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म हा सं ा म

अंितम यु

िशवे सूयवंशी
कॉपीराइट © 2022 िशवे सूयवंशी

सवािधकार सुरि त

यह उप यास पूणतया का पिनक है। इसका कसी ि या घटना से कोई स ब ध नह है? इस कहानी का उ े य कसी
धम या सं दाय क भावना को आहत प च ं ाने का भी नह है। य द उप यास म कसी थान या घटना क जानकारी
दी गयी है तो वह मा उप यास को कौतूहल वधक व मनोरं जक बनाने के िलए क गयी है।

इस पु तक का कोई भी भाग लेखक क िलिखत अनुमित के िबना, पुन ाि णाली म पुन पा दत या सं हीत नह
कया जा सकता या इले ॉिनक, मैकेिनकल, फोटोकॉपी, रकॉ डग, या कसी भी प म अ यथा प से संचा रत नह
कया जा सकता है।
सामि याँ

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चैपटर-22
लेखक के बारे म
लेखक क कलम से
चल कु डलं ू सुने ं िवशालं। स ाननं नीलकं ठं दयालं॥
मृगाधीशचमा बरं मु डमालं । ि यं शंकरं सवनाथं भजािम॥
“अथात िजनके कान म कु डल िहल रहे ह, सुंद र ुकु टी और िवशाल ने ह, जो स मुख , नीलक ठ
और दयालु ह, संह चम का व धारण कए और मु डमाला पहने ह, उन सबके यारे और सबके नाथ परम िशव
को म नम कार करता ँ। “
दो त इ ह कथन के साथ, म िशवे सूयवंशी अपनी नई पु तक
‘महासं ाम’ के ‘लेखक य कॉलम’ पर आपका वागत करता ँ। ‘महासं ाम’
नामक यह पु तक मेरे ारा िलखी ई, ‘ रं ग ऑफ अटलां टस’ सीरीज क
आठव व अंितम पु तक है।
दो त , आिखरकार एक महागाथा का अंत हो गया। इसी के साथ मेरे
सपन का पहला पड़ाव पार हो गया। जी हां ये सपने ही तो थे, जो क मने
25 वष पहले अपनी पलक पर संजोये थे। यह एक ऐसा महा कथानक था,
िजससे मेरे सपन क दुिनया म, एक नये आयाम का उदय होना था और
यक न मािनये क यह कथानक मेरे िलये, एक साथ कई आयाम खोलकर बैठ
गया? इस ृंखला को िलखते समय, म कई बार लड़खड़ाया और िह मत भी
हार बैठा, परं तु हर अगली सुबह, सूय क करण ने हमेशा मुझे आशा क
नई रोशनी दी। इस संदभ म म आपके सामने, अपनी एक घटना शेयर करना
चाहता ँ। आ यूं क एक दन कसी तकनीक खराबी के कारण, मेरा
लैपटाप अचानक से खराब हो गया और मेरे ारा िलखी, एक पु तक के 7
चैपटर वतः ही िडलीट हो गये। यहाँ पर म आपको बता दूँ क िलखे ए
चैपटस को दोबारा िलखना, इससे यादा क कारी कु छ भी नह होता? पर
कहते ह ना क जब अ छा सोचगे, तो सदैव अ छा ही होगा। मेरे साथ भी
कु छ ऐसा ही आ, िडलीट ए चैपटस दोबारा िलखने के बाद, पहले से भी
बेहतर हो गये। तब मुझे लगा क शायद ई र ने मेरे पाठक के सम , कु छ
अ छा परोसने हेतु ही, मुझसे वह चैपटर िडलीट कराये ह गे।
“कभी पलक पे िझलिमलाकर सपन का िबखर जाना,
कभी मोितय का मु कु राकर एक नई माला बनाना,
यही तो एक अ छी कथा व कलमकार क िनशानी है,
श द से तराशकर, यही बात तो आप तक प ंचानी है।”
दो त इस पूरी ृंखला के दौरान, मुझे आप सभी पाठक के हजार से
भी यादा मैसेजेस ा ए। म उन सभी लोग का दल से शु गुजार ँ,
िज ह ने इस ृंखला को िलखते समय, कसी ना कसी कार से मुझे सहयोग
कया? दो त म आज यहां अपने एक ऐसे ही पाठक िम का िववरण शेयर
करना चा ंगा, िज ह ने मुझे आज यह पृ िलखने के िलये े रत कया। मेरे
उन िम का नाम है ी िविपन पांडे जी, जो क देवभूिम उ राखंड के
हल ानी शहर से ह और उ राखंड ओपन यूिनव सटी म सीिनयर एकाउं ट
ऑ फसर के पद पर कायरत ह। आ यूँ क म उस दन अपनी इस पु तक को
पूण कर, इस ‘लेखक य कॉलम’ को िलखने के िलये िवचार कर रहा था। म
अपने इस लेखक य कॉलम म अपने पाठक से कु छ नया शेयर करना चाहता
था। परं तु काफ देर तक सोचने के बाद भी जब मुझे कोई बेहतर िवचार नह
आया? तो म थक कर अपनी मेल चेक करने लगा। उसी समय मुझे िविपन
पांडे जी का िलखा आ एक मेल दखाई दया, िजसम उ ह ने अपने बारे म
बताते ए, अपने िवचार को भी कया था। इस मेल म िविपन पांडे जी
ने अपनी एक छोटी सी लाइ ेरी का भी िज कया। उनके इस मेल को पढ़ते
ए अचानक से मेरे सामने मेरे जीवन के भी कु छ ल ह याद आ गये। बस यही
सोच मने िविपन जी क मेल का उ र दया और फर एक नये उ साह से इस
लेखक य कॉलम को िलखने लगा। म इस ेरणा से िविपन पांडे जी सिहत उन
सभी लोग को ध यवाद करता ं, जो क कसी ना कसी प म मेरी लेखनी
के िलये उ रदाई रहे ह? तो आइये दो त अब म आपके सम अपने कु छ
उन ल ह को शेयर करता ं, जो इस कथा ृंखला के दौरान मुझे अनुभव
ए।
बात आज से लगभग 25 वष पहले क है। म वयं भी उस समय म
पु तक पढ़ने का दीवाना आ करता था। उस समय मेरे पास भी पु तक क
एक लाइ ेरी आ करती थी, िजसम ब त से छोटे -बड़े लेखक क पु तक
लगी रहती थ । कहािनय को पढ़कर अपने दो त के साथ कहािनय क
समी ा करना मुझे भी ब त पसंद था। उस समय भी दल म एक क सी
उठती थी क म कभी लेखन से जुड़ा, तो ऐसी कहािनयां िलखूंगा। पर तु
सोचते-सोचते कतना समय बीत गया, पता ही ना चला? जंदगी ने कब
बचपन के गिलयारे से, पैसे के पीछे भागना िसखा दया? मालूम ही ना आ।
शौक भी अब ज रत क भीड़ म खो सी गयी थी। हाँ मगर उन दन ही इस
कथा ृंखला के कु छ प को अपनी डायरी म िलखकर िछपा दया था।
परं तु 2 वष पहले अचानक से एक सू म वायरस ने सभी को अपने
घर म बंद कर दया। अचानक से समय इतना मेहरबान हो गया क समय
ही समय नजर आने लगा। फर एक दन सफाई के दौरान मेरी खुिशय क
डायरी मुझे फर से दखाई दे गई। पुराने प को पलटते समय, अचानक से
वही पुराना िझलिमल वाब पुनः मेरी पलक पर आकर बैठ गया। अब समय
भी था और वाब भी। फर या था आनन फानन बैठ गये पुराने टू टे ए
तार को जोड़ने म। अब जब तक वायरस गया, तब तक मेरी डायरी के
िबखरे सपन ने एक पु तक का आकार ले िलया, िजसका नाम था- "सन
राइ जंग"।
थोड़ी सी मुि कल और आसमान छू ते उ साह ने अमेजान पर इस
पु तक को कािशत भी कर दया। उस समय मुझे ऐसी कोई आशा नह थी?
क इस कथा ृंखला को म इतना आगे ले जाकर पूण भी क ँ गा। पर कहते ह
ना क "होनी होत बलवान"। बस उसके बाद मुझे कु छ पाठक के अ छे
मैसेजेस और कम स आने लगे। िजसने इस सीरीज का दूसरा भाग
'अटलां टस' िलखने म मेरी ब त मदद क । इसी बीच अमेजान पर ई एक
ितयोिगता 'पेन टू पि लश' म हजार पु तक के म य 'अटलां टस' को टॉप
5 म चुन िलया गया, िजसने क 'मायावन' िलखने के िलये मुझे नई ेरणा
दी। अब पाठक के लगातार आ रही ित या ने मुझे िमत कर दया।
अब म यह नह समझ पा रहा था क अपनी पुरानी नौकरी को ज़ारी रखूं या
फर अपने सपन को पंख लगाकर उड़ने दूं। य द म अपनी नौकरी को ज़ारी
रखते ए, िलखता तो येक पु तक के म य 4 से 5 माह का समय अंतराल
रहता और य द म अपने सपन को उड़ने देता, तो म अपने प रवार क
ज रत को कै से पूरा करता? इस कशमकश म मेरे प रवार ने मेरा साथ
दया, िजसके तहत म अपनी नौकरी को छोड़ पूरी त मयता से इस कथा
ृंखला को पूण करने म लग गया। अब मने अगले 4 माह म ज दी-ज दी
'ितिल मा' व 'देवशि ' पु तक को कािशत कर दया। तब तक पाठक क
असीम सराहनाएं, मुझे ा होनी शु हो गई थ । इस बीच सूरज पॉके ट
बु स ने मेरी इस कथा ृंखला का 'पेपरबैक' काशन भी शु कर दया। अब
'काला मोती' का लेखन काय शु हो चुका था, परं तु नौकरी छोड़े 1 वष हो
जाने के कारण प रवार क छोटी-छोटी ज रत को पूरा करने म परे शानी
आने लगी थी। अब सम या ने िवकराल प धारण कर िलया क या तो म
फर से कह नौकरी वाइन करके अ य हंदी लेखक क तरह पाट टाइम म
लेखन काय क ँ ? या फर प रवार क ज रत को दर कनार कर, अपने एक
सफल लेखक बनने का इं तज़ार क ँ ? गौर फरमाइयेगा क सफल लेखक का
ता पय लेखन काय के पैसे से घर चलाने से है। बहरहाल पा रवा रक
परे शािनय क वजह से मैने फर से नौकरी वाइन कर ली। पर अब मने
लेखन काय का एक नया समय िनकाला और वह समय था, रात के 11 बजे से
लेकर रात के 3 बजे तक। माना क इस समय अंतराल म मुझे यादा न द
नह िमलती, पर इतना अव य था, क मेरे पाठक को इस कथा ृंखला क
अ य पु तक अव य िमल ग । इस कार धीरे -धीरे 'काला मोती' व 'देवयु '
का काशन आ। आज जब महासं ाम पु तक पूण हो गई, तो दल को ब त
सुकून िमल रहा है। ऐसा लग रहा है क कम से कम एक ृंखला तो पूण हो
गई।
इस ृंखला क कु छ पु तक क काशन ितिथ को लेकर, कई बार मने
अपने पाठक को िनराश भी कया। पाठक सोचते रहे क कै से लेखक ह?
अपनी टाइम लाइन पर पु तक भी कािशत नह कर पा रहे, परं तु यहाँ म
आपको बताना चाहता ँ, क म इस पु तक को अिधकतम 1.20 लाख श द
म िलखना चाहता था। परं तु येक दृ य िलखते समय, जाने कै से मेरे श द
क गठरी ि गुिणत होने लगी? कोई भी पा अपने दृ य को ज दी समेटता
दखाई ही नह दया? मुझे लगा क कह ज दी िलखने के च र म, इस कथा
ृंखला का अंत बुरा ना हो जाये? और म जानता ँ क अंत भला तो सब
भला। बस इसिलये मने इस पु तक को कािशत करने म कह भी ज दी नह
दखाई? िजसका प रणाम यह आ क इस पु तक म, श द क सं या
लगभग 1.80 लाख तक प ंच गई, जो क साधारण अव था म 2 पु तक के
बराबर थी। अब यह बात तो पढ़ने के बाद आप ही बतायगे क यह पु तक
कस कार बन पड़ी है?
ल ज़ गीत िलखते ह, तो हम भी गुनगुनाते रहते ह,
पंि य क िखड़क से, झांक कर मु कु राते रहते ह,
कलम, दवात, याही अब कहाँ उनका जमाना है,
अलफाज क खोल के गठरी, नया सुनाते रहते ह ।”
मेरे ब त से पाठक ने मुझे सोशल मीिडया पर यादा एि टव रहने
क सलाह दी है। उनक इस सलाह का ब त-ब त शु या। आगे भिव य म
कोिशश क ँ गा क सोशल मीिडया पर अिधक से अिधक दखाई दूँ। दो त
ज दी ही आप मेरी इस ृंखला को ‘KUKU FM’ पर ऑिडयो के मा यम से
भी सुन सकगे, जो क मेरे िलये अगला मील का प थर सािबत हो सकता है।
याह अंधेर म एक दीप जलाये रखना,
मुि कल दौर म बस साथ िनभाये रखना,
कागज पर दौड़ाता र ँगा क पना के घोड़े,
आप अपना यार व आशीवाद बनाये रखना।”
दो त इस कथा क शु आत ‘सन राइ जंग’ पु तक नामक एक तेज
मडर िम ी से ई, जो क ‘अटलां टस’ पु तक म रह य के एक संसार म
वेश कर गई। ‘मायावन’ व ‘ितिल मा’ पु तक म इस कथानक का सामना
कु छ द शि य से आ? फर ‘देवशि ’ व ‘काला मोती’ पु तक म
कथानक ने अंत र क दुिनया म कदम रखते ए, कु छ ऐसे पा को
दखाया? जो क ीक या हंद ू देवी-देवताा से जुड़े थे। देवयु से यह
कथानक पूणतया पृ वी क गु शि य को दखाते ए, महासं ाम तक जा
प ंची। तो य द आप देख तो इस कथानक ने ब त से रं ग बदले ह और मेरे
लेखन को भी अनेक चुनौितयां दी ह। इसिलये म आपसे अपने फे सबुक पेज
के मा यम से यह पूछना चाहता ँ क या मुझे इस फटे सी िवषय के अलावा
अ य िवषय पर भी पु तक िलखनी चािहये? आपके उ र का म अपने
फे सबुक पेज पर इं तजार क ँ गा।
“क ी िम ी ँ, जरा संभाले रखना,
एक दन कोिशश क भ ी म पक जाऊंगा।”
दो त मेरी नई पु तक क काशन ितिथ के िलये, आप मेरे फे सबुक
पेज को लाइक या फॉलो कर सकते ह, िजसक डीटे स आपको नीचे िमल
जायेगी-
फे सबुक पेजः @shivendrasuryavanshitheauthor
तो फर तुरंत इस पु तक को पढ़ना शु क रये और इसे पढ़ने के बाद
मुझे र ू या कमट के मा यम से इस पु तक के बारे म अव य सूिचत कर।
आपक ित या क ती ा म .......

आपका दो त
िशवे सूयवंशी
◆ ◆ ◆
ा थन
देवता और दै य के यु म, देवता को हािन से बचाने के िलये,
महादेव ने ‘नागदंत कथा’ का सृजन कया। यही नागदंत कथा आगे जाकर
‘समु -मंथन’ का पयाय बनी और इसी समु -मंथन के प ात्, उससे िनकले
‘हलाहल’ से, एक द पु ष ‘नीलाभ’ क उ पि ई। महादेव ने इस
नागदंत कथा क सुर ा का भार उठाने के िलये, स त व से बनी स पु तक
का िनमाण कया। यह सभी स पु तक पृ वी के अलग-अलग दुगम भाग म
िछपा दी ग ।
ांड अनंत है और इस अनंत ांड म करोड़ -अरब आकाशगंगाएं
ह। इ ह आकाशगंगा म कु छ ह ऐसे भी ह? जहां पर पृ वी क ही भांित
जीवनधारा बहती है। ांड के सृजन का रह य मनु य ही नह , अिपतु
अनंत ांड म िछपे असं य जीव भी जानना चाहते ह। इ ह जीव म से
कु छ अंत र के जीव, ांड का सृजन करने वाली द शि य को लेने के
िलये पृ वी तक आ प ंचे। परं तु इन द शि य क सुर ा का भार ांड
र क के हाथ म था।
कहते ह क महािवनाश के बाद नवसृजन क शु आत होती है और
उस महािवनाश से पहले महासं ाम क पटकथा िलखी जाती है। कु छ ऐसी
ही पटकथा अंत र के जीव और ांड र क के म य िलखी गई, िजससे
एक ऐसे महासं ाम क उ पि ई, िजसने पृ वी के महािवनाश क अंितम
गाथा िलख दी-
1) कौन था ने क? िजसका िवष शेषनाग क वचा को भी झुलसाने क
शि रखता था।
2) च ुराज क उड़ने वाली आँख का या रह य था?
3) कौन थी ग ै न माँ? और वह ग ै न पवत पर य रहती थी?
4) या था समु के अंदर ि थत एक अ भुत रा य ‘भा यनगर’ का
रह य? िजसम अनेक िवशाल मू तयां बनी थ ।
5) वेनेजुएला म ि थत ‘मैराकाइबो’ झील का या रह य था? य
ित दन उस झील म सैकड़ बार आकाशीय िबजली िगरती थी?
6) महादेव ने किणका को कण म बदलने क शि य दी थी?
7) या था उड़ने वाले पवत का रह य? जो न लोक से टकराकर उसे
समा करना चाहता था।
8) या थी पे टॉ स क पंचतारा शि ? िजसने सुयश को कण म
तोड़कर अंत र म िबखेर दया।
9) या था कै लीफो नया क ‘रे स ैक डेथ वैली’ का रह य? जहां जमीन
पर िगरे िवशाल प थर वयं से चलने लगते थे।
10) या सहारा रे िग तान पर बनी िवशाल ‘नीली आँख’ म कोई
रह यमय शि िछपी थी?
11) या आसमान म उ प ए लैक होल ने िहमालय क पूरी बफ को
िपघला दया?
12) या आ जब पृ वी के एक भूभाग म 16.2 रए टर के ल का
महाभूकंप आया?
तो दो त इन सभी के उ र को जानने के िलये आइये पढ़ते ह,
पृ वी के गु थान पर िछपी स पु तक क एक ऐसी महागाथा, िजसने
नीलाभ के ज म का सार ही बदल दया। िजसका नाम है-
“महासं ाम- अंितम यु ”
◆ ◆ ◆
चैपटर-1
ने क

20,053 वष पहले .........


नागधरा रा य, दं ड कार य वन, पूव म य भारत

ना दंडकारगधरा रा य नाग का एक रा य था, जो िवशाल


य वन के पूव भाग म ि थत था। ातःकाल का समय
था, इसिलये दंडकार य वन के अिधकांश बड़े जीव अपने-अपने
घर म सोने के िलये जा चुके थे, परं तु कु छ छोटे जीव जैसे खरगोश,
िगलह रयां आ द उछल-कू द मचा रहे थे। पि य का कलरव भी वातावरण म
गूंज रहा था
ऐसे समय म नागक या नीलांगी अपने हाथ म तीर-धनुष िलये, दबे
पाँव वन म एक ओर बढ़ रही थी। उसके साथ 4 और यो ा नागक याएं भी
थ । यो ा नागक या के पास भी तीर धनुष थे।
इस समय नीलांगी ने गाढ़े नीले रं ग के , पौरािणक भारतीय व
धारण कर रखे थे, िजस पर सुनहरी िबि दयां और रे खाएं थ । माथे पर लंबी
नीली िब दी, कान म वण कु डल एवं वि थत बंधे ए बाल म लगा
सुनहरा कणफू ल, नीलांगी के ि व को कसी सा ा ी सा तीत करा रहे
थे?
नीलांगी के साथ चल रही यो ा ने नीले रं ग के साधारण व पहन
रखे थे।
इन सभी म नीलांगी सबसे आगे थी। इस समय सभी पूरी तरह से
सावधान होकर आगे बढ़ रह थ ।
“नागरानी, हम इस कार कब तक आगे बढ़ते रहगे?” दलपित
नािगका ने फु सफु साते ए नीलांगी से पूछा- “हम तो पता भी नह है क वह
अदृ य जीव, िजसने हमारे सैिनक पर हमला कया, वह गया कस ओर है?
मुझे लगता है क अब हम वापस नागधरा लौट चलना चािहये और उस
अदृ य जीव के अगले हमले क ती ा करनी चािहये। मुझे पूण िव ास है
क अगली बार हम अव य ही उस जीव को पकड़ने म सफल हो जायगे।”
नािगका को बोलते देख, नीलांगी ने अपने ह ठ पर उं गली रखकर
नािगका क ओर देखा और फर उसे अपने पीछे आने का इशारा कया।
तभी दल क एक यो ा का पैर अंजाने म ही एक सूखे प े पर पड़
गया। इसी के साथ वातावरण म प े के चरचराने क जोर क आवाज सुनाई
दी- “चरऽऽऽ चरऽऽऽऽ।”
प क चरचराहट क आवाज सुनते ही सभी अपने थान पर
चुपचाप खड़ी हो ग , परं तु इससे पहले क कोई कु छ समझ पाता? क तभी
एक ओर से कोई नुक ली चीज तेजी से आई और सूखे प पर खड़ी उस
यो ा के गले म घुस गई, िजसके पैर कु छ ण पहले सूखे प े पर पड़े थे।
एक पल म वह नागक या यो ा लहराकर जमीन पर िगर पड़ी।
नीलांगी ने पलटकर उस जमीन पर िगरी यो ा को देखा। उस यो ा
के गले म एक नीले रं ग का नुक ला डंक घुसा आ था, िजसका आकार 3 इं च
के आसपास था। वह यो ा अब मृ यु को ा हो गई थी।
“कोई भी अपनी जगह से िहलना नह ?” नीलांगी ने फु सफु साते ए
कहा- “वह अदृ य जीव हमारे आसपास ही है।“
नीलांगी क बात सुनकर बाक क 3 नागक या यो ा, पूण प से
सतक नजर आने लग । अब सभी के हाथ अपने धनुष क यंचा पर कस
गये, िजस पर पहले से ही एक तीर चढ़ा था।
नीलांगी क नजर तेजी से उस दशा म घूम , िजस दशा से वह डंक
आया था, परं तु नीलांगी को उस दशा म लहराते पेड़ के िसवा कु छ भी
दखाई नह दया?
नीलांगी ने अब बाक के यो ा को पेड़ क ओट म जाने का इशारा
कया, पर जैसे ही एक नागक या ने अपने कदम को िहलाया, हवा म उड़ता
आ एक और नुक ला डंक उस दशा म आया। यह डंक उस नागक या के कं धे
म आकर धँस गया।
परं तु इस बार नीलांगी ने उस डंक के आने क दशा को देख िलया
और िबना एक भी ण गंवाए, उस दशा म एक के बाद एक 3 तीर छोड़
दये।
नीलांगी के 2 तीर तो जाकर एक पेड़ के तने म धँस गये, परं तु एक
तीर जाकर उस अदृ य जीव क पीठ म धँस गया, जो क अपने शरीर का रं ग
पेड़ के तने के समान बनाकर, पेड़ से िचपका आ था।
तीर के लगते ही उस जीव ने एक तेज आवाज िनकाली- “ करऽऽऽऽ
करऽऽऽ।”
अब उस जीव ने फू ल सरीखी अपनी पूंछ से, एक साथ 6-7 डंक सभी
यो ा क ओर उछाल दये। आ य क बात यह थी क उस जीव क पूंछ
से एक डंक के हटते ही, वहाँ पर तुरंत दूसरा डंक नजर आने लग रहा था।
पर इस बार नीलांगी पूरी तरह से तैयार थी। उसने पास आ रहे डंक
को देख, िबजली क फू त दखाते ए सभी डंक पर तीर क बौछार कर
दी।
कमाल क धनु व ा थी नीलांगी के पास। य क नीलांगी के ारा
चलाये गये तीर ने सभी डंक को रा ते म ही ब ध दया।
उधर वह अदृ य जीव उछलकर पेड़ के ऊपर छलांग लगाता, एक
दशा क ओर भागा।
िहलते ए पेड़ के प े और उनसे होने वाली विन को सुनते ए,
नीलांगी ने उस जीव पर तीर क बा रश सी कर दी। नीलांगी के कई तीर
उस जीव को जाकर लगे, पर फर भी वह जीव उछलता-कू दता, फर से
अदृ य हो गया।
सभी कु छ पल म घ टत हो गया और इसके बाद फर से वही
रह यमय स ाटा वातावरण म छा गया।
नीलांगी क आँख उस यो ा के कं धे क ओर ग , िजसके कं धे पर डंक
चुभा आ था। उस यो ा के कं धे के आसपास का े अब नीला पड़ने लगा
था और उस यो ा क आँख बंद होती जा रह थ ।
“इसके कं धे को देखकर लग रहा है क वह जीव हम लोग से भी
यादा िवषा है, इसिलये हम इस जीव से और अिधक सावधान रहने क
आव यकता है।” नीलांगी ने अब नािगका क ओर मुड़ते ए कहा- “नािगका,
इस यो ा को तुरंत उपचार क आव यकता है, इसिलये तुम दोन इस यो ा
को लेकर, तुरंत नागधरा के वै ‘नागवंत’ के पास जाओ। इधर म अके ले ही
उस जीव से िनपटती ँ।”
नीलांगी के श द सुनकर नािगका आ य से भर उठी- “यह आप या
कह रह ह नागरानी? म आपको अके ले उस जीव से टकराने नह भेज
सकती। आपने देखा नह क वह जीव कतना खतरनाक है? अगर आप अके ले
उस जीव को मारने के िलये ग , तो आप ..... मृ यु को भी ा हो सकती ह?
.... ऐसे म म महाराज को या बताऊंगी? नह -नह म आपको अके ले नह
जाने दे सकती। म भी आपके साथ चलूंगी।”
“यह मेरा आदेश है नािगका, तु ह इन दोन यो ा को लेकर यहाँ से
जाना ही होगा। .... और तु ह मेरी चंता करने क कोई आव यकता नह है?
म वयं को सुरि त रखना भली-भांित जानती ँ। इसिलये िवलंब करके मेरे
काय म बाधा मत डालो, नह तो वह अदृ य जीव दूर िनकल जायेगा।”
इतना कहकर नीलांगी, कसी िहरनी के समान उछलती ई,
दंडकार य वन म ओझल हो गई। नीलांगी को जाते देख नािगका ने अपने
िसर को ह का सा झटका दया और दूसरी यो ा के साथ िमलकर घायल
यो ा को उठा िलया। इसके बाद नािगका, नागधरा क ओर चल पड़ी।
उधर नीलांगी दंडकार य वन म लगातार आगे बढ़ रही थी। इस समय
वह पूरी तरह से सावधान थी और अपने चारो ओर देखती ई, सतक भाव से
आगे बढ़ रही थी।
तभी नीलांगी को जमीन पर िगरी नीले रं ग क क कु छ बूंदे
दखाई द ?
नीलांगी ने सावधान मु ा म, झुक कर उस क बूंद को यान से
देखा और फर उसक नजर आगे क ओर चली गई।
“यह तो नीले रं ग का र लग रहा है। लगता है क उस जीव के र
का रं ग नीला है? और वह मेरे चलाए बाण से घायल भी हो गया है।” यह
सोच नीलांगी थोड़ा और आगे बढ़ गई।
आगे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वैसी ही कु छ बूंदे और िगरी ई थ ? जो क
एक दशा क ओर जा रही थ ।
“मुझे इन र क बूंद का पीछा करते ए, उस अदृ य जीव तक
प ंचना होगा।” नीलांगी मन ही मन बुदबुदाई और पुनः र के िनशान को
देखती, दबे कदम से आगे क ओर बढ़ने लगी।
कु छ आगे चलने के बाद नीलांगी को एक ‘कल-कल’ बहते झरने क
आवाज सुनाई देने लगी, जो क कु छ दूरी से आ रही थी?
“अरे ! यह िनशान तो ईव नदी के झरने क ओर जा रहे ह, जहां पर
महादेव का ाचीन मं दर भी है। कहते ह क वह थान नागधरा रा य का
सबसे रह यमई थान है और वहाँ जाने वाला कभी भी वापस नह आता?
.... तो या मुझे क जाना चािहये? ... नह -नह उस जीव के इतना पास
प ंच कर अब कना ठीक नह है और वैसे भी यह दंतकथाएं तो अ यािधक
ाचीन ह। मुझे आगे बढ़ना ही होगा।”
ना जाने कौन सा रह य िछपा था, ईव नदी के उस झरने के पास?
िजसे सोच अचानक से नीलांगी ाकु ल हो उठी थी?
पर कु छ ही देर म नीलांगी ने वयं को संयत कया और सावधान
होकर ईव नदी क ओर बढ़ने लगी।
(आव यक जानकारीः दो त , बीच म रोकने के िलये मा चाहता ँ,
परं तु इस थान पर कु छ जानका रय को देना अ यंत आव यक है, इसिलये
मुझे आपको कहानी के बीच म रोकना पड़ रहा है। दरअसल पुराण म
दंडकार य वन क 2 घटनाएं िलखी ई ह। पहली घटना रामायण काल क
है, िजसम कबंध नामक एक िसरिवहीन रा स का यु भगवान ी राम से
इसी वन म आ था। कहते ह क सूपणखा इसी जंगल क महारानी थी।
दूसरी घटना महाभारत कालीन है, िजसम दुय धन ने भीम को िवषपान
कराकर गंगा नदी म फक दया था। कहते ह क भीम गंगा नदी से होते ए
ईव नदी म प ंचे। ईव नदी का एक िसरा नागलोक जाता था। भीम उसी
रा ते से नागलोक म वेश कर गये थे। आज के समय म दंडकार य वन का
वह भाग म य देश के वं य पवतमाला से होते ए, छ ीसगढ़ व झारख ड
म फै ला है। ईव नदी का वह भाग जहां से होकर भीम ने नागलोक म वेश
कया था, आज के समय म वह भाग छ ीसगढ़ के जसपुर िजले के ‘तपकरा’
जंगल म है। यहाँ पर नागलोक जाने वाली गुफा आज भी है, िजसे एक प थर
से बंद कर दया गया है। इस कार तपकरा का यह जंगल आज भी एक
रह यमई े के प म जाना जाता है, जहां पर भारत क सबसे अिधक
नाग क जाितयां पाई जाती ह। अब आगे .....)
नीलांगी धीरे -धीरे ईव नदी क ओर बढ़ने लगी। धनुष क यंचा पर
उसके हाथ कसे ए थे और उसक तेज िनगाह तेजी से अपने चारो ओर घूम
रही थ ।
कु छ दूरी पर एक ऊंचे से पवत से, तेज झरना िगर रहा था। उस झरने
के नीचे काफ पानी एक हो गया था, जो क एक छोटी सी झील का व प
िलये ए था। यह झील आगे जाकर ईव नदी म िमल रही थी।
नीलांगी सधे कदम से आगे बढ़ रही थी।
धीरे -धीरे िम ी ने प थर का प ले िलया, पर नीली र क बूंद
अभी भी साफ दखाई दे रह थ । कु छ आगे जाने के बाद नीलांगी को र से
सने ए, अपने 3 तीर दखाई दये, जो ईव नदी के पास पड़े थे।
र क बूंदे अब ईव नदी के अंदर जाती ई दखाई दे रह थ ।
“लगता है क वह िविच जीव ईव नदी के अंदर वेश कर गया है।”
नीलांगी ने मन ही मन सोचा- “ऐसी ि थित म मुझे भी अब ईव नदी के अंदर
वेश करना ही होगा। .... पर .... पर मुझे तो यह भी नह पता क वह
िविच जीव जल म ांस ले सकता है या नह ?”
कु छ देर सोचने के बाद नीलांगी ने तीर को अपने तरकश म डाल,
धनुष को अपने कं धे म फं सा िलया। अब नीलांगी ने अपनी कमर म बंधे एक
लंबे फल वाले चाकू को िनकाल िलया और उसे मजबूती से अपने दािहने हाथ
म लेकर ईव नदी के जल म वेश कर गई।
पूण प से जल म वेश करने के बाद नीलांगी ने एक डु बक लगाई
और जल के अंदर अपनी आँख खोलकर देखने लगी।
ईव नदी का जल ह के नीले रं ग का था, फर भी नीलांगी को सबकु छ
साफ-साफ दखाई दे रहा था। नागक या होने के कारण नीलांगी को जल म
साँस लेने म कसी भी कार क परे शानी नह हो रही थी?
तभी अचानक नीलांगी को अपने शरीर पर कु छ िलपटने का अहसास
आ।
एक ण म नीलांगी पीछे पलटी, परं तु तब तक उस िविच जीव क
पूंछ ने नीलांगी के शरीर को अपनी पकड़ म ले िलया। इस समय जल के अंदर
वह िविच जीव िब कु ल साफ दखाई दे रहा था।
वह जीव एक बड़ी सी िछपकली के समान था, परं तु उसक पूंछ
िछपकली से कु छ िभ थी। पूंछ के आिखरी िसरे पर काँटेदार गोला बना था।
इसी गोले से वह जीव डंक फक रहा था।
उस जीव क पूंछ कसी अजगर के समान नीलांगी के शरीर से िलपट
गई? उस जीव क पकड़ इतनी शि शाली थी, क नीलांगी अपने हाथ को
िहला भी नह पा रही थी। परं तु इतनी मजबूत पकड़ के बाद भी नीलांगी ने
अपने हाथ म पकड़ा चाकू नह छोड़ा था।
तभी नीलांगी को अपने गले के पास कु छ िलजिलजा सा महसूस आ।
यह उस िविच जीव क जीभ थी, िजसका मगरम छ के समान चेहरा
नीलांगी के िसर के ठीक पीछे था।
वह िलसिलसी जीभ नीलांगी के गले पर फसलती ई उसके चेहरे क
ओर बढ़ने लगी। नीलांगी को पानी के अंदर भी अपनी गदन पर उस िविच
जीव क साँस का पूण अहसास हो रहा था।
नीलांगी उस जीव क पकड़ से छू टने के िलये छटपटाने लगी, पर
उसक कोई भी कोिशश सफल नह हो पा रही थी?
धीरे -धीरे उस जीव ने अपने मगरम छ के समान खतरनाक जबड़े को,
नीलांगी के िसर क ओर बढ़ाना शु कर दया। इस दृ य को देखकर ऐसा
महसूस हो रहा था, क वह जीव अपने जबड़े से नीलांगी के िसर को खाने क
इ छा रखता है।
ठीक उसी समय नीलांगी क आँख म एक ह का सा प रवतन आ।
अब नीलांगी क आँख कसी नािगन क तरह दखाई देने लग ? इसी
के साथ नीलांगी का शरीर एक िवशाल नािगन के प म प रव तत हो गया।
नीलांगी के नािगन बनते ही उसके हाथ म पकड़ा चाकू वह नदी क सतह
पर िगर गया।
इससे पहले क वह िविच जीव कु छ समझ पाता? क नीलांगी तेजी
से लहराती ई उस िविच जीव के गले म िलपट गई और उसने अपने
नुक ले दाँत को, िविच जीव क गदन पर गड़ा दया।
नीलांगी को लगा था क उसके िवष से वह िविच जीव मारा
जायेगा, परं तु ऐसा आ नह । नीलांगी के िवष का उस जीव पर कोई असर
नह आ?
अब उस जीव ने अपने भयानक पंज से नीलांगी को, अपने शरीर से
हटाकर पानी म दूर फक दया।
नीलांगी कु छ आगे जाकर वापस पलटी। परं तु अब नीलांगी क आँख
के आगे अंधेरा सा छाने लगा।
“यह या? इस िविच जीव का िवष तो उ टा मुझ पर ही चढ़ रहा
है। कौन है यह िविच जीव? और कहाँ से आया इसके पास इतना खतरनाक
िवष? जो क मुझ पर ही चढ़ रहा है? ले कन अब अगर मने देर कया तो यह
जीव अव य ही मुझे मार डालेगा?”
यह सोच नीलांगी ने एक बार पुनः अपनी पूरी शि को समेटा और
नािगन प म ही पानी के अंदर पड़े उस चाकू क ओर लपक ।
नीलांगी को चाकू क ओर झपटते देख, वह जीव नीलांगी क ओर
लपका, परं तु यहाँ पर नीलांगी उस जीव से थोड़ा तेज िनकली।
नीलांगी ने जल क सतह पर पड़े चाकू को अपने फन म दबाया और
लहराती ई उस जीव के पीछे क ओर आ गई।
इससे पहले क वह जीव कु छ समझ पाता? क तभी नीलांगी पुनः
नागक या म प रव तत हो गई और उसने अपने मुंह म पकड़े चाकू को अपने
दािहने हाथ म ले िलया।
एक पल म उस जीव को अपने पीछे कसी खतरे का अहसास हो गया?
और वह पीछे क ओर पलटा, परं तु तब तक देर हो चुक थी। नीलांगी ने
अपने हाथ म थम चाकू का तेज वार उस जीव क गदन पर कर दया।
नीलांगी के इस वार से चाकू का पूरा फल, उस जीव के गले म धँस
गया। अब वह जीव पानी म बुरी तरह से छटपटाने लगा। उसके शरीर से
िनकला नीला र पूरे पानी को िवषा बनाने लगा।
कु छ देर छटपटाने के बाद वह जीव मृ यु क गोद म समा गया। उसका
मृत शरीर अब पानी क सतह पर आ गया।
उस जीव को मरता देख नीलांगी नदी के बाहर क ओर िनकलने चली,
पर नदी के िवषा जल के कारण, अब नीलांगी क साँस ने भी उसका साथ
छोड़ना शु कर दया।
नीलांगी तेजी से नदी के बाहर क ओर तैरने क कोिशश करने लगी,
पर अब यादा देर तक वह अपने हाथ-पैर नह चला सक ।
धीरे -धीरे मूछा उस पर हावी होती चली गई।
परं तु मू छत होने से पहले नीलांगी नदी के कनारे तक प ंचने म
सफल हो गई।
नीलांगी ने कनारे पर पड़े एक प थर को सहारा लेने के िलये हाथ
लगाया और इसी के साथ नीलांगी का िनज व शरीर उसी प थर पर िगर
गया।
एक वीर यो ा, एक नागक या मृ यु को ा हो गई थी, परं तु मरने से
पहले उसने िविच जीव को मारकर अपना ल य ा कर िलया था।
यही तो एक वीरयो ा के शौय क पहचान थी।
नीलांगी के िनि य शरीर को िगरे अभी कु छ ही िमनट ए थे? क
तभी एक िवशाल बाज आसमान से नीलांगी के शरीर के पास उतरा।
जमीन पर पैर रखते ही बाज का प प रव तत हो गया। अब वह
बाज, नागपु ष िनकुं भ के प म दखाई देने लगा।
मनु य का प धारण करते ही, िनकुं भ घुटनो के बल जमीन पर बैठ
गया और नीलांगी के गले के पास हाथ लगाकर देखने लगा। नीलांगी का
शरीर, िवष के कारण नीला पड़ गया था।
नीलांगी को इस हालत म देखने के बाद िनकुं भ काफ घबरा गया।
कु छ ही पल म िनकुं भ को समझ म आ गया क नीलांगी अब इस दुिनया म
नही ह।
“नीलांगीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ।” िनकुं भ, नीलांगी के िसर को अपनी गोद म
रखकर जोर से िच लाया- “तुम मुझे इस कार छोड़ कर नह जा सकती
नीलांगी, तु ह उठना ही होगा। तु ह अपने िनकुं भ के िलये उठना ही होगा।
अरे , हमने एक साथ िजतने व देखे थे, मुझे उ ह पूरा करने का एक अवसर
तो दया होता। उठ जाओ ..... नीलांगी, उठ जाओ .....।”
िनकुं भ क आँख से झर-झर आँसू बह रहे थे। िनकुं भ लगातार अपना
िसर आसमान क ओर उठाकर चीख रहा था। परं तु उस शांत वातावरण म
िनकुं भ क आवाज िसफ, एक ित विन के प म उसे ही सुनाई दे रही थी।
िनकुं भ का दल धीरे -धीरे बैठने लगा। हर अगले पल के साथ वह
अवसाद क अव था म जाने लगा। ना जाने कतनी ही देर तक िनकुं भ इसी
कार से जमीन पर बैठा रोता रहा?
लगभग 10 िमनट के प ात िनकुं भ को अपने कं धे पर, एक हाथ का
पश महसूस आ। एक अंजान हाथ का पश महसूस कर िनकुं भ तेजी से
पीछे पलटा।
िनकुं भ को अपने पीछे एक बूढ़ा खड़ा दखाई दया। उस बूढ़े के िसर के
बाल व दाढ़ी िब कु ल सफे द थे। बूढ़े ने ऊपर से नीचे तक सफे द रं ग के ही व
पहन रखे थे।
बूढ़े के चेहरे पर एक तेज िव मान था, जो एक नजर म उसे देवआत
सरीखा महसूस करा रहा था।
िनकुं भ उस िविच से बूढ़े को देख च क गया, य क इसके पहले
िनकुं भ ने कभी भी उस बूढ़े को नह देखा था?
“आप कौन हो बाबा? और इस भयानक नाग के जंगल म अके ले या
कर रहे हो?” िनकुं भ ने एक ण के िलये रोना छोड़कर उस बूढ़े से पूछ
िलया।
“ या फक पड़ता है क म कौन ँ? और म यहाँ या कर रहा ँ?” उस
बूढ़े ने िनकुं भ क आँख म झांकते ए िविच से अंदाज म कहा- “फक तो
इस बात से पड़ता है क या तुम अपनी पि को पुनः जीिवत करना चाहते
हो?”
बूढ़े के श द सुन िनकुं भ च क गया और यान से उस बूढ़े को देखने
लगा।
“ या? .... या आप ऐसा कर सकते ह?” िनकुं भ के श द खुशी के
कारण िथरकने लगे।
“हां म तु हारी पि को पुनः जीिवत कर सकता ँ, परं तु तु हारी पि
के जीिवत होने के उपरांत तु ह मेरा एक काय करना होगा।” बूढ़े के श द
रह य से भरे थे- “ या तुम मेरे िलये उस काय को करोगे िनकुं भ?”
“म नीलांगी के पुनज वन के िलये कोई भी काय करने के िलये तैयार
ँ?” अब िनकुं भ ने नीलांगी का िसर वह प थर पर रखा और बूढ़े के सामने
हाथ जोड़ते ए बोला- “य द आपने मेरी नीलांगी को पुनज िवत कर दया,
तो म आपको वचन देता ँ, क आपका दया आ काय अव य पूण क ँ गा,
चाहे वह काय कसी भी उ े य क ाि के िलये य ना हो?”
“तो फर ठीक है, अपनी पि के शव को लेकर मेरे पीछे -पीछे आओ।”
यह कहकर बूढ़ा वहाँ उपि थत झरने क ओर चल दया।
िनकुं भ ने िसर उठाकर बूढ़े को झरने क ओर जाते ए देखा और फर
नीलांगी के शरीर को अपने हाथ म उठाकर बूढ़े के पीछे -पीछे चल पड़़ा।
िनकुं भ क आँख से अभी भी आँसू िनकल रहे थे। चलते ए वह बीच-
बीच म नीलांगी के िन तेज चेहरे को देख ले रहा था, परं तु बूढ़े के श द ने
िनकुं भ के मन म, एक नई िव ास क करण अव य जगा दी थी।
चलते-चलते बूढ़ा उस िवशाल झरने के मुहाने तक जा प ंचा। झरने के
पास प ंचकर बूढ़े ने अपने मुख से एक जोर क आवाज िनकाली-
“च ुराजऽऽऽऽऽ।”
बूढ़े क आवाज पूरे वातावरण म गूंज गई। बूढ़े के इस कार आवाज
िनकालते ही, आ यजनक तरीके से उस झरने का पानी क गया और उस
झरने के पीछे एक िवशाल गुफा नजर आने लगी, जो एक बड़े से गोल प थर
से पूरी तरह से बंद थी।
गोल प थर पर कसी मनु य क एक बड़ी सी नीले रं ग क आँख क
आकृ ित बनी थी? बड़े ही रह यमय तरीके से, उस आँख क पुतिलयां कसी
सजीव क भांित िहल रह थ ।
िनकुं भ यान से उन सभी मायावी चीज को देख रहा था, पर जाने
य उसे अब नीलांगी के पुनज वन का िव ास हो चला था?
बूढ़े ने आगे बढ़कर उस आँख क पुतली को पश कर िलया। आँख क
पुतली को पश करते ही, वह बड़ा सा प थर वतः ही दािहनी ओर िखसक
गया।
अब बूढ़ा उस गुफा म वेश कर गया। बूढ़े को गुफा के अंदर जाते देख,
िनकुं भ भी बूढ़े के पीछे -पीछे गुफा म वेश कर गया।
गुफा क दीवार से तेज सफे द रोशनी िनकल रही थी, िजसके कारण
िनकुं भ को आगे बढ़ने म परे शानी नह हो रही थी।
गुफा क दीवार पर 7 फन वाले भयानक नाग क िच कारी क ई
थी। 7 फन वाला नाग अलग-अलग मु ा म उस दीवार पर बना था। कह -
कह पर वह नाग मनु य प म भी दखाई दे रहा था? परं तु मनु य के शरीर
म भी उस नाग के 7 िसर को दशाया गया था।
ऐसे िवशाल नाग को देखकर िनकुं भ सोच म पड़ गया- “ या यह
देवता शेषनाग ह? य क पृ वी पर 7 िसर वाला कोई दूसरा नाग तो है ही
नह ? परं तु देवता शेषनाग क िच कारी यहाँ इस गुफा के अंदर य क गई
है? कह इस नागगुफा का कोई स ब ध नागलोक से तो नह ? .... नह -नह
अभी तक नागलोक का िनमाण काय शु नह कया गया है। फर ... फर
या रह य हो सकता है इस नागगुफा का?”
“इस नाग का नाम ‘ने क’ है।” तभी आगे चलते ए बूढ़े ने िबना
पलटे ए जवाब दया- “और यह गुफा, ने क के रहने का थान है।
“आप! ... आप मेरे मन क बात सुन सकते ह?” िनकुं भ ने
आ यच कत होते ए बूढ़े से पूछा।
“हां! म इस गुफा के अंदर कसी के भी मन क बात सुन सकता ँ?”
बूढ़े ने जवाब दया।
अब िनकुं भ गुफा क दोन ओर क दीवार को देखते आगे बढ़ने लगा।
लगभग 5 िमनट तक इसी कार चलने के बाद, आिखरकार उस गुफा का
समापन हो गया। इस समय िनकुं भ ने वयं को एक िवशाल क म खड़ा
पाया।
वह क स भुजाकार था और उस क के येक कोने पर 7 िवशाल
नाग के फन बने ए थे। हर नाग के फन के नीचे एक ेत प थर से बनी,
सुंदर ी क ितमा लगी थी, जो योग क अलग-अलग मु ा म खड़ी थ ।
उस क म एक कनारे पर एक बड़ा सा सोने का संहासन रखा था।
संहासन जमीन से लगभग 50 फु ट क ऊंचाई पर था। संहासन तक प ंचने
के िलये लगभग 25 से 30 सी ढ़यां बनी थ ।
इस समय संहासन खाली था। संहासन के ऊपर भी एक 7 फन वाले
नाग का सोने का छ लगा था। क के ऊपर क ओर छत म, वण धातु से
िच कारी क गई थी।
छत के बीच म एक िवशाल गोला बना था। उस गोले म च ुराज क
वही नीली आँख बनी थी, िजसे िनकुं भ ने गुफा के बाहर देखा था। यह आँख
भी िपछली वाली आँख क भांित सजीव तीत हो रही थी।
क के बीचो-बीच म काले प थर से िन मत, महादेव का एक िवशाल
िशव लंग भी उपि थत था। िशव लंग के सामने एक नीले रं ग क मिण रखी
थी, िजसक ती रोशनी चारो ओर फै ली थी।
िशव लंग को घेरे ए एक छोटा सा जलाशय था, िजसम िविच
कार के असं य दुलभ नाग घूम रहे थे। नाग हर कु छ देर के अंतराल के बाद,
िशव लंग को अपने घेरे म ले रहे थे, परं तु नीली मिण को कोई भी नह छू
रहा था?
िशव लंग के ऊपर हवा म एक द वणकलश नाच रहा था, िजससे
िनकलकर दु ध क एक धार लगातार िशव लंग पर िगर रही थी। अब
लगातार इतना दु ध उस वणकलश म आ कहाँ से रहा था? यह रह य क
बात थी।
िनकुं भ इस पूरे दृ य को देखकर एक पल के िलये यह भी भूल गया, क
नीलांगी का िनज व शरीर उसके हाथ म है।
तभी वह बूढ़ा सी ढ़यां चढ़ता आ, संहासन पर जाकर बैठ गया।
िनकुं भ अभी भी नीलांगी का शरीर अपने हाथ म पकड़े, महादेव के
िशव लंग के पास खड़ा था।
तभी उस बूढ़े क आवाज पूरे क म गूंज उठी- अपनी पि का शरीर
वह िशव लंग के पास रख दो िनकुं भ।”
बूढ़े के धना मक वर को सुनकर, िनकुं भ ने नीलांगी का शरीर वह
िशव लंग के सम िलटा दया और वयं िशव लंग को दंडवत णाम करने
लगा।
तभी िशव लंग से िलपटे कई नाग उस छोटे से जलाशय से बाहर
िनकलकर, नीलांगी के शरीर के पास प ंच गये। नाग ने नीलांगी के शरीर
को चारो ओर से घेर िलया।
िनकुं भ यह सब देख रहा था, परं तु िनकुं भ ने इस पर कोई ित या
नह क ? वह तो बस यान से उन नाग और उस रह यमय दैवीय
वातावरण को िनहार रहा था।
तभी बूढ़े क आवाज एक बार पुनः गूंज उठी- “इस थान को देख तु ह
या महसूस हो रहा है िनकुं भ?”
“मुझे यह कोई अदृ य देव थान लग रहा है? िजसे जानबूझकर सभी
जीव क नजर से िछपा कर रखा गया है।” िनकुं भ ने संहासन पर बैठे बूढ़े
क ओर देखते ए कहा- “ या अब आप बतायगे क इस थान का या
रह य है? और मेरी नीलांगी को यहाँ कस कार से पुनज वन ा हो
सकता है?”
“सभी कु छ बताऊंगा, परं तु पहले नीलांगी को जीिवत करना आव यक
है, नह तो स पूण कथा को मुझे 2 बार सुनाना पड़ेगा।” यह कहकर बूढ़े ने
एक बार फर से जोर से आवाज लगाई- “च ुराज, नीलांगी को पुनज वन
दान करो।”
बूढ़े के इतना कहते ही छत पर बनी च ुराज क आँख, अपने थान से
िनकली और हवा म एक थान पर ि थर हो गई। देखते ही देखते उस आँख के
दोन ओर से, 2 नीले रं ग के पंख िनकल आये। इसके प ात च ुराज क आँख
अपने पंख फड़फड़ाते ए, िशव लंग के पास रखी, उस नीलमिण के सामने जा
प ंची।
च ुराज क आँख से एक नीली करण िनकल और उस नीलमिण से
जा टकरा । इसी के साथ नीलमिण अपने थान से हवा म उठी और उड़कर
नीलांगी के माथे से जा िचपक ।
नीलांगी के माथे से िचपकने के बाद नीलमिण धीरे -धीरे काश फकने
लगी। एक पल के िलये नीलांगी का पूरा शरीर ही उस नीले काश के तेज
तले, धूिमल हो गया, परं तु जब कु छ देर के प ात नीलमिण क रोशनी थोड़ी
कम ई, तो नीलांगी के शरीर का स पूण िवष नीलमिण म समा गया था।
नीलांगी को पुनज वन देने के प ात, नीलमिण उड़कर वापस अपने
थान पर प ंच गई। यह देख च ुराज क आँख भी यथा थान प ंचकर, पुनः
छत से िचपक गई।
तभी नीलांगी ने एक कराहट के साथ अपनी आँख खोल द और यान
से उस पूरे थान को देखने लगी। नीलांगी को आँख खोलते देख, िनकुं भ
भागकर नीलांगी के समीप प ंच गया और नीलांगी के एक हाथ को जोर से
चूमने लगा।
कु छ देर तक तो नीलांगी को कु छ भी समझ म नह आया? परं तु जैसे
ही वह सामा य ई, उसने कसकर िनकुं भ को गले से लगा िलया।
“मुझे पता था क तुम मुझे अव य बचा लोगे िनकुं भ। पर .... पर वह
िविच जीव कहाँ से आया था? और उसके अंदर कस कार का िवष भरा
था? िजसने क मुझ पर भी इतना बुरा असर डाला। जब क हमारे अंदर तो
इस पृ वी का सव े िवष है। या उस जीव का िवष इस धरती का नह है?
... और यह थान कौन सा है?”
नीलांगी तो जैसे एक साँस म ही सबकु छ पूछ लेना चाहती थी, वह तो
लगातार बोलती ही जा रही थी। नीलांगी को ना कते देख, िनकुं भ ने अपने
दािहने हाथ क हथेली को, नीलांगी के ह ठो पर रखते ए कहा- “शांत हो
जाओ नीलांगी, य क अभी तु हारे का मेरे पास भी कोई उ र नह
है?”
इतना कहकर िनकुं भ ने नीलांगी का चेहरा संहासन क ओर घुमा
दया। अब नीलांगी क नजर संहासन पर बैठे बूढ़े से टकराई।
उस क म कसी और उपि थित को देख नीलांगी वयं ही चुप हो
गई? और वाचक िनगाह से िनकुं भ क ओर देखने लगी।
नीलांगी को अपनी ओर देखते पाकर िनकुं भ ने नीलांगी को कु छ देर
पहले घटी सारी घटना को बता दया और वयं उस बूढ़े क ओर िनहारने
लगा।
बूढ़े ने दोन को अपनी ओर देखते पाकर बोलना शु कर दया-
“लगता है क अब तुम मुझसे मेरे बारे म जानना चाहते हो। ... ठीक है, पर
कु छ भी बोलने से पहले म तुम दोन के सामा य ान के बारे म जानना
चा ँगा। या तुम बता सकते हो क नागवंश क शु आत कहाँ से ई? और
इसके कतने कु ल ह?”
िनकुं भ को बूढ़े से ऐसे कसी क आशा नह थी? इसिलये पहले तो
वह एक पल के िलये च क गया, परं तु अगले ही पल िनकुं भ ने बोलना शु
कर दया- “पौरािणक काल म मह ष क यप का िववाह, द जापित क
17 पुि य के साथ आ और इ ह 17 पि य के ारा मह ष क यप ने इस
सृि का ारं भ कया। मह ष क यप क पि ‘अ दित’ से जो पु उ प ए,
वह सभी ‘आ द य’ यािन क देवता कहलाये। ठीक इसी कार ‘ दित’ से
उ प सभी पु ‘दै य’ व ‘दनु’ से उ प सभी पु ‘दानव’ कहलाये। मह ष
क यप क एक पि का नाम ‘क ’ू था। उनसे उ प सभी 8 पु ‘नाग’
कहलाये। इन पु के नाम थे- अनंत (शेषनाग), वासु क, त क, कक टक,
प , महाप , शंख व कु िलक। इ ह 8 नाग से अ कु ल क शु आत ई।
िजसम शेषनाग सबसे बड़े व परा मी थे। शेषनाग ने भगवान ी नारायण
को चुना, तो वासुक ने महादेव के कं ठ को सुशोिभत कया। इसी कार बाक
के नाग से अ य नागकु ल का ज म आ। कहते ह क हम भी वासुक के ही
वंशज ह और उ ह का िवष हमारे शरीर म भी दौड़ रहा है।”
इतना कहकर िनकुं भ चुप हो गया और उस बूढ़े क ओर देखने लगा।
“तु हारी बात ब त हद तक सही ह िनकुं भ, परं तु कसी को भी यह
नह पता क देवी क ू के 8 नह वरन 9 पु थे? एक आिखरी सबसे छोटे पु
का नाम ‘ने क’ था, जो क अपने माथे पर एक नीलमिण िलये ए उ प
आ था। नीलमिण के कारण ने क का िवष अ य सभी पु के िवष से िभ
था। ने क के िवष के कारण सभी अ य भाइय के शरीर पर पड़ी कचुली
जलने लगी। यह देख माता क ू को यह महसूस आ क ने क पर कसी
आसुरी शि क छाया है? और य द उ ह ने ने क को अ य भाइय के साथ
रखा, तो अ य भाईय क शि य का ास होने लगेगा। बस यही सोच माता
क ू ने ने क को उसके भाईय से अलग करके , एक िवशाल गुफा म िछपा
दया। कु छ वष के प ात सभी ने क को भूल गये। माता क ू ने भी यह
कहना शु कर दया क उनके 8 ही पु ह। परं तु वह अभी भी िछपकर ने क
को पाल रह थ । माता क ू ने ने क क देखभाल करने का भार, एक य
च ुराज को दया। च ुराज ने ने क क उिचत कार से देखभाल क ।
च ुराज ही ने क को बाहरी दुिनया का समाचार भी देता रहा। परं तु जब
ने क को पता चला क उसके भाई वासुक को महादेव के गले म थान
िमला है, तो वह भी महादेव क उपासना म लीन हो गया। ने क के कठोर
तप से महादेव स ए और ने क से वर मांगने को कहा। ने क ने अपने
भाई वासुक के समान महादेव के कं ठ को सुशोिभत करने का वरदान मांगा।
तब महादेव ने ने क एक गु काय दया। इस काय के फल व प ने क को
एक इ छाधारी नाग-नािगन के जोड़े का चुनाव करना था। इसी जोड़े के
मा यम से वह अपनी इ छा क पू त कर सकता था। ....... इसीिलये ने क
ने तुम दोन का चुनाव कया और अब वह तु हारे मा यम से महादेव के दये
वरदान को फलीभूत करना चाहता है।”
बूढ़े क कथा सुनकर िनकुं भ व नीलांगी आ य से भर गये।
“तो फर ने क इस समय कहाँ है? और या उसने ही आपको हमारे
पास भेजा था?” िनकुं भ ने बूढ़े से पूछा।
िनकुं भ क बात सुनकर बूढ़ा अपने थान पर खड़ा हो गया और देखते
ही देखते वह एक 7 िसर वाले िवशाल नाग म प रव तत हो गया।
“म ही महादेव का परम िश य ने क ँ और म अपने बड़े भाई वासुक
क भांित महादेव के कं ठ को सुशोिभत करना चाहता ँ।” ने क ने गव भरे
वर म कहा- “म चाहता ँ क मेरी माता क ू ने जो स मान मुझे नह दया,
वह स मान म वयं से ा क ं । .... म चाहता ँ क इतने वष के गु
जीवन के बाद म भी सभी के सम आ सकूं .... म भी सभी को अपना
परा म दखा सकूं ..... म भी अपने अ य भाईय क भांित े ता ा कर
सकूं । िजससे मेरी माँ हष के साथ कह सके क उसके 8 नह वरन् 9 बलशाली
पु ह। ..... म जानता ँ िनकुं भ क तुम मेरे बड़े भाई वासुक के वंशज हो,
फर भी म तुमसे अपनी सहायता का आहवान करता ँ। ... तो अब बताओ
िनकुं भ व नीलांगी क या तुम मेरे ल य को ा करने म मेरी सहायता
करोगे?”
“अव य नागदेव!” िनकुं भ ने ने क क ओर देखते ए कहा- “मने
आपको सहायता करने का वचन दया है, इसिलये म अव य आपक
सहायता क ँ गा, परं तु म उससे पहले आपसे कु छ पूछना चाहता ँ?”
“पूछो, या पूछना चाहते हो िनकुं भ?” ने क पुनः बूढ़े के प म
प रव तत होते ए बोला।
“िजस अदृ य जीव ने नीलांगी के शरीर म अपना िवष भर दया था,
या वह आपके िवष से बना था? और या उसे आपने नीलांगी को मारने के
िलये भेजा था?” िनकुं भ ने शं कत वर म पूछा।
“मेरी सम त शि य का ोत वह नीलमिण है, जो क ज म के समय
से ही मेरे माथे पर लगी थी। शायद उसी नीलमिण के कारण, मेरे अंदर
इतना िविच िवष भरा था। गुफा म आने के बाद मुझे लगा क अगर म
अपनी नीलमिण को अपने माथे से िनकाल दूँ, तो शायद मेरे अंदर का िविच
िवष भी समा हो जायेगा। इसिलये मने महादेव क साधना कर, उस
नीलमिण को अपने माथे से िनकाल दया और िशव लंग के पास थािपत कर
दया। कु छ समय पहले एक रं ग बदलने वाला न हा िगरिगट, कसी कार से
मेरी नीलमिण तक प ंच गया? और उसने नीलमिण को पश कर िलया।
नीलमिण को पश करते ही उस िगरिगट म कु छ बदलाव आने लगे? और कु छ
दन के प ात वह उस िविच जीव म प रव तत हो गया। इस कार ना
चाहते ए भी मेरे िवष का एक भाग उस िगरिगट म वेश कर गया। कु छ
दन बाद मुझे च ुराज से पता चला क वह िविच जीव नागधरा म आतंक
मचा रहा है, इसिलये आज म वयं उसका वध करने के िलये अपनी गुफा से
िनकला था, पर मेरे प ंचने से पहले ही तु हारी पि नीलांगी ने उस जीव
को समा कर दया। म नीलांगी के पास जाने ही वाला था क तभी मुझे
बाज के प म तुम आसमान से उतरते दखाई दये। तु ह देखते ही मने
च ुराज के मा यम से तु हारे बारे म सबकु छ जान िलया। जब मुझे पता
चला क तुम एक इ छाधारी नाग हो, तो मेरी तलाश भी तुम पर आकर
समा हो गई और मने नीलांगी के ाण बचाने के बदले तुमसे अपना काय
करने का वचन मांगा।” ने क ने कहा।
“आपने कहा क आपको महादेव ने एक इ छाधारी नाग-नािगन से
गु काय कराने को कहा था।” इस बार नीलांगी ने ने क को देखते ए कहा-
“और इसीिलये आपने हम दोन का चयन कया, परं तु नागदेव शायद आप
यह नह जानते ह क िनकुं भ तो इ छाधारी है, पर म एक िसफ एक
नागक या ँ, जो क िसफ नािगन से नागक या म प रव तत हो सकती ँ।
ऐसे म आपका गु काय िवफल हो सकता है।”
“नह होगा नीलांगी।” इस बार ने क ने मु कु राते ए कहा- “सोचो
क जब नीलमिण के ण भर छू ने से एक साधारण िगरिगट, ऐसे िविच
जीव म प रव तत हो सकता है, तो नीलमिण तो तु हारे माथे से कतनी देर
तक िचपक रही थी? ऐसे म नीलमिण ने तु हारे शरीर म कु छ प रवतन तो
अव य कये ह गे?”
“आपका मतलब है क नीलमिण के कारण अब म भी इ छाधारी बन
चुक ँ?” नीलांगी ने आ य से ने क क ओर देखते ए कहा।
“नह , मने ऐसा तो नह कहा।” ने क ने मु कु राते ए कहा- “परं तु
नीलमिण ने तु ह कोई ना कोई शि तो अव य दी होगी? जो क समय आने
पर तु ह वयं पता चल जायेगी।”
ने क के रह य भरे श द नीलांगी व िनकुं भ को समझ म तो नह आये,
परं तु वह दोन इतना अव य जान गये क नीलांगी के अंदर कसी चम कारी
शि ने वेश कर िलया है?
कु छ देर सोचने के बाद िनकुं भ एक बार पुनः बोल उठा- “नागदेव, इस
क म आपके 7 फन के नीचे बनी, यह 7 अ सरा क मू तयां कै सी ह? या
इनका भी आपक कथा से कोई स ब ध है?”
“हां िनकुं भ, इन 7 अ सरा क मू तय का िनमाण, वयं महादेव ने
स त व से कया है, यह सभी आगे जाकर नागदंत कथा क र क के प म
जानी जायगी और भिव य म देवयो ा का मागदशन करगी।” ने क के
श द रह य से भरे थे।
“हम कु छ भी समझ म नह आ रहा नागदेव?” नीलांगी ने कहा- “आप
कस नागदंत कथा क बात कर रहे ह? और यह 7 अ सराएं कस कार से
देवयो ा का मागदशन करगी?”
नीलांगी क बात सुनकर ने क मु कु राते ए बोला- “कहते ह क
भा य से अिधक और समय से पहले कभी कसी को कु छ भी नह िमलता
नीलांगी? इसिलये भिव य क घटना के बारे म सोचकर इस कार
िवचिलत मत हो। तुम तो बस वतमान म अपने अंदर क शि य को जानने
क कोिशश करो। अगर तु हारे काय दैवीय ह गे, तो वतः ही तु हारा
भिव य स ता से भर जायेगा।”
ने क के श द सुनकर िनकुं भ व नीलांगी समझ गये क ने क क
अथभरी बात को समझना अ यंत ही क ठन है, अतः िनकुं भ ने िवषय को
बदलते ए ने क से कहा- “इन सब बात को जाने दीिजये नागदेव, आप तो
बस मुझे उस गु काय के बारे म बताएं, िजसे करने के बाद हम आपक
इ छा क पू त कर सक और आपको महादेव के कं ठ म सुशोिभत कर
सक।”
िनकुं भ क बात सुन ने क क आँख एक पल के िलये चमक सी उठ ।
अब ने क सी ढ़य से उतरता आ िनकुं भ व नीलांगी के सम आ
खड़ा आ और बारी-बारी से दोन क आँख म झांकते ए बोला- “आज से
ठीक 5 दन के प ात् तुम दोन को िहमालय के पि म े म ि थत एक
नगर ‘भ पुर’ जाना होगा। वहाँ के वीर तापी राजा ‘िवशाला ’ ने महादेव
के सम एक अ भुत ितयोिगता का आयोजन रखा है। इस ितयोिगता म
पृ वी के कोने-कोने से युवा यो ा जोड़े भाग लेने आयगे। उस ितयोिगता म
जीतने वाले यो ा जोड़े को, पुर कार व प महादेव क ओर से एक िवशेष
अिधकार िमलेगा। तुम लोग को मेरे िलये, बस उसी िवशेष अिधकार को
ा करना होगा।”
“िवशेष अिधकार? ... पर यह िवशेष अिधकार कस कार का होगा?
और इससे आपक इ छा क पू त कस कार होगी?” िनकुं भ ने पूछा।
“वह िवशेष अिधकार तु ह एक देवयो ा दान करे गा। बस इससे
अिधक म तु ह अभी कु छ भी नह बता सकता?” यह कहकर ने क ने अपनी
बात का समापन कर दया।
ने क क बात समा होते देख, िनकुं भ व नीलांगी ने अपने हाथ
जोड़कर ने क से िवदा िलया और गुफा के बाहर क ओर चल पड़े। परं तु
जाते-जाते भी दोन के मि त क म भिव य के िलये अनेक घूम रहे थे?
..... पर जो भी हो दोन को िव ास था क िवशाला क ितयोिगता तो
वह दोन ही जीतगे।
◆ ◆ ◆
िपछली पु तक का सारांश

हैलो दो त ,
यह पु तक ‘ रं ग ऑफ अटलां टस’ सीरीज क आठव और आिखरी
पु तक है। या आपने इस पु तक को पढ़ने के पहले इसके िपछले 7 भाग को
पढ़ा है? अगर नह .... तो इस पु तक का पूण आन द उठाने के िलये कृ पया
इसके िपछले सभी िन भाग को अव य पढ़ ल-
1) सन राइ जंग - एक रह यमय जहाज
2) अटलां टस - एक रह यमय ीप
3) मायावन - एक रह यमय जंगल
4) ितिल मा - अिव सनीय मायाजाल
5) देवशि - अ भुत द ा
6) काला मोती - कण शि
7) देवयु - महासं ाम गाथा
अगर आप कसी कारणवश िपछली पु तक को नह पढ़ना चाहते तो
आइये इन सभी पु तक के सारांश को पढ़कर उन पु तक क याद को ताजा
कर ल-
शैफाली एक 13 वष य अंधी लड़क है, जो अपने माता-िपता के साथ
सन राइ जंग नामक पानी के जहाज पर या ा करती है। अंधी होने के
बावजूद भी शैफाली को अजीब-अजीब से सपने आते ह। सन राइ जंग पर
और भी ब त से लोग सफर कर रहे होते ह।
टी का ऐले स को इ ोर करना, जेिनथ का तौफ क से अपने यार
का इजहार करना और जैक व जॉनी का आपस म शत लगाना, कु छ ऐसी ही
घटना के साथ सन राइ जंग पर यू इयर क रात लॉरे न नामक एक
डा सर का क ल हो जाता है। अभी लॉरे न के क ल क गु थी सुलझ भी नह
पाई थी क तभी सन राइ जंग के चालक दल क गलती क वजह से सन
राइ जंग अपना रा ता भटककर बारामूडा ि कोण के े म फं स जाता है।
सन राइ जंग का स पक अब बाहरी दुिनया से पूणतया कट चुका था।
उड़नत तरी और िवशाल भंवर से बचने के बाद जहाज के अिस टट
कै टे न रोजर का हेलीकॉ टर भी एक अंजाने ीप को देखते ए दुघटना त
हो जाता है। उधर सुयश के कपड़े, एक लू हेल पानी उछालकर िभगो देती
है, िजससे डन को सुयश क पीठ पर बना, एक सुनहरे रं ग का सूय का टै टू
दख जाता है।
उसी रात शैफाली के सोते समय कोई उसके िसर के पास ाचीन लु
शहर अटलां टस का सोने का िस ा रख जाता है। बाद म हरे रं ग के िविच
क ड़े को देखते ए जहाज पर कु छ अजीब सी घटनाएं भी घटती ह, िजसके
बाद सन राइ जंग के टोर म म रखी लॉरे न क लाश कह गायब हो जाती
है? उधर यूयाक बंदरगाह पर राबट और ि मथ के पास एक ि आकर
वयं को सन राइ जंग का सेके ड अिस टट कै टे न असलम बताता है। वह
कहता है क कोई उसे बेहोश कर उसक जगह लेकर सन राइ जंग पर चला
गया है। िजसके बाद इस के स को हल करने के िलये जेराड, सी.आई.ए के
कािबल एजट ोम को इस िमशन पर भेज देता है।
उधर सुयश को बार-बार वही रह यमयी ीप दखाई देता है और
जब उस ीप का रह य जानने के िलये लारा उस ीप क ओर जाता है, तो
वह भी रह यमय प रि थितय म अपनी जान गंवा बैठता है। दूसरी ओर
ोम सन राइ जंग को ढू ंढते ए उसी रह यमय ीप के पास प ंच जाता है,
पर उस ीप का रह य जानने म ोम भी दुघटना का िशकार हो जाता है।
उधर रात म लोथार को सन राइ जंग पर मरी ई लॉरे न दखाई देती
है, िजसे देखकर लोथार अजीब सी हरकत करते ए समु म कू द जाता है।
सभी क लाख कोिशश के बाद लोथार भी मारा जाता है। तभी सभी को
पानी पर दौड़ता आ एक सुनहरा मानव दखाई देता है जो क एक दशा
क ओर इशारा करके गायब हो जाता है। अगले दन ऐमू नामक एक
रह यमय तोता फर से जहाज को भटका देता है। उधर अंजान काितल,
लॉरे न क ह या का रह य जान चुके लैब अिस टट थॉमस को भी मार देता
है।
अगले दन सन राइ जंग एक भयानक तूफान के बीच फं स जाता है
और सभी क लाख कोिशश के बाद भी वह समु म डू ब जाता है। कसी
कार 12 लोग बचकर एक रह यमय ीप पर प ंच जाते ह।
उस रह यमय ीप पर एक भयानक जंगल होता है, जो अलग-अलग
कार के खतरे उ प करता रहता है। शैफाली को िविच पेड़ का फल देना,
जेिनथ के ऊपर मगरम छ मानव का हमला करना, भिव य के प थर का
िमलना और फर ेजलर का अजगर के ारा मारा जाना, यह सभी उस
जंगल को रह यमई और खतरनाक दोन ही बना रहे थे।
वह दूसरी ओर वेगा पर एक रह यमय बाज हमला कर देता है,
िजससे डर कर वेगा का भाई युगाका वेगा को एक जोिडयाक वॉच देता है,
िजसम 12 रािशय क शि यां थ , जो वेगा को मुसीबत के समय िछप कर
उसे बचात ।
दूसरी ओर अंटाक टका क धरती पर जे स और िव मर को बफ क
खुदाई के दौरान एक िविच दुिनया दखाई देती है। कु छ अजीब से ितिल मी
रा त को पार करने के बाद जे स और िव मर वहाँ मौजूद देवी शलाका और
उनके 7 भाईय को जगा देते ह, जो क 5000 वष से वहाँ शीतिन ा म सो
रहे थे।
उधर जंगल म नयनतारा पेड़ के ारा, ज म से अंधी शैफाली क आँख
आ जाती ह। जंगल म आगे बढ़ने पर सभी को शलाका मं दर दखाई देता है,
जहां पर सुयश एक छोटे से ितिल म को पार कर, देवी शलाका क मू त को
छू लेता है। तभी सुयश के शरीर पर बने टै टू से सतरं गी करण आकर टकराती
ह और सुयश के टै टू म एक अंजानी शि वेश कर जाती है।
उधर जब रोजर का हेलीकॉ टर धुंध म फं सकर अराका ीप पर
िगरता है तो रोजर को पायलेट क लाश, एक शेर ले जाता दखाई देता है,
शेर का पीछा करने पर रोजर एक लड़क आकृ ित से िमलता है। आकृ ित का
चेहरा देवी शलाका से िमलता है। आकृ ित रोजर को अराका के कई रह य के
बारे म बताती है?
उधर सुयश को एक आदमखोर पेड़ पकड़ लेता है, पर सुयश अपने टै टू
म समाई िविच शि से इस मुसीबत से बच जाता है। दूसरी ओर कु छ दन
पहले आकृ ित रोजर को सुनहरा मानव बनाकर सन राइ जंग को भटकाने के
िलये भेजती है। रा ते म रोजर पानी म बेहोश ए ोम को बचाकर अराका
ीप के कनारे रख देता है।
बाद म सुयश एक अंजान खंडहर म िमले संहासन क वजह से समय
के च को तोड़ 5020 वष पहले के काल म िहमालय पर प च जाता है।
िहमालय पर उसे अपनी ही श ल का एक इं सान आयन दखाई देता है जो
शलाका और अ य 11 लोग के साथ एक रह यमयी िव ालय ‘वेदालय’ म
पढ़ रहा होता है। वहाँ सुयश को 15 अ भुत लोक के बारे म पता चलता है।
वह दूसरी ओर लुफासा, मकोटा के आदेशानुसार अपनी इ छाधारी
शि का योग कर, हर रोज सन राइ जंग से एक लाश लाकर िपरािमड म
रखता है, परं तु एक दन जब वह िपरािमड म जाकर देखता है तो उसे
िपरािमड के अंदर अंधेरे का देवता जैगन बेहोश पड़ा दखाई देता है।
उधर ूनो के गायब होने के बाद सुयश क टीम का सामना एक
जंगली सुअर से होता है, िजसक वजह से असलम एक दलदल म िगर कर
मारा जाता है, परं तु मरने से पहले वह अपना काला बैग सुयश को दे जाता
है। असलम के काले बैग म एक लॉके ट होता है, जो वतः ही जेिनथ के गले म
बंध जाता है।
उधर अगले दन वेगा पर टुं ा हंस और बुल शाक हमला करती है।
ले कन वेगा के हाथ म बंधी जोिडयाक वॉच वेगा क र ा करती है। दूसरी
ओर ोम एक हेल का पीछा करता आ, उस ीप के एक ऐसे अंजान िह से
म प ंच जाता है, जहां एक क यूटर ो ाम कै पर ारा एक ितिल म का
िनमाण हो रहा होता है। ोम उस कमरे म रखी एक ांसिमट मशीन से
ांसिमट होकर सामरा ीप के अंदर प ंच जाता है।
उधर जंगल म युगाका ऐले स को बेहोश करके , वयं ऐले स बनकर
सुयश क टीम म शािमल हो जाता है। पर शैफाली युगाका को पहचान जाती
है और वह युगाका से कु छ ण के िलये उसक वृ शि छीन लेती है।
दूसरी ओर देवी शलाका के कमरे म बंद जे स को, दीवार म एक रह यमयी
ार दखाई देता है। जे स उस ार के मा यम से िहमालय प ंच जाता है,
जहां हनुका ोम को पकड़कर िहमलोक के कारागार म डाल देता है। उधर
ोम ांसिमट होकर सामरा ीप म उपि थत महावृ के पास प ंच जाता
है। दूसरी ओर कलाट, युगाका को लेकर समु के अंदर मौजूद अटलां टस क
धरती पर जाता है। जहां पर साग रका एक पहेली के मा यम से कलाट को
एक संदेश देती है।
उधर जॉनी एक जलपरी क मू त से िनकलती शराब को पीकर, बंदर
म प रव तत हो जाता है और उछलकर जंगल म भाग जाता है। रात म वहाँ
सोते समय मेडूसा क मू त सजीव होकर, शैफाली को एक महाशि मै ा के
सपने दखाती है, िजसम मै ा एक गो पर सवार होकर, समु क तली म
मौजूद, एक वण महल से, ितिल म तोड़कर एक शि शाली पंचशूल ा
करती है। उसी रात जेिनथ को न ा के ारा तौफ क क स ाई के बारे म
पता चलता है।
इधर शलाका जे स को ढू ंढने के िलये िहमालय पर प ंचती है, पर
ा और िशव या शलाका को एक दन के िलये वह रोक लेते ह। दूसरी
ओर जंगल म एक भ रा िवशालकाय च वात का प लेकर, डन को अपने
म लपेटकर हवा म गायब हो जाता है। उधर लुफासा मकोटा के आदेशानुसार
िहमालय पर मौजूद एक िशव मं दर से ‘गु व शि ’ लाने के िलये जाता है।
लुफासा ग ण का प धरकर िहमालय से गु व शि ले जाने म सफल हो
जाता है।
ा और िशव या के परे शान होने पर गु नीमा महाशि शाली
हनुका को लुफासा से गु व शि छीनकर लाने को कहते ह। महाबली हनुका
व लुफासा के म य यु होता है, परं तु उस यु के फल व प गु व शि क
िडिबया अराका ीप म िगर जाती है।
दूसरी ओर अलबट क सूझबूझ से सभी घास के मैदान म लगी आग को
पार करते ह, पर आिखर म टी, जैक को उस आग म ध ा देकर मार देती
है। आगे बढ़ने पर सुयश क टीम पर एक पाइनासोरस आ मण कर देता है।
यहाँ जेिनथ न ा क शि य का योग कर उस पाइनासोरस को मार
देती है।
उधर ोम को रं जो- शंजो के मा यम से एक झील के अंदर रखा आ
पंचशूल दखाई देता है, िजसे छू ने के बाद ोम का पूरा शरीर जल जाता है।
ोम मरणास हालत म झील के बाहर िगरता है। तभी आसमान से गु व
शि क आिखरी बूंद ोम के मुंह म आकर िगर जाती है, गु व शि के
मा यम से ोम ठीक होकर उस पंचशूल को भी ा कर लेता है। पंचशूल
को उठाने के बाद ोम क कलाई पर एक सुनहरे रं ग का सूय का टै टू बन
जाता है।
उधर वेगा पर बारी-बारी से एक ईल मछली, काला नाग व खतरनाक
सांड हमला करते ह, परं तु इस हमले म धरा बेहोश हो जाती है। वेगा, मयूर
और धरा को अपने घर ले जाता है।
दूसरी ओर अलबट को एक उड़ने वाला टे रोसोर लेकर उड़ जाता है।
उधर ऐले स एक पेड़ के कोटर से होते ए, 20 फु ट गहरे कमरे म िगर जाता
है। जहां पर उसे एक 3 िसर वाला सप िवषाका, बेवकू फ बनाकर अपनी मिण
और सुनहरी बोतल लेकर भाग जाता है। दूसरी ओर टी अपनी फू त और
तेज दमाग से रे त मानव को ख म कर देती है। उधर ोम िविच
प रि थतय म ि काली को बचाते ए, मकोटा के सेवक ग जालो को बुरी
तरह से घायल कर देता है। िजससे ि काली ोम क शि यां पर मोिहत हो
उससे र ासू बंधवा कर शादी कर लेती है।
दूसरी ओर सुयश क टीम मै ाक ार को पार करके रे ड आंट के े
म वेश कर जाते ह, जहां पर खून क बा रश होती है, पर जेिनथ क वजह
से यह मुसीबत भी पार हो जाती है।
उधर पकु ड झील के रा ते किलका, य युवान के का उ र
देते ए, काश शि को ा कर लेती है। दूसरी ओर ि शाल भी
मानसरोवर झील के अंदर से होकर शि लोक प ंच जाता है, जहां एक-एक
कर वह भगवान िव णु के 5 अ क सहायता से, एक मायाजाल को पार
करके विन शि ा कर लेता है।
दूसरी ओर कै पर, मै ा को याद करते ए कै पर लाउड म बने ेत
महल आ जाता है। जहां पर उसक मुलाकात िव म और वा णी से होती है।
कै पर, ेत महल का िनयं ण वा िण के हाथ म दे देता है।
उधर सुयश सिहत सभी बफ क घाटी म प ंच जाते ह, जहां एक छोटे
से पि वन क मदद से शैफाली को एक सीप के अंदर मै ा क ेस िमलती है।
दूसरी ओर सुयश क टीम पर एक बफ का ैगन हमला कर देता है। जेिनथ
एक बार फर से न ा क शि का उपयोग करके उस बफ के ैगन को हरा
देती है।
वह दूसरी ओर वेगा, वीनस से अपने यार का इजहार करता है क
तभी उ का पंड िगरने क वजह से, भूकंप का एक जोरदार झटका आता है।
धरा और मयूर, वेगा और वीनस से िवदा ले उ का पंड के पीछे चले जाते ह।
उधर तौफ क को रात म पेड़ क कोटर म मौजूद ‘वेदा त रह यम’
नामक एक पु तक िमलती है। िजसम सुयश को, अ कोण म बंद एक न हा
बालक दखाई देता है। बाद म शलाका बताती है क वेदा त रह यम आयन
ने ही िलखी थी। आगे बढ़ने पर सभी एक वालामुखी के जाल म फं स जाते
ह। जहां शैफाली को एक ैगन का सोने का िसर िमलता है। शैफाली के
आँसु से वह ैगन का िसर िपघलकर, वालामुखी के लावे म िमल जाता
है।
उधर आकृ ित लैडन नदी के कनारे जाकर एक सुनहरी िहरनी का
अपहरण कर लेती है, जो क देवी आटिमस को सबसे ि य थी। वहाँ उसे
लैडन नदी म सोया आ मै ा का गो भी दखाई देता है। उधर ि शाल और
किलका दोन िमलकर, रा स कालबा को पकड़ने रा सलोक जाते ह, पर
वहाँ उ ह िव ु ा अपने मायाजाल मि तका म फं सा देती है, परं तु
मि तका म फं सने के पहले ि शाल और किलका वहाँ रावण क मू त म
मौजूद एक ी के कं काल को अपनी शि य से मुि दे देते ह।
दूसरी ओर ऐले स को थेनो बताती है क शैफाली ही िपछले ज म म
मै ा थी। वह कहती है क िवषाका जो बोतल लेकर भागा था, वह मै ा क
मृितयां थ । थेनो, ऐले स को माया का दया आ वशीि य शि का
घोल िपलाकर, नागलोक म ि थत ि आयाम म भेज देती है। जहां ऐले स
नागफनी और रा स माली को ि आयाम से मै ा क मृितयां लाने म
सफल हो जाता है।
उधर सुयश और उसक टीम एक खोखले पहाड़ म फं स जाते ह। उस
खोखले पहाड़ म हेफे टस और हरमीस क मू तयां लगी होती ह। यहाँ भी
एक कार का ितिल म होता है, िजसे सभी िमलकर अपने दमाग से पार
कर लेते ह। आगे बढ़ने पर सुयश को एक न हे खरगोश के मा यम से एक
अंगूठी िमलती है, जो क शैफाली के हाथ म िब कु ल फट हो जाती है।
उधर ोम के सामने उसक और ि काली क शादी का राज खुल
जाता है। वहाँ कलाट ोम और ि काली को, ि शाल व किलका को छु ड़ाने
के िलये, मि तका म जाने को कहता है। वह दूसरी ओर ऐले स, सुयश क
टीम के पास वापस प ंचने म कामयाब हो जाता है। वह मै ा क मृितयां
बोतल से िनकाल शैफाली को दे देता है, िजससे शैफाली को पूवज म क
सारी बात याद आ जाती ह। दूसरी ओर वा णी कै पर को एक िविच जीव
को दखाती है। कै पर बताता है क पृ वी पर कोई बड़ा संकट आने वाला है?
दूसरी ओर सुयश क टीम को एक नहर िमलती है, िजसे पार करना
अ यंत ही मुि कल था, पर सभी के सि मिलत यास से वह नहर के
जलकवच को पार कर लेते ह। उधर शलाका, िव मर को सुनहरी ढाल दे देती
है, परं तु बदले म वह िव मर क उस थान क मृित छीन लेती है। वह
दूसरी ओर आकृ ित क कै द म बंद रोजर को, सनूरा छु ड़ा देती है। रोजर
भागते समय, मेलाइट व सुवया को भी छु ड़ा ले जाता है। उधर सुयश अपनी
टीम के साथ उड़ने वाली झोपड़ी के ितिल म को तोड़, सभी को ले ितिल मा
म वेश कर जाता है। जहां कै र सभी को एक नीलकमल क पहली पंखुड़ी
तोड़ने के िलये कहता है। सभी के सि मिलत यास से वह ितिल मा के पहले
ार को पार कर जाते ह।
दूसरी ओर फे रोना ह का कमांडर ीटे स, राजा एला का को बताता
है क उसने युवराज ओरस को पृ वी पर देख िलया है और उसे ा करने के
िलये, उसने ए ोवस पावर को भेज दया है।
वह दूसरी ओर ितिल मा म सुयश क टीम के सामने, एक नेवला व
ऑ टोपस मायाजाल बुनकर उ ह फं साने क कोिशश करते ह, पर सभी
आसानी से उस ार को पार कर लेते ह।
उधर एक ओर शलाका वेदा त रह यम् नामक कताब को पढ़कर
आयन के कु छ रह य को जान जाती है? िजसम आयन अपने और आकृ ित के
पु को एक काँच के अ कोण म बंदकर, जमीन म िछपा रहा होता है।
उधर धरा और मयूर समु म िगरे उ का पंड क जांच करने के िलये,
अटलां टक महासागर म जाते ह, जहां उ ह पता चलता है क वह उ का पंड
असल म एक अंत र यान है। वहाँ दोन का सामना अंत र के 2
शि शाली जीव एलिनको और एनम से होता है। एलिनको अपनी चु बक य
शि य का योग कर धरा और मयूर को बेहोश कर देता है और उ ह
उठाकर अपने साथ अंत र यान म िलये जाता है। उधर वु फा को एक ऊजा
ार म घायल पड़ा ग जालो दखाई देता है।
वह दूसरी ओर सुयश सिहत सभी एक जलदपण के मायाजाल म फं स
जाते ह, जहां वह एक िवशाल कछु ए क पीठ पर रखे एक पंजरे म कै द होते
ह। यहाँ शैफाली और ऐले स के यास से सभी बचकर इस ार को पार कर
जाते ह। इसके बाद सभी च टय के संसार म फं स जाते ह, जहां शैफाली के
दमाग लगाने से सुयश सिहत सभी च टय के उस संसार को पार करने म
सफल हो जाते ह।
उधर कै पर, वा िण को कै र और ितिल मा के बारे म बताता है।
वह वा िण को एक महायु का संकेत देता है और उसे उस महायु से
िनपटने के िलये कु छ तैया रयां करने को कहता है? उधर आकृ ित िव मर से
सुनहरी ढाल छीन लेती है, पर तभी आकृ ित को िव म बेहोशी क हालत म
उस जहाज पर िमलता है, िजसक मृित जा चुक होती है। आकृ ित, िव म
के सामने वा णी होने का नाटक कर उसे अपने साथ लेकर ययाक चली
जाती है।
वह दूसरी ओर सुयश सिहत सभी एक-एक कर टे चू आफ िलबट
एवं सपन के संसार को पार करते ह। इसके बाद सभी 4 ऋतु के जाल म
फं स जाते ह, जहां शरद ऋतु से सभी को ऐले स क समझदारी और तौफ क
के िनशाना बचाती है। वह ी म ऋतु म एक थान पर जेिनथ एक जहरीली
गैस म फं सकर िगर जाती है। तभी एक खूबसूरत यो ा कट होकर जेिनथ
को बचाकर गायब हो जाता है। इसके बाद सभी शीत ऋतु म बंद एक
अ मानव और समु ी घोड़े को हराकर उस मायाजाल को भी पार कर लेते
ह।
उधर मकोटा, लुफासा को अपने िव ास म लेने के िलये, उसे
िपरािमड दखाने ले जाता है, जहां लुफासा को पता चलता है क उसके
माता-िपता का क ल कलाट ने कया था। उधर वीनस के कमरे म ब त से डरे
ए पंछी वेश कर जाते ह। जब वीनस िखड़क से देखती है, तो उसे पूरे
शहर म मरे ए प ी सड़क पर पड़े ए दखाई देते ह। तभी समु के कु छ
जीव भी िवकृ त आकार लेकर शहर पर हमला कर देते ह। वीनस और वेगा
अपनी शि य का योग करके उन जीव को मार देते ह। उधर रोजर को
अपनी नािभ से एक तेज सुनहरी रोशनी िनकलती दखाई देती है, पर वह
रोशनी मेलाइट के पश करते ही गायब हो जाती है।
वह दूसरी ओर िहमालय पर हनुका िछपते ए लोक प ंच जाता
है और नीलाभ को माया के बारे म बता देता है। नीलाभ हनुका को र
भैरवी क िडिबया देता है, िजसका योग वह हनुका से समय आने पर करने
को कहता है। उधर शलाका जे स को अपने अंत र यान आकिडया को
चलाने क े नंग देने लगती है।
उधर महावृ ोम से परी ा लेने के िलये उसे एक नकली िव ु ा के
जाल म फं सा देता है, पर ोम सभी मुसीबत को पार कर िव ु ा को हरा
देता है। िजससे महावृ उसे िव ु ा के पास जाने क इजाजत दे देता है।
वह एक ओर अलबट टे रोसोर से बचकर एक अंधेरे कु एं म िगर जाता है। उस
कु एं म अलबट को एक िब ली जैसी श ल वाली देवी क ितमा दखाई देती
है, िजसके हाथ म पकड़े पा म िविच जल था। अलबट उस जल को पी
जाता है।
उधर सुयश सिहत सभी वसंत ऋतु के जाल म फं स जाते ह, जहां 4
अलग-अलग रं ग क प रयां 4 जगह पर पंजरे म कै द थ । सभी अपनी-
अपनी मता का इ तेमाल कर उन प रय को छु ड़ा लेते ह और उनक
मदद से कृ ित के रं ग को भरकर ितिल मा के उस भाग को पार कर लेते ह।
दूसरी ओर नीलाभ महादेव को स कर ांड म ि थत उनके पंचमुखी प
के दशन करता है, वहाँ महादेव नीलाभ से उनके 5 अवतार से आशीवाद लेने
के िलये कहता है।
उधर डे फानो ह पर बचपन म जब ओरस, अपने िपता िगरोट के
साथ लैकून म समयच को देखने के िलये जाता है, तो फे रोना ह के हमले
के कारण ओरस लैकून म ही फं स जाता है। िगरोट मरने से पहले लैकून को
छोटा कर देता है और ज़ेिन स से ओरस को लेकर पृ वी पर जाने को कहता
है। वह दूसरी ओर अंत र के कु छ जीव अराका ीप पर हमला कर देते ह।
इस हमले म रोजर मारा जाता है, परं तु सुवया अपनी शि य से उन
अंत र जीव को परािजत कर रोजर को पुनः जीिवत कर देती है।
वह दूसरी ओर सुयश क टीम एक-एक कर सभी इि य को
परािजत करते जाते ह। आँख, नाक का ितिल म तो िबना कसी अवरोध के
पार हो जाता है, पर कान के ितिल म म कु छ िविच प रि थतय म ऐले स
व तौफ क क मृ यु हो जाती है। पर ितिल म के इस ार म टी अपने
पास रखी सुनहरी रे त से भरी पिसल को तोड़कर एक य इं ा को खोल
देती है। इं ा सुयश को आयन क मृितयां वापस कर देता है और शैफाली
के ारा कै पर के िलये, दया एक संदेश लेकर वहाँ से चला जाता है।
उधर एक दन जब शलाका अपने यान आकिडया म सो रही होती है,
तभी एक रह यमय साया उसके िसरहाने पर एक कागज रखकर चला जाता
है। जब शलाका सो कर उठती है तो उस कागज के टु कड़े पर बने ‘S’ के
िनशान को देख कर च क जाती है। इसके बाद शलाका, जे स को लेकर भारत
के उ ैन शहर म प ंच जाती है। जहां पर शारदा नाम क एक औरत से उसे
अमे रका म रहने वाले एक ि महे शमा के बारे म पता चलता है,
िजनके पास एक अ भुत बालक था, िजसका नाम देवोम था।
उधर कै पर, वा िण को अपनी माँ माया से िमलाता है। जहां माया
वा िण को ‘देवयु ’ नामक एक पु तक देती है, िजसम पृ वी पर रहने वाली
सभी महाशि य और दु शि धारक के नाम और उनक शि य क
जानका रयां थ ।
उधर ोम और ि काली, रा सताल म वेश कर िव ु ा से टकराते
ह, िजसम िव ु ा अपनी सभी जल शि य का योग करने के बाद भी
ोम को हरा नह पाती। यहाँ ोम का मुकाबला इं और शेषनाग जैसी
देव शि य से होता है।
दूसरी ओर हनुका, माया को ढू ंढता आ अराका ीप पर जा प ंचता
है, जहां उसका यु वु फा के साथ होता है। हनुका आसानी से वु फा को मार
देता है। वु फा को मारने के बाद हनुका सीनोर महल जा प ंचता है, परं तु
सुवया के मनाने पर वह लुफासा से यु नह करता। सुवया, हनुका को माया
का पता बता देती है और हनुका को ओलंपस पवत क ओर भेज देती है।
उधर माया, कै पर और वा िण के साथ ओलंपस पवत पर जाकर
ीक देवता जीयूष के सामने इस देवयु म शािमल ना होने क शत रखती
है। एक छोटी सी झड़प के बाद जीयूष, माया क बात मानने के िलये तैयार
हो जाता है। वह दूसरी ओर सनूरा, रोजर, मेलाइट और सुवया से अपने
बचपन क कहानी सुनाती है, िजसम लुफासा के िपता मुफासा ने उसे एक
यो ा बनाया था।
उधर अलबट सूखे कुं ए से िनकलने म कामयाब हो जाता है। तभी उसे
रा ते म एक-एक कर ऐमू और ूनो िमलते ह। अलबट ूनो और ऐमू क
सहायता से ितिल मा के अंदर वेश कर जाता है। दूसरी ओर सुयश सभी
लोग के साथ वादइं य तक प ंच जाता है और सभी क सि मिलत शि
के कारण वह इस इं य को भी पार कर जाता है। उधर कै र अपने िलये
एक शरीर का िनमाण करता है, िजसम ज़ेिन स िछपे तौर पर उसक मदद
करती है।
उधर नीलाभ, नीिलमा क सहायता से वीरभ के पास प ंच जाता है,
जहां भ काली उसक परी ा लेने के िलये उसका हाथ मांग लेती ह। हाथ
कटने के बाद भी नीलाभ, कसी कार से वीरभ को स करने म सफल
हो जाता है?
उधर वेगा और वीनस िपछले यु से सबक लेकर, अपने िलये एक ेस
तैयार करते ह। पर जब वह एक पाक म प ंचते ह, तो उन पर एलिनको,
एनम व फो हमला कर देते ह। जब वेगा और वीनस उन अंत र मानव से
हार जाते ह, उसी समय वहाँ पर कलाट और युगाका प ंच जाते ह। युगाका
अपनी शि य से एलिनको को मार देता है और वेगा व वीनस को लेकर
वहाँ से चला जाता है।
उधर सुयश सिहत सभी वचा क इं य वाले ितिल म म वेश करते
ह। जहां एक ार म कै पर िछपकर शैफाली से िमलता है और उसे अपने
लान के बारे म बताता है। शैफाली यह बात कसी से नह बताती? सभी
िमलकर उस ार को पार कर लेते ह।
उधर ओरस, ज़ेिन स क मदद से 25 वष आगे के समय म जाता है,
जहां उसे जेिनथ दखाई देती है, परं तु आ यजनक तरीके से जेिनथ ओरस
को नह पहचानती। ओरस को जेिनथ के ऑ फस म अपने िपता िगरोट भी
दखाई देते ह। यह देख ओरस पूरी तरह से उलझ जाता है।
दूसरी ओर शलाका, जे स को लेकर महे शमा से िमलने यूयाक
प ंच जाती है। वहाँ महे शमा बताता है, क देवोम िपछले कु छ दन से
कह गायब है? यूयाक म शलाका को एक और छोटा सा बालक सूयाश
िमलता है। शलाका को पता चल जाता है क सूयाश ही वह बालक है, िजसने
उसके कमरे म वह कागज रखा था। सूयाश शलाका को बताता है क उसने
अमृत क शीशी म रखा अमृत पी िलया है। शलाका, सूयाश को छोड़ वहाँ से
चली जाती है। बाद म आच शलाका को बताती है क देवोम का ही नाम
ोम है और उसने अमे रकन सी े ट स वस वाइन कर िलया है। आिखरी
बार ोम सन राइ जंग को ढू ंढने के िमशन पर गया था।
उधर सतयुग म देव के उ प होने के बाद, परम क आ ा
मान देव, ान को ा करने के िलये ीरसागर के जल म चले जाते
ह, जहां उ ह नारायण कण को देते ह। देव 1 हजार वष तक उस
कण से स पूण सृि क रचना करते ह। इसके प ात् वह उस कण को
एक सीप का िनमाण कर, उसे काले मोती म रखकर समु क गहराई म
िछपा देते ह। इस घटना के ब त समय बाद, एक नीली जलपरी क गलती से
उस काला मोती से एक जलपरी िनकलती है, िजसे वणा ीप के
राजकु मार मेघवण से यार हो जाता है। मेघवण उस जलपरी का नाम
लाव या रखता है। लाव या, मेघवण को काला मोती दखाने के िलये
जलपु ष बनाकर समु के अंदर ले जाती है।
उधर नोफोआ जाकर पोसाइडन को काला मोती के पास ले आता है,
जहां पोसाइडन जबरद ती लाव या से वह काला मोती छीन लेता है। बाद म
लाव या, मेघवण को लेकर कह चली जाती है।
उधर ऐले स ितिल मा म टी क गोली से जब मर जाता है, तो
उसे इं ा पुनः जीवन देता है। ऐले स वहाँ से िनकलकर कक व मकर रािश
के दरवाजे म वेश कर जाता है, जहां उसे एक िवशाल सी घड़ी का ितिल म
िमलता है। ऐले स अपनी बुि से दोन रािशय को परिजत कर जब आगे
बढ़ता है, तो वह फसलकर एक ऐसे कमरे म िगरता है, जहां वह प थर क
मू त म प रव तत हो जाता है।
दूसरी ओर वा िण, िव म को अपने सपने म देखती है, जहां वह
आसमान से िगरने वाले ओले से बचते ए मारा जाता है। वा िण यह सपना
देखकर घबरा जाती है। पर ऐसी ि थित म कै पर वा िण को सां वना देता
है। बाद म माया के कहने पर कै पर अपने माता-िपता को छु ड़ाने के िलये
अंडरव ड चला जाता है। तभी वा िण से शलाका अपनी मानिसक तरं ग से
स पक करती है और वह उसे बताती है क उसने िव म को यूयाक म
आकृ ित के साथ देखा था। बाद म शलाका, जे स के साथ, सूयाश का रह य
जानने के िलये पाताललोक क ओर चल देती है, जहां पर अि का नाम क
एक द पु तक रखी थी।
उधर नीलाभ, महादेव के कहे अनुसार भैरव से आशीवाद लेने के िलये
वाराणसी जा प ंचता है, जहां कु छ िविच प रि थितय म वह एक तांि क
तं ालु के जाल म फं स जाता है? तं ालु, नीलाभ को एक छोटी सी काँच क
बोतल म बंद कर देता है। परं तु तं ालु, नीिलमा के बारे म नह जानता था।
नीिलमा, ि पुरसुंदरी का प धरकर तं ालु को मूख बनाते ए नीलाभ को
उसके चंगुल से छु ड़ा लेती है। िजसके कारण नीलाभ, भैरव से आशीवाद ा
करने म सफल हो जाता है।
दूसरी ओर आकृ ित, िव म को लेकर यूयाक के एक होटल म रह रही
होती है। आकृ ित िपछले दन वयं पर आई मुसीबत के बारे म सोचती है।
उसी समय िव म अपने हाथ म पहनी नीली अंगूठी को उतार देता है।
आकृ ित यह देखकर घबरा जाती है। वह जानती है क कु छ ही समय म िव म
क मृितयां वापस आ जायगी? इसिलये वह उसे एक कहानी सुनाकर
अराका जाने के िलये तैयार कर लेती है। परं तु उसी समय आकृ ित के माकट
जाने के बाद वा िण, िव म से स पक थािपत करने म कामयाब हो जाती है
और वह अपनी शि य से िव म क मृितयां भी वापस कर देती है।
उधर तौफ क के ितिल मा म मारे जाने के बाद जब जेिनथ वहाँ से
चली जाती है, तो तौफ क को भी इं ा अपनी शि य से जीिवत कर देता
है। वहाँ से िनकलकर तौफ क भी रािशय के ितिल म म वेश कर जाता है,
जहां उसका सामना धनु और तुला रािश से होता है। तौफ क अपनी
िनशानेबाजी और बुि के दम पर उन दोन रािशय को परा त कर
ितिल मा का वह ार पार लेता है।
वह दूसरी ओर भिव य म गया ओरस, जब ज़ेिन स को याद करता
है, तो वह नह आती। इस मौके का सदुपयोग कर ओरस, उस समयकाल क
जेिनथ के घर जाने क सोचता है, पर जब वह जेिनथ के घर प ंचता है, तो
अचानक से उसे जेिनथ के घर म सन राइ जंग के सभी लोग क फोटो
दखाई देती है, िजनम से कु छ फोटो पर ॉस का िनशान भी लगा होता है।
तभी ओरस को वहाँ पर जेिनथ दखाई देती है, जो क अपना लैपटाप लेकर
अपने ऑ फस चली जाती है। जेिनथ के जाने के बाद ओरस भी जेिनथ का
पीछा करता आ उसके ऑ फस प ंचता है, जहां उसे पता चलता है क
जेिनथ तो 2 दन पहले ही समयच म फं स कर मारी जा चुक है। ओरस
समझ नह पता क कु छ ही देर म वह 1 वष 2 दन आगे कै से आ गया? तभी
ओरस वहाँ से गायब होकर वापस लैकून म आ जाता है।
उधर जेिनथ ितिल मा म वृष और कु भ रािश वाले ार को चुनती है।
उस ार म वेश करने के बाद जेिनथ वयं को एक बुल फाइ टं ग वाले मैदान
म पाती है, जहां एक बैल, नृ यांगना, कु हार व एक जादूगर के ारा एक
ितिल म बना होता है। जेिनथ अपने नृ यकौशल व दमाग का योग कर उस
ितिल म को पार करने म सफल हो जाती है। ार को पार करने के बाद
जेिनथ क मुलाकात ऐले स और तौफ क से भी हो जाती है। जेिनथ दोन को
जीिवत देखकर खुश हो जाती है।
उधर रोजर जब सीनोर महल के अपने कमरे म बैठा होता है, तो एक
बार फर उसक नािभ से सुनहरी रोशनी िनकलने लगती है। इस बार उस
सुनहरी राशनी से एक ार बन जाता है, जो रोजर को सीरीिनया के जंगल
म िलये जाता है। वहाँ रोजर क मुलाकात मेलाइट क 4 बहन से होती है,
जो क एक शेर िलयो के साथ उस जंगल म घूम रह थ । रोजर अंजाने म ही
िलयो को अपने सुनहरे ार से सीनोर महल भेज देता है। वहाँ पर रोजर को
मेलाइट क बहन से मेलाइट के िनि फया महल के बारे म पता चलता है, जो
क उसी सीरीिनया के जंगल म ही कह था? वहाँ अमारा, रोजर को अपने
बाल से िनकालकर एक हेयर ि लप देती है और उस हेयर ि लप को मेलाइट
को देने के िलये कहती है। इसके बाद रोजर मेलाइट का रह य जानने के िलये
उसके िनि फया महल क ओर चल देता है।
वह दूसरी ओर टी ितिल मा म उपि थत वृि क और िमथुन
रािशय वाले ार का चुनाव करती है। परं तु जब टी उस ार म वेश
करती है, तो वह वयं को रोम के एक िस ाचीन शहर ॉय म पाती है।
जहां पर ोजन हास वाली कथा जैसा वातावरण था। टी अपनी सूझबूझ
और फू त क वजह से उस शहर क पहेली को हल कर लेती है। यहाँ पर
टी को अंत म ऐले स भी िमल जाता है, जो क वहाँ उपि थत एक मू त
के अंदर िछपा होता है। उस ार को पार कर टी और ऐले स भी तौफ क
व जेिनथ से आकर िमल जाते ह।
उधर शलाका जे स के साथ भारत के औरं गाबाद म ि थत कै लाश
मं दर म जाती है। कु छ गु रा त को पारकर शलाका जे स को लेकर
पाताललोक म वेश कर जाती है। पाताललोक म उपि थत अि का पु तक
के मा यम से शलाका सूयाश, ोम व िव म के बारे म जान जाती है। अब
वह सबसे पहले ोम से िमलने के िलये रा सलोक क ओर चल देती है।
दूसरी ओर ोम, ि काली को लेकर रा सलोक क ओर चल देता है,
जहां क उसे िव ु ा से ि तीय व तृतीय चरण का यु लड़ना था। ोम व
ि काली रा सताल क भूल-भुलैया से िनकलकर िव ु ा के पास प ंच जाते
ह, जहां ोम का मुकाबला एक-एक कर हि तका, र कं ट जैसे भयानक
रा स से होता है, पर ोम देवता क सहायता से उन सभी रा स को
हरा देता है।
उधर सुयश ितिल मा म संह व मेष रािश के ार म वेश कर जाता
है, जहां वह वयं को एक िवशाल बाथटब म पाता है। सुयश वहाँ उपि थत
सन राइ जंग क फोटो से सन राइ जंग िनकाल लेता है और कसी कार उस
बाथटब से बाहर आ जाता है। उसी थान पर सुयश को ऐमू भी िमल जाता
है। बाद म सुयश एक शेर पर बैठकर एक ऐसे जंगल म प ंच जाता है, जहां
उसका यु ीक देवता एरस से होता है। पर सुयश देवता नर संह क मदद
से उस ार को आसानी से पार कर लेता है।
वह दूसरी ओर वीनस, सामरा रा य के अपने कमरे म बैठी होती है
क उसे बाहर उ ान म एक इं धनुष दखाई देता है। वीनस जब उस रह य
को जानने के िलये एक सतरं गी काँच क िततली के पास प ंचती है, तो वह
सतरं गी िततली वीनस को अपने पंख म बंद कर लेती है। इसके बाद वह
िततली अपने सातो रं ग से एक नकली वीनस बनाती है और उसे वेगा के
पास छोड़, वह असली वीनस को लेकर आसमान म उड़ जाती है।
उधर िव म को अपनी सभी पुरानी याद वापस आ जाती ह। इसी के
साथ वह यह भी जान जाता है क उसक मृितयां एक अंत र के जीव
रं ग क वजह से ग थ । रं गो ने िव म को मरणास अव था म समु म
फक दया था। अब िव म को आकृ ित पर ब त गु सा आता है, परं तु फर भी
वह आकृ ित के सामने अपना गु सा जािहर नह करता। अब वह आकृ ित के
साथ अराका क ओर चल देता है, जहां वा िण उसका बेस ी से इं तजार कर
रही थी।
वह एक ओर जब सीनोर महल के कमरे म मेलाइट, सुवया और
सनूरा बैठकर आपस म बात कर रह होती ह, तो उ ह रोजर के कमरे से कु छ
भारी व तु से िगरने क आवाज आती है? सुवया जब रोजर के कमरे म
प ंचती है, तो उसे वहाँ िलयो दखाई देता है, जो रोजर के सुनहरे ार से,
अंजान म ही सीनोर महल आ प ंचा था। सुवया िलयो से बात करके उसे
अपने िनयं ण म ले लेती है। उसी समय वहाँ पर वा िण, हनुका व लुफासा
भी आ जाते ह। अब सभी वहाँ बैठकर िव म व आकृ ित इं तजार करने लगते
ह।
उधर आकृ ित व िव म जब अराका के िब कु ल पास प ंच जाते ह, तो
उन पर 2 अंत र के जीव ओलैनो व वूडान आ मण कर देते ह। ले कन तभी
उ ह बचाने के िलये वहाँ पर सुवया, वा िण और हनुका भी आ जाते ह। सभी
के सि मिलत यास से ओलैनो मारा जाता है और वूडान वहाँ से भाग जाता
है। बाद म वा िण, आकृ ित को उसके पु के बारे म बताती है और उसे लेकर
सीनोर महल आ जाती है। वा िण वहाँ सभी को देवयु के बारे म बताकर
ोम से िमलने के िलये िहमालय क ओर चली जाती है।
उधर ितिल मा म शैफाली ने िजस ार को चुना, उसम मीन और
क या रािशयां िछप थ । शैफाली जब उस ार म प ंचती है, तो उसे वहाँ
पर एक राजा क 3 राजकु मा रय को ढू ंढकर लाने का काय िमलता है।
शैफाली पहली राजकु मारी अवनी को लाने के िलये एक छोटे से ीप पर
प ंच जाती है, जहां पर एक रह यमई मछली शैफाली को उस ीप सिहत
िनगल जाती है, पर शैफाली अपना दमाग लगाकर उस ितिल मी मछली से
बच जाती है और राजकु मारी अवनी को उसके संहासन तक प ंचा देती है।
उधर रा सताल म ोम व िव ु ा क शि य का टकराव जारी
था। इसी के अंतगत िव ु ा ोम पर एक दै य टकाबू के ारा हमला
करवाती है। टकाबू अपनी ि ल मशीन के ारा ोम को जमीन के अंदर
फं सा देता है, पर भूदेवी व अ कोण क मदद से ोम इस खतरे को भी पार
कर जाता है। अब िव ु ा एक ाचीन जलदै य ित मंगला, यमदेव व
कालतरं ग से ोम पर आ मण करवाती है, परं तु वह फर भी िवफल हो
जाती है। यह देख िव ु ा ोिधत होकर देवी महाकाली का आहवान करती
है। देवी महाकाली, समय को रोककर ोम का िसर काट देती ह। यह दृ य
देखकर शलाका ोध म, िव ु ा को अपनी अि जाल म फं सा देती है, पर
इससे पहले क शलाका िव ु ा को मार पाती, ि काली को िमले आशीवाद
के कारण ोम पुनः जीिवत हो जाता है। इस घटना से डरकर िव ु ा
ि तीय चरण क अपनी हार को वीकार कर लेती है। तभी वा िण भी आकर
उनसे िमल जाती है। अब सभी तृतीय चरण के यु के िलये िव ु ा के महल
म वेश करते ह। वहाँ िव ु ा शतरं ज के मोहर से मि तका का िनमाण
कर सभी को फं सा देती है, परं तु ोम अपनी आिखरी शि का योग कर
मि तका से िनकलने म कामयाब हो जाता है। अब सभी िमलकर अपनी
स शि य से िव ु ा का ि सपमुखी दंड छीन लेते ह, िजससे िव ु ा
तृतीय चरण म भी अपनी हार वीकार कर लेती है। वहाँ से ोम, ि शाल व
किलका को छु ड़ाकर िव ु ा के पु कालबा को भी अपने अिधकार म ले
लेता है। वहाँ से िनकलने के बाद शलाका, सूयाश को ढू ंढने के िलये अमे रका
क ओर चल देती है, जब क वा िण सभी को लेकर अराका ीप क ओर
चली जाती है।
दूसरी ओर शैफाली दूसरी राजकु मारी सुगंधा को ढू ंढने के िलये एक
िवशाल उ ान म प ंच जाती है, जहां पर उसे पायल पहने एक िततली
दखाई देती है। बाद म शैफाली एक फू ल के ने टर को िछड़ककर, उस
िततली को राजकु मारी सुगंधा बना देती है और उसे भी अपने महल प ंचा
देती है। इसके प ात् शैफाली तीसरी राजकु मारी रि म क खोज म एक
घाटी म प ंच जाती है, जहां पर राजकु मारी रि म एक िवशाल काँच के
लोब म बंद होती है। शैफाली बफ के बुलबुले म वेश कर राजकु मारी रि म
को छु ड़ा लेती है, पर तभी एक भयानक असुर गजासुर, शैफाली के सामने
कट हो जाता है। शैफाली, मै ा क कोर शि का योगकर गजासुर से यु
करना शु कर देती है। ठीक उसी समय अलबट, ूनो को लेकर वहाँ प ंच
जाता है। अब सभी िमलकर गजासुर को मार देते ह और उस ितिल म के ार
को पार कर लेते ह।
दूसरी ओर नीलाभ, महादेव के अगले अवतार हनुमान से आशीवाद
ा करने के िलये, गंधमादन पवत प ंच जाता है, परं तु हनुमान, नीलाभ को
अपने भु ी राम के बाल पी मू त के दशन करवाने के िलये कहते ह।
नीलाभ, हनुमान क इ छा पूण करने के िलये उ ह लेकर ग णा पवत क
ओर चल देता है। नीलाभ इस काय को फलीभूत करने के िलये असंभव दख
रही, वै णव झील को पार करता है।
उधर सुयश सिहत सभी ितिल मा के अगले ार म वेश कर जाते ह,
जहां उ ह भौितक िव ान के 7 सू के ारा कै लाश पवत पी महादेव क
जटा से, च मा को बांधने का काय िमलता है। सभी के सि मिलत यास
से असंभव सा दख रहा काय भी पूण हो जाता है, पर इस काय म एक थान
पर ओरस को भी सबक मदद करनी पड़ती है।
दूसरी ओर नीलाभ जब वै णव झील को पार कर रहा होता है, तो
उसका रा ता सुदशन च रोक लेता है। परं तु नीलाभ, शेषनाग क सहायता
लेकर आिखरकार वै णव झील को पार कर ही लेता है। जब नीलाभ ग णा
पवत पर प ंचता है, तो एक शत के अनुसार ग णदेव, नीलाभ के शरीर के
माँस का एक टु कड़ा खा लेते ह। िजसके फल व प ी राम क बाल पी मू त
लाते समय, नीलाभ शि हीन होकर िगर जाता है। नीलाभ के शि हीन होते
ही, ी राम क मू त वापस दशावतार मं दर म प ंच जाती है। नीलाभ को
महसूस होता है क अब वह हनुमान क शत को पूरी नह कर पायेगा, परं तु
आिखरी समय म नीलाभ, हनुमान को भु ी राम क मू त के दशन कराने
म कामयाब हो जाता है और हनुमान का आशीवाद लेकर महादेव के अगले
अवतार िप पलाद को ढू ंढने के िलये चल देता है।
उधर ओरस जब लैकून म प ंचता है, तो उसे ज़ेिन स कह दखाई
नह देती? यह देख ओरस लैकून म ि थत संरि का म जा प ंचता है। वहाँ
एक फ नी स प ी क मदद से ओरस एक रह य को जान जाता है, क
समयच म फं सने के बाद जेिनथ ही ज़ेिन स बन गई थी। ओरस को वहाँ
अतीत का डे फानो ह भी दखाई देता है। जहां पर िगरोट व ज़ेिन स को
लेकर नोवान कह चले जाते ह। इतना देखकर ओरस लैकून म वापस आ
जाता है।
दूसरी ओर रोजर, मेलाइट के िनि फया महल म प ंच जाता है, जहां
पर उसे एक चलिच के मा यम से मेलाइट का बचपन दखाई देता है। उस
समयकाल म मेलाइट एक हाइ ा ैगन से खेल रही होती है, जो क मै ा का
गो होता है। इसके प ात् रोजर को अपनी नािभ से िनकलने वाले काश
का रह य भी पता चल जाता है। तभी रोजर को यह महसूस होता है क
उसके पीछे कोई है? जब रोजर पीछे पलटता है, तो उसे अपने पीछे मेलाइट
खड़ी ई दखाई देती है।
उधर शलाका, सूयाश का रह य जानने के िलये यूयाक म ि थत
चे टनट रज पाक प ंचती है और उसी एटनल लेम म वेश कर जाती है,
िजससे िनकलते ए उसने सूयाश को देखा था। शलाका वहाँ से भिव य म
प ंच जाती है, जहां पर टे चू ऑफ िलबट के पास सूयाश एक सपमानव से
यु कर रहा था। शलाका भी सूयाश को बचाने के िलये उस यु म शािमल
हो जाती है। तभी शलाका को चोट लग जाती है। ले कन इससे पहले क वह
नीचे िगरती, उसे सुयश आकर बचा लेता है। यहाँ पर शलाका के सामने एक
और रह यो ाटन होता है, उसे पता चल जाता है क सूयाश उसका व सुयश
का ही पु है। आिखर म सुयश और शलाका िमलकर उस सपमानव का अंत
करते ह और वहाँ से गायब हो जाते ह। परं तु इस यु के दौरान जब सूयाश
अपनी एक समयशि का योग करता है, तो वह समयशि , सपमानव के
च वात से िलपटकर, वहाँ मौजूद एक घड़ी म वेश कर जाती है। बाद म
उसी घड़ी को न हा िगरोट छू लेता है, िजससे वह समयशि िगरोट के शरीर
म वेश कर जाती है।
उधर 20,053 वष पहले क एक घटना म देव, महादेव के कहे
अनुसार, ीरसागर म ासन ढू ंढने के िलये जाते ह, जहां पर उ ह ासन
के साथ-साथ, एक काँच के कलश म 2 नागदंत दखाई देते ह। वहाँ पर
स पु तक क सहायता से देव को पृ वी के भिव य का पता चलता है।
देव पृ वी का िवनाशकारी भिव य देखकर चंितत हो जाते ह और अपनी
था महादेव को बताते ह। महादेव देव को भागवी के बारे म बताते ह।
उधर दूसरी ओर महादेव से ा समयशि के ारा जब माता
पावती भिव य देख रही होती ह, तभी उनक आँख पर एक गुलाब क पंखुड़ी
आकर िचपक जाती है। माता पावती घबराकर अपनी आँख खोल देती ह,
िजसके कारण महादेव क समयशि उस गुलाब क पंखुड़ी म समा जाती है।
इस कार गुलाब क पंखुड़ी के ारा एक द क या का ज म होता है।
माता पावती इस क या का नाम भागवी रख देती ह। महादेव के कहे अनुसार
भागवी को 3 वष के प ात वापस से महादेव के पास आना था। यह जानकर
भागवी समयशि के मा यम से वयं का भिव य देखना शु हो जाती है।
दूसरी ओर जब ‘नासा’ के वै ािनक अपने अंत र अनुसंधान क म
होते ह, तो उ ह ‘िम क वे’ आकाशगंगा के एक िह से म एक लैक होल का
ज म होता दखाई देता है। सबके देखते ही देखते वह लैक होल फट कर
िबखर जाता है। लैक होल के िबखरने से असं य बंद ु ांड म िबखरकर
पृ वी क ओर आने लगते ह। तभी वा िण सभी को बताती है, क वह बंद ु
नह बि क दूसरी आकाशगंगा के यान ह, जो पृ वी को न करने के िलये
पृ वी क ओर आ रहे ह। वा िण सभी देश को सावधान कर इस यु म
िह सा ना लेने के िलये कहती है।
वह दूसरी ओर सुयश सिहत सभी ितिल मा के एक ऐसे भाग म फं स
जाते ह, जहां क एक रोलर को टर क या ा करते ए, सभी एक िवशाल
यो ा माकश से टकरा जाते ह। माकश एक अ यंत शि शाली 7 िसर वाला
यो ा था। सभी अपनी सूझबूझ व ऐमू क मदद से माकश को हराने म सफल
हो जाते ह।
उधर चं ोदय रा य का राजा चं वीर माँ आ दशि के ि शूल के
कारण यु तो जीत जाता है, परं तु उसके सभी सैिनक मारे जाते ह। यु क
िवभीिषका से चंितत चं वीर वयं को समा करने चलता है, परं तु माँ
आ दशि वयं कट होकर, चं वीर को ऐसा करने से रोक देती ह। माँ
आ दशि के समझाने से चं वीर वयं को समा नह करता, परं तु माता का
दया लयंकारी ि शूल अव य फक देता है। चं वीर माँ आ दशि से
भिव य को देखने क शि मांगता है।
दूसरी ओर ओरस िछपकर लैकून के एक ऐसे भाग म प ंचता है, जहां
पर वह ज़ेिन स को कै र से बात करते देख लेता है। ओरस को पता चल
जाता है क ज़ेिन स उसके साथ धोका कर रही है, पर वह ज़ेिन स के सामने
इस बात को जािहर नह होने देता क उसे सबकु छ पता चल गया है। उधर
20,054 वष पहले देवराज इं क नगरी अमरावती पर दै यराज वृ ासुर
आ मण कर देता है और देव के आशीवाद व प इं व सूय को बुरी
तरह से हरा देता है।
उधर एक ओर जे स जब शलाका के एटनल लेम म कू दने के बाद
आके डया वापस आ रहा होता है, तभी उसक यू ान कार पर एक हमला
होता है और इसी के साथ जे स एक अ ात थान पर प ंच जाता है।
वह दूसरी ओर ितिल मा म सभी को आसमान म एक बड़ी सी आँख
दखाई देती है। शैफाली सभी को बताती है क वह अंत र का सबसे बड़ा
जीव कु वान है। तभी सबको पता चलता है क इस बार कै र ने सभी को
असली के बु ह पर भेज दया है। यह देख जेिनथ न ा से मदद मांगती
है। वह जेिनथ को न ा क स ाई पता चल जाती है। बाद म ओरस क
वै ािनक शि य क मदद से सभी कु वान पर हमला कर देते ह। तभी उस
ह पर पड़ी एक उड़ननत तरी वतः ही अपने थान से िहलती है और
कु वान का पेट फाड़कर दूसरी ओर िनकल जाती है।
उधर चं वीर जब अपने रा य को वापस जा रहा होता है, तो उसे
बीच वन म कसी ी के गाने क आवाज सुनाई देती है। चं वीर उस आवाज
का पीछा करते ए भागवी से जा िमलता है। भागवी, चं वीर को लेकर
ि कालदश मं दर म प ंचती है, जहां चं वीर को अपने ही भिव य क
त वीर दखाई देती है। चं वीर को पता चल जाता है क भागवी के पास
भिव य को देखने क शि है और उसी शि के मा यम से भागवी ने
चं वीर के भिव य को देख िलया था। भिव य म चं वीर को अपनी 2 पुि यां
भी दखाई देती ह।
उधर मकोटा जब अपने महल म बैठा होता है, उसी समय लुफासा
अपने सािथय के साथ मकोटा पर हमला बोल देता है। मकोटा अपनी
िविच शि य से सभी का सामना करता है, परं तु इस यु के दौरान
मकोटा का सेवक ग जालो, हनुका के हाथ मारा जाता है। मकोटा अपनी
मायावी शि य से वयं को ब त देर तक बचाये रखता है और फर जब वह
वंय को हारता आ महसूस करता है, तो वह उस थान से भागकर
िपरािमड म प ंच जाता है। परं तु वा िण के िविच लान के कारण आकृ ित
पहले से ही िपरािमड के पास मौजूद थी। आकृ ित मकोटा के साथ िपरािमड के
अंदर वेश कर जाती है और अपने च के मा यम से मकोटा के सभी
िपरािमड का िवनाश कर देती है। यह देख जैगन गु साकर आकृ ित पर
आ मण कर देता है, परं तु ठीक उसी समय वा िण, ोम व ि काली को
लेकर वहाँ प ंच जाती है। ोम अपनी दैवीय शि य से जैगन को मार देता
है, परं तु जैगन के मरने के पहले ही वहाँ िव ु ा अदृ य प म प ंच जाती है
और मकोटा को वहाँ से भगा देती है।
वह दूसरी ओर वीनस वयं को एक िविच कमरे म पाती है। वीनस
उस कमरे म मौजूद टीकर के मा यम से कु छ देर के िलये उस िविच कमरे
से बाहर आ जाती है, परं तु वह एक िविच कार का मायाजाल था, िजसम
फं सकर वीनस पुनः उसी कमरे म प ंच जाती है। उधर कै पर अपने माता-
िपता को बचाने के िलये का डेरा वालामुखी के रा ते अंडरव ड म वेश
कर जाता है, परं तु अंडरव ड म वेश करते ही कै पर अपनी ही परछाई के
जाल म फं सकर जमीन म कै द हो जाता है।
उधर इं , वृ ासुर को मारने के िलये मह ष दधीिच से उनक हि य
का दान मांगते ह। मह ष दधीिच के ाण यागने के बाद उनक पि
गभि तनी भी वयं को अि म िवलीन कर देती ह। गभि तनी के गभ को
महादेव िप पलाद का नाम देकर पीपल के वृ क कोटर म रख देते ह।
वह दूसरी ओर ितिल मा म सभी एक मजाल म फं स जाते ह। जहां
एक ओर सुयश, शैफाली, जेिनथ, ऐले स, टी अपने-अपने मजाल को
पार कर लेते ह, उधर अलबट, अपनी पि मा रया को देखते ए कै र के
हाथ मारा जाता है। इस ार म तौफ क का कु छ भी पता नह चलता?
इसिलये बाक के लोग इस ार से आगे क ओर बढ़ जाते ह।
उधर रोजर को जांचने के िलये आटिमस, मेलाइट बनकर रोजर पर
आ मण करती है, परं तु रोजर अपने दमाग का इ तेमाल कर आटिमस को
ही एक जाल म उलझा देता है। इसके बाद आटिमस, रोजर को ैगन के
रह य के बारे म बताती है। आटिमस, रोजर को ैगन पवत पर जाकर ैगन
माँ से िमलने के िलये कहती है। वह एक ओर जे स कसी तरह यू ान से
िनकलकर उस रह यमई धरती पर आगे बढ़ता है? तभी जे स को बूमरग के
आकार का एक यान दखाई देता है। जब जे स उस यान के पास प ंचता है,
तो उससे िनकली एक रोशनी म फं सकर जे स उस यान के अंदर चला जाता
है।
उधर दूसरी ओर अ रगंधा का राजा मेघवण, जब वणा ीप के तट
पर बैठा, लाव या को याद कर रहा होता है, तो उसी समय, उसे आसमान से
उतरता एक रथ दखाई देता है। मेघवण उस रथ का पीछा करते ए वणा
ीप के जंगल म प ंच जाता है। वहाँ मेघवण को सूयदेव दखाई देते ह, जो
मेघवण क सहायता से पंचशूल का िनमाण करते ह। सूयदेव वहाँ से जाने के
पहले मेघवण को व णम मिण दे देते ह। सूयदेव कहते ह क इसी व णम
मिण क सहायता से तुम लाव या को ढू ंढ लोगे।
उधर चं ोदय वन म घूम रही भागवी को िनकुं भ व नीलांगी दखाई
देते ह, जो आपस म एक नागदंत कथा क बात कर रहे होते ह। भागवी दोन
क बात सुन नागदंत कथा का रह य जानने के िलये ीरसागर म वेश कर
जाती है। जहां भागवी अपनी समयशि से नागदंत कथा का रह य तो जान
जाती है, परं तु महादेव उसी समय भागवी को ासन म प रव तत कर देते
ह।
वह दूसरी ओर नीलाभ, मह ष िप पलाद से आशीवाद ा करने के
उ े य से नैिमषार य के वन म प ंच जाता है। जहां मह ष िप पलाद,
नीलाभ को पीपल के 8 प े देकर, एक काय करने के िलये गोमुखी जलाशय
भेज देते ह। जहां नीलाभ का सामना एक ऐसे िविच मेढक से होता है, जो
लोग को अपनी मायावी शि से छोटा करके , उ ह एक काँच के बतन म कै द
कर लेता था। नीलाभ अपने मि त क का योग कर उस मेढक को मार देता
है।
उधर भिव य म सूयाश आकिडया म रखे ासन का रह य जान
जाता है और भागवी को वतं करने के उ े य से ासन पर अपनी
सूयशि का वार कर देता है, परं तु सूयशि के वार के फल व प ासन
टू टकर िबखर जाता है और भागवी क समयशि सूयाश के अंदर वेश कर
जाती है।
उधर ितिल मा म सुयश सिहत सभी स त व के बनाये मायाजाल म
फं स जाते ह, जहां ूनो व ऐमू क मृ यु के बाद शैफाली व सुयश क शि यां
कु छ पल के जागृत हो जाती ह और उ ह शि य का योग करके सभी
स त व को हराने म सफल हो जाते ह। वह दूसरी ओर वीनस एक बार
फर दूसरे टीकर को छू कर उस मायावी कमरे से बाहर आ जाती है। इस
समय वीनस वयं को एक जंगल म पाती है, जहां पर वीनस को जोजो नाम
का एक बौना िमलता है। जोजो, वीनस को लेकर िनटी हाऊस म प ंच
जाता है। जहां वीनस िछपकर यह जान लेती है क िनटी हाऊस, उन तीन
शैतान बौन का है। परं तु इससे पहले क वीनस उस घर से भागने का कोई
उपाय कर पाती? क तभी जोजो के दये फल के जूस को पीकर वीनस
बेहोश हो जाती है।
वह एक ओर मकोटा, िव ु ा से िमलने के िलये रा सताल प ंच
जाता है। जहां िव ु ा, मकोटा को स पु तक के बारे म बताती है। िव ु ा,
मकोटा को अंत र के जीव को अपनी ओर िमलाने का लान बताती है।
उधर शलाका भिव य म सूयाश का पीछा करते ए सुयश के पास प ंच
जाती है। जहां उसे पता चलता है क ितिल मा को पार करने म जेिनथ,
शैफाली व सुयश ही बचे थे। उस थान पर शलाका के सामने कई
रह यो ाटन होते ह, जहां शलाका को यह भी पता चलता है क सूयाश ने
ासन को न कर दया है। वहाँ शलाका सूयाश को वचन देती है क जब
तक वह भिव य क शलाका को ढू ंढ नह देती, तब तक वह भिव य से नह
जायेगी।
अब आगे प ढ़ये ...........................
◆ ◆ ◆
चैपटर-2
7आ य

ितिल मा 7.61

सु देखने मयशशिनसिहतहसभी ितिल मा के िजस ार म िनकले, वह ार


सा नजारा तुत कर रहा था। शिन ह का
आसमान ह के पीले रं ग का था। सूय क रोशनी म भी आसमान म
ि थत शिन ह का वलय ( रं ग) प देखा जा सकता था।
शिन ह के आसमान म अनेक चं मा साफ दखाई दे रहे थे, परं तु
आशा के िवपरीत अंदर से यह ह काफ हरा-भरा दख रहा था और यह सब
कै र क क पनाशि का एक उदाहरण था।
शिन ह के आसमान पर नजर डालने के बाद, सबक नजर ह क
जमीन क ओर ग ।
इस ह का िनमाण कै र ने पृ वी क ही भांित कया था।
इस समय सुयश सिहत सभी एक सुंदर सी घाटी म खड़े थे। चारो ओर
हरे -भरे पेड़ थे, जो घाटी क सुंदरता को बढ़ा रहे थे। यह बात अलग थी क
कसी ने भी इस कार के पेड़ को नह देखा था? अिधकतर पेड़ के प े
आकार म बड़े व कार म कु छ अलग से दखाई दे रहे थे?
तभी सबक िनगाह उन पेड़ के म य बने, एक िवशाल ार क ओर
गई। वह ार कसी िवशाल रा य का वेश ार लग रहा था? उस ार के
एक ओर अंदर जाने के िलये, एक छोटा सा दरवाजा भी बना था।
छोटा दरवाजा इस समय खुला आ था। उस िवशाल ार के अंदर
या है? यह बाहर से देखकर समझना मुि कल था, य क वेश ार के
चारो ओर लगभग 35 फु ट ऊंची, प थर से िन मत एक दीवार दख रही थी।
वेश ार के ऊपर बड़े-बड़े अं ेजी के अ र म ‘पि मी ार’ िलखा
था।
वह ऊंची दीवार ब त से पेड़ क बेल से ढक ई नजर आ रही थी।
“इतनी सुंदर घाटी के म य यह िवशाल ार कै सा है?” ऐले स ने
सुयश क ओर देखते ए कहा- “ या यह कसी कार के रा य क सीमा है?
और यह ार उस रा य का वेश ार है?”
“पता नह ... पर िबना अंदर गये हम बाहर से इसका अंदाजा नह
लगा सकते।” सुयश ने दीवार पर दूर तक दृि डालते ए कहा- “वैसे भी
ितिल मा के इस ार म, हम एक बार फर शि हीन हो गये ह। इसिलये
लग रहा है क इस ार म दमाग का अिधक योग होने वाला है?”
“चलो, फर देर ना करते ए अंदर क ओर चलते ह।” टी ने यह
कहा और ऐले स का हाथ पकड़कर, िबना डरे ए उस छोटे से दरवाजे के
अंदर चली गई।
टी और ऐले स को अंदर जाता देख, जेिनथ, शैफाली व सुयश भी
अंदर क ओर चल दये।
दरवाजे के अंदर वेश करते ही सभी को सामने चौड़ा सा, प थर से
बना एक गिलयारा दखाई दया।
“यह गिलयारा तो कसी िवशाल कले के वेश पथ क भांित लग
रहा है?” शैफाली ने चारो ओर देखते ए कहा।
“अरे वह देखो, वहाँ एक खंभे पर कसी कार का मानिच लगा
दखाई दे रहा है? यह ठीक वैसा है, जैसा क कसी पयटन थल पर लगा
होता है?” जेिनथ ने एक ओर इशारा करते ए कहा।
“पयटन थल!” सुयश को यह श द सुन अचानक एक झटका सा लगा
और वह पुनः पलटकर उस िवशाल दीवार को देखने लगा।
“अरे ! .... यह दीवार तो िब कु ल चीन क दीवार क भांित महसूस हो
रही है।” सुयश के श द म आ य नजर आ रहा था।
सुयश के श द सुन सभी पीछे पलट गये और उस दीवार को देखने
लगे।
“कै टे न, आप सही कह रहे ह।” टी ने कहा- “यह िब कु ल चीन क
दीवार जैसी ही है .... तो या कै र ने इस बार हम चीन के कसी सा ा य
म फं साया है?”
“मुझे लगता है क हम पहले उस मानिच को देखना होगा।” ऐले स
ने कहा- “शायद उससे कोई रह य खुल जाये?”
ऐले स क बात सुन सभी वापस पलटे और उस मानिच के पास जा
प ंचे।
पूरा मानिच गोलाकार था। मानिच म सभी दशा को दशाया
गया था। मानिच के बीचोबीच म एक िवशाल सरोवर बना दखाई दे रहा
था, िजसके चारो ओर िव के 7 आ य बने ए थे और वह आ य थे-
1) मा चू-िप चू के खंडहर
2) पे ा शहर
3) कोलोिसयम
4) िचचेन-इ ज़ा िपरािमड
5) चीन क दीवार
6) ताजमहल
7) जीसस ाइ ट क मू त
“यहाँ पर तो िव के 7 आ य बने ए ह।” जेिनथ ने मानिच के
अंदर देखते ए कहा- “और यह सभी आ य इस सा ा य के अंदर ही
दखाई दे रहे ह। इ ह देखकर लग रहा है क इस बार का ार कु छ अलग
होने वाला है?”
“यहाँ पर मानिच म भी चीन क दीवार को, इस रा य क पि मी
दशा म ही दखाया गया है और हम भी अभी पि मी ार से अंदर क ओर
आए ह।” टी ने कहा।
पूरे मानिच को देखने के बाद शैफाली बोल उठी- “यह पूरा रा य
काफ बड़ा है और 7 ख ड म बना है। इस मानिच को देखने के बाद यह तो
समझ म आ गया, क हम एक-एक कर सभी आ य वाली जगह पर जाना
होगा, परं तु यहाँ कह पर यह नह िलखा? क सबसे पहले कस थान पर
जाना है? इसिलये इसका चुनाव हम वयं करना होगा।”
“तो फर य ना हम सबसे पहले चीन क दीवार को ही यान से देख
ल?” ऐले स ने कहा- “ य क एक तो हम इसी ार से अंदर वेश कये ह
और दूसरा क यह दीवार ही इस समय हमारे सबसे नजदीक है।”
सभी को ऐले स क बात काफ अ छी लगी, इसिलये सभी पलटकर
वापस चीन क दीवार के पास आ गये और उसे यान से देखने लगे।
काफ देर तक देखने के बाद भी, कसी को उस दीवार म कु छ भी
अनोखा नजर नह आया?
“कै टे न, इस दीवार म तो कु छ भी ऐसा नह है, िजसे हम ितिल मा
का भाग समझ? या कोई इस दीवार के बारे म कु छ बात बता सकता है? हो
सकता है क उससे कु छ रह य क बात पता चल जाये?” जेिनथ ने दूर-दूर
तक अपनी नजर दौड़ाते ए कहा।
जेिनथ क बात सुन शैफाली ने बोलना शु कर दया- “चीन क
दीवार क क पना चीन के एक पूव स ाट ‘ कन शी आंग’ ने क थी। उसके
बाद इस दीवार को बनाने म लगभग 2000 वष का समय लगा। इस दीवार
क लंबाई 6400 कलोमीटर है। इस दीवार क चौड़ाई इतनी है क एक साथ
10 पैदल सैिनक, एक बराबर से इस पर चल सकते ह। यह एक ऐसी मानव
िन मत संरचना है, िजसे अंत र से भी देखा जा सकता है।”
“इसका मतलब क हम इस दीवार के ऊपर चढ़कर देखना होगा। हो
सकता है क इसके ऊपर क ओर कोई रह य िछपा हो?” ऐले स ने कहा।
“ठीक है, फर हम इस दीवार पर चढ़ने के िलये कोई व था करनी
होगी?” जेिनथ ने कहा।
“उसक ज रत नह पड़ेगी। वह देखो आगे एक थान पर, दीवार पर
चढ़ने के िलये कु छ सी ढ़यां बनी दखाई दे रही ह। हम उन सी ढ़य के ारा
इस दीवार पर चढ़ सकते ह।” टी ने एक ओर इशारा करते ए कहा।
टी का इशारा पाकर सभी उन सी ढ़य क ओर बढ़ गये।
वह सी ढ़यां गोलाकार थ । सभी उन सी ढ़य के ारा दीवार के ऊपर
क ओर आ गये। परं तु दीवार के ऊपर भी दूर-दूर तक स ाटे के िसवा कु छ
भी नह था?
“यहाँ तो ऊपर भी कु छ भी नह है? यह इस बार कै र ने कस कार
क मुसीबत से हमारा सामना कराया है?” सुयश ने उलझे-उलझे से वर म
कहा।
तभी सभी को अपने सामने से कसी गड़गड़ाहट क आवाज सुनाई
दी?
“यह आवाज कै सी?” सुयश ने पीछे पलटते ए कहा- “अरे ! यह तो
कसी े न क आवाज लग रही है?”
“ े न क !” जेिनथ ने च कते ए कहा- “पर े न इस दीवार पर थोड़ी
ना चलेगी। इस पर तो पट रयां भी नह ह।”
अब सभी क नजर पीछे क ओर थ , पर दीवार घुमावदार होने क
वजह से, कसी को भी दूर-दूर तक कु छ नजर नह आ रहा था?
तभी सभी को दीवार क जमीन पर कु छ क प होते महसूस ए और
इसी के साथ सभी को सामने से, दीवार पर चलती ई एक े न आती दखाई
दी। े न िबना कसी पटरी के चल रही थी?
“खतरा!” शैफाली ने चीखते ए कहा- “तुरंत सभी लोग सी ढ़य से
नीचे क ओर भागो।”
शैफाली के इतना कहते ही सभी सी ढ़य क ओर लपके और ज दी-
ज दी सी ढ़यां उतरने लगे। इस अफरातफरी म जेिनथ सबसे पीछे रह गई।
जैसे ही आिखरी बची जेिनथ ने सी ढ़य क ओर अपना पैर रखा, उसे
सी ढ़य पर कोई अदृ य दीवार सी महसूस ई? िजसके कारण जेिनथ घबरा
गई। घबराहट म जेिनथ ने चीखने क कोिशश क , परं तु उसके मुंह से चीख
भी नह िनकली।
े न लगातार सीटी बजाती ई जेिनथ क ओर बढ़ रही थी और जेिनथ
असहाय अव था म खड़ी अपनी ओर आती े न को देख रही थी। इस े न का
आकार सामा य े न से काफ यादा था। े न क चौड़ाई, िब कु ल दीवार के
बराबर थी, इसिलये जेिनथ को कह िछपने का भी थान नह िमल पा रहा
था?
उधर जब बाक लोग सी ढ़यां उतरकर नीचे प ंचे, तो अचानक से
ऐले स क िनगाह, वहाँ खड़े सभी लोग पर पड़ी। इसी के साथ वह चीखकर
बोला- “जेिनथ .... जेिनथ हम लोग के साथ नह है।”
ऐले स का इतना बोलना था क सुयश सिहत सभी वापस से सी ढ़य
क ओर भागे। सी ढ़य के आिखरी िसरे पर प ंचते ही सभी को जेिनथ नजर
आने लगी, पर उन सभी का रा ता भी उसी अदृ य दीवार ने रोक िलया।
“यहाँ पर तो एक अदृ य दीवार है, इसिलये हम जेिनथ तक नह
प ंच सकते।” टी ने घबराये वर म कहा- “मुझे लग रहा है क शायद
जेिनथ भी इसी अदृ य दीवार के कारण हमारे साथ नह आ पाई थी?
अब सभी अपने हाथ से उस अदृ य दीवार पर हार करने लगे। परं तु
पता नह कै र ने उस अदृ य दीवार को कस धातु या त व से बनाया था?
क वह टू ट ही नह रही थी।
उधर लगातार पास आ रही े न से बचने के िलये जेिनथ ने पीछे क
ओर भागना शु कर दया।
तभी पीछे भागने के च र म जेिनथ का पैर, अपने ही पैर से उलझ
गया और वह जमीन पर िगर पड़ी।
े न आवाज करती ई लगातार जेिनथ क ओर बढ़ रही थी।
जमीन पर िगरी ई जेिनथ लगातार मन ही मन ओरस को याद कर
रही थी, परं तु पता नह इस समय ओरस कहाँ फं सा था? क वह जेिनथ के
अनिगनत बार आवाज लगाने के बाद भी कट नह हो रहा था।
े न जब िब कु ल जेिनथ के पास प ंच गई, तो .... ना जाने या आ
क अचानक समय अपनी जगह पर क गया? िजसक वजह से े न व जेिनथ
अपनी जगह पर िब कु ल जम से गये।
परं तु अदृ य दीवार के इस ओर समय अब भी िब कु ल सामा य था।
सुयश, शैफाली, ऐले स व टी इस दृ य को देखकर च कत हो गये
क तभी एक अंजान शि ने सभी को उठाकर चीन के दीवार से दूर फक
दया।
सभी का शरीर हवा म उड़ते ए दीवार से दूर जा िगरा।
िजस थान पर सभी िगरे , उस थान पर काफ पेड़-पौधे लगे थे,
िजसके कारण कसी को भी यादा चोट नह आई?
सभी तुरंत उठकर खड़े हो गये।
“वह ... वह अदृ य शि कै सी थी? िजसने हम उठाकर फक दया।”
ऐले स ने उठते ए कहा।
तभी सुयश क िनगाह सामने क ओर गई .... पर सामने नजर पड़ते
ही वह बुरी तरह से च क गया, य क उसके सामने से चीन क दीवार अब
गायब हो चुक थी।
“अरे ! ... इतनी ज दी वह चीन क दीवार कहाँ गायब हो गई?”
सुयश के श द आ य से भरे ए थे।
सुयश क बात सुन सबक िनगाह सामने क ओर गई, परं तु चीन क
दीवार का कह अता-पता नह था? इसी के साथ अब जेिनथ भी कह गायब
हो चुक थी?
थोड़ी देर तक सभी हैरानी क अव था म एक-दूसरे को देखते रहे, पर
कसी क भी समझ म नह आया क कु छ देर पहले उनके साथ घटी घटना
या थी?
कु छ देर के बाद जब सभी थोड़ा संयत हो गये, तो सुयश बोल उठा-
“लगता है क अलबट व तौफ क क तरह जेिनथ भी इस ितिल मा म कह
खो गई है? ... पर दो त घबराने क कोई ज रत नह है? जेिनथ के साथ
ओरस भी है, जो उसके घाव को सही करने के साथ-साथ उसक सुर ा भी
कर सकता है और तुम लोग ने देखा क े न के आने के पहले ही, वहाँ का
समय कस कार से क गया था? ... और समय तो िसफ ओरस ही रोक
सकता है। इसिलये हम जेिनथ क चंता छोड़, आगे बढ़कर बाक के आ य
को देखना होगा। िजससे ज दी से ज दी हम यह ितिल मा का ार तोड़कर
सभी से वापस िमल सक।”
सभी को सुयश क बात सही लगी इसिलये वह सभी अब दि ण दशा
क ओर ि थत ‘िचचेन इ ज़ा के िपरािमड’ क ओर बढ़ चले।
सभी को ओरस क समयशि पर िव ास था, पर कसी को भी यह
नह पता था? क इस समय ओरस वयं ही समयशि के जाल म बुरी तरह
से उलझा आ है।
◆ ◆ ◆
नीलपंख

20,033 वष पहले ......


चं महल, गंध वलोक, अरावली पवत ृंख ला, उ र-पि म भारत
शाम का धुंधलका चारो ओर फै लने लगा था। अ त होते सूय क
नारं गी करण से पूरा आसमान संदरू ी नजर आ रहा था।
किणका इस समय अपने महल क छत पर बैठी, कृ ित के इस
खूबसूरत दृ य को देख रही थी। पि य क टोली चहचहाती ई अपने-अपने
घ सल क ओर वापस लौट रही थी।
किणका कभी संदरू ी आसमान म घूम रहे बादल क टु कड़ी को
देखती? तो कभी पि य क मीठी भाषा म अपनी खुिशयां ढू ंढ रही थी।
“काश क मेरे भी पंख होते और म भी इन न ही िचिड़य क भांित,
अपने पंख पसार कर इस नीलगगन म उड़ती। कतना अ छा लगता ऊंचे
आसमान से, कृ ित के इन सुंदर दृ य को िनहारना? ... एक यह मिणका है
क हर समय अपने कमरे म ही घुसी रहती है।”
किणका अपनी क पना क उड़ान भरते ए आसमान के प रदृ य
म खोई ई थी क तभी उसे एक न हा प ी आसमान से िगरता आ दखाई
दया।
“अरे ! इस न हे प ी को या हो गया? यह अपने पंख य नह चला
पा रहा? कह इसे कसी बड़े प ी ने घायल तो नह कर दया? ज र ऐसा
ही होगा।”
न हे प ी को िगरते देख किणका एकाएक ाकु ल सी हो उठी।
वह न हा प ी किणका के महल के उ ान म जाकर िगरा।
न हे प ी को अपने ही उ ान म िगरता देख, किणका तुरंत छत क
सी ढ़य क ओर भागी। कु छ ही देर मे किणका अपने उ ान म थी।
अब किणका तेजी से उस न हे प ी को ढू ंढने लगी।
तभी किणका क िनगाह झािड़य म िगरी, एक न ही सी नीली
िचिड़या पर पड़ी, िजसके पंख से खून िनकल रहा था।
“मेरा संदेह िब कु ल ठीक था। यह न ही िचिड़या घायल हो गई है।”
यह कहते ए किणका ने आगे बढ़कर उस नीली िचिड़या को अपने हाथ म
उठा िलया- “घबराओ नह न ही िचिड़या, अब तुम एक सुरि त हाथ म
हो। अब तु ह कु छ नह होगा?”
यह कहकर किणका ने धीरे से नीली िचिड़या को सहलाया और उसे
लेकर महल के अंदर िव हो गई।
कु छ ही देर म किणका महल के औषिधशाला म थी। किणका ने
औषिधय के िड बे से कु छ औषिध िनकालकर, उस नीली िचिड़या के घाव
पर लगा दया।
नीली िचिड़या अब थोड़ा बेहतर महसूस करने लगी। अब वह अपनी
काली न ही आँख से किणका को टु कुर-टु कुर िनहारने लगी।
िचिड़या को िनहारते देख किणका ने एक बार फर से िचिड़या के िसर
पर धीरे से हाथ फे र दया। इस बार िचिड़या ने अपनी मीठी आवाज म
किणका को ध यवाद भी बोल दया- “च -च !”
“अरे वाह! तु हारी बोली तो ब त ही मीठी है और तुम सुंदर भी ब त
हो। तु हारा यह नीला रं ग िब कु ल कृ ित के रं ग के जैसा है। लगता है क
तु ह यह रं ग आसमान से िमला है? ...... नह -नह ..... हो सकता है क पानी
से िमला हो? ..... दोन ही नीले जो होते ह। ..... अ छा अब हम दोन िम
बन गये ह, तो या ना म तु हारा कोई अ छा सा नाम भी रख दूँ? ..... मुझे
सोचने दो ..... आंऽऽऽऽऽऽऽ नीिलमा। हां यह नाम तुम पर िब कु ल सही लग
रहा है- नीिलमा .... िजसके 2 सुंदर से नीले पंख ह। ... वैसे हमारे घर म भी
2 प ी ह, पर वह दोन तु हारे रं ग क तरह सुंदर नह ह। ..... चलो अब म
तु ह कु छ िखलाती ँ? इतने बड़े आसमान म उड़ते-उड़ते तु ह भूख लग आई
होगी।”
यह कहकर किणका, नीिलमा को लेकर रसोई क ओर बढ़ गई।
अगले 3 घंटे नीिलमा से ढेर सारी बात करने के बाद, किणका ने
नीिलमा को िखला-िपलाकर, एक छोटे से िड बे म सुला दया। इसके प ात्
किणका उस िड बे को लेकर अपने शयनक म प ंच गई।
नीिलमा ने उस िड बे को िखड़क के पास रखा और फर पद को सही
करने के बाद, वह वयं भी अपने िब तर पर जाकर सो गई।
आधी रात के समय अचानक नीिलमा िड बे से बाहर आ गई। नीिलमा
ने एक बार सोती ई किणका को देखा और फर उसक नजर िखड़क के
लहराते ए पद क ओर गई।
अब देखते ही देखते नीिलमा एक काले रं ग क नािगन म प रव तत हो
गई और रगती ई िखड़क के पार चली गई।
िखड़क के दूसरी ओर उ ान था, नीिलमा उ ान म उतरकर एक
दशा क ओर चल दी।
आज चाँदनी रात थी, इसिलये आसमान म चमक रहा चाँद, अपनी
चाँदनी से धरा को पूण कािशत कये ए था।
नीिलमा रगती ई उसी झाड़ी के पास जा प ंची, जहां क वह घायल
अव था म िगरी थी। तभी नीिलमा को झाड़ी के दूसरी ओर, उसी क तरह
का एक काला नाग दखाई दया, जो क नीिलमा को ही िनहार रहा था।
दोन ने एक-दूसरे को देखा और फर दोन ही ी-पु ष म प रव तत
हो गये। यह दोन िनकुं भ व नीलांगी थे।
“ई र का शु है क तुम पूणतया सुरि त हो, नह तो म अपने
आपको कभी मा नह कर पाता। य क मेरे ही कारण तुम िचिड़या का
भेष धरकर, उस दु मायावी बाज के पीछे गई थी।” िनकुं भ ने नीलांगी को
गले से लगाते ए कहा।
“उस मायावी बाज से म सतक थी, परं तु उसने मुझ पर धोके से
आ मण कर मुझे घायल कर दया। यह तो भला हो इस घर म रहने वाली
लड़क किणका का, िजसने मुझे चम कारी औषिध के ारा पुनः जीवन
दया।” नीलांगी ने कहा।
तभी नीलांगी को अपने पीछे कसी खटके क आवाज सुनाई दी।
आवाज को सुनते ही नीलांगी तुरंत िनकुं भ से अलग होकर पीछे क ओर
पलटी।
नीलांगी के पीछे किणका खड़ी थी, जो क मु कु राते ए िनकुं भ व
नीलांगी को ही देख रही थी। परं तु इस समय उसके चेहरे पर आ य या डर
के भाव नह थे। वह तो िब कु ल िन ंत दखाई दे रही थी।
“ या म पूछ सकती ँ क मेरी नीिलमा असल म है कौन? और उसे ये
प बदलने क चम कारी शि कहाँ से िमली?” किणका ने नीलांगी से पूछ
िलया।
“मेरा नाम नीलांगी है और ये मेरे पित िनकुं भ ह। हम दोन नागधरा
रा य के राजा व रानी ह। हम एक इ छाधारी नाग-नािगन ह, इसी कारण से
हम कसी का भी प प रव तत कर सकते ह? ..... म अपना प बदलकर
अपने एक शि शाली श ु का पीछा कर रही थी क तभी उसने धोके से मुझ
पर आ मण करके मुझे घायल कर दया था।” नीलांगी ने कहा।
“इ छाधारी नाग-नािगन, अरे वाह! ..... कतना अ छा महसूस होता
होगा, िनत नये प बदलने म? .... वैसे मुझे एक बात बताइये क आपके पित
को, आपके यहाँ होने के बारे म कै से पता चला?” किणका ने शं कत वर म
नीलांगी से पूछ िलया।
“हमारे पास एक मिण है, िजसके मा यम से हम एक-दूसरे को धरती
के कसी भी िह से से ढू ंढ लेते ह।” नीलांगी ने कहा- “परं तु अब जब तुमने
सबकु छ जान ही िलया है, तो म तु ह अपनी ाणर ा के िलये ध यवाद देती
ँ और अब यहाँ से जाने क आ ा चाहती ँ।” नीलांगी ने हाथ जोड़कर
किणका को ध यवाद दया।
“मने तो सुना था क इ छाधारी नाग-नािगन ब त दयालु होते ह और
अपनी ाणर ा करने वाले को मनचाही व तु भी देते ह।” किणका ने
चालाक दखाते ए कहा।
किणका क बात सुन नीलांगी के बोलने के पहले ही िनकुं भ बोल उठा-
“तुमने सही सुना है। .... बताओ किणका तु ह हमसे या चािहये? हम अपनी
मिण के िसवा तु ह कु छ भी देने के िलये तैयार ह?”
िनकुं भ क बात सुन किणका खुश होते ए बोली- “ या आप मुझे
अपनी इ छाधारी शि दे सकते ह। म उसके मा यम से िचिड़या बनकर
आसमान म उड़ना चाहती ँ।” किणका ने अपने भारी-भरकम इ छा को
द शत करते ए कहा।
किणका के भोले श द से िनकुं भ के चेहरे पर मु कान िथरक उठी-
“शायद तु ह पता नह है किणका, पर हम चाह कर भी अपनी इ छाधारी
शि को तु ह नह दे सकते। यह शि हम ब त दु कर काय को करने के
बाद महादेव से ा होती है। .... परं तु म तु ह इस शि के थान पर एक
ऐसी चीज देना चाहता ँ, िजसके मा यम से तुम आसमान म सरलता से उड़
सकोगी।”
यह कहकर िनकुं भ ने आगे बढ़कर किणका के दोन हाथ को थाम
िलया। िनकुं भ क यह ित या किणका को समझ म तो नह आई, परं तु
किणका ने कसी भी कार क कोई आपि नह क ?
िनकुं भ आँख बंद करके अपने मन ही मन कोई मं पढ़ने लगा।
कु छ देर के बाद किणका को अपनी पीठ पर कसी चीज के होने का
अहसास आ? यह देख किणका ने अपनी पीठ को धीरे से िसकोड़ िलया।
किणका के पीठ को िसकोड़ते ही उसे अपनी पीठ पर 2 िवशाल नीले
पंख दखाई दये।
यह देख किणका अ यंत स हो गई और िनकुं भ का हाथ छोड़ अपने
पंख को जोर-जोर से िहलाने क कोिशश करने लगी।
अपने इस छोटे से यास म किणका धरा को छोड़कर थोड़ा सा ऊपर
उठ गई।
“अरे -अरे , इतनी ज दी करने क भी कोई आव यकता नह है? पहले
धीरे -धीरे उड़ना तो सीख लो।” नीलांगी ने मु कु राते ए कहा।
पर अब भला किणका कहाँ मानने वाली थी? वह तो तुरंत उ ान म
अपने पंख पसार कर उड़ने क कोिशश करने लगी। इस कोिशश म किणका
कई बार कु छ वृ क शाख से भी टकरा गई? परं तु अब यह चोट किणका को
महसूस ही नह हो रह थ ।
कु छ ही देर के यास के बाद किणका अब आसमान म थी।
चाँद क चाँदनी म किणका मानो आज िसतारे छू लेना चाह रही थी।
धरा पर एक न हे पंछी का उदय हो गया था और वह न हा पंछी, आज तीन
पग म तीन लोक को छू ने क कोिशश कर रहा था।
◆ ◆ ◆
ैगन पवत

05.02.02, मंग लवार, ै ग न पवत, सीरीिनया के जंग ल, ीस


ीस म ि थत सीरीिनया के जंगल म एक िवशाल पवत है, जो क
लाल रं ग के प थर से बना है। हजार वष से उस पवत को ‘ ैगन पवत’ के
नाम से जाना जाता है। इस रह यमई पवत का अ भाग एक ैगन के मुख के
समान है।
ैगन मुख के थान पर एक िवशाल गुफा है, परं तु उस गुफा के ार
पर एक अदृ य दीवार है, िजसे ैगन के िसवा या ैगन क अनुमित के िबना
कोई भी पार नह कर सकता है?
ैगन पवत के सामने क ओर एक बड़ी सी च ान है। रोजर इस समय
उस च ान पर आसन क मु ा म बैठा आ था।
देवी आटिमस के कहने पर रोजर उस ैगन पवत के पास आ तो गया
था, परं तु िपछले 8 दन से वह बैठे रहने के बाद भी अभी तक ैगन माँ ने
रोजर को दशन नह दये थे।
रोजर जानता था क ैगन माँ के आशीवाद के िबना, वह लैडन नदी
म सो रहे ैगन को नह जगा पायेगा। इसिलये उसका ैगन माँ से िमलना
अ यंत आव यक था।
कहते ह क मेलाइट के िसवा आज तक कोई ैगन माँ से िमला नह
था? और ना ही कसी ने उ ह देखा था?
इस समय रोजर अपनी इ छाशि पर भी हैरान था य क िपछले 8
दन म रोजर ने कु छ भी खाया-िपया नह था। वह लगातार उस च ान पर
बैठा मन ही मन ैगन माँ से िमलने क इ छा कर रहा था।
तभी अचानक से रोजर का शरीर अपने थान से िहला और आसन क
मु ा म ही हवा म उड़ता आ ैगन गुफा क ओर चल दया।
अपने को िहलते देखकर रोजर ने अपनी बंद आँख को खोल दया।
वयं को हवा म उड़ते देख रोजर आ य से भर उठा।
“यह या! म अचानक से उड़ने कै से लगा?” रोजर ने मन ही मन
सोचा- “लगता है क ैगन माँ को मेरी आवाज सुनाई दे गई है और वह ही
मुझे इस कार से अपने पास बुला रह ह।”
रोजर ने हवा म तैरते ए अपने हाथ-पैर को िहलाने क कोिशश क
परं तु ऐसी ि थित म वह अपने शरीर के कसी भी अंग को िहला नह पाया?
अब रोजर ने अपने चारो ओर देखना शु कर दया। रोजर गुफा के
अदृ य सुर ा कवच को पार करता आ गुफा के अंदर वेश कर गया।
गुफा अंदर से भी काफ िवशाल थी, परं तु गुफा क जमीन ब त ही
िविच थी।
गुफा क जमीन पर लंबी-लंबी काँटे के समान च ान बाहर क ओर
िनकली ई थ एवं येक कं टीली च ान क नोक पर एक गोल प थर रखा
था। गोल प थर अपने अ के प रतः घूम रहा था।
“अरे ! यह थान तो कु छ यादा ही िविच एवं रह यमई है? और यह
गोल प थर इन च ान क नोक पर इतना संतुिलत कै से है?”
तभी रोजर को कु छ दूरी पर एक काँच का 10 फु ट ऊंचा पारदश शंकु
दखाई दया। इस शंकु के पास कं टीली च ान नह थ । शंकु जमीन पर बने
एक ि भुजाकार आकार के अंदर खड़ा था।
रोजर का शरीर उस थान पर प ंचकर धरती पर आ गया। अब
रोजर अपने शरीर को िहला पा रहा था।
रोजर अपने थान से उठकर खड़ा आ और अपने चारो ओर दृि
डाली, परं तु उसे उस थान पर कोई भी दखाई नह दया? यह देख रोजर ने
एक जोर क आवाज लगाई- “ ैगन माँऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
रोजर के आवाज लगाते ही वह पारदश शंकु ेत रं ग क रोशनी से
चमक उठा।
शंकु को चमकते देख रोजर शंकु के पास आ गया और उसे यान से
देखने लगा। परं तु रोजर को शंकु म कु छ भी िवशेष नजर नह आया?
अब रोजर ने धीरे से उस शंकु को छू िलया। शंकु को छू ते ही रोजर का
हाथ, उस पारदश शंकु के अंदर वेश कर गया।
“अरे ! यह शंकु तो कसी क भांित महसूस हो रहा है? कह इसके
अंदर कोई रह य तो नह िछपा?”
यह सोचकर रोजर उस शंकु के अंदर वेश कर गया। अंदर से वह शंकु
ब त ही साधारण सा था।
“अरे ! इसके अंदर तो कु छ भी नह है? यह तो पानी से बने एक
साधारण पा के समान ही है।”
अभी रोजर यह सोच ही रहा था क तभी शंकु कसी िल ट के समान
नीचे क ओर धँसने लगा।
यह देख रोजर उस शंकु क जमीन पर बैठ गया। शंकु अब तेजी से
नीचे क ओर जा रहा था। काफ नीचे जाने के बाद शंकु एक थान पर क
गया।
अब रोजर अपने थान पर खड़ा हो गया।
तभी शंकु कसी फू ल क पंखुड़ी क तरह अपने थान पर खुल गया?
अब रोजर तेजी से अपने चारो ओर देखने लगा।
वह थान कोई बड़ा सा गोल क था, जो क देखने म कसी
ऑिडटो रयम क भांित तीत हो रहा था। क म चारो ओर असं य ार
बने थे।
रोजर का शंकु अब कसी च क तरह से पूरा सपाट हो गया था?
और उस क के बीचोबीच हवा म एक थान पर का आ था।
“यह तो कोई मायावी थान लग रहा है? या ैगन माँ इसी थान
पर रहती ह?” रोजर चारो ओर देखते ए धीरे से बुदबुदाया- “और इस शंकु
के नीचे तो अंतहीन ग ा दखाई दे रहा है। ऐसे म म इस शंकु से उतरकर
कसी ार म भी वेश नह कर सकता? .... एक िमनट म यह य भूल गया
क मेरे पास तो समय ार क शि है, िजसक सहायता से म कह भी जा
सकता ँ?”
तभी वातावरण म एक ी क आवाज गूंजी, जो क साफ अं ेजी
भाषा म बोल रही थी- “तु ह अपनी शि य का योग करने क कोई
आव यकता नह है रोजर। तुम यहाँ पूण प से सुरि त हो और अब तुम
मुझसे कोई भी कर सकते हो?”
उस अदृ य आवाज को सुन रोजर ने थोड़ी राहत क साँस ली। अब
रोजर ने अपने वर को न बनाते ए कहा- “ या आप ैगन माँ हो?”
“हां, शायद इसी नाम से मुझे यहाँ के लोग बुलाते ह। तो तुम मुझे
ैगन माँ कह सकते हो।” अदृ य आवाज पुनः गूंजी।
यह सुनकर रोजर ने झुककर एक अंजान दशा म अिभवादन कया
और फर से बोल उठा- “ ैगन माँ, म आपको अिभवादन करता ँ। परं तु म
यह चाहता ँ क आप मेरे के पूछने के पहले मेरे स मुख कट ह । म
आपको सजीव देखना चाहता ँ।”
रोजर के इतना कहते ही रोजर के सामने एक ऊजा का गोला हवा म
नाचने लगा, जो क धीरे -धीरे एक ी का आकार लेता जा रहा था।
कु छ देर के बाद एक ी रोजर के सामने हवा म खड़ी दखाई दी, जो
क शत- ितशत माया थी। नीलाभ क पि माया, हनुका क माता माया,
माया स यता क जनक माया, कै पर व मै ा जैसे ब को पालने वाली
माया ..... वह माया िजसने वेदालय जैसे अनोखे िव ालय का िनमाण कया
था .... वह माया िजसने अंजान लोग क खाितर, ीक देवता से भी
दु मनी कर ली थी। वह माया िजसके पास एक समय पर ांड क सभी
देवशि यां थ ।
रोजर, माया को पहचानता नह था, इसिलये वह हत भ खड़ा माया
को िनहार रहा था। रोजर को लग रहा था क ैगन माँ कोई बूढ़ी ी ह गी,
पर ..... पर माया तो आज भी िब कु ल वैसी ही थी, जैसी क वह 20,000
वष पहले थी।
“आपऽऽऽऽ .... आऽऽऽप ैगन माँ हो?” रोजर ने आ य से माया क
ओर देखते ए कहा।
“हां, वैसे मेरा नाम माया है और लैडन नदी म सो रहा ैगन, मेरी
पु ी मै ा का बनाया आ जीव गो है। इस ैगन पवत का िनमाण मेरी पु ी
ने गो के घर के प म कया था।” माया बोलते समय अपना मुंह नह चला
रही थी, यह देख रोजर को आ य आ, परं तु रोजर ने इस समय अपना
आ य नह कया।
यह कहकर माया ने मै ा के बारे म, मृ यु से पूव क पूरी कहानी
रोजर को सुना दी।
रोजर आ य से मै ा क जादुई कहानी को सुन रहा था।
अंत म माया ने कहा- “मै ा चाहती थी क वह अपने िपता लैडन के
ारा िन मत लैडन नदी के यादा से यादा पास रहे। इसिलये मृ यु से कु छ
समय पूव उसने इस थान का िनमाण कया और बीच-बीच म यहाँ आने
लगी।”
“तो या आपक पु ी मै ा अब इस दुिनया म नह है?” रोजर ने
माया से पूछा।
“नह , मेरी पु ी मै ा आज से लगभग 19,000 वष पूव, एक
महाशि को धारण करने के यास म मृ यु को ा हो गई थी। मै ा के
वरदान के फल व प मै ा के मरने के बाद गो का भी अंत हो जाना था,
परं तु ई र शायद कु छ और चाहते थे? इसिलये मै ा के मरने के बाद भी
उसक आ मा इस धरती से नह गई। .... इस कार मै ा के मरने के बाद,
गो अके ला पड़ गया और वह इस पवत के पास आकर लोग क मदद करने
लगा। एक दन गो ने मेलाइट को पवत से िगरते देखा। गो ने मेलाइट को
बचा िलया। गो को मेलाइट कु छ-कु छ मै ा जैसी दखी। इसिलये गो
मेलाइट के साथ खुश रहने लगा। इसी कार हजार वष बीत गये। फर आज
से 14 वष पहले अचानक से मुझे पता चला क मै ा ने शैफाली के प म
ऑ े िलया म ज म िलया है।”
“शैफाली के प म????” शैफाली का नाम सुनते ही रोजर बुरी तरह
से च क गया और बीच म ही माया क बात काटते ए बोल उठा- “आप
कस शैफाली क बात कर रह ह ैगन माँ?”
“तुम सही सोच रहे हो रोजर। यह वही शैफाली है, जो सन राइ जंग
म तुम सभी के साथ थी।” माया ने अपनी बात को पूरी करते ए कहा- “तो
जब शैफाली ने ज म िलया, तो मने गो के शरीर को लैडन नदी म सुलाकर
उसक आ मा को, एक छोटे से कु े के िप ले म डाल दया और उस कु े के
िप ले को शैफाली के िपता माइकल के पास प ंचा दया। माइकल ने इस
कु े का नाम ूनो रखा। अब गो एक बार फर से ूनो के प म अपनी मै ा
के पास प ंच गया।”
“इसका मतलब ूनो असल म एक ैगन है और यही है ूनो और
शैफाली क शि य का रह य।” रोजर ने अपना िसर िहलाते ए कहा-
“अ छा ैगन माँ या आप यह बता सकती ह क शैफाली सिहत बाक के
सन राइ जंग के लोग इस समय कहाँ पर ह?”
“सन राइ जंग के कु छ सद य अभी भी जीिवत ह और वह सभी
शैफाली के साथ एक ितिल म म बंद ह। ज दी ही तु हारी मुलाकात उन
सभी से होगी। ..... अरे हां म तु ह गो के बारे म बता रही थी। .... लैडन
नदी म गो के सोने के बाद मेलाइट ने गो को ढू ंढना शु कया। कु छ दन
के प ात मेलाइट को गो का शरीर लैडन नदी क तली म सोता आ
िमला। गो को सोते देख मेलाइट मेरे पास आई और उसने गो को जगाने
का उपाय मुझसे पूछा। मने कु छ ण के िलये जब भिव य म झांककर देखा,
तो मुझे तुम गो को जगाते ए दखाई दये। इसिलये मने मेलाइट को
बताया क गो को िसफ तु हारा जीवनसाथी ही जगा सकता है। उसके बाद
से मेलाइट येक स ाह गो को देखने के िलये लैडन नदी क तली म जाने
लगी। .... बस इसके आगे क कहानी तु ह पता ही है रोजर। ..... तो अब
समय आ गया है क तुम गो को जगाकर उसे उसके वा तिवक वामी को
स प दो।”
“म कु छ समझा नह ैगन माँ .... गो का वा तिवक वामी है कौन?
मै ा, िजसने गो को अपनी शि य से उ प कया या फर मेलाइट,
िजसने मै ा क अनुपि थित म गो को कभी भी मै ा क कमी अखरने नह
दी?” रोजर ने गड़बड़ाते ए पूछा।
“तुम अपना काय करो रोजर। अब जागने के बाद गो कसे चुनता है,
यह उस पर और भिव य पर छोड़ दो?” माया ने रोजर को समझाते ए
कहा।
“एक बात और पूछनी है ैगन माँ। जब तक ूनो जीिवत है, तब तक
म भला गो को कै से जगा सकता ँ?” रोजर ने आशं कत वर म पूछा।
“तुम जैसे ही गो के शरीर को पश करोगे, उसी ण ूनो क मृ यु
हो जायेगी और गो क आ मा गो के शरीर म वापस आ जायेगी। यही
िनयित है और यही शा वत स य है। परं तु तुम ूनो क मृ यु से िब कु ल भी
चंितत मत होना, य क गो क आ मा िसफ शरीर का प रवतन कर रही
है। वह स य म मृ यु को ा नह हो रही और हां यह बात यान रखना क
तुम ज दी ही एक देवयु का िह सा भी बनने वाले हो। इसिलये तु ह ज दी
से ज दी अपनी शि य के बारे म जानना आव यक है।”
“देवयु ? यह कस कार का देवयु होगा ैगन माँ? या आप मुझे
इसके बारे म कु छ बतायगी?” रोजर ने ना समझने वाले भाव से पूछा।
“म इसके बारे म अभी तु ह कु छ नह बता सकती रोजर? परं तु ज दी
ही एक देवयो ा मानिसक शि य के ारा तुमसे स पक थािपत करे गा।
वही तु ह इस देवयु क अ य जानका रयां देगा और हां मेलाइट भी तुमसे
उसी यु के बीच म िमलेगी। इसिलये अब देर मत करो रोजर। जाओ और
गो को जगाकर अपने काय को पूण करो।”
“जो आ ा ैगन माँ। अब मुझे जाने क आ ा दीिजये।” यह कहकर
रोजर एक बार फर माया के स मान म झुका और फर लैडन नदी के बारे म
सोचते ए अपनी नािभ को पश कर दया।
अब खुले ए शंकु के सामने हवा म एक काश ार दखाई देने लगा।
इस बार रोजर िब कु ल भी नह घबराया और शंकु से उछलकर अपने
सामने ि थत काश ार म समा गया।
एक नवयो ा अब देवयु के िलये पूण प से तैयार था।
◆ ◆ ◆
शंख व पंख

20,032 वष पहले ......


चं ोदय वन, गंध वलोक, अरावली पवत ृंख ला, उ र-पि म भारत
ातःकाल का समय था। चं ोदय वन म एक मधुर बयार बह रही थी।
सूय क सुनहरी करण अनेक थान से वन क धरा को पश कर रह थ ।
पि य के चहचहाने क आवाज स पूण वातावरण म फै ली थ ।
ऐसे ऊजावान वातावरण म 2 ेत हंस का जोड़ा, वन म वृ क
शाख से बचता आ एक दशा क ओर जा रहा था।
उनम से 1 हंस के मुख म एक सुनहरे रं ग का छोटा सा मुकुट था। वह
मुकुट बीच से कसी छ ले के समान था और उसके सामने वाली ओर एक
सुख लाल रं ग का िसतारा लगा आ था।
दूसरा हंस अपने मुख म एक छोटी सी लकड़ी पकड़े ए था, िजसम
न ही-न ही कु छ पि यां लग थ । दोन हंस के उड़ने क गित काफ तेज
थी। उन हंस क गित देख, अ य प ी उनके रा ते से हट जा रहे थे।
उन दोन हंस के पीछे , जमीन पर एक िवशाल संह दौड़ रहा था। यह
दोन हंस भागवी के थे और यह संह चं वीर का था।
संह के ऊपर एक देवक या सवार दख रही थी, िजसक आयु लगभग
20 से 21 वष के आसपास दख रही थी। देवक या ने अपने शरीर पर ेत
व धारण कर रखे थे। उसने अपने हाथ म ेत फू ल क चूिड़यां पहन रख
थ और उसके लंबे के श, संह के दौड़ने के कारण हवा म लहरा रहे थे। उसक
आँख म एक िविच सी नीली चमक दखाई दे रही थी।
“शंख और पंख, अब तुम दोन मेरे हाथ से अिधक समय तक, मेरी माँ
भागवी का मुकुट नह दूर रख सकते। म शी ही तुम दोन से उसे ा कर
लूंगी।” देवक या मिणका ने तेज आवाज म दोन हंस क ओर देखते ए
कहा।
मिणका क आवाज सुन एक हंस ने पीछे पलटकर देखा और फर
अपने उड़ने क गित थोड़ी और बढ़ा दी।
यह देख मिणका ने अपने संह को धीरे से सहलाते ए कहा- “ संहेश,
अपने दौड़ने क गित थोड़ी और बढ़ाओ, नह तो शंख और पंख हमसे दूर चले
जायगे।”
मिणका के श द सुनकर संहेश ने अपने दौड़ने क गित थोड़ी और बढ़ा
दी। अब वह हंस से कु छ पीछे दौड़ रहा था?
इधर हंस और संहेश के म य दौड़-भाग चल रही थी क तभी एक
िविच सी पंख क फड़फड़ाहट ने मिणका का यान दूसरी ओर कर दया।
इस फड़फड़ाहट को सुन मिणका उस दशा म देखने लगी, िजधर से वह
आवाज आई थी।
मिणका को उस दशा म आसमान म उड़ती ई, अपनी जुड़वा बहन
‘किणका’ दखाई दी। इस समय किणका ने मिणका क ही भांित व धारण
कर रखे थे। अंतर िसफ इतना था क किणका के व का रं ग नीला था।
इस समय किणका क पीठ पर 2 नीले पंख दखाई दे रहे थे। किणका
उ ह पंख के सहारे , आसमान म उड़ रही थी। किणका के उड़ने क ऊंचाई
हंस के समान थी।
“स यानाश, आिखरकार किणका यहाँ तक आ ही गई। अब तो मेरे
िलये माँ के मुकुट को शी ा करना और भी आव यक हो गया है।”
मिणका ने मन ही मन बुदबुदाते ए कहा।
तभी किणका ने अपनी बहन को िचढ़ाते ए कहा- “ य री बहना?
अब या लगता है तु ह? क तु हारा यह सु त संहेश मुझसे शी , तु ह शंख
व पंख तक प ंचा पायेगा? अब तो माँ क आिखरी िनशानी पर भी मेरा
अिधकार होगा।”
किणका क बात सुन संहेश ने घूरकर किणका क ओर देखा और
अपनी पूरी ताकत से दौड़ना शु हो गया। संहेश क गित अचानक से बढ़
जाने के कारण किणका कु छ पल के िलये पीछे रह गई?
“अरे -अरे ! लगता है संहेश, मेरी बात सुनकर हो गया।” किणका
ने संहेश को आगे बढ़ते देख अपनी उड़ने क गित बढ़ा दी।
एक पल म ही वह पुनः संहेश के पास प ंच गई। यह देख मिणका ने
गुराकर कहा- “यह सवथा अनुिचत है किणका, तुम इस कार से अपनी
मायावी शि य का योग, इस ितयोिगता म नह कर सकती? म िपता ी
से तु हारी िशकायत क ं गी।”
“अगर मेरे पास मायावी शि यां ह तो म उनका योग कर रह ँ।”
किणका ने िखलिखलाते ए कहा- “तुम चाहो तो तुम भी अपनी मायावी
शि य का योग कर सकती हो।”
किणका क बात सुन मिणका ोिधत होते ए बोली- “तु ह पता है
क मेरे पास कोई मायावी शि नह है? तुम इसीिलये यह बात बोल रही
हो। पर याद रखना एक दन मेरे पास तुमसे भी अिधक मायावी शि यां
ह गी और तब म तुमसे येक ित पधा म आगे र ँगी।”
“उस दन क उस दन सोचगे। पर आज तो समय पर मेरा अिधकार
है और आज म इस ितयोिगता को भी तुमसे जीतने जा रही ँ।” यह कहकर
किणका ने अपने पंख को तेजी से फड़फड़ाया और उड़कर संहेश से आगे
िनकल गई।
परं तु किणका ने अंजाने म ही अपने श द से मिणका को जीत का ार
दखा दया था।
“अरे वाह! किणका ने तो वयं ही मेरी जीत का रह य बता दया।
किणका का कहना है क आज समय पर उसका अिधकार है, परं तु किणका को
शायद यह पता नह है क कु छ समय पहले ही मने माँ भागवी क एक शि
को सीखा है और वह शि है- समय को रोकने क । माना क म अभी कु छ
ण के िलये ही समय को रोक पा रही ँ, परं तु उतना समय भी मेरे जीतने
के िलये पया होगा।”
अभी माया यह सोच ही रही थी क तभी ‘पंख’ ने अपने मुख म
पकड़ा, छोटा सा लकड़ी का टु कड़ा नीचे क ओर उछाल दया।
पंख के मुख से जैसे ही लकड़ी का टु कड़ा छू टा, उस टु कड़े ने अपना
आकार बढ़ाना शु कर दया। देखते ही देखते वह टु कड़ा एक िवशाल वृ म
प रव तत हो गया। उस वृ का आिखरी िसरा हंस से कु छ ही नीचे था?
वह िवशाल वृ भागते ए संहेश के रा ते म आ गया। यह देख
किणका ब त खुश हो गई- “ब त अ छे पंख .... या रा ता रोका है इस
सु त संहेश का?”
ले कन इससे पहले क उस वृ क शाख संहेश से जाकर टकराती,
ठीक इसी पल मिणका ने अपने दािहने हाथ को अपने िसर के ऊपर क ओर
करके , हवा म गोल-गोल नचा दया।
मिणका के ऐसा करते ही उस पूरे थान का समय वयमेव क गया।
अब संहेश को छोड़कर वहाँ क येक गितमान व तु अपने थान पर ि थर
हो गई। इन ि थर होने वाली चीज म शंख व पंख नामक दोन हंस भी थे
और किणका भी।
समय को कता देख संहेश ने एक जोर क दहाड़ लगाई और दौड़ते
ए उसी लकड़ी के वृ पर चढ़ गया। संहेश मिणका को लेकर लगातार
ऊपर क ओर जा रहा था।
उस वृ के आिखरी िसरे के पास प ंचकर संहेश ने एक जोरदार
छलांग लगाई। एक पल के िलये संहेश, मिणका को िलये पूरा का पूरा हवा म
था।
अब संहेश हवा म उड़ रहे दोन हंस के पास म था। यह देख मिणका
ने अपने दोन हाथ को आगे बढ़ाकर शंख से अपनी माँ का मुकुट छीन िलया।
तभी समय पुनः गितमान हो गया, परं तु अब भागवी का मुकुट
मिणका के हाथ म था।
संहेश हवा म लहराता आ उस वृ के साथ सुरि त धरा पर आ
गया। सबकु छ एक पल म ही आ था। किणका कु छ देर तक तो जैसे कु छ
समझ ही नह पाई? परं तु जब तक उसने यान दया, मुकुट के साथ जीत भी
मिणका क झोली म जा िगरी थी।
“यह कै से संभव है? अभी तो तुम मेरे पीछे थी। तुम अचानक से मेरे
आगे कै से आ गई मिणका? तुमने कस िव ा का योग कया? जो मुझे कु छ
भी दखाई तक नह दया?” किणका ने आ य से भरते ए कहा।
“यह मेरी मायावी िव ा है किणका।” मिणका ने गव से चेहरा उठाते
ए कहा- “तु ह ने तो कहा था क म भी अपनी मायावी िव ा का योग
कर सकती ँ।”
“पर ... पर तु ह यह िव ा ा कहाँ से ई? और ... और तुमने मुझे
इस िव ा के बारे म बताया य नह ?” किणका ने िशकायत भरे श द म
कहा।
“म भला अपने रह य तु ह य बताऊं? अरे यही तो मेरी जीत का
आधार है।” मिणका ने मु कु राते ए कहा- “अ छा चलो, अब िपता ी के
पास चलकर उ ह मेरी जीत का समाचार दे द।”
यह कहकर मिणका ने अपनी माँ का मुकुट अपने शीष पर रखा और
िवजयी अंदाज म संहेश को वापस ‘चं महल’ क ओर चलने का इशारा
कया।
अब मिणका व किणका दोन ही चं ोदय वन म ि थत चं महल क
ओर चल दये, जहां क उनके िपता चं वीर उनक बाट जोह रहे थे।
इस समय आकाश माग से शंख व पंख भी दोन के साथ थे। इस कार
दोन बहन के जीवन क एक ित पधा का समापन हो गया था। .....
समापन हो गया था? नह -नह .... यह तो बस एक शु आत थी .... एक ऐसी
ित पधा क , िजसने दोन का ही जीवन पूण प से प रव तत कर देना था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-3
कोलोिसयम

ितिल मा 7.62
न क दीवार को पारकर सुयश, शैफाली, टी व
ची ऐले स अब दि ण दशा क ओर बढ़ रहे थे। चीन क दीवार को
पार करने म उ ह ने जेिनथ को खो दया था। कसी को नह पता
था क अचानक से जेिनथ उस दीवार के साथ कहाँ गायब हो गई?
चीन क दीवार गायब हो जाने के कारण, कसी को भी जंगल और
उस रा य म कोई अंतर नह नजर आ रहा था? परं तु मानिच के िहसाब से
वह सभी अंदाजे से ही दि ण दशा क ओर जा रहे थे।
कु छ देर चलने के बाद उ ह दूर से ही एक िपरािमड दखाई देने लगा।
िपरािमड को देखने के बाद सबने अपने चलने क गित थोड़ी बढ़ा दी।
कु छ ही देर म सभी िपरािमड के बाहर खड़े थे। उस िपरािमड म ना
जाने ऐसा या था क उसे देखते ही शैफाली थोड़ा भावुक सी नजर आने
लगी।
सुयश से शैफाली क यह भावुकता िछपी ना रह सक , इसिलये उसने
शैफाली से पूछ ही िलया- “ या आ शैफाली? तुम इस िपरािमड को देखकर
इतना भावुक य हो रही हो?”
सुयश के श द सुन शैफाली ने िपरािमड क ओर से अपना चेहरा सुयश
क ओर घुमाते ए कहा- “कै टे न अंकल, दरअसल इस िपरािमड क संरचना
मेरी माँ माया ने न का अ ययन करने के िलये बनाई थी। बाद म माया
स यता के लोग ने इस ितकृ ित क नकल करते ए, ऐसे ही अनेक
िपरािमड बनवाये। अब अगर म इस िपरािमड क बात क ं , तो इसका नाम
‘एल-कै ि टलो’ है, जो मैि सको के ाचीन शहर िचचेन-इ ज़ा के राजा ने
बनवाया था। यह िपरािमड सूय क प र मा का अ ययन करता है। मेरी माँ
क बनाई आकृ ित होने के कारण, मेरा बचपन इससे जुड़ा आ है, इसीिलये
म इसे देखकर थोड़ा भावुक हो गई थी।”
बात-बात करते-करते शैफाली को अपना बचपन याद आ गया। इस
एक पल का अहसास भी शैफाली को अंदर से िहला गया।
शैफाली क बात सुन सुयश ने धीरे से अपना िसर िहला दया और
वापस से िपरािमड क ओर देखने लगा।
वैसे तो यह िपरािमड अ य िपरािमड क भांित ही था, परं तु इसके
शीष पर एक वगाकार कमरा जैसा बना था, जहां तक जाने के िलये 365
सी ढ़यां थ ।
“तो या हम इसका रह य जानने के िलये इस पर चढ़ना होगा?”
टी ने िपरािमड क सी ढ़य क ओर देखते ए कहा।
“हां हम इस िपरािमड के ऊपर ि थत उस न शाला म जाना
होगा।” शैफाली ने िपरािमड के शीष क ओर इशारा करते ए कहा- “ज र
वह पर कै र ने कोई रह य िछपा रखा होगा? परं तु न शाला तक प ंचने
के िलये हम 365 सी ढ़य को चढ़ना होगा। यह 365 सी ढ़यां वष के 365
दन का ितिनिध व करती ह।”
शैफाली क बात सुन ऐले स ने अपना दािहना पैर पहली सीढ़ी क
ओर बढ़ाया, पर पहली सीढ़ी पर पैर रखते ही ऐले स को ब त तेज करं ट का
झटका लगा। झटका लगने क वजह से ऐले स उछलकर नीचे िगर पड़ा।
“कै टे न, हम सी ढ़यां चढ़कर ऊपर नह जा सकते। यह सी ढ़यां करं ट
मार रही ह।” ऐले स ने सुयश क ओर देखते ए कहा।
ऐले स क बात सुन सुयश ने भी धीरे से पहली सीढ़ी को हाथ
लगाया, पर तुरंत ही उसने अपना हाथ पीछे क ओर ख च िलया, य क
सीढ़ी उसे भी झटका मार रही थी।
“लगता है क इन सभी आ य के अंदर वेश करने का कोई खास
पैटन है? इसी कारण से यह िपरािमड हम अंदर नह जाने दे रहा। एक काम
करते ह, हम पहले इसके आगे वाले आ य क ओर चलते ह और देखते ह क
वह आ य हमारे साथ कै सा वहार कर रहा है?” सुयश ने कहा।
सभी को सुयश का यह िवचार ठीक लगा, इसिलये सभी आगे क ओर
चल दये।
कु छ आगे जाने पर सभी को रोम का िस कोलोिसयम दखाई
दया। यह कोलोिसयम िब कु ल असली क भांित ही लग रहा था।
कोलोिसयम को देख टी बोल उठी- “यह कोलोिसयम है, जो क
मेरे ि य देश इटली के रोम शहर म ि थत है। इसका िनमाण 80व ई वी के
अंत म, रोम के स ाट ‘टाइटस’ ारा कया गया था। यह एक कार का
टे िडयम है, िजसका िनमाण यो ा के आपस म यु कराने के िलये कया
जाता था। इसके अंदर वेश करने के िलये 80 से भी अिधक वेश ार ह।
चूं क यह एक ाचीन कला का नमूना है, इसिलये इसम छोटी सी आवाज भी
काफ तेज गूंजती है।”
“यह तो काफ िवशाल है और इसम वेश ार क सं या भी अिधक
है। ऐसे म कै र ने कहाँ या िछपा रखा है, यह जानने म तो हम काफ समय
लग जायेगा?” शैफाली ने कहा।
“इसका उपाय है मेरे पास।” टी ने शैफाली क ओर देखते ए
कहा- “इस कोलोिसयम को म अ छी तरह से जानती ँ। मुझे इसके अंदर
वेश करने के ब त से छोटे माग भी पता ह। इसिलये आप सभी िसफ मुझे
इसके अंदर जाने क आ ा दीिजये। म अिधक से अिधक आधे घंटे के अंदर ही
इसका रह य पता लगाकर बाहर आ जाऊंगी।”
टी क बात सुन ऐले स के चेहरे पर परे शानी के बादल मंडराने
लगे, परं तु इस समय उसने कु छ भी कहना उिचत नह समझा?
टी के श द को सुनकर सुयश ने शैफाली क ओर देखा। सुयश को
अपनी ओर देखता पाकर शैफाली ने धीरे से अपना िसर िहला दया। यह एक
कार से टी को अंदर जाने क सहमित थी।
शैफाली को मानते देख सुयश वापस टी क ओर मुड़ा- “ठीक है
टी, हम तु हारी बात मान लेते ह, पर यान रहे कसी भी कार का
खतरा देखते ही तुम तेज आवाज लगाना? हम सब तु हारी आवाज सुनते ही
अंदर आ जायगे।”
सुयश क बात सुन टी ने सहमित से अपना िसर िहलाया और
ऐले स को आँख मारते ए कोलोिसयम के अंदर वेश कर गई।
ऐले स, टी को जाते ए तब तक देखता रहा, जब तक क वह
उसक नजर से ओझल नह हो गई।
उधर टी ब त ही सावधानी से आगे बढ़ रही थी, उसे पता था क
कै र ने कह भी कु छ भी िछपा कर रखा होगा?
काफ देर तक इधर-उधर घूमने के बाद भी, जब टी को कु छ भी
नजर नह आया? तो वह उस थान पर प ंच गई, जहां से रोम का राजा इस
पूरे यु को देखता था।
टी राजा के उस प थर के आसन पर बैठ गई और वहाँ से पूरे
टे िडयम को यान से देखने लगी।
तभी टी क नजर टे िडयम के बीचो-बीच म उस थान पर गई,
जहां पर यो ा, यु लड़ते थे। अब टी को उस थान पर जेिनथ खड़ी
नजर आई, जो मु कु राते ए उसक ओर ही देख रही थी।
यह दृ य देख एक पल के िलये जाने य टी के र गटे खड़े हो गये?
उसे अचानक मायावन क वह रात याद आ गई, जब क ि काली, टी
बनकर जेिनथ को कह ले जा रही थी?
“यह जेिनथ यहाँ या कर रही है?” टी ने मन ही मन सोचा-
“नह -नह यह जेिनथ नह हो सकती। यह अव य ही कै र का फै लाया आ
कोई मायाजाल है? .... इससे पहले क देर हो जाये, मुझे आवाज लगाकर
सभी को अंदर बुला लेना चािहये।”
यह सोच टी ने अपने मुंह से तेज आवाज िनकालने क कोिशश क ,
पर उसके मुंह से आवाज ही नह िनकली।
यह देख टी ने पलटकर वापस जेिनथ क ओर देखा। जेिनथ अब
अपने थान से गायब थी।
अब टी ने घबराकर स ाट के आसन से उठने क कोिशश क , परं तु
वह उस आसन से उठ भी नह पाई।
तभी टी को अपने पीछे से एक आवाज सुनाई दी- “घबराओ नह
टी, तु ह कु छ नह होगा?”
अपने पीछे से आई आवाज को सुन टी ने पलटकर देखा। पर पीछे
पलटते ही टी के होश उड़ गये।
टी के ठीक पीछे जेिनथ खड़ी थी, िजसने अपने हाथ म एक बड़े से
फल वाला चाकू पकड़ रखा था। इससे पहले क टी कु छ समझ पाती क
तभी जेिनथ का चाकू वाला हाथ तेजी से हवा म लहराते ए टी क ओर
बढ़ा। ..... तभी अचानक से समय अपनी जगह पर क गया।
अब टी व जेिनथ दोन ही अपने थान पर ज हो गई थ ।
उधर बाहर खड़े सुयश, शैफाली व ऐले स समय बीतने के साथ, बार-
बार अपनी नजर उठाकर कोलोिसयम क ओर देख रहे थे।
“कै टे न, टी को गये ए आधा घंटा होने वाला है। पर वह अभी
तक नह आई। कह ऐसा तो नह क वह भी कसी मुसीबत म फं स गई है?”
ऐले स ने अपनी जीभ को अपने होठ पर फे रते ए कहा।
ऐले स क बात सुन सुयश ने जैसे ही कोलोिसयम क ओर देखा क
तभी कोलोिसयम अपने थान से कह गायब हो गया?
“अरे ! ... यह अचानक कोलोिसयम कहाँ गायब हो गया? अभी-अभी
तो यह मेरी आँख के सामने था।” सुयश ने घबराते ए कहा।
अब सभी ने इधर-उधर घूमकर चारो ओर देख िलया, परं तु
कोलोिसयम उ ह कह नजर नह आया?
“लगता है कै र इस बार हम लोग के साथ कोई नया खेल खेल रहा
है?” शैफाली ने कहा- “एक-एक कर वह सभी लोग को कह गायब करता
जा रहा है? मुझे लग रहा है क कै र इस कार से हमारे अंदर एक डर
भरना चाह रहा है, िजससे क हम ितिल मा म गलती कर जाय और सदा-
सदा के िलये यह फं स जाय।”
“म शैफाली क बात से पूणतया सहमत ँ।” सुयश ने कहा- “चूं क
अब ितिल मा म अिधक ार नह बचे ह, इसिलये कै र हम सभी को इन
आ य के मा यम से िमत कर रहा है।”
“इसका मतलब कै टे न, हम देर ना करते ए इस ार के अगले भाग
क ओर चलना चािहये। शायद इस ार के समा होते ही हम हमारे खोये
ए साथी भी िमल जाय?” ऐले स ने कहा।
ऐले स के श द को सुनकर शैफाली व सुयश ने भी अपने मन को थोड़ा
ह का कया और ऐले स के पीछे -पीछे ‘पे ा शहर’ क ओर बढ़ गये।
लगभग आधे घंटे के बाद सुयश, ऐले स व शैफाली ‘पे ा शहर’ के
सामने खड़े थे।
चारो ओर ह के गुलाबी रं ग क च ान और पवत दखाई दे रहे थे।
पे ा शहर को इ ह गुलाबी प थर से काटकर बनाया गया था। पूरा का पूरा
पे ा शहर पवत के कटे भाग के अंदर था।
ऐले स यान से इस ाचीन कं तु अ भुत शहर को िनहार रहा था।
तभी सुयश ने बोलना शु कर दया- “यह पे ा शहर है, जो क जाडन
म ि थत है। इस शहर का िनमाण 312 ईसा पूव कया गया था। कहते ह क
एक समय म यह शहर ब त ही अ भुत था, परं तु ाचीन समय म आये एक
ती भूकंप क वजह से यह शहर न हो गया था।”
“तो फर या हम इसके अंदर वेश करना चािहये कै टे न?” ऐले स
ने सुयश से आ ा लेते ए कहा।
“िबना वेश कये तो हम इसके बारे म कु छ भी नह जान पायगे?
परं तु पहले देखना पड़ेगा क कह इसके वेश ार म भी कसी कार क
कोई अदृ य दीवार तो नह है?” सुयश ने कहा।
सुयश क बात सुन ऐले स ने पहले पे ा शहर के िवशाल ार को देखा
और फर अपना एक पैर बढ़ाकर ार के अंदर रख दया।
ऐले स को कसी कार का कोई झटका नह लगा? यह देख ऐले स
पूरा का पूरा अंदर वेश कर गया।
ऐले स को अंदर वेश करते देख शैफाली व सुयश भी अंदर वेश कर
गये।
वह थान अंदर से भी ब त ही िवशालकाय था। छत क ओर से, पता
नह कहाँ से कु छ रोशनी आ रही थी? िजसक वजह से वह पूरा का पूरा े
रोशनी से भरा था।
इतने िवशाल थान के बीचोबीच एक छोटा सा संदक ू रखा था, िजस
पर एक ाचीन ताला लगा था।
एक थान पर नीचे जाने के िलये कु छ सी ढ़यां भी बनी ई थ ।
“यहाँ पर तो इन सी ढ़य व संदकू के िसवा कु छ है ही नह ?” शैफाली
ने चारो ओर देखते ए कहा।
“तो फर पहले इस संदक ू को खोलकर देख लेते ह, य क िपछले
अनुभव यह कहते ह क कै र को संदक ू से कु छ यादा ही यार है। अव य
ही इस बार भी कै र ने इस संदक ू म कु छ ना कु छ िछपा रखा होगा?”
ऐले स ने कहा।
“ऐले स ठीक कह रहा है, पहले हम इस संदक ू को ही खोलकर देखना
चािहये, परं तु इस संदक
ू पर लगा ताला तोड़ने के िलये हम एक प थर क
आव यकता होगी।” सुयश ने कहा।
सुयश क बात सुनते ही शैफाली ने ताले को छू कर देखा और फर
अपने हाथ के एक झटके से ही ताले को तोड़ दया।
शैफाली का यह शि दशन देख ना चाहते ए भी ऐले स व सुयश
के चेहरे पर एक ह क सी मु कान िबखर गई।
शैफाली ने टू टे ए ताले को वह जमीन पर फक दया और संदक ू का
ढ न एक झटके म खोल दया।
शैफाली ने संदक ू के अंदर झांककर देखा, संदक
ू के अंदर एक छोटा सा
काँच का खरगोश रखा था।
इतने बड़े संदक ू म एक छोटा सा काँच का खरगोश देखकर सभी के
चेहरे पर हंसी आ गई। पर तुरंत ही शैफाली ने अपनी हंसी रोककर सभी को
सावधान करते ए कहा- “हम इस खरगोश से सावधान रहने क ज रत है,
कै र ने अव य ही इसम कसी कार क मुसीबत िछपा कर रखी होगी?”
शैफाली क बात सुन सभी सावधान हो गये।
कु छ देर के इं तजार के बाद ऐले स ने उस काँच के खरगोश को संदकू
से बाहर क ओर िनकाल िलया। ऐले स ने उस खरगोश को उलट-पुलट कर
देखा, परं तु उसे उस खरगोश म कु छ भी िविच नजर नह आया?
तभी िजस मु य ार से सभी अंदर आये थे, उससे एक तेज आवाज
सभी को अंदर आती सुनाई दी- “कै टे न बचाओऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
उस आवाज को सुन सभी बुरी तरह से च क गये।
“अरे ! यह आवाज तो जेिनथ क है।” सुयश ने उस आवाज को
पहचानते ए कहा- “लगता है क वह बाहर है और कसी मुसीबत म है?”
यह िवचार आते ही सुयश व शैफाली तेजी से भागते ए पे ा शहर के
मु य ार से बाहर िनकल आये, पर दोन म से कसी को यह यान नह
आया क उनके साथ ऐले स उस ार से बाहर नह आया है?
उधर ऐले स ने जैसे ही सभी के साथ बाहर भागने क कोिशश क ,
उसके हाथ म पकड़े खरगोश म एक ह क सी हरकत ई। अब ऐले स का
यान बाहर क ओर जाने क जगह पर खरगोश क ओर गया।
इसी के साथ उसे अपने हाथ म पकड़े खरगोश का आकार कु छ बढ़ता
आ सा महसूस आ, िजसक वजह से ऐले स ने उस काँच के खरगोश को
वह जमीन पर िगरा दया।
खरगोश काँच का होने के बाद भी, िगरने के बाद टू टा नह , बि क
उछलकर सीधा खड़ा हो गया।
खरगोश का िनरं तर बढ़ना जारी रहा। कु छ देर के बाद खरगोश का
आकार कसी इं सान के बराबर हो गया। ऐले स उस खरगोश के मायाजाल
म इस कार फं स गया था, क उसे यान ही नह रहा क सुयश व शैफाली,
जेिनथ क आवाज के पीछे बाहर जा चुके ह।
ऐले स क नजर तो लगातार उस खरगोश पर ही थ ।
कु छ देर बाद खरगोश के चेहरे और शरीर मे भी बदलाव आने लगे।
अब उस चेहरे को देख ऐले स क साँस कने सी लग य क खरगोश
लगातार टी म प रव तत होता जा रहा था।
कु छ ही देर म खरगोश पूरा का पूरा टी म प रव तत हो गया।
टी क नजर जैसे ही ऐले स पर पड़ी, वह दौड़कर ऐले स से
िलपट गई।
“तुम कहाँ चले गये थे ऐले स?” टी ने ऐले स को जोर से भ च
िलया- “तु ह पता है क मने इस ार म या- या देखा?”
टी, ऐले स के गले लगे ए बोलती जा रही थी, परं तु अचानक से
टी के चेहरे के भाव बदलने लगे, अब उसके चेहरे पर एक ह को कं पा
देने वाली मु कान थी, पर चूं क ऐले स उसके गले लगा था, इसिलये वह
टी के चेहरे के भाव को देख नह पा रहा था, वह तो बस टी से इस
कार िचपका था, क मान कह उसके छोड़ते ही टी फर से कह चली
ना जाये?
तभी टी के हाथ म एक चाकू नजर आने लगा, िजसे ऐले स देख
नह पाया। अब टी ने अपने दाँत को जोर से भ चा और ऐले स क पीठ
पर हार करने के िलये, अपना चाकू वाला हाथ जोर से उठाया, परं तु तभी
समय अपनी जगह पर क गया।
इसी के साथ ऐले स व टी अपनी जगह पर ज हो गये।
उधर शैफाली व सुयश को जब काफ देर ढू ंढने के बाद भी, बाहर कोई
नजर नह आया? तो वह शांत होकर एक जगह पर खड़े हो गये।
“लगता है क जेिनथ क आवाज भी कै र का फै लाया आ कोई
मायाजाल थी? जो उसने शायद हम ....।” तभी बोलते-बोलते एकाएक सुयश
को ऐले स का यान आया- “अरे ! ऐले स कहाँ है?”
“मने भी ऐले स भैया को पे ा शहर से बाहर िनकलते ए नह देखा,
पर जेिनथ दीदी क आवाज सुन म इतना हड़बड़ा गई थी, क मने भी ऐले स
भैया पर यान नह दया।”
अभी शैफाली यह कह ही रही थी क तभी एक जोर क आवाज के
साथ पे ा शहर अपने थान से कह गायब हो गया? और इसी के साथ गायब
हो गया था ऐले स भी, िजसके साथ अंदर या आ था, यह कोई भी नह
जानता था?
“लगता है क ऐले स भैया भी बाक लोग क तरह इस ार म कह
खो गये?” शैफाली ने दुखी होते ए कहा।
“दुखी मत हो शैफाली, मुझे पूरा िव ास है क जो लोग भी हमसे
िबछड़ रहे ह, वह इस ितिल मा के ार म फं स रहे ह। अगर हम इस ार को
तोड़ दगे, तो अव य ही हम उनसे फर से िमल सकगे।” सुयश ने उदास
शैफाली को सां वना देते ए कहा।
सुयश क बात सुनकर शैफाली सोच म पड़ गई। कु छ देर ऐसे ही
सोचते रहने के बाद शैफाली ने बोलना शु कर दया- “कै टे न अंकल, मुझे
लग रहा है क अव य ही इस पूरे ार म कोई रह य िछपा है? िजसे हम
समझ नह पा रहे ह .... शायद कोई ऐसी व तु िजसे लेकर हम इस ार को
पार करना होगा? या फर कोई ऐसा पैटन है, िजससे होकर हम इस थान
पर वेश करना होगा?”
“म भी यही सोच रहा ँ शैफाली, पर मुझे लगता है क जब तक हम
सारे के सारे आ य को देख नह लेते, तब तक हम उस व तु या पैटन को
समझ नह पायगे। इसिलये हम िबना देर कये अब अगले आ य क ओर
बढ़ना होगा।” सुयश ने शैफाली क ओर देखते ए कहा।
“ठीक है कै टे न अंकल, आप जैसा उिचत समझ।” शैफाली ने सुयश क
बात से अपनी सहमित जताई और अगले आ य क ओर चल दी।
सुयश व शैफाली इस समय उलझन भरे चेहरे के साथ आगे क ओर
बढ़ रहे थे, पर उनके इस उलझन भरे चेहरे को देख, वहाँ से ब त दूर एक
कमरे म बैठे, कै र के चेहरे पर मु कान क लक र उभर आई।
शायद ितिल मा के इस ार म कु छ ऐसा था? िजसको लेकर कै र
काफ आ त महसूस कर रहा था।
यह वह समय था जब क समय कसी जल क मा नंद धीरे -धीरे बह
रहा था?
◆ ◆ ◆
कािशका यु

06.02.02, बुध वार, मैराकाइबो झील, वेनेजुए ला, दि ण अमे रका


दि ण अमे रका के वेनेजुएला देश म एक झील है, िजसे मैराकाइबो
झील कहा जाता है। ये वो जगह है जहां कै टाटु बो नदी झील से जाकर
िमलती है। मैराकाइबो झील के आसपास का े ब त ही रह यमई है।
इस थान पर पूरे वष म लगभग 260 दन तक मौसम खराब रहता
है और इन दन म लगातार आकाशीय िबजली इस झील म िगरती रहती है।
एक शोध के अनुसार इस थान पर एक िमनट म लगभग 28 बार िबजली
िगरती है। यािन क यह थान पूरी दुिनया म सबसे अिधक िबजली िगरने के
कारण जाना जाता है। यहाँ पर िगरने वाली िबजली ह क नह होती, बि क
यह िबजली लगभग 400 कलोमीटर दूर से दखाई देती है।
वै ािनक के िलये आज भी यह रह य समझ से परे है। कोई कहता है
क इस थान पर जमीन के नीचे यूरेिनयम क मा ा अिधक होने के कारण
ऐसा होता है? तो कोई इसे जमीन से उठने वाली मीथेन गैस का कारनामा
बताता है? परं तु जो भी हो, आज भी यह े िव ान को लगातार चुनौती दे
रहा है और िव ान के पास इस े के बारे म बताने को कु छ भी नह है?
आज भी कु छ वैसी ही सुबह थी। मैराकाइबो झील के आसपास के े
म मौसम काफ खराब दख रहा था, पर ऐसे खराब मौसम म भी 3 लोग
एक छोटी सी बोट म मैराकाइबो झील के गहरे पानी म कु छ ढू ंढने क
कोिशश कर रहे थे?
दूर से देखने पर वह सभी अ वेषक के समान नजर आ रहे थे, जो क
वहाँ क जलवायु पर कु छ रसच करते दखाई दे रहे थे। मौसम खराब होने
के कारण झील म थानीय लोग दखाई नह दे रहे थे।
दन का समय था इसिलये आकाशीय िबजली यदाकदा झील म िगर
रही थी। परं तु जब भी िबजली िगरती वह पूरे थान को एक पल के िलये तेज
रोशनी और गड़गड़ाहट से भर दे रही थी।
तभी उन 3 लोग म से जो एक पु ष था, वह बोल उठा- “ य
िशव या, या लग रहा है तु ह क कािशका पु तक इस थान पर होगी क
नह ?”
“अव य होगी ा , वा िण का कहना गलत नह हो सकता,
कािशका पु तक इसी थान पर होनी चािहये।” िशव या ने ा क ओर
देखते ए कहा- “और तुम देख नह रहे क इस थान का मौसम कतना
खराब है? मुझे तो लगता है क कािशका पु तक के कारण ही इस थान का
मौसम इतना बुरा बना आ है। य मेलाइट तु हारा या कहना है इस बारे
म?”
“म तु हारी बात से सहमत ँ िशव या।” मेलाइट ने कहा- “वा िण ने
कािशका पु तक का जैसा वणन कया था, उस िहसाब से तो कािशका को
यह कह होना चािहये? अब इससे पहले क एं ोवस पावर का कोई सद य
हमसे पहले यहाँ पर प ंचे? हम कािशका को ढू ंढकर अपने िनयं ण म लेना
ही होगा।”
मेलाइट ने अभी इतना ही कहा था क तभी उनक छोटी सी बोट से
कु छ ही दूरी पर तेज िबजली िगरी। िबजली क कणभेदी आवाज को सुनकर
मेलाइट एक ण के िलये चुप सी हो गई।
पानी म िबजली िगरने के कारण वहाँ का पानी तेजी से उपर क ओर
उछला, फर एक ण प ात ही पुनः झील का जल पहले के समान हो गया।
(नोटः दो त ा और िशव या के बारे म आप ‘अटलां टस’ पु तक
म पढ़ चुके ह, िजसके एक दृ य म ा और िशव या का यु , िहमालय पर
गु व शि ा करने आये इ छाधारी लुफासा से ई थी। यह दोन
वेदालय म िश ा ा करने वाले 6 जोड़ म से एक ह, िज ह वेदालय क
पढ़ाई समा होने के बाद नीलाभ ारा मानिसक शि यां दी गई थ । यह
दोन िहमालय पर बने िहमलोक म रहते ह।)
“यह झील तो काफ िवशाल है, ऐसे म हम इतनी बड़ी झील म एक
छोटी सी पु तक कै से ढू ंढ सकते ह?” िशव या ने कहा- “और इस झील क
सतह पर तो कु छ भी दखाई नह दे रहा? इसका मतलब वह पु तक इस
झील के अंदर कह होनी चािहये? ... या हम उस पु तक को ढू ंढने म अपनी
मानिसक शि य का योग कर सकते ह ा ?”
“वा िण ने पहले ही देवयु का नाम लेकर पूरी पृ वी के मनु य को
अपने घर म बंद करवा दया है। इसी वजह से इस थान पर भी, इस समय
कोई मनु य दखाई नह दे रहा? ऐसे म हम अपनी शि य का योग
खुलकर कर सकते ह।” ा ने बारी-बारी से िशव या और मेलाइट क ओर
देखते ए कहा।
“मुझे लगता है क हम अपनी शि य का योग करने से पहले एक
बार फर से कािशका के कवर पेज को यान कर लेना चािहये। इससे हम
उस पु तक को ढू ंढने म आसानी हो जायेगी।” मेलाइट ने कहा।
“मेलाइट िब कु ल सही कह रही है।” ा ने मेलाइट क बात का
समथन कया और बोट म रखे एक छोटे से यं को उठाकर अपने हाथ म ले
िलया।
ा ने उस यं पर लगा बटन दबा दया। बटन के दबाते ही उस
यं पर लगी न रोशन हो गई। अब उस न पर कािशका पु तक
दखाई देने लगी।
‘ कािशका’ का कवर पेज सुख लाल रं ग का था, िजस पर एक ेत
रं ग का हाथी बना था। हाथी ने अपनी सूंड म एक पीले रं ग का पु प पकड़
रखा था। उस पु प से ती रोशनी िनकलकर, पु तक के कवर पेज को
काशमान बना रही थी। उस पीले पु प के पास एक न हा सा लाल व काले
रं ग का क ड़ा भी उड़ रहा था, जो क देखने म कसी ‘लेडी-बग’ के समान
नजर आ रहा था। उस पु तक पर आकाशीय िबजली से ‘ कािशका’ िलखा
आ था।
कािशका को यान से देखने के बाद ा ने उस यं को वह बोट
म रख दया।
अब ा बोट के कनारे जाकर खड़ा हो गया और अपने दोन हाथ
को आगे क ओर कर िलया। ा के ऐसा करते ही उसके दोन हाथ
मानिसक तरं ग के कारण नीले रं ग के हो गये।
अब ा के हाथ से नीले रं ग क मानिसक तरं ग िनकल और उन
तरं ग ने असं य छोटी-छोटी आँख का प धारण कर िलया। इसी के साथ वह
सभी आँख झील क सतह पर तेजी से कु छ ढू ंढती ई आगे क ओर बढ़ने
लग ?
मेलाइट यान से ा क उन मानिसक शि य को देख रही थी।
मेलाइट ने इस कार क िविच शि को आज तक नह देखा था।
ा को ऐसा करते देख िशव या ने भी अपने हाथ को नीले रं ग क
मानिसक तरं ग से भर िलया और ा क ही भांित असं य नीली
मछिलय को मानिसक तरं ग से उ प कर दया।
वह सभी नीली मछिलयां उ प होते ही झील के अंदर क ओर चल
ग ।
अब झील के अंदर नीली मछिलयां और झील के बाहर असं य आँख
उस पूरे झील म कािशका को तलाशने लग ।
बीच-बीच म अभी भी आसमान से िबजली कड़ककर झील म िगर रह
थ , पर अभी तक इस आकाशीय िबजली ने कसी को भी नुकसान नह
प ंचाया था?
कािशका को ढू ंढते ए ा बोट को भी लगातार आगे बढ़ाता जा
रहा था। काफ आगे जाने के बाद सभी को झील के बीच म एक छोटा सा
ीप दखाई दया।
“अरे ! यह झील के म य यह ीप कहाँ से आ गया?” मेलाइट ने आ य
कट करते ए कहा- “मने तो जब इस झील का मानिच देखा था, तो मुझे
उस मानिच म कोई ीप तो नह दखाई दया था? .... और ... और इस
ीप क संरचना भी ब त ही िविच सी लग रही है।”
मेलाइट क बात सुन ा ने अपनी बोट को मानिसक शि य क
सहायता से उस दशा म मोड़ िलया, िजधर वह ीप दखाई दे रहा था।
शनैः-शनैः बोट उस िविच ीप क ओर जा रही थी।
उस रह यमय ीप पर पीले रं ग क िवशाल झािड़यां लगी थ । तभी
अचानक से वह सभी झािड़यां तेजी से चमक और इसी के साथ एक
आकाशीय िबजली आकर उस रह यमय ीप पर भी िगर गई।
अभी सभी उस झािड़य से िनकली रोशनी के बारे म सोच ही रहे थे,
क तभी ा क मानिसक शि य से बनी आँख का एक पंड उ ह क
ओर आता दखाई दया।
“यह मानिसक शि य से बनी आँख ने िवशाल पंड का आकार य
ले िलया?” ा ने सभी का यान आँख से बने पंड क ओर करते ए
कहा।
तभी आँख से बना वह पंड बोट के पास आ गया और एक झटके से
िबखर गया।
आँख से बने पंड के िबखरते ही उसम से कोई उड़ता आ जीव तेजी से
बोट के ऊपर से िनकलकर भागा। शायद इसी जीव को आँख अपने अंदर
भरकर ा तक लाई थ ।
उस उड़ने वाले जीव क गित इतनी अिधक थी क उसके रं ग के िसवा
कसी को कु छ भी नजर नह आया? उस जीव का रं ग लाल और काला था
और उसका आकार कसी फु टबाल के गोलपो ट के बराबर था।
उधर मानिसक शि य से बनी सभी आँख वतः ही हवा म अदृ य हो
ग । शायद उनका काय कु छ िविच चीज को ढू ंढकर लाने िजतना ही था।
“अरे ! इस जीव का रं ग तो लाल व काला है। कह यह कािशका
पु तक वाला ‘लेडीबग’ तो नह ?” िशव या ने आ य करते ए कहा।
“पर इसका आकार तो ब त बड़ा है। यह वह जीव कै से ......?” तभी
कहते-कहते ा क आँख अपने सामने ि थत उस िविच से ीप क
संरचना पर गई और इसी के साथ वह आ य व खुशी से भर उठा- “अरे ! यह
हमारे सामने दख रहा ीप का आकार व रं ग कािशका पु तक पर दख रहे
पु प के समान ही तो है, िजसे ेत हाथी ने अपनी सूंड म पकड़ रखा था। .....
इसका मतलब वह उड़ने वाला जीव भी कािशका का ही िह सा है।”
“पर इतनी िवशाल कािशका पु तक क क पना तो हमम से कसी ने
नह क थी?” मेलाइट ने आ य से उस ीप के समान पु प को देखते ए
कहा।
तभी िशव या क सभी नीली मछिलयां अचानक, झील क सतह से
बाहर उछलने लग । यह देख िशव या आ य से भर उठी- “यह अचानक इन
मछिलय को या हो गया? ... मुझे लग रहा है क इस थान पर पानी के
नीचे कु छ है? िजसक ओर ये मछिलयां इशारा कर रह ह।”
अभी िशव या उन मछिलय को देख ही रही थी क तभी झील के
पानी से कसी हाथी के सूंड जैसी िवशाल ेत आकृ ित बाहर िनकली और
इससे पहले क कोई कु छ समझ पाता? उस हाथी क सूंड ने अपनी साँस को
अंदर ख चकर उन सभी मछिलय को िनगल िलया।
मछिलय को िनगलने के बाद हाथी क सूंड ने पानी पर तैर रही बोट
को पकड़ िलया।
ठीक उसी समय पीले फू ल से दोबारा तेज रोशनी िनकली और उस
बोट पर आ पड़ी।
एक ण से भी कम समय म मेलाइट को सब कु छ समझ आ गया। अब
मेलाइट क िनगाह ऊपर आसमान क ओर गई, जहां से एक िबजली
िनकलकर उनक बोट पर िगरने क तैयारी कर रही थी।
यह देख मेलाइट िबना एक ण गंवाए, बैल के समान आकार क
िवशाल सुनहरी िहरनी म प रव तत हो गई।
मेलाइट के िसर पर लगी सुनहरी स घे तेज चमक मारने लग । ठीक
उसी समय बादल ब त तेज से गरजे और और एक िबजली उनक बोट क
ओर लपक ।
पर मेलाइट पहले से ही तैयार थी, इसिलये उसने उछलकर पूरी
िबजली को अपनी स घ म सोख िलया।
िबजली को अपनी स घ म सोखने के बाद, आसमान म उछली ई
मेलाइट सीधे झील के पानी क सतह पर जा कू दी। परं तु मेलाइट का शरीर
झील के पानी म नह समाया और अब मेलाइट आ यजनक तरीके से झील
के पानी क सतह पर दौड़ने लगी।
यह दृ य देख ा व िशव या, मेलाइट से ब त भािवत हो गये।
तभी मेलाइट ने अपनी स घ म भरी िबजली का वार, हाथी क सूंड
पर कर दया। मेलाइट के इस वार से हाथी क सूंड ितलिमला उठी और
वापस पानी के अंदर चली गई।
यह देख मेलाइट ने राहत क साँस ली। पर मेलाइट के िलये राहत क
साँस लेना थोड़ा भारी पड़ गया य क उसी पल हवा म उड़ती ई लेडीबग
तेजी से नीचे आई और िहरनी बनी मेलाइट को अपने पंज म उठाकर हवा म
ले गई।
अब मेलाइट वयं को फं सा महसूस करने लगी य क िबना धरा के
पश के मेलाइट अपनी स घ क िव ुत शि का योग नह कर पा रही
थी।
तभी झील के अंदर से हाथी क सूंड पुनः बाहर िनकली और उसने
जल क एक िवशाल फु हार मेलाइट क ओर मार दी।
हाथी को यह करते देख िशव या ने तुरंत अपनी मानिसक शि य से
एक िवशाल घड़े का िनमाण कया और हाथी के ारा उछाला गया पूरा
पानी, मेलाइट तक प ंचने के पहले ही उस घड़े म भर िलया।
िशव या क यह हरकत देख हाथी क सूंड ोध से भर उठी और उसने
अपनी सूंड को बुरी तरह से ा क बोट पर पटक दया।
एक पल म ही पूरी बोट टू टकर टु कड़ म िवभ हो गई। इसी के साथ
ा व िशव या का शरीर हवा म उछल गया।
ा व िशव या को पता था क झील के अंदर, िव ुत का झटका
अपने चरम पर होता है, इसिलये उन दोन म से कोई भी झील के पानी के
अंदर नह जाना चाहता था? अतः हवा म उछले ा व िशव या ने तुरंत
अपनी मानिसक शि य का योग करके अपनी पीठ पर 2 पंख उगा िलये।
अब ा व िशव या मानिसक शि य से बने पंख के सहारे हवा म
उड़ने लगे।
वयं को सुरि त देख ा क िनगाह, अब लेडीबग के जाल म फं सी
मेलाइट क ओर गई। इस बार ा ने अपनी मानिसक शि य से एक
िवशाल हाथ बनाया और उस हाथ को हवा म उड़ रही लेडीबग क ओर भेज
दया।
ले कन इससे पहले क मानिसक शि य से बना हाथ, लेडीबग को
कु छ भी नुकसान प ंचा पाता? क तभी ीपनुमा पीले फू ल से एक रोशनी
िनकलकर, ा के मानिसक हाथ पर पड़ी। इसी के साथ आकाश से पुनः
एक िबजली िनकली और वह ा के मानिसक शि य से बने िवशाल
हाथ पर जा िगरी।
जैसे ही िबजली उस हाथ पर िगरी, िबजली मानिसक शि य का
सहारा लेकर ा के मि त क तक प ंच गई। ा के मि त क को
िबजली का एक ती झटका लगा और वह एक पल म मू छत हो गया। शायद
ा ने कभी भी इस कार क िव ुत का वार नह सहा था?
अब ा के शरीर पर बने पंख कह अदृ य हो गये? और ा का
शरीर हवा म लहराकर झील क ओर िगरने लगा।
यह देख िशव या के मुंह से चीख िनकल गई- “ ाऽऽऽऽऽऽऽऽ ।”
िशव या ने तुरंत मानिसक शि य से झील क सतह पर, एक
पंजनुमा ग े का िनमाण कर दया। ग ा झील क सतह पर तैरने लगा।
ा का शरीर उस ग े पर जा िगरा।
ग ा पंजनुमा होने के कारण ा को चोट नह आई। यह देख
िशव या ने राहत क साँस ली और वापस मेलाइट क ओर देखने लगी, परं तु
ा क हालत देखकर िशव या अब आकाश म अपनी मानिसक शि य
का योग नह करना चाह रही थी।
उधर हाथी क सूंड पानी के अंदर चलते ए, मेलाइट के नीचे प ंच
गई और उसने हवा म लहराकर, लेडीबग को कसी कार का इशारा कया?
हाथी क सूंड का इशारा समझ लेडीबग ने, मेलाइट को नीचे क ओर छोड़
दया।
मेलाइट समझ गई क नीचे िगरते ही हाथी क उस सूंड ने उसका या
हाल करना है? इसिलये िहरनी बनी मेलाइट ने अपनी आँख बंद कर ल ।
तभी आसमान म कड़क रही िबजली के म य एक िवशाल साया
दखाई दया, जो क तेजी से िगरती ई मेलाइट क ओर बढ़ने लगा। यह
और कोई नह बि क मेलाइट का सबसे यारा गो था, िजस पर रोजर
सवार था।
रोजर ने इस समय शरीर से िचपके ए सुनहरे रं ग के व पहन रखे
थे। रोजर क नािभ के पास एक बड़ा सा चमकता आ र लगा था, जो क
शायद कसी लस के समान उसक काश शि को बढ़ाने के िलये था। रोजर
को यह व देवी आटिमस ने दये थे।
गो िबजली क सी तेजी दखाते ए मेलाइट के शरीर के नीचे आ
गया।
अब िगरती ई मेलाइट के शरीर को एक तेज झटका लगा। मेलाइट
को अब अपना शरीर वापस आसमान क ओर जाता तीत आ। यह महसूस
करते ही मेलाइट ने अपनी आँख खोल द ।
पर इसके बाद जो दृ य मेलाइट ने देखा, वह खुशी से सराबोर हो
उठी। य क इस समय मेलाइट का शरीर िवशाल गो के ऊपर था, िजस
पर रोजर बैठा आ था।
मेलाइट ने तुरंत अपनी िहरनी वाला प प रव तत करते ए, लड़क
का प धारण कर िलया और खुशी से गो को चूमने लगी।
मेलाइट को ऐसा करते देख रोजर ने हैरानी से बुदबुदाते ए कहा-
“ या समय आ गया है? मुझसे यादा गो क परवाह क जा रही है।”
रोजर के श द सुन मेलाइट एक पल को ठठक और फर रोजर के
गले से लग गई- “मुझे तु हारी भी परवाह है रोजर, ले कन गो म मेरी जान
अटक है। ..... गो को जगाने का ब त-ब त शु या। मुझे अहसास है क
तु ह सबकु छ पता लग गया है और अब तुम मेरी भावना को ठीक तरह से
समझ पा रहे हो।”
मेलाइट क बात सुन रोजर के चेहरे पर खुशी के भाव आ गये।
अब रोजर ने मेलाइट क आँख म देखा, जहां पर उसके िलये यार का
समुंदर नजर आ रहा था। तभी रोजर को अमारा का दया ‘हेयर ि लप’ याद
आ गया।
रोजर ने अपनी जेब से सुनहरा हेयर ि लप िनकाला और उसे धीरे से
मेलाइट के बाल म लगा दया।
उस हेयर ि लप को देख मेलाइट क आँख म आँसू छलछला आये-
“इसका मतलब तुम मेरी बहन से भी िमले हो? .... पर ... पर अमारा ने
तु ह इस हेयर ि लप को दे कै से दया? यह हेयर ि लप तो उसे ाण से भी
यारा था।”
“तु हारी सभी बहन तु ह ब त यादा यार करती ह और तु ह याद
भी करती ह। इसिलये ही अमारा ने तु हारे िलये ये हेयर ि लप भेजा है। ....
अरे हां, म यह बताना तो भूल ही गया क म देवी आटिमस और तु हारी
ैगन माँ से भी िमल चुका ँ।”
रोजर, मेलाइट के दल पर कसी यूिपड क भांित, एक के बाद एक
तीर चलाता ही जा रहा था। मेलाइट के पास तो जैसे रोजर पर करने
के िलये कोई श द ही नह बचे थे?
“मुझे पता था रोजर, क ई र ने मेरे िलये कोई ब त ही यारा सा
जीवनसाथी चुना होगा? परं तु वह इतना अ छा होगा, ऐसा मने सपने म भी
नह सोचा था। .... तुम इस दुिनया के सबसे अ छे इं सान हो।”
यह कहकर मेलाइट भावावेश म फर से रोजर से िलपट गई।
तभी रोजर ने मेलाइट को याद दलाते ए कहा- “ये यार क बात
तो हम फर कभी भी कर सकते ह? ...... पहले जरा इस कािशका पर तो
िनयं ण पा ल, िजसके िलये हम यहाँ पर आए ह।”
रोजर क बात सुनकर मेलाइट को याद आया क वह इस समय कहाँ
पर खड़ी है? इसिलये मेलाइट ने तुरंत अपनी भावना को िनयं ण म कया
और गो को नीचे जाने का इशारा कया।
उधर िवशाल ैगन व रोजर को मेलाइट क जान बचाते देखकर
िशव या समझ गई क यह कोई अपना ही साथी है? और मेलाइट उसके पास
सुरि त है। यह सोच िशव या अब तेजी से ा क ओर लपक ।
तभी एक लंबा सा हाथ आया और ा के शरीर के चारो ओर
िलपटकर हवा म उड़ गया।
िशव या यह सब देख हैरानी से भर गई- “अब यह या बला है?”
िशव या तेजी से उड़ती ई उस हाथ के पीछे लपक ।
तभी िशव या को कु छ दूरी पर, हवा म खड़ा एक दूसरी दुिनया का
जीव दखाई दया, िजसका शरीर देखने म मनु य के जैसा ही था, परं तु
उसके शरीर का रं ग ह का नीले रं ग का था। उस जीव ने गाढ़े नीले रं ग क
ेस पहन रखी थी। ेस के सीने पर एक सुनहरे रं ग का गोला बना था, िजस
पर A4 िलखा था।
उस जीव का दािहना हाथ ब त ही लंबा दख रहा था, िजसम उसने
ा के मू छत शरीर को लपेट रखा था।
तभी िशव या के मि त क म वा िण क आवाज गूंज उठी- “सावधान
िशव या, यह वही अंत र का जीव है, िजसके बारे म मने तु ह बताया था।
इस जीव के ऊपर बने गोले पर A4 िलखा है। इसका मतलब इस जीव का
नाम फो है और इस जीव के पास रबर के समान, अपने शरीर को लचीला
बना लेने क शि है।”
पता नह िव ान का कै सा चम कार था? क वा िण िशव या से
हजार कलोमीटर दूर बैठी ई, उसके सामने के सभी दृ य को देख पा रही
थी।
पर जो भी हो, वा िण क बात सुनकर िशव या अब सावधान दखाई
देने लगी।
तभी आकाश म उड़ रही लेडीबग ने दशा प रवतन कया और अब
वह उड़कर फो के पास आ प ंची।
फो जो क अभी तक िशव या पर नजर रखे था, अचानक से आए
इस लेडीबग को समझ नह पाया, तब तक लेडीबग ने फो के चेहरे को अपने
शरीर से ढक िलया और उसके ांस नली को अव कर दया।
पर शायद लेडीबग को पता नह था, क फो को पृ वी पर रहने के
िलये साँस लेने क कोई आव यकता नह थी? इसिलये फो ने तुरंत अपने
दूसरे हाथ को लंबा कया और उससे लेडीबग को भी लपेट िलया।
अब वातावरण म लेडीबग क तेज आवाज सुनाई देने लगी। लेडीबग
क आवाज सुन, वह िवशाल पीला फू ल फो क ओर मुड़ गया।
पीले फू ल ने फो के शरीर पर पीला काश फक दया। इसी के साथ
आसमान से पुनः एक ती गड़गड़ाहट करती ई िबजली नीचे क ओर आई
और फो के ऊपर िगर गई।
िबजली के तेज झटके से फो पूरी तरह से िहल गया और घबराहट म
उसने अपने दोन हाथ को समेट िलया। फो के हाथ समेटते ही ा व
लेडीबग, फो क हाथ क पकड़ से छू ट गये।
जहां एक ओर छू टते ही लेडीबग पुनः आसमान म तेज आवाज करती
उड़ने लगी, वह दूसरी ओर ा का शरीर झील के पानी क ओर िगरने
लगा।
अब िशव या के पास इतना समय नह था क वह अपनी मानिसक
शि य से ा को झील म िगरने से बचा सके ?
इस समय िशव या को समय क क मत पता चल रही थी और समय
.... वह तो अभी भी मंथर गित से, मंद-मंद पवन के साथ वायु म िवचरण कर
रहा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-4
समयजल

ितिल मा 7.63

सु भले हीयशसभीवलोग
शैफाली िनरं तर आगे बढ़ते जा रहे थे। एक-एक कर
इनसे अलग हो गये थे, पर फर भी इन दोन का
िव ास अभी िडगा नह था।कु छ आगे बढ़ते ही ऊंचे-ऊंचे पवत क
एक बड़ी ृंखला शु हो गई।
“यह या? यह इतने ऊंचे-ऊंचे पवत, इस थान पर कहाँ से आ गये?”
शैफाली ने पवत क ओर देखते ए कहा- “ या हम इन पवत को पारकर
‘माचू-िप चू’ प ंचना होगा?”
“दरअसल असली माचू-िप चू के खंडहर, दि ण अमे रक देश ‘पे ’
म ‘उ बा बा घाटी’ के ऊपर ि थत है, जो क इं का स यता के एक तीक के
प म है।” सुयश ने कहा- ”कै र ने यह सभी आ य असली से िमलते-जुलते
बनाये ह, इसिलये उसने भी इस थान को असली घाटी का आकार दया है।
.... पर इतना परे शान होने क ज रत नह है। मुझे इस घाटी म वेश करने
का एक छोटा रा ता पता है, जो क हम थोड़ी सी चढ़ाई के बाद ही ‘माचू-
िप चू’ लेकर जा सकता है। ऐसी अव था म हम इन ऊंचे-ऊंचे पहाड़ को
नह पार करना होगा।”
सुयश क बात सुन शैफाली ने धीरे से िसर िहलाकर अपनी सहमित दे
दी और सुयश के साथ-साथ घाटी तक प ंचने वाले दर क ओर चल पड़ी।
सुयश उस थान पर इस कार चल रहा था, क मान वह पहले रोज
ही यहाँ आता रहा हो? रा ते म कसी भी कार क कोई परे शानी नह आई?
लगभग आधे घंटे के सफर के बाद सुयश उस थान पर प ंच गया,
जहां से 2 पहाड़ के म य एक दरा दखाई दे रहा था, पर जैसे ही सुयश उस
दर म वेश करने चला, इस थान पर भी उसे एक अदृ य दीवार महसूस
ई।
“अरे ! इस थान पर भी अदृ य दीवार है।” सुयश ने अचकचाते ए
कहा- “इसका मतलब िपरािमड के समान ही हम इस थान पर भी वेश
नह कर सकते। ...... पता नह य मुझे लग रहा है शैफाली क हम इस ार
म कु छ ना कु छ तो गलत कर रहे ह, पर या? यह समझ नह आ रहा। .....
जरा तुम भी सारी घटना को सोचते ए कु छ याद करने क कोिशश करो
क हमसे गलती हो कस जगह पर रही है?”
सुयश क बात सुन शैफाली तेज-तेज बोलकर िपछली सभी घटना
को मब तरीके से याद करने क कोिशश करने लगी- “पहले हम इस
सा ा य के मु य ार से अंदर आये, फर हमने मु य ार के पास रखे
मानिच को देखा, िजससे हम पता चला क इस सा ा य म 7 आ य िछपे
ह, जो क एक गोलाकार आकृ ित म अलग-अलग थान पर ह, फर हम चीन
क दीवार के पास गये, िजसम जेिनथ दीदी गायब हो ग , फर .....।”
तभी सुयश ने शैफाली को बीच म ही रोक दया- “एक िमनट
शैफाली, हम इस पूरे घटना म म इन सभी आ य के बीच ि थत सरोवर
को भूल रहे ह। कह ऐसा तो नह क हम कु छ भी करने से पहले उस सरोवर
पर जाना रहा हो? इसिलये ही हमारे साथ कु छ अजीब सी घटनाएं घट रह
ह ?”
शैफाली को सुयश का तक िब कु ल सही लगा। शैफाली ही या, सुयश
को इस तक को सुन, दूर बैठे कै र के चेहरे पर भी एक मु कान दखाई देने
लगी।
“मान गये तु ह सुयश, तुम सच म इस ितिल मा को तोड़ने के
अिधकारी हो।” कै र ने मन ही मन बड़बड़ाते ए कहा- “इतना ती
मि त क इस पृ वी पर और कसी का हो ही नह सकता?”
इधर शैफाली ने सुयश के िवचार पर सहमित जताते ए कहा- “ठीक
है कै टे न अंकल, तो फर पहले हम उस सरोवर के पास चलते ह और वहाँ
िछपे कसी रह य को ढू ंढने क कोिशश करते ह?”
शैफाली को भी अपने तक से सहमित जताते देख सुयश, शैफाली के
साथ उस सरोवर क ओर चल दया।
लगभग आधे घंटे पैदल चलने के बाद सुयश व शैफाली उस िवशाल
सरोवर के पास प ंच गये।
सरोवर क आकृ ित िब कु ल गोलाकार थी और वो सुंदर सफे द प थर
से िन मत था। सरोवर के बीच म एक ब त ही खूबसूरत डॉि फन के आकार
वाला फ वारा लगा था, िजसके मुंह से 3 पानी क धार िनकल रह थ , जो
सरोवर क गोलाकार आकृ ित को पार कर, जमीन पर 3 अलग-अलग थान
पर िगर रही थी।
उस िवशालकाय सरोवर के चारो ओर का े िब कु ल अनोखा
महसूस हो रहा था। य क उस पूरे सरोवर के चारो ओर वैसे ही 7 आ य के
छोटे -छोटे मॉडल बने दखाई दे रहे थे।
दूर से देखने पर वह सरोवर ही कसी कार के , बड़े मानिच के
समान तीत हो रहा था?
सुयश व शैफाली पहले तो सरोवर क खूबसूरती देखते ही रह गये,
फर उ ह यान आया क वह इस समय ितिल म के अंदर ह।
“कै टे न अंकल, मुझे लगता है क पहले मुझे इस सरोवर के पानी म
उतरकर देख लेना चािहये, शायद इस सरोवर के अंदर कोई रह य िछपा
हो?” शैफाली ने सुयश से आ ा लेते ए कहा।
“ठीक है शैफाली, तुम सरोवर के अंदर जा सकती हो, पर जरा यान
रखना क अब हम बस 2 लोग ही बचे ह, अगर हम दोन भी कसी दुघटना
का िशकार हो गये? तो फर इस ितिल म को कोई कभी भी तोड़ नह
पायेगा?”
शैफाली ने धीरे से अपना िसर िहलाकर अपनी सहमित जताई और
फर सरोवर के उस जल म कू द गई। कु छ ही देर म शैफाली सरोवर क तली
म थी।
शैफाली ने धीरे -धीरे कर उस पूरे सरोवर को छान मारा, परं तु उस
सरोवर के अंदर उसे कु छ भी िविच दखाई नह दया? इसिलये शैफाली
बुझे मन से सरोवर के बाहर आ गई।
सुयश को देख शैफाली ने ‘ना’ के अंदाज म अपना िसर ह के से िहला
दया। सुयश समझ गया क सरोवर के अंदर कु छ भी नह है? इसिलये वह
यान से एक बार फर सरोवर के चारो ओर देखने लगा।
कु छ देर इधर-उधर देखने के बाद सुयश क आँख डॉि फन क मू त
पर जाकर टक ग । अब वह यान से डॉि फन के मुंह से िनकलते पानी को
देखने लगा। अचानकर कु छ महसूस कर सुयश क आँख चमक उठ ?
“शैफाली जरा यान से इस सरोवर क बनावट को देखो, या यह
सरोवर तु ह कसी बड़ी सी घड़ी के समान नह लग रहा?” सुयश ने शैफाली
को सरोवर क ओर दखाते ए कहा।
सुयश क बात सुन शैफाली यान से उस सरोवर को देखने लगी-
“आप सही कह रहे ह कै टे न अंकल, इस सरोवर क बनावट िब कु ल
गोलाकार है और अगर यान से देख तो इस डॉि फन के मुंह से िनकलने
वाली पानी क धार उसक 3 सुइय के समान ह, जो क मशः 11, 3 और 8
न बर वाले थान पर िगर रह ह। इस घड़ी म 2 के थान पर माचू-िप चू के
खंडहर ह, 4 के थान पर पे ा शहर, 6 के थान पर कोलोिसयम है। ठीक
उसी कार 7 के थान पर िपरािमड है, 9 के थान पर चीन क दीवार, 10
के थान पर ताजमहल और 12 के थान पर ‘जीसस ाइ ट’ क रयो वाली
मू त है। इस घड़ी के 1, 3, 5, 8 व 11 न बर के थान खाली ह। इसका
मतलब आपका सोचना सही था कै टे न अंकल क ितिल मा के इस ार म
अव य ही कसी कार का पैटन है? उसी क वजह से कु छ आ य हम अपने
अंदर वेश नह करने दे रहे थे? और कु छ आ य हमारे कु छ सािथय को
लेकर गायब हो गये?”
इतना कहकर शैफाली चुप हो गई और सुयश क ओर देखने लगी।
“िब कु ल ठीक कहा शैफाली। अब अगर हम इस सरोवर के थान पर
आने क जगह बाक के 2 आ य के पास प ंच जाते, तो अव य ही हम भी
ितिल मा के इस ार म सदा-सदा के िलये फं स जाते?” सुयश ने कहा- “अब
हम बस यान देकर पहले इस ार के पैटन को समझना होगा, उसके बाद ही
हम कसी भी बचे ए आ य के पास जायगे?”
“पर कै टे न अंकल, चीन क दीवार, कोलोिसयम व पे ा शहर तो
पहले से ही गायब हो चुके ह। अब इस ार म िसफ 4 आ य ही बचे ह।
अगर हम उन बचे ए 4 आ य म से उन 2 को भी हटा द, िज ह ने हम
अपने अंदर वेश ही नह करने दया, तो हमारे पास िसफ ताजमहल व
रयो क मू त ही बची है, इसका मतलब हम इन दोन म से ही कसी ार म
पहले जाना होगा?” शैफाली ने अपना दमाग लगाते ए कहा।
“तुम सही कह रही हो शैफाली, पर हम अंदाजे से चलने के थान पर
उस पैटन को समझना ही होगा। य क अब हम इस ार म कसी भी कार
क गलती करने क ि थित म नह ह?” सुयश ने शैफाली को समझाते ए
कहा।
“ठीक है कै टे न अंकल, फर तो हम इस सरोवर वाले थान को और
यान से देखना होगा। वह पैटन अव य ही यह कह िछपा होगा?” शैफाली
ने कहा और फर से यान से सरोवर के उस थान को देखने लगी।
तभी शैफाली क नजर भी उस डॉि फन के मुंह से िनकलने वाली धार
पर जाकर क गई।
“कै टे न अंकल, या आप बता सकते ह क कसी क ई घड़ी म
या समय बजा आ दखाई देता है?” शैफाली ने सुयश से पूछा।
“हर क ई घड़ी म 10 बजकर 10 िमनट और 35 सेके ड का समय
होता है, जो क कसी मु कु राते ए मानव चेहरे को के म रखकर सेट
कया गया था।” सुयश ने कहा।
“अगर आप क कही बात को स य मान ल, तो फर इस डॉि फन
वाले फ वारे क तीन सुइयां मशः 10, 2 और 7 पर होनी चािहये थ ,
जब क इसके फ वारे मशः 11, 3 और 8 वाले थान पर िगर रहे ह। ....
इसका साफ मतलब है क हम इस डॉि फन क मू त को, घड़ी के चलने क
िवपरीत दशा म थोड़ा सा घुमाना पड़ेगा।”
“वेरी गुड शैफाली। मुझे पूरा िव ास है क तुम इस समय सही सोच
रही हो। .... तो जाओ अब जरा जाकर इस मू त को सही दशा म घुमाओ। म
यहाँ कनारे पर खड़ा होकर इस सरोवर म होने वाले बदलाव को यान से
देखता ँ।” सुयश ने शैफाली से कहा।
सुयश क बात सुन शैफाली एक बार फर से सरोवर म कू द गई और
कु छ ही देर म तैरकर डॉि फन क मू त के पास जा प ंची।
अब शैफाली ने डॉि फन क मू त को थोड़ा सा उ टा दशा म घुमा
दया। जैसे ही डॉि फन के तीनो फ वारे 10 बजकर 10 िमनट और 35
सेके ड वाले थान पर िगरे , सरोवर के अंदर से एक अजीब सी गड़गड़ाहट
उभरी। इस गड़गड़ाहट को सुनकर शैफाली वापस तैरकर कनारे क ओर आ
गई और सुयश के पास खड़े होकर, यान से सरोवर को देखने लगी।
कु छ ही देर म डॉि फन क मू त अपने थान पर गोल-गोल घूमती
ई, सरोवर के अंदर समा गई और उसके थान पर एक खंभा सरोवर से
िनकला, िजस पर ि आयामी काँच का एक ि म रखा था। वह काँच का
ि म पारदश था और उसका आकार कसी फु टबाल के िजतना था। देखने से
ही लग रहा था क वह काँच का ि म एक खोखले िड बे क तरह है, परं तु
उसम कु छ भी रखा दखाई नह दया?
इस बार सुयश जलिवहीन सरोवर म उतरा और उस खंभे पर रखे
काँच के ि म को लेकर शैफाली के पास आ प ंचा।
शैफाली ने उस ि म को देखा। उस ि म के िनचले भाग म, एक
सीध म 6 छोटी-छोटी रे खाएं बार-बार चमक रही थ ।
शैफाली ने उ सुकतावश पहली रे खा को छू दया। ि म को छू ते ही
उस ि म से कु छ सटीमीटर क दूरी पर हवा म एक वगाकार आकृ ित म
गिणत के 10 अंक नजर आने लगे।
“अरे ! इस ि म पर तो कसी कार का िडिजटल ताला लगा है?
िजसका पासवड 6 अंक का है।” शैफाली ने सुयश को वह ि म दखाते ए
कहा।
“लो अब एक नई मुसीबत आ गई।” िडिजटल ताले को देखते ए
सुयश ने झुंझलाते ए कहा- “अब हम इस ताले का 6 अंक वाला पासवड
कह से ढू ंढना होगा? उसके बाद ही पता चलेगा क इस पु तक के अंदर या
है?”
“मुझे लगता है क इसका पासवड ढू ंढना मेरे िलये कोई बड़ी बात नह
है कै टे न अंकल? म आपको िव ास दलाती ँ क कु छ ही देर म म इस ताले
को खोल दूँगी?”
शैफाली के श द म गजब का आ मिव ास भरा था, इसिलये सुयश ने
शैफाली को ि म खोलने क अनुमित दे दी। वैसे सुयश को भी यह पता था
क शैफाली बड़ी ही आसानी से उस ताले को खोल देगी।
सुयश क अनुमित िमलते ही शैफाली कसी न हे ब े क तरह उस
ि म के पासवड से खेलने लगी। सुयश लगातार शैफाली क उं गिलय को
तेजी से पासवड पर फरते ए देख रहा था।
लगभग 3 से 4 िमनट के अंदर ही सुयश को ि म से एक खटके क
आवाज आती ई सुनाई दी। शैफाली ने सच म वह ताला खोल दया।
“कै र ने इसका पासवड ‘135811’ रखा था, जो क इस घड़ी के
खाली थान के न बर थे।” शैफाली ने मु कु राते ए कहा।
सुयश ने मु कु राकर आँख ही आँख म शैफाली क तारीफ क और
फर झुककर उस ि म को देखने लगा।
इस समय ि म पर दख रही, वह 6 रे खाएं गायब हो गई थ और
अब उस ि म क 3 दीवार पर, 3 छोटे -छोटे छे द उभर आये थे।
“अरे ! इस ि म पर तो 3 चािबयां लगनी ह।” शैफाली ने यान से
उन तीन छे द को देखते ए कहा- “अब इसका मतलब साफ है क इस ार
म बने 7 आ य म से िसफ 3 आ य म ही चािबयां िछपी ई ह, इसिलये
हम अब उन 3 चािबय को ढू ंढना होगा?”
शैफाली क बात सुन, सुयश फर से उस पूरे थान को देखने लगा।
धीरे -धीरे सुयश के चेहरे क मु कु राहट गहरी होती जा रही थी, िजसे
देख क ही शैफाली समझ गई क सुयश को अव य ही इन 3 चािबय का
रह य पता चल गया है।
“कै टे न अंकल, अब यादा रह य मत फै लाइये और बताइये क वह
तीन चािबयां इस समय कहाँ हो सकती ह?” शैफाली ने सुयश क ओर देखते
ए ता भरे श द म कहा।
“शैफाली, तु हारे का उ र क ई घड़ी के समय म िछपा है। ...
मतलब क 10 बजकर 10 िमनट और 35 सेके ड वाले थान पर ही तीन
चािबयां िछपी ह और मानिच म इन तीन थान पर मशः ताजमहल,
माचू-िप चू और िपरािमड ह। ... इसका मतलब पहले हम ताजमहल मे
जाकर पहली चाबी ढू ंढनी होगी, फर उसके बाद माचू-िप चू और फर
आिखर म िपरािमड म जाना होगा। शायद यही इस ार का पैटन है, िजसके
बारे म हम बात कर रहे थे और यही वजह थी क हम पहले माचू-िप चू और
िपरािमड म वेश नह कर पा रहे थे।”
“इसका मतलब बाक के िजस ार म हम वेश कर रहे थे, वहाँ पर
कु छ भी नह था? और उस ार का िनमाण कै र ने हम फं साने के िलये ही
कया था।” शैफाली ने बाक क गु थी को भी सुलझाते ए कहा।
“िब कु ल ठीक कहा तुमने शैफाली।” सुयश ने शैफाली को उ साह
दलाते ए कहा- “और इससे एक बात और िनकल कर आ गई क अब हम
रयो क मू त क ओर नह जाना है। ..... तो फर चलो देर ना करते ए,
हम इस ि म के साथ ताजमहल क ओर चलते ह।”
शैफाली, सुयश के श द सुन उ साह से भर गई। जाने य इस समय
शैफाली को कै पर क याद आ रही थी? ... पर जो भी हो शैफाली, िबना
कोई कये, सुयश के साथ ताजमहल क ओर बढ़ चली?
यह वह समय था, जब समय भी उस 20,000 वष के न हे यो ा को
देख णाम करना चाह रहा था।
◆ ◆ ◆
नील व

20,032 वष पहले ......


चं महल, चं ोदय वन, अरावली पवत ृंख ला, उ र-पि म भारत
िहमालय के ेत िहम पवत, अपनी अ भुत छटा चारो ओर िबखेर रहे
थे। ऐसे म कै लाश पवत से कु छ दूरी पर 2 पैर एक दशा क ओर जा रहे थे?
यह दोन पैर ह क सी नीली रं गत िलये ए थे। उन पैर पर
िहमालय क ेत बफ का कोई असर नह पड़ रहा था? वह तो बस अपनी ही
धुन म एक दशा क ओर जा रहे थे।
किणका िछपते ए उन 2 पैर का पीछा कर रही थी। ऐसा नह था
क वह पैर अके ले थे। उन पैर के साथ एक शरीर भी था, परं तु किणका के
अनेक यास के बाद भी उस पु ष का चेहरा किणका को दखाई नह दे रहा
था।
कभी बफ क च ान के बीच, तो कभी बफ से लदे वृ के बीच, वह
पु ष आगे बढ़ता जा रहा था। तभी किणका को उस पु ष क बलशाली
भुजाएं दखाई द , िजन पर ा क माला िलपटी ई थी।
उस द पु ष क भुजाएं देख, किणका उस द पु ष के पूण दशन
के िलये और भी आतुर हो उठी।
अब किणका ने अपनी गित को थोड़ा और बढ़ाया और उस द पु ष
क ओर चल दी। परं तु ना जाने कै सा मायाजाल था? क किणका िजतना उस
द पु ष क ओर जाने क चे ा कर रही थी, उतना ही वह द पु ष
किणका से और दूर होता जा रहा था।
तभी एक छोटे से बफ के टीले के पीछे से, किणका को उस द पु ष
के िसर वाले भाग के दशन ए। उस द पु ष ने अपने िसर के के श को
जटा के समान बांध रखा था और उसक जटा म भी ा क कु छ
मालाएं बंधी ई थ ।
उस द पु ष ने अपनी कमर के िनचले िह से पर, नीले रं ग के व
पहन रखे थे और उसक कमर का ऊपरी भाग पर भभूत िलपटा आ था।
उस पु ष ने अपने हाथ म एक ि शूल पकड़ रखा था।
किणका क उस द पु ष को देखने क लालसा बढ़ती जा रही थी।
तभी वह पु ष चलता आ एक ऐसे थान पर प ंच गया, जहां पर
एक पवत के िशखर से, अनेक बफ के झरने िगर रहे थे।
अब वह पु ष एक बफ ले झरने म वेश कर गया। उस पु ष ने अपने
हाथ म थमे ि शूल को वह बफ म धंसा दया और वयं उस िहमिशखर से
िगर रही बफ म ान करने लगा।
उस पु ष को बफ म ान करते देख, किणका उस झरने से कु छ दूर
एक प थर के पीछे िछप गई और आतुर नजर से उस द पु ष को देखने
लगी।
वह द पु ष अपने हाथ से, बफ को अपने शरीर पर रगड़ रहा था,
िजसके कारण उसके शरीर पर लगी भभूत तेजी से हटती जा रही थी।
कु छ देर तक यूं ही िहम ान करने के बाद, उस द पु ष ने अपने
ि शूल को अपने हाथ म उठाया और उस बफ के झरने से बाहर आ गया।
अब किणका को उस द पु ष का चेहरा, िब कु ल साफ दखाई दे
रहा था। वह पु ष और कोई नह बि क नीलाभ था?
नीलाभ ने झरने से बाहर आने के बाद, अपनी बड़ी-बड़ी आँख से उस
प थर क ओर देखा, िजसके पीछे किणका खड़ी थी।
नीलाभ को अपनी ओर देखते पाकर, एक पल के िलये किणका का कं ठ
सूख गया। जाने य इस समय उसे ब त घबराहट सी होने लगी? इसिलये
किणका ने तुरंत अपने चेहरे को भी, च ान के पीछे िछपा िलया और तेज-तेज
साँस लेने लगी।
तभी किणका को अपने पीछे से कसी के पदचाप क आवाज सुनाई
दी? परं तु किणका ने पीछे पलटकर नह देखा।
“आप कौन हो देवक या? और मुझे इस कार य िनहार रही थी?”
किणका को अपने पीछे से नीलाभ क मन मोह लेने वाली आवाज सुनाई दी।
नीलाभ क आवाज को सुनते ही, किणका ने अपनी आँख को कसकर
बंद कर िलया। वह समझ नह पा रही थी क वह नीलाभ को या उ र दे?
क तभी एक दूसरी आवाज ने किणका का यान भंग कर दया- “फड़-फड़-
फड़-फड़ऽऽऽ।”
इस िविच आवाज को सुन किणका ने जोर से अपनी आँख खोल दी।
इस समय किणका चं ोदय वन म ि थत अपने चं महल के एक क म
थी और कु छ देर पहले वह सोते ए व देख रही थी।
‘फड़-फड़’ क वह िविच आवाज अभी भी आ रही थी, जो क शंख व
पंख नाम के दोन हंस के पंख से आ रही थी।
दोन हंस आपस म अठखेिलयां करते ए, किणका के क क िखड़क
पर बैठे ए थे।
एक पल म ही किणका को समझ म आ गया क वह कोई व देख
रही थी? पर किणका को इस नील व का टू टना ब त अखरा था।
इसिलये उसने ोध म दोन हंस को डराते ए कहा- “चलो भागो
मेरे क से .... कतना सुंदर व था, जो आज तुम दोन के कारण टू ट
गया।”
दोन हंस किणका के डराने से िखड़क से उड़ गये।
किणका अब फर से अपने व के द पु ष के बारे म सोचने लगी-
”पता नह कौन है वह द पु ष? और वह बार-बार मेरे व म य आता
है? या मेरा उससे कोई स ब ध है? या फर यह मा मेरे मि त क क एक
क पना है? आज तो म उसके बारे म जानने ही वाली थी क आज भी
.......मेरा व टू ट गया।”
कु छ देर तक यूं ही सोचते रहने के बाद किणका तेजी से अपने क के
दूसरे भाग म आ गई। क के इस भाग म एक बड़ा सा सोने का संदक ू रखा
था, िजस पर एक िविच ताला लगा था। ताले म एक हाथी ने अपनी सूंड से
उस संदक ू को बंद कर रखा था।
किणका ने अपने हाथ को उस ताले पर फे रा। किणका के ऐसा करते ही
हाथी ने अपनी सूंड को मोड़कर, संदक ू क कु डी से हटा िलया।
अब संदक ू खुल चुका था। किणका ने संदक ू का ढ न खोलकर उसके
अंदर झांका। उस संदक ू म असं य से िच रखे थे। यह सभी िच किणका के
ही बनाये ए थे और सभी िच पर नीलाभ क अलग-अलग मु ा म
िच कारी क गई थी।
किणका ने कभी भी यह िच कसी को नह दखाए थे? यहाँ तक क
अपनी बहन मिणका को भी नह । कु छ देर तक यूं ही सभी िच को देखने के
बाद, किणका ने उन सभी िच को वापस से संदक ू म रखा और उस पर पुनः
ताला लगा दया।
अब किणका चलती ई काँच के पटल के पास आई और उस पर एक
व छ ेत व को लगा दया। काँच के पटल के कनारे पर, व को कसने
के िलये कु छ पच लगे थे। किणका ने उस पच को कसकर व को िच कारी
के िलये तैयार कर िलया।
इसके प ात् किणका ने पास रखी सोने क थाली उठाई, िजसम ब त
से रं ग और कु छ कू ची रखी ई थ ?
किणका के हाथ अब कसी कु शल िच कार क तरह से व पर चलने
लगे।
किणका के हाथ िब कु ल अपनी माँ भागवी के समान पटल पर चल
रहे थे। शायद यह कला किणका को अपनी माँ से ही ा ई थी।
कु छ ही देर म किणका ने नीलाभ का िहम ान करते ए, एक िच
पटल पर उके र दया। यह िच िब कु ल उसी दृ य के समान था, जैसा क
किणका ने अपने व म देखा था।
ना जाने किणका कस कार के रं ग का योग कर रही थी? क वह
िच बनाते ही सूख गया।
िच को सूखने के बाद किणका, एक बार फर से नीलाभ के बारे म
सोचने लगी।
इधर किणका, नीलाभ के व देख रही थी, तो उधर खुली ई
िखड़क से, दबे पाँव मिणका ने किणका के क म वेश कया।
मिणका दबे कदम से चलती ई किणका के पास जा प ंची और एक
झटके से किणका के हाथ म थमा नीलाभ का िच छीनकर, क के ार क
ओर भागी।
भागते ए मिणका चीखती भी जा रही थी- “िपता ी ... िपता ी,
देिखये किणका ने कसक त वीर बनाई है?”
किणका एक पल के िलये तो कु छ भी समझ नह पाई? परं तु जैसे ही
उसे मिणका क शैतानी का भान आ, वह तेजी से मिणका के पीछे चीखती
ई भागी- “ क जाओ मिणका, नह तो म तु हारी ाण ले लूंगी।”
परं तु तब तक मिणका क का ार खोलकर बाहर िनकल गई थी।
यह देख किणका भी क के बाहर क ओर भागी। किणका क से
बाहर िनकली और उसने मिणका को ढू ंढने के िलये अपनी नजर चारो ओर
दौड़ा ।
तभी किणका क आँख सामने से आ रहे चं वीर पर पड़ी। मिणका इस
समय िब कु ल चं वीर के पास खड़ी दख रही थी।
मिणका ने िबना देर कये नीलाभ के उस िच को चं वीर के हाथ म
पकड़ा दया- “िपता ी, यह देिखये किणका ने या बनाया है?”
चं वीर क िनगाह अब उस िच पर घूमने लग । यह देख किणका ने
अपने िसर को नीचे क ओर झुका िलया।
इस समय किणका अपने िपता से चेहरा भी नह िमलाना चाह रही
थी। परं तु मिणका के इस कृ य पर किणका को ब त तेज ोध आ रहा था।
ती ोध के कारण किणका ने अपनी दोन मु य को कसकर बंद कर रखा
था।
उधर चं वीर कु छ देर तक उस िच को देखता रहा और फर स
होते ए बोला- “अरे वाह! कतना सुंदर महादेव का िच बनाया है किणका
ने? किणका क िच कारी तो िब कु ल अपनी माँ पर गई है।”
चं वीर के श द को सुन किणका ने तुरंत अपना चेहरा ऊपर क ओर
उठाया और भागकर चं वीर के पास प ंच गई।
चं वीर ने किणका के िसर पर हाथ फे रते ए कहा- “तु हारी कला
अ यंत ही सुंदर है किणका। म इस िच को अपने क म लगाऊंगा।”
चं वीर के मुख से किणका के िलये शंसा भरे श द सुनकर मिणका
जल-भुन गई। उसे अपने िपता से िब कु ल ऐसी आशा नह थी।
तभी चं वीर पुनः बोल उठा- “अरे हां, महादेव से याद आया क
तु हारी माता भागवी चाहती थ , क जब तुम दोन 21 वष क हो जाओ, तो
तुम दोन वयं से िहमालय जाकर, माता पावती का आशीवाद ा करो
और आज से ठीक 2 दन के प ात तुम दोनो 21 वष क हो जाओगी।
इसिलये यान रखना क तुम दोन को 2 दन प ात माता पावती से
आशीवाद लेने के िलये िहमालय जाना होगा और इस काय म म तु हारी कोई
सहायता नह कर पाऊंगा?”
“एक बात मुझे समझ म नह आई िपता ी क हमारी माता भागवी,
हम माता पावती से ही आशीवाद लेने के िलये य भेजना चाहती थ ?”
मिणका ने उ सुकतावश पूछ िलया।
“तु हारी माता भागवी, माता पावती क ही मानसपु ी थ , इसिलये
वह तुम दोन को उनसे आशीवाद ा करने के िलये भेजना चाहती थ । वह
चाहती थ क तुम दोन इस स पूण पृ वी क सबसे गुणवान और ान से
प रपूण क याएं बनो। अगर आज वह वयं भी यहाँ होत , तो तु ह माता
पावती से आशीवाद लेने के िलये अव य भेजत ।” चं वीर ने कहा।
“ठीक है िपता ी, हम दोन 2 दन प ात िहमालय क ओर थान
करगी और अपनी माता क इ छा क पू त करगी।” किणका ने कहा और
आिखरी बार चं वीर के हाथ म पकड़े नीलाभ के िच को िनहारते ए अपने
क क ओर चल दी।
िहमालय पर जाने का नाम सुन किणका क आँख म एक खुशी सी भर
गई। उसे पता था क उसके नील व का उ र अव य ही माता पावती के
पास होगा।
(इस घटना के अगले दृ य के फल व प 2 दन प ात मिणका व
किणका दोन ही िहमालय क ओर चली ग । जब मिणका माता पावती से
आशीवाद लेने के िलये िहमालय पर प ंची तो उसक भट माता पावती से
पहले ही बाल गणेश से हो गई। बाल गणेश का उपहास करने के कारण गणेश
ने मिणका को कोयल म प रव तत कर दया। कोयल बनी मिणका एक कुं ए
म जाकर बैठ गई। उस कु एं म दै यराज मयासुर, महादेव को स करने हेतु
तप कर रहा था। 12 वष तप करने के प ात जब मयासुर उठा, तो उसक
िनगाह कोयल बनी मिणका पर पड़ी। मयासुर ने मिणका को पुनः ी प म
प रव तत कर दया और उसे अपनी पु ी के प म वीकार कर िलया।
मयासुर ने मिणका का नाम ‘माया’ रखा और मिणका को दये वचन के
अनुसार, उसका िववाह महादेव के सव े िश य नीलाभ के साथ कर दया।
इस दृ य को आप िपछली पु तक म पढ़ ही चुके ह, तो फर आइये चलते ह
कहानी के अगले दृ य क ओर ......)
◆ ◆ ◆
ेन वॉकर

06.02.02, बुध वार, मैराकाइबो झील, वेनेजुए ला, दि ण अमे रका


ा का शरीर आसमान से झील के पानी क ओर िगर रहा था।
अब िशव या के पास इतना समय नह बचा था क वह अपनी
मानिसक शि य से ा को झील म िगरने से बचा सके ?
तभी िगरते ए ा के शरीर के नीचे, हवा म एक काश ार
उप आ और ा का शरीर उस काश ार म समा गया।
काश ार का दूसरा िसरा उड़ते ए गो के ठीक ऊपर कट आ।
ा का शरीर दूसरे ार से िनकला। तभी रोजर ने ा के शरीर को हवा
म ही लपक िलया।
वैसे यह काश ार रोजर का ही बनाया आ था।
रोजर को इस कार अपनी शि य का योग करता देख, मेलाइट के
चेहरे पर खुशी के भाव नजर आने लगे। उधर िशव या ने भी ा को
सुरि त देख राहत क साँस ली।
तभी फो तेजी से झील क सतह के पास आया और उसने झील क
सतह पर बह रहे जल को, एक अजीब से अंदाज म थपथपाया।
फो के ऐसा करते ही झील के पानी से, एक िवशाल लहर ‘रोल’
होती ई िशव या क ओर लपक । वह लहर इस कार रोल हो रह थ ,
मान कोई ि अपने िब तर को लपेट रहा हो। चूं क िशव या झील क
सतह से अिधक ऊंचाई पर नह थी, इसिलये वह लहर के जाल म फं स गई।
लहर ने िशव या को अब चारो ओर से घेर िलया।
यह देख िशव या ने अपनी मानिसक शि य से एक हथौड़ा बनाया
और उन लहर के जाल को तोड़ने क कोिशश करने लगी।
परं तु िशव या क इस कोिशश का कोई भी भाव उन लहर पर नह
पड़ा? अब वह लहर िशव या को पीस देने पर अमादा हो ग ।
िशव या समझ गई क अगर उसने तुरंत ही अपने बचाव म कु छ नह
कया? तो वह लहर उसे सच म पीस डालगी। लहर लगातार िसकु ड़ती जा
रह थ ।
तभी िशव या ने अपनी मानिसक तरं ग से, अपने चारो ओर एक
बेलनाकार खोल बना िलया।
उधर िशव या को इस कार फं सते देख, रोजर ने अपने चारो ओर
देखा। तभी रोजर क नजर आसमान से झील क ओर िगरने वाली एक
िबजली क ओर गई।
यह देख रोजर ने िबजली के नीचे, एक काश ार का िनमाण कर
दया, िजसका दूसरा िसरा ठीक फो के ऊपर खुल रहा था।
अब वह िबजली रोजर के बनाये काश ार से होते ए फो के ऊपर
जा िगरी। इस बार फो िबजली का हार झेल नह पाया और वह जल क
सतह पर जा िगरा।
तभी मेलाइट ने पुनः सुनहरी िहरनी का प धारण कया और चंड
प दखाते ए गो के ऊपर से कू द गई।
मेलाइट झील क सतह पर सुरि त उतर गई और वह अपनी स घ
को िहलाते ए, िगरे पड़े फो क ओर झपटी।
इससे पहले क फो कु छ समझ पाता, मेलाइट ने अपनी स घ को
फो के शरीर म िव करा दया। अब फो, मेलाइट क स घ म फं सा
तड़प रहा था।
तभी मेलाइट ने जाने या कया? क अनिगनत आसमानी िबजली
एक के बाद एक मेलाइट क स घ पर िगरने लग । इसके कारण चारो ओर
तेज काश छा गया।
इस दृ य को देख एक पल के िलये रोजर का दल भी हलक म आ
गया।
लगभग 10 से 12 िबजिलयां िगरने के बाद आसमान से िबजिलय का
िगरना बंद हो गया।
जब रोशनी कु छ देखने लायक हो गई, तो रोजर क आँख म खुशी के
भाव आ गये। य क मेलाइट अभी भी सुनहरी िहरनी बनी उस थान पर
सुरि त खड़ी थी, जब क फो का जला आ काला शरीर मेलाइट क स घ
म फं सा आ था।
इस समय मेलाइट क सुनहरी स घ और भी यादा चमक रह थ ।
मेलाइट ने अब जोर क ंकार भरी और फो के जले ए शरीर को
वह पानी म फक दया।
परं तु अभी मेलाइट ने ठीक से साँस भी नह ली थी, क तभी झील के
अंदर से एक दूसरा अंत र जीव बाहर िनकलने लगा।
उस जीव का आकार ब त ही िवशालकाय था। उस जीव के सम
िवशाल गो भी चूहे के समान नजर आ रहा था। उस जीव ने भी फो के
समान ही पोशाक पहन रखी थी। इस जीव के सीने पर बने गोले म ‘P2’
िलखा था।
तभी वा िण क आवाज मेलाइट, रोजर व िशव या के कान म गूंजी-
“सभी सावधान, यह एं ोवस पावर क खतरनाक यो ा म से एक है।
इसका नाम ओरे ना है और इसम ...... कसी ... के .... भी मि त क .......।”
पर इससे पहले क वा िण सभी को ओरे ना के बारे म और कु छ बता
पाती क तभी वा िण का स पक सभी से कट गया।
“हैलो ... हैलो ... वा िण .... तुम ओरे ना के बारे म या बताना चाह
रही हो?” िशव या ने अपने माथे को अपने दोन हाथ के अंगूठे से पश
कराते ए वा िण से दोबारा स पक करने क कोिशश क ।
तभी सभी के मि त क म एक अंजान आवाज गूंजी- “वा िण का
स पक अब तुम लोग से कट चुका है .... अब तुम लोग िसफ ओरे ना के
स पक म रहोगे।”
“अरे ! यह ओरे ना हमसे कस कार बात कर पा रही है? और इसने
कौन सी शि का योग करके वा िण से स पक काट दया?
तभी िवशाल ओरे ना ने आसमान क ओर अपना मुंह करके खोल
दया। ओरे ना के ऐसा करते ही आसमान से िनकलकर सैकड़ िबजिलयां
ओरे ना के मुंह के अंदर वेश कर ग । उ ह देखकर ऐसा लग रहा था क
मानो ओरे ना के िलये वह िबजिलयां भोजन ह ।
सभी ओरे ना का यह िवशाल प देखकर िसहर उठे । मेलाइट तो समझ
ही नह पा रही थी, क इतनी िवशाल ओरे ना का सामना वह कस कार
कर पायगे?
तभी िशव या ने इस यु क पहल कर दी। उसने अपनी स पूण
मानिसक शि य को एकि त करके एक िवशाल दानव का िनमाण कर
दया।
वह िवशाल दानव उ प होते ही, गरजते ए ओरे ना क ओर झपटा,
परं तु जैसे ही वह दानव ओरे ना के पास प ंचा, ओरे ना ने अपना मुंह खोलते
ए, एक साथ सैकड़ िबजिलयां उस दानव पर मार द ।
एक पल म ही वह दानव धुंआ-धुंआ होकर वायुम डल म िवलीन हो
गया।
तभी रोजर ने अपने दोन हाथ को मोड़ते ए अपनी काश शि का
वार ओरे ना पर कर दया।
रोजर क नािभ से िनकली सुनहरी करण, उसक पोशाक पर लगे र
को पार करती ई, ओरे ना क ओर झपटी। रोजर को पूण िव ास था, क
ओरे ना पर इस काश शि का भाव अव य होगा।
परं तु जैसे ही वह काश क करण ओरे ना के पास प ंच , ओरे ना ने
ना जाने कौन सी शि का योग करते ए रोजर के काश को मेलाइट क
ओर मोड़ दया।
रोजर क काश करण मेलाइट के ऊपर जा िगर और एक पल म ही
मेलाइट जलकर भ म हो गई।
यह देख रोजर के हाथ-पैर कांप गये। इस समय रोजर चीखना चाह
रहा था, परं तु उसके मुंह से चीख भी नह िनकल पा रही थी। अब रोजर
घुटन के बल गो पर बैठ गया और अपना िसर झुकाकर रोने लगा।
उधर मेलाइट को समझ म नह आया क रोजर ने ओरे ना पर कोई
हार य नह कया और अचानक से वह गो पर बैठकर रोने य लगा?
गो अभी भी रोजर को लेकर आसमान म उड़ रहा था।
तभी मेलाइट के देखते ही देखते, ओरे ना ने िशव या पर भी िबजली का
हार कर दया।
िशव या अपनी ओर आ रही सैकड़ िबजिलय से बच नह पाई। एक
िबजली िशव या के शरीर के पार हो गई और िशव या का िनज व शरीर
पानी क सतह पर िगर गया।
यह देख मेलाइट ने ोध से ओरे ना क ओर देखा और अपनी स घ म
भरी िबजली का वार ओरे ना पर कर दया। परं तु जो वयं ही िबजली से बनी
हो, उस पर भला िबजली का या असर होना था?
मेलाइट के वार ओरे ना के शरीर म समा गये। तभी ओरे ना ने अपने
हाथ को आगे कया, िजसम से िनकलकर सैकड़ भाले मेलाइट क ओर
लपके । मेलाइट ने उन भाल से बचने क ब त कोिशश क , परं तु वह बच
नह पायी।
3 भाले मेलाइट के शरीर म घुस गये। अब मेलाइट दद से कराहती ई
झील क सतह पर िगर गई।
धीरे -धीरे मेलाइट को अपनी साँस थमती ई सी महसूस होने लग ।
तभी हवा म उड़ते ए गो ने नीचे मेलाइट क ओर देखा। मेलाइट से
कु छ दूरी पर ओरे ना अपने सामा य आकार म खड़ी दखाई दी, जो क धीरे -
धीरे मेलाइट क ओर बढ़ रही थी।
यह देख अब गो के शरीर से कु छ पतली र सी के समान िशराएं
बाहर आ ग और उन िशरा ने रोजर व ा को कस कर ग के शरीर
से बांध दया।
इसके प ात गो ने हाइ ा का प धारण कर िलया और आसमान से
कू दकर झील के पानी म िव हो गया। झील के अंदर गो को एक िवशाल
ेत हाथी दखाई दया, जो क झील के अंदर से ही बाहर के यु को देख
रहा था।
हाथी ने गो को घूरकर देखा, परं तु उसने गो के ऊपर आ मण नह
कया।
गो तैरता आ तेजी से मेलाइट के पास प ंचा और उसने अपनी
जीभ का योगकर मेलाइट के हाथ को पकड़ िलया। मेलाइट का हाथ पकड़ने
के बाद, गो ने िबना देर कये मेलाइट के हाथ को, उसके िसर पर लगे ‘हेयर
ि लप’ पर रगड़ दया।
दूर खड़ी िशव या अभी भी होश म थी, परं तु उसे समझ म नह आ
रहा था क वह िबना मानिसक शि य के इतनी िवशाल ओरे ना से कस
कार लड़े?
िशव या एक-एक कर सभी को िन तेज होते देख रही थी। वह तो
समझ ही नह पा रही थी क िबना यु लड़े ओरे ना कस कार सभी को
हरा रही है?
तभी िशव या क िनगाह गो क ओर गई, जो क मेलाइट के हाथ को
उसके हेयर ि लप से छु आ रहा था। िशव या को गो क यह हरकत समझ म
नह आई?
तभी आसमान म एक जोर क िबजली कड़क और एक 4 िहरिनय
वाला सुनहरा रथ कट हो गया, िजस पर ीक देवी आटिमस बैठी ई थी।
वहाँ प ंचते ही आटिमस क िनगाह मेलाइट और उसक ओर बढ़ रही
ओरे ना क ओर गई। मेलाइट क यह हालत देख आटिमस ोध से कांप उठी।
अब आटिमस के हाथ म ‘साइ लो स’ का दया तीर-धनुष दखाई
देने लगा।
आटिमस ने िबना देर कये 1 तीर को धनुष पर चढ़ाया और आसमान
क ओर मार दया। आटिमस के धनुष से िनकला तीर आसमान म जाकर फट
गया। तीर के फटने से एक जोर क वृ ाकार ऊजा उस पूरे े म फै ल गई।
अब उस थान का मौसम पूरी तरह से साफ हो गया। इसी के साथ
ओरे ना का जादू भी समा हो गया।
ओरे ना का जादू समा होते ही ा , रोजर व मेलाइट िब कु ल सही
हो गये।
अब सभी को झील क सतह पर खड़ी, सामा य आकार वाली ओरे ना
साफ दखाई दे रही थी। उन सभी को अपनी ओर घूरते देख ओरे ना अपने
थान से गायब हो गई।
ओरे ना को गायब होते देख सभी ने राहत क साँस ली।
तभी सभी के कान म वा िण क आवाज सुनाई दी- “अंत र के
जीव से पहली जीत क बधाई। अब तुम लोग कािशका को ा कर सकते
हो।”
उधर आटिमस का रथ झील क सतह पर आकर क गया। रथ के
कते ही मेलाइट क सभी बहन ने क या का प धारण कया और
मेलाइट से आकर िलपट ग ।
अपनी सभी बहन को इतने पास देख, मेलाइट क आँख से झर-झर
आँसू बहने लगे।
ना जाने कतनी ही देर तक मेलाइट अपनी बहन के गले से लगी रोती
रही? फर उनसे अलग होने के बाद मेलाइट, आटिमस के सामने झुक गई-
“एक बार फर मेरे ाण बचाने का ब त-ब त शु या देवी आटिमस।”
“इसम शु या करने क कोई बात नह है मेलाइट, तुम मेरी सबसे
यारी सहेली भी हो, तु हारी जान बचाकर म वयं को स महसूस कर
रही ँ।” आटिमस ने कहा।
अभी आटिमस बोल ही रही थी, क अचानक झील के पानी के नीचे
एक बार फर से हलचल शु हो गई। यह देख सभी बात करना छोड़कर
झील के पानी क ओर देखने लगे।
तभी झील क सतह पर तैर रहा वह पीला ीप, झील के अंदर समा
गया और इसी के साथ झील के पानी के अंदर से कािशका नामक िवशाल
कताब िनकल आई।
इस समय कािशका का आकार, आसमान छू ता आ दखाई दे रहा
था। कािशका के सामने झील के अंदर वाला ेत हाथी खड़ा था, िजसक
सूंड म इस समय पीला फू ल दखाई दे रहा था। लेडी बग भी हाथी के पास
उड़ रही थी।
तभी हाथी ने अपनी सूंड म पकड़े पीले फू ल को िहलाया। इसी के साथ
पूरे आसमान का रं ग सुख लाल हो गया और मौसम फर से खराब दखाई
देने लगा।
“हे भगवान! अभी कािशका से पार पाना तो बाक ही है।” मेलाइट
ने अपना िसर पकड़ते ए कहा- “और कािशका इस समय अपने सबसे
खराब मूड म दखाई दे रही है।”
आसमान म जोर-जोर से िबजली ने कड़कना शु कर दया। कसी के
पास एक और यु लड़ने क िह मत नह बची थी? पर कािशका को ा
करना भी तो आव यक था। इसके िबना वा िण क योजना सही कार से
काम नह कर पाती। इसिलये सभी िबना मन के एक और यु लड़ने के िलये
तैयार हो गये।
तभी कड़कती ई आसमानी िबजली के बीच एक ी खड़ी नजर आई,
जो क धीरे -धीरे कािशका क ओर बढ़ रही थी। िशव या ने इशारा करके
सभी का यान उस ी क ओर कराया।
वह ी कसी अ सरा क भांित धीरे -धीरे हवा म लहराते ए नीचे
उतर रही थी। कु छ देर तक तो दूरी अिधक होने के कारण कोई उसे पहचान
नह पाया, पर गो क एक तेज आवाज से मेलाइट ने तुरंत उस ी को
पहचान िलया- “ ैगन माँऽऽऽऽऽ।”
जी हां वह ी माया ही थी, जो अब कािशका के सामने हवा म
लहरा रही थी।
तभी माया के हाथ म एक गुलाब के फू ल क पंखुड़ी नजर आने लगी।
माया ने उस पंखुड़ी को कािशका क ओर उछाल दया।
माया के ऐसा करते ही अचानक से मौसम िब कु ल शांत हो गया और
ेत हाथी व लेडीबग भी कािशका म समा गये। अब कािशका का आकार
तेजी से घटने लगा।
यह देख सभी उस थान पर प ंच गये, जहां क माया हवा म खड़ी
थी। वहाँ पर खड़े सभी लोग कसी ना कसी कार से माया को जानते थे?
इसिलये सभी ने हाथ जोड़कर माया को णाम कया।
सभी को णाम करते देख इस बार आटिमस ने भी झुककर माया को
अिभवादन कया।
माया ने सभी को णाम करते देख, अपना िसर झुकाकर उन सभी का
अिभवादन वीकार कर िलया।
उधर कािशका का आकार जब घटते-घटते 6 फु ट का हो गया, तो
उसने एक अ सरा का प धारण कर िलया।
“देवी भागवी क पु ी मिणका को कािशका का णाम।” कािशका
ने माया के सम हाथ जोड़ते ए कहा- “बताइये देवी मिणका, मेरे िलये
या आदेश है?”
कािशका क बात सुन माया क आवाज वातावरण म गूंज उठी-
“इस पृ वी पर एक भयानक देवयु होने वाला है कािशका और हम भय है
क श ु तु हारी शि य का योग बुरे काय के िलये कर सकते ह। इसिलये
तु ह कु छ दन के िलये िशव या के पास रहना होगा।”
“जो आ ा देवी।” यह कहकर कािशका ने एक नजर वहाँ खड़े सभी
लोग पर मारी और फर पु तक म प रव तत होकर उड़ते ए िशव या के
हाथ म जा प ंची।
िशव या ने कािशका को माथे से लगाया और अपनी मानिसक
शि य से एक िड बा बनाकर कािशका को उसम रख दया।
जैसे ही िशव या ने कािशका को उस िड बे म रखा, वह िड बा वतः
ही कह अदृ य हो गया? अब जाकर सभी ने राहत क साँस ली।
“ या अब हम वा िण के पास चलना चािहये?” रोजर ने िशव या क
ओर देखते ए पूछा।
“नह , वा िण के कथन के अनुसार हम अपना यु जीतने के बाद भी
इसी थान पर रहना होगा। य क उन अंत र के जीव के पास हमारी
देवशि य को ढू ंढने क अ भुत शि है। अगर उन सभी ने हम एक होते
देख िलया, तो वह सब भी एक थान पर एक हो जायगे और ऐसी ि थित
म हम उ ह परािजत नह कर पायगे।
िशव या क बात सुनकर सभी कसी ना कसी कार से झील के
कनारे क ओर चल दये? सभी के पास इस थान पर समय क कमी नह
थी। इसिलये वह सभी एक दूसरे से ब त सारी बात करना चाहते थे।
हां, माया अव य सभी से बात करने के प ात वहाँ से अदृ य हो गई।
शायद उसके पास अभी भी कु छ काय शेष बचा था? िजसे देवयु के पहले
पूण करना अ यंत आव यक था।
सभी अब झील के कनारे के पास प ंच गये। जहां सभी के दल म
अपने यु को जीत लेने क खुशी थी, वह दूसरी ओर बाक के यो ा के
िलये उनके मन म थोड़ी घबराहट थी।
जाने कै सा होना था ि तीय यु ? िजसम साग रका का अि त व दांव
पर लगा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-5
ताजमहल

ितिल मा 7.64

यश व शैफाली इस समय िवशाल ताजमहल के सामने खड़े


सु थे। ताजमहल दूध से सफे द संगमरमर के प थर से िन मत था।
मु य भवन के चारो ओर 4 सफे द गु बदनुमा मीनार, ताजमहल क
खूबसूरती म चार चाँद लगा रहे थे।
ताजमहल के सामने एक ब त लंबा सा पानी का सरोवर भी था,
िजसम साफ पानी भरा था। उस सरोवर म भी ताजमहल का ितिब ब
दखाई दे रहा था।
कु छ देर के िलये तो सुयश व शैफाली इस खूबसूरत आकृ ित को देख
स हो गये, पर जैसे ही उ ह यह याद आया क वह असली ताजमहल म
नह , बि क ितिल मा के एक ार म ह, वह पूरी तरह से सावधान हो गये।
इस समय उ ह दूर-दूर तक कोई भी नजर नह आ रहा था?
“यह कै र ने तो अ रशः ताजमहल क ितकृ ित को ही उतार दया
है।” सुयश ने चारो ओर देखते ए कहा- “इसे देखकर तो ये पता ही नह चल
रहा है क हम कसी नकली ताजमहल के सामने खड़े ह? .... पर इतने बड़े
थान पर इस ि म क चाबी कहाँ हो सकती है? यह पता लगाना तो ब त
ही मुि कल काय है।”
“कै टे न अंकल, हम दोन ही ताजमहल के बारे म अ छे से जानते ह,
तो हम बस यहाँ घूमकर कसी ऐसी िविच चीज को ढू ंढना होगा? िजसम
कै र वह चाबी िछपा सकता है।” शैफाली ने कहा।
शैफाली क बात सुनकर सुयश ने सहमित से अपना िसर िहलाया और
शैफाली को लेकर लंबे सरोवर से होते ए, ताजमहल क ओर बढ़ने लगा।
कु छ आगे बढ़ने पर सुयश को सामने एक बोड लगा आ दखाई दया,
िजस पर हंदी भाषा म ‘ताजमहल’ िलखा था। उसे देखकर सुयश उस थान
पर ठठककर क गया।
सुयश को कता देखकर शैफाली भी क गई और उस बोड को देखने
लगी।
“जहां तक मुझे यान है क असली ताजमहल के पास, इस कार का
कोई भी बोड नह लगा होता है?” सुयश ने कहा- “तो फर इस कार का
बोड कै र ने यहाँ पर य लगाया? .... या तु ह इस बोड म कोई रह य
नजर आ रहा है शैफाली?”
सुयश क बात सुन शैफाली यान से उस बोड को देखने लगी।
“कै टे न अंकल, वैसे तो यह बोड एक साधारण लकड़ी के बोड क तरह
ही लग रहा है, पर जाने य मुझे भी यह बोड कु छ खटक सा रहा है? इसम
अव य ही कोई रह य ......।”
तभी बोलते-बोलते शैफाली अचानक से चुप हो गई और सुयश के हाथ
म पकड़े उस काँच के ि म को देखने लगी।
“एक िमनट कै टे न अंकल, जरा यह ि म मुझे दीिजये।”
शैफाली क बात सुनकर सुयश ने अपने हाथ म पकड़े ि म को
शैफाली क ओर बढ़ा दया।
शैफाली ने वह ि म सुयश के हाथ से ले िलया और उसे अपनी आँख
म लगाकर उस बोड को देखने लगी। थोड़ी देर तक ऐसे ही उस बोड को देखने
के बाद, अब शैफाली उस ि म से ताजमहल को भी देखने लगी।
कु छ देर के बाद शैफाली ने अपनी आँख के सामने से उस ि म को
हटा िलया और उस ि म को सुयश क ओर बढ़ाते ए बोली- “कै टे न
अंकल, जरा इस ि म के ारा इस बोड को और ताजमहल को देिखये।
शायद हम हमारे का उ र िमल गया है?”
शैफाली के श द कसी रह य से कम नह थे? इसिलये सुयश ने तुरंत
शैफाली के हाथ से ि म को ले िलया और उसे अपने आँख के पास लगाकर,
बारी-बारी से बोड और ताजमहल को देखने लगा।
“अरे ! इस काँच के ि म से देखने पर तो, इस बोड पर ताजमहल के
थान पर िसफ ‘जल’ िलखा दखाई दे रहा है। ‘ता’, ‘म’ व ‘ह’ अ र तो
कह नजर ही नह आ रहे? इसी के साथ इस ि म से देखने पर ताजमहल के
सामने एक बड़ी सी कु स पर बैठा आ, एक बादशाह सरीखा इं सान नजर आ
रहा है, जो क एक मू त के प म है।”
इतना देखने के बाद सुयश ने ि म को, अपनी आँख के सामने से हटा
िलया और वाचक िनगाह से शैफाली क ओर देखने लगा।
“कै टे न अंकल, ‘जल’ का मतलब तो पानी होता है और हमारे
आसपास पानी तो िसफ इस लंबे से सरोवर म ही है। इसका मतलब क पानी
म इस ि म क चाबी हो सकती है? या फर पानी म कोई ऐसा रह य हो
सकता है, जो क हम चाबी के पास ले जा सकता है? .... पर इस बादशाह क
मू त को कै र ने अदृ य य रखा है? इसम भी कोई ना कोई रह य है? ...
तो फर य ना पहले इस सरोवर को ही देख ल, उसके बाद उस बादशाह
क मू त के पास चल?”
“तुम ठीक कह रही हो शैफाली, पहले इस सरोवर के पानी को चेक
कर लेते ह, उसके बाद ही बादशाह क मू त पर यान दगे। वैसे भी बादशाह
क मू त अभी हम लोग से काफ दूर है।” सुयश ने कहा- “पर चूं क यह
सरोवर लंबाई म काफ यादा है, इसिलये समय बचाने के िलये, इसम हम
दोन को ही उतरना होगा।”
शैफाली ने सुयश क बात पर अपनी सहमित जताई और वयं धीरे से
उस सरोवर म उतर गई। सुयश ने अपने हाथ म पकड़े ि म को सरोवर के
कनारे बने प थर पर रखा और शैफाली क भांित सरोवर के पानी म उतर
गया।
पर पानी म उतरते ही सुयश व शैफाली बुरी तरह से च क गये,
य क जो पानी ऊपर से ब त कम गहरा दखाई दे रहा था, वह अंदर से
कसी बड़ी झील क भांित तीत हो रहा था?
सुयश, शैफाली के साथ सरोवर क गहराई क ओर चल दया। दोन
ही पानी के अंदर इधर-उधर देखते ए नीचे क ओर बढ़ रहे थे।
कु छ नीचे जाने के बाद शैफाली को पानी क गहराई म कु छ रखा आ
दखाई दया। शैफाली ने सुयश को इशारे से उस दशा म चलने को कहा और
वयं भी उधर क ओर बढ़ गई।
थोड़ी ही देर म सुयश व शैफाली उस सरोवर क तली म प ंच गये,
जहां पर सफे द रं ग के एक छोटे से महल का मॉडल रखा आ था। लगभग 1
वग फट आकार का वह मॉडल देखने म ब त ही खूबसूरत लग रहा था।
सुयश ने पानी क तली से उस मॉडल को उठाया।
तभी शैफाली को कु छ दूरी पर पानी म िगरे ए, कु छ लाि टक के
वगाकार टु कड़े दखाई दये, िजस पर अं ेजी भाषा म कु छ श द िलखे थे।
शैफाली ने उ सुकतावश उन सभी लाि टक के टु कड़ को उठा िलया
और उ ह देखने लगी। पर उन टु कड़ पर िलखे श द को देखकर शैफाली
आ य से भर उठी, य क उन टु कड़ पर उन सभी लोग के नाम िलखे थे,
िज ह ने उनके साथ इस ितिल म म वेश कया था।
शैफाली को कु छ समझ तो नह आया? परं तु वह उन लाि टक के
टु कड़ को िलये ए, सुयश के साथ सरोवर से बाहर आ गई।
पानी से िनकलकर सुयश व शैफाली उस थान पर प ंच गये, जहां
पर उ होने ि म का रखा था। अब सुयश ने अलग-अलग तरीके से, ि म के
ारा उस महल के मॉडल को देखा, परं तु सुयश को उस मॉडल म कु छ भी
अनोखा नजर नह आया।
“इस मॉडल म तो कु छ भी अनोखा नह है? फर कै र ने इस मॉडल
को वहाँ पानी के अंदर य िछपाया?” सुयश ने मॉडल को देखते ए कहा-
“शैफाली, या तुमने इस महल को कह पर देखा है?”
“नह ।” शैफाली ने मॉडल को देखते ए संि सा उ र दया।
जब काफ देर तक दोन को, महल के मॉडल म कु छ भी नजर नह
आया? तो थककर दोन ही अब उन लाि टक के टु कड़ को देखने लगे, िजस
पर उन सभी का नाम अं ेजी के बड़े अ र म िलखा था।
वह लाि टक के टु कड़े सं या म कु ल 9 थे, िजन पर िलखे नाम थे-
“सुयश, शैफाली, जेिनथ, तौफ क, ऐले स, टी, अलबट व ऐमू।”
“अरे ! यह सभी नाम नीले रं ग से िलखे ह, परं तु इन सभी नाम का
पहला अ र लाल रं ग म िलखा है। या इसम भी कोई रह य है?” सुयश ने
शैफाली क ओर देखते ए कहा।
“कह येक नाम के पहले अ र से कोई श द तो नह बन रहा?
िजससे चाबी का रह य पता चल जाये।” शैफाली ने सभी टु कड़ को देखते
ए कहा।
“अगर सभी नाम के पहले अ र को िनकाल ल, तो उनम ‘3A’ ह,
‘2S’ ह और 1-1 ‘T’, ‘J’ व ‘K’ ह, पर मुझे नह लगता क इनसे कोई श द
बन रहा है?” सुयश ने दमाग लगाते ए कहा।
जब काफ देर तक माथाप ी करने के बाद भी, सुयश व शैफाली को
कोई श द समझ म नह आया? तो थककर वह बादशाह क अदृ य मू त के
पास जा प ंचे और ि म क सहायता से बारी-बारी बादशाह क मू त को
देखने लगे।
“कै टे न अंकल, यह अदृ य मू त पूरी तरह से सफे द प थर क बनी है
और इस मू त का कोई भी भाग अलग नह है? यािन क इस मू त म कसी
कार का रह य होना, अब नामुम कन सा ही लग रहा है।” शैफाली ने कहा।
“इतनी ज दी हम हार नह मान सकते शैफाली। हम अब इस महल के
मॉडल, उन लाि टक के टु कड़े पर िलखे श द और इस मू त के बीच, कसी
भी कार के स ब ध को ढू ंढना होगा? अव य ही उसी म हम कोई ना कोई
रह य िमलेगा?” सुयश के श द म गजब का आ मिव ास था, िजसे सुनकर
शैफाली एक बार फर नये िसरे से इस रह य को सुलझाने के िलये बैठ गई।
उधर कु छ देर के बाद सुयश फर से, उन लाि टक के अ र से कसी
श द को बनाने क कोिशश करने लगा? अं ेजी के श द बनाते-बनाते जब
सुयश थक गया, तो वह इन पहले अ र से हंदी के कसी श द को बनाने म
लग गया।
आिखरकार 10 िमनट के बाद सुयश के हाथ सफलता लग ही गई।
सुयश ने हर पहले अ र को आगे-पीछे करके रखा और उससे एक हंदी का
श द बना दया और वह श द था- “TAJ SA AKS”
“यह आपने या िलखा है कै टे न अंकल?” शैफाली को सुयश के ारा
िलखा आ श द समझ म नह आया।
“यहाँ पर मने हंदी भाषा के कु छ श द ‘ताज सा अ स’ िलखा है,
िजसका मतलब होता है क ‘ताज जैसा दखने वाला’ .... अब यहाँ पर
ताजमहल जैसा दखने वाला और कु छ तो है नह ? ..... एक िमनट को
शैफाली, यहाँ पर ‘ताज जैसा’ कहा गया है ‘ताजमहल जैसा’ नह .... और
ताज तो ाउन को भी कहते ह। ... कह ऐसा तो नह क उस बादशाह क
मू त के िसर पर रखे ाउन क बात हो रही हो? .... हम एक बार फर से
बादशाह के िसर पर रखे, ाउन को चेक करना होगा शैफाली।”
सुयश क बात सुन शैफाली ने सुयश के हाथ से ि म को िलया और
एक बार फर यान से बादशाह क मू त पर रखे ाउन को देखने लगी।
“कै टे न अंकल, यान से देखने पर यह पता चल रहा है, क बादशाह
के िसर पर रखा ाउन, इस मू त से अलग दख रहा है।” शैफाली ने कहा-
“अगर आप कह तो म इस ाउन को बादशाह के िसर से उतार कर देखूं?”
शैफाली क बात सुन सुयश ने शैफाली को ाउन उतारने क अनुमित
दे दी।
शैफाली ने ि म क सहायता से बादशाह के िसर से ाउन को उतार
िलया। बादशाह के िसर से हटते ही, ाउन सदृ य हो गया और िबना ि म
के ही दोन को दखाई देने लगा।
अब शैफाली उलट-पलट कर उस ाउन को देखने लगी।
“यह ाउन तो पूरा का पूरा सफे द प थर का ही बना है, इसम तो
कसी भी कार का रह य नह िछपा?” शैफाली ने पूरा ाउन देखने के बाद
िनराश होते ए कहा।
तभी सुयश क नजर अपने हाथ म पकड़े उस महल के मॉडल पर गई।
सुयश को ना जाने या सूझा क वह ‘ताज-महल’ श द को अपने मन ही मन
म बड़बड़ाया। इसी के साथ सुयश ने सफे द महल के मॉडल को वह जमीन
पर रखा और ाउन को शैफाली के हाथ से लेकर, उस सफे द महल के ऊपर
रख दया।
सुयश का इतना करना था क रोशनी का एक तेज झमाका आ और
अब उस मॉडल के थान पर सफे द रं ग क , एक चमकती ई प थर क चाबी
दखाई देने लगी।
चाबी को देखते ही सुयश व शैफाली क आँख खुशी से चमक उठ ।
“कै टे न अंकल, आपको कै से पता चला क ाउन को महल के ऊपर
रखना है?” शैफाली ने उ सुकतावश सुयश से पूछ िलया।
“मने जब बादशाह के ाउन यािन क ताज को उस महल के साथ
देखा, तो मुझे एकाएक इन दोन श द से ‘ताजमहल’ बनता आ दखाई
दया। बस इस ताजमहल श द के बनते ही मुझे लगा, क अव य ही इन
दोन के बीच कु छ तो स ब ध है? इसीिलये मने अपने िवचार को चेक करने
के िलये, ाउन को महल के ऊपर रख दया और देखो मेरा सोचना िब कु ल
सही सािबत आ।” सुयश ने िवजयी भाव से मु कु राते ए कहा।
“सही कहा कै टे न अंकल। आपका सोचना हमेशा क तरह इस बार भी
सही सािबत आ।”
यह कहकर शैफाली वह जमीन पर बैठ गई और उसने सामने रखी
चाबी को उठाकर ि म के ऊपर बने सुराख म लगाकर चेक करने लगी।
दूसरे सुराख म वह चाबी िब कु ल फट बैठ गई।
शैफाली के चाबी को घुमाते ही ि म से एक खटके क आवाज उभरी
और उस चाबी सिहत ि म का वह सुराख भी गायब हो गया। अब उस
ि म पर िसफ 2 सुराख ही बचे थे।
तभी एक झमाके के साथ ताजमहल का वह पूरा े कह गायब हो
गया?
यह देख दोन ने ही राहत क साँस ली।
“चिलये कै टे न अंकल, अब हम माचू-िप चू क खंडहर क ओर
चलना होगा, हम अपनी दूसरी चाबी वह िमलेगी।” यह कहकर शैफाली
अपने थान से खड़ी ई और सुयश के साथ माचू-िप चू के खंडहर क ओर
चल दी।
एक चाबी िमलने के बाद दोन के ही चेहरे पर, एक अलग ही कार
का िव ास नजर आने लगा था। समय का च अब त ु गित से दौड़ने लगा
था।
◆ ◆ ◆
अि प ी

20,032 वष पहले .........


ि कालदश मं दर, चं ोदय वन, अरावली पवत ृंख ला, उ र-पि म भारत
चं वीर इस समय चं ोदय वन म ि थत, एक िवशाल पवत के पास
खड़ा था। पवत से सटी एक च ान के पीछे से ि कालदश मं दर का रा ता
जाता था।
चं वीर ने उस च ान पर बनी अि प ी क आकृ ित को देखा, िजसका
शरीर लाल और नारं गी रं ग से बना आ था। आकृ ित म उस अि प ी ने
अपने पंख फै ला रखे थे।
उस च ान के चारो ओर लाल रं ग के गुलाब के ब त से पेड़ लगे थे,
िजन पर असं य गुलाब क किलयां लगी ई थ । एक पल के िलये चं वीर
को अपने जीवन क वह घटना याद आ गई, जब पहली बार उसे भागवी इस
थान पर लेकर आई थी।
अब चं वीर के मि त क म अनेक िवचार, कसी झंझावात क
मांिनद चलने लगे?
“आज से 22 वष पहले जब म एक यु को जीत कर भी हार गया था।
उसी दन मेरी भट इसी चं ोदय वन म भागवी से ई थी। भागवी का स दय
कसी ‘कल-कल’ बहते झरने के समान था। एक पल म ही भागवी मुझे
अ छी लगने लगी। भागवी को देख कु छ समय के िलये, म अपने रा य क
परे शािनय को भी भूल गया था। भागवी मुझे लेकर इस थान पर ि थत
ि कालदश मं दर आई, जहां पर उसने मुझे बताया क वह माता पावती क
मानस पु ी है और उसके पास भिव य को देखने क शि है। भागवी ने
बताया क इस ि कालदश मं दर का िनमाण, उसने समय को रोककर 20
वष म पूरा कया था। इसके प ात हमने िववाह कर िलया और इसी वन म
चं महल बनाकर रहने लगे। िववाह के प ात कभी भी म चं ोदय रा य
नह गया? पर ऐसा नह था क मुझे देवी आ दशि को दये वचन का भान
नह था, इसिलये मने अपनी योगशि से, एक दूसरा चं वीर बनाकर
चं ोदय रा य भेज दया। उधर दूसरा चं वीर, चं ोदय रा य को संभालने
लगा, इधर म भागवी के साथ, िववाहोपरांत अपना अमू य समय इस वन म
िबताने लगा। िववाह के 1 वष के प ात हमारी जुड़वा पुि यां । हमने उन
पुि य का नाम मिणका व किणका रखा। मिणका व किणका के आ जाने से
हमारी खूबसूरत जीवन म िसतारे से जड़ गये। धीरे -धीरे समय बीतता जा
रहा था। हम अपने छोटे से प रवार से अ यंत स थे क अचानक एक दन
भागवी कह चली गई? उस समय मिणका व किणका मा 2 वष क थ ।
मने भागवी को ढू ंढने क ब त कोिशश क , परं तु भागवी का कह पता नह
चला? मेरे िलये तो मेरा जीवन एक पल म नीरस हो गया। भागवी के जाने के
बाद मने इस ि कालदश मं दर म आकर अपने भिव य म झांकने के िलये
सोचा, परं तु तभी मुझे भागवी के कहे कथन यान म आ गये। भागवी ने कहा
था क िबना उसक आ ा के भिव य ार म वेश करने वाला ि ,
देवता के िनयम को तोड़कर ‘देवयु ’ का आहवान कर देगा और ऐसी
ि थित म, इस मं दर म उपि थत अि प ी, उसे सदा-सदा के िलये
समयजाल म फं सा देगा। बस इसी कारण से िपछले 21 वष म म कभी भी
इस मं दर क ओर नह आया। इन 21 वष म म अपनी पुि य को माता
और िपता दोन का ही यार देता रहा। परं तु आज जब 21 वष के प ात्
मने अपनी पुि य को माता पावती के पास आशीवाद ा करने भेज दया,
तो म एक बार फर से वयं को िनतांत अके ला महसूस करने लगा।
आिखरकार अब मने भागवी को ढू ंढने का िनणय ले िलया। इसिलये इससे
पहले क मेरी दोन पुि यां माता पावती से आशीवाद लेकर वापस आएं, म
इस ि कालदश मं दर के ारा भागवी को ढू ंढ िनकालूंगा।”
यह सोचकर चं वीर ने च ान के पास लगे गुलाब के फू ल से एक
गुलाब को तोड़ िलया और उसे च ान पर बने अि प ी पर फक कर मार
दया।
गुलाब क पंखुड़ी के अि प ी से टकराते ही, वह च ान ‘घरघराहट’
क तेज आवाज करती अपने बांई ओर िखसक गई। अब उस च ान के पीछे
एक िवशाल गुफा नजर आने लगी, िजसके अंदर कह से नीली रोशनी आती
दखाई दे रही थी?
चं वीर गुफा के अंदर वेश कर गया। चं वीर के गुफा म वेश करते
ही, च ान ने वापस से गुफा का ार बंद कर दया।
गुफा म चारो ओर नीले रं ग क एक िविच सी ऊजा िबखरी ई थी
और उसी िविच ऊजा क रोशनी से पूरी गुफा काशमान दख रही थी।
चं वीर को मं दर का रा ता पता था, इसिलये वह िबना के आगे बढ़ता
गया।
कु छ ही देर म चं वीर एक संकरी गुफा से होते ए, ि कालदश
मं दर के अंदर प ंच गया। चं वीर इस थान पर 21 वष के प ात आया
था, फर भी इस थान पर उसे कोई बदलाव दखाई नह दये?
ि कालदश मं दर पूरी तरह से पवत को काटकर बनाया गया था,
िजसम चारो ओर ेत प थर से महादेव और देवी पावती के िभ -िभ प
क 12 ितमाएं लग थ ।
उन मू तय को देखकर ऐसा लग रहा था, क मान िश पकार ने उन
मू तय म ाण डाल दये ह । गुफा क दीवार पर भी ा ड के अनेक
ह को, िच कला के मा यम से दशाया गया था। परं तु उन दीवार पर बने
ा ड के मानिच म, जगह-जगह पर नीली ऊजा दखाई दे रही थी, जो
क उस मानिच म बहती ई सी तीत हो रही थी।
चं वीर ने एक नजर मं दर के चारो ओर डाली और फर उसक
िनगाह मं दर के बीचो बीच, एक 4 िसर वाले देवता क मू त पर चली गई।
मू त के येक िसर के मुख से अि क लपट िनकल रह थ ।
“भागवी ने इनका नाम कालाि बताया था, जो क महादेव के एक
गण ह। भागवी ने कहा था क कालाि अपने चतुमुख से चारो दशा म
देख सकते ह और अपने मुख क अि से काल यािन क समय को भी रोकने
क शि रखते ह।”
चं वीर बीती घटना को याद करते ए सोच रहा था। परं तु उसक
येक सोच म भी भागवी ही उसके मि त क म समाई ई थी।
अब चं वीर क िनगाह अपने सामने ि थत 3 ार क ओर गया।
भूतकाल, वतमान काल व भिव यकाल के ार को देखने के बाद, चं वीर क
आँख भूतकाल के ार पर जाकर टक ग । इसी के साथ चं वीर के मि त क
म एक िवचार आया।
“भागवी ने मुझे भिव य के ार म वेश करने के िलये चेतावनी दी
थी। तो फर य ना म भूतकाल म वेश करके यह जानने क कोिशश क ं ?
क आिखर भागवी के साथ आ या था? जो वह हमसे दूर चली गई?”
यह सोच चं वीर ने भूतकाल का ार खोला और उसम वेश कर
गया।
भूतकाल के ार के अंदर िब कु ल अंधेरा था। यहाँ तक क उस थान
पर हाथ को हाथ नह सुझाई दे रहा था।
यह देख चं वीर धीरे -धीरे टटोलते ए आगे क ओर बढ़ने लगा।
कु छ आगे बढ़ने के बाद चं वीर को अपने पैर के पास पानी के होने का
अहसास आ, िजसके ‘छप-छप’ क आवाज चं वीर को साफ सुनाई दी।
“यह मेरे पैर के पास पानी कहाँ से आ गया? म इस समय कहाँ ँ?
मुझे कु छ भी नजर नह आ रहा?”
तभी चं वीर को अपने पास से कह गुलाब क ती सुगंध आती ई
महसूस ई? इसी के साथ वातावरण म कसी ी के हंसने क मधुर सी
आवाज गूंजी।
जाने य चं वीर को यह आहट भागवी के समान महसूस ई?
इसिलये चं वीर ने चीखकर भागवी को आवाज लगाई- “भागवीऽऽऽऽऽऽऽ।”
चं वीर के आवाज लगाते ही उस थान के एक भाग म, थोड़ी रोशनी
उ प हो गई। वह रोशनी नीले रं ग क एक दीवार क भांित लग रही थी।
वह दीवार लगभग 100 फु ट ऊंची दखाई दे रही थी।
उस िविच रोशनी को देख चं वीर उस नीली दीवार क ओर चल
दया।
जब चं वीर नीली दीवार के पास प ंचा, तो उसे वह दीवार कसी
जल के समान दखाई दी। चं वीर ने धीरे से उस जल क दीवार को पश
कर िलया।
चं वीर के ऐसा करते ही, चं वीर का शरीर वतः ही खंचकर, उस
जल से बनी दीवार के अंदर समा गया। अब चं वीर ने अपने आप को एक
जल से बनी वगाकार आकृ ित के अंदर पाया। वह आकृ ित कसी खेल के पाशे
क भांित थी?
पाशे क सभी दीवार जल से ही िन मत थ । पाशे के बीच म िब कु ल
भी पानी नह था। हां, पाशे क धरा पर, गुलाब क असं य पंखुिड़यां अव य
िबखरी ई थ , जो क शायद भागवी क अ भुत शि य क प रचायक
थ?
तभी चं वीर को अपने पीछे कसी के होने का अहसास आ?
यह अहसास होते ही चं वीर तेजी से पीछे पलट गया।
जैसे ही चं वीर पीछे पलटा, उसने अपने पीछे भागवी को खड़े ए
पाया। ठीक इसी समय चं वीर के चारो ओर का दृ य वतः ही प रव तत हो
गया। अब चं वीर चं ोदय वन म खड़ा था।
भागवी को देख चं वीर भागकर भागवी के पास आ गया और उसे
अपनी बांह म भरने का यास कया, परं तु चं वीर के हाथ भागवी के शरीर
के पार िनकल गये।
तभी भागवी चलती ई आगे क ओर बढ़ी और चं वीर के शरीर के
इस कार पार िनकल गई, जैसे क चं वीर वहाँ हो ही ना। चं वीर आ य
से पलटा और वन म जाती ई भागवी को देखने लगा।
भागवी तब तक कु छ आगे िनकल गई थी। यह देख चं वीर भी भागवी
के पीछे -पीछे चल दया। तभी चलते-चलते अचानक भागवी, एक थान पर
ठठक कर क गई। कु छ देर के बाद भागवी ने ना जाने या देखा क अब वह
एक मोटे से वृ के तने के पीछे िछप गई?
भागवी अब िछपकर एक ओर देख रही थी।
“यह भागवी यहाँ िछपकर या देख रही है? और यह दृ य कस
समयकाल का है?” चं वीर ने मन ही मन सोचा और आगे बढ़कर भागवी के
समीप जा प ंचा।
तभी चं वीर को कु छ आगे नीले रं ग के पौरािणक व पहने 2 युवा
जोड़े दखाई दये।
पु ष के िसर पर एक सुनहरे रं ग का नागमुकुट लगा था, िजसे देखकर
यह साफ पता लग रहा था क वह कोई नागपु ष है?
भागवी मोटे तने के पीछे िछपकर उन दोन क ही बात सुन रही थी।
वह दोन िनकुं भ व नीलांगी थे। चं वीर लगातार दोन क बात सुन
रहा था। कु छ देर के प ात िनकुं भ ने नीलांगी को अपने हाथ म उठाया और
अपने नीलपंख के ारा उड़ते ए, उस थान से ओझल हो गया।
उन दोन के जाने के बाद भागवी कु छ देर तक सोचती रही, इसके
बाद वह भी हवा म उड़ते ए िहमालय क ओर चल दी।
भागवी के उड़ते ही चं वीर के आसपास का वातावरण पुनः बदल
गया।
अब चं वीर ने वयं को ीरसागर के अंदर पाया, जहां क नीलांगी
महादेव के सामने खड़ी थी। महादेव इस समय ोध म दखाई दे रहे थे।
चं वीर के देखते ही देखते, महादेव ने भागवी से कु छ संवाद कया
और फर अपना ि शूल उठाकर, भागवी को एक सुनहरे संहासन म
प रव तत कर दया।
इतना देखने के बाद चं वीर वापस उस जल से बने पाशे के पास आ
गया, परं तु अब उसे भागवी के बारे म सबकु छ पता चल गया था।
“इसका मतलब भागवी पहले से ही जानती थी क वह मेरे साथ िसफ
3 वष के िलये ही है और इसी अविध को बढ़ाने के यास म उसे महादेव के
ोध का िशकार होना पड़ा। .... पर ...पर इस घटना के ारा यह नह पता
चल रहा क 21 वष के बाद भागवी, संहासन के प से मु ई क नह ?
और यह पता लगाने के िलये म ीरसागर के अंदर वेश भी नह कर सकता,
य क म तो एक सामा य गंधव ँ, इसिलये म ीरसागर म फै ले िवष का
सामना नह कर पाऊंगा। .... तो फर ... तो फर य ना म भिव य ार का
योग करके भागवी के वतमान का पता लगा लूं? ... हां यही सही रहेगा।”
यह सोच चं वीर जल से भरे पाशे से बाहर आ गया और भूतकाल के
ार से िनकलकर भिव य काल के ार क ओर चल दया।
भिव य ार के पास अि प ी क एक मू त लगी थी। मू त म
अि प ी अपने पंख को फै लाये दख रहा था। चं वीर धीरे -धीरे चलता आ
भिव य ार के पास जा प ंचा।
“मुझे मा कर देना भागवी, अब म तु हारी और ती ा नह कर
सकता। इसिलये म अब तु ह देखने के िलये, तु हारी आ ा के िबना इस
भिव य ार म वेश करने जा रहा ँ। मुझे पता है क इस भिव य ार म
वेश करने पर मुझ पर कोई संकट आ सकता है? परं तु तुमसे िमलने के िलये
अब म इस संकट से भी टकराने के िलये तैयार ँ। हे देवता कालाि आप भी
मुझे मा कर देना।”
यह कहकर चं वीर ने भिव य ार को खोला और उसके अंदर वेश
कर गया।
चं वीर के भिव य ार म वेश करते ही, मं दर म बनी कालाि क
मू त वतः ही जीिवत हो गई। कालाि ने अपने सभी मुख से चारो ओर
देखा और फर वह भी भिव य ार के अंदर िव हो गया।
कालाि के भिव य ार म वेश करते ही, भिव य ार के सम बनी
अि प ी क मू त ने अपने पंख फै लाकर एक जोर क आवाज िनकाली-
“ ऽऽऽऽऽऽ ऽऽऽऽऽऽऽ।”
अि प ी के ऐसा करते ही भिव य ार वतः ही बंद हो गया।
अंदर चं वीर िजस थान पर िनकला, वह थान कसी अंत र के
अ भुत यान क तरह नजर आ रहा था? उस पूरे थान पर करोड़ गुलाब क
पंखुिड़यां हवा म घूम रह थ । उस थान को देख कर ऐसा लग रहा था क
मान उस थान पर गु वाकषण ही ना हो।
चं वीर इस अ भुत दृ य को देखकर, एक पल के िलये अपने उ े य
को ही भूल गया। वह अब चारो ओर हवा म नाच रही पंखुिड़य को अपने
हाथ से छू कर देखने लगा।
तभी अचानक सभी पंखुिड़यां चं वीर क ओर लपक और उ ह ने
चं वीर के शरीर को अपने अंदर िछपा िलया। चं वीर पंखुिड़य के इस कृ य
पर घबरा गया और उसने अपने दोन हाथ को झटककर पंखुिड़य को अपने
शरीर से दूर कर दया।
चं वीर के झटकने क वजह से पंखुिड़यां अब चं वीर के शरीर से दूर
हट ग । तभी चं वीर को अपने आसपास का नजारा बदला आ दखाई
दया।
अब चं वीर ने वयं को असं य िसतार व ह के बीच पाया, जहां
एक अजीब सी नीली ऊजा िबखरी दख रही थी और पूरे वातावरण म एक
आ याि मक ओम् क विन गूंज रही थी।
अभी चं वीर आ य से अपने चारो ओर देख ही रहा था क तभी उसे
अपनी ओर बढ़ता आ एक अि पंड दखाई दया।
जैसे-जैसे वह अि पंड समीप आता जा रहा था, चं वीर को उसक
छिव साफ दखती जा रही थी। कु छ ही देर म उस अि पंड ने एक िवशाल
अि मुख का प धारण कर िलया।
इस अि मुख को देखते ही चं वीर इसे पहचान गया। वह कालाि का
एक मुख था, िजसके नीचे कोई शरीर नह था?
जैसे ही वह िवशाल अि मुख, चं वीर के समीप आया, उस अि मुख
ने अपने मुख को कसी िवशाल गुफा क भांित खोल दया? और चं वीर को
िनगल िलया।
चं वीर के पास वयं को बचाने को कोई उपाय नह था? अि मुख के
िनगलते ही चं वीर ने भय से अपनी आँख बंद कर ल ।
चं वीर को इस समय ती रोशनी और गम का अहसास हो रहा था।
कु छ देर बाद जब रोशनी कु छ कम ई, तो चं वीर ने अपनी आँख खोल द ।
पर आँख खोलते ही चं वीर च क गया य क अब उसे अपना शरीर
एक अि प ी के प म दखाई दया। यह शरीर िब कु ल वैसा ही था, जैसा
क भिव य ार के बाहर बनी मू त का था।
“अरे ! कालाि ने तो मुझे अि प ी म प रव तत कर दया? पर ...
पर म इस समय ँ कहाँ पर?”
वयं को देखने के बाद चं वीर ने अपनी नजर अपने चारो ओर
घुमाई।
चं वीर इस समय कसी अंजान से ह पर था? वह कोई छोटा सा
हरा-भरा ह था, िजसके आकाश पर 2 सूय दखाई दे रहे थे। सूय क पीली
करण से पूरा वातावरण चमक रहा था।
“यह थान तो मेरे ह से अलग है ... पता नह कालाि ने मुझे कहाँ
प ंचा दया? .... मुझे इस ह पर पहले कसी को ढू ंढना होगा? अब वही
बतायेगा क यह कौन सा थान है?”
यह सोच चं वीर ने अपने पंख को फै लाया और उड़ता आ आसमान
क कु छ ऊंचाई पर प ंच गया? परं तु चं वीर को दूर-दूर तक कृ ित के िसवा
कोई भी जीव दखाई नह दया?
अब चं वीर आसमान से उतरकर एक प थर पर आ बैठा। इस समय
वह वयं को ब त ही िनतांत अके ला महसूस कर रहा था।
समय से खेलने के च र म चं वीर वयं समय का िशकार बन गया
था।
◆ ◆ ◆
व णम

20,054 वष पहले ..........


वणा ीप, दि ण अटलां टक महासागर
दोपहर का समय था। इस समय सूय िब कु ल िसर पर चमक रहा था।
वणा ीप क रे त भी सूय क चमक के कारण िब कु ल सुनहरी
तीत हो रही थी।
मेघवण इस समय वणा ीप म समु के कनारे खड़ा था। मौसम
शांत होने के बाद भी सागर क लहर तेजी से कनारे क ओर उछल रह थ ।
मेघवण का काला घोड़ा उससे कु छ दूरी पर घूम रहा था। मेघवण ने
एक बार अपने काले घोड़े क ओर देखा और फर अपने हाथ म पकड़़ी
व णम मिण क ओर देखा।
यह वही मिण थी, िजसे सूयदेव ने मेघवण को लाव या को ढू ंढने के
िलये दान क थी।
अब मेघवण धीरे -धीरे सागर क ओर आगे बढ़ने लगा। इस समय
मेघवण के चेहरे पर दृढ़ता साफ दखाई दे रही थी। उसे िव ास था क आज
तो वह लाव या से अव य ही िमल लेगा।
कु छ ही देर म सागर का पानी मेघवण के कमर के ऊपर तक आ गया।
अब मेघवण ने पानी म एक डु बक लगाई और सागर म आगे क ओर बढ़ने
लगा।
जैसे ही मेघवण ने सागर क गहराई म डु बक लगाई, वह लाव या क
दी ई शि के भाव से जलपु ष म प रव तत हो गया। अब मेघवण को
पानी म साँस लेने म मुि कल नह आ रही थी।
जब मेघवण पानी म और गहराई तक प ंच गया, तो मेघवण ने मन
ही मन लाव या का मरण कया और व णम को अपने हाथ से छोड़ दया।
मेघवण के हाथ से िनकलते ही व णम ती काश छोड़ती ई, एक
दशा क ओर चल दी। मेघवण अब व णम के पीछे था।
व णम के माग म अनेक बड़ी-छोटी मछिलयां और जलीय जंतु आ
रहे थे, परं तु सभी व णम के ती काश से घबराकर अपना रा ता बदल दे
रहे थे।
व णम मेघवण को लेकर सागर क गहराई क ओर जा रही थी।
लगभग 30 िमनट तक ऐसे ही चलते रहने के बाद व णम, सागर म डू बी
एक पवतमाला के पास जा प ंची, जहां पर पानी के अंदर मूंगे क ब त सी
िवशाल च ान थ ।
पानी म डू बा वह े ऐसा तीत हो रहा था क मानो उस थान पर
आज तक कसी भी मनु य के कदम ही ना पड़े ह ?
व णम अनवरत चलती जा रही थी। कु छ देर के बाद मेघवण को मूंगे
क दीवार म एक िवशाल सुराख बना दखाई दया, िजससे नीली करण
िनकल रह थ ।
व णम उस िवशाल सुराख के अंदर वेश कर गई।
व णम को अंदर वेश करते देख, मेघवण भी उस सुराख के अंदर
वेश कर गया।
मेघवण िजस थान से िनकला, वहाँ का दृ य देखकर मेघवण बुरी
तरह से च क गया। मेघवण के सामने एक िवशाल अधचं ाकार ार दखाई
दया, िजस पर सं कृ त भाषा म ‘भा यनगर’ िलखा था।
ार के दूसरी ओर सागर म डू बा, एक भ नगर दखाई दे रहा था,
िजसम हर कु छ दूरी पर िवशाल ितमाएं लग थ ? येक ितमा के हाथ म
कसी यो ा के समान अ -श थे। उन ितमा के म य वण से िन मत
असं य भवन बने थे। सभी भवन अलग-अलग आकार व कार के थे। परं तु
उस थान पर कसी भी कार का कोई जीव दखाई नह दे रहा था?
तभी मेघवण क िनगाह उनम से एक ितमा पर पड़ी। उस ितमा ने
कसी यो ा के समान कवच व मुकुट पहन रखा था। उसके हाथ म एक
दोधारी तलवार थी। पर उस ितमा का चेहरा िब कु ल मेघवण से िमल रहा
था।
“अरे यह तो मेरा ही चेहरा है .... इसका मतलब क लाव या कह
आसपास ही है? और उसी ने इस भा यनगर का िनमाण कया है।” यह सोच
मेघवण के शरीर म एक नई ऊजा का संचार हो गया और वह दुगने उ साह
के साथ व णम के पीछे -पीछे चल दया।
कु छ आगे जाने के बाद मेघवण को, उस नगर के म य एक िवशाल
जलपरी क ितमा दखाई दी, िजसका चेहरा िब कु ल लाव या से िमल रहा
था। उस जलपरी क ितमा का आकार इतना िवशाल था क उसका िसर
आसमान छू ता आ तीत हो रहा था।
उस जलपरी क ितमा ने अपने हाथ म, एक सोने का मुकुट पकड़
रखा था। वह वण मुकुट कसी िवशालकाय महल क भांित तीत हो रहा
था।
उस मुकुट तक प ंचने के िलये सैकड़ सी ढयां बनी थ । उन सी ढ़य
का आकार कसी िवशाल िगटार क भांित था? जो क सागर क सतह से
छू ती ई मुकुट तक जा रही थी।
व णम पानी म तैरती ई िगटार क सी ढ़य तक प ंच गई और
ऊपर मुकुट क ओर जाने लगी।
व णम को ऊपर जाता देखकर मेघवण भी िगटार वाली सी ढ़य तक
प ंच गया।
मेघवण ने एक बार मुकुट वाले महल क ओर देखा और फर जल म
तैरता आ, व णम के पीछे -पीछे चल दया।
कु छ ही देर म मेघवण मुकुट वाले महल के ार तक प ंच गया। महल
का ार काफ बड़ा था।
व णम महल के ार पर ही क थी। मेघवण ने ार के पास
प ंचकर एक बार पीछे क ओर देखा। मुकुट वाला महल इतनी अिधक
ऊंचाई पर था, क यहाँ से पूरा भा यनगर िब कु ल साफ दखाई दे रहा था।
पूरा नगर कसी आधुिनक भ नगर क भांित तीत हो रहा था?
अब मेघवण वापस ार क ओर पलटा और ार को ध ा देकर खोल
दया।
मेघवण के ध े से महल का िवशाल ार खुल गया। ार खुलते ही
व णम महल के अंदर वेश कर गई।
व णम को अंदर वेश करते देख मेघवण भी महल म वेश कर
गया। अब मेघवण ने वयं को महल के एक िवशाल ांगण म पाया, िजसके
बीच म एक 4 मुख वाला िवशाल सुनहरा कछु आ, एक थान पर गोल-गोल
घूम रहा था।
कछु ए के चारो मुख, 4 अलग-अलग दशा का ितिनिध व कर रहे
थे। कछु आ देखने म वण का बना तीत हो रहा था। कछु ए क पीठ पर एक
िवशाल पारदश गोला था। वह कछु आ और गोला इतना िवशाल था क
मेघवण उसके सामने एक छोटे से मटर के दाने के समान तीत हो रहा था।
मेघवण इस पूरे दृ य को मं मु ध होकर देखने लगा। तभी हवा म
क व णम जल म तैरती ई आगे बढ़ी और उस पारदश गोले म वेश कर
गई।
यह देख मेघवण भी तैरता आ उस गोले के समीप प ंच गया। अब
मेघवण को गोले के अंदर का दृ य िब कु ल साफ दखाई देने लगा।
तभी मेघवण को उस गोले के अंदर लाव या दखाई दी, जो क एक
जलपरी क संगमरमर क मू त के पास, प थर पर बैठी कु छ सोच रही थी?
लाव या िजस मू त के समीप बैठी थी, वह मू त भी लाव या क ही थी और
उसने अपने हाथ को अपने पेट से सटाकर योग क मु ा म रखा था।
लाव या को अपने इतने समीप देखकर मेघवण से रहा नह गया और
उसने भी गोले के अंदर वेश करने क कोिशश क ।
परं तु जैसे ही मेघवण ने अपना हाथ उस पारदश गोले के अंदर डाला,
उसे अपना हाथ जलता आ सा महसूस आ।
यह महसूस करते ही मेघवण ने घबराकर अपना हाथ बाहर क ओर
ख च िलया। अब मेघवण को अपने हाथ पर ती जलन का अहसास आ।
“यह कै सा पारदश गोला है, जो जल म रहते ए भी मुझे जलाने का
य कर रहा है?” मेघवण ने मन ही मन कहा।
परं तु जैसे ही मेघवण क नजर लाव या पर पड़ी, एक पल के िलये
मेघवण अपनी जलन को भूल गया और फर से उसने अपना हाथ उस गोले
के अंदर डाल दया।
मेघवण को दोबारा जलन का अहसास आ, परं तु इस बार मेघवण ने
अपने दांत भ चकर अपने दद को पी िलया। अब मेघवण पूरा का पूरा उस
गोले म वेश कर गया।
गोले म वेश करते ही मेघवण का पूरा शरीर ती जलन से धधकता
आ सा तीत आ, परं तु मेघवण फर भी अंदर क ओर तैरता जा रहा था।
इस समय मेघवण को उस पतले से गोले क दीवार भी ब त चौड़ी
तीत हो रही थी। मेघवण के काफ आगे बढ़ जाने के बाद भी, गोले क
दीवार का अंत ही नजर नह आ रहा था।
मेघवण के शरीर क जलन बढ़ती जा रही थी।
तभी मेघवण को सामने बैठी लाव या के पीछे से कोई आता आ
दखाई दया? पर जैसे ही मेघवण क नजर उस ि पर पड़ी, मेघवण क
आँख आ य से फट सी ग ... य क लाव या के पीछे से आने वाला ि
वयं मेघवण ही था।
“यह ... यह दूसरा मेघवण कौन है? और ... और यह लाव या के पास
या कर रहा है? ... या इसी के कारण लाव या इतने वष से मुझसे िमलने
नह आ रही थी?”
अचानक से जैसे सैकड़ मेघवण के मि त क म घूमने लगे। अब
मेघवण अपने शरीर पर होने वाली जलन को भूल, लगातार लाव या व
दूसरे मेघवण को देखने लगा।
दूसरे मेघवण ने पीछे से आकर लाव या के गले म अपनी बांह डाल
दी। लाव या ने पलटकर पीछे देखा और फर मु कु राते ए मेघवण के गाल
को चूम िलया।
यह देख मेघवण कै से भी अब उस दीवार के पार जाने क कोिशश
करने लगा? वह दूसरे मेघवण के रह य को जानना चाहता था? वह पूछना
चाहता था क लाव या उस दूसरे मेघवण को य नह पहचान पाई?
उधर मेघवण को दीवार के म य संघष करते देख, व णम भी वापस
मेघवण के पास आ गई। व णम को अपने पास देख मेघवण ने कै से भी
अपना दािहना हाथ बढ़ाकर व णम को पकड़ िलया?
अब व णम, मेघवण के हाथ म थी। परं तु जलन अब इतना अिधक
हो गई थी क मेघवण को अपना पूरा मांस जलता दखाई दया। कु छ ही देर
म मेघवण क हि यां भी कण म िवभ होने लग ।
परं तु मेघवण फर भी कै से ना कै से आगे बढ़ रहा था? उधर सामने
बैठी लाव या को तो जैसे इस मेघवण क कोई जानकारी ही नह थी? वह तो
अपने मेघवण के साथ अपने क मती समय गुजार रही थी।
दूसरी ओर मेघवण अपने जीवन से संघष करता आ, दीवार के
आिखरी िसरे पर प ंच गया। मेघवण ने अपना हाथ दूसरी ओर िनकालने क
कोिशश क ।
मेघवण अपने इस आिखरी यास म सफल हो गया। मेघवण क
अथाह कोिशश से व णम तो बाहर आ गई, परं तु बाहर आते ही मेघवण का
हाथ कण म बदलकर हवा म िबखर गया।
व णम अभी भी अपने थान पर हवा म क थी।
अब मेघवण ने पूरी ताकत लगाकर अपने शरीर को बाहर िनकाला।
इसी के साथ मेघवण का पूरा शरीर कण म बदल गया।
तभी हवा म क व णम दीवार के दूसरी ओर जमीन पर िगर गई।
व णम िजस थान पर िगरी, वह सागर का एक िनजन थल था।
जैसे ही व णम हवा म िगरी, एक काशपुंज तेजी से उस थान पर
आया और व णम को उठाकर हवा म उड़ता आ एक दशा क ओर चल
दया।
उड़ते ए वह काशपुंज सागर क गहराइय से होता आ,
भा यनगर म जा प ंचा, िजसे क मेघवण ने देखा था। परं तु इस समय वह
पूरा नगर िनजन दखाई दे रहा था। सभी िवशाल ितमा पर समु ी घास
ने अपना घर बना िलया था।
समु ी शैवाल और कवक के कारण कु छ ितमाएं धूिमल भी पड़ ग
थ । उस थान को देखकर यह तीत हो रहा था क जैसे यह हजार वष बाद
का भा यनगर हो?
वह काशपुंज पानी म तैरता आ, मुकुट वाले महल के अंदर वेश
कर गया। अब उस काशपुंज के सामने वह 4 िसर वाला कछु आ था, िजसके
ऊपर लाव या क संगमरमर क मू त रखी थी।
उस काशपुंज ने व णम को लाव या क मू त के हाथ म रख दया
और वयं हवा म िवलीन हो गया।
व णम के लाव या क मू त के हाथ म प ंचते ही, अचानक से मू त
के चेहरे के भाव बदल से गये। अब वह मू त ब त उदास सी लगने लगी।
न जाने यह जीवन का कै सा रह य था? जो क एक साधारण मनु य
क समझ से परे था।
पर जो भी हो, मेघवण अब इस दुिनया म नह था। एक ऐसा िसतारा
जो क पूरी दुिनया को काशमान करना चाहता था, आज वयं ही सागर क
अनंत गहराइय म िवलीन हो गया था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-6
ज़ेिन स का रह य

06.02.02, बुध वार, लैकू न

ज़े थी। बातिन सहीअपने कमरे म काफ देर तक कै र से बात कर रही


बात म ज़ेिन स को पता चल गया क कै र ने
अलबट और मा रया को ितिल मा के अंदर मार दया है। दूसरी
ओर ूनो व ऐमू भी मारे जा चुके थे।
जाने य यह सब सुनने के बाद ज़ेिन स को ब त बुरा महसूस हो
रहा था? इसिलये आज उसने कै र से यादा बात नह क ।
कु छ देर के बाद कै र का शरीर लैकून से अदृ य होकर वापस चला
गया।
अब ज़ेिन स अपने कमरे से बाहर िनकली। ज़ेिन स ने एक बार अपने
चारो ओर देखा और िन ंत भाव से कमरे के सामने बनी गैलरी क ओर चल
दी।
कु छ ही देर म ज़ेिन स देवता नोवान क मू त के सामने थी। यह
लैकून का वही भाग था, िजसके पीछे संरि का ि थत था।
ज़ेिन स ने एक बार गहरी िनगाह से नोवान क मू त के कं धे पर बैठे
फ नी स प ी को देखा। ज़ेिन स के घूरते ही फ नी स प ी क आँख वतः
ही लाल रं ग क ऊजा से चमक उठी। शायद यह ज़ेिन स के िलये कसी कार
का इशारा था?
यह देख ज़ेिन स ने च क कर अपने चारो ओर देखा।
तभी ज़ेिन स क िनगाह कु छ दूरी पर, जमीन पर पड़़ी, एक गोल सी
सुनहरी व तु पर गई। दूर से देखने पर वह व तु कसी सोने के िस े के समान
तीत हो रही थी।
“यह कौन सी व तु हो सकती है?” ज़ेिन स ने मन ही मन सोचा और
हवा म लहराती ई उस अंजान चमकती व तु क ओर बढ़ चली- “ऐसी
व तु तो मने कभी भी लैकून म नह देखी?”
कु छ ण म ज़ेिन स उस चमक ली व तु के पास थी। उस चमक ली
व तु से िनकलती रोशनी काफ तेज थी।
ज़ेिन स काफ देर तक उस व तु को देखती रही, परं तु जब उसे कु छ
समझ म नह आया? तो उसने आगे बढ़कर उस व तु को छू िलया।
परं तु जैसे ही ज़ेिन स ने उस चमक ली व तु को छु आ, उसे एक ती
िबजली का झटका सा महसूस आ। इस झटके से ज़ेिन स एक कदम पीछे हो
गई।
तभी उस िस े के समान चमक ली व तु से सुनहरी ऊजा क कई लहर
िनकल और उन लहर ने ज़ेिन स के चारो ओर एक िवशाल पंजरे के समान
आकृ ित को बना दया।
ऊजा से बने इस िविच पंजरे को देख ज़ेिन स आ य से भर उठी।
एक पल के िलये तो उसे कु छ भी समझ म नह आया? परं तु अगले ही पल
ज़ेिन स ने अपने चारो ओर नजर दौड़ाकर देखा।
तभी ज़ेिन स क नजर नोवान क मू त के पीछे से िनकलते ओरस पर
पड़ी, जो क अब उसी क ओर आ रहा था। इस समय ओरस के चेहरे पर
गु से के भाव थे, िजसे क ज़ेिन स ने एक पल म ही पहचान िलया।
“ या यह ऊजा से बना िपजरा तुमने िन मत कया है ओरस?”
ज़ेिन स ने ओरस क ओर देखते ए पूछा।
“हां, यह सुनहरी ऊजा का पंजरा मने ही खास तु हारे िलये िन मत
कया है ज़ेिन स।” ओरस बोलते ए अब पंजरे के पास गया- “अब तुम चाह
कर भी इस पंजरे से बाहर नह आ सकती।”
ओरस क बात सुनकर ज़ेिन स च क गई और भरी नजर से
ओरस क ओर देखते ए बोली- “पर .... पर तुमने ऐसा य कया ओरस?
तुमने मुझे इस पंजरे म य बंद कया?”
“ य क अब म तु हारे बारे म सबकु छ जान गया ँ ज़ेिन स।” ओरस
ने गु से से अपने दाँत पीसते ए कहा- “मुझे यह भी पता चल गया है क
तुमने कु छ समय पहले कै र के साथ िमलकर अलबट व मा रया को भी मार
दया है और अब तुम दोन हम सभी को मारकर, काला मोती को ा करने
का सपना देख रहे हो। .... पर मेरे रहते ए तु हारा यह सपना कभी भी
साकार नह हो सकता?”
ओरस क बात सुन ज़ेिन स ने एक गहरी साँस भरी और फर ऊजा के
उस िपजरे म चहलकदमी करते ए बोली- “तुम िसफ आधी-अधूरी बात
जानते हो ओरस। इसिलये ही तुम इस कार से बात कर रहे हो। ..... लगता
है आज मुझे तु ह सबकु छ बताना ही होगा? ... पर उसके पहले मुझे इस
थान को पूण प से सुरि त करना होगा। िजससे हमारी बात कसी और के
कान तक ना जा सक?”
यह कहकर ज़ेिन स ने ना जाने या कया? क वह उस ऊजा पी
पंजरे से अदृ य होकर एक पल म बाहर आ गई।
ज़ेिन स को इस कार से बाहर आते देख ओरस आ य से भर उठा।
“तुम .... तुम इस ऊजा के पंजरे से बाहर कै से आ गई?” ओरस ने
ज़ेिन स क ओर देखते ए पूछा- “और तुम इस थान को कस कार क
सुर ा देने क बात कर रही हो?”
“एक िमनट क जाओ ओरस .... अभी सबकु छ बताती ँ तु ह।” यह
कहकर ज़ेिन स ने नोवान क मू त के पास प ंचकर मू त को धीरे से
थपथपाया।
ज़ेिन स के ऐसा करते ही नोवान क िवशाल मू त के बीच एक ार
खुल गया।
ओरस उस ार को देख हैरान हो गया, य क आज से पहले उसने
इस ार को कभी भी खुलते नह देखा था। ओरस समझ गया क अव य ही
कोई ऐसा रह य खुलने वाला है, िजसे वह नह जानता?
ार के खुलते ही ज़ेिन स ने ओरस को अपने पीछे आने का इशारा
कया और वयं उस ार म वेश कर गई।
ज़ेिन स को अंदर जाते देख ओरस भी उस ार म वेश कर गया।
ओरस के वेश करते ही वह ार वतः ही बंद हो गया।
मू त के अंदर ओरस को एक िवशाल गोल क दखाई दया, िजसम
एक गोल टे बल पड़ी थी। टे बल के बीच म फ नी स क बड़ी सी त वीर थी।
टे बल के चारो ओर 11 कु सयां भी लग थ ।
उस क के चारो ओर क दीवार पर फ नी स के असं य िच बने
थे। िजनसे िनकलकर काश चारो ओर फै ल रहा था। कु ल िमलाकर वह पूरा
क काफ रह यमई नजर आ रहा था।
हवा म तैरती ई ज़ेिन स उस टे बल से कु छ दूरी पर जा खड़ी ई?
अब ज़ेिन स ने ओरस को सामने रखी एक कु स पर बैठने का इशारा
कया। ज़ेिन स का इशारा देख ओरस एक कु स पर बैठ गया।
ओरस के बैठते ही ज़ेिन स ने ना जाने या कया? क उस क म एक
और ार खुल गया और उस ार से एक ि िनकलकर उस कमरे म आ
गया।
परं तु जैसे ही ओरस क िनगाह उस ि के चेहरे पर पड़ी, वह बुरी
तरह से च क गया, य क वह ि ‘नोवान’ था। डे फानो का देवता
नोवान .... िजसने बचपन म भी ओरस को ब त सी चीज का ान दया
था। नोवान के कं धे पर इस समय फ नी स प ी बैठा था।
नोवान को वहाँ देखकर ओरस आ य व स मान से अपने थान पर
खड़ा हो गया। ओरस को खड़े होते देख नोवान ने उसे बैठने का इशारा कया
और वयं एक दूसरी कु स पर बैठ गया।
नोवान के बैठते ही फ नी स प ी नोवान के कं धे से उड़ा और गोल
टे बल पर बने फ नी स के िच पर बैठ गया।
सभी को अपने थान पर बैठते देख, ज़ेिन स ने अपने दोन हाथ को
आगे कर दया। ज़ेिन स के ऐसा करते ही उसके हाथ से नीली करण
िनकल और उन करण ने वृ ाकार प धारण करते ए, पूरे कमरे को
अपने घेरे म ले िलया। शायद यह ज़ेिन स का कोई सुर ा कवच था?
क को सुरि त देख ज़ेिन स ने बोलना शु कर दया- “मुझे पता है
ओरस क तु हारे मि त क म सैकड़ ऐसे ह गे, िज ह ने िपछले कु छ
समय से तु हारे मि त क को िहलाकर रख दया होगा? पर तु हारे कु छ
पूछने से पहले ही म तु ह 3 कहािनयां सुनाना चाहती ँ। मुझे पूण िव ास है
क मेरी इन 3 कहािनय को सुनने के बाद, तु ह तु हारे आधे से यादा
का उ र वयं से ही िमल जायेगा। ... तो या अब तुम कहानी सुनने के िलये
तैयार हो?”
ज़ेिन स क बात सुन ओरस ने धीरे से अपना िसर ‘हां’ के अंदाज म
िहला दया।
“तो फर म तु ह पहली कहानी सुनाती ँ ओरस, यान से सुनो ....
पर कहानी के बीच म कोई भी पूछने क कोिशश ना करना? .....
भारतवष क एक पौरािणक गाथा के अनुसार मह ष क यप को अपनी पि
‘क ’ू से 9 ‘नागपु ’ ा ए। इन पु म शेषनाग सबसे बड़े व परा मी थे।
क ू के सबसे छोटे पु का नाम ‘ने क’ था, िजसके म तक पर ज म के समय
से ही एक नीली मिण िचपक ई थी। इस नीलमिण के भाव से ने क का
िवष अ य सभी पु के िवष से िभ था। ने क के िवष के कारण सभी अ य
भाइय के शरीर पर पड़ी कचुली जलने लगी। यह देख माता क ू ने ने क को
अपने भाईय से अलग करके , एक िवशाल गुफा म िछपा दया। माता क ू ने
ने क क देखभाल करने का भार, एक य च ुराज को दया। च ुराज ने
ने क क उिचत कार से देखभाल क । च ुराज ही ने क को बाहरी दुिनया
का समाचार भी देता रहा। उधर दूसरी ओर देवता और दानव के बीच
यु शु हो गया, िजसम दानव देवता पर भारी पड़ने लगे। यह देख सभी
देवता ने महादेव क शरण ली और उनसे असुर का िवनाश करने के िलये
एक द यो ा उ प करने का आ ह कया। देवता के इस आ ह के
फल व प महादेव ने, भ पुर के राजा िवशाला के रा य म, एक िविच
ितयोिगता का आयोजन करवाया, िजसम उ ह एक ऐसे युवा यो ा जोड़े
को चुनना था, जो क ‘भिव य के द यो ा’ के माता-िपता का काय कर
सके । उधर दूसरी ओर जब बड़े होने पर ने क को पता चला क उसके भाई
वासुक को महादेव के गले म थान िमला है, तो वह भी महादेव क
उपासना म लीन हो गया। ने क के कठोर तप से महादेव स ए और
ने क से वर मांगने को कहा। ने क ने अपने भाई वासुक के समान, महादेव
के कं ठ को सुशोिभत करने का वरदान मांगा। तब महादेव ने ने क को एक
गु काय दया। इस काय के फल व प ने क ने नागधरा रा य के , यो ा
नाग-नािगन ‘िनकुं भ व नीलांगी’ का चुनाव कया। ने क ने िनकुं भ व
नीलांगी को िवशाला क अ भुत ितयोिगता म भेज दया। जहां िनकुं भ व
नीलांगी इस ितयोिगता म िवजयी रहे। उधर ने क क गुफा म नीलांगी के
शरीर से नीलमिण छू जाने के कारण, नीलांगी के नागदंत म ने क के
कालकू ट िवष का कु छ भाग भी आ गया था? इसिलये महादेव ने अपनी
शि य से ने क को िनकुं भ के नागदंत म वेश करा दया। इसके बाद
महादेव ने िनकुं भ व नीलांगी के नागदंत को एक काँच के कलश म डालकर,
कु छ वष के िलये ीरसागर म िछपा दया? इस कार ने क व ने क का
कालकू ट िवष दोन ही, काँच के कलश म एक दूसरे म िवलीन होकर, एक
नविनमाण करने म जुट गये। महादेव ने इस नागदंत क सुर ा का भार स
शि य से बनी 7 क या को दया। वह दूसरी ओर देवराज इं ने
दै यराज बिल से अमृत ा करने हेतु समु मंथन का ताव रखा, िजसे
दै यराज बिल ने वीकार कर िलया। इस समु मंथन के भाव से ीरसागर
म िछपा आ नागदंत वाला कलश फू ट गया और उसम से िनकलकर
‘कालकू ट िवष’ ने लय मचा दया। देवआ और दै य के आहवान पर
महादेव ने उस कालकू ट िवष को हण कर िलया। इस कार महादेव के
आशीवाद व प ने क को भी, अपने भाई वासु क के समान महादेव का कं ठ
ा हो गया। परं तु जब महादेव कालकू ट िवष का, अपने शंख से पान कर रहे
थे, उसी समय िवष क एक आिखरी बूंद छलककर पृ वी पर जा िगरी। उस
आिखरी बूंद से एक द मानव का ज म आ, िजसका नाम महादेव ने
नीलाभ रखा। उसके प ात् नीलाभ ने अपने ज म को च रताथ करते ए,
देवआ क अनेक कार से सहायता क और दै य का िवनाश कया। ....
तो ओरस यह थी मेरी पहली कहानी।”
इतना कहकर ज़ेिन स चुप हो गई।
ज़ेिन स को चुप होते देख ओरस से रहा ना गया और वह पूछ बैठा-
“तु हारी पहली कहानी मने सुन तो ली ज़ेिन स, परं तु मुझे अभी तक यह
समझ म नह आया क इस कहानी से हमारा या लेना? इसम तो कोई भी
ऐसा पा नह था, िजसके बारे म म पहले से जानता था? तो फर तु हारा
इस कहानी को सुनाने से या अिभ ाय है?”
“ओरस, या तुम बता सकते हो क अगर भूिम पर रहने वाले कसी
जीव को पानी िमलना बंद हो जाये और इसके िलये वह सूय को कोसने लगे,
तो या यह उिचत होगा?” ज़ेिन स ने एकाएक िवषय को बदलते ए ओरस
से पूछा।
“अगर कसी जीव को पानी नह िमल रहा, तो इसम सूय का या
दोष है?” ओरस ने ना समझने वाले भाव से कहा- “इसम तो य प से
बादल और हवा का दोष है।”
“नह ओरस, अगर सूय अपनी गम से समु का वा पीकरण ना करे ,
तो बादल बनगे कै से? और जब बादल ही नह ह, तो हवा को दोष देने का
भी कोई फायदा नह ? इसिलये अगर यान से सोच, तो अ य प से पूरा
दोष सूय का ही होगा। .... ठीक इसी कार भले ही य प से इस कहानी
का तुमसे कोई लेना देना नह है, परं तु म तु ह िव ास दलाती ँ क अगली
कहानी सुनने के बाद, अ य प से तु ह इस कहानी का भी जुड़ाव वयं से
महसूस होगा।”
ज़ेिन स के एक-एक श द ओरस के मि त क म हलचल मचाते जा रहे
थे, अतः वह ज द से ज द ज़ेिन स क अगली कहानी को सुनने के िलये
आतुर हो उठा।
ज़ेिन स ने ओरस के चेहरे के भाव को पढ़ िलया और फर अगली
कहानी सुनानी शु कर दी- “एक बार माता पावती ने महादेव से उनक
समयशि के बारे म जानना चाहा, िजससे महादेव पूरे ांड को िनयंि त
करते थे। महादेव, माता पावती के वचन को ठु करा नह सके । परं तु जब वो
माता पावती को समयशि दखा रहे थे, उसी समय वह समयशि एक
गुलाब क पंखुड़ी म समािहत हो गई। कु छ ही देर म उस गुलाब क पंखुड़ी ने
एक क या का प धारण कर िलया। माता पावती ने उस क या का नाम
भागवी रख दया। महादेव ने भागवी को 3 वष तक अपना जीवन जीने क
आ ा दे दी। चूं क भागवी को 3 वष का ही जीवन जीने का अवसर िमला था,
अतः भागवी ने सबसे पहले अपना वयं का अगले 3 वष का भिव य देख
िलया। अपना भिव य देखने के बाद, भागवी ने समय को 10 वष के िलये
रोक दया। इन 10 वष के समय अंतराल म भागवी ने, चं ोदय वन म एक
चम कारी ि कालदश मं दर का िनमाण कया। इस ि कालदश मं दर के
ारा तीन काल को देखा जा सकता था। भागवी ने इस मं दर क सुर ा का
भार महादेव के एक गण ‘कालाि ’ को दे दया। कालाि अपने चतुमुख व
अि प ी के मा यम से इस मं दर क देखरे ख करने लगा। इस काय को पूण
करने के बाद भागवी, चं ोदय रा य के राजा चं वीर से जा िमली, िजसे
उसने अपने भिव य म देखा था। चं वीर भी एक िवनाशकारी यु के बाद,
अपने रा य नह जाना चाहता था, इसिलये चं वीर ने देवी आ दशि क
दी ई योगशि से दूसरे चं वीर का िनमाण कया और उसे चं ोदय रा य
भेज दया। असली चं वीर वयं भागवी से िववाह करके चं ोदय वन म बने,
चं महल म रहने लगा। िववाह के 1 वष के प ात् भागवी ने जुड़वा क या
को ज म दया, िजनका नाम भागवी ने मिणका व किणका रखा। अब भागवी
अपने इस छोटे से प रवार म खुश थी। धीरे -धीरे 3 वष पंख लगाकर उड़
गये। अब भागवी को महादेव को दया वचन याद आने लगा। उसे लगा क
उसके जाने के बाद उसक दोन पुि य का या होगा? तभी एक दन
भागवी को िनकुं भ व नीलांगी के ारा नागदंत का रह य पता चल गया। अब
भागवी उस नागदंत को अपने अिधकार म लेकर महादेव से अपनी आयु
बढ़वाने के बारे म िवचार करने लगी। यह िवचार आते ही भागवी िबना
कसी से बताये ीरसागर प ंच गई, जहां उसने नीलाभ क उ पि के बारे
म जान िलया। परं तु तभी महादेव ने ोिधत होकर भागवी को ासन म
प रव तत कर दया और उसे उसी ीरसागर म सदा-सदा के िलये बंद कर
दया। उधर चं वीर ने भागवी को ब त ढू ंढा, परं तु भागवी उसे कह नह
िमली? यह देख चं वीर ने अके ले ही दोन पुि य को पालना शु कर दया।
जब दोन पुि यां 21 वष क हो ग , तो चं वीर ने मिणका व किणका को
माता पावती से आशीवाद लेने िहमालय क ओर भेज दया। दोन पुि य के
जाने के बाद चं वीर, भागवी को ढू ंढने के िलये एक बार फर ि कालदश
मं दर जा प ंचा। मं दर के भूतकाल से चं वीर को पता चल गया, क
महादेव ने भागवी को ासन म प रव तत कर दया था। अतः अब चं वीर,
ि कालदश मं दर म ि थत भिव यकाल के ार म जा घुसा। जहां पर
कालाि ने चं वीर को एक फ नी स प ी म प रव तत कर दया और उसे
समयजाल म फं साकर, पृ वी से लाख काशवष दूर ि थत डे फानो ह पर
फक दया। अब चं वीर, भागवी से इतना दूर जा चुका था क उनका दोबारा
िमल पाना असंभव था। चं वीर अब डे फानो पर उड़ता आ उस ह को
देखने लगा। डे फानो काफ हरा-भरा ह था, िजसम चुर मा ा म
ाकृ ितक संसाधन थे। डे फानो के वातावरण म पया ऑ सीजन थी, जो क
उसे िब कु ल पृ वी के समान बनाती थी। परं तु चं वीर को यह समझ नह
आया क इतना हरा-भरा होने के बाद भी डे फानो पर कसी कार का
जीवन य नह है? .... डे फानो पर ाकृ ितक संसाधन अिधक होने के
कारण, फ नी स बने चं वीर को कसी भी कार क परे शानी नह हो रही
थी? परं तु एकाक पन लगातार चं वीर को खाये जा रहा था। धीरे -धीरे
दशक के बाद सैकड़ वष बीत गये, पर चं वीर को उस ह से िनकलने का
कोई उपाय नह िमला? अब चं वीर अपने एकाक पन को दूर करने के िलये
डे फानो क ाकृ ितक चीज से िनत नये योग करने लगा। खाली समय म
चं वीर अपनी योगशि को भी बढ़ा रहा था। आिखरकार अगले 50 वष म,
चं वीर अपनी योगशि और डे फानो के ाकृ ितक संसाधन को िमलाकर
यह जान गया, क वष म एक बार, डे फानो के वायुम डल म एक समय ार
बनता है, िजसके मा यम से दूसरे ह क चीज भी खंचकर डे फानो म आ
जाती ह और शायद चं वीर भी ऐसे ही कसी ऊजा ार म फं सकर इस ह
पर आ गया था? एक दन चं वीर क भगवान ने सुन ली और उस ह क
धरती पर कसी दूसरे ह का यान आ िगरा? यान पर अं ेजी भाषा के बड़े
अ र म ‘SNOWMAN’ िलखा था, िजसे चं वीर ने अपनी योगशि का
योग करके पढ़ िलया। वह यान अंडाकार आकार का था। यान के िगरने के
बाद जब उसम कसी भी कार क कोई हरकत नह ई? तो चं वीर ने उस
यान म वेश करके देखा। यान को 1 ी व पु ष चला रहे थे, जो क देखने
म िब कु ल पृ वीवासी लग रहे थे। परं तु दोन ही इस दुघटना म मारे गये थे।
तभी चं वीर क िनगाह उस यान म रखे एक अंडाकार पारदश के िबन क
ओर गई, िजसम क एक न हा बालक बंद था। वह अंडाकार के िबन यान क
एक दीवार से िचपका आ था। उस अंडाकार के िबन के बाहर 1 लाल व 1
हरे रं ग का बटन लगा आ था। फ नी स बने चं वीर ने हरे बटन को दबाकर
उस न हे बालक को बाहर िनकाल िलया। न हा बालक घुटन के बल चलता
आ, उस के िबन से बाहर आ गया। अब चं वीर फल व पानी देकर उस
बालक को पालने लगा। अब बारी थी, उस बालक का नाम रखने क । चूं क
‘SNOWMAN’ यान का ‘S’ व ‘M’ अपने थान से टू टकर िगर गया था,
इसिलये चं वीर ने ब े का नाम यान के टू टे ए नाम पर ‘NOWAN’ रख
दया। डे फानो पर 2 सूय होने के कारण उस बालक का िवकास ब त तेजी
से होने लगा। बीच-बीच म खाली समय म चं वीर, यान के अंदर रखे एक
छोटे से क यूटर के ारा, उस यान को उड़ाने से स बि धत सभी
जानका रयां भी लेने लगा। कु छ ही दन म चं वीर सबकु छ समझ गया, परं तु
सम या अभी भी थी य क चं वीर फ नी स के भेष म उस यान को नह
उड़ा सकता था। अब चं वीर के पास नोवान के बड़े होने का इं तजार करने के
िसवा कोई चारा नह था? आिखरकार 7 वष के बाद ही नोवान इतना बड़ा
हो गया क वह उस यान को उड़ा सके । नोवान अब चं वीर क भाषा भी
समझने लगा था। एक दन नोवान को यान म छे ड़छाड़ करने पर, यान के
अंदर का एक ऐसा िह सा िमल गया, जहां से उसे यह पता चल गया क
उसके माता-िपता फे रोना ह से थे, जहां पर ‘फे रो’ और ‘ओना’ नाम क 2
जाितयां रहती थ । जहां ‘फे रो’ जाित के लोग का रं ग गोरा था, वह
दूसरे ओर ‘ओना’ जाित के लोग नीले रं ग के थे। नोवान के माता-िपता
‘फे रो’ जाित के थे। उस यान म फे रोना ह जाने का एक मानिच भी था।
यह देख नोवान फ नी स को लेकर फे रोना ह आ प ंचा। परं तु फे रोना ह
के जनक कहे जाने वाले 5 गु (पटॉ स) को नोवान का आना अ छा नह
लगा। शायद कु छ ऐसा था, जो क नोवान को नह पता था? इस समय
फे रोना पर राजा एला का का रा य था। नोवान कु छ वष तक फ नी स के
साथ फे रोना ह पर ही रहा, जहां पर नोवान ने िव ान क अ भुत
जानका रयां एकि त क । परं तु नोवान फे रोना पर खुश नह था, इसिलये
एक दन नोवान फे रोना ह के कु छ ‘फे रो’ जाित के लोग को लेकर, वापस
फ नी स के साथ डे फानो पर आ गया। नोवान ने डे फानो पर एक बार फर
से जीवन क शु आत कर दी। परं तु इस बार डे फानो के िवकास म फ नी स
क चम कारी शि य के अलावा, नोवान क वै ािनक शि यां भी थ । अब
डे फानो के सभी लोग नोवान को देवता और फ नी स को देवता का
रह यमई दो त समझने लगे। उधर फ नी स क शि यां लगातार बढ़ती जा
रह थ । फ नी स बना चं वीर अभी भी, येक वष डे फानो पर हवा म
खुलने वाले ार को, समझने क कोिशश कर रहा था। एक वष अचानक
चं वीर को समय ार के दूसरी ओर एक मशीन दखाई दी, िजस पर एक
फ नी स का िनशान भी बना था। वह मशीन नीली ऊजा से िलपटी ई
दखाई दे रही थी। यह देख चं वीर ने उस यान को, अपनी शि य से
डे फानो पर ख च िलया। वह मशीन डे फानो ह क एक झील म आ िगरी।
जब चं वीर, नोवान के साथ उस मशीन के पास प ंचा, तो उसे वहाँ 2
आकृ ितयां दखाई द । िजनम से एक आकृ ित तु हारे िपता िगरोट क थी और
दूसरी आकृ ित, नीली ऊजा म िलपटी मेरी यािन क जेिनथ क थी, िजसका
शरीर समयच के धमाके म फं सकर न हो गया था। मुझे उस समय यह
नह समझ म आ रहा था, क मेरे आसपास वह कै सी नीली ऊजा थी? िजसने
मरने क बाद भी मेरी आ मा को बांधे रखा था। ले कन इसका जवाब मेरे
थान पर चं वीर को पहले िमल गया। वह मेरी आ मा से िलपटी भागवी क
समयशि को पहचान गया। अब चं वीर के अंदर एक बार फर भागवी से
िमलने क इ छा जाग उठी। परं तु उसे यह नह पता था क भागवी इस
समय कहाँ है? और कस हालत म है? कु छ समय के प ात् चं वीर को
िगरोट से यह तो पता चल गया क यह नीली ऊजा उसे बचपन म एक पाक
म लगी घड़ी से िमली थी और इसी नीली ऊजा से ेरणा पाकर, उसने
समयच का भी िनमाण कया था, परं तु िगरोट को भी यह नह पता था क
उस घड़ी म वह नीली ऊजा आई कहाँ से? यहाँ चं वीर को यह भी पता चल
गया क िगरोट पृ वी के वष के अनुसार 2027 से आया है। चं वीर समझ
गया क भागवी को गये ए पृ वी पर लगभग 21000 वष बीत चुके ह। परं तु
टू टे ए समयच को देखकर, चं वीर के मि त क म एक युि आई क य
ना समयच को सही कर, समयया ा करते ए 21,000 वष पहले जाकर,
अपने समय म भागवी से िमल ले। यह िवचार आते ही चं वीर ने नोवान से
कहकर िगरोट को डे फानो का राजा बना दया और अपने िनरी ण म एक
योगशाला लैकून का िनमाण करवाने लगा। म भी अब ज़ेिन स के प म
िगरोट का पूरा साथ दे रही थी। धीरे -धीरे डे फानो पर रहते ए हम 1000
वष बीत गये। अब िगरोट ने शादी भी कर ली थी और तु हारा ज म भी हो
गया था। तु हारी माँ क मृ यु तु हारे ज म के समय ही हो जाने के कारण,
नोवान िछप-िछप कर तु ह बचपन से ान दे रहा था और म इतने समय म
एक रोबोट क तरह महसूस करने लगी थी। आिखरकार एक दन मने िगरोट
क मदद से समयच को दोबारा सही कर िलया। अब हम वापस पृ वी पर
जाने के सपने देखने लगे। तभी जाने कै से यह खबर फे रोना ह वाल को पता
चल गई और एक दन फे रोना ह के ‘ओना’ जाित के लोग ने डे फानो पर
आ मण कर, तु हारे िपता को मार दया। िगरोट ने मरते समय मुझे तु ह
लेकर पृ वी के समय के िहसाब से सन् 1982 म जाने को कहा। इसके बाद क
पूरी कहानी तुम पहले से ही जानते हो क कस कार बाद म लैकून
िविलयम िडको टा और उसके बेटे िसले टर िडको टा के पास से होते ए
जेिनथ के पास प ंच गया।”
इतना कहकर ज़ेिन स एक बार फर से चुप हो गई और बारी-बारी से
अपने सामने बैठे नोवान व ओरस को देखने लगी।
ज़ेिन स को चुप होते देख ओरस से रहा ना गया और वह बोल उठा-
“सबसे पहले तो तुम मुझे यह बताओ, क जब चं वीर के पास ऐसी शि थी
क उसने चं ोदय रा य म अपनी योगशि से दूसरा चं वीर बनाकर भेज
दया, तो उसने डे फानो पर अके ले रहने के समय, कसी दूसरे मनु य का
िनमाण य नह कया?”
“ य क चं वीर को देवी आ दशि से िसफ अपने जैसे एक ही मनु य
को बनाने क शि ा ई थी।” ज़ेिन स ने कहा।
“ या म जान सकता ँ क भागवी इस समय कहाँ ह? और उनके साथ
बाद म या आ?” ओरस ने अपनी िज ासा को शांत करते ए पूछा।
“भागवी, ासन के प म अगले कु छ वष तक उसी कार
ीरसागर म ही रही। बाद म वेदालय के समय म नीलाभ के कहे अनुसार,
उसका पु हनुका ीरसागर म जाकर ासन को ले आया। इसके प ात्
माया ने ासन को वेदालय के एक काय के अंतगत लोक म िछपा दया।
जहां से आयन ने ासन को ढू ंढ िनकाला। बाद म आयन और शलाका के
िववाह के दौरान हनुका ने उस ासन को शलाका को भट व प दे दया।
शलाका उस ासन को इसी ीप अराका पर ले आई। आज भी भागवी
ासन के प म इसी ीप पर ि थत शलाका महल म उपि थत है। ......
परं तु भागवी क कथा यह पर समा नह होती। यह कहानी तो अभी
भिव य और अनंत ांड म उलझी ई है।”
“यह तुम या कह रही हो ज़ेिन स? या भागवी क भिव य क
कहानी भी तु ह पता है?” ओरस ने आ य के सागर म गोते लगाते ए कहा।
“हां ओरस, मुझे भागवी के भिव य के बारे म भी पता है और ऐसा इस
समयशि के भाव से ही आ है। .... म ब त लंबे समय से इस समयशि
को समझने क कोिशश कर रही थी, िजसके भाव से कु छ दन पहले मने
एक ऐसी तकनीक िवकिसत कर ली? िजसके ारा म समयशि से बात
करने लगी। इसी समयशि ने मुझे भागवी क पूरी कथा सुनाई है।” ज़ेिन स
ने कहा।
“एक िमनट को ज़ेिन स।” ओरस ने ज़ेिन स को बीच म टोकते ए
कहा- “मुझे तुमसे एक बात पूछनी है। .... या भूतकाल म घटी घटना को
बदल देने पर भिव यकाल म कोई प रवतन होता है?”
ओरस के इस को सुन ज़ेिन स धीरे से मु कु राते ए बोली-
“तु हारे इस म ही स पूण ांड का रह य िछपा है ओरस ..... तो फर
सुनो .... समय कोई व तु नह बि क एक ांडीय या है, जो क एक
च म अनवरत चलती रहती है। इसिलये य द हम भूतकाल म वापस से
जाय, तो वही घटना हम पुनः दखाई देगी, जो क पहले घ टत हो चुक है
और य द हम घ टत हो चुक घटना म कसी कार का कोई प रवतन कर
द? तो अव य ही उससे भिव य म भी कु छ ना कु छ प रवतन हो जायेगा?
यही तो समयच का खेल है। .... और हां, एक बात और जान लो। इस समय
हम िजस ितिल मा के अंदर फं से ह, वह ितिल मा भी कोई पहली बार टू टने
नह जा रहा?”
ज़ेिन स क बात रह य क चाशनी म िलपटी ई तीत हो रह थ ,
जो क इस समय ओरस क समझ से भी परे थ ।
“म कु छ समझ नह पा रहा ज़ेिन स क तुम या कहना चाहती हो?
या ितिल मा पहले भी तोड़ा जा चुका है? और हम वापस से ितिल मा के
टू टने के , पहले वाले समय म आ गये ह।” ओरस ने कहा।
“तुम िब कु ल ठीक समझे ओरस। िब कु ल यही बात है ... परं तु म इस
बारे म तुमसे थोड़ी देर बाद बात करती ँ। ..... अभी तो म भागवी क आगे
क कहानी को सुनाती ँ ..... तो सुनो .... िपछली बार जब सुयश व शैफाली
ने ितिल मा को तोड़ा, तो उसको तोड़ने के बाद वह दोन एक-दूसरे अलग हो
गये। जहां ितिल मा को तोड़ने के बाद शैफाली, कै पर के साथ चली गई,
वह सुयश, शलाका से िववाह कर अमे रका म रहने लगा। परं तु ासन
अभी भी शलाका के पास था, िजसे उसने अपने यान आकिडया म िछपाकर
रखा था। िववाह के प ात् सुयश व शलाका को एक पु आ, िजसका नाम
दोन ने सूयाश रखा। सूयाश जब 5 वष का हो गया, तो उसे ासन बनी
भागवी के बारे म पता चल गया। सूयाश अपनी सूयशि से भागवी को सही
करने क कोिशश करने लगा, परं तु सूयाश के इस यास से, ासन टू टकर
कण म िबखर गया और भागवी क समयशि , नीली ऊजा के प म
िनकलकर सूयाश के अंदर समा गई। इस नीली ऊजा के कारण सूयाश को
समयशि का अहसास होने लगा। इस समयशि के ा होने के बाद
सूयाश समय से भी खेलने लगा। परं तु एक बार जब सूयाश एक सपमानव से
यु कर रहा था, तो उसक समयशि उससे अलग होकर, िलबट टे ट पाक
म ि थत एक घड़ी म समा गई। जहां से बाद म वह समयशि िगरोट को
िमल गई। उस समय िगरोट क आयु भी सूयाश क तरह 7 वष क थी। चूं क
िगरोट म पहले से कोई चम कारी शि नह थी, इसिलये वह समयशि का
यादा योग नह कर सका। परं तु बड़े होकर उस समयशि के भाव से,
िगरोट ने समयच नाम क एक ‘टाइम-मशीन’ का अिव कार कर िलया
और उसी समयच से भिव य क जेिनथ यािन क म वापस भूतकाल म आने
क कोिशश करने लगी। परं तु जब समयच पूरी तरह से बनकर तैयार आ,
तो उसके टे टं ग वाले दन अचानक से कसी खराबी के कारण उसम धमाका
हो गया। इस धमाके के भाव से मेरी मृ यु हो गई, परं तु समयशि क
नीली ऊजा ने मेरी आ मा को अपनी नीली ऊजा म बांध िलया। धमाके के
भाव से समयच , िगरोट और मुझे लेकर पृ वी के बाहर आ गया, परं तु
इससे पहले क हम समय ार म वेश कर वापस भूतकाल म जा पाते, क
तभी दूसरे समय ार के मा यम से, फ नी स बने चं वीर ने हमारे समयच
को डे फानो पर ख च िलया। डे फानो पर प ंचने के बाद क कहानी म तु ह
बता ही चुक ँ।”
यह कहकर ज़ेिन स चुप हो गई और ओरस क ओर देखने लगी।
“तो या भिव य म भागवी मृ यु को ा हो चुक ह?” ओरस ने
कहा।
ओरस के श द सुन टे बल पर बैठा फ नी स, अपने पंख को खोलकर
ओरस क ओर गु साई नजर से देखने लगा।
“नह ओरस, सूयाश के शि - हार के बाद भागवी का िसफ शरीर ही
िबखरा है, उसक ऊजा पी आ मा अभी भी आकिडया के उस भाग म
उपि थत है, जहां क ासन रखा आ था।” ज़ेिन स ने कहा।
“इसका मतलब हम भिव य म जाकर, सूयाश को उसके शि - योग
के पहले ही रोक सकते ह?” ओरस ने ज़ेिन स क ओर देखते ए कहा- “इस
कार से भिव य म भागवी, ासन से मु हो सकती है।”
“इसक आव यकता ही नह पड़ेगी ओरस, अगर हम इस समयकाल
म ही ितिल मा के टू टने के बाद भागवी को ासन से मु कर द, तो
भिव य म ासन, सूयाश के हाथ लगेगा ही नह । इस कार हम चं वीर
और भागवी को उनके ाप से मुि भी दला सकते ह।” ज़ेिन स ने हवा म
इधर-उधर घूमते ए कहा।
ज़ेिन स क बात सुन अब ओरस के चेहरे पर थोड़े राहत के भाव आ
गये।
तभी जैसे ओरस को कु छ याद आया? और वह फर से बोल उठा- “
ज़ेिन स, अब म सन् 2027 के उस रह य को जानना चाहता ँ, िजसे मने
तु हारे घर म देखा था। या था तु हारे कमरे म टं गी फोटो पर लगे ॉस के
िनशान का?”
“उस रह य को जानने के िलये तु ह मेरी तीसरी कहानी को सुनना
होगा, जो क मेरे वयं के बारे म है।” ज़ेिन स ने एक थान पर कते ए
कहा- “मेरी कहानी शु होती है सन् 2001 क एक सद रात से, जब म
अपनी ड लॉरे न के घर से, उसका ज म दन मनाकर आ रही थी क तभी
मेरी कार खराब हो गई और मेरा एक ए सीडट हो गया। उस ए सीडट से
मेरी जान बचाई मेजर तौफ क ने। उसके बाद तौफ क मुझे सन राइ जंग पर
िमला। धीरे -धीरे मुझे उससे यार हो गया। फर कु छ दन के बाद सन
राइ जंग पर िविच घटनाएं घटने लग और लॉरे न सिहत जहाज के कई
लोग मारे गये। सन राइ जंग के कै टे न सुयश को, जहाज के रह यमय काितल
क तलाश थी, परं तु इस तलाश के पूण होने के पहले ही कु छ िविच
प रि थितय म सन राइ जंग ही डू ब गया। मेरे साथ बचे कु छ लोग इस
रह यमय ीप अराका पर आ गये। इसके बाद अराका पर प ंचे बाक बचे
लोग भी एक-एक कर मरना शु हो गये। उधर शैफाली व सुयश को अपने
पूवज म क याद भी आ ग , िजसके कारण उनक शि य क वजह से, हम
कु छ लोग बचकर ितिल मा म वेश कर गये। ितिल मा म वेश करने तक
क कहानी िब कु ल वैसी ही थी, जैसी क इस बार क थी, बस इतना अंतर
था क उस बार मुझे लॉके ट म बंद न ा नह िमला था। िजसके कारण म
ितिल मा म वेश करने तक तौफ क के बारे म नह जान पाई थी और
ोफसर अलबट, टी को पाइनोसोरस से बचाने के यास म ितिल मा के
पहले ही मारे गये थे। ितिल मा म वेश करने वाले लोग म कै टे न सुयश,
शैफाली, म, तौफ क, ऐले स, टी, ूनो व ऐमू थे। अब ितिल मा का
खतरनाक सफर शु हो चुका था। आधे सफर के दौरान ही तौफ क ने मुझे
अपने काितल होने के बारे म बता दया, िजससे हमारे बीच के र ते और भी
सही हो गये। ितिल मा म तौफ क ने हर कदम पर मेरी सहायता क , परं तु
तौफ क के साथ ऐले स व टी भी ितिल मा के अंदर मारे गये। ितिल मा
से सुरि त बाहर आने वाले लोग म म, कै टे न सुयश व शैफाली ही थे। हमारे
बाहर आने के बाद शैफाली को उसक माँ माया िमली। माया नह चाहती थ
क ितिल मा क यह कहानी, देवपु के िसवा कसी को भी याद रहे?
इसिलये उ ह ने िपछले एक वष क मेरी सभी याद को िमटा दया और मुझे
अपनी जादू से कह भेज दया? जब मेरी आँख खुली, तो मने वयं को 20 वष
आगे पे रस म ि थत अपने घर म पाया। कसी को भी नह पता था क म
िपछले 20 वष से कहाँ थी? सभी बस मेरे िमलने पर खुश थे। मेरे बूढ़े िपता
मुझे देखकर खुश हो गये। अब मुझे तौफ क व लॉरे न सिहत कसी के बारे म
कु छ भी याद नह था? यहाँ तक क मुझे यह भी याद नह था क म कभी
सन राइ जंग नामक जहाज पर बैठी भी ँ? म फर से एक साधारण जीवन
जीने लगी। मेरे िपता क मृ यु होने के बाद, मने उनका पूरा िबजनेस संभाल
िलया। सन् 2023 म मने एक कं पनी खोली, िजसका नाम फ नी स
इं टरनेशनल रखा। म उस कं पनी को तो चला रही थी, परं तु हर पल म अपने
िपछले 21 वष के बारे म जानने के िलये परे शान रहती। एक दन मुझे
यूजपेपर म िगरोट नाम के एक आदमी का आ टकल दखाई दया, िजसम
िगरोट ने टाइम-मशीन क तकनीक पर काय करने का दावा कया था, परं तु
अिधक फाइनस ना होने के कारण, िगरोट अपने ोजे ट म कोई इ वे टर
चाहता था? िगरोट के दावे के बाद तुरंत मेरे दमाग म एक िवचार आया, क
य ना म ही िगरोट के इस ोजे ट को फाइने स कर दूँ? और िगरोट क
टाइम-मशीन बनने के बाद, म उस टाइम-मशीन से अपने िपछले 21 वष के
बारे म जान लूं। यह सोच मने िगरोट को अपनी कं पनी म नौकरी दे दी। अब
िगरोट पूरी त मयता से अपनी टाइम-मशीन को बनाने म जुट गया। धीरे -
धीरे 3 वष और बीत गये। सन् 2027 म एक दन तुम मुझे मेरे ऑ फस म
आकर िमले और तुमने सन राइ जंग व कु छ लोग के बारे म बताया? िज ह
क म नह जानती थी। तुमने िगरोट को अपना िपता भी बताया। मुझे कु छ
समझ म नह आया? परं तु म इतना अव य जान गई क तु हारा स ब ध
अव य ही मेरे िपछले 21 वष से है। इसिलये तु हारे जाने के बाद मने घर
जाकर इं टरनेट से, सन राइ जंग जहाज के बारे म सच कया। सच करने पर
मुझे तु हारी कहानी सच लगने लगी, य क सन राइ जंग नाम का एक
जहाज उस समय से 25 वष पहले बारामूडा ि कोण म खोया आ दखाया
गया था, िजसके सभी या ी भी उस समय से गायब थे। इं टरनेट पर एक
थान पर याि य क एक सूची भी थी और उस सूची म वह सभी नाम भी
थे, िजनके बारे म तुमने बताया था। िल ट को देखकर म च क गई, य क
उस िल ट म मेरा नाम भी था। अब मुझे तु हारी कहानी पर पूरा िव ास हो
गया। इसके बाद मने उस िल ट को िनकालकर उन लोग के बारे म ढू ंढना
शु कया, जो क तु हारी बताई कहानी म थे। अगले एक वष म मने उन
सभी के बारे म पता कर िलया, परं तु सन राइ जंग के हादसे म मेरे िसवा
कोई भी अ य ि जीिवत बचा नह दखाई दया।? तब तक िगरोट का
समयच पूण हो गया। अब मने एक रात उस समयच क टे टं ग करने के
बारे म सोचा और िबना कसी से बताये, िगरोट के साथ म सन् 2002 के उस
समय म जा प ंची, जब क ितिल मा टू टा था और सुयश इस पूरी घटना क
जानकारी शलाका को दे रहा था। कसी को भी मेरे वहाँ उपि थत होने के
बारे म पता नह चल पाया? वहाँ मने माया को जेिनथ क पूरी मृितयां
समा करते भी देख िलया। पर िजस समय माया ने जेिनथ क पूरी मृितयां
समा कर हवा म उछाल , जाने कै से वह सभी मृितयां मेरे अंदर वेश कर
ग ? ले कन इससे पहले क म कु छ कर पाती, टाइम-मशीन मुझे लेकर मेरे
समय म वापस आ गई। परं तु अब मुझे सारी कहानी पता चल गई थी। मुझे
यह भी पता चल गया था क ितिल मा के कस थान पर मेरे दो त क
मृ यु ई है? इसिलये सबसे पहले मने घर लौटकर सभी मरे ए लोग के
फोटोज पर, ॉस का िनशान लगा दया। इसके बाद मने नये िसरे से अपने
दो त ऐले स, टी व तौफ क के बारे म सोचना शु कर दया। तभी मेरे
दमाग म एक लान आया। मने सोचा क य ना इस बार समय म थोड़ा
और पीछे चल और अपने मर चुके बाक दो त को भी इस खतरनाक
ितिल मा से बचा ल। मेरा यह लान मुझे ब त पसंद आया। इस लान के
फल व प मने 25 जनवरी 2028 को अपने ऑ फस म, समयच को दुिनया
के सामने रखने का अनाउं स कर दया। दये गये तय समय के अनुसार म
िगरोट के साथ समयच पर सवार ई और 1982 म जाने के िलये तैयार हो
गई। तभी समयच को एक ती झटका लगने के कारण, िगरोट समयच के
एक लीवर पर गया। िजसके कारण समयच म ती धमाका आ और मेरा
शरीर जलकर वह कमरे म ही िगर गया। इस अंजान धमाके के कारण हम
समयच के साथ पृ वी क बाहरी क ा म प ंच गये। इससे पहले क हम
कु छ कर पाते क तभी चं वीर के सू म लाल तरं ग ने, हम समयच सिहत
डे फानो पर ख च िलया। इसके आगे क कहानी तो म तु ह अभी बता ही
चुक ँ।”
यह कहकर ज़ेिन स एक बार फर चुप हो गई।
“ओह! अब म समझ गया क य भिव य म जाने पर मुझे मेरे िपता
कम आयु के दख रहे थे? .... पर एक बात समझ म नह आई।” ओरस ने कु छ
याद करते ए कहा- “ क जब म तुमसे िमलने के बाद तु हारे ऑ फस से
तु हारे घर प ंचा, तो मुझे कु छ देर के िलये सबकु छ धुंधला दखाई दया,
उसके बाद तु हारे घर क दीवार का रं ग व गाड, दोन ही बदले-बदले नजर
आ रहे थे। ऐसा कै से आ?”
ओरस क बात सुन ज़ेिन स मु कु रा उठी- “याद करो ओरस क जब
मने तुमसे जेिनथ के बारे म पूछा था, तो तुम जेिनथ के साथ अपना भिव य
जानना चाहते थे, इसीिलये मने तु ह 25 वष आगे के समय म भेज दया था।
म चाहती थी क तुम वयं से अपने जीवन के रह य को सुलझाओ। इसीिलये
जब तुम जेिनथ के सामने भिव य म मुझे पुकार रहे थे, तो मने जानबूझकर
तु ह कोई जवाब नह दया? मेरे जवाब ना देने के कारण तुम अपने आप ही
जेिनथ के घर का पता ढू ंढकर, उसके घर क ओर चल दये। तु ह जेिनथ के
घर के पास प ंचता देख मने ही तु ह एक ण म 1 वष आगे भेज दया था,
िजससे तु ह जेिनथ के कु छ और भी रह य पता चल जाय। मेरे ारा इस एक
वष के प रवतन के कारण, तु ह जेिनथ के घर क दीवार का रं ग और गाड
बदला-बदला सा दखाई दया था। परं तु तुम इस िणक 1 वष के बदलाव
को भांप नह पाये और थोड़े उलझे-उलझे दखने लगे। इसी एक वष के
बदलाव के कारण जब तुम जेिनथ के घर प ंचे तो तु ह उसके कमरे म सभी
दो त के िच टं गे ए दखाई दये। जब क यह सभी िच जेिनथ ने तु हारे
ऑ फस से जाने के 1 वष तक ढू ंढ-ढू ंढकर एकि त कये थे। इसके प ात् जब
तुम गाड से पूछकर, दोबारा ऑ फस क ओर चले, तो मने फर से तु ह 2
दन आगे के समय म ऑ फस म भेज दया था। इसी वजह से तु ह ऑ फस म
जेिनथ के 2 दन पहले मरने का समाचार ा आ।”
एक-एक कर ओरस क सभी गुि थयां सुलझती जा रह थ , परं तु
ओरस था क का भंडार लेकर बैठा था।
“अगर तुम इतनी ही अ छी हो, तो तुम कै र के साथ य िमल गई?
और तुमने फे रोना ह के जीव को पृ वी पर य बुलाया?” यह कहते ए
ओरस के श द थोड़े कांप से गये।
“अ छा! तो लगता है क तुम आजकल मेरी ही जासूसी कर रहे थे।”
ज़ेिन स ने धीमे वर म कहा- “वैसे तो म अभी कसी को भी इस रह य के
बारे म नह बताना चाहती थी? परं तु अगर तु ह इतना पता चल ही गया है,
तो म तु ह बता देती ँ। ..... दरअसल तु हारे िपता िगरोट क ह या फे रोना
ह के इ ह जीव ने क थी और यही नीले ाणी नोवान के माता-िपता क
मृ यु के भी िज मेदार ह। म जानती थी क इन जीव को हम िमलकर भी
परािजत नह कर सकते, इसिलये म िपछले हमले के दौरान िब कु ल शांत
थी। परं तु जब से म इस पृ वी पर आई, मुझे ित दन कसी ना कसी यो ा
क जानकारी िमलने लगी? पृ वी के इन सभी यो ा के पास अ भुत
शि यां थ । बस इसिलये इ ह देखने के बाद मेरे मि त क म एक लान आया
और मने कै र के साथ िमलकर फे रोना ह के जीव को तु हारे यहाँ होने का
संदेश भेज दया। िजसके फल व प फे रोना के सबसे शि शाली ए ोवस
पावर तु ह लेने के िलये यहाँ आ प ंचे। मुझे पता था क ए ोवस पावर,
कै र क िविच शि के कारण तु ह ितिल मा म नह ढू ंढ पायगे और
पृ वी के यो ा से लड़ते ए एक-एक कर मारे जायगे और देखो मेरा
सोचना िब कु ल सही रहा। इस समय तक ए ोवस पावर के कई यो ा मारे
जा चुके ह। उधर िपछली बार कै र ने भी ितिल मा के बाद सभी को ब त
परे शान कया था। इसिलये ज़ेिन स के भेष म मने सबसे पहले कै र को ही
िनयंि त करना सही समझा और िव ास करो ओरस, कै र क मृ यु मेरे ही
हाथ होगी, य क मेरे इतने अ छे लान के बाद भी, कै र ने ोफे सर
अलबट को धोके से मार डाला। हां यह बात अलग है क इस बार, अभी तक
म ऐले स, टी व तौफ क को बचाने म अव य सफल रही ँ।”
“िपछली बार इन सभी क मृ यु ितिल मा के कस भाग म ई थी?”
ओरस ने पूछा।
“याद करो क ितिल मा से पहले, िजस समय हम सभी पर
पाइनोसोरस ने हमला कया था, उस समय एक प थर उछलकर, टी के
िसर क ओर जा रहा था, िजसे जेिनथ ने मेरी समयशि से समय को रोक
कर, टी को बचा िलया था। िपछली बार उसी थान पर टी को
बचाने के यास म ोफे सर अलबट मारे गये थे। इसके प ात् ितिल मा के
िजस भाग म ऐले स, टी के हाथ और तौफ क, िपरा हा मछिलय के
हाथ मारे गये थे, िपछली बार भी दोन उसी थान पर मारे गये थे। अंतर
िसफ इतना है क िपछली बार टी को सुनहरी पिसल के प म इं ा
नह िमला था, िजससे वह तौफ क व ऐले स को जीिवत नह कर पाई थी।
.... अब बची टी, तो िपछली बार टी क मृ यु, ितिल मा के आिखर
म कै र के हाथ ही ई थी। यही वजह है क म कै र को इस बार कोई
मौका नह देना चाहती, इसिलये म उससे िमलने का नाटक करते ए उसक
सभी चाल को समझने क कोिशश कर रही ँ और सच मानो ओरस अगर म
ऐसा ना करती, तो म कभी तुम सभी को कु वान से नह बचाती?”
“कु वान से तुमने हम बचाया था?” ज़ेिन स क बात सुन कै र आ य
से भर उठा।
“हां, िजस समय तु हारा व सुयश का कु वान से यु चल रहा था, उस
समय वहाँ पड़ी उड़नत तरी को उड़ाकर मने ही तुम लोग को बचाया था,
परं तु म उस समय कै र क िनगाह म नह आना चाहती थी, इसिलये यह
काय करते ही म वहाँ से गायब हो गई थी।”
इतने सवाल-जवाब के बाद अब ओरस समझ गया क ज़ेिन स
िब कु ल सही है। इसिलये उसे कु छ बोलते नह बन रहा था।
“तु हारी बात से एक बात और समझ म आई क य द इस थान से
हम ितिल मा म बदलाव कर द, तो भिव य म मेरे िपता िगरोट भी जीिवत
बच जायगे य क तब उ ह भागवी क समयशि िमलेगी ही नह , िजससे
क वह समयच का िनमाण भी नह कर पायगे।” ओरस ने स होते ए
कहा।
“िब कु ल ठीक कहा ओरस। अब तुम मेरी बात को अ छे से समझ रहे
हो।” ज़ेिन स ने भी खुश होते ए कहा।
“तो फर बताओ ज़ेिन स क अब मुझे या करना है?” ओरस ने
बारी-बारी नोवान, फ नी स व ज़ेिन स को देखते ए पूछा।
“तु ह बस इतना करना है ओरस क तु ह अब ितिल मा म जेिनथ क
कोई मदद नह करनी है? और जब तक म ना क ँ, तु ह जेिनथ क बात का
उ र भी नह देना है।” ज़ेिन स के श द रह य से भरे थे।
ज़ेिन स क बात सुनकर ओरस हैरान हो गया, उसे ज़ेिन स से ऐसे
कसी जवाब क आशा नह थी? अतः वह बोल उठा- “अगर तुम जेिनथ को
सदैव बचाने का वादा करती हो, तो म भी तु ह यह वचन देता ँ क अब
ितिल मा के टू टने तक, ना तो म जेिनथ क कोई मदद क ँ गा? और ना ही
उससे बात क ँ गा, फर चाहे कु छ भी य ना हो जाये? परं तु मुझे एक बात
समझ म नह आई क तुम ऐसा कर य रही हो?”
“देखो ओरस, तु ह पता है क कै र सभी के दमाग को पढ़कर उनक
मता के िहसाब से ितिल मा के ार बनाता है और जैसा क म देख रही
ँ क कै र तु हारी मौजूदगी का अहसास होने के बाद येक ार को और
भी क ठन करता जा रहा है। यहाँ तक क उसने अलबट को धोका देकर, वयं
इसिलये ही मारा है य क उसे लगता है क तुम भी यहाँ िछपकर ितिल मा
म वेश कये हो। तो अगर म कै र को यह िव ास दलाऊं क मने तु ह
लैकून के कसी भाग म बंद कर दया है, तो वह थोड़ा िन ंत हो जायेगा
और ऐसी ि थित म, तुम हमारे िलये एक अित र शि के प म रहोगे, जो
क ितिल मा टू टने के बाद कै र को ठकाने लगाने म मेरा सहयोग करोगे।
.... और अब रहा ितिल मा म फं से बाक लोग क सुर ा के बारे म .... तो
म तुमसे इन सभी क सुर ा का वचन देती ँ और यह िव ास दलाती ँ क
कम से कम कै र वयं इनम से कसी को भी नह मार पायेगा?” ज़ेिन स ने
ओरस को वचन देते ए कहा।
ज़ेिन स के वचन को सुनकर ओरस ने राहत भरी साँस ली। वैसे तो
उसके िलये जेिनथ क बात का उ र ना देना कसी सजा से कम नह लग
रहा था? पर उसे पता था क अब ितिल मा म यादा ार नह बचे ह और
अगर कै र वयं का योग ना करे , तो ितिल मा म मौजूद सभी लोग
ितिल मा को अव य पार कर लगे।
बहरहाल अब सबकु छ समय के हाथ म था, परं तु समय वयं िसफ
और िसफ ज़ेिन स के हाथ म था, िजसका वह ब त अ छी तरह से योग
कर रही थी।
◆ ◆ ◆
चैपटर-7
माचू-िप चू

ितिल मा 7.65

यश व शैफाली उ बा बा घाटी को पारकर, पवत के ऊपर


सु ि थत माचू -िप चू के ख डहर म प ंच गये। पवत के ऊपर का दृ य
िब कु ल ही अनोखा था। जहां तक नजर जा रही थी, चारो ओर हरे
रं ग क घास फै ली ई थी।
पवत के बीच-बीच म प थर से िन मत कु छ ख डहर नजर आ रहे थे,
िजसे देखकर एक िवशाल खोई ई स यता का अंदाजा सहज ही लगाया जा
सकता था।
िवशालकाय पहािड़य क चोटी सफे द बादल से ढक ई थी। ऊपर
आसमान म अभी भी शिन ह का िवशाल वलय ( रं ग) नजर आ रहा था।
कु ल िमलाकर पूरा वातावरण, एक अ भुत नजारा तुत कर रहा था।
“यह थान तो ब त ही अि तीय है।” शैफाली ने अपनी आँख म
कृ ित के रं ग भरते ए कहा- “ या सच म माचू-िप चू का यह शहर इतना
ही खूबसूरत है?”
“हां शैफाली, म एक बार यहाँ आ चुका ँ, इसिलये मुझे इसके बारे म
काफ कु छ पता है? अगर इस थान के आसमान को छोड़ दया जाये, तो यह
शहर िब कु ल असली के समान नजर आ रहा है। पर इसक सुंदरता म खोने
से पहले यह यान रखना शैफाली, क हम इस समय ितिल मा के अंदर ह।
वैसे तो इस ार म कै र ने बुि को मह व दया है, परं तु हम कै र पर
ज रत से यादा िव ास नह करना चािहये। पता नह कब उसका दमाग
घूम जाये और वह इस ार म भी खतरे को बढ़ा दे?”
सुयश क बात सुन शैफाली ने कु छ कहा नह , परं तु अपना दािहने
हाथ का अंगूठा ‘थ स-अप’ क टाइल म ऊपर उठाकर अपने िसर को हौले
से िहला दया।
तभी सुयश को वहाँ पर एक सबसे ऊंचा थान दखाई दया, िजसे
देखकर उसने शैफाली को इशारा करते ए कहा- “वह सबसे ऊंचा थान
यहाँ का सूय मं दर है, िजसका िनमाण इं का स यता के लोग ने तार क
प र मा करने के िलये कया था। मुझे लगता है क हम वहाँ चलना चािहये।
वहाँ अव य ही कै र ने कसी कार का रह य िछपाया होगा? पर इस
थान पर पैर को जमाकर थोड़़ा यान से चलना, य क जरा सा पैर
फसलते ही तुम हजार फट गहरी खा म िगर सकती हो।”
सुयश क बात सुनकर शैफाली सावधान हो गई और अपने पैर जमीन
पर जमाते ए, धीमे कदम से सूय मं दर क ओर चल दी।
कु छ ही देर म दोन सूय मं दर के ार पर प ंच गये। यह मं दर बाक
के थान क अपे ा कु छ बेहतर ि थित म था। सूय मं दर म कोई ार नह
था? शायद उसका ार समय क भट चढ़ गया था।
शैफाली ने अंदर घुसने से पहले, मं दर म झांकने क कोिशश क , परं तु
मं दर के ार से अंदर क ओर जाने वाला रा ता थोड़ा टे ढ़ा-मेढ़ा होने क
वजह से शैफाली को वहाँ से कु छ दखाई नह दया? इसिलये शैफाली सधे
कदम से मं दर के अंदर वेश कर गई।
अंदर प ंचते ही शैफाली िब कु ल ह ा-ब ा होकर, उस िवशाल मं दर
के कमरे को देखने लगी।
अंदर से मं दर का कमरा ब त ही आधुिनक दखाई दे रहा था। उसे
देखकर ऐसा लग रहा था क मान उस थान पर अभी भी कोई रहता हो?
एक थान पर एक बड़ी सी मशीन लगी थी, िजसके सामने एक नीले रं ग का
बटन लगा आ था, जो क बीच-बीच म चमक रहा था। परं तु उस कमरे म
इं सान के नाम पर कोई भी नह था?
उस पूरे कमरे म बड़ी-बड़ी 3 िखड़ कयां लगी थ । एक िखड़क म एक
िवशाल खगोलीय दूरबीन रखी थी। शैफाली व सुयश इस पूरे दृ य को
देखकर आ य से भर गये।
“यह या? यह थान तो हमारी क पना से िब कु ल ही परे िनकला।”
शैफाली ने कमरे का गहन िनरी ण करते ए कहा- “और इसे देखकर ऐसा
लग रहा है क जैसे इस थान पर कोई रह भी रहा है? आपको या लगता है
कै टे न अंकल? यहाँ पर कस कार का मायाजाल फै लाया होगा कै र ने?”
“इस कमरे को देखकर यह तो साफ महसूस हो रहा है क हमारी
दूसरी चाबी है तो इसी थान पर। पर उसे ढू ंढने के िलये हम काफ मश त
करनी होगी।” सुयश ने चारो ओर देखते ए कहा- “अब अगर इस थान पर
रखी येक चीज को यान से देख, तो हमारे सामने लगी वह मशीन और वह
खगोलीय दूरबीन ही मुझे कु छ अटपटे से लग रहे ह? बाक सभी चीज तो
सामा य ही ह। .... पर हम इस थान पर थोड़ा सावधान ही रहना होगा,
य क जाने य मुझे भी महसूस हो रहा है क इस थान पर हम अके ले
नह ह? अव य ही यहाँ पर कोई और भी है, जो हम दखाई नह दे रहा है?”
अभी सुयश ने इतना ही बोला था क तभी एक खुली िखड़क से, एक
चाँदी के समान चमक ली त तरी उड़ती ई आई और सुयश के सीने से जा
टकराई। त तरी का आकार लगभग 1 फु ट के आसपास था।
त तरी के वार से सुयश उछलकर नीचे िगर गया। चूं क यह वार
अक मात आ था, इसिलये सुयश को िब कु ल भी बचने का मौका ही नह
िमला।
सुयश के िगरने के बाद भी त तरी क नह , वह हवा म उड़ती ई
इस बार शैफाली क ओर झपटी, पर सुयश के िगरते ही शैफाली पूरी तरह से
सावधान हो गई थी, इसिलये शैफाली ने अपनी ओर आती ई उस त तरी
को हवा म ही मु ा मार दया।
शैफाली के मु े के हार से, वह त तरी कमरे म एक ओर रखी धातु
क अलमारी से जा टकराई। इसी के साथ त तरी से धुंआ िनकलने लगा।
तब तक सुयश भी उछलकर खड़ा हो गया और यान से उस त तरी
को देखने लगा। पर कु छ देर बाद भी जब उस त तरी म कोई हरकत नह
ई? तो सुयश धीरे -धीरे उस त तरी क ओर बढ़ गया।
सुयश ने उस त तरी को उठाया और उसे लाकर कमरे म रखी एक
बड़ी सी टे बल पर रख दया।
“लगता है क यह त तरी कसी रमोट से चलने वाला िखलौना है?
िजसके ारा कसी ने हम पर आ मण कया है?” सुयश ने शैफाली क ओर
देखते ए कहा।
शैफाली, सुयश क बात सुन ज र रही थी, पर उसक नजर अब भी
उस त तरी पर थ ।
“नह कै टे न अंकल, मुझे इस त तरी म कोई और रह य िछपा आ
महसूस हो रहा है?” शैफाली ने थोड़ा धीमे वर म फु सफु साते ए कहा।
शैफाली क बात सुन सुयश भी यान से उस त तरी को देखने लगा,
परं तु अब वह भी चौक ा दखाई दे रहा था।
तभी जाने कहाँ से उस कमरे म एक ‘लामा’ ने वेश कया।
(लामाः दि ण अमे रका म पाया जाने वाला, भेड़ के समान एक
पालतू जानवर होता है)
वह लामा सफे द रं ग का था और उसक ऊंचाई 6 फु ट के आसपास थी।
उस लामा को देखकर सुयश व शैफाली एक ण के िलये उस त तरी
को भूल लामा को देखने लगे।
“अरे यह लामा यहाँ इतनी ऊंचाई पर कै से आ गया?” शैफाली ने
लामा को देखते ए कहा।
“लामा का यहाँ आना कोई आ य क बात नह है शैफाली? इस े
म ब त से लामा ह, जो क अ सर यहाँ पर आ जाते ह।” सुयश ने शैफाली
क ओर देखते ए कहा।
तभी सुयश को अपने गाल पर कसी चीज के चुभने का अहसास आ?
सुयश ने घबराकर अपना गाल छू िलया। सुयश को अपने दािहने गाल पर
एक महीन सा काँटा चुभा आ दखाई दया।
सुयश ने जैसे ही उस थान से काँटे को बाहर क ओर ख चा, सुयश के
गाल से खून क कु छ बूंदे ढु लक कर सुयश के हाथ म लग ग ।
तभी शैफाली ने चीखकर सुयश को नीचे क ओर िगरा दया-
“खतराऽऽऽऽ!”
सुयश ने अचकचाकर कमरे के ार क ओर देखा, पर कमरे के ार पर
लामा के अलावा कोई भी नह था?
तभी एक और महीन सी सुई आकर सुयश के हाथ म चुभ गई, पर इस
बार आई सुई शैफाली क ती िनगाह से बच नह सक ।
“कै टे न अंकल, यह ब त ही महीन न हे तीर ह, जो लामा क ओर से
आ रहे ह। हम तुरंत लामा से बचते ए कसी ओट का सहारा लेना होगा?”
शैफाली ने सुयश से कहा और वयं तुरंत उस टे बल के पीछे चली गई, िजस
पर वह त तरी रखी ई थी।
शैफाली को टे बल के पीछे जाता देख सुयश भी भागकर उसी टे बल के
पीछे आ गया।
“यह लामा इतने छोटे तीर हम कै से मार सकता है?” सुयश के चेहरे
पर अभी भी आ य के भाव थे।
“कै टे न अंकल, यह तीर लामा नह चला रहा, बि क उसके बाल म
िछपे बैठे, कु छ ब त ही न हे इं सान चला रहे ह। वह न हे इं सान च टी के
समान छोटे ह। ... अब तो मुझे लग रहा है क यह त तरी भी उ ह का यान
है, जो क हम अपने घर म घुसे देखकर, हम पर हमला कर बैठे ह।” शैफाली
ने धीरे से बाहर क ओर झांकते ए कहा।
“नह शैफाली, यह मं दर उन न हे इं सान का नह हो सकता, य क
मशीन पर लगे बटन का आकार और खगोलीय दूरबीन का आकार देखकर
यह साफ पता चल रहा है क यहाँ पर कोई मानव के आकार का इं सान रहता
है? हो सकता है क यह न हे मानव उस बड़े मानव के र क ह ?” सुयश ने
अपने िवचार कट करते ए कहा।
“आप सही कह रहे ह कै टे न अंकल, पर यह सब जानने के िलये, हम
पहले इस लामा पर बैठे उन न हे इं सान को हराना होगा।” शैफाली ने यह
कहा और टे बल के ऊपर रखी, उस त तरी को उठाकर िबजली क तेजी से
लामा के चेहरे क ओर फक दया।
त तरी हवा म उड़ती ई लामा के चेहरे से जा टकराई। त तरी के
टकराने से लामा को तेज दद का अहसास आ और इसी के साथ वह कमरे से
बाहर क ओर भाग गया।
लामा को कमरे से भागता देखकर शैफाली टे बल क ओट से बाहर आ
गई और उस त तरी क ओर बढ़ चली।
शैफाली ने त तरी को उठाकर वापस टे बल पर रखा और यान से
उसके छोटे से दरवाजे को देखने लगी। अब सुयश भी शैफाली के पास आ गया
और यान से शैफाली के याकलाप को देखने लगा।
कु छ देर के बाद शैफाली ने त तरी के दरवाजे को, अपने हाथ से
उखाड़ िलया और उसके अंदर झांकने लगी। शैफाली को अंदर से वह त तरी
कसी यान क भांित दखाई दी। यान के अंदर ब त सी चीज के साथ एक
छोटी सी टे बल भी थी, िजस पर एक सुनहरे रं ग क चाबी िचपक ई थी।
“कै टे न अंकल, यह त तरी तो उन न हे मानव का यान है।” शैफाली
ने त तरी के सामने से अपना चेहरा हटाते ए कहा- “ले कन मेरा सोचना
सही िनकला। हमारी दूसरी चाबी इस त तरी के अंदर ही है और वह एक
छोटी सी टे बल से िचपक ई है, इसिलये हम उसे िहलाकर इस त तरी से
बाहर नह ला सकते। उस चाबी को िनकालने के िलये, या तो हम इस
त तरी को तोड़ना होगा? या फर कसी पतली धारदार चीज से उस टे बल
को काटकर चाबी को बाहर िनकालना होगा?”
शैफाली क बात सुन सुयश तुरंत इधर-उधर घूमकर, चाबी को बाहर
िनकालने के िलये कोई हिथयार ढू ंढने लगा?
पर काफ देर तक ढू ंढने के बाद भी सुयश को वहाँ कोई भी ऐसा
हिथयार नह िमला? िजसके ारा वह उस चाबी को िनकाल पाते। उधर
शैफाली भी त तरी को ऊपर से खोलने के िलये अलग-अलग कार के यास
कर चुक थी, पर वह भी अपने यास म अभी तक सफल नह हो सक थी।
“अब तो हमारे पास उस मशीन का बटन दबाने के िसवा कोई चारा
नह है? हम नह पता क उस बटन को दबाने से या होगा, पर हम अब यह
र क लेना ही होगा।” सुयश ने कनारे रखी मशीन क ओर देखते ए कहा।
यह देख शैफाली ने त तरी को वह टे बल पर रखा और आगे बढ़कर
उस मशीन पर लगे बटन को दबा दया।
मशीन का बटन दबाते ही त तरी से अजीब सी ‘बीप-बीप’ क
आवाज िनकलने लगी। यह देख सुयश पूरी ताकत से शैफाली का हाथ
पकड़कर, उस सूय मं दर से बाहर क ओर भागा।
“भागो शैफाली, मुझे लगता है क यह त तरी अब फटने वाली है।”
5 सेके ड से भी कम समय म सुयश व शैफाली मं दर से बाहर िनकल
गये। पर अभी वह कु छ ही दूर गये थे? क तभी एक कणभेदी आवाज मं दर
के अंदर से सुनाई दी।
सुयश व शैफाली उस आवाज को सुन अपने थान पर जमीन पर लेट
गये। इस भयानक धमाके के कारण कु छ देर तक दोन के ही कान म सीटी
बजती रही।
कु छ देर बाद जब दोन थोड़ा सामा य हो गये, तो उनक नजर सूय
मं दर क ओर गई। पर धमाके के कारण उस थान पर अब कोई सूय मं दर
नह बचा था? हां, उसके थान पर कु छ टू टी ई दीवार दखाई दे रही थ ?
और उ ह टू टी ई दीवार से एक बड़ी सी त तरी झांक रही थी।
“अरे ! यह धमाका तो त तरी के फटने से नह आ था, बि क उसके
आकार बढ़ने के कारण मं दर क दीवार के िगरने क वजह से आ था।”
शैफाली ने मं दर क ओर भागते ए कहा।
सुयश भी शैफाली के साथ-साथ मं दर क ओर दौड़ चला।
कु छ ही देर म टू टी ई दीवार को कू दते ए, सुयश व शैफाली त तरी
के अंदर वेश कर गये। त तरी के अंदर यादा टू ट-फू ट नह ई थी।
त तरी के बड़े हो जाने के कारण, उसम रखी टे बल का भी आकार बड़ा
हो गया था, परं तु उस पर िचपक चाबी अभी भी पहले के ही आकार म थी।
शैफाली ने पहले भागकर टे बल पर िचपक ई चाबी को अपने
अिधकार म ले िलया।
तभी सुयश क िनगाह एक आदमकद पारदश कै सूल पर पड़ी,
िजसके अंदर एक िनि य मानव शरीर खड़ा दखाई दया। यह देख सुयश
उस कै सूल के पास प ंच गया, पर जैसे ही उसक िनगाह उस मानव शरीर
के ऊपर पड़ी, वह बुरी तरह से च क गया, य क अंदर खड़ा आ शरीर
तौफ क का था।
तब तक शैफाली भी भागकर उस कै सूल के पास प ंच गई। तौफ क
को जीिवत देख शैफाली भी ब त यादा भावुक दखाई देने लगी।
तभी सुयश क नजर कै सूल के ऊपर लगे एक बटन पर गई। सुयश ने
िबना सोचे-समझे तेजी से उस बटन को दबा दया।
बटन के दबते ही कै सूल का दरवाजा खुल गया। इसी के साथ िनि य
तौफ क का शरीर नीचे क ओर िगरने लगा। ले कन सुयश ने तुरंत सहारा
देकर तौफ क के शरीर को संभाल िलया।
“यह तौफ क इस त तरी के अंदर कहाँ से आ गया? यह तो ितिल मा
के िपछले ार म अलबट के साथ कह गायब हो गया था?” सुयश ने तौफ क
को िहलाते ए कहा।
सुयश के 3-4 बार िहलाने के बाद तौफ क को होश आ गया। होश म
आते ही तौफ क ने पहले अपने चारो ओर देखा, फर आगे बढ़कर सुयश को
तुरंत गले से लगा िलया।
“एक बार फर मेरी जान बचाने के िलये ब त-ब त ध यवाद
कै टे न।” तौफ क ने शैफाली के बाल को भी सहलाते ए कहा।
“पर तौफ क तुम यहाँ कै से आ गये?” सुयश ने तौफ क से करते
ए कहा- “तुम और ोफे सर तो पडोरा बॉ स से िनकले रं गीन छ ल म
समाने के बाद कह गायब हो गये थे? हम तु हारी ब त चंता हो रही थी।
.... या ोफे सर अलबट भी यहाँ पर कह बंद ह?”
तौफ क से उ र क आस म सुयश क ता बढ़ती जा रही थी।
“कै टे न, म जब पडोरा बॉ स से िनकले छ ले म समाया, तो मने
अपने आपको एक काँच के ताबूत म बंद पाया, जो क इसी सागर क गहराई
म पड़ा था। मैने जब अपने हाथ से टटोलकर देखा, तो मुझे उस ताबूत के
अंदर एक वाटर ूफ रवा वर भी िमली। मने उस रवा वर से ताबूत के काँच
को तोड़ा और उस ताबूत से बाहर आ गया। तभी मुझे इस सागर के अंदर
डू बा आ सन राइ जंग दखाई दया। म तैरता आ जैसे ही उस सन
राइ जंग म चढ़ा, वह अपने आप सागर क तली से िनकलकर सतह पर आ
गया। म अब सन राइ जंग के अंदर वेश कर गया। म सन राइ जंग म कसी
को ढू ंढने क कोिशश करता आ आगे बढ़ रहा था? क तभी मुझे एक गैलरी
से ‘म वयं’ चलकर आता दखाई दया। म हैरानी से अपने सामने वयं के
शरीर को देख रहा था। मुझे लगा क यह कसी कार का म है? इसिलये म
हत भ सा अपनी जगह पर खड़ा रहा। पर जैसे ही वह दूसरा तौफ क मेरे
सामने आया, म अपने थान पर अचानक से एक अदृ य ऊजा म प रव तत
हो गया। अब म वहाँ क हर एक व तु को देख व सुन पा रहा था, पर ना तो
म कसी को पश कर पा रहा था? और ना ही कसी को मेरी आवाज सुनाई
दे रही थी? ऐसी ि थित म मेरे हाथ म थमी रवा वर वह पर िगर गई। मेरे
सामने ही नकली तौफ क ने वह रवा वर उठाई और फर वह एक कमरे क
ओर चल दया। म उ सुकतावश उस मायाजाल म फं सा, उस नकली तौफ क
के पीछे -पीछे चल दया। नकली तौफ क, रवा वर िलये ये ोफे सर अलबट
के कमरे म जा प ंचा। पता नह वह कौन सा समय था क उस कमरे म उस
समय मा रया मैम मौजूद थ ? नकली तौफ क ने मा रया मैम पर रवा वर
तान दी और उनसे कु छ पूछने लगा क तभी वहाँ कमरे म ोफे सर अलबट आ
गये। उस समय ोफे सर काफ जवान दख रहे थे, िजसके कारण म यह जान
गया क वह इस समय के ोफे सर ह। कु छ देर का नाटक करने के बाद नकली
तौफ क ने मेरे सामने ही एक-एक कर ोफे सर अलबट और मा रया मैम को
गोली मार दी। बाद म मुझे पता चला क ोफे सर अलबट व मा रया मैम
असली थे और उ ह मारने वाला वह नकली तौफ क असल म कै र था। उसी
कमीने कै र ने मुझे भी ऊजा प म बदल दया था। दोन के मरने के बाद
अचानक मेरा ऊजा शरीर फर से सही होने लगा, पर इसी के साथ ही मेरी
आँख के सामने अंधेरा छा गया। जब मुझे होश आया, तो मने अपने आपको
इस माचू-िप चू के खंडहर म पाया। म इस ार का पता लगाने के िलये इस
मं दर म आया था, परं तु यहाँ रह रहे कु छ िविच से न हे इं सानो ने मुझे भी
छोटा करके , अपने इस यान म बंद कर दया। इसके बाद जब आप लोग आये,
तभी म होश म आया ँ। पर मेरे इस शरीर को देखकर मुझे पता चल गया
क आप लोग ने इस ितिल म के ार को तोड़ दया है, इसिलये म अपने
असली आकार म आ गया ँ।”
इतना कहकर तौफ क चुप हो गया और शांत भाव से सुयश व शैफाली
क ओर देखने लगा। अलबट क मौत का समाचार सुनकर सुयश ने तो वयं
को संयत कर िलया, पर शैफाली के चेहरे पर इस समय िब कु ल मौत के भाव
थे। गु से क वजह से शैफाली के ह ठ कांप रहे थे।
“कै र ने वयं इस ितिल मा म वेश करके , ितिल मा के िनयम को
भंग कया है और इसक सजा म उसे अव य दूँगी। ..... कै रऽऽऽऽऽऽऽऽऽ अगर
तुम मेरे श द को सुन रहे हो, तो मै ा के इन श द को याद रखना। म तु ह
तु हारे इन कृ य क सजा ज र दूँगी।”
इस समय शैफाली का चेहरा गु से क अिधकता से ब त ही भयानक
दख रहा था। कु छ पल के िलये तो वहाँ से इतनी दूर बैठा कै र भी,
शैफाली के इन श द को सुनकर घबरा गया, पर अगले ही पल उसने अपने
शरीर को संयत कर िलया।
“अरे वाह! मै ा के इन श द को सुन, इं सान क भांित मेरे र गटे तो
खड़े नह ए, परं तु कु छ ण के िलये ही सही मेरे अंदर भी खौफ का भाव
तो आया है। .... इसका मतलब इं सान क ही भांित अब मेरे अंदर भी भाव
भरने लगे ह। .... अब वह दन दूर नह , जब पूरे ांड पर मेरा और
ज़ेिन स का राज होगा। हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽऽ।”
इधर कै र के ठहाके पूरे कमरे म गूंज रहे थे, तो उधर अभी भी सुयश
व तौफ क, शैफाली के ोध के शांत होने का इं तजार कर रहे थे।
कु छ देर के बाद जब शैफाली थोड़ा बेहतर महसूस करने लगी, तो
सुयश व तौफ क ने शैफाली के एक-एक हाथ को पकड़कर, उसे अपने साथ
होने का अहसास दया।
उधर तौफ क ने शैफाली के दमाग को दूसरी दशा म मोड़ने के िलये
एक कर िलया।
“इस ितिल म म िसफ आप दोन ही हो। बाक के लोग कहाँ ह?”
तौफ क ने पूछा।
तौफ क क बात सुन सुयश ने तौफ क को उसके िबछड़ने के बाद क
सभी घटना के बारे म बता दया।
“इसका मतलब मेरे िमलने के बाद, अब हम सभी को बाक िबछड़े
लोग को ढू ंढना होगा।” तौफ क ने कहा।
“अरे हां, हम तो भूल ही गये थे, क हम उन न हे मनु य के आने के
पहले ही इस चाबी को ि म म लगाकर इस ार को समा करना होगा,
नह तो अगर वह न हे मनु य आ गये, तो पता नही वह इस बार कस कार
के हिथयार का उपयोग करने लग?” सुयश ने शैफाली को चाबी क याद
दलाते ए कहा।
सुयश क बात सुनकर शैफाली ने सुयश से ि म िलया और उसके
दूसरे सुराख म चाबी को फं सा दया। िपछली बार क तरह इस बार भी
खटके क आवाज के साथ चाबी व सुराख दोन ही गायब हो गये।
तभी एक जोर का झमाका आ और माचू-िप चू के वह खंडहर अपने
थान से गायब हो गये। इसी के साथ तीन ने अपने आपको उसी दर म
पाया, िजससे होकर वह माचू-िप चू प ंचे थे।
अब सुयश, शैफाली व तौफ क िचचेन-इ ज़ा के िपरािमड क ओर चल
दये। सुयश के हाथ म अभी भी ि म थमा आ था और सुयश क िनगाह
बार-बार उस आिखरी सुराख क ओर जा रही थी।
जहां एक तरफ दोन को तौफ क के िमलने क खुशी थी, वह दूसरी
ओर ोफे सर अलबट के मरने का दुख भी था।
पर सभी को पता था क मृ यु तो एक ना एक दन सभी को आनी है?
समय पर कसी का वश थोड़ी ना चलता है। समय तो सदैव वछं द बहता
रहता है।
◆ ◆ ◆
साग रका यु

06.02.02, बुध वार, अटलां टस ीप, अटलां टक महासागर


अटलां टक महासागर क अनंत गहराइय म ि थत था- अटलां टस
ीप। यह वही अटलां टस ीप था, जो कभी पृ वी का सबसे िवकिसत ीप
आ करता था। िजसे बनाया था अटलां टस क महारानी लीटो ने।
लीटो ने अटलां टस क रचना, पोसाइडन से काला मोती ा करने
के बाद क थी। काला मोती म उपि थत कण शि ने अटलां टस ीप को
एक अ भुत आकार दया था। पूरा ीप 3 गोल म बंटा था। इन तीन गोल
के म य अटलां टस ीप का महल था।
अटलां टस ीप भले ही आज जल लय के कारण पूरा का पूरा समु
म डू ब गया था, पर आज भी उसके भ अवशेष उसके अित िवकिसत होने
क कहानी कह रहे थे।
इसी अटलां टस के एक भाग म अटलस का एक िवशाल मं दर था,
िजसके अंदर उपि थत थी- साग रका। साग रका एक ऐसी पु तक थी, जो
पहेिलय के मा यम से लोग को भिव य के बारे म बताती थी।
(नोटः अटलां टस पु तक के एक दृ य म कलाट, महावृ से आ ा
लेकर, युगाका के साथ इस साग रका को खोलने आया था।)
इस समय अटलां टस ीप से कु छ दूरी पर एक छोटा सा जलयान,
तेजी से तैरता आ अटलां टस ीप क ओर बढ़ रहा था। यह जलयान पूरा
का पूरा पारदश काँच से िन मत था, इसिलये इसके अंदर से समु के दृ य
िब कु ल साफ दखाई दे रहे थे।
इस जलयान के अंदर िपनाक, शारं गा, कौ तुभ व धनुषा बैठे दखाई दे
रहे थे, जो क मानिसक तरं ग के ारा वा िण से जुड़े ए थे।
(नोटः दो त िपनाक, शारं गा, कौ तुभ व धनुषा चारो ही वेदालय के
वह िव ाथ थे, िज ह बाद म ांड र क बनाया गया था। जहां एक ओर
िपनाक व शारं गा, को नीलाभ ारा नागशि देकर नागलोक म रहने का
थान ा आ था, वह दूसरी ओर कौ तुभ व धनुषा को जलशि देकर
म यलोक दया गया था। िपनाक व शारं गा के बारे म आप ‘मायावन’
पु तक म पढ़ चुके ह, िजसके एक दृ य म िपनाक व शारं गा का यु , ऐले स
के साथ ि आयाम म हो चुका है, जहां ऐले स ि आयाम से मै ा क मृितयां
लाने के िलये गया था। .... कौ तुभ व धनुषा इस पूरी कथा ृंखला के दौरान
थम बार दखाई दये ह।)
धीरे -धीरे जलयान अटलां टस ीप के े म वेश कर गया।
इस समय चारो बैठे तो जलयान म थे, परं तु उनक आँख बाहर
अटलां टस ीप का अवलोकन करने म लग थ ।
“अपने समय म अटलां टस कतना सुंदर और िवकिसत रहा होगा?”
धनुषा ने पानी के अंदर दख रहे ऊंचे-ऊंचे भवन को देखते ए कहा- “वह
देखो वहाँ पर मुझे एक िपरािमड भी बना दखाई दे रहा है।”
तभी वा िण क आवाज सभी के मि त क म गूंजी- “इस िपरािमड का
िनमाण अटलां टस के लोग क िव ुत आपू त के िलये कया गया था। एक
कार से यह इस नगर का ‘जेनरे टर’ है।”
“वाह! उस समयकाल म भी या शानदार िश पकला का योग आ
था।” शारं गा ने भी अटलां टस क सुंदरता म खोते ए कहा।
“यह भ नगर कण क शि से िन मत है।” वा िण ने कहा-
“परं तु यह यान रखना दो त क इस अ भुत नगर को देखते ए कह तुम
इतना भी मत खो जाना? क अपने यहाँ आने के उ े य को भी भूल जाओ।
.... याद रखना इस समय ए ोवस पावर क पूरी िनगाह इस नगर पर भी
ह। ऐसे म उनका भी कोई यो ा इस ओर ज र आया होगा या फर आ रहा
होगा? इससे पहले क वह यो ा साग रका को अपने िनयं ण म ले, तु ह वह
पु तक ा करनी ही होगी।”
“तुम चंता मत करो वा िण, हम अपने उ े य को नह भूले ह, परं तु
हम एक बात नह समझ पाये क तुमने इस पु तक को ा करने के िलये
हम य भेजा? जब क तु हारे पास तो कलाट व युगाका जैसे ऐसे लोग भी
थे, जो इस पु तक तक शी प ंचकर इसे ा कर सकते थे।” इस बार
िपनाक ने कहा।
“तुम सही कह रहे हो िपनाक। कलाट व युगाका, महावृ के फल
खाकर इस पु तक तक आसानी से प ंच सकते थे और इसे ा भी कर सकते
थे। परं तु वह दोन सागर के अंदर यु करने म इतने अ य त नह ह। ऐसे म
अगर ए ोवस पावर का कोई यो ा, उ ह समु के अंदर घेर लेता, तो वह
दोन भी धरा और मयूर क भांित परािजत हो जाते। जब क तुम चारो ही
िपछले 5000 वष से समु के अंदर यु करते आ रहे हो। इसिलये मने इस
पु तक को लाने के िलये तुम सभी का चयन कया।” वा िण ने सभी को
समझाते ए कहा।
अभी यह सभी आपस म बात कर ही रहे थे क तभी कोई ब त ही
न ही सी चीज आकर इनके जलयान से टकराई- “टन्ऽऽऽ।”
बाक कसी ने इतनी ह क विन पर यान नह दया, परं तु कौ तुभ
के ती कान ने इस विन को महसूस कर िलया।
“यह या था?” कौ तुभ ने चारो ओर देखते ए कहा।
“ या आ कौ तुभ? तुम इस कार से च क य गये?” धनुषा ने
कौ तुभ को देखते ए पूछा- “ या तुमने कु छ महसूस कया?”
“हां धनुषा, मुझे ऐसा लगा क जैसे कोई ब त ही न ही सी चीज
आकर हमारे जलयान से टकराई है।” कौ तुभ ने अपना शंका जािहर करते
ए कहा।
“हो सकता है क वह चीज कोई छोटी सी मछली हो? जो क हमारे
चलते ए जलयान से आकर टकरा गई हो?” िपनाक ने कहा।
“नह िपनाक। हमारा जलयान अटलां टस के इस े म ब त ही
धीमे चल रहा है। ऐसे म कसी मछली का हमारे जलयान से टकराना संभव
नह है? और वैसे भी तुम तो जानते हो क मेरी छठी इं य कतनी ती है?
यह अव य ही कसी कार के खतरे का संकेत था?” कौ तुभ ने अपनी बात
पर अड़ते ए कहा।
सभी कौ तुभ क छठी इं य से अ छी तरह से प रिचत थे, इसिलये
सभी ने अपने जलयान को उस थान पर रोक दया और यान से अपने
चारो ओर देखने लगे, परं तु कु छ देर के बाद भी उ ह बाहर कु छ भी दखाई
नह दया?
“लगता है मुझे बाहर िनकलकर अपनी जलशि से इस पूरे थान के
जल को जांचना पड़ेगा, य क आज तक कौ तुभ को कभी भी ऐसा म नह
आ है?” धनुषा ने सभी क ओर देखते ए कहा।
धनुषा क बात सुन कर सभी ने एक बार एक-दूसरे क ओर देखा और
फर धीरे से अपना िसर िहलाकर धनुषा को बाहर िनकलने क अनुमित दे
दी।
धनुषा अब जलयान के बाहर आ गई। धनुषा ने बाहर आकर अपने
दोन हाथ को आगे क ओर कर दया।
धनुषा के ऐसा करते ही उसके हाथ से गोल जलतरं ग िनकल और
उस थान म चारो ओर फै ल ग । वह तरं गे िब कु ल सोनार िस टम क तरह
से काम कर रह थ , िजनके मा यम से वै ािनक समु के अंदर ि थत बड़ी
संरचना को ढू ंढते ह।
कु छ ही देर म धनुषा को अपनी जलतरं ग से िस ल ा होने लगे।
धनुषा ने उन तरं ग को महसूस कया और एक दशा क ओर हाथ उठाते ए
कहा- “इस दशा म कु छ दूरी पर एक आकृ ित है। वह आकृ ित कसी बड़े से
मगरम छ क है? परं तु जाने य मुझे ऐसा लग रहा है क उस मगरम छ
पर कोई जलमानव सवार है। इसके िसवा इस थान के आसपास न ही
मछिलय के िसवा कु छ भी नह है?”
धनुषा क बात सुनकर अब सभी अपने जलयान से बाहर आ गये और
धीरे -धीरे उस दशा क ओर तैरकर बढ़ने लगे, िजधर धनुषा ने अभी-अभी
इशारा कया था।
परं तु कसी ने भी यह यान नह दया क उनके बाहर िनकलते ही,
जलयान के ार के बंद होने के पहले, एक सू म सी आकृ ित उनके जलयान म
वेश कर गई थी।
वह सभी तो आगे क ओर जा रहे थे।
कु छ आगे बढ़ने के बाद भी कसी को कु छ नजर नह आया?
यह देख अब धनुषा के हाथ म एक जलधनुष दखाई देने लगा। यह
धनुष पूरी तरह से जल से िन मत था, परं तु इसका रं ग ह का सुनहरा होने के
कारण यह सागर म भी प दखाई दे रहा था।
धनुषा ने मन ही मन बुदबुदाते ए कोई मं पढ़ा? िजससे जलधनुष
पर एक िविच सा तीर नजर आने लगा। तीर क नोक का कनारा कसी
च क भांित गोल घूम रहा था।
धनुषा ने यंचा को ख चकर उस तीर को छोड़ दया। धनुषा के ऐसा
करते ही वह तीर तेजी से आगे बढ़ा और एक िनि त थान पर प ंचकर
गायब हो गया।
तीर के गायब होते ही उस थान का पानी ती गित से, कसी भंवर
के समान नाचने लगा? अब उस भंवर म फं सा एक जलमानव प दखाई
देने लगा, जो क पहले शायद अदृ य था।
हरे रं ग का वह जलमानव एक बड़े से मगरम छ पर सवार था। यह
जलमानव और कोई नह बि क नोफोआ था। पोसाईडन का सेवक नोफोआ,
िजसे पोसाईडन ‘सागर क आँख’ के नाम से भी पुकारता था।
नोफोआ, धनुषा के जलच म फं सा नाच रहा था। चूं क इन चारो म
से कोई भी नोफोआ को नह जानता था? इसिलये सभी आ य से नोफोआ
को देखने लगे।
तभी वा िण ने धनुषा से कहा- “ठहरो धनुषा, मुझे यह अंत र जीव
नह लग रहा। यह तो कोई जलीय जीव है? कु छ ण के िलये अपने जलच
को रोक दो।”
वा िण क बात सुन धनुषा ने जलच को रोक दया।
जलच के कते ही नोफोआ जलच से बाहर आ गया। अब नोफोआ
गु से से सभी क ओर देखने लगा।
“कौन हो तुम? या तुम अंत र जीव हो?” कौ तुभ ने नोफोआ क
ओर देखते ए हंदी भाषा म पूछा।
चूं क नोफोआ को हंदी भाषा नह आती थी, इसिलये वह शांत रहा।
परं तु वह अभी भी सभी को घूर रहा था।
“लगता है इसे यह भाषा नह आती। हम वयं इसके बोलने का
इं तजार करना होगा।” शारं गा ने कहा।
“मुझे अं ेजी भाषा आती है।” नोफोआ ने उनके हावभाव को पढ़ते ए
अं ेजी भाषा म कहा।
नोफोआ को अं ेजी भाषा का योग करते देख सभी ने राहत क साँस
ली।
“तुम कौन हो? और यहाँ या कर रहे हो?” धनुषा ने नोफोआ क ओर
देखते ए अं ेजी भाषा म पूछा।
“म तो इस समुंदर का ही िनवासी ँ, परं तु तुम लोग कौन हो? मने
इससे पहले इस थान पर तुम लोग को कभी नह देखा?” नोफोआ ने धनुषा
से उ टा सवाल करते ए पूछ िलया।
“हम ांड र क ह और यहाँ पर उपि थत एक देवशि क सुर ा
के िलये आये ह।” िपनाक ने कहा- “अब तुम बताओ क तुम कौन हो? और
यहाँ पर या कर रहे हो?”
“मेरा नाम नोफोआ है, म ीक देवता पोसाइडन का गु चर ँ और म
यहाँ से पूरे सागर पर नजर रखने का काम करता ँ।” नोफोआ ने मगरम छ
से उतरते ए कहा।
नोफोआ क बात सुन वा िण बोल उठी- “ ीक देवता और हमारे
म य एक संिध ई है। इसिलये नोफोआ को कु छ मत कहना? अगर हमने इसे
कसी भी कार का नुकसान प ंचाया? तो ीक देवता हमारे िव हो
जायगे? और फर हमारे िलये यह यु और भी मुि कल हो जायेगा।”
वा िण क बात सुन सभी ने धीरे से अपना िसर िहला दया।
“हम तु हारे या ीक देवता के दु मन नह ह नोफोआ। इसिलये
तु ह हमारे इस काय म सहयोग करना होगा।” धनुषा ने नोफोआ को सारी
बात बताते ए कहा।
“अ छा, तो आप लोग यहाँ साग रका पु तक को लेने के िलये आये
ह।” नोफोआ ने कहा- “मने साग रका पु तक को कलाट को खोलते ए देखा
है, परं तु हमम से कोई भी उस पु तक को छू नह सकता। .... कलाट कसी
कार क मछली क वचा वाले द ताने का योग करने के बाद ही
साग रका को छू ता है?”
“उसक तुम चंता मत करो नोफोआ, तुम बस हम साग रका तक ले
चलो। हमारे पास पहले से ही कलाट के दये ए द ताने ह।” कौ तुभ ने
कहा।
कौ तुभ क बात सुन नोफोआ िन ंत हो गया। अब वह अपने
मगरम छ क ओर चल दया। परं तु इससे पहले क नोफोआ अपने
मगरम छ पर सवार हो पाता क तभी अचानक से नोफोआ के मगरम छ म
कु छ अजीब से प रवतन होने लगे।
अब नोफोआ का मगरम छ थोड़ा हंसक सा दखाई देने लगा।
यह देख सभी आ य से भर उठे , परं तु सबसे अिधक आ य तो वयं
नोफोआ को आ था, य क इससे पहले कभी नोफोआ ने अपने मगरम छ
को इस भाव से नह देखा था।
“यह अचानक से तु हारे मगरम छ को या हो गया?” िपनाक ने
नोफोआ क ओर देखा। ठीक उसी समय मगरम छ ने नोफोआ पर हमला कर
दया।
अचानक से ए इस आ मण को नोफोआ समझ नह पाया। परं तु जब
तक वह समझता नोफोआ पर मगरम छ ने अपनी िवशाल कं टीली पूंछ का
हार कर दया।
मगरम छ को नोफोआ पर हार करते देख िपनाक को ोध आ गया।
िपनाक ने आगे बढ़कर मगरम छ को उसक पूंछ से पकड़ा और उसे नचाकर
एक िवशाल प थर पर मार दया।
िपनाक को लगा क उसके शि दशन से मगरम छ काफ देर तक
नह उठने वाला, परं तु ऐसा आ नह , अगले ही पल मगरम छ फर
पलटकर वापस आ गया।
इस बार मगरम छ ने अपने जबड़े का हार िपनाक पर कर दया।
िपनाक ने वयं को मगरम छ के जबड़े से बचाने क ब त कोिशश क , परं तु
इस कोिशश के बाद भी िपनाक का बांया कं धा घायल हो गया।
िपनाक को घायल होते देख शारं गा के हाथ म एक बड़ा सा फरसा
नजर आने लगा। शारं गा ने इस फरसे से एक ही वार म मगरम छ क पूंछ
को काट दया।
पर यह या तुरंत ही मगरम छ क दूसरी पूंछ िनकल आई?
अब सभी को कसी अंजान खतरे का अहसास हो गया? तभी
मगरम छ ने अपने जबड़े को खोला और शारं गा क ओर देखते ए अपने मुंह
को जोर झटका दया।
मगरम छ के इस झटके से उसके जबड़े म लगे असं य दांत वयं ही
टू टकर शारं गा क ओर झपटे । शारं गा को मगरम छ से ऐसी कोई आशा नह
थी? इसिलये वह मगरम छ के दांत क चपेट म आ गई।
मगरम छ के दांत शारं गा के शरीर म कई थान पर धँस गये। उधर
मगरम छ के मुंह म अब नये दांत दखाई देने लगे थे।
“यह कस कार क शि का योग कर रहा है यह मगरम छ?”
कौ तुभ ने आ य से नोफोआ क ओर देखते ए पूछा।
“मुझे भी नह पता। मेरी जानकारी म मेरे मगरम छ के पास ऐसी
कोई शि नह है?” नोफोआ ने कहा- “मुझे लग रहा है क यह इस समय
कसी और के वश म है? इसिलये म आप लोग से आ ह करता ँ क आप
लोग इसे मा रयेगा नह ।”
नोफोआ के श द सुनकर सभी अब मगरम छ से दूर हो गये और सतक
िनगाह से मगरम छ को देखने लगे।
तब तक शारं गा ने अपने शरीर पर धंसे मगरम छ के दांत को िनकाल
िलया।
तभी सभी का जलयान तेजी से तैरते ए आया और उसने नोफोआ को
एक तेज ट र मार दी। नोफोआ अचानक से ई इस अंजान ट र से बुरी
तरह से घायल हो गया।
अब सबका यान अपने जलयान क ओर गया, िजसे क हजार न ही
काँच क मछिलयां चला रह थ । हर मछली का आकार 1 से 2 िमलीमीटर
से यादा का नह था।
“अब यह या बला है? यह हमारे जलयान म इतनी सारी न ही
मछिलयां कहाँ से आ ग ?” कौ तुभ ने जलयान के अंदर झांकते ए कहा-
“और ... इन मछिलय ने जलयान को चलाना कै से सीख िलया?
इधर सभी का यान जलयान क ओर था, उधर घायल पड़े नोफोआ
क आँख म कु छ िविच से बदलाव होने लगे। अब नोफोआ भी मगरम छ
क भांित ही हंसक दखने लगा।
नोफोआ ने एक जोर क छलांग लगाई और फरसा पकड़े शारं गा से
आकर िलपट गया। शारं गा नोफोआ के इस िविच वहार को समझ नह
पाई।
नोफोआ ने अपने शाक जैसे तेज दांत शारं गा के हाथ म चुभा दये,
िजसके कारण शारं गा के हाथ म पकड़ा फरसा वह पानी म िगर गया।
नोफोआ के इस वार से शारं गा के मुंह से चीख िनकल गई।
शारं गा को चीखते देख िपनाक के हाथ म सुनहरे रं ग का नागपाश
दखाई देने लगा। यह नागपाश न हे-न हे सुनहरे सप को िमलाकर बना था।
िपनाक ने िबना देर कये नागपाश को नोफोआ के गले म फं सा दया।
नागपाश के कारण नोफोआ को अपना गला घुटता आ सा महसूस
आ।
अब नोफोआ ने शारं गा को छोड़ दया। शारं गा को छोड़ते ही नागपाश
ने नोफोआ के पूरे शरीर को जकड़ िलया
तभी सभी को वा िण का वर सुनाई दया- “सावधान दो त , मुझे
लग रहा है क कोई अंत र का जीव अदृ य प म उस थान पर उपि थत
है? जो लगातार समु के जीव-जंतु को िनयंि त कर तु हारी मुसीबत
बढ़ाता जा रहा है। .... और अगर म यान दूँ, तो ऐसी शि िसफ और िसफ
‘वूडान’ म हो सकती है य क अभी कु छ दन पहले ही जब वूडान से मेरा
यु आ था, तो उसने समु क शाक मछिलय को आसमान म उड़ाकर हम
पर हमला करवाया था। इसिलये अपनी शि य का योग करो और वूडान
को ज द से ज द समा करो।”
तभी मगरम छ और जलयान एक साथ सभी पर झपटे , यह देख
कौ तुभ ने अपनी जलशि का योग करके , मगरम छ और जलयान के
म य, एक पानी से बनी भूल-भुलैया का िनमाण कर दया।
इस भूल-भुलैया क दीवार व छत ठोस जल से िन मत थ । अब
जलयान व मगरम छ उस भूल-भुलैया से िनकलने का रा ता ढू ंढने म लग
गये।
पर अभी सबने ठीक तरह से राहत क साँस भी नह ली थी क तभी
पानी को चीरता आ एक अ भुत ि शूल आया और उसने नोफोआ के गले म
फं सा नागपाश एक पल म काट दया।
नागपाश काटने के बाद वह ि शूल िव ुत क गित से वापस
पोसाइडन के मजबूत हाथ म जा प ंचा। अब पोसाइडन गु से भरी नजर से
सभी को घूर रहा था।
तभी सबको वा िण क डरी-डरी सी आवाज सुनाई दी- “सावधान
दो त , यह ीक देवता पोसाइडन ह, इनसे यु करने क कोिशश भी मत
करना, वरना कु छ ही देर म यह पूरा सागर ीक देवता से भर जायेगा। ....
इ ह नोफोआ के बारे म कु छ नह पता, इसिलये कसी भी तरह से इ ह
समझाने क कोिशश करो क नोफोआ कसी और के वश म है?”
वा िण क बात सुन सभी एकदम सतक नजर आने लगे।
उधर नोफोआ नागपाश से छू टते ही, भागकर पोसाइडन क ओर चला
गया और इससे पहले क कोई पोसाइडन को कु छ समझा पाता? क तभी
नोफोआ रोने वाले अंदाज म पोसाइडन से बोल उठा- “ऐ समु के देवता, यह
सभी अपने आपको ांड र क कहते ह और यह आपक शि य से बनाये
इस पूरे अटलां टस ीप पर अिधकार करने आए ह। जब मने इ ह रोका, तो
इ ह ने मुझ पर व मेरे मगरम छ पर आ मण कर दया।”
नोफोआ के श द सुनते ही एक पल म ही सभी को खतरे का अहसास
हो गया। उधर पोसाइडन क आँख म अब भयानक ोध के भाव आ गये।
तभी धनुषा ने आगे बढ़कर पोसाइडन को समझाने क कोिशश क ,
परं तु इससे पहले क धनुषा पोसाइडन को कु छ समझा पाती क तभी
नोफोआ ने आगे बढ़कर धनुषा के चेहरे पर अपने पंजे का वार कर दया।
नोफोआ के इस हार से धनुषा के चेहरे से र क बूंद छलछला आ ।
यह देख जब तक वा िण कसी को खतरे से आगाह कर पाती? क तभी
शारं गा ने अपने फरसे से नोफोआ क गदन उड़ा दी।
फरसा नोफोआ का िसर काटकर वापस से शारं गा के हाथ म चला
गया।
बस इससे यादा पोसाइडन अपने ोध को िनयंि त नह कर पाया
और उसने अपने ि शूल का भयानक वार शारं गा पर कर दया।
पोसाइडन का अ भुत ि शूल पानी म गजना करता आ शारं गा क
ओर बढ़ रहा था। एक ऐसे देवयु क शु आत हो गई थी, िजसे कोई भी
लड़ना नह चाहता था? पर अब या हो सकता था? एक अदृ य अंत र
मानव वूडान ने िबना लड़े ही इस यु को जीतने का िवचार जो बना िलया
था।
अब तो महा लय िनि त थी।
◆ ◆ ◆
चैपटर-8
िचचेन-इ ज़ा

ितिल मा 7.66

सु िपरािमडयश,के सामने
शैफाली व तौफ क इस समय िचचेन-इ ज़ा के
खड़े थे। सुयश के हाथ म इस समय भी काँच का
ि म था, िजसम अब िसफ एक सुराख नजर आ रहा था।
“अब हम इस ‘एल-कै ि टलो’ िपरािमड के अंदर, इस ि म क
आिखरी चाबी को ढू ंढने का काम ही बाक बचा है।” शैफाली ने िपरािमड क
ओर देखते ए कहा।
िपरािमड को देखते ही एक पल के िलये ही सही, पर शैफाली को
अपनी माँ माया क याद आ गई।
कु छ देर ककर शैफाली ने फर से बोलना शु कर दया- “यह
िपरािमड सूय क प र मा का अ ययन करता है। ..... वैसे तो यह िपरािमड
अ य िपरािमड क भांित ही है, परं तु इसके शीष पर एक वगाकार कमरा
जैसा बना था, िजसे न शाला कहते ह। वहाँ तक जाने के िलये 365
सी ढ़यां ह, जो क वष के 365 दन का ितिनिध व करती ह। हम इस
िपरािमड के ऊपर ि थत उस न शाला म जाना होगा। ज र वह पर
कै र ने इस ि म क चाबी िछपाकर रखी होगी? परं तु न शाला तक
प ंचने के िलये हम इन 365 सी ढ़य को चढ़ना होगा। िपछली बार जब हम
यहाँ पर आये थे, तो इन सी ढ़य पर एक अदृ य दीवार थी, िजसने हम
न शाला तक जाने नह दया था। .... देखते ह इस बार या होता है?”
यह कहकर शैफाली ने धीरे से अपना दािहना पैर पहली सीढ़ी पर
रखा। परं तु शैफाली को इस बार कोई दीवार महसूस नह ई? अतः शैफाली
ऊपर देखते ए बाक क सी ढ़यां चढ़ने लगी।
सुयश व तौफ क भी शैफाली के पीछे -पीछे चल पड़े।
अभी यह लोग बामुि कल 100 सी ढ़यां ही चढ़ पाये थे क तभी सभी
को न शाला क ओर से एक छोटा सा प थर उछलकर आता दखाई दया।
प थर क आवाज सुन सभी क िनगाह ऊपर क ओर चली ग । पर
ऊपर क सी ढ़य पर इ ह कु छ नजर नह आया?
वह छोटा प थर जब तौफ क के बगल से िनकला, तो तौफ क ने उस
प थर को अपने हाथ से पकड़ िलया।
वह प थर िपरािमड का ही एक टू टा आ टु कड़ा लग रहा था। तभी 3-
4 और छोटे प थर लुढ़कते ए सभी क ओर आते दखाई दये।
यह देख शैफाली ने सबको एक थान पर कने का इशारा कया और
ऊपर क ओर देखने लगी। तभी शैफाली को एक लगभग 50 फु ट ऊंचा, काले
रं ग का िब छू ऊपर से आता आ दखाई दया।
िब छू क नजर शायद अभी इन लोग पर नह पड़ी थी, इसिलये वह
अपनी सामा य चाल से सी ढ़यां उतरता आ नीचे क ओर आ रहा था।
इतने खतरनाक िब छू को देखकर एक पल के िलये सभी क साँस क
सी ग । सभी अपनी जगह पर ि थर हो गये। िब छू अभी इन लोग से काफ
दूरी पर दखाई दे रहा था। उसी िब छू के चलने क वजह से, िपरािमड के
प थर टू टकर नीचे क ओर आ रहे थे।
“मर गये।” सुयश ने फु सफु साते ए कहा- “लगता है कै र ने इस ार
म मुसीबत भी रखी ह। परं तु अब इस थान पर िबना कसी शि के इस
िब छू को कै से हराया जा सकता है?”
“उस िब छू को हराने क ज रत ही नह है। हम िसफ उसके रा ते से
हटना है।” शैफाली ने धीमी आवाज म कहा- “ य क अभी तक उस िब छू ने
हम नह देखा है और वह इ ह सी ढ़य के ारा नीचे क ओर जा रहा है।”
तब तक ऊपर से ब त से प थर आकर सभी के पास िबखर गये थे।
भला यही था क वह प थर यादा बड़े नह थे, इसिलये कु छ एक प थर लग
जाने के बाद भी कसी को कोई नुकसान नह आ था?
ले कन इससे पहले क सभी अपने कह िछपने का इं तजाम कर पाते?
क तभी िब छू क नजर सी ढ़य पर बैठे सभी लोग पर पड़ गई। अब वह
थोड़ा तेजी से सी ढ़यां उतरने लगा।
“मारे गये!” सुयश ने परे शान होते ए कहा- “लगता है क उस िब छू
क नजर हम पर पड़ गई है? इसीिलये अब वह तेजी से नीचे उतर रहा है
और अब तो िछपने का भी समय नह बचा है। ..... इसिलये दो त अब इस
िब छू से लड़ने के िलये तैयार हो जाओ।”
यह कहते ए सुयश ने ि म को वह एक कनारे रखा और अपने
आस-पास िबखरे प थर के टु कड़ को उठाकर अपने हाथ म पकड़ िलया।
सुयश को प थर उठाते देख शैफाली व तौफ क ने भी, अपने हाथ म
प थर को पकड़ िलया। चूं क उस थान पर काफ ढलान थी, इसिलये िब छू
के नीचे उतरने क गित थोड़ी धीमी थी। फर भी वह िब छू लगातार पास
आता जा रहा था।
सभी को पता था क इन छोटे प थर से िब छू का कु छ नह िबगड़ने
वाला? पर कहते ह ना क डू बते को ितनके का सहारा ही काफ होता है। बस
इसी मुहावरे को च रताथ करते ए, सभी ने अपने हाथ म प थर पकड़ रखे
थे।
परं तु तौफ क क तेज नजर पास आ रहे िब छू क बीच क दोनो
आँख पर थ ।
जैसे ही िब छू तौफ क के िनशाने क प रिध म आया, तौफ क ने अपने
दोन हाथ म पकड़े प थर को एक-एक कर िब छू क बीच क दोन आँख
पर मार दया।
िनशाना िब कु ल सही था। तौफ क के िनशाने क वजह से िब छू क
बीच क दोन आँख फू ट ग , िजसके कारण तेजी से नीचे उतर रहा िब छू
बुरी तरह से लड़खड़ा गया। अब िब छू क आँख से नीले रं ग का खून
िनकलकर उस थान पर फै लने लगा।
“वेरी गुड तौफ क अंकल।” शैफाली ने खुशी से िच लाते ए कहा-
“पर ये यान रिखयेगा क इस िब छू क 10 आँख अभी और भी बची ह।
इसिलये हो सके तो इस िब छू क एक ओर क बाक क 5 आँख को भी
फोड़ दीिजये। इससे कम से कम यह एक ओर नह देख पायेगा।”
परं तु शैफाली के श द सुनने के पहले ही तौफ क और ब त से प थर
अपने हाथ म उठा चुका था, शायद वह भी िब छु क आँख से भली भांित
प रिचत था।
तब तक िब छू फर से संभल चुका था और सुयश के पास प ंच गया
था।
िब छू को अपने पास प ंचता देख, सुयश ने भी अपने हाथ म पकड़़े
प थर को िब छू पर मारना शु कर दया, पर सुयश के मारे गये प थर का
िब छू पर कोई असर नह आ? उ टा उसने अपना एक पैर घुमाकर सुयश
के शरीर पर मार दया।
िब छू के हार से सुयश उसी थान पर िगर गया। अब िब छू
खतरनाक भाव से सुयश क ओर बढ़ने लगा। इस समय िब छू का पूरा यान
सुयश क ओर था। इसिलये शैफाली ने इसी मौके का फायदा उठाकर उस
िवशाल िब छू को एक जोरदार ट र मार दी।
चूं क इस समय शैफाली ने मै ा क कोर शि का योग कया था,
इसिलये शैफाली के इस हार से िब छू एक बार फर लड़खड़ा गया।
इस बार िब छू के लड़खड़ाने से तौफ क के दमाग म एक ब त ही
खूबसूरत लान आया। अब उसने अपने ल य को बदल िलया और िब छू के
चलने क गितिविध को यान से देखते ए, उसके पैर के नीचे गोल प थर
को फकना शु कर दया।
कहने को तो िब छू के 8 पैर थे, परं तु तौफ क के फके प थर से, एक
बार फर से िब छू लड़खड़ा गया। इस लड़खड़ाहट म िब छू अलग-अलग
थान पर अपने पैर को फं साकर अपने शरीर को िनयंि त करने क कोिशश
कर रहा था, पर तौफ क लगातार िब छू के पैर को िनशाना बनाकर प थर
को फक रहा था।
तौफ क क इस असीम कोिशश का ब त ही सकारा मक फल िमला।
िब छू का शरीर अब बुरी तरह से अिनयंि त होकर सी ढ़य से नीचे क ओर
िगरने लगा। िब छू लगातार अपने पैर से कु छ पकड़ने क कोिशश कर रहा
था? परं तु इस बार पीठ के बल िगर जाने क वजह से, वह अपने पैर से कह
पकड़ नह बना पा रहा था?
“कै टे न, अब हम ज दी से ऊपर बने कमरे क ओर भागना पड़ेगा,
य क कु छ देर के अंदर ही, वह िब छू पुनः अपने शरीर को िनयंि त करके
ऊपर क ओर आ जायेगा और तब शायद हम उसके हार से वयं को बचा
ना सक?” तौफ क ने सुयश को सहारा देकर उठाते ए कहा।
तौफ क क बात अ रशः स य थी, इसिलये सुयश ने लपककर ि म
को उठाया और शैफाली व तौफ क के साथ ज दी-ज दी सी ढ़यां चढ़कर
िपरािमड के ऊपर बने कमरे क ओर भागने लगा।
बाक बची 265 सी ढ़य को चढ़ने म सभी को अब यादा समय नह
लगा। कु छ ही देर म सभी िपरािमड के ऊपर बने कमरे के दरवाजे तक प ंच
गये।
ऊपर बने कमरे का दरवाजा कसी ब त ही भारी धातु का बना था?
जो क इस समय खुला आ था। सभी िबना देर कये ए उस दरवाजे के
अंदर वेश कर गये।
दरवाजे के अंदर वेश करने वाल म तौफ क आिखरी था, इसिलये
उसने अंदर प ंचते ही झट से दरवाजे को ख चकर बंद कया और पीछे से
उस पर बेलन चढ़ा दया।
अब जाकर सबने राहत क साँस ली, य क कु छ भी हो, पर अब वह
िब छू इस दरवाजे को तोड़कर अंदर नह आ सकता था।
अब सबक नजर कमरे के अंदर क ओर ग ।
पर कमरे के अंदर नजर पड़ते ही सबक आँख खुली क खुली रह ग ।
अंदर से वह कमरा कसी िवशाल जंगल क भांित लग रहा था? चारो
ओर घने पेड़ क मोटी-मोटी शाखाएं झूल रही थ । कोई भी बाहर से देखकर
कमरे के अंदर का हाल नह बता सकता था?
उस पूरे जंगल को देखकर ये साफ महसूस हो रहा था, क कसी भी
इं सान ने यहाँ पर वष से कदम नह रखा है? य क जंगल के बीच कसी
भी दशा म जाने का, कोई रा ता दखाई नह दे रहा था? िसफ पेड़ क
लता के बीच कु छ क ड़े-मकोड़े चलते ए दखाई दे रहे थे?
“ कसी भी कार से यह पता नह चल रहा, क इस थान को कै र
ने बनाया है?” तौफ क ने कहा- “इसे देखकर साफ लग रहा है क सैकड़
वष से इस थान पर कोई आया भी नह ह? .... और ऐसे भयानक जंगल म
हम इस ि म क छोटी सी चाबी कै से ढू ंढ पायगे?”
“ढू ंढना तो पड़ेगा ... कै से भी उस चाबी को ढू ंढना ही पड़ेगा। नह तो
हम हमेशा-हमेशा के िलये इस ितिल मा म कै द हो जायगे।” शैफाली ने कहा।
शैफाली के श द का ऐसा असर आ क सुयश व तौफ क तुरंत तन
कर खड़े हो गये। शायद शैफाली के श द क भयावहता को दोन ने यादा
ही गंभीरता से ले िलया था।
सुयश ने अंदाजे से ही एक दशा क ओर बढ़ना शु कर दया।
शैफाली व तौफ क तो बस सुयश के कदम का अनुसरण करते ए उसके
पीछे -पीछे चल रहे थे।
कु छ आगे जाने पर सुयश को एक गोलाकार आकार म कु छ ऊंचे पेड़
का झु ड दखाई दया। उस झु ड को देखकर साफ महसूस हो रहा था क
अव य ही उन पेड़ के झु ड के बीच कु छ है?
यह देखकर सुयश उसी दशा क ओर चल दