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ये कहानी के मल
ू लेख़क श्री मोटा-बाांस जी हैं। मैं मात्र उसका दे वनागरी ललप्यान्तरण कर रहा हूूँ।
बात बहुत परु ानी है , पर आज आप लोगों के साथ बाांटने का मन ककया, इसललये बता रहाां हूूँ। हमारा पररवाररक
काम धोबी का था। हम लोग एक छोटे से गाूँव में रहते थे, और वहाां गाूँव में धोबबयों का एक ही घर है, इसललये
हम लोगों को ही गाूँव के सारे कपड़े साफ करने को लमलते थे। मेरे पररवार में मैं, मेरी एक बहन और माूँ और
पपताजी है ।
गाूँव के माहोल में लड़ककयों की कम उमर में शाददयाां हो जाती हैं। इसललये जैसे ही मेरी बहन की उमर 16 साल
की हुई उसकी शादी कर दी गई। और वो पड़ोस के गाूँव में चली गई। पपछले एक साल से घर में अब मैं, मेरी
माूँ और बापू के अलावा कोई नहीां बचा था।
मेरी उमर इस समय 16 साल की हो गई थी, और मेरा भी सतरहवाां साल चलने लगा था। गाूँव के स्कूल में ही
पढ़ाई-ललखाई चालू थी। हमारा एक छोटा सा खेत था। जजस पर पपताजी काम करते थे और मैं और माूँ ने कपड़े
साफ करने का काम सांभाल रखा था। कुल लमलाकर हम बहुत सख
ु ी-सांपन्न थे। और ककसी चीज की ददक्कत नहीां
थी।
मेरे से पहले कपड़े साफ करने में , माूँ का हाथ मेरी बहन बटाती थी। मगर अब मैं ये काम करता था। हम दोनों
माूँ-बेटे हर हफ्ते में दो बार नदी पर जाते थे और सफाई करते थे। कफर घर आकर उन कपड़ों की ईस्त्री करके,
उन्हें गाूँव में वापस लौटाकर, कफर से परु ाने, गन्दे कपड़े इकट्टे कर लेते थे। हर बध
ु वार और शननवार को सब
ु ह
9:00 बजे के समय मैं और माूँ एक छोटे से गधे पर, परु ाने कपड़े लादकर नदी की ओर ननकल पड़ते। हम गाूँव
के पास बहनेवाली नदी में कपड़े ना धोकर गाूँव से थोड़ा दरू जाकर सन
ू सान जगह पर कपड़े धोते थे। क्योंकी
गाूँव के पास वाली नदी पर साफ पानी भी नहीां लमलता था, और ब्यवधान भी बहुत होता था।
अब मैं जरा अपनी माूँ के बारे में बता दां ।ू वो 34-35 साल के उमर की एक बहुत सद ुां र गोरी-चचट्टी औरत है।
ज्यादा लांबी तो नहीां, परां तु उसकी लांबाई 5’3” इांच की है , और मेरी 5’7” इांच की है । माूँ दे खने में बहुत सद
ुां र है ।
धोबबयों में वैसे भी गोरा रां ग और सद ांु र होना कोई नई बात नहीां है । माूँ के सद
ांु र होने के कारण गाूँव के लोगों की
नजर भी उसके ऊपर रहती होगी, ऐसा मैं समझता हूूँ। और शायद इसी कारण से वो कपड़े धोने के ललये
सन
ु सान जगह पर जाना ज्यादा पसांद करती थी।
सबसे आकर्षक उसके मोटे -मोटे चूतड़ और नाररयल के जैसे स्तन थे, जो की ऐसे लगते थे, जैसे की ब्लाउज़ को
फाड़कर ननकल जायेंगे और भाले की तरह से नक
ु ीले थे। उसके चत
ू ड़ भी कम सेक्सी नहीां थे, जब वो चलती थी
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तो ऐसे मटकते थे की दे खने वाले, उसकी दहलती गाण्ड को दे खकर दहल जाते थे। पर उस वक्त मझ
ु े इन बातों
का कम ही ज्ञान था।
कफर भी थोड़ा बहुत तो गाूँव के लड़कों के साथ रहने के कारण पता चल ही गया था। और जब भी मैं और माूँ
कपड़े धोने जाते तो मैं बड़ी खुशी के साथ कपड़े धोने उसके साथ जाता था। जब माूँ, कपड़े को नदी के ककनारे
धोने के ललये बैठती थी, तब वो अपनी साड़ी और पेटीकोट को घट
ु नों तक ऊपर उठा लेती थी और कफर पीछे एक
पत्थर पर बैठकर आराम से दोनों टाांगें फैलाकर जैसा की औरतें पेशाब करते वक्त करती हैं, कपड़ों को साफ
करती थी। मैं भी अपनी लग
ुां ी को जाांघ तक उठाकर कपड़े साफ करता रहता था।
मेरे मन में कई सवाल उठने लगते। कफर मैं अपना लसर झटक कर काम करने लगता था। मैं और माूँ कपड़ों की
सफाई के साथ साथ तरह-तरह की गाूँव भर की बातें भी करते जाते। कई बार हमें उस सन
ू सान जगह पर ऐसा
कुछ ददख जाता था, जजसको दे खकर हम दोनों एक दस
ू रे से अपना मूँह
ु छुपाने लगते थे।
कपड़े धोने के बाद हम वहीां पर नहाते थे, और कफर साथ लाया हुआ खाना खाकर, नदी के ककनारे सखु ाये हुए
कपड़े को इकट्ठा करके घर वापस लौट जाते थे। मैं तो खैर लग
ांु ी पहनकर नदी के अांदर कमर तक पानी में
नहाता था, मगर माूँ नदी के ककनारे ही बैठकर नहाती थी। नहाने के ललये माूँ सबसे पहले अपनी साड़ी उतारती
थी, कफर अपने पेटीकोट के नाड़े को खोलकर, पेटीकोट ऊपर को सरका कर अपने दाांत से पकड़ लेती थी। इस
तरीके से उसकी पीठ तो ददखती थी मगर आगे से ब्लाउज़ परू ा ढक जाता था।
कफर वो पेटीकोट को दाांत से पकड़े हुए ही अांदर हाथ डालकर अपने ब्लाउज़ को खोलकर उतारती थी और कफर
पेटीकोट को छाती के ऊपर बाांध लेती थी। जजससे उसके चूचे परू ी तरह से पेटीकोट से ढक जाते थे, कुछ भी
नजर नहीां आता था, और घट
ु नों तक परू ा बदन ढक जाता था। कफर वो वहीां पर नदी के ककनारे बैठकर, एक बड़े
से जग से पानी भर-भरकर पहले अपने परू े बदन को रगड़-रगड़ कर साफ करती थी और साबन
ु लगाती थी, कफर
नदी में उतरकर नहाती थी।
माूँ की दे खा-दे खी, मैंने भी पहले नदी के ककनारे बैठकर अपने बदन को साफ करना शरू
ु कर ददया, कफर मैं नदी
में डुबकी लगाकर नहाने लगा। मैं जब साबन
ु लगाता तो अपने हाथों को अपनी लग
ुां ी में घस
ु ाकर परू े लण्ड और
गाण्ड पर चारों तरफ घमु ा-घम
ु ाकर साबन
ु लगाकर सफाई करता था। क्योंकी मैं भी माूँ की तरह बहुत सफाई
पसांद था। जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैंने कई बार दे खा की माूँ बड़े गौर से मझ
ु े दे खती रहती थी, और अपने
पैर की एांड़ड़याां पत्थर पर धीरे -धीरे रगड़कर साफ करती होती। मैं सोचता था वो शायद इसललये दे खती है की, मैं
ठीक से सफाई करता हूूँ या नहीां।
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अच्छी तरीके से साफ करता था। इस काम में मैंने नोदटस ककया की, कई बार मेरी लग
ुां ी भी इधर-उधर हो जाती
थी। जजससे माूँ को मेरे लण्ड की एक-आध झलक भी ददख जाती थी।
जब पहली बार ऐसा हुआ, तो मझ ु े लगा की शायद माूँ डाांटेगी, मगर ऐसा कुछ नहीां हुआ। तब मैं ननज्चांत हो
गया, और मजे से परू ा ध्यान से अपनी साफ सफाई लगा। माूँ की सद ांु रता दे खकर मेरा भी मन कई बार ललचा
जाता था, और मैं भी चाहता था की मैं उसे सफाई करते हुए दे खूां। पर वो ज्यादा कुछ दे खने नहीां दे ती थी और
घट
ु नों तक की सफाई करती थी, और कफर बड़ी सावधानी से अपने हाथों को अपने पेटीकोट के अांदर लेजाकर
अपनी छाती की सफाई करती।
जैसे ही मैं उसकी ओर दे खता तो, वो अपना हाथ छाती में से ननकालकर अपने हाथों की सफाई में जट
ु जाती
थी। इसललये मैं कुछ नहीां दे ख पाता था और चूँ क
ू ी वो घट
ु नों को मोड़कर अपनी छाती से सटाये हुए होती थी,
इसललये पेटीकोट के ऊपर से छाती की झलक लमलनी चादहए, वो भी नहीां लमल पाती थी। इसी तरह जब वो
अपने पेटीकोट के अांदर हाथ घस
ु ाकर अपनी जाांघों और उसके बीच की सफाई करती थी। ये ध्यान रखती की मैं
उसे दे ख रहा हूूँ या नहीां? जैसे ही मैं उसकी ओर घम
ू ता, वो झट से अपना हाथ ननकाल लेती थी, और अपने
बदन पर पानी डालने लगती थी। मैं मन मसोसकर रह जाता था।
एक ददन सफाई करते-करते माूँ का ध्यान शायद मेरी तरफ से हट गया था, और वो बड़े आराम से अपने
पेटीकोट को अपनी जाांघों तक उठाकर सफाई कर रही थी। उसकी गोरी, चचकनी जाांघों को दे खकर मेरा लण्ड खड़ा
होने लगा और मैं, जो की इस वक्त अपनी लग
ुां ी को ढीला करके अपने हाथों को लग
ुां ी के अांदर डालकर अपने
लण्ड की सफाई कर रहा था, धीरे -धीरे अपने लण्ड को मसलने लगा।
तभी अचानक माूँ की नजर मेरे ऊपर गई, और उसने अपना हाथ ननकाल ललया और अपने बदन पर पानी
डालती हुई बोली- “क्या कर रहा है ? जल्दी से नहाकर काम खतम कर…”
मेरे तो होश ही उड़ गये, और मैं जल्दी से नदी में जाने के ललये उठकर खड़ा हो गया। पर मझ
ु े इस बात का तो
ध्यान ही नहीां रहा की मेरी लग
ुां ी तो खुली हुई है , और मेरी लग
ुां ी सरसराते हुए नीचे चगर गई। मेरा परू ा बदन
नांगा हो गया और मेरा 8½” इांच का लण्ड जो की परू ी तरह से खड़ा था, धूप की रोशनी में नजर आने लगा।
मैंने दे खा की माूँ एक पल के ललये चककत होकर मेरे परू े बदन और नांगे लण्ड की ओर दे खती रह गई। मैंने
जल्दी से अपनी लग
ुां ी उठाई और चुपचाप पानी में घस
ु गया। मझ
ु े बड़ा डर लग रहा था की अब क्या होगा? अब
तो पक्की डाांट पड़ेगी। मैंने कनखखयों से माूँ की ओर दे खा तो पाया की वो अपने लसर को नीचे ककये हल्के-हल्के
म्ु कुरा रही है और अपने पैरों पर अपने हाथ चलाकर सफाई कर रही है । मैंने राहत की साांस ली और चुपचाप
नहाने लगा। उस ददन हम ज्यादातर चुपचाप ही रहे । घर वापस लौटते वक्त भी माूँ ज्यादा नहीां बोली।
दस
ू रे ददन से मैंने दे खा की माूँ, मेरे साथ कुछ ज्यादा ही खुलकर हूँसी मजाक करती रहती थी, और हमारे बीच
डबल मीननांग (दोहरे अथों) में भी बातें होने लगी थी। पता नहीां माूँ को पता था या नहीां पर मझ
ु े बड़ा मजा आ
रहा था।
मैंने जब भी ककसी के घर से कपड़े लेकर वापस लौटता तो माूँ बोलती- “क्यों, रचधया के कपड़े भी लाया है धोने
के ललये, क्या?”
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मैं बोलता- “हाूँ…”
इस पर वो बोलती- “ठीक है, तू धोना उसके कपड़े बड़ा गन्दा करती है । उसकी सलवार तो मझ
ु से धोई नहीां
जाती…” कफर पछ
ू ती थी- “अांदर के कपड़े भी धोने के ललये ददये हैं क्या?” अांदर के कपड़ों से उसका मतलब पैंटी
और ब्रा या कफर अांचगया से होता था।
माूँ मझ
ु े उसकी पैंटी और ब्रा या अांचगया फैलाकर ददखाती और म्ु कुराते हुए बोलती- “ले, खुद ही दे ख ले…”
तब माूँ बोलती- “अरे , शमाषता क्यों है? ये भी तेरे को ही धोना पड़ेगा…” कहकर हूँसने लगती।
हालाांकी, सच में ऐसा कुछ नहीां होता और ज्यादातर मदों के कपड़े मैं और औरतों के माूँ ही धोया करती थी।
क्योंकी, उसमें ज्यादा मेहनत लगती थी। पर पता नहीां क्यों माूँ, अब कुछ ददनों से इस तरह की बातों में ज्यादा
ददलचस्पी लेने लगी थी। मैं भी चुपचाप उसकी बातें सन
ु ता रहता और मजे से जवाब दे ता रहता था। जब हम
नदी पर कपड़े धोने जाते तब भी मैं दे खता था की, माूँ अब पहले से थोड़ी ज्यादा खल
ु े तौर पर पेश आती थी।
पहले वो मेरी तरफ पीठ करके अपने ब्लाउज़ को खोलती थी, और पेटीकोट को अपनी छाती पर बाांधने के बाद
ही मेरी तरफ घम
ू ती थी। पर अब वो इस पर ध्यान नहीां दे ती, और मेरी तरफ घम
ू कर अपने ब्लाउज़ को खोलती
और मेरे ही सामने बैठकर मेरे साथ ही नहाने लगती।
जबकी पहले वो मेरे नहाने तक इन्तेजार करती थी और जब मैं थोड़ा दरू जाकर बैठ जाता, तब परू ा नहाती थी।
मेरे नहाते वक्त उसका मझ
ु े घरू ना बा-दस्तरू जारी था। मझ
ु में भी अब दहम्मत आ गई थी और मैं भी, जब वो
अपनी छानतयों की सफाई कर रही होती तो उसे घरू कर दे खता रहता था। माूँ भी मजे से अपने पेटीकोट को जाांघों
तक उठाकर, एक पत्थर पर बैठ जाती, और साबन
ु लगाती, और ऐसे एजक्टां ग करती जैसे मझ
ु े दे ख ही नहीां रही
है ।
उसके दोनों घट
ु ने मड़
ु े हुए होते थे, और एक पैर थोड़ा पहले आगे पसारती और उसपर परू ा जाांघों तक साबनु
लगाती थी। कफर पहले पैर को मोड़कर, दस ू रे पैर को फैलाकर साबन
ु लगाती। परू ा अांदर तक साबन
ु लगाने के
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ललये, वो अपने घट
ु ने मोड़े रखती और अपने बाांये हाथ से अपने पेटीकोट को थोड़ा उठाकर, या अलग करके
दादहने हाथ को अांदर डालकर साबन
ु लगाती थी।
मैं चूँ क
ू ी थोड़ी दरू पर उसके बगल में बैठा होता, इसललये मझ
ु े पेटीकोट के अांदर का नजारा तो नहीां लमलता था।
जजसके कारण से मैं मन मसोसकर रह जाता था कक, काश मैं सामने होता। पर इतने में ही मझ
ु े गजब का मजा
आ जाता था। उसकी नांगी, चचकनी-चचकनी जाांघें ऊपर तक ददख जाती थीां। माूँ अपने हाथ से साबन
ु लगाने के
बाद बड़े मग को उठाकर उसका पानी सीधे अपने पेटीकोट के अांदर डाल दे ती और दस
ू रे हाथ से साथ ही साथ
रगड़ती भी रहती थी।
ये इतना जबरदस्त सीन होता था की मेरा तो लण्ड खड़ा होकर फुफकारने लगता, और मैं वहीां नहाते-नहाते अपने
लण्ड को मसलने लगता। जब मेरे से बरदा्त नहीां होता तो मैं सीधा नदी में, कमर तक पानी में उतर जाता
और पानी के अांदर हाथ से अपने लण्ड को पकड़कर खड़ा हो जाता और माूँ की तरफ घम
ू जाता।
जब वो मझ ु े पानी में इस तरह से उसकी तरफ घमू कर नहाते दे खती तो म्ु कुरा के मेरी तरफ दे खती हुई
बोलती- “ज्यादा दरू मत जाना, ककनारे पर ही नहा ले। आगे पानी बहुत गहरा है …”
मैं कुछ नहीां बोलता और अपने हाथों से अपने लण्ड को मसलते हुए नहाने की एजक्टां ग करता रहता। इधर माूँ
मेरी तरफ दे खती हुई, अपने हाथों को ऊपर उठा-उठाकर अपनी काांख की सफाई करती। कभी अपने हाथों को
अपने पेटीकोट में घस
ु ाकर छाती को साफ करती, कभी जाांघों के बीच हाथ घस
ु ाकर खूब तेजी से हाथ चलाने
लगती। दरू से कोई दे खे तो ऐसा लगेगा के मठ
ु मार रही है , और शायद मारती भी होगी।
कभी-कभी, वो भी खड़ी होकर नदी में उतर जाती और ऐसे में उसका पेटीकोट, जो की उसके बदन से चचपका
हुआ होता था, गीला होने के कारण मेरी हालत और ज्यादा खराब कर दे ता था। पेटीकोट चचपकने के कारण
उसकी बड़ी-बड़ी चूचचयाां नम
ु ायाां हो जाती थीां। कपड़े के ऊपर से उसके बड़े-बड़े, मोटे -मोटे ननप्पल तक ददखने
लगते थे। पेटीकोट उसके चत
ू ड़ों से चचपक कर उसकी गाण्ड की दरार में फूँसा हुआ होता था, और उसके बड़े-बड़े
चूतड़ साफ साफ ददखाई दे ते रहते थे।
माूँ भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आकर खड़ी होकर डुबकी लगाने लगती और मझ
ु े अपने चचू चयों का
नजारा करवाती जाती। मैं तो वहीां नदी में ही लण्ड मसलकर मठ
ु मार लेता था। हालाांकी मठ
ु मारना मेरी आदत
नहीां थी। घर पर मैं ये काम कभी नहीां करता था, पर जब से माूँ के स्वभाव में पररवतषन आया था, नदी पर मेरी
हालत ऐसी हो जाती थी की मैं मजबरू हो जाता था।
माूँ बोलती- “अरे , उसकी छानतयाां ज्यादा बड़ी थोड़े ही है , जो वो बड़ा ब्लाउज़ पहनेगी, हाूँ उसकी सास के ब्लाउज़
बहुत बड़े-बड़े हैं। बदु ढ़या की छाती पहाड़ जैसी है…” कहकर माूँ हूँसने लगती।
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कफर मेरे से बोलती- “तू सबके ब्लाउज़ की लांबाई-चौडाई दे खता रहता है, क्या? या कफर ईस्त्री करता है ?”
मैं क्या बोलता, चुपचाप लसर झुका कर ईस्त्री करते हुए धीरे से बोलता- “अरे , दे खता कौन है … नजर चली जाती
है , बस…”
ईस्त्री करते-करते मेरा परू ा बदन पशीने से नहा जाता था। मैं केवल लग
ांु ी पहने ईस्त्री कर रहा होता था। माूँ मझ
ु े
पशीने से नहाये हुए दे खकर बोलती- “छोड़ अब तू कुछ आराम कर ले, तब तक मैं ईस्त्री करती हूूँ…” माूँ ये काम
करने लगती। थोड़ी ही दे र में उसके माथे से भी पशीना चूने लगता, और वो अपनी साड़ी खोलकर एक ओर फेंक
दे ती और बोलती- “बड़ी गरमी है रे , पता नहीां तू कैसे कर लेता है, इतने कपड़ों की ईस्त्री… मेरे से तो ये गरमी
बरदा्त नहीां होती…”
इस पर मैं वहीां पास बैठा उसके नांगे पेट, गहरी नाभी और मोटे चच
ू ों को दे खता हुआ बोलता- “ठां डी कर दां ,ू
तझ
ु ?
े ”
मैं- “डांडव
े ाले पांखे से। मैं तझ
ु े पांखा झल दे ता हूूँ, फैन चलाने पर तो ईस्त्री ही ठां डी पड़ जायेगी…”
घर के अांदर, वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नहीां थी। इस कारण से उसके पतले ब्लाउज़ को पशीना परू ी तरह
से लभगा दे ता था, और उसकी चूचचयाां उसके ब्लाउज़ के ऊपर से नजर आती थी। कई बार जब वो हल्के रां ग का
ब्लाउज़ पहनी होती तो उसके मोटे -मोटे भरू े रां ग के ननप्पल नजर आने लगते। ये दे खकर मेरा लण्ड खड़ा होने
लगता था। कभी-कभी वो ईस्त्री को एक तरफ रखकर, अपने पेटीकोट को उठाकर पशीना पोंछने के ललये अपने
लसर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके के इन्तेजार में बैठा रहता था। क्योंकी इस वक्त उसकी आूँखें तो
पेटीकोट से ढक जाती थी, पर पेटीकोट ऊपर उठने के कारण उसकी टाांगें परू ी जाांघों तक नांगी हो जाती थी, और
मैं बबना अपनी नजरों को चरु ाये उसकी गोरी-चीट्टी, मखमली जाांघों को तो जी भरकर दे खता था।
माूँ, अपने चेहरे का पशीना अपनी आूँखें बांद करके परू े आराम से पोंछती थी, और मझ
ु े उसके मोटे कन्दली के
खम्भे जैसी जाांघों का परू ा नजारा ददखाती थी। गाूँव में औरतें साधारणतया पैंटी नहीां पहनती हैं। कई बार ऐसा
हुआ की मझु े उसके झाांटों की हल्की सी झलक दे खने को लमल जाती। जब वो पशीना पोंछकर अपना पेटीकोट
नीचे करती, तब तक मेरा काम हो चक ु ा होता और मेरे से बरदा्त करना सांभव नहीां हो पाता। मैं जल्दी से घर
के पपछवाड़े की तरफ भाग जाता, अपने लण्ड के खड़ेपन को थोड़ा ठां डा करने के ललये। जब मेरा लण्ड डाउन हो
जाता, तब मैं वापस आ जाता।
माूँ पछ
ू ती- “कहाां गया था?”
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मैं बोलता- “थोड़ी ठां डी हवा खाने, बड़ी गरमी लग रही थी…”
माूँ- “ठीक ककया। बदन को हवा लगाते रहना चादहये, कफर तू तो अभी बड़ा हो रहा है । तझ
ु े और ज्यादा गरमी
लगती होगी…”
मैं- “हाूँ, तझ
ु े भी तो गरमी लग रही होगी माूँ… जा तू भी बाहर घम
ू कर आ जा। थोड़ी गरमी शाांत हो जायेगी…”
और उसके हाथ से ईस्त्री ले लेता।
पर माूँ बाहर नहीां जाती थी, और वहीां पर एक तरफ मोढ़े पर बैठ जाती। अपने पैर घट
ु नों के पास से मोड़कर
और अपने पेटीकोट को घट
ु नों तक उठाकर बीच में समेट लेती। माूँ जब भी इस तरीके से बैठती थी तो मेरा
ईस्त्री करना मजु ्कल हो जाता था। उसके इस तरह बैठने से उसकी, घट
ु नों से ऊपर तक की जाांघें और ददखने
लगती थी।
माूँ- “अरे नहीां रे , रहने दे मेरी तो आदत पड़ गई है गरमी बरदा्त करने की…”
माूँ- “जाने दे तू अपना काम कर। ये गरमी ऐसे नहीां शान्त होने वाली। तेरा बापू अगर समझदार होता तो गरमी
लगती ही नहीां। पर उसे क्या, वो तो कहीां दे सी पीकर सोया पड़ा होगा। शाम होने को आई, मगर अभी तक नहीां
आया…”
मैं- “अरे , तो इसमें बापू की क्या गलती है? मौसम ही गरमी का है । गरमी तो लगेगी ही…”
मैं भी सोच में पड़ा हुआ रह जाता कक आखखर माूँ चाहती क्या है?
रात में जब खाना खाने का टाईम आता, तो मैं नहा-धोकर ककचेन में आ जाता, खाना खाने के ललये। माूँ भी वहीां
बैठकर मझ
ु े गरम-गरम रोदटयाां सेंक दे ती, और हम खाते रहते। इस समय भी वो पेटीकोट और ब्लाउज़ में ही
होती थी। क्योंकी ककचेन में गरमी होती थी और उसने एक छोटा सा पल्लू अपने कांधों पर डाल रखा होता। उसी
से अपने माथे का पशीना पोंछती रहती और खाना खखलाती जाती थी मझ
ु े। हम दोनों साथ में बातें भी कर रहे
होते।
माूँ पहले तो कुछ समझ नहीां पाती, कफर जब उसकी समझ में आता की मैं आयरन- ईस्त्री न कहकर, उसे ईस्त्री
कह रहा हूूँ तो वो हूँसने लगती और कहती- “हाूँ, मैं गरम ईस्त्री हूूँ…” और अपना चेहरा आगे करके बोलती- “दे ख
ककतना पशीना आ रहा है, मेरी गरमी दरू कर दे …”
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मैं- “मैं तझ
ु े एक बात बोल,ांू तू गरम चीज मत खाया कर, ठां डी चीजें खाया कर…”
माूँ- “अच्छा, कौन सी ठां डी चीजे मैं खाांऊूँ कक मेरी गरमी दरू हो जायेगी?”
इस पर माूँ का चेहरा लाल हो जाता था, और वो लसर झुका लेती और धीरे से बोलती- “अरे केले और बैगन की
सब्जी तो मझ
ु े भी अच्छी लगती है , पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सजब्जयाां लाने से रहा, ना तो
उसे केले पसांद है, ना ही बैगन…”
माूँ- “हाय… बड़ा अच्छा बेटा है , माूँ का ककतना ध्यान रखता है…”
मैं खाना खतम करते हुए बोलता- “चल, अब खाना तो हो गया खतम। तू भी जाकर नहा ले और खाना खा ले…”
माूँ- “अरे नहीां, अभी तो तेरा बापू दे शी चढ़ाकर आता होगा। उसको खखला दां ग
ू ी, तब खाऊूँगी, तब तक नहा लेती
हूूँ। तू जा और जाकर सो जा, कल नदी पर भी जाना है …”
मझ
ु े भी ध्यान आ गया कक हाूँ, कल तो नदी पर भी जाना है । मैं छत पर चला गया। गलमषयों में हम तीनों लोग
छत पर ही सोया करते थे। ठां डी-ठां डी हवा बह रही थी, मैं बबस्तर पर लेट गया और अपने हाथों से लण्ड मसलते
हुए, माूँ के खबू सरू त बदन के खयालों में खोया हुआ, सपने दे खने लगा की कल कैसे उसके बदन को ज्यादा से
ज्यादा ननहारूांगा, ये सोचता हुआ कब सो गया मझ ु े पता ही नहीां लगा।
सब
ु ह सरू ज की पहली ककरण के साथ जब मेरी नीांद खुली तो दे खा, एक तरफ बापू अभी भी लढ़ ु का हुआ है, और
माूँ शायद पहले ही उठकर जा चुकी थी। मैं भी जल्दी से नीचे पहुूँचा तो दे खा की माूँ बाथरूम से आकर हैंडपम्प
पर अपने हाथ-पैर धो रही थी।
माूँ मझ
ु े दे खते ही बोली- “चल, जल्दी से तैयार हो जा, मैं खाना बना लेती हूूँ। कफर जल्दी से नदी पर ननकल
जायेंगे, तेरे बापू को भी आज शहर जाना है बीज लाने, मैं उसको भी उठा दे ती हूूँ…”
थोड़ी दे र में, जब मैं वापस आया तो दे खा की बापू भी उठ चुका था और वो बाथरूम जाने की तैयारी में था। मैं
भी अपने काम में लग गया और सारे कपड़ों के गट्ठर बनाकर तैयार कर ददया। थोड़ी दे र में हम सब लोग
तैयार हो गये। घर को ताला लगाने के बाद बापू बस पकड़ने के ललये चल ददया और हम दोनों नदी की ओर।
मैंने माूँ से पछ
ू ा- “बापू कब तक आयेंग?
े ”
मैं भी बगल में बैठा उसको ननहारते हुए नहाता रहा। बे-खयाली में एक-दो बार तो मेरी लग
ांु ी भी, मेरे बदन पर से
हट गई थी। पर अब तो ये बहुत बार हो चुका था। इसललये मैंने इसपर कोई ध्यान नहीां ददया। हर बार की तरह
माूँ ने भी अपने हाथों को पेटीकोट के अन्दर डालकर खुब रगड़-रगड़कर नहाना चालू रखा। थोड़ी दे र बाद मैं नदी
में उतर गया। माूँ ने भी नदी में उतरकर एक-दो डुबककयाां लगाई, और कफर हम दोनों बाहर आ गये। मैंने अपने
कपड़े चेन्ज कर ललये और पजामा और कुताष पहन ललया।
माूँ की बड़ी-बड़ी चूचचयाां, जजन्हें मैंने अब तक कपड़ों के ऊपर से ही दे खा था, उसके भारी-भारी चूतड़, उसकी
मोटी-मोटी जाांघें और झाांट के बाल, सब एक पल के ललये मेरी आूँखों के सामने नांगे हो गये। पेटीकोट के नीचे
चगरते ही, उसके साथ ही माूँ भी, हाये करते हुए तेजी के साथ नीचे बैठ गई। मैं आूँखें फाड़-फाड़ के दे खते हुए,
गगुां े की तरह वहीां पर खड़ा रह गया।
माूँ नीचे बैठकर अपने पेटीकोट को कफर से समेटती हुई बोली- “ध्यान ही नहीां रहा। मैं, तझ
ु े कुछ बोलना चाहती
थी और ये पेटीकोट दाांतों से छूट गया…”
मैं कुछ नहीां बोला। माूँ कफर से खड़ी हो गई और अपने ब्लाउज़ को पहनने लगी। कफर उसने अपने पेटीकोट को
नीचे ककया और बाांध ललया। कफर साड़ी पहनकर वो वहीां बैठकर अपने भीगे पेटीकोट को साफ करके तैयार हो
गई। कफर हम दोनों खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद हम वहीां पेड़ की छाांव में बैठकर आराम करने लगे।
जगह सनू सान थी। ठां डी हवा बह रही थी। मैं पेड़ के नीचे लेटे हुए, माूँ की तरफ घम
ू ा तो वो भी मेरी तरफ घम
ू ी।
इस वक्त उसके चेहरे पर एक हल्की सी म्ु कुराहट पसरी हुई थी।
मैंने पछ
ू ा- “माूँ, क्यों हूँस रही हो?”
मैं- “झठ
ू मत बोलो, तम
ु म्ु कुरा रही हो…”
9
माूँ- “क्या करूां… अब हूँसने पर भी कोई रोक है, क्या?”
माूँ- “अरे , इतनी अच्छी ठां डी हवा बह रही है , चेहरे पर तो म्ु कान आयेगी ही…”
माूँ- “क्या मतलब, ईस्त्री (आयरन) की गरमी कैसे ननकल जायेगी… यहाां पर तो कहीां ईस्त्री नहीां है…”
माूँ- “हाूँ, चल गया। पर सच में यहाां पेड़ की छाांव में ककतना अच्छा लग रहा है । ठां डी-ठां डी हवा चल रही है, और
आज तो मैंने परू ी हवा खायी है …” माूँ बोली।
माूँ- “अरे बेवकूफ, इतना भी नहीां समझता। एक माूँ को, उसके बेटे के सामने नांगा नहीां होना चादहए था…”
मैं- “कौन जानेगा… यहाां पर तो कोई था भी नहीां। तू बेकार में क्यों परे शान हो रही है ?”
माूँ- “अरे नहीां, कफर भी कोई जान गया तो?” कफर कुछ सोचती हुई बोली- “अगर कोई नहीां जानेगा तो, क्या तू
मझ
ु े नांगा दे खेगा?”
10
मैं और माूँ दोनों एक दस
ू रे के आमने सामने, एक सख
ू ी चादर पर, सन
ु सान जगह पर, पेड़ के नीचे एक-दस
ू रे की
ओर मूँहु करके लेटे हुए थे। और माूँ की साड़ी उसके छाती पर से ढलक गई थी। माूँ के मूँह
ु से ये बात सन
ु कर
मैं खामोश रह गया और मेरी साांसें तेज चलने लगी।
मैंने कोई जवाब नहीां ददया, और हल्के से म्ु कुराते हुए उसकी छानतयों की तरफ दे खने लगा, जो उसकी तेज
चलती साांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीां।
माूँ मेरी तरफ दे खते हुए बोली- “क्या हुआ… मेरी बात का जवाब दे ना। अगर कोई जानेगा नहीां तो क्या तू मझ
ु े
नांगा दे ख लेगा?”
इस पर मेरे मूँह
ु से कुछ नहीां ननकला, और मैंने अपना लसर नीचे कर ललया।
माूँ ने मेरी ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाते हुए, मेरी आूँखों में झाांकते हुए पछ
ू ा- “क्या हुआ रे … बोल ना, क्या तू मझ
ु े
नांगी दे ख लेगा, जैसे तन
ू े आज दे खा है?”
माूँ ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले ललया और कहा- “इसका मतलब तू मझ
ु े नांगा नहीां दे ख सकता है । है ना?”
मेरे मूँह
ु से ननकल गया- “हाय माूँ, छोड़ो ना…” मैं हकलाते हुए बोला- “नहीां माूँ, ऐसा नहीां है …”
माूँ- “तो कफर क्या है… तू अपनी माूँ को नांगा दे ख लेगा क्या?”
मैं- “हाय माूँ छोड़ो…” मैं हाथ छुडाते हुए, अपने चेहरे को छुपाते हुए बोला।
माूँ ने मेरा हाथ नहीां छोड़ा और बोली- “सच-सच बोल, शमाषता क्यों है?”
मेरे मूँह
ु से ननकल गया- “हाूँ, अच्छा लगा था…”
11
इस पर माूँ ने मेरे हाथ को पकड़कर सीधे अपनी छाती पर रख ददया, और बोली- “कफर से दे खग
े ा माूँ को नांगा,
बोल दे खेगा?”
मेरे मूँह
ु से आवाज नहीां ननकल पा रही थी। मैं बड़ी मजु ्कल से अपने हाथों को उसकी नक
ु ीली, गद
ु ाज छानतयों
पर जस्थर रख पा रहा था। ऐसे में , मैं भला क्या जवाब दे ता। मेरे मूँह
ु से एक कराहने की सी आवाज नीकली।
मैं कुछ नहीां बोला। थोड़ी दे र तक उसकी चचू चयों पर, ब्लाउज़ के ऊपर से ही हल्का सा हाथ फेरा। कफर मैंने हाथ
खीांच ललया।
मैं भी चप
ु चाप वहीां आूँखें खोले लेटा रहा। माूँ की चचू चयाां धीरे -धीरे ऊपर-नीचे हो रही थीां। उसने अपना एक हाथ
मोड़कर, अपनी आूँखों पर रखा हुआ था, और दस ू रा हाथ अपनी बगल में रखकर सो रही थी। मैं चप ु चाप उसे
सोता हुआ दे खता रहा। थोड़ी दे र में उसकी उठती-चगरती चचू चयों का जाद ू मेरे ऊपर चल गया, और मेरा लण्ड
खड़ा होने लगा। मेरा ददल कर रह था कक, काश मैं कफर से उन चूचचयों को एक बार छू ल।ूां मैंने अपने आपको
गाललयाां भी ननकाली। क्या उल्लू का पठ्ठा हूूँ मैं भी। जो चीज आराम से छूने को लमल रही थी, तो उसे छूने की
बजाये मैं हाथ हटा ललया। पर अब क्या हो सकता था?
मैं चुपचाप वैसे ही बैठा रहा। कुछ सोच भी नहीां पा रहा था। कफर मैंने सोचा कक, जब उस वक्त माूँ ने खुद मेरा
हाथ अपनी चचू चयों पर रख ददया था, तो कफर अगर मैं खुद अपने मन से रखूां तो शायद डाांटेगी नहीां, और कफर
अगर डाांटेगी तो बोल दां ग
ू ा, की तम्
ु ही ने तो मेरा हाथ उस वक्त पकड़कर रखा था, तो अब मैं अपने आपसे रख
ददया। सोचा, शायद तम
ु बरु ा नहीां मानोगी।
यही सब सोचकर मैंने अपने हाथों को धीरे से उसकी चूचचयों पर ले जाकर रख ददया, और हल्के-हल्के सहलाने
लगा। मझ
ु े गजब का मजा आ रहा था। मैंने हल्के से उसकी साड़ी को, परू ी तरह से उसके ब्लाउज़ पर से हटा
ददया और कफर उसकी चचू चयों को दबाया। ओह्ह… इतना गजब का मजा आया कक, बता नहीां सकता। एकदम
गद
ु ाज और सख्त चूचचयाां थी, माूँ की इस उमर में भी। मेरा तो लण्ड खड़ा हो गया, और मैंने अपने एक हाथ को
चूचचयों पर रखे हुए, दस
ू रे हाथ से अपने लण्ड को मसलने लगा। जैस-े जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी, वैस-े वैसे मेरे
हाथ दोनों जगहों पर तेजी के साथ चल रहे थे। मझ ु े लगता है कक मैंने माूँ की चचू चयों को कुछ ज्यादा ही जोर
से दबा ददया था। शायद इसललये माूँ की आूँख खल
ु गई।
माूँ एकदम से हड़बड़ाते उठ गई, और अपने आांचल को सांभालते हुए, अपनी चूचचयों को ढक ललया, और कफर
मेरी तरफ दे खती हुई बोली- “हाय… क्या कर रहा था त?
ू हाय, मेरी तो आूँख लग गई थी…”
12
मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लण्ड पर था, और मेरे चेहरे का रां ग उड़ गया था।
माूँ ने मझ
ु े गौर से एक पल के ललये दे खा और सारा माांजरा समझ गई, और कफर अपने चेहरे पर हल्की सी
म्ु कुराहट बबखेरते हुए बोली- “हाय… दे खो तो सही। क्या सही काम कर रहा था ये लड़का। मेरा भी मसल रहा
था, और उधर अपना भी मसल रहा था…”
कफर माूँ उठकर सीधा खड़ी हो गई और बोली- “अभी आती हूूँ…” कहकर म्ु कुराते हुए झाड़ड़यों कक तरफ बढ़ गई।
झाड़ड़यों के पीछे आकर, कफर अपने चूतड़ों को जमीन पर सटाये हुए ही, थोड़ा आगे सरकते हुए मेरे पास आई।
उसके सरक कर आगे आने से उसकी साड़ी थोड़ी सी ऊपर हो गई, और उसका आांचल उसकी गोद में चगर गया।
पर उसको इसकी कफकर नहीां थी। वो अब एकदम से मेरे नजदीक आ गई थी और उसकी गरम साांसें मेरे चेहरे
पर महसस
ू हो रही थी।
मेरे मूँह
ु से तो आवाज ही नहीां ननकल रही थी।
कफर उसने हल्के से अपना एक हाथ मेरी जाांघों पर रखा और सहलाते हुए बोली- “हाय… कैसे खड़ा कर रखा है ,
मएु ने…”
कफर सीधा पजामे के ऊपर से मेरे खड़े लण्ड, जो की माूँ के जागने से थोड़ा ढीला हो गया था, पर अब उसके
हाथों का स्पशष पाकर कफर से खड़ा होने लगा था। पर उसने अपना हाथ रख ददया- “उईइ माूँ, कैसे खड़ा कर रखा
है … क्या कर रहा था रे , हाथ से मसल रहा था क्या? हाये बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था… तू तो अब
लगता है , जवान हो गया है । तभी मैं कहूां की जैसे ही मेरा पेटीकोट नीचे चगरा, ये लड़का मझ
ु े घरू -घरू कर क्यों
दे ख रहा था… हाये, इस लड़के की तो अपनी माूँ के ऊपर ही बरु ी नजर है…”
माूँ- “ओहो… अब बोल रहा है गलती हो गई, पर अगर मैं नहीां जगती तो, तू तो अपना पानी ननकाल के ही
मानता ना। मेरी छानतयों को दबा-दबा के। उम्म्म… बोल ननकालता की नहीां, पानी?”
माूँ- “वाह रे तेरी गलती, कमाल की गलती है । ककसी का मसल दो, दबा दो, कफर बोलो की गलती हो गई। अपना
मजा कर लो, दस
ू रे चाहे कैसे भी रहें …” कहकर माूँ ने मेरे लण्ड को कसकर दबाया, उसके कोमल हाथों का स्पशष
पाकर मेरा लण्ड तो लोहा हो गया था, और गरम भी काफी हो गया था।
मैंने कहा- “हाय… माूँ तू दबायेगी तो सच में मेरा पानी ननकल जायेगा। हाये, छोड़ो ना माूँ…”
माूँ- “क्यों, पानी ननकालने के ललये ही तो तू दबा रहा था ना मेरी छानतयाां? मैं अपने हाथ से ननकाल दे ती हूूँ, तेरे
गन्ने से तेरा रस। चल, जरा अपना गन्ना तो ददखा…”
माूँ- “ओह्ह… ओह्ह… मेरे भोले राजा, बड़ा भोला बन रहा है , चल ददखा ना, दे खूां ककतना बड़ा और मोटा है, तेरा
गन्ना?”
मगर माूँ शायद परू े जोश में आ चुकी थी, कहा- “चल, कोई नहीां दे खता। कफर सामने बैठी हूूँ, ककसी को नजर भी
नहीां आयेगा। दे खांू तो सही, मेरे बेटे का गन्ना आखीरकार, है ककतना बड़ा?” और मेरा लण्ड दे खते ही, आ्चयष से
उसका मूँह
ु खुला का खुला रह गया।
माूँ एकदम से चौंकती हुई बोली- “हाय… दै य्या… ये क्या? इतना मोटा, और इतना लम्बा। ये कैसे हो गया रे , तेरे
बाप का तो बबत्ते भर का भी नहीां है , और यहाां तू बेलन के जैसा लेकर घम
ू रहा है …”
14
माूँ- “गलती तो तेरी ही है, जो तन
ू े इतना बड़ा जुगाड होते हुए भी, अभी तक मझ
ु े पता नहीां चलने ददया। वैसे
जब मैंने दे खा था नहाते वक्त, तब तो इतना बड़ा नहीां ददख रहा था रे …”
मैं- “हाय… माूँ, वो, वो…” मैं हकलाते हुए बोला- “वो इसललये, क्योंकी उस समय ये उतना खड़ा नहीां रहा होगा।
अभी ये परू ा खड़ा हो गया है …”
माूँ- “ओह्ह… ओह्ह… तो अभी क्यों खड़ा कर ललया इतना बड़ा? कैसे खड़ा हो गया अभी तेरा?”
अब मैं क्या बोलता कक कैसे खड़ा हो गया। ये तो बोल नहीां सकता था कक, माूँ तेरे कारण खड़ा हो गया है मेरा।
मैंने सकपकाते हुए कहा- “अरे , वो ऐसे ही खड़ा हो गया है । तम
ु छोड़ो, अभी ठीक हो जायेगा…”
मैं- “अरे , तम
ु ने पकड़ रखा है ना, इसललये खड़ा हो गया है मेरा। क्या करूां मैं? हाये छोड़ दो ना…” मैं ककसी भी
तरह से, माूँ का हाथ अपने लण्ड पर से हटा दे ना चाहता था। मझ
ु े ऐसा लग रहा था कक, माूँ के कोमल हाथों का
स्पशष पाकर कहीां मेरा पानी ननकल ना जाये। कफर माूँ ने केवल पकड़ा तो हुआ नहीां था। वो धीरे -धीरे मेरे लण्ड
को सहला भी, और बार-बार अपने अांगठ ू े से मेरे चचकने सप
ु ाड़े को छू भी रही थी।
इस पर माूँ और जोर से हाथ चलाते हुए अपनी नजर ऊपर करके, मेरी तरफ दे खते हुए बोली- “क्या ननकल
जायेगा?”
माूँ- “मैं कहाां परे शान कर रही हूूँ… तू खुद परे शान हो रहा है …”
मझ
ु े तो जैसे साांप सघ
ूां गया था। मैं भला क्या जवाब दे ता? कुछ समझ में ही नहीां आ रहा था कक क्या करूां,
क्या ना करूां? ऊपर से मजा इतना आ रहा था कक जान ननकली जा रही थी।
तभी माूँ ने अचानक मेरा लण्ड छोड़ ददया और बोली- “अभी आती हूूँ…” और एक कानतल म्ु कुराहट छोड़ते हुए
उठकर खड़ी हो गई, और झाड़ड़यों की तरफ चल दी।
मैं उसको झाड़ड़यों कक ओर जाते हुए दे खता हुआ, वहीां पेड़ के नीचे बैठा रहा। झाड़ड़याां, जहाां हम बैठे हुए थे, वहाां
से बस दस कदम की दरू ी पर थीां।
मेरी कुछ समझ में ही नहीां आ रहा था कक मैं क्या करूां? मैं कुछ दे र तक वैसे ही बैठा रहा। इस बीच माूँ
झाड़ड़यों के पीछे जा चक
ु ी थी। झाड़ड़यों की इस तरफ से जो भी झलक मझ
ु े लमल रही थी, वो दे खकर मझ
ु े इतना
तो पता चल ही गया था कक माूँ अब बैठ चक
ु ी है और शायद पेशाब भी कर रही है । मैंने कफर थोड़ी दहम्मत
ददखाई और उठकर झाड़ड़यों की तरफ चल ददया। झाड़ड़यों के पास पहुूँचकर नजारा कुछ साफ ददखने लगा था।
माूँ आराम से अपनी साड़ी उठाकर बैठी हुई थी, और मत
ू रही थी।
उसके इस अांदाज से बैठने के कारण, पीछे से उसकी गोरी-गोरी झाांघें तो साफ ददख ही रही थीां, साथ साथ उसके
मक्खन जैसे चूतड़ों का ननचला भाग भी लगभग साफ साफ ददखाई दे रहा था। ये दे खकर तो मेरा लण्ड और भी
बरु ी तरह से अकड़ने लगा था। हालाांकी उसकी जाांघों और चत
ू ड़ों की झलक दे खने का ये पहला मौका नहीां था,
पर आज, और ददनों से कुछ ज्यादा ही उत्तेजना हो रही थी। उसके पेशाब करने की आवाज तो आग में घी का
काम कर रही थी। सउ ु उ-सउ
ु उ-सउ
ु उ करते हुए, ककसी औरत के मत ू ने की आवाज में पता नहीां क्या आकर्षण होता
है , की ककशोर उमर के सारे लड़कों को अपनी ओर खीांच लेती है । मेरा तो बरु ा हाल हो रखा था। तभी मैंने दे खा
कक माूँ उठकर खड़ी हो गई।
जब माूँ पलटी तो मझ ु े दे खकर म्ु कुराते हुए बोली- “अरे , तू भी चला आया… मैंने तो तझ
ु े पहले ही कहा था कक
तू भी हल्का हो ले…” कफर आराम से अपने हाथों को साड़ी के ऊपर बरु पे रखकर, इस तरह से दबाते हुए खज ु ाने
लगी, जैसे बरु पर लगी पेशाब को पोंछ रही हो, और म्ु कुराते हुए चल दी, जैसे कक कुछ हुआ ही नहीां।
मैं एक पल को तो है रान परे शान सा वहीां पर खड़ा रहा। कफर मैं भी झाड़ड़यों के पीछे चला गया और पेशाब करने
लगा। बड़ी दे र तक तो मेरे लण्ड से पेशाब ही नहीां ननकला, कफर जब लण्ड कुछ ढीला पड़ा, तब जाकर पेशाब
ननकलना शरू ु हुआ। मैं पेशाब करने के बाद वापस, पेड़ के नीचे चल पड़ा। पेड़ के पास पहुूँचकर मैंने दे खा माूँ
बैठी हुई थी।
मेरे पास आने पर बोली- “आ बैठ, हल्का हो आया…” कहकर म्ु कुराने लगी।
16
मैं भी हल्के-हल्के म्ु कुराते, कुछ शमाषते हुए बोला- “हाूँ, हल्का हो आया…” और बैठ गया।
मेरे बैठने पर माूँ ने मेरी ठुड्डी पकड़कर मेरा लसर उठा ददया और सीधा मेरी आूँखों में झाांकते हुए बोली- “क्यों
रे … उस समय जब मैं छू रही थी, तब तो बड़ा भोला बन रहा था और जब मैं पेशाब करने गई थी, तो वहाां पीछे
खड़ा होकर क्या कर रहा था शैतान?”
मैंने अपनी ठुड्डी पर से माूँ का हाथ हटाते हुए, कफर अपने लसर को नीचे झुका ललया और हकलाते हुए बोला-
“ओह्ह… माूँ, तमु भी ना…”
माूँ- “मैंने क्या ककया?” माूँ ने हल्की सी चपत मेरे गाल पर लगाई और पछ
ू ा।
मैं- “माूँ, तम
ु ने खुद ही तो कहा था, हल्का होना है तो आ जाओ…”
इस पर माूँ ने मेरे गालों को हल्के से खीांचते हुए कहा- “अच्छा बेटा, मैंने हल्का होने के ललये कहा था, पर तू तो
वहाां हल्का होने की जगह भारी हो रहा था। मझ ु े पेशाब करते हुए घरू -घरू कर दे खने के ललये तो मैंने नहीां कहा था
तम्
ु हें , कफर तू क्यों घरू -घरू कर मजे लट
ू रहा था…”
माूँ- “ओह्ह… हो, शैतान अब तो बड़ा भोला बन रहा है…” कहकर हल्के से मेरी जाांघों को दबा ददया।
पर उसने छोड़ा नहीां और मेरी आूँखों में झाांकते हुए कफर धीरे से अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख ददया और
फुसफुसाते हुए पछ
ू ा- “कफर से दबाऊूँ?”
मेरी तो हालत उसके हाथ के छूने भर से कफर से खराब होने लगी। मेरी समझ में एकदम नहीां आ रहा था कक
क्या करूां? कुछ जवाब दे ते हुए भी नहीां बन रहा था कक क्या जवाब दां ?
ू तभी वो हल्का सा आगे की ओर सरकी
और झुकी। आगे झुकते ही उसका आांचल उसके ब्लाउज़ पर से सरक गया। पर उसने कोई प्रयास नहीां ककया
उसको ठीक करने का। अब तो मेरी हालत और खराब हो रही थी। मेरी आूँखों के सामने उसकी नाररयल के जैसी
सख्त चूचचयाां, जजनको सपने में दे खकर मैंने ना जाने ककतनी बार अपना माल चगराया था, और जजसको दरू से
दे खकर ही तड़पता रहता था, नम
ु ाया थी। भले ही चूचचयाां अभी भी ब्लाउज़ में ही कैद थी, परां तु उनके भारीपन
और सख्ती का अांदाज उनके ऊपर से ही लगाया जा सकता था।
ब्लाउज़ के ऊपरी भाग से उसकी चचू चयों के बीच की खाई का ऊपरी गोरा-गोरा दहस्सा नजर आ रहा था। हालाांकी,
चूचचयों को बहुत बड़ा तो नहीां कहा जा सकता, पर उतनी बड़ी तो थी ही, जजतनी एक स्वस्थ शरीर की मालेककन
की हो सकती हैं। मेरा मतलब है कक इतनी बड़ी जजतनी कक आपके हाथों में ना आये, पर इतनी बड़ी भी नहीां की
आपको दो-दो हाथों से पकड़नी पड़े, और कफर भी आपके हाथ ना आये। एकदम ककसी भाले की तरह नक
ु ीली लग
रही थी, और सामने की ओर ननकली हुई थी। मेरी आूँखें तो हटाये नहीां हट रही थी।
17
तभी माूँ ने अपने हाथों को मेरे लण्ड पर थोड़ा जोर से दबाते हुए पछ
ू ा- “बोल ना, और दबाऊूँ क्या?”
माूँ- “जाद ू हाथों में है या… या कफर इसमें है?” अपने ब्लाउज़ की तरफ इशारा करके पछ
ू ा।
माूँ- “क्यों क्या अच्छा लग रहा है ? अरे , अब बोल भी दे शमाषता क्यों है?”
माूँ- “तो कफर शमाष क्यों रहा था बोलने में? ऐसे तो हर रोज घरू -घरू कर मेरे अनारों को दे खता रहता है…” कफर
माूँ ने बड़े आराम से मेरे परू े लण्ड को मठ्
ु ठी के अांदर कैद करके हल्के-हल्के अपना हाथ चलाना शरू
ु कर ददया-
“तू तो परू ा जवान हो गया है , रे …”
18
माूँ- “हाय… हाये, क्या कर रहा है । परू ा साांड़ की तरह से जवान हो गया है तू तो। अब तो बरदा्त भी नहीां होता
होगा, कैसे करता है?”
इस पर माूँ हल्के-हल्के म्ु कुराने लगी और बोली- “चल समझ जायेगा, अभी तो ये बता कक कभी इसको; लण्ड
की तरफ इशारा करते हुए; मसल-मसल के माल चगराया है ?”
माूँ- “हाय… ददनभर में चार-पाांच बार… और पानी पीने से तेरा ज्यादा बार ननकलता है … कही तू पेशाब करने की
बात तो नहीां कर रहा?”
मैं- “हाूँ माूँ, वही तो मैं तो ददनभर में चार-पाांच बार पेशाब करने जाता हूूँ…”
इस पर माूँ ने मेरे लण्ड को छोड़कर, हल्के से मेरे गाल पर एक झापड़ लगाई और बोली- “उल्लू का उल्लू ही रह
गया, क्या त?
ू ” कफर बोली- “ठहर जा, अभी तझ
ु े ददखाती हूूँ, माल कैसे ननकाला जाता है ?””
माूँ उसपर तो कुछ नहीां बोली, पर अपनी नजरें ऊपर करके मेरी ओर दे खकर म्ु कुराते हुए बोली- “क्यों मजा आ
रहा है की नहीां?”
मेरा तो होश ही उड़ गया। ये माूँ क्या बोल रही थी? पर मैंने दे खा की उसका एक हाथ अब भी पहले की तरह
मेरे लण्ड को सहलाये जा रहा था। तभी माूँ, मेरे चेहरे के उड़े हुए रां ग को दे खकर हूँसने लगी, और हूँसते हुए मेरे
गाल पर एक थप्पड लगा ददया। मैंने कभी भी इससे पहले माूँ को, ना तो ऐसे बोलते सन ु ा था, ना ही इस तरह
से बताषव करते हुए दे खा था। इसललये मझ
ु े बड़ा आ्चयष हो रहा था। पर उसके हूँसते हुए थप्पड लगाने पर तो
मझु ,े और भी ज्यादा आ्चयष हुआ की, आखखर ये चाहती क्या है?
इस पर माूँ ने मेरे गालों को हल्के सहलाते हुए कहा- “गलती तो तू कर बैठा है, बेटे। अब केवल गलती की सजा
लमलेगी तझ
ु …े ”
माूँ- “सबसे बड़ी गलती तो ये है कक तू खाली घरू -घरू कर दे खता है बस, करता-धरता तो कुछ है नहीां। खाली घरू -
घरू कर ककतने ददन दे खता रहे गा?”
मैं- “क्या करूां माूँ… मेरी तो कुछ समझ में नहीां आ रहा…”
माूँ- “साले, बेवकूफ की औलाद, अरे करने के ललये इतना कुछ है, और तझ
ु े समझ में ही नहीां आ रहा है…”
माूँ- “दे ख, अभी जैसे कक तेरा मन कर रहा है की, तू मेरे अनारों से खेल,े उन्हें दबाये, मगर तू वो काम ना करके
केवल मझ
ु े घरू े जा रहा है । बोल तेरा मन कर रहा है की नहीां, बोल ना?”
माूँ- “तो कफर दबा ना। मैं जैसे तेरे औजार से खेल रही हूूँ, वैसे ही तू मेरे सामान से खेल। दबा, बेटा दबा…”
बस कफर क्या था मेरी तो बाांछें खखल गई। मैंने दोनों हथेललयों में दोनों चूचों को थाम ललया, और हल्के-हल्के
उन्हें दबाने लगा।
माूँ बोली- “शाबाश… ऐसे ही दबा ले। जजतना दबाने का मन करे उतना दबा ले, कर ले मजे…”
20
कफर मैं परू े जोश के साथ, हल्के हाथों से उसकी चूचचयों को दबाने लगा। ऐसी मस्त-मस्त चचू चयाां पहली बार
ककसी ऐसे के हाथ लग जाये, जजसने पहले ककसी चच
ू ी को दबाना तो दरू , छुआ तक ना हो तो बांदा तो जन्नत
में पहुूँच ही जायेगा ना। मेरा भी वही हाल था। मैं हल्के हाथों से सांभल-सांभल के चूचचयों को दबाये जा रहा था।
उधर माूँ के हाथ तेजी से मेरे लण्ड पर चल रहे थे।
तभी माूँ ने, जो अब तक काफी उत्तेजजत हो चक ु ी थी, मेरे चेहरे की ओर दे खते हुए कहा- “क्यों, मजा आ रहा है
ना? जोर से दबा मेरी चचू चयों को बेटा, तभी परू ा मजा लमलेगा। मसलता जा, दे ख अभी तेरा माल मैं कैसे
ननकालती हूूँ…”
इस पर वो म्ु कुराते हुए बोली- “नहीां, अभी रहने दे । मैं जानती हूूँ की तेरा बहुत मन कर रहा होगा की तू मेरी
नांगी चूचचयों को दे खे। मगर, अभी रहने दे …”
माूँ- “अभी क्या मजा आया है बेटे… अभी तो और आयेगा, अभी तेरा माल ननकाल ले कफर दे ख, मैं तझ
ु े कैसे
जन्नत की सैर कराती हूूँ…”
मैं- “हाय… माूँ, ऐसा लगता है , जैसे मेरे में से कुछ ननकलने वाला है… हाय, ननकल जायेगा…”
माूँ- “तो ननकलने दे , ननकल जाने दे अपने माल को…” कहकर माूँ ने अपना हाथ और ज्यादा तेजी के साथ
चलाना शरू
ु कर ददया।
मेरा पानी अब बस ननकलने वाला ही था। मैंने भी अपना हाथ अब तेजी के साथ माूँ के अनारों पर चलाना शरू
ु
कर ददया था। मेरा ददल कर रहा था उन प्यारी-प्यारी चचू चयों को अपने मूँह
ु में भरकर चस
ू ।ांू लेककन वो अभी
सांभव नहीां था। मझ
ु े केवल चूचचयों को दबा-दबाकर ही सांतोर् करना था। ऐसा लग रहा था, जैसे कक मैं अभी
सातवें आसमान पर उड़ रहा था। मैं भी खूब जोर-जोर लसलसयाते हुए बोलने लगा- “ओह्ह… माूँ, हाूँ माूँ, और जोर
से मसलो, और जोर से मठ
ु मारो, ननकाल दो मेरा सारा पानी…”
पर तभी मझ
ु े ऐसा लगा, जैसे कक माूँ ने लण्ड पर अपनी पकड़ ढीली कर दी है । लण्ड को छोड़कर, मेरे अांडों को
अपने हाथ से पकड़कर सहलाते हुए माूँ बोली- “अब तझ ु े एक नया मजा चखाती हूूँ, ठहर जा…” और कफर धीरे -
धीरे मेरे लण्ड पर झुकने लगी। लण्ड को एक हाथ से पकड़े हुए, वो परू ी तरह से मेरे लण्ड पर झक
ु गई, और
अपने होंठों को खोलकर, मेरे लण्ड को अपने मूँह
ु में भर ललया।
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मेरे मूँह
ु से एक आह्ह… ननकल गई। मझ
ु े पव्वास नहीां हो रहा था की माूँ ये क्या कर रही है । मैं बोला- “ओह्ह…
माूँ, ये क्या कर रही हो? हाय छोड़ो ना, बहुत गद
ु गद
ु ी हो रही है …”
इसी बात को ध्यान में रखते हुए, वो मेरे लण्ड को बीच-बीच में ढीला भी छोड़ दे ती थी, और मेरे अांडों को दबाने
लगती थी। वो इस बात का परू ा ध्यान रखे हुए थी की, मैं जल्दी ना झड़ू।ां मझ
ु े भी गजब का मजा आ रहा था,
और ऐसा लग रहा था, जैसे कक मेरा लण्ड फट जायेगा। मगर मझ
ु से अब रहा नहीां जा रहा था।
मैंने माूँ से कहा- “हाय… माूँ, अब ननकल जायेगा। माूँ, मेरा माल अब लगता है , नहीां रुकेगा…”
इस पर माूँ ने अपना मूँह ु थोड़ी दे र के ललये हटाते हुए कहा- “कोई बात नहीां, मेरे मूँह
ु में ही ननकाल। मैं दे खना
चाहती हूूँ की कूँु वारे लड़के के पानी का स्वाद कैसा होता है …” और कफर अपने मह ूँु में मेरे लण्ड को कसकर
जकड़ते हुए, उसने अब अपना परू ा ध्यान केवल, मेरे सप
ु ाड़े पर लगा ददया, और मेरे सप
ु ाड़े को कस-कसकर
चूसने लगी, उसकी जीभ मेरे सप
ु ाड़े के कटाव पर बार-बार कफरा रही थी।
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मैं लससयाते हुए बोलने लगा- “ओह्ह… माूँ, पी जाओ कफर। चख लो मेरे लण्ड का सारा पानी। ले लो अपने मूँह
ु
में । ओह्ह… ले लो, ककतना मजा आ रहा है । हाय… मझु े नहीां पता था की इतना मजा आता है । हाये ननकल गया,
ननकल गया, हाये माूँ, ननकलाऽऽ…”
तभी मेरे लण्ड का फौवारा छूट पड़ा, और तेजी के साथ भलभला कर मेरे लण्ड से पानी चगरने लगा। मेरे लण्ड
का सारा का सारा पानी, सीधे माूँ के मूँह
ु में चगरता जा रहा था। और वो मजे से मेरे लण्ड को चूसे जा रही थी।
कुछ दे र तक लगातार वो मेरे लण्ड को चस
ू ती रही। मेरा लौड़ा अब परू ी तरह से उसके थक
ू से भीगकर गीला हो
गया था, और धीरे -धीरे लसकुड़ रहा था। पर उसने अब भी मेरे लण्ड को अपने मह
ूँु से नहीां ननकाला था और धीरे -
धीरे मेरे लसकुड़े हुए लण्ड को अपने मूँह
ु में ककसी चोकलेट की तरह घम
ु ा रही थी।
कुछ दे र तक ऐसा ही करने के बाद, जब मेरी साांसें भी कुछ शाांत हो गई, तब माूँ ने अपना चेहरा मेरे लण्ड पर
से उठा ललया और अपने मह
ूँु में जमा, मेरे वीयष को अपना मूँह
ु खोलकर ददखाया और हल्के से हूँस दी। कफर
उसने मेरे सारे पानी को गटक ललया और अपनी साड़ी के पल्लू से अपने होंठों को पोंछती हुई बोली- “हाय… मजा
आ गया। सच में कूँु वारे लण्ड का पानी बड़ा लमठा होता है । मझ
ु े नहीां पता था की तेरा पानी इतना मजेदार
होगा…” कफर मेरे से पछ
ू ा- “मजा आया की नहीां?”
मैं क्या जवाब दे ता? जोश ठां डा हो जाने के बाद, मैंने अपने लसर को नीचे झुका ललया था, पर गद
ु गद
ु ी और
सनसनी तो अब भी कायम थी। तभी माूँ ने मेरे लटके हुए लौड़े को अपने हाथों में पकड़ा और धीरे से अपनी
साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए पछ
ू ा- “बोल ना, मजा आया की नहीां?”
मैंने शमाषते हुए जवाब ददया- “हाय माूँ, बहुत मजा आया। इतना मजा कभी नहीां आया था…”
तब माूँ ने पछ
ू ा- “क्यों, अपने हाथ से भी करता था, क्या?”
माूँ- “औरत के हाथ से करवाने पर तो ज्यादा मजा आयेगा ही, पर इस बात का ध्यान रखखयो की, ककसी को
पता ना चले…”
माूँ- “हाूँ, मैं वही कह रही हूूँ की, ककसी को अगर पता चलेगा तो लोग क्या-क्या सोचें गे और हमारी-तम्
ु हारी
बदनामी हो जायेगी। क्योंकी हमारे समाज में एक माूँ और बेटे के बीच इस तरह का सांबध
ां उचचत नहीां माना
जाता है , समझा…”
मैंने भी अब अपनी शमष के बांधन को छोड़कर जवाब ददया- “हाूँ माूँ, मैं समझता हूूँ। हम दोनों ने जो कुछ भी
ककया है, उसका मैं ककसी को पता नहीां चलने दां ग
ू ा…”
तब माूँ उठकर खड़ी हो गई। अपनी साड़ी के पल्लू को और मेरे द्वारा मसले गये ब्लाउज़ को ठीक ककया और
मेरी ओर दे खकर म्ु कुराते हुए, अपनी बरु को अपनी साड़ी से हल्के से दबाया और साड़ी को चूत के ऊपर ऐसे
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रगड़ा जैसे की पानी पोंछ रही हो। मैं उसकी इस किया को बड़े गौर से दे ख रहा था। मेरे ध्यान से दे खने पर वो
हूँसते हुए बोली- “मैं जरा पेशाब करके आती हूूँ। तझ
ु े भी अगर करना है तो चल, अब तो कोई शमष नहीां है …”
मैंने इस पर कुछ नहीां कहा, और चुपचाप उठकर खड़ा हो गया। वो आगे चल दी और मैं उसके पीछे -पीछे चल
ददया। झाड़ड़यों तक की दस कदम की ये दरू ी, मैंने माूँ के पीछे -पीछे चलते हुए उसके गोल-मटोल गदराये हुए
चतू ड़ों पर नजरें गड़ाये हुए तय की। उसके चलने का अांदाज इतना मदहोश कर दे ने वाला था। आज मेरे दे खने
का अांदाज भी बदला हुआ था। शायद इसललये मझ
ु े उसके चलने का अांदाज गजब का लग रहा था।
उसके गोरे -गोरे चूतड़ बड़े कमाल के लग रहे थे। माूँ ने अपने चूतड़ों को थोड़ा सा उचकाया हुआ था, जजसके
कारण उसकी गाण्ड की खाईं भी ददख रही थी। हल्के-भरू े रां ग की गाण्ड की खाईं दे खकर ददल तो यही कर रहा
था की पास जाकर उस गाण्ड की खाईं में धीरे -धीरे उां गली चलाऊूँ और गाण्ड के भरू े रां ग के छे द को अपनी उां गली
से छे ड़ूां और दे खूूँ की कैसे पकपकाता है ।
तभी माूँ पेशाब करके उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ घम ू गई। उसने अभी तक साड़ी को अपनी जाांघों तक उठा
रखा था। मेरी ओर दे खकर म्ु कुराते हुए, उसने अपनी साड़ी को छोड़ ददया और नीचे चगरने ददया। कफर एक हाथ
को अपनी चत
ू पर साड़ी के ऊपर से ले जाकर रगड़ने लगी, जैसे कक पेशाब पोंछ रही हो, और बोली- “चल, तू भी
पेशाब कर ले, खड़ा-खड़ा मूँह
ु क्या ताक रहा है?”
मैं जो की अभी तक इस सद ांु र नजारे में खोया हुआ था, थोड़ा सा चौंक गया। कफर हकलाते हुए बोला- “हाूँ, हाूँ,
अभी करता हूूँ, मैंने सोचा पहले तम ु कर लो इसललये रुका था…”
मेरे खड़े लण्ड को दे खकर, वो हूँसते हुए बोली- “चल जल्दी से कर ले पेशाब, दे र हो रही है । घर भी जाना है …”
इस पर माूँ ने हूँसते हुए कहा- “मैं तो छोड़ दे ती हूूँ, पर पहले ये तो बता कक खड़ा क्यों ककया था? अभी दो
लमनट पहले ही तो तेरा पानी ननकाला था मैंन,े और तन ू े कफर से खड़ा कर ललया। कमाल का लड़का है, तू तो…”
मैं कुछ नहीां बोला। अब लण्ड थोड़ा ढीला पड़ गया था, और मैंने पेशाब कर ललया। मत
ू ने के बाद जल्दी से
पाजामे के नाड़े को बाांधकर, मैं माूँ के साथ झाड़ड़यों के पीछे से ननकल आया। माूँ के चेहरे पर अब भी मांद-मांद
म्ु कान आ रही थी। मैं जल्दी-जल्दी चलते हुए आगे बढ़ा और कपड़े के गट्ठर को उठाकर, अपने माथे पर रख
ललया। माूँ ने भी एक गट्ठर को उठा ललया और अब हम दोनों माूँ-बेटे जल्दी-जल्दी गाूँव की पगडांडी वाले रास्ते
पर चलने लगे।
गरमी के ददन थे, अभी भी सरू ज चमक रहा था। थोड़ी दरू चलने के बाद ही मेरे माथे से पशीना छलकने लगा।
मैं जानबझू कर माूँ के पीछे -पीछे चल रहा था, ताकी माूँ के मटकते हुए चूतड़ों का आनांद लट
ू सकांू , और मटकते
हुए चतू ड़ों के पीछे चलने का एक अपना ही आनांद है ।
आप सोचते रहते हो कक ये कैसे ददखते होंगे? ये चूतड़ बबना कपड़ों के, या कफर आपका ददल करता है कक, आप
चप
ु के से पीछे से जाओ और उन चत
ू ड़ों को अपनी हथेललयों में दबा लो और हल्के से मसलो और सहलाओ। कफर
हल्के से उन चूतड़ों के बीच की खाईं, यानी कक गाण्ड के गढ्ढे पर अपना लण्ड सीधा खड़ा करके सटा दो, और
हल्के से रगड़ते हुए प्यारी सी गरदन पर चजु म्मयाां लो।
सोच आपको इतना उत्तेजजत कर दे ती है, जजतना शायद अगर आपको सही में चूतड़ लमले भी अगर मसलने और
सहलाने को तो शायद उतना उत्तेजजत ना कर पये।
मैं अपना लण्ड पजामे में खड़ा ककये हुए, अपनी लालची नजरों को माूँ के चूतड़ों पर दटकाये हुए चल रहा था। माूँ
ने मठु मारकर मेरा पानी तो ननकाल ही ददया था, इस कारण अब उतनी बेचन ै ी नहीां थी, बजल्क एक मीठी-मीठी
सी कसक उठ रही थी, और ददमाग बस एक ही जगह पर अटका पड़ा था।
मैंने शलमषन्दगी में अपने लसर को नीचे झुका ललया, हालाांकी अब शमष आने जैसी कोई बात तो थी नहीां। सब-कुछ
खुल्लम-खुल्ला हो चुका था, मगर कफर भी मेरे ददल में अब भी थोड़ी बहुत दहचक तो बाकी थी ही।
तभी माूँ ने अपनी चाल धीमी कर दी, और अब वो मेरे साथ साथ चल रही थी। मेरी ओर अपनी नतरछी नजरों
से दे खते हुए बोली- “मैं भी अब तेरे को थोड़ा बहुत समझने लगी हूूँ। तू कहाां अपनी नजरें गड़ाये हुए है , ये मेरी
समझ में आ रहा है । पर अब साथ साथ चल, मेरे पीछे -पीछे मत चल। क्योंकी गाूँव नजदीक आ गया है । कोई
दे ख लेगा तो क्या सोचेगा?” कहकर म्ु कुराने लगी।
मैंने भी समझदार बच्चे की तरह अपना लसर दहला ददया और साथ साथ चलने लगा।
माूँ धीरे से फुसफुसाते हुए बोलने लगी- “घर चल, तेरा बापू तो आज घर पर है नहीां। कफर आराम से जो भी
दे खना है, दे खते रहना…”
मैंने हल्के से पवरोध ककया- “क्या माूँ, मैं कहाां कुछ दे ख रहा था? तम
ु तो ऐसे ही बस, तभी से मेरे पीछे पड़ी
हो…”
इस पर माूँ बोली- “लल्ल,ू मैं पीछे पड़ी हूूँ, या तू पीछे पड़ा है … इसका फैसला घर चलकर कर लेना…”
कफर लसर पर रखे कपड़ों के गट्ठर को एक हाथ उठाकर सीधा ककया तो उसकी काांख ददखने लगी। ब्लाउज़ उसने
आधी-बाांह का पहन रखा था। गरमी के कारण उसकी काांख में पशीना आ गया था, और पशीने से भीगी उसकी
काांखें दे खने में बड़ी मदमस्त लग रही थीां। मेरा मन उन काांखों को चूम लेने का करने लगा था। एक हाथ को
ऊपर रखने से उसकी साड़ी भी उसकी चूचचयों पर से थोड़ी सी हट गई थी और थोड़ा बहुत उसका गोरा-गोरा पेट
भी ददख रहा था। इसललये चलने की ये जस्थनत भी मेरे ललये बहुत अच्छी थी और मैं आराम से वासना में डुबा
हुआ अपनी माूँ के साथ चलने लगा। शाम होते-होते हम अपने घर पहुूँच चक
ु े थे।
कपड़ों के गट्ठर को ईस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद, हमने हाथ-मूँह
ु धोये और कफर माूँ ने कहा- “बेटा
चल कुछ खा-पी ले…”
भख
ू तो वैसे मझ
ु े कुछ खास लगी नहीां थी। ददमाग में जब सेक्स का भत
ू सवार हो तो, भख
ू तो वैसे भी मर
जाती है , पर कफर भी मैंने अपना लसर सहमती में दहला ददया। माूँ ने अब तक अपने कपड़ों को बदल ललया था,
मैंने भी अपने पाजामे को खोलकर उसकी जगह पर लग
ांु ी पहन ली। क्योंकी गरमी के ददनों में लग
ांु ी ज्यादा
आरामदायक होती है । माूँ रसोई घर में चली गई, और मैं कोयले कक अांगीठी को जलाने के ललये, ईस्त्री करने
वाले कमरे में चला गया ताकी ईस्त्री का काम भी कर सकांू । अांगीठी जलाकर मैं रसोई में घस
ु ा तो दे खा की माूँ
वहीां एक मोढ़े पर बैठकर ताजी रोदटयाां सेंक रही थी।
माूँ मझ
ु े दे खते ही बोली- “जल्दी से आ, दो रोटी खा ले। कफर रात का खाना भी बना दां ग
ू ी…”
मैं जल्दी से वहीां मोढ़े पर बैठ गया। सामने माूँ ने थोड़ी सी सब्जी और दो रोदटयाां दे दी। मैं चुपचाप खाने लगा।
माूँ ने भी अपने ललये थोड़ी सी सब्जी और रोटी ननकाल ली और खाने लगी।
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रसोई घर में गरमी काफी थी। इस कारण उसके माथे पर पशीने कक बद
ूां े चुहचुहाने लगी। मैं भी पशीने से नहा
गया था। माूँ ने मेरे चेहरे की ओर दे खते हुए कहा- “बहुत गरमी है …”
माूँ मेरी इस हरकत पर म्ु कुराने लगी पर बोली कुछ नहीां। वो चूँ क
ू ी घट
ु ने मोड़कर बैठी थी, इसललये उसने
पेटीकोट को उठाकर, घट
ु नों तक कर ददया और आराम से खाने लगी। उसकी गोरी पपन्डललयों और घट
ु नों का
नजारा करते हुए मैं भी खाना खाने लगा। लण्ड की तो ये हालत थी अभी की माूँ को दे ख लेने भर से उसमें
सरु सरु ी होने लगती थी। यहाां माूँ मस्ती में दोनों पैर फैलाकर घट
ु नों से थोड़ा ऊपर तक साड़ी उठाकर, ददखा रही
थी।
माूँ- “नहीां, अब और नहीां। कफर रात में भी खाना तो खाना है ना। अच्छी सब्जी बना दे ती हूूँ, अभी हल्का खा
ले…”
माूँ- “जब, जजस चीज का टाईम हो, तभी वो करना चादहए। अभी तू हल्क-फुल्का खा ले, रात में परू ा खाना…”
हम दोनों माूँ बेटे को, शायद द्पवअथी बातें करने में महारत हालसल हो गई थी। हर बात में दो-दो अथष ननकल
आते थे। माूँ भी इसको अच्छी तरह से समझती थी इसललये म्ु कुराते हुए बोली- “एक बार में परू ा पेट भरकर
खा लेगा, तो कफर चला भी न जायेगा। आराम से धीरे -धीरे खा…”
मैं इस पर गहरी साांस लेते हुए बोला- “हाूँ, अब तो इसी आशा में रात का इन्तेजार करूांगा कक शायद तब पेट
भर खाने को लमल जाये…”
माूँ मेरी तड़प का मजा लेते हुए बोली- “उम्मीद पर तो दनु नयाां कायम है । जब इतनी दे र तक इन्तेजार ककया तो,
थोड़ा और कर ले। आराम से खाना, अपने बाप की तरह जल्दी क्यों करता है ?”
माूँ मेरी ओर दे खकर म्ु कुराते हुए वहीां पर बैठ गई। कफर उसने पछ
ू ा- “कौन सी सब्जी खायेगा?”
तब मैंने कहा- “जब बापू नहीां है तो, कफर आज केले या बैगन की सब्जी बना ले। हम दोनों वही खा लेंगे। तझ
ु े
भी तो पसांद है, इसकी सब्जी…”
माूँ ने म्ु कुराते हुए कहा- “चल ठीक है, वही बना दे ती हूूँ…” और वहीां बैठकर सजब्जयाां काटने लगी।
सब्जी काटने के ललये, जब वो बैठी थी, तब उसने अपना एक पैर मोड़कर, जमीन पर रख ददया था और दस
ू रा
पैर मोड़कर, अपनी छाती से दटका रखा था। और गरदन झुकाये सजब्जयाां काट रही थी। उसके इस तरह से बैठने
के कारण उसकी एक चूची, जो की उसके एक घट
ु ने से दब रही थी, ब्लाउज़ के बाहर ननकलने लगी और ऊपर से
झाांकने लगी। गोरी-गोरी चच
ू ी और उसपर की नीली-नीली रे खायें, सब नम
ु ाया हो रहा था। मेरी नजर तो वहीां पर
जाकर ठहर गई थी। माूँ ने मझ
ु े दे खा, हम दोनों की नजरें आपस में लमली, और मैंने झेंपकर अपनी नजर नीचे
कर ली और ईस्त्री करने लगा।
इस पर माूँ ने हूँसते हुए कहा- “चोरी-चोरी दे खने की आदत गई नहीां। ददन में इतना सब-कुछ हो गया, अब भी…”
तभी माूँ ने सब्जी काटना बांद कर ददया, और उठकर खड़ी हो गई और बोली- “खाना बना दे ती हूूँ, तू तब तक
छत पर बबछावन लगा दे । बड़ी गरमी है आज तो, ईस्त्री छोड़ कल सब
ु ह उठकर कर लेना…”
मैं ईस्त्री करने में लग गया और, रसोई घर से कफर खट-पट की आवाजें आने लगी। यानी की माूँ ने खाना
बनाना शरू
ु कर ददया था। मैंने जल्दी से कुछ कपड़ों को ईस्त्री की, कफर अांगीठी बझ
ु ाई और अपने तौललये से
पशीना पोंछता हुआ बाहर ननकल आया। हैंडपम्प के ठां डे पानी से अपने मूँह
ु हाथ धोने के बाद, मैंने बबछावन
ललया और छत पर चल गया। और ददन तो तीन लोगों का बबछावन लगता था, पर आज तो दो का ही लगाना
था।
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मैंने वहीां जमीन पर पहले चटाई बबछाई, और कफर दो लोगों के ललये बबछावन लगाकर नीचे आ गया। माूँ, अभी
भी रसोई में ही थी। मैं भी रसोई-घर में घस
ु गया। माूँ ने साड़ी उतार दी थी, और अब वो केवल पेटीकोट और
ब्लाउज़ में ही खाना बना रही थी। उसने अपने कांधे पर एक छोटा सा तौललया रख ललया था और उसी से अपने
माथे का पशीना पोंछ रही थी। मैं जब वहाां पहुूँचा, तो माूँ सब्जी को कलछी से चला रही थी और दस
ू री तरफ
रोदटयाां भी सेंक रही थी।
मैंने कहा- “कौन सी सब्जी बना रही हो, केले या बैगन की?”
मैं- “खूशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है । ओह्ह… लगता है दो-दो सब्जी बनी है …”
मैं- “ठीक है माूँ, बता और कुछ तो नहीां करना…” कहते-कहते मैं एकदम माूँ के पास आकर बैठ गया था। माूँ
मोढ़े पर अपने पैरों को मोड़कर और अपने पेटीकोट को जाांघों के बीच समेटकर बैठी थी। उसके बदन से पशीने
की अजीब सी खश
ू बू आ रही थी। मेरा परू ा ध्यान उसकी जाांघों पर ही चला गया था।
माूँ ने मेरी ओर दे खते हुए कहा- “जरा खीरा काटकर सलाड भी बना ले…”
मैं- “ठीक है माूँ, जल्दी से खाना खाकर छत पर चलते हैं, बड़ी अच्छी हवा चल रही है …”
माूँ ने रोटी बनाना खतम करके कहा- “चल, खाना ननकाल दे ती हूूँ। बाहर आांगन में मोढ़े पर बैठकर खायेंग…
े ”
मैंने दोनों परोसी हुई थाललयाां उठाई, और आांगन में आ गया। माूँ वहीां आांगन में , एक कोने पर अपना हाथ मूँह
ु
धोने लगी। कफर अपने छोटे तौललये से पोंछते हुए, मेरे सामने रखे मोढ़े पर आकर बैठ गई। हम दोनों ने खाना
शरू
ु कर ददया। मेरी नजरें माूँ को ऊपर से नीचे तक घरू रही थी। माूँ ने कफर से अपने पेटीकोट को अपने घट
ु नों
के बीच में समेट ललया था और इस बार शायद पेटीकोट कुछ ज्यादा ही ऊपर उठा ददया था। चचू चयाां, एकदम मेरे
सामने तनकर खड़ी-खड़ी ददख रही थी। बबना ब्रा के भी माूँ की चचू चयाां ऐसी तनी रहती थी, जैसे की दोनों तरफ
दो नाररयल लगा ददये गये हों। इतनी उमर बीत जाने के बाद भी थोड़ा सा भी ढलकाव नहीां था। जाांघ,ें बबना
ककसी रोयें की, एकदम चचकनी, गोरी और माांसल थी।
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माूँ के पेट पर उमर के साथ थोड़ा सा मोटापा आ गया था। जजसके कारण पेट में एक-दो फोल्ड पड़ने लगे थे,
जो दे खने में और ज्यादा सद
ांु र लगते थे। आज पेटीकोट भी नाभी के नीचे बाांधा गया था। इस कारण से उसकी
गहरी गोल नाभी भी नजर आ रही थी। थोड़ी दे र बैठने के बाद ही माूँ को पशीना आने लगा, और उसकी गरदन
से पशीना लढ़
ु क कर उसके ब्लाउज़ के बीच वाली घाटी में उतरता जा रहा था। वहाां से, वो पशीना लढ़
ु क कर
उसके पेट पर भी एक लकीर बना रहा था, और धीरे -धीरे उसकी गहरी नाभी में जमा हो रहा था। मैं इन सब
चीजों को बड़े गौर से दे ख रहा था।
माूँ ने जब मझ
ु े ऐसे घरू ते हुए दे खा तो हूँसते हुए बोली- “चुपचाप ध्यान लगाकर खाना खा, समझा…” और कफर
अपने छोटे वाले तौललये से अपना पशीना पोंछने लगी।
मैं खाना खाने लगा और बोला- “माूँ, सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी है…”
माूँ- “चल तझ
ु े पसांद आई, यही बहुत बड़ी बात है मेरे ललये। नहीां तो आज-कल के लड़कों को घर का कुछ भी
पसांद ही नहीां आता…”
माूँ को लगा की शायद मैंने बोला है , घर की दाल। इसललये वो बोली- “मैं जानती हूूँ, मेरा बेटा बहुत समझदार है ,
और वो घर के दाल-चावल से काम चला सकता है । उसको बाहर के ‘मालपए ु ’ (एक प्रकार की खानेवाली चीज,
जोकक मैदे और चीनी की सहायता से बनाई जाती है, और फूली हुए पावरोटी की तरह से ददखती है ) से कोई
मतलब नहीां है …”
माूँ ने मालपआ
ु शब्द पर शायद ज्यादा ही जोर ददया था, और मैंने इस शब्द को पकड़ ललया। मैंने कहा- “पर
माूँ, तझ
ु े मालपआ
ु बनाये काफी ददन हो गये। कल मालपआ
ु बनाओ ना…”
माूँ- “मालपआु तझ
ु े बहुत अच्छा लगता है, मझ ु े पता है । मगर इधर इतना टाईम कहाां लमलता था, जो मालपआ
ु
बना सकांू ? पर अब मझ ु े लगता है , तझ
ु े मालपआु खखलाना ही पड़ेगा…”
मैंने कहा- “छोड़ो ना माूँ, चलो सोने जल्दी से। यहाां बहुत गरमी लग रही है…”
माूँ- “तू जा ना, मैं अभी आती हूूँ। रसोई-घर गांदा छोड़ना अच्छी बात नहीां है…”
मझ
ु े तो जल्दी से माूँ के साथ सोने की हड़बड़ी थी कक कैसे माूँ से चचपक के उसके माांसल बदन का रस ले सकांू ।
पर माूँ रसोई साफ करने में जुटी हुई थी।
30
मैंने भी रसोई का सामान सांभालने में उसकी मदद करनी शरू
ु कर दी। कुछ ही दे र में सारा सामान, जब ठीक-
ठाक हो गया तो हम दोनों रसोई से बाहर आ गये।
मैं दौड़कर गया और दरवाजा बांद कर आया। अभी ज्यादा दे र तो नहीां हुई थी, रात के 9:30 ही बजे थे। पर गाूँव
में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते हैं। हम दोनों माूँ-बेटे छत पर आकर बबछावन पर लेट गये।
बबछावन पर माूँ भी, मेरे पास ही आकर लेट गई थी। माूँ के इतने पास लेटने भर से मेरे शरीर में , एक गद
ु गद
ु ी
सी दौड़ गई। उसके बदन से उठने वाली खश
ू ब,ू मेरी साांसों में भरने लगी, और मैं बेकाबू होने लगा था। मेरा
लण्ड धीरे -धीरे अपना लसर उठाने लगा था।
मैं- “हाूँ माूँ, जजस ददन नदी पर जाना होता है, उस ददन तो थकावट ज्यादा हो ही जाती है…”
माूँ- “हाूँ, बड़ी थकावट लग रही है , जैसे परू ा बदन टूट रहा हो…”
माूँ के चेहरे पर एक म्ु कान फैल गई, और वो हूँसते हुए बोली- “ददन में इतना कुछ हुआ था, उससे तो तेरी
थकान और बढ़ गई होगी…”
मैं- “हाय… ददन में थकान बढ़ाने वाला तो कुछ नहीां हुआ था…”
इस पर माूँ थोड़ा सा और मेरे पास सरक कर आई। माूँ के सरकने पर मैं भी थोड़ा सा उसकी ओर सरका। हम
दोनों की साांस,ें अब आपस में टकराने लगी थी। माूँ ने अपने हाथों को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे -
धीरे अपने हाथों से मेरी कमर और जाांघों को सहलाने लगी। माूँ की इस हरकत पर मेरे ददल की धड़कन बढ़
गई, और लण्ड अब फुफकारने लगा था।
माूँ ने हल्के से मेरी जाांघों को दबाया। मैंने दहम्मत करके हल्के से अपने काांपते हुए हाथों को बढ़ाकर माूँ की
कमर पर रख ददया। माूँ कुछ नहीां बोली, बस हल्का सा म्ु कुरा भर दी। मेरी दहम्मत बढ़ गई और मैं अपने
हाथों से माूँ की नांगी कमर को सहलाने लगा। माूँ ने केवल पेटीकोट और ब्लाउज़ पहन रखा था। उसके ब्लाउज़
के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे। इतने पास से उसकी चूचचयों की गहरी घाटी नजर आ रही थी और मन कर
रहा था जल्दी से जल्दी उन चचू चयों को पकड़ ल।ांू पर ककसी तरह से अपने आपको रोक रखा था।
31
माूँ ने जब मझु े चचू चयों को घरू ते हुए दे खा तो म्ु कुराते हुए बोली- “क्या इरादा है तेरा… शाम से ही घरू े जा रहा
है , खा जायेगा क्या?”
माूँ- “चल झठ
ू े , मझ
ु े क्या पता नहीां चलता… रात में भी वही करे गा, क्या?”
माूँ- “तझ
ु े दे खकर तो यही लग रहा है कक, तू कफर से वही हरकत करने वाला है…”
मैं- “नहीां, माूँ…” मेरे हाथ अब माूँ कक जाांघों को सहला रहे थे।
इस पर माूँ ने अपने हाथों का दबाव जरा सा, मेरे लण्ड पर बढ़ा ददया और हल्के-हल्के दबाने लगी। माूँ के हाथों
का स्पशष पाकर, मेरी तो हालत खराब होने लगी थी। ऐसा लगा रहा था कक, अभी के अभी पानी ननकल जायेगा।
तभी माूँ बोली- “जो काम, तू मेरे सोने के बाद करने वाला है , वो काम अभी कर ले। चोरी-चोरी करने से तो
अच्छा है कक तू मेरे सामने ही कर ले…”
मैं कुछ नहीां बोला और अपने काांपते हाथों को, हल्के से माूँ की चचू चयों पर रख ददया। माूँ ने अपने हाथों से मेरे
हाथों को पकड़कर, अपनी छानतयों पर कसकर दबाया और मेरी लग
ुां ी को आगे से उठा ददया और अब मेरे लण्ड
को सीधे अपने हाथों से पकड़ ललया। मैंने भी अपने हाथों का दबाव उसकी चचू चयों पर बढ़ा ददया। मेरे अांदर की
आग एकदम भड़क उठी थी, और अब तो ऐसा लगा रहा था कक जैसे इन चचू चयों को मूँह
ु में लेकर चूस ल।ूां मैंने
हल्के से अपनी गरदन को और आगे की ओर बढ़ाया और अपने होठों को ठीक चचू चयों के पास ले गया। माूँ
शायद मेरे इरादे को समझ गई थी। उसने मेरे लसर के पीछे हाथ डाला और अपनी चूचचयों को मेरे चेहरे से सटा
ददया। हम दोनों अब एक-दस ू रे की तेज चलती हुई साांसों को महससू कर रहे थे। मैंने अपने होठों से ब्लाउज़ के
ऊपर से ही, माूँ की चचू चयों को अपने मूँह
ु में भर ललया और चस ू ने लगा। मेरा दस
ू रा हाथ कभी उसकी चचू चयों
को दबा रहा था, कभी उसके मोटे -मोटे चूतड़ों को।
32
माूँ ने भी अपना हाथ तेजी के साथ चलना शरू
ु कर ददया था, और मेरे मोटे लण्ड को अपने हाथ से मदु ठया रही
थी। मेरा मजा बढ़ता जा रहा था, तभी मैंने सोचा ऐसे करते-करते तो माूँ कफर मेरा ननकाल दे गी, और शायद
कफर कुछ दे खने भी न दे । जबकी मैं आज तो माूँ को परू ा नांगा करके, जी भरकर उसके बदन को दे खना चाहता
था। इसललये मैंने माूँ के हाथों को पकड़ ललया और कहा- “हाय… माूँ रुको…”
मैं- “कफर माूँ, मैं कुछ और करना चाहता हूूँ। ये तो ददन के जैसे ही हो जायेगा…”
मैं- “हाय… माूँ ये दे खना है …” कहकर मैंने एक हाथ सीधा माूँ की बरु पर रख ददया।
माूँ- “चल हट, मैं क्यों ददखाऊूँगी? कोई माूँ ऐसा करती है क्या?”
माूँ- “ऐसी उल्टी सीधी बातें मत सोचा कर, ददमाग खराब हो जायेगा…”
मैं- “हाय माूँ, ओह्ह… माूँ, ददखा दो ना, बस एक बार। खाली दे खकर सो जाऊूँगा…”
पर माूँ ने मेरे हाथों को झटक ददया, और उठकर खड़ी हो गई। अपने ब्लाउज़ को ठीक करने के बाद, छत के
कोने की तरफ चल दी। छत का वो कोना घर के पपछवाड़े की तरफ पड़ता था, और वहाां पर एक नाली जैसा
बना हुआ था, जजससे पानी बहकर सीधे नीचे बहने वाली नाली में जा चगरता था। माूँ उसी नाली पर जाकर बैठ
गई। अपने पेटीकोट को उठाकर पेशाब करने लगी। मेरी नजरें तो माूँ का पीछा कर ही रही थी। ये नजारा दे खकर
तो मेरा मन और बहक गया। ददल में आ रहा था कक जल्दी से जाकर, माूँ के पास बैठकर आगे झाांक ल,ूां और
उसकी पेशाब करती हुई चत
ू को कम से कम दे ख भर ल,ूां पर ऐसा ना हो सका।
माूँ ने पेशाब कर ललया, कफर वो वैसे ही पेटीकोट को जाांघों तक, एक हाथ से उठाये हुए मेरी तरफ घम
ू गई और
अपनी बरु पर हाथ चलाने लगी, जैसे कक पेशाब पोंछ रही हो और कफर मेरे पास आकर बैठ गई।
मैंने माूँ के बैठने पर उसका हाथ पकड़ ललया और प्यार से सहलाते हुए बोला- “हाय माूँ, बस एक बार ददखा दो
ना, कफर कभी नहीां बोलग ांू ा ददखाने के ललये…”
माूँ- “एक बार ना कह ददया तो तेरे को समझ में नहीां आता है , क्या?”
माूँ- “दे ख, ददन में जो हो गया सो हो गया। मैंने ददन में तेरा लण्ड भी मदु ठया ददया था, कोई माूँ ऐसा नहीां
करती। बस इससे आगे नहीां बढ़ने दां ग
ू ी…” माूँ ने पहली बार गांदे शब्द का उपयोग ककया था। उसके मूँह
ु से लण्ड
सन
ु कर ऐसा लगा, जैसे अभी झड़ के चगर जायेगा।
मैंने कफर धीरे से दहम्मत करके कहा- “हाय… माूँ, क्या हो जायेगा अगर एक बार मझ
ु े ददखा दे गी तो? तम
ु ने मेरा
भी तो दे खा है, अब अपना ददखा दो ना…”
34
माूँ- “तेरा दे खा है , इसका क्या मतलब है ? तेरा तो मैं बचपन से दे खती आ रही हूूँ। और रही बात चूची ददखाने
और पकड़ाने की, वो तो मैंने तझ
ु े करने ही ददया है ना, क्योंकी बचपन में तो तू इसे पकड़ता-चस
ू ता ही था। पर
चूत की बात और है , वो तो तन
ू े होश में कभी नहीां दे खी ना, कफर उसको क्यों ददखाऊूँ?” माूँ अब खल्
ु लम-खुल्ला
गन्दे शब्दों का उपयोग कर रही थी।
मैं- “हाय… जब इतना कुछ ददखा ददया है तो, उसे भी ददखा दो ना। ऐसा कौन सा कम हो जायेगा?”
माूँ ने अब तक अपना पेटीकोट समेटकर जाांघों के बीच रख ललया था और सोने के ललये लेट गई थी। मैंने इस
बार अपना हाथ उसकी जाांघों पर रख ददया। मोटी-मोटी गद
ु ाज जाांघों का स्पशष जानलेवा था। जाांघों को हल्के-
हल्के सहलाते हुए, मैं जैसे ही हाथ को ऊपर की तरफ ले जाने लगा।
पर मैं नहीां माना और ’एक बार, केवल एक बार’ बोलकर जजद करता रहा।
तभी बारीश की बद
ूां ें तेजी के साथ चगरने लगी। ऐसा लगा रहा था, मेरी तरह आसमान भी बरु नहीां ददखाये जाने
पर रो पड़ा है ।
मैं भी झट-पट बबस्तर समेटने लगा, और हम दोनों जल्दी से नीचे की ओर भागे। नीचे पहुूँचकर माूँ, अपने कमरे
में घस
ु गई। मैं भी उसके पीछे -पीछे उसके कमरे में पहुूँच गया। माूँ ने खखड़की खोल दी, और लाईट जला दी।
खखड़की से बड़ी अच्छी, ठां डी-ठां डी हवा आ रही थी।
माूँ जैसे ही पलांग पर बैठी, मैं भी बैठ गया। और माूँ से बोला- “हाय, अब ददखा दो ना। अब तो घर में आ गये
है , हम लोग…”
इस पर माूँ म्ु कुराते हुए बोली- “लगता है , आज तेरी कक्मत बड़ी अच्छी है । आज तझु े मालपआ
ु खाने को तो
नहीां, पर दे खने को जरूर लमल जायेगा…” कहकर माूँ ने अपना लसर पलांग पे दटका के, अपने दोनों पैर सामने
फैला ददये और अपने ननचले होंठों को चबाते हुए बोली- “इधर आ, मेरे पैरों के बीच में, अभी तझ
ु े ददखाती हूूँ।
पर एक बात जान ले, तू पहली बार दे ख रहा है , दे खते ही तेरा पानी ननकल जायेगा, समझा…”
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कफर माूँ ने अपने हाथों से पेटीकोट के ननचले भाग को पकड़ा और धीरे -धीरे ऊपर उठाने लगी। मेरी दहम्मत तो
बढ़ ही चुकी थी, मैंने धीरे से माूँ से कहा- “ओह्ह… माूँ, ऐसे नहीां…”
मैं- “हाय, परू े कपड़े खोलकर। मेरी बड़ी तमन्ना है की मैं तम्
ु हारे परू े बदन को नांगा दे ख,ूां बस एक बार…”
इतना सन ु ते ही माूँ ने आगे बढ़कर मेरे चेहरे को अपने हाथों में थाम ललया और हूँसते हुए बोली- “वाह बेटा,
अांगल
ु ी पकड़कर परू ा हाथ पकड़ने की सोच रहे हो, क्या?”
मैं- “हाय… माूँ, छोड़ो ना ये सब बात, बस एक बार ददखा दो। ददन में तम
ु ककतने अच्छे से बातें कर रही थी,
और अभी पता नहीां क्या हो गया है तम्
ु हें ? सारे रास्ते सोचता आ रहा था मैं की आज कुछ करने को लमलेगा
और तम
ु हो कक…”
मैं- “हाय… कसम से माूँ, कभी ककसी को नहीां ककया। करना तो दरू की बात है, कभी दे खा या छुआ तक नहीां…”
माूँ- “चल झठ
ू े , ददन में तो दे खा भी था और छुआ भी था…”
मैं- “हाय हाूँ दे खा था, पर पहली बार दे खा था। इससे पहले ककसी का नहीां दे खा था। तम
ु पहली हो जजसका मैंने
दे खा था…”
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इस पर मैं बोला- “ओह्ह… छोड़ दो माूँ, ज्यादा करोगी तो अभी ननकल जायेगा…”
माूँ- “कोई बात नहीां, अभी ननकाल ले। अगर परू ा खोलकर ददखा दां ग
ू ी, तो कफर तो तेरा दे खते ही ननकल जायेगा।
परू ा खोलके दे खना है ना, अभी…”
इतना सन
ु ते ही मेरा ददल तो बजल्लयों उछलने लगा। अभी तक तो माूँ नखरें कर रही थी, और अभी उसने
अचानक ही, जो ददखाने की बात कर दी। मझ
ु े ऐसा लगा जैसे मेरे लण्ड से पानी ननकल जायेगा।
माूँ- “हाूँ ददखाऊूँगी मेरे राजा बेटा, जरूर ददखाऊूँगी। अब तो तू परू ा जवान हो गया है और, काम करने लायक भी
हो गया है । अब तो तझ
ु े ही ददखाना है सब कुछ। और तेरे से अपना सारा काम करवाना है , मझ
ु …
े ”
माूँ और तेजी के साथ मेरे लण्ड को मदु ठया रही थी, और बार-बार मेरे लण्ड के सप
ु ाड़े को अपने अांगठ
ू े से दबा
भी रही थी। माूँ बोली- “अभी जल्दी से तेरा ननकाल दे ती हूूँ, कफर दे ख तझ
ु े ककतना मजा आयेगा। अभी तो तेरी
ये हालत है कक दे खते ही झड़ जायेगा। एक पानी ननकाल दे , कफर दे ख तझ ु े ककतना मजा आता है…”
माूँ- “पछ
ू ता क्या है, दबा ना… पर क्या दबायेगा, ये भी तो बता दे …” ये बोलते वक्त माूँ के चेहरे पर, एक शैतानी
भरी कानतल म्ु कुराहट खेल गई।
माूँ- “छानतयाां, ये क्या होती है … ये तो मदो की भी होती है , औरतों का तो कुछ और होता है । बता तो सही, नाम
तो जानता ही होगा ना?”
मैं- “च…
ु च,ु हाये माूँ, मेरे से नहीां बोला जायेगा, छोड़ो नाम को…”
माूँ- “बोल ना, शमाषता क्यों है ? माूँ को खोलकर ददखाने के ललये बोलने में नहीां शमाषता है , पर अांगों के नाम लेने
में शमाषता है…”
माूँ- “हाूँ, अब आया ना लाईन पर। दबा मेरी चचू चयों को, इससे तेरा पानी जल्दी ननकलेगा। हाय, क्या भयांकर
लौड़ा है … पता नहीां जब इस उमर में ये हाल है इस छोकरे के लण्ड का, तो परू ा जवान होगा तो क्या होगा?”
37
मैंने अपनी दोनों हथेललयों में माूँ की चचू चयाां भर ली और, उन्हें खब
ू कस-कसकर दबाने लगा। गजब का मजा आ
रहा था। ऐसा लगा रहा था, जैसे कक मैं पागल हो जाऊूँगा। दोनों चचू चयाां ककसी अनार की तरह सख्त और गद
ु ाज
थी। उसके मोटे -मोटे ननप्पल भी ब्लाउज़ के ऊपर से पकड़ में आ रहे थे। मैं दोनों ननप्पल के साथ साथ परू ी चूची
को ब्लाउज़ के ऊपर से पकड़कर दबाये जा रहा था। माूँ के मूँह
ु से अब लससकाररयाां ननकलने लगी थी, और वो
मेरा उत्साह बढ़ाते जा रही थी।
माूँ- “हाय… बेटा, शाबाश। ऐसे ही दबा, मेरी चूचचयों को। हाय क्या लौड़ा है? पता नहीां, घोड़े का है , या साांड़ का
है … ठहर जा, अभी इसे चूसकर तेरा पानी ननकालती हूूँ…” कहकर, वो नीचे की ओर झुक गई।
मैं- “हाय… रे , मेरी माूँ ननकाल रे ननकाल मेरा, ननकल गया, ओह्ह… माूँ, सारा का सारा पानी, तेरे मूँह
ु में ही
ननकल गया रे …”
माूँ का हाथ, अब और तेज गती से चलने लगा। ऐसा लगा रहा था, जैसे वो मेरे पानी को गटागट पीते जा रही
है । मेरे लण्ड के सप
ु ाड़े से ननकली एक-एक बद
ूां चूस लेने के बाद माूँ ने अपने होंठों को मेरे लण्ड पर से हटा
ललया और म्ु कुराती हुई, मझ
ु े दे खने लगी और बोली- “कैसा लगा?”
पेटीकोट के ऊपर और नीचे के भागों के बीच में एक गैप सा बन गया था। उस गैप से उसकी जाांघ, अांदर तक
नजर आ रही थी। उसकी गद
ु ाज जाांघों के ऊपर हाथ रखकर, मैं हल्का सा झक
ु गया अांदर तक दे खने के ललये।
हालाांकी अांदर रोशनी बहुत कम थी, परां तु कफर भी मझ
ु े उसकी काली-काली झाांटों के दशषन हो गये। झाांटों के
कारण चूत तो नहीां ददखी, परां तु चूत की खुशबू जरूर लमल गई।
कफर मझ
ु े अपनी बाांहो में भरकर, मेरे गाल पर चम्
ु मी काटकर बोली- “मेरे लाल को अपनी माूँ की बरु दे खनी है
ना, अभी ददखाती हूूँ मेरे छोरे । हाय मझ
ु े नहीां पता था कक तेरे अांदर इतनी बेकरारी है , बरु दे खने की…”
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मेरी भी दहम्मत बढ़ गई थी- “हाय… माूँ, जल्दी से खोलो और ददखा दो…”
माूँ- “तो ले, ये है मेरे पेटीकोट का नाड़ा। खुद ही खोलकर माूँ को नांगा कर दे , और दे ख ले…”
माूँ- “क्यों नहीां होगा? जब तू पेटीकोट ही नहीां खोल पायेगा, तो आगे का काम कैसे करे गा?”
मेरे इस सवाल पर, माूँ ने मेरे गालों को मसलते हुए पछ ू ा- “क्यों, आगे का काम नहीां करे गा क्या? अपनी माूँ को
ऐसे ही प्यासा छोड़ दे गा? तू तो कहता था कक तझ ु े ठां डा कर दां ग
ू ा, पर तू तो मझ
ु े गरम करके छोड़ने की बात
कर रहा है …”
माूँ- “गधे के जैसा लण्ड होने के साथ साथ, तेरा तो ददमाग भी गधे के जैसा ही हो गया है । लगता है , सीधा
खोलकर ही पछ
ू ना पड़ेगा- ‘बोल चोदे गा मझ
ु ,े चोदे गा अपनी माूँ को, माूँ की बरु चाटे गा, और कफर उसमें अपना
लौड़ा डालेगा’ बोल ना…”
माूँ- “हाय… मेरे 16 साल के जवान छोकरे को, उसकी माूँ इतनी सद
ुां र लगती है, क्या?”
माूँ- “हाूँ हाूँ, बोल ना क्या करना चाहता था? अब तो खुल के बात कर बेटे, शमाष मत अपनी माूँ से। अब तो
हमने शमष की हर वो ददवार चगरा दी है , जो जमाने ने हमारे ललये बनाई है …”
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मैं- “हाय… माूँ, मैं कब से तम्
ु हें चोदना चाहता था, पर कह नहीां पाता था…”
माूँ- “कोई बात नहीां बेटा, अभी भी कुछ नहीां बबगड़ा है । वो भला हुआ की आज मैंने खुद ही पहल कर दी। चल
आ, दे ख अपनी माूँ को नांगा, और आज से बन जा उसका सैयाां…”
कहकर माूँ बबस्तर से नीचे उतर गई, और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। कफर धीरे -धीरे करके अपने ब्लाउज़ के
एक-एक बटन को खोलने लगी। ऐसा लग रहा था, जैसे चाांद बादल में से ननकल रहा है । धीरे -धीरे उसकी गोरी-
गोरी चूचचयाां ददखने लगी। ओह्ह… गजब की चचू चयाां थी, दे खने से लग रहा था जैसे की दो बड़े-बड़े नाररयल दोनों
तरफ लटक रहे हों। एकदम गोल-गोल और आगे से नक
ु ीले तीर के जैसे। चूचचयों पर नसों की नीली रे खायें स्पष्ट
ददख रही थीां। ननप्पल थोड़े मोटे और एकदम खड़े थे और उनके चारों तरफ हल्का गल
ु ाबीपन ललये हुए, गोल-गोल
घेरा था। ननप्पल भरू े रां गे के थे।
माूँ ने अपनी चचू चयों पर हाथ फेरते हुए और अच्छे से मझ ु े ददखाते हुए हल्का सा दहलाया और बोली- “खबू सेवा
करनी होगी, इसकी तझ ु े। दे ख कैसे शान से लसर उठाये खड़ी हैं, इस उमर में भी। तेरे बाप के बस का तो है नहीां,
अब तू ही इन्हें सम्भालना…”
कहकर वो कफर अपने हाथों को अपने पेटीकोट के नाड़े पर ले गई और बोली- “अब दे ख बेटा, तेरे को जन्नत का
दरवाजा ददखाती हूूँ। अपनी माूँ का स्पेशल मालपआ
ु दे ख, जजसके ललये तू इतना तरस रहा था…” कहकर माूँ ने
अपने पेटीकोट के नाड़े को खोल ददया।
पेटीकोट उसकी कमर से सरसराते हुए सीधा नीचे चगर गया, और माूँ ने एक पैर से पेटीकोट को एक तरफ
उछालकर फेंक ददया और बबस्तर के और नजदीक आ गई, कफर बोली- “हाय… बेटा, तन ू े तो मझ
ु े एकदम बेशमष
बना ददया…” कफर मेरे लण्ड को अपनी मठ्
ु ठी में भरकर बोली- “ओह्ह… तेरे इस साांड़ जैसे लण्ड ने तो मझ
ु े
पागल बना ददया है, दे ख ले अपनी माूँ को जी भरकर…”
मेरी नजरें माूँ की जाांघों के बीच में दटकी हुई थी। माूँ की गोरी-गोरी चचकनी रानों के बीच में काली-काली झाांटों
का एक बत्रकोण बना हुआ था। झाांटे बहुत ज्यादा बड़ी नहीां थीां। झाांटों के बीच में से, उसकी गल ु ाबी चूत की
हल्की झलक लमल रही थी। मैंने अपने हाथों को माूँ की जाांघों पर रखा, और थोड़ा नीचे झक
ु कर ठीक चूत के
पास अपने चेहरे को ले जाकर दे खने लगा।
माूँ ने अपने दोनों हाथ को मेरे लसर पर रख ददया और मेरे बालों से खेलने लगी, कफर बोली- “रुक जा, ऐसे नहीां
ददखेगा। तझ
ु े आराम से बबस्तर पर लेटकर ददखाती हूूँ…”
मैं- “ठीक है, आ जाओ बबस्तर पर। माूँ एक बार जरा पीछे घम
ू ो ना…”
40
माूँ- “ओह्ह… मेरा राजा मेरा पपछवाड़ा भी दे खना चाहता है क्या? चल, पपछवाड़ा तो मैं तझ
ु े खड़े-खड़े ही ददखा
दे ती हूूँ। ले, दे ख अपनी माूँ के चत
ू ड़ और गाण्ड को…” इतना कहकर माूँ पीछे घम
ू गई।
ओह्ह… ककतना सद
ुां र दृ्य था वो। इसे मैं अपनी परू ी जजन्दगी में कभी नहीां भल
ु सकता। माूँ के चूतड़ सच में
बड़े खुबसरू त थे, एकदम मलाई जैसे, गोल-मटोल, गद
ु ाज, माांसल। और उस चूतड़ के बीच में एक गहरी लकीर
सी बन रही थी, जो कक उसकी गाण्ड की खाई थी। मैंने माूँ को थोड़ा झुकने को कहा तो माूँ झुक गई, और
आराम से दोनों मक्खन जैसे चत ू ड़ों को पकड़कर अपने हाथों से मसलते हुए, उनके बीच की खाई को दे खने
लगा। दोनों चूतड़ों के बीच में गाण्ड का भरू े रां ग का छे द फकफका रहा था, एकदम छोटा सा गोल छे द। मैंने
हल्के से अपने हाथों को उस छे द पर रख ददया और हल्के-हल्के उसे सहलाने लगा। साथ में, मैं चूतड़ों को भी
मसल रहा था। पर तभी माूँ आगे घम
ू गई।
माूँ- “अच्छा, चोदे गा पर कैसे? जरा बता तो सही, कैसे चोदे गा?”
माूँ- “पता नहीां। ये क्या जवाब हुआ, पता नहीां… जब कुछ पता नहीां, तो माूँ पर डोरे क्यों डाल रहा था?”
मैं- “ओह्ह… माूँ, मैंने पहले ककसी को ककया नहीां है ना, इसललये मझ
ु े पता नहीां है। मझ
ु े बस थोड़ा बहुत पता है ,
जो कक मैंने गाूँव के लड़कों के साथ सीखा था…”
माूँ- “तो गाूँव के छोकरों ने ये नहीां लसखाया कक कैसे ककया जाता है । खाली यही लसखाया कक, माूँ पर डोरे डालो…”
मैं माूँ की कमर के पास बैठ गया। माूँ परू ी नांगी तो पहले से ही थी। मैंने उसकी चचू चयों पर अपना हाथ रख
ददया और उनको धीरे -धीरे सहलाने लगा। मेरे हाथ में शायद दनु नयाां की सबसे खब
ू सरू त चूचचयाां थी। ऐसी चूचचयाां,
जजनको दे खकर ककसी का भी ददल मचल जाये। मैं दोनों चूचचयों की परू ी गोलाई पर हाथ फेर रहा था। चचू चयाां
मेरी हथेली में नहीां समा रही थी। मझु े ऐसा लग रहा था, जैसे मैं जन्नत में घम
ू रहा हूूँ। माूँ की चचू चयों का
स्पशष गजब का था। मल ु ायम, गद
ु ाज, और सख्त गठीलापन, ये सब एहसास शायद अच्छी गोल-मटोल चूचचयों
को दबाकर ही पाया जा सकता है । मझ
ु े इन सारी चीजों का एक साथ आनांद लमल रहा था। ऐसी चूची दबाने का
सौभाग्य नशीब वालों को ही लमलता है । इस बात का पता मझ
ु े अपने जीवन में बहुत बाद में चला, जब मैंने
दस
ू री अनेक तरह की चचू चयों का स्वाद ललया।
माूँ के मूँह
ु से हल्की-हल्की आवाजें आनी शरू
ु हो गई थी और उसने मेरे चेहरे को अपने पास खीांच ललया और
अपने तपते हुए गल ु ाबी होंठों का पहला अनठु ा स्पशष मेरे होंठों को ददया। हम दोनों के होंठ एक दस
ू रे से लमल
गये और मैं माूँ कक दोनों चचू चयों को पकड़े हुए, उसके होंठों का रस ले रहा था। कुछ ही सेकन्ड में हमारी जीभ
आपस में टकरा रही थी। मेरे जीवन का ये पहला चुम्बन करीब दो-तीन लमनट तक चला होगा। माूँ के पतले
होंठों को अपने मह ूँु में भरकर मैंने चस
ू -चस
ू कर और लाल कर ददया। जब हम दोनों एक दस ू रे से अलग हुए तो
दोनों हाूँफ रहे थे। मेरे हाथ अब भी उसकी दोनों चूचचयों पर थे और मैं अब उनको जोर-जोर से मसल रहा था।
माूँ के मूँह
ु से अब और ज्यादा तेज लससकाररयाां ननकलने लगी थी। माूँ ने लससयाते हुए मझ
ु से कहा- “ओह्ह…
ओह्ह… इस्सस्स… शाबाश, ऐसे ही प्यार करो मेरी चूचचयों से। हल्के-हल्के आराम से मसलो बेटा, ज्यादा जोर से
नहीां, नहीां तो तेरी माूँ को मजा नहीां आयेगा। धीरे -धीरे मसलो…”
मेरे हाथ अब माूँ कक चूचचयों के ननप्पल से खेल रहे थे। उसके ननप्पल अब एकदम सख्त हो चुके थे। हल्का
कालापन ललये हुए गल
ु ाबी रां ग के ननप्पल खड़े होने के बाद ऐसे लग रहे थे, जैसे दो गोरी, गल
ु ाबी पहाड़ड़यों पर
बादाम की गीरी रख दी गई हो। ननप्पल के चारों ओर उसी रां ग का घेरा था। ध्यान से दे खने पर मैंने पाया कक,
उस घेरे पर छोटे -छोटे दाने से उगे हुए थे। मैं ननप्पलों को अपनी दो उां गललयों के बीच में लेकर धीरे -धीरे मसल
रहा था, और प्यार से उनको खीांच रहा था। जब भी मैं ऐसा करता तो माूँ की लससककयाां और तेज हो जाती थी।
माूँ की आूँखें एकदम नशीली हो चुकी थी और वो लससकाररयाां लेते हुए बड़बड़ाने लगी- “ओह्ह… बेटा ऐसे ही, ऐसे
ही… तझ ु े तो लसखाने की भी जरूरत नहीां है रे । ओह्ह… क्या खूब मसल रहा है, मेरे प्यारे । ऐसे ही ककतने ददन हो
गये, जब इन चूचचयों को ककसी मदष के हाथ ने मसला है या प्यार ककया है । कैसे तरसती थी मैं कक काश कोई
मेरी इन चचू चयों को मसल दे , प्यार से सहला दे , पर आखीर में अपना बेटा ही काम आया। आ जा मेरे लाल…”
कहते हुए उसने मेरे लसर को पकड़कर अपनी चूचचयों पर झुका ललया।
मैं माूँ का इशारा समझ गया और मैंने अपने होंठ माूँ की चचू चयों से भर ललये। मेरे एक हाथ में उसकी एक चच
ू ी
थी और दस
ू री चूची पर मेरे होंठ चचपके हुए थे। मैंने धीरे -धीरे उसकी चचू चयों को चूसना शरू
ु कर ददया था।
42
मैं ज्यादा से ज्यादा चचू चयों को अपने मूँह
ु में भरकर चस
ू रहा था। मेरे अांदर का खन
ू इतना उबाल मारने लगा
था कक एक-दो बार मैंने अपने दाांत भी चचू चयों पर गड़ा ददये थे। जजससे माूँ के मूँह
ु से अचानक से चीख ननकल
गई थी। पर कफर भी उसने मझ
ु े रोका नहीां। वो अपने हाथों को मेरे लसर के पीछे लेजाकर, मझ
ु े बालों से पकड़कर
मेरे लसर को अपनी चचू चयों पर और जोर-जोर से दबा रही थी, और दाांत से काटने पर एकदम से घट
ु ी-घट
ु ी
आवाज में चीखते हुए बोली- “ओह्ह… धीरे बेटा, धीरे से चूसो चचू चयों को। ऐसे जोर से नहीां काटते हैं…”
मैं कफर से अपने काम में जुट गया और पहली वाली चूची दबाते हुए, दस
ू री को परू े मनोयोग से चूसने लगा। माूँ
लससककयाां ले रही थी और चुसवा रही थी। कभी-कभी अपना हाथ मेरी कमर के पास ले जाकर, मेरे लोहे जैसे
तने हुए लण्ड को पकड़कर मरोड़ रही थी। कभी अपने हाथों से मेरे लसर को अपनी चचू चयों पर दबा रही थी। इस
तरह काफी दे र तक मैं उसकी चूचचयों को चूसता रहा। कफर माूँ ने खुद अपने हाथों से मेरा लसर पकड़कर अपनी
चूचचयों पर से हटाया और म्ु कुराते मेरे चेहरे की ओर दे खने लगी। मेरे होंठ मेरे खुद के थूक से भीगे हुए थे। माूँ
की बाांयी चच
ू ी अभी भी मेरे लार से चमक रही थी, जबकी दादहनी चूची पर लगा थूक सख ू चकु ा था पर उसकी
दोनों चूचचयाां लाल हो चुकी थी, और ननप्पलों का रां ग हल्के काले से परू ा काला हो चुका था। ऐसा बहुत ज्यादा
चसू ने पर खन ू का दौरा बढ़ जाने के कारण हुआ था।
माूँ ने मेरे चेहरे को अपने होंठों के पास खीांचकर मेरे होंठों पर एक गहरा चुम्बन ललया और अपनी कानतल
म्ु कुराहट फेंकते हुए मेरे कान के पास धीरे से बोली- “खाली दध
ू ही पीयेगा या मालपआ
ु भी खायेगा? दे ख तेरा
मालपआ ु तेरा इन्तजार कर रहा है , राजा…”
43
मैंने भी माूँ के होंठों का चम्
ु बन ललया और कफर उसके भरे -भरे गालों को, अपने मूँह
ु में भरकर चस
ू ने लगा और
कफर उसके नाक को चूमा और कफर धीरे से बोला- “ओह्ह… माूँ, तम
ु सच में बहुत सद
ुां र हो…”
इस पर माूँ ने पछ
ू ा- “क्यों, मजा आया ना, चूसने में?”
तब माूँ ने अपने पैरों के बीच इशारा करते हुए कहा- “नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल नतजोरी का
दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है । आ जा बेटे, आज तझ ु े असली मालपआ
ु खखलाती हूूँ…”
माूँ ने अपनी दोनों जाांघें फैला दी, और अपने हाथों को अपनी बरु के ऊपर रखकर बोली- “ले दे ख ले, अपना
मालपआ
ु । अब आज के बाद से तझ
ु े यही मालपआ
ु खाने को लमलेगा…”
मेरी खशु ी का तो ठीकाना नहीां था। सामने माूँ की खल ु ी जाांघों के बीच झाांटों का एक बत्रकोण सा बन हुआ था।
इस बत्रकोणीय झाांटों के जांगल के बीच में से, माूँ की फूली हुई गल ु ाबी बरु का छे द झाांक रहा था, जैसे बादलों के
झुरमट
ु में से चाांद झाांकता है । मैंने अपने काांपते हाथों को माूँ की चचकनी जाांघों पर रख ददया और थोड़ा सा झुक
गया। उसकी बरु के बाल बहुत बड़े-बड़े नहीां थे। छोटे -छोटे घघ
ुां राले बाल और उनके बीच एक गहरी लककर से चीरी
हुई थी।
मैंने अपने हाथों को माूँ की चूत को ऊपर रख ददया। झाांट के बाल एकदम रे शम जैसे मल
ु ायम लग रहे थे।
हालाांकी आम तौर पर झाांट के बाल थोड़े मोटे होते हैं, और उसकी झाांट के बाल भी मोटे ही थे, पर मल
ु ायम भी
थे। हल्के-हल्के मैं उन बालों पर हाथ कफराते हुए, उनको एक तरफ करने की कोलशश कर रहा था। अब चूत की
दरार और उसकी मोटी-मोटी फाांकें स्पष्ट रूप से ददख रही थी। माूँ की बरु एकदम फूली हुई और गद्दे दार लगती
थी। चूत की मोटी-मोटी फाांकें बहुत आकर्षक लग रही थी।
मेरे से रहा नहीां गया और मैं बोल पड़ा- “ओह्ह… माूँ, ये तो सचमच
ु में मालपए
ु के जैसी फूली हुई है …”
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माूँ- “हाूँ बेटा, यही तो तेरा असली मालपआ
ु है । आज के बाद जब भी मालपआ
ु खाने का मन करे , यही खाना…”
माूँ ने इस पर मेरे लसर को अपनी चूत पर दबाते हुए हल्के से लससकाते हुए कहा- “बबस्तर पर क्यों पोंछ ददया,
उल्ल… ू यही माूँ का असली प्यार है , जो कक तेरे लण्ड को दे खकर चत
ू के रास्ते छलक कर बाहर आ रहा है ।
इसको चख के दे ख, चूस ले इसको…”
मैंने अपनी जीभ ननकाल ली, और माूँ की बरु पर अपनी जुबान को कफराना शरू
ु कर ददया। परू ी चूत के ऊपर
मेरी जीभ चल रही थी। मैं फूली हुई गद्दे दार बरु को अपनी खरु दरी जबु ान से, ऊपर से नीचे तक चाट रहा था।
अपनी जीभ को दोनों फाांकों के ऊपर फेरते हुए, मैंने ठीक बरु की दरार पर अपनी जीभ रखी और मैं धीरे -धीरे
ऊपर से नीचे तक चूत की परू ी दरार पर जीभ को कफराने लगा। बरु से ररस-ररस कर ननकलता हुआ रस, जो
बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मझ
ु े लमल रहा था।
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जीभ जब चूत के ऊपरी भाग में पहुूँच कर जक्लट से टकराती थी, तो माूँ की लससककयाां और भी तेज हो जाती
थी। माूँ ने अपने दोनों हाथों को शरू
ु में तो कुछ दे र तक अपनी चचू चयों पर रख रखा था, और अपनी चचू चयों को
अपने हाथ से ही दबाती रही। मगर बाद में उसने अपने हाथों को मेरे लसर के पीछे लगा ददया और मेरे बालों को
सहलाते हुए मेरे लसर को अपनी चूत पर दबाने लगी।
मैंने अपने लसर को हल्का सा उठाकर माूँ को दे खते हुए, अपने बरु के रस से भीगे होंठों से माूँ से पछ
ू ा- “कैसा
लग रहा है माूँ, तझ
ु े अच्छा लग रहा है ना?”
माूँ के बताये हुए रास्ते पर चलना तो बेटे का फजष बनता है , और उस फजष को ननभाते हुए, मैंने बरु की दोनों
फाांकों को फैला ददया और अपनी जीभ को उसकी चूत में पेल ददया। बरु के अांदर जीभ घस ु ाकर, पहले तो मैंने
अपनी जीभ और ऊपरी होंठ के सहारे बरु की एक फाांक को पकड़कर खूब चस
ू ा। कफर दस
ू री फाांक के साथ भी
ऐसा ही ककया। कफर चत
ू को जजतना चचदोर सकता था उतना चचदोरकर, अपनी जीभ को बरु के बीच में डालकर
उसके रस को चटकारे लेकर चाटने लगा।
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चतू का रस बहुत नशीला था और माूँ की चत ू कामोत्तेजना के कारण खब
ू रस छोड़ रही थी। रां गहीन, हल्का चचप-
चचपा रस चाटकर खाने में मझ
ु े बहुत आनांद आ रहा था।
माूँ घट
ु ी-घट
ु ी आवाज में चीखते हुए बोल पड़ी- “ओह्ह… चाट ऐसे ही चाट मेरे राजा, चाट-चाट के मेरे सारे रस को
खा जाओ। हाये रे मेरा बेटा, दे खो कैसे कुत्ते की तरह अपनी माूँ की बरु को चाट रहा है । ओह्ह… चाट ना, ऐसे ही
चाट मेरे कुत्ते बेटे, अपनी कुनतया माूँ की बरु को चाट, और उसकी बरु के अांदर अपनी जीभ को दहलाते हुए मझ
ु े
अपनी जीभ से चोद डाल…”
मझु े बड़ा आ्चयष हुआ कक एक तो माूँ मझु े कुत्ता कह रही है , कफर खद ु को भी कुनतया कह रही है । पर मेरे
ददलो-ददमाग में तो अभी केवल माूँ की रसीली बरु की चटाई घस ु ी हुई थी। इसललये मैंने इस तरफ ध्यान नहीां
ददया। माूँ की आज्ञा का पालन ककया, और जैसे उसने बताया था उसी तरह से अपनी जीभ से ही उसकी चूत को
चोदना शरू
ु कर ददया। मैं अपनी जीभ को तेजी के साथ बरु में से अांदर-बाहर कर रहा था, और साथ ही साथ
चूत में जीभ को घमु ाते हुए चूत के गल
ु ाबी छे द से अपने होंठों को लमलाकर अपने मूँह
ु को चूत पर रगड़ भी रहा
था। मेरी नाक बार-बार चत ू के भगनाशे से टकरा रही थी और शायद वो भी माूँ के आनांद का एक कारण बन
रही थी। मेरे दोनों हाथ माूँ की मोटी, गद
ु ाज जाांघों से खेल रहे थे।
और अब माूँ दाांत पीसकर लगभग चीखते हुए बोलने लगी- “ओह्ह्ह… ओओओ… शीईईई… साले कुत्ते, मेरे प्यारे
बेटे, मेरे लाल, हाये रे , चस
ू और जोर से चस
ू अपनी माूँ की बरु को, जीभ से चोद दे अभी, सीईईइ चोद ना कुत्ते,
हरामजादे और जोर से चोद साले, चोद डाल अपनी माूँ को, हाय ननकला रे , मेरा तो ननकल गया। ओह्ह… मेरे
चुदक्कड़ बेटे, ननकाल ददया रे तन
ू े तो, अपनी माूँ को अपनी जीभ से चोद डाला…”
कहते हुए माूँ ने अपने चूतड़ों को पहले तो खूब जोर-जोर से ऊपर की तरफ उछाला, कफर अपनी आूँखों को बांद
करके चतू ड़ों को धीरे -धीरे फुदकाते हुए झड़ने लगी- “ओह्ह… गई मैं, मेरे राजा मेरा ननकल गया, मेरे सैंया… हाये
तन
ू े मझ
ु े जन्नत की सैर करवा दी रे । हाय मेरे बेटे, ओह्ह… ओह्ह… मैं गई…”
मैंने अपनी जीभ से चोद-चोदकर, अपनी माूँ को झाड़ ददया था। मैंने बरु पर से अपने मूँह
ु को हटा ददया, और
अपने लसर को माूँ की जाांघों पर रखकर लेट गया। कुछ दे र तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद, मैंने जब लसर उठाकर
दे ख तो पाया की माूँ अब भी अपने आूँखों को बांद ककये बेसध
ु होकर लेटी हुई है । मैं चुपचाप उसके पैरों के बीच
से उठा और उसकी बगल में जाकर लेट गया। मेरा लण्ड कफर से खड़ा हो चक ु ा था, पर मैंने चपु चाप लेटना ही
बेहतर समझा और माूँ की ओर करवट लेकर, मैंने अपने लसर को उसकी चचू चयों से सटा ददया और एक हाथ पेट
पर रखकर लेट गया।
47
मैं भी थोड़ी बहुत थकावट महसस ू कर रहा था, हालाांकी लण्ड परू ा खड़ा था और चोदने की इच्छा बाकी थी। मैं
अपने हाथों से माूँ के पेट, नाभी और जाांघों को सहला रहा था। मैं धीरे -धीरे ये सारा काम कर रहा था, और
कोलशश कर रहा था कक, माूँ ना जागे। मझ
ु े लग रहा था कक अब तो माूँ सो गई है और मझ
ु े शायद मठ
ु मारकर
ही सांतोर् करना पड़ेगा। इसललये मैं चाह रहा था कक सोते हुए थोड़ा सा माूँ के बदन से खेल ल,ूां और कफर मठ
ु
मार लग ूां ा।
मझ
ु े माूँ की जाांघ बड़ी अच्छी लगी और मेरा ददल कर रहा था कक मैं उन्हें चूमूां और चाटूां। इसललये मैं चुपचाप
धीरे से उठा, और कफर माूँ के पैरों के पास बैठ गया। माूँ ने अपना एक पैर फैला रखा था, और दस
ू रे पैर को
घटु नों के पास से मोड़कर रख हुआ था। इस अवस्था में वो बड़ी खब ू सरू त लग रही थी। उसके बाल थोड़े बबखरे
हुए थे। एक हाथ आूँखों पर और दसू रा बगल में था। पैरों के इस तरह से फैले होने से उसकी बरु और गाण्ड,
दोनों का छे द स्पष्ट रूप से ददख रहा था। धीरे -धीरे मैं अपने होंठों को उसकी जाांघों पर फेरने लगा, और हल्की-
हल्की चुजम्मयाां उसकी रानों से शरू
ु करके उसके घट
ु नों तक दे ने लगा। एकदम मक्खन जैसी गोरी, चचकनी जाांघों
को अपने हाथों से पकड़कर हल्के-हल्के मसल भी रहा था।
मेरा ये काम थोड़ी दे र तक चलता रहा, तभी माूँ ने अपनी आूँखें खोली और मझ
ु े अपनी जाांघों के पास दे खकर वो
एकदम से चौंक कर उठ गई, और प्यार से मझ ु े अपनी जाांघों के पास से उठाते हुए बोली- “क्या कर रहा है बेटे?
जरा आूँख लग गई थी। दे ख ना इतने ददनों के बाद, इतने अच्छे से पहली बार मैंने वासना का आनांद उठाया है ।
इस तरह पपछली बार कब झड़ी थी, मझ
ु े तो ये भी याद नहीां। इसललये शायद सांतष्ु टी और थकान के कारण
आूँख लग गई…”
तभी माूँ की नजर मेरे 8½” इांच के लौड़े की तरफ गई और वो चौंक के बोली- “अरे , ऐसे कैसे सो जाऊूँ?” और
मेरा लौड़ा अपने हाथ में पकड़कर कहा- “मेरे लाल का लण्ड खड़ा होकर, बार-बार मझ
ु े पक
ु ार रहा है, और मैं सो
जाऊूँ…”
माूँ- “नहीां मेरे लाल, आ जा जरा सा माूँ के पास लेट जा। थोड़ा दम ले ल,ूां कफर तझ
ु े असली चीज का मजा
दां ग
ू ी…”
मैं उठकर माूँ के बगल में लेट गया। अब हम दोनों माूँ-बेटे एक-दस
ू रे की ओर करवट लेटे हुए, एक-दस
ू रे से बातें
करने लगे। माूँ ने अपना एक पैर उठाया, और अपनी मोटी जाांघों को मेरी कमर पर डाल ददया। कफर एक हाथ से
मेरे खड़े लौड़े को पकड़कर उसके सप
ु ाड़े के साथ धीरे -धीरे खेलने लगी। मैं भी माूँ की एक चूची को अपने हाथों में
पकड़कर धीरे -धीरे सहलाने लगा, और अपने होंठों को माूँ के होंठों के पास लेजाकर एक चांब
ु न ललया।
48
मैं- “हाय… माूँ, बहुत स्वाददष्ट था, सच में मजा आ गया…”
माूँ- “अच्छा, चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा, इससे बढ़कर मेरे ललये कोई बात नहीां…”
मैं- “माूँ, तम
ु सच में बहुत सद
ुां र हो। तम्
ु हारी चचू चयाां ककतनी खूबसरू त हैं। मैं, मैं क्या बोलूां माूँ, तम्
ु हारा तो परू ा
बदन खूबसरू त है…”
माूँ- “ककतनी बार बोलेगा ये बात त,ू मेरे से… मैं तेरी आूँखें नहीां पढ़ सकती क्या? जजनमें मेरे ललये इतना प्यार
छलकता है…”
मैं माूँ से कफर परू ा चचपक गया। उसकी चचू चयाां मेरी छाती में चुभ रही थीां, और मेरा लौड़ा अब सीधा उसकी चूत
पर ठोकर मार रहा था। हम दोनों एक-दस
ू रे की आगोश में कुछ दे र तक ऐसे ही खोये रहे । कफर मैंने अपने
आपको अलग ककया और बोला- “माूँ, एक सवाल करूां?”
माूँ- “हाूँ पछ
ू , क्या पछ
ू ना है?”
माूँ- “मझ
ु े तो याद नहीां बेटा कक ऐसा कुछ मैंने तम्
ु हें कहा था। मैं तो केवल थोड़ा सा जोश में आ गई थी, और
तम्
ु हें बता रही थी कक कैसे क्या करना है । मझ
ु े तो एकदम याद नहीां कक मैंने ये शब्द कहे हैं…”
माूँ- “बेटा, मझ
ु े तो ऐसा कुछ भी याद नहीां है, कफर भी अगर मैंने कुछ कहा भी था तो मैं अपनी ओर से माफी
माांगती हूूँ। आगे से इन बातों का ख्याल रखग
ांू ी…”
मैं- “नहीां माूँ, इसमें माफी माांगने जैसी कोई बात नहीां है । मैंने तो जो तम्
ु हारे मूँह
ु से सन
ु ा, उसे ही तम्
ु हें बता
ददया। खैर, जाने दो तम्
ु हारा बेटा हूूँ, अगर तम
ु मझ
ु े दस-बीस गाललयाां दे भी दोगी तो क्या हो जायेगा?”
माूँ- “हाूँ बेटा, वो तो मैं दे ख ही रही हूूँ कक मेरे लाल का हचथयार कैसा तड़प रहा है , माूँ का मालपआ
ु खाने को…
पर उसके ललये तो पहले माूँ को एक बार कफर से थोड़ा गरम करना पड़ेगा बेटा…”
माूँ- “ऐसी बात नहीां है बेटे, चुदवाने का मन तो है, पर ककसी भी औरत को चोदने से पहले थोड़ा गरम करना
पड़ता है । इसललये बरु चाटना, चूची चूसना, चुम्मा चाटी करना और दस
ू रे तरह के काम ककये जाते हैं…”
माूँ- “अबे उल्ल,ू गरम तो मैं बहुत हूूँ। पर इतने ददनों के बाद, इतनी जबरदस्त चूत चटाई के बाद, तन ू े मेरा
पानी ननकाल ददया है, तो मेरी गरमी थोड़ी दे र के ललये शाांत हो गई है । अब तरु न्त चद
ु वाने के ललये तो गरम तो
करना ही पड़ेगा ना। नहीां तो अभी छोड़ दे , कल तक मेरी गरमी कफर चढ़ जायेगी और तब तू मझ
ु े चोद लेना…”
मैंने कफर से माूँ की दोनों चूचचयाां पकड़ ली और उन्हें दबाते हुए, उसके होंठों से अपने होंठ लभड़ा ददये। माूँ ने भी
अपने गल ु ाबी होंठों को खोलकर मेरा स्वागत ककया, और अपनी जीभ को मेरे मह ूँु में पेल ददया। माूँ के मह
ूँु के
रस में गजब का स्वाद था। हम दोनों एक-दस ू रे के होंठों को मूँह
ु में भरकर चूसते हुये, आपस में जीभ से जीभ
लड़ा रहे थे। माूँ की चूचचयों को अब मैं जोर-जोर से दबाने लगा था और अपने हाथों से उसके माांसल पेट को भी
सहला रहा था। उसने भी अपने हाथों के बीच में मेरे लण्ड को दबोच ललया था और कस-कसकर मरोड़ते हुए, उसे
दबा रही थी। माूँ ने अपना एक पैर मेरी कमर के ऊपर रख ददया था और, अपनी जाांघों के बीच मझ
ु े बार-बार
दबोच रही थी। अब हम दोनों की साांसें तेज चलने लगी थी।
मेरा हाथ अब माूँ की पीठ पर चल रहा था, और वहाां से कफसलते हुए सीधा उसके चूतड़ों पर चल गया। अभी
तक तो मैंने माूँ के मक्खन जैसे गद
ु ाज चत
ू ड़ों पर उतना ध्यान नहीां ददया था, परन्तु अब मेरे हाथ वहीां पर
जाकर चचपक गये थे। ओह्ह… चूतड़ों को हाथों से मसलने का आनांद ही कुछ और है ।
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मोटे -मोटे चत
ू ड़ों के माांस को अपने हाथों में पकड़कर कभी धीरे , कभी जोर से मसलने का अलग ही मजा है।
चूतड़ों को दबाते हुए मैंने अपनी उां गललयों को चूतड़ों के बीच की दरार में डाल ददया, और अपनी उां गललयों से
उसके चूतड़ों के बीच की खाई को धीरे -धीरे सहलाने लगा। मेरी उां गललयाां माूँ की गाण्ड के छे द पर धीरे -धीरे तैर
रही थी। माूँ की गाण्ड का छे द एकदम गरम लग रहा था।
मेरी समझ में तो कुछ आया नहीां, पर जब माूँ ने मेरे हाथों को नहीां हटाया तो मैंने माूँ की गाण्ड के पकपकाते
छे द में अपनी उां गललयाां चलाने की अपने ददल की हसरत परू ी कर ली। और बड़े आराम से धीरे -धीरे करके अपनी
एक उां गली को हल्के-हल्के उसकी गाण्ड के गोल लसकुड़े हुए छे द पर धीरे -धीरे चल रहा था। मेरी उां गली का थोड़ा
सा दहस्सा भी शायद गाण्ड में चला गया था। पर माूँ ने इस पर कोई ध्यान नहीां ददया था। कुछ दे र तक ऐसे ही
गाण्ड के छे द को सहलाता और चत
ू ड़ों को मसलता रहा। मेरा मन ही नहीां भर रहा था।
तभी माूँ ने मझ
ु े अपनी जाांघों के बीच और कसकर दबोच कर मेरे गालों पर एक प्यार भरी थपकी लगाई और
मूँह
ु बबचकाते हुए बोली- “चूनतये, ककतनी दे र तक चूतड़ और गाण्ड से ही खेलता रहे गा, कुछ आगे भी करे गा या
नहीां? चल आ जा, और जरा कफर से चूची को चूस तो…”
मैं माूँ की इस प्यार भरी खझड़की को सन ु कर, अपने हाथों को माूँ के चूतड़ों पर से हटा ललया और म्ु कुराते हुए
माूँ के चेहरे को दे खा और प्यार से उसके गालों पर चम्
ु बन दे कर बोला- “जैसी मेरी माूँ की इच्छा…” और उसकी
एक चूची को अपने हाथों से पकड़कर, दस
ू री चूची से अपना मूँह
ु सटा ददया और ननप्पलों को मूँह
ु में भरकर
चूसने का काम शरू
ु कर ददया।
माूँ ने मेरे लसर को दोनों हाथों से पकड़कर अपनी चचू चयों पर दबा ददया और खूब जोर-जोर से लससकते हुए
बोलने लगी- “ओह्ह… सीस्स्स… चूस, जोर से ननप्पल को काट ले, हरामी। जोर से काट ले मेरी इन चूचचयों को
हाये…” और मेरी उां गली को अपनी बरु में लेने के ललये अपने चत
ू ड़ों को उछालने लगी थी।
51
माूँ के मूँह
ु से कफर से हरामी शब्द सन
ु कर मझ
ु े थोड़ा बरु ा लगा। मैंने अपने मूँह
ु को उसकी चूचचयों पर से हटा
ललया, और उसके पेट को चम ू ते हुए उसकी बरु की तरफ बढ़ गया। चत ू से उां गललयाां ननकालकर मैंने चत
ू की
दोनों फाांकों को पकड़कर फैलाया और जहाां कुछ सेकांड पहले तक मेरी उां गललयाां थीां, उसी जगह पर अपनी जीभ
को नकु कला करके डाल ददया। जीभ को बरु के अांदर ललबललबाते हुए, मैं भगनाशे को अपनी नाक से रगड़ने लगा।
माूँ की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। अब उसने अपने पैरों को परू ा खोल ददया था और मेरे लसर को अपनी बरु पर
दबाती हुई चचल्लाई- “चाट साले, मेरी बरु को चाट… ऐसे ही चाटकर खा जा। एक बार कफर से मेरा पानी ननकाल
दे , हरामी… बरु चाटने में तो तू परू ा उस्ताद ननकला रे । चाट ना अपनी माूँ की बरु को, मैं तझ
ु े चुदाई का बादशाह
बना दां ग
ू ी, मेरे चूत चाटू राजा साले…”
माूँ की बाकी बातें तो मेरा उत्साह बढ़ा रही थी, पर उसके मूँह
ु से अपने ललये गाली सन
ु ने की आदत तो मझ
ु े थी
नहीां। पहली बार माूँ के मूँह
ु से इस तरह से गाली सन
ु रहा था। थोड़ा अजीब सा लग रहा था, पर बदन में एक
तरह की लसहरन भी हो रही थी। मैंने अपने मूँह
ु को माूँ की बरु पर से हटा ददया, और माूँ की ओर दे खने लगा।
माूँ के मजे में बाधा होने पर, उसने अपनी अधखल ु ी आूँखें परू ी खोल दी और मेरी ओर दे खते हुए बोली- “रुक
क्यों गया चनू तये… जल्दी-जल्दी चाट ना, अपने मालपएु को…”
मैंने मूँह
ु बना ललया था।
माूँ मझ
ु े बाहों में भरते हुए बोली- “अरे मेरे चोद ू बेटे, माूँ की गाललयाां क्या तझ
ु े इतनी बरु ी लगती है की तू बरु ा
मानकर रुठ गया…”
52
मैं- “ओह्ह माूँ, क्या कर रही हो दख
ु ता है ना… कफर भी तम
ु मझ
ु े एक बात बताओ की तम
ु ने गाललयाां क्यों दी?”
माूँ- “अरे उल्ल,ू जोश में ऐसा हो जाता है । जब औरत और मदष ज्यादा उत्तेजजत हो जाते हैं ना, तो अनाप-शनाप
बोलने लगते हैं। उसी दौरान मूँह
ु से गाललयाां भी ननकल जाती हैं। इसमें कोई नई बात नहीां है , कफर तू इतना
घबरा क्यों रहा है? तू भी गाली ननकालकर दे ख, तझ
ु े ककतना मजा आयेगा…”
माूँ- “क्यों, अपने दोस्तों के बीच गाललयाां नहीां बकता क्या? जो नखरे कर रहा है …”
माूँ- “वाह रे मेरे शरीफ बेटे, माूँ को घरू -घरू कर दे खेगा, माूँ को नांगा कर दे गा और उसकी चद
ु ाई और चुसाई
करे गा, मगर उसके सामने गाली नहीां दे गा। बड़ी कमाल की शराफत है, तेरी तो…”
मैंने बात टालने की गरज से कहा- “ठीक है मैं कोलशश करूांगा, पर अभी मैं इतने जोश में नहीां हूूँ की गाललयाां
ननकाल सकांू …”
माूँ- “इसका मझ
ु े नहीां पता कक सब लोग ऐसा करते हैं या नहीां, मगर इतना मझ
ु े जरूर पता है कक ऐसा करने में
मझ
ु े बहुत मजा आता है , और शायद मैं इससे भी ज्यादा गांदी बातें करूां और गाललयाां दां ू तो तू उदास मत होना,
और अपना काम जारी रखना। समझना मझ ु े मजा आ रहा है , और एक बात ये भी कक अगर तू चाहे तो तू भी
ऐसा कर सकता है…”
माूँ- “तो मत कर चूनतये, मगर मैं तो करूांगी मादरचोद…” कहकर माूँ ने मेरे लण्ड को जोर से मरोड़ा।
53
माूँ के मूँह
ु से इतनी मोटी गाली सन
ु कर मैं थोड़ा हड़बड़ा गया था। मगर माूँ ने मझ
ु े इसका भी मौका नहीां ददया
और मेरे होंठों को अपने होंठों में भरकर खब
ू जोर-जोर से चस
ू ने लगी। मैं भी माूँ से परू ी तरह से ललपट गया
और खूब जोर-जोर से उसकी चूचचयों को मसलने लगा और ननप्पल खीांचने लगा।
माूँ ने लससकाररयाां लेते हुए मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा- “चूचचयाां मसलने से भी ज्यादा जल्दी, मैं गांदी बातों
से गरम हो जाऊूँगी, मेरे साथ गांदी-गांदी बातें कर ना बेटा?”
माूँ- “साले माूँ की चोदे गा जरूर, मगर उसके साथ इसकी बात नहीां करे गा, चद
ु ाई के काम के वक्त चद
ु ाई कक
बातें करने में क्या बरु ाई है , बे चूनतये…”
जो चीज हम सामान्य जीवन में नहीां करते और हमारे ललये वजजषत होती है , उन्हें बोलने का ये मेरा पहला
अनभ
ु व था। माूँ ने मेरी शैतानी समझ ली। वो समझ गई कक, लौंडा बोल भी रहा है और नाटक भी कर रहा है ।
माूँ ने कहा- “हाूँ हाूँ साले, बोल ना तो तझ
ु े रोक कौन रहा है बोलने से… मगर मादरचोद मैं नहीां तू है, जो अपनी
माूँ को चोदे गा…”
माूँ- “कैसे चोदे गा राजा? माूँ को बता ना कक उसका बेटा उसको कैसे चोदना चाहता है ?”
माूँ- “खाली बरु में लण्ड डालने से चुदाई थोड़े ही हो जाती है । उसके ललये लण्ड को आगे-पीछे भी दहलाना पड़ता
है , गान्डू…”
माूँ- “हाय… हाय। मेरा बेटा तो बड़े जोश में आ गया है, माूँ की बरु चोदने के ललये। बेटीचोद, माूँ की चूत में लौड़ा
डालने में शमष नहीां आयेगी तझ
ु ?
े ”
54
मैं- “चूतमरानी, जब माूँ को कोई शमष नहीां है , तो मैं क्यों शमाषऊूँ? मैं तो बस लौड़ा पेलकर तेरी इस बरु को बरु ी
तरह से चोदना चाहता हूूँ, साली माूँ…” कहकर मैंने माूँ की चत
ू को मठ्
ु ठी में भरकर बरु ी तरह भीांच ददया। मेरे
हाथ में लसलसा रस लग गया।
मेरे द्वारा बरु को भीांचने पर माूँ चीखी और गाली दे ते हुए बोली- “मादरचोद, बेशमष साले, बरु को ऐसे क्यों
दबाता है, क्या समझ रखा है मझ ु ?े ”
मैं- “समझना क्या है , बरु चोदी… तू तो मेरी जान है । दे ख ना तेरी इस बरु में, मैं अपना यही मोटा लौड़ा डालकर
चोदां ग
ू ा। चद
ु वायेगी ना साली? बोल ना, चुदवायेगी ना… खूब गाललयाां भी दां ग
ू ा, गाण्ड तक का जोर लगाकर
चोदां ग
ू ा। हाये रे मेरी चद
ु क्कड़ माूँ, ककतनी मस्त माल है त…
ू सच में कब से तझ
ु े चोदने की तमन्ना थी। हर रोज
सोचता था की तेरी इस मस्तानी बरु में लौड़ा डालकर कचकचा के चोदां ग
ू ा तो, ककतना मजा आयेगा, आज मेरा
सपना सच होगा…”
माूँ- “हाूँ, हाूँ, बहनचोद, कर ललयो ना अपना सपना सच। तेरी माूँ की बरु में गधे का लौड़ा मादरचोद। कैसे अपनी
माूँ को चोदने का सपना दे खता था… दे खो, साले भडुवे को, रण्डी की औलाद, कुनतया के पपल्ले, आ चोद दे , तेरी
गाण्ड में जजतना दम हो उतना दम लगाकर चोद दे , मादरचोद…”
हम दोनों अब परू ी तरह जोश में आ गये थे और एक-दस ू रे से गत्ु थम-गत्ु था होते हुए, एक-दस
ू रे को चांब
ु न कर रहे
थे, और एक-दसू रे के अांगों से खेल रहे थे। कभी मेरे हाथ उसकी चचू चयों को दबाते थे, कभी मैं उसकी बरु को
मठ्
ु ठी में भरकर दबाता था, कभी अपनी उां गललयाां उसकी चत
ू में डालकर खब
ू जोर-जोर से आगे-पीछे करता था।
माूँ भी मेरे होंठ और गालों को चूसते हुए, खूब जोर-जोर से मेरे लण्ड को मसलते हुए, मदु ठया भी रही थी और
मेरे अण्डों से खेल रही थी। माूँ अब मेरे ऊपर आ चक ु ी थी और मैं उसके नीचे दबा हुआ था और उसके चत ू ड़ों
को मसलते हुए उसकी गाण्ड की दरार में उां गली डाल रहा था।
तभी माूँ सीधा होते हुए, मेरे ऊपर बैठ गई और अपनी दोनों जाांघों को मेरी कमर के दोनों तरफ करके मेरी छाती
को चूमने लगी और अपने चूतड़ों को आगे-पपचे करके मेरे लण्ड पर अपनी बरु को रगड़ते हुए जोर-जोर से
लससककयाां लेने लगी और लगभग चचखते हुए बोली- “आज मत छोड़ना बेटे, जम के कूट दे ना मेरी ओखली को,
अपने मस
ु ल से। मेरे इस बबलबबलाते हुए बबल में, अपने साांप को घस
ु ाकर इसकी सारी खुजली लमटा दे ना बेटा।
हाय चल जल्दी से मेरी बरु को चाट तो जरा…” कहकर वो मेरी छाती के ऊपर आकर बैठ गई।
मैंने दे खा की माूँ की चत
ू के गल
ु ाबी होंठ, ठीक मेरी आूँखों के सामने खल
ु े हुए थे। उसकी झाांटों से ढकी
भगनाशा, लाल नजर आ रही थी, और गाण्ड का लसकुड़ हुआ छे द, फैल और लसकुड़ रहा था। उस गल ु ाबी
55
दप
ु दपु ाते हुए चत
ू के छे द पर, रां गहीन पानी सा लगा हुआ था, जो कक रोशनी में चमक रहा था। मेरे मूँह
ु में उस
छे द को दे खकर पानी भर आया था। मैंने अपने प्यासे तड़पते होंठों को, अपनी गरदन उठाकर चत ू की मोटी
फाांकों से लभड़ा ददया। मेरे होंठ अब माूँ के ननचले होंठों से लमल चक
ु े थे।
चूत को मह
ूँु पर रगड़ते हुए बोली- “चूस ले, चूस ले बेटा, हाय हाय मेरे चोद ू सैंया, कहाां था तू अब तक? अगर
पहले पता होता कक तू ऐसा चूत-चाटू है, तो जाने कब की तझ ु े अपनी चूत दे दे ती, और मजे से चद ु वाती। चस
ू ले
बेटा, माूँ की बरु से अब जब भी रस ननकलेगा, तेरे ललये ही ननकलेगा मेरे चोद ू सैंया…”
चूतड़ों को मसलते-मसलते मेरी नजर माूँ के लसकुड़ते-फैलते हुए गाण्ड के छे द पर पड़ी। मेरे मन मैं आया की
क्यों ना इसका स्वाद भी चखा जाये? दे खने से तो माूँ की गाण्ड वैसे भी काफी खब
ू सरू त लग रही थी, जैसे
गल
ु ाब का फूल हो। मैंने अपनी लपलपाती हुई जीभ को उसकी गाण्ड के छे द पर लगा दी, और धीरे -धीरे ऊपर ही
ऊपर लपलपाते हुए चाटने लगा। गाण्ड पर मेरी जीभ का स्पशष पाकर माूँ परू ी तरह से दहल उठी।
माूँ- “ओह्ह… ये क्या कर रहा है … ओह्ह… बड़ा अच्छा लग रहा है रे … कहाां से लसखा ये? तू तो बड़ा कलाकार है ,
रे बेटीचोद। हाय राम, दे खो कैसे मेरी बरु को चाटने के बाद मेरी गाण्ड को चाट रहा है … तझ
ु े मेरी गाण्ड इतनी
अच्छी लग रही है की इसको भी चाट रहा है… ओह्ह… बेटा, सच में गजब का मजा आ रहा है । चाट, चाट ले
परू ी गाण्ड को चाट ले, ओह्ह… ओह्ह… ओओओ ऊईईई…”
56
मैंने परू ी लगन के साथ गाण्ड के छे द पर अपनी जीभ को लगाकर, दोनों हाथों से दोनों चूतड़ों को पकड़कर, छे द
को फैलाया और अपनी नक
ु ीली जीभ को उसमें ठे लने की कोलशश करने लगा। माूँ को मेरे इस काम में बड़ी
मस्ती आ रही थी, और उसने खुद अपने हाथों को अपने चूतड़ों पर लेजाकर गाण्ड के छे द को फैला ददया और
मझ
ु े जीभ पेलने के ललये उत्सादहत करने लगी।
माूँ- “हाय रे … सीईईई… पेल दे जीभ को, जैसे मेरी बरु में पेला था, वैसे ही गाण्ड के छे द में भी पेल दे , और पेल
के खब
ू चाट मेरी गाण्ड को। हाय दै य्या मर गई रे … ओह्ह… इतना मजा तो कभी नहीां आया था, ओह्ह… दे खो
कैसे गाण्ड चाट रहा है… चाट बेटा चाट, और जोर से चाट, मादरचोद, साला गान्डू…”
माूँ के ललये अब बरदा्त करना शायद मजु ्कल हो रहा था। उसने मेरे लसर को अपनी बरु से अलग करते हुए
कहा- “अब छोड़ बदहनचोद, कफर से चूसकर ही झाड़ दे गा क्या? अब तो असली मजा लट ू ने का टाईम आ गया
है । हाये बेटा, राजा, अब चल मैं तझ
ु े जन्नत की सैर कराती हूूँ। अब अपनी माूँ की चुदाई करने का मजा लट
ू
मेरे राजा। चल, मझ
ु े नीचे उतरने दे , साले…”
मैंने धक्का मार ददया, पर ये क्या लण्ड तो कफसलकर बरु के बाहर ही रगड़ खा रहा था। मैंने दब
ु ारा कोलशश की,
कफर वही नतीजा। कफर लण्ड कफसल के बाहर।
अब बरु के अांदर का गल ु ाबी छे द नजर आने लगा था। बरु एकदम पानी से भीगी हुई लग रही थी। बरु चचदोर
कर माूँ बोली- “ले, मैंने तेरे ललये अपनी चत
ू को फैला ददया है । अब आराम से अपने लण्ड को ठीक ननशाने पर
लगाकर पेल दे …”
57
माूँ ने कहा- “शाबाश, ऐसे ही। सप
ु ाड़ा चला गया, अब परू ा घस
ु ा दे , मार धक्का कसकर, और चोद डाल मेरी बरु
को। बहुत खज
ु ली मची हुई है …”
मैंने अपनी गाण्ड तक का जोर लगाकर धक्का मार ददया, पर मेरे लण्ड में जोरो की, ददष की लहर उठी और मैंने
चीखते हुए झट से लण्ड को बाहर ननकाल ललया।
माूँ ने पछ
ू ा- “क्या हुआ, चचल्लाता क्यों है ?”
माूँ उठकर बैठ गई और मेरी तरफ दे खते हुए बोली- “दे खूां तो कहाां ददष है?”
मैंने लण्ड ददखाते हुए कहा- “दे खो ना, जैसे ही चूत में घस
ु ाया था, वैसे ही ददष करने लगा…”
माूँ कुछ दे र तक दे खती रही, कफर हूँसने लगी और बोली- “साले अनाडी चद
ु क्कड़, चला है माूँ को चोदने। अबे,
अभी तक तो तेरे सप
ु ाड़े की चमड़ी ढां ग से उल्टी ही नहीां है , तो ददष नहीां होगा तो और क्या होगा? चला है माूँ
को चोदने। चल कोई बात नहीां, मझ
ु े इस बात का ध्यान रखना चादहए था। मेरी गलती है , मैंने सोचा तन
ू े खूब
मठ
ु मारी होगी तो, चमड़ी अपने आप उलटने लगी होगी। मगर तेरे इस गल
ु ाबी सप
ु ाड़े की शकल दे खकर ही मझ
ु े
समझ जाना चादहए था की तन
ू े तो अभी तक ढां ग से मठ
ु भी नहीां मारी है । चल नीचे लेट, अब मझ
ु े ही कुछ
करना पड़ेगा लगता है…”
मैंने तो अब तक यही सन
ु ा था कक, लड़का लड़की के ऊपर चढ़कर चोदता है । मगर जब माूँ ने मझ
ु े नीचे लेटने
के ललये कहा तो मैं सोच में पड़ गया और माूँ से पछ
ू ा- “नीचे क्यों लेटना है माूँ… क्या अब चद
ु ाई नहीां होगी?”
मझ
ु े लग रहा था कक, माूँ कफर से मेरा मठ
ु मार दे गी।
माूँ ने हूँसते हुए कहा- “नहीां बे चूनतये, चुदाई तो होगी ही। जजतनी तझु े चोदने की आग लगी है , मझ
ु े भी चुदवाने
की उतनी ही आग लगी है । चद ु ाई तो होगी ही। तझु े तो अभी रात भर मेरी बरु का बाजा बजाना है, मेरे राजा।
तू नीचे लेट अब उल्टी तरफ से चद
ु ाई होगी…”
मैं नीचे लेट तो गया पर अब भी मैं सोच रहा था कक, माूँ कैसे करे गी?
माूँ ने जब मेरे चेहरे पर दहचककचाहट के भाव दे खे तो, वो मेरे गाल पर एक प्यार भरा तमाचा लगाते हुए बोली-
“सोच क्या रहा है, मादरचोद… अभी चप ु चाप तमाशा दे ख, कफर बताना कक कैसा मजा आता है?” कहकर माूँ ने
58
मेरी कमर के दोनों तरफ, अपनी दोनों टाांगें कर दी और अपनी बरु को ठीक मेरे लौड़े के सामने लाकर, मेरे लण्ड
को एक हाथ से पकड़ा और सप
ु ाड़े को सीधा अपनी चत
ू के गल
ु ाबी मूँह
ु पर लगा ददया।
सप
ु ाड़े को बरु के गल
ु ाबी मह
ूँु पर लगाकर, वो मेरे लण्ड को अपने हाथों से आगे-पीछे करके अपनी बरु की दरार
पर रगड़ने लगी। उसकी चत ू से ननकला हुआ पानी मेरे सप ु ाड़े पर लग रहा था और मझ ु े बहुत मजा आ रहा था।
मेरी साांसें उस अगले पल के इन्तजार में रुकी हुई थी, जब मेरा लण्ड उसकी चूत में घसु ता। मैं दम सधे
इन्तजार कर रहा था तभी माूँ ने अपनी चत
ू की फाांक को एक हाथ से फैलाया और मेरे लण्ड के सप
ु ाड़े को सीधा
बरु के गल
ु ाबी मूँह
ु पर लगाकर, ऊपर से हल्का सा जोर लगाया। मेरे लण्ड का सप
ु ाड़ा उसकी चूत की फाांकों के
बीच में समा गया। कफर माूँ ने मेरी छाती पर अपने हाथों को जमाया और ऊपर से एक हल्का सा धक्का ददया।
मेरे लण्ड का थोड़ा सा और भाग उसकी चत
ू में समा गया।
पर माूँ ने इस ओर कोई ध्यान ही नहीां ददया और उतने ही जोर से लण्ड पर आगे-पीछे करते हुए, धक्का मारते
हुए बोली- “बेटा, चद
ु ाई कोई आसान काम नहीां है । लड़की भी जब पहली बार चद
ु ती है तो, उसको भी ददष होता
है । और तेरा ददष तो उसके ददष के सामने कुछ भी नहीां है । जैसे उसकी बरु की सील टूटती है, वैसे ही तेरे लण्ड
की भी आज सील टूटी है । थोड़ी दे र तक आराम से लेटा रह, कफर दे ख तझ
ु े कैसा मजा आता है…”
माूँ, अब उतने लण्ड को ही बरु में लेकर, धीरे -धीरे धक्के लगा रही थी। वो अपनी गाण्ड को उछाल-उछाल के
धक्के पर धक्का मारे जा रही थी।
कफर लससकारते हुए बोली- “सीईईई… हाय दै य्या… ककतना तगड़ा लौड़ा है । जैसे कक गरम लोहे का रोड हो। एकदम
सीधा बरु की ददवारों को रगड़ मार रहा है । मेरे जैसी चुदी हुई औरत की बरु में जब ये इतना कसा हुआ है , तो
जवान लौंड़डयों की चूतों को तो ये फाड़ के ही रख दे गा। मजा आ गया, ले साले, और घस
ु ा लौड़ा, और घस
ु ा…”
कहकर तेजी से तीन-चार धक्के मार ददये।
माूँ के द्वारा तेजी से लगाये गये इन धक्कों से मेरा परू ा का परू ा लण्ड उसकी चत
ू के अांदर चला गया। माूँ ने
लससकारते हुए धक्के लगाना जारी रखा और अपने एक हाथ को लौड़े की जड़ के पास लेजाकर दे खने लगी की
परू ा लण्ड अांदर गया है की नहीां। जब उसने दे खा कक परू ा का परू ा लौड़ा उसकी बरु में घस
ु चुका है, तब उसने
अपने चतू ड़ों को उछालते हुए एक तेज धक्का मरा और मेरे होंठों का चम्
ु मा लेकर बोली- “कैसा लग रहा है,
बेटा… अब तो ददष नहीां हो रहा है ना?”
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मैं- “नहीां माूँ, अब ददष नहीां हो रहा है । दे खो ना, मेरा परू ा लौड़ा तम्
ु हारी बरु के अांदर चला गया है …”
माूँ- “हाूँ बेटा, अब ददष नहीां होगा, अब तो बस मजा ही मजा है । मेरी बरु के पानी के गीलेपन से तेरी चमड़ी
उलटने में अब आसानी हो रही है , इसललये तझ
ु े अब ददष नहीां हो रहा होगा, बजल्क मजा आ रहा होगा। क्यों बेटा,
बोल ना, मजा आ रहा है या नहीां, अपनी माूँ की बरु में लौड़ा पेलकर? अब तो तझ
ु े पता चल रहा होगा की
चद
ु ाई क्या होती है? बेटा ले मजा चद
ु ाई का और बता की तझ
ु े कैसा लग रहा है , माूँ की चत
ू में लौड़ा धांसाने
में …”
मैं- “हाय माूँ, सच में गजब का मजा आ रहा है । ओह्ह… माूँ, तम् ु हारी चत
ू ककतनी कसी हुई है । मेरा लौड़ा तो
इसमें बड़ी मजु ्कल से घस ु ा है , जबकी मैंने सन
ु ा था की शादीशद
ु ा औरतों की चूत ढीली हो जाती है…”
माूँ- “बेटा, ये तेरी माूँ की चूत है , ये ढीली होने वाली चूत नहीां है …”
मैंने माूँ के आदे श पर उसकी चूचचयों को अपने हाथों में थाम ललया, और उसकी एक चूची को खीांचकर उसकी
ननप्पल से अपने मूँह
ु को सटाकर चूसते हुए, दस
ू री चच
ू ी को खूब जोर-जोर से मसलने लगा। माूँ अब अपनी
गाण्ड को परू ा उछाल-उछालकर, मेरे लण्ड को अपनी गरम बरु में पेलवा रही थी। उसकी चत
ू एकदम अांगीठी की
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तरह से गरम हो चुकी थी, और खूब पानी छोड़ रही थी। मेरा लण्ड उसकी चूत के पानी से भीगकर सटासट
उसकी बरु के अांदर-बाहर हो रहा था।
माूँ के मूँह
ु से गाललयों की बौछार हो रही थी। वो बोल रही थी- “ईस्स्स्स… मादरचोद, आ चोद मेरी बरु को दम
लगाकर। हाये ककतना मजा आ रहा है… तेरे बाप से अब कुछ नहीां होता रे , अब तो तू ही मेरी चूत की आग को
ठां डी करना, मैं तझ
ु े चद
ु ाई का शहनशाह बना दां ग
ू ी, तेरे उस भड़ुवे, मादरचोद बाप को तो छूने भी नहीां दां ग
ू ी अपनी
बरु । तू चोददयो मेरी बरु को, और मेरी आग ठण्डी कररयो। कहाां था रे , बहनचोद अब तक त? ू अब तक तो मैं
तेरे लौड़े का ककतना पानी पी चुकी होती। चोद रे लौंडे चोद, अपनी गाण्ड तक का जोर लगा दे चोदने में । आ
जा, आज अगर तन
ू े मझ
ु े खुश कर ददया, तो कफर मैं तेरी गल
ु ाम हो जाऊूँगी…”
मैं माूँ की चचू चयों को मसलते हुए, अपनी गाण्ड को नीचे से उछालता जा रहा था। मेरा लण्ड उसकी कसी हुई बरु
में गप-गप, फच-फच की आवाज करता हुआ अांदर-बाहर हो रहा था। हम दोनों की साांसें तेज हो गई थी, और
कमरे में चद
ु ाई की मादक आवाज गूँज
ू रही थी। दोनों के बदन से पशीना चू रहा था, और साांसों की गरमी एक-
दस
ू रे के बदन को महका रही थी।
माूँ अब शायद थक चुकी थी। उसके धक्के मारने की रफतार अब थोड़ी धीमी हो गई थी, और अब वो हाूँफने भी
लगी थी। थोड़ी दे र तक हाूँफते हुए वो धक्का लगाती रही, कफर अचानक से पस्त होकर मेरे बदन के ऊपर चगर
गई और बोली- “ओह्ह… मैं तो थक गई रे … इतने में आम तौर पर मेरा पानी तो ननकल जाता है , पर आज नये
लण्ड के जोश में मेरा पानी भी नहीां ननकल रहा। ओह्ह… मजा आ गया। आज से पहले ऐसी चुदाई कभी नहीां
की, पर थक गई रे मैं तो। अब तो तझ
ु े ही मेरे ऊपर चढ़कर धक्का मारना होगा, तभी चद
ु ाई हो पायेगी, साले…”
कहकर वो अपने परू े शरीर का भार, मेरे बदन पर दे कर लेट गई।
मेरी साांसें भी तेज चल रही थी, मगर लण्ड अब भी खड़ा था। ददल में चद
ु ाई की लालच बरकरार थी, और अब
तो मैंने चुदाई भी सीख ली थी। मैंने धीरे से माूँ के चत
ू ड़ों को पकड़कर नीचे से ही धक्का लगाने का प्रयास
ककया, और दो-तीन छोटे -छोटे धक्के मारे । मगर क्योंकक माूँ थोड़ा थक गई थी, इसललये वो उसी तरह से लेटी
रही। माूँ के भारी शरीर के कारण, मैं उतने जोर के धक्के नहीां लगा पाया, जजतना लगा ााकता था। मैंने माूँ को
बाांहो में भर ललया, और उसके कान के पास अपने महूँु को लेजाकर फुसफुसाते हुए बोला- “ओह्ह… माूँ, जल्दी कर
ना, और धक्का मार ना… अब नहीां रहा जा रहा है, जल्दी से मारो ना, माूँ…”
मैं- “पर माूँ मेरा लण्ड तो लगता है , फट जायेगा। मेरा जी कर रहा है की खूब जोर-जोर से धक्के लगाऊूँ…”
माूँ- “तो मार ना, मैंने कब मना ककया है? आज मेरे ऊपर चढ़कर खूब जोर-जोर से चुदाई कर दे अपनी माूँ की।
बजा दे बाजा उसकी बरु का…” कहकर माूँ धीरे से मेरे ऊपर से उतर गई।
उसके उतरने पर मेरा लण्ड भी कफसलकर उसकी चूत से बाहर ननकल गया था। मगर माूँ ने कुछ नहीां कहा और
बगल में लेटकर अपनी दोनों जाांघों को फैला ददया। मेरा लण्ड एकदम रस से भीगा हुआ था, और उसका सप ु ाड़ा
लाल रां ग का, ककसी पहाड़ी आलू के जैसा लग रहा था। मैंने अपने लण्ड को पकड़ा और सीधा अपनी माूँ की
61
जाांघों के बीच चला गया। उसकी जाांघों के बीच बैठकर, मैं उसकी चूत को गौर से दे खने लगा। उसकी चूत फूल-
पपचक रही थी, और चत ू का मूँह
ु अभी थोड़ा सा खलु ा हुआ लग रहा था। बरु का गल
ु ाबी छे द अांदर से झाांक रहा
था, और पानी से भीगा हुआ महसस ू हो रहा था। मैं कुछ दे र तक अपलक, उसकी चूत की सद ुां रता को ननहारता
रहा।
माूँ ने मझ
ु े जब कुछ करने की बजाये केवल घरू ते हुए दे खा तो, वो लससकाते हुए बोली- “क्या कर रहा है , जल्दी
से डाल ना चत ू में लौड़े को। ऐसे खड़े-खड़े खाली घरू ता ही रहे गा क्या? ककतना दे खेगा बरु को? अबे उल्ल,ू दे खने
से ज्यादा मजा चोदने में है। जल्दी से अपना मस
ु ल डाल दे , मेरे चोद ू भतार। अब नाटक मत चोद…”
माूँ ने इतना कहकर मेरे लण्ड को अपने हाथों में पकड़ ललया और बोली- “ठहर, मैं लगाती हूूँ, साले…” और मेरे
लण्ड के सप ु ाड़े को बरु के खुले छे द पर नघसने लगी और बोली- “बरु का पानी लग जायेगा तो और चचकना हो
जायेगा, समझा… कफर आराम से चला जायेगा…”
मैं माूँ के ऊपर झुक गया, अपने आपको परू ी तरह से तैय्यार कर ललया, अपने जीवन की पहली चद
ु ाई के ललये।
माूँ ने मेरे लण्ड को चूत के छे द पर लगाकर जस्थर करके बोली- “हाूँ, अब मारो धक्का और पेल दो चूत में…”
मैंने अपनी ताकत को समेटा और कसकर एक जोरदार धक्का लगा ददया। मेरे लण्ड का सप
ु ाड़ा तो पहले से
भीगा हुआ था, इसललये वो सटाक से अांदर चला गया, उसके साथ साथ मेरे लण्ड का आधे से अचधक भाग चत
ू
की ददवारों को रगड़ता हुआ अांदर घस
ु गया।
ये सब अचानक तो नहीां था, मगर कफर भी माूँ ने सोचा नहीां था की मैं इतनी जोर से धक्का लगा दां ग
ू ा। इसललये
वो चौंक गई, और उसके मह
ूँु से एक घट
ु ी-घट
ु ी सी चीख ननकल गई। मगर मैंने तभी दो-तीन और जोर के झटके
लगा ददये, और मेरा लण्ड परू ा का परू ा अांदर घस
ु गया।
परू ा लौड़ा घस
ु कर जैसे ही मैं जस्थर हुआ, माूँ के मूँह
ु से गाललयों की बौछार ननकल पड़ी- “साला, हरामी। क्या
समझ रखा है रे , कमीने? ऐसे कहीां धक्का मरा जाता है … साांड़ की तरह से घस ु ा ददया, सीधा एक ही बार में ।
मादरचोद, धीरे -धीरे करना नहीां आता है तझ
ु ?
े साले कमीने, परू ी चत
ू नछल गई, मेरी। बाप है की घस
ु ाना ही नहीां
जानता और बेटा है की घस
ु ाता है तो, ऐसे घस
ु ाता है, जैसे की मेरी चूत फाड़ने के ललये घस
ु ा रहा हो, हरामी,
कहीां का…”
कुछ दे र तक ऐसे ही रहने के बाद शायद माूँ का ददष कुछ कुम हो गया, और वो भी अब नीचे से अपनी गाण्ड
उचकाने लगी और मेरे बालों में हाथ फेरते हुए मेरे लसर को चूमने लगी। मैं परू ी तरह से जस्थर था, और चचू चयों
को चूसने और दबाने में लगा हुआ था।
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माूँ ने कहा- “हाय बेटा, अब धक्का लगा और चोदना शरू
ु कर दे , अब दे र मत कर। तेरी माूँ की प्यासी बरु , अब
तेरे लौड़े का पानी पीना चाहती है …”
मैंने दोनों चूचचयों को थाम ललया, और धीरे -धीरे अपनी गाण्ड उछालने लगा। मेरा लौड़ा माूँ की पननयाई हुई चूत
के अांदर से बाहर ननकलता, और कफर घस ु जाता था। माूँ ने अब नीचे से अपने चूतड़ उछालना शरू ु कर ददया
था। दस-बारह झटके मारने के बाद ही बरु से गच-गच, फच-फच की आवाजें आनी शरू
ु हो गई थी। ये इस बात
को बतला रही थी की उसकी चत
ू अब पानी छोड़ने लगी है , और अब उसे भी मजा आना शरू
ु हो गया है ।
माूँ हाूँफते हुए बड़बड़ाने लगी- “हाय… मारो, और जोर से मारो राजा। चोदो मेरी चत ू को, चोद-चोद के भोसड़ा बना
दो, बेटा। कैसा लग रहा है , बेटा चोदने में? मजा आ रहा है , या नहीां? मेरी बरु कैसी लग रही है तझ
ु ,े बता
राजा… अपनी माूँ की बरु चोदने में मजा आ रहा है, या नहीां? परू ा लौड़ा, जड़ तक पेलकर चोदो, राजा और कस-
कसकर धक्के मारकर पक्का मादरचोद बन जाओ। बता ना राजा बेटा, कैसा लग रहा है माूँ की चूत में लौड़ा
डालने में ?”
मैंने धक्का लगाते हुए कहा- “हाय… माूँ, बहुत मजा आ रहा है । बहुत कसी हुई है तम्
ु हारी बरु तो। मेरा लण्ड तो
एकदम फूँस-फूँसकर जा रहा है तेरी बरु में । ऐसा लग रहा है जैसे ककसी बोतल में लकड़ी का ढक्कन फूँसा रहा
हूूँ। हाय, क्या सच में मेरा बापू तझ
ु े चोदता नहीां था, या कफर तम
ु उसको चोदने नहीां दे ती थी? तम्
ु हारी चूत
इतनी कसी हुई, कैसे है माूँ? जबकी मेरे दोस्त कहते थे कक, उमर के साथ औरतों की चूत ढीली हो जाती है।
हाये, तम्
ु हारी तो एकदम कसी हुई है …”
इस पर माूँ ने, अपने पैरों का लशकांजा और कसते हुए, दाांत पपसते हुए कहा- “साल्ला, तेरा बाप तो गान्डू है । वो
क्या खाकर चोदे गा मझु …
े उस गान्डू ने तो मझ
ु ,े ना जाने कब से चोदना छोड़ा हुआ है । पर मैं ककसी तरह से
अपनी चूत की खुजली को अांदर ही दबा लेती थी। क्या करती, ककससे चुदवाती? कफर जजसके पास चुदवाने जाती,
वो कहीां मझ
ु े सांतष्ु ट नहीां कर पाता तो क्या होता? बदनामी अलग से होती, और मजा भी नहीां आता। तेरा
हचथयार जब दे खा तो लग गया की तू ना केवल मझ
ु े सांतष्ु ट कर पायेगा बल्की तेरे से चुदवाने से बदनामी भी
नहीां होगी। और तू भी तो मेरी चूत का प्यासा है, कफर अपने बेटे से चुदवाने का मजा ही कुछ और है । जब
सोचकर इतना मजा आ रहा था, तो मैंने सोच की क्यों ना चद
ु वाकर दे ख ललया जाये…”
मैं- “हाय… माूँ, तो कफर कैसा लग रहा है अपने बेटे से चुदवाने में? मजा आ रहा है ना, मेरा लौड़ा अपनी चूत में
लेकर? बोल ना बरु मरानी, साल्ली, मेरा लौड़ा तझ
ु े मजा दे रहा है, या नहीां?”
माूँ- “हाय… गजब का मजा आ रहा है, राज्जा। तेरा लौड़ा तो मेरी चत
ू की जड़ तक टकरा रहा है, और मेरी चत
ू
की दीवारों को मसल रहा है और मेरी नाभी तक पहुूँचता जा रहा है । तू बहुत सख
ु दे रहा है, अपनी माूँ को।
मार, कसकर मार धक्का, बेटीचोद, चोद ले अपनी मैया की चूत को, और इसको दो फाांक कर दे , मादरचोद…”
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मैं- “हाय… जब चद
ु वाने में इतना मजा आ रहा है , और चुदवाने का इतना मन था, तो कफर सोते वक्त इतना
नाटक क्यों कर रही थी? जब मैं तझ
ु े नांगी होकर ददखाने को बोल रहा था…”
माूँ- “हाय… रे , मेरे भोलरू ाम। इतना भी नहीां समझता क्या? इसको कहते हैं नखरा। औरतें दो तरह का
नछनालपना ददखा सकती हैं। या तो सीधा तेरा लण्ड पकड़कर कहती की चोद मझ
ु ,े या कफर धीरे -धीरे तझ
ु े तड़पा-
तड़पाकर एक-एक चीज ददखाती, और तब तड़पा-तड़पाकर चुदवाती। मझ
ु े सीधे ही चुदाई में मजा नहीां आता। मैं
तो खब
ू खेल-खेलकर चद
ु वाना चाहती थी। चक्की जजतनी धीरे चलती है , उतना ही महीन पीसती है , साले।
इसललये मैंने थोड़ा सा नछनालपन ददखाया था, समझा। अब बातें चोदना बांद कर और लगा जोर-जोर से धक्का,
और चोद मेरी बरु को मादरचोद, तेरी माूँ की चूत में डांडा डाल,ूां बहनचोद मार जोर से और बकचोदी बांद कर…”
मैं- “ठीक है, मेरी नछनाल माां। अब तो मैं भी परू ा सीख गया हूूँ। दे ख अब मैं कैसे चोदता हूूँ, तेरी इस मस्तानी
चूत को, और ककतना मजा दे ता हूूँ तझ ु े। दे ख साल्ली बरु चोदी, कफर ना बोलना की बेटे ने ठीक से चोदा नहीां।
रण्डी, जजतना तन
ू े मझ
ु े लसखाया है, मैं उससे भी कहीां ज्यादा मजा दां ग
ू ा तझ
ु ,े साली मादरचोद…”
मैं अब परू े जोश के साथ धक्का मारने लगा था, और मेरा परू ा लण्ड सप
ु ाड़े तक ननकलकर बाहर आ जाता था,
कफर सीधा सरसराते हुए गचाक से अांदर, माूँ की चूत की गहराईयों में समा जाता था। लण्ड की चमड़ी तो, अब
शायद परू ी तरह से उलट चक
ु ी थी, और चदु ाई में अब कोई ददक्कत नहीां आ रही थी। माूँ की चूत एकदम से
गरम भठ्ठी की तरह तप रही थी, और मेरे लण्ड को सटासट लील रही थी। मझ
ु े ऐसा लग रहा था, जैसे मैं
जन्नत की सैर कर रहा हूूँ। मेरी गाण्ड पर माूँ का हाथ था, और वो ऊपर से दबाते हुए, मझ ु े अपनी चूत पर दबा
रही थी और साथ में नीचे गाण्ड उछालकर, मेरे लौड़े को अपनी चत ू में ले रही थी। बरु के होंठों को मसलते हुए,
मेरा लण्ड सीधा बरु की जड़ से टकराता था, और कफर उतनी ही तेज गती से बाहर आकर कफर घस
ु जाता था।
माूँ ने अपनी तेज चलती साांसों के बीच बड़बड़ाते हुए, मेरा उत्साह बढ़ाया- “ओह्ह… ओओओ, सीईई… चोदो, और
जोर से पेलो, अपना डांडा, घम
ु ा-घम
ु ा के डालो राज्ज्जा, स्स्स्सी… अब तो बस अपने रस से बझ
ु ा दे , मेरी चत
ू की
प्यास को। चोद दे मझ
ु ,े मादरचोद, साल्ले मेरे सैंया, ऐसे ही धक्का मारे जा, ऐसे ही चोदकर मझ
ु े ठण्डा कर दे ,
तेरे डांडे से ही ठण्डी होगी, तेरी माूँ… पांखे से ठण्डी होनी वाली नहीां हूूँ मैं, तेरी माूँ को तो तेरा मोटा, मस
ु लण्ड ही
चादहये, जो कक उसकी बरु को दो पांखा करके, उसकी चत
ू के अांदर की ज्वाला को ठण्डा कर दे । मार साले
बहनचोद, तेरी बहन की गाण्ड में लण्ड डाल,ूां जोर से मार ना, बेटीचोद, गान्डू , हाये रे आज से तू ही मेरा भतार
है , तू ही मेरा सैंया और तू ही मेरा चोद ू है रे …”
मैं- “हाय… ले साल्ली बरु चोदी और ले, और ले मेरे लण्ड को अपनी मस्तानी चूत में , ले ना नछनाल, खा जा मेरे
लौड़े को अपनी बरु से, परू ा लण्ड खा जा साली बेटाचोदी, माूँ… हाये रे मेरी चद
ु क्कड़ मैया, कहाां से सीखा है, तन
ू े
इतना मजा दे ना, ओह्ह… मेरा तो जनम सफल हो गया रे … हाये साली और ले…”
माूँ- “दे , और कस-कसकर दे बेटा, इसी लण्ड के ललये तो मैं इतनी प्यासी थी। ऐसे ही लण्ड से चद
ु वाने की चाहत
को पाले हुए थी, मैं मन में ना जाने कब से। आज मेरी तमन्ना परू ी हो गई। आने दे तेरे उस भड़ुए बाप को।
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अगर कभी हाथ भी लगाया, मेरे इस बदन को तो, साले की गाण्ड पर चार लात मारकर घर से ननकाल दां ग
ू ी।
साला मादरचोद, वो क्या जानेगा चोदना। अभी यहाां होता तो ददखाती की चोदना ककसको कहते हैं? तू लगा रह
बेटा, चोद के मेरी चूत को मथ दे , और इसमें से अपने ललये मक्खन ननकाल ले, मेरे चुदक्कड़ बालम…”
अब तो बस आांधी आये या तफ ू ान, कोई भी हमें नहीां रोक सकता था। हम दोनों अब अपने चरम पर पहुूँच चुके
थे, और चुदाई की रफतार में कोई कमी नहीां चाहते थे। चाहते थे तो बस इतना की कैसे भी एक-दस
ू रे के बदन
में समा जायें, और मार-मार के चोद-चोद के एक-दस
ू रे के लण्ड और चत
ू का भताष बना दें ।
माूँ लससकते हुए बोली- “हाय राजा ऐसे ही… मेरा ननकलने वाला है , मारता रह धक्का, धीरे मत कररयो, ऐसे ही
मादरचोद, अब ननकल जायेगा मेरा, सीईईई… ओओओ… आअह्ह बेटीचोद मारे जा मादरचोद, ननकल जायेगा
साल्ले, मेरा ननकल रहा है मादरचोद, चोद कसकर, और जोर-जोर से मार, गान्डू… चोद डाल लमटा दे खज
ु ली,
चोद, चोद जोर-जोर से, तेरी माूँ की बरु में गधे का लौड़ा डाल, चोद ना साले और मारे जा, ननकला रे मेरा तो
ननकला, झड़ी रे , मैं तो झड़ीऽऽऽ…” कहकर माूँ ने मेरे कांधों पर अपने दाांत गड़ा ददये।
मेरा भी अब ननकलने वाला था और मैं भी जोर-जोर से धक्का लगाते हुए चोदने लगा, और गाललयाां बकते हुए
झड़ने लगा- “ओह्ह… साल्ली मेरा भी ननकल रहा है रे , मादरचोद ननकल रहा है मेरा, ओह्ह… रण्डी, नछनाल
साली, तन
ू े तो आज जन्नत की सैर करा दी रे , ओह्ह… गया मैं तो, ओह्ह… चद
ु ै ल साल्ली, तेरी बरु में मेरा पानी
ननकल रहा है रे … ले पी ले अपनी चूत से मेरे लौड़े के पानी को पी ले और ननगल जा मेरे लौड़े को परू ा का परू ा,
बरु मरानी, चूतमरानी, बरु चोदी, हाये रे रण्डी ननकल गया रे मेरा तो परू ा…” कहकर मैं माूँ के ऊपर लेट गया।
एक दस
ू रे से चचपके हुए कब आूँख लगी, कब मेरा लण्ड उसकी चूत से बाहर ननकल गया, कब हम दोनों सो गये
इसका पता हमें नहीां लगा। सब
ु ह जब सरू ज की तेज रोशनी आूँखों पर पड़ी तो…
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