी ही ठाकुर।" उधर से कदिाकर चौधरी ने कहा___"िरना


इस िानी दु कनयाॅ में बे मतलब कोई भी ककसी को याद नही ं करता।"
"हाॅ ये बात तो कबलकुल सच है मं त्री जी।" अजय कसं ह के कदमाग़ के घोडे बडी ते ़िी
से ये पता लगाने के कलए दौड रहे थे कक मंत्री ने उसे ककस िजह से िोन ककया हो
सकता है? ककन्तु प्रत्यक्ष में बोला___"आज के समय में हर इं सान मतलबी बन चु का
है। खै र आप बताइये मेरे कलए क्ा आदे श है आपका?"

"दोस्तों को आदे श नही ं दे ते ठाकुर।" उधर से चौधरी ने कहा___"बल्कि साि शब्दों

804
में कह कदया जाता है जो कहना होता है। खै र हम ये कह रहे है कक हम तु मसे कमलना
चाहते हैं। कमलने के बाद ही तसल्ली से हमारे बीच बात चीत होगी और ये भी कक िो
खास िजह क्ा है कजसके तहत हमने तु म्हें िोन ककया है?"

"जैसा आप कहें मंत्री जी।" अजय कसं ह मंत्री के मुख से दोस्तों शब्द सु न कर सोचने
पर मजबू र हो गया था। हलाॅकक मंत्री का उसे िोन करना मौजूदा हालात के कहसाब
से उसके कलए कही ं न कही ं राहत और खु शी की बात थी। उसे भी पता था कक मंत्री
कदिाकर चौधरी क्ा ची़ि है। किर बोला___"बताइये मुझे कब और कहाॅ कमलने
आना होगा आपसे ?"

"िै से समय तो अभी भी है ठाकुर।" उधर से मं त्री ने कहा___"क्ोंकक अभी शाम भी


नही ं हुई है । इस कलए चाहो तो अभी हमारे यहाॅ आ सकते हो। इस िक्त हम गुनगुन
में ही अपने आिास पर मौजूद हैं। ककन्तु अगर तु म्हारे पास इस िक्त टाइम नही ं है तो
कोई बात नही ं कल सु बह आ जाना। हमें कोई परे शानी नही ं है।"

"ये कैसी बात कर रहे हैं मंत्री जी?" अजय कसं ह ने चापलू सी िाले अं दा़ि से
कहा___"आप मुझे अपना समझ कर इतनी इज्ज़ित से बु लाएॅ और मैं तत्काल न
आऊ ऐसा कैसे हो सकता है भला? मैं तो अपने सारे ़िरूरी काम छोंड कर आपके
पास ही दौडा चला आऊगा चौधरी साहब। बस कुछ दे र तक इं त़िार कर लीकजए। मैं
िौरन ही अपने गाॅि हल्दीपु र से गुनगुन में आपके आिास पर आने के कलए कनकल
रहा हूॅ।"

"ओके हम इन्त़िार कर रहे हैं ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"तु म हमारे दोस्त की
तरह ही हो इस कलए अपने दोस्त का िै लकम भी हम शानदार तरीके से ही करें गे।"
"ये तो मेरी खु शनसीबी है मंत्री जी।" अजय कसं ह एकदम से खु श होते हुए
बोला___"जो आप मुझे अपना दोस्त कह रहे हैं िरना मेरी आपके सामने भला क्ा
औकात?"

"ऐसी कोई बात नही ं है ठाकुर।" मंत्री ने कहा___"हर इं सान अपनी जगह पर औकात
िाला ही होता है। तु म भी अपनी जगह ककसी से कम नही ं हो। हमें सब पता है तु म्हारे
बारे में। खै र छोंडो ये सब। आओ किर कमलकर ही बाॅकी बातें होंगी।"
"जी ठीक है चौधरी साहब।" अजय कसं ह के ऐसा कहते ही उधर से काल कट गई।

ररसीिर को हाॅथ में पकडे अजय कसं ह ककसी बु त की माकनं द खड रह गया था।
उसकी ऑखें ऐसी चमकने लगी थी जैसे उसकी ऑखों के अं दर ह़िारों िाट के बल्ब
एकाएक ही रौशन हो उठे थे । चे हरे पर खु शी साि झलक रही थी। कुछ दे र तक

805
अजय कसं ह इसी तरह ररसीिर हाॅथ में खडा रहा किर जैसे उसे होश आया। उसने
मुस्कुरा कर ररसीिर को िापस केकडर ल पर रखा और किर कमरे में ही एक तरि
रखी आलमारी की तरि बढ चला।

आलमारी से उसने अपने सबसे अच्छे और सबसे कीमती कपडे कनकाले । अपने
कजस्म पर पहले से ही पहने हुए कपडों को कनकाला उसने और किर उन कपडों को
पहनना शु रू ककया कजन्हें उसने आलमारी से कनकाला था। उसके चे हरे पर इस िक्त
एक अलग ही चमक कदख रही थी। खै र कुछ ही दे र में िह कपडों को पहन कर एक
तरि दीिार से सटे आदमकद आईने के सामने आया और उसमें खु द को दे खने
लगा। कीमती कोट पै न्ट में इस िक्त िो कािी जच रहा था और लग भी रहा था कक
िो कोई बहुत बडा आदमी है। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद िो मु स्कुराते हुए ही
कमरे से बाहर की तरि चल कदया।

डर ाइं गरूम में बै ठे जगमोहन कसं ह, प्रकतमा ि कशिा की ऩिर जैसे ही अजय कसं ह पर
पडी तो जगमोहन कसं ह को छोंड कर प्रकतमा ि कशिा के चे हरे पर हैरानी के भाि
उभरे । जबकक जगमोहन कसं ह के चे हरे पर ये सोच कर खु शी के भाि उभरे कक
उसका दामाद िाकई में एक शल्कख्सयत िाला तथा प्रभािशाली ब्यल्कक्तत्व रखने िाला
इं सान है। उसे पहली बार लगा कक उसकी बे टी ने अपने पकत के रूप में ग़लत चु नाि
नही ं ककया था। यहाॅ आने के बाद उसने इतनी बडी हिे ली और अं दर बाहर इतने
सारे नौकर चाकर दे खे तो उसे समझ आ गया था कक उसका दामाद िास्ति में कोई
ऐरा ग़ैरा नही ं था। बल्कि इस गाॅि का राजा था िो।

"प्रकतमा मैं ़िरा मंत्री जी के पास जा रहा हूॅ।" अजय कसं ह ने ये बात कुछ इस अं दा़ि
से कही थी कक सोिे पर बै ठे जगमोहन कसं ह पर अपना एक खास असर डाल सके
और ऐसा हुआ भी। जबकक अजय कसं ह बोला___"अभी उन्ही ं का िोन आया हुआ था।
उन्होने मु झे ककसी ़िरूरी काम से याद ककया है। अतः हो सकता है कक मु झे िापस
आने में दे र हो जाए तो तु म पापा जी का अच्छे से खयाल रखना।"

"ठीक है आप जाइये।" प्रकतमा ने अपने कपता की मौजूदगी में अजय कसं ह से आप कह


कर बात की, बोली___"मैं पापा का बहुत अच्छे से खयाल रखू ॅगी।"
"इसमें खयाल रखने की क्ा बात है बे टा?" सहसा जगमोहन कसं ह ने मुस्कुराते हुए
कहा___"ये तो मेरा भी अपना ही घर है। अगर ककसी ची़ि की ़िरूरत हुई तो मैं खु द
ही ले लू ॅगा। क्ों बे टी?"

"जी आपने कबलकुल ठीक कहा पापा।" प्रकतमा ने खु शी से मुस्कुराते हुऐ कहा।
"किर तो ठीक है पापा।" अजय कसं ह भी मु स्कुराया__"मुझे आपकी ये बात बहुत

806
अच्छी लगी। खै र मैं जल्दी िापस आने की कोकशश करूॅगा और किर आपसे ढे र
सारी बातें होंगी। अच्छा अब चलता हूॅ।"

अजय कसं ह के कहने पर जगमोहन कसं ह ने हाॅ में कसर कहलाया जबकक अजय कसं ह
िौरन ही हिे ली से बाहर की तरि बढ चला। उसके मन में इस िक्त मंत्री से कमलने
की बडी ब्याकुलता पै दा हो गई थी। उसे अभी भी यकीन नही ं हो रहा था कक प्रदे श
का मंत्री उसे दोस्त मान कर उससे कमलना चाहता है। मंत्री से सं बंध होना उसके कलए
ककतना िायदे मंद हो सकता था इसका बखू बी अं दा़िा था उसे । इसी कलए तो िो
जल्द से जल्द मंत्री के पास पहुॅच जाना चाहता था।

बाहर एक तरि खडी अपनी मसग डीज कार के पास पहुॅच कर उसने कार का
दरिाजा खोला और डर ाइं किं ग शीट पर बै ठ गया। कुछ ही पलों में उसकी कार गुनगुन
के कलए रिाना हो गई थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर गुनगुन में अपने आिास पर मंत्री कदिाकर चौधरी अपने दो दोस्तों और एक
रखै ल दोस्त यानी सु नीता के साथ डर ाइं ग रूम में रखे सोिे पर बै ठा था। इस िक्त
डर ाइं ग रूम में इन चारों के अलािा और कोई नही ं था। मंत्री के सु रक्षा गाडग सब बाहर
ही तै नात थे ।

"िै से आपको क्ा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अशोक मे हरा कह उठा___"िो
ठाकुर हमारी इस मामले में क्ा सहायता कर सकता है? जबकक उसकी खु द की बे टी
ही उसके ल्कखलाफ़ है।"

"इन्ही ं सब ची़िों के बारे में तो जानना है अशोक।" मंत्री ने सोचते हुए कहा___"मुझे
लगता है कक इस मामले से जुडी हर ची़ि ठाकुर को क्राॅस करती है। हमने ये तो
समझ कलया कक हमारे मामले जो हो रहा है िो कौन और क्ों कर रहा है मगर हम ये
भी जानना चाहते हैं कक जो हमारा दु श्मन है उसने या उसकी माॅ बहन ने ऐसा क्ा
ककया था कजसकी िजह से ठाकुर ने उन तीनों को हिे ली से ही नही ं बल्कि सारी
़िमीन जायदाद से भी बे दखल कर कदया है? सबसे महत्वपू र्ग बात हमें ये भी जानना
है कक ऐसा क्ा हुआ है कजसके तहत ठाकुर की अपनी बे टी खु द अपने ही माॅ बाप
के ल्कखलाफ़ हो गई है?"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"ककन्तु इससे


कनष्कशग क्ा कनकले गा? मेरा मतलब है कक इससे हमारा िायदा क्ा होगा?"

"नफ़ा नु कसान तो अपनी जगह है ही अशोक।" चौधरी ने कहा___"ककन्तु इस मामले


में कुछ बातें ऐसी हैं कजनके बारे में पक्के तौर पर जानना बहुत ़िरूरी है। तु मने कहा

807
था कक ठाकुर की बे टी जो थाने दारनी है और अपने पै रेन्ट् स के ल्कखलाफ़ है िो हमारे
दु श्मन और ठाकुर के भतीजे की मदद इस कलए नही ं कर सकती क्ोंकक िो भी
उससे अपने माॅ बाप की तरह नफ़रत करती है। ये बातें एक दू सरे से मैच नही ं खा
रही हैं अथिा ये भी कह सकते हैं कक जच नही ं रही हैं ।"

"जी मैं कुछ समझा नही ं चौधरी साहब।" अशोक मे हरा के माॅथे पर उलझनपू र्ग
भाि आए___"कौन सी बातें नही ं जच रही आपको?"

"यही कक एक तरि तो तु म ये भी कह रहे हो कक ठाकुर की थाने दारनी बे टी उस


किराज नाम के अपने भाई से नफ़रत करती है ।" मंत्री ने कहा___"इस कलए िो उसकी
मदद नही ं कर सकती। जबकक दू सरी तरि तु म ये भी कह रहे हो कक ठाकुर की िही
थाने दारनी बे टी खु द अपने ही माॅ बाप के ल्कखलाफ़ है। सोचने िाली बात हैं अशोक
कक ऐसा कैसे हो सकता है? आम तौर पर बच्चे िही करते हैं जो उनके माॅ बाप उन्हें
सीख दे ते हैं अथिा करने को कहते हैं। यहाॅ सोचने िाली बात ये है कक अगर िो
थाने दारनी अपने माॅ बाप की सीख अथिा कहे के अनु सार अपने चचे रे भाई से
नफ़रत करती है तो किर अपने ही माॅ बाप के ल्कखलाफ़ िो ककस िजह से हो गई है?"

"आपकी इन सब बातों में ़िबरदस्त प्वाइं ट है चौधरी साहब।" सहसा अिधेश


श्रीिास्ति कह उठा___"सचमुच ये सोचने िाली बात है कक आकखर ऐसा क्ा हुआ है
कजसके चलते ठाकुर की बे टी उसके ल्कखलाफ़ है? सं भि है कक उसे कोई ऐसी बात
अपने माॅ या कपता की पता चल गई हो कजसके चलते उसने अपने माॅ बाप से
ककनारा कर कलया हो। या किर ऐसा हो सकता है कक सोच या किचारों के चलते
थाने दारनी अपने पै रेन्टस् से दू र हो।"

"ये सब तो महज सं भािनाएॅ हैं अिधेश।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"जो सही भी


और ग़लत भी हो सकती हैं मगर हमें िो बात पता करना है जो कसिग और कसिग सच
हो। खै र किक्र की कोई बात नही ं है, हमने ठाकुर को बु लाया है। िो आता ही होगा
हमारे पास। उसी से पू छेंगे कक सच्चाई क्ा है?"

"ले ककन चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने एक बार पु नः हस्ताक्षे प ककया___"सिाल


तो एक बार किर खडा हो जाता है कक इस सबसे हमारा िायदा क्ा होगा? हम ये तो
जानते ही हैं कक हमारा दु श्मन ठाकुर का िो भतीजा है कजसका नाम किराज है और
िो मुम्बई में रहता है। किर अचानक आप ठाकुर और उसकी बे टी को बीच में कैसे ले
आए? इस मामले में ये कहाॅ से आ गए? ठाकुर की बे टी अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़
है ये उनका आपसी मैटर है। इस कलए हमें इससे क्ा ले ना दे ना भला? हमें तो अपने

808
टागेट पर िोकस रखना है ना?"

"तु म बात को या तो अनसु ना कर गए हो अशोक या किर बात को समझने की


कोकशश ही नही ं कर रहे हो।" मंत्री ने िष्ट भाि से कहा___"जबकक तु म्हें सबसे पहले
ये सोचना चाकहए कक हम बे िजह िालतू की बकिास करने का शौक नही ं रखते हैं।
खै र, बात दरअसल ये कक अगर ठाकुर की बे टी सचमुच में अपने पै रेंट् स के ल्कखलाफ़
है तो िो अपने उस भाई की मदद क्ों नही ं कर सकती जो अपने माॅ बाप की तरह
ही उस लडके से नफ़रत करती थी? सं भि है कक उसे उस िजह का पता चल गया हो
कजस िजह के चलते उसके बाप ने किराज और किराज की माॅ बहन को हर ची़ि से
बे दखल ककया था। उसे पता चल गया हो कक कजस िजह से किराज को बे दखल ककया
था उसके बाप ने िो िजह िास्ति में बे िजह ही थी। यानी किराज ि किराज की माॅ
बहन अपनी जगह सही रहे हों। उस सू रत में सं भि है कक ररतू ने उस सं बंध में अपने
पै रेंट् स से बात की हो और उनसे कहा हो कक किराज और उसकी माॅ बहन को
बे दखल करके उसने अच्छा नही ं ककया। िो अगर बे क़सू र हैं तो उन्हें उनका हक़
कमलना ही चाकहए। इस सं बंध में अपनी बे टी की ये बात शायद ठाकुर को पसं द न
आई हो और उसने किराज का हक़ दे ने से साि इं कार कर कदया हो। इस िजह से
थाने दारनी अपने माॅ बाप से अलग हो गई और सं भि है कक इसी के चलते िो अपने
उस चचे रे भाई के प्रकत अपनी नफ़रत को कमटा कर उसकी मदद भी करने लगी हो।
हलाॅकक ये सब भी महज सं भािनाएॅ ही हैं ककन्तु हो सकता है कक यही सच हो।"

अशोक मे हरा ही नही ं बल्कि िहाॅ बै ठे अिधे श ि सु नीता भी चौधरी की इन


सं भािना भरी बातें सु न कर चककत रह गए थे । एक बे टी का अपने पै रेंट् स के ल्कखलाफ़
होने की क्ा खू ब िजह सोच कर बयान ककया था उसने ।

"अगर आपकी सं भािनाएॅ सच हैं।" किर अिधेश ने कहा___"तो यकीनन िो


थाने दारनी किराज की मदद कर सकती है। मैं सब समझ गया चौधरी साहब, आपने
यही सब सोच कर ठाकुर को यहाॅ बु लाया है ।"

"कबलकुल।" चौधरी मुस्कुराया___"ककन्तु इस िजह के अलािा भी एक महत्वपू र्ग


िजह है।"
"िो क्ा चौधरी साहब?" तीनो एक बार किर चौंके।
"अगर ठाकुर ने सचमुच ही किराज और उसकी माॅ बहन को बे िजह ही हर ची़ि से
बे दखल ककया है।" चौधरी ने कहा___"तो ये भी सच ही होगा कक किराज अपने ताऊ
को दु श्मन समझता होगा और ये भी चाहता होगा कक उसका हक़ ककसी भी सू रत में
उसे कमले । ठाकुर ने अगर धन दौलत अथिा सारी प्रापटी को हकथयाने की गरज से
उसे बे दखल ककया होगा तो किर ये पक्की बात है कक ठाकुर ककसी भी कीमत में िो

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प्रापटी अथिा उस प्रापटी में से किराज का हक़ नही ं दे गा। कहने का मतलब ये कक
किराज को अपना हक़ आसानी से नही ं कमलने िाला। इस कलए िो ऐसा कुछ ़िरूर
करे गा कजसके तहत उसे अपने ताऊ से अपना हक़ िापस कमल सके।"

तीनो मु ह िाडे दे खते रह गए चौधरी को। ककसी के मुख से कोई बोल न िूट सका
था। जबकक चौधरी उन सबके चे हरों पर मडराते भािों को दे खते हुए पु नः कहना
शु रू ककया____"हलाॅकक ये भी महज सं भािनाएॅ ही हैं दोस्तो जो ग़लत भी हो
सकती हैं। मगर हमें कही ं न कही ं ऐसा आभास भी हो रहा है कक हमारी इन
सं भािनाओं पर कुछ न कुछ तो सच्चाई ़िरूर है। हमने ठाकुर, ठाकुर की बे टी, तथा
किराज, इन तीनों पर ग़ौर ककया है और इनके बीच पै दा हुए हालातों पर भी ग़ौर ककया
है। इसके बाद ही हमारे कदमाग़ में इन सं भािनाओं का आगमन हुआ है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अिधेश कह उठा___"कक आपने उन


तीनों का ऑपरे शन कर कदया है। आपकी सं भािनाओं में कही ं पर भी ऐसा नही ं लग
रहा है कक उनमें कही ं कोई लोचा है।"

"ठाकुर की बे टी का अपने माॅ बाप से भले ही चाहे जो पं गा हो अिधेश।" चौधरी ने


गहरी साॅस ली___"कजसके तहत िो अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़ है। मगर ये बात तो
सच ही समझो कक ठाकुर और किराज का छिीस का ऑकडा है। ़िर ़िोरू ़िमीन ये
कभी ककसी की नही ं हुई। इसने जाने जाने ककतने पाक़ ररश्ों को ने स्तनाबू त ककया
होगा अब तक इसका हममें से कोई अं दा़िा भी नही ं लगा सकता। किराज ि ठाकुर
के बीच हक़ की लडाई है ये पक्की बात है और जब तक इस लडाई का अं त नही ं
होगा दोनो में से कोई भी चै न से नही ं बै ठेगा। खै र, तु मने सु ना होगा कक हमने िोन
पर ठाकुर को दोस्त कहा था। िो इसी कलए कहा था कक मौजूदा हालात में हम दोनो
का एक ही टागेट है-----किराज। इस कलए हमने उसे दोस्त कहा। हम उससे किराज
के सं बंध में सारी जानकारी हाकसल करें गे और किर उस कहसाब से आगे की रर्नीकत
बनाएॅगे।"

अभी चौधरी ने ये कहा ही था कक सहसा तभी डर ाइं ग रूम में एक आदमी दाल्कखल
हुआ। उसने बडे अदब से चौधरी को बताया कक बाहर कोई आदमी आपसे कमलने
आया है। िो आदमी अपना नाम ठाकुर अजय कसं ह बता रहा है। उस आदमी की बात
सु न कर चौधरी मु स्कुराया और अपने उस आदमी से कहा कक उसे इज्ज़ित से अं दर ले
आओ। चौधरी की बात सु न कर िो आदमी पहले अदब से कसर झुकाया किर िापस
बाहर की तरि चला गया।

कुछ ही दे र में उसी आदमी के साथ अजय कसं ह डर ाइं ग रूम में दाल्कखल हुआ। उसे

810
दे खते ही चौधरी अपने सोिे से उठा हलाॅकक िो प्रदे श का मंत्री था और अजय कसं ह
के कलए उठना उसकी शान के ल्कखलाफ़ था ककन्तु किर भी िो उठा ही। उसकी दे खा
दे खी बाॅकी सब भी उठ गए।

"मोस्ट िे लकम ठाकुर।" चौधरी ने गमग जोशी से तथा मु स्कुराते हुए अजय कसं ह से
हाॅथ कमलाया और किर एक अन्य खाली सोिे की तरि बै ठने का इशारा ककया
और खु द भी अपनी जगह पर आ कर बै ठ गया।

"बहुत बहुत शु कक्रया चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने अपने अं दर ही हडबडाहट पर


काबू पाते हुए ककन्तु बडी शालीनता से कहा___"आज तो मेरे भाग्य ही खु ल गए है जो
आपके दशग न हो गए।"

"ऐसा कुछ भी नही ं है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"इस िक्त हम ककसी मं त्री की


हैकसयत से नही ं बल्कि एक आम इं सान तथा एक दोस्त की हैकसयत से तु मसे कमल रहे
हैं। और िै से भी ये तो हमें भी पता चला है कक हमसे पहले जो मंत्री थे उनसे तु म्हारे
बहुत गहरे ताल्लुकात थे । सारा पु कलस महकमा ही तु म्हारी मुिी में होता था। ककन्तु
हमने सु ना कक रात भर में सारा कुछ बदल गया था। इस सबका बडा हो हल्ला भी
हुआ था। मगर ककसी की समझ में न आया कक ऐसा क्ों हुआ था। आज भी ये रहस्य
ही बना हुआ है।"

कदिाकर चौधरी की इस बात से अजय कसं ह तो चौंका ही मगर उसके साथ साथ
अशोक, अिधेश ि सु नीता आकद भी चौंके थे । ककन्तु उन लोगों ने बीच में कहा कुछ
नही ं।

"हाॅ ये तो आपने सच कहा चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने सहसा गहरी साॅस
ली___"एक िक्त था जब हर ची़ि मेरे कलए आसान थी मगर एक ऑधी आई और सब
कुछ उडा कर ले गई। अब उन जगहों पर गहन खामोशी के कसिा कुछ भी शे ष नही ं
रहा।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कक िो सारा कुछ तु म्हारी िजह से बदल गया था?" इस
बार चौंकने की बारी मानो चौधरी की थी। हैरत से बोला___"मगर आकखर ऐसा हुआ
क्ा था ठाकुर? यकीनन कोई बडी िजह थी क्ोंकक इतना बडा कसस्टम यहाॅ तक
कक प्रदे श के मंत्री का तबादला हो जाना कोई मामूली बात नही ं है । उस सबसे तो हर
कोई हैरान रह गया था। आज जबकक तु म्हारे मुख से ही पता चला कक िो सब तु म्हारी
िजह से हुआ था तो इस सबको जानने की उत्सुकता और भी बढ गई है ।"

अजय कसं ह समझ सकता था कक उसे मंत्री को इस सबके बारे में बताना ही पडे गा।

811
िो भी चाहता था कक ककसी िजह से ही सही मगर उसे मंत्री का साथ कमल जाए। अतः
उसने सं क्षेप में अपनी िैक्टर ी में लगी आग िाले केस के सं बंध में बता कदया। ये भी कक
बाद में उसे ये पता चल ही गया कक िैक्टर ी में लगी आग के पीछे उसके अपने ही
भतीजे किराज का हाॅथ था। मंत्री ये जान कर हैरान रह गया कक किराज ने इतना
बडा काण्ड ककया हुआ है अपने ताऊ के साथ। अजय कसं ह ने मंत्री को ये भी बताया
कक मंत्री का तबादला और सारे पु कलस महकमे को बदल दे ने में भी किराज का ही
हाॅथ था। ये बात सु न कर तो चौधरी की गाॅड में कीडे ही कुलबु लाने लगे। िो
सोचने पर मजबू र हो गया कक किराज आकखर ची़ि क्ा है जो मंत्री और सारे पु कलस
कडपाटग मेन्ट तक को इधर से उधर कर दे ने की क्षमता रखता है? चौधरी जैसा ही हाल
िहाॅ बै ठे बाॅकी सबका भी था।

"तु म्हारी कहानी तो िाकई में हैरतअं गेज है यार।" चौधरी ने चककत भाि से
कहा___"मगर ये समझ नही ं आया कक तु म्हारे भतीजे किराज ने ऐसा ककया क्ों?"

मंत्री ने जानबू झ कर ये सिाल ककया था। उसे पता तो था ककन्तु िो अजय कसं ह के
मुख से सच्चाई सु नना चाहता था।

"बडी लम्बी कहानी है चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस छोंडते हुए
कहा___"कभी कभी हमारे साथ िो सब भी हो जाता है कजसकी हमने कभी कल्पना
भी नही ं की होती है। दरअसल बात ये थी मैने अपने मझले भाई की बीिी और उसके
दोनो बच्चों को घर और ़िमीन जायदाद से बे दखल कर कदया था। इसकी िजह ये थी
कक मेरे भाई की बीिी गौरी एक चररत्रहीन औरत थी। जिानी में ही उसके पकत की
मौत हो गई थी कजसकी िजह से उससे अपने अं दर की गमी बदागस्त नही ं हुई। शु रू
शु रू में तो सब ठीक था मगर किर उसके चाल चलन कदखने शु रू हुए। मैं जो कक
उसका जेठ लगता था और गाॅिों में ररिाज है कक छोटे भाई की बीिी अपने जेठ के
सामने कसर खु ला नही ं रखती और ना ही उसे छूती है। मगर गौरी अपनी िासना और
हिश की िजह से मु झ पर ही डोरे डालने लगी। मैं उसकी उस हरकत से हैरान था।
हमारे खानदान कभी ऐसा नही ं हुआ था। हर कोई छोटे बडे की मान मयागदा का
खयाल रखता था। उधर कदनप्रकत गौरी की हरकतों से मेरा कदमाग़ खराब होने लगा।
मैने उसकी हरकतों के बारे में सबसे पहले अपनी पत्नी को बताया और उससे कहा
भी कक िो गौरी को समझाए बु झाए कक ये सब ककतना ग़तना ग़लत और पाप कर रही
है। मेरी पत्नी ने गौरी को बहुत समझाया। मगर गौरी तो जैसे िासना और हिश में
अं धी हो चु की थी। कजसका नतीजा ये कनकला कक एक कदन िो मुझे मेरे कमरे में
अकेला दे ख कर आ धमकी और ़िबरदस्ती मु झसे से र्क् सं बंध बनाने को कहने
लगी। मैं उसकी उस हरकत और बातों से बहुत गुस्सा हुआ। जबकक िो मु झसे लपटी
पडी थी। तभी इस बीच मेरी पत्नी आ गई। उसने गौरी को मुझसे छु डाया और उसे

812
घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई। मेरी पत्नी ने उस सबके कैमरे द्वारा िोटोग्राफ्स
भी कनकाले थे । ऐसा इस कलए क्ोंकक अगर हम गौरी की इन हरकतों के बारे में घर में
ककसी से बताते तो कोई भी हमारी बात पर यकीन ही न करता। क्ोंकक सब गौरी को
बहुत ही ज्यादा सं स्कारी और आदशग औरत मानते थे । खै र उस कदन हमारे पास
सबू त भी था इस कलए सबको मानना ही पडा और किर सबकी सहमकत से ही मैने
उसे और उसीए बच्चों को हिे ली से बाहर कनकाल कदया। हिे ली से बाहर मैने उसे
खे तों पर बने मकान में रहने की ररयायत ़िरूर दे दी थी। ऐसा इस कलए क्ोंकक िो
आकखर थी तो हमारे खानदान की बहू ही। हमने सोचा था कक हिे ली से दू र खु तों पर
बने मकान में रहेगी तो सब कुछ ठीक ही रहे गा। मगर हमारा ऐसा सोचना भी ग़लत
हो गया। क्ोंकक िो खे तों पर काम कर रहे मजदू रों पर ही िासना और हिस के
चलते डोरे डालने लगी थी। एक कदन हमारे एक मजदू र ने इस बारे में मु झसे डरते हुए
बताया। उसकी बात सु नकर मु झे गौरी पर हद से ज्यादा गु स्सा आया। उसके बाद
मैने िैसला कर कलया कक अब उसे और उसके बच्चों को मैं उस गाॅि में नही ं रहने
दू ॅगा। क्ोंकक इससे हमारी और हमारे खानदान की बहुत बदनामी होती। अतः मैने
उसे हर ची़ि से बे दखल कर कदया। गौरी का लडका थोडा बहुत समझदार था मगर
िो भी अपनी माॅ की बातों को ही सच मानता था। उसे लगता था कक हमने उसकी
माॅ को बे िजह ही हिे ली से कनकाला था। िो अपना और अपनी माॅ बहन का घर
खचाग चलाने के कलए मुम्बई में कही ं नौकरी करने चला गया था। जबकक उसके पीछे
यहाॅ उसकी माॅ ये सब गुल ल्कखला रही थी। खै र, एक कदन बाद पता चला कक
किराज अपनी माॅ ि बहन को अपने साथ मु म्बई ले गया। उसके बाद अभी कुछ
समय पहले से ही ये सब शु रू हुआ। यानी किराज ये सोच कर मु झसे बदला ले रहा है
कक मैने उसके और उसके पररिार के साथ ग़लत ककया है।"

"ओह तो ये हैं सारी बातें ।" सब कुछ सु नने के बाद चौधरी ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा___"ले ककन इतना कुछ हुआ और तु मको अं दा़िा भी न हुआ कक ये सब तु म्हारे
भतीजे ने ही ककया है?"

"अं दा़िा तो तब होता चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने कहा___"जब मु झे उससे इस


सबकी उम्मीद होती। मैं तो यही समझता था कक िो लडका कनहायत ही सीधा सादा
और भोला है। भला मु झे क्ा पता था कक िो ककसी डायनामाइट से कम नही ं है।"

"खै र।" चौधरी ने पहलू बदला___"हमने सु ना है कक तु म्हारी अपनी बे टी जो कक पु कलस


इं िेक्टर है िो आजकल तु म्हारे ल्कखलाफ़ हो चु की है। ये क्ा चक्कर है?"
"चक्कर िक्कर कुछ नही ं है चौधरी साहब।" अजय कसं ह मन ही मन बु री तरह चौंका
था ककन्तु चे हरे पर चौंकने के भािों को आने न कदया था, बोला___"दरअसल बात ये है
कक हमें उसका पु कलस की नौकरी करना ़िरा भी पसं द नही ं था। जबकक पु कलस की

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नौकरी करना उसका शौक था बचपन से ही। मैने और मेरी पत्नी प्रकतमा ने उससे
कहा कक ये पु कलस की नौकरी छोंड दो, भला उसे नौकरी करने ़िरूरत ही क्ा है?
उसे कजस ची़ि की भी ़िरूरत होती है हम उसके बोलने से पहले ही िो ची़ि लाकर
उसके क़दमों में डाल दे ते हैं। मगर िो हमारी बात सु नती ही नही ं। बचपन से ही क़िद्दी
थी िो। एक कदन उसकी माॅ ने कदाकचत कुछ ज्यादा ही कडे शब्दों में कह कदया था।
कजसकी िजह से िो गुस्सा हो गई और कहने लगी कक उसे हमारी ककसी ची़ि की
़िरूरत नही ं है। िो अपनी ़िरूरतें खु द पू री कर ले गी। बस उस कदन के बाद से िो
ना तो मुझसे बोलती है और ना ही अपनी माॅ से । यहाॅ तक कक घर भी नही ं आती।"

"बडी अजीब बात है।" कदिाकर चौधरी ने कहा__"भला तु म लोगों को उसका नौकरी
करने से एतरा़ि क्ों है? आज की जनरे शन ़िरा एडिाॅस टे क्नालाॅजी में
सल्कम्मकलत है। िो खु द पर और अपने टै लेन्ट के बल पर ही जीिन जीना चाहते हैं।
अतः तु म दोनो का उसका नौकरी करने से ऐतरा़ि करना सरासर ग़लत था। खै र,
जैसा कक तु मने बताया कक उस कदन से िो घर भी नही ं आती है तो सिाल ये है कक िो
रहती कहाॅ है किर? क्ा तु मने पता करने की कोकशश नही ं की कक तु म्हारी लडकी
रहती कहाॅ है? कदन का तो चलो ठीक है कक िो पु कलस में अपनी ड्यूटी के चलते
कही ं न कही ं ब्यस्त ही रहती होगी मगर रात को? रात को कहाॅ रहती होगी िो?"

"पु कलस िाली है चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने कहा__"खु द कमाती है। इस कलए
कही ं न कही ं अपने रहने के कलए कोई ककराये से कमरा ले कलया होगा।"
"ये तो तु म सं भािना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकक तु म्हें खु द
पता लगाना चाकहए था कक अगर िो लौटकर हिे ली नही ं आती है तो रहती कहाॅ है?
कैसे बाप हो तु म ठाकुर?"

अजय कसं ह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कक चौधरी सच कह रहा था कक उसे
खु द अपनी बे टी के बारे में पता करना चाकहए था। भले ही िो पु कलस िाली थी मगर ये
भी सच था कक िो एक लडकी भी थी। िो भले ही अपनी सु रक्षा बखू बी कर ले मगर
िो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बे टी की कचन्ता होनी चाकहए थी। अजय कसं ह
सोचो में गुम तो था मगर उसके ़िहन में ये भी था कक ररतू के साथ उसकी छोटी बहन
नै ना भी है। शायद यही िजह थी कक उसने अब तक पता करने की कोकशश नही ं की
थी कक िो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले ररतू बस होती तो उसे कचं ता यकीनन होती
मगर उसके साथ में नै ना जैसी पढी कलखी ि समझदार उसकी बहन भी थी। इस कलए
िो बे किक्र था अपनी बे टी की सु रक्षा के कलए।

"क्ा सोचने लगे ठाकुर?" उसे सोचों में गुम दे ख कर चौधरी ने कहा___"खै र छोंडो
यार, ये तु म्हारे घर की बात है तु म्हें जो उकचत लगे िो करो। अच्छा एक बात बताओ।"

814
"ज जी????" अजय कसं ह चौंका___"प..पू कछए।"

"क्ा ऐसा हो सकता है।" चौधरी ने बडे ग़ौर से अजय कसं ह को दे खते हुए
कहा___"तु म्हारी बे टी और तु म्हारा भतीजा किराज एक हो गए हों? क्ा ऐसा हो
सकता है कक किराज ने तु म्हारी बे टी को अपने साथ कमला कलया हो??"

"प..प.पता नही ं।" अजय कसं ह के ऊपर जैसे एकाएक सारा आसमान भरभरा कर
कगर पडा था। बडी मुल्किल से खु द को सम्हालते हुए कहा उसने ___"आप ऐसा क्ों
कह रहे हैं चौधरी साहब? जबकक ऐसा हकगग ़ि नही ं हो सकता। इसकी िजह ये है कक
मेरे तीनो ही बच्चे उसकी माॅ की हरकतों की िजह से उससे और उसकी माॅ बहन
से कभी कोई बात करने की तो बात दू र बल्कि उन्हें दे खना तक पसं द नही ं करते ।"

"ऐसा तु म सोचते हो ठाकुर।" कदिाकर चौधरी ने दाशग कनकों िाले अं दा़ि में
कहा___"जबकक अर्क्र ऐसा हो जाया करता है कजसकी हमें पू री उम्मीद होती है कक
ऐसा तो कभी हो ही नही ं सकता।"

"क्ा मतलब???" अजय कसं ह चकरा सा गया।


"मतलब साि है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"तु म ये सोच कर ये नही ं मान रहे हो कक
तु म्हारी बे टी किराज को दे खना तक पसं द नही ं करती इस कलए िो उससे कमल नही ं
सकती जबकक ऐसा हो भी सकता है कक िो उससे कमल ही गई हो। किराज की
कारगुजाररयों से इतना तो पता चल ही गया है कक िो ककतना शाकतर कदमाग़ रखता है
और ककतनी ऊची पहुॅच भी रखता है। अतः अगर िो अपने शाकतर कदमाग़ के चलते
तु म्हारी बे टी को अपनी तरि कर भी ले तो हैरत की बात नही ं होगी। सं भि है कक
उसने ररतू को ऐसा कोई पाठ पढा कदया हो कजसके चलते तु म्हारी बे टी का ब्रे न िाश
हो गया हो और अब िो उसे सही मान रही हो और तु म्हें यानी कक अपने बाप को
ग़लत।"

अजय कसं ह मंत्री की सू झ बू झ तथा उसकी दू रदकशग ता की मन ही मन दाद कदये कबना


न रह सका। सच्चाई भले ही कुछ और थी मगर कजतना उसने उहे बताया था उस
कहसाब से ककडयों को जोड कर सच्चाई के रूप में अपनी सं भािनाएॅ इस तरह बयां
करना आसान बात न थी। सहसा उसे खयाल आया कक जबसे िो यहाॅ आया है तब
से मंत्री कसिग उसी के सं बंध में बातें पू छ रहा है जबकक उसे अब तक यही समझ में
नही ं आया था कक मंत्री ने आकखर उसे बु लाया ककस कलए था??

"भगिान जाने चौधरी साहब।" किर उसने पहलू बदलने की गरज से कहा___"कक
सच्चाई है इस सं बंध में। खै र छोंकडये ये सब और ये बताइये कक इस नाची़ि को ककस

815
कलए बु लाया था आपने ?"

अजय कसं ह द्वारा अचानक ही इस तरह पहलू बदल ले ना चौधरी को मन ही मन


चौंकाया मगर उसने उसे ़िाकहर न ककया। बल्कि उसके पू छने पर िह मुस्कुराया और
से न्टर टे बल पर सजे िल िूल ि महगी शराब की तरि इशारा ककया।

"ये तो कमाल हो गया ठाकुर।" किर चौधरी ने मु स्कुराते हुए ही कहा___"तु म आज


यहाॅ पहली बार आए और हमने बातों के चक्कर में ये भी खयाल नही ं रखा कक घर
आए मेहमान का आकतथ्य भी ककया जाता है।"

"मैं कोई मे हमान नही ं हूॅ चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने भी मु स्कुराते हुए
कहा___"आपने मुझे दोस्त कह कर मेरा मान बढा कदया है यही बहुत है मेरे कलए। इस
नाते अब तो ये भी अपना ही घर हुआ और अपने ही घर में भला कोई मेहमान कैसा
हो सकता है?"

"हाॅ तो सही कहा तु मने ।" चौधरी हसा और किर बगल से ही बै ठे अशोक, अिधेश
ि सु नीता की तरि इशारा करते हुए कहा___"इनसे कमलो ठाकुर, ये सब भी हमारे
गहरे दोस्त हैं। बल्कि यूॅ समझो कक ये तीनो हमारे दोस्तों की कलस्ट में सबसे ऊपर हैं
और आज से तु म भी शाकमल हो गए हो।"

"ये तो मेरा सौभाग्य है चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने खु श होते हुए कहा___"जो
आपने मु झे अपने दोस्त का द़िाग कदया है। मैं पू री कोकशश करूॅगा कक इस दोस्ती
पर खरा उतर सकूॅ।"
"चलो किर इसी बात पर एक एक जाम हो जाए।" चौधरी ने मु स्कुराते हुए
कहा___"और हमारी दोस्ती को से लीब्रे ट ककया जाए।"

"जी कबलकुल।" अजय कसं ह हसा और उन तीनों की तरि दे ख कर उन तीनो से हैलो


ककया तथा हाॅथ भी कमलाया। चौधरी के कहने पर सु नीता ने सबके कलए जाम
बनाया और साक़ी बन कर सबको कपलाया भी। इस बीच चौधरी ने अजय कसं ह को
बताया कक सु नीता उसके साथ साथ बाॅकी उन दोनो को भी हर तरह से खु श रखती
है। अजय कसं ह ये जान कर हैरान भी हुआ था। मगर किर ये सोच कर मु स्कुराया भी
कक चौधरी भी उसी की तरह ही औरतबाज है।

लगभग आधा घंटे से ऊपर तक जामों का दौर चलता रहा। सब के सब हिे नशे के
सु रूर में आ चु के थे । उसके बाद बातों का कसलकसला किर से शु रू हुआ। अजय कसं ह
सबसे कािी खु ल चु का था। बाॅकी सब भी अजय कसं ह से खु ल चु के थे । सु नीता को
अजय कसं ह की पशग नाल्टी पहली ऩिर में ही भा गई थी और िो उसके नीचे ले टने के

816
कलए बे क़रार हो उठी थी। मगर अभी उसको भी पता था कक उसकी ये बे क़रारी शान्त
नही ं होने िाली है। यानी कुछ समय तक इन्त़िार करना पडे गा उसे ।

"म़िा आ गया चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने नशे के हिे सु रूर में मुस्कुराते हुए
कहा___"आप सच में बहुत अच्छे हैं। एक पल के कलए भी मुझे ऐसा नही ं लगा जैसे
इसके पहले आप मेरे कलए ग़ैर थे । सच कहता हूॅ आपसे कमल कर और आपका
दोस्त बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत कदनों बाद ऐसे खु श होने का मौका
कमला है मु झे।"

"अभी तो इससे भी ज्यादा म़िा आएगा ठाकुर।" चौधरी ने भी नशे के हिे सु रूर में
कहा___"हमारी दोस्ती में और हमारे साथ में ऐसा ही होता है। हमें िही इं सान अच्छा
लगता है जो हमसे िफ़ा करे । िफ़ादार ब्यल्कक्त के कलए हम कुछ भी करने को तै यार
हो जाते हैं।"

"मैं ़िरूर आपका िफ़ादार रहूॅगा चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने कहा___"आप जब
भी मु झे याद करें गे मैं आपके सामने हर काम छोंड कर हाक़िर हो जाऊगा। मुझे भी
िफ़ादार इं सान ही अच्छे लगते हैं जो दोस्त के कलए कुछ भी कर जाए मगर...।"

"मगर क्ा ठाकुर।" चौधरी ने कसर उठा कर अजय कसं ह की तरि दे खा___"तु म्हारे
स्वागत में हमसे कोई कमी हो गई है क्ा? अगर ऐसा है तो बे कझझक बोल दो यार।
जो बोलोगे िो कमले गा तु म्हें। ये कदिाकर चौधरी का िचन है।"

"न नही ं नही ं चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने हडबडाते हुए कहा___"आपने ककसी
बात की कमी नही ं की है। मेरे कहने का मतलब ये था कक आपने मु झे बताया नही ं कक
आपने मु झे ककस िजह से यहाॅ बु लाया था? दे ल्कखए अब तो हम दोनो दोस्त बन गए हैं
न। इस कलए अगर कोई बात है आपके मन में तो बे कझझक ककहए। मैं िादा करता हूॅ
कक अगर मेरे कलए आपका कोई आदे श है तो मैं जान दे कर भी उसे पू रा करूॅगा।"

अजय कसं ह की बात इस पर चौधरी ने उसे बडे ध्यान से दे खा जैसे जाॅच रहा हो कक
उसकी बात पर ककतना दम है। किर अपने हाॅथ में कलए शराब के प्याले को मुह से
लगा कर शराब का हिा सा घू ॅट कलया उसके बाद अजय कसं ह की तरि दे खते हुए
कहा___"आदे श तो कुछ भी नही ं है ठाकुर। बस ये समझो कक आज के समय में जो
तु म्हारा दु श्मन है िही हमारा भी दु श्मन है।"

"ये आप क्ा कह रहे हैं चौधरी साहब?" अजय कसं ह ने ऑखें िैलाते हुए
कहा____"मेरा दु श्मन तो मेरा िो हराम़िादा भतीजा बना हुआ है ककन्तु िो आपका
दु श्मन कैसे बन गया? बात कुछ समझ में नही ं आई चौधरी साहब।"

817
"तु मने कुछ समय पहले ककसी लडकी के सामूकहक रे प के बारे में तो सु ना ही होगा
न?" चौधरी ने कहा।
"र रे प के बारे में???" अजय कसं ह के चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे । किर सहसा
जैसे उसे याद आया___"ओह हाॅ हाॅ सु ना था। आप उसी रे प स्कैण्डल की बात कर
रहे हैं न कजस पर कुछ समय पहले कािी हो हल्ला हुआ था? मगर किर सब कुछ
शान्त हो गया था। उसके बाद कुछ पता ही नही ं चला कक क्ा हुआ? मगर आपका
उस रे प केस से क्ा सं बंध?"

"दरअसल िो रे प हमारे बच्चों की करतू त का नतीजा था ठाकुर।" चौधरी ने गहरी


साॅस ले ते हुए कहा___"तु म्हारे गाॅि के ही पास की एक किधी नाम की लडकी थी
कजसके साथ हमारे बच्चों ने कमल कर रे प ककया था। िो लडकी हमारे बच्चों के ही
काॅले ज में पढती थी। उस रे प केस पर हो हल्ला तो ़िरूर हुआ था ककन्तु उस पर
कोई शख्त ऐक्शन इस कलए नही ं कलया गया था क्ोंकक मामला हमारे बच्चों का था।
यहाॅ का पु कलस कानू न हमारे ल्कखलाि कोई क़दम उठा ही नही ं सकता था। ये बात
उस लडकी के घरिालों को भी समझ आ गई थी। इसी कलए लडकी के घरिालों ने
भी कोई केस नही ं ककया था और इसी िजह से मामला शान्त पड गया था। मगर....।"

"मगर????" अजय कसं ह के चे हरे पर हैरत के भाि थे ।


"मगर रे प के तीसरे कदन हमारे बच्चे हमारे ही िामग हाउस से गायब हो गए।" चौधरी
कह रहा था___"और अब तक उनका कही ं कुछ पता नही ं चल सका है। उन बच्चों में
एक हमारा बे टा है और तीन लडकों में से एक अशोक का है दू सरा अिधेश का और
तीसरा सु नीता का। हमने सब कुछ करके दे ख कलया मगर आज तक कही ं भी बच्चों
का पता नही ं चला। सबसे ग़िब तो तब हो गया जब हमारी बे टी भी गायब हो गई।"

"ये आप क्ा कह रहे हैं चौधरी साहब??" अजय कसं ह हक्का बक्का ऩिर आने लगा
था, बोला___"मगर आपके बच्चों को गायब ककसने ककया हो सकता है? और अगर
बच्चे अगर रे प के बाद से ही गायब हैं तो ़िाकहर सी बात है कक उन्हें उसी ने गायब
ककया होगा कजसके साथ उन बच्चों ने अकहत ककया है। ले ककन गायब करने िाले का
आपके पास कोई िोन या ककसी तरह की सू चना तो आनी ही चाकहए थी। सीधी सी
बात है कक अगर ये सब उसने बदला ले ने के उद्दे ष्य से ककया है तो िो दे र सिे र ये
़िरूर सू कचत करता कक आपके बच्चे उसके कब्जे में हैं।"

"कबलकुल सही कहा तु मने ठाकुर।" चौधरी एकाएक कह उठा__"उसे ़िरूर सू कचत
करना चाकहए था और उसने ऐसा ककया भी है ।"
"क्ा????" अजय कसं ह चौंका___"मेरा मतलब है कक क्ा सू कचत ककया उसने ?"

818
"उसने िोन पर हमें बताया कक हमारे बच्चे उसके कब्जे में ही हैं।" चौधरी ने
कहा___"और ये भी बताया कक िो उनके साथ क्ा करे गा? शु रू शु रू में तो हमें
समझ ही नही ं आया कक ऐसा कौन कर सकता है , क्ोंकक हमें यही पता नही ं था कक
हमारे बच्चों ने ककस लडकी के साथ िो सब ककया था? दू सरी बात हम ये सोच रहे थे
कक अगर मामला इतना बडा था तो पु कलस केस ़िरूर होता। इस कलए ये जानने के
कलए हमने यहाॅ के पु कलस ककमश्नर से भी बात की थी मगर उसने बताया कक पु कलस
ने कोई केस नही ं बनाया। पु कलस केस भी तभी बनाती जब लडकी के घर िाले
एिआईआर कराने थाने में जाते । मगर लडकी के घर िाले तो पु कलस की दहली़ि
पर गए ही नही ं थे । हमने भी यही समझा था कक िो हमसे डर गए होंगे इसी कलए
पु कलस केस नही ं ककया। मगर किर उस ककडनै पर से और अशोक के द्वारा ही समझ
में आया कक ऐसा कौन और क्ों कर सकता है ?"

"ओह तो किर क्ा समझ आया आपको?" अजय कसं ह ने पू छा।


"रे प पीकडता के घर िाले तो ऐसा कर नही ं सकते ।" चौधरी ने कहा___"क्ोंकक उन्हें
पता था कक पु कलस केस से कुछ होने िाला नही ं है और ऐसा करने की क्षमता उनमें
थी नही ं। मगर अशोक ने अपने तरीके से पता लगाया कक एक शख्स और है ऐसा जो
हमारे बच्चों को इस सं बंध में ककडनै प कर सकता है।"

"ऐसा शख्स भला कौन हो सकता है चौधरी साहब?" अजय कसं ह चौंका।
"तु म्हारा भतीजा किराज।" चौधरी ने मानो अजय कसं ह के कसर पर बम्ब िोडा।
"क्ा????" अजय कसं ह इस तरह उछला था जै से औसके कपछिाडे पर ककसी ने चु पके
से गमग तिा रख कदया हो। किर हैरत से ऑखें िाडे हुए बोला___"ये आप क्ा कह रहे
हैं? भला किराज ऐसा क्ों करे गा?"

"इसकी बहुत बडी िजह है ठाकुर।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"दरअसल कजस


लडकी का रे प ककया था हमारे बच्चों ने उस किधी नाम की लडकी से तु म्हारा भतीजा
किराज प्रे म करता था। जब उसे अपनी प्रे कमका के साथ हुए उस भयािह रे प का पता
चला तो िो आग बबू ला हो गया होगा और किर मुम्बई से यहाॅ आ कर उसने अपनी
प्रे कमका के साथ हुए रे प का बदला ले ने के कलए ये सब कारनामा अं जाम कदया।
हलाॅकक ये एक सं भािना है ठाकुर क्ोंकक हमारे पास अभी इस बात का कोई सबू त
नही ं है कक किराज ही ये सब कर रहा है। सं भािना इस कलए है क्ोंकक ये काम या तो
किधी के घर िाले कर सकते या किर किराज। दोनो के ही पास ये सब करने की
मजबू त िजह थी। खै र जब हमें अशोक की तहकीक़ात से ये पता चला कक किधी
ककसी किराज नाम के लडके से प्रे म करती थी तो हमने किराज के बारे में भी
जानकारी हाॅकसल की। उसी जानकारी के तहत ये पता चला कक तु म्हारा भी किराज

819
के साथ ऐसा ही कुछ हाल है। इस कलए हमने सोचा तु मसे कमल कर ही इस सं बंध में
बात की जाए।"

"सच कहूॅ तो ये बात मेरे कलए कनहायत ही नई और चौंकाने िाली है चौधरी साहब।"
अजय कसं ह के मल्कस्तष्क में धमाके से हो रहे थे । उसके कदमाग़ की बिी भी एकाएक
जल उठी थी। अब उसे समझ आया था कक किराज मुम्बई से यहाॅ ककस कलए आया
था? इसके पहले िो सोच सोच कर परे शान था कक किराज यहाॅ ककस िजह से आया
रहा होगा। खै र उसने इन सब बातों को अपने कदमाग़ से झटका और किर
बोला___"मुझे तो पता क्ा बल्कि इस बात का अं दा़िा ही नही ं था कक मेरे भतीजे का
ककसी लडकी से प्रे म सं बंध भी हो सकता है और िो उसके चक्कर में आपके साथ
इतना कुछ कर सकता है।"

"दू सरी बात ये कक हम तु म्हारी बे टी के किराज से कमल जाने की बात इस कलए कह रहे
हैं क्ोंकक िो एक पु कलस ऑकिसर थी।" चौधरी कह रहा था___"उसके थाना क्षे त्र के
अं तगगत रे प की िो िारदात हुई थी। इस कल ऐसा हो ही नही ं सकता कक उसे उस
िारदात का पता ही न चला हो। बल्कि ़िरूर चला होगा और जब उसने किधी को
उस हालत में दे खा होगा तो खु द ही कानू नन कोई ऐक्शन ले ने का सोचा होगा। मगर
ऐक्शन िो कबना आला ऑकिसर की अनु मकत से कैसे ले सकती थी अथिा कबना
पीकडता के घर िालों द्वारा द़िग करिाई गई एिआईआर के कैसे ले सकती थी?
ककमश्नर ने उसे इस केस को बनाने से शख्त मना कर कदया होगा। खै र, क्ोंकक िो
भी पु कलस िाली के साथ साथ एक लडकी थी इस कलए उसे उस रे प पीकडता किधी से
हमददी हुई होगी। कजसके तहत िो उसी हमददी के तहत किधी से कमलने भी गई
होगी। उधर किधी के साथ हुई उस घटना की जानकारी ककसी तरह किराज को भी
हुई और िो िौरन ही मुम्बई से अपनी प्रे कमका के पास आ गया होगा। अतः सं भि है
कक इसी दौरान किराज की मुलाक़ात तु म्हारी बे टी से हुई हो और उसे भी ये पता चल
गया हो कक किधी और किराज दरअसल प्रे मी कपल थे । ऐसी माकमगक घटना के बीच
ककसी के अं दर मौजूद नफ़रत अगर प्यार में पररिकतग त हो जाए तो कोई हैरत की बात
नही ं। ठाकुर, बस इसी िजह से हम कह रहे हैं कक तु म्हारी बे टी इन हालातों में किराज
से कमल गई होगी। बाॅकी सच्चाई क्ा है ये तो ईश्वर ही बे हतर तरीके से जानता है।"

अजय कसं ह चौधरी की सं भािना से भरी बातों को सु न कर बु री तरह चककत था। उसे
लगा कही ं यही सब सच तो नही ं? चौधरी की बातों में उसे सच्चाई की बू आ रही थी।
हलाॅकक उसे तो पता ही था कक उसकी बे टी किराज का साथ दे रही है आजकल।
उसने ये बात चौधरी से बताई नही ं थी, इसकी िजह ये थी कक किर उसे और भी सारी
बातें बतानी पडती कजनका हक़ीक़त से सं बंध था। मगर अजय कसं ह हक़ीक़त बता
नही ं सकता था। उसे लगता था कक हक़ीक़त बताने से उसका कैरे क्टर चौधरी के

820
सामने नं गा हो कर रह जाएगा।

"आपकी बातें और आपकी सं भािनाएॅ सच भी हो सकती हैं चौधरी साहब।" किर


अजय कसं ह ने कहा___"मगर क्ोंकक महज सं भािनाओं के आधार पर ही तो नही ं
चला जा सकता न। इस कलए हमें साथ कमल कर सारी बातों का पता लगाना होगा।"

"हम भी यही कहना चाहते हैं तु मसे ।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"मगर हमारे सामने
समस्या ये है कक इस मामले में हम कोई भी क़दम खु ल कर नही ं उठा सकते । क्ोंकक
तु म्हारे भतीजे ने साि शब्दों में धमकी दी है कक अगर हमने कुछ उल्टा सीधा करने
की कोकशश की तो िो हमें ही नही ं बल्कि इन तीनों को भी बीच चौराहे पर नं गा दौडा
दे गा।"

"ये क्ा कह रहे हैं आप?" अजय कसं ह चौधरी की ये बात सु न कर बु री तरह हैरान रह
गया था, बोला__"भला िो ऐसा कैसे कर सकता है?"
"दरअसल।" चौधरी ने ़िरा कझझकते हुए कहा___"उसके पास हम सबके ल्कखलाफ़
ऐसे सबू त हैं जो अगर पल्कब्लक के सामने आ जाएॅ तो हम चारों का बे डा गकग हो
जाएगा।"

चौधरी की बात सु न कर अजय कसं ह चौधरी को इस तरह दे खने लगा था जैसे


अचानक ही उसके कसर पर गधे का कसर ऩिर आने लगा हो। अजय कसं ह ये सोच कर
भी हक्का बक्का रह गया था कक किराज के पास उसके ल्कखलाफ़ तो उसका बे डा गकग
कर दे ने िाला सबू त था ही और अब चौधरी के ल्कखलाफ़ भी ऐसा सबू त है उसके
पास। अजय कसं ह को लगा कक उसे चक्कर आ जाएगा ये जान कर मगर किर उसने
खु द को बडी मु ल्किल से सम्हाला। उसे ये भी समझ आ गया कक कजस उम्मीद से और
खु शी से िह चौधरी के पास आया था िो चौधरी तो खु द ही किराज के सामने भीगी
कबल्ली बना बै ठा है। ये सोचते ही अजय कसं ह का सारी उम्मीद और सारी खु शी एक
ही पल में ने स्तनाबू त हो गई।

"ये तो बहुत ही गजबनाक बात कह रहे हैं आप।" किर उसने खु द को सम्हालते हुए
कहा___"बडे आश्चयग की बात है चौधरी साहब कक आप जैसा इं सान सब कुछ करने
की क्षमता रखते हुए भी कुछ नही ं कर सकता है।"

"ये सच है ठाकुर।" चौधरी ने गंभीर भाि से कहा___"जब तक उसके पास हमारे


ल्कखलाफ़ िो सबू त हैं तब तक हम कोई ठोस क़दम उठाने का सोच भी नही ं सकते हैं।
दू सरी बात उसके कब्जे में हमारे बच्चे भी हैं कजनके साथ िो कुछ भी उल्टा सीधा कर
सकता है। ऐसे हालात में हम उसके ल्कखलाि भला कोई कठोर क़दम कैसे उठा

821
सकते हैं? इस कलए हमने सोचा कक हमारा जो दु श्मन है िही तु म्हारा भी है तो तु म
़िरूर इस मामले में कोई ठोस कायगिाही कर सकते हो। यकीन मानो ठाकुर, अगर
तु म उस नामुराद का पता करके तथा उसके कब्जे से हमारे बच्चों के साथ साथ उस
सबू त को भी लाकर हमारे हिाले कर दो तो हम जीिन भर तु म्हारे एहसानमंद रहेंगे।
तु म कजस ची़ि की हसरत करोगे िो ची़ि हम लाकर तु म्हें दें गे।"

मंत्री की ये बात सु न कर अजय कसं ह चककत रह गया था। उसके मुख से कोई लफ़्ि न
कनकल सका था। चौधरी उससे मदद की उम्मीद ककये बै ठा था जबकक उसे पता ही
नही ं था कक इस मामले में तो िो खु द भी पं गु हुआ बै ठा है। ककतनी अजीब बात थी
दोनो एक दू सरे से मदद की उम्मीद कर रहे थे जबकक दोनो ही एक दू सरे की कोई
मदद नही ं कर सकते थे । अजय कसं ह को एकाएक ही उसका भतीजा ककसी भयािह
काल की तरह लगने लगा था। उसके समूचे कजस्म में मौत की सी झुरझुरी दौड गई
थी।

"क्ा सोचने लगे ठाकुर।" उसे चु प दे ख कर चौधरी पु नः बोल पडा___"तु मने हमारी
बात का कोई जिाब नही ं कदया। जबकक हम तु मसे इस मामले में मदद की बात कर
रहे हैं।"
"मैं तो ये सोचने लगा था चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा___"कक एक कपद्दी से लडके ने प्रदे श की इतनी बडी हस्ती का जीना हराम कर
कदया है। अभी तक तो मैं यही सोच रहा था कक उसने तो कसिग मेरा ही जीना हराम
ककया हुआ था मगर हैरत की बात है कक उसने अपने कनशाने पर आपको भी कलया
हुआ है।"

"सब िक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास
हमारे ल्कखलाफ़ सबू त भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं कजनके तहत उसका पलडा बहुत
भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नही ं होते तो हम उसे बताते कक
हमारे साथ ऐसी ़िुरगत करने की क्ा स़िा कमल सकती थी उसे ? खै र छोंडो, तु म
बताओ कक क्ा तु म इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नही ं?"

"मैं पू री कोकशश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने कहा___"कक मैं इस मामले
में आपके कलए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कक आपको मैं बता ही चु का हूॅ कक
िो नामुराद मु झे भी अपना दु श्मन समझता है और मु झसे बदला ले रहा है तो उस
कहसाब से ये भी सच है कक मैं भी यही चाहता हूॅ कक जल्द से जल्द िो मेरी पकड में
आ जाए। एक बार पता चल जाए कक िो कमीना ककस कोने में छु पा बै ठा है उसके
बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खू बसू रत ढं ग से करूॅगा।"

822
"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कक उसके कठकाने का
पता ककसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे कलए कोई क़दम उठाना भी आसान
हो जाएगा।"

ऐसी ही कुछ दे र और कुछ बातें होती रही ं। शाम कघर चु की थी और अब रात होने
िाली थी। इस कलए अजय कसं ह चौधरी से इजा़ित ले कर िापस हल्दीपु र के कलए
कनकल चु का था। सारे रास्ते िह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नही ं
हो रहा था कक उसका भतीजा इतना बडा सू रमा हो सकता है कक िो प्रदे श के मंत्री
तक को अपनी मु िी में कैद कर ले । उसने मंत्री से कह तो कदया था कक िो इस मामले
में उसकी मदद करे गा मगर ये तो िही जानता था कक िो उसकी ककतनी मदद कर
सकता था? खै र थका हारा ि परे शान हालत में अजय कसं ह अपनी हिे ली पहुॅच गया
था। उसे समझ नही ं आ रहा था कक िो खु द अपने तथा चौधरी के कलए अब क्ा करे ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.......《 54 》

अब तक,,,,,,

"सब िक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" कदिाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास
हमारे ल्कखलाफ़ सबू त भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं कजनके तहत उसका पलडा बहुत
भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नही ं होते तो हम उसे बताते कक
हमारे साथ ऐसी ़िुरगत करने की क्ा स़िा कमल सकती थी उसे ? खै र छोंडो, तु म
बताओ कक क्ा तु म इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नही ं?"

"मैं पू री कोकशश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने कहा___"कक मैं इस मामले
में आपके कलए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कक आपको मैं बता ही चु का हूॅ कक
िो नामुराद मु झे भी अपना दु श्मन समझता है और मु झसे बदला ले रहा है तो उस
कहसाब से ये भी सच है कक मैं भी यही चाहता हूॅ कक जल्द से जल्द िो मेरी पकड में
आ जाए। एक बार पता चल जाए कक िो कमीना ककस कोने में छु पा बै ठा है उसके
बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खू बसू रत ढं ग से करूॅगा।"

"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कक उसके कठकाने का

823
पता ककसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे कलए कोई क़दम उठाना भी आसान
हो जाएगा।"

ऐसी ही कुछ दे र और कुछ बातें होती रही ं। शाम कघर चु की थी और अब रात होने
िाली थी। इस कलए अजय कसं ह चौधरी से इजा़ित ले कर िापस हल्दीपु र के कलए
कनकल चु का था। सारे रास्ते िह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नही ं
हो रहा था कक उसका भतीजा इतना बडा सू रमा हो सकता है कक िो प्रदे श के मंत्री
तक को अपनी मु िी में कैद कर ले । उसने मंत्री से कह तो कदया था कक िो इस मामले
में उसकी मदद करे गा मगर ये तो िही जानता था कक िो उसकी ककतनी मदद कर
सकता था? खै र थका हारा ि परे शान हालत में अजय कसं ह अपनी हिे ली पहुॅच गया
था। उसे समझ नही ं आ रहा था कक िो खु द अपने तथा चौधरी के कलए अब क्ा करे ?
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

मैंने दरिाजा खोला तो दे खा बाहर ररतू दीदी थी। मेरे द्वारा दरिाजा खु लते ही िो मुझे
दे ख कर पहले तो मु स्कुराई किर जैसे ही उन्हें दे ख कर मैं एक तरि हुआ तो िो
दरिाजे से अं दर की तरि कमरे में आ गईं। उन्हें कमरे में आते दे ख मु झे समझ न
आया कक ररतू दीदी रात में सोने की बजाय इस िक्त यहाॅ मेरे पास ककस िजह से
आई हैं?

दरिाजा बं द करके मैं पलटा और बे ड की तरि आ गया। ररतू दीदी बे ड पर ही एक


ककनारे पर बै ठी हुई थी। इस िक्त उनके खू बसू रत बदन पर नाइट डर े स था। मैं खु द
भी एक हाि बकनयान और शाट्ग स में था। हलाॅकक मुझे उनके यहाॅ इस िक्त आने
पर कोई ऐतरा़ि नही ं था बल्कि मैं तो खु श ही हुआ था मगर सोचने िाली बात तो थी
ही कक इस िक्त उनके यहाॅ आने की क्ा िजह हो सकती है?

"कही ं मैने तु झे कडस्टबग तो नही ं ककया न राज?" मुझे बे ड की तरि आते दे ख सहसा
ररतू दीदी ने बडी मासू कमयत से कहा___"कही ं ऐसा तो नही ं कक मैने यहाॅ आ कर
ते री नी ंद में खलल डाल कदया हो?"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं उनके पास ही बे ड पर बै ठते हुए
बोला___"भला आपकी िजह से मैं कैसे कडस्टबग हो जाऊगा? कबलकुल भी नही ं दीदी,
मुझे भी अभी नी ंद नही ं आ रही थी।"

"अच्छा भला िो क्ों?" ररतू दीदी ने सहसा मे रे चे हरे की तरि ग़ौर से दे खते हुए
कहा___"क्ा किधी की याद आ रही थी?"
"उसकी याद आने का तो सिाल ही नही ं है।" मैने अजीब भाि से कहा___"क्ोंकक मैं

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उसे एक पल के कलए भी भू लता ही नही ं हूॅ। दू सरी बात याद तो उन्हें करते हैं न
कजन्हें हम भू ले हुए होते हैं?"

"ओह राज।" ररतू दीदी ने एकदम से मेरा चे हरा अपनी हथे कलयों के बीच ले कलया,
और किर भारी स्वर में मु झसे बोली___"मैं जानती हूॅ कक तू किधी को इतनी आसानी
से भू ल नही ं सकता है। आकखर तु म दोनो ने एक दू सरे से टू ट कर मोहब्बत जो की थी,
ऊपर से िो सब हो गया। मगर भाई, उस सबको याद करने से भी भला क्ा होगा?
बल्कि होगा ये कक तू हर पल उसे याद करके दु खी होता रहे गा। इस कलए तू खु द को
सम्हाल मेरे भाई और उस सबसे बाहर कनकल। तु झे पता है न कक मैं तु झे अब ककसी
भी सू रत में दु खी होते हुए नही ं दे ख सकती हूॅ। अगर तू खु श नही ं रहेगा तो मैं भी
खु श नही ं रहूॅगी। अब तो ते रे ही खु शी में मेरी खु शी है राज और ते रे दु ख में मेरा दु ख
है।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैंने उदास भाि से कहा___"मगर क्ा करूॅ? यादों पर मेरा
कोई अल्कख़्तयार ही नही ं है। कदन तो गु़िर जाता है ककसी तरह मगर ये रात.....ये रात
और रात की ये तन्हाई जाने कहाॅ से मेरे कदल को दु खी करने के कलए उसकी यादें ले
आती हैं? बस उसके बाद सब कुछ ऐसा लगने लगता है जैसे इस सं सार में अब कुछ
भी नही ं रह गया ऐसा कजसकी िजह से मैं खु श हो सकूॅ।"

"ऐसा मत कह मेरे भाई।" ररतू दीदी ने मुझे एकदम से खु द से छु पका कलया और किर
दु खी भाि से बोली___"हम सब भी तो हैं न कजनकी िजह से तू खु श हो सकता है।
क्ा कसिग किधी ही ऐसी थी कजसकी िजह से तू खु श हो सकता था? क्ा गौरी चाची
और गुकडया कुछ भी नही ं कजनके कलए तू खु श रह सके?"

"हर ररश्े की अपनी एक अलग अहकमयत होती है दीदी।" मैने कहा___"मगर जो


कदल का ररश्ा होता है और प्रे म के ररश्े से जु डा होता है उसकी बात ही अलग होती
है। हलाॅकक ररश्ा कोई भी हो उसके टू ट जाने पर अथिा उसके न रह जाने पर
तक़लीफ़ तो होती ही है। हम कजन्हें चाहते हैं तथा कजनसे प्रे म करते हैं िो अगर
दु कनयाॅ जहाॅन में हैं तो उनसे ताल्लुक न रहने के बाद भी इतनी तक़लीफ़ नही ं
होती ले ककन अगर िो इस दु कनयाॅ में ही नहों तो ये सोच सोच कर और भी ज्यादा
तक़लीफ़ होती है कक अब िो इं सान उसे कभी भी नही ं कमल सकता। इं सान के
दु कनयाॅ में बने रहने से ये उम्मीद तो बनी ही रहती है कक कभी न कभी उसे िो
ब्यल्कक्त कमले गा ही। मगर......।"

"बस कर राज।" ररतू दीदी ििक कर रो पडी___"मैं और कुछ नही ं सु न सकती।


मुझे तो इतने से ही इतनी तक़लीफ़ हो रही है जबकक िो सब तो ते रे साथ घटा है तो

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तु झे ककतनी ज्यादा तक़लीफ़ होती होगी। मुझे उस सबका एहसास है मेरे भाई मगर
प्लीज....भगिान के कलए खु द को अपनी इस तक़लीफ़ से कनकालने की कोकशश
कर।"

"किक्र मत कीकजए दीदी।" मैने दीदी को खु द से अलग कर उनके चे हरे को अपनी


हथे कलयों में ले ते हुए कहा___"ये दु ख तक़लीफ़ें लाख असहनीय सही मगर ये मु झे
ने स्तनाबू त नही ं कर सकती हैं । इतनी कहम्मत तो और इतनी कूबत तो है मुझमें कक मैं
इन सबको जज़्ब कर सकूॅ। खै र छोंकडये ये सब और ये बताइये कक आप इस िक्त
यहाॅ ककस िजह से आई थी? क्ा कोई काम था मु झसे ?"

"क्ा मैं ते रे पास बे िजह नही ं आ सकती राज?" ररतू दीदी ने पु नः बडी मासू कमयत से
मुझे दे खा था__"क्ा मु झे अपने भाई के पास आने के कलए ककसी िजह की ़िरूरत
है?"
"नही ं दीदी ऐसी तो कोई बात नही ं है।" मैने झें पते हुए कहा___"बल्कि आप जब चाहें
तब मेरे पास आ सकती हैं। मैने तो हालातों के बारे में सोच कर आपसे ऐसा कहा
था।"

"हालातों के बारे में बात करने के कलए कदन कािी है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने
कहा___"कम से कम रात में तो उस सबसे दू र होकर हमें सु कून कमले । हर पल उसी
के बारे में सोच सोच कर परे शान होना क्ा अच्छी बात है?"

"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा___"हर िक्त एक ही ची़ि के बारे में सोच सोच
कर परे शान होना कबलकुल भी उकचत नही ं है। ककन्तु ये भी सच है कक हालात ऐसे हैं
कक हम भले ही ये सब सोच कर ऐसा कहें मगर ़िहन से िो सब बातें जाती भी तो
नही ं हैं।"

"कोकशश करोगे तो ़िरूर जाएॅगी राज।" ररतू दीदी ने कहा___"मगर तु म तो


कोकशश ही नही ं करते हो। बस सोचते रहते हो जाने क्ा क्ा? अच्छा ये बता कक
नीलम से क्ा बात हुई थी ते री?"

"बताया तो था आपको।" मैने कहा।


"हाॅ बताया तो था तू ने।" ररतू दीदी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"और ये भी
बताया था कक कैसे तु म दोनो टर े न में धमाल मचा रखे थे ।"
"क्ा करता दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसी सबके कलए तो तरसा था
मैं। मैं हमेशा ये चाहता था कक नीलम मुझसे लडाई करे , हम दोनो के बीच में खू ब
शै तनी भरा माहौल बना रहा करे । मगर िो सब ख्वाकहशें ही रही ं। आज सु बह जब

826
टर े न में नीलम मेरे ऊपर झुकी हुई मु झे दे ख रही थी तो अचानक ही मेरे मन में िो सब
बातें आ गई थी और किर मैने उसे छें डा। उसके बाद सचमुच िै सा ही हुआ दीदी जैसे
की मैं हमेशा आऱिू ककया करता था। उस िक्त मैं बहुत खु श था औरुझे पता था
नीलम भी उस सबसे बे हद खु श थी। उसके हाि भाि से ़िाकहर हो रहा था कक िो भी
मेरे साथ िो सब करके उन पलों को एं ज्वाय कर रही थी।"

"काश उस िक्त मैं भी िहाॅ होती राज।" ररतू दीदी ने सहसा आह सी भरते हुए
कहा___"मैं भी नीलम की तरह ते रे साथ िै सी ही मस्ती करती।"
"अरे पर आप कैसे करती दीदी?" मैं दीदी की ये बात सु न कर चौंक पडा था___"आप
तो मु झसे बडी हैं न, जबकक नीलम और मैं एक ही ऊम्र के हैं इस कलए हमारे बीच
िै सी मस्ती हो सकती थी।"

"तो क्ा हुआ भाई?" ररतू दीदी ने कहा___"मैं तु झसे बडी हूॅ तो क्ा हुआ? क्ा मैं
बडी होने की िजह से अपने भाई के साथ मस्ती नही ं कर सकती? ये ककस कानू न की
ककताब में कलखा है मु झे बता तो ़िरा?"

"हाॅ कलखा तो नही ं है मगर।" मैं दीदी की बात सु न कर सकपका गया था___"किर
भी आप मुझसे बडी तो हैं ही और मैं आपसे खु ल कर िै सी मस्ती नही ं कर सकता
था।"
"सीधे सीधे कह दे न कक तु झे मेरे साथ मस्ती करना पसं द ही नही ं आता।" ररतू दीदी
ने सहसा बु रा सा मु ह बनाते हुए कहा___"एक नीलम ही बस तो है कजसके साथ तु झे
िो सब करना अच्छा लगता है। जाओ मुझे तु मसे कोई बात नही ं करनी।"

ररतू दीदी ये कहने के साथ ही मुझसे ़िरा हट कर बै ठ गईं और एक तरि को मु ह


िुला कर बै ठ गईं। मैं ये सब दे ख कर भौचक्का सा रह गया। मुझे उनसे इस सबकी
उम्मीद कबलकुल भी नही ं थी। कदाकचत इस कलए क्ोंकक उनका कैरे क्टर ही ऐसा था।
िो शु रू से ही कहटलर स्वभाि की रही थी। उन्हें ये सब कबलकुल भी पसं द नही ं था।
मगर इस िक्त िो कहटलर दीदी नही ं बल्कि ककसी छोटी सी बच्ची की तरह मुह िुला
कर एक तरि बै ठ गई थी। उनके चे हरे पर इस िक्त इतनी क्ूट सी नारा़िगी दे ख
कर मैं हैरान भी था और अं दर ही अं दर ये सोच कर खु श भी कक इस िक्त ररतू दीदी
सच में ककसी मासू म सी बच्ची की तरह लग रही थी। मुझे उनके इस तरह रूठ कर
मुह िुला ले ने से उन पर बे हद प्यार आया। मु झे ऐसा लगा जैसे इस क्ूट सी बच्ची
पर मैं सारी दु कनयाॅ हार जाऊ।

"अरे ये क्ा बात हुई दीदी?" किर सहसा मु झे िस्तु ल्कथथत का बोध हुआ तो मैं उनके
क़रीब जाते ही उनके कंधे पर हाॅथ रख कर बोला था मगर....।

827
"दू र रहो मु झसे ।" ररतू दीदी ने अपने कंधे से मेरे हाॅथ को झटकते हुए उसी रूठे हुए
भाि से कहा___"और हाॅ मुझसे बात मत करो अब। मैं तु म्हारी कोई दीदी िीदी नही ं
हूॅ। जाओ उस नीलम के पास।"

"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी?" मैं हैरान परे शान सा हो कर कह उठा___"आप
तो मेरी सबसे अच्छी ि सबसे प्यारी दीदी हैं। भला मैं आपसे कैसे दू र हो सकता हूॅ
और आपसे बात न करूॅ ऐसा तो हो ही नही ं सकता।"

"बस बस खू ब समझती हूॅ मैं।" ररतू दीदी ने उसी अं दा़ि से मगर इस बार ़िरा तीखे
भाि से कहा___"मस्का लगाना कोई तु मसे सीखे ।"
"मैं मस्का नही ं लगा रहा दीदी।" मैं एक बार से उनके पास ल्कखसक कर गया और
किर बोला___"मैं ककसी की भी कसम खा कर कह सकता हूॅ कक आप मेरी सबसे
अच्छी दीदी हैं और मेरे कदल में जो थथान आपका है िो ककसी और का नही ं हो
सकता।"

मेरी इस बात का मानो तु रंत असर हुआ। ररतू दीदी एकदम से मेरी तरि इस तरह
दे खने लगी ं थी जैसे उन्हें मेरी इस बात से ककतनी ज्यादा खु शी हुई हो। किर सहसा
जैसे उन्हें याद आया कक िो तो मु झसे रूठी हुई थी ं। इस कलए उनके चे हरे के भाि
पलक झपकते ही पहले जैसे हो गए और िो किर से मुह िुला कर एक तरि को
अपना चे हरा कर कलया। मु झे उनके इस तरह रं ग बदल ले ने से मन ही मन हसी तो
आई मगर मैं हसा नही ं। िरना मुझे पता था कक उसके बाद कैसे हालात हो जाने थे ।

"ठीक है दीदी आप मु झसे मत बात कीकजए।" मैने इमोशनल ब्लैकमेल का नाटक


ककया___"शायद मेरा नसीब ही ऐसा है कक कजसे भी अपना समझता हूॅ िो मेरा
अपना नही ं रहता। एक आप ही तो थी कजन्हें सबसे ज्यादा अपना समझता था और
अपनी दु ख तक़लीफ़ें कदखाता था मगर....।"

मेरा िाक् पू रा भी न हो पाया था कक अचानक ही ररतू दीदी की एक हथे ली कुकर के


ढक्कन की तरह मेरे मुह पर आकर किट हो गई। उनकी ऑखों में ऑसू थे । िो मु झे
इस तरह दे खे जा रही थी जैसे कह रही हों कक आइं दा ऐसी बातें कभी मत करना।

"क्ों ऐसी बातें करता है राज?" किर दीदी ने सहसा दु खी भाि से कहा___"क्ा मैं
तु झसे रूठ भी नही ं सकती? मु झे भी नीलम की तरह तु झसे लडना झगडना है भाई।
मुझे भी अपने इस प्यारे भाई के साथ जी भर के मस्ती करनी है। तु झे तो पता है कक
मुझे इसके पहले ये सब पसं द ही नही ं था मगर अब मुझे भी लगता है कक मैं तु झसे
ते री बडी बहन बन कर नही ं बल्कि ते री छोटी बहन बन कर रूठूॅ लडूॅ और तु झे

828
परे शान करूॅ। मगर तू ही नही ं चाहता कक मु झे भी िै सी खु शी कमले जैसे तु झे और
नीलम को िो सब करके कमली थी।"

"ऐसा नही ं है दीदी।" मैने उनको उनके कंधों से पकडते हुए कहा___"हमारे
पाररिाररक ररश्ों में मेरी और भी कई दीदी होंगी मगर मेरी जो सबसे ज्यादा िेिरे ट
दीदी है िो कसिग आप हो। आपके कलए हसते हसते अपनी जान भी दे सकता हूॅ मैं।
खै र अगर आपकी भी यही इच्छा है तो ठीक है दीदी अब से आप भी मुझसे नीलम
की तरह रूठ सकती हैं और लडाई झगडा कर सकती हैं। मु झे खु शी होगी कक आप
भी खु द को इस रूप में खु शी दे ना चाहती हैं ।"

"हाॅ मगर ये तभी होगा न भाई जब तू मु झे भी तु म या तू कह कर सं बोकधत करे ।"


ररतू दीदी ने कहा___"जैसे तू नीलम से करता है। तभी तो िो सब करने में म़िा
आएगा।"
"ऐसा कैसे हो सकता है दीदी?" मैं दीदी की बात सु न कर बु री तरह हैरान रह गया
था, बोला___"आप मुझसे बडी हैं इस कलए मैं उस सबके कलए आपके मान सम्मान को
ताक पर नही ं रख सकता।"

"ठीक है मगर उस िक्त तो बोल सकता है न जब हम आपस में िै सी मस्ती करें गे।"
दीदी ने कहा___"बाॅकी आम कसचु एशन में तू िही बोलना जो अब तक बोलता आया
है। और हाॅ अब यही िाइनल है। इससे आगे मुझे कुछ नही ं सु नना है, समझ गया
न?"

मेरी हालत मरता क्ा न करता िाली हो गई थी। मैं अब कुछ नही ं कह सकता था।
अगर कहता या कोई ऑब्जे क्शन करता तो कनकश्चय ही दीदी नारा़ि हो जाती जो कक
मैं कभी नही ं चाह सकता था।

"ठीक है दीदी।" किर मैने गहरी साॅस ली___"जैसा आपको अच्छा लगे।"
"गुड।" दीदी के चे हरे पर रौनक आ गई___"तो शु रू करें ?"
"क्ा मतलब??" मैं उनकी इस बात से एकदम से चकरा गया।

"अरे िही भाई।" दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जो तू नीलम के साथ कर रहा था। मैं
चाहती हूॅ कक श्रीगर्े श हो ही जाए मस्ती का।"
"पर दीदी इस िक्त ये सब??" मैं बु री तरह घबरा सा गया था। मु झे समझ नही ं आ
रहा था कक अब क्ा करूॅ?

"इस िक्त क्ा??" ररतू दीदी ने ऑखें कदखाई।


"आप भी कमाल करती हैं ।" मैने कहा___"भला ये भी कोई िक्त है इन सब ची़िों

829
का? हमारी िजह से बे कार में ही सब लोगों की नी ंद का कबाडा हो जाएगा। िै से भी
आज सब बहुत थके हुए हैं। इस कलए इस िक्त नही ं दीदी हम कदन में ककसी िक्त
धमाल कर लें गे।"

"हाॅ ये तो सच कहा तू ने।" ररतू दीदी ने कहा___"सचमुच सबकी नी ंद का सत्यानाश


हो जाएगा। चल कोई बात नही ं। इस िक्त तो तु झे बक्श कदया मगर याद रख कल
छोंडूॅगी नही ं तु झे।"

"क्ा???" मैं दीदी की इस बात से चौंका। किर सहसा ऊपर की तरि दे खते हुए
बोला___"हे भगिान मुझे शै तान की इस बच्ची से बचा ले ना।"
"क्ा कहा तू ने?" ररतू दीदी की ऑखें िैल गईं। िो एकदम से मेरी तरि पलटी ं किर
बोली___"मैं शै तान की बच्ची? रुक बताती हूॅ तु झे।"

इससे पहले कक मैं अपने बचाि के कलए कुछ कर पाता ररतू दीदी मु झ पर झपट पडी ं।
उन्होंने मु झे धक्का दे कर बे ड पर कगरा कदया और खु द भी बे ड के बीचो बीच आकर
मेरे कजस्म के हर कहस्सों पर गुदगुदी करने लगी ं। मु झे उनकी गुदगुदी से हसी तो नही ं
आ रही थी मगर मैं जानबू झ कर हसने लगा था और उनसे अपने कहे की माकफ़याॅ
माॅगने लगा था। मगर ररतू दीदी मेरे माफ़ी माॅगने पर भी मुझे गुदगुदी करना बं द
नही ं कर रही थी ं।

"प्लीज बस कीकजए न दीदी।" मैने हसते हुए कहा__"सब लोगों की नी ंद टू ट


जाएगी।"
"टू ट जाने दे अब।" ररतू दीदी ने कहा___"मुझे ककसी की कोई परिाह नही ं है समझे?
तू ने मुझे शै तान की बच्ची बोला है न तो तु झे अब शै तान की ये बच्ची छोंडेगी नही ं।"

"अच्छा जी।" मैने कहा___"ऐसी बात है क्ा? लगता है इस बच्ची का इलाज करना ही
पडे गा।"
"तू कुछ नही ं कर पाएगा भोंदूराम।" ररतू दीदी ने कहा___"जबकक मैं ते री हालत
खराब कर दू ॅगी आज।"
"ओ हैलो।" मैने सहसा दीदी के दोनों हाथ पकड कलए किर बोला___"कही ं ऐसा न हो
कक मेरी हालत खराब करने के चक्कर में खु द तु म्हारी ही हालत खराब हो जाए।"

"अच्छा बच्चू।" दीदी अपने हाॅथों को मेरी पकड से छु डाने की कोकशश करते हुए
कहा___"इतनी बडी ग़लतिहमी भी है तु झको। शायद तु झे पता नही ं है कक मैं जू डो
कराटे में ब्लैक बे ल्ट होल्डर हूॅ।"

"िाॅर काइण्ड योर इन्फाॅरमेशन।" मैने कहा___"मैं भी माशग ल आट्ग स में ब्लैक

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बे ल्ट हूॅ। इतना ही नही ं कंु ग िूॅ का भी एर्क्पटग हूॅ मैं। इस कलए तु म मुझे कम
समझने की ग़लती मत करना।"

"चल चल हिा आने दे तू ।" ररतू दीदी ने बु रा सा मु ह बनाते हुए कहा___"बडा आया
कंु ग िू एर्क्पटग । मेरे सामने ते रा कोई भी आट्ग स नही ं चलने िाला।"
"और अगर चल गया तो??" मैने मु स्कुराते हुए कहा।
"चल ही नही ं सकता।" ररतू दीदी कहने के साथ ही मेरे ऊपर आ गई___"अब बोल
बच्चू। बडा कंु ग िू एर्क्पटग बनता है न।"

मैने एकदम से पलटी मारी, ररतू दीदी को मुझसे इतनी जल्दी इसकी उम्मीद नही ं थी।
पररर्ाम ये हुआ कक जहाॅ पहले मैं पडा हुआ था िहाॅ ररतू दीदी पडी थी और मैं
उनके ऊपर। मेरी इस हरकत से पहले तो ररतू दीदी घबरा ही गईं किर मु झे दे खते ही
बोली___"ओये ये क्ा है? तू ने ये कैसे ककया?"

"हाहाहाहा क्ा हुआ बहना?" मैने उनके दोनो हाॅथ दोनो साइड से बे ड पर रख
कदया___"हिा कनकल गई क्ा तु म्हारी? बडा जू डो कराटे बता रही थी न। अब बोलो
क्ा करूॅ तु म्हारे साथ?"
"तू ने चीकटं ग की है।" ररतू दीदी मेरी पकड से अपने हाॅथ छु डाने की नाकाम
कोकशश करते हुए कहा___"तू ने धोखे से मुझे नीचे कर कदया है।"

"अच्छा जब हारने लगी तो चीकटं ग का नाम दे कदया।" मैने कहा___"चलो यही सही,
ले ककन तु म तो जानती हो न प्यार और जंग में सब जायज है। अब बताओ शै तान की
बच्ची कक क्ा करूॅ तु म्हारे साथ?"

"ओये ज्यादा कदमाग़ न चला समझे।" ररतू दीदी ने एकाएक ही मेरे पीछे से अपनी
दोनो टाॅगों को दोनो साइड से ऊपर कर मेरी गदग न में िसा कलया और किर हिा
झटका कदया। पररर्ाम ये हुआ कक मैं उनके पै रों की तरि उलटता चला गया। इधर
दीदी पलक झपकते ही बे ड से उठ कर किर से मेरे ऊपर आ गईं।

"क्ों कंु ग िू एर्क्पटग अब क्ा हाल हैं ते रे?" ररतू दीदी मेरे पे ट पर बै ठी उछलने लगी
थी, उन्होंने अपने दोनो हाथों से मेरे हाथ भी पकड रखे थे ।
"हाल तो बहुत अच्छा है ।" मैने कहा___"आपकी जीत में भी मेरी ही जीत है दीदी।"

मेरे ऐसा कहने पर ररतू दीदी एकदम से शान्त पड गईं। मेरी ऑखों में एकटक दे खने
लगी थी िो। किर जाने क्ा उनके मन में आया िो उसी हालत में मेरे ऊपर ही मेरे
सीने से लग कर छु पक गईं।

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"तू ने खे ल क्ों बं द कर कदया राज।" किर दीदी उसी हालत में उदास होकर
कहा___"मु झे तो बहुत अच्छा लग रहा था।"
"मुझे पता है दीदी।" मैने उनके कसर पर हाथ िेरते हुए कहा___"मगर ऐसी ची़िों की
शु रूआत थोडी थोडी से ही होती है न। िै से भी रात कािी हो गई है। इस सबसे कोई
भी यहाॅ आ सकता है और हमें ये सब करते दे ख कर क्ा सोचे गा। इस कलए मु झे
लगता है इतना बहुत है आज के कलए। अब आपको भी अपने कमरे में जा कर सो
जाना चाकहए।"

"क्ों, क्ा मैं ते रे कमरे में ते रे साथ नही ं सो सकती?" ररतू दीदी ने सहसा मेरे सीने से
अपना कसर उठा कर मेरी तरि दे खते हुए कहा।
"कबलकुल सो सकती हैं दीदी।" मैंने मु स्कुरा कर कहा___"पर मैने ऐसा इस कलए कहा
कक आपको शायद अपने कमरे में ही बे हतर तरीके से नी ंद आए और आप कंिटे बल
महसू स करें ।"

"ऐसा कुछ नही ं है मेरे भाई।" ररतू दीदी ने मेरे गाल खी ंचते हुए ककन्तु मुस्कुरा कर
कहा___"मु झे तो ते रे साथ सोने में और भी अच्छी नी ंद आएगी और मु झे कंिटे बल भी
महसू स होगा। ऐसा लगे गा जैसे मैं दु कनयाॅ की सबसे सु रकक्षत जगह पर हूॅ।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है दीदी।" मैने भी मु स्कुराते हुए कहा___"जैसा आपको
अच्छा लगे िै सा कीकजए। अब चकलए सो जाते हैं।"
"ओये क्ा तु झे नी ंद आ रही है?" दीदी ने ऑखें िैलाते हुए कहा था।
"हाॅ लग तो रहा है ऐसा।" मैने कहा।

"ठीक है तू सो जा किर।" दीदी ने कहने के साथ ही अपना कसर िापस मेरे सीने में
रख कलया।
"पर आप तो मेरे ऊपर ले टी हुई हैं न दीदी।" मैने असहज भाि से कहा___"ऐसे में
कैसे मैं सो सकूॅगा भला?"
"कजसको सोना होता है न िो कैसे भी सो जाता है।" ररतू दीदी ने अजीब भाि से
कहा___"मैं तो ते रे ऊपर ही सोऊगी। तु झे भी ऐसे ही सोना पडे गा आज।"

ररतू दीदी की इस बात से मैं हैरान रह गया मगर करता भी क्ा? कोई ़िोर
़िबरदस्ती भी उनसे नही ं कर सकता था। इस कलए चु पचाप अपनी ऑखें बं द कर ली
मैने और सोने की कोकशश करने लगा। जबकक मेरे चु प हो जाने पर ररतू दीदी जो मेरे
सीने पर अपना कसर रखे हुए थी िो मुस्कुराए जा रही थी। उनका पू रा बदन ही मेरे
ऊपर था। मु झे बडा अजीब भी लग रहा था और असहज भी। असहज इस कलए

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क्ोंकक दीदी के सीने के उभार मेरे सीने के बस थोडा ही नीचे धसे हुए महसू स हो रहे
थे । हलाॅकक मेरे ़िहन में उनके प्रकत कोई भी ग़लत भािना नही ं थी मगर सोचने
िाली बात तो थी ही। खै र, कुछ ही दे र में मु झे नी ंद आ गई और मैं सो गया। मुझे नही ं
पता दीदी को कब नी ंद आई थी।
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उधर मंत्री कदिाकर चौधरी के यहाॅ से आने के बाद अजय कसं ह सारे रास्ते सोचों में
गुम रहा था। हिे ली से जब िह चला था तो सबसे पहले गुनगुन में िो एयरटे ल के
सकिग स से न्टर गया था। जहाॅ से उसने अपने पहले िाले नं बर के ही दो कसम काडग
कलया था और उन्हें अपने मोबाइल िोन पर डाल कलया था। उसे पता था कक िोन बं द
होने की िजह से उससे सं बंध रखने िाले सभी उसके चाहने िाले परे शान होंगे। रास्ते
में ही कई सारे लोगों के िोन आए थे उसे कजनसे उसने बात की और उन्हें बताया कक
ककस िजह हे उसका िोन बं द था।

अजय कसं ह ने अपने उन कबजने स दोस्तों से भी बात की कजन्होंने उसकी मदद के कलए
अपने अपने आदमी भे जे थे । सबसे िाररग़ होकर ही िह अपने घर पहुॅचा था।
हिे ली पहुॅचते पहुॅचते उसे रात के साढे आठ से ऊपर हो गए थे । अं दर उसे
डर ाइं गरूम में सब कमल गए। सब आपस में बात चीत कर हसे जा रहे थे । नीलम,
सोनम, कशिा, तथा प्रकतमा आकद सब जगमोहन कसं ह के पास ही बै ठ थे ।

अजय कसं ह को आया दे ख कर नीलम ि सोनम उससे कमली। अजय कसं ह ने उन दोनो
को प्यार कदया और किर कपडे चे न्ज करने का कह कर अपने कमरे की तरि बढ
गया। प्रकतमा के कहने पर बाॅकी सब भी िेश होने चले गए। रात का कडनर सकिता
ने तै यार कर कदया था अतः िेश होने के बाद सब एक साथ डायकनं ग हाल में आ कर
बै ठ गए। कडनर के दौरान सबके बीच नामगल ही बातें हुई। इस बीच जगमोहन कसं ह ने
कहा कक उसे कल िापस जाना होगा क्ोंकक िो इस समय एक ़िरूरी केस के
कसलकसले में लखहगा हुआ है। प्रकतमा की हाकदग क इच्छा थी कक उसके पापा अभी
कुछ कदन यहाॅ रुकें मगर उसे भी पता था कक उसके कपता एक बहुत बडे िकील हैं
कजनके पास समय का बहुत ही ज्यादा अभाि है।

जगमोहन कसं ह ने ये ़िरूर कहा कक अब िो आते रहेंगे यहाॅ। उनकी इस बात से


सब खु श हो गए। खै र कडनर के बाद सब सोने के कलए अपने अपने कमरों में चले
गए।

"तो कमल आए तु म मंत्री जी से ?" अपने कमरे में आते ही प्रकतमा ने बे ड पर ले टे अजय
कसं ह की तरि दे खते हुए कहा___"िै से ककस कसलकसले में बु लाया था उसने तु म्हें? क्ा
कोई खास िजह थी?"

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"इस बारे में कुछ न ही पू छो तो अच्छा है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली
थी।
"अरे ये क्ा बात हुई भला?" प्रकतमा बे ड पर आते हुए बोली___"क्ा कोई ऐसी बात है
कजसे तु म मु झसे बताना नही ं चाहते हो?"

"नही ं यार ऐसी कोई बात नही ं है।" अजय कसं ह ने बे चैनी से पहलू बदला___"भला
ऐसी कोई बात हुई है अब तक कजसे मैने तु मसे शे यर न ककया हो?"
"िही तो।" प्रकतमा ने अजय कसं ह से सट कर ले टते हुए कहा___"िही तो कडयर, मु झे
भी तो पता चले कक मंत्री ने ककस िजह से मेरे अजय को बु लाया था?"

"दरअसल बात ऐसी है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"कक तु म सु नोगी तो हजम


नही ं कर पाओगी।"
"अरे जाने भी दो।" प्रकतमा मुस्कुराई___"बडी से बडी बात तु म्हारी ये प्रकतमा हजम
कर चु की है किर भला ये क्ा ची़ि होगी।"

"मंत्री का जब िोन आया।" अजय कसं ह ने कहा___"और जब उसने मु झे दोस्त कहा


तो ये सच है कक मु झे उस िक्त बे हद खु शी हुई थी। ककन्तु उससे कमल कर तथा
उसकी बातें सु नकर मेरी सारी खु शी कपू र की तरह कािूर हो गई।"

"ये तु म क्ा कह रहे हो अजय?" प्रकतमा के चे हरे पर हैरत के भाि उभरे ___"ऐसी
भला क्ा बातें कही उसने कजसकी िजह से तु म्हारी उम्मीदों और खु कशयों पर पानी
किर गया?"

प्रकतमा के पू छने पर अजय कसं ह ने मं त्री का सारा ककस्सा उसे सु ना कदया। ये भी


बताया कक मंत्री उससे खु द मदद की उम्मीद ककये बै ठा है। सारी बातें सु नने के बाद
प्रकतमा का मारे आश्चयग के बु रा हाल हो गया। उसे यकीन नही ं हो रहा था कक अजय
कसं ह जो ककस्सा सु ना रहा है उसमें कही ं कोई सच्चाई है। मगर उसे पता था कक अजय
कसं ह झठू मूठ का कोई ककस्सा उसे हकगग ़ि भी नही ं सु नाएगा। यानी उसके द्वारा कहा
हर लफ़्ि सही था।

"ये तो बडी ही हैरतअं गेज बात है अजय।" प्रकतमा के चे हरे पर मौजूद हैरत कम नही ं
हो रही थी, बोली___"उस गौरी का िो कपल्ला इस प्रदे श के मंत्री को भी अपने कशकंजे
में कलया हुआ है। यकीन नही ं होता कक कल का छोकरा इतने बडे बडे काण्ड कर रहा
है।"

"गए थे मं त्री के पास उससे मदद की उम्मीद ले कर।" अजय कसं ह ने अजीब भाि से

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कहा___"मगर खु द उसकी उम्मीद बन कर आ गए।"
"तु म्हें मंत्री से साि साि कह दे ना चाकहए था अजय कक तु म इस मामले में उसकी
कोई मदद नही ं कर सकते ।" प्रकतमा ने कहा___"क्ोंकक तु म खु द भी कुछ कर सकने
की ल्कथथत में नही ं हो।"

"उसे अपने बारे में सारी सच्चाई नही ं बता सकता था कडयर।" अजय कसं ह ने
कहा___"तु म खु द सोचो कक मैं िो सब उससे कैसे बता दे ता? इससे तो उसके सामने
मेरी इज्ज़ित का कचरा हो जाता न। िो क्ा सोचता मेरे बारे में कक मैंने अपनी िासना
और हिश के चलते अपने ही घर की बहू बे कटयों की इज्ज़ित पर अपनी नीयत खराब
ही नही ं की बल्कि उनके साथ िो सब करने के कलए क़दम भी बढाया। नही ं प्रकतमा
नही ं, इससे तो उसकी ऩिर में कोई िै ल्यू ही न रह जाती। िो साला मुझे गंदी नाली
का कीडा समझने लगता।"

"बात तो तु म्हारी ठीक ही है अजय।" प्रकतमा ने सोचने िाले अं दा़ि से कहा___"मगर


अब क्ा करोगे तु म? तु मने तो उससे िादा कर कलया है कक तु म इस मामले में उसकी
मदद करोगे। जबकक तु म खु द अच्छी तरह जानते हो कक तु म खु द अपनी ही मदद
नही ं कर पा रहे हो, किर उसकी मदद कैसे कर सकोगे? मंत्री से मदद का िादा
करके तु मने एक नई मुसीबत को दाित दे दी है अजय। िो मंत्री अब हर समय तु म्हें
िोन करे गा अथिा बु लाएगा ये जानने के कलए कक तु मने उसकी मदद के रूप में अब
तक क्ा ककया है? उस सू रत में तु म उसे क्ा जिाब दोगे?"

"मैने उससे मदद का िादा नही ं ककया है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने कहा___"कसिग ये
कहा है कक मैं इस मामले में उसकी मदद के कलए अपनी तरि से पू री कोकशश
करूॅगा बस। इसमे मुसीबत की बात भला कहाॅ से आ गई? मैने कोई एग्रीमेंट तो
ककया नही ं है कजसके चलते िो मु झ पर कोई ऐक्शन ले गा। सीधी सी बात है मैने
उसकी मदद के कलए अपनी तरि से कोकशश की मगर उसका काम नही ं हो सका
इसमें मैं और ज्यादा क्ा कर सकता था?"

"चलो ये तो आने िाला समय ही बताएगा कक इस मामले में क्ा होता है?" प्रकतमा ने
गहरी साॅस ली___"ककन्तु हाॅ ये ़िरूर सोचने िाली बात है कक किराज ने मंत्री को
इस ढं ग से पं गु बनाया हुआ है। हम तो ये सोच सोच कर परे शान थे कक िो यहाॅ
आया ककस कलए था, पर अब पता चला कक िो अपनी उस प्रे कमका की िजह से यहाॅ
आया था।"

"हाॅ प्रकतमा।" अजय कसं ह के चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे ___"मंत्री से कमल कर
तथा उसकी बातों से ही इस सच्चाई का पता चला िरना तो हमें पता भी न चलता कक

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िो साला यहाॅ आया ककस िजह से था? इतना ही नही ं उसने मेरे अलािा और ककसे
अपने मक्कड जाल में िसा रखा था? मंत्री के कजन लडकों ने उस किधी नाम की
लडकी का रे प ककया था िो किराज की प्रे कमका थी और िो गंभीर हालत में हल्दीपु र
थाना क्षे त्र में हमारी बे टी ररतू के द्वारा पाई गई थी।"

"एक कमनट अजय।" प्रकतमा के चे हरे पर एकाएक ही चौंकने के भाि उभरे थे , किर
उसने कहा___"मु झे अब सारा मामला समझ आ गया है। ये भी समझ आ गया है कक
हमारी बे टी हमारे ल्कखलाफ़ हो कर क्ों उस किराज का साथ दे ने लगी है कजस किराज
की िो अब तक शक्ल भी नही ं दे खना चाहती थी।"

"क्ा समझ आ गया है तु म्हें?" अजय कसं ह के माथे पर सहसा कशकन उभरी।
"ये मामला किधी के रे प से ही शु रू हुआ है।" प्रकतमा ने कहना शु रू ककया___"हाॅ
अजय ये सारी कहानी किधी के रे प केस से ही शु रू हुई है। मंत्री के द्वारा बताई गई
सारी बातों पर ग़ौर करने के बाद इसकी ककडयाॅ कुछ इस प्रकार से मेरे कदमाग़ में
जुडी हैं, ग़ौर से सु नो। किधी नाम की कजस लडकी का रे प हुआ िो गंभीर हालत में
हमारी बे टी को कमली। ररतू चू ॅकक पु कलस िाली थी इस कलए ये उसकी ड्यूटी थी कक
िो इस मामले में रे प की गई लडकी के रे कपस्टों की तलाश करे और उन्हें कानू नन
स़िा कदलिाए। ककन्तु उससे पहले उसने ये ककया होगा कक गंभीर हालत में पाई गई
उस लडकी को उसने हाल्किटल में भती कराया तथा लडकी के किषय में जानकारी
भी हाकसल की होगी। ररतू ने किधी से तहकीक़ात के रूप में उस लडकी से उसके
साथ हुए उस हादसे की सच्चाई प्राप्त की होगी। इसी सच्चाई के दौरान उसे पता चला
होगा कक किधी िो लडकी है जो उसके चचे रे भाई किराज से प्यार भी करती थी और
किराज भी उससे प्यार करता था। ककन्तु उसे ये समझ में न आया होगा कक दो प्यार
करने िाले एक दू सरे से दू र कैसे हैं? क्ोंकक अगर दू र न होते तो किधी के साथ िो
हादसा होता ही नही ं। इस कलए ररतू ने किधी से उसके और किराज के बीच की दू ररयों
के बारे में पू छा होगा तब किधी ने उसे बताया होगा कक सच्चाई क्ा है। िो सच्चाई
़िरूर ऐसी रही होगी कजसने ररतू के कदल में चोंट की होगी। किधी के द्वारा ही उसे
पता चला होगा कक किराज असल में ककतना अच्छा लडका है तथा ये भी कक उसके
साथ उसके बडे पापा ने ककतना अत्याचार ककया है। किधी की बातों ने ररतू को सोचने
पर मजबू र कर कदया होगा। ककन्तु उसे इतना जल्दी इस बात पर यकीन नही ं आया
होगा कक हमने किराज ि किराज की माॅ बहन के साथ ग़लत ककया हो सकता है।
अतः उसने अपने तरीके से इस सबका पता लगाने का सोचा होगा। याद करो अजय
ये उसी समय की बात है जब नै ना यही ं थी और एक रात मैं तु म और कशिा साथ में ही
िो मौज मस्ती कर रहे थे । मुझे पू रा यकीन है कक सच्चाई का पता लगाने की राह पर
चलते हुए ररतू उस रात हमारी िो रास लीला दे ख ली होगी। मैं ऐसा इस कलए कह
रही हूॅ क्ोंकक उस रात के बाद से ही ररतू का कबहै कियर हमारे प्रकत बदला था। याद

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करो दू सरे कदन कैसे उसने कशिा को खरी खोटी सु ना दी थी। उस िक्त हमें पता नही ं
था ककन्तु अब समझ आ रहा है कक उसने कशिा को इतने गु स्से से क्ों कझडका था?
खै र, उसके बाद िो बडी सिाई से नै ना को भी यहाॅ से कनकाल ले गई। उसको पता
चल गया होगा कक तु म अपनी ही बहन को अपने नीचे ले टाने का मंसूबा बनाए बै ठे
हो। इस कलए िो नै ना को बडी सिाई से यहाॅ ले गई। इस सबसे उसे और कुछ
जानने की ़िरूरत ही नही ं रह गई थी। उसने उस रात हम तीनों की सारी बातें सु न
ली होगी और जान गई होगी कक किराज की माॅ के साथ असल में हुआ क्ा था?
अथिा हमने उसके साथ ककया क्ा था? इतना सब कुछ कािी था उसका हमारे
ल्कखलाि होने के कलए और किराज के साथ कमल जाने के कलए। इन्ही ं सब के दौरान
उसने किराज को मुम्बई से बु लाया होगा। ककन्तु उसके पास किराज का कोई
काॅटे क्ट नही ं था इस कलए उसने किराज के क़रीबी दोस्तों के बारे में पता लगाया
होगा। किराज के दोस्त के रूप में उसे पिन कमला, पिन को उसने किधी का िास्ता
दे कर कहा होगा कक िो किराज को यहाॅ बु ला ले । बस उसके बाद क्ा क्ा हुआ
इसका तो पता ही है तु म्हें।"

प्रकतमा की इतनी लम्बी चौडी थ्यौरी सु न कर अजय कसं ह आश्चयगचककत रह गया था।
कािी दे र तक उसके मुख से कोई बोल न िूटा। किर सहसा उसके चे हरे पर प्रकतमा
के प्रकत प्रसं सा के भाि उभरे । उसे प्रकतमा की सू झ बू झ और दू रदकशग ता की दाद दे नी
पडी। जबकक....।

"अब रहा सिाल इस बात का कक ररतू ने इसके पहले किधी के साथ हुए उस रे प
हादसे पर उन रे कपष्टों को कानू नन स़िा क्ों नही ं कदलिाई?" प्रकतमा ने मानो पु नः
कहना शु रू ककया___"तो इसका जिाब तु म मं त्री के द्वारा पा ही चु के हो। मंत्री के
अनु सार इं िेक्टर ररतू ने किधी रे प केस के रे कपस्टों को पकड कर उन्हें कानू नन स़िा
कदलिाने की ़िरूर कोकशश की हो सकती है ककन्तु मामला क्ोंकक मं त्री के बच्चों का
था इस कलए मंत्री की ताकत ि पहुॅच के चलते कानू नन भी कुछ नही ं हो सकता था
इस कलए ररतू के आला अिसर ने भी ररतू को इस मामले में हस्ताक्षे प न करने की
सलाह दी होगी। किधी के माॅ बाप को भी यही समझ आया होगा, इसी कलए उन्होंने
भी कोई केस करने का खयाल अपने ़िहन से कनकाल कदया होगा। दै ट्स इट।"

"तु मने तो इस तरह इन सब बातों को खोल कदया है जैसे कक तु म इन सब ची़िों का


लाइि टे लीकास्ट दे ख रही थी और उसकी कमेंटरी भी कर रही थी।" अजय कसं ह
प्रभाकित लहजे में बोला___"यकीनन तु म्हारा कदमाग़ कािी शापग है। खै र यहाॅ पर
इसके आगे की कडी कुछ इस तरह है। किराज जब मुम्बई से आया और उसने अपनी
लिर की िो हालत दे खी तो उससे सहन नही ं हुआ। बल्कि उसका खू न खौल गया
होगा। ककन्तु उसे भी समझ आ ही गया होगा कक िो किधी को कानू नन कोई न्याय

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नही ं कदला सकता। क्ोंकक रे प करने िालों के आका बहुत बडी हस्ती थे । मगर जिान
खू न इसके बाद भी शान्त न हुआ होगा। तब उसने खु द उन लडकों को स़िा दे ने का
सोचा होगा कजन लडकों ने उसकी प्रे कमका के साथ िो कघनौना कुकमग ककया था।
किराज के िैसले पर ररतू ने भी अपनी सहमकत दी होगी और उसकी मदद करने का
िादा भी ककया होगा। मंत्री के ही अनु सार, किराज और ररतू मंत्री के िामग हाउस
पहुॅचे और िहाॅ से मं त्री के उन बच्चों को धर कलया और िही ं से ही उनके हाथ कुछ
ऐसे सबू त भी लगे जो मंत्री को किराज की मुिी में कैद करने के कलए कािी थे दै ट्स
आल।"

"कबलकुल।" प्रकतमा ने कहा___"मंत्री को जब पता चला कक उसके बच्चों का


ककडनै पर हल्दीपु र के ठाकुर अजय कसं ह का भतीजा है तो उसने आज तु म्हें ये सोच
कर िोन ककया कक तु म इस मामले में उसकी यकीनन मदद कर सकते हो। ये अलग
बात है कक तु म खु द भी मंत्री की तरह ही किराज की मुिी में कैद हो।"

"ये क्ा कह रही हो तु म?" अजय कसं ह चौका___"मैं भला कैसे उस हराम़िादे की
मुिी में कैद हूॅ?"
"कमाल है कडयर।" प्रकतमा मु स्कुराई___"ये बात कैसे भू ल सकते हो तु म कक किराज
के पास तु म्हारी िो सब ची़िें हैं जो तु म्हें ककसी भी पल कानू न की भयानक चपे ट में ले
ले ने के कलए कािी हैं।"

"ओह हाॅ िो न।" अजय कसं ह को अचानक ही जैसे सब कुछ याद आ गया और ये
भी सच है कक िो सब याद आते ही उसके समू चे कजस्म में झुरझुरी सी दौड गई थी।
उससे आगे कुछ कहते न बन सका था।

"बडी गंभीर कसचु एशन है अजय।" प्रकतमा ने उसके चे हरे के भािों को पढते हुए
गंभीरता से कहा___"सबकुछ कर सकने की कूबत होते हुए भी कुछ नही ं कर सकते ,
न तु म और ना ही िो मंत्री। मगर मु झे एक बात ये समझ नही ं आती कक जब इतना
मसाला किराज के पास तु म दोनो के ल्कखलाफ़ मौजूद है तो िो उस मसाले का उपयोग
क्ों नही ं करता?"

"ककया तो था उपयोग उसने ।" अजय कसं ह ने कहा___"उस मसाले के आधार पर ही


तो उसने नकली सीबीआई िालों को भे जा था मुझे यहाॅ से ले जाने के कलए।"
"अरे हाॅ कडयर।" प्रकतमा के मल्कस्तष्क में जैसे एकाएक ही बल्ब रौशन हुआ,
बोली___"इस नये चक्कर को तो मैं भू ल ही गई थी। ये भी तो सोचने का एक जकटल
मुद्दा है। आकखर किराज ने ऐसा ककस िजह से ककया होगा? नकली सीबीआई िालों
को भे ज कर उसने तु म्हें ग़ैर कानू नी धंधा करने तथा ग़ैर कानू नी पदाथग रखने के जुमग

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में कगरफ्तार करिाया और किर दो कदन बाद कबना तु मसे कुछ पू छताॅछ ककये छोंड
भी कदया। सोचने िाली बात है कक इस सबसे उसे क्ा कमला होगा? या किर इससे
उसका कौन सा िायदा हुआ होगा?"

"साला ऐसे ऐसे काम करता है कक कुछ समझ में ही नही ं आता।" अजय कसं ह ने
कठोर भाि से कहा___"सोचते सोचते कदमाग़ की नशें तक ददग करने लगती हैं। मगर
मजाल है जो कुछ समझ आए। हद हो गई ये तो। साला कल का छोकरा इतना
शाकतर होगा ये तो ख्वाब में भी नही ं सोचा था मैने।"

"मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है उसके ऐसा करने का चक्कर।" प्रकतमा ने ये कह
कर मानो अजय कसं ह के ऊपर बम्ब िोड कदया था।
"क..क..क्ा समझ आ रहा है तु म्हें?" अजय कसं ह बु री तरह हैरानी से पू छ बै ठा था।

"ये तो तु म भी समझते हो न।" प्रकतमा ने समझाने िाले अं दा़ि से कहा___"कक किराज


की ऩिर में ये एक जं ग है जो उसने हमारे साथ शु रू की हुई है। जब कोई इं सान
ककसी से जंग शु रू करता है तब िो सबसे पहले अपनी कम़िोररयों को अपने
प्रकतद्वं दी से या तो छु पाता है या किर उसकी पहुॅच से बहुत दू र कर दे ता है।"

"तु म क्ा कह रही हो?" अजय कसं ह उलझ कर रह गया, बोला___"मेरी कुछ समझ में
नही ं आ रहा?"
"याद करो अजय।" प्रकतमा ने कहा___"हमारे आदमी ने हमें क्ा खबर दी थी? यही न
कक किराज मुम्बई से आए अपने दोस्त के साथ पिन की िैकमली को एम्बू लेन्स में बै ठा
कर चला गया था और एम्बू लेन्स के आगे आगे एक जीप भी थी। कजसमें कक यकीनन
ररतू ही थी। यहाॅ पर मेरे कहने का मतलब ये है कक किराज ने ऐसा क्ों ककया?
आकखर उसे क्ा ़िरूरत थी पिन और उसकी िैकमली को अपने साथ कही ं ले जाने
की? इस सिाल के बारे में अगर ग़ौर से सोचोगे तो जिाब ़िरूर कमल जाएगा।
मतलब ये कक पिन और पिन की िैकमली किराज की कम़िोरी थे । उसने सोचा होगा
कक दे र सिे र हमे इस बात का पता चल ही जाएगा कक उसके दोस्त पिन ने उसकी
सहायता की थी और िो यहाॅ उसके ही घर में रुका था। अतः हम इसके कलए उसके
दोस्त और उसकी िैकमली को कोई नु कसान भी पहुॅचा सकते हैं। ये सोच कर उसने
पिन आकद को सु रकक्षत रखना अपना कतग ब्य समझा। ककन्तु उसके सामने समस्या
रही होगी कक िो पिन आकद को सु रकक्षत कैसे करे ? उसकी समस्या का समाधान ररतू
ने ककया होगा। उसने उन सब को ककसी ऐसी जगह चलने को कहा होगा जहाॅ पर
िो सब लोग पू र्गरूप से सु रकक्षत रह सकते थे । यहाॅ पर ये भी समझ आ रहा है कक
िो लोग एम्बू लेन्स से ही क्ों गए थे ? दरअसल एम्बू लेंस ही एक ऐसा ककिायती िाहन
हो सकता था कजसमें सब लोग बडे आराम से तथा कबना ककसी बाधा के कही ं भी जा

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सकते थे । हम या हमारे आदमी सोच ही नही ं सकते थे कक िो लोग ककसी एम्बू लेंस
जैसे िाहन में यहाॅ से जा सकते हैं।एम्बू लेन्स के आगे आगे कुछ िाॅसले पर ररतू
अपनी कजप्सी में जा रही थी। िाॅसले पर इस कलए ताकक अगर हम या हमारे आदमी
रास्ते में कही ं कमलें भी तो िो उस पर शक न कर सकें ककसी बात का। कहने का
मतलब ये कक ररतू की मदद से किराज ने अपनी एक कम़िोरी को हमारी पहुॅच से
दू र कर कदया।"

"मगर इसमें ये कहाॅ किट बै ठता है कक िो इस सबके कलए मु झे ऐसे चक्कर में िसा
कर बाद में छोंड भी दे ?" अजय कसं ह सहसा बीच में ही बोल पडा था___"और िै से भी
ये िाला चक्कर तो उस सबके बहुत बाद अभी हुआ है।"

"मेरी बात तो पू री होने दो कडयर।" प्रकतमा ने कहा___"मैं सब कुछ किस्तार से ही बता


रही हूॅ और तु म्हारे सिाल की तरि ही आ रही हूॅ। किराज के यहाॅ आने पर हमने
ये अनु मान लगाया था कक सं भि है कक िो यहाॅ पर अभय के बीिी बच्चों को ले ने
आया हो। हलाॅकक ये भी एक अहम बात है अजय, क्ोंकक आज के हालात में किराज
की दू सरी कम़िोरी अभय के बीिी बच्चे भी हैं । इस कलए सं भि है कक िो उन्हें भी
अपने साथ ही ले गया हो। अभय ने उससे कहा होगा कक अगर सं भि हो सके तो िो
अपने साथ अपनी चाची ि अपने भाई बहन को भी ले आए। किराज मुम्बई से यही
सोच कर आया रहा होगा कक िो किधी को दे खेगा और किर अपनी छोटी चाची ि
उसके बच्चों को साथ ले कर पु नः मुम्बई लौट जाएगा। मगर यहाॅ आने के बाद किधी
के मामले में िो एक अलग ही चक्कर में पड गया। ऐसे माहौल में िो भला िो कैसे
यहाॅ से चला जाता? दू सरी बात यहाॅ पर तो िै से भी उसके कलए खतरा ही था। अतः
अपने साथ साथ अपनी कम़िोररयों को भी दू र करना उसकी पहली प्राथकमकता थी।
ररतू के द्वारा उसे कोई सु रकक्षत जगह तो ़िरूर कमल गई रही होगी मगर उससे
कदाकचत िो सं तुष्ट न रहा होगा। िो चाहता रहा होगा कक उसकी सभी कम़िोररयाॅ
हमारी पहुॅच से कािी दू र होनी चाकहए और कािी दू र तो मुम्बई ही थी। अतः उसने
िैसला ककया होगा कक सबको मुम्बई भे ज कदया जाए। उधर उसे इस बात का भी
एहसास रहा होगा कक ररतू अब चू ॅकक हमारे ल्कखलाि होकर उसकी मदद कर रही है
इस कलए अब उस पर भी खतरा ही है और िो उसे खतरा के बीच में अकेला छोंड भी
नही ं सकता था। तब उसने एक प्लान बनाया और िो प्लान यही था कक िो तु म्हें कम
से कम दो कदन के कलए सीबीआई की कगरफ्त में डलिा दे । इसका िायदा ये था कक
जब तु म ही मैदान पर न होते तो ररतू पर खतरे की सीमा न के बराबर ही रह जाती।
उधर प्लान के मुताकबक किराज अपनी कम़िोररयों को ले कर िापस मुम्बई चला
गया। मुम्बई में सबको छोंड कर िो उसी कदन िापस यहाॅ के कलए चल कदया।"

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"तो तु म्हारे कहसाब से किराज ने इसी सबके कलए मु झे ऐसे चक्करें िाॅसा था?" अजय
कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"मगर तु मने ये कैसे कह कदया कक किराज उन
सबको ले कर मुम्बई ही गया था?"

