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भाई बहन का अनोखा प्यार

मे रा नाम सागर है और मे री उमर इस वक़्त 35 साल है . ये कहानी है कि कैसे मैं और मे री फॅमिली इन्से स्ट से क्स
से आशना हव
ू े , जै से जै से कहानी आगे बढती जाये गी मैं आप लोगों से अपनी फॅमिली का तारूफ़ करवाता जाऊंगा.

ये सब जब शु रू हुआ उस वक़्त मे री उमर 19 साल थी. मैं से क्स के मामले में बिल्कुल अनाड़ी था. 24 घं टे मे रे ज़हन में
सिर्फ से क्स भरा रहता था. मैं हर वक़्त से क्स मै गजीन्स की तलाश में रहता. हालां कि सिर्फ ब्रा पॅ न्टी पे हनी लड़की
की तस्वीर भी मे रे लिये बहुत थी मास्टरबेशन करने के लिए. एक दिन मु झे मे रे दोस्त ने एक CD दी. मैं CD ले कर घर
आया और हमे शा की तरह कंप्यूटर इस्ते माल में था और मैं ने शदीद झुंझलाहट में अपनी ज़िन्दगी को कोसा की मे रे
इतने सिबलिं ग्स ना ही होते तो अच्छा था. कभी कोई प्राइवे सी ही नहीं मिलती यहाँ किसी को, मैं ने CD अपने
कॉलेज बै ग मैं छुपा दी और रात के इन्तज़ार में दिन काटने लगा. रात को जब सब सोने चले गए तो मैं ने CD निकली
और स्टडी रूम की तरफ चल दिया. स्टडी रूम में किसी को ना पा कर मु झे कुछ इत्मिनान हुआ और मैं ने मूवी दे खना
शु रू की. ये एक आम पोर्न मूवी थी जिसमें कपल्स को चु दाई करते दिखाया गया था, मैं ने अपने 7.5 इं च लं ड को अपने
शॉर्ट से बाहर निकला और मूवी दे खते दे खते अपने लं ड को से हलाने लगा. अचानक ही मे रा छोटा भाई बिलाल ( जो
उस वक़्त 16 साल का था ) रूम में दाखिल हुआ. मैं मूवी दे खने और लं ड को से हलाने में इतना खो सा गया था की मैं
बिलाल की आहट को महसूस ही नहीं कर सका, जब तक की उसने चिल्ला कर है रतज़दा आवाज़ में पु कारा

" भाईजान ये क्या हो रहा है " मे री हालत खौफ से तक़रीबन मरने वाली हो गई और मैं ने फ़ौरन अपने लं ड को छुपाने
की कोशिश की. बिलाल कुछ दे र खामोश खड़ा कुछ सोचता रहा और फिर कहने लगा " तो आप भी ये सब करते है ,
मैं तो समझता था सिर्फ मैं ही ऐसा हॅ ं ू ". मैं उस वक़्त कुछ कन्फ्यूज्ड सा था ले किन मैं ने दे खा की बिलाल ने इस बात
को इतनी एहमीयत नहीं दी है तो मैं ने झें पति मु स्कराहट से बिलाल को दे खा और कहा, " यार सभी करते है . ये
ने चुरल है ."

बिलाल ने पु छा " भाई आप ने ये मूवी कहाँ से ली है . " क्योंकि उस वक़्त ऐसी मूवीज मिलना बहुत मु श्किल होती थी
स्पे शली हमारे एरिया में . मैं ने कहा "यार नईम से ली है " ( नईम मे रा दोस्त था ) बिलाल ने हीचकिचाते हव
ू े कहा
"भाईजान मैं भी दे खं ग
ू ा " और फिर मु झे कुछ सोचता दे ख कर फ़ौरन ही बोला " भाईजान प्लीज दे खने दो ना " मैं ने
मु स्कुरा कर बिलाल को दे खा और कहा " चल जा कुर्सी ले आ और बै ठ जा यहाँ पर " वह खु श होता हुआ चे यर लाकर
मे रे साथ ही बै ठ गया. हमने पूरी मूवी साथ दे खी ले किन मैं मु ठ ( मास्टरबेशन ) नहीं मार सका क्योंकी मे रा छोटा
भाई मे रे साथ था. मूवी के बाद हम अपने अपने बिस्तर पे चले गए जो हमारे मु श्तर्का बे ड़ रूम में थे . हमने ये डीसाइड
किया की हम में से जिसको भी ऐसी कोई मूवी मिली तो हम साथ दे खा करें गे . इस सहमती से हम दोनों को ही
फ़ायदा हुआ की हम कभी भी मूवी दे ख सकते थे कंप्यूटर ज़्यादा तर हम दोनों की ही इस्ते माल में रहता था. हमारी
बहनें कंप्यूटर में इतनी इं ट्रेस्टे ड नहीं थी.

हमें एक ही मसला था साथ फिल्म दे खने में की हम एक दस


ू रे की सामने मु ठ नहीं मार सकते थे . कुछ हफ्तो बाद
हमने एक मूवी दे खी जिसमें कुछ सिन बायसेक्सुअल भी थे . जै से एक सिन में एक 18 20 साल का लड़का एक आदमी
का लं ड चूस रहा था, मु झे वो सिन अजीब सा लगा और सच ये की मु झे एक अलग सा अनोखा मज़ा भी आने लगा.
बिलाल ने स्क् रीन पर ही नज़र जमाये पु छा " भाई इस में क्या मज़ा आता है इन लोगों को, जब लड़कियां मौजूद है
तो ये लडके एक दस ू रे को क्यों चोद रहै है .

मैं ने कहा " पता नहीं यार " फिर मैं ने बिलाल को बताया की मु झे अपने एरिया की कुछ लड़कों का पता है की वो एक
दस ू रे को चोदते है . जै से जै से मूवी आगे बढती जा रही थी, हमें भी मज़ा आने लगा था. मैं ने बिलाल को दे खा तो
बिलाल अपने शॉर्ट के उपर से ही अपने लौड़े को मसल रहा था. मु झे भी बहुत शद्दीद ख्वाहिश हो गई की मैं भी अपने
लं ड को से हलाऊँ. तो मैं ने हिम्मत की और बिलाल की परवाह किये बगै र शॉर्ट के उपर से ही अपने लं ड को पूरा
अपनी गिरफ्त में ले कर हाथ आगे पीछे करने लगा. बिलाल ने मे री तरफ एक नज़र डाली और कुछ बोला बिना फिर
से मूवी दे खने लगा तो मैं ने अपनी मु ठ जारी रखी. बिलाल ने भी हिमत की और मे री तरह शॉर्ट के उपर से अपने पूरे
लं ड को गिरफ्त में लिया और मु ठ मारने लगा. जल्द ही हम दोनों की हाथों के आगे पीछे होने की स्पीड बढ़ने लगी.
मे री साँस फूल गई थी मे री आँ खें बं द हो चु की थीं, मे रा जिस्म अकड़ रहा था और जल्द ही मे रे मुं ह से हलकी सी
आह्ह्ह खरिज हो गई और मैं ने अपने लं ड के पानी को अपने लं ड से निकलता महसूस किया. मे रे जिस्म ने 3-4
झटके लिए और मैं ठण्डा हो गया. मे री ऑंख खु ली और मैं ने बिलाल की तरफ दे खा तो वो मु झे ही दे ख रहा था. हम
ू रे से कोई बात नहीं की. बिलाल ने कंप्यूटर ऑफ किया और हम दोनों
दोनों की शॉर्ट्स गीले हो चु के थे . हमने एक दस
चु प चाप अपने अपने बिस्तर पर सोने चल दिया …

हम मूवी दे खते और शॉर्ट के उपर से ही अपने अपने लं ड को मुट्ठी में ले कर मु ठ मारते . ये सब रूटीन वर्क की तरह चल
रहा था. हम दोनों में से कोई भी अब इससे अजीब नहीं समझता था … मु झे ये कहने में कोई आर नहीं की मैं
बायसेक्सुअल से क्स को भी पसं द करने लगा था. गे से क्स की मूवीज दे खकर मु झे मज़ा आता था ले किन ऐसी मूवीज
आम नहीं थी. कभी कभार कोई CD मिल जाती थी जिसमें गे से क्स मूवीज होती थी. एक दिन मु झे एक CD ऐसी मिली
जो पु री गे पोर्न की थी उसमें सिर्फ आदमी थे कोई औरत नहीं. हम दोनों वो मूवी दे ख रहे थे की एक सिन आया जिसमें
ू रे की गान्ड़ में डिल्डो ( रबर का लौड़ा ) अं दर बाहर कर रहे थे . मु झे वो सिन दे खते
2 बहुत क्यूट से यं ग लडके एक दस
दे खते बहुत ज़्यादा मज़ा आने लगा और शॉर्ट के उपर से लं ड सेहलाते सेहलाते मैं ने अन्जाने में अपने शॉर्ट को घु टनों
तक उतार दिया और अपने लं ड को अपने हाथ में ले कर ते जी से मु ठ मारने लगा. बिलाल ने मु झे इस हालत में दे खा
तो उसे शॉक लगा और उसने चिल्ला कर कहा " भईई ये क्या कर रहे हो आप"

मैं ने कहा " छोड़ो यार मैं रोज़ रोज़ अपने आप को रोक के और रोज़ रात अपने शॉर्ट को धो कर तंग आ गया हँ .ू
हम दोनों ही जानते है की हम ये करते है ! तो यार खु ल कर ही क्यों ना करें तु म भी उतारो अपना शॉर्ट और खु ल की
मज़े ले ते हव
ू े मूवी दे खो"

बिलाल से ये कह कर मैं ने अपना रुख दुबारा कंप्यूटर की तरफ मोड़ लिया और मु ठ का सिलसिला दुबारा से शरू
ु कर
दिया. कुछ दे र झिझकने के बाद बिलाल ने भी हिम्मत की और अपने लं ड को शॉर्ट से बाहर निकल लिया. मैं ने
ू रे के लं ड
बिलाल को इस हाल में दे खा तो मु स्कुरा दिया. अब अचानक ही हमारा फोकस कंप्यूटर स्क् रीन से एक दस
पर मु न्तक़िल हो गया था. बिलाल का लं ड उस वक़्त भी तक़रीबन छे इं च था जब की मे रा अप्प्रोक्स साढ़े छे इं च
था. बिलाल के लं ड की टोपी थोड़ी पर्पलिश थी, जब की मे रा लं ड पुरा काला था. हम फिर मूवी पे कंसन्ट् रेट करने
और मु ठ मारने लगे और अब हम दोनों को ही मु ठ में ज़्यादा मज़ा आ रहा था क्योंकी हमारी नज़रों की गिरफ्त में अब
रियल लं ड भी थे … जब मैं झड़ने के क़रीब हुआ तो मैं ने अपने शॉर्ट को पूरा अपने जिस्म से अलग कर दिया और
अपने लं ड पर बहुत ते ज़ ते ज़ हाथ चलने लगा और फिर एक दम से मे रे लं ड ने झटकों से पिचकारी मारना शु रू की
और सारा पानी मे रे छाती और पे ट पे गिरने लगा. ये दे खते ही बिलाल भी झड़ने लगा. झड़ने के बाद हम दोनों ने
अपने अपने जिस्म को टिश्यू से साफ क्या और बारी बारी बाथरूम में धोने चले गए. उस दिन के बाद से हमने
कंप्यूटर को अपने रूम में शिफ्ट कर लिया और रोज़ रात सोने से पहले हम बिल्कुल नं गे हो कर मूवी दे खते और मूवी
दे खते दे खते ही मु ठ मारते .

एक रात हम इसी तरह मूवी दे खते हव ं हव


ू े मु ठ मार रहे थे की अचानक लाइट चली गई हम दोनों बहुत डिसअपॉइट ू े
और मैं ने झुंझलाहट में बिजली विभाग को गलियां दे नी शुरू कर दी. बिलाल ने अपनी चेयर से उठने की
कोशिश की तो अँधेरे की वजह से अचानक बिलाल का हाथ मेरे लंड से टच हुआ और मेरे मंह
ु से एक
आह्ह्ह ख़ारिज हो गई. बिलाल ने फ़ौरन कहा " सॉरी भाई"

मैंने कहा " कोई बात नहीं यार लेकिन कसम से अपने हाथ की अलावा किसी दस
ू रे का हाथ टच होने से
मज़ा बहुत आया चाहे एक लम्हे का ही सही। " बिलाल ने ये बात सुनि और तवज्जो दिया बगैर बिस्तर
की तरफ चल पड़ा. मैं भी अपनी चेयर से उठा और धीमी धीमी सी रोशनी में सँभाल कर अपना शॉर्ट लेने
चल पड़ा। बिलाल पहले ही झक
ु कर बिस्तर से अपना शॉर्ट उठा रहा था. अचानक ही मेरा लंड बिलाल की
नरम गरम गान्ड़ की दरार से टच हुआ तो मज़े की एक हसीं सी लेहेर मेरे जिस्म में फैल गई और वो
लेहेर एक आआह्ह्ह बन की मेरे मुंह से ख़ारिज हो गई. उसी वक़्त मुझे बिलाल की मज़े में डूबी हूई
सिसकारी सन
ु ाई दी. बिलाल ना ही कुछ बोला और ना ही अपनी पोजीशन चें ज की और उसी हालत में
रुका रहा. मुझे अंदाज़ा हुआ की जो इतनी गे मूवीज हमने दे खी है उनका जाद ू बिलाल पर भी चल चुका
है . मैंने हिम्मत की और अपने जिस्म को बिलाल की तरफ दबा दिया. मैंने अपना बाये हाथ बिलाल की
एक कुल्हे पे रखा और अपने लंड को बिलाल की गान्ड़ की छे द में सेट किया. थोड़ा झक
ु ा और अपने दांए
हाथ से बिलाल के लंड को पकड़ा और उसकी गान्ड़ की छे द में अपने लंड को रगड़ने लगा और साथ
साथ बिलाल के लंड को अपने हाथ में मज़बूती से पकड़ कर हाथ आगे पीछे करने लगा. बिलाल की साँसें
तेज़ हो गई और उसने कमज़ोर से लेहजे में कहा " नहीं भाई प्लीज़ ये नहीं करें " लेकिन मैंने अन सूनी
करते हूवे कहा " ससशटहष्ष्हट कुछ नहीं होता यार तुम बस ज़्यादा कुछ मत सोचो और मज़ा लो. ये
कहते हूवे मैंने बिलाल के लंड पर अपने हाथ की हरकत को मज़ीद तेज़ कर दिया. अब बिलाल भी मज़े में
डूब गया और मेरे लंड के साथ आहिस्ता आहिस्ता अपनी गान्ड़ को भी हरकत दे ने लगा और हम दोनों
ही झड़ने के क़रीब आ गए … हम दोनों ही झड़ने के क़रीब थे … मैंने बिलाल से कहा की जब पानी
निकलने लगे तो घूम जाना ताकि बेड़ शीट ख़राब ना हो साथ साथ ही मैं बिलाल की गान्ड़ के छे द में
अपने लंड को रगड़ रहा था और लम्हा बा लम्हा झड़ने के क़रीब हो रहा था. कुछ ही मिनट्स बाद बिलाल
अचानक घम
ू गया और उसके लंड से मणि की तेज़ धारे निकलने लगी और मेरे सीने पर चिपकती गई.
जैसे ही बिलाल के लंड की जूस ने मेरे सीने को टच किया तो मेरे जिस्म में मज़े की एक अजीब लेहेर
उठी और फ़ौरन ही वो लेहेर मेरे लौड़े से पानी बन कर बहनें लगी और बिलाल का सीने और पेट को
तरबतर करती चली गई.

कुछ लम्हे हम वैसे ही अँधेरे मैं खड़े रहे और अपनी सांसों के दरु
ु स्त होने का इन्तज़ार करने लगे. हम
दोनों को शर्मिन्दगी और लज़्ज़त ने ब-यक-वक़्त घेर रखा था. अचानक लाइट आ गई. मझ
ु े बिलाल की
जिस्म को अपने लंड की जूस से भरा और अपने जिस्म को बिलाल के लंड की पानी से तर दे खना
अजीब लज़्ज़त दे रहा था. जबकि बिलाल नर्वस सा खड़ा था.

मैंने अपना हाथ बढ़ाया और बिलाल के लंड को सेहला कर मुस्कुराते हूवे कहा " बहुत लज़्ज़त अंगेज़
लम्हात थे ना, मज़ा तो तुम्हें भी बहुत आया है . क्या ख़्याल है मेरे छोटे भाई साहब??"

मेरी बात सुन कर बिलाल थोड़ा परु सुकून हुआ और उसके चेहरे पर भी मुस्कराहट फैल गई. हमने इस बारे
में मज़ीद कोई बात नहीं की. मैंने अपने आप को साफ किया और ड्रेस पेहेन कर रूम से बाहर निकला
और अपनी छत पर चला गया. मैं दिवार के पास खड़ा हुआ अपनी दोनों कोहनियों को दिवार पे टिकाते
हूवे अपनी आज की इस हरकत के बारे में सोचने लगा. मैंने अपने आप को कभी भी गे तसव्वरु नहीं क्या
लेकिन सच ये था की आज जो कुछ भी हुआ उसने मुझे बहुत मज़ा दिया था. मैं सोचता रहा क्या में
सचमच
ु गे हूँ??? फिर मैंने सोचा क्या होगा अगर मेरे पास एक लड़का और एक लड़की हूॅं तो मैं चोदने के
लिए किसे तरजीह दं ग
ू ा. फ़ौरन ही मेरे ज़ेहन ने मुझे बता दिया की मैं गे नहीं हूँ. मैं हमेशा लड़की को
तर्जीह दं ग
ू ा किसी भी लड़के पर किसी भी वक़्त. जो मैंने अपने सगे भाई के साथ क्या उसकी वजह सिर्फ
ये थी की हम दोनों एक ही वक़्त में एक ही जगह पर बगैर कपड़ों की नंगी हालत में थे और बहुत गरम
थे तो ये सब होना फित्री अमल था. उस रात हम दोनों चुप चाप सोने के लिए लेट गए और आपस में
कोई बात नहीं की. अगली रात हमने अपना वो ही हिडन फोल्डर ओपन किया जहाँ हमने अपनी सेक्स
मव
ू ीज छुपा रखी थी और एक परु ानी दे खी हूई मव
ू ी दब
ु ारा दे खना शरू
ु कर दी. क्योंकी हमारे पास कोई नई
मूवी नहीं थी. ये भी एक बायसेक्सुअल मूवी ही थी. 10 मिनट बाद ही हम दोनों अपने जिस्मों से कपड़ों
को अलाहिदा कर चुके थे और अपने अपने लंड को हाथ में लिए हाथों को आगे पीछे हरकत दे रहे थे.
कल जो कुछ हुआ उसकी वजह से हम दोनों ही की हरकत में कुछ झिझक सी थी जिसको दरू करना
बहुत ज़रूरी था. मैं अपने छोटे भाई की सीधे हाथ की तरफ बैठा था और मैंने अपने दांए हाथ में अपने
लंड को थाम रखा था. मैंने अपना बाये हाथ उठाया और आहिस्ता आगे से बिलाल की राण पर रख दिया
और बिलाल की राण को अपने हाथ से सेहलाने लगा. बिलाल ने मेरी तरफ एक नज़र डाली. मैं मूवी दे खने
में मगन था. बिलाल ने भी अपना रुख कंप्यूटर स्क्रीन की तरफ मोड़ दिया और मुझे कुछ नहीं कहा. मैंने
कुछ और हिम्मत की और बिलाल की राण को सेहलाते हूवे अपने हाथ को उसके लंड की तरफ बढ़ाना
शुरू कर दिया और आहिस्तगी से बिलाल की गोटियों को अपने हाथ में ले कर सेहलाने लगा. बिलाल की
मुंह से धीमी धीमी सिसकारियां निकलने लगी और उसके लंड पर उसकी हाथ की हरकत तेज़ हो गई. मैंने
बिलाल का हाथ उसके लंड से हटाया और उसके लंड को अपने हाथ में ले कर हिलाने लगा. बिलाल का
मज़ा बढ़ा तो मैंने बिलाल का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया और हम दोनों एक दस
ू रे के लंड
पर अपने हाथ आगे पीछे करने लगे. इस से हम दोनों को ही इतना मज़ा आया की जल्द ही हम दोनों के
लंड ने एक दस
ू रे की हाथ पर पानी छोड़ना शुरू कर दिया. झड़ने के बाद भी हमने एक दस
ू रे के लंड को
थामे रखा और बेदिली से मव
ू ी दे खते रहे . कुछ लम्हों बाद ही हम दोनों के लंड दब
ु ारा सख्ती से अकड़
गए. बिलाल ने मझ
ु से कहा, "भाई में भी आप के साथ वो करना चाहता हूँ जो कल आप ने मेरे साथ
किया था."

मैंने मुस्कुरा कर अपने छोटे भाई को दे खा और कहा "ओके चलो" में अपनी कुर्सी से उठा और उसी कुर्सी
पर उल्टा हो कर घुटनों के बल बैठ कर अपनी कमर को आगे की तरफ झुका लिया. बिलाल उठ़ कर मेरी
तरफ आया और उसने अपने लौड़े को थाम कर मेरे दोनों कुल्हों के दरमियाँ छे द में फसाया और मेरे
उपर झूकते हूवे नीचे से मेरे लंड को अपने हाथ में थाम कर आहिस्ता आहिस्ता मेरे गान्ड़ पे अपने लंड
को रगडने लगा और अपने हाथ से मेरे लंड को सेहलाने लगा. सच ये ही की बिलाल का लंड जब मेरी
गान्ड़ की सरु ाख पे टच होता तो अजीब लज़्ज़त भरी सी लेहेर पैदा होती थी गान्ड़ में और परू े जिस्म मैं
फैल जाती. अजीब मीठी मीठी सी गुदगुदी हो रही थी मेरी गान्ड़ की अंदर और मैंने भी अपने आप को
पीछे की तरफ बिलाल की जिस्म के साथ दबना शुरू कर दिया. मेरी नज़र अपने दांए साइड पे दिवार पे
लगे क़द आदम आईने पर पड़ी तो भरपरू मज़े ने मझ
ु े अपनी गिरफ्त में ले लिया और मैंने बिलाल की
तवज्जो भी आईने की तरफ दिलवाई तो बिलाल की आँखें भी चमक उठी. आईने में हम दोनों की हालत
मूवी की किसी बेह्तरीन सिन से ज़्यादा हॉट लग रही थी हम दोनों फ़ौरन ही मज़े की इन्तहा तक पहुंच
गए और तक़रीबन साथ साथ ही डिस्चार्ज हूवे.

हमारे पूरे जिस्म पसीने में शराबोर थे और नहाने की हालात हो रही थी. हम दोनों साथ साथ ही बाथ रूम
में दाखिल हूवे और नहाना शरू
ु कर दिया. नहाने के बाद हम दोनों रूम में वापस आये और बिस्तर पर
लेटते ही नींद की दे वी ने हमे अपनी आगोश में भर लिया.

अगले दिन मैं, सारा टाइम मैं अपने और बिलाल की दरमियाँ हूवे सेक्स के बारे में ही सोचता रहा. अब मैं
कुछ और करना चाहता था कुछ नया करना चाहता था. मैंने अपने क्लोज दोस्त नईम से ये डिस्कस
किया ( नईम का काफी एक्सपेरियन्स था सेक्स में . गे में भी ) मैंने उससे ये नहीं बताया की मेरा पार्टनर
मेरा सगा छोटा भाई है . बल्कि मैंने उससे कहा की मेरे पड़ोस में एक लड़का है जिसे थोड़ा बहुत फन हो
जाता है . उसने एक शैतानी मुस्कराहट से मेरी तरफ दे खा तो मैंने झेंप कर अपनी नज़रें नीची कर ली.
नईम ने हसते हूवे मेरे कंधे पे हाथ मारा और मुझे छे ड़ते हुआ बोला, " बच्चा जवान हो गया है ह्म्म ्"
मैंने अपनी झेंप मिटाते हूवे उससे कहा, " कुत्ते बताना है तो बता नहीं बताता तो में जाता हूँ"

उस ने कहा, " अच्छा अच्छा बताता हूँ " बहुत कुछ तूने मूवीज से ही सीख लिया था लेकिन काफी चीज़ें
सीखने के लिए बाक़ी थी. जैसे मुझे ये पता नहीं था की 1 स्ट टाइम चुदाई कैसे करनी चाहिये जिसे
पार्टनर को तक़लीफ़ भी कम से कम हो और दोनों को मज़ा भी मिले. फिर उसने मझ
ु े कुछ टिप्स दिया
फ्रेंच किस के बारे में मुझे डिटे ल से समझाया.

उस ने मझ
ु े बताया की," उस लडके की होंठो को किस करो उसकी नीचले होंठ और उपरी होंठ को बारी
बारी चूसो… उसके लंड को चाटो और मुंह में भर की चूसो और उससे कहो की वो तुम्हारे लंड को चूसे.

लंड चूसने के बारे में सोच के मुझे अजीब सा लगा और मैंने फ़ौरन कहा, " ये अजीब है यार लेकिन
किसिंग ( फ्रेंच किस ) के बारे में मैंने उसे बताया की मैंने कभी किसी लड़के या लड़की को किस नहीं
किया है और ना कभी सोचा है की लड़के को किस करने में भी मज़ा मिल सकता है .”

तो नईम बोला " में तुम्हें दिखाता हूँ की फ्रेंच किस कैसे होती है और इस में कितना मज़ा है "

ये सुनते ही में फ़ौरन बोला " नहीं! मैं नहीं चाहता की हमारी इतनी मज़बूत दोस्ती किसी और रिश्ते में
बदले. इसे दोस्ती ही रहने दे ना चाहिये."

मेरी बात सुनकर वो बोला " अबे छोटे मैं तझ


ु े किस नहीं करने लगा हूँ. मेरा एक मेट है 16 साल उसकी
उमर है . हम दोनों खब
ु चद
ु ाई करते है . मैं उससे कहूंगा की वो तम्
ु हें सिखा दे .

मैं थोड़ी दे र तो झिझका लेकिन फिर इस ऑफर को तस्लीम कर लिया. नईम ने मुझे शाम 5 बजे उसके
घर आने के लिए बोला. शाम 5, 6 बजे के क़रीब में उसके घर पहुंचा वो और उसका दोस्त वहीं थे. वो
लड़का बहुत क्यूट था बिल्कुल लड़कियों जैसी जिस्म था उसका. चेहरे पे कोई बाल नहीं और जिस्म ज़रा
भरा भरा था उसका.

नईम ने मुझे उसका नाम उस्मान बताया और हम दोनों का एक दस


ू रे से तारूफ़ करवाया. उस्मान को
नईम पहले ही से सब समझा चुका था और मुझे उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था की बस ये मुझ पर
जम्प करने को तैयार खड़ा है . उस्मान ने अपने कपड़े उतारने शरू
ु किये और मझ
ु े भी कपड़े उतरने की
कहा लिए. मुझे थोड़ी झिझक हो रही थी. तो मैंने नईम से साफ साफ कहा की यार तू रूम से बाहर चला
जा. मैं तेरे सामने ऐसा कुछ नहीं कर पाऊंगा … नईम ने मेरी बात सुन कर एक कहक़हा लगाया और रूम
से बाहर निकल गया. जाते जाते नईम ने हम पर ये वाजे कर दिया की जो करना है जल्दी जल्दी कर
लेना की उसकी फॅमिली जल्द ही वापस आ जायेंगे.
जब नईम रूम से बाहर निकल गया तो मैंने आगे बढ़ कर दरवाज़ा लॉक किया और अपने तमाम कपड़े
उतार कर बिल्कुल नंगा खड़ा हो गया. मेरा लंड फुल खड़ा हो चुका था और मेरी नज़र उस्मान के लंड पर
पड़ी तो वो भी अपने पूरे जोबन पर था. मुझे हमेशा मूवीज दे ख कर अहसास-इ-कमतरी रहता था की मेरा
लंड छोटा ( 7.5 इंच ) है लेकिन जब मैंने उस्मान का लंड दे खा तो वो मेरे लंड से भी तक़रीबन 1.5 इंच
छोटा था. उसका जिस्म बहुत गोरा था एक भी बाल नहीं था उस्मान की जिस्म पर. वो आहिस्ता आहिस्ता
चलता मेरे पास आया और मझ
ु से लिपट गया और मझ
ु े अपने जिस्म के साथ मज़बत
ू ी से भिंचने लगा
और वो अपने बाये हाथ से मेरे दांए कुल्हे को दबाने लगा और दांए हाथ को मेरी गान्ड़ की लकीर में दबा
कर फेरने लगा. मैंने भी उसके साथ ये ही करना शुरू किया तो वो अपना चेहरा मेरे क़रीब लाया और
उसने मेरे होंठो पर आहिस्तगी से अपने लब रख दिये, उसने मझ
ु से कहा की " अपना मंह
ु खोलो " मैंने
मुंह खोला तो उसने अपनी ज़ुबाँ मेरे मुंह में दाखिल कर दी और मझ
ु से कहा की " चूसो मेरी ज़ुबाँ"

मुझे थोड़ा कन्फ्यूज्ड और झिझकते दे ख कर उस्मान ने मझ


ु से कहा की " अपनी ज़ुबाँ मेरे मुंह में डालो "
और उसने अपना मुंह खोल दिया. मैंने अपनी ज़ुबाँ उसके मुंह में डाली तो उसने मेरी ज़ुबाँ और मेरे होंठो
को चूसना शुरू कर दिया। ये मेरी ज़िंदगी की पहली फ्रेंच किस थी और मैं अपने आप को किसी और ही
दनि
ु यां में महसस
ू कर रहा था. तक़रीबन 5, 6 मिनट तक हम किस करते रहे . वो आगे बढ़ना चाहता था
लेकिन मैंने उस्मान से कहा की प्लीज यार मुझे कुछ दे र मज़ीद ऐसे ही किस करते रहो. हमने तक़रीबन
7, 8 मिनट और किस की, फिर उसने बोला " यार हमारे पास टाइम बहुत कम है . बोलो अब क्या करें " मैंने
कहा " जो तम्
ु हारी मर्ज़ी है वो करो " मैं अभी तक अपनी ज़िन्दगी की पहली फ्रेंच किस की नशे से ही
बाहर नहीं निकल सका था तो मज़ीद क्या कहता.

उस्मान ने मेरे सीने पे किस करना और मेरी चूंचियों को काटना शुरू कर दिया लेकिन मुझे इस में इतना
मज़ा नहीं मिला. इस बात को मेहसुस करते हूवे उस्मान मेरे पीछे आ गया और और मेरी कमर को चुमते
चुमते ज़मीं पर घुटनों के बल बैठा और मेरे कुल्हों को चुमने और अपने दांतों से चाटने लगा. उस्मान की
ये हरकत मझ
ु े फिर होश से बेगाना करने लगी. उस्मान की गरम गरम साँसें मझ
ु े अपनी गान्ड़ के सरू ाख
पर महसूस हो रही थीं. जो अजीब सी लज़्ज़त भर रही थीं मेरे जिस्म में लेकिन उसने मज़ीद कुछ ना
किया और पीछे से उठ़ कर मेरे सामने आ बैठा और मेरी राण को चुमने लगा. उस्मान की ज़ुबाँ को
अपनी राण पर महसस
ू करते ही मेरा परू ा जिस्म झनझना उठा और मझ
ु े अपनी दे खी हूई मव
ू ीज याद
आने लगीं और मुझे पहले ही अंदाज़ा हो गया की अब क्या होने वाला है . ये सोचते ही मेरा लंड झटके
खाने लगा. उस्मान ने मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और हाथ को आगे पीछे हरकत दे ने लगा. तभी
उसने अपनी ज़ब
ु ाँ की नोक को मेरे लंड की नोक पर, लंड की सरु ाख पर टच किया तो बहुत ज़्यादा
लज़्ज़त महसूस हो गई. उस्मान ने मेरे लंड को चुमना शुरू कर दिया लेकिन लंड अपने मुंह में नहीं लिया.
मैं लज़्ज़त की मारे पागल सा हो रहा था.

कुछ ही दे र बाद मैंने चिल्ला कर कहा " करो ना यार प्लीज क्या ड्रामा कर रहे हो " उसने मुस्कुरा कर
मेरे लंड को अपने मंह
ु में भरा और उससे चस
ू ने लगा. मैं मक़
ु म्मल तोर पर अपने होश खो चक
ु ा था, मैं
सोच भी नहीं सकता था की ये चीज़ इतनी ज़्यादा लज़्ज़त दे गी. ऐसा सुरूर मैंने पहले कभी नहीं महसूस
किया था. मैंने अपने हाथों से उसके सर को थामा और उस्मान के मुंह को चोदने लगा. उस्मान के मुंह से
घट
ु ी घट
ु ी सी आवाज़ें निकल रही थीं. उसने मझ
ु े इशारे से समझाया की " पानी निकलने लगे तो पहले से
बता दे ना " कुछ ही सेकण्ड्स बाद में झड़ने वाला था तो मैंने उस्मान को बता दिया उसने मेरा लंड अपने
मुंह से निकाला और हाथ से मेरी मुठ मारने लगा. उसने अपने बाये हाथ की इंडक्
े स उं गली को अपने मुंह
में ले कर गीला किया और हाथ पीछे ले जा कर मेरी गान्ड़ के सूराख पर दबाई और अंदर डाल दी. मुझे
हल्का सा दर्द हुआ. उसने परू ी उं गली अंदर नहीं डाली बल्कि आधे उं गली को अंदर बाहर करने लगा।
उसकी इस हरकत ने मुझे फ़ौरन ही आखरी मंजिल पे पहुंचा दिया और मैं ऐसे झड़ गया की ज़िंदगी में
पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. मैं बिल्कुल बेहाल हो चुका था. उसने मेरी हालत दे ख कर मुस्कुरा दिया, मैं
बिल्कुल नया था इन सब चीज़ों में और ये सब ज़ाहिर हो रहा था. मैंने अपने कपड़े पेहेनना शरू
ु ही किये
थे की उस्मान बोला " इतनी जल्दी. अभी तो सही मज़ा आना शुरू हुआ है यार."

मैंने पुछा " क्या मतलब है तुम्हारा " तो वो डॉगी पोजीशन में बेंड हुआ और अपनी गान्ड़ के सूराख पर
अपनी उं गली रखकर बोला, " मैं चाहता हूँ तुम मेरे इस छे द को अपना बना लो " फिर वो सीधे बैठते हूवे
बोला, " लेकिन इस से पहले तुम्हें मेरे लंड को चूसना होगा. ये बात मुझे इतनी अच्छी नहीं लगी लेकिन
सच ये है की मैं उसकी गान्ड़ का मज़ा भी लेना चाहता था. तो में बेदिली से उसकी टांगों के दरमिआन
बैठा और उसके लंड को हाथ में ले कर आगे पीछे हिलाने लगा. फिर मैंने झिझकते हूवे अपनी ज़ुबाँ की
नोक को उसके लंड से टच किया. मुझे नमकीन नमकीन सा ज़ाइक़ा मेहसुस हुआ, मेरे बिगड़ते चेहरे को

दे ख कर उसने बोला " चलो भी यार. अगर तम
ु लंड चस
ु वाना चाहते हो तो तम्
ु हें चस
ू ना भी पडेगा. ये 2
तरफ़ा ट्रै फ़िक है भाई"

ये सुन कर मैंने अपना मुंह खोला और उस्मान के लंड को अपने मुंह में भर लिया. मुझे कुछ ज़्यादा
अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मैं जितना समझ रहा था उतना बुरा भी नहीं लग रहा था. मैं उसके लंड
को अपने मुंह मैं अंदर बाहर करने लगा, उस्मान ने मेरे सर को पकड़ और मेरे मुंह को चोदने लगा.

उस्मान की गोटियों मेरी थुड्ड़ी को छू रही थी. कुछ दे र बाद ही उस्मान ने फूली हूई सांसों से कहा " मैं
झड़ने वाला हूँ. मैंने उसका लंड चस
ू ना बंद कर दिया. उसने अपना लंड मेरे मंह
ु से निकाला ही था की
उसका लंड ज़मीं पर पिचकारियां मारने लगा और अब मेरी बारी थी उसकी गान्ड़ मारने की। मैंने उस पर
वाजे कर दिया की मैं तुमसे गान्ड़ नहीं मरवाऊंगा. उसने कहा " कोई बात नहीं " और ये कहते हूवे उस्मान
डॉगी पोजीशन में आ गया और मेरे लंड को दब
ु ारा चूसने लगा सही तरह गीला होने के बाद मैंने लंड
उसके मुंह से निकाला और उसकी पीछे जा कर घुटनों पर बैठ गया. उसने हाथ पीछे लाकर मेरे लौड़े को
थामा और अपने सूराख पर सही जगह रखते हूवे मझ
ु से कहा की " अब ज़ोर लगा कर अपना लंड मेरे
अंदर करो"

मेरे पहले झटके से ही तक़रीबन 4 इंच लंड उसकी गान्ड़ में दाखिल हो चक
ु ा था. मेरे अगले झटके ने मेरे
पूरे लौड़े को जड़ तक उसकी गान्ड़ मैं उतार दिया. ये आज की दिन में तीसरी बार थी की मैंने अपने आप
को किसी और ही दनि
ु यां में महसूस किया था. पहली बार किसिंग करते हूवे, 2 ण्ड टाइम लंड चुसवाते हूवे
और तीसरी बार ये थी. आज का दिन मेरे लिए बहुत हसीं दिन था. मैंने बहुत पोर्न मूवीज दे खी थीं इस
लिए मुझे मज़ीद इंस्ट्रक्शन्स की ज़रुरत तो थी नहीं. मैं तक़रीबन 5-6 मिनट तक झटके मारता रहा. फिर
मुझे डोअर का लॉक ओपन होने की आवाज़ आई तो मैं ड़र गया लेकिन अगले ही लम्हे दरवाज़े खुला
और मैंने नईम को बिल्कुल नंगा लंड हाथ में पकड़े वहां खड़ा दे खा. तो मैं शर्म से भर गया और नज़र
नईम से हटा ली.

नईम बोला, " शर्मा मत गाँडू … मैंने परू ा सिन रूम की खिड़की में खड़ा हो कर दे खा है जो मैंने पहले ही
ओपन कर रखी थी.

नईम का लंड वाकया ही बहुत इम्प्रेससिव था ( 7.5 इंच ). वो बोला " घबरा मत … मैं तेरे पे नहीं चढ़ँू गा वो
अंदर आया और उस्मान की सामने बैठ कर उस्मान के मुंह में लौड़ा डालने लगा. अब नईम उस्मान का
मुंह को चोद रहा था और मैं उस्मान की गान्ड़ मार रहा था. कुछ ही दे र बाद हम दोनों झड़ गए. उस्मान
ने नईम का सारा मणि मंह
ु में लेकर ज़मीं पर थक
ू दी और मेरी मणि कतरा कतरा उस्मान की गान्ड़ के
सूराख से बाहर बहनें लगी …

हम तीनों ही कुछ दे र तक वहीं ज़मीं पर लेटे रहे . फिर नईम ने मझ


ु से पछ
ु ा " हे सागर! मज़ा आया??"

मैंने मस्
ु कुरा कर उससे दे खा और कहा " हां यार बहुत बहुत मज़ा आया " फिर नईम ने कहा अब जल्दी
जल्दी उठो और कपड़े पहनो, 6 बज गए है और मेरी फॅमिली वापस आने ही वाली होगी. हम सब ने अपने
कपड़े पहने और जाने को तैयार हो गए.
तो जब मैं अपने घर वापस आने लगा तो नईम ने मुझे एक नई CD थमा दी और बताया की " ये भी गे
मूवी है और सब क्यूट क्यूट से लडके है . कुछ ऐसे लड़कों की स्टोरीज है जो फर्स्ट टाइम सेक्स कर रहे है
" फिर उसने मुझे ऑ ंख मारते हूवे कहा " उस लडके को भी दिखाना जिस को तुम चोदना चाहते हो.

मैं घर वापस आया और बिलाल को बताया की मैं आज एक नई CD लाया हूँ. तो वो बहुत एक्साइटे ड
हुआ. मैंने उसके ट्रॉउज़र के उपर से ही उसके लंड को सहलाया और उसे ऑ ंख मार कर मुस्कुरा दिया. अब
हम दोनों रात होने का इन्तज़ार कर रहे थे.

रात को खाना खाने के बाद जब सब अपने अपने रूम्स में सोने चले गए. तो हम भी अपने रूम में वापस
आये, मैंने दरवाज़ा लॉक किया और अपने कपड़े उतारना शुरू कर दिया. कुछ लम्हों में ही हम दोनों
बिल्कुल नंगे हो चक
ु े थे, चेयर पर बैठते हूवे मैंने बिलाल के लौड़े को पकड़ कर दबाया और फिर हम मव
ू ी
दे खने लगे. शुरू में ही दो लडके एक दस
ू रे की होंठ से होंठ मिला कर किसिंग कर रहे थे. बिलाल ने मेरी
तरफ और मैंने बिलाल की तरफ दे खा.

मैंने बिलाल से पुछा, " तुम ने कभी किसी को किस किया है ??"

उसने जवाब दिया " नहीं ".

मैंने पछ
ु ा " सीखना चाहते हो ".

तो फ़ौरन ही बिलाल ने जवाब दिया " हां भाई ".

वो चेयर पर बैठा था, मैं उठा और बिलाल के पास जा कर उसके लंड को पकड़ा और उसकी गोद में बैठते
हूवे मैंने बिलाल के लंड को अपनी गान्ड़ के नीचे अपने छे द में सेट कर लिया. मैंने अपने होंठो को
बिलाल की होंठो पर रखा और उसके होंठो और ज़ुबाँ को चूसना शुरू कर दिया, उसने भी फ़ौरन रिस्पोंस
दिया और जल्द ही हम लोग लिप्स लॉक हो चुके थे. हम किसिंग करते हूवे ही चेयर से उठे और बिस्तर
की तरफ चल दिये. किसिंग करते करते ही बिलाल बिस्तर पर पीठ के बल लेटा और मैं उसके उपर लेट
गया. हम 20 मिनट तक ऐसे ही एक दस
ू रे की होंठो को चूसते और काटते रहे . मैं चाहता था की बिलाल
मेरा लंड चूसे लेकिन मझ ु े पता था की बिलाल से चुसवाने के लिए पहले मुझे ही बिलाल का लंड चूसना

पडेगा. तो मैंने नीचे की तरफ जाते हूवे बिलाल की सीने को चम ु ना शरू
ु किया और कभी उसकी चंचि ू यों
को चाटने और काटने लगता. बिलाल के मुंह से सिसकियाँ खारिज होने लगी थीं. तब मैंने नीचे बिलाल के
लंड की तरफ जाना शुरू किया, मैंने बिलाल के चेहरे की तरफ दे खा तो वो शॉक की कैफ़ियत में था।
बिलाल की ऑ ंखों में दे खते हूवे ही मैंने अपने मुंह को खोला और बिलाल के लंड को अपने मुंह में भर
लिया. वो तक़रीबन उछल ही पड़ा बिस्तर से और बेसख्ता ही उसके मुंह से एक तेज़ सिसकारी निकलि.
मैंने बिलाल को आँखों से इशारा किया की आवाज़ हलकी रखो और प्यार से आहिस्ता आहिस्ता बिलाल
के लंड को परू ा अपने मुंह में ले कर चूसने लगा और अपनी स्पीड बढ़ाने लगा. बिलाल का परू ा जिस्म
झटके खा रहा था और वो झड़ने की बहुत क़रीब पहुंच चुका था. तो मैंने उसका लंड अपने मुंह से निकाल
दिया और हाथ से सेहलाने लगा. मैंने उससे टाँगें फैलाने को कहा और अपने बाये हाथ की उं गली को
अपने मुंह से गीला करते हूवे बिलाल की प्यारी सी गान्ड़ के छे द में डालने लगा. जैसे ही मेरी उं गली थोड़ी
सी अंदर गई बिलाल की एक कराह निकली और दर्द का अहसास उसके चेहरे से ज़ाहिर होने लगा लेकिन
मैंने अपनी उं गली को अंदर बाहर करना जारी रखा और जल्द ही उसका छे द लूज हो गया. कुछ दे र बाद
मैं उठा और दब
ु ारा बिलाल के उपर आ कर उसके होंठो को चुमने लगा.

मेरे कुछ कहे बगैर ही बिलाल उठा और मेरी टांगों की दरमियाँ आ कर मेरे लंड के नीचे वाली गोटियों को
थामा और फ़ौरन ही उन्हें चाटने लगा. मैं बहुत है रान सा था बिलाल की इस हरकत पर. वो मेरी गोटियों
को चाटते चाटते मेरे लंड तक आया और उसे अपने मुंह में ले लिया. मूवीज ने मेरे साथ साथ बिलाल को
भी बहुत कुछ सिखा दिया था. मेरे लंड को थोड़ी दे र चूसने के बाद बिलाल ज़रा नीचे हुआ और मेरे गान्ड़
के छे द को चाटने लगा. मैं बिस्तर से एक दम उछल पड़ा बिलाल की इस हरकत पर. कुछ दे र चाटने के
बाद वो फिर से मेरे लंड की तरफ आया और मेरे लंड को मंह
ु में लेते वक़्त ही उसने अपनी एक अंगली
भी मेरी गान्ड़ में डाल दी मुझे मामूली सा दर्द भी हुआ लेकिन मज़ा दर्द पर ग़ालिब था. अब बिलाल मेरे
लंड को भी चूस रहा था और मेरी गान्ड़ में अपनी उं गली को भी अंदर बाहर कर रहा था. जैसे ही मैं
मंजिल के क़रीब हुआ तो मैंने बिलाल को कहा की मेरा पानी निकलने वाला है लेकिन बिलाल ने हाथ की
इशारे से कहा की " परवाह नहीं " और मैं उसके मुंह में ही झड़ गया. मेरे लंड का जूस उसके मुंह से बेह
रहा था उसने सारा पानी मेरा पेट पर थूका और फिर से मेरे लंड को चूसने और चाटने लगा. वो उपर
आया और उसने अपने होंठ मेरे होंठो से चिपका दिया. मझ
ु े बहुत अजीब सा लगा क्योंकी मेरे लंड का
पानी अभी भी उसके चेहरे और होंठो पर लगा हुआ था. मैं बिलाल को हर्ट नहीं करना चाहता था इस लिए
मैंने किसिंग जारी रखी.

लेकिन ये अजीब और मज़े का एहसास था अपने लंड की पानी को खुद ही चखना …

कुछ दे र किसिंग करने के बाद मैंने बिलाल से पुछा " क्या तुम अगले काम के लिए रे डी हो"

बिलाल ने पछ
ु ा " वो क्या"

तो मैंने कंप्यूटर स्क्रीन के तरफ इशारा करते हूवे कहा " ये " मूवी में एक लड़का दस
ू रे लडके की गान्ड़ में
अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था. उसने जवाब दिया " भाई इस से बहुत दर्द होगा. मेरा नहीं ख्याल
की हमारे छोटे छोटे सूराख हमारे लंड को बर्दाश्त कर सकेंगे"
मैंने कहा " यार हम कोई लुब्रीकेंट इस्तेमाल कर लेंगे ना"

वो थोड़ा कंफ्यूज नज़र आ रहा था. मैंने कहा " चलो यार कुछ नहीं होता ट्राय करते है ये लंड की चूसाई
से ज़्यादा मज़ा दे गा " वो बोला, " भाई तुम्हें कैसे पता"

मैंने बिलाल को वो सब बताया जो आज दिन में मैंने किया था और मैं अब फिर बहुत ज़्यादा गरम हो
गया था.

मैंने बिलाल से पुछा, " क्या तुम पहले करोगे??"

तो वो शरारती अंदाज़ में बोला " पहले आप कर लो आखिर आप मेरे बड़े भाई हो"

मैं इस बात पर मुस्कुरा दिया और मैंने बिलाल से कहा " चलो बिस्तर पर आ जाओ और अपनी गान्ड़
पीछे से उठा कर डॉगी पोजीशन बना लो. " ये कहते हूवे मैं बाथ रूम गया और वहां से हे यर आयल की
बोतल से कुछ आयल उसकी गान्ड़ की छे द पर डाला और कुछ अपनी उं गलियों पे लगा कर उसके छे द
पर उं गलियां फेरने लगा और फिर मैंने अपनी एक उं गली उसके छे द में अंदर कर दी उसने दर्द की वजह
से सीधे होने की कोशिश की और कराह कर बोला " भाई आहिस्ता डालो दर्द होता है "

मैं जानता था की लंड के दर्द की आगे ये दर्द कुछ भी नहीं. इस लिए लंड डालने से पहले उसकी गान्ड़ के
सूराख को इतना लूज और फ्लेक्सिबल करना पड़ेगा की लंड डालने का दर्द बर्दाश्त के क़ाबिल हो जाये.
फिर मैंने बिलाल को अपनी उं गली से चोदना शरू
ु किया और उस वक़्त तक करता रहा जब तक की
बिलाल की गान्ड़ का सूराख मेरी 2 उं गलियों का आराम से अंदर बाहर करना और झेलने की क़ाबिल हो
गया. अब मैंने उससे कहा की सीधे लेट जाओ. फिर मैं उसके सामने आ कर बैठा। उसकी टांगों की
दरमियाँ उसका लंड मेरे चेहरे की बिल्कुल क़रीब था. मैंने उसे टाँगें फैलाने को कहा और फिर मैंने उसकी
गान्ड़ में अपनी एक उं गली डाली और अंदर बाहर करने लगा जिसे उसे तक़लीफ़ होने लगी और साथ ही
मैंने बिलाल के लंड को अपने मुंह में लिए और चूसने लगा जो उसे मज़ा दे ने लगा. मैंने लंड पर अपना
मुंह आगे पीछे करने की स्पीड मज़ीद बढ़ा दी जिसे बिलाल को बहुत मज़ा आने लगा और इस मज़े की
आर में ही मैंने अपनी दस
ू री उं गली भी बिलाल की गान्ड़ में दाखिल कर दी. वो एक दम चिल्ला उठा "
नहीं भाई दर्द हो रहा है "

मैंने कहा " बस थोड़ा दर्द होगा बर्दाश्त करो. फिर मज़ा ही मज़ा है " मैंने बिलाल का पूरा लंड अपने मुंह
में ले लिया ताकि दर्द और लज़्ज़त दोनों बैलेंस हो जायें. मैंने अपना ये अमल जारी रखा जिसे बिलाल को
काफी हद तक सुकून हो गया, मुझे ऐसे अंदाज़ा हुआ की अब बिलाल सिसकियां भरते हूवे अपना हाथ मेरे
लंड की तरफ बढ़ा रहा था मेरा लंड अपने हाथ में लेने के लिए. अब मैं अपनी तीसरी उं गली भी बिलाल
की गान्ड़ में दाखिल करना चाह रहा था. मैं जानता था की इसकी तक़लीफ़ बहुत ज़्यादा होगी. मैं ड़र रहा
था की कहीं वो छीलना ना शुरू कर दे . तो मैंने अपनी पोजीशन को चें ज किया और 69 पोजीशन में आ
गया. अब मेरा लंड उसके चेहरे की सामने था बिलाल ने अपना मुंह खोला और जल्दी से मेरे लंड को
अपने मुंह में ले लिया और पागलों की तरह चूसने लगा.

अब हम दोनों एक दस
ू रे का लंड चूस रहे थे और मेरी 2 उं गलियां बिलाल की गान्ड़ में अंदर बाहर हो रही
थी. मैंने अचानक ही अपनी तिसरी उं गली भी उसकी गान्ड़ में दाखिल कर दी. बिलाल ने चीख़ना चाहा
लेकिन मेरा लंड उसके मंह
ु में होने की वजह से उसकी आवाज़ ना निकल सकी. मैंने अपनी उं गलियों की
हरकत को रोका और उसके लंड पर तेज़ तेज़ अपना मुंह चलाने लगा, कुछ दे र बाद बिलाल ने मेरा लंड
दब
ु ारा चूसना शुरू किया तो मैंने भी अपनी उं गलियों को हरकत दे ना शुरू कर दी. जल्द ही उसकी गान्ड़
मेरी 3 उं गलियों की आदि हो गई और हम दोनों एक दस
ू रे का लंड चूसने लगे. मेरे लंड से जूस निकलने
ही वाला था जब मैंने उसके लंड को अपने मुंह में फुलता महसूस किया, मैं समझ गया की वो भी झड़ने
वाला है मैं उसका लंड अपने मुंह से निकालना चाहता था लेकिन तभी मैंने सोचा की पहले ही अपनी
मणि टे स्ट कर चुका हूँ तो अब बिलाल की मणि मुंह में लेने से क्या फ़र्क़ पड़ता है और अगले ही लम्हे
हम दोनों ही के लंड ने एक दस
ू रे के मंह
ु में पानी छोड़ दिया.

झड़ने के बाद हम दोनों उठे और किसिंग करने लगे. जब के एक दस


ू रे के लंड का जस
ू हम दोनों के मंह

में मौजूद था. ये एक ऐसी किस थी हम दोनों के लंड की जूस से भरी हो गई. इसके बाद हम दोनों नहाने
गए. नहाने के बाद मैंने बिलाल से पुछा, " क्या तुम चुदाई के लिए तैयार हो " तो बिलाल ने हां में जवाब
दिया और हम दोनों बिस्तर की तरफ चल दिया. …

बिस्तर पर पहुंच कर मैंने बिलाल को कहा की अपने घुटनों और हाथों पर हो जाओ और अपनी गान्ड़ को
उपर की तरफ उठा कर डॉगी पोजीशन बना लो.

मैंने अपने लंड और उसकी गान्ड़ के सूराख पर आयल लगाया और बिलाल पर झूकते हूवे उससे कहा, "
मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ो और अपने सरू ाख पर सही जगह रखो जहां से मैं अंदर डालँ ू " उसने मेरे
लंड की नोक को अपनी गान्ड़ के सूराख पर टिकाये और मझ
ु े कहा, " हां भाई अब ज़ोर लगावो"

मैंने ज़ोर लगाया और मेरे लंड की टोपी अन्दर दाखिल हो गई … वो दर्द की शिद्दत से बिलबिला कर बोला
" ओईए मर गया. भाई बहुत दर्द हो रहा है उफ्फ्फ " मैं अपने हाथ को उसके सामने लाया और उसके लंड
को पकड़ कर हिलाने लगा ताकि उससे तक़लीफ़ का अहसास कम से कम हो. उसके लंड को अपने हाथ
से आगे पीछे करते हूवे मैंने एक झटका और मारा और मेरा लंड तक़रीबन 4 इंच तक उसकी गान्ड़ में
दाखिल हो गया. वो दर्द से घुटी घुटी आवाज़ में चिल्ला रहा था और मुझसे कह रहा था, " भाई बाहर
निकालो, बहुत दर्द हो रहा है "

मैंने उसे रिलैक्स करने की कोशिश की लेकिन वो लंड को बाहर निकालने के लिए मचल रहा था. मैं
जानता था की अगर अभी मैंने बाहर निकाल लिया तो शायद वो फिर कभी नहीं डालने दे गा. मैंने उसके
लंड पर अपने हाथ की हरकत को तेज़ कर दिया और आहिस्ता आहिस्ता अपना लंड अंदर करता रहा
यहाँ तक की मेरा लंड जड़ तक उसकी गान्ड़ में उतार गया. वो जिस्मानी तोर पर मुझसे कमज़ोर था इस
लिए मैंने उसको जकड़ रखा था. जबकि वो मस
ु लसल ट्राय कर रहा था मेरी गिरफ्त से निकलने के लिए.

कुछ दे र बाद वो पुरसुकून होता गया क्योंकी मेरे हाथ की हरकत उसके लंड के जूस को उबाल दे रही थी
और वो अपनी मंजिल के क़रीब हो रहा था, जब मैंने दे खा की अब वो परु सक
ु ू न हो गया है तो मैंने अपने
हाथ के साथ साथ अपने लंड को भी हरकत दे नी शुरू की और आहिस्ता आहिस्ता उसकी गान्ड़ में अंदर
बाहर करने लगा. अब मुझे इतना मज़ा आने लगा था की मुझे बिलाल की दर्द की परवाह ही नहीं रही थी.
वो भी अब रिलैक्स हो चक
ु ा था और दर्द अब मज़े में तबदील हो गया था. कुछ ही दे र बाद मैंने अपने
लंड का पानी उसकी गान्ड़ की अंदर ही निकल दिया और मेरे हाथ ने भी अपना काम करते करते बिलाल
को भी मंजिल पर पहुंचा दिया. हम कुछ दे र वहीं लेट कर अपनी सांसों को बहाल करते रहे .

फिर मैंने ख़ामोशी को तोड़ते हूवे का " तुम ठीक हो ना बिलाल. ज़्यादा दर्द तो नहीं हुआ?"

उसने कहा, " भाईजान शुरू में तो मेरी जान ही निकल गई थी लेकिन फिर थोड़ी दे र बाद आहिस्ता
आहिस्ता सब सही हो गया और मज़ा भी आने लगा."

मैंने कहा " चलो बहुत दे र हो चुकी है अब सोने की तयारी करो."

वो मुझे अभी चोदना चाहता था लेकिन मैंने कहा, " कल सारी रात तुम मुझे चोद लेना पर अभी नहीं. मैं
बहुत थक गया हूँ ". थकान तो उसे भी थी इस लिए वो जल्द ही मान गया और हम नींद की वादियों में
खो गए.

उस दिन के बाद ये हमारी रूटीन बन गयी हम रोज़ रात सोने से पहले एक दस


ू रे के लंड चूसते और
चद
ु ाई करते. फॅमिली में सब है रान थे की हम दोनों में बहुत अंडरस्टैंडिग
ं हो गई है .

हमारी अम्मी अक्सर मेरी बहनों को नसीहत करते हूवे कहने लगी की, " शर्म करो बजाये लड़ने झगड़ने के
आपस में अपने भाइयों की तरह सक
ु ू न और अमन से रहो और हम अपनी अम्मी की इन बातों को सन

कर मुस्कुरा दिया करते.
( अब यहाँ कहानी की इस मोड़ पर आ कर इस बात की ज़रूरत है की मैं अपनी आपि के बारे में चंद
बातें वाजे कर दं .ू )

मेरी आपि जिनका नाम रूबी है वो मुझसे 4 साल बड़ी है . बहुत ही पाकीज़ा है . आपि परदे की बहुत सख्त
पाबन्द है . घर से बाहर निकलते हूवे तो मक़
ु म्मल अबे, निक़ाब हत्ता की हाथों पर काले दास्ताने पांव में
काले मोज़े और ऑ ंखों पर काला चश्मा लगाती है . यानि की उनकी जिस्म का कोई हिस्सा तो बहुत दरू
की बात एक बाल भी नहीं नज़र आता है .

घर में भी हर वक़्त स्कार्फ़ बांधे होता है उनके सर पर. उनका सिर्फ चेहरा ही नज़र आता है . बाल, माथा
और कान भी स्कार्फ़ में छुपे होते है . मेरी ये बहन हर किसी का ख्याल रखने वाली, सबके लिए दिल में
दर्द रखने वाली नरम मिज़ाज की है . उनकी शख्सियत में " नफासत " बहुत ज़्यादा है . कहीं हलकी सी
गन्दगी भी बर्दाश्त नहीं होती उनसे. बेहद शफाफ चेहरा और उनका गुलाबी रं ग उनको बहुत पुरनूर और
उनका लिबास उनकी शख़्सियत को मज़ीद नफ़ीस बना दे ता है .

( हमारी छोटी बहन का नाम " नरू - उल - ऐन " है जो बिलाल की हम उम्र और जुड़वा है . हम प्यार से
उससे ऐनी कहते है . बाक़ी तफ़सील उस वक़्त बतायूँगा जब हमारी कहानी में ऐनी की एंट्री होगी )

मुझे और बिलाल को चुदाई का खेल खेलते 3 महीने हो गए थे. हम लंड चूसते थे गान्ड़ चाटा करते थे.
चद
ु ाई की तक़रीबन सब ही पोसिशन्स को हम लोग आज़मा चक
ु े थे. एक रात मैं बहुत ज़्यादा गरम हो
रहा था. तो मैंने बिलाल से कहा की वो आज फिर लड़की बने. उसने कहा " भाई ये नहीं हो सकता सब के
सब घर में है . हम बहनों की रूम में से उनकी ड्रेस नहीं ला सकते ". मैंने उससे कहा " जब सब खाना खा
रहे होंगे तो तुम उस वक़्त बहनों की रूम में चले जाना और कपड़े छुपा लेना " … उसने ऐसा ही किया
और खाना खाने के बाद जब हम अपने रूम में दाखिल हूवे तो बहुत एक्साइट हो रहे थे.

मैं अपने कपड़े उतारने लगा और बिलाल बाथरूम चला गया चें ज करने के लिए. बिलाल बाथरूम से बाहर
आया तो उसने सिर्फ एक क़मीज़ पेहेन रखी थी. ( गुलाबी क़मीज़ थी और वो क़मीज़ " ऐनी " की थी ). मैंने
उसे किस करना शुरू किया और कुछ ही लम्हों बाद वो मेरी टांगों के दरमियाँ बैठा था और मेरा लंड जड़
तक उसके मंह
ु में था. वो पागलों की तरह मेरे लंड को चस
ू े जा रहा था. आज बहुत दिन बाद मझ
ु े इतना
मज़ा आ रहा था. मैं उठा और अपने हाथों को पीछे की तरफ बिस्तर पर टिका कर बैठ गया. मेरी आँखें
बंद हो चुकी थीं बिलाल बहुत स्पीड से मेरे लंड को अपने मुंह में अंदर बाहर कर रहा था और मैं मज़े की
आखरी हदों को छु रहा था, मेरा सर पीछे की तरफ ढलक चुका था. मुझे महसूस हो रहा था की कुछ ही
सेकण्ड्स में मेरा लंड पानी छोड़ दे गा.
मेरे लंड का जूस निकलने ही वाला था की एक आवाज़ बम बन कर मेरी समयात से टकराई, " या खुदा …
ये तुम दोनों क्या कर रहे हूऊऊऊओ " मेरी तो तक़रीबन शिट निकलने वाली हूई जब मैंने दरवाज़े में रूबी
आपि को खड़ा दे खा. उनकी आँखें फटी हूई थीं और मुंह खुला हुआ था. वो शॉक की हालत में खड़ी थी …
और उनका चेहरा काले स्कार्फ़ में लाल सुर्ख हो रहा था. मुझे नहीं पता ये उस माहोल की टें शन थी या
बिलाल ने मेरे लंड को अपने मुंह से निकाला ही था और उसका चेहरा मेरे लंड के पास ही था इस लिए
अचानक मेरे लंड ने पिचकारी मारनी शरू
ु कर दी और मेरे लंड का वाइट पानी बिलाल की परू े चेहरे पर
चिपकता गया. मेरे मुंह से घुटी घुटी सी सिसकारिआं भी निकली थीं जो तक़लीफ़, मज़े और ड़र की मिली
जुली कैफ़ियत की अक्स कर रही थीं … मेरी सगी बहन, मेरी रूबी आपि की नज़रें मेरे लंड की नोक से
निकलते वाइट लावे पर जमी थी. इसके बाद मैं फ़ौरन सीधे हो कर बैठ गया और मैंने बिस्तर की चादर
को अपने जिस्म के साथ लपेट लिया. बिलाल भी फ़ौरन बेड़ शीट में छूपने की कोशिश कर रहा था उसकी
पोजीशन ज़्यादा ऑक्वर्ड थी क्योंकी रूबी आपि ने जब दे खा था तो वो मेरी टांगों की दरमियाँ बैठा था
और मेरा लंड उसके मंह
ु में था और सोने पे सह
ु ागा उसने कपड़े भी लड़कियों वाले पहन रखे थे.

" बिल्ल्लाल्ल ये क्या बकवास है और तुम ने कपड़े … ये ऐनी की क़मीज़ पहन रखी है ना तुम ने???"

रूबी आपि अपनी कमर पर दरवाज़ा बंद करते हूवे इंतहाई गुस्से से बोली. हमारी हालत ऐसी थी की काटो
तो बदन में लहूं नहीं. हमारा ख़न
ू ख़श्ु क हो चक
ु ा था.

" सागर तुम्हें शर्म आनि चाहिये … बड़ा भाई होने की नाते तुम इस तरह रोल मॉडल बन रहे हो … छोटे
भाई के साथ ऐसी गन्दी हरकतें करके… मैं सोच भी नहीं सकती थी की तम
ु …… ” वो इसी तरह थोड़ी दे र
हम दोनों पर चिलाती रहीं. उनका चेहरा गुस्से की शिद्दत से लाल हो रहा था. मैंने थोड़ा सा उठ़ कर अपने
कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया तो रूबी आपि ने चिल्ला कर कहा, " वहीं बैठे रहो मज़ीद कमीनगी मत
दिखाओ मेरी बातों को इग्नोर करके और उनके हाथ पांव गस्
ु से की वजह से काँपने लगे. कुछ दे र वो
अपनी हालत पर क़ाबू पाने के लिए वहीं खड़ी रहीं. फिर उन्होंने सोफ़े की तरफ क़दम बढ़ाये की उनकी
नज़र कंप्यूटर स्क्रीन पर पड़ी जहाँ पहले से ही पोर्न मूवी चल रही थी और एक काला लड़का एक अँग्रेज़
गोरी लड़की को डॉगी स्टाइल में चोद रहा था और काला स्याह लंड उस लड़की की गल
ु ाबी चत
ू में अंदर
बाहर होता साफ दिख रहा था. रूबी आपि ने चेहरा हमारी तरफ मोड़ा और कहा, " तो ऐसी नीच और
घटिया फिल्म्स दे ख दे ख कर तुम लोगों का दिमाग़ ख़राब हुआ है हां " रूबी आपि ने हमें ये बोला और
अपना रुख मोड़ कर कंप्यूटर की तरफ चल दीं.

रूबी आपि अभी कंप्यूटर से चंद क़दम के फासले पर ही थीं की मूवी मैं लडके ने अपना लंड लड़की की
चत
ू से निकाला ( उसका लंड तक़रीबन 10 इंच लम्बा होगा ) और लड़की फ़ौरन मड़
ु कर लडके की टांगों
की दरमियाँ बैठ गई और हल्लबी लंड को पकड़ कर अपने खुले हूवे मुंह की पास लाई और फ़ौरन ही
उसकी बेहद काले लंड से वाइट जूस निकलने लगा जो लड़की अपने मुंह में भरने लगी. रूबी आपि की
बढ़ते क़दम इस सिन को दे ख कर एक लम्हे के लिए रुक से गए. उनकी नज़रें स्क्रेन पर ही जमी थी और
जब उन्होंने आगे बढ़ कर कंप्यूटर को ऑफ किया तो उस वक़्त तक मूवी वाली लड़की काले आदमी के
लंड की जूस को पी चुकी थी और अब अपना खाली मुंह खोलकर कैमरा में दिखा रही थी. आपि कंप्यूटर
ऑफ करके मड़
ु ी तो मैं अपना शॉर्ट पहन रहा था और बिलाल भाग कर बाथ रूम में घस
ु चक
ु ा था. मैं 2
क़दम आपि की तरफ बढ़ा और ज़मीं पर बैठ गया और मैंने कहा, " सॉरी आपि हमारे ज़ेहन हमारे क़ाबू में
नहीं रहे थे हम बहुत एक्साइट हो गए थे ".

" क्या मतलब है तुम्हारा एक्साइटे ड थे? हालांकि तुम इतने पागल हो गए थे की अपना सगा और छोटा
भाई भी तुम्हें नहीं नज़र आया … किसी लड़की के साथ मुंह नहीं काला कर सकते थे. तो कम से कम
कहीं बाहर ही कोई अपने जैसी खबीस रूह वाला लड़का दे ख लेते जो तुम्हारा सगा भाई तो ना होता. " मेरे
पास उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं था लेकिन मैंने ये महसूस किया था की कंप्यूटर स्क्रीन पर
नज़र पड़ने के बाद से आपि के लेहजे में वाजे फ़र्क़ आ गया था और उनका गुस्सा तक़रीबन ग़ायब ही हो
चक
ु ा था. कुछ दे र ख़ामोशी रही आपि किसी सोच में डूबी हूई सी लग रही थीं.

मैंने झिझकते झिझकते खोंफज़दा सी आवाज़ में उनसे पछ


ु ा " क्या आप अम्मी अब्बू को भी बता दोगी "
वो ऐसे चौंकी जैसे यहाँ से बिल्कुल ही ग़ाफ़िल थीं और बोली, " मैं नहीं जानती की मैं क्या करूंगी लेकिन
ये ही कहूंगी की तुम दोनों को शर्म आनि चाहिये. ये सब करना ही है तो घर से बाहर किसी और के साथ
जा कर मरो " फिर कुछ दे र और ख़ामोशी में ही गुज़र गई. मैंने आपि के चेहरे की तरफ दे खा तो वो छत
की तरफ दे ख रही थीं और उनका ज़ेहन कहीं और था. अब उनका गुस्सा मुकम्मल तोर पर ख़तम हो
चुका था, चेहरा भी नार्मल हो गया था. लेकिन वो खोई खोई सी थीं. मेरी नज़रों को अपने चेहरे पर महसूस
करके उन्होंने मेरी तरफ दे खा और कहा उठ़ो और जा कर बिलाल को दे खो. मैं उठा तो आपि ने भी चेयर
छोड़ दी और मेरे साथ ही बाथ रूम की तरफ चल दी. दरवाज़ा लॉक था आपि ने दरवाज़ा बजाया अंदर से
कोई आवाज़ नहीं आई. तो वो बोली, " बिलाल मुझे बिल्कुल भी तुमसे ये उम्मीद नहीं थी. तुम दोनों ही
गन्दगी में धंसे हूवे नापाक इंसान हो " और अंदर से बिलाल की रोती हूई आवाज़ आई, " आपि प्लीज मुझे
माफ् कर दे . आपि प्लीज अम्मी अब्बू को नहीं बताना ". ये कह कर उसने बाक़ाएदा रोना शरू
ु कर दिया.

रूबी आपि ने मेरी तरफ दे खा और कहा, " इसे चुप करवाओ और शर्म करो कुछ ". ये कह कर वो दब
ु ारा
कंप्यूटर टे बल की तरफ चली गयीं और वहां कुछ करने के बाद रूम से बाहर चली गई. मैंने भाग कर
दरवाज़ा लॉक किया और बाथरूम के पास आ कर बिलाल से कहा, " आपि चली गयी है दरवाज़ा खोल
और बाहर आ जा " ये कह कर मैं बिस्तर पर जा कर लेट गया और आपि के बदलते रवैय्ये के बारे में
सोचने लगा.

कुछ दे र बाद बिलाल बाहर आया और मेरे पास आ कर लेट गया और ड़रे सहमे लेहजे में बोला, "
भाईजान अगर आपि ने अम्मी अब्बू को बता दिया तो …? " मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था
लेकिन मैंने बिलाल से कह दिया यार तुम परे शान ना हो कुछ नहीं होगा. आपि किसी को नहीं बतायेंगी"

मैंने बिलाल को तो समझा बझ


ु ा कर चप
ु करवा दिया लेकिन हक़ीक़त ये ही थी की मैं खद
ु भी डरा हुआ
था लेकिन ड़र के साथ साथ ही मुझे तश्वीश थी आपि की बदलते रवैय्या के बारे में . ये सब सोचते ही
मुझे ख्याल आया की मैं कंप्यूटर में से अपना पोर्न मूवीज का फोल्डर तो डिलीट कर दं ू ताकि आपि अब्बू
को बता भी दे तो कोई ऐसा सबत
ू तो ना हो.

मैंने बिलाल की तरफ दे खा तो वो सो चुका था. मैं उठा और कंप्यूटर टे बल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने
लगा तो मैंने दे खा की उसकी पावर कॉर्ड ग़ायब थी. कुछ दे र तो मझ
ु े समझ नहीं आया लेकिन फिर याद
आया की आपि रूम से जाने से पहले कंप्यूटर के पास आई थीं. यक़ीनन वो ही पावर कॉर्ड निकाल कर ले
गई होंगी लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया ये ही सोचते हूवे मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गया और मेरे
ज़हन में ये ही बात आई की आपि यक़ीनन अम्मी या अब्बू को बता दे गी और इसी लिए वो पावर कॉर्ड
निकाल कर ले गई है ताकि हम सबूत ना मिटा सकें. ये सोच ज़हन में आते ही मुझे ख़ौफ़ की एक लेहेर
ने घेर लिया और कुछ दे र बाद ही जब नींद भी अपना रं ग ज़माने लगी तो मैंने अपनी फ़ितरत की
मत
ु ाबिक़ अपने ज़ेहन को समझा दिया की जो भी होगा दे खा जायेगा. ज़्यादा से ज़्यादा अम्मी अब्बू घर
से निकाल दें गे ना. तो मैं कुछ भी कर लँ ग
ू ा अब मैं खुद भी कमा सकता हूँ … ( ऐसी बाग़ी सोचें वैसे भी
उस उमर का खासा है जिस उमर में मैं उस वक़्त था. ) बस ऐसी ही सोचो में उलझा उलझा मैं नींद की
आगोश में चला गया.

अगली सुबह जब हमारी ऑ ंख खुली तो ऑ ंख खुलते ही ज़हन में पहला सवाल ये ही था की अब क्या
होगा?? मैं कॉलेज के लिए तैयार हो कर बाहर निकला तो अम्मी टे बल पर नाश्ता लगा रही थीं. जबकि
डेली हमें नाश्ता रूबी आपि बनाकर दे ती थीं और हमारे निकलने के बाद वो नाश्ता करके युनिवर्सिटी
जाती थीं. मैं टे बल पर बैठा ही था की बिलाल भी सीढ़ियां ( स्टै र्स ) उतर कर नीचे आता दिखाई दिया. उसी
वक़्त रूबी आपि और ऐनी की मश्ु तर्का रूम का भी दरवाज़ा खल
ु ा और ऐनी स्कूल यनि
ू फार्म पहने बाहर
आती दिखाई दी और इसी आस में मैंने दरवाज़े में से अंदर दे ख लिया की रूबी आपि अभी तक बिस्तर
पर ही थीं. बिलाल टे बल पर आ कर बैठा तो उसका चेहरा ऐसा हो रहा था जैसे बिली को सामने दे ख कर
चाहे का हो जाता है . मैंने उससे कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था की किचन से अम्मी और ऐनी
नाश्ता ले कर बाहर आती नज़र आ गयीं.

अम्मी ऐनी से कह रही थी, " सच सच बताओ मुझे. कल तुम लोगों ने बाहर से कोई उलटी सीधी चीज़
मंगा कर खाइ थी ना. इसी लिए रूबी का पेट ख़राब है और वो यनि
ू वर्सिटी भी नहीं जा रही है " और ऐनी
मुसलसल इंकार कर रही थी. खैर उनकी इस बहस से मुझे रूबी आपि की ना उठने की वजह मालूम हो
गई और बिलाल के चेहरे पर भी ये सुन कर सुकून छा गया था की आपि अभी अपने रूम में ही सो रही
है . मैंने भी शक
ु र अदा किया की अच्छा ही हुआ की आपि से सामना नहीं हुआ. मैं बज़ाहिर तो परु सक
ु ून
था लेकिन हक़ीक़तन खोंफज़दा तो मैं भी था ही. हम घर से बस स्टॉप तक साथ ही जाते थे और फिर
अपनी अपनी बस में बैठ जाते थे. आज भी हम तीनो साथ निकले, बिलाल और ऐनी को उनकी स्कूल्ज
की बसेस में बीठाने के बाद मैं भी अपने कॉलेज की तरफ चल दिया लेकिन मेरा ज़हन बहुत उलझा हुआ
था. अजीब ना समझ आने वाली कैफ़ियत थी. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बात है जो ज़ेहन में कहीं अटक
गई है लेकिन क्लियर नहीं हो रही है . इसी उलझन में मैं कॉलेज से भी जल्दी ही निकल आया. घर में
दाखिल होते हूवे भी मैंने ये इहतिआत रखा की आपि सामने ना हो. क्योंकी मैं रूबी आपि का सामना नहीं
करना चाहता था.

अंदर दाखिल होने पर मैंने चारों तरफ नज़र दौड़ाई तो मझ


ु े कोई भी नज़र नहीं आया जबके मेरे हिसाब
से अम्मी के साथ साथ रूबी आपि को भी घर में ही मौजूद होना चाहिये था. जब मुझे कोई नज़र ना
आया तो मैंने भी सर को झटका और उपर अपने रूम में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ चल दिया.

मैं सीढ़ियों से ज़रा दरू ही था की मैंने अम्मी को उनकी रूम से निकल कर सीढ़ियों की तरफ जाते दे खा.
उसी वक़्त उनकी नज़र भी मुझ पर पड़ी तो वो फ़ौरन मेरी तरफ आयी और परे शान हो कर पुछने लगी, "
क्या हुआ सागर खैरियत तो है ना बेटा इतनी जल्दी वापस आ गए कॉलेज से ". तो मैंने सर दर्द या पेट
दर्द जैसे बहाने बनाने से ऐहतराज़ किया की उस पर अम्मी का लेक्चर सुना पर जाता और कह दिया, "
आज टीचर्स ने हररताल कर रखी है किसी बात पर"

अम्मी ने अपनी बगल में दबाये अपने बुरक़े को खोला और बुर्का पेहेनते पेहेनते टीचर्स को कोसने लगी.
फिर निक़ाब बाँधते हूवे उन्होंने मुझे कहा, " मैं तुम्हारी नजमा खाला के घर जा रही हूँ उसने बुलाया है ,
कोई काम है उसे. ये ही रूबी को बताने उपर जा रही थी की दरवाज़ा बंद कर ले. कब से उपर जा कर बैठी
है पता है की मुझसे सीढ़ियां नहीं चढ़ी जाती है लेकिन तुम लोगों को परवाह कब है सब ऐसे ः हो. "
उन्होंने ये कहा और मुझे दरवाज़ा बंद करने का इशारा करते हूवे बाहर निकल गयीं.
मैंने डोअर लॉक किया और सना आपि के बारे में सोचते हूवे उपर अपने रूम की तरफ चल पड़ा उपर या
तो हमारा रूम है या स्टडी रूम है . मैं पहले स्टडी रूम की तरफ गया की सना आपि को दे ख लूं लेकिन
स्टडी रूम में सना आपि को ना पा कर मुझे बहुत हैरत हो गई. स्टडी रूम में ना होने का मतलब ये ही
था की वो हमारे रूम मैं है . मेरी छाती हिज ( सिक्स सेंसे ) ने मुझे आगाह कर दिया की कुछ गड़बड़ है . मैं
दबे पांव चलता हुआ अपने रूम की दरवाज़े पर आया और हल्का सा दबाव दे कर दे खा लेकिन दरवाज़ा
अंदर से लॉक था. मैं वापस स्टडी रूम में आया और खिड़की की बाहर बने छाजै ( शेड ) पर उतर गया. शेड
पे चलते चलते मैं अपने रूम की खिड़की तक पहुंचा और रूम की तिसरी खिड़की पर हल्का सा दबाव
दिया तो वो खुलती चली गयी. हम इस एक खिड़की का लॉक हमेशा ओपन रखते थे की कभी इसकी कोई
ज़रूरत पड़ ही सकती है . ( और आज फ़ायदा पहुंचा ही दिया था इस हरकत ने हे हेहे )

वै से भी हमारा ये रूम उपर वाली स्टोरी पर था तो कोई ऐसा खतरा भी नहीं था की कोई चोर डाकू आ
जाये और हमारे घर की चारों तरफ लॉन था उसके बाद दीवारें बनी थीं वो भी 10 फ़ीट ऊंची और उन पर
कांच लगे थे. बहरहाल मैंने आहिस्तगी से सर उठा कर खिड़की से अंदर झाँका ( इस खिड़की से कंप्यूटर
टे बल इस एंगल पर थी की यहाँ से कंप्यूटर स्क्रीन भी नज़र आती थी और चेयर पे बैठे हूवे बन्दे का
दांए साइड पोज़ भी दे खा जा सकता था उसकी कमर की कुछ हिस्से के साथ साथ. ज़रा तिरछा सा एंगल
बनता था )

( यहां जरूरी है की मैं अपनी आपि के जिस्म के बारे कुछ डिटे ल्स बयां कर दं ू ताकि कहानी पढते वक़्त
आप लोगों की ज़हनों में मेरी सगी बहन की तस्वीर बनी हूई हो. मेरी आपि मुझसे 4 साल बड़ी है . उनका
रं ग गोरा नहीं बल्कि गुलाबी है . स्किन बिल्कुल शफाफ है . उनकी हाईट तक़रीबन 5 फ़ीट 4 इंच है , उनका
जिस्म भरा भरा था पेट बिल्कुल नहीं था. टाँगें काफी लम्बी लम्बी और भरी भरी राणें ( जांघे ) है उनकी
और उनकी सीने के 2 उभार काफी बड़े और वेल शेप्ड है जो शायद जीन्स की वजह से है की मेरे परू े
खानदान में ही सब औरतों के मम्मे बड़े बड़े ही है .

जब मेरी नज़र अंदर पड़ी तो मेरा मुंह है रत से खुला का खुला रह गया और मेरा लंड एक ही झटके ले
कर तन गया. सामने मेरी आपि चेयर पर बैठी थीं कंप्यट
ू र स्क्रीन उनकी सामने थी और की बोर्ड उनकी
गोद में पड़ा था उन्होंने स्काई ब्लू क़मीज़ जिस पर काले फूल प्रिंटेड थे पहन रखी थी, सर पर गहरे ब्लू
स्कार्फ़ ऐसे ही बांधे रखा था जैसे वो बांधे करती है और वाइट कॉटन की ही सलवार पेहनी हूई थी
जिसकी पें चों ने उनकी पैरों को आधे से ज़्यादा धक् रखा था.

स्क्रीन पर वो रात वाली ही मूवी चल रही थी जिसमें सब काले आदमी और गोरी लड़कियां थीं और ये
सिन थ्रीसम था जिसमें गोरी लड़की डॉगी पोजीशन में थी और बेहद काला लंड उसकी खब
ू सरू त गल
ु ाबी
चूत में अंदर बाहर हो रहा था और ब-यक-वक़्त ही एक और काले लंड को उसके होंठो ने अपनी गिरफ्त
में ले रखा था और सामने बैठी मेरी सगी बहन मेरी आपि अपने दांए हाथ से की बोर्ड को कंट्रोल कर रही
थी और बाये हाथ की 2 उं गलियों से उन्होंने अपने बांये मम्मे की चूंचियों को पकड़ रखा था और उसे
चुटकी में मसल रही थीं. उन्होंने अपनी बांये टांग पर अपनी दांए टांग को क्रॉस कर रखा था जिसकी
वजह से मुझे अपनी बहन की हसीं राण और दांए कुल्हे के नीचले हिस्से का भी दीदार हो रहा था. अपनी
सगी बहन को इस हालत में दे ख कर मेरी क्या हालत थी इसका अंदाज़ा आप बा खब
ू ी लगा सकते है .
मैंने अपनी पें ट की ज़िप खोलकर अपने लंड को बाहर निकाल लिया था लेकिन मैं उसे हाथ भी नहीं लगा
रहा था की मझ
ु े पता था की मेरे हाथ टच करते ही मेरा लंड अपना पानी बहा दे गा बगैर हाथ लगाये ही
मेरे लंड से क़तरा क़तरा सफेद मादा निकल रहा था। चंद सेकण्ड्स के वक़्फ़े से मेरा लंड एक झटका
खाता था और एक क़तरा बाहर फैं क दे ता था, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे परू े जिस्म में आग लगी
हूई है . मुझे अपने कानों से धुवां निकलता महसूस हो रहा था. आपि चेयर पर बिना हिले डुले ऐसे बैठी थीं
जैसे की वो बत
ू है . मव
ू ी में अब दोनों लडके अपने अपने लंड चत
ू और मंह
ु से निकाल कर साथ साथ खड़े
हो गए थे और वो लड़की उन दोनों की सामने घुटनों के बल बैठ कर बारी बारी दोनों का लंड चूस रही
थी और हाथ में पकड़ कर अपने हाथ को आगे पीछे हरकत दे रही थी. फिर उस लड़की ने लंड को अपने
मंह
ु से निकाला और अपने सीने की उभारों पर रगडने लगी. फिर उसने लौड़े की नोक को अपने चंचि
ू यों
पर दबाया ही था कि लंड से गाढ़ा सफेद जूस निकल निकल कर उसके मम्मों पर गिरने लगा और वो
अपने हाथ से अपने दोनों मम्मों पर लंड के पानी की मालिश करने लगी, उसी वक़्त दस
ू रे काले आदमी
ने लड़की की सर को पकड़ कर अपने लंड की तरफ घुमाया और उस लड़की ने उसके लंड को पकड़ कर
एक बार पूरे लंड को जड़ तक अपने मुंह में भरा और फिर लंड को मुंह से निकल कर सिर्फ उसकी नोक
को अपने नीचले होंठ पर टिका दिया और अपना मुंह जितना खोल सकती थी खोल लिया और लंड को
अपनी मुठ्ठी में पकड़ कर हाथ को आगे पीछे करने लगी. फ़ौरन ही उसके लंड से भी गाढ़ा गाढ़ा सफेद
पानी निकलने लगा जो लड़की के मंह
ु में जमा होता रहा. उसी वक़्त आपि के जिस्म को भी झटका सा
लगा उन्होंने की बोर्ड अपनी गोद से उठा कर सामने टे बल पर रख दिया उन्होंने मीडिया प्लेयर की कर्सर
को हरकत दी और मूवी वहीं से शुरू हो गया जहाँ से लड़की ने जड़ तक लंड को चूस कर अपने नीचले
होंठ पर टिका दिया था ( शायद वो ये सिन फिर दे खना चाहती थीं ). आपि ने भी अपने दोनों हाथों को
सामने टे बल पर रखा और टे बल का किनारा बहुत मज़बूती से पकड़ लिया. उन्होंने अपनी टांगों को आपस
में भींच लिया. आपि की गर्दन की रगें अकड़ गई थीं उनकी गिरफ्त टे बल पे मज़बूत होती जा रही थी
और परू ा जिस्म अकड़ गया था. सर गर्दन की अकड़ की वजह से पीछे को झक
ु सा गया था अचानक
उनकी जिस्म ने 2-3 झटके लिए और उनको हिचकियां भी आयें. ( शायद अपनी सिसकियों को रोक रही
थीं इस वजह से सिसकियाँ हिचकी में तबील हो गई थीं ) … उसी वक़्त मेरे लंड ने भी झटके लिए और
दिवार पर पिचकारी मारने लगा मेरी ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा हुआ था की बगैर हाथ टच हूवे मैं झड़
गया था. झटके खाने के बाद भी आपि का जिस्म तक़रीबन 30 सेकंड तक अकड़ा रहा और फिर उनका
बदन ढीला पर गया और वो निढाल सी हो गयीं. शायद मेरी आपि भी मेरी तरह बगैर टचिंग की ही
अपनी मंजिल पा गयी थीं …

मैं नहीं चाहता था की आपि को मेरी मौजूदगी का पता चले. मैं जिस रास्ते से यहां तक आया था उसी
रास्ते पर चलता नीचे चला गया. मुझे उम्मीद थी की आपि भी अब फ़ौरन ही नीचे आ जायेंगी इस लिए
मैं बाहर वाले मेन गेट पर आ कर खड़ा हो गया की आपि को सीढियाँ उतरते दे ख कर घर में ऐसे
दिखाऊंगा की उन्हें ऐसा ही ज़ाहिर हो की मैं अभी अभी घर आया हूँ. लेकिन 10, 15 मिनट वहां खड़े होने
के बावज़ूद भी आपि नीचे नहीं उतरी तो मैं ऑटोलॉक ऑन करते हूए घर से बाहर निकल गया और
टाइम पास करने के लिए स्नूकर क्लब की तरफ चल दिया. मेरा ज़हन बहुत कंफ्यूज था. मेरा ज़हन
अपनी सगी बहन ( जो बहुत पाकीजा, नेक और शरीफ थी ) का ये रूप क़बूल नहीं कर रहा था. अपनी बहन
जिसकी मम्मों को मैंने कभी दप
ु ट्टे के बगैर नहीं दे खा था अभी उन मम्मों पर सजे खूबसूरत चूंचियों को
चुटकी में मसलता हुआ दे ख कर आ रहा था. हां वो थे तो क़मीज़ में छुपे लेकिन शायद ब्रा से बेनिआज़
थे. मेरी बहन की वाइट सलवार में छुपी राण और कुल्हे का नीचला हिस्सा मेरी नज़र में घम
ू रहा था.

" भाई साहब चना चाट खाओगे बिल्कुल ताज़ा है " की आवाज़ पर मेरी सोचो का तसलसल
ु टूटा तो मझ
ु े
पता चला की मैं जा तो सनुकर क्लब रहा था लेकिन पहुंच गया था अपने एरिया में बने एक पार्क में .

शायद मैं सोचने के लिए तन्हाइ चाहता था और मेरा ज़ेहन मझ


ु े ला शयोरि तोर पर यहाँ ले आया था …

सारा दिन घर से बाहर गुजारने के बाद जब मैं घर पहुंचा तो रात की 9 बज रहे थे. घर में घुसते ही अब्बू
की आवाज़ ने मेरा इस्तक़बाल किया. “यार कहाँ थे बेटा, सारा दिन तुम्हारा सेल फ़ोन भी ऑफ मिल रहा
है " मैंने उनकी सामने वाली चेयर पर डाइनिंग टे बल पर बैठते हूवे आयें बायें शायें करके बहाना बनाया
और टाल दिया. तो अम्मी ने कहा की " खाना खा कर जल्दी सो जाना सुबह 5 बजे की फ्लाइट है तुम्हारी,
गांव ( विलेज ) जाना है तम
ु ने नजमा खाला के साथ. बिलाल शाम 4 बजे ही इजाज़ ( नजमा खाला की
शोहर ) के साथ गांव चला गया है ."

मैंने अब्बू की तरफ सवालिया नज़रों से दे खा. तो उन्होंने तफ़सील से बताया वहां हमारी कुछ ज़मीनें है . जो
मेरे और बिलाल की नाम पर है . उनके साथ ही हमारी खाला की भी ज़मीं है बस उन्ही का कुछ मसला
था ( जिसकी तफ़सील बयां करके मैं आप लोगों को बोर नहीं करना चाहता क़िस्सा मुख़्तसर. )
अम्मी ने कहा, " तुम्हारा बैग रूबी ने तैयार कर दिया होगा अपना ज़रूरी सामान जो साथ ले जाना चाहो
वो भी रूबी को दे दे ना वो रख दे गी. " रूबी आपि का नाम सुनते ही मझ
ु े आज सुबह का दे खा हुआ सिन
याद आ गया और फ़ौरन ही मेरे लंड ने रिस्पोंस में मुझे सॅल्यूट दिया.

मैं खाना खाना खा चक


ु ा था. मैंने अम्मी अब्बू को खद
ु ा हाफिज कहा और उन्हें कह दिया मैं सब
ु ह नजमा
खाला को उनके घर से ले लूंगा और सीढ़ीयों की तरफ चल दिया. मैंने पहली सीढ़ी पर क़दम रखा ही था
की उपर से रूबी आपि आती दिखाई दीं. उन्हें दे ख कर मेरा दिल ज़ोर से धड़का और फिर जैसे मेरी
धड़कन रुक सी गई. उन्होंने सब
ु ह वाला ही सट
ू पहन रखा था और वो ही स्कार्फ़ बांधे हुआ था गहरे ब्लू
रं ग का और एक बड़ी सी ग्रे रं ग की चादर उन्होंने अपने पूरे जिस्म की गिर्द लपेट रखी थी ( लेकिन वो
बड़ी सी चद्दर भी आपि की सीने के बड़े बड़े उभारों को मुकम्मल तोर पर छुपा लेने में नाकाम थी ) जब
वो मेरे सामने पहुंची और मेरी नज़रों से उनकी नज़र मिली मेरी नज़र फ़ौरन झुक गई लेकिन इस एक
नज़र ने मुझे ये बता दिया था की आपि की नज़रों में भी अब वो दम नहीं था की वो मझ
ु से ऑ ंख मिला
सकतीं, उनकी नज़र भी फ़ौरन ही झुकि थी. ( आखिर उनकी दिल में भी चोर बस ही गया था )

मैं गांव में 5 दिन गुज़र कर आज ही वापस पहुंचा था और नजमा खाला को उनके घर छोड़ कर बस
अपने घर में दाखिल हुआ ही था की सामने डाइनिंग हॉल में ही अम्मी बैठी हूई मिल गयीं, उन्होंने सलाम
का जवाब दिया और मेरा माथा चम
ु ने के बाद पहला सवाल बिलाल के बारे में किया की वो कहाँ है तो
मैंने बताया की वो भी कल आ जायेगा, मेरा जवाब ख़तम होते ही अम्मी ने दस
ू रा सवाल दाग़ दिया, गांव
की जिस काम के लिए हम गए थे उस बारे में . मैंने सिर्फ इतना ही जवाब दिया की " सब काम खैर
खैरियत से निपट गया है . तफ़सील आप नजमा खाला से ही पुछ लेना " मुझे पता था की अगर मैंने ये
बात शुरू कर दी तो अम्मी सारा दिन ही गुज़र दे गी एक,एक बन्दे के बारे में मालूम करके ही सुकून से
बैठेंगी. इस लिए ये बात नजमा खाला के सर डाल कर मैंने बात ही ख़तम कर दी.

मैं उठा ही था की अम्मी ने हुकुम दिया की, " मेरे रूम से बुर्का ला दं ू मैं अभी जाती हूॅं नजमा के पास ".

मैंने बर्का
ु लाकर दिया और पछ
ु ा " अब्बू कहाँ है ?"

तो अम्मी बताने लगी " तम्


ु हारे अब्बू को तो ऑफिस की अलावा कुछ सझ
ु ता नहीं, आज संडे था … छुट्टी
आराम करने के लिए होती है लेकिन उनके ऑफिस वालों ने कोई पार्टी अरें ज की हूई है जिसमें फॅमिली
लंच और कोई मैजिक शो का इंतज़ाम भी है जो रात तक चलेगा.

" और वो निकम्मी ऐनी भी मैजिक शो का सुन कर उनके साथ तैयार हो गई जाने को. उसे भी साथ ले
गए है और रूबी की तो ये मुई पढ़ाई ही नहीं जान छोड़ टी. कोई थीसीस लिख रही है " निक़ाब और
औरत ". सुबह 9 बजे उपर जाती है स्टडी रूम में तो रात तक वहां ही होती है . अभी तुम्हारे आने से एक
मिनट पहले ही उपर गई है मैं अपने घुटनों की दर्द की वजह से उपर जा नहीं सकती बस नीचे से
आवाज़ें मारती रहती हूॅं कभी सुन ले तो जवाब दे दे ती है . नहीं तो खुद ही खामोश हो जाती हूँ और अब
तो उसने घर में भी अबे पेहेनना शुरू कर दिया है 24 घंटे अबे पहने रहती है . ( अम्मी ने रूबी आपि के
बारे में जो बात कही उसने मेरे दिमाग़ में लाल बत्ती जला दी थी. ) ये बात ख़तम करने तक वो बुर्का
और निक़ाब कर चक
ु ी थीं मझ
ु े हाथ से डोअर लॉक करने का इशारा करते हूवे बाहर की तरफ चल पड़ी
तो मैंने उनके पीछे चलते हूवे कहा की आप ऑटो लॉक क्यों नहीं लगा कर जाती है . छे नंबर का तो कोड
है छे बटन ही दबाने होते है ना. तो वो बाहर निकालते हूवे चलते चलते बोली, " जब तुम लोगों में से कोई
पास नहीं होता तो खद
ु ही लॉक करती हूँ. अब बंद कर लो दरवाज़ा और घर का ख्याल रखना, मैं खाना
नजमा के पास ही खा कर आऊंगी ".

अम्मी के जाने के बाद मैंने दरवाज़ा लॉक किया और उपर अपने रूम की तरफ चल पड़ा. मैं उपर आखरी
सीढ़ी पर था जब मैंने आपि को स्टडी रूम से निकलते दे खा वो निकल कर स्टडी रूम का दरवाज़ा बंद
कर रही थीं. पहली ही नज़र में मैंने जो चीज़ नोटिस की वो सना आपि का गहरे काले रं ग का सिल्क का
अबे था जिसकी लम्बाई इतनी थी की आपि की पांव भी आबए में ही छुपे हूवे थे और ग्रे रं ग का स्कार्फ़
उन्होंने अपने मख़सूस अंदाज़ में बांध रखा था. मैं बगैर कुछ सोचे समझे दबे पांव नीचे की तरफ चल
पड़ा.

नीचे पहुंच कर मैं डाइनिंग हाल में ही खड़ा हो गया और आपि के आने का इन्तज़ार करते हूवे अपनी
सोच में अपने आप को सरज़निश करने लगा कर आपि वाकया ही स्टडी रूम में होती है और मैं अपनी
सगी बहन और पाकीज़ा और नैक बहन के बारे में केसी बातें सोच रहा हूँ. 2 मिनट बाद मैंने सोचा आपि
को अब तक नीचे आ जाना चाहिये था और इस सोच के साथ ही मैंने उपर की तरफ अपने क़दम बढ़ा
दिया. उपर पहुंच की मैंने पहले स्टडी रूम की दरवाज़े को दे खा लेकिन वो बाहर से लॉक था. फिर मैंने
अपने रूम की दरवाज़े पर दबाव डाल कर दे खा लेकिन वो अंदर से लॉक था मैं स्टडी रूम की तरफ गया
और खिड़की के रास्ते शेड से होता हुआ अपने रूम की खिड़की तक पहुंच गया और मैंने नीचे झुके झुके
ही खिड़की पर दबाव डाला तो वो हमेशा की तरह आज भी अनलॉक ही थी। मैंने अंदर नज़र डाली तो
रूम खाली था लेकिन उसी वक़्त बाथरूम का दरवाज़ा खल
ु ा और रूबी आपि बाहर आयी और सीधी
कंप्यूटर की तरफ बढ़ी. उनकी बेताबी उनकी हर अंदाज़ से ज़ाहिर थी. वो चेयर पर बैठीं और कंप्यूटर ऑन
करने के बाद डायरे क्ट हमारे पोर्न मूवीज वाले फोल्डर तक पहुंची और उन्होंने एक मूवी ओपन कर ली.
जब मव
ू ी ओपन हो गई तो मैंने दे खा ये मव
ू ी नंबर 109 थी और हमारे मजमए
ू में टोटल 111 मव
ू ीज थीं
जिसका मतलब ये था की आपि ने पिछले 5 दिनों में तक़रीबन सारी ही मूवीज दे ख डाली थीं. मूवी स्टार्ट
हो चुकी थी और एक कपल किसिंग कर रहा था, जैसे जैसे मूवी आगे बढती जा रही थी आपि की साँसें
तेज़ होती जा रही थीं. मैंने भी अपने लंड को पें ट की क़ैद से आज़ाद कर दिया था और बिल्कुल हलके
हाथ से सेहला रहा था. आपि ने भी अपनी दांए हाथ से अपने सीने की उभरी चुचियों को नरमी से
सेहलाना शुरू कर दिया था और कभी कभी आपि अपने एक मम्मे को अपने हाथ में भर कर ज़ोर से
दबा भी दे ती थी. आपि के सीने के उभार बगैर दप
ु ट्टे के दे ख कर मेरी बुरी हालत थी. आपि ने अब दोनों
हाथों से अपने दोनों मम्मों को बहुत ज़ोर से मसलना और दबोचना शरू
ु कर दिया था. अज़ीयत और
मुकम्मल पूरा आनंद ना मिलने का क-र-ब आपि के चेहरे से ज़ाहिर हो रहा था. उनकी अजीब सी हालत
थी, उन्होंने अपने नीचले होंठ को बहुत मज़बूती से दांतों में दबा रखा था. अचानक आपि ने अपने दोनों
हाथ सर से सीधे उपर उठाई और एक अंगड़ाई ली और अपने हाथों को सर पर रख कर अपने स्कार्फ़ को
नोच कर उतारा और अपनी दांए साइड पर उछाल दिया और बाल खोल दिये.

मूवी में अब एक लड़की सीधी लेटी हूई थी और उसने अपनी चूत को अपने दांए हाथ से छूपा रखा था
और बाये हाथ की बड़ी उं गली से इशारा करते हूवे लडके को अपनी तरफ बुला रही थी. लड़का अपने लंड
को हाथ में पकड़े उसकी तरफ बढ़ रहा था और फिर अगले ही लम्हे वो लड़का लड़की की टांगों की
दरमियाँ बैठा और अपना हाथ लड़की के उस हाथ पर रखा जिस हाथ से चत
ू छुपी हूई थी और उसके
हाथ को हटाते ही फौरन अपना मुंह उस लड़की की चूत से लगा दिया.

उसी लम्हे आपि ने एक आह्ह्ह भरी और अपने बाये हाथ को आबए के उपर से ही अपनी टांगों की
दरमियाँ वाली जगह पर रखा और उस जगह को ज़ोर से दबोच लिया और दस
ू रे हाथ से अपने दांए दध

को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगी. मैं अपनी सगी बड़ी बहन का ये रूप दे ख कर बिल्कुल दं ग रह गया. आपि
कुछ दे र तक यूं ही अपने दांए दध
ू को दबाती और टांगों की बिच वाली जगह को दबोचती और ढीला
छोड़ती रही. अब स्क्रीन पर सिन चें ज हो गया था. वो लड़की सीधी लेटी थी उसने अपनी टाँगें फैला रखी
थी और लड़का उसकी टांगों के दरमियाँ उस पर परू ा झुका हुआ लड़की के होठों को चूस रहा था और
लड़की की चत
ू में अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था. कैमरा व्यू बैक का था इस लिए लंड का अंदर
बाहर होना क्लोज अप में दिखाया जा रहा था और साथ ही लड़की की गान्ड़ का सूराख भी नज़र आ रहा
था. इसी असना में एक और लडके की एंट्री हो गई और उसने अपने लंड की नोक को लड़के की गान्ड़ की
सरू ाख पर टिकाये और एक ही झटके में तक़रीबन आधा लंड अंदर उतार दिया. इस सिन को दे खते ही
आपि के मुंह से एक तेज आह्ह्ह्हह्ह निकली और उन्होंने अपनी टांगों की बीच वाले हाथ को उठाया
और ज़ोर ज़ोर से 2-3 दफ़ा उसी जगह पर ऐसे मारा जैसे थप्पड़ मार रही हो और फिर ज़ोर से उस जगह
को दबोच लिया. ऐसा लग रहा था की इस सिन ने उन पर जाद ू सा कर दिया है . उनका हर अमल इस
सिन की पसन्दीदगी की गवाही दे रहा था.
आपि ने अपनी टांगों की दरमियाँ से हाथ उठाया और थोड़ा झुक कर अपने आबए को बिल्कुल नीचे से
पकड़ा और उपर उठाने लगी, आपि का अबे उनकी घुटनों तक उठा तो मुझे हैरत का एक शदीद झटका
लगा. आपि ने आबए की अंदर कुछ नहीं पहना हुआ था. मतलब आपि आबए के अंदर बिल्कुल नंगी थी.
मेरी बड़ी बहन, मेरी आपि जो परू े खानदान में सब से ज़्यादा बा हया समझी जाती थीं और सब अपनी
बहनों बेटीओं को मेरी इस बहन की मिसालें दिया करते थे. मेरी वो बहन सारा दिन घर में आबए की
अंदर नंगी रहती है उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ इस सोच ने मेरे जिस्म को गरम कर रख दिया था. मैं पहली बार
अपनी सगी बहन की टांगों का दीदार कर रहा था आपि की पिंडलियाँ बहुत खूबसूरत और सुडौल थी,
उनके घुटने इतने मुतनासिब और प्यारे थे की आप किसी भी फिल्म की हे रोइन से तुलना करें तो मेरी
बहन की ही खब
ु सरु त लगें गे. आपि का अबे अब इतना उपर उठ़ चक
ु ा था की उनके घट
ु ने से उपरी राण
आधि नज़र आ रही थे. ( इसे मेरी बद क़िस्मती कहे की ) आपि ने अपनी बांये टांग परू ी नंगी करके अपने
घुटने को थोड़ा सा ख़म दे ते हूवे अपने पांव कंप्यूटर टे बल के उपर टिका दिये. आपि ने अपना दांए हाथ
अपनी नंगी टांगों की दरमिआन रखा और उनका हाथ तेज़ी से हरकत करने लगा. मैं यहाँ से नहीं दे ख
सकता था की हाथ की हरकत क्या है . बस हाथ हिलता हुआ नज़र आ रहा था. आपि ने अपने सर को
पीछे की ओर ढलका दिया था और तेज़ तेज़ अपने हाथ को हरकत दे रही थी. ये सब दे खते हूवे मेरी
अपनी हालत खराब हो चक
ु ी थी. मैंने अपनी पें ट वहां खड़े खड़े ही उतार दी. बाहर से दे खे जाने का खतरा
तो था नहीं और घर में मेरे और आपि के अलावा कोई नहीं था. आपि को दे खते हूवे मैंने अपने लंड को
हाथ में पकड़ा और तेज़ी तेज़ी से हाथ को आगे पीछे करने लगा और 30 सेकंड में ही मेरे लंड ने सफेद
गाढ़ा मवाद ख़ारिज कर दिया और मेरे मुंह से मज़े के कारन तेज़ आवाज़ में एक आह्ह्हाआ खारिज हो
गई.

मेरी आआह्ह्ह्ह्ह्ह्हआ आपि की कानों तक भी पहुंच गयी थी. आपि एक दम अपनी चेयर से उछल पड़ी.
उन्होंने फ़ौरन मॉनिटर को ऑफ किया और अपना गाउन ठीक करते करते इधर उधर दे खने लगीं जैसे ही
उन्होंने मुझे दे खा वो तीर की तरह मेरी तरफ आयी. उस वक़्त उन्हें ये भी ख्याल नहीं रहा की उनके सर
पर स्कार्फ़ नहीं है और जिस्म को छुपाने के लिए बड़ी सी चादर भी नहीं है .

उन्हें सिर्फ मेरा सीने का उपरी हिस्सा, कंधे और मेरा चेहरा ही नज़र आ रहा था. उन्होंने क़रीब आ कर
खिड़की परू ी खोल दी और चिल्ला कर कहने लगीं, " खबीस शख़्स तम
ु ने साबित कर दिया है की तम

इंतहाई घटिया और कमीने इंसान हो. पहले अपने सगे छोटे भाई के साथ गन्दी हरकतें करते रहे हो और
अब अपनी सगी बहन और वो भी बड़ी बहन को … ”” ये कहते कहते ही आपि ने अचानक दे खा की मेरा
लंड मेरी मठ्ठ
ु ी में फुल खड़ा है और मेरे लंड का जस
ू मेरे परू े हाथ पर और लंड की नोक पर फैला हुआ है .
" सागर तुम कितने बेहया हो … तुम में शर्म नाम की चीज़ नहीं है . ऐसे खड़े हो ऐसी जगह पर. क्या होता
अगर किसी ने तुम्हें इस हालत में दे ख लिया तो ".

आपि की बात ख़तम होते ही मैं जम्प करके रूम के अंदर दाखिल हो गया. आपि एक दम कंफ्यूज हो गई
और 2 क़दम पीछे हट तो गई बोलि " ये क्या?? क्या बेहुदगी है ये. तम
ु करना क्या करना चाह रहे हो"

" जैसा की आप ने अहतीयात करने को कहा तो अहतीयात कर रहा है कहीं कोई दे ख ना ले " मैंने बेपरवा
से अंदाज़ में मस् ं
ु कुराते हूवे कहा. शायद आपि की जहॉदीदा नज़र ने भी इसे महसस
ू कर लिया था. इस
लिए वो नरम से लेहजे में मेरे लंड की तरफ हाथ का इशारा करते हूवे बोली, " सागर प्लीज कम से कम
अपने जिस्म को तो कवर करो और गन्दगी साफ करो वहां से और अपने हाथों से."

" छोड़ो आप! आप मुझे एक से ज़्यादा बार इस हालत में दे ख चुके हो और अभी भी मैं इतनी दे र से
आपकी सामने इस हालत में खड़ा हूँ, अब इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है की मैं अपने लंड को आप से छुपाऊँ
या नहीं " मैंने आपि की सामने बिस्तर पर बैठ ते हूवे कहा.

आपि को मेरे मंह


ु से लफ़्ज़ " लंड " इतने बेबाक़ अंदाज़ में सन
ु कर शॉक सा लगा और उन्होंने एक भर
पुर नज़र मेरे लंड पर डाली और फिर अपना रुख फेर कर खड़ी हो गयीं और मुझसे कहा, " सागर प्लीज
कुछ पहन लो ये मेरी इल्तिजा है . मुझे मेरी ही नज़रों में मत गिराओ ".

मैंने कहा, " ओके आपि लेकिन मेरी एक शर्त है आप मान लो फिर मैं पहन लूंगा कुछ " मैं अब आधा
बिस्तर पर लेटा हुआ था और मेरी टाँगें बिस्तर से नीचे लटक रही थीं और मेरा लंड फुल तना हुआ छत
की तरफ मह
ू किये खड़ा था.

" शर्टटटटटट " उन्होंने है रत ज़ादा सी आवाज़ में दोहराया और मेरी तरफ घूम गयीं.

मैंने अपनी पोजीशन चें ज करने की कोशिश नहीं की और उसी तरह पड़ा रहा. फिर कुछ दे र खामोश खड़ी
वो मेरी ऑ ंखों में दे खती रहीं और मैंने भी अपनी आँखें नहीं झक
ु ायीं और उनकी ऑ ंखों में ही दे खता रहा.
शायद वो कुछ अंदाज़ा लगाना चाह रही थीं मेरी ऑ ंखों में दे ख कर. कुछ लम्हे ख़ामोशी से गुज़रे और फिर
वो बोलीं " बको क्या शर्त है "

मैं बिस्तर से उठा और उनकी ऑ ंखों में दे खते दे खते ही कहा, “आप को मैंने पहली दफ़ा बगैर स्कार्फ़ और
बगैर बड़ी सी चादर के दे खा है . मैं कसम खा कर कहता हूँ की आप से ज़्यादा हसीं और परु कशिश लड़की
मैंने कभी नहीं दे खी. आप के बाल बहुत खब
ू सरू त है . क्या आप अपने बालों को चेहरे की एक साइड से
गुज़र कर सामने नहीं ला सकती है ."
मैं ये बोल कर साँस लेने को रुका तो आपि बोली, " ये शर्त है तुम्हारी"

" नहीं ये शर्त नहीं इल्तिजा है " मैंने मासूम से लेहजे में जवाब दिया. आपि ने फ़ौरन ही अपना दांए हाथ
पीछे किया और बालों को समेत कर सामने अपनी दांए साइड पर ले आयीं. मेरा मुंह " वाव्व " की अंदाज़
में खल
ु ा का खल
ु ा रह गया. आपि फिर बोली, " सागर अब बक भी दो जो शर्त है और उठ़ कर कुछ पेहनो."

मैं अपने हवस में वापस आया और मैंने अपने हाथ से अपने लौड़े को पकड़ा और आहिस्तगी से सेहलाते
हूवे उठ़ बैठा और आपि को कहा " मैं आपकी दध
ू बगैर कपड़ों की नंगे दे खना चाहता हूँ"

" शट अप नावीद तम
ु होश में तो हो जो मंह
ु में आ रहा है बकवास करते चले जा रहे हो … " वो मज़ीद
कुछ कहना चाहती थीं लेकिन मैंने उनकी बात काट दी और लंड को हाथ में पकड़े खड़ा हुआ और उनकी
चारों तरफ घुमते हूवे अपने हाथ को लंड पर आगे पीछे करते करते कहने लगा.

" मेरी प्यारी सी आपि, मेरी बेहेना जी मैंने वेर्री 1 स्ट दे भी दे खा था आप को इसी खिड़की से जब आप
मूवी दे ख कर अपने दध
ू को सेहला रही थीं और टांगों की बीच में हाथ फेर रही थीं. मुझे इसका भी
अंदाज़ा बहुत अच्छी तरह है की आप 5 दिन तक सब
ु ह से रात तक हमारे रूम में किया दे खती और किया
करती रही है और मेरी सोहणी आपि जी आज भी मैं उस वक़्त खिड़की में आया था जब आप बाथ रूम
में थीं. मतलब ये की आज भी मैंने दे खा जब आप अपने दध
ू को दबोच दबोच की मसल रही थी. जब
आप अपना अबे उठा रही थी और जब आप अपनी खब
ू सरू त लम्बी टांग को नंगा करके टे बल पर टिका
रही थीं और हां ( मैंने हसते हसते कहा ) जब आप अपने जज़बात से तंग आ कर अपनी टांगों की बीच
वाली जगह को थप्पड़ों से नवाज़ रही थी उस वक़्त भी मैं यहाँ ही था. मेरी सोहणी बहन जी और अब
आप लेडी मौलाना बन ना छोड़े और जो मैं कह रहा हूँ, मेरी बात मान जायें. मैं जानता हूँ की आप को भी
ये सब कुछ बहुत मज़ा दे ता है ."

" नहीं सागर कभी नहीं. मव


ू ीज दे खना या अपने हाथों से अपने आप को मज़ा पहुंचना एक अलग बात है
और ये बिल्कुल अलाहिदा चीज़ है की आप किसी और के साथ सेक्स करो और वो भी सगे भाई के साथ.
नो नो ये कभी नहीं हो सकता और अब तुम्हें खुदा का वास्ता है , कुछ पहन लो. मुझे इसतरह तो ज़लील
मत करो " ये कहते ही आपि को शायद बहुत शदीद किस्म की ज़िल्लत का अहसास या फिर एहसास ए
बेबसि ने घेर लिया या फिर हवस की शदीद तलब और कुछ ना कर सकने का अहसास था पता नहीं
क्या था की आपि ज़मीं पर बैठी अपना सर अपने घुटनों पर रख कर फूट फूट कर रोने लगीं.

आपि को रोता दे खते ही मेरा दिल पसीज गया. जो भी हो वो थीं तो मेरी सगी बहन और मैं उनसे शदीद
मोहब्बत करता हूँ. मैंने फ़ौरन अपनी अल्मारी से अपना ट्रॉउज़र निकाला और पहन लिया. फिर भागते हूवे
ही मैंने आपि की बड़ी सी चादर उठाई और लाकर उनके जिस्म कै गिर्द लपेटि. हाथ बढ़ा कर क़रीब पड़ा
उनका स्कार्फ़ उठा कर आपि की हाथ में पकड़ाया और उनकी पांव को पकड़ता हुआ भरी हूई आवाज़ में
बोला, " आपि प्लीज चुप हो जाओ. मुझे माफ् कर दो, चुप हो जाओ, नहीं तो मैं भी रो दं ग
ू ा " और वाकया
ही मेरी कैफ़ियत ऐसी थी की चंद लम्हा और गुज़रते तो मैं भी रो दे ता.

मेरी आपि ने अपना सर घुटनों से उठाया. उनकी बड़ी बड़ी आँखें ऑ ंसूओं में भिग कर मज़ीद रोशन हो गई
थीं. उनकी पलकों पे रुके ऑ ंसू दे ख कर मेरी आँखें भी टपक पड़ी. आपि ने मेरी ऑ ंख में ऑ ंसू दे खा तो
तड़प कर मेरे चेहरे को दोनों हाथों में थाम लिया और मेरे माथे को चम
ु ते हूवे भरी हूई आवाज़ मैं कहने
लगी, " ना मेरे भाई. नाहीइ मेरे सोहना भाई … कभी तेरी ऑ ंख में ऑ ंसू ना आये मेरा सोहना भाई, मेरा
सोहना भाई … " आपि ये बोलती जा रही थीं और मेरा माथा चूमती जा रही थीं. मेरा दिल भी भर आया
था और मेरे ऑ ंसू भी नहीं थम रहे थे. जब मेरी बर्दाश्त जवाब दे ने लगी तो मैंने अपने आप को आपि से
छुडवाया और रोते हूवे भाग कर बाथ रूम में घुस गया. मैं जब सवा घंटे बाद नहा कर बाथ रूम से
निकला तो अपने आप को बहुत फ्रेश महसूस कर रहा था.

आपि पता नहीं कब रूम से चली गयी थीं. मैं भी नीचे आया तो आपि से सामना नहीं हुआ और मैं घर
से बाहर निकलता चला गया. शाम हो चुकी थी. मैं रात तक स्नूकर क्लब में रहा और रात 9 बजे घर
लौटा, तो अब्ब,ू ऐनी और अम्मी डाइनिंग टे बल पर ही मौजद
ू थे. ऐनी और अब्बू से मिलने के बाद में भी
खाना खाने लगा तो अब्बू ने ऐनी से पुछा की, " रूबी कहाँ है ? भाई से मिली भी है या नहीं? ". तो ऐनी ने
कहा “अब्बु आपि कोई बुक पढ रही है , भाई तो दिन में ही आ गए थे. आपि तो घर में ही थीं मिल ली
होंगीं."

खाना खा चुके तो अब्बू ने ऐनी को कहा, " जाओ बेटा जा कर सो जाओ सुबह स्कूल भी जाना है ".

और मुझसे गांव के बारे में बातें पुछने लगे. उसके बाद वो भी सोने के लिए चले गए और मैं भी अपने
रूम में आ गया. बिस्तर पर लेटा तो सुबह आपि के साथ गुज़ारा टाइम याद आने लगा. फिर मुझे पता ही
नहीं चला की कब ऑ ंख लगी.

सब
ु ह ऑ ंख खल
ु ी तो कॉलेज के लिए दे र हो गई थी. मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ तो रूम से निकलते हूवे
नज़र कंप्यूटर पर पड़ी तो बगैर कुछ सोचे समझे ही मैंने पावर कॉर्ड निकाली और अपनी अल्मारी में
लॉक कर दी. नीचे आया तो मेरा नाश्ता टे बल पर तैयार पड़ा था लेकिन वहां ना आपि थी ना अम्मी. खैर
मुझे वैसे ही दे र हो रही थी. मैंने नाश्ता किया और कॉलेज चला गया. दिन का खाना मैं अमूमन कॉलेज
की दोस्तो के साथ ही कहीं बाहर खा लेता था. शाम में 2-3 घंटों के लिए घर में होता था फिर स्नूकर
क्लब चला जाता, जहाँ आज कल वैसे भी एक टूर्नामें ट चल रहा था और मेरा शुमार भी अच्छे प्लेयर्स में
होता था. इस वजह से रात घर भी दे र से जाता तो अब्बू अम्मी के साथ कुछ दे र बातें करने के बाद सोने
चला जाता. आज ही अब्बू ने मुझे बताया की बिलाल एक महीने के लिए " नारन कगान " टूर पर जा रहा
है गांव की कज़िन्स के साथ … उनकी बात मैंने सूनी और सोने चला गया.

अजीब सी तबियत हो गई थी इन दिनों. सेक्स की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं जाता था. इसी तरह दिन
गुज़र रहे थे, सुबह नाश्ता टे बल पे तैयार मिलता था लेकिन वहां कोई नहीं होता था. अक्सर नाश्ता ठण्डा
हो जाता था जिसकी वजह से मैं आधा कप चाय आधा पराठा या अम्लाइट वैसे ही छोड़कर निकल जाया
करता था. इस बात को शायद आपि ने भी महसस
ू कर लिया था.

आपि के साथ उस दिन वाले वाकये का आज 7 वां दिन था. जब सुबह मैं डाइनिंग टे बल पर पहुंचा तो
नाश्ता मौजद
ू नहीं था लेकिन किचन से बर्तनो की आवाज़ आ रही थी जो वह किसी की मोजद
ू गी का
पता दे रही थी. कुछ ही दे र बाद आपि आयीं और मेरे सामने सारा नाश्ता सजा कर बगैर कुछ बोल वापस
चली गयीं. मैंने पीछे मुड़ कर आपि को दे खा तो वो अपने रूम की तरफ जा रही थी और अपने युजवल
ड्रेस यानि बड़ी सी चादर और स्कार्फ़ में थी. उस दिन के बाद आज पहली बार मेरा और आपि का आमना
सामना हुआ था. फिर रोज़ ही ऐसा होने लगा कर जब मैं आ कर बैठ जाता तो आपि गरम गरम नाश्ता
लाकर मेरे सामने रखतीं और अपने रूम में चली जाती. उस वाक़ये को आज 11 वन रोज़ था. सुबह जब
आपि नाश्ता लेकर आयीं तो उन्होंने मझ
ु े एक पेपर दिया जिस पर कुछ बक्
ु स की नाम लिखे थे और
मुझसे कहा की " कॉलेज से आते हूवे याद से ये बुक्स ख़रीद लेना. " मैंने कहा " अच्छा आपि " और नाश्ता
करने के बाद कॉलेज चला गया …

अब अक्सर ऐसा होता की आपि सुबह कोई ना कोई काम की बात कर लेती थीं और जो जमौद हमारे
दरमियाँ क़ायम हो गया था अब वो टूट रहा था लेकिन वो बहुत रिज़र्व रहती थीं अक्सर मेरे साथ ही बैठ
कर नाश्ता भी करने लगी थी लेकिन फालतू बातें या मज़ाक़ नहीं करती थीं. उस वाक़ये का आज 17 वां
दिन था, आपि नाश्ता ले कर आयी तो उनके जिस्म पर बड़ी सी चादर नहीं थी सिर्फ स्कार्फ़ बांधे हुआ था
और सीने पर दप
ु ट्टा फैला रखा था. उन्होंने मेरे साथ ही बैठ कर नाश्ता किया और मैं कॉलेज के लिए
निकल गया …

उस वाकया का 20 वां दिन था आपि ने मेरे सामने नाश्ता रखा तो ना ही उनके सर पर स्कार्फ़ था और
ना ही दप
ु ट्टा लेकिन सर पर बालों का बड़ा सा जड़
ू ा बांध रखा था. ये मेरे होश सँभालने के बाद से पहली
बार थी की मैंने आपि को सिर्फ क़मीज़ सलवार में दे खा था ना दप
ु ट्टा ना चादर ना स्कार्फ़ . आपि नाश्ता
रख कर अपने रूम की तरफ जा रही थीं तो मैंने 1 स्ट टाइम उनकी कमर दे खी जो उनकी शोल्डर्स और
कुल्हों के दरमियाँ काफी गहराई में थी और कमान सी बनी हूई थी और आज 20 दिन बाद मेरे लंड ने
जुंबिश की और मझ
ु े अपने होने का अहसास दिलाया वरना मैं तो अपने लंड को भूल ही चुका था. अगले
दिन से आपि अपनी युजवल ड्रेसिग
ं पर वापस आ चुकी थी.

उस वाक़ये का आज 24 वां दिन था जब आपि ने मुझे नाश्ता दिया वो उस तरह बड़ी सी चादर स्कार्फ़ में
मल
ु ब्बस थी और उनका चेहरा बहुत पाकीज़ा लग रहा था. मैं नाश्ता करके उठा और दरवाज़े तक पहुंचा ही
था की आपि ने मुझे आवाज़ दी " सागर " मैं रुका और मुड़ कर कहा " जी आपि " उस वक़्त तक वो मेरे
क़रीब आ चुकी थीं आपि ने बिना किसी झिझक या शर्मिन्दगी के आम से लेहजे में मुझसे पुछा. " सागर
पावर कॉर्ड कहाँ है ". आपि का अंदाज़ ऐसा था जैसे वो किसी आम सी किताब का या किसी सब्ज़ी का
पुछ रही है . मैंने भी आपि की ही अंदाज़ में अपने बैग से चाबी निकाली और आपि की हाथ में पकड़ाते
हूवे कहा, " मेरी अल्मारी में रखी है " और बाहर निकल गया.

अगले दिन भी नाश्ते के बाद जब में बाहर निकलने ही वाला था तो आपि अपनी चादर को सँभालती हूई
मेरे पास आयीं और उससे नार्मल से अंदाज़ में कहा, " सागर तुम कितने बजे तक घर आओगे"

" 2 बजे तक आ जाऊंगा. क्यों?? " मैंने कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में जवाब दिया

" नहीं कुछ नहीं बस मैं ये कहना चाह रही थी की तुम 5 बजे तक घर नहीं आना. मैं आज ज़्यादा टाइम
चाहती हूँ"

" ओके ठीक है मैं 5 बजे से पहले नहीं आऊंगा " हमारा बात करने का अंदाज़ बिल्कुल नार्मल और सरसरी
सा था लेकिन आपि भी जानती थी की वो क्या कह रही है और मुझे भी अच्छी तरह पता था की आपि
किस बात की लिए आज ज़्यादा टाइम चाहती है . ( आप लोग भी समझ ही गए होंगे की मेरी सगी हसीं
बहन हार गई थी और उनकी टांगों की बीच वाली जगह जीत गयी थी )

मैं 5 : 20 पर अपने घर में दाखिल हुआ तो आपि इत्तिफ़ाक़ से उसी वक़्त उपर से नीचे आ रही थीं और
उन्होंने अपना वो ही काले सिल्क का अबे पहना हुआ था. पांव में चपल भी नहीं थीं और बाल खुले हूवे
उनकी कुल्हों से भी नीचे तक हवा में लेहरा रहे थे …

आपि की खड़ी हूई चूंचियां आबए में साफ ज़ाहिर हो रहे थे. जो इस बात का पता दे रहे थे की आबए की
अंदर आपि बिल्कुल नंगी है . मैंने आपि को सलाम किया तो उन्होंने अपने आबए की बाजओ
ू ं को कोहनियों
तक फ़ोल्ड करते हूवे मेरे सलाम का जवाब दिया और पुछा " खाना खाओगे."

नहीं मैं खाना खा कर आया हूॅं बस एक कप चाय बना दे " मैंने आपि की खब
ू सरू त सड़
ु ौल और बालों से
बिल्कुल पाक बाजूओं पर नज़र जमाये हूवे कहा. " ओके तुम बैठो मैं अभी बना दे ती हूँ. " ये कह कर वो
किचन की तरफ चल दीं. मैंने आपि को इतने इत्मिनान से इस हाल में घुमते दे ख कर कहा, " आपि क्या
घर में कोई नहीं है "

" नहीं! ऐनी तो वैसे भी छुट्टियां नानी के घर गुज़र रही है और अम्मी और अब्बू किसी ऑफिस कलीग की
बेटी की शादी में गए है . " उन्होंने चाय बनाते बनाते किचन से ही जवाब दिया. मझ
ु े चाय दे कर आपि
अपने रूम में चली गई और मैं आपि के इस नए अंदाज़ को सोचने लगा. फ़ौरन ही घण्टी की आवाज़ ने
मेरी सोच की परवाज़ को वहीं रोक दिया. बाहर मेरे कुछ दोस्त थे जो कहीं पिकनिक पर मुझे भी साथ ले
जाना चाह रहे थै. मैं आपि को बता कर उनके साथ चला गया …

फिर अगली सुबह नाश्ते के वक़्त ही आपि से सामना हुआ. वो आज भी सिर्फ गाउन में थीं और हालत
कल शाम वाली ही थी. आपि मेरे साथ ही नाश्ता करने लगी और हम इधर उधर की बातें करते रहे . मैंने
आपि के हुलिये की पेशे नज़र कहा " आपि अम्मी अब्बू घर में ही है ना. " हां लेकिन सो रहे है अभी "
उन्होंने चाय का घूंट भरते हूवे लापरवाह अंदाज़ में जवाब दिया. मैंने भी चाय का आखरी घूंट भरते हूवे
आपि की मम्मों पर एक भर परु नज़र डाली और ठं डी आह्ह्ह भरते हूवे टे बल से उठ़ खड़ा हुआ.

दरवाज़े की तरफ रुख मोड़ते हूवे आपि से कहा " आप चें ज कर लो अम्मी अब्बू के उठने से पहले पहले.
मैं नहीं चाहता की वो आप को इस हुलियें में दे खे. आपकी इज़्ज़त मझ
ु े अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़
है . " उन्होंने एक मोहब्बत भरी नज़र मुझ पर डाली और शैतानी सी मुस्कराहट के साथ कहा, " मैं तुम्हारी
रग रग से वाक़िफ़ हूँ सागर तुम्हें ये टें शन नहीं की वो मुझे इस हुलिया में दे खें. बल्कि तुम्हें ये फ़िक्र है
की अगर अम्मी अब्बू को पता चला की मैं तम्
ु हारे सामने इस हालत में थी तो शायद आईन्दा के लिए
तुम्हारी नज़रें मेरे इस हुलिया से मेहरूम हो जायेंगी."

शायद ये सच ही था इस लिए मेरे मुंह से जवाब में कुछ नहीं निकल सका और बोझल से क़दमों से मैं
बाहर की तरफ चल पड़ा. आज बिल्कुल मना नहीं था कॉलेज जाने का. आज बहुत दिन बाद मेरे लंड में
सनसनाहट हो रही थी और जी चाह रहा था की आज पानी निकालँ ू. मैं गेट तक पहुंचा था की आपि की
आवाज़ आई " सागर " मैं दरवाज़ा खोल चक
ु ा था इस लिए घर से बाहर निकल कर मैंने पछ
ु ा " जी आपि"

तो वो दरवाज़े के पास आ कर बोलीं " 111 परू ी हो चक


ु ी है अब नई का इंतज़ाम कर दो " ये कह कर
उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया. मैं ट्रान्स की कैफ़ियत में दरवाज़े की बाहर खड़ा था अभी मेरी बेहद हया
वाली बहन ने मुझसे नई पोर्न फिल्म की लिए कहा था मेरा लंड पें ट में तन गया था. मैं उसी वक़्त अपने
दोस्त के पास गया और उससे 3 नई CD ली और इतना टाइम बाहर ही गुज़ारा की अब्बू अपने ऑफिस
चले जायें और फिर कॉलेज की बजाये घर वापस आ गया.
अब्बू ऑफिस जा चुके थे और अम्मी के पास खाला आई बैठी थीं, मैंने उन्हें सलाम किया और अपने रूम
की तरफ चल दिया. मैंने अपने रूम का दरवाज़ा खोलना चाहा तो वो अंदर से लॉक था. मुझे उम्मीद नहीं
थी की आपि अंदर है इस लिए ज़रा ज़ोर से हैंडल घुमाया था जिससे आवाज़ भी पैदा हो गई और आपि
को भी पता चल गया था की बाहर कोई है . कुछ ही दे र बाद आपि ने दरवाज़ा खोला. स्कार्फ़ उसी तरह
बांध रखा था गुलाबी रं ग की लॉन की क़मीज़ पेहनी थी और काला सलवार और काला ही दप
ु ट्टा था. जो
कंधे पर इस तरह डाला हुआ था की उनका एक दध
ू बिल्कुल छुप गया था और दस
ू रा दध
ू खल
ु ा था.
गुलाबी क़मीज़ में चूंचियों की जगह बिल्कुल काले नज़र आ रही थे और चूंचियां तना होने की वजह से
साफ महसूस हो रहा था. उनकी गुलाबी गाल जो शायद हवस की शिद्दत से मज़ीद गुलाबी हो रहे थे,
गल
ु ाबी क़मीज़ के साथ बहुत मैच कर रहे थे. उनकी बड़ी सी काली ऑ ंखों में लाली उतरी हूई थी अपनी
बहन को ऐसे दे ख कर फ़ौरन ही मेरे लंड में जान पैदा हो गई और वो बाहर आने के लिए फनफनाने
लगा. आपि ने बाहर आते हूवे कहा, " आज तुम जल्दी आ गए हो " और सीढ़ीयों की तरफ चल दीं

" जी आज मना नहीं कर रहा था कॉलेज जाने को इस लिए वापस आ गया " मैंने आपि की बैक को
दे खते हूवे अपने लंड को टांगों की दरमियाँ दबाया और जवाब दिया. आपि ने पहली सीढ़ी पर क़दम रखा
ही था की मैंने आवाज़ दी " आपि " उन्होंने वहीं खड़े खड़े ही चेहरा मेरी तरफ घम
ु ा कर कहा " होऊणन्न "
मैंने 3 CD उनको शो करते हूवे कहा " 114 ". आपि की फेस पर ख़ुशी और एक्साइटमें ट साफ नज़र आ रही
थी. उन्होंने मुस्कुरा कर मेरी ऑ ंखों में दे खा और नीचे उतर गयीं.

मैं फ़ौरन ही रूम में दाखिल हुआ और अपनी पें ट उतार कर एक तरफ फेंकी और लंड को हाथ में थाम
कर कंप्यूटर के सामने बैठ गया. CD ऑन करने से पहले मुझे ख्याल आया की ज़रा दे खूं आपि क्या दे ख
रही थीं. मैंने मीडिया प्लेयर में से रिसेंटली प्लेड मूवीज क्लिक की तो उसे दे खते ही मेरे चेहरे पर बेसख्ता
मुस्कराहट फैल गयी वो एक गे मूवी थी जो आपि दे ख रही थीं. मैंने नई CD लगाई और अपने लंड को
मुठ्ठी मैं ले कर हाथ आगे पीछे करने लगा. आज बहुत दिन बाद ये अमल कर रहा था इस लिए बहुत
ज़्यादा मज़ा आ रहा था और बार बार मव
ू ी की हे रोइन की जगह मेरी सगी बहन मेरी आपि का चेहरा मेरे
सामने आ जाता. जब मूवी में लड़की की मम्मों का क्लोज लिया जाता तो मुझे मेरी पाकीज़ा बहन की
दध
ू याद आ जाते. ऐसे ही मूवी चल रही थी और मैं अपने लंड को हिला हिला कर अपने मंजिल तक
पहुंचने की कोशिश कर रहा था. अचानक मैंने दे खा की एक गल
ु ाबी रं ग का ब्रा कंप्यट
ू र टे बल के नीचे पड़ा
हुआ था. शायद आपि ने मूवी दे खते हूवे इससे उतार फेंका था और फिर जाते हूवे जल्दी मैं उन्हें उठाना
याद ही नहीं रहा. बाहर हाल, मैंने स्क्रीन पर ही नज़र जमाये जमाये हाथ बढ़ा कर ब्रा उठाया पहली चीज़
जो मैंने नोटिस की वो एक छोटा सा वाइट टै ग था जिस पर 36D लिखा हुआ था. जब मैं उस टै ग पर
लिखे डिजिट पढ़ने की लिये ब्रा को अपनी ऑ ंखों के क़रीब लाया तो एक मशहूर कुन ख़ुशबू की झोंके ने
मेरा इस्तक़बाल किया. ( अजीब सी बात थी उस ख़ुशबू में . जो शायद अलफ़ाज़ में बयां नहीं की जा सकती
सिर्फ महसूस की जा सकती है . महसूस भी आप उस वक़्त कर सकते है जब ब्रा हाथ में हो ब्रा भी ऐसा
जो चंद लम्हों पहले ही जिस्म से अलग हुआ हो )

मैं ने ब्रा में से अपनी सगी बहन की जिस्म की ख़श


ु बू को एक तेज़ साँस के साथ अपने अंदर उतारा तो
मेरी आँखें बंद हो चुकी थीं और मेरा हाथ मेरे लंड पर बहुत तेज़ तेज़ चलने लगा था. मैंने आपि की ब्रा
की कप को अपने मुंह और नाक पर मास्क की तरह रखते हूवे आँखें बंद कर लीं और चंद गेहरी गेहरी
सांसों के साथ ख़श
ु बू को अपने अंदर उतारने लगा … फिर मैंने अपनी ज़ब
ु ाँ को बाहर निकाला और आपि
की ब्रा की कप में परू ी तरह ज़ुबाँ फेरने के बाद ब्रा की अंदर की उस हिस्से को चूसने लगा जहाँ मेरी
सगी बहन की चूंचियां टच रहते है . मेरा मुंह नमकीन हो चुका था. शायद वो आपि की उभारों का ख़श्ु क (
ड्राई ) पसीना था जो अब मेरे मुंह में नमक घोल रहा था.

मैं पागलों की तरह आपि की ब्रा को अपने चेहरे पर रगड़ रहा था, कभी चुमने लगता कभी काटने लगता
और तेज़ तेज़ अपने हाथ को अपने लौड़े पर आगे पीछे कर रहा था. अजीब सी हालत थी मेरी …

अचानक आपि ने दरवाज़ा खोला और अंदर का मंज़र दे ख कर उनका मुंह खुल गया और वो जैसे जम
सी गयीं. ( वो अपना ब्रा लेने वापस आयीं थीं लेकिन उन्हें जो दे खने को मिला वो उनकी वेहमो गम
ु ान में
भी नहीं था ) जब आपि ने दे खा तो उनका ब्रा मेरे दांए हाथ में था और मैं कप की अंदर ज़ुबाँ फेर रहा
था. मैंने आपि को दे खा लेकिन अब मैं अपनी मंजिल की बहुत क़रीब था इस लिए अपने हाथ को रोक
नहीं सकता था. ( वैसे भी आपि मझ
ु े काफी बार इस हालत में दे ख ही चक
ू ी थीं तो अब छूपाने को था ही
क्या ).

आपि को दे ख कर मैंने ब्रा वाला हाथ नीचे किया और ब्रा समेत आपने दांए घुटने पर रख लिया और
सीधे हाथ से लंड को हिलाना जारी रखा. " उफ्फ्फ मेरे खुदा … तुम जानते हो की तुम बिमार इंसान हो.
लायो मझ
ु े वापस करो मेरा ब्रा " उन्होंने अपने माथे पर हाथ मारते हूवे चिल्ला कर कहा.

" यहाँ आ कर ले लें . आप दे ख रही हो की मैं बिजी हूँ " मैंने अपने लंड पर तेज़ तेज़ हाथ चलाते हूवे उन
पर एक नज़र डालने के बाद वापस स्क्रीन पर नज़रें जमाये हूवे कहा.

उनका चेहरा लाल हो चुका था लेकिन मैंने महसूस किया था की गुस्से के साथ ही उनकी ऑ ंखों में वैसी
ही चमक पैदा हो गई थी जैसी उस वक़्त नई CD की खबर सन
ु कर हो गई थी. आपि मेरे दांए साइड पर
आयीं और मेरे हाथ से अपना ब्रा खींचने की कोशिश की और एक भर परु नज़र मेरे लंड पर भी डाली.
मेरे लंड से जूस निकलने ही वाला था और मैं चाहता था की वो इसे निकलते हूवे दे खे. इस लिए मैंने
उनकी हाथ को 2-3 बार डॉज दिया और जैसे ही मेरा लंड पिचकारी मारने वाला था मैंने ब्रा वाला हाथ लंड
के क़रीब एक लम्हे को रोका और फ़ौरन आपि ने ब्रा को पकड़ लिए और इसी वक़्त मेरे मुंह से एक
आह्ह्ह्हह्हह्हह्ह निकलि और मेरे लंड ने गरम गरम लावा फेंकना शुरू कर दिया. काफी सारे क़तरे आपि
की नमो नाज़ुक हाथ और खूबसूरत बाज़ू पर भी गिरे .

" इवववववववव तुम्म खबीस शख़्स, ये क्या किया तुम ने गंदे " उन्होंने अपना हाथ मेरी शर्ट से रगड़ कर
साफ किया और भागती हूई रूम से बाहर निकल गई …

एक डेढ़ घंटा आराम करने के बाद मैं दब


ु ारा उठा और कंप्यूटर चेयर सँभालते हूवे मूवी स्टार्ट की अभी
लंड को हाथ में पकड़ा ही था की आपि दब
ु ारा अंदर दाखिल हूई …

" या खुदा! तुम क्या सारा दिन ये ही करते रहोगे " वो अपनी कमर पर दोनों हाथ टिका कर बोलीं लेकिन
उनकी अंदाज़ से ऐसा बिल्कुल नहीं फील हो रहा था की जैसे उन्हें मुझे इस हालत में दे खने से कोई
प्रॉब्लम हो. इस वक़्त वो ऐसे ही नार्मल थीं जैसे आम हालत में होती थीं.

" आप भी तो सारा दिन लगाती है ये करते हूवे मैंने कभी आप को कुछ कहा है " ये बोलते हूवे भी मैं
अपने लंड को सेहलता रहा.

" बकवास मत करो और चलो बाहर जाओ और मझ


ु े कुछ टाइम दो " वो सामने ही सोफ़े पर बैठ ते हूवे
बोली.

" आप भी आ जायें यहाँ मेरे साथ, दोनों दे ख लेते है ना मुझे बाहर भेजकर आप को क्या मिलेगा"

" पागलों वाली बातें मत करो! मैं तम्


ु हारे साथ बैठ कर नहीं दे ख सकती. मैं अकेले ही दे खंग
ू ी " ये बोलकर
कुछ सेकण्ड्स रूकीं और फिर शैतानी सी अंदाज़ में कहा, " मैंने कुछ काम भी करना होता है "

" ओह्ह्ह्ह्ह हूऊओऊ " मैं आपि की इस ज़र्रु त पर वाकया ही है रान हुआ और है रत ज़ादा अंदाज़ में उनकी
ऑ ंखों में दे खा तो उनके चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई और हलकी सी मुस्कराहट के साथ उन्होंने
नज़रों के साथ साथ सर भी झुका लिया.

कुछ दे र ना आपि कुछ बोली और ना मैं. मैं समझ गया की वो बाहर नहीं जायेंगी. शायद वो यहाँ बैठना
चाहती है . मैंने भी ज़ाहिरी तोर पर उन्हें नज़र अंदाज़ किया और मव
ू ी दे खते हूवे अपने लंड को हिलने
लगा और कुछ ही दे र बाद फिल्म में इतना खो गया की आपि का ध्यान ही नहीं रहा. तक़रीबन 10 मिनट
बाद मैंने सर घुमाकर आपि की तरफ दे खा तो उनकी नज़रें मेरे लंड पर ही जमी हूई थीं और बहुत
इनहिमाक से मेरी हर हरकत को दे ख रही थीं. आपि की ऑ ंखों में लाल लाल डोरे बन चुके थे और आँखें
ऐसी हो रही थीं जैसे नशे में हो.

उन्होंने मेरी नज़र को अपने चेहरे पर महसूस करके नज़र उठायी और मुझे कहा, " सामने दे खो और
अपना काम करते रहो मेरी तरफ मत दे खो"

मैं उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा दिया और फिर मूवी की तरफ ध्यान दे ने लगा. कुछ कुछ दे र बाद मैं
आपि की तरफ दे ख लेता था. आपि कभी अपने एक दध
ू को दबोच दे ती थीं, कभी अपनी टांगों की बीच
वाली जगह को हाथ से रगड़ दे ती थीं लेकिन इस बात का ध्यान रखने की कोशिश कर रही थीं की मैं ना
दे ख सकँू .

कुछ ही दे र बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया मुझे महसूस हो रहा था की मेरे पूरे जिस्म से कोई
चीज़ बेह बेह कर मेरे लंड में जमा हो रही है . मुझे अंदाज़ा हो गया था की आपि को लंड से निकलते हूवे
पानी को दे खना बहुत पसंद है . मैंने चेयर को आपि की तरफ घुमा दिया और बहुत तेज़ तेज़ अपने हाथ
से लंड को रगड़ने लगा. अब आपि मेरे बिल्कुल सामने थीं. आपि समझ गयीं थीं की मेरी मंजिल अब
क़रीब ही है . मेरे रुख फेरने पर बिगड़ने की बजाय वो और ज़्यादा तवज्जो से मेरे लंड को दे खने लगी थीं.
उनकी ऑ ंखों में बिल्कुल ऐसी ख़श
ु ी थी जो किसी बच्चे की ऑ ंख में उस वक़्त होती है जउसेसे मना
पसंद चीज़ मिलने वाली हो. आपि की आँखें नहीं झपक रही थीं, बस एकटक वो मेरे लौड़े पर नज़र जमाये
हूवे थीं और सोफ़े से कुछ इंच उठी हूई थीं.

मैं आपि के चेहरे की बदलते रं ग दे ख रहा था. मेरे हाथ की हरकत में बहुत तेज़ी आ चुकी थी, मेरे जिस्म
से लहरें लंड में इकठ्ठा होती जा रही थी और एक दम मेरा लंड फट पड़ा " आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
आएपीईईईई उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ". मैं आज ऐसा झड़ गया था की मेरी पहली पिचकारी तक़रीबन 4 फ़ीट
तक गई थी और आज मेरे लंड ने पानी भी बहुत ज़्यादा छोड़ा था. मैं 6,7 मिनट तक आँखें बाद किये
निढाल सा पड़ा रहा फिर अचानक मैंने एक हाथ अपने कंधे पर महसूस किया.

" सागरररर! तुम ठीक तो हो ना क्या हुवाआ??? " आपि की फ़िक्र मन्द आवाज़ मुझे सुनाई दी.

" जी आपि बिल्कुल ठीक हूँ. ऐसा होता है ये नार्मल है " मैंने आँखें खोल कर दे खा तो आपि एक हाथ मेरे
कंधे पर रखे और दस
ू रे हाथ में पानी का गिलास पकड़े मेरे सामने खड़ी थीं.

" लो पानी पियो और ठहर ठहर की घूंट घूंट पीना. " आपि ने मुझे पानी का गिलास दिया और फिर वापस
मुड़ गई.
मैंने फिर आँखें बंद कर लीं और एक घूंट पानी पीकर थोड़ी दे र रुका. फिर दस
ू रा घूंट ले ही रहा था की
मुझे अपने लौड़े पर उं गलियां महसूस हो गई. मैंने आँखें खोलकर दे खा तो आपि मेरी टांगों की सामने
अपने घुटने ज़मीं पर टे के बैठी थीं और उन्होंने बाये हाथ की दो उं गलियों मैं मेरे नरम हूवे लौड़े की टोपी
थाम रखी थी. उन्होंने खींच कर मेरे लंड को सीधे किया और दस
ू रे हाथ में पकड़े टिश्यू पेपर्स से मेरे लंड
पर लगे पानी को साफ करते हूवे फ़िक्र मन्द लेहजे में बोली, " कितनी ही मूवीज में , मैंने कितने ही लड़कों
को डिस्चार्ज होते दे खा है लेकिन इतनी कमज़ोरी तो किसी को नहीं होती. तम
ु अपनी सेहत का भी कुछ
ख्याल करो."

ये कह कर आपि ने हाथ में पकड़े गंदे टिश्यूस को कंप्यूटर टे बल के नीचे पड़े डस्ट बिन में फेंका और
पैकेट में से 5,6 टिश्यू और निकाल फिर से मेरे लंड और मेरी राणों ( जांघे ) पर लगी मेरी गाढ़ी सफेद
मणि को साफ करने लगी. मैं पानी का गिलास हाथ में पकड़े आपि को दे खने लगा. कितना मासूम और
पाकीज़ा लग रहा था मेरी आपि का चेहरा. कितनी मोहब्बत थी उनकी नज़रों में , मेरे लिए ममता भरी
मोहब्बत. कोई लस्ट नाम की चीज़ नहीं थी उनकी ऑ ंखों में . सिर्फ प्यार था ऐसा प्यार जो सिर्फ बड़ी बहन
अपने छोटे भाई से करती है . आपि का प्यार दे ख कर मेरी ऑ ंखों में भी नमी आ गई. वह इतनी ज़्यादा
तवज्जो से सफाई कर रही थीं की कहीं कोई क़तरा चिपका ना रह जाये. आपि ने मेरे लंड के नीचे गोटियों
को पकड़ा और उनकी सफाई करते हूवे ऐसे हं सी जैसे किसी ने गुदगुदी कर दी हो.

" ही हे हेहे … ये कितने प्यारे से है ना मासूम से चु चु चूऊउ " ये कहते हूवे आपि ने मेरे गोटियों ( टट्टों )
को नीचे से हथेली में लिया और नरमी से इस अंदाज़ में हाथ को हरकत दे ने लगी जैसे कोई चीज़ नाज़ुक
खिलौना हाथ आया हो. फिर नरमी से दस
ू रे हाथ की उं गलियों से मेरे गोटियों की सिलवटों को सेहलाने
लगी.

" इन पर क्यों बाल उग आते है " आपि ने मेरे गोटियों पर बालों को महसस
ू करते हूवे बरु ा सा मंह
ु बना
कर ग़ायब दिमाग़ी की हालत में अपने आप से कहा. मेरे गोटियों पर आपि की हाथ का रद्द- इ - अमल
फौरि हुआ और मेरे सोये लंड में जान पड़ने लगी.

" नहीं बिल्कुल भी नहीं " कहते हूवे आपि ऐसे पीछे हटी और खड़ी हो गई जैसे उन्हें शॉक लगा हो.

" फौरन फौरन उठ़ो और अपना ट्रॉउज़र पहनो. क्यों अपनी सेहत के दश्ु मन हूवे हो " आपि ने बाया हाथ
क़मर पर रखा और सीधे हाथ की उं गली का इशारा मेरे ट्रॉउज़र की तरफ करते हूवे हुकमी लेहजे में कहा
और इसके बाद रूम से बाहर निकल गई.
मैं बस ट्रॉउज़र पहन कर चेयर पर बैठा ही था की आपि दब
ु ारा रूम में दाखिल हूई. उनके हाथ में दध
ू का
गिलास था. उन्होंने दध
ू का गिलास टे बल पर रखा, मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में भरा और मुस्कुराते
हूवे मोहब्बत भरी नज़र से कुछ सेकण्ड्स मुझे दे खा फिर मेरे माथे को चुमते हूवे कहा, " मेरा सोहना भाई,
चलो दध
ू पि लो फौरन " मुझे हुकुम दे ती हूए सोफ़े पर जा बैठीं.

कुछ दे र तक हम इधर उधर की बातें करते रहे . मेरी पढ़ाई के बारे में कुछ बातें हूई उसके बाद आपि ने
अचानक ही मुझसे पुछा, " तुम्हारे और बिलाल की दरमियाँ ये सब कैसे शुरू हुआ " मैंने कहा " आपि अगर
मैंने सब तफ़सील से बताना शरू
ु किया तो 2-3 घंटे लग जायेंगे मैं आप को खास खास बातें बता दे ता हूँ"

" नहीं! मुझे आ से ज़ तक सुनाओ चाहे 5, 6 घंटे ही क्यों ना लग जायें. उन्होंने गर्दन को बांये दांए हरकत
दे ते हूवे ज़िद्दी अंदाज़ में कहा " उम्मम्म ओके मैं कोशिश करूंगा की कोई बात भल
ू ंू नहीं, ये सब जब शु रू
हुआ उस वक़्त मेरी उमर …"

मैंने आपि को शुरू से अपनी पूरी दास्ताँ सुनाना शुरू की. आपि ने दोनों पांव उपर सोफ़े पर रखे और टांगों
को आपस में क्रॉस करके दोनों हाथों को जोड़ कर अपनी गोद में रखते हूवे बैठीं और पूरी तवज्जो से मेरी
बात सुनने लगी. जैसे जैसे दास्ताँ आगे बढ्ती जा रही थी, आपि की बेचैनी भी बढ्ती जा रही थी, वो कभी
टांगों को आपस में भींचती थीं तो कभी अपनी दोनों राणों को एक दस
ू रे से रगड़ दे ती थीं.

शायद उनकी बेचैनी की वजह ये थी की वो मेरे सामने अपनी टांगों की दरमियाँ सेहला नहीं पा रही थी …
उनके गोरे गाल हवस की शिद्दत से गुलाबी हो गए, ऑ ंखों में नशा सा छा गया था और ऑ ंखों में लाली
भी आ गई थी. मेरा लौड़ा भी फुल टाइट हो चुका था और थोड़ी थोड़ी दे र बाद बेसख्ता ही मेरा हाथ लंड
तक चला जाता था और मैं ट्रॉउज़र के उपर से ही लंड को पकड़ कर भींच दे ता था. मुझे दास्ताँ सुनाते
एक घंटे से ज़्यादा हो गया था. मैं थोड़ी दे र पानी पीने के लिए रुका. मैं टे बल से पानी उठाने के लिए
दस
ू री तरफ मुड़ा तो आपि को भी मौका मिल गया और उन्होंने अपनी टाँगें सीधी कीं और अपनी टांगों
की दरमियाँ वाली जगह को अपने हाथ से रगड़ दिया. ( यक़ीनन आपि की टांगों की दरमियाँ वाली जगह
भी मस
ु लसल निकलते पानी से बहुत गीली हो चक
ु ी थी और उन्होंने अपना गीलापन सलवार से साफ
किया था ) मैंने चेयर पे बैठते ही जहाँ दास्ताँ छोड़ी थी वहीं से शुरू की 10 मिनट बाद ही आपि की बेचैनी
दब
ु ारा शुरू हो चुकी थी ( शायद उनका पानी फिर बहनें लगा था ) जब आपि की बर्दाश्त से बाहर होने
लगा तो आपि ने मेरी बात को काटते हूवे कहा, " सागर प्लीज तम
ु अपनी चेयर को घम
ु ा लो और मेरी
तरफ पीठ करके सुनाते रहो."
मैं फ़ौरन ही समझ गया की मेरी प्यारी बहन क्या करना चाह रही है . मैंने हसते हूवे फ़िल्मी अंदाज़ में
कहा, " आपि मेरे सामने ही कर लो ना मैं भी आपकी सामने ही कर रहा हूँ. ये दनि
ु यां है कभी हम तमाशा
दे खते है तो कभी हमारा तमाशा बनता है "

" बकवास मत करो तम


ु बेशर्म हो. मैं नहीं … जल्दी से घम
ु ो ना प्लीज, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है " आपि
अपनी फोल्डेड टाँगें खोलती हूई बोलि और बेख्याली में मेरे सामने ही अपनी टांगों की बीच वाली जगह
को रगड़ दिया. फ़ौरन ही उन्हें अंदाज़ा हुआ की उन्होंने क्या कर दिया है . उन्होंने शर्म से लाल होते हूवे
कहा, " घम
ू जाओ ना कमीने. क्यों तंग करते हो इतना अपनी बहन को " मैंने हसते हूवे अपनी चेयर को
घुमाया उनकी तरफ पीठ करके कहा, " आपि ज़रा प्यार प्यार से रगड़ना कहीं छील ना दे ना"

" शटटट उपपपप " वो झेंपते हूवे बोली और मैंने दब


ु ारा दास्ताँ शरू
ु कर दी और साथ ही अपना ट्रॉउज़र भी
उतार दिया और लंड को मुठ्ठी में ले कर हाथ आगे पीछे करने लगा. थोड़ी थोड़ी दे र बाद आपि की
आआआआह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ जैसी आवाज़ें भी सुनाई दे रहीं थीं और सोफ़े की चर चराहट बता रही थी
की आपि कितनी तेज़ तेज़ हाथ चला रही है .

दास्ताँ ख़तम होने के क़रीब थी तो आपि की हलक़ से निकलती आवाज़ ( अक्खह्हह्हह्हउम्मम्म


उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ उखःहःहःहःहम ) सन
ु कर मैंने अपना रुख आपि की तरफ किया … आपि की आँखें बंद थीं
उनका जिस्म अकड़ा हुआ था. टाँगें खुली हूई, पांव ज़मीं पर टीके थे और कंधे और कमर का उपरी हिस्सा
सोफ़े की पुष्ट पर था, सर पीछे की तरफ ढलक गया था और पेट और सीने का हिस्सा कमान की सरु त
बेंड था … कुल्हे सोफ़े से उठे हूवे थे. बाये हाथ से आपि ने अपने दांए दध
ू को दबोचा हुआ था और दांए
हाथ से आपि अपनी टांगों की बीच वाली जगह को कभी भींचती थीं कभी लूज कर दे ती थीं. उनकी हलक
से ऐसी आवाज़ें आ रही थीं जैसे वो बहुत क-र-ब में है . क़मीज़ पेट से हट गयी थी. मैंने पहली बार अपनी
सगी बहन का पेट दे खा था. गोरे पेट पर खब
ू सरू त सी नाभि बहुत प्यारी लग रही थी. उनकी नाभि के
बिल्कुल नीचे एक तिल भी था. अपनी प्यारी सी बहन को इस हालत में दे ख कर मैं अपने उपर कंट्रोल
खो बैठा और बहुत तेज़ तेज़ हाथ चला रहा था.

दस
ू री तरफ आपि भी झड़ गई थीं और उनका जिस्म नीचे सोफ़े पर टिक गया था. मैंने दे खा आपि की
सलवार की दरमियाँ का बहुत बड़ा हिस्सा गीला हो गया था और उनका हाथ भी उनके पानी की वजह से
चमक रहा था. उसी वक़्त मेरी बर्दाश्त भी ख़तम हो गई और मेरे लंड से भी पानी एक धार की सरु त
निकली और ज़मीं पर गिरी और उसके बाद क़तरा क़तरा निकल कर मेरे हाथ और राणों ( जांघे ) पर
सजने लगा.
कुछ दे र बाद जब मैंने आँखें खोलीं तो उसी वक़्त आपि भी ऑ ंखे खोल रही थीं. आपि ने ऑ ंख खोली और
मुझसे नज़र मिलाने पर मुस्कुरा दीं तो मैं भी मुस्कुरा दिया. मेरा लंड मेरी मुठ्ठी में ही था और आपि का
भी एक हाथ टांगों की दरमियाँ और दस
ू रा उनकी एक उभार पर था लेकिन उनकी अंदाज़ में कोई
घबराहट या जल्दी नहीं थी. वो कुछ दे र ऐसे ही आधि लेटी मेरी तरफ दे खती रहीं. फिर आहिस्तगी से
उन्होंने अपनी सलवार से ही अपनी टांगों की बीच वाली जगह को साफ किया और फिर सीधी बैठ कर
अपने मम्मों को पकड़ कर अपनी क़मीज़ सही करने लगीं.

मम्मों और पेट से क़मीज़ सही करने के बाद आपि ने फिर मेरी आँखों में दे खा मैं उन्हीं को दे ख रहा था.

" अब उठ़ो और साफ करो अपने आप को. कितनी गन्दगी फैलाते हो तुम. " फिर उन्होंने अपने हाथ को
दे खा और सर झक
ु ा कर अपनी सलवार को दोनों हाथों से फैला कर दे खने लगीं. जो ऐसी हो रही थी जैसे
उन्होंने पिशाब किया हो. सलवार दे खते हूवे उन्होंने कहा, " तुम्हारे साथ रह रह कर मैं भी गन्दी हो गई हूँ"

" आपि मुझे भी साफ कर दो ना " मैंने निढाल सी आवाज़ में कहा " जी नहीं! मैं इतना फ्री नहीं कराती,
हर किसी को " आपि ने किसी फ़िल्मी हे रोइन की तरह नखरीले स्टाइल में कहा और खड़ी हो कर मेरी
तरफ पीठ करके सर को झटका " हूँ " और कैट वाक की स्टाइल में कुल्हों को मटका कर चलती हूई
बाहर जाने लगी. दरवाज़े में खड़े हो कर उन्होंने सिर्फ गर्दन घम
ु ा कर पीछे मझ
ु े दे खा और बहुत सेक्सी से
स्टाइल में एक्टिं ग करते हूवे उन्होंने मुझे ऑ ंख मारी और बाहर निकल गयीं. 15 मिनट ऐसे ही पड़े रहने
के बाद मैं उठा और नहाने की लिये बाथरूम चला गया

रात खाना खाने के बाद सब अपने रूम में सोने जा चुके थे. मैं अकेला बैठा टीवी दे ख रहा था जब बिलाल
बैग उठाये घर में दाखिल हुआ. मैं उठ़ कर उससे मिलते हूवे बोला, " यार फ़ोन ही कर दे ते मैं आ जाता
तुम लोगों को लेना."

" हमारा इरादा तो ये ही था लेकिन इजाज़ खालो की एक दोस्त जो एयरपोर्ट पर ही काम करते है , उन्होंने
ज़िद करके अपने ड्राइवर को साथ भेज दिया इस लिए आप लोगों को इत्तला नहीं दी. मैं ज़रा नहा लूं
भाई फिर बातें करें गे " बिलाल ने उपर रूम की तरफ जाते हूवे कहा. फिर पहली सीढ़ी पर रुकते हूवे कहा
" बाक़ी सब तो सो गए होंगे."

" हां " मैंने जवाब दिया.

" आप भी आ जाओ ना यहाँ क्या कर रहे है . " उसने कहा और उपर चला गया. उसके जाते ही आपि अपने
रूम से निकलीं और आ कर सोफ़े पे मेरे बराबर बैठ गयीं.
" बिलाल की आवाज़ आ रही थी क्या वो आ गया है "

" जी उपर चला गया है " मैंने जवाब दिया और उनको दे खने लगा. उनके चेहरे पर परे शानी सी छाई हूई
थी.

" कमीने अगर दिन में मुझे मूवी दे खने दे दे ते तो अच्छा था ना. तुम तो उसके साथ सब कुछ कर ही
सकते हो " वो झंझलाते हूवे बोलि. अब मुझे समझ आ गई थी आपि की परे शानी की वजह. मुझसे आपि
की झिझक अब बिल्कुल ख़तम हो गई थी और वो मझ
ु से हर तरह की बात कर रही थीं तो मैंने भी हैरत
का इज़हार नहीं किया और नार्मल रह कर ही बात करने लगा.

" आपि उसे तो आना ही था आज नहीं तो कल आ जाता. 114 ख़तम होने के बाद 115 वीं, 116 वीं भी तो
आनि ही है ना. आप हमारे साथ ही दे ख लिया करो. वैसे भी अब हमारे दरमियाँ कोई बात छुपी हूई तो है
नहीं. आप भी जानती है की हम सेक्स के मामले में बिल्कुल पागल है और मैं भी जानता हूँ की आप भी
हमारी ही सगी बहन है . अगर हमारे ख़न
ू में इतना उबाल है तो आपकी रगों में भी वो ही ख़ून है . उबाल
उसका भी हमारे जितना ही है ."

" तुम्हारी और बात है . तुम समझदार हो और नेचुरल नीड्स को समझ सकते हो. इस बात को समझ
सकते हो की जब हमारे जिस्मों को ज़ेहन की बजाय टांगों की बीच वाली जगहें कंट्रोल करने लगती है तो
सोचने समझने की सलाहियत ख़तम हो जाती है . क्या हालत होती है उस वक़्त इसका अंदाज़ा तम्
ु हें है
लेकिन बिलाल अभी बच्चा है उसकी सामने मैं … ” इतना कह कर आपि चुप हो गयीं. उनके चेहरे से
बेहरगी और लाचारी ज़ाहिर हो रही थी.

" आपि आपकी इतनी लम्बी तक़रीर का मेरे पास एक ही जवाब है की बिलाल भी सब समझता है वो
बच्चा नहीं है सौ बार मुझे चोद चुका है वो … " मैंने शरारती अंदाज़ में कहा और हसने लगा. मेरी इस
बात का असर वो ही हुआ जो मैं चाहता था. आपि के चेहरे से भी परे शानी ग़ायब हो गई और उन्होंने भी
शरारती अंदाज़ में हसते हूवे मेरे सीने पर मुक्का मारा और कहा, " तुम्हारा बस चले तो तुम तो गधे, घोड़े
को भी नहीं छोड़ो " आपि की इस बात पे मैं भी हं स दिया. माहोल की घुटन ख़तम हो गई थी फिर मैंने
सीरियस होते हूवे कहा, " आपि मैं जानता हूँ की आप को लड़कों लड़कों का सेक्स दे खना पसंद है . मैंने
काफी दफ़ा आपकी जाने के बाद हिस्ट्री चेक की है तो ज़्यादा मूवीज गे सेक्स की ही होती है जो आप
दे खती है . ज़रा सोचो आप मूवीज की बजाये हकीकत में ये सब अपने सामने होता हुआ भी दे ख सकती है .
" मेरी ये बात सुनकर आपि की ऑ ंखों में चमक सी लपकि थी वो चंद लम्हे कुछ सोचती रहीं फिर बोलीं.
" हां मुझे इस किस्म की कुछ मूवीज ने बहुत एक्साइट किया था और अजीब सा मज़ा आया था वो सब
दे खकर. ये सच है की मैं रियल एक्शन दे खना चाहती हूँ " आपि ये कह कर फिर से कुछ सोचने लगी. मैं
भी चुप ही रहा और उन्हें सोचने का टाइम दिया. कुछ दे र बाद आपि बोली, " ओके ठीक है लेकिन ये सब
होगा कैसे " मैंने कहा, " इसकी आप फ़िक्र ना करें ये सब मुझ पर छोड़ दे लेकिन आप ये ज़हन में रखें
की आपके और मेरे दरमियाँ जो कुछ हुआ वो सब कुछ उससे बताना होगा तभी मैं उसे ऐतमाद में ले
सकँू गा. ( आपि से उन बातों की दौरान मेरा लौड़े थोड़ी सख्ती ले चक
ु ा था और ट्रॉउज़र में टें ट सा बन गया
था )

आपि ने कुछ दे र सोचा और फिर शायद उनको भी उनके बाग़ी मिज़ाज ने अपनी लपेट में ले लिया. (
आखिर थी तो वो मेरी सगी बहन ही ना, खन
ू तो एक ही था और शायद ये बाग़ी मिज़ाज भी हमें जीन्स
में ही मिला था की हमारे अम्मी अब्बू ने भी कोर्ट मॅरेज की थी ) और उन्होंने हाथ को मक्खी उड़ाने की
स्टाइल में लेहराया और कहा, " ओके गो अहे ड! कुछ भी करो अब सब तुम पर छोड़ती हूँ " ये कह कर वो
खड़ी हूई और थप्पड़ की अंदाज़ में हाथ मेरे खड़े लंड पर मारा … जैसे ही थप्पड़ मेरे खड़े लंड पर पड़ा मैं
तक़लीफ़ से एक दम दोहरा हो गया और मेरे मुंह से आह्ह्ह्ह्ह के साथ ही निकला, " बहनचोद आपिई "
और आपि हसते हूवे फ़ौरन अपने रूम की तरफ भाग गई. मैंने पीछे से आवाज़ लगाई, " याद रखना बदला
ज़रूर लूंगा."

आपि रूम में पहुंच गई थी उन्होंने दरवाज़े में खड़े हो कर कहा, " सोचना क्या जो भी होगा दे खा जायेगा "
और ये कह कर दरवाज़ा बंद कर लिया. कुछ दे र बाद जब लंड की तक़लीफ़ कम हो गई तो मैं रूम में आ
गया. बिलाल सो चुका था शायद इतने दिन बाद अपने बिस्तर का सुकून नसीब हुआ था इस लिए. मैं भी
बिस्तर पर लेटा और जल्द ही दनि
ु आ - ओ - माफिया से बेखबर हो गया …

सब
ु ह जब ऑ ंख खल
ु ी तो 10 बज रहे थे, बिलाल अभी तक सो रहा था ( उसके स्कूल की छुट्टियां अभी
ख़तम नहीं हूई थीं ). मैंने बाथरूम जाने से पहले बिलाल को भी जगा दिया. मैं बाथरूम से बाहर आया तो
बिलाल इन्तज़ार में ही बैठा था मेरे निकलते ही वो अंदर घुस गया. तो मैं उसे नीचे आने का कह कर
खद
ु भी नीचे चल दिया.

जब मैं डाइनिंग टे बल पे बैठा तो किचन मैं से अम्मी की आवाज़ आई, " उठ़ गए बेटा! बस थोड़ी दे र बैठो
मैं नाश्ता बना दे ती हूँ ". मैंने कहा " अम्मी 2 बंदों का नाश्ता बनायेगा बिलाल भी वापस आ गया है और
आपि नहीं है घर में क्या जो आप बना रही है नाश्ता."

" नहीं वो तो सुबह ही यूनिवर्सिटी चली गई थी और वो छोटी निकम्मी भी जा कर नानी के घर ही बस


गई है . ना कुछ खाना बनाना सीखती है ना सीना पिरोना … कल दस
ू रे घर जायेंगी तो …… " अम्मी का ना
रुकने वाला सिलसिला शुरू हो चुका था. फिर ऐसे ही अपनी फिक्रें बताते हूवे और शिकायत करते हूवे
अम्मी नाश्ता बनाने लगी और मैं उनकी बातों का जवाब दे ते हूवे " हूँ, है " करने लगा.

बिलाल नीचे आया तो अम्मी की आवाज़ सुनते ही सीधे किचन में गया और उन्हें सलाम करने और
उनसे प्यार लेने के बाद उनके साथ ही नाश्ते की बर्तन पकड़े बाहर आया और मेरे साथ वाली चेयर पर
ही बैठ गया. हमने नाश्ता शुरू किया और अम्मी का रुख अब बिलाल की तरफ हो गया था. नाश्ता करते
करते बिलाल अम्मी से भी बातें करता रहा. जो गांव के बारे में ही पुछ रही थीं. नाश्ता ख़तम करके मैं
हाथ साफ कर ही रहा था की बिलाल ने पीछे मड़
ु कर अम्मी को दे खा और उन्हें किचन में बिजी दे ख
कर बिलाल ने मेरे ट्रॉउज़र के उपर से ही मेरे लंड को पकड़ करा दबाया और बोला " भाई चलो ना आज.
बहुत दिन हो गए है . " फिर किसी ख्याल की तेहत चौंकते हूवे उसने कहा. " अम्मी का बिहे व तो ठीक ही
है इसका मतलब है आपि ने अम्मी अब्बू को नहीं बताया ना कुछ " उसकी बात की जवाब में मैंने
मुस्कुराते हूवे उसका हाथ अपने लंड से हटाया और खड़े होते हूवे कहा " नाश्ता ख़तम करके रूम में आ
जाओ " ये कह कर में उपर चल दिया.

जब बिलाल रूम में दाखिल हुआ तो मैं बिस्तर पर लेटा हुआ आपि के बारे में ही सोच रहा था और मेरा
लौड़ा खड़ा था. बिलाल ने मेरी तरफ आते हूवे कहा अम्मी नजमा खाला के घर चली गयी है , कह रही थीं
की इजाज़ खलु से भी मिल लें गई और शाम मैं ही वापस आयेंगी. बात ख़तम करके बिलाल मेरे पास आ
कर बैठा तो मैं भी उठ़ कर बैठ गया. बिलाल ने मेरे खड़े लौड़े को अपने हाथ में पकड़ा और बोला, " भाई
आज तो ये कुछ बड़ा बड़ा लग रहा है . " मैंने उससे कोई जवाब नहीं दिया. मैं अपनी सोच में था. बिलाल ने
मुझे सोच में डूबा दे ख कर मेरे लंड को ज़ोर से दबाया और बोला, " भाई आपि ने किसी को शिकायत नहीं
लगे तो लाज़मी बात है की आप को बहुत बुरा भला कहा होगा. मैंने बिलाल की तरफ दे खा और उससे
कहा " जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ. सुन कर तुम्हारे होश उड़ जायेंगे. वो बगैर कुछ बोला इंहिमाक से मेरी
तरफ दे खने लगा और मैंने उसे शुरू से बताना शुरू किया

" उस रात तुम्हारे सोने के बाद मुझे मुझे ख्याल आया की मैं कंप्यूटर में से अपना पोर्न मूवीज का
फोल्डर तो डिलीट कर दं ू ताकि आपि अब्बू को बता भी दे तो कोई ऐसा सबत
ू तो ना हो. मैं उठा और
कंप्यूटर टे बल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने लगा तो मैंने दे खा की उसकी पावर कॉर्ड ग़ायब थी. कुछ दे र
तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन आखिर में याद आया की आपि रूम से जाने से पहले कंप्यूटर के पास
आई थीं. यक़ीनन वो ही पावर कॉर्ड निकाल कर ले गई होंगी ……"

पूरी बात बिलाल को बताने के बाद जब मैंने ध्यान दिया तो हम दोनों ही बिल्कुल नंगे थे और हमने एक
दस
ू रे के लंड को अपने हाथों में ले रखा था हमे पता ही नहीं चला था की कब हमने कपड़े उतार कर
फेंके और कब लंड हाथों में लिए. बिलाल की हालत बहुत ख़राब थी. आपि के बारे में सुन कर उसके हवस
गुम हो गए थे ( ये तो होना ही था क्योंकी हमारी बहन जो हर वक़्त बड़ी सी चादर में रहती थी जिसकी
सर से कभी किसी ने स्कार्फ़ उतरा हुआ नहीं दे खा था, जो नफासत और पाकीज़गी का पेकर थी उसको
इस हाल में दे खना तो दरू , सोचना भी मुश्किल था और बिलाल को में सच बता रहा था ऐसा सच जो
रोज़ रोशनी की तरह अयां था. मैं अपनी जगह से उठा और मैंने अपने होंठ बिलाल की होंठो से चिपका
दिये और …… हमने एक दस
ू रे का लंड चस
ू ा गान्ड़ का सोख चाटा, एक दस
ू रे को चोदा हत्ता की हम जो
जो कुछ कर सकते थी सब कुछ किया. जब एक शानदार चुदाई का बाद हम दोनों फ़ारिग़ हूवे तो 3 बज
चुके थे मतलब 4 घंटे से हम चुदाई का खेल खेल रहे थे और अब तक कर बिस्तर पर नंगे ही लेटे हूवे
थे. हम दोनों की हलक़ ख़श्ु क हो चक
ु े थे. बिलाल को इसी हालत में छोड़ कर मैंने अपने कपड़े पहने और
पानी लेने के लिए नीचे चल दिया.

उसी रात मुझे और बिलाल को फिर इमरजेंसी मैं गांव जाना पर गया. इस बार हम 8 दिन रुके और सब
काम मुकम्मल निपटा कर साथ ही वापस लौटे थे और 8 दिन बाद भरपूर सेक्स करने के बाद बिलाल सो
गया था और मैं अपने रूम से निकल कर नीचे आ गया था. जब मैंने आखरी सीढ़ी पर क़दम रखा तो
सामने सोफ़े पर आपि आधि लेटी आधि बैठी हूई सी हालत में सोफ़े पर पड़ी थी और पांव ज़मीं पर थे
और उनकी टाँगें थोड़ी खुली हूई थीं. उनकी गर्दन सोफ़े की पुष्ट पर टीकी थी और सर पीछे को ढलका
हुआ था. आँखें बंद थीं. यूनिवर्सिटी बैग सामने कारपेट पर पड़ा था … शायद वो अभी अभी ही यूनिवर्सिटी
से आयीं थीं और गर्मी से निढाल हो कर यहाँ ही बैठ गई थीं. मैंने किचन की तरफ रुख मोड़ा ही था की
किसी ख्याल की तहत मेरे ज़हन मैं बिजली सी कौंधी और मैं दबे पांव आपि की तरफ बढ़ने लगा. मैं
उनके बिल्कुल क़रीब पहुंच कर खड़ा हुआ और अपना रुख सीढ़ीयों की तरफ करके भागने के लिए अलर्ट
हो गया. मैंने एक नज़र आपि के चेहरे पर डाली उनकी आँखें अभी भी बंद थीं. मैंने अपना सीधे हाथ
उठाया और थप्पड़ की अंदाज़ में ज़ोर से अपनी सगी बहन की टांगों की दरमियाँ मारा और फ़ौरन भागा
लेकिन 3,4 क़दम बाद ही किसी ख्याल की तहत रुक गया. वहां हाथ मारने से ना ही कोई आवाज़ आयी
थी और मझ
ु े ऐसा महसस
ू हुआ था जैसे मैंने फोम की गढ्डे पर हाथ मारा हो, पता नहीं मेरा हाथ आपि
की टांगों की बीच वाली जगह पर लगा भी था या मैं सोफ़े पर ही हाथ मार कर भाग आया था. फ़ौरन ही
आपि की हसने की आवाज़ पर मैं घूमा तो आपि बेतहाशा हं ह रही थीं और उनके चेहरे पर जीत की ख़ुशी
थी. उन्होंने हसते हसते ही कहा, " कमीने तुम ने बदला ले लिया है ये अलग बात है की इसका नुक़्सान
मुझे हुआ या नहीं लेकिन हिसाब बराबर हो गया है अब तुम दस
ू री कोशिश नहीं कर सकते अच्छा."

" ओके मेरा वादा है की दब


ु ारा कोशिश नहीं करूंगा हिसाब बराबर " मैंने कंफ्यज
ू और कुछ ना समझ आने
वाली कैफ़ियत में जवाब दिया. आपि ने मझ
ु े कंफ्यूज दे खा तो मेरी कैफ़ियत को समझते हूवे और मेरी
हालत से लुत्फ़ अन्दोज़ होते हूवे कहा, " उल्लू के चरखे कंफ्यूज ना हो. मुझे में सिस चल रहे है और शुरू
के और आखरी दिनों मैं मेरा बहुत है वी फ्लो होता है इस लिए मैं डबल पॅड लगाती हूँ आज आखरी दिन
है . समझ बुद्धू " ये कह कर उन्होंने एक नज़र मझ
ु पर डाली और फिर खिलखिला कर हं स पड़ी क्योंकी
मेरी शकल ही ऐसे हो रही थी. मेरी हालत उस शख़्स जैसी थी जैसे भरे बाजार में किसी गंजे के सर पर
कोई एक चपत रसीद करके भाग गया हो"

आपि ने मझ
ु े वार्निंग दे ते हूवे कहा, " मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है , मैं भूलि नहीं हूँ उस बात
को"

मैंने पुछा, " कौन सी बात"

तो आपि ने जवाब दिया " मैं सही टाइम पर ही बदला लूंगी अभी नहीं. दे खो शायद वो टाइम आ जाये और
हो सकता है की ऐसा टाइम कभी ना आये " मैं कुछ दे र खड़ा रहा फिर झेंपी सी हं सी हसते हूवे सर
खुजाते किचन में चला गया और आपि भी उठ़ कर अपने रूम की तरफ चली गई लेकिन मैंने दे खा था
आपि के चेहरे पर अभी भी शरीर सी मुस्कराहट सजी थी.

मैंने पानी पिकर रूम में ले जाने के लिए जग भरा और किचन से निकला तो आपि भी अपने रूम से
बाहर आ रही थीं. वो अभी अभी मुंह हाथ धो कर आयी थीं उनका चेहरा बहुत बहुत ज़्यादा खूबसूरत और
फ्रेश लग रहा था. उन्होंने ऑफ वाइट रं ग का स्कार्फ़ जिस पर बड़े बड़े लाल फूल प्रिंटेड थे बहुत सलीक़े से
अपने मख़सूस अंदाज़ में सर पे बांध रखा था. ऑफ वाइट रं ग की ही कॉटन की कलफ़ लगी क़मीज़ थी
और उस पर भी लाल रं ग के बड़े बड़े फूल थे. वाइट कॉटन की सादा सी सलवार थी. आपि ने अपने जिस्म
की गिर्द ग्रे रं ग की बड़ी सी चादर लपेट रखी थी. वो नंगे पांव थीं गोरे पांव मरून रं ग की कारपेट पर
बहुत खिल रहे थे.

" आपि आप इस सट
ू में बहुत ज़्यादा हसीं लग रही है . " मैंने भरपरू नज़र आपि पर डालते हूवे कहा.

" अच्छा अभी तो तुम ने सही तरह सूट दे खा ही कहाँ है . चलो क्या याद करोगे दे ख लो " कहते हूवे आपि
ने अपनी चादर उतारी और अपने बाज़ू पर लटका दी. आपि की चादर हटाते ही उनके बड़े बड़े मम्मे मेरी
नज़रों की सामने थे. आपि की ये क़मीज़ भी उनकी बाकी सब क़मीजों की तरह टाइट थी और आपि की
मम्मे उनमें बुरी तरह से दबे हूवे थे. ब्रा का रं ग नहीं मालूम पड़ रहा था लेकिन गौर से दे खने पर पता
चलता था. जहाँ जहाँ ब्रा का कपड़ा मौजद
ू था वहां वहां से क़मीज़ का रं ग गहरा हो गया था. ब्रा ही की
वजह से चूंचियां बिल्कुल छुप गए थे और उनका निशान भी नहीं नज़र आता था.
" यार आपि ये इतने ज़्यादा दबे हूवे है , इतना टाइट होने से इन मैं दर्द नहीं होता क्या " मैंने अपनी सगी
बहन की सीने की उभारों पर ही नज़र जमाये उनसे पुछा.

" अरे नहीं यार अब आदत हो गई है बिल्कुल भी फील नहीं होता लेकिन जब ब्रा पेहनना स्टार्ट किया था
तो उस वक़्त मैं बहुत तंग होती थी. ब्रा ना पेहनने पर रोज़ ही अम्मी से डांट पड़ती थी और उस वक़्त ब्रा
से बचने के लिए ही मैंने बड़ी सी चादर लेनी शुरू की थी जो बाद में मेरी आदत ही बन गई. ”

आपि ने ये कह कर मेरे हाथ से जग लिया और जग से ही मंह


ु लगा कर पानी पीने लगी. पानी पीकर वो
सोफ़े की तरफ बढ़ी तो मैंने कहा आप यहीं रहना मैं पानी रूम मैं रखकर आता हूँ. मैं रूम मैं पहुंचा तो
बिलाल सो रहा था. मैंने उसके पास पानी रखा और बाहर निकल कर दरवाज़ा बंद करते हूवे, मैंने बाहर से
लॉक भी कर दिया. जब मैं नीचे हॉल में पहुंचा तो आपि सोफ़े पे अपने पांव कुल्हों से मिलाये और घट
ु ने
सीने से लगा कर घुटनों पर अपनी ठोड़ी ( चिन ) टिकाये बैठी थीं. आपि ने दोनों बाजूओं को अपनी टांगों
से लपेट रखा था. उनकी चादर और स्कार्फ़ दोनों ही नीचे कारपेट पे पड़े थे. मैंने उनके बिल्कुल सामने,
ज़मीं पर बीछे कारपेट पर बैठ कर पछ
ु ा, " तो फिर आप ने ब्रा कैसे पेहेनना शरू
ु की"

" बाज़ी को पता था की मैं ब्रा नहीं पेहनती हूँ और इस बात को सब से छूपाने के लिए बड़ी सी चादर
लिए रखती हूँ तो उन्होंने ही मझ
ु े समझाया था की ब्रा ना पहनेने से ये लटक जायेंगे और इन की शेप
भी ख़राब हो जायेंगी और ब्रैस्ट कैं सर जैसी बेमारी भी लग सकती है वग़ैरा वग़ैरा"

अब मैं बाज़ी का तारूफ़ भी करवा दं ू आप से. हम अपनी सब से बड़ी बहन जिनका नाम समीना है . उनको
बाज़ी कह कर बुलाते है . वो आपि से 7 साल बड़ी है . उनकी शादी 4 साल पहले हो गई थी उनके हस्बैंड
उनके साथ यूनिवर्सिटी मैं पढते थे वहां ही उनका लव हुआ लेकिन शादी दोनों की घरवालों की मर्ज़ी से
हं सी ख़ुशी हो गई थी और अब बाज़ी अपने सुसराल वालों के साथ लाहौर मैं रहती है . बाक़ी की तफ़सील
उस वक़्त बताऊँगा जब वो हमारी कहानी मैं शामिल होंगीं, तब तक के लिए इन्तज़ार किजिये )

" उस वक़्त क्या उमर थी आपकी " मैंने पुछा आपि ने अपनी आँखें छत की तरफ कर के सोचते हूवे कहा
" मैं उस वक़्त तक़रीबन 13 साल की थी”

आपि की बात ख़तम होते ही मैंने एक और सवाल कर दिया, " आपि आपके दध
ू किस उम्र में निकले थे
की आप को 13 साल की उमर मैं ब्रा की ज़रूरत पर गई"

" गटलियाँ सी तो 10 साल की उमर मैं ही बन गई थी और 12 साल की उमर में साफ नज़र आने लगे थे
और 13 साल में तो फुल डेवलोप हो चुके थे. मैंने पहली बार ब्रा 32C साइज का पहना था. तभी तो अम्मी
डांटा करती थीं की मामू वगैरा घर आते थे तो अम्मी को शर्म आती थी.
" इतनी जल्दी निकल आते है क्या दध
ू ? " मैंने है रत से पुछा तो आपि ने कहा, " नहीं हर किसी के साथ
ऐसा नहीं होता. नोर्मली तो 13 साल की उमर में घुटलियाँ ही होती है लेकिन हम लोगों का ये ख़ानदानी
सिलसिला है . बाज़ी और नजमा खाला की भी 10 साल की उमर मैं शुरू हो गए थे और नानी बताती है की
अम्मी के उरोज उनकी अपने तो 10 साल की उमर मैं इतने बड़े थे जितने हमारे 13 साल की उमर मैं थे
और उन दोनों की ही घुटलियाँ तो 7 साल की उमर मैं बन गई थीं इसी लिए तो सब की इतने बड़े बड़े है .
तम
ु ने भी नोटिस किये ही होंगे मैं जानती हूँ की तम
ु बहुत बड़े कमीने हो " आपि ने ये कहा और मझ
ु े
दे ख कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगी.

मैंने फ़ौरन कहा, " नहीं आपि. आपकी कसम मैंने कभी नानी या अम्मी के बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा"

" अच्छा इसका मतलब है बाज़ी और नजमा खाला के बारे में सोचा है , ह्म्म ्"

" आपि आप को तो पता है एक तो बाज़ी का जिस्म इतना भरा भरा है और बाज़ी और खाला आपकी
तरह चादर लेना तो दरू की बात हमारे सामने दप
ु ट्टे तक का ख्याल नहीं करती है . बाज़ी तो शादी के बाद
से अपने आप से बिल्कुल ही लापरवाह हो गयी है . आप जानती ही है . गले इतने खुले होते है की कभी ना
कभी नज़र पड़ ही जाती है " मैं ये कह कर नीचे दे खने लगा और नाख़ून से कारपेट को खरोंचने लगा.

