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लेख़क- आकाश
साना ने आज अपनी उम्र की 19वीीं सीढ़ी पर कदम रख ददए थे। उसका सालगिरह मनाने का अींदाज नायाब था।
और कययूँ ना हो, वो शहर के सबसे नामी िारामी बबज़नेसमैन लाला हरदयाल की एकलौती बेटी जो थी। नायाब
बेटी के नायाब कारनामे।
उसकी हर चीज नायाब थी। लींबी, छरहरे बदन की मालककन, 5’6” की लींबाई, बदन में सही जिह सही िोलाई
और उभार, नाक सड
ु ौल, रीं ि िोरा, ककसी भी मदद के सपनों की रानी। उसने अपने पैसे, जवानी और बदन का
भरपरय इश्तेमाल करना सीखा था, भरपरय जज़ींदिी का लत्फु ़ उठाना सीखा था। लाला ने भी उसे भरपरय जजींदिी जीने
की छयट दे रखी थी। इसकी वजह थी साना की माूँ की उसके बचपन में ही मौत।
माूँ के प्यार की कमी लाला जी ने अपने पैसे और साना को अपनी जज़ींदिी भरपरय जीने की आजादी दे कर परय ी
करनी चाही थी। नतीजा यह हुआ कक साना को प्यार तो नसीब नहीीं हुआ पर वो हवस को प्यार समझ बैठी और
उसकी जज़ींदिी एक हवस की भखय ममटाने का ही सबब बन ियी। पर हवस कभी परय ी हुई है ?
आज लाला जी के फामदहाउस में साना की 19वीीं सालगिरह धयमधाम से मनाई जा रही है । शराब और शबाब से
भरपरय ।
साना डान्स फ्लोर से अलि बहुत ही पतली और झीनी सी ड्रेस पहने, हाथ में जाम मलए अपने दोनों बिलों में
अपने सबसे करीबी दोस्तों के साथ बैठी थी। उसके एक हाथ में शैंपेन का जाम था। दस
य रा हाथ अपने बिल में
बैठे दोस्त के पैंट के उभार पर था, और उसके दोस्त के हाथ साना के बदन से खेल रहे थे। दोनों एक दस
य रे में
खोए थे। साना दनु नयाीं से बेखबर, शराब और शबाब की मस्ती में डयबी अपने आपको अपने दोनों दोस्तों के हाथ
में छोड़ ददया था। शराब की मस्ती, हवस की प्यास और उम्र के तकाजे ने अब तक वहाूँ मौजयद सबके कपड़े
उतार ददए थे। डान्स फ्लोर पर सभी नींिे थे। एक दस
य रे को सहलाते, गचपकाते, नोचते, चम
य ते और कमर दहलाते
एक दस
य रे में समा जाने को बेताब।
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मससकाररयाीं, थपथपाहट, चयमने की चटखारों, अया… उईईईई… हाई… की धीमी पर मदहोश आवाज़ें ननकाल रहे थे।
उनके हाथों की उीं िमलयाीं चगय चयों की िोलाई, चत
य की िहराई, बदन के भरपरय िोश्त का जायजा ले रही थीीं। होंठ
एक दस
य रे के होंठों से गचपके, एक दस
य रे को परय ी तरह खा जाने को बेताब थे। कुछ जोड़ों से अब और रहा नहीीं
िया, उनके सब्र का बाूँध फयट पड़ा था।
लड़ककयों ने अपनी टाूँिें फैला दी। अपने हाथों से अपनी िीली, रसीली चयत की फाूँकें अलि कर दी और डान्स
फ्लोर पर झम
य ती हुई लेट ियीीं। उनके सागथयों ने अपने तन्नाए, फनफनाते लौड़ों को सहलाते हुए अपने
सहभागियों के आमींत्रण को कबल य ककया और उनकी टाूँिों के बीच आ िये। और कफर फ्लोर पर चद ु ाई का आलम
शरू
ु हो िया।
अब तक फ्लोर पर जोड़े खड़े थे। अब जोड़े फ्लोर पर पड़े थे। कमर खड़े-खड़े भी दहल रही थी और कमर अब पड़े
पड़े भी दहल रही थी। पर अब साथ में लौड़ों और चयत का भी खेल बराबर चल रहा था। परय ा हाल आआह्ह…
उऊह्ह… हाईईईई… हाूँआ…
ूँ उईईई… की धीमी मससकाररयों और चीखों से िूँज
य रहा था। हवस का नींिा नाच अपनी
बल
ु दीं दयों पर था।
इधर साना के कपड़े भी उतर चुके थे। अब तक वो अपने दोनों दोस्तों की िोद में बबककुल नींिी पड़ी थी। उसकी
आूँखें बींद थीीं। उसके दोस्तों के हाथ साना के बदन का भरपरय मजा ले रहे थे। एक साना की मल
ु ायम, िीली,
रसीली चत
य का मजा चाट-चाटकर ले रहा था। दस
य रा साना के होंठों की मस्ती, उसकी जीभ की मीठी और िीली
स्वाद का मजा उन्हें चयस-चयसकर ले रहा था। उसकी हथेमलया साना की 32बी साइज वाली चयगचयों से खेल रही
थीीं, उन्हें दबा रही थी, उनकी घडींु डयों को सहला रही थी। जजतना ज्यादा साना की चगय चयाीं और होंठ चस
य े जाते।
उतना ही मस्ती से उसकी चयत फड़क उठती और उसकी चयत भी उतनी ही िीली होती जाती, और चयत चाटने
वाले दोस्त का मूँह
ु भर उठता साना की चयत रस से।
तीनों मस्ती की सीदढ़यों पर आिे और आिे बढ़ते जा रहे थे। साना कराह रही थी, मससकाररयाीं ले रही थी।
उसकी आूँखें बींद थी। उसके दोनों दोस्तों ने उसे उठाया और सामने पड़े बड़े से सोफे पर लीटा ददया और अपनी
अपनी पोजीशन बदल ली। चयत चाटनेवाला अब उसकी चयगचयों से खेल रहा था और चगय चयों से खेलनेवाला अब
उसकी चत
य पर टयट पड़ा था।
उसकी चत
य की तरफवाले लड़के ने अपना सर साना की चत
य से हटाया, उसकी ओर दे खा और कहा- “हाीं साना,
तेरी चयत से तो नदी बह रही है यार। चल तय भी कया नाम लेिी। ले आज तेरा बथद-डे प्रेज़ेंट मैं ही दे ता हयूँ…”
साना का परय ा बदन मसहर उठा, काींप उठा- “हाूँ… हाूँन्ह्ह्ह्ह… बस ऐसे ही लिाओ धकके, रूकना मत। आआअह्ह्ह
हाीं और जोर… और जोर से… अबे माूँ के लौड़े और जोर लिा ना… साले कुछ खाया पपया नहीीं कया? मार… मार
मादचोद मार ना धकके… साला चद
ु ाई कर रहा है कक चत
य को लण्ड से खज
ु ा रहा है । मार मार… मादचोद जब
लण्ड में दम नहीीं तो कफर मझ
ु े चोदने की दहम्मत कैसे हुई? अबे िान्डय और जोर लिा… अयाया… अयाया… और
जोर से…” साना कुछ भी बके जा रही थी।
उसकी बातें सन
ु -सन
ु कर लड़का परय े जोश में धकके लिाता-लिाता खद
ु तो बरु ी तरह झड़ िया साना की चत
य में ।
पर साना अभी भी फाररि नहीीं हुई थी। उसकी चयत अभी भी िमद थी। आि बझ ु ने का नाम नहीीं था। दस
य रे लड़के
ने भी अपने लौड़े की करामात दीखाई। पर साना की चतय के सामने उसके लौड़े ने भी हार मान ली।
सब जानते थे वहाूँ कक साना को चोदना और उसे झड़ाना उनमें से ककसी के वश की बात नहीीं थी। पर मस़द
साना जानती थी कक बस मस़द एक ही लण्ड था जजसकी मार से साना की चयत में हलचल मच जाती थी, उसकी
आि ठीं डी हो जाती थी। पर उस लण्ड का मामलक अभी तक वहाूँ नहीीं आया था। साना अपनी चत
य फैलाए,
मससकाररयाीं लेते उसका बेसब्री से इींतज
े ार कर रही थी।
साना ने आूँखें खोलीीं तो दे खा तो सामने सोफे के करीब, उसके बबककुल सर के पास लाला हरदयाल खड़े थे।
उसके प्यारे पापा…
लाला जी आूँखें फाड़े अपनी बेटी के सर के पास खड़े उसकी ओर ताक रहे थे। अपनी परय ी 5’11” की लींबाई से
झाूँकते हुए। उन्हें है रानी तो हुई, िस्
ु सा भी आया। पर वो अपनी बेटी को अच्छी तरह जानते थे, और उन दोनों
के बीच का ररश्ता भी बाप-बेटी का कम और करीबी दोस्त का ज्यादा था। उनकी उम्र भी कोई ज्यादा नहीीं 48
साल की ही थी और ख्यालात भी काफी खुले और जमाने के साथ थे। उन्होंने समझदारी से काम लेने का फैसला
ककया। िस्
ु से से साना और भी भड़क उठती और बात बबिड़ने का खतरा था। साना उनका िस्
ु सा बदादश्त नहीीं
कर सकती। और साना के इस हद तक गिरने में लाला जी का भी कुछ कम हाथ नहीीं था। उनकी छयट का ही
यह नतीजा था। उन्होंने िस्
ु से को पी डाला।
हरदयाल अपनी बेटी के बिल में चुपचाप उसकी ओर ताकते हुए बैठ िये, कुछ कहा नहीीं। अपने घट
ु नों पर
अपने हाथ रखे अपना चेहरा हथेमलयों से छुपाए हुए बैठे थे।
साना ने अपनी बदहाली दे खी। वो समझ ियी कक उसके प्यारे पापा को शायद बरु ा लिा था। वो अपने पापा से
बहुत प्यार करती थी। सारी दनु नयाीं में वोही तो उसके अपने थे। दोस्त थे उसके पर सच्ची दोस्ती ककसी से नहीीं
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थी। सभी मस़द मौज मस्ती के ही दोस्त थे। अपने ददल की बात मस़द पापा से ही कर सकती थी। साना वैसे ही
लेटी थी, शैंपेन का नशा अभी भी उसपर था।
कफर भी अपनी लड़खड़ाती जुबान से उसने कहा- “पापा, आप खामोश कययूँ हैं? कुछ बोलो ना। आज मेरे बथद-डे है ,
पर अभी तक मझ
ु े पवश भी नहीीं ककया। आप बहुत िींदे हो… बहुत िींदे हो…”
हरदयाल अपनी बेटी की मासमय मयत, उसके भोलेपन और उसकी इस हालत को दे खकर फयट पड़े। उनकी आूँखों से
आूँसओ ु ीं की धार फयट पड़ी। उन्होंने अपना सर उसकी तरफ घम
ु ाते हुए उसके नींिे बदन, उसके अपने दोस्तों से
रौंदे हुए बदन को दे खा और कफर अपना सर नीचे कर मलया। कुछ दे र बाद सर उठाया और कहा- “बेटी।, तय
अपने बाप को और ककतना तड़पाएिी? और ककतना दु
य ुख दे िी? कया तझ
ु े इस हालत में दे खकर मैं तामलयाीं
बजाऊूँ, खुश होउूँ ? सारे शहर में दििोरा पपटवाऊूँ? लोिों की छोड़ो… मझ
ु े दस
य रों से कुछ लेना दे ना नहीीं। पर मेरे
ददल में, मेरे ददमाि में तेरी हालात पर जो हथौड़े चल रहे हैं, उसकी चोट को मैं कैसे बदादश्त करूूँ बेटी। बोल ना
साना, बोल ना?” हरदयाल बच्चों की तरह फयट-फयट कर रो रहे थे।
साना का नशा अपने बाप की हालत दे खकर काफयर हो चुका था। वो अपने पापा से मलपट ियी। उनका चेहरा
अपनी हथेमलयों से थाम मलया। उनके आूँसय पोंछते हुए उनसे कहा- “पापा, आइ आम ररयली वेरी सारी। मैं समझ
सकती हयूँ आप पर कया बीत रही होिी। पर पापा आपने मझ ु े पहली बार तो नींिी नहीीं दे खा है ना… कफर आज
कया हो िया?” साना ने बड़े भोलेपन से जवाब ददया।
लालाजी चौंक पड़े उसकी इस बात पर। यह सच था कक उनके और उनकी बेटी के बीच अनाचाररक ररश्ता था।
पर वो उनका जाती मामला था। वो एक ऐसा ररश्ता था जो मस़द उन दोनों के बीच का था। सारी दनु नयाीं में
नम
ु ाइश के मलए नहीीं।
लालाजी बोले- “बेटी तय ककतनी भोली है । ककतनी नासमझ है अभी भी। यह ररश्ते कया दनु नयाीं को ददखाने के होते
हैं? कया हमारे तम्
ु हारे बीच के ररश्ते में मस़द हवस और शरीर की भख
य है । प्यार नहीीं? कया सारी दनु नयाीं के
सामने हम दोनों नींिे हो जायें। कया यही हवस है ? कया सेकस पजललक में नम
ु ाइश की चीज है? तम्
ु हें मैंने अपने
दोस्तों से सेकस करने से कभी रोका है? ककसी भी मजे के मलए तझ
ु े मना ककया है ? पर इसका यह तो मतलब
नहीीं है ना बेटी कक तय सरे -आम नींिी होकर हमारी इज़्जज़त नीलाम कर दे ? सेकस अपनी जिह है बेटी। सेकस
कोई बरु ी चीज नहीीं पर उसका इस तरह भोन्दे पन से नम
ु ाइश कया अच्छी बात है ? हाीं बेटी, हमने तझ
ु े ककतनी
बार नींिी ककया है । ककतनी बार तेरे साथ सेकस ककया है और जब तक तय चाहे िी आिे भी करूूँिा। पर कया तय
यह चाहती है कक हम अपना इतना प्यारा समय, इतने अपनेपन से भरपरय लम्हे, उन सबसे कीमती पलों को
सरे आम नीलाम कर दीं ?
य बाजार में तम्
ु हें नींिी कर सबके सामने चोद दूँ ।य बोलो-बोलो, बोलो ना साना…” इतना
कहते हुए हरदयाल चप
ु हो िये, पर आवेश के मारे हाूँफ रहे थे। भावनाओीं (सेंदटमें ट, जज़्जबात) का तफ
य ान था
उनके अींदर।
साना सकते में थी। उससे कुछ बोलते नहीीं बन रहा था।
थोड़ी दे र तक दोनों एक दस
य रे को दे खते रहे । दोनों की आूँखों में एक दस
य रे के मलए प्यार, लिाव और अपनापन
साफ झलक रहा था। पर हरदयाल की आूँखों में दख
ु और साना की आूँखों में पछतावे की भी झलक थी।
साना आिे बढ़ी। अपने बाप के सीने से मलपट ियी और फफक-फफक के रोते हुए कहा- “उफफ़्… पापा, आप
इस कदर मझु से प्यार करते हो? हमारे ररश्ते की इतनी कद्र है आपको। मैंने आज तक इतनी िहराई से इसे नहीीं
दे खा। मैंने आज समझा पापा। ररश्तों की िहराई और उन्हें अपने में महफयज रखने की कीमत कया है ? पापा मैं
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समझ सकती हयूँ कक मेरे आज के रवैइय्ये से आपको ककतनी चोट पहुूँची है । उफफ़्… आज आपके एक-एक
लफ़्ज़ों ने मेरे ददल की िहराई में चोट मारी है । मैं अपने ररश्तों की अहममयत आज जान ियी। आप यकीन करो
मेरी जान से भी प्यारे पापा कक इस ररश्ते की धड़कन मेरे ददल की धड़कनों से भी ज़्जयादा प्यारी हैं मझ
ु े। मैं मर
जाऊूँिी। मेरे ददल की धड़कन रुक जाएिी। पर हमारे ररश्ते हमेशा धड़कते रहें िे। धक-धक-धक…”
और कफर साना अपने घट ु नों पर बैठते हुए अपने हाथ जोड़ती हुई कहती है - “पापा बस मस़द एक बार। बस एक
बार मझ
ु े माफ कर दो। मस़द एक बार… दब ु ारा ऐसी िलती नहीीं होिी। आपकी माफी मेरे मलए बथद-डे के तोहफे से
भी बढ़ के होिी…”
हरदयाल अपनी बेटी को उठाता है, िले से लिाता है । अभी भी उसकी आूँखों में आूँसय हैं। पर खुशी और प्यार से
सराबोर हैं उसके आूँस।य साना के माथे को चयमता हुआ कहता है - “बेटी, माफी कैसी? तम्
ु हें समझ में आ ियी बस
यही मेरे मलए बड़ी बात है । चलो अब जरा मश्ु कुरा दो मेरी बेटी। मैं तरस िया आज तम्ु हारी मश्ु कुराहट के मलए।
कम आन साना। गिव मी यव
ु र स्पाकदमलींि स्माइल। आइ लव दे म…”
साना अपने होंठों पर शरारत भरी मश्ु कुराहट लाती है और कफर हरदयाल के सीने पर प्यार से मक
ु के लिाते हुए
बोल उठती है - “ह्म्म्म… पापा आप मस़द मेरी मश्ु कुराहट से प्यार करते हो?”
“हाूँ… हाूँ… हाूँ…” हरदयाल उसकी बात सन ु कर ठहाका लिाते हुए कहता है- “दै टस लाइक माइ स्वीट बेबी। यय नो
वेल साना। इट्स यय हयूँ ओन्स यव ु र स्माइल। आइ लव द ओनर आफ यव ु र स्माइकस मोर दै न एनीगथींि एकस इन
माइ लाइफ। अपनी जान से भी ज्यादा…”
“पापा, आिे का काम इस पजललक हाल में नहीीं। अपने प्राइवेट बेडरूम में…” साना के चेहरे पर शरारती मश्ु कान
अभी भी कायम थी।
हरदयाल कफर से ठहाका लिाता है । साना को अपनी बाहों में लेता हुआ अपनी िोद में उठा लेता है और बेडरूम
की ओर यह कहता हुआ चल पड़ता है - “ह्म्म्म्म… दै टस लाइक माइ बेबी, माइ ट्रू बेबी… माइ ट्रू लव… लेट अस
सेलीब्रेट यव
ु र बथद-डे…”
अपने पापा की िोद में आते ही साना मसहर उठी। अपने पापा के सीने पर अपना सर रख ददया और अपनी बाहें
उनके िले से लिाकर उनसे बरु ी तरह गचपक ियी। अपना चेहरा ऊपर की ओर उठाया तो पापा अपनी बेटी की
चाहत समझ िये। उन्होंने अपना सर नीचे ककया और अपनी बेटी के िमद, नमद और रसीले होंठों पर अपने होंठ
रख ददए और दोनों एक दस
य रे के होंठ चयसने लिे, मानो खा जाएूँिे। और इसी हालत में होंठ चयसते, जीभ चस
य ते
बेडरूम की ओर बढ़ चले।
यह सच था कक साना और हरदयाल दोनों की जजींदिी में सेकस की कोई कमी नहीीं थी। साना को दोस्तों की कमी
नहीीं थी। और हरदयाल को लड़ककयों की कमी नहीीं थी। पर कफर भी जब दोनों एक दस
य रे से ममलते, तो ऐसा
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लिता जैसे पहली बार ककसी के साथ ममले हों। एक दस
य रे पर भख
य े शेर और शेरनी की तरह टयट पड़ते। पािलपन
की हद तक एक दस
य रे को प्यार करते।
और आज तो सारी हदें पार हो चुकी थीीं। साना दो-दो लण्ड अपनी चयत में ले चुकी थी। पर अभी भी वो तड़प
रही थी, उसकी चयत अभी भी अपने पापा के लण्ड की भख
य ी थी। और हरदयाल भी पािल हो उठा था अपनी बेटी
को इस हालत में नींिी दे खकर।
दोनों एक दस
य रे को चयमते चाटते बेडरूम में दाखखल होते हैं। हरदयाल अपनी बेटी को पलींि पर मलटा दे ता है ।
साना के चेहरे पर हककी सी मश्ु कुराहट है । उसकी आूँखें अपने पापा को एकटक ननहार रही थीीं। पापा भी उसकी
आूँखों में दे खते-दे खते अपने को भी नींिा ककए जा रहे थे। दोनों इतने उत्तेजजत थे कक उन्हें साींस लेने में भी
ददककत हो रही थी, हाूँफ रहे थे।
जैसे ही हरदयाल ने अपनी पैंट और अींडरवेर उतारी, उनका लौड़ा फन्फनाता हुआ ऊपर की ओर उछल पड़ा। उनके
कद की तरह लौड़े का कद भी लींबा और मोटा था। साना का सबसे पसींदीदा लण्ड, सबसे प्यारा लण्ड, हरदयाल
के लण्ड पर उसकी नजर पड़ते ही साना के िले से मजे की चीख ननकल ियी। उसका परय ा बदन मसहर उठा।
चयत से पानी की धार फयट पड़ी। उसने भरादई सी आवाज में कहा- “पापा, आइ लव य…
य आइ लव यय पापा। आओ
ना प्लीज मझ
ु े अपनी बाहों में लो ना। प्लीज… कब से तड़प रही हयूँ। आओ ना पापा। उफफ़्… जकदी करो ना…
मैं मर जाऊूँिी… आआह्ह…” और उसकी उीं िमलयाीं अपनी चत
य सहला रही थीीं, टाूँिें फैली थीीं।
हरदयाल पलींि की ओर अपने 7” लींबे लौड़े को अपनी मट्ु ठी से सहलाता हुआ बढ़ा। उसकी नजर अपनी बेटी की
चयत पर पड़ी। उसपर उसकी रस और पहले की चद ु ाई का वीयद चारों ओर लिा था, बाल बबककुल नहीीं थे, चयत
चमक रही थी, गचपचीपी सी थी। चगय चयाीं सीने पर साूँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीीं। हरदयाल पािल हो उठा।
साना से बरु ी तरह गचपक िया। उसकी चगय चयाीं उसके सीने पर गचपकी थीीं और उसके होंठ साना के होंठों से
गचपके थे। दोनों की टाूँिें एक दस
य रे की टाूँिों को जकड़े थीीं। दोनों बबककुल एक दस
य रे में समाए थे, एक दस
य रे को
सहला रहे थे, चयम रहे थे, चाट रहे थे।
तभी अचानक हरदयाल नीचे आता है साना की टाूँिों के बीच। उसकी फयली-फयली, िीली और फड़कती चयत अपनी
मट्
ु ठी में भर लेता है और ननचोड़ता है । मानो उसका रस परय े का परय ा ननचोड़ लेिा।
उसकी चत
य की फाूँकें इतनी चुदाई के बाद भी काफी टाइट थीीं, कसी थीीं, िल
ु ाबी रीं ि, पींखुडड़याीं फदक रही थीीं।
मट्
ु ठी में लेने से हरदयाल की हथेली परय ी तरह िीली हो ियी उसकी चत
य रस से। उसने अपनी हथेली अपने मूँह
ु
की तरफ ककया और अपनी बेटी की आूँखों में दे खता हुआ जीभ ननकाली और हथेली को चाट मलया।
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साना है रान थी। उसकी चयत में पहले की चद
ु ाई का भी वीयद था। अभी हाल में उसी बात पर पापा उसे सीख दे
रहे थे। और अभी चाट रहे हैं।
हरदयाल उसकी है रानी की वजह समझ िया और कहा- “मेरी प्यारी बेटी, मेरी जान, मेरी लाडली, बेटी जब प्यार
करते हैं ना तो सब कुछ भल
य जाओ। बस मस़द एक दस
य रे को याद रखो। प्यार में कुछ भी िींदा नहीीं। तेरी हर
चीज मझ
ु े प्यारी है बेटी, हर चीज…” और कफर उसने अपना मूँह
ु उसकी चयत पर लिाया, उसकी चयत को अपने
होंठों से जकड़ मलया और चयसने लिा। मानो उसके अींदर का सारा रस, सब कुछ अपने अींदर लेना चाह रहा हो।
साना से रहा नहीीं िया, वो एक झटके के साथ उठी, अपना हाथ बढ़ाया और अपने पापा का स्टील की तरह कड़े
लौड़े को अपनी हथेली से जकड़ते हुए दबा ददया। साना अब तक काफी िमद हो चक
ु ी थी। मसहर रही थी। और
जब उसने इतना कड़क, मोटा और लींबा लौड़ा अपनी हथेली में भरते हुए महसस
य ककया तो उसका बदन मसहर
उठा, काींप उठा और उसकी चयत ने फड़फड़ाते हुए पानी छोड़ ददया। आज अपने जन्म ददन पर उसे जन्म दे नव
े ाले
लौड़े का अपनी हथेली पर ुैहसास सहन नहीीं हो पाया, और वो बहुत उत्तेजजत हो ियी। यह उसका आज का
पहला आिैज्म था।
हरदयाल ने उसकी चयत के रस को अपने अींदर ले मलया, आिैज्म से िीली पड़ी बेटी को अपनी बाहों में ले मलया
और उसे चम
य ते हुए कहा- “बेटी अच्छा लिा ना आज का पहला तोहफा?”
साना ने हरदयाल के चेहरे को अपनी हथेमलयों से थामते हुए उसकी आूँखों में दे खा और भरादई सी आवाज में
कहा- “पापा, इट वाज जस्ट फैं टाजस्टक… अब दस
य रे तोहफे की बारी है । जकदी करो ना पापा प्लीज…”
“हाीं बेटी, मैं भी तो ककतना तड़प रहा हयूँ तेरे मलए। बस तैय्यार हो जाओ। अपने अिले फैं टाजस्टक गिफ्ट के मलये
तैय्यार हो जाओ…”
“उफफ़्… पापा, दे खखए ना आपका हगथयार ककतना फन्फना रहा है …” साना ने कफर से अपने पापा के लौड़े को
अपनी मट्
ु ठी से जकड़ते हुए कहा।
हरदयाल उसकी चयगचयों से खेल रहा था। उसकी कड़क घडुीं डयों को हकके-हकके मसल रहा था, साना के होंठ चस
य
रहा था। साना अपनी जीभ पापा की जीभ से लड़ाती जाती, साना अपनी चत
य के ऊपर पापा का लण्ड नघस रही
थी और उसकी चयत पानी से कफर से सराबोर थी, चुदने को बेताब, अींदर लेने को बेचैन।
“पापा, कम आन… अब चोद दीजजए ना अपनी बेटी को… दे खखए ने आपकी बेटी की चत
य ककतना पानी छोड़ रही
है … अब और सहा नहीीं जाता पापा, दस
य री गिफ्ट के मलए तड़प रही हयूँ। पापा प्लीज़्जज़… चोदो मझ
ु …
े चोदो मझ
ु …
े
पापा चोदो मझ
ु …
े ” साना बड़बड़ाती जा रही है । उसकी चयतड़ ऊपर उठती जाती है पापा का लण्ड चयत में लेने को
बेकरार।
7
हाथ में लेता है, साना की चयत को दस
य रे हाथ की उीं िमलयों से फैलाता है और अपना सप
ु ाड़ा चयत के मूँह
ु पर
रखता है ।
लौड़े के चयत पर छयने के एहसास से साना मसहर उठती है औे आूँखें बींद कर लेती है।
हरदयाल लौड़े पर अपने चतय ड़ का वजन डालता हुआ एक हकका झटका मारता है। चयत इतनी िीली थी कक
उसका आधे से ज्यादा लण्ड उसकी बेटी की शानदार, फड़कती चयत के अींदर कफसलता हुआ चला जाता है ।
साना के मूँह
ु से हककी मससकारी ननकल जाती है- “आआअह्ह… हाूँआ…
ूँ ”
हरदयाल भी चत
य के अींदर की िमी, िीलापन और मल
ु ायम सी पकड़ को अपने लौड़े पर महसस
य करके मसहर
उठता है । और कफर एक जोर का धकका लिता है । उसका परय ा लौड़ा जड़ तक अपनी बेटी की चयत के अींदर
दाखखल हो जाता है ।
साना मजे में उछल पड़ती है - “हाूँ… अया पापा… अट लास्ट… अयाया… अब रोककए मत… प्लीज… बस िो आन…
िो आन… फक मी हाडद… जोर से… और जोर से… आज दस
य री गिफ्ट का परय ा मजा दीजजए। हाूँ हाूँ… बस ऐसे ही…
हाूँ मेरे अच्छे अच्छे पापा, मेरी जान से प्यारे पापा, चोददये अपनी बेटी को… मजे ले ले के चोददये… आआह्ह…”
हरदयाल के धकके जोर पकड़ते जाते और साना मस्ती के आिोश में कुछ भी बड़बड़ाती जाती।
“हाीं बेटी, मेरी जान, मेरी रानी बेटी, मेरी प्यारी बेटी… ले ना, ले ना बेटी मेरा लौड़ा, मेरा लण्ड, मेरा सब कुछ ले
ले ना… सब कुछ तेरा ही तो है ना… अयाया तेरे अींदर इतना मजा है बेटी, ककतना आराम है, ककतना सक
ु य न है ।
उफफ़्… हाूँ… ले ले यह ले…” हरदयाल भी बड़बड़ाता हुआ जोरदार धकके पे धकका लिता जा रहा था।
उसके नीचे उसकी अपनी बेटी चयतड़ उछाल-उछालकर लण्ड अींदर ले रही थी। थोड़ा भी लण्ड बाहर नहीीं छोड़ती
थी। मस्ती के एक अजीब ही आलम में थे दोनों। मानो हवा में उड़ रहे थे। इस दनु नयाीं से बेखबर ककसी और ही
दनु नयाीं में थे। जहाूँ कोई और नहीीं था मस़द दो थे। और साथ थी थपाथप, फच-फच की आवाज, बदन से बदन
टकराने की आवाज, होंठों से होंठ चस
य ने की चटखार, आआअह्ह्ह… उउउह्ह्ह हाईई की मससकाररयाीं।
साना ने अपनी टाूँिों से हरदयाल के चयतड़ जकड़ मलए थे और अपनी ओर दबाती जाती। हरदयाल के धकके जोर
पकड़ते जाते… जोर और जोर… और जोर… और जोर… और कफर साना के चयतड़ों ने उछाल मारी। उसकी चयत ने
पापा के लौड़े को बरु ी तरह जकड़ मलया, मानो पापा के लौड़े को चस
य लेिी अपनी चत
य से। और कफर एकदम से
चयत िीली पड़ ियी, टाूँिें थरथरा उठी, बदन काींप उठा। और वो पापा के नीचे िीली पड़ ियी। उसकी चयत से रस
का सैलाब छयट रहा था।
दोनों एक दस
य रे से गचपके शाींत पड़े थे। दोनों के चेहरे पर एक शक
ु य न, मस्ती और एक दस
य रे के मलए भरपरय प्यार
की झलक थी। हरदयाल साना की चयगचयों पर सर रखे पड़ा था। साना अपने पापा का सर सहला रही थी। थोड़ी
दे र बाद जब दोनों की साींस ठीक हुई।
8
तो हरदयाल ने अपना सर उठाया और बेटी के होंठ चम
य ता हुए पछ
य ा- “बेटी, डडड यय लाइक द सेकेंड गिफ्ट?”
बेटी ने जवाब ददया- “उफफ़्… पापा, मेरा जन्मददन रोज कयूँय नहीीं होता?”
***** *****04
हरदयाल अपनी बेटी की इस बात पर हूँस पड़ा। उसके चेहरे को अपनी हथेली से थामता हुआ उसके िाल
सहलाने लिा। और कहा- “ह्म्म्म्म… तो मेरी बेटी को रोज बथद-डे कययूँ चादहए?”
“जैसे आपको पता नहीीं… आप भी ना पापा…” साना ने हरदयाल के चेहरे को भी अपनी हथेमलयों से थामते हुए
चम
य ते हुए कहा।
हरदयाल ने साना के िाल पर अपनी जीभ कफराई, उसे अच्छे से चाटता हुआ मश्ु कुराया और बोला- “नहीीं यार,
नहीीं मालम
य । बताओ ना… बथद-डे के ददन ऐसी कया बात होती है ?”
साना ने बड़े शरारती लहजे में मश्ु कुराया, अपना हाथ नीचे की तरफ ले ियी और हरदयाल का मरु झाया लौड़ा
अपनी मट्
ु ठी से जकड़कर दबा ददया और कहा- “यह… आपका लींबा, मोटा सा लौड़ा ममलता है । मेरी चयत के अींदर
की हलचल ममटाता है । उफफ़्… मेरी सबसे प्यारी चीज ममलती है…”
साना की मट्
ु ठी के अपने लौड़े पर दबाव से हरदयाल मसहर उठता है और अपनी काूँपती आवाज में कहता है -
“पर मेरी रानी बेटी यह तो तझ
ु े और ददन भी ममलता है ना। आज कया खास बात हुई?’
“पापा रोज कहाूँ ममलता है? आपको तो अपने काम से कभी फुसदत ही नहीीं ममलती है । जजस तरह फुसदत से
आपने आज अपना लौड़ा मेरी चयत में डाला है ना। उफफ़्… अभी भी मेरी चयत काींप रही है । दे खखए ना खुद ही
दे ख लीजजए…” और साना अपने पापा का हाथ अपनी टाूँिें फैलाते हुए अपनी चयत की फाूँक पर रख दे ती है ।
“हाीं पापा, बहुत अच्छी सी और बहुत प्यारी गिफ्ट दी आपने। काश यह गिफ्ट आप मझ
ु े रोज दे त…
े ”
“हाीं बेटी, मैं भी तो चाहता हयूँ ना। पर कया करूूँ काम भी तो दे खना है ना…”
साना अपने पापा के लौड़े को अपनी चयत पर नघसती जाती। उसका लण्ड काफी िीला हो चुका था। साना ने
अपनी टाूँिें थोड़ी ऊपर की, जजससे उसकी िाण्ड भी खल
ु ियी। अब उसने अपने पापा का लण्ड अपनी तरफ और
खीींचा और अपनी िाण्ड की दरार से भी नघसना चालय कर ददया, उसके होंठों पर एक शरारती मश्ु कान थी।
“ह्म्म्म्म… बेटी मैं समझ रहा हयूँ तेरी शरारत। दे ख मैं तम्
ु हारी िाण्ड नहीीं ले सकता बेटी। जरा समझो ना…”
9
“नहीीं पापा, आज मझ
ु े कुछ नहीीं समझना। बस आज मेरा बथद-डे है , और मझ
ु े अपनी गिफ्ट चादहए। आज आपका
लौड़ा मझ
ु े अपनी िाण्ड में लेना है तो बस लेना है…” साना ने काफी जोरदार लहजे में कहा।
“उफफ़्॰ बेटी तय समझती कययूँ नहीीं? मेरा इतना मोटा और लींबा लण्ड तय अपनी िाण्ड में नहीीं झेल पाएिी। बहुत
तकलीफ होिी तझ ु े बेटी। और तय जानती है कक मैं तेरी तकलीफ नहीीं सह सकता। प्लीज समझो ना मेरी जान।
कया मझ
ु े रुलाएिी अपने बथद-डे पर?”
उसकी पीठ और िाण्ड ऊपर है । अपने दोनों हाथ पीछे करते हुए अपने चयतड़ फैला दे ती है । िाण्ड का सरु ाख खोल
दे ती है और पापा से कहती है - “पापा दे खो ना। प्लीज दे खो ना मेरी िाण्ड। ककतनी खुली है । सरु ाख अब इतना
टाइट नहीीं। आपका लण्ड आराम-आराम से जाएिा। आओ ना मेरे ऊपर पापा, दे खो ना… प्लीज पापा… मैंने
ककतनी तैयारी भी की है । दे खो ना…”
साना के लहजे में इतना इसरार, प्यार और कमशश थी कक हरदयाल अपने को रोक नहीीं सका और उसकी टाूँिों
के बीच आ जाता है, घट
ु नों के बल बैठकर साना के हाथ उसकी िाण्ड से हटाता है और अपनी हथेमलयों से
उसकी मल ु ायम, भारी-भारी सड
ु ौल चयतड़ों को जकड़ता हुआ फैलाता है और उसकी िाण्ड पर अपनी आूँखें लिाता
है । हरदयाल बस दे खता ही रहता है अपनी बेटी के िाण्ड की खब
य सरय ती।
उफफ़्… कया नजारा था। भारी-भारी िोल-िोल उभरे हुए िोरे -िोरे चयतड़। जजन्हें अपनी हथेमलयों से बड़े ही हकके
से दबाता हुआ अलि करता है । दरार चौड़ी हो जाती है। दरार के बीच थोड़ी सी डाकदनेस मलए िाण्ड के छे द के
चारों ओर का िोश्त, िाण्ड की सरु ाख थोड़ी सी खल
ु ी हुई। पर चारों ओर का िोश्त एकदम टाइट। खल ु ा सरु ाख
इस बात की िवाही दे रहा था कक िाण्ड में लौड़ा अींदर दाखखल हो चुका है, और परय ी दरार गचकनी और चमकती
हुई।
साना अपने पापा की हरकतों से मस्त थी, मश्ु कुरा रही थी, और अींिठ
य े के दबाव से मसहर उठी।
उसने अपनी िाण्ड थोड़ी सी ऊपर उठाते हुए कहा- “हाूँ… हाीं पापा, अच्छे से छय लो, दबा लो, दे ख लो। तम्
ु हारे
लौड़े के मलए सही है ना??
“बेटी, बहुत शानदार, जानदार और मालदार है तेरी िाण्ड… उफफ़्… सही में तम
ु ने काफी मेहनत की है । जरा
चाट लूँ य बेटी?”
10
यह बात सन
ु कर साना और भी मस्ती में आ जाती है, और अपनी िाण्ड और भी ऊपर उठाते हुए पापा के मूँह ु
पर रखती है- “पापाम पछ
य ते कयूँय हो? आपकी बेटी है, आपकी प्यारी बेटी का िाण्ड है … जो जी चाहे करो ना…
चाटो, चयसो, खा जाओ ना, पर लौड़ा अींदर जरूर करना…” और अपने पापा के मूँह
ु से िाण्ड और भी लिा दे ती है ।
हरदयाल उसकी िाण्ड नीचे पलींि पर कर दे ता है, दरार को कफर से अलि करता हुआ अपनी जीभ उसके सरु ाख
पर लिाता है और परय ी दरार की लींबाई चाट जाता है , जीभ को अच्छे से दबाता हुआ। उफफ़्… उसकी िाण्ड की
मदमस्त महक और एक अजीब ही सोंधा-सोंधा सा टे स्ट था। दो चार बार दरार में जीभ कफराता है ।
जीभ के छयने से और जीभ की लार के ठीं ड-े ठीं डे टच से साना मसहर उठती है । और कफर हरदयाल उसकी िाण्ड के
िोश्त को अपने होंठों से जकड़ लेता है और बरु ी तरह चयसता है । मानो िाण्ड के अींदर का परय ा माल अपने मूँह
ु में
लेने को तड़प रहा हो।
साना मजे में चीख उठती है - “आआह्ह… पापा उईईई… दे खा ना मेरी िाण्ड ककतनी मस्त है? अब दे र ना करो।
बस डाल दो ना अींदर, प्लीज़्जज़…” और साना अपनी हथेली पीछे करती हुई कड़क लौड़े को जकड़ते हुए अपनी
िाण्ड की तरफ खीींचती है ।
हरदयाल भी अपने लौड़े को उसकी िाण्ड की दरार में रखे-रखे उसके ऊपर लेट जाता है । हरदयाल की जाींघें साना
के िद
ु ाज, नमद और भारी-भारी चयतड़ों पर धूँसी हैं। उफफ़्… कया मल
ु ायम सा एहसास था, मानो स्पींज का िद्दा
हो। उसका लौड़ा दरार के अींदर लींबाई से दबा होता है। सप
ु ाड़ा चत
य की तरफ और टटटे िाण्ड के ऊपर की तरफ
जहाूँ पीठ और िाण्ड का ममलाप होता है । और हरदयाल इसी पोजीशन में साना की पीठ से गचपक जाता है ।
उसके हाथ नीचे जाते हुए साना की चगय चयाीं थाम लेते हैं और दबाते हैं और साथ में अपनी कमर आिे पीछे
करता हुआ अपने लण्ड को िाण्ड की दारर में नघसता है ।
दोनों एक दस
य रे के बदन की िमी महसस
य करते हैं। मस्ती के एक अजीब ही आलम में खोए-खोए।
हरदयाल के लण्ड से प्री-कम ररसता हुआ साना की िाण्ड को िीला करता जा रहा है । और लौड़ा िाण्ड की दरार
में नघसता-नघसता और भी कड़क होता जाता है । हरदयाल साना के िाल, िदद न, पीठ चयमता जा रहा है । चाटता
जा रहा है । साना की चगय चयाीं भी मसल रहा है ।
साना कराह रही है, बेचैन है । तड़प रही है एक अजीब ही मस्ती छाई है । अपनी भरादई आवाज में साना बोलती
है - “पापा, इसके पहले कक मैं मस्ती में मर जाऊूँ, प्लीज़्जज़… अब लौड़ा डाल दो ना… और सहन नहीीं हो रहा है ।
अयाया… प्लीज डालो ना…”
हरदयाल का हाल भी कुछ ऐसा ही था। वो उठता है, अपने मूँह ु से थयक ननकालता हुआ अपनी हथेली में लेता है ।
और उसकी िाण्ड के सरु ाख पर, जो उसके लौड़े के प्री-कम से काफी िीला था, डाल दे ता है । और अपने लौड़े पर
भी लिाता है- “बेटी, अब मैं डालने जा रहा हयूँ तेरी िाण्ड के अींदर अपना लण्ड। तय तैय्यार है ना बेटी? दे ख जरा
भी ददद हो, तो बता दे ना बेटी… मैं रुक जाऊूँिा…”
“कोई ददद नहीीं होिा पापा। बस दे र ना करो डाल भी दो ना…” साना बेचैन है अींदर लेने को।
हरदयाल उसकी िाण्ड को और भी फैलाता है और उसकी खुली िाण्ड की सरु ाख पर अपने लण्ड का सप
ु ाड़ा रखता
है , साना अपनी िाण्ड ऊपर कर दे ती है, हरदयाल उसकी कमर को जकड़ते हुए हकके से लौड़ा दबाता है । सरु ाख
11
इतनी िीली हो ियी थी कक उसका सप
ु ाड़ा बबना ककसी रूकावट के अींदर चला जाता है । उफ्फ… ककतनी िमी थी
अींदर… ककतनी टाइट पर कफर भी आराम था अींदर।
साना काींप उठती है । साना अपनी िाण्ड थोड़ा और ऊपर उठाती है और उसी के साथ हरदयाल भी एक और
झटका दे ता है तो उसका लौड़ा िाण्ड को चीरता हुआ आधा अींदर चला जाता है । साना के चयतड़ काींप उठते हैं।
एक मस्ती भरी हककी सी ददद की लहर साना के परय े बदन में छा जाती है ।
“आआह्ह… हाूँ… पापा दे खा ना कोई ददद नहीीं है, अब परय ा डाल दो। परय े का परय ा… जरा भी बाहर नहीीं। मझ
ु े परय ा
गिफ्ट चादहए… प्लीज…”
हरदयाल अब साना की जाूँघ नीचे से जकड़ता हुआ साना की िाण्ड ऊपर की ओर करता है और एक धकका कफर
से लिाता है । इस बार परय ा लौड़ा जड़ तक साना की िाण्ड में चला जाता है । हरदयाल को ऐसा महसस
य हुआ जैसे
ककसी बड़े ही मल
ु ायम, िद
ु ाज हथेमलयों ने उसके लौड़े को बरु ी तरह जकड़ मलया हो। उसका परय ा बदन िन्िना
उठता है । वो लौड़ा अींदर ककए ही साना की पीठ से गचपक जाता है । उसकी जाींघें साना की िद
ु ाज, मल
ु ायम और
भारी-भारी चयतड़ों से गचपकी हैं।
“बस अब धकके लिाओ पापा। दे खा ना आपकी बेटी की िाण्ड ककतना मस्त है । आपका परय ा लौड़ा मेरे अींदर है ।
आआह्ह… बस मारते जाओ अपनी बेटी की िाण्ड। मारो ना पापा… मारो, मारो जी भर के मारो…”
इतनी मस्ती में थी की उसकी आूँखें बींद थी। मसहर रही थी। कराह रही थी साना।
हरदयाल भी धकके पर धकका लिाता जा रहा था। उसे लिा अब उसके बदन का सारा खयन उसके लौड़े की दटप
पर आ िया है ।
साना की िाण्ड की पकड़ उसके लौड़े पर टाइट सी थी। उसकी चयत लिातार पानी छोड़ रही थी। साना का भी
बरु ा हाल था। साना को ऐसा महसस य हुआ जैसे उसका सारा बदन अकड़ िया हो। सारे बदन में एक अजीब सी
झुरझरु ी सी हुई। उसकी चयत टाइट हो ियी।
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इसका सीधा असर उसके लौड़े पर हुआ और उसके लौड़े ने भी अपनी बेटी की िाण्ड में पपचकारी छोड़ दी।
हरदयाल अपना लौड़ा बेटी की िाण्ड में धींसाए-धींसाए ही उसकी पीठ से गचपक िया।
साना की िाण्ड अपने पापा के िाढ़े वीयद से भरती जा रही थी। लबालब।
अपने पापा के साथ आज उसका एक बहुत प्यारा और परु ाना सपना परय ा हुआ था। हाीं अपनी िाण्ड उन्हें दे कर।
और पापा ने भी ककतने प्यार और दल
ु ार से सारा काम ककया था। साना को जरा भी ददद नहीीं हुआ। थोड़ा बहुत
हुआ भी तो ददद, मजे की मसहरन से िूँ क िया। जजस तरह गचजकचलाती धप
य की जलन बादल की आड़ में छुप
जाती है ।
हरदयाल अपनी तरफ से उसे ककसी भी प्यार से महरूम नहीीं करता था। उसकी माूँ की कमी परय ी करना चाहता
था। पर आखखर उसकी भी मजबरय ी थी। माूँ की ममता, माूँ की नजदीकी खासकर बेदटयों के साथ। इन सब बातों
की कमी साना की जज़ींदिी में थी और सबसे ज्यादा हरदयाल के पास कमी थी तो समय की। अपने बहुत व्यस्त
कारोबारी कामों के मारे जजतना वक़्त दे ना चाहता था अपनी बेटी को, और जजतना वक़्त उसकी बेटी की जरूरत
और उसका हक था… नहीीं दे पाता था।
मजबरय न हरदयाल ने इन बातों की कमी साना को हर तरह की छयट और आजादी दे कर परय ी करनी चाही। पर
इसका नतीजा वोही हुआ जो उसने आज पाटी के बाद साना के बेिींि,े भोंडे और बहयदे नींिेपन में दे खा। पर
हरदयाल मजबरय था। उसकी आूँखों के सामने उसकी बेटी बहकती जा रही थी और वो मस़द हाथ मलता हुआ
बेबश दे खता ही रह जाता।
हरदयाल भी समझता था, पर मजबरय था। उसकी मजबरय ी थी उसका बड़ा और फैला बबज़नेस, और जजसके चलते
समय की कमी। उसे समझ में नहीीं आ रहा था कया करे ? कैसे अपनी बेटी को इस हवस और बबाददी की दल-
13
दल से ननकाले। हरदयाल काफी परे शान था, िहरी सोच में डयबा था। एक ओर उसकी बेटी की मासम
य सी जज़ींदिी
थी, जो उसके प्यार और करीबी की भख
य ी थी और दस
य री ओर उसका बबज़नेस जो उसे अपनी बेटी को परय ा समय
दे पाने में सबसे बड़ी रुकावट था।
अचानक उसके ददमाि में एक कौन्ध सी होती है । एक आशा की ककरण फयट पड़ती है । अिर उसके पास समय
नहीीं तो कोई और तो उसकी जिह ले सकता है । कोई और साना की जज़ींदिी में आए और उसे उतना ही प्यार दे ,
उतना ही खयाल रखे। यानी ककसी ऐसे शख्स से उसकी शादी कर दी जाए। पर साना का ददल जीतना उतना
आसान नहीीं था ककसी के मलए। और सबसे बड़ी बात… कया साना इस बात के मलए राजी होिी? पर कोमशश तो
की जा सकती है ।
इस बात पर हरदयाल को कुछ तस्सकली होती है । वो अपने ददमाि में रख लेता है यह बात, और साना से इस
बारे खल
ु कर बात करने का मन बना लेता है ।
इन सब खयालों में खोए हरदयाल को भी नीींद आने लिती है । वो बड़े एहनतयात से साना के हाथ अपने सीने से
हटाता है । उठता है पलींि से, बेडरूम के वाडदरोब से एक धयली चादर ननकालकर साना के नींिे बदन को िूँ क दे ता
है और खुद स्लीपपींि सट
य , जो कक हमेशा फामदहाउस के वाडदरोब में होता है । पहनकर खुद भी साना के बिल में
आकर लेटता है, और कफर साना के माथे को चयमता है। और आूँखें बींद करके नीींद की आिोश में खो जाता है ।
सब
ु ह हरदयाल की नीींद खल
ु ी।
साना अभी भी सो रही थी। रात में जाने कब उसके बदन से चादर हट के बीस्तर पर पड़ी थी और उसका नींिा
बदन कफर से उसके सामने अपनी परय ी जवानी, और जवानी की खयबसरय त और मदमाती ननशाननयों की शानदार
नम
ु ाइश के साथ उसकी आूँखों के सामने थी।
वो एकटक उसके बदन की खयबसरय ती अपनी आूँखों से पीता जा रहा था। सडु ौल, िोल-िोल और कसी हुई चयगचयाीं
साना की धड़कनों के साथ-साथ धक-धक ऊपर-नीचे हो रही थी। टाूँिें हककी सी फैली और चतय की फाूँकें उसके
वीयद और साना की चयत रस से िीली, चमकती हुई, मानो ओस की बूँद य ें ककसी पेड़ के पत्ते पर चमक रहीीं हों।
बाल बबखरे , खयबसरय त आूँखों की पलकें मद
ुीं ी, बड़ी-बड़ी आूँखों को ऐसे िकी थी। मानो बस कभी भी खुल जायें और
अींदर से कोई अनमोल रतन ननकल पड़े।
हरदयाल एक टक उसे दे खे जा रहा था। ननहारे जा रहा था। उसे साना के मलए अपने ददल में बे-इींतहा प्यार,
दल
ु ार, कसक और चाहत का अहसास होता है । उसे ऐसा लिा कक वो अपनी बेटी से कभी जुदा नहीीं हो सकता,
उसकी जद
ु ाई बदादश्त नहीीं कर सकता। उफफ़्… यह कैसा अहसास था। जबकक वो उसकी शादी करने की सोच
रहा था। कया वो ककसी और के साथ अपनी बेटी का जजस्मानी और रूहानी ररश्ता बदादश्त कर सकेिा? उसके
ददल की धड़कनों से साफ जादहर था कक यह बात उसके मलए बहुत मजु श्कल थी, नामम
ु ककन था। पर वो कया
करे ? उफफ़्… पर एक बाप अपनी बेटी के साथ कब तक ऐसा ररश्ता रख सकता है ? कब तक? कभी ना कभी
तो इसे खत्फम करना ही पड़ेिा।
पर साना से ररश्ता खत्फम होने की सोच से ही उसके ददल में एक हयक सी होती है। उसे ऐसा महसस
य होता है कक
उसके ददल की धड़कन बींद हो जाएिी, वो मर जाएिा। साना उसके ददल की धड़कन बन चुकक थी, उसकी
जज़ींदिी, उसकी जान।
वो अपने आपको रोक नहीीं सका। सोती हुई साना के ऊपर लेट जाता है, उसे अपने से भीींच लेता है । उसे अपने
सीने से जोरों से लिा लेता है । फफक के रो पड़ता है और कहता जाता है - “साना, साना, मेरी साना, मेरी जान,
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मेरी रानी, मैं तम
ु से जुदा नहीीं हो सकता। मैं तम
ु से अलि नहीीं रह सकता। साना, साना, साना, तम
ु ने सन
ु ा ना…
मैं तम
ु से अलि नहीीं हो सकता…”
हरदयाल की हरकत से साना उठ जाती है । उसकी नीींद खुल जाती है । अपने पापा के बे-इींतहा प्यार से सराबोर
पर बहुत ही मायस य और ननराशा से भरे लहजे में उनके शलद उसके कानों में पड़ते हैं तो वो चौंक पड़ती है । अपने
पापा की आूँसय से भरी आूँखों पर अपनी पतली, लींबी और खयबसरय त उीं िमलयाीं रखकर उनके आूँसय पोंछती है ।
उनका चेहरा अपनी तरफ करती है ।
“हाूँ… हाूँ साना, हम कभी अलि नहीीं होंिे। तय मेरी जान है , मेरे ददल की धड़कन है । बेटी, तझ
ु े हमेशा अपने ददल
से लिाए रखि यूँ ा। हाीं बेटी अपने ददल से, अपने ददल के अींदर…” और यह कहता हुआ उससे और भी गचपक जाता
है । मलपट जाते हैं दोनों एक दस य रे से जैसे दो लतायें आपस में िूँथ
ु े और गचपके रहते हैं। चम
य ते हैं एक दस
य रे को,
एक दस
य रे में समा जाने की होड़ मची है ।
तभी साना अपने पापा के बदन से स्लीपपींि सट य में अपनी हथेली अींदर डालते हुए फाड़ डालती है और चीखती है -
“पापा… पापा यह दरय ी कय?
यूँ यह परदा कय?
यूँ मैं बे-परदा नींिी हयूँ और आप यह सटय … हटाइए ना इसे प्लीज…” और
कफर अपने पापा का पाजामा भी उसके अींदर हाथ डालते हुए नीचे खीींचती है जोरों से। इतने जोरों से खीींचती है
कक पाजामा भी चर्द र् र र-चर्दरर करता हुआ फट जाता है ।
और हरदयाल अपने पावीं उठाता हुए उसे भी उतार फेंकता है । दो नींिे बदन, दो शरीर अब एक होने को बेचन ै हैं,
बेताब हैं, तड़प रहे हैं, एक दस
य रे में समा जाने को। एक दस
य रे को चम
य रहे हैं, चाट रहे हैं, चस
य रहे हैं। कहाूँ शरू
ु
करें और कहाीं खतम करें ककसी की समझ के बाहर है ।
साना की चयत से पानी ररसता जा रहा है । हरदयाल का लौड़ा कड़क है, फनफना रहा है , साना की चयत के ऊपर
रिड़ खा रहा है । साना मस्ती में चीत्फकार रही है, मससक रही है ।
साना अपने पापा का लौड़ा अपनी हथेली में जकड़ लेती है , उसे सहलाती है , पच
ु कारती है , लण्ड की चमड़ी ऊपर-
नीचे करती है । उसे बड़ा प्यारा है अपने पापा का लण्ड… सबसे प्यारा लण्ड, सबसे अजीज, अपनी चयत पर नघसती
जाती है , टाूँिें फैलाए।
हरदयाल उसकी चयगचयों पर टयट पड़ता है, कभी चयसता है , कभी जीभ कफराता है, कभी चाटता है, कभी अपनी
जीभ उसकी मूँह
ु में डालकर साना की पतली, िीली और लींबी जीभ जकड़ लेता है, उसे चस
य ता है । उसका सारा
मूँह
ु के अींदर का रस और लार चयसता है । अपने िले से नीचे उतरता हुआ उसके मीठे -मीठे और बेहतरीन स्वाद
का मजा लेता है । जवानी के रस का भरपरय मजा, भरपरय स्वाद अपने अींदर महससय करता है । दोनों पािल हैं एक
दस
य रे से मलपटे एक दस
य रे को हर तरह महसस
य करते जा रहे हैं।
और कफर साना चीख उठती है - “पापा, अब और नहीीं। पापा बस-बस… और नहीीं सहा जाता। प्लीज अब अींदर आ
जाओ, मेरे अींदर आ जाओ, मझ
ु में समा जाओ ना… परय ी तरह समा जाओ ना। मैं आपको अींदर ले लूँ ि
य ी पापा।
15
कभी भी अलि नहीीं होने दूँ ि
य ी। आ जाओ ना मेरे अींदर… पापा आ जाओ ना…” और अपनी हथेली से जकड़े लौड़े
को चत
य से लिाती है, अपने चत
य ड़ ऊपर उठाती है ।
और हरदयाल भी अपनी कमर नीचे करते हुए अपने लौड़े को दबाता है तो उसका लौड़ा फच से अपनी बेटी की
चयत चीरता हुआ अींदर दाखखल हो जाता है । बाप-बेटी दोनों मसहर उठते हैं। पापा उसकी चयत के िीलेपन, िमी
और मलु ायम पर कसी हुई पकड़ से मसहर उठते हैं और बेटी अपने बाप के कड़क, लींबे और मोटे लौड़े के िमद,
ठोस (सामलड) और लींबाई मलए हुए लौड़े का अपनी चत
य के अींदर जड़ तक घसु े होने की एहसास से मसहर जाती
है ।
हरदयाल थोड़ी दे र तक अपना लौड़ा अींदर ककए पड़ा रहता है , उसकी चयत का, उसकी बेटी के बदन का, बेटी की
जवानी का मजा महसस
य करता हुआ, अपने में सब कुछ समा लेने का एहसास करता है ।
“पापा, अब मैं आपके करीब हयूँ ना? और ककतना करीब करूूँ अपने आपको पापा? अब कभी अलि तो नहीीं
समझोिे ना आप मझ ु को अपने से। बोलो ना पापा? कभी भी ऐसा मत सोचना, मैं मर जाऊूँिी आपसे अलि
होकर। मर जाऊूँिी पापा…”
हरदयाल उसकी बातों से और भी जोश में आकर धकके पर धकका लिाता जाता है । हर धकका पहले से और तेज
और जोर पकड़ता जाता है ।
साना की चयत के होंठ अपने पापा के लौड़े को जकड़ लेती है । उसका परय ा बदन ऐींठ जाता है और- “उईई…
आअह्ह… हाूँ आआअह्ह…” करते हुए उसका सारा बदन िीला पड़ जाता है । हाथ, पैर िीले पड़ जाते हैं। पापा के
नीचे हाूँफती हुई पड़ी रहती है ।
और पापा का लौड़ा उसकी चयत रस की फुहार से बरु ी तरह नहा जाता है । इस िीलेपन के ुैहसास से, अपनी बेटी
के चत
य रस की िमी से हरदयाल का परय ा बदन काींप उठता है और वो भी अपनी बेटी की चत
य के अींदर अपने
अींदर जमा िमद-िमद वीयद का लावा उिलता जाता है… उिलता जाता है । अपनी बेटी को बरु ी तरह जकड़ता हुआ
अपने लण्ड को बेटी की चतय के अींदर ही डाले रहता है और झटके पे झटका खाता है उसका लौड़ा उसकी बेटी की
चत
य के अींदर। कभी अलि ना होने का अहसास मलए। हमेशा साथ बने रहने का अहसास मलए।
16
यह एक अजीब ही अहसास था दोनों के मलए। मस़द जजस्मानी भख
य ममटाने का जररया नहीीं था यह। यह दोनों
का हमेशा साथ बने रहने का एक दस
य रे से वादा था। एक दस
य रे को बताने का जररया था। इससे अच्छा और कोई
तरीका हो सकता है भला?
कुछ दे र बाद दोनों अपनी आूँखें खोलते हैं। हरदयाल अपनी बेटी को दे खता है ।
साना भी उसकी आूँखों में दे खती है । अपने पापा की आूँखों में उसे एक सींतष्ु टी, सक
ु य न और ताजिी दीखाई दे ती
है , अपने पापा को दे खते हुए कहती है - “ह्म्म्म… तो पापा अब तो आपको भरोसा हो िया ना कक मैं आपसे
अलि नहीीं हो सकती। कफर से दब ु ारा ऐसा कभी मत सोचना आप। पर एक बात पछ य य ूँ पापा?”
“हाीं बेटी पछ
य ना। एक बात कययूँ जजतनी चाहे पछ
य ले…” और यह कहता हुआ उसे कफर से िले लिा लेता है ।
“उफफ़्… पापा आप भी ना… अच्छा यह तो बताइए आखखर आपके ददमाि में अचानक यह अलि होनेवाली बात
आई कैसे? कया हुआ था? आपने कोई बरु ा सपना दे खा था?”
हरदयाल कफर से साना की ओर दे खता है । एक ठीं डी साींस लेता है और कहता है - “बेटी, आखखर तझ
ु े मैं अपने घर
कब तक बबठा सकता हयूँ। तेरी शादी तो करनी पड़ेिी ना। कफर तय अपने पनत के साथ चली जाएिी। मैं कफर से
अकेला रह जाऊूँिा। मेरी ककस्मेत ही ऐसी है बेटी। मैं जजससे भी प्यार करता हयूँ, मझ
ु से दरय चली जाती है…”
हरदयाल का इशारा अपनी पत्फनी की ओर था। हरदयाल बहुत मायस
य सा चेहरा बनाए उसे दे ख रहा था।
साना भी समझ जाती है- “पापा आप मम्मी से बहुत प्यार करते थे?”
“पछ
य ती कययूँ है बेटी? जजस तरह मैं तझ
ु से प्यार करता हयूँ। तझ
ु े समझना चादहए बेटी कक मैं ककतना प्यार करता
था तेरी माूँ से…”
हरदयाल साना की बात से चौंक पड़ता है- “तय पािल हो ियी है कया? अपने बाप से शादी करे िी? यह कैसे हो
सकता है बेटी?”
“मैं नहीीं जानती कुछ। पािल कहो आज, कुछ भी कहो। अिर ककसी और से आपने कफर से शादी की सोची, तो
समझ लीजजए आप जजींदा साना से नहीीं उसकी लाश से ककसी और की शादी करें िे। अिर आप बेटी की चयत में
अपना लण्ड भर सकते हो, चोद सकते हो तो कफर उसी बेटी की माूँि में मसींदरय भरने में कया प्राललम है आपको?
बोमलए ने पापा, कया प्राललम है ?” साना ने अपने पापा को झकझोरते हुए कहा।
हरदयाल के पास साना की बातों का कोई जवाब नहीीं था। उसकी नजरें झक
ु ी हैं, जब
ु ान बींद है, और वो िहरी
सोच में डयब जाता है ।
17
साना हरदयाल को कफर से उदास दे खकर उसके चेहरे को अपनी हथेमलयों से थाम लेती है और कहती है - “पापा,
कम आन… इतना सोगचए मत… हमारा प्यार सच्चा है, कोई ना कोई रास्ता ननकलेिा। बस आप मस़द मेरी शादी
की गचींता मत कीजजए। इस खयाल को अपने ददल से ननकाल दीजजए हमेशा के मलए। आम आइ जकलयर?”
हरदयाल अपनी बेटी की आूँखों में एक आत्फमपवश्वास, पकका इरादा और बे-इींतहा प्यार की झलक दे खता है । उसे
भी दहम्मत आ जाती है । साना ठीक ही कहती है कोई ना कोई रास्ता जरूर ननकलेिा- “ओके साना। मैं सोचूँि
य ा
इस बात पर। अभी तो दे ख ना सब
ु ह ककतनी दे र हो चक
ु ी है । आकफस भी जाना है। कुछ जरूरी मीदटींग्स भी हैं।
चल उठ। लेट अस िेट रे डी…”
दोनों अपने-अपने बाथरूम की ओर चल पड़ते हैं। तैयार होते हैं। नाश्ता करते हैं और अपनी-अपनी कार में
हरदयाल आकफस की ओर जाता है और साना फटाफट कार फामदहाउस से अपने कालेज की ओर दौड़ा दे ती है ।
काफी सोचता है हरदयाल इस बात पर। आज तक उसने एक से एक जदटल और बहुत मजु श्कल से जान पड़ने
वाले प्रॉललम्स साकव ककए थे। तभी आज कामयाबी के इस मक
ु ाम पर पहुूँच सका था। पर इस अपने खुद के
जज़ींदिी का मामल
य ी सा जान पड़नेवाले प्राललम का कोई हल उसे नहीीं सझ
य रहा था। अींधेरे में ही कययूँ भटक रहा
है । कया इसका कोई हाल नहीीं?
और कफर उसके चेहरे पे मश्ु कान छा जाती है । हाूँ हल है , रास्ता है , और वो उछल पड़ता है । उसे अपनी जज़ींदिी
के इस मामल
य ी से लिनेवाले प्राललम का बहुत ही सटीक और सही हल ममल िया था। वो साना से बात करने
को मचल उठा, घड़ी की ओर दे खा तो शाम के 5:00 बज चक ु े थे। साना शायद कालेज से घर वापस आ चक
ु ी
होिी। तभी उसके मोबाइल में ररींि हुई। दे खा तो साना का नाम उसकी मोबाइल की स्रीन पर झलक रहा था।
उसने मोबाइल की स्रीन चम
य ली और उसकी काल ररसीव की।
साना की आवाज आई- “पापा, आप कैसे हो? ददन कैसा रहा?” उसकी आवाज थोड़ी बझ
ु ी-बझ
ु ी थी। अपने बाप की
ककतनी कफकर थी उसको।
“श्योर पापा। मैं बस आई, आप भी आ जाओ। मैं मरी जा रही हयूँ कक आखखर कया बात है । उफफ़्… सी यय
पापा…” और उसने फोन कट कर दी। साना कालेज के पाककिंि की ओर तेज कदमों से बढ़ाती है । अपनी कार
स्टाटद करती है । और घर की ओर कार फरादटे की स्पीड से दौड़ती चल पड़ती है । साना को घर पहुूँचने में कोई
15-20 ममनट लिे। ट्रॅ कफक अभी उतना बबजी नहीीं था।
18
घर पहुूँचते ही उसने ड्राइींि रूम में रखे बड़े से सेंटर टे बल पर अपना बैि फेंका और अपने बेडरूम में जाते ही
अपने पलींि पर िे र हो ियी। और अपने पलींि के बिल में लिे कालबेल की जस्वच दबाई। यह बेल उनके घर
की हाउसकीपर ममसेज़ डडसज
य ा के मलए थी। ममसेज़ डडसज
य ा एक अधेड़ उम्र की पवधवा औरत थी। उसका काम था
घर की दे खभाल, उसके मातहत और भी नौकर, नौकराननयाीं, कुक विैरह थे। जजनके द्वारा वो उस घर का बड़े
अपनेपन और जजम्मेदारी से परय ा काम सींभालती।
ममसेज़ डडसज
य ा बेल की आवाज सन
ु ते ही फौरन साना के रूम में जाती है और साना के रूम में दाखखल होती है ।
साना आूँखें बींद ककए लेटी है । ममसेज़ डडसज
य ा साना के माथे को चयमते हुए कहती है - “ह्म्म्म… लिता है कल रात
मेरी बेटी ने बड़े जोर शोर से अपनी बथद-डे सेलीब्रेट की है । मेरी भी बधाई ले ले बेटी…”
“थैंकस आींटी। हाीं आींटी, पापा भी कल फामदहाउस आए थे। बड़ा मजा आया। अरे हाीं पापा कहाूँ हैं? अभी तक आए
नहीीं आकफस से?” साना ने अपनी अलसाई आूँखें खोलते हुए थकी-थकी आवाज में कहा। कल रात की थकान की
खुमारी अभी भी थी।
तभी बाहर कार रूकने की आवाज आती है - “दे खा ना आींटी। मैंने कहा और पापा आ भी िये। जाओ जकदी से
चाय बना लो बेडरूम में ही ले आना। हम लोि यहीीं बातें करें ि…
े ”
ममसेज़ डडसज
य ा रूम से बाहर ननकलती है और उसी समय हरदयाल ड्राइींि रूम में अींदर आता है और उससे साना
के मलए पछ
य ता है । ममसेज़ डडसज
य ा बेडरूम की ओर इशारा कर बोलती है- “आपकी प्यारी बेटी आपका ही इींतज
े ार
कर रही है …”
हरदयाल साना के कमरे में साना की ओर बढ़ता है और उसके मसरहाने की तरफ एक कुसी पर बैठ जाता है ।
साना के माथे पर प्यार से हाथ रखता है- “लिता है मेरी बेटी कुछ थकी सी है । ठीक है बेटा तय आराम कर मैं
भी जरा फ्रेश होकर आता हयूँ कफर इतमीनान से बातें करें िे…” और कुसी से उठता है ।
साना अपने पापा का हाथ थाम लेती है और खीींचते हुए कफर से कुसी पर बबठा दे ती है , और कहती है- “आप
कहीीं नहीीं जाएूँिे। आींटी चाय ला रही हैं। हम साथ चाय पपएूँि।े पापा आपने कभी सोचा है ऐसा मौका ककतनी
बार ममलता है कक आपके साथ बैठकर शाम को साथ में चाय पी सकें? आज इतनी मजु श्कल से यह मौका हाथ
आया है । आप कहीीं जानेवाले नहीीं। और सबसे बड़ी बात… आपका ग्रेट आइडडया। उफफ़्… मैं मरी जा रही हयूँ।
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आखखर कया तरीका ननकाला आपने। बताइए ना पापा। प्लीज… जकदी बताइए…” साना ने एक ही साींस में सब
बातें कह दी।
हरदयाल अपनी बेटी की बातों का मजा ले रहा था। ककतनी खुश नजर आ रही थी साना। सही में उसे अपने
पापा से ककतना लिाव था, ककतना प्यार था। और अब तो वो खद
ु भी अपनी बेटी से अलि होने की बात की
ककपना से काींप उठता। उसे जकद से जकद अपने प्लान पर अमल करना होिा।
“अरे बाबा… मझ
ु े मालम
य है ना साहे ब। साना का स्पेशल आपका सप
ु र स्पेशल होता है । है ना?” ममसेज़ डडसज
य ा
टपक से जवाब दे ती है ।
“ह्म्म्म्म… बात तो सही है आपकी…” हरदयाल कहता है और कफर साना और हरदयाल दोनों जोरों से हूँस पड़ते
हैं, ममसेज़ डडसज
य ा की बात पर। ममसेज़ डडसज
य ा भी मश्ु कुराते हुए बाहर ननकल जाती है । साना और हदायाल कमरे
में अकेले रह जाते हैं।
“दे ख साना। हमारा ररश्ता ऐसा है कक हम ककसी भी तरह शादी नहीीं कर सकते। अपने इस रूप में ककसी और
जिह जहाूँ हमें कोई नहीीं जानता। वहाूँ हो सकती है यह बात। पर शायद हमारा नाम हमारा पीछा दनु नयाीं के
ककसी भी दे श में नहीीं छोड़ेिा। हमारे इींडस्ट्रीस का नाम परय ी दनु नयाीं में फैला है । है ना? और दनु नयाीं के ककसी भी
दे श का कानन
य इींसेस्टुअल ररलेशजन्िप को कानन
य ी दज़ाद नहीीं दे ता। यह भी सच है । है ना?”
शादी की बात सन
ु ते ही साना भड़क उठी और जोरों से बोल उठी- “पापा, यह कया बकवास है? कफर वोही बात
शादी… शादी… शादी…”
20
शादी की आड़ में ममयाीं-बीबी की तरह रहें िे। और कफर एक साल बाद तम
ु उस शख्श से तलाक ले लोिी,
म्यच
य य
ु ल कन्सेंट से। तब तक हमारा बच्चा भी तेरी कोख में हो चक
ु ा होिा। और तम्
ु हारे पनत को हम तलाक के
बाद य॰य एस॰ए॰ या य॰य के॰ कहीीं भी हमेशा हमेशा के मलए भेज दें िे। कफर कभी वो हमें अपनी शकल नहीीं
ददखायेिा। कययूँ है ना ठीक? तलाक के बाद हम अपने बच्चे के साथ हमेशा-हमेशा के मलए साथ रहें िे। कययूँ कैसा
लिा मेरा प्लान?”
साना कुछ दे र चुप रहती है। सोचती है, कफर बोलती है - “ह्म्म्म्म… पापा आइडडया तो है काफी सटीक आपका।
पर ऐसा बेवकयफ लड़का आपको ममलेिा कहाूँ? जो मझ
ु से शादी भी करे िा और कुछ काम भी नहीीं करे िा?? और
बड़े शरारती िीं ि से मश्ु कुराती है ।
“ममलेिा बेटी जरूर ममलेिा। पैसा इींसान को सब कुछ करने पे मजबरय करता है । मैं उसे इतना पैसा दूँ ि
य ा कक
जजींदिी भर उसको कफर कुछ भी करने की जरूरत नहीीं होिी। हमारे यहाूँ ही ऐसे ककतने लोि ममल जाएूँि…
े ”
साना को बात सही लिती है । वो कफर से मश्ु काराते हुए कहती है - “पर पापा, आपने यह सोचा है ना कक तलाक
से पहले आपको मेरे साथ काफी मेहनत करनी पड़ेिी?”
हरदयाल नासमझ बनते हुए बड़े भोलेपन से कहता है- “पर मेरी रानी बेटी, वो कय?
यूँ ”
“वो इसमलए मेरे भोले पापा कक तलाक से पहले आपको मेरे पेट में अपने बच्चे की बीज बोनी है ना…” और साना
का चेहरा शमद से लाल हो उठता है ।
“हाूँ… हाूँ… हाूँ… अरे बाबा मैं मेहनतकश इींसान हयूँ मेरी जान। मेहनत से कभी दरय नहीीं हटता। चलो आज से ही
मेहनत शरू ु कर दे ते हैं, अभी से ही अिर आप तैयार हैं तो?” हरदयाल उसकी ओर दे खते हुए कहता है ।
पापा उसे अपनी िोद में उठाते हैं और कफर से पलींि पर मलटा दे ते हैं। साना की आूँखें बींद हैं। साींसें धौंकनी की
तरह चल रही हैं और ददल जोरों से धक-धक-धक ककए जा रहा है ।
साना की चगय चयाीं उसके टाप के अींदर उसकी साूँसों के साथ-साथ ही ऊपर-नीचे हो रही थीीं, उसकी चगय चयों के बीच
की घाटी धड़कनों के साथ फैलती और मसकुड़ती जाती। हरदयाल की आूँखें एकटक उसी को दे खे जा रही थीीं। वो
भी साना के बिल में आ जाता है और उसके साथ लेट जाता है । दोनों एक दस
य रे की ओर चेहरा ककए, टाूँिें एक
दस
य रे के ऊपर रख लेते हैं।
हरदयाल अपने हाथ साना के िदराए चयतड़ पर रखकर उसे अपनी ओर खीींच लेता है । अब तक उसकी पैंट के
अींदर कड़क होता लण्ड साना की चत
य से टकराता है । साना पापा के और भी करीब हो जाती है । दोनों की साूँसें
एक दस
य रे से टकरा रही हैं।
“साना…” हरदयाल अपनी भरादई आवाज में उसके चेहरे को थामता हुआ कहता है ।
21
“मेरी रानी बेटी। ककतना अच्छा लिता है तेरे साथ। मेरी सारी थकान दरय हो जाती है । मैं कफर से जज़ींदा हो जाता
हयूँ। मेरा रोम-रोम जाि उठता है बेटी। उफफ़्… हम हमेशा ऐसे ही साथ रहें ि,े कभी जद
ु ा नहीीं होंिे…” हरदयाल
ना जाने कययूँ बहुत सेंदटमें टल हो जाता है ।
“तो ककसने मना ककया है मेरे पापा राजा? आइए ना और पास आइए ना। मेरे में समा जाइए। मैं भी आप में
समा जाना चाहती हयूँ। आपको चयस लेना चाहती हयूँ। आपका बीज अपने में समा लेना चाहती हयूँ। आपके बच्चे की
माूँ बनना चाहती हयूँ। हाीं पापा, ककतना अच्छा लिेिा ना पापा। आपके बदन का दहस्सा मेरे अींदर रहे िा। अया
ककतना मजा आएिा…” साना अपने पापा से मलपट जाती है ।
“हाीं बेटी, यही तो औरत बनने की सबसे बड़ी कामयाबी है , मेरी जान। यह शख
ु हम मदद कभी भी महसस
य नहीीं
कर सकते। इसमलए मैं तम्
ु हें इस शख
ु से अलि नहीीं होने दे ना चाहता, और यह सब कर रहा हयूँ। मेरा एक
अजीज और अपना दहस्सा तझ
ु े दे सकूँय , तझ
ु े माूँ बनाकर। हाीं बेटी, यह सब प्लान जो मैंने बनाया है, मस़द
तम्
ु हारे बच्चे का बाप बनने के मलए ही तो कर रहा हयूँ…” हरदयाल उसकी ओर प्यार भरी नजरों से दे खता हुआ
कहता है ।
“हाीं पापा, आइ नो, आइ नो, यय आर सो स्वीट…” और यह कहते हुए साना उठती है । कमरे का दरवाजा बींद कर
दे ती है । पापा की ओर मश्ु कुराते हुए दे खती है और कहती है - “चमलए आज हम एक दस
य रे को चयस-चयस के, चाट-
चाट के अपने अींदर समा लेते हैं। एक दस
य रे को अपने अींदर महसस
य करते हैं…”
और कफर अपने परय े कपड़े उतारकर नींिी होकर पापा के सामने खड़ी हो जाती है और अपने नींिे बदन की
नमु ाइश करते हुए- “कम आन पापा, आपने अभी तक कपड़े कययूँ पहन रखे हैं। मझ
ु े भी तो आपको चयसना है ना।
प्लीज हरी अप… कपड़े उताररयो ना…”
हरदयाल आूँखें फाड़े बेटी की ओर दे खता जा रहा है । उसकी परय ी जवानी अपनी परय ी खयबसरय ती और चाहत मलए
उसके सामने खड़ी है , उसकी बाहों में आने को तड़प रही है , पापा के हवाले हो जाने को बेचैन। उसे उसकी बातें
कुछ समझ में नहीीं आती। पर अपने कपड़े फौरन उतार दे ता है और उसका लौड़ा फनफनाता हुआ उछलता हुआ
बाहर आ जाता है ।
साना फौरन उसके लौड़े को अपने हाथों में ले लेती है, उसे जकड़ लेती है अपनी मट्
ु ठी से। ककतना कड़क, सख़्त
और मोटा था यह प्यारा लौड़ा। पापा का लण्ड हाथ में लेते ही उसके परय े बदन में सनसनी सी दौड़ जाती है । वो
लण्ड को हाथ में मलए-मलए ही पापा को खीींचते हुए पलींि की ओर चल पड़ती है । पापा को मलटा दे ती है । अपने
चयतड़ पापा के मूँह
ु की ओर करती है, टाूँिें पापा के चेहरे के दोनों ओर करके अपनी चयतड़ उनके मह
ूँु पर ले आती
है । और खद
ु पापा के लण्ड की तरफ मूँह
ु करते हुए उस हसीन लण्ड को अपने होंठों से जकड़ लेती है । आह्ह…
ककतना मस्त स्मेल था पापा के लौड़े का। उसकी चतय भी पापा की नाक से लिी है । उसके चत
य ड़ की फाूँक पापा
की आूँखों के सामने है ।
उसकी चत
य की सि
ु ध
ीं से पापा पािल हो उठते हैं। अपने दोनों हाथों की हथेमलयों से हरदयाल उसके चयतड़ फैलाता
है । अया ककतनी मस्त थी साना के िाण्ड की सरु ाख। िाण्ड की सरु ाख के सीध में नीचे उसकी िल
ु ाबी चत
य ,
जजससे पानी ररस रहा था।
उधर साना लौड़े को जकड़े अपनी हथेली से उसकी चमड़ी को ऊपर-नीचे करती जाती है और होंठों से चयसती है ।
होंठ इतने जोरों से लिाती है कक उसके िाल अींदर की ओर हो जाते हैं। पापा मसहर उठते हैं और कफर वो भी
22
अपनी जीभ परय ी तरह बाहर ननकालकर उसकी चयत की फाूँकें उीं िमलयों से अलि करते हुए चाटने लिते हैं। पापा
की जीभ अपनी चत य पर महससय करते ही साना उछल जाती है ।
और उसके पापा के लण्ड की चुसाई और भी तेज हो जाती है । पापा भी उसकी चयत पर टयट पड़ते हैं। जीभ
हटाकर अब पापा उसकी चत
य अपने होंठों से जकड़ लेते हैं और चयसते हैं। मानो साना का परय ा चयत रस… साना को
परय े का परय ा ही चयस डालेंिे। दोनों काींप रहे हैं, मसहर रहें हैं एक दस
य रे की चुसाई से। मूँह
ु से आवाज नहीीं
ननकलती। मस़द ह्म्म्म… चटखारे और चयसने की चुभलाने की आवाज आ रही है । बदन काींप रहें हैं, मसहर रहें हैं,
थरथरा हैं दोनों के।
पापा चयत का रस अींदर मलए जा रहे हैं और साना लण्ड के ररसते हुए पतली सी पानी की धार। कभी पापा के
सपु ाड़े की छे द पर जीभ कफराती है , कभी सप
ु ाड़े को परय े का परय ा चाट जाती है । वो परे शान हैं, तड़प रही है , ककसी
भी तरह पापा को परय े का परय ा अपने अींदर चस
य लेने को।
और पापा भी चयत को बरु ी तरह चाट रहे हैं, चयस रहें हैं, जीभ चयत में अींदर तक डाल रहें हैं। अपनी बेटी को परय ी
तरह अपने में महसस
य कर रहें हैं। बेटी को खा जाने की कोमशश में ।
और कफर दोनों के बदन बरु ी तरह काींप उठते हैं। साना की चयतड़ उछल पड़ती है, उसकी जाींघें थरथरा उठती हैं।
पापा की आूँखों के सामने उसकी चयत की दोनों फाूँकें फड़क रही हैं, काींप रही हैं, उसकी फाूँक कभी मसकुड़ती हैं,
कभी फैलती हैं और कफर साना की चत
य से िाढ़ा सा रस फयट पड़ता है । साना काींप रही है । उसकी चत
य पापा के
मूँह
ु पर आ जाती है और पापा का मूँह
ु उसके रस से भर जाता है ।
पापा मस्त होकर रस को अमत ृ समझकर पीते जा रहे हैं। चयसते हुए अींदर लेते हैं परय े का परय ा और खुद भी
झटके खाते अपने लण्ड से पपचकारी छोड़ दे ते हैं।
साना का मूँह
ु भी पापा के वीयद से भर जाता है । पापा झड़ते जा रहें हैं और साना वीयद की धार अपने िले के
नीचे िटकती जाती है । उसके िाल, उसके होंठ, पापा के वीयद से लथफथ हैं। अपनी उीं िमलयों से उसे पोंछती है
और चाट जाती है । पापा का लण्ड मरु झाया है । मरु झाए लण्ड को चयस-चयसकर साना परय ी तरह साफ कर दे ती है ,
एक कतरा भी नहीीं छोड़ती, परय ा उसके अींदर है ।
बाप-बेटी एक दस
य रे को, अपने शरीर के पानी के रूप को अपने-अपने अींदर परय ी तरह समा लेते है । यह एक
अजीब ही अहसास था। साना पापा के ऊपर ननिाल होकर पड़ जाती है । और पापा उसके नीचे हाथ पावीं िीले
ककए पड़े रहते हैं। दोनों की एक दस
य रे की भख
य शाींत है अब। चेहरे पर सक
ु य न और मश्ु कुराहट है । मानो उन्हें परय ा
सींसार ममल िया हो। परय ी दनु नयाीं का शख
ु चयत और लण्ड के रास्ते उन्होंने समेट मलया अपने अींदर। कया
अहसास था।
दोनों सस्
ु त से पड़े थे। कफर साना ने आूँखें खोलीीं। पापा का मरु झाया और गचपगचपा लण्ड अभी भी उसके होंठों से
लिा था। उसने उसे चम
य मलया और कफर से चाटकर परय ी तरह साफ कर ददया। उसकी इस हरकत से पापा की
सस्
ु ती जाती रही, और कफर से उनमें भी फुती आ ियी, उन्होंने भी साना की गचपगचपी चयत चाट ली और साफ
कर दी।
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“साना, तेरी चयत की सि
ु ध
ीं और टे स्ट बड़ी मस्त है रे । कभी चाटने से मन नहीीं भरता। पर अब दे र हो रही है।
रात खाना खाने के बाद मीठे खाने की जिह तेरी चत
य के मीठे और सोंधे से रस का मजा लूँ ि
य ा…” और हरदयाल
ने अपनी जीभ साना की चत
य से हटा ली।
“जैसी आपकी मज़ी पापा। यह तो आपकी है जब चाहे , जैसे चाहे चाट लीजजए ना। मैं कब मना करती हयूँ…” यह
कहते हुए पापा के ऊपर से उठकर उनके बिल लेट ियी और पापा के सीने पर हाथ कफराते हुए कहा- “पापा,
अब दे र मत करो। अपने प्लान पर काम शरू
ु कर दो ना…”
“हाूँ बेटी, मैं भी इसी बात पर सोच रहा हयूँ कक इस काम को ककस तरह अींजाम ददया जाए। तम
ु भी कुछ सोचो
ना…” पापा ने बेटी के िाल सहलाते हुए कहा।
“अरे नहीीं पापा इस काम में तो आप ही अपना ददमाि खपायें। मैं कहाूँ सोचने लिी। मैं तो बस बेसब्री से इस
इींतज
े ार में हयूँ कक कब आपका बच्चा मेरे पेट में आए और मैं माूँ बन जाऊूँ। ऊऊह्ह… पापा, मैं तो इस ककपना से
ही मसहर उठती हयूँ…”
“हाीं मैं समझती हयूँ बाबा। सब समझती हयूँ। आप इस बारे में ननजश्चींत रहें । पर मझ
ु े कया करना है इस बारे में तो
आप बताएूँिे ना। मझ ु े परय ी तरह मालम
य होना चादहए कक मेरा कया रोल रहे िा?”
“ह्म्म्म्म… पापा यय आर सो बब्रमलयेंट। मान ियी कक इतना बड़ा बबज़नेस आप यूँय ही नहीीं चलाते…” और पापा के
िाल चयम लेती है ।
“ह्म्म्म्म… यह ररस्क तो बड़ा जबरदस्त है मेरे राजा पापा। पर कया करें ररस्क तो लेना ही पड़ेिा…”
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साना कुछ दे र चुप रहती है। कफर कहती है- “पापा, भरोसा रखखए कक अपने बच्चे के मलए मैं कुछ भी कर सकती
हयूँ। मैं अपने आपको परय ी तरह बदल दूँ ि
य ी। अब मेरी जजींदिी में आपके मसवा और कोई, कभी भी नहीीं आएिा।
बस मस़द आप और आपका यह हगथयार…” और यह कहते हुए साना पापा के मरु झाए लौड़े को जकड़ लेती है।
“उफफ़्… समझ िया बाबा, समझ िया। चल अब अपने प्यारे हागथयार को छोड़… उठ और तैय्यार हो जा।
ममसेज़ डडसज
य ा कभी भी आ सकती है डडनर की खबर लेकर…” हरदयाल यह कहता हुआ उठता है । कपड़े पहनता
है और अपने रूम की ओर ननकल जाता है ।
दस
य रे ददन हरदयाल आकफस पहुूँचते ही अपने सेरेटरी को बल
ु ाता है और उससे कहता है - “आप एक काम करें ।
हमारे यहाूँ जजतने भी नये और यींि आकफससद पपछले एक साल के अींदर जाय्न ककए हैं। उनकी फाइलें लेकर
आयें। मझु े एक पी॰ए॰ की सख़्त जरूरत है जो हमेशा मेरे साथ रहे । काम बहुत बढ़ िया है । मझ
ु े मेरी सहायता
के मलये कोई चादहये, जो मेरे साथ रहे…” और कफर फाइलें आ जाती हैं और उनमें से एक लड़के की फाइल उसे
जूँच ियी।
लड़का ममडडल कलास पररवार का था। उसकी तीन बहनें भी थी। जजनकी उसे शादी करनी थी, बाप ररटाइडद था,
कमानेवाला मस़द वो लड़का। जादहर है उसे पैसों की सख़्त जरूरत थी। हरदयाल उसे बल
ु वाता है और सारी बात
उसे समझा दे ता है अच्छी तरह।
उस लड़के ने जाय्न कर ली। और कुछ ददनों बाद साना और उस लड़के की शादी बड़ी धयम धाम से हो ियी और
सब कुछ प्लान के मत
ु ाबबक चलता िया। साना की कोख में हरदयाल का बच्चा था। साना खश
ु ी से झम
य उठी।
और कफर जैसा तय था उन दोनों का तलाक हो िया। वो लड़का अपने परय े पररवार सदहत य॰य एस॰ए॰ चला िया।
ममसेज़ डडसज
य ा को अब तक सारी बात मालम
य हो ियी थी। उसने अपना मूँह
ु बींद रखा था। उसकी खुशी तो उस
पररवार की खुशी में ही थी।
सही समय आते ही साना की कोख से हरदयाल का बेटा पैदा हुआ। बड़ा ही खबय सरय त स्वस्थ और बबककुल अपने
बाप (नाना) की शकल मलए। हरदयाल तो खुशी के मारे पािल हो उठा। साना की जजींदिी का एक बड़ा ही सदींु र
और खब
य सरय त सपना साकार हो िया। वो खश
ु ी से फयली नहीीं समाती।
और कफर भाग्य कहें , ककश्मत कहें यह ननयती कहें । उसने भी साना की जजींदिी में अपना खेल ददखाया।
25
और कफर उस दीन।
अभी साना हाजस्पटल में ही थी। प्रसव का पाूँचवा ही ददन था। ककसी जरूरी बबज़नेस मीदटींि के मसलमसले में
हरदयाल एक ददन पहले ही बैंकाक िया हुआ था। आज शाम की फ़्लाइट से उसे आना था। एयरपोटद से प्लेन में
बोडद करने के पहले साना से काफी अच्छी बातें हुई। साना को कया मालम
य कक वो अपने ददल-अजीज से आखखरी
बार बात कर रही है ।
प्लेन टे क-आफ करते ही रैश हो जाता है धमाके के साथ। उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। और नीचे सािार की
िहराइयों में डयब जाते हैं प्लेन के टुकड़े। और इसके साथ ही साना की जजींदिी के भी टुकड़े-टुकड़े हो जातें हैं।
ककसी की लाश तक नहीीं ममली। कुछ भी बाकी नहीीं रहा।
पर जजींदिी की िाड़ी तो चलती ही रहती है । साना की जजींदिी भी चलती ियी, पर अब इसमें रफ़्तार, तेजी और
मस्ती नहीीं थी। उसकी जिह दहचकाुोलों, धककों और सस्
ु त रफ़्तार ने ले ली थी।
समीर की तरफ से उसका ध्यान बबककुल ही हट िया था। उसके मलए उसका होना यह ना होना बराबर था। वो
उसकी सरय त से नफरत करती थी।
साना अपनी जजींदिी के दहचकोलों और झटकों को शाींत करने की नाकामयाब कोमशश में कफर से अपने आपको
शराब और शबाब की परु ानी लत में डयबो दे ती है । जहाूँ समीर के मलए उसके पास कोई समय, लिाव या जिह
नहीीं थी।
साना की अींधेरी जजींदिी में एक ही रोशनी थी। वो था अभी भी उसका हरदयाल के मलए अटयट प्यार। वो अपने
आपको उसके प्यार की ननशानी समझती। अपने आपको हरदयाल की ननशानी समझती। उसे ना जाने कययूँ ऐसा
लिता कक हरदयाल शायद… शायद सािार की िहराइयों से उछलता हुआ एक ददन जरूर बाहर आएिा और उसे
अपनी बाहों में जकड़ लेिा, भर लेिा।
उसे अपने आपको सींभालना पड़ेिा, अपने आपको उस ददन के मलए तैय्यार रखना होिा। इस सोच ने उसे अपने
शरीर को बबककुल कफट रखा, मन से तो साना बझ
ु ी रहती पर शरीर तरो-ताजा, कफट जैसी साना को हरदयाल ने
जाने के पहले दे खा था, साना ने अपने बदन को बबककुल वैसा ही रखा। नतीजा उसकी खयबसरय ती, जवानी और
सेकस अपील अभी भी बरकरार थी।
और दस
य री रोशनी की ककरण थी उसका हरदयाल के बबज़नेस से लिाव। हरदयाल की वापसी की ककपना और
सपनों में खोई, वो इसे बबादद नहीीं होने दे ना चाहती। उसने बड़े अच्छे से परय ा बबज़नेस सींभाल मलया था। पर घर
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में अकेलापन उसे काटने को दौड़ता। समीर से उसे कोई लिाव था नहीीं। इसी अकेलेपन को दरय करने की नाकाम
कोमशश में साना ने शराब और शबाब का सहारा मलया। कलब और पाटीस में ही उसकी शामें िज
ु रती।
समीर बड़ा हो रहा था। अपनी मोम की ओर प्यार भरी नजरों से दे खता, पर उसे वहाूँ प्यार की जिह एक खाली
खाली सा, बड़ा ठीं डा और सख
य ा सा जवाब ममलता। उसका ददल टयट जाता। पर कफर भी उसे अपनी मोम से अींदर
ही अींदर लिाव, आकिदण और एक खखींचाओ सा महसस
य होता। वो उसकी बाहों में आने को, उसके सीने से लिने
को, उसके करीब जाने को, उसकी िमद और नमद िोद में समा जाने को तड़प उठता।
ममसेज़ डडसजय ा ऐसे मौकों पर उसे समझाती- “समीर बेटा, मोम को तींि मत करो। वो बहुत काम में बबजी रहती
हैं, थक जाती हैं। समीर, आओ मैं तम्
ु हें कहानी सन
ु ाती हयूँ…” और वो उसे अपनी बाहों में मलए अपने सीने से
लिाए उसे उसके कमरे में ले जातीीं और कहानी या कोई लोरी सन
ु ाती।
समीर के बथद-डे पर साना आती, पर मस़द एक िेस्ट की तरह, उसे िले से लिाती, िालों पर एक ठीं डी सी ककस
दे ती, रस्म ननभाने की कोमशश में , और कफर काम का बहाना, और चली जाती। समीर उसकी ओर बढ़ता उसे
थामने को, उसे रोकने को। पर साना उसकी पहुूँच से दरय चली जाती।
इसी तरह समय िजु रता िया और समीर बच्चे की दहलीज पार करता हुआ अब 18 साल का खयबसरय त, हैंडसम
जवान था, कसरती, िठीला बदन, हरदयाल की जवानी की तस्वीर, साना उसे दे खकर कई बार उसे िले लिाने
को मचल उठती पर कफर हरदयाल की याद आते ही उसके बढ़ते पावीं थम जाते। पर समीर के ददल में अपनी माूँ
के मलए कोई नफरत नहीीं थी।
ममसेज़ डडसज
य ा को समीर, सौजी मोम बल
ु ाता था। जो शायद साना को खटकती थी। पर वो खुले तौर पर बोल
नहीीं पाती थी। बोलती भी कैसे उसने तो अपने और अपने बेटे के बीच एक नफरत की दीवार जो खड़ी कर रखी
थी। उसी समय दो बातें हुईं।
उसकी सौजी मोम ने नाश्ते का प्लेट उसके सामने रखा। नाश्ते में उसका फवररट नाश्ता टोस्ट और डबल
ओमलेट था। ओमलेट भी बबककुल िमद भाप ननकलता हुआ और साथ में चाय का िमद-िमद बड़ा सा प्याला।
समीर नाश्ता दे खते ही उछल पड़ा और उठता हुआ ममसेज़ डडसज
य ा को िले लिा मलया। उसके िाल चम
य मलए
और कहा- “वाह सौजी मोम… यय आर दा स्वीटे स्ट मोम…” और कफर सौजी मोम के हाथ थामकर उसे भी चम
य ने
लिा।
उसी वक़्त साना भी नाश्ते के मलए आ टपकी। अपने सौजी मोम को इस तरह प्यार करते समीर को दे खकर
उसके ददल में एक हयक सी उठी। आखखर वो भी तो माूँ थी। उसकी नफरत की दीवार के चलते उसे आज तक
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यह प्यार नसीब नहीीं हुआ। इसका उसे बड़ा झटका लिा। वो अपने आप पर खीझ उठी। और यह खीझ उसने
समीर पर िस्
ु सा होते हुए उतारी।
वो समीर पर भड़क उठी और कहा- “समीर यह कया बचपना है । बबहे व लाइक आ मैन। कया बच्चों जैसी हरकतें
कर रहे हो। आींटी आप इसे समझायें। आपके लाड़ प्यार ने इसे बबिाड़ रखा है …” और साना पैर पटकते हुए बबना
नाश्ता ककए बाहर ननकल जाती है ।
समीर बबककुल है रान था अपनी मोम के इस रवैय्ये से। उसे समझ में नहीीं आया कक उसने कया िलती की? वो
भौंचकका सा हो िया, चेहरा उतर िया। उसका अब तक मस्ती भरा मड
य अब एक उदासी और ननराशा में बदल
चुका था।
पर जब उसकी नजर अपनी सौजी मोम पर पड़ी तो वो और भी है रान था। उसकी सौजी मोम के चेहरे पे िस्
ु सा,
शमद या खझझक का नामो-ननशान नहीीं था। वो मश्ु कुरा रही थी- “कम आन सौजी मोम। आप भी अजीब ही
नमन
य ा हो। मोम ने इतना कुछ बोल ददया, और आप मश्ु कुरा रही हैं…”
ममसेज़ डडसज
य ा समीर के बिल में आकर खड़ी हो जाती है । उसके सर पर हाथ रखकर बड़े प्यार से सहलाती है ,
और कहती हैं- “बेटा, तम
ु मदद हो ना… इन बातों को समझ नहीीं सकते। एक औरत ही औरत की भािा समझती
है । आज पहली बार साना बेटी ने ररएकट ककया है । उसे तम्
ु हारा मझ
ु े इस तरह प्यार करना अच्छा नहीीं लिा।
जानते हो कय?
ूँय ?
“मझ
ु े पवश्वास नहीीं… ऐसा कभी नहीीं हो सकता सौजी मोम, कभी नहीीं। काश… ऐसा हो सकता, काश…” समीर
सौजी मोम के सीने पर सर रखे मससक-मससक कर रो रहा था।
समीर नाश्ता करते-करते सौजी मोम से बोलता है - “मैं भी तो ककतना प्यार करता हयूँ सौजी मोम अपनी मोम से…
बे-इींतह
े ा। पर आज तक मझ
ु े अपने प्यार के बदले मसवाय खझड़की, ताने और उनका िस् ु से के सीवा कुछ नहीीं
ममला… कुछ नहीीं सौजी मोम। मेरा ददल फट उठता है। मैं कया करूूँ, बताइए ना मैं कया करूूँ?”
“हाीं बेटा मैं जानती हयूँ और सब दे खती हयूँ। बेटा प्यार करना एक बहुत बड़ी दे न है। सबके ददल में यह जज़्जबात
नहीीं आते। तम ु एक अलि ही हो सबसे। तम ु ने आज तक ककतना कुछ सहा है, झेला है । मेरी नन्ही सी जान,
इतनी छोटी उम्र में भी तम
ु ने बड़े-बड़े प्यार करनेवालों को पीछे छोड़ ददया है । तम
ु भिवान की दे न हो बेटा।
प्यार करनेवाले हमेशा दे ते हैं कुछ माूँिते नहीीं। पर उन्हें ममलता भी है, तम्
ु हें भी ममलेिा, जरूर ममलेिा। मेरा
ददल कहता है कक साना के ददल में भी प्यार का अथाह सािर है समीर। आज उस सािर में तम
ु ने एक हलचल
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पैदा कर दी है । दे खना यह हलचल अब ककस तरह एक लहर बन के तझ
ु े अपने लहरों में समा लेिी। तम्
ु हें अपने
प्यार के सािर की िहराइयों में डयबो दे िी। बस तम
ु मस़द धैयद रखो, उसे वक़्त दो…” ममसेज़ डडसज
य ा उसे समझाती
है । ददलासा दे ती है - “नाउ कम आन स्माइल लाइक आ मान। प्यार करनेवाले हमेशा मश्ु कुराते हैं रोते नहीीं…”
समीर पर सौजी मोम की बातों का िहरा असर होता है। वो नाश्ता खत्फम करता हुआ, मश्ु कुराता है । सौजी मोम
के िालों को चयमता है और कहता है - “सौजी मोम, आइ आम सो लकी टय है व य।य अिर आप ना होतीीं ना तो मैं
कब का मर चुका होता। सौजी मोम आइ लव य,य लव यय सो मच। आप मेरे मलए माूँ से भी बढ़कर हो…” और
कफर मश्ु कुराता हुआ कालेज के मलए बाहर ननकल जाता है ।
सौजी मोम समीर को बाहर जाते हुए दे खती है । अपनी आूँसओ ु से िीली आूँखें पोंछती है , और मन ही मन में
कहती है - “िाड ललेस्स यय माइ चायकड। तम
ु ने बहुत सह मलया, बहुत सह मलया। भिवान अब उसे कुछ दे , कुछ
दे दे ना। मेरा ददल फट जाता है …” और वो डाइननींि टे बल के पास रखी कुसी पर बैठकर फयट-फयट के रो पड़ती है ।
समीर के सामने उसने अपने को काफी रोक रखा था। उसके जाते ही उसके आींसओ
य ीं का बाूँध फयट पड़ता है ।
इधर बबना नाश्ता ककए, पेट खाली पर ददल और ददमाि में एक सैलाब मलए साना अपने आकफस में दाखखल होती
है । आज िस्
ु सा, खीझ और भख
य के मारे अपने मातहतों को जरा-जरा सी बात पर डाूँट दे ती, फटकार दे ती। सब
है रान परे शान थे साना मेम का यह रूप दे खकर। कभी भी वो अपने आकफस में ज्यादा बात नहीीं करती थी, बस
मस़द काम से काम रखती थी, डाींटना, फटकारना और बे मतलब ककसी से बातें करना, यह सब उसने आज तक
नहीीं ककया।
वो खुद भी परे शान थी कक आज उसे कया हो िया है । जब उसे समीर से कोई मतलब नहीीं तो कफर उसके इस
बतादव से, उसका आींटी से इस तरह प्यार करने से इतना खीझ और िस्
ु सा कयूँय आया, कय?
ूँय उसका आींटी को
सौजी मोम बल
ु ाने से उसकी छाती कययूँ फट पड़ी। कय? यूँ आज तक तो ऐसा नहीीं हुआ। उफफ़्… आज कया हो
िया उसे? उस बेचारे को बेवजह डाूँट ददया। वो कफर चौंक पड़ी अपने को समीर के मलए बेचारा कहने पर। आज
तक उसने उसके मलए ‘बेचारा’ नहीीं सोचा। हमेशा उसे अपने प्यार का काींटा ही समझा… ऐसा काूँटा जजसने उसके
ददल को भेद ददया था, तार-तार कर ददया था, उसके प्यार को उसकी दनु नयाीं से कुरे दकर ननकाल फेंका था। यह
सब उसके इस दनु नयाीं में आते ही तो हुआ था। कफर आज वो मेरे मलए बेचारा कैसे हो िया? हे भिवान… आज
कया हो िया?
उसे लिा जैसे उसका सर फट जाएिा। वो बहुत बेचैन थी। उसके ददल और ददमाि में उसे ऐसा महसस य हुआ
मानो हथौड़े चल रहे हों। वो ज़्जयादे दे र वहाूँ बैठ ना सकी और कफर वो आकफस से बाहर ननकल ियी। अपनी
सेरेटरी से कहा- “मेरी तबीयत ठीक नहीीं लि रही है, मैं घर जा रही हयूँ। कोई जरूरी काल आए तो मझ
ु े काल
कर लेना…”
घर पहुूँचते ही सीधा बेडरूम के अींदर ियी। वहाूँ एक कोने में बनी छोटे से बार काउीं टर से स्कॉच की बोतल
ननकाली। और सीधा मह ूँु से लिाती हुई िटािट दो तीन घट यूँ उसने िले के नीचे उतार मलए। तब तक ममसेज़
डडसज
य ा आ ियी और दरवाजा खटखटाया। साना ने उसकी ओर दे खा और आूँखों से इशारा करते हुए उसे अींदर
आने को कहा।
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उसे पलींि पर मलटा ददया और कहा- “बेटी, तय यह कया कर रही है ? तेरा ददल तो जल रहा है अब खाली पेट
पपएिी तो तेरा जजिर भी जल के खाक हो जाएिा। ओह िोड… यह कया हो रहा है इस घर में ? सब जल मरने
को तैय्यार हैं यहाूँ। रुक मैं कुछ खाने को लाती हयूँ। आज तय ने िस्
ु से में नाश्ता भी नहीीं ककया…” और ममसेज़
डडसज
य ा भािते हुए ककचेन की ओर जाती हैं और पपज़्जज़ा और केक का बड़ा सा टुकड़ा एक प्लेट में लाती है और
साना को खखलाती है ।
खाना पेट में जाते ही साना को कुछ अच्छा लिा, उसके चेहरे पर कुछ रीं ित आई, ममसेज़ डडसज
य ा एक कुसी
लेकर उसके बिल बैठ ियी। उसके माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहती हैं… “साना बेटी, तझ
ु े कया हो िया
है ? कययूँ सब कुछ बबादद करने पर तमु ल है त?
य कब तक तय अपने को इस शराब के नशे से बहलाती रहे िी? प्यार
का नशा तेरा कहाूँ िया बेटी? कया तेरे अींदर का प्यार मर िया? तय एक माूँ भी है , अपने शराब के नशे में भल
य
ियी? तेरा इतना प्यारा बेटा, जो तेरे मलए जान तक दे ने को तैय्यार है, तेरी एक प्यार भरी नजर के मलए
तरसता है , तड़पता है , बबलखता है । इस प्यार की आस मलए जजसमें उसने अपना बचपन खो ददया, अब जवानी
भी शायद उसकी खत्फम हो जाएिी इसी आस में । कया ककया है उसने? बता ना बेटी कया िन
ु ाह है उसका? उस
बच्चे का टयटा ददल दे खकर मेरा ददल फट जाता है । ककतना भोला है बेचारा… अब दे र मत कर बेटी वरना बहुत
दे र हो जाएिी, बहुत दे र। कफर तय मस़द पछताने के मसवा कुछ नहीीं कर पाएिी। कफर स्कॉच की बोतलों में इतनी
शराब नहीीं होिी कक तम
ु अपने िम को शराब में डयबो सको। साना प्लीज होश में आ जाओ बेटी। अभी भी दे र
नहीीं हुई, होश में आ जाओ…”
ममसेज़ डडसज
य ा उसकी आूँखों से आूँसय पोंछती है । कफर से प्यार से उसका माथा सहलाती है और कहती हैं- “मझ
ु से
ज्यादा और कौन जानता है यह सब बातें साना बेटी? पर जो तय ने खो ददया, अब वापस तो नहीीं आ सकता ना।
बोल ना बेटी? पर तेरा जो कीमती जेवर तेरे पास है, तेरा बेटा समीर। उसे तो मत खो। एक बार तय खो चक
ु ी है
अपना प्यार, तय खुद जानती है ककतना ददद होता है । तय दब
ु ारा इस ददद को झेलने पर कययूँ आमादा है? बेटी, ऐसा
मत कर। दब
ु ारा तय इसे झेल नहीीं पाएिी साना। नहीीं झेल पाएिी, सब कुछ जल जाएिा, सब कुछ बबादद हो
जाएिा। बेटी, अभी भी समय है , लिा ले िले उस प्यार के भख
य े को। दे ख तेरी छाती कैसे ठीं डी हो जाएिी। बढ़ा
दे अपने हाथ, भर ले उस अभािे को अपनी बाहों में… दे र मत कर…”
ममसेज़ डडसज
य ा उसे अपने सीने से लिा लेती है, उसके आूँसय कफर से पोंछती है, और कहती है - “ना रो बेटी। ना
रो… बेटी, यह भी तो हो सकता है ना कक तेरे पापा ने समीर का चेहरा ले मलया और तेरे पास कफर से आ िये?
तय दे खती नहीीं समीर की हर बात हरदयाल से ककतनी ममलती जुलती है… वोही कद, वोही चेहरा, वोही उूँ चाई, सब
कुछ तो वोही है बेटी। तेरे पापा कहाूँ िये? वो तो तेरे पास ही हैं ना। समीर ने तेरे पापा को छुपाया नहीीं बेटी वो
कफर से उन्हें तेरे सामने ले आया है , उसे पहचान…”
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साना कफर से रो पड़ती है , ममसेज़ डडसज
य ा की बातों से। कफर से दहचककयाीं बूँध जाती हैं, वो बबलख उठती है - “हे
भिवान… मेरी समझ में कुछ नहीीं आ रहा है । आींटी, मैं कया करूूँ? मैं कया करूूँ? हे भिवान…” साना ममसेज़
डडसज
य ा से और भी गचपक जाती है , और भी दहचककयाीं ले-लेकर रोती जाती है । शायद उसके इतने ददनों से छुपाए
आूँस,य ददल का िब
ु ार, भड़ास, दख
ु , िम सब कुछ आज आूँसय बनकर ननकलते जा रहे थे।
ममसेज़ डडसज
य ा उसे पच
ु कारती हैं, उसकी पीठ सहलाती हैं और बोलती जाती हैं- “हाीं बेटी रो ले, रो ले जजतना चाहे
रो ले। अपने आूँसय मत रोक। इतने ददनों से तेरे अींदर भरे थे। हाीं बेटी ननकाल दे …”
ममसेज़ डडसज
य ा उसे पलींि पर लीटा दे ती हैं। एक चादर उसपर डाल दे ती हैं। और दबे कदमों से बाहर ननकल
जाती हैं। उसकी आूँखों से भी लिातार आूँसय टपक रहे थे। पर यह आूँसय आशा और खश
ु ी के आूँसय थे। आज
ममसेज़ डडसज
य ा को पवश्वास हो िया था, उसे परय ी उम्मीद हो ियी थी कक साना और समीर का ममलन अब दरय
नहीीं।
***** *****अपडेट 14
शाम हो चुकी थी। समीर अपने कालेज से आ चुका था। उसने दे खा कक उसकी सौजी मोम, मोम के कमरे की
ओर जा रही थी, यानी की मोम शायद आ चक
ु ी थीीं घर। पर यह एक अजीब ही बात थी। मोम और इस समय
घर में ? ऐसा तो उसकी 18 साल की छोटी पर कुछ लींबी सी जजींदिी में आज तक नहीीं हुआ। इस समय मोम या
तो आकफस में होतीीं या कफर कलब में । और कफर कलब होते हुए घर आतीीं या कफर वहीीं से सीधे ककसी पाटी में ।
अपनी मोम की शकल उसको सब
ु ह ही ददखती।
ममसेज़ डडसज
य ा उसे अपनी तरफ इशारे से बल
ु ाती हैं, और अपने साथ लेकर उसे उसकी मोम के कमरे की ओर ले
चलती है । दरवाजा बबना ककसी आवाज ककए धीरे से खोलती हैं और अींदर दे खती हैं। समीर भी सौजी मोम के
साथ अींदर दे खता है ।
साना बबस्तर पर अभी भी सो रही थी। बबककुल एक बच्ची की तरह शाींत, ननश्चल चेहरा था। चेहरे पर कोई
मशकन नहीीं थी। सारी दनु नयाीं से बेखबर थी। यह कुछ तो उसके स्कॉच के शरू
ु र का और कुछ उसके रोने से,
आूँसय बहाने से अपने आपको हकका महसस
य करने का असर था।
सौजी मोम दरवाजे को कफर से बबना आवाज ककए उढ़का दे ती हैं समीर के साथ बाहर ननकल आती हैं, और कफर
उसके साथ डाइननींि टे बल से लिी कुसी पर बैठकर उसकी ओर दे खती हैं- “बेटा तम
ु ने दे खा ना आज कक साना
कैसी है ? दे खा ना ककतनी मासम
य थी। ककतनी हसीन लि रही थी?”
“हाीं सौजी मोम। एक तो आज इस वक़्त मोम घर पर हैं, और कफर इतना शाींत और ननजश्चींत चेहरा आज तक
मैंने नहीीं दे खा। यह कया हो िया उन्हें ? तबीयत तो ठीक है ना उनकी?” समीर है रान होते हुए कहता है ।
“बेटा यह आज जो रूप है ना तेरी मोम का। यह उसके असली रूप की थोड़ी सी झलक है । बहुत थोड़ी सी… दे खा
ना ककतना सन्
ु दर, ककतना खयबसरय त और ननश्चल है यह चेहरा?”
31
“पर आज हुआ कया सौजी मोम? यह बदलाव?”
“मैंने सब
ु ह कहा था ना तझ
ु से समीर कक तम
ु ने उसकी माूँ की ममता को झकझोर ददया है । उसके ददल में उथल
पथ
ु ल मची है । जजस तरह तम
ु ने पढ़ा होिा ना कक सािर में मींथन हुआ था और ककतने रत्फन ननकले थे। वोही
मींथन आज साना के सािर से िहरे प्यार भरे ददल में भी हो रहा है और कफर इसमें से तम्
ु हारे मलए मोती ही
मोती ननकलेंिे बेटा। इसमें से मस़द तम्
ु हारे मलए प्यार की अमत
ृ फयट पड़ेिी। तय सींभाल नहीीं पाएिा इतना प्यार
दे िी वो तझ
ु े। अभी-अभी उसके अींदर का तफय ान शाींत हुआ है और अब वो शान्ती उसके चेहरे पर झलक रही है ।
बस थोड़ा सब्र करो बेटा…” ममसेज़ डडसजय ा उससे कहती है ।
समीर आूँखें फाड़े साना की ओर दे खता है , अपनी मोम का यह रूप, उसके ऊपर की चादर अस्त व्यस्त सी उसके
शरीर को िूँ क कम रहा था, उसके बदन की िोलाईयों, उसकी छाती के उभार को और भी हसीन बना रहा था,
सड
ु ौल टाूँिें बाहर ननकली हुई थी, साूँसों के साथ उसकी चगय चयों का ऊपर-नीचे होना, बाल चेहरे पर बबखरे -बबखरे ।
समीर की आूँखों में एक अजीब ही चमक थी। वो अपनी मोम में खो सा िया था।
ममसेज़ डडसज
य ा की नजर उसपर पड़ती है तो वो मश्ु कुरा दे ती है ।
समीर थोड़ा झेंप जाता है । पर झेंप ममटाते हुए कहता है - “पर सौजी मोम, यह सब हुआ कैसे? जब मोम आकफस
जा रही थीीं तो ककतने िस्
ु से में थी। बताइए ना कया हुआ उसके बाद?”
और कफर ममसेज़ डडसज य ा, साना के आकफस से जकदी आ जाने से लेकर उसके और साना के बीच हुई बातों का
परय ा हाल सन
ु ाती हैं।
समीर को यह मालम
य नहीीं था अब तक कक उसके पापा और उसके मोम के पापा एक ही थे। एक ही शख्स था
दोनों शजकशयत का मामलक। उसे ककसी ने बताया नहीीं था अब तक। यह बात उससे छुपाई ियी थी।
वो पछ
य ता है है रानी से- “सौजी मोम, मेरे पापा को मोम भी पापा-पापा कहती जा रही थी। कया मतलब है
इसका?” और तभी उसके ददमाि की घींटी बजती है । उसका माथा ठनक उठता है । और कफर एकदम से चौंकता
हुआ कुसी से उठता है ममसेज़ डडसज य ा को उनके कींधों से जकड़ता हुआ झकझोरता है और बोल उठता है - “सौजी
मोम, कहीीं ऐसा तो नहीीं…” और बोलता हुआ अचानक चप ु हो जाता है ।
ममसेज़ डडसज
य ा समझ जाती है । उसकी आूँखों में परे शानी, उसके चेहरे पर सवाल का जवाब सन
ु ने से पहले ही
जान लेने का आश्चयद और है रत साफ झलक रहे थे।
“ह्म्म्म… अब मझ
ु े कुछ-कुछ समझ में आया कक मोम कययूँ मेरे साथ ऐसा बतादव करती हैं। उन्होंने अपने बाप
और प्रेमी दोनों को एक साथ खो ददया। सच है ककतना बड़ा धकका लिा होिा उन्हें । पर सौजी मोम अब मेरे
और मोम के बीच भी वोही सींबध
ीं है । मैं भी उन्हें वैसे ही प्यार करता हयूँ। आप कैसे कह सकती हैं? मैंने तो आज
तक ऐसा कुछ भी नहीीं ककया?”
“हाीं सौजी मोम, मैं बहुत तड़पता हयूँ मोम के मलए, बहुत। मेरा ददल उन्हें अपने प्यार से शराबोर कर दे ने को
बेताब है । इतना प्यार कक वो समेट ना पायें। जजतना खोया है उन्होंने मैं उससे भी ज्यादा प्यार करूूँिा सौजी
मोम… उससे भी ज्यादा। बस मस़द एक बार… मस़द एक बार मेरी ओर प्यार से नजरें तो ममलाए ना मोम। मस़द
एक बार…” समीर की आवाज में तड़प, कसक, ददद और मोम के मलए अटयट प्यार भरा था।
तभी ऊपर मोम के बेडरूम का दरवाजा खल ु ता है । दोनों ऊपर की ओर दे खते हैं। सामने सीदढ़यों से उतरती हुई
साना नीचे डाइननींि हाल की ओर बड़े नपे तल
ु े कदमों से आती जा रही थी। उसकी नजर समीर की ओर थी। उसे
एकटक दे खे जा रही थी। समीर की नजरें भी मोम की नजरों से टकरा रही थी। वो भी एकटक उन्हें दे खे जा रहा
था।
साना ने अपने आकफस का ड्रेस उतार ददया था। जजसे पहने वो सो ियी थी। और अब उसके बदन पर एक िीला
सा टाप था और उतना ही लज
य और पतला पाजामा था। ब्रा और पैंटी साना ने पहनी नहीीं थी। उनके िीले कपड़ों
के अींदर उनके कसे बदन की झलक, उनकी िदराई जाींघों की गथरकन, उनके सीने की िोलाईयों का उछलना और
मचलना।
समीर आूँखें फाड़कर अपनी मोम का अपनी जजींदिी में पहली बार एक बबककुल ही अलि रूप दे ख रहा था। हैरान
था वो, और सबसे बड़ी है रानी थी मोम की नजरें । आज उनकी नजरों में समीर के मलए नफरत, िस्
ु सा या खीझ
का नामो-ननशान नहीीं था। आज उनकी नजरों में उसके मलए प्यार, ममता, स्नेह और ददद भरा था। समीर अपनी
आूँखें मलता है कक कहीीं वो सपना तो नहीीं दे ख रहा? पर जब मोम उसके बिल आकर बैठ ियीीं, अपना हाथ
समीर के सर पर रखा।
उनके बदन की खश ु बय का झोंका उसे अपनी साूँसों के साथ अींदर जाता महसस
य हुआ। उनकी हथेली का िमद और
नरम स्पशद अपने सर पे महसस य हुआ। वो चौंक िया। यह सपना नहीीं हकीकत थी। जो सपने से भी ज्यादा
हसीन और खयबसरय त थी। जजस सपने का उसे इतने सालों से इींतज
े ार था। समीर अपने सपने से जािता है । मोम
की तरफ ननहारता है ।
33
साना उसके सर पर हाथ फेरती है , और उससे पछ
य ती है- “समीर बेटा, कालेज से कब आया त?
य ” उनकी आवाज
में प्यार, दल
ु ार और ममता लबालाब भरी थी।
साना उसका सर अपने सीने से गचपका लेती है, उसके माथे को चयमती है, उसके िालों को बेतहाशा चयमती जाती
है । उससे मलपट जाती है और खद
ु भी फयट-फयट के रो पड़ती है । माूँ बेटा एक दस
य रे की बाहों में रोते जा रहे थे,
साना अपने आींसओ
य ीं से इतने ददनों से अपने अींदर जमी नफरत, िस्
ु सा और दरय रयों की मोटी परत को धोती जा
रही थी।
ममसेज़ डडसज
य ा चप
ु चाप खड़ी-खड़ी माूँ-बेटे का यह अनहोनी सा लिता ममलाप, प्यार और एक दस
य रे के मलए
तड़प दे खती जा रही थी, उसकी आूँखों से भी लिातार आींसओ
य ीं की धार छयट रही थी। वो उन दोनों को अकेले
छोड़कर ककचेन की ओर दबे पावीं चल पड़ती है ।
पर वातावरण में एक भारीपन था, एक अजीब ही तनाव सा था। मानो इस तनाव से सब कुछ खीींचता हुआ टयट
जाएिा, फट जाएिा।
ममसेज़ डडसज य ा इस तनाव को कम करने की कोमशश करते हुए बोलती हैं- “कम आन, साना और समीर। अरे
बाबा, परय ी जजींदिी पड़ी है… रो लेना, जजतना आूँसय चाहे बहा लेना, अभी जरा ब्रेक ले ले। चल चाय पी ले, यह
सेंदटमें टल सीन बदलो भी। जरा कमेडी ब्रेक लेते हैं। कययूँ ठीक है ना?”
सज
य ी मोम की बातों से दोनों के चेहरे पे हककी सी मश्ु कुराहट आती है । साना समझ जाती है अपनी आींटी की
बात। अपने आूँखों से आूँसय पोंछती है , ट्रे से बबस्कुट और केक का प्लेट उठाती है और उसे समीर की तरफ बढ़ाते
हुए कहती है - “समीर बेटा, तय कालेज से आकर कुछ खाया भी नहीीं होिा, भख
य ा होिा। चल कुछ खा ले…”
समीर की जजींदिी में यह पहली बार हुआ था। आज सब कुछ पहली बार हो रहा था उस बेचारे की जजींदिी में । वो
प्लेट से एक बड़ा सा केक का टुकड़ा उठाता है , मूँह
ु की ओर अपना हाथ ले जाता है । पर कफर से माूँ की ओर
दे खता हुआ फयट पड़ता है ।
इस बार साना ने दहम्मत से काम मलया। आखखर वो उसकी माूँ थी। अपने बेटे का हाल समझती थी। इतने ददनों
से बेचारा इस तरह के प्यार और दल
ु ार का भख
य ा था। आज अचानक उसे सब ममलता है तो वो सींभाल नहीीं पा
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रहा था। साना बड़े प्यार से उसकी हथेली को अपने हाथों से पकड़कर उसके मूँह
ु की ओर ले जाती है और मह
ूँु के
अींदर डालती हुई बोलती है- “खा ले बेटा, खा ले। मैं जानती हयूँ बेटा, मैं जानती हयूँ। मैं ककतनी अभािन हयूँ, ककतनी
बेशरम हयूँ। मैं अपने बेटे को इस हाल तक पहुूँचाने के पहले मर कययूँ नहीीं ियी? मझ ु े माफ कर दे अिर कर
सकता है तो। खा ले बेटा, मझ
ु पर तरस खा के ही खा ले। खा ले…”
समीर समझता है अपनी मोम का हाल। वो समझ जाता है कक साना ककस हाल में है । उसे अपने आपको
सींभालना पड़ेिा, अपनी मोम को सींभालना होिा, अपने प्यार को सींभालना होिा। सौजी मोम बोलती हैं ना प्यार
करने वाले दे ते हैं, लेते नहीीं। मैं भी अपने प्यार को, अपनी मोम को आज तक जो नहीीं दे पाया। आज तक जो
उसकी मोम नहीीं ले पाई। सब कुछ दूँ ि
य ा। उसकी झोली भर दूँ ि
य ा। उसी पल वो ठान लेता है अपने मन में । अपने
आपको सींभालने की ठान लेता है । अपने मोम को सींभालने की ठान लेता है । उसकी आूँखों में अब एक चमक
थी। अपने आूँसय पोंछता है और इस तरह बोलता है, जैसे कुछ हुआ नहीीं।
“कया मोम? आप भी ना… अरे मैं अब बड़ा हो िया हयूँ, मैं कोई दधय पीता बच्चा थोड़ी हयूँ जो आपके हाथों से
खाऊूँिा? मेरे हाथों को दे खखए अब ककतना दम है । मैं आपको अपने हाथों से खखलाऊूँिा। आप भी तो भखय ी हैं।
सबु ह नाश्ता भी नहीीं ककया…” कहते हुए साना के हाथ से केक मूँह
ु में लेता है और दस
य रा बड़ा टुकड़ा अपने हाथों
से उठाता हुआ साना के मह ूँु में डालता है ।
साना यह टुकड़ा अपने मूँहु में लेते हुए ननहाल हो उठती है । उसका प्यार अपने मलए दे खकर िद-िद हो उठती
है । उसकी आूँखों से भी आूँसय फयट पड़ने को तैयार हैं। पर अपने आपको सींभालती है और बोलती है - “हाीं बेटे, मैं
भख
य ी थी अब तक… अब मेरी भख
य ममट जाएिी। हाीं बेटा, मैं ककतनी बेवकयफ थी। बे-वजह अब तक भख
य ी रही। हाीं
बेटा, बहुत भख
य ी…”
साना की िहरी बात का मतलब समीर अच्छी तरह समझ जाता है । सही में ककतनी बेवकयफ थी उसकी मोम। पर
उसे ककसी भी हालत में अपनी मोम को अपने आपको इस तरह कोिने की कोमशश, इस तरह अपने िन
ु ाहों की
अपने आपको सजा दे ने की कोमशश से ननकालना होिा, हटाना होिा। वरना यह हालत और भी बरु ी होिी मोम
के मलए। और यह काम उसके अलावा और कोई नहीीं कर सकता। यह भी वो समझता था, अच्छी तरह। सच है
दख
ु , ददद और पीड़ा इींसान को बहुत जकद ही बहुत समझदार बना दे ते हैं। और यही हुआ समीर के साथ। वो
अपनी उम्र के लड़कों से कहीीं ज्यादा मेच्यरय और समझदार था।
वो उठता है अपनी कुसी से, कुसी से हटता हुआ खड़ा हो जाता है । अपनी बाहें फैलाता हुआ साना की ओर दे खता
है और कहता है- ‘“दे खखए मोम, अच्छी तरह दे खखए मझ
ु े। कया मैं आपको बच्चा लिता हयूँ। कम आन मोम
दे खखए ना…”
साना अपनी नजरें समीर की तरफ करती है । अपने बेटे की जवानी का यह रूप उसे पहली बार ददखता है । उसके
बेटे का खखलखखलाना आज उसे पहली बार ददखता है । उसके चेहरे पर अपनी माूँ के मलए उसका पास, उसके साथ
होने का अहसास उसे पहली बार ददखता है । पहली बार साना ने महसस
य ककया अपने बेटे का अहसास। अपनी माूँ
होने का अहसास।
ककतना अच्छा लि रहा था कक उसका जवान बेटा उसके सामने खड़ा था अपनी जवानी की मस्ती के साथ। भरा
परय ा बदन, लींबा 6’ का कद और उसके पापा की हयबहय शकल, माींसल बाहें , चौड़ा सीना। साना मचल उठी उसके
सीने से लिने को, उसके सीने में समा जाने को। साना उसकी ओर दे खते हुए कहती है - “हाीं बेटा अब तो तय सही
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में ककतना बड़ा हो िया है । बहुत बड़ा है मेरा बेटा, बहुत उूँ चा। हाीं बेटा, अब तय बड़ा हो िया। पर माूँ के सामने
तो बच्चा ही रहे िा ना…” और यह कहते हुए खखलखखला उठती है ।
अपनी मोम का खखलखखलाना दे खकर समीर झयम उठता है । आिे बढ़ता है और साना को अपनी बाहों में जकड़ता
हुआ कुसी से उठा लेता है, अपने सामने कर लेता है, उसके िाल चयमता है, उसके दोनों हाथ चयमता है । और
साना भी उसके चौड़े सीने में अपना सर रख उसे अपनी बाहों में ले लेती है । अपने बेटे को सीने से लिाने का
अहसास उसे आज पहली बार हुआ। उफफ़्… यह कैसा अहसास था।
दोनों एक दस
य रे की िमी, एक दस
य रे की धड़कनों का अहसास मलए जा रहे थे, आूँखें बींद ककए इस अहसास को
अपने में समेट लेने की कोमशश में थे। समीर अपनी माूँ से कहता है- “मोम, आप ककतनी स्वीट हो। यय आर द
स्वीटे स्ट मोम…”
यह वो ही शलद थे जजन्हें सन
ु कर आज सब
ु ह साना ककतनी जल भन
य ियी थी। और अब यह वोही शलद उसे
शहद की तरह मीठा और अमत
ृ की तरह उसे नयी जजींदिी दे रहा था। साना आज परय ी तरह माूँ थी। अपने समीर
की माूँ।
एक ऐसा अहसास था उन दोनों में । मस़द वो दोनों ही समझ सकते थे, महसस
य कर सकते थे। इस अहसास में
ककतनी िमी थी, ककतनी तड़प थी, ककतनी भख
य थी, ककतनी प्यास थी। इतने ददनों तक दबा अहसास आज
एकदम से सारी रुकावटों, सारे बींधनों को तोड़ता हुआ बाहर आता जा रहा था।
दोनों एक दस
य रे से गचपके थे। समीर का अपनी मोम को जकड़ते हुए ऊपर उठाने से उसकी जाींघों के बीच का
उभार साना की जाींघों के बीच की मल
ु ायम, पर अब तक ककतनी िीली और फयली-फयली चयत से स्पशद होता है ।
इस स्पशद से दोनों मसहर उठते हैं। इस मसहरन में हवस का नामो-ननशान नहीीं था। यह मसहरन, ममलन और एक
दस
य रे पर अपने प्यार का इजहार करने की चरम सीमा थी। दोनों अब उस किार पर खड़े थे। अपने-अपने प्यार
का एक दस
य रे से परय ी तरह इजहार करने की किार पर थे। और इस अहसास ने दोनों के शरीर, ददल और ददमाि
को परय ी तरह जिा ददया था। इतने ददनों तक सोए अरमानों, इच्छाओीं को झकझोर ददया था। अपने को, अपने
प्यार को एक दस
य रे से बाूँटने को मचल रहे थे।
इसका नतीजा यही हो रहा था कक समीर के इस बाूँटने के अहसास ने उसके लण्ड को कड़क और बरु ी तरह
कड़क कर ददया था।
दोनों तड़प रहे थे। समीर को इस तड़प से बरु ी तरह कड़क लौड़े में ददद सी महसस
य हुई। मानो फट पड़ेिा।
समीर से बदादश्त नहीीं हो सका। वो ददद भरी आूँखों से अपनी मोम को दे खता है । और मोम को बोलता है - “अया…
म-ओ-ओ-म?”
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उसके इन लफ़्ज़ों में उसके अींदर की सारी तड़प, भख
य और ददद शाममल थे और इस ददद को ममटाने के मलए आिे
बढ़ने की इजाजत की माूँि थी। साना अपने बेटे का हाल समझती है । उसे भी तो अपने बेटे को परय ी तरह अपने
में समा लेने की चाहत थी, तड़प थी।
साना, समीर की तरफ अपनी आूँखें करते हुए उसकी आूँखों में झाूँकती है, सर दहलाती हुई अपनी हामी भर दे ती
है और बोलती है- “हाूँ… बेटा, हाूँ…” और अपना सर उसके सीने में लिाकर छुपा लेती है ।
समीर का परय ा शरीर िनिना जाता है, मसहर उठता है मोम की इस प्रनतकरया (ररएकसन) से, उसका लौड़ा और
भी कड़क हो जाता है , मानो साना की चत य में उसके पाजामा को भेदता हुआ अींदर चला जाएिा। वोही चत
य
जजसका स्पशद इस दनु नयाीं में आते वक़्त उसकी छोटी सी नन य ी ने महसस
य ककया था। उस वक़्त जब उसे और कुछ
महसस
य नहीीं हुआ था। यही अहसास सबसे पहला अहसास था। और आज अपनी जवानी की ओर पहला कदम
रख रहा था। आज भी उसे इसी चतय का पहली बार महसस
य हो रहा था। उफफ़्… ककतनी अजीब सी बात थी।
इस बात से समीर और भी मचल उठा। कींपकपी सी महसस
य हुई।
उसने साना को और भी अपने करीब खीींच मलया, और कफर उससे रहा नहीीं िया। वो अपनी मोम को अपनी िोद
में उठा लेता है । अपनी बाहों में ले लेता है । और उसे एक बच्ची की तरह उठा लेता है । एक हाथ साना के घट
ु नों
के नीचे और दस
य रा हाथ उसके सीने के नीचे पीठ पर रखता हुआ, मोम को सीने से लिा लेता है, उसे चयमता है ,
और अपनो िोद में मलए मोम को उसके बेडरूम की तरफ ले चलता है ।
ममसेज़ डडसज
य ा उन्हें इस तरह दे खकर खुशी के आूँसय बहाती है । उन्हें एक टक दे खती रहती हैं।
साना अपने बेटे की िोद में ननहाल हो उठती है । उसके माूँ होने का अहसास उसे प्यार, दल
ु ार और ममता की
उूँ चाइयों में ले जाता है । वो आूँखें बींद ककए, अपने दोनों हाथ समीर की िदद न के चारों ओर लपेटे, अपने आपको
अपने बेटे की मजबत
य बाहों में , अपने बेटे के प्यार की छाूँव में सौंप दे ती है । और एक अद्भत
ु दनु नयाीं में खो सी
जाती है । जहाूँ मस़द वो है और उसका बेटा और उन दोनों की एक दस
य रे में खो जाने की तड़प, ललक और भख
य ।
समीर उसे पलींि पर मलटा दे ता है । और अपनी मोम से बरु ी तरह मलपट जाता है। पहली बार अपनी जजींदिी में ।
पहली बार वो अपनी मोम को महसस
य करता है । वो बार-बार उसे महसस
य करना चाहता है । बार-बार मोम से
मलपटता है, उसे चम
य ता है । उसके सीने से अपने सीने को दबाता है । माूँ के सीने की िमी, माूँ के सीने की नमी,
माूँ के सीने का प्यार बार-बार महसस
य करता है । उसका सारा बदन काींप रहा था, मसहर रहा था। उसका लौड़ा
कड़क और कड़क होता जा रहा था… मानो अब और नहीीं, उसका लौड़ा टुकड़े-टुकड़े हो जाएिा।
और साना भी अपने कपड़े उतारकर बबककुल नींिी हो जाती है । नींिी चयत फैला दे ती है बेटे के सामने।, टाूँिें फैला
दे ती है बेटे के मलए, बेटे को अपने में कफर से समा लेने के मलए। हमेशा-हमेशा के मलए। दोनों नींिे एक दस
य रे को
ननहारते जा रहे हैं।
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साना अपनी बाहें फैलाए उसे अपने से गचपका लेती है और बार-बार कहती जाती है - “हाीं बेटे, आ जा… आ जा
मेरे पास, मेरी कोख में… बहुत तड़प रही हयूँ, मेरी माूँ का शरीर अपने बेटे से एक होने की ललक मलए मचल रहा
है बेटा। आ जा, दे र मत कर…”
समीर भी अब तक बेचैनी की चरम सीमा पर था। उसके लौड़े में हलचल मची थी। दहल रहा था।
साना अपनी हथेली से उसके लौड़े को थामती हुई सीधा अपनी चयत के सरु ाख पर लिा दे ती है और अपनी कमर
ऊपर करते हुए अपने बेटे का परय े का परय ा, लींबा और मोटा लौड़ा अपनी िीली और रस से शराबोर चयत के अींदर
लेती जाती है । इतना लींबा और मोटा लण्ड साना ने आज तक अपनी चत
य में अींदर नहीीं मलया था। उसका परय ा
बदन उसके लौड़े का परय े का परय ा अींदर जाते ही अकड़ जाता है । उसका परय ा बदन िनिना उठता है । अपने बेटे के
कसे लौड़े का अपनी चयत के अींदर एहसास से। साना की चयत ननहाल हो जाती है, काींप उठती है, चयत के होंठ
फड़क उठते हैं।
समीर भी मसहर उठता है । यह कैसा ुैहसास था। आआह्ह्ह्ह… यह नायाब अहसास… वो काींप उठता है, ककतनी
िमी थी अींदर, ककतना मल
ु ायम था अींदर और साथ में, ककतना सक
ु य न था माूँ की चयत में । उफफफ़्…
इतने दे र तक दोनों की तड़प, ललक और भख य ने उन दोनों को वहाूँ तक पहुूँचा ददया था, जहाूँ चरम आनींद के
अनभ
ु व के मलए मस़द एक दस य रे का परय ी तरह एहसास होने की दे र थी।
समीर को ऐसा लिता है मानो उसके बदन का सारा खन य लौड़े पर सनसानता हुआ जमा होता जा रहा हो। समीर
दो तीन धकके लिाते ही बरु ी तरह झड़ िया अपनी मोम की चयत के अींदर। उसकी सारी तड़प, भख
य , इतने ददनों
की लालसा और मोम के मलए भरपरय प्यार उमड़ता हुआ, उबलता हुआ ननकल पड़ता है , झटके पे झटका खाता
हुआ, पपचकारी की धार मारता हुआ। समीर के मूँह
ु से चीख ननकल पड़ती है- “ओह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह्ह…
म-ओ-ओ-म…”
साना अपने बेटे के उबलते हुए प्यार, तड़प, ललक और भखय का एहसास अपने अींदर झेल नहीीं पाई। वो भी
मसहर उठी, काींप उठी, थरथरा उठी। वो भी अपने आनींद और मजे की चरम सीमा पर थी। वो भी झड़ने लिी।
उसके चयतड़ उछल रहे थे, जाींघें थरथरा रही थी। चयत फड़क रही थी। साना भी चीख पड़ती है- “ह-आ-आ-य-ए… उ-
उ-उ… समीर…” और साना िीली पड़ जाती है ।
दोनों एक दस
य रे के अहसास से ननिाल थे, सस्
ु त हो िये थे, और एक दस
य रे की बाहों में खो िये, शाींत होकर।
समीर अपनी मोम के सीने से लिा अपने को ककतना महफयज समझ रहा था, ककतना सक
ु य न था मोम के सीने
में । मानो उसने सारी दनु नयाीं जीत ली हो।
“हाीं बेटा, बोल ना…” साना उसके सर पर हाथ फेरती हुई कहती है ।
38
“कया सभी मोम इतनी अच्छी होती हैं?” समीर अपनी मोम की तरफ बड़े प्यार से दे खते हुए कहता है ।
“मैं कया जानय बेटा? मैं तो आज तक एक बहुत ही बरु ी मोम थी। आज ही तो मझ ु े अपने मोम होने का अहसास
तय ने ददलाया। मेरे बेटे, मैं कया बताऊूँ? कया मैं तझ
ु े अच्छी लिी?” साना ने उसके चेहरे को अपनी हथेमलयों से
थामते हुए चयम मलया।
“हाीं मोम, आप सही में बहुत अच्छी हो, बहुत अच्छी। आज मैंने भी तो अपनी मोम को पहली बार महसस य ककया
कक मेरी भी मोम हैं। उफफ़्… यह ककतना खयबसरय त अहसास है मोम। दनु नयाीं का शायद सबसे खयबसरय त
अहसास। मोम, मेरा ददल करता है कक बस आपके साथ ऐसे ही अपनी परय ी जजींदिी बबता दीं ,य आपके सीने से लिे
लिे। आपके सीने की िमी और नरम-नरम िोलाईयों से लिे-लिे। मोम मैं इन्हें चयस?