"इस आधार पर कक उसने तु म्हें दो कदन के कलए ही उस चक्कर में िाॅसा था।"
प्रकतमा ने कहा___"इन दो कदनों में िो आराम से मुम्बई जाकर लौट भी सकता है।
उसने तु म्हें नकली सीबीआई के जाल में िाॅसा जबकक िो चाहता तो तु म्हें सचमुच में
ही ररयल सीबीआई की कगरफ्त में पहुॅचा दे ता। मगर उसने ऐसा नही ं ककया। उसका
मकसद कसिग इतना ही था कक तु म दो कदन के कलए अं डरग्राउण्ड रहो"

"यकीनन ऐसा ही हुआ लगता है।" अजय कसं ह ने कहा___"खै र, सोचने िाली बात है
कक ररतू उसकी मदद कर रही है और िो उसे तथा उसके साथ साथ पिन आकद को
भी सु रकक्षत ले गई थी। मगर सिाल है कक ऐसी कौन सी जगह िो ले गई होगी?"

"ककसी ऐसी जगह।" प्रकतमा ने सोचने िाले भाि से कहा___"जहाॅ पर ककसी ग़ैर का
आना जाना न हो और जहाॅ पर उन्हें ककसी के खतरे का भी आभास तक न हो।"
"ऐसी कौन सी जग......।" अजय कसं ह कहते कहते एकदम से रुक गया था। उसके
चे हरे पर चौंकने के भाि उभर आए और किर िो सहसा अजीब भाि से बोल
पडा___"अरे ....ओह माई गाड मैं भी न बहुत बडा बे िकूि हूॅ प्रकतमा।"

"क्ों, क्ा हुआ?" प्रकतमा उसके मुख से ये सु न कर चौंक पडी थी, बोली___"ऐसा
क्ों कह रहे हो तु म?"
"क्ों न कहूॅ यार?" अजय कसं ह एकाएक ही आहत भाि से बोला___"मैं बे िकूि ही
तो हूॅ। इस बारे में तो मु झे पहले ही सोच ले ना चाकहए था कक ररतू नै ना को कलये
कहाॅ रह सकती है?"

"क्ा मतलब??" प्रकतमा के चे हरे पर हैरानी के भाि उभरे ।


"तु म्हें याद है न कक हमने अपने तीनों बच्चों के नाम एक एक िामगहाउस ककया था?"
अजय कसं ह ने आिे शयुक्त भाि से कहा था।
"ओह हाॅ।" प्रकतमा एकदम से उछल पडी थी। एकदम से जैसे उसे अजय कसं ह की
बात समझ में आ गई थी, अतः बोली___"तो क्ा तु म ये कह रहे कक ररतू ....?"

"हाॅ प्रकतमा।" अजय कसं ह प्रकतमा की बात पू री होने से पहले ही बोल पडा___"मैं यही
कह रहा हूॅ कक ररतू उस समय नै ना को कलए अपने उसी िामग हाउस पर गई होगी
कजस िामग हाउस को मैने उसके नाम ककया था। सोचो प्रकतमा िो जगह उन सबके
कलए ककतनी आसान तथा महिूज हो सकती है। उफ्फ ये बात मेरे ़िहन में पहले क्ों

841
नही ं आई िरना हम पहले ही ररतू नै ना आकद सबको पकड सकते थे । बहुत बडी
ग़लती हो गई प्रकतमा, मैं खु द अपनी ही ग़लती की िजह से जीती हुई बा़िी को हार
गया।"

"अरे तो अभी भी क्ा कबगडा है अजय?" प्रकतमा ने कहा___"हो सकता है कक िो सब


अभी भी िही ं पर मौजूद हों। तु म्हें तु रंत ही िहाॅ जाना चाकहए।"
"नही ं प्रकतमा।" अजय कसं ह ने पू री मजबू ती से गदग न को न में कहला कर कहा___"अब
कुछ नही ं हो सकता। िो लोग अब हमें िामग हाउस पर नही ं कमलें गे। क्ोंकक ये बात तो
िो भी समझते रहे होंगे कक िामग हाउस उनके कलए कुछ समय के कलए ़िरूर सु रकक्षत
जगह हो सकती है मगर हमेशा के कलए नही ं। ये मत भू लो कक ररतू के साथ में किराज
भी है। िो कमीना बहुत शाकतर है। अब तक की उसकी सारी गकतकिकधयाॅ ये बताती
हैं कक िो हमसे दो क़दम आगे ही रहता है। हम कजस ची़ि के बारे में सोचते हैं िो
शाकतर लडका उस ची़ि को पहले ही अं जाम दे चु का होता है।"

"किर भी एक बार पता करने में क्ा जाता है?" प्रकतमा ने कहा___"हो सकता है िो
अभी भी िही ं पर हों। उनके कदमाग़ में ये सोच होगी कक उनके िहाॅ होने का पता
तु म्हें ़िरूर चले गा इस कलए तु म किर ये सोच कर िहाॅ उनका पता करने नही ं
जाओगे कक अब िो िहाॅ हो ही नही ं सकते हैं । ये एक मनोिै ज्ञाकनक सोच है अजय,
इसी के आधार पर िो तु म्हारे कदमाग़ को पढता है और िही करता है कजसकी तु म
उम्मीद ही नही ं करते । कहने का मतलब ये कक तु म इस िक्त ये सोच रहे हो कक िो
लोग िहाॅ होंगे ही नही ं अतः तु म उनका पता करने नही ं जाओगे जबकक िो तु म्हारी
इसी सोच के चलते िहाॅ मौजूद रहें गे।"

"मनोकिज्ञान के रूप में तु म्हारा तकग अच्छा है और अपनी जगह सही भी है।" अजय
कसं ह ने कहा___"मगर मुझे नही ं लगता है कक किराज जैसा शाकतर कदमाग़ लडका
इतना बडा जोल्कखम उठाएगा। बल्कि सं भि है कक उसने कोई दू सरा सु रकक्षत कठकाना
ढू ॅढ कलया होगा। किर भी अगर तु म्हारा मन नही ं मानता तो ठीक है मैं अभी पता
करिा ले ता हूॅ।"

ये कह कर अजय कसं ह ने कसरहाने की तरि ही रखे अपने लै ण्डलाइन िोन का


ररसीिर उठाकर कान से लगाया और उस पर कोई नं बर पं च करने लगा। थोडी दे र
बाद ही उसने अपने ककसी आदमी से कहा कक िो िला जगह पर बने उसके
िामग हाउस में जाए और पता करे कक िहाॅ इस िक्त कौन कौन मौजूद है? अपने
आदमी को हुकुम दे ने के बाद अजय कसं ह ने ररसीिर िापस केकडर ल पर रख कदया।

"थोडी ही दे र में दू ध का दू ध और पानी का पानी हो जाएगा कडयर।" अजय कसं ह ने

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कहा___"मेरा आदमी कुछ ही दे र में पता करके मुझे उस सबकी सू चना िोन पर दे
दे गा।"
"इस बात का यकीन तो मु झे भी है अजय।" प्रकतमा ने कहा___"िो लोग िामग हाउस
में नही ं होंगे मगर इसके बािजूद एक बार पता करना भी कोई ह़िग की बात नही ं है।
खै र, चलो ये मान के चलते हैं कक िो लोग िामगहाउस पर नही ं होंगे तो सिाल ये है कक
उन लोगों ने आकखर ककस जगह पर अपना दू सरा सु रकक्षत कठकाना बनाया होगा?"

"इस बारे में भला क्ा कहा जा सकता है?" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ली___"सच
कहूॅ तो मेरा अब कदमाग़ ही काम नही ं कर रहा है। समझ में नही ं आता कक आकखर
ऐसा क्ा करूॅ कजससे कक सब कुछ मेरी मुिी में आ जाए?"

"सबसे पहले तो तु म्हें अपनी सोच का दायरा बडा करना होगा अजय।" प्रकतमा ने
उसे ज्ञान दे ने िाले अं दा़ि से कहा___"तु म्हें किराज की सोच से दो नही ं बल्कि चार
क़दम आगे की सोच रखनी होगी। तभी िो सब सं भि हो सकता है जो तु म चाहते
हो।"

"सबसे बडी समस्या ये है कडयर कक उसके पास मेरे ल्कखलाि िो ग़ैर कानू नी सबू त
हैं।" अजय कसं ह बे चैनी से बोला___"िो साला उनके आधार पर कभी भी कानू न की
चपे ट में ला सकता है।"

"िो उन सबू तों इस्ते माल नही ं करे गा अजय।" प्रकतमा ने कहा___"अगर करना ही
होता तो िो कब का कर चु का होता। िो सबू त तो उसके पास महज तु रुप के इक्के
की तरह मौजूद हैं। यानी जब िो दू सरे ककसी तरीके से तु मसे अपना बदला नही ं ले
पाएगा तब िो उनका इस्ते माल करे गा। कदाकचत उसके मन में ये सोच है कक िो तु म्हें
कानू न की सलाखों के पीछे पहुॅचा कर आसान स़िा नही ं दे ना चाहता। बल्कि खु द
अपने हाॅथों से तु म्हें कोई ऐसी स़िा दे ना चाहता है कछसके बारे में तु मने ख्वाब में भी
न सोचा हो।"

"यकीनन तु म सही कह रही हो प्रकतमा।" अजय कसं ह के कजस्म में झुरझरी सी हुई थी,
बोला___"उसके मन में यकीनन यही होगा। िो मु झे खु द अपने हाॅथों से स़िा दे ना
चाहता है। दू सरी बात, कजस तरह से उसने मु झे िसा रखा है उससे िो कनश्चय ही
अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा। मगर मु झे ये समझ में नही ं आता कक जब
उसकी मुिी में सब कुछ है तो िो दे र ककस बात पर कर रहा है?"

"यही तो सोचने िाली बात है अजय।" प्रकतमा के चे हरे पर सोचों के भाि उभरे ___"िो
इतना शाकतर है कक हम उसकी सोच को समझ ही ं नही ं पाते । जबकक िो हमारी

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उम्मीदों से परे िाला काम कर जाता है। िो चाहे तो यकीनन एक झटके में ऐसा कुछ
कर सकता है कजसके तहत हम सब उसके सामने दीन हीन दसा में हाक़िर हो जाएॅ
मगर िो ऐसा इस कलए नही ं कर रहा क्ोंकक उसे लगता होगा कक ये काम तो िो कभी
भी कर सकता है। िो कुछ ऐसा करने की किराक़ में होगा जो हमारे कलए हद से भी
ज्यादा असहनीय हो। यकीनन ऐसा ही हो सकता है अजय और कदाकचत िो ऐसा
कर भी रहा है।"

"क क्ा कर रहा है िो?" अजय कसं ह मानो अं दर ही अं दर काॅप कर रह गया था।
"सबसे पहले तो उसने यही ककया।" प्रकतमा ने कहा___"कक उसने हमारी बे टी को
हमसे अलग कर अपने साथ कमला कलया। क्ा ये बडी बात नही ं है अजय कक हमारी
जो बे टी उसकी शक्ल तक दे खना पसं द नही ं करती थी िो आज शायद किराज को ही
सच्चे कदल से अपना भाई मानने लगी है और इतना ही नही ं उसके कलए अपने ही माॅ
बाप के ल्कखलाफ़ हो गई। अगर उसे हमारी हर असकलयत का पता चल चु का है तो ये
भी सं भि है कक उसने हमसे ररश्ा भी तोड कलया हो। सारी बातों को ग़ौर से सोचो तो
समझ में आता है कक िास्ति में किराज ने ककतना बडा तीर मार कलया है।"

"इसमे कोई सं देह नही ं है यार।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"ररतू
को अपने साथ इस तरह से कमला ले ना बहुत बडी बात है ।"
"और मु झे तो ये भी लगता है अजय।" प्रकतमा ने सोचने िाले अं दा़ि से कहा___"कक
किराज का अगला क़दम हमारी दू सरी बे टी नीलम को भी अपनी तरि कमला ले ना
होगा। नीलम को ज्यादा दु कनयादारी का पता नही ं है। ककन्तु हाॅ ये सच है कक िो भी
अपनी बडी बहन की ही तरह सच्चाई की राह पर चलने की सोच रखती है। इस कलए
अगर उसे हमारी असकलयत के बारे में पता चल गया तो ये कनकश्चत बात है कक िो भी
हमारे ल्कखलाफ़ हो जाएगी। िै से क्ा पता हो ही गई हो।"

"ऐसा तु म कैसे कह सकती हो भला?" अजय कसं ह को अपने पै रों तले से मानो ़िमीन
ल्कखसकती हुई महसू स हुई, बोला___"नही ं नही ं ऐसा नही ं हो सकता। पता नही ं क्ा
अनाप शनाप बोले जा रही हो तु म?"

"किराज की सोच से अगर चार क़दम आगे चलना है तो ऐसा सोचना ही पडे गा कडयर
हस्बै ण्ड।" प्रकतमा ने मु स्कुराते हुए कहा___"मैं ऐसा बे िजह ही नही ं कह रही हूॅ
बल्कि ऐसा कहने की मेरे पास कुछ पु ख्ता िजहें भी हैं।"

"क कैसी िजहें?" अजय कसं ह के चे हरे पर हैरत के भाि उभरे ।


"कपछली दो तीन कदन की घटनाओं पर ़िरा बारीकी से ग़ौर करो कडयर।" प्रकतमा ने
कहा___"किराज ने तु म्हें नकली सीबीआई के जाल में िसा कर क्ों अं डरग्राउण्ड

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ककया? इसका जिाब ये है कक उसे अपनी कम़िोररयों को सु रकक्षत या तु म्हारी पहुॅच
से दू र करना था। ककन्तु उसे लगा होगा कक उसके मुम्बई चले से यहाॅ ररतू और नै ना
अकेली पड जाएॅगी। हालात ऐसे थे कक उन दोनो पर ककसी भी समय तु म्हारे रूप में
कोई सं कट आ सकता था। अतः किराज ने एक तीर से दो कशकार ककया, पहला ये कक
तु म्हें नकली सीबीआई की कैद में रख कर सु रकक्षत सबको यहाॅ से मुम्बई ले जाएगा
और दू सरा ये कक उसके यहाॅ न रहने पर ररतू ि नै ना के ऊपर तु म्हारा कोई सं कट
भी न रहता। दो कदन बाद उसने तु म्हें इसी कलए छोंड कदया क्ोंकक िो मुम्बई से िापस
यहाॅ आ गया और किर आते ही उसने सबसे महत्वपू र्ग काम ये ककया कक
िामग हाउस से ररतू ि नै ना को अपने साथ ककसी दू सरी ऐसी जगह कशफ्ट ककया
जहाॅ पर तु म्हारा खतरा न के बराबर ही हो। ये उसी कदन की बात है अजय जब तु म्हें
सीबीआई िाले ले गए थे , तब मैने ररतू को िोन लगाया था तु म्हारे बारे में बताने के
कलए मगर उसने मेरा िोन नही ं उठाया बल्कि काट कदया था। तब मैने नीलम को
िोन लगाया और उसे बताया कक यहाॅ क्ा हुआ है। उसे मैने ये भी बताया कक
उसकी बडी बहन हमारे ल्कखलाि हो गई है। मे री बात सु न कर िो घबरा गई और
उसने यहाॅ आने के कलए कहा था। यहाॅ पर ग़ौर करने की बात ये है कक सं भि है
कक नीलम ने मुझसे बात करने के बाद ररतू से बात की हो और उससे पू छा हो कक िो
क्ों माॅम डै ड के ल्कखलाि हो गई हैं। उसके पू छने पर सं भि है कक ररतू ने उसे
हमारी सारी सच्चाई बता दी हो। हलाॅकक ऐसा हुआ नही ं है , क्ोंकक अगर ऐसा हुआ
होता तो यहाॅ आने के बाद नीलम का कबहैकियर कुछ तो अलग हमें समझ ही आता।
ककन्तु िो यहाॅ आने पर नामगल ही थी। इसका मतलब कक ररतू ने उसे कुछ नही ं
बताया था उस कदन। ककन्तु हाॅ ऐसा हो सकता है कक नीलम के द्वारा माॅम डै ड के
ल्कखलाफ़ हो जाने का कारर् पू छने पर ररतू ने उससे बस यही कहा हो कक िो खु द
सच्चाई का पता लगाए। अतः सं भि है कक नीलम अब बडी ही सिाई से सच्चाई का
पता भी लगा रही हो। दू सरी बात किराज के यहाॅ से जाने के कदन की काॅउकटं ग करें
तो पता चलता है कक किराज उसी कदन िापस यहाॅ के कलए मुम्बई से चल कदया था
कजस कदन हमारी बे टी नीलम िहाॅ से चली थी और किर आज यहाॅ पहुॅची है। मेरे
कहने का मतलब ये है कक ऐसा यकीनन हो सकता है कक किराज और नीलम एक ही
टर े न से यहाॅ आए हों अथिा ऐसा भी हो सकता है कक टर े न में ये दोनो कमले भी हों और
उनके बीच कोई बातचीत भी हुई हो।"

"अब बस भी करो यार।" अजय कसं ह सहसा खीझते हुए बोल पडा था___"तु म तो
ऐसी ऐसी बातें नाॅन स्टाप करती चली जा रही हो जो कक अब मेरे कसर के ऊपर से
जाने लगी हैं। मुझे समझ में नही ं आता कक ये सब बातें तु म्हारे कदमाग़ में आती कैसे
हैं? कभी ऐसा तो कभी िै सा, कभी ये हो सकता है तो कभी िो हो सकता है। व्हाट दा
हेल इज कदस यार? तु म तो मेरे कदमाग़ का अपनी बातों से ही दही ककये दे रही हो।"

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"कमाल करते हो कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा ने सहसा ल्कखलल्कखला कर हसते हुए
कहा___"अगर ऐसा नही ं सोचोगे तो कैसे किराज की सोच से आगे जा पाओगे? कैसे
उसे अपनी मु िी में कैद कर पाओगे तु म?"

"भाड में जाए किराज।" अजय कसं ह सहसा गु स्से में बोल पडा___"साले ने जीना हराम
कर कदया है मेरा। ऊपर से मेरी बे टी को भी अपने साथ कमला कलया उसने । बस एक
बार....एक बार मेरे सामने आ जाए िो। उसके बाद मैं बताऊगा कक मेरे साथ ऐसी
चु हलबा़िी करने का अं जाम क्ा होता है?"

"सोचने िाली बात है कडयर हस्बैण्ड।" प्रकतमा ने अजय कसं ह के चे हरे की तरि दे खते
हुए कहा___"जो लडका बग़ैर सामने आए तु म्हारी ये हालत कर रखा है िो अगर खु ल
कर सामने आ जाए तो सोचो क्ा हो?"

"क्ा होगा?" अजय कसं ह ताि में बोला___"साले माॅ बहन बीच चौराहे पर चोदू ॅगा
मैं। एक बार सामने बस आ जाए िो हराम़िादा।"
"इसका उल्टा भी तो हो सकता है कडयर।" प्रकतमा ने सहसा मु स्कुरा कर
कहा___"हाॅ कडयर इसका उल्टा भी तो हो सकता है। यानी कक तु म तो बीच चौराहे
पर उसकी माॅ बहन को न चोद पाओ मगर िो सच में ही तु म्हारे बीिी बच्चों को बीच
चौराहे पर रौंद डाले ।"

"ये क्ा बकिास कर रही हो तु म?" अजय कसं ह ने कठोर भाि से कहा___"होश में तो
हो न तु म? ये तु म कैसी िाकहयात बातें कर रही हो?"
"सच हमेशा कडिा ही लगता है मेरे बलम।" प्रकतमा ने अजय कसं ह के चे हरे को
अपनी एक हथे ली से सहला कर कहा___"मगर सोचो तो सही। हालात कजस तरह से
उसकी मुिी में हैं उससे क्ा िो ये सब नही ं कर सकता?"

प्रकतमा की इस बात पर अजय कसं ह कुछ बोन न सका। कदाकचत उसे एहसास हो
गया था कक प्रकतमा सच कह रही थी। सच ही तो था, िो भला क्ा कर सकता था
किराज का? जबकक किराज अगर चाहे तो यकीनन िो सब कर सकता है कजस ची़ि
की बात प्रकतमा कर रही थी। खै र अभी अजय कसं ह ये सब सोच ही रहा था कक तभी
कसरहाने की तरि रखा लै ण्डलाइन िोन बज उठा। अजर कसं ह ने हाथ बढा कर
ररसीिर उठाया और कान से लगा कलया। दू सरी तरि से कुछ दे र तक जाने क्ा
कहा। जिाब में ये कह कर अजय कसं ह ने ररसीिर िापस रख कदया कक "चलो कोई
बात नही ं"।

"क्ा कहा तु म्हारे आदमी ने ?" अजय कसं ह के ररसीिर रखते ही प्रकतमा ने उससे पू छा

846
था।
"यही कक इस िक्त िामग हाउस पर कोई इं सान तो क्ा एक पररं दा तक मौजूद नही ं
है।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"ककन्तु हाॅ िहाॅ पर हमारी िो जीप
़िरूर उसे कमली है जो जीप हमारे ही एक आदमी के साथ लापता हो गई थी।"

"इसका मतलब।" प्रकतमा ने सोचने िाले भाि के साथ कहा___"किराज ने मुम्बई से


आते ही िामग हाउस से सबको दू सरी ककसी सु रकक्षत जगह पर कशफ्ट कर कदया है।
कदाकचत उसे अब ये आभास हो चु का था कक िामग हाउस पर अब एक भी पल रुकना
उनके कलए ठीक नही ं है। इस कलए इससे पहले कक तु म्हें उसके िहाॅ होने का पता
चले और तु म िहाॅ पहुॅचो उससे पहले ही िो उन सबको ले कर कही दू सरी जगह
कूच कर गया। िाकई अजय, बडा ही शाकतर कदमाग़ है उसका। िरना सोचने िाली
बात है कक इतने कदन तक तो िो िही ं पर रहा था। भला एक कदन और िहाॅ रुक
जाने में उसे क्ा प्राब्लेम हो सकती थी। मगर नही ं, उसे तो आभास हो गया था कक
अब िहाॅ पर खतरा बढ गया था उन सबके कलए। अतः िौरन ही सबको ले कर
चलता बना िो। अब बताओ कडयर हस्बैण्ड, उसकी सोच तु म्हारी सोच से दो क़दम
आगे है कक नही ं?"

अजय कसं ह कनरुिर सा हो गया था। उसे समझ में ही नही ं आया कक अब िो प्रकतमा
की इस बात का क्ा जिाब दे ? प्रकतमा बडे ग़ौर से उसके चे हरे की तरि कुछ दे र
तक दे खती रही। किर ये कह कर उसके बगल से ही ले ट गई कक___"अब सो जाओ
माई कडयर। ज्यादा सोचने से कुछ नही ं होगा अब। नई सु बह के साथ तथा नई सोच
के साथ कुछ नया करने की कोकशश करना।" अजय कसं ह को भी लगा कक प्रकतमा
ठीक कह रही है। अतः उसने भी अपने ़िहन से इन सारी बातों को झटका और
दू सरी तरि करिट ले कर ले ट गया। ककन्तु दोनो ही इस बात से बे खबर थे कक
कसरहाने के ऊपर ही एक बडी सी ल्कखडकी थी कजसका एक पल्ला हिा सा खु ला
हुआ था और उस हिे खु ले हुए पल्ले पर दो कान खरगोश की तरह खडे उन दोनो
की अब तक की सारी बातें सु न चु के थे ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सु बह मेरी नी ंद खु ली तो दे खा कक ररतू दीदी अभी भी उसी हालत में मेरे ऊपर ले टी
हुई हैं। उनका िजन या ये ककहए कक उनका बोझ ज्यादा तो नही ं था मगर क्ोंकक िो
रात भर मेरे ऊपर ही ले टी रही थी ं तो मुझे अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरे ऊपर
ककतना भारी बोझ रखा हुआ हो। मेरी नी ंद खु लने का कारर् बोझ का एहसास तो था
ही ककन्तु दू सरा एक कारर् ये भी था कक मुझे शू शू आई हुई थी। आप तो जानते ही हैं
कक सु बह सु बह शू शू के चलते हमारे महाराज स्टै ण्डप पोजीशन में होते हैं।

मुझे महाराज के स्टै ण्डप होने का जैसे ही एहसास हुआ मैं एकदम से घबरा सा गया।

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मुझे लगा कक कही ं अगर ररतू दीदी जग गईं और उन्हें भी मेरे महाराज के स्टै ण्डप
होने का एहसास हो गया तो भारी गडबड हो सकती है। िो मेरे बारे कुछ भी उल्टा
सीधा सोच सकती हैं। अतः मुझे उनके जगने से पहले ही अपनी इस हालत को ठीक
कर ले ना था। मैने हिा सा कसर उठा कर दे खा तो ररतू दीदी ककसी छोटी सी बच्ची
की तरह मेरे सीने पर िै से ही छु पकी हुई सो रही थी जैसे रात को िो सोई थी।

मैने बहुत ही आकहस्ता से दाकहने तरि करिट ले कर ररतू दीदी को बे ड पर इस तरह


बडी सिाई से ले टाया कक उनकी नी ंद में ़िरा भी खलल न पड सके। राइट साइड
बे ड पर ले टा कर मैने उन्हें ठीक से सीधा कर कदया। हलाॅकक िो सीधी ही थी मगर
उनके दोनो हाॅथ मु डे हुए थे कजन्हें मैने सीधा कर कदया था। मैने दे खा ररतू दीदी के
खू बसू रत चे हरे पर इस िक्त सं सार भर की मासू कमयत किद्यमान थी। उन्हें मेक-अप
का ़िरा भी शौक नही ं था। िो कबना मेक-अप के ही बहुत खू बसू रत थी। बडी
माॅ(प्रकतमा) की तरह ही िो बे हद खू बसू रत थी। ककन्तु एक अच्छे ने चर की िजह से
उनकी खू बसू रती बडी माॅ से लाख गुना ज्यादा थी। मुझे ररतू दीदी को दे ख कर उन
पर बे पनाह प्यार आ रहा था। मैने झुक कर उनके माॅथे पर हौले से एक ककस ककया
और किर मु स्कुराते हुए मैं पलट कर आकहस्ता से ही बे ड से उतर कर कमरे से अटै च
बाथरूथ की तरि बढ गया।

कुछ दे र बाद जब मैं बाथरूम से सु बह के कामों से िाररग़ हो कर िापस कमरे में


बे ड के पास आया तो दे खा ररतू दीदी अभी भी िै सी ही ले टी हुईं थी ककन्तु इस िक्त
उनके गुलाब की पं खुकडयों जैसे होठों पर बहुत ही कदलकस मुस्कान िैली हुई थी। ये
दे ख कर मैं चौंका किर मैं मुस्कुराते हुए आकहस्ता से बे ड पर आ कर ररतू दीदी के
पास ही बै ठ गया और उन्हें दे खने लगा।

"गुड माकनिं ग माई दा मोस्ट ब्यू टीपु ल दीदी।" किर मैने हौले से मु स्कुराते हुए ककन्तु
उन्हें दे खते हुए ही कहा___"मु झे पता है आप जग चु की हैं। ककन्तु ये समझ नही ं आया
कक आपके होठों पर ये खू बसू रत मु स्कान ककस बात पर िैली हुई है? हलाॅकक
आपको सु बह सु बह इस तरह मु स्कुराते हुए दे ख कर मैं बहुत खु श हो गया हूॅ।"

मेरी इस बात पर ररतू दीदी के होठों की उस मुस्कान में और भी इ़िािा हुआ और


उन्होंने पट से अपनी ऑखें खोल दी। कुछ दे र तक मुझे िो उसी मु स्कान के साथ
दे खती रही ं किर बोली ं____"मेरे होठों पर ये मु स्कान ते री ही िजह से है राज। मुझे
नही ं पता था कक सु बह सु बह मेरा सबसे खू बसू रत और सबसे अच्छा भाई मुझे इतना
प्यार से ले टा कर तथा मेरे माॅथे पर चू म कर मुझसे इतना ज्यादा प्यार करने का
सबू त दे गा। सच कहती हूॅ मेरे भाई, आज की ये सु बह मेरे कलए अब तक की सबसे
बे स्ट सु बह थी।"

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"ओह तो आप उस िक्त जगी हुई थी ं?" मैने चौंकते हुए कहा___"अगर ऐसा था तो
किर आप चु पचाप ऑखें बं द कर सोये होने का नाटक क्ों कर रही थी?"
"अरे बु द्धूराम।" ररतू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"अगर मैं कदखा दे ती कक मैं जाग
चु की हूॅ तो किर मु झे ते रा िो प्यार कैसे कमल पाता भला जो तू ने मेरे माॅथे पर चू म
कर जताया था?"

"अच्छा जी।" मैं कह तो गया मगर अब ये सोच सोच कर घबराने भी लगा था कक ररतू
दीदी अगर जग गई थी तो कही ं उन्हें मेरे महाराज के स्टै ण्डप होने का बोध तो नही ं हो
गया? और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन िो मेरे में ग़लत सोचने लगी होंगी। मैं
भगिान से किनती करने लगा कक प्लीज ऐसा कुछ न होने दे ना। किर मैने खु द को
सम्हालते हुए बोला___"पर आप जगी कब थी ं दीदी?"

"मैं तो ते रे जगने से पहले ही जाग गई थी।" ये कह कर ररतू दीदी ने जैसे मेरे कसर पर
बम्ब िोडा___"पर उठी इस कलए नही ं कक मु झे उस तरह ले टे रहने में बडा म़िा आ
रहा था।"
"क्ा????" मेरे मुख से मानो चीख सी कनकल गई थी, किर बु री तरह सकपकाते हुए
बोला___"मेरा मतलब आप मेरे जगने से पहले कैसे जग गई थी?"

"अरे ये कैसा सिाल है राज?" ररतू दीदी के चे हरे पर हैरानी के भाि उभरे । ये अलग
बात थी कक उनके होठों पर मु स्कान िै सी ही बरकरार थी, बोली___"क्ा मैं ते रे
जागने से पहले खु द नही ं जाग सकती और तू इस तरह चौंक क्ों रहा है मेरे जगने
की बात सु न कर? क्ा तु झे मेरे जाग जाने पर कोई प्राब्लेम हुई है?"

"न.न..नही ं तो।" मैं एक बार किर बु री तरह सकपका गया। मुझे समझ न आया कक
क्ा कहूॅ___"ऐसी तो कोई बात नही ं है दीदी।"
"किर तू इस तरह चौंका क्ों?" ररतू दीदी की मुस्कान और भी गहरी हो गई___"अरे
ये क्ा???"

"क..क.क्ा हुआ दीदी?" मैं उनके इस प्रकार कहने पर बु री तरह डर गया। मेरे चे हरे
पर उभरे पसीने में पल भर में इ़िािा हो गया।
"ये ते रे माॅथे पर सु बह सु बह इतना पसीना कैसे उभर आया राज?" ररतू दीदी ने
मानो एक और बम्ब मेरे कसर पर िोड कदया___"क्ा बात है मेरे भाई ते री तबीयत तो
ठीक है न?"

"त..त.तबीयत???" उनकी इस बात से मेरी हालत पल भर में खराब हो गई___"क्ा


मतलब है आपका? मैं तो एकदम ठीक हूॅ दीदी।"

849
"तू सच कहा रहा है न?" ररतू दीदी ने अजीब भाि से मेरी तरि ध्यान से दे खते हुए
पू छा___"और तू सच में ठीक ठाक है न?"

"ओफ्फो दीदी।" मैंने बे चैनी और परे शानी की हालत में कहा___"ये सु बह सु बह क्ा
अपनी पु कलसगीरी कदखाने लगी हैं आप?"
"पु कलसगीरी??" ररतू दीदी चौंकी___"मैं कहाॅ पु कलसगीरी कदखा रही हूॅ तु झे? मैं तो
ते री तबीयत के बारे में ही पू छ रही हूॅ।"

"तो किर ये पु कलस िालों की तरह तहकीक़ात करने का क्ा मतलब है आपका?" मैं
अब तक अपनी हालत से कािी हद तक उबर चु का था, बोला___"इतनी दे र से दे ख
रहा हूॅ कक आप बाल की खाल कनकालने पर तु ली हुई हैं। इतना भी नही ं सोचा कक
मुझ मासू म पर इस सबसे क्ा गु़िरने लगी है, हाॅ नही ं तो।"

मैने ये बात इतने भोले पन और इतनी मासू कमयत से कही थी कक ररतू दीदी की हसी
छूट गई। िो एकदम से बे ड पर उठ कर बै ठ गई और किर झपट कर मु झे अपने गले
से लगा कलया।

"तू सचमुच बहुत स्वीट है राज।" ररतू दीदी ने मेरी पीठ पर अपने दोनो हाथ िेरते हुए
कहा___"ऊपर से ते रा आज अपनी इस बात में गुकडया(कनधी) का िो तककया कलाम
यूज करना। उफ्फ जान ही ले गया रे ।"

गुकडया का खयाल आते ही मेरे अं दर भी एक अजीब सी झुरझुरी दौड गई। पलक


झपकते ही उसका चे हरा मेरी ऑखों के सामने उभर आया। उस चे हरे में ़िमाने भर
की उदासी थी, तडप थी। मेरा कदल एकदम से कनधी के कलए बे चैन हो उठा। सु बह
सु बह ररतू दीदी की जो मु स्कान दे ख कर मु झे खु शी हुई थी िो गुकडया का उदास
चे हरा मेरी ऑखों के सामने उभर आने से जाने कहाॅ गायब हो गई थी। मु झे समझ
नही ं आ रहा था कक कनधी ने अचानक मुझसे बात करना क्ों बं द कर कदया था? बात
करना तो दू र बल्कि िो तो मेरे सामने ही नही ं आती थी।

"क्ा हुआ राज?" ररतू दीदी ने मुझे चु प जान कर मुझसे अलग होते हुए पू छा___"तू
एकदम से गु मसु म सा क्ों हो गया? क्ा मेरी बातों से ते रा कदल दु ख गया है? दे ख
अगर ऐसी बात है तो प्लीज मु झे माफ़ कर दे ।"

"नही ं दीदी।" मैने उनके मुख पर अपना हाॅथ रख कदया, किर बोला___"आपने कुछ
नही ं ककया है। आप भला कैसे मेरा कदल दु खा सकती हैं? मुझे पता है आप मु झे बहुत
प्यार करती हैं।"

850
"तो किर क्ा बात है?" ररतू दीदी ने सहसा गं भीर होकर पू छा___"तू एकदम से ही
गुमसु म सा क्ों ऩिर आने लगा है? आकखर ककस बात ने तु झे इतना सीररयस कर
कदया है? क्ा मुझे नही ं बताएगा?"

"मैं दरअसल गुकडया की िजह से सीररयस हो गया हूॅ दीदी।" मैने गंभीरता से
कहा___"पता नही ं क्ा बात है जो िो मुझसे बात करने की तो बात दू र बल्कि िो मेरे
सामने भी नही ं आती। जबकक उसे पता है कक मैं उसकी शरारत भरी बातों के कबना
पल भर भी नही ं रह सकता।"

"ऐसा कब से है?" ररतू दीदी ने पू छा___"तू ने उसे कुछ कहा था क्ा? या किर तू ने उसे
ककसी बात पर डाॅटा होगा। िो ते री लाडली है इस कलए िो ते रे ़िारा से भी डाॅट
दे ने पर सीररयस हो सकती है। सं भि है ऐसा ही कुछ हो।"

"मैं उसे ख्वाब में भी नही ं डाॅट सकता दीदी।" मैने पु ऱिोर लहजे में कहा___"और
ना ही मैने उसे कुछ ऐसा िै सा कहा है कजससे उसे बु रा लग जाए।"
"तो किर कोई दू सरी िजह होगी।" ररतू दीदी ने सोचने िाले भाि से कहा___"कोई
ऐसी िजह कजसके बारे में तु म्हें पता ही न हो।"

"ऐसी क्ा िजह हो सकती है भला?" मैने कहा___"अगर कोई बात होती तो गुकडया
मुझे ़िरूर बताती।"
"कुछ बातें ऐसी भी होती हैं राज।" ररतू दीदी ने समझाने िाले अं दा़ि से
कहा___"कजन्हें एक बहन अपने भाई से नही ं कह सकती। िै से इसका पता करने का
सबसे अच्छा तरीका ये है कक तू उसे िोन लगा और उससे बात कर।"

"िो मेरा िोन नही ं उठाएगी दीदी।" मैने कहा___"और ना ही मु झसे बात करे गी।
अगर करना होता तो अभी जब मैं मुम्बई गया था तो िो मु झसे कुछ तो बात करती।
मगर िो तो मेरे सामने आई तक नही ं। आते समय मैं ही उससे कमलने उसके कमरे में
गया था। मैने दे खा कक कमरे में बे ड पर िो ऑखें बं द कर सोने का कदखािा कर रही
थी। मतलब साि था कक िो मु झसे ना तो कमलना चाहती है और ना ही बात करना
चाहती है।"

"बडी हैरत की बात है ये तो।" ररतू दीदी के चे हरे पर हैरत के भाि उभरे ___"चल
ठीक है मैं अपने िोन से उसे काल करती हूॅ और मैं उससे बात करती हूॅ।"
"हाॅ ये ठीक रहेगा दीदी।" मैने खु श होते हुए कहा___"पर आप उससे ये मत कहना
कक आपने उसे मेरे बातों के चलते िोन ककया है और ना ही ये बताना कक मैं आपके
ही पास बै ठा हुआ हूॅ।"

851
ररतू दीदी ने मेरी बात पर हाॅ में अपना कसर कहलाया और ये कह कर बे ड से नीचे
उतरने लगी कक िो अपने कमरे से अपना िोन ले कर अभी आती हैं। उनके जाने के
बाद मैं बे ड पर ही उनके आने का इन्त़िार करने लगा। बे ड के पास ही एक छोटी सी
टे बल थी कजसमें मेरा मोबाइल िोन रखा हुआ था। मुझे खयाल आया कक ररतू दीदी
के पास तो गुकडया(कनधी) का नं बर है ही नही ं। अतः मैने टे बल से अपना िोन उठा
कर उसमे से गुकडया का नं बर दीदी को दे ने का सोचा।

मैने अपने िोन को उठा कर मोबाइल के बगल से लगी बटन पर अगूठे से पु श ककया
तो स्क्रीन जल उठी। स्क्रीन जलते ही उसमें मु झे एक मैसेज ऩिर आया जो
व्हाट् सएप में था और कजसे नीलम ने भे जा था। मैने िोन को अनलाॅक करके उस
मैसेज को खोला। नीलम के भे जे गए मैसेज को पढता चला गया मैं। मैं ये जान कर
हैरान हुआ कक नीलम ने मैसेज में सच्चाई का पता लग जाने िाली बात कही थी और
िो मु झसे कमलना चाहती थी। मैं चककत था कक नीलम ने इतना जल्दी सच्चाई का पता
कैसे लगा कलया? उसने मैसेज में कसिग इतना ही कलखा था कक___"राज मुझे पता चल
गया है कक सच्चाई क्ा है और ककस िजह से ररतू दीदी माॅम डै ड के ल्कखलाि होकर
तु म्हारे साथ हो गई हैं। सारी बातें तु मसे कमलने के बाद ही बताऊगी इस कलए मु झे
तु मसे िौरन ही कमलना है। अब ये तु म बताओ कक मैं तु मसे कब कैसे और कहाॅ
कमल सकती हूॅ। मेरे इस मैसेज का जिाब कजतना जल्दी हो सके दे ना। तु म्हारी बहन
नीलम परी।"

मैं नीलम के इस मैसेज से हैरान भी था और खु श भी। हैरान इस कलए कक उसने


इतनी जल्दी सच्चाई का पता कर कलया था और खु श इस कलए कक अब िो भी
कदाकचत ररतू दीदी की तरह मेरे पास ही रहेगी। अभी मैं ये सब सोच कर खु श ही हो
रहा था कक तभी ररतू दीदी मेरे कमरे में अपना िोन कलए आ गईं। उनकी ऩिर मेरे
चे हरे पर मौजूद खु शी के भािों पर पडी तो उनके चे हरे पर चौंकने के भाि उभरे ।

"ओये होये बडा खु श लग रहा है भाई।" किर िो मु स्कुराते हुए मुझसे बोली___"कोई
दू सरी गलग िैण्ड कमल गई क्ा तु झे?"
"अरे नही ं दीदी।" मैं उनकी इस बात से मु स्कुराते हुए बोला___"ऐसी कोई बात नही ं
है। दरअसल मेरे िोन पर नीलम का मैसेज आया था रात में। उसके मैसेज को पढ
कर ही खु श हो रहा था।"

"ओह तो ये बात है।" ररतू दीदी बे ड पर मेरे पास ही बै ठते हुए कहा___"ऐसा क्ा
कलख कर भे जा है उसने मैसेज में कजसके चलते तू इतना खु श हो रहा है? ़िरा मुझे भी
तो सु ना उसका मैसेज।"

852
लीकजए, आप खु द ही पढ लीकजए।" मैने मोबाइल उनके हाथ में पकडाते हुए
कहा___"हो सकता है कक आप भी मेरी तरह उसका मैसेज पढ कर खु श हो जाएॅ।"
"उसके कलए मु झे मैसेज पढने की ़िरूरत नही ं है मेरे प्यारे भाई।" ररतू दीदी ने मु झे
दे खते हुए कहा___"क्ोंकक अगर तू खु श है तो मैं तु झे खु श दे ख कर ही खु श हो
जाऊगी।"

मैं उनकी इस बात से बस मु स्कुरा कर रह गया। जबकक ऐसा कहने के बाद दीदी ने
नीलम के मैसेज की तरि दे खा और मैसेज को पढने लगी ं। मैसेज पढते ही उनके
चे हरे पर हैरत और खु शी के कमले जुले भाि उभरे और किर एकाएक ही उनके चे हरे
पर गंभीरता छा गई।

"क्ा हुआ दीदी?" मैं उनके चे हरे पर अचानक ही उभर आई उस गंभीरता को दे ख


चौंकते हुए पू छा___"आपको नीलम के इस मै सेज को पढ कर खु शी नही ं हुई?"
"खु शी तो हुई राज।" ररतू दीदी ने पू िगत गंभीर भाि से ही कहा___"ये जानकर अच्छा
भी लगा कक नीलम को भी सच्चाई का पता चल गया है मगर गंभीरता िाली बात ये है
कक कही ं डै ड को भी न इस बात का आभास हो जाए कक नीलम को भी सच्चाई पता
चल गई होगी। उस सू रत में नीलम पर खतरा भी पै दा हो सकता है ।"

"ये आप क्ा कह रही हैं दीदी?" मैने हैरानी से कहा__"भला बडे पापा को इस बात
का आभास कैसे हो जाएगा कक नीलम उनकी सच्चाई जान चु की होगी?"
"तु म मेरी माॅम को नही ं जानते राज।" ररतू दीदी ने उसी गंभीरता से
कहा___"उन्होंने डै ड के साथ ही िकालत की पढाई की थी। उनका कदमाग़ बहुत ही
शापग है। डै ड से कई गुना ज्यादा उनका कदमाग़ चलता है। िो कपछले कुछ कदनों की
घटनाओं को मद्दे ऩिर रखते हुए डै ड को ये बात समझा सकती हैं कक नीलम को
सच्चाई का पता ़िरूर चल गया होगा अथिा िो सच्चाई का पता लगाने की राह पर
चल रह होगी।"

"बात कुछ समझ में नही ं आई दीदी।" मैंने उलझनपू र्ग भाि से कहा___"भला बडी
माॅ ऐसा क्ा सोच कर बडे पापा को समझाएॅगी?"
"सीधी सी बात है राज।" दीदी ने कहा___"ये तो उन्हें अब तक समझ आ ही गया
होगा कक हमने क्ा क्ा और ककस तरीके से ककया है? इस कलए उन्हें इस सबकी
ककडयाॅ जोडने में कोई मु ल्किल नही ं होगी। कहने का मतलब ये कक सारी घटनाओं
के बाद िो अब उस कदन की घटनाओं को आपस में कमलाएॅगी कजस कदन डै ड को
हमारे नकली सीबीआई िाले कगरफ्तार करके ले गए थे और किर कबना कुछ
पू छताॅछ ककये उन्हें दो कदन बाद छोंड भी कदया था। डै ड को ये यो पता चल ही गया

853
था कक िो सब तु म्हारा ही ककया धरा था, क्ोंकक तु म्हारे उन नकली सीबीआई िाले
आदकमयों ने अपनी बातों के बीच तु म्हारा ही नाम कलया था। अतः सारी बातें जानने के
बाद माॅम को ये सोचने में ़िरा भी समय नही ं लगेगा कक तु मने डै ड को दो कदन के
कलए अं डरग्राउण्ड करके अपना कौन सा अहम ककया हो सकता है। यानी उन्हें ये तो
अं दा़िा था ही कक तु म अभी यही ं हो और यही ं से ही सारी घटनाओं को अं जाम दे रहे
हो। मगर ये भी भू लने िाली बात नही ं है कक तु म्हारे पास पिन और उसकी िैकमली
भी है जो कक तु म्हारी कम़िोरी के रूप में हैं। तु म ये हकगगज भी नही ं चाहोगे कक
तु म्हारी कम़िोरी डै ड के हाॅथ लग जाए। क्ोंकक उस सू रत में तु म बहुत ही ज्यादा
कम़िोर पड जाओगे और ये भी सं भि है कक उस सू रत में तु म मजबू रन डै ड के हाॅथ
भी लग जाओ। उसके बाद ककस्सा खत्म। इस कलए तु म यही चाहोगे कक सबसे पहले
तु म अपनी कम़िोररयों को या तो पू र्गरूप से सु रकक्षत कर दो या किर उन्हें डै ड की
पहुॅच से बहुत दू र कर दो। माॅम के कदमाग़ में यही बातें होगी और िो सोचें गी कक
तु म ऐसा ही करना चाहोगे। यानी पिन तथा उसकी माॅ बहन को डै ड की पहुॅच से
दू र मुम्बई भे ज दे ना चाहोगे । ककन्तु तु म्हारे पास समस्या ये होगी कक पिन आकद को
ले कर जाने के बाद मैं और नै ना बु आ यहाॅ अकेली रह जाएॅगी, और हम दोनो पर
डै ड का खतरा रहेगा। अतः तु म कोई ऐसा जुगाड लगाओगे कजससे तु म्हारे दोनो काम
आसानी से और सु रकक्षत तरीके से हो जाएॅ। तब तु मने सोचा कक डै ड के रूप में
राजा को ही सह और मात दे दी जाए कजससे ना रहे गा बाॅस और ना ही बजेगी
बाॅसु री िाली बात हो जाएगी। यही तु मने ककया भी और जब तु म िापस मुम्बई से
लौट आए तो डै ड को भी छोंड कदया अपने नकली सीबीआई के आदकमयों के हिाले
से ।"

"ये सब तो ठीक है दीदी।" मैने शख्त हैरानी से दीदी की तरि दे खते हुए
कहा___"ककन्तु इसमें ये बात कहाॅ से आती है कक उन्हें ये पता चल सकता है कक
नीलम भी उनकी सच्चाई को जान चु की है या किर सच्चाई जानने की राह पर चल
रही होगी?"

"िही ं पर आ रही हूॅ माई कडयर ब्रदर।" ररतू दीदी ने सहसा मु स्कुराते हुए
कहा___"माॅम ये सोचें गी कक उसी कदन तीन तीन लोग हल्दीपु र कैसे आ गए? मतलब
कक डै ड तो हिे ली आए ही उनके साथ साथ उसी कदन नीलम भी हिे ली आ पहुॅची
और ये भी उनके ़िहन में होगा कक तु म भी िापस मुम्बई से आ गए होगे और इसी
कलए डै ड को छोंड भी कदया था। तो सोचने िाली बात थी ये तीन लोग सं योगिश तो
नही ं आ गए थे यहाॅ। यानी कही ं न कही ं इसमें कोई पें च या भे द ़िरूर था। माॅम
को सोचने और समझने में दे र नही ं लगेगी कक कजस टर े न से तु म आए उसी टर े न से
नीलम भी आई होगी और बहुत हद तक ये भी सं भि है कक तु म दोनो की मुलाक़ात
भी टर े न में हुई हो। मुलाक़ात जब होती है तो कुछ न कुछ बात चीत भी होती है। अब

854
चू ॅकक हालात ऐसे थे कक तु म दोनो के बीच में नामगल बातें तो होंगी नही ं यानी कक
तक़रार भरी अथिा कगले कशकिे सं बंधी बातें हुई होंगी। दू सरी बात माॅम ने मु झे
िोन ककया था पर मैने उनका िोन उठाया नही ं तब उन्होंने नीलम को िोन ककया।
नीलम ने मु झे िोन कर मु झसे बात की थी और पू छा था कक मैं अपने ही माॅम डै ड
के ल्कखलाि होकर तु म्हारे साथ क्ों हूॅ तब मै ने उससे कहा था कक िो सच्चाई का
पता खु द लगाए। यही बात माॅम ने भी सोचा होगा। यानी उन्हें ये लगा होगा कक मैने
नीलम को सारी बातें बता दी होंगी और अब नीलम सच्चाई जान चु की है। या किर
अगर मैने नही ं बताया होगा तो इतना तो ़िरूर ही कहा होगा कक मेरे माॅम डै ड के
ल्कखलाफ़ होने की िजह का पता िो खु द लगाए। इस कलए नीलम िजह या सच्चाई का
पता लगाने आई होगी।" ररतू दीदी ने इतना कहने के बाद गहरी साॅस ली और किर
बोली___"इन सब बातों की िजह से ही मैं कह रही हूॅ राज कक नीलम पर अब खतरा
है और उस नादान ि नासमझ को इस बात का एहसास भी नही ं होगा कक िो ककतनी
बडी मुसीबत में िस सकती है। उसे उस जगह से कनकालना होगा राज िरना सच में
अनथग हो सकता है। िो हिश के पु जारी मेरी मासू म बहन को बरबाद कर सकते हैं।"

"नही ंऽऽ।" मैंने सहसा आिे श में आकर कहा___"ऐसा हकगग ़ि नही ं होगा दीदी और मैं
होने भी नही ं दू ॅगा। अगर मेरी मासू म बहन को उन लोगों ने छु आ भी तो उन्हें इसका
अं जाम बहुत ही भयानक रूप से भु गतना पडे गा।"

"नीलम के साथ में सोनम भी है।" ररतू दीदी ने गंभीरता से कहा___"उसे भी उन


लोगों से दू र करना होगा। मैं उस कमीने कशिा को बहुत अच्छे तरीके से जानती हूॅ।
उसे िासना और हिश के चलते ररश्ों का कोई भान नही ं रहे गा और िो सोनम को
भी हिश भरी ऩिरों से दे ख रहा होगा। हे भगिान ये नीलम उसे अपने साथ ले कर
यहाॅ आई ही क्ों थी?"

"किक्र मत कीकजए दीदी।" मैने कठोरता से कहा___"उन दोनो को कुछ नही ं होगा।
अब मैदान में खु ल कर आने का समय आ गया है। आपके डै ड को ये बताने का समय
आ गया है कक अगर मैं उनके सामने भी आ जाऊ तो मेरा कुछ नही ं कबगाड सकते
हैं।"

"कुछ भी करने से पहले तु म्हें नीलम और सोनम को सु रकक्षत िहाॅ से कनकालना


होगा।" ररतू दीदी ने समझाने िाले अं दा़ि से कहा___"उसके बाद ही हम कोई ठोस
क़दम उठाने में सक्षम हो सकते हैं।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"मैं नीलम से बात करके उसे सब कुछ समझाता हूॅ
कक उसे क्ा और कैसे करना है। आप भी गुकडया से बात कर लीकजए। और हाॅ इस

855
बात की कबलकुल भी किक्र मत कीकजए कक नीलम ि सोनम दीदी में से ककसी को भी
मेरे रहते कुछ होगा। मैं अपनी जान दे कर भी उनकी इज्ज़ित और जान की कहिा़ित
करूॅगा।"

"ऐसा मत कह राज।" ररतू दीदी की ऑखें छलक पडी, बोली___"तु झे कुछ होने से
पहले ही मैं अपनी जान दे दू ॅगी। मेरा सबसे प्यारा भाई ही नही ं रहे गा तो मैं इस पापी
दु कनयाॅ में अकेली जी कर क्ा करूॅगी।"

"सब ठीक ही होगा दीदी।" मैने दीदी को अपने से छु पका कलया___"और मैं सब कुछ
ठीक करने की पू री कोकशश भी करूॅगा। चकलए अब आप भी िेश हो लीकजए,
सु बह हो गई है। नै ना बु आ आपको आपके कमरे में न दे खेंगी तो कही ं आपको ढू ॅढने
न लग जाएॅ। अतः अब आप जाइये और हाॅ गुकडया से ़िरूर बात कर लीकजएगा।"

मेरे कहने पर ररतू दीदी ने मुझसे अलग होकर हाॅ में कसर कहलाया। मैने उन्हें अपने
िोन से गुकडया का नं बर मैसेज ककया। उसके बाद दीदी कमरे से चली गईं। उनके
जाने के बाद मैंने गहरी साॅस ली तथा किर मै ने नीलम को मैसेज ककया। अपने
मोबाइल को हाॅथ में कलए मैं नीलम की तरि से उसके ररप्लाई का इन्त़िार करने
लगा।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.......《 55 》

अब तक,,,,,,,,

"कुछ भी करने से पहले तु म्हें नीलम और सोनम को सु रकक्षत िहाॅ से कनकालना


होगा।" ररतू दीदी ने समझाने िाले अं दा़ि से कहा___"उसके बाद ही हम कोई ठोस
क़दम उठाने में सक्षम हो सकते हैं।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"मैं नीलम से बात करके उसे सब कुछ समझाता हूॅ
कक उसे क्ा और कैसे करना है। आप भी गुकडया से बात कर लीकजए, और हाॅ इस
बात की कबलकुल भी किक्र मत कीकजए कक नीलम ि सोनम दीदी में से ककसी को भी
मेरे रहते कुछ होगा। मैं अपनी जान दे कर भी उनकी इज्ज़ित और जान की कहिा़ित
करूॅगा।"

856
"ऐसा मत कह राज।" ररतू दीदी की ऑखें छलक पडी, बोली___"तु झे कुछ होने से
पहले ही मैं अपनी जान दे दू ॅगी। मेरा सबसे प्यारा भाई ही नही ं रहे गा तो मैं इस पापी
दु कनयाॅ में अकेली जी कर क्ा करूॅगी?"

"सब ठीक ही होगा दीदी।" मैने दीदी को अपने से छु पका कलया___"और मैं सब कुछ
ठीक करने की पू री कोकशश भी करूॅगा। चकलए अब आप भी िेश हो लीकजए,
सु बह हो गई है। नै ना बु आ आपको आपके कमरे में न दे खेंगी तो कही ं आपको ढू ॅढने
न लग जाएॅ। अतः अब आप जाइये और हाॅ गुकडया से ़िरूर बात कर लीकजएगा।"

मेरे कहने पर ररतू दीदी ने मुझसे अलग होकर हाॅ में कसर कहलाया। मैने उन्हें अपने
िोन से गुकडया का नं बर मैसेज ककया। उसके बाद दीदी कमरे से चली गईं। उनके
जाने के बाद मैंने गहरी साॅस ली तथा किर मै ने नीलम को मैसेज ककया। अपने
मोबाइल को हाॅथ में कलए मैं नीलम की तरि से उसके ररप्लाई का इन्त़िार करने
लगा।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

उधर मंत्री कदिाकर चौधरी के आिास पर।


अशोक मे हरा ि अिधेश श्रीिास्ति डर ाइं ग रूम में बै ठे थे । सामने के सोिे पर एक
ब्यल्कक्त और बै ठा हुआ था जो कक अिधेश के साथ ही आया हुआ था। उसका नाम
हरीश रार्े था। हरीश रार्े पे शे से एक प्राइिे ट कडटे ल्कक्टि था। उसने बाकायदा
अपनी एक अलग कडटे ल्कक्टि एजेंसी खोली हुई थी तथा उसके अं डर में कािी सारे
लोग काम करते थे । अिधेश श्रीिास्ति और हरीश रार्े की मुलाक़ात कई साल पहले
ककसी केस के कसलकसले पर ही हुई थी। तब से इन दोनो के बीच यारी दोस्ती का
गहरा नाता था।

हरीश रार्े बहुत ही क़ाकबल और ते ़ि कदमाग़ का कडटे ल्कक्टि था। उसके बारे में कहा
जाता है कक उसने अब तक कजस केस को भी अपने हाॅथ में कलया उसे बहुत ही कम
समय में साव ककया था। कदाकचत यही िजह है कक आज के समय में हरीश रार्े
एक केस के कलए अच्छी खासी िीस चा़िग करता था। िीस तो उसकी होती ही थी
ककन्तु उसके आने जाने का खचाग पानी भी उसे अलग से दे ना पडता था। खै र, इस
िक्त ये तीनों ही डर ाइं ग रूम में बै ठे चौधरी के आने का कपछले एक घंटे से इन्त़िार
कर रहे थे ।

चौधरी के पीए ने बताया था कक चौधरी साहब अपनी रखै ल सु नीता के साथ कमरे में
हैं। अिधेश ि अशोक ये जान कर हैरान रह गए थे कक चौधरी आज सु बह सु बह ही

857
सु नीता को भोगने में लग गया था। आम तौर पर ऐसा होता नही ं था, और ना ही
चौधरी इस क़दर सु नीता का दीिाना था। मगर जाने क्ा बात थी कक आज सु बह
सु बह ही चौधरी सु नीता के साथ कमरे में बं द था। उसे ये तक होश नही ं था कक
हालात ककतने गंभीर थे आजकल।

अिधेश श्रीिास्ति अपने कडटे ल्कक्टि दोस्त हरीश रार्े को चौधरी से कमलिाने लाया
था। िो चाहता था कक चौधरी रार्े से कमल कर अपने तरीके से उसे केस के कसलकसले
में बताएॅ और आगे का काम शु रू करने की परमीशन दे । खै र एक घंटे दस कमनट
बाद चौधरी और सु नीता एकदम से िेश होकर डर ाइं ग रूम में आए। उन दोनो के
हाि भाि से कबलकुल भी ऐसा नही ं लग रहा था कक िो दोनो बाॅकी सबकी
जानकारी के अं दर क्ा गुल ल्कखला कर आए थे । बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे कुछ
हुआ ही न हो।

"माफ़ करना यारो।" कदिाकर चौधरी ने सोिे पर बै ठते हुए तथा सबकी तरि ऩिरें
दौडाते हुए कहा___"तु म सबको इन्त़िार करना पडा।"
"कोई बात नही ं चौधरी साहब।" अिधेश ने मजबू री में ही सही ककन्तु मु स्कुराते हुए
कहा___"इतना तो चलता है। खै र जैसा कक मै ने आपसे क़िक्र ककया था तो मैं अपने
साथ अपने कडटे ल्कक्टि दोस्त हरीश रार्े को ले कर आया हूॅ। आप इनसे कमल लीकजए
और केस से सं बंकधत बात कर लीकजए।"

"ओह हैलो रार्े ।" चौधरी ने हरीश की तरि दे खते हुए ककन्तु तकनक मु स्कुराते हुए
कहा___"भई तु म अिधेश के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त ही हुए। इस कलए हमसे
ककसी भी बात के कलए सं कोच या कझझक करने की ़िहमत मत उठाना।"

"जी कबलकुल चौधरी साहब।" हरीश रार्े ने भािहीन स्वर में कहा___"िै से भी हमारे
पे शे में सं कोच या कझझक के कलए कोई जगह नही ं होती है । खै र आप बताएॅ मेरे
कलए क्ा आदे श है? आपके कलए कुछ कर सकूॅ ये मेरा सौभाग्य ही होगा।"

"सारी बातें तो तु म्हें अिधेश ने बता ही दी होंगी।" चौधरी ने कहा___"और शायद ये


भी समझा कदया होगा कक तु म्हें करना क्ा है?"
"जी कबलकुल।" हरीश रार्े ने कहा___"अिधे श ने मु झे इस केस से सं बंकधत सारी
बातें बताई हैं। इसके बािजूद आप अगर अपने मुख से एक बार किर से इस बारें में
मुझे बता दें गे तो ज्यादा बे हतर होगा।"

"दरअसल हालात ऐसे हैं।" कदिाकर चौधरी ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"कक हम
सब कुछ कर गु ़िरने की क्षमता रखते हुए भी कुछ कर नही ं सकते । अिधेश ने ही

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सु झाि कदया था कक इस काम में हमारे अलािा एक कडटे ल्कक्टि ही बे हतर तरीके से
कोई कायगिाही कर सकता है। हमें भी लगा कक आइकडया अच्छा है। खै र, हम कसिग
ये चाहते हैं कक कजस शख्स की िजह से हम कुछ कर नही ं पा रहे हैं उसे तु म हमारे
सामने लाकर खडा कर दो। ककन्तु इस बात का बखू बी और सबसे पहले खयाल रहे
कक उसे इस बात की भनक भी न लगे कक हमने तु म्हारे रूप में कोई जासू स उसके
पीछे लगा रखा है। क्ोंकक अगर उसे तु म्हारे बारे में पता चल गया तो तु म सोच भी
नही ं सकते हो कक तु म्हें हायर करने के कलए तथा उसके पीछे लगाने के कलए हमें
इसका ककतना सं गीन अं जाम भु गतना पड सकता है। खै र, हम ये चाहते हैं कक उस
शख्स के पास से िो सारे िीकडयोज तु म हमें िापस लाकर दो और उसकी कैद से
हमारे बच्चों को भी सही सलामत यहाॅ ले कर आओ। उसके बाद हम खु द दे ख लें गे
उस बास्टडग को कक िो खाली हाॅथ हमारा क्ा उखाड ले ता है?"

"ठीक है चौधरी साहब।" हरीश रार्े ने कहा___"मैं आज और अभी से इस काम में


लग जाता हूॅ। हलाॅकक इस काम में कोई बहुत बडी बात नही ं है कजसके कलए
आपको ककसी कडटे ल्कक्टि की ़िरूरत पडती, मगर चू ॅकक आप उस शख्स के द्वारा
पं गू बने हुए हैं इस कलए खु द कुछ कर नही ं सकते हैं। अतः आपको कोई ऐसा ब्यल्कक्त
चाकहए जो आपके कलए ये सब इस तरीके से करे कक खु द कडटे ल्कक्टि को भी पता न
चल पाए कक िो क्ा कर गया है?"

"कबलकुल, तु म सही समझे रार्े ।" चौधरी ने प्रभाकित ऩिरों से हरीश को दे खते हुए
कहा___"तु म खु द समझ सकते हो कक जब तक उसके पास हम लोगों के िो
िीकडयोज हैं तब तक हम में से कोई भी कोई ठोस ऐक्शन नही ं ले सकता उसके
ल्कखलाि।"

"आप बे किक्र रकहए चौधरी साहब।" हरीश रार्े ने कहा___"बहुत जल्द आप इस


बे बसी के आलम से उबर जाएॅगे और किर आप स्वतं त्र रूप से कुछ भी करने की
हालत में भी आ जाएॅगे।"

"आई होप कक ऐसा ही हो।" चौधरी ने कहा___"हम चाहते हैं कक ये काम कजतना
जल्दी हो सके तु म कर डालो। क्ोंकक हमसे अब और ज्यादा ये सब झेला नही ं जा
रहा है। अपनी िीस के रूप में कजतना चाहो रुपया ले सकते हो हमसे । हमें जल्द से
जल्द बस अच्छा ररजल्ट चाकहए।"

"डोन्ट िरी चौधरी साहब।" हरीश रार्े ने कहा___"आपको इस सबसे बहुत जल्द ही
मुल्कक्त कमल जाएगी। अच्छा अब मु झे यहाॅ से जाने की इजा़ित दीकजए।"
"ठीक है तु म जाओ रार्े ।" चौधरी ने कहा___"हमें बडी कशद्दत से उस कदन की

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प्रतीक्षा रहेगी जबकक हमारे बच्चे और िो िीकडयोज हमारे पास होंगे।"

मंत्री कदिाकर चौधरी से इजा़ित ले कर हरीश रार्े नाम का िो कडटे ल्कक्टि िहाॅ से
चला गया। उसके जाने के बाद कुछ दे र तक डर ाइं गरूम में सन्नाटा छाया रहा। सबके
चे हरों पर सोचो के भाि गकदग श करते ऩिर आ रहे थे ।

"ये काम तो बहुत अच्छा हुआ चौधरी साहब।" सहसा पहली बार इस बीच अशोक
मेहरा ने अपना मुख खोलते हुए कहा___"मगर आपने तो उस ठाकुर से भी इसके
कलए मदद करने की बात की थी तो किर उसका क्ा? मेरा मतलब है कक क्ा
सचमुच इस मामले में िो हमारी मदद करे गा अथिा उसका िो मदद के कलए हाॅमी
भरना महज उस िक्त की बस एक औपचाररकता थी?"

"बे शक, उसकी औपचाररकाता भी समझ सकते हो।" मंत्री ने कहा___"क्ोंकक हमें
भी ऐसा लगता है कक िो इस मामले में कुछ खास हमारी मदद नही ं कर सकता।
उसकी खु द की थाने दारनी बे टी उसके ल्कखलाफ़ है। बे टी के ल्कखलाफ़ होने की जो
िजह उसने हमें बताई थी उस िजह में कोई खास बात नही ं थी। क्ोंकक महज इतनी
सी बात पर कक उसके और उसकी पत्नी को बे टी का पु कलस की नौकरी करना पसं द
नही ं था और िो इस बारे में बे टी से बोलते भी थे तो ऐसा नही ं हो सकता कक बे टी
इतनी सी बात पर िो अपने पै रेंट् स के ल्कखलाफ़ हो जाए। ल्कखलाफ़ होने के पीछे ़िरूर
कोई ऐसी ठोस िजह होगी कजसके बारे में ठाकुर ने हमें बताना शायद ़िरूरी नही ं
समझा या किर ऐसा हो सकता है कक िो उस िजह को हमसे बताना ही न चाहता
रहा हो।"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने सोचने िाले भाि
से कहा___"ककन्तु सोचने िाली बात तो है ही कक ऐसी क्ा िजह हो सकती है कजसके
तहत उसकी खु द की बे टी उसके ल्कखलाफ़ हो गई है?"

"हमें लगता है कक ठाकुर खु द भी दू ध का धुला हुआ नही ं है।" चौधरी ने


कहा___"उसने अपने भतीजे और छोटे भाई की बीिी के सं बंध में जो कुछ भी हमें
बताया था सं भि है कक उसकी उस बात में कोई सच्चाई हो ही न। कहने का मतलब
ये कक कजन आरोपों के तहत उसने अपने छोटे भाई की बीिी और उसके बच्चों को हर
ची़ि से बे दखल ककया था िो सभी आरोप महज उसी की चाल का एक कहस्सा रहे
हों। हम ऐसा उसकी बे टी के ल्कखलाफ़ हो जाने की बात के आधार पर कह रहे हैं। ये
तो एक यथाथग सच्चाई है कक झॅ ू ठ या बु राई एक न एक कदन अपना चे हरा सबको
कदखा ही दे ती है। इस कलए अगर ठाकुर ने िो आरोप ककसी साकजश के तहत झॅ ू ठ
की बु कनयाद पर लगाए रहे होंगे तो सं भि है कक उसकी िो सच्चाई ककसी तरह सामने

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आ गई हो और उसकी बे टी को भी पता चल गई हो। इतना तो िो भी समझ सकती है
कक बु रा करने िाला कभी पलट कर अपने हक़ के कलए इस तरह लडाई नही ं ककया
करता। अगर किराज की माॅ का चररत्र सचमु च में कगरा हुआ रहा होगा तो ये बात
कही ं न कही ं से किराज को भी पता चलती और िो उस सू रत में शमग से पानी पानी
होता तथा साथ ही किर िो कभी पलट कर गाॅि में ककसी को अपनी शक्ल न
कदखाता। मगर उसने ऐसा कुछ भी नही ं ककया उल्टा इसके किपरीत िो ठाकुर से
अपने हक़ के कलए तथा अपने साथ हुए अन्याय के कलए लडाई कर रहा है। इस बात
से कही ं न कही ं सोचने िाली बात हो ही जाती है कक कही ं ठाकुर ने िो सब आरोप
झठू मूॅठ में ही तो नही ं लगाए थे किराज की माॅ पर? िरना िो इस तरह सीना तान
कर तथा इतनी कदले री से उससे जं ग क्ों करता? यही बात ठाकुर की बे टी भी सोची
होगी और किर उसने सच्चाई का पता भी लगाया होगा। सं भि है कक उसे िास्तकिक
सच्चाई का पता चल गया हो, उस सू रत में िो अपने माॅ बाप के ल्कखलाफ़ हो गई।
हलाॅकक सोचने िाली बात तो ये भी है कक अगर माॅ बाप बु रे हैं तो सं तान इतनी
पाक़ साि कैसे हो गई कक िो अपने ही माॅ बाप के ल्कखलाफ़ हो जाए?"

"आपकी बातों में यकीनन िजन है।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"मगर ऐसा होता
है चौधरी साहब कक कीचड में ही कमल ल्कखलते हैं। कहने का मतलब ये कक भले ही
ठाकुर और ठाकुर की बीिी बु रे चररत्र िाले रहे हों ककन्तु ़िरूरी नही ं कक उसके सभी
बच्चे भी उनकी तरह ही बु रे कनकलें । हर इं सान की सोच ि स्वभाि अलग होता है।
अतः सं भि है कक ठाकुर की बे टी अच्छी सोच ि अच्छे ने चर की लडकी हो और िो
अन्याय का साथ दे ने की सोच न रखती हो।"

"कबलकुल।" चौधरी ने कहा___"अगर तु म्हारी बातों को मान कर चलें तो ये सिाल भी


पै दा हो जाता है कक अगर ठाकुर की बे टी अपने पै रेंट् स के रूप में अन्याय के ल्कखलाफ़
हो गई है तो ये भी ़िाकहर सी बात है कक किर उसने न्याय और सच्चाई का साथ दे ने
का भी सोचा हो।"

"यकीनन ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अशोक मे हरा कह उठा___"न्याय और


सच्चाई का साथ दे ने का मतलब है कक िो किराज का साथ दे रही होगी। उसे सच्चाई
का पता चल गया होगा कक किराज और उसकी माॅ पर उसके बाप द्वारा लगाए गए
िो सभी आरोप ि़िी थे इस कलए उसे किराज और उसकी माॅ से सहानु भूकत हुई
होगी और उसने किराज का हक़ कदलाने के कलए उसका साथ दे ने लगी होगी।"

"अगर सच्चाई यही है।" अिधेश ने कहा___"तो इसका मतलब ये हुआ कक हमारा
दु श्मन किराज ही नही ं बल्कि ठाकुर की बे टी भी हुई। इससे एक बात और भी समझ
में आती है जो कक अपनी जगह सटीक ही बै ठती है।"

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"कौन सी बात??" चौधरी के माॅथे पर कशकन उभर आई।
"यही कक।" अिधेश ने कहा___"किधी रे प केस के समय ररतू ने ही किराज को मुम्बई
से यहाॅ बु लाया होगा।"
"ये तु म क्ा कह रहे हो अिधेश?" चौधरी के साथ साथ बाॅकी सबकी भी ऑखें
िैली।

"हाॅ चौधरी साहब।" अिधेश ने कहा___"ररतू का नाम आने से कुछ बातें मुझे समझ
आ रही हैं। जैसा कक ठाकुर की बे टी अपने पै रेंट् स के ल्कखलाि है तो यकीनन िो
किराज का ही साथ दे रही होगी। इस मामले में बहुत गहरी बात भी छु पी है चौधरी
साहब कजसकी हमने कल्पना भी नही ं कर सकते थे ।"

"ये तु म क्ा ऊल जलू ल बकने लगे अिधेश?" चौधरी ने बु रा सा मु ह बनाते हुए


कहा___"साि साि बोलो कक क्ा कहना चाहते हो तु म?"
"इन सारी बातों का केन्द्र कबं दू।" अिधेश ने कहा___"किधी का रे प केस ही है। हम
सब यही समझ रहे थे कक उस रे प केस पर पु कलस का कोई हाथ नही ं है और ये सच
भी था। मगर गौर कीकजए ररतू के ही थाना क्षे त्र में किधी गंभीर हालत में पाई गई थी।
ररतू क्ोंकक थाने दारनी थी इस कलए उसे जब गंभीर हालत में पडी ककसी लडकी की
सू चना कमली होगी तो िो िौरन िहाॅ पहुॅची होगी। गंभीर हालत में पडी उस
लडकी को सिग प्रथम उसने ककसी हाल्किटल में भती कराया होगा। लडकी के होश में
आने पर उसने उससे रे प के बारे में सब कुछ पू छा होगा। ररतू ने लडकी के घर िालों
को भी बु लाया होगा जैसा कक आम तौर होता है। किधी के माॅ बाप आए होंगे और
अपनी बे टी की उस हालत को दे ख कर िो यकीनन दु खी भी हुए होंगे। यहाॅ पर
पु कलस केस करने की भी बात आई होगी। ककन्तु जब किधी ने बताया होगा कक उसके
साथ रे प करने िाले लडके कौन थे तो किधी के माॅ बाप के हाथ पाॅि िूल गए होंगे
और उन्होंने केस करने से मना कर कदया होगा। इधर ररतू ने अपने आला अिरान
को भी किधी रे प केस के बारे में बताया होगा। बात ककमश्नर तक पहुॅची होगी और
ककमश्नर ने भी ररतू को यही कहा होगा कक मामले को ककसी तरह दबा दो। खै र, ररतू
को किधी के द्वारा ही तहकीक़ात में पता चला होगा कक किधी असल में उसके भाई
किराज से प्रे म भी करती थी। ये जान कर कनश्चय ही ररतू ने किराज से सं बंध थथाकपत
कर उसे सब बताया होगा और यहाॅ बु लाया होगा। किराज यहाॅ आया और उसने
अपनी प्रे कमका की िो हालत दे खी तो उसे सहन नही ं हुआ। उसने अपनी मासू क़ा का
बदला ले ने के कलए ऐलान ककया होगा। इसमे उसका साथ दे ने के कलए ररतू भी
सहमत हुई होगी। उसके बाद क्ा हुआ आप सबको पता ही है।"

"तु म्हारे कहने का मतलब है कक ठाकुर की थाने दारनी बे टी के द्वारा ही किराज यहाॅ

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आया और किर उसने बदला ले ने के रूप में ये सब ककया?" चौधरी ने कहा___"और
इतना ही नही ं िो खु द अपने भाई का साथ भी दे रही है?"

"मैं यही कहना चाहता हूॅ चौधरी साहब।" अिधेश ने पु ऱिोर लहजे में कहा___"और
मुझे तो ये भी लगता है कक ये सारा बखे डा ही उस थाने दारनी के द्वारा हुआ है ।"
"पता नही ं तु म क्ा िालतू की बकिास ककए जा रहे हो अिधेश।" चौधरी ने खीझते
हुए कहा___"तु म अपनी कोई बात पर कामय ही नही ं हो। पहले कह रहे थे कक किराज
ने ये सब ककया है और अब कह रहे हो कक ठाकुर की उस बे टी ने ककया है। आकखर
तु म्हारे कदमाग़ में ये बे कसर पै र की बातें कहाॅ से आती हैं?"

"ये मामला ही ऐसा था चौधरी साहब।" अिधे श श्रीिास्ति ने कहा___"कक हम में से


कोई भी इसके बारे में ठीक से समझ नही ं पाया था। मगर जैसे जैसे हालात सामने
आए उस कहसाब से सं भािनाओं की बातें की हमने । खै र, मैं ऐसा इस कलए कह रहा
हूॅ कक इसके पीछे भी एक िजह है। जैसे कक कजस समय किधी के रे प का मामला
सामने आया उस समय तो किराज यहाॅ था ही नही ं बल्कि ररतू ही थी। कजसने पु कलस
के रूप में ही सही मगर किधी के केस को हाॅथ में कलया था। ये अलग बात है कक
हमारे दबदबे और पु कलस ककमश्नर के मना कर दे ने पर उसने कोई केस िाइल नही ं
ककया था। मगर जब उसे पता लगा कक किधी िो लडकी है जो खु द उसके ही चचे रे
भाई से प्रे म करती थी तो उसके प्रकत ररतू की हमददी या सहानु भूकत यकीनन अलग
ही तरह की हो गई होगी। उसके मन में ये तो आया ही होगा कक किधी के साथ हुए
इस कुकमग पर इं साि हो यानी रे प करने िाले लडकों को कानू नन शख्त से शख्त
स़िा कमले । मगर मामला क्ोंकक आपसे ताल्लु क रखता था अतः उस केस पर
कानू नी तौर पर कोई ऐक्शन िो चाहते हुए भी न ले पाई थी। इस कलए सं भि है कक
उसने हमारे बच्चों को स़िा दे ने के कलए कानू न को अपने हाॅथ में ले कलया हो।
कजसके तहत सबसे पहले िो हमारे बच्चों के बारे में अपने मुखकबरों से पता लगिाया
होगा और जब उसे पता चल गया होगा कक रे प करने िाले हमारे बच्चे हमारे
िामग हाउस पर हैं तो िो उन्हें पकडने के कलए िहाॅ जा धमकी होगी। िहाॅ पर उसने
हमारे बच्चों को जबरन ग़ैर कानू नी तरीके से कगरफ्तार ककया होगा तथा िामग हाउस
की तलाशी भी ली होगी। जहाॅ से उसे हमारे ल्कखलाफ़ िो सारे िीकडयोज कमले ।
इसके बाद िो हमारे बच्चों को ले कर ऐसी जगह गई जहाॅ पर कोई भी जा ही नही ं
सकता था।"

"अगर तु म्हारी बातों को सच मानें तो।" चौधरी का कदमाग़ साॅय साॅय करने लगा
था, बोला___"किर िो िीकडयोज और िो िोन भी उसी ने ककया था हमें। मगर उसकी
आिा़ि से ऐसा तो लगता ही नही ं था कक िो ककसी लडकी की आिा़ि है बल्कि िो
आिा़ि ककसी भरभू र मदग की ही लगती थी।"

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"आज के समय में ककसी ककसी मोबाइल िोन पर ऐसे ऑप्शन भी होते हैं चौधरी
साहब।" अिधेश श्रीिास्ति ने कहा___"कजसमें एक ब्यल्कक्त ककसी की भी आिा़ि
बदल कर बात कर सकता है। सं भि है कक उसने ऐसे ही ककसी िोन से मदागना
आिा़ि में आपसे बात की थी। ऐसा इस कलए ताकक आप यही समझें कक सामने िाला
कोई मेल पशग न ही है ना कक िीमेल। इससे होगा ये कक आप इस बारे में सोच ही न
सकेंगे कक कोई लडकी ऐसा कर सकती है। आप अपना हर क़दम ये सोचते हुए ही
उठाएॅगे कक आपका दु श्मन कोई मेल पशग न है।"

कदिाकर चौधरी तु रंत कुछ बोल न सका। उसे कही ं न कही ं अिधेश की बातों में
सच्चाई की बू आ रही थी। कदाकचत यही िजह थी कक िह सोचने पर मजबू र हो गया
था।

"उस कदन जब आपने उससे िोन पर ये कहा कक आप ये जान चु के हैं कक िो कौन


है।" उधर अिधेश मानो िुल िामग में कहे जा रहा था___"तो िो चौंक पडी होगी।
उसे लगा होगा कक आपका सोचना भी अपनी जगह सही है। आकखर ऐसा करने की
िजह किधी के बाप के पास ही तो हो सकती थी। खै र जब उसने जाना कक आप
उसको किधी का बाप समझ रहे हैं तो उसे ये भी लगा होगा कक अब किधी के पै रेंट् स
को आपसे खतरा हो गया है। इस कलए इससे पहले कक आप किधी के पै रेंट् स तक
पहुॅच पाते उससे पहले ही उसने बु ल्किमानी का पररचय दे ते हुए किधी के पै रेंट् स को
आपसे सु रकक्षत कर कदया। िरना सोचने िाली बात है कक इससे पहले तो उसे किधी के
पै रेंट् स को सु रक्षा प्रदान करने का खयाल तक न आया था और अगर उस कदन आप
िै सा उसे न कहते तो आगे भी ये खयाल उसके मन में आने िाला नही ं था। कहने का
मतलब ये कक आपने खु द ही उसे बता कदया और किर उसने बडी खू बसू रती से
आपकी चतु राई को बे िकूिी में बदल कदया।"

"यकीनन तु म्हारी बातों में िजन है अिधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा___"कजतने कम समय में उसने ये सब ककया था उसे किराज तो हकगग ़ि भी नही ं
कर पाता। क्ोंकक मामला प्रे म का था। िो किधी के साथ हुए उस हादसे के सदमें में
ही रह जाता और किर अगर ककसी के समझाने बु झाने पर िो सदमे से बाहर आता
भी तो ये सब करने में उसे कुछ तो समय लगता ही।"

"जी कबलकुल।" अिधेश ने कहा___"यही सारी बातें हैं कजसकी िजह से मुझे ऐसा
लग रहा है कक ये सब ठाकुर की बे टी का ही ककया धरा हो सकता है। दू सरी बात
किराज जब यहाॅ आया तो उसे किधी के साथ हुए उस सदमें से भी ररतू ने ही
कनकाला होगा और किर उसने उसे बताया होगा उसकी प्रे कमका के साथ कजन लोगों

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ने ये सब ककया है उन लोगों को उसने अपने कब्जे में कलया हुआ है। बस उसके बाद
आप खु द सोच लीकजए कक किराज ने क्ा ककया होगा अथिा ये सब करना उसके
कलए ककतना आसान हो गया होगा।"

"अगर ठाकुर की उस थाने दारनी बे टी ने ये सब किधी के कलए हमददी के चलते तथा


कानू न को अपने हाॅथ में ले कर ककया है।" चौधरी ने सोचते हुए कहा___"तो ये भी हो
सकता है कक उसने इस सबके बारे में अपने पु कलस किभाग के ककसी आला अिसर
को भी नही ं बताया होगा।"

"़िाकहर सी बात है।" अिधेश ने कहा___"अगर िो बताती तो उसे ये सब करने का


कोई भी उसका आला अिसर इजा़ित न दे ता और अगर उसके इस कृत्य की
जानकारी ककसी आला अिसर को होती तो ़िरूर िो उसके ल्कखलाफ़ कानू न को
अपने हाॅथ में ले ने के कलए ऐक्शन ले ता।"

"यहाॅ पर मैं भी अपनी बात रखना चाहता हूॅ।" सहसा अशोक मेहरा ने
कहा___"और िो ये कक ऐसा भी तो हो सकता है कक ररतू के इस कृत्य के बारे में
उसके ककसी आला अकधकारी को सब कुछ पता ही हो और िो उसकी सहमकत में ही
ये सब कर रही हो।"

"ये तु म कैसी बे िकूिी की बातें कर रहे हो अशोक?" चौधरी की ऑखें िैली_ं __"ये
बात तु म भी अच्छी तरह जानते हो कक यहाॅ के पु कलस महकमें के ककसी भी आला
ऑकिसर की ऐसी ़िुरगत नही ं हो सकती कक िो हमारे ल्कखलाफ़ ऐसा कोई क़दम
उठाने के कलए अपने ककसी जू कनयर कशपाही को कह सके। उन्हें भी पता है कक ऐसा
करने का अं जाम ककतना भयंकर हो सकता है उनके कलए।"

"भयंकर अं जाम तो तब होगा न चौधरी साहब।" अशोक मे हरा ने कहा___"जब


आपको सबू त के साथ ये ऩिर आए कक पु कलस ने ऐसा कुछ ककया है। जब आपको
कुछ ऐसा ऩिर ही नही ं आएगा तो आप भला क्ा कर लें गे उनका? खै र ये बात तो
पु कलस के आला अिसरान को पता ही है कक िो आपके ल्कखलाफ़ ़िाकहर रूप से कोई
ठोस कायगिाही नही ं कर सकते हैं, इस कलए सं भि है कक उन लोगों ने ये सब गुप्त
रूप से शु रू ककया हो ताकक हमें उनकी ककसी कायगिाही का भान तक न हो सके।
िरना आप खु द सोकचए चौधरी साहब कक पु कलस की एक मामूली सी इं िेक्टरनी में
इतना साहस और जज़्बा कैसे हो जाएगा कक िो आपके ल्कखलाफ़ खु द कोई ऐक्शन ले
सके? ये तो उसे भी पता होगा न कक पोल खु ल जाने पर आप उसका क्ा हस्र कर
सकते हैं? इस कलए ये िष्ट हैं चौधरी साहब कक बग़ैर ककसी आला ऑिीसर की सह
के िो थाने दारनी ऐसा करने का सोच भी नही ं सकती है।"

865
"तु म्हारी बात भी सही है।" चौधरी के कदमाग़ की बकियाॅ जैसे एकाएक ही रौशन हो
उठी थी ं, बोला___"दू सरी बात ये कक सारा प्रदे श और पु कलस महकमा इस बात को
जानता है कक हम जनता के साथ ककतना बडा अत्याचार करते हैं। यही नही ं बल्कि
ऐसा िो हर काम भी करते हैं कजसे ग़ैर कानू नी क़रार कदया जाता है। पु कलस महकमा
इसके कलए हमारे ल्कखलाफ़ कोई कायगिाही इस कलए नही ं कर पाता क्ोंकक एक तो
उसके पास हमारे ल्कखलाफ़ कोई सबू त नही ं होता दू सरे हमारा दबदबा और पहुॅच के
असर से भी िो खामोश रह जाते हैं।"

"कनःसं देह।" अिधेश कह उठा___"आपकी बात कबलकुल सच है चौधरी साहब। इस


कलए अब पु कलस प्रशासन के पास यही एक चारा है कक िो गु प्त रूप से हमारे
ल्कखलाफ़ ककसी कायगिाही को अं जाम दें ।"

"इसका मतलब ये हुआ।" अशोक ने कहा___"कक ररतू और किराज के साथ साथ अब


हमें पु कलस का भी खतरा है। इन दोनो भाई बहन से तो हम कनपट भी लें गे मगर
पु कलस प्रशासन से कैसे कनपटें गे? मामला अगर केन्द्र तक गया होगा तो हमारे कलए
बडी मुल्किल हो जाएगी चौधरी साहब।"

"नही ं अशोक।" चौधरी ने ठोस लहजे में कहा___"ये मामला इतना भी सं गीन नही ं है
कक इसकी गूॅज केन्द्र तक पहुॅच जाए। तु म कुछ ज्यादा ही ऊपर की सोच रहे हो।"
"किर भी चौधरी साहब।" सहसा इस बीच अिधेश बोल पडा___"हमें इस बारें में भी
सोचना तो चाकहए ही। क्ा पता हमारा कोई ऐसा दु श्मन हो कजसने इसके कलए केन्द्र
सरकार के काॅन खडे कर कदये हों।"

"अगर ऐसा होता भी।" चौधरी ने कहा___"तो केन्द्र सरकार अपनी तरि से हमारे
ल्कखलाफ़ जाॅच पडताल के कलए ककसी सीबीआई जैसे लोगों को कनयुक्त करती। िो
यहाॅ आते और हमसे पू ॅछताछ करते । मगर ऐसा तो कही ं दू र दू र तक समझ में ही
नही ं आ रहा कक ऐसा कुछ है। ़िाकहर है कक ये मामला यही ं तक सीकमत है। अतः हम
यहाॅ के पु कलस महकमें के आला ऑकिससग की क्लास अब ़िरूर लें गे।"

"िै से कडटे ल्कक्टि के रूप में हमने हरीश रार्े को इस मामले में लगा तो कदया ही है।"
अिधेश ने कहा___"सारी सच्चाई का पता अब िही लगाएगा। दे खते हैं िो इस सबकी
क्ा ररपोटग दे ता है हमें?"

अिधेश की बात पर चौधरी कसिग कसर कहलाकर रह गया। कुछ दे र ऐसी ही कुछ और
बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम के कसलकसले में िहाॅ से कनकल कलए।

866
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर हिे ली में।
सबने एक साथ ही बै ठ कर ब्रे किास्ट ककया था। उसके बाद प्रकतमा के कपता
जगमोहन कसं ह सबसे किदा ले कर हिे ली से कनकल कलए थे । उनको गुनगुन तक
छोंडने के कलए खु द अजय कसं ह अपनी कार से गया था। प्रकतमा को अपने कपता के
चले जाने से कािी दु ख हुआ था। िषों बाद उसे अपने कपता इस रूप में कमले थे ।
उसका कदल कर रहा था कक िो भी अपने कपता के साथ ही चली जाए। जगमोहन कसं ह
ने चलने के कलए कहा भी था मगर ़िरूरी कामों का हिाला दे कर अजय कसं ह ने यही
कहा कक हम सब किर कभी ़िरूर आएॅगे। अजय कसं ह जानता था कक हालात अभी
ऐसे नही ं हैं कक उसके बीिी बच्चे कही ं आ जा सकें।

इस िक्त डर ाइं ग रूम में प्रकतमा और कशिा ही थे । जो आमने सामने सोिों पर बै ठे हुए
थे । प्रकतमा जहाॅ अपने कपता के बारे में सोच सोच कर दु खी हो रही थी िही ं कशिा
नीलम ि सोनम के बारे में सोच सोच कर खयाली पु लाि बना रहा था। उसके चे हरे
पर गकदग श कर रहे भािों में प्रकतपल बदलाि आता ऩिर रहा था। सोनम उसे पहली
ऩिर में ही बे हद पसं द आ गई थी और उसने इस बात का क़िक्र अपनी माॅ प्रकतमा
से भी ककया था। उसने प्रकतमा से कहा था कक उसे सोनम बहुत अच्छी लगती है।
काश उससे उसकी शादी हो जाए। मगर प्रकतमा ने इस बात के कलए कशिा को शख्ती
से समझा कदया था कक ऐसा कभी नही ं हो सकता। िो उसकी बडी बहन है और बहन
से भाई की शादी कभी नही ं हो सकती है। प्रकतमा की ये बात सु न कर कशिा का कदल
बु री तरह से टू ट गया था।

गाॅि की हर लडकी या औरत को कसिग भोगने की ची़ि समझने िाला कशिा


आजकल सोनम के प्यार में दे िदास सा ऩिर आने लगा था। उसे समझ में नही ं आ
रहा था कक ये अचानक उसे क्ा हो गया है? सोनम के प्रकत उसके कदल में मीठा मीठा
सा ददग क्ों होने लगा है? हर लडकी की भाॅकत िो उसे भी हाॅकसल करके भोगने
की बात क्ों नही ं सोच रहा? कपछली सारी रात िो इन्ही ं सब बातों की िजह से सो
नही ं पाया था। उसे सोनम से खु ल कर बात करने में अब कझझक होने लगी थी।
हलाॅकक िो उसकी मौसी की लडकी थी और उसकी बडी बहन लगती थी। मगर
पहली ऩिर में उसे दे खने के बाद ही उसके प्रकत उसकी सोच और उसके अं दर का
हाल बडा अजीब सा गया था। ब्रे किास्ट करते िक्त भी िह सबकी ऩिरें बचा कर
सोनम को चोरी से दे ख ही ले ता था। यद्दकप सोनम उससे खु ल कर बातें कर रही थी,
ककन्तु एक भाई बहन के ररश्े से । सोनम की बातों का िो हाॅ या नही ं में थोडा बहुत
जिाब दे दे ता था। उसके इस कबहैकियर से अजय कसं ह भी अं दर ही अं दर चौंक पडा
था। अनु भिी अजय कसं ह को समझते दे र न लगी कक उसका अय्याश बे टा सोनम के
हुश्नो शबाब को दे ख कर चारो खाने कचि हो चु का है। हलाॅकक सोनम और नीलम

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को दे ख कर उसका खु द का हाल भी कशिा से जुदा न था मगर उसके अं दर उनके
प्रकत प्रे मी िाला प्यार का अं कुर न िूटा था।

नाना और अजय कसं ह के जाने के कुछ दे र बाद ही नीलम ि सोनम ऊपर अपने कमरे
में चली गई थी। जबकक प्रकतमा ि कशिा डर ाइं गरूम में ही बै ठे रहे थे । इस डर ाइं ग रूम
में छाई गहन खामोशी से सहसा प्रकतमा की तं द्रा टू टी। उसने अपने बे टे कशिा की
तरि दे खा तो उसे गहन सोचों में गु म हुआ पाया। ये दे ख कर िह हौले से चौंकी।

"कहाॅ गुम है मेरा बे टा?" किर प्रकतमा ने ़िरा खु द को सम्हालते हुए कहा___"क्ा
अभी तक भू त नही ं उतरा?"
"अ..आपने कुछ कहा क्ा?" कशिा ने सहसा चौंकते हुए कहा।
"हाॅ पू छ रही हूॅ कक क्ा अभी भी भू त नही ं उतरा है कदलो कदमाग़ से ?" प्रकतमा
कहने के साथ ही मु स्कुराई थी।

"भ..भू त???" कशिा चकरा सा गया___"कौन सा भू त माॅम?"


"प्यार िाला भू त।" प्रकतमा ने कहा___"बे टा ये प्यार िाला भू त बहुत ही खतरनाॅक
होता है। कजसके कसर चढता है न किर कभी उतरता ही नही ं है।"

"ये आप क्ा कह रही हैं माॅम?" कशिा ने झेंपते हुए कहा।


"हाय रे ।" प्रकतमा मु स्कुराई___"दे खो तो कैसे शरमा रहा है आज मेरा बे टा। बे टा ये
इश्क़ न बहुत बु री बला है। ये इश्क़ कम्बख्त उसी से होता है जो हमें कभी नसीब ही
नही ं हो सकता।"

"ये तो ग़लत बात है माॅम।" कशिा ने कहा___"आपने भी तो डै ड से इश्क़ ही ककया


था और किर िो आपको नसीब भी तो हो गए।"
"हाॅ मगर ते रे डै ड और मैं आपस में भाई बहन तो नही ं थे न।" प्रकतमा ने
कहा___"उन ररश्ों में अगर इश्क़ हो तो कुछ भी करके हम एक हो सकते हैं मगर
इस ररश्े में ऐसा नही ं होता। क्ोंकक इस ररश्े िाले इश्क़ को ये समाज ये दु कनयाॅ
कभी स्वीकार नही ं करती बल्कि इन ररश्ों के बीच हो गए इश्क़ को पाप का नाम
दे ती है ये दु कनया। इससे पररिार की मान मयाग दा और इज्ज़ित का हनन हो जाता है।"

"मैं ये सब समझता हूॅ माॅम।" कशिा ने कहा___"मु झे पता है कक भाई बहन के बीच
ये ररश्ा ग़लत है। मगर ये उनके कलए ग़लत होता है न माॅम जो पाक़ साि होते हैं।
हम तो ऐसे हैं जो इन्ही ं ररश्ों को भोगने की खू बसू रत इच्छा रखते ही नही ं हैं बल्कि
भोगते भी हैं।"

"हाॅ ले ककन ये बात दे श समाज को पता तो नही ं है न।" प्रकतमा ने कहा___"ये सब तो

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घर के अं दर होता है और कबना ककसी की जानकारी के होता है। इस कलए जब तक
इन ररश्ों के बीच की सच्चाई दु कनया से छु पी है तब तक हम भी पाक़ साि ही हैं
बे टा।"

"कुछ भी ककहये माॅम।" कशिा ने जैसे दृढता से कहा___"मैं सोनम को हद से ज्यादा


पसं द करने लगा हूॅ। मेरे कदल में उसके प्रकत प्रे म का अं कुर िूट चु का है। कल सारी
रात मैं इस बारे में सोचता रहा और किर इस नतीजे पर पहुॅचा हूॅ कक मैं अगर
ककसी लडकी से शादी करूॅगा तो िो सोनम से ही करूॅगा। हाॅ माॅम, पता नही ं
क्ों पर मु झे अब ऐसा लगने लगा है कक अगर सोनम मेरी जाने हयात न बनी तो मैं
एक भी पल जी न सकूॅगा।"

प्रकतमा अपने बे टे की इस बात से आश्चयगचककत रह गई। अभी तक तो उसे यही लग


रहा था कक कशिा ये सब उससे सोनम को भोगने के उद्दे श्य से ही कह रहा था मगर
इस िक्त उसके चे हरे के भाि चीख चीख कर उसे बता रहे थे कक िो सोनम के कलए
ककतना सीररयस हो चु का है। प्रकतमा का कदलो कदमाग़ सु न्न सा पड गया। उसे समझ
न आया कक इस किषम पररल्कथथकत में िो अपने बे टे को आकखर कैसे समझाए? िो
समझ सकती थी कक प्यार मोहब्बत कैसी ची़ि होती है और किर इं सान की क्ा
हालत हो जाती है।

"दे खो बे टा।" किर प्रकतमा ने बहुत ही सीररयस भाि से ककन्तु समझाते हुए
कहा___"ये सब ठीक नही ं है। सोनम के प्रकत ऐसी िीकलं ग्स रखना अच्छी बात नही ं
है। हो सकता है कक तु म्हारा सोनम के प्रकत ये कसिग एक आकषग र् हो, कजसे तु म प्यार
समझ रहे हो। खै र, मैं ये कह रही हूॅ कक ये अभी पहली स्टे ज है। अभी तु म इस
सबके कलए खु द को समझा भी सकते हो और खु द को इसके प्रभाि से बचा भी
सकते हो। इस कलए बे हतर होगा कक तु म इस पर किचार करके अमल करो। दू सरी
बात, सोनम तु म्हारी बडी बहन है। उसके मन में तु म्हारे प्रकत ऐसा कुछ भी नही ं होगा
मुझे अच्छी तरह पता है । ककन्तु अगर उसे पता चल गया कक तु म उसके बारे में ऐसा
सोचते हो तो िो तु म्हारे कदल का हाल नही ं समझेगी बल्कि तु म्हें ग़लत ने चर का मानते
हुए तु मसे नफ़रत करने लगेगी।"

"ऐसा नही ं होगा माॅम।" कशिा की आिा़ि सहसा भराग सी गई, बोला___"मैं उसे खु द
समझाऊगा कक मैं उससे ककतना प्यार करने लगा हूॅ। उसे बताऊगा कक मेरे कदल में
उसके कलए कसिग और कसिग प्यार है और हाॅ ये भी कहूॅगा माॅम कक अगर उसे
लगता है कक मेरे प्यार में कोई खोट या गंदगी है तो उसे मु झे ठु करा दे ने का और
मुझसे नफ़रत करने का पू रा हक़ है। मैं सारी क़िंदगी उसके खू बसू रत चे हरे को
अपनी ऑखों में बसा कर तथा उसकी यादों के सहारे जी लू ॅगा। उसके अलािा मेरी

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क़िंदगी में दू सरी कोई लडकी कभी नही ं आएगी।"

प्रकतमा को ़िबरदस्त झटका लगा। ऐसा लगा जैसे सारा आसमान एकाएक ही
भरभरा कर उसके कसर पर कगर पडा हो। उसे अपने काॅनों पर यकीन नही ं हो रहा
था कक उसने कशिा के मुख से जो सु ना िो सच है या ग़लत। ककतनी ही दे र तक िो
ककंकतग ब्यकिमूढ सी ल्कथथकत में बै ठी उसे अपलक दे खती रही।

"मैं जानता हूॅ माॅम कक आपको आज मेरी इन सब बातों पर बे हद आश्चयग हो रहा


होगा।" कशिा गंभीरता से कह रहा था___"बात भी सच है। ककसी कौए से ये उम्मीद
नही ं की जा सकती कक िो कोयल की तरह मीठा भी बोल सकता है। मगर सु ना है कक
जहाॅ ककसी ची़ि की उम्मीद नही ं होती िही ं पर एक नया चमत्कार हुआ करता है।
कदाकचत मेरे साथ भी ऐसा ही हो गया है। कल सारी रात सोचता रहा मैं कक मैं क्ों
सोनम की तरि इस हद तक अटर ै क्ट होता जा रहा हूॅ? मेरे कदल में क्ों उसके कलए
प्यार जाग रहा है? सिाल तो मुझे नही ं कमला मगर इतना एहसास ़िरूर हुआ कक
सोनम के कबना मेरी क़िंदगी का कोई मतलब नही ं रह जाएगा। आज आपकी बातों ने
मुझे अं दर से कहला तो कदया है माॅम मगर मेरे दृढ कनश्चय में और भी ज्यादा इ़िािा
भी हो गया है।"

प्रकतमा को झटके पर झटके लग रहे थे । उसका कदलो कदमाग़ जाम सा हो चु का था।


सु ना तो था उसने भी कक प्रे म का रोग जब लगता है तो पत्थर से पत्थर कदल इं सान को
भी कपघला दे ता है और उसका असर ये होता है कक इश्क़ के नशे में डूबा हुआ इं सान
किर बहुत ही खू बसू रत खयालों का बन जाता है। उसके मुख से कडिी बातें नही ं
कनकला करती। इश्क़ हो जाने के बाद इं सान की सोच और उसके खयालात बदल
जाते हैं। िो अपने कप्रयतम की ही खु कशयों के बारें में सोचता रहता है। हर पल यही
सोचता है कक कभी ऐसा कोई पल न आने पाए कजसके तहत उसके कप्रयतम को ़िरा
सी भी तक़लीि हो जाए। ककसी के खू बसू रत चे हरे को अपनी पलकों तले बसा कर
तथा उसकी याद के सहारे सारी ऊम्र काट ले ने िाले डायलाॅग आज कशिा के मुख
से खारऱि हो रहे थे । कजसने ककसी से इश्क़ ककया होगा उसे ये बात ़िरूर समझ में
आई होगी कक कशिा के ये डायलाॅग ककस हद तक सच थे ।

अभी प्रकतमा कशिा की इन सब बातों से बु त बनी बै ठी ही थी कक सहसा तभी


डर ाइं गरूम में नीलम ि सोनम एक साथ आकर खडी हो गईं। प्रकतमा की ऩिर जैसे
ही उन दोनो पर पडी तो उसने जल्दी से अपने चे हरे के भािों को छु पा कलया और
किर एकाएक ही उसकी ऩिर कशिा पर पडी तो मन ही मन चौंक पडी। कशिा की
ऩिर सोनम पर ल्कथथर थी। एकाएक ही उसकी ऑखों में सोनम के प्रकत बे पनाह
मोहब्बत का सागर भीषर् कहलोरें ले ता हुआ ऩिर आया उसे । कहते हैं कक ऑखें सब

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कुछ बयां कर दे ती हैं। प्रकतमा को कशिा की ऑखों ने बता कदया कक िो सोनम के प्रकत
अपने िजूद के हर ़िरे पर कसिग और कसिग मोहब्बत छलकाए बै ठी हैं।

"माॅम मैं और सोनम दीदी।" उधर डर ाइं गरूम में आते ही नीलम ने खु शी िाले लहजे
में कहा___"घूमने जा रहे हैं। दीदी कह रही हैं कक उन्हें हमारा ये गाॅि दे खना है औ
हमारे खे त भी दे खना है।"

"ओह चल ठीक है।" प्रकतमा ने सहसा नीलम की तरह ध्यान से दे खते हुए
कहा___"पर तु म दोनो अकेले कैसे जाओगी?"
"इनके साथ मैं चला जाता हूॅ माॅम।" कशिा भला ये सु नहरा अिसर अपने हाॅथ से
कैसे जाने दे ता, अतः तपाक से बोल पडा था____"मैं इन्हें बहुत अच्छे से अपना ये
गाॅि और अपने सारे खे त कदखा दू ॅगा।"

"कोई ़िरूरत नही ं तु झे हमारे साथ जाने की।" नीलम ने सहसा तु नक कमजा़िी से
कहा___"हम दोनो खु द ही दे ख लें गे। क्ों दीदी?"
"बात तो ते री सही है।" सोनम ने कहा___"ले ककन कशिा को भी साथ ले लें गे तो कोई
कदक्कत थोडी न है। आकखर भाई है िो हमारा। हमारे साथ रहे गा तो हमें भी
कंिटे बल िील होगा। है न मौसी?"

"कबलकुल ठीक कहा तु मने बे टा।" प्रकतमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"ले ककन अगर ये
जाएगा तो नीलम और ये दोनो आपस में झगडा ही करें गे। इस कलए एक काम करो
बाहर खडे हमारे सु रक्षा करने िाले आदकमयों में से एक दो को साथ ले जाओ। िो
क्ा है न ़िमाना बहुत खराब है। कोई ऊच नीच हो गई तो समस्या हो जाएगी। इस
कलए तु म दोनो के साथ में दो सु रक्षा करने िाले आदमी रहें गे तो मैं भी बे किक्र
रहूॅगी।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा माॅम।" नीलम ने कशिा को कचढाने के कलए अपनी जीभ कदखाते
हुए कहा___"इस लं गूर से तो िो ही अच्छे रहेंगे। हमें भी लगेगा कक उनके रहते हम
पर कोई ऑच नही ं आएगी। इसके रहते तो कोई भी हमें छें ड सकता है और ये बे चारा
मार के डर से कुछ बोल भी नही ं पाएगा।"

"ओये क्ों मेरे भाई को ऐसा बोल रही है तू ?" सोनम ने ऑखें कदखाते हुए
कहा___"अच्छा भला स्माटग तो है हमारा भाई। ते री ऑखें खराब हैं जो तु झे िो लं गूर
ऩिर आता है।"

"आपने सही कहा दीदी।" कशिा ने आिे श में सोनम को दीदी कह तो कदया मगर
अगले ही पल उसकी आिा़ि काॅप गई। मन ही मन उसे अपनी बे बसी पर बे हद

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क्रोध आया मगर किर खु द को सम्हाल कर बोला___"जो खु द ही बं दररया जैसी हों
उन्हें सामने िाला लं गूर ही कदखे गा न।"

"ओये तमी़ि से बात कर समझा।" नीलम ने घुडकी सी दी उसे ___"भू ल मत कक


मुझसे छोटा है तू और किर अगर मैने तु झे लं गूर कह भी कदया तो क्ा हो गया? मैने
तो तु झे प्यार से लं गूर कहा है।"

"िाह दीदी िाह।" कशिा कह उठा___"प्यार से कहने के कलए लं गूर शब्द ही कमला था
आपको? दे ख लीकजए माॅम, मैं छोटा हूॅ तो सब मुझसे अपने बडे होने का रौब
झाडते हैं।"

कशिा ने इतनी मासू कमयत से ये कहा था कक सोनम के होठों पर मु स्कान उभर आई।
िो तु रंत ही कशिा के बगल पर जाकर बै ठी और किर उसे अपने साइड से छु पका कर
बोली____"जाने दे न भाई। ये कछपकली तो है ही कदमाग़ से पै दल ले ककन मैने तो तु झे
ऐसा िै सा कुछ नही ं कहा न? मुझे पता है तू हमारा सबसे स्वीटे स्ट भाई है। चल अब
नारा़िगी छोंड और मु स्कुरा कर कदखा। उसके बाद हमें घूमने भी जाना है।"

सोनम की बातों का असर पलक झपकते ही कशिा पर न हो ऐसा तो अब हो ही नही ं


सकता था। िै से भी अब तो अगर िो उसे ़िहर खाने को भी बोलती तो िो खु शी से
खा ले ता। खै र सोनम के कहने पर उसके इस तरह उसे छु पका ले ने पर कशिा का
चे हरा ता़िे ल्कखले गुलाब की माकनं द ल्कखल उठा था। इस िक्त िो इतना खु श हो गया
था कक अब अगर उसे मौत भी आ जाती तो िो उसके कलए भगिान से कशकिा न
करता।

उधर प्रकतमा चु प बै ठी इन तीनो की बातें सु न रही थी और नीलम ि सोनम दोनो के


ही चे हरों को बडे ध्यान से दे खे जा रही थी। जै से समझना चाहती हो कक दोनो के मन
में घू मने जाने के कसिा कुछ और तो नही ं है। कशिा को िो इन दोनो के साथ जान बू झ
कर नही ं भे ज रही थी। क्ोंकक उसे पता था कक कशिा इस िक्त सोनम के प्यार में
पागल है। सोनम ने अगर उसे ककसी बात के कलए कही ं भे ज कदया तो िो कबना कुछ
सोचे समझे चला जाएगा और ये दोनो उसके चले जाने पर कुछ भी करने के कलए
आ़िाद हो जाएॅगी। प्रकतमा इस बात के कलए मना भी नही ं कर सकती थी कक िो
दोनो घूमने न जाएॅ। इसी कलए कशिा की जगह िो उन्हें सु रक्षा गाड्ग स को साथ में
जाने का कह रही थी।

"तो कब जाना है तु म दोनो को?" किर प्रकतमा ने पू छा।


"कब जाना है क्ा मतलब है माॅम?" नीलम ने कहा___"हम दोनो तो तै यार होकर

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आ ही गए हैं और जा ही रहे थे ।"
"चलो ठीक है।" प्रकतमा ने कहने के साथ ही कशिा की तरि दे खा___"बे टा जाओ तु म
गेस्ट हाउस से दो आदकमयों को बोल दो। िो इन दोनो के साथ चले जाएॅगे।"

प्रकतमा के मन में अचानक ही गे स्ट हाउस में ठहरे उन आदकमयों का खयाल आया
था। कजन्हें अजय कसं ह के कबजने स सं बंधी दोस्त मदद के कलए भे ज गए थे । नीलम ि
सोनम के साथ उनमे से ही ककन्ही ं दो आदकमयों को भे जना उकचत लगा था उसे । िो
हर तरह से इन दोनो की सु रक्षा कर सकते थे । उसे अपने आदकमयों की काबीकलयत
पर अब कोई भरोसा नही ं रह गया था। खै र प्रकतमा के कहने पर कशिा सोिे से उठा
और बाहर की तरि चला गया।

"तो तु म दोनो कैसे जाओगी यहाॅ से ?" प्रकतमा ने कशिा के जाते ही पू छा___"मेरा
मतलब है कक घूमने के कलए ककसी कार या जीप से जाओगी या ऐसे ही पै दल जाना
है?"
"इतना ज्यादा पै दल कौन चल पाएगा माॅम?" नीलम ने कहा___"पहले सारा गाॅि
घूमना किर खे तों की तरि जाना। नही ं माॅम, इतना ज्यादा पै दल चलना मेरे बस का
तो हकगग़ि भी नही ं है।"

"हाॅ मु झे पता था यही कहोगी तु म।" प्रकतमा ने मन ही मन खु श होते हुए


कहा___"खै र, बाहर जीप खडी है । उसमे ही बै ठ कर चले जाना और हाॅ उन
आदकमयों के साथ ही रहना।"
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा___"िै से आज लं च में क्ा बने गा? िो क्ा है न मु झे
आज आपके हाॅथ का बना बै गन का हलिा खाना है।"

"क..क्ा कहा????" सोनम उसकी बात सु न कर बु री तरह चौंकी थी। जबकक प्रकतमा
कहने के साथ ही इधर उधर दे खने लगी थी।
"भागो दीदी भागो।" नीलम सोनम का हाॅथ पकड कर खी ंचते हुए बोली___"िरना
माॅम मेरे साथ साथ आपकी भी कपटाई करने लगेंगी डं डे से ।"

सोनम को कुछ भी समझ में न आया कक ये अचानक हुआ है क्ा है? बै गन का हलिा
और किर नीलम का ये कहना कक भागो िरना माॅम डं डे से कपटाई करने लगें गी।
सोनम को कुछ समझ न आया। ये अलग बात है कक नीलम के खी ंचने पर िह सोिे
से उठ कर बाहर की तरि ही लडखडाते हुए भाग ली थी। जबकक इधर प्रकतमा उन
दोनो के जाते ही मु स्कुरा कर रह गई थी।

नीलम ि सोनम जैसे ही बाहर आईं तो दे खा कक कशिा के साथ दो हट्टे कट्टे आदमी

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जीप के पास ही खडे थे । कशिा उन्हें कुछ बता रहा था। ये दे ख कर नीलम ि सोनम
उस तरि बढ चली ं। जीप के पास पहुॅचते ही िो दोनो कशिा के पास ही खडी हो
गईं।

"दीदी ये दोनो आप लोगों के साथ जाएॅगे।" कशिा ने नीलम की तरि दे खते हुए
कहा___"बाॅकी माॅम ने तो आपको सब कुछ समझा ही कदया होगा।"
"हाॅ समझा कदया है।" नीलम ने कहा___"और हाॅ इनको बोल दे कक हमारा हर
कहना भी मानें गे।"

"अरे दीदी ये सब कहने की ़िरूरत नही ं है।" कशिा ने कहा___"ये दोनो बहुत अच्छे
और समझदार ब्यल्कक्त हैं। आपको पता नही ं है ये दोनो ही तगडे िाइटर हैं। इनके
रहते आप दोनो को कोई छू भी नही ं सकता।"
"ओह आई सी।" नीलम ने कहा___"किर तो अच्छी बात है। चकलये दीदी जीप में
बै ठते हैं।"

थोडी ही दे र में नीलम ि सोनम जीप में बै ठ गईं। एक आदमी जीप की डर ाइकिं ग शीट
पर बै ठ गया जबकक दू सरा उसके बगल में। जीप की कपछली शीट पर नीलम ि
सोनम बै ठ गई थी। जीप जैसे ही चलने लगी तो कशिा ने सोनम की तरि प्यार भरी
ऩिरों से दे खते हुए बस इतना ही कहा घूम किर कर जल्दी आइयेगा। उसकी इस
बात पर नीलम ि सोनम दोनो ही मुस्कुरा उठी ं। ककन्तु इस बार उनकी इस मु स्कान
में ऐसा भे द कछपा था कजसे कशिा जैसा कूढमगज लडका ककसी भी तरह से नही ं
समझ सकता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मुम्बई में।
सबके आ जाने से पू रे बगले में एक अलग ही रौनक तथा चहल पहल सी हो गई थी।
ककन्तु ल्कखले ल्कखले चे हरों पर भी एक उदासी थी जो इस बात का सबू त थी कक किराज
के यहाॅ न होने से सब ककतने उदास थे । सबको पता था कक किराज ककस काम के
कलए इस बार गाॅि गया हुआ था। सबके साथ तो गौरी घुली कमली रहती ककन्तु
अकेले में अपने बे टे के कलए बहुत दु खी हो जाती थी। उसे इस बात की तक़लीि भी
थी कक किराज जब से गया था तब से एक कदन भी िोन नही ं लगाया था और ना ही
जगदीश ओबराय की िजह से उसने अपने बे टे को िोन लगाया था।

जगदीश ओबराय ने गौरी से कहा था कक िो िोन करके किराज को कम़िोर न


बनाए। माॅ बे टे के बीच का ररश्ा भािनाओं के बहुत ही ना़िुक बं धन से जु डा होता
है कजससे दोनो ही ऐसे हालातों में कम़िोर पड जाते हैं। ककन्तु जगदीश ओबराय ने ये
भी कहा था िो ईश्वर से अपने बे टे की सलामती की दु िा करे । ये उसकी जंग है उसे

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स्वतं त्रता पू िगक इस जंग को इसके अं जाम तक पहुॅचाने दो। सब अपनी अपनी जगह
किराज के कलए कचं कतत थे तथा परे शान थे मगर सबके कदलों में उसके कलए प्यार था।
सबके होठों पर उसकी सलामती के कलए दु िाएॅ थी।

गौरी, करुर्ा तथा पिन की माॅ। पिन की माॅ का नाम रुक्मर्ी था। ये तीनो ही
आपस में खू ब सारी बातें करती रहती थी। ककन्तु अकेले में तीनों ही किराज के कलए
कचं कतत हो जाती थी। एक दू सरे को अपनी कचं ता ि परे शानी नही ं कदखाती थी। क्ोंकक
कोई नही ं चाहता था कक सबके बीच एक तनाि या दु ख भरा माहौल कक्रयेट हो जाए।
जगदीश ओबराय ि अभय कसं ह खु द भी अपनी जगह किराज के कलए कचं कतत थे मगर
सबको तसल्ली दे ते रहते थे और यही कहते कक सच्चाई की हमेशा किजय होती है।
इस कलए इसके कलए इतना कचं कतत ि परे शान न हों कोई।

पिन को जगदीश ओबराय ने अपनी कंपनी में ही एक अच्छी पोस्ट पर काम में लगा
कदया था। अतः पिन अब ज्यादातर कंपनी में ही रहता था। ककन्तु हर िक्त उसका
मन अपने दोस्त के कलए अशान्त रहता था। उसे किराज से कशकायत भी थी कक िो
उसे यहाॅ सु रकक्षत छोंड कर खु द मौत के मु ह में चला गया था।

पिन की बहन आशा ज्यादातर कनधी के साथ ही रहती थी। कनधी सु बह स्कूल जाती
और किर शाम को िापस आ जाती थी। हर समय अपनी शरारतों से सबको परे शान
करने िाली ये गुकडया अचानक से इस तरह खामोश हो गई थी जैसे ये शकदयों से ऐसी
ही रही थी। उसकी इस खामोशी को सब यही समझते कक िो अपने प्यारे से बडे
भइया के कलए सबकी तरह ही दु खी है। कोई ये नही ं जानता था कक उसने अपनी
छोटी सी इस ऊम्र अपने ही भइया से प्रे म का ककतना बडा रोग लगा कलया था।
कजसके चलते उसका हर समय शरारतें करना जाने कहाॅ गुम होकर रह गया था।

आशा को पता था कक कनधी शु रू से ही ऐसी नही ं थी। शु रू शु रू में उसकी इस


खामोशी को िो खु द भी यही समझती थी कक िो सबकी तरह किराज के कलए दु खी
है। इस कलए अब िो शरारतें नही ं करती है। मगर जल्द ही उसे इस कारर् के अलािा
भी दू सरा कारर् समझ में आ गया था। दरअसल कनधी भी अब अपने भाई की तरह
डायरी कलखने लगी थी। कजसमें िो अपने और अपने कप्रयतम भाई के बीच जन्में इस
प्रे म के हर पहलु ओ ं के बारें में कलखती थी। अपने कदल के जज़्बातों को िो डायरी के
काग़िों पर कलखती थी। उसे पता था कक डायरी में उसके द्वारा कलखा गया हर लफ़्ि
ककसी डायनामाइट से कम नही ं है। कहने का मतलब ये कक अगर ककसी को ये पता
चल जाए कक सबके कदलों में राज करने िाली उनकी ये नटखट गुकडया अपने ही सगे
भाई से प्रे म करती है तो यकीनन इस बात से डायनामाइट की तरह किस्फोट हो
जाना था।

875
डायरी में अपने कदल का हाल बयां करने के बाद कनधी उस डायरी को अपने कमरे में
ही रखी आलमारी के अं दर िाले लाॅकर में रख कर लाॅक लगा दे ती थी। मगर एक
कदन कदाकचत उसका भे द खु ल जाना था इस कलए उससे ग़लती हो गई। दरअसल
कपछले कदन सु हब सु बह की ही बात है। आशा चाय ले कर कनधी के कमरे में पहुॅच
गई। उसने दे खा कक बे ड पर कचि अिथथा में ले टी कनधी के सीने पर एक मोटी सी
डायरी थी कजसे िो दोनो हाॅथों से पकडे सोई हुई थी। आशा जो कक कनधी के साथ
ही रहती थी। कपछली रात उसे आधी रात के क़रीब शू शू लगी तो उसकी नी ंद खु ल
गई। उसने दे खा कक रात के उस िक्त टे बल लै म्प जला कर कनधी कुछ कलख रही थी।
उस िक्त उसने सोचा था कक िो अपनी पढाई ही कर रही है। बाथरूम से आने के
बाद उसने कहा भी था उससे कक अब उसे सो जाना चाकहए।

आशा ने प्लेट सकहत चाय के कप को बे ड के पास ही दीिार से सटे एक छोटे से टे बल


पर रखा और किर िो कनधी के पास गई। उसकी ऩिर डायरी पर पडी। आशा ने
ग्रेजुएशन तो नही ं ककया था ककन्तु दस बारह तक पढी कलखी थी िो। हल्दीपु र गाॅि
में बारिी ं तक स्कूल था। आगे काॅले ज की पढाई पढने के कलए कचमनी जाना पडता
था, जो कक पास के ही गाॅि में था। खै र, डायरी दे ख कर उसे ये तो समझ आ गया
कक ऐसी डायरी कनधी की पढाई में तो उपयोग होती नही ं होगी तो किर ऐसा क्ा है
इसमें कजसे िो सोते समय भी कलए हुए है।

आशा ने बहुत ही आकहस्ता से कनधी के हाॅथों से उस डायरी को कनकाला और किर


बे ड से दो कदम पीछे हट कर उसने डायरी को खोला। डायरी के शु रू के कािी पे ज
अलग अलग ची़िों से भरे थे । जैसे कक हर दे श के कोड् स िगैरा। अपने दे श भारत के
अलग अलग राज्यों के मानकचत्र। उसके बाद मुख्य पे ज शु रू होते थे ।

मुख्य पे ज पर ही मोटे मोटे अच्छरों में आशा को कलखा ऩिर आया____"कजयें तो कजयें
कैसे ....कबन आपके??" इस टाइटल के नीचे ही एक मध्यम साइ़ि के दो कदल बने हुए
थे , जो कक साथ में ही कमले हुए थे । कजसमे एक तरि िाले में राज और दू सरे िाले में
कनधी कलखा था। उसके नीचे मोटे अच्छरों में ही कलखा था____"MY LOVE"

आशा को ये सब दे ख कर ़िबरदस्त झटका लगा। इतना कुछ दे ख कर कोई भी


समझ सकता था कक मा़िरा क्ा है? आशा ये जान कर हैरान रह गई कक कनधी अपने
ही बडे भाई से प्यार करती है। आशा ने झटके से बे ड पर सो रही कनधी के चे हरे की
तरि दे खा। कनधी के चे हरे पर इस िक्त सारे सं सार की मासू कमयत किद्यमान थी।
उस चे हरे को दे ख कर उसे यकीन ही नही ं हुआ कक ये ऐसा कर सकती है। मगर

876
उसके ही द्वारा कलखा गया ये हर लफ़्ि क्ा झॅ
ू ठा हो सकता था?

आशा के पू रे कजस्म में एक अजीब सी झुरझुरी ते ़ि रफ्तार से दौड गई। अं दर ही


अं दर जैसे एकाएक ही कोई ते ़ि जज़्बातों का भयंकर तू िान उठा कजसने उसके
समूचे अल्कस्तत्व को कहला कर रख कदया। उसी जज़्बातों के तू िान का असर था कक
उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू भर आए थे । किर जैसे उसने खु द के जज़्बातों को
सम्हाला और डायरी के उस पे ज को पलटा। दू सरे पे ज पर कोई ग़़िल कलखी हुई थी
कजसे आशा ने पढना शु रू ककया।

अजब हाल है कदल का बताना भी नही ं मु मककन।


लब खामोश हैं ऑखों से जताना भी नही ं मुमककन।।

सबके सामने मुस्कुराने का हुनर भी सीख लें गे,


मगर तन्हाई में िो हुनर आजमाना भी नही ं मु मककन।।

तौबा तो की है हमने के तु मसे रूबरू न होंगे मगर,


एक पल िाॅसलों में रह पाना भी नही ं मु मककन।।

बहुत कदल को समझाया मगर ये एहसास हुआ,


ककसी तरह कदल को बहलाना भी नही ं मु मककन।।

़िहर दे दो हमको और ये ककस्सा तमाम कर दो,


यूॅ तडप तडप कर जी पाना भी नही ं मुमककन।।

माफ़ करना के हमने बे रुखी अल्कख़्तयार कर ली,


क्ा करें के कोई और बहाना भी नही ं मु मककन।।

पू री ग़़िल पढने के बाद आशा का कदलो कदमाग़ सु न्न सा पडता चला गया। अभी िो ये
सब सोच ही रही थी कक सहसा िो बु री तरह चौंकी। बे ड पर पडी कनधी के कजस्म में
हलचल सी हुई प्रतीत हुई उसे । ये दे ख कर आशा ने जल्दी से डायरी को आगे बढ
कर कनधी के बगल से ही ऐसी पोजीशन में रख कदया कक अगर कनधी की ऩिर उस
पर पडे भी तो उसे यही लगे कक िो डायरी उसके हाॅथों से सोते िक्त ही छूट कर
एक तरि कगर गई थी। डायरी रखने के बाद आशा जल्दी से टे बल पर से चाय का
कब प्लेट सकहत उठाया और किर अपने चे हरे पर खु शी तथा प्यार के भाि लाते हुए
कनधी के चे हरे के क़रीब झुकते हुए कहा____"गुड माकनिं ग गु कडया। चलो चलो सु बह हो
गई है। दे खो तो गरमा गरम चाय तु म्हारे पे ट में जाने के कलए कैसे उतािली हो रही
है।"

877
आशा के इस प्रकार कहने पर कनधी ने कुछ ही पलों में अपनी ऑखें खोल दी और
किर आशा की तरि दे ख कर िो बस ़िरा सा ही मु स्कुराई। आशा के हाॅथ में चाय
का कप दे ख कर िो बे ड से उठी और बे ड की कपछली पु श् की तरि ल्कखसक कर
उसने अपनी पीठ उस पर कटकाई और किर उसने आशा के हाथ से चाय का कप ले
कलया। जबकक चाय का कप पकडाते ही आशा सीधी खडी हो गई। िो दे खना चाहती
थी कक कनधी की ऩिर जब अपनी डायरी पर पडे गी तो उसका कैसा ररएक्शन होता
है?

आशा को इसके कलए ज्यादा दे र तक इन्त़िार नही ं करना पडा। कनधी ने कप से चाय
का पहला ही कशप कलया था कक उसकी ऩिर बाएॅ साइड उल्टी पडी अपनी डायरी
पर पडी और किर उसके चे हरे पर एकदम से डर और घबराहट के कमले जुले भाि
उभर आए। उसके पीछे ल्कखसकने से डायरी उलट कर थोडी और दू र हो गई थी तथा
उलट सी गई थी। कनधी ने िौरन ही अपना एक हाॅथ बढा कर डायरी को अपने
कब्जे में ले कलया और िही ं अपने कहप्स के पास ही लगभग छु पा सा कलया उसे ।
उसकी इस नादानी पू र्ग हरकत से आशा के होठों पर िीकी सी मु स्कान उभर आई।
उसके मन में पहले तो आया कक िह उससे उस डायरी तथा डायरी में कलखे मजमून
के सं बंध में कोई बात करे मगर उसने ये सोच कर अपने मन से इस खयाल को
झटक कदया कक उसके पू छने पर कही ं कनधी बु री तरह डर न जाए।

"अच्छा मैं जा रही हूॅ गुकडया।" किर आशा ने सामान्य भाि से कहा___"पिन को भी
उठा दू ॅ। उसे भी ड्यूटी जाना होगा न और हाॅ तू भी जल्दी से िेश होकर नीचे आ
जाना। ब्रे किास्ट रे डी होने ही िाला है।"
"ठीक है दीदी।" कनधी ने भी खु द को सामान्य दशागते हुए कहा___"आप जाइये मैं
आती हूॅ थोडी दे र में।"

कनधी की बात सु न कर आशा कमरे से बाहर चली गई। जबकक उसके जाने के बाद
कनधी एकाएक ही गहन किचारों में कही ं खो सी गई। अभी िो किचारों में खोई ही थी
कक तभी उसका मोबाइल िोन बज उठा। उसने कसरहाने पर ही एक तरि रखे
मोबाइल को उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे अनजान नं बर को दे खा। उसके
चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे । उसे समझ न आया कक उसके मोबाइल पर ये
अनजान नं बर से आने िाली काल ककसकी हो सकती है?

"हैलो।" किर जाने क्ा सोच कर उसने काल ररसीि ककया और उसे कानों से लगाते
ही कहा था।
"हैलो गु कडया।" उधर से ररतू की जानी पहचानी आिा़ि सु न कर कनधी बु री तरह

878
चौंक पडी थी। उसे आशा, रुक्मर्ी, पिन और करुर्ा आकद के द्वारा पता चल गया
था कक ररतू किराज का पू री तरह से साथ दे रही है। ररतू के इस तरह अपने ही माॅ
बाप के ल्कखलाफ़ हो जाने से हर कोई हैरान था। मगर सब ये भी जानते थे कक ररतू
एक अच्छी लडकी है। िो ग़लत का साथ कभी नही ं दे सकती। उसके माॅ बाप ने
अब तक उससे सच छु पाया हुआ था इसी कलए उसका बतागि इन लोगों के प्रकत ऐसा
था।

"गुकडया तू सु न रही है न?" कनधी के चु प रह जाने पर उधर से ररतू की पु नः आिा़ि


उभरी___"दे ख, तु झे पू रा हक़ है मु झसे नारा़ि होने का और तु झे नारा़ि होना भी
चाकहए। मैं चाहती हूॅ कक ते रा जो मन करे तू मुझे िो स़िा दे मेरी गुकडया। ते री हर
स़िा मैं हसते हसते कुबू ल कर लू ॅगी। बस एक बार अपने मुख से मु झे दीदी कह दे ।
कसम से उसके बाद अगर मु झे मौत भी आ जाएगी तो उसका मु झे कोई दु ख नही ं
होगा।"

"न..नही ंऽऽऽ।" ररतू की बातों से कनधी की ऑखों से पलक झपकते ही ऑसू बह चले ,
बु री तरह तडप कर बोली___"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी? मुझे आपसे कोई
कशकायत कोई नारा़िगी नही ं है। मु झे पता है कक इस सबमें आपका कभी कोई दोष
था ही नही ं। इस कलए प्लीज आप ये सब मत ककहए। मु झे तो बहुत खु शी हो रही है
कक मेरी सबसे अच्छी िाली दीदी ने मु झे िोन ककया।"

"हाॅ पर मु झे खु शी नही ं हुई।" उधर से ररतू ने अजीब भाि से कहा___"और िो इस


कलए कक मेरी सबसे प्यारी गु कडया ने अपनी इस गंदी दीदी को कोई स़िा नही ं
सु नाई।"
"प्लीज दीदी।" कनधी ने आहत भाि से कहा___"ऐसा मत ककहए न खु द को और
अगर आपने दु बारा किर से अपने कलए ऐसा कहा तो मैं आपसे बात नही ं करूॅगी,
हाॅ नही ं तो।"

इस बार कनधी के ऐसा कहने पर उधर से ररतू की रुलाई िूट गई। यही यो सु नना
चाहती थी िो कनधी के मुख से । कनधी के मुख से उसका ये तककया कलाम ककतना
मीठा लगता था इसका एहसास िही ं कर सकती थी। मोबाइल पर ररतू के कससकने
की आिा़ि सु न कर कनधी भी दु खी हो गई। िह िोन पर ही ररतू को अपने तरीके से
मनाने लगी कक िो न रोएॅ। आकखर कुछ दे र बाद सब ठीक हो ही गया।

"और बताइये दीदी।" किर कनधी ने सामान्य भाि से कहा___"आज आपको मेरी याद
कैसे आ गई?"
"ते री याद तो रो़ि ही आती है गुकडया।" उधर से ररतू ने सहसा गंभीरता से

879
कहा___"ककन्तु अपराध बोझ के चलते तु झसे बात करने की कहम्मत नही ं कर पा रही
थी।"

"आप किर से ऐसी बातें करने लगी ं।" कनधी ने कहा___"इन बातों को अब जाने
दीकजए न दीदी। खै र ये बताइये कक कैसी हैं आप?"
"मैं तो अच्छी ही हूॅ गुकडया।" ररतू ने कहा___"पर मेरा कदल करता है कक तु झे ककतना
जल्दी अपनी ऑखों के सामने दे खूॅ और तु झसे ढे र सारी अच्छी अच्छी बातें करूॅ
भी और तु झसे सीखू ॅ भी।"

"मेरा भी ऐसा ही कदल करता है दीदी।" कनधी ने कहा___"मगर शायद अभी ये


मुमककन नही ं है।"
"हाॅ ये तो है गुकडया।" ररतू ने कहा___"अच्छा एक बात पू छूॅ तु झसे ?"
"हाॅ जी दीदी।" कनधी के चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे ___"पू ॅकछए न।"

"क्ा राज ने तु झे कुछ कहा है?" उधर से ररतू ने कहा___"या किर ककसी बात पर
उसने तु झे डाॅटा है। तू मु झसे बता गुकडया मैं यहाॅ इसके काॅन खी ंचू ॅगी। इसकी
कहम्मत कैसी हुई मेरी गु कडया को कुछ कहने की।"
"नही ं नही ं दीदी।" कनधी बु री तरह हडबडा गई थी, बोली___"ऐसा कुछ भी नही ं है।
मुझे ककसी ने कुछ नही ं कहा। आपको ऐसा क्ों लगा दीदी?"

"राज बता रहा था।" ररतू ने कनधी की धडकनों को बढाते हुए कहा___"कक तू कुछ
समय से उससे बात ही नही ं कर रही है और ना ही तू उसके सामने आती है । उसका
कहना है कक उसने तो ऐसा तु झे कुछ भी नही ं कहा कजससे तू उससे बात ही करना
बं द कर दे । मु झे पता है कक िो तु झे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है। अगर तु झे
़िरा सी भी ककसी ची़ि से तक़लीि हो जाए तो उसकी जैसे जान पर बन आती है।
किर क्ा बात है गु कडया, आकखर ऐसी कौन सी बात हो गई है कजससे तू उससे बात
नही ं करती है। यहाॅ तक कक उसके सामने भी नही ं आना चाहती?"

कनधी को समझ न आया कक िो ररतू को इसका क्ा जिाब दे ? सच्चाई िो बता नही ं
सकती थी और झॅ ू ठ तो ऐसा होता है जो ज्यादा कदनों तक छु पा नही ं रह सकता था।
हलाॅकक उसे ये उम्मीद नही ं थी कक किराज ये सब समझता न होगा। उसे तो ये भी
उम्मीद नही ं थी कक िो ये बात सीधे तौर पर ररतू दीदी से बोल दे गा।

"क्ा हुआ गुकडया?" कनधी को खामोश जान कर उधर से ररतू ने किर कहा___"तू चु प
क्ों हो गई? बता न क्ा बात हो गई है ऐसी?"
"ऐसी कोई बात नही ं है दीदी।" कनधी अब बोले भी तो क्ा___"मैं तो बस ऐसे ही

880
नारा़ि हूॅ उनसे । आप तो जानती ही हैं कक मैं कैसी हूॅ।"

"एक बात हमेशा याद रखना गु कडया।" उधर से ररतू ने कहा___"तू हम सबकी जान
है, खास कर राज की। तु झे नही ं पता कक ते रे बात न करने से िो यहाॅ ककतना दु खी
रहता है। मुझे तो पता ही न चलता अगर मैं कल रात उसके कमरे में अचानक पहुॅच
न गई होती तो। मेरे पू छने पर ही उसने ये सब बताया। खै र, एक बात और कहना
चाहती हूॅ गुकडया और िो ये कक मैने तो अपने माॅ बाप और भाई से हर ररश्ा तोड
कलया है। क्ोंकक िो सब बु रे ही नही ं बल्कि पापी लोग हैं। इस दु कनया में अब अगर
मेरा कोई सच्चा भाई है तो िो है राज। मु झे पता है कक हमारा भाई राज कोकहनू र हीरा
है। उसके कदल में सबके कलए बे पनाह प्यार और सम्मान है। इस कलए ये हम सबका
भी ि़िग बनता है कक हम उसे िै सा ही प्यार ि सम्मान दें ।"

"मुझे पता है दीदी।" कनधी ने कहा___"और यकीन माकनए कक उनके कलए मेरे कदल में
बे पनाह प्यार ि सम्मान है और ये मरते दम तक कम न होगा बल्कि बढता ही
जाएगा।"

"मुझे तु मसे यही उम्मीद है गुकडया।" ररतू ने कनधी की बातों को सामान्य ही समझते
हुए कहा___"और दे खना कजस कदन सब कुछ ठीक हो जाएगा न उस कदन से हम सब
एक साथ ही रहेंगे और हम सभी बहनें अपने भाई को जी भर के प्यार करें गे।"

"जी कबलकुल दीदी।" कनधी के होठों पर सहसा िीकी सी मु स्कान उभर


आई___"अच्छा दीदी अब हम बाद में बात करें गे। िो क्ा है न कक मु झे बाथरूम
जाना है। किर स्कूल भी जाना है।"
"ओह हाॅ।" ररतू ने कहा___"चल ठीक है गुकडया। अच्छे से पढाई करना और हाॅ
अपना खयाल भी रखना।"

इसके साथ ही िोन काल कट गई। कनधी ने गहरी साॅस ली और किर कुछ दे र तक
इन सारी बातों के बारे में सोचती रही। किर िो उठी और बाथरूम की तरि बढ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इधर मैं नीलम को मैसेज के द्वारा सब कुछ समझाने के बाद किधी के मम्मी पापा या
यूॅ कहूॅ कक अपने सास ससु र से कमला। ये पहला अिसर था जब मैं उनके पास हर
काम से िाररग़ होकर कमला था। मैने इसके पहले उनसे न कमल पाने के कलए माफ़ी
भी माॅगी। ये अलग बात है कक उन दोनो ने मु झे अपने सीने से लगा कलया और ढे र
सारा प्यार और दु िाएॅ दी। मु झे अपने सीने से जाने ककतनी ही दे र तक लगाए रहे थे
िो। मैं समझ सकता था कक िो इस िक्त भािनाओं के भिर में गोते लगा रहे होंगे।
नै ना बु आ ने मेरे बारे में सब कुछ उन्हें बता कदया था। सब कुछ जान कर उन्हें दु ख भी

881
हुआ और खु शी भी हुई।

कािी दे र तक मैं उनके पास ही बै ठा रहा उसके बाद मैं उनसे इजा़ित ले कर हररया
काका के पास आ गया। हररया काका से मैने मंत्री के कपल्लों का हालचाल कलया और
उन्हें ये कहा कक मंत्री की बे टी को गंदे तरीके से टाचग र न करें । उन्हें ये भी कहा कक िो
उन लडकों के साथ भी िो सब न करें जो इसके पहले िो कर रहे थे । मैने ऐसा इस
कलए कहा कक अब उन लडकों के साथ ही उनकी बहन भी थी। उसका इस सबमें
कोई कुसू र तो था नही ं इस कलए उसके सामने उन लडकों के साथ िो सब करना
उकचत नही ं था।

मेरी बातें हररया काका को समझ में आ गई थी। मंत्री की बे टी रचना पहले की अपे क्षा
अब कबलकुल चु प ही रहती थी। अपने भाई के साथ साथ तथा भाई के तीनों दोस्तों
की तरि उसका दे खने का भी मन नही ं करता था। ़िाकहर है कक उसकी ऑखों के
सामने हररया काका ने उसके भाई के साथ िो सब ककया था कजसके चलते उसे अपने
आप में कजल्लत महसू स हुई थी और िो सब उसके भाई की करतू तों की िजह हे ही
हुआ था।

सु बह का नास्ता हम सबने एक साथ ही ककया और किर मैं और आकदत्य घर से बाहर


की तरि चल कदये। अभी दो क़दम ही हम दोनो आगे बढे थे कक पीछे से ररतू दीदी
की आिा़ि आई। उनकी आिा़ि से हम दोनो ही कठठक गए। थोडी दे र में ररतू दीदी
हमारे पास आ गईं। इस िक्त िो कत्थई कलर के जीन्स और उसी से मैच करते टाप
में थी। टाप के ऊपर ले दर की छोटी सी जाॅकेट डाला हुआ था उन्होंने। ऑखों में
सन िासे ज था। मैं उन्हें इस लु क में दे खता ही रह गया। मेरे इस तरह दे खने पर
उन्होंने मु स्कुरा कर मेरे दाकहने गाल पर हिी सी चपत लगाई और किर हमारे साथ
ही बाहर की तरि चलने लगी ं।

"एक बात तु म दोनो ही कान खोल कर सु न लो।" बाहर आते ही ररतू दीदी ने कहटलरी
अं दा़ि में हम दोनो की तरि एक एक ऩिर दे खते हुए कहा___"मुझसे बग़ैर पू ॅछे
अथिा मेरी जानकारी के कबना तु म दोनो कोई भी काम नही ं करोगे। हम हर काम
एक साथ ही करें गे। कुछ समझ में आया तु म दोनो को? या किर मैं दू सरे तरीके से
समझाऊ?"

"दू सरे तरीके से कैसे दीदी?" मैने मुस्कुराते हुए शरारत से पू छा था।
"मेरे पास दू सरा एक ही तरीका है माई कडयर ब्रदर।" ररतू ने ले दर की जाॅकेट के
एक छोर को पकड कर हिा सा एक तरि ककया तो जी ंस के पै न्ट में खोंसा हुआ
उनका सकिग स ररिावर ऩिर आ गया हमें। जबकक उसे कदखाते ही उन्होंने

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कहा____"जब काम बातों से न बने तो िौरन इस ररिावर की नाल सामने िाले की
खोपडी में लगा कर सारा काम उसे समझा दे ना चाकहए। दै ट्स आल। आई होप कक
तु म दोनो अब अच्छी तरह समझ गए होगे।"

"चकलए आपने इतना काल्कन्फडें स के साथ कहा है तो समझ ही ले ते हैं।" मैने पु नः


शरारत से कहा___"िरना हम दोनो तो ऐसे कूढमगज इं सान हैं जो ककसी भी तरह से
नही ं समझ पाते । क्ों आदी??"

"तू मुझे ़िरूर मरिाएगा अब।" आकदत्य दू र हटते हुए बोल पडा था।
"क्ा यार।" मैने बु रा सा मुह बनाते हुए कहा___"सारे इमेज का बे डा गक़ग कर कदया
तु मने । मेरा दोस्त होकर डर गया? हद है यार, तु म्हें तो मेरी तरह थर थर काॅपने लग
जाना चाकहए था।"

"बहुत हो गया।" ररतू दीदी ने ऑखें कदखाईं___"अब बोल राज क्ा प्लान बनाया है
तू ने नीलम ि सोनम को सु रकक्षत यहाॅ लाने का?"
"भाई कार कहाॅ गई?" मैने दीदी के सिाल के जिाब में आकदत्य की तरि दे खते हुए
कहा___"तु म तो कह रहे थे कक सु बह जब हम यहाॅ से चलें गे तो कार हमारे दरिाजे
पर खडी कमले गी। जबकक यहाॅ तो कार कही ं कदख ही नही ं रही। भाई इतना
खू बसू रत म़िाक मत ककया करो न, िरना तु म नही ं जानते मु झे कदल का दौरा सा
पडने लगता है।"

"अबे मैं म़िाक नही ं कर रहा हूॅ यार।" आकदत्य ने अपना हाॅथ नचाते हुए
कहा___"िो क्ा है कक अभी कुछ ही दे र पहले शे खर के मौसा जी आए थे । उन्होंने
जब घर के बाहर कार खडी दे खी तो पू छने लगे कक ये कहाॅ से आई? उनके पू छने
पर मैने बताया कक हमने खरीदा है इसे । बस किर क्ा था, बोले चला कर बताएॅगे
कक उन्हें कार कैसी लगी।"

"ओह तो इसका मतलब।" मैने कहा___"मौसा जी ले के गए हैं। मगर अभी तक आए


क्ों नही ं िो?"
"आ जाएॅगे यार।" आकदत्य ने कहा___"अभी थोडी दे र पहले ही तो िो गए हैं जब मैं
अं दर तु म्हें बताने गया था।"

"ओये तू ने मुझे बताया क्ों नही ं कक तू ने कोई कार खरीदी है?" सहसा ररतू दीदी
कशकायती लहजे में बोल पडी_ं __"और मैं अभी क्ा बोल रही थी कक तु म दोनो कबना
मुझसे पू छे कोई काम नही ं करोगे किर क्ों ककया?"

"ये बात तो आपने अभी कही है न दीदी।" मैने उन्हें मनाने िाले लहजे से

883
कहा___"जबकक कार ले ने की बात तो हमने चार कदन पहले आपस में की थी। बट
प्राॅकमस दीदी, इसके बाद का हर काम आपसे पू छ कर ही करें गे।"

"चल कोई बात नही ं।" ररतू दीदी ने कहा___"लो कार भी आ गई। क्ा बात है राज,
कार तो बहुत अच्छी ली है तू ने।"
"इतनी भी अच्छी नही ं है दीदी।" मैने कहा___"से कण्ड हैण्ड है। ़िरूरत थी इस कलए
थोडा ज्यादा पै से दे कर ले ना पडा। नई कार ले ने का अभी कोई मतलब नही ं है।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कक शे खर के मौसा जी ने हमारे पास ही कार को रोंका


और किर डर ाइकिं ग डोर खोल कर बाहर आए।

"यार आकदत्य कार तो अच्छी है ये।" केशि जी ने कहा___"ककतने में पडी ये?"
"ज्यादा नही ं मौसा जी।" आकदत्य ने कहा___"दो लाख अस्सी ह़िार। हलाॅकक गऱि
हमारी थी िरना अस्सी ह़िार का चू ना नही ं लगता हमें।"

"किर भी यार।" केशि जी ने कहा___"घाटा इतने में भी नही ं है। खै र, छोंडो मैं भी
ककसी ़िरूरी काम से इधर से गु ़िर रहा था। इस कलए अब मैं चलता हूॅ।"
"जी ठीक है मौसा जी।" हम सबने अदब से हाॅथ जोड कलए थे ।

मौसा जी के जाने के बाद हम तीनो ही उस कार में जाकर बै ठ गए। मैने डर ाइकिं ग
शीट सम्हाली। मेरे बगल से ररतू दीदी बै ठ गई जबकक आकदत्य कपछली शीट पर बै ठ
गया। सबके बै ठ जाने के बाद मैने कार को स्टाटग कर आगे बढा कदया।

"तो क्ा प्लान बनाया है तू ने?" रास्ते में ररतू दीदी ने किर मुझसे पू छा___"हम उन
दोनो को िहाॅ से कैसे यहाॅ लाएॅगे? प्रकाश नाम का मेरा एक आदमी हिे ली में ही
सु रक्षा गाडग के रूप में काम करता है। उसी के द्वारा मुझे पता चला था कक कजस कदन
तु म्हारे िो नकली सीबीआई िाले डै ड को ले कर गए थे उसी कदन हिे ली पर डै ड के
कुछ कबजने स सं बंधी दोस्त भी आए थे । उन सबके साथ कािी सारे ऐसे आदमी थे
जो कदखने में िाइटर लगते थे । प्रकाश ने बताया कक उनमे से एक का नाम पाकटल था
जो माॅम से कह रहा था कक ठाकुर साहब आएॅ तो बता दीकजएगा कक हमारे ये सभी
आदमी आज से उनके ही आदे शों का पालन करें गे।"

"हाॅ इस बात का क़िक्र नीलम ने भी मु झसे ककया था कल।" मैने दीदी की तरि एक
ऩिर डालने के बाद कहा___"उसने बताया था कक गे स्ट रूम में कुछ ऐसे लोग ठहरे
हुए हैं जो कदखने में कािी हट्टे कट्टे लगते हैं।"

884
"मतलब साि है कक हिे ली जाकर िहाॅ से उन दोनो को लाना असं भि काम है।"
ररतू दीदी ने कहा___"िै से भी उन सभी आदकमयों के रहते हिे ली जाने का मतलब है
कक मौत के मु ह में जाना। सीबीआई िाले हादसे के बाद तो िै से भी डै ड का गुस्सा तु म
पर या यू ॅ कहो कक हम पर अपने चरम पर होगा। अतः उन्होंने कसक्ोररटी का भी
तगडा प्रबं ध कर कलया होगा। ऐसे में हम हिे ली नही ं जा सकते और अगर जाने का
सोचें भी तो हमें रात के समय में ही जाना चाकहए क्ोंकक रात के अधेरे में खतरा कम
ही रहता है।"

"हमें हिे ली जाने की ़िरूरत ही नही ं है दीदी।" मैने दीदी से कहा___"नीलम और


सोनम दीदी खु द ही हिे ली से बाहर आएॅगी।"
"ऐसा कैसे सं भि हो सकता है?" ररतू दीदी के चे हरे पर चौंकने के भाि उभरे थे ,
बोली___"मौजूदा हालात में माॅम या डै ड उन दोनो को बाहर आने ही नही ं दें गे।
क्ोंकक अगर उन्होंने ये जान कलया होगा कक नीलम भी सच्चाई जान गई है तो िो भी
मेरी तरह उनके ल्कखलाि हो जाएगी और हिे ली से बाहर जाने की कोकशश करे गी। ये
सोच कर माॅम या डै ड उन दोनो को ककसी भी िजह से हिे ली के बाहर नही ं जाने
दें गे।"

"और अगर मैं ये कहूॅ।" मैने दीदी के ऊपर जैसे धमाका सा ककया___"कक इस
सबके बािजूद नीलम और सोनम दीदी हिे ली से बाहर आएॅगी तो?"
"ये तो किर चमत्कार ही होगा।" ररतू दीदी ने चककत भाि से कहा___"कजस चमत्कार
की मौजूदा हालात में ़िरा भी उम्मीद नही ं है।"

"जहाॅ उम्मीद नही ं होती असल में िही ं पर उम्मीद की सं भािना होती है दीदी।" मैने
दाशग कनकों िाले अं दा़ि से कहा____"खै र, ये चमत्कार तो होने ही िाला है। मैने नीलम
को हिे ली से बाहर कनकलने का शानदार तरीका समझाया कदया था।"

"त तरीका???" ररतू दीदी बु री तरह चौंक पडी____"कैसा तरीका?"


"दरअसल मैने सोनम दीदी के बारे में सोच कर ही प्लान बनाया है दीदी।" मैने
कहा____"ये तो मु झे भी पता है कक सोनम दीदी पहली बार ही यहाॅ आई हैं। इस
कलए ये तो एक स्वाभाकिक बात होती है कक जो इं सान पहली बार कही ं जाता है तो िो
उस जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने या दे ख ले ने की ख्वाकहश रखता है। मैने
भी इसी सोच के तहत प्लान बनाया। दू सरी महत्वपू र्ग बात नीलम ने ये भी बताया कक
आज आपके नाना जी जा रहे हैं तथा उन्हें गुनगुन तक छोंडने के कलए खु द बडे पापा
कार से जाने िाले हैं । मैने इन सब बातों को भी अपने प्लान के कलए सोचा था। कहने
का मतलब ये कक जब बडे पापा नाना जी को ले कर गुनगुन जा चु के होंगे तब नीलम ि
सोनम दीदी तै यार होकर तथा अपने कमनी बै ग में अपनी सबसे ज्यादा ़िरूरी ची़ि ही

885
ले कर बडी माॅ के पास आएॅगी। बडी माॅ से नीलम ये कहेगी कक सोनम दीदी
हमारा गाॅि तथा हमारे खे त दे खना चाहती हैं , इस कलए हम दोनो जा रहे हैं। नीलम
के मुख से सोनम सकहत जाने की बात सु न कर यकीनन बडी माॅ के मन में ये बात
आएगी कक कही ं ये लोग यहाॅ से भागने का तो नही ं सोच रही हैं। ककन्तु िो इसके
कलए उन्हें मना भी नही ं कर पाएॅगी। क्ोंकक बात तो कसिग गाॅि तथा खे त दे खने की
होगी। इसके कलए मना करने की उनके पास कोई ठोस िजह नही ं होगी। इस कलए
िो उन दोनो को जाने से रोंक न सकेंगी, मगर हाॅ ऐसा प्रबं ध ़िरूर कर सकती हैं
कक िो हिे ली से भागने िाले अपने काम में सिल न हो सकें। इसके कलए सं भि है कक
िो उन दोनो के साथ एक दो उन दो आदकमयों को भे जेंगी जो िाइटर जैसे कदखते हैं ।
उनके साथ अपने आदकमयों को ये सोच कर नही ं भे जेंगी कक उन्हें अपने आदकमयों पर
अब भरोसा ही ं नही ं होगा। बात भी सही है, भला उनके आदकमयों ने भरोसा करने
लायक अब तक कोई काम ही क्ा ककया है? खै र, इस सारे मामले के कलए मैने
नीलम को भली भाॅकत समझाया हुआ है कक िो तथा सोनम दीदी एक पल के कलए
भी अपने चे हरों पर ऐसे भाि न लाएॅगी कजससे बडी माॅ को उन पर शक हो जाए।
क्ोंकक किर उस सू रत में उनका िहाॅ से कनकलना मुल्किल हो जाना है। यानी आप
ये भी कह सकती हैं कक िो दोनो िहाॅ से अपने सिलता पू िगक ककये गए अकभनय के
द्वारा ही कनकल पाएॅगी। अब सिाल ये था कक गाॅि या खे त घूमने पै दल या जीप से
जाएॅगी तो इसमें ज्यादा कोई समस्या नही ं थी। क्ोंकक मुख्य काम ये है कक उन
दोनो का हिे ली से बाहर आकर गाॅि की सीमाओं की तरि बढना था। हिे ली के
बाहर या यू ॅ कहें कक गाॅि की सीमा में ही ककसी खास जगह पर हम उन्हें घेर लें गे।
दै ट्स आल।"

"उन दोनों को हिे ली से बाहर कनकालने का तरीका तो बहुत ही अच्छा सोचा है


तु मने ।" ररतू दीदी ने कहा___"मगर उन आदकमयों के रहते उन दोनो को अपने पास
सु रकक्षत लाना इतना आसान काम नही ं है। दू सरी बात ये भी है कक सं भि है कक यही
बात मेरी माॅम के मन में भी आई हो। यानी कक उन्होने ये अं दा़िा लगा कलया हो कक
नीलम ने तु म्हें मैसेज भे ज कदया होगा कक उसे सच्चाई पता चल गई है अतः अब िो
तु मसे कमलना चाहती है। उस सू रत में तु म सोचोगे कक अगर नीलम का रा़ि बडी माॅ
के सामने िाश हो गया तो िो यकीनन बडे पापा से बताएॅगी और किर बहुत
मुमककन है कक नीलम ि सोनम दोनो ही भयानक खतरे में पड जाएॅ। ऐसे हाल में
तु म्हारी सबसे पहली प्राथकमकता यही होगी कक तु म उन दोनो को हिे ली से सु रकक्षत
बाहर कनकलना चाहोगे। आज जब नीलम ने उनसे ये कहा होगा कक सोनम दीदी ये
गाॅि तथा हमारे खे त दे खना चाहती हैं और िो उन्हें ले कर जा रही है तो यकीनन
उनके मन में सबसे पहले यही बात आई होगी कक कही ं ऐसा तो नही ं ये दोनो यहाॅ से
बहाना बना कर कनकल जाना चाहती हों। ककन्तु उनके मन में ये भी होगा कक ऐसे
हालात में िो क्ा करें गी इसका अं दा़िा भी तु म लगा लोगे। अतः िो कुछ ऐसा

886
इं तजाम करें गी जो तु म्हारी सोच से परे हो अथिा कजसके बारे में तु म सोच ही न
सको। यानी कक सं भि है कक उन्होंने तु म्हारे अं दा़िे को ध्यान में रखते हुए अपने दो
आदकमयों को उन दोनो के साथ भे ज तो कदया ही हो साथ ही उनके जाने के बाद
उन्होंने कुछ आदमी और भी उनके पीछे ये सोच कर लगा कदये हों कक अगर उनकी
शं का सच हुई तो बै कअप के कलए कुछ आदमी एक्स्ट्र ा रहेंगे। ताकक अगर ऐसी
कसचु एशन बन जाए कक तु म उनके पहले िाले आदकमयों का कतया पाॅचा करने में
कामयाब हो जाओ तो पीछे से आ रहे उनके दू सरे आदमी तु म्हें तु म्हारे इरादों में
कामयाब न होने दें ।"

"मैं ररतू की इन बातों से पू री तरह सहमत हूॅ राज।" सहसा आकदत्य पीछे से बोल
पडा था____"यकीनन ऐसा हो सकता है। ररतू की माॅम के कदमाग़ के बारे में जैसा
तु मने बताया था उस कहसाब से मु झे भी लगता है कक िो ऐसा कुछ अं दा़िा लगा कर
सकती हैं। अतः हमें भी उनके अनु सार ही सोच कर क़दम बढाना होगा। िरना हम
पर तो जो मुसीबत आएगी िो तो आएगी ही ककन्तु इस सबके कलए नीलम ि सोनम
का ककतना बु रा हाल हो सकता है इसका हम अं दा़िा भी नही ं लगा सकते ।"

"तु म्हें क्ा लगता है आदी?" मैने कहा___"कक ये सब बातें मेरे कदमाग़ में नही ं आई
होंगी? बे शक आई हैं मेरे यार। मुझे भी इस बात का खयाल है कक हर बार एक ही
दाॅि अथिा तरीका कारगर कसि नही ं हो सकता। इससे सामने िाला हमारी सोच
का दायरा ताड ले ता है। हलाॅकक मेरा उसू ल ही यही है कक मैं सामने िाले को िही
सोचने पर मजबू र कर दे ता हूॅ जो मैं चाहता हूॅ। मैं चाहता हूॅ कक सामने िाला ये
सोच बै ठे या ये समझ जाए कक मेरे पास बस एक ही तरह का दाॅि है। क्ोंकक जब
ऐसा होगा तो सामने िाला किर उसी के कहसाब से अपनी चालें चलता है। जबकक मैं
उसकी उस चाल के बाद अपना दू सरा पैं तरा शु रू करूॅगा। ऐसा पैं तरा कजसके बारे
में िो सोच भी न सकेगा।"

"इसका मतलब।" ररतू दीदी ने कहा___"तु मने इस बारे में पहले से ही कुछ सोचा
हुआ है या किर ये कहूॅ कक ऐसा कुछ इं तजाम कर रखा है तु मने ।"
"कबलकुल सही कहा दीदी आपने ।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"आकखर मु झे भी तो
इस बात का खयाल रखना ही पडे गा न कक उस तरि शाकतर कदमाग़ िाली मेरी बडी
माॅ भी मौजूद हैं। बात अगर कसिग बडे पापा की होती तो इतना घुमा किरा कर काम
करने की ़िरूरत ही न पडती। ककन्तु बडी माॅ तो किर बडी माॅ हैं न। खै र, मैं ये
कह रहा हूॅ कक कजस तरह बै कअप के कलए बडी माॅ ने कदमाग़ लगाया हो सकता है
उसी तरह मैने भी बै कअप का इं तजाम ककया हुआ है। और िै से भी जंग में बै कअप
का होना तो कनहायत ही ़िरूरी होता है। कजस योिा के पास बै कअप नही ं होता िो
जंग के शु रू होते ही मात खा जाता है।"

887
"िो सब तो ठीक है।" आकदत्य ररतू दीदी से पहले ही पू छ बै ठा____"ले ककन तु मने
बै कअप का आकखर इं तजाम क्ा ककया है?"
"क्ा यार आदी।" मैने पलट कर एक ऩिर उसे दे खने के बाद कहा____"तु म न ़िरा
भी कदमाग़ नही ं लगाते हो।"

"ज्यादा बनो मत।" आकदत्य ने तीखे भाि से कहा___"साि साि बताओ कक क्ा
तीर मारा है तु मने ?"
"लगता है शे खर के मौसा को भू ल गए हो तु म।" मैने पु नः पलट कर आकदत्य को दे ख
कर कहा___"कल दे खा नही ं था क्ा तु मने कक कैसे िो िामगहाउस पर अपने लिधारी
आदकमयों को ले कर हम लोगों को ले ने आए थे ? बाद में उन्होंने कहा भी था कक अगर
ककसी बात की ़िरूरत पडे तो तु रंत उन्हें याद करें हम। बस किर क्ा था समझदार
आदमी को ऐसे मददगार आदमी का सहारा ले ने में ़िरा भी दे र नही ं करना चाकहए।
कहने का मतलब ये कक मैने उन्हें सारी कसचु एशन के बारे में समझा कदया था और ये
कहा था कक बै कअप के रूप में िो हमारे पीछे ही रहें। िो मैदान में तभी आएॅ जब
उन्हें यकीन हो जाए कक हमारा पलडा अब डगमगाने लगा है और हम हारने िाले हैं।
तब उन्हें अचानक ही मैदान में एन्टर ी मारनी है । बस उसके बाद तो किर हम सब कुछ
सम्हाल ही लें गे।"

"ओह अब समझ आया।" आकदत्य ने सहसा गहरी साॅस ले कर कहा___"इसी कलए


िो उस िक्त बोल रहे थे कक िो ककसी ़िरूरी काम से यहाॅ से गु ़िर रहे थे ।"
"अब समझे तो क्ा समझे कडयर?" मैने मु स्कुराते हुए कहा___"बात तो तब थी जब
तु म इसके पहले ही समझ जाते ।"

"हाॅ हाॅ ठीक है न।" आकदत्य ने ल्कखकसयाते हुए कहा___"पर मुझे ये बात समझ नही ं
आई कक अगर यही बात थी तो उस िक्त उन्होंने हम में से ककसी को बताया क्ों नही ं
कक िो ककस ़िरूरी काम से गु़िर रहे थे ?"

"लो कर लो बात।" मैने हसते हुए कहा___"उन्हें भला बताने की ़िरूरत ही क्ा थी?
मुझे तो सब पता ही था क्ोंकक मैने ही उनसे बात की थी। उन्होंने तु मसे या दीदी से
इस कलए नही ं बताया कक उन्होंने सोचा होगा कक मैने आप दोनो को बता कदया होगा।
दू सरी बात आप में से कोई उनसे पू छा भी तो नही ं कक िो ककस ़िरूरी काम के कलए
िहाॅ से गु ़िर रहे थे ?"

"हाॅ ये तो सही कहा तु मने ।" सहसा दीदी ने मेरी तरि प्रसं सा भरी ऩिरों से दे खते
हुए कहा___"हमने तो उनसे पू छा ही नही ं था। ले ककन सिाल तो है ही कक िो ककस

888
़िरूरी काम से गु़िर रहे थे ?"

"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सिाल की उम्मीद नही ं थी मु झे। बडी
सीधी सी बात है िो अपने आदकमयों को इकिा करने के कलए जा रहे थे ।"
"ओह आई सी।" ररतू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा ककया तु मने जो खु द के
कलए भी बै कअप इं तजाम कर कलया है। िरना मैं तो सोच रही थी कक कही ं हम िस
ही न जाएॅ ककसी जाल में।"

"ऐसे कैसे िस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और किर ररस्क तो ले ना ही पडे गा। ये
तो कुछ भी नही ं है , आने िाले समय में इससे कई गुना ज्यादा खतरा भी होगा
कजसका हमें सामना करना पडे गा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"खै र अभी तो सबसे ़िरूरी यही है कक ककसी तरह
नीलम ि सोनम सु रकक्षत हमें हाॅकसल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी कचं ता नही ं है
क्ोंकक तब इस बात का भय नही ं रहेगा कक हमारा कोई अपना उनके चं गुल में है।"

मैं ररतू दीदी की इस बात पर बस मु स्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम
बढे चले जा रहे थे हल्दीपु र की तरि। हम तीनों ही पू री तरह सतकग थे । हम इस बात
को भी बखू बी समझते थे कक खतरा कसिग अजय कसं ह की तरि बस का ही नही ं था
बल्कि मं त्री कदिाकर चौधरी की तरि से भी था। दू सरी बात अब हम पहचाने जा चु के
थे दोनो तरि इस कलए खतरा और भी बढ गया था हमारे कलए। मगर सच्चाई की राह
पर चलने के कलए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बु लंकदयों में परिा़ि करिा
रहे थे । आने िाला समय बताएगा कक इस खे ल में ककसकी जीत कमलती है और ककसे
हार का कडिा स्वाद चखना होगा??
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 56 》

अब तक,,,,,,,,

"हाॅ ये तो सही कहा तु मने ।" सहसा दीदी ने मेरी तरि प्रसं सा भरी ऩिरों से दे खते
हुए कहा___"हमने तो उनसे पू छा ही नही ं था। ले ककन सिाल तो है ही कक िो ककस
़िरूरी काम से गु़िर रहे थे ?"

889
"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सिाल की उम्मीद नही ं थी मु झे। बडी
सीधी सी बात है िो अपने आदकमयों को इकिा करने के कलए जा रहे थे ।"

"ओह आई सी।" ररतू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा ककया तु मने जो खु द के


कलए भी बै कअप का इं तजाम कर कलया है। िरना मैं तो सोच रही थी कक कही ं हम
िस ही न जाएॅ ककसी जाल में।"

"ऐसे कैसे िस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और किर ररस्क तो ले ना ही पडे गा। ये
तो कुछ भी नही ं है , आने िाले समय में इससे कई गुना ज्यादा खतरा भी होगा
कजसका हमें सामना करना पडे गा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"खै र अभी तो सबसे ़िरूरी यही है कक ककसी तरह
नीलम ि सोनम सु रकक्षत हमें हाॅकसल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी कचं ता नही ं है
क्ोंकक तब इस बात का भय नही ं रहेगा कक हमारा कोई अपना उनके चं गुल में है।"

मैं ररतू दीदी की इस बात पर बस मु स्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम
बढे चले जा रहे थे माधोपु र की तरि। हम तीनों ही पू री तरह सतकग थे । हम इस बात
को भी बखू बी समझते थे कक खतरा कसिग अजय कसं ह की तरि बस का ही नही ं था
बल्कि मं त्री कदिाकर चौधरी की तरि से भी था। दू सरी बात अब हम पहचाने जा चु के
थे दोनो तरि इस कलए खतरा और भी बढ गया था हमारे कलए। मगर सच्चाई की राह
पर चलने के कलए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बु लंकदयों में परिा़ि करिा
रहे थे । आने िाला समय बताएगा कक इस खे ल में ककसको जीत कमलती है और ककसे
हार का कडिा स्वाद चखना होगा??
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

नीलम ि सोनम के जाने के बाद कशिा िापस पलटा और हिे ली के अं दर की तरि


बढ चला। उसके होठों पर बडी ही कदलकस मु स्कान थी। ़िाकहर था कक उसकी ये
मुस्कान सोनम की िजह से थी। कजसके बारे में िो जाने क्ा क्ा सोचने लगा था।
खै र सोनम के बारे में सोचते हुए ही िह चलते हुए अं दर डर ाइं ग रूम में पहुॅचा।

उधर डर ाइं ग रूम में प्रकतमा अभी भी बै ठी हुई थी। उसके चे हरे पर सोचों के भाि
गकदग श कर रहे थे । कशिा के अं दर आते ही िह सोचो से बाहर आई और उसने कशिा
को मु स्कुराते हुए दे खा तो सहसा िह चौंकी। किर अगले ही पल सामान्य भी हो गई,
कदाकचत उसे कशिा की मु स्कान का रा़ि पता चल गया था।

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"क्ा बात है बे टा।" किर उसने बे टे की तरि दे खते हुए मुस्कुरा कर कहा___"लगता
है मन में बहुत ही मीठी मीठी गुदगुदी हो रही है, है ना?"
"ग..गुदगुदी???" प्रकतमा की इस बात से कशिा एकदम से चकरा सा गया___"कैसी
गुदगुदी माॅम?"

"िै सी ही बे टा।" प्रकतमा ने कहा___"जैसी तब हुआ करती है जब ककसी से नया नया


इश्क़ होता है। तु म्हारे होठों पर कथरक रही ये मुस्कान इस बात का सबू त दे रही है
कक तु म सोनम के बारे में सोच सोच अं दर ही अं दर बे हद रोमांच सा महसू स कर रहे
हो।"

"हाॅ माॅम।" कशिा की मु स्कान गहरी हो गई___"ये तो आपने कबलकुल सही कहा।
मैं सचमुच सोनम के बारे में ही सोच सोच कर आनं द महसू स कर रहा हूॅ। उफ्फ
माॅम मैं बता नही ं सकता कक मैं सोनम के बारे में सोच सोच कर ककतना खु श हो रहा
हूॅ। क्ा ऐसा नही ं हो सकता माॅम कक मेरे इस कदल का ये हाल मेरे कबना बताए
सोनम समझ जाए और किर िो मेरे इस कदल की चाहत को कुबू ल कर ले ?"

"तु म दीिाने से होते जा रहे हो बे टे।" प्रकतमा एकाएक ही गंभीर हो गई, बोली___"जो
कक कबलकुल भी ठीक नही ं है। तु म खु द ये बात अच्छी तरह जानते हो कक जो तु म
चाहते हो िो इस जन्म में तो हकगग़ि भी नही ं हो सकता। किर इस तरह बे कार की बातें
करने का तथा ऐसा सोचने का क्ा मतलब है बे टा? अभी भी िक्त है तु म अपने अं दर
के इस एहसास को कजतना जल्दी हो सके कनकाल दो। िरना दे ख ले ना इस सबके
कलए बाद में तु म बहुत दु खी होगे।"

"कजन्हें इश्क़ हो जाता है न माॅम।" कशिा ने अजीब भाि से कहा___"किर उन्हें कोई
समझा नही ं सकता और ना ही इश्क़ में पागल हो चु का ब्यल्कक्त ककसी की बातों को
समझना चाहता है। उसे तो बस हर घडी हर पल अपने प्यार की आऱिू रहती है ।
ऐसा नही ं है माॅम कक इसमें कदमाग़ काम नही ं करता है बल्कि िो तो िै से ही काम
करता रहता है जैसे आम इं सानों का करता है मगर कदल के जज़्बातों की जब ऑधी
चलती है न तो उस कदमाग़ का सारा कदमाग़ उसके ही कपछिाडे में घुस जाता है।"

प्रकतमा के चे हरे पर एक बार पु नः हैरत के भाि उभर आए। उसे इस िक्त लग ही


नही ं रहा था कक ये िही कशिा है जो इसके पहले हर लडकी या औरत को कसिग और
कसिग हिश की ऩिर से दे खता था। बल्कि इस िक्त तो िह दु कनया का सबसे शरीि
ि सं स्कारी कदखाई दे रहा था।

"कहते हैं कक दु कनयाॅ में कुछ भी असं भि नही ं है।" उधर कशिा कह रहा था___"अगर

891
ककसी ची़ि को पाने की कशद्दत से चाहत करो तो िो यकीनन हाॅकसल हो जाती है।
आप कजस ची़ि को असं भि कह रही हैं िो ची़ि भी सं भि हो सकती है माॅम, अगर
आप चाहो तो।"

"क्...क्ा मतलब???" प्रकतमा के माथे पर सलिटें उभरी ं।


"मतलब साि है माॅम।" कशिा ने कहा___"अगर आप और डै ड चाहें तो सोनम मेरी
जाने हयात ़िरूर बन सकती है और मैं उसे पा कर खु श हो सकता हूॅ।"

"तु म पागल हो गए हो बे टा।" प्रकतमा के चे हरे पर गहन बे चैनी के भाि उभरे ,


बोली___"सब कुछ जानते ि समझते हुए भी तु म बे मतलब की बातें ककये जा रहे हो।
तु म इस बात को समझ ही नही ं रहे कक ये ककतना ग़लत है और ककतना मु ल्किल है।
सोनम तु म्हारी बडी बहन है। िो तु म्हें अपना छोटा भाई ही मानती है। उसे नही ं पता
है कक उसका छोटा भाई उसके प्रकत कैसी सोच रखता है और क्ा चाहता है?"

"आप सोनम के माॅम डै ड से बात कीकजए माॅम।" कशिा ने कहा___"मैं सोनम को


मना लू ॅगा और अगर िो नही ं माने गी तो उससे कहूॅगा कक िो मु झे अपने प्यार की
भीख दे दे । मैं उसे बताऊगा कक मैं उसके कबना अब नही ं रह सकता। दू सरी बात जब
उसके माॅम डै ड इस ररश्े के कलए मान जाएॅगे तो किर उसे भी भला क्ा परे शानी
होगी?"

"हे भगिान।" प्रकतमा ने जैसे अपना माथा पकड कलया, किर बोली___"कैसे समझाऊ
इस लडके को? तु मने ये सोच भी कैसे कलया कक सोनम के माॅ बाप इस ररश्े के
कलए मान जाएॅगे? बल्कि सच्चाई तो ये है कक िो ये सब पता चलते ही तु म्हारे साथ
साथ हम सब पर भी लानत भे जेंगे और किर कभी हमारी शक्ल तक दे खना
न चाहेंगे।"

प्रकतमा की इस बात पर कशिा मन मसोस कर रह गया। एकाएक ही उसके चे हरे पर


ऐसे भाि आए जैसे उसे इन सब बातों से बे हद तक़लीि हुई हो। जबकक उसके चे हरे
पर उभर आए इन भािों को बडे ध्यान से दे खते हुए तथा समझाते हुए प्रकतमा ने नम्र
भाि से कहा____"दे ख बे टा इसमें इतना दु खी होने की ़िरूरत नही ं है। मैं अच्छी तरह
ते रे अं दर का हाल समझ सकती हूॅ। मु झे इस बात का एहसास है कक सोनम के प्रकत
तू ककस हद तक गंभीर हो चु का है। मगर बे टा सब कुछ िै सा ही नही ं हो जाया करता
जैसा हम चाह कलया करते हैं। यथाथग सच्चाई नाम की भी कोई ची़ि होती है कजसका
हमें बे बस होकर ही सही मगर सामना करना पडता है और उसे मानना भी पडता है।
ये तो तू भी अच्छी तरह जानता है कक सोनम ते री बडी मौसी की लडकी है और ररश्े
में िो ते री बडी बहन लगती है। सोनम की माॅ मेरी सगी बहन है इस कहसाब से ये

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ररश्ा सगा ही हो जाता है। अतः सगे ररश्े के बीच तु म्हारी और सोनम की शादी
हकगग ़ि भी नही ं हो सकती। अगर ऐसा होता कक सोनम की माॅ मेरी सगी बहन न
होकर दू र के ककसी ररश्े से बहन लगती तो ऐसा हो भी सकता था। इस कलए तु म्हें
इन सब बातों को सोच समझ कर अपने आपको समझाना होगा। मु झे पता है कक
अभी ये सब ते रे कलए बहुत मुल्किल होगा मगर ये करना ही होगा बे टा। िरना अभी
कजस बात से तु म्हें इतनी तक़लीि हो रही है उसी बात से आगे चल कर और भी
ज्यादा तक़लीि होगी। दु कनयाॅ में एक से बढ कर एक खू बसू रत लडककयाॅ हैं, तू
कजस लडकी से कहेगा हम उस लडकी से ते री शादी करें गे। मगर प्लीज सोनम का
खयाल अपने कदलो कदमाग़ से कनकाल दे । इसी में सबकी भलाई है।"

"ठीक है माॅम।" कशिा ने गहरी साॅस ली और किर एकाएक ही उसके चे हरे पर


दृढता के भाि आए, बोला____"अगर ऐसी बात है तो ठीक है। अब मैं कभी आपसे
नही ं कहूॅगा कक आप सोनम से मेरी शादी करिा दीकजए। खै र एक बात कहूॅ
माॅम, पता नही ं क्ों मुझे ऐसा लग रहा है कक जैसे ईश्वर ने मु झे मेरे पापों की स़िा
दे ना शु रू कर कदया है। हाॅ माॅम, ये स़िा ही तो है कक मु झे एक ऐसी लडकी से
बे पनाह मोहब्बत हो गई जो मेरी बहन लगती है और जो मुझे नसीब ही नही ं हो
सकती कभी। िरना ईश्वर अगर चाहता तो मु झे दू सरी ककसी ऐसी लडकी से प्यार
करिाता जो मु झे सहजता से कमल जाती। मगर नही ं उसे तो मेरे पापों की स़िा दे ना
था न मुझे। इस कलए ऐसा कर कदया उसने । कोई दू सरा इन सब बातों को समझे या न
समझे माॅम मगर मैं अच्छी तरह समझ गया हूॅ और अगर अपने कदल की सच्चाई
बयां करूॅ तो िो ये है कक मुझे ईश्वर के इस िैंसले पर कोई कशकायत नही ं है। अगर
ये सब करके िो मुझे मेरे पापों की स़िा ही दे ना चाहता है तो ठीक है माॅम मु झे
स्वीकार है ये। हर ब्यल्कक्त को अपने कमों का िल कमलता है, किर चाहे उसके अच्छे
कमों का हो या बु रे कमों का। ककतनी अजीब बात है न माॅम कक कुछ लोग सारी
क़िंदगी पाप करते हैं मगर उनको उनके पाप कमग की स़िा अं त में कमलती है मगर
मुझे तो अभी से कमलना शु रू हो गई।"

कशिा की बातें सु न कर प्रकतमा हैरत से ऑखें िाडे दे खती रह गई उसे । उससे कुछ
कहते तो न बन पडा था ककन्तु ये समझने में उसे ़िरा भी दे री न हुई कक उसके बे टे
का मानकसक सं तुलन आज इस हद तक कबगड गया है अथिा उसकी सोच इस हद
तक बदल गई है कक िो इस सबको अपने पाप कमों की स़िा समझने लगा है। कहते
हैं कक ककसी ब्यल्कक्त को आप सारी क़िदगी अच्छी ची़िों का बोध कराते रहो मगर उसे
अगर नही ं समझना होता है तो िो सारी क़िंदगी नही ं समझता मगर िक्त और हालात
के पास ऐसी खू कबयाॅ होती हैं कजनके आधार पर िह पलक झपकते ही इं सान को
आईना कदखा कर सब कुछ समझा दे ता है और म़िे की बात ये कक इं सान को समझ
में भी आ जाता है। यही हाल कशिा का था। उसे सब कुछ समझ आ चु का था, मगर

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कहते हैं न कक "का बरसा जब कृकष सु खाने "। बस िही दसा थी उसकी।

"खै र छोंकडये इन सब बातों को माॅम।" उधर कशिा ने जैसे प्रकतमा को होशो हिाश
में लाते हुए कहा___"अब से मैं कभी आपसे ऐसी बातें नही ं करूॅगा। आप ये सब
डै ड से भी मत बताना। िरना उन्हें लगेगा कक मैं भरपू र जिां मदग होते हुए भी इस
सबके चलते बे हद कम़िोर हो गया हूॅ। िो इस बात को नही ं समझेंगे कक इस सबसे
तो मैं और भी मजबू त हो गया हूॅ। मोहब्बत की चोंट को जो इं सान सह जाए उससे
मजबू त इं सान भला दू सरा कौन हो सकता है?"

प्रकतमा को समझ न आया कक िह अपने बे टे की इन सब बातों का क्ा जिाब दे ।


ककन्तु उसकी बातें उसे आश्चयगचककत ़िरूर ककये हुए थी ं। कािी दे र तक िह गंभीर
मुद्रा में ठगी सी बै ठी रही। होश तब आया जब एकाएक ही डर ाइं ग रूम में एक तरि
टे बल पर रखे लै ण्ड लाइन िोन की घंटी घनघना उठी थी।

"हैलो।" कशिा अपनी जगह से उठ कर तथा िोन के ररसीिर को कान से लगाते ही


कहा।
"ओह कशि बे टा।" उधर से अजय कसं ह की जानी पहचानी सी आिा़ि उभरी____"मैंने
तु म्हारे नाना जी को टर े न में बै ठा कदया है और अब मैं यही ं से िैक्टर ी के कलए कनकल
रहा हूॅ। अतः अब शाम को ही आऊगा।"

"ठीक है डै ड।" कशिा ने सामान्य भाि से कहा।


"़िरा अपनी माॅम से बात करिाओ।" उधर से अजय कसं ह ने कहा।
"एक कमनट डै ड।" कशिा ने कहने के साथ ही पलट कर प्रकतमा की तरि दे खा और
उसे बताया कक डै ड उससे बात करना चाहते हैं।

"हाॅ बोलो अजय।" प्रकतमा ने कशिा से ररसीिर ले कर उसे अपने बाएं कान से लगाते
हुए कहा___"क्ा बता है? पापा को टर े न में सकुशल बै ठा कदया है न तु मने ?"
"हाॅ उन्हें टर े न में बै ठा कर अभी अभी स्टे शन से बाहर आया हूॅ।" उधर से अजय
कसं ह ने कहा____"और अब मैं यही ं से िैक्टर ी जा रहा हूॅ। कािी कदन से नही ं गया हूॅ
तो िहाॅ जाना भी ़िरूरी है। बाॅकी सब ठीक है न?"

"हाॅ बाॅकी सब तो ठीक ही है।" प्रकतमा ने कहा___"नीलम, सोनम को अपना ये


गाॅि तथा अपने खे त कदखाने ले गई है। सोनम ने उससे कहा होगा कक उसे ये गाॅि
और उसके खे त दे खना है। अतः नीलम के साथ गई है िो।"

"ये क्ा कह रही हो तु म?" उधर से अजय कसं ह ने बु री तरह चौंकते हुए कहा___"उन
दोनो को तु मने जाने कैसे कदया प्रकतमा? क्ा तु म्हें पता नही ं है कक िो िहाॅ से भागने

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के उद्दे श्य से भी ये कहा होगा कक उन्हे गाॅि तथा खे त दे खना है? उफ्फ प्रकतमा तु मने
ये क्ा बे िकूिी की?"

"किक्र मत करो अजय।" प्रकतमा ने कहा___"उन दोनो के साथ मैने दो ऐसे आदकमयों
को भी भे जा है कजन आदकमयों को तु म्हारे दोस्त तु म्हारी मदद के कलए यहाॅ भे ज कर
गए थे । उन आदकमयों के रहते िो कही ं भी नही ं जा सकती।"

"अरे िो आदमी साले क्ा कर लें गे?" उधर से अजय कसं ह ने खीझते हुए
कहा___"तु म्हें तो पता है कक उस साले किराज ने एक साथ हमारे उतने सारे आदकमयों
का काम तमाम कर कदया था तो किर ये क्ा कर लें गे उसका? ओफ्फो प्रकतमा तु म्हें
उन दोनों को जाने ही नही ं दे ना चाकहए था। मु झे तु मसे ऐसी बे िकूिी की उम्मीद
हकगग ़ि भी नही ं थी।"

"तु म बे िजह ही इतना परे शान हो रहे हो कडयर।" प्रकतमा ने कहा___"मुझे भी पता है
कक हालात कैसे हैं और इन हालातों में क्ा हो सकता है? मैं उन दोनो को गाॅि तथा
खे त दे खने जाने से भला कैसे रोंक सकती थी? इसी कलए मैंने उनके साथ उन दो
आदकमयों को भे जा है। बात इतनी सी ही बस नही ं है बल्कि दू र का सोचते हुए मैने
उनके जाने के बाद उनके पीछे लगे रहने के कलए और भी आदकमयों को एक टीम
बना कर भे जा है। ऐसा इस कलए कक अगर िो दोनो सचमुच यहाॅ से भागने का ही ये
गाॅि तथा खे त दे खने का बहाना बनाया होगा तो िो ककसी भी तरह से भागने में
कामयाब न हो सकेंगी। कदखािे के कलए तथा कसचु एशन को सामान्य कदखाने के कलए
मैने उन दोनो के साथ कसिग दो ही आदमी उनकी सु रक्षा के तहत भे जे ककन्तु उनकी
जानकारी के कबना कुछ और आदकमयों की टीम को ये सोच कर उनके पीछे भे जा कक
अगर ये उनका यहाॅ से भागने का ही प्लान था तो ये भी ़िाकहर है कक ये प्लान
उन्होंने खु द नही ं बनाया होगा बल्कि यहाॅ से इस तरह कनकलने का प्लान किराज ने
ही उन्हें बताया होगा और कहा होगा कक िो दोनो हिे ली से बाहर कनकल कर ककसी
ऐसे थथान पर पहुॅचें गी जहाॅ से उन दोनो को िो बडी आसानी से ककन्तु बडी
सािधानी से हमारे उन दोनो आदकमयों के साथ रहने के बािजूद अपने साथ ले जा
सकें। किराज की इसी चाल को मद्दे ऩिर रखते हुए मैने उन दोनो के पीछे कुछ और
आदकमयों को एक मजबू त टीम बना कर भे जा है तथा साथ ही ये भी उन्हें कह कदया है
कक अगर सचमुच िहाॅ ऐसा कुछ होता कदखे तो िो बे कझझक दू सरी पाटी यानी
किराज ि ररतू पर गोकलयाॅ चला सकते हैं। ककन्तु इतना ़िरूर ध्यान दें गे कक उनकी
गोकलयों से उन दोनो में से ककसी की भी मौत न हो जाए। बल्कि उन्हें इस ल्कथथत में
लाना है कक िो कुछ करने के लायक न रह जाएॅ। उसके बाद िो उन्हें पकड कर
हमारे िामगहाउस पर ले आएॅगे।"

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"अगर ऐसा है तो किर ठीक है।" उधर अजय कसं ह ने मानो राहत की साॅस ली थी,
बोला___"मगर मुझे इस सबसे भी सं तुकष्ट नही ं हो रही प्रकतमा। पता नही ं क्ों मु झे
ऐसा लगता है कक हमारे इतने आदकमयों के रहते हुए भी िो कमीना उन दोनो को
अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाएगा।"

"ऐसा तु म इस कलए कह रहे हो कडयर।" प्रकतमा ने सहसा मुस्कुरा कर


कहा___"क्ोंकक तु मने अभी तक इस मामले में कोई सिलता हाॅकसल नही ं की है।
हर बार तु मने अपने आदकमयों की िजह से नाकामी का स्वाद चखा है। इस कलए तु म्हें
इस सबके बािजूद किश्वास या सं तुकष्ट नही ं हो रही कक हमारे आदमी किराज के मंसूबों
को नाकाम कर पाएॅगे ।"

"ये तो सच कहा तु मने प्रकतमा।" अजय कसं ह बोला___"पर क्ा करूॅ यार हालात हर
कदन पहले से कही ं ज्यादा गंभीर ि बदतर होते जा रहे हैं। मैं ये ककसी भी कीमत पर
नही ं चाहता हूॅ कक एक और नाकामी की मु हर मेरे माथे की शोभा बढाने लगे । इस
कलए मैं खु द ही आ रहा हूॅ िहाॅ। िैक्टर ी जाना इतना भी ़िरूरी नही ं है। मैं आ रहा
हूॅ कडयर। इस बार मैं उस हराम़िादे को कामयाब नही ं होने दू ॅगा।"

"ठीक है माई कडयर।" प्रकतमा ने कहा___"तु म्हें जैसा अच्छा लगे करो। िै से कब तक
पहुॅच जाओगे यहाॅ?"
"कजतना जल्दी पहुॅच सकूॅ।" अजय कसं ह ने कहा___"खै र चलो रखता हूॅ िोन।"

इसके साथ ही काल कट हो गई। अजय कसं ह से बात करने के बाद प्रकतमा पलट कर
िापस सोिे की तरि आई और बै ठ गई। चे हरे पर अनायास ही गंभीरता छा गई थी
उसके। किर उसने कशिा की तरि दे खते हुए कहा___"बे टा सकिता से कहो कक
अच्छी सी चाय बना कर लाए मेरे कलए।"
"ओके माॅम।" कशिा ने कहा और सोिे से उठ कर अं दर की तरि चला गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मुम्बई में।
ब्रे क िास्ट करने के कलए सब एक साथ ही बै ठे हुए थे । कजनमें जगदीश ओबराय,
अभय कसं ह, पिन, कदव्या, आशा तथा कनधी बै ठे हुए थे । गौरी, रुल्कक्मर्ी तथा करुर्ा
सबके कलए नास्ता परोस रही थी ं। ब्रे किास्ट करते हुए सबके बीच थोडी बहुत
बातचीत भी हो रही थी। ककन्तु इस बीच आशा की कनगाहें थोडे थोडे समय के
अं तराल से कनधी पर पड ही जाती थी।

कनधी जो कक अब ज्यादातर खामोश ही रहती थी। िो ककसी से भी खु द से कोई बात


नही ं करती थी। हलाॅकक सब यही चाहते थे कक िो सबसे बातें करे तथा अपनी

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शरारत भरी बातों से माहौल को सामान्य बनाए रखे मगर ऐसा हो नही ं रहा था।
सबने उससे पू छा भी था कक िो अचानक इस तरह चु प चु प तथा गुमसु म सी क्ों
रहने लगी है मगर उसने बस यही कहा था कक िो बस अपने भइया के चले जाने से
ऐसी हो गई है। उसकी बातों को सब यही समझ रहे थे किराज कजस काम से गया है
िो यकीनन बहुत खतरे िाला है कजसके बारे में सोच कर कनधी इस तरह चु प हो गई
है। आकखर ये बात तो सब जानते ही थे कक कनधी किराज की जान है तथा कनधी भी
अपने भाई पर जान कछडकती है। मगर असकलयत से आशा के अलािा हर कोई
अं जान था।

चु पचाप नास्ता कर रही कनधी की ऩिर सहसा सामने ही कुसी पर बै ठी तथा नास्ता
कर रही आशा पर पडी तो िो ये दे ख कर एकाएक ही सकपका गई कक आशा उसे
ही एकटक दे खे जा रही है। उसके ़िहन में पलक झपकते ही सु बह का डायरी िाला
सीन याद आ गया। उसके कदमाग़ ने काम ककया और उसे ये सोचने पर मजबू र ककया
कक आशा दीदी उसे इस तरह एकटक क्ों दे खे जा रही हैं। उनकी ऑखों में कुछ
ऐसा था कजसने कनधी को अं दर तक कहला सा कदया था और किर एकाएक ही जैसे
उसके कदमाग़ की बिी रौशन हुई। उसके मन में खयाल उभरा कक कही ं ऐसा तो नही ं
कक आशा दीदी ने उसके सोते समय डायरी को हाॅथ ही नही ं लगाया हो बल्कि उसे
पढ भी कलया हो। इस खयाल के आते ही कनधी की हालत पल भर में खराब हो गई।
मन के अं दर बै ठा चोर इतना घबरा गया कक किर उसमें ऩिर उठा कर दु बारा आशा
की तरि दे खने की कहम्मत न हुई।

कनधी ने नोकटस ककया कक कजस अं दा़ि से आशा उसे दे ख रही थी उससे तो यही
लगता है कक उसने डायरी में कलखी बातें पढ ली हैं और जान गई है कक उसमें कलखे
गए हर लफ़्ि का मतलब क्ा है? कनधी की हालत ऐसी हो गई कक अब उससे िहाॅ
पर बै ठे न रहा गया। उसने जो खाना था खा कलया और किर िह एक झटके से उठी
और ऊपर अपने कमरे की तरि ते ़ि ते ़ि क़दम बढाते हुए चली गई। कमरे में जाकर
उसने स्कूल की यूनीिामग पहनी तथा अपना स्कूली बै ग उठाया और किर िौरन ही
कमरे से बाहर आ गई।

उसे इतना जल्दी बाहर आते दे ख हर कोई चौंका मगर चू ॅकक उसके स्कूल जाने का
समय होने ही िाला था अतः इस पर ज्यादा ककसी ने ग़ौर न ककया। उसने दू र से ही
हाॅथ कहला कर सबको बाय ककया और बगले से बाहर की तरि बढ गई। बाहर आते
ही उसने एक ऐसे आदमी को आिा़ि दी जो हर कदन कार से उसे स्कूल छोंडने और
स्कूल से लाने का काम करता था। खै र, कुछ ही दे र में कनधी कार में बै ठ कर स्कूल
की तरि रिाना हो गई। ककन्तु अब उसका मन बे हद अशान्त हो चु का था। उसे ये
डर सताने लगा था कक अगर सचमुच आशा ने उसकी डायरी पढ ली होगी तो उसे

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यकीनन पता चल गया होगा कक िो अपने ही सगे भाई से प्यार करती है और आज
कल उसी के ग़म में गुमसु म रहने लगी है।

कनधी को प्रकतपल ये सब बातें और भी ज्यादा कचं कतत ि परे शान ककये जा रही थी। उसे
समझ नही ं आ रहा था कक अब िह क्ा करे ? कैसे अब िो अपनी आशा दीदी के
सामने जाएगी तथा उन्हें अपना चे हरा कदखाएगी? अगर आशा ने उससे इस बारे में
कुछ पू छा तो िो क्ा जिाब दे गी? उसे पहली बार एहसास हुआ कक डायरी कलख कर
उसने ककतनी बडी ग़लती की है। िरना ककसी को इस बात का पता ही न चलता कक
उसके कदल में क्ा है। मगर अब क्ा हो सकता था? तीर तो कमान से कनकल चु का
था। अतः अब तो बस इं त़िार ही ककया जा सकता था इस सबके पररर्ाम का। कनधी
के मन ही मन ये कनर्ग य कलया कक अब िो आशा दीदी के सामने नही ं जाएगी और ना
ही उनसे कोई बात करे गी। मगर उसे खु द लगा कक ऐसा सं भि नही ं हो सकता। उसे
उनका सामना तो करना ही पडे गा क्ोंकक िो ज्यादातर उसके पास ही रहती हैं तथा
रात में उसके ही कमरे में उसके साथ एक ही बे ड पर सोती भी हैं।

ये मामला ही ऐसा था कक इसने कनधी की हालत को इस तरह कर कदया था जैसे अब


उसके अं दर प्रार् ही न बचे हों। िह एकदम से जैसे क़िदा लाश में तब्दील हो गई हो।
उसके मन में ये भी खयाल उभरा कक अगर आशा दीदी ने िो सब ककसी से बता कदया
तो क्ा होगा? उसकी माॅ गौरी तो उसे जीते जी जान से मार दे गी। कोई उसके अं दर
की भािनाओं को नही ं समझेगा बल्कि सब उसे ग़लत ही समझेंगे। अगर ये भी कहें
तो ग़लत न होगा कक उसने ये सब अपनी नई नई जिानी को बदागश् न कर पाने की
गऱि से अपने ही भाई को िसाने का सोच कर ककया होगा। इस खयाल के आते ही
कनधी को आत्मिाकन के चलते बे हद दु ख हुआ। उसकी झील सी नीली ऑखों से
पलक झपकते ही ऑसू ॅ छलक कर कगर पडे । ककन्तु उसने जल्दी से उन्हें ये सोच कर
पोंछ भी कलया कक कही ं डर ाइिर उसे बै ककमरर के माध्यम से ऑसू बहाते दे ख न ले ।

सारे रास्ते इन सब बातों को सोचते हुए कनधी को पता ही नही ं चला कक िो कब स्कूल
पहुॅच गई? होश तब आया जब डर ाइिर ने उससे कहा कक उसका स्कूल आ गया है।
डर ाइिर पचास की उमर का ब्यल्कक्त था। उसका ये रो़ि का ही काम था। उसे कनधी से
कािी लगाि भी हो गया था। उसे िो अपनी बे टी की तरह मानता था। कपछले कुछ
समय से िो खु द भी दे ख रहा था कक कनधी एकाएक ही गुमसु म सी हो गई है। उसने
भी कई बार इस बारे में उससे पू छा था मगर कनधी ने उससे भी यही कहा था कक िो
अपने भइया के कलए दु खी रहती है। भला िो ककसी से अपने गुमसु म रहने की िजह
कैसे बता सकती थी?

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कार से उतर कर कनधी बहुत ही बोकझल मन से अपने स्कूल के मुख्य दरिाजे की
तरि बढती चली गई। स्कूल में उसकी अच्छी अच्छी कई सहे कलयाॅ बन गई थी। िो
सब भी कनधी की इस खामोशी से परे शान ि कचं कतत थी। मगर िो कर भी क्ा सकती
थी?

इधर कनधी के जाने के थोडी दे र बाद ही आशा कनधी के कमरे में पहुॅची। कमरे को
उसने अं दर से कंु डी लगा कर बं द ककया और किर पलट कर कनधी की डायरी की
तलाश करने लगी। मगर बहुत ढू ॅढने पर भी उसे कनधी की िो डायरी कही ं न कमली।
उसने हर जगह बडी बारीकी से चे क ककया मगर डायरी तो जैसे गधे के कसर का सी ंग
हो गई थी। सहसा आशा को खयाल आया कक कनधी अपनी डायरी को ऐसी िै सी
जगह नही ं रख सकती कजससे िो ककसी के हाॅथ लग जाए। ़िाकहर सी बात है कक
ऐसी डायरी िो ककसी के हाॅथ लगने भी कैसे दे सकती थी कजसे ककसी के द्वारा पढ
कलए जाने के बाद उस पर क़यामत टू ट पडती। मतलब साि है कक उसने उस डायरी
को ऐसी जगह छु पा कर रखा होगा जहाॅ से कमलना ककसी दीगर ब्यल्कक्त के कलए
लगभग असं भि ही हो।

इस खयाल के तहत आशा ने सोचा कक ऐसी जगह तो इस कमरे में कदाकचत


आलमारी और आलमारी के अं दर िाला लाॅकर ही हो सकता है जहाॅ पर कनधी ने
अपनी डायरी छु पाई हो सकती है। अतः आशा ने आगे बढ कर आलमारी खोला और
आलमारी के अं दर मौजूद लाॅकर को चे क ककया तो उसे लाॅक पाया। अं दर के उस
लाॅकर की चाभी को उसने ढू ॅढना शु रू कर ककया मगर चाभी कही ं नही ं कमली
उसे । आलमारी में रखी एक एक ची़ि तथा एक एक कपडे को उलट पलट कर दे खा
उसने मगर चाभी कही ं न कमली। थक हार कर किर उसने हर ची़ि को उसी तरह
जमा कर रखना शु रू ककया जैसे िो पहले रखी हुई थी ं उसके बाद िह बे ड पर आकर
धम्म से बै ठ गई और गहरी गहरी साॅसें ले ने लगी।

कािी दे र तक बे ड पर बै ठी िो चाभी के बारे में सोचती रही किर उसे लगा कक सं भि


है कक लाॅकर की चाभी कनधी अपने पास ही रखती हो। यानी इस िक्त िो चाभी
उसके पास उसके स्कूली बै ग में ही होगी। बात भी सच थी आकखर िो चाभी अपने
पास ही तो रखे गी िरना ऐसे में तो कोई भी उसकी चाभी ढू ॅढ कर लाॅकर खोल
सकता था तथा उसकी डायरी कनकाल सकता था और किर उसे पढ भी सकता था।
आशा को ये बात सौ परसे न्ट जची।

आशा की ऑखों के सामने सु बह ब्रे किास्ट करते िक्त का सीन फ्लैश करने लगा।
जब िो बार बार कनधी की तरि दे ख रही थी और किर कनधी ने भी उसको अपनी
तरि एकटक दे खते हुए दे खा था। उस िक्त उसकी हालत बहुत ही दयनीय सी हो

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गई थी। आशा को समझते दे र न लगी कक कनधी को उसके इस तरह दे खने से ये
समझ में आ गया होगा कक उसने सु बह उसकी डायरी को शायद पढ कलया होगा और
उसका रा़ि जान चु की होगी। ये सोच ही उसकी हालत खराब हो गई थी। आशा
जानती थी कक प्यार करना कोई जुमग नही ं है , ककन्तु यही प्यार अगर बहन अपने ही
भाई से कर बै ठे तो यकीनन ये अनु कचत तथा ग़लत हो जाता है। कदाकचत यही िजह
थी कक कनधी की िै सी हालत हो गई थी। उसे डर सताने लगा था कक आशा दीदी
उसके बारे में क्ा क्ा सोचें गी और अगर ये बात ककसी को बता कदया तो इसका क्ा
अं जाम हो सकता है।

आशा को ये भी एहसास था कक किराज है ही ऐसा कक उससे कोई भी लडकी प्यार


कर बै ठेगी। किर चाहे िो बाहरी लडकी हो या किर खु द उसकी ही बहन। िो खु द भी
तो किराज को शु रू से ही अपना सब कुछ मानती आ रही थी। उसे खु द नही ं पता था
कक िो कब किराज को अपना कदल दे बै ठी थी और किर जब उसे एहसास हुआ कक िो
किराज को बे पनाह प्यार करने लगी है तो एकाएक ही हसती खे लती आशा का समूचा
अल्कस्तत्व ही बदल गया था। आज कजस खामोशी को कनधी ने अल्कख़्तयार कर कलया था
उसी खामोशी को एक कदन उसने भी तो ऐसे ही अल्कख़्तयार कर कलया था। अपने प्रे म
को उसने किराज के सामने कभी उजागर नही ं ककया क्ोंकक उसे पता था कक किराज
उसे अपनी बहन ही मानता है। दू सरी बात अगर िो उससे अपने प्रे म का इ़िहार
करती भी तो बहुत हद तक सं भि था कक किराज उसे ग़लत समझ बै ठता या उसके
इस प्रे म को ये कह कर ठु करा दे ता िो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? दू सरी बात, एक
तो उमर में िो किराज से बडी थी दू सरे आकथग क तं गी के चलते उसकी शादी भी नही ं
हो रही थी। इस सबसे किराज को ही नही ं बल्कि सबको भी यही लगता कक आशा से
अपनी जिानी की गमी बदागस्त नही ं हुई इस कलए उसने किराज के साथ सं बंध बनाने
के कलए प्यार का नाटक शु रू कर कदया है। तीसरी महत्वपू र्ग बात िो भले ही चु लबु ल
ि नटखट स्वभाि की थी ककन्तु कसिग अपने भाइयों के कलए बाॅकी बाहरी लोगों के
सामने उसने कभी अपना कसर तक न उठाया था। लोक लाज तथा घर की मान
मयागदा का खयाल ही था कजसने उसके लब हमेशा के कलए कसल कदये थे ।

जब उसे डायरी के द्वारा ये पता चला कक कनधी अपने ही भाई से प्यार करती है तो
सहसा उसे झटका सा लगा था और उसके कदल में भािनाओं और जज़्बातों का ये
सोच कर भयंकर तू िान उठा था कक कजस किराज को िो अपना सब कुछ मानती आ
रही है उस पर तो उसका कोई हक़ ही नही ं है । बल्कि सबसे पहला हक़ तो उसकी
खु द की बहन का ही हो गया है। उसने भी सोच कलया कक चलो यही सही। प्यार
मोहब्बत तो कम्बख़्त नाम ही उस बला का है जो कसिग ददग दे ना जानती है इश्क़
करने िालों को। उसे कनधी पर बे हद तरस भी आया कक इस मासू म ने उस शख्स से
कदल का रोग लगा कलया जो इसका हो ही नही ं सकता। ये समाज ये दु कनया कभी भाई

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बहन के इस ररश्े को स्वीकार नही ं करे गी। दु कनयाॅ की छोंडो खु द उसके ही माॅ
बाप या सं बंधी इसके ल्कखलाि हो जाएॅगे। कहने का मतलब ये कक मोहब्बत ने एक
और कशकार िाॅस कलया बे इंतहां ददग और तक़लीि दे ने के कलए।

आशा जानना चाहती थी कक कनधी को अपने ही भाई से इस हद तक प्यार कैसे हो


गया है? आकखर ऐसे क्ा हालात बन गए थे कजसके तहत कनधी ने ये रोग लगा कलया
था? दू सरी बात क्ा ये बात किराज को भी पता है कक उसकी लाडली बहन उससे इस
हद तक प्यार करती है? उसे पता था कक डायरी एक ऐसी ची़ि होती है कजसमें हर
इं सान अपने अं दर की हर सच्चाई को पू र्गरूप से सच ही कलखता है। अतः सं भि है
कक कनधी ने भी उस डायरी में िो सब कलखा हो कजसके तहत उसे पता चलता कक
ककन हालातों में ऐसा हुआ था? हलाॅकक उसे ये भी पता था कक ककसी भी इं सान की
पशग नल डायरी उसकी इजा़ित के कबना पढना कनहायत ही ग़लत होता है मगर किर
भी िो पढना चाहती थी।

आशा सोच रही थी कक ब्रे किास्ट करते िक्त कनधी की जो हालत हुई थी उससे कही ं
िो कुछ उल्टा सीधा करने का न सोच बै ठे। ये मामला ही ऐसा है कक िो इस सबसे
बहुत डर जाएगी और ककसी के पता चल जाने के डर से िो कुछ उल्टा सीधा करने
का सोच बै ठे। बे ड पर बै ठी आशा को एकाएक ही हालात की गंभीरता का एहसास
हुआ। उसका कदल बु री तरह धडकने लगा। उसे कनधी की कचं ता सताने लगी। उसने
िौरन ही कनधी से बात करने का सोचा। ककन्तु उसके पास खु द का कोई मोबाइल
नही ं था।

आशा अकतसीघ्र बे ड से नीचे उतरी और भागते हुए कमरे से बाहर आई और किर


नीचे की तरि दौड पडी। थोडी ही दे र में िो गौरी आकद लोगों के पास पहुॅच गई।
उसने खु द के चे हरे पर उभर आए घबराहट के भािों को जल्दी से छु पाया और
लगभग सामान्य लहजे में ही गौरी से मोबाइल िोन माॅगा। ककन्तु गौरी ने बताया कक
मोबाइल तो उसके पास है ही नही ं, उसे तो मोबाइल चलाना ही नही ं आता। दू सरी
बात ये कक उसे मोबाइल की कभी ़िरूरत ही नही ं पडी। गौरी की ये बात सु नकर
आशा बु री तरह परे शान हो गई। लाख कोकशशों के बािजूद उसके चे हरे पर से
परे शानी के िो भाि न कमट सके जो उसके चे हरे पर ढे र सारे पसीने में भी ंगे कदखने
लगे थे । कजसका नतीजा ये हुआ कक गौरी पू छ ही बै ठी उससे कक क्ा बात है िो इतना
परे शान क्ों हो गई है। गौरी की बात का उसने आनन िानन में ही जिाब कदया।
तभी िहाॅ पर करुर्ा भी आ गई। गौरी ने कुछ सोचते हुए करुर्ा से कहा कक िो
अपना मोबाइल िोन आशा को दे दे ।

करुर्ा ने अपना मोबाइल िोन आशा को ये पू छते हुए दे कदया कक क्ा बात है तु म

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इतना परे शान क्ों ऩिर आ रही हो। कुछ बात है क्ा? आशा ने कहा नही ं चाची
ऐसी कोई बात नही ं है िो क्ा है कक उसे गु कडया को िोन करना है तथा उससे पू छना
है कक आज िो इतना जल्दी स्कूल क्ों चली गई थी? आपने दे खा नही ं था क्ा उसने
ठीक से नास्ता भी नही ं ककया है आज? आशा की इन बातों से गौरी, करुर्ा तथा
रुल्कक्मर्ी सहज हो गईं। उन्हें भी बात सही लगी। क्ोंकक उन्होंने भी दे खा था कक
कनधी ने बस थोडा बहुत ही खाया था और किर स्कूल चली गई थी। खै र आशा का
कनधी के कलए इस तरह कचं ता करना उन सबको बहुत अच्छा लगा।

करुर्ा से मोबाइल ले कर आशा िौरन ही िापस कमरे में आई और उसने किर से


दरिाजा उसी तरह अं दर से कंु डी लगा कर बं द कर कदया। उसके बाद िो बे ड पर आ
कर बै ठ गई। किर जाने उसे क्ा सू झा कक िह बे ड से उठी और कमरे से ही अटै च
बाथरूम की तरि बढ गई। बाथरूम का दरिाजा अं दर से बं द कर उसने मोबाइल
पर कनधी का नं बर कनकाला और किर उसे काल लगा कर मोबाइल अपने कान से
लगा कलया। इस िक्त उसके चे हरे पर गहन कचं ता ि परे शानी िष्ट रूप से उभर आई
थी। ररं ग की आिा़ि जाती सु नाई दी उसे और इसके साथ ही उसकी धडकनें भी बढ
गईं। मन ही मन ईश्वर से प्राथग ना भी करने लगी कक सब कुछ ठीक ही हो।

"ह..है लो।" तभी उधर से कनधी का लगभग घबराया हुआ सा स्वर उभरा___"च..चाची
िो मैं.....।"
"गुकडया।" कनधी की बात को काटते हुए आशा ने िौरन ही कहा___"मैं ते री आशा
दीदी बोल रही हूॅ और हाॅ िोन मत काटना तु झे राज की क़सम है।"

"द..दीदी आप??" उधर से कनधी का बु री तरह उछला हुआ ककन्तु घबराया हुआ स्वर
िूटा था।
"गुकडया।" आशा ने असहज भाि से ककन्तु समझाते हुए कहा___"दे ख तू कोई भी
उल्टा सीधा करने का खयाल अपने मन में मत लाना। अगर तू ये सोच कर डर गई है
कक मु झे डायरी के माध्यम से ते रा रा़ि पता चल गया है और मैं उसकी िजह से तु झे
कुछ कहूॅगी या किर िो सब ककसी से कह दू ॅगी तो तू उस सबकी िजह से डर मत
और ना ही उससे घबरा कर कुछ ग़लत क़दम उठाने का सोचना। मैं तु झे उसके कलए
कुछ नही ं कहूॅगी गुकडया और ना ही ककसी को बताऊगी। मु झे पता है कक ये प्यार
व्यार ऐसे ही होता है जो ररश्े नाते नही ं दे खता। अतः तू इस सबके कलए कबलकुल भी
मत घबराना और ना ही िालतू का टें शन ले ना। तू सु न रही है न गुकडया???"

"हम्म।" उधर से कनधी का बहुत ही धीमा स्वर उभरा।


"मुझे इस बात के कलए माफ़ कर दे गु कडया।" आशा ने सहसा दु खी भाि से
कहा___"कक मैने ते री डायरी को छु आ और उसे खोल कर पढा भी। ककन्तु ये सब मैने

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जान बू झ कर नही ं ककया था। बल्कि िो सब अं जाने में हो गया था। दरअसल जब मैं
ते रे पास सु बह ते रे कलए चाय ले कर आई तो दे खा कक तू उस डायरी को अपने दोनो
हाॅथों से पकडे सो रही थी। मु झे लगा ऐसी डायरी ते री पढाई में तो उपयोग होती
नही ं होगी तो किर ये कैसी डायरी है तथा क्ा है इसमें कजसे इस तरह कलये तू सो रही
है? बस यही जानने के कलए मैने उस डायरी को ते रे हाॅथों से ले कर उसे खोला।
ककन्तु मु झे उसमें िो सब पढने को कमल गया। ले ककन गुकडया मैने और कुछ नही ं पढा
उसमें। शु रू का ही पे ज पढा था और िो ग़़िल पढी थी कजसमें तू ने कलखा
था___"बताना भी नही ं मु मककन, हाॅ ऐसे ही कुछ कलखा था उसमे।"

"क..क्ा आप सचमुच इस सबके कलए मु झसे नारा़ि या गुस्सा नही ं हैं दीदी?" उधर
से कनधी का अभी भी धीमा ही स्वर उभरा था।
"हाॅ गुकडया।" आशा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"मैं तु झसे कबलकुल भी नारा़ि
नही ं हूॅ। भला मैं तु झसे नारा़ि हो भी कैसे सकती हूॅ पागल? ककन्तु हाॅ इस बात से
दु खी ़िरूर हूॅ कक सबको अपनी शरारतों से परे शान करने िाली मेरी ये लाडली
बहन ने एकाएक ही खु द को उदासी की चादर में ढाॅि कलया है।"

"िक्त और हालात हमेशा एक जैसे तो नही ं हो सकते न दीदी।" उधर से कनधी ने


अजीब भाि से कहा___"इं सान के जीिन में कभी खु शी तो कभी ग़म िाला समय तो
आता जाता ही रहता है। मेरे पास इसके पहले िै से ही िक्त और हालात थे जबकक मैं
खु श रहा करती थी और शरारतें करने के कसिा कुछ नही ं आता था मु झे। मगर अब
हालात बदल गए हैं। ईश्वर को मेरा खु श रहना और मेरा िो शरारतें करना शायद
अच्छा नही ं लगा तभी तो उसने मु झे कदल का रोगी बना कदया। एक ऐसे इं सान के
कलए उसने मेरे कदल में प्रे म का बीज बो कदया जो इं सान मेरा हो ही नही ं सकता। खै र
जाने दीकजए दीदी, मैने बहुत हद तक खु द को समझा कलया है। हलाॅकक ये मुल्किल
तो था मगर कोई बात नही ं। इतना तो अब सहना ही पडे गा न मु झे। मैने भी सोचा कक
ऐसे इं सान को पाने की क़िद भी क्ा करना जो मु झे कमल ही न सके और कजसकी
िजह से सब कुछ ने स्तनाबू त भी हो जाए।"

कनधी की इन बातों ने आशा को जैसे एकदम से खामोश सा कर कदया। उसे समझ न


आया कक िो उसकी बातों का क्ा जिाब दे ? ककन्तु इतना एहसास ़िरूर हो गया
उसे कक कजस लडकी को सब लोग बच्ची समझते हैं तथा कजसके बारे में ये सोचते हैं
कक उसे दु कनयादारी की अभी कोई समझ नही ं है िो लडकी दरअसल अब बहुत बडी
हो गई है। कदाकचत इतनी बडी कक अपनी इस छोटी सी ऊम्र में भी िो बडे बडे
बु जुगों तथा बडे बडे ज्ञाकनयों को नसीहतें दे सकती है। क्ा प्रे म ऐसा भी होता है जो
अचानक ही इं सान को इतना बडा और इतना बडा ज्ञानी बना दे ता है कजसके चलते
िो यथाथग और ज्ञान की बातें करने लगे?

903
"आपने ऐसा कह कर यकीनन मेरे कदल को राहत पहुॅचाई है दीदी।" उधर से कनधी
कह रही थी___"िरना ये सच है कक मैं इस सबसे बहुत ही ज्यादा घबरा गई थी और
कचं कतत भी हो गई थी। मैं नही ं चाहती दीदी कक मेरी िजह से सब कुछ खत्म हो जाए
और अगर सच में आपने ककसी से िो सब कुछ बता कदया होता तो ये भी सच है कक
किर मेरे पास आत्म हत्या कर ले ने के कसिा कोई दू सरा चारा न रह जाता। मैं ककसी
को अपना मुह न कदखा पाती और ना ही एक पल के कलए भी िै सी जलालत भरी
क़िंदगी जी पाती।"

"चु प कर तू ।" आशा की ऑखों से ऑसु ओ ं का जैसे बाॅध सा िूट पडा, बु री तरह
तडप कर बोली___"खबरदार जो दु बारा किर कभी आत्महत्या िाली बात की। तू सोच
भी कैसे सकती है पागल कक मैं ककसी से उस बारे में कुछ कह दे ती? इतनी पत्थर कदल
नही ं हूॅ गुकडया। मेरे सीने में भी ते री तरह एक ऐसा कदल धडकता है कजसमें ककसी के
कलए बे पनाह मोहब्बत जाने कब से अपना आकशयां बना कर रहती है।"

"य..ये आप क्ा कह रही हैं दीदी??" उधर से कनधी का बु री तरह चौंका हुआ स्वर
उभरा___"आप भी ककसी से मोहब्बत करती हैं ?"
"क्ों गु कडया?" आशा ने सहसा िीकी मु स्कान के साथ कहा___"क्ा मुझे ककसी से
मोहब्बत नही ं हो सकती? क्ा मेरे अं दर एहसास नही ं हैं? अरे मेरे सीने में भी तो ऐसा
कदल है जो धडकना जानता है रे ।"

"मेरा िो मतलब नही ं था दीदी।" उधर से कनधी ने मानो सकपकाते हुए कहा___"मैं तो
बस आपकी इस बात से हैरान हुई थी कक आप भी ककसी से मोहब्बत करती हैं। िै से
कौन है िो शख्स कजसे मेरी प्यारी सी दीदी मोहब्बत करती है? मुझे भी तो बताइये न
दीदी।"

"बहुत मुल्किल है गु कडया।" आशा के चे हरे पर एकाएक ही कई सारे भाि आ कर


ठहर गए, बोली___"बस यूॅ समझ ले कक एकतरिा मोहब्बत है ये।"
"मोहब्बत तो है न दीदी।" उधर से कनधी ने कहा__"इससे कोई िक़ग नही ं पडता कक
िो एकतरि से है या किर दोनो तरि से । मोहब्बत तो मोहब्बत ही होती है चाहे िो
ककसी की भी तरि से हो। आप बताइये न ककससे मोहब्बत करती हैं आप? मु झे ये
जानने की बडी तीब्र उत्सुकता हो रही है प्ली़ि बताइये न।"

"मुझे मजबू र मत कर गुकडया।" आशा की आिा़ि जैसे काॅप सी गई, बोली___"िषों


से दबे उस मोहब्बत के एहसास को दबा ही रहने दे । क्ोंकक मु झे इतने की ही आदत
पड चु की है और इतने से ददग को ही सहने की कहम्मत है मु झमे। िो अगर बाहर आ

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गई तो किर मैं उसे और उसके असहनीय ददग को सम्हाल नही ं पाऊगी। इस कलए
मुझसे मत पू छ मेरी गु कडया। मैं तु झे ही क्ा उस शख्स को भी नही ं बता सकती कजसे
टू ट टू ट कर िषों से चाहा है मैने।"

"हाय दीदी।" उधर से कनधी की मानो कससकी सी कनकल गई। कदाकचत ऐसा इस
कलए क्ोंकक दोनो एक ही रोग के रोगी थे । खै र कनधी ने कहा___"ये कैसा रोग है
दीदी? ये कैसा ददग है, ये कैसा एहसास है? न जी पाते हैं और ना ही मर पाते हैं। ना
चाहते हुए भी उससे िाॅसला कर ले ते हैं कजसके कबना पल भी रह नही ं पाते हैं।"

"जाने दे गु कडया।" आशा के अं दर से एक हूक सी उठी थी कजसने उसे कहला कर रख


कदया था, बोली___"ऐसी बातें मत कर िरना इनका असर ऐसा होता है कक किर एक
पल भी सु कून नही ं कमलता। इस कलए ़िरूरी है कक हम अपने मन को अथिा कदल को
बहला लें ककसी तरह।"

"हाॅ ये तो सच कहा आपने ।" कनधी ने कहा___"हमें तो हर हाल में खु द को तथा


अपने कदल को बहलाना ही होता है। ककन्तु अगर आप बताना नही ं चाहती हैं तो कोई
बात नही ं। अगर कभी कदल करे कक आपको अपने कदल के बोझ को हिा करना है
तो मु झसे िो सब बता कर ़िरूर खु द को हिा कर लीकजएगा।"
"चल बाय।" आशा ने गहरी साॅस ली___"अपना खयाल रखना और हाॅ अपने चे हरे
की ये उदासी को कम करने की कोकशश भी करना।"

आशा की इस बात पर उधर से कनधी ने हाॅ कहा और किर काल कट गई। बाथरूम
के अं दर एक तरि की दीिार पर लगे आईने के सामने खडी आशा काल कट होने
के बाद कुछ दे र तक आईने में खु द को दे खती रही और किर सहसा उसके लब
थरथराते हुए कहले ___"तु झे कैसे बता दू ॅ गुकडया कक मेरे कदल में ककस शख्स के प्रकत
बे पनाह मोहब्बत है? अगर तु झे पता चल जाए कक मु झे भी उसी से मोहब्बत है कजससे
तु झे है तो बहुत हद तक सं भि है कक ते रा कदल टू ट जाएगा और किर तू सब कुछ
जानते समझते हुए भी खु द को कबखर जाने से रोंक नही ं पाएगी।"

आईने में कदख रहे अपने अक्श को एकटक दे खती हुई आशा की ऑखों से एकाएक
ही ऑसु ओ ं के दो मोती छलकते हुए नीचे बाथरूम के िसग पर कगर कर मानो िना
हो गए। किर उसने जैसे खु द को सम्हाला और मोबाइल को एक तरि रख कर
उसने िाश बे कसन पर लगे नलके को चला कर उसके पानी से अपने चे हरे को धोना
शु रू कर कदया। उसके बाद उसने एक तरि हैंगर पर टगे टाॅिे ल से अपने धुले हुए
चे हरे को पोंछा और किर मोबाइल ले कर बाथरूम से बाहर आ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

905
उधर नीलम ि सोनम की तरि।
नीलम ि सोनम जीप की कपछली सीट पर बै ठी हुई थी। जीप का ऊपरी कहस्सा यानी
कक छत नही ं थी। इस कलए चलते हुए खु ली हिा लग रही थी दोनो को तथा इधर उधर
का ऩिारा भी िष्ट कदख रहा था। जैसा कक पहले भी बताया जा चु का है कक हल्दीपु र
गाॅि आस पास के सभी गाॅि से बडा था तथा आस पास के कई गाॅिों की पं चायत
भी हल्दीपु र ही थी। अजय कसं ह का पररिार हल्दीपु र गाॅि का सबसे ज्यादा सं पन्न
पररिार था।

नीलम की किराज से पहले ही सारी बातें मैसेज के द्वारा हो चु की थी। किराज ने उसे
प्लान भी समझा कदया था तथा ये भी कहा था कक गाॅि तथा खे त घूमने का बहाना
करके कनकलना हिे ली से ककन्तु गाॅि में घू मना ही बस नही ं है बल्कि ऐसी जगह
आना है कजस तरि गाॅि की सीमा का आकखरी छोर हो तथा कजस तरि से दू सरे
गाॅि यानी कक कचमनी के पहले िाले गाॅि माधोपु र की तरि जाने िाले रास्ते की
तरि आना है । ऐसा इस कलए कक नीलम ि सोनम को गाॅि तथा खे त दे खने जाने
की जानकारी अगर प्रकतमा द्वारा अजय कसं ह को होती है तो िो ़िरूर अपने ससु र
जगमोहन कसं ह को गुनगुन छोंड कर िापस सीघ्रता से मुख्य रास्ते से आएगा। ये भी
सं भि है कक िो अपने साथ मंत्री के आदकमयों को अथिा कुछ ऐसे ककराए के टट् टुओ ं
को ले आए जो उन्हें रास्ते में ही कमल जाएॅ तो मुसीबत हो जाए।

इन्ही ं सब बातों को सोच कर ही किराज ने नीलम से माधोपु र की तरि ही आने को


कहा था। हल्दीपु र के बगल से ही माधोपु र था उसके बाद कचमनी गाॅि। उधर
किराज खु द भी गुनगुन के दस ककलो मीटर पहले ही बसे गाॅि रे िती से मुख्य मागग से
न आ कर घूमते हुए इस तरि आने िाला था।

नीलम ि सोनम दोनो ही ऐसा ़िाकहर कर रही थी ं जैसे सचमुच ही िो दोनो गाॅि
दे खने कनकली हैं हिे ली से । किराज ने ये भी कहा था कक सं भि है उनके पीछे उसकी
माॅम ने और भी ऐसे आदमी लगा कदये हों जो उसकी गकतकिधी को नोट करते हुए
छु प कर उनका पीछा कर रहे हों। अतः इस बात का खयाल रखें और अगर िो कदखें
तो उनकी िस्तु ल्कथथत से उसे ़िरूर अिगत कराए ककन्तु सािधानी से ।

नीलम सोनम को बताती जा रही थी कक जब िो छोटी थी तो िो इन जगहों पर कभी


कभी घूमने आया करती थी। दोनो ही बातें कर रही ं थी। अब तक दोनो ही गाॅि की
सीमा के बाहर की तरि आ गईं थी। तभी एक जगह डर ाइिर ने जीप को रोंक कदया।
ये दे ख कर दोनो ही चौंकी।

"मैडम अब ककधर जाना है?" डर ाइिर ने पीछे पलट कर उन दोनो से पू छा

906
था___"आप तो जानती हैं कक हम दोनो खु द ही यहाॅ पर नये हैं इस कलए हमें रास्तों
का कुछ पता नही ं है। अतः आपको जहाॅ जहाॅ घूमना हो हमें बता दीकजए। िै से
आपके भाई कशिा जी ने कहा था कक आपको ये सारा गाॅि दे खना है और किर खे तों
की तरि भी जाना है। इस कलए अब आप बताइये कक यहाॅ से ककधर चलना है?"

डर ाइिर की बात सु न कर नीलम के कदमाग़ की बिी एकाएक ही रौशन हो उठी और


िह मन ही मन ये सोच कर खु शी से झम ू उठी कक डर ाइिर को तो यहाॅ के बारे में
कुछ पता ही नही ं है। यानी िो अगर चाहे तो कही ं भी चलने को कह सकती है उसे ।
मगर एकाएक ही उसका मन मयूर ये सोच कर मुरझा भी गया कक कही ं ऐसा तो नही ं
कक इन दोनो को कशिा ने ऐसा ही कुछ पू छने के कलए कहा हो। ताकक मैं अपने तरीके
से उसे उस तरि चलने को कहूॅ कजस तरि जाने से उसे ककसी प्रकार की कोई
शं का हो और किर ये कशिा को मैसेज द्वारा इस सबके बारे में सू कचत भी कर दे ।

नीलम को अपना ये खयाल जचा। इस कलए उसने ऐसा िै सा कुछ भी करने का


खयाल कदमाग़ से कनकाल कदया। ककन्तु ये भी उसे पता था कक माधोपु र की तरि ही
उसे जाना है। अतः िो उस तरि जाने के कलए कोई बहाना मन ही मन में सोचने
लगी।

"अरे नीलम।" सहसा सोनम एक तरि हाॅथ का इशारा करते हुए बोल पडी___"िो
उस तरि क्ा है?"
"क..कहाॅ दीदी?" नीलम ने भी जल्दी से उस तरि दे खते हुए पू छा कजस तरि
सोनम हाथ से इशारा कर रही थी।

"अरे िहाॅ पर।" सोनम ने अपने उठे हुए हाॅथ को हिा सा मूिमेंट दे ते हुए
कहा___"उस तरि दे ख न। ऐसा लगता है जै से िहाॅ पर कोई बडा सा मंकदर है।"
"अच्छा िो।" नीलम को जैसे कदख गया___"हाॅ िो मंकदर ही है। यहाॅ पर िही एक
मंकदर है जो कक कािी प्राचीन मं कदर है। हर साल िहाॅ पर मेला भी लगता है।"

"मुझे उस मंकदर को दे खना है नीलम।" सोनम ने सहसा जैसे ररक्वेस्ट की___"मु झे


मंकदर में दे िी दे िताओं के दशग न करना बहुत अच्छा लगता है। प्लीज इनसे कहो न
कक ये मंकदर की तरि चलें ।"

"ठीक है दीदी।" नीलम का मन मयूर एकाएक ही खु शी से किर झम ू उठा था।


दरअसल िो मंकदर बगल के ही गाॅि माधोपु र में ही ल्कथथत था। मं कदर को दे ख कर
सोनम ने उसे दे खने की इच्छा ़िाकहर की तो नीलम ये सोच कर खु श हो गई कक अब
उस तरि जाने का शानदार बहाना भी कमल गया है। अतः उसने तु रंत ही डर ाइिर से

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कहा कक जीप को मं कदर की तरि मोड ले ।

डर ाइिर ने ऐसा ही ककया। उसे इस सबमें कुछ भी अटपटा नही ं लगा इस कलए िो भी
कबना कोई भाि चे हरे पर लाए जीप को मोड कदया उस तरि। इधर जैसे ही जीप
माधोपु र में ल्कथथत उस मं कदर की तरि मु ड कर चली तो सहसा सोनम ने बडे ही
रहस्यमय ढं ग से नीलम की तरि दे खा।

नीलम उसके इस तरह दे खने से अभी बु री तरह चौंकने ही िाली थी कक सहसा उसे
खयाल आया कक डर ाइिर के पास ही लगे बै ककमरर से डर ाइिर उसे चौंकते हुए दे ख भी
सकता है। अतः उसने जल्दी से अपने चे हरे के भािों को छु पाया और किर सोनम को
सामान्य लहजे में ही बताने लगी कक एक बार िो भी उस मंकदर में मेले के समय गई
थी।

नीलम आस पास का ऩिारा दे खते हुए ही थोडी थोडी दे र के अं तराल में पीछे भी दे ख
रही थी। किराज ने उससे कहा था कक सं भि है कक उसके पीछे और भी कुछ आदमी
छु प कर आएॅ। अतः उन्ही ं को दे ख रही थी नीलम, मगर अभी तक उसे ऐसा कुछ
ऩिर न आया था। ये दे ख कर उसे लगने लगता कक किराज बे िजह ही इतनी दू र की
सोच रहा है। जबकक यहाॅ तो ऐसा कुछ भी नही ं है और अगर होता तो क्ा ऐसा
कुछ ऩिर न आता?

नीलम के एक हाॅथ में पहले से ही मोबाइल था। अतः उसने सामान्य तरीके से ही
ककन्तु सामने की सीट पर बै ठे दोनो ही आदकमयों की ऩिरों को बचा कर मोबाइल
की तरि दे खा। (यहाॅ पर मेरे पाठक पू छ सकते हैं कक सामने की सीट पर बै ठे िो
दोनो आदकमयों की पीठ नीलम ि सोनम की तरि थी तो भला नीलम का उनकी
ऩिरों से बचाने की बात कहाॅ से आ गई तो दोस्तो इसका जिाब ये है कक डर ाइिर के
पास ही बै ककमरर लगा होता है कजसमें िो पीछे की ची़िें दे खता है। यहाॅ पर मैं उसी
की बात कर रहा हूॅ)। खै र, नीलम ने बडी सािधानी से मोबाइल में व्हाट् सएप खोला
और किर किराज को मैसेज करके बताया कक िो अब कहाॅ पहुॅचने िाली है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
किराज का खयाल एकदम सही था। अजय कसं ह को जब प्रकतमा के द्वारा ये पता चला
कक नीलम ि सोनम गाॅि तथा खे त दे खने गईं हैं तो िो सचमुच गुनगुन से चल कदया
था। ककन्तु चलने से पहले उसने अपने एक ऐसे आदमी को भी िोन ककया जो गुनगुन
में ही रहता था तथा कई तरह के ग़ैर कानू नी धंधे करता था। उस आदमी का नाम
किरो़ि खान था। अजय कसं ह ने किरो़ि को िोन करके उसे सारी कसचु एशन से
अिगत कराया और किर तु रंत ही अपने गुगों को ले कर चलने को कहा था।

908
इस िक्त अजय कसं ह और किरो़ि खान दोनो एक ही कार में थे जबकक किरो़ि खान
के बाॅकी सभी गुगे पीछे अलग अलग तीन जीपों में थे । सभी के हाॅथों में हकथयार
के रूप में मौत का सामान था। अजय कसं ह के पास भी एक ररिावर था जो कक
उसने किरो़ि खान से कलया था।

"तो ये िही लडका है ठाकुर साहब।" अजय कसं ह की कार में पै सेंजर सीट पर बै ठा
किरो़ि खान बोला___"जो आपका भतीजा है तथा कजसने आपका जीना हराम कर
रखा है। आपने बताया था कक कैसे इसने आपकी िैक्टर ी में आग लगा दी थी कजसमें
आपका बहुत तगडा नु कसान हुआ था?"

"हाॅ खान।" अजय कसं ह सहसा दाॅत पीसते हुए कह उठा___"ये िही हराम़िादा है
और अब तो उसकी इतनी कहम्मत बढ गई है कक इसने कपछले कदन हमें अपने नकली
सीबीआई के आदकमयों के जाल में िाॅस कर कैद भी कर कलया था। मेरी बडी बे टी
जो पु कलस में इं िेक्टर है उसे भी इस कम्बख्त ने अपनी तरि कमला कलया है। खै र,
मुझे अपनी औलाद से ये उम्मीद नही ं थी खान कक िो अपने ही माॅ बाप के ल्कखलाफ़
हो जाएगी। जैसे औलाद अगर कबगडी हुई हो और िो ह़िार पाप कर डाले तब भी
माॅ बाप के कलए िो कप्रय ही होती है और िो उसके अपराधों को क्षमा कर दे ते हैं
उसी तरह क्ा औलाद नही ं कर सकती? मैंने जो कुछ भी ककया था कसिग अपने बीिी
बच्चों के उज्वल भकिष्य के कलए ही ककया था। साला अब तक तो उसी पाप के पै सों
को खु श होकर उडाती रही थी िो। मगर आज उसे हमसे तथा हमारे उसी पै सों से
नफ़रत हो गई? खान, ये मैं जानता हूॅ कक बे टी की इस बगाित से मुझे ककतनी
तक़लीि हुई है। उसे इस बात का ़िरा भी खयाल नही ं आया कक उसके द्वारा ये सब
करने से उसके माॅ बाप पर क्ा गु़िरे गी?"

"ये सब उस लडके की िजह से ही हुआ है ठाकुर साहब।" किरो़ि खान ने कठोरता


से कहा___"उसी ने ररतू कबकटया को बरगलाया होगा। िरना िो ऐसा कभी न करती।"

"नही ं खान।" अजय कसं ह ने मजबू ती से अपने कसर को इं कार में कहलाते हुए
कहा___"ये सब उस लडके के बरगलाने से नही ं हुआ है। क्ोंकक इसके पहले मेरे
साथ साथ मेरे बच्चे भी उस किराज से नफ़रत करते थे और उसकी तथा उसके
पररिार में ककसी की शक्ल तक दे खना पसं द नही ं करते थे । ये सब तो ककसी और ही
िजह से हुआ है खान। दरअसल मेरी दोनों ही बे कटयों को सच्चाई की राह पर चलना
शु रू से ही पसं द था। उन्हें ये पता नही ं था कक उनका बाप िास्ति में कैसा है? खै र,
इस मामले में मेरा बे टा मु झ पर गया है। मुझे खु शी है कक िो मेरे जैसा है और सच
कहूॅ तो मु झे उस पर ना़ि भी है। मगर अब मैने भी िैंसला कर कलया है कक मेरे इस
कदल की आग तभी शान्त होगी जब उस किराज के साथ साथ मैं अपनी उन दोनो

909
बे कटयों को भी अपने हाथों से बद से बदतर मौत दू ॅगा।"

किरो़ि खान दे खता रह गया अजय कसं ह को। िो दे ख रहा था कक इस िक्त अजय
कसं ह के चे हरे पर ़िल़िले के से भाि थे । यकीनन उसके अं दर गुस्सा, क्रोध ि
अपमान ये तीनो ही अपने पू रे जलाल पर थे ।

"खै र छोंकडये इस बात को।" किरो़ि खान ने जैसे पहलू बदला___"ये बताइये कक उन
सबको पकडने के कलए क्ा प्लाकनं ग की है आपने ?"

"प्लाकनं ग में कोई कमी नही ं है खान।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा___"मेरी बीिी के पास भे जा िाई कर दे ने िाला कदमाग़ है। उसने मुझे बताया था
कक उसने उन दोनो के साथ पहले तो सामान्य कसचु एशन बनाए रखने के कलए दो ऐसे
आदकमयों को जीप में भे जा है जो तगडे िाइटर कहे जाते हैं। उनके जाने के बाद
उसने अलग से उन जैसे ही आदकमयों की एक टीम बना कर उनके पीछे इस तरह
लगा कदया है कक नीलम ि सोनम को िो टीम ऩिर ही न आए। उस टीम का काम ये
है कक अगर सच में किराज नीलम ि सोनम को ले ने आ रहा है तो िो यकीनन पहले
नीलम ि सोनम के साथ गए उन दो आदकमयों से कभडे गा। अतः हमारी टीम के िो
लोग बै कअप के रूप में अपने आदकमयों की मदद करें गे। यानी इस कसचु एशन को
दे खते हुए ही हमारी दू सरी टीम के आदमी जल्द ही िहाॅ पहुॅच जाएॅगे। मेरी बीिी
प्रकतमा के अनु सार अगर बै कअप के रूप में किराज ने भी कोई ऐसा इं तजाम ककया
होगा तो यकीनन िो भी किराज का पलडा कम़िोर पडते दे ख कर उन सबके बीच
टू ट पडें गे। उस सू रत में यहाॅ से हम सब भी पहुॅच जाएॅगे और किराज तथा उसके
आदकमयों का काम तमाम करें गे। हम लोग एक तरह से डबल बै कअप के रूप में
होंगे अपने आदकमयों के पीछे । मु झे यकीन है कक इतना कुछ होने के बाद किराज
एण्ड पाटी ज्यादा दे र तक हमारा सामना नही ं कर पाएगी और अं ततः उन्हें हमारे
सामने खु द को सरे ण्डर करना ही पडे गा।"

"ओह।" किरो़ि खान प्रभाकित लहजे में बोला___"प्लान तो यकीनन आपका


शानदार है। सचमुच इस सू रत में आपका िो भतीजा और उसके सभी आदमी घुटने
टे क दें गे।"

"कबलकुल।" अजय कसं ह ने कहा___"इस सबके बाद किराज और उसके साथ साथ
मेरी दोनो बे कटयाॅ मेरे कब्जे में होंगी। तब मैं उस हरामी के कपल्ले से अपने साथ हुए
इतने भारी नु कसान का कगन कगन के बदला लू ॅगा। मुम्बई में सु रकक्षत बै ठी उसकी
माॅ बहन को यहाॅ मेरे पास मेरे पै रों तले आना ही पडे गा। उसके बाद तो दु कनयाॅ
दे खेगी कक ठाकुर अजय कसं ह के साथ ऐसा दु स्साहस करने िालों का क्ा अं जाम

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होता है?"

"ऐसा ही होगा ठाकुर साहब।" किरो़ि खान ने दृढता से कहा___"आपने कजस तरह
से प्लान बनाया है उस कहसाब से यकीनन आपका िो भतीजा तथा आपकी दोनो
बे कटयाॅ आपके चं गुल में आ जाएॅगी। मैं अपने साथ अपने लगभग बीस के आस
पास आदमी लाया हूॅ। सबके सब आधु कनक हकथयारों से लै श हैं। अगर ये सच है कक
आपका िो भतीजा उन दोनो को ले ने आ रहा है तो यकीनन तगडी मु ठभे ड होगी
और उस मुठभे ड में िो लोग बु री तरह आपसे मात खाएॅगे।"

"इस बार िो हरामी की औलाद नही ं बचे गा खान।" अजय कसं ह ने पू रे आत्मकिश्वास
के साथ कहा___"इस बार िो मेरी मु िी में ़िरूर कैद होगा और कपं जरे में कैद पररं दे
की तरह िडिडाएगा भी। साले की ऐसी दु गगकत करूॅगा कक मौत और रहम दोनो
की ही भीख मागेगा मु झसे ।"

अजय कसं ह की इस बात पर किरो़ि खान बोला तो कुछ नही ं ककन्तु उसके जबडे
कभं च गए थे , जैसे जं ग के कलए पू री तरह से तै यार हो गया हो। इसके साथ ही कार के
अं दर खामोशी छा गई। कार हल्दीपु र की तरि ते ़िी से बढी जा रही थी। उनके पीछे
पीछे तीन तीन जीपों में सिार किरो़ि खान के गुगे भी चले आ रहे थे ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर हम तीनों भी कार में बै ठे पू री रफ्तार से माधोपु र की तरि बढे चले जा रहे थे ।
हम तीनो के बीच कािी दे र से खामोशी छाई हुई थी। कदाकचत आने िाले समय के
बारे में सब कोई सोचे जा रहा था। कुछ दे र पहले ररतू दीदी ने िोन पर ककसी से बात
की थी। उनकी बातें ऐसी थी जो उस िक्त मु झे कबलकुल भी समझ में नही ं आई थी।
मैने िोन करके शे खर के मौसा जी से उनकी करें ट लोकेशन के बारे में पू छा था।
उन्होंने बताया कक िो हमारे पीछे ही आ रहे हैं ककन्तु िाॅसला बना कर।

अभी हमारे बीच खामोशी ही थी कक तभी ररतू दीदी का मोबाइल िोन बज उठा। ररतू
दीदी ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नं बर को दे खा और किर काल ररसीि
कर मोबाइल कान से लगा कलया।

"हाॅ प्रकाश बोलो।" किर ररतू दीदी ने कहा___"क्ा खबर है िहाॅ की?"
"..............।" उधर से कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" ररतू दीदी के होठों पर मु स्कान िैल गई___"ककतने लोग हैं िो?"
"...............।" उधर से किर कुछ कहा गया।
"चलो अच्छी बात है प्रकाश।" ररतू दीदी ने कहा__"और हाॅ बहुत बहुत धन्यिाद इस

911
खबर के कलए। चलो रखती हूॅ, तु म ़िरा होकशयार रहना।"

"क्ा बात है दीदी?" काल कट होते ही मैने उनकी तरि दे खते हुए पू छा___"ककसका
िोन था?"
"तु झे बताया था न मैने।" ररतू दीदी ने कहा___"कक हिे ली में प्रकाश नाम का एक
आदमी सु रक्षा गाडग के रूप में काम करता है। ये उसी का िोन था। उसने बताया कक
माॅम ने नीलम ि सोनम के हिे ली से कनकलने के कुछ दे र बाद ही दो जीपों में
लगभग दस आदमी उन दोनो के पीछे लगाया है। इसका मतलब मेरा अं दा़िा सही
था। माॅम ने तु म्हारी सोच को ताडते हुए बै कअप के रूप में नीलम ि सोनम के पीछे
कुछ और आदकमयों को लगा कदया है।"

"हाॅ इस बात का अं देशा तो मु झे भी था दीदी।" मैने सामने रास्ते की तरि दे खते


हुए कहा___"मु झे अं देशा था कक बडी माॅ ऐसा कर सकती हैं। ले ककन किक्र की कोई
बात नही ं है दीदी। हमारे पास भी बै कअप के रूप में आदकमयों की कोई कमी नही ं
है।"

"तु म मेरे डै ड को भू ल गए राज।" ररतू दीदी ने कहा___"माॅम ने इस बारे में ़िरूर


बताया होगा और अब िो भी आ ही रहे होंगे गु नगुन से । सं भि है कक उनके साथ भी
कुछ आदमी हों।"

"कबलकुल हो सकते हैं दीदी।" मैने कहा___"इसी कलए तो मैं सीधे रास्ते से नही ं बल्कि
माधोपु र िाले रास्ते की तरि जा रहा हूॅ ताकक इस रास्ते में उनसे हमारा सामना ही
न हो।"

"इसके पहले मैने कजससे िोन पर बात की थी।" ररतू दीदी ने कहा___"िो एक
मुखकबर था। कजसे मैने शु रू से ही डै ड के पीछे लगाया हुआ था। ताकक िो डै ड की
हर गकतकिधी के बारे में मुझे सू कचत करता रहे। खै र उसने बताया कक डै ड मुख्य रास्ते
से ही आ रहे हैं ककन्तु उनके साथ कािी सारे लोग भी हैं जो आधुकनक हकथयारों से
लै श हैं। मतलब साि है कक िो खु द भी पू री तै यारी के साथ आ रहे हैं। अब तु म समझ
सकते हो कक इस सबसे उनकी ल्कथथत हमारी ल्कथथत से ज्यादा मजबू त ि भारी है ।"

"अगर ऐसा है।" सहसा कपछली की शीट पर बै ठा आकदत्य बोल पडा___"तो यकीनन
हम उनके बीच िस जाएॅगे। इस कलए हमें कुछ ऐसा इं तजाम करना पडे गा कजससे
हमारी ल्कथथत उनकी ल्कथथत से बे हतर हो जाए तथा हम उन्हें हरा कर नीलम ि सोनम
को सु रकक्षत िहाॅ से ला सकें।"

"किक्र मत करो आकदत्य।" ररतू दीदी ने कहा___"उसका भी इं तजाम मैने कर कदया है

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और िो इं तजाम ऐसा होगा कक डै ड ही क्ा कोई भी कुछ नही ं कर पाएॅगा और हम
नीलम ि सोनम को सहज ही उनके चं गुल से छु डा लाएॅगे।"

"ये तो कमाल ही हो गया दीदी।" मैने मु स्कुराते कहा___"अगर ऐसा है तो किर


यकीनन किक्र की कोई बात नही ं है। मगर सिाल ये है कक आपने ऐसा क्ा
हैरतअं गेज इं तजाम ककया है कजसके तहत हम बडी सहजता से नीलम ि सोनम दीदी
को ले आएॅगे?"

"सब्र कर मेरे प्यारे भाई।" ररतू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"और बस दे खता जा कक


क्ा होता है।"
"इसका मतलब कक आप।" मैने हस कर कहा___"इस बारे में हमें न बता कर हम
दोनो के कलए सिेन्स कक्रयेट कर रही हैं?"

"तू अपने आपको बडा तीसमारखां समझता है न।" ररतू दीदी ने मु स्कुराते हुए
कहा___"तो किर खु द ही सोच ले कक मैने ऐसा क्ा इं तजाम ककया हो सकता है कक
उसकी िजह से सब कुछ सहज ही हो जाएगा। इतना ही नही ं बल्कि उस िजह से
कोई कुछ कर भी नही ं पाएगा।"

"ओहो ये तो चै लेन्ज दे ने िाली बात हो गई दीदी।" मैंने ऑखें िैलाते हुए उन्हें दे खा।
"हाॅ तो क्ा हुआ?" ररतू दीदी भी मु स्कुराई___"अगर तू इसे चै लेन्ज समझता है तो
यही सही। अब सोच कर बता कक ऐसा क्ा हो सकता है इं तजाम?"

"जाने दीकजए दीदी।" मैने नाटकीय अं दा़ि से कहा___"खामखां आपके कदमाग़ का


कचरा हो जाएगा। इस कलए बे हतर है कक आप मुझसे ना ही पू छो।"
"ओये चल चल हिा आने दे ।" ररतू दीदी ने मानो घु डकी सी दी मुझे___"बडा आया
मेरे कदमाग़ का कचरा करने िाला। भू ल मत कक मैं उसकी बे टी हूॅ कजसके कदमाग़
को तू खु द भी सलाम करता है।"

ररतू दीदी की इस बात से मैं एकदम से चु प हो गया। सच ही तो कहा था उन्होंने। बडी


माॅ के कदमाग़ को यकीनन सलाम करने का कदल करता था मेरा। मैं हमेशा सोचता
था कक अगर उनका यही शाकतर कदमाग़ अच्छाई के कलए उपयोग होता तो ककतनी
ऊची शल्कख्सयत बन सकती थी ं िो। ये उनका दु भागग्य था या किर िो ऐसी ही थी।
ककन्तु एक बात सच थी कक अपने पकत से बे हद प्यार करती थी ं िो। कदाकचत यही
िजह है कक उन्होंने पकत के कहने पर हर िो काम ककया था जो कक हर तरह से
अनै कतक ि ग़लत था।

"क्ा हुआ बच्चे?" मु झे सोचों में गु म दे ख सहसा ररतू दीदी ने मु स्कुराते हुए

913
कहा___"मेरी माॅम का सु नकर हिा कनकल गई क्ा ते री? होता है बे टा, ऐसा होता है
कक ऐसी हल्कस्तयों का क़िक्र होते ही अच्छे अच्छों की हिा कनकल जाती है। तू तो किर
भी अभी बच्चा है।"

"ये कुछ ज्यादा ही नही ं हो गया दीदी?" मैने मासू म सी शक्ल बना कर कहा।
"अब हो गया तो हो गया न।" ररतू दीदी मेरे द्वारा अपनी मासू म सी शक्ल बना ले ने
पर मुस्कुराईं____"कम से कम तू मेरे माॅम का सु न कर अब ज्यादा उडे गा तो नही ं।"

"ये सच है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"कक िो भले ही बु राई का साथ दे
रही हैं मगर जाने क्ों उनके कलए मेरे कदल में इज्ज़ित आज भी है। हलाॅकक उन्होंने
मेरी माॅ के साथ बु रा करने में कोई कसर नही ं छोंडी थी। किर भी ये मेरी माॅ के
कदये हुए अच्छे सं स्कार ही हैं कक मैं आज भी अपने से बडों को सम्मान दे ता हूॅ, भले
ही उन लोगों ने हमारे साथ ककतना ही बु रा ककया है।"

"मैं जानती हूॅ राज।" ररतू दीदी भी गंभीर हो गई___"और मुझे इस बात की बे हद
खु शी भी है कक ते रे और ते री माॅ बहन के साथ भले ही बद से बदतर सु लूक ककया
था मेरे माॅम डै ड ने मगर इसके बाद भी तू उनकी इज्ज़ित करता है। ते री यही खू बी
तु झे सबसे अच्छा और सबसे महान बनाती है। मुझे ईश्वर से इस बात की कशकायत
़िरूर है कक क्ों उसने मुझे ऐसे इं सान की बे टी बनाया जो कसिग और कसिग पाप
करना जानते हैं, मगर इस बात का उसी ईश्वर से धन्यिाद भी करती हूॅ कक उसने
मुझे ते रे जैसा ने क कदल भाई कदया। आज तु झे पा कर मैं बे हद खु श हूॅ राज। मु झे
पता है कक इस जं ग का अं त में अं जाम क्ा होगा? यानी कक अधमग ि पाप करने िाले
मेरे माॅम डै ड तथा मेरा िो कमीना भाई अं त में अपने अधमग ि पाप कमग करने के
चलते या तो मारे जाएॅगे या किर हमेशा के कलए जेल की सलाखों के पीछे कैद
होकर रह जाएॅगे। मुझे इस सबका दु ख तो यकीनन होगा भाई क्ोंकक आकखर िो
सब हैं तो मेरे अपने ही मगर ये सोच कर खु द को तसल्ली भी दू ॅगी कक बु रा करने
िालों की कनयकत तो यही होती है न। उनके बदले मुझे तू कमला है और ते रे साथ साथ
गौरी चाची, करुर्ा चाची तथा गुकडया जैसी बहन कमल जाएॅगी। ये सब भी तो मेरे
अपने ही हैं।"

"छोंकडये इन सब बातों को दीदी।" मैने माहौल को सामान्य बनाने की गऱि से


कहा____"मु झे भी तो इस सबका दु ख होगा मगर आप भी जानती हैं कक इस सबके
अलािा दू सरा कोई चारा नही ं है। इस कलए इन सब बातों पर ज्यादा सोच किचार मत
कीकजए।"

अभी मैंने ये कहा ही था कक सहसा मेरे मोबाइल िोन पर मैसेज टोन बजी। कजससे

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मेरा ध्यान सामने ही डै सबोडग के पास रखे अपने मोबाइल पर गया। मैने ररतू दीदी
को मोबाइल उठा कर दे खने को कहा। उन्होंने मेरा िोन उठाया और उसमे आए हुए
मैसेज को दे खने लगी ं।

"नीलम का मैसेज है राज।" किर ररतू दीदी ने मुझसे कहा___"उसने मैसेज में बताया
है कक िो सोनम के साथ ही माधोपु र िाले मं कदर की तरि जा रही है।"
"ओह ये तो अच्छी बात है।" मैने कहा___"इसका मतलब उस तरि जाने का उसने
कोई न कोई बहाना बनाया होगा। ककन्तु ये भी सच है कक उसके पीछे पीछे ही कोई
उनके पीछे भी लगा होगा। खै र ये तो होगा ही, हमें अब उन सबसे कनपटने के कलए
तै यार हो जाना चाकहए। हम बस पहुॅचने ही िाले हैं उस जगह।"

"क्ा हम उसी तरि जा रहे हैं राज?" पीछे से आकदत्य ने सामने की तरि इशारा
करते हुए कहा___"जहाॅ पर िो ऊचा सा मंकदर का गुंबद कदखाई दे रहा है?"
"हाॅ दोस्त।" मैने कहा___"हम माधोपु र के उसी मंकदर के पास जा रहे हैं। ले ककन
िहाॅ पर एक समस्या भी हो सकती है ।"

"समस्या???" आकदत्य के साथ साथ ररतू दीदी भी बोल पडी थी ं___"कैसी समस्या हो
सकती है?"
"समस्या यही होगी कक हम सब मं कदर के पास ही इकिा होंगे।" मैने कहा___"और
मंकदर के पास ही हम सबका आमना सामना होगा। ये भी सच है कक हम सबके बीच
इस लडाई में खू न खराबा भी होगा जो कक मंकदर के पास नही ं होना चाकहए।"

"अरे ये तो अच्छी बात है राज।" ररतू दीदी ने कहा___"दे िी माॅ के सामने ही हर ची़ि
का िैंसला होगा और यकीनन हमारी ही जीत होगी। यानी कक अं ततः हम नीलम ि
सोनम को ले कर ही आएॅगे। भला दे िी माॅ के सामने अधमग ि पाप की जीत कैसे
हो सकेगी?"

"मैं ररतू की इस बात से सहमत हूॅ भाई।" पीछे से आकदत्य ने कहा___"दू सरी बात ये
सं योग भी दे िी माॅ ने बनाया है कक हम सब उनके सामने ही एककत्रत होंगे और हर
ची़ि का िैंसला िो खु द करें गी।"

"हाॅ यार।" मैने सहसा खु शी से कहा___"इस तरि तो मेरा ध्यान ही नही ं था। सच
कहा है बडे बडे सं तों ने कक इस सं सार में सब कुछ ईश्वर की ही म़िी से होता है। िो
हमें िही ं ले जाता है जहाॅ के बारे में हमने सोचा भी नही ं होता है। सोचने िाली बात
है न दीदी, मैने तो नीलम से कसिग यही सोच कर िहाॅ पर आने को कहा था कक
सबसे कनपटने के बाद हम उसी रास्ते से िापस भी हो जाएॅगे ताकक बडे पापा से

915
हमारा सामना ही न होने पाए। इस बारे में तो हमने सोचा ही नही ं था हर ची़ि का
िैंसला करने के कलए िहाॅ पर दे िी माॅ भी मौजूद होंगी। भला उनकी इच्छा के
बग़ैर कोई काम कैसे हो सकता था?"

"अब हमारी जीत यकीनन होगी राज।" आकदत्य ने कहा___"दे िी माॅ को भी पता है
कक हम धमग की राह पर हैं। अतः उनके आशीिागद से सब कुछ हमारे ही हक़ में होगा
और इसका मु झे पू रा किश्वास है।"

"हम सबको किश्वास है आकदत्य।" ररतू दीदी ने कहा__"इस कलए अब हम सब दे िी


माॅ को मन ही मन प्रर्ाम करके काम का श्रीगर्े श करें गे। बोलो जय माता दी।"
"जय माता दी।" दीदी के कहने पर हम सबने एक साथ जय माता दी कहा और किर
मैं एर्क्ीले टर पर अपने पै र को और ़िोर से दबा कदया। पररर्ामस्वरूप कार की
रफ्तार और भी ते ़ि हो गई।

कुछ ही दे र में हमारी कार माधोपु र गाॅि के बाहर बने उस दे िी माॅ के मंकदर के
पास पहुॅच गई। उसके पहले ही मैने ररतू दीदी तथा आकदत्य को कार से उतार कदया
था। ऐसा इस कलए कक हम तीनों का एक साथ रहना ठीक नही ं था। उससे हम एक
साथ एक ही जगह पर िस सकते थे । इस कलए मैने ररतू दीदी ि आकदत्य को मं कदर से
लगभग पचास मीटर पहले ही उतार कदया था और खु द कार ले कर मं कदर की तरि
बढ चला था। मुम्बई से जब मैं चला था तो जगदीश अं कल ने मुझे तीन किच कदये थे
जो कक बु लेट प्रू ि थे । इस िक्त हम तीनो ने ही अपने कपडों के अं दर उस बु लेटप्रू ि
किच को पहना हुआ था। ये जगदीश अं कल की दू रदकशग ता का ही कमाल था कक
उन्होंने हम लोगों की सु रक्षा का ऐसा इं तजाम ककया था।

माधोपु र गाॅि में लगभग पचास या साठ के आस पास मकान बने हुए थे । दे िी माॅ
का ये प्राचीन मंकदर गाॅि के बाहर बना हुआ था। मंकदर से लगभग पचास या साठ
मीटर के िासले से ही गाॅि की आबादी शु रू होती थी। कहने का मतलब ये कक
हमारी इस मुठभे ड में गाॅि के लोगों पर कोई आॅच नही ं आ सकती थी। ये हमारे
कलए सबसे अच्छी बात थी। आस पास का इलाका दू र दू र हरे भरे तथा ऊचे ऊचे पे ड
पौधों से सु शोकभत था। ये सभी गाॅि चारो तरि के पहाडों से कघरे हुए थे । एक नहर
थी जो कक माधोपु र और हल्दीपु र के बीच से कनकलती थी। कचमनी की तरि जाते
जाते ये नहर दो भागों में बट जाती थी। कजसका एक भाग कचमनी की तरि तथा
दू सरा भाग एक अन्य गाॅि गुमटी की तरि जाती थी ककन्तु गु मटी के बाहरी इलाके
की तरि से । नहर के होने का सबसे बडा िायदा ये था कक यहाॅ के सभी गाॅिों में
पानी का अभाि नही ं था। सभी गाॅिों में खे तों की कसं चाई के कलए इसी नहर के पानी
का उपयोग होता था। कजसका नतीजा ये होता था कक आस पास के सभी गाॅिों में

916
िसल की पै दािार अच्छी खासी होती थी।

मंकदर के ऩिदीक ही मंकदर के कपछले कहस्से की तरि मैने कार को रोंक कदया था।
मैने दे ख कलया था कक मं कदर के सामने की तरि एक ऐसी जीप खडी थी कजसके
ऊपर छत नही ं थी। िो जीप यकीनन िही थी कजसमें नीलम ि सोनम आई हुई थी ं।
चारो तरि इस समय खामोशी तो थी ककन्तु मैं जानता था कक ये खामोशी कुछ ही
समय की मे हमान थी यहाॅ पर। खै र, मैने दे िी माॅ को प्रर्ाम ककया और किर
धडकते हुए कदल के साथ मंकदर के सामने की तरि आकहस्ता आकहस्ता बढने
लगा।हलाॅकक मैं पू री तरह सतकग था तथा ककसी भी खतरे से कनपटने के कलए पू री
तरह से तै यार था।

आस पास का बहुत ही बारीकी से जायजा ले ते हुए मैं मंकदर की दीिार से सट कर


चलते हुए मंकदर के सामने िाले भाग की तरि बढ रहा था। ये मेरे जीिन का पहला
अिसर था जबकक मैं इस तरह की कसचु एशन को िेस करने िाला था और आने िाले
समय की कसचु एशन को भी। थोडी ही दे र बाद मुझे अपनी जगह पर रुक जाना पडा।
क्ोंकक मैने दे खा कक मंकदर के सामने ककन्तु कुछ ही दू री पर िो जीप खडी थी तथा
उस जीप के पास ही िो दो हट्टे कट्टे आदमी भी खडे थे कजन्हें बडी माॅ ने नीलम ि
सोनम की सु रक्षा के रूप में भे जा था। िो दोनो आपस में बातें तो कर रहे थे ककन्तु
उनके हाि भाि से ऩिर आ रहा था कक िो ककसी भी खतरे से कनपटने के कलए भी
तै यार थे । यानी कक उन्हें बताया गया था कक ऐसा कुछ होगा।

मैं जानता था कक मेरे पास ज्यादा समय नही ं है क्ोंकक अभी कुछ ही समय में यहाॅ
पर आदकमयों की िौज भी ऩिर आने लगे गी। ये भी सं भि था कक आ ही गई हो।
हलाॅकक मैने आस पास बहुत बारीकी से दे ख चु का था ककन्तु मुझे ऐसा कुछ ऩिर
नही ं आया था कजससे पता चले कक यहाॅ पर कोई और भी है।

मैने अपने पै न्ट के पीछे बे ल्ट पर िसे ररिावर को कनकाला। उसके बाद मैने अपनी
जैकेट से एक ऐसी ची़ि कनकाली कजसे साइलें सर कहा जाता है। मैने उस साइलें सर
को ररिावर की नाल पर किट ककया। मैं चाहता था कक जो काम छु प कर हो जाए
उसे अं जाम दे दे ना चाकहए। हलाॅकक ये तो तय था कक खु ल कर मुकाबला करना ही
पडे गा। मगर मेरी सोच थी कक दु श्मन को मौका ही क्ों कदया जाए?

ररिावर की नाल पर साइलें सर किट करने के बाद मैने उन दोनो की तरि दे खते
हुए अपने ररिावर िाले हाॅथ को हिा में उठाया और किर एक आदमी की गदग न
पर कनशाना साध कर कटर गर दबा कदया। पररर्ाम स्वरूप हिी सी कपट् की आिा़ि
हुई और एक अजीब सी ची़ि पलक झपकते ही उनमें से एक आदमी की गदग न पर

917
जा लगी। मैने इतने पर ही बस नही ं ककया बल्कि उसी पल ररिावर का रुख मोड
कर किर से कटर गर दबा कदया था। दो पल के अं दर ही िो दोनो आदमी लहराते हुए
जीप के पास ही कच्ची ़िमीन पर भरभरा कर कगरे और शान्त पड गए। उन दोनो की
गदग न से कोई खू न नही ं बह रहा था बल्कि एक एक सु ई चु भी हुई थी। आप समझ
सकते हैं कक िो सु ई क्ा हो सकती थी। मेरा इरादा उन्हें जान से मारने का हकगग़ि भी
नही ं था बल्कि कसिग बे होश करना था। इस कलए िो दोनो अब सु ई के प्रभाि से कम
से कम दो से तीन घंटे के कलए बे होश हो चु के थे ।

मुझे यकीन नही ं हो रहा था कक आते ही मुझे इस तरह सहजता से पहले पडाि पर ही
कामयाबी कमल जाएगी। मगर सबू त चू ॅकक सामने ही ़िमीन पर बे होश पडे थे इस
कलए यकीन करना ही था। उन दोनो के बे होश ओ जाने के बाद मैने एक बार पु नः
आस पास का बारीकी से जायजा कलया और किर मं कदर के सामने की तरि बढ चला
ककन्तौ सािधानी से ही। अभी मैं बढ ही रहा था कक तभी मं कदर के अं दर से घंटे के
बजने की दो बार आिा़ि आई। मैं समझ गया कक नीलम ि सोनम दीदी मंकदर के
अं दर हैं।

मैं आस पास दे खते हुए ते ़िी से आगे बढा और मंकदर के जस्ट बगल पर ही सीकढयों
के पास आ गया। एक बार पु नः आस पास का जायजा कलया और किर मैने पै न्ट की
जेब में हाॅथ डाला तो चौंक पडा। मैं मोबाइल कार में ही भू ल आया था। इस िक्त मैं
नीलम को मैसेज कर बोलना चाहता था कक िो दोनो मंकदर के बाहर आ जाएॅ और
जल्दी से मेरे साथ चलें यहाॅ से । मगर मेरा मोबाइल कार में ही रह गया था। खै र,
मैने सोचा चलो कोई बात नही ं मंकदर के अं दर जाकर दे िी माॅ के दशग न भी तो करना
चाकहए।

मैं ते ़िी से सीकढयाॅ चढते हुए मं कदर के मुख्य दरिाजे पर पहुॅचा तो दे खा कक मं कदर
के अं दर नीलम ि सोनम दोनो ही दे िी माॅ की प्रकतमा के सामने अपने दोनो हाॅथ
जोडे खडी थी। ये दे ख कर मैं मु स्कुराया और किर तु रंत ही मंकदर के दरिाजे की
चौखट को छूकर पहले प्रर्ाम ककया और किर चौखट को पार गया।

अं दर आते ही मैने नीलम ि सोनम दीदी के पीछे ही खडे होकर तथा अपने दोनों हाथ
जोडते हुए दे िी माॅ को असीम श्रिा से प्रर्ाम ककया। मगर अगले ही पल मेरे मुख
से घुटी घुटी सी चीख कनकल गई साथ ही मैं पीछे की तरि लहराते हुए चौखट के
बाहर आकर पीठ के बल ़िमीन पर कगरा। मेरी ऑखों के सामने कुछ पल के कलए
अधेरा सा छा गया। मेरी नाॅक से खू न बहने लगा था तथा मेरे मुख के बाएॅ साइड
की तरि होंठों से भी खू न बहने लगा था। ककसी ने बडी ़िोर से मु झ पर िार ककया

918
था।

अभी मैं अपने होशो हिाश में आते हुए ़िमीन से उठ ही रहा था कक तभी मेरे पे ट में
किर से बडे ़िोर का प्रहार हुआ। कजसके प्रभाि से मैं ककसी िुटबाल की तरह हिा में
उडता हुआ सीधा सीकढयों के नीचे आ कर कगरा। इन कुछ ही पलों ये सब इतना ते ़िी
से हुआ था कक मुझे कुछ समझने का मौका ही नही ं कमल पाया था। सीकढयों के ऊपरी
भाग से सीधा नीचे कच्ची ़िमीन पर कगरने से एक बार किर से मैं बु री तरह ददग से
कबलकबला उठा था। ककन्तु अब तक मैं समझ गया था कक ये एक जाल था कजसमें मैं
िसाया गया था।

कच्ची ़िमीन से मैं उछल कर खडा हो गया और सीकढयों के ऊपर की तरि दे खा ही


था कक पीछे से ककसी ने मेरी पीठ पर ़िबरदस्त िार ककया। मैं इसके कलए कबलकुल
भी तै यार नही ं था और ना ही मु झे इसकी उम्मीद थी। अतः इस बार मु ह के बल उसी
कच्ची ़िमीन पर कगरा। मु झे एकाएक ही भारी खतरे का आभास हुआ और मैने
अपनी सं पूर्ग ताकत लगाते हुए किर से उछल कर खडा हुआ। अभी मैं खडा ही हुआ
था कक पलक झपकते ही मु झे नीचे भी झुक जाना पडा िरना पीछे की तरि से
कजसने िार ककया था उसकी फ्लाइं ग ककक सीधा मेरी गदग न पर पडती और यकीनन
मेरी गदग न की हड्डी टू ट जाती।

मैने झुकने के साथ ही अपनी एक टाॅग को कबजली की सी ते ़िी से चलाया था,


नतीजा ये हुआ कक फ्लाइं ग ककक मारने िाले का जो अकेला पै र ़िमीन पर कटका था
िो ़िमीन से उखड गया और िो भरभरा कर ़िमीन पर कगरा। मैं ये दे ख कर आश्चयग
चककत रह गया कक ये तो िही आदमी था कजसे अभी थोडी ही दे र पहले मैंने सु ई के
द्वारा बे होश ककया था। मुझे समझ न आया कक ये बे होशी से होशो हिाश में कैसे आ
गया। मैने पलट कर दू सरे आदमी की तरि दे खा तो िो भी एक तरि पोजीशन कलए
खडा मुस्कुरा रहा था। ये दे ख कर मेरे आश्चयग की कोई सीमा न रही। साला ये दोनो
ची़ि क्ा थे कक इन पर उस बे होश करने िाली सु ई का भी असर नही ं हुआ?

सच तो ये था कक मैं कुछ भी नही ं समझ पा रहा था। एक तो इन दोनो पर सु ई का


असर न हुआ दू सरे मंकदर के अं दर से मुझे इस तरह बाहर लगभग िैंक कदया गया।
सबसकुछ इतनी ते ़िी से हुआ कक मुझे कुछ समझ ही नही ं आया था। ककन्तु अब मैं
समझ चु का था कक ये सब क्ा था। मतलब साि था कक बडी माॅ के द्वारा भे जा गया
बै कअप यहाॅ पहुॅच चु का था और उसके कुछ आदमी मंकदर के अं दर छु पे मेरे आने
की प्रतीक्षा कर रहे थे । मैं जैसे ही मंकदर के अं दर गया और दे िी माॅ को प्रर्ाम करने
लगा िै से ही उन लोगों ने मु झ पर िार कर कदया था। इधर कजन्हें मैं बे होश समझ रहा
था िो होश में होते हुए मेरे इस तरह नीचे आ जाने का इं त़िार कर रहे थे । उसके बाद

919
जैसे ही मैं नीचे कगरा िै से ही इन दोनो ने भी मु झ पर हमला कर कदया। कहने का
मतलब ये कक कही ं से भी मु झे सम्हलने का या सोचने का मौका ही नही ं कमल पाया
था।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कक सहसा मु झे ररतू दीदी ि आकदत्य का खयाल


आया। मु झे उन दोनो की बे हद कचं ता होने लगी। कही ं िो दोनो भी न िस गए हों।
मैने मन ही मन दे िी माॅ से कहा____"ये सब क्ा है माॅ? इन लोगों ने मुझे आपको
ठीक से प्रर्ाम भी नही ं करने कदया और आपने भी इन्हें रोंका नही ं? ऐसी तो उम्मी ंद
नही ं मुझे? खै र कोई बात नही,ं मुझे अपना आशीिागद दीकजए कक मैं इन सबका
मुकाबला कर सकूॅ और अपने सभी चाहने िालों को यहाॅ से सु रकक्षत ले जा
सकूॅ।"

"कैसी लगी बच्चे?" तभी मेरे कानों में ऊपर सीकढयों से नीचे उतरते हुए एक हट्टे कट्टे
आदमी की आिा़ि पडी, िो मुस्कुराते हुए कह रहा था___"ज्यादा चोंट तो नही ं आई
न तु म्हें? िै से मैं हैरान हूॅ कक तु म जैसे मामूली से लडके के कलए हमारे बाॅस इतना
ज्यादा परे शान थे । सचमुच यकीन नही ं होता कक तु म जैसा कपद्दी सा लडका हमारे
बाॅस की नी ंदें हराम ककये हुए था। जबकक तु म्हें तो जब चाहे चीकटयों की तरह मसला
जा सकता था। बट डोन्ट िरी, जो पहले नही ं हुआ िो अब हो जाएगा।"

"कहते हैं ऊट जब तक पहाड के नीचे नही ं आता।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तब
तक उसे यही लगता है कक िो इस सं सार में सबसे ऊचा है और उसकी बराबरी कोई
कर ही नही ं सकता। िही हाल तु म्हारा है भाडे के कुिे । अपने बाॅस लोगों के सामने
कुिों की तरह दु म कहलाने िाले कुिो इस भरम में न रहो कक तु म लोगों ने मु झे इस
तरह िसा कर कोई तीर मार कलया है। बल्कि खे ल तो अब शु रू होगा।"

"कािी कडिी ़िबान है ते री लडके।" सीकढयों से नीचे उतर आए उस आदमी ने


सहसा दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा____"अगर बाॅस ने मना न ककया होता तो यही ं
पर तु झे चीटी की तरह मसल कर ते री जीिन लीला समाप्त कर दे ता।"

"अगर एक ही मदग की औलाद है ।" मैने भी तै श में आकर कहा___"तो अकेले मु झसे
मुकाबला कर, किर दे खना कक ची ंटी की तरह कौन मसला जाता है?"
"ओहो ऐसा क्ा?" िो आदमी ब्यं गात्मक भाि से ऑखों को िैलाते हुए बोला___"चल
ठीक है, ते री ये इच्छा तो पू री करनी ही चाकहए।" ये कहने के साथ ही उसने अपने
बाॅकी साकथयों की तरि दे खते हुए कहा___"तु म में से कोई भी इस लडके को हाॅथ
नही ं लगाएगा। ये मुझे कदखाना चाहता है कक ची ंटी की तरह हम दोनो में से कौन
मसला जाता है। अतः अब मुकाबला कसिग हम दोनों के बीच ही होगा।"

920
उसके सभी साकथयों सहमकत में कसर कहला कदया। सबके होठों पर जानदार मु स्कान
थी। जैसे उन्हें मेरी मूखगता पर हसी आ रही हो। हलाॅकक मु झे भी पता था ये समय
इस तरह के मुकाबले का कबलकुल भी नही ं है, मगर तै श में आकर मेरी ़िबान से
कनकल ही गया था। अतः अब बात ़िबान की थी तथा अपने स्वाकभमान की। समय
ऐसा था कक अपनी जगह रुकने िाला नही ं था। हर पल के बीतने के साथ इस बात
की भी सं भािना बढती जा रही थी कक जो यहाॅ नही ं पहुॅचे हैं िो ककसी भी िक्त
पहुॅच सकते हैं और किर हालात और भी किकट हो जाएॅगे।

इधर बाॅकी सब आदकमयों की सहमकत कमलते ही मैने पोजीशन ले ली। जबकक


कछसके साथ मेरा मुकाबला होने जा रहा था उसने झटके से अपने कजस्म के ऊपरी
कहस्से के कपडे कनकाल कर अपने एक आदमी की तरि उछाल कदया। सहसा मेरी
ऩिर ऊपर मंकदर के दरिाजे के बाहर खडी नीलम ि सोनम पर पडी। िो दोनो ही
दोनो तरि से एक एक आदमी से कघरी हुई खडी थी ं। उनके चे हरों पर इस िक्त डरे
सहमे से भाि कायम थे । मैं उन दोनो की तरि दे ख कर अजीब तरह से मु स्कुराया
और किर अपने कप्रतद्वं दी की तरि दे खने लगा।

मैने दे खा कक उसके कजस्म से कपडा हटते ही उसका हट्टा कट्टा कजस्म नु मायाॅ हो
उठा। कोई आम इं सान उसकी इतनी खतरनाक बाॅडी दे ख कर ही डर जाए। उससे
लडने का खयाल तो िो आने िाले सात जन्मों में भी न करे । खै र उसने अपने दोनो
हाॅथो को अगल बगल उसे ऊपर उठा कर मु झे अपने डोले कदखाए। जैसे कह रहा
हो कक दे ख बच्चे कजतने मेरे ये डोले हैं उतने में तो ते रे कजस्म का कोई कहस्सा भी किट
नही ं बै ठता। ये दे ख कर मैं मु स्कुराया और किर अपने दोनो हाॅथों के इशारे से उसे
अपनी तरि मुकाबले के कलए बु लाया।

मेरे ऐसा करने पर उसके चे हरे के भाि एकदम से बदले और िो पलक झपकते ही
गुस्से में डूबा कदखाई दे ने लगा। कदाकचत अपने डोले कदखा कर िो मु झे डराना
चाहता था मगर जब मैं उसे डरा हुआ ऩिर नही ं आया तो उसे गु स्सा आ गया था।

"अपने भगिान को याद कर ले बच्चे।" किर उसने मेरी तरि खतरनाक भाि से
बढते हुए कहा___"उनसे दु िा कर कक ते रे कजस्म की हकड्डयाॅ सलामत रहें।"
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तु म्हारे कलए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये
सोच कर नही ं बोला कक िालतू की डी ंगें मारना मेरी कितरत नही ं है।"

मेरी ये बात सु न कर िो जैसे बु री तरह कतलकमला गया था। मुझे पता था कक उसके
सामने मैं कुछ भी नही ं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके िौलादी कशकंजे में िस गया

921
तो किर शायद भगिान ही माकलक होगा मेरा। मगर मुझे खु द पर और अपने गुरू की
कसखाई हुई कला पर पू र्ग किश्वास था।

िो पू रे िे ग से मेरी तरि बढा और अपने दाकहने हाॅथ को भी उसी िे ग से मुझ पर


चलाया था। मैं िुती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख कनकल गई।
कारर् उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाकहने पै र को उठाकर उसका घुटना भी
चला कदया था जो सीधा मेरे झुके हुए चे हरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ
ही था कक उसने कबजली की सी िुती से घू म कर मेरे सीने पर फ्लाइं ग ककक जमा दी।
नतीजा ये हुआ कक मेरे हलक से ़िोर की कहचकी कनकली और मैं पीछे की तरि हिा
में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ़िमीन पर चारो खाने कचि जा कगरा। कगरते ही मेरी
ऑखों के सामने अनकगनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के कलए तो ऑखों के सामने
अधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ़िबरदस्त था कक मु झसे तु रंत उठा न गया। सीने में
बडी असहनीय पीडा महसू स हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम ि सोनम की चीखें भी
टकराई। कदाकचत मु झे इस तरह कगरते दे ख िो बे हर डर गई थी और मु झे कुछ हो
जाने की आशं का से िो बु री तरह चीखी थी ं।

सहसा मेरी ऩिर मेरे ऩिदीक ही पहुॅच चु के उस आदमी पर पडी। मेरे क़रीब
पहुॅचते ही उसने अपने पै र को उठाया और ़िमीन पर कचि कगरे मेरे पे ट की तरि
तीब्र िे ग से चलाया। मैं कबजली की सी िुती से कई पलटा खाते हुए दू सरी तरि हो
गया तथा साथ ही उछल कर खडा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर
खडे होने से अचानक ही मु झे अपने सीने पर पीडा का एहसास हुआ। मैं समझ चु का
था कक अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सिल हो गया
तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पू री तरह सतकगता से
मुकाबला करने के कलए तै यार हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 57 》

अब तक,,,,,,,,

"अपने भगिान को याद कर ले बच्चे।" किर उसने मेरी तरि खतरनाक भाि से
बढते हुए कहा___"उनसे दु िा कर कक ते रे कजस्म की हकड्डयाॅ सलामत रहें।"

922
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तु म्हारे कलए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये
सोच कर नही ं बोला कक िालतू की डी ंगें मारना मेरी कितरत नही ं है।"

मेरी ये बात सु न कर िो जैसे बु री तरह कतलकमला गया था। मुझे पता था कक उसके
सामने मैं कुछ भी नही ं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके िौलादी कशकंजे में िस गया
तो किर शायद भगिान ही माकलक होगा मेरा। मगर मुझे खु द पर और अपने गुरू की
कसखाई हुई कला पर पू र्ग किश्वास था।

िो पू रे िे ग से मेरी तरि बढा और अपने दाकहने हाॅथ को भी उसी िे ग से मुझ पर


चलाया था। मैं िुती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख कनकल गई।
कारर् उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाकहने पै र को उठाकर उसका घुटना भी
चला कदया था जो सीधा मेरे झुके हुए चे हरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ
ही था कक उसने कबजली की सी िुती से घू म कर मेरे सीने पर फ्लाइं ग ककक जमा दी।
नतीजा ये हुआ कक मेरे हलक से ़िोर की कहचकी कनकली और मैं पीछे की तरि हिा
में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ़िमीन पर चारो खाने कचि जा कगरा। कगरते ही मेरी
ऑखों के सामने अनकगनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के कलए तो ऑखों के सामने
अधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ़िबरदस्त था कक मु झसे तु रंत उठा न गया। सीने में
बडी असहनीय पीडा महसू स हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम ि सोनम की चीखें भी
टकराई। कदाकचत मु झे इस तरह कगरते दे ख िो बे हर डर गई थी और मु झे कुछ हो
जाने की आशं का से िो बु री तरह चीखी थी ं।

सहसा मेरी ऩिर मेरे ऩिदीक ही पहुॅच चु के उस आदमी पर पडी। मेरे क़रीब
पहुॅचते ही उसने अपने पै र को उठाया और ़िमीन पर कचि कगरे मेरे पे ट की तरि
तीब्र िे ग से चलाया। मैं कबजली की सी िुती से कई पलटा खाते हुए दू सरी तरि हो
गया तथा साथ ही उछल कर खडा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर
खडे होने से अचानक ही मु झे अपने सीने पर पीडा का एहसास हुआ। मैं समझ चु का
था कक अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सिल हो गया
तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पू री तरह सतकगता से
मुकाबला करने के कलए तै यार हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

मंत्री कदिाकर चौधरी इस िक्त गुनगुन में ही एक ऐसी जगह पर था जहाॅ पर उसके
ही ककसी खास जान पहचान िाले के माल का उद् घाटन समारोह था। माल का
माकलक या यू ॅ ककहए कक मंत्री के उस जान पहचान िाले खास आदमी का नाम
शै लेन्द्र बं सल था। जो मुख्य रूप से आगरा का रहने िाला था। बहुत पहले ही उसकी

923
मुलाक़ात मंत्री से हुई थी। कहते हैं कक जो जैसा होता है उसे िै सा कमल ही जाता है
किर चाहे िो दु कनयाॅ के ककसी भी कोने में चला जाए।

शै लेन्द्र बं सल और मं त्री के बीच क्ा मंत्रर्ा हुई थी इस बारे में तो खै र िो दोनो ही


बता सकते थे ककन्तु मंत्री के कैरे क्टर के कहसाब से सोचने पर पता चलता था कक
शै लेन्द्र बं सल भी मंत्री के ही जैसे कैरे क्टर का आदमी था। इसका खु लासा तब हुआ
जब मंत्री ने शै लेन्द्र को अपने यहाॅ कारोबार के रूप में एक बडा सा माॅल थथाकपत
करने का प्रस्ताि कदया था। मंत्री के ही सहयोग से तथा उसके ही कनदे शन पर गुनगुन
में अच्छी खासी ़िमीन पर ग़ैर कानू नी रूप से कब्जा कर उस थथान पर बहुत ही कम
समय में एक बडा सा माॅल बन कर तै यार हो गया था कजसका उद् घाटन आज खु द
मंत्री के द्वारा हुआ था।

मंत्री के कनदे शन में बना ये माॅल सबकी ऩिर में माॅल ही था जहाॅ पर हर तरह का
उपयोगी सामान लोगों को खरीदने पर कमल जाता मगर कोई नही ं जानता था इसी
माॅल के बे समेन्ट में दरअसल मंत्री ि शै लेन्द्र बं सल ग़ैर कानू नी धंधे को अं जाम दे ने
की बु कनयाद भी रख चु के थे ।

माॅल का उद् घाटन तथा िहाॅ पर कुछ ़िरूरी मीकटं ग करने के बाद मंत्री माॅल से
बाहर आकर अपने सु रक्षा ककमग यों से कघरा अपनी कार के पास पहुॅचा ही था कक
सहसा उसकी कोट की जेब में मौजूद मोबाइल बज उठा। एक हाॅथ से मोबाइल को
कनकालने के साथ ही मंत्री अपनी कार की कपछली सीट पर बै ठ गया। उसके बाद
उसने बज रहे मोबाइल की स्क्रीन की तरि दे खा। उसके बै ठते ही उसके साथ आगे
पीछे उसके सु रक्षा गाडग भी बै ठ गए। इसके बाद कार आगे बढ चली।

"हाॅ कहो रार्े ।" मोबाइल की स्क्रीन पर कडटे ल्कक्टि रार्े का नाम दे ख कर मंत्री ने
िौरन ही काल को ररसीि कर मोबाइल को कान से लगाने के साथ ही कहा___"क्ा
बात है? कही ं ऐसा तो नही ं कक तु मने उस सारे काम को कर कलया है कजस काम को
करने के कलए हमने तु म्हें लगाया था? अगर ऐसा है तो भाई मान गए तु म्हें। इतने कम
समय में तो दु कनयाॅ का कोई भी जासू स काम को अं जाम नही ं दे सकता। अभी कल
ही तो लगे थे तु म काम में।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं चौधरी साहब।" उधर से रार्े का स्वर उभरा___"कजस काम
के कलए आपने मुझे लगाया है िो काम भला इतना जल्दी कैसे हो जाएगा?"
"ओह ऐसा क्ा।" मंत्री ने बु रा सा मुह बनाया___"हम तो कमयाॅ खांमखां ही तु म्हें
जेम्स बाण्ड का बाप नही ं बल्कि दादा समझ बै ठे थे । खै र, ये बताओ कक अगर काम
नही ं हुआ है तो तु मने हमें िोन ककस बात के कलए ककया है?"

924
"दरअसल मैने।" उधर से रार्े ने कहा___"बहुत ही ़िरूरी बात बताने के कलए
आपको िोन ककया है ।"
"अरे तो कमयाॅ।" मं त्री तपाक से बोला___"बात क्ों बढा रहे हो? ़िरूरी बात तो तु में
अकतसीघ्र बताना चाकहए न। खै र जल्दी बताओ कौन सी ़िरूरी बात है?"

"कल आपके यहाॅ से जाने के बाद।" उधर से रार्े कह रहा था___"मैने अजय कसं ह
का पता ककया और उसके पीछे लग गया। मैं दे खना चाहता था कक उसने जो कुछ
आपसे कहा था उसमें ककतनी सच्चाई थी तथा िो आपके प्रकत ककतना िफ़ादार है?"

"ओह।" मं त्री के कान खडे हो गए___"तो क्ा दे खा और क्ा जाना तु मने ?"
"कल तो उसने कुछ खास नही ं ककया था।" हरीश रार्े ने कहा___"ककन्तु आज सु बह
नौ या दस बजे के क़रीब िह अपनी कार में ककसी आदमी को कलए गुनगुन के रे लिे
स्टे शन आया था। स्टे शन से बाहर िो अकेला कनकला था। मतलब कक उसके साथ जो
दू सरा आदमी था उसे िो शायद रे लिे स्टे शन छोंडने आया था। स्टे शन के बाहर जब
िह आया तो उसी समय उसके मोबाइल पर ककसी का काल आया तथा उसने ककसी
से कुछ दे र तक बातें की। बात करने के बाद ही एकदम से उसके हाि भाि बदले से
ऩिर आए कजसके तहत िो अपनी कार में बै ठ कर िौरन स्टे शन से बं दूख से छूटी
गोली की तरह हिा हो गया। मैं उसके पीछे ही था कक अचानक कुछ दे र बाद उसके
पास तीन अलग अलग जीपों में ढे र सारे आदमी हकथयारों से लै श आए। उनमें से एक
आदमी अजय कसं ह की कार में बै ठ गया। उसके बाद अजय कसं ह की कार के चलते
ही बाॅकी तीनों जीपों में सिार आदमी भी अजय कसं ह के पीछे पीछे चल पडे ।"

"अब बस भी करो कमयाॅ।" सहसा मंत्री रार्े की बात बीच में ही काटते हुए ककन्तु
परे शान भाि से कह उठा___"तु म तो इस तरह शु रू हो गए जैसे कोई टे प ररकाडग र
शु रू हो जाता है। मुख्य बात बताओ कक मामला क्ा हुआ है बस।"

"मुख्य बात ये है कक।" उधर से रार्े ने कहा___"इस िक्त जहाॅ पर मैं हूॅ िहाॅ पर
एक से बढ कर एक धुरंधर लोगों की पू री िौज आई हुई है। इतना ही नही ं यहाॅ पर
एक मंकदर है कजसके सामने कई सारे हट्टे कट्टे लोग खडे हैं। एक हट्टा कट्टा आदमी
एक मामूली से लडके से ़िबरदस्त लडाई कर रहा है। अजय कसं ह तथा उसके साथ
आए सब लोग लडाई दे ख रहे हैं। मैने तो अजय कसं ह को ये भी कहते सु ना है कक इस
हराम के कपल्ले को इतना मारो कक हगने मूतने के भी काकबल न बचे । मंकदर के पास
ही दो लडककयाॅ दो आदकमयों से कघरी खडी हैं तथा बु री तरह रोये जा रही हैं। उनके
मुख से बार बार एक ही बात कनकल रही है कक प्लीज उसे कुछ मत करो। इसका
मतलब ये हुआ चौधरी साहब कक ये िही लडका है कजसका नाम किराज है। अजय

925
कसं ह ने कदाकचत उसे घेर कलया है और अब िह उसके आदकमयों के रहमो करम पर
है।"

"ओह तो ये बात है।" मंत्री के कजस्म में जाने क्ा सोच कर झुरझुरी सी हुई,
बोला___"चलो अच्छा ही हुआ कक िो साला ठाकुर की पकड में आ गया है। अब सब
कुछ सही हो जाएगा रार्े ।"

"यकीनन।" उधर से रार्े ने कहा___"आपका दु श्मन अजय कसं ह की पकड में आ


चु का है। अब आप अगर चाहें तो इस मौके का िायदा उठा सकते हैं। यानी आप भी
यहाॅ आ जाइये और बहती गंगा में डु बकी लगा कर अपना काम भी कर लीकजए।"

"अब हमें िहाॅ आने की ़िरूरत नही ं है रार्े ।" मंत्री ने कहा___"िो लडका तो अब
अजय कसं ह की पकड में आ ही गया है। अतः अजय कसं ह अपने िादे के अनु सार उसे
हमारे हिाले भी कर दे गा। उसके बाद तो उसे हमारी हर ची़ि लौटानी ही पडे गी।
किर हम उसका क्ा हस्र करें गे इसके बारे में उसने सोचा भी न होगा।"

"तो किर मेरे कलए क्ा आदे श है चौधरी साहब?" उधर से हरीश रार्े ने कहा___"मु झे
नही ं लगता कक अब इसके बाद भी मेरा कोई काम है यहाॅ। यानी आपका दु श्मन
ठाकुर अजय कसं ह से दे र सिे र आपको कमल ही जाएगा और किर आप उससे जैसे
चाहेंगे िै से अपने िो िीकडयोज तथा अपने बच्चे िापस ले सकेंगे ।"

"ठीक कह रहे हो तु म रार्े ।" मंत्री ने कहा___"अगर यही आलम है िहाॅ का तो किर
अब रह ही क्ा गया है तु म्हारे कुछ करने के कलए? इस कलए अगर तु म चाहो तो
िापस आ सकते हो या किर ऐसा करो कक अभी किलहाल तु म िही ं पर रहो और
दे खते रहो कक नतीजा क्ा कनकलता है? जैसा कक इस सबके बारे में ठाकुर ने हमें
सू चना तक नही ं दी है इस कलए सं भि है कक उसके मन में हमारे प्रकत कोई खोट हो।
इस कलए तु म ठाकुर की कायगिाही के बारे में अं त तक दे खते रहो। अगर ठाकुर इसके
बाद भी हमें उस सबके बारे में नही ं बताता है तो हम उसे भी दे ख लें गे। तु म ये ़िरूर
दे खना कक ठाकुर उस लडके को तथा अपनी बे टी को कहाॅ कैद करके रखता है?"

"ठीक है चौधरी साहब।" उधर से हरीश रार्े के ऐसा कहने के साथ ही मंत्री ने काल
कट कर दी। हरीश रार्े से बात करने के बाद मंत्री इस सबके बारे में सोचने लगा।
उसे उम्मीद तो थी कक ठाकुर उससे गद्दारी नही ं करे गा ककन्तु उसे इस बात का भी
एहसास था कक ठाकुर साला जब अपनों का ही नही ं हुआ तो भला उसका क्ा होगा?

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ररतू और आकदत्य इस िक्त दो अलग अलग पे डों पर चढे हुए थे । जहाॅ से उन दोनों

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को मंकदर के सामने का ऩिारा िष्ट कदख रहा था। किराज के साथ क्ा क्ा हुआ था
ये उन दोनो ने अपनी ऑखों से दे खा था। दोनो ही किराज के कलए बे हद कचं कतत ि
परे शान थे । उन दोनो को उम्मीद नही ं थी कक अचानक ही ऐसा कुछ हो सकता है।

किराज को इस तरह मार खाते दे ख आकदत्य तु रंत पे ड की शाखा से नीचे कूदने ही


िाला था कक ररतू ने उसे रुकने का इशारा ककया था। उसे उसने समझाया था कक
उसके जाने से भी इस िक्त कुछ नही ं हो सकता था। उल्टा िो खु द भी किराज की
तरह पकड में आ सकता है। आकदत्य को ररतू से ये उम्मीद नही ं थी ककन्तु किर उसे
भी लगा कक ररतू सही कह रही है। इस िक्त िहाॅ पर जाना खतरे से खाली नही ं था।
सं भि था किराज उसकी िजह से कम़िोर ही पड जाता।

दोनो के पास अब कोई दू सरा चारा नही ं था। हलाॅकक ररतू के मन में कुछ और ही
चल रहा था। उसके चे हरे के भाि बता रहे थे कक िो इस कसचु एशन पर ज्यादा गंभीर
नही ं हुई है । कदाकचत उसे बस समय का इं त़िार था।

आकदत्य की ऩिर सहसा शे खर के मौसा यानी केशि की तरि पडी। केशि जी के


साथ तीन जीपों में आदमी थे कजनके हाॅथों में बं दूख, लि तथा हाॅकी जैसे हकथयार
ऩिर आ रहे थे । कजन पे डों पर ये दोनो चढे हुए थे उन्ही ं पे डों के बीच से होते हुए
केशि और उसके आदकमयों की जीपें गु ़िरी थी ं। ये दे ख कर आकदत्य ने ररतू की
तरि दे खा। ररतू ने भी आकदत्य की तरि दे खा मगर उसने कोई ररएक्शन नही ं
कदया। पता नही ं क्ा चल रहा था उसके मन में ??
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इधर मेरी तरि।
मैं समझ गया था कक मेरा प्रकतद्वं दी ताकत के मामले में मुझसे कही ं ज्यादा है। अतः
अब ताकत के साथ साथ कदमाग़ से भी काम ले ना ़िरूरी था। उधर िो आदमी मेरी
तरि इस तरह दे ख दे ख कर मु स्कुरा रहा था जैसे िो मुझे सचमुच में ची ंटी ही समझ
रहा हो और जब चाहे मु झे मसल कर रख दे ककन्तु अभी िो मुझे जैसे ल्कखला रहा था।

"क्ों बच्चे ददग तो नही ं हो रहा न?" उस आदमी ने ब्यं गात्मक लहजे में मु स्कुरा कर
कहा___"िै से अभी तो मैने तु म पर ताकत से कोई िार ही नही ं ककया है। िरना तु म
इस तरह सही सलामत खडे न रहते बल्कि अपने हाॅथ पै र की हकड्डयाॅ तु डिाए
़िमीन पर पडे रहते ।"

"मैं भी अभी तक कसिग दे ख ही रहा था कक।" मैने कहा___"भाडे के कुिों में ककतना
दम होता है?"
"अच्छा।" िह कतलकमलाया तो ़िरूर मगर किर भी मु स्कुरा कर ही बोला___"तो क्ा

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दे खा और क्ा समझ आया तु झे?"

"यही कक।" मैने मु स्कुरा कर कहा___"कुिे तो कुिे ही होते हैं िो कभी शे र का


कशकार नही ं कर सकते ।"
"यू बास्टडग ।" िो बु री तरह क्रोध में आते हुए मे री तरि बढा और गुस्से में आग बबू ला
होते हुए मु झ पर हमला कर कदया।

मैं तो अब पू री तरह से सतकग हो चु का था और उसके ककसी भी हमले के कलए पू री


तरह से तै यार था। जैसे ही उसने मेरी नाॅक में अपने दाकहने हाॅथ का पं च मारा मैं
िुती से एक तरि हुआ और कबजली की सी िीड से पलट कर उसकी तरि पीठ
करते हुए उसके उस हाॅथ को दोनो हाॅथों से पकड कर अपने दाकहने कंधे पर रखा
और किर पू री ताकत से नीचे की तरि ़िोर का झटका कदया। पररर्ामस्वरूप
कडकड की आिा़ि के साथ ही उसका हाॅथ बीच से टू ट गया। हाॅथ के टू टते ही
िह हलाल होते बकरे की तरह कचल्लाया। जबकक मैंने इतने पर ही बस नही ं ककया
बल्कि िुती से घू म कर उसके पीछे आया और इससे पहले कक िो कुछ समझ पाता
मैने िुती से उसके कसर को दोनो हाथों से पकडा और ़िोर से बाॅई तरि को झटक
कदया। नतीजा ये हुआ कक एक बार पु नः कि़िा में कडकड की आिा़ि हुई और
उसकी गदग न एक तरि को झल ू गई, साथ ही िह लहराते हुए ़िमीन पर कगरा और
शान्त पड गया। उसे दे ख कर अब कोई भी कह सकता था कक िो मर चु का है।

आस पास खडे उसके सभी हट्टे कट्टे आदमी ये ऩिारा दे ख कर आश्चयगचककत रह


गए। ककसी को भी इस सब पर यकीन न आया कक ये दो पल में अचानक क्ा हो गया
है? अपनी अपनी जगह पर खडे सबके सब बु त से बन गए थे । ऊपर मंकदर के दरिाजे
के जस्ट सामने ही दोनो तरि से एक एक आदमी से कघरी नीलम ि सोनम दीदी भी
ये सब दे ख कर हक्का बक्का रह गई थी।

"ओये मारो रे इस हराम़िादे को।" सहसा कि़िा में छा चु के सन्नाटे को एक आदमी


ने ़िोर से कचल्लाते हुए भं ग ककया, बोला___"इसने अब्दुल को जान से मार कदया। इस
साले की हड्डी पसली तोड डालो सब।"

उस आदमी की इस बात से सब जैसे होशो हिाश में आए और किर चारो तरि से


मेरी तरि दौड पडे । मैं जानता था कक सबके सब साले साॅड हैं। इस िक्त गु स्से में
ये सब सचमुच मेरी हकड्डयाॅ तोड सकते थे । अभी िो सब मेरे ऩिदीक पहुॅचे भी
नही ं थे कक तभी बहुत सारे आदमी हाॅथों में बं दूख, लि ि हाॅकी जैसे हकथयार कलए
चारो तरि से उन सब आदकमयों पर टू ट पडे । मैं समझ गया कक ये सब केशि जी के
आदमी हैं। ये दे ख कर मैने राहत की साॅस ली।

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केशि जी के िो आदमी कबना कुछ सोचे समझे तथा कबना कुछ बोले एकदम से टू ट
पडे थे उन हट्टे कट्टे आदकमयों पर। नतीजा ये हुआ कक िो सब कजन कजन के कनशाने
पर आए िो सब दे खते ही दे खते लहू लु हान ऩिर आने लगे। मंकदर के बाहर इतने
सारे आदमी और उनके शोर से िातािरर् गूॅज उठा। अभी ये सब हंगामा मचा ही
हुआ था कक तभी अलग अलग कदशाओं से एक बार पु नः िै से ही हट्टे कट्टे आदमी
कनकल कर आए और केशि जी के उन आदकमयों पर कपल पडे । हलाॅकक उन सबके
हाॅथ खाली थे ककन्तु जल्द ही उनके हाॅथों में भी हकथयार ऩिर आने लगे। उन
लोगों ने केशि जी के आदकमयों से उनके ही हकथयार छीन कर उन पर प्रहार करना
शु रू कर कदया था।

केशि जी के कजन आदकमयों के पास बं दूखें थी िो गोकलयाॅ बरसाए जा रहे थे ।


कजसका नतीजा ये हो रहा था कक कजन पर भी गोली लगती िो सीधा यमलोक ही
पहुॅच रहा था। इधर मैं आस पास दे ख रहा था कक आकदत्य ि ररतू दीदी कहाॅ हैं? मैं
हैरान था कक िो दोनो अभी तक आए क्ों नही ं? मैं खु द भी इस मुठभे ड में ककसी न
ककसी से लडे जा रहा था।

"सबके सब अपनी अपनी जगह रुक जाओ।" सहसा इस आिा़ि की गजगना को सु न


कर मैं चौंक गया। पलट कर दे खा तो ऊपर जहाॅ पर नीलम ि सोनम दीदी खडी थी
उनके पास ही बडे पापा यानी अजय कसं ह खडे थे । उनके हाॅथ में ररिावर थी कजसे
िो सोनम की कनपटी पर लगाए खडे थे । उन आदकमयों का पता ही नही ं था जो
इसके पहले नीलम ि सोनम दीदी को किर ककये खडे थे । शायद सबके आते ही िो
भी लडाई में शाकमल हो गए थे ।

अजय कसं ह की ़िोरदार आिा़ि को सु न कर सबके सब जहाॅ के तहाॅ रुक गए।


उन सब के रुकते ही अजय कसं ह के साथ आए किरो़ि खान के सभी आदकमयों ने
केशि तथा उनके आदकमयों को गन प्वाइं ट पर ले कलया। सब कुछ एकदम से बदल
गया। अभी कुछ ही दे र पहले तो हालात हमारे हक़ ऩिर आए थे ककन्तु अब बा़िी
किर से पलट गई थी।

"तु म लोगों ने बहुत तमाशा कर कलया है।" शान्त पड गए माहौल में अजय कसं ह की
आिा़ि गूॅजी___"अब ़िरा मेरी बात कान खोल कर सु नो सबके सब। अगर मेरे
आदकमयों के अलािा कोई दू सरा आदमी अपनी जगह से कहला तो समझ लो िो
अपनी मौत का कजम्मेदार खु द होगा।"

अजय कसं ह की इस बात से कोई कुछ न बोला। कुछ दे र की खामोशी के बाद सहसा

929
अजय कसं ह ने मेरी तरि दे खा और किर मुस्कुरा कर कहा___"तो आकखर तु म मेरी
पकड में आ ही गए भतीजे? बहुत सताया तु मने और बहुत ज्यादा तडपाया भी मु झे।
मगर कोई बात नही ं, मैं उस सबका ब्याज सकहत कहसाब ले ही लू ॅगा। मगर उससे
पहले मैं ़िरा अपनी बे कटयों से तो कमल लू ॅ।"

कहने के साथ ही अजय कसं ह ने एक हाॅथ बढा कर नीलम को उसके कसर के बालों
से पकड कर ़िोर से अपनी तरि खी ंचा। नीलम के हलक से ददग में डूबी चीख
कनकल गई। हलाॅकक उसकी ि सोनम दीदी दोनो की ही हालत बहुत खराब हो चु की
थी। उनके चे हरों पर मौत जैसा खौफ़ मानो ताण्डि सा कर रहा था।

"क्ों कबकटया रानी।" अजय कसं ह ने दाॅत पीसते हुए नीलम के चे हरे के पास अपना
चे हरा लाते हुए कहा___"तु म्हारे इस बाप के लौडे में ऐसी क्ा कमी ऩिर आ गई थी
जो तु म दोनो बहनों ने अपने इस भाई के लौडे को थाम कलया?"

"अजय कसं ह।" मैं पू री शल्कक्त से कचल्लाया___"़िुबान सम्हाल कर बात कर। ये मत


भू ल कक कजससे तू इस कघनौने तरीके से बात कर रहा है िो खु द ते री ही बे टी है। मेरे
कदलो कदमाग़ में ते रे कलए जो इज्ज़ित बाॅकी थी उसे भी आज तू ने ये कघनौनी बात बोल
कर खत्म कर ली है। यकीनन तू इस सं सार का सबसे गंदा और सबसे पापी इं सान
है, बल्कि इं सान ही नही ं है तू , राक्षस है राक्षस।"

"मैं चाहूॅ तो इसी िक्त ते री इस कडिी ़िुबान को ते रे हलक से कनकाल कर चील


कौिों को ल्कखला दू ॅ।" मेरी बातों से कतलकमलाया हुआ अजय कसं ह गुराग या___"मगर
जैसा कक मैने कहा न कक पहले मैं अपनी कबकटयों से कमल लू ॅ, उसके बाद तु झसे भी
अच्छे से कमलू ॅगा।"

"आप सच में बहुत गंदे हैं डै ड।" नीलम ने बु री तरह रोते हुए कहा___"काश ये सब
सच न होता। अच्छा होता कक इस सबके बारे में मु झे पता ही न चलता। ररतू दीदी ने
बहुत अच्छा ककया था जो उन्होंने आप जैसे गं दे ि पापी माॅ बाप को ठु करा कदया है
और अभी कजस तरीके से आपने मुझे िो शब्द कहे हैं उससे आपने बता कदया कक
आपके मन में अपनी ही बहू बे कटयों के प्रकत क्ा है?"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नही ं रह गया है कबकटया रानी।" अजय कसं ह ने
अजीब भाि से कहा___"ये सच है कक मैंने हमे शा अपने ही घर की औरतों ि बे कटयों
को अपने नीचे सु लाने की ख्वाकहश की है। मगर इसमें बु रा क्ा ककया है मैने ? हर
इं सान को अपनी इच्छा पू री करने का हक़ होता है। मैने भी अपनी इच्छाओं को पू रा
ही तो करना चाहा है। खै र छोंड, ये बता कक तु झे यही ं पर नं गा करूॅ या हिे ली ले

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जाकर आराम से तु झे लडकी से औरत बनाऊ?"

"तू कुिे की मौत मरे गा अजय कसं ह।" मैं पू री शल्कक्त से दहाडते हुए बोला___"ते रे
कजस्म में कीडे पडें गे। तू सड सड कर मरे गा। तू िासना और हिश में इतना अं धा हो
चु का है कक तु झे ररश्े नाते भी ऩिर नही ं आ रहे हैं।"

"कुिे की मौत तो मैं तु झे मारूॅगा भतीजे ।" अजय कसं ह ने कहा___"ले ककन उससे
पहले मैं ते री माॅ गौरी, ते री बहन कनधी, ि ते री चाची करुर्ा इन तीनो को जी भर के
ते रे ही सामने पे लूॅगा, िो भी आगे पीछे दोनो तरि से । उसके बाद उन सबको रं डी
ब़िार में बें चूॅगा भी, तब तु झे मारूॅगा।"

"अपने जैसे ही कहजडों की िौज ले कर आया है।" मैने कहा___"और इन्ही ं कहजडों
की िौज के बलबू ते पर तू इतना कुछ बोल पा रहा है। तु झमें अगर दम है तो मु झसे
खु द मुकाबला कर।"

"इसे मारो रे ।" अजय कसं ह ़िोर से कचल्लाया___"इस हराम के कपल्ले को इतना मारो
कक हगने मूतने के भी काकबल न बचे । बहुत दे र से ये हराम़िादा बड बड ककये जा
रहा है। पहले इसकी ही हकड्डयाॅ तोडो।"

अजय कसं ह के कहने की दे र थी। चारो तरि से िही हट्टे कट्टे आदमी मेरी तरि बढते
हुए आ गए। िो चार थे और मैं अकेला। मैं अजय कसं ह की उन अश्लीलतापू र्ग बातों से
बु री तरह क्रोध ि गुस्से से भन्ना उठा था। जैसे ही एक मेरी तरि झपटा मैने कबजली
की तरह िुती कदखाई और उछल कर एक ़िबरदस्त फ्लाइं ग ककक उसकी गदग न पर
जड दी। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख कनकली साथ ही कडकड की आिा़ि भी
हुई। ़िमीन पर औंधे मुह जब िह कगरा तो किर उठ न सका।

ये दे ख कर नीलम को उसके बालों से पकडे अजय कसं ह हक्का बक्का रह गया।


कदाकचत उसे मु झसे ऐसे ककसी चमत्कार की स्वप्न में भी उम्मीद नही ं थी। िो ऑखें
िाडे मु झे दे खने लगा था। इधर उस आदमी के कगर कर शान्त पडते ही बाॅकी तीन
थोडी दे र के कलए कठठके और किर एक साथ मेरी तरि झपटे । मैंने अपनी जगह से
ऊची छलांग लगाई तथा हिा में ही कलाबा़िी खाते हुए उन तीनों के बीच से बाहर
उनके पीछे आ खडा हुआ। जबकक िो तीनों ही झोंक में आकर आपस में ही टकरा
गए।

"रुक जा सु अर की औलाद।" तभी अजय कसं ह कचल्लाया___"िरना मेरे एक ही इशारे


पर मेरे साथ आए मेरे ये सब हकथयारों से लै श आदमी तु झे पल भर में गोकलयों से भू न
कर छलनी कर दें गे।"

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"तू मुझे गोकलयों से छलनी नही ं कर सकता कुिे ।" मैने कहने के साथ ही अपनी
टाॅग चला दी एक की पीठ पर। कजसकी पीठ पर लात का प्रहार पडा था िो अपने
साथ दू सरे को साथ कलए ही ़िमीन पर कगर गया, जबकक तीसरा अभी पलटा ही था
कक मैने पै र के घुटने का िार उसके पे ट में ककया तो िो कबलकबला उठा। साथ ही
बोलता भी जा रहा था ़िोर से ____"ते रे कलए तो मैं एक तु रुप के इक्के की तरह हूॅ न।
मुझे बं धक बना कर ही तो तू बाॅकी सबको मु म्बई से यहाॅ बु लाएगा। अगर मैं ही
मर गया तो तू कैसे बु ला सकेगा उन सबको?"

"ज्यादा बकिास न कर समझा।" अजय कसं ह पहले तो सकपकाया, किर


कचल्लाया___"मैं कहता हूॅ ये उछलना कूदना बं द कर िरना मैं नीलम को यही ं पर
नं गा कर दू ॅगा।"
"नही ंऽऽऽ।" अपने बाप की ये बात सु न कर नीलम तो बु री तरह रोते हुए चीखी ही
उसके साथ में सोनम भी चीख पडी थी। इधर अजय कसं ह का िाक् जैसे ही मेरे
कानों से टकराया मैं एकदम से रुक गया। मैं जानता था कक अजय कसं ह ये ़िरूर कर
सकता था। उसे इस िक्त अपनी ि अपनी बे टी की इज्ज़ित की कोई परिाह नही ं थी।

"तु म मेरी इज्ज़ित की परिाह मत करो राज।" सहसा नीलम रोते हुए कचल्लाई___"िै से
भी मु झे इस नीच आदमी की ऐसी बे हूदा बातें अपने कलए सु न कर जीने की इच्छा मर
गई है। इस कलए तु म मेरी कचन्ता मत करो और इन सारे राक्षसों का िध कर दो।"

"ओहो क्ा बात है।" अजय कसं ह चमका___"दे खो तो क्ा इज्ज़ित दी है मेरी कबकटया
रानी ने मुझे। खै र कोई बात नही ं, पर हाॅ मरना तो है ही तु झे और तु झे ही बस क्ों
बल्कि ते री बडी बहन को भी मरना होगा। मु झे ऐसी औलाद के जीने मरने से अब
कोई िक़ग नही ं पडे गा जो अपने ही माॅ बाप के मौत का सामान करती किरे । बचपन
से अब तक मैंने तु म दोनो को हर ची़ि दी है। कजस ची़ि पर तु म दोनो ने हाॅथ रखा
उस ची़ि को मैने तु म दोनो के नाम कर दी। मगर बदले में कदया क्ा तु म दोनो ने ??
अरे दे ने की तो बात दू र बल्कि मेरे दु श्मन का साथ दे कर मेरी मौत चाही तु म दोनो ने ।
अरे माॅ बाप जैसे भी हों माॅ बाप ही होते हैं। खै र जाने दो, मुझे इस बात का दु ख
नही ं है कक इस लडके ने मेरा इतना ज्यादा नु कसान करके मेरा जीना हराम ककया है
बल्कि इस बात का दु ख है कक मेरी अपनी बे कटयाॅ मु झे और अपनी माॅ तथा भाई
को त्याग कर इसका साथ कदया। इस कलए इसकी स़िा तो कमले गी तु म दोनो को।
मगर उससे पहले तु म दोनो के साथ मैं िो करूॅगा जो दु कनयाॅ में ककसी भी बाप ने
न ककया होगा।"

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"तु झ जैसे इं सान से और ककसी बात की उम्मीद भी क्ा की जा सकती है।" नीलम ने
सहसा ़िहरीले भाि से कहा___"जो अपनी ही औलाद को अपने नीचे सु लाना चाहता
हो उसके जैसा नीच ि पापी दू सरा कौन होगा? उस कदन सोचते सोचते मेरा बु रा हाल
हो गया था कक आकखर ऐसा क्ा हो गया है कजसकी िजह से दीदी ने अपने ही माॅ
बाप को त्याग कदया है, मगर उस रात जब मैने अपने कानों से सब कुछ सु ना तो मेरे
पै रों तले से ़िमीन ल्कखसक गई। इतना बडा धोखा, इतना बडा कुकमग ककया तू ने
कजसके बारे में अगर ककसी को पता चल जाए तो तु झ पर थू ॅकना तक पसं द न
करे ।"

"हराम़िादी कुकतया।" अजय कसं ह बु री तरह तमतमा गया, और किर दो तीन थप्पड
जल्दी जल्दी नीलम के गालों पर जड कदया उसने । ये दे ख कर सोनम उसे पकडने के
कलए आगे बढी तो सहसा िही ं पर आ गए किरो़ि खान ने उसे गन प्वाइं ट पर रख
कलया। इधर नीलम के गालों पर थप्पड पडते ही मेरा खू न भी खौल गया।

"लडकी पर क्ा हाॅथ उठाता है नीच इं सान?" मैने दहाडते हुए कहा___"असली मदग
है तो इधर आ और मुझसे दो दो हाॅथ कर। कसम पै दा करने िाले की ते रे कजस्म की
एक एक हकड्डयों को न तोडा तो अपने बाप ठाकुर किजय कसं ह की औलाद नही ं।"

"ते री गमी का इलाज अब करना ही पडे गा।" अजय कसं ह पलट कर गुरागया, किर
उन्ही ं हट्टे कट्टे आदकमयों की तरि दे खते हुए कहा___"खडे क्ा हो तु म लोग? इस
साले को इतना मारो कक इसकी सारी हेकडी कनकल जाए।"

बस किर क्ा था? उन तीनों ने मु झे धोना शु रू कर कदया। मैं कुछ करने की हालत में
नही ं था। अगर कुछ करता तो अजय कसं ह किर से नीलम के साथ कुछ उल्टा सीधा
करने लगता। अभी मैं मार खा ही रहा था कक सहसा मेरे अलािा ककसी और की भी
चीख गूॅजी िहाॅ। मैने कसर उठा कर दे खा तो चौंक गया। आकदत्य एक आदमी को
बु री तरह मारे जा रहा था। आकदत्य के अचानक ही इस तरह आ जाने से बाॅकी खडे
सब भौचक्के से रह गए।

"तु म यहाॅ क्ों आ गए आदी?" मैंने सहसा हतास भाि से कहा___"तु म्हें यहाॅ नही ं
आना चाकहए था।"
"ज्यादा बकिास मत करो समझे।" आकदत्य ने तीखे भाि से कहा___"मैं कायर नही ं
हूॅ जो इतनी दे र से चु पचाप तु म्हें इस तरह मार खाते दे खता रहता। बहुत दे र से ररतू
के कहने पर रुका हुआ था मगर अब और नही ं रुक सकता था मेरे यार। ते रा साथ
भी न कदया तो साला कधक्कार है मु झ पर।"

933
मैं अब क्ा कहता उसे । उधर आकदत्य के आ जाने से अजय कसं ह भी चौंका था। उसे
नही ं पता था कक आकदत्य कौन है, ककन्तु इतना तो िो समझ ही गया था कक आकदत्य
कदाकचत मेरा ही साथी है। अतः उसने सीघ्र ही ऊची आिा़ि में मुझसे कहा___"अपने
साथी को बोल भतीजे कक ज्यादा उछल कूद न करे । अगर यहाॅ पर ये ते री तरह मार
खाने ही आया है तो चु पचाप अब ये भी मार खाए।"

"तु झे तो मैं कुिे की तरह मारूॅगा हराम़िादे ।" आकदत्य चीखा___"इतनी दे र से दे ख


रहा हूॅ कक तू भाडे के इन टट् टुओ ं की िजह से ही शे र बना हुआ है, जबकक खु द
तु झमें ककतनी मदागनगी है िो तो तू भी जानता ही होगा साले । ककतनी बार मेरे दोस्त
ने तु झे लडने के कलए ललकारा मगर तू इससे लडने नही ं आया। मतलब साि है कक
तू इससे डरता है और खु द भी जानता है कक तू अपने भतीजे से टक्कर नही ं ले
सकता। हाहाहाहा राज यार, ते रा ये ताऊ तो कायर और डरपोंक कनकला।"

"ठाकुर साहब।" सहसा किरो़ि खान बोल पडा___"आप कहें तो एक ही झटके में
इस आदमी का काम तमाम कर दू ॅ। इसकी कहम्मत कैसे हुई आपसे ऐसे बात करने
की?"

"कोई बात नही ं खान।" अजय कसं ह बोला___"इसे भी खु जली हो रखी है। इस कलए
इसकी भी धुनाई शु रू करिा दो। कुछ दे र में ही हमसे रहम की भीख माॅगने
लगेगा।"
"ठीक है ठाकुर साहब।" किरो़ि खान ने कहा और किर अपने आदकमयों को हुक्म
कदया।

कुछ ही दे र में हम दोनो की धुनाई शु रू हो गई। ये दे ख कर नीलम ि सोनम दीदी


बु री तरह रोये जा रही थी और साथ ही अजय कसं ह से हमें ना मारने के कलए कहे भी
जा रही थी। मगर उनके कहने का अजय कसं ह पर कोई असर न हुआ।

अभी ये सब हो ही रहा था कक एकाएक ही सं पूर्ग िातािरर् में पु कलस सायरन की


आिा़िें आने लगी। इन आिा़िों को सु न कर अजय कसं ह ि किरो़ि खान बु री तरह
चौंक पडे । उन्हें समझ न आया कक यहाॅ पु कलस कैसे आ गई? दे खते ही दे खते मंकदर
के चारो तरि से ढे र सारे पु कलस िालों का हुजू म उमड पडा।

"तु म सबको पु कलस ने चारो तरि से घेर कलया है।" सहसा तभी माइक पर ककसी की
आिा़ि गूॅजी___"इस कलए सब अपने अपने हकथयार नीचे रख कर अपने आपको
पु कलस के हिाले कर दो। िरना हमें तु म सब पर गोकलयाॅ चलाने में भी कोई
कहचककचाहट नही ं होगी।"

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"ठाकुर साहब।" सहसा बु री तरह घबराया हुआ किरोज खान कह उठा___"ये पु कलस
िाले यहाॅ कैसे आ गए? अब हम सब पु कलस के द्वारा पकड कलए जाएॅगे । कुछ
कीकजए ठाकुर साहब। आप तो जानते हैं कक पु कलस को मेरी और मेरे आदकमयों को
बडी कशद्दत से तलाश है। मैं और मेरे साथी पु कलस के हाॅथ नही ं लगना चाहते । खु दा
के कलए कुछ कीकजए।"

"मुझे पता है कक।" अजय कसं ह ने सोचने िाले भाि से कहा___"इन पु कलस िालों को
यहाॅ ककसने बु लाया है? हाॅ खान, ये सब ररतू का ककया धरा है। उसी कुकतया ने इन
पु कलस िालों को बु लाया है। इतनी दे र से दे ख रहा हूॅ िो हराम़िादी कही ं कदखाई
नही ं दे रही है । ़िरूर पु कलस िालों के साथ ही होगी।"

"ककसी का भी ककया धरा हो ठाकुर साहब।" किरो़ि खान ने कहा___"मामला तो


कबगड ही गया है अब। मगर समझदार आदमी िही है जो ऐसे समय पर भी खु द को
बचा ले और अपने दु श्मन को मात दे दे ।"

"सही कहा तु मने खान।" अजय कसं ह ने कहा____"मु झे ऐसा ही कुछ करना होगा।
अरे हाॅ एक काम करता हूॅ। इन दोनो को यहाॅ से अपने साथ ले चलते हैं। िो
साला इन्ही ं दोनो को ले ने आया था न। अब जब इन्हें नही ं ले जा पाएगा तो यकीनन ये
उसकी ़िबरदस्त हार होगी। अब िो इन दोनो के कलए मेरे पास कसर के बल
आएगा।"

"कबलकुल सही कहा आपने ।" किरो़ि खान ने कहा__"ककन्तु अब हमें दे र नही ं करनी
चाकहए। यहाॅ से इन दोनो को ले कर बडी होकशयारी से ल्कखसक ले ना चाकहए।"
"ठीक है।" अजय कसं ह ने कहा___"चलो इन दोनो को एक एक करके उठा कर ले
चलते हैं। इससे पहले कक पु कलस हम तक पहुॅचे हम पीछे के इस िाले कहस्से से
कनकल ले ते हैं। मुख्य रास्ते की तरि जाना यकीनन खतरे से खाली नही ं होगा। मेरी
कार इसी िाले कहस्से की तरि है। अच्छा हुआ कक कार ज्यादा पीछे की तरि उस
मुख्य रास्ते की तरि नही ं खडी की थी मैने।"

अजय कसं ह की बातें सु न कर नीलम ि सोनम दीदी बु री तरह घबरा गई और उनके


चं गुल से छूटने के कलए छटपटाने लगी थी। मगर कदाकचत अजय कसं ह को उनसे इसी
बात की उम्मीद थी। यही िजह थी कक उसने मजबू ती से उन्हें पकडा हुआ था। ककन्तु
अब उसकी बात से किरो़ि ने भी सोनम दीदी को पकड कलया। यानी एक एक को ले
कर मंकदर के बगल से सीकढयाॅ उतरने लगे िो दोनो।

नीलम ि सोनम जब खु द को उनके चं गुल से न छु डा पाई तो पू री शल्कक्त से कचल्लाने

935
लगी ं। इधर पु कलस के आ जाने से मैं और आकदत्य पहले तो हैरान हुए उसके बाद
तु रंत ही बात समझ में आ गई कक ये सब ररतू दीदी का लास्ट बै कअप प्लान था
कजसके बारे में उन्होंने सिेंस बनाया हुआ था उस समय। खै र पु कलस िालों ने सबको
घेर कलया। इधर नीलम ि सोनम दीदी के कचल्लाने से मेरा और आकदत्य का ध्यान उस
तरि गया तो दे खा अजय कसं ह ि किरो़ि खान ़िबरदस्ती उन दोनो को अपने साथ
कलए सीकढयाॅ उतरते चले जा रहे थे ।

मैंने आकदत्य की तरि दे खा और किर हम दोनो ही उनकी तरि ते ़िी से दौड पडे ।
अभी हम सीकढयों के पास भी न पहुॅचे थे कक सहसा िातािरर् में गोली चलने की
आिा़ि आई और साथ ही चीख की भी। हम दोनो ये दे ख कर चौंके कक सोनम दीदी
को साथ कलए उतर रहा किरो़ि खान का अचानक ही बै लेंस कबगडा और उसके
हाॅथ से सोनम का हाॅथ छूट गया, साथ ही िह सीकढयों पर लु ढकता हुआ नीचे चला
गया। उसके हाॅथ से उसका ररिावर छूट कर जाने कहाॅ कगर कर गुम सा हो गया
था। उसके बाएॅ पै र की टाॅग से खू न बहता हुआ ऩिर आया।

गोली की आिा़ि और किरो़ि खान को यू ॅ लु ढकते दे ख अजय कसं ह बु री तरह उछल


पडा। भौचक्का सा पहले तो उसने किरो़ि खान को लु ढकते हुए दे खता रहा उसके
बाद जैसे उसे होश आया तो िौरन ही इधर उधर ऩिर घुमाई उसने । ककन्तु तब तक
दे र हो चु की थी। उसी िक्त सीकढयों के बगल से ही ररतू दीदी मानो प्रगट सी हुई और
ते ़िी से अपने बाप के पै र को पकड कर झटक कदया। कजसका नतीजा ये हुआ कक
बु री तरह घबरा कर चीखते हुए अजय कसं ह भरभरा कर सीकढयों पर कपछिाडे के बल
कगर पडा। ककन्तु उसके साथ ही नीलम भी कगर पडी थी। क्ोंकक अजय कसं ह ने
उसका हाॅथ उस िक्त तक छोंडा ही नही ं था। छोंडा भी तो तब जब उसके साथ ही
साथ नीलम भी अनबै लेंस होकर कगर पडी थी। नीलम के मुख से ददग में डूबी कराह
कनकल गई।

ये सब हो ही रहा था कक हम दोनो भी उनके पास पहुॅच गए। आकदत्य ने तो आते ही


किरो़ि खान को धर कलया। जबकक मैने सीकढयों पर कगरने के बाद उठ रहे अजय
कसं ह को उसके कालर से पकड कर उठाया और कबना कुछ बोले पै र के घुटने का
िार उसके पे ट पर जड कदया। अजय कसं ह ददग से चीख पडा।

"रुक जाओ राज।" सहसा मेरे क़रीब पहुॅचते ही ररतू दीदी ने कहा____"ये इं सान
यकीनन कसिग और कसिग तु म्हारा ही कशकार है मगर, उससे पहले मु झे इस नीच ि
पापी इं सान से दो चार बातें तो कर ले ने दो।"

दीदी की बात सु न कर मैने अजय कसं ह को छोंड कदया। अजय कसं ह इस िक्त अजीब

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सी हालत में था। ऐसी हालत में कक उसका िर्ग न करना भी ककठन था। इधर मेरे एक
तरि हटते ही ररतू दीदी अपने बाप के सामने आ कर खडी हो गई।

"सु ना है कक माॅ बाप से बढ कर।" किर ररतू दीदी ने बडे ही गंभीर भाि से
कहा___"सं पूर्ग सृ कष्ट में कोई नही ं होता। यहाॅ तक कक भगिान भी नही ं। इसी कलए
माॅ बाप को श्रेस्ठ ि महान कहा जाता है। मगर माॅ बाप भी ऐसे ही महान नही ं बन
जाते हैं बल्कि अच्छे कमों से महान बनते हैं। तु म नीलम से कह रहे थे कक तु मने हमें
सब कुछ कदया है बदले में हमने क्ा कदया? इसका जिाब ये है कक हर माॅ बाप अपने
बच्चों के कलए बहुत कुछ करते हैं, यहाॅ तक कक ़िरूरत पडने पर अपना बकलदान
भी दे दे ते हैं। मगर बच्चे सच में उनके कलए कुछ नही ं कर पाते ऐसा। मगर हम ऐसे
नही ं थे , हमने बचपन से ले कर अब तक आप दोनो को दु कनया का सबसे अच्छा माता
कपता माना मगर जब सच का पता चला तो रूह काॅप गई हमारी। दु कनयाॅ में ऐसे
कौन माता कपता हैं जो अपनी ही बे कटयों को अपने नीचे सु लाने के बारे में सोचते हैं?
मुझे अपनी कसिग एक अच्छाई के बारे में बता दो अजय कसं ह जो कक तु मने अपने आज
तक के जीिन में की हो। अगर तु मने अपनी एक भी अच्छाई के बारे में बता कदया तो
इसी िक्त तु म्हारी ये बे टी अपने माॅ बाप के पास िापस लौट आएगी।"

ररतू दीदी की इस बात पर अजय कसं ह कुछ बोल न सका। ककन्तु हाॅ कठोर भाि से
दे ख ़िरूर रहा था। जबकक उसकी इस कठोरता से दे खने की ़िरा भी परिाह न
करते हुए कहा दीदी ने कहा___"तु म िो इं सान हो अजय कसं ह कजसने एक हसते
खे लते , भरे पू रे ि खु शहाल पररिार का बे डा गकग कर कदया। इतना तो मैने भी अपनी
ऑखों से दे खा था कक किजय चाचा कभी भी तु मसे ऑखें कमला कर बात नही ं करते
थे । हम इतने भी अबोध ि अज्ञानी नही ं थे कक हमें कुछ समझ न आए। सच्चाई का
पता चलने के बाद ही सही मगर मुझे कपछली िो सब बातें याद आईं जो मेरे सामने
होती थी ं। तब उनके बारे में नही ं सोचती थी क्ोंकक तब तु म्हारी कसखाई हुई बातें मुझे
उनके बारे में सोचने की भी ़िरूरत महसू स नही ं कराती थी। मगर अब सब कुछ
खु ली ककताब की तरह हो गया है। तु मने धन दौलत के लालच में तथा गौरी चाची को
हाॅकसल करने के जुनून में अपने दे िता जैसे भाई को ़िहरीले सपग से डसिा कर मौत
के घाट उतार कदया। उसके बाद झठ ू मू ठ कर आरोप लगा कर मेरी दे िी समान चाची
को चररत्रहीन बना कदया। इतना ही नही ं एक रात तु म दोनों की बातों को जब दादा
जी ने सु न कलया और िो जब गुस्से से तु म्हारे कमरे में आ धमके और तु म्हें खरी खोटी
सु नाने लगे तो तु मने उन्हें भी जान से मार दे ने की धमकी दी। ये भी कहा कक अगर
उन्होंने ककसी के सामने ज्यादा गला िाडने की कोकशश की तो तु म उनकी छोटी बे टी
यानी कक नै ना बु आ को उठिा लोगे। दादा जी उस िक्त ये सोच कर डर गए कक तु म
िाकई में ऐसा कर सकते हो। जो अपने भाई का न हुआ िो भला ककसका हो जाएगा?
दादी जी रोते हुए अपने कमरे में चले गए। उन्होंने दादी से तु म्हारा सारा काला कचिा

937
बताया कजसे सु न कर बे चारी दादी का भी बु रा हाल हो गया। दू सरे कदन अभय चाचा
स्कूल पढाने गए हुए थे , उस समय दादा दादी तै यार होकर किजय चाचा की दी हुई
कार से जब कही ं जाने लगे तो तु मने पू छा कक िो कहाॅ जा रहे हैं तब उन्होंने एक बार
किर से गुस्सा होते हुए साि साि तु मसे कहा कक िो पु कलस स्टे शन जा रहे हैं। ताकक
तु म्हारी ररपोटग कर सकें। दादा जी की बात सु न कर तु म्हारी हिा कनकल गई। तु म
िौरन ही माॅम के पास गए और माॅम को सारी बात बताई तब माॅम ने कहा कक
इससे बचने का एक ही तरीका है कक दादा दादी को खत्म कर कदया जाए। तु म्हारे
पास इसके अलािा कोई दू सरा चारा भी नही ं था। इस कलए िौरन ही अपनी कार
ले कर कनकल कलये। रास्ते में ही तु मने अपने इसी किरो़ि खान नाम के साथी को
िोन लगाया और इसे दादा दादी को जान से मार दे ने की सु पारी दी। इसने िौरन ही
तु म्हारी बात मान कर रास्ते में ही टर क द्वारा दादा जी की कार को टक्कर मार दी।
टर क की ़िोरदार टक्कर से दादा जी की कार सडक पर ही दो तीन पलकटयाॅ खाईं।
ये दे ख कर ये खान िौरन ही िहाॅ से टर क ले कर िरार हो गया। सु नसान सडक पर
उलटी पडी कार के अं दर दादा दादी खू न से लथपथ बे होश पडे थे । तभी कोई िाहन
िाला उसी रास्ते से आया और उसने जब िो सब दे खा तो उसने इसकी सू चना पु कलस
को दी। पु कलस िहाॅ पहुॅची और कार के अं दर खू न से लथपथ पडे दादा दादी को
चे क ककया तो िो दोनो ही क़िंदा थे उस िक्त। अतः िौरन ही उन्हें बे हतर इला़ि के
कलए गुनगुन ले गए। तहकीक़ात में ही पता चला कक कजनका एर्क्ीडें ट हुआ था िो
दरअसल हल्दीपु र के ठाकुर गजे न्द्र कसं ह बघेल तथा उनकी धमगपत्नी इन्द्रार्ी कसं ह
बघेल हैं। इस बात का पता चलते ही तु म्हें सू कचत ककया पु कलस ने । तु म ये जान कर
बु री तरह घबरा गए कक दादा दादी तो क़िंदा हैं अभी और िो पु कलस को सब कुछ बता
भी दें गे। अतः तु म िौरन ही गुनगुन के कलए हिे ली से रिाना हो गए। खै र दादा दादी
के कसर पर बडी गंभीर चोंटें आई थी कजसकी िजह से िो दोनो ही कोमा में चले गए।
डाक्टर अब भला क्ा कर सकता था। उसने साि कह कदया था कक अब तो बस
समय का ही इन्त़िार करें कक कब िो दोनो कोमा से बाहर आते हैं। डाक्टर की बात
सु न कर तु मने किलहाल के कलए तो राहत महसू स की मगर तु म भी जानते थे कक
कोमा एक ऐसी ची़ि होती है कजसमें गया इं सान कभी भी होश में आ सकता है।
यानी तु म्हें डर था कक दादा दादी अगर कोमा से बाहर आ गए तो तु म्हारे कलए अच्छा
नही ं होगा। अतः तु मने किर से माॅम के परामशग ककया और किर दादा दादी को
बे हतर इला़ि का कह कर एक ऐसी जगह ले गए जहाॅ के बारे में ज्यादा ककसी को
पता ही नही ं था। खै र छोंडो ये सब, तु म्हारे जु मग की दास्तान तो बहुत लम्बी है मगर
मैंने तु मसे ये सब इस कलए कहा है कक तु म जान सको कक मु झे सब कुछ पता है। तु मने
इतने अपराध ि पाप ककये हैं कक इसके कलए शायद भगिान भी माफ़ नही ं करे गा
और करना भी नही ं चाकहए।"

ररतू दीदी की बात सु न कर अजय कसं ह का मु ह लटक गया इस बार। उसके चे हरे पर

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शमग ि अपमान के भाि एकाएक ही उभर आए थे । तभी इस बीच नीलम आई और
ररतू के गले लग कर कससक कससक कर रोने लगी। सोनम दीदी भी कससक रही थी।
उधर आकदत्य ने किरो़ि खान को मार मार कर अधमरा कर कदया था। उसमें अब
कहलने तक की शल्कक्त नही ं बची थी। तभी दो पु कलस िाले आए और किरो़ि खान को
उठा कर ले गए।

किरो़ि खान के कजतने भी आदमी थे तथा प्रकतमा ने जो आदमी भे जे थे उन सबको


पु कलस ने पकड कलया था। ये सारी पु कलस िोसग गुनगुन में नये नये आए एसीपी
रमाकान्त शु क्ला के द्वारा लाई गई थी। सबको पकडने के बाद एसीपी रमाकान्त
शु क्ला चल कर अजय कसं ह के पास आया।

"अब आपके भी ससु राल चलने का िक्त हो चु का है ठाकुर साहब।" एसीपी ने


मुस्कुराते हुए कहा___"उम्मीद करता हूॅ कक ससु राल में आप खु द को बे हतर महसू स
करें गे।"
"नये नये आए लगते हो ऑकिसर।" अजय कसं ह ने उसकी तरि कतरछी ऩिर से
दे खते हुए कहा___"इस कलए इतना अकड रहे हो। मगर ज्यादा खु शिहमी में मत
रहना कक तु म मु झे सु सराल में ज्यादा दे र तक रख पाओगे।"

"जानता हूॅ।" एसीपी पु नः मुस्कुराया___"मगर किलहाल तो मेरे साथ चलना ही


पडे गा आपको। बाद का बाद में दे खा जाएगा। िै से भी हम तो यहाॅ किरो़ि खान
जैसे िान्टे ड मुजररम को ही पकडने आए थे । हमें सू चना कमली थी कक यहाॅ पर िो
मु़िररम अपने पू रे दलबल के साथ मौजूद है। इस कलए आ धमके यहाॅ। मगर हमें
क्ा पता था कक उसके साथ साथ मु झे आप जै सी कमीनी शल्कख्सयत को भी धर ले ना
पडे गा।"

"तमी़ि से बात करो ऑकिसर।" अजय कसं ह बु री तरह कतलकमलाते हुए तीखे भाि से
बोला___"िरना ऐसा न हो कक इस बददमीजी के कलए तु म्हें बाद में पछताना पडे ।"

"रस्सी जल गई मगर कसबल बाॅकी हैं अभी।" एसीपी ने कठोर भाि से


कहा___"िै से तु म्हारी जानकारी के कलए बता दू ॅ कक मैं ककसी के बाप से भी नही ं
डरता। इस कलए मु झ पर धौंस जमाने की सोचना भी मत। िरना मेरे हाॅथ में आया
हुआ मुजररम मुख से कम बल्कि कपछिाडे से ज्यादा कचल्लाता है । अब इज्ज़ित से चलो
मेरे साथ िरना ले जाने के तरीके तो हम पु कलस िालों को बडे शानदार भी आते हैं ।"

एसीपी के गरम होते कमजा़ि को दे ख कर अजय कसं ह अं दर ही अं दर अपमान का


कडिा घू ॅट पी कर रह गया। किर उसने आग उगलती ऑखों से पहले मुझे दे खा

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किर ररतू दीदी को उसके बाद एसीपी रमाकान्त शु क्ला के साथ चल कदया। कुछ दू र
जाने के बाद सहसा अजय कसं ह रुका और किर पलट कर बोला___"अभी तो मैं जा
रहा हूॅ मगर जल्द ही लौटू ॅगा और इस बार जब लौटू ॅगा न तो तु म में से ककसी को
भी क़िंदा नही ं छोंडूॅगा।"

अजय कसं ह की ये बात सु न कर मैं , आकदत्य, ररतू दीदी ि सोनम दीदी ने तो कुछ न
कहा ककन्तु नीलम को जाने क्ा हुआ कक िो ते ़िी से अपने बाप के पास गई और
इससे पहले कक कोई कुछ समझ पाता "चटाऽऽक"। अजय कसं ह का दाकहना गाल
झन्ना गया।

"ये तमाचा मामूली भले ही है।" किर नीलम ने गुरागते हुए कहा___"मगर ये तु म्हें इस
बात की याद ़िरूर कदलाएगा कक तू ने क्ा पाप ककया है कजसके तहत ये इनाम के
रूप में कमला है तु झे ते री ही बे टी से । अब जा यहाॅ से , मु झे ते री शक्ल भी दे खना अब
गिाॅरा नही ं है।"

अजय कसं ह से इतना कहने के बाद रोती हुई नीलम हमारे पास आ गई जबकक अपनी
ही बे टी से ऐसा इनाम पा कर अजय कसं ह मानो गतग में डूबता चला गया। िह किर
रुका नही ं बल्कि एसीपी के साथ दू र होता चला गया। उसके जाते ही हम सब भी एक
तरि चल पडे । मगर तभी ग़िब हो गया।

िातारर् में धांय से गोली चलने की आिा़ि हुई और किर कि़िा में नीलम की चीख
भी गूॅज गई। दरअसल नीलम के थप्पड मारने पर अजय कसं ह अपमान में जल उठा
था। िो एसीपी के साथ ही बगल से चल रहा था। तभी उसकी ऩिर एसीपी के
होले स्टर में िसी उसकी ररिावर पर पडी थी। अजय कसं ह ने पलक झपकते ही जैसे
कनर्ग य ले कलया था और किर बे हद िुती से उसने एसीपी के होले स्टर से ररिावर
कनकाला और पलट कर उसने नीलम पर गोली चला दी थी। हम में से ककसी को भी
इसकी उम्मीद नही ं थी। उधर गोली चलने की आिा़ि से एसीपी भी बौखला गया था।
उसने जैसे ही पलट कर अजय कसं ह की तरि दे खा तो चौंक पडा। कारर् अजय कसं ह
ने मुस्कुराते हुए खु द ही उसका ररिावर उसे दे कदया। एसीपी उसके इस कबहैकियर
से दं ग रह गया था।

गोली नीलम की पीठ के दाकहने भाग के थोडा सा नीचे लगी थी। नीलम की पीठ से
खू न की ते ़ि धार बहने लगी थी। िो लहरा कर कगर ही जाती अगर मैने िुती से उसे
पकड न कलया होता। कसचु एशन एकदम से ही बदल गई थी। नीलम को गोली लगने
से हम सब बु री तरह घबरा गए थे । उसकी प्रकतपल कबगडती हालत से हम सब रो
पडे । मैने उसे अपनी गोंद में उठा कलया और ते ़िी से मंकदर के पीछे खडी अपनी कार

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की तरि भाग चला। मेरे पीछे ही बाॅकी सब दौडने लगे थे ।

पु कलस और एसीपी ने सबको पकडा था ककन्तु केशि जी तथा उनके साथ आए लोगों
को नही ं पकडा था। ये मेरे कलए हैरानी की बात थी। ककन्तु इस िक्त उनसे इसके बारे
में पू छने का ककसी को होश न था। ररतू ि सोनम दीदी बु री तरह रोये जा रही थी।
सीघ्र ही मैं नीलम को कलए कार के पास पहुॅचा। आकदत्य ने जल्दी से कार का
कपछला गेट खोला तो मैने नीलम को कपछली सीट पर ककसी तरह ले टाया और जगह
बनाते हुए खु द भी सीट पर बै ठ गया। सीट पर बै ठने के बाद मैने नीलम को खु द से
छु पका कलया तथा उसकी ठीठ पर हाॅथ रख कर दबा कदया ताकक खू न ज्यादा बहने
न पाए। मेरे बै ठते ही आकदत्य ने कार की डर ाइं किं ग सीट सम्हाली।

केशि जी ने ररतू दीदी से कहा कक िो सोनम दीदी को अपनी कार में बै ठा लें गे।
क्ोंकक मेरी कार में आगे की सीट पर ररतू दीदी बै ठ गई थी और पीछे अब जगह ही
नही ं थी। ककन्तु सोनम दीदी न मानी। िो बु री तरह रोये जा रही थी और कह रही थी
कक िो नीलम के पास ही रहें गी। मैने भी ज्यादा समय बरबाद न करते हुए गेट की
तरि ल्कखसक कलया। सोनम दीदी दू सरी तरि से आकर नीलम के पै रों की तरि
सीट पर ही बै ठ गईं। खै र सबके बै ठते ही आकदत्य ने कार को ते ़िी से दौडा कदया।
हमारे पीछे पीछे ही केशि जी तथा उनके आदमी जीपों में आ रहे थे ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
"ये तु म क्ा कह रहे हो रार्े ?" अपने आिास के डर ाइं ग रूम में लै ण्डलाइन िोन के
ररसीिर को कान से लगाए मंत्री ने बु री तरह चौंकते हुए कहा था____"ठाकुर और
उसके आदकमयों को पु कलस पकड कर ले गई?"

"..............।" उधर से हरीश रार्े ने कुछ कहा।


"क्ा कह रहे हो तु म।" चौधरी हैरान___"िहाॅ पर भारी मात्रा में पु कलस आई हुई
थी?? मगर पु कलस िहाॅ आई कैसे ? हमारा मतलब है कक पु कलस को िहाॅ पर ककसने
बु लाया होगा? एक कमनट रार्े ....एक कमनट, हम सब समझ गए। ये ़िरूर उस
थाने दारनी का काम होगा। उसी ने पु कलस को बु लिाया होगा। ठाकुर के इतने सारे
आदकमयों को पं गु बना दे ने का यही तो सबसे ़िबरदस्त तरीका था रार्े । साली तगडा
गेम खे ल गई। एक ही झटके में सारा खे ल ही खत्म कर कदया उसने ।"

"............।" उधर से रार्े ने किर कुछ कहा।


"ओह तो ठाकुर ने जाते जाते अपनी ही बे टी को गोली मार कर लहूलु हान कर
कदया।" चौधरी के चे हरे पर मौजूद भािों में पररितग न हुआ___"और अब किराज एण्ड
पाटी ठाकुर की उस लडकी को मरने से बचाने के कलए िौरन ही हाल्किटल ले कर आ
रहे हैं। उन्हें आने दो रार्े , िो ़िरूर यही ं आएॅगे। ताकक गुनगुन के ही ककसी अच्छे

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से हाल्किटल में उसे भती करा सकें और उसका बे हतर से बे हतर इला़ि करा सकें।
उन्हें आने दो यहाॅ हम उन सबका बहुत अच्छे से स्वागत करें गे । तु म बस उनके पीछे
ही रहना और हमें हालातों की खबर दे ते रहना।"

"..............।" रार्े ने उधर से किर कुछ कहा।


"िो सब हम दे ख लें गे रार्े ।" चौधरी ने कहा___"हम ककमश्नर से इस बारे में पता
करें गे तथा ठाकुर से भी कमलें गे। अगर उसने हमसे ये कहा कक िो ये सब करने के
बाद ही इस सबके बारे में बताने िाला था तो ़िरूर उसकी ़िमानत करिाएॅगे हम।
िरना भला हमें क्ा पडी है उसे जेल से छु डाने की? कजस काम के कलए हमने उससे
सं पकग बनाया था िो काम तो तु मने बखू बी कर ही कदया है और अब हमें पल पल की
खबर भी दे रहे हो कक हमारे दु श्मन कहाॅ आ रहे हैं। इस कलए अब ज्यादा किक्र की
बात ही नही ं है।"

"..............।" उधर से हरीश रार्े ने कुछ कहा।


"हाॅ ये भी सही कहा तु मने ।" चौधरी ने कहा___"यानी हमें इस िक्त अभी उन पर
हाॅथ नही ं डालना चाकहए। बल्कि उनके असल कठकानों के बारे में पता करना
चाकहए। उसके बाद ही हमें उन पर कायगिाही करनी चाकहए। ये तु मने सही सलाह दी
है रार्े । बात भी सही है, अभी अगर हमने उन पर हाॅथ डाला तो सं भि है कक इससे
हम पर या हमारे बच्चों पर ही कोई सं कट आ जाए। क्ा पता उसका कोई आदमी
हमारी गकतकिकधयों पर ऩिर रखे हुए हो, उस सू रत में िो हमें ही नु कसान पहुॅचा
सकता है। अतः ये ़िरूरी है कक हम अभी चु प ही रहें और उसके असल कठकाने का
तु म्हारे द्वारा पता करने की कोकशश करें ।"

"..................।" उधर से रार्े ने किर कुछ कहा।


"ठीक है रार्े ।" किर चौधरी ने कहा___"अब ऐसा ही करें गे। तु म बस उनके पीछे ही
लगे रहना और हाॅ ये बताने की आिश्यकता नही ं है कक उनसे ़िरा सािधान
रहना।"

इसके साथ ही चौधरी ने ररसीिर िापस केकडर ल पर रख कदया। इस िक्त उसके चे हरे
पर राहत के भाि थे । खु शी की एक अलग ही चमक उसके चे हरे पर कदखाई दे ने लगी
थी। ररसीिर रखने के बाद िह आया और किर से सोिे पर बै ठ गया। उसके सामने
ही अगल बगल के सोिों पर अिधेश, अशोक ि सु नीता आकद बै ठे हुए थे ।

"हमारे इस काम में उस जासू स के कलए ये सब करना कोई मुल्किल काम नही ं था।"
किर मंत्री ने कशगार सु लगाने के बाद कहा___"और ना ही ये ऐसा केस था कजसमें उसे

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अपना माथा पच्ची करना पडता। ये सब तो हम भी कर सकते थे ककन्तु तब जब करने
की ल्कथथत में होते । खै र, जो भी हो, अच्छी बात ये है कक हालात अब हमारे हक़ में बहुत
हद तक आ चु के हैं।"

"क्ा कहा रार्े ने ?" अशोक के पू छने पर चौधरी ने सबको सब कुछ बता कदया।
सारी बातें जानने के बाद उन तीनों के भी चे हरों पर राहत ि खु शी के भाि उभर
आए।

"हालात तो िाकई हमारे पक्ष में हैं चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"और ये हमारे
कलए खु शी की बात भी है। ककन्तु ठाकुर के साथ आज जो कुछ भी हुआ िो अगर न
होता तो यकीनन आज उसकी कगरफ्त में उसका भतीजा तथा उसकी बे टी होती।
उसके बाद िो हमें इस बात की जानकारी दे ता। कहने का मतलब ये कक इतना कुछ
हो जाने के बाद हम अकतसीघ्र ही अपने दु श्मन से कमलते और उसके कब्जे से अपनी
हर ची़ि ले भी ले ते। ले ककन ऐसा हो नही ं सका, पु कलस ने ऐन मौके पर आकर सारा
खे ल ही खराब कर कदया।"

"इस मामले में पहली बार पु कलस का हाॅथ भी कदखाई कदया है चौधरी साहब।"
अिधेश ने कहा____"और कजस तरह से इतनी सारी पु कलस िोसग को ले कर िो एसीपी
िहाॅ पहुॅचा था इससे ़िाकहर होता है कक कही ं न कही ं पु कलस का भी इस मामले में
दखल है। बल्कि ये कहना चाकहए कक शु रू से ही दखल था। ये अलग बात है कक
इसके पहले पु कलस ने खु ले तौर पर इस बात को ़िाकहर नही ं ककया था।"

"ये बात तो मैने उसी कदन कही थी।" सहसा अशोक ने तपाक से कहा___"कक सं भि
है कक पु कलस इस सारे मामले में गु प्त रूप से शाकमल हो और आज इस बात का सबू त
के रूप में पता भी चल गया हमें।"

"हम ककमश्नर से इस बारे में अभी बात करें गे।" मंत्री ने कहने के साथ ही अपना
मोबाइल कनकाला____"उसे अब साि साि बताना ही पडे गा कक मा़िरा क्ा है तथा
उसने हमें धोखे में रखने की कहम्मत कैसे की?"

कहने के साथ ही मंत्री ने पु कलस ककमश्नर को काल लगा कर मोबाइल अपने कान से
लगा कलया। दू सरी तरि कािी दे र तक ररं ग जाने के बाद काल ररसीि की गई।

"जी ककहए मंत्री जी।" उधर से ककमश्नर की आिा़ि उभरी___"आज इस नाची़ि को


कैसे याद ककया आपने ?"
"ये डर ामेबा़िी छोंडो ककमश्नर।" चौधरी ने सपाट लहजे में कहा___"और ये बताओ कक
ये सब क्ा चक्कर चला रहे हो तु म?"

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"च..चक्कर???" उधर से ककमश्नर का चौंका हुआ स्वर उभरा____"ये आप क्ा कह
रहे हैं मंत्री जी?"
"दे खो ककमश्नर।" चौधरी ने तीखे भाि से कहा___"हमें िालतू की बकिास कबलकुल
भी पसं द नही ं है। तु म अच्छी तरह जानते हो और समझते भी हो कक हम ककस बारे में
बात कर रहे हैं?"

"बडी अजीब बात कर रहे हैं आप मंत्री जी।" उधर से ककमश्नर ने कहा___"भला कजस
बात को आप बताएॅगे ही नही ं उस बात के बारे में मैं कैसे कुछ जान पाऊगा? आप
तो जानते हैं कक इं सान अं तयागमी तो होता ही नही ं है।"

"हम हल्दीपु र में आधा घंटा पहले घटी घटना के बारे में बात कर रहे हैं।" चौधरी ने
मन ही मन दाॅत पीसते हुए कहा___"अब ये मत कहना कक तु म इस घटना के बारे में
भी नही ं जानते ।"

"ओह तो आप उस घटना की बात कर रहे हैं?" उधर जैसे ककमश्नर की अब बात


समझ में आई थी, बोला___"उस घटना के बारे में तो मु झे अच्छी तरह पता है मंत्री
जी। ले ककन आपका उस घटना से क्ा ले ना दे ना है? जबकक हमारे कडपाटग मेंट के
एसीपी ने तो िहाॅ पर एक मोस्ट िान्टे ड अपराधी को पकडने के कलए घेराबं दी की
थी और किर अपराधी को पकड कर अपने साथ ले भी आए।"

"ककस अपराधी को पकडने गई थी तु म्हारी पु कलस?" मंत्री ने पू छा।


"यूॅ तो शहर कई तरह के मुजररमों से भरा पडा है मंत्री जी मगर।" उधर से ककमश्नर
ने कहा___"हमारी पु कलस िोसग ने कजस मोस्ट िान्टे ड अपराधी को पकडने के कलए
हल्दीपु र के पास िाले गाॅि माधोपु र में घेराबं दी की थी उसका नाम किरो़ि खान है।
इस नाम के अपराधी के बारे में तो आपने भी कािी सु ना होगा। आप तो जानते हैं
कक ये अपराधी कब से पु कलस ि कानू न के कलए कसर का ददग बना हुआ था। आज
हमारे ही एक किश्वासपात्र मुखकबर ने हमें बताया कक किरो़ि खान अपनी गैंग के साथ
इस समय माधोपु र में मौजूद है। बस किर क्ा था, हमने उसे पकडने के कलए अभी
हाल ही में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शु क्ला को भे ज कदया। मगर मेरी समझ में
ये नही ं आता कक आपको इस मामले से क्ा ले ना दे ना हो गया? अगर मुनाकसब समझें
तो मु झे भी बताइये मंत्री जी।"

"नही ं ऐसी कोई बात नही ं है।" चौधरी ने बात को टालने की गऱि से कहा___"िै से
पता चला है कक तु म्हारी पु कलस ने हल्दीपु र के ठाकुर अजय कसं ह को भी कगरफ्तार
कर कलया है। भला ये क्ा चक्कर है ककमश्नर? क्ा िो ठाकुर भी किरो़ि खान की

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तरह मोस्ट िान्टे ड अपराधी है?"

"ठाकुर अजय कसं ह को तो ़िरूरी पू ॅछताॅछ के कलए कगरफ्तार ककया गया है मंत्री
जी।" उधर से ककमश्नर ने कहा___"दरअसल हमारे मुखकबर ने बताया था कक किरो़ि
खान हल्दीपु र के ठाकुर अजय कसं ह की कार में ही बै ठा हुआ था। इस कलए उन्हें
कगरफ्तार करना पडा। तहकीक़ात में उनसे पू छा जाएगा कक किरो़ि खान नाम का
खतरनाक अपराधी उनकी कार में उनके साथ क्ों बै ठा हुआ था? आकखर उनका
किरो़ि खान से क्ा सं बंध है?"

"ओह तो ये बात है।" चौधरी को मानो बात समझ में आ गई, बोला____"िै से सु ना है
कक ठाकुर और उसके भतीजे के बीच ककसी मामले में तगडी रं कजश है। सु ना तो ये भी
है कक ठाकुर की बे टी खु द तु म्हारे पु कलस कडपाटग मेंट की इं िेक्टर है और िो अपने ही
माॅ बाप के ल्कखलाफ़ होकर ठाकुर के दु श्मन भतीजे का साथ दे रही है।"

"बाॅकी सारी बातों के बारे में तो मु झे कुछ नही ं पता है मं त्री जी।" उधर से ककमश्नर
ने कहा___"ले ककन ये सच है कक ठाकुर अजय कसं ह की बे टी हमारे पु कलस कडपाटग मेंट
में इं िेक्टर के रूप में कायगरत है। बहुत ही इमानदार तथा बहादु र ऑिीसर है िो।"

"अब इस बारे में तो तु म्हें ही पता होगा ककमश्नर।" चौधरी ने कहा___"आफ्टरआल िो


तु म्हारे पु कलस महकमे से है। चलो कोई बात नही ं, अच्छा अब हम िोन रखते हैं।"

इतना कह कर चौधरी ने काल कट कर दी। किर बु झ चु के कशगार को सामने टे बल


पर रखे ऐशटर े में रखा और दू सरा कशगार कनकाल कर सु लगा कलया। कशगार के दो
तीन गहरे गहरे कश ले ने के बाद उसने ढे र सारा धुआॅ ऊपर की तरि उछाला।

"क्ा कहा ककमश्नर ने चौधरी साहब?" अिधे श श्रीिास्ति पू छे बग़ैर न रह सका था।
"बे िकूफ़ बनाने की कोकशश कर रहा था हमें।" चौधरी ने कहा___"उस साले को ये
पता ही नही ं है कक िो ककसे बे िकूि बनाने चला था? साला राजनीकत का खे ल हम
खे लते हैं और िो हमसे राजनीकत कर रहा था।"
"ऐसा क्ा कह रहा था िो आपसे ?" अशोक ने पू छा।

मंत्री ने उसे सारी बातें बता दी, उसके बाद उसने किर से कशगार का एक कश कलया
किर बोला___"जबकक साि पता चलता है कक सच्चाई क्ा है? कडटे ल्कक्टि रार्े के
अनु सार किराज एण्ड पाटी ठाकुर की दू सरी बे टी को ले ने गए थे । ककसी तरह से इस
बात की जानकारी ठाकुर को हुई और िह किरो़ि खान को उसके गुगों के साथ
माधोपु र जा धमका, जहाॅ पर उसका आमना सामना किराज एण्ड पाटी से हुआ।
किराज को अं देशा रहा होगा कक उसका ताऊ उसे पकडने का ऐसा ही कुछ इं तजाम

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करके आएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन लोगों ने भी ठाकुर से बचने का
उपाय सोचा होगा। ठाकुर की बे टी क्ोंकक अब किराज के साथ ही है इस कलए ठाकुर
से बचने के कलए उसने अपने पु कलस महकमें का सहारा कलया। उसे पता था कक
पु कलस के आ जाने से अजय कसं ह कुछ कर नही ं पाएगा। बात भी सही है कक पु कलस से
पं गा करने का कोई मतलब ही नही ं था। यानी िो सब पु कलस की मदद से बडे आराम
से ठाकुर की दू सरी बे टी को ले आएॅगे और ठाकुर कुछ भी नही ं कर पाएगा।"

"यकीनन चौधरी साहब।" अिधेश ने गहरी साॅस ले ते हुए कहा___"ठाकुर ने किराज


एण्ड पाटी को घेर कर पकडने का ़िबरदस्त प्लान बनाया था। ये अलग बात है कक
बदककस्मती से उसके उस ़िबरदस्त प्लान की खु द उसकी ही बे टी ने धल्कज्जयाॅ उडा
दी। इतना ही नही ं पु कलस को बु लिा कर िो अपनी छोटी को बहन को तो अपने साथ
ले ही गई ऊपर से अपने बाप को भी कगरफ्तार करिा कदया।"

"ले ककन ठाकुर भी कम कमीना नही ं था।" अशोक ने झट से कहा___"पु कलस के साथ
जाते जाते भी उसने एसीपी का ररिावर कनकाल कर अपनी छोटी बे टी को गोली
मार दी। ये इस बात का सबू त है चौधरी साहब कक उस िक्त िह अपनी औलाद से
ककस क़दर खिा था और किर गुस्से में आकर उसने बे टी को जान से मारने की
कोकशश की। अगर समय रहते उसकी बे टी का किराज एण्ड पाटी ने इला़ि करिा
कलया तब तो ठीक है िरना ठाकुर ने तो अपनी बे टी का काम तमाम कर ही कदया है
समकझये।"

"जो भी होता है अच्छे के कलए ही होता है।" मं त्री कदिाकर चौधरी ने कहा___"इस
सबकी िजह से हमारा िायदा ये हुआ है कक हमारा दु श्मन हमारे जासू स रार्े की
ऩिर में आ गया है। रार्े किराज एण्ड पाटी के पीछे साये की तरह लगा रहे गा। अभी
तो िो सब ककसी हाॅल्किटल में ही गए होंगे क्ोंकक ठाकुर की बे टी को मौत से
बचाना उन सबकी पहली प्राथकमकता होगी। उसके बाद िो यकीनन उस जगह
जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना कठकाना बनाया होगा। रार्े को जैसे ही उनके
कठकाने का पता चल जाएगा िै से ही िो हमें सू कचत कर दे गा। बस, उसके बाद क्ा
होगा ये बताने की ़िरूरत नही ं है शायद।"

"ये तो िाकई हमारे ही हक़ में है।" सहसा इस बीच सु नीता बोल पडी___"ठाकुर की
घटना ने उसे भले ही करारी कशकस्त दी हो मगर इस सबमें हमारा यकीनन िायदा
हो गया है। दू सरी बात जासू स रार्े को इस काम के कलए बु लाने का भी बहुत अच्छा
कनर्ग य साकबत हुआ हमारा।"

"कबलकुल सही कहा तु मने ।" चौधरी ने कहा___"अगर रार्े को हमने बु लाया न होता

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तो हमें इतनी बडी सिलता हकगग ़ि भी नही ं कमल सकती थी। क्ोंकक इस बात का हमें
पता ही न चलता कक किराज एण्ड पाटी और ठाकुर के बीच क्ा हुआ है? ठाकुर का
भी कोई भरोसा नही ं था कक िो हमें इस बारे में कुछ बताता भी या नही ं।"

"खै र, जो भी हो।" अिधेश ने कहा___"इस सबसे हमें िायदा तो यकीनन ही हुआ है


मगर इस बीच हमारे कलए ये सोचना भी महत्वपू र्ग है कक इस मामले में पु कलस का
दखल ककस उद्दे श्य से हुआ है? क्ा सचमुच ही िो मोस्ट िान्टे ट अपराधी किरो़ि
खान को ही पकडने के उद्दे श्य से िहाॅ पर पहुॅची थी या किर इसके पीछे भी
पु कलस की कोई ऐसी चाल थी कक िो एक तीर से दो कशकार कर सके। कहने का
मतलब ये कक ़िाकहर तौर पर उसने हमें यही कदखाया हो कक उसका दखल महज
किरो़ि खान को ही पकडना था जबकक असल में उसका मकसद कुछ और ही रहा
हो, कजसका सं बंध हमसे हो।"

"हो सकता है।" चौधरी के चे हरे पर सोचने िाले भाि उभर आए____"ककन्तु ककमश्नर
की बातों से भी कुछ ़िाकहर नही ं हो सका। या तो उसने जान बू झ कर हमें घु मा कदया
है या किर ऐसा कुछ हो ही न। यानी हो सकता है कक हम कजस ची़ि की शं का कर
रहे हैं िो बे िजह ही हो।"

"शं का तो शं का ही होती है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"भले ही िो बे िजह ही


हो मगर हमारे मन में शं का तो है न। इस कलए जब तक हमें इस मामले में सच्चाई का
पता नही ं चलता तब तक हमारी ये शं का हमारे अं दर से जाएगी भी नही ं।"

"चलो अगर ऐसा है भी।" चौधरी ने कहा___"तो िो आने िाले समय में ़िाकहर तो हो
ही जाएगा। तब हम दे ख लें गे कक हमें उस बारे में क्ा करना है। अभी के हालात में
जो ़िरूरी है, हमे उस पर ज्यादा ध्यान दे ना है । हमें ककसी भी कीमत पर अपने बच्चे
तथा हमारे कलए डायनामाइट बने उन िीकडयोज को हाॅकसल करना है। मौजूदा
हालातों पर ग़ौर करें तो ये िष्ट हो चु का है कक बहुत जल्द रार्े के द्वारा हमें इस सबमें
सिलता कमले गी।"

चौधरी की बात सु न कर सबके कसर सहमकत में कहले । उसके बाद कुछ और इधर
उधर की बातें हुई उन लोगों के बीच। किर सब अपने अपने काम पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इधर आकदत्य ऑधी तू िान की तरह दौडाते हुए कार को हाल्किटल की तरि कलए जा
रहा था। नीलम की हालत की िजह से हम सब बे हद दु खी हो गए थे । मैं बार बार
नीलम को पु कार रहा था। उसकी पलकें बार बार बं द हो जाती थी। मैने अपने एक
हाॅथ की हथे ली को नीलम की पीठ पर कस के लगाया हुआ था ताकक उसका खू न

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न बहने पाए। नीलम पहले तो ददग और पीडा से कराह रही थी ककन्तु अब िो प्रकतपल
शान्त पडती जा रही थी। उसकी ये हालत दे ख कर मैं बदहिाश सा था और बार बार
उसे पु कार रहा था। मेरे बाएॅ साइड ही नीलम के पै रों के पास बै ठी सोनम दीदी
अभी भी कससक रही थी ं। िो खु द भी पागलों की तरह नीलम को पु कारे जा रही थी।

ररतू दीदी आगे बै ठी हुई थी। उनके चे हरे पर भी पीडा के भाि उभर आते थे ककन्तु
उन्होंने खु द को सम्हाला हुआ था। उनके चे हरे पर मौजूद भाि प्रकतपल बदल रहे थे ।
कभी कभी तो ऐसे भाि उभर आते थे जैसे उन्होंने ककसी बात के कलए कठोर िैसला
ककया हो। आकदत्य िुल िीड से कार को भगा रहा था। तभी डै श बोडग के पास ही
रखा मेरा मोबाइल िोन बज उठा। िोन के बजने से जैसे ररतू दीदी की तं द्रा टू टी।
उन्होंने हाॅथ बढा कर मोबाइल उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे मौसा जी नाम
को दे ख कर काल ररसीि की उन्होंने।

उधर से मौसा जी ने जाने ऐसा क्ा कहा कक ररतू दीदी एकदम से चौंक पडी, साथ ही
कार की ल्कखडकी से इधर उधर दे खने भी लगी थी। किर उन्होंने ये कह कर िोन रख
कदया कक___"आपने यकीनन ये बहुत बडी खबर दी है मौसा जी। ककन्तु उसे बोकलए
कक अगर सं भि हो सके तो उसे पकड ले । आप भी जल्दी से उसके पास जाइये और
जाकर उसे अपने कब्जे में ले लीकजए।"

"क्ा हुआ ररतू ??" कार चलाते हुए आकदत्य ने सहसा एक ऩिर ररतू दीदी की तरि
डालते हुए पू छा।
"मंत्री मेरी चे तािनी के बािजूद अपनी हरकतों से बाज नही ं आया।" ररतू दीदी ने
कहा___"उसने जब दे खा कक िो खु द कुछ नही ं कर सकता है तो उसने अपने काम के
कलए एक जासू स को बु लिाया और उस जासू स को हमारे पीछे लगा कदया।"

"ये क्ा कह रही हो तु म?" आकदत्य ररतू की बात सु न बु री तरह चौंका था, किर
बोला___"मगर तु म्हें ये सब कैसे पता चला?"
"मुझे नही ं।" ररतू दीदी ने कहा___"बल्कि मौसा जी के एक आदमी को पता चला है।
उसी ने बताया है मौसा जी को। दरअसल हम सब लोग तो िहाॅ से चले आए मगर
मौसा जी का एक आदमी ग़लती से िही ं रह गया। मौसा जी बता रहे थे कक उनका िो
आदमी उस िक्त अपना पे ट साि करने चला गया था। इसी बीच हम सब िहाॅ से
जल्दबा़िी में कनकल आए। कुछ दे र में जब िो अपना पे ट साि करके आया तो हम
लोगों को दू र जाते हुए दे खा उसने । िो िहाॅ से चलते हुए कुछ दू र आया। किर उसने
अपना मोबाइल कनकाल कर मौसा जी को िोन करने ही िाला था कक तभी उसे
ककसी के बात करने की आिा़ि सु नाई दी। िो आिा़ि की कदशा में गया तो उसने
दे खा कक मंकदर से लगभग पचास मीटर की दू री पर एक आदमी पे ड की ओट में खडा

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ककसी से िोन पर बातें कर रहा था। मौसा जी का आदमी उससे कुछ ही दू री पर था।
उसने उस आदमी के कुछ पास जाकर उसकी बातें सु न ली। उसकी बातों में डै ड के
अलािा हमारा भी क़िक्र था, साथ ही िह कजससे बात कर रहा था उसे िह चौधरी
साहब कह कर सं बोकधत कर रहा था। मौसा जी के आदमी को उसकी बातों से समझ
आ गया कक िो हम सबके पीछे ही लगा हुआ है। अतः उसने तु रंत ही इस बात की
सू चना मौसा जी को िोन लगा कर दे दी।"

"ओह तो ये बात है।" आकदत्य ने कहा।


"हाॅ, मैने अपने मुखकबरों को मंत्री तथा उसके सभी साकथयों के पीछे लगाया हुआ
था।" ररतू दीदी ने कहा___"उन सबकी ररपोटग यही थी कक मंत्री या उसके साकथयों ने
ऐसा िै सा कुछ नही ं ककया है। बल्कि उन सबकी कदन चयाग तथा कायग सामान्य ही था।
मुझे भी उम्मीद नही ं थी कक िो कमीना अपने इस काम के कलए ककसी जासू स को
हायर कर ले गा। मगर कोई बात नही ं, ये बहुत अच्छा हुआ कक मंत्री के उस जासू स
का पता चल गया। कहते हैं कक ईश्वर जो भी करता है उसके पीछे कोई ठोस िजह
़िरूर होती है। िरना सोचने िाली बात है कक मौसा जी कजन आदकमयों को अपने
साथ ले कर आए थे उन आदकमयों में से ककसी एक को उस िक्त टायले ट क्ों आता?
ये ईश्वर की ही म़िी थी कक उसे उस िक्त टायले ट आया और िो टायले ट के कलए
हमसे दू र चला गया। उसके बाद जब िह आया तो हम सब उस जगह से कनकल चु के
थे जबकक िो िही ं छूट गया। ईश्वर हमारे साथ है आकदत्य, िो नही ं चाहता कक ककसी
िजह से हम िस जाएॅ। हमें नही ं पता था कक मंत्री ने कोई जासू स हमारे पीछे
लगाया हुआ है अतः ईश्वर इस सबके द्वारा हमें उस जासू स के बारे में भी बता कदया।"

"सचमुच।" आकदत्य कह उठा___"कुदरत का हर काम हैरतअं गे़ि होता है। खै र, अब


उस जासू स का क्ा करना है?"
"अभी तो किलहाल उसे ककसी भी तरह से पकड ले ने के कलए मैंने मौसा जी से कहा
है।" ररतू दीदी ने कहा___"उसका पकड में आना भी बे हद ़िरूरी है िरना िो हमारा
पीछा करता रहता और अं ततः हमारे कठकाने तक पहुॅच जाता। उसके बाद िो हमारे
कठकाने के बारे में मंत्री को बता दे ता। बस किर तो खे ल ही खत्म हो जाना था।"

"सचमुच।" आकदत्य ने कहा___"बहुत बडी मु सीबत में िसने िाले थे हम सब।"


"हाॅ आकदत्य।" ररतू दीदी ने कहा___"मंत्री अपने दलबल के साथ अगर हमारे
कठकाने पर आ धमकता तो हम उस हालात में उस िक्त कुछ कर नही ं पाते और
किर हम सबके साथ मंत्री क्ा सु लूक करता इसका अं दा़िा भी नही ं लगाया जा
सकता।"

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"शु कर है।" आकदत्य ने कहा___"ईश्वर ने हमें बचा कलया। अब तो यही दु िा करो कक
िो जासू स मौसा जी की पकड में आ ही जाए। िरना अगर िो हाॅथ से कनकल गया
तो मुसीबत एक बार किर से हम पर आ जाएगी। ईश्वर बार बार ऐसा सं योग नही ं
बनाएगा।"

"सही कहा तु मने ।" ररतू दीदी ने कहा___"दे खते हैं मौसा जी तथा उनके आदमी क्ा
करते हैं? इस िक्त तो हमें नीलम को बचाना है।"
"िै से एक बात कहूॅ ररतू ।" आकदत्य ने कहा___"तु म्हारे जैसा कमीना बाप मैने आज
तक न कही ं दे खा है और ना ही कही ं सु ना है। खु द पापों की गठरी कलए किरता है
और अपनी ही बे टी के साथ......कछः..मु झे तो सोच कर ही ऐसे आदमी से घृर्ा हो रही
है।"

"अगर मेरी बहन को कुछ हुआ न आकदत्य।" सहसा ररतू दीदी के मुख से ़िहर में डूबे
शब्द कनकले ___"तो उस इं सान का मैं िो हाल करूॅगी कक बडे से बडा जल्लाद भी
उसका हाल दे ख कर थराग जाएगा।"

"अब तो उसकी कनयकत ही ऐसी बन चु की है।" आकदत्य ने कहा___"कक उसकी जब


भी मौत होगी तो यकीनन बहुत भयानक तरीके से होगी।"

आकदत्य की बात पर ररतू दीदी कुछ न बोली। ककन्तु उनके चे हरे के भाि बता रहे थे
कक अपने अं दर के तू िान को उन्होंने ककतनी मुल्किल से रोंका हुआ है। मैं उन दोनों
की सारी बातें सु न रहा था। तभी ररतू दीदी ने ककसी को िोन लगाया और उससे
कुछ बातें की। आकदत्य ने बहुत ही कम समय में कार को हाॅल्किटल पहुॅचा कदया।

हाॅल्किटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को


सािधानी से कनकाल कर अपनी गोंद में कलया और कबना ककसी की तरि दे खे
हाॅल्किटल की तरि लगभग दौडते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ
रहे थे । कुछ ही दे र में मैं नीलम को कलए हाॅल्किटल के अं दर आ गया। िहाॅ का
माहौल दे ख कर ऐसा लगा जैसे िहाॅ के डाक्टर तथा कमगचारी हमारा ही इन्त़िार
कर रहे थे । जल्द ही दो आदमी स्टरे चल कलये मे रे पास आए। मैने आकहस्ता से नीलम
को स्टरे चर पर कलटा कदया। मेरे ले टाते ही िो दोनो आदमी स्टरे चर को ते ़िी से ठे लते हुए
ले जाने लगे। मैं, आकदत्य, ररतू ि सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे । थोडी
ही दे र में िो दोनो आदमी नीलम को स्टरे चर सकहत ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम
सबको ओटी के बाहर ही रोंक कदया और खु द अं दर चला गया।

हम चारो िही ं पर खडे रह गए थे । हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कक नीलम

950
को कुछ न हो। अभी हम सब िहाॅ पर खडे ही थे कक तभी िहाॅ पर एसीपी
रमाकान्त शु क्ला भी आ गया। उसने आते ही ररतू दीदी से नीलम के बारे में पू छा तो
दीदी ने बता कदया कक अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने ररतू दीदी
से कहा कक उसने समूचे हाल्किटल में अं दर बाहर पु कलस के आदमी सादे कपडों में
तै नात कर कदये हैं। इस कलए अब ककसी का खतरा नही ं है । एसीपी की बात सु न कर
ररतू दीदी ने उसे इसके कलए धन्यिाद ककया। कुछ दे र बाद एसीपी ये कह कर चला
गया कक िो नीलम का हाल चाल ले ने किर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ दे र बाद हम चारों िही ं गैलरी पर दीिार से सटी हुई रखी
लम्बी चे यसग पर बै ठ गए। कुछ दे र बाद मैं उठा और हाॅल्किटल से बाहर पानी लाने
के कलए चला गया। पानी लाकर मैने ररतू दीदी ि सोनम दीदी को कदया। उसके बाद
उसी कुसी पर बै ठ कर हम सब डाक्टर के बाहर आने का इन्त़िार करने लगे। हम
सबके लबों से बस एक ही दु िा कनकल रही कक नीलम को कुछ न हो।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 58 》

अब तक,,,,,,,

हाॅल्किटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को


सािधानी से कनकाल कर अपनी गोंद में कलया और कबना ककसी की तरि दे खे
हाॅल्किटल की तरि लगभग दौडते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ
रहे थे । कुछ ही दे र में मैं नीलम को कलए हाॅल्किटल के अं दर आ गया। िहाॅ का
माहौल दे ख कर ऐसा लगा जैसे िहाॅ के डाक्टर तथा कमगचारी हमारा ही इन्त़िार
कर रहे थे । जल्द ही दो आदमी स्टरे चर कलये मे रे पास आए। मैने आकहस्ता से नीलम
को स्टरे चर पर कलटा कदया। मेरे ले टाते ही िो दोनो आदमी स्टरे चर को ते ़िी से ठे लते हुए
ले जाने लगे। मैं, आकदत्य, ररतू दीदी ि सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे ।
थोडी ही दे र में िो दोनो आदमी नीलम को स्टरे चर सकहत ओटी में ले गए। डाक्टर ने
हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक कदया और खु द अं दर चला गया।

हम चारो िही ं पर खडे रह गए थे । हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कक नीलम


को कुछ न हो। अभी हम सब िहाॅ पर खडे ही थे कक तभी िहाॅ पर एसीपी

951
रमाकान्त शु क्ला भी आ गया। उसने आते ही ररतू दीदी से नीलम के बारे में पू छा तो
दीदी ने बता कदया कक अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने ररतू दीदी
से कहा कक उसने समूचे हाल्किटल में अं दर बाहर पु कलस के आदमी सादे कपडों में
तै नात कर कदये हैं। इस कलए अब ककसी बात का खतरा नही ं है। एसीपी की बात सु न
कर ररतू दीदी ने उसे इसके कलए धन्यिाद ककया। कुछ दे र बाद एसीपी ये कह कर
चला गया कक िो नीलम का हाल चाल ले ने किर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ दे र बाद हम चारों िही ं गैलरी पर दीिार से सटी हुई रखी
लम्बी चे यसग पर बै ठ गए। कुछ दे र बाद मैं उठा और हाॅल्किटल से बाहर पानी लाने
के कलए चला गया। पानी लाकर मैने ररतू दीदी ि सोनम दीदी को कदया। उसके बाद
उसी कुसी पर बै ठ कर हम सब डाॅक्टर के बाहर आने का इन्त़िार करने लगे। हम
सबके लबों से बस एक ही दु िा कनकल रही कक नीलम को कुछ न हो।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,,

उधर हिे ली में।


डर ाइं ग रूम में सोिे पर बै ठी प्रकतमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पकत अजय
कसं ह के मोबाइल पर िोन लगा रही थी ककन्तु अजय कसं ह का िोन बं द बता रहा था।
अजय कसं ह का िोन बं द बताने से प्रकतमा को ककसी अनहोनी आशं का होने लगी थी।
उसके चे हरे पर एकाएक ही गहन कचं ता, परे शानी तथा बे चैनी के भाि उभर आए थे ।
उसे समझ नही ं आ रहा था कक अजय ने अपना िोन क्ों बं द कर रखा है? िो अजय
कसं ह से िोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कक िो इस िक्त कहाॅ है तथा
बाॅककयों के हालात कैसे हैं? मगर अजय कसं ह का िोन बं द बताने से प्रकतमा को अब
प्रकतपल बे चैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के खयालों का आिागमन
शु रू हो गया था।

उसके सामने ही दू सरे सोिे पर कशिा ककसी और ही दु कनयाॅ में खोया हुआ ऩिर आ
रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई खबर ही नही ं थी। िो तो बस सोनम के
खयालों में खोया हुआ था। नीलम ि सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे ।
मगर िो दोनो अब तक िापस नही ं लौटी थी। ककन्तु कशिा को जैसे समय का खयाल
ही नही ं था। िो तो बस अपनी ऑखों के सामने ऩिर आ रहे सोनम के खू बसू रत
चे हरे को ही अपलक दे खे जा रहा था। हलाॅकक जब प्रकतमा ने उसे इस बात से
अिगत कराया कक िो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो
कशिा का कदल एकदम से बै ठ सा गया था। बाद में प्रकतमा के ही कनदे श पर उसने
कुछ नये आदकमयों की मजबू त टीम बना कर उनके पीछे लगा कदया था।

952
"उफ्फ क्ा करूॅ इस इं सान का।" सहसा तभी प्रकतमा की खीझी हुई इस आिा़ि
से कशिा हकीक़त की दु कनयाॅ में आया, जबकक प्रकतमा कह रही थी____"कभी कोई
काम ठीक से नही ं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरिाह इं सान मैने आज
तक नही ं दे खा।"

"क्ा हुआ माॅम?" कशिा ने प्रकतमा के एकाएक ही तमतमा गए चे हरे को दे खते हुए
कहा____"ककस लापरिाह इं सान की बात कर रही हैं आप?"
"तु म्हारे बाप की।" प्रकतमा ने आिे श में कहा___"जो कक हद द़िे का लापरिाह और
बे िकूि इं सान है।"

"अरे ये आप क्ा कह रही हैं माॅम?" कशिा अपनी माॅ की बातों से बु री तरह हैरान
रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रकतमा ने कहा___"िरना कौन ऐसा करता है कक इतनी
खराब कसचु एशन में होकर अपना िोन ही बं द कर दे ?"

"क्ा मतलब???" कशिा जैसे चकरा सा गया।


"तु म्हारे बाप से िोन द्वारा पू छना चाहती थी कक िहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रकतमा ने
कहा___"मगर महाशय का मोबाइल िोन ही ऑि बता रहा है। अब तु म ही बताओ
कक ऐसे हालात में कौन अपना िोन कर बं द करके रखता है?"

"बात तो आपने सही कही माॅम।" कशिा के चे हरे पर एकाएक सोचने िाले भाि
उभरे ____"ऐसे हालात में कोई भी अपना िोन ऑि नही ं रख सकता। हाॅ अगर
मोबाइल ही कडथचा़िग हो गया हो तो अलग बात है। ले ककन माॅम मु झे यकीन है डै ड
अपना िोन ऑि नही ं करें गे ऐसे िक्त में । ़िरूर कोई बात हो गई होगी।"

"चु प कर तू ।" प्रकतमा अं दर ही अं दर जाने क्ों बु री तरह कहल गई, बोली___"जो मुह
में आता है कबना सोचे समझे बोल दे ता है।"
"ऐसा नही ं है माॅम।" कशिा ने नमग भाि से कहा___"ले ककन आप खु द सोकचए कक
क्ा डै ड ऐसे िक्त में अपना िोन ऑि कर सकते हैं, नही ं ना? उन्हें भी पता है कक
हालात ककतने गंभीर हैं। ले ककन ये भी सच है कक अगर डै ड का िोन ऑि बता रहा
है तो ़िरूर कोई ऐसी बात होगी कजसके बारे में किलहाल हमें कुछ भी पता नही ं है।"

कशिा की इस बात पर प्रकतमा तु रंत कुछ बोल न सकी। उसके चे हरे पर गहन सोचों
के भाि ़िरूर उभर आए थे । जैसा सोच रही हो कक क्ा सच में ऐसा कुछ हुआ
होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गु म दे ख कर कशिा पु नः कह उठा____"इस
तरह बै ठने से कुछ नही ं होगा माॅम। मुझे लगता है कक हमें डै ड का पता करना

953
चाकहए। जैसा कक आपने मुझे बताया था कक आज किराज ररतू दीदी के साथ नीलम ि
सोनम को ले ने आने िाला है शायद, इसी कलए आपने उनके पीछे अलग से एक
मजबू त टीम बना कर मेरे द्वारा भे जिाया था। िही ं दू सरी तरि से डै ड भी अपने साथ
कुछ आदकमयों को कलए आ रहे हैं। इस बात से यही ़िाकहर होता है कक अगर किराज
सचमुच आ रहा है तो डै ड तथा हमारे आदकमयों के साथ उसकी कभडं त अकनिायग है।
इस कभडं त में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कक अं ततः किराज ररतू दीदी के साथ
पकडा ही जाएगा। उसके बाद डै ड उन सबको िामग हाउस ले जाएॅगे। िामग हाउस
पहुॅचने के बाद ही िो हमें िोन करने िाले थे । ककन्तु उनके िोन बं द बताने से ऐसा
प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी िो हुआ ही नही ं है।"

"नही ं नही ं।" प्रकतमा ने पू री मजबू ती से इं कार में कसर कहलाया, बोली___"ऐसा नही ं हो
सकता बे टा। इस बार मैने और ते रे डै ड ने उस किराज की सोच से बहुत आगे बढ कर
प्लान बनाया था। मु झे उसकी सोच का अब अं दा़िा हो चु का था, इसी कलए तो डबल
बै कअप रखा था हमने । एक हमारे आदकमयों का दू सरा ते रे डै ड के साथ आए
आदकमयों का। डबल बै कअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी कनकश्चत थी बे टा।"

"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" कशिा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम ि
सोनम भी तो पकड ली गई होंगी। उफ्फ! ककतना भरोसा था मु झे कक सोनम ये गाॅि
तथा हमारे खे ते घूम कर िापस यही ं आएगी। मगर कदाकचत नीलम ने उसे भी सब
कुछ बता कदया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने कदल का क्ा
करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"

कशिा की इस बात का प्रकतमा अभी कुछ जिाब दे ने ही िाली थी सहसा तभी डर ाइं ग
रूम में बडे िे ग से एक आदमी दाल्कखल हुआ। उसके चे हरे से ही लग रहा था कक िो
कही ं से मैराथन दौड लगा कर आया है । बु री तरह हाॅि रहा था िह। प्रकतमा ि
कशिा उसे दे ख कर बु री तरह चौंक पडे ।

"क्ा बात है हैदर?" कशिा ने उसकी तरि हैरानी से दे खते हुए कहा___"तु म इतना
हाॅि क्ों रहे हो? और...और तु म यहाॅ कैसे , तु म तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में कसर कहलाते हुए
कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,

"मगर क्ा???" कशिा उतािले पन में पू छ बै ठा।


"सब कुछ गडबड हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर
साहब ने तो सबको पकड ही कलया था और बा़िी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन
िक्त पर िहाॅ पु कलस की पू री िौज आ गई और किर एसीपी के कनदे श पर सबको

954
कहरासत में ले कलया गया। यहाॅ तक कक ठाकुर साहब को भी िो एसीपी कगरफ्तार
करके ले गया है। मैं ककसी तरह छु पता छु पाता िहाॅ से कनकल कर ये सब बताने के
कलए आपके पास आया हूॅ।"

हैदर की बात सु न कर कशिा तथा प्रकतमा दोनो को ही जैसे साॅप सू ॅघ गया। दोनो
के ही चे हरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपडे से पानी कनचोड ले ने पर कपडे की हो
जाती है। प्रकतमा को तो ऐसा लगा जैसे कदल का दौरा पड जाएगा। उसकी ऑखों के
सामने अधेरा सा छा गया। कशिा की ऩिर जब प्रकतमा पर पडी तो िह अपने सोिे से
उठ कर बडी ते ़िी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी खराब
हो चु की थी। ककन्तु जिान खू न था अभी इस कलए हैदर की इस डायनामाइट जैसी
बात को हजम कर गया था।

"सब कुछ खत्म हो गया बे टा।" प्रकतमा अपने बे टे की बाहों में कसमटी एकदम से
असहाय भाि से बोली___"अब कुछ भी शे ष नही ं रहा। ते री बहन ररतू ने अपने
महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षकत पहुॅचा दी। उसने अपने बाप
के माथे पर एक और नाकामी की मु हर लगा दी। इस बात से ़िाकहर होता है कक
उसके कदल में अपने माॅ बाप के प्रकत ़िरा सी भी जगह नही ं रह गई है।"

"मैं उस कुकतया को क़िंदा नही ं छोंडूॅगा माॅम।" कशिा के मुख से सहसा गुरागहट
कनकली___"डै ड को जेल कभजिा कर उसने ये अच्छा नही ं ककया है। भला उसकी
हमसे क्ा दु श्मनी है माॅम, दु श्मनी तो किराज से है।"

"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बे टी नीलम को गोली भी मार
दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा ककया____"नीलम की हालत
बहुत ही गंभीर है। उसे िो लोग यकीनन हाल्किटल ले गए होंगे।"

"ये क्ा कह रहे हो तु म??" प्रकतमा हैदर की ये बात सु न कर सकते में आ गई। चे हरा
सिेद िक्क पड गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गु स्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का
ररिीवर कनकाल कर नीलम पर िायर कर कदया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी
थी। जहाॅ से खू ॅन बहे जा रहा था।"

"हे भगिान!।" प्रकतमा की ऑखें छलक पडी ं___"ये कैसा कदन कदखा रहे हो हमे? एक
बाप अपनी ही बे कटयों के खू न का प्यासा हो चु का है।"
"ले ककन हैदर।" प्रकतमा के रुदन पर ़िरा भी ध्यान कदये बग़ैर कशिा ने पू छा___"डै ड ने
नीलम पर गोली क्ों चलाई थी?"

955
हैदर ना शु रू से ले कर अं त तक की सारी राम कहानी सं क्षेप में कह सु नाई। उसकी
इस राम कहानी में िो सीन भी था कजसमें अजय कसं ह ने अपनी ही बे टी नीलम से
अश्लील बातें की थी। ये भी कक अं त में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड मारा
था कजसकी िजह से गुस्से में आकर अजय कसं ह ने एसीपी का ररिावर छीन कर
नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सु नने के बाद कशिा तो बस हैरान ही था ककन्तु
प्रकतमा एकदम से मानो बु त बन गई थी। उसका चे हरा एकदम से ते ़िहीन सा हो गया
था।

"अब मेरे कलए क्ा आदे श है छोटे ठाकर?" है दर ने कहा।


"तु म जाओ हैदर।" कशिा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम
सोचते हैं कक अब इसके आगे हमें क्ा करना है?"

कशिा के कहने पर हैदर िहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद डर ाइं गरूम में मरघट
जैसा सन्नाटा छा गया। कािी दे र तक माॅ बे टे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें
से ककसी को कुछ सू झ ही न रहा हो कक अब क्ा बात करें ?

"आकखर कजस ची़ि की कनयकत बन चु की थी।" सहसा प्रकतमा ने कही ं खोये हुए से
कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लडाई में ककसी न ककसी को तो शहीद
होना ही है। किर चाहे िो नीलम ही क्ों न हो?"

"आपने कबलकुल सही कहा माॅम।" कशिा ने भी गंभीर भाि से कहा___"ककसी न


ककसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और िो ये कक डै ड
ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नही ं ककया। मैं जानता हूॅ कक आपको मेरी ये
बात नागिार लग सकती है। मगर इसके बािजूद कहूॅगा मैं कक डै ड को नीलम पर
गोली नही ं चलाना चाकहए था। मैं मानता हूॅ कक मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगाित
करके ग़लत ककया है। उन्हें सोचना चाकहए था कक माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने
ही। िै से ही डै ड को भी सोचना चाकहए था माॅम। हम उन्हें उनके ककये की स़िा
़िरूर दे ते मगर इस तरह नही ं कक उनको जान से ही मार दें । ये सब उस किराज की
िजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का
ब्रे निाश ककया है , िरना उनके कदलो कदमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कक
माॅ बाप जैसे भी हों, िो अपने ही होते हैं।"

प्रकतमा कशिा की ये बातें सु न कर मन ही मन हैरान थी। कशिा का बदला हुआ ये


रिै या उसे हजम नही ं हो रहा था। ककन्तु उसे ये भी पता था कक कशिा अपने बाप की
टू काॅपी है। यानी सू रज कभी पकश्चम से उदय नही ं हो सकता।

956
"क्ा बात है।" प्रकतमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमददी?
क्ा ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बे टा? कजसने ते री सोच को इस हद तक बदल
कदया है?"
"मुझे खु द पता नही ं है माॅम।" कशिा ने ऩिरें चु राते हुए कहा___"मैं कसिग इतना
समझ रहा हूॅ कक डै ड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नही ं ककया। अगर िही
गोली िो किराज पर चला दे ते तो शायद मुझे उनसे कोई कशकायत न रहती।"

"खै र छोंड।" प्रकतमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढाने की गऱि से कहा___"अब हमें ये


सोचना है कक ते रे डै ड को पु कलस से कैसे छु डाया जाए? उन पर नीलम को जान से
मारने की कोकशश का भी केस लग सकता है, और सं भि है कक उस एसीपी ने ये
केस लगा भी कदया हो उन पर। अतः हमें अब ककसी क़ाकबल िकील से कमलना
पडे गा। ताकक िो उनको जेल से ककसी तरह छु डा सके।"

"हाॅ ये सच कहा आपने ।" कशिा ने कहा___"डै ड को जेल से तो छु डाना ही पडे गा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रकतमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाकबल िकील
है जो अजय को जेल से छु डा सकती है। मेरी एक काॅले ज िैण्ड है। मैने और
अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी ककया था। उसके बाद उसने िकालत को ही
अपना पे शा बना कलया जबकक मैं अजय के साथ घर बसा कर कसिग एक हाउसिाइि
बन कर रह गई। हलाॅकक अजय ने मु झे इस बात के कलए कभी भी मना नही ं ककया
कक मैं िकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढाई की थी। अजय तो
चाहते थे कक हम दोनो िकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इं कार कर कदया था। ककन्तु
आज सोचती हूॅ कक काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चु टककयों में जेल
से छु डा लाती।"

"िकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" कशिा ने कहा___"आपके पास


इस सबके राइट् स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बे टा।" प्रकतमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नही ं है।
उसके कलए पहले इस सबकी बारीककयों को समझना पडता है। कई तरह के केसों
का अध्ययन करना पडता है। मैं कभी कोटग के अं दर िकील का चोंगा पहन कर नही ं
गई, इस कलए मु झे इसका त़िुबाग भी नही ं है। दू सरी बात अनु भि भी कोई ची़ि होती
है। जो कक मु झे नही ं है। हर ची़ि का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही
साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही कबना ककसी रुकािट के
चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड कदया है तो किर लम्बे
समय बाद उसी लाइन पर चलना ़िरा मुल्किल सा हो जाता है। िो किर तभी अपनी
लय पर आएगा जब उसकी कनयकमत प्रै ल्कक्टस हो। खै र, छोंड इस बात को। मैं अनीता
को िोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे िैण्ड सकगल में एक िही है जो अब

957
तक मेरे टच में में है। बाॅककयों का तो कही ं पता ही नही ं है।"

कहने के साथ ही प्रकतमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता


ब्यास का नं बर ढू ॅढने लगी। जबकक कशिा ये कह कर सोिे से उठा कक िो कुछ दे र
में आता है अभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

केशि जी के कजस आदमी ने िोन पर उस जासू स के बारे में सू कचत ककया था उसका
नाम कनरं जन िमाग था। ररतू ने जब केशि जी से कहा कक िो अपने उस आदमी से कहे
कक उसे पकडने की कोकशश करे और खु द भी िापस जाएॅ िहाॅ तो केशि ने िै सा
ही ककया था। उन्होंने कनरं जन को िोन करके उससे पू छा था कक क्ा िो अकेले उस
जासू स को पकड सकता है तो कनरं जन ने कहा कक िो इस बारे में कुछ कह नही ं
सकता है। क्ोंकक उसने सु ना था कक कोई कोई जासू स लडने के मामले में भी कािी
कनपु र् होते हैं । इस कलए बे हतर यही होगा कक िो उस पर कसिग ऩिर रखे और किर
जब िो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर कलया जाएगा। केशि जी को भी कनरं जन
की बात सही लगी। इस कलए िो िुल िीड में अपने आदकमयों को कलए आ रहे थे ।

इधर कनरं जन बडी सिाई से हरीश रार्े पर ऩिर रखे हुए था। ककन्तु उसे भी पता था
कक ये जासू स यहाॅ पर ज्यादा दे र तक रुकने िाला नही ं है। उसके पास काले रं ग की
एक पल्सर बाइक थी। इस िक्त िह बाइक के ही पास नीचे बै ठा बाइक में कुछ कर
रहा था। कनरं जन को समझ नही ं आ रहा था कक िो बाइक के पास इस तरह बै ठ कर
क्ा कर रहा है? कनरं जन उससे बस कुछ ही दू री पर एक पे ड की ओट में छु प कर
खडा था और उस पर ऩिर रखे हुए था। उसके पास हकथयार के रूप में कुछ भी
नही ं था। जबकक उसे पू र्ग किश्वास था कक उस जासू स के पास ररिावर ़िरूर होगा।
यही िजह थी कक िो खु ल कर उसके सामने नही ं जा रहा था।

कनरं जन के चे हरे पर प्रकतपल बे चैनी बढती जा रही थी। क्ोंकक उसे पता था कक
जासू स अगर यहाॅ से चला गया तो किर उसे ढू ॅढ पाना मु ल्किल होगा। अतः िह
बार बार दे िी माॅ से प्राथग ना कर रहा था कक केशि जी सारे आदकमयों को ले कर
जल्दी आ जाएॅ। उसकी ऩिर सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बै ठा
िो जासू स कुछ कर रहा था। जासू स का चे हरा उसके बगल से कदख रहा था। कनरं जन
के मन में कई बार ये खयाल आया था कक िो चु पके से जाए और उस जासू स को
दबोच ले मगर अगले ही पल िो उसके पास जाने का अपना ये खयाल त्याग दे ता था।
क्ोंकक बार बार उसे उसके पास ररिावर होने का बोध करा दे ता था। उसने आस
पास दे ख भी कलया था। पास में कही ं भी उसे कोई डं डे जैसी िस्तु भी न ऩिर आई
थी कजसे ले कर िो उस जासू स के पास चला जाता।

958
अभी कनरं जन उस जासू स को दे ख ही रहा था कक तभी िो जासू स उठ कर खडा हुआ
और अपने दाकहने पै र को बाइक के आगे िाले पकहये पर ररम में रख कर उस पर ़िोर
से दबाि बनाया। ये दे ख कर कनरं जन के मल्कस्तष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही
उसके कदमाग़ की बिी जल उठी। साला इतनी दे र से िो समझ नही ं पा रहा था कक ये
जासू स बाइक के पास बै ठा कर क्ा रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल
बाइक का अगला पकहया पं चर था अथिा उसमें हिा कम थी। पकहये पर कनरं जन का
ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से दे खा पकहये पर जहाॅ पर से हिा भरी जाती
है िहाॅ पर कोई पतली सी तार या किर यू कहें कक पतला सा पाइप लगा हुआ था।
कजसका दू सरा कसरा इस िक्त उस जासू स के दाकहने हाॅथ में था।

कनरं जन को समझ न आया कक अगर बाइक का अगला पकहया पं चर है या उसमे हिा


कम है तो िो जासू स यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर ले गा और ये पतला सा पाइप क्ों
लगा रखा है उसने पकहये की कनब पर? तभी िो जासू स पु नः बै ठ गया। इस बार
कनरं जन ने भी अपनी जगह बदली और किर ध्यान से दे खा उसने । पाइप का दू सरा
कसरा उस जासू स ने अपने होठों पर दबाया और किर कनरं जन ने दे खा कक जासू स के
दोनो गाल िूल गए। ये दे ख कर कनरं जन की हसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी
से अपने मु ह को अपने हाथों से भी ंच न कलया होता तो। दरअसल िो जासू स पाइप
लगा कर मुह से हिा भर रहा था पकहये पर। बस यही दे ख कर कनरं जन को बडी ़िोर
की हसी आ गई थी। उसने सोचा कक इसे जासू स ककसने बना कदया? भला मुह से भी
कोई बाइक के पकहये पर हिा भरता है? ये तो दु कनया का सबसे बडा आश्चयग ही है।

कनरं जन ने भी सोचा कक बे चारा यहाॅ पर बाइक में हिा भरिाए भी तो कैसे ? ककन्तु
मुख से हिा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कक जासू स की इस कक्रया पर
कनरं जन उसे बे िकूि ही समझ रहा था। मगर िो उस िक्त हैरान रह गया जब िो
जासू स पु नः उठा और पहले की भाॅकत अपना दाकहना पै र ररम में रख दबाि बनाया।
उसके चे हरे से ़िाकहर हुआ कक अब िो सं तुष्ट है। उसने झुक कर तु रंत ही पाइप को
पकहये के कनब से कनकाला। कनरं जन ने दे खा कक कनब के पास लगे पाइप के उस छोर
पर कोई ची़ि लगी हुई थी। ये दे ख कर कनरं जन का कदमाग़ घूम गया। चककत होकर
िह उस जासू स को दे खे जा रहा था। अब उसे समझ आया कक िो जासू स यूॅ ही तो
नही ं बन गया होगा। ़िरूर उसमें काबीकलयत थी।

अभी कनरं जन ये सब सोच ही रहा था कक तभी उसने दे खा कक िो जासू स उस पाइप


को कलए बाइक के बाएॅ साइड आया और किर अपनी दाकहनी टाॅग उठा कर
बाइक की सीट पर बै ठ गया। ये दे ख कर कनरं जन एकदम से हडबडा गया। िो समझ
गया कक अब ये जासू स यहाॅ से चला जाएगा। कनरं जन को समझ न आया कक िो उसे
कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? िो खु द कनहत्था था िरना िो कोई जोल्कखम उठाने का

959
सोचता भी। उसे पू रा यकीन था कक उस जासू स के पास कपस्तौल होगी। यही िजह थी
कक िो उसके पास खु ल कर जा नही ं रहा था। ककन्तु अब हालात बदल गए थे । क्ोंकक
कनरं जन की ऑखों के सामने ही िो जासू स बाइक पर बै ठ चु का था और अब ये भी
तय था कक िो बाइक को स्टाटग कर यहाॅ से चला ही जाएगा।

कनरं जन ने दे खा कक बाइक पर बै ठा जासू स उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली


की शक्ल दे कर समेट रहा था। उसकी पीठ कनरं जन की तरि ही थी। पाइप का
दू सरा कसरा जासू स की दाकहनी जाॅघ से थोडा ही नीचे झलू रहा था और प्रकतपल
ऊपर की तरि उठता भी जा रहा था। ये दे ख कर कनरं जन के कदमाग़ की बिी जली।
उसके चे हरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। िो िुती से अपनी जगह
से कहला और किर बडी सािधानी ि सतकगता से लम्बे लम्बे क़दम बढाते हुए जासू स
के पीछे पहुॅच गया।

हरीश रार्े को सहसा अपने पीछे ककसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस
एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मु ड कर दे खना चाहा मगर अगले ही पल जैसे
कबजली सी कौंधी। कनरं जन ने डर ि भय की िजह से बडी ही िुती का प्रदशग न ककया
था। उसने जासू स के मुडने से पहले ही झुक कर जासू स के नीचे जाॅघ के पास
झलू ते उस पाइप को पकडा और किर ते ़िी से खडे होकर उसी छोर से दू सरा हाॅथ
सरका कर उसने जासू स के कसर से अपनी एक कलाई घुमा कर बडी िुती से उस
पाइप को जासू स की गदग न पर कस कदया।

हरीश रार्े को ़िरा भी उम्मीद नही ं थी कक उसके साथ पलक झपकते ही ऐसा कुछ
हो सकता है । िह एकदम से हकबका कर रह गया था। हलाॅकक उसने खु द को बडी
ते ़िी से सम्हाला था मगर तब तक उसके गले में कनरं जन ने उस पाइप को ककसी
िाॅसी के िंदे की तरह कस कदया था। कनरं जन ये सोच कर जी जान लगाए हुए था
कक अगर उसने ़िरा सी भी ढील दी तो ये जासू स उसे जान से मार दे गा। कनरं जन के
कदमाग़ में बस एक यही बात थी, बाॅकी उसे ककसी बात का कोई होश ही नही ं था।
उसे इस बात का ़िरा भी इल् नही ं रह गया था कक उसके द्वारा इतनी ताकत से गले
में पाइप को कसने से िो जासू स कुछ ही पलों में मर भी सकता है।

उधर रार्े जल कबन मछली की तरह छटपटाए जा रहा था। िो अपने दोनो हाथों से
अपने गले में िसे पाइप को पकडने की कोकशश कर रहा था मगर पाइप में कनरं जन
की पू री ताकत लगी हुई थी। कजसकी िजह से रार्े उसे कहला भी नही ं पा रहा था।
दे खते ही दे खते रार्े का बु रा हाल हो गया। उसका गोरा चे हरा लाल सु खग पड गया।
चे हरे पर पसीना और तडप साि पता चल रही थी। ककसी ककसी पल िह खाॅसने
भी लगता था। उसकी ऑखों की पु तकलयाॅ जै से बाहर कूद पडने को आतु र हो उठी

960
थी ं।

रार्े की हालत प्रकतपल कबगडती जा रही थी। बाइक पर बै ठा िह बु री तरह खु द को


झटके भी दे रहा था मगर मजाल है कक कनरं जन की पकड में ़िरा सा भी ढीलापन
आया हो। कहते हैं कक मौत से बचने के कलए इं सान अं त तक हर तरह से प्रयास
करता है किर भले ही उसके प्रयास कििल ही होते रहें। कनरं जन के कसर पर जुनून
सिार था और िो ककसी यमराज की तरह रार्े के कसर पर आ खडा हुआ था। रार्े
को एहसास हो गया कक अब िो मरने ही िाला है। उसे अब साॅस ले ना भी मुल्किल
पड रहा था। बु री तरह छटपटाते हुए रार्े ने एकाएक अपने एक हाॅथ को गले में
िसे पाइप से हटा कर उसी हाॅथ की कुहनी का िार बडी ते ़िी से पीछे कनरं जन के
पे ट के हिा ऊपरी भाग पर ककया। उसके इस िार से कनरं जन के हलक से पीडा
भरी कराह कनकल गई और उसकी पकड तथा उसकी ताकत कम़िोर पड गई।
हलाॅकक उसने जल्दी से उस ददग को बदागस्त करके पु नः पाइप को कसना चाहा मगर
तक मानो दे र हो गई। क्ोंकक जैसे ही कनरं जन ने पु नः ताकत लगाई िै से ही रार्े ने
कुहनी का िार जल्दी जल्दी कई बार कनरं जन के पे ट में कर कदया था। नतीजा ये हुआ
कक कनरं जन की पकड कािी ज्यादा ढीली ि कम़िोर पड गई। िह बु री तरह ददग ि
पीडा से कबलकबला उठा था।

कनरं जन के कम़िोर पडते ही हरीश रार्े ने बडी ते ़िी से अपने गले से उस पाइप को
पकड कर खी ंचा और किर उसे ऊपर करते हुए कसर से कनकाल कदया। हालत तो
उसकी अब भी बहुत खराब थी। बु री तरह खाॅस रहा था तथा बु री तरह गहरी गहरी
साॅसें भी ले रहा था। गोरा चे हरा लाल सु खग पड गया था। चे हरे पर ढे र सारा पसीना
उभर आया था। गले से पाइप को कनकालते ही िह बाइक से खु द को बाएॅ साइड
कगरा कलया था तथा साथ ही कई पलकटयाॅ भी खा कलया था। मगर तब तक उसकी
पसली में कनरं जन के बू ट की ़िबरदस्त ठोकर लग चु की थी। कनरं जन जानता था कक
अगर िह अब भी उसे सम्हलने का मौका कदया तो िो उसके कलए काल बन सकता
है। अतः िह मौत के डर से उस पर िार पे िार ककये जा रहा था।

हरीश रार्े अभी अभी मौत से बच कर कनकला था। इस कलए उसे खु द पर कनयंत्रर्
पाने के कलए कुछ समय चाकहए था मगर कनरं जन था कक उस पर प्रहार ककये जा रहा
था। अचानक ही कनरं जन ने दे खा कक जासू स ने अपने हाॅथ को पीछे ले जाकर
ररिावर कनकाल रहा है। ये दे ख कर कनरं जन के समूचे कजस्म में मौत की कसहरन
दौड गई। जैसे ही रार्े ने ररिावर कनकाल कर अपने हाॅथ को कनरं जन की तरि
उठाना चाहा िै से ही मौत के डर से कनरं जन ने उसकी उस कलाई पर अपनी टाॅग
चला दी। नतीजा ये हुआ कक रार्े के हाॅथ से ररिावर छूट कर दू र जा कगरा तथा
कलाई पर ते ़ि ठोकर लगने से िो ददग से कराह उठा।

961
कनरं जन ने दे खा कक ररिावर उसकी पहुॅच में ही है इस कलए िो जल्दी से ररिावर
की तरि लपका मगर तभी िह मुह के बल ़िमीन पर कगरा। कगरते ही उसके मुख से
चीख कनकल गई। रार्े ने पलट कर उसका पै र पकड कर खी ंच कलया था कजससे िो
अनबै लेंस होकर मु ह के बल कगरा था। ररिावर उसकी पहुॅच से लगभग डे ढ दो
हाॅथ ही दू र था। इधर कनरं जन का पै र पकड कर खी ंचते ही रार्े उसके ऊपर
एकदम से आने की कोकशश की तो कनरं जन घबरा कर पलट गया। नतीजतन इस
बार रार्े मुह के बल कगरा। ककन्तु उसके एक हाॅथ में कनरं जन का पै र अभी भी था।

कनरं जन ने अपने पै र को उससे छु डाने के कलए ़िोर से झटका कदया मगर उसका पै र
तो न छूटा ककन्तु झटकने से उसका पै र रार्े की छाती से टकराया। कनरं जन आिे श
और घबराहट में अपने पै र को झटका दे ता ही रहा, कजसका नतीजा ये हुए कक बार
बार छाती पर उसका पै र ़िोर से लगने से आकखर रार्े को उसका पै र छोंडना ही
पडा। इधर कनरं जन जो कक दोनो हाॅथ पीछे की तरि ़िमीन पर कटका कर बै ठ चु का
था िो अपने पाॅि के आ़िाद होते ही ते ़िी से ररिावर की तरि पलट कर लगभग
उस पर कूद सा गया। उसके हाॅथ में ररिावर आ चु का था। अभी िह ररिावर के
साथ पलटा ही था कक तभी रार्े उसके ऊपर जंप मार कर आ गया।

रार्े ने तु रंत ही कनरं जन के ररिावर िाले हाॅथ को पकडने के कलए अपना एक


हाॅथ बढया तो कनरं जन ने अपने उस हाॅथ को ऊपर अपने कसर के पीछे साइड कर
कलया। रार्े जैसे ही उसे पकडने के कलए उस तरि झुका िै से ही कनरं जन ने अपना
दू सरा हाॅथ छु डा कर ़िोर से एक मुक्का रार्े की कनपटी में मारा कजससे रार्े
उसके ऊपर से दू सरी तरि पसर गया। इधर रार्े के कगरते ही कनरं जन ले टे ले टे ही
एक साथ तीन चार पलकटयाॅ खाता चला गया। जब तक रार्े उठ कर उसके पास
पहुॅचता तब तक कनरं जन उठ कर बै ठ चु का था, साथ ही ररिावर िाला हाॅथ भी
ऊपर उठा कर उस पर तान चु का था।

"रुक जा मादरजाद।" कनरं जन आिे श में जल्दी से कचल्लाया था___"िरना इस


ररिावर की सारी गोकलयाॅ ते रे सीने में उतार दू ॅगा और ये मैं यूॅ ही नही ं कह रहा
हूॅ बल्कि सचमुच ऐसा कर भी दू ॅगा। क्ोंकक तु झे जान से मार दे ने पर भी मु झे कुछ
नही ं िाला। बल्कि इनाम ही कमले गा मु झे।"

हरीश रार्े कनरं जन का ये डायलाॅग तथा उसके खतरनाॅक लहजे को दे ख कर


एकदम से अपनी जगह पर गया। उसके चे हरे पर पहली बार डर ि भय के कचन्ह
ऩिर आए। ककन्तु उसे ये समझ नही ं आया कक ये आदमी है कौन और उसके पीछे

962
उसकी मौत बन कर कहाॅ से आ गया था? क्ा ये किराज ि ररतू का आदमी है जो
उसके पीछे ही लगा हुआ था?

"कौन हो तु म?" हरीश रार्े ने सतकग भाि से पू छा___"और इस तरह मु झ पर


जानले िा हमला करने का क्ा मतलब है तु म्हारा?"
"कजस तरह तू मंत्री का कुिा बन कर हमारे बाॅस के अ़िी़ि लोगों के पीछे लगा
हुआ था।" कनरं जन ने लहजे को कठोर बनाते हुए कहा___"उसी तरह मैं भी ते रे पीछे
लगा हुआ था। खै र, अब तू पकड में आ ही चु का है तो ये भी समझ गया होगा कक अब
ते रा क्ा हस्र होने िाला है?"

"ओह तो तु म्हें ये ग़लतिहमी है।" हरीश रार्े ने बडे अजीब भाि से कहा____"कक
तु मने मु झे पकड कलया है?"
"ज्यादा शे खी मत झाड।" कनरं जन उसकी बात पर गडबडा सा गया, किर
बोला___"िरना बता ही चु का हूॅ कक तु झे जान से मार दे ने पर मुझे कुछ नही ं होगा
बल्कि इनाम ही कमले गा।"

"अच्छा।" हरीश रार्े सहसा मु स्कुराया___"तो किर दे र ककस बात की है प्यारे ?


तु म्हारे कनशाने पर हूॅ, खत्म कर दो मु झे और जल्दी से अपना इनाम भी हाॅकसल
कर लो।"
"लगता है।" कनरं जन अं दर ही अं दर हैरान___"कक तु झे मरने की बहुत जल्दी है।"

"क्ा करें दोस्त?" रार्े ने कहा___"अब जब तु मने कह ही कदया है ऐसा तो किर दे र


ककस बात की करना? मुझे लगता है कक तु म्हें भी अपना समय बबागद नही ं करना
चाकहए। अतः मेरी सलाह मानो और जल्दी से मुझे खत्म कर दो।"

कनरं जन उसकी इस बात पर समझ न सका कक ये जासू स आकखर है ककस ककस्म का


ब्यल्कक्त? मौत सामने खडी है और ये ऐसी बातें कर रहा है। इसे ़िरा भी मौत का
खौि नही ं है। जबकक कनरं जन तो बस उसे डरा और धमका ही रहा था। ताकक िह
कोई बे जा हरकत करने की कोकशश न करे । उसे पता था थोडी ही दे र में उसके
बाॅस यानी कक केशि शमाग अपने आदकमयों सकहत यहाॅ पहुॅच ही जाएॅगे। अतः
तब तक उसे इस जासू स को रोंके रखना था। मगर उसकी इन ऊल जुलूल बातों ने
उसका कसर चकरा कर रख कदया था।

"क्ा सोचने लगे प्यारे ?" हरीश रार्े उसे चु प दे ख कर कह उठा___"अरे भई चलाओ
गोली मुझ पर और खत्म करो मुझे। तु म तो यार लगता है बस डी ंगे ही मारना जानते
हो। जबकक मु झसे अब इन्त़िार नही ं हो रहा।"

963
"ओये ज्यादा बकिास न कर समझा।" कनरं जन ने उिे कजत भाि से कहा___"िरना
सच में ते रा राम नाम सत्य कर दू ॅगा मैं।"

हरीश रार्े कोई मामूली इं सान नही ं था। घुटा हुआ जासू स था, उसे समझते दे र न
लगी कक कनरं जन उसे कसिग धमका रहा है। अगर उसे जान से मारना ही होता तो
इतनी बातें न करता बल्कि कब का उसे यमलोक पहुॅचा कदया होता। अतः उसने
पू री सतकगता से कनरं जन की हर गकतकिधी को नोट करते हुए बे खौि कनरं जन की
तरि बढने लगा। ये दे ख कर कनरं जन अं दर ही अं दर बु री तरह घबरा गया। साथ ही
उसके कदमाग़ ने काम करना भी बं द कर कदया। उसे समझ न आया कक ये साला अब
उसकी तरि क्ों बढ रहा है?

"ये...ये तू क्ा कर रहा है मादरजाद?" बु री तरह बौखलाते हुए कनरं जन हकलाते हुए
बोल उठा____"मैं कहता हूॅ रुक जा िरना सच में गोली मार दू ॅगा तु झे।"
"मैं भी तो यही चाहता हूॅ प्यारे ।" हरीश रार्े ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तु म हो
कक मु झे जान से मारते ही नही ं। इस कलए अब मैं खु द ही तु मसे ररिावर ले कर खु द
को गोली मार लू ॅगा। मु झे समझ आ गया है कक तु मसे ररिावर चलाया नही ं
जाएगा।"

"तू ...तू पागल है क्ा रे ?" कनरं जन हैरान परे शान सा बोल पडा___"दे ख मेरी तरि मत
आ। िरना अगर मेरा भे जा गरम हो गया न तो तू सच में मेरे हाॅथों मारा जाएगा।"
"नही ं प्यारे ।" हरीश रार्े बोला___"मु झे पता चल गया है कक अब तु म मु झे गोली नही ं
मार सकते । क्ोंकक तु म्हें मुझसे अचानक ही बे इंतहां मोहब्बत हो गई है। हाय, ये
मोहब्बत भी न बहुत बु री ची़ि होती है कम्बख़्त।"

"साले ।" कनरं जन उसकी बातों से बु री तरह भन्ना गया, बोला___"तु झे एक बार में बात
समझ में नही ं आती है क्ा? अब अगर एक क़दम भी आगे बढाया तू ने तो दे ख ले ना
यही ं पर ढे र हुआ ऩिर आएगा।"

"ऐसा ग़़िब मत करना प्यारे ।" रार्े चहका___"ऐसा लगता है कक तु म्हारी तरह मुझे
भी तु मसे मोहब्बत हो रही है। ओह नही ं नही ं....मुझे ककसी से भी मोहब्बत नही ं हो
सकती। खास कर उससे तो हकगग ़ि भी नही ं जो खु द ही मेरी तरह औ़िार कलए
किरता हो।"

कनरं जन बोला तो कुछ नही ं ककन्तु उसे एहसास हुआ कक िालतू की बकिास करते
हुए ये जासू स उसके कािी पास आ गया है। अभी कनरं जन ये सोच ही रहा था कक
अचानक ही मानो कबजली सी कौंधी। हरीश रार्े ने हैरतअं गे़ि कारनामा ककया था।

964
पलक झपकते ही उसका कजस्म हिा में लहराया और इससे पहले की कनरं जन कुछ
समझ पाता रार्े उसको कलए ़िमीन पर कई पलकटयाॅ खाता चला गया। कनरं जन के
हाॅथ से ररिावर जाने कब छूट गया था। अपने ऊपर हुए इस अप्रत्याकशत हमले से
कनरं जन बु री तरह बौखला गया था। जब तक उसे कुछ होश आया तब तक दे र हो
चु की थी।

पलकटयाॅ खाने के बाद रार्े सबसे पहले उठा और किर उसने कनरं जन को कुछ भी
करने का अिसर नही ं कदया। लात घूॅसों की बरसात सी कर दी उसने । कनरं जन की
चीखें कि़िा में गूॅजती रही।

"हमने कहा था न प्यारे ।" हरीश रार्े कनरं जन की छाती पर बै ठा हुआ बोला___"कक
तु मसे ररिावर नही ं चलाया जाएगा। हमने तो ये भी कहा था कक हमें खत्म कर दो
मगर नही ं तु म्हें तो हमसे मोहब्बत हो गई थी न। अब भु गतो मेरी जान। पीछे से िार
करने िाला कायर बु ़िकदल ि कहंजडा होता है और ये सब बातें तु म में हैं, ये तु मने
पहले ही साकबत कर कदया था।"

अभी रार्े ये सब कनरं जन को बोल ही रहा था कक तभी िातािरर् में िाहनों के आने
का शोर गू ॅजा। हरीश रार्े ये महसू स करते ही बु री तरह उछल पडा। उसने पलट
कर दे खा ही था कक कनरं जन ने ते ़िी से एक मु क्का उसकी गदग न के पास जड कदया।
कजससे एक चीख के साथ रार्े पलट कर नीचे कगर गया। उसके कगरते ही कनरं जन
उठा और सबसे पहले उसने रार्े की पसली में बू ट की ़िोरदार ठोकर मारी। ठोकर
लगते ही रार्े ददग से कबलकबला उठा।

इधर दे खते ही दे खते चारो तरि से केशि जी ने तथा उनके आदकमयों ने दोनो को
घेर कलया। कुछ लोग दौडते हुए आए और हरीश रार्े को पकड कलया। हरीश रार्े
समझ गया कक अब कुछ नही ं हो सकता। अतः उसने भी समझदारी का पररचय कदया
और कबना कोई हील हुज्जत ककये उनके द्वारा पकड कर ले जाने से चला गया। थोडी
ही दे र में िह केशि जी के आदकमयों के बीच जीप में बै ठा था। उसके दोनो हाॅथ
पीछे की तरि करके रस्सी से बाॅध कदये गए थे । उसका जो ररिावर लडते िक्त
कनरं जन के हाॅथ से छूट कर कगर गया था उसे कनरं जन ने किर से उठा कर अपने
पास रख कलया था। हरीश रार्े को कलए िो काकिला िापस रे िती के कलए चल पडा
था। केशि जी रार्े को पकड कर बे हद खु श थे । उन्होंने कनरं जन को इसके कलए
शाबाशी दी तथा ये भी कहा कक उसने िास्ति में बहुत बडा काम ककया है इस कलए
उसे इसके कलए इनाम ़िरूर कमले गा। कनरं जन इनाम की बात से बे हद खु श हो गया
था। इतना ही नही ं जासू स को पकडिाने से उसका कसर गिग से ऊचा हो गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

965
उधर हाल्किटल में।
हम सब बु झे बु झे से बै ठे थे । नीलम के कलए हर कोई कचं कतत ि परे शान था। हम में से
ककसी को भी ये उम्मीद नही ं थी कक अजय कसं ह ऐसा कुछ कर सकता है। िरना ऐसा
होता ही नही ं। खै र, लम्बे इन्त़िार के बाद आकखर ओटी का दरिाजा खु ला और
डाॅक्टर बाहर आया। हम सब उसे दे ख कर एक साथ एक ही झटके से उस लम्बी
चे यर से उठ कर खडे हो गए थे । किर लगभग एक साथ ही डाॅक्टर की तरि लपके
थे ।

"डाॅक्टर साहब।" मैने उतािले पन से ककन्तु बे हद ही अधीर भाि से पू छा___"सब


कुछ ठीक तो है न? नीलम ठीक तो है न?"
"डोन्ट िरी यं ग मैन।" डाॅक्टर ने कहा___"िो अब खतरे से बाहर हैं। शु कर था कक
बु लेट उनकी राइट साइड की पीठ पर थोडा कनचले कहस्से पर लगी थी। अगर ले फ्ट
साइड थोडा ऊपर लगती तो यकीनन िो गोली उनके कदल को भे द सकती थी। हमने
बु लेट कनकाल कदया है। अब िो ठीक हैं। थोडी दे र बाद उन्हें दू सरे कमरे में कशफ्ट कर
कदया जाएगा तो आप सब उनसे कमल सकेंगे।"

"ओह थैं क्ू डाॅक्टर।" आकदत्य बोल पडा___"थैं क्ू सो मच। आपने बहुत बडे सं कट
से बचा कलया।"
"थै क्ू तो आप लोगों का भी करना चाकहए।" डाॅक्टर ने कहा___"जो आप िक्त
रहते उन्हें यहाॅ लाने में कामयाब हो गए। िरना सचमुच कुछ भी हो सकता था। मु झे
िोन पर एसीपी साहब ने इस बारे में बता कदया था और कहा भी था कक जैसे ही आप
लोग यहाॅ आए िै से ही हम उनका तु रंत इला़ि शु रू कर दें ।"

थोडी दे र डाॅक्टर से और बातचीत हुई उसके बाद िो चला गया। हम सब अब खु श


थे कक नीलम अब ठीक है। थोडी ही दे र में एक नसग आई उसने बताया कक हम नीलम
से कमल सकते हैं। अतः उसके कहने के साथ ही हम सब लगभग दौडते हुए नसग के
पीछे पीछे गए और उस कमरे में दाल्कखल हो गए कजसमें नीलम को कशफ्ट ककया गया
था।

कमरे में पहुॅचते ही हमने दे खा कक हाल्किटल िाले बे ड पर नीलम करिट के बल


ले टी हुई थी। उसका चे हरा दरिाजे की तरि ही था ककन्तु ऑखें बं द थी। हम लोगों के
आने की आहट पाते ही उसने अपनी ऑखें खोल दी। जैसे ही उसने हमे दे खा उसके
चे हरे पर एक साथ कई तरह के भाि आए और किर सहसा उसके होठों पर िीकी
सी मु स्कान िैल गई।

ररतू दीदी ि सोनम दीदी एक साथ ही उसकी तरि बढी ं और उसके पास खडी हो

966
गई। ररतू दीदी ने नम ऑखों से उसके माथे से होते हुए कसर पर हाॅथ िेरा और किर
झुक कर उसके माॅथे को चू म कलया। उनके मुख से कोई लफ़्ि नही ं कनकला।
कदाकचत कुछ कहने की कहम्मत ही न हुई थी उनमें। ककन्तु इस कक्रया से ही उन्होंने
जता कदया कक उसके ठीक होने पर उन्हें ककतनी खु शी हुई है। सोनम दीदी भी नम
ऑखों से नीलम को दे ख रही थी।

"भगिान का लाख लाख शु कर है नील।" सोनम दीदी उसे प्यार से नील कहा करती
हैं, बोली ं____"उसने तु झे कुछ नही ं होने कदया िरना जब तु झे गोली लगी थी न तो जैसे
हम सबके कजस्मों से प्रार् ही कनकल गए थे ।"

"ये क़िंदगी उसी गंदे इं सान की दी हुई थी दीदी।" नीलम ने करुर् भाि से
कहा___"कजसे उसने गोली मार कर अपनी तरि से अब खत्म कर कदया है। अब ये
मेरा दू सरा जन्म है कजसमें अब उसका कोई हक़ नही ं है। बल्कि आप लोगों का है।"
कहने के साथ ही नीलम ने ररतू दीदी की तरि दे खा किर बोली___"मु झे आप पर
ना़ि है दीदी कक आपने राज का साथ कदया और सच्चाई का साथ कदया। आज
आपकी ही िजह से हम सब उस शै तान से बच कर यहाॅ आ गए हैं।"

"साथ तो हमेशा उसी का दे ना चाकहए नीलम।" ररतू दीदी ने कहा___"कजसका साथ


दे ने से हमारे ़िमीर तथा हमारी आत्मा को तक़लीि न हो बल्कि उन्हें तृ ल्कप्त का
एहसास हो। माॅ बाप हमेशा िं दनीय होते हैं और िो मेरे कलए भी हमेशा रहेंगे ककन्तु
िो माॅ बाप कजनकी अच्छी छकि में मन में है ना कक िो जो अपनी ही बहू बे कटयों के
बारे में ग़लत सोचते हैं। थोडा बहुत जो सम्मान बाॅकी था उनके कलए िो आज की
इन घटनाओं से पू री तरह खत्म हो चु का है। अब इस कदल में उनके कलए कसिग और
कसिग नफ़रत ि घृर्ा है। आज अगर तु झे कुछ हो जाता न तो क़सम ऊपर िाले की मैं
उस इं सान का िो हाल करती कक दु बारा इस धरती पर पै दा होने से इं कार कर दे ता।"

"जाने दीकजए दीदी।" नीलम ने कहने के साथ ही मेरी तरि दे खा, किर मु स्कुरा कर
बोली____"एक तरह से ये अच्छा ही हुआ। इसी बहाने सही मगर मुझे आज अपने इस
भाई का अपने कलए इतना सारा प्यार ि तडप तो दे खने को कमल गई। मैं महसू स कर
रही थी उस िक्त जब मैं इसकी बाहों में असहाय सी पडी थी। मेरे कानों में इसकी
हर बात सु नाई दे रही थी। मैं सोच रही थी कक एक मेरा िो भाई था कजसने कभी ये
नही ं जताया कक िो अपनी बहनों से ककतना प्यार करता है और एक ये भाई है कजसे
हमने बचपन से जलील करके दु ख कदया आज िो मु झे उस हालत में दे ख कर ऐसे
तडप रहा था जैसे गोली मु झे नही ं बल्कि इसको लगी थी। ये खयाल बार बार मन में
आता है कक इतना प्यार करने िाले भाई से हमने अब तक इतनी घृर्ा कैसे की थी?"

967
"ओये बं दररया।" मैं एकदम से उसके पास आकर बोल पडा____"ये क्ा बकिास
ककये जा रही है तू ? तु झसे मैं कोई प्यार, व्यार नही ं करता समझी। उस िक्त तो मैं िो
सब नाटक कर रहा था।"
"चल ठीक है भाई।" नीलम ने मु स्कुरा कर कहा___"मान कलया कक िो सब ते रा
नाटक था मगर सच कहूॅ तो मुझे िो ते रा नाटक भी बहुत भाया राज। मैं चाहती हूॅ
कक तू जीिन भर मेरे साथ ऐसा ही नाटक करता रहे।"

"अब तु म दोनो यही ं पर न शु रू हो जाना।" सहसा सोनम दीदी ने मु स्कुराते हुए


कहा___"जाओ जाकर पता करो डाॅक्टर से कक हम इसे यहाॅ से कब तक ले जा
सकते हैं?"
"अरे इसकी क्ा ़िरूरत है दीदी?" मैने मु स्कुरा कर कहा___"मैं तो कहता हूॅ कक
इसे यही ं पर पडी रहने दे ना चाकहए और हम लोगों को अब घर चलना चाकहए।"

"तू न अब मु झसे कपटे गा सच में।" सोनम दीदी ने ऑखें कदखाते हुए कहा___"अब जा
जल्दी यहाॅ से ।"
"जो हुकुम आपका।" मैने अदब से कसर झुका कर कहा और किर कमरे से बाहर
चला आया। मेरे पीछे पीछे आकदत्य भी मुस्कुराता हुआ चला आया।

"मेरे भाई को इस तरह भगा कर आपने अच्छा नही ं ककया दीदी।" सहसा नीलम ने
कहा___"जब िो मु झे इस तरह कचढाता है तो मुझे भी बडा अच्छा लगता है। मैं भी
उसके जैसा ही बतागि करने लगती हूॅ। मैं चाहती हूॅ कक कजन ची़िों के कलए िो
बचपन से तरसा था िो उन सभी ची़िों को आज जी भर के कजए। हमारी िजह से
अब तक कजतना उसका कदल दु खा है अब िो हमारे साथ ऐसी ही नोंक झोंक करके
अपने उस कदल को खु श रखे ।"

"मुझे पता है नील।" सोनम दीदी ने कहा___"मुझे भी अच्छा लगता है जब िो तु झे इस


तरह बं दररया कह कर कचढाने लगता है। ककन्तु मैं उसे ये सब कह कर इस कलए रोंक
दे ती हूॅ कक मु झे भी बडे होने का इस तरह से िायदा उठाने में म़िा आता है। मैं ये
दे ख कर खु श हो जाती हूॅ कक कैसे िो अपने से बडों की बात सहजता से मान जाता
है। अब ररतू से ही पू छ ले , ये तो उसके साथ ही रहती है। सं भि है कक ये भी मेरी तरह
अपने बडे होने का िायदा उठाती हो। क्ों ररतू सच कहा न मैने?"

"सबकी सोच अलग अलग होती है सोनम।" ररतू दीदी ने कहा___"तु म दोनो को ऐसा
करके खु शी कमलती है जबकक मेरा कुछ और ही कहसाब है। तु म तो जानती ही हो कक
मेरा स्वभाि कैसा है?"

968
"हाॅ जानती हूॅ।" सोनम दीदी ने कहा___"कक ते रा स्वभाि कहटलर िाला है। मगर
कभी खु द को बदल कर भी दे ख। सं भि है कक कुछ नया ऩिर आये।"

सोनम दीदी की इस बात पर ररतू दीदी मु स्कुराई और कुछ पल के कलए कही ं खो सी


गईं किर जैसे उन्होंने तु रंत ही खु द को सम्हाला और ये कह कर बाहर की तरि चली
गईं कक उसे कुछ ़िरूरी िोन काल करना है। ररतू दीदी के जाने के बाद सोनम दीदी
ने िापस नीलम की तरि दे खा।

"तो आपको भी राज के साथ ऐसा करने में म़िा आता है?" नीलम ने मुस्कुराते हुए
कहा।
"अरे नही ं रे ।" सोनम दीदी ने अजीब भाि से कहा___"ऐसी कोई बात नही ं है। मैं तो
ऐसे ही कह रही थी। खै र छोंड, अब तू ठीक है न? तु झे पीठ पर पे न तो नही ं हो रहा न
अभी?"

"नही ं दीदी।" नीलम ने कहा___"अब अच्छा लग रहा है। बस सीधा ले टने में प्राब्ले म
हो रही है।"
"िो तो होगी ही।" सोनम दीदी ने कहा__"अभी नया नया ़िख्म है। इस कलए तु झे
सीधा ले टने में कुछ कदन प्राब्ले म होगी। तु झे भी इस बात का खयाल रखना होगा और
हाॅ राज के साथ ज्यादा उछल कूद मत करने लगना। िरना ते रा ये ़िख्म किर से
ता़िा हो जाएगा।"

"ऐसा तो तभी सं भि है दीदी।" नीलम ने मु स्कुराते हुए कहा___"जब िो मेरे सामने ही


न आए। क्ोंकक जैसे ही िो मेरे सामने आएगा। मैं किर उसे छें डूॅगी और किर क्ा
होगा ये तो आप जानती ही हैं।"

"तू नही ं सु धरने िाली।" सोनम दीदी ने हैरानी से दे खते हुए कहा___"अरे पागल कुछ
कदन तो सबर कर ले ।"
"हाय दीदी! कुछ कदन राज से झगडा ककये कबना कैसे रह पाऊगी मैं?" नीलम ने आह
सी भरते हुए कहा___"पता नही ं क्ों पर उससे झगडा करने का हर पल कदल करता
है मेरा। मैं अकेले में सोचा करती हूॅ कक हर िक्त राज को छें डना क्ा अच्छी बात है?
मगर ये सब सोचने के बािजूद ऐसा हो जाता है। आप ही बताइये मैं क्ा करूॅ
दीदी?"

सोनम दीदी नीलम की बात सु न कर बस मु स्कुरा कर रह गई। उसके चे हरे पर कई


तरह के भाि आए और चले गए। जबकक उसकी मनोदशा से अं जान नीलम ने इस
बार ़िरा गंभीरता से कहा___"एक बात कहूॅ दीदी??"

969
"हम्म कहो।" सोनम दीदी ने धीरे से कहा।
"काश! राज मेरा भाई न होता।" नीलम ने धडकते हुए कदल के साथ कहा।
"ये...ये क्ा कह रही हो तु म??" सोनम दीदी उसकी इस बात पर बु री तरह चौंकी।
ऑखों में हैरत के कचन्ह कलए िो बोली ं___"इसके पहले तो कह रही थी कक राज जैसा
भाई पा कर तू बहुत खु श है। किर अब ऐसा क्ों कह रही है?"

"हर लडकी सोचती है कक उसे ऐसा जीिन साथी कमले जो उससे बहुत ही ज्यादा प्यार
करे ।" नीलम ने कही ं खोये हुए से कहा___"उसकी केयर करे तथा उसे एक पल के
कलए भी खु द से दू र न करे । उसे कभी ककसी बात पर दु खी न होने दे । ये सारी
खू कबयाॅ राज में हैं दीदी। मु झे पता है कक िो अपनी बहनों पर अपनी जान कछडकता
है। मगर उसे दे ख कर ये खयाल भी मन में आता है कक काश राज के जैसा ही हमें
जीिन साथी कमले । मगर आज के समय में ये सं भि नही ं है और अगर मान भी लें कक
ऐसे इं सान इस दु कनयाॅ में कमल भी सकते हैं तो क्ा उनमें से कोई हमारा जीिन
साथी बने गा?"

"तो तू कहना क्ा चाहती है?" सोनम दीदी के चे हरे पर सशं क भाि उभरे ।
"आपको मेरी बातें यकीनन बु री अथिा ग़लत लगेंगी दीदी।" नीलम ने उसी गंभीरता
से कहा___"मगर ये सच है कक मेरे मन में कभी कभी ये खयाल आता है कक काश
राज मेरा भाई न होता तो मैं उसे ही अपना जीिन साथी बना ले ती। राज को दे खते ही
उस पर कनसार हो जाने का कदल करता है दीदी। उसे दे ख कर मैं भू ल जाती हूॅ कक
िो मेरा भाई है , और किर जब खयाल आता है कक िो मेरा भाई है तो जाने क्ों इस
बात से कदल में ददग होने लगता है? अं दर से एक टीस उभरती है और किर समूचा
कजस्म काॅप कर रह जाता है।"

"तू न कुछ भी बोलती रहती है।" सोनम दीदी ने बु रा सा मु ह बनाया। ये अलग बात है
कक नीलम की इन बातों से उसके अं दर एक अजीब से एहसास की झुरझरी सी दौड
गई थी, बोली___"चल अब ज्यादा इस बारे में मत सोच। राज आता ही होगा अभी।
तु झे यहाॅ से ले कर भी तो चलना है न।"

"आप मेरी बातों को ऩिरअं दा़ि कर रही हैं न?" नीलम ने सोनम दीदी के चे हरे को
ग़ौर से दे खते हुए कहा___"ऐसा मत कीकजए न दीदी। एक आप ही हैं कजनसे मैं अपने
कदल की हर बात कर सकती हूॅ। इस कलए मे री बात सु न लीकजए और उस पर अपनी
राय भी दीकजए कक मैं जो कुछ कह रही हूॅ िो सही है या ग़लत?"

"क्ा राय दू ॅ मैं?" सोनम दीदी ने नीलम की ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"तू ने तो

970
सब कुछ कह कर ये ़िाकहर कर ही कदया है कक ते रे मन में राज के प्रकत अब क्ा है?
अब अगर मैं इस पर ये कहूॅ कक ये सब सोचना भी ग़लत है तो क्ा िक़ग पडता है
उससे ? इतना तो मैं समझ ही सकती हूॅ कक अगर राज के प्रकत ते रे मन में ऐसे
खयाल आ चु के हैं तो इसका साि मतलब है कक कही ं न कही ं ते रे कदल में राज के
प्रकत भाई िाली िीकलं ग के अलािा भी एक अलग िीकलं ग्स आ चु की है। अतः ऐसी
िीकलं ग्स जब एक बार ककसी के कदल में आ जाती हैं तो किर उसकी सोच भी बदल
जाती है। िो उसे ही सही मानता है किर चाहे भले ही िो सबसे ज्यादा अनै कतक
अथिा ग़लत हो।"

"मुझे पता है दीदी।" नीलम की ऑखें एकाएक ही सजल हो उठी ं, बोली___"राज के


प्रकत ऐसी िीकलं ग्स रखना ग़लत बात है । मगर ये भी सच है कक अब ये िीकलं ग्स मेरे
कदल से आसानी से जाएगी नही ं। इस कलए मैने अब एक िैंसला ककया है।"

"ि..िैंसला???" सोनम दीदी चौंकी___"कैसा िैंसला?"


"यही कक मैं राज के क़रीब नही ं रहूॅगी।" नीलम ने दृढता से कहा___"बल्कि उससे
दू र चली जाऊगी। इस लडाई के बाद ये सच है कक मेरे माॅ बाप ि भाई या तो
क़िन्दगी भर जेल की सलाखों के पीछे कैद हो कर रह जाएॅगे या किर ऐसे भी
हालात बन सकते हैं कक िो सब जान से मारे जाएॅ। तब तो हम दोनो बहनें अनाथ ही
हो जाएॅगी। हलाॅकक इसके बाद भी मेरे अपनों में गौरी चाची, अभय चाचा और
करुर्ा चाची आकद सब भी होंगे मगर इनके पास रहने से अर्क्र मेरा सामना राज से
होता ही रहे गा। उस सू रत में मेरे मन में ना चाहते हुए भी उसके प्रकत आकशग र् बढे गा
कजसे शायद मैं रोंक भी नही ं पाऊगी। इस कलए बे हतर है कक इस सबके बाद मैं
आपके साथ मुम्बई में मौसी के पास ही रहूॅ। राज से दू र रहने से कम से कम ये तो
होगा कक धीरे धीरे मैं अपने कदल से उसे कनकाल पाने में सिल हो सकती हूॅ।"

"इसका मतलब।" सोनम दीदी ने कहा___"ये सच है कक तू अपने ही भाई राज को


अब एक प्रे मी की दृकष्ट से दे खने लगी है और उसके प्रकत ते रे अं दर चाहत की भािना
प्रकतपल बढती ही जा रही है?"

"शायद यही सच है दीदी।" नीलम ने सहसा आहत भाि से कहा___"राज ने मेरी


इज्ज़ित की रक्षा कजस तरह से की थी उसके बाद से ही मु झे ये महसू स हुआ था कक
राज के बारे में अब तक जो कुछ मैं अपने माॅम डै ड के द्वारा पढाए गए पाठ के तहत
सोचती थी िो सब कसरे से ही ग़लत था। मेरे अं दर इस बात के एहसास होने के साथ
ही राज के प्रकत कोमल भािनाओं का उदय हुआ था। उसके बाद मु झे नही ं पता कक मैं
उसके बारे में सोचते सोचते कब उसे चाहने लगी? जब उसने अचानक ही काॅले ज
आना बं द कर कदया था तब मैं यही सोच कर रोती थी कक िो आज के समय में मु झसे

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ककतनी नफ़रत करने लगा है कक अब उसने मे री िजह से काॅले ज आना भी बं द कर
कदया। ये सब सोच सोच कर मु झे अपने आप से घृर्ा होने लगी थी कक मैने अपने उस
भाई का बचपन से कदल दु खाया कजसका कभी कोई दोष था ही नही ं। बल्कि उसके
कदल में तो हम दोनों बहनों के कलए िै सा ही प्यार ि सम्मान था जैसा उसके कदल में
गुकडया(कनधी) के कलए है। उसके बाद जब िो दु बारा मेरी इज्ज़ित की रक्षा करते हुए
मुझे टर े न पर कमला तो एक बार किर से मेरा अं तमगन ये सोच कर ़िार ़िार रो पडा कक
उसने एक बार किर से मेरी इज्ज़ित की रक्षा की। यानी उसके कदल में आज भी हम
दोनो बहनों के कलए िही प्यार ि सम्मान है और चाहता है कक हम दोनों को कभी
कोई ऑच तक न आए। बस उसके बाद तो जै से सब कुछ बदल गया दीदी। जब मैने
ये महसू स ककया कक िो मुझसे झगडा करते हुए किर से अपने बचपन को जीना
चाहता है तो मैंने भी उसकी चाहत में उसका पू रा साथ कदया। मु झे भी उसे खु श
दे खने में अच्छा लगने लगा। इन्ही ं सब बातों के बीच ही शायद ऐसा हुआ है कक मेरे
कदल में उसकी अच्छाई और खू कबयों को दे ख कर ऐसी चाहत जागी है। आज जब
उसने मुझे अपनी बाहों में समेटे तथा मु झे उस हालत में दे ख कर पागल हुआ जा रहा
था तो मैं उस हालत में भी ये सोच रही थी कक ये इतना अच्छा कैसे हो सकता है?
इससे कोई नफ़रत कैसे कर सकता है? बस उसके बाद मैंने पहली बार अपने कदल
की आिा़ि को सु ना और किर उसकी हो गई। मु झे पता है कक ये ग़लत है। अगर राज
को मेरे कदल की बात पता चल गई तो सं भि है कक िो मु झे ग़लत समझ बै ठे। िो
सोचे गा कक जैसे माॅ बाप थे िै सी ही उसकी औलाद भी है। जो अपने ही सगे ररश्ों
के प्रकत ऐसी सोच रखती है।"

"अगर यही सब बात है।" सोनम दीदी ने कहा___"और अगर ये भी कक तु म उसकी


हो गई हो तो किर ये अचानक उससे दू र हो जाने का िैंसला क्ों ककया तु मने ? क्ा
कसिग इस कलए कक राज तु झे ग़लत समझेगा?"

"ये िजह तो है ही दीदी।" नीलम ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा___"ककन्तु एक दू सरी
महत्वपू र्ग िजह और भी है।"
"दू सरी ऐसी कौन सी िजह हो सकती है?" सोनम दीदी के चे हरे पर सोचों के भाि
नु मायां हुए।

"आपने शायद ग़ौर नही ं ककया दीदी।" नीलम ने िीकी सी मु स्कान के साथ
कहा___"ककन्तु मैने बहुत अच्छे से ग़ौर ककया है।"
"क्ा मतलब??" सोनम दीदी चकरा सी गईं।
"आप और मैं।" नीलम ने कहा___"कजस ररतू दीदी को कहटलर समझते हैं, उन्ही ं
कहटलर दीदी की ऑखों में आज मु झे उस िक्त थोडी दे र के कलए कुछ खास ऩिर
आया जब आपने उनसे कहा था कक____'कभी खु द को बदल कर भी दे ख। सं भि है

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कक कुछ नया ऩिर आये।' उस िक्त उनकी ऑखों में पल भर के कलए एक टीस सी
ऩिर आई थी किर उन्होंने जल्दी ही खु द को सम्हाल कलया था। कहते हैं कक चोंट के
ददग का एहसास िही कर सकता है कजसे कभी िै सी ह चोंट लगी हो। उस िक्त
उनकी ऑखों में जो भाि थे उन भािों ने मु झे बता कदया कक िो दरअसल क्ा है?"

"ये तू क्ा अनाप शनाप बके जा रही है नील?" सोनम दीदी ने हैरत से कहा___"कही ं
तू ये तो नही ं कहना चाहती है कक ररतू भी राज से प्यार करती है? ओह माई गाड, ऐसा
कैसे हो सकता है? नही ं नही ं...ररतू ऐसा नही ं कर सकती नील। िो एक सु लझी हुई
तथा समझदार लडकी है। उसे पता है कक ऐसा सोचना भी पाप होता है।"

"प्यार तो हर मायने में पकित्र ही होता है दीदी।" नीलम ने िीकी सी मु स्कान के साथ
कहा___"किर चाहे िो ककसी से भी हो गया हो। दू सरी बात, जब ककसी को ककसी से
प्यार हो जाता है न तब सबसे पहले उस इं सान का कििे क शू न्य हो जाता है। प्यार में
पडा हुआ इं सान उसी को सही मानता है कजसे आम इं सान अनै कतक ि पाप की सं ज्ञा
दे ता है। मैने ररतू दीदी की ऑखों में उस पकित्र प्यार को दे खा है दीदी। मु झे नही ं पता
कक ये सब कैसे सं भि हो सकता है? मगर ऑखें कभी ग़लत नही ं होती हैं। खै र मु झे
इससे कोई प्राब्ले म नही ं है बल्कि मैं खु श हूॅ कक मेरी जो दीदी लडकों की ़िात से
नफ़रत करती थी तथा प्यार व्यार को बकिास कहती थी ं आज िो खु द राज की
चाहत में कगरफ्तार हैं। यकीनन उनकी सोच बदल गई होगी और अब उनके सीने में
एक ऐसा कदल धडकता होगा जो बहुत ही ना़िुक हो चु का होगा तथा कजसमें ककसी के
कलए बे पनाह प्यार का सागर कहलोरें ले ता होगा। अब जबकक मुझे इस बात का
एहसास हो ही चु का है तो क्ों मैं उनकी राह का रोडा बनू ॅ दीदी? मेरी दीदी के कदल
में जीिन में पहली बार ककसी के कलए ऐसी भािनाओं का उदय हुआ है। मैने दे खा है
कक िो सबसे हट कर रहती थी। उनका स्वभाि बहुत शख्त होता था। प्यार की भाषा
से बात करना जैसे उन्हें आता ही नही ं था। मैं और कशिा उनसे बहुत डरते थे । यहाॅ
तक कक डै ड भी उनसे ज्यादा हसी म़िाक नही ं करते थे । अतः अपनी उस दीदी को
खू बसू रत प्यार के एहसास के साथ इस खू बसू रती से बदलता दे ख कर मैं कैसे उनकी
खु कशयाॅ छीनने का काम कर दू ॅगी? नही ं दीदी, मैं अपनी दीदी की उम्मीदों को
चकनाचू र नही ं कर सकती। उनकी पाक़ भािनाओं को नही ं कुचल सकती मैं। िरना
िो यकीनन इस सबसे टू ट कर कबखर जाएॅगी। इस कलए मैने िैंसला कर कलया है
कक मैं इस सबके बाद िापस आपके साथ मुम्बई चली जाऊगी।"

"तू इतनी गहरी बातें कर सकती है यकीन नही ं होता नील।" सोनम दीदी की आिा़ि
भराग गई___"ते रा इतना बडा कदल होगा मैने सोचा भी नही ं था। अपनी दीदी के कलए
इतना बडा त्याग करना कोई मामू ली बात नही ं है। इसके पहले मैं ते री बातों से
सचमुच तु झे ग़लत समझ बै ठी थी ककन्तु आकखर की ते री इस बात ने मुझे ये एहसास

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करा कदया कक ये प्यार भले ही अपने भाई से हो गया हो मगर इसमें कोई गंदगी तथा
कोई पाप नही ं है।"

अभी सोनम दीदी ने ये कहा ही था कक तभी कमरे के दरिाजे पर दस्तक हुई और


किर मैं आकदत्य के साथ अं दर आ गया। आते ही मैने अपने अं दा़ि में सबसे पहले
नीलम को छें डा कजस पर िह बस मु स्कुरा कर रह गई। उसके बाद मैंने उसे कहा कक
डाॅक्टर ने कहा है कक हम तु म्हें ले जा सकते हैं। अतः अब चलो यहाॅ से । खै र थोडी
ही दे र में मैं नीलम को कलए हाल्किटल से बाहर आया और कार की कपछली सीट पर
उसे िै से ही ले कर बै ठ गया जैसे आते समय ले कर बै ठा था। सोनम दीदी भी मेरे
दू सरी साइड बै ठ गईं। आकदत्य कार की डर ाइकिं ग सीट पर बै ठा ही था कक ररतू दीदी
भी आ गईं। ररतू दीदी के बै ठते ही आकदत्य ने कार को आगे बढा कदया।

लगभग पं द्रह कमनट में ही हम रे िती में शे खर के घर के सामने पहुॅच गए। हम सब


कार से बाहर आये। नीलम ने कहा कक िो अब ठीक है और खु द अपने पै रों पर चल
सकती है। अतः मैने उसे सहारा दे कर कार से बाहर ले आया। उसके बाद हम सब
घर के अं दर आ गए। अं दर डर ाइं गरूम में नै ना बु आ तथा कबं कदया काकी थी। नै ना
बु आ ने जैसे ही हम सबको दे खा िो भाग कर आईं और नीलम को अपने गले से
लगाया ही था कक नीलम के मुख से कराह कनकल गई। दरअसल नै ना बु आ ने नीलम
की पीठ के उस कहस्से पर अपनी बाॅह का कसाि कर कदया था गलती से , जहाॅ पर
उसे गोली लगी थी।

नीलम की कराह सु न कर नै ना बु आ जल्दी से नीलम से अलग हुईं और किर उससे


माफ़ी माॅगने लगी ं। उनकी ऑखों में ढे र सारे ऑसू थे । कदाकचत केशि जी यहाॅ
आए थे और उन्होंने बु आ को सब कुछ बता कदया था। यही िजह थी कक नै ना बु आ
नीलम को दे ख कर भागते हुए आईं थी। खै र, उसके बाद मैं सोनम के साथ नीलम
को सहारा दे ते हुए उसे उसके रूम में ले आया और बे ड पर करिट के बल आकहस्ता
से ले टा कदया। मेरे पीछे पीछे ही बाॅकी सब आ गए थे । कबं कदया काकी की भी ऑखों
में ऑसू थे । ररतू दीदी थोडी पीछे खडी हुई थी ं, उनकी ऑखें हिा सु खग ऩिर आ
रही थी ं। ऐसा लगता था जैसे िो रोई हों। मैं उन्हें दे ख कर चौंका और ऑखों के इशारे
से ही पू छा कक क्ा हुआ आपको? जिाब में उन्होंने कसर कहला कर बताया कक कुछ
नही ं बस ऐसे ही।

इधर नै ना बु आ नीलम के पास ही बे ड पर बै ठ गईं थी और उससे थोडी बहुत बातें


कर रही थी। साथ ही अपने भाई को बु रा भला भी कहे जा रही थी। मैं कुछ दे र तक
रूम में रहा और किर आकदत्य के साथ ही बाहर आ गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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उधर मंत्री कदिाकर चौधरी के आिास पर।
अजय कसं ह इस िक्त उसके पास ही सामने िाले सोिे पर बै ठा था। अभी कुछ ही दे र
पहले चौधरी उसे अपने सोसग से तथा अपने िकील को ले कर ़िमानत पर छु डा कर
लाया था। गुनगुन में नया नया आया एसीपी उसे कािी शख्त कमजा़ि लगा था।
ककन्तु चौधरी का तो ये इलाका ही था अतः िो खु द भी ककसी से डरने िाला नही ं था।
कहने का मतलब ये कक बडी आसानी से िो अजय कसं ह को छु डा लाया था। इस िक्त
अजय कसं ह अपना मु ह लटकाए बै ठा हुआ था। डर ाइं ग रूम में इस िक्त िो दोनो ही
थे ।

"इतनी शाकतर कदमाग़ िाली बीिी के रहते हुए भी तु म इतनी बु री तरह से मात खा
गए ठाकुर।" सहसा चौधरी ने अजय कसं ह की तरि दे खते हुए कहा___"हैरत की बात
है। अच्छा होता कक तु म हमें इस मामले में पहले से बताए होते तो हम इसमें ़िरूर
तु म्हारी मदद करते । हमारे दखल पर यहाॅ की पु कलस में इतनी कहम्मत ही नही ं होती
कक िहाॅ जा कर तु म सबको कगरफ्तार कर ले ती। हम बडी आसानी से तु म्हारे उस
भतीजे को और तु म्हारी दोनो बे कटयों को पकड ले ते। उसके बाद तो उनका खे ल खत्म
ही हो जाना था।"

"डबल बै कअप का प्लान भी अपनी जगह कम़िोर नही ं था चौधरी साहब।" अजय
कसं ह ने गंभीरता से कहा___"हमने उन सबको लगभग पकड ही कलया था। मगर
हमारी उम्मीद से परे िहाॅ भारी सं ख्या में पु कलस िोसग आ गई और सबकुछ हमारे
हाथ से कनकल गया।"

"इसमें यकीनन तु म्हारी ग़लती है ठाकुर।" चौधरी ने पु ऱिोर लहजे में कहा___"तु म्हें
और तु म्हारी पत्नी को इस बात पर भी ग़ौर करना चाकहए था कक तु म्हारी बे टी, तु म्हारी
बे टी होने के साथ साथ एक पु कलस िाली भी है जो ऐसे हालात पर अपने कडपाटग मेंट से
पु कलस िोसग को भी बु लिा सकती है। उस सू रत में तु म्हें हमसे सं पकग करना चाकहए
था। हम इस समस्या का तु रंत समाधान करते । हम मं कत्रयों के पास ऐसे हालात में
पु कलस िोसग को मनचाही जगह पर ले जाने का बहुत आसान तरीका आता है। कहने
का मतलब ये कक हम आनन िानन में ककसी जगह का दौरा करते जहाॅ पर भारी
मात्रा में हम पु कलस को अपने पास बु ला ले ते। पु कलस कडपाटग मेंट को इतना जल्दी
इतनी पु कलस िोसग िहाॅ पर भे जने के कलए सोचना पड जाता।"

"मैं मानता हूॅ चौधरी साहब।" अजय कसं ह ने ऩिरें चु राते हुए कहा___"कक मैने
आपको इस बारे में न बता कर भारी ग़लती की है। िरना आज ऐसा नही ं होता। मगर
इसमें भी मेरी आपके कलए एक पाक़ भािना ही थी। मैं चाहता था कक ये सब होने के

975
बाद मैं आपके सामने आपके उन दु श्मनों को लाकर आपको सप्रागइज दू ॅगा और
यही मेरी दोस्ती ि िफ़ादारी का प्रमार् भी होता। मगर अिसोस ऐसा नही ं कर पाया
मैं। इसके कलए आप मुझे माफ़ कर दीकजए मं त्री जी। आपने मु झे अपना समझ कर
जेल से भी छु डा कलया। इसके कलए मैं जीिन भर आपका आभारी और ऋर्ी
रहूॅगा।"

"कोई बात नही ं ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जीिन में हार जीत का खे ल तो चलता ही
रहता है। इस कलए इसमें ज्यादा कचं ता करने की कोई बात नही ं है । इस सबके बाद भी
हम उन लोगों को बहुत जल्द पकड लें गे। क्ोंकक हमने इस सबके कलए एक जासू स
को लगाया हुआ है। आज उसी ने बताया था कक माधोपु र में क्ा हो रहा था? उस
समय के हालात के अनु सार हमें लगा कक तु म यकीनन उनको पकड लोगे और किर
उन्हें हमारे सामने ले आओगे। इसी कलए हमने भी कोई ऐक्शन नही ं कलया। बाद में
उस जासू स ने बताया कक िहाॅ पर भारी मात्रा में पु कलस िोसग आई और तु म सबको
पकड कर ले भी गई तो हमने सोचा चलो कोई बात नही ं तु म्हें तो हम जेल से छु डा ही
लें गे। ककन्तु हमने जासू स को ये भी कहा कक ठाकुर की बे टी को गोली लगी है तो िो
लोग उसका इलाज कराने हाल्किटल ़िरूर जाएॅगे। उसके बाद िो उस जगह
जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना कठकाना बनाया हुआ है। बस उसके कठकाने
का पता चलते ही हम उसे उसके ही कठकाने पर घेर लें गे। हम चाहते तो उन लोगों को
हाल्किटल में भी घेर सकते थे ककन्तु हमने ऐसा नही ं ककया। क्ोंकक हमें सबसे पहले
अपने बच्चों को तलाशना था और ये तभी हो सकता था जब िो लोग हाल्किटल के
बाद अपने कठकाने पर जाते । हमने उस जासू स को इसी का पता लगाने के कलए लगा
रखा है। िो हमें बहुत जल्द सू कचत करे गा कक उन लोगों का कठकाना कहाॅ है । उसके
बाद हम अपने आदमी ले कर जाएॅगे और उसके कठकाने पर धािा बोल दें गे।"

"ये तो बहुत ही अच्छा ककया है आपने ।" अजय कसं ह के चे हरे पर एकाएक ही रौनक
आ गई___"इसका मतलब ये हुआ कक हम पू री तरह से हारे नही ं हैं। बल्कि बा़िी
अभी भी हमारे हाॅथ में हैं।"

"कबलकुल।" चौधरी ने मु स्कुरा कर कहा___"बस जासू स के िोन आने की दे र है।


जैसे ही उसका िोन आया और उसने हमें बताया िै से ही हम यहाॅ से चल पडें गे।"
"िाह चौधरी साहब।" अजय कसं ह के चे हरे पर खु शी की चमक आ गई___"मानना
पडे गा आपको। आपने भी ऐसा कारनामा कर रखा है कजसके बारे में िो लोग सोच
भी नही ं सकते हैं।"

अजय कसं ह की बात पर चौधरी बस मु स्कुरा कर रह गया। कुछ दे र उन दोनो के बीच


और भी कुछ बातें हुईं उसके बाद अजय कसं ह चौधरी से इजा़ित ले कर उसके

976
आिास से अपने गाॅि हल्दीपु र के कलए कनकल कलया। चौधरी ने उसे जाने के कलए
अपनी एक जीप दे दी थी।
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अपडे ट........《 59 》

अब तक,,,,,,,,
"ये तो बहुत ही अच्छा ककया है आपने ।" अजय कसं ह के चे हरे पर एकाएक ही रौनक
आ गई___"इसका मतलब ये हुआ कक हम पू री तरह से हारे नही ं हैं। बल्कि बा़िी
अभी भी हमारे हाॅथ में हैं।"

"कबलकुल।" चौधरी ने मु स्कुरा कर कहा___"बस जासू स के िोन आने की दे र है।


जैसे ही उसका िोन आया और उसने हमें बताया िै से ही हम यहाॅ से चल पडें गे।"
"िाह चौधरी साहब।" अजय कसं ह के चे हरे पर खु शी की चमक आ गई___"मानना
पडे गा आपको। आपने भी ऐसा कारनामा कर रखा है कजसके बारे में िो लोग सोच
भी नही ं सकते हैं।"

अजय कसं ह की बात पर चौधरी बस मु स्कुरा कर रह गया। कुछ दे र उन दोनो के बीच


और भी कुछ बातें हुईं उसके बाद अजय कसं ह चौधरी से इजा़ित ले कर उसके
आिास से अपने गाॅि हल्दीपु र के कलए कनकल कलया। चौधरी ने उसे जाने के कलए
अपनी एक जीप दे दी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

आकदत्य के साथ जब मैं नीचे आया तो दे खा डर ाइं ग रूम में केशि जी बै ठे थे । हम


दोनो को दे खते ही उनके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसके बाद उन्होंने मुझसे
नीलम के बारे में पू छा तथा ये भी कहा कक िो खु द उसे दे खना चाहते हैं । अतः मैं उन्हें
अपने साथ ऊपर नीलम के कमरे में ले गया। कमरे में पहुॅच कर उन्होंने सबके
सामने ही नीलम को दे खा और किर बडे प्यार से उससे उसकी तबीयत का पू छा।
उनके पू छने पर नीलम ने भी बडी शालीनता से अपनी तबीयत के बारे में उन्हें बता
कदया। उसके बाद िो कमरे से बाहर आ गए और मेरे साथ ही नीचे आ गए। नीचे

977
आकर मैं आकदत्य के साथ बै ठा ही था कक ररतू दीदी भी आ गईं।

"उस जासू स का क्ा हुआ मौसा जी?" नीचे आते ही ररतू दीदी ने केशि जी की तरि
दे खते हुए भािहीन स्वर में पू छा___"क्ा आप उसे पकडने में कामयाब हुए?"
"हमारी ककस्मत बहुत अच्छी थी ररतू बे टा।" केशि जी ने कहा___"कजसके तहत िो
हमारे हाॅथ लग गया। मेरा िो आदमी कजसने हमें उसके बारे में िोन पर बताया था
उसका नाम कनरं जन िमाग है। उसने बडी बहादु री का काम ककया है। उसने मुझे
बताया कक अगर उस जासू स की बाइक के अगले पकहये की हिा न कनकली होती तो
िो हमारे हाथ न लगता।"

"ये आप क्ा कह रहे हैं मौसा जी?" ररतू दीदी के साथ साथ हम सब भी हैरान हो
गए, किर दीदी ने कहा___"उस जासू स की बाइक की िजह से िो हमारे हाॅथ लगा
है?"

ररतू की इस बात पर केशि जी ने कनरं जन और उस जासू स की सारी राम कहानी


बताई। सारी बात सु नने के बाद हम तीनों ही चककत रह गए थे । कुछ दे र तक कोई
कुछ न बोला।

"ये तो बडे ही आश्चयग की बात है मौसा जी।" मै ने सोचने िाले भाि से कहा___"उस
जासू स की बाइक के अगले पकहए में हिा नही ं थी इस कलए िो उतने समय तक िहाॅ
रुका रहा। आपका िो आदमी भी िाकई में बडा काम का साकबत हुआ। उसने उस
जासू स को पकडने में अपनी जान तक दाॅि पर लगा दी। िरना अगर िो जासू स
हाॅथ से कनकल जाता तो यकीनन हमारे कलए बहुत बडा सं कट हो सकता था।"

"बे शक।" केशि जी ने कहा___"अगर उसके बारे में हमें पता न चलता तो िो हमारा
पीछा करता ही रहता और किर जब उसे तु म लोगों के इस कठकाने का पता चल
जाता तो िह तु रंत ही मं त्री को सब कुछ बता दे ता। उसके बाद मंत्री क्ा करता
इसका तु म बखू बी अं दा़िा लगा सकते हो।"

"अब इस मं त्री का खे ल खत्म करना ही पडे गा।" सहसा ररतू दीदी ने कठोर भाि से
कहा___"मेरी चे तािनी के बािजूद इसने इतना बडा दु स्साहस ककया और हमारे पीछे
ककसी जासू स को भी लगाया। अब तो इसका ककस्सा खत्म करना ही पडे गा। बहुत हो
गया अब।"

"मेरा भी यही खयाल है दीदी।" मैने कहा___"कम से कम इससे इसकी तरि से तो


हम बे किक्र हो जाएॅगे और किर खु ल कर तथा बे कझझक बडे पापा से मुकाबला कर
सकेंगे।"

978
"सही कहा तू ने।" ररतू दीदी ने कहा___"ककन्तु उससे पहले हमें उस जासू स से कमलना
भी होगा। उसे हम ऐसे ही नही ं छोंड सकते हैं । उसका भी कोई न कोई इं तजाम
करना पडे गा हमें।"

"मेरे खयाल से उसे हम तब तक अपने पास रखते हैं जब तक कक मंत्री का ककस्सा


खत्म नही ं हो जाता।" सहसा आकदत्य कह उठा___"उसके बाद हम उसे छोंड सकते
हैं। जब मं त्री ही नही ं रहेगा तो िो ककसके कलए हमारे पीछे लग कर जासू सी करे गा?"

"आदी की बात एकदम करे क्ट है दीदी।" मैने कहा__"ऐसा ही करना चाकहए हमें।"
"आपका क्ा कहना है मौसा जी?" ररतू दीदी ने सहसा केशि की तरि दे खते हुए
कहा___"ये तो सच है कक हम उस जासू स को मौजूदा हालात में छोंड नही ं सकते हैं
और ना ही उसे जान से मारने का सोच सकते हैं। क्ोंकक िो कनदोष है। उसने िही
ककया है जो एक जासू स को करना चाकहए था। ये उसका पे शा ही है, अतः आप भी
अपनी राय दीकजए कक क्ा ककया जाए?"

"दे खो मैं तो एक ही बात जानता हूॅ बे टा।" केशि जी ने कहा___"कक ऐसे हर उस


आदमी को खत्म कर दो कजससे हमें ककसी प्रकार के खतरे का अं देशा हो। ककन्तु
मामला चू ॅकक एक जासू स का है इस कलए उसे खत्म करना ग़लत होगा। अतः मैं भी
आकदत्य की बात से सहमत हूॅ। यानी कक उसे तब तक यहाॅ कैद करके रखा जाय
जब तक कक मंत्री का कल्यार् नही ं हो जाता। मगर,

"मगर क्ा मौसा जी?" ररतू दीदी के माथे पर कशकन उभरी।


"मगर मु झे एक बात समझ नही ं आई।" केशि जी ने सोचने िाले अं दा़ि में
कहा___"और िो ये कक जब मंत्री के ल्कखलाफ़ तु म्हारे पास ऐसा डायनामाइट जैसा
सबू त है तो उसे अब तक छोंड क्ों रखा था तु मने ? जबकक होना तो यही चाकहए था
कक उसे तु रंत ही कानू न की चपे ट में ले कलया जाता।"

"आपका सोचना कबलकुल सही है मौसा जी।" ररतू दीदी ने कहा___"ककन्तु मंत्री को
अब तक छोंडे रखने के दो कारर् थे । पहला ये कक उसे एहसास कराना था कक जब
उसके खु द के बच्चों के साथ बहुत बु रा होता है तब कैसा महसू स होता है? दू सरा
कारर् ये कक उसके सं बंध ऐसे ऐसे लोगों से हैं कजनकी पू र्ग जानकारी हमारे पास
अभी भी नही ं है। ये तो लगभग सब जानते हैं कक िो कैसे कैसे ग़ैर कानू नी धं धा करता
है ककन्तु पु कलस के पास उसके ल्कखलाफ़ ऐसे कोई सबू त नही ं हैं कजसकी िजह से उसे
कगरफ्तार ककया जा सके। मेरे पास भी उन िीकडयोज के अलािा और कुछ नही ं है। मैं
चाहती थी कक ये िाला मामला कनपट जाने के बाद मंत्री के ल्कखलाि मौजूद उन सबू तों

979
का पता करूॅगी। यही िजह थी कक मंत्री के मैटर को इतना लम्बा खी ंचना पडा।
ककन्तु अब ऐसा लगता है कक मंत्री को सबक कसखाना ही पडे गा। उसके सामने खु ल
कर जाना ही पडे गा और किर उसकी ऑखों में ऑखें डाल कर उसे बताना पडे गा कक
िो हमारा कुछ नही ं कर सकता है जबकक हम चाहें तो उसका कुछ भी कर सकते
हैं।"

"ओह आई सी।" केशि जी ने कहा___"तो ये बात है। ठीक है किर, जैसा तु म्हें बे हतर
लगे िै सा करो। ककन्तु हाॅ उससे पहले चलो उस जासू स से भी तो कमल लो तु म लोग।
सं भि है कक उससे भी कोई महत्वपू र्ग जानकारी कमल जाए।"

केशि जी की इस बात से हम सब सोिों से उठ कर खडे हो गए और किर केशि जी


के साथ ही बाहर की तरि चले गए। बाहर आकर हम सब केशि जी की कार में बै ठ
गए। आकदत्य केशि जी के बगल में आगे की सीट पर बै ठ गया था जबकक मैं और ररतू
दीदी कपछली सीट पर बै ठ गए थे । हम सबके बै ठते ही केशि जी ने कार को आगे
बढा कदया।

लगभग पाॅच कमनट बाद ही केशि जी ने कार को एक मकान के पास ले जाकर


रोंका। कार के रुकते ही हम सब कार से बाहर आ गए। हम सबकी ऩिर उस
मकान पर पडी कजसके सामने के पोचग पर एक लकडी का तखत रखा हुआ था और
उसमे चार साॅिले रं ग के आदमी बै ठ कर ताश खे ल रहे थे । कार की आिा़ि से ही
उनका ध्यान हमारी तरि गया था। कजससे उन चारों ने ताश खे लना बं द करके तखत
से उतर गए थे ।

हम तीनों केशि जी के पीछे पीछे मकान के पोचग में आ गए। पोचग में रुक कर केशि
जी ने अपने एक आदमी से कहा सब ठीक है न? जिाब में आदमी ने बडे अदब से
हाॅ में कसर कहलाया। उस आदमी की हाॅ दे ख कर केशि जी मकान के अं दर की
तरि बढ चले । उनके साथ हम तीनों भी बढ चले थे ।

ये मकान यूॅ तो पक्का ही था ककन्तु इसकी हालत दे ख कर तथा केशि जी की छकि


दे ख कर यही लगता था कक इस मकान पर केशि जी अपने आदकमयों को रखते थे ।
या किर उनके रहने की जगह ही यही थी। हलाॅकक सोचने िाली बात तो ये भी थी
कक केशि जी का कैरे क्टर ऐसा क्ों था कक उनके अं डर में ऐसे ऐसे लोग थे और
उनका हर कहा भी मानते थे ? इस बारे में हम सबके कदमाग़ में सिाल तो उभरा था
ककन्तु केशि जी से इस बारे में पू छने का या तो समय ही नही ं कमला था हमें या किर
हम उनकी कनजी क़िंदगी में कोई हस्ताक्षे प ही नही ं करना चाहते थे । हमारे कलए यही
बहुत था कक िो हमारी मदद कर रहे थे ।

980
मकान के अं दर भी कुछ लोग ऩिर आए हमें जो कक अलग अलग जगहों पर इस
िक्त खडे कदख रहे थे । बाहर से अं दर आते ही सबसे पहले एक छोटा सा हाल था
उसके बाद दोनो तरि तीन तीन कमरे बने हुए थे । सामने की तरि ऊपर के फ्लोर
में जाने के कलए चौडी सीढी थी। उस सीढी के अगल बगल भी एक एक कमरा था।
केशि जी के साथ हम तीनो सीढी के दाकहने साइड िाले कमरे की तरि बढ गए।

केशि जी के कहने पर ही एक आदमी ने उस कमरे का ताला खोला और किर उसके


बाद दरिाजा भी खोला। ये दे ख कर हमें समझते दे र न लगी कक केशि जी इस
मामले में कािी होकशयारी से काम ले रहे थे । खै र कमरे के अं दर हम सब दाल्कखल
हुए तो बाॅए साइड ही दीिार से सट कर खडे उस जासू स पर हमारी ऩिर पडी।
उसके दोनो हाॅथ ऊपर की तरि एक साथ मोटी रस्सी से बधे थे । इतना ही नही ं
उसके मुख पर एक टे प भी कचपका हुआ था ताकक िह चीखे कचल्लाए न। उसके दोनो
हाॅथ तो ऊपर की तरि रस्सी से बधे हुए थे ही साथ ही उसके दोनो पै र भी अलग
अलग कदशा में िैले हुए रस्सी से बधे थे ।

ये कमरा अं दर से एकदम खाली था। जासू स की ल्कथथत दे ख कर ये समझना ़िरा भी


मुल्किल नही ं था कक केशि जी ने उसका तगडा इं तजाम ककया था। उसे इस हालत में
दे ख कर मैं केशि जी की समझदारी का कायल हो गया।

"आपने तो मे हमान का बहुत अच्छे तरीके से स्वागत कर रखा है मौसा जी।" मैंने
जासू स की तरि एक ऩिर डालने के बाद केशि जी से कहा___"खै र कोई बात नही ं।
इनके मु ह से ़िरा ये टे प तो हटाइए। इन महानु भाि की मनमोहक आिा़ि सु नने का
बहुत कदल कर रहा है।"

मेरी बात पर केशि जी मु स्कुराए और किर रार्े के मुख से टे प कनकाल कदया। टे प के


हटते ही रार्े गहरी गहरी साॅसें ले ने लगा। यद्यकप टे प तो कसिग उसके मुख पर ही
कचपकाया गया था, साॅस ले ने के कलए उसकी नाॅक तो खु ली ही थी।

"हाॅ तो कमस्टर कडटे ल्कक्टि।" मैने उस जासू स के कबलकुल पास आते हुए
कहा___"आप इज्ज़ित से खु द ही सब कुछ बताएॅगे या किर मु झे आपके मुख से कुछ
भी उगलिाने के कलए कोई दू सरा हथकंडा इस्ते माल करना पडे गा? हलाॅकक मुझे
उम्मीद है कक आप खु द ही सब कुछ बता दें गे। क्ोंकक आप जासू स हैं और आपको
पता है कक ऐसी पररल्कथथकतयों में क्ा होता है? खै र, मैं आपकी जानकारी के कलए बता
दू ॅ कक कजस मंत्री के कलए आप जासू सी कर रहे थे िो इस प्रदे श का कनहायत ही
घकटया ब्यल्कक्त है। ऐसा कोई कुकमग तथा ऐसा कोई जु मग नही ं है जो िो करता न हो।

981
यहाॅ तक कक दू सरों की बहू बे कटयों के साथ ग़लत तो करता ही है साथ ही उनका
सौदा भी करता है। मैं ये सब बातें आपसे इस कलए बता रहा हूॅ ताकक आपको भी
पता होना चाकहए कक आप कजसके कलए हमारा बे डा गकग करने चले हैं िो कैसा इं सान
है? अपने ़िमीर को जगाइये जासू स महोदय। जीिन में रुपया पै सा कमाने के कलए
और भी कई अच्छे रास्ते हैं। जासू स का मतलब ये नही ं होता कक आप ककसी के कलए
भी काम करना शु रू कर दें । बल्कि उस ब्यल्कक्त के कलए काम करें कजसे आप समझते
हों कक ये अच्छा ब्यल्कक्त है तथा इसे ककसी बु रे इं सान ने सताया है।"

मेरी ये बातें सु न कर िो जासू स कुछ न बोला। बस मेरी तरि दे खता रहा। उसके
चे हरे पर ऐसे भाि उभर आए थे जैसे एकाएक ही िह ककन्ही ं किचारों के आधीन हो
गया हो। मैं कुछ दे र तक उसे दे खता रहा।

"आपको पता है ये कौन हैं?" मैने ररतू दीदी की तरि इशारा करके उस जासू स से
कहा___"ये मेरी बडी बहन हैं और पु कलस में इं िेक्टर हैं। इन्होंने जब ये जाना कक
कानू नन ये मंत्री के ल्कखलाि कोई कायगिाही नही ं कर सकती हैं तो इन्होंने कानू न को
अपने हाॅथ में ले कलया।इन्होंने इस बात की ़िरा भी परिाह नही ं की कक इसके कलए
इन्हें कानू न खु द कठोर स़िा दे सकता है तथा अगर ये मंत्री जैसे राक्षस इं सान के
पकड में आ गईं तो मंत्री इनका क्ा हस्र कर सकता है। कहने का मतलब ये कक
अपनी जान को जोल्कखम में डाल कर इन्होंने मं त्री के ल्कखलाि कबगुल बजाया हुआ है।
कसिग इस कलए कक इस प्रदे श से मंत्री कदिाकर चौधरी जैसे लोगों की गंदगी दू र हो
सके तथा ऐसे लोगों से मासू म ि कनदोष जनता को कनजात कमल सके। रुपया पै सा
सबकी ़िरूरत है जासू स महोदय ककन्तु उससे बढ कर अपनी जान भी प्यारी होती
है। हम सब सच्चाई की राह पर चलने िाले िो इं सान हैं कजनके कसर पर क़िन बधा
हुआ है।"

"ये सब तु म क्ा बातें सु ना रहे हो दोस्त।" सहसा आकदत्य ने कहा___"क्ा तु म


समझते हो कक तु म्हारी इन बातों से इस जासू स के किचार बदल जाएॅगे। नही ं भाई,
इन्हें तो कसिग पै सों से मतलब हैं। इन्हें इस बात से कोई मतलब नही ं है कक प्रदे श में
आम इं सानों के साथ क्ा अत्याचार हो रहा है ? मैं तो कहता हूॅ कक इससे कुछ
पू छना ही बे कार है। हमारे पास जो भी सबू त मंत्री के ल्कखलाि है उसी के आधार पर
हम उसे धर लें गे।"

"आप लोग क्ा जानना चाहते हैं मुझसे ?" सहसा जासू स गंभीर भाि से बोल
पडा___"पू छो, मैं सब कुछ बताने को तै यार हूॅ। मु झे भी इस बात का अं देशा है कक
मंत्री के ल्कखलाफ़ खु द पु कलस किभाग गु प्त रूप से लगा हुआ है। मु झे पता है कक मंत्री
तथा उसके साथी बहुत ही अपराधी ककस्म के इं सान हैं। तु मने मु झे एहसास करा

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कदया है कक िाकई मैं ग़लत ब्यल्कक्तयों का साथ दे रहा था। तु मने कबलकुल सही कहा
भाई कक जीिन में पै सा ही सब कुछ नही ं होता है।"

"तो किर बताइये।" मैने मन ही मन हैरान होते हुए कहा___"कक मंत्री ने आपको ककस
ककस काम के कलए हमारे पीछे लगाया था?"
"आप लोगों ने मंत्री को तथा उसके साकथयों को इस लायक छोंडा ही नही ं है कक िो
खु द इस मामले में कोई ऐक्शन ले सके।" जासू स ने कहा___"इस कलए उसने इस
काम के कलए मु झे हायर ककया। एक और महत्वपू र्ग बात है जो कक तु म्हारे कलए
जानना बे हद ़िरूरी है। िो बात ये है कक मंत्री आपके ताऊ अजय कसं ह के साथ भी
कमला हुआ है। मैं अजय कसं ह के ही पीछे लगा था और उसी का पीछा करते हुए मैं
आज उस जगह पहुॅचा था जहाॅ तु म्हारा और अजय कसं ह का आमना सामना हो
रहा था। मैने उस सबकी सू चना िोन द्वारा मं त्री को दी थी। मं त्री को मैने कहा भी था
कक िो अगर चाहें तो इस मौके पर खु द भी आकर तु म लोगों के साथ कुछ भी कर
सकते हैं। मगर मंत्री ने शायद ये सोच कर इसके कलए बाद में मना कर कदया कक
सं भि है कक उस सू रत में तु म्हारे द्वारा उसके बच्चों का कुछ अकहत हो जाता। इस
कलए उसने मुझसे बस यही कहा कक मैं तु म लोगों के पीछे लग कर तु म्हारे कठकाने का
पता करूॅ। जैसे ही मेरे द्वारा उसे तु म लोगों के कठकाने का पता चल जाता िै से ही िो
अपने दलबल के साथ तु म लोगों के कठकाने पर धािा बोल दे ता।"

हरीश रार्े की बात सु न कर हम सब बु री तरह हैरान रह गए थे । हम सब ये जान कर


चौंके थे कक अजय कसं ह मंत्री से कमला हुआ है। इस तरि तो हमने सोचा ही नही ं था
और यकीनन ये हमारी सबसे बडी ग़लती भी थी। खै र अब तो जासू स द्वारा हमें इस
बात का पता चल ही चु का था।

"एक और बात।" तभी रार्े ने किर कहा___"जब मैने मंत्री से िोन पर बात की थी
तो ये सिाल भी उभरा था कक सं भि है कक अजय कसं ह उसे धोखा दे रहा हो। क्ोंकक
उसने मंत्री को बताए कबना ही तु म सबको पकडने के कलए िो सब ककया था। जबकक
मंत्री से हुई दोस्ती के अनु सार उसे उस सबके बारे में मंत्री से बताना चाकहए था। इस
बात पर मंत्री ने कहा था कक अगर अजय कसं ह सचमुच उसे धोखा दे रहा है तो िो उसे
इसके कलए स़िा ़िरूर दे गा। ककन्तु अगर उसने ये सब ये सोच कर ककया है कक बाद
में िो हमें अपने भतीजे को तथा अपनी बे टी को हमारे सामने ले आएगा और अपनी
दोस्ती का प्रमार् दे गा तो यकीनन हम उसे जे ल से भी छु डाएॅगे। मंत्री की इस बात
से तु म लोग समझ सकते हो कक अजय कसं ह जे ल से उसके द्वारा छूट भी सकता है।
अगर ये कहूॅ तो भी ग़लत न होगा कक िो अब तक छूट ही गया होगा।"

"ऐसा कैसे कह सकते हो तु म?" केशि जी ने पू छा।

983
"सीधी सी बात है।" रार्े ने कहा___"बात चाहे जो भी हो ककन्तु मंत्री एक बार अजय
कसं ह से कमलना ़िरूर चाहेगा और कमल कर ये भी जानना चाहे गा कक उसने िो सब
कारनामा उसको कबना बताए कैसे अं जाम कदया था? क्ा इसके पीछे उसकी गद्दारी
थी या किर कुछ और? मंत्री की इस बात पर अजय कसं ह ़िरूर यही कहेगा कक िो ये
सब करके अपने भतीजे और अपनी बे टी को उसके सामने ले आकर उसे सरप्राइज
के रूप में तोहिा दे ना चाहता था। ककन्तु ऐसा हो न सका। अजय कसं ह की ये बात
सु न कर मंत्री को भी लगेगा कक अजय कसं ह िास्ति में उसके कलए ये सब पाक़ भािना
से करना चाहता था। अतः ये सोच कर मंत्री उसे जेल से ़िरूर छु डाएगा। कजस समय
मैने उसे िोन पर अजय कसं ह को पु कलस द्वारा ले जाने के बारे में बताया था। उस
समय और अब के समय के बीच कई घंटों का िक़ग हो चु का है। इस कलए ये सं भि है
कक अब तक मंत्री ने अजय कसं ह को जेल से छु डा ही कलया होगा।"

"हम भी तो यही चाहते हैं जासू स महोदय।" मै ने मुस्कुराते हुए कहा___"कक िो जेल से
छूट कर किर से बाहर आ जाए और इसी कलए ररतू दीदी ने उसके छूट जाने का
इं तजाम भी ककया हुआ था।"

"क्ा मतलब।" हरीश रार्े बु री तरह चौंका___"भला तु म लोग ऐसा क्ों चाहते हो?
बात कुछ समझ में नही ं आई। ये सब क्ा चक्कर है?"

"मंत्री को और अजय कसं ह को अगर जेल में सडाना ही होता।" मैने कहा___"तो ये
काम तो हम बहुत पहले ही कर चु के होते । मगर ऐसा ककया नही ं क्ोंकक इनके
गुनाहों की स़िा हम अपने तरीके से ही दे ना चाहते हैं। ररतू दीदी ने पु कलस ककमश्नर से
जब पु कलस प्रोटे क्शन की बात की तभी ये तय हो गया था कक अजय कसं ह को सबके
साथ पकड कर ले तो जाएॅगे मगर उस पर कोई केस नही ं बनाया जाएगा। केस न
बनने से अजय कसं ह का जेल से छूट जाना आसान ही हो जाना था। िरना आप खु द
सोकचए जासू स महोदय कक उसने तो अपनी ही बे टी को जान से मारने की कोकशश
की थी िो भी एसीपी के ररिावर से । उस सू रत में तो िो लम्बे से नप सकता था।
एसीपी रमाकान्त शु क्ला तो गुस्से में आकर अजय कसं ह पर केस बनाने के कलए तै यार
भी हो गया था ककन्तु ककमश्नर साहब ने इसके कलए उसे मना कर कदया। िरना अगर
केस बन जाता तो मंत्री इतनी सहजता से अजय कसं ह को छु डा न पाता। उसकी
पहुॅच का भी कोई असर न होता। क्ोंकक एसीपी कोई मामूली ब्यल्कक्त नही ं था। उसे
केन्द्र से भे जा गया है, इस कलए उसके काम में ककसी की भी दखलअं दा़िी नही ं
चलती।"

"अगर ऐसी बात है।" रार्े ने कहा___"तो किर िो इस सबके कलए रा़िी कैसे हो गया?
मेरे कहने का मतलब ये है कक जैसा कक तु मने कहा कक एसीपी को केन्द्र सरकार ने

984
भे जा है तथा उसके काम में कोई हस्ताक्षे प भी नही ं कर सकता तो किर ये कैसे हो
गया कक उसने अजय कसं ह पर ककमश्नर के मना कर दे ने पर केस ही नही ं बनाया?
जबकक उसे तो इस मामले में शख्त से शख्त कायगिाही ही करनी चाकहए थी।"

"िो यहाॅ शख्त कायगिाही के कलए ही आया था।" ररतू दीदी ने हस्ताक्षे प
ककया___"ककन्तु ककमश्नर साहब ने उसे यहाॅ के सारे हालातों के बारे में बताया, ये भी
कक कैसे मैं अपने ही माॅ बाप के ल्कखलाि हूॅ और कैसे मंत्री का काम तमाम करने
के काम पर लगी हुई हूॅ? सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद िो इसके कलए तै यार हो
ही गया। दू सरी बात ये भी थी कक उसे यहाॅ भे जा ही इस कलए गया है कक िो मंत्री
जैसे लोगों की गंदगी को इस प्रदे श से कमटा सके और ये काम तो मैं कर ही रही हूॅ।
उसे तो इस प्रदे श की गंदगी कमटाने से मतलब है किर चाहे िो ककसी भी तरीके से
कमटाई जाए।"

"ओह तो ये बात है।" रार्े को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, किर बोला___"ककन्तु
शु रू में मैने महसू स ककया था कक मैने जब मं त्री और अजय कसं ह के एक होने की बात
बताई तो तु म सब उस बात से हैरान हो गए थे । इसका मतलब ये हुआ कक तु म लोगों
को इस बात का अं देशा तक नही ं था कक अजय कसं ह और मंत्री आपस में कमले भी हो
सकते हैं?"