" अच्छा जी! तो मेरे सोहणे भाई की कहाँ कहाँ नज़र पड़ी है और क्या क्या दे खा है , जनाब ने अपनी सगी
बाज़ी और सगी खाला का " आपि ने ये कह कर सोफ़े से पांव उठाये और टाँगें सीधी करते हूवे पांव ज़मीं
पर टिका दिया. मैंने जवाब दे ने के लिए चेहरा उपर उठाया तो आपि के घुटने मेरे चेहरे की बिल्कुल
सामने थे और दोनों घुटनों की दरमियाँ मुझे काफी गहराई में आपि की टांगों की दरमिआन सिर्फ अँधेरा
दिखाई दिया बस. मेरी नज़रों को अपनी टांगों की दरमिआन मह्सूए करके आपि ने अपने घुटनों को थोड़ा
और खोला और अपनी क़मीज़ की दामन को सामने से हटा कर राण की बाहर वाली साइड पर कर दिया
और बोली, " क्या ढूंड रहे हो?? अरे खन
ू आना बंद हो गया था इस लिए मैं जब मुंह हाथ ढ़ोने गई तो पॅड
भी निकाल दिये थे. बताओ ना क्या क्या दे खा है तुम ने बाज़ी और खाला का?"

आपि की टांगों की दरमियाँ से उनकी सलवार का बहुत सा हिस्सा गीला हो चुका था, पता नहीं उनको इन
बातों में ही इतना मज़ा आ रहा था या मेरी नज़रें अपनी टांगों की दरमियाँ महसस
ू करके वो गीली हो
गई थी.

" अब बोल भी दो और पहले बाज़ी का बताओ"

" जब वो यहाँ थीं उस वक़्त तो मैं काफी छोटा था लेकिन पिछले साल गर्मियों में जब मैं और आप बाज़ी
के घर 10 दिन रहे थे तब अक्सर ऐसा होता था की बाज़ी सफाई वग़ैरा की लिये या बच्चों को ज़मीं से
उठाने या किसी और काम से झुकती थीं तो अक्सर नज़र पड़ ही जाती थी उनकी गले में . तो ऐसे कुछ
दफ़ा उनकी आधे आधे दध
ू दे खे है और उनकी मम्मों की लकीर तो अक्सर बैठे हूवे भी नज़र आती ही
रहती है . कितनी बार मैंने नोट किया था की मुझे आता दे ख कर आप बाज़ी की क़मीज़ का गाला सही
करती थीं. शायद आप को भी याद होगा, एक बार आपि मुन्ने को गोद में लिटा कर दध
ू पीला रही थीं मैं
जैसे ही अंदर आया तो बाज़ी की चूंचि मुन्ने के मुंह से निकल गयी थी. क़मीज़ पहले ही आधे मम्मे से
उपर थी … आप दोनों ही बातों में इतनी गम
ु थी की बाज़ी को तो वैसे ही परवाह नहीं होती और आप का
ध्यान भी नहीं गया था उधर और तक़रीबन 25, 30 सेकंड बाद आप ने इस अंदाज़ से उनकी क़मीज़ खींचि
थी की ना बाज़ी को पता चल सका और ना मुझे लेकिन मैंने नोट कर लिया था. बस उस दिन पहली
और आखरी बार बाज़ी का चंचि
ू यां दे खा था मैंने.

" इसके अलावा क्या दे खा " आपि ने मेरे चेहरे पर नज़र जमाये जमाये पुछा …

" इसके अलावा मैंने बाज़ी की टाँगें दे खी है आप जानती ही है की वो जब भी फ़र्श धोती है तो अपने
पायींचे घट
ु नों तक चढ़ा ही लेती है और 3-4 बार उनका पेट और कमर दे खी है . अक्सर जब वो करवट के
बल लेट कर कोई रिसाला वग़ैरा पढ रही होती है तो उनकी क़मीज़ पेट या कमर या दोनों जगह से हटी
होती है . उस वक़्त ही दे खा है और उनकी नाभि की पास भी एक तिल है , जैसे आप का है " आखरी जुमला
कह कर मैं आपि की ऑ ंखों में दे ख कर मस्
ु कुरा दिया …

" बको मत और बताते रहो " आपि ने शर्म से लाल होते हूवे कहा. फिर 4, 5 सेकंड बाद ही बोलीं " तुम्हारी
मालम
ू ात मैं इजाफ़ा कर दं ू की सिर्फ मेरा और बाज़ी का ही नहीं बल्कि अम्मी की नाभि के नीचे भी वैसे
ही तिल है . अम्मी के ज़िकर को अनसुनी करते हूवे मैं आपि से ही सवाल कर बैठा, " आपि प्लीज एक
बात तो बताओ आप को तो पता ही होगा"

" क्या?? " आपि ने एक लफ़्ज़ कहा और मेरे बोलने का इन्तज़ार करने लगी.

" बाज़ी की सीने की उभारों का क्या साइज है . आप से तो बड़े ही लगते है उनकी " ये पूछते हूवे मैंने एक
बार फिर आपि की मम्मों पर नज़र डाली.

" लगते ही नहीं यक़ीनन बड़े ही है उनकी. 42D साइज है बाज़ी का और भी किसी का पूछना है या बस. ”
उन्होंने मेरी ऑ ंखों में दे ख कर कहा.

" नहीं मैंने पूछना तो नहीं है लेकिन अगर आप मज़बरू करती है तो पुछ लेता हूँ."
मैंने ये कहा ही था की आपि ने मेरी बात काट कर कहा, " जी नहीं मैं आप को मज़बूर नहीं कर रही आप
ना ही पुछो. अब मुझे ये बताओ की बाज़ी की जिस्म में ऐसी कौन सी चीज़ है जिसे दे ख कर तुम्हें बहुत
मज़ा आता है और तुम्हारा जी चाहता है बार बार दे खने का " ये बोल कर वो फिर सवालियाँ नज़रों से
मुझे दे खने लगी.

मैंने कुछ दे र सोचा और फिर अपने खड़े लंड को नीचे की तरफ दबा कर छोड़ा और कहा, " बाज़ी की बैक.
मतलब उनकी गान्ड़. उनकी गान्ड़ है भी काफी भरी भरी और थोड़ी साइड्स पर और पीछे को निकलि हूई
भी है . उनकी गान्ड़ की लकीर में जब क़मीज़ फंसी होती है और वो चलती है तो उनके दोनों कुल्हे आपस
में रगड़ खा कर अजीब तरह से हीलते, डुलते है . जब भी ये सिन दे खता था तो बहुत मज़ा आता था और
आप जानती ही है की जब भी वो बैठने के बाद खड़ी होती है तो उनकी कुल्हों की दरार में उनकी क़मीज़
फंसी होती है , मैंने बहुत बार दे खा था आप पीछे से उनकी क़मीज़ खींच कर सही करती थीं जिसका वो
कभी ख्याल नहीं करती. "…

मैंने बात ख़तम की ही थी की दरवाज़ा खल


ु ने की आवाज़ आई और आपि ने फौरन अपनी चादर और
स्कार्फ़ उठाया और अपने रूम में भाग गयीं.

कुछ दे र बाद ही अम्मी अंदर दाखिल हो गई थीं. मैंने सलाम किया तो अम्मी ने कहा बेटा एक गिलास
पानी पीला दो. मैं इस एहतियात से उठाकर अम्मी को मेरे खड़े लंड का ना पता चल सका और किचन में
जा कर पानी का गिलास भरा ही था की आपि अपने रूम से निकलीं और अम्मी को सलाम करके किचन
में आ गयीं. उन्होंने स्कार्फ़ बांध लिया था और चद्दर लपेटि हूई थी. मेरे हाथ से गिलास लिया और मेरे
लौड़े की तरफ इशारा करते हूवे दबी आवाज़ में कहा, " पहले अपने जहाज़ को तो लौड़े करवा दो. इसे बिठा
कर बाहर आना."

ये कह कर बाहर चली गयीं और अम्मी के साथ बैठ कर बातें करनें लगी. मैं किचन से निकला और सीधे
उपर चला गया अपने रूम को बाहर से अनलॉक करके घूमा ही था की बिलाल ने दरवाज़ा खोला और
मझ
ु े दे ख कर कहा. अरे भाई आप यहाँ क्यों खड़े हो. तो मैंने जवाब दिया यार रूम में ही जा रहा था
लेकिन फिर प्यास लगी तो सोचा नीचे जा कर ही पानी पी लूं. मैं ये बोल कर नीचे चल पड़ा. थोड़ी दे र
बाद बिलाल भी नीचे आ गया और उसने सर झुकाये झुकाये ही आपि को सलाम किया. आपि उसकी
आवाज़ सन
ु कर अपनी चादर को सँभालते हूवे उठीं और बिलाल का चेहरा दोनों हाथों में ले का उसका
माथा चुमने के बाद बोली, " ठीक ठाक हो तुम वहां तुम्हें हमारी याद तो बहुत आई होगी. खास तोर पर
अपने भाई को तो बहुत याद किया होगा ना. " बिलाल आपि की इस हमले के लिए तैयार नहीं था. इस
लिए थोड़ा सा घबरा गया. शायद अम्मी सामने थीं इस लिए भी एहतीयात कर रहा था. उसने यहाँ से
निकल जाना ही ग़नीमत समझा और आपि की सामने से हट कर बाहर जाता हुआ बोला.

" आपि मैं बच्चा तो नहीं हूँ जो अकेले परे शान हो जाऊंगा " ये कह कर वो बाहर निकल गया. अम्मी उठ़
कर अपने रूम में चली गयीं. तो मैंने आपि से कहा, " क्या दिमाग़ ख़राब हुआ है आप का. ऐसे तन्ज़ मत
करो बिलाल पर वरना सब काम बिगड़ जायेगा. जब आप ने सब कुछ मझ
ु पर छोड़ा है तो मेरे तरीके से
मुझे सँभालने दे ना."

" अरे मैंने तो वैसे ही मज़ाक़ मैं कह दिया लेकिन मैं भूल गई थी की वो बिलाल है सागर नहीं. शायद वो
बेचारा अभी भी मझ
ु से डरा हुआ ही है " आपि ने फ़िक्र मन्दी से कहा तो मैं फ़ौरन बोला, " अच्छा अब
आप परे शान नहीं हो. जाओ मैं दे ख लंग
ू ा सब " ये कह कर मैं भी बाहर जाने लगा तो आपि ने पछ
ु ा, "
क्या तुम ने मेरे बारे में सब बता दिया है बिलाल को"

मैंने चलते चलते ही जवाब दिया " हां एक एक लफ़्ज़ " और बाहर निकल गया.

रात में जब मैं घर घस


ु ा तो सब खाने के लिए बैठ ही रहे थे, मैंने भी सबके साथ खाना खाया और अपने
रूम में आ गया, आधे घंटे बाद बिलाल भी अंदर आया तो उसका मूड ऑफ था.

" भाई आपि आप से तो इतनी फ्री हो गई है लेकिन मझ


ु पर तन्ज़ करती है .

तो मैंने समझाया, " यार वो मज़ाक़ कर रही है तम


ु से. बेतक़ल्लफ़
ु होने के लिए ऐसी बातें कह दे ती है . तम

टें शन मत लो और तुम भी तो भीगी बिली बने हूवे हो ना. उनके सामने घबराये घबराये रहते हो तो
अम्मी अब्बू को कुछ शक भी हो सकता है इस लिए भी आपि तुम को चेरर लेती है और मेरी बात कौन
खोल कर सुनो और इसको ज़ेहन में बिठा लो की आपि की किसी हरकत पर है रत मत ज़ाहिर करो उनकी
हर बात हर हरकत को नार्मल ट्रीट करो और बाक़ी सब मुझ पर छोड़ दो. फिर बिलाल के लंड को सलवार
के उपर से ही पकड़ते हूवे मैंने कहा, " बहुत जल्दी ही उसको आपि की टांगों की बीच वाली जगह की सैर
करवा दं ग
ू ा. बस तुम कुछ मत करो और हालत के साथ साथ चलते रहो. मैं हूॅं ना हालत कंट्रोल करने की
लिए."

बिलाल ने अपने दोनों हाथों को भींचते हूवे कहा " भाई अगर ऐसा हो जाये तो मज़ा आ जाये."

कुछ दे र मैं बिलाल को समझाता रहा और फिर हम दोनों कंप्यूटर के सामने आ बैठे पोर्न मूवी दे खने
लगे. अचानक ही दरवाज़ा खल
ु ा और आपि अंदर दाखिल हो गई, " ओह्ह मेरे खद
ु ाया तम
ु लोग ज़रा भी
टाइम जाया नहीं करते हो " बिलाल ने फ़ौरन ड़र कर मॉनिटर ऑफ कर दिया लेकिन फिर कॉन्फिडेंस से
बोला, " आपि आप … मिस मौलवी … नहीं है आप ने भी तो सारी मूवीज दे खी ही है ना. ”

मैंने बिलाल को इशारे से चुप करवाया और कहा, " अच्छा बेहना जी तो अब आप क्या चाहती है " आपि
ने मस्
ु कुराते हूवे कहा, " रुको मझ
ु े सोचने दो … उहम्म्मम्म्मम्म्म … मझ
ु े नहीं समझ आ रहा मैं तम

लोगों को क्या करने को कहूं. " ये कह कर आपि हमारे दांए साइड पर पड़े सोफ़े पर जा बैठीं.

" क्या मतलब " बिलाल ने सवालिया अंदाज़ में कहा. आपि बोली, " बिलाल दरवाज़ा बंद कर दो " बिलाल
उठा और जा कर दरवाज़ा बंद कर दिया " लॉक भी लगा दो " बिलाल ने लॉक भी लगाया और वापस आ
कर अपनी चेयर पर बैठ गया.

“ हां मुझे तुम्हारे कंप्यूटर में कुछ फिल्में वाकया ही बहुत अच्छी लगी है . तो मैं सोच रही हूँ की आज
रियल ही क्यों ना दे ख लूं. चलो शुरू करो जो तुम लोग मेरे आने से पहले करने जा रहे थे.”

" बिल्कुल नहीं " बिलाल ने चिल्ला कर कहा " आप ऐसा कैसे कर सकती है आप हमारी सगी बड़ी बहन
है . आपि तन्ज़िया अंदाज़ में बोली, " अछाअअअअअअअ दे खो दे खो ज़रा अब कौन … मि.मौलवी … बन रहा
है . उस रात तो बहुत मज़े ले ले कर चूस रहे थे. क्या वो तुम्हारा सगा बड़ा भाई नहीं था? ” मैं काफी दे र से
खामोश उनकी बातें सुन रहा था. हाथ उठा कर दोनों को खामोश होने का इशारा करते हूवे मैं खड़ा हुआ
और बिलाल से कहा, " चलो यार बिलाल अब बस करो हमारी कोई बात ऐसी नहीं है जो आपि को ना
पता हो वो पहले ही सब जानती है . फिर बहस का क्या फ़ायदा ".

मेरा लंड पहले से ही फुल खड़ा था, मैंने अपने कपड़े उतारे और बिलाल का हाथ पकड़ कर बिस्तर की
तरफ चल पड़ा. आपि की नज़रें मेरे नंगे लंड पर ही जमी हूई थीं. वो सोफ़े से उठीं और कंप्यूटर चेयर पर
बैठते हूवे उन्होंने मॉनिटर भी ऑन कर दिया जहाँ मूवी पहले से ही चल रही थी. बिलाल अभी भी झिझक
रहा था. मैंने बिलाल को खड़ा किया और उसके होंठो पे अपने होंठ रख दिया और उन्हें चस
ू ने लगा. अपनी
एक ऑ ंख मैंने मुस्तक़िल आपि पर रखी हूई थी क्योंकी मैं आपि का रिएक्शन दे खना चाहता था. अपने
एक हाथ से मैंने बिलाल का शॉर्ट नीचे किया और उसका लंड उछल कर बाहर निकल आया. बिलाल का
लंड भी थोड़ी सख्ती पकड़ चक
ु ा था. शायद बिलाल भी आपि की यहाँ मौजद
ू गी से एक्साइट हो रहा था.
मैंने बिलाल के होंठो से अपने होंठों को अलग किया और बिलाल की शर्ट और शॉर्ट मुकम्मल उतार दिया.
अब हम दोनों बिल्कुल नंगे हो चुके थे. हम दोनों आपि की तरफ घूम गए. आपि के गाल सुर्ख हो रहे थे
और उनकी आँखें भी नशीली हो चुकी थीं.
" आपि कैसा लग रहा है आप को अपने सगे भाईओं को नंगा और उनके लंड दे ख कर. क्या आप एन्जॉय
कर रही है . " मैंने मुस्कुराते हूवे कहा

" शट अप बकवास मत करो और अपना काम जरी रखो. " ये बोल कर आपि ने मुझे आँखों से इशारा
किया की " प्लीज ये मत करो. " शायद आपि अभी ज़ेहनी तोर पर मक
ु म्मल तैयार नहीं थीं और उनमें
अभी काफी झिझक बाक़ी थी. मैंने फिर बिलाल के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और बिलाल को घुमा
दिया. अब आपि की तरफ बिलाल की पीठ थी. मैंने अपने एक हाथ से बिलाल की कुल्हों को रगड़ना और
दबोचना शरू
ु कर दिया. कुछ दे र बाद मैंने अपने दोनों हाथों से बिलाल की दोनों कुल्हों को खोल दिया.
ताकि आपि बिलाल की गान्ड़ के सुराख को साफ दे ख सकें. आपि को दिखाते हूवे मैंने अपनी एक उं गली
को अपने मुंह में लेकर गीला किया और बिलाल की गान्ड़ के सूराख में डाल दी. बिलाल हल्का सा मचला
… लेकिन मैंने किसिंग जारी रखी और अपनी उं गली को अंदर बाहर करने लगा. आपि आँखें फाड़ फाड़ कर
मेरी उं गली को अंदर बाहर होता दे ख रही थीं. मैंने बिलाल के होठों से होंठ हटाये और उसकी गर्दन को
चुमते और ज़ुबाँ से सेहलाते नीचे जाने लगा. मैंने बिलाल की चूंचियों को बारी बारी चूसा और फिर ज़मीं
पे घुटने टे क कर बैठ गया और उं गली बिलाल की गान्ड़ से निकाल कर आपि को दिखाते हूवे बिलाल की
गान्ड़ के सरू ाख पर फेरी. मैंने बिलाल के लंड को हाथ में लिया और अपना चेहरा लंड के पास लाकर एक
नज़र आपि पर डाली.

आपि की नज़रें मेरी नज़रों से मिली तो मैंने दे खा, आपि बहुत एक्साइट हो रही थीं शायद वो समझ गयीं
थीं की मेरा अगला अमल क्या होगा. फिर मैंने बिलाल के लंड को अपने मुंह में लिया और आहिस्ता
आहिस्ता 3-4 बार मुंह आगे पीछे करने के बाद मैंने एक हलके से झटके से बिलाल का लंड जड़ तक
अपने मुंह में ले लिया, उसकी टोपी मेरे हलक़ में टच हो रही थी. मैंने इसी हालत में रुकते हूवे आपि को
दे खा तो वो बहुत ज़्यादा बेचैन नज़र आ रही थीं वो बार बार अपनी पोजीशन चें ज कर रही थीं. शायद वो
अपनी टांगों की दरमियाँ वाली जगह को अपने हाथ से रगड़ना चाह रही थीं लेकिन अपने आप को रोके
हूवे थी. मैं कुछ दे र तेज़ तेज़ बिलाल के लंड को अपने मंह
ु में अंदर बाहर करता रहा और फिर लंड मंह

से निकालते हूवे खड़ा हुआ और बिलाल को इशारा किया की अब वो चूसे. बिलाल मेरी टांगों के दरमियाँ
बैठा और मेरे लंड को चूसने लगा कुछ दे र मेरा लंड चूसने के बाद बिलाल ने मुंह नीचे किया और मेरी
गोटियों को अपने मंह
ु में भर लिया. वो बिलाल की इस हरकत ने मेरे अंदर मज़े की एक नए लेहेर पैदा
कर दी. बिलाल नरमी से मेरी गोटियों को चूसने लगा.

मैं ने आपि को दे खा तो वो भी एकटक नज़र जमाये बिलाल को मेरे गोटियों चूसते दे ख रही थीं. मैं जानता
था की आपि को मेरी गोटियों बहुत अच्छी लगी थीं इस लिए भी आपि को बिलाल की ये हरकत बहुत
पसंद आयी थी. बिलाल ने मेरी गोटियों को मुंह से निकाला और मेरे पीछे जा कर मेरे कुल्हों को दोनों
हाथों में ले कर खोला और मेरी गान्ड़ के सरू ाख पर अपनी ज़ुबाँ फेरने लगा.

" वाऊऊव्वव्व बिलाल तुम तो बहुत ही गंदे हो " आपि ने बुरा सा मुंह बना कर कहा लेकिन अपनी नज़र
नहीं हटाई. बिलाल आपि को कुछ कहना चाहता था लेकिन मैंने बिलाल के सर को वापस अपनी गान्ड़ पर
दबा दिया. मैंने अपने लंड को अपने हाथ में लिया और बहुत स्पीड से लंड पे हाथ को आगे पीछे करने
लगा. आपि बिल्कुल मेरे सामने थीं. मैं डायरे क्ट आपि की ऑ ंखों में दे ख रहा था और लंड पे अपना हाथ
चला रहा था. आपि भी कुछ दे र मेरी ऑ ंखों में दे खती रही और फिर अपना चेहरा फेर लिया. मैं भी घम
ू ा
और फिर बिलाल को किसिंग करने लगा. अब हम दोनों की नज़रें आपि पर नहीं थीं. मैंने ऑ ंखों की कार्नर
से दे खा आपि ने अपना एक हाथ टांगों की दरमियाँ रख लिया था और मसलने लगी थीं. ये सिन दे खते
ही मेरे लंड को झटका सा लगा जैसे ही हम आपि की तरफ घूमे उन्होंने फ़ौरन हाथ अपनी टांगों की
दरमियाँ से हटा लिया. अब मैं डॉगी पोजीशन में बेंड हुआ और बिलाल मेरे पीछे आ गया. उसने अपने लंड
पर और मेरी गान्ड़ के सूराख पर आयल लगाना शुरू किया. मेरी नज़रें आपि पर थी और मुझे यक़ीं था
की आपि एक, एक सेकंड एन्जॉय कर रही है . बिलाल ने आहिस्तगी से अपना लंड मेरे अंदर डाला और
अपना लंड मेरी गान्ड़ में अंदर बाहर करने लगा. मेरे मंह
ु से कुछ आवाज़ें तो वैसे ही मज़े और दर्द से
निकल रही थीं और कुछ मैं खुद भी माहोल को सेक्सी बनाने और आपि को सुनाने के लिए निकलने
लगा, " आह्ह्ह्ह है बिलाल ज़ोर से धक्का मारो, ज़ोर से, हां परू ा डालो … आह्ह्ह्हह्ह और ज़ोर से. चोदो
अपने सगे भाई को, ज़ोर से झटका मारो. हां फाड़ दो अपने बड़े भाई की गान्ड़?"

मेरे ये अलफ़ाज़ आपि पर जाद ू कर रहे थे और बार बार बेसख्ता उनका हाथ उनकी टांगों की दरमियाँ
चला जाता और वो अपना हाथ वापस खींच लेती. मैं चाहता था की आपि फुल मज़ा लें इस लिए मैंने
बिलाल से पोजीशन चें ज करने को कहा. अब हम दोनों की बैक आपि की तरफ थी और बिलाल मेरे उपर
था आपि हम दोनों की गान्ड़ और मेरी गान्ड़ में अंदर बाहर होता बिलाल का लंड साफ दे ख सकती थीं
और हम आपि को डायरे क्ट नहीं दे ख सकते थे लेकिन दिवार पे लगे आईने में हम अपनी पोजीशन भी
दे ख सकते थे और आपि को भी साफ दे ख रहे थे.

अब आपि की सामने उनका बहुत पसंदीदा सिन था. उन्होंने हमारी गान्ड़ पर नज़र जमाये हूवे अपने हाथ
को अपनी टांगों की दरमियाँ रखा और बहुत तेज़ तेज़ रगड़ने लगी. वो नहीं जानती थीं की हम उन्हें
आईने में साफ साफ दे ख सकते है . आपि को ऐसे दे खना मुझे बहुत एक्साइट कर रहा था. मैंने सरगोशी
करते हूवे बिलाल को बुलाया और आईने की तरफ इशारा किया. जैसे ही बिलाल ने आईने में दे खा. मैंने
फील किया की उसके बाद उसकी मेरी गान्ड़ में लंड अंदर बाहर करने की स्पीड बढ्ती जा रही थी, कुछ
ही दे र बाद उसके लंड ने मेरी गान्ड़ में ही गरम गरम लावा छोड़ दिया.
उसके रुकने पर मैंने तेज़ आवाज़ में कहा, " अब तुम आ जाओ नीचे अब मेरी बारी है करने की " आपि ने
ये सुना तो फ़ौरन अपना हाथ टांगों की दरमियाँ से निकल लिया.

बिलाल और मैंने अपनी जगहें चें ज कर लीं. अब बिलाल डॉगी पोजीशन में था और मैंने उसकी गान्ड़ में
अपना लंड डाल दिया था. मैंने आहिस्ता आहिस्ता लंड अंदर बाहर करना शरू
ु कर दिया. मझ
ु े बिलाल का
पानी अब भी अपनी गान्ड़ में महसूस हो रहा था जो बाहर निकलना चाह रहा था लेकिन मैंने अपनी
गान्ड़ के सूराख को भींचते हूवे पानी को बाहर आने से रोक लिया और अपनी स्पीड को बढ़ाने लगा. मैंने
आईने में दे खा तो आपि अपना हाथ वापस अपनी टांगों की दरमियाँ ला चक
ु ी थीं और रगड़ना शरू
ु कर
दिया था अब मैंने बिलाल की गान्ड़ में झटके मारते मारते ही अपनी गान्ड़ के सूराख को लूज किया और
बिलाल के लंड का गाढ़ा सफेद पानी मेरी गान्ड़ से बह कर मेरी गोटियों से होता हुआ मेरे लंड और फिर
बिलाल की गान्ड़ में जाने लगा. मुझे अंदाज़ा था की ये सिन दे ख कर आपि बिल्कुल पागल ही हो जायेंगी
और जैसे की मैं आईने में दे ख सकता था. आपि ने एक हाथ को अपनी टांगों की दरमियाँ चलते चलते
दस
ू रे हाथ से अपने दांए दध
ू को दबोच लिया था और अपनी चूंचियों को चुटकी में ले कर बुरी तरह से
मसल रही थीं. जैसे जैसे बिलाल की गान्ड़ में अंदर बाहर होते मेरे लंड की स्पीड तेज़ होती जा रही थी
आपि भी अपने हाथों की स्पीड को बढ़ाती जा रही थीं. थोड़ी दे र बाद मझ
ु े पता चल गया की आपि झड़ने
ही वाली है क्योंकी उन्होंने अपना हाथ सलवार की अंदर डाल लिया था. उन्हें ये नहीं मालूम था की हम
उन्हें आईने में दे ख रहे है . आपि का हाथ उनकी सलवार में जाता दे ख कर मैं अपना कंट्रोल खो बैठा और
मैंने फ़ौरन बिलाल की गान्ड़ से अपने लंड को निकाला और उसके कुल्हों पर अपने लंड का गाढ़ा सफ़ेद
पानी छोड़ने लगा.

शायद ये आपि के लिए सब से ज़्यादा हॉट सिन था. फ़ौरन ही आपि का जिस्म अकड़ गया और उनकी
आँखें बंद हो गयीं. मैं और बिलाल दोनों ही घूम कर सामने आपि को दे खने लगे. वो दनि
ु यां से बेख़बर हो
चुकी थीं. उनकी जिस्म को ऐसे झटके लग रहे थे जैसे उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक लग रहे हो. उनका परू ा जिस्म
काँपने लगा और आपि बहुत स्पीड से अपना हाथ अपनी टांगों की दरमियाँ वाली जगह पर चलाने लगीं
और दस
ू रे हाथ से अपने दांए दध
ू को मसलने लगी. अचानक उनका जिस्म अकड़ा और गर्दन चेयर की
पुष्ट पे टिका कर और पांव ज़मीं पर जमाते हूवे उन्होंने अपने कुल्हे चेयर से उठा लिए और कमान की
सरु त उनका जिस्म बेंड हो गया. उन्होंने अपनी टांगों की बीच वाली जगह और अपने दध
ू को अपनी परू ी
ताक़त से भींच लिया और " आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अक्खहह्हह्ह ओह्ह्ह्ह्ह्ह " की आवाज़ उनके मुंह और हलक़ से
निकलि और फिर उनका जिस्म ढीला हो कर चेयर पर गिर सा गया. कुछ दे र ऐसे पड़ी वो अपनी सांसों
को दरु
ु स्त करती रहीं और जब उन्होंने आँखें खोली तब उन्होंने हमें दे खा की हम बिल्कुल उनके सामने
बैठे मुस्कुराते हूवे अपने अपने लंड को हाथ में ले कर सेहला रहे थे.
फिर आपि ने अपने आप पर एक नज़र मारी की उनका दांए हाथ उनकी सलवार की अंदर था और बायां
हाथ उनकी बांये मम्मे पर था और उसे रगड़ते हूवे उनके पेट से भी क़मीज़ हटी हूई थी और आपि का
खूबसूरत सा नाभि भी नज़र आ रही थी. आपि ने ये सोचा की वो अपने सगे भाइयों, छोटे भाइयों की
सामने अपने मम्मे और टांगों की बीच वाली जगह को रगड़ रही है और फ़ौरन ही अपने हाथ को सलवार
से निकाला और अपना लिबास सही करने लगी.

बिलाल ने अपने दोनों हाथों को जोड़ा और ताली बजाते हूवे शरारत से बोला, " ब्रावो आपि. ग्रेट शो था. मेरे
ख्याल में आप अपने सगे भाइयों को एक्शन में दे खने के लिए बैठी थीं लेकिन आपकी तरफ से हमें एक
शानदार शो दे खने को मिल गया. थैंक यू आपि इतने खूबसूरत शो के लिए " आपि का चेहरा शर्म से सुर्ख
हो गया था.

तो मैंने बात सँभालते हूवे कहा, " कोई बात नहीं आपि हमने सिर्फ एन्ड ही नहीं दे खा. बल्कि शुरू से
आखिर तक सब दे खा है उस आईने में . " मैंने आईने की तरफ इशारा किया. जहाँ हम सब बिल्कुल क्लियर
नज़र आ रहे थे. आपि बहुत ज़्यादा शर्मिंदगी महसस
ू कर रही थीं.

तो मुझे बहुत अफ़सोस हुआ उनकी लिए और मैंने कहा, " कोई बात नहीं आपि ये एक नेचुरल चीज़ है .
आपकी जगह कोई भी होता वो ये ही करता. आप परे शान ना हो बल्कि खल
ु कर हमारे साथ ही ये सब
एन्जॉय करें , ये कहते हूवे मैं खड़ा हुआ और आपि की तरफ 2 क़दम ही बढ़ा था की आपि फ़ौरन खड़ी हो
गई और अपनी चद्दर और स्कार्फ़ उठा कर सर झुकाये झुकाये रूम से बाहर निकल गई.

मैं वहां ही खड़ा था की बिलाल की आवाज़ आयी, " भाई आज मज़ा ही आ गया आपि को इस हालत में
दे ख कर. उफ्फ्फ्फ़ सगी बहन सामने इस हाल मैं … " उसने एक झुर झुर्री सी ली.

" फ़िक्र ना करो मेरे छोटे शहज़ादे . बस तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो. दे खो मैं तुम्हें क्या क्या दिखाता हूँ
" मैंने मस्
ु कराहट से कहा …

अगली रात हमने मूवी स्टार्ट की ही थी की दरवाज़ा खुला और आपि अंदर आयीं. हम दोनों की नज़रें
आपि पर ही थीं. आपि सर झक
ु ाये झक
ु ाये ही अंदर आयीं और हमारी तरफ नज़र उठाये बगैर ही जा कर
सोफ़े पर बैठ गयीं. उन्होंने आज भी क़मीज़ सलवार पेहनी हूई थी सर पर स्कार्फ़ मौजूद था लेकिन चादर
नहीं थी. उन्होंने दप
ु ट्टा उतारा और सलीक़े से तेह करके साइड टे बल पर रख दिया और चुप चाप सर झुका
कर बैठ गई. हम दोनों भी बगैर कुछ बोले आपि की ही तरफ दे ख रहे थे लेकिन वो नज़र नहीं उठा रही
थीं. मैंने गौर किया तो मेरे लंड को झटका सा लगा आपि की येलो क़मीज़ में चूंचियों वाली जगह ब्लैक
काले नज़र आ रही थी और जब वो दप
ु ट्टा तेह करते हूवे या किसी और वजह से जिस्म को हलकी सी भी
हरकत दे ती थीं तो आपि की मम्मे हिलने लगते थे.

" भाईजान लगता है हमारी सोहणी सी बेहना जी ने आज ब्रा नहीं पहना " बिलाल ने ऑ ंख मार कर
मस्
ु कुराते हूवे आपि के चेहरे पर नज़र जमाये जमाये कहा.

आपि ने नज़र नहीं उठायी और झेंपते हूवे कहा, " बकवास मत करो और अपना काम शुरू करो. मेरी तरफ
नहीं दे खो वरना मैं उठ़ कर चली जाऊंगी।"

मैंने बिलाल को इशारा किया की आपि को तंग नहीं कर वरना वो वाकया ही चली जायेंगी. मैं और बिलाल
फ़ौरन खड़े हूवे और अपने कपड़े उतार कर नंगे हो गए. किसिंग करने के बाद मैंने सोचा आज कुछ चें ज
किया जाये. मैंने बिलाल को बिस्तर पर सीधे लिटाया और उनकी गर्दन को बिस्तर की किनारे पर टिका
के सर को पीछे की तरफ नीचे झुका दिया. फिर मैंने बिलाल के मुंह में अपने खड़े लंड को डाला और
उसके उपर झूकते हूवे बिलाल के लंड को अपने मुंह में भर लिया. अब हम 69 की पोजीशन में थे.

" नाइस पोजीशन " आपि के मंह


ु से बेसख्ता ही निकला. मैंने सर उठाकर आपि को दे खा तो उन्होंने फ़ौरन
अपना हाथ अपनी टांगों की दरमियाँ से हटा लिया. उनकी चूंचियां खड़ी हो गई थी और क़मीज़ का वो
हिस्सा नूकीला हो चुका था. क्योंकी उन्होंने ब्रा नहीं पेहनी थी.

" प्लीज आपि. अगर आप अपने जिस्म से मज़ा लेना ही चाहती है तो फ्री हो कर मज़ा लें . हम यहाँ
बिल्कुल नंगे है और आपके सामने एक दस
ू रे के लंड को चूस रहे है . अगर आप अपने जिस्म को टच
करें गी तो हमें भी एक दस
ू रे के साथ सब करने में मज़ा आयेगा. हम आप को कल ये करते दे ख चकु े है

और इस से क्या फ़र्क़ पडेगा की हम आज फिर दे ख लेंगे. आप अपने मज़े को तो क़त्ल मत करें . ” मैंने
समझाने वाले अंदाज़ में कहा. आपि कुछ दे र तक तो सर झुकाये बैठी रहीं और फिर अपना हाथ उठा कर
अपनी टांगों की दरमियाँ वाली जगह पर रख कर 2-3 बार रगड़ा और हमारी तरफ दे खते हूवे कहा " बस
खुश हो अब!"

बिलाल फ़ौरन ही बोला, “जी आप. आप ग़ज़ब लग रही है इस हाल में ! " और वाकया ही बहुत सलीके से
सर पर और चेहरे की गिर्द काले स्कार्फ़ जिसमें गोरे गोरे गाल अब हवस की शिद्दत से लाल हो चुके थे.
सोफ़े पर कुछ लेटी कुछ बैठी सी हालत में ज़मीं पर पांव फैलाए. थोड़ी सी टाँगें खुली हो गई और ठीक
टांगों की दरमियाँ वाली जगह पर काले सलवार के उपर गल
ु ाबी खब
ू सरू त हाथ. आपि बिल्कुल परी लग
रही थीं. मैंने और बिलाल ने फिर से एक दस
ू रे के लंड मुंह में लिए और लंड मुंह में अंदर बाहर करना
शुरू कर दिया और आपि भी फ्रीली अपनी टांगों की बीच वाली जगह को रब करने लगी. अब मैंने बिलाल
को सीधे लेटने को कहा और हमने अपना रुख भी थोड़ा चें ज कर लिया. बिलाल की टांगों को अपने कांधों
पर जमाते हूवे मैंने लंड बिलाल की गान्ड़ में डाला और 2-3 झटके मारने के बाद झुक कर उसके होंठो को
चूसने लगा और आज मझ
ु े कुछ ज़्यादा ही मज़ा आ रहा था.

पता नहीं ये बिलाल की नमो नाज़क


ु होंठ थे या अपने लंड पर बिलाल की गान्ड़ की अंदर की गर्मी का
एहसास था. या शायद आज की अनोखे मज़े की वजह ये सोच थी की मेरी सगी बहन मुझे दे ख रही है
और मेरी बहन ये सब दे खते हूवे मज़े से अपनी टांगों की बीच वाली जगह को अपने ही हाथ से मसल
रही है और अपने मम्मों को दबा दबा कर बेहाल हूवे जा रही है . आपि को हक़ीक़तन ही ये सब बहुत
अच्छा लग रहा था और वो अपने मम्मों को अपने हाथ से मसलती थीं तो कभी उन्हें दबोच लेती थीं तो
कभी अपनी चूचियों को चुटकी में ले कर खींचने लगती थीं. बिलाल और मेरी नज़रें आपि पर ही थीं, आपि
भी हमें ही दे ख रही थीं. कभी कभी हमारी नज़रें भी मिल जाती थीं. कुछ दे र बाद मैं बिलाल की गान्ड़ में
ही झड़ गया और अब मैं नीचे और बिलाल मेरे उपर आ गया और बिलाल ने मुझे चोदना शुरू कर दिया
और हम दोनों ने नज़रें आपि पर जमाये रखीं. आपि अब बिल्कुल फ्री हो कर अपने जिस्म को रगड़ रही
थीं और मज़े में अपने मुंह से आवाज़ें भी निकल रही थीं. बिलाल के लंड का जूस निकालने तक आपि भी
2 बार झड़ चक
ु ी थीं …

आपि डेली रात को आ जातीं. अब उनकी झिझक ख़तम हो चक


ु ी थी. वो बस रूम में आ कर अपनी जगह
पे बैठ जातीं और अपनी टांगों की दरमियाँ हाथ रख कर हमें हुकुम दे दे तीं की शुरू हो जाओ. हम एक
दस
ू रे को चोदते और आपि अपने हाथ से अपने आप को सुकून पहुंचा लेतीं. जब आपि झड़ने लगती थीं
तो बहुत वाइल्ड हो जाती थीं और ज़ोर ज़ोर से आवाजें निकालने लगती. अक्सर ही हम ड़र जाते की कहीं
नीचे आवाज़ ना चली जाये लेकिन आपि की ये आवाज़ें हमें मज़ा भी बहुत दे ती थीं. कुछ रातों तक ये
सिलसिला ऐसे ही चलता रहा लेकिन अब मैं बोर होने लगा था.

अगली रात जब आपि रूम मैं आयीं और अपनी जगह पे बैठते हूवे अपनी टांगों की दरमियाँ हाथ रखा
और हमें स्टार्ट करने का इशारा किया तो मैंने कुछ भी करने से मना कर दिया और कहा " नहीं आपि मैं
ये रोज़ की रूटिन से थक गया हूँ अब."

" क्या मतलब है तुम्हारा " आपि ने कहा. मैंने कहा, " कम ऑन आपि. रोज़ रोज़ एक ही चीज़! अब हम
कुछ अलग चाहते है . " आपि ने कुछ समझने और कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में पछ
ु ा, “क्या कहना
चाहते हो तुम"

मैंने आपि को ऑ ंख मारते हूवे शरारती अंदाज़ में जवाब दिया, " क्या ख्याल है अगर आप भी हमारे साथ
शामिल हूॅं तो"
" इसके बारे में सिर्फ ख़्वाब ही दे खो तुम. ऐसा कभी नहीं हो सकता " आपि ने चिल्ला कर कहा.

" ओके तो फिर हम भी कुछ नहीं करें गे. ये दनि


ु यां कुछ लो और कुछ दो की उसूल पर ही क़ायम है . फ्री
में कुछ नहीं मिलता " मैंने भी अकड़ते हूवे कहा.

" ठीक है । नहीं तो नहीं बस! " आपि ने ये कहा और जो चद्दर कुछ लम्हों पहले उन्होंने तेह की थी उसे
खोलने लगी.

बिलाल ने कहा, " भाई छोड़ो ना यार. चलो शुरू करते है ."

मैंने बिलाल से इशारे में कहा की सबर करो ज़रा और आपि की तरफ दे खा जो चद्दर कांधों पे डाल रही
थीं और कहा, " ओके मैं जानता हूँ आप को भी हमे दे खने मैं इतना ही मज़ा आता है जितना हमे और
जाना आप भी नहीं चाहती हो."

ये हकीकत थी. आपि को अब आदत हो चुकी थी और वो सिर्फ हमें डराने के लिए ही जाने की धमकी दे
रही थीं और जाना खुद भी नहीं चाहती थीं.

आपि को ठिठकता दे ख कर मैंने कहा, " चलो एक कोम्प्रोमाईज़ कर लेते है "

आपि ने कहा, " कैसा कोम्प्रोमाईज़?"

मैंने कहा, " चलो ठीक है आप हमारे साथ शामिल ना हो. बल्कि हम से दरू वहां सोफ़े पर ही बैठो लेकिन
अपने कपड़े उतार कर बैठो."

बिलाल मेरे इस मशवरे पर बहुत एक्साइट हो गया और फ़ौरन बोला, " हां आपि … हम लोगों को तो आप
ने नंगा दे ख ही लिया है . अब हमारा भी कुछ ख्याल करें ना"

आपि का चेहरा शर्म और गुस्से की मिले जुले तासुर से लाल हो गया और उन्होंने चद्दर अपने जिस्म की
गिर्द लपेटि और खड़े होते हूवे कहा, " शट अप मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी पहले ही तुम्हारे लिए बहुत
कुछ कर चुकी हूँ. अगर तुम लोग आपस में कुछ करने को तैयार हो तो बता दो नहीं तो मैं जा रही हूँ."

आपि की इस अंदाज़ ने मुझ पर ज़ाहिर कर दिया था की वो वाकया ही चली जायें गी इस लिए मैं कंफ्यूज
हो गया की क्या करूं. बिलाल ने मेरी हालत को भाँप लिया और मिन्नत समझोता करते हूवे आपि से
कहने लगा " आपि प्लीज! हमने कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं दे खा और आप को दे खने से
बढ़ कर कुछ नहीं. मैंने आज तक आप से ज़्यादा हसीं लड़की कोई नहीं दे खी. आप बहुत खूबसूरत हो. सब
ही ये कहते है मेरी बातों पर यक़ीं नहीं हो तो आप भाईजान से पुछ लें.
" बिलाल सही कह रहा है आपि. प्लीज हमारे साथ ऐसा तो ना करो … यार ऐसे तो मत जाओ, आप का
यहाँ बैठा होना ही हमें बहुत मज़ा दे ता है की हमारी सगी बड़ी बहन हमें दे ख रही है . ये एहसास हमारे
अंदर बिजली सी भर दे ता है लेकिन प्लीज आपि हमारा भी तो कुछ ख्याल करो ना. आप अच्छी तरह से
जानती हो की हम गे नहीं है . ये सब इसी लिए हुआ की हमें शिद्दत से एक सूराख चाहिए था जिसमें हम
अपने लंड डाल सकें. हमें कोई लड़की नहीं मिली और हमने एक दस
ू रे के साथ शुरू कर दिया. फिर मैंने
भी मिन्नत करते हूवे कहा, " अच्छा प्लीज आपि आप सिर्फ अपनी क़मीज़ थोड़ी सी उठा कर हमे अपने
सीने के उभार दिखा दे प्लीज आपि … आप इतना तो कर ही सकती हो ना. प्लीज मेरी सोहणी आपि"

मुझे दे ख कर बिलाल ने भी मिन्नत समजत करते हूवे कहा, " प्लीज आपि जी. दिखा दो ना. मेरी प्यारी
आआपिई जीईई प्लीसीई"

कुछ दे र बाद आपि ने अपनी चादर उतारी और झिझकते हूवे कहा " ओके लेकिन सिर्फ दे खोगे. क़रीब मत
आना मेरे!" ये कह कर आपि घूमीं और चादर सोफ़े पर रखने लगी.

" एस्सस्सस्स्स्स " मैंने और बिलाल ने एक साथ ख़ुशी से चिल्ला कर कहा … बिलाल ने मुझे ऑ ंख मारते
हूवे सरगोशी में कहा. " गुड जॉब भाई"

आपि हमारे सामने सीधी खड़ी हूई और दोनों हाथों से अपनी क़मीज़ का दामन पकड़ा और आहिस्ता
आहिस्ता उपर उठाने लगी.

हमे आपि की काली सलवार नज़र आने लगी आपि की सलवार पर बहुत बड़ा सा वाइट धब्बा बना हुआ
था जो शायद उनकी मणि थी जो सख
ु चक
ु ी थी और सलवार काली होने की वजह से सफेद धब्बा ज़्यादा
ही वाइया हो गया था. क़मीज़ थोड़ी और उपर उठाई तो आपि की सलवार का बेल्ट और फिर उनका काला
ईज़ार बंद नज़र आने लगा. जो कहीं कहीं से सफेद हो रहा था. जो ज़ाहिर कर रहा था की आपि ने झड़
कर कितनी ज़्यादा मिक़्दार में पानी छोड़ा था की सलवार से निकल निकल कर ईज़ार बंद को गीला
करता रहा था. आपि ने क़मीज़ थोड़ी और उपर उठाई तो हमने पहली बार भरपरू नज़र से अपनी सगी
बहन का नंगा पेट दे खा. आपि का गोरा पेट और उस पर उनकी खूबसूरत नाभि, जो काफी गेहरी होने की
वजह से काली नज़र आ रही थी और नाभि के नीचे छोटा सा तिल जो ऐसे लग रहा था जैसे " दरबार-इ-
हुस्न की दर पर निग्हे बां बिठा रखा हो. हमारे होश गुम किये दे रहा था.

आपि नज़रें हमारे चेहरों पर जमाये धीरे धीरे अपनी क़मीज़ को उपर उठा रही थीं और हम दोनों बिल्कुल
खामोश और बगैर पलकें झपकाये दनि
ु यां की हसीं तरीन नज़ारे की इन्तज़ार मैं थे. हम दोनों की साँसें
रुक गयी थीं और दिमाग़ सून्न हो चुके थे. आपि की क़मीज़ उनकी मम्मों तक पहुंच गयी थी और हमे
उनकी मम्मों का नीचला हिस्सा ( की जहाँ से गोलाई उपर उठने शुरू होती है ) दिखाई दे रहा था. आपि ने
क़मीज़ यहाँ ही रोक दी थी लेकिन हम दोनों ही टिक टीकी बांधे आपि की मम्मों का नीचला हिस्सा और
उनका गुलाबी पेट दे ख रहे थे.

जब काफी दे र तक हमने कोई रिएक्शन नहीं दिया … तो आपि बोली, " मेरा नहीं ख्याल की मैं इस से
ज़्यादा कुछ कर सकती हूँ. बस इतना ही बहुत है तुम दोनों के लिए " आपि ने ये कहा और शरारती
अंदाज़ में मुस्कुराने लगी. मैं समझ गया था की आपि हमारी कैफ़ियत से मज़ा ले रही है फिर भी मैंने
कहा, " प्लीज आपि अब तड़पाओ मत, उपर उठाओ ना अपनी क़मीज़ प्लीज आपि"

बिलाल भी गिड़गिड़ाने लगा, " प्लीज आपि दिखाओ ना. मेरी अच्छी वाली आपि प्लीज … " आपि ने
मस्
ु कुरा कर हमे दे खा और एक ही तेज़ झटके में अपनी क़मीज़ सर से निकल कर सोफ़े पर फैं क दी.

वौवववववव … ये मेरी ज़िंदगी का सब से हसीं तरीन नज़ारा था. मेरी आपि, मेरी सगी बहन, मेरी वो बहन
की जिसकी हया, जिसके परदे , जिसकी नज़ाक़त, जिसकी पाकीज़गी, जिसकी मासूमियत, जिसकी नफ़ासत
की पूरा खानदान मिसालें दे ता था वो मेरे सामने बगैर क़मीज़ की खड़ी थी. उसकी नंगे मम्मे मेरी नज़रों
की सामने थे. मेरे लिए वक़्त रुक सा गया था. मुझे अपने आस पास का बिल्कुल होश नहीं रहा था और
मेरी नज़रें अपनी सगी बहन की मम्मों पर जम गयी थी.

मेरी बहन की मम्मे बिल्कुल गल


ु ाबी थे. उनकी स्किन बहुत ज़्यादा मल
ु ायम थी, कोई दाग़, कोई धब्बा या
किसी पिम्पल का नामोनिशान नहीं था. मैं अपनी बहन की मम्मों का एक, एक मिलिमीटर पूरी तवज्जो
से दे ख रहा था और इस नज़ारे को अपनी ऑ ंखों में हमेशा हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था.

मेरी बहन के गुलाबी मम्मों पर हरी हरी रगों ( वैन्स ) का जाल था और एक एक रग साफ दे खी और
गिनी जा सकती थी. मुकम्मल गोलाई लिए हूवे मम्मे ऐसे लग रहे थी जैसे 2 पियाले उलटे रखे हो. इतनी
मक
ु म्मल शेप मैंने आज तक किसी फिल्म में भी नहीं दे खी थे. थोड़े बहुत तो लटक ही जाते है हर किसी
के, लेकिन आपि की मम्मे बिल्कुल खड़े थे कहीं से भी ढलके हूवे नज़र नहीं आते थे.

आपि की गल
ु ाबी मम्मों पर गहरे गल
ु ाबी रं ग के छोटे छोटे सर्क ल्स थे और उन सर्क ल्स की बीच में भरू े
गुलाबी रं ग की छोटी छोटी चूंचियां अपनी बाहर फैला रहे थे. आपि की चूंचियों को अपनी नज़रों की
गिरफ्त में लिए लिए ही मैं बेसख्ता तोर पर खड़ा हो गया. अभी मैंने शायद एक क़दम उनकी तरफ
बढ़ाया ही था की आपि की आवाज़ आयी, " सागर वहीं रुक जाओ आगे मत बढ़ो. मैंने कहा था तम
ु लोग
सिर्फ दे खोगे. छूयोगे नहीं. " आपि ने वार्निंग दे ने की अंदाज़ में कहा. मैंने खोये खोये अंदाज़ में बहुत नरम
लेहजे में पलक झपकाये बगैर उनकी चूंचियों को दे खते दे खते कहा, " नहीं आपि मैं छूना नहीं चाहता बस
दे खना चाहता हूँ क़रीब से.

आपि की चूंचियों पर बहुत सी दरारें थीं जो क़रीब से दे खने पर महसूस होती थीं. चूंचियों की नोक पर
बिल्कुल सेंटर में एक गड्ढ़ा था और ऐसा लग रहा था की जैसे इस गड्ढे से ही दरारें निकल रही हो और
चूंचियों की दिवारों से होती हूई नीचे फैल कर ज़मीं पर डेरा बना रही हो. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं
हवा मैं उड़ते उड़ते एक जगह हवा मैं ही रुक गया हूँ और नीचे दे ख रहा हूँ की एक बहुत बड़ा पहाड़ है
और वो फट चक
ु ा है और उसके सेंटर में बहुत सा ब्राउन ब्राउन लावा जमा हो चक
ु ा है और चारों तरफ से
लकीर की शकल में बह कर नीचे जाते हूए जड़ में ज़मीं पर एक गोल सुरत में जमा हो गया हो.

( मझ
ु े बाद मैं आपि ने बताया था की " तम
ु ने ये जम
ु ला इतना ठहर ठहर की और खोये हूवे कहा था की
बिलाल और मैं दोनों ही तुम्हें है रत से दे खने लगे थे. तुम उस वक़्त किसी और ही दनि
ु यां में थे. इस हाल
में थे की तुम्हें कुछ पता नहीं था आस पास का और तुम बस मेरी चूंचियों को ही दे खे जा रहे थे और
इतने क़रीब आ गया थे की तम्
ु हारी साँसें मैं अपनी चचि
ू यों पर, अपने मम्मों पर महसस
ू कर रही थी और
तुम्हारी सांसों की गर्मी ने मुझ पर ऐसा जाद ू सा कर दिया था की अगर तुम उस वक़्त इन्हें अपने मुंह
में भी ले लेते तो शायद मैं तुम्हें मना नहीं करती ) मैं आपि की चूंचियों को क़रीब से दे ख ही रहा था की
बिलाल ने मझ
ु े कांधे से पकड़ कर झंझोड़ा और कहा, " भाई होश मैं आवो! क्या हो गया है आप को? "
शायद वो परे शान हो गया था की कहीं मैं ज़ेहनी तवाज़ुन ही ना खो बैठूं. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पता नहीं
कहाँ आ गया हूँ और फिर जैसे मुझे होश आ गया लेकिन मैं अभी भी खोया खोया सा था.

बिलाल ने सुकून का साँस लिया और वो भी क़रीब से आपि की मम्मों को दे खता हुआ बोला, " आपि ये
दनि
ु यां की हसीं तरीन मम्मे है . हमने जितनी भी मूवीज दे खी है उन में कभी इतने खूबसूरत मम्मे नहीं
दे खे. आप बहुत गॉर्जियस और हॉट हो. आपि ने ये जम
ु ले सन
ु े तो शर्म से सर्ख
ु लाल हो गयीं और सोफ़े
पर बैठते हूवे हम दोनों की फुल खड़े लंड की तरफ इशारा करते हूवे बोली, " चलो अब दोनों बिस्तर पर
जाओ और इन दोनों पर रहम करो."

हम दोनों आपि की खुबसुरत खड़े उभारों से नज़र हटाये बगैर उलटे क़दमों बिस्तर की तरफ चल दिये …
मेरा जी चाह रहा था की वक़्त थाम जाये और ये नज़ारा हमेशा के लिए ऐसे ही ठहर जाये और मैं दे खता
रहूँ. बहुत शदीद ख्वाहिश हो गई थी उन्हें छूने की, चस
ू ने की, चाटने की लेकिन मैंने अपनी ख्वाहिश को
दबा दिया क्योंकी मैं जानता था अभी वक़्त नहीं आया है और हमारी किसी भी जल्द बाज़ी से आपि
बिदक जायेंगी.
बिस्तर पर बैठते हूवे बिलाल ने कहा, " प्यारी आपि जी प्लीज क्या आप हमारे लिए अपनी चूंचियों को
अपनी चुटकी मैं पकड़ कर मसलेंगी."

आपि ने कहा, " बको मत. मैंने तुम्हें कहा था ना. नो टचिंग और एनीथिंग. मैं जानती हूँ तुम लोग एक के
बाद एक फरमाईश करते चले जाओगे " प्यारी आपि जी प्लीज सिर्फ एक बार. फिर दब
ु ारा आप से नहीं
कहैंगे. पक्का वादा."

बिलाल के खामोश होते ही मैंने कहा, " मेरी सोहणी आपि एक बार कर दो ना यार प्लीज और पहले
अपनी उं गली को अपने मुंहमें डाल कर गीला करो फिर चूंचियों पर फेरना"

" ये गन्दी मूवीज दे ख दे ख कर तुम लोग बिल्कुल ही बे-राह-रवी का शिकार हो गए हो. " आपि ने मुस्कुरा
कर कहा.

मैंने हँसी को दबाते खी खी करते हूवे कहा " ज़रा दे खना तो ये बात कह कौन रहा है " हे हेहे.

आपि ने अंगड़ाई लेने के अंदाज़ में अपनी टाँगें सीधी कीं और पांव ज़मीं पर टिकाते हूवे टांगों को थोड़ा
खोल लिया. फिर मेरी ऑ ंखों में दे खते हूवे आपि ने बगैर मुंह खोले अपनी ज़ुबाँ को बाहर निकाला और
अपने दांए हाथ की पहली उं गली को ज़ुबाँ पर फेरते हूवे अपने बंद होठों पर अपनी उं गली की नोक से
दबाव डाला और आपि की उं गली आहिस्ता आहिस्ता उनके मंह
ु में दाखिल होने लगी. फिर आपि ने परू ी
उं गली को चूसते हूवे उं गली बाहर निकाल ली और पहले बिलाल की ऑ ंखों में दे खा और फिर मेरी नज़र
से नज़र मिला कर अपने दोनों बाज़ू अपने मम्मों के नीचे क्रॉस कर लिए और दांए चूंचि पर अपनी
उं गली फेरने लगी.

वोव्वव्वव्व ये एक ऐसा नज़ारा था जो हमें बेताब करने के लिए काफी था. मेरे लंड को झटका लगा और
मेरे साथ साथ बिलाल का हाथ भी बेसाख्ता ही अपने लंड पर पहुंच गया और हमने अपने अपने लंड को
मज़बूती से भींच लिया.

आपि को दे खते हूवे जो हमारी हालत हो रही थी. उससे आपि को भी मज़ा आ रहा था और उन्होंने दे खा
की हमारे लंड झटके ले रहे है . तो उन्होंने अपनी उं गली को अपने चूंचियों की नोक पर रखा और उससे
दबा कर रखते हूवे अपना दस
ू रा हाथ उठाया और अपनी टांगों की दरमियाँ ले जाकर रगड़ने लगीं …
क़रीब 2 मिनट ये करने के बाद आपि ने अपने हाथों को रुक लिया और बोली, " चलो बच्चू बहुत दे ख
लिया और अब शुरू हो जाओ और मैं उम्मीद कर रही हूँ की आज मुझे एक ग्रेट शो दे खने को मिलेगा. "
ये कहते हूवे आपि के चेहरे पे शैतानी मुस्कराहट आ गई थी.
जैसा की आपि ने ग्रेट शो का कहा था तो हमने भी वैसे ही किया. ये एक जंगली चुदाई थी जो मैंने और
बिलाल ने की जिस मैं लंड चूसना और अलग अलग पोजिशन्स मैं चोदना, एक दस
ू रा के लंड का जूस
पीना हालांकि हम जो कुछ सोच सकते थे हमने सब किया. आपि भी आज बहुत ज़्यादा जोश मैं थीं. उन्हें
भी ये सोच मज़ा दे रही थी की वो अपने सगे भाइयों की सामने अपने सीने के उभारों को खोले बैठी है
और अपनी टांगों की दरमियाँ हाथ फेर रही है . आपि उस दिन 3 बार झड़ गई लेकिन खुल कर नहीं होती
थीं, मैंने महसस
ू किया की उनके अंदाज़ में अभी झिझक बाक़ी थी लेकिन पहले दिन से तल
ु ना करें तो
आपि रोज़ बा रोज़ काफी बोल्ड होती जा रही थीं जैसे आज उन्होंने अपना उपरी जिस्म नंगा करके और
टांगों को खोलकर जो कुछ हमें दिखाया था. ये बिल्कुल भी उनकी ज़ाहिरी शख़्सियत से मेल नहीं खाता
था लेकिन उनकी अंदर क्या छुपा था उससे ज़ाहिर कर रहा था.

जब आपि ने अपनी क़मीज़ पेहेनना शुरू की तो हमारे चेहरे बझ


ू से गए. आपि ने अपनी चादर उठाते हूवे
हमें दे खा तो हमारी उदास शक़्लें दे ख कर हसते हूवे कहा, " शर्म करो कमीनों मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ
और वो भी बड़ी. अब मैं सारा दिन नंगी तो नहीं घूम सकती ना तुम लोगों के सामने. ” और फिर अपनी
चादर वैसे ही तेह शुदा हालत मैं अपने बाज़ू पर रखी और दरवाज़े की तरफ चल दीं. उन्होंने बाहर जाने
के लिए दरवाज़ा खोला और 2 सेकंड को रूकीं … और हमारी तरफ घम
ू ते हूवे कहा " ओके आखरी बार "
फिर उन्होंने अपनी क़मीज़ उठायी और अपने खूबसूरत उभारों को नंगा करके हाथों से दबाने लगी. 4, 5
झटकों के बाद उन्होंने अपनी क़मीज़ नीचे की और कहा, " शब्बा खैर और अब फिर ना शुरू हो जाना
अपनी सेहत का ख्याल रखो और एनर्जी सेव करके रखो। " फिर मस्
ु कुराते हूवे बाहर चली गयीं.

मैं और बिलाल दोनों ही आपि की इस हरकत पर बूत बनाये खड़े थे और शायद मेरी तरह बिलाल भी
हमारी बेपनाह हया वाली बहन की इस अंदाज़ के बारे में ही सोच रहा था … और मैं अपनी सोचो में
आपि की कल और आज को तुलना करने लगा …

मैं और बिलाल दोनों ही रूबी आपि की ख़यालों में गुम थे और आज जो कुछ हुआ उस पर बहुत खुश थे.
हम दोनों ने ही आज तक कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं दे खा था और आज रियल मम्मे
दे खे भी थे तो अपनी ही सगी बहन की. मझ
ु े ये सोच पागल किये दे रही थी की अब मैं रोज़ अपनी बहन
की खूबसूरत जिस्म का दीदार किया करुं गा. क्या हुआ जो सिर्फ उपरी जिस्म ही है … और हो सकता है
की आपि जल्द ही पूरी नंगी होने पर आमदा हो ही जायें.

बिलाल की आवाज़ पर मेरी सोच का तसलसुल टूटा … वो कह रहा था, " भाई आप का क्या ख्याल है . क्या
हम आपि को इस बात पे तैयार कर लेंगे की फुल नंगी हो कर हमारे सामने बैठा करें … " मैंने बिलाल
की इस सवाल पर सिर्फ मुस्कुराने पर ही इक्तिफा किया. मैं सोच रहा था की हम दोनों की सोच एक ही
लय पर जा रही है …

" भाई कितना मज़ा आयेगा ना अगर ऐसा हो जाये " बिलाल ने छत को दे खते हूवे ग़ायब दिमाग़ी से
कहा.

" यार मैं प्लान कर रहा हूँ की अब आगे क्या करना है . बस तुम अपना दिमाग़ मत लगाना और जो मैं
कहूं या करूं बस वैसे ही होने दे ना ओके … मैं नहीं चाहता की कोई गड़बड़ हो और आपि हम से नाराज़
हो जायें. बस अब कोई प्लान सोचने की बजाय आपि की मम्मों को सोचो और सोने की कोशिश करो और
मुझे भी सोने दो " मैंने बिलाल को डाँटने के अंदाज़ में कहा और आँखें बंद करके सोचने लगा कर अब
क्या करना है और ये ही सोचते सोचते ना जाने कब नींद ने आ दबोचा …

अगले दिन मैं कॉलेज से जल्दी निकला और घर वापस आते हूवे अपने दोस्त से नई 3 CD भी लेता
आया. मैं चाहता था की आज आपि जब रात में हमारे रूम में आयें तो पहले से ही गरम हो. जब मैं घर
पहुंचा तो 2 बज रहे थे. अम्मी, रूबी आपि और बिलाल बैठे खाना खा रहे थे मैंने भी सब को सलाम किया
और हाथ मुंह धो कर खाने के लिए बैठ गया. खाने के बाद हम वहां ही बैठे टीवी दे ख रहे थे तो अम्मी
उठीं और सोने के लिए अपने रूम में चली गयीं … रूबी आपि और बिलाल वहां ही थे. मैंने बिलवजा ही
चैनल चें ज करना शुरू किये तो एक चैनल पर हॉट सिन बस शुरू ही हुआ था और लड़का लड़की किसिंग
कर रहे थे. मैं उससे चैनल पे रुक गया तो … आपि ने दबी आवाज़ में कहा, " सागर ये क्या हिमाक़त है ?
अम्मी किसी भी वक़्त बाहर आ सकती है चें ज करो चैनल."

बिलाल मेरा साथ दे ने के लिए फ़ौरन बोला, " कुछ नहीं होता आपि. अम्मी का दरवाज़ा खुलेगा तो आवाज़
आ ही जायेंगी. तो भाई चैनल चें ज कर दे गे. " आपि ने अपना मख़सूस लिबास यानि क़मीज़ सलवार और
सर पे स्कार्फ़ बांधे हुआ था और बड़ी सी चद्दर लपेट रखी थी और टांग पर टांग रखे बैठी थीं.

मैंने आपि को दे खते हूवे कहा, सोहणी सी आपि … क्या ख्याल है आज दिन की रौशनी में अपने प्यारे से
दध
ु ों का दीदार करा दो ना. मेरे ज़हन से उनका ख्याल निकल ही नहीं रहा है प्लीजस्ससे आआप्प्पीी."

आपि फ़ौरन घबरा कर बोली, " तुम्हारा दिमाग़ खरबबबब हो गया है क्या??? बिल्कुल ही उलटी बात करने
लगते हो ".

" चलो ना यार! मज़ा आयेगा ना आप. डरते हूवे ये सब करने का मज़ा ही अलग है " मैंने ये कहा और
आपि को दे खते हूवे अपनी पें ट की ज़िप खोली और लंड बाहर निकल कर अपने हाथ से सेहलाने लगा …
आपि के साथ साथ बिलाल भी तक़रीबन उछ़ल ही पड़ा " ये क्या है भाई! … मूवी दे खना और बात है आप
फ़ौरन चैनल चें ज कर सकते हो लेकिन ये … " वो कुछ ड़रे हुए लेहजे मैं बोला. मैंने हाथ को मक्खी उड़ाने
की स्टाइल में लेहराया और कहा, " कुछ नहीं होता यार … चलो आपि मैंने आप को दिन की रौशनी मैं
अपना लंड दिखा दिया है , अब आप भी दिखाओ ना. " आपि अभी भी नहीं नहीं करने लगीं तो मैंने बिलाल
को इशारा किया " चलो बिलाल शुरू हो जाओ. मेरे कहने पर बिलाल ने भी अपना लंड बाहर निकाल लिया
और हाथ में पकड़ लिया लेकिन वो अभी भी डरा हुआ सा था.

आपि ने बिलाल को है रत से दे खा और मेरी तरफ इशारा करके कहा " ये तो है ही खबीस … तम्
ु हें किस
पागल कुत्ते ने काटा है अम्मी बाहर आ गयीं तो पता लग जायेगा सब को."

बिलाल को डरते दे ख कर मैंने आपि को कहा, " आपि अभी भी टाइम है मान लो नहीं तो …"

आपि फ़ौरन बोलीं, " नहीं तो क्या???"

मैंने मुस्कुरा कर आपि को दे खा और बिलाल की टांगों की दरमियाँ बैठते हूवे कहा " नहीं तो ये " और
बिलाल का लंड अपने मंह
ु में ले लिया.

आपि खौंफ से पीली पड़ गयीं और अपनी जगह से खड़ी होती हूई बोलीं, " बस करो सागर खुदा के लिए
उठ़ो. अम्मी बाहर आ गयीं तो … " मैंने आपि की बात काट कर कहा.

" अगर अम्मी बाहर आयीं तो इस सब की जिम्मे दारी आप पर होगी … आप दिखा दो ना. दे ख लिए जाने के डर से
ये सब करते आप को मज़ा नहीं आये गा क्या. इस में अजीब सा मज़ा है , आपि प्लीज करके तो दे खो"

आपि ने डरते हव ू े ही अम्मी के दरवाज़े और बाहर वाले मे न गे ट पे नज़र डाली और कहा, " सागर छोड़ो ना प्लीज
उठ़ो … रूम मैं कर लें गे ना ये सब " मैं ने अनसु नी करते हव
ू े कोई जवाब नहीं दिया और अपना मुं ह बिलाल के लं ड पे
चलाते चलाते आपि को क़मीज़ उठाने का इशारा कर दिया. आपि ने झिझकते झिझकते झुक कर अपनी चादर समे त
क़मीज़ की दामन को पकड़ा तो मे रा दिल भी धक् धक् करने लगा. मैं ज़ाहिर तो बहुत कर रहा था की मु झे परवाह
नहीं और शायद मु झे अपनी इतनी परवाह भी नहीं थी ले किन आपि को ये करता दे ख कर मु झ पे भी खौंफ तरी हो
गया था की कहीं सचमु च ही अम्मी बाहर आ गयीं या बाहर से कोई घर में दाखिल हुआ और उन्होंने ये दे ख लिया तो
… और इसके आगे मु झसे सोचा ही नहीं गया. मैं ने धक् धक् करते दिल के साथ अम्मी की दरवाज़े पे नज़र डाली. (
अम्मी का रूम आपि की बै क की तरफ था और बाहर का मे न गे ट उनकी दां ए और हमारी दां ए साइड पर था ) और
फिर आपि को दे खा उन्होंने अपनी चादर और क़मीज़ की दामन को थामा हुआ था और घु टनों से उपर उठा रखा था.

आपि ने खोंफज़दा सी आवाज़ में कहा, " सागर तु म अम्मी की दरवाज़े का ध्यान रखना और बिलाल तु म बाहर वाले
गे ट को भी दे खते रहना अच्छा."
ये कह कर आपि ने अपनी चादर और क़मीज़ को अपनी गर्दन तक उठा दिया. आपि ने काले रं ग का ब्रा पहना हुआ
था और काले ब्रा से झाँकते गु लाबी गु लाबी मम्मों का उपरी हिस्सा क़यामत ढा रहा था. मैं ने कुछ दे र इस मं ज़र को
अपनी नज़र में समाने के बाद ड़री हई
ू आवाज़ में आहिस्तगी से कहा, " आपि अपना ब्रा भी उठाओ ना प्लीज."

और शायद आपि को भी अब इस सब में मज़ा आने लगा था उन्होंने गर्दन घु मा कर अम्मी की रूम की दरवाज़े को
और फिर बाहर वाले दरवाज़े को दे खा और एक झटके में अपनी ब्रा भी उपर कर दी … और मे रे दिल की धड़कन
बिल्कुल रुक गई, मु झ पर वो ही कैफ़ियत तरी होने लगी थी जो कल आपि की सीने की उभारों को दे ख कर हो गई थी.
मैं चं द लम्हे ऐसे ही अपनी खूबसूरत सी बहन की प्यारे से मम्मों को दे खता रहा और फिर उनकी हसीं भूरे गु लाबी
चूं चियों पर नज़र जमाये हव
ू े ट् रान्स की कैफ़ियत में जै से ही आपि की तरफ बढ़ा तो आपि ने फ़ौरन अपनी क़मीज़
नीचे कर दी और चादर और क़मीज़ के उपर से ही अपने ब्रा को मम्मों पर से ट करने लगीं और फिर उन्होंने अपना
हाथ चादर की अं दर डाला और खड़े खड़े ही थोड़ी सी टाँ गें खोलीं और घु टनों को मोड़ते हव ू े अपनी सलवार से ही
टां गों की बीच वाली जगह को साफ कर लिया … मैं ने ये दे खा तो हसते हव ू े तन्ज़िया अं दाज़ में कहा, " आपि जान
इतने में ही गीली हो गई हो और नखरे इतने कर रही थीं."

" बकवास मत करो. खबीस मैं नखरे नहीं कर रही थी. अगर अम्मी या कोई और आ जाता ना तो फिर तु म्हें पता
चलता " आपि ने ये कहा और फिर अपना लिबास सही करने लगीं. बिलाल पहले ही अपना लं ड अं दर कर चु का था

मैं ने भी अपना लं ड पें ट में डाला और ज़िप बं द करते हव


ू े कहा, " अच्छा सच सच बताओ आपि … मज़ा आया ना
आप को " आपि को खामोश दे ख कर मैं ने फिर कहा, " आपि झट ू मत बोलना आप को हम दोनों की कसम सच
बताओ " मे री बात सु न कर आपि मु स्कुरा दीं और अपने रूम की तरफ चल पड़ी. फिर 4,5 क़दम बाद रुक कर पलटीं
और मु झे ऑंख मार कर बड़े फ़िल्मी स्टाइल में कहा " झकास्सस " और रूम मैं चली गयीं … और मैं ये सोचने लगा
कर हमारी बहन का ये स्टाइल भी बहुत खूब है " जो वो अक्सर जाते जाते पलट कर हमें मु तमईन कर जाती है ."

और आज रात फिर आपि हमारे रूम मैं आयीं और अपनी क़मीज़ उतार कर सोफ़े पे बै ठ गयीं … बिलाल और मैं ने
ू रे को चोदा … और डे ली ही ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा.
आपि को दे खते दे खते ही उनकी सामने एक दस
तक़रीबन एक हफ्ते डे ली यहीं करते रहने के बाद. एक रात जब चु दाई करते हव ू े बिलाल और मैं डिस्चार्ज हव
ू े तो
आपि भी 2 बार अपना पानी छोड़ चु की थीं. हम तीनों अपने अपने ड्रेस पहन रहे थे की आपि ने अपनी क़मीज़
पहनते पे हेनते कहा, " यार आज कुछ मज़ा नहीं आया है . कुछ और दिखाओ, मु झे कुछ नया दिखाओ ये डे ली तु म
लोगों को एक ही काम करते दे ख दे ख कर अब बोर हो गई हँ ू अब कुछ चें ज लो. ”

बिलाल ने कहा " किस किस्म का चें ज लायें आपि " तो आपि ने कहा " मु झे नहीं पता ले किन बस कुछ मज़े दार सा
हो."

मैं ने आपि को दे खते हव


ू े कहा " आपि जान हम तो जो कर सकते थे सब कर ही लिया है . हमारे पास तो कुछ नया है
नहीं. कुछ चें ज ही चाहती हो तो आप ही कुछ नया दिखा दो हमें ."

आपि मु स्करायीं और चद्दर को अपने जिस्म से लपे टते हव


ू े कहा " सागर तु मसे तो मैं इतनी अच्छी तरह वाक़िफ़ हँ ू की
तु म्हारी शकल दे खकर ही मु झे पता चल जाता है की तु म क्या चाह रहे हो … कमीनों मैं अच्छी तरह से समझती हँ ू
की तु म क्या सोच रहे हो ले किन याद रखो ये कभी नहीं हो सकता और इसके बारे में सोचना भी मत. पहले ही कभी
कभी मैं बहुत गिल्टी फील करती हँ ू की ये सब कर रही हँ ू … ”
आपि का दुखी होता चे हरा दे ख कर मैं ने फ़ौरन कहा, " अच्छा आपि अब रोना वोना मत शु रू हो जाना. हम दे ख
नहीं सकते ले किन रात को सोने से पहले सोच तो लेते है ना अब अगर मूड ऑफ हो गया तो सोच भी नहीं सकेंगे ."

" सागर तु म सचमु च बहुत ही बड़े वाले कमीने हो. " आपि ने हसते हव
ू े ये कहा और हमें शब्बा खै र कहती हई
ू रूम से
बाहर चली गयीं.

अगले ही दिन मैं अपने दोस्त नईम के पास गया और उससे कहा " यार नईम हम अपने रूटीन से क्स से उकता गए है .
तु म कुछ और ऐसा बताओ जो ज़रा एक्साइटे ड सा हो."

नईम बोला, " यार तु म लोग थ्रीसम ट् राय करो. इस मैं तु म्हें बहुत मज़ा आये गा. मैं उस्मान से बात कर ले ता हँ .ू वो
वै से भी बहुत बार तु म्हारा पु छ चु का है मु झसे "

मैं ने कहा, " नहीं यार. मे रा दोस्त इस मामले में बहुत केअरफ़ुल है वो किसी तीसरे बन्दे को कभी क़ुबूल नहीं करे गा."

मे री बात सु न कर नईम कुछ सोचने लगा और कुछ दे र बाद बोला " यार सागर तु म शाम में मे रे पास चक्कर लगाना
मैं कुछ हाल निकलता हँ ू तु म्हारे मसले का"

नईम के बु लाने के मु ताबिक़ मैं शाम में जब नईम के घर गया … वो घर से निकला तो उसके चे हरे पे अजीब सी
शै तानी मु स्कराहट थी. नईम ने मु झे एक बॅ ग दिया और और मे रे चे हरे पे नज़र जमाये हव
ू े बोला, " ते री सोच से
ज़्यादा मज़े दार चीज़ दे रहा हँ ू तु झे जा मजे कर"

मैं ने बॅ ग को खूला तो मु झे है रत का शदीद झटका लगा, बॅ ग में एक डिल्डो रखा हुआ था मे री आँ खें फटी की फटी रह
गयीं और बे सख्ता मे रे मुं ह से निकला " ओये बहन चोद एहा!! तु झे कहाँ से मिल गया"

नईम ने मे री हालत से लु त्फ़ अन्दोज़ होते हव


ू े कहा, " तू आम खा, गुठलियाँ गिनने के चक्कर में क्यों पड़ता है . "
मैं ने मिन्नत करते हव
ू े कहा " बता ना यार प्लीज. हो सकता है वहां से और भी मज़े दार चीज़ें मिल जायें …"

नईम बोला, " ते रा दिमाग़ ख़राब है , तो क्या समझ रहा है की यहाँ कोई ऐसी से क्स शॉप है जहाँ ऐसी चीज़ें मिलती
होंगीं"

मैं ने कहा, " तो फिर कहाँ से लिया तु म ने ये ".

नईम ने जवाब दिया, " तू मे रे कजिन सलीम को तो जानता ही है ना वो 2 महीने पहले इटली गया था तो मैं ने उसे
कहा था की वहां से ये चीज़ें ले आये . मैं ने उसे से क्स डॉल का भी कहा था ले किन ऐसी चीज़ें लाना इतना आसान
नहीं है . वो मु श्किल से 3-4 डिल्डो ही ला सका है बस."

मैं ने बहुत जज़बाती ले हजे में पु छा " तो बाक़ी और कहाँ है " नईम बोला " वो सोलो एक्शन के लिए है . तु म लोगों को
इसकी ज़रूरत है ये ज़्यादा मज़ा दे गा तु म लोगों को."

नईम ने जो डिल्डो मु झे दिया था तक़रीबन 17 इं च लम्बा था. सें टर मैं बे स थी 1 इं च की और दोनों साइड्स तक़रीबन
8, 8 इं च लम्बी थीं जिनका सर बिल्कुल लं ड की टोपी से मु शाबे ह था और मोटाई एक नार्मल लं ड जितनी ही थी.
मैं ने उससे अपने बै ग में रखा तो नईम ने मु झे कुछ CD ज दीं और मज़े ले ते हव
ू े कहा, " जब इस से दिल भर जाये तो
आकर मु झसे दस ू रे ले जाना. वो इस से ज़रा मोठे भी है और लम्बे भी."

मैं वो ले कर घर आया और बिलाल को दिखाया. वो भी इससे दे खकर बहुत है रान हुआ और बहुत खु श भी. हम दोनों
ही ने कितनी मूवीज में ये दे खा ही था और दोनों जानते थे की इसको कैसे इस्तमाल किया जाता है .

मैं ने उससे अपनी अल्मारी में लॉक किया और हम दोनों ही बहुत बे ताबी से रात होने का इन्तज़ार करने लगे .

रात को डे ली रूटीन की तरह आपि हमारे रूम में आयी और अपनी बड़ी सी चादर, स्कार्फ़ और क़मीज़ उतार कर सोफ़े
के साथ रखे टे बल पर रखीं और सोफ़े पे बै ठ गयीं. मैं और बिलाल दोनों ही आपि की सामने खड़े उनके चे हरे पे नज़र
जमाये मु स्कुराये जा रहे थे . आपि ने हे रानी से हमें दे खा और बोली, " क्या बात है तु म दोनों यहां खड़े होकर क्यों दांत
निकल रहे हो?"

मे रे कुछ कहने से पहले ही बिलाल बोल पड़ा, " आपि आज हमारे पास आप के लिए एक सरप्राइज है " बिलाल की
बात ख़तम होने पे मैं ने कहा, " आपि आप चाहती थीं ना कुछ अलग सा हो. जो कुछ एक्साइटमें ट पै दा करे हमारे
खे ल में ."

" हां तो. " आपि ने कुछ ना समझ आने वाले अं दाज़ में कहा मैं अपनी अल्मारी की तरफ गया और वहां से बॅ ग से
डिल्डो निकाला और आपि को दिखाते हव ू े कहा की, " तो ये है कुछ अलग सा"

जै से ही आपि की नज़र डिल्डो पे पड़ी उनका मुं ह खु ला का खु ला रह गया, उनके मुं ह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही
थी. बस उनकी नज़रें उस गहरे ब्राउन 17 इं च लम्बे 2 साइडे ड डिल्डो पे ही चिपक की रह गई थीं. आपि भी अच्छी
तरह से जानती थीं की ये क्या चीज़ है . क्यों की हमारी तक़रीबन सब ही मूवीज उन्होंने भी दे खी ही हई
ू थीं. चं द लम्हे
इसी तरह आपि डिल्डो को दे खती रहीं और हम आपि की खूबसूरत चे हरे की बदलते रं ग दे खते रहे फिर आप ने फँसी
फँसी आवाज़ में कहा, " ये … या … कहाँ से ले लिया तु म ने सागर?? " आपि ने पु छा मु झसे था ले किन नज़र डिल्डो
से नहीं हटाई थी.

मैं ने मु स्कुराते हव
ू े हाथ सीने पे रखा और आदब बजा लाने वाले अं दाज़ में थोड़ा सा झुक कर कहा, " मैं अपनी इतनी
प्यारी और हसीं बहन के लिए आसमान से तारे तोड़ लाऊं तो ये तो बहुत हक़ीर सी चीज़ है "

" नहीं सीरियसली प्लीज. मैं नहीं समझती की इस किस्म की कोई चीज़ हमारे मूल्क में कहीं से मिलती होगी " आपि
ने बहुत सं जीदा ले हजे में पु छा।

" मे री सोहणी सी बे हना जी हमारा मूल्क अब बहुत एडवांस हो गया है . आप तसव्वुर भी नहीं कर सकतीं की यहाँ
क्या क्या हो रहा है . इन बातों को छोड़ो और ये दे खो " मैं ने ये बोल कर आहिस्तगी से डिल्डो आपि की तरफ उछल
दिया. जो सीधे आपि की गोद में उनकी टां गों की दरमियाँ जा कर गिरा. आपि कुछ दे र तक नज़र झुका कर डिल्डो को
अपनी टां गों की दरमियाँ पड़ा दे खती रहीं. आपि ने खोये खोये अं दाज़ में आहिस्ता से अपना हाथ डिल्डो की तरफ
बढ़ाया और अपने बाये हाथ की मु ठ्ठी में उससे थाम लिया और उठा कर अपना दां ए हाथ नरमी से डिल्डो की पूरी
लम्बाई पर उपर से नीचे और नीचे से उपर फेरने लगी. अच्छी तरह से पूरे डिल्डो को महसूस कर ले ने के बाद आपि ने
बाये हाथ से डिल्डो को सें टर से पकड़ा और दां ए हाथ से डिल्डो को इस अं दाज़ में थामा जै से हम मु ठ मारते हव ू े लं ड
को पकड़ते है . उन्होंने नज़र उठा कर हमारी तरफ दे खा और मु स्कुराते हव ू े डिल्डो पर हाथ उपर नीचे करते हव
ू े बोली,
" तो ये तरीक़ा है तु म लोगों की मज़े ले ने का. तु म लोग ऐसे ही मास्टरबेशन करते हो ना??"
" जी ये ही तरीका है ले किन अगर आप चाहो तो डिल्डो को छोड़ो, प्रैक्टिस के लिए रियल चीज़ हाज़िर है " मैं ने
अपने लं ड की तरफ इशारा करते हव ू े कहा.

" जी नहीं … मु झे कोई ज़रूरत नहीं प्रैक्टिस की. बहुत बहुत शु क्रिया जनाब का " आपि ने नखरीले अं दाज़ में कहा
और डिल्डो मे री तरफ फैंक दिया. आपि ने अपनी टां गों को थोड़ा सा खोला और अपने बाये हाथ से अपनी दां ए चूं चि
को 2 उं गलियों की चु टकी में पकड़ते हवू े थोड़ी सी टाँ गें खोली और दां ए हाथ को अपनी टां गों की दरमियाँ वाली
जगह पे आहिस्ता से रगड़ते हव ू े कहा, " चलो अब जल्दी से शु रू करो मु झसे अब मज़ीद सबर नहीं हो रहा है " मैं ने
डिल्डो को अपने हाथ में पकड़े रखा और अपनी जगह से हरकत किये बिना ही कहा, " मे री सोहणी बे हना जी आज
का शो ज़रा स्पे शल है तो इसका टिकट भी ज़रा क़ीमती ही होगा ना"

" अब क्या तक़लीफ़ है " आपि ने ज़रा गु स्सीले ले हजे में पु छा तो मैं ने वहां हाथ का इशारा सोफ़े के साथ रखे टे बल
की तरफ किया जहाँ आपि की ते ह शु दा चद्दर, स्कार्फ़ और क़मीज़ पड़ी थी और जवाब दिया " आपि मे रा ख्याल है की
इस टे बल पर अब एक और चीज़ का इजाफ़ा कर ही दो आप.

" बकवास मत करो मैं जो कर चु की हँ ू ये ही बहुत है जो तु म कह रहे हो वो मैं कभी नहीं करूंगी और प्लीज अब शु रू
करो मैं रियली बहुत एक्साइटे ड हँ ू तु म लोगों को इस डिल्डो के साथ एक्शन में दे खने के लिए " आपि ने झुंझलाहट
ज़ादा अं दाज़ में कहा.

मैं ने कहा, " आपि आप भी तो खामखां ज़िद पे अड़ी हो ना. हम आप का आधा जिस्म तो नं गा दे ख ही चु के है तो अब
आप को सलवार भी उतार दे ने में क्या झिझक है और मैं सिर्फ सलवार उतरने का ही तो कह रहा हँ ू आप को अपने
साथ शामिल करने की शर्त तो नहीं रख रहा ना. " कुछ दे र तक रूम में ख़ामोशी छाई रही मैं भी कुछ नहीं बोला और
आपि भी कुछ सोच रही थीं.

" ओके दफ़ा हो तु म लोग. नहीं दे खना मैं ने तु म लोगों को भी. " आपि ने चिल्ला कर कहा और अपनी क़मीज़ पे हेनने
लगी. हम चु प चाप खड़े आपि को दे खते रहे उन्होंने क़मीज़ पे हनी स्कार्फ़ बां धे और अपने जिस्म पे चद्दर को लपे ट कर
हमारी तरफ दे खे बगै र बाहर जाने लगी.

आपि अभी दरवाज़े में ही पहुंची थीं की मैं ने ज़रा ते ज़ आवाज़ में कहा, " मे री सोहणी बे हना जी अगर ज़हन चें ज हो
जाये और हमारी हालत पे रहम आ जाये तो हमारे रूम का दरवाज़ा आप के लिए हमे शा खु ला है . बिला झिझक रूम
में आ जाना हम आप को इस शानदार चीज़ के साथ यहाँ ही मिलें गे ."

आपि ने दरवाज़े में खड़े हो कर घूम कर मु झे बहुत गु स्से से दे खा और कुछ बोला बिना ही दरवाज़ा ज़ोर से बं द करती
हई
ू बाहर चली गयीं. आपि के बाहर जाते ही बिलाल मे रे पास आया और फ़िक् र मन्दी और मायूसी की मिले जु ले
तवातूर से बोला, " भाई आज तो आपका प्लान बै क फायर नहीं कर गया …??? मे रा मतलब है की अपनी बहन को
पूरा नं गा दे खने की चक् कर में हम आधे से भी गए. कम से कम आपि के खूबसूरत मम्मे तो हमारे सामने होते ही थे
ना. अब तो सब ख़तम हो गया."

" फ़िक् र ना करो यार. हम से ज़्यादा मज़ा आपि को आता है हमें ये सब करते दे खने में . मैं तु म्हें यक़ीं दिलता हँ ू वो
वापस ज़रूर आयें गी बे फ़िक् र रहो. वो अब इसके बिना नहीं रह सकेंगी " ले किन मे रा अं दाज़ा ग़लत निकला और
आपि उस रात वापस नहीं आई.

सु बह नाश्ते के वक़्त भी आपि बहुत ख़राब मूड मैं थीं. मु झसे बात करना तो दरू मे री तरफ दे ख तक नहीं रही थीं
ले किन मु झे अपनी बहन का ये अं दाज़ भी बहुत अच्छा लग रहा था गु स्से में वो और ज़्यादा हसीं लग रही थीं.
गु लाबी गाल गु से की शिद्दत से लाल लाल हो रहे थे . 3 दिन तक आपि का गु स्सा वै से ही रहा. फिर चौथी रात को
आपि हमारे रूम मैं आयीं और मु झसे नज़र मिलाने पे दरवाज़े में खड़े खड़े ही पु छने लगी, " सागर तु म्हारा दिमाग़
वापस ठिकाने पे आ गया है या अभी भी तु म वो ही चाहते हो जो उस दिन तु म्हारी ज़िद थी"

मैं ने कहा, " नहीं आपि. हम आज भी वो ही कहें गे और कल भी वो ही कहें गे जो उस दिन हमने कहा " आपि ने घूम कर
एक नज़र दरवाज़े से बाहर सीढीयों की तरफ दे खा और पलट की अपने हाथों से चादर और क़मीज़ के दामन को
सामने से पकड़ा और एक झटके से अपनी गर्दन तक उठा दिया और कहा, " एक बार फिर सोच लो वरना इन से भी
जाओगे ."

बिलाल ने फ़ौरन मे री तरफ दे खा जै से कह रहा हँ ू की " भाई मान जाओ " …

आज 3 दिन बाद अपनी बहन की खूबसूरत गु लाबी उभारों और छोटी छोटी गु लाबी चूंचियों को दे ख कर दिमाग़ को
एक झटका सा लगा ले किन मैं ने अपने ज़हन को अपने कंट् रोल में कर ही लिया और बिलाल को चु प रहने का इशारा
करते हव
ू े आपि को कहा, " बे हना जी हमारा फैसला अटल है ."

" ओके तु म्हारी मर्ज़ी " आपि ने अपनी क़मीज़ सही की और दरवाज़ा बं द करके बाहर चली गयीं. आपि के जाने के
बाद हम दोनों कुछ दे र वै से ही उदास बै ठे रहे और फिर बिलाल सोने के लिए बिस्तर पर ले ट गया. मे रा भी दिल उदास
सा था और कुछ करने का मना नहीं कर रहा था, मैं भी बिस्तर पे ले ट कर इस सिचु एशन को सोचने लगा … मु झे भी
यक़ीं सा होता जा रहा था की अब शायद आपि कभी नहीं आयें गी हमारे रूम मैं और ये सिलसिला शायद इसी तरह
ख़तम होना था जो शायद आज ही ख़तम हो गया है .

45 मिनट से मैं अपनी इन ही सोचो में गु म था की दरवाज़ा खु लने की आवाज़ पे चौंक कर दे खा तो आपि रूम में
दाखिल हो रही थीं. उन्होंने अं दर आ कर दरवाज़ा लॉक किया और झं झलाते हव ू े बोली, " तु म दोनों पूरे की पूरे खबीस
हो. तु म अच्छी तरह से जानते हो की इं सान का कौन सा बटन किस वक़्त पु श करना चाहिये और मैं जानती हँ ू ये
सारी कमीनगी सागर तु म्हारी ही प्लॅ न की हईू है तु म बहुत … बहुत ही कमीने हो. अब उठ़ो दोनों क्यों मु र्दों की तरह
पड़े हवू े हो. " आपि ने ये कहा और फिर सोफ़े के पास जा कर अपनी क़मीज़ उतरने लगी. चद्दर और स्कार्फ़ वो अपने
रूम में ही छोड़ आइए थीं. आपि को क़मीज़ उतारते दे ख कर मैं भी बिस्तर से उठा और अपने कपड़े उतारने लगा,
अपनी सगी बहन को कम्पलीट नं गा दे खने की तसव्वरु से ही मे रे लं ड में जान पड़ने लगी और वो खड़ा हो गया था.
मे री दे खा दे खी बिलाल ने भी अपने कपड़े उतारे और हम दोनों अपने अपने लं ड को हाथ में पकड़ कर आपि से चं द
गज़ के फासले पर ज़मीं पे बै ठ गए. आपि हमारे बिल्कुल सामने खड़ी थीं उन्होंने बे ल्ट वाली काली सलवार पे हनी हई

थी और ईज़ारबन्द नज़र नहीं आ रहा था जिसे ज़ाहिर होता था की आपि की इस सलवार मैं इलास्टिक ही है . मे री
बहन का दधि ू या गु लाबी जिस्म काले सलवार में बहुत खिल रहा था और नाभि के नीचे काला तिल सलवार के साथ
मै चिंग मैं बहुत भला दिख रहा था. आपि के पे ट और सीने पे हरी रगों का एक जाल सा था. आपि ने अपने दोनों हाथों
को अपनी कमर की साइड्स पे रखा, अं गठ ू ों को सलवार में फंसा दिया और अपने हाथों को नीचे की तरफ दबाने लगी.

आपि की सलवार आहिस्तगी से नीचे सरकना शु रू हो गई. जै से जै से आपि की सलवार नीचे सरक रही थी मे रे दिल
की धड़कन भी ते ज़ होती जा रही थी. तक़रीबन 2 इं च सलवार नीचे हो गई थी. आपि की नाभि के तक़रीबन 3 इं च
नीचे बालों के आसार नज़र आ रहे थे जिनको दे खकर लगता था की शायद आपि ने एक दिन पहले ही सफाई की थी.
अचानक आपि ने अपने हाथों को रोक लिया. मे री नज़रें उनकी टां गों के दरमियाँ ही जमी हई
ू थीं. आपि का हाथ
रुकते दे ख कर मैं ने अपनी नज़र उठाई. जै से ही आपि की नज़रें मु झसे मिली उन्होंने शदीद शर्म के अहसास से अपनी
ऑंखों को भींच लिया और अपने दोनों हाथ अपने चे हरे पे रख कर चे हरा छुपते हव ू े पूरी घूम गयीं. आपि की शफाफ
और गु लाबी पीठ मे री नज़रों की सामने थी. चं द लम्हों तक हम तीनों ऐसे ही सकत रहे और मु कम्मल ख़ामोशी छाई
रही. फिर मैं ने इस ख़ामोशी को तोड़ते हव ू े सिर्फ 2 लफ़्ज़ कहे " आपि प्लीज " चं द लम्हे मज़ीद ख़ामोशी की नज़र हो
गए. तो मैं ने फिर कहा " आयप्पपीई " मे री आवाज़ सु न कर आपि ने अपने चे हरे से हाथ उठा लिए और वापस अपनी
कमर पे रखते हव ू े अं गठ
ू ों को सलवार में फंसा दिया ले किन आपि हमारी तरफ नहीं घूमि और वै से ही हमारी तरफ पीठ
किये अपनी सलवार को नीचे खिसकाने लगी.

सलवार का उपरी किनारा वहां पहुंच गया था जहाँ से आपि की कुल्हों की गोलाई शु रू होती थी. सलवार थोड़ा और
नीचे हो गई तो उनके खूबसूरत शफाफ और गु लाबी कुल्हों का उपरी हिस्सा और दोनों कुल्हों की दरमियाँ वाली
लकीर की सूरत नज़र आने लगी. आपि ने सलवार को थोड़ा और नीचे किया और अपने हाथ फिर रोक लिए. उनकी
आधे कुल्हे और गान्ड़ की आधी लकीर दे ख कर नशा सा छाने लगा था और मैं अपने हाथ से अपने लं ड को भिं चने
लगा. आपि थोड़ी दे र ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके मैं सलवार को अपने पां व तक पहुंचा
कर दुबारा सीधी खड़ी होते हव
ू े अपने चे हरे को हाथों से छुपा लिया और पां व की मदद से सलवार को अपने जिस्म से
अलग करने लगी.

मैं और बिलाल दोनों आपि की गान्ड़ पे नज़रें जमाये अपने अपने लं ड को अपने हाथों से रगड़ रहे थे . आपि हमारी
तरफ पीठ किये हव ू े ही 2 क़दम सोफ़े की तरफ बढ़ी और अपना स्कार्फ़ उठा कर सीधी खड़ी होते हव ू े अपने सर पे
स्कार्फ़ बाँ धने लगी. मैं पीछे बै ठा आपि की एक, एक हरकत को इं हिमाक से दे ख रहा था जब उन्होंने स्कार्फ़ बाँ धने के
लिए अपने दो बाज़ू अपने जिस्म से उपर उठाये तो उनकी बगलों के नीचे से सीने की उभारों की हलकी सी झलक
नज़र आने लगी. आपि के जिस्म की हर चीज़ बहुत तनासु ब में थी. कमर से थोड़ा नीचे से उनकी गान्ड़ साइड्स पे
बाहर की तरफ निकलना शु रू हो जाती थी और एक खूबसूरत गोलाई बनाते हव ू े राणों की शु रू पे वो गोलाई ख़तम हो
जाती. दोनों कुल्हे मु कम्मल गोलाई लिए हवू े और बे दाग़ और शफाफ थे . उनकी राणें भी बहुत खूबसूरत और उनकी
बाक़ी जिस्म की तरह गु लाबी रं गत लिए हवू े थीं. मु तनासिब पिं डलियाँ और खूबसूरत पां व बहुत हसीं नज़र आते थे .

उनको हरकत ना करते दे ख कर मैं ने कहा, " आपि प्लीज हमारी तरफ घूमो ना प्लीज " आपि ने मे री बात सूनी और
दोनों हाथों से अपनी टां गों की बीच वाली जगह को छुपाते हव
ू े सामने सोफ़े पे बै ठ गयीं. उन्होंने अपनी आँ खें बं द कर
रखी थीं. आपि का चे हरा एक्साइटमें ट और शर्म की एहसास से लाल हो रहा था. रूम में सिर्फ हम तीनों की ते ज़ सांसों
और हमारे ज़ोर ज़ोर से धड़कते दिल की आवाज़ें गूंज रही थीं. बिलाल और मे रे हाथ अपने अपने लं ड को से हला रहे
थे और नज़रों ने आपि के जिस्म को गिरफ्त में ले रखा था और हम आपि की सामने चं द गज़ के फासले पे ही बै ठे थे .

आपि की बै ठते ही बिलाल ने कहा, " आपि असल चीज़ तो अभी भी छुपी हई ू है . हाथ हटाएं ना " नहीं!! मु झे बहुत
शर्म आ रही है " आपि ने अपनी ऑंखों को भींचते हव ू े हलकी आवाज़ में जवाब दिया. मैं ने कहा, " चलो ना सोहणी
बे हना जी. हम दोनों भी तो नं गे बै ठे है ना आपकी सामने "

मे री बात ख़तम होते ही आपि ने अपने दोनों हाथों को टां गों की दरमियाँ से उठाया और अपने चे हरे को हाथों से छप
ू ा
लिया. उनकी टाँ गें आपस में जु ड़ी हई
ू थीं जिसकी वजह से सिर्फ उनकी टां गों की दरमियाँ वाली जगह की उपरी
बाल ( जो एक दिन की शे व्ड जै से थे ) दिख रहे थे .

" आपि टाँ गें खोलो ना " बिलाल बहुत एक्साइट हो रहा था. आपि ने अपने सर को पीछे झुकाते हव
ू े गर्दन को सोफ़े
की पु ष्ट पे टिकाये और अपनी टां गों को खोलने लगीं …

वाव्वववव मे रे लिए जै से दुनियां रुक सी गई थी … मु झे दस


ू री बार ऐसा महसून होया की मैं अपनी ज़िं दगी का हसीं
तरीन मं ज़र दे ख रहा हँ .ू मैं अपनी ज़िं दगी में पहली बार रियल चूत दे ख रहा था और चूत भी अपनी सगी बहन की.
मे रा लं ड कुछ कुछ दे र बाद एक झटका ले ता और पानी का एक क़तरा बाहर फैंक दे ता. मैं अपनी बहन की चूत पे
नज़र जमाये जमाये मदहोश सा होता जा रहा था.
आपि की चूत की उपरी हिस्से में बिल्कुल छोटे छोटे बाल थे . बाल जहाँ ख़तम होते थे वहां से ही चूत शु रू होती थी.
आपि की चूत का रं ग बिल्कुल गु लाबी था और ज़रा उभरी हई ू थी. चूत की लिप्स फू ले फू ले से थे और अं दर का हिस्सा
नज़र नहीं आ रहा था. आपि की चूत की शु रू में हल्का सा गोश्त बाहर था जिसमें छुपा दाना ( क्लिटोरियस ) नज़र
नहीं आता था. उनकी चूत की लिप्स की अन्दरूनी हिस्सों से दोनों साइड्स से निकलते 2 गोश्त की परदे से थे . जो
बहुत भले लग रहे थे .

" आपि आप इस दुनियां की हसीं तरीन लड़की हो. आप की जिस्म का हर हर हिस्सा ही इतना दिलकश है की मदहोश
तर कर दे ता है . मैं ने अपनी ज़िं दगी में इतना मु कम्मल जिस्म किसी का नहीं दे खा. आप का चे हरा, आपकी सीने की
उभार, खूबसूरत पे ट और कमर, लम्बी लम्बी टाँ गें और हसीं तरीन च … " मैं ने खोई खोई आवाज़ में ये जु मले अदा
किया.

आपि ने मे री बात सु न कर अपनी आँ खें खोलीं. उनका चे हरा शर्म और एक्साइटमें ट से भरा हुआ था. उनकी आँ खें
बहुत नशीली हो रही थी और जिस्म की गर्मी की वजह से ऑंखों में नमी आ गई थी, आपि ने अपनी हालत पे ज़रा
क़ाबू पाते हव
ू े मे री तरफ दे खा. कुछ दे र तक मैं और आपि एक दस ू रे की ऑंखों में दे खते रहे फिर उन्होंने मे री नज़रों से
नज़र मिलाये हव ू े एक आह्ह्ह खारिज की और सिसकते हव ू े अं दाज़ में कहा, " सागर उठ़ो और अपने नए खिलोने को
ले कर दोनों बिस्तर पे जाओ."

मैं ट् रान्स की कैफ़ियत में उठा और बिलाल के हाथ को पकड़ कर उसे उठने का इशारा किया और हम दोनों बिस्तर
की तरफ चल दिया. बिस्तर पे बै ठ कर मैं ने सिरहाने के नीचे से डिल्डो निकाला. बिलाल और मैं ने डिल्डो की एक, एक
साइड्स को मुं ह में लिया और चूसने लगे , जब वो गीला हो गया तो मैं ने बिलाल से डॉगी स्टाइल में झुकने को कहा
और मैं उठ़कर उसकी गान्ड़ के पास आ गया. मैं ने डिल्डो को थोड़ा लु ब्रिकेट किया और फिर बिलाल की गान्ड़ में
ड़ालना शु रू कर दिया. डिल्डो मे रे लं ड से थोड़ा मोटा था और बड़ा भी था.5-6 मिनट अं दर बाहर करने से बिलाल की
गान्ड़ थोड़ी नरम पड़ गई और डिल्डो आराम से अं दर बाहर होने लगा तो मैं भी डॉगी स्टाइल में हुआ और आपि की
तरफ नज़र उठा कर शरारती अं दाज़ में मु स्कुरा दिया. आपि भी मु झे दे ख कर मु स्कुराने लगी, उनके चे हरे से अब शर्म
ख़तम हो गई थी और हवस की शिद्दत, लाली की सु रत में उनके गालों से ज़ाहिर हो रही थी. आपि ने अपने बाये
हाथ से अपने एक उभार को दबोच रखा था और दांए हाथ की इं डक्
े स उं गली और अंगूठे की चुटकी में
अपनी चत
ू के उपर वाले हिस्से में पेवस्ता दाने ( क्लीट ) को मसल रही थीं. मैंने बिलाल की गान्ड़ से
गान्ड़ मिला कर अपना हाथ पीछे की तरफ ले जा कर डिल्डो को थामा और उसका दस
ू रा सिरा अपनी
गान्ड़ में डालने की कोशिश करने लगा. मेरे ज़हन में ये था के डिल्डो परू ा अंदर करके मैं अपनी गान्ड़
बिलाल की गान्ड़ से मिला दं ू लेकिन इस मश्कि
ु ल पोजीशन में मझ
ु से डिल्डो अपनी गान्ड़ में नहीं डाला
जा रहा था हमने ये पोजीशन मूवीज में दे खी थी और आपि ने खास तोर पे इस पोजीशन को पसंद किया
था इस लिए मैं उनको रियल शो दिखाना चाहता था लेकिन 2-3 मिनट कोशिश करने की बावज़ूद में
कामियाब नहीं हुआ तो मैंने बेचारगी की नज़र से आपि को दे खा और कहा, " आपि ये पोजीशन आसान
नहीं है , कसम से मैं जान बुझकर ऐसा नहीं कर रहा यक़ीं करो मैं पूरी ट्राय कर रहा हूँ " आपि ने अपने
सीने के उभार और चूत को मसलते हूवे धीरे से कहा, " कोई बात नहीं! तुम आराम से डालने की कोशिश
करो. " मैंने कुछ दे र दब
ु ारा कोशिश की लेकिन कामियाब नहीं हुआ मैंने फिर आपि की तरफ दे खा और
मायूसी से नहीं की अंदाज़ में अपने सर को हिलाया.
आपि कुछ दे र हम को दे खति रहीं फिर पता नहीं उन्हें क्या हुआ की वो अपनी जगह से उठ़ कर हमारे
पास आयीं और अपने एक हाथ से डिल्डो को पकड़ा और दस
ू रा हाथ से मेरे कुल्हों को खोलते हूवे डिल्डो
का सिरा मेरी गान्ड़ के सूराख पे रख कर अंदर दबाने लगी. आपि का हाथ टच होते ही मेरे मुंह से एक
आहः निकलि और मैंने बेसख्ता ही कहा " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आपि आपकी हाथ का एहसास बहुत मज़ा दे
रहा है . " आपि ने एक हाथ से डिल्डो को मेरी गान्ड़ में अंदर बाहर करते हूवे कहा " अच्छा चलो ऐसी बात
है तो थोड़ा और मज़ा ले लो. " आपि ने ये कहा और दस
ू रे हाथ को मेरी गान्ड़ पे फेरते हूवे नीचे ले गयीं
और मेरी गोटियों ( टट्टों ) को अपने हाथ में ले लिया और नरमी से मसलने लगी. " चलो दोनों अब एक
साथ पीछे की तरफ झटका मारो और और फिर एक साथ ही आगे जाना ताकि रीदम ना ख़राब हो " ये
कहते हूवे आपि ने अपने हाथ से डिल्डो को छोड़ दिया.

अचानक मुझे बिलाल की तेज़ सिसकारी की आवाज़ सुनाई दे ई " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आपि जीए
उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़"

मैंने सर घम
ु ाकर दे खा तो आपि ने दस
ू रे हाथ में बिलाल की गोटियों पकड़े हूवे थी और उन्हें भी मसल
रही थीं. हम दोनों को आपि की हाथों की नरमी पागल किये दे रही थी और हम बहुत तेज़ तेज़ अपने
जिस्मों को आगे पीछे करने लगे. जब हमारा रीदम बन गया तो आपि ने हमारे गोटियों को छोड़ा और
सोफ़े की तरफ जाते हूवे बोली, " अब अपनी मदद आप करो. मैं तम
ु लोगों को मज़ा दे ने नहीं अपना मज़ा
लेने के लिए आयी हूँ. " आपि ने ये कहा और सोफ़े पे जा कर बैठ गयीं. हम दोनों की स्पीड अब कम हो
गई थी और हम दोनों ने आपि की बैठते ही अपनी नज़रें उनकी टांगों की दरमियाँ जमा लीं. उनकी चूत
बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी. आपि ने हमारी तरफ दे खा और मुस्कुरा दी और अपनी टाँगें
थोड़ी और खोल लीं.

" सागर, बिलाल " आपि की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाई तो आपि ने मस्
ु कराहट के
साथ अपने सीधे हाथ की दरमिआन वाली बड़ी उं गली को अपने होठों में फंसा कर चूसा और अपनी चूत
की तरफ ले जाने लगी. आपि ने अपने हाथ को चूत पे रखा और इंडक्
े स और तिसरी उं गली की मदद से
चत
ू की लिप्स को खोला तो उनकी चत
ू का दाना साफ नज़र आने लगा. आपि ने बीच वाली उं गली को
अपनी चूत के दाने पे रखा और आहिस्ता आहिस्ता मसलने लगी. इस सिन ने मुझ पर और बिलाल पर
जाद ू सा किया और हम तेज़ी से हरकत करने लगे और 8 इंच डिल्डो परू ा ही अंदर जाने लगा जब हम
पीछे को झटका मारते तो हम दोनों की गान्ड़ आपस में टकराने से ठप ठप्प की आवाज़ निकलती. आपि
ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया की उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है .
आपि ने दब
ु ारा अपना हाथ फिर हटाया और दरमियाँ वाली उं गली को मुंह में डाल कर चूसने लगी. फिर
वो उसी नीचे लायीं और इस बार भी अपनी चूत की परदों को अपनी उं गलियों की मदद से साइड्स पे
करते हूवे दरमियाँ वाली बड़ी उं गली को 2-3 बार क्लीट पे रगड़ कर नीचे की तरफ दबाया और आपि के
मुंह से अह्ह्ह्ह्ह्ह की आवाज़ निकलि और उं गली का सिरा उनकी चूत की अंदर दाखिल हो गया. मैं और
बिलाल तो ये दे खते ही पागल से हो गए और ज़ोर ज़ोर से अपनी गान्ड़ को आपस में टकराने लगे और
मैंने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेज़ी से आगे पीछे करने लगा. हमारा
पागल पन आपि के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था. उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल उं गली का एक
इंच हिस्सा बहुत तेज़ी से अपनी चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया और बाये हाथ से कभी अपनी
चंचि
ू यों को चट
ु की में मसलने लगतीं तो कभी अपनी चत
ू के दाने को चट
ु की पे पकड़ कर मसलने और
खींचने लगतीं. वो बिला झिझकें और पलकें झपकाये बगैर हमारी तरफ ही दे ख रही थीं.

चंद मिनट बाद ही बिलाल के लंड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हूवे डिल्डो को
अपनी गान्ड़ से बाहर निकल दिया. अब आधा डिल्डो मेरी गान्ड़ की अंदर था और आधा बाहर लटक रहा
था. आपि ने बिलाल के लंड से जूस निकलते दे खा और मेरी गान्ड़ में आधे गुस्से और आधे लटके डिल्डो
को दे खा तो लज़्ज़त की एक और सिहर अंगेज़ लेहेर की वजह से उनके मंह
ु से एक तेज़ आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
निकलि और उनका हाथ भी चूत पे तेज़ तेज़ चलने लगा. आपि ने अपनी गर्दन को सोफ़े की पष्ु ट से
टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं. उनकी दोनों पांव ज़मीं पे टीके थे और वो अपनी उं गली को अपनी
चत
ू में अंदर बाहर करने की रीदम के साथ ही अपनी गान्ड़ को आगे करते हूवे सोफ़े से थोड़ा सा उठ़
जाती थी. मैंने आपि की आँखें बंद होती दे खी तो डिल्डो को अपनी गान्ड़ से बाहर निकालें बगैर ही बिस्तर
से उठ़ कर आपि की टांगों की दरमिआन आ बैठा. मेरी दे खा दे खी बिलाल भी क़रीब आ गया.

आपि की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी उं गली बहुत तेजी से अंदर बाहर हो रही थी. जब आपि
अपनी उं गली अंदर दबाती थीं तो चूत के लब ( होंठ, लिप्स ) भी बंद हो जाते और उनकी उं गली को अपने
अंदर दबोच लेते और जब उं गली बाहर आती तो लब खल
ु जाते और लबों के अंदर से उं गली की दोनों
साइड्स पे चूत की परदे नज़र आने लगते. आपि जब अपनी उं गली को चूत में दबाती थीं तो गान्ड़ को
सोफ़े से हल्का सा उठा लेती और उसी रीदम में आगे झटका दे तीं. आपि का पूरा हाथ उनकी चूत से
निकलते जस
ू से गीला हो गया था जिससे चत
ू की आस पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक
रहे थे. आपि की चूत से बहुत मशहूर कुन ख़ुशबू निकाल रही थी.

अचानक आपि ने अपनी गर्दन को सोफ़े की पष्ु ट पर दबाया और टाँगें खुली रखते हूवे ही पर ज़मीं पर
टिका कर अपनी गान्ड़ को सोफ़े से उठा लिया उनका जिस्म कमान की सुरत में अकड़ गया, हाथ चूत से
और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए आपि ने अपनी ऑ ंखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया
और उनके चेहरे पे बहुत तक़लीफ़ और क-र-ब का एहसास था. ये पता नहीं आपि के झड़ने का ख्याल था,
उनके हसीं, खब
ू सूरत जिस्म का नज़ारा था, सेक्सी माहोल का असर, या फिर मेरी सगी बहन की चूत से
उठ़ती मदहोश खुशबुओं का जाद ू था की मैं ट्रान्स की सी कैफ़ियत में आगे बढ़ा और अपने बहन के सीने
की दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और आपि की चूत पे अपना मुंह रखते हूवे उनकी चूत के
दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठो में दबाया और चूस लिया.

आपि के मुंह से एक तेज़ आह्ह्हाआआआआ निकलि और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे
सर पे रखते हूवे अपनी चत
ू को मेरे मंह
ु पे दबा दिया. बिलाल मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह
गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबाँ से कोई बात निकलि. आपि के जिस्म ने एक
ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुंह से निकला

" सागररररररररर … आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … रुकूउ … ओुह्ह्ह … ओोउ मैं गईई …… उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ " और इसके
साथ ही आपि के जिस्म को मज़ीद झटके लगाने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा वो मेरे मुंह को
अपनी चत
ू पे दबाती जा रही थीं और उनकी हलक़ से “आआह्हह्हह्ह आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सागररररररररर” की
आवाज़ें निकल रही थीं. मुझे अपने मुंह में आपि चूत फारिग हूई सी महसूस हो रही थी. ( मैंने ज़िंदगी में
पहली बार किसी चूत का ज़ाइक़ा चखा था और मुझे उस वक़्त ही पता चला की चूत की पानी का कोई
ज़ाइक़ा नहीं होता हमें जो नमकीन पन महसस
ू होता है वो असल में जमे हूवे यरि
ू न के क़तरे या ख़श्ु क
हुआ पसीना होता है . )

कुछ लम्हों बाद ही जब आपि को अपनी हालत का अहसास हुआ के उनका सगा भाई अपने हाथों से
उनकी सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्म गाह को अपने मुंह में दबाये हूवे है तो उन्होंने
तक़रीबन चिल्लाते हूवे कहा, " नहीं सागर हटऊऊऊ, छोड़ो मुझे … उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ … या … ये क्या कर रहे
हो. मैं तम्
ु हारी सगी बहन हूँ प्लीज " मैंने आपि की चत
ू के दाने को अपने दांतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से
दबा दिया …

" आह्ह्ह्हह्हह्हह्ह … ऊऊओह्ह्ह्हफ्फ्फफ्फ्फफ्फ्फ़ सा … गररर छूरू मझ


ु े हट … ओोउ नाआआआआ"

आपि ने ये कह कर एकदम अपने कुल्हों को सोफ़े पे गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को एक
झटके से अपने उभारों से दरू कर दिया और मेरे सीने पे अपने पांव रखते हूवे मुझे धक्का दिया. मैं आपि
के धक्का दे ने से तक़रीबन 2 फ़ीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सर ज़मीं पे टकराने से बहुत मुश्किल
से बचाया. मुझे धक्का दे ते ही आपि ने दे खा की मेरा सर ज़मीं पर लगाने लगा है तो वो मझ
ु े बचने के
लिए एक दमा सोफ़े से उठीं और बोली, " सागररररररररर " और मुझे दे खा के सर नहीं टकराया है तो
फ़ौरन ही वापस सोफ़े पे बैठ गयीं और अपने जिस्म को समेटते हूवे दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और
रोने लगीं. मैंने बिलाल की तरफ दे खा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परे शान सा था. मैंने उसको इशारे से
कहा " कुछ नहीं होगा यार मैं हूँ ना जाओ तुम बिस्तर पे जाओ."

बिलाल को समझाकर मैं आपि की तरफ गया वो सोफ़े पे ऐसे बैठी थीं की उन्होंने अपनी दोनों टांगों को
आपस में मज़बत
ू ी से मिला रखा था और अपनी राणों पे कोहनियाँ रखे बाजओ
ू ं से अपने सीने की उभारों
को छूपाने की कोशिश की हूई थी.

मैं आपि के पास जा कर खड़ा हुआ और कहा, " आपि प्लीज रोयो तो नहीं यार"

आपि ने रोते रोते ही जवाब दिया " नहीं सागर तम्


ु हें ऐसा नहीं करना चाहिये था ये बहुत ग़लत है . बहुत
ग़लत हुआ है ये, तुम ने मेरी हालत का नाजाइज़ फ़ायदा उठाया है . तुम जानते ही हो के मैं जब झड़ने
लगती हूँ तो मैं होश मैं नहीं रहती. तुम तो होश में थे इतना तो सोचते की मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ
सागर!"

" आपि प्लीज जो कुछ हुआ उसे हम रोक नहीं सकते थे. आप को अपने सीने की उभारों को मसलते,
चंचि
ू यों को झंझोड़ते और अपनी टांगों की दरमियाँ वाली जगह में उं गली अंदर बाहर करते दे ख कर मेरी
भी सोचने समझने की सलाहियत ख़तम हो गई थी. आपकी टांगों की बीच से उठती मशहूर कुन ख़ुशबू ने
मेरे हवस भी गुम कर दिया थे और मैंने जो किया उसकी आप को उस वक़्त शदीद ज़रूरत थी. लाज़मी
था की आप को परू ा आनंद मिले. वरना आप का नर्वस ब्रेक डाउन भी हो सकता था."

मैं ये कह कर आपि के साथ ही सोफ़े पे बैठ गया मैं वाकया ही बहुत दख


ु ी हो गया था, मैं अपनी प्यारी
बहन को रोता नहीं दे ख सकता था … मैंने अपने एक हाथ से उनके सर को नरमी से थामते हूवे अपने
सीने से लगा लिया और अपना दस
ू रा बाज़ू आपि के पीछे से उनकी नंगी कमर से लगाते हूवे हाथ आपि
की कंधे ( शोल्डर ) पे रख दिया और आपि को चुप करने लगा, " आपि प्लीज अब बस करो … मैं आप को
रोता नहीं दे ख सकता मेरा दिल फट जायेगा. चप
ु हो जाओ"

आपि ने अभी भी अपने चेहरे को दोनों हाथों में छुपा रखा था और उनकी ऑ ंखों से मुसलसल ऑ ंसू
निकल रहे थे. मैंने आपि के कंधे से हाथ हटाया और बिला इरादा ही उनकी नंगी कमर को सेहलाने लगा.
आपि के गाल मेरे सीने और कंधे के दरमियानी हिस्से के साथ चिपका और उनके सीने के खूबसूरत और
बड़े बड़े उभार मेरे सीने में दबे हूवे थे. आपि के चूंचियां बहुत सख्ती से अकड़े हूवे मेरे सीने के बालों मैं
उलझे पड़े थे और मेरा खड़ा लंड की नोक आपि की नाभि से ज़रा नीचे, साइड पे उभरे खब
ू सरू त तिल को
चूम रही थी. आपि ने रोना अब बंद कर दिया था लेकिन उनके मुंह से सिसकियाँ अभी भी निकल रही
थीं. मैंने आपि की दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उनके चेहरे से हटा कर आपि की गोद में रख
दिया. मैंने आपि का चेहरा अपने हाथ से उपर किया उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं.

मैंने अपने हाथ से आपि के ऑ ंसू साफ करने शुरू किये तो आपि ने आँखें खोल दीं, मैं उनकी आंसूओ
साफ कर रहा था और आपि बिना पलक झपकाये मेरी ऑ ंखों में दे ख रही थीं. उनकी ऑ ंखों में बहुत तेज़
चमक थी. उस वक़्त पता नहीं क्या था आपि की ऑ ंखों में , मुझे ऐसा महसूस होया की मैं अब हमेशा के
लिए इन ऑ ंखों का ग़ल
ु ाम हो गया हूँ. उनकी ऑ ंखों में दे खते दे खते मेरी ऑ ंख में भी ऑ ंसू आ गये, आपि
ने वैसे ही मेरे सीने से लगे लगे अपना एक हाथ उठाया और मेरे ऑ ंसू साफ करने लगीं. मैंने उस वक़्त
अपने दिल - ओ-दिमाग़ में शदीद मोहब्बत महसूस की अपनी बहन के लिए और बेसख़्तगी में अपना
चेहरा नीचे किया.

पता नहीं किस अहसास के तहत आपि ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मैंने अपने होंठ आपि की
होंठो से मिला दिया. आपि के होंठ बहुत नरम थे. मैंने आपि के उपर वाले होंठ को चूसना शुरू किया तो
मझ
ु े ऐसे लगा जैसे मैं गल
ु ाब की पंखरु ी को चम
ू रहा हूँ. कुछ दे र उपर वाले होंठ को चस
ू ने के बाद मैंने
आपि के नीचे वाले होंठ को अपने मुंह में दबाया तो मेरा उपरी होंठ आपि ने अपने मुंह में ले लिया और
मदहोश सी मेरे उपरी होंठ को चूसने लगीं.

आपि ने अपने जिस्म को मेरे हाथों में बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था. मैंने आपि की दोनों होंठो की दरमियाँ
अपने होंठ रख कर उनके मुंह को थोड़ा सा खोला और आपि की ज़ुबाँ को अपने होठों में खींचने की
कोशिश करने लगा. आपि ने मेरे इरादे को समझते हूवे अपनी ज़ब
ु ाँ को मेरे मंह
ु में दाखिल कर दिया.
आपि की ज़ुबाँ का रस चूसते चूसते ही मैंने अपना हाथ उठाया और आपि के सीने के उभार को नरमी से
थाम लिया और आहिस्ता आहिस्ता दबाने और मसलने लगा. मैंने आपि की चूंचियों को अपनी चुटकी मैं
मसला तो आपि के मंह
ु से " सससससीएएएएएएए " की आवाज़ निकलि और मेरे मंह
ु में गम
ु हो गई.

मैं अपना हाथ आपि के दोनों उभारों पे फेरता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा. आपि की पेट पे हाथ फेरते
हूवे मैंने अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और जैसे ही मेरा हाथ अपनी बहन की टांगों की दरमियाँ
पहुंचा और मैंने उनकी चूत के दाने को छुआ ही था कि उन्होंने एक दम से मचल कर आँखें खोल दीं
और एक झटके से अपने जिस्म को मेरे जिस्म से अलग करते हूवे कहा, " नहीं सागर नाहीई … यये नहीं
होना चाहिए नहीं … नही " और आपि उठीं और अपनी क़मीज़ पेहेनने लगीं. मैंने आपि की कैफ़ियत को
समझते हूवे उनको कुछ कहना मुनसिब नहीं समझा. उनको अपनी इस हरकत पे बहुत गिल्टी फील हो
रहा था. मैं और बिलाल चुप चाप आपि को कपड़े पेहेनते दे खते रहे आपि ने अपने कपड़े पहने और तेज़
क़दमों से चलती रूम से बाहर निकल गयीं. मैं अपने उपर छाये नशे को तोड़ना नहीं चाहता था. आपि के
जिस्म की ख़ुशबू अभी भी मेरी सांसों में बसीं थी और मैं उसे खोना नहीं चाहता था इस लिए बिलाल से
कुछ बोले बिना उसे सोने का इशारा करते हूवे बिस्तर पर लेट गया और अपने लंड को हाथ में पकड़े,
आँखें बंद कर के आपि के साथ हूवे खेल को सोचते हूवे लंड सेहलाने लगा. जल्दी ही मेरे लंड ने पानी
छोड़ दिया और मुझ में इतनी हिम्मत भी नहीं थी की मैं अपनी सफाई कर सकता. उसी तरह लेटे लेटे ही
मैं नींद की वादियों मैं खो गया.

****

सु बह जब मेरी ऑ ंख खल
ु ी तो 9 बज रहे थे. बिलाल और ऐनी के स्कूल स्टार्ट हो चक
ु े थे. मैं फ्रेश हो कर
नीचे पहुंचा तो अम्मी टीवी लाउन्ज में ही बैठी थीं, मैंने उन्हें सलाम किया और आपि का पुछा तो अम्मी
बोली, " बेटा रूबी यूनिवर्सिटी गई है और तुम्हारे छोटे भाई बहन अपने स्कूल गए है , तुम आज कॉलेज
क्यों नहीं गए हो, अपनी पढ़ाई का भी कुछ ख्याल करो … " अम्मी ने हमेशा की तरह सब का ही बता
दिया और मुझे भी लेक्चर पीलाने लगीं.

वो ज़रा साँस लेने को रूकीं तो मैं बोला, " अम्मी नाश्ता तो दे दे ना मैंने आज कॉलेज लेट जाना था इस
लिए दे र से ही उठा हूँ. " अम्मी बोलते बोलते ही किचन मैं गयीं और पहले से तैयार रखे नाश्ते की ट्रे
उठाये बाहर आ गयीं. मैंने भी नाश्ता किया और कॉलेज चला गया. दिन में जब मैं कॉलेज से वापस आया
तो बिलाल और ऐनी नानी के घर जाने को तैयार थे और अम्मी उनको कुछ सामान दे ते हूवे नसीहतें कर
रही थीं.

" सीधे नानी के घर ही जाना, कोई आइस क्रीम वइस क्रीम के चक्कर में मत पड़ जाना. सन
ु रहे हो ना मैं
क्या कह रही हूँ … वग़ैरा वग़ैरा … " बिलाल, ऐनी को भेजने के बाद अम्मी वहां ही सोफ़े पे बैठ गयीं और
टीवी पे मसाला ( क्योकिं ग ) चैनल दे खने लगीं, मैंने अम्मी को कहा " अम्मी बहुत भूक लगी है खाना तो
दे दे " अम्मी ने टीवी पे ही नज़र जमाये हूवे कहा, " रूबी किचन में ही है , उससे कहो … दे दे गी"

आपि का ज़िकर सुनते ही लंड ने सलामी की तोर पे झटका खाया और मैं किचन की तरफ बढ़ा ही था
कि किचन के दरवाज़े पे आपि खड़ी नज़र आ गयीं. वो बाहर ही आ रही थीं लेकिन अम्मी की बात सुन
कर वहां ही रुक गयीं और मेरी तरफ दे ख कर कुछ शर्म और कुछ झिझक के अंदाज़ में मुस्कुरा दीं.
उन्होंने हमेशा की तरह सर पे स्कार्फ़ बांधे हुआ था और चादर की बजाय बड़ा सा कॉटन का दप
ु ट्टा सीने
पे फैला रखा था. मैंने आपि को दे ख कर सलाम किया और नार्मल अंदाज़ में कहा, " आपि खाना दे दे
बहुत सख्त भूक लगी है ."

" तुम हाथ मुंह धोकर टे बल पे बैठो मैं खाना ले के आती हूँ." आपि ने किचन में वापस घुसते हूवे जवाब
दिया. मैं हाथ मुंह धोते हूवे ये ही सोच रहा था कि कल रात जो आपि को बहुत गिल्टी फीलिंग हो रही
थीं शायद अब वो कम पड़ गई है . मैं ज़रा फ्रेश हो कर टे बल पे बैठ ही रहा था कि आपि ट्रे उठाये किचन
से निकलीं और मेरे सामने खाना रख कर सोफ़े पर अम्मी के पास ही बैठ गयीं. मैं खाना खाने लगा और
अम्मी और आपि आपस मैं बातें करने लगीं. मैं खाना खाते खाते नज़र उठाकर आपि के सीने के उभारों
दे ख लेता था. आपि ने मेरी नज़रों को महसूस कर लिया था. अब जब मैंने नज़र उठाई तो आपि ने भी
उसी वक़्त मेरी तरफ दे खा और गुस्सीली शकल बना कर ऑ ंखों से अम्मी की तरफ इशारा किया जैसे
कह रही हो की " दिमाग़ ठिकाने पे नहीं है क्या? अम्मी दे ख लेंगी …"

आपि के इशारे को समझते हूवे मैंने एक नज़र अम्मी पे डाली ( वो टीवी दे खने में ही बिजी थीं ) और
फिर आपि को दे खते हूवे अपने हाथ पे किस की और किस को आपि की तरफ फैं क दिया. आपि के चेहरे
पे बेसख्ता ही मुस्कराहट आ गई और उन्होंने अम्मी से नज़र बच्चा कर मेरी किस को कॅच किया और
अपने हाथ को अपने होंठो से लगा लिया. मेरे चेहरे पे भी मुस्कराहट फैल गई. आपि ने फिर ऑ ंखों से
खाने की तरफ इशारा किया और दब
ु ारा अम्मी से बातें करने लगीं.

मैंने खाना ख़तम किया ही था की अम्मी ने आपि को हुकुम दिया, " रूबी जाओ भाई ने खाना खा लिया है
बर्तन अभी ही धो दे ना. ऐसे ही ना रख दे ना बू आने लगती है "

" अम्मी मैंने पहले कभी छोड़े है जो आज ऐसे ही रखंग


ू ी … आप भी ना " आपि ने नाराज़गी दिखाते हूवे
अम्मी को कहा और मेरे पास आ कर बर्तन उठाने लगीं. मैंने अम्मी की तरफ दे खा वो टीवी में मगन थीं,
मैंने उनसे नज़र बचते हूवे आपि की सीने की उभार की तरफ हाथ बढ़ाया और उनकी चूंचियों पे चुटकी
काट ली आपि के मंह
ु से तेज़ आवाज़ में " आएएएएएएएएएए " की आवाज़ निकलि.

" क्या हुआ " अम्मी ने हमारी तरफ रुख मोड़ते हूवे कहा. मुझे अंदाज़ा था की आपि इस सिचुएशन से
घबरा जायेंगी इस लिए मैंने फ़ौरन ही बोल दिया, " अम्मी आपि की फैशन भी तो नहीं ख़तम होती ना,
इतने बड़े नाख़ून रखती ही क्यों है की बर्तन में उलझ कर तक़लीफ़ दे ने लगे " अम्मी ने मेरी बात सुनि
और वापस टीवी की तरफ ध्यान दे ते हूवे आपि को लेक्चर दे ना शुरू कर दिया. आपि ने मेरी तरफ दे खा
और मझ
ु े थप्पड़ दिखाते हूवे बर्तन उठाये और किचन में जाने लगी और मैं आपि की कुल्हों पे नज़र
जमाये कुछ लम्हों पहले की अपनी हरकत पे खुद ही मुस्कुराने लगा.

" आपि एक गिलास पानी तो ला दो " कुछ दे र बाद मैंने ज़रा ऊंची आवाज़ में कहा तो आपि ने किचन से
ही जवाब दिया, " खुद आकर ले लो मेरे हाथों पे साबून लगा है . " मैं उठा और पानी के लिए किचन की
दरवाज़े पे पहुंचा तो आपि सामने वाश बेसिन पे खड़ी गंदे बर्तन धो रही थीं. उनके दोनों हाथ साबन
ू से
भरे थे. मैं अंदर दाखिल हुआ और आपि को पीछे से जकड़ते हूवे हाथ आगे करके आपि के खूबसूरत
उभारों को अपने हाथ में पकड़ा और कहा, " क्या हाल है मेरी सोहनी बेहना जी. " आपि मेरी इस हरकत पे
मचल उठीं और मेरे सीने पे अपनी कोहनियों से दबाव दे ते हूवे मुझे पीछे हटाने की कोशिश की और दबी
आवाज़ में बोली, " सागर!! कमीने ना करो! अम्मी बाहर ही बैठी है . कुछ तो हया करो, छोड़ो मुझे! " मैंने
आपि की गर्दन पे अपने होंठ रखे और आँखें बंद कर के एक तेज़ साँस लेते हूवे आपि के जिस्म की
ख़ुशबू को अपने अंदर उतारा और कहा, " मेरी बेहना जी, तुम्हारे जिस्म के हर हिस्से की ही ख़ुशबू होश से
बेगाना कर दे ती है . ”

" सागर छोड़ो मुझे … अम्मी अंदर आ जायेंगी प्लीज कुछ ग़ैरत खोओ " आपि ने ड़री हूई आवाज़ में कहा
और अपने जिस्म को मेरी गिरफ्त से आज़ाद करने की कोशिश करने लगी.

मैंने आपि की दांए उभार को अपने सीधे हाथ से ज़रा ज़ोर से दबाया और अपना हाथ नीचे ले जाते हूवे
कहा, " अम्मी बिहारी कबाब मक
ु म्मल तैयार करवा के ही टीवी से हटें गी. आप अपना काम करती रहो ना.
मैं अपना काम करता हूँ"

मेरा लंड अब खड़ा हो चुका था और मेरा हाथ आपि की टांगों की दरमियाँ पहुंच गया था. जैसे ही मेरा
हाथ आपि की टांगों की बीच टच हुआ तो वो बेसख्ता ही आगे को झुकी. उनके साथ ही मैं भी थोड़ा झुका
तो मेरा खड़ा लंड आपि की कुल्हों की दरार में फिट हो गया. " उफ्फफ्फ्फ़ सागर छोड़ो मुझे वरना मैं
साबन
ू से भरे हाथ तम्
ु हारे कपड़ों से लगा दं ग
ू ी " आपि ने मसनई
ू गस्
ु से से कहा लेकिन अपनी पोजीशन
तबदील नहीं की.

" लगा दे . फिर अम्मी को जवाब भी आप खुद ही दे ना. पहले तो मैंने बचा लिया था. " मैंने आपि की टांगों
की बीच रखे अपने हाथ को सलवार के उपर से ही उनकी चूत के दाने पे रगड़ते हूवे कहा. आपि ने
मचलना बंद कर दिया था शायद वो चंद लम्हों के लिए ही उस सुरूर को खोना नहीं चाहती थीं जो मेरे
हाथ से उन्हें मिल रहा था. उन्होंने उतकते और फंसी फंसी आवाज़ में हल्का सा मज़ा लेते हूवे कहा "
आआह्ह्ह्ह … तो … कमीं …गी भी तो तुम … हरी ही थी ना. ना करते उलटी हर … काट"

मैंने आपि की कुल्हों में अपने लंड को ज़रा और दबाया तो उन्होंने मेरे लंड की दबाव से बचने के लिए
अपने कुल्हों को दांए बांए हरकत दी. तो उसका असर उलटा ही हुआ और मेरा लंड आपि की कुल्हों की
दरार में मक
ु म्मल फिट हो गया, मैंने आहिस्ता आहिस्ता झटकों से अपने लंड को उनकी लकीर की
दरमियाँ रगड़ाते हूवे अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और आपि की चूत की फांकों पे अपनी उं गली
को दबाया तो फ़ौरन आपि मछली की तरह तड़पी और ज़रा ताक़त से मुझे पीछे धक्का दे ते हूवे मेरी
गिरफ्त से निकल गयीं.
मैं आपि की धक्के की वजह से पीछे रखे रे फ्रीजिरे टर से टकराया और उसके उपर रखे बर्तन छनके के
साथ ज़मीं पे गिरे .

" अब क्या तोड़ दिया है ई. " अम्मी ने बाहर से चिल्ला कर पुछा तो फ़ौरन ही आपि ने भी ऊंची आवाज़ में
ही जवाब दिया, " कुछ नहीं टुटा अम्मी. बर्तन धो कर शेल्फ पे रखे थे फिसल कर गिर पड़े है " आपि ने
अपनी बात ख़तम की और दोनों हाथ अपनी कमर पे रखकर गुस्से से मुझे दे खने लगी. आपि को ऐसे
दे ख कर मुझे हं सी आ गई. मुझे हं सता दे ख कर वो मेरी तरफ बढ़ी, मेरे दोनों बाजूओं को पकड़ा और मेरा
रुख दरवाज़े की तरफ घम
ु ा दिया. मेरी पीठ पे अपने दोनों हाथ रखे और धक्का दे ते हूवे किचन के दरवाज़े
पे लाकर छोड़ा और मुझे गुस्से से उं गली दिखाते हूवे वापस अंदर चली गयीं. मैंने अम्मी को दे खा तो
उनका ध्यान मुकम्मल तोर पे टीवी पे ही था. मैं कुछ सेकंड ऐसे ही रुका और फिर आहिस्तगी से दब
ु ारा
किचन में दाखिल हुआ. आपि को मेरे फिर अंदर आने का पता नहीं चला था. मैं दबे क़दमों उनकी पीछे
जा कर खड़ा हुआ ही था की आपि ने महसूस किया की पीछे कोई है . जैसे ही आपि ने गर्दन मोड़ कर
पीछे दे खा. मैंने आपि के चेहरे को दोनों हाथों में मज़बूती से थामा और अपने होंठ आपि की होंठ पे रख
दिया. मैंने एक खुब ज़ोरदार किस की और आपि को छोड़कर भागता हुआ बाहर निकल आया.

मैंने पीछे मुड़ कर आपि को नहीं दे खा लेकिन मेरी ख्याली नज़र दे ख रही थी की मेरे निकलते ही आपि
कुछ दे र तक अपनी कमर पे हाथ रखकर खड़ी रहीं और फिर गर्दन को दांए बांए नहीं की अंदाज़ में
हरकत दे ते हूवे मुस्कुरा दीं और हया की लाली ने उनके गालों को सुर्ख कर दिया था.

मैं बाहर आ कर अम्मी के पास ही सोफ़े बैठ कर टीवी दे खने लगा. कुछ ही दे र में बोर होते हूवे मैंने
अम्मी के हाथ से रिमोट खिंचता और हसते हूवे कहा, " अम्मी बेहरी कबाब अब प्रोडूसर हज़म भी कर
चुका होगा और इस आंटी ने अभी कुछ और बनाना शुरू कर दे ना है . आप का ये मसाला चैनल तो 24 घंटे
ही चलता है . आप सब आज ही दे ख लेंगी तो कल क्या करें गी. छोड़े अब " अम्मी ने सस्
ु ती से एक जम्हाई
ली और कहा " तो तुम और तुम्हारे बाबा ही हो ना जिनको चटोरी चीज़ें पसंद है . तुम्हारे लिए ही दे ख रही
थी " अम्मी ने ये कहा और उठ़ कर अपने रूम में जाने लगी ( की दिन में सोने की उनकी पाकी आदत
थी )

अम्मी के जाने के बाद मैं कुछ दे र तक वैसे ही चैनल चें ज करता रहा और मुझे पता ही नहीं चला कब
आपि मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गयीं.

आपि ने अपने दोनों हाथों से मेरे सर की बालों को पकड़ा और खींचने लगी.


" उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ आपिईईई दर्द हो रहा है छोड़ो ना बालों को " मैंने तक़लीफ़ ज़दा आवाज़ में कहा तो
आपि ने हल्का सा झटका मारा और बोली, " जल्दी से मुझसे माफ़ी मांगो वरना मैं बालों को नहीं छोड़ूग
ं ी.
" मैंने अपने दोनों हाथ उठाये और आपि के हाथ ( जिनसे उन्होंने मेरे बालों को जकड़ा हुआ था ) को
कलाईओं से पकड़ लिया और कराहते हूवे कहा, " अच्छा अच्छा मैं माफ़ी माँगता हूँ. अब छोड़िए बाल."

" नहीं ऐसे नहीं … बोलो आपि जान … मैं … आईन्दा … ऐसा … नहीं … करूं …गा " आपि ने ठहर ठहर के
ये लफ़्ज़ अदा किये.

आपि की बात ख़तम होने पर मैंने उसी अंदाज़ में दोहराया, " आपि जान मैं आईन्दा ऐसा नहीं करूंगा"

आपि मेरे सर के बालों को एक झटका और दे ते हूवे बोली, " प्लीज … प्यारी … आपि … जीए … मुझे …
माफ् … कर … दे "

" सोहणी बेहना जी प्लीज … मुझे माफ् कर दे " मैंने यह कहा तो आपि ने अपनी गिरफ्त ज़रा लूज कर
दी और वैसे ही मेरे बालों को जकड़े जकड़े ही सोफ़े की साइड से घूमते हूवे सामने आ गयीं. गिरफ्त ढीली
पड़ने पे मैंने भी आपि की कलाईओं को छोड़ दिया, " शाबाश! अब तम
ु अच्छे बच्चे बने हो ना " आपि ने
ये कहते हूवे मेरे बाल छोड़े और हसते हूवे सोफ़े पे बैठने के लिए जैसे ही उन्होंने पीठ मेरी तरफ की. मैंने
खड़े होते हूवे आपि को पीछे से जकड़ा और उन्हें अपनी गोद में लेता हुआ ही सोफ़े पे बैठ गया " आपि
ने जैसे ही महसस
ू किया था की मैं उनको जकड़ने लगा हूँ तो आपि ने अपने दोनों हाथ कोहनियों से बेंड
करके अपनी गर्दन पे रख लिए थे. आपि ने मेरी गोद में गिरते ही अपने जिस्म को सिकूड़ लिया था और
अपने दोनों बाजूओं में सीने की उभारों को छुपा लिया था.

मैंने आपि को अपने बाजूओं में भींचते हूवे कहा, " बोलो बसंती अब तुम्हें कौन बचाईयेगाआआ " और सर
झुका कर आपि के गाल चुमने की कोशिश करने लगा. आपि बेतहाशा हं स रही थीं. उन्होंने अपनी टाँगें उठा
कर सोफ़े पे सीधी कर दीं और थोड़ा नीचे खिसकते हूवे अपना चेहरा मेरे सीने में पेवस्त कर दिया और
हसते हूवे अपने गाल मुझसे बचाने लगी. आपि की कांधों का पिछला हिस्सा मेरे दांए बाज़ू पे था जो मैंने
अपनी दांए राण पे टिका रखा था और मैंने अपनी दांए बाज़ू आपि के उपर से पेट पर रख उनकी बगल
में हाथ ले जा कर गद
ु गद
ु ी करने लगा. आपि की कमर मेरी दांए राण पे टीकी थी. आपि की कुल्हे सोफ़े पे
ही थे और उन्होंने अपने घुटनों को बेंड किये पांव भी सोफ़े पे ही रखे हूवे थे. वो मेरी गोद में तक़री बन
लेटी ही हूई थीं. मैं आपि को गुदगुदी करते हूवे चेहरा नीचे किये उनके गाल चुमने की कोशिश कर रहा
था और आपि के जिस्म पे मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी.
आपि ने अपनी दांए टांग सीधी कर दी और बांये टांग को उसी तरह बेंड हालत में दांए टांग पे लेटते हूवे
करवट ले ली अब आपि का चेहरा मुझे बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा क्योंकी आपि के गाल मेरे पेट से
टकरा रहे थे.

उन्होंने बेतहाशा हसते हूवे घट


ु ी घट
ु ी आवाज़ में कहा, " सागर छोड़ो मझ
ु े बैठने दो वरना …"

" वरना क्या …??? " मैंने भी हसते हूवे ही पुछा, " वरना … ये … " ये कह कर आपि ने अपने दांतों को मेरे
पेट में गढ़ दिया और काटने लगीं.

" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अच्छा अच्छा छोड़ता हूँ छोड़ता हूऊँ " ये कह कर मैंने फ़ौरन अपने हाथ आपि के जिस्म
से अलग करके हवा में उपर उठा लिए. आपि ने ज़ोर से काटा और फिर हसते हूवे चेहरा उपर उठा दिया
लेकिन वो उठी नहीं और उसी तरह आधि सोफ़े पे और आधि मेरी गोद में लेटी अपने जिस्म को ढीला
छोड़ दिया और अपनी हं सी पे क़ाबू पाने लगी. हसते हसते आपि की ऑ ंखों में नमी आ गई थी और
ऑ ंखों से पानी बेह कर खबसूरत गुलाबी गालों को तर कर रहा था. मैंने भी हसते हूवे अपनी गर्दन को
सोफ़े की पुष्ट से टिकाये और सीधे हाथ आपि की बालों में फेरते हूवे दांए हाथ को आपि की पेट पे रख
दिया. चंद लम्हे ऐसे ही अपनी हं सी को रोकते और लम्बी लम्बी साँसें लेट गुज़र गए … मैंने अपना सर
उठाया और आपि की तरफ दे खा. उनका चेहरा बहुत खिल रहा था और गाल ऑ ंखों से बेह्ते पानी से तर
थे. आपि भी अपनी हं सी पे क़ाबू पा चुकी थीं उन्होंने भी मेरी तरफ दे खा और हम कुछ सेकण्ड्स एक
दस
ू रे की ऑ ंखों में दे खते रहे . आपि की नज़र से नज़र मिलाये हूवे ही मैंने अपना हाथ आपि की पेट से
उठाया और उनके गालों को साफ करने लगा. अब आपि एक दम सीरियस नज़र आने लगी थीं. आपि ने
भी अपने दांए हाथ को उठाया और मेरे दांए गाल को अपनी हथेली में भर लिया और मेरी नज़रों से
नज़रें मिलाये ही बहुत संजीदा लेहजेमें बोलीं.

" सागर हम दोनों जो ये सब कर रहै है , तुम्हारे ख्याल में ये सब सही है ? " आपि की बात सुन कर मेरे
चेहरे पे भी संजीदगी तरी हूई थी. मैंने भी आपि की बालों में हाथ फेरते फेरते ही जवाब दिया, " आपि क्या
सही है क्या ग़लत है ये मैं भी नहीं जानता. मैं बस इतना जानता हूँ की ये जो लड़की मेरी गोद में लेटी
है मझ
ु े इस से शदीद मोहब्बत है . बस …"

" लेकिन सागर हम सगे बहन भाई है . हम ये सब नहीं कर सकते " आपि के संजीदा लेहजे में कोई फ़र्क़
नहीं आया था.

मैंने कहा, " आपि ठीक है की आप मेरी बहन हो … लेकिन मेरी बहन होने के साथ साथ दनि
ु यां की हसीं
तरीन लड़की भी हो. मैंने आज तक आप से ज़्यादा हुस्न नहीं दे खा"
" सागर ये कोई मज़ाक़ नहीं है . ये सब करने की इजाज़त ना ही हमारा मज़हब दे ता है और ना ही हमारा
ये ताल्लुक़ हमारा मुआशरा क़ुबूल करे गा " आपि ने ये कहा और अपने पेट पे रखे मेरे हाथ को उठाया
और उसकी पुष्ट को चूम लिया. मैंने अपने हाथ को आपि की हाथ से छुड़ा कर वापस उनकी पेट पे रखते
हूवे अपने सर को झटका और झझ
ुं लाहट से ज़िद्दी लेहजे में कहा, " आपि मैं कुछ नहीं सोचना चाहता. बस
मैं ये जानता हूँ की मुझे आप से शदीद मोहब्बत है और मैं अब आपके बिना नहीं रह सकता"

आपि ने जवाब में कुछ नहीं कहा और मेरे गाल से हाथ हटा कर मेरे बालों को सँवारने लगीं जो उन्होंने
ही ख़राब किये थे. मैं भी खामोश ही रहा और बस आपि की ऑ ंखों में दे खता रहा. कुछ दे र बाद आपि ने
कहा, " सागर मझ
ु े भी ये ही मेहसुस होता है की मैं भी अब हमेशा तुम्हारे ही साथ रहना चाहूँगी. कभी
शादी नहीं करूंगी, लेकिन … " आपि यह कह कर रूकीं तो उनके चेहरे से बेबसि और शदीद मायूसी ज़ाहिर
हो रही थी.

" लेकिन वेकिन कुछ नहीं बस आप भी ज़्यादा मत सोचो और मैं भी. बस सोचना क्या जो भी होगा दे खा
जायेगा. " मैंने ये जम
ु ला कह कर अपने सर को नीचे किया और नरमी से अपने होठों को आपि की होंठो
से लगा दिया. आपि ने अपनी ऑ ंखों को बंद कर लिए और मैंने आपि की उपरी होंठ को अपने होंठो की
दरमियाँ पकड़ा और चूसने लगा. आपि जिस हाथ से मेरे बालों को संवार रही थीं उस हाथ को मेरी गर्दन
पे रखा और मेरे नीचले होंठ को चस
ू ना शरू
ु कर दिया. अचानक मैंने किसी ख्याल की तहत चौंक कर
अपने सर को उठाया तो आपि ने भी अपनी आँखें खोल दीं और सवालिया अंदाज़ से मेरी तरफ़ दे खने
लगी.

" आपि!!! अम्मीी?? " मैं ये कह कर चुप हुआ तो. आपि ने मेरी गर्दन पे रखे अपने हाथ को मेरे सर की
पुष्ट पे ले जाते हूवे कहा " मैंने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था. वो जल्दी नहीं उठें गी. अपनी बात
ख़तम करते ही आपि ने दब
ु ारा आँखें बंद कर लीं और मेरे सर को नीचे की तरफ दबाते हूवे मेरे नीचले
होंठ को अपने होंठो में दबा लिया और अपनी ज़ुबाँ मेरे मुंह में दाखिल कर दी.

मैंने आपि की ज़ब
ु ाँ को चस
ू ते हूवे अपना हाथ आपि की पेट से उठाया और नरमी से उनकी दांए उभार पे
रख कर उनके उभार को दबाना और सेहलाना शुरू कर दिया. आपि ने मेरे सख्त हाथ को अपने नमो
मुलायम उभार पे महसूस किया और एक आह्ह्ह्हह्ह भरते हूवे मेरे हाथ पे अपना हाथ रख दिया और
मेरे हाथ को हटाने की बजाय अपने हाथ से मेरे हाथ को दबाने लगी. हमारे होंठ एक दस
ू रे के होठों में
पेवस्ता थे कभी आपि मेरी ज़ुबाँ चूसने लगतीं तो कभी मैं उनकी ज़ुबाँ को चूसता.

कुछ दे र बाद मैंने अपने होंठ आपि के होठों से अलग किये और कहा, " आपि हमने पहले कभी ऐसे
अम्मी का दरवाज़ा बाहर से लॉक नहीं किया. वो उठ़ गयीं तो कहीं उनकी ज़हन में ऐसे ही कोई शक़ ना
पैदा हो जाये " आपि की आँखें बंद थीं और उन्होंने झुंझलाहट में लरज़ती आवाज़ से कहा, " कुछ नहीं होता
सागर!!! आवो ना प्लीज … " और मेरे सर को वापस नीचे दबाने लगी. मैंने अपने सर को उठा कर नीचे
होने से रोका और कहा, " चलो ना आपि मेरे रूम में चलते है , दरवाज़ा खोल दे ते है अम्मी का " आपि ने
आँखें खोल दीं उनके चेहरे पे शदीद नागवारी की तास्सुरात थे. उन्होंने दोनों हाथ मेरी गर्दन में डाले और
कहा " क्या है सागर … तुम भी ना … मैं कहीं नहीं जा रही, जाओ तुम ने जहाँ जाना है " मैंने मुस्कुरा कर
आपि को दे खा और कहा, " अच्छा मेरी सोहणी बेहना जी … इतनी छोटी बातों पे नाराज़ थोड़ी ना होते है . "
मैंने बात ख़तम करके आपि की होंठो को चुमने के लिए अपना सर झुकाये तो उन्होंने अपने हाथ से मेरे
चेहरे को रोका और होंठ दस
ू री तरफ करते हूवे नाराज़गी से कहा, " अच्छा जाओ अब खोल दो अम्मी का
दरवाज़ा. " आपि ये कह कर मेरी गोद से उठने लगी तो मैंने उनको वापस गोद में दबाते हूवे कहा, " मैं
अपनी जान से प्यारी बेहना को खुद ही साथ ले जाता हूँ " ये कह कर मैंने अपना दांए बाज़ू आपि की
शोल्डर्स के नीचे रखा और दांए बाज़ू को उनकी कुल्हों के नीचे से गुज़र कर उनकी राण को मज़बूती से
थाम लिया और खड़ा हो गया.

" सागरररररर " आपि ने अचानक लगने वाले झटके की वजह से मुझे पुकारा और फिर मेरी गर्दन में
दोनों हाथ डाल कर मझ
ु े मोहब्बत भरी नज़रों से दे खति मस्
ु कुराने लगी. मैंने आपि को गोद में उठाये
उठाये ही जा कर अम्मी का दरवाज़ा अनलॉक किया और सरगोशी में आपि से पुछा, " बेहना जी कहाँ
चले?? आपकी रूम में या उपर हमारे रूम में ?"

आपि ने सोचने की एक्टिं ग करते हूवे की " उम्मम्मम ऐसा करो बाहर रोड पे ले चलो " और दबी आवाज़
में हसने लगी.

" मेरा बस चले तो मैं तो आप को 7 परदों में छुपा दं ू और मेरे अलावा आप को कोई दे ख भी ना सके. " मैं
ये कह कर आपि की रूम की तरफ चल दिया तो आपि बोली, " नहीं सागर यहाँ नहीं. उपर ही ले चलो
मुझे अपने रूम में . अम्मी अगर उठ़ भी गयीं तो उपर नहीं आ सकेंगी और ऐनी, बिलाल तो लेट ही वापस
आयेंगे " मैंने आपि की इस बात पर मुस्कुराकर उन्हें दे खा. तो उन्होंने शर्मा कर अपना चेहरा मेरे सीने मैं
छुपा लिया और मैं उपर अपने कमरे की तरफ जाते हूवे आपि को भी छे ड़ने लगा

" अच्छाआ आज तो मेरी बेहना जी खुद कह रही है की उन्हें अपने रूम में ले जाऊं … ह्म्म ्."

आपि ने मेरी तरफ दे खा और शर्म से लाल चेहरा लिए बोली, " बकवास मत करो. वरना मैं यहाँ ही उतर
जाऊंगी। " मैं आपि को दे खकर हसने लगा लेकिन बोला कुछ नहीं. मैं रूम में दाखिल हुआ तो दरवाज़ा बंद
किये बगैर ही आपि को लेकर बिस्तर के क़रीब पहुंच गया. मैं आपि को बिस्तर पे लिटाने लगा तो उनकी
वज़न और आपि का हाथ मेरी गर्दन में होने की वजह से खुद भी उनके उपर ही गिर गया. आपि ने प्यार
से मेरे बालों में हाथ फेरा और कहा, " उठ़ो दरवाज़े को लॉक कर दो. " और मेरी गर्दन से हाथ निकल दिये.

मैं ने दरवाज़ा लॉक किया और वापस आते हूवे अपनी क़मीज़ भी उतार दी. आपि बिस्तर पे बेसुध सी लेटी
छत को दे खते कुछ सोच रही थी. मैं चंद लम्हे उन्हें दे खता रहा. फिर मैंने आपि की दोनों हाथ पकड़ कर
खींचे और उन्हें बिठा कर पीछे हाथ किये और आपि की क़मीज़ को खींच कर उनके कुल्हों के नीचे से
निकाल दिया. मैं अपने हाथों में आपि की क़मीज़ का दामन आगे और पीछे से पकड़े उनकी क़मीज़
उतारने के लिए उपर उठाने लगा तो आपि ने अपने हाथ मेरे हाथ पे रखा और फ़िक्र मन्द लेहजे में कहा,
" सागरररर … ये सब ग़लत है अभी भी रुक जाओ."

" आपि प्लीसीईए … अब कुछ मत सोचो बस जो हो रहा है होने दो. " मैंने ये कह कर आपि की ऑ ंखों में
दे खा. तो उन्होंने एक " आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " भरी और मेरे हाथ से अपना हाथ उठा दिया. मैंने आपि की क़मीज़
को गर्दन तक उठाया तो आपि ने भी मेरी मदद करते हूवे अपनी क़मीज़ को अपने जिस्म से अलग कर
दिया. आपि ने आज भी काली लेसी ब्रा ही पहन रखी थी.

क़मीज़ उउतारनेके बाद मैं दब


ु ारा अपने हाथ सामने से घूमता हुआ आपि की पीठ पे ले गया और उनकी
ब्रा का हुक खोलने लगा तो आपि ने अपने दोनों हाथों से ब्रा को सीने के उभारों पे ही थाम लिया. मैंने
हुक खोला तो आपि ने अपने बाज़ू से ब्रा को अपने मम्मों पे ही रखते हूवे ब्रा की पट्टियां अपने हाथों से
निकल दीं और इसी तरह ब्रा को थामे हूवे लेट गयीं. मैंने आपि के सीने से ब्रा हटाना चाहा तो उन्होंने
अपने सर को नहीं की अंदाज़ा में दांए बांए जंबि
ु श दी और अपनी बाहें फैलाते हूवे मझ
ु े गले लगाने का
इशारा किया. अब मेरे और आपि के जिस्म पे सिर्फ हमारी सलवारें ही मौजूद थीं और आपि के सीने की
उभारों पे उनका ब्रा अनलॉक्ड रखा हुआ था. मैं ने अपने दोनों घुटने आपि की टांगों की इर्द गिर्द टिकाये
और उनकी सीने की उभारों पर अपना सीना रखते हूवे आपि के उपर लेट गया. मेरे लेटते ही आपि ने
मेरी कमर को अपने बाजूओं से कसा और मेरे होंठो से अपने होंठ चिपका दिया. कभी आपि मेरे होंठ
चूसने लगती थीं तो कभी मैं. कभी मैं आपि की ज़ुबाँ चूसता तो कभी आपि मेरी ज़ुबाँ का रस चूसने
लगतीं. मैं आपि के चेहरे को अपने हाथों में थामे 10 मिनट तक किस करता रहा. फिर आपि ने अपने होंठ
मेरे होंठो से अलग किये और नशीली आवाज़ मैं कहा, " सागर थोड़ा उपर उठ़ो " मैंने उपर उठने के लिए
अपने सीने को उठाया ही था की आपि ने अपना दांए हाथ मेरी कमर से हटाया और अपने सीने पे रखे
ब्रा को हम दोनों की दरमियाँ से खींचते हूवे दांए हाथ से मेरी कमर को वापस अपने जिस्म के साथ दबा
दिया …
जैसे ही आपि की सख्त हूवे चूंचियों मेरे बालों भरे सीने से टकराई तो मेरे जिस्म में एक बिजली सी
कौंध गयी और आपि के जिस्म में भी मज़े की लेहर उठी और उनके मुंह से एक सिसकती "
आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " निकलि. ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार थी की मैं किसी लड़की की मम्मों को अपने सीने
से चिपके महसूस कर रहा था. मैं अपने हवस खोता जा रहा था और मेरे साथ साथ आपि की दिल की
धड़कन भी बहुत तेज़ हो गई थी और धड़कन की आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी. मैंने एक बार फिर
आपि की होंठो को चम
ू ा और फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिया. मैंने पहले आपि की गर्दन की
एक, एक मिलिमीटर को चूमा और फिर अपनी ज़ुबाँ निकली और आपि की गर्दन को चाटने लगा. मेरी
ज़ुबाँ ने आपि की गर्दन को छुआ तो उन्होंने एक झरु झरु ी सी ली और मेरी कमर पर उपर से नीचे और
नीचे से उपर तेजी से हाथ फेरने के साथ साथ अपने सीने को दांए बांए हरकत दे ते हूवे अपने चंचि
ू यां मेरे
सीने से रगड़ने लगी.

आपि ने अपनी आँखें मज़बूती से भींच रखी थीं और चेहरे का गुलाबी पन सर्खी
ु में तबदील हो गया था.

मेरा लंड अपने परू े जोश में आ चक


ु ा था और आपि की राणों की दरमियाँ दबा हुआ था. मैंने आपि की
गर्दन को सामने से और दोनों ओर से मुकम्मल तोर पर चाटा और अपने घुटनों पर वज़न दे ता हुआ
अपने लंड को आपि की राणों से थोड़ा उठा लिया और अपना सीना भी आपि की सीने से उठाते हूवे गर्दन
से नीचे आने लगा. मैंने नीचे की तरफ ज़ोर दिया तो आपि ने अपने हाथों की गिरफ्त भी ढ़ीली कर दी
और एक हाथ से मेरी कमर सेहलाते हूवे दस
ू रा हाथ मेरे सर पे फेरने लगी. मैं गर्दन से होता हुआ आपि
की कांधों दांए कंधे पे आया और अपनी ज़ुबाँ से चाटते आपि की बाज़ू, हाथ और फिर हाथ की उं गलियों
तक पहुंच गया. एक, एक उं गली को मुकम्मल चूसने के बाद में बाज़ू की नीचले हिस्से को चाटता आपि
की बगल में आ रुका. आपि की बग़लें बालों से बिल्कुल पाक थी. वो कभी फालतू बालों को बढ़ने नहीं दे ती
थीं. आपि की दांए बगल को को मुकम्मल चाटते और चुमते हूवे मैं कांधों से होता दस
ू रे हाथ तक पहुंचा
और उससे तरह वापस उनके सीने की उपरी हिस्से तक आ गया.

आपि के सीने की उपरी हिस्से को चाटने के बाद मैंने अपना रुख उनकी सीने की दांए उभार की तरफ
किया और अपनी बहन की मम्मों की गोलाई पर ज़ब
ु ाँ फेरने लगा. मैं बारी बारी आपि की दोनों मम्मों को
चाटता और चूमता रहा लेकिन उनके सीने की उभारों की गुलाबी सर्कि ल ( एरोला ) और भूरे गुलाबी
खूबसूरत चूंचि को अपनी ज़ुबाँ नहीं टच की, मैं जब अपनी ज़ुबाँ से उनकी उभार को चाटते हूवे गुलाबी
एरोला के पास पहुंचता तो उसे टच किये बगैर ही सिर्फ गोलाई पे ज़ुबाँ फेरने लगता. मेरी इस हरकत पर
आपि मचल सी जाती. जब मैंने 4, 5 बार ऐसा किया तो उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और इस बार जब
फिर मैं ज़ुबाँ वहां पे टच किये बगैर हटने लगा तो आपि ने गुस्सीली सी आवाज़ में सिसकारी भरी और
अपने दोनों हाथों से मेरे सर की पुष्ट से बालों और गर्दन को पकड़ कर मेरा मुंह अपनी चूंचियों की तरफ
दबाने लगी … मेरे चेहरे पे शैतानी मुस्कराहट फैल गई. … मैं जान गया था की अब आपि मज़े और
लज़्ज़त में पूरी तरह डूब गई है . मैंने अपने सर को झुकाये और आपि की दांए चूंचि को अपने मुंह में ले
लिया … वौव्व्व्व्व्व, आपि की चूंचि को मुंह में लेते ही. मेरा लंड फनफना उठा और मैं पागलों की तरह
बारी बारी दोनों मम्मों को चूसने लगा. आपि के जिस्म में भी खिंचाव पैदा होना शुरू हो गया था और वो
भी बुरी तरह मचलने लगी थीं.

मैं कोशिश करने लगा कर आपि की सीने की उभार को पूरा अपने मुंह मैं भर लूं लेकिन ये मुमकीन नहीं
था की मेरा मंह
ु बहुत छोटा और आपि की मम्मे बहुत बड़े थे. मैंने आपि की उभार को चस
ू ते हूवे उनकी
चूंचि को अपने दांतों मैं पकड़ा और दबाया तो … आपि मज़े और तक़लीफ़ की मिली जुली आवाज़ में
चिल्ला उठीं, " आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … सागररररररररर …… ज़ार … आआ … आआ … राम से … उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़
…"

मैंने आपि के सीने की उभारों को चूसते हूवे ही उनका हाथ पकड़ा और सलवार के उपर से ही अपने लंड
पे रख दिया. आपि ने फ़ौरन ही मेरे लंड को मठ्ठ
ु ी में दबा लिया. आपि को लंड पकड़ा कर मैंने अपना हाथ
उनकी राण पे रखा और सलवार के उपर से ही राण को सेहलाते हूवे अपना हाथ उनकी टांगों की
दरमिआन रख दिया. आपि मेरे हाथ को अपनी चूत पे मेहसुस करते ही उछ़ल पड़ी और बोली, " नहीं सागर
… प्लीज या … हाँ नहीं … टच का … रो " और अपनी टांगों को आपस में दबा लिया. मैंने अपना हाथ
हटाया और तेज़ी से आपि की मम्मों को चूसने और दबाने लगा … कुछ ही दे र में आपि की साँसें बहुत
तेज़ हो गयीं और जिस्म अकड़ना शुरू हो गया तो मैंने दब
ु ारा हाथ उनकी टांगों की दरमियाँ रख दिया.
आपि ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था की मैंने अपने होंठ उनके होठों से लगा दिया और ज़ुबाँ
उनकी मुं ह में डाल दी. इस बार मेरी दो उं गलियां डायरे क्ट उनकी चूत के दाने पे ही टच हो गई थी जिससे
आपि के जिस्म को एक झटका लगा और उन्होंने बेसख्ता अपनी टाँगें थोड़ी खोल दीं.

मैंने आपि की चूत के दाने को सेहलाते हूवे दब


ु ारा उनकी चूंचियों को अपने मुंह में लिया और चूसने लगा.
मैंने अपनी उं गलियां आपि की चूत के दाने से उठायीं और चूत की अंदर दाखिल करने के लिए नीचे
दबाव दिया ही था की आपि फ़ौरन बोली, " सैग … आर रुको ना … ही प्लीज ् … ज ् और उपर … ही रागड़ू
ना … आआ " आपि की साँसें बहुत तेज़ हो गई थीं और जिस्म मुकम्मल तोर पे अकड़ गया था. आपि
मेरे लंड को भी अपनी तरफ खींचने लगीं थी. मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा था की शायद मैं अब कंट्रोल
नहीं कर पाऊंगा और मैंने बहुत तेज़ तेज़ आपि की चूत के दाने को रगड़ना शुरू कर दिया था और उनकी
चूंचियों को चूसने और दांतों से काटने लगा. अचानक ही आपि का जिस्म बिल्कुल अकड़ गया और
उन्होंने अपने कुल्हे बिस्तर से उठा लिए. मेरे लंड पर आपि की गिरफ्त बहुत सख्त हो गई थी वो अपनी
पूरी ताक़त से मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में भिंचने लगी थी और फिर आपि के जिस्म ने 2 शदीद झटके
लिए और उनके मुंह से बहुत लम्बी " आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह निकलि उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया
था. उसी वक़्त मेरे लंड को भी झटका लगा और मेरे लंड का जूस मेरी सलवार को गीला करने लगा.

मेरे हाथ की हरकत रुक गई थी और मैं आपि की सीने की उभार पे ही मुंह रखे निढाल सा लेट गया.
आपि की साँसें आहिस्ता आहिस्ता मामल
ू पे आ रही थीं. काफी दे र तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद आपि ने
मेरे सर पे हाथ फेरना शुरू किया और बोली, " सागररर उठ़ो. मुझे भी उठने दो."

मैं आँखें बंद किये बिल्कुल निढाल पड़ा था. मैंने आपि की बात का जवाब नहीं दिया और मेरे मंह
ु से
सिर्फ एक " ह्ह्ह्हूऊऊणं " निकलि. आपि ने नरमी से मेरे चेहरे को अपने सीने की उभार से उठाया और
मेरे नीचे से निकल गयीं और तकिया उठा कर मेरे चेहरे के नीचे रख दिया. मैं वैसे ही बेतरतीब सी हालत
मैं उल्टा बिस्तर पे पड़ा रहा. मझ
ु े ऐसे लग रहा था जैसे मेरे जिस्म से बिल्कुल जान निकल गई है और
अब मैं कभी उठ़ नहीं पाऊंगा.

" दे खो सागर ऐसा लग रहा है मैंने पेशाब किया है . परू ी सलवार गीली हो रही है " आपि ये बोल कर खुद
ही हसने लगी. मैंने बोझल से अंदाज़ में आँखें खोलकर दे खा तो आपि अपनी टांगों को फैलाए, सलवार को
दोनों हाथों से पकड़ कर दे ख रही थीं. मेरी आवाज़ ना सुन कर आपि ने मेरी तरफ दे खा और खिलखिला
कर हसने लगी, " हालत तो दे खो ज़रा शहज़ादे की … मर्दों
ु की तरह पड़े हो " मैंने कुछ नहीं कहा बस झेंपी
हूई सी हं सी हं स दिया. आपि बिस्तर से उठते हूवे बोली, " सागर तुम लोगों के पास मेरे या ऐनी की कपड़े
तो ज़रूर होंगे. जिनसे तुम मज़े लिया करते थे " और मेरी तरफ से कोई जवाब ना पा कर बाथ रूम की
तरफ चली गयीं. मैंने भी आँखें बंद कर लीं की मैं बहुत कमज़ोरी महसस
ू कर रहा था. आपि बाथरूम से
बाहर आयीं और फिर पुछा, " सागररररर … हमारा कोई सूट पड़ा है या नहीं??? " मैंने आँखें खोलकर दे खा
तो आपि आईने की सामने खड़ी अपने बालों को ब्रश कर रही थीं और अपनी सलवार शायद बाथरूम मैं
ही उतार आयी थीं. मैंने अपनी बहन की नंगे जिस्म पे नज़र मारी तो अपनी किस्मत पे रश्क़ आया की
खुदा ने कितना हसीं और मुकम्मल जिस्म दिया है मेरी बहन को. सीने की उभारों की मुकम्मल गोलाइयाँ,
कुल्हों की खूबसूरत शेप. लम्बी सुडौल टाँगें. भरी भरी राणें, लम्बे स्लिम बाज़ू खूबसूरत हाथ. हत्ता की
जिस्म का हर हिस्सा इतना मक
ु म्मल है की हर हर हिस्से की तारीफ में ग़ज़ल कही जा सकती है …

" मेरी पें ट की पॉकेट में चाबी पड़ी है . अल्मारी में सूट होगा दे ख लें " मैंने नहीफ सी आवाज़ में कहा और
फिर आपि के जिस्म को निहारने लगा. ब्रश करने के बाद आपि ने मेरी पैंट से चाबी निकली और
अलमारी में कोई सूट दे खने लगी और एक सूट उन्हें मिल ही गया लेकिन क़मीज़ अलग और सलवार
अलग थी. लाइट हरी लॉन की क़मीज़ आपि की और वाइट सलवार ऐनी की थी.
" ये कब से यहाँ पड़ी है मैं ढूंड ढूंड की पागल हूवे जा रही थी " आपि ने गुस्सा करते हूवे कहा. मैंने एक
नज़र आपि की हाथ में पकड़ी क़मीज़ को दे खा और कहा, " ये तो बहुत पुरानी यहाँ पड़ी है लेकिन सलवार
तो कल रात को ही बिलाल लाया था कहीं से उठाकर"

आपि ने क़मीज़ पेहनी और सलवार पेहेनने के लिए फैलाई थी की कुछ दे खकर चौंक गयीं … मैंने आपि
के चेहरे की बदलते रं ग दे खे तो पुछा, " अब्ब क्या हो गया आपिई " आपि सलवार ले कर मेरी तरफ आते
हूवे बोलीं " ये दे खो ज़रा … इस ऐनी कामिनी को ज़रा एहसास नहीं है की घर में अब्बू होते है . मामू आते
जाते है . 2 जवान भाई है ऐसी चीज़ें तो घर की औरतें 1000 तेहूँ में छुपा कर रखती है की किसी की नज़र
ना पड़े ”

मैंने आपि की हाथ में पकड़ी सलवार को दे खा तो उसमें 3-4 बड़े बड़े लाल रं ग की धब्बे पड़े थे. पहले तो
मुझे कुछ समझ नहीं आया और जब समझ आया तो मैंने मुस्कुराते हूवे आपि को कहा. " तो क्या हो
गया आपि आप को में सिस नहीं होते क्या, जो इतना गुस्सा हो रही है "

" होते है और मैं एक दिन पहले से ही पॅड लगा लेती हूँ. अगर कभी इत्तिफ़ाक़न सलवार गन्दी हो भी
जाये तो उसी वक़्त धो दे ती हूँ ऐसे शो पीस बनाकर नहीं रखती."

आपि ने बदस्तूर उसी लेहजे मैं कहा और सलवार हाथ से फैं क कर बिलाल की एक पुरानी पें ट पेहेन ली.

" आपि आप पें ट में और ज़्यादा हसीं लग रही हो"

" अपनी हालत तो दे खो, उठा जा नहीं रहा " और फिर मेरी नक़ल उतारते हूवे बोलीं " आपि आप पें ट में
बहुत हसीं लग रही हो " मुझे आपि का ये अंदाज़ बहुत अच्छा लगा और मैं मुस्कुरा दिया. " उठो नवाब
साहब अपनी हालत सही कर लो. मैं नीचे जा रही हूॅं कुछ दे र बाद अम्मी भी उठ़ जायेंगी " आपि ये कह
कर रूम से बाहर निकल गयीं और मैं वैसे ही आधा नंगा उल्टा पड़ा रहा कमज़ोरी की वजह से मुझे नींद
भी आने लगी थी.

" सागर उठ़ो .... सागरररर … उठ़ो ये दध


ू पे लो और चें ज करो शाबाश जल्दी से उठ़ जाओ " मेरी नींद टूटी
और आँखें खुलीं तो आपि मझ
ु े काँधे से पकड़ कर हिला डुला रही थी और उन्होंने दध
ू का गिलास पकड़ा
हुआ था … और वो अपने असली हुलिया यानि स्कार्फ़ और चद्दर पे वापस आ चक
ु ी थीं. मैं फिर से आँखें
बंद करते हूवे शरारत से बोला, " अब कभी गिलास से नहीं पिऊंगा. आपि डायरे क्ट ही पीला दिया करो ना
" आपि ने हसते हूवे तंजीए लेहजे में कहा, " अपनी हालत तो दे खो ज़रा …! डायरे क्ट पीला दिया करूंनन!!
… डायरे क्ट पीने का शोक़ है लेकिन अपने आप सँभाला नहीं जाता " और गिलास का दध
ू साइड टे बल पे
रख कर मुझे सीधे करने लगी.
" चलो सागर इंसान बनो अब उठ़ भी जाओ. " मैं सीधे होकर लेट गया लेकिन उठा नहीं वैसे ही बिस्तर पे
पड़ा रहा. आपि ने मेरे ईज़ार बंद को खोला और सलवार में हाथ फसा कर झझ
ुं लाहट से बोली, " कुल्हे उपर
करो अपने. गंदेय्य्य्य क्या हाल बनाया हुआ है . " मैंने अपने कुल्हे उठाये तो आपि ने मेरी सलवार को नीचे
खींचते हूवे पांव से बाहर निकल दिया और सलवार के साथ ही मेरी क़मीज़ भी उठा कर बाथरूम चली
गयीं. आपि बाथरूम से वापस आयीं तो उनकी हाथ में तौलिया ( टॉवल ) पकड़ा हुआ था जिसका कोना
पानी से गीला था. आपि मेरी राणों, गोटियों और लंड की आस पास की हिस्से को गीले तौलिये से साफ
करते हूवे कहने लगी, " तुम्हारी बीवी की तो जान अज़ाब मैं ही रहे गी हमेशा. अपने बच्चों के साथ साथ
तुम्हारी भी छी साफ करती रहे गी " आपि ने ये कहा और एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर दस
ू रे हाथ
से गीले तोलिए से साफ करने लगीं.

" मुझे बीवी की ज़रूरत ही नहीं है . मेरी सोहणी सी बेहना जी है ना मेरे पास " मैंने मुस्कुरा कर कहा तो
आपि ने रुकते हूवे मेरे चेहरे पे एक नज़र डाली और कहा, " हां बहनें इसी काम के लिए ही तो रह गयीं है
अब"

आपि ने गीले तौलिये से सफाई के बाद, ख़ुश्क हिस्से से साफ किया और अल्मारी से मेरा दस
ू रा सूट
निकल लायीं और मेरे क़रीब ही बैठ कर बोली, " अब उठ़ जाओ सागर अम्मी भी उठने वाली है और कुछ
दे र में अब्बू भी घर आ जायेंगे. मैं चाय बनाती हूँ जल्दी सी नीचे आ जावो. " आपि ने ये कह कर मेरे सर
पे हाथ फेरा और माथे को चूम कर बाहर निकल गयीं.

मझ
ु े वाकया ही बहुत कमज़ोरी फील हो रही थी. कुछ दे र बाद मैं हिमत करके उठा और बाथरूम चला
गया. फ्रेश होकर अपना दस
ू रा सूट पहना और नीचे चला गया. मैं चाय पीने के लिए बैठा ही था की अब्बू
घर में दाखिल हूवे उन्होंने अपने हाथ में एक पैकेट पकड़ा हुआ था जो वहां ही टे बल पे रखा. हमने उन्हें
सलाम किया और वो अपने रूम में चले गए. मैं चाय ख़तम करके वहां ही बैठा रहा कुछ दे र बाद अब्बू
बाहर निकलें और सोफ़े पे बैठते हूवे कहा, " रूबी बेटा मेरे लिए भी चाय ले आओ."

" जी अब्बू अभी लाई " आपि ने किचन से ही जवाब दिया. अब्बू मझ
ु से इधर उधर की बातें करने लगे.
आपि ने आ कर चाय का कप अब्बू को दिया और सोफ़े पे उनके साथ ही बैठने लगी थी की अब्बू बोला
" बेटा वो टे बल पे एक पैकेट पड़ा है वो भी उठा लावो " आपि ने पैकेट लाकर अब्बू को दे दिया …

अब्बू पैकेट खोलते हूवे मुझे मुख़ातिब करके बोला, " यार सागर इसे दे खो ज़रा विंडोज की इन्स्टालेशन
वग़ैरा कर दे ना " अब्बू ने पैकेट से लैपटॉप निकाला और मेरी तरफ़ बढ़ा दिया. मैं लैप टॉप को उपर नीचे
से चेक करने के बाद ओपन कर ही रहा था की अब्बू की आवाज़ आई " दे खो आज रात इस में जो भी
काम है वो कर लो. सुबह मैं ऑफिस जाते हूवे ले जाऊंगा और मेरे परु ाने लैपटॉप से सारा डेटा इस में
ट्रांसफर कर दो और वो लैपटॉप अपने इस्तेमाल के लिए रख लो. " मैंने अब्बू की तरफ दे खा तो वो चाय
पी रहे थे और उनका ध्यान टीवी की तरफ था. मैंने अपना रुख फेर कर आपि के चेहरे पे नज़र डाली
उनकी नज़रें लैपटॉप की स्क्रीन पे जमी हूई थीं. आपि ने मेरी नज़रें अपने चेहरे पे महसूस करते हूवे मेरी
तरफ दे खा तो मैंने उन्हें ऑ ंख मारी और फिर रुख अब्बू की तरफ करते हूवे कहा.

" अब्बू मेरे पास तो पीसी है रूम में आप लैप टॉप आपि को दे दे उनको ज़्यादा ज़रूरत होगी आज कल
वैसे भी आपि थीसिस लिख रही है "

" अरे है भाई रूबी!! तुम्हारा वो … क्या था … हम्म ् " निक़ाब और औरत " कहाँ तक पहुंचा है वो?? " अब्बू
ने आपि की तरफ दे खते हूवे सवाल किया.

आपि ने अब्बू को अपनी तरफ मुतवज्जह पा कर अपना दप


ु ट्टा सर पे सही किया और कहा, " अब्बू वो तो
कम्पलीट हो ही गया है लेकिन मैं सोच रही हूँ इसी टॉपिक को ले कर एक किताब लिखना शुरू करूं "
आपि ने अपनी बात ख़तम करके अब्बू को दे खा तो वो दब
ु ारा टीवी की तरफ रुख फेर चुके थे. फिर आपि
ने मुझे दे खा और ऑ ंख मार कर मुस्कुरा दीं.

" हां बेटा ज़रूर लिखो. किसी चीज़ की भी ज़रूरत हो तो मुझे कह दे ना और बेटा सागर तुम लैप टॉप
आपि को दे दे ना अच्छा. " अब्बू ने ये कहा और चाय का खाली कप टे बल पे रखते हूवे उठ़ खड़े हूवे.

" रूबी बेटा मेरा सूट निकल दो कोई. मैं ज़रा नहा कर फ्रेश हो लूं. " ये कहा और अपने रूम की तरफ चल
दिया.

मैंने अब्बू को रूम में दाखिल होकर दरवाज़ा बंद करते दे खा तो आपि के नज़दीक होते हूवे सरगोशी और
शरारत से कहा, " अब तो मेरी बेहना जी दिन रात गन्दी फिल्में दे खेगी और वो भी मज़े से अपने बिस्तर
में लेट करररररर"

एक लम्हे को आपि के चेहरे पे शर्म के आसार नज़र आये और फिर फ़ौरन ही अपनी हालत पे क़ाबू पा
कर बोली, " बकवास ना करो मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ और दस
ू री बात ये की मैं रूम मैं अकेलि नहीं होती
हूँ समझे."

मैंने ये बात कही तो वैसे ही शरारत से थी लेकिन आपि की बात सुनकर मैंने एक लम्हे को कुछ सोचा
और मेरी ऑ ंखों में चमक सी लेहरा गई. मैंने आपि की तरफ दे खा तो आपि ने मुस्कुराते हूवे गर्दन को
ऐसे हिलाया जैसे उन्होंने मेरी सोच पढ ली हो और कहा " सागर कमीने मैंने कहा है ना … मैं तम्
ु हारी रग
रग से वाक़िफ़ हूँ. मैं जानती हूँ तुम्हारे खबीस दिमाग़ में क्या चल रहा है " मैंने झेंपते हूवे अपने सर को
खुजाया और नज़र झुका कर मुस्कुरा दिया.

फिर फ़ौरन ही नज़र उठायी और आपि से बोला, " आपि ये तो इत्तिफ़ाक़न ही बहुत अच्छा चांस बन गया
है . किसी तरह राज़ी कर लो ऐनी को भी. फिर मिल की मज़े करें गे ना."

आपि ने सीरियस अंदाज़ में कहा, " शर्म करो सागर. उसको तो छोड़ दो. वो अभी बच्ची है यार"

मैं फ़ौरन बोला, " खैर अब इतनी बच्ची भी नहीं है वो. मैं कल जब अपने गंदे कपड़े वाशिंग मशीन में
डालने गया तो वहां मैंने ऐनी की पॅन्टी पड़ी दे खी थी. उस पे 4, 5 स्पॉट लगे हूवे थे ब्लड के और दिन में
आप ने उसकी सलवार भी दे खी ही थी"

आपि ने मेरी गड
ु ी पे एक चपत रसीद की और कहा, " में सिस तो उससे 3 साल पहले से हो रहे है लेकिन
है तो बच्ची ही ना."

मैंने अपनी गुडी को सेहलाते हूवे कहा, " में सिस 3 साल से हो रहे है सीने के उभार आप से कुछ ही छोटे
है . कुल्हे मटकने लगे है … तो बच्ची कहाँ से है "

" अच्छा बस करो फ़ुज़ूल की बहस. बाद में दे खेंगे क्या करना है . मैं जाती हूँ अब्बू को कपड़े दे दं .ू " आपि ये
कह कर खड़ी हूई तो मैं भी उनके साथ साथ ही खड़ा हो गया. आपि ने 2 क़दम उठाये और रुक गयीं. फिर
वापस घम
ू ीं और आहिस्ता आवाज़ में बोली, " सागर मैं आज रात को तम्
ु हारे रूम में नहीं आऊंगी. सब
ु ह
यूनिवर्सिटी लाज़मी जाना है की मेरी प्रेजेंटेशन है ."

फिर मेरे सामने दोनों हाथ जोड़ कर गिररगिरने की अंदाज़ में बोली, " और प्लीज तम
ु लोग भी आपस में
कुछ नहीं करना. कुछ तो अपनी सेहत का ख्याल रखो. अभी झड़ने के बाद क्या हालत हो गई थी
तुम्हारी!! याद है ना.?? " मैं कुछ दे र तो चुप रहा फिर बोला " अच्छा ठीक है आप नहीं आना और बेफ़िक्र
रहें हम कुछ नहीं करें गे. आज वैसे भी अब्बू की लैप टॉप को सेट करना है उसमें ही बहुत टाइम लग
जायेगा. सुबह रे डी ना हुआ तो अब्बू की बातें सूननी पड़ेंगी " आपि ने मेरी बात सुनि तो मुस्कुरा दीं और
मेरे गाल को चुटकी में पकड़ कर दबा दिया और दांत चबा के बोलीं, " शाबाश मेरा सोहना भाई"

" आआआप्प्पप्पीीी " मैंने अपने दोनों हाथ आपि की हाथ पे रखकर अपना गाल छुड़ाया और बरु ा सा मुंह
बनाकर गाल को सेहलाते हूवे कहा " यार ये नहीं किया करो ना आपि दर्द होता है नाआ " आपि तेज़
आवाज़ में खिलखिला कर हँसी और बगैर कुछ बोला ही अब्बू की कपड़े लेने चल दीं.
मैं कुछ दे र बुरा सा मुंह बनाये अपना गाल सेहलता रहा और फिर बाहर की तरफ चल दिया की काफी
दिन हो गए स्नूकर की बाज़ी नहीं लगाई थी.

रात को मैं बिलाल ने आपि का पुछा तो मैंने कह दिया " सुबह आपि की प्रेजेंटेशन है इस लिए वो नहीं
आयेंगी और मैंने भी काम करना है तम
ु सो जाओ. " बिलाल को टालने के बाद मैं भी अब्बू की लैपटॉप
को ही सेट करता रहा. डेटा ट्रांसफर करने के बाद अपने पीसी से तमाम पोर्न मूवीज भी आपि वाले
लैपटॉप में ट्रांसफर कर दीं की ये काम भी तो ज़रूरी ही था.

अपना काम ख़तम करने के बाद मैं भी सोने के लिए लेट गया और आगे का सोचने लगा कर अब बात
को आगे कैसे चलाया जाये और इसी सोच सोच में जाने कब नींद ने तमाम सोचो से बेगाना कर दिया.

मेरी बहन को भी अब इस सब खेल में मज़ा आने लगा था और उनकी झिझक काफी हद तक ख़तम हो
गई थी … मैं हमेशा ये सोचता था की लड़कियां … लड़कों की मुक़ाबले में सेक्स की तरफ कम ही
मुतवज्जह होती है लेकिन अब मेरी सोच का ज़ाविया बदल चुका था और मैं जान गया था की जितनी
शिद्दत हवस की हम लड़कों मैं होती है . उससे कई गुना ज़्यादा लड़कियों में होती है . बस ये है की उनकी
फित़री झिझक और खौंफ होता है जो उन्हें सेक्स के मामले मैं आगे नहीं बढ़ने दे ता. की मर्दों का तो कुछ
नहीं जाता और ना ही कोई ऐसा सबत
ू होता है जो उनके कंु वारे पन को चॅलेंज कर सके लेकिन लड़कियां
अगर अपना कंु वारा पन खो दे तो उसे कभी छूपा नहीं सकती है .

सुबह जब मेरी ऑ ंख खुली और कॉलेज जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम के पास गया तो
बिलाल नहा रहा था. मैंने बाहर से आवाज़ लगाई, " बिलाल यार कितनी दे र है "

तो अंदर से शावर की शोर के साथ ही बिलाल की आवाज़ आयी, " भाई मैं अभी तो घुसू हूँ, नहा रहा हूँ.
थोड़ा टाइम तो लगेगा ही ना."

मैंने बिलाल की बात का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे कॉमन बाथरूम के लिए चल दिया. मैं बाथरूम
के पास पहुंचा ही था की आपि की रूम का दरवाज़ा थोड़ा खुला दे ख कर रुक गया और अंदर दे खा तो
आपि चद्दर, स्कार्फ़ से बेनिआज़, उलझे बालों और सिलवट ज़दा कपड़ों में नज़र आयी. शायद वो अभी ही
बिस्तर से उठी थीं. उनकी क़मीज़ बेतरतीब सी हालत में उनकी कुल्हों से उठी हूई थी और कमर से
चिपकी थी. आपि की राणें और कुल्हे दे ख कर मुझे झुरझुरी सी आई और लंड ने सुबह सुबह शब्बा खैर
कहा. तो मैं आपि की रूम की तरफ चल दिया.

मैं अंदर दाखिल हुआ और आहिस्तगी से दरवाज़ा बंद कर दिया. आपि दोनों हाथ कमर पे टिकाये बाथरूम
की सामने खड़ी थीं और नींद से बोझल आँखें लिए ऐनी के बाथरूम से निकलने का इन्तज़ार कर रही थीं.
शावर की आवाज़ बता रही थी की ऐनी भी नहा रही है . मैं दबे पांव आपि की पीछे गया और उनकी
बगलों के नीचे से हाथ गुज़र कर आपि की सीने की खूबसूरत उभारों पे रखते हूवे सरगोशी में कहा, " हे लो
सेक्सी बेहना जी शब्बा खैर" और बात ख़तम करके अपने होंठ आपि की गर्दन पे रख दिया. आपि ने मेरी
इस हरकत पर हड़ बड़ा कर आँखें खोलीं और कुल्हों को पीछे दबाते हूवे मेरे हाथ अपने मम्मों से हटाने
की कोशिश की और सहमी हूई सी आवाज़ मैं बोलीं " सागर पागल हो गए हो क्या? छोड़ो मुझे. किसी ने
दे ख लिया तो … " मैंने आपि की दोनों चंचि
ू यों को अपनी चट
ु कियों में पकड़ कर मसला और आपि की
गर्दन से होंठ हटा कर कहा, " मेरी सोहणी बेहना जी!! अम्मी अब्बू का रूम अभी बंद है . शावर की आवाज़
आ रही है तो ऐनी अभी नहा ही रही है और किस ने दे खना है "

मैंने बात ख़तम की और आपि को अपनी तरफ घुमाते हूवे उनकी होंठो पे अपने होंठ रख दिया. आपि ने
अपना चेहरा पीछे हटाने की कोशिश की लेकिन मैंने उनकी कमर को जकड़े रखा जिसे वो पीछे की तरफ
कमान की सुरत बेंड हो गयीं. मैंने ज़ोरदार किस करने के बाद अपने होंठ आपि के होठों से अलग किये
और उन्हें सीधे कर दिया. जिससे मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई. आपि ने मेरी गिरफ्त को कमज़ोर महसूस
किया तो मेरे सीने पे हाथ रख कर पीछे धक्का दिया और झंझलाते हूवे दबी आवाज़ में कहा, " इंसान
बनो … सब
ु ह सब
ु ह क्या मौत पड़ी है तम
ु को. अब जाओ भी … क्यों मरवाओगे"

मैंने शैतानी सी मस्


ु कराहट से आपि की तरफ दे खा तो वो फ़ौरन बोलीं " सागर खद
ु ा के लिए जाओ."

मैंने आपि के चेहरे पे ही नज़र जमाये हूवे कहा " एक शर्त पे जाऊंगा"

" शर्टत्तत … " आपि ने है रत और खौंफ की मिली जुली कैफ़ियत में कहा. मैंने आपि की सीने की उभारों
की तरफ हाथ से इशारा करते हूवे कहा, " मुझे ये दोनों दे खने है "

" तुम बिल्कुल ही सठ़ियां गए हो. इस वक़्त … क्या आग लगी है तुम्हें ??? " आपि ने अब अपनी कैफ़ियत
पे क़ाबू पा लिया था और अब खौंफ के आसार नहीं थे उनके चेहरे पर लेकिन झंझ
ु लाहट अभी भी मौजद

थी.

मैंने मिन्नत समजत करते हूवे कहा, " प्लीज आपि मेरी प्यारी बहना… न"

" बहन क्या इसी काम के लिए है " आपि ने कहा और दबी सी मस्
ु कराहट चेहरे पे आ गई.

मैंने कहा, " चलो ना यरररर"

" और अगर उसी वक़्त ऐनी बाहर आ गई तोउउ … " आपि ने कहा और गर्दन घुमाकर बाथरूम की
दरवाज़े को दे खने लगी.
मैंने कहा " आपि!! शावर की आवाज़ अभी भी आ रही है . वो नहीं आयेगी फिर भी आप अपने इत्मिनान
के लिए उससे पुछो ना की कितनी दे र में निकलेगी"

आपि बाथ रूम की नज़दीक हो गई और ज़रा तेज़ आवाज़ मैं बोलीं " ऐनी और कितनी दे र ही. मैं लेट हो
रही है यनि
ू वर्सिटी से"

ऐनी ने अंदर से आवाज़ लगे " बस आपि 5 मिनट और मैं निकलती हूँ बस थोड़ी दे र. " मैंने मुस्कुराकर
आपि को दे खा और उनके क़रीब होते हूवे कहा " चलो ना आपि प्लीज.5 मिनट बहुत है हमारे लिए"

आपि ने ज़रा ड़रे हूवे अंदाज़ में बाथरूम को दे खा और फिर रूम के दरवाज़े की तरफ गयीं. दरवाज़ा
खोलकर बाहर अम्मी अब्बू की रूम पे एक नज़र डाली और फिर दरवाज़ा बंद करके मेरी तरफ घूम गयीं
और दरवाज़े पे अपनी कमर लगा कर वहां ही खड़ी हो गयीं.

आपि ने क़मीज़ का दामन पकड़ा

" लो … खबीस! दे खो और जाओ यहाँ से " और मुझे ये कहते हूवे क़मीज़ गर्दन तक उठा दी. मैं आपि के
क़रीब पहले ही आ चुका था. मैंने अपनी बहन की हसीं उभारों को दे खा और अपने दोनों हाथों में आपि की
उभार पकड़ कर दबाये और चूंचियों को सेहलाने की फ़ौरन बाद ही अचानक से आगे बढ़ कर आपि का
खब
ू सरू त गल
ु ाबी चंचि
ू यां अपने मंह
ु में ले लिया. मेरी ज़ब
ु ाँ ने आपि चंचि
ू यों को छुआ तो आपि ने ऐक "
आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " भरी और बोलीं " ये क्या कर रहे हो. कहते कुछ हो और करते कुछ हो. दे खने का कहा
था और अब चूसना भी शुरू कर दिया. हटोऊ पीछे . ऐनी बाहर आने ही वाली है .

मैंने आपि की दोनों उभारों को हाथों में दबोचा हुआ था और आपि का दांए चूंचि मेरे मुंह में थी. मैंने कुछ
दे र बारी बारी आपि की दोनों चूंचियों को चूसा और फिर अपना मुंह हटा कर एक भर पुर नज़र से आपि
की उभारों को दे खा. मेरे दबोचने से ऐसा लग रहा था जैसे आपि के जिस्म का सारा खन
ू ( ब्लड ) उनकी
सीने की उभारों में जमा हो गया है . शफाफ गुलाबी मम्मों पे मेरी उं गलियों की निशान बहुत वाज़े हो गए
थे. मैंने हाथ उनकी मम्मों पे ही रखे रखे एक बार फिर आपि को किस की और उनकी जिस्म से अलग
होते हूवे कहा, " थैंक्स मेरी सोहणी सी बेहना जी. आई रियली लव य.ू " और फिर आपि को ऑ ंख मारी और
शैतानी से मुस्कुराते हूवे कहा, " अब ये मेरा रोज़ सुबह सुबह का नाश्ता हुआ करे गा. आप तैयार रहा करना
… ठीक है ना"

आपि सर झुका कर अपनी क़मीज़ को सही कर रही थीं और आपि ने सर उठाकर मेरी तरफ दे खा और
कहा, " बकवास मत करो … अब दब
ु ारा ऐसा सोचना भी नहीं. मैं खामखां का रिस्क नहीं लूंगी समझे??"
मैंने आपि की बात को अनसुनी करते हूवे मासूम बनते हूवे कहा " चले छोड़े बाद में दे खेंगे … फ़िलहाल
अगर आपकी कोई ख्वाहिश है ?? मेरे जिस्म की कोई चीज़ दे खनी है ?? या कुछ हाथ मैं पकड़ना है ?? … या
कुछ चूसना है तो बता दे . मैं आपकी ख़िदमत के लिए तैयार हूँ"

आपि बेसख्ता हसने लगी और बोली, " मैं समझ रही हूँ तम
ु किस चीज़ के लिए फटते ( ब्लास्ट ) जा रहे
हो लेकिन मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है . जनाब का बहुत बहुत शुक्रिया " आपि की बात सुनकर मैं भी
हं स दिया और बाहर जाने के लिए 2 क़दम चला ही था की बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी.
मैंने गर्दन घम
ु ाकर दे खा तो ऐनी अपने जिस्म पर सीने से लेकर घट
ु नों तक तौलिया ( टॉवल ) लिपटे
बाहर निकलती नज़र आयी. ऐनी को इस हाल में दे ख कर मेरे लंड ने फ़ौरन सलामी की तोर पर एक
झटका खाया और मेरी नज़र ऐनी की सरपे पे जम गई. ऐनी 2-3 क़दम बाहर आई ही थी की मुझ पर
नज़र पड़ते ही उछल पड़ी और बोली, " उफ्फफ्फ्फ़ भईईई आप यहाँ … " और फिर तक़रीबन भागते हूवे
वापस बाथरूम मैं घुस गई … मैं और आपि दोनों ही इस सिचुएशन पे कंफ्यूज हो गए थे और मैं बेसख्ता
ही बोला, " सॉरी गुड़िया! वो हमारे बाथरूम में बिलाल घुसा बैठा है और बाहर वाले बाथरूम में अब्बू है तो
मैं यहाँ आ गया की शायद खाली हो " ऐनी ने बादस्तूर गुस्सीली आवाज़ में कहा, " लेकिन भाई आप कम

ु े बता तो दे ते ना की आप अंदर है ". " अच्छा मेरी मॉ ं ग़लती हो गई मझ


से कम मझ ु से. अब जा रहा हूँ
बाहर " मैंने ये कहा और आपि की तरफ दे ख कर अपना दांए हाथ अपने सीने पे ऐसे रखा जैसे मैंने
अपना सीने का उभार पकड़ रखा हो और आपि को ऑ ंख मारते हूवे. अपने दांए हाथ की इंडक्
े स उं गली
और अंगठ
ू े को मिला कर सर्कि ल बनाया और बाथ रूम की तरफ ऑ ंख सी इशारा करते हूवे हाथ ऐसे
हिलाया जैसे मैं आपि को जता रहा हूँ की " ऐनी की सीने की उभार दे खे आप ने?? कितने मस्त हो गए है
" आपि ने मुस्कुरा कर गर्दन ऐसे हिला जैसे मेरी बात समझ गई हूँ और फिर मुझे बाहर जाने का इशारा
कर दिया.

" ऐनी बाहर आ जाओ … सागर! चला गया है " ये आखरी जुमला था जो मैंने आपि की रूम से बाहर
निकल कर सन
ु ा और दरवाज़ा बंद करके बाथरूम जाते हूवे ऐनी के बारे में ही सोचने लगा.

ऐनी अब वाकया ही बच्ची नहीं रही है . जब वो तौलिया लिपटे बाहर निकलि थी तो उसके गीले बाल और
भीगा भीगा जिस्म बहुत ही ज़्यादा सेक्सी लग रहा था. तौलिये में ऐनी की सीने की उभार काफी बड़े दिख
रहे थे और जब वो वापस जाने के लिए मुड़ी थी तो उसकी गान्ड़ की शेप भी वाज़े हो रही थी और वो 3-
4 क़दम ही भागि थी लेकिन मैंने ऐनी की कुल्हों का मटकना पहली बार गौर से दे खा था जो बहुत भला
मंज़र था. ऐनी की नंगे बाज़ू और नंगी पिंडलियाँ बालों से बिल्कुल साफ और आपि की ही तरह शफाफ
थीं. बस ये था की उसका रं ग थोड़ा दबता हुआ था या फिर ये कहना ज़्यादा मुनसिब है की आपि की
मुक़ाबले में वो साँवली नज़र आती थी. ऐनी का क़द तक़रीबन 4 फ़ीट 7 इंच था और उसकी जिस्म भारी
भरकम नहीं बल्कि वो दब
ु लि पतली सी थी लेकिन सीने के उभार आपि से थोड़े छोटे और साइज में
32 क थे. कुल्हे ना ही बहुत ज़्यादा बड़े थे और ना ही बहुत छोटे बस मुनासिब थे लेकिन उसकी चाल
क़ुदरती तोर पे ही ऐसी थी की वो चलती थी तो उसकी टांग दस
ू री टांग को क्रॉस करते हूवे पांव ज़मीं पे
पड़ता था बिल्कुल बिल्ली ( कैट ) की तरह और खुद बा खुद ही उसके छोटे क्यूट कुल्हे मटक से जाते थे.
मैंने अपनी इन्हे सोचों के साथ घुसूल किया और नाश्ते की टे बल पे ही लैपटॉप अब्बू के हवाले करके
कॉलेज के लिए निकल गया … 2 दिन तक आपि की प्रेजेंटेशन चलती रही जिसकी वजह से वो हमारे रूम
मैं नहीं आ सकीं और हमने आपस में भी कुछ नहीं किया. तीसरे दिन कॉलेज से वापस आ कर मैंने कुछ
दे र आराम किया और फिर शाम को चाय के वक़्त आपि ने भी हवस की शिद्दत से बोझल आँखें लिए
बता दिया की वो आज रात को आयेंगी हमारे पास.

2 रातें और 2 दिन गुज़र चुके थे की आपि हमारे रूम में नहीं आयी थीं, बिलाल और मैं बहुत शिद्दत से
रूम मैं बैठे आपि का इन्तज़ार कर रहे थे. हम दोनों ने अपने कपड़े पहले से ही उतार रखे थे. जब आपि
रूम मैं दाखिल हूई तो हमारे खड़े लंड पे नज़र पड़ते ही उनकी ऑ ंखों में भी चमक पैदा हो गई. आपि ने
दरवाज़ा बंद करके बहुत बेताबी से अपनी क़मीज़ उतार कर फेंकी और ब्रा को खोल के सोफ़े की तरफ
उछाल दिया. मैंने आपि को क़मीज़ उतारते दे खा तो बिस्तर से उठ़कर भागता हुआ आपि की तरफ गया
और अपने बाज़ू उनकी कमर की गिर्द मज़बूती से कसते हूवे आपि की गर्दन पे होंठ रख दिया. आपि भी
2 दिन से जिस्म की आग को दबाये बैठी थीं जैसे ही उनकी सीने की उभार और चूंचियां मेरे बालों भरे
सीने से दबाया तो उनकी आँखें खद
ु ही बंद हो गयीं और आपि के मंह
ु से एक सिसकारी निकलि और
उन्होंने बेसख्ता ही अपने बाज़ू मेरे जिस्म की गिर्द कस कर मुझे भींचना शुरू कर दिया और कभी मेरी
कमर को अपने हाथों से सेहलाने लगीं.

कुछ दे र मैं और आपि ऐसे ही खड़े अपने अपने जिस्मों को मेहसुस करते रहे फिर मैंने अपने होंठ आपि
की गर्दन से हटाये और आपि के होठों को चाटते और चुमते हूवे उन्हें तक़रीबन घसीटता हुआ बिस्तर की
तरफ चल दिया. बिलाल मझ
ु े और आपि को इस हाल में दे ख कर दम बखद
ु सा बिस्तर पर ही बैठा था. (
मैंने उससे 2 दिन पहले आपि के साथ हूवे सेक्स के बारे में कुछ नहीं बताया था. ) आपि को लिए हूवे ही
मैं बिस्तर पे लेट गया. आपि की अंदाज़ में आज बहुत गरम जोशी की थी. वो बहुत वाइल्ड अंदाज़ में मेरी
कमर को सेहला रही थीं और अपने सीने की उभारों को मेरे सीने पे रगड़ रही थीं. आपि कभी मेरे होठों
को बहुत बेताबी से चूसने लगतीं तो कभी दांतों में दबा कर खैच लेती.

कुछ दे र ऐसे ही एक दस
ू रे की होंठ और ज़ुबाँ चूसने और चाटने के बाद मैं थोड़ा नीचे हुआ और आपि की
गर्दन को चाटने और चुमने लगा … आपि सीधे लेटी हूई थीं और उनके हाथ मेरी कमर पे थे … मैं आपि
की दिल की तेज़ तेज़ धड़कन को साफ सुन और मेहसुस कर रहा था. आपि की गर्दन से होता हुआ मैं
नीचे उनकी सीने की उभार तक पहुंचा और बारी बारी दोनों चूंचियों को चाटने और चूसने लगा. आपि की
उभार को मुंह में लिए लिए ही मैंने अपना हाथ नीचे किया और आपि की सलवार को नीचे उनकी पांव
की तरफ सरकना शुरू कर दिया. ये भी अच्छा था की आपि की इस सलवार में इज़ारबंद की बजाये
इलास्टिक थी जिसकी वजह से सलवार आसनी से नीचे सरक रही थी. जब आपि को मेहसुस हुआ की मैं
उनकी सलवार उतार रहा हूँ तो उन्होंने अपने एक हाथ से फ़ौरन मेरे उस हाथ को पकड़ लिया जो उनकी
सलवार पे था और आँखें बंद किये हूवे ही बोली, " नहीं सागर प्लीज सलवार मत उतारो. उपर उपर से ही
कर लो जो करना है " मैंने अपना हाथ आपि की सलवार से हटा दिया और आपि की दांए चूंचि को होठों
में दबाये बिलाल को दे खा और बिलाल से नज़र मिलने पर उसे इशारा किया की " आपि की दस
ू रे उभार
को मंह
ु में ले ले " बिलाल तो बस तैयार ही बैठा था उसने मेरा इशारा समझा और एक दम से आपि की
दांए चूंचि पे टूट पड़ा. उसने आपि का दांए चूंचि मुंह में लिया और जलगलियों की तरह चूंचि को चूसने
और हाथ से दबाना शुरू कर दिया. आपि ने एक लम्हे को ऑ ंख खुली तो अपने दोनों सगे भाइयों के मुंह
में अपना एक एक उभार दे ख कर वो मचल सी गयीं और अपने दोनों हाथ हम दोनों की सर पे रख कर
दबाने लगीं. उनकी साँसें बहुत तेज़ हो गई थीं और वो मदहोश होने लगीं थीं. मैंने दब
ु ारा अपने हाथ को
नीचे करके आपि की सलवार को थामा और दस
ू रे हाथ से आपि की कमर को थोड़ा सा उपर उठाते हूवे
एक झटके से उनकी सलवार को कुल्हों के नीचे से निकल दिया. आपि ने कुछ कहने के लिए मंह
ु खोला
ही था की मैंने अपने होंठ उनके होठों से चिपका की उनका मुंह बंद कर दिया और दस
ू रे हाथ से आपि
की सलवार को घुटनों से नीचे तक पहुंचा दिया. बिलाल कभी आपि की उभार को चाटने लगता तो कभी
उनकी चूंचियों को चूसने लगता. उसकी अंदाज़ में बहुत जंगली पन था और मेरे मुंह हटते ही बिलाल ने
आपि की दस
ू रे उभार को भी हाथ में पकड़ लिया और झंझोड़ने लगा था. मैंने आपि की दोनों होठों को
अपने होंठो से खोलते हूवे साँस तेज़ी से अंदर को खींचि तो आपि मेरा इशारा समझ गयीं और फ़ौरन
अपनी ज़ुबाँ मेरे मुंह में दाखिल कर दी. मैंने आपि की ज़ुबाँ को अपने दांतों में पकड़ा और चूसने लगा.
आपि को ज़ब
ु ाँ चस
ु वाने में बहुत मज़ा आता था और मैंने आपि की इसी मज़े का फ़ायदा उठ़ाते हूवे आपि
की टांगों की दरमियाँ अपना हाथ रख दिया. मेरा हाथ जैसे ही आपि की चूत के दाने को टच हुआ तो वो
मचल गयीं लेकिन उनकी ज़ुबाँ को मैंने अपने दांतों में दबा रखा था इस लिए ना ही कुछ बोल सकीं और
ना ही ज़्यादा हिल सकीं.

मैंने कुछ दे र तेज़ी से अपनी उं गलियों को आपि की चूत के दाने पे मसला तो उनकी हालत बिन पानी
की मछली की तरह हो गई और आपि ने तेज़ी से अपने पांव की मदद से अपनी सलवार को पांव तक
पहुंचाया और घुटनों को मोड़ते हूवे अपनी टांगों को थोड़ा खोल लिया. आपि की चूत बहुत गीली हो गई थी
और मेरी उं गलियां खुद बखुद उनकी चूत के दाने से स्लिप हो कर नीचे चूत की एंट्रेंस पे टच होने लगती
थीं. मैंने ने आपि की टांगों को खल
ु ता महसस
ू कर लिया था और उनकी चत
ू से बेह्ते पानी ने भी मझ
ु े ये
समझा दिया था की अब आपि की दिमाग़ उनकी चूत की कंट्रोल मैं आ गया है इस लिए मैंने उनकी
ज़ुबाँ को अपने दांतों से निकल दिया आपि ने अपनी ज़ुबाँ को आज़ाद मेहसुस करके आँखें खोल दीं. उनकी
आँखें भी बहुत लाल हो रही थीं और नशे की सी हालत में थीं. मैंने आपि को अपनी तरफ दे खता पा कर
आपि की चूत पे रखा अपना हाथ हटाया और आपि को दिखाते हूवे अपनी एक एक उं गली को चूसने
लगा. आपि ने मेरी इस हरकत पे आँखें फाड़ कर मुझे दे खा तो मैंने मुस्कुराते हूवे मज़े से डूबी आवाज़ में
कहा, " यम्
ु म्मम्म्म्म मेरी सोहणी बहन की चत
ू से निकली लव जस
ू का ज़ाइक़ा दनि
ु यां की बेह्तरीन
मश़रूबे से ज़्यादा लज़ीज है . " मेरी बात सुन कर आपि का चेहरा शदीद शर्म से लाल हो गया और उन्होंने
मुस्कुरा कर वापस अपनी आँखें बंद करते हूवे चेहरा दस
ू री तरफ कर लिया. मैं भी मुस्कुरा दिया और नीचे
सरकते हूवे अपनी ज़ब
ु ाँ आपि की नाभि में दाखिल कर दी. बिलाल ने भी उसी वक़्त आपि की चचि
ू यों को
दांतों में दबा कर ज़ोर से काटा और उपर को खींचने लगा. बिलाल की चाटने की वजह से और मेरी ज़ुबाँ
को अपनी नाभि की अंदर मेहसुस करते हूवे आपि ने एक ज़ोरदार " आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " भारी. ( उस
आहः में " मज़े की शिद्दत " और " तक़लीफ़ का एहसास " दोनों ही बहुत नम
ु ाया थे )

आपि के चीख की आहः सुनकर मैंने उपर दे खा था बिलाल ने आपि की चूंचियों को दांतों में दबाया हुआ
था और काफी ताक़त से अपना सर उपर खींच रहा था. आपि ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ बिलाल की सर
की पुष्ट पे रखे और सर को वापस नीचे अपने उभार पर दबा दिया. मैंने दब
ु ारा अपनी नज़र नीचे की
और आपि की परू ी नाभि की अंदर अपने ज़ुबाँ फेरने लगा.

आपि का परू ा पेट अपनी ज़ुबाँ से चाटने के बाद मैं उनकी दांए राण पे आया और पूरी राण की अन्दरूनी
और बहरूनी हिस्से को अपनी ज़ुबाँ से चाटा. मैं अपनी ज़ुबाँ से चाटता हुआ राण से घुटने और फिर
पिण्डलियों से हो कर पांव तक पहुंचा और आपि की सलवार को उनकी जिस्म से अलग करके पीछे फैं क
दिया और फिर पूरे पांव को उपर से चाटने के बाद तलवे को चाटा और पांव की एक एक उं गली को बारी
बारी चूसने लगा. इसके बाद मैंने आपि की दांए पांव को पकड़ा और उससे तरह एक, 2 मिलिमीटर की
हिस्से को चाटता हुआ वापस आपि की नाभि तक आ गया. मैं उठ़ कर आपि की टांगों की दरमिआन बैठा
और आपि की नाभि के नीचे बालों वाले हिस्से को चुमने लगा और फिर अपनी ज़ुबाँ निकल कर चाटना
शुरू कर दिया. मैं अपना सर उठा कर एक नज़र बिलाल और आपि को भी दे ख लेता था.

बिलाल अभी भी आपि की मम्मों को ऐसे झंझोड़ और चूस रहा था जैसे उससे आज के बाद कभी ये
नसीब नहीं होंगे.
आपि अभी भी बिल्कुल सीधी ही लेटी हूई थीं और आँखें बंद किये अपनी गर्दन को दांए बांए झटक रही
थीं. उनके चेहरे पर कभी बिलाल की किसी जंगली हरकत पे तक़लीफ़ और क-र-ब के आसार पैदा होते थे
तो कभी मेरी ज़ुबाँ उनकी बदन में मज़े की नयी लेहेर पैदा कर दे ती थी.

मैंने आपि की बालों वाले हिस्से को अच्छी तरह चाटने के बाद अपने दोनों हाथ आपि की राणों के नीचे
रखे और उनकी टांगों को थोड़ा सा उठा कर टाँगें खोल दीं और अपना मुंह आपि की चूत की बिल्कुल
करीब लाकर एक इंच की दरि
ू पे चंद लम्हे रुक्का और आपि की चूत को गौर से दे खने लगा. आपि की
चत
ू परू ी गीली हो रही थी और उनकी चत
ू का रस चमक रहा था. आपि की चत
ू की दोनों खब
ू सरू त
गुलाबी होंठो में छुपी 2 गुलाब की पंखुड़ियां जैसे परदे फड़कते हूवे से महसूस हो रहे थे और गोश्त का वो
लटका हुआ से हिस्सा ( जिस मैं चूत का दाना छुपा होता है ) कांप रहा था.

आपि ने मेरी गरम गरम तेज़ सांसों को अपनी चूत पे मेहसुस कर लिया था और उन्होंने बिलाल के सर
से दोनों हाथ हटाये और अपने दांए बांए बिस्तर पे रखते हूवे कोहनियों पे ज़ोर दे कर अपना सर और
कंधे उपर उठा लिए और नशीली ऑ ंखों से मझ
ु े दे खने लगी. मैंने एक नज़र आपि को दे खा और फिर
अपनी आँखें बंद करते हूवे नाक की ज़रिए एक तेज़ साँस को अपने अंदर खींचा.

आपि की चत
ू से उठ़ती मधरु महक मेरे नाक से होते हूवे मेरे दिल और दिमाग़ पे सीधे असर अंदाज़ हो
गई और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने ड्रग्स की भरी मिक़्दार अपने अंदर उतारी हो. मुझ पे हक़ीक़तन
नशा सा तरी हो गया था और मेरे दिलो दिमाग़ में सिर्फ लज़्ज़त ही लज़्ज़त भर गई थी. मेरा ज़हन सिर्फ
उस महक को मेहसस
ु कर रहा था और मेरी तमाम सोचें और एहसासात सिर्फ अपनी बहन की चत
ू पे ही
मकरूज़ हो गई थीं. मैंने सिहर ज़दा से अंदाज़ में अपनी ऑ ंखों खोला तो पहली नज़र आपि के चेहरे पे ही
पड़ी. आपि के चेहरे पे बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थे. वो समझ गई थीं की मेरा अगला अमल क्या होगा.
आपि ने मेरी ऑ ंखों में दे खते हूवे ही गर्दन को थोड़ा आगे की तरफ झटका दिया जैसे कह रही हो कि "
आगे बढ़ो ना रुक क्यों गए हो! " मैंने आपि की इशारे पर कोई रद्द-इ-अमल नहीं ज़ाहिर किया और उनकी
ऑ ंखों में आँखें डाले हूवे ही नाक के ज़रिए एक और साँस ली और अपने टूटते नशे को सहारा दिया. आपि
ने एक बार फिर मझ
ु े आगे बढ़ने का इशारा किया और कहा, " सागर प्लीज अब और ना तड़पाओ …
चूसोना प्लीसीईई. " लेकिन मुझे गुम सूम दे ख कर उनकी बर्दाश्त जवाब दे गयी और आपि ने अपने
कुल्हों को उपर की तरफ झटका मारते हूवे … अपनी चूत को मेरे मुंह से लगा दिया. आपि की चूत मेरे
मुंह से लगी तो जो नशा मुझे चूत की महक से हुआ था अचानक ही वो ख़तम हो गया. मैं अपना मुंह
जितना ज़्यादा खोल सकता था मैंने खोला और अपनी बहन की पूरी चूत को अपने मुंह में भर कर
अपनी पूरी ताक़त से जंगलियों की तरह चूसने लगा. 2 मिनट इसी अंदाज़ में चूसते रहने का बाद मैंने
अपने मुंह की गिरफ्त हलकी की और आपि की चूत की उपरी हिस्से में छुपे दाने ( क्लीट ) को होठों में
दबाया और चूसने लगा. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुंह में नमक घुल गया हूँ. आपि की चूत से
निकलते लेसले पानी ने मेरा मुंह अंदर और बाहर से लेसले कर दिया था. मेरे होंठ आपि की चूत की रस
की वजह से बहुत चिकने हो रहे थे और पूरी चूत पे फिसल फिसलते जा रहे थे. मैंने कुछ दे र आपि की
चूत के दाने को चूसा और फिर चूत की दोनों परदों को बारी बारी चूसने लगा. मेरे मुंह ने आपि की चूत
को छुआ तो आपि ने " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सागर … ऊऊफफफफ्फ्फ्फ़ … मेरे … भईईईईई " कह कर अपना
सर और काँधे एक झटके से वापस बिस्तर पर गिरा दिया. कभी आपि झटकों झटकों से अपनी चत
ू को
मेरे मुंह पे दबाने लगतीं तो कभी कुल्हे बिस्तर पे सुकून से टिका कर तेज़ तेज़ सांसों के साथ सिसकियाँ
भरने लगतीं.

आपि ने एक और झटका मारने के बाद अपने कुल्हे बिस्तर पे टिकाये तो मैंने अपनी उं गलियों की मदद
से आपि की चूत की दोनों लिप्स को खोला और अपनी ज़ुबाँ की नोक चूत की बिल्कुल नीचले हिस्से ( जो
एंट्रेंस होती है ) पे रख कर एक बार नीचे से उपर पूरी चूत को अंदर से चाटा और वापस नोक एंट्रेंस पे
रखकर ज़ुबाँ अंदर बाहर करने लगा.

जैसे ही मेरी ज़ुबाँ आपि की चूत की अन्दरूनी हिस्से पे टच हो गई आपि ने अपने कुल्हे उपर उठा दिया
और उनका जिस्म एक दम अकड़ गया और चंद लम्हों बाद ही उनकी जिस्म ने 3-4 शदीद झटके खाये
और मझ
ु े साफ महसस
ू हुआ की जैसे आपि की चत
ू मेरी ज़ब
ु ाँ को भींच रही हो. मैंने ज़ब
ु ाँ अंदर बाहर
करना जारी रखी और जब आपि की चूत ने मेरी ज़ुबाँ को भींचना बंद कर दिया और आपि बेसुध सी लेट
गयीं तो मैंने अपना मुंह थोड़ा सा पीछे किया और चूत को मज़ीद खोलते हूवे अंदर दे खा.

आपि की चूत में गाढ़ा गाढ़ा सफेद पानी जमा हो गया था, मैं कुछ दे र नज़र भर की दे खता रहा और फिर
दब
ु ारा अपनी ज़ुबाँ की नोक को अंदर डाला और आपि की चूत रस को अपनी ज़ुबाँ पे समेत कर मुंह में
डालता गया. अपनी बहन का सारा लव जस
ू अपने मंह
ु में भरने के बाद मैं उठा और बिस्तर पे निढाल
और बेसुध पड़ी आपि के साथ ही लेट कर उनके चेहरे को दोनों हाथों में थाम कर अपनी तरफ घुमाते हूवे
फंसी फंसी आवाज़ मैं कहा, " उन्न्नन ओह्ह्हं आअववववीई आँखें खोलो ये दे खो " आपि ने आँखें खोलीं तो
मैंने अपना मंह
ु खोल कर आपि को दिखाया.

मेरे मुंह मैं अपनी चूत की पानी को दे ख कर आपि ने बुरा सा मुंह बनाया और कहा, "
आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् गंदययय " आपि ये कह कर मंह
ु दस
ू री तरफ करने ही लगीं थीं की मैंने
मज़बूती से उन के गालों को दबा कर पकड़ा जिसे आपि का मुंह खुल गया और मैंने अपना मुंह आपि के
मुंह पर रखते हूवे उनकी चूत का रस उन्ही के मुंह में उडेल दिया. आपि ने अपना मुंह छुड़ाने की कोशिश
की लेकिन मैंने उसी तरह उनके गाल दबाये दबाये ही आपि के होंठ चस
ू ना शरू
ु कर दिया. कुछ दे र तक
वो मुंह हटाने की कोशिश करती रहीं और फिर अपने आप को ढीला छोड़ते हूवे मेरी किस के जवाब में
मेरे होंठो को चूसने लगीं. आपि का जूस हम दोनों की होंठो और गालों पर फैल गया था और अब उन्हें भी
उसकी परवाह नहीं थी. कुछ ही दे र में आपि मेरे होंठो को चूसते हूवे अपनी ही चूत की जूस को भी ज़ुबाँ
से चाटने लगी थीं और शायद उन्हें भी उसका ज़ाइक़ा अच्छा ही लग रहा था.

बिलाल … हम दोनों से लापरवाह बस आपि के जिस्म में ही खोया हुआ था. कभी आपि की उभारों से
खेलता तो कभी उनके पेट और नाभि पर ज़ुबाँ फेरने लगता जब बिलाल ने आपि की चूत को खाली दे खा
तो वो अपनी जगह से उठा और आपि की टांगों की दरमियाँ बैठते हूवे उनकी चत
ू को चाटने चस
ू ने लगा.

मैं और आपि कुछ दे र ऐसे ही किस करते रहे और मैंने अपने होंठ आपि से अलग किये तो उनका चेहरा
दे ख कर बेसख्ता ही हं सी छूट गई और मैंने कहा, " क्यों … बेहना जी … मज़ा आया अपना ही जस
ू चख
कर"

आपि ने भी मुस्कुराकर मुझे दे खा और कहा, " तुम खुद तो गंदे हो ही. अपने साथ साथ मुझे भी गन्दा
बना दोगे " फिर एक गेहरी साँस ले कर बिलाल को दे खा और कहा, " तुझ से ज़रा सबर नहीं हुआ … मुझे
साँस तो लेने दो … तुम लोग तो जान ही निकल दोगे मेरी"

बिलाल ने आपि की बात पर कोई तवज्जो नहीं दी और अपने काम में मगन रहा. आपि ने अपने होठों पे
ज़ब
ु ाँ फेर कर एक बार फिर अपने जस
ू को चाटा और मस्
ु कुरा कर मझ
ु े ऑ ंख मारते हूवे शरारत से बोली,
" यार इतना बरु ा भी नहीं है इसका ज़ाइक़ा"

" अच्छा जी तो मेरी बेहना को भी अच्छा लगा है चत


ू का पानी … और पहले तो बड़ा गंदे गंदे कर रही
थीं " मैंने आपि को तंग करते हूवे कहा.

आपि ने फ़ौरन ही जवाब दिया, " गंदे तो हो ही ना तुम … मैं ये नहीं कह रही की ये बहुत अच्छा काम है
" मैंने आपि की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनको कहा " आपि खड़ी हो जाओ."

आपि ने सवालियाँ नज़रों से मुझे दे खा तो मैंने बिलाल को हटाते हूवे उन्हें ज़मीं पे सीधे खड़ा कर दिया.
आपि की खड़े होते ही बिलाल फिर उनकी टांगों की दरमियाँ बैठ गया और अपना मुंह आपि की चूत से
लगाते हूवे बोला, " आपि थोड़ी सी तो टाँगें खोलें ना प्लीसीए"

आपि ने बिलाल की सर पे हाथ रखा और टाँगें थोड़ी खोलते हूवे अपने घुटने भी थोड़े मोड़ कर लिए. आपि
अब फिर से गरम होने लगी थीं. मैं आपि की पीछे आ कर खड़ा हुआ और अपने एक हाथ से अपने खड़े
लंड को उपर नाभि की तरफ उठता हुआ आपि की कुल्हों की दरार पे टिकाये और उनको पीछे से
चिपकते हूवे मैंने दोनों हाथ आपि की आगे ले जाकर उनकी उभारों पे रख दिया. आपि ने मेरे लंड को
अपने कुल्हों की दरार में महसूस करते ही कहा, " आःहठ्हठ सागरररररररर " और अपने हाथ मेरे हाथों पे
रखे और सर को पीछे झुका कर मेरे कंधे से टिका दिया और अपनी गान्ड़ पीछे की तरफ दबा दी.

मैं अपना लंड आपि की कुल्हों की दरार में रगड़ने के साथ साथ ही उनकी गर्दन को भी चम
ू ता और
चाटता जा रहा था और अपने हाथों से कभी आपि की सीने की उभार दबाने लगता कभी उनकी चूंचियों
को मसलता. बिलाल आपि की चूत को ऐसे चाट रहा था जैसे " कल कभी नहीं मिलेगी " मैंने अपना लंड
उनकी कुल्हों से ज़रा पीछे किया और आपि का हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रख दिया. आपि को जब
एहसास हुआ की उनकी हाथ में मेरा लंड है तो फ़ौरन ही उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया. मैंने दब
ु ारा
इसकी कोशिश नहीं की और आपि की शोल्डर्स का पिछला हिस्सा अपनी ज़ुबाँ से चाटने लगा. कांधों के
बाद पूरी कमर को चाटता हुआ मैं नीचे बैठ गया और आपि की कुल्हों की गोलाईयां चुमते और चूसते
हूवे अपनी ज़ुबाँ से भी मसाज करता रहा. परू ी तरह कुल्हों को चाटने के बाद मैंने अपने दोनों हाथ आपि
की कुल्हों पे रखे और उनकी कुल्हों को खोलकर आपि की गान्ड़ के सरू ाख को गौर से दे खना शुरू कर
दिया.

( आपि के गान्ड़ का सूराख बाक़ी जिस्म की तरह गुलाबी नहीं था बल्कि गहरे ब्राउन रं ग का था और
बहुत सी उभरि उभरी सी गोश्त की लक़ीरें अंदर सरू ाख में जाती दिख रही थीं. जो ऐसे थीं जैसे किसी कुवें
पे चुनोतों का जाल बुन दिया गया हो )

मैं ने आपि की गान्ड़ की सरु ाख को कुछ दे र बगौर दे खा और फिर आगे होते हूवे आहिस्तगी से अपनी
ज़ुबाँ की नोक को सुराख की बिल्कुल सेंटर में टच कर दिया. आपि ने मेरी ज़ुबाँ को अपनी गान्ड़ के
सूराख पे महसूस करते ही एक झुरझुर्री सी ली और मज़े की एक शदीद लेहेर आपि की बदन में सराइत
कर गई. वो बेसख्ता ही अपने उपरी जिस्म को आगे की तरफ झक
ु ाते हूवे बोलीं

" आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सागर … ये क्या कर रहे हो"

" ममम्म्मम्म्म … " मैंने गान्ड़ के सूराख को चाटने के साथ साथ अपनी ज़ुबाँ उपर से नीचे और फिर
नीचे से उपर परू ी दरार में फेरना शरू
ु कर दी. आपि की बेसख्ता अंदाज़ ने मझ
ु े समझा दिया था की उन्हें
गान्ड़ का सूराख चटवाने में बहुत मज़ा आ रहा है . आपि की आगे झुकने की वजह से मेरा काम ज़्यादा
आसान हो गया था और मेरी ज़ुबाँ आपि की परू ी दरार मैं आसानी से घूम रही थी. बिलाल आपि की चूत
को चूसने में लगा था और मैं आपि की गान्ड़ के सूराख को चाट रहा था … आपि की हालत अब बहुत
ख़राब हो रही थी और वो अपने सर को दांए बांए झटके दे ते हूवे दबी दबी आवाज़ मैं आह्हें भर रही थीं.
मेरे ज़हन में ये आया की " ये ही टाइम है की अब मैं दब
ु ारा ट्राय करूं " इस सोच के आते ही मैं उठा
और आपि के सामने आ कर उनको सीधे करते हूवे आपि के होठों को अपने होठों में दबाया और एक
हाथ में आपि का हाथ पकड़ते हूवे दस
ू रे हाथ से उनकी सीने की उभार दबाने लगा. मैंने चंद लम्है ऐसे ही
आपि का हाथ थामे रखा और फिर आहिस्तगी से उनका हाथ दब
ु ारा अपने लंड पे रख दिया.

आपि ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन मैंने उनकी हाथ को मज़बत
ू ी से अपने लंड पे ही दबाये
रखा. कुछ दे र तक आपि ने कोई रिस्पोंस नहीं दिया और फिर आहिस्ता आहिस्ता मेरे लंड को अपनी मुठ
में दबाने लगीं. वो कभी लंड को भींच रही थीं तो कभी अपना हाथ लूज कर दे तीं. मैंने ये मेहसुस किया तो
आपि की हाथ से अपना हाथ हटा लिए और उनकी गर्दन को पष्ु ट से पकड़ कर किस करने लगा. मेरे
हाथ हटाने की बावज़ूद भी आपि ने मेरे लंड को नहीं छोड़ा था और नरमी से लम्बाई नापने की अंदाज़ में
उस पे अपना हाथ फेरने लगीं. मैंने दब
ु ारा अपना हाथ आपि की हाथ पे रखा और उनकी हाथ की मुठ्ठी
बना कर अपने लंड पे उपर से नीचे की और 3-4 मूव्स के बाद अपना हाथ हटा लिया और आपि खुद ही
अपना हाथ मेरे आगे पीछे करने लगीं. मैंने एक नज़र बिलाल को दे खा तो वो अभी भी आपि की चूत ही
चूस रहा था और थोड़ी थोड़ी दे र बाद ऐसे ज़ोर लगाता था जैसे खुद ही आपि की चूत में घुसना चाह रहा
हो. उसका हाथ अपने लंड पे तेज़ी से आगे पीछे हो रहा था.

आपि का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ तो फ़ौरन मुझे याद आ गया की कैसे डिस्चार्ज होते वक़्त आपि की
चत
ू मेरी ज़ब
ु ाँ को भींचने लगी थी. अब बिलाल की ज़ब
ु ाँ भी इस मज़े को महसस
ू करने वाली है . आपि को
झड़ने के क़रीब दे खा तो मैंने ज़ोर से उनकी होंठो को चूसना शुरू कर दिया और आपि की चूंचियों को
चुटकियों में मसलने लगा. मेरे लंड पर आपि का हाथ बहुत तेज़ तेज़ चलने लगा था और उनकी साँसें
बहुत तेज़ हो गयी थीं. मेरी बर्दाश्त जवाब दे रही थी और यकदम ही मेरे लंड ने झटका मारा और मेरे
लंड से जूस निकल निकल कर आपि की पेट पे चिपकने लगा. आपि ने भी मेरे लंड की पानी को मेहसुस
कर लिया था और फ़ौरन ही उनकी जिस्म ने भी झटके खाये और अपनी चूत का पानी बिलाल के मुंह में
भरने लगीं …

हम तीनों ही अपनी मंजिल तक पहुंच चुके थे. जब हम एक दस


ू रे से अलग हूवे और आपि की नज़र
अपने पेट पे पड़ी. जहाँ मेरे लंड का गाढ़ा सफेद पानी चिपका हुआ था. आपि की परू ी नाभि मेरे लंड की
जूस से भरी हूई थी.

" ईऊव्वव्वव्वव्व ये क्या गन्दगी की है तम


ु ने … गंदेय्य्य्य. " आपि ने ये कहा और अपनी उं गली अपनी
नाभि में डाल कर घुमते हूवे मेरे लंड का पानी अपनी उं गली की नोक पे निकल लिया. वो चंद लम्हे रूकीं
और फिर अपनी उं गली को चेहरे के क़रीब ले जा कर गौर से दे खने लगीं. मैंने आपि को इस तरह मेरे
लंड की जूस को दे खते दे खा तो मुस्कुराते हूवे आपि को ऑ ंख मारी और कहा, " शर्मा क्यों रही हो आपि!!
आगे बढ़ो … बहुत मज़े का ज़ाइक़ा है इसका"

आपि ने मेरी बात सूनी तो झेंपति हं सी के साथ कहा, " शट्ट अपपपपप सागर … मैं सिर्फ क़रीब से दे खना
चाहती थी, तम्
ु हारी तरह गन्दी नहीं हूँ"

मैंने कहा, " उस वक़्त तो आप को बुरा नहीं लग रहा था जब मैं आपकी चूत का रस पी रहा था " ये
कहते हूवे मैंने आगे बढ़ कर आपि की चत
ू पे हाथ रखा और कहा, " वो भी डायरे क्ट यहाँ मंह
ु लगा कर!"

आपि ने मस्
ु कुराकर मझ
ु े दे खा और नरमी से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी टांगों की बीच से हटाते हूवे कहा,
" अच्छआ बस सागर … अब बहुत दे र हो गई है . बिलाल मुझे कोई कपड़ा दो की मैं अपने पेट से ये
गन्दगी साफ करूं " बिलाल कपड़ा लेने के लिए उठ़ रहा था की मैंने और आपि ने एक साथ ही दे खा की
मेरे लंड की जूस की बहुत से क़तरे बिलाल की सर पे गिरे हूवे थे और मझ
ु से पेहले ही आपि बोल पड़ी, "
और अपना सर भी साफ कर लेना … वहां भी सारी गन्दगी लगी है . " बिलाल ने बेसख्ता अपने सर पे
हाथ फेरा तो उसके हाथ पे भी मेरे लंड का जूस लग गया.

बिलाल ने अपने हाथ को दे खा और फिर आपि की ऑ ंखों में दे खते हूवे ज़ुबाँ निकल कर चाटते हूवे बोलाए
" उम्मम्मम्म आपि आप भी चख कर तो दे खतीं … इतना बुरा नहीं है …

" आखह्ह्ह्ह … डिसगस्टिं ग बिलाल … तुम तो इसको अपने सर पे ही सजा रहने दो ताज समझ के …
अच्छा अब जावो … कोई कपड़ा लाकर दो " आपि ने बिलाल से कहा और अपनी क़मीज़, सलवार, ब्रा वग़ैरा
इकठे करने लगीं जो इधर उधर बिखरे पड़े थे. बिलाल अपनी ही एक शर्ट ले कर आया और खद
ु ही आपि
के बदन को साफ करने लगा. अच्छी तरह साफ करने के बाद बिलाल ने आपि की पेट को चूमा ही था
कि आपि ने उससे पीछे करते हूवे कहा, " नहीं बिलाल अब बस मैंने जाना है बहुत दे र हो गई है "

आपि ने क़मीज़ पेहेनने के लिए फैलाए ही थी की मैंने आगे बढ़ कर आपि को अपने बाजूओं मैं जकड़ा
और एक ज़ोरदार किस करने के बाद कहा, " आपि आज का दिन हमारी ज़िंदगी का खूबसूरत तरीन दिन
था … और मझ
ु े ख़श
ु ी इस बात की है की मैंने आपकी जिस्म के एक, एक मिलिमीटर को चम
ू ा है और
अपनी ज़ुबाँ से चाटा है . आई रियली लव यू."

आपि ने मुस्कुरा का मोहब्बत पाश नज़रों से मुझे दे खा और अब उन्होंने आगे बढ़ कर मेरे होठों को चूमा
और कहा, " आई लव यू टू सागर " और फिर मेरे गाल को चुटकी में पकड़ कर बोलीं " मेरा राजा भाई
उम्मम्ममाहह्ह"
" आयप्पप्पीइइइइइ फिर वो हीइ " आपि मुझे दे ख के खिलखिला कर हसीं और अपने कपड़े पेहेनने लगीं
… मैं और बिलाल आपि को ड्रेस अप होते दे खते रहे इसके बाद आपि ने हमें शब ् - आ - खैर कहा और
रूम से चली गयीं. आपि के बाद मैंने मुस्कुराते हूवे बिलाल को दे खा और कहा " मज़ा आया आज मेरे
छोटूओ को???"

बिलाल ख़ुशी से खिलखिला के बोला, " बहुत ज़्यादा भाई!!!! … मैं बस ख़्वाब ही दे खता था बस … मुझे
यक़ीं नहीं था के मैं कभी किसी लड़की की मम्मे और चूत दे ख भी सकँू गा … लेकिन आपकी वजह से
दे खना तो दरू की बात मैंने मम्मों को चस
ू भी लिया और चत
ू को भी चाट लिया वो भी अपनी हसीं
आपि की … मैंने मुस्कुरा कर शैतानी अंदाज़ में कहा " मेरे भाई बस तुम सबर करो और दे खते जाओ की
आगे क्या क्या दिखाता हूँ तुम्हें …"

मेरी बात सुन के बिलाल बहुत खुस हुआ और कुछ याद आने पे एक दम चौंकता हुआ बोला, " भाई कुछ
करें ना के ऐनी भी हमारे साथ शामिल हो जाये … जब मैं ऐनी के साथ नानी के घर गया था ना … तो
भाई मैंने उस वक़्त गौर किया की ऐनी की सीने की उभार भी अब बहुत प्यारे हो गए है . मैंने मस्
ु कुरा
कर बिलाल को दे खा और कहा, " तुम फ़िक्र ना करो. बस अपना दिमाग़ मत लगाना. जो मैं कहूं वो ही
करना बाक़ी सब मुझ पे छोड़ दो और चलो अब सो जाओ सुबह स्कूल भी जाना है तुम ने. " और हम
दोनों ही सोने की कोशिश करने लगे ……

****

सु बह मैं दे र से उठा और फ्रेश होकर नीचे नाश्ते के लिए पहुंचा तो सब नाश्ता करके जा चक
ु े थे. मैंने भी
नाश्ता किया और कॉलेज को चल दिया. वापसी पर भी आम सी ही रूटीन रही कोई ऐसी खास बात नहीं
हो गई जो मैं यहाँ आप से शेयर कर सकँू …

रात की 11 बजे थे मैं और बिलाल दोनों आपि का इन्तज़ार करते हूवे इधर उधर की बातें करते अपना
टाइम काट रहे थे की दरवाज़ा खुला और आपि अंदर दाखिल हूई. आपि को दे खते ही बिलाल और मैंने
बिस्तर से जम्प की और उनकी तरफ बढ़े . आपि ने अपने दोनों हाथों को सामने लाकर हमें रोकते हूवे
कहा, " आराम से आराम से जंगली ही हो दोनों …"

मैंने आपि की बात जैसे सुनि ही नहीं और उन्हें अपने बाजूओं में जकड़ कर होंठो पे होंठ रख दिया. आपि
ने भी किस का मुकम्मल रिस्पोंस दिया और भरपूर अंदाज़ में मेरी ज़ुबाँ और होंठो को चूसने के बाद
पीछे हट गयीं और अपनी क़मीज़ उतरने लगी. क़मीज़ के नीचे आपि ने कुछ नहीं पहना था और क़मीज़
की उतारते ही उनकी खूबसूरत गुलाबी चूंचियां मेरी नज़रों की सामने आ गए. आपि क़मीज़ उतार कर
सीधी खड़ी हूई ही थीं की मैंने फिर उनकी तरफ क़दम बढ़ाया तो उन्होंने मुझे रोक दिया
" नहीं सागर तुम पीछे रहो " और बिलाल की तरफ अपने बाज़ूओं को खोला जैसे उससे गले लगाने के
लिए बुला रही हो और बिलाल को दे खते हूवे मुस्कुराकर बोली, " आज मेरे छोटे भाई की बारी है … आ
जाओ बिलाल " बिलाल ये सन
ु कर ख़ुशी से झूम उठा और भागते हूवे आ कर आपि से लिपट गया.

मैंने मस्
ु कुराकर उन दोनों को दे खा और पीछे हट कर वहां सोफ़े पे बैठ गया की जहाँ बैठ कर आपि
हमारा शो दे खा करती थीं. बिलाल ने आपि की बदन को अपने बाजूओं में भरा और उनके होठों को जंगली
अंदाज़ में चूसने लगा. ये पहली बार थी की बिलाल आपि के साथ अकेले में कुछ कर रहा था इस लिए
उसके अंदाज़ में बहुत दिवानगी थी. आपि भी उसी की अंदाज़ में उसका मक
ु म्मल साथ दे रही थीं. बिलाल
और आपि कुछ दे र एक दस
ू रे की होंठ चूसते रहे . होंठो को एक दस
ू रे से चिपकाये ही आपि ने अपने हाथ
नीचे किये और बिलाल की शर्ट को अपने हाथों से उपर उठाने लगी. बिलाल थोड़ा पीछे हुआ और आपि ने
उसकी शर्ट सर से और हाथों से निकल कर दरू फैं क दी. बिलाल ने आगे बढ़ कर फिर अपने होंठ आपि
की गर्दन पे रख दिया और आपि की गर्दन को चुमने और चाटने लगा. आपि ने अपने सर को पीछे की
ओर ढलका दिया और बिलाल की नंगी कमर पे अपने हाथ फेरने लगी. बिलाल ने अपने हाथों को नीचे
किया और आपि की सलवार में हाथ फसा कर नीचे को झटका दिया और मुझे ये दे खकर है रत का
झटका लगा कर आपि ने बजाये उसे रोकने के खद
ु ही अपने हाथों से अपनी सलवार को नीचे किया और
अपनी टांगों से निकल दी. आपि की नंगी गुलाबी राणें और उनकी खूबसूरत बिल्कुल गोल शेप्ड कुल्हे मेरी
नज़रों की सामने आये तो मैंने बेइख़्तियार ही अपने लंड को पकड़ कर झंझोड़ा और अपने कपड़े उतार
फेंके. बिलाल ने आपि की नंगी कमर को सेहलाते हूवे अपने हाथ थोड़े नीचे किये और आपि की दोनों
कुल्हों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर पूरी ताक़त से एक दस
ू रे से अलाहिदा कर दिया जैसे की वो
दोनों कुल्हों को बीच से चीर दे ना चाहता हो और इसके साथ साथ ही उसने गर्दन सी नीचे आ कर आपि
की दांए उभार को अपने मंह
ु में भरा और अपने दांत आपि की उभार में गढ़ दिया. आपि के चेहरे पे
शदीद तक़लीफ़ के आसार नज़र आये और उनके मुंह से एक करराह्हह्ह निकली, " एआईईईईईईईई
उफ्फ्फफ्फ्फ़ … बिलाल थोड़ा आराम सेय्य … जंगली ही हो जाते हो … मैं कहीं भागि … तो नहीं जा …
रही नहा"

आपि की बात सुनकर बिलाल ऐसे चोंका जैसे उसे पता ही नहीं हो की वो क्या कर रहा था और अभी ही
होश में आया हो. बिलाल ने आपि का उभार मंह
ु से निकाला तो आपि ने बिलाल को थोड़ा पीछे हटाया
और कहा, " बिस्तर पे चलो मैं खड़ी नहीं रह सकती इतनी दे र " ये कह कर आपि बिस्तर की तरफ बढ़ी
और अपनी टाँगें नीचे लटका कर बिस्तर पे लेट गयीं. बिलाल ने अपना ट्रॉउज़र उतारा और आपि के उपर
लेट कर उनकी सीने की उभारों को चस
ू ने लगा. आपि फिर से बिलाल की कमर को सेहलाने लगी. कुछ दे र
आपि की मुम्ममय चूसने के बाद बिलाल ने आपि की पेट को चाटा और अपनी ज़ुबाँ से आपि की नाभि
का मसाज करने लगा. बिलाल थोड़ा और नीचे आया और ज़मीं पे बैठ कर अपनी ज़ुबाँ आपि की टांगों की
दरमिआन वाली जगह पे रख दी. आपि ने बिलाल की ज़ुबाँ को अपनी चूत पे महसूस किया तो उनके मुंह
से एक " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " निकलि और बेसख्ता ही आपि ने अपनी टांगों को थोड़ा और खोल कर घुटनों
को मोड़ते हूवे अपने पांव बिस्तर पे रख लिए और आँखें बंद करकेअपने दोनों हाथ बिलाल की सर पे रख
कर अपनी चूत बिलाल के मुंह पे दबाने लगी.

बिलाल ने आपि की चूत को चूसते हूवे अपने दोनों हाथ आपि की कुल्हों की नीचे रखे और कुल्हों को
थोड़ा सा उठा कर आपि की गान्ड़ के सरू ाख को चम
ू ा. जैसे ही बिलाल की होंठ आपि की पिछले सरू ाख से
टच हूवे आपि के मुंह से एक ज़ोरदार सिसकि निकलि और उन्होंने अपनी आँखें खोलकर सर थोड़ा उठाया
और बिलाल को दे खते हूवे कहा, " हैंण्ण्ण्ण्न बिलाल … हैंन्न … यहाँ ही … आह्हह्ह … चाटूओ उससे. अपनी
ज़ुबाँ टच करो यहाँनं. उफ्फ्फ " आपि ने अपनी गान्ड़ को मज़ीद उपर की तरफ झटका दिया और बिलाल
की सर को ज़ोर से नीचे की तरफ अपनी गान्ड़ के सूराख पे दबाया. 2-3 ज़ोरदार झटके मारने के बाद
आपि ने अपना सर पीछे बिस्तर पे पटका और गर्दन घुमाकर मेरी तरफ दे खा.

मैं उन दोनों को दे खते हूवे अपना लंड आहिस्ता आहिस्ता सेहला रहा था. आपि को अपनी तरफ दे खता पा
कर मैंने उनकी ऑ ंखों में दे खा … आपि की आँखें नशीली हो रही थीं और लाल डोरे ऑ ंखों को मज़ीद
खब
ू सरू त बना रहे थे. आपि कुछ दे र मेरी ऑ ंखों में आँखें डाले दे खति रहीं और मीठी मीठी सिसकियाँ
भरती रहीं. फिर उन्होंने अपने दोनों हाथों को उठाया और हाथ फैला कर अपनी गर्दन और हाथों को ऐसे
हिलाया जैसे मझ
ु े गले लगाने के लिए बुला रही हो. मैं कुछ दे र ऐसे ही बैठा रहा और आपि भी अपने हाथ
फैलाए मुझे मोहब्बत और हवस भरी नज़रों से दे खती रहीं. कुछ दे र बाद उन्होंने फिर इशारा किया और
अपने होठों को किस करने की अंदाज़ में सिकूड़ कर मुस्कुरा दीं. मैंने भी आपि को मुस्कुराकर दे खा और
सर झटकाते हूवे खड़ा हो कर आपि की ओर बढ़ा.

आपि के सर के पास बैठ कर मैंने उनके होंठो पे एक भरपूर किस की और फिर उनकी सीने की उभारों
को चाटने और चूंचियों को चूसने लगा. मैं आपि की चूंचियों को चूस ही रहा था की मुझे हैरत और
लज़्ज़त की एक और झटका लगा आपि ने आज पहली बार खद
ु से, मेरे बिना कहे हूवे, मेरे लंड को पकड़ा
था. मैंने आपि की चूंचियों को छोड़ा और सरप्राइज्ड़ कैफ़ियत में आपि के चेहरे को दे खा तो आपि ने शर्मा
कर मुस्कुराते हूवे अपनी आँखें बंद कर लीं और अपना चेहरा साइड पे कर लिया. मैं कुछ दे र ऐसे ही
आपि की शर्म से लाल हूवे चेहरे पे नज़र जमाये रहा. आपि की आँखें बंद थीं लेकिन वो मेरी नज़रों की
शिद्दत को अपने चेहरे पे महसूस कर रही थें . उन्होंने एक लम्हे को ऑ ंख खोलकर मेरी ऑ ंखों में दे खा और
फिर से अपनी ऑ ंखों को भें चते हूवे शर्मा कर बोली, " सागर क्या है … ऐसे मत दे खो नाआआ … वरना मैं
छोड़ दं ग
ू ी इसको " इसको कहते वक़्त आपि ने मेरे लंड को ज़ोर से अपनी मुठ्ठी में दबाया. मैंने मुस्कुराकर
आपि को दे खा और फिर बिलाल पे नज़र डाली. बिलाल आपि की गान्ड़ के सूराख को चाटने और चूसने
में लगा था तो मैंने आगे हो कर आपि की चूत पे अपना मुंह रख दिया और आपि की चूत के दाने को
मुंह में भर की अपनी पूरी ताक़त से चूसने लगा. आपि मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ कर कभी दबाती
थीं तो कभी अपनी गिरफ्त लूज कर दे ती थीं. अब हमारी पोजीशन कुछ 69 जैसी ही थी. मेरा लंड आपि के
मुंह से चंद इंच ही दरू था और मैं अपनी बहन की गरम गरम सांसों को अपने लंड और अपनी गोटियों
पे महसस
ू कर रहा था. मेरा बहुत शिद्दत से दिल चाहा था की आपि मेरे लंड को अपने मंह
ु में लें लेकिन
मैं जानता था की वो अभी इसके लिए राज़ी नहीं होंगी.

मैंने अपना चेहरा नीचे किया और अपनी ज़ुबाँ निकाल कर आपि की चूत को चाटने के लिए क़रीब हुआ
ही था की आपि की चूत से उठ़ते मधुर, मदहोश कर दे ने वाली ख़ुशबू का झोंका मेरी नाक से टकराया …

मैंने कुछ दे र लम्बी लम्बी साँसें नाक से अंदर खींची और आपि की चूत की ख़ुशबू को अपने अंदर बसा
कर मैंने अपनी ज़ुबाँ से आपि की चूत को परू ा चाटा और एक किस करने के बाद आपि की चूत की पूरी
लम्बाई को, आपि की चत
ू के दोनों लबों समेत अपने होंठो में दबा लिया और अपनी परू ी ताक़त से चत

को चूसने लगा. आपि की चूत की दिवारों से रिसता उनका जूस मेरे मुंह में आने लगा और मैंने उससे
क़तरा क़तरा ही अपने हलक़ में उडेल दिया. कुछ दे र इसी तरह आपि की चूत को चूसने के बाद मैंने
उनकी चत
ू के दाने को चस
ू ते हूवे अपनी उं गलियों से आपि की चत
ू की दोनों परदों को खोला और एक
उं गली चूत की लकीर में उपर से नीचे और नीचे से उपर फेरना शुरू कर दी. आपि की हालत अब बहुत
ख़राब हो चुकी थी उन्हें दनि
ु यां ओ माफिया की कोई खबर नहीं रही थी. उनकी चूत और गान्ड़ का सूराख
उनकी दोनों सगे भाइयों के मुंह में थे.

आपि की चूत बहुत गीली हो चुकी थी. मैंने आपि की चूत के दाने को अपने मुंह से निकाला और अपनी
उं गली पे लगा आपि का जस
ू चाट कर अपनी उं गली चस
ू ली … फिर अपनी उं गली को आपि की चत
ू के
सूराख पे रखा और हल्का सा दबाव दिया तो मेरी उं गली क़रीब एक इंच तक अंदर दाखिल हो गई. उसी
वक़्त आपि ने तड़प कर आँखें खोलीं जैसे की होश में आई हूँ और बोली, " नहीं सागर प्लीज … अंदर नहीं
डालो. बस बाहर बाहर से ही करो ना जो भी करना है ."

" कुछ नहीं होता आपि मैं ज़्यादा अंदर नहीं डालँ ूगा. अगर ज़्यादा अंदर डालँ ू तो आप उठ़ जाना प्लीज.
प्रॉमिस कुछ नहीं होगा."

मैंने ये कह कर फिर से आपि की चूत के दाने को अपने मुंह में ले लिए और अपनी उं गली को आहिस्ता
आहिस्ता अंदर बाहर करने लगा लेकिन मैं इस बात की केअर कर रहा था की उं गली ज़्यादा अंदर ना
जाये. आपि ने कुछ दे र तक आँखें खुली रखीं और अलर्ट रहीं की अगर उं गली ज़्यादा अंदर जाने लगे तो
वो उठ़ जायें लेकिन आपि ने ये दे खा की मैं ज़्यादा अंदर नहीं कर रहा हूँ तो फिर से अपना सर बिस्तर
पे टिका दिया और फिर खुद बा खुद ही उनकी आँखें भी बंद हो गयीं.

मैं आपि की चूत का दाना चूसते हूवे, अपनी उं गली को चूत में अंदर बाहर कर रहा था. आपि की चूत
किसी तंदरू की तरह गरम थी. मैंने काफी सन
ु ा पढ़ा था की चत
ू बहुत गरम होती है लेकिन मैं ये ही
समझता था की गरम से मुराद " हवस की तलब " है लेकिन आज अपनी बहन की चूत को अंदर से
महसूस करके मुझे पहली बार ये पता चला था की चूत हकीकत में ही ऐसी गरम होती है की बाक़ाएदा
उं गली पे जलन होने लगी थी. आपि की चत
ू अंदर से बहुत ज़्यादा नरम भी थी. जैसे कोई मखमली चीज़
हो. मैं अपनी बहन की चूत में उं गली अंदर बाहर करता हुआ सोचने लगा कर जब मेरा लंड यहाँ जायेगा
तो कैसा फील होगा पता नहीं मेरा लंड ये गर्मी बर्दाश्त कर पायेगा या नहीं …

आपि भी अब बहुत एक्साइट हो चुकी थीं और उनका हाथ मेरे लंड पे बहुत तेज़ी से हरकत करने लगा
था. कभी वो अपनी मुठ्ठी मेरे लंड पे आगे पीछे करने लगती थीं तो कभी लंड को भींच भींच की दबाने
लगतीं. कुछ दे र बाद मझ
ु े फील हुआ की अब मैं झड़ने लगा हूँ तो मैंने एक झटके से आपि का हाथ पकड़
कर अपने लंड से हटा दिया. क्योंकी मैं अभी डिस्चार्ज नहीं होना चाहता था.

बिलाल अभी भी आपि की गान्ड़ के सरू ाख पे ही बिजी था, मैंने उसकी सर पे एक चपत लगाई और उसे
उपर आने का इशारा किया और खुद उठ़कर बैठ गया. बिलाल मेरी जगह पे आकर बैठा तो मैंने साइड पे
होते हूवे आपि का हाथ पकड़ कर बिलाल के लंड पे रखा और खुद उठ़कर आपि की टांगों की बीच में आ
बैठा. बिलाल ने आपि की हाथ को अपने लंड पे महसस
ू करते ही एक आहः भरी और बोला, "
आअह्ह्ह्ह्ह्ह आपि जी … आप का हाथ बहुत नरम है " और ये कह कर आपि की होंठो को चूसने लगा.

मैंने फिर से अपनी उं गली को आपि की चूत में डाला और उनकी गान्ड़ की सूराख को चाटते चूसते हूवे
अपनी उं गली को अंदर बाहर करने लगा … कुछ दे र बाद मैंने ग़ैर महसूस तरिके से अपनी दस
ू री उं गली
भी पहली उं गली के साथ रखी और आहिस्ता आहिस्ता उससे भी अंदर दबाने लगा लेकिन मैं इस बात का
ख्याल रख रहा था की आपि को पता ना चले. आपि की चत
ू बहुत गीली और चिकनी हो रही थी. मैंने
कुछ दे र बाद थोड़ा सा ज़ोर लगाया तो मेरी दस
ू री उं गली भी आपि की चूत में दाखिल हो गई और उसी
वक़्त आपि के मुंह से एक सिसकि निकलि और वो बोली, " उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ सागर नहीं प्लीज … बहुत
दर्द हो रहा है . दस
ू री उं गली निकाल लो एक ही उं गली से करो. " मैंने चंद लम्हों के लिए अपनी उं गलियों
को हरकत दे ना बंद कर दी और आपि से कहा, " बस आपि अब तो अंदर चली गई है . कुछ सेकंड में दर्द
ख़तम हो जायेगा … अगर दर्द नहीं ख़तम हुआ तो मैं बाहर निकल लूंगा"
मेरी बात की जवाब में आपि ने कुछ नहीं कहा बस सिसकियाँ लेने लगी. आपि ने दर्द की वजह से
बिलाल के लंड से भी हाथ हटा लिया था. मैंने अपनी उं गलियों को सकत रखते हूवे बिलाल को इशारा
किया की वो आपि का हाथ अपने लंड पे रखे और उनकी सीने की उभार चूसे और मैंने खुद आपि की
चूत के दाने को मुंह में ले लिया की उनकी दर्द का एहसास कम हो जाये. चंद ही लम्हों बाद आपि ने
अपना हाथ बिलाल के लंड पे चलाना शुरू कर दिया और अपनी गान्ड़ को थोड़ा सा उठा कर अपनी चूत
को मेरे मंह
ु पे दबाने लगी जिससे मैं समझ गया की अब आपि का दर्द का एहसास कम हो गया है . फिर
मैंने भी अपनी उं गलियों को हरकत दे ना शुरू कर दी और कुछ ही दे र में मेरी दोनों उं गलियां बहुत आराम
से अंदर बाहर होने लगी. कुछ दे र बाद मैंने अपनी उं गलियों को तेज़ी से अंदर बाहर करना शुरू किया
जिसकी वजह से मैं ये कंट्रोल नहीं कर पा रहा था की उं गली एक इंच से ज़्यादा अंदर ना जाये और हर
3,4 स्ट्रोक में उं गलियां थोड़ा सा और गहराई में चली जातीं जिससे आपि के मुंह से तक़लीफ़ भरी आह्ह्ह
खारिज हो जाती. इसी तेज़ी तेज़ी में मैंने एक बार ज़रा ताक़त से उं गलियों को थोड़ा और गहराई में दबाया
तो आपि के मंह
ु से एक चीख़ नम
ु ा सिसकि निकली

" आआईईईईईईईईई … सागररररररररर. कहा है ना आराम से करो लेकिन तुम लोग जंगली हो जाते हो …
हम ये सब मज़ा लेने के लिए कर रहे है . लेकिन इस से मज़ा नहीं तक़लीफ़ होती है नाआआअ"

" अच्छा अच्छा अब आराम से करूंगा कसम से बस … मैं अपनी बहन को तक़लीफ़ नहीं दे सकता … बस
ग़लती से हो गया था प्लीज सॉरी आपि " और मैंने फिर से उं गलियों की हरकत को कुछ दे र रोकने के
बाद आहिस्ता आहिस्ता हरकत दे नी शुरू कर दी. कुछ ही दे र में आपि का जिस्म अकड़ना शुरू हो गया
और आपि की हाथ की हरकत बिलाल के लंड पे बहुत तेज़ हो गई. मुझे अंदाज़ा हो गया था की आपि की
चूत अपना रस बहाने को तैयार है . मैंने आपि की चूत के दाने को अपने दांतों में पकड़ा और अंगलियों को
तेज़ तेज़ अंदर बाहर करने लगा लेकिन इस बात का ख्याल रखा की उं गलियां ज़्यादा गहराई में ना जाने
पायीं. आपि का जिस्म अकड़ गया और उन्होंने अपने कुल्हे बिस्तर से उठा लिए और बिलाल के लंड को
परू ी ताक़त से अपनी तरफ खींच लिए. उसी वक़्त बिलाल के मंह
ु से आहः निकलि और उसके लंड का
जूस आपि की पेट पे गिरने लगा और 4, 5 सेकंड बाद ही आपि भी अपनी मंजिल पे पहुंच गयीं और
उनकी चूत मेरी उं गलियों को भिंचने लगी. अजीब ही मूवमें ट थी चूत की. कभी मेरी उं गलियों को मज़बूती
से भींच लेती थी तो अचानक ही मट्ठ
ु ी लज
ू हो जाती और अगले ही लम्है फिर भिंचने लगती. 4,5 झटके
खाने के बाद आपि भी परु सुकून हो गयीं और मैंने अपनी उं गलियां आपि की चूत से बाहर निकालीं और
उनकी चूत को चाटने और चूसने के बाद खड़ा हो गया.

मैंने आपि पे नज़र डाली तो उनका चेहरा बहुत पुरसुकून नज़र आया जैसे की वो पता नहीं कितनी लम्बी
मुसाफत तय करके मंजिल तक पहुंची हूँ. आपि ने मेरी तरफ दे खा और मुस्कुराकर उठ़ बैठीं और कहा, "
ओू मेरा शेह्ज़ादा भाई का " वो " तो अभी तक फुल जोश में ही है . आपि ने एक नज़र मेरे सीधे खड़े लंड
पे डाली और फिर बिलाल की तरफ दे खकर बोली, " बिलाल उठ़ो सागर का " वो " चूसा… आज बहुत दिन
हो गए है मैंने तुम लोगो को ये करते नहीं दे खा. " मैंने आपि की बात सुनि तो वहीं खड़ा हो गया और
मुस्कुराकर आपि को दे खते हॉवे हूवे कहा, " वो क्या आपि, नाम लेकर बोलो ना"

आपि ने शर्मा कर मुझसे नज़र चुराई और बोली, " बकवास नहीं करो … कह दिया मैंने जो कहना था "
और फिर बिलाल को दे खकर कहा " उठ़ो ना जाओ सागर के पास " बिलाल आकर मेरी टांगों में बैठा तो
मैंने उससे रूकते हूवे आपि को दे खा और बोला, " आपि प्लीज यार बोलो ना … मज़ा आयेगा ना सन
ु कर …
अब क्या शर्मा रही हो बोलने में " आपि कुछ दे र रूकीं और फिर मुस्कुराकर बोलीं " अच्छा बाबा …
बिलाल चलो सागर का … लंड चूसो… अपने बड़े भाई का लंड चूसो " और ये कह कर हसने लगी. ये कोई
इतनी बड़ी बात नहीं थी लेकिन पता नहीं क्यों आपि के मुंह से लफ़्ज़ लंड सुनकर बहुत मज़ा आया और
लंड को एक झटका सा लगा. बिलाल ने मेरे लंड को अपने दोनों हाथों में पकड़ा और एक बार ज़ुबाँ पूरे
लंड पे फेरने के बाद उससे अपने मुंह में भर लिया. मैंने आपि की तरफ दे खा वो बिस्तर पे बैठी थीं
उन्होंने अपने दोनों घुटने बेंड करके अपने सीने से लगाये हूवे थे और अपने घुटनों से बाज़ू लपेट की
अपना चेहरा घट
ु नों पे टिका दिया था. आपि की दोनों टांगों की दरमियाँ से उनकी क्यट
ू सी गल
ु ाबी चत

नज़र आ रही थी. आपि की नज़र मुझसे मिली तो मैंने आपि को ऑ ंख मारी और कहा " आपि अगर
बिलाल की जगह आप का मुंह होता तो क्या ही बात थी " आपि ने बुरा सा मुंह बनाया और हाथ से
मक्खी उड़ाने की अंदाज़ में कहा, " ईवववववववव … चलो गंदे. मैं ऐसा कभी नहीं करने वाली."

कुछ दे र आपि हमें दे खती रहीं और फिर उठ़कर मेरे पीछे आकर चिपक गयीं … आपि की सख्त चूंचियां
मेरी कमर पे टच हूवे तो मज़े की एक नयी लेहेर मेरे जिस्म में फैल गई. आपि ने अपने सीने की उभारों
को मेरी कमर से दबाया और अपने चूंचियों को मेरी कमर पे उपर से नीचे और नीचे से उपर रगड़ने
लगी. आपि की चूंचियां मेरी कमर पे रगड़ खा कर मेरे अंदर बिजली सी भर रहे थे और एक बहुत हसीं
अहसास था नरमी का और कामवासना का, मैंने मज़े की असर में अपने सर को एक साइड पे ढलका
दिया और आँखें बंद करके अपनी बहन की चूंचियां का लम्स महसूस करने लगा. आपि ने अपने उभारों
को मेरी कमर पे रगड़ना बंद किया और ज़रा ताक़त से मेरी कमर से दबा की अपने दोनों हाथ मेरे कांधों
पे रखे और मेरे बाजओ
ू ं पे हाथ फेरते हूवे मेरे हाथों पे आ के मेरे हाथों को अपने हाथों से दबाया और
अपने दोनों हाथ मेरे पेट पे रख कर मस्सगे करने लगी. पेट पे हाथ फेरने के बाद आपि अपने हाथ नीचे
ले गयीं और मेरे गोटियों को अपने हाथों में ले कर सेहलाने लगी.

बिलाल मेरा लंड चूस रहा था और आपि मेरे गोटियों को अपने हाथों से सेहलाते हूवे अपनी सख्त चूंचियां
मेरी कमर पे चुभा रही थीं.
अचानक आपि ने मेरी गर्दन पे अपने होंठ रखे और गर्दन को चुमते और चाटते हूवे मेरे कान की लो को
अपने मुंह में ले लिया और कुछ दे र कान को चूसने के बाद आपि ने सरगोशी और मज़े से डूबी आवाज़
में कहा, " कैसा लग रहा है मेरे प्यारे भाई कोऊ?? मज़ा आ रहा है ना " मैंने अपनी पोजीशन चें ज नहीं की
और नशे में डूबी आवाज़ में ही जवाब दिया, " बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा है आपि … बहुत ज़्यादा " आपि
ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से पकड़ कर पीछे की तरफ किया और मेरे होंठो को चूसने लगी. तभी मेरे
जिस्म को भी झटका लगा और मेरे लंड का पानी बिलाल के मंह
ु में स्प्रे करने लगा …

कुछ दे र बाद मैंने अपनी आँखें खोलीं तो आपि मेरी ऑ ंखों में ही दे ख रही थीं और मेरी ज़ब
ु ाँ को चस
ू रही
थीं. मैं नज़र नीचे करके बिलाल को दे खा तो बिलाल बस आखरी बार मेरे लंड को चाट कर पीछे हट रहा
था. मैंने अपने हाथ से बिलाल को रोका और उसके होंठो की साइड से बेहते अपनी लंड की जूस को
अपनी उं गली पे उठा लिया …

आपि मेरी बैक पे थीं जिसकी वजह से उन्होंने भी ये दे ख लिए था की मैंने अपनी उं गली पे अपने लंड
का जस
ू उठाया है . मैंने अपनी उं गली आपि के मंह
ु के क़रीब करते हूवे शरारती अंदाज़ में कहा, " आपि एक
बार चख कर तो दे खो … मज़ा ना आये तो कहना " आपि जल्दी से पीछे हटते हूवे बोली, " नहीं भाई. मुझे
माफ़ ही रखो मैंने नहीं चखनी … " और ये कह कर आपि पीछे हटते हूवे बाथरूम में चली गयीं और मैं
और बिलाल भी अपने जिस्म को साफ करने लगे. कुछ दे र बाद आपि बाथरूम से बाहर आयीं तो फ़ौरन
ही बिलाल बाथरूम में घुस गया. मैं बिस्तर पे ही लेटा था. आपि ज़मीं से अपने कपड़े उठाकर पेहनने लगी
… अपने कपड़े पहन कर आपि ने मेरा ट्रॉउज़र और शर्ट उठाकर मेरे पास बिस्तर पे रखी और बिलाल की
शर्ट और तरौसे ले जा कर अल्मारी के साथ रखे हें गर पे टांग दिया और बाथरूम की दरवाज़े के पास जा
कर बोली, " बिलाल तुम्हारे कपड़े स्टैंड पे टांग दिया है मैंने. बाहर निकल कर पहन लेना और दध
ू टे बल पे
रखा है वो लाज़मी पे लेना”. " फिर आपि ने जग से दध
ू का गिलास भरा और मेरे पास आ कर मेरे होंठो
को चूमा और मेरे सर पे हाथ फेर कर बोली, " उठ़ो मेरी जान. शाबाश दध
ू पियो और फिर कपड़े पहन कर
सही तरह लेटो. शाबाश उठ़ो. " मझ
ु े अपने हाथ से दध
ू पीलाने के बाद आपि ने एक बार फिर मेरे होठों को
चूमा और खड़ी हो गई, " बिलाल निकले तो उसे भी लाज़मी दध
ू पीला दे ना अच्छा … याद से भूलना नहीं
ओके … मैं अब चलती हूँ तुम भी सो जाओ. " और ये कह कर आपि रूम से बाहर निकल गयीं …

आज कल कुछ ऐसी रूटीन बन गई थी की रात को सोते वक़्त, मेरे ज़हन में आपि की खूबसरू त जिस्म
का ही ख्याल होता, सांसों में आपि की ही ख़ुशबू बसीं होती थी और सुबह उठते ही पहली सोच भी आपि
ही होती थीं. मैं सुबह उठा तो हमेशा की तरह बिलाल मुझसे पहले ही बाथरूम में था और मैं अपने
स्पेशल नाश्ते के लिए नीचे चल दिया. मैंने नीचे पहुंच की दे खा तो अम्मी अब्बू का डोअर अभी भी बंद
ही था लेकिन आपि की रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था. मैंने अपने क़दम आपि की रूम की तरफ
बढ़ाये ही थे की उन्होंने अंदर से ही मुझे दे ख लिया … मैंने ने आपि के सीने की उभारों की तरफ इशारा
करते हूवे उनको ऑ ंख मारी और मुंह ऐसे चलाया जैसे दध
ू पीने को कह रहा हूँ. आपि ने मसनूई गुस्से से
मुझे दे खा और ऑ ंखों की इशारे से कहा की, " ऐनी यहीं है "

मैंने अपने हाथ की इशारे से कहा " कोई बात नहीं " और उनकी रूम की तरफ क़दम बढ़ा दिया … आपि
ने एक बार गर्दन पीछे घुमाकर ऐनी को दे खा और फिर मुझे गुस्से से आँखें दिखाते हूवे वहीं रुकने का
इशारा किया. मैंने आपि की इशारे को कोई एहमीयत नहीं दी और आगे बढ़ना जारी रखा. आपि ने एक
बार फिर मझ
ु े दे खा और फ़ौरन रूम का दरवाज़ा बंद कर दिया …

मैं कुछ सेकंड वहीं रुका और फिर सर को झटकते हूवे मुस्कुरा कर वापस अपने रूम की तरफ चल दिया
… जब मैं नहा कर तैयार होकर नाश्ते के लिए पहुंचा तो सब मझ
ु से पहले ही टे बल पे बैठे थे. मैंने सलाम
करने के बाद अपनी सीट सँभाली ही थी की आपि ने आखरी प्लेट टे बल पे रखी और मेरे दांए साइड पे
साथ वाली सीट पे ही बैठ गयीं.

सदारति सीट पे अब्बू बैठे ( जो अब्बू के लिए मख़सूस थी ) एक हाथ में अख़बार पकड़े चाय की आखरी
आखरी घूंट पी रहे थे और हमारे सामने टे बल की दस
ू री तरफ अम्मी, बिलाल और ऐनी बैठे थे और
अम्मी रोज़ की तरह उनको नसीहतें करते करते नाश्ता भी करती जा रही थीं. मैंने सब को एक नज़र दे ख
कर आपि को दे खा तो वो पराठे का लुक़मा बना रही थी. आपि ने लुक़मा बनाया और अपने मुंह की तरफ
हाथ ले जा ही रही थीं की मैंने आहिस्तगी से अपना हाथ उठाया और आपि की राण पे रख दिया … मेरे
हाथ रखते ही आपि को एक झटका सा लगा. एक दम ही खौंफ से उनका चेहरा लाल हो गया. आपि का
लुक़मा मुंह के क़रीब ही रुक गया और मुंह खुला ही रखे आपि ने नज़र उठाकर अब्बू को दे खा वो अपनी
अख़बार में ही डूबे हूवे थे. फिर आपि ने अम्मी लोगों को दे खते हूवे अपना हाथ नीचे करके मेरे हाथ को
पकड़ा और अपनी राण से हटा दिया.

आपि की हालत मेरे पहले हमले की वजह से ही अभी नहीं सँभली थी की मैंने चंद लम्हों बाद ही फिर
अपना हाथ आपि की राण पे रखा और इस बार राण की अन्दरूनी हिस्से को अपने पँजे में जकड़ लिए.
आपि ने इस बार फौरन कोई हरकत नहीं की और खोंफज़दा से अंदाज़ में नाश्ता करते करते फिर मेरा
हाथ हटाने की कोशिश करने लगी लेकिन मैंने अपनी गिरफ्त को मज़बूत कर लिया. आपि ने कुछ दे र
मेरा हाथ हटाने की कोशिश की और नाकाम हो कर फिर से नाश्ते की तरफ ध्यान लगाने लगी. मैंने ये
दे खा की अब आपि ने सिचुएशन को क़बूल कर लिया है तो मैंने भी अपनी गिरफ्त लूज कर दी और
आपि की राण की अन्दरूनी हिस्से को नरमी से सेहलाने लगा.
आपि की राण को सेहलते सेहलाते ही ग़ैर महसूस तरीके से मैंने अपने हाथ को अंदर की तरफ बढ़ाना
शुरू कर दिया … जैसे ही मेरा हाथ आपि की चूत पे टच हुआ तो वो एक दम उछल पड़ी.

जिससे अम्मी भी आपि की तरफ मुतवज्जा हो गयीं और पुछा, " क्या हुआ रूबी. तुम्हारा चेहरा कैसा लाल
हो गया है " अम्मी की बात पे अब्बू समेत सब ही ने आपि की तरफ दे खा तो आपि ने खांसते हूवे कहा,
" अक्खह्हूँ … आककककह्हह्हुँ कुछ नहीं अम्मी … वो … आख़ून … आममलाइट में हरी मिर्च थी ना
डायरे क्ट गले में लग गई है . पानी … आककककह्हूँ … पानी दे दे " मैंने इस सब के दौरान भी अपना हाथ
आपि की चत
ू से नहीं हटाया था. बल्कि इस सिचए
ु शन से फ़ायदा उठा कर अपने अंगठ
ू े और इंडक्
े स
उं गली की चुटकी में आपि की सलवार के उपर से ही उनकी चूत के दाने को पकड़ लिए.

" इतनी जल्दी क्या होती है ज़रा सक


ु ू न से नाश्ता कर लो तम्
ु हारी वो मई
ू यनि
ु वर्सिटी कहीं भागि तो नहीं
जा रही ना " अम्मी ने गिलास में पानी डालते हूवे कहा … मैंने अम्मी की हाथ से गिलास लिया और
आपि के होठों से गिलास लगा कर शरारत से कहा, " ऐसा लगता है सारी पढ़ाई बस हमारी बहन ने ही
करनी है . बाक़ी सब तो झक ही मारते है वहां " मेरी बात पे अब्बू अम्मी भी मस्
ु कुरा दिया और अब्बू ने
फिर से अख़बार अपने चेहरे की सामने कर ली और उसमें गुम हो गए. अम्मी भी फिर से ऐनी और
बिलाल से बातें करने लगी.

मैं आपि को अपने हाथ से पानी भी पीला रहा था और दस


ू रे हाथ से आपि की चूत के दाने को मसलता
भी जा रहा था … मेरी इस हरकत से आपि की चूत ने भी रिपॉन्स दे ना शुरू कर दिया था और आपि की
सलवार वहां से गीली होने लगी थी. मैं समझ गया था की आपि खोंफज़दा होने की बावज़द
ू भी मेरे हाथ
की लम्स से मज़ा महसूस कर रही है . आपि ने सब पे नज़र डालने के बाद अपनी खूबसरू त आँखें मेरी
तरफ उठायीं और इल्तिजा और गुस्से की मिले जुले तासुर से मुझे दे खा जैसे कह रही हो की,

" सागर ये मत करो प्लीसीएएएएए"

लेकिन मैंने आपि के चेहरे से नज़र हटाते हूवे मुस्कुराकर अपना कप उठाया और चाय की चुस्कियाँ लेते
लेते अपने हाथ को भी हरकत दे ने लगा.

कुछ दे र आपि की चूत के दाने को अपनी चुटकी में मसलने के बाद मैंने अपनी उं गली आपि की चूत की
लकीर में उपर से नीचे फेरना शुरू कर दी. आपि ने भी पराठा ख़तम कर लिए था और अब चाय पी रही
थीं. मैंने अपनी उं गली को उपर से नीचे फेरते हूवे चत
ू की नीचले हिस्से पे लाकर रोका और अपनी उं गली
को अंदर की तरफ दबाने लगा. आपि के चेहरे पे तक़लीफ़ के आसार पैदा हूवे और उन्होंने एक गुस्से से
भरपूर नज़र मुझ पे डाली और अपनी चेयर को पीछे धकेलते हूवे खड़ी हूई और गुस्से से मझ
ु े दे खते हूवे
अपने रूम में चली गयीं …

आपि के साथ ही अब्बू भी खड़े हो गए थे. ऐनी और बिलाल भी नाश्ता कर चुके थे. वो भी खड़े हो गए की
स्कूल बस तक अब्बू ही छोड़ते थे उन्हें . मैंने चाय का घंट
ू भरते हूवे ऐनी को आवाज़ दे की कहा, " ऐनी
दे खो ज़रा … आपि ने कल मुझसे हाइलाइटर लिए थे वो रूम में ही पड़े होंगे मुझे ला दो"

ऐनी ने सोफ़े से अपना स्कूल बैग उठाया और बाहर की ओर जाते हूवे कहा " भाई आप खद
ु जा कर ले
लें ना. अब्बू बाहर निकल गए है , हमें दे र हो रही है प्लीज. " और ये कह कर वो बाहर निकल गई उसकी
पीछे ही बिलाल भी चला गया. उनके जाने के बाद अम्मी भी अपने रूम की तरफ जाने लगी और मझ
ु े
कहा, " सागर चाय ख़तम करके रूबी को कह दे ना बर्तन उठा ले, मैं ज़रा वाश रूम से हो आऊं. " मैंने भी
अपनी चाय का आखरी घूंट भरा तो अम्मी अपने रूम में जा चुकी थीं. मैंने एक नज़र उनकी दरवाज़े को
दे खा और फिर भागता हुआ आपि की रूम में दाखिल हो गया. आपि बाथ रूम में थी मैंने दरवाज़े के पास
जा कर आहिस्ता आवाज़ में आपि को पक
ु ारा, " आपि अंदर ही हो ना?? क्या कर रही हो"

आपि ने अंदर से ही गुस्से में जवाब दिया, " तुम्हें पता है सागर तुम … खबीस … तुम कभी कभी बिल्कुल
पागल हो जाते हो"

मैंने आपि की बात सन


ु कर शरारत से हसते हूवे कहा " हे हेहे ही छोड़ो ना यार आपि … अब ये झट
ू मत
बोलना की तुम को मज़ा नहीं आया … तुम्हारे मज़े का सबूत अभी भी मेरी उं गलियों को चिपचिपा बनाये
हूवे है … और मुझे पता है अभी भी मेरी बेहना जी अपने हाथ से मज़ा ले रही है . प्लीज आपि मुझे भी
दे खने दो ना यारर!!"

आपि ने उसी अंदाज़ में जवाब दिया, " हां … है … है … मैं कर रही हूँ अभी भी अपने हाथ से … और
तम्
ु हारी ये सजा है की मैं तम्
ु हें ना दे खने दं .ू "

मैं 2-3 मिनट वहीं खड़ा आपि को दरवाज़ा खोलने का कहता रहा लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया
बस अंदर से हलकी हलकी सिसकियों की आवाज़ें आती रहीं. मज़ीद 3,4 मिनट के बाद आपि बाहर निकलीं
तो उनके बाल बिखरे हूवे थे, चेहरा चमकता हुआ सा लाल हो रहा था और पसीने की नन्हे नन्हे क़तरे
उनकी पेशानी पे साफ नज़र आ रहे थे. आपि ने अपने दोनों हाथ अपनी क़मर पे टिकाये और नशीली
ऑ ंखों से गस्
ु सीले अंदाज़ा में मझ
ु े दे खा. मैंने आगे बढ़ कर आपि के चेहरे को थामा और उनकी होंठो को
चूम कर कहा, " तो मेरी बेहना ने ये सब बहुत एन्जॉय किया है और मुझे खामखां गुस्सा दिखा रही थी"
आपि ने अपनी कमर से हाथ उठाकर मेरे सीने पे एक मुक्का मारा और फिर मेरे गले लगते हूवे अपना
चेहरा मेरे सीने में छुपा कर बोली, " जी नहीं. मुझे शदीद गुस्सा आ रहा था तुम पे. सागर प्लीज कुछ तो
ख्याल किया करो … ज़रा सोचो अम्मी अब्बू को ज़रा सा भी शक़ हो जाता तो हमारा क्या होता"

मैंने आपि की कांधों को पकड़ कर उन्हें पीछे किया और उनके चेहरे को फिर से अपने हाथों में भरते हूवे
कहा, " लेकिन आपि इस सब में मज़ा भी तो बहुत आता है ना … अकेले में ये सब करने में मज़ा तो है
लेकिन इतनी एक्साइटमें ट नहीं है जितने की ऐसे टाइम पर है की हम सब की सामने भी है और हमारी
हरकतें सब से छुपी हूई भी है . आप भी कितनी एक्साइट हो गई थी ना"

" हां तुम सही कह रहे हो लेकिन फिर भी सागर … प्लीज दब


ु ारा ऐसा मत करना"

" ओके … मेरी सोहणी बहना जी … आईन्दा ख्याल रखग


ूं ा बस"

ये कह कर मैंने मुस्कुराकर आपि की ऑ ंखों में दे खा और फिर एक बार आपि की होंठो को चूम कर बाहर
निकला और आपि को सोचता हुआ ही कॉलेज को चल दिया …

दिन में कॉलेज से आ के खाना खाया और आराम करने के बाद रूम में ही अपना एक प्रोजेक्ट खोल बैठा
जो 2 दिन बाद लाज़मी कॉलेज में सबमिट करना था. जब मैं अपना प्रोजेक्ट ख़त्म करके उठा तो रात के
8 बज चक
ु े थे. मैं थोड़ी दे र ज़हन को फ्रेश करने के लिए बाहर निकल गया और दोस्तों के साथ कुछ
टाइम गुज़र कर घर वापस आया खाना खा कर उठा तो आपि ने भी आज रात फिर आने का सिग्नल दे
दिया.

मैं रूम में पहुंचा तो बिलाल बाथरूम में था. मैंने अपने कपड़े उतार कर ज़मीं पर फेंके और बिस्तर पे नंगा
ही बैठ कर आपि की आने का इन्तज़ार करने लगा. कुछ दे र बाद बिलाल बाथरूम से निकला तो मेरी
हालत दे खकर खुश होता हुआ बोला, " भाई!! आपि आयेंगी आज भी? " मेरा जवाब हाँ में सुनते ही उसने भी
अपने कपड़े उतार कर वहीं ज़मीं पे फेंके और बिस्तर पे आ कर बैठा ही था की दरवाज़ा खुला. आपि रूम
में दाखिल हूई और अपनी क़मीज़ और सलवार उतार कर सोफ़े पे रख दी. मैं और बिलाल तो पहले से ही
अपने कपड़े उतरे बैठे थे. आपि ज़मीं पे पड़े मेरे और बिलाल की कपड़े उठाने लगी और कपड़े उठाते हूवे
ही बोली, " तुम लोग कुछ तो तमीज़ सीखो कितना टाइम लगता है इन्हें स्टैंड पे लटकाने में " और ये कह
कर आपि ने हमारी तरफ पीठ की और अल्मारी की तरफ चल दीं. आपि की पीठ हमारी तरफ हो गई तो
मेरी नज़रें आपि की खब
ू सरू त कुल्हों पे जम की रह गयीं. जब आपि अपना दांए पांव आगे रखती थीं तो
उनका दांया कुल्हा भी उपर की तरफ चढ़ जाता और जब बांया पांव आगे रखतीं तो उसी रीदम में बांया
कुल्हा नीचे आता और साथ ही दांए कुल्हा उपर की तरफ उठ़ जाता. क़दम उठाने के साथ ही आपि की
कमर का ख़म मज़ीद बढ़ जाता और कुल्हे बाहर की तरफ निकल आते.

आपि हमारे कपड़े स्टैंड पे लटका कर मुड़ी तो हमारी शकल दे ख कर हं सते हूवे बोली, " अपने मुंह तो बंद
कर लो ज़लीलों … ऐसे मंह
ु और आँखें फाड़ फाड़ कर दे ख रहे हो अपनी सगी बहन का नंगा जिस्म. कुछ
तो शर्म करो!"

बिलाल ने तो जैसे आपि की बात सनि


ु ही नहीं. उसकी पोजीशन में कोई फ़र्क़ नहीं आया लेकिन मैंने एक
दम ही अपना खुला मुंह बंद किया और अपने सर को खुजाते झेंपी सी मुस्कराहट के साथ बोला," आपि
कसम से अगर आप खुद अपने आप को ऐसे दे ख लो तो आपकी टांगों की बीच वाली जगह भी गीली हो
जायेगी. हम तो फिर भी लड़के है "

आपि ने मझ
ु े ऑ ंख मारी और बोलीं " अच्छा ऐसा है क्या " और ये कह कर आईने की तरफ चल दीं.
आईने के सामने जा कर आपि ने पहले सीधी खड़ी होकर अपने जिस्म को दे खा और फिर एक हाथ
कमर पे रखा और दस
ू रे हाथ से अपने बालों कोजुड़े की शकल में पकड़ते हूवे साइड पोज़ पे हो गयीं …
और खुद ही अपने जिस्म को आईने में दे खकर निहारने लगी … फिर इसी तरह अपने हाथों को चें ज
किया और दस
ू रे रुख पे होकर फिर अपना साइड पोज़ दे खा और आईने में ही से बिलाल को दे खा जो
अभी भी मुंह खोले आपि के जिस्म को घरू रहा था. फिर आपि ने मझ
ु े दे खा और नज़र मिलने पर ऑ ंख
मार कर एक किस कर दी. मैंने भी अपने लंड पे अपना हाथ आगे पीछे करते हूवे आपि को जवाबी किस
की और हम दोनों ही मस्
ु कुरा दिया. फिर आपि अपनी पीठ आईने की तरफ करके अपनी गर्दन घम
ु ाकर
अपनी गान्ड़ को दे खने लगी … इसी पोजीशन में अपनी गान्ड़ को दे खते दे खते आपि अपने दोनों हाथों को
पीछे ले गयीं और अपने दोनों कुल्हों को पकड़ कर चीरते हूवे अलाहिदा किया और अपनी गान्ड़ का
सरू ाख दे खने की कोशिश करने लगी. जिसमें उन्हें नाकामी ही हो गई. कुछ दे र और कोशिश करने के बाद
आपि ने दब
ु ारा अपना रुख घुमाया और अपने सीने की दोनों उभारों को हाथों में पकड़ कर आईने में
दे खने लगी. आपि ने अपने दोनों उभारों को बारी बारी दोनों साइड्स से दे खा. फिर अपने दोनों उभारों को
आपस में दबाते हूवे आईने में से ही मेरी तरफ नज़र उठाई और मेरी ऑ ंखों में दे खते हूवे अपनी ज़ब
ु ाँ
निकली और सर झुका कर अपने खूबसूरत, गुलाबी खड़े चूंचियों पे अपनी ज़ुबाँ फेरने लगी मेरी बर्दाश्त
अब जवाब दे गई थी. मैं अपनी जगह से उठा और आपि की पीछे जा कर उनकी नंगे जिस्म से चिपक
गया. मैंने आपि की हसीं और नमो नाज़ुक बदन को अपने बाजूओं की हसर में लिया और एक तेज़ साँस
के साथ अपनी बहन की जिस्म की ख़ुशबू को अपने अंदर उतार कर बोला, " आपि ये मक्खन नहीं है …
मैं कसम खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप से ज़्यादा हसीं जिस्म किसी लड़की का नहीं दे खा …
आप बहुत खूबसरू त हो " फिर मैंने आपि की गर्दन को चूमा और कहा " आप का चेहरा, आपकी सीने की
उभार, आपकी बाज़ू, पेट, खब
ू सूरत गोल गोल कुल्हे , ख़म खाइ हूई कमर, आपकी खब
ू सूरत जांघे हर हर चीज़
इतनी हसीं और मुकम्मल है की हर हिस्से पे शाइरी की जा सकती है …"

आपि ने मुस्कुराकर अपने दांए हाथ को मेरे और अपने जिस्म की दरमियाँ लाकर मेरे खड़े लंड को पकड़ा
और अपने दस
ू रे बाज़ो को उठाया और मेरे सर की पीछे से गज़
ु र कर मेरे सर की पष्ु ट पे रखकर मेरे
गाल को चूम कर कहा, " मेरा भाई भी किसी से कम नहीं है … और मेरा जिस्म जितना भी हसीं है
इसपर पहला हक़ मेरे प्यारे भाई का ही है " आपि ने ये कह कर मोहब्बत भरी नज़र से मेरी ऑ ंखों में
दे खा और फिर मेरे गाल पे चट
ु की काटली.

" सससससससीएएएएएएए … आयप्पपीईई कटी " मैंने तक़लीफ़ से झझ


ुं ला कर कहा तो आपि ने मेरे कान
की लो ( इअर लोब ) को अपने दांतों में पकड़ कर काटा और शरारत और मोहब्बत भरे लेहजे में सरगोशी
करते हूवे मेरे कान में बोलीं " हां हूॅं कुत्ती अपने कुत्ते भाई की कुत्ती " और इसके साथ ही मेरे लंड को
भी अपनी मुठ्ठी में ताक़त से भींच दिया. मैंने थोड़ा सा पीछे हट कर अपने हाथ से आपि की टांगों को
खोला और अपना खड़ा लंड आपि की हाथ से छुडवा कर अपने हाथ में पकड़ लिया और आपि की राणों
की दरमियाँ में रख कर अपने लंड की टोपी को आपि की चूत की लकीर पे रगड़ा तो आपि के मुंह से
बेसख्ता ही एक सिसकि खारिज हो गई और वो बोली, " आह्ह्ह्हह्हह्हह्ह सागर … नहीं " और फिर उसी
पोजीशन में रहते हूवे मेरे गाल पे अपना हाथ रख कर मेरी ऑ ंखों में दे ख कर संजीदा लेहजे में कहा, "
इसका सोचो भी नहीं सागर … प्लीज"

मैंने अपने हाथ से पकड़ कर आपि का हाथ अपने गाल से हटाया और उनकी हाथ की पष्ु ट को चम
ू कर
कहा, " आपि मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा जो आप को तक़लीफ़ दे . आप क्यों परे शान होती हो … मैं बस
उपर ही रगड़ूग
ं ा प्लीज " ये कहकर मैंने फिर से अपने फुल खड़े लंड को अपनी बहन की राणों की बीच में
फसाया और आपि से कहा, " अपनी टांगों को बंद कर लो."

आपि ने मेरे कहने की मुताबिक़ मेरे लंड को अपनी राणों में सख्ती से दबा लिया और मेरा लंड आपि की
नर्म हसीं राणों की दरमिआन दब गया. मैंने अपने लंड को आपि की राणों में ही आगे पीछे करना शरू

किया लेकिन 2-3 बार ही आगे पीछे करने से मेरा लंड बाहर निकल आया.

मैं दब
ु ारा अपना लंड आपि की राणों में फसा ही रहा था की आपि ने कहा, " सागर एक मिनट रुको यहीं.
मैं ये सब दे खना चाहती है " और इधर उधर दे ख कर कुछ तलाश करने लगी. फिर आपि कंप्यूटर टे बल
के पास गयीं और चेयर को उठाकर यहाँ ले आयी और आईने में अपना साइड पोज़ दे खते हूवे चेयर को
ज़मीं पे रखा और चेयर की दोनों बाजूओं पे अपने हाथ रख कर थोड़ा आगे को झुक कर खड़ी हो गयीं
और फिर आईने में मेरी तरफ दे खते हूवे अपनी टांगों को खोला और कहा, " आओ सागर अब फंसाओ
अपना लंड."

मैंने अपने लंड को हाथ में पकड़ कर आपि की राणों की बीच में फसाया तो मुझे अपने लंड में करं ट सा
लगता महसस
ू हुआ. आपि की इस तरह झक
ु कर खड़े होने की वजह से उनकी चत
ू का रुख ज़मीं की
तरफ हो गया था और मेरे लंड का उपरी हिस्सा अपनी बहन की चूत की लकीर में समां गया. मैंने अपने
लंड को थोड़ा उपर की तरफ दबाया तो आपि ने अपना एक हाथ नीचे से मेरे लंड पे रखा और उससे
हिला डुला कर अपनी चत
ू में सही तरह से फिट करने लगी. आपि ने मेरे लंड को अपनी चत
ू पर दांए
बांए हिलाते हूवे दबाया तो आपि की चूत की दोनों होंठ खुल से गए और मेरा लंड आपि की चूत की
अन्दरूनी नर्म हिस्से पे टच हुआ. आपि के मुंह से एक और “आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह” खारिज हो गई और वो
अपनी टांगों को मज़बूती से भींचते हूवे सिसकती आवाज़ में बोली, " हनननन … सागररर … उफ्फ्फ …
हानन अब्ब आगे … पीछे करो … " मैंने अपने हाथ अपनी बहन की कमर की इर्द गिर्द से गुज़ारे और
आपि की खूबसूरत खड़े उभारों को अपने हाथों में थाम लिए और उन्हें दबाते हूवे अपना लंड आपि की
राणों की दरमिआन में आगे पीछे करने लगा.

मैं जब अपना लंड पीछे खिंचता तो मेरा लंड आपि की चूत की अन्दरूनी नरम हिस्से पे रगड़ खाता हुआ
पीछे आता और जब मेरे लंड का रिंग आपि की चत
ू की अन्दरूनी नरम हिस्से पे टच होता तो आपि की
बदन में झरु झर्री
ु सी फैल जाती और वो मज़े की शदीद असर से सिसकारी भरतीं और मैं उनकी मज़े को
दब
ु ारा करने के लिए आपि की मम्मों को दबा कर उनकी प्यारे से खड़े हूवे और सख्त चूंचियों को अपनी
चुटकी में मसल दे ता. अपने लंड को ऐसे ही रगड़ते हूवे और आपि की चूंचियों से खेलते हूवे मैंने अपने
होंठ आपि की कमर पे रखे और उनकी कमर को चूमने और चाटने लगा.

आपि ने मज़े से एक आहः भरते हूवे अपनी गर्दन को दांए बांए झटका दिया और उनकी नज़र अपने दांए
पर आईने में पड़ी तो वो सिसकि भर की बोली, " आह्ह्ह सागर आईने में दे खो. ” मैंने आपि की कमर पे
अपना गाल रगड़ते हूवे आईने में दे खा तो इस नज़ारे ने मेरे बदन में मज़े की एक अनोखी लेहेर दौड़ा दी.
आईने मैं मेरा और आपि का साइड पोज़ नज़र आ रहा था. आपि चेयर की बाजओ
ू ं पे हाथ रखे झक
ु कर
खड़ी थीं. उनका चेहरा आईने की ही तरफ था और मैं आपि पे झुका उनकी राणों में अपना लंड फसाये
अपना लंड आगे पीछे कर रहा था … लेकिन आईने में ऐसा ही लग रहा था जैसे मैं अपना लंड अपनी
बहन की चूत में डाले अंदर बाहर कर रहा हूँ … मैंने परू े मंज़र पे नज़र डाल कर आपि के चेहरे की तरफ
नज़र डाली तो. मुझसे नज़र मिलने पे आपि मुस्कुरा कर जोशीले अंदाज़ में बोली, " दे खो सागर बिल्कुल
ऐसा लग रहा है ना जैसे तुम मुझे कर रहे हो … है ना."
मैंने शरारत से आपि को दे खा और कहा " आपि में क्या कर रहा हूँ आप को … सही लफ़्ज़ बोलो ना"

आपि के चेहरे पे हलकी सी शर्म की लेहेर पैदा हो गई और वो बोली, " वो ही कर रहे हो जो एक मर्द
औरत के साथ नंगी हालत में करता है "

मैंने ज़रा ज़िद्दी से अंदाज़ में कहा, " यार बोलो ना आपि साफ साफ … अब क्यों शरमाती हूँ प्लीज बोलो
ना " आपि थोड़ी दे र चुप रहीं और अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को अपनी चूत पे उपर की तरफ
दबाया … और बोली, " अच्छा सन
ु ो साफ साफ … बिल्कुल ऐसा लग रहा है जैसे मेरा सगा भाई मझ
ु े यानि
की अपनी सगी बड़ी बहन को चोद रहा है …"

मैं आपि की अलफ़ाज़ सुनकर एक दम दं ग रह गया और मेरा मुंह खुला का खुला रह गया क्योंकि मझ
ु े
उम्मीद नहीं थी की आपि इतने खुले अलफ़ाज़ में ऐसे कह दें गी. आपि ने एक गेहरी नज़र से मेरी ऑ ंखों
में दे खा और वार्निंग दे ने की अंदाज़ में कहा, " सागर मेरे भाई तुम अभी औरत को जानते नहीं हो … मुझे
छूपा ही रहने दो … मेरी झिझक क़ायम ही रहने दो … मेरा कमीना पन बाहर मत लावो … वरना मैं
तुमसे सँभाली नहीं जाऊंगी … बता रही हूँ पहले ही"

और ये बात कहते हूवे आपि की आँखें उस टाइम बिल्कुल बिल्ली से मुशाबेह हो गई थीं और उन ऑ ंखों
में बग़ावत का तूफ़ान था … और अजीब चमक थी, पता नहीं क्या था उनकी ऑ ंखों में की मैं एक लम्हे
को दहल सा गया और खौंफ की एक लेहेर परू े जिस्म में फैल गई. मझ
ु से आपि की ऑ ंखों में दे खा ही
नहीं गया … मैंने नज़रें झुका लीं … आपि ने एक कहक़हा लगाया और शरारती अंदाज़ में बोली, " हीइ
हीहीइ तुम्हारी ही बहन हूँ मैं भी. एक ही खून है दोनों का अब सोच लो की मेरी आखरी हद कहानननन्न
तक हो सकती है … मैं बिगड़ी तो कहाँ तक जा सकती हूॅं … " और फिर मुझे ऑ ंख मार कर मेरा दांए
हाथ पकड़ा और अपने सीने की उभार से उठा कर नीचे की तरफ ले गयीं और अपनी छूट के दाने पे
रखती हूई बोलीं " खैर छोड़ो बातें … यहाँ से रगड़ो लेकिन आहिस्ता अहिस्ता”."

मैंने भी आपि की कही पहले की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी चूत के दाने को अपनी
उं गली से सेहलता हुआ अपना लंड उनकी राणों में रगडने लगा … आपि की राणें बहुत चिकनी थीं. मेरे
लंड का उपरी हिस्सा आपि की चत
ू से क़तरा क़तरा निकलते लेस्स दार जस
ू से तर हो गया था लेकिन
मेरे लंड की दोनों साइड आपि की राणों में रगड़ लगाने से लाल हो गई थीं और मुझे मामूली सी जलन
भी महसूस होने लगी थी. मैंने अपने लंड को आपि की राणों से बाहर निकाला और पीछे हटा तो फ़ौरन ही
आपि ने कहा, " क्या हुआ … निकाल क्यों लिए " तो मैंने अपने क़दम टे बल पे रखी आयल की बोतल की
तरफ बढ़ाते हूवे कहा, " जलन हो रही है रगड़ से " और इसके साथ ही मैंने आयल की बोतल को उठ़ाया
और फिर से आपि की पीछे आ कर खड़ा हो गया … मैंने थोड़ा सा आयल अपने हाथ पे लिए और झूकते
हूवे अपने हाथ से आपि की टांगों को थोड़ा खोलते हूवे आपि की दोनों राणों पे आयल लगाया और राणों
के साथ ही मैंने हाथ थोड़ा उपर किया और आपि की चूत पे अपने हाथ की 2 उं गलियों से आयल लगाने
लगा. मैंने अपनी 2 उं गलियों से आपि की चूत की परदों को अलाहिदा किया और एक उं गली चूत की लकीर
में रख कर अन्दरूनी नरम हिस्से को रगड़ कर चूत के सूराख पे अपनी उं गली को रखते हूवे हल्का सा
दबाव दिया. मेरी उं गली आयल और आपि की कंु वारी चूत से निकलते रस की वजह से लुब्रिकेटे ड थी जो
थोड़े से दबाव ही से फिसलती हूई तक़रीबन एक इंच तक चत
ू की अंदर दाखिल हो गई और उसी वक़्त
आपि ने एक तेज़ सिसकि भरी और अपनी टांगों को आपस में बंद करते हूवे सीधी खड़ी हो गई.

" सागर निकालो बाहर जल्दी निकललोओओओ … मैंने कहा था ना अंदर मत डालो."

" कुछ नहीं होता ना आपि … बोलो क्या मज़ा नहीं आ रहा आप को " मैंने आपि को जवाब दिया और 6,
7 बार उं गली को अंदर बाहर करने के बाद दब
ु ारा सीधे खड़ा हो गया और अपना लंड फिर से आपि की
राणों की बीच में फ़साते हूवे आपि की हाथ पकड़े और अपने होंठ आपि की कमर पे रखकर आगे की
तरफ ज़ोर दे कर झक
ु ा दिया और उनकी हाथ चेयर की आर्म्स पे रख दिया. फिर आईने में अपने आप
को दे खते हूवे आपि से कहा, " अब दे खो आपि … बिल्कुल मूवी की सिन की तरह लग रहे है हम दोनों
और ऐसा लग रहा है की जैसे मैं आप को चोद रहा हूँ."

आपि ने भी आईने में दे खा और मैंने आपि को दे खते हूवे ही अपने झटके मारने की स्पीड भी बढ़ा दी …
वैसे भी अब मेरा लंड बहुत आराम से आपि की राणों में फसा आगे पीछे हो रहा था और तेल की वजह
से जलन भी नहीं हो रही थी. बिलाल अभी भी बिस्तर पे बैठा था. थोड़ा सा मंह
ु खोले मझ
ु े और आपि को
दे खते हूवे अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़े ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. जब तक मैं या आपि उससे खुद से
नहीं बुलाते थे वो हमारे पास नहीं आता था इसलिए की मैंने उससे सख्ती से तंबीह की हूई थी की वो
अपना दिमाग़ बिल्कुल मत लगाये और जैसा मैं कहूं वैसे ही करे इसी लिए मेरे कहने की मत
ु ाबिक़ उसने
तमाम हालत मुझ पे छोड़ दिये थे. वो अपनी मर्ज़ी से कोई क़दम नहीं उठता था. आपि ने आईने से नज़र
हटा कर बिलाल की तरफ दे खा और उससे हाथ की इशारे से अपनी तरफ बुलाते हूवे है की बोली, " आओ
छोटे शहज़ादे … गंगा बेह ही रही है तो तम
ु भी हाथ धो ही लो " बिलाल एक जम्प मार कर बिस्तर से
उठा और भागता हुआ आपि के पास आ गया और आते ही अपने हाथ आपि की सीने की उभारों की
तरफ बढ़ाये ही थे की आपि ने उसकी हाथ को झटका दिया और बोली, " जब तक वहां बैठे रहते हो तो
सबर में रहते हो … लेकिन मेरे पास आते ही जंगली ही हो जाते हो … रुको और सीधे खड़े हो जाओ "
बिलाल सीधे खड़ा हुआ तो आपि ने अपना हाथ चेयर आर्म से उठाया और बिलाल के लंड को अपने हाथ
में पकड़ कर आगे पीछे करते हूवे बोली, " अब पकड़ लो लेकिन आहिस्ता आहिस्ता दबाना अच्छा " बिलाल
ने अपने हाथ नरमी से आपि की उभारों पे रखे और उन्हें आहिस्ता आहिस्ता दबाने लगा. आपि ने सुरूर
में आ कर अपनी आँखें बंद कर लीं और बिलाल के लंड पे हाथ चलते चलते ही मुझसे बोली, " उम्म्म …
सागर … अपना हाथ आगे ले आओ. " मैंने आपि की बात सुनकर अपना हाथ आगे से आपि की चूत के
दाने पे रख दिया … अब पोजीशन ये थी की आपि अपनी आँखें बंद किये सिसकियाँ भरती चेयर की बाज़ोँ
पे हाथ रखे थोड़ा झुक कर खड़ी थीं और दस
ू रे हाथ से बिलाल की खड़े लंड को मुठ्ठी में थामे हाथ आगे
पीछे कर रही थीं. बिलाल आपि की कां धों को चुमते और चाटते हूवे आपि की खूबसरू त सीने की उभारों को
अपने हाथ से मसल रहा था और मैंने अपने एक हाथ से आपि की चत
ू के दाने को चट
ु की में पकड़ रखा
था और अपना लंड आपि की राणों की बीच में रगड़ते हूवे उनकी कमर को भी चाटता जा रहा था. थोड़ी
दे र बाद आपि ने अपनी आँखें खुलीं और बिलाल के लंड को छोड़ते हूवे अपना हाथ चेयर आर्म पे रखा
और कहा, " बिलाल! सागर के पीछे जाओ और पीछे से सागर को चोदो " मझ
ु े आपि की बात से शदीद
है रत हो गई और आपि की इस आर्डर ने मेरे अंदर एक्साइटमें ट की एक नयी लेहेर भर दी.

बिलाल मेरे पीछे आकर खड़ा हुआ और जैसे ही उसका खड़ा लंड मेरी गान्ड़ के सूराख से टच हुआ तो
मैंने चिल्ला कर उससे कहा, " बहन चोद … किसी उतावले की चोदे हूवे!! कम से कम तेल लगा ले मेरे
भईईईई"

आपि मेरी बात सुनकर और मेरा चिर चिरा अंदाज़ दे ख कर खिलखिला कर हं सी और बिलाल झेंपी सी
हं सी हसते हूवे पीछे हट गया और अपने लंड पे और मेरी गान्ड़ के सरू ाख पे तेल लगाने के बाद दब
ु ारा
अपना लंड मेरी गान्ड़ के सूराख पे रखा तो मैंने उससे चेतावनी दे ते हूवे कहा, " आहिस्ता आहिस्ता ड़ालना
… जंगली नहीं हो जाना " बिलाल ने कोई जवाब नहीं दिया और धीरे धीरे मेरी गान्ड़ में उसका लंड अंदर
जाने लगा और पूरा जड़ तक उतारने के बाद बिलाल ने आहिस्ता आहिस्ता झटके मारने शुरू किये और
उसका लंड मेरी गान्ड़ की अन्दरूनी हिस्से से रगड़ खाता हुआ अंदर बाहर होने लगा. मैं कुछ दे र बे
हरक़त खड़ा रहा और उसके बाद बिलाल की रीदम के साथ ही खुद भी झटके लेने शुरू कर दिया … जब
बिलाल अपने लंड को मेरी गान्ड़ की अंदर दबाता तो मैं भी अपना लंड आपि की राणों की दरमियाँ अंदर
तक ले जाता और बिलाल लंड बाहर निकलता तो मैं भी उसी रीदम में अपने लंड को आपि की राणों से
बाहर की तरफ खींच लेता.

" बिलाल, सागर, दे खो ज़रा आईने में कैसा सिन है "

आपि की आवाज़ हमारे कानों में पड़ी तो मैंने और बिलाल ने एक साथ ही आईने में दे खा और बेसख्ता
ही मेरे मुंह से निकला, " ववूऊऊवववव"

हमारा साइड पोज़ आईने में नज़र आ रहा था और बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था जैसे मैं आपि को चोद
रहा हूँ और बिलाल मझ
ु े चोद रहा है . आपि ने आईने में ही नज़र जमाये मुझे दे खा और ऑ ंख मार कर
बोलीं, " कैसाआआ??? … बोलो कभी ऐसा सिन दे खा है किसी फिल्म में … अरे थैंक यू बोलो अपनी बड़ी
बहन को जो ऐसे मज़ेदार आईडिया दिया है मैंने!"

इस नज़ारे ने हम तीनों की जिस्मों में बिजली सी भर दी थी और हमारे झटकों की रफ़्तार काफी तेज़ हो
गई थी. मैंने अपना हाथ आपि की चत
ू से हटाया और उनकी दोनों सीने की उभारों को अपने हाथों से
दबाने और मसलने लगा. आपि ने मेरा हाथ चूत से हटता महसूस किया तो अपना एक हाथ चेयर से
उठाकर अपनी चूत पे रख लिया और तेज़ी से अपनी चूत को मसलने लगी. अचानक ही बिलाल की झटके
बहुत तेज़ हो गए और मैंने आपि की राणों में अपने लंड को रोक लिया और बिलाल के लंड को अपनी
गान्ड़ में तेज़ी से अंदर बाहर होता महसूस करने लगा. चंद ही तेज़ तेज़ झटकों के बाद बिलाल का जिस्म
अकड़ गया और उसने एक ज़ोरदार झटका मार कर अपने लंड को मेरी गान्ड़ में जड़ तक उतार दिया
और इसके साथ ही मैंने बिलाल के लंड से निकलते गरम गरम जूस को अपनी गान्ड़ की अंदर महसूस
किया और इस एहसास ने मझ
ु े भी एक दम ही मंजिल पे पहुंचा दिया और मेरे लंड से भी गरम गाढ़ा
सफेद पानी निकल कर आपि की राणों पे चिपकने लगा …

मैंने डिस्चार्ज होते वक़्त आपि के सीने की उभारों को बहुत ताक़त से अपने हाथों में दबोचा था और मेरा
जिस्म अकड़ गया था जिसे आपि ने भी मुझे डिस्चार्ज होता महसूस कर लिया था और उनका हाथ
उनकी चत
ू पे बहुत तेज़ी से चलने लगा था. मैंने आपि को छोड़ा और उनसे पीछे हुआ ही था की उनकी
जिस्म ने भी झटके लेने शुरू किये और आपि की चूत की दे हिकती आग उनकी अपने ही जूस से ठं डी
होने लगी. मुझे नहीं पता मेरे दिल में पता नहीं क्या आई की मैंने झुक कर आपि की राणों पे लगे अपने
ही लंड की जूस को काफी मिक़्दार में चाटा और अपने मुंह में अपना जूस भर की आपि की सामने आया
और उनके चेहरे को दोनों हाथों से थाम कर अपने होंठ अपनी आपि की होंठो से चिपका दिया. आपि ने
भी रिस्पोंस दिया और मेरे होंठो को चूसने लगी. मैंने ऐसे ही किस करते करते अपने मुंह में भरे अपने
लंड की जूस को अपनी ज़ुबाँ से धकेलते हूवे आपि के मुंह में दाखिल कर दिया और उनके चेहरे को
मज़ीद मज़बत
ू ी से थामते हूवे उसी तरह किस करता रहा. जब मझ
ु े यक़ीं हो गया की मेरे लंड का सारा
जूस मेरे मुंह से आपि के मुंह में मुन्तक़िल हो गया है तो मैंने आपि का चेहरा छोड़ा और पीछे हट गया
… आपि ने कुछ सोचने की से अंदाज़ में अपनी ज़ुबाँ से अपने होठों को चाटा और सवालिया से अंदाज़ में
मझ
ु े दे खा. मैं समझ गया था की आपि ने अजीब सा ज़ाइक़ा अपने मंह
ु में महसस
ू कर लिए है … मैं वहां
ही खड़ा आपि को दे खता रहा।

" क्या है " आपि ने अभी भी ना समझने की अंदाज़ में कहा. मैंने आपि से नज़र मिलने पे उन्हें ऑ ंख
मारी और मुस्कुरा कर कहा, " दे खा आप ने ये इतना बुरा तो नहीं है ना जितना आप समझ रही थीं "
आपि ने गुस्सीले अंदाज़ में थू थू करते हूवे कहा, " ओह्ह्ह्ह कमीने, गंदे … मैं भी कहूं की किस करने से
मुंह का ज़ाइक़ा अजीब सा क्यों लग रहा है . " मैंने आगे बढ़ कर आपि को अपने बाजूओं में जाकड़ लिया
और उनके होठों पे एक ज़ोरदार किस करके कहा " कुछ नहीं होता आपि … मैंने भी तो आपकी चूत से
निकलता हुआ जूस पिया है और कसम से बस मझ
ु े इतनी ज़्यादा मज़ेदार चीज़ कभी कोई नहीं लगी …
आप का जूस बहुत मज़ेदार है … तो क्या हुआ अगर आप ने भी मेरे लंड का पानी चख लिया है ? …

आपि कुछ दे र तो बरु ा सा मुंह बनाये चुप चाप अपना मुंह चलते खड़ी रहीं फिर मेरे गाल को चूम कर
अपना मुंह मेरे कान के पास लायीं और शरारती अंदाज़ में बोलीं " वैसे सागर इतना बुरा भी नहीं था ये"

और ये बोलकर मेरे कान को अपने दांतों से कटा और मुझसे अलग होकर अपने कपड़ों की तरफ चल दीं.
मेरा दिल चाह रहा था की अभी हम कुछ दे र और ऐसे ही खेले इसी लिए मैंने आपि को कहा, " आपि
थोड़ी दे र और रुक जाओ ना प्लीज … आज दिल चाह रहा है कुछ दे र और खेलने को " आपि ने अपनी
सलवार हाथ में पकड़ी हूई थी और उसे फैला कर अपनी टांग उठाकर सलवार में डालते हूवे ही जवाब
दिया, " तुम्हारे साथ तो मैं सारी रात भी गुज़र लूं तो तुम्हारा दिल नहीं भरे गा … कल कर लेंगे अभी मुझे
जाने दो. " आपि ने सलवार पहन ली और अब अपनी क़मीज़ में अपने दोनों हाथ डाले और उसे अपने सर
से गुज़र कर गर्दन पे लेट हूवे बोली, " उस दिन रात को भी जब मैं रूम में गई तो ऐनी जग ही रही थी
और मुझसे पुछ भी रही थी की मैं इतनी दे र तक स्टडी रूम में क्या करती रहती हूँ?"

" तो बता दे ना था ना की मज़े कर रही थी अपने भाइयों के साथ " मैंने मुस्कुराकर शरारत से जवाब में
कहा. आपि ने अपने कपड़े पहन लिए थे उन्होंने पहले बिलाल के माथे को चूमा और फिर मेरे माथे को
चम
ू कर मेरे बालों में हाथ फेरते हूवे बोलीं, " चलो बस अब तम
ु लोग भी सो जाओ, मैं भी जाती हूँ … "
और ये कह कर हमारे रूम से बाहर चली गयीं …

अगली सुबह भी रूटिन की ही सुबह थी मैंने सबके साथ ही नाश्ता किया लेकिन आपि नाश्ते की टे बल पे
मौजूद नहीं थीं. शायद उन्होंने आज यूनिवर्सिटी नहीं जाना था इस लिए उठी भी नहीं थीं. नाश्ता करके
ऐनी और बिलाल अब्बू के साथ ही निकले थे और उनकी कुछ ही दे र बाद मैं भी अपने कॉलेज चला गया

दोपहर में जब मैं कॉलेज से घर वापस आया और अपने रूम में दाखिल हुआ तो मझ
ु े है रत का झटका
लगा. बिलाल और आपि कंप्यूटर टे बल की सामने बैठे थे और कंप्यूटर पर एक पोर्न मूवी चल रही थी.
बिलाल ने टी शर्ट और ट्रॉउज़र पहना हुआ था और उसका लंड ट्रॉउज़र से बाहर था … और रूबी आपि!
बिलाल का लंड अपनी मुठ्ठी में पकड़े हाथ उपर नीचे कर रही थीं. आपि ने भी कॉटन का एक क़मीज़
सलवार का सूट पहन रखा था उनका दप
ु ट्टा नीचे ज़मीं पे पड़ा था लेकिन काले स्कार्फ़ उनके सर पे बांधे
था और नज़रें स्क्रीन पे जमी थीं.
दरवाज़े की आहत सुनकर बिलाल और आपि दोनों ने ब-यक-वक़्त मेरी तरफ दे खा.

तो मैंने पुछा, " खैर तो है ना??? आज दिन दहाड़े वारदात हो रही है ???"

तो आपि ने बिलाल के लंड को ज़ोर से दबा कर और अपने दांतों को भींच की कहा, " अम्मी और ऐनी
नजमा खाला के घर गई है . शाम में ही वापस आयेंगी … और हमारे ये छोटू भाई साहब को जिन चढ़
गया है … इन का जिन उतार रही हूँ " मैंने आपि की बात सूनी और हं स कर बाथरूम की तरफ जाते हूवे
कहा, " यार मैं ज़रा नहा लंू गर्मी इतनी है परू ा जिस्म पसीने से चिप चिप कर रहा है "

मैं नहाने के बाद टॉवल से अपना जिस्म साफ करते हूवे बाथरूम से बाहर निकला. मैंने पहली नज़र
कंप्यूटर टे बल पे ही डाली लेकिन आपि और बिलाल को वहां ना पा कर मैंने दस
ू री तरफ दे खा तो …
आपि आईने की सामने कल रात वाले सेम अंदाज़ में खड़ी थीं और बिलाल उनकी राणों की बीच में
अपना लंड फसाये आगे पीछे हो रहा था. आपि ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ दे खा और मुस्कुरा दीं. मैंने भी
आपि की मुस्कराहट का जवाब मुस्कुरा कर ही दिया और उनके सामने आ कर अपने होंठ आपि की
खूबसूरत और नर्म ओ नाज़ुक होठों से चिपका दिया. एक सिंपल किस करने के बाद मैंने अपना उपर
वाला होंठ आपि के उपर वाले होंठ से उपर रखा और अपना नीचे वाला होंठ आपि के नीचे वाले होंठ से
नीचे रख कर आपि की दोनों होंठो को अपने होठों में पकड़ लिया और चस
ू ने लगा. आपि की होंठ चस
ू ना
में इतना मज़ा आता था की मैं घंटों तक सिर्फ उनकी होंठ ही चूसता रहूँ तो मेरे लिए ये ही बहुत था.
भरपूर अंदाज़ में आपि के होंठ चूसने के बाद मैंने अपने होंठ आपि के होंठो से हटाये और चेहरा उनके
चेहरे की सामने रखे मोहब्बत भरी नज़रों से आपि की ऑ ंखों में दे खा. मैं और आपि एक दस
ू रे की ऑ ंखों
में डुबने के क़रीब ही थे की अचानक आपि का सर मेरे नाक से टकराया जैसे की उन्होंने टक्कर मारी हो
और उसी वक़्त बिलाल की मज़े से भरी " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " मुझे सुनाई दी और मैं तक़लीफ़ से अपने
नाक को अपने हाथ में पकड़े " उफ्फफ्फ्फ़ ओह्ह्ह करते हूवे पीछे हट गया"

आपि भी फ़ौरन मेरी तरफ बढ़ी और कहा " ज़्यादा तो नहीं लगी " मैंने नहीं की अंदाज़ में अपना सर
हिलाया और आपि को दे खते हूवे झंझ
ु लाहट में कहा " हुआ क्या था आप को " तो उन्होंने हसते हूवे
बिलाल की तरफ इशारा कर दिया … मैंने बिलाल को दे खा तो वो हांफता हुआ ज़मीं पे बैठा था और
अपने लंड को हाथ में पकड़ा हुआ था और उसका हाथ उसके अपने ही लंड की जूस से भरा था. तब मुझे
समझ आई असल में हुआ ये था की मैं और आपि तो अपने में मगन थे और बिलाल आपि की राणों में
अपना लंड डाल कर झटके लगा रहा था और अचानक ही वो अपना कंट्रोल खो बैठा और एक ज़ोरदार
झटका मारा. उस झटके की ही वजह से आपि का सर मेरे नाक से टकराया और आपि भी फ़ौरन आगे
बढ़ि थीं जिसे बिलाल का लंड उनकी राणों से बाहर आगया लेकिन बिलाल बिल्कुल आखरी स्टे ज पे था
और आपि की आगे होते ही बिलाल के लंड ने अपना पानी छोड़ दिया और उसने अपने ही हाथ से
आखरी 2-3 झटके दिया जिसे बिलाल का हाथ और उसकी टाँगें भी उसके पानी से तर हो गयीं …

आपि ने मेरी बगलों में हाथ डाल कर सहारा दे कर मझ


ु े उठाया और कहा, " चलो बिस्तर पे बैठो " मैं
बिस्तर की तरफ चल दिया आपि ने अपना दप
ु ट्टा उठाया और उसकी कोने की छोटी सी घटरी बनाकर
मेरे पास आ गयीं. मैं बिस्तर पे बैठा तो आपि अपने दप
ु ट्टे की घटरी पे फांकें मार मार कर मेरे नाक को
सेंकने लगी और मैं आपि की खूबसूरत जिस्म को दे खने लगा … आपि की हरकत के साथ ही उनके बड़े
बड़े मम्मे भी हरकत करते थे. आपि की चंचि
ू यां अभी भी मक
ु म्मल खड़े थे. उनका पेट, उनकी राणें, हर हर
चीज़ इतनी मुतनासिब थीं की दिल ही नहीं भरता था दे ख कर. आपि कुछ दे र मेरे नाक को सेहलती रहीं.
नाक की तक़लीफ़ की वजह से ही मेरा लंड भी बैठ गया था आपि ने दप
ु ट्टा साइड पे फेंका और मेरे साथ
बैठ कर मेरे बैठे हूवे लंड को अपने हाथ में लिया और कुछ दे र तक उससे इंहिमाक से दे खने के बाद
बिल्कुल बच्चों की अंदाज़ में खुश होते हूवे कहा, " ये अभी कितना छोटा सा मासूम सा लग रहा है ना.
नरम नरम सा … और बाद में कितना बड़ा और सख्त हो जाता है … " और मेरे नरम लंड को दबाने
लगी.

मैंने कहा, " आपि आप ने थोड़ी दे र ऐसे ही पकड़े रखा तो ये नरम नहीं रहे गा … अपने जलाल में आ ही
जायेगा " ये कह कर मैंने आपि की कांधों को थामा और आपि को अपने साथ ही नीचे लिटाता हुआ पीछे
की तरफ लेट गया. मैंने लेटे लेटे ही करवट बदली और थोड़ा सा आपि के उपर हो कर उनकी एक गुलाबी
खड़े चूंचियों को मुंह में ले कर चूसने लगा और दस
ू रे उभार को अपने हाथ से मसलने लगा. आपि की
हाथ में मेरा लंड अब फिर से फुलने लगा. कुछ दे र मैं ऐसे ही बारी बारी आपि की सीने की उभारों को
चूसता रहा और मेरा लंड अपने जोबन पर आ गया. मैं उठा और टे बल से आयल की बोतल उठा लाया
मैंने अपने लंड पे ढे र सारा आयल लगाया और फिर अपने हाथ में आयल ले कर आपि की खूबसूरत
मम्मों की दरमियाँ भी लगा दिया …

आपि ने सरप्राइज्ड़ कैफ़ियत में मुझे दे खा और पुछा, " सागर!! … ये क्या कर रहे हो तुम …"

मैं आपि के उपर ऐसे बैठ गया की मेरे घुटने उनकी बगलों की दरमिआन आ गए लेकिन मैंने अपना
वज़न अपने घुटनों पर ही रखा और अपने खड़े लंड को अपनी बहन की सीने की उभारों के दरमियाँ रख
कर उनसे कहा, " आपि अब अपने हाथों से अपने दोनों उभारों को दबाओ।"

आपि अब समझ गयीं की मैं क्या करना चाह रहा हूँ. हमने साथ में और अकेले अकेले में ही बहुत पोर्न
मूवीज दे खी थीं और ये सब चीज़ें मेरे लिए और आपि के लिए नई नहीं थीं. आपि ने खुश होते हूवे कहा, "
गुड शहज़ादे … अच्छी पोजीशन है ये " और अपने दोनों उभारों को दबा कर मेरे लंड को उनकी दरमियाँ
भींच लिए. मैंने मसनूई गुस्सा दिखाते हूवे कहा, " आप सही जगह तो डालने दे ती नहीं हो … अब ऐसी ही
जगहें ढूंढ़नी पड़ेगी ना, आपि! " वो जवाब में सिर्फ मुस्कुराकर रह गयीं लेकिन बोलीं कुछ नहीं …

मैंने अपने लंड को आहिस्ता आहिस्ता आपि के सीने की उभारों की दरमिआन आगे पीछे करना शुरू कर
दिया … आपि की मम्मे बहुत सख्त थे और मेरा परू ा लंड चारों तरफ से रगड़ खा रहा था और हर बार
रगड़ लगाने से जिस्म में मज़े की नयी लेहेर पैदा होती थी. मैं जब अपने लंड को आगे की तरफ बढ़ाता
था तो मेरे गोटियों का उपरी हिस्सा भी आपि की मम्मों और पेट की दरमिआनी हिस्से पे रगड़ खाता
हुआ आगे जाता और जब मैं लंड को वापस लता तो मेरे गोटियों की नीचले हिस्से पे रगड़ लगती जिसे
मुझे दोहरा मज़ा आ रहा था.

आपि ने अपने दोनों मम्मों को साइड्स से पकड़ कर दबा रखा था. मैंने अपने दोनों हाथों को आपि की
मम्मों पे रखा और उनकी चूंचियों को अपनी चुटकियों में पकड़ कर मसलने लगा और लंड को आगे पीछे
करना जारी रखा. आपि ने मज़े की वजह से अपनी आँखें बंद कर ली और तेज़ तेज़ सांसों के साथ
सिसकियाँ भर रही थीं. आपि को मज़े लेता दे ख कर मैं भी जोश में आ गया और तेज़ी से अपना लंड
आगे पीछे करने लगा. कमरे में आपि की सिसकियाँ और मेरे लंड की रगड़ लगाने से पूछह पुछहःछः की
आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थीं. हमें ये भी इत्मिनान था की घर में हमारे अलावा और कोई नहीं है इस
लिए ना ही आपि अपनी आवाज़ों को कंट्रोल कर रही थीं और मैं भी इस मामले में केयरलेस था.

मैंने आपि की चूंचियों को उपर की तरफ खींच कर ज़रा ज़ोर का झटका लगाया तो मेरे लंड की नोक
आपि की नीचले होंठ से टच हो गयी.

आपि ने फ़ौरन अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ दे खा लेकिन बोलीं कुछ नहीं. आपि की आँखें नशीली हो
रही थीं जो शायद एक्साइटमें ट की वजह से थी. मैं आपि की ऑ ंखों में दे खते हूवे ही ज़ोर ज़ोर की झटके
मारने लगा. आपि बिना कुछ बोला आँखें झपकाये बगैर मेरी ऑ ंखों में ही दे ख रही थीं और तक़रीबन हर
झटके पे ही मेरे लंड की नोक आपि की नीचले होंठ से टच होने लगी. मैं दिल ही दिल में खुश हो रहा था
की आपि इस बात से मना नहीं कर रही है और ये सोच मेरे अंदर जोश भर रही थी.

कुछ दे र बाद ही मझ
ु े है रत का शदीद झटका लगा. मैंने अपने लंड को आगे झटका दिया ही था की उससे
वक़्त आपि ने मेरी ऑ ंखों में दे खते दे खते ही अपनी ज़ुबाँ बाहर निकली और मेरे लंड की नोक आपि की
ज़ुबाँ पे टच हूई और आपि की थूक ने मेरे लंड की नोक पे सूराख को भर दिया और मेरे मुंह से बेसख्ता
निकला, " आआह्ह्ह आएपीईईईई उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ … आपकी ज़ुबाँ टच हो गई तो ऐसा लगा जैसे बिजली का
झटका लगा हो. आपकी ज़ुबाँ मेरे लंड में करं ट दौड़ा रही है "
आपि मुस्कुरा दीं और हर झटके पे इसी तरह अपनी ज़ुबाँ बाहर निकालतीं और मेरे लंड की नोक पे टच
कर दे तीं … थोड़ी दे र इसी तरह अपना लंड आपि की सीने की उभारों की दरमिआन रगड़ कर आगे पीछे
करने के बाद मैंने एक झटका मारा आपि की ज़ुबाँ बाहर आई और मेरे लंड की नोक से टच हो गई तो
मैंने अपने लंड को वहां ही रोक दिया. आपि ने अपनी ज़ुबाँ वापस मुंह में डाली और कुछ दे र मेरी ऑ ंखों
में ही दे खती रहीं लेकिन मैंने अपना लंड पीछे नहीं किया और कुछ बोला बगैर ही उनकी ऑ ंखों में दे खता
रहा. चंद सेकंड बाद आपि ने अपनी नज़रें नीची करके मेरे लंड को दे खा और फिर अपनी ज़ब
ु ाँ बाहर
निकाल कर मेरे लंड के सूराख में डाला और अपनी ज़ुबाँ से मेरे लंड के सूराख की अन्दरूनी हिस्से को
छे ड़ने लगी. कुछ दे र आपि ऐसे ही मेरे लंड की नोक की अंदर अपनी ज़ुबाँ की नोक डाले रहीं और फिर
मेरे लंड की टोपी पर पहले अपने ज़ब
ु ाँ की नोक से ही मसाज किया और फिर अपनी ज़ब
ु ाँ को थोड़ा टे ढ़ा
करके उपरी हिस्से से मेरे लंड की टोपी की दांए साइड को चाटा और इसी तरह से दांए साइड चाटने के
बाद टोपी पर अपनी ज़ुबाँ गोलाई में फेरी और ज़ुबाँ वापस अपने मुंह में खींच ली. मेरे चेहरे पे शदीद
बेबसि की आसार थे और मझ
ु े समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूं?

" आपि प्लीसीएएएएए … अब और मत तरसावो … प्लीज आपिईई कुछ तो रहम करो " मैंने ये कहते हूवे
अपने लंड को थोड़ा और आगे किया और मेरे लंड की नोक आपि के होठों की सेंटर में टच हो गई. आपि
ने अपने दोनों होठों को मज़बूती से बंद कर लिया. मेरी बात सुनकर थोड़ा झिझकते हूवे आपि ने अपने
होठों को लूज किया और मेरे लंड की टोपी आपि के मुंह में दाखिल हो गई.

आपि ने फ़ौरन ही मेरे लंड को मुंह से निकाला और फिर से होंठ मज़बूती से भींच लिए. मेरा बहुत शिद्दत
से दिल चाह रहा था की आपि मेरे लंड को अपने मुंह में लें. मैंने अपने लंड की नोक को आपि की बंद
होंठो से लगा कर ज़ोर दिया और गिड़गिड़ा कर कहा, " आपि डालो ना मुंह में प्लीज यार … क्यों तड़पा
रही हो … चूसोना आपि … मेरी प्यारी बहन प्लीज चुसोऊ नाआआआआ " आपि कुछ दे र सोचती रहीं और
फिर कहा, " अच्छा मैं खुद करूंगी तुम ज़ोर मत लगाना"

ये कह कर आपि ने अपना दांए हाथ अपने उभार से उठाया और मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़ कर
झिझकते हूवे अपना मंह
ु खोला … मेरे लंड की नोक पे मेरी प्रीकम का एक क़तरा झिलमिला रहा था.
आपि ने अपनी ज़ुबाँ बाहर निकली और अपनी ज़ुबाँ की नोक से मेरी प्रीकम की क़तरे को समेत की ज़ुबाँ
अंदर कर ली और ऐसे मुंह चलाया जैसे किसी टॉफ़ी को अपनी ज़ुबाँ पे रखे चूस रही हो. आपि ने फिर
मुंह खोला और मेरी ऑ ंखों में दे खते दे खते मेरे लंड की टोपी अपने मुंह में डाल ली. आपि के मुंह की गर्मी
को अपने लंड की टोपी पे मेहसुस करके ही मेरी हालत ख़राब होने लगी. मैंने अपने सर को पीछे की
तरफ झटका और आँखें बंद करकेभरपूर मज़े से एक सिसकि भरी
" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … मेरी प्यारी बेहेंनेंणन्न … उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ चूसाना आपि प्लीसीईए"

आपि ने वार्निंग दे ने की अंदाज़ में कहा, " याद रखना सागर अगर तुम ने अपना जूस मेरे मुंह में छोड़ा
तो मैं फिर कभी तुम्हारा लंड मुंह में नहीं डालूंगी. " मैंने अपने दोनों हाथों से आपि के चेहरे को नरमी से
थामा और कहा, " नहीं आपि … मैं आप के मंह
ु में डिस्चार्ज नहीं होऊंगा … बस थोड़ी दे र चस
ू लो जब मेरा
जूस निकलने लगेगा तो मैं पहले ही बता दं ग
ू ा."

इस पोजीशन में आपि मक


ु म्मल तोर पे मेरे कंट्रोल में थीं और अपनी मर्ज़ी से अब लंड मंह
ु से बाहर नहीं
निकल सकती थीं … उन्हें ये ड़र भी था की कहीं मैं ज़बर्दस्ती अपना लंड आपि की हलक़ तक ना घुसा दं ू
… बस ये ही सोच कर आपि ने मुझे थोड़ा पीछे हटने का इशारा किया और बोली, " मेरे उपर से उतर कर
सीधे बैठ जाओ … तम्
ु हें जोश में ख्याल नहीं रहता, पहले भी मेरे उपर सारा वज़न डाल दिया था तम
ु ने
… मेरा साँस रुकने लगता है "

मैं आपि के उपर से उतरा और बिस्तर की सिरे से कमर टिका कर बैठ गया. आपि मेरी टांगों की दरमियाँ
आ कर घुटनों के बल बैठती हूई झुक गयीं. ऐसे बैठने से आपि की घुटने और टांगों का सामने का हिस्सा
पैरों समेत बिस्तर पे था और मुंह नीचे मेरे लंड के पास होने की वजह से गान्ड़ भी हवा में उपर की
तरफ उठ़ गयी थी.

आपि ने फिर से मेरे लंड को अपनी मठ्ठ


ु ी में पकड़ा और मंह
ु खोलकर मेरे लंड के पास लाकर मेरी तरफ
दे खा … इस वक़्त आपि की ऑ ंखों में झिझक या शर्म नहीं थी बस उनकी ऑ ंखों में शरारत नाच रही थी.
आपि मेरी ऑ ंखों में ही दे खते हूवे अपना मुंह खोलकर मेरे लंड को मुंह में डालतीं लेकिन अपने मुंह के
अंदर टच ना होने दे तीं और उसी तरह लंड मुंह से बाहर निकल दे तीं. आपि की गरम गरम साँसें मुझे
अपने लंड पे महसूस हो रही थीं. आपि ने 3-4 बार ऐसा ही किया तो मैंने बहुत बेबस सी नज़रों से उन्हें
दे खते हूवे कहा, " क्यों तड़पा रही हो आपि … शुरू करो ना"

आपि खिलखिला कर हसीं और कहा, " शकल दे खो अपनी ज़रा … ऐसे लग रहा है जैसे किसी भिखारी को
10 दिन से रोटी ना मिली हो. " और ये कह कर फिर से हसने लगी … मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा बस
वैसे ही मासम
ू सी सरु त बनाये उन्हें दे खता रहा.

" ओक ओके बाबा. नहीं तड़पाती बस … " आपि ने ये कहा और फिर उसी तरह मुंह खोलकर आहिस्ता से
मेरा लंड अपने मंह
ु में डाला और आहिस्तगी से ही अपने होंठ बंद कर लिए … मेरे लंड की टोपी परू ी ही
आपि के मुंह में थी आपि ने होठों से मेरे लंड को जकड़ा और मुंह की अंदर ही मेरे लंड के सूराख पे और
पूरी टोपी पे अपनी ज़ुबाँ फेरने लगी … और मैं लज़्ज़त की इन्तिहा को पहुंचा हुआ था. आपि के मुंह की
गर्मी से इतना स्वाद मिल रहा था की मैंने ऐसा मज़ा आज से पहले कभी नहीं महसूस किया था … मैं
पहले बहुत बार बिलाल से अपना लंड चुस्वा चुका था लेकिन आपि के मुंह में लंड दे ने का मज़ा उस मज़े
से कई गन
ु ा बढ़ कर था. एक लड़के और लड़की के मुंह में फ़र्क़ तो होता ही है इसके अलावा असल मज़ा
इन फीलिंग्स का था. ये एहसास था की मेरा लंड एक लड़की के मुंह में है . एक कंु वारी लड़की और वो
लड़की भी मेरी सगी बहन है . मेरी बड़ी बहन है … ये एहसास था जो मेरे मज़े को बढ़ा रहा था.

आपि कुछ दे र इसी तरह मेरे लंड की टोपी को होंठो में फसाये मुंह के अंदर ही अंदर ज़ुबाँ उस पर फेरती
रहीं और फिर उन्होंने आहिस्ता आहिस्ता लंड को अपने मंह
ु में उतारना शरू
ु कर दिया. मेरा लंड आधे से
ज़्यादा आपि के मुंह में चला गया था की अचानक मुझे अपने लंड की नोक पे सख्ती मेहसुस हो गई
और उसी वक़्त आपि को उबकी आ गई. ये इस बात का सबूत थी की मेरा लंड आपि के हलक़ तक पहुंच
गया था लेकिन अभी भी थोड़ा सा मुंह से बाहर बच गया था … उबकी ले कर आपि ने थोड़ा सा लंड को
बाहर निकाला और साँस ले कर दब
ु ारा से अंदर गहराई में उतारने लगी लेकिन इस बार भी लंड पहले
जितना ही अंदर गया था की आपि को एक बार फिर उबकी आई और आपि लंड को थोड़ा सा बाहर
निकल कर खाँसने लगी. खांसते हूवे भी मेरे लंड की टोपी आपि के मुंह में ही थी.

आपि ने तीसरी बार पूरा मुंह में लेने की कोशिश नहीं की और मेरे लंड को अपने मुंह से बाहर निकल
कर उसे उपर की तरफ सीधे किया और लंड की जड़ में अपनी ज़ब
ु ाँ का उपरी हिस्सा रख कर परू े लंड
की लम्बाई को चाटते हूवे नोक तक आयीं और एक बार लंड की टोपी पर ज़ुबाँ फेर कर उससे नीची की
तरफ दबाया और लंड की उपरी हिस्से की लम्बाई को उपर से नीचे जड़ तक चाटा. फिर इसी तरह आपि
ने मेरे लंड को दोनों साइड्स से उपर से नीचे और नीचे से उपर तक चाटा और फिर लंड को मुंह में ले
लिया लेकिन इस बार आपि ने आधा ही लंड मुंह में डाला और उस पर अपने होठों की गिरफ्त को टाइट
करके अंदर की तरफ चूसने लगी. लंड को इस तरह चूसने से आपि की दोनों गाल पिचक कर अंदर घुस
जाते और उनका चेहरा लाल हो जाता था … आपि इतनी ताक़त से चूस रही थीं की मझ
ु े साफ महसूस
हुआ की मेरे लंड की अंदर से मेरी मणि का एक क़तरा रगड़ खाता हुआ बाहर की तरफ जा रहा है और
जब वो क़तरा मेरे लंड की नोक से बाहर आया तो मेरे जिस्म और लंड को एक झटका सा लगा.

मैंने झटका ले कर आपि की तरफ दे खा तो वो मेरे चेहरे पे ही नज़र जमाये हूवे थीं और मेरी हालत से
लुत्फ़ ले रही थी. मुझसे नज़र मिलने पे आपि ने शरारत से ऑ ंख मारी और फिर अपने मुंह को मेरे लंड
पे आगे पीछे करने लगी. जब आपि मेरे लंड पे अपना मुंह आगे की तरफ लाती थीं तो अंदर से अपने मुंह
की गिरफ्त को ढीला कर दे तीं और जब मेरा लंड अपने मुंह से बाहर लातीं तो सर को तो पीछे की ओर
हटाती थीं जिसे लंड बाहर आना शुरू हो जाता था लेकिन बाहर लेते वक़्त आपि अपने मुंह की अंदर वाले
हिस्से से ऐसे कोसतीं की मेरा लंड अंदर की तरफ खीचता हुआ बाहर आता था.
कुछ दे र तक इसी तरह आपि मेरा लंड चूसती रहीं और फिर जब भी आपि लंड को अपने मुंह की अंदर
धकेलतीं तो आखिर में एक झटका मारती थीं जिसे लंड हर बार थोड़ा थोड़ा ज़्यादा अंदर जाने लगा था
और कुछ ही दे र में आपि की कोशिश रं ग लाई और उन्होंने जड़ तक मेरा लंड अपने मुंह में लेना शुरू
कर दिया लेकिन सिर्फ एक लम्हे को ही आपि की होंठ मेरे लंड की जड़ तक पहुंच पाते थे और फिर
आपि वापस लंड को बाहर निकलना शुरू कर दे ती. आपि का हाथ मेरे पेट और लंड की दरमियानी हिस्से
पे रखा था जहाँ से हमारे लंड की बाल शरू
ु होते है . आपि ने इसी तरह मेरा लंड चस
ू ते चस
ू ते अपना हाथ
मेरे लंड की बालों वाली जगह से उठाया और मेरे लंड के नीचे लटकती गोटियों ( टट्टों ) को पकड़ लिया
और आहिस्ता आहिस्ता इन गोटियों को सेहलाने लगी. आपि का हाथ मेरी गोटियों पे टच हुआ तो सुरूर
की एक और लेहेर मेरे बदन से उठी और मझ
ु े ऐसा लगा कर शायद मैं अब अपने आप पर कंट्रोल नहीं
कर पाऊंगा और मैंने दोनों हाथों से आपि का चेहरा थामा और अपना लंड उनके मुंह से निकाल लिया
और आँखें बंद करके लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा और मुझे साफ महसूस हुआ की मेरे लंड का जूस जो
की बाहर आने लगा था वो अब वापस मेरी रगों में जा रहा है . चंद सेकंड बाद जब मैंने ये मेहसस
ु किया
की अब मैंने अपनी हालत पे कंट्रोल कर लिए है तो मैंने आँखें खोलीं और आपि की तरफ दे खा …

आपि का चेहरा मेरे हाथों में और उनका मंह


ु थोड़ा सा खल
ु ा हुआ मेरे लंड से तक़रीबन 4 इंच दरू था और
मेरे लंड की नोक से एक पतली सी लकीर आपि की नीचले होंठ तक गई हूई थी. वो पता नहीं मेरे लंड
का जूस ( मेरा प्रीकम ) था या आपि की थूक थी जो बारीक सी तार की तरह मेरे लंड की नोक से आपि
के होठों तक गई हूई थी. आपि की नज़रें मेरे चेहरे पे ही जमी थीं और शायद उन्होंने इस लकीर को दे खा
ही नहीं था. मैंने आपि का चेहरा एक हाथ से मज़बूती से थामा की वो मुंह हिला ना सकें और दस
ू रे हाथ
की उं गली आपि की ऑ ंख की सामने लेहराई. आपि ने कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में मेरी उं गली को
दे खा और मैं अपनी उं गली नीचे अपने लंड की तरफ ले जाने लगा. आपि की नज़रें मेरी उं गली पे ही जमी
थीं और उं गली के साथ साथ गर्दिश कर रही थीं. मैंने अपनी उं गली अपने लंड की टोपी पे नोक के पास
रखी तो उसी वक़्त आपि की नज़र भी मेरी प्रीकम की उस बारीक तार पे पड़ी और मैंने आपि के चेहरे
को मज़बत
ू ी से थाम लिया की कहीं आपि पीछे हटने की कोशिश ना करें लेकिन मैंने मेहसस
ु किया की
आपि ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की तो मैंने भी गिरफ्त ढीली कर दी और उनकी नज़रें मेरे लंड की नोक
से उसी तार पे होती हूई उनकी अपने होठों तक गयीं … आपि ने मुस्कुराकर मेरी ऑ ंखों में दे खा. आपि की
ऑ ंखों में अजीब सी चमक थी, अजीब सा ख़ुमार था जो इस एहसास की था की ये उनकी ज़िन्दगी का
पहला लंड था जिस को उन्होंने चूसा और उसके ज़ायक़े को मेहसुस किया और लंड भी उनकी अपने सगे
भाई का.
मैंने अपनी उं गली आपि के होठों पे रखी और अपनी प्रीकम की लकीर को उनके होठों से जुदा करके
अपनी उं गली पे ले लिया और उस तार को उं गली पे समेटते हूवे अपने लंड की नोक तक आया और वहां
से भी उस तार को तोड़ लिया. मैंने अपनी उं गली आपि को दिखाई. आपि ने मेरी उं गली पे लगा मेरे लंड
का जूस दे खा और नरमी से मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ऑ ंखों के क़रीब ले गयीं और फिर अचानक ही
झपट कर मेरी उं गली अपने मुंह में ले कर उससे चूसने लगी … और मैं आपि का ये अंदाज़ दे खकर दं ग
रह गया. आपि ने मेरी परू ी उं गली चस
ू ी और मेरा हाथ छोड़कर फिर से मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़
कर अपनी ज़ुबाँ लंड के सरू ाख में घुसाने लगी और एक बार फिर पूरे लंड को चाटने के बाद लंड मुंह में
लिया और तेज़ी से अपने मुंह में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.

कुछ ही दे र बाद मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हो गया … मैंने कोशिश की की मैं अपने आप पे कंट्रोल करूं
लेकिन जल्द ही मुझे मेहसुस हुआ की मैं अब की बार अपने आप को नहीं रोक पाऊंगा. मैंने अपनी
तमाम रगों को फुलता सुकड़ता महसूस किया और मैंने चीख़ती आवाज़ में बा मुश्किल कहा, " आपिईईई …
मैं … छूटने वाला हूंणणणन्न … " आपि ने मेरी बात सुनते ही लंड को मुंह से निकाला और तेज़ी से मेरे
लंड को अपने हाथ से मसलने लगी. 3-4 सेकंड बाद ही मेरे मुंह से एक तेज़ " आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह " निकलि
और मेरे लंड ने फवारे की सरु त अपने जस
ू की पहली धार छोड़ी जो सीधी मेरी बहन की हसीं गल
ु ाबी
उभारों पे गिरि … आपि ने अपना हाथ मेरे लंड से नहीं हटाया और इस धार को दे ख कर और तेजी से
मेरे लंड को रगड़ने लगी. 2, 2 सेकंड की वक़्फ़े से मेरे लंड से एक धार निकलती और आपि की मम्मों या
पेट पे चिपक जाती.

तक़रीबन एक मिनट तक मेरा लंड और जिस्म झटके खाता रहा और जूस बहता रहा. आपि ने मेरे लंड से
निकलते इस समुन्दर को दे खा तो बोली, " वाव्वववववव आज तो मेरी जान … मेरा सोहना भाई बहुत ही
जोश में है "

आज से पहले कभी मेरे लंड ने इतना ज़्यादा जूस नहीं छोड़ा था और मैं कभी इतना निढाल भी नहीं हुआ
था. आपि ने भी अपना हाथ चलाना अब बंद कर दिया था लेकिन बादस्तूर मेरे लंड को थाम रखा था. मैंने
निढाल सी कैफ़ियत में अधखल
ु ी ऑ ंखों से आपि को दे खा … उनके सीने की उभारों और पेट पे मेरे लंड से
निकली जूस ने आढ़ि तिरछी लक़ीरें सी बना डाली थीं. आपि ने अपने जिस्म पे नज़र डाली और मेरे लंड
को छोड़ कर अपनी उं गली से अपने खूबसूरत चूंचियों पे लगे मेरे लंड की जूस को साफ किया और काफी
सारी मिक़्दार अपनी उं गली पे उठा कर उं गली अपने मुंह में डाल ली. मैं आपि को दे ख तो रहा था लेकिन
इतना निढाल था की कुछ बोलना तो दरू की बात है आपि की इस हरकत पे हैरत भी ना ज़ाहिर कर
सका और खाली खाली ऑ ंखों से आपि को दे खता रहा …
आपि ने उं गली को अच्छी तरह चूसा और मुझे ऑ ंख मार कर अपनी ऑ ंखों को गोल गोल घुमाते हूवे
कहा, " उम्मम्म युमम्मीयियय … यार सागर ये तो मज़े की चीज़ है " ये बोल कर हसने लगी.

अचानक ही आपि की हं सी को ब्रेक लग गया और उन्होंने घबराये हूवे अंदाज़ में घड़ी को दे खा. फिर
बिस्तर से उछल कर खड़ी होती हूई बोली, " शीत्तट्टट्ट
् अम्मी और ऐनी आने ही वाली होंगी, या शायद आ
ही गई हो"

आपि ने मेरी शर्ट उठाकर जल्दी जल्दी अपना जिस्म साफ किया और क़मीज़ पहन कर सलवार पेहेनने
लगी तो मैंने कहा, " आपि आप तो आज झड़ गई ही नहीं हो …"

आपि ने सलवार पहन ली और कहा, " कोई बात नहीं … फिर सही. " और बिलाल के पास गयीं जो के नीचे
कारपेट पे नंगा ही उल्टा सो रहा था और उसको प्यार से उठाते हूवे कहा " बिलाल उठ़ो कपड़े पहनो और
सही तरह बिस्तर पे सोओ … उठो शाबाश " बिलाल को उठाकर मेरे पास आयी और मेरे होठों को चूम कर
मेरे बाल सँवारते हूवे बोली, " उठ़ो मेरी जान … शाबाश अपना जिस्म साफ करो. मैं जा रही हूॅं. " और इसके
साथ ही रूम से बाहर निकल गयीं.

मैं उठा तो बिलाल बाथरूम जा चुका था मैंने वैसे ही अपना ट्रॉउज़र पहना और बिस्तर पे लेटते ही नींद
आ गई. शायद कमज़ोरी की वजह से … शाम को आपि ने ही उठाया वो दध
ू ले कर आई थीं और हमें
उठा कर फ़ौरन ही वापस नीचे चली गयीं की उन्होंने रात का खाना भी बनाना था. दध
ू पी कर मैंने घस
ु ल
किया और बाहर निकल गया. मैं रात का खाना बाहर ही दोस्तो के साथ ही खा कर आया था. घर पहुंचा
तो 11 बज रहे थे. सब अपने अपने रूम्स में थे बस अब्बू टीवी लाउन्ज में बैठे न्यूज़ दे ख रहे थे. अब्बू को
सलाम वग़ैरा करने के बाद मैं अपने रूम में आया तो बिलाल सो चुका था. मुझे भी काफी थकान सी
मेहसुस हो रही थी और मुझे ये भी अंदाज़ा था की आज दिन में हमने सेक्स किया ही है तो आपि अभी
रात में हमारे पास नहीं आयेंगी. उनका दिल चाह भी रहा हो तब भी वो नहीं आयेंगी की वो हमारी सेहत
के बारे में बहुत फ़िक़र मन्द रहती थीं और हकीकत ये थी की इस वक़्त मुझे भी हवस की तलब मेहसुस
नहीं हो रही थी इस लिए मैं भी जल्द ही सो गया.

सब
ु ह मैं अपने टाइम पे ही उठा, कॉलेज से आ कर थोड़ी दे र नींद लेने के बाद दोस्तो मैं टाइम गज़
ु र कर
रात को घर वापस आया तो खाने के बाद आपि ने बता दिया की वो आज आयेंगी रात में . मैं कुछ दे र
वहां टीवी लाउन्ज में ही बैठ कर बिला वजह ही चैनल चें ज कर करकेटाइम पास करता रहा और
तक़रीबन 10 : 30 पे उठ़कर अपने रूम की तरफ चल दिया.
मैं रूम में दाखिल हुआ तो बिलाल हमेशा की तरह मूवी लगाये कंप्यूटर की सामने ही बैठा था … मझ
ु े
दे ख कर बोला, " यहां आ जाओ भाई जब तक आपि नहीं आतीं मूवी ही दे ख लेते है ."

मैंने अपनी पें ट उतारते हूवे बिलाल को जवाब दिया, " नहीं यार मेरा मूड नहीं है मूवी दे खने का, तुम दे खो
" और ट्रॉउज़र पहन कर बिस्तर पे आ लेटा. थोड़ी दे र बाद बिलाल भी कंप्यट
ू र बंद करके बिस्तर पे ही आ
गया और बोला, " भाई कल जब मेरे लंड ने अपना जूस निकाला तो मुझे तो इतनी कमज़ोरी फील हो रही
थी की आँखें बंद किये पता ही नहीं चला की कब सो गया, मैं तो आपि की उठाने पे ही उठा था … मुझे
बताओ ने मेरे सो जाने के बाद आप ने आपि के साथ क्या क्या किया था??"

मैंने जान छुड़ाने के लिए बिलाल से कहा, " यार छोड़ो फिर कभी बताऊँगा " लेकिन बिलाल के पुछने पे
मेरे ज़हन में भी कल के वाक़यात घम
ू गए की कैसे आपि मेरा लंड चस
ू रही थीं. किसी माहिर और
एक्सपेरियंस्ड सकर की तरह. बिलाल ने मुझसे मिन्नत करते हूवे 2 बार और कहा तो मैं उससे परू ी स्टोरी
सुनाने लगा कर कल क्या क्या हुआ था … बिलाल ने सुकून से पूरी स्टोरी सूनी और बोला " भाई आप
ज़बरदस्त हो … आप ने जिस तरह आपि को ये सब करने पे राज़ी क्या है उसका जवाब नहीं. मैं तो ये
सोच कर पागल हो रहा हूं की जब आपि मेरा लंड चूसेंगी तो … उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ " ये कह कर बिलाल ने
एक झर्रु झरु ी सी ली.

मैंने मुस्कुराकर बिलाल को दे खा और कहा, " फ़िक्र ना कर मेरे छोटे मेरा अगला टारगेट तो आपि की
टांगों की बीच वाली जगह है ."

बिलाल ने एक ठं डी आह भरी और बोला, " हननननन भाई कितना मज़ा आयेगा जब हम आपि की चूत
में लंड डालेंगे … " और फिर एक दम चौंकते हूवे बोला, " लेकिन भाई अगर कोई मसला हो गया तो …
मतलब आपि प्रेग्नेंट हो गयीं या ऐसी कोई और बात हो गयी तो फिररर."

मैंने एक नज़र बिलाल को दे खा और झझ


ंु ला कर कहा, " चति
ू आपे की बात ना कर यार … मैं इसका
बन्दोबस्त कर लूंगा बस. एक बार फिर कहता हूँ की खुद से कोई पन्गा मत लेना. जैसा मैं कहूं बस वैसे
ही कर " और इन ही ख़यालात में खोये और आपि का इन्तज़ार करते हम दोनों ही पता नहीं कब नींद
की आगोश में चले गए.

सुबह मैं उठा तो बिलाल जा चुका था. मैं कॉलेज के लिए रे डी होकर नीचे आया तो अम्मी ने ही नाश्ता
दिया क्योंकी आपि भी यनि
ू वर्सिटी जा चक
ु ी थीं. मैं नाश्ता करके कॉलेज चला गया. कॉलेज से वापस आया
तो 3 बज रहे थे मैंने आपि की रूम की अध ् खुले दरवाज़े से अंदर झाँका तो आपि सो रही थीं और ऐनी
वहां ही बैठी अपनी पढ़ाई कर रही थी.
मुझे अम्मी ने खाना दिया और खाना खा कर मैं अपने रूम में चला गया. बिलाल भी सो रहा था, मैंने भी
चें ज किया और सोचा की कुछ दे र नींद ले लूं फिर रात में आपि के साथ खेलने में दे र हो जाती है और
नींद परू ी नहीं होती.

शाम को मैं नीचे उतरा तो आपि घर में नहीं थीं मैंने अम्मी से पछ
ु ा तो उन्होंने बताया की नजमा खाला
की किसी सहे ली की छोटी बहन की मेहँदी है , कोई म्यूजिकल फंक्शन भी है तो बिलाल, आपि और ऐनी
तीनों ही उनके साथ चले गए है . मैं भी अपने दोस्तों की तरफ निकल गया. रात में 10 बजे मैं घर पहुंचा
तो आपि अभी भी वापस नहीं आयी थीं. अब्बू टीवी लाउन्ज में ही बैठे अपने लैपटॉप पे बिजी थे. मैंने कुछ
दे र उनसे बातें कीं और फिर अपने रूम में चला गया. मैंने रूम में आ कर पोर्न मूवी ऑन की लेकिन
आज फिल्म दे खने में भी मज़ा नहीं आ रहा था बस आपि की याद सता रही थी. किसी ना किसी तरह
मैंने एक घंटा गुज़ारा और फिर नीचे चल दिया की कुछ दे र टीवी ही दे ख लूंगा. मैं अभी सीढ़ीयों पे ही था
की मुझे अम्मी की आवाज़ आई, " बेटा सन
ु … नजमा का फ़ोन आया है वो कह रही है की सागर को भेज
दे , रूबी लोगों को ले आये।"

मैं अम्मी की बात सुनकर नीचे उतरा तो अब्बू अपना लैप टॉप बंद कर रहे थे. मैंने उनसे गाड़ी की चाबी
मांगी तो पहले तो अब्बू गाड़ी की चाबी मुझे दे ने लगे फिर एक दम किसी ख्याल की तहत रुक गए और
चश्मे के उपर से मेरी ऑ ंखों में झाँकते हूवे बोला, " सागर तम
ु ने लाइसेंस नहीं बनवाया ना अभी तक …"

मैंने अपना गाल खुजाते हूवे टाल मटोल की अंदाज़ में कहा, " वो अब्बू … बस रह गया कल चला जाऊंगा
बनवाने"

अब्बू ने गुस्से से भरपूर नज़र मुझ पे डाली और बोला, " यार अजीब आदमी हो तुम … कहा भी है जा कर
बस तस्वीर वग़ैरा खिचवा आओ साइन कर दो अपने वहां. बाक़ी शकूर साहब संभल लेंगे लेकिन तुम हो
की ध्यान ही नहीं दे ते हो किसी बात पे … मैं दे ख रहा हूँ आज कल तुम बहुत ग़ायब दिमाग़ होते जा रहे
हो … किन ् ख़यालों में खोये रहते हो ह्म्म ्"

मैं अब्बू की झाड़ सन


ु कर दिल ही दिल में अपने आप को कोस रहा था की नीचे क्यों उतरा इस टाइम पे.
अम्मी ने मेरी कैफ़ियत भाँप कर मेरा दिफा करते हूवे अब्बू से कहा, " अच्छा छोड़िए ना आप भी एक
बात के पीछे ही पड़ जाते है … बनवा लेगा कल जा कर …"

अब्बू ने अपना रुख अम्मी की तरफ फेरा और बोला " अरे नैक बखत … लोग तरसते है की कोई जान
पेहेचान वाला आदमी हो तो अपना काम करवा लें … और शकूर साहब मुझे अपने मुंह से कितनी बार
कह चुके है की सागर को भेज दो लाइसेंस ऑफिस … अब पता नहीं कितने दिन है वो वहां … उनका भी
ट्रांसफर हो गया तो परे शान होता फिरगा. इस लिए कह रहा है की बनवा ले जा कर."

अम्मी ने बात ख़तम करने की अंदाज़ में कहा, " अच्छा चले अब चाबी दे उससे. वो लोग इन्तज़ार कर रही
होंगी"

अब्बू ने अपना लैप टॉप गोद से उठाकर टे बल पे रखा और खड़े होते हूवे बोला, " नहीं अब इसकी ये ही
सजा है की जब तक लाइसेंस नहीं बनवायेगा गाड़ी नहीं मिलेगी " और ये कह कर बाहर चल दिये.

अम्मी ने झल्ला कर अपने सर पे हाथ मारा और कहा, " हाई रब्बा … ये सारे ज़िद्दी लोग मेरे नसीब में ही
क्यों लिखे है … जैसा बाप है वैसी ही सारी औलाद … " मैं चुप चाप सर झुकाये खड़ा था की दब
ु ारा अम्मी
की आवाज़ आई, " अब्ब जा ना बेटा दरवाज़ा खोल वरना हॉर्न पे हॉर्न बजाना शुरू कर दें गे"

मैं झंझलाये हूवे ही बाहर गया और अब्बू की गाड़ी बाहर निकाल लेने के बाद दरवाज़ा बंद करके सीधे
अपने रूम में ही चला गया. मेरा मूड बहुत ख़राब हो चुका था … पहले ही आपि के साथ सेक्स ना हो
सकने की वजह से झंझ
ु लाहट थी और रही सही कसर अब्बू की डांट ने परू ी कर दी. मैं बिस्तर पे लेटा
और तय किया की सुबह सब से पहला काम ये ही करना है की जा कर लाइसेंस बनवाना है और इसी
ऑफ मूड के साथ ही नींद ने हमला करके मेरे शेर को सुला दिया …

मैं सुबह उठा तो मेरे ज़हन में अब्बू की डांट ताज़ा हो गई मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ और नाश्ता करके
लाइसेंस ऑफिस चल दिया. वहां जा कर शकूर साहब से मिला उन्होंने एक आदमी मेरे साथ भेजा. खैर
सब पेपर वर्क निपटा कर मैं सीधे कॉलेज चला गया.

कॉलेज से घर आया तो बिलाल टीवी दे ख रहा था मुझे दे ख कर बोला " भाई खाना टे बल पे पड़ा है खा
लो."

मैंने अम्मी का पछ
ु ा तो बिलाल ने बताया की अम्मी और ऐनी मार्कीट गयी है और आपि को नजमा
खाला अपने साथ कहीं ले गई है . मैं खाना खा कर रूम में गया और जाते ही सो गया. शाम में मैं सो के
उठा तो फ्रेश हो कर दोस्तों की तरफ निकल गया … और रात को घर वापस पहुंचा तो 9 बज रहे थे. मैंने
सबके साथ ही रात का खाना खाया और अपने रूम में आ गया … काफी दे र आपि का वेट करने के बाद
भी आपि नहीं आयी मैंने टाइम दे खा तो 11 : 30 हो चुके थे. मैं नीचे आपि को दे खने के लिए चल दिया.
नीचे दे खा तो आपि की रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था बाहर लाइट ऑफ थी लेकिन अंदर लाइट जल
रही थी और अम्मी और ऐनी आपि को वो कपड़े वग़ैरा दिखा रही थीं जो उन्होंने आज शॉपिंग की थी.
अम्मी और ऐनी की कमर मेरी तरफ थी और आपि उनकी सामने बैठी थीं. मैं दरवाज़े के पास जा कर
खड़ा हो गया और हाथ हिलाने लगा की आपि मेरी तरफ दे ख लें लेकिन काफी दे र कोशिश के बाद भी
आपि ने मेरी तरफ नहीं दे खा और मैं मायूस होकर वापस जाने का सोच ही रहा था की आपि की नज़र
मुझ पे पड़ी और फ़ौरन ही उन्होंने नज़र नीची कर ली.

आपि को मेरी मौजद


ू गी का इल्म हो चक
ु ा था. कुछ ही दे र बाद आपि बिस्तर से उठीं और कहा, " ऐनी तम

वो पीला वाला बॅग खोलो, मैं पानी पी कर आती हूँ " आपि ये कह कर दरवाज़े की तरफ बढ़ी ही थीं की
ऐनी ने आवाज़ लगायी " आपि प्लीज एक गिलास मेरे लिए भी ले आना " और मैं फ़ौरन दरवाज़े से
साइड पे हो गया की दरवाज़ा खल
ु ने पे अम्मी या ऐनी की नज़र मझ
ु पे ना पड़ सके.

आपि रूम से बाहर निकलीं और अपनी पुष्ट पे दरवाज़ा बंद करके किचन की तरफ जाने लगी तो मैंने
उनका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा. आपि इस तरह खींचे जाने से ड़र गयीं और बेसख्ता ही उनकी
हाथ अपने चेहरे की तरफ उठे और वो मेरे सीने से आ लगी. आपि मुझसे टकरायीं तो मैं भी पीछे दिवार
से जा लगा और आपि को अपने बाजूओं में जकड़ लिया … आपि की दोनों बाज़ू उनकी सीने की उभारों
और मेरे सीने की दरमिआन आगये थे. उन्होंने हाथ अपने चेहरे पे रखे हूवे थे और मैंने आपि को अपने
बाजूओं में जकड़ा हुआ था. आपि ने अपने चेहरे से हाथ हटाये और सरगोशी में बोली, " सागर कमीने कुछ
ख्याल किया करो मेरी तो जान ही निकल गई थी ऐसे अचानक तुम ने खींचा है मझ
ु े. "

मैंने भी सरगोशी में ही जवाब दिया, " मैं समझा आप ने मुझे दरवाज़े से हट कर दिवार से लगते दे ख
लिए होगा"

" नहीं मैंने नहीं दे खा था … और अभी छोड़ो मुझे अम्मी और ऐनी दोनों अंदर है . बाहर ना निकल आयें
और अब्बू भी अपने रूम में ही है " आपि ने ये कहा और एक खोंफज़दा सी नज़र अब्बू की रूम की
दरवाज़े पे डाली. मैंने आपि की कमर से हाथ हटाये और उनकी गर्दन को पकड़ कर होठों से होंठ चिपका
दिया … आपि ने मेरे सीने पे हाथ रखकर थोड़ा ज़ोर लगाया और मुझसे अलग होकर बोलीं " सागर क्या
मौत पड़ी है … पागल हो गए हो क्या?"

मैंने आपि का हाथ पकड़ा और अपने ट्रॉउज़र के उपर से ही अपने खड़े लंड पे रख कर कहा, " आपि ये
दे खो मेरा बरु ा हाल है … आओ ना रूम में "

" सागर पागल हो गए हो क्या अभी कैसे चलँ ू … अम्मी और ऐनी रूम में ही है तुम दे ख ही चुके हो "
आपि ने ना जाने की वजह बताई लेकिन अपना हाथ मेरे लंड से नहीं हटाया और ट्रॉउज़र के उपर से ही
मुठ्ठी में पकड़ कर दबाने लगी. मैंने आपि की सीने की दांए उभार को क़मीज़ के उपर से ही पकड़ कर
दबाया और पुछा, " तो कब तक फ्री होगी … आपि आज चौथी रात है की मैंने कुछ नहीं किया … मेरा
जिस्म जल रहा है "

" मैं क्या कहूं सागर … पता नहीं कितनी दे र लग जाये " आपि ने अपनी बात ख़तम की ही थी की मैंने
अपना ट्रॉउज़र थोड़ा नीचे किया और अपना लंड बाहर निकल लिया और आपि को कहा, " आपि प्लीज
थोड़ी दे र मेरा लंड चूस लो ना " आपि ने मेरे नंगे लंड को अपने हाथ में पकड़ा और कहा, " सागर!! पागल
हो गए हो क्या … अपने आप पे थोड़ा कंट्रोल करो मैं फ़ारिग़ होकर आ जाऊंगी ना तुम्हारे पास"

मैंने आपि की बात सुनतै हुए अपना दांए हाथ पीछे से आपि की सलवार की अंदर डाल दिया और आपि
की गर्दन पे अपने होंठ रखते हूवे अपने हाथ को उनकी दोनों कुल्हों पे फेरा और उनकी दोनों चिकने और
सख्त कुल्हों को बारी बारी दबाने लगा. मेरे होंठ आपि की गर्दन पे और हाथ आपि की कुल्हों पे डायरे क्ट
टच हुआ तो उनका बदन लरज़ गया और वो सरगोशी में लरज़ती आवाज़ से बोली, " सागर … आह्हह्ह …
नहीं करो प्लीज … मैं … मैं बर्दाश्त नहीं … कर पाऊंगी नाआ"

मैंने आपि की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी गर्दन को चाटता हुआ अपना मुंह गर्दन की
दस
ू री तरफ ले आया. साथ साथ ही मैंने अपना दांए हाथ आपि की सलवार में आगे से डाला और उनकी
मक
ु म्मल चत
ू को अपनी मठ्ठ
ु ी में पकड़ते हूवे दस
ू रे हाथ की उं गलियों को कुल्हों की दरमियाँ दरार में घस
ु ा
दिया और पूरी दरार को रगड़ने लगा.

आपि पे आहिस्ता आहिस्ता मदहोशी सी तरी होती जा रही थी और वो अपनी आँखें बंद किये आहिस्ता
आवाज़ में बेसख्ता बड़बड़ा रही थी, " बस सागर … सागर छोड़ दो मुझे … बस करो … " उनकी आवाज़
ऐसी थी जैसी किसी गहरे कँु वें ( वेल ) में से आ रही हो. मैंने आपि की चूत को अपने हाथ से छोड़ा और
दोनों लबों की दरमियाँ में अपनी उं गली दबा कर चूत की अन्दरूनी नरम हिस्से पे रगड़ते हूवे दस
ू रे हाथ
की एक उं गली आपि की गान्ड़ के सूराख में दाखिल कर दी. मेरे इस 2 तरफ़ा हमले से आपि ने तड़प कर
अपनी आँखें खोल दीं और होश में आते ही उन्हें एहसास हुआ की हमारी पोजीशन कितनी खतरनाक है
और किसी की आने पे हम अपने आप को बिल्कुल संभल ना पायेंगे. इसी खतरे की पेशे नज़र आपि
लरज़ती आवाज़ में कहा, " सागर कोई बाहर आ जायेगा … मेरे प्यारे भाई प्लीज … अपनी पोजीशन को
समझो … खुदा के लिए"

आपि ने ये कहा ही था की हमें एक खटके की आवाज़ आयी और आपि फ़ौरन मुझे धक्का दे की पीछे
हटी और किचन की तरफ भाग गयीं. आपि के धक्का दे ने और पीछे हटने से मेरे हाथ भी आपि की
सलवार से निकल आये. मैंने फ़ौरन अपना ट्रॉउज़र उपर किया … मेरा दिल भी बहुत ज़ोर से धड़का था. मैं
कुछ सेकंड वहीं रुका रहा और फिर दबे क़दमों सीढ़ीयों की तरफ बढ़ने लगा.
वो खटका शायद रूम की अंदर ही हुआ था, आपि किचन से पानी लेकर निकलीं तो मैं सीढ़ीयों के पास ही
खड़ा था … आपि को किचन से निकलता दे ख कर मैं उनकी तरफ बढ़ा तो आपि ने गर्दन को नहीं की
अंदाज़ में हिला की मुझ पर एक गुस्से भरी नज़र डाली और मेरे क़दम रुकते ना दे ख कर भाग कर रूम
की तरफ चली गयीं. आपि ने रूम की दरवाज़े पे खड़े होकर मुड़ कर मुझे दे खा. मैं आपि को भागता दे ख
कर अपनी जगह पे ही रुक गया. आपि ने मुझे दे ख कर मेरी तरफ एक फ्लाइंग किस की लेकिन मैंने
बरु ा सा मंह
ु बनाकर आपि को दे खा और घम
ू कर सीढ़ीयों की तरफ चल दिया.

मैंने पहली सीढ़ी पे क़दम रखा ही था की मझ


ु े पीछे दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई … आपि कुछ दे र
तक वहीं रुकी मुझे दे खती रही थीं लेकिन मैंने पलट कर नहीं दे खा तो वो अंदर चली गयीं. मैं भी अपने
रूम में वापस आया तो बिलाल सो चुका था … मुझे आपि पे बहुत गुस्सा आ रहा था और मैं उसी गुस्से
और बेबसि की ही हालत में लेटा और फिर पता नहीं कब मझ
ु े भी नींद ने अपने हसर में ले लिया …

सुबह बिलाल ने उठाया तो दिल नहीं चाह रहा था कॉलेज जाने का इस लिए मैंने बिलाल को मना किया
और फिर सो गया. दस
ू री बार मेरी ऑ ंख खल
ु ी तो 10 बज रहे थे. मैं नहा धो कर फ्रेश हुआ और नीचे
आया तो अम्मी टीवी लाउन्ज में बैठी टीवी दे खते हूवे साथ साथ मटर भी छीलती जा रही थीं. मैंने अम्मी
को सलाम किया और डाइनिंग टे बल पे बैठा ही था की आपि भी मेरी आवाज़ सुनकर अपने रूम से
निकल आयी और उसी वक़्त अम्मी ने भी मट्टर के दाने निकलते हूवे आवाज़ लगाई, " रुबियययय!!! बाहर
आओ बेटा … भाई को नाश्ता दो।"

" जी अम्मी आ गयीं है दे ती हूॅं अभी " आपि ने अम्मी को जवाब दे कर किचन की तरफ जाते हूवे मझ
ु े
दे खा. मैंने भी आपि को दे खा और गुस्से में मुंह बनाकर नज़र फेर ली और इस एक नज़र ने ही मुझे
आपि में आज एक खास लेकिन बहुत प्यारी तबदीली दिखा दी थी … आपि ने हमेशा की तरह अपने सर
पे स्कार्फ बांधे हुआ था और बड़ी सी चादर ने उनकी बदन की नशेबो फ़राज़ को हमारी नज़रों से छुपा
रखा था लेकिन खास तबदीली थी आपि की बड़ी बड़ी खूबसूरत ऑ ंखों में झिलमिलाता काजल. आपि ने
आज ऑ ंखों में काजल लगा रखा था और उससे आपि की खब
ू सूरत आँखें मज़ीद हसीं और बड़ी नज़र आ
रही थीं …

आपि नाश्ते की ट्रे लेकर आयी और टे बल पे मेरे सामने रखते हूवे आहिस्ता आवाज़ में बोली, " अल्ल्लाहा
मेरी जान … नाराज़ है मझ
ु से"

मैंने आपि को कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने ट्रे से निकाल कर आमलेट, पराठा मेरे सामने रखा और मेरे
गाल पे चुटकी काटकर अपने दांतों को भींचते हूवे बोली, " गुस्से में लगता बड़ा प्यारा है … मेरा सोहना
भाई"
मैंने बुरा सा मुंह बनाकर आपि की हाथ को झटका लेकिन मुंह से कुछ ना बोला और ना ही नज़र
उठाकर उनको दे खा. मैंने चुप चाप नज़र झुकाये हूवे ही नाश्ता करना शुरू कर दिया. आपि कुछ दे र वहां
ही खड़ी रहीं फिर अम्मी के पास जा कर मटर छीलने में उनकी मदद करने लगी …

मैंने नाश्ता ख़तम किया ही था की आपि ने प्लांट्स को पानी दे ने वाली बाल्टी उठाई और अम्मी को कुछ
कहते हूवे बाहर गराज में रखे पौधों को पानी लगाने के लिए चली गयीं. मैं टीवी लाउन्ज की दरवाज़े पे
पहुंचा ही था की अम्मी की आवाज़ आयी, " सागर मोटर चला दो. ये लड़की पौधों को पानी लगाते लगाते
परू ी टं की ही खाली कर दे गी."