यीं ”
साना मजे, मस्ती और प्यार से शराबोर थी। मस्ती के आलम में उसने अपने आपको अपने बेटे के हवाले कर
ददया था। समीर बरु ी तरह अपनी माूँ की भारी-भारी, मल
ु ायम चयगचयों की घड़
ुीं ी पर अपने होंठ लिाए चयसे जा रहा
था, चप-चप, पचु -ुुच चटखारे लेता हुआ। कफर वो अपना चेहरा ऊपर करता है । अपनी माूँ को जकड़ लेता है ।
उसके सीने से गचपक जाता है और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दे ता है ।
उसकी चत य पर अपना कफर से कड़क और खड़ा हुआ लौड़ा दबाता है । उसके होंठ लिातार चयसता जाता है । चाटता
जाता है - “उफ्फ मोम, मैं कया करूूँ? तम्
ु हें परय ा अपने अींदर कैसे ले लूँ ?
य मोम, बोलो ना मैं कया करूूँ?” और उसके
मूँह
ु में अपनी जीभ डाल दे ता है । अपनी माूँ के मूँह
ु का रस, उसकी थयक, उसका लार मोम के मूँह
ु के अींदर जीभ
से चाटता है, चयसता है ।
मोम भी अपना सारा रस अपनी जीभ में लाते हुए उसके मूँहु में डालती जाती है । समीर उसे अपने िले से नीचे
उतारता जाता है । अपनी मोम को चयसता है , चाटता है ।
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साना इस चुसाई से मसहर रही है । उसकी चयत से रस की धार ननकलती जा रही है । वो काींप रही है - “हाूँ… बेटा,
हाीं बस ऐसे ही जजतना चाटना है मझ
ु े चाट। मझ
ु े चस
य ले, खा ले बेटा, अपनी भख
य मीटा ले। आआह्ह्ह्ह…
उउह्ह… मेरा बेटा, मेरा राजा बेटा, इतने ददनों तक भख
य ा था…”
साना कराह रही है , मससक रही है , काींप रही है उसके हर बार जीभ कफराने से।
साना का पेट उछल पड़ता है - “आआह्ह्ह्ह्ह… हाीं बेटा हाूँ… चाट, जो जी में आए कर। मेरे बदन से खेल, खब
य
खेल। परय ी कसर ननकाल ले बेटा। मझ
ु े चस
य -चस
य कर, चाट-चाट के मार डाल। हाीं बेटा हाूँ…”
समीर अपना कड़क लौड़ा उसकी चयत से लिाए उसके ऊपर लेट जाता है, उसे जकड़ लेता है , उसे चयमता है , उसे
चाटता है । उसका मन आज भरता ही नहीीं। वो बबककुल पािल है अपनी मोम के मलए- “मोम, मैं कया करूूँ।
बोलो ना मोम… मझ
ु े कया हो िया है ? उफफफ़्… मोम, मोम, बोलो ना…” कफर अपना लौड़ा हाथ में ले लेता है ।
उसे अपनी मोम को ददखाता है - “दे खो ना मोम ककतना ज्यादा कड़क है । मोम मझ
ु े यहाूँ ददद हो रहा है । मोम
दख
ु ता है । मैं कया करूूँ मोम बोलो ना?”
साना दे खती है अपने बेटे का पवशाल लण्ड… ककतना कड़क, लींबा और मोटा था। वो उठ बैठती है , उसके लौड़े को
अपनी हथेली से बरु ी तरह जकड़ लेती है । उसे सहलाती है ।
“हाूँ… हाूँ… आआह्ह्ह्ह्ह… हाीं मोम अब अच्छा लिा। कुछ ददद कम हुआ…”
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“हाीं बेटा, मैं जानती हयूँ बेटा। तय ककतना तड़प रहा है मेरे मलए…” और कफर उसके लौड़े को अपने मूँह
ु में ले लेती
है । उसके सप
ु ाड़े पर जीभ कफराते हुए होंठों से जकड़ लेती है और चस
य ती जाती है, चाटती जाती है ।
साना की चयत कफर से िीली होती जाती है । साना उसके लौड़े को अपने मूँह
ु से बाहर ननकालती है । अपनी टाूँिें
फैला दे ती है । लौड़े को चत
य की फाूँक के बीच उसके सप
ु ाड़े से रिड़ती जाती है । इस रिड़ से वो खद
ु भी मसहर
उठती है और समीर भी उछल पड़ता है इस नघसाई से।
दो चार बार ऊपर-नीचे करती है । कफर उसके लौड़े को अपनी चयत की छे द पर रख दे ती है और समीर से कहती
है - “बेटा अब डाल दे इसे अपनी माूँ के अींदर। तभी तझ
ु े और मझ
ु े दोनों को शाींनत ममलेिी। हाीं बेटा, तम्
ु हें अपनी
मोम की चयत की िमी चादहए और तम्
ु हारी मोम को तम्
ु हारे लींबे और मोटे लौड़े की िमी। दोनों को िमी चादहए
तभी हम दोनों ठीं डे होंिे। कैसी है यह भख
य बेटा जो िमी से ही ठीं डी होती है । आ चल अब दे र मत कर। कर ले
अपनी भख
य शाींत…”
और कफर समीर अपनी मोम के चयतड़ को जकड़ते हुए अपना मोटा लौड़ा अपनी माूँ की चयत, जो अब तक बरु ी
तरह िीली हो चक
ु ी थी, के अींदर डालता है । फच से अींदर कफसलता हुआ चला जाता है ।
साना चीख पड़ती है मस्ती में - “हाूँ… हाूँ… उउउउ… हाीं बेटा, रूकना मत, खयब जोरों से अींदर-बाहर करता जा। हाीं
बेटा करता जा। रूकना मत… अपनी मोम को खयब चोद… अपना सारा िस्
ु सा ननकल दे बेटा… मेरी चयत फाड़ दे
बेटा… हाीं बेटा इसके गचथड़े-गचथड़े कर डाल। हाूँ… आआअह्ह्ह्ह…”
और समीर मोम की बातों से और भी जोश में आता जा रहा था और उसके धकके जोर और जोर, और जोर होते
जाते।
हर धकके पर साना का चयतड़ उछल पड़ता- “बेटा मेरी चयगचयाीं भी चयस ना, दबा ना उन्हें , दे ख ना ककतनी टाइट हैं
मेरी ननपकस। इन्हें भी चयस और धकके लिाता जा। हाूँ… हाूँ ले, ले चयस इन्हें …”
समीर अपनी मोम के सीने से गचपक जाता है, उसकी चगय चयों बारी-बारी मूँह
ु में भर लेता है और चस
य ता जाता है ।
जैसे-जैसे चयसता है, उसकी मोम की चयत से पानी छयटता जाता है । उसके लण्ड पर महसस
य होता है और वो मसहर
उठता है और कफर धकके जोर पकड़ते जाते हैं। वो बेतहाशा अपनी मोम को चोदे जा रहा था। अपनी लौड़े को
शाींत करने की कोमशश में जुटा था। फच-फच, पच-पच और ठप-ठप की आवाज से कमरा िूँज
य रहा था।
और कफर उसकी मोम की चयत की पींखुडड़याीं टाइट हो जाती हैं, उसके लौड़े को जकड़ लेती हैं, कफर खुल जाती हैं।
दो चार बार ऐसा होता है और कफर मोम का परय ा बदन ऐींठ जाता है । ऊपर उछलता है और कफर नीचे िीला होता
हुआ पड़ जाता है । साना के मूँह
ु से एक मस्ती भरी चीख ननकलती है - “स-मी-र…” और हान्फ्ते हुए अपने बेटे के
नीचे िीली पड़ जाती है ।
पर समीर अभी भी उसे चोदे जा रहा है । उसके मोम की रस की धार उसके लण्ड पर पड़ती है और इस धार की
िमी वो बदादश्त नहीीं कर पाता। उसका परय ा बदन िनिना उठता है और वो भी झटके पे झटका खाता है । उसका
लौड़ा भी मोम की चयत के अींदर झटके खाता हुआ झड़ता जाता है, झड़ता जाता है, उसके अींदर जमा सारा रस
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और वीयद अपनी मोम की चयत के अींदर पपचकारी मारता हुआ ननकल पड़ता है । वो भी मस्ती की चरम सीमा पर
है और चीख पड़ता है- “म-ओ-ओ-ओ-ओ-ओ-म…”
समीर अपनी मोम को जकड़ लेता है बरु ी तरह। अपना लण्ड उसकी चयत में डाले रहता है । और उसके अींदर खाली
होता जाता है । समीर अपनी मोम से गचपकता हुआ अपना सर मोम के सीने पर रख दे ता है । अब समीर शाींत
हो जाता है । उसका लौड़ा भी शाींत हो जाता है ।
साना अपने बेटे का वीयद अपनी चयत में भर लेती है । वो इस अहसास से ननहाल हो जाती है ।
अब तक समीर के अींदर की भड़ास, ददद, पीड़ा और मोम के पास और साथ होने की ललक और भख
य ममट ियी
थी। वो शाींत था। पर अब उसकी हवस की भख
य जाि उठी थी। आखखर उसकी रिों में भी जवानी का खयन था।
अब उसमें उबाल आना शरू
ु हो िया था।
साना जैसी औरत, जजसके हुश्न, खयबसरय ती और बदन की िोलाईयों और उभारों से अच्छे अच्छों के ददल-ओ-
ददमाि मचल उठते थे। कफर समीर तो एक नया खखलाड़ी था। और उसकी जवानी अभी तो अपनी उफान पर थी।
उसकी नजर साना के नींिे बदन पर पड़ती है ।
वो बस दे खता ही रहता है । अपनी मोम के खयबसरय त नींिेपन को ननहारता जाता है । अब उसे साना में मस़द
उसकी मोम ही नहीीं पर एक बहुत ही खब य सरय त और सेकसी औरत की झलक ददखती है । वो साना से मलपट जाता
है , उसके रसीले होंठों को चम
य ता है , उसकी चगय चयाीं सहलाता है और बोल उठता है- “मोम, जब इतना टे स्टी डडनर
सामने हो। तो सौजी मोम के डडनर को कौन पछ
य ता है? उम्म्म्म… मोम प्लीज आज डडनर कैन्सल करो ना…”
“ओके ओके मोम, लेककन प्रॉममस कीजजए कक आपका डडनर ममलेिा ना?”
“ह्म्म्म्म… अरे बाबा, पहले ककचेन वाला डडनर तो कर लो ना कफर सोचते हैं…” साना की आूँखों में बड़ी शरारती
सी मश्ु कान थी।
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“सोचना-वोचना नहीीं मोम। बस हम आपका डडनर करें िे, मैं आपको खा जाऊूँिा, आप मना करोिे कफर भी। दे ख
लेना…” समीर प्यारी सी धमकी दे ता हुआ मोम को कफर से जकड़ लेता है , चम
य ता है और उठ जाता है, कपड़े
पहनकर अपने रूम की ओर चल पड़ता है ।
साना मन ही मन सोचती है - समीर सही में अब जवान हो िया है । अपने बाप की तरह ही मझ
ु से इतना प्यार
करता है । और मश्ु कुरा उठती है ।
समीर के ददल में उसकी माूँ ने हलचल मचा ददया था और उसके लौड़े में उसकी माूँ के खयबसरय त, सेकसी और
िदराए बदन ने। समीर फ्रेश होकर कपड़े बदल लेता है । शाटद और टाप में है अब वो। िीला टाप और शाटद के
अींदर से उसकी कसरती, कसी जाींघ,ें सड
ु ौल पैर की पपींडमलयाीं, टाप की बाहों से ननकलती उसकी मस्कयल
ु र बाहें ,
चौड़ा सीना… ककसी भी औरत का ददल उसकी बाहों में आ जाने, उसके सीने से मलपट जाने को मचल उठे िा। वो
कफर से मस्ती में था।
समीर एक टक अपनी मोम को दे खे जा रहा था। बबना पलक झपकाए। उसके पैंट के अींदर हलचल मच उठी थी।
साना उसके बिल की कुसी पर आकर बैठ जाती है । उसके बैठते ही उसके बदन की खयशबय का झोंका, अभी-अभी
नहाए बदन की खश
य बय का झोंका समीर अपनी साूँसों के साथ महसस
य करता है । समीर खो सा जाता है अपनी
मोम के इस तरो-ताजा रूप में । तभी ममसेज़ डडसज
य ा भी ककचेन से बड़ा सा ट्रे हाथ में मलए डडनर ले आती हैं,
टे बल पर दोनों के सामने रख दे ती है ।
साना अपनी उीं िमलयों से उसके चेहरे के सामने चुटकी बजाती हुई बोलती है- “अरे बाबा कब तक मझ
ु े ननहारता
रहे िा। अब जरा डडनर पर भी नजर डाल बेटा। दे ख ककतना बदढ़या डडनर है । सब कुछ तेरे पसींद का…”
समीर अपने सन
ु हरे सपने से वापस डडनर की टे बल पर आ जाता है और बोल के िककन खोलकर दे खता है ।
अींदर िमद-िमद भाप ननकलती हुई सलजी भरी थी… मटर-पनीर। समीर की आूँखों में चमक आ जाती है अपनी
फवररट सलजी दे खकर- “हाीं मोम, सौजी मोम जानती है अच्छी तरह मेरी पसींद। पर मोम आज तो हर चीज मेरी
पसींद की होती जा रही है । उफफ़्… मैं ककसे लूँ य और ककसे ना ल।ींय समझ में ही नहीीं आ रहा…” समीर यह बोलता
हुआ मोम की ओर दे खता है ।
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साना- “ह्म्म्म… बेटा इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है । बस एक-एक करके सबका मजा लेते जाओ। रोका
ककसने है ?” और यह बोलते हुए जोरों से हूँस पड़ती है ।
ककतना फकद था… मस़द 12 घींटे पहले के माहौल और अभी के माहौल में । इन 12 घींटों में समीर और साना की
दनु नयाीं ही बदल ियी थी। सब कुछ बदल िया था। जहाूँ डाइननींि टे बल पर हमेशा तनाव, घट
ु न और एक चप्ु पी
का माहौल छाया रहता था। अभी उसकी जिह प्यार, मस्ती और ककतना खुमशयों से भरा माहौल था। इन 12
घींटों ने उनके विों की घट
ु न, जलन, गिले-मशकवे, दख
ु -ददद सब कुछ ममटा ददया था। समय ने अपने बलवान होने
की बात दोनों माूँ-बेटे को अच्छी तरह समझा ददया था।
ममसेज़ डडसज
य ा बबककुल चुप थी। सामने की कुसी पर बैठी दोनों माूँ-बेटे को बड़े प्यार से ननहारती जा रही थी।
उसका ददल भी आज ककतना हकका था। अपने दोनों बच्चों की खुशी से। हाीं समीर और साना दोनों ही तो उसकी
की िोद में पले बढ़े थे। ममसेज़ डडसज
य ा ने अपनी कोख से इन दोनों बच्चों को जन्म नहीीं ददया था। पर एक माूँ
की िमी तो दी थी ना उन्हें अपनी िोद में भरकर। उसका मन आज ककतना हकका था।
समीर और साना एक दस
य रे की ओर दे खते जा रहे हैं। दोनों का मन नहीीं भरता एक दस
य रे के इस रूप को
दे खकर। समीर साना की मदमाती, मस्त और सेकसी बदन की ओर ननहारता जाता और साना अपने बेटे की
जवानी, बमलष्ठ बाहें , चौड़े सीने और अपने पापा जैसे चेहरे की ओर ननहारती फयली नहीीं समा रही थी। इतने ददनों
में आज पहली बार अपने बेटे को इस तरह दे ख रही थी। नफरत की जिह नजरों में प्यार भरी थी, िस्
ु से की
जिह अब अथाह ममता ने ले ली थी।
साना अपनी नजर समीर से हटाती है और अपनी ममता से भरी आवाज में कहती है - “बेटा, चल अब कुछ खा
ले ना। कब से भख
य ा है …”
“ह्म्म्म्म… मैं सब समझती हयूँ, शैतान कहीीं का। अरे भख य ा रहे िा तो जो डडनर तय चाहता है ना… तेरे िले से नीचे
नहीीं उतरे िा। उस डडनर को चबाने के मलए मह ूँु में कुछ ताकत भी तो चादहए ना मेरे भोले राजा बेटे। चल खा ले
यह डडनर…” साना उसे प्यार से खझड़की लिाते हुए बोलती है ।
“ओके ओके मोम। खाता हयूँ बाबा, खाता हयूँ। पर ऐसे नहीीं, तय मझ
ु े खखला। मैं तो भोला भाला राजा बेटा हयूँ ना
तेरा। मझ
ु े तो खाना भी नहीीं आता…” और जोरों से खखलखखला उठता है समीर।
“उफफ़्… यह बच्चा ना। बहुत बबिाड़ ददया है तेरी सौजी मोम ने। अच्छा चल ले खा…” और साना रोटी का एक
छोटा टुकड़ा तोड़ती है । सलजी में डुबोते हुए समीर के मूँह
ु की ओर ले जाती है ।
पर समीर के मन में तो कुछ और ही था। वो अपना सर पीछे कर लेता है - “नो नो… ना ना… मोम ऐसे नहीीं। मैं
बबककुल बच्चा हयूँ। बहुत भख
य ा, मैं तो इतना भख
य ा और कमजोर हयूँ कक मैं तो चबा भी नहीीं सकता…” और कफर से
एक बहुत ही शरारती मश्ु कान छा जाती है उसके चेहरे पर।
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“उफफ़्… अब कया है? तो मैं कया तेरा खाना खुद चबाऊूँ और तझ
ु े खखलाऊूँ?” साना झकलाती हुई बोलती है ।
“यस मोम यय िाट इट राइट। दै टस लाइक द ग्रेट मोम यय आर। हाीं हाीं बबककुल वोही चाहता हयूँ मैं…”
“सवाल ही नहीीं उठता मोम। आपकी हर चीज ककतनी साफ और पपवत्र है मोम। आपकी हर चीज मेरे मलए
लजीज है मोम… हर चीज। मझ
ु े आपकी हर चीज से प्यार है मोम। आपकी हर चीज से…”
इस बात पर साना चौंक जाती है । ककतनी समानता थी दोनों बाप बेटे में । हरदयाल को भी तो उसकी हर चीज से
प्यार था। ममसेज़ डडसज
य ा ठीक ही कहती हैं- “हरदयाल िया कहाूँ? वो तो यहीीं है । उसे पहचान…” साना को
हरदयाल की पहचान हो जाती है अपने बेटे में, दोनों के बेटे में ।
वो समीर से कहती है- “तय बड़ा जजद्दी है , मानेिा नहीीं। ठीक है बाबा तय जीता मैं हारी…” और साना यह कहते
हुए अपने हाथ में पड़े रोटी और सलजी के टुकड़े को अपने मूँह
ु में डालती है । अच्छे से चबाती है , और अपनी
जीभ में लेते हुए जीभ बाहर ननकाल दे ती है ।
समीर मूँह
ु खोलता है, मोम की जीभ अपने मूँह
ु के अींदर ले लेता है । कफर मूँह
ु बींद कर लेता है और मोम की
जीभ का परय े का परय ा चबाया हुआ कौर चयसता हुआ मूँहु में भर लेता है । उसके होंठ अभी भी साना की जीभ पर
हैं। साना धीरे -धीरे अपनी जीभ बाहर कर लेती है । समीर के होंठों से चसय ता हुआ जीभ बबककुल साफ होता हुआ
बाहर आ जाता है । समीर मूँह
ु के अींदर कौर कफर से चबाता हुआ अींदर ले लेता है । मोम की ओर दे खता है । उसे
अपने से भीींच लेता है और कहता है - “मोम इतना टे स्टी खाना मैंने आज तक नहीीं खाया। सच मोम… और
खखलाओ ना। बड़े जोरों की भख
य लिी है…”
साना अपने बेटे के और भी करीब हो जाती है, और ऐसे ही कौर चबाती हुए अपनी जीभ उसकी मूँह
ु में डालते
हुए खाना खखलाती जाती है। समीर अपनी मोम की जीभ चयसते हुए खाना खाता जाता है । मोम की जीभ से
खाना के साथ-साथ उसके मह
ूँु का रस और लार भी साथ-साथ समीर के मह
ूँु के अींदर जाती हैं। समीर के पेट की
भख
य तो शाींत होती जाती है, पर उसके लौड़े की भख
य मोम की जीभ चयसने से बढ़ती जाती है । उसका लौड़ा कड़क
होता जाता है, मोम के हर कौर मूँह
ु में लेते ही।
तभी समीर बोल उठता है- “मोम बस… मेरा तो पेट भर िया। आओ अब मैं तझ
ु े खखलाता हयूँ…” और इससे पहले
की साना कुछ बोलती, वो उसे खीींचता हुआ अपनी िोद में बबठा लेता है ।
साना को अपनी चयतड़ों के बीच उसका कड़क लौड़ा चभ ु ता हुआ महससय होता है । साना इस चुभन का महससय
करते हुए मश्ु कुराती है और समीर की ओर मूँह
ु करते हुए उसके िाल पर एक चपत बड़े प्यार से लिाते हुए
कहती है - “अरे , यह कया पािलपन है समीर? तय मझ
ु े अपनी िोद में खाना खखलाएिा? अरे बाबा छोड़ मझ
ु ,े छोड़
ना…”
समीर अपनी मोम को अपनी िोद में बाहों से जकड़ता हुआ और भी अपनी तरफ खीींच लेता है- “हाीं मोम, मैं
पािल हयूँ, बबककुल पािल हयूँ आपके मलए। िलती आपकी है …”
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“वाह रे वाह… पािल तय और िलती मेरी?” साना उसके कींधों पर अपना सर रख दे ती है और पछ
य ती है । अब उसे
भी अपने बेटे की िोद में अच्छा लि रहा था। उसके लौड़े पर साना अपनी चत
य ड़ दहलाती जा रही थी धीमे-धीमे।
“मैंने कया ककया?” साना अींजान बनते हुए कहती है- “करना तो तझ ु े है । बड़ा आया था मझु े खाना खखलाने। दे ख
ना अब तक मैं तेरी िोद में बैठी भख
य ी हयूँ। एक कौर भी अींदर नहीीं िया…” और अपने चत य ड़ का दबाव उसके लौड़े
पर थोड़ा और ज्यादा कर ददया।
समीर मसहर रहा था- “ओह सारी मोम, सारी… आपकी हरकतों ने दे खा ना ककतना पािल कर ददया मझ
ु े। मैं
अपनी प्यारी मोम को खाना भी खखलाना भल
य िया। चमलए मूँह
ु खोमलए…” और समीर अपनी मोम को खखलाता
जाता है ।
और उसकी मोम बेटे की िोद में बैठे-बैठे उसके लण्ड को दबाती है अपने चयतड़ों से। कभी अपनी हथेली जाींघों के
बीच ले जाती हुई ऊपर ही ऊपर उसे सहलाती है । कभी समीर की हथेली जजससे वो मोम को खाना खखलाता है ।
अपने हाथ से थाम लेती है । उसकी उीं िमलयाीं मूँह
ु के अींदर कर लेती है और परय ा चाट जाती है ।
दोनों एक दस
य रे में खोए, छे ड़-छाड़ और मस्ती के माहौल में खाना खत्फम करते हैं। खाना खत्फम होते ही समीर
अपनी माूँ के मूँह
ु के अींदर जीभ डालकर चाट-चाटकर परय ा साफ कर दे ता है । साना भी अपने बेटे के मूँह
ु में
अपनी जीभ डाल दे ती है और बड़े प्यार से अींदर चाट-चाटकर साफ करती है । अब तक दोनों के पेट की भख
य तो
शाींत को चक
ु ी थी।
पर लण्ड और चयत की भख
य भड़क उठी थी जोरों से।
समीर अपनी मोम को अपनी िोद से उठाता हुआ खड़ा हो जाता है । मोम को अपने सामने कर लेता है । उसका
कड़क लौड़ा उसके पैंट के अींदर एक बड़ा उूँ चा सा उभार की शकल ले लेता है । समीर उसे अपने हाथ से जकड़ता
हुआ मोम को ददखाता है- “दे खखए मोम, आपने कया कर ददया? अब मैं पािल ना बनय तो कया करूूँ? बोलो ना
मोम उफफ़्…”
साना को अपने बेटे के कड़क, लींबे और मोटे लण्ड से तो प्यार हो िया था, उसने अपनी हथेली से पैंट के ऊपर
से उसे थाम मलया- “अले, अले यह तो साूँप की तरह फन उठाए है । इसे तो बबल चादहए बेटा। चल मैं अपने बेटे
के साूँप का कुछ इींतजाम करती हयूँ। आ जा।, मेला राजा बेटा इतनी तकलीफ में हैं…”
साना अपने बेटे की कमर पर हाथ रखे, उसे अपने से गचपकाती हुई, उसके साथ-साथ अपने बेडरूम की सीदढ़यों
की तरफ बढ़ती जाती है । सीदढ़याीं चढ़ते हुए साना और समीर एक दसय रे से बबककुल गचपके थे। समीर मोम को
चयमता जाता, उसके भरपरय मल
ु ायम चयतड़ों को अपनी हथेली से जकड़ लेता, उन्हें दबा दे ता। साना उससे और भी
गचपकती जाती, उसने अपना सारा बोझ समीर के कींधों और सीने पर डाल ददया था, और एक हाथ से उसका
कड़क मोटा लण्ड उसके पैंट के अींदर हथेली डाले थामे सहलाती जा रही थी। बेडरूम की ओर पहुूँचते-पहुूँचते ही
दोनों बरु ी तरह मचल उठे थे।
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अब हवस की भख
य से दोनों की आूँखें बोखझल होती जा रही थीीं। साना मस्ती में झयम रही थी। उसकी आूँखें बींद
होती जा रही थी।
कमरे के अींदर जाते ही दोनों अपने-अपने कपड़े उतार फेंकते हैं और कफर एक दस य रे से बरु ी तरह गचपकते हुए
पलींि पर गिर पड़ते हैं। साना अपने बेटे के बोझ से दबी है । बेटे की हवस की मशकार बनी उसके अिले वार का
आूँखें बींद ककए इींतज
े ार कर रही थी। उसका बदन मसहर रहा था।
समीर उससे बरु ी तरह गचपकते हुए उसके होंठों पर टयट पड़ता है , चयसता है , मानो उसके होंठ खा जाएिा। साना
अपने हाथ उसकी पीठ पर जकड़ते हुए उसे अपने और भी करीब खीींच लेती है । अपनी चत य उसके लण्ड से
नघसती है ।
साना ने समीर के प्यारे -प्यारे , लींब,े मोटे लण्ड को अपनी हथेली से थामते हुए अपनी िीली चयत की काूँपती
पींखडु ड़यों के बीच रखा, चतय के सरु ाख के ऊपर उसके सप ु ाड़े को रखा और अपनी कमर उठाते हुए उसके लौड़े को
अपनी चयत के अींदर ले मलया। कमर उठाती ियी, उठाती ियी, लौड़ा ककतना लींबा था… परय े का परय ा लौड़ा
कफसलता हुआ धीरे -धीरे उसकी चत
य के अींदर धींसता िया। दोनों की जाींघें जड़
ु ियी थीीं, लौड़ा अपनी जड़ तक
साना की चत
य के अींदर था।
“आआह्ह… दे खा ना बेटा मैंने तेरे साूँप को अपने बबल में डाल ददया ना। अच्छा लिा ना मेरे बेटे को? अब कैसा
लि रहा है समीर? आराम ममला ना मोम के अींदर?”
“हाीं मोम, बहुत आराम है आपकी चयत में, ककतना िमद, ककतना नमद, ककतना मल ु ायम, ककतना िीला। आअह्ह्ह…
मन करता है बस ऐसे ही डाले रहयीं। ऐसे ही आपके अींदर पड़ा रहयीं…” और थोड़ी दे र समीर अपना लौड़ा अींदर ही
रहने दे ता है । मोम की चयत को अपने लौड़े से अच्छे तरह महसस
य करता जाता है । लौड़े को मोम की चयत के पानी
से भीिने दे ता है, और मोम के बदन को चयसता जाता है , चाटता जाता है । कभी चयगचयाीं, कभी पेट, कभी होंठ,
एक-एक अींि चाटता है चस
य ता है ।
मोम मसहरती जाती है, काूँपती जाती है, उसकी जाींघें थरथरा रही थी, चयत की पींखुडड़याीं कड़क और मोटे लौड़े को
टाइट जकड़े फड़क रही थीीं- “बेटा आआह्ह्ह… अब और नहीीं सह सकती, चल अब अींदर-बाहर कर ना। लिा ना
धकके पर धकका, जजतना चाहे लिाता जा, जजतने जोर से चाहे लिा ना… लिा ना बेटा रुक मत… अयाया…”
साना की चयत फड़क रही थी
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समीर अब चद
ु ाई की ओर बढ़ता है । अब तक मोम की चयत में गचपगचपे हो चक
ु े अपना लौड़े को बाहर ननकालता
है । और कफर मोम के चत
य ड़ों पर हथेली रखकर चत
य ऊपर करता है और लण्ड धीरे -धीरे अींदर धूँसाता जाता है ,
मोम की चयत को अच्छी तरह महसस
य करता है , उसकी िमी, िीलेपन का अहसास, चयत की मल
ु ायम दीवारों की
पकड़ अपने लौड़े पर महसस
य करता है । अपने अींदर इन अहसासों की मस्ती और मजे का अनभ
ु व करता है । जैसे-
जैसे लौड़ा अींदर जाता है मोम मसहरती जाती है और साथ ही साथ समीर भी काींप उठता है । और अब उसके
धकके तेज होते जाते हैं।
“हाूँ… हाूँ बेटा हाूँ… यह चयत तेरी ही तो अमानत है । ले ले ना परय े का परय ा… अयाया… तेरा लौड़ा भी तो ककतना
मोटा, लींबा और कड़क है । उफफ़्… लिता है मेरी सारी खुजली ममटा दे िा। उउह्ह… हाीं रे अया… और जोर… हाीं
मेला राजा, मेला बेटा अपनी मोम को चोद… चोद… खयब चोद… मैं तो ननहाल हो ियी रे …” साना भी मस्ती में बस
ययूँ ही बड़बड़ाती जा रही थी।
दोनों चद
ु ाई के आनींद की चरम की ओर बढ़ते जा रहे थे। उन्हें कुछ भी होश नहीीं था। उनका अपने पे कुछ भी
वश नहीीं था। मोम चद
ु रही थी, बेटा चोद रहा था फच-फच, पच, ठप की िूँज
य थी, मससीकररयाीं और चीखों की
आवाज थी। मस्ती के सािर में िोते लिा रहे थे दोनों, उनका बदन हकका महसस
य करता हवा में मानो तैर रहा
था, लहरा रहा था।
समीर ने अपनी मोम को और भी अपने करीब खीींच मलया, अपने से बबककुल गचपकाता हुआ, उसकी चयत में दो-
चार बड़ी जोरों से धकके लिाए, बबजली की फुती थी इन धककों में, पपस्टन का जोर था इन धककों में, और कफर
वो भी लण्ड चयत के अींदर ककए, उसे अींदर दबाए-दबाए झटके पे झटका खाता हुआ झड़ता िया… झड़ता िया।
मोम की चयत में वीयद की पपचकारी छयट रही थी। वीयद की धार और िमी से साना के िीले से बदन में मसहरन हो
उठी, सारा बदन िनिना उठा।
और बस इसी तरह समीर और साना के प्यार की कहानी आिे बढ़ती रही, उनकी जजींदिी भी इसी रफ़्तार और
तेजी से बढ़ती रही।
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समीर ककतना खुश था, साना ककतनी खखली खखली रहती। साना ने अब अपनी सारी िलत आदतें छोड़ दी थी।
शराब और शबाब की जिह अब उसने अपने आपको अपने बेटे के प्यार, दल
ु ार के नशे में डयबा ददया था। साना
की सारी जजींदिी, सारा समय अब मस़द उसके बेटे और उसके बबज़नेस के काम के गिदद रहता। वो परय ी तरह
इनमें डयबी थी।
एक ददन जब समीर आकफस से वापस आया तो दे खा कक साना बड़ी उदास सी थी, खोई-खोई सी थी। समीर
है रान था मोम के इस रूप से।
साना को जब भी समीर अपने आकफस से वापस आने पर दे खता। उसके चेहरे पर ताजिी और मश्ु कुराहट रहती,
उसका मश्ु कुराते हुए स्वाित करती। पर आज यह उदासी? यह खालीपन? समीर अपनी मोम के चेहरे को अपनी
हथेली में थामता हुआ अपनी तरफ करता है और पछ य ता है - “मोम कया हुआ? बताओ ना, आज तम्
ु हारे चेहरे पर
यह उदासी?”
साना, समीर का हाथ अपने चेहरे से अलि करती है । उसकी ओर बड़ा सीरीयस सा मूँह ु बनाते हुए दे खती है और
उसी तरह सीरीयस टोन में कहती है - “समीर, मैं बोर हो ियी इस जजींदिी से। मैं शादी करना चाहती हयूँ…”
“अरे बाबा, ऐसा कया बाम्ब फोड़ ददया मैंने जो तय इतना चौंक िया है? सीधी सी बात है , हर औरत की तरह मैं
भी शादी करना चाहती हयूँ। मैं इस दनु नयाीं की कोई पहली औरत तो नहीीं, जो शादी करना चाहती है?” साना ने
अपने होंठों पर मश्ु कुराहाट लाते हुए कहा।
पर समीर अपनी बौखलाहट में मोम के मश्ु कुराते हुए चेहरे को नजर-अींदाज कर दे ता है । यह सन
ु ते ही समीर का
मूँह
ु उतर जाता है । वो चुपचाप मोम की ओर मूँह
ु लटकाए दे खता है ।
“हाीं सही कहा आपने मोम, आप पहली और आखखरी औरत नहीीं हो इस दनु नयाीं की जो अपने प्यार को बेरहमी से
ठोकर मारते हुए ककसी और से शादी करना चाहती हो। हाीं मोम, बहुत अच्छी बात है । दे खखए ना मैं ककतना खुश
हयूँ। ककतना खश
ु …” और समीर ठहाका लिाने की नाकाम कोमशश करता है । उसकी आवाज, उसे धोखा दे जाती है ,
ठहाके की जिह उसका िला भर उठा, िला रुीं ध जाता है , मससक उठता है समीर।
49
अब चौंकने की बारी साना की थी। उसका मूँह
ु खुले का खुला रह िया। उसने झट से समीर का चेहरा अपने सीने
से लिा मलया। उसकी आूँखों से आूँसय पोंछे , उसके िाल चम
य ते हुए बोली- “अरे बाबा, आइ आम सारी, वेरी सारी
बेटा… मैं नहीीं जानती थी कक मेरा मजाक तय इतना सीररयसली ले लेिार सारी बेटा, मेला राजा बेटा। दे ख तो
ककतना दख
ु ी हो िया मेरी शादी की बात से? और तय ने यह तो पछ
य ा ही नहीीं कक वो कौन खश
ु नसीब है?” साना
ने उसकी तरफ िौर से दे खते हुए कहा, उसकी आूँखों में झाूँकते हुए कहा।
अब समीर के ददमाि की घींटी बजी- “उफफ़्… मोम आप भी ना। आप नहीीं जानती मोम कक इतनी ही दे र में मैं
ककतनी मौत मर िया। उफफ़्… पर अचानक ऐसे मजाक की बात आई कैसे आपके मन में ?” समीर ने अपने
आपको सींभालते हुये कहा।
“यह सच है कक अब मैं शादी करना चाहती हयूँ बेटा, उसी से जजससे मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हयूँ।
और वो शख्स कौन है तझु े कया अब तक नहीीं मालम य ? उफफफ़्… सारी बेटा मैंने तेरा ददल दख
ु ाया। मैं मजाक
कर रही थी। अरे मैं तो तझ
ु से ही शादी करने की बात कर रही थी…” मोम ने उसकी ओर ताकते हुए बेखझझक
अपने ददल की बात कह दी।
समीर को अब तक मोम की हरकतों से पता तो चल िया था कक मोम के मन में कया था… पर उनके खुद के
मूँह
ु से यह बात सन
ु कर उसका मन बजकलयों उछल पड़ा। और वो भी कुछ मजाक के मड
य में आ िया- “मोम
जरा कफर से बोमलए ना… मैंने ठीक से सन
ु ा नहीीं…” वो अींदर ही अींदर खश
ु ी से झम
य रहा था, पर अपने आप पर
उसे पवश्वास नहीीं हो रहा था।
समीर से अब और रुका नहीीं िया। वो अपनी माूँ को, उसके बच्चे की माूँ बनने की हसरत रखने वाली माूँ को
आिे बढ़ता हुआ अपने िले से लिा लेता है, उसे अपनी बाहों से जकड़ता हुआ उठा लेता है, साना को अपनी
बाहों में झल
ु ाता है , उसे चम
य ता है उसे कफर कुसी पर बबठा दे ता है । उसके सामने घट
ु नों पर बैठकर मोम की ओर
सर झुकाता हुआ कहता है- “मेरी माूँ, मेरे होनेवाले बच्चों की माूँ, मेरी कया औकात कक मैं आपकी बात टाल दीं ।य
आप मेरी माूँ हो, मेरे बच्चे की माूँ बनना चाहती हैं। मैं भला आपकी इच्छा कैसे टाल सकता हयूँ। माूँ की इच्छा
परय ी करना तो, मेरा फज़द है। मैं आपकी इच्छा जरूर परय ी करूूँिा…”
वो और भी नीचे झुकता है , माूँ के कदमों को चयमता है। कफर उठता है । माूँ की िोद में अपना सर रख दे ता है ।
और कफर कहता है- “लीजजए मैं अपने आपको आपके हवाले करता हयूँ। मेरी जजींदिी अब आपकी है । मैंने अपना
सब कुछ आपकी झोली में डाल ददया मोम… सब कुछ…” और माूँ की िोद में पड़ा रहा।
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साना अपने बेटे का यह असीम, ननश्छल और बे-इींतहा प्यार दे खकर ननहाल हो उठती है । समीर का सर उठाती
है , उसके चेहरे को चम
य ती हुई कहती है - “मैं जानती थी बेटा कक तय ककतना खश
ु होिा इस बात से। चल उठ…
इस बात पर अब जरा सीररयसली बात करते हैं…”
समीर, मोम के बिल में बैठता है, और कुछ सोचता हुआ कहता है- “ह्म्म्म्म… सीरीयस बात? अब इसमें
सीरीयस सी बात कया है मोम? बस चमलए कल कोटद में शादी कर लेते हैं। अरे जब ममयाीं बीबी राजी तो कया
करे िा काजी?”
“अरे भोले राजा…” साना उसके िाल में हककी सी चपत लिाती हुई कहती है- “मझ ु े काजी का डर नहीीं बेटा,
दनु नयाींवालों का डर है । हम माूँ-बेटा हैं ना… लोि कया कहें िे? कया इस ररश्ते को समाज मानेिा? चलो समाज को
मारो िोली। हमारे बच्चों का कया होिा? उन्हें ककतनी बदनामी झेलनी पड़ेिी? “
“एक रास्ता है … हमें ककसी ऐसी जिह जाना होिा जहाूँ हमें कोई नहीीं जानता। वहाूँ हम कोटद -मैरेज कर लेंि…
े ”
“पर माूँ, ऐसी जिह इींडडया में तो शायद ही ममले जहाूँ हमें कोई नहीीं जानता…”
“अरे सौजी मोम, कफर दे र ककस बात की बताइए ना ऐसी कौन सी जिह है? कहाूँ है जकदी बताइए ना?” समीर
बेचैन सा होता हुआ पछ
य ता है ।
“बेटा, िोआ के जजस िाूँव में मैं पली बढ़ी ना… वो िोआ से दरय समद्र
ु के ककनारे बसा है । दनु नयाीं से बबककुल
अलि थलि, शहर से कोसों दरय । वहाूँ तम्
ु हें कोई नहीीं पहचानेिा, कोई कुछ नहीीं पछ
य े िा। वहाूँ अभी भी पत
ु ि
द ाली
तौर तरीके ही चलते हैं। बहुत खयबसरय त जिह है, और अभी भी वहाूँ एक पत
ु िद ाली जमीींदार का आलीशान बूँिला
खाली पड़ा है, कोई खरीददार वहाूँ ममलता नहीीं। अभी कुछ ददन पहले ही मेरे एक जानने वाले ने मझु से उसे
बेचने की बात कही थी। कयूँय ना हम उसे खरीद लें और वहीीं बस जायें और कफर तम
ु दोनों शादी करके वहाूँ चैन
से बाकी की जजींदिी िज
ु ारो?” सज
य ी मोम, समीर को समझाती हुई कहती है ।
साना ने सारी बात ध्यान से सनु ी और समझी और कफर कहा- “हाीं बात तो ठीक है आींटी, मैं भी जानती हयूँ अभी
भी िोआ में ऐसी जिहें हैं। पर हमारे बबज़नेस का कया होिा?”
“ओह मोम, आप उसकी गचींता मत करो। यहाूँ बोडद आफ डाइरे कटसद सारा काम सींभालेंिे और मैं बोडद के चेयरमैन
की है मसयत महीने में एक बार आता रहयूँिा और उनपर ननिरानी रखि
यूँ ा और कफर तम
ु भी तो बोडद के में टर की
तरह अपनी सलाह दे ती रहोिी, कयूँय है ना ठीक? तम
ु यहीीं रहना हमेशा, हमारे बच्चों की दे खभाल का काम
तम्
ु हारे जजम्मे। हाहाहाहाहा…” समीर ठहाके लिाता हुआ कहता है ।
समीर की बात सन
ु कर साना कुछ बोलती उसके पहले ही ममसेज़ डडसज
य ा बोल उठती हैं- “खबरदार जो कोई मेरे
होनेवाले ग्रैंडगचकड्रेन को हाथ भी लिाया। अरे मैंने साना को, समीर को, तम
ु दोनों को अपनी िोद में पाला पोसा
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और अब जब तम
ु दोनों के बच्चे होंिे तो कोई और उसे पालेिा? चाहे वो साना ही कययूँ ना हो… मैं बदादश्त नहीीं
कर सकती, समझे तम
ु दोनों। मैं उन्हें पालि
ींय ी, बड़ा आया अपनी मोम को पालने-पोसने को बोलने वाला…” ममसेज़
डडसज
य ा ने साफ-साफ लफ़्ज़ों में अपनी मींशा जादहर कर दी।
समीर आिे बढ़कर अपनी सौजी मोम को िले लिा लेता है उसके िाल चयमता है और कहता है- “उफफ़्… सौजी
मोम, सारी सारी… िलती हो ियी बाबा। चमड़े की जुबान है ना बस कफसल ियी। मझ
ु े माप कर दो सौजी मोम,
भला आपके होते हमें ककसी और की जरूरत ही कया? है ना मोम?” समीर अपनी मोम की ओर आूँखें मारता
हुआ कहता है ।
ममसेज़ डडसज
य ा भी हूँस पड़ती है और कहती है - “तो ठीक है । चलो अब तम
ु दोनों जुट जाओ और मझ
ु े जकदी से
जकदी ग्रैंडमोम बनाने की तैयारी करो। कोई दे री नहीीं, समझे?”
और कफर प्लान के मत
ु बबक सब कुछ होता जाता है । साना और समीर ममसेज़ डडसज
य ा के िाूँव के उस आलीशान
बींिले में मशफ्ट हो जाते हैं। बूँिला बड़ा ही खयबसरय त था। एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ, समद्र
ु ा के
ककनारे । बड़ी ही मनोरम छटा थी वहाूँ की।
ममसेज़ डडसज
य ा प्यार से उसे साना बल
ु ाती।
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