"ककमश्नर साहब ने िोन पर मुझे ये ़िरूर बताया था।" ररतू दीदी ने कहा___"कक मंत्री
ने उन्हें िोन ककया था तथा िोन पर िो ऐसे सिाल जिाब कर रहा था जैसे ये जानना
चाहता हो कक पु कलस गु प्त रूप से कही ं उसके पीछे तो नही ं लगी हुई है। उसने बातों
बातों में इस बात को भी पू छा था कक हल्दीपु र के ठाकुर अजय कसं ह को पु कलस पकड
कर ले गई है तो ये सब क्ा चक्कर है? उसने ककमश्नर से घुमा किरा कर ये भी कहा
कक सु ना है कक अजय कसं ह की बे टी पु कलस में है और अपने बाप के ल्कखलाि भी है।
मंत्री के पू छने पर ककमश्नर साहब ने यही कहा कक ये सब पाररिाररक मामला है अतः
उन्हें इस बारे में ज्यादा पता नही ं है। कहने का मतलब ये कक ये तो समझ में आया कक
मंत्री ने ककमश्नर से अजय कसं ह का क़िक्र ककया मगर उसकी बातें ऐसी थी कक उससे
इस बात का अं देशा उस िक्त मु झे न हो पाया था कक िो अजय कसं ह से िास्ति में
कमला हुआ ही हो सकता है। दू सरी बात ये कक मेरे मुखकबरों ने भी ऐसी ककसी बात
का क़िक्र नही ं ककया। जबकक मैने तो दोनो के ही पीछे मुखकबर लगाए हुए थे ।"

"कमाल की बात है।" रार्े मु स्कराया___"कैसे मुखकबर थे जो ये भी न पता लगा सके


कक अजय कसं ह और मंत्री कब कहाॅ ककससे कमलते हैं? जैसा कक तु मने बताया कक
तु मने इन दोनो के पीछे मुखकबर लगाया हुआ था तो ये कैसे हो सकता है कक तु म्हारे
मुखकबरों को इन दोनो की गकतकिकधयों का पता ही न चल सके? अजय कसं ह के पीछे

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लगा हुआ मुखकबर बडी आसानी से पता लगा सकता था कक िह कब कहाॅ जाता है?
यानी अगर िो मंत्री से कमलने उसके आिास पर जाता तो क्ा ये सब उस मुखकबर ने
अपनी ऑखों से नही ं दे खा होता? इसका तो यही मतलब हुआ कक तु म्हारे मुखकबरों ने
अपना काम इमानदारी से ककया ही नही ं बल्कि तु म्हें धोखे में ही रखा।"

रार्े की इस बात से ररतू दीदी तु रंत कुछ बोल न सकी ं थी। मैने भी हैरानी से उनकी
तरि दे खा था। ररतू दीदी के चे हरे पर कई तरह के भाि आए और चले भी गए।
सहसा उनके चे हरे पर कठोर भाि उभर आए।

"यकीनन ऐसा ही है।" किर उन्होंने गहरी साॅस ले कर कहा___"मेरे मुखकबरों ने


अपना काम सही से नही ं ककया। इसके कलए उन्हें कठोर दं ड ़िरूर कमले गा। दोनो
तरि की घटनाओं से इस बात की तरि मेरा ध्यान भी नही ं गया। दू सरी बात मु झे
अपने मुखकबरों से इस बात की उम्मीद भी नही ं थी कक िो कमीने ऐसी लापरिाही
करें गे।"

"चलो कोई बात नही ं ररतू बे टा।" सहसा केशि जी ने कहा___"माना कक तु म्हारे
मुखकबरों ने इस काम में थोडी नही ं बल्कि बहुत ही ज्यादा लापरिाही कदखाई ककन्तु
इससे हमें नु कसान तो नही ं हुआ न? अतः इस बात को छोंडो और अब ये सोचो की
आगे क्ा करना है?"

"मैं भी ये कहना चाहता हूॅ कक।" ररतू दीदी के बोलने से पहले ही रार्े बोल
पडा____"अब आप लोगों को भी मु झे यहाॅ से जाने दे ना चाकहए। आप लोगों को मैने
पू री इमानदारी से सारी बातें सच सच बता दी हैं। अतः अब मु झे इस तरह यहाॅ कैद
करके रखने का तो कोई मतलब नही ं बनता न।"

"ज्यादा होकशयारी कदखाने की कोकशश मत करो जासू स महोदय।" मैने


कहा___"माना कक आपने हमें सारी बातें सच सच बता दी हैं। मगर मौजूदा हालात में
इसके बािजूद हम आपको यहाॅ से जाने नही ं दे सकते । क्ोंकक इतना तो हम भी
सोच सकते हैं कक आपने ये सब ये सोच कर बता कदया हमे कक सब कुछ सु नने के
बाद हमें यही लगे कक अब आप हमारे ही हक़ में हैं और हमारा ककसी भी तरह का
नु कसान नही ं कर सकते हैं। इस कलए हम आपको छोंड दें गे। जबकक यहाॅ से छूटते
ही आप पु नः अपना रं ग बदल सकते हैं और हमारा काम तमाम करिा सकते हैं। इस
कलए जासू स महोदय आपको छोंड दे ने का काम तो किलहाल हम ककसी भी सू रत में
नही ं कर सकते । अतः आप अपने कदमाग़ से छूटने का खयाल कनकाल दें । ककन्तु हाॅ
हम ये िादा करते हैं कक यहाॅ आपको कोई तक़लीि नही ं होने दें गे और जैसे ही मंत्री
का काम तमाम हो जाएगा िै से ही आपको भी यहाॅ से आ़िाद कर कदया जाएगा।"

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"सबसे पहली बात तो तु म मुझे जासू स महोदय कहना बं द करो।" रार्े ने
कहा___"मेरा नाम हरीश रार्े है। अतः मु झे रार्े कह कर सं बोकधत कर सकते हो।
दू सरी बात तु म बे िजह ही ये शक कर रहे हो कक यहाॅ से चू टते ही मैं ऐसा िै सा कुछ
कर दू ॅगा। मेरा यकीन करो यंग मैन, मु झे ररयलाइज हो चु का है कक मैं जो कुछ भी
अब तक मंत्री के कलए कर रहा था िो उकचत नही ं था। मुझे पता है कक मं त्री और
उसके सभी साथी जु मग ि अपराध करने िाले महान पापी हैं। इस कलए अब मैं उनके
कलए कोई काम नही ं करूॅगा। बल्कि यहाॅ से छूटने के बाद मैं िापस अपने शहर
लौट जाऊगा।"

"हो सकता है कक आपकी बातें सच ही हों कमस्टर रार्े ।" मैने कहा___"मगर चू ॅकक
आप एक जासू स हैं अतः आप भी समझ सकते हैं कक मौजूदा हालात मैं हम आपको
छोंड दे ने का जोल्कखम नही ं उठा सकते । इस कलए आप इसके कलए हमे माफ़ करें और
यही ं रहें ।"

मेरी बात सु न कर रार्े बे बस भाि से मुझे दे खता रह गया। किर एकाएक ही उसके
होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला___"सही कहते हो भाई। मैं समझ सकता हूॅ कक
ऐसे हालात में तु म मु झे यकीनन छोंड दे ने का जोल्कखम नही ं उठा सकते । खै र कोई
बात नही,ं जैसा तु म्हें अच्छा लगे करो। और हाॅ मेरी तरि से बे स्ट ऑि लक इसके
कलए।"

रार्े की ये बात सु न कर हम सब मु स्कुराए और किर केशि जी के इशारे पर एक


आदमी ने पु नः रार्े के मुख में टे प कचपका कदया। उसके बाद सभी आदकमयों को
कुछ ़िरूरी कहदायतें दे कर हम सब िहाॅ से बाहर की तरि चल पडे ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर अजय कसं ह जब हिे ली पहुॅचा तो शाम के चार बज चु के थे । अजय कसं ह को


प्रकतमा डर ाइं ग रूम में ही बै ठी कमली थी। उसके चे हरे से साि पता चल रहा था कक िो
अपने पकत के कलए ककतनी कचं कतत ि परे शान थी। उसने अपनी िकील दोस्त अनीता
ब्यास से िोन पर बात की थी। अनीता के पू छने पर उसने सं क्षेप में कुछ बातें बताई
थी उसे । उसकी उस दोस्त ने उसे आश्वस्त ककया था कक िो कचं ता न करे , िो उसके
पकत को छु डाने की पू री कोकशश करे गी। उसने प्रकतमा से कहा था कक िो शाम को
उससे कमलने भी आएगी।

इधर अजय कसं ह जैसे ही डर ाइं ग रूम में दाल्कखल हुआ तथा प्रकतमा के बगल िाले सोिे
पर बै ठा िै से ही कही ं खोई हुई प्रकतमा का ध्यान अजय कसं ह की तरि गया। उसे

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पहले तो यकीन नही ं हुआ ककन्तु किर एकाएक ही उसके चे हरे पर पहले हैरानी के
भाि उभरे उसके बाद तु रंत ही खु शी के भािों ने उसका मुरझाया हुआ चे हरा ता़िे
ल्कखले गुलाब की माकनन्द ल्कखला कदया।

"ओह अजय तु म आ गए।" खु शी से िूली न समाती हुई प्रकतमा ने मु स्कुराते हुए कहा
था ककन्तु तु रंत ही उसके चे हरे पर हैरानी ि उलझन के भाि भी उभर आए,
बोली___"मगर तु म िहाॅ से आ कैसे गए अजय? तु म्हें तो पु कलस का िो एसीपी
कगरफ्तार करके ले गया था न? किर तु म पु कलस से छूट कर आ कैसे गए? क्ा पु कलस
ने तु म्हें यूॅ ही छोंड कदया या किर तु मने कुछ ऐसा िै सा ककया है?"

"मैने कुछ भी ऐसा िै सा नही ं ककया है प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सपाट लहजे में
कहा___"बल्कि मु झे मंत्री जी ने पु कलस से ़िमानत पर छु डाया है। मगर...।"
"मगर क्ा अजय??" प्रकतमा के माॅथे पर बल पडा।

"यही कक मंत्री का तो नाम ही है कक उसने मु झे पु कलस से छु डाया है।" अजय कसं ह ने


सोचने िाले भाि से कहा___"सच तो ये कक पु कलस मुझे खु द ही छोंड दे ना चाहती
थी।"

"ये..ये क्ा कह रहे हो तु म?" प्रकतमा हैरान___"भला पु कलस तु म्हें क्ों छोंडना चाहेगी?
और....और ऐसा भला तु म कैसे कह सकते हो?"
"बे िकूिी भरे सिाल मत करो प्रकतमा।" अजय कसं ह ने नारा़िगी के साथ
कहा___"साधारर् मामला होता तो सोचा भी जा सकता था कक पु कलस ने मामूली बात
पर पकडा और किर छोंड भी कदया। ककन्तु ये मामला साधारर् नही ं था। मैने एसीपी
का ररिावर छीन कर उसके सामने ही नीलम को गोली मारी थी। इस कलए इस
अपराध के कलए तो मु झे लम्बे से नप जाना चाकहए था। मुझ पर साि साि अटे म्प्ट टू
मडग र का केस लगता। तु म अच्छी तरह जानती हो कक इस केस के तहत मेरा कानू न
से छूटना उस सू रत में तो नामुमककन ही था जबकक उस सं गीन अपराध का चश्मदीद
गिाह खु द एसीपी ही था। इतने बडे अपराध के बािजूद िो मंत्री मु झे बडी आसानी से
छु डा लाया। िो साला समझता होगा कक ये सब उसके रुतबे तथा दबदबे का कमाल
है जबकक ऐसा है नही ं। बल्कि सच्चाई यही है कक पु कलस खु द चाहती थी कक मैं
सहजता से छूट जाऊ। इसका मतलब ये भी हुआ कक उस सं गीन अपराध के कलए
एसीपी ने मुझ पर कोई केस ही नही ं बनाया है ।"

"बात तो तु म्हारी यकीनन सौ पशे न्ट सही है।" प्रकतमा के चे हरे पर सोचने िाले भाि
उभरे ___"ककन्तु सिाल ये है कक पु कलस ऐसा क्ों चाहेगी कक तु म उसकी कगरफ्त से
आसानी से छूट जाओ? दू सरी बात, अगर पु कलस को तु म्हें इस तरह सहजता से छोंड

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ही दे ना था तो उस िक्त उसने तु म्हें कगरफ्तार ही क्ों ककया था?"

"कमाल है।" अजय कसं ह ने हैरानी से प्रकतमा की तरि दे खा, किर बोला___"ये सब
तु म पू छ रही हो प्रकतमा? जबकक तु म तो छोटी सी छोटी बात को पकड कर उलझी
हुई बातों को सु लझाने में माकहर हो।"

"हाॅ मगर।" प्रकतमा ने कहा___"तब जब मन में तु म्हारे प्रकत ऐसी कचं ता नही ं होती।
हलाॅकक सोच तो मैं अभी भी सकती हूॅ। ककन्तु तु म खु द ही बता दो तो क्ा बु राई
है?"

"ये तो साकबत हो चु का है कक।" अजय कसं ह ने कहा___"किराज मु झसे कानू नी रूप से


कोई बदला नही ं ले ना चाहता। क्ोंकक अगर उसे इस तरीके से ले ना ही होता तो िो ये
काम पहले ही कर ले ता। यानी कक मेरे ल्कखलाि उसके पास जो सामान है उसे िो
पु कलस को सौंप दे ता और बता दे ता कक ये सब उसके ताऊ यानी कक मेरा है। बस खे ल
खत्म। ककन्तु उसने ऐसा नही ं ककया। मतलब साि है कक िो जो कुछ भी करे गा अपने
तरीके से तथा अपने बलबू ते पर करे गा। नीलम ि सोनम को यहाॅ से ले जाने िाला
िाक्ा जब सामने आया तो उसे बखू बी पता था कक हम उसके मंसूबों को नाकाम
करने की जी तोड कोकशश करें गे। ये सोच कर उसने भी अपने पक्ष को मजबू त
ककया। ररतू ने उसे सु झाि कदया होगा कक अगर इसके बािजूद उसका पलडा
कम़िोर पडता है तो उस सू रत में िो पु कलस का सहारा ले गी। पु कलस िोसग के आ
जाने से सारा मामला ही उलट जाएगा और किर िो बडी आसानी से नीलम ि सोनम
को अपने साथ ले जाएॅगे और कोई कुछ कर भी नही ं पाता। ऐसा हुआ भी। ककन्तु
उसे ये उम्मीद नही ं थी कक इस सबके बीच नीलम को मेरे द्वारा गोली भी मार दी
जाएगी। उनका मकसद तो इतना ही था कक पु कलस के आने के आने के बाद जब मैं
और मेरे आदमी कुछ नही ं कर पाएॅगे तो िो बडे आराम से नीलम ि सोनम को ले
जाएॅगे और मेरे माॅथे पर एक और हार ि नाकामी की मुहर लगा जाएॅगे । ककन्तु
नीलम को गोली लगने से मामला थोडा कबगड गया। उसे लगा कक सबके साथ मु झे
कगरफ्तार तो होना ही था और किर बाद मु झे छोंड ही कदया जाना था, ककन्तु नीलम
को गोली मार दे ने से केस बन जाने िाली बात हो गई थी। केस बन जाने की सू रत में
मेरा पु कलस से छूटना मुल्किल हो जाता। जो कक किराज हकगग़ि भी नही ं चाहता था।
तब उसने ररतू से कहा होगा कक िो कुछ ऐसा करे कक मु झ पर कोई केस ही न बने ।
उस सू रत में किर जब कोई मुझे ़िमानत पर छु डाने आएगा तो मैं आसानी से छूट
जाऊगा। किराज के इस सु झाि को या यूॅ कहो कक उसकी इस इच्छा को ररतू ने
तु रंत मान कलया होगा और किर उसने ऐसा ही कोई इं तजाम कर कदया होगा।
कजसका नतीजा ये कनकला कक बाद में मंत्री मु झे बडी आसानी से छु डाने में कामयाब
हो गया। दै ट्स आल।"

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"ओह तो ये बात है।" प्रकतमा ने कहा___"िै से कमाल की बात है कक आज तु म्हारा
कदमाग़ भी कािी शापग साकबत हुआ जो इतनी बारीकी से ये सब सोचा और इस
सबका जूस कनकाल कर भी रख कदया। मगर....।"

"अब क्ा हुआ??" अजय कसं ह बोल पडा।


"तु मने नीलम को जान से मारने की कोकशश क्ों की अजय?" प्रकतमा ने सहसा
गंभीर होकर कहा___"उसने तो हमारे साथ ऐसा िै सा कुछ भी नही ं ककया था। उस
िक्त भी उसने तु मसे उस लहजे में कसिग इसी कलए बात की क्ोंकक तु मने उससे बात
ही ऐसे गंदे तरीके से की थी। तु म खु द सोचो अजय कक तु मने जीत के अहंकार तथा
आिे श में आकर ककतना ग़लत ब्यौहार ककया था। सबके सामने तु म्हें अपनी ही बे टी
से उस तरीके से बात नही ं करनी चाकहए थी। क्ोंकक इसका असर हमारे ही
आदकमयों पर पडे गा। िो सोचें गे कक जो इं सान सबके सामने अपनी ही बे टी के साथ
ऐसी अश्लीलता और ऐसी कूरता कर सकता है िो िास्ति में ककतना घकटया होगा।
हाॅ अजय, इससे हमारी ही इमे ज खराब होती है। कोई भी सभ्य लडकी ये बदागश्
नही ं कर पाएगी कक सबके सामने उसका ही बाप उससे ऐसी अश्लीलता से बात
करके उसे जलील ि शमगसार करे ।"

"यकीनन सच कह रही हो तु म।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले कर कहा___"बाद में


मुझे भी एहसास हुआ कक मु झे ऐसा नही ं करना चाकहए था। मगर उस िक्त हालात ही
ऐसे बन गए थे कक मैं आपे से बाहर हो गया था। एक तो मैं उस हराम़िादे की बातों से
तथा उसे दे ख कर पागल हुआ जा रहा था कजसने अब तक मुझे कशकस्त ही दी थी।
साला ऐसे ऐसे डाॅयलाग बोल रहा था कक मेरे अं दर उन डायलाग को सु नकर उन्हें
सहने की शल्कक्त ही नही ं बची थी। मुझे लग रहा था कक उस हराम के कपल्ले को कैसे
भी करके खत्म कर दू ॅ और ऐसा होता भी अगर िहाॅ पु कलस िोसग न आ गई होती
तो। मैं अं दर ही अं दर एक और हार ि नाकामी से पागल ि ब्यकथत हुआ जा रहा था
ऊपर से मेरी दोनो बे कटयों ने सामने आकर जो कुछ कहा उसने मेरे गु स्से को और भी
बढा कदया था। रही सही कसर नीलम ने सबके सामने मुझे थप्पड मार कर पू री कर
दी थी। बस उसके बाद मैंने अपना आपा खो कदया और िो सब कर बै ठा। तु म खु द
अं दा़िा लगा सकती हो प्रकतमा कक उस िक्त मैं ककस मानकसक हालत में रहा
होऊगा?"

"चलो ये सु न कर अच्छा लगा कक तु म्हें नीलम को गोली मारने िाली बात पर अपनी
ग़लती का एहसास हुआ।" प्रकतमा ने कहा___"ककन्तु क्ा तु म्हारे मन में ये किचार भी
उठा है कक तु म्हें एक बार नीलम का हाल चाल जान ले ना चाकहए? कुछ भी हो आकखर
िो है तो हमारी बे टी ही।"

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"नही ं प्रकतमा।" अजय कसं ह का चे हरा एकाएक कठोर हो गया, बोला___"मेरे कलए
मेरी दोनो बे कटयाॅ अब मर चु की हैं। इस दु कनयाॅ में अब तु म्हारे और हमारे बे टे के
अलािा मेरा कोई नही ं है। एक बात और आज के बाद तु म मु झसे उन दोनो के बारे में
कोई भी बात नही ं करोगी। ये मेरी पहली और आकखरी िाकनिं ग है।"

"मदग कभी नही ं समझ सकता एक औरत की पीडा को।" प्रकतमा ने सहसा भारी स्वर
में कहा___"मगर मुझे तु मसे उम्मीद थी अजय कक तु म मेरी पीडा को समझोगे।"

"कहना क्ा चाहती हो तु म?" अजय कसं ह ने अजीब भाि से प्रकतमा की तरि दे खा।
"तु म जानते हो अजय कक मैं आज भी तु मसे उतना ही प्यार करती हूॅ कजतना पहले
करती थी।" प्रकतमा ने कहा___"और मैं जाने ककतनी बार तु म्हें अपने बे पनाह प्यार का
सबू त भी दे चु की हूॅ। तु म्हारे कसिग एक इशारे पर मैं पराए मदग के नीचे खु शी खु शी
ले ट गई। कभी इसके कलए तु मसे कशकायत नही ं की और ना ही तु मसे नारा़ि हुई।
तु म्हारी हर खु शी में मैने अपनी खु शी दे खी। तु म्हारी तरह सबके कलए कठोर भी बन
गई। मगर मैं एक औरत के साथ साथ एक माॅ भी हूॅ अजय। औलाद चाहे जैसी भी
हो िो अपनी माॅ के कलए सबसे सुं दर ि सबसे अनमोल होती है। मुझे अब तक इतनी
ज्यादा तकलीफ़ नही ं हुई थी ककन्तु इस हादसे से हुई है । मैं मानती हूॅ कक मेरी दोनो
बे कटयों ने हमारे ल्कखलाि जा कर ग़लत ककया है मगर जब ये सोचती हूॅ कक उन दोनो
ने ऐसा क्ों ककया तब इस क्ों के जिाब को सोच कर ही कदल दहल जाता है।
आकखर अपने सामने तो इस सच्चाई को हमें भी मानना ही पडे गा न कक हमने अपनी
ही बे कटयों के साथ तथा बाॅकी सबके साथ ग़लत सोचा और ग़लत ककया भी।"

"इन सब बातों को कहने का क्ा मतलब है?" अजय कसं ह ने कहा___"और....और


आज अचानक ये बातें ही क्ों? नही ं प्रकतमा, अब इन सब बातों को सोचने का कोई
मतलब नही ं है और सोचना भी नही ं। क्ोंकक अब बात बहुत आगे कनकल चु की है।
अब तो इसका िैसला दो पक्षों में से ककसी एक पक्ष के खत्म हो जाने पर ही होगा।
उसके पहले तो कुछ हो ही नही ं सकता। इसके पहले तो ये था कक मैंने ये सब अपने
बीिी बच्चों के कलए ककया ककन्तु अब ये भी है कक कजन ची़िों की ख्वाकहश थी उसे हर
हाल में पू रा करना है। अगर मेरे द्वारा िो सब बरबाद हुए हैं तो उनके द्वारा मेरा भी तो
बहुत कुछ नु कसान हुआ। इस कलए अब ऐसी बातें अपने ़िहन में मत लाओ। खै र
छोंडो, मुझे भी ़िरा िेश होना है। एक बात और, कचं ता की कोई बात नही ं है। किराज
भले ही मु झे कशकस्त दे कर चला गया है मगर बहुत जल्द उसका भी ककस्सा खत्म
होने िाला है। क्ोंकक मं त्री ने उसके पीछे जासू स लगाया हुआ है। िो जासू स बहुत
जल्द उसके कठकाने का पता मंत्री जी को दे गा उसके बाद मंत्री किराज के कठकाने पर
धािा बोल दे गा। उस साले किराज के साथ साथ तु म्हारी दोनो बे कटयों का भी खे ल

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खत्म हो जाएगा।"

ये सब कहने के बाद अजय कसं ह उठा और अं दर कमरे की तरि बढ गया। जबकक


उसकी बातें सु नने के बाद प्रकतमा पहले तो हैरान हुई किर सामान्य हो कर बै ठी रही।
चे हरे पर कई तरह के भाि आते जाते रहे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उस िक्त रात के दो बज रहे थे ।


गुनगुन ल्कथथत मं त्री कदिाकर चौधरी के बगले के कपछले भाग पर जहाॅ कक अशोक ि
दे िदार जैसे पे ड लगे हुए थे दो काले साए अधे रे में कछपे खडे थे । दोनो के ही कजस्मों
पर काला स्याह लबादा था। यहाॅ तक कक दोनो के चे हरे तथा हाॅथ तक काले
कपडों से ढके हुए थे । चे हरे ि कसर पर चढे काले मास्क से कसिग उनकी ऑखें ही
झाॅक रही थी या किर ये भी कक जब िो दोनो बात करने के कलए मु ह खोलते तो
उनके दाॅत चमक उठते थे । कहने का मतलब ये कक िो दोनो ही कसर से ले कर पाॅि
तक काले ककन्तु चु स्त दु रुस्त कपडों से ढके हुए थे ।

बगले के चारो तरि बाउण्डर ी िाल थी कजसमें थोडी थोडी दू री पर रोशनी के कलए
मध्यम साइज के एलईडी बल्ब लगे हुए थे । बाउण्डर ी िाल के अं दर तथा बाहर दोनो
तरि हाॅथों में गन कलए गाड्ग स भी खडे ऩिर आ रहे थे । रात के इतने समय भी िो
सब मुस्तैदी से खडे थे । उन सभी के कजस्मों पर भी काले ही कपडे थे तथा कसर पर
काली कैप थी।

बगले का मुख्य दरिाजा जो कक खाकलश स्टील का ही था। उस दरिाजे के पास भी


दोनो तरि गनमैन तै नात थे । खै र हम बात कर रहे थे उन दो रहस्यमय सायों की। ये
दोनो ही साए क़रीब दस कमनट से उन पे डों के पास अधेरे में कछपे खडे थे । बारह
िीट ऊची बाउण्डर ी िाल को दोनो ने बडी ही दक्षता से लाॅघ कलया था। कजसके कलए
उन्हें रस्सी की मदद ले नी पडी थी। उनकी चारो ऑखें बडी बारीकी से चारो तरि का
अध्ययन कर रही थी ं। दोनो ने एक बात नोट की कक कजतने भी गनमैन िहाॅ तै नात
थे िो सब अपनी जगह पर ही कायम थे । यानी िो सब अपनी पोजीशन नही ं बदलते
थे । कसिग दो ही ऐसे गनमैन थे जो हर पाॅच कमनट में इस तरि आते थे और किर
इधर उधर सरसरी सी ऩिर डाल कर िापस लौट जाते थे ।

बाउण्डर ी िाल से बगले की इमारत की दू री लगभग बीस िुट थी। नीचे ़िमीन पर
चारो तरि किदे शी घाॅस उगी हुई थी। बाउण्डर ी िाल की तरि ही ये सारे पे ड लगे
हुए थे । हलाॅकक बीच बीच में ऐसे छोटे छोटे पौधे भी लगे हुए थे जो अर्क्र बाग़ों की
शोभा बढाने के उपयोग में आते थे । ककन्तु ये पौधे दो तरि ही कदख रहे थे । सामने की
तरि किदे शी घाॅस तो थी ही साथ ही बीचो बीच सिेद मारबल लगा हुआ था जो कक

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मुख्य दरिाजे तक था।

इस बार जब िो दोनो गनमैन आकर िापस लौटे तो उन दोनो सायों की ऩिरें आपस
में कमली ं और किर दोनो ही बारी बारी पे ड के पास से कनकल कर बडी ते ़िी से
इमारत की दीिार की तरि उस कहस्से की तरि बढे जहाॅ पर लगभग पं द्रह िुट की
ऊचाई पर एक शीशे की ल्कखडकी थी तथा उस ल्कखडकी के सामने ही छोटी सी
बालकनी थी। ल्कखडकी पर दे खने से ऐसा प्रतीत होता था जैसे अं दर अधेरा हो।
बालकनी में भी स्टील की रे कलं ग लगी हुई थी। ये कहस्सा बगले के बाएॅ साइड था।

बालकनी के नीचे पहुॅचते ही एक साए ने तु रंत ही अपने हाॅथ में ली हुई रस्सी को
एक हाॅथ से गोल गोल घु माया और किर ते ़िी से ऊपर की तरि उछाल कदया।
रस्सी बडे िे ग से लहराती हुई ऊपर की तरि गई और रे कलं ग के ऊपरी भाग से ऊपर
उठ कर िापस नीचे की तरि आने को हुई तो िो रे कलं ग के दू सरे कहस्से से पर िस
गई। हलाॅकक रस्सी के छोर पर लगे लोहे के मामूली से राॅड से आिा़ि हुई ककन्तु
िो आिा़ि बहुत धीमी हुई थी। क्ोंकक िो राॅड स्टील में लगने के साथ ही नीचे से
ऊपर की तरि उठा तो िो बीच से कनकल कर नीचे दीिार पर टकरा गया था।

"जल्दी करो।" दू सरे साए ने धीमी आिा़ि में उस पहले साए से कहा कजसने रस्सी
को ऊपर बालकनी की तरि उछाला था, बोला___"हमें पाॅच कमनट से पहले ऊपर
पहुॅचना होगा। िरना िो दोनो गनमैन किर से इधर आ जाएॅगे।"

"बस हो ही गया है।" पहले साए ने ऊपर दे खते हुए अपने एक हाॅथ को हिा सा
झटका कदया। पररर्ामस्वरूप दीिार के पास ही झल ू रहा िो मामूली सा राॅड ते ़िी
से नीचे सरका और कुछ ही पलों में पहले िाले साए के हाॅथ में आ गया। राॅड के
हाॅथ में आते ही उसने दू सरे साए की तरि दे ख कर बोला___"गो।"

पहले साए की बात सु नते ही दू सरा साया ते ़िी से आगे बढा और रस्सी के दोनो भागों
को पकड कर पहले उसे हिा सा अपनी तरि खी ंचा। जैसे चे क कर रहा हो कक सब
ठीक है कक नही ं। उसके बाद िो दोनों हाॅथों से रस्सी को थोडा और ऊपर से पकडा
और किर झल ू गया। कुछ ही पलों में िो रस्सी में झल
ू ता हुआ ऊपर बालकनी के पास
पहुॅच गया। नीचे खडा पहला साया चारो तरि दे ख रहा था। तभी ऊपर पहुॅच गए
साये ने रस्सी को झटका कदया तो नीचे खडे साए ने उसकी तरि दे खा। ऊपर पहुॅच
चु के साए ने हाॅथ के इशारे से उसे ऊपर आने को कहा।

उसका इशारा कमलते ही पहला िाला साया भी रस्सी को पकड कर ऊपर झल ू ते हुए
कुछ ही पलों में पहुॅच गया। उसके पहुॅचते ही दू सरे साए ने रस्सी को ऊपर खी ंच

993
कलया। तभी पहले िाले साए ने नीचे दे खा, िो दोनो गन मैन इसी तरि आ रहे थे । ये
दे ख कर दोनो साए िही ं बालकनी पर बै ठ कर कछप गए। थोडी ही दे र में उन्होंने दे खा
कक िो दोनो गन मैन िापस जा रहे हैं तो ये दोनो भी उठ गए।

"चलो अब काम पर लग जाओ।" दू सरे साए ने धीमी आिा़ि में कहा___"ककन्तु


सािधानी से ।"
"जो हुकुम।" पहले साए ने अदब से कसर को हिा सा खम करते हुए धीमी आिा़ि
में कहा।

पहले िाले साए ने पलट कर ल्कखडकी को दे खा। उस ल्कखडकी पर शीशा लगा हुआ था
तथा दो पल्लों की ल्कखडकी थी। पहले साए ने ल्कखडकी में हाॅथ लगा कर उसे अं दर
की तरि हिे से पु श ककया तो कुछ न हुआ। मतलब साि था ल्कखडकी के दोनो
पल्ले अं दर से बं द थे ।

"ये अं दर से बं द है।" पहले िाले साए ने पलट कर दू सरे साए से कहा___"शु कर है कक


हम काॅच काटने िाला हीरा ले कर आए थे , लाओ उसे ।"
"ऐसे काम के कलए।" दू सरे साए ने धीरे से कहा___"ऐसी ची़ि की ़िरूरत तो पडती
ही है।"

दू सरे साए ने कहा और अपने काले लबादे से हीरा कनकाल कर पहले िाले साए के
हाथ में दे कदया। हीरा ले कर पहला साया िापस मुडा और दाकहने पल्ले में एक हाॅथ
जमा कर हीरे से पल्ले पर लगे शीशे को खास तरीके से काटना शु रू कर कदया।
उसके दू सरे हाॅथ में एक अजीब सी ची़ि थी जो कक शीशे से ही कचपकी हुई थी।
कुछ ही दे र में शीशे का एक आयताकार टु कडा कट गया। पहले साए ने अपने दू सरे
हाॅथ को अपनी तरि बहुत ही सािधानी से खी ंचा। नतीजा ये हुआ कक िो कटा
हुआ टु कडा उस अजीब सी ची़ि से कचपका हुआ अपनी जगह से बाहर आ गया।

अभी पहला साया उस टु कडे को खी ंचा ही था कक दू सरे साए ने धीरे से कहा कक


जल्दी से ककन्तु सम्हल कर बै ठ जाओ, क्ोंकक नीचे िो दोनो गन मैन इस तरि िापस
आ गए हैं। अगर हम दोनो बालकनी में खडे रहेंगे तो सं भि है कक िो ऊपर दे खें और
किर उनकी ऩिर हम दोनो पर पड जाए। साये की बात सु न कर दोनो ही िही ं पर
दु बक कर बै ठ गए थे । खै र कुछ ही दे र बाद जब िो दोनो गन मैन िापस चले गए तो
ये दोनो साए भी उठ कर खडे हो गए।

पहले िाले साए ने काॅच का िो टु कडा बै ठे समय ही बालकनी में एक तरि रख


कदया था। अतः अब उसने ल्कखडकी के कटे हुए कहस्से में अपना दाकहना हाॅथ

994
सािधानी से डाला और किर अं दर से ही नीचे की तरि लाकर उसने ल्कखडकी की
कुण्डी को तलाशा और उसे ऊपर उठा कर खोल कदया। उसके बाद उसने अं दर से
ही दू सरे पल्ले की कुण्डी को भी खोल कदया। साये को अं दर की तरि पदाग लगा होने
का भी पता चला। खै र, अपना हाॅथ सािधानी से बाहर कनकाल कर उसने ल्कखडकी
के दोनो पल्लों को अं दर की तरि पु श ककया तो हिी सी आिा़ि हुई ककन्तु दोनो ही
पल्ले अं दर की तरि खु ले न। पहले साये को समझते दे र न लगी कक पल्लों के अं दर
की तरि ऊपर भी कुल्कण्डयाॅ हैं जो कक बं द हैं । अतः साए ने किर से उसी कटे हुए
भाग से अं दर हाथ डाला और किर ऊपर हाॅथ करके ऊपर की कुण्डी को नीचे की
तरि हिे से ल्कखसका कदया। ऐसा ही उसने दू सरे पल्ले पर भी ककया।

थोडी ही दे र में ल्कखडकी के दोनो पल्ले अं दर की तरि पु श ककये जाने से खु लते चले
गए। ये दे ख कर दोनो सायों के होठों पर मुस्कान उभर आई। जैसा कक पहले ही
बताया जा चु का है कक ल्कखडकी के अं दर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कक अधेरा था।
हलाॅकक ल्कखडकी में अं दर की तरि पदे लगे होने की िजह से भी अधेरे का आभास
हो सकता था। अतः पहले साए ने पल्ले खोलने के बाद अधेरे में डूबे पडे कमरे की
तरि अपने कान लगा कदया। कदाकचत इस कलए कक िो अं दर की ककसी भी ची़ि की
आहट को सु न सकें। ककन्तु अं दर से कोई भी बारीक से बारीक आिा़ि नही ं आ रही
थी। मतलब साि था कक कमरा पू री तरह खाली था। उसमें ककसी भी आदमी का
कोई िजूद नही ं था।

पहले साए ने एक छोटी सी पें कसल टाचग अपने लबादे से कनकाली और कमरे के अं दर
की तरि एक हाॅथ से पदे को हटा कर उसे रौशन ककया। पें कसल टाचग के प्रकाश का
हिा सा िोकस कमरे के अं दर की हर ची़ि पर साए के द्वारा हाॅथ से घुमाने पर
घूमने लगा। कमरे के बाएॅ तरि ही एक आलीशान बे ड ऩिर आया। उसके कुछ ही
िाॅसले पर दो सोिे रखे ऩिर आए। ल्कखडकी के नीचे लगभग तीन िुट की दू री पर
कमरे का िसग था कजसमें बे हतरीन टाइल्स लगी हुई ऩिर आई। सारी ची़िों को
दे खने के बाद पहला साया आराम से पदाग हटा कर ल्कखडकी के रास्ते कमरे में आ
गया। उसके बाद दू सरा साया भी आ गया।

कमरे में आते ही दू सरे साए ने ल्कखडकी के दोनो पल्ले बं द ककये और किर सािधानी
से पदाग खी ंच कदया। उसके बाद पें कसल टाचग की मदद से ही हर जगह को बारीकी से
दे खने लगे। दीिार पर लगी पें कटं ग्स से ही पता चला कक ये कमरा मंत्री के बे टे सू रज
चौधरी का है। दीिार पर कई जगह उसकी खु द की भी िोटो लगी हुई थी साथ ही
कई जगह ऐसी पें कटं ग्स भी लगी हुई थी जो कक लडककयों ि औरतों की नग्नता को
उजागर कर रही थी।

995
"़िरा चे क करो कक कमरे का दरिाजा अनलाॅक है या नही ं।" दू सरे साए ने धीरे से
कहा___"और अगर अनलाॅक है तो तु म यहाॅ से उस कमरे में जाने की कोकशश
करो जो कमरा खु द मंत्री का हो। िहाॅ जा कर बारीकी से हर ची़ि को दे खो। इस
िक्त मंत्री अपने इस आिास पर नही ं है। ककसी ़िरूरी काम से बाहर गया हुआ है।
किर भी ़िरा सािधानी से काम ले ना। अब जाओ।"

दू सरे साए की बात सु न कर पहला साया कमरे के दरिाजे की तरि बढा। दरिाजे के
पास पहुॅच कर उसने दरिाजे के हैण्डल को पकड कर घु माया मगर िह घूमा नही ं।
इसका मतलब कमरा बाहर से लाॅक था। बात भी जाय़ि थी, मं त्री का बे टा तो यहाॅ
था नही ं इस कलए मंत्री ने या किर उसके ककसी कमगचारी ने इस कमरे को बाहर से
लाॅक कर कदया होगा। खै र, दरिाजे को लाॅक जान कर िो साया पलट कर दू सरे
साए के पास आया और उसे बताया कक दरिाजा बाहर से लाॅक है। उसकी बात सु न
कर दू सरे साए ने अपने लबादे से कनकाल उसके हाॅथ में कोई ची़ि दी।

पहले साए ने पें कसल टाचग की रोशनी में उस ची़ि को दे खा तो अनायास ही उसके
होठों पर मुस्कान उभर आई। दरअसल िो ची़ि "मास्टर की" थी। किर क्ा था,
मास्टर की ले कर पहला साया तु रंत दरिाजे के पास गया और दरिाजे पर लगे
हैल्कण्डल के कीहोल में उस मास्टर की को डाला और किपरीत कदशा में घुमा कदया।
नतीजा ये हुआ कक दरिाजा अनलाॅक हो गया। ये दे ख कर िो साया एक बार किर
मुस्कुराया और किर दरिाजे को अपनी तरि सािधानी से खी ंचा। दरिा़िे के बाहर
गैलरी थी जो कक एलईडी ट्यू ब लाइट तथा बल्बों के प्रकाश से रौशन थी।

बाहर बल्बों का प्रकाश दे ख कर साया अपनी जगह रुक गया। कदाकचत िो सोचने
लगा था कक रोशनी में िो आगे कैसे बढे ? ककन्तु शायद बढना ़िरूरी था। अतः उसने
दरिाजे से अपना कसर बाहर कनकाल कर गैलरी के दोनों तरि दे खा। गैलरी पू री
तरह सु नसान पडी थी। हलाॅकक गैलरी बहुत लम्बी नही ं थी, बल्कि कुछ ही दू री पर
िो किपरीत कदशा में मुड गई थी। साये ने कुछ दे र सोचने में लगाया और किर बडी
सािधानी से दरिाजे से बाहर गैलरी में आ गया। सनसान गैलरी पर सािधानी से
चलते हुए िो मोड तक आ गया। मोड पर कठठक कर उसने दू सरी तरि की ककसी
भी आहट को सु नने के कलए दीिार के ककनारे की तरि अपना कान सटा कदया।

थोडी ही दे र में िह अपनी जगह से कहला और गैलरी के मोड पर मुड गया। ककन्तु
थोडी ही दू र जाने के बाद उसे िापस लौटना पडा क्ोंकक आगे गैलरी समाप्त थी।
आगे कोई रास्ता नही ं था। साये को समझ आ गया कक िह दू सरी तरि आ गया है।
तभी तो उसे यहाॅ पर कही ं कोई दू सरे कमरे का दरिाजा नही ं कदखा था। खै र,
िापस उसी जगह आकर िह दू सरी साइड िाली गैलरी की तरि बढ चला। आठ दस

996
कदम चलने के बाद ही उसे अं दर की तरि िाली बालकनी की रे कलं ग ऩिर आई।
रे कलं ग के पास पहुॅच कर उसने दे खा कक बालकनी दोनो तरि थी लगभग बीस
कदम की दू री पर उसे नीचे जाने के कलए सीकढयाॅ ऩिर आई। रे कलं ग के दू सरी तरि
नीचे कािी बडा डर ाइं गरूम ऩिर आया। अपने थथान पर खडा साया कुछ दे र तक
कुछ सोचता रहा किर िह बाएॅ साइड की तरि बढ चला। कुछ ही दू री पर उसे एक
और गैलरी ऩिर आई। उसने गै लरी की तरि दे खा तो उसे एक कमरे का दरिाजा
ऩिर आया। दरिा़िा दे ख कर िह ते ़िी से उसकी तरि बढा। थोडी ही दे र में िो
दरिाजे के पास पहुॅच गया। दरिाजे के हैल्कण्डल को पकड कर उसने उसे घुमाया तो
पता चला कक िो लाॅक है। ये दे ख कर उसने िौरन ही अपने लबादे से िो मास्टर की
कनकाली और की होल में चाभी डाल कर घु मा कदया। दरिाजा हिी सी आिा़ि के
साथ खु ल गया।

उसने बहुत ही आकहस्ता से दरिाजे को अं दर की तरि पु श ककया तो पता चला अं दर


अधेरा है। साया कुछ दे र तक ककसी तरह की आिा़ि को सु नने की कोकशश करता
रहा मगर कोई आिा़ि उसे अं दर की तरि से सु नाई नही ं दी। ये महसू स कर उसने
लबादे से पैं कसल टाचग कनकाली और उसके प्रकाश को कमरे के अं दर की तरि
िोकस ककया। िोकस कजस ची़ि पर पडा िो बे ड था। ककन्तु बे ड पर कोई इं सान
सोया हुआ ऩिर न आया। साया बे खौि अं दर दाल्कखल हो गया। कमरे के अं दर हर
ची़ि को उसने पैं कसल टाचग की रोशनी में दे खा। मगर उसे ऐसा कुछ ऩिर न आया
कजसे शायद उसे तलाश थी।

लगभग दस कमनट बाद िह कमरे से िापस बाहर आ गया। अभी िह दरिाजे से


बाहर कनकला ही था ककसी से टकरा गया। ककसी दू सरे ब्यल्कक्त के होने की आशं का
से ही िह बु री तरह हडबडा गया। ककन्तु जैसे ही टकराने िाले पर उसकी ऩिर पडी
तो सामान्य हो गया। टकराने िाला िो दू सरा साया था जो उसके साथ ही यहाॅ इस
तरह आया था।

"क्ा हुआ?" उस दू सरे साये ने धीमी आिा़ि से पू छा___"कुछ कमला क्ा??"


"नही ं।" पहले िाले ने कहा___"अभी तो यही नही ं पता चल रहा कक मंत्री का कनजी
कमरा कौन सा है? िो यहाॅ ऊपर है या किर नीचे है।"

"पता तो करना ही पडे गा।" दू सरे साए ने कहा___"मं त्री के पररिार में उसके दो बच्चे
ही हैं। बीिी कुछ साल पहले ही ईश्वर को प्यारी हो चु की है। खै र, इस िक्त क्ोंकक
मंत्री अपने आिास पर नही ं है इस कलए ये बगला अं दर से खाली ही है। बाहर गनमैन
तै नात हैं। हमें जल्द से जल्द मंत्री के कमरे को ढू ॅढना होगा।"

997
"ठीक है।" पहले िाले ने कहा___"मैं नीचे की तरि चे क करता हूॅ।"
"ओके।" दू सरे िाले ने कहा___"अगर तु म्हें या मुझे मंत्री का कमरा कमलता है तो तु रंत
िोन पर कमस काल दे ना है। िोन बाइब्रे शन पर है अतः बाइब्रे शन से ही पता चल
जाएगा। अब जाओ तु म।"

दू सरे साए की बात सु न कर पहला साया सीकढयों की तरि ते ़िी से बढ गया। आकखर
कािी मसक्कत के बाद मं त्री का कमरा कमल ही गया। मं त्री का कमरा नीचे ही था।
पहले साये ने दू सरे साये को िोन पर कमस काल दे कर सू कचत कर कदया। थोडी ही दे र
में िो दोनो मं त्री के कमरे में थे ।

मंत्री चू ॅकक बगले में नही ं था इस कलए बगले के अं दर कोई था ही नही ं। बगले के
बाहर गनमैन ़िरूर तै नात थे ककन्तु उनमें से ककसी को भी इस बात का अं देशा नही ं
था कक बगले के अं दर दो चोर बडी सिाई से उनकी ऑखों में धूल झोंक कर घुस चु के
हैं। खै र, दोनो सायों ने मंत्री के कमरे में जाकर सबसे पहले तो दरिाजे को अं दर से
बं द ककया उसके बाद कजस काम के कलए आए थे उस काम में लग गए। कमरे में पहले
से ही नाइट बल्ब जल रहा था। ककन्तु पहले िाले साए ने ते ़ि रोशनी के कलए मेन बल्ब
भी जला कदया। अब कमरे में ते ़ि प्रकाश था तथा कमरे में रखी हर ची़ि िष्ट ऩिर
आने लगी थी।

दोनो ने बहुत ही बारीकी से हर ची़ि को दे खना शु रू कर कदया। दोनो के हाि भाि


से ऐसा लग रहा था जैसे िो इस काम में कािी माकहर हों। लगभग बीस कमनट की
मेहनत के बाद िो दोनो ही इस तरह एक दू सरे के पास खडे हो गए जैसे ककसी ची़ि
के न कमलने से बे हद कचं कतत ि परे शान हो गए हों।

"लगता है यहाॅ कुछ नही ं है।" पहले साए ने धीमी आिा़ि से कहा___"मं त्री ने उन
ची़िों को ़िरूर ककसी ऐसी जगह छु पाया होगा जहाॅ पर िो ची़िें ककसी बाहरी
आदमी को ककसी सू रत में न कमल सकें।"

"िो ची़िें ऐसी हैं भी नही ं जो इतनी आसानी से हमें कमल जाएॅगी।" दू सरे साये ने
कहा___"ऐसी ची़िों को तो हर इं सान सात कत़िोररयों के अं दर ही छु पा कर रखता है।
इस कलए हमें ऐसी ही ककसी जगह को तलाश करना होगा जहाॅ पर हमारी ऩिरें
पडी तो हों ककन्तु हमने उस जगह को अं जाने में ऩिरअं दा़ि कर कदया हो।"

"हाॅ ये भी सही कहा।" पहले साए ने इधर उधर ऩिरें घुमाते हुए कहा___"तो ठीक
है एक बार किर से हम हर जगह बारीकी से चे क करते हैं। सं भि है कक इस बार
हमारे हाॅथ कुछ लग ही जाए।"

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पहले साए की बात सु न कर दू सरे साए ने सहमकत में कसर कहलाया और किर से िो
हर जगह का बारीकी से मुआयना करने में लग गया। कमरे में मौजूद हर ची़ि
बे सकीमती थी। किर चाहे िो मंत्री का बे ड हो, सोिे हों, िशग में कबछा कालीन हो या
किर दीिारों पर लगी पें कटं ग्स।

पहला साया बे ड के दाकहने साइड की दीिार की तरि दे ख रहा था। उस दीिार पर


हर दीिार की तरह ऊचाई पर पें कटं ग्स लगी हुई थी ककन्तु पें कटं ग्स के नीचे दीिार पर
नीचे से लगभग छः िुट की ऊचाई पर ऐसे नक्काशी की गई थी जैसे ककसी बडे से
आदम कद शीशे के िेम पर खू बसू रत नक्काशी की हुई होती है। दरअसल दीिार
पर िो एक िेम जैसा ही कुछ बना हुआ था। ककन्तु िेम के अं दर का भाग खाली था।
यानी कक उसमें कोई कचत्र िगैरह नही ं बना हुआ था। बल्कि ऐसा लगता था जैसे कक
ककसी बडी सी ची़ि का कसिग िेम बना कदया गया हो। पहला साया दीिार में बने उस
खाली िेम को बडे ध्यान से दे खने लगा। एकाएक ही उसकी ऑखें कसकुडी ं। उसने
तु रंत ही दीिार के इधर उधर ककसी खास ची़ि की तलाश में अपनी ऩिरें दौडाईं।

दीिार पर बने उस िेम के बाईं तरि एक मध्यम साइ़ि की पें कटं ग लगी हुई थी।
पहला साया जाने क्ा सोच कर उस पें कटं ग की तरि बढा। पें कटं ग के पास पहुॅच कर
उसने अपने एक हाॅथ से पें कटं ग के िेम को पकड कर बाईं तरि ककया। पें कटं ग के
कनचले भाग के बाईं तरि होते ही जो ची़ि ऩिर आई उसे दे ख कर साये की ऑखें
पहले तो हैरत से िटी ं किर एकाएक ही उनमें चमक आ गई। उसने तु रंत ही पलट
कर दू सरे साये को धीमी आिा़ि दे कर अपने पास बु लाया।

दू सरे साये के पास आते ही उसने उस साये को भी पें कटं ग के पीछे दीिार पर ऩिर आ
रही उस ची़ि को कदखाया। दरअसल िो ची़ि एक छोटे से कम्प्प्यू टर के माॅनीटर
जैसी थी। ऊपरी तरि दीिार से कचपकी हुई स्क्रीन और स्क्रीन के नीचे कीबोडग ।
स्क्रीन के ऊपरी भाग पर दो कलर की बकियाॅ थी ं। कजनमें से एक हरी तथा दू सरी
लाल कलर की थी। लाल कलर िाली बिी इस िक्त रौशन थी। स्क्रीन पर कलखा था
"प्लीज इन्टर योर पासिडग "।

"मुझे लगता है कक।" पहले साए ने धीमे स्वर में कहा___"ये ककसी ऐसी जगह के कलए
है जहाॅ पर जाने के कलए इसमें सबसे पहले पासिडग डालना पडता है।"
"कबलकुल ठीक कहा तु मने ।" दू सरे साये ने दीिार पर इधर उधर ऩिर दौडाते हुए
कहा____"ककन्तु यहाॅ पर ऐसा तो कुछ ऩिर नही ं आ रहा कजससे ऐसा प्रतीत होता
हो कक यहाॅ से कही ं दू सरी जगह जाने का कोई रास्ता हो।"

999
"़िरा इस ची़ि को दे ल्कखए।" पहले साए ने दाकहनी तरि दीिार पर ऩिर आ रहे उस
खाली िेम की तरि इशारा करते हुए कहा___"इस दीिार पर ये छः िीट ऊचा तथा
साडे तीन िीट चौडा िेम भला ककस उद्दे श्य से बनिाया गया होगा? अगर ये मान
कर चलें कक ये दीिार पर महज शोभा बढाने के कलए बनिाया गया है तो किर इसी
तरह के से म िेम दो तरि की दीिारों पर भी बने होने चाकहए थे । एक तरि तो कमरे
का दरिाजा है। अतः उस तरि ना भी बनिाया जाता तो कोई बात न थी। ककन्तु ऐसा
िेमनु मा कडजाइन कसिग इसी एक तरि की दीिार पर क्ों बनिाया गया हो सकता
है?"

"यकीनन तु म्हारी बात में प्वाइं ट है।" दू सरे साए ने दीिार पर बने उस िेम की
आकृकत को गौर से दे खते हुए कहा___"अगर इस स्क्रीन से ये पता चलता है कक ये
ककसी ची़ि के कलए पासिडग माॅग रहा है तो ये भी हो सकता है कक यहाॅ पर कोई
ऐसी जगह हो सकती है जहाॅ जाने के कलए हमें इसमें पासिडग डालना होगा। इसका
मतलब ये हुआ कक यहाॅ पर कही ं कोई दू सरी जगह भी है जहाॅ जाने का रास्ता बना
होगा। जोकक किलहाल हमें ऩिर नही ं आ रहा। हलाॅकक ऐसा भी हो सकता है कक ये
माॅनीटर कसस्टम ककसी और ही ची़ि के कलए हो।"

"कबलकुल हो सकता है।" पहले साए ने कहा___"ककन्तु इस कमरे में ऐसे खास
कसस्टम का उपयोग भला ककस ची़ि के कलए हो सकता है? मु झे लगता है कक ये
इले ल्कक्टरक कसस्टम लगाया ही इस कलये गया है कक इसके माध्यम से ही हमें कही ं जाने
का रास्ता ऩिर आए। कहने का मतलब ये कक अगर हम इस स्क्रीन पर सही पासिडग
डाल दें तो मुमककन है कक ककसी जगह जाने का रास्ता ऩिर आ जाए या किर रास्ता
ही बन जाए। या किर ऐसा भी हो सकता है कक कुछ और ही हो जाए।"

"हाॅ ये सही कहा तु मने ।" दू सरे साए ने कहने के साथ ही दीिार पर बने उसी िेम
की तरि पु नः दे खा___"कही ं ऐसा तो नही ं कक ये िेम ही िो रास्ता हो। बे शक ऐसा ही
हो सकता है क्ोंकक ये िेम नीचे िशग से ऊपर की तरि है। दू सरी बात इसका
साइज कबलकुल िै सा ही है जैसे ककसी दरिाजे का होता है। िरना सोचने िाली बात है
कक अगर ऐसा कोई िेम कसिग कमरे की शोभा बढाने के कलए बनाया गया होता तो ये
िशग से लगा हुआ नही ं होता बल्कि िशग से एक या दो िीट की ऊचाई से बना हुआ
होता। तीसरी बात ये बनाया ही इस तरह गया है कक आम इं सान इसे दे ख कर यही
समझेगा कक ये कसिग एक िेम ही है जो कक कमरे की शोभा बढाने के कलए एक तरि
की दीिार पर बनाया गया है।"

"इसका मतलब कक ये साकबत होता हुआ ऩिर आ रहा है कक ये िेम कही ं जाने का
दरिाजा ही है।" पहले साये ने कहा___"और ये तभी खु लेगा जब हम इस इले ल्कक्टरक

1000
कसस्टम में पासिडग डालें गे?"

"करे क्ट।" दू सरे साये ने कहा____"अब सिाल ये है कक इसका पासिडग क्ा होगा?"
"इसका कीबोडग कबलकुल िै सा ही है जैसे ककसी कम्प्प्यू टर का होता है।" पहले साये ने
उस स्क्रीन से लगे ही कीबोडग की तरि दे खते हुए कहा___"इसका पासिडग ककसी के
नाम से अथिा ककन्ही ं सं ख्याओं से भी हो सकता है।"

"बे शक हो सकता है।" दू सरे साए ने कहा___"और ये हमारे कलए कािी कचं ता का
किषय भी हो गया है। क्ोंकक अगर हमें इसका सही पासिडग न कमला तो ये दरिाजा
नही ं खु लेगा। मुझे पू रा यकीन है कक इस दरिाजे के पार ही ऐसी िो जगह है जहाॅ
पर हमें िो ची़िें कमल सकती हैं कजसके कलए हम यहाॅ आए हैं। हलाॅकक ये कसिग
हमारा अं देशा ही है कक यहाॅ पर कोई दरिाजा हो सकता है जहाॅ पर जाने के कलए
ये इले ल्कक्टरक कसस्टम लगाया गया है। ऐसा भी हो सकता है कक इसका उपयोग इसके
अलािा भी ककसी और ची़ि के कलए हो। ककन्तु एक बार चे क तो करना ही चाकहए
हमें। सं भि है कक िै सा ही हो जैसे का हमें अं देशा है।"

"कुछ भी हो सकता है। मगर चे क तो यकीनन करना ही पडे गा। खै र, क्ा ऐसा नही ं
हो सकता कक इसका पासिडग यही ं कही ं मौजू द हो?" पहले साये ने कहा___"मेरे
कहने का मतलब है कक इसका पासिडग मंत्री ने आलमारी में ही कही ं छु पा कर रखा
हुआ हो। मैं ऐसा ये सोच कर कह रहा हूॅ कक जब ये कसस्टम लगिाया गया होगा तब
इसका सबकुछ नया नया ही रहा होगा। शु रू शु रू में ककसी भी ची़ि का पासिडग
हमें इतना जल्दी याद नही ं होता और अगर याद हो भी गया तो उसके भू ल जाने के
चान्से स ज्यादा रहते हैं। ऐसा हम सबके साथ होता है। इस कलए ऐसा मुमककन है कक
जैसे हम ककसी ची़ि का पासिडग अलग से कलख कर उसे सम्हाल कर रख ले ते हैं िै से
ही मंत्री ने भी ककया हो।"

"सही कहा तु मने ।" दू सरे साये ने कहा___"ऐसा हो सकता है। मंत्री ने इसका पासिडग
यही ं कही ं छु पा कर रखा होगा। अतः हम कमरे में रखी इन आलमाररयों की तलाशी
ले ते हैं।"

दू सरे साये की बात सु न कर पहले साये ने हाॅ में कसर कहलाया और किर दोनो ही
कमरे में रखी तीन तीन आलमाररयों की तरि बढे । उन तीन आलमाररयों में एक
अनलाॅक थी जबकक बाॅकी की दो आलमाररयाॅ लाॅक थी। दोनो ने एक एक
लाॅक आलमारी को सम्हाल कलया। मास्टर की से दोनो आलमाररयों को अनलाॅक
ककया और किर उसके अं दर तलाशी अकभयान शु रू कर कदया।

1001
दोनो ही आलमाररयों में कई तरह के काग़जात भरे पडे थे । कजन्हें उलट पलट कर िो
दोनो ही साये बारीकी से दे ख रहे थे । ककन्तु उन कागजातों में उन्हें उस कसस्टम का
पासिडग जैसा कुछ न कमला। आलमारी के अं दर ही एक और लाॅकर था जोकक बं द
था। उन दोनों ने उन लाॅकरों को भी मास्टर की से खोला। अं दर िाले लाॅकसग में
कािी सारी ज्वे लरी तथा बैं क की काॅपी पासबु क िगैरह थी तथा कािी सारे नोटों
के बं डल भी थे ।

तभी दू सरे साये को उस लाॅकर से कुछ कमला कजसे उसने लाॅकर से बाहर
कनकाला। िो एक डायरी थी। दू सरे साये ने उस डायरी को खोल कर उसके हर पे ज
को बारीकी से दे खना शु रू कर कदया। उसमें कािी कुछ ची़िें कलखी हुई थी। कािी
सारे पे ़ि दे खने के बाद सहसा एक पे ज पर साये की ऩिर ठहर गई।

"कमल गया।" साये के मुख से ़िरा ऊची आिा़ि कनकल गई। मारे खु शी के उसे होश
ही नही ं रह गया था कक िो दोनो इस िक्त मं त्री के बगले में चोर की हैंकसयत से आए
हुए हैं। िो तो शु कर था कक बगले के अं दर कोई था नही ं िरना उसकी इस आिा़ि से
़िरूर ककसी न ककसी को पता चल जाता। खै र उसकी आिा़ि से और तो ककसी को
पता न चला ककन्तु पहला साया ़िरूर चौंक कर उसकी तरि दे खने लगा था। दू सरे
साये को भी तु रंत ही खयाल आ गया था कक खु शी के आिे श में उसके मुख से कुछ
ज्यादा ही ऊची आिा़ि कनकल गई थी। दोनो ही कुछ दे र अपनी साॅसें रोंके खडे
रहे।

पहला साया दू सरे िाले के पास आया और किर उसकी तरि दे ख कर


बोला___"बाहर जो गनमैन तै नात हैं उन्हें यहाॅ बु लाना है क्ा?"
"साॅरी।" दू सरा साया बोला___"मारे खु शी के याद ही नही ं रह गया था कक हम यहाॅ
चोर बन कर आए हुए हैं । खै र, ये दे खो। हमें कजसकी तलाश थी िो इस डायरी में है।
तु म्हारा कहना कबलकुल सही था कक मं त्री ने उस कसस्टम का पासिडग अलग से कही ं
कलख कर छु पाया हुआ होगा।"

"तो किर दे र ककस बात की है?" पहले साये ने धीमें स्वर में मु स्कुराते हुए कहा___"हमें
यहाॅ पर आए हुए कािी समय हो गया है। इस कलए अब हमें जल्दी जल्दी अपने
काम को अं जाम दे ना होगा। ऐसा न हो कक मं त्री िापस लौट आए यहाॅ। साला
दु भागग्य को कोई नही ं जानता कक कब ककसके कसर पर आ धमके।"
"सही कहा तु मने ।" दू सरे साये ने कहा___"आओ किर शु रू करते हैं।"

कहने के साथ ही दू सरा साया उस कसस्टम की तरि बढ चला, उसके पीछे पीछे ही
पहला साया भी बढ चला था। कसस्टम के पास पहुॅच कर दू सरे साये ने डायरी पर

1002
कलखे पासिडग को कसस्टम पर बडी सािधानी से डाला और किर इं टर का बटन दबा
कदया। इन्टर का बटन दबाते ही स्क्रीन के ऊपर लगी हरी बिी जल उठी साथ ही
स्क्रीन पर "िै लकम" कलखा ऩिर आया। ये दे ख कर िो दोनो साये अभी मुस्कुराये ही
थे कक तभी उनके दाकहनी तरि हिी सी आिा़ि हुई। दोनो ने पलट कर उस तरि
दे खा।

दीिार में कजस जगह िो िेम बना हुआ था उसी िेम के बीचों बीच से एक दरिाजा
खु लता हुआ अं दर की तरि जाने लगा था। िो एक ही पल्ले का मोटा सा दरिाजा
था। जो बं द होने पर कबलकुल दीिार की तरह ही ऩिर आता था। कुछ ही पलों में िो
दरिाजा पू रा खु ल कर दाकहने साइड हो गया। दरिाजे के उस तरि अधेरा था जो कक
इस तरि के उजाले से थोडा दू र हो गया था। दोनो ही साये दरिाजे के पास आकर
खडे हो गए। दरिाजे से आगे लगभग तीन िीट पर िशग था उसके बाद नीचे जाने के
कलए सीकढयाॅ ऩिर आ रही थी ं।

"कमाल है।" पहला साया बोल पडा___"ये तो बे समेंट लगता है। कोई सोच भी नही ं
सकता था कक यहाॅ पर ऐसा कुछ हो सकता है।"
"ऐसे लोग।" दू सरे साये ने कहा____"ऐसे कामों के कलए ऐसी ही जगहों का ज्यादातर
चु नाि करते हैं और इससे से फ्टी भी रहती है। िरना खु द सोचो कक कोई दू सरा यहाॅ
तक कैसे पहुॅच जाएगा? खै र छोंडो, आओ इसके अं दर चलते हैं।"

"मुझे लगता है कक।" पहले साये ने कहा___"हम में से ककसी एक को ही अं दर जाना


चाकहए जबकक ककसी एक को यही ं पर रहना चाकहए। क्ोंकक ऐसा भी हो सकता है
कक बाहर तै नात गनमैनों में से कोई बगले के अं दर ये सोच कर आ जाए कक एक बार
अं दर की तरि का हाल चाल भी दे ख कलया जाए। अतः अगर ऐसी िै सी कोई बात
होती है तो कम से कम हम में से कोई एक यहाॅ रह कर उसे सम्हालने की कोकशश
तो करे गा।"

"ये भी सही कहा तु मने ।" दू सरे साये ने कहा___"तो ठीक है तु म यही ं रहो। इसके
अं दर जाने का काम अब मेरा है।"
"ओके बे स्ट ऑि लक।" पहले साए ने कहने के साथ ही अपने दाकहने हाॅथ का
अगूठा कदखाया उसे ___"ले ककन हाॅ ़िरा सम्हाल कर।"

दू सरे साये ने हाॅ में कसर कहलाया और दरिाजे के उस पार बढ चला। उस पार के
िशग पर आकर िह कठठका और दोनो तरि दे खा तो उसे बाईं तरि दीिार पर एक
ल्कस्वच ऩिर आया। उसने उस ल्कस्वच को पहले ध्यान से दे खा उसके बाद उसने हाॅथ
बढा कर ल्कस्वच का बटन दबा कदया। पररर्ामस्वरूप सीकढयों के ऊपर लगी एक

1003
ट्यू बलाइट रौशन हो गई। अब िहाॅ पर कािी प्रकाश था।

दू सरा साया सामने की तरि मु ड कर बडी सािधानी से सीकढयों पर उतरता चला


गया। जबकक कमरे में दीिार के पास ही खडा पहला साया उसे जाते हुए दे खता रहा।
उसके कदल की धडकनें अनायास ही बढ गईं थी। उधर कुछ ही पलों में दू सरा साया
सीकढयाॅ उतर कर बे समेंट में पहुॅच गया। नीचे की लास्ट सीढी से थोंडी ही दू री पर
दाकहनी तरि की दीिार में एक और ल्कस्वच ऩिर आया। साये ने उस ल्कस्वच का बटन
ऑन कर बे समेंट की लाइट जला दी। लाइट के जलते ही बे समेंट में तीब्र प्रकाश िैल
गया।

तीब्र रौशनी में बे समेंट की हर ची़ि िष्ट ऩिर आने लगी थी। ककन्तु कजस खास ची़ि
पर साये की ऩिर पडी उसे दे ख कर उसकी ऑखें िटी की िटी रह गईं। बे समेंट
कािी बडा था। ऐसा लगता था जैसे ये कोई लम्बा चौडा हाल हो। चारो तरि की
दीिारों पर अलग अलग ची़िों का क्रमशः स्टाक था यहाॅ। ककन्तु सबसे खास ची़ि
ये थी कक हाल के सामने अं कतम छोर के िसग पर ही एक बडी सी टर ाली थी कजसके
ऊपर दो ह़िार के तथा पाॅच सौ के नोटों के बं डल नीचे से ऊपर की तरि रखे हुए
थे । ये सब न्यू करे न्सी थी। जोकक पाॅकलकथन में बं द थी। इतने सारे रुपये को दे ख कर
ककसी की भी ऑखें िटी की िटी रह जाती ं। उस टर ाली के आगे दीिार से सटे स्टील
के खाॅचे बने हुए थे कजनके दो खाॅचों में चमचमाते हुए गोल्ड के कबल्कस्कट रखे हुए
थे । कबल्कस्कट के िो दोनो ही खाॅचे पारदशी शीशे से बं द थे । बाॅकी के खाॅचों में
लकडी के बार्क् थे । िशग पर भी कािी सारे बाॅर्क् रखे हुए थे ।

ये सारी ची़िें दे ख कर साये की ऑखें िटी हुई थी। ककन्तु जल्द ही उसने खु द को
मानो सम्हाला और आगे की तरि बढ चला। लकडी के एक बार्क् के पास पहुॅच
कर उसने बार्क् के ऊपर लगे लकडी के ही ढक्कन रूपी पटरे को पकड कर अपनी
तरि खी ंच कर उसे कनकाला। ढक्कन के हटते ही बार्क् में रखी हुई जो ची़ि ऩिर
आई उसे दे ख कर साये की ऑखें एक बार पु नः हैरत से िैली ं। बार्क् में एक जैसी
कई सारी गन रखी हुई थी। मतलब साि था कक यहाॅ पर कजतने भी ऐसे बार्क् थे
उन सब में तरह तरह की गन्स ही थी ं।

साये ने चारो तरि ऩिर घुमा कर बारीकी से दे खना शु रू कर कदया। दाएॅ तरि
एक केकबन जैसा बना हुआ था। साया उस तरि बढ गया। केकबन में पहुॅच कर
उसने दे खा कक ये एक छोटा सा केकबन है कजसमें एक तरि ऊची सी मेज थी तथा
मेज के ऊपर एक कम्प्प्यू टर रखा हुआ था। मे ज में कई सारे दराज थे । साये ने एक
एक करके सभी दराज को खोल कर दे खा। उन सब में कई तरह की रसीद ि

1004
काग़जात थे तथा कई सारी िाइलें भी थी ं। साये ने उन सभी िाइलों को बारीकी से
दे खना शु रू कर कदया।

िाइलों में से कुछ िाइलों को उसने अलग करके एक तरि रखा। उसके बाद उसने
एक ऩिर कम्प्प्यू टर पर डाली। कुछ दे र तक िह उसे दे खते हुए सोचता रहा। किर
िह अलग की हुई िाइलों को ले कर केकबन से बाहर आ गया। जैसा कक बताया जा
चु का है कक बे समेंट कािी बडा था। साया हर जगह जा जा कर बारीकी से दे खने
लगा। तभी एक तरि उसे एक बडा सा दरिाजा ऩिर आया। ये दरिाजा ठीक िै सा
ही था जैसा कक बे समेंट में आने के कलए उस कमरे में था। इस दरिाजे के बाईं तरि
िै सा ही एक और कसस्टम लगा हुआ था। कजसमें पासिडग डालने के कलए स्क्रीन पर
"प्लीज इन्टर योर पासिडग " कलखा हुआ था। साये ने कुछ सोचते हुए अपने लबादे से
एक छोटा सा मोबाइल कनकाला और उसमें से हरा बटन दबाया। हरा बटन दबाते ही
उसमें डायल काल की कलस्ट में एक ही नं बर कदखा कजसे उसने पु नः हरा बटन दबा
कर डायल कर कदया। डायल करते ही मोबाइल को कान से लगा कलया उसने , कुछ
ही से कण्ड में दू सरी तरि से काल ररसीि ककया गया।

"यहाॅ पर िै सा ही एक और दरिाजा है।" काल ररसीि ककये जाने पर साये ने तु रंत


कबना ककसी भू कमका के धीमे स्वर में कहा___"अतः तु म उस डायरी में दे खो कक क्ा
इसका भी पासिडग उसमें है या किर इन दोनो दरिाजों का एक ही पासिडग है। जल्दी
से दे ख कर मु झे बताओ।"

उधर यकीनन पहला िाला साया ही था। दू सरे साये को अपने कान में कुछ दे र
सु रसराहट की आिा़ि आती रही उसके बाद कुछ कहा गया। कजसके जिाब में साये
ने कहा___"ओह एक कमनट।"

कहने के साथ ही ये साया दरिाजे के बाएॅ साइड दीिार पर लगे कसस्टम के पास
ते ़िी से गया। कसस्टम के पास पहुॅचते ही बोला___"हाॅ अब बताओ।"

उधर से शायद पहला िाला साया इस साये को पासिडग बता रहा था कजसे ये िाला
साया उसके बताने के साथ ही कीबोडग पर अपनी एक उगली से पं च करता जा रहा
था। थोडी ही दे र में साये के द्वारा "इन्टर" का बटन दबाए जाते ही कसस्टम पर लगी
हरी बिी जल उठी। बिी के जलते ही िो दरिाजा हिी आिा़ि के साथ इस तरि
ही खु लता चला गया। दू सरी तरि अधेरा था जोकक इधर की रौशनी से हिा सा दू र
हो गया। हिी रोशनी होते ही सामने सी ंकढयाॅ ऩिर आईं जो कक ऊपर की तरि
जा रही थी। साया उन सीकढयों को दे ख कर पहले कुछ दे र कुछ सोचा किर आगे बढ
कर उन सीकढयों पर चढता चला गया। सीढी के ऊपर आकर उसने दे खा कक सामने

1005
एक और दरिाजा है ककन्तु ये दरिाजा लोहे का था। दरिाजे के कनचले भाग की दरार
में हिी रोशनी कदख रही थी। मतलब साि था दरिाजे के दू सरी तरि कुछ और भी
था ककन्तु क्ा? इस सिाल का जिाब तो उस तरि पहुॅच कर ही कमल सकता था।

साये ने दे खा कक दरिाजा इस तरि से ही बं द है। क्ोंकक मोटा सा ताला कुण्डे पर


झल
ू रहा था। ऐसा ताला साये ने पहली बार ही दे खा था। कुण्डे के पास ही एक कछद्र
था, िो कछद्र ऐसा था जैसे कीहोल हो। यानी कक ये दरिाजा दो तरह से लाॅक था।
साये ने झुक कर कीहोल से अपनी एक ऑख सटा दी। दू सरी तरि कािी उजाला
था तथा उस उजाले में ही उसे ऐसा ऩिर आया जैसे उस तरि कोई िैक्टर ी हो। कुछ
लोग भी उस तरि ऩिर आए। कजनमें कुछ आम आदकमयों के साथ साथ हाॅथों में
गन कलए कुछ गाड्ग स भी थे ।

उस तरि का ऩिारा दे ख कर साये ने कीहोल से अपनी ऑख हटा ली। उसके बाद


िह एक पल के कलए िहाॅ नही ं रुका बल्कि पलट कर िापस चल कदया। बे समेंट में
आकर उसने दरिाजे को बडी सािधानी से बं द ककया। दरिाजा जैसे ही पू रा बं द हुआ
िै से ही बगल से दीिार पर लगे उस कसस्टम के स्क्रीन पर "डोर हैज बीन क्लोज्ड"
कलखा ऩिर आया और साथ ही ऊपर लगी लाल बिी जल उठी। लाल बिी के जलते
ही स्क्रीन पर किर से "प्लीज इन्टर योर पासिडग " कलख गया।

कुछ ही दे र में बे समेंट से चलता हुआ िो साया सीकढयों के पास आया और किर
सीकढयाॅ चढते हुए कमरे में पहले िाले साये के पास आ गया। दरिाजे को बं द करने
के बाद उसने पहले गहरी गहरी साॅसें ली। उसके बाद उसने पहले साए की तरि
दे खा तो हिे से चौंका।

"ये क्ा है?" दू सरे साये ने पहले साये के हाॅथ में बै ग दे ख कर पू छा।
"इसमें मंत्री का लै पटाॅप है।" पहले साये ने कहा___"ये मु झे इस बे ड के नीचे बने
बार्क् में कमला है। मैने इसे अभी दे खा नही ं है । हो सकता है कक इसमें भी पासिडग
िाला चक्कर हो इस कलए इसे हम अपने साथ ही ले चलें गे।"

"ये बहुत अच्छा हुआ।" दू सरे साए ने कहा___"मंत्री के लै पटाॅप में भी कािी कुछ
मसाला कमल सकता है। खै र, इन िाइलों को भी इस बै ग में डाल लो। उसके बाद हमें
तु रंत यहाॅ से कनकलना है। अब यहाॅ पर ज्यादा दे र रुकना ठीक नही ं है।"
"ठीक है।" पहले साए ने कहने के साथ ही बै ग को बे ड पर रखा और दू सरे साये से
िाइलें ले कर बै ग में डाल कलया।

उसके बाद ये दोनो ही शाकतर चोर कजस तरह छु पते छु पाते हुए यहाॅ बडी होकशयारी

1006
से आए थे िै से ही यहाॅ से कनकल भी गए। बालकनी से जब दोनो नीचे ़िमीन पर
उतर आए तो बालकनी में इनकी िो रस्सी ही िस गई। िो तो शु कर था कक इस
तरि आने िाले िो दोनो गनमैन इस तरि आए ही नही ं। िरना उन्हें बालकनी की
रे कलं ग से झल
ू ती हुई ये रस्सी ़िरूर कदख जाती और ये दोनो भी। खै र दोनो ने ककसी
तरह उस रस्सी को कनकाल ही कलया और किर उसी रस्सी के द्वारा बाउण्डर ी िाल के
उस पार भी चले गए। थोडी ही दे र में िो दोनो अधेरे का लाभ उठाते हुए कही ं गायब
से हो गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 60 》

अब तक,,,,,,,

"ये क्ा है?" दू सरे साये ने पहले साये के हाॅथ में बै ग दे ख कर पू छा।
"इसमें मंत्री का लै पटाॅप है।" पहले साये ने कहा___"ये मु झे इस बे ड के नीचे बने
बार्क् में कमला है। मैने इसे अभी दे खा नही ं है । हो सकता है कक इसमें भी पासिडग
िाला चक्कर हो इस कलए इसे हम अपने साथ ही ले चलें गे।"

"ये बहुत अच्छा हुआ।" दू सरे साए ने कहा___"मंत्री के लै पटाॅप में भी कािी कुछ
मसाला कमल सकता है। खै र, इन िाइलों को भी इस बै ग में डाल लो। उसके बाद हमें
तु रंत यहाॅ से कनकलना है। अब यहाॅ पर ज्यादा दे र रुकना ठीक नही ं है।"

"ठीक है।" पहले साए ने कहने के साथ ही बै ग को बे ड पर रखा और दू सरे साये से


िाइलें ले कर बै ग में डाल कलया।

उसके बाद ये दोनो ही शाकतर चोर कजस तरह छु पते छु पाते हुए यहाॅ बडी होकशयारी
से आए थे िै से ही यहाॅ से कनकल भी गए। बालकनी से जब दोनो नीचे ़िमीन पर
उतर आए तो बालकनी में इनकी िो रस्सी ही िस गई। िो तो शु कर था कक इस
तरि आने िाले िो दोनो गनमैन इस तरि आए ही नही ं। िरना उन्हें बालकनी की
रे कलं ग से झल
ू ती हुई ये रस्सी ़िरूर कदख जाती और ये दोनो भी। खै र दोनो ने ककसी
तरह उस रस्सी को कनकाल ही कलया और किर उसी रस्सी के द्वारा बाउण्डर ी िाल के
उस पार भी चले गए। थोडी ही दे र में िो दोनो अधेरे का लाभ उठाते हुए कही ं गायब

1007
से हो गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

सु बह हुई।

मंत्री कदिाकर चौधरी एक किशे ष दौरे पर गया हुआ था। ककन्तु दौरे पर भी उसका पू रा
ध्यान अपने जासू स उस हरीश रार्े के िोन पर ही था। उसे पता था कक रार्े बहुत
जल्द उसे किराज और ररतू के कठकाने का पता िोन पर बताएगा। कपछला सारा कदन
और किर लगभग सारी रात गु़िर गई थी मगर हरीश रार्े का िोन अब तक न
आया था उसके पास। उसने सोचा कक सं भि है कक किराज और ररतू अभी हाल्किटल
में ही अपनी बहन नीलम का इला़ि करिा रहे होंगे। कजसके चलते िो लोग अभी
अपने कठकाने पर िापस न गए होंगे। शायद यही िजह होगी कक रार्े ने उसे अब तक
कोई िोन न ककया था। खै र उम्मीद पर तो दु कनयाॅ कायम है। यही हाल चौधरी का
था। कपछली शाम को ही िह दौरे पर कनकल गया था। उसका प्रोग्राम पहले से ही
किर्क् था। अतः दौरे से लौटने में उसे दू सरा कदन शु रू हो जाना था।

सु बह मं त्री की ऑख उसके मोबाइल िोन के बजने से ही खु ली थी। उसने उठ कर


टाइम दे खा तो सु बह के साढे पाॅच बज रहे थे । मोबाइल की स्क्रीन पर हरीश रार्े
का नाम दे ख कर उसके होठों पर मु स्कान उभर आई, साथ ही चे हरे पर चमक भी
पै दा हो गई। उसने बे हद खु शी के साथ काल को ररसीि कर मोबाइल को कान से
लगाया था और खु शी खु शी पू छा भी था कक 'बोलो रार्े सु बह सु बह खु श खबरी
सु नने के बहुत उतािले हो रहे हैं हम'। उसकी इस बात पर रार्े ने उधर से खु शी
िाले लहजे में ही कहा था कक चौधरी साहब आपका काम सं पन्न हो गया है। इस कलए
आप जल्दी से अपने आिास पर आ जाइये।

हरीश रार्े की ये बात सु न कर चौधरी खु शी से िूला नही ं समाया था। िह िोन पर


ही सारी बात जान ले ना चाहता था मगर रार्े ने कहा कक आमने सामने बात करने
का म़िा ही कुछ और होगा। इस कलए आप आइये और अपने सभी साकथयों को भी
बु ला लीकजएगा। उसके बाद ही तसल्ली से सारी बात बताई जाएगी। रार्े की इस
बात से मंत्री ने हसते हुए कहा था कक ठीक है रार्े हम जल्द से जल्द पहुॅच रहे हैं।

मंत्री जब अपने दलबल के साथ िापस लौट कर गुनगुन ल्कथथत अपने आिास पर
आया तो उस िक्त सु बह के सात बज गए थे । उसने अपने साकथयों को रार्े से बात
करने के बाद ही िोन पर अपने आिास पर आ जाने को कह कदया था। शानदार
बगले के अं दर पहुॅचते ही मंत्री कदिाकर चौधरी को डर ाइं गरूम में अपने सभी साथी

1008
सोिों पर बै ठे कमल गए। ककन्तु हरीश रार्े उसे कही ं ऩिर न आया। ये दे ख कर
उसके चे हरे पर चौकने के भाि उभरे । बाॅकी उसके साथी लोग तो सामान्य ही बै ठे
हुए थे ।

"अरे अिधेश।" मंत्री ने सोिे पर बै ठने के बाद अिधेश की तरि दे खते हुए
कहा___"रार्े कहाॅ गया भई? उसने तो हमें सु बह िोन करके जल्द से जल्द यहाॅ
आने को कहा था और अब िह खु द ही यहाॅ नही ं है। कमाल है भाई, इन जासू सों
का भी कुछ समझ नही ं आता। कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।"

"मैं तो यही ं हूॅ चौधरी साहब।" सहसा तभी हरीश रार्े की कचर पररकचत आिा़ि
डर ाइं ग रूम में गू ॅजी___"और अपने साथ आपके कलए ऐसा तोहिा भी ले कर आया
हूॅ कक आप उस तोहफ़े को दे खेंगे तो यकीनन आप मुझ पर अपनी ये सारी दौलत
लु टा दें गे।"

रार्े की इस आिा़ि को सु न कर चौधरी ने पलट कर रार्े की तरि दे खा। रार्े के


साथ साथ आ रहे कजन दो इं सानी चे हरों पर उसकी ऩिर पडी उन्हें दे ख कर उसके
चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे । यहाॅ पर एक अजीब बात ये भी हुई कक चौधरी के
बाॅकी साकथयों पर हरीश की इस बात का कोई भी प्रभाि न पडा था। िो तीनो ऐसे
चु पचाप बै ठे थे जैसे कक िो माटी के पु तले में तब्दील हो गए हों।

"ओह तो तु म यही ं हो।" रार्े के साथ साथ उन दो चे हरों को भी दे खते हुए चौधरी ने
कहा___"हमें लगा कक हमें सीघ्र बु ला कर तु म खु द ही गायब हो। खै र, ये बताओ कक
ककस तोहफ़े की बात कर रहे थे तु म?"

"यही तो हैं।" रार्े मु स्कुराते हुए अपने साथ आए उन दोनो की तरि इशारा करते
हुए कहा___"हाॅ चौधरी साहब, ये दोनो ही तो तोहफ़े हैं आपके कलए कजन्हें मैं अपने
साथ ले कर आया हूॅ। क्ा आपने इन दोनो को पहचाना नही ं?"

रार्े की ये बात सु न कर चौधरी एकदम से चौंका। बडे ग़ौर से उन दोनो को दे खने


लगा था िह। चौधरी कजन दो चे हरों को ग़ौर से दे खे जा रहा था िो दोनो उसे इस
सं सार के सबसे खू बसू रत कपल ऩिर आए। ऐसा लग रहा था जैसे िो दोनो सबसे
अलग हों। इस िक्त िो दोनो चौधरी को दे ख कर मुस्कुरा रहे थे ।

"ये दोनो खू बसू रत कपल कौन हैं भाई?" चौधरी के माॅथे पर उलझन के भाि आए
थे ___"और ये दोनो भला हमारे कलए तोहिे जै से कैसे हो सकते हैं?"
"आप भी कमाल करते हैं चौधरी साहब।" हरीश रार्े ने ठहाका लगा कर हसने के
बाद कहा___"आप इन दोनो को नही ं पहचानते हैं? ये तो दु कनयाॅ का सबसे बडा

1009
आश्चयग है। अरे ये दोनो तो िही हैं चौधरी साहब कजन्होंने आपकी रातों की नी ंद हराम
कर रखी थी। जी हाॅ, ये िही हैं कजन्होंने आपके बच्चों को अपने कब्जे में कलया हुआ
था और उन िीकडयोज के बल पर आपको भीगी कबल्ली बनाया हुआ था।"

"क्ाऽऽऽ????" सोिे पर बै ठा चौधरी रार्े की इस बात को सु न कर इस तरह उछल


पडा था जैसे अचानक ही उसके कपछिाडे के कनचले कहस्से की सोिे की पु श् गमग तिे
में तब्दील हो गई हो। आश्चयग से ऑखें िाडे िह कुछ दे र तक हकबकाया सा दे खता
रहा। किर जैसे उसे होश आया तो अजीब भाि से बोला___"ये..ये दोनो िही हैं?? नही ं
नही ं रार्े ....ये दोनो तो बहुत मासू म कदख रहे हैं, ये भला इतना बडा काण्ड कैसे कर
सकते हैं?"

"लो भाई।" रार्े किर हसा और किर मेरी तरि दे खते हुए कहा___"अब तु म ही
बताओ इन्हें ।"
रार्े की बात सु न कर मैं मु स्कुराया और किर मैं चौधरी के क़रीब आ गया। मेरे साथ
ही ररतू दीदी भी आ गई।

"तु झे मंत्री ककसने बना कदया चौधरी?" मैने सहसा तीखे भाि से कहा___"तु झमें तो
इतनी भी समझ नही ं है कक मौजूदा हालात में तु म्हारे कलए तोहिे के रूप में रार्े
ककसे ला सकता है? अगर समझ होती तो िौरन ही समझ जाता कक हम दोनो कौन
हैं?"

"़िबान को लगाम दे लडके।" बु री तरह कतलकमलाया हुआ चौधरी सहसा गुराग


उठा___"तु झे पता नही ं है कक तू इस िक्त कहाॅ खडा है? हमसे इस लहजे में बात
करने िालों का बहुत ही भयािह अं जाम होता है।"

"अं जाम का डर उन्हें होता है चौधरी।" मैने कहा___"कजन के कपछिाडे में दम नही ं
होता। तु झे तो इतना भी एहसास नही ं हो रहा कक ते रे आिास में आकर मैं ते रे ही
सामने तु झसे इस लहजे में बात कैसे कर सकता हूॅ?"

"जब ककसी की मौत आती है तो िो ऐसे ही ते रे जैसे अनाप शनाप बकने लगता है।"
चौधरी ने कहा।
"तु झे क्ा लगता है?" ररतू दीदी ने कहा___"हम लोग ते रे सामने रार्े की िजह से
आए हैं? नही ं चौधरी, ये सब तो हमारा ही खे ल है। हमने ही रार्े के द्वारा िोन करिा
के तु झे यहाॅ बलिाया है। ते रे ये सभी साथी इतनी दे र से पु तले की तरह क्ों बै ठे हैं
क्ा तु झे कुछ समझ नही ं आया?"

ररतू दीदी की बात सु न कर चौधरी के मल्कस्तष्क में मानो एकाएक ही किष्फोट सा

1010
हुआ। कदमाग़ की सारी बकियाॅ रौशन हो उठी। सारी बातें बडी ते ़िी से उसके मन में
चलने लगी। उसने अजीब भाि से अपने साकथयों की तरि दे खा और किर रार्े की
तरि।

"खे ल खत्म हो चु का है चौधरी साहब।" रार्े तु रंत बोल उठा___"मैं तो कल ही इनके


आदकमयों के द्वारा पकड कलया गया था। उसके बाद इन लोगों ने मु झसे सब कुछ पू छ
कलया और मु झे बताना ही पडा। मुझे भी इस बात का अं देशा था कक आपके पीछे
गुप्त रूप से कायगिाही की जा रही है। अतः मै ने सोचा कक अगर मैने आपके कलए
काम ककया तो कनश्चय ही मैं भी कानू न की चपे ट में आ जाऊगा इस कलए मैंने िही
रास्ता चु ना जो सच्चा था और मेरे कलए बे हतर भी था।"

"गद्दार।" चौधरी पू रे क्रोध में बोल पडा___"अपनी सलामती के कलए तू ने हमें िसिा
कदया। तु झे क़िंदा नही ं छोंडेंगे हम। तु म सबको अब मौत ही कमले गी। तु म लोग अब
यहाॅ से क़िंदा िापस नही ं जा सकते ।"

"कजनके दम पर तू हमें मौत दे ने की बात कर रहा है न िो सब तो पु कलस की कगरफ्त


में आ चु के हैं।" मैने सहसा झुक कर चौधरी की ऑखों में ऑखें डाल कर
कहा___"और ते रे में इतना दम ही नही ं है कक तू मेरा बाल भी उखाड सके।"

मेरी इस बात से चौधरी को साॅप सा सू ॅघ गया। अनु भिी आदमी था। उसे समझते
दे र न लगी कक कजस अं दा़ि से मैं उससे बात कर रहा था िो तभी सं भि था जब िो
कुछ भी कर पाने की पोजीशन में न हो। अभी मैं उसे दे ख ही रहा था कक सहसा तभी
बाहर से ढे र सारे पु कलस के आदमी अं दर दाल्कखल हुए। उन सभी पु कलस िालों के बीच
से ही एसीपी रमाकान्त शु क्ला चलता हुआ हमारे पास आया।

"िे ल डन इं िेक्टर ररतू ।" किर उसने दीदी की तरि दे ख कर कहा___"यकीनन तु म


दोनो ने बहुत ही बडा काम ककया है।" कहने के साथ ही एसीपी चौधरी की तरि
पलटा___"दु कनयाॅ की कोई भी ताकत अब तु म्हें कानू न की सलाखों के पीछे से नही ं
कनकाल सकती। तु म्हारे ल्कखलाफ़ हमें इतने सबू त कमल चु के हैं कक अब तु म ककसी भी
कीमत पर बच नही ं सकते ।"

"ककन सबू तों की बात कर रहे हो आिीसर?" चौधरी ने हैरानी से कहा___"और ये


इतनी सारी पु कलस िोसग यहाॅ ककस कलए ले कर आए हो तु म?"
"दे खते जाओ चौधरी।" एसीपी ने कहा___"कुछ ही दे र में सब कुछ पता चल जाएगा
तु म्हें।"

पु कलस िालों को कदाकचत पहले ही समझा कदया गया था कक क्ा करना है। अतः िो

1011
यहाॅ आते ही अपने काम पर लग गए थे । चौधरी ये सब दे ख कर एकाएक बु री तरह
बौखला गया। उसके चे हरे पर डर ि घबराहट के भाि उभर आए। कचं ता ि परे शानी
के चलते पू रा चे हरा पसीने पसीने हो गया उसका। उसके साकथयों का भी िही हाल
था।

कुछ ही दे र में िहाॅ पर पु कलस महकमे के कुछ और आला अकधकारी आ गए।


चौधरी को कुछ भी करने का मौका न कमला। िो तो यही नही ं समझ पा रहा था कक
इतनी सारी पु कलस िोसग इतनी जल्दी यहाॅ कैसे आ गई? अं दर की तरि गए हुए
पु कलस िाले थोडी ही दे र में बाहर आए और उन्होंने जो कुछ बताया उसे सु न कर
चौधरी के कसर पर सारा आसमान भरभरा कर कगर गया। उसका चे हरा एकदम से
कनस्ते ज पड गया।

लगभग एक घंटे की कठोर कायगिाही के बाद आला अकधकाररयों के साथ मंत्री को


कगरफ्तार कर बगले से बाहर ले जाया जाने लगा। बाहर आते ही चौधरी ने दे खा कक
बाहर भीड जमा है। उस भीड में प्रे स ि मीकडया के लोग थे जो मंत्री ि पु कलस के
आला अकधकाररयों से तरह तरह के सिाल पू छने लगे थे । प्रे स ि मीकडया िालों को
सं क्षेप में उनके सिालों के कुछ जिाब दे कर चौधरी को ले कर पु कलस िाले चले गए।
मंत्री के आिास को सील कर पु कलस कसक्ोररटी लगा दी गई।

ये मामला ही ऐसा था कक पलक झपकते ही मं त्री की कगरफ्तारी की खबर प्रदे श में हर


तरि िैल गई। मंत्री के चाहने िाले तथा पाटी के उसके सहयोकगयों ने किरोध प्रदशग न
तो ककया ककन्तु उस सबको पु कलस िालों ने सम्हाल कलया। मैं और ररतू दीदी मंत्री के
इस ककस्से को खत्म करके िापस लौट आए थे । हरीश रार्े को खु शी खु शी हमने
छोंड कदया था। िो खु द भी इस सबसे खु श था कक उसने अच्छाई का साथ कदया। रार्े
जाते जाते हम लोगों के कान्टै क्ट नं बर ले गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मंत्री के पकडे जाने की ये खबर हिे ली में अजय कसं ह को भी हो गई। इस खबर
ने अजय कसं ह की हालत को लकिा मारने जै सी बना कदया। कुछ समय के कलए तो
उसे ऐसा लगा जैसे इस सं सार में अब कुछ बचा ही नही ं है बल्कि सब कुछ शू न्य में ही
खो गया है। उसे यकीन नही ं हो रहा था कक ऐसा कुछ हो जाएगा। किराज और ररतू ने
उसके कलए जैसे हर तरि से रास्ता ही बं द कर कदया था। कहाॅ िह मंत्री के िोन
द्वारा ये पता चलने का इन्त़िार कर रहा था कक उसका भतीजा और उसकी बे टी
आकद सब पकड कलए गए हैं और कहाॅ अब इस खबर ने उसके मुकम्मल िजूद को
ही कहला कर रख कदया था।

अजय कसं ह मंत्री के पकडे जाने से कचं कतत ि परे शान तो था ही साथ ही िह इस बात

1012
के कलए भी बे हद परे शान हो गया था कक उसके दोस्तों ने अपने कजन आदकमयों को
उसकी सहायता के कलए भे जा था िो सब पु कलस द्वारा पकड कलए गए थे । सु बह से
िोन पर िोन आ रहे थे उसे । ये सब िोन उसके उन दोस्तों के ही थे । जो कह रहे थे
कक उन्हें अपने आदकमयों के पकडे जाने का इतना दु ख नही ं है बल्कि कचं ता इस बात
की है कक उनके िो सब आदमी पु कलस के सामने अपना मु ह न खोल दें कजसकी िजह
से िो सब भी कानू न की चपे ट में आ जाएॅ। अतः इससे बचने के कलए िो सब अजय
कसं ह से कोई न कोई समाधान चाह रहे थे । मगर अजय कसं ह कुछ कहने की हालत में
ही नही ं था। िो तो खु द भी अब मंत्री की िजह से असहाय सा हो गया था। मंत्री का
कानू नन इस तरह पकडे जाना उसके कलए बहुत बडी क्षकत थी। क्ोंकक अब उसे मंत्री
पर ही भरोसा था कक िो उसे इस सारे खे ल में जीत कदलाएगा। मगर अब सब कुछ
जैसे स्वाहा हो चु का था।

प्रकतमा और कशिा सु बह से उसके पास ही थे । इस िक्त दोपहर हो चु की थी। अजय


कसं ह अकेला ही डर ाइं ग रूम में गुमसु म सा बै ठा था। प्रकतमा ककसी काम से बाहर गई
हुई थी। कशिा अपने कमरे में था। सोिे पर बै ठा अजय कसं ह कशगार पे कशकार िूके
जा रहा था। सकिता जो उसकी घरे लू नौकरानी थी उसने उसे अब तक जाने ककतनी
बार चाय बना कर कपलाया था। हालात की गं भीरता का उसे भी एहसास था। उसे
इस हिे ली का सब कुछ पता था ककन्तु उसने कभी इस मामले में हिे ली के ककसी भी
सदस्य से कोई बात नही ं की थी। उसे पता था कक इस बारे में बात करने का सबसे
पहले तो उसका कोई हक़ ही नही ं है दू सरी बात उसकी बातों को कोई सु नना पसं द
भी नही ं करता।

सारी बातों को सोचते सोचते अजय कसं ह इतना परे शान हो चु का था कक उसका कसर
ददग करने लगा था। िह उठा और सकिता को आिा़ि दे कर कहा कक िो उसके कसर
की बकढया से माकलश कर दे । ये कह कर अजय कसं ह अपने कमरे की तरि बढ गया।
सकिता चालीस के आस पास की साॅिली सी औरत थी। उसका पकत उसे बरसों
पहले छोंड कर चला गया था। सकिता और उसका पकत पहले खे तों पर ही काम करते
थे । बाद में उसका पकत जब िापस लौट कर न आया तो गजे न्द्र कसं ह ने उसे हिे ली के
काम धाम पर लगा कलया। सकिता को हिे ली में रहते हुए लगभग दस साल हो गए थे ।
उसने इस हिे ली के अं दर अब तक क्ा क्ा हुआ सब कुछ दे खा सु ना था। मगर
उसने कभी इस बारे में कोई दखलअं दा़िी न की थी। उसे ये भी पता था कक अजय
कसं ह का पररिार कैसा है तथा ये भी कक ये ररश्ों को नही ं मानते । उसने कशिा को
अपनी ऑखों से अपनी ही माॅ को सं भोग करते दे खा था। उस कदन उसे लगा था कक
ककलयुग िाकई आ चु का है।

अजय कसं ह ने सकिता के साथ जाने ककतनी बार सं भोग ककया था इसका उसे खु द

1013
पता नही ं था। कई बार िह पे ट से भी हुई थी ककन्तु अजय कसं ह ने हर बार उसके पे ट
से अपना बीज कगरिा कदया था। सकिता ने पररल्कथथकतयों के साथ पहले ही समझौता
कर कलया था। उसका अपना कोई नही ं था। ररतू ि नीलम को िो अपनी ही बे टी की
तरह मानती थी और हमेशा दु िा ककया करती थी कक िो दोनो खु श रहें। ररतू ि
नीलम भी उसे बहुत इज्ज़ित ि सम्मान दे ती थी ं। उन दोनो ने कभी उसे नौकरानी नही ं
समझा था। बल्कि हमेशा उसे काकी ही कहती थी। हलाॅकक कशिा का ब्यौहार अपने
बाप की तरह ही था। ककन्तु सकिता के साथ ़िबरदस्ती करने की कहम्मत उसमे कभी
न हुई थी। सकिता एक तं दुरुस्त तबीयत की औरत थी। मेहनत कर करके िह बे हद
मजबू त हो गई थी। िह कदखती भी ऐसी थी कक कशिा जैसा छोकरा उससे ़िबरदस्ती
करने की कहम्मत कर ही नही ं सकता था। कपछले कुछ सालों से अजय कसं ह ने सकिता
को भोगना बं द कर कदया था। इस बात से सकिता को राहत महसू स हुई थी। अजय
कसं ह के सकिता के साथ सं बंधों की जानकारी प्रकतमा को शु रू से ही थी। ककन्तु उसे
इस बात से कोई आपकि नही ं थी।

थोडी ही दे र में सकिता अपने हाॅथ में एक कटोरी कलए अजय कसं ह के कमरे में
दाल्कखल हुई। कटोरी में शु ि सरसो का ते ल था। कमरे में पहुॅचते ही सकिता ने दे खा
कक अजय कसं ह बे ड पर ले टा हुआ है। आज कािी समय बाद अकेले कमरे में अजय
कसं ह के पास आते हुए सकिता को थोडा असहज सा लगा। ककन्तु उसे पता था कक
माकलश तो उसे करनी ही पडे गी और अगर अजय कसं ह ने उसके साथ सं भोग करने
की इच्छा ़िाकहर की तो उसे उसकी िो इच्छा भी पू री करनी पडे गी।

अजय कसं ह की ऩिर हाॅथ में कटोरी कलए आई सकिता पर पडी तो उसने उसे ऊपर
से नीचे तक दे खा। पहले की अपे क्षा सकिता का कजस्म कािी आकषग क सा हो गया
था। हर अं ग अपनी जगह सही से ढला हुआ था। ऊम्र का असर उसके कसर के बालों
से कदख रहा था। बाॅकी उसका समूचा कजस्म कसा हुआ था। सीने के उभार प्रकतमा
से कतई कम न थे । ब्लाऊज िाड कर बाहर आने को आतु र थे । अजय कसं ह को ग़ौर
से अपनी तरि दे खते दे ख सकिता के सं पूर्ग कजस्म में झुरझुरी सी दौड गई।

"चकलए माकलक।" किर उसने खु द को सामान्य बनाते हुए कहा___"आपके माॅथे पर


माकलश कर दे ती हूॅ।"
"ओह हाॅ हाॅ।" अजय कसं ह उसकी बात सु नते ही कुछ झेंप सा गया___"इस िक्त
माकलश की िाकई बहुत ़िरूरत है सकिता। प्रकतमा बाहर गई हुई है िरना तु म्हें
तक़लीि न दे ता। िो खु द भी बहुत अच्छी माकलश कर ले ती है।"

"कोई बात नही ं माकलक।" सकिता ने बे ड के क़रीब आते हुए कहा___"मैं तो अर्क्र
मालककन की माकलश करती ही रहती हूॅ। आज आपकी भी कर दे ती हूॅ। चकलए

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ले ट जाइये अब।"
"इन कपडों को उतार दू ॅ क्ा?" अजय कसं ह ने अपने बदन के ऊपर पहने कपडों की
तरि दःखते हुए कहा।

"माकलश तो माॅथे पर करनी है न माकलक।" सकिता ने जल्दी से कहा___"कपडे


उतारने की क्ा ़िरूरत है?"
"बात तो ठीक ही है तु म्हारी।" अजय कसं ह कहने के साथ ही मु स्कुराया___"पर अगर
पू रे बदन की माकलश कर दोगी तो क्ा बु राई है? मु झे भी तो पता चले कक तु म अपनी
मालककन की ककस तरह से माकलश ककया करती हो?"

अजय कसं ह की बात सु न कर सकिता को साॅप सा सू ॅघ गया। उसका कदल ़िोर ़िोर
से धडकने लगा था। ऐसा नही ं था कक उसने अजय कसं ह को कबना कपडों के दे खा
नही ं था बल्कि उसने तो इसके पहले न जाने ककतनी बार खु द कबना कपडों के उसके
साथ सं भोग ककया था ककन्तु एक दो सालों से ये ररश्ा लगभग कमट सा गया था। इस
कलए उसे इस बात का अं देशा था कक कही ं आज किर ऐसे हालात न बन जाएॅ कक
उसे सं भोग करना पढ जाए। दू सरी बात ये भी थी कक अब िो ककसी सू रत में नही ं
चाहती थी कक िो इस आदमी के साथ िो सब करे । उसने मन ही मन ईश्वर को याद
ककया कक उसे इस पररल्कथथकत से बचाए।

उसकी इस िररयाद को मानो ईश्वर ने सु न भी कलया, क्ोंकक तभी कमरे में एक तरि
टे बल पर रखे लै ण्डलाइन िोन की घंटी घनघना उठी थी। िोन के बजने से अजय
कसं ह के चे हरे पर अकप्रय भाि उभरे । किर उसने बे ड के ककनारे पर ल्कखसक कर िोन
के ररसीिर को उठा कर कान से लगाते ही है लो कहा।

".............।" उधर से जाने क्ा कहा गया। ककन्तु इतना ़िरूर हुआ कक उसके चे हरे
पर बु री तरह चौंकने के भाि उभरे और किर सहसा उसने पलट कर सकिता को
कमरे से चले जाने को कहा। उसके इस तरह चले जाने का सु न कर पहले तो सकिता
चौंकी किर जल्द ही िापस कमरे से बाहर की तरि चल पडी।

कमरे से बाहर आते ही सकिता ने राहत की साॅस ली और किर ककचे न की तरि बढ


गई। ककचे न में उसने ते ल की कटोरी को रखा और किर ककचे न से बाहर डर ाइं गरूम
की तरि बढ गई। डर ाइं गरूम में आते ही उसकी ऩिर मालककन यानी की प्रकतमा पर
पडी जो एक तरि टे बल पर ही रखे िोन के ररसीिर को कान से लगाए खडी थी।
उसका चे हरा दू सरी तरि था। सकिता अपनी मालककन को दे ख कर िापस अं दर की
तरि चली गई।

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उधर कमरे में अजय कसं ह कािी दे र तक ककसी से बात करता रहा। उसके चे हरे पर
कई तरह के भािों का आिागमन चालू था। खै र कुछ दे र बाद उसने अपने कान से
हटा कर ररसीिर को िापस केकडर ल पर रख कदया। ररसीिर रखने के बाद उसने एक
गहरी साॅस ली और किर सहसा जाने क्ा सोच कर मु स्कुरा उठा।

अभी अजय कसं ह मु स्कुरा ही रहा था कक तभी कमरे में प्रकतमा दाल्कखल हुई। प्रकतमा
को दे ख कर अजय कसं ह की मु स्कान और गहरी हो गई। उसके होठों पर िैली इस
मुस्कान को दे ख कर प्रकतमा के होठों पर भी मुस्कान िैल गई।

"क्ा बात है जनाब।" किर प्रकतमा ने उसके समीप आते हुए कहा___"बहुत मु स्कुरा
रहे हो। कारून का कोई खजाना कमल गया है क्ा?"
"ऐसा ही समझो कडयर।" अजय कसं ह कहने के साथ ही आलमारी की तरि बढा,
किर बोला___"बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कक कारून का खजाना भी
उसके सामने कुछ नही ं है।"

"ओह ऐसा क्ा?" प्रकतमा की ऑखें िैली___"़िरा मु झे भी तो बताओ कक ऐसा कौन


सा खजाना कमल गया है कजसके सामने कारून के खजाने की कोई औकात ही नही ं
है।"
"़िरूर बताऊगा प्रकतमा।" आलमारी से कोट कनकालने के बाद अजय कसं ह ने
कहा___"पहले खजाने को मेरे हाॅथ तो लगने दो।"

"क्ा मतलब??" प्रकतमा के चे हरे पर चौंकने के भाि उभरे ___"क्ा िो खजाना अभी
तु म्हारे हाॅथ नही ं लगा है?"
"लग जाएगा माई कडयर।" अजय कसं ह ने कोट पहनते हुए कहा___"और इस खजाने
को मेरे हाथ लगने से ब्रम्हा भी नही ं रोंक पाएॅगे।"

"बडी अजीब बातें कर रहे हो आज।" प्रकतमा ने सहसा कतरछी ऩिरों से दे खते हुए
कहा___"कही ं तु म्हारे इस खजाने का सं बंध ररतू अथिा किराज से तो नही ं है?"
"ज्यादा कदमाग़ मत चलाओ प्रकतमा।" अजय कसं ह ने सपाट लहजे में कहा___"बस
समय का इन्त़िार करो। खै र, मैं ़िरूरी काम से बाहर जा रहा हूॅ शाम तक
लौटू ॅगा। कशिा से कहना िो कही ं बाहर न जाए बल्कि हिे ली में ही रहे।"

प्रकतमा की प्रकतकक्रया सु ने कबना ही अजय कसं ह कमरे से बाहर कनकल गया। उसके
जाते ही प्रकतमा के चे हरे पर सहसा गहन पीडा के भाि उभरे और किर एकाएक ही
उसकी ऑखें छलक पडी ं। आगे बढ कर िह बे ड पर धम्म से बै ठ गई। उसके मनो
मल्कस्तष्क में ऑकधयाॅ सी चलने लगी थी।

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~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मंत्री कदिाकर चौधरी के अपने साकथयों सकहत पु कलस द्वारा कगरफ्तार कर कलए
जाने की सू चना मैने मं त्री के बे टे सू रज चौधरी ि उसके तीनो साकथयों को भी दे दी।
चारो इस खबर को सु न कर कबलकुल असहाय से हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे
उनके कजस्मों में जान ही न रह गई हो। चारो की हालत िै से भी बहुत ही दयनीय हो
चु की थी। भरपे ट खाना न कमलने की िजह से तथा शारीररक ि मानकसक यातनाओं
के चलते िो चारो ही बे हद कम़िोर लगने लगे थे । दू सरे कमरे में मं त्री की बे टी को भी
ररतू दीदी ने उसके बाप के सं बंध में सू कचत कर कदया था। रचना चौधरी इस खबर से
बु त बन कर रह गई थी। ककन्तु जब उसके मु ख से लफ़्ि कनकले तो बडे अजीब थे ।
उसका कहना था कक मेरे बाप भाई ने कजतने पाप कमग ककये थे उसका अं जाम तो यही
होना था न।

सू रज चौधरी ि उसके तीनो दोस्त हर तरह से टू ट चु के थे । मौत की भीख माॅग रहे


थे चारो मगर मौत कमलना इतना आसान नही ं था। इस बीच मैने िैंसला ककया कक
इन सबको यहाॅ से आ़िाद कर कदया जाए। उन चारो की हालत दे ख कर मु झे इस
बात का बोध हो चु का था कक िो पश्चाताप की आग में जल रहे हैं। बडे से बडे अपराध
के कलए भी इं सान को क्षमा कर कदया जाता है और उसे सु धरने का एक मौका कदया
जाता है। दू सरी बात, ये सब करके मुझे मेरी किधी तो कमलनी नही ं थी। उसके साथ
हुए अत्याचार का मैने बदला ले कलया था इन लोगों से ।

उन चारों को आ़िाद कर दे ने िाले मेरे िैंसले से थोडी न नु कुर के बाद आकखर सब


रा़िी हो गए थे । ककन्तु सिाल ये था कक िो आ़िाद होने के बाद जाएॅगे कहाॅ?
क्ोंकक मंत्री का बगला तो पु कलस द्वारा सील कर कदया गया था। इस सिाल का जिाब
ररतू दीदी ने कदया, ये कह कर कक ये सब कचमनी में अपने पु श्ैनी घर जा सकते हैं।
ररतू दीदी की इस बात से समस्या का समाधान हो चु का था। अतः अब यही िैंसला
हुआ कक इन सबको बे होश करके कचमनी भे ज कदया जाए।

मैने मौसा जी को िोन करके सारी बात बताई और उनसे आग्रह ककया कक क्ा िो
इन चारो को कचमनी भे जने का काम करिा सकते हैं? मेरी इस बात पर िो हस कर
बोले इसमें सं कोच की क्ा बात है बे टा? थोडी ही दे र में केशि जी अपने कुछ
आदकमयों को ले कर हमारे पास आ गए। मैने और आकदत्य ने चारो को बे होश कर
कदया और केशि की गाडी में उन सबको डलिा कदया। उनके साथ ही रचना को भी
बे होश करके डाल कदया था। ये सब होने के बाद केशि जी अपने आदकमयों के साथ
कचमनी गाॅि के कलए कनकल गए।

उन सबको आ़िाद करने के बाद मन को थोडा शाल्कन्त सी कमल गई थी। इस िक्त

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डर ाइं ग रूम में मैं ररतू दीदी तथा आकदत्य बै ठे हुए थे । नै ना बु आ ि सोनम दीदी नीलम
के पास उसके कमरे में थी ं।

"चलो मंत्री और उसके बच्चों से छु टकारा कमल गया आकखर।" सहसा आकदत्य ने
कहा___"अब हम सारा िोकस तु म्हारे ताऊ पर लगा सकते हैं। िै से मु झे तो लगता है
कक अब हमें खु ल कर हिे ली में उसके सामने ही चले जाना चाकहए और किर उन
सबका भी काम तमाम कर दे ना चाकहए। अजय कसं ह मौजूदा हालात में कुछ भी कर
सकने की पोजीशन में नही ं है। उसकी आकखरी उम्मीद कनःसं देह मंत्री ही था जोकक
अब िो भी कानू न की लम्बी चपे ट में आ चु का है। दू सरी बात उसके कजतने भी
आदमी थे उन सबको भी पु कलस कगरफ्तार कर चु की है। कहने का मतलब ये कक इस
िक्त अजय कसं ह कनहत्था ि असहाय अिथथा में है । हम बडी आसानी से उसे लपे टे में
ले सकते हैं और उसका कहसाब ककताब कर सकते हैं।"

"इस बात का एहसास तो उसे भी हो ही गया होगा मेरे यार।" मैने कहा___"िो भी
इस बात को समझता होगा कक मौजूदा हालात में हम उसके बारे में क्ा सोच रहे
होंगे? इस कलए िो पू री कोकशश करे गा कक िो हमारी सोच को सही साकबत न होने दे ।
यानी कक िो कुछ ऐसा ़िरूर करे गा कजससे हम उसके सामने इस तरह न जा सकें
कजस तरह की तु म बात कर रहे हो।"

"राज कबलकुल सही कह रहा है आकदत्य।" ररतू दीदी ने गहरी साॅस ले कर


कहा___"मैं अपने डै ड को बहुत अच्छी तरह से जानती हूॅ। िो इस पररल्कथथकत में भी
कोई ऐसा जु गाड कर ही लें गे कक हम उनके पास इस तरह से उनका कतया पाॅचा
करने न पहुॅच सकें।"

"तु म्हारे कहसाब से िो ऐसा क्ा जुगाड कर सकता है अब?" आकदत्य ने


पू छा___"जबकक मौजूदा हालात साि शब्दों में बता रहे हैं कक िो अब कुछ भी करने
की पोजीशन में नही ं रह गया है।"

"इस बारे में मैं कुछ कह नही ं सकती।" ररतू दीदी ने सोचने िाले अं दा़ि से
कहा___"ककन्तु उनके सं बंध कई ऐसे लोगों से रहे हैं अथिा ये कहूॅ कक हैं जो ऊचे
द़िे के अपराधी हैं। अतः सं भि है कक डै ड अपने ऐसे ही ककन्ही ं अपराधी दोस्तों से
मौजूदा हालात में मदद की गु हार लगाएॅ।"

"चलो ये मान कलया कक तु म्हारे डै ड के ऐसे लोगों से सं बंध हैं और िो उन लोगों से इस


समय मदद माॅग सकते हैं।" आकदत्य ने कहा___"ककन्तु यहाॅ पर मैं एक सलाह दे ना
चाहता हूॅ, और िो सलाह ये है कक तु म्हारे डै ड को उस आधार पर भी तो बडी

1018
आसानी से भीगी कबल्ली बना कर अपने पास बु लाया जा सकता है जो आधार इस
िक्त राज के पास मौजूद है, यानी कक अजय कसं ह का ग़ैर कानू नी सामान। उस
सामान के आधार पर अजय कसं ह यकीनन भीगी कबल्ली बन कर हमारे पास खु द ही
आ जाएगा।"

"ऐसा नही ं हो सकता आदी।" मैने कहा___"क्ोंकक अब तक ये बात मेरे ताऊ को भी


ताई के समझाने पर समझ आ ही गई होगी कक मैं उन्हें उनके ग़ैर कानू नी सामान के
आधार पर कोई क्षकत नही ं पहुॅचाना चाहता बल्कि अपने बलबू ते पर ही अपने ि
अपने पररिार के साथ हुए हर अत्याचार का बदला ले ना चाहता हूॅ। अगर मु झे उस
सामान के आधार पर ही अपने ताऊ का कक्रयाकमग करना होता तो मैं ये काम बहुत
पहले ही कर चु का होता। इस कलए इस बात पर सोचने का कोई मतलब ही नही ं है
दोस्त।"

"मैं तु म्हारी बातों से पू र्गतया सहमत हूॅ।" आकदत्य ने कहा___"ककन्तु उन्हें ये भी तो


पता होगा न कक अगर तु म अपने बलबू ते पर अपने ताऊ का कोई भी बाल बाॅका न
कर पाए तो किर तु म्हारे पास अं कतम चारा िो ग़ैर कानू नी सामान ही तो होगा। यानी
कक तु म उस सामान के आधार पर ही आकखरी चारे के रूप में अपने ताऊ का काम
तमाम करोगे। कहने का मतलब ये कक इस िक्त अगर तु म उसी ग़ैर कानू नी सामान
की धमकी दे कर अपने ताऊ को भीगी कबल्ली बना कर अपने पास आने पर मजबू र
करोगे तो िो यही समझेंगे कक शायद तु म्हारे पास अब यही एक चारा रह गया था
कजसके तहत तु मने अजय कसं ह के उस ग़ैर कानू नी सामान का सहारा कलया है और
उसे अपने पास इस तरह बु ला रहे हो।"

"मनोकिज्ञान की दृकष्ट से तु म्हारा ये सोच कर कहना यकीनन सही है।" मैने


कहा___"ककन्तु मत भू लो कक उस तरि बडी माॅ हैं जो खु द कदमाग़ के मामले में हम
सबसे बीस ही हैं। कहने का मतलब ये कक सारे हालातों पर ग़ौर करने के बाद िो
इसी नतीजे पर पहुॅचें गी कक इतना कुछ होने के बाद तो हमारा पक्ष पहले से और भी
ज्यादा मजबू त हो गया है, तो किर अचानक ये गैर कानू नी सामान को आधार बना
कर अजय कसं ह को हम क्ों अपने पास बु ला रहे हैं?"

"अरे तो उनके नतीजों से हमें क्ा ले ना दे ना भाई?" आकदत्य ने कहा___"िो सारे


हालातों पर ग़ौर करके क्ा नतीजा कनकालती हैं इससे हमें क्ा िक़ग पडता है? हमें
तो अपने काम से मतलब है, किर चाहे िो जैसे भी हो।"

"और मेरे कसिान्तों ि उसू लों का क्ा?" मैने आकदत्य की तरि अजीब भाि से दे खते
हुए कहा___"हम सच्चाई ि धमग की राह पर चल रहे हैं दोस्त। हम भले ही अब तक

1019
धोखे से या ककसी चाल से यहाॅ तक पहुॅचे हैं ककन्तु प्यार ि जंग में ये जायज था।
मगर यहाॅ पर एक कनयम अथिा एक कसिान्त तो मैंने उन्हें जता ही कदया था कक मैं
अजय कसं ह के ल्कखलाि उसके ग़ैर कानू नी सामान के आधार पर कोई ऐक्शन नही ं
लू ॅगा, बल्कि सब कुछ अपने बलबू ते पर ही करूॅगा। इस बात को मैं अब तक
कनभाता भी आया हूॅ और आगे भी इसे कनभाना चाहता हूॅ। ये मेरे कजगर ि मेरी
मदागनगी का सबू त भी होगा भाई कक मैने अपने बलबू ते पर ही सब कुछ ककया। इसके
किपरीत अगर मैने जं ग के आकखर में ये क़दम उठाया तो किर मेरी साख का क्ा
औकचत्य रह जाएगा? मेरा ताऊ इस बात को भले ही न समझ पाए मगर मु झे यकीन
है कक मेरी इस मनोभािना को बडी माॅ ़िरूर समझेंगी, और मैं चाहता भी हूॅ कक
उनके मन में मेरे कैरे क्टर का ये मैसेज जाए। दू सरी बात, हमे ऐसा करने की ़िरूरत
भी क्ा है दोस्त? आप दोनो के रहते तो मैं सारी दु कनया को ितह कर सकता हूॅ।"

"एक सच्चा इं सान तथा एक सच्चा िीर ऐसा ही होना चाकहए।" सहसा ररतू दीदी ने
मेरी तरि प्रसं सा भरी ऩिरों दे खते हुए कहा___"मुझे तु झ पर ना़ि है मेरे भाई। मेरा
कदल करता है कक ते रे कलए अपनी अं कतम साॅस तक कनसार कर दू ॅ।"

"ऐसा मत ककहए दीदी।" मैने सहसा भािु कतािश उनकी तरि दे खते हुए
कहा___"अभी तो हम सबको एक साथ बहुत सारी खु कशयाॅ बाॅटनी हैं। इस सबके
बाद हम एक नये सं सार का शु भारम्भ करें गे । उस नये सं सार में बे पनाह प्यार और
बे पनाह खु कशयाॅ होंगी।"

"और मु झे अपनी उन खु कशयों से ककनारा कर दोगे क्ा तु म लोग?" आकदत्य


मुस्कुराते हुए बोल पडा___"ऐसा सोचना भी मत राज। िरना दे ख ले ना तु म्हारे घर के
बाहर धरना दे कर बै ठ जाऊगा।"

"ऐसा मत करना दोस्त।" मैने मु स्कुराते हुए कहा___"गाॅि के लोग धरने के रूप में
एक ही आदमी को बै ठा दे खेंगे तो उसे कुछ और ही समझ लें गे।"
"ओ हैलो।" आकदत्य ने ऑखें कदखाई___"क्ा मतलब है तु म्हारा? क्ा समझ लें गे
गाॅि के लोग___कभखारी?? चल कोई बात नही ं यार। तु म्हारे कलए ये भी बन
जाऊगा।"

"तु म्हें बाहर धरने पर बै ठने की ़िरूरत नही ं है आकदत्य।" ररतू दीदी ने
कहा___"रक्षाबं धन आने िाला है। इतने िषों में पहली बार मैं राज को राखी बाधू ॅगी।
राज की तरह तु म भी मेरे भाई ही हो। मैं और भी बहुत खु श हो जाऊगी कक तु म्हारे
जैसा एक ने क कदल इं सान मेरा भाई बन जाएगा।"

1020
"ककतनी सुं दर बात कही है तु मने ।" आकदत्य सहसा ककसी गहरे खयालों में खोता
ऩिर आया___"तु म्हारे ही जैसी एक बहन थी मेरी___प्रतीक्षा। मेरी लाडली थी िो, हर
साल रक्षाबं धन के कदन मेरी कलाई पर एक साथ ढे र सारी राल्कखयाॅ बाॅध दे ती थी।
किर कहती कक सभी राल्कखयों का िो अलग अलग पै सा ले गी मुझसे ।" कहने के साथ
ही आकदत्य की ऑखों से ऑसू छलक पडे , बोला___"मगर चार साल पहले अपने प्यार
में धोखा खाने की िजह से उसने खु दखु शी की कोकशश की। दो मंकजला मकान की
छत से कूद गई िो। हाल्किटल में इलाज चला मगर डाक्टर ने बताया कक िो कोमा में
जा चु की है। आज चार साल हो गए। आज भी िो लाश बनी पडी है। कजस लडके ने
उसे धोखा कदया था उसे ऐसी स़िा दी थी मैने कक िो ककसी भी लडकी से सं बंध
बनाने का सोच ही नही ं सकता अब।"

आकदत्य की ये बातें सु न कर मैं और ररतू दीदी भी सीररयस हो गए। ररतू दीदी उठ


कर आकदत्य के पास गई और उसे अपने से छु पका कलया। मैं खु द भी आकदत्य की
दू सरी तरि बै ठ कर उसके कंधे को थपथपा रहा था।

"दु खी मत हो आकदत्य।" ररतू दीदी ने कहा___"प्रतीक्षा जल्द ही ठीक हो जाएगी।


चलो अब शान्त हो जाओ। दे खो ये ईश्वर का किधान ही तो था कक मैं तु म्हारी बहन के
रूप में तु म्हें कमली और चार साल से सू नी पडी तु म्हारी कलाई में राखी भी बाधूॅगी।"

"भगिान का बहुत बहुत शु कक्रया।" आकदत्य ने ररतू दीदी से अलग होते हुए ऊपर की
तरि कसर करके कहा___"जो उसने मु झे बहन के रूप में मेरी प्रतीक्षा को मेरे पास
भे ज कदया। मैं तु मसे यही कहूॅगा ररतू कक तु म भी प्रतीक्षा की तरह मेरी कलाई पर
ढे र सारी राल्कखयाॅ बाॅधना।"

"जैसी तु म्हारी इच्छा।" दीदी ने मु स्कुरा कर कहा___"तु म दोनो बै ठो मैं ़िरा


काकी(कबं कदया) को चाय बनाने के कलए कहने जा रही हूॅ।"
"ठीक है।" आकदत्य ने कहा। उसके बाद ररतू दीदी उठ कर अं दर की तरि चली
गईं। जबकक मैं और आकदत्य िही ं बै ठे रहे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उधर मुम्बई में।
जगदीश ओबराय बगले के बाहर लान में एक तरि हरी हरी किदे शी घाॅस के बीचो
बीच रखी कुसी पर बै ठा शाम का अखबार पढ रहा था। इस िक्त िह यहाॅ पर
अकेला ही था। उसके सामने की बाॅकी सभी कुकसग याॅ खाली थी। तभी मेन गेट से
अं दर आती हुई एक कार की आिा़ि से उसका ध्यान मेन गेट की तरि गया।

मेन गेट से अं दर दाल्कखल हुई कार चलते हुए सीधा पोचग में जाकर रुकी। कार के

1021
रुकते ही पै सेंजर सीट की तरि का गेट खु ला और अभय कसं ह अपने पै र पोचग के
िशग पर रखते हुए बाहर कनकला। बाहर आते ही उसने लान में एक तरि कुसी में
बै ठे जगदीश ओबराय की तरि दे खा। जगदीश ओबराय को दे खते ही उसके होठों
पर मुस्कान उभर आई और िह उस तरि ही बढता चला गया।

"कहो भाई क्ा कहा डाक्टर ने ?" अभय के कुसी पर बै ठते ही जगदीश ओबराय ने
मुस्कुराते हुए उससे पू छा___"िै से तु म्हारे चे हरे की चमक दे ख कर ़िाकहर हो रहा है
कक ररपोटग पाॅकजकटि ही है।"

"कबलकुल सही कहा आपने भाई साहब।" अभय कसं ह ने खु शी से कहा___"ररपोटग


एकदम सही है। बस कुछ ही कदनों में सब कुछ सही हो जाएगा और ये सब आपकी
िजह से ही सं भि हो सका है। इसके कलए मैं आपका हमेशा आभारी रहूॅगा।"

"अरे इसमें मेरा आभारी रहने की क्ा बात है भई?" जगदीश ओबराय ने
कहा___"सब कुछ करने िाला तो ऊपरिाला है। हम तो बस माध्यम ही होते हैं।"
"ऊपरिाले को भी तो कुछ करने के कलए ककसी न ककसी माध्यम की आिश्यकता ही
पडती है भाई साहब।" अभय कसं ह ने कहा____"ये उसी का नतीजा है कक आप इस
सबके कलए माध्यम बने और ये सब हुआ िरना अब तक जो कुछ भी हुआ है उसके
बारे में तो हम में से कोई ख़्वाब में भी नही ं सोच सकता था।"

"पर इसमें भी सबसे बडा योगदान गौरी बहन का है अभय भाई।" जगदीश ओबराय
ने कहा___"उसने करुर्ा बहन से कुरे द कुरे द कर तथा ़िबरदस्ती पू छा था और तब
करुर्ा ने बताया कक तु ममें समस्या क्ा है? गौरी बहन ने िो बात बहाने से ही सही
ककन्तु मु झसे कही। मैं तो सोच भी नही ं सकता था कक तु म में ये समस्या हो सकती है।
तु म भी अपने कबना मतलब के स्वाकभमान ि शमग के चलते इस बारे में ककसी से
कहना नही ं चाहते थे । बे कार की सोच और बे कार के कसिान्त कलए बै ठे थे । तु म्हें
अपनी पत्नी की इच्छाओं का खु कशयों का कोई खयाल ही नही ं था। खै र, जो भी हुआ
अच्छा ही हुआ। अब खु शी की बात ये है कक तु म किकजकली अब कुछ ही कदनों में पू री
तरह से ठीक हो जाओगे और तु म्हारे पकत पत्नी के ररश्ों के बीच किर से खु कशयाॅ
भी आ जाएॅगी।"

"सचमुच गौरी भाभी को सबका खयाल रहता है।" अभय कसं ह ने मुग्ध भाि से
कहा___"िो यकीनन दे िी हैं भाई साहब। कभी कभी सोचा करता हूॅ कक इतने अच्छे
लोगों के साथ ईश्वर ऐसा अन्याय कैसे कर दे ता है? भला क्ा कबगाडा था ककसी का
उन्होंने?"

1022
"एक नये अध्याय को शु रू करने के कलए पु राने खराब हो चु के अध्याय को खत्म
करना ही पडता है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"हम आम इं सान ईश्वर के कक्रया
कलाप को समझ नही ं पाते हैं जबकक सबसे ज्यादा उसे ही पता होता है कक हमारे
कलए क्ा अच्छा हो सकता है? ईश्वर ने मेरे साथ क्ा कुछ नही ं कर कदया है। आज से
पहले अरब पकत होते हुए भी मैं इतनी बडी सल्तनत में अकेला था ककन्तु आज मेरे
पास गौरी जैसी बहन है और किराज ि कनधी जैसे मेरे बच्चे हैं। उनके साथ साथ तु म
सब भी कमल गए। इन सभी ररश्ों में मु झे प्यार ि सम्मान हद से ज्यादा कमल रहा है।
अब इससे ज्यादा क्ा चाकहए मु झे? इस दु कनयाॅ में हम क्ा ले कर आए थे और क्ा
ले कर जाएॅगे? सब कुछ यही ं रह जाएगा, असली दौलत ि असली सु ख तो इन्ही ं में
है। आज ईश्वर के इस न्याय से मैं बहुत खु श हूॅ।"

"सही कहा आपने भाई साहब।" अभय कसं ह ने कहा___"काश हर इं सान आप जैसी
सोच िाला हो जाए तो ये सं सार ककतना खू बसू रत हो जाए। एक मेरे बडे भाई साहब
हैं कजन्होंने अपने मतलब के कलए हर ररश्े की बकल चढा दी तथा अपनों के साथ
इतना बडा अत्याचार कर डाला। क्ा उन्हें ये बात नही ं पता होगी कक उन्होंने कजन
ची़िों के कलए ये सब ककया िो ची़िें मरने के बाद उनके साथ नही ं जाएॅगी। बल्कि
उनके इस कमग से उनके मरने के बाद भी लोग उन्हें बु रा भला ही कहेंगे।"

"इस सं सार में हर तरह के इं सानों का होना ़िरूरी है अभय।" जगदीश ने


कहा___"ईश्वर हर तरह के प्राकर्यों की रचना करता है, किर उन्ही ं के द्वारा खे ल भी
रचाता है और उस खे ल का आनं द भी ले ता है । उसने हम इं सानो के कलए कनयम
बनाए और उन कनयमों पर चलने के कलए उसने समय समय पर हमें ककसी न ककसी
माध्यम से रास्ता भी बताया। खै र ये प्रसं ग तो बहुत बडा है भई, इसे समझना और
इस पर अमल करना बहुत ककठन है। तु म बताओ क्ा कहा डाक्टर ने ?"

"बाॅकी का तो आपको पता ही है।" अभय कसं ह ने कहा___"उस कदन की ररपोटग के


अनु सार इलाज शु रू हो चु का था। आज उसने टे स्ट कलया तो ररजल्ट बे हतर कनकला।
उसने बताया कक बहुत जल्द पहले जैसी बात हो जाएगी।"

"चलो ये तो अच्छी बात है।" जगदीश ओबराय ने कहा___"तु म भी ़िरा सं जम और


सं यम का खयाल रखना और दिा दारू समय समय पर करते रहना। ईश्वर ने चाहा
तो बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

"जी कबलकुल।" अभय कसं ह ने कहा___"अच्छा भाई साहब मैं ़िरा आज की दिाइयों
को अं दर रख कर आता हूॅ। िो अभी कार में ही रखी हुई हैं।"
"ओह हाॅ।" जगदीश ओबराय ने कहा___"और हाॅ अं दर गौरी बहन से कहना ़िरा

1023
गरमा गरम चाय तो बना कर कपलाए।"

जगदीश ओबराय की बात सु न कर अभय कसं ह ने हाॅ में कसर कहलाया और कुसी से
उठ कर कार की तरि बढ गया। कार से उसने एक प्लाल्कस्टक की थै ली कनकाली
और उसे ले कर बगले के अं दर चला गया।

िही ं एक तरि कनधी के कमरे में कनधी और आशा बे ड पर बै ठी हुई थी। कपछले कदन
हुई बातचीत से कनधी आशा के सामने आने से थोडा असहज सा महसू स करती थी,
ककन्तु आशा के समझाने पर उसकी कझझक ि शमग बहुत हद तक दू र हो गई थी।
आशा पहले भी ज्यादातर उसके पास ही रहती थी ककन्तु जब से उसके सामने ये बात
खु ल गई थी कक कनधी किराज से प्यार करती है तब से िो और भी कनधी के समीप ही
रहती थी। आशा उमर में ररतू जैसी ही थी तथा एक समझदार ि सु लझी हुई लडकी
थी इस कलए िो कनधी को एक पल के कलए उदास या मायूस नही ं होने दे ती थी।

आशा के ही पू छने पर कनधी ने उसे बताया कक कैसे उसे अपने भाई से प्यार हुआ
और कैसे उसने अपने उस प्यार को किराज के सामने उजागर भी ककया था। आशा
सारी बातें सु न कर हैरान थी। सबसे ज्यादा इस बात पर कक कनधी ने किराज से अपने
प्यार का इ़िहार भी कर कदया है । ये अलग बात है कक किराज ने इसे अनु कचत ि ग़लत
कहते हुए उसे इस सं बंध में समझाया था। उसने उसे ये भी समझाया था कक इस
ररश्े को दु कनयाॅ िाले कभी स्वीकार नही ं कर सकते और ना ही उसके घर िाले ।
किराज अपनी इस लाडली को जी जान से चाहता था ककन्तु एक बहन भाई के रूप
में। िो नही ं चाहता था कक उसकी कठोरता से कनधी को ज्यादा दु ख पहुॅचे । छोटी
ऊम्र का आकशग र् कभी कभी क़िद के चलते इतना उग्र रूप धारर् कर ले ता है कक
अगर उसे समय रहते सम्हाला न गया तो पररर्ाम गंभीर भी कनकल आते हैं।

शु रू शु रू में आशा को भी यही लगा था कक कनधी अपने भाई पर महज आककषग त है।
ककन्तु जब उसने कनधी से इस सं बंध में सारी बातों को जाना और उसकी डायरी के
हर पे ज पर कदल को झकझोर कर रख दे ने िाले मजमून को पढा तो उसे महसू स
हुआ कक ये महज आकशग र् नही ं है बल्कि ये बे पनाह मोहब्बत का प्रत्यक्ष सबू त है।
आशा ने कनधी की इजा़ित से ही उसकी डायरी को पढना शु रू ककया था। यूॅ तो
डायरी में कलखी हर बात अपने आप में कनधी की तडप बयां करती थी ककन्तु कनधी के
द्वारा कलखी गई ग़़िलें ऐसी थी ं जो आशा के कदल को बु री तरह तडपा दे ती थी। उसे
ऐसा लगता जैसे ग़़िल की हर बात में उसी का हाले कदल बयां ककया गया है। कनधी
अपने आपको बहलाने के कलए ज्यादातर ककताबों में ही डूबी रहती थी। आशा उसकी
पढाई में कोई हस्ताक्षे प नही ं करती थी। ककन्तु उसे भी पता था कक ककसी ची़ि में

1024
अकत हाकनकारक होती है। इस कलए िो कनधी का हर तरह से खयाल भी रखती थी।
इस िक्त भी िह उसके कलए चाय ले कर आई थी।

कनधी ने चाय कपया और किर कुछ दे र इधर उधर की बातें करने के बाद िह किर से
ककताबों में डूब गई थी। जबकक आशा बे ड पर कसरहाने की तरि रखे कपल्लो के नीचे
से कनधी की डायरी कनकाल कर उसे पढने लगी थी। उसमें एक ग़़िल थी कजसे िो
बार बार पढे जा रही थी।

अब ककसी भी बात का यू ॅ मशिरा न दे कोई।


इश्क़ गुनाहे अजीम नही ं तो स़िा न दे कोई।।

अ़िाब तो मोहब्बत के साथ ही कमल जाते हैं,


किर ग़मों को हमारे घर का पता न दे कोई।।

कैसे समझाएॅ के ऑकधयों के बस का भी नही,ं


ये तो कदल के कचराग़ हैं इन्हें हिा न दे कोई।।

कदल की चोंट तो कदलबर से ही रिू होती है ,


बे िजह इस कदल की अब दिा न दे कोई।।

इस कलए अपने कदल को समझा कलया हमने ,


सरे राह मेरे महबू ब का कसर झुका न दे कोई।।

आग लगे इस इश्क़ को के इसकी िजह से ,


परे शां हो के मुझको कही ं भु ला न दे कोई।।

आशा ने इस ग़़िल को बार बार पढा। उसके कदल में अजीब सी हचचल होने लगी
थी। कािी दे र तक िो उसके बारे में सोचती रही। िो हैरान भी थी कक कनधी इतना
कुछ कैसे कलख सकती है? पर सबू त तो उसकी ऑखों के सामने ही था। आशा ने
कनधी से पू छा भी था कक ये ककस शायर की कलखी हुई ग़़िल है, जिाब में कनधी ने बस
मुस्कुरा कदया था। जब आशा ने ़िोर कदया तो उसने बताया कक ये उसके ही कदल की
आिा़ि है कजसे उसने शब्दों में कपरो कर ग़़िल का रूप दे कदया है। कनधी की इस
बात पर आशा सोचों में गुम हो गई। किर जैसे उसने खु द को सम्हाला। उसकी ऩिर
डायरी के दाकहने िाले पे ़ि पर कलखी एक और ग़़िल पर पडी। उसने उस ग़़िल को
भी पढना शु रू ककया।

1025
कदल तो दररया ही था इक ग़म भी समंदर हो गया।
िक़त ददग से िाॅसला था िो भी मयस्सर हो गया।।

हर िक्त ़िहन में अब उनका ही खयाल तारी है,


मेरी पलकों के तले हर ख़्वाब कसकंदर हो गया।।

इसके पहले तो बहारे गुल का हर मौसम हरा रहा,


अब ल्कख़िां क्ा आई के हर बाग़ बं ़िर हो गया।।

मेरी ़िरा सी आह पर तडप उठते थे कुछ लोग,


आजकल तो मोम का हर पु तला पत्थर हो गया।।

ककतनी हसी ं थी क़िन्दगी मरी़ि-ए-कदल से पहले ,


अब तो ऩिर के सामने बस िीरां मं़िर हो गया।।

अपनी बे बसी का क़िक्र भला करें भी तो ककससे ,


बस छु प छु प के रोना ही अपना मुकद्दर हो गया।।

इस ग़़िल को पढ कर आशा के सं पूर्ग कजस्म में झुरझुरी सी हुई। कदल में इक हूक सी
उठी कजसने उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसु ओ ं का सै लाब सा ला कदया।
उसने पलट कर चु पके से कनधी की तरि दे खा। कनधी पू िग की भाॅकत ही ककताबों में
खोई हुई थी। ये दे ख कर आशा को ऐसा लगा जैसे उसका कदल एकदम से धडकना
बं द कर दे गा। उसने बडी मु ल्किल से अपने अं दर के प्रबल िे ग में मचलने लगे
जज़्बातों को सम्हाला और किर डायरी को बं द कर बे ड पर चु पचाप ऑखें बं द करके
ले ट गई। कदलो कदमाग़ एकदम से शू न्य सा हो गया था उसका। उसे कनधी के ददग का
बखू बी एहसास हो चु का था। ककन्तु कदमाग़ में ये सिाल ताण्डि सा करने लगा कक
कोई लडकी इस हद तक कैसे ककसी को चाह सकती है कक उसके प्रे म में इस तरह
बािरी सी होकर ग़़िल ि ककिता कलखने लग जाए? मन ही मन जाने क्ा क्ा सोचते
हुए आशा को पता ही नही ं चला कक कब नी ंद ने उसे अपनी आगोश में ले कलया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अजय कसं ह ते ़ि रफ्तार से कार चलाते हुए शहर की तरि जा रहा था। इस िक्त
उसके चे हरे पर पत्थर सी कठोरता किद्यमान थी। उसकी ऩिर बार बार कार के अं दर
लगे बै क कमरर पर पड जाती थी। िह कािी समय से दे ख रहा था कक उसके पीछे
लगभग सौ मीटर के िाॅसले पर एक जीप लगी हुई है। पहले उसे लगा था कक
शायद कोई लोकल आदमी होगा जो उसकी तरह ही शहर जा रहा है ककन्तु किर
जाने क्ा सोच कर अजय कसं ह ने उसे परखने का सोचा था? अजय कसं ह ने कई बार
अपनी कार की रफ्तार को धीमा ककया था, ये सोच कर कक पीछे आने िाली जीप उसे

1026
ओिरटे क करके उसके आगे कनकल जाएगी मगर ऐसा एक बार भी नही ं हुआ था।
बल्कि उसकी कार के धीमा होते ही उस जीप की रफ्तार भी धीमी हो जाती थी।

अनु भिी अजय कसं ह को समझते दे र न लगी कक पीछे लगी जीप िास्ति में उसका
पीछा कर रही है। इस बात के समझते ही उसे ये भी समझ आ गया कक सं भि है ऐसा
उसके साथ अब से पहले भी हो चु का हो। उसके मल्कस्तष्क में दो नाम आए ररतू और
किराज। यकीनन इन दोनो ने उसकी हर गकतकिकध पर ऩिर रखने के कलए कोई
आदमी उसके पीछे लगा रखा था। अजय कसं ह को अब सब समझ आ गया था कक
क्ों िो बार बार मात खा रहा था अपने दु श्मन से । उसके दु श्मन को उसकी हर
खबर रहती थी तभी तो िो उससे चार क़दम आगे रहता था। अजय कसं ह को अपने
आप पर बे हद गुस्सा भी आया कक उसने इस बारे में पहले क्ों नही ं सोचा था? जबकक
ये एक अहम बात थी। उसकी बे टी के कलए ये सब करना महज बाएॅ हाथ का खे ल
था। िो एक पु कलस िाली थी, कजसके तहत मु जररमों को खोजने के कलए उसके अपने
गुप्त मुखकबर होना लाजमी बात थी। ककन्तु अब भला इस बारे में सोचने का क्ा
िायदा था? जो होना था िो तो हो ही चु का था, मगर अब जो होने िाला था ये उसने
सोच कलया था।

अजय कसं ह ने अपने पीछे लगी उस जीप को चकमा दे ने का मन बना कलया था। अब
िो अपनी गकतकिकधयों की जानकारी अपने दु श्मन तक नही ं पहुॅचने दे ना चाहता था।
उसने कार को ते ़ि रफ्तार से दौडा कदया और कुछ ही समय में शहर के अं दर
दाल्कखल हो गया। बै क कमरर पर उसकी ऩिर बराबर थी। िो दे ख रहा था कक पीछे
लगी जीप भी उसी रफ्तार से आ रही थी। अजय कसं ह को पता था कक उस जीप को
चकमा दे ने का काम िो शहर में ही कर सकता था। क्ोंकक यहाॅ पर आबादी थी
तथा कई सारे रास्ते थे जहाॅ पर पल में गु म हो सकता था। अजय कसं ह ने ऐसा ही
ककया, यानी शहर में दाल्कखल होते ही कई सारे रास्तों से चलते हुए पीछे लगी जीप की
पहुॅच से दू र हो गया। इस बीच उसने ककसी से िोन पर बात भी की थी।

थोडी ही दे र में अजय कसं ह ने कार को सडक के ककनारे रोंक कदया। िह बै क कमरर
पर अभी भी दे ख रहा था। लगभग दस कमनट गु़िर गए। पीछे लगी जीप का कही ं
कोई पता न था। अलबिा इस बीच एक कार ़िरूर उसके सामने आकर रुकी। कार
से एक साधारर् कद काठी का आदमी बाहर कनकला और चल कर अजय कसं ह के
पास आया। उस आदमी को दे ख कर अजय कसं ह अपनी कार से नीचे उतरा। अजय
कसं ह के उतरते ही िो आदमी अजय कसं ह की कार में बै ठ गया। कार में बै ठते ही
उसने कार को आगे पीछे करके यू टनग कलया और िहाॅ से चला गया। उस आदमी से
अजय कसं ह ने कोई बात न की थी, शायद उसने िोन पर ही उसे सब कुछ समझा
कदया था। खै र उस आदमी के जाते ही अजय कसं ह भी उस आदमी की कार के पास

1027
पहुॅचा और कार की डर ाइकिं ग सीट पर बै ठ कर कार को आगे बढा कदया।

कुछ ही समय में अजय कसं ह की ये कार कजस जगह रुकी उसके बाएॅ तरि एक
ऊची सी कबल्कल्डंग थी। ये कबल्कल्डंग पाॅच मंकजला थी। नीचे के ग्राउं ड फ्लोर पर कई
दु कानें थी जबकक दू सरे फ्लोर पर कबल्कल्डंग की बाहरी दीिार पर स्टील के बडे बडे
अच्छरों से "दा कजम" कलखा था। बाॅकी के ऊपरी फ्लोर पर कुछ और भी ची़िें थी ं
कजनका क़िक्र करना यहाॅ ़िरूरी नही ं है।

कार से उतर कर अजय कसं ह उसी कबल्कल्डंग की तरि बढ चला। कबल्कल्डंग के ऊपरी
फ्लोर पर जाने के कलए दोनो तरि की दु कानों के बीच एक बडा सा चै नल गेट लगा
था। उस चै नल गेट से ही सीकढयाॅ लगी थी। अजय कसं ह ते ़ि ते ़ि क़दमों से चलता
हुआ उस चै नल गेट के पास पहुॅचा और किर सीकढयाॅ पर चढता हुआ ऊपर की
तरि चला गया। कुछ ही दे र में िो दू सरे फ्लोर यानी कक दा कजम िाले कहस्से के एक
बडे से मीकटं ग हाल में दाल्कखल हुआ। मीकटं ग हाल में पहले से ही कुछ कगनती के लोग
बै ठे हुए थे ।

"हैलो िैण्ड् स।" अजय कसं ह उन सबकी तरि दे खते हुए कहा और किर िंट की
मुख्य कुसी पर बै ठ गया।
"अच्छा हुआ ठाकुर साहब।" उनमे से एक ने अजय कसं ह की तरि दे खते हुए
कहा___"कक आपने ये मीकटं ग की और हम सबको यहाॅ बु ला कलया। हम खु द भी
चाहते थे कक सामने बै ठ कर इस बारे में तसल्ली से बात करें । हम सबने आपकी
मदद के कलए अपने अपने आदकमयों को आपके पास भे जा था ककन्तु उस कदन के
हादसे में हमारे िो सब आदमी पु कलस द्वारा पकड कलए गए। ये हमारे कलए कबलकुल
भी अच्छा नही ं हुआ है। आप समझ सकते हैं कक पु कलस के पास पत्थरों का भी मुह
खु लिा ले ने की कूित होती है। इस कलए अगर हमारे आदकमयों ने पु कलस के सामने
अपना अपना मुह खोल कदया तो उसका अं जाम यही होगा कक बहुत जल्द हम सब भी
पु कलस के द्वारा धर कलये जाएॅगे।"

"मामला िाकई बे हद गंभीर हो गया है कमलकान्त।" अजय कसं ह ने कहने के साथ ही


कशगार सु लगा कलया, किर बोला___"इस मामले को हम बडी आसानी से सु लझा ले ते
मगर आज मंत्री जी की कगरफ्तारी से बहुत बडा झटका लगा है। हम में से ककसी को
भी ये उम्मीद नही ं थी कक मंत्री जैसा चतु र ि शाकतर इं सान इस तरह पलक झपकते
ही पु कलस के द्वारा धर कलया जाएगा। खै र, आप सब कचं ता न करें , क्ोंकक मु झे ऐसा
लगता है कक पु कलस उन सबको छोंड दे गी।"

"क्ाऽऽऽ???" मीकटं ग हाल में बै ठे िो सब इस बात को सु न कर उछल पडे थे , एक

1028
अन्य बोला___"ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ठाकुर साहब? जबकक ये असं भि बात
है। पु कलस भला ऐसे सं गीन अपराकधयों को कैसे छोंड दे गी?"

"उसकी एक ठोस िजह है।" अजय कसं ह ने कहा___"इस शहर की पु कलस का सारा
महकमा भले ही बदल गया था ककन्तु इस बात को गु ़िरे हुए कािी समय हो गया है।
इस दे श में ऐसे पु कलस िालों की कमी नही ं है कजनका इमान थोडे से पै सों के कलए
डगमगा जाता है। कहने का मतलब ये कक पु कलस महकमे में एक खास पु कलकसया
ऐसा ही है कजसका इमान हमने पै से से डगमगा कदया है। उसी ने हमे िोन पर इस
सबके बारे में जानकारी दी थी।"

"क..कैसी जानकारी ठाकुर साहब?" कमलकान्त के चे हरे पर हैरानी के भाि आए।


"यही कक पु कलस ने हमारे कजन आदकमयों को कगरफ्तार ककया था।" अजय कसं ह ने
कहा___"उनके ल्कखलाि कोई केस िाइल नही ं ककया गया है अब तक और महकमे
के अं दर का माहौल भी यही ़िाकहर कर रहा है कक आगे भी अभी उन पर कोई केस
िाइल होने की सं भािना नही ं है। दरअसल पु कलस कडपाटग मेंट अभी मंत्री की
कगरफ्तारी पर ज्यादा ़िोर दे रहा है। पु कलकसये ने बताया कक एसीपी रमाकान्त शु क्ला
को केन्द्र से भे जा गया था मंत्री और उसके साकथयों के ल्कखलाफ़ गुप्तरूप से सबू त
इकिा कर उन्हें कगरफ्तार करने के कलए। ताकक इस प्रदे श से गंदगी दू र हो सके।"

"िो सब तो ठीक है ठाकुर साहब।" अकभजीत सहाय नाम का आदमी बोल


पडा___"ले ककन इससे ये तो साकबत नही ं होता कक मंत्री की िजह से पु कलस हमारे
आदकमयों पर कोई केस िाइल नही ं करे गी। बल्कि पु कलस का तो काम ही यही है
मुजररमों को स़िा कदलाना। अतः दे र सिे र पु कलस अपना काम ़िरूर करे गी।"

"पू री बात तो सु नो भाई।" अजय कसं ह बोला___"एसीपी मं त्री तथा मंत्री के साकथयों को
ले कर यहाॅ से जा चु का है। उनका िैसला अब अदालत में होगा और ़िाकहर है कक
प्राप्त सबू तों के आधार पर उन सबको सं गीन से सं गीन स़िा होगी। एसीपी का काम
कसिग इतना ही था यानी अब यहाॅ पर िो नही ं आएगा। उसी पु कलकसये ने बताया था
कक पु कलस ककमश्नर की उसने बातें सु नी थी जो िो मेरी बे टी से कर रहे थे । मामला ये
है कक ये सारा िसाद ररतू और किराज ने पु कलस ककमश्नर की सहमकत से ही ककया
था। दू सरी महत्वपू र्ग बात ये है कक ककमश्नर की बातों से ये पता चला है कक उसे इस
बात की जानकारी किराज या ररतू द्वारा नही ं दी गई है कक उनके पास हमारे ल्कखलाि
ऐसा डायनामाइट सबू त है कजसके बे स पर िो हमे जब चाहे कानू न की चपे ट में ला
सकते हैं। कहने का मतलब ये कक ककमश्नर की समझ में मामला यही है कक ये महज
एक पाररिाररक मामला है कजसमें हमने किराज ि उसकी िैकमली के साथ ग़लत
ककया है, कजसके कलए िह हमसे अपने हक़ की लडाई लड रहा है। किराज का साथ

1029
ररतू दे रही है जो कक ककमश्नर की सहमकत पर ही है। अब सोचने िाली बात ये है कक
जब ककमश्नर को इस बारे में पता ही नही ं है कक हम क्ा धं धा करते हैं तो किर भला
िो हमारे आदकमयों ककस बारे में पू छताॅछ करे गा? और अगर करे गा भी तो िो यही
कहेंगे कक उन लोगों को हमने ककराए पर हायर ककया था। यानी उनमे से कोई आप
लोगों का नाम नही ं ले गा। रही बात उस हादसे की कजसके कारर् िो कगरफ्तार ककये
गए थे तो िो भी ररतू की ही िजह से हुआ था। उस हादसे में ग़ैर कानू नी तरीके से
हमारा साथ दे ने के कलए उन लोगों को स़िा के तौर पर थोडी बहुत स़िा कमल सकती
है अथिा ़िु मागना भरिा कर उन्हें छोंड कदया जा सकता है।"

"अगर ऐसा है।" कमलकान्त बोला___"तब तो ठीक है ठाकुर साहब। हम ककसी तरह
से अपने आदकमयों को छु डाने की कोकशश कर लें गे। ककन्तु आपसे गु जाररश है ऐसा
किर न हो।"

"ऐसा भी इसी कलए हो गया कमलकान्त।" अजय कसं ह ने पु ऱिोर लहजे में
कहा___"क्ोंकक हमें उस सबकी ़िरा भी उम्मीद नही ं थी। हलाॅकक िो हमारी ग़लती
थी। हमें इस बात की तरि भी ध्यान दे ना चाकहए था कक दु श्मन की तरि हमारी बे टी
है जो एक पु कलस िाली है और िो इस सबके कलए अपने पु कलस महकमे का सहारा ले
सकती है। खै र, छोंकडये इस बात को। हमने िकील से बात कर ली है िो सब आदमी
बहुत जल्द छूट जाएॅगे।"

"अब आगे का क्ा प्रोग्राम है आपका?" अकभजीत सहाय ने कहा___"उस हादसे की


िजह से जीती हुई बा़िी आप हार गए थे । इस कलए इसके आगे क्ा करने का सोचा
है आपने ?"
"कहते हैं कक समय हमेशा एक जैसा नही ं रहता।" अजय कसं ह ने दाशग कनकों िाले
अं दा़ि से कहा___"हार जीत जंग करने िाले हर ब्यल्कक्त के कहस्से में आती है। कभी
िह हारता है तो कभी जीतता भी है। कहने का मतलब ये कक दु भागग्य की िजह से अब
तक हम हारते ही आए थे मगर अब ऐसा नही ं होगा।"

"क्ा मतलब है आपका?" कमलकान्त के माॅथे पर कशकन उभरी, बोला___"आप तो


ऐसे कह रहे हैं जैसे कक आपके पास अपने दु श्मन के ल्कखलाि कोई बहुत बडा सबू त
लग गया है कजसके तहत आप अपने दु श्मन को बडी आसानी से अपने पं जे पर दबोच
लें गे।"

"कबलकुल सही कहा कमलकान्त।" अजय कसं ह के चे हरे पर चमक थी, बोला___"ऐसा
ही हुआ है। उसने हमारे साथ बहुत खे ल खे ला अब एक खे ल हम भी कदखाएॅगे उसे ।

1030
एक ऐसा खे ल कजसके बारे में उसने ख़्वाब में नही ं सोचा होगा। सबके सब एक ही
झटके में हमारे क़दमों तले पालतू कुिों की तरह दु म कहलाते ऩिर आएॅगे।"

"ऐसी क्ा बात हो गई है ठाकुर साहब?" अकभजीत के चे हरे पर हैरानी थी___"कजसके


तहत आप इतनी दृढता ि इतने किश्वास के साथ कह रहे कक सबके सब आपके पै रों
तले आ जाएॅगे?"

"बस दे खते जाओ सहाय।" अजय कसं ह ने प्रभािशाली लहजे में कहा___"सब कुछ
बहुत जल्द समझ आ जाएगा। खै र, हम ये कह रहे हैं कक हमें इसी िक्त िै से ही कुछ
आदमी चाकहए जैसे आप लोगों ने हमारी मदद के कलए भे जे थे ।"

अजय कसं ह की इस बात पर िहाॅ बै ठे सभी लोग कुछ दे र तक तो चककत भाि से


उसे दे खते रहे किर उन लोगों सहमकत में कसर कहलाया। कुछ दे र बाद ही मीकटं ग खत्म
हो गई। अजय कसं ह के उठते ही बाॅकी सब भी अपने अपने रास्तों पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट........《 61 》

अब तक,,,,,,,

"क्ा मतलब है आपका?" कमलकान्त के माॅथे पर कशकन उभरी, बोला___"आप तो


ऐसे कह रहे हैं जैसे कक आपके पास अपने दु श्मन के ल्कखलाि कोई बहुत बडा सबू त
लग गया है कजसके तहत आप अपने दु श्मन को बडी आसानी से अपने पं जे पर दबोच
लें गे।"

"कबलकुल सही कहा कमलकान्त।" अजय कसं ह के चे हरे पर चमक थी, बोला___"ऐसा
ही हुआ है। उसने हमारे साथ बहुत खे ल खे ला अब एक खे ल हम भी कदखाएॅगे उसे ।
एक ऐसा खे ल कजसके बारे में उसने ख़्वाब में नही ं सोचा होगा। सबके सब एक ही
झटके में हमारे क़दमों तले पालतू कुिों की तरह दु म कहलाते ऩिर आएॅगे।"

"ऐसी क्ा बात हो गई है ठाकुर साहब?" अकभजीत के चे हरे पर हैरानी थी___"कजसके


तहत आप इतनी दृढता ि इतने किश्वास के साथ कह रहे कक सबके सब आपके पै रों
तले आ जाएॅगे?"

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"बस दे खते जाओ सहाय।" अजय कसं ह ने प्रभािशाली लहजे में कहा___"सब कुछ
बहुत जल्द समझ आ जाएगा। खै र, हम ये कह रहे हैं कक हमें इसी िक्त िै से ही कुछ
आदमी चाकहए जैसे आप लोगों ने हमारी मदद के कलए भे जे थे ।"

अजय कसं ह की इस बात पर िहाॅ बै ठे सभी लोग कुछ दे र तक तो चककत भाि से


उसे दे खते रहे किर उन लोगों सहमकत में कसर कहलाया। कुछ दे र बाद ही मीकटं ग खत्म
हो गई। अजय कसं ह के उठते ही बाॅकी सब भी अपने अपने रास्तों पर चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

बडा ही सनसनीखे ज मं़िर था।


ये कोई िामग हाउस था जो कक शहर की आबादी से दू र था। िामगहाउस कािी बडा
था। बीचो बीच दो मंकजला इमारत बनी हुई थी। चारो तरि हट्टे कट्टे तथा काली िदी
पहने गनधारी तै नात थे । इमारत के सामने किशाल मैदान में कई कार ि जीपें खडी
हुई थी। ककन्तु इस बीच सबसे सनसनीखे ज बात ये थी कक इमारत के बगल से बने
गेस्टहाउस के आकार का जो घर बना था उसके सामने की दीिार पर कुछ लोग
रल्कस्सयों में बधे खडे थे । सबके हाॅथ आपस में बधे ऊपर की तरि घर की रे कलं ग से
झल ू ती रल्कस्सयों पर बधे हुए थे ।

किराज, गौरी, कनधी, अभय, करुर्ा, कदव्या, शगुन, आशा, रुल्कक्मर्ी, आकदत्य, ररतू ,
सोनम, नीलम, नै ना, कबं कदया तथा शं कर ि हररया ये सब मोटी मोटी रल्कस्सयों में बधे
हुए छटपटा रहे थे । किराज, ररतू ि आकदत्य के चे हरों पर जहाॅ कठोरता के भाि थे
िही ं बाॅकी सबके चे हरे दहशत से भरे पडे थे । जबकक इन सबके सामने खडे थे
अजय कसं ह, प्रकतमा, कशिा तथा उनके कई सारे हकथयारबं द आदमी। सबके होठों पर
जानदार ि किजयात्मक मु स्कान छाई हुई थी। अजय कसं ह कुछ दे र पहले ही ़िोर ़िोर
से अिहास लगा रहा था। ककन्तु उसके तु रंत बाद ही उसका चे हरा गुस्से से आग
बू बला ऩिर आने लगा था। यही हाल प्रकतमा ि कशिा का भी था। इन तीनों के चे हरों
पर इस िक्त गु स्सा ि नफ़रत के बे शुमार भाि गकदग श कर रहे थे ।

"हर ब्यल्कक्त से चु न चु न के कहसाब लू ॅगा।" िातािरर् में मानो अजय कसं ह की दहाड
गूॅजी___"बहुत तडपाया है तु म सबने मु झे। मे रे कदन का चै न ि रातों की नी ंद हराम
कर रखी थी तु म लोगों ने । सबका कहसाब सू द समेत लू ॅगा मैं।" कहने के साथ ही
अजय कसं ह किराज के ऩिदीक आया किर उसके जबडे को अपने दाकहने हाॅथ से
शख्ती से पकडते हुए कहा___"क्ा समझता था तू अपने आपको? दो चार बार मु झे
करारी कशकस्त क्ा दे दी साला अपने आपको जे म्स बाॅण्ड का बाप समझने लगा।

1032
अरे ते रे जैसे जे म्स बाण्ड तो मेरे कच्छे के अं दर पाये जाते हैं समझा? दे ख कलया न,
एक ही झटके में चारो खाने कचि कर कदया है तु म सबको मैने। मैं चाहूॅ तो इसी िक्त
तु म सबके साथ जो चाहूॅ िो कर सकता हूॅ, और करूॅगा भी। अपने हर नु कसान
का बदला लू ॅगा मगर उससे पहले अपनी ख़्वाकहशों को पू रा करूॅगा मैं। मेरी
ख्वाकहशों के बारे में तो तु म सब बहुत अच्छी तरह जानते हो न।"

"एक बार मेरे ये हाॅथ खोल कर दे खो बडे भइया।" सहसा अभय गुस्से से उबलता
हुआ बोल पडा___"अकेले तु म तीनों का राम नाम सत्य न कर कदया तो ठाकुर गजे न्द्र
कसं ह बघेल की औलाद न कहलाऊ।"

"यही, बस यही।" अजय कसं ह तपाक से बोला___"यही अकड तो तु म सबकी


कनकालनी है मुझे। तु म सबके गुरूर और स्वाकभमान को अपने पै रों के तले रौंदना है
मुझे। उसके बाद यहाॅ सबके सामने तु म सबके साथ ऐसा नं गा नाच करूॅगा कक
ऊपर बै ठे िररश्ों का कले जा भी दहल जाएगा।"

"डै ड आपको जो भी करना है कररये।" सहसा अजय कसं ह के पीछे से आता हुआ
कशिा बोल उठा____"ककन्तु अब मु झसे बरदास्त नही ं हो रहा। आप तो जानते हैं कक
मेरी ख्वाकहश क्ा है। अतः आप मु झे मेरी इस जाने बहार कनधी का जी भर के रस
पान करने की इजा़ित दीकजए।"

"अरे इजा़ित क्ों माॅगता है शह़िादे ?" अजय कसं ह ने ़िोर का ठहाका लगाते हुए
कहा____"ये सब तो यहाॅ आए ही इसी सबके कलए हैं। तु झे जो पसं द आए उसे
भोगना शु रू कर दे । मेरा कशकार तो ये गौरी है। कसम से इसे पाने के कलए मैं ककतना
तडपा हूॅ ये तो कसिग मैं ही जानता हूॅ।"

"हराम़िादे ।" रल्कस्सयों से बधा किराज बु री तरह दहाडते हुए कचल्ला उठा____"अगर
मेरी माॅ बहनों को हाॅथ लगाने की कोकशश की तो समझ ले ना ते रे हाॅथ उखाड
कर कुिों के सामने डाल दू ॅगा।"

"कचल्ला मेरे भतीजे।" अजय कसं ह ़िोर से हसा___"और ़िोर से कचल्ला। क्ोंकक अब
तू कसिग यही कर सकता है। जबकक मैं और मे रा बे टा यहाॅ मौजूद हर औरत ि
लडकी का रसपान करें गे । उसके बाद यहाॅ मौजूद मेरे सभी आदमी उन्हें जी भर के
भोगेंगे। उफ्फ! बाद मुद्दत के ये कदन आया है कजसका मु झे कशद्दत से इन्त़िार था।"

अजय कसं ह की इस बात पर रल्कस्सयों में बधे किराज, आकदत्य, अभय, हररया ि शं कर
जैसे मदग बु री तरह छटपटा कर रह गए। गुस्सा, अपमान, ि जलालत का कडिा घूॅट
पी जाने के कसिा जैसे उनके पास कोई दू सरा चारा ही नही ं था। जबकक अजय कसं ह

1033
की बात तथा उसके मंसूबों का दे ख कर सभी औरतों ि लडककयों की रूह तक िना
हो गई।

इधर ़िोरदार कहकहे लगाते हुए अजय कसं ह ि कशिा अपने अपने पसं दीदा कशकार
की तरि बढ चले । रल्कस्सयों में बधे सबके सब बु री तरह छटपटा रहे थे । औरतों ि
लडककयों की हालत पल भर में खराब हो गई। कुछ ही पलों में अजय कसं ह ि कशिा
अपने अपने कशकार यानी कक गौरी ि कनधी के पास पहुॅच गए।

"उफ्फ।" कनधी के क़रीब पहुॅचते ही कशिा ने ़िहरीली मु स्कान के साथ


कहा___"मेरी राॅड बहन तो पहले से और भी ज्यादा खू बसू रत हो गई है। लगता है
मुम्बई का पानी कािी सू ट ककया है तु झे। चल ये तो और भी बहुत अच्छा हुआ। ते री
इस मादक ककन्तु कच्ची जिानी का रसपान करने में अब और भी म़िा आएगा।"

"हराम़िादे कुिे ।" किराज पू री शल्कक्त से बं धनों को खी ंचते हुए कचल्लाया____"मेरी


बहन से इस तरह बात करने का अं जाम बहुत भयंकर होगा। अगर अपनी खै ररयत
चाहता है तो दू र हट जा गु कडया से िरना माॅ कसम यही ं क़िंदा गाड दू ॅगा तु झे।"

"ये गीदड भभकी ककसी और को दे ना बे टा।" कशिा ने ़िहरीली मु स्कान के साथ


कहा___"कचन्ता मत कर, ते रा भी कहसाब करना है मु झे। तू ने उस समय मुझ पर हाॅथ
उठाया था न। उसका कहसाब तो ़िरूर लू ॅगा तु झसे । मगर उससे पहले अपनी जाने
कजगर से अपना मूड तो बना लू ॅ।"

कशिा की बात पर किराज बु री तरह छटपटा कर रह गया। उसे अपनी बे बसी पर


बे हद क्रोध भी आ रहा था और रोना भी। उधर अजय कसं ह भी गौरी के पास पहुॅच
चु का था। उसने गौरी को बहुत ही ऩिाकत से ऊपर से नीचे तक कई बार दे खा और
किर उसकी ऑखों में दे खते हुए मु स्कुराया।

"सचमुच।" किर अजय कसं ह ने मानो मंत्रमुग्ध हो चु के भाि से कहा___"आज भी िै सी


ही हो जैसे तब थी जब मैने तु म्हें पहली बार दे खा था। िही सादगी, िही तीखे नै न
नक्श, िही साॅचे में ढला हुआ मदमस्त कर दे ने िाला गदराया हुआ कजस्म। कसम से
गौरी, तु म्हें अगर ह़िार बार भी भोग लू ॅ तो मे री कतश्नगी न बु झेगी। तु म्हें पता है, तु म
िो दू सरी स्त्री हो कजससे मुझे सचमुच का प्यार हो गया था। मैं चाहता था कक तु म
खु शी खु शी मेरी आगोश में आ जाओ। मगर जब तु म नही ं आई तो मु झे हर िो रास्ता
अल्कख्तयार करना पडा कजसके तहत मु झे लगता था कक तु म मेरी आगोश में आ
सकती हो। पर कदाकचत मैं ग़लत था गौरी या किर मेरे प्यार में िो बात ही नही ं थी
कजसके तहत तु म मेरी हो जाती।"

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"भाभी से तमी़ि से बात करो बडे भइया।" अभय बु री तरह छटपटाते हुए
बोला___"इतनी भी नीचता मत कदखाओ कक ईश्वर को भी शमग आ जाए।"
"ओहो।" अजय कसं ह ने ब्यं गात्मक भाि से उसे दे खते हुए कहा___"तो मेरा छोटा भाई
भी अब मुझसे इस ़िुबान में बात करे गा। लगता है गौरी ने थोडा बहुत अपनी
मदमस्त जिानी का स्वाद चखा कदया है तु म्हें।"

"खाऽऽऽमोश।" अभय कसं ह पू री शल्कक्त से दहाडा था, बोला____"अपनी ़िबान को


लगाम दे बे शमग इं सान। बस एक बार मु झे इस बं धन से आ़िाद कर दे । उसके बाद
दे ख कक क्ा हस्र करता हूॅ ते रा।"

"इस तरह कचल्लाने का कोई िायदा नही ं है छोटे ।" अजय कसं ह ने पू री कढठाई से
कहा____"क्ोंकक अब यहाॅ पर िही होगा जो कसिग और कसिग मैं चाहूॅगा। तु म
सबकी ऑखों के सामने हम दोनो बाप बे टे एक एक औरत ि एक एक लडकी की
इज्ज़ित का मदग न करें गे।"

इतना कहने के साथ ही अजय कसं ह पलटा और पु नः गौरी के समीप आ गया। उसने
जैसे ही हिस भरी ऑखों से गौरी की तरि दे खा िै से ही गौरी ने निरत ि घृर्ा से
उसके चे हरे पर थू ॅक कदया। ये दे ख कर अजय कसं ह तो आग बबू ला हुआ ही ककन्तु
इस बीच गौरी के समीप ते ़िी से आकर प्रकतमा ने उसके गाल पर एक झन्नाटे दार
थप्पड जड कदया।

"साली कुकतया।" प्रकतमा ककसी शे रनी की भाॅकत गुरागते हुए बोली___"ते री कहम्मत
कैसे हुई अजय के चे हरे पर थू ॅकने की? अपने आपको बडी सती साकित्री समझती है
न। अभी यही ं सबके सामने ते रे इस कजस्म को नु चिाती हूॅ। अपने रूप और सौंदयग
का बहुत घमंड है न तु झे, रुक ऐसा हाल करिाऊगी कक सब थू ॅकेंगे तु झ पर।" कहने
के साथ ही प्रकतमा एक झटके से अजय कसं ह की तरि पलटी, किर गु स्से से
िंु िकारते हुए बोली____"दे ख क्ा रहे हो अजय? आगे बढो और चीर िाड कर िेंक
दो इस रं डी के कजस्म से इसके सारे कपडे । ़िरा भी रहम न करना इस दो टके की
राॅड पर।"

प्रकतमा का भभकता हुआ चे हरा तथा उसकी बातें सु न कर अजय कसं ह पर तु रंत
प्रकतकक्रया हुई। िह झटके से आगे बढा और गौरी के कजस्म पर मौजूद सिेद साडी के
ऑचल को पकड कर एक झटके से अपनी तरि खी ंच कलया। कजससे गौरी का
ऊपरी कजस्म अधगनग्न सा हो गया। सिेद ब्लाउज पर कसे हुए उसके बडे बडे उन्नत
उभार सबकी ऩिरों में आ गए। उधर अजय कसं ह की इस हरकत से िातािरर् में
कई सारी चीखें गू ॅज गईं। गौरी तो लाज ि शमग की िजह से कचल्लाई ही थी ककन्तु

1035
उसके साथ ही किराज आकद सब भी चीख पडे थे । एकदम से जैसे िातािरर् में
कोलाहल सा मच गया था।

"हराम़िादे ।" किराज के सब्र का बाॅध मानो टू ट गया। भयंकर गु स्से में भभकते हुए
उसने अपने दोनो हाॅथों को नीचे की तरि पू री ताकत से खी ंचा। उसका गोरा चे हरा
लाल सु खग पडता चला गया। कुछ ही पलों में रस्सी टू टती चली गई। रस्सी के टू टते ही
िह तीव्र िे ग से नीचे ़िमीन पर कगरा और किर गुलाकटयाॅ खाता चला गया। ककन्तु
तु रंत ही कबजली की िीड से उठ कर खडा भी हो गया। उसके दोनो हाॅथ आपस में
अभी भी रस्सी से बधे हुए थे । िह उसी हालत में अजय कसं ह की तरि दौड पडा।

पलक झपकते ही िह अजय कसं ह के ऊपर छलांग चु का था। अजय कसं ह के ऊपर
किराज का कजस्म बडे िे ग से टकराया था कजसके पररर्ाम स्वरूप िो भरभरा कर
िही ं ़िमीन पर कगरा। किराज पहले तो उसके ऊपर ही था ककन्तु ़िमीन पर दोनो के
कगरते ही किराज उसके ऊपर से दू सरी तरि लु ढकता चला गया था। ककन्तु िह
िौरन ही उठा और पल भर में अजय कसं ह के सीने में सिार हो गया। उसके सीने पर
सिार होते ही िह अपने दोनो बधे हाथों का दु हत्थड उसके सीने पर पू रे िे ग से मारने
लगा। ये सब इतनी जल्दी हुआ कक कुछ दे र तक तो कोई कुछ समझ भी न पाया। हर
कोई हक्का बक्का रह गया था।

सबको होश तो तब आया जब िातािरर् में अजय कसं ह की ददग भरी चीखें गूॅजने
लगी थी। चारो तरि तै नात गनमैन तु रंत ही हरकत में आ गए। िो एक साथ उस
तरि बढे जहाॅ पर किराज अजय कसं ह के ऊपर चढा हुआ उस पर दु हत्थड बरसाए
जा रहा था।

"आज तु झे क़िंदा नही ं छोंडूॅगा हराम़िादे ।" किराज मारने के साथ साथ गुस्से में
बोलता भी जा रहा था___"तू ने मेरी दे िी जैसी माॅ का अपमान ककया है। उन पर
अपनी गंदी दृकष्ट डाली है। तु झ जैसे पापी का इस दु कनयाॅ में जीने का कोई अकधकार
नही ं है।"

किराज अभी ये सब बोल ही रहा था कक तभी चारो तरि से दौडते हुए आए गनमैनों
ने उसे पकड कर अजय कसं ह के ऊपर से खी ंच कर दू र कर कदया। गनमैनों के बं धन
में जकडा हुआ किराज बु री तरह चीखे जा रहा था तथा खु द को उनकी पकड से
छु डाने के कलए पू री ताकत लगाए जा रहा था। ककन्तु चारो तरि से हाॅथ पै र पकडे
गनमैनों की पकड से िह छूट नही ं पा रहा था। ये अलग बात थी कक गनमैनों को उसे
सम्हालने में कािी ़िोर आजमाईश करनी पड रही थी।

1036
इधर किराज के हटते ही अजय कसं ह ़िमीन से उठा और तमतमाया हुआ िह गनमैनों
द्वारा पकडे किराज की तरि बढा और किर जल्दी जल्दी उसने किराज पर लात
घूॅसों की बौछार कर दी। अजय कसं ह यही ं पर ही नही ं रुका बल्कि उसने झपट कर
एक गनमैन से उसकी गन छीनी और दो कदम दू र हटते हुए उसने किराज की तरि
गन का दहाना खोल कदया। पररर्ामस्वरूप दो पल के भीतर ही गन से कनकली
गोकलयाॅ किराज के कजस्म को छलनी करती चली गईं। िातािरर् कई सारे गलों से
कनकली चीख ि कचल्लाहट से गुं जायमान हो उठा। उधर गोकलयों से छलनी हो गए
किराज का समूचा कजस्म उसके ही लाल सु खग खू न से नहाता चला गया।

"राऽऽऽऽऽऽज।" अपने कमरे में बे ड पर गहरी नी ंद में सोई पडी गौरी पू री शल्कक्त से
कचल्लाते हुए हडबडा कर उठ बै ठी। उसकी इस चीख से रात के गहरे सन्नाटे में डूबा
समूचा बगला मानो झनझना कर रह गया। बे ड पर बदहिाश सी बै ठी गौरी किकछप्त
सी हालत में इधर उधर दे खे जा रही थी। उसका चे हरा भय ि दहशत से पीला ़िदग
पडा हुआ था। समूचा कजस्म पसीने से तर बतर था। बु री तरह हाॅिे जा रही थी िह।

गौरी की इस भयानक चीख से बगले के अं दर अपने अपने कमरों में बे ड पर सोया


हुआ हर इं सानी जीि बु री तरह उछल कर उठ बै ठा था। जैसे ही उन्हें ये एहसास हुआ
कक चीख गौरी के कमरे से आई है तो सब के सब अपने अपने कमरों से दौड पडे ।
ककसी को होश भी नही ं था कक कौन ककस हालत में बे ड पर सोया हुआ था?

थोडे ही समय में सबके सब गौरी के कमरे के दरिाजे पर ऑधी तू िान की तरह
पहुॅचे । अभय ि पिन ने दरिाजे को पू री ताकत से थपथपाया। ककन्तु दरिाजा तो
खु लता चला गया। यानी कक दरिाजा अं दर से बं द नही ं था। शायद गौरी को दरिाजा
बं द करने का खयाल ही नही ं आया था। आता भी कैसे , उसके खयालों में तो हर पल
उसका बे टा रहता था। जो उसकी ऑखों का तारा था, उसके जीने का आकखरी
सहारा था। उसे पता था कक िो इस समय मौत के मु ह में है। खै र, दरिाजे को खु लता
दे ख पिन ने जल्दी से दरिाजे को पू रा धकेला और किर सबके सब कमरे में दाल्कखल
हो गए।

कमरे में दाल्कखल होते ही सबकी ऩिर एक साथ बे ड पर पागलों की सी हालत में बै ठी
गौरी पर पडी। गौरी को इस िक्त ककसी बात का होश नही ं था और ना ही उसे अपनी
हालत का खयाल था। उसकी सिेद साडी का ऊपरी कहस्सा बे ड शीट पर ही एक
तरि कगरा हुआ था। उसकी इस हालत को दे ख कर करुर्ा ते ़िी से उसकी तरि
बढी और उसने उसके ऑचल को उसके सीने पर ढकते हुए खु द भी बे ड के ककनारे
बै ठ कर उसे दोनो हाॅथों से सम्हाल कलया।

1037
"क्ा हुआ दीदी???" करुर्ा सहसा दु खी भाि से गौरी के बु त बने कजस्म को
झकझोरते हुए बोली___"आप इतनी ़िोर से क्ों चीखी थी? बताइये न दीदी, क्ा
हुआ है?"
"र..र..रा..ज।" सहसा गौरी के थरथराते हुए लबों से बडी अजीब सी आिा़ि
कनकली___"मे..मेरे..बे टे..को मार कदया उन लोगों ने । उन हत्यारों ने मेरे कजगर के
टु कडे को गोकलयों से भू न कदया। मेरा बे टा खू न से लथपथ हो गया है। िो रो रहा
है...िो माॅ माॅ कह कर मुझे पु कार रहा है । हाय रे ...मेरे बे टे को जान से मार कदया
उन कंजरों ने ।" कहने के साथ ही गौरी दहाडें मार मार कर रो पडी___"मु झे मेरे बे टे
के पास जाना है। मु झे मेरे बे टे के पास पहुॅचा दो। मु झे अपना बे टा जीकित चाकहए।
ईश्वर मेरे बे टे को मु झसे नही ं छीन सकता। अगर ऐसा हुआ तो उसे मेरी बद् दु िा
लगेगी। मुझे मेरे बे टे के पास जाना है।"

इतना सब कहने के साथ ही गौरी को चक्कर सा आ गया और िह करुर्ा की बाहों


में अचे त सी लु ढक गई। गौरी की इन बातों ने सबको जैसे सकते में ला कदया। सबके
पै रों तले से मानों ़िमीन गायब हो गई। सबके सब उसकी बात सु न कर इस तरह
अिाक से अपनी अपनी जगह खडे रह गए थे मानों सबको एक साथ ही लकिा मार
गया हो। होश तब आया जब करुर्ा की करुर् चीखें सबके सु न्न पड चु के कानों में
पडी।

कुछ ही पल पहले मानो िक्त ठहर सा गया था। करुर्ा की चीख ने मानो सबके
कजस्मों में प्रार्ों का सं चार कर कदया था। िस्तु ल्कथथत का एहसास होते ही सबसे पहले
कनधी के हलक से आिा़ि कनकली। िह रोते हुए गौरी की तरि दौड पडी और उससे
कलपट कर रोने लगी। उसके बाद तो सब के सब अपनी अपनी भािनाओं के साथ
गौरी के पास पहुॅच गए थे । ककसी को कुछ समझ में नही ं आ रहा था कक क्ा करें ?
गौरी की इस हालत ने सबको मानों कििे कहीन सा कर कदया था। रुल्कक्मर्ी ि आशा
ने आगे बढ कर गौरी को सम्हाला और उसे ध्यान से दे खा।

"जल्दी से कोई पानी ले आओ।" किर रुल्कक्मर्ी ने दु खी भाि से लगभग ़िोर से


कचल्ला कर कहा___"इसे चक्कर आया हुआ है । इसने ़िरूर कोई बहुत ही बु रा
सपना दे खा है। उसी की िजह से यह इतनी ़िोर से चीखी थी।"

रुल्कक्मर्ी की बात सु न कर पिन जो पास ही खडा था िो तु रंत कमरे से बाहर की


तरि दौडते हुए गया और कुछ ही पलों में एक स्टील के मग में पानी ले कर आ गया।
अभय ने आगे बढ कर उससे पानी से भरा स्टील का मग कलया और उससे चु ल्लू में
पानी डाल कर गौरी के चे हरे पर कछडकने लगा। अभय कसं ह की ऑखों में ऑसू ि
चे हरे पर पीडा के भाि थे । कदाकचत अपनी दे िी समान भाभी की इस हालत से िह

1038
खु द भी बे हद दु खी हो गया था।

जगदीश ओबराय बगले में नही ं था। िो शाम के लगभग सात बजे ही कही ं बाहर चला
गया था। उसने बताया था कक िह कबजने स के सं बंध में ककसी ़िरूरी काम से जा रहा
है। खै र, कुछ ही दे र में गौरी को पु नः होश आ गया। होश में आते ही िह रोते हुए राज
राज कचल्लाने लगी। उसे यूॅ रोता दे ख सबकी ऑखें छलक पडी ं। बडी मुल्किल से
उसे सम्हाला सबने । िो बार बार यही कहती कक उसे अपने बे टे के पास जाना है।
उसके बे टे को हत्यारों ने गोकलयों से छलनी कर कदया है।

कािी दे र तक सबके समझाने बु झाने के बाद आकखर िह कुछ शान्त हुई। सबने उसे
समझाया और यकीन कदलाया कक उसके बे टे को ककसी ने कुछ नही ं ककया है बल्कि
उसका बे टा पू र्गतया सु रकक्षत है। सबने अपने अपने तरीके से गौरी को समझाया तो
था और तसल्ली भी दी थी ककन्तु माॅ का हृदय पू री तरह से शान्त न हो सका था।
उसका अं तमगन सं तुष्ट नही ं था। मगर सबको कदखाने के कलए िह शान्त ़िरूर हो गई
थी। कदाकचत उसने भी सोचा कक ये महज एक ख्वाब ही था और इसकी िजह से उसे
सबको दु खी या कचं कतत नही ं करना चाकहए।

लगभग एक घंटे बाद सब अपने अपने कमरों में चले गए। गौरी के पास केिल
रुक्मकर् रह गई थी। अपनी माॅ की इस हालत से कनधी भी कािी ब्यकथत हो गई थी।
खास कर इस बात को सु न कर कक उसके भाई को या यू ॅ ककहए कक उसके प्यार को
गोकलयों से छलनी कर कदया है हत्यारे ने । गौरी के इस स्वप्न ने सबको झकझोर कर
रख कदया था। उस रात किर कोई भी ठीक से सो नही ं पाया था। कदाकचत इस कलए
भी कक एक ये सच्चाई तो थी ही कक किराज मौत के मु ह में था। ररतू तथा ररतू की
पु कलस भले ही उसके साथ थी ककन्तु दु भागग्य कभी ककसी को बता कर नही ं आता। हर
कोई किराज के कलए कचं कतत था और हर िक्त उसकी सलामती के कलए भगिान से
दु िाएॅ कर रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैं और आकदत्य बाहर से घू म किर कर शाम को लगभग सात बजे घर पहुॅचे । अं दर
आते ही आकदत्य ने कहा िो िेश होने अपने कमरे में जा रहा है। उसके जाने के बाद
मैं सीधा नीलम के कमरे में उसको दे खने के कलए चला गया। नीलम के कमरे का
दरिाजा पू री तरह से बं द नही ं था बल्कि थोडा सा खु ला हुआ था। मैने उस खु ले हुए
कहस्से के पास चे हरा ले जाकर पहले सोनम दीदी को आिा़ि दी। ककन्तु जब अं दर से
कोई प्रकतकक्रया नही ं आई तो मैं कुछ पल सोचने के बाद खु द ही दरिाजा खोल कर
कमरे के अं दर आ गया।

कमरे में रखे शानदार बे ड पर नीलम करिट के बल ले टी हुई थी। उसकी ऑखें बं द

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थी इस िक्त। कदाकचत सो रही थी या किर ऑखें बं द करके आराम कर रही थी। मैं
उसके क़रीब जा कर बे ड के पास ही खडा हो गया। मेरी ऩिर उसके मासू म ि
खू बसू रत से चे हरे पर पडी। इस िक्त िो ककसी छोटी सी बच्ची की भाॅकत मासू म
कदख रही थी। मु झे उसकी इस मासू कमयत पर बे हद प्यार आया। मेरे होठों पर
मुस्कान िैल गई। तभी अचानक मेरे मन में उसे छें डने का खयाल आया मगर किर
मैंने अपने मन से उसे छें डने का खयाल झटक कदया। मु झे लगा इस िक्त इसे आराम
से सोने दे ना चाकहए। ये सोच कर मैं उसके चे हरे के क़रीब झुका और प्यार से उसके
माॅथे पर हौले से चू ॅम कलया। उसके बाद मैं पु नः सीधा खडा हुआ और किर कबना
कुछ बोले ही पलट कर कमरे से बाहर की तरि जाने के कलए बढा ही था कक सहसा
तभी मैं चौंक पडा। पीछे से नीलम ने उसी िक्त मेरी दाकहनी कलाई को पकड कलया
था।

उसके इस तरह मेरी कलाई पकड ले ने पर मैं बरबस ही मु स्कुरा उठा। मेरे कदमाग़ में
तु रंत ही ये बात आई कक नीलम ने कदाकचत मु झे छें डने के कलए ही मेरी कलाई पकड
ली है । अतः ये सोचते हुए मैं पू िगत मुस्कुराते हुए उसकी तरि पलटा। नीलम ने अपने
एक हाॅथ से मेरी कलाई को पकडा हुआ था, ककन्तु उसके चे हरे पर कोई भाि नही ं
था। िो बस मु झे एकटक दे खे जा रही थी। उसकी ऑखों में कुछ था जो किलहाल
मेरी समझ में नही ं आया कक िो क्ा था?

"क्ा बात है बं दररया?" मैने उसे इस तरह दे खते दे ख छें डने िाले भाि से
कहा___"क्ा मु झसे पं गा ले ने का इरादा है? दे ख अगर ऐसा है तो किलहाल अपने
़िहन से इस खयाल को कनकाल दे । क्ोंकक इस हालत में तु झको मु झसे पं गा ले ना
भारी पड जाएगा। इस कलए मेरी बात मान पहले तू ठीक हो जा। उसके बाद तू शौक
से मुझसे जैसे चाहे पं गे ले ले ना।"

"ऐसी कोई बात नही ं है राज।" नीलम ने सहसा गंभीरता से कहा___"तु मसे तो मैं इस
हाल में भी पं गा ले ने को तै यार हूॅ और यकीन मानो मु झे पं गे के भारी पडने की कोई
किक्र नही ं है। मगर मैं इस िक्त तु मसे कुछ और ही बात कहना चाहती हूॅ।"

"ओह आई सी।" मैने उसे गंभीर हालत में दे खते हुए ़िरा खु द भी कुछ गंभीरता का
नाटक करते हुए कहा___"तो ये बात है। िरमाइए, क्ा कहना चाहती हैं आप?"
"कहने को तो बहुत कुछ है मेरे कदल में।" नीलम की आिा़ि सहसा लडखडा सी गई,
ककन्तु तु रंत ही जैसे उसने खु द को मजबू ती से सम्हालते हुए कहा___"मगर कसिग यही
कहना चाहती हूॅ कक मेरी ररतू दीदी का हमेशा खयाल रखना। मैं नही ं चाहती कक
उनका मोम का बन चु का कदल किर से पत्थर में तब्दील हो जाए।"

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"क्ा मतलब???" मैं नीलम की इस बात से एकदम से चकरा सा गया, बोला___"ये
क्ा ऊल जुलूल बोल रही हो तु म?"
"एक गुजाररश भी है तु मसे ।" नीलम ने मेरी बात पर ़िरा भी ध्यान न दे ते हुए िीकी
मुस्कान से कहा___"इतने कम समय में भी मु झे एहसास हो चु का है कक तु म्हारे कदल
में हम सबके कलए बे पनाह प्यार ि सम्मान की भािना है। इस कलए मेरी गु़िाररश है
कक हमेशा ऐसे ही बने रहना। चाहे जैसी भी पररल्कथथकतयाॅ आ जाएॅ मगर तु म खु द
को नही ं बदलना।"

"ये तु म कैसी बातें कर रही हो नीलम?" मैं नीलम की इन बातों से बु री तरह हैरान ि
चककत रह गया था, किर बोला___"दे खो ककसी भी तरह की पहे कलयाॅ मत बु झाओ।
जो भी बात है उसे साि साि कहो।"

"अब इससे ज्यादा साि साि नही ं कह सकती मेरे भाई।" नीलम ने भारी आिा़ि में
कहा___"मु झे पता है कक तु म बे हद समझदार हो, इस कलए मैं उम्मीद करती हूॅ कक
तु म मेरी बातों को समझ जाओगे।"

"दे खो अगर तु म्हारे ये सब कहने का मतलब।" मैने इस बार ़िरा गंभीर भाि से
कहा___"इस बात से है कक इस सबके बाद क्ा होगा तो तु म इस बात से बे किक्र
रहो। मैं जानता हूॅ कक इस जंग का अं त यकीनन बे हद दु खदायी होगा। मगर होनी
तो अटल है न। पाप और बु राई का अं त तो कनकश्चत है। ककन्तु उसके बाद हम सब साथ
कमल कर एक नया सं सार बनाएॅगे। उस नये सं सार में हम सब एक साथ ढे र सारी
खु कशयों का कहस्सा होंगे। मैं तु मसे िादा करता हूॅ कक जीिन में कभी भी ककसी को
मैं उदास या दु खी होने का मौका नही ं दू ॅगा।"

"मुझे पता है राज।" नीलम ने िीकी सी मु स्कान के साथ मेरी तरि दे खते हुए
कहा____"मैं जानती हूॅ कक तु म्हारे रहते कोई भी जीिन में दु खी नही ं हो पाएगा।
ककन्तु मेरे ये सब कहने का मतलब इन सब बातों से नही ं था भाई, बल्कि मैं तो बस
ररतू दीदी के कलए िो सब कह रही थी।"

"क्ा मतलब??" मेरे चे हरे पर सोचने िाले भाि उभरे ।


"यही तो कबिसता है राज।" नीलम ने बे बस भाि से मेरी तरि दे खा___"कुछ बातें
ऐसी होती हैं कजन्हें मुख से नही ं कहा जाता बल्कि सामने िाले को खु ही समझ जाना
होता है और मैं तु मसे यही उम्मीद करती हूॅ कक तु म कबना कुछ बताए सब कुछ
समझ जाओगे।"

"कमाल है।" मैं चककत भाि से कह उठा____"भला ये क्ा बात हुई? मैं कोई अं तयाग मी

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हूॅ क्ा जो ककसी के बताए कबना ही सब कुछ जान लू ॅगा या किर समझ लू ॅगा?"
"क्ों नही ं राज।" नीलम ने बडे ग़ौर से मेरी तरि दे खते हुए कहा____"तु म यकीनन
कबना कुछ बताए सब कुछ समझ सकने की काबीकलयत रखते हो और मुझे ऐसा
लगता भी है कक तु म सब कुछ समझते भी हो।"

"अब ये क्ा बात हुई यार?" मैं बु री तरह चौंका।


"पता नही ं क्ों?" नीलम ने पू िगत मेरी तरि बडे ग़ौर से दे खते हुए ही कहा___"पर
मुझे ऐसा लगता है कक तु म जानते समझते सब कुछ हो मगर प्रत्यक्ष रूप में ़िाकहर
यही करते हो कक तु म्हें सामने िाले की कोई भी बात समझ में नही ं आई है। है ना?"

"और मु झे ऐसा लग रहा है।" मैने कहा___"कक जैसे तु म मु झसे पं गा ले ने के मूड हो।
क्ोंकक तु म्हारी ये बे कसर पै र की बातें इसी बात का इशारा करती हैं। मगर कमस
नीलम, जैसा कक मैं पहले ही कह चु का हूॅ तु मसे कक तु म इस िक्त मु झसे पं गा ले ने
की हालत में नही ं हो। इस कलए बे हतर होगा कक अपने ़िहन से पं गा ले ने िाले खयाल
कनकाल दो।"

मेरी इस बात से नीलम कुछ न बोली। बस एकटक दे खती रही मेरी तरि। मैं खु द भी
उसी की तरि दे ख रहा था। उसके चे हरे पर कई तरह के भािों का आिागिन चालू
था। ऐसा लग रहा था जैसे ककसी बात के कलए उसे अपने आपसे कािी ़िद्दो जहद
करनी पड रही हो। एकाएक ही उसने मेरे चे हरे से अपनी ऩिरें हटाईं और अपने
कसर को दू सरी तरि कर कलया। मैं ये दे ख कर बु री तरह चौंका कक दू सरी तरि कसर
ककये नीलम की ऑखों से ऑसू छलक पडे थे । मुझे कुछ समझ न आया ककन्तु इतना
़िरूर हुआ कक उसकी ऑखों से इस तरह ऑसू छलकते दे ख मैं बे चैन हो गया।

"अरे ये क्ा मेरी प्यारी सी बहन की ऑखों से ऑसू क्ों छलक पडे ?" मैं एकदम से
उसके समीप ही बे ड के ककनारे पर बै ठ गया और किर उसके हाॅथ को अपने हाॅथ
में ले कर बोला___"दे ख अगर तु झे मेरी ककसी बात से बु रा लगा हो तो मु झे माफ़ कर
दे । मैं तु झे इस तरह ऑसू बहाते नही ं दे ख सकता। तू तो जानती ही है कक मैं ककतना
बे िकूि हूॅ। मुझमें ककसी की भािनाओं को समझने का ज्ञान नही ं है। अतः अगर
तु झे मेरी ककसी बात से तक़लीि हुई है तो प्लीज माफ़ कर दे मु झे।"

"ऐसा मत कह राज।" नीलम एकदम से मेरी तरि पलट कर कससक उठी____"तू तो


ऐसा है जो भू ल से भी ककसी को कोई तक़लीि नही ं दे सकता। मु झे खु शी है दु कनयाॅ
में सबसे खू बसू रत कदल का लडका मेरा भाई है। ये ऑसू तो िक़त ऐसी ही खु शी के
तहत छलके हैं। मैं नही ं जानती कक ककसके जीिन में क्ा क्ा खोना और पाना
कलखा है मगर मेरी हसरत तो यही है कक मेरी ररतू दीदी को हर िो ची़ि कमल जाए

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कजस ची़ि की उन्होंने ऱिा की हो।"

"मेरे रहते मेरी बहनों को कभी भी ककसी ची़ि की कमी का एहसास तक नही ं होगा
नीलम।" मैने कहा___"मैं बहनें मेरी जान हैं, उनके कलए कुछ भी कर सकता हूॅ मैं।
ररतू दीदी ही बस क्ों मैं तो अपनी सभी बहनों को बराबर प्यार ि सम्मान दू ॅगा।"

"जैसा तु म्हें अच्छा लगे िै सा करना राज।" नीलम ने गहरी साॅस ली____"अब तु म
जाओ और नै ना बु आ या सोनम दीदी में से ककसी को भे ज दो। मेरा कसर ़िरा भारी
भारी सा लग रहा है।"

"कसर भारी लग रहा है???" मैं चौंका___"इतनी सी बात के कलए उनको क्ों कष्ट दे ना?
लाओ मैं तु म्हारे कसर की माकलश कर दे ता हूॅ। इतना तो मैं भी कर सकता हूॅ।"
"तु म रहने दो राज।" नीलम ने कहा___"तु म परे शान न हो। सोनम दीदी को भे ज
दे ना।"

"ओये कचं ता मत कर यार।" मैं सहसा मु स्कुराया___"कसर की माकलश ही करूॅगा,


ते रा गला नही ं दबाऊगा मैं।"
"काश! तू मेरा गला ही दबा दे भाई।" नीलम की आिा़ि एक बार पु नः जाने क्ा
सोच कर भराग गई___"ते रे पास ते री ही बाहों के दरकमयां इस दु कनयाॅ से रुख़्सत हो
जाऊगी।"

"ज्यादा बकिास मत कर।" मैने सहसा कठोर भाि से कहा___"िरना कान के नीचे
एक लगाऊगा तो सारा से ल्कन्टमेंट कनकल जाएगा ते रा। अब अगर कुछ बोला तो
दे खना किर।"

मेरी बात सु न कर नीलम बस मु स्कुरा कर रह गई। जबकक मैं उसके कसरहाने के


क़रीब ही बै ठ कर उसके माॅथे पर हाॅथ से माकलश का दबाि आकहस्ता आकहस्ता
करने लगा और साथ ही सोचने लगा कक नीलम ने आकखर ऐसी बात क्ा सोच कर
कही हो सकती है? अभी मैं नीलम की बातों के बारे में सोच ही रहा था कक तभी कमरे
में नै ना बु आ ि सोनम दीदी एक साथ ही आ गईं। मु झे इस तरह नीलम का कसर
दबाते दे ख िो दोनो ही चौंकते हुए एक जगह कठठक गईं।

"ओहो।" किर सहसा नै ना बु आ ने मु स्कुराते हुए कहा___"क्ा बात है राज, अपनी


लाडली बहन की बडी से िा कर रहे हो तु म। िै से मैने सु ना है कक तु म दोनो आपस में
बडा लडते झगडते हो। किर ये से िा भाि कैसे ?"

"क्ा बताऊ बु आ?" मैने बडी मासू कमयत से कहा__"मैं इससे चाहे कजतना भी लडूॅ

1043
झगडूॅ ले ककन आकखर है तो ये मेरी प्यारी बहन ही न? बे चारी का कसर भारी भारी सा
हो रहा था तो कहने लगी कक मैं आप में से ककसी को बु ला दू ॅ। मैने सोचा कक इतनी
सी बात पर भला आप लोगों को क्ों कष्ट दे ना? अब जब मैं खु द ही यहाॅ पर मौजूद
हूॅ तो क्ा थोडी दे र इसके कसर की माकलश करके इसके कसर का भारीपन नही ं दू र
कर सकता? बस यही सोच कर से िा करने लगा था इस बे चारी की मगर हाय रे मेरी
ककस्मत! ये तो इस हाल में भी मेरा भे जा िाई करने पर तु ल गई। अच्छा हुआ कक
आप दोनो यहाॅ आ गईं, अब आप ही इसे सम्हाकलये । मैं तो अब यहाॅ से अब नौ दो
ग्यारह ही हो जाऊगा।"

"अरे अब बस भी कर राज।" सोनम दीदी हैरानी से मेरी तरि दे खते हुए कह


उठी ं___"ककतना बोलता है तू । हर िक्त उसे बस तं ग ही करने का सू झता है तु झे।"
"लो कर लो बात।" मैने कहा___"खै र क्ा कहूॅ अब? ठीक है जा रहा हूॅ मैं। अब
आप ही दे खो इस बं दररया को। गुड बाॅय।"

इतना कहने के बाद ही मैं पै र पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया। जबकक मु झे इस
तरह जाते दे ख सोनम दीदी ि नै ना बु आ ल्कखलल्कखला कर हस पडी ं। नीलम के होठों
पर भी िीकी सी मुस्कान थी। ककन्तु उसके चे हरे के भािों से ऐसा लगता था जैसे
ककसी ककसी पल िो कही ं खो सी जाती थी।

कमरे से बाहर जैसे ही मैं आया तो मेरे पैं ट की जेब में पडा हुआ मेरा मोबाइल िोन
बज उठा। मैं ते ़ि ते ़ि क़दमों के साथ चलता हुआ नीचे आया और किर बाहर की
तरि कनकल गया। इस बीच मैने मोबाइल पर आ रही काल को ररसीि कर मोबाइल
को कान से लगा कलया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस िक्त रात के लगभग बारह बज रहे थे । सारा शहर सोया पडा था। कही दू र
ककसी घंटाघर में लगे हुए घंटे ने बारह बजते ही ़िोर की आिा़ि दी। खाली पडी
सडकों पर अभी कुछ ही दे र पहले गहन सन्नाटा छाया हुआ था ककन्तु कुछ ही पलों के
भीतर इस सन्नाटे को भे दते हुए कई सारी गाकडयाॅ सडक पर सरपट दौडती हुई
आईं और किर एकाएक ही उन सबकी रफ्तार आश्चयगजनक रूप से धीमी हो गई। िो
लगभग चार गाकडयाॅ थी ं। कजनमें से एक टाटा सिारी थी बाॅकी कक तीनों बु लैरो
थी ं।

धीमी रफ्तार से चलती हुई िो चारों ही गाकडयाॅ एक के बाद एक आगे के मोड पर


दाकहने साइड मु ड गईं। कुछ ही दे र में िो चारो एक ऊचे मकान के सामने आकर
रुकी ं। गाकडयों के रुकते ही चारो गाकडयों के दरिाजे एक साथ मगर आकहस्ता से
खु ले। सभी गाकडयों के खु ल चु के दरिाजों में से एक के बाद एक आदमी बाहर

1044
कनकले । सभी आदकमयों के हाॅथ में कपस्तौल िष्ट ऩिर आ रही थी। टाटा सिारी से
दो आदमी बाहर कनकले थे । उनमें से एक आदमी की कद काठी से प्रतीत होता था
कक िह कोई युिक ही था ककन्तु दू सरा आदमी कुछ एज्ड ऩिर आ रहा था।

तीनो बु लैरो गाकडयों से कनकले हुए कपस्तौल धारी आदमी पलक झपकते ही उस ऊचे
मकान के सामने की दीिार तथा मुख्य दरिाजे के इतर कबतर मुस्तैदी से तै नात हो
गए। उनकी मुस्तैदी दे ख कर ऐसा लग रहा था जैसे िो ककसी महत्वपू र्ग कमशन पर
आए हुए हैं। जबकक टाटा सिारी से कनकले हुए िो दोनो ही आदमी आराम से ककन्तु
बे आिा़ि चलते हुए मुख्य दरिा़िे के क़रीब आ कर खडे हो गए। दरिाजे के पास
खडे हो कर िो दोनो ही बाएॅ साइड दे खने लगे।

बाईं तरि एक आदमी बडी दक्षता से रस्सी को ऊपर की बालकनी की रे कलं ग में
िसा कर ऊपर की तरि चढता चला जा रहा था। सबकुछ मानो पहले से ही प्लाकनं ग
की गई थी कक यहाॅ पहुॅच कर कौन कब क्ा करे गा। खै र, कुछ ही दे र में िो
आदमी रस्सी के द्वारा ऊपर बालकनी में पहुॅच गया। ऊपर बालकनी से चलता हुआ
िो दाईं तरि की ल्कखडकी के पास पहुॅचा। ल्कखडकी के पास पहुॅच कर उसने बडे
एहकतयात से ल्कखडकी के पल्लों को अं दर की तरि पु श ककया। ककन्तु ल्कखडकी के
पल्ले टस से मस न हुए। ये दे ख कर उस आदमी ने िौरन ही अपने एक हाॅथ को
अपने काले लबादे में डाला और कोई ची़ि बाहर कनकाली।

यकीनन िो ची़ि ल्कखडकी के पल्लों पर लगे शीशों को काटने िाला हीरा था। उस
आदमी ने बडे एहकतयात से तथा बडी सिाई से उस हीरे के द्वारा पल्ले पर लगे शीशे
को काटा और उसका कटा हुआ टु कडा सािधानी से कनकाल कर बालकनी में ही
नीचे एक तरि रख कदया। उसके बाद उसने कटे हुए पल्ले में हाॅथ डाल कर
ल्कखडकी के पल्लों की कुण्डी को खोल कदया। कुछ ही दे र में ल्कखडकी के दोनो ही
पल्ले पू री तरह अं दर की तरि खु लते चले गए। अं दर की तरि यूॅ तो अं धेरा ही था
ककन्तु ल्कखडकी के अं दर की तरि से लगे पदों को हटा कर उस आदमी ने अं दर
ककसी भी तरह ही ची़ि की आहट को सु नने के कलए अपने कान खडे कर कदये थे ।
कुछ दे र तक िह ऐसी ही पोजीशन में रहा किर िह एकदम से ल्कखडकी पर चढ कर
अं दर कमरे की तरि अं दा़िे से अपने पै र आकहस्ता आकहस्ता रखता चला गया।

कमरे में आते ही उसने सबसे पहले अपने लबादे से कोई ची़ि कनकाली। कुछ ही पलों
में पें कसल टाचग का मध्यम प्रकाश कमरे के िशग पर उसके पास ही उत्पन्न होता हुआ
कदखा। उस आदमी ने पें कसल टाचग के िोकस को धीरे धीरे आगे बढाते हुए उस कदशा
की तरि ककया कजस तरि से उसे कुछ दे र पहले ककसी ची़ि की आिा़ि महसू स हुई
थी। पें कसल टाचग का िोकस बढता हुआ कमरे में एक तरि रखे शानदार बे ड की

1045
तरि पहुॅचा। बे ड में दोनो ककनारों पर दो दो पै र ऩिर आए। आदमी ने टाचग के
िोकस को थोडा ऊपर ककया तो पता चला कक बे ड पर दो खू बसू रत लडककयाॅ
गहरी नी ंद में सोई हुई हैं।

दो लडककयों को गहरी नी ंद में सोते दे ख िो आदमी पहले तो अजीब तरह से


मुस्कुराया किर एकाएक ही िह अपनी एकडयों पर घूम गया। घूमने के बाद िह बडी
सािधानी से कमरे के दरिाजे की तरि बढता चला गया। दरिाजे के पास पहुॅच
कर उसने दरिाजे पर लगे हैल्कण्डल को घुमाया कजससे दरिाजा खु ल गया। दरिाजे
को हिा खोल कर उसने पहले बाहर की तरि हिा सा कसर कनकाल कर इधर
उधर दे खा, उसके बाद िह दरिाजे को खोल कर बडे आराम से कमरे से बाहर आ
गया।

कमरे के बाहर सिेद ट्यू ब लाइट का प्रकाश था। हर ची़ि िष्ट दे खी जा सकती थी।
इस िक्त समूचे मकान में गहन सन्नाटा छाया हुआ था। िो आदमी बडी सािधानी से
आगे बढता हुआ सीकढयों के पास आ कर रुक गया। सीकढयों के पास ही एक मोटे से
खं भे की आड में कछप कर उसने पहले इधर उधर दे खा उसके बाद नीचे चारो तरि
बारीकी से दे खने लगा। सब कुछ बे हतर समझ कर िह खं भे की ओट से कनकल कर
सीकढयों से नीचे की तरि बे आिा़ि उतरता चला गया।

सीकढयों से नीचे आकर िह दाई तरि बढा। कुछ ही दे र में िह मुख्य दरिाजे के पास
पहुॅच गया। मुख्य दरिाजा अं दर की तरि से बं द था। उस आदमी ने बडी सािधानी
से मुख्य दरिाजे के मोटे से हैल्कण्डल को घुमा कर दरिाजा खोल कदया। दरिाजा
खु लते ही सामने िो दोनो ही आदमी खडे ऩिर आए जो टाटा सिारी से बाहर
कनकले थे । इतने से काम में ही उस आदमी को लगभग दस से पं द्रह कमनट का समय
लग गया था। ककन्तु िो सब इस बात से बे किक्र से ऩिर आए।

दरिाजा खु लते ही टाटा सिारी से उतरे हुए िो दोनो आदमी मकान के अं दर की


तरि दाल्कखल हो गए। उनके साथ ही कुछ और लोग भी अं दर की तरि दाल्कखल हुए
जबकक कुछ लोग बाहर ही मुस्तैदी से खडे रहे । मुख्य दरिाजे से अभी िो आठ या
दस कदम ही आगे बढे होंगे कक तभी ककसी ची़ि के कगर कर टू टने की ते ़ि आिा़ि
हुई। इस आिा़ि ने उन सबकी रूह तक को कपकपा कर रख कदया। सारी
सािधानी सारी सतकगता धरी की धरी रह गई थी। ककन्तु अब क्ा हो सकता था?

आिा़ि होने के बाद िो सब कािी दे र तक अपनी जगह चु पचाप खडे रह गए थे ।


जब उस आिा़ि की िजह से कही ं से कोई भी प्रकतकक्रया न हुई तो ये सब अपनी
अपनी जगह से कहले । ककन्तु अभी चार कदम ही आगे बढे थे कक तभी उन सबके

1046
कानों में ककसी नारी की आिा़ि पडी। जो बाईं तरि से आती हुई ऩिर आ रही थी।
आते हुए ही उसने कहा था कक "कौन है िहाॅ"?

चालीस के आस पास की ऊम्र की उस मध्यम कदकाठी ि शक्लो सू रत की औरत


को दे खते ही सबको पहले तो मानो साॅप सा सू ॅघ गया ककन्तु किर जैसे अचानक ही
कबजली सी कौंधी। पास आ चु की औरत पर दो कपस्तौल धारी झपट पडे थे । अचानक
हुई इस कक्रया से िो औरत बु री तरह डर कर अभी भयानक आिा़ि में चीखने ही
िाली थी कक तभी एक कपस्तौल िाले के एक हाॅथ की हथे ली ककसी कुकर के ढक्कन
की भाॅकत उसके मुह से कचपक गई।

मुह पर हथे ली रूपी ढक्कन कचपकते ही औरत गूॅ-गू ॅ करती रह गई। िह उन दोनो
से छूटने के कलए बु री तरह छटपटाए जा रही थी। तभी एक तीसरा कपस्तौल िाला
आदमी उसके पास सामने से पहुॅचा और बे हद धीमें ककन्तु खतरनाॅक भाि से
बोला____"ज्यादा छटपटा मत िरना दे ख रही है न, इस कपस्तौल की सारी की सारी
गोकलयाॅ ते रे भे जे में उतार दू ॅगा। पलक झपकते ही ते री रूह ऊपर बै ठे खु दा के
दरबार में हाक़िरी बजाती ऩिर आएगी।"

उस आदमी के द्वारा कहे गए इन खतरनाॅक िाक्ों का तु रंत ही उस औरत पर


असर हुआ। िो एकदम से बु त सी बन गई। मगर मुसीबत अभी टली न थी क्ोंकक
इधर जैसे ही औरत ने छटपटाना बं द ककया िै से ही उधर इस बार एक मदागना
आिा़ि उभरी। ये आिा़ि उसी तरि से आई थी कजस तरि से ये औरत आई थी।
मदागना आिा़ि में कहा गया िाक् ये था कक____"का हुआ रे कबं कदया? ई बखत ससु री
ना खु द सोित है तू अउर ना हमका सोने दे त है।"

इस िाक् के साथ ही बाॅकी आदकमयों की कसट्टी कपट्टी गुम होती ऩिर आई। मगर
चू ॅकक ओखली में तो कसर पड ही चु का था इस कलए अब मूसल से क्ा डरना िाली
बात हो गई थी? कहने का मतलब ये कक जैसे ही िो आदमी ये सब कहते हुए सामने
आया िै से ही उसकी ऩिर कबं कदया को पकडे दो आदकमयों पर पडी। िह एकदम से
हक्का बक्का रह गया। इससे पहले कक िह अपने होशो हिाश में आ पाता दो
आदकमयों ने िौरन ही उसे दबोच कलया। उसके बाद िै सा ही हाल उसका भी हुआ
जैसे अभी कुछ दे र पहले कबं कदया का हुआ था।

"ओहो तो तू भी यही ं है हररया।" टाटा सिारी से आए हुए दो आदकमयों में से एक ने


आगे बढते हुए बडे ही नाटकीय अं दा़ि में कहा____"िाह बहुत खू ब। िै से अच्छा कसला
कदया नमक हलाली का। हमने तो समझा था कक हमने अपने सभी िामग हाउस पर

1047
बडे ही िफ़ादार कुिों को रखा हुआ है मगर, हमें क्ा पता था कक हमारे रखे हुए कुिे
एक कदन हमें ही काटने पर उतारू हो जाएॅगे । खै र, कोई बात नही ं। इसकी स़िा तो
तु म सबको कमले गी ही मगर उससे पहले बाॅकी लोगों का भी तो अच्छी तरह से प्रबं ध
कर कलया जाए।"

िो आदमी यकीनन अजय कसं ह था जबकक दू सरा िो युिक खु द उसका ही बे टा कशिा


था। हररया ने अजय कसं ह की इस बात का कोई जिाब न कदया। बल्कि अजय कसं ह
को इस िक्त यहाॅ अपने दलबल के साथ दे ख कर उसकी कसट्टी कपट्टी गु म हो गई।
उसके चे हरे से ही पता चल रहा था कक िह बु री तरह डर गया था।

इधर अजय कसं ह अभी पु नः कुछ कहने ही िाला था कक ऊपर सीकढयों से नीचे उतरते
हुए ककसी के आने की आहट हुई। अजय कसं ह तथा उसके आदकमयों ने िौरन ही
इधर उधर होकर कछपने का उपाय ककया। सीकढयों से नीचे आने िाली नै ना थी। इस
िक्त उसके कजस्म पर नाइट सू ट था। सीकढयों से नीचे उतर कर िह अपनी ही धुन में
ककचे न की तरि बढती चली गई। अजय कसं ह को समझते दे र न लगी कक उसे इस
िक्त के हालात के बारे में कोई अं देशा तक नही ं है। अतः अजय कसं ह ने िौरन ही
अपने एक अन्य आदमी को इशारा ककया।

अजय कसं ह का इशारा पाते ही िो आदमी बडी सािधानी से तथा बे आिा़ि ककचे न की
तरि बढता चला गया। कुछ ही दे र में जब िो िापस आया तो िह अपनी दोनों बाहों
के सहारे उठाए हुए नै ना को आता कदखाई कदया। नै ना कोई भी हरकत नही ं कर रही
थी। मतलब साि था कक उस आदमी ने नै ना को बडी सिाई से बे होश कर कदया था।

"ज्यादा समय नही ं है हमारे पास।" उस आदमी के आते ही अजय कसं ह ने धीमे स्वर
में कहा___"इस कलए जैसा कहा गया था िौरन ही िै सा करो। उसके बाद जल्दी से
यहाॅ कनकलना भी है।"

अजय कसं ह की इस बात को सु न कर उसके अन्य आदमी िौरन ही हरकत में आ


गए। कुछ लोग नीचे की तरि के कमरों की तलाशी ले ने लगे और बाॅकी लोग
सीकढयों के द्वारा ऊपर की तरि चले गए। लगभग दस कमनट बाद ही मं़िर ये था कक
ऊपर से आने िाले आदकमयों के कंधों पर एक एक इं सानी जीि बे होश अिथथा में
लदा हुआ ऩिर आ रहा था। नीचे के एक कमरे से एक आदमी शं कर के बे होश
कजस्म को कंधे पर लादे आ रहा था।

उन सबके आते ही अजय कसं ह कबं कदया ि हररया को पकडे आदकमयों को भी इशारा
ककया। इशारा कमलते ही उन आदकमयों ने पलक झपकते ही खतरनाॅक हरकत की।

1048
कजसका नतीजा ये हुआ कक कुछ ही पलों में कबं कदया ि हररया दोनो ही बे होश हो चु के
थे । सबको ले कर बाहर की तरि बढ चले िो लोग।

कुछ ही दे र में सभी बे होश हो चु के लोगों को बाहर खडी गाकडयों पर भू से की तरह


ठूॅस कदया गया। उसके बाद सभी आदमी अपनी अपनी गाकडयों पर बै ठ गए। टाटा
सिारी के चलते ही बाॅकी तीनों गाकडयाॅ भी उसके पीछे चल दी। गहरी नी ंद में
सोये शहर िाकसयों को इस सबका ़िरा भी इल् न हुआ कक रात के सन्नाटे में यहाॅ
क्ा कुछ हो चु का था? जबकक अजय कसं ह सबको ले कर अपने कनयत थथान की तरि
ऑधी तू िान की तरह बढा चला जा रहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सु बह हुई।
उधर मुम्बई में,
उस िक्त सब लोग सु बह का नास्ता कर रहे थे जब एकाएक ही पिन के मोबाइल
िोन की घंटी बजी थी। पिन अपने कमरे से तै यार होकर ही नास्ता करने आया था।
नास्ता करने के बाद उसे कंपनी चले जाना था। डायकनं ग हाल में कुसी पर बै ठे पिन
का मोबाइल उसकी पै न्ट की जेब में बज रहा था। चारो तरि कुकसग यों पर बै ठे बाॅकी
सबका ध्यान भी उसके मोबाइल की ररं गटोन पर गया। सबका ध्यान एक साथ जाने
की किशे ष बात ये थी कक पिन के मोबाइल की ररं ग टोन पर "ये दोस्ती हम नही ं
तोडें गे, तोडें गे दम मगर ते रा साथ ना छोंडेंगे" बज रही थी।

पिन पहले तो हडबडाया किर सबकी तरि दे खते हुए िह कुसी से उठा और अपनी
बाईं जेब से मोबाइल कनकाला। मोबाइल की स्क्रीन पर "राज" कलखा ऩिर आ रहा
था। यानी कक उसके मोबाइल पर किराज की काल आ रही थी। ये दे ख कर पिन के
चे हरे पर सहसा खु शी की चमक उभर आई। उसने मुस्कुराते हुए तु रंत ही काल को
ररसीि ककया और किर जाने क्ा सोच कर उसने मोबाइल का िीकर ऑन करके
बोला___"आकखर तु झे इतने कदनों बाद ही सही मगर मेरी याद आ ही गई न राज।"

"हमें तो तु म सबकी ही बहुत ़िोरों से याद आती है बखुग रदार।" मोबाइल पर उधर से
अजय कसं ह की इस आिा़ि को पहचानने में ककसी को ़िरा सी भी दे र न हुई। सबके
सब इस आिा़ि को सु न कर एकदम हक्के बक्के से रह गए। जबकक उधर से िीकर
पर पु नः अजय कसं ह की इस बार ़िरा कठोर आिा़ि उभरी____"मैं अच्छी तरह
जानता हूॅ कक इस िक्त इस नं बर से मेरी आिा़ि सु न कर तु म सबके पै रों तले से
़िमीन गायब हो गई होगी। हर ककसी को साॅप सा सू ॅघ गया होगा। खै र मु झे लगता
है कक तु म में से ककसी को भी मुझे ये बताने की या किर समझाने की ़िरूरत नही ं है
कक इस िक्त तु म लोगों का िो मसीहा किराज तथा उसके साथ साथ और भी बाॅकी
लोग मेरे रहमो करम पर हैं। इस कलए बे हतर होगा कक बग़ैर मेरी ककसी चे तािनी के

1049
तु म सब िहाॅ से िौरन मेरे पास या यू ॅ कहो कक मेरे सामने आकर घुटनों के बल
मेरे पै रों पर झुक जाओ।"

िीकर से उभर रहे अजय कसं ह के ये िाक् डायकनं ग टे बल पर मौजूद लगभग सभी
के मनो मल्कस्तष्क में ऐसा धमाका कर रहे थे कजसकी भीषर् गूॅज से सभी के कानों
के पदे तक झनझना रहे थे । और किर ऐसा लगा जैसे एक ही पल में सब कुछ खत्म
हो गया हो। चारो तरि कुकसग यों पर बै ठे सबके सब मानो ककसी ऋकष के द्वारा कदए
गए भयंकर श्राप की िजह से अचानक ही पत्थर की कशला में तब्दील होते चले गए
हों। एक ही पल में िक्त मानो ठहर सा गया था। जो कजस हालत में बै ठा था िो िै सी
ही हालत में स्टे च्यू में तब्दील हो गया था।

सबकी चे तना तब जागृत हुई जब पु नः िीकर से अजय कसं ह की आिा़ि के साथ


साथ ़िोरों का अिहास गूॅजा था___"दे खा, मै ने कहा था न कक तु म सबको साॅप सा
सू ॅघ जाएगा। मगर साॅप सू ॅघ जाने से कुछ नही ं होगा मेरे प्यारो बल्कि जो कुछ भी
होगा मेरे पास आने के बाद ही होगा। इस कलए िौरन िहाॅ से चले आओ। िरना तु म
लोग सोच भी नही ं सकते कक यहाॅ पर मैं तु म्हारे उस मसीहा के साथ साथ बाॅकी
सबका भी क्ा हस्र कर सकता हूॅ?"

अभी िीकर पर अजय कसं ह का ये िाक् पू रा ही हुआ था कक सहसा डायकनं ग हाल में
एक भयंकर चीख गू ॅज उठी, साथ ही िशग पर ककसी ची़ि के कगरने की ़िोरदार
आिा़ि हुई। इस चीख ि आिा़ि को सु न कर सबके सब बु री तरह उछल पडे । जैसे
ही सबने चीख की कदशा में दे खा तो सबके होश उड गए। दरअसल ये चीख गौरी के
हलक से खारऱि हुई थी। िो अपने हाॅथ में बतग न पर कुछ कलए हुए ककचे न से आ
रही थी और डायकनं ग हाल में आते ही उसने िीकर पर उभर रही अजय कसं ह की
उस आिा़ि के साथ साथ उसके सं पूर्ग िाक् को सु न कलया था। उसके बाद ही
उसके हलक से ये भयंकर चीख कनकली थी।

पिन के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा। उधर गौरी की चीख सु न ककचे न से
रुल्कक्मर्ी ि करुर्ा भी भागती हुई डायकनं ग हाल की तरि आ गई थी ं। गौरी को
डायकनं ग हाल के िशग पर अजीब हालत में लु ढकी पडी दे ख कर भौचक्की सी रह गई
िो दोनो। इधर डायकनं ग टे बर के चारो तरि रखी कुकसग यों पर बै ठे बाॅकी सब लोग
भी अपनी अपनी जगहों से उठ कर गौरी की तरि दौड पडे थे । दे खते ही दे खते
डायकनं ग हाल में रोना धोना शु रू हो गया। यहाॅ का रोना धोना चालू मोबाइल के
द्वारा अजय कसं ह भी सु न रहा था और ़िोरों से हसे जा रहा था।

"हाहाहाहाहा यही।" उधर से अजय कसं ह की आिा़ि पु नः उभरी____"अब यही हाल

1050
होगा तु म सबका। मगर जैसा कक मैं पहले ही कह चु का हूॅ इस सबसे कुछ नही ं होगा
बल्कि यहाॅ आने पर ही होगा। इस कलए अब मैं आकखरी बार कह रहा हूॅ कक तु म
सब िहाॅ से िौरन ही मेरे सामने हाक़िर हो जाओ। कल दोपहर तक तु म सब मेरी
ऑखों के सामने होने चाकहए। दोपहर तक अगर तु म सब नही ं आए तो समझ ले ना
कक इसका पररर्ाम ककतना घातक हो सकता है।"

इन िाक्ों के साथ ही अजय कसं ह कहकहे लगा कर हसा और किर काल कट हो


गई। ककन्तु उसके इन िाक्ों को सु नने की हालत में यहाॅ था ही कौन? यहाॅ तो
बस रोना धोना तथा चीख पु कार ही मचा हुआ था। बडी मुल्किल से एक दू सरे को
सम्हाला सबने ।

उधर होश में आते ही गौरी दहाडें मार मार रोने लगी और चीख चीख कहने
लगी____"मैने कहा था न कक हत्यारे ने मेरे बे टे को मार कदया है। हे भगिान! अब
अगर मेरा बे टा ही नही ं तो मैं भला जी कर क्ा करूॅगी? मु झे भी मौत दे दे भगिान।
मैं अपने बे टे के बग़ैर एक पल भी जीकित नही ं रहना चाहती।"

"शान्त हो जाइये भाभी।" अभय कसं ह कससकते हुए बोल उठा___"हमारे राज को कुछ
नही ं होगा। िो मादरजाद तो बस गीदड भभककयाॅ ही दे रहा था। जबकक मैं जानता
हूॅ कक िो मेरे भतीजे का बाल भी बाॅका नही ं कर सकता। मेरा भतीजा शे र है
शे र....ये साले सब गीदड हैं भाभी। भगिान के कलए भरोसा कीकजए और शान्त हो
जाइये। सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

"कुछ भी ठीक नही ं होगा अभय।" गौरी बु री तरह कबलखते हुए बोली___"िो हत्यारा
मेरे बे टे को गोकलयों से छलनी छलनी कर दे गा। िो मेरे बे टे के खू न प्यासा है। मुझे
मेरे बे टे के पास पहुॅचा दो अभय मैं तु म्हारे पाॅि पडती हूॅ।"

गौरी पागल सी हो गई थी। सचमुच ही िो अभय के पै रों पर कगर पडी। अभय का


कले जा ये दे ख कर हाहाकार कर उठा। बु री तरह तडप उठा िह। ते ़िी से िह पीछे
की तरि हटा और किर तु रंत ही गौरी को दोनो कंधों से पकड कर ऊपर ककया।

"क्ों मु झे पाप के सागर में डु बा रही हैं भाभी?" अभय कसं ह रो पडा____"आप जानती
हैं कक मैंने हमेशा आपको अपनी माॅ की तरह समझा है। मेरे पै रों में कगर कर मु झे
ऐसे गतग में मत डु बाइये कक जहाॅ से मैं किर कभी कनकल ही न पाऊ।"

"मुझे मेरे बे टे के पास पहुॅचा दो कोई।" गौरी पागलों की तरह सबकी तरि याचना
भरी दृकष्ट से दे खते हुए बोले जा रही थी___"मेरा बे टा बहुत कष्ट में है। िो सब कमलके
उसे मार दें गे। मु झे अभी के अभी मेरे बे टे के पास जाना है और अगर तु म लोग मु झे

1051
नही ं पहुॅचाओगे तो मैं खु द ही चली जाऊगी। मुझे यहाॅ अब नही ं रहना। मेरे बे टे को
मार दें गे िो लोग।"

इतना सब कहने के साथ ही गौरी को चक्कर आ गया और िह रुल्कक्मर्ी की गोंद में


ही कशकथल पड गई। उसकी हालत दे ख कर हर कोई रो रहा था। कनधी की हालत
बे हद खराब थी। िो अपनी माॅ को अपने बे टे के कलए इस तरह तडपते दे ख खु द भी
तडपी जा रही थी। हालत तो सबकी ही खराब थी।

"ऐसे कब तक यहाॅ इन्हें रोता तडपता हुआ दे खते रहेंगे अभय चाचू ?" सहसा पिन
ऊचे स्वर में मानो चीख सा पडा___"मेरा दोस्त िहाॅ भयंकर सं कट में है। मैं खु द भी
अब यहाॅ एक पल के कलए भी रुकना नही ं चाहता। उस कसाई का कोई भरोसा नही ं
है। िो कुछ भी कर सकता है।"

"सही कहते हो तु म।" अभय कसं ह ने सहसा अपने ऑसु ओ ं को पोंछते हुए
बोला____"िौरन यहाॅ से चलने की तै यारी करो पिन। गौरी भाभी को अगर राज के
पास न ले जाया गया तो ये यही ं पर अपना कसर पटक कर मर जाएॅगी। िै से भी कजस
तरह से उसने चे तािनी दे कर हम सबको िहाॅ बु लाया है तो हम सबको िौरन जाना
ही पडे गा। इसके कसिा दू सरा कोई चारा नही ं है। मौजूदा हालात में िो कुछ भी कर
सकता है। इं सान से राक्षस बन गया है िो। मगर भिानी माॅ की कसम अगर उसने
मेरे भतीजे को ़िरा सी भी चोंट पहुॅचाई तो सारी दु कनयाॅ को आग लगा दू ॅगा मैं।"

"ठीक है चाचू ।" पिन ने कहा___"आप इन्हें दे ल्कखये। मैं तब तक सबकी कटकटों का
इं तजाम करता हूॅ। िै से मु मककन तो नही ं मगर दे खता हूॅ शायद सबके कलए कटकटें
कमल ही जाएॅ।"

"आप एक बार जगदीश भाई साहब को भी िोन पर इस बारे में सब कुछ बता
दीकजए।" पिन के जाते ही करुर्ा ने अभय कसं ह की तरि दे खते हुए दु खी भाि से
कहा___"आकखर इस बारे में जानकारी तो उन्हें भी होनी ही चाकहए कक हम अचानक
यहाॅ से ककस िजह से जा रहे हैं?"

"सही कहा तु मने ।" अभय कसं ह ने कहने के साथ पै न्ट की जेब से अपना मोबाइल
कनकाला, किर बोला___"भाई साहब को बताना बे हद ़िरूरी है। िै से भी िो हमें अपने
सगे जैसा ही मानते हैं। उन्हें इस बारे में बताना ही चाकहए। रुको मैं अभी बात करता
हूॅ उनसे ।"

कहने के साथ ही अभय ने जगदीश ओबराय को िोन लगाया। कुछ दे र तक टु क

1052
टु क की आिा़ि आती रही, उसके बाद सहसा मोबाइल से आिा़ि उभरी___"आप
कजस उपभोक्ता से बात करना चाहते हैं िो इस समय उपलब्ध नही ं है अथिा ने टिकग
क्षे त्र से बाहर हैं।"

ये सु न कर अभय कसं ह परे शान सा हो गया। उसने पु नः नं बर ररडायल कर िोन


लगाया। ककन्तु किर से िही जिाब कमला। अभय ने कई बार िोन कमलाया मगर हर
बार यही बताया गया कक िो इस समय उपलब्ध नही ं है अथिा ने टिकग क्षे त्र से बाहर
हैं। अभय को कचं कतत ि परे शान दे ख कर करुर्ा ने उससे पू छा कक क्ा हुआ? उसके
सिाल पर अभय कसं ह ने उसे सब कुछ बता कदया। कजसे सु न कर िो भी कचं ता में पड
गई।

खै र, कजतना जल्दी हो सकता था उतना जल्दी ककया गया। यानी िौरन ही सबको
तै यार कर चलने के कलए कहा गया। ककन्तु यहाॅ ककसी को भला क्ा तै यार होना था?
जो कजन कपडों में था िो िै से ही चलने को तै यार हो गया था। लगभग एक घंटे बाद
पिन कसं ह बगले पर आया। उसने बताया कक रऱििग में कसिग पाॅच ही कटकटों का
इं तजाम हो सका है। बाॅकी की सब िे कटं ग या आरएसी की कटकटें कमली हैं। पिन
की बात सु न कर अभय ने कहा कोई बात नही ं। जाना तो अकनिायग ही है किर चाहे
भले ही जनरल में ही क्ों न जाना पडे । पिन ने बताया कक टर े न शाम की है। उससे
पहले एक और थी जो कक सु बह नौ बजे की थी मगर िो जा चु की है ।

पिन की इस बात ने सबको कनराश ि मायूस सा कर कदया। सबके सब अकतसीघ्र


यहाॅ से जाना चाहते थे । मगर जाने का साधन तो अब शाम को ही कमलने िाला था।
अतः शाम का इन्त़िार करना ही सबकी कनयकत थी। कहते हैं कक जब हम बडी
कशद्दत से चाहते हैं कक िक्त गु ़िर जाए तब ऐसा कदाकप नही ं होता। बल्कि एक एक
पल मानो शकदयों में तब्दील हो जाता है। कुछ ऐसा ही आलम था यहाॅ पर।

सारा कदन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दु कनयाॅ से ही जा
चु का हो। डायकनं ग टे बल पर नास्ते के कलए परोसी गई थाली ि प्लेट सब िै सी की
िै सी ही रखी रह गई थी। ककसी ने उस तरि दे खा तक न था और ना ही कोई अपने
कमरे की तरि गया था। बगले के नौकर चाकर तक सं जीदा थे इस सबसे । अभय
कसं ह सु बह से अब तक ह़िारों बार जगदीश ओबराय को िोन लगा चु का था ककन्तु
उसका नं बर अभी भी ने टिकग क्षे त्र के बाहर ही बता रहा था।

बडी मुल्किल से ही सही ककन्तु िक्त अकतमंद्र गकत से गु ़िर ही गया। टर े न के कनधागररत
समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रे लिे स्टे शन के प्लेटिामग पर पहुच गए।
रुल्कक्मर्ी ि करुर्ा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास ि दु खी था। आधे घंटे बाद

1053
जब टर े न आई तो सब टर े न की तरि लगभग भागते हुए बढे । टर े न में चढ कर हर कोई
सीट पर बै ठ चु का था। रऱििग सीटों पर औरतों और लडककयों को बै ठा कदया गया था।
हलाॅकक रऱििग में पाच ही सीटें कमली थी। कजनमें गौरी रुल्कक्मर्ी करुर्ा कनधी ि
कदव्या को बै ठा कदया गया था। शगुन कदव्या के साथ ही बै ठा हुआ था। जबकक पिन
अभय ि आशा टर े न के िशग पर ही खडे थे ।

गौरी को रुल्कक्मर्ी ि करुर्ा ने बडी मुल्किल से सम्हाला हुआ था। सारा कदन रोती
रही थी िो कजसकी िजह से उसकी ऑखें लाल सु खग पड चु की थी ं। चे हरे पर ऐसी
िीरानी थी जैसे इस चे हरे ने कभी ककसी तरह की खु कशयो से भरी बहार को दे खा ही
न हो। कुछ ही समय बाद टर े न अपने गंतब्य थथान के कलए चल पडी। टर े न के चल पडने
से सबके मन में थोडी राहत के भाि उभर आए थे । आने िाले समय में ककसके साथ
क्ा क्ा होने िाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.......《 62 》

अब तक,,,,,,,
सारा कदन सबके बीच ऐसा आलम रहा जैसे कोई हमारे बीच का दु कनयाॅ से ही जा
चु का हो। डायकनं ग टे बल पर नास्ते के कलए परोसी गई थाली ि प्लेट सब िै सी की
िै सी ही रखी रह गई थी। ककसी ने उस तरि दे खा तक न था और ना ही कोई अपने
कमरे की तरि गया था। बगले के नौकर चाकर तक सं जीदा थे इस सबसे । अभय
कसं ह सु बह से अब तक ह़िारों बार जगदीश ओबराय को िोन लगा चु का था ककन्तु
उसका नं बर अभी भी ने टिकग क्षे त्र के बाहर ही बता रहा था।

बडी मुल्किल से ही सही ककन्तु िक्त अकतमंद्र गकत से गु ़िर ही गया। टर े न के कनधागररत
समय से आधा घंटा पहले ही सबके सब रे लिे स्टे शन के प्लेटिामग पर पहुच गए।
रुल्कक्मर्ी ि करुर्ा गौरी के साथ ही थी। हर कोई उदास ि दु खी था। आधे घंटे बाद
जब टर े न आई तो सब टर े न की तरि लगभग भागते हुए बढे । टर े न में चढ कर हर कोई
सीट पर बै ठ चु का था। रऱििग सीटों पर औरतों और लडककयों को बै ठा कदया गया था।
हलाॅकक रऱििग में पाच ही सीटें कमली थी। कजनमें गौरी रुल्कक्मर्ी करुर्ा कनधी ि
कदव्या को बै ठा कदया गया था। शगुन कदव्या के साथ ही बै ठा हुआ था। जबकक पिन
अभय ि आशा टर े न के िशग पर ही खडे थे ।

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गौरी को रुल्कक्मर्ी ि करुर्ा ने बडी मुल्किल से सम्हाला हुआ था। सारा कदन रोती
रही थी िो कजसकी िजह से उसकी ऑखें लाल सु खग पड चु की थी ं। चे हरे पर ऐसी
िीरानी थी जैसे इस चे हरे ने कभी ककसी तरह की खु कशयो से भरी बहार को दे खा ही
न हो। कुछ ही समय बाद टर े न अपने गंतब्य थथान के कलए चल पडी। टर े न के चल पडने
से सबके मन में थोडी राहत के भाि उभर आए थे । आने िाले समय में ककसके साथ
क्ा क्ा होने िाला था इसकी कल्पना से ही सबकी रूहें काॅप जाती थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

दू सरे कदन।
उस िक्त दोपहर हो चु की थी।
अजय कसं ह के इस किशाल िामगहाउस पर इस िक्त अलग ही ऩिारा था। ये दृष्य तो
गौरी के स्वप्न की तरह ही था ककन्तु उससे थोडा कभन्न ही था। लम्बे चौडे िामग हाउस
के बीचो बीच दो मंकजला बडा सा मकान बना हुआ था। चारों तरि हरी हरी घाॅस से
भरा हुआ किशाल मैदान तथा हर तरि लगे हुए तरह तरह के पे ड पौधे यहाॅ की
खू बसू रती का एक बडा ही सुं दर ऩिारा पे श कर रहे थे । ककन्तु इस िक्त इस
खू बसू रत ऩिारे में भी जैसे ग्रहर् सा लगा हुआ था।

मैदान में लगे पे ड पौधों के बीच का ही दृष्य था ये। कतार में लगे पे डों पर कई सारे
लोग रल्कस्सयों से बधे जकडे हुए थे । किराज, ररतू , आकदत्य, नै ना, सोनम, नीलम,
कबं कदया, हररया ि शं कर आकद सब कतार से ही पे डों से रल्कस्सयों द्वारा बधे हुए थे ।
किशाल मैदान में चारो तरि काली िदी में तै नात गुंडे मिाकलयों जैसी शक्ल के कािी
सारे लोग हाथों में बं दूखें कलए खडे थे । मैदान में एक तरि कुछ दू री पर कई सारी
गाकडयाॅ भी खडी हुई थी।

उन्ही ं पे डों की गहरी छाॅि में अजय कसं ह एक कुसी पर बै ठा हाॅथ में कलए हुए
ररिावर को बार बार अपनी उगली पर नचा रहा था। उसके पीछे उसका बे टा कशिा
खडा था। उसकी कमर में भी एक ररिावर ठु ॅसा हुआ था। अजय कसं ह की पत्नी
यानी कक प्रकतमा भी अजय कसं ह के पास ही खडी हुई थी। िातािरर् में चारो तरि
एक अजीब सा भयािह सन्नाटा िैला हुआ था।

"दोपहर तो हो चु की है ठाकुर साहब।" तभी सहसा एक आदमी अजय कसं ह के पास


आता हुआ बोला____"ककन्तु आपके बाॅकी कशकार तो अभी तक यहाॅ नही ं पहुॅचे ।
कही ं ऐसा तो नही ं कक िो लोग पु कलस के पास चले गए हों सहायता माॅगने के कलए?
अगर ऐसा हुआ तो यकीन माकनए हमारे सारे ककये कराए पर पानी किर जाएगा और

1055
हम सब जेल के अं दर चक्की पीसते ऩिर आएॅगे।"

"नही ं सहाय।" अजय कसं ह ने कठोर भाि से कहा___"िो लोग पु कलस के पास जाने
का सोच भी नही ं सकते हैं। िो जानते हैं कक अगर उन लोगों ने इस मामले में पु कलस
को कुछ भी बताया तो उसका अं जाम बहुत ही खतरनाॅक हो सकता है। इस कलए
तु म इस बात से बे किक्र रहो। िो सब कसर के बल भागते दौडते हुए रे लिे स्टे शन से
सीधा यही ं आएॅगे। उसके बाद क्ा होगा ये समझाने की ़िरूरत नही ं है तु म्हें।"

"हाॅ ये तो सही कहा आपने ।" अकभजीत सहाय ने कमीनी मु स्कान के साथ
कहा___"आज यहाॅ पर एक अनोखा इकतहास कलखा जाएगा। आने िाले बाॅकी
कशकार यहाॅ आ तो जाएॅगे मगर तु रंत ही हमारे आदकमयों द्वारा धर कलए जाएॅगे
और किर िो सब भी इन लोगों की तरह पे डों पर रल्कस्सयों में बधे ऩिर आने लगें गे।"

"मुझसे तो अब बरदास्त ही नही ं हो रहा डै ड।" कशिा अपने बाप के सामने आते हुए
बोला____"एक एक पल कैसे काट रहा हूॅ ये कसिग मैं जानता हूॅ। मेरी ऑखों के
सामने ही मेरी ये बहने रल्कस्सयों में बधी पे डों पर कचपकी खडी हैं और आप मुझे कुछ
करने ही नही ं दे रहे हैं।"

"बस थोडी दे र और सब्र करो मेरे बे टे।" अजय कसं ह ने गहरी साॅस ले ते हुए
कहा___"उसके बाद तु म्हें जो करना हो करते रहना। म़िा तो तभी आएगा न जब
बाॅकी के लोग भी यहाॅ पर हर तरह का तमाशा दे खने के कलए पहुॅच जाएॅ।"

"ठीक है डै ड।" कशिा ने मन मसोस कर कहा___"आप कहते हैं तो मैं थोडी दे र और


सब्र कर ले ता हूॅ।"
"ये हुई न बात।" अजय कसं ह मु स्कुराया, किर सहाय की तरि दे खते हुए
बोला___"अपने आदकमयों को पू री तरह से सतकग रहने का अल्टीमेटम दे कदया है न
सहाय तु मने ?"