मैं मोटर का बटन ऑन करके मुड़ा ही था की आपि ने मेरा हाथ पकड़ कर झटका दिया और अपने दोनों
हाथ अपनी कमर पे रखकर बोली, " क्या ड्रामा है सागर … बात क्यों नहीं कर रहे हो मझ
ु से."

मैंने अभी भी आपि की तरफ नहीं दे खा और नज़र झुकाये हूवे ही नाराज़ अंदाज़ में कहा, " बस नहीं करनी
मैंने बात … मेरी मर्ज़ी " आपि ने मेरी ठोड़ी को अपने हाथ से उपर उठाये और मोहब्बत भरे अंदाज़ में
कहा, " सागर मैं भी तो मजबूर हूॅं ना … बस अब नाराज़गी ख़तम करो … चलो शाबाश मेरी तरफ दे खो …
मेरा सोहना भाई … नज़र उठाओ अपनी."

मैंने नज़र नहीं उठाई लेकिन आपि की हाथ को भी नहीं झटका.

" आपि कितने दिन हो गए है . आप नहीं आयी हो … आप का अपना दिल चाहता है तो आती हो … मेरी
ख़ुशी के लिए तो नहीं ना"

" मुझे पता ही आज 5 दिन हो गए है मैंने अपने सोहणे भाई को खुश नहीं किया … मैं क्या करूं मेरी
जान. मौका ही नहीं मिल पाया है लेकिन मैं आज रात कोशिश करूंगी लाज़मी ओके " आपि ने ये कहा
और मेरी ठोड़ी से हाथ हटा लिया और मेरे चेहरे पे अपनी नज़रें गढ़ दीं. मैंने आपि की बात सुनकर भी
अपना अंदाज़ नहीं बदला और हल्का सा गुस्सा दिखाते हूवे बोला, " अभी भी ये ही कह रही हो की …
कोशिश करूंगी … यानि की आज रात को भी आने का प्रोग्राम नहीं है ."

" यार तुम्हें पता ही है की बिलाल और ऐनी की फाइनल एग्जाम होने वाले है . ऐनी रात 3-4 बजे तक
पढ़ाई करती रहती है . मैं उसकी सामने कैसे आऊं … तम
ु भी तो ज़िद लगा लेते हो तो कोई बात समझते
ही नहीं हो " अब आपि की लेहजे में भी झझ
ुं लाहट पैदा हो गई थी.

आपि थोड़ी दे र तक ऐसे ही मेरे चेहरे पे नज़र जमाये रहीं और मेरी तरफ से कोई जवाब ना सन
ु कर
कुछ फैसला करके बोली, " ओके ठीक है . ऐसी बात है तो ये लो " ये कहते हूवे आपि ने अपनी सलवार में
अपने दोनों अंगूठों को फसाया और एक ही झटके में अपने पांव तक पहुंचा दिया और अपनी चद्दर और
क़मीज़ को इकठ्ठा करके अपने पेट तक उठा लिया और मेरी तरफ पीठ करते हूवे बोली, " चलो अभी और
इसी वक़्त चोदो मुझे … मैं कसम खाती हूँ तुम्हें नहीं रोकंू गी … आवो चोदो मुझे"

अपनी बहन का ये अंदाज़ दे खकर मैं दं ग ही रह गया और हक़ीक़तन ड़र से मेरी गान्ड़ ही फट गई. आपि
की ये हरकत मेरे वेहमो गुमान में भी नहीं थी. हम से चंद क़दम के फासले पे ही टीवी लाउन्ज का
दरवाज़ा था और अंदर अम्मी बैठी थीं … और सामने घर का मेन गेट था, अगर कोई भी घर में दाखिल
होता तो पहली नज़र में ही हम दोनों सामने नज़र आते …

अब सिचुएशन कुछ ऐसी थी की आपि ने मेरी तरफ पीठ की हूई थी और थोड़ी सी झुके खड़ी थीं. उनकी
खब
ू सरू त गल
ु ाबी, चिकने कुल्हे मेरी नज़रों की सामने थे. मझ
ु े हैरत का शदीद झटका लगा मैं गम
ु सम
ू सा
ही खड़ा था और मेरी नज़र आपि की नंगी राणों और कुल्हों पे ही थी की आपि की आवाज़ मुझे होश की
दनि
ु यां में वापस ले आयी …

" चलो ना रुक क्यों गए हो … आयो डालो अपना लंड मेरी चूत में … " मैं तेज़ी से आगे बढ़ा और आपि
की कांधों को थाम कर उपर उठाने की कोशिश करते हूवे बोला, " पागल हो गई हो आपि क्या कर रही हो.
उठ़ो उपर … सीधी खड़ी हो और सलवार उपर करो अपनी … " आपि ने अपने कांधों को झटका दे की मेरे
हाथों से अलग किया और वैसे ही झुके झुके अपने हाथ से मेरे लंड को पें ट के उपर से ही मज़बूती से
पकड़ कर दबाया और ज़िद्दी लेहजे में ही कहा, " नहीं मैं नहीं होती सीधी … तुम इसे बाहर निकालो और
अभी इसी वक़्त मेरी चत
ू में डाल कर ठण्डा कर लो अपने आप को … अपनी ख्वाहिश परू ी करो आओ …
तुम ज़िद्दी हो तो मैं भी तुम्हारी ही बहन हूॅं " ये बोलते हूवे आपि की आवाज़ भर्रा गई थी और उनकी
ऑ ंखों में नमी भी आ गई थी.

मैं नीचे झुका और आपि की सलवार को पकड़ कर उपर करने के बाद आपि की हाथ से उनकी क़मीज़
और चादर भी छुड़वा दी जो उन्होंने अपने एक हाथ से अपने पेट पे पकड़ रखी थी. इसके बाद मैंने
मज़बत
ू ी से आपि की कांधों को पकड़ा और उनको सीधे खड़ा करके अपने सीने से लगा लिए.

आपि ने अपना चेहरा मेरे सीने से लगा दिया और रोते हूवे बोली, " सागर … मझ
ु से नाराज़ … नहीं हुआ
करो … मैं मर जाऊंगी अच्छा " मैंने अपना एक हाथ आपि की कमर पे रखा और कमर सेहलाते हूवे दस
ू रे
हाथ से उनके सर को अपने सीने से दबा की बोला, " अच्छा बस ना आपि … रोया मत करो ना यार …
गुस्सा कर लो मार लो मुझे लेकिन रोया मत करो … मेरा दिल हिल जाता है ."
कुछ दे र हम दोनों ही कुछ ना बोला. आपि ऐसे ही मुझसे चिपकी अपना चेहरा मेरे सीने पे छुपाये खड़ी
रहीं और अपनी सिसकियों पे क़ाबू करती रहीं फिर उखड़े हूवे लेहजे में ही बोली, " तुम भी तो ख्याल नहीं
करते हो ना. हर वक़्त तुम्हारे ज़हन पे चूत ही सवार रहती है बस."

मैंने दे खा की आपि ने अब रोना बंद कर दिया है तो उनकी मड


ू को सेट करने के लिए कहा, " अच्छा ना
मेरी सोहणी बेहना … बस अब रोना ख़तम अपना मूड अच्छा करो जल्दी से " आपि ने मेरी बात सुनकर
मेरी कमर पे मुक्का मारा और सीने पे हल्का सा काट लिया. आपि का एक हाथ मेरी कमर पे था और
दस
ू रा हाथ हम दोनों की जिस्मों की दरमिआन … आपि को ख्याल ही नहीं रहा था की उनका हाथ अभी
तक मेरे लंड पे ही है और उन्होंने बेख्याली में ही उससे बहुत मज़बूती से थाम रखा था. मैंने आपि का
मूड कुछ बेहतर होते दे खा तो शरारत से कहा, " रोते रोते भी मेरे लंड को नहीं छोड़ा आप ने और कह
मुझसे रही हो की मेरे ज़हन पे चूत सवार रहती है है . अब छोड़ दो अब मुझे दर्द होने लगा है "

मेरी बात सुनकर आपि बेसख्ता ही पीछे हटी. एक दम मेरे लंड को छोड़ा और नम ऑ ंखों से ही हसते हूवे
मेरे सीने पे मक्
ु का मार कर दब
ु ारा मेरे सीने से लग गयीं और मैंने भी हसते हूवे फिर से आपि को अपनी
बाहों में भींच लिए. चंद लम्हों बाद मैंने आपि को पीछे किया और अपने हाथ से उन की गालों पे बेह्ते
ऑ ंसूओं को साफ किया जिन्होंने आपि के गुलाबी रुख़सारों पे काज़ल की काली लक़ीरें बना डाली थीं और
फिर उनके चेहरे को दोनों हाथों में नरमी से पकड़ कर चेहरा उठाया. आपि ने भी अपनी नज़रें उठाकर मेरी
ऑ ंखों में दे खा और हम दोनों फिर से हं स दिया. आपि की ऑ ंखों की इर्द गिर्द काज़ल फैल गया था और
उनकी रोयी रोयी सी आँखें बहुत ज़्यादा हसीं लग रही थीं. मैंने आपि की दोनों ऑ ंखों को बारी बारी चूमा
और कहा, " आपि आपकी आँखें काजल लगाने से इतनी हसीं लग रही थीं की कसम खुदा की खा कर
कहता हूॅं मैंने आज तक कभी इतनी हसीं आँखें नहीं दे खी और अब काजल फैल गया है तो एक नया
हुस्न उभर आया है " आपि ने भी आगे बढ़ कर मेरे गाल को चूमा और नाराज़ से अंदाज़ में बोली, "
तुम्हारे ही लिए लगाया था काजल. मुझे पता था की तुम्हें अच्छा लगेगा लेकिन तुम ने एक बार भी नहीं
दे खी मेरी आँखें और अब तो सारा काज़ल फैल ही गया होगा. " आपि ने अपनी बात ख़तम की ही थी की
अम्मी की आवाज़ आयी, " रूबी बस कर दं ू क्या सारा पानी ख़तम करके ही आओगी"

" बस आ रही हूँ अम्मीी " आपि ने अम्मी को जवाब दिया और अंदर जाने ही लगी थीं की मैंने उनका
हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच कर आपि के होठों को अपने होठों में जकड़ लिया. तक़रीबन 2 मिनट
तक मैं और आपि एक दस
ू रे की होंठो और ज़ुबाँ को चूसते रहे फिर आपि मेरे नीचले होंठ को चूस की
खींचते हूवे मुझसे अलग हूई और अपने होंठो पे ज़ुबाँ फेर कर बोली, " सागर बस अब छोड़ो कोई आ ना
जाये " मेरे मुंह से बेसख्ता ही हँसी निकल गयी और मैंने हसते हूवे ही आपि को कहा, " अब होश आया है
की कोई आ ना जाये … कुछ दे र पहले की अपनी हालत याद करो ज़रा …"
" बकवास नहीं करो. मुझे गुस्सा आ गया तो मैं फिर शुरू हो जाऊंगी आपि ने वार्निंग दे ने वाले अंदाज़ में
अकड़ कर कहा तो मैंने ताली मारने की अंदाज़ में अपनी दोनों हथेलियाँ अपने माथे के पास जोड़ी और
कहा, " माफ़ कर दे मेरी मन्नणन्न … गुस्सा ना करना … बहुत भारी गुस्सा है तुम्हारा " आपि ने हसते
हूवे मेरे जुड़े हूवे हाथों को पकड़ा और उनको नीचे करके अंदर चली गयीं. आपि के अंदर जाने के बाद मैं
कुछ दे र वहां ही खड़ा रहा और फिर सोचा की मूड फ्रेश हो ही गया है तो चलो आज दिन स्नूकर की
नज़र ही कर दे ते है और ये सोच कर बाहर निकल गया …

दिन का खाना भी मैंने दोस्तों के साथ ही खाया और रात को जब घर पहुंचा तो 10 : 15 हो रहे थे. मेरा
खाना डाइनिंग टे बल पे ही पड़ा था और अब्बू और अम्मी टीवी लाउन्ज में बैठे थे, जबके आपि वग़ैरा सब
अपने रूम्स में ही थे. मैंने खाना खाया और इस दौरान अब्बू से बातें भी करता रहा. उन्होंने लाइसेंस के
बारे में दरयाफ़्त किया. मैंने उस बारे में बताया और ऐसे ही इधर इधर की बातें करते रहे .

तक़रीबन 11 : 30 पे मैं अपने रूम में आया तो. बिलाल बिस्तर पे अपनी बुक्स फैलाए पढ़ाई में इतना
मगन था की उससे मेरी आमद का भी पता नहीं चला. मैंने जा कर उसकी गद्द
ु ी पे एक चपट लगायी और
पुछा " क्यों भाई आईनस्टाईन … आज्ज ये ख्याल कैसे आ गया?"

वो अपनी गद्द
ु ी सेहलाते हूवे बोला, " भाई फाइनल एग्जाम होने वाले है और अगर मेरे नंबर ऐनी से कम
हूवे तो अब्बू वैसे ही मेरी जान नहीं छोड़ेंगे. " मैं बिस्तर पे गिरने के अंदाज़ में लेटा और उससे बोला " तो
अच्छी बात है ना बेटा … बाक़ी सारे काम अपनी जगह लेकिन पढ़ाई अपनी जगह ओक्के"

" भाई एक बात समझ में नहीं आती … आपि जब यहाँ रूम में होती है तो मुझसे बहुत प्यार जताती है
लेकिन अगर नीचे हूँ तो मुझ पे तपी ही रहती है "

मैंने उसकी बात पे चौंक कर उससे दे खा और पुछा, " क्यों क्या हुआ है " तो वो बुरा सा मुंह बनाकर बोला,
" मैंने अभी शाम में आपि से पछ
ु ा था की आज रात में आयेंगी हमारे रूम में ? … तो उन्होंने बरु ी तरह
मुझे झाड़ दिया और बोलीं की तुम्हारे पेपर होने वाले है ना … जाओ जा कर पेपर्स की तयारी करो"

मैं बिस्तर से उठ़कर बैठ गया और उससे समझने की अंदाज़ में बोला " दे खो बिलाल मेरी एक बात अभी
ध्यान से सुनो. अब तुम इस रूम के अलावा और कहीं भी कभी भी आपि से हमारे इन ताल्लुक़ात का
ज़िकर नहीं करोगे … चाहे आपि घर में अकेलि ही क्यों ना हो लेकिन नीचे हो तो तुम ने ऐसी कोई बात
नहीं करनी है . रूम में कहो जो कहना है … समझ रहे हो ना मेरी बात"

तो बिलाल ने है में गर्दन हिला की कहा " जी भाई. समझ गया"


" हां इन बातों की अलावा तुम जो बात मर्ज़ी करो मैं तुम्हें यक़ीं दिलता हूँ की आपि कभी तुमसे ख़फ़ा
नहीं होंगी .. बेवक़ूफ़ वो अपनी जान से ज़्यादा चाहती है हम दोनों भाइयों को … लेकिन एक बार फिर
कहूंगा की इस रूम से बाहर आपि से ऐसी कोई बात नहीं अच्छा … चलो अब अपनी पढ़ाई करो और
आज से जब तक तुम्हारे एग्जाम नहीं ख़तम हो जाते मैं तुम्हें कंप्यूटर पे भी बैठा हुआ नहीं दे खों ओके "
मैंने अपनी बात कही और ट्रॉउज़र उठाकर बाथरूम चला गया …

मैं बाथरूम से चें ज करके और फ्रेश होकर बाहर निकला तो बिलाल दब


ु ारा अपनी किताबों में खोया हुआ
था. मैंने भी उससे तंग करना मन
ु ासिब ना समझा और चप
ु चाप बिस्तर पे आकर लेट गया और आपि
की आज सुबह वाली हरकत को सोच कर उनका इन्तज़ार करने लगा …

रात की 2 बजे तक मैं आपि का इन्तज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयीं तो मैंने बिलाल को कहा, "
चलो बिलाल अब सो जाओ सुबह स्कूल भी जाना है तुम ने " और खुद भी आँखें बंद कर लीं …

मेरी गेहरी नींद टूटी और मैंने ज़बर्दस्ती आँखें खोलकर दे खा तो धध


ुँ ला धुंदला सा साया सा नज़र आया
जो मेरे काँधे को हिला रहा था कुछ मज़ीद सेकंड के बाद मेरी आँखें सही तरह खुल पायीं और मेरे कानों
में दबी दबी सी आवाज़ आयी, " अब उठ़ भी जाओ ना. सागररररर " मेरी ऑ ंखों की सामने से धुंद हटी तो
पता चला की आपि बिस्तर पे ही बैठी मझ
ु े उठा रही थीं.

मैंने ऑ ंखों को मक
ु म्मल खोलते हूवे कहा, " क्या हो गया है आपि … क्या टाइम हो रहा है "

" साढ़े तीन 3 : 30 हूवे है … कैसे घोड़े बेच कर सोते हो कब से उठा रही हूँ तुम्हें !"

मैंने दब
ु ारा आँखें बंद करते हूवे गुस्सा दिखा कर कहा, " तो अब क्यों आयी हो. मेरा मूड नहीं है अब …
जाओ जा कर सो जाओ. " आई एम सॉरी ना सागर प्लीज … 3 बजे तक ऐनी पढ़ाई करती रही है वो सोइ
है तो मैं आई हूँ"

" इतना इन्तज़ार करवाया है सारा मड


ू ख़राब हो गया है … अब सोने दो मझ
ु े " आपि दबी आवाज़ में
शरारत से हं स कर बोली, " वूऊऊ मेरा शोहना भाई फिर नाराज़ हो गया है मुझसे … दे खो मझ
ु े तुम्हारा
कितना ख्याल है मैं इतना लेट भी आ गई हूँ"

मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो आपि बोली, " मुझे पता है मेरे शोहने भाई का मूड कैसे ठीक होगा " ये कह
कर आपि उठीं और मेरी टांगों की दरमिआन बैठ कर मेरे ट्रॉउज़र को नीचे खींचा और मेरा लंड अपने
हाथ में पकड़ लिया. मैंने अपना लंड आपि की हाथों में मेहसस
ु किया तो मेरी आँखें खद
ु बा खद
ु ही खल

गयीं और पहली नज़र ही आपि के चेहरे पे पड़ी. आपि मेरी टांगों की बीच में बैठी थीं मेरा लंड उनकी हाथ
में था और उनके मुंह से बमुश्किल एक इंच की दरि
ू पे होने की वजह से आपि की गरम साँसें मेरे लंड में
जान भर रही थीं.

मेरी नज़र आपि से मिली तो उन्होंने मझ


ु े ऑ ंख मारी और मेरे लंड को अपने मुंह में डाल लिए. मेरे मुंह
से एक तेज़ आह्ह्ह निकलि और मैंने बेसख्ता ही बिलाल की तरफ दे खा जो की बिस्तर की दस
ू रे कोने पे
उल्टा पड़ा सो रहा था. आपि ने मेरी नज़रों को बिलाल की तरफ मेहसुस करके मेरा लंड अपने मुंह से
बाहर निकाला और बोली, " सोने दो उसे मत उठाओ … वैसे भी अभी उसकी सर पे ढोल भी बजाओगे तो
वो सोता ही रहे गा " अपनी बात कह कर आपि ने अपनी ज़ब
ु ाँ बाहर निकली और मेरे लंड को चारों तरफ
से चाटने लगी. मेरा लंड तो आपि की हाथ में आते ही खड़ा होने लगा था और अब आपि की ज़ुबाँ ने उस
पे ऐसा जाद ू चलाया की वो सेकण्ड्स में अपने जोबन पे आ चुका था. आपि ने पूरे लंड को अपने मुंह में
लेने की कोशिश की लेकिन जड़ तक मुंह में दाखिल ना कर सकी तो लंड को मुंह से बाहर निकाला और
बोली, " आज तो राकेट कुछ ज़्यादा ही बड़ा हो गया है और फूला हुआ भी बहुत है " मैंने मुस्कुराकर कहा,
" आपि इसको बड़ा कह रही हो ये तो सिर्फ 7.5 इंच है मूवीज में नहीं दे खे कितने बड़े बड़े और मोटे मोटे
होते है " तो आपि है रत ज़ादा सी आवाज़ में बोली, " हां यार और मैं सोचती हूँ की वो औरतें कैसे इतने
बड़े बड़े लंड अपने मंह
ु में और चत
ू में ले लेती है "

मैंने आपि को ऑ ंख मारी और शरारत से बोला, " मेरी बेहना जी बोलो तो मैं सिखा दे ता हूँ की लंड कैसे
लिया जाता है चूत में ."

" बकवास मत करो … बस ख़्वाब ही दे खते रहो ऐसा कभी नहीं होगा " और फिर शरारत से बोली, " वैसे
सुबह मौका था तुम्हारे पास लेकिन तुम ने जाया कर लिए " और ये कह कर खिलखिला कर हं स पड़ी.
मैंने डराने की एक्टिं ग करते हूवे कहा, " ना बाबा ना. ऐसे मोके से तो दरू ही रखो … तुम्हारा क्या भरोसा
कल बाहर सड़क पे ही खड़ी हो जाओ और बोलो की मझ
ु े चोदो यहाँ!"

आपि ने मेरे लंड पे अपने हाथ को चलाते चलाते सोचने की एक्टिं ग की और ऑ ंखों को छत की तरफ
उठाकर बोली, " उम्मम्म वैसे यार सागर ये आइडिया भी बरु ा नहीं है … बाहर रोड पे ये करने में मज़ा
बहुत आयेगा " ये कह कर आपि ने मेरे लंड को छोड़ा और हसते हूवे अपनी क़मीज़ उतारने लगी और मैं
आपि की बात सुनकर है रत से सोचने लगा कर ये मेरी वो ही बहन है जो कल तक किसी ग़ैर मर्द की
सामने भी नहीं जाती थी और आज कितनी बेबाक़ी से रोड पे चद
ू वाने की बात बोल रही है .

आपि ने अपनी क़मीज़ और सलवार उतारने के बाद मेरा ट्रॉउज़र भी खींच कर उतरा और मेरे लंड पे
झुकती हूई बोली, " चलो शर्ट उतरो अपनी " और मेरे लंड को फिर से अपने मुंह में डाल लिया.
मैंने थोड़ा सा उपर उठ़कर अपनी शर्ट उतार कर साइड पे फेंकी और दब
ु ारा लेट कर आपि के सर पे अपने
हाथ रख दिया. आपि मेरे आधे लंड को मुंह में डाल कर चूस रही थीं और थोड़ी थोड़ी दे र बाद ज़रा ज़ोर
लगा कर लंड को और ज़्यादा अंदर लेने की कोशिश करती थीं और मैं ज़ोरदार आह्ह्ह के साथ आपि के
सर को नीचे दबा दे ता. ये मेरी ज़िन्दगी की चंद बेह्तरीन दिन थे … जब मेरा लंड मेरी बड़ी बहन, मेरी
इन्तिहाई हसीं बहन की नमो नाज़ुक होंठो में दबा होता था तो मैं अपने आप को दनि
ु यां का खुश
किस्मत तरीन इंसान तस्सवरु करता था.

आपि ने अपना एक हाथ अपनी चत


ू पे रख लिए था और तेज़ तेज़ अपनी चत
ू को रगड़ते हूवे ज़रा ताज़ी
से मेरे लंड को अपने मुंह में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. आपि तेज़ी से लंड को अंदर बाहर करतीं
और हर झटके पे उनकी कोशिश ये ही होती की उनकी होंठ मेरे लंड की जड़ पे टच हो जायें. मैंने अपने
हाथ आपि के सर से हटा कर उनके चेहरे को अपने हाथों में पकड़ा और लज़्ज़त में डूबी आवाज़ में कहा,
" आपि अपने सर को ऐसे ही रोक लो. मैं करता हूँ " मैंने ये कहा और आपि के चेहरे को ज़रा मज़बूती से
थाम की अपनी गान्ड़ को झटका दे कर आपि के मुंह में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा … मुझे इस
तरह झटका मारने में ज़रा मुश्किल हो रही थी लेकिन एक नया मज़ा मिल रहा था. नया एहसास था की
मैं अपनी बहन के मंह
ु को चोद रहा हूँ. इस तरह झटका मारने से हर झटके में ही मेरे लंड की नोक
आपि की हलक़ को छू जाती थी. ऐसे ही झटके मारते मारते मेरा ओर्गास्म बिल्ड हुआ तो मैंने अपने
कुल्हे एक झटके से बिस्तर पे गिरते हूवे आपि के मुंह को भी उपर की तरफ झटका दिया और मेरा लंड
" पछ
ु हःछःह " की एक तेज़ आवाज़ के साथ आपि के मंह
ु से बाहर निकल आया. मैंने आपि को छोड़ा और
अपना सर पीछे गिरा की लम्बी लम्बी साँसें ले कर अपनी हालत को कंट्रोल किया और फिर आपि से
कहा, " उठ़ो यहाँ मेरे पास आयो."

आपि मेरी टांगों की दरमिआन से उठ़कर मेरे मुंह के पास आयी और बिस्तर पे बैठने ही लगी थीं की
मैंने अपना हाथ उनकी कुल्हों के नीचे रखा और कहा, " वहां नहीं … यहाँ उपर आओ मेरे मुंह पे"

" यस ये हो गई ना बात " आपि ने खुश होकर कहा और उठ़कर मेरे चेहरे की दोनों अतराफ़ में अपने
पांव रखे और मंह
ु दिवार की तरफ करकेही बैठने लगी … मैंने आपि को इस तरह बैठते दे खा तो एक दम
चिड़ कर कहा.

" यार आपि इतनी मव


ू ीज दे खी है फिर भी चति
ू यां की चति
ू यां ही रही हो … बाबा मंह
ु दस
ू री तरफ करो
मेरे पांव की तरफ … 69 पोजीशन में आयो " मुझे क्या पता की तुम्हारे दिमाग़ में क्या है … मुंह से बोलो
ना … मूवीज में तो ऐसा भी होता है जैसे मैं बैठ रही थी … " आपि ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया
और फिर से खड़ी हो गयीं … मैंने अपने लेहजे को कंट्रोल किया और कहा, " अच्छा मेरी मॉ ं जो मर्ज़ी करो
" आपि ने मझ
ु े हार मानते दे खा तो अकड़ कर फ़िल्मी अंदाज़ में बोली, " अपन
ु से पन्गा नहीं लेने का है .
बोला तो अब वैसे ही लेट तो हूँ … 69 पोजीशन में " और ये कह कर घूम कर खड़ी हूई और बोली, " अपने
हाथ सर की तरफ करो " मैंने अपने हाथ सर की तरफ किये तो आपि मेरे सीने पे बैठीं और लंड पे
झूकते हूवे थोड़ी पीछे हो कर मेरी बगलों के पास से पांव गुज़र की पीछे कर लिए और अपना ज़ोर घुटनों
पे दे दिया. आपि की पीछे होने से मेरा चेहरा आपि की दोनों कुल्हों की दरमियाँ आ गया और आपि की
चत
ू से निकलता जान लेवा ख़श
ु बू का झोंका मेरे अंग अंग को मअ
ु त्तर कर गया.

मैंने अपनी ज़ब
ु ाँ निकली और आपि की चत
ू की लबों को चाट कर चत
ू की आस पास की हिस्से को
चाटने लगा. आपि ने फिर से मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिए और चूसने लगी. मैंने चूत की आस पास
की हिस्से को मुकम्मल तौर पे चाटने के बाद अपनी उं गलियों से चूत की दोनों लबों को अलाहिदा किया
और अपनी ज़ुबाँ से आपि की चूत की अन्दरूनी गुलाबी नरम हिस्से को चाटने लगा. आपि ने मेरे लंड को
चूसते चूसते अब अपनी गान्ड़ को आहिस्ता आहिस्ता हिलाना शुरू कर दिया था और मेरी ज़ुबाँ की रगड़
को अपनी चूत की अन्दरूनी हिस्से पे मेहसुस करके जोश में आती जा रही थीं. कुछ दे र ऐसे ही अंदर
ज़ुबाँ फेरने के बाद मैंने अपनी ज़ुबाँ चूत के सरू ाख में दाखिल कर दी. आपि ने एक आह्ह्ह भरी और
अपनी चत
ू को मेरे मंह
ु पे दबाने लगी और मैं ज़ब
ु ाँ अंदर बाहर करने लगा. कुछ दे र तक मैं अपनी ज़ब
ु ाँ
इसी तरह अंदर बाहर करता रहा … फिर ज़ुबाँ बाहर निकल कर आपि की चूत के दाने को चाटा और
उससे होठों में दबा कर अंदर की तरफ खींचते हूवे चूसा तो आपि ने मेरे लंड को मुंह से निकल कर एक
ज़ोरदार सिसकि भर " आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ह्म्म ् सागररररररर … यहाँ से चस
ू ो … यहाँ सब से ज़्यादा मज़ा आता
है . " और फिर से मेरे लंड को चूसने लगी.

कुछ दे र ऐसे ही आपि की चूत के दाने को चूसने के बाद मैंने फिर अपनी ज़ुबाँ निकली और आपि की
कुल्हों की दरमियानी लकीर पे ज़ुबाँ फेरते हूवे अपनी 2 उं गलियां आपि की चूत में डाल दीं. आपि ने एक
लम्हे को मेरा लंड चूसना रोका और फिर दब
ु ारा से चूसने लगी. मैंने दे खा की आपि ने कुछ नहीं कहा तो
आहिस्ता आहिस्ता अपनी उं गलियों को हरकत दे कर चत
ू में अंदर बाहर करते हूवे अपनी ज़ब
ु ाँ को आपि
की गान्ड़ की ब्राउन सूराख पे रख दिया. 2 मिनट तक सूराख को चाटता रहा और फिर अपनी ज़ुबाँ की
नोक को सूराख की सेंटर में रख कर थोड़ा सा ज़ोर दिया और मेरी ज़ुबाँ मामूली सी अंदर चली ही गई
या शायद आपि की गान्ड़ का नरम गोश्त ही अंदर हुआ था …

आपि अब मेरे लंड पे अपना मुंह बहुत तेज़ तेज़ चला रही थीं और मेरे अंदर जोश भरता जा रहा था. मैंने
भी आपि की चूत में अपनी उं गलियां बहुत तेज़ तेज़ चलना शुरू कर दीं. मैं पहले तो ये ख्याल रख कर
उं गलियां चलता रहा था की एक इंच से ज़्यादा अंदर ना जाने पाये लेकिन अब तेज़ी तेज़ी से अंदर बाहर
करने की वजह से मैं अपने हाथ को कंट्रोल नहीं कर पा रहा था और हर 3-4 झटकों के बाद एक बार
उं गलियां थोड़ी ज़्यादा गहराई में उतार जाती थीं जिसे आपि के जिस्म को एक झटका सा लगता और 2
सेकंड के लिए उनकी हरकत को ब्रेक लग जाती. मैंने आपि की गान्ड़ के सूराख को भरपरू अंदाज़ में चाट
कर अपनी ज़ुबाँ हटाई और दस
ू रे हाथ की एक उं गली को अपने मुंह से गीला करके आपि की गान्ड़ के
सूराख में दाखिल कर दी. जो पहले ही झटके में तक़रीबन 1.5 इंच तक अंदर चली गई. आपि के कुल्हों ने
एक झटका लिया. उन्होंने फ़ौरन मेरे लंड से मुंह हटाया और तक़लीफ़ से लरज़ती आवाज़ में कहा, "
उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ सागर कुत्तेय निकाल उं गली. बहुत दर्द हो रहा है …"

मैंने उं गली को बगैर हरकत दिया कहा, " कुछ नहीं होता आपि बस थोड़ी दे र दर्द होगा. बर्दाश्त कर लो "
नहीं नहीं सागर निकालो प्लीज … मेरा कोई सूराख तो छोड़ दो कमीने … क्यों इसके पीछे पड़ गए हो"

" बस बस आपि एक मिनट में सरू ाख आदि हो जायेगा तो दर्द नहीं होगा " आपि ने गर्दन घम
ु ाकर मेरे
चेहरे को दे खा और ज़रा अकड़ कर कहा. " कहा ना नहीं बस … सागररररर बाहर निकालते हो उं गली या
नहीं " तो मैंने मुस्कुराकर ऑ ंख मारी और उन्हीं की अंदाज़ में जवाब दिया " नहीं निकलता फिर … क्या
कर लो गी तम
ु ?"

आपि कुछ बोला बगैर घूमीं और झुक कर मेरे लंड की टोपी को दांतों में दबा कर बोलि " मत निकालो "
और अपने दांतों को ज़ोर दे कर लंड को चाटने लगी … मैंने शदीद तक़लीफ़ से चिल्ला कर कहा, "
उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ अच्छा अच्छा " आपि ने अपने दांतों को लूज कर दिया और फिर मैं भी आपि की गान्ड़ से
उं गली निकल कर बोला, " कितनी ज़ालिम हो यार आपि … मेरी जान निकल दी … इतने ज़ोर से कटा है . "
आपि ने खिलखिला कर हं सते हूवे कहा, " याद रखना बेटा कभी उस लड़की से पंगा नहीं लेना जिस के
मुंह के पास ही तुम्हारा ये क्यूट क्यूट हथियार हो " और दब
ु ारा से मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.
मैंने भी फिर से आपि की चूत में उं गलियां डाली और उनकी चूत के दाने को चूसते हूवे उं गलियां अंदर
बाहर करने लगा. कुछ ही दे र बाद मेरी साँसें तेज़ हो गयीं और मझ
ु े अंदाज़ा हो गया की मेरा लंड अपना
लावा बहाने को तैयार है . मेरा जिस्म अकड़ना शुरू हुआ तो मैंने आपि की चूत से मुंह हटा कर कहा "
आपि मैं छूटने वाला हूँ"

आपि ने एक लम्हे के लिए मुंह से मेरा लंड निकाला और तेज़ सांसों के साथ कंप कंपाती आवाज़ में
बोली, " मैं … मैं भी " और फ़ौरन ही दब
ु ारा मेरा लंड मुंह में ले लिया मैंने भी फ़ौरन आपि की चूत के दाने
को अपने मंह
ु में लिया और अगले ही लम्हे आपि का जिस्म भी अकड़ गया और आपि के जिस्म को
झटके लगाने लगे …

मेरी उं गलियां आपि की चूत की अंदर ही थीं. आपि की चूत की अन्दरूनी दीवारें मेरी उं गलियों को भींचती
थीं और फिर चूत लूज़ हो जाती और अगले ही लम्है फिर भींच लेती. काफी दे र तक आपि के जिस्म को
झटके लगते रहे और उनकी चूत इसी तरह मेरी उं गलियों को भींच भींच कर छोड़ती रही और उसी वक़्त
मुझे ज़िन्दगी में पहली बार ये पता चला की लड़की डिस्चार्ज होती है तो उसकी चूत इस तरह सिकोड़ती
है और लूज होती है .

आपि के डिस्चार्ज होते ही मैंने अपनी उं गलियां चत


ू से निकाली और अपना मंह
ु आपि की चत
ू से लगा
कर चूत की अंदर से सारा रस अपने मुंह में खींचने लगा. उसी वक़्त मेरे जिस्म भी अकड़ा और फिर मेरा
लंड आपि के मुंह की अंदर ही अपना लावा बहाने लगा और मेरी आँखें बंद हो गयीं. हम दोनों ही झड़
चक
ु े थे आपि मेरे उपर से उठ़कर मेरी दांए साइड पे लेटी और अपनी बांये टांग उठाकर मेरी टांगों पे रख
कर मेरे सीने पे हाथ मारा और कहा, " ओन्नम्मम ओन्न्नण"

मैंने आँखें खोल की आपि को दे खा तो उन्होंने अपने होठों को मज़बत


ू ी से बंद कर रखा था और होठों की
साइड से मेरे लंड का जूस बेह रहा था. मेरे मुंह में भी आपि की चूत से निकला अमत
ृ मौजूद था. आपि ने
मेरे गाल पे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपनी तरफ किया और मेरे होठों से अपने होंठ चिपका दिया …
और हम दोनों ही एक दस
ू रे की जवानी की जस
ू से लिपटे होठों के साथ किस करने लगे. काफी दे र एक
दस
ू रे की होंठ चूसने और ज़ुबाँ लड़ने के बाद हम अलग हूवे तो एक दस
ू रे के मुंह को दे खकर दोनों ही हं स
पड़े … फिर आपि ने बिस्तर पे ही पड़ी मेरी ही शर्ट को उठाया और अपना मुंह साफ करने के बाद मेरा
मंह
ु साफ करते हूवे बोली, " गंदे!!! मझ
ु े भी अपनी तरह गन्दा बना ही दिया ना तम
ु ने"

मैंने निढाल सी आवाज़ में शरारत से कहा, " आपि गन्दी तो आप थी ही … क्योंकि हो तो मेरी ही बहन
ना … बस ये गन्दगी कहीं अंदर छुपी हूई थी जो अब बाहर आ रही है "

आपि मेरी बात सुनकर हं सी और उठ़कर अपने कपड़े पेहेनने लगी. अपने कपड़े पहन कर आपि मेरे पास
आयी और मुझे ट्रॉउज़र पहना कर मेरे माथे को चूमा और मोहब्बत से चूर लेहजे में बोलीं " मेरी जान हो
तुम. मुझसे नाराज़ मत हुआ करो " मैंने जवाब में आपि को मोहब्बत पाश नज़रों से दे खा और सिर्फ
मुस्कुराकर रह गया और आपि उठ़ कर बाहर चली गयीं …

अगला दिन भी रूटिन की तरह ही गुज़रा रात में जब मैं घर आया तो अब्बू टीवी लाउन्ज में बैठे टीवी पे
न्यज़
ू दे खने के साथ साथ अपने लैप टॉप पे काम भी करते जा रहे थे. मैं उनको सलाम करता हुआ वहां
ही बैठ गया. अब्बू ने चश्मे के उपर से मुझ पर एक नज़र डाली और अपने लैप टॉप को बंद करते हूवे
बोला, " सागर तुम्हारे Fcs की एग्जाम भी होने वाले है … क्या इरादा है तुम्हारा फिर."

" अब्बू मेरा इरादा तो ये ही है की इंजीनियरिंग करूँगा इलेक्ट्रॉनिक्स में ."

" हूंन … नंबर इतने आ जायेंगे की NIT में अड्मिशन हो जाये तुम्हारा?"
" जी अब्बू मुझे तो पूरी उम्मीद है की हो जायेगा अड्मिशन"

" सागर बेटा तुम मेरे दोस्त रहीम को तो जानते ही हो ना"

मैंने कहा " जी अब्बू … वो जिनकी इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स का शो रूम है . वो ही रहीम अंकल ना"

अब्बू ने अपना चश्मा उतार कर टे बल पे रखा और मेरी तरफ घम


ू कर बोले " हाँ वो ही"

अब्बू का सीरियस अंदाज़ दे ख कर मैं भी संभल की बैठ गया और अपना मुकम्मल ध्यान उन पे लगा
दिया.

" बेटा मैं अब रिटायर होने वाला हूँ … मैं काफी दिन से सोच रहा था की कोई कारोबार शरू
ु करूं … और
अब खुदा ने खुद ही एक रास्ता बना दिया है . उसी के बारे में तुमसे बात करनी है "

मैं अपने सीने पे हाथ बांधे सवालिए अंदाज़ में अब्बू को दे खता रहा. कुछ दे र खामोश रहने के बाद अब्बू
ने कहा, " मैं कुछ भी करूं. सम्भालना तो तुम ही ने है की मेरे बाद घर की बड़े तुम ही हो."

" अब्बू आप फ़िक्र ना करें मैं हर तरह आपकी उम्मीदों पे परू ा उतरूंगा … " मेरी बात सुनकर अब्बू के
चेहरे पे ख़ुशी के आसार पैदा हूवे और वो बोले.

" रहीम भाई ने बहुत मेहनत से अपनी इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप बनाई है . उन्होंने आज ही मुझसे ज़िकर किया
है की वो अपने बेटों के पास अमेरिका जा रहे है और अपनी शॉप बेचना चाहते है . मैंने उनसे तो ऐसी
कोई बात नहीं की है लेकिन तम
ु से मशवरा माँग रहा हूँ की. अगर उनसे शॉप ले ली जाये तो सँभाल लो
गे तुम …"

मैंने अब्बू की बात सन


ु कर चंद लम्हे सोचा और फिर मज़बत
ू लेहजे में जवाब दिया, " अब्बू आप मेरी
तरफ से बेफ़िक्र हो जायें. आप जानते ही है की मुझे इलेक्ट्रॉनिक्स में दिलचस्पी भी है . बस आप दे ख लें
की पैसों की अरें जमें ट हो जायेगी ना?"

" वो सब मैं दे ख लूंगा. कुछ पैसे दे कर बाक़ी के लिए टाइम भी लिए जा सकता है … वग़ैरा … वग़ैरा …
वग़ैरा " मैं और अब्बू 2 घन्टे तक इसी मोज़ू पे बात करते रहे . तमाम पॉजिटिव और नेगेटिव इश्यूज को
ज़ेरे-इ-बहस लाने के बाद हमने ये ही फैसला किया की खद
ु ा को याद करके काम शरू
ु कर दे ते है .

मैं अब्बू के पास से उठ़ कर रूम में आया तो बिलाल अपनी पढ़ाई में ही बिजी था. मैंने उससे ज़्यादा बात
नहीं की और उसकी पढ़ाई की बाबत मालूम करके कपड़े चें ज किये और बिस्तर पे आ गया. मेरी ये नेचर
है की मैं जब कोई काम करने लगता हूँ तो मेरा ज़हन मेरी तमाम तर तवज्जो उसी काम पे मर्क ज़ हो
जाती है और बाक़ी तमाम सोचें पसे मंज़र में चली जाती है . तो इस वक़्त भी ऐसा ही हुआ और मैं अपने
शुरू होने वाले नई क़ारोबार के बारे में प्लॅ न करता जाने कब नींद की वादियों में खो गया.

सुबह मेरी ऑ ंख खुली तो 10 बज रहे थे. मैंने मुंह हाथ धोए और नाश्ते के लिए नीचे जाने लगा. मैंने अभी
पहली सीढ़ी पे क़दम रखा ही था की मझ
ु े उपर वाली सीढ़ीयों पे एक साया सा नज़र आया और मेहसस

हुआ की जैसे उपर कोई है . मैं चंद सेकंड रुका और फिर नीचे जाने की बजाये आहिस्ता आहिस्ता दबे
क़दमों से उपर जाने वाली सीढ़ीयों पे चढ्ने लगा. जब मैं सीढ़ीयों की दरमियानी प्लेट फॉर्म पे पहुंचा तो …

आपि वहां साइड पे होकर दिवार से लगी खड़ी थीं. आपि ने एक प्रिंटेड लॉन का ढीला ढला सा सूट पहन
रखा था और दप
ु ट्टे , चद्दर, स्कार्फ़ वग़ैरा से बेनिआज़ थीं. आपि ने अपने दोनों हाथ से प्लास्टिक का लाल
रं ग का टब पकड़ रखा था जिस को उल्टा करके अपने सीने पे रखते हूवे आपि ने अपने दोनों सीने की
उभारों को छुपा लिया था. उनकी बाल मोटी सी चोटियों में बांधे हूवे थे और चंद आवारा सी लटे पानी से
गीली हो गई उनकी खूबसरू त गुलाबी रुख़सारों से चिपकी हो गई थीं … क़मीज़ की कलाईयां कोहनियों
तक चढ़ी हूई और सलवार की पायींचे आधे पांव के उपर और आधे पांव के नीचे थे और खब
ू सरू त गल
ु ाबी
पांव चप्पलों की क़ैद से आज़ाद थे. मैंने सर से ले कर पांव तक आपि के जिस्म को दे खा और है रत ज़ादा
सी आवाज़ में पुछा, " आपिईई … मुझसे छुप रही हूऊओ"

आपि ने सहमी हूई सी नज़रों से मुझे दे खते हूवे कहा " वो तुम … तुम जाओ नीचे … मैं … मैं आकर
तुम्हें नाश्ता दे ती हूँ"

मैं समझ नहीं पा रहा था की आपि ऐसे क्यों बिहे व कर रही है . मैं एक क़दम उनकी तरफ बढ़ा तो वो एक
दम से साइड पे हूई और अपने एक हाथ से टब को अपने सीने पे पकड़े दस
ू रे हाथ से मुझे रोकते हूवे
बोली, " तुम्म जाऊऊऊओ ना सागर. मैं आती हूँ ना नीचे"

मैंने शदीद है रत की आसार में कहा, " आपि क्या बात है इतना घबरा क्यों रही हो … उपर से कहाँ से आ
रही हो. " आपि बोली, " वो मैं उपर धुले हूवे कपड़े लटकाने गई थी … तुम जाओ नीचे … मैं बाद में
आऊंगी. अम्मी टीवी लाउन्ज में ही बैठी है "

" इतनी परे शान क्यों हो … मैं आपके इतने क़रीब कोई पहली बार तो नहीं आ रहा ना " मैं ये कह कर
आगे बढ़ा और आपि की हाथ से खाली टब खींच लिए.

आपि की सीने से टब हटा तो एक हसीं तरीन नज़ारा मेरी ऑ ंखों की सामने था. आपि ने क़मीज़ के अंदर
ब्रा या शमीज़ नाम की कोई चीज़ नहीं पेहनी हूई थी. उनकी क़मीज़ गीली होने की वजह से दोनों खड़े
उभारों के दरमियाँ गॅप में सिमट कर उनकी सीने की उभारों से चिपकी हूई थी. जिसकी वजह से आपि की
चूंचियां और चूंचियों की गिर्द का डेरा ( सर्कि ल, एरोला ) क़मीज़ से बिल्कुल वाज़े नज़र आ रहे था. मैंने टब
नीचे रखा और एक हाथ से आपि का दांए उभार थामते हूवे अपना मुंह उनकी उभार और अपना दस
ू रा
हाथ उनकी टांगों की दरमियाँ ले जाते हूवे है कर कहा, " ये छुपा रही थीं मुझसे? … कोई पहली बार थोड़ी
ना दे ख रहा हूँ मैं ये"

अपनी बात कह कर मैंने क़मीज़ के उपर से ही आपि की चूंचियों को मुंह में ले लिया और उसी वक़्त
मेरा हाथ भी आपि की टांगों की दरमिआन पहुंच गया. मेरा हाथ आपि की टांगों की दरमिआन टच हुआ
तो मैं एक दम तह तक गया और आपि का चंचि
ू यां मंह
ु में ही लिए अपने हाथ से आपि की टांगों की
दरमियाँ वाली जगह को टटोलने लगा. मेरे ज़हन में तो ये ही था की मेरा हाथ आपि की चूत की चिकनी
नरम स्किन पे टच होगा उनकी चूत की उभरे उभरे से नरम लब मेरे हाथ में आयेंगे लेकिन हुआ ये की
मेरा हाथ एक फोम की टुकड़े पे टच हुआ और चंद सेकंड में ही मेरी समझ में आ गया की आपि ने
अपनी चूत पे पॅड लगा रखा है .

मैंने आपि की चंचि


ू यों पे काटकर उनकी ऑ ंखों में दे खा तो उन्होंने मेरा चेहरा पकड़ कर मझ
ु े झटके से
पीछे किया और चिड़ चिड़े लेहजे में बोली, " बस अब दे ख लिया ना … इसी लिए मैं तुमसे छुप रही थी"

मैंने आपि की बात सनि


ु और उनकी दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर उनके सर के उपर लाया
और दिवार से चिपके कर कहा " तो इस से क्या होता है मैं उसे नहीं चाटूँगा ना " और फिर अपने होंठ
आपि की होंठो से लगा दिया और उनकी नीचले होंठ को अपने दोनों होंठो में पकड़ कर चूसने लगा. आपि
ने मझ
ु से अपना आप छुड़वाने की कोशिश करते हूवे अपने सीने को झटका और मेरे हाथ से अपना हाथ
छुड़वा कर मेरे सीने पे रखकर पीछे ज़ोर दिया तो मैंने पीछे हटते हूवे आपि के होंठ को अपने दांतों में
पकड़ लिया और होंठ खीचने की वजह से आपि दब
ु ारा मझ
ु से चिपक गयीं.

मैंने ज़ोरदार तरीके से आपि का होंठ चूसते हूवे उनका हाथ नीचे लाकर अपने लंड पे रखा लेकिन आपि
ने हाथ हटा लिया. वो अभी भी मुझसे अलग होने की ही कोशिश कर रही थीं. आपि ने मेरा लंड नहीं
पकड़ा तो मैं खद
ु ही पीछे हट गया और बरु ा सा मंह
ु बनाकर कहा " क्या है यार आपि … थोड़ा सा तो
साथ दो ना"

आपि ने बेचारजी से गिड़गिड़ाते कहा, " सागर प्लीज अभी मैं नहीं कर सकती ना … तुम थोड़ा कंट्रोल कर
लो"

मैंने फिर से आपि का हाथ पकड़ कर अपने लंड पे रखते हूवे कहा " अच्छा मैं आपकी चूत को नहीं
छे डूग
ं ा. आप तो इसे पकड़ो ना " आपि ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया और ज़रा सख्त लेहजे में बोलीं
" सागर नहीं ना. कभी तो मेरी बात मान लिया करो. आज मैं नहीं कर सकती कुछ … आज मेरे में सिस का
पहला दिन है और पहले दिन बहुत है वी फ्लो होता है … " मैंने आपि की इतनी ही बात सुनकर चिड़ चिड़े
लेहजे में कहा " तो इस से मेरे लंड का क्या ताल्लुक़ आप इससे तो मज़ा दे ही सकती हो ना"

" परू ी बात तो सन


ु लो मेरी … बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग की वजह से मेरी चत
ू की अन्दरूनी स्किन बहुत
सेंसिटिव हो जाती है … मैं तुम्हारा लंड चूसूंगी तो ज़ाहिर है … मैं भी गरम हो ही जाऊंगी और मेरा पानी
रिसना शुरू हो जायेगा … और ऐसे टाइम पे ये पानी रिसने लगे तो बहुत शदीद जलन होती है मुझे. बहुत
तक़लीफ़ होने लगती है … लेकिन तम्
ु हें तो बस अपनी पड़ी रहती है … मेरी तक़लीफ़ से तम्
ु हें कोई
सरोकार नहीं है . मैं मरूं या जिऊं तुम्हें इस से क्या? … तुम्हें तो बस अपने आप को मज़ा पहुंचानी है ना!"
ये कहते कहते आपि की आवाज़ भर्रा गई और उनकी ऑ ंखों में ऑ ंसू आ गए थे. मैंने आपि की ऑ ंखों में
ऑ ंसू दे खे तो मैं तड़प उठा और एक दम आपि को अपनी बाहों में भर कर अपने सीने से लगाता हुआ
बोला, " नहीं आपि प्लीज … मेरे सामने रोया मत करो ना. मेरा दिल दहल जाता है … मुझे क्या पता था
की आप को ऐसे तक़लीफ़ होती है … अब मैं कभी इन दिनों में आप को नहीं छे डूग
ं ा … मैं वादा करता हूँ
आप से … बस रोया मत करो … मैं इन प्यारी प्यारी ऑ ंखों में ऑ ंसू नहीं दे ख सकता …"

आपि कुछ दे र ऐसे ही मेरे सीने में अपना चेहरा छुपाये खड़ी रहीं और मैं एक हाथ से आपि की क़मर को
सेहलाते दस
ू रे हाथ से उनके सर को अपने सीने में दबाये रहा … कुछ दे र बाद आपि मझ
ु से अलग होते
हूवे बोली, " अच्छा बस तुम अब नीचे जाओ. मैं कुछ दे र बाद आकर तुम्हें नाश्ता दे ती हूँ … मैं उपर से
अपनी चद्दर भी ले आऊं … मैं ये नहीं चाहती की अम्मी मुझे इस हालत में तुम्हारे सामने घूमते फ़िरते
दे खे. ओके जाओ अब नीचे"

मैंने सीरियस से अंदाज़ में आपि की ऑ ंखों में दे खा. जो रोई रोई सी मज़ीद हसीं लगने लगी थीं और
बिना कुछ बोले नीचे जाने के लिए वापस घम
ू ा ही था की आपि ने मेरा बाज़ू कलाई से पकड़ा और मेरे
सामने आ कर प्यार भरे लेहजे में बोली, " अब ऐसी शकल तो नहीं बनाओ ना … एक बार मुस्कुरा तो दो"

मैंने आपि की ऑ ंखों में दे खा और मस्


ु कुराया तो आपि ने कहा " मेरा सोहना भईई " और आगे बढ़ कर
अपने होंठ मेरे होंठो से लगा कर नरमी से चूमा और मेरी ऑ ंखों में दे खते हूवे ही अलग हो गयीं. मैंने
आपि के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थाम की बारी बारी आपि की दोनों ऑ ंखों को चूमा और उन्हें छोड़
के नीचे चल दिया.

मैं नीचे पहुंचा तो अम्मी टीवी लाउन्ज में बैठी दोपहर की खाने के लिए गोश्त काट रही थीं. मैंने उन्हें
सलाम करके अनजान बनते हूवे पुछा, " अम्मी आपि कहाँ है … नाश्ता वाश्ता मिलेगा क्या " अम्मी ने
छुरी अपने हाथ से नीचे रखी और खड़ी होती हूई बोली, " तुम्हारा उठने का कोई टाइम फिक्स हो तो बंदा
नाश्ता बनाकर रखे ना … तुम बैठो मैं अभी बनाकर लाती हूँ … रूबी ने आज मशीन लगाई हूई है . कपड़े
धोने में लगी है …"

अम्मी किचन में नाश्ता बनने गयीं तो मैं उनकी जगह पे बैठ कर न्यूज़ दे खते हूवे गोश्त काटने लगा.
कुछ दे र बाद अम्मी नाश्ते की ट्रे ले कर किचन से निकलीं और ट्रे टे बल पे रखते हूवे बोली, " ओह्ह्ह होऊ
मैं तो भूल ही गई थी … सागर!! तुम्हारे अब्बू का फ़ोन आया था वो कह रहे थे की 12 बजे तक उनके
ऑफिस चले जाना. वो कह रहे थे तुम्हें साथ लेकर रहीम भाई से मिलने जाना है ."

" जी अच्छा अम्मी … मैं चला जाऊंगा " ये कह कर मैं नाश्ता करने के लिए टे बल पे बैठा और उसी वक़्त
आपि भी नीचे उतर आयीं लेकिन अब उन्होंने अपने सर पे और उपरी जिस्म की गिर्द अपनी बड़ी सी
चादर लपेटी हूई थी जिसे उनकी बदन के खद ओ खाल छुप गए थे. मझ
ु से नज़र मिलने पे आपि ने
अम्मी से नज़र बच्चा की मुझे ऑ ंख मारी और अपने सीने से चादर हटा कर एक लम्हे को मुझे अपने
खूबसूरत मम्मों का दीदार करवाया और हसते हूवे बाथरूम में चली गयीं और मैं जज़बात से सर उठ़ाते
अपने लंड को सोते रहने का मशवरा दे ता हुआ सर झक
ु ा कर नाश्ता करने लगा …

नाश्ता करके मैं अब्बू के ऑफिस गया और वहां से हम रहीम अंकल से मिलने उनकी शॉप कम शो रूम
पे गए … उनकी शॉप पे 3 आदमी काम करते थे और तीनों बहुत परु ाने और ईमानदार वर्क र थे …

वहां ही हमने रहीम अंकल से बात चीत की और सारे मामलात तय करके रहीम अंकल ने वर्क र्स को भी
ये बात बावर करा दी की अब शॉप के नए मालिक हम लोग होंगे. जिसको उन वर्क र्स ने भी बहुत
खुशदिली से क़बूल किया … और अगले 3 दिन तक हम पेपर वर्क और दस
ू रे तमाम मामलात में मसरूफ
रहे . मैं सुबह जल्दी कॉलेज जाता था और कॉलेज से ही डायरे क्ट शॉप पे पहुंच जाता और रात 9 बजे शॉप
क्लोज होने के बाद ही मैं घर जाता था … शॉप पे जाते मेरा 4 थ दिन था. मैं रात 9 बजे घर पहुंचा तो
सब डाइनिंग टे बल पे ही बैठे थे. मैं उन्हें 5 मिनट रुकने का कह कर बाथरूम गया और हाथ मुंह धो कर
खाने के लिए आ बैठा. इधर उधर की बातें करते हूवे हमने खाना ख़तम किया. तो अब्बू ने अपने पॉकेट में
हाथ डालते हूवे कहा, " अरे हाँ सागर मैं भल
ू गया था यार वो शकूर साहब तम्
ु हारा लाइसेंस दे गए थे "
और अपने जेब से लाइसेंस निकाल कर मुझे दे दिया …

मैं अभी लाइसेंस को हाथ में लेकर दे ख ही रहा था की ऐनी ने मेरे हाथ से लाइसेंस खींचा और बोली, "
भाई ऐसे ही सुका सुका तो नहीं मिलता ना लाइसेंस … अब ज़रा अपना जेब ढीली करो और अभी के
अभी हम को आइस क्रीम खिलाने लेकर चलो तो मैं लाइसेंस दं ग
ू ी वरना नहीं " और ऐनी की बात सुन
कर बिलाल भी उसके साथ मिल गया और दोनों आइसक्रीम, आइसक्रीम, का शोर करने लगे.
तो अब्बू ने मुस्कुराते हूवे उन दोनों को चुप करवाया और गाड़ी की चाबी मझ
ु े दे ते हूवे बोला, " जाओ यार
ले जाओ सब को आइस क्रीम भी खिला लो और दस
ू री चाबी भी बनवा लाओ अपने लिए"

मैं बिलाल ऐनी और आपि, तीनों को आइसक्रीम खिलाने ले गया और गाड़ी की चाबी भी बनवा कर हम
घर वापस पहुंचे तो 11 बज रहे थे. अम्मी अपने रूम में थी और अब्बू न्यज़
ू दे ख रहे थे. हमें अंदर आता
दे ख कर अब्बू उठ़ते हूवे बोला, " मुझे बहुत सख्त नींद आ रही है … मैं बस तुम लोगों की इन्तज़ार में
जग रहा था … तुम लोग भी अब जाओ सो जाओ अब गपें मारने नहीं बैठ जाना " और ये कह कर रूम
में चले गए.

ऐनी भी ना जाने कब से पिशाब रोके बैठी थी अंदर आते ही सीधी बाथरूम की तरफ भागि … आपि भी
अपने रूम की तरफ जाने लगी तो बिलाल आहिस्ता आवाज़ में मझ
ु से बोला, " भाई आज आपि को बोलो
ना थोड़ा मज़ा करते है … आज बहुत दिल चाह रहा है ना. अब तो सिर्फ 2 पेपर रहते है … " बिलाल ने
कहा तो आहिस्ता आवाज़ में ही था लेकिन आपि ने उसकी बात सुन ली और मेरे कुछ बोलने से पहले ही
गर्दन घम
ु ाकर हमारी तरफ दे खा और मेरे चेहरे पे नज़र जमाते हूवे बोली, " तम्
ु हारा भी दिल चाह रहा है
क्या " तो मैंने चंद सेकंड सोचा और कहा, " नहीं यार. मैं सुबह 7 बजे से निकला हुआ हूँ और शॉप से घर
पहुंचा ही था की तुम लोगों ने आइसक्रीम का शोर कर दिया … इस टाइम बस नींद की अलावा और कोई
बात मेरी समझ में नहीं आ रही है . मैं तो चला उपर " अपनी बात कह कर मैं रुका नहीं और अपने रूम
को चल दिया. रूम में आते ही मैं बिस्तर पे गिरा और कुछ ही मिनटों में दनि
ु यां ओ माफिया से बेख़बर
हो गया.

अगले रोज़ भी मैं तक़रीबन 9:15 बजे घर पहुंचा तो थकान से चूर था. सब खाना खा रहे थे. मैं फ्रेश होकर
नीचे आया तो सब ही खाना खा चुके थे और अब्बू हस्बे मामूल टीवी लाउन्ज में ही बैठे न्यूज़ दे खते हूवे
चाय पी रहे थे. मैं खाने के लिए टे बल पे बैठा और खाना शरू
ु किया ही था की अब्बू ने मेरा थका हुआ
चेहरा दे ख कर कहा, " बेटा तुम कॉलेज से 2 बजे तक तो शॉप पे पहुंच ही जाते हो. तो ऐसा करो की 5 बजे
घर आ जाया करो … सलिम ( शॉप का मुन्तज़िम ) बहुत ईमानदार और मेहनती लड़का है … वो रहीम
भाई के होते हूवे भी अच्छा ही संभाल रहा था. अब भी सँभालता रहे गा … और मैं भी एक चक्कर लगा ही
लेता हूँ डेली तो इतनी परे शानी उठाने की क्या ज़रूरत है की अपना ख्याल भी ना रख सको …"

मैंने खाना खाते खाते ही अब्बू को जवाब दिया, " वो अब्बू मैं तो अपने एक्सपीरियन्स के लिए वहां बैठा
रहता हूँ और सारी लिस्ट्स में अपने हिसाब से तर्तीब दे रहा था इस लिए टाइम ज़्यादा लग जाया करता
है ."
" बेटा मेरी एक बात याद रखो की जब तक साँस चल रही है ये काम धंदा चलता रहे गा. ऐसा तो है नहीं
की आज हम सब ख़तम कर लेंगे और फिर चैन से सोयेंगे … बेटा मरने के बाद ही इन चक्करों से
छुटकारा मिलता है . इस लिए मेरा हमेशा ये ही उसूल रहा है की काम को अपने उपर इतना मत सवार
करो की अपनी सेहत और ज़ेहनी सुकून को तबाह कर बैठो. जान है तो जहाँ है और तुम्हारी अभी
ज़िन्दगी पड़ी है अभी तो जुमा जुमा 7-8 दिन भी नहीं हूवे … होता रहे गा एक्सपीरियन्स लेकिन अपने
आप पे तवज्जो दे ना बहुत ज़रूरी है और इस तरह तम्
ु हारी पढ़ाई का भी हरज होगा"

" अब्बू बस अब सारी लिस्ट वग़ैरा तो तक़रीबन फाइनल हो ही चक


ु ी है और जहाँ तक पढ़ाई की बात है
तो मैं शोरूम में ही अपने केबिन में बैठ कर पढ़ाई कर ही सकता हूँ लेकिन चले मैं कल से 5 बजे तक
आ जाया करूंगा घर. " और इसके बाद भी कुछ दे र अब्बू मुझसे शॉप के बारे में ही पुछते रहे और मैं
उनसे बातें करता खाना खाता रहा और फिर चाय पी कर अपने रूम में आ गया … बिलाल पढ़ाई में ही
लगा था.

मैंने उसके दोनों कांधों पे हाथ रखकर कांधों को दबाते हूवे कहा " सन
ु ा छोटू कैसे हो रहे है पेपर " वो
तक़लीफ़ से कराह कर बोला " उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ भईईई … इतने ज़ोर से दबाये है काँधे … बस कल आखरी
पेपर है फिर छुट्टी"

मैंने उसकी गुडी पे एक चपत मारी और अपनी जगह पे लेट कर बोला, " क्या यार थोड़ा सा दबाया है
और तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा … इसी लिए कहता हूँ की ज़रा कम पानी निकाला करो … वैसे तुम्हें तो
काफी दिन हो गए है पानी निकले हूवे ना …"

मेरी बात सुनकर वो हुआ बोला " अरे हां आप तो कल रूम में आ गए थे लेकिन आपि ने मुझे कल मज़ा
करवाया था " मैंने लेटे लेटे ही उसकी तरफ दे खा और कहा " अच्छाआ … मुझे तो पता ही नहीं चला …
तुम्हारे साथ ही आपि भी आ गई थीं क्या रूम में "

" नहीं भाई … आप को पता भी कैसे चलता. हम रूम में नहीं आये थे. रूम से बाहर ही सीढीयों के पास
आपि ने मेरा लंड चूस कर मुझे डिस्चार्ज करवाया था … लेकिन आपि ने बस जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में
ही चस
ू ा था. पता नहीं वो मेरे साथ ऐसा क्यों करती है " मैंने बिलाल की बात सनि
ु तो मस्
ु कुराकर उससे
जवाब दिया, " अबे नहीं यरर. ऐसा मत सोचो की तुम्हारे साथ वो ऐसा करती है . असल में आपि को में सिस
चल रहे है … इस लिए आपि ने दिल से नहीं चूसा होगा क्योंकि अगर वो दिल से सब कुछ करें तो वो
भी गरम हो जायेगी और फिर उनकी चूत में जलन होती है … आपि ने खुद मुझे ये बातें बताई थीं
लेकिन ये दे खो की वो तुम को इतना प्यार करती है की अपनी तक़लीफ़ का बता कर उन्होंने तुम्हें मना
नहीं किया. बल्कि तुम्हारा लंड चूस की तुम्हें सुकून पहुंचाया है …"
वो चंद लम्है कुछ सोचता रहा फिर बोला, " हां भाई. ये तो बात है "

" अब दिमाग़ से चूत को निकाल और चल अब पढ़ाई कर और मैं भी सोता हूँ … " मैंने बिलाल से कहा
और चद्दर अपने मुंह तक तान ली …

अगला दिन भी बहुत बिजी ही गुज़रा और आम दिनों से ज़्यादा ताख़ीर से घर पहुंचा तो अब्बू और
अम्मी टीवी लाउन्ज में ही थे. अम्मी ने मझ
ु े खाना दिया और खाने की दौरान ही शॉप के बारे में अब्बू से
बातें भी होती रहीं. रूम में आया तो आज ख़िलाफ़े तवका बिलाल सोता हुआ नज़र आ रहा था. मझ
ु े भी
थकान ने कुछ और सोचने ही नहीं दिया और मैं भी चें ज करके सो गया.

सुबह मैं ज़रा लेट उठा तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया की आपि यूनिवर्सिटी चली गयी थीं. मैं भी नाश्ता
वग़ैरा करके कॉलेज चला गया और वहां से शॉप पे … वापस घर आते हूवे मैंने अपनी शॉप से एक
डिजिटल कैमरा भी उठा लिया की अब तो हर चीज़ ही मुमकिन थी. मैं घर पहुंचा तो 5 : 15 हो रहे थे.
टीवी लाउन्ज में कोई नज़र नहीं आ रहा था आपि का और अम्मी का रूम भी बंद था. मैं अपनी दांए
साइड पे किचन की अंदर दे खता हुआ दांए पे सीढ़ीयों की तरफ मुड़ा ही था की " भोयऊऊऊ " की आवाज़
के साथ ही मेरे कांधों को धक्का लगा और " हां हाआ ड़र गए, ड़र गईए … कैसे उछले हो ड़र कर"

आपि हसते हूवे मेरे सामने आ गयीं … जो की दिवार की साइड पे छुप की खड़ी थीं. आपि ने इस वक़्त
वाइट रं ग की चिकेन की फ्रॉक और वाइट रे श्मी चड़
ु ीदार पाजामा पहना हुआ था जो पैरों से उपर बहुत सी
चुनातें लिए सिमटा था. सर पे अपने मख़सूस अंदाज़ में काले स्कार्फ़ बांधे, सीने पे बड़ा सा दप
ु ट्टा फैला कर
डाला हुआ था. मैंने आपि को हसते दे खा तो उन्हें मुंह चिड़ा कर कहा, " ईईईईठीये ड़र कहाँ से गया …
इतने ज़ोर से धक्का मारा है की अंदर से मेरा सब कुछ हिल गया है "

मेरी बात सुनकर आपि एक क़दम आगे बढ़ी और पें ट के उपर से ही मेरे लंड को मज़बूती से पकड़ कर
दांत पीसती हूई बोली, " क्या क्या हिल गया है मेरे भाई का … अंदर सय्यययय"

मैंने आपि की इस हरकत पे बेसख्ता ही इधर उधर दे खा और कहा, " क्या हो गया है आपि! घर में कोई
नहीं है क्या?"

आपि ने मेरे लंड को दबा कर मेरी गर्दन पे अपने दांतों से काटा और फिर अपने दांतों को आपस में दबा
कर अजीब तरह से बोली, " सब घर में ही है नाआआ … अम्मी अपने रूम में और ऐनी अपने में "

मैं आपि की इस अंदाज़ पे हैरत ज़दा रह गया और उन्हें कहा " होश में आओ यार … कोई बाहर निकल
आया तो"
आपि ने अपने सीने की उभारों को मेरे सीने पे रगड़ा और मेरी गर्दन को दस
ू री तरफ से चूम और
काटकर कहा, " दे खने दो सब को, सारी दनि
ु यां को दे ख लेने दो की मैं अपने भाई की रानी हूँ … अपनी
प्यास बझ
ु ाना चाहती हूँ अपने सगे भाई सय्यययय"

मैंने आपि की दोनों कांधों को पकड़ कर उन्हें अपने आप से अलग किया और झंझ
ु ला कर कहा, " ओू मेरी
मॉ ं … बस कर दे एक्टिं ग … क्यों फंसवायेगी भईई"

आपि ने हसते हूवे अपनी आँखें खोलीं और मझ


ु े दे ख कर ऑ ंख मारते हूवे नार्मल अंदाज़ में बोली, " यार
सागर आज बहुत दिल चाह रहा है … कुछ करने का"

मैंने शरारत से कहा, " क्यों बेहना जी … लीकेज ख़तम हो गई है क्या?"

" हां आज सब
ु ह ही नहा ली थी … तभी तो बेताब हो रही हूँ … इतने दिन से पानी नहीं निकाला ना"

मैंने आपि का हाथ पकड़ा और सीढ़ीयों की तरफ घूमते हूवे कहा, " तो चलो आओ उपर अभी कोई
बन्दोबस्त कर दे ता हूँ पानी निकालने का"

आपि ने आहिस्तगी से अपना हाथ छुड़वाया और कहा, " नहीं यार अभी नहीं … अभी खाना भी बनाना है .
रात में आऊंगी तुम्हारे पास"

मैंने आपि की बात सन


ु कर अपने काँधे उचकाए और उपर जाने के लिए पहली सीढ़ी पे क़दम रखा ही
था की आपि बोलीं " अब इतने भी बेवफा ना बनो यार"

मैंने गर्दन घुमाकर आपि को दे खा और कहा, " क्या मतलब … खुद ही तो कहा है रात में आओगी"

" हाँ मैंने रात में आने का कहा है … लेकिन ये तो नहीं कहा की ऐसे ही उपर चले जाओ " मैंने अपना
क़दम सीढ़ी से वापस खींचा और घूम कर आपि की तरफ रुख करके कहा " क्या करूं फिर? साफ बोलो
ना?"

आपि ने अपने नीचले होंठ की साइड को अपने दांतों में दबा कर बड़े अजीब अंदाज़ से मेरी ऑ ंखों में
दे खा और कहा, " मेरे सोहणे भैया जी कम से कम दीदार ही करवा दो"

मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी मज़े लेते हूवे कहा, " किस चीज़ का दीदार करवा दं ू … मेरी सोहणी
बेहना जेईई " आपि ने मेरी ऑ ंखों में ही दे खते हूवे अपना एक क़दम आगे बढ़ाया और मेरी पें ट की ज़िप
को खोलते हूवे कहा, " अपने लंड का दीदार करवा दो … कितने दिन हो गए है मैंने दे खा तक नहीं है
अपने भाई का लंड"
लंड लफ़्ज़ बोलते हूवे आपि की आँखें हमेशा ही चमक सी जातीं और लेह्जा भी अजीब सा हो जाता था.
मैंने भी लफ़्ज़ लंड पे ज़ोर दे ते हूवे कहा, " मेरी सोहणी बेहना जी मेरा लंड मेरी बहन के लिए ही तो है …
खुद ही निकल कर दे ख लो ना"

मेरी बात परू ी होने से पहले ही आपि ने मेरी पें ट की ज़िप से अंदर हाथ डाल दिया था उन्होंने अंदर ही
टटोल कर मेरे लंड को पकड़ा और पें ट से बाहर निकल कर कहा, " सागर चलो किचन में चले यहाँ कोई
आ ना जाये"

मेरा लंड इस वक़्त सेमि इररे क्ट था … मैं आपि के साथ ही किचन की तरफ चल पड़ा और कहा, " मैं तो
पहले ही कह रहा था की कोई आ जायेगा लेकिन उस वक़्त तो रानी साहिबा को एक्टिं ग सूझ रही थी
ना"

" बकवास मत करो … एक्टिं ग की बात नहीं है … उस वक़्त मुझे इतना इत्मिनान था की किसी की आहट
पे ही हम एक दस
ू रे से अलग हो जायेंगे … लेकिन अब तुम्हारा ये *भोम्पूओ* बाहर निकला हुआ है ना …
इसे छुपाना मुश्किल होगा"

आपि की बात ख़तम हो गई तो हम दोनों किचन में दाखिल हो चुके थे. आपि ने मेरा हाथ पकड़ा और
रे फ्रीजिरे टर की साइड पे ले जाते हूवे कहा, " यहाँ दिवार से लग कर खड़े हो जाओ … और ये मुसीबत बैग
तो काँधे से उतार दे ना था " आपि ने ये कहा और अपने हाथ पीछे कमर पे ले जा कर दप
ु टटे की दोनों
कोनो को आपस में गठन लगाने लगी. मैं दिवार से पीठ लगा कर खड़ा हुआ और कहा, " यार ये सारा
दिन काँधे पे लटका होता है तो अभी एहसास ही नहीं रहा था की ये भी लटका है … आप ही बोल दे ती
ना उतारने का " मैं बैग नीचे ज़मीं पे रखने लगा तो मुझे अचानक कैमरा याद आया और मैं बैग को हाथ
में पकड़े हूवे ही बोला, " आपि आज मैं कैमरा लाया हूँ डिजिटल … 20 मेगा पिक्सेल, 52 क्स ज़ूम का है
और अँधेरे में भी क्लियर मूवी बनता है "

आपि ने अपने दप
ु ट्टे को अपनी कमर पे गठन लगा ली थी और अब अपने सीने पे दप
ु ट्टा सही करते हूवे
बोली, " कहाँ से लिया है " मैंने बैग खोलते हूवे कहा, " कहाँ से क्या मतलब यार … अपनी शॉप से लाया हूँ
… अभी दिखाऊं क्या"

आपि ने मेरा खुला बैग एक झटके से बंद किया, " अभी छोड़ो दफ़ा करो और बैग नीचे रख दो " ये बोलते
हूवे आपि ने मेरे लंड को पकड़ा और किचन की दरवाज़े से बाहर दे खते हूवे नीचे बैठ गयीं और आखरी
नज़र बाहर डाल कर मेरे लंड को मुंह में ले लिया …
आज इतने दिनों बाद अपने लंड पे आपि के मुंह की गर्मी को मेहसुस करके मैं भी तड़प उठा, "
उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ आप्पी … मेरी बेहना जी के मुंह की गर्मी … लंड की काटिलल … " मैंने एक सिसकि ली
और आपि के चेहरे को दे खने लगा. आपि भी मेरा लंड चूसते हूवे उपर नज़र उठाकर मेरी ऑ ंखों में ही दे ख
रही थीं. आपि लंड ऐसे चूसती थीं जैसे कोई एक्सपेरियन्स्ड सकर हो. शायद ये चीज़ औरतों में क़ुदरती
तोर पे ही होती है की वो चुदाई की तमाम आसार बिना किसी से सीखे ही समझ जाती है और आपि तो
काफी सारी पोर्न मव
ू ीज दे ख चक
ु ी थीं.

मेरा लंड अब आपि के मंह


ु की गर्मी से फुल खड़ा हो गया था. मैंने मज़े में डूबे हूवे आपि के सर पे हाथ
रख दिया और जब आपि मेरे लंड को जड़ तक अपने मुंह में उतार लेतीं तो मैं आपि के सर को दबा कर
कुछ दे र वहीं रोक लेता और जब आपि पीछे की तरफ ज़ोर दे ने लगतीं तो मैं अपने हाथों को ढीला कर
लेता. इसी तरह से आपि ने मेरा लंड चूसते हूवे अपना हाथ नीचे ले जा कर अपनी टांगों की बीच रखा ही
था की किसी आहत को सुनकर आपि फ़ौरन पीछे हट कर खड़ी हो गयीं और मैंने भी जल्दी से अपने लंड
को अपनी पें ट में डाल कर ज़िप बंद कर दी.

आपि मुझसे दरू हट कर वाश बेसिन में बिला वजह बर्तन इधर उधर करने लगी और मैं साँस रोके वहीं
खड़ा किसी की आने का इन्तज़ार करने लगा लेकिन काफी दे र तक कोई सामने ना आया तो आपि ने
डरते डरते दरवाज़े की बाहर नज़र डाली और वहां किसी को ना पा कर मेरी तरफ दे खा. मैंने आपि को
हाथ से इशारा करके बगैर आवाज़ की होंठो को जुंबिश दी " बाहर जा कर दे खो ना यररररर"

आपि सेहमे हूवे से अंदाज़ में ही बाहर तक गयीं और फिर अंदर आकर बोली, " कोई नहीं है बाहर … और
बस अब तुम जाओ … मैं रात में आऊंगी कमरे में … सोना नहीं अच्छा"

मैं भी रे फ्रीजिरे टर की साइड से निकल कर आपि के सामने आया और कहा, " सो भी गया तो उठा दे ना …
लेकिन मेरी अभी की बारी का क्या होगा?"

आपि ने एक नज़र बाहर दे खा और कहा, " अभी क्या करना है तुम ने … छोड़ो … रात को ही कर लेना "
मैंने आपि का चेहरा पकड़ कर उनकी होंठ चूमे और कहा, " जीए नहीं … रात की रात में दे खेंगे लेकिन
अभी की बारी दो मेरी"

" अच्छा ना … बोलो क्या करना है " ये कह कर आपि ने अपने एक हाथ से दप


ु ट्टा अपने सीने से हटाया
और दस
ू रे हाथ से सीने की एक उभार को अपनी क़मीज़ के उपर से पकड़ कर कहा, " ये चस
ू ना है ? " मैंने
गर्दन को नहीं की अंदाज़ में हिलाया और 2 सेकंड रुक कर कहा, " इस दनि
ु यां की सब से ज़्यादा मदहोश
कर दे ने वाली ख़ुशबू सुंघनी है … और दनि
ु यां की लज़ीज तरीन मश्रूबे की जो चंद क़तरे निकली होंगी वो
पीने है "

आपि ने फिर से अपने नीचले होंठ की साइड को दांत से काट कर नशीली नज़रों से मुझे दे खा और फिर
ऑ ंख मार कर घम
ू ीं और हसते हूवे किचन से बाहर भाग गयीं … आपि की इस तरह बाहर भाग जाने से
मेरी गान्ड़ ही जल गयी और मुझे इतनी शदीद झुंझलाहट हो गई की मेरे मुंह से कोई बात ही नहीं
निकल सकी.

मेरे दिमाग में बस 2 ही लफ़्ज़ गँज


ू ने लगे “ " सागर चूतिया " सागर चूतिया ".

मैं आँखें फाड़े खाली दरवाज़े को ही दे ख रहा था की आपि फिर से सामने आयीं और अपने दोनों अंगूठों
को अपने कान पे रखकर मुझे मुंह चिड़ा कर मेरी तरफ पीठ की और अपने कुल्हों को मटकाते हूवे मुझे
दे ख कर गाना गाने लगी, " जा जा … होओओओ … जाए जा … मैं तोसे नाही बोओओओ … लूंण … जाए
जाआ " आपि का ये मज़ाक़ मुझे इस वक़्त ज़हर लग रहा था … मैंने आपि की तरफ से नज़र हटा ली
और गुस्से से सर झटक कर रे क पे पड़े पानी की जग की तरफ घूम गया … मैंने गिलास में पानी उडेला
और पानी पी ही रहा था की आपि अंदर आयी और मेरी दांए साइड पे दोनों हाथ अपनी कमर पे टिका
कर खड़ी हो गयीं.

मैंने पानी पे की गिलास नीचे रखा और बरु ा सा मंह


ु बनाये हूवे आपि की तरफ दे खा तो वो मेरे चेहरे को
ही दे ख रही थीं. कुछ दे र ऐसे ही मैं और आपि एक दस
ू रे की ऑ ंखों में दे खते रहे और फिर मैंने नज़र
झुका ली और आपि की साइड से होकर बाहर निकलने लगा तो आपि ने मेरा हाथ कलाई से पकड़ा और
झटके से अपनी तरफ घुमाते हूवे मेरे होठों को चूम कर कहा, " यार मज़ाक़ कर रही थी ना … एक तो तुम
इतनी जल्दी मुंह बना लेते हो …"

मैंने आपि की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी ऑ ंखों में ही दे खता रहा … आपि ने मेरी शर्ट
का सब से उपर वाला बटन खुला दे खा तो उसको बंद करते हूवे बोली, " यार सागरररर! ऐसा ना किया कर
ना मेरे भाई … प्लीसीए अब मान जाओ"

मैंने उखड़े उखड़े लेहजे में ही कहा, " यार आपि, आप भी तो अजीब ही हरकत करती हो ना … इतना
ज़बरदस्त मूड बना हुआ था … सब माँ चोद दी आप ने"

" अच्छा बस बकवास नहीं करो अब … गलियां दे कर अपना मुंह गन्दा मत किया करो"
" तो क्या करूं … पता है हम दोस्त यार एक मिसाल दिया करते है की " खड़े लंड पे धोका " ये मिसाल
इस मोके पे बिल्कुल फिट बैठ रही है . आप ने भी कुछ ऐसा ही किया है यानि खड़े लंड पे धोका दिया है "

आपि ने हसते हूवे मेरा हाथ थामा और वापस अंदर रे फ्रीजिरे टर की तरफ जाते हूवे कहा, " ये मिसाल तुम
दोस्तों तक ही रखो … मैं तम्
ु हारी बहन हूँ … बहनें या तो लंड खड़ा ही नहीं करवाती है और अगर लंड
खड़ा करवा दे तो कभी धोका नहीं दे ती है … और मैं भी अपने सोहणे भाई को खड़े लंड पे धोका नहीं
दं ग
ू ी"

आपि ने बात ख़तम की तो हम रे फ्रीजिरे टर के पास पहुंच गए थे. आपि ने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों
में लिया और घूम कर उसी जगह पर दिवार से टे क लगा कर खड़ी हो गयीं जहाँ कुछ दे र पहले मैं खड़ा
था. मेरा मड
ू अभी भी ख़राब ही था. मैं सर झक
ु ा कर बरु ा सा मंह
ु बनाकर खड़ा रहा. आपि ने कुछ दे र ऐसे
ही मुझे दे खा और फिर मेरे हाथों को छोड़कर उल्टे ( दांए ) हाथ की हथेली में मेरी ठोड़ी को भर के उपर
उठ़ा दिया और सीधे हाथ अपने चूड़ीदार पाजामे में डाल कर अपनी चूत पे रगड़ने लगी.

आपि ने 3,4 बार अपनी चूत पे हाथ रगड़ कर बाहर निकाला तो उनकी उं गलियों पे उनकी चूत का पानी
लगा था. आपि ने अपनी चूत की जूस से गीली उं गलियों को मेरे नाक के पास रगड़ा और मेरे होठों पे
अपनी उं गलियां फेरते हूवे फ़िल्मी अंदाज़ में बोली, " मेरे सोहणे भाई के लिए … इस दनि
ु यां की सब्ु बब्बब
से ज़्यादा मास हुर्रर्रर्रर्र कर दे ने वाली ख़ुशबू … सोहणे भाई की सगी बहन की चूत की ख़ुशबू … और
दनि
ु यां की लज़ीज तरीन मश्रूबा … तुम्हारी आपि की चूत की जूस की चंद क़तरे हाज़िर है … " आपि की
इस अंदाज़ ने मेरे मड
ू की सारी खराबी को ग़ायब कर दिया और बेसख्ता ही मझ
ु े हँसी आ गयी.

मैंने आपि को अपनी तरफ खींच कर उनको सीने से लगाया और अपने बाजूओं में भींचते हूवे कहा, " आई
लव यू आपि … आई रियली लव यू " आपि ने भी मेरी क़मर पे हाथ फेरा और अपना सर पीछे करते हूवे
मेरे गाल को चूम की कहा " आई लव यू तो जानऊ … मेरा सोहना भाई"

हम इसी तरह कुछ दे र गले लगे रहे फिर आपि मझ


ु से अलग हूई और दिवार से क़मर लगा कर अपनी
फ्रॉक का दामन सामने से उठाया और कहा " चलो अब अपना इनाम ले लो " मैंने हं स्स कर आपि को
दे खा और नीचे बैठ कर उनकी पाजामे के उपर से से टांगों की दरमिआन अपना मंह
ु दबा लिया … आपि
की चूत की ख़ुशबू को अपने अंग अंग में बसने के बाद मैंने मुंह पीछे किया और आपि की पाजामे को
उतारने के लिए हाथ फसाये ही थे की आपि ने मेरे हाथों को पकड़ लिया और कहा, " आह्हननन तुम हाथ
हटा लो. मैं खुद … अपने सोहणे भाई के लिए … अपने हाथों से … अपना पाजामा नीचे करूंगी"
" ओके बाबा … जो रानी जी की मर्ज़ी " मैंने ये कह कर अपने हाथ पीछे कर लिए और अपनी नज़रें आपि
की टांगों की दरमिआन में चिपके कर पाजामा नीचे होने का इन्तज़ार करने लगा … आपि ने अपनी फ्रॉक
की दामन को दांतों में दबाया और दोनों अँगूठे साइड्स से पाजामे में फसा कर आहिस्ता आहिस्ता नीचे
करने लगी. आपि ने अपने पाजामे को 2 इंच नीचे सरकाया और नाभि से थोड़ा नीचे करके रुक गयीं. मैं
इंहिमाक से मुंह खोले अपनी नज़रें आपि की टांगों की दरमियाँ जमाये पाजामे के उतरने का इन्तज़ार कर
रहा था और मेरी शकल से ही बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थी. जब काफी दे र बाद भी आपि ने पाजामा
नीचे ना किया तो मैंने नज़र उठाकर आपि के चेहरे की तरफ दे खा तो वो खिलखिला कर हं स पड़ी उनकी
ऑ ंखों में इस वक़्त शदीद शरारत नाच रही थी.

आपि को हं सता दे खकर मैंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था की आपि हँसी को ज़बर्दस्ती रोकते हूवे
बोली, " अच्छा अच्छा सॉरी … मूड ऑफ मत कर लेना … सॉरी सॉरी " मैंने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराकर
वापस अपनी नज़रें आपि की टांगों की दरमियाँ जमा दीं.

आपि ने अपने पाजामे को थोड़ा और नीचे किया तो उनकी चत


ू के उपर वाले हिस्से की बाल नज़र आने
लगे जो काफी बड़े हो रहे थे और गुलाबी स्किन पे गहरे काले बाल बहुत भल्ले लग रहे थे.

" आपि क्या बता है कब से बाल साफ नहीं किये? … बहुत बड़े बड़े हो रहे है "

" काफी दिन हो गए है … सब


ु ह यनि
ू वर्सिटी जाना था इतना टाइम नहीं था की साफ करती. अभी करूंगी. "
आपि ने ये कहा और पाजामे को घुटनों तक पहुंचा दिया.

मैंने नज़र भर की आपि की चत


ू को दे खा. टांगों की बंद होने की वजह से सिर्फ चत
ू का उपरी हिस्सा ही
दिख रहा था. मैंने अपना हाथ बारी बारी आपि की खूबसूरत राणों( जांघे ) पर फेरा और अपना अंगठ
ू ा चूत
से थोड़ा उपर रखकर चूत को उपर की तरफ खींच कर आपि से कहा, " आपि टाँगें खोलो ना थोड़ी सी"

आपि ने अपनी टांगों को खोला तो चूत बालों में घिरि एक लकीर नज़र आ रही थी. मैंने अंगूठे को थोड़ा
नीचे लाकर आपि की चूत के दाने पर रख दिया और उससे मसलते हूवे आपि की राणों को चाटने लगा.
मैंने बारी बारी दोनों राणों को चाटा और फिर अँगठ
ू े की दबाव से चत
ू को उपर की ओर खींच कर अपनी
ज़ुबाँ आपि की चूत से लगा दी. मेरी ज़ुबाँ आपि की चूत पे टच हो गई तो उन्होंने एक झुर्र झुर्री सी ली
और अपना हाथ मेरे सर पे रख कर दबाने लगी. मैंने चूत को मुकम्मल चाट कर आपि की चूत की एक
लब को अपने होंठो में दबाया और उसका रस निचोड़ने लगा. इसी तरह मैंने दस
ू रे लब को चस
ू ा और फिर
दोनों लबों को एक साथ मुंह में ले कर पूरी चूत को चूसने की कोशिश की तो आपि ने एक आह्ह्ह भरते
हूवे कहा " आह्ह्ह्हह्ह … सागर दाना … दाने को चूसो प्लीज"
मैंने आपि की बात सुनकर एक बार फिर पूरी चूत पे ज़ुबाँ फेरी और उनकी चूत के दाने को अपने होठों
में दबा कर चूसने लगा. मुझे ऐसा मेहसुस हो रहा था जैसे आपि की चूत के दाने से मीठे रस का झरना
फूट रहा है जो मेरे मुंह में शहद घोलता जा रहा है . आपि की चूत के दाने को चूसने की वजह से मेरी
नाक चूत की बालों में उलझ सी गयी और मझ
ु े ऐसा मेहसुस होने लगा जैसे मेरा नाक अपनी आपि की
चूत की ख़ुशबू को एक, एक बाल से चुन लेना चाहता हूँ. मैं अपने इन्ही एहसासात के साथ आपि की चूत
को चाट और चस
ू रहा था की एक आवाज़ बम की तरह मेरी समायात से टकराई.

" रूबियययययय " अम्मी की आवाज़ सन


ु ते ही मैं तड़प कर पीछे हटा और अभी उठने भी नहीं पाया था
की किचन की दरवाज़े पे अम्मी खड़ी नज़र आयी. उन्होंने मुझे ज़मीं पे बैठे दे खा तो है रत से पुछा, " ये
क्या कर रहे हो सागर?"

" मैंने अम्मी को दे खे बिना ही रे फ्रीजिरे टर के नीचे हाथ डाला और कुछ ढूँढ़ने की अंदाज़ में हाथ फेरता
हुआ बोला " कुछ नहीं अम्मी वो पानी पी रहा था तो हाथ में पकड़ा पेन नीचे गिर गया है वो ही दे ख रहा
हूँ " ये कह कर मैंने तिरछी नज़र से आपि को दे खा तो वो उसी हालत में क़मीज़ दांतों में दबी, पाजामा
घुटनों तक उतरा हुआ और टांगें थोड़ी सी खोले हूवे बूत बनी खड़ी थीं.

अम्मी ने माथे पे हाथ मार कर कहा, " या रब्बा … ये लड़के भी ना … इतनी क्या मस
ु ीबत पड़ी है पेन की
… बाद में निकाल लेना था अभी अपने सारे कपड़े गंदे कर लिए है … " मैं दिल ही दिल में दया कर रहा
था की अम्मी अंदर ना आयें

फिर मैंने हाथ रे फ्रीजिरे टर के नीचे से निकाला और अपना बेग उठाकर खड़ा हो रहा था तो अम्मी बोली, "
रूबी को तो नहीं दे खा तुम ने? … पता नहीं कहाँ चली गयी है ना …"

" नहीं अम्मी! मैंने तो नहीं दे खा … जाना कहाँ है उपर स्टडी रूम में होंगी " अम्मी ने सीढ़ीयों की तरफ
मंह
ु करके तेज़ आवाज़ लगे " रुब्बैय्यिययीय " और फिर अपने रूम की तरफ घम
ू कर बोलीं " सागर जा
बेटा उपर हो तो उससे मेरे पास भेज दे ना " ये बोलकर अम्मी धीमे क़दमों से अपने रूम की तरफ चल
दीं.

मैंने एक क़दम पीछे होकर आपि को दे खा … उनका चेहरा खौंफ से पीला पड़ा हुआ था और वो इतनी
खोंफज़दा हो गयी थीं की उन्हें ये ख्याल भी नहीं रहा की अपने दांतों से फ्रॉक का दामन ही निकल दे तीं
की चत
ू ऐसी नंगी खल
ु ी पड़ी थी. मैंने उनके साथ कोई शरारत करने का सोचा लेकिन फिर उनकी हालत
की पेशे नज़र अपने ख्याल को खुद ही रद कर दिया और आगे बढ़ कर आपि का पाजामा उपर करने के
बाद उनकी दांतों से फ्रॉक का दामन भी खींच लिया लेकिन उनकी हालत में कोई फ़र्क़ नहीं आया था. मैंने
आपि को कांधों से पकड़ कर आगे करके अपने सीने से लगाया और उन्हें बाहों में भर लिए. फिर एक
हाथ से क़मर और दस
ू रे हाथ से उनके गाल को सेहलाते हूवे कहा, " आपि … आपि … अम्मी चली गयी है
… कुछ भी नहीं हुआ … सब ठीक है … मेरी जान से प्यारी मेरी बेहना कुछ भी नहीं हुवाआ " मैं इसी
तरह आपि की क़मर और गाल को सेहलाते उन्हें तसलियाँ दे ता रहा और कुछ दे र बाद आपि पे छाया
जामौद टुटा और वो सहमी हूई सी आवाज़ में बोली, " सागर अगर अम्मी दे ख लेतीं तो"

" आपि इतना मत सोचो यार. दे ख लेतीं तो ना … दे खा तो नहीं है जो इतनी परे शान हो रही हो … बस
अपना मड
ू ठीक करो … याद करो कैसे कह रही थीं " सागररर दाने को चस
ू ो ना " बोलो तो दब
ु ारा चस
ू ंू
दाने को?"

आपि ने मेरी बात सन


ु कर मेरी क़मर पे मक्
ु का मारा और मस्
ु कुरा दीं. फिर मेरे सीने पे गाल रगड़ कर
अपने चेहरे को मज़ीद दबाते हूवे संजीदगी से बोली, " सागर कितना सुकून मिलता है तुम्हारे सीने से लग
कर … मैं कभी तुमसे अलग नहीं होना चाहती सागर … हम हमेशा साथ रहें गे."

मैंने आपि को फिर से संजीदा होते दे खा तो उनसे अलग होकर शरारत से कहा, " अच्छा मलिका ए
जज़बात साहिबा … सीरियस होने की नहीं हो रही … आप को भी अम्मी ने बुलाया है मैं भी उपर जाता
हूँ. कुछ दे र सोऊंगा … " फिर आपि की सीने की उभार को दबा कर शरारत से कहा, " रात में जगना भी
तो है ना अपनी बेहना जी के साथ " आपि मेरी बात पे हल्का सा मुस्कुरा दीं. मैं घूमा और जाने लगा तो
आपि ने आवाज़ दी, " सागररर"

मैंने रुक कर पुछा, " हूउउउनंनं"

आपि आगे बढ़ी और आहिस्तगी से मेरे होठों पे अपने होंठ रखे और चूम कर कहा, " बस अब जाओ …
रात में आऊंगी … " मैंने आपि को मोहब्बत भरी नज़र से दे खा और किचन से निकल गया …

मैं रूम में आया तो बिलाल कंप्यूटर की सामने बैठा था और ट्रॉउज़र से अपना लंड बाहर निकालें , पोर्न
मूवी दे खते हूवे आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को सेहला रहा था. दरवाज़े की आहत पे उसने घूम कर एक
नज़र मझ
ु े दे खा तो मैंने कहा, " बस एग्जाम ख़तम हूवे है तो फिर शरू
ु हो गया ना इन्ही चत
ू चक्कारियों
में "

" भाई इतने दिन हो गए है . मैं इन सब चीज़ों से दरू ही था. आपि भी नहीं आती है … अब कम से कम
मूवी तो दे खने दे ना … " ये कह कर बिलाल ने फिर से अपना रुख स्क्रीन की तरफ कर लिया
" ओके दे ख लो मूवी लेकिन कंट्रोल करके रखना … आपि अभी आयेंगी " मेरी बात सुनकर वो ख़ुशी से
उछ़ल पड़ा और मझ
ु े दे ख कर बोला, " सच भईई … अभी आयेंगी आपि??? " मैंने मुस्कुराकर उसकी तरफ
दे खा और है में गर्दन हिला दी और बिलाल वैसे ही बैठे मूवी भूल कर गुम सूम सा हो गया. या शायद यूं
कहना चाहिये की आपि की ख़यालों में गुम हो गया.

मैंने कैमरा कवर से निकाला और रिकॉर्डिंग मोड़ को सेलेक्ट करते हूवे कैमरा सिंगार मेज़ ( ड्रेसिग
ं टे बल )
पे रखकर उसका ज़ूम बिस्तर पे सेट कर दिया. अब सिर्फ रिकॉर्डिंग का बटन दबाने की दे र थी की हमारी
मव
ू ी बनना स्टार्ट हो जाती. कैमरा सेट करके मैंने अलमारी से अपना स्लीपिंग ट्रॉउज़र निकाला और चें ज
करने लगा. मैं अपने ट्रॉउज़र पहनकर घूमा ही था की रूम का दरवाज़ा खुला और आपि अंदर दाखिल हूई.

आपि ने आज काले शनील ( वैल्वेट ) का क़मीज़ सलवार पहन रखा था और सर पे वाइट स्कार्फ़ बांधे
हुआ था. आपि ने रूम में दाखिल होकर दरवाज़ा बंद किया और घूमीं ही थीं की बिलाल अपनी चेयर से
उछल कर भागते हूवे गया और आपि के जिस्म से लिपट कर बोला, " आपि … मेरी प्यारी आपि … आज
मेरा बहुत दिल चाह रहा था की आप हमारे पास आयें … और आप आ गयीं " और ये कह कर क़मीज़ के
उपर से ही आपि की दोनों उभारों की दरमियाँ में अपना चेहरा दबाने लगा. मैंने एक नज़र उन दोनों को
दे खा और कमरे से उनको ज़ूम में ले कर रिकॉर्डिंग ऑन करके वहां साथ पड़ी चेयर पे ही बैठ गया. आपि
ने अपने एक हाथ से बिलाल की क़मर सेहलाते हूवे दस
ू रा हाथ बिलाल की सर की पष्ु ट पे रखा और
आपने सीने में दबाते हूवे कहा, " उम्मम्मम्म फ़िक्र नहीं करो मेरे छोटूओ … आज दिल भर कर एन्जॉय
कर लेना … मैं यहाँ ही हूँ तुम्हारे पास. " और फिर बिलाल को अपने आप से अलग करते हूवे कहा, " चलो
उतारो अपने कपड़े"

" आपि आप ही उतार दे ने … भाई को तो पहनाते भी आप अपने हाथों से है लेकिन मुझे … " इतना
बोलकर ही वो चप
ु हुआ और उसकी शकल ऐसी हो गई की जैसे अभी रो दे गा. बिलाल का अफ़सर्दा
ु सा
चेहरा दे खकर आपि ने उसकी ठोड़ी ( चिन ) को अपनी हथेली में लिए और गाल को चूम कर कहा " ऐसी
कोई बात नहीं मेरीजन … तुम दोनों ही मेरे भाई हो और भाई होने की नाते जितना प्यार मुझे सागर से
है उतने ही लाड़ले तम
ु भी हो."

ये कह कर आपि ने अपने दोनों हाथों से बिलाल की शर्ट को पेट से पकड़ कर उठ़ते हूवे कहा, " चलो हाथ
उपर उठाओ " बिलाल की शर्ट उतार कर आपि पंजों के बल नीचे बैठीं और बिलाल की ट्रॉउज़र को साइड्स
से पकड़ते हूवे नीचे करने लगी. बिलाल का ट्रॉउज़र थोड़ा नीचे हुआ तो उसका खड़ा लंड एक झटका ले
कर उछलते हूवे बाहर निकला. आपि ने बिलाल के लंड को दे खा और अपने हाथ में पकड़ कर सेहलाते हूवे
बोली, " वौव्व मेरा छोटूओ तो आज बहुत ही भन्नाट हो रहा है "
बिलाल का लंड आपि की हाथ में आया तो वो तड़प उठा और एक सिसकि ले कर बोला, " आह आपि मुंह
में लो ना प्लीज " आपि ने लंड छोड़कर ट्रॉउज़र को पकड़ा और नीचे करके बिलाल की पांव से निकल
दिया और फिर से बिलाल का लंड हाथ में पकड़ कर खड़े होते हूवे बोली, " अंदर तो चलो ना यहाँ दरवाज़े
पे ही सब कुछ करूं क्या? " और ऐसे ही बिलाल के लंड को पकड़ कर उससे खींचते हूवे बिस्तर की तरफ
चलने लगी.

आपि हं सते हूवे आगे आगे चल रही थीं. उनकी नज़र बिलाल के लंड पे थी और बिलाल एक तरह से
घिसटता हुआ आपि की पीछे पीछे चला जा रहा था. ऐसे ही आपि बिस्तर के पास आयीं और बिलाल का
लंड को छोड़ कर 2 क़दम पीछे होकर अपनी क़मीज़ उतारने लगी.

मेरे और उनकी दरमिआन तक़रीबन 7,8 फ़ीट का फ़ासला था. मेरी तरफ आपि की क़मर थी और बिलाल
उनकी सामने उनसे 2 क़दम आगे खड़ा था. आपि हाथों को मोड़ते हूवे क़मीज़ उतारने लगी. आपि की
क़मीज़ उपर उठी तो मुझे उनकी काले शनील ( वैल्वेट ) की सलवार में क़ैद खूबसूरत कुल्हे नज़र आये
और अगले ही लम्हे आपि की क़मीज़ थोड़ा और उपर उठी और उनकी इंतिहाई चिकनी, साफ शफाफ
गुलाबी स्किन नज़र आई जो क़मीज़ की काले होने की वजह से बहुत ही ज़्यादा खिल रही थी. आपि ने
क़मीज़ को मज़ीद उपर उठाया और अपने सर से बाहर निकालते हूवे सोफ़े पे फैं क दिया. आपि की क़मीज़
जैसे ही उनके सर से निकलि तो उनकी बालों की मोटी सी चोटी किसी साँप की तरह बल खाते हूवे नीचे
आई और इधर उधर झुलने के बाद उनकी कुल्हों की दरमिआन रुक गयी. आपि ने गहरे गुलाबी रं ग का
ब्रा पहन रखा था जिसकी पट्टी टाइट होने की वजह से उनकी क़मर में धँसी हूई सी नज़र आ रही थी.
आपि ने अपने दोनों कांधों से बारी बारी ब्रा की स्ट्रै प्स को खींचा और अपने बाज़ू से निकल कर बगल में
ले आयीं और ब्रा को घुमा कर कप्स को पीछे लाते हूवे थोड़ा नीचे अपने पेट पे किया और सामने से ब्रा
क्लिप खोल कर ब्रा भी सोफ़े की तरफ उछ़ल दिया. आपि ने अपनी सलवार में अपने दोनों अनघोटाय
फसाये और थोड़ा सा झूकते हूवे सलवार नीचे की और बारी बारी दोनों टाँगें सलवार में से निकल कर
अपने हाथ कमर पे रखे और सीधी खड़ी होकर बिलाल को दे खने लगी. आपि की कमर पतली होने की
वजह से इस वक़्त उनका जिस्म बिल्कुल कोका कोला की बोतल से मुशाबेह था. सुराहीदार लम्बी गर्दन,
सीना भी गोलाई लिए थोड़ा साइड्स पे निकला हुआ, पतली कमानदार क़मर और फिर खूबसूरत कुल्हे भी
थोड़ा साइड्स पे निकली हूवे. हर लिहाज़ से मत
ु नासिब और मक
ु म्मल जिस्म.

बिलाल की शकल किसी ऐसे बिल्ली के बच्चे जैसी हो रही थी की जिस को उसकी मॉ ं ने दध
ू पीलाने से
मना कर दिया हो … उसके मुंह से कोई आवाज़ भी नहीं निकल रही थी. आपि ने चंद लम्हे ऐसे ही उसके
चेहरे पे नज़र जमाये रखी और फिर बिलाल की हालत पे तरस खाते हं स पड़ी और नीचे बैठने लगी.
आपि अपने घुटनों और पंजों को ज़मीं पे टिकाते हूवे कुछ इस तरह बैठीं की उनके कुल्हे पांव की ऐढ़ियों
से दब कर मज़ीद चौड़े हो गए. उन्होंने बिलाल के लंड को अपने हाथ में पकड़ा और उसकी पूरी लम्बाई
को अपनी ज़ुबाँ से चाटने लगी. बिलाल के मुंह से बेसख्ता ही एक आह्ह्ह खारिज हो गई और वो बोला, "
अह्ह्ह्ह्ह्ह आपिईई … आपि मुंह में लें ना परू ा " आपि ने मुस्कुराकर उसकी बेताबी को दे खा और कहा, "
सबर तो करो ना … अभी तो शुरू किया है " ये कह कर आपि ने बिलाल के लंड की नोक पे अपनी ज़ुबाँ
की नोक से मसाज किया और फिर लंड की टोपी को अपने मंह
ु में ले लिया …

" आएप्पीइइइइइइ परू ा मंह


ु में लो ना … उस दिन भी आप ने दिल से नहीं चस
ू ा था"

आपि ने उसके लंड को मुंह से निकाल कर एक गेहरी नज़र उसके चेहरे पे डाली और फिर बिना कुछ
बोला दोबारा लंड को मंह
ु में ले कर अंदर बाहर करने लगी और 5, 6 बार अंदर बाहर करने के बाद ही लंड
पूरा जड़ तक आपि के मुंह में जाने लगा. बिलाल का जिस्म काँपने लगा था वो सिसकती आवाज़ में
बोला, " आपि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा … " आपि ने लंड मुंह से निकाला और कहा " ओके नीचे लेट
जावो"

बिलाल एक क़दम पीछे हटा और ज़मीं पे लेट कर अपनी दोनों टांगों को थोड़ा खोलते हूवे आपि की इर्द
गिर्द फैला लिए. बिलाल की इस तरह लेटने से आपि उसकी टांगों की दरमिआन आ गई. इसी तरह घट
ु नों
और पांव की उं गलियों को ज़मीं पे टिकाये हूवे आपि आगे की तरफ झुकीं ( जिसे उनकी गान्ड़ उपर को
उठ़ गयी ) और बिलाल के लंड को चूसने लगी.

मैं आपि की पीछे था. जब आपि इस तरह से झुकीं तो उनकी कुल्हे थोड़े से खुल गए और गान्ड़ का
खूबसूरत, गहरे ब्राउन, झुर्रियों भरा सूराख … और उनकी छोटी सी गुलाबी चूत की लकीर मझ
ु े साफ नज़र
आने लगी. मैंने टे बल से कैमरा उठाया और पहले आपि की गान्ड़ के सूराख को ज़ूम करता हुआ रिकॉर्ड
किया और फिर कैमरा थोड़ा नीचे ले जाते हूवे चूत की लबों को ज़ूम किया. आपि की चूत की लब आपस
में ऐसे चिपके हूवे थे की अंदर का हिस्सा बिल्कुल ही नज़र नहीं आ रहा था और बस 2 उभरे हूवे से लबों
की दरमिआन एक बारीक सी लकीर बन गयी थी. मैंने कैमरा टे बल पे सेट करके रखा और आपि की
दोनों ग्लोरी होल्स पे नज़र जमाये हूवे अपने एक हाथ से लंड को सहलाते दस
ू रे हाथ से अपना ट्रॉउज़र
उतरने लगा. ट्रॉउज़र उतार कर मैं कुछ दे र वहीं खड़ा आपि की प्यारे से कुल्हों और उनके दरमिआन की
हसीं नज़ारे को दे खते अपने लंड को सेहलता रहा और फिर ट्रान्स की कैफ़ियत में आपि की तरफ क़दम
बढ़ा दिया. मैं आगे बढ़ा और आपि की पीछे उन्हीं की अंदाज़ में बैठ कर चूत के पास अपना मुंह लाया
और आपि की चूत से उठ़ती मदहोश कर दे ने वाली महक को एक लम्बी साँस की ज़रिये अपने अंदर
उतरा फिर अपनी ज़ब
ु ाँ निकली और चत
ू पे रख दी.
मेरी ज़ुबाँ को अपनी चूत पे मेहसुस करके आपि के जिस्म को एक झटका लगा और उन्होंने बिलाल के
लंड को मुंह से निकाले बिना ही एक सिसकि भरी और उनके चूसने की अंदाज़ में शिद्दत आ गई. मैं कुछ
दे र ऐसे ही चूत की मुकम्मल लम्बाई को चाटता और उनकी चूत के दाने को चुसता रहा. तो आपि ने
बिलाल का लंड मुंह से निकाला और मज़े से डूबी आवाज़ में कहा, " आह्ह्ह सागर पीछे वाला सूराख भी
चाटो नाआ … " मैंने आपि की ख्वाहिश की मुताबिक़ उनकी गान्ड़ के सूराख पे ज़ुबाँ रखी और उसी वक़्त
उनकी चत
ू में अपनी एक उं गली भी डाल दी. आपि 2 सेकंड को रूकीं और कुछ कहे बगैर फिर से अपना
काम करने लगी. मैंने आपि की गान्ड़ के सूराख को चाटा और उससे सही तरह अपनी थूक से गीला करने
के बाद मैंने अपने दस
ू रे हाथ का अँगठ
ू ा आपि की गान्ड़ के सूराख में उतार दिया और अपने दोनों हाथों
को हरकत दे की अंदर बाहर करने लगा.

मेरा लंड शाम से ही बेक़रार हो रहा था और अब मेरी बर्दाश्त जवाब दे चुकी थी. मैंने अपना अँगूठा आपि
की पिछले सूराख में ही रहने दिया और चूत से उं गली निकल कर अपना लंड पकड़ा और अपने लंड की
नोक आपि की चूत से लगा दी. आपि ने इसे मेहसुस कर लिया और फ़ौरन अपनी कमर को उपर की
तरफ उठ़ाते हूवे चूत को नीचे की तरफ दबा दिया और गर्दन घुमा कर कहा, " सागर क्या कर रहे हो तुम
… अंदर डालने की कोशिश क्या … सोचना भी नहीं"

मैंने तक़रीबन गिड़गिड़ाते हूवे कहा, " प्लीज बेहनाआ … आप को इस पोजीशन में दे खकर दिमाग़ बिल्कुल
गरम हो गया है . अब बर्दाश्त नहीं होता ना … और आपि इतना कुछ तो हम कर ही चुके है अब अगर
अंदर भी डाल दं ू तो क्या फ़र्क़ पड़ता है "

" बहुत फ़र्क़ पड़ता है इस से सागर … अगर तुमसे कंट्रोल नहीं हो रहा तो मैं चली जाती हूँ रूम से " आपि
के मुंह से जाने की बात सुनकर बिलाल उछल पड़ा वो अपने लंड पे आपि के मुंह की गर्मी को किसी
क़ीमत पे खोना नहीं चाहता था. वो फ़ौरन बोला, " नहीं आपि प्लीज आप जाना नहीं … भाई प्लीज आप
कंट्रोल करो ना अपने आप पे"

मैंने बारी बारी आपि और बिलाल के चेहरे पे नज़र डाली और शिकस्त खरु दा लेहजे में कहा, " ओक ओके
बाबा … अंदर नहीं डालँ ूगा … लेकिन सिर्फ उपर उपर रगड़ूग
ं ा … " आपि के चेहरे पे अभी भी फ़िक्र मन्दी
के आसार नज़र आ रहे थे.

" क्या मतलब! अंदर रगड़ोगे?"


मैंने आपि की कुल्हों को दोनों हाथों से पकड़ कर उपर उठ़ाते हूवे कहा, " अरे बाबा नहीं डाल रहा ना अंदर
… अंदर रगड़ने से मुराद है की आपकी चूत की लबों को थोड़ा खोलकर अंदर नरम गुलाबी हिस्से पे
अपना लंड रगड़ूग
ं ा"

आपि अभी भी मत
ु मईन नज़र नहीं आ रही थीं उन्होंने अपनी क़मर को नीचे की तरफ ख़म दे ते हूवे
गान्ड़ उपर उठा दी लेकिन गर्दन घुमाकर मेरे चेहरे पे ही नज़र जमाये रखी. मैंने अपने लंड को हाथ में
लिया और चूत की दोनों लबों की दरमियाँ रख कर लबों को खोला और चूत की अन्दरूनी नरम हिस्से पे
लंड को उपर से नीचे रगड़ने लगा. मेरे इस तरह रगडने से मेरे लंड की नोक आपि की चत
ू की अन्दरूनी
हिस्से को रगड़ दे रही थी और टोपी की साइड्स आपि की चूत की लबों पे रगड़ लगा रहे थे.

मैंने 4, 5 बार ऐसे अपने लंड को रगड़ा तो आपि के मंह


ु से बेसख्ता ही एक सिसकि निकलि और मझ
ु े
अंदाज़ा हो गया की आपि को इस रगड़ से मज़ा आने लगा है . कुछ दे र आपि ऐसे ही गर्दन मेरी तरफ
किये रहीं और अपनी ऑ ंखों को बंद करके दिल की गहराई से इस रगड़ को मेहसुस करने लगी और अब
मेरे लंड की रगड़ के साथ साथ ही आपि ने अपनी चत
ू को भी हरकत दे नी शरू
ु कर दी थी. मैंने अपने
लंड को एक जगह रोक दिया तो आपि ने आँखें खोलकर मुझे दे खा और फिर शर्म और मज़े की मिली
जुली कैफ़ियत से मुस्कुराकर अपना मुंह बिलाल की तरफ कर लिया और अपनी चूत हिला हिला की मेरे
लंड पे रगड़ने लगी.

कुछ दे र तक ऐसे ही अपना लंड आपि की चूत की अंदर रगड़ने के बाद मैंने अपना लंड हटाया और आपि
की गान्ड़ के सरू ाख पे अपनी ज़ब
ु ाँ रखते हूवे अपनी 2 उं गलियां आपि की चत
ू में तक़रीबन 1.5 इंच तक
उतार दीं और उन्हें आगे पीछे करते हूवे अपनी तीसरी ( तिसरी ) उं गली भी अंदर दाखिल कर दी.

आपि ने तक़लीफ़ की एहसास से डूबी आवाज़ में कहा, " उफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ सागर … दर्द हो रहा है … " मैंने
आपि की बात अनसुनी करते हूवे अपनी उं गलियों को अंदर बाहर करना जारी रखा और उनकी गान्ड़ के
सूराख को चूसने लगा कर शायद इस से तक़लीफ़ का एहसास कम हो जाये … लेकिन आपि की तक़लीफ़
में कमी ना हूई और वो बोली, " आआईईएई सागर दर्द ज़्यादा बढ़ रहा है ऐसे … निकालो उं गलियां
उफ्फ्फफ्फ्फ़ … " मैंने उं गलियां निकल लीं और आपि से कहा, " आपि ऐसा करो … बिलाल के उपर आ
जाओ और उसका लंड चूसो वो साथ साथ आपकी चूत के दाने ( क्लीट ) को भी चूसता रहे गा तो दर्द नहीं
होगा " मेरी बात सन
ु कर बिलाल खश
ु होता हुआ बोला, " हां आपि उपर आ जायें, ऐसे ज़्यादा मज़ा आयेगा"

आपि ने एक नज़र मेरे चेहरे पे डाली और फिर बिलाल को दे खते हूवे मुंह चिड़ा कर तन्ज़िया लेहजे में
उसकी नक़ल उतारते हूवे कहा, " आपि उपल आ जायें बला मजा आयेगा … ख़ुशी दे खो ज़रा इसकी … शर्म
करो कमीनों मैं तुम्हारी सगी बहन हूँ, कोई बाज़ारी औरत नहीं!"
आपि का अंदाज़ दे ख कर मैं मुस्कुरा दिया लेकिन बिलाल ने बरु ा सा मुंह बनाया और ख़राब मूड में कहा,
" आपि!! भाई कुछ भी कहते रहें . आप उन्हें कुछ नहीं कहती है … मैं कुछ बोलँ ू तो आप नाराज़ हो जाती
है "

आपि ने बिलाल की ऐसी शकल दे ख कर हसते हूवे उसके गाल पे हलकी सी चपत लगाई और अपनी
टाँगें उसके चेहरे की दांए बांए रखते हूवे बोलीं " पगले मज़ाक कर रही थी तुमसे … इतने बाघलू ना हो
जाया करो हर बात पे " और फिर अपनी चूत बिलाल के मुंह पे टिकाते हूवे झुकीं और उसका लंड अपने
मंह
ु में भर लिया … बिलाल ने अभी भी बरु ा सा मंह
ु बना रखा था लेकिन जैसे ही आपि की चत
ू बिलाल
के मुंह के पास आई तो उनकी चूत की महक ने बिलाल का मूड फिर से हरा भरा कर दिया और एक
नए जोश से उसने आपि की चूत के दाने को अपने मुंह में ले लिया. मैंने आपि की चूत की तरफ हाथ
बढ़ाया और फिर से उनकी गान्ड़ के सूराख को चूसते हूवे चूत में पहले 2 और फिर 3 उं गलियां डाल कर
अंदर बाहर करने लगा और मेरे आइडिया का रिजल्ट पॉजिटिव ही रहा. मतलब आपि को अब इतनी
तक़लीफ़ नहीं हो रही थी. या यूं कहना चाहिए की आपि की मज़े का एहसास उनकी तकलीफ़ की एहसास
पे ग़ालिब आ गया था और कुछ ही दे र बाद आपि की चूत मेरी 3 उं गलियों को सेहने की क़ाबिल हो गयी
और वो मेरी उं गलियों के साथ साथ ही अपनी चत
ू को भी हरकत दे ने लगी.

अब पोजीशन ये थी की आपि बिलाल का लंड चस


ू ते हूवे अपनी चत
ू को भी हरकत दे रही थीं. बिलाल के
मुंह में आपि की चूत का दाना था जिसे वो बहुत प्यार और इंहिमाक से चूस रहा था. मेरी 3 उं गलियां
आपि की चूत में 1.5, 2 इंच गहराई तक अंदर बाहर हो रही थीं और मैं आपि की गान्ड़ के सरू ाख पे कभी
अपनी ज़ुबाँ फेरता तो कभी उससे चूसने लगता … हम अपने अपने काम में दिलजमाई से मसरूफ थे की
एक नए ख्याल ने मेरे दिमाग़ में झुमका सा किया.

मैं अपनी जगह से उठ़कर अल्मारी के पास गया और अल्मारी से डिल्डो निकाल लिया ( ये वो ही गहरे
ब्राउन रं ग का डिल्डो था ) मैं डिल्डो निकाला और टे बल से आयल की बोतल उठाकर वापस आ रहा था
तो आपि की नज़र उस डिल्डो पे पड़ी और उन्होंने बिलाल के लंड को मुंह में ही रखे आँखें फाड़ कर मझ
ु े
दे खा.

मैंने मुस्कुराकर आपि को ऑ ंख मारी और डिल्डो की टोपी को आपि की ऑ ंखों की सामने लहराते हूवे
कहा " मेरी प्यारी बेहना जीए … क्या तम
ु इसके लिए तैयार हो."

आपि ने बिलाल के लंड को अपने मुंह से निकाला और कहा, " तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हुआ है क्या सागर!!!
… ये इतना बड़ा है … ये तो मैं कभी भी नहीं डालने दं ग
ू ी"
मैंने आपि की पीछे आते हूवे कहा, " कुछ नहीं होता यार आपि … रिलैक्स … मैं ये परू ा थोड़ी ना घुसाने
लगा है अंदर " आपि ने इसी तरह अपनी गान्ड़ उठाये और चूत को बिलाल के मुंह से लगाये गर्दन
घुमाकर मझ
ु े दे खा और परे शानी से कहा " लेकिन सागर दर्द तो होगा ना इस से बहुत"

मैंने अपनी 3 उं गलियों को आपस में जोड़ कर डिल्डो की नोक पे रखा और आपि को दिखाते हूवे कहा, "
ये दे खो आपि … ये मेरी 3 उं गलियों से थोड़ा सा ही ज़्यादा मोटा है … और आप मेरी 3 उं गलियां अपनी
चूत में ले चुकी हो … इतना दर्द नहीं होगा … और अगर हुआ तो मुझे बता दे ना मैं निकाल लूंगा इससे
बाहर"

अपनी बात कह कर मैंने डिल्डो की सिरे पे बहुत सारा तेल लगाया और कुछ तेल अपनी उं गली पे लगा
कर आपि की चत
ू की अन्दरूनी दिवारों पे भी लगा दिया और डिल्डो को सिरे से ज़रा पीछे से पकड़ कर
मैंने एक बार आपि को दे खा. वो मेरे हाथ में पकड़े डिल्डो को दे ख रही थीं और उनकी ऑ ंखों में फ़िक्र
मन्दी के आसार साफ पढ़ें जा सकते थे.

मैं कुछ दे र डिल्डो को ऐसे ही थामे आपि के चेहरे पे नज़र जमाये रहा तो उन्होंने मेरी नज़रों को मेहसुस
करके मेरी तरफ दे खा. आपि से नज़र मिलने पे मैंने आँखों से ही ऐसे इशारा किया जैसे कहा हो की "
फ़िक्र ना करो मैं हूॅं ना " और फिर आहिस्तगी से आपि की चत
ू की लबों की दरमियाँ डिल्डो का सिरा रख
कर उससे लकीर में फेरा जिसे आपि की चूत की दोनों लब जुदा हो गए और सिरा डायरे क्ट चूत की
अन्दरूनी नरम हिस्से पे टच होने लगा. मैंने 3-4 बार ऐसे ही डिल्डो की सिरा को चूत की अंदर उपर से
नीचे तक फेरा और फिर उसकी नोक को चत
ू की नीचले हिस्से में सरू ाख पे रख कर हल्का सा दबाव
दिया. आपि की चूत उनके अपने ही जूस से चिकनी हो रही थी और मैंने काफी सारा आयल भी चूत की
अंदर और डिल्डो की सिरे पे लगा दिया था जिसकी वजह से पहले ही हलके से दबाव से डिल्डो का सिरा
जो तक़रीबन 1.5 इंच लम्बाई लिए हूवे था, एक झटके से अंदर उतार गया और उसके अंदर जाने से आपि
के जिस्म को भी एक झटका लगा और उन्होंने सर को झटका दे ते हूवे आँखें बंद कर के एक सिसकि
भरी, " उम्मम्मम्मम्मम सागरररररर"

मैं चंद सेकंड ऐसे ही रुका और फिर डिल्डो को मज़ीद आधा इंच अंदर धकेल की आहिस्ता आहिस्ता उसे
हिलाने लगा. आपि ने अपने सर को ढलका की अपना रुख़सार ( गाल ) बिलाल के लंड पे टिका दिया और
आँखें बंद किये लम्बी लम्बी साँस ले कर बोली, " उफ्फफ्फ्फ़ सागरररर बहुत मज़ा आ रहा है "

" दे खा मैं कह रहा था ना कुछ नहीं होगा … आप ऐसे ही टें शन ले रही थीं इतनी"
मैंने बिलाल को आपि की चूत का दाना चूसने का इशारा किया और डिल्डो को अंदर बाहर करते हूवे
आहिस्ता आहिस्ता और गहराई में धकेलने लगा.

डिल्डो अब तक़रीबन ढाई 2.5 इंच तक अंदर जा रहा था मैं इतनी गहराई मेन्टे न रखते हूवे आपि की चूत
में डिल्डो अंदर बाहर करता रहा. कुछ दे र बाद मैंने डिल्डो को मज़ीद गहराई में उतरने के लिए थोड़ा
दबाव दिया तो आपि ने तड़प की एक झटका लिया और सर उठा लिया. फिर मेरी तरफ गर्दन घुमाकर
मेरी ऑ ंखों में दे खति हूई सिसक की बोली, " बस सागररर … और ज़्यादा अंदर मत करो … बहुत दर्द होता
है … बस इतना ही अंदर डाले आगे पीछे करते रहो."

( मैं समझ गया था की अब आपि की चूत का पर्दा सामने आ गया है और डिल्डो वहां ही टच हुआ था
जिसे आपि को दर्द हुआ. मैं खद
ु भी आपि की चत
ू की परदे को डिल्डो से फाड़ना नहीं चाहता था. बल्कि
मैं चाहता था की मेरी बहन की चूत का पर्दा मेरे लंड की ज़र्ब से फटे … मेरी बहन का कंु वारा पन मेरे
लंड की वेह्शत से ख़तम हो … )

मैं ने आपि की बात सुनकर मुस्कुराकर उन्हें दे खा और कहा, " अच्छा जी … तो इसका मतलब है हमारी
बेहना जी को बहुत मज़ा आ रहा है इस से …"

आपि ने मज़े से डूबी आवाज़ में कहा, " ह्म्म ् सागररर … उम्मम्मम्म … ययह बहुत अलग सा मज़ा है …
बहुत हसीं एहसास है … आह्ह्ह्ह"

मैंने लोहा गरम दे खा तो कहा, " तो आपि मुझे डालने दो ना अपना लंड … उससे और ज़्यादा मज़ा
मिलेगा"

" नहीं सागर वो अलग चीज़ है … तुम्हें नहीं पता क्या … उससे मैं प्रेग्नेंट भी हो सकती हूँ"

" कुछ नहीं होता आपि मैं कंडोम लगा लूंगा ना"

" नहीं ना सागर … मुझे पता है कंडोम भी हमेशा सेफ नहीं होता"

" मैं छूटने लगा तो लंड बाहर निकल लूंगा ना"

" अच्छा और अगर तम


ु ने एक सेकंड के लिए भी अपना कंट्रोल खो दिया तो फिर"

" आपि मैं सब


ु ह गोलियां ला दं ग
ू ा … प्रेग्नेंसी रोकने की … आप वो खा लेना"
मेरे बहस करने से आपि की अंदाज़ में थोड़ी झझ
ुं लाहट पैदा हो गई थी … उन्होंने कहा, " बस नहीं ना
सागर! ज़िद मत करो खामखां"

आपि किसी तरह भी नहीं मान रही थीं. तो मैंने अपने आप को समझाया की शायद अभी टाइम ही नहीं
आया है … इन सब बातों की दौरान मेरे हाथ की हरकत भी रुक गयी थी और बिलाल ने भी आपि की
चूत से मुंह हटा लिया था और हमारी बातें सुन रहा था की शायद कोई बात बन ही जाये लेकिन बात ना
बनते दे खकर उसने बेचारगी से मुझे दे खा तो मैंने उससे वापस चूत का दाना चूसने का इशारा किया और
उदास सा चेहरा लिए हार मान कर आपि से कहा, " अच्छा छोड़े इस्सको … आप अपना मज़ा नहीं ख़राब
करो अभी"

बिलाल ने फिर से चत
ू से मंह
ु लगा दिया था तो मैंने भी अपने हाथ को हरकत दे नी शरू
ु कर दी और
आपि की चूत में डिल्डो अंदर बाहर करने लगा और आपि ने भी फिर से अपना सर झुकाये और बिलाल
का लंड चूसने लगी लेकिन मेरा ज़हन वहां ही अटका हुआ था की मैं कैसे चोद ू आपि को. ये ही सोचते
सोचते मैंने चंद सेकण्ड्स में अपने ज़हन में प्लॅ न तर्तीब दिया और अमल करने का फैसला करते हूवे
बिलाल को इशारा किया की वो " डिल्डो को पकड़े ". बिलाल ने कुछ ना समझने की अंदाज़ में मुझे दे खा
और डिल्डो को पकड़ लिया.

मैंने इशारों इशारों में बिलाल को समझाया की " डिल्डो को ज़्यादा अंदर ना करे और जिस रीदम से मैं
अंदर बाहर कर रहा हूॅं ऐसे ही करे . बिलाल मेरी बात को समझ गया और उसी तरह आहिस्ता आहिस्ता
डिल्डो आपि की चत
ू में अंदर बाहर करने लगा.

मैं अपनी जगह से उठा और आपि की पीछे अपनी पोजीशन सेट करके ऐसे बैठा की मेरा जिस्म आपि के
जिस्म से टच ना हो. मैं अपने लंड को हाथ में पकड़ कर आपि की चूत के क़रीब लाया और बिलाल को
इशारा किया की वो 3 बार ऐसे ही अंदर बाहर करे और चौथी बार इससे रीदम में डिल्डो बाहर निकाल कर
उपर कर ले.

बिलाल को अब अंदाज़ा हो गया था की मैं क्या करने लगा हूँ और उसकी ऑ ंखों में जोश सा भर गया
था. उसने मेरी बात समझ की ऑ ंखों से इशारा किया की वो तैयार है . मैंने अपनी पोजीशन को सेट किया
और अपना लंड आपि की चूत की जितने नज़दीक ले जा सकता था ले आया लेकिन इस बात का ख्याल
रखा की लंड आपि की चूत से टच ना हो. फिर मैंने हाथ की इशारे से बिलाल को रे डी का इशारा किया
और खुद भी तैयार हो गया लंड अंदर डालने के लिए.
जैसे मैंने बिलाल को समझाया था उसी तरह उसने 3 बार इसी रीदम में लंड अंदर बाहर किया और चौथी
बार में बाहर निकाल कर उपर उठा लिए. जैसे ही बिलाल ने डिल्डो बाहर निकाला मैंने एक सेकंड लगाये
बगैर अपना लंड अंदर धकेल किया.

आपि उस वक़्त एक लम्हे को तहतक की रूकीं और फिर से लंड चस


ू ने लगी. आपि को इस तब्दीली का
पता नहीं चला था और वो ये ही समझी थीं की डिल्डो ग़लती से बाहर निकल गया था जो मैंने दब
ु ारा
अंदर डाल दिया है . आपि की चूत में मेरा लंड 2 इंच चला गया था. मैं कोशिश कर रहा था की डिल्डो वाला
रीदम क़ायम रखते हूवे ही अपना लंड अंदर बाहर करता रहूँ …

बहुत अजीब सी सिचुएशन थी मेरा लंड चूत की अंदर था लेकिन मैं मज़े को फील नहीं कर पा रहा था
और वो बात ही नहीं थी जो चत
ू में लंड डालने से होनी चाहिये थी. शायद इसकी वजह ये थी की मैंने
आपि की मर्ज़ी की बगैर उनकी चूत में लंड डाला था … शायद आपि की नाराज़गी का ड़र था … या
अपनी सगी बहन की चूत में लंड डालने से गिल्टी का एहसास था … या शायद मेरी पोजीशन ऐसी थी
की मैं अकड़ा हुआ था और कोशिश ये थी की मेरा जिस्म आपि से टच ना हो, रीदम भी क़ायम रहै . इस
लिए मैं अपना बैलेंस बनाये रखने की कोशिश कर रहा था. बहरहाल पता नहीं क्या बात थी की मुझे रत्ती
भर भी मज़ा नहीं फील हो रहा था …

मैंने 4, 5 बार ही अपने लंड को आपि की चूत में अंदर बाहर किया था की एक दम मेरा बैलेंस बिगड़ गया
और मैंने अपने आप को आपि पे गिरने से बचते हूवे हाथ सामने किये जो सीधे आपि की कुल्हों पे पड़े
और कुल्हे नीचे दब गए और इसी झटके की वजह से मेरा लंड भी झटके से आगे बढ़ा और आपि की
चूत की परदे पे मामूली सा दबाव डाल कर रुक गया. आपि ने मेरे हाथों को झटके से अपने कुल्हों पे
पड़ते और अपने पर्दा-इ-बकरात पे लंड के दबाव को मेहसुस किया तो सर उठाकर तक़लीफ़ से कराहते हूवे
कहा, " उफ्फफ्फ्फ़ आराम से करो नाआआ … जंगलीईई … सारा अंदर डालोगे क्या " ये कह कर आपि ने
पीछे दे खा तो मेरी पोजीशन दे खकर उनकी आँखें फटी की फटी रह गयीं और उन्हें अंदाज़ा हुआ की जिस
दबाव को उन्होंने अपनी चूत की परदे पे महसूस किया वो डिल्डो नहीं बल्कि उनके अपने सगे भाई का
लंड था …

तो वो तड़प कर चिल्ला कर बोली, " नहीं … सागरररर … खबीस मैंने तुम्हें मना किया था … बाहर
निकालओ जल्दीए " ये कह कर आपि उठने के लिए ज़ोर लगाने लगी लेकिन मेरे हाथों ने आपि की
कुल्हों को दबा रखा था और मेरा पूरा वज़न आपि पर था. जिसकी वजह से वो उठने में कामियाब ना हो
सकी.
मैंने अपना वज़न आपि के उपर से हटाते हूवे कहा, " कुछ नहीं होता आपि … दे खो आप को कितना
ज़्यादा मज़ा आ रहा हां"

आपि ने भर्राई हूई आवाज़ में कहा, " नहीं सागर इसे निकालो फ़ौरन और मुझे उठने दो … नहीं तो मैं
तम्
ु हें ज़िन्दगी भर माफ़ नहीं करूंगी याद रखना " और ये कहते ही उन्होंने फूट फूट कर रूना शरू
ु कर
दिया …

ये हकीकत है की मैं अपनी बहन की ऑ ंखों में कभी ऑ ंसू नहीं दे ख सकता हूँ … सेक्स या हं सी मज़ाक़
अपनी जगह लेकिन आपि की आँखें नम दे खकर मेरा दिल बंद होने लगता है . आपि अभी जिस तरह फूट
की रोई थीं मैं दं ग रह गया. आपि को इस तरह रोता दे खकर मेरे हवस ही गुम हो गए. मैंने तड़प कर
अपना लंड आपि की चत
ू से बाहर खींचा तो फ़ौरन बिलाल के उपर से उठ़कर साइड पे बैठ गयीं.

" अच्छा आपि प्लीज रोयो मत … मैं कुछ नहीं कर रहा प्लीज आपि चुप हो जाओ … " मैं ये कह कर
आगे बढ़ा और आपि को अपनी बाहों में ले लिया. आपि ने एक झटका मारा और मुझे धक्का दे कर मेरी
बाहों की हल्क़े से निकल गयीं और शदीद रोते हूवे कहा, " सागर मैंने मना किया था ना तुम्हें … क्यों मुझे
इस तरह ज़लील करते हो … मैं खुद ये करना चाहती हूँ लेकिन मैं इसके लिए अभी तैयार नहीं हूँ …"

मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या कहूं … इतनी शिद्दत से आपि को रोते हूवे मैंने पहले कभी
नहीं दे खा था … मेरी समझ में कुछ ना आया तो मैंने आपि को बाहों में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाते
हूवे कहा, " आपि आई लव … मैं आप से बहुत मोहब्बत करता हूँ … मैं कभी ये नहीं चाहता की आप को
कोई तक़लीफ़ दं ू या आपकी मर्ज़ी की खिलाफ कुछ करूं … बस पता नहीं क्या हो गया था मुझे … प्लीज
आपि माफ् कर दो मझ
ु े " ये कह कर मैंने आपि को फिर बाहों में लेना चाहा तो उन्होंने चिल्ला कर गुस्से
से कहा, " नाहीईई नहा सागरररर … दरू रहो मझ
ु से " और रोते रोते ही खड़ी हो कर अपने कपड़े उठाने
लगी.

बिलाल इस सारी सिचुएशन पे बिल्कुल खामोश और गुम सूम सा बैठा था. उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी
की आपि को या मुझे कुछ कहे या आगे बढ़े और आपि को इस तरह बेक़ाबू दे ख कर मैंने भी दब
ु ारा
उनसे कुछ कहने की हिमत नहीं की और उनसे दरू खड़ा ख़ामोशी से उन्हें क़मीज़ सलवार पेहेनते दे खता
रहा.

आपि अभी भी रो रही थीं और उनकी ऑ ंखों से ज़ारो क़तार ऑ ंसू जारी थे. रोते रोते ही आपि ने अपनी
सलवार पेहनी और फिर क़मीज़ से अपने ऑ ंसू साफ करके क़मीज़ पहन ली लेकिन ना तो आपि की ऑ ंसू
रुक रहे थे और ना ही उनकी हिचकियां कम हो रही थीं. उन्होंने अपना स्कार्फ़ सिर्फ पे बांधे और ब्रा से
अपनी ऑ ंखों को रगड़ते हमारी तरफ नज़र डाले बगैर रूम से बाहर चली गयीं …

आपि के जाने के बाद भी मैं कुछ दे र वैसे ही गुम सूम सा खड़ा रहा की एक दम से बिलाल की आवाज़
आई " भाई … भाई आप्पि तो रो … " मैंने बिलाल की पक
ु ारने से घम
ू कर उससे दे खा और उसकी बात
काटकर बोला, " यार अब तो मेरा दिमाग़ मत चोदने लग जाना … मैं वैसे ही बहुत टें शन में हूँ " मैं ये
बोलकर ऐसे ही नंगा ही अपने बिस्तर की तरफ चल दिया तो बिलाल सहमी हूवे से अंदाज़ में बोला, "
भाई आप मझ
ु पे क्यों गस्
ु सा हो रहे है … मेरा क्या क़ुसरू है " मझ
ु े बिलाल की आवाज़ इस वक़्त ज़हर
लग रही थी. उसके दब
ु ारा बोलने पे मैंने गुस्से से उससे दे खा तो उसकी मासूम और मायूस सुरत दे खकर
मेरा गुस्सा एक दम से झाग की तरह बैठ गया और मैंने सोचा यार वाकया ही इस बेचारे का क्या क़ुसूर
है …

मैंने उससे कुछ नहीं कहा और बिस्तर पर लेट कर अपनी ऑ ंखों पे बाज़ू रख लिया … तक़रीबन 5,7
मिनट बाद मझ
ु े कैमरा याद आया तो मैंने ऑ ंखों से बाज़ू हटा कर बिलाल को दे खा वो अभी तक वहां
ज़मीं पे ही बैठा था लेकिन अब उसका चेहरा नार्मल नज़र आ रहा था और शायद वो कुछ दे र पहले की
आपि के साथ गुज़ारे लम्हात में खोया हुआ था … मैंने उसके चेहरे पे नज़र जमाये हूवे ही उससे आवाज़
दी " बिलाललल " उसने चौंक कर मझ
ु े दे खा और बोला " जीए भाई"

" यार वो कैमरा सिंगार मेज़ पे पड़ा है उसकी रिकॉर्डिंग ऑफ कर दे " ये कहते ही मैंने वापस अपनी
ऑ ंखों पे बाज़ू रखा ही था की बिलाल की ख़श
ु ी में डूबी आवाज़ आई, " वौवव भाई मव
ू ी बनाई है आप ने
सारी"

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आपि के बारे में सोचने लगा … मुझे अपने आप पे शदीद
गुस्सा आ रहा था की मैंने अपनी फूल जैसी बहन को इतना रुलाया … क्या था की अगर मैं अपने उपर
कंट्रोल करता और ये सब ना करता … लेकिन मैं भी क्या कर सकता था उस वक़्त मेरा ज़हन कुछ
सोचने समझने की क़ाबिल ही नहीं रहा था … यार मर्द को अपने उपर इतना तो कंट्रोल होना ही चाहिये

मैं ऐसी ही मुतज़ाद सोचो से लड़ रहा था की आहिस्ता आहिस्ता बिस्तर की हिलने से मेरे ख़यालात का
सिलसिला टूटा और मैंने आँखें खोलकर दे खा तो बिलाल बिस्तर की दस
ू री तरफ लेट कर कैमरा हाथ में
पकड़े हमारी मूवी दे खते हूवे मुठ मार रहा था … मैंने चिड़ चिड़े लेहजे में कहा, " यार क्या चुदाई है बिलाल
… सोने दे मुझे … जा बाथरूम में जा कर दे ख वहां ही मुठ मार " मेरे इस तरह बोलने से बिलाल ड़र की
फ़ौरन उठते हूवे बोला " अच्छा भाई सॉरी … आप सो जाओ " और बाथरूम की तरफ चल दिया.
बिलाल की जाते ही मैंने दब
ु ारा अपनी आँखें बंद कर लीं … मेरा ज़हन बहुत उलझा हुआ था. आपि की
रोने की वजह से दिल पे अजीब सा बोझ तरी था और उन्ही सोचो से लड़ते झगड़ते जाने कब मुझे नींद
आ गई.

अपनी गर्दन पे शदीद तक़लीफ़ की एहसास से मेरे मंह


ु से एक सिसकि निकलि बेसख्ता ही मेरे हाथ
अपनी गर्दन की तरफ उठे और बालों की गुच्छे में उलझ गए. मैंने हड़बड़ा कर ऑ ंख खोली तो एक जिस्म
को अपने उपर झुका पाया …

वो जिस्म मेरे उपर बैठा था और उसने अपने दांत मेरी गर्दन में गढ़ रखे थे की जैसे मेरा ख़न
ू पीना
चाहता हो. मैंने उसकी सर की बालों को जकड़ा और ज़रा ताक़त से उपर की तरफ खींचा तो मेरी नज़र
उसके चेहरे पे पड़ी. वो चेहरा तो मेरी बहन का ही था … लेकिन अजीब सी हालत में … आपि की बाल
बिखरे और उलझे हूवे थे. दांतों को आपस में मज़बूती से भींच रखा था और आँखें लाल सुर्ख हो रही थीं
की जैसे उन में ख़ून उतरा हुआ हो … उनकी बाल मेरे हाथ में जकड़े थे और ताक़त से खींचने की वजह
से उनके चेहरे पे क-र-ब का तवातरू भी पैदा हो गया और गल
ु ाबी रं गत लाली में तबदील हो कर एक
खौफ़नाक तवातूर पेश कर रही थी … वो चेहरा आपि का नहीं बल्कि किसी खौफ़नाक छुर्रैल का चेहरा था

मेरी नींद मुकम्मल तोर पर ग़ायब हो चुकी थी … मैं है रत से बूत बना आपि के चेहरे को ही दे खा जा
रहा था और मेरी गिरफ्त उनकी बालों पे ढीली पर चुकी थी … आपि ने अपने सर पे रखे मेरे हाथ को
कलाई से पकड़ा और झटके से अपने बालों से अलग करके सीधी बैठीं तो आपि की सीने की बड़े बड़े
उभारों और खड़े गुलाबी चूंचियों पे मेरी नज़र पड़ी जो आज कुछ ज़्यादा ही तने हूवे मेहसुस हो रहे थे
और उसी वक़्त मुझ पे ये वाज़े हुआ की आपि बिल्कुल नंगी है … कुछ दे र पेहले आपि की नंगे उभार मेरे
सीने से ही दबाया हूवे थे लेकिन तक़लीफ़ की एहसास और फिर आपि की अजीब हालत की नज़रें में खो
कर मैं इस पे तवज्जो नहीं दे सका था.

आपि मेरी राणों पे सीधी बैठी कुछ दे र तक अपनी खंख्


ु वार ऑ ंखों से मझ
ु े दे खती रहीं … फिर उन्होंने
अपने दोनों हाथ मेरे पेट पे रखकर ज़ोर दिया और नीचे उतर कर मेरे सुकड़े हूवे लंड को पकड़ा और पूरी
ताक़त से खींचते हूवे भर्राई आवाज़ में बोली, " उठो सागर जल्दी"

आपि की आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी गहरे कँु वें से आ रही हो … आपि ने मुझे लंड से पकड़ कर खींचा
और लंड पे पड़ने वाले खिंचाव की तहत मैं बेसख्ता खिंचता हुआ सा खड़ा हो गया … मेरे खड़े होने पे भी
आपि ने मेरे लंड को अपने हाथ से नहीं छोड़ा और इसी तरह मज़बूती से लंड को पकड़े अपने क़दम आगे
बढ़ा दिया और मैं सिहर ज़दा सी कैफ़ियत में कुछ बोले कुछ पुछे बिना ही आपि के पीछे घिसटने लगा …
आपि की लम्बे बालों का उपरी हिस्सा खुला था लेकिन बालों की नीचले हिस्से पे चोटियों सी अभी भी
क़ायम थी … उपरी घने बाल बिखरे होने की वजह से उनकी कमर मुकम्मल तोर पे छुप गयी थी लेकिन
जहाँ से आपि की कुल्हों की गोलाई शुरू होती थी वहां से बालों की चोटियों भी शुरू हो जाती थी, जो आपि
की खूबसूरत गोल गोल कुल्हों की दरमियानी लकीर में किसी बल खाते साँप की तरह आती और लकीर
की दरमियानी हिस्से को चूम की कभी दांए और कभी दांए कुल्हे की ऊँचाइयों को चाटने निकल जाती.

आपि रूम का दरवाज़ा खोलने को रूकीं तो मैंने दे खा की उनकी सलवार वहां ही दरवाज़े के पास पड़ी थी.
जो मेरे पास बिस्तर पे आने से पेहले आपि ने उतार फेंकी होगी. मैं आपि की क़मीज़ की तलाश में
सलवार के आस पास नज़र दौड़ा ही रहा था की मेरा जिस्म झटके से आगे बढ़ा.

आपि दरवाज़ा खोल चक


ु ी थी और उन्होंने बाहर निकालते हूवे मेरे लंड को झटके से खींचा था, मेरा क़दम
खुद बखुद ही आगे को उठ़ गया और इतनी दे र में पहली बार मेरी ज़ुबाँ खुली, " यार आपि कहाँ ले जा
रही हो कुछ बोलो तो " आपि ने रुक कर एक नज़र मुझे दे खा और बोलि " स्टडी रूम में " और ये कह
कर फिर चलना शरू
ु कर दिया …

मैं भी आपि की पीछे ही क़दम उठाने लगा तो सीढ़ीयों के पास मेरे पांव में कोई कपड़ा उलझा और मैंने
गिरते गिरते सँभाल कर दे खा तो वो आपि की क़मीज़ थी … मेरे ज़हन ने फ़ौरन कहा मतलब आपि ने
सीढ़ीयां चढ़ते चढ़ते क़मीज़ उतारी होगी और उपर पहुंचते ही सर से निकल फेंकी होगी … मेरे लड़खड़ाने
पर भी आपि रुकी नहीं थीं और मैं सँभाल कर फिर से उनकी पीछे चलता हुआ स्टडी रूम में दाखिल हो
गया … स्टडी रूम की दरवाज़े के पास ही मेरे बिल्कुल सामने खड़े होकर आपि ने लंड को छोड़ा और
आहिस्तगी से अपने दोनों हाथ उठाकर मेरे सीने पे रख दिया और अपनी गर्दन को दांए साइड पे झुकाते
हूवे नरमी से हथेलियाँ मेरे सीने पे फेरने लगी …

आपि ने 3-4 बार उपर से नीचे और नीचे से उपर मेरे सीने को सेहलाते हूवे हाथ फेरे और फिर दोनों
हथेलियाँ गर्दन से थोड़ी नीचे रखते हूवे ताक़त से मुझे धक्का दिया और घूम कर दरवाज़ा लॉक करने
लगी … आपि की इस अचानक धक्के से मैं लड़खड़ाता हुआ 2 क़दम पीछे हट गया …

आपि दरवाज़ा लॉक करके घम


ू ीं और लाल सर्ख
ु ऑ ंखों से मझ
ु े दे खने लगी … यकायक ही आपि के अंगारे
ऑ ंखों में एक चमक सी पैदा हूई और किसी शैरनी की अंदाज़ में वो मझ
ु पे झपट पड़ी … मैं आपि की
इस ग़ैर मुत्तवका हमले के लिए तैयार नहीं था … इस लिए जब उनका बदन मेरे जिस्म से टकराया तो
मैं संभल ना पाया और लड़खड़ाता हुआ पीछे की ओर गिरा और आपि भी मझ
ु ी पे छायी हूवे मेरे साथ ही
नीचे आ गिरीं लेकिन फ़र्श पे दबीज़ कारपेट होने की वजह से मुझे चोट नहीं लगी थी लेकिन आपि को
तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी की मैं मरूं या जिऊं …
आपि मेरे उपर छा सी गयीं … मैं झटके से ज़मीं पे गिरा जिसकी वजह से एक लम्हे के लिए मेरा लंड (
जो उस वक़्त कुछ ढीला कुछ अकड़ा सा था ) भी उपर पेट की ओर झटके से उठा था और उसी वक़्त
आपि मेरे उपर बैठीं तो मेरे लंड का नीचला हिस्सा मुकम्मल तोर पे आपि की चूत की लकीर में फिट
हुआ और मेरी कमर ज़मीं से टच हो गयी …

आपि ने अपनी चूत की लकीर में मेरे लंड को दबाये हूवे अपने घुटने मेरे जिस्म की इर्द गिर्द नीचे
कारपेट पे टिकाये और अपने सीने की उभारों को मेरे सीने पे दबा की वेह्शी अंदाज़ में मेरी गर्दन को
चम
ु ने और दांतों से काटने लगी … मझ
ु े आपि की दांतों से तक़लीफ़ भी हो रही थी लेकिन हैरत अंगेज़
तोर पे इस तक़लीफ़ से मुझे अंजानी सी लज़्ज़त मेहसुस होने लगी और मेरा लंड आपि की चूत के नीचे
दबाया हूवे ही सख्त होना शुरू हो गया … आपि ने दांतों से काटने के साथ साथ अब मेरे कांधों, बाजूओं,
सीने ग़रज़ जहाँ जहाँ उनका हाथ पहुंच सकता था वहां से नोचना शुरू कर दिया था और अपने तेज़
नाखूनों से खराशें दे ती जा रही थीं …

मैंने आपि को अपने उपर से हटाने की कोशिश नहीं की … ये अज़ीयत ये तक़लीफ़ मेरे अंदर जैसे बिजली
सी भरती जा रही थी और मेरा अंदाज़ भी वेह्शियना होता चला गया … मैंने भी आपि की कमर पे दोनों
हाथ रखे और अपने नाख़ून उनकी नर्म - ओ - नाज़ुक बदन में गढ़ कर नीचे की तरफ घसीट दिया …
आपि ने फ़ौरन मेरी गर्दन से दांत हटा कर चेहरा उपर उठाया … उनके मंह
ु से अज़ीयत और लज़्ज़त से
मिली जुली एक कराह निकली

" आअऊऊफफफफ " … मैंने इस मोके का फ़ायदा उठा कर फ़ौरन अपना हाथ आपि की गर्दन पे रखा और
गर्दन जकड़ते हूवे उनको थोड़ा और उपर को उठा दिया …

आपि के उपर उठने से उनकी सीने की नमो नाज़ुक लेकिन खड़े उभार मेरे सामने आ गए … मैंने एक
लम्हा जाया किये बगैर अपना सर उठाया और उनकी दांए उभार को अपने मुंह में भर कर अपने दांतों से
दबा दिया … आपि ने तड़प कर एक अज़ीयत ज़दा आआह्ह्ह्ह भरी, अपनी कोहनी को मेरे सर के पास ही
ज़मीं पे टिकाये और हाथ से मेरे सर की बाल जकड़े और दस
ू रे हाथ की मठ्ठ
ु ी में मेरे सीने की बाल पकड़
कर खींचने लगी.

हम दोनों बहन भाई की ही हालत अजीब सी हो गयी थी … जो की मैं सही तरह लफ़्ज़ों में बयां नहीं कर
सकता. बस एक दिवानगी थी, वेह्शी पन था, है वानियत थी, जूनून था, शैतानियत थी हमारे अंदाज़ में …
मेरी बहन मेरे लंड को अपनी चूत के नीचे दबाये मेरे सर की बाल खींच रही थीं. दस
ू रे हाथ से मेरे सीने
पे अपने नाख़न
ू गढ़ कर खरोंचती जा रही थीं …
आपि ने मेरे सीने की बाल मुठ्ठी में भर्र कर खींचे तो सीने की बाल टूटने पे मैं तक़लीफ़ से बिलबिला उठा
और आपि को छोड़ ने की बजाये मज़ीद वेह्शी अंदाज़ में उनकी सीने की उभार को मुंह से निकल कर
दोनों उभारों की दरमियानी हिस्से पे दांत गढा दिया … मेरा लंड अब मुकम्मल तोर पे खड़ा हो चुका था
लेकिन वो उपर की तरफ सर उठाये दबा हुआ था. यानि मेरे लंड का उपरी हिस्सा मेरे बालों वाले हिस्से
से चिपके हुआ था, लंड की नोक मेरी नाभि से कुछ ही नीचे टच थी और मेरे लंड का नीचला हिस्सा
आपि की चत
ू की लकीर में कुछ इस तरहा बैठा हुआ था की आपि की चत
ू की लिप्स ने मेरे लंड की
दोनों साइड्स को भी ढं क दिया था …

आपि की चूत से बेहते गाढ़े चिकने पानी ने मेरे पूरे लंड को तर कर दिया था और आपि के हिलने से
उनकी चूत मेरे लंड पे ही फिसल फिसल जाती, जब आगे फिसलने पे उनकी चूत का दाना मेरे लंड की
नोक से टच होता तो उनके बदन में झुर झुर्री सी उठ़ती और आपि लरज़ कर मज़ीद वेह्शी अंदाज़ में
अपने दांत और नाख़न
ू को मेरे जिस्म में गढ़ दे तीं …

हम दोनों बहन भाई इसी तरह जन


ू न
ू ी अंदाज़ में एक दस
ू रे को नोचते खसोटते दनि
ु यां - ओ - माफिया से
बेखबर अपने जिस्म ओ रूह को सुकून पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे …

मैंने आपि की सीने की खब


ू सरू त उभारों पे दांत गढ़ने के बाद उनकी गर्दन की नीचले हिस्से को दांतों में
दबाया तो आपि ने भी उसी अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दस
ू री साइड पे लाकर मेरे कांधों में दांत
गढ़ दिया. मैं आपि की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन की दोनों कुल्हों
को अपने दोनों हाथों से परू ी ताक़त से नोच कर मख़्
ु तलिफ़ सिमतों मैं ऐसे ज़ोर लगाने लगा जैसे दोनों
कुल्हों को बीच से चीर दे ना चाहता हूँ.

" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सागरररररररर " आपि ने एक चीख़ नुमा सिसकि भरी और तड़प कर उपर को उठीं …
आपि ने अपना उपरी शरीर उपर उठा लिए लेकिन नीचला शरीर ना उठा सकीं. क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती
से उनकी कुल्हों को नोच कर चीर रखा था जिसकी वजह से उनका नीचला शरीर मेरे जिस्म पे दब की
रह गया था … मेरे यंू आपि की कुल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ हो रही थी वो उनके चेहरे से अयां
थी … आपि ने अपने कुल्हों को छुड़ाने के लिए तड़पते हूवे उपर उठने की कोशिश करते हूवे ज़ोर लगा
लगाया और मुस्तक़िल कराहते हूवे कहा, " ईईईईई सागर .. बहुत दर्द हो रहा है प्लीसीईए " ये इस पूरे
टाइम में पहली बार थी की आपि के मंह
ु से कोई अलफ़ाज़ निकले हो … और इस बात ने मझ
ु पे ये भी
वाज़े कर दिया की ऐसे कुल्हे चीरे जाने से आपि को वाकया ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है … मैंने
अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की तो आपि का नीचला शरीर उपर को उठा और उसके साथ ही
उनकी चत
ू के नीचे दबा मेरा लंड भी आपि की चत
ू से रगड़ खाता हुआ सीधा हो गया …
मेरे लंड की नोक आपि की चूत की ठीक एंट्रेंस पे 2 सेकंड को रुकी और मैंने अपने हाथों से आपि की
कुल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हे मेरे लंड की नोक आपि की चूत की अंदर
उतार गयी …

जैसे ही मेरे लंड की नोक आपि की चत


ू की अंदर घस
ु ी तो उससे मेहसस
ु करते ही आपि के मंह
ु से एक
तेज़ लज़्ज़त भरी “”आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह”” निकलि और उन्होंने आँखें बंद करते हूवे अपनी गर्दन पीछे को
ढलका दी उसके साथ ही जैसे वक्त सा छा गया, तूफ़ान जैसे थम सा गया हो … हर चीज़ कुछ लम्हों के
लिए ठहर सी गयी …

मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से आपि की कुल्हों की खब


ू सूरत गोलाईयों को छोड़ा और हाथ उनकी
जिस्म से चिपकाये हूवे ही धीरे से आपि की कमर पर ले आया और आपि ने भी एक बेख़द
ु ी की आलम
में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पे रख दिया …

अब पोजीशन ये थी की मैं सीधे चित कमर ज़मीं पे टिकाये लेटा हुआ था … मैंने आपि की कमर को
दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था … मेरी कमर की दोनों तरफ में आपि की घुटने ज़मीं पे टीके
हूवे थे और वो मेरे हाथों पे अपने हाथ रखे .. गर्दन पीछे को ढलकाये हूवे लम्बी लम्बी साँसें ले रही थीं …
चंद लम्हे ऐसे ही बीत गए फिर आपि ने अपनी गर्दन को साइड से घम
ु ते हूवे सीधे किया और आँखें बंद
रखते हूवे ही धीमी आवाज़ में बोली, " सागरररर मुझे लिटा दो नीचे"

ये कहते ही आपि अपनी दांए और मेरी दांए साइड पे थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीं पे टिका
कर सीधी होने लगीं … आपि की साइड पे झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा उपर हुआ और आपि की
चूत में अपने लंड का मामूली सा दबाव क़ायम रखते हूवे ही उनके साथ ही घूमने लगा, मैंने लंड की
दबाव का इतना ख्याल रखा था की लंड मज़ीद अंदर भी ना जा सका और चूत से निकलने भी ना पाये.
थोड़ा टाइम लगा लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लंड आपि की चूत की अंदर रखने में कामयाब हो
गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए …

अब आपि अपनी आँखें बंद किये ज़मीं पे कमर के बल सीधी लेटी थीं. उनकी घुटने मुड़े हुए थे लेकिन
पांव ज़मीं पे ही रखे हूवे थे, मैं अब आपि के उपर आ चक
ु ा था और उनकी टांगों की दरमियाँ में लेटा
हुआ था. मेरी टाँगें पीछे के जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पे था और हाथ आपि की
बगल के पास ज़मीं पे टीके हूवे थे लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टेबल फील कर रहा था … मैं
अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मझ
ु े पता था की मेरा लंड आपि की चूत से बाहर
निकल आयेगा और मैं ये नहीं चाहता था …
मैंने आपि को पुकारा, " आपिईई"

तो उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा, " होऊणंन्न"

" आपि थोड़ी टाँगें और खोलो और पांव ज़मीं से उठा लो " मैंने ये कहा तो आपि ने अपने पांव हवा में
उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हूवे जितनी टाँगें खोल सकती थीं खोल दीं …

मैं बारी बारी अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुए आगे लाया और आपि की रानों के नीचे से गुज़र कर आगे
कर लिए. अब मेरे हाथों से वज़न ख़तम हो गया था. मैंने अपने दोनों हाथ उठाये और आपि की सीने की
उभारों पे रख दिया और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हूवे मसलने लगा. कुछ दे र बाद आपि ने आँखें खोलीं.
उनकी आँखें लज़्ज़त और कामवासना की नशे से बोझल सी हो रही थीं … मैंने आपि की ऑ ंखों में दे खते
दे खते ही अपने लंड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया तो आपि के मुंह से एक सिसकि निकल गयी और
उनके चेहरे पे हलकी सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे. आपि ने अपने दोनों हाथों की उं गलियों को
कारपेट में गढ़ दिया और परू ी ताक़त से कारपेट को जकड़ लिया.

मैंने ऑ ंखों ही ऑ ंखों में सवाल किया, " आपि की तम


ु तैयार हो " और आपि की ऑ ंखों ने ही हां में जवाब
दिया,

मैं ने आहिस्तगी से अपने लंड का दबाव आपि की चत


ू पे बढ़ाना शरू
ु किया तो उनके चेहरे पे तक़लीफ़ के
आसार बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबी पन तक़लीफ़ की एहसास से लाली में तबदील होने लगा. मैंने
दबाव बढ़ाते बढ़ाते ही अपने उपरी जिस्म को झुकाये और आपि की ऑ ंखों में दे खते हूवे ही अपने होंठ
आपि के होठों के क़रीब ले गया. मेरे लंड की नोक पे अब आपि की चत
ू की परदे की सख्ती वाज़े महसस

हो रही थी. आपि की साँसें भी बहुत तेज़ हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी, आपि
के जिस्म में हल्का सा लरज़ा तरी था.

मैंने अपने हाथ आपि की सीने की उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में
थाम कर आपि के होठों को अपने होठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लंड को ज़रा ताक़त से
झटका दिया और मेरा लंड आपि की चत
ू की परदे को फाड़ता हुआ अंदर दाखिल हो गया …

आपि के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसख्ता ही उनकी हाथ कारपेट से उठे और मेरी कमर
पे आए और आपि ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गढ़ दिया. आपि तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी
चीख़ को रोकने में तो कामियाब हो गयी थीं लेकिन तक़लीफ़ की शिद्दत का एहसास उनके चेहरे से साफ
ज़ाहिर था उन्होंने अपनी ऑ ंखों को सख्ती से भींच रखा था इसके बावजूद उनके गाल आँसूओं से तर हो
गए थे …
मैंने आपि के होठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को बे हरक़त रखते हूवे आपि के चेहरे पे
ही नज़रें जमाये रखीं … मेरा लंड तक़रीबन 4 इंच से थोड़ा ज़्यादा ही आपि की चूत में उतार चुका था
लेकिन अभी क़रीब 2 इंच बाक़ी था … मैं थोड़ी दे र आपि के चेहरे का जाइज़ा लेता रहा और जब उनका
चेहरा और ऑ ंखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ तो मैंने एक झटका और मार कर जड़ तक अपना लंड
आपि की चूत में उतार दिया …

मेरे पहले झटके के लिए तो आपि ज़ेहनी तोर पे तैयार थीं उन्होंने परदे की फ़टने की शदीद तक़लीफ़ को
ज़रा मश्कि
ु ल से लेकिन सेहेन कर ही लिया था लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था … इस
झटके की तक़लीफ़ से बेसख्ता उन्होंने अपना सर उपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हूवे
फ़ौरन ही साइड पे कर लिया … आपि के मुंह से घुटी घुटी आवाज़ निकली

" आआआककककह्हह्हह्हह्ह " और उनका मुंह मेरे काँधे से टकराया और उन्होंने अपने दांत मेरे काँधे में
गढ़ दिया …

आपि को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी वो तो थी ही लेकिन उनकी दांत मेरे काँधे में गड़ाये थे और नाख़ून
कमर में खूप से गए थे. जिसे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी लेकिन उस तक़लीफ़ पे लज़्ज़त का
एहसास बहुत भारी था … वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ मेहसस
ु किया जा सकता है
बयां नहीं किया जा सकता … आपि की चूत अंदर से इतनी गरम हो रही थी की मुझे ऐसा मेहसुस हुआ
जैसे मैंने किसी तंदरू में अपना लंड डाला हुआ हो … आपि की चूत ने मेरे लंड को हर तरफ से बहुत
मज़बत
ू ी से जकड़ रखा था. चंद लम्हे मज़ीद इसी तरह गज़
ु र गए. अब आपि की दांतों की गिरफ्त और
नाखूनों की जकड़न दोनों ही ढीली पड़ गयी थीं. मैंने आहिस्तगी से अपने लंड को क़रीब 2 इंच पीछे की
तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अंदर को धकेल दिया …

आपि के मुंह से हलकी सी " आह्ह्ह्ह " खारिज हो गई लेकिन इस आह्ह्ह में तक़लीफ़ का तवातूर नहीं
बल्कि मज़े का एहसास था और आपि ने आहिस्तगी से अपना सर वापस ज़मीं पे टिका दिया. उनकी
आँखें अभी भी बंद थीं. मैंने अब की बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नरमी से लंड को क़रीब 3 इंच
तक बाहर खींच और फिर दब
ु ारा अंदर धकेल दिया और लगातार ये ही अमल करना जारी रखा लेकिन
अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया …

मेरा लंड जब बाहर निकलता तो आपि अपने जिस्म को ज़रा ढीला छोड़ती और जब मैं वापस लंड अंदर
धकेलता तो उनकी जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, आपि के चेहरे पे हलकी सी मुस्कान आ जाती
उनका मुंह थोड़ा सा खुलता और एक लज़्ज़त भरी नरम सी आह्ह्ह खारिज करते हूवे वो मेरी कमर को
सेहला दे तीं … मैं हर बार इसी तरह नरमी से लंड आपि की चूत में अंदर बाहर करता और हर बार आपि
लज़्ज़त भरी आह्ह्ह खारिज करतीं. मैंने 12, 13 बार लंड अंदर बाहर किया और फिर पूरा लंड अंदर जड़
तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पे शरारती सी मुस्कान सजाये, नज़रें आपि के चेहरे पे जमा दीं.

आपि कुछ दे र तक ला शयोरि तोर पे लंड अंदर बाहर होने का इन्तज़ार करती रहीं और कोई हरकत ना
होने पे उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं. आपि की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पे पड़ी और सिचए
ु शन
की नज़ाक़त का अंदाज़ा होते ही बेसख्ता उनकी चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने
मुस्कुराकर अपनी नज़रें मेरी नज़रों से हटा लीं और चेहरा दस
ू री तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं …
आपि की इस अदा को दे ख कर मैं शरारत से बा आवाज़ हँस दिया … तो आपि ने आँखें खोले बिना ही
मसनूई गुस्से और शर्म से परु लेहजे में कहा, " क्या है कमीने अपना काम करो ना मेरी तरफ क्या दे ख
रहे हो " मैं आपि की बात सुनकर एक बार फिर हँसा और कहा, " अच्छा मेरी तरफ दे खो तो सही ना …
अब क्यों शर्मा रही हो. अब तो … " मैंने अपना जुमला अधोरा ही छोड़ दिया … आपि की हालत में कोई
तबदीली नहीं हूई मैंने कुछ दे र इन्तज़ार किया और फिर शरारत और संजीदगी की दरमियाँ की लेहजे में
कहा, " क्या हुआ आपि अगर अच्छा नहीं लग रहा तो निकल लूं बाहर"

आपि ने अपनी टांगों को मज़ीद उपर उठाया और मेरे कुल्हों से थोड़ा उपर कमर पे अपने पांव क्रॉस
करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजूओं को मेरी गर्दन में डाल कर मझ
ु े नीचे अपने
चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घम
ु ते हूवे बोली, " अब निकल कर तो दे खो ज़रा … मैं
तुम्हारी बोटी बोटी नहीं नोच लूंगी " और अपनी बात कहते ही आपि ने मेरे होठों को अपने होठों में ले
लिया और मेरा नीचला होंठ चूसने लगीं. मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब दे ती जा रही थी. आपि ने होंठ चूसना
शुरू किये तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नरमी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लंड अंदर
बाहर करना शुरू कर दिया …

ये मेरी ज़िन्दगी में पहला मौका था की मैं किसी चत


ू की नरमी व गर्मी को अपने लंड पे मेहसस
ु कर
रहा था … अजीब सी लज़्ज़त थी अजीब सा सरूर था. पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर ये लज़्ज़त छुपी
होती है या इसके सुरूर इस लिए बहुत ज़्यादा था की ये कोई आम चूत नहीं बल्कि मेरी सगी बहन की
चत
ू थी और बहन भी ऐसी की जो इन्तिहाई हसीं थी. जिस्से दे खकर लड़कियां भी रशक से वाह्ह कह उठ़ें .

अब आपि की तक़लीफ़ तक़रीबन ना होने की बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तोर पे इस लज़्ज़त में


डूबी चक
ु ी थीं … और इसका सबत
ू थी हर झटके पे आपि के मंह
ु से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकि.

मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया जिससे मेरा मज़ा तो दग


ू ना हुआ ही लेकिन आपि भी मशहूर हो
उठीं. उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और ख़ामोशी और नशे से भरी नज़रों से मेरी ऑ ंखों में दे खते हूवे
अपने हाथ से मेरा दांए हाथ पकड़ा और उस हाथ को उठाकर अपने सीने की उभार पे रखते हूवे बोली, "
आह्ह्ह सागर इन्हें भी दबाव लेकिन नरमी से " मैंने लंड अंदर बाहर करना जारी रखा और आपि की
ऑ ंखों में दे खते हूवे ही मुस्कुराकर अपने हाथ से आपि की चूंचियों को चुटकी में पकड़ते हूवे कहा, " आपि
मज़ा आ रहा है अब … तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना"

आपि ने भी मस्
ु कुराकर कहा, " बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा है सागर. मेरा दिल चाह रहा है वक़्त बस यहाँ
ही थाम जाये और तुम हमेशा इसी तरह अपना लंड मेरी चूत में ऐसे ही अंदर बाहर करते रहो …"

मैंने कहा, " फ़िक्र ना करो आपि … मैं हूँ ना अपनी बेहना के लिए. जब भी कहूंगी मैं हमेशा तम्
ु हारे लिए
हाज़िर रहूंगा"

" सागर मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरा कंु वारा पन ख़तम करने वाला लंड … मेरी चूत की सैर करने
वाला पहला हथियार मेरे भाई, मेरे अपने सगे भाई का होगा " आपि ने ये बात कही लेकिन उनकी लेहजे
में कोई पछतावा या शर्मिन्दगी बिल्कुल भी नहीं थी.

मैंने आपि की बात सुनकर कहा, " आपि मेरी तो ज़िन्दगी की सब से बड़ी ख्वाहिश ही ये थी मेरा लंड
जिस चत
ू में पहली दफ़ा जाये वो मेरी अपनी सगी बहन की चत
ू हो. मेरी प्यारी सी आपि की चत
ू हो "
मेरे अपने मुंह से ये अलफ़ाज़ा अदा हूवे तो मुझ पे इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे
अपना होश खो कर बहुत तेज़ तेज़ झटके मारना शुरू कर दिया … तो आपि घुटी घुटी आवाज़ में बोली, "
आह्ह्ह्ह नहीं सागर प्लीज आहठीस … आहिस्ता … उफ़ दर्द होता है आह्ह्ह आहिस्ता करो प्लीज"

मैंने तेज़ तेज़ 6,7 झटके ही मारे थे की आपि की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आयी और मैं एक
दम ठहर सा गया … मेरी साँसें बहुत तेज़ चलने लगी थी. मैं रुका तो आपि ने अपने जिस्म को ढीला
छोड़ा और मेरे सर की पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने की उभारों पे दबा कर कहा, " सागर
इन्हें चूसो … इस से तक़लीफ़ का एहसास कम होता है "

मैंने आपि की दांए वाले उभार की चूंचि अपने मुंह में लिया और बेसख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो
गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला की जब आप का लंड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ
में रखना तक़रीबन ना मम
ु कीन हो जाता है .

मझ
ु े ये मेहसस
ु होने लगा कर मैं अब ज़्यादा दे र तक जमा नहीं रह पाऊंगा … मेरे झटकों की रफ़्तार खद

बा खुद ही मज़ीद तेज़ होने लगी. अब आपि भी मेरे झटकों को फुल एन्जॉय कर रही थीं. शायद उनकी
मामूली तक़लीफ़ पे चूत का मज़ा और चूंचियां चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था. या शायद वो मेरे
मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं … इस लिए वो अब मुझे तेज़ झटकों से मना भी
नहीं कर रही थीं …
लेकिन अब आपि ने मेरे झटकों के साथ साथ अपने कुल्हों को भी हरकत दे ना शुरू कर दिया था. जब
मेरा लंड जड़ तक आपि की चूत में दाखिल होता तो सामने से आपि भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं
और मेरी कमर पे अपने पांव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर दे तीं और
उनके मुंह से आह्ह्ह निकल जाती. मैं अब अपनी मंजिल की बहुत क़रीब पहुंच चुका था. लम्हा बा लम्हा
मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिस्चार्ज होना नहीं चाहता था
मैंने बहुत ज़्यादा मश्कि
ु ल से अपने ज़हन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकंड के लिए
मेरा ज़हन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लंड बाहर निकल लिया …

आपि ने फ़ौरन झझ
ुं ला की ज़रा तेज़ आवाज़ में कहा, " रुक क्यों गए हूऊओऊ … प्लीज सागर अंदर डालो
ना वापस … मैं झाररने वाली हूँ … डालूऊऊ नहा"

आपि की बात सुनतै ही मैंने दोबारा लंड अंदर डाला और मेरे तीसरे झटके पे ही आपि का जिस्म अकड़ना
शुरू हुआ और मुझे साफ मेहसुस हुआ की आपि की चूत ने अंदर से मेरे लंड पे अपनी गिरफ्त मज़ीद
मज़बत
ू कर ली है जैसे चत
ू को ड़र हो की कहीं लंड दब
ु ारा भाग ना चला जाये … अभी मेरे मज़ीद 6,7
झटके ही हूवे थे की आपि का जिस्म फुल अकड़ गया और उन्होंने मेरे सर को अपनी पूरी ताक़त से
अपने उभार पे दबा दिया और अब मुझे बहुत वाज़े मेहसुस होने लगा कर आपि की चूत मेरे लंड को
भींच रही है और फिर छोड़ रही है … और उस वक़्त ही मझ
ु े पहली बार ये बात मालम
ू हो गई की जब
लड़की डिस्चार्ज होती है तो उसकी चूत इस तरह भींचती है लंड को की कभी सिकोड़ती है तो कभी लूज
होती है …

आपि आह्हें भरते हूवे झड़ गयीं लेकिन मैंने अपने झटकों पे कोई फ़र्क़ नहीं आने दिया और अगले चंद
ही झटकों में मेरा जिस्म भी शदीद तनाव में आया. मेरा लंड इतना सख्त हो गया जैसे लोहा हो और फिर
जैसे मेरे परू ी बदन से लहरें सी उठ़कर लंड में जमा होना शरू
ु हूई और मेरे मंह
ु से एक तेज़ आह्हः के
साथ सिर्फ एक जुमला निकला,

" अह्ह्ह्ह्ह्ह ऊऊऊऊ मैं गया … अप्प्पी मैं … मैं गयाआआआ " और इसके साथ ही मेरा लंड फट पड़ा
और झटकों झटकों के साथ पानी की फुवार आपि की चूत की अंदर ही बरसाने लगा … मेरा जिस्म ढीला
पड़ गया और मैं आपि की सीने की दोनों उभारों की दरमियाँ अपना चेहरा फेंके … आँखें बंद किये तेज़
तेज़ साँसें ले कर अपने हवस बहाल कर ने लगा …

मुझे ऐसा फील हो रहा था जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं रही है और मैं कभी उठ़ नहीं पाऊंगा …
मुझे अपने अंदर इतनी ताक़त भी नहीं मेहसुस हो रही थी की अपनी आँखें खोल सकँू . ज़हन में भी बस
एक काला अन्धेरा सा पर्दा छा गया था …
जब मेरे हवस बहाल हूवे और मैं कुछ मेहसुस करने की क़ाबिल हुआ तो मझ
ु े अपनी हालत का अंदाज़ा
हुआ. मेरा लंड अभी भी आपि की चूत की अंदर ही था और फुल बैठा तो नहीं लेकिन अब क़द्रे ढीला पड़
गया था. मेरे हाथ ढीली ढाले से अंदाज़ में आपि के जिस्म की दोनों अतराफ़ कारपेट पे मुड़ी तुड़ी हालत
में पड़े थे … मेरा दांए गाल आपि की सीने की दोनों उभारों की दरमिआन में था.

आपि ने अपनी टांगों को अभी भी उसी तरह मेरी कमर पे क्रॉस कर रखा था लेकिन उनकी गिरफ्त अब
ढीली थी. आपि ने एक हाथ से मेरे गाल को अपनी हथेली में भर रखा था और दस
ू रा हाथ मेरे बालों में
फेरते सर सेहला रही थीं. मैंने अपनी आँखें खोलीं और काफी ताक़त सर्फ़ करके अपना सर उठाया. मैंने
आपि के चेहरे को दे खा उनके चेहरे पे गेहरे सुकून और शदीद मोहब्बत के आसार थे मेरे लिए. आपि ने
फ़िक्र मन्दी से कहा, " सागर क्या हलकट हो जाती है तुम्हारी … बिल्कुल ही बेजान हो जाती हो!"

" कुछ नहीं आपि बस पहली बार है तो ऐसा तो होता ही है …"

" नहीं सागर तुम्हारी हालत हमेशा ही ऐसी हो जाती है ."

" तो आपि आप के साथ जब से तब ऐसी हालत हो रही है ना … क्योंकि जो जो कुछ आप के साथ किया
है मैंने वो सब पहली पहली बार ही किया है ना"

" अच्छा बहस को छोड़ो अब उठ़ो काफी दे र हो गयी है कुछ ही दे र में सब उठ़ जायेंगे " आपि ने ये कहा
और मेरे कांधों पे हाथ रखकर उठाने लगी. मैं सीधे हुआ तो मेरा लंड हलकी सी पुछ्क की आवाज़ से
आपि की चूत से बाहर निकल आया … मेरा लंड आपि की ख़न
ू और अपनी और उनकी जवानी की रस से
सफेद हो रहा था. मैंने एक नज़र आपि की चत
ू पे डाली तो वहां भी मझ
ु े कुछ ऐसा ही मंज़र नज़र आया
… मैंने अंजानी सी लज़्ज़त और जीत की ख़ुशी अपने चेहरे पे लिए आपि को कहा, " आपि उठ़कर दे खो
ज़रा अपना हाल " आपि उठ़कर बैठीं एक नज़र मेरे लंड पे डाली और फिर अपनी टांगों को मज़ीद खोल
कर अपनी चत
ू को दे खने लगीं और फिर बोली, " कितने ज़ालिम भाई हो तम
ु कितना सारा ख़न
ू निकल
दिया अपनी बहन का"

मैंने हं स कर जवाब दिया, " फ़िक्र ना करो मेरी प्यारी बेहना जी! अगली बार ख़न
ू नहीं निकलेगा! बस वो ही
निकलेगा जिसे तुम्हें मज़ा आता है … वैसे आपि मुझसे ज़्यादा मज़ा तो तुम को आया है … मैंने एक
मिनट के लिए बाहर क्या निकाला … कैसी आग लग गयी थी ना? " फिर मैंने आपि की नक़ल उतारते हूवे
चेहरा बिगर बिगाड़ कर कहा, " है ईईईई सागर निकाल क्यों लिया … अंदर डालओ
ू नहा वापस!"

आपि एक दम से शर्म से लाल होती हूई चिड़ कर बोली, " बकवास मत करो … उस वक़्त मुझसे बिल्कुल
कंट्रोल नहीं हो रहा था अछाअअअ " आपि ने बात ख़तम की तो मैंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही
था की आपि ने एक दम शदीद परे शानी से मेरे काँधे की तरफ हाथ बढ़ा कर कहा, " ये क्या हुआ है
सागर?? " मैंने अपने काँधे को दे खा तो वहां से गोश्त जैसे उखड़ सा गया था जिसमें से खन
ू रिस रहा था
… मैंने आपि की तरफ दे खे बगैर अपनी कमर को घुमा कर आपि के सामने किया और कहा, " जी ये
आपकी दांतों से हुआ था और ज़रा कमर भी दे खो यहाँ आपकी नाखूनों ने क्या गुल खिलाया हुआ है !"

" या मेरे खुदाए … या … सागररररररर " आपि ने बहुत ज़्यादा फ़िक्र मन्दी से ये अलफ़ाज़ कहें , तो मैं
उनकी तरफ से परे शान हो गया और पलट कर उनकी तरफ दे खा तो आपि अपने मुंह पे हाथ रखे
एकटक मेरे ज़ख्मों को दे ख रही थीं. उनके चेहरे पे शदीद परे शानी के आसार थे और फटी फटी ऑ ंखों में
ऑ ंसू आ गए थे … मैंने आपि की हालत दे खी तो फ़ौरन उनको अपने गले लगाने के लिए आगे बढ़ते हूवे
कहा, " अरे कुछ नहीं है आपि … छोटे मोटे ज़ख़्म है परे शानी की क्या बात इस में !"

मैंने अपनी बात ख़तम करके आपि को अपनी बाहों में लेना चाहा तो उन्होंने मेरे सीने पे हाथ रखकर
पीछे धकेल दिया और रोते हूवे कहा, " ये … या मैंने क्या है … सागर … कितना दर्द हो रहा होगा ना
तम्
ु हें !"

मैंने अब ज़बर्दस्ती आपि को अपनी बाहों में भरा, उनकी कमर को सहलाते और उनके चेहरे को अपने
सीने में दबाते हूवे कहा, " नहीं ना आपि कुछ भी नहीं हो रहा … क्यों परे शान होती हो … छोटे से ज़ख़्म है
और सच्ची बात कहूं तो इस छोटी सी तक़लीफ़ में भी बहुत ज़्यादा लज़्ज़त है … और ये ज़ख़्म मुझे इस
लिए आये है की मेरी बहन अपनी तक़लीफ़ बर्दाश्त कर रही थी जो मैंने दी थी. तो मझ
ु े तो ये ज़खम
बहुत अज़ीज़ है . प्लीज आप परे शान ना हो"

मैं इसी तरह कुछ दे र आपि की कमर को सेहलता और तस्सली दे ता रहा तो उनका मूड भी बदल गया
और वो रिलैक्स फील करने लगी. तो मैंने हं स कर कहा, " चलो आपि अब अम्मी वग़ैरा भी उठने वाले
होंगे, जावो आप अपना ज़ख़्म और ख़न
ू साफ करो और मैं अपना कर लेता हूँ"

आपि ने भी है की मझ
ु े दे खा और मेरे होठों पे एक किस करके खड़ी हो गयीं. मैं भी उनके साथ खड़ा हुआ
तो आपि दरवाज़े की तरफ बढ़ते हूवे बोलीं.

" सागर इन ज़ख्मों पे एंटीसेप्टिक ज़रूर लगा लेना … अम्मी उठने वाली होंगीं वरना मैं ही लगा कर
जाती"

मैंने कहा, " अरे जावो ना बाबा परे शान क्यों होती हो … कुछ भी नहीं हुआ है मुझे … बेफ़िक्र रहो और
अपने कपड़े बाहर से उठा लो और पहन कर ही जाना नीचे"
आपि ने कहा, " हाँ तो पहन कर ही जाऊंगी कोई ऐसे नंगी ही तो नहीं जाऊंगी ना नीचे"

आपि ये कह कर बाहर निकल गयीं. मैंने एक नज़र कारपेट को दे खा तो कारपेट मरून होने की वजह से
बहुत गौर से दे खने पे मुझे वहां खन
ू की चंद धब्बे नज़र आये. मैंने किसी कपड़े की तलाश में आस पास
नज़र दौड़ाई तो कोई कपड़ा ऐसा ना नज़र आया की जिससे मैं ये साफ कर सकँू … मैं बाहर निकला तो
आपि अपनी सलवार पहन चुकी थीं और अब क़मीज़ पहन रही थीं …

मैंने आपि को दे खकर कहा, " आपि वो कारपेट पे खन


ू की धब्बे है यार वो … " मैंने अभी इतना ही कहा
था तो आपि मेरी बात काटकर बोली, " हां वो मैं पहले ही दे ख चुकी हूँ तुम जाओ अपने रूम में वो मैं
साफ कर दं ग
ू ी"

मैंने आपि की बात सुनकर सोचा यार बहन हो तो ऐसी की हर बात का ख्याल रखती है … मैंने कहा, "
चलो ठीक है आपि मैं जाता हूँ ज़रा फ्रेश हूँ लूं … " ये कह कर मैं अपने दरवाज़े पे पहुंचा तो आपि ने
आवाज़ दी " सागरररर बात सुनो " मैं रुक कर आपि की तरफ घूमा तो वो अपने कपड़े पहन चुकी थीं
आपि मेरे पास आयीं और मेरे काँधे की ज़ख़्म पे प्यार से हाथ फेरा और फिर मेरे होठों को चूम की
शरारत से कहा, " सागर याद है जब तुम ने मेरी टांगों की बीच में थप्पड़ मार कर बदला लिया था जब
मझ
ु े में सिस चल रहे थे और पॅड होने की वजह से मझ
ु े कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा था तम्
ु हारे थप्पड़ का याद है
वो दिन"

मैंने कुछ ना समझ आने वाले लेहजे में जवाब दिया, " हां याद है मुझे … क्यों वो बात क्यों याद करवा
रही हो"

आपि ने अपने नीचले होंठ को दांतों में दबा कर कटा और बोली, " उस दिन मैंने तुमसे कहा था की मैंने
भी तुमसे एक बात का बदला लेना है … मैं सही टाइम पर ही बदला लूंगी अभी नहीं. दे खो शायद वो
टाइम आ जाये और हो सकता है की ऐसा टाइम कभी ना आये … याद है मेरा ये जम
ु ला??"

मैंने कहा, " हां याद है मुझे, की आप ने ऐसा कहा था"

तो आपि ने शरारत से भरी एक गेहरी नज़र मेरे चेहरे पे डाली और कहा, " जब मैंने तुम्हारी टांगों की
बीच में मारा था ना तो उस वक़्त तम
ु ने गस्
ु से में मझ
ु े गाली दी थी तम
ु ने थप्पड़ खाते ही चिल्ला कर
कहा था " बहन चोद आपिईई " … उस गाली का बदला लेना रहता था … और वो बदला मैं अब लूंगी क्यों
की अब टाइम आ गया …

और फिर आपि हं सते हूवे बोली, " मैं नहीं तु म खु द हो बहन चोद … समझेयीयी " ये बोलकर आपि सीढीयों की
तरफ चल दीं और मैं वहीं दरवाज़े पे खड़ा बे चारा सा मुं ह ले कर अपना कान खु जाने लगा …

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