"डोन्ट िरी ठाकुर साहब।" अकभजीत सहाय ने कहा___"हमारे आदमी पू री तरह से


सतकग हैं। उनकी ऩिर से एक पररं दा भी यहाॅ से छूट कर नही ं जा सकेगा।"

"िे री गुड।" अजय कसं ह ने कहा____"उन लोगों के आते ही हमारे आदमी उन सबको
धर लें गे और किर उन्हें भी इन लोगों की तरह यहाॅ के पे डों पर रल्कस्सयों से बाॅध
दें गे। ये िाइनल गे म है सहाय और इस गेम का किनर कसिग और कसिग हम ही होंगे।
असली ल्कखलाडी िही है जो सामने िाले को पू री तरह से पस्त करके उसे ने स्तनाबू त
कर दे ।"

1056
अभी अजय कसं ह ने इतना कहा ही था कक पीछे की तरि से ककसी के ़िोर ़िोर से
कचल्लाने की आिा़िें सु नाई दे ने लगी थी ं। कचल्लाने की आिा़िें सु नते ही सबका ध्यान
उस तरि गया। कई सारे बं दूख धाररयों से कघरे हुए अभय, पिन, गौरी, रुल्कक्मर्ी,
करुर्ा, आशा, कनधी, कदव्या ि शगुन, इस तरि ही चले आ रहे थे । ये सब दे ख कर
अजय कसं ह के साथ साथ सहाय, कशिा ि प्रकतमा के होंठो पर जानदार मु स्कान उभर
आई।

दे खते ही दे खते कुछ ही दे र में सबको अलग अलग पे डों पर रल्कस्सयों से बाॅध कदया
गया। रल्कस्सयों में जकडी गौरी बु री तरह छटपटाए जा रही थी। उसकी ऩिर जैसे ही
रल्कस्सयों में बधे अपने बे टे किराज पर पडी िै से ही िह बु री तरह तडप कर रोने लगी
थी। किराज के साथ साथ ररतू नीलम सोनम आकदत्य आकद को रल्कस्सयों में बधे थे ,
ककन्तु इस िक्त ये सब अचे त अिथथा में थे ।

"तो आकखर तु म सब लोग यहाॅ पर मरने के कलए आ ही गए।" अजय कसं ह उन


सबके बीच ़िमीन पर चहल क़दमी करते हुए कठोर भाि से बोला___"िै से क्ा
समझते थे तु म सब लोग कक मेरे क़हर से बचे रहोगे? हाहाहाहा ऐसा कभी नही ं हो
सकता। जब तक मेरे द्वारा तु म सबको स़िा नही ं कमल जाती तब तक तु म लोग ककसी
भी ची़ि से मुक्त नही ं हो सकते थे ।"

"मेरे बे टे को कुछ मत करना।" सहसा गौरी ने रोते हुए कहा____"मैं आपके सामने
हाॅथ जोडती हूॅ। भगिान के कलए उसे छोंड दो। उसके ककये की स़िा मु झे दे लो
मगर मेरे बे टे को कुछ मत करना।"

"हाय! मेरी बु लबु ल ये क्ा हालत बना ली है तु मने ?" अजय कसं ह गौरी के क़रीब आते
हुए चहका___"यकीन मानो तु म्हारी ये हालत दे ख कर मेरे कदल को बहुत दु ख हो रहा
है। अरे तु म तो मेरी जाने बहार हो कडयर। कभी मेरे कदल के बारे में भी सोचा होता तो
समझ में आता तु म्हें कक कोई ककस क़दर चाहता है तु म्हें? मगर तु मने तो कभी मेरे
बारे में सोचना तक गिारा न ककया। आकखर क्ा कमी थी मुझमें? तु म्हारे उस अनपढ
गिार पकत से तो लाख गुना अच्छा था मैं। उससे कही ं ज्यादा अच्छी हैंकसयत भी है
मेरी। िो तो खे तों पर कदन रात काम करने िाला महज एक मजदू र था जबकक मैं तो
यहाॅ का सम्पन्न राजा था। तु मको दु कनयाॅ हर ऐशो आराम ि सु ख दे ता। मगर
तु मको तो उस मजदू र से ही प्रे म था।"

"कोई भी इं सान धन दौलत से राजा नही ं बन जाता नीच इं सान।" गौरी का लहजा
एकाएक कठोर हो उठा___"राजा बनने के कलए दू सरों के प्रकत अपनी खु कशयों का
तथा अपने हर सु खों का त्याग करना पडता है । तु झमें तो कसिग एक ही खू बी है बे ग़ैरत

1057
इं सान और िो है हर ररश्ों की मान मयागदा का हनन करना। ते रे जैसे कुकमी के
कलए कसिग और कसिग नफ़रत ि घृर्ा ही हो सकती है।"

"उफ्फ।" अजय कसं ह ने बु रा सा मुह बनाया___"मेरे प्रकत इतनी घकटया बात कैसे सोच
सकती हो तु म? अरे तु म कहती तो मैं तु म्हारे कलए खु द को पू री तरह बदल भी दे ता
मेरी जान। मैं िो सब बनने को तै यार हो जाता जो तु म मु झे बनने को कहती। मगर
तु मने तो मु झसे इस बारे में कभी कुछ कहा ही नही ं। इसमे भला मेरा क्ा कसू र है
गौरी? मैं तो बस अपने कदल के हाॅथों मजबू र था और िही करता चला गया जो मेरा
कदल कहता रहा था। मगर कोई बात नही ं कडयर, अभी भी कुछ नही ं कबगडा है। तु म
कहोगी तो मैं अब भी िै सा ही बन जाऊगा जै सा तु म कहोगी। ये समझ लो कक तु म्हारी
स्वीकृकत से सब कुछ एक पल में बदल जाएगा। कहने का मतलब ये कक तु म अगर
अब भी मेरी हो जाओ तो ये सब लोग मेरे क़हर से बच जाएॅगे।"

"तू अपने और अपने इस सपोले के बारे में सोच हराम़िादे ।" होश में आते ही मेरी
आिा़ि िातािरर् में गूॅज उठी___"तू अगर ये समझता है कक तू ने हम सबको
रल्कस्सयों में इस तरह बाॅध कर बहुत बडा तीर मार कलया है तो इस खु शिहमी में मत
रह तू । दु कनयाॅ की कोई भी ताकत तु झको मे रे हाॅथों मरने से बचा नही ं सकती।"

"तू अब कुछ नही ं कर सकता भतीजे।" अजय कसं ह ने किराज की तरि दे खते हुए
कहा___"ते रा सारा उछलना कूदना समाप्त हो चु का है। अब तक तु झे जो कुछ भी
करना था िो सब कर कलया है तू ने। अब तो मे री बारी है और यकीन मान मैं अपनी
बारी में अब कोई कसर नही ं छोंडूॅगा कुछ भी करने में । खै र, अभी तो तु झे ये भी
पता नही ं है कक मेरे एक ही झटके में तू और ये सब मेरी कैद में कैसे आ गए? तु झे
पू छना चाकहए भतीजे कक मु झे ते रे कठकाने का कैसे पता चला? और किर कैसे तु म सब
यहाॅ पहुॅच गए?"

अजय कसं ह की इस बात पर सन्नाटा सा छा गया। ये सच था कक किराज एण्ड पाटी को


होश आते ही सबसे पहले उनके मन में यही सिाल उभरा था कक िो अचानक यहाॅ
कैसे आ पहुॅचे हैं? एक के बाद एक सब कोई होश में आ चु का था। खु द को इस
तरह रल्कस्सयों में बधे दे ख िो सब बु री तरह चौंके थे तथा बु री तरह छटपटाने लगे थे ।
ककन्तु जब यहाॅ के दृष्य ि माहौल पर सबकी ऩिर पडी तो जैसे सबके पै रों तले से
़िमीन ही गायब हो गई थी। किराज और ररतू ये दे ख कर आश्चयगचककत थे कक मुम्बई
से बाॅकी सब लोग भी यहाॅ आ चु के हैं और िो सब भी उनकी तरह रल्कस्सयों से बधे
हुए हैं।

"हाहाहाहाहा क्ों भतीजे ़िबान को लकिा क्ों मार गया तु म्हारे ?" अजय कसं ह

1058
ठहाका लगा कर हसा___"पू छ न कक ये सब कैसे हुआ? खु द को बडा तीसमारखां
समझ रहा था न तू ? अब पू छ कक ये सब कैसे हो गया? एक ही झटके में तू भी यहाॅ
आ गया और मुम्बई में रह रहे ते रे ये सब चाहने िाले भी यहाॅ आ गए। होश में आने
के बाद तु झे सबसे पहले यही पू छना चाकहए था।"

"तु म बताने के कलए इतना ही मरे जा रहे हो तो खु द ही बता दो।" आकदत्य ने


कहा____"िै से मु झे पू रा यकीन है कक इसमें भी ते रे जैसे कूढमगज का अपना कोई
दखल नही ं होगा।"

"इससे कोई िक़ग नही ं पडता बे टा।" अजय कसं ह ने कहा___"जं ग में से ना का सारा ही
योगदान होता है ककन्तु जं ग की जीत का सारा श्रेय राजा को ही जाता है। खै र, अगर
मेरा भतीजा ये जान जाए कक ये सब कैसे हुआ है तो यकीनन उसे कदल का दौरा पड
जाएगा।"

"क्ा मतलब??" मैं चकरा सा गया।


"छोटे को रल्कस्सयों से मुक्त कर दो सहाय।" अजय कसं ह ने अकभजीत सहाय की तरि
दे खते हुए कहा___"मु झे लगता है कक ये खु द ही बताए तो ज्यादा बे हतर होगा।"

अजय कसं ह की इस बात से हर कोई भौचक्का रह गया। सचमुच सबके पै रों के तले से
़िमीन ल्कखसक गई ककन्तु अभी भी बात पू री तरह से समझ में नही ं आई थी। उधर
अजय कसं ह के कहने पर अकभजीत सहाय ने एक आदमी को इशारा ककया तो उसने
जा कर अभय कसं ह को रल्कस्सयों से मुक्त कर कदया। रस्सी से छूटते ही अभय कसं ह
मुस्कुराया और किर अपने कपडों को झाडता हुआ अजय कसं ह के पास आ कर खडा
हो गया।

अभय कसं ह के होठों पर इस िक्त बहुत ही रहस्यमय मु स्कान थी। मैं ही क्ा हम सब
भी उसे इस तरह दे ख कर चककत थे । जबकक अभय कसं ह कुछ दे र हम सबकी तरि
उसी रहस्यमय मुस्कान के साथ दे खता रहा।

"माफ़ करना राज।" अभय कसं ह ने मेरी तरि दे खने के बाद माॅ की तरि
दे खा___"आप भी मुझे माफ़ कीकजएगा भाभी जी। मगर मैं क्ा करता? इस दु कनयाॅ
में हर कोई कसिग और कसिग अपने बारे में ही तो सोचता है।"

"अ..भय तु म।" गौरी के होठ बु री तरह थरथरा कर रह गए, बोली___"तु मने ये सब


ककया है??"
"करने िाले तो बडे भइया ही हैं भाभी।" अभय कसं ह ने मु स्कुरा कर कहा___"मैने तो
कसिग इन्हें िोन पर राज के कठकाने के बारे में बताया था। आप सब समझ सकते हैं

1059
कक राज के कठकाने का पता चल जाने के बाद बडे भइया के कलए ये सब कर ले ना
ककतना आसान रहा होगा।"

"नही ंऽऽऽ।" गौरी के कुछ बोलने से पहले ही करुर्ा बु री तरह रोते हुए चीख
पडी____"आप ऐसा नही ं कर सकते । आप ऐसे नीच इं सान का साथ कैसे दे सकते हैं
कजसके बे टे ने खु द आपकी पत्नी ि बे टी के साथ ग़लत करने की कोकशश की थी?
नही ं नही ं, आप इस नीच आदमी की तरह नही ं हो सकते । भगिान के कलए कह
दीकजए कक ये सब आपने नही ं ककया।"

हम सब अभय कसं ह की इस बात से हक्के बक्के थे । मुख से कोई बोल ही नही ं िूट
रहा था। अभय कसं ह का इस तरह पलटी मारना हम सबके कलए यकीनन
अकिश्वसनीय था। ककन्तु सच्चाई तो अब सबके सामने ही थी। उसे कैसे कोई नकार
सकता था?

"िाह अभय।" गौरी ने हताश भाि से कहा___"क्ा खू ब बे टे होने का ि़िग कनभाया है


तु मने । कल तक तो बडा कह रहे थे कक तु मने हमेशा मुझे अपनी माॅ की तरह
समझा है। किर आज ऐसा क्ा हो गया कक एक झटके में तु म िररश्ा से राक्षस बन
गए? आकखर मैंने या मेरे बच्चों ने ऐसा क्ा बु रा कर कदया था तु म्हारा कक तु मने हम
सबको इस आदमी के सामने ला कर इस तरह खडा कर कदया?"

"मैने कहा न भाभी।" अभय कसं ह ने कहा___"हर कोई कसिग अपने बारे में ही सोचता
है। बडे भइया ने अपने बारे में सोचा था इस कलए उन्होंने िो सब ककया। ककन्तु क्ा
ककसी ने मेरे बारे में सोचा कभी? भगिान ने एक बे टा कदया िो भी कदमाग़ से कडस्टबग ।
आपके बे टे को अरबपकत आदमी ने अपनी सं पूर्ग दौलत से निाज कदया। इस कलए
आप भी खु श हो गए। मगर मेरा क्ा??? मेरा तो कही ं कोई महत्व ही न रह गया।
कदमाग़ से कडस्टबग बे टा है, उसका क्ा भकिष्य हो सकता है ये बताने की ़िरूरत नही ं
है। इस कलए मैने बहुत सोच समझ कर एक सौदा ककया।"

"स सौदा???" गौरी के होंठ काॅपे । हम सब के चे हरों पर भी गहन उलझन के भाि


उभर आए।
"हाॅ भाभी।" अभय कसं ह ने कहा____"मैने बडे भइया को िोन लगाया और उनसे
कहा कक अगर आपको इस जंग में जीत हाकसल करनी है तो आपको मेरा कहना
मानना पडे गा। िरना आप ककसी भी तरह से इस जंग में जीत नही ं पाएॅगे। क्ोंकक
इनकी सबसे बडी कम़िोरी तो किराज के पास रखा इनका िो सब ग़ैर कानू नी
सामान है। उस सामान के तहत किराज इन्हें जब चाहे कानू न की कगरफ्त में जीिन
भर के कलए डलिा सकता है। ये बात इन्हें भी अच्छी तरह पता है। तब इन्होंने मु झसे

1060
कहा कक मैं इस जंग में क्ा कर सकता हूॅ? मै ने बताया कक इनका सारा ग़ैर कानू नी
सामान आज की तारीख में मेरे कब्जे में है। इस सामान की कीमत ये होगी कक ये मेरे
बे टे का बे हतर से बे हतर इला़ि करिाएॅगे , साथ ही ़िमीन जायदाद में आधा हक़
मेरा होगा। इन्हें मेरा िो सौदा मंजूर था, इस कलए बात को आगे बढा कदया गया। ये
उसी का नतीजा है कक आज आप सब यहाॅ हैं । कल जगदीश ओबराय का िोन
इसी कलए नही ं लग रहा था क्ोंकक मैं ग़लत नं बर पर काल लगा रहा था। मैं नही ं
चाहता था कक उस कसचु एशन में जगदीश िहाॅ आ जाए और मेरे काम में कोई
अडचन आ जाए। ये मेरी ही स्कीम थी कक सु बह नास्ते के समय में बडे भइया किराज
के िोन से पिन के िोन पर काल करें ताकक िै से हालात बन जाएॅ। हलाॅकक जैसा
मैने सोचा था उससे बे हतर ही माहौल बन गया था। क्ोंकक पिन ने अपने मोबाइल
का िीकर खु द ही ऑन कर कदया था।"

"ओह तो तु मने कसिग इस िजह से हम सबके साथ इतना बडा धोखा ककया है।" गौरी
ने कहा____"तु म्हें क्ा लगता है कक अभय कजस आदमी के साथ तु मने हम सबका
सौदा ककया है िो आदमी तु म्हारे कलए इतना कुछ करे गा? अरे कजसने ़िमीन जायदाद
के कलए अपने माॅ बाप ि भाई तक को जान से मार कदया िो तु म्हें भी तो मार सकता
है। रही बात तु म्हारे बे टे के इला़ि की तो िो हम भी करिा दे ते। मैने तो इस बारे में
सोच भी कलया था। याद करो मैने ही इस बात के कलए ़िोर कदया था कक तु म खु द की
समस्या को भी दू र कर लो। मैने जगदीश भाई साहब से बात की और किर तु म्हारा
इलाज हुआ। मैं नही ं जातनी कक इस सबके बाद भी तु म्हारे अं दर ये बात कैसे आ गई
कक हम सबको एक ही झटके में इस तरह मौत के मु ह में डाल कदया जाए?"

गौरी की ये बातें सु न कर अभय कसं ह तु रंत कुछ बोल न सका। कदाकचत गौरी की इस
बात ने उसे सोचने पर मजबू र ककया कक "एक तो अजय कसं ह अपने स्वाथग के कलए
ककसी भी हद से गु़िर सकता है दू सरी ये कक िो खु द उसके बे टे के बे हतर इला़ि के
बारे में सोचे बै ठी थी"। इधर अभय कसं ह को एकदम से चु प हो जाते दे ख अजय कसं ह
मन ही मन बु री तरह चौंका।

"ये औरत तु झे बरगलाने की कोकशश कर रही है छोटे ।" अजय कसं ह ने तपाक से
कहा___"ये ऐसा कुछ भी नही ं कर सकती कजसकी इस िक्त ये बातें गढ रही है ।
तु म्हारे बे टे का बे हतर इला़ि मैं करिाऊगा। बल्कि अगर ये कहूॅ तो ज्यादा उकचत
होगा कक मैंने तो इस बारे में शु रूआत भी कर दी है। तु म अपने बच्चे के कलए कबलकुल
भी किक्र मत करो छोटे । उसका इला़ि मैं खु द किदे श में करिाऊगा।"

"तु म अपनी म़िी से कुछ भी करने के कलए स्वतं त्र हो अभय।" गौरी ने कहा___"ईश्वर
जानता है कक मैने या मेरे मरहूम पकत ने कभी ककसी का बु रा नही ं चाहा था। हसते

1061
खे लते घर में आग लगाने िाला तो कसिग यही एक शख्स था। इतना तो अब तु म भी
समझ ही गए हो कक इसने अपनी खु शी के कलए तथा अपने स्वाथग के कलए हम सबके
साथ क्ा कुछ नही ं ककया है। ़िमीन जायदाद और हिे ली को हडपने के चक्कर में
इसने अपने ही भाई को ़िहरीले सपग से डसिा कर मार डाला। उसके बाद अपनी
करतू त को छु पाने के कलए इसने माॅ बाबू जी का एर्क्ीडे न्ट करिाया। आज जब
ईश्वर ने इं साि ककया तो कतलकमला उठा ये। मैं हैरान हूॅ कक तु म सब कुछ जानते
बू झते हुए भी इसका साथ दे ने के कलए अथिा इससे इस तरह का सौदा कैसे कर
बै ठे? हमें इस बात का दु ख नही ं है कक तु मने हम सबको धोखा कदया और किर यहाॅ
ले आए। क्ोंकक जीिन में इतना कुछ पा कलया है और सहन कर कलया है कक अब
ककसी बात से कोई िक़ग ही नही ं पडता। ककन्तु हाॅ इस सबके बाद भी तु म्हारे प्रकत
यही कदल करता है कक तु म ऐसी मुसीबत में न िस जाओ कजसके तहत एक बार किर
से ये कहानी दोहरा दी जाए।"

"माॅ की बात सही है चाचा जी।" सहसा मैने भी इस बीच हस्ताक्षे प ककया____"दू सरी
बात, आपको क्ा लगता है कक मैं ये सब अपने हक़ को पाने के कलए कर रहा हूॅ??
नही ं चाचू , आप तो दे ख ही चु के हैं कक आज के समय में मैं अगर चाहूॅ तो इस पू रे
गाॅि को एक पल में खरीद लू ॅ। बात ़िमीन जायदाद या ककसी प्रापटी की नही ं है
बल्कि बात है अपने साथ हुए अन्याय की और अत्याचार की। सिाल उठता है कक
आकखर इन्हें ककस ची़ि की कमी थी? दादा जी की ़िमीन जायदाद में तो उनके सभी
बे टों का बराबर ही हक़ था। ़िमीनों में रात कदन खू न पसीना बहा कर मेरे कपता जी ने
एक मामूली से घर को इतनी बडी हिे ली में तब्दील कर कदया। घर में हर सु ख
सु किधाएॅ हो गईं, यहाॅ तक कक मेरे ही कपता जी के खू न पसीने की कमाई से इनके
खु द के कारोबार की बु कनयाद भी रखी गई। बदले में इन्होंने कभी कुछ कदया नही ं था
और ना ही ककसी ने इनसे कुछ पाने की आशा की थी कभी। अब सिाल ये उठता है
कक ऐसी क्ा िजह थी कक इन्होंने एक हसते खे लते पररिार को खाक में कमला कदला?
अगर इन्हें ़िमीन जायदाद की इतनी ही भू ॅख थी तो खु ल के कहते । मु झे पू रा यकीन
है कक उस समय मेरे कपता जी इनकी भू ॅख को शान्त करने की पू री कोकशश करते ।
भले ही उन्हें अपने बीिी बच्चों को ले कर घर से कनकल जाना पडता।"

"दे खो तो।" अजय कसं ह अं दर ही अं दर बु री तरह कभन्ना गया था, बोला____"साला


आज का छोकरा, कैसी भाषर्बा़िी कर रहा है। इसे तो इतनी भी तमी़ि नही ं है कक
जब बडे आपस में बात कर रहे हों तो बच्चों को बीच में नही ं बोलना चाकहए।"

"और जब बडे ही पाप करने की हर सीमा लाॅघ जाएॅ तो उसका क्ा?" सहसा ररतू
दीदी बोल पडी ं____"इस लडाई में ककसके साथ क्ा होगा इस बात का िैंसला तो

1062
ऊपर िाला कर ही दे गा। ककन्तु यहाॅ पर मैं भी ये कहना चाहती हूॅ कक दु कनयाॅ में
ऐसा कौन सा बाप है जो अपनी ही बे कटयों को अपने नीचे सु लाने का तसव्वुर भी
करता हो? आप कहते हैं कक राज को तमी़ि नही ं है बात करने की। जबकक सच्चाई
तो ये है कक तमी़ि, मान मयागदा, इज्ज़ित इन सब ची़िों का अगर ककसी में हद से
ज्यादा अभाि है तो िो कसिग और कसिग आप में है । इस जन्म में तो ककसी तरह ये
जीिन काटना ही होगा मु झे, क्ोंकक मैने अपना ये जीिन अपने सच्चे भाई राज की
सु रक्षा में अपग र् कर कदया है। ककन्तु मरने के बाद ईश्वर से कसिग यही िररयाद
करूॅगी कक ककसी ग़रीब बाप की औलाद बना दे ना मगर आप जैसे ककसी पापी की
औलाद न बनाना।" कहते कहते ररतू दीदी की ऑखें छलक पडी थी ं, किर िो अभय
कसं ह की तरि दे खते हुए बोली ं___"आपसे ये उम्मीद नही ं थी चाचू कक आप अपने बे टे
के बे हतर इला़ि के स्वाथग में अपने इस नीच ि घकटया भाई का साथ दें गे। इससे
अच्छा तो यही होता कक आपका बे टा जीिन भर िै सा ही रहा आता।"

"तु म ठीक कहती हो ररतू ।" करुर्ा ने रोते हुए कहा___"मेरा बे टा ऐसे ही अच्छा है।
मुझे इसका कोई इलाज किलाज नही ं करिाना। इस नीच आदमी के पै से का एक
आना भी अपने बे टे पर नही ं लगाना चाहती मैं ।" कहने के साथ ही करुर्ा ने अभय
कसं ह की तरि दे खा और किर बोली____"ककतना अकभमान था मु झे कक कम से कम
मेरा पकत अपने मझले भाई की तरह ने क कदल तो है। मगर आज आपने मेरे उस
अकभमान को चकनाचू र कर कदया है अभय कसं ह। ककन्तु एक बात कान खोल कर सु न
लो, ये मेरा बे टा है। मैं इसे खु द जान से मार दे ना पसं द करूॅगी मगर इस आदमी के
पाप का पै सा इस पर नही ं लगाऊगी। और अगर आपने मुझे मजबू र ककया तो दे ख
ले ना अच्छा नही ं होगा। मैं अपने बच्चों के साथ खु द ़िहर खा कर जान दे दू ॅगी।"

"नही ंऽऽऽ करुर्ा नही ं।" अभय कसं ह पू री शल्कक्त से चीख पडा, बु री तरह तडप कर
बोला____"तु म ऐसा कुछ भी नही ं करोगी। मु झसे ग़लती हो गई करुर्ा, प्लीज मु झे
माफ़ कर दो। मेरी मकत मारी गई थी जो मैने इस आदमी के साथ ऐसा सौदा कर
कलया।" कहने के साथ ही अभय कसं ह गौरी की तरि बढा किर बोला____"मु झे माफ़
कर दो भाभी। आपने मेरे कलए इतना कुछ ककया और मेरी जानकारी के कबना भी मेरे
बे टे के इला़ि करिाने का सोचा, और मैं मूरख आप ही के साथ इतना बडा पाप कर
बै ठा। हे भगिान! तू मुझे इस सबके कलए माफ़ न करना।"

अभय कसं ह को इस तरह पलटी खाते दे ख अजय कसं ह भौचक्का सा रह गया। ककन्तु
किर जल्द ही सम्हल भी गया िह। कदाकचत उसे अं देशा था कक अभय कसं ह अपनी
बातों से मुकर जाएगा। अतः उसने िौरन ही सहाय की तरि दे खते हुए
कहा____"इस नामुराद को िौरन रल्कस्सयों में बाॅधो सहाय। मु झे पता था ये अपनी
बात पर कायम नही ं रह पाएगा। शायद इसका भी इन लोगों के साथ ही मरना कलखा

1063
है तो यही सही।"

अजय कसं ह की बात सु न कर सहाय िौरन ही हरकत में आया। उसने अपने
आदकमयों को भी इशारा ककया और खु द भी अभय कसं ह की तरि लपका। उधर
अजय कसं ह की ये बात अभय कसं ह के भी कानों में पड चु की थी। जैसे ही सहाय उसके
पीछे पहुॅचा िै से ही अभय कसं ह ते ़िी से पलटा और पलक झपकते ही उसने एक
हाथ से सहाय को उसकी गदग न से पकड कर अपनी बाहों में कसा और दू सरे हाथ में
कलए ररिावर को उसकी कनपटी पर रख कदया।

अजय कसं ह ये दे ख कर हक्का बक्का रह गया। उसे समझ न आया कक अभय कसं ह के
पास ररिावर कहाॅ से और कब आ गया? उधर अभय कसं ह के बं धनों में जकडा
अकभजीत सहाय उससे छूटने के कलए छटपटाए जा रहा था।

"अपने आदकमयों से कह सहाय।" अभय कसं ह ने खतरनाक भाि से कहा___"कक ये


सब अपने अपने हकथयार िेंक दें और किर इन सब को रल्कस्सयों के बं धन से मुक्त
कर दें । िरना ते रा काम तमाम करने में मु झे ़िरा भी समय नही ं लगेगा।"

"ि..िेंक दो।" मौत के डर से थरथराता हुआ सहाय एकदम से चीखा____"अपने


अपने हकथयार िेंक दो और िही करो जो इसने कहा है।"
"कोई भी अपने हकथयार नही ं िेंकेगा सहाय।" अजय कसं ह ने कहा___"और हाॅ डरो
मत। ये तु म्हें कुछ नही ं करे गा।"

"मैं मरना नही ं चाहता ठाकुर साहब।" सहाय बु री तरह छटपटाते हुए बोला___"इस
आदमी का लहजा बता रहा है कक ये इस िक्त कुछ भी कर सकता है। हाॅ ठाकुर
साहब अगर मैने अपने आदकमयों को हकथयार िेंकने के कलए नही ं कहा तो ये मु झे
खत्म कर दे गा।"

"बडे भइया।" अभय कसं ह गुरागया____"आजमाने की कोकशश मत करो। समय की


ऩिाकत को दे ख कर काम करो। और हाॅ एक बात याद रखो, मु झे मरने का कोई
डर नही ं है। अब तो बस हर जगह मु झे मौत ही मौत कदखाई दे रही है। इस कलए अगर
भलाई चाहते हो तो िही करो जो मैने कहा है।"

अजय कसं ह अपने छोटे भाई के गुस्से से भलीभाॅकत पररकचत था। इस कलए उसने
उसका कहा मानने में ही अपनी भलाई समझी। िो दे ख रहा था कक इस िक् अभय
कसं ह सहाय को अपने आगे ककये हुए है और हर तरि उसकी पै नी ऩिर है। छोटी सी
एक ग़लती सहाय का भे जा उडा सकती थी और सहाय के मर जाने से उसके आदमी
उसका कोई आदे श नही ं मानें गे।

1064
बहुत ही मजबू र ि लाचार भाि से अजय कसं ह ने एक बार सबकी तरि दे खा उसके
बाद उसने सभी गनमैनों की तरि दे खते हुए हाॅ में अपने कसर को कहलाया। प्रकतमा
ि कशिा ये सब दे ख कर बु री तरह आतं ककत से ऩिर आने लगे थे । खै र अजय कसं ह के
इशारे से सभी गनमैनों ने अपने हकथयार िेंक कदये।

"अब इन सबके बं धनों को भी खोलो।" अभय कसं ह ने गनमैनों को हुक्म सा कदया।


अजय कसं ह का कदमाग़ बडी ते ़िी से दौड रहा था। िो जानता था कक ऐसे में िह जीती
हुई बा़िी हार जाएगा। अतः िह कोई न कोई जुगत लगाने में लगा हुआ था। उधर
अभय कसं ह के कहने पर कुछ गनमैन आगे बढे और सबके बं धनों को खोलने लगे।

अभय कसं ह पू री तरह सतकग था। िह सहाय की कनपटी पर ररिावर सटाए हर तरि
दे ख रहा था। ककन्तु ज्यादा दे र तक उसकी सतकगता उसके काम न आ सकी।
अचानक ही एक तरि से धाॅय की आिा़ि हुई थी और किर अभय कसं ह के हलक
से ददग में डूबी चीख कनकल गई। ररिावर की गोली सीधा उसके कान को छू कर
गु़िर गई थी। गमग गमग शोला कान की लौ को मानो भीषर् तकपश दे कर गु़िरा था।
कजसका असर ये हुआ कक अभय कसं ह कछटक कर दू र हट गया था। ररिावर जाने
कब उसके हाॅथ से कनकल गया था। सहाय उसकी कगरफ्त से छूटते ही एक तरि
को सरपट भागा था।

इधर अभय कसं ह के साथ हुए इस हादसे ने अजय कसं ह के पलडे को पु नः मजबू त
करने की राह पकड ली। सबके बं धनों को छु डाने में लगे गनमैन इस हादसे के होते
ही िौरन अपनी अपनी गन्स की तरि लपके। उधर आकदत्य, ररतू , मैं और पिन
जल्दी जल्दी अपने बं धन खोलते जा रहे थे । दरअसल जो गनमैन हमारे बं धनों को
खोल रहे थे िो इस हादसे के होते ही उसे िै सी ही हालत में छोंड कर अपने अपने
हकथयारों की तरि दौड पडे थे ।

उधर अभय कसं ह जब तक खु द को सम्हालता अजय कसं ह उसके पास पहुॅच चु का


था। उसने ़िोर की लात अभय कसं ह के पे ट में मारी। अभय कसं ह लहराता हुआ दू र जा
कर कगरा। अजय कसं ह इस िक्त कहंसक जानिर की तरह लग रहा था। अिरा तिरी
के माहौल को दे ख कर कशिा का भी कदमाग़ चल गया। िह िौरन ही इधर उधर
दे खने लगा। तत्काल ही उसकी ऩिर सोनम पर पडी। िह ते ़िी से उसकी तरि
बढा। सोनम के पास पहुॅच कर उसने बे खौि होकर उसकी दाकहनी कलाई को
पकड कलया किर बोला___"आओ मेरी जान। हम भी अपना प्रोग्राम बनाते हैं। सोचा
था कक कदल की बात मान कर इस सबसे तौबा कर लू ॅगा। मगर कदाकचत ये मेरी
ककस्मत में ही नही ं है।"

1065
"छोंड दे मु झे।" सोनम ने अपनी कलाई को उससे छु डाते हुए कहा____"ते रे जैसा
घकटयाॅ इं सान तो सारे सं सार में भी न होगा। अपनी ही बहन के बारे में इतना गंदा
सोचने में तु झे ़िरा भी शमग नही ं आती।"

"यही तो बात है सोनम।" कशिा अपने से बडी ऊम्र की बहन को पू री कढठाई से उसके
नाम से सं बोकधत करते हुए कहा___"जब मुझे पता चला कक मु झे तु मसे प्यार हो गया
है तो मैने भी सोचा चलो अच्छा ही हुआ। दु कनयाॅ की एक हसी ंन लडकी से अगर
मेरी शादी हो जाएगी तो मेरा जीिन धन्य हो जाएगा। मगर जल्द ही समझ में आ गया
कक प्यार मोहब्बत साली होती ही उसी से है जो हमें कभी कमलने िाला नही ं होता।
मुझे लगा यार इससे अच्छा तो िही था जबकक मैं कसिग रासलीला से ही खु श रहता
था।"

"मुझे ते री ये बकिास नही ं सु ननी कमीने ।" सोनम ने गुस्से में कहा____"मैं कहती हूॅ
छोंड दे मेरा हाॅथ िरना ते रे कलए अच्छा नही ं होगा।"
"पर अगर तु म चाहो तो मैं अब भी बदल सकता हूॅ।" कशिा ने उसकी बात पर ध्यान
कदये कबना ही बोला___"हाॅ सोनम, तु म मेरी मोहब्बत को स्वीकार कर लो और
मुझसे शादी कर लो। हलाॅकक मैं जानता हूॅ कक हम दोनो के माॅ बाप इस ररश्े के
कलए एग्री नही ं होंगे। इस कलए हम कही ं दू र चले जाएॅगे। िही ं कही ं एक नया सं सार
बसाएॅगे। मैने तो सबकुछ सोच भी कलया है सोनम। तु म ककसी भी बात की कचन्ता
मत करो। धन दौलत बहुत है, उसी में हम जीिन भर ऐश करें गे। क्ा कहती
हो...आहहहहह।"

अभी कशिा का िाक् पू रा ही हुआ था कक तभी उसके गाल पर झन्नाटे दार थप्पड पडा
था। उसके कान एकदम से झनझना कर रह गए थे । अपने गाल को सहलाता हुआ
कशिा जब सीधा हुआ तो उसकी ऩिर किराज पर पडी। किराज को दे खते ही उसकी
नानी मर गई।

"इससे बे हतर मौका नही ं कमले गा बे टा।" मैने उसकी ऑखों में झाॅकते हुए
कहा___"सु ना है मुझसे दो दो हाॅथ करने के कलए बडा िुदकता था तू । अब आ गया
हूॅ सामने तो हो जाए दो दो हाॅथ? क्ा कहता है?"

"सब िक्त िक्त की बातें हैं भाई।" कशिा ने सहसा िीकी सी मु स्कान के साथ
कहा____"हो सकता है कक मैं पहले भी तु मसे दो दो हाॅथ करने के काकबल न रहा
होऊ ककन्तु किर भी दो दो हाॅथ करने की कहमाकत ़िरूर करता मगर अब िो बात
नही ं रह गई।"

1066
"क्ों क्ा हुआ?" मैने मु स्कुरा कर कहा___"शे र का सामना होते ही सारी हेकडी
कनकल गई?"
"हेकडी तो अभी भी है भाई।" कशिा ने कहा___"मगर जैसा कक मैने कहा न कक अब
िो बात नही ं रह गई। अब तो बस बात ये है कक ककसी से इश्क़ हुआ और हम खु द ही
मर गए। अब अगर तु म एक मरे हुए को मारना चाहते हो तो ठीक है लो हाक़िर हूॅ,
जो जी में आए कर लो। िादा करता हूॅ कक उफ्फ तक नही ं करूॅगा।"

कशिा की ये बात सु न कर मैं बु री तरह हैरान रह गया। मु झे समझ न आया कक ये


बद् जात बोल क्ा रहा है। जबकक मेरी उलझन को दे खते हुए सोनम दीदी ने
कहा___"ये कमीना कहता है कक ये मु झसे प्यार करता है और अब शादी भी करना
चाहता है।"

"क्ाऽऽऽ?????" सोनम दीदी की बात सु न कर मैं बु री तरह उछल पडा। आश्चयग से


कशिा की तरि दे खते हुए बोला___"आकखर गं दा खू न कर भी क्ा सकता है?
कजसका बाप हमेशा अपने ही घर की बहू बे कटयों पर नीयत खराब करता रहा हो
उसका बे टा भला कैसे दू ध का धु ला हुआ हो जाएगा?"

"इस बारे में बात करने का कोई िायदा नही ं है भाई।" कशिा ने कहा___"क्ोंकक
इश्क़ जब ककसी के कसर चढ जाता है न तो किर उसे ब्रम्हा भी नही ं समझा सकता।
अतः तु म इस चक्कर में मत पडो। बल्कि उस चक्कर में पडो कजसके कलए तु म्हें पडना
चाकहए। इस िक्त तु म खु द के साथ साथ अपने लोगों की जान की किक्र करो। एक
बात और, मेरी तरि से बे किक्र रहना।"

कशिा ने इतना कहा और किर बडे ही करुर् भाि से सोनम की तरि दे खा। उसके
बाद िह एक पल के कलए भी उस जगह नही ं रुका। मैं उसकी इस किकचत्र सी हरकत
से तथा उसकी बातों से बु री तरह चककत था। तभी िातािरर् में गोकलयाॅ चलने की
आिा़िें आने लगी। मैं एकदम से किरककनी की माकनं द घूमा।

आकदत्य, ररतू दीदी ि पिन के हाॅथों में गनें थी और िो अधाधुंध गोकलयाॅ बरसाए
जा रहे थे । पिन का तो कनशाना ही नही ं लग रहा था। ये दे ख कर मैं मु स्कुराया। साले
ने जीिन में कभी ल्कखलौने का तमंचा तक न दे खा था और आज दोस्ती के कलए गन
कलए मौत का ताण्डि कर रहा था। मैने चारो तरि दे खा, मुझे औरतों में कही ं कोई
कदखाई न कदया। ये दे ख कर मैं बु री तरह चौंक गया। मन में सिाल उभरा कक ये सब
कहाॅ गईं? कही ं ककसी को कुछ हो तो नही ं गया। मैं सोनम दीदी को छोंड कर एक
तरि को भागा।

1067
ररतू दीदी, आकदत्य ि पिन पे डों की ओट में पोजीशन कलए हुए थे । अजय कसं ह,
प्रकतमा, अभय चाचा, ि सहाय कही ं कदख नही ं रहे थे । सं भि है उन्होंने भी ककसी पे ड
की ओट में पोजीशन कलया हुआ था। मैं कछपते कछपाते हुए िामग हाउस की इमारत के
कपछले भाग में आ गया। यहाॅ आ कर मैने चारों तरि दे खा। कही ं कोई नही ं था।
नीचे ़िमीन पर मरे हुए गनमैन अपने ही खू न में नहाए पडे थे ।

माॅ लोगों को कही ं न दे ख कर मैं बहुत ज्यादा कचं कतत ि परे शान हो गया। मु झे समझ
नही ं आ रहा था कक ये सब इतना जल्दी कहाॅ चले गए? मैं इमारत के कपछले भाग से
कनकल कर सामने की तरि आया ही था कक तभी धाॅय की आिा़ि हुई। कही ं से
गोली चली थी जो कक मेरे दाकहने बाजू को छू कर कनकल गई थी। मैं इस सबसे
बे खबर सा हो गया था। मेरे ़िहन में कसिग माॅ लोगों का ही खयाल तारी था।

गोली की आिा़ि से तथा अपनी बाजू में उसकी छु िन से मैं बु री तरह उछल पडा था
और इसी उछलाहट में मैं िौरन ही एक पे ड की ओट में आ गया। ओट से कसर
कनकाल कर मैंने आस पास का बारीकी से मु आयना ककया। तभी मेरे कानों में इमारत
के अं दर से कुछ लोगों की आिा़ि सु नाई दी। मैं आिा़िों को सु नने के कलए ग़ौर से
ध्यान लगाया। तभी मेरे कानों में मेरी माॅ की आिा़ि पडी। िो कह रही थी____"मु झे
बाहर जाने दो। िहाॅ मेरा बे टा गोकलयों के बीच में खडा है और तु म सब कहती हो
कक मैं यही ं पर रहूॅ। अरे मेरे बे टे को कुछ हो गया तो मेरे क़िन्दा रहने का क्ा
मतलब रह जाएगा?"

मैं सब समझ गया। मतलब माॅ लोग सब इमारत के अं दर हैं और शायद सु रकक्षत भी
हैं। िरना िो ऐसी बात उन लोगों को न कहती ं। ये सोच कर मैं िौरन ही जम्प मार
कर दू सरे पे ड की तरि भागा। मेरे ऐसा करते ही एकदम से गोकलयों की आिा़िें
आने लगी ं। ककसी तरह बचते बचते मैं आकदत्य के पास पहुॅच ही गया। आकदत्य ने
मुझे दे खा तो इशारे से ही पू छा बाॅकी सब कैसे हैं? तो मैने बताया सब ठीक हैं।

अभी मैं आकदत्य को इशारे से ये बताया ही था कक तभी सोनम दीदी की चीख गू ज


उठी। ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई मार रहा हो। मैने िौरन ही उस तरि दे खने की
कोकशश की। बाॅई तरि अजय कसं ह सोनम दीदी को उनके कसर के बालों से पकडे
घसीटते हुए कलए आ रहे थे । उनके एक हाॅथ में ररिावर भी था। ये दे ख कर मैं
सकते में आ गया।

"अगर इस लडकी को क़िन्दा दे खना चाहते हो तो तु म सब सामने आ जाओ।" अजय


कसं ह की आिा़ि गूॅजी___"और हाॅ अपने अपने हकथयार िेंक कर ही आना, िरना
मैं इस लडकी को गोली मार दू ॅगा।"

1068
अजय कसं ह की इस धमकी पर हम में से कोई कुछ न बोला। कुछ पलों तक अजय
कसं ह इधर उधर दे खते हुए खडा रहा। उसके बाद किर बोला___"मैं कसिग तीन तक
कगनू ॅगा। अगर मेरे तीन कगनने तक तु म लोग मेरे सामने नही ं आए तो समझ लो ये
लडकी अपनी कजंदगी से हाॅथ धो बै ठेगी।"

अजय कसं ह ने कगनना शु रू कर कदया। पे डों की ओट में छु पे हम सब को बाहर


कनकलना अब अकनिायग था। अजय कसं ह ने जै से ही तीन कहा हम सब उसके सामने
आ गए। हम लोगों को दे ख कर अजय कसं ह मु स्कुराया ककन्तु किर एकाएक ही उसके
चे हरे के भाि खतरनाॅक रूप से बदले । उसने ररिावर िाला हाॅथ उठाया और
कबना कुछ कहे िायर कर कदया। गोली सीधा ररतू दीदी के पे ट में लगी। कि़िा में ररतू
दीदी की हृदयकिदारक चीख गू ॅज गई।

अजय कसं ह से अचानक इस कृत्य की कल्पना हम में से ककसी ने न की थी। उधर पे ट


में गोली लगते ही ररतू दीदी कटे हुए िृ क्ष की तरह लहरा कर िही ं ़िमीन पर कगरने
लगी। मैं कबजली की सी ते ़िी से उनकी तरि लपका। ररतू दीदी को बाॅहों में सम्हाले
मैं बु री तरह रोते हुए चीखने लगा। िो मेरी बाॅहों में थी ं। उनके चे हरे पर पीडा के
असहनीय भाि थे ककन्तु ऑखें मु झ पर ल्कथथर थी ं।

"दीदी, ये क्ा हो गया दीदी?" मैं उन्हें सम्हालते हुए िही ं ़िमीन पर उकडू सा बै ठ
गया____"नही ं नही,ं आपको कुछ नही ं हो सकता।"
"अभी जंग खत्म नही ं हुई पगले ।" ररतू दीदी ने पीकडत भाि से कहा____"अभी तो इस
धरती पर िो इं सान जीकित है कजसने अपना आकखरी सबू त ये दे कदया है कक उसके
कदल में ककसी के कलए भी कोई रहम अथिा प्यार नही ं है। ऐसे इं सान को जीकित रहने
का कोई अकधकार नही ं है।"

"मैं उसे क़िंदा नही ं छोंडूॅगा दीदी।" मैने कससकते हुए कहा___"बस आप को कुछ
नही ं होना चाकहए। मैं आपको खोना नही ं चाहता।"
"होनी को कौन टाल सकता है राज?" दीदी ने सहसा मेरे चे हरे को एक हाॅथ से
सहलाते हुए कहा___"बडी आऱिू थी कक जीिन भर ते रे साथ रहूॅगी। तु झे खु द से दू र
नही ं जाने दू ॅगी। मगर दे ख ले , आज खु द ही तु झसे दू र जा रही हूॅ।"

"नही ं नही ं।" मैने उन्हें खु द से छु पका कलया और बु री तरह रोते हुए बोला___"आप
कही ं नही ं जा रही हैं। मैं आपको कही ं जाने भी नही ं दू ॅगा। मु झे मेरी दीदी सही
सलामत चाकहए। मैं आपके कबना जी नही ं पाऊगा।"

"इतना प्यार मत कदखा राज।" ररतू दीदी की आिा़ि लडखडा गई____"िरना मरने

1069
के बाद भी मु झे शाल्कन्त नही ं कमले गी। खै र, अभी तू जा मेरे भाई। िरना िो राक्षस किर
ककसी को गोली मार दे गा। दे ख तु झे मेरी कसम है , तू जा राज।"

दीदी की कसम ने मुझे मजबू र कर कदया। मैं भारी मन से उन्हें िही ं पर छोंड कर
पलटा। इधर ररतू के साथ हुए इस हादसे ने आकदत्य पिन ि अभय चाचा को भी
अचे त सा कर कदया था। िो सब ठगे से ऑखें िाडे दे खे जा रहे थे ।

"अपनी क़िद ि अपने अहंकार में ककस ककस को मारोगे अजय?" सहसा इस बीच
प्रकतमा ने अजय कसं ह की तरि दे खते हुए बे हद ही करुर् भाि से रोते हुए
कहा___"उस कदन भी तु मने नीलम को जान से मार ही कदया था और आज एक और
बे टी को जान से मार कदया। आकखर ककस ककस को जान से मारोगे तु म? ये दौलत ये
़िमीन जायदाद ककसके भोगने के कलए बनाई है तु मने ? मुझे भी मार दो, अपनी
ऑखों के सामने अपनी बे कटयों को इस तरह मरते दे ख कर भला कैसे चै न से जी
पाऊगी मैं?"

"ये मेरी कोई नही ं लगती प्रकतमा।" अजय कसं ह गुरागया___"अगर लगती तो आज ये
अपने बाप के साथ खडी होती ना कक अपने बाप के दु श्मनों के साथ।"

"तो क्ा ग़लत ककया इन्होंने?" प्रकतमा ने कबिरे हुए लहजे से कहा___"अरे इन लोगों
ने तो िही ककया जो हर लडकी को करना चाकहए। अपने इज्ज़ित और सम्मान की
रक्षा करना हर लडकी या औरत का धमग है। तु म तो उसके बाप हो न, तु म्हें तो खु द
अपने घर की इज्ज़ित की हर तरह से रक्षा करना चाकहए थी। मगर तु म तो खु द ही
अपनी ही बहू बहन ि बे कटयों की अस्मत को लू टने िाले बन गए।"

"ये तु म कौन सी भाषा बोल रही हो प्रकतमा?" अजय कसं ह की ऑखें िैली____"आज
तु म्हारे मुख से ऐसी बातें कैसे कनकलने लगी ं? क्ा सब कुछ भू ल गई हो तु म? तु म तो
खु द भी उतनी ही गुनहगार हो कजतना कक तु म इस िक्त मुझे समझ रही हो। इस
कलए ऐसी बात मत करो, क्ोंकक ये सब तु म पर शोभा नही ं दे ती हैं।"

"मैं मानती हूॅ कक मैं इस सबमें बराबर की गु नहगार हूॅ अजय।" प्रकतमा ने
कहा___"मगर ये भी एक सच है कक इस सबके कलए भी कसिग तु म ही कजम्मेदार हो। मैं
तो तु मसे अं धाधुंध प्यार ही करती थी। ककन्तु अपने मतलब के कलए तु मने ही मु झे ऐसे
काम को करने के कलए प्रे ररत ककया था। तु म्हारे प्यार में अच्छा बु रा ऊच नीच कभी
नही ं सोचा मैने। कसिग यही सोचा कक मेरे ककसी भी काम से कसिग तु म खु श रहो।
मगर अब ये जो कुछ भी हो रहा है उसने मु झे इस बात का एहसास करा कदया है कक
तु मने कभी मुझे प्यार ककया ही नही ं था। तु म्हें तो कसिग खु द से और अपनी ख़्वाकहशों

1070
से ही प्यार था। अगर ऐसा न होता तो आज तु म इस तरह अपनों के दु श्मन न बन गए
होते और ना ही इस तरह क्रूरता से अपनी ही बे कटयों को जान से मार दे ने का सोचते ।
खै र, दे र से ही सही मगर मैं ये स्वीकार कर चु की हूॅ कक मैंने तु म्हारे प्यार के चलते
सबके साथ ऐसा गुनाह ि पाप ककया है जो कदाकचत माफ़ी के लायक हो ही नही ं
सकता है। मु झे भी ककसी से माफ़ी की इच्छा नही ं है। इतना कुछ होने के बाद तो िै से
भी अब जीने का कदल नही ं करता। मेरा िजूद इतना कघनौना हो चु का है कक दु कनया
का कगरा से कगरा हुआ इं सान भी कदाकचत मेरी तरि दे खना भी पसं द न करे । ककन्तु
सु ना है पश्चाताप करने से और ने क काम करने से मन को शाल्कन्त कमलती है । इसी
कलए मैने पश्चाताप के रूप में िो ककया जो मु झे बहुत पहले करना चाकहए था।"

"क्ा मतलब???" अजय कसं ह चौंका____"क..क्ा ककया है तु मने ?"


"अब तक तो कदमाग़ पर कदल ही हािी था अजय।" प्रकतमा ने कहा___"मगर जब कदल
ही टू ट कर कबखर गया तो कदमाग़ का ़िोर पड ही गया उस पर। उस शाम जब तु म
िोन पर अभय से बातें कर रहे थे तब मैने भी डर ाइं ग रूम में रखे िोन पर तु म दोनो
की बातें सु नी थी। तु म तो जानते हो कक िो दोनो ही िोन एक ही हैं। अगर एक पर
ककसी का िोन आएगा तो उस दू सरे िोन के माध्यम से भी दू सरा ब्यल्कक्त पहले िाले
िोन पर हो रही बातचीत को बडे आराम से सु न सकता है। खै र तु म दोनो की बातें
सु नी मैने और तब मु झे पू री तरह समझ आ गया कक सारी क़िंदगी तु म्हारे कलए अपना
सब कुछ लु टाने िाली मैं ककतनी पाकपन थी जो कभी तु म्हारी खु कशयों के कसिा ककसी
और पर होते अत्याचार को न दे ख सकी थी। तु मने अभय को किश्वास कदलाया कक तु म
उसके बे टे का बे हतर इला़ि करिाओगे और ़िमीन जायदाद में आधा कहस्सा भी
दोगे। बदले में तु म्हें तु म्हारा िो ग़ैर कानू नी सामान ि किराज के सभी चाहने िाले
अपने पास चाकहए। अभय तो अपने बे टे के कलए अपना कििे क खो कर यकीन के
साथ तु मसे इतना बडा सौदा कर बै ठा जबकक मैं जानती थी कक तु म िै सा कभी नही ं
करोगे कजस बात के कलए तु मने अभय को किश्वास कदलाया था। अपना मतलब कनकल
जाने के बाद तु म िही करोगे जो सबके साथ करना चाहते हो। मैं हैरान थी कक पढा
कलखा अभय इतनी बडी बे िकूिी ि अपनों के साथ कसिग अपने बे टे के बारे में सोच
कर इतना बडा किश्वासघात कैसे कर सकता है ? ले ककन जल्द ही मुझे समझ आया कक
भाई ककसका है। मेरे कदमाग़ में ये बात भी आई कक सं भि है कक अभय ने कोई दू र की
कौडी सोची हुई है। कहने का मतलब ये कक इस जंग में अगर तु म्हारे साथ साथ मैं ि
हमारा बे टा मारे गए या कानू न की चपे ट में आ गए तो ये किराज को भी ककसी तरह
अपने रास्ते से हटा दे गा। उस सू रत में सारी ़िमीन जायदाद का ये अकेला हक़दार
हो जाएगा। ये सब बातें सोच कर मुझे एहसास हुआ कक कजसने इस सारी ़िमीन
जायदाद को हीरे की शक्ल दी तथा कजसका कही ं कोई कसू र ही नही ं था उसे उसके
भाई ने तो पहले ही कमटा कदया था और अब एक और भाई आ गया उसी इकतहास को
दोहराने के कलए। मु झे पहली बार गौरी के बारे में सोच कर उस पर तरस आया।

1071
एकाएक ही मेरा हृदय झनझना उठा। अं दर कही ं से कोई बडे ़िोर से चीख कर कहा
'इस बे चारी ने ऐसा कौन सा पाप ककया था कजसकी िजह से इसके साथ इतना कुछ
हो गया?' इं सान को बदलने के कलए कसिग एक ही मामूली सी ची़ि कािी होती है।
अगर हम ककसी के बारे में एक बार इस तरह से सोच लें तो किर बहुत मु मककन है कक
किर हमें उसकी अथिा अपनी िास्तकिकता का बोध होने लगता है। िही हुआ मेरे
साथ। हृदय पररितग न तो अपनी बे टी के साथ हुए हादसे से ही होने लगा था ककन्तु उस
िोन की िजह से पू री तरह से ही हो गया। सारी बातों को सोचने के बाद मैने िैंसला
कर कलया कक अब िो नही ं होंने दू ॅगी कजसके कलए तु मने एक हसते खे लते पररिार
की बकल चढाई थी। हाॅ अजय, जैसे अभय ने अपने स्वाथग के कलए अपनों के साथ
किश्वासघात कर तु मसे िो सौदा ककया उसी तरह मैने भी एक िोन ककया।"

"क्ा मतलब??" अजय कसं ह बु री तरह चौंका___"कैसा िोन ककया तु मने ?"
"मेरे पास किराज का नं बर नही ं था।" प्रकतमा ने कहा___"और मेरी बे टी मेरा िोन
उठाती ही नही ं थी। तब मैने सीधा पु कलस ककमश्नर को िोन ककया। पु कलस ककमश्नर
को इस कलए क्ोंकक मौजूदा िक्त में जो कुछ भी हुआ उससे ये बात साकबत हो चु की
थी कक ररतू अपने पु कलस महकमें की सह पर ही िो सब कर रही थी। हलाॅकक मैं पू री
तरह श्योर नही ं थी। ककन्तु किर भी मैने एक बार ककमश्नर से बात करने का ही सोचा
और किर उन्हें िोन लगाया। िोन पर मैने ककमश्नर से साि साि शब्दों में बता कदया
कक कसचु एशन क्ा है। उसके बाद मैंने उनसे कहा कक मु झे एक बार किराज से बात
करना है। उन्होंने मेरी बातों को बारीकी से सोचा समझा और किर ररतू को िोन
ककया और उससे किराज का नं बर ले कर मुझे कदया।"

"उस िक्त मैं और आकदत्य बाहर घू मने गए थे जब मेरे िोन पर बडी माॅ का िोन
आया था।" बडी माॅ की बात खत्म होते ही मै ने तु रंत कहा___"इन्होंने मुझे िोन पर
सारी बातें बता दी। हलाॅकक मु झे शु रू शु रू में इनकी बात पर ़िरा भी यकीन न
हुआ। क्ोंकक मैं सोच ही नही ं सकता था कक अभय चाचा हमारे साथ ऐसा कर सकते
हैं। तब इन्होंने कहा कक ये अपनी बातों का सबू त तो नही ं दे सकती हैं मगर मैं खु द
इस बात की जाॅच पडताल तो कर ही सकता हूॅ। दू सरी बात मु झे भी कही ं न कही ं
लग रहा था कक अपनी बे टी के साथ हुए हादसे के चलते बडी माॅ में कुछ तो
पररितग न आना ही चाकहए था। खै र, इनकी खबर के बाद मैने भी िहाॅ पर ररतू दीदी
आकद को सब कुछ बता कदया और रात में ये सब होने का इं त़िार करने के कलए कह
कदया। िही ं मैने मुम्बई में भी पिन को िोन कर कदया था। उसे मैने समझाया था कक
िो इस बारे में ककसी से कुछ न कहे ककन्तु अगर बडे पापा का िोन उसके पास आए
तो िो िोन का िीकर ऑन करके ़िरूर सबको इनकी बात सु नाए। क्ोंकक उसके
बाद तो उन्हें यहाॅ आना ही था। मैं भी अब खु ल के इनके सामने आना चाहता था।

1072
ककन्तु ये सब बहुत ही ज्यादा खतरनाक भी था। क्ोंकक इससे ककसी को भी कुछ भी
हो सकता था। खै र ररतू दीदी ने ककमश्नर से बात की और उन्हें सारी बातों से अिगत
कराया और पु कलस प्रोटे क्शन की माॅग भी की। ककमश्नर ने हमें बे किक्र रहने को
कहा। कल रात जब आप अपने दलबल के साथ हमारे कठकाने पर पहुॅचे तब हम
सब जाग रहे थे । आप ये समझ रहे हैं कक आप बडी आसानी से हम सबको बे होश
कर यहाॅ ले आए जबकक सच्चाई तो यही है कक आपका काम हमने खु द आसान
ककया था। िरना आप ही सोकचए कक ऐसे आलम में इतने लापरिाह हम कैसे हो
जाएॅगे कक कोई आए और हम सबको बडी सहजता से बे होश करके अपने साथ
जहाॅ चाहे ले जाए। जबकक मैं चाहता तो उसी िक्त आप और आपके सभी आदमी
मौत के घाट उतर चु के होते । मगर मैने अपने दोस्त शे खर के मौसा जी को उस रात
िहाॅ पर कसक्ोररटी रखने से मना कर कदया था। उसके बाद क्ा हुआ िो तो आप
अच्छी तरह जानते ही हैं।"

"चलो अच्छा हुआ कक तु मने खु द ही ये सब बता कदया।" अजय कसं ह ने भभकते हुए
लहजे से कहने के साथ ही बडी माॅ की तरि दे खा___"पर तु मने ये सब करके अच्छा
नही ं ककया प्रकतमा और इसके कलए तु म्हें मौत से कम स़िा तो हकगग़ि भी नही ं कमल
सकती।"

"ककतनी आश्चयग की बात है न अजय।" प्रकतमा ने िीकी सी मुस्कान के साथ


कहा___"इतना कुछ होने के बाद भी तु म्हारा हृदय पररितग न नही ं हुआ। तु म्हें ़िरा भी
एहसास नही ं हुआ कक ये जो कुछ भी तु मने ककया है िो ककतना ग़लत था। बल्कि
अभी भी तु म िही सब करने पर आमादा हो कजसका नतीजा तु म्हारे कलए ककसी भी
सू रत में अच्छा नही ं हो सकता। आज तु म्हारी इस हालत को दे ख कर सचमुच मुझे
तरस आ रहा है। आज मैं ये सोचने पर मजबू र हूॅ कक पच्चीस साल पहले मैने तु ममे
ऐसा क्ा दे खा था कक तु मसे इस क़दर प्यार कर बै ठी थी? तु म ककसी के नही ं हो
सकते अजय, तु म अकेले ही ऐसी मौत मरोगे कजसकी लाश पर कीडे पडें गे।"

"हराम़िादी कुकतया।" गु स्से में कतलकमलाए हुए अजय कसं ह ने बडी ते ़िी से अपने
ररिावर िाले हाॅथ को ऊपर हिा में उठाया और किर___धाॅय।

प्रकतमा के सबसे क़रीब अभय कसं ह ही था। माहौल की ऩिाकत का जैसे उसे बखू बी
एहसास था तभी तो उन्होंने गोली के चलते ही जम्प लगाई थी। ककन्तु गोली की िीड
ने अपना काम तमाम करने में कोई कसर न छोंडी थी। प्रकतमा को बचाने के चक्कर
में गोली अभय कसं ह के कंधे पर जा लगी थी। कि़िा में अभय कसं ह की ददग से डूबी
चीख कनकल गई थी। अभय कसं ह प्रकतमा को कलए ़िमीन पर उलटता चला गया था।

1073
इधर इस ऩिारे को दे ख कर मैने भी अजय कसं ह पर जम्प लगाई थी। मगर मेरे जम्प
लगाने से पहले ही उसने एक और िायर कर कदया था। कजसका नतीजा ये हुआ कक
इस बार गोली अभय कसं ह के पे ट में लगी थी। उस िक्त िो जल्दी से उठने की
कोकशश कर रहा था तभी गोली आकर उसके पे ट में लग गई थी। एक साथ कई
चीखें कि़िा में गूॅज गई थी। इधर तीसरा िायर करने से पहले ही मैं अजय कसं ह के
ऊपर आ कगरा था। इस गुत्थम गुत्था में सोनम दीदी भी लोट पोट हो गई थी ं। अजय
कसं ह की पकड से छूटते ही सोनम दीदी अभय कसं ह ि प्रकतमा की तरि कचल्लाते हुए
दौड पडी थी।

इधर मैने अजय कसं ह के उस हाॅथ में एक कराट मारी कजसमें िो ररिावर कलये हुए
था। कराट लगते ही अजय कसं ह के हाॅथ से ररिावर छूट कर कगर गया। मैने उस
पर लात घू ॅसों की बरसात कर दी। अजय कसं ह हलाल होते बकरे की तरह कचल्लाने
लगा। िह खु द भी हाॅथ पै र चला रहा था ककन्तु सब ब्यथग । मैं उसके ऊपर से उठा
और किर उसे उठा कर पू री ताकत से दू र िेंक कदया। हिा में लहराते हुए अजय कसं ह
दू र जा कर कगरा।

जहाॅ पर अजय कसं ह कगरा था िही ं पर एक गन पडी थी। कजसे दे ख कर िह अपना


हर ददग भू ल गया और झपट कर उसने उस गन को उठा कलया। तभी कि़िा में पु कलस
सायरन की आिा़ि गू ॅजने लगी। अजय कसं ह गन ले कर तु रंत पलटा और मेरी तरि
दे खते हुए गन को ऊपर करने लगा। इससे पहले की िह गन का कटर गर दबा पाता
कही ं से एक साथ दो िायर हुए। एक गोली सीधा अजय कसं ह के सीने में कदल िाले
थथान पर लगी जबकक दू सरी उसके थोडा नीचे । पलक झपकते ही उन दोनो जगहों
से खू न की धार िूट पडी और अजय कसं ह कटे हुए बृ क्ष की भाॅकत लहरा कर ़िमीन
पर कगरा और किर एकदम से शान्त पड गया।

िायर की आिा़ि से मैं कबजली की तरह पलटा था। अजय कसं ह के दाकहनी तरि
कुछ ही दू री पर कशिा ररिावर कलए खडा था। उसके चे हरे पर अजीब से भाि थे । मैं
उसे चककत भाि से दे खे जा रहा था। जबकक िह अपने बाप को मारने के बाद पलटा
और मेरी तरि दे खते हुए बोला____"अपने हाॅथ इस पापी के खू न से मत रगो भाई।
इसे इससे बडी स़िा और क्ा कमले गी कक इसने कजसे सबसे ज्यादा प्यार ककया उसी
ने इसकी साॅसें छीन ली। नफ़रत के इस पु जारी को मर ही जाना चाकहए था।"

"मगर तू ने..।" मेरा िाक् अधूरा रह गया।


"कुछ मत ककहए भाई।" कशिा की आिा़ि लडखडा गई, बोला___"मैं नही ं जानता
कक मु झसे ये सब कैसे हो गया। मगर अं दर से कोई कह रहा है कक बहुत अच्छा ककया
तु मने । माॅ बाप अपने बच्चों को अच्छे सं स्कार ि स्वािलम्बी बनने की सीख दे ते हैं

1074
मगर मेरे इस बाप ने तो मुझे अपनी ही तरह बनने की सीख दी। खै र छोंकडये भाई,
मुझे भी अब खु शी हो रही है कक मैने आज कोई अच्छा काम ककया है। ये कनयकत मैने
खु द चु नी है। अपने बाप के कत्ल के इल्जाम में या तो मुझे िाॅसी हो जाएगी या किर
ऊम्र कैद। ककसी से बे पनाह इश्क़ भी हुआ मगर कसिग मु झे ऊम्र भर तडपाने के
कलए। मैने अपने इस छोटे से जीिन में ही इतने ऊचे द़िे के पाप ककये हैं कजसके कलए
ईश्वर मु झे कभी माफ़ नही ं करे गा।"

"ये तू कैसी बकिास कर रहा पगले ?" उसकी बातें सु न मेरा गला रुॅध सा गया। जाने
क्ों इस िक्त िो मु झे बहुत प्यारा सा लगा कजसके कलए मेरा कदल रोने लग गया था।
हलाॅकक उसने भी अपने बाप की तरह हमें जलील करने में कोई कसर न छोंडी थी।

"जाइये भाई।" तभी कशिा ने कहा____"अब तो सब खे ल खत्म हो गया है। पु कलस भी


आ गई है और अब िो मुझे कानू नन िाॅसी के िंदे पर झुलाने के कलए यहाॅ से ले
जाएगी। सबकी दे ख भाल करना भाई, और सबको ढे र सारी खु कशयाॅ दे ना। एक
नया सं सार बनाइये और उसमें सबको खु श रल्कखये।"

अभी कशिा अपनी इन बातों से मुझे चककत ही ककये था कक हर तरि पु कलस के


आदमी िैलते हुए आ गए। मेरी ऩिर दू र से ही ककमश्नर पर पडी। मैने पलट कर
दे खा तो कशिा अपने बाप के मृत शरीर के पास ही अपने हाॅथ में ररिावर कलए बै ठ
गया था। मतलब साि था कक िो पु कलस को कदखाना चाहता था कक उसने खु द ही
अपने बाप का खू न ककया है और अब पु कलस को उसे कगरफ्तार कर ले ना चाकहए।
बडी अजीब बात थी िो चाहता तो खु द को बचा भी सकता था। क्ोंकक खू न करते हुए
पु कलस ने उसे दे खा ही नही ं था और हम लोग ये बात पु कलस को बताने के बारे में सोच
भी सकते थे या नही ं भी।

ककमश्नर जब कशिा के पास पहुॅचा तो कशिा उसकी तरि दे ख कर बोला___"अच्छा


हुआ कक आप आ गए। आज इस पापी को इसके ही पापी बे टे ने मौत के घाट उतार
कदया है। लीकजए अब मु झे कगरफ्तार कर लीकजए।"

कशिा की इस बात पर ककमश्नर बु री तरह हैरान रह गया। ककन्तु अपराधी जब खु द ही


अपना गुनाह कबू ल कर रहा था तो भला उन्हें क्ा आपकि हो सकती थी? ककमश्नर ने
अपने साथ आए एक एसआई को इशारा ककया। एसआई ने कशिा के हाॅथ से
ररिावर को रुमाल में लपे ट कर कलया और किर उसके दोनो हाॅथों में हथकडी
डाल दी।

मैं दौडते हुए ररतू दीदी के पास आया था। ररतू दीदी को आकदत्य अपनी गोंद में कलए

1075
बै ठा था। ररतू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पिन अभय चाचा के पास चला
गया था। जहाॅ पर प्रकतमा अभय की हालत को दे ख कर रो रही थी। अभय चाचा की
हालत भी कािी खराब थी। उनका पू रा कजस्म उनके खू न से नहाया हुआ था। प्रकतमा
बार बार एक ही बात कह रही थी कक मु झे मर जाने कदया होता। मु झ पाकपन को क्ों
बचाया तु मने ?

पु कलस सायरन की आिा़ि सु न कर इमारत के अं दर से बाॅकी सब लोग भी आ गए


थे । यहाॅ का मं़िर दे ख कर सबकी चीखें कनकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही
सलामत दे खा तो मु झे खु द से छु पका कलया और मेरे चे हरे पर हर जगह चू मने चाटने
लगी ं। मैने उन्हें खु द से अलग ककया और बताया कक ररतू दीदी ि अभय चाचा को
गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हाल्किटल ले जाना पडे गा। मेरी बात सु न कर सब लोग
ररतू दीदी ि अभय चाचा के पास आ गए।

ररतू दीदी ि अभय चाचा की हालत बहुत खराब थी। सब लोग रो रहे थे । मैं और पिन
दौडते हुए कुछ ही दू री पर खडी कई सारी गाकडयों की तरि गए। उनमें से एक गाडी
को स्टाटग कर मैं िौरन ही उसे इस तरि ले आया। आकदत्य ने ररतू दीदी को उठा
कर जल्दी से टाटा सिारी में बडे एहकतयात से कबठाया। ररतू दीदी के बै ठते ही नै ना
बु आ भी उनके पास आकर बै ठ गईं। आकदत्य भाग कर गया और दू सरी गाडी ले
आया। उस गाडी में अभय चाचा को िौरन ले टाया गया। उसमें करुर्ा चाची ि
रुल्कक्मर्ी चाची बै ठ गईं। दू सरी अन्य गाकडयों में बाॅकी सब लोग भी बै ठ गए। इसके
बाद हम सब ते ़िी से गुनगुन की तरि बढ चले ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडे ट.......《 63 》

अब तक,,,,,,,,
कशिा की इस बात पर ककमश्नर बु री तरह हैरान रह गया। ककन्तु अपराधी
जब खु द ही अपना गुनाह कबू ल कर रहा था तो भला उन्हें क्ा आपकि हो
सकती थी? ककमश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा ककया।
एसआई ने कशिा के हाॅथ से ररिावर को रुमाल में लपे ट कर कलया और
किर उसके दोनो हाॅथों में हथकडी डाल दी।

1076
मैं दौडते हुए ररतू दीदी के पास आया था। ररतू दीदी को आकदत्य अपनी
गोंद में कलए बै ठा था। ररतू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पिन अभय
चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रकतमा अभय की हालत को दे ख
कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी कािी खराब थी। उनका पू रा
कजस्म उनके खू न से नहाया हुआ था। प्रकतमा बार बार एक ही बात कह
रही थी कक मु झे मर जाने कदया होता। मु झ पाकपन को क्ों बचाया तु मने ?

पु कलस सायरन की आिा़ि सु न कर इमारत के अं दर से बाॅकी सब लोग


भी आ गए थे । यहाॅ का मं़िर दे ख कर सबकी चीखें कनकल गई थी। माॅ
ने जब मुझे सही सलामत दे खा तो मुझे खु द से छु पका कलया और मेरे
चे हरे पर हर जगह चू मने चाटने लगी ं। मै ने उन्हें खु द से अलग ककया और
बताया कक ररतू दीदी ि अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही
हाल्किटल ले जाना पडे गा। मेरी बात सु न कर सब लोग ररतू दीदी ि अभय
चाचा के पास आ गए।

ररतू दीदी ि अभय चाचा की हालत बहुत खराब थी। सब लोग रो रहे थे ।
मैं और पिन दौडते हुए कुछ ही दू री पर खडी कई सारी गाकडयों की
तरि गए। उनमें से एक गाडी को स्टाटग कर मैं िौरन ही उसे इस तरि
ले आया। आकदत्य ने ररतू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सिारी में बडे
एहकतयात से कबठाया। ररतू दीदी के बै ठते ही नै ना बु आ भी उनके पास
आकर बै ठ गईं। आकदत्य भाग कर गया और दू सरी गाडी ले आया। उस
गाडी में अभय चाचा को िौरन ले टाया गया। उसमें करुर्ा चाची ि
रुल्कक्मर्ी चाची बै ठ गईं। दू सरी अन्य गाकडयों में बाॅकी सब लोग भी बै ठ
गए। इसके बाद हम सब ते ़िी से गुनगुन की तरि बढ चले ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आगे,,,,,,,

ऑधी तू िान बने हम सब आकखर हाल्किटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी


हमने ररतू दीदी ि अभय चाचा को स्टरे चर पर कलटा कर हाल्किटल के अं दर
ले गए। कुछ ही दे र में उन दोनो को ओटी के अं दर ले जाया गया। उन्हें
अं दर ले जाते ही ओटी का दरिा़िा बं द हो गया और हम सब बाहर ही
कचं ता ि परे शानी की हालत में खडे रह गए।

हम सब बे हद दु खी थे और भगिान से उन दोनो को सलामत रखने की


कमन्नतें कर रहे थे । करुर्ा चाची के ऑसू बं द ही नही ं हो रहे थे । ककमश्नर

1077
साहब ने पहले ही िोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता कदया था ताकक
यहाॅ पर ककसी प्रकार की परे शानी न हो सके और जल्द ही उनका
इला़ि शु रू हो जाए।

बडी माॅ हम सब से अलग एक तरि गुमसु म सी खडी थी ं। उनकी माॅग


का कसं दूर कमटा हुआ था तथा हाॅथ की चू कडयाॅ भी कुछ टू टी हुई थी ं।
मतलब साि था कक पकत की मौत के बाद उन्होंने खु द को किधिा बना
कलया था। इस िक्त उनके चे हरे पर सं सार भर की िीरानी थी। ऑखों में
सू नापन था।

अधमग पर धमग की तथा बु राई पर अच्छाई की जीत तो हो चु की थी ककन्तु


इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने िाले दो ब्यल्कक्त जीिन और मृत्यु के
बीच लटके हुए थे । मैं ररतू दीदी के कलए सबसे ज्यादा दु खी था। मेरी
ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुं दर छकि चमक उठती थी। उनके
साथ कबताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे । ररतू दीदी ने शु रू से ले कर अब
तक मेरा ककतना साथ कदया था ये बताने की आिश्यकता नही ं है। अगर मैं
ये कहूॅ तो ़िरा भी ग़लत न होगा कक इस जीत का सारा श्रेय ही उनको
जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी।
यूॅ तो मैं जीिन भर उनका ऋर्ी ही बन चु का था ककन्तु एक ये भी
सच्चाई थी कक मैं उन्हें ककसी भी सू रत में खोना नही ं चाहता था। मैं बचपन
से ही उन्हें बे हद पसं द करता था और उनके कलए कुछ भी कर गु़िरने की
चाहत रखता था। अब तक तो नही ं पर अब लग रहा था कक अगर उन्हें
कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नही ं पाऊगा।

आकदत्य मेरे पास आया और मु झसे बोला कक मैं खु द को सम्हालू ॅ और


सबको भी सम्हालू ॅ। िो खु द भी बे हद दु खी था। उसने हम सबको अपना
ही मान कलया था। उसने मुझे समझाया कक मैं खु द को मजबू त करूॅ
िरना सब इस सबसे दु खी होते रहेंगे। आकदत्य की बात सु न कर मैने खु द
को सम्हाला और किर सबको िही ं एक तरि लम्बी सी बें च में बै ठ जाने
के कलए कहा। मेरे ़िोर दे ने पर आकखर सब लोग बै ठ ही गए। मेरी ऩिर
दू र एक तरि खडी बडी माॅ पर पडी तो मैं उनके पास चला गया।

बडी माॅ कही ं खोई हुई सी खडी एकटक शू न्य को घूरे जा रही थी ं। मैं
उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तं द्रा टू टी।
उन्होंने मेरी तरि अजीब भाि से दे खा और किर कबना कुछ बोले किर से
शू न्य में दे खने लगी ं। मैने बडी माॅ से भी बै ठ जाने के कलए कहा तो िो

1078
मेरे साथ ही दू सरी साइड की बें च की तरि आईं और बै ठ गईं। उनके
पास ही मैं भी बै ठ गया। हलाॅकक मेरे उनके पास बै ठ जाने से सामने ही
बें च पर बै ठे सब लोग मुझे घूर कर दे खने लगे थे मगर मैने उनके घूरने
की कोई परिाह नही ं की।

मेरे मन में बडी माॅ की उस िक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे
िोन ककया था। इतना तो मुझे पता था कक हर इं सान को एक कदन अपने
गुनाहों का एहसास होता है। िक्त और हालात इं सान को ऐसी जगह ला
कर खडा कर दे ते हैं जब उसे कशद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने
लगता है। िही हाल बडी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कक
उन्होंने अपने पकत से ऑख बं द करके तथा कबना कुछ सोचे समझे बे पनाह
प्रे म ककया था। कजसका सबू त ये था कक उन्होंने अजय कसं ह के हर गुनाह में
उसका खु शी खु शी साथ कदया था। उन्होंने कभी भी अपने पकत से ये नही ं
कहा कक िो ग़लत कर रहा है और िो ग़लत में उसका साथ नही ं दें गी।
इं सान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ़िमीर खामोश
होकर बै ठ जाता है। या किर इं सान ़िबरदस्ती अपने ़िमीर का करुर्
क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अं त तो हर ची़ि का एक कदन होता ही
है। किर चाहे िो कजस रूप में हो। खै र, मेरे मन में बडी माॅ से िोन
पर हुई िो सब बातें चल रही थी ं।

बडी माॅ से िोन पर पहले तो मैने कठोरतापू र्ग ही बातें की थी ककन्तु जब


उन्होंने अभय चाचा की असकलयत और अपने पकत से उनके द्वारा िोन पर
हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हसा था, क्ोंकक मु झे लगा कक
बडी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं कजसमें िो अभय चाचा
के ल्कखलाि ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रकत शं का या दरार
जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मु झे ये
सोचने पर मजबू र कर कदया था कक भला उन्हें ऐसा करने की क्ा ़िरूरत
थी? दू सरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी की ं कजन बातों की मैं
उनसे उम्मी ंद ही नही ं कर सकता था।

कािी समय तक हम सब ऐसे ही बै ठे रहे थे । हम सबकी साॅसें हमारे


हलक में अटकी हुई थी। ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी खयाल आ जाते
कजनके तहत हमारे कजस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आकखर
लम्बे इन्त़िार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बु झा और किर
दरिाजा खु ला। दरिा़िा खु लते ही हम सब एक साथ ही खडे होकर
डाक्टर के पास ते ़िी से पहुॅचे ।

1079
"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाि से
पू छा___"मेरा बे टा और बे टी कैसी है अब? िो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी
बताइये डाक्टर साहब। िो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को दे ख कर डाक्टर तु रंत कुछ न बोला। ये दे ख


कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर
चढ दौडे । करुर्ा चाची बु री तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते दे ख
कदव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यकथत दे ख डाक्टर के
चे हरे के भाि बदले ।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दु खी होने की ़िरूरत नही ं


है। िो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बु लेट
कनकाल दी है। किलहाल िो खतरे से बाहर हैं ककन्तु खू न ज्यादा बह जाने
से उनकी हालत अभी बे हतर नही ं है। खै र अभी तो िो दोनो बे होश हैं।
इस कलए आप लोग उनसे बात नही ं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सु न कर हम सबके कनस्ते ज पड चु के चे हरों पर जैसे नई


ता़िगी सी आ गई। हम सब एक दू सरे की तरि दे ख दे ख कर एक दू सरे
से कहने लगे कक सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला
गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यिाद ककया। गौरी
माॅ को अचानक ही जाने क्ा हुआ कक िो पलटी और गैलरी में एक
तरि को लगभग दौडते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते दे ख चौंके
तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरि ते ़िी से बढ चले ।

कुछ ही दे र में हम सब कजस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस


जगह का दृष्य दे ख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल िो गर्े श
जी का एक छोटा सा मंकदर था। कजसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोडे
बै ठी गौरी माॅ ऩिर आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गर्े श जी
के सामने अपने अपने हाॅथ जोड कर खडे हो गए। गर्े श जी की मूकतग के
सामने खडे हो कर हम सबने उनकी स्तु कत की और उनकी इस कृपा के
कलए हम सबने उन्हें सच्चे कदल से धन्यिाद कदया।

जैसा कक डाक्टर ने बताया था कक अभी ररतू दीदी ि अभय चाचा बे होश


हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे । खै र कदन
ढल चु का था। मुझे पता था कक इस सबके चक्कर में ककसी ने सु बह से

1080
कुछ खाया भी नही ं था। अतः मैंने आकदत्य ि पिन को साथ कलया और
पास के ही एक होटे ल से सबके कलए खाने पीने का प्रबं ध ककया। मेरे और
आकदत्य के ़िोर दे ने पर आकखर सबको थोडा बहुत खाना ही पडा।
हलाॅकक इसके कलए कोई तै यार नही ं था क्ोंकक आज हमारे पररिार के
एक बडे सदस्य की मौत हो चु की थी तथा दू सरा अपने कपता के कत्ल के
इल्जाम में कगरफ्तार हो चु का था। कनश्चय ही उसे या तो िाॅसी की स़िा
होगी या किर ऊम्र कैद।

िो दोनो बु रे ही सही ककन्तु उनसे खू न का ररश्ा तो था ही। िामग हाउस


पर कदाकचत अभी भी अजय कसं ह का मृ त शरीर पडा होगा। हम सब तो
ररतू दीदी ि अभय चाचू को ले कर हाल्किटल आ गए थे । उसके बाद िहाॅ
पर अजय कसं ह की लाश यू ॅ ही लािाररश ही पडी रह गई होगी। या किर
ऐसा हुआ होगा कक ककमश्नर ने इस पर कोई कानू नी प्रकक्रया की होगी।
कजसके तहत िो अजय कसं ह की लाश का पं चनामा कर उसे पोस्टमाडग म के
कलए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक कमली नही ं
थी, बल्कि ये महज हम सबका खयाल ही था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उस िक्त रात के दस बज रहे थे जब हाल्किटल की एक नसग ने आ कर
हमें बताया कक ररतू दीदी ि अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब
नसग की ये बात सु न कर बे हद खु श हुए और किर िौरन ही हम सब उस
कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर ररतू दीदी ि अभय चाचू को कशफ्ट ककया गया
था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत दे खा तो जान में जान आई।
करुर्ा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये दे ख कर माॅ ने
उन्हें समझाया कक अब उसे रोना नही ं चाकहए बल्कि खु श होना चाकहए कक
ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर कदया है।

मैं ररतू दीदी के पास ही बै ठ गया था और एकटक उनके चे हरे की तरि


दे ख रहा था। िो खु द भी मुझे दे खे जा रही थी। उनकी ऑखों में खु शी के
ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के कलए काॅपे जा रहे थे । ये दे ख कर मैने
उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और किर झुक कर उनके माथे पर
चू म कलया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बं द हो गईं। ऐसे जैसे कक मेरे
ऐसा करने से उन्हें ककतना सु कून कमला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा
दीदी, कनधी ि कदव्या पास ही चारो तरि से घेरे खडी थी ं।

यहाॅ पर मुझे एक ची़ि बहुत अजीब लग रही थी और िो था बडी माॅ


का कबहैकियर। िो हम सबसे अलग दू र खडी थी ं। दू र से ही िो अपनी बे टी

1081
ररतू को दे ख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे । उनसे कोई बात नही ं कर
रहा था और ना ही िो ककसी से बात करने की कोई कोकशश कर रही
थी ं। उन्होंने तो जैसे खु द को हम सबसे अलग समझ कलया था।

उस रात हम सब हाल्किटल में ही रहे। दू सरे कदन डाक्टर से कमले तो


डाक्टर ने कुछ कदन बेड रे स्ट के कलए यही ं रहने का कहा। इस बीच
ककमश्नर साहब भी हमसे कमलने आए और सबका हाल अहिाल कलया। ररतू
दीदी से िो बडे प्यार से कमले तथा उन्हें ये भी कहा कक उन्हें उन पर ना़ि
है। ककमश्नर साहब ने बताया कक अजय कसं ह की डे ड बाॅडी पोस्टमाडग म के
बाद आज दोपहर तक कमल जाएगी। ताकक हम उनका अं कतम सं स्कार कर
सकें।

अभय चाचा के बार बार ़िोर दे ने पर माॅ इस बात पर रा़िी हुई कक िो


बाॅकी सबको ले कर गाॅि जाएॅ। अभय चाचा ने बडी माॅ से भी आग्रह
ककया कक िो सबके साथ गाॅि जाएॅ। मैने नै ना बु आ आकद को पिन के
साथ ही हिे ली जाने का कह कदया। जबकक मैं और आकदत्य ररतू दीदी ि
अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे ।

आकखर बहुत समझाने बु झाने के बाद सब जाने के कलए रा़िी हुए।


हाल्किटल से बाहर आकर मैने सबको गाकडयों में बै ठा कदया। मैने केशि जी
को िोन करके बु ला कलया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो
िो हैरान हुए उसके बाद खु श भी हुए। मैने उनके कुछ आदकमयों को माॅ
लोगों के साथ हल्दीपु र जाने के कलए उनसे कहा। केशि जी मेरी बात तु रंत
मान गए और किर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदकमयों बु ला कलया।

करुर्ा चाची जाने को तै यार ही नही ं हो रही थी। मैने बडी मु ल्किल से
उन्हें समझाया और कहा कक िो ककसी बात की किक्र न करें । खै र उन
सबके जाने के बाद मैने ककमश्नर साहब से कशिा के बारे में पू छा तो
उन्होंने बताया कक उन्होंने कशिा से बात की थी कक िो चाहे तो कानू न से
छूट सकता है। ककन्तु कशिा अपनी बात पर अकडग है। उसका कहना है
कक िो इस जीिन से मुल्कक्त चाहता है। उसमें अब इतनी कहम्मत नही ं है कक
िो िापस सबके बीच रह सके। सारी क़िंदगी िो सबके सामने शमग से गडा
रहेगा और चै न से जी नही ं पाएगा। कशिा के न मानने पर ही ककमश्नर
साहब ने केस िाइल ककया। अपने बाप की कचता को आग दे ने के कलए
उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पु कलस उसे िापस जेल में बं द कर
दे गी। अदालत का िैसला क्ा होगा इसका पता चलते ही उस पर कानू नी

1082
कायगिाही होगी।

ककमश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आकदत्य िापस ररतू दीदी ि अभय
चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कक मैं इस सबके बारे
में अपनी बडी बु आ यानी सौम्या बु आ को भी बता दू ॅ और यहाॅ बु ला
लू ॅ। िोन पर सारी बातें बताना उकचत नही ं था। चाचा की बात सु न कर
मैने बु आ को िोन लगाया। थोडी ही दे र में दू सरी तरि से बु आ की
आिा़ि मेरे कानों में पडी। मैने उन्हें अपना पररचय कदया और जल्द से
जल्द हल्दीपु र आने को कहा। मेरे इस तरह बु लाने पर िो कचं कतत होकर
पू छने लगी ं कक बात क्ा है? उनके पू छने पर मैने बस यही कहा कक आप
बस आ जाइये।

शाम होते होते ककमश्नर साहब की मौजूदगी में कशिा ने अपने बाप अजय
कसं ह की कचता को अकग्न दे दी। हल्दीपु र ही नही ं बल्कि आस पास के गाॅि
में भी ये खबर जंगल की आग की तरह िैल गई थी कक ठाकुर गजेन्द्र
कसं ह बघेल का बडा बे टा अब इस दु कनयाॅ में नही ं रहा। शमशान पर लोगों
की भारी भीड जमा थी। आकदत्य को ररतू दीदी ि अभय चाचू के पास
छोड कर मैं भी गाॅि आ गया था।

सौम्या बु आ आ चु की थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का


पता चला तो िो दहाडें मार मार कर रोने लगी थी। ककन्तु बडी माॅ ने
उन्हें सम्हाल कलया था और कठोर भाि से ये भी कहा कक ऐसे इं सान के
मरने का शोक मत करो कजसने अपने जीिन में ककसी के साथ कोई अच्छा
काम ही न ककया हो। बडी माॅ की ऐसी बातें सु न कर सौम्या बु आ हतप्रभ
रह गई थी ं। उन्हें थोडी बहुत पता तो था ककन्तु सारी असकलयत से िो
अं जान थी ं।

सारी कक्रया सं पन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हिे ली में
हर तरि एक भयािह सा सन्नाटा िैला हुआ था। हिे ली के नौकर चाकर
सब सं जीदा थे । सौम्या बु आ के साथ उनके पकत भी आए थे । मैने उनसे
सब का खयाल रखने का कहा और जीप ले कर िापस गुनगुन आ गया।
ऐसे ही एक हप्ता गु़िर गया। मैं और आकदत्य डाक्टर की परमीशन से ररतू
दीदी ि अभय चाचा को हाल्किटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी
ना़िुक ही थी। इस कलए उनकी दे ख रे ख के कलए सब मौजूद थे ।

ते रिी ं के कदन ब्राम्हर्ों को भोज कराया गया। सभी नात ररश्े दार आए हुए

1083
थे । सबकी ़िुबान पर बस एक ही बात थी कक ठाकुर खानदान में ये
अचानक क्ा हो गया है? हलाॅकक इतना तो सब समझते थे कक ठाकुर
खानदान में कुछ सालों से ग्रहर् सा लगा हुआ था। दबी ़िमान में तो लोग
ये भी कहते थे कक अजय कसं ह ने घर की खु कशयों में खु द आग लगाई थी।
खै र, एक कदन ककमश्नर साहब का िोन आया उन्होंने बताया कक अदालत
ने कशिा को ऊम्र कैद की स़िा सु नाई है। ये जान कर हम सबको बहुत
अजीब लगा था। कशिा ने अपनी म़िी से अपने इस अं जाम का चु नाि
ककया था, जबकक िो चाहता तो बडे आराम से िो कत्ल के इल्जाम से बरी
हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कक उस पर कत्ल
जैसा कोई इल्जान लगता ही नही ं। मेरे ़िहन में उससे अं कतम मुलाक़ात की
िो सब बातें घूम रही ं थी। मैं समझ सकता था कक िह एकदम से जुनूनी
हो चु का था। उसकी सोच ऐसी हो चु की थी कक उसे कोई समझा नही ं
सकता था।

अजय कसं ह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब


कुछ बता कदया था। िो ये जान कर आश्चयगचककत थे कक अभय चाचा ने
इतना बडा धोखा ककया था हमारे साथ। ते रिी ं के कदन जगदीश ओबराय
हमारे गाॅि आए थे । एक दो कदन रुक कर िो िापस मुम्बई चले गए थे ।
साथ ही हम सबको समझाया बु झाया भी था कक अब हम सब एक नये
कसरे से जीिन पथ पर आगे बढें । जाते समय िो थोडा मायूस लगे मु झे तो
मैने और माॅ ने उनसे पू ॅछ ही कलया कक क्ा बात है? हमारे पू छने पर
उन्होंने बस इतना ही कहा कक िो अकेले मुम्बई में रह नही ं पाएॅगे।
उनकी बातों को हम बखू बी समझते थे । इस कलए उन्हें तसल्ली दी कक िो
किक्र न करें । माॅ ने कहा कक राज और गुकडया की तो पढाई ही चल रही
है अभी। इस कलए िो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे ।

जैसा कक आप सबको पता है कक हिे ली में तीनों भाइयों का बराबर कहस्सा


था तथा हिे ली बनाई भी इस तरह गई थी कक सबको बराबर बराबर कमल
सके। अतः हिे ली में आते ही हम सब अपने अपने कहस्सों में रहने लगे थे ।
ककन्तु इसमें नई बात ये थी कक हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में
बनने लगा था। ररतू दीदी ि अभय चाचा की से हत में कािी सु धार हो
गया था। ररतू दीदी हमारे कहस्से पर ही एक कमरे में रह रही थी ं। बडी
माॅ(प्रकतमा) अपने कहस्से पर अकेली रहती थी। िो ककसी से कोई बात
नही ं करती थी और ना ही ककसी के सामने आती थी। सारा कदन और रात
िो अपने कमरे में ही रहती। ररतू दीदी ि नीलम उनसे कोई बात नही ं
करती थी ं। हलाॅकक ऐसा नही ं होना चाकहए था मगर कदाकचत कदलो कदमाग़

1084
से िो सब बातें अभी कनकली नही ं थी। इस कलए उनसे कोई बात करना
़िरूरी नही ं समझता था। हलाॅकक मैं आकदत्य ि पिन उनसे बात करते थे
और उनके कलए दोनो टाइम का खाना ि चाय नास्ता मैं ही ले कर उनके
पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कक िो खा नही ं
ले ती थी।

ऐसे ही समय गु ़िर रहा था। धीरे धीरे सब नामगल हो रहे थे । ककन्तु एक
ची़ि ऐसी थी कजसने मु झे दु खी ककया हुआ था और िो था गुकडया(कनधी)
का मेरे प्रकत बतागि। इतना कुछ होने के बाद और इतने कदन गु़िर जाने के
बाद मैने ये दे खा था कक उसने मुझसे कोई बात नही ं की थी और ना ही
मेरे सामने आने की कोई खता की थी। मैं समझ नही ं पा रहा था कक
अपने कदल की इस धडकन को कैसे मनाऊ? मेरे मन में कई बार ये
किचार आया कक मैं उसके पास जाऊ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ
कक ऐसा क्ा हो गया है कक उसने मुझसे बात करने की तो बात दू र
बल्कि मेरे सामने आना भी बं द कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा
कर नही ं पा रहा था क्ोंकक गुकडया के पास हर समय आशा दीदी बनी
रहती थी। अपनी इस बे बसी को मैं ककसी के सामने ़िाकहर भी नही ं कर
सकता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऐसे ही कुछ कदन और गु़िर गए। नीलम तो अब लगभग पू री तरह ठीक
ही हो गई थी। उसकी पीठ का ़िख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं
नीलम को अर्क्र छें डता रहता था, कजसके जिाब में िो बस मुस्कुरा कर
रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रकतक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी।
हैरान इस कलए क्ोंकक िो मेरे छें डने पर जिाब में खु द भी मुझे छें डने का
कोई उपक्रम नही ं करती थी बल्कि कसिग मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकक
मायूस इस कलए क्ोंकक मैं उससे यही उम्मी ंद करता था कक िो भी मुझें
छें डे अथिा मुझसे लडे झगडे । मगर जब िो ऐसा न करती तो मैं बस
मायूस ही हो जाता था। मु झे समझ नही ं आ रहा था कक नीलम ऐसा क्ों
कर रही थी। मैं महसू स कर रहा था कक नीलम कुछ कदनों से बडी अजीब
अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ़िोर
होता था कक मैं ररतू दीदी का हमेशा खयाल रखू ॅ और उन्हें कभी दु खी न
होने दू ॅ।

एक कदन सु बह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी ि नीलम अपने अपने


हाॅथों में छोटा सा बै ग कलए तथा तै यार होकर हम सबके बीच आईं और
माॅ(गौरी) से कहा कक िो मुम्बई जा रही हैं। कारर् ये था कक उनके

1085
काॅले ज की पढाई का नु कसान हो रहा था। बात पढाई की थी इस कलए
ककसी ने उन दोनो को जाने से मना नही ं ककया। जाते िक्त नीलम मेरे गले
लग मुझसे कमली और एक पु नः उसने ररतू दीदी का तथा सबका खयाल
रखने का कहा और किर मेरी तरि अजीब भाि से दे खने के बाद िह
पलट कर सोनम दीदी के साथ हिे ली से बाहर कनकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मे रा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम
की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे । कजन्हें उसने बडी सिाई से पोंछ कलया
था। दू सरे कदन रुल्कक्मर्ी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ
ने उनसे कहा भी मगर िो नही ं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ
उनके घर भे ज कदया गया। माॅ ने उनसे कहा था कक उनका जब भी कदल
करे िो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब किर से एक साथ हो गए थे । इस बात से गाॅि के लोग भी


कािी खु श थे । कदन भर ककसी न ककसी का आना जाना लगा ही रहता
था हिे ली पर। अभय चाचा ि मैं उन सबसे कमलते और दु कनयाॅ जहान की
बातें होती ं। बडी माॅ का रिै या िही था यानी िो अपने कमरे से बाहर
नही ं कनकलती थी ं। पिन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कक अब गुकडया
से बात करने का मौका कमले गा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी किर गया।
क्ोंकक आशा दीदी के जाने के बाद गुकडया का सारा समय उनके घर पर
ही गु़िरता था और रात में भी िो उनके घर पर ही सो जाती थी। हिे ली
में अगर िो आती भी तो कदव्या ि ररतू दीदी के पास ही रहती। कहने का
मतलब ये कक िो खु द को अकेली रखती ही नही ं थी। कदाकचत उसे अं देशा
था कक मैं उससे कमलने की तथा उससे बात करने की कोकशश करूॅगा।
गुकडया के इस रिै ये से मेरा कदल बहुत दु खी होने लगा था। एक नये सं सार
का ये रूप दे ख कर मैं ़िरा भी खु श नही ं था।

मेरा ज्यादातर समय या तो ररतू दीदी के पास रहने से या किर आकदत्य के


साथ ही गु़िर रहा था। एक कदन अभय चाचा ने कहा कक जब तक उनका
स्वाथथ सही नही ं हो जाता मैं खे तों की तरि का हाल चाल दे ख कलया
करूॅ। चाचा की इस बात से मैं और आकदत्य खे तों पर गए और िहाॅ पर
सब मजदू रों से कमला। खे तों पर काम कर रहे सभी मजदू र मुझे िहाॅ पर
इस तरह दे ख कर बे हद खु श हो गए थे । सबकी ऑखों में खु शी के ऑसू
थे । सब एक ही बात कह रहे थे कक हम अपने कजन माकलक को(मेरे कपता
जी) दे िता की तरह मानते थे उनके जाने के बाद हम सब बे हद दु खी थे ।
अजय कसं ह ने तो हमेशा हम पर ़िुल् ही ककया था। ककन्तु अब िो किर

1086
से खु श हो गए थे । अपने असल माकलक की औलाद को दे ख कर िो खुश
थे और चाहते थे कक अब िै सा कोई बु रा समय न आए।

एक कदन सु बह जब मैं बडी माॅ के कलए चाय नास्ता दे ने उनके कमरे में
गया तो कमरे में बडी माॅ कही ं भी ऩिर न आईं। उनकी तरि का सारा
कहस्सा छान मारा मैने मगर बडी माॅ का कही ं पर भी कोई नामो कनशान
न कमला। इस बात से मैं भचक्का रह गया। मु झे अच्छी तरह याद था कक
जब मैं रात में उनके पास उन्हें खाना ल्कखलाने आया था तब िो अपने
कमरे में ही थी ं। मैने अपने हाॅथ से उन्हें खाना ल्कखलाया था। हर रो़ि की
तरह ही मेरे द्वारा खाना ल्कखलाते समय उनकी ऑखें छलक पडती ं थी। मैं
उन्हें समझाता और कहता कक जो कुछ हुआ उसे भू ल जाइये। मेरे कदल में
उनके कलए कोई भी बु रा किचार नही ं है।

मैं कमरे को बडे ध्यान से दे ख रहा था, इस उम्मीद में कक शायद कोई
ऐसा सु राग़ कमल जाए कजससे मुझे पता सके कक बडी माॅ कहाॅ गई हो
सकती हैं। मगर लाख कसर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न कमला। थक
हार कर मैं कमरे से ही क्ों बल्कि उनके कहस्से से ही बाहर आ गया।
अपनी तरि डायकनं ग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बडी माॅ के बारे
में सब कुछ बताया। मेरी बात सु न कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी
हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कक बडी माॅ
शायद हिे ली छोंड कर कही ं चली गई हैं । उनके जाने की िजह का भी
हमें पता था। इस कलए हमने िैसला ककया कक बडी माॅ की खोज की
जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आकदत्य अभय चाचा बडी माॅ की खोज में
हिे ली से कनकल पडे । अपने साथ कुछ आदकमयों को ले कर हम कनकले ।
अभय चाचा अलग गाडी में कुछ आदकमयों के साथ अलग कदशा में चले
जबकक मैं और आकदत्य दू सरी गाडी में कुछ आदकमयों के साथ दू सरी कदशा
में। हमने आस पास के सभी गाॅिों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा कदन
बडी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कही ं भी बडी माॅ का पता न
चला। रात हो चली थी अतः हम लोग िापस हिे ली आ गए। हिे ली आ कर
हमने सबको बताया कक बडी माॅ का कही ं भी पता नही ं चल सका। इस
बात से सब बे हद कचं कतत ि परे शान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चु की थी, उसे इस बात का पता ही नही ं था। ररतू

1087
दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जिाब न कदया। उनके चे हरे पर कोई
भाि न आया था। बस एकटक शू न्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम
सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दू सरे कदन किर से
बडी माॅ की तलाश शु रू हुई मगर कोई िायदा न हुआ। हमने इस बारे
में पु कलश ककमश्नर से भी बात की और उनसे कहा कक बडी माॅ की
तलाश करें ।

चौथे कदन सु बह हम सब नास्ता करने बै ठे हुए थे । नास्ते के बाद एक ही


काम था और िो था बडी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही
बाहर मुख्य द्वार को ककसी ने बाहर से खटखटाया। कदव्या ने जाकर
दरिा़िा खोला तो बाहर एक आदमी खडा था। उसकी पोशाक से ही लग
रहा था कक िो पोस्टमैन है। दरिाजा खु लते ही उसने कदव्या के हाॅथ में
एक कलिािा कदया और किर चला गया।

कदव्या उससे कलिािा ले कर दरिा़िा बं द ककया और िापस डायकनं ग हाल


में आ गई। हम लोगों के पास आते ही कदव्य ने िो कलिािा अभय चाचा
को पकडा कदया। अभय चाचा ने कलिािे को उलट कर दे खा तो उसमें
मेरा नाम कलखा हुआ था। ये दे ख कर अभय चाचा ने कलिािा मेरी तरि
सरका कदया।

"ये तु म्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरि दे खते हुए
कहा___"दे खो तो क्ा है इसमें?"
"जी अभी दे खता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टे बल से कलिािा
उठा कलया और किर उसे एक तरि से काट कर खोलने लगा। कलिािे में
एक तरि मेरा नाम ि पता कलखा हुआ था तथा दू सरी तरि भे जने िाले
के नाम में "नारायर् रस्तोगी" तथा उसका पता कलखा हुआ था।

कलिािे के अं दर तह ककया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे कनकाला और


किर उस तह ककये हुए काग़ज को खोल कर दे खा। काग़ज में पू रे पे ज पर
ककसी की हैण्डराइकटं ग से कलखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला
िाक् पढ कर ही मैं चौंका। मैने कलिािे को उलट कर भे जने िाले का
नाम पु नः पढा। मु झे समझ न आया कक ये नारायर् रस्तोगी कौन है और
इसने मेरे नाम ऐसा कोई खत क्ों कलखा है? जबकक मेरी समझ में इस
नाम के ककसी भी ब्यल्कक्त से मेरा दू र दू र तक कोई िास्ता ही नही ं था।
मुझे हैरान ि चौंकते हुए दे ख अभय चाचा ने पू छ ही कलया कक क्ा बात
है? मैने उन्हें बताया कलिािा भे जने िाले को तो मैं जानता ही नही ं हूॅ

1088
किर इसने मेरे नाम पर ये कलिािा क्ों भे जा हो सकता हैं? अभय चाचा
ने पू छा कक खत में क्ा कलखा है उसने ? उनके पू छने पर मैंने खत में
कलखे मजमून को सबको सु नाते हुए पढने लगा। खत में कलखा मजमून कुछ
इस प्रकार था।

मेरे सबसे अच्छे बे टे राज!


सबसे पहले तो यही कहूॅगी कक तू िाकई में एक दे िता जैसे इं सान का
ने ककदल बे टा है और मुझे इस बात की खु शी भी है कक तू अच्छे सं स्कारों
िाला एक सच्चा इं सान है। ईश्वर करे तू इसी तरह ने ककदल बना रहे और
सबके कलए प्यार ि सम्मान रखे । कजस िक्त तु म मेरे द्वारा कलखे खत के
इस मजमून को पढ रहे होगे उस िक्त मैं इस हिे ली से बहुत दू र जा चु की
होऊगी। मु झे खोजने की कोकशश मत करना बे टे क्ोंकक अब मेरे अं दर
इतनी कहम्मत ि साहस नही ं रहा कक मैं तु म सबके बीच सामान्य भाि से
रह सकूॅ। जीिन में कजसके कलए सबके साथ बु रा ककया उसने खु द कभी
मेरी कद्र नही ं की। मेरी बे कटयाॅ मुझे दे खना भी गिाॅरा नही ं करती हैं,
और करे भी क्ों? खै र, मुझे उनसे कोई कशकायत नही ं है बे टे। कदल से
बस यही दु िा ि कामना है कक िो जीिन में सदा सु खी रहें।
मेरा जीिन पापों से भरा पडा है। मैने ऐसे ऐसे कमग ककये हैं कजनके बारे
में सोच कर ही अब खु द से घृर्ा होती है। मुझमें अब इतनी कहम्मत नही ं
है कक मैं ककसी को अपना मु ह भी कदखा सकूॅ। आत्मिानी, शमग ि
अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कक इसके साथ अब एक पल भी जीना
मुल्किल लग रहा है। बार बार ़िहन में ये किचार आता है कक खु दखु शी
कर लू ॅ और इस पापी जीिन को खत्म कर दू ॅ मगर मैं ऐसा भी नही ं
करना चाहती। क्ोंकक जीिन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नही ं
करे गा। मुझे इस सबका प्रयाकश्चत करना होगा बे टे, बग़ैर प्रयाकश्चत के
भगिान भी मुझे अपने पास िटकने नही ं दे गा। इस कलए बहुत सोच समझ
कर मैने ये िैसला ककया है कक मैं तु म सबसे कही ं दू र चली जाऊ और
अपने पापों का प्रयाकश्चत करूॅ। तु म सबके बीच रह कर मैं ठीक से
प्रयाकश्चत नही ं कर सकती थी।
़िमीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख कदये हैं
बे टा। िकील को मैने सब कुछ बता भी कदया है और समझा भी कदया है।
अब इस सारी ़िमीन जायदाद के कसिग दो ही कहस्से होंगे। पहला तु म्हारा
और दू सरा अभय का। मैने अपने कहस्से का सबकुछ तु म्हारे नाम कर कदया
है। कुछ कहस्सा अभय के बे टे के नाम भी कर कदया है। इसे ले ने से इं कार
मत करना बे टे, बस ये समझ ले ना कक एक माॅ ने अपने बे टे को कदया
है। मुझे पता है कक तु म्हारे अं दर मेरे प्रकत िै सा ही आदर सम्मान है जैसा

1089
कक तु म्हारा अपनी माॅ के प्रकत है। खै र, इसी आलमारी में िो कागजात
भी हैं जो तु म्हारे दादा दादी से सं बंकधत हैं। उन्हें तु म दे ख ले ना और अपने
दादा दादी के बारे में जान ले ना।
अं त में बस यही कहूॅगी बे टे कक सबका खयाल रखना। अब तु म ही इस
खानदान के असली कतागधताग हो। मुझे यकीन है कक तु म अपनी सू झ बू झ
ि समझदारी से पररिार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा
खु श रखोगे। अपनी माॅ का किशे ष खयाल रखना बे टे, उस अभाकगन ने
बहुत दु ख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस दे िी ने
कभी अपने मन में हमारे प्रकत बु रा नही ं सोचा। मैं ककसी से अपने ककये की
माफ़ी नही ं माग सकती क्ोंकक मु झे खु द पता है कक मेरा अपराध क्षमा के
योग्य नही ं है।
मेरी बे कटयों से कहना कक उनकी माॅ ने कभी भी कदल से नही ं चाहा कक
उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे कदल में उनके कलए
बे पनाह प्यार ि दु िाएॅ ही रहें गी। मु झे तलाश करने की कोकशश मत
करना। अब उस घर में मेरे िापस आने की कोई िजह नही ं है और मैं
उस जगह अब आना भी नही ं चाहती। मैं ने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम
चु न कलया है बे टे। इस कलए मुझे मेरे हाल पर छोंड दो। यही मेरी तु मसे
किनती है। ईश्वर तु म्हें सदा सु खी रखे तथा हर कदन हर पल नई खु शी ि
नई कामयाबी अता करे ।
अच्छा अब अलकिदा बे टे।
तु म्हारी बडी माॅ!
प्रकतमा।

खत के इस मजमून को पढ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी।


खत पढते समय ही पता चला कक ये खत तो दरअसल बडी माॅ का ही
था। कजसे उन्होंने ि़िी नाम ि पते से भेजा था मुझे। कािी दे र तक हम
सब ककसी गहन सोच में डूबे बै ठे रहे।

"बडी भाभी के इस खत से ।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को


चीरते हुए कहा____"ये बात ़िाकहर होती है कक अब हम चाह कर भी
उन्हें तलाश नही ं कर सकते । क्ोंकक ये तो उन्हें भी पता ही होगा कक हम
उन्हें खोजने की कोकशश करें गे। इस कलए अब उनकी पू री कोकशश यही
रहेगी कक हम उन्हें ककसी भी सू रत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये
कक सं भि है कक उन्होंने खु द को ककसी ऐसी जगह छु पा कलया हो कजस
जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

1090
"सच कहा आपने ।" मैने कहा___"खत में कलखी उनकी बातें यही दशागती
हैं। ककन्तु सिाल ये है कक अगर उन्होंने खत के माध्यम से ऐसा कहा है तो
क्ा हमें सच में उन्हें नही ं खोजना चाकहए?"

"हकगग़ि नही ं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी


ऐसा नही ं चाह सकता कक बडी भाभी हमसे दू र कही ं अज्ञात जगह पर रहें।
बल्कि हम सब यही चाहते हैं कक सब कुछ भु ला कर हम सब एक साथ
नये कसरे से जीिन की शु रुआत करें । हिे ली को छोंड कर चले जाना ये
उनकी मानकसकता की बात थी। उन्हें लगता है कक उन्होंने हम सबके साथ
बहुत बु रा ककया है इस कलए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़
नही ं है। सच तो ये है कक हिे ली छोंड कर चले जाने की िजह उनका
अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का
किचार आया है ।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाि से


कहा___"उनका इस तरह हिे ली से चले जाना कबलकुल भी अच्छी बात
नही ं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पू िगक उन्हें िापस यहाॅ लाओ। हम
सब उन्हें िै सा ही आदर सम्मान दें गे जैसा उन्हें कमलना चाकहए। उन्हें िापस
यहाॅ पर लाना ़िरूरी है िरना कल को यही गाॅि िाले हमारे बारे में
तरह तरह की बातें बनाना शु रू कर दें गे। िो कहेंगे कक अपना हक़ कमलते
ही हमने उन्हें हिे ली से िै से ही बे दखल कर कदया जैसे कभी उन्होंने हमें
ककया था। आकखर उनमें और हम में िक़ग ही क्ा रह गया? इस कलए
सारे काम को दरककनार करके कसिग उन्हें खोज कर यहाॅ िापस लाने का
का ही काम करो।"

"आप किक्र मत कीकजए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एडी से


चोंटी तक का ़िोर लगा दें गे बडी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें
़िरूर िापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करें गे।"

"ठीक है किर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरि दे खा___"बे टा तू


तब तक यही ं रहेगा जब तक कक तु म्हारी बडी माॅ िापस इस हिे ली पर
नही ं आ जाती ं। मैं जानती हूॅ कक तु म दोनो की पढाई का नु कसान होगा
ककन्तु इसके बािजूद तु झे अभय के साथ कमल कर अपनी बडी माॅ की
तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी िै सा ही होगा। मैं

1091
जगदीश अं कल को िोन करके बता दू ॅगा कक मैं और गुकडया अभी िहाॅ
नही ं आ सकते ।"
"पर मुझे अपनी पढाई का नु कसान नही ं करना है माॅ।" सहसा तभी
गुकडया(कनधी) कह उठी___"बडी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो
करना नही ं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नही ं है। पिन
भइया को भी कंपनी में काम करने के कलए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा
दीदी से बात की है िो मेरे साथ मुम्बई जाने को तै यार हैं। इस कलए मैं
कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुकडया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरि हैरानी से दे खने


लगे थे । ककसी और का तो मुझे नही ं पता ककन्तु उसकी इस बात से मैं
़िरूर स्तब्ध रह गया था और किर एकाएक ही मेरे कदल में बडा ते ़ि ददग
हुआ। अं दर एक हूक सी उठी कजसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में
ऑसु ओ ं को तै रा कदया। मैं खु द को और अपने अं दर अचानक ही उत्पन्न हो
चु के भीषर् जज़्बातों को बडी मुल्किल से सम्हाला। अपने ऑसु ओ ं को
ऑखों में ही जज़्ब कर कलया मैने।

"ये तू क्ा कह रही है गुकडया?" तभी माॅ की कठोर आिा़ि


गूॅजी___"तू ने मुझे बताए कबना ही ये िैंसला ले कलया कक तु झे मुम्बई
जाना है। मु झे तु झसे ऐसी उम्मीद नही ं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही िाली थी माॅ।" कनधी ने ऩिरें चु राते
हुए ककन्तु मासू म भाि से कहा___"और िै से भी इसमे इतना सोचने की
क्ा बात है? बडी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नही ं है, बल्कि ये
काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दू सरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का
िायदा भी क्ा है, बल्कि नु कसान ही है। आज एक महीना होने को है
स्कूल से छु ट्टी कलए हुए। इस कलए अब मैं नही ं चाहती कक मेरी पढाई का
और भी ज्यादा नु कसान हो।"

"बात तो तु म्हारी सही है गुकडया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही


माॅ(गौरी) की तरि दे खा___"भाभी अब जो होना था िो तो हो ही चु का
है। आज महीना होने को आया उस सबको गु़िरे हुए। धीरे धीरे आगे भी
सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बडी भाभी को खोजने की तो िो
मैं राज और आकदत्य करें गे ही। गुकडया के यहाॅ रुकने से उसकी पढाई
का नु कसान ही है। इस कलए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने
दीकजए। आप तो जानती ही हैं कक मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले

1092
ही हैं। िो आप लोगों के न रहने से िहाॅ पर कबलकुल भी अच्छा महसू स
नही ं कर रहे होंगे। इस कलए गुकडया पिन और आशा जब उनके पास
पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा िहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तु रंत कुछ नही ं कहा। ककन्तु िो


अजीब भाि से कनधी को दे खती ़िरूर रही ं। ऐसी ही कुछ और बातों के
बाद यही िैंसला हुआ कक कनधी कल पिन ि आशा के साथ मुम्बई चली
जाएगी। इस बीच सिाल ये भी उठा कक पिन ि आशा के चले जाने से
रुल्कक्मर्ी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सिाल का हल ये कनकाला
गया कक पिन और आशा के जाने के बाद रुल्कक्मर्ी यहाॅ हिे ली में हमारे
साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आकदत्य ि अभय चाचा बडी माॅ की तलाश
में हिे ली से कनकल पडे । अभय चाचा का स्वाथथ पहले से बे हतर था।
हलाॅकक मैंने उन्हें अभी चलना किरने से मना ककया था ककन्तु िो नही ं
मान रहे थे । इस कलए हमने भी ज्यादा किर कुछ नही ं कहा। दू सरे कदन
कनधी पिन ि आशा के साथ मुम्बई के कलए कनकल गई। गुनगुन रे लिे
स्टे शन उनको छोंडने के कलए मैं और आकदत्य गए थे । इस बीच मेरा कदलो
कदमाग़ बे हद दु खी ि उदास था। गुकडया के बतागि ने मुझे इतनी पीडा
पहुॅचाई थी कक इतनी पीडा अब तक ककसी भी ची़ि से न हुई थी मुझे।
मगर कबना कोई कशकिा ककये मैं खामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस
बात से चककत था कक मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो
महीने से मेरी तरि दे खा तक नही ं था बात करने की तो बात ही दू र थी।

टर े न में तीनो को बे ठा कर मैं और आकदत्य िापस हल्दीपु र लौट आए। मेरा


मन बे हद दु खी था। आकदत्य ने मुझसे पू छा भी कक क्ा बात है मगर मैने
उसे ज्यादा कुछ नही ं बताया बस यही कहा कक बडी माॅ और गु कडया के
जाने की िजह से कुछ अच्छा नही ं लग रहा है। एक हप्ते पहले आकदत्य
बडा खु श था जब ररतू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके
दोनो हाॅथों में ढे र सारी राल्कखयाॅ बाॅधी थी दीदी ने । कजसे दे ख कर
आकदत्य खु द को रोने से रोंक नही ं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ
आकद सब लोग पहले तो चौंके किर जब ररतू दीदी ने सबको आकदत्य की
बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दु खी हो गए थे । सबने आकदत्य को
इस बात के कलए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह कदया कक आज से
िो मेरा बडा बे टा है और इस घर का सदस्य है। आकदत्य ये सु न कर
खु शी से रो पडा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गु कडया ने भी

1093
मुझे राखी बाॅधा था ककन्तु उसका बतागि िही था। उसके इस रूखे बतागि
से सब चककत भी थे । माॅ ने तो पूछ भी कलया था कक ये सब क्ा है
मगर उसने बडी सिाई से बात को टाल कदया था।

हिे ली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकक आकदत्य अभय
चाचा के पास ही बै ठ गया था। सारा कदन मेरा मन दु खी ि उदास रहा।
जब ककसी तरह भी सु कून न कमला तो उठ कर ररतू दीदी के पास चला
गया। मु झे अपने पास आया दे ख कर ररतू दीदी मुस्कुरा उठी ं। उनको भी
पता चल गया था गुकडया िापस मुम्बई चली गई है। मेरे चे हरे के भाि दे ख
कर ही िो समझ गईं कक मैं गकडया के जाने की िजह से उदास हूॅ।

मुझे यू ॅ मायूस ि उदास दे ख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें िैला


दी। मैं उनकी िैली हुई बाहों के दरकमयां हिे से अपना कसर रख कदया।
मेरे कसर रखते ही उन्होंने बडे स्नेह भाि से मेरे कसर पर हाॅथ िेरना शु रू
कर कदया। अभी मैं ररतू दीदी की बाहों के बीच छु पका ही था कक तभी
नै ना बु आ भी आ गईं और बे ड पर मेरे पास ही बै ठ गईं।

"क्ा बात है मेरा बे टा उदास है?" नै ना बु आ ने मेरे कसर के बालों पर


उगकलयाॅ िेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्ा होगा राज?
अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा ले ना होता है।"

"सु लझाने के कलए मौका भी तो दे ना चाकहए न बु आ।" मैंने दीदी की बाहों


से उठते हुए कहा___"खु द ही ककसी बात का िैंसला ले ले ना कहाॅ की
समझदारी है? उसे ़िरा भी एहसास नही ं है उसके इस रिै ये से मुझ पर
आज दो महीने से क्ा गु़िर रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" ररतू दीदी ने कहा___"िो तेरी लाडली
है। क़िद्दी भी है, इस कलए िो चाहती होगी कक पहल तू करे ।"
"ककस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाि से उनकी तरि दे खा।
"मुझे लगता है कक ये बात तू खु द समझता है।" ररतू दीदी ने एकटक मेरी
तरि दे खते हुए कहा___"इस कलए पू छने का तो कोई मतलब ही नही ं
है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरि खामोशी से दे खता रहा। नै ना बु आ को


समझ न आया कक ककस बारे में ररतू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खु द

1094
भी हैरान था कक आकखर ररतू दीदी के ये कहने का क्ा मतलब था? मैने
ररतू दीदी की तरि दे खा तो उनके होठों पर िीकी सी मुस्कान उभर आई
थी। किर जाने क्ा सोच कर उनके मुख से कनकलता चला गया।

कौन समझाए हमें के आकखर ये बला क्ा है।


ददग में भी मुस्कुराऊ मैं, तो किर स़िा क्ा है।।

हम कजस बात को लबों से कह नही ं सकते ,


कोई उस बात को न समझे, इससे बु रा क्ा है।।

रात कदन कुछ भी अच्छा नही ं लगता हमको,


इलाही खै र हो, खु दा जाने ये मा़िरा क्ा है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी कतश्नगी न जाए,


इस दु कनयाॅ में इससे बढ कर बद् दु िा क्ा है।।

अपनी तो बस एक ही आऱिू है के ककसी रो़ि,


िो खु द आ कर कहे के बता तेरी ऱिा क्ा है।।

ररतू दीदी के मुख से कनकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़़िल को सु न कर मैं


और नै ना बु आ हैरान रह गए। कदलो कदमाग़ में इक हलचल सी तो हुई
ककन्तु समझ में न आया कक ररतू दीदी ने इस ग़़िल के माध्यम से क्ा
कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दू सरे कदन नास्ता पानी करने
के बाद मैं और आकदत्य अभय चाचा के साथ किर से बडी माॅ की खोज
में कनकल गए। ऐसे ही हर कदन होता रहा। ककन्तु कही ं भी बडी माॅ के
बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बे हद कचं कतत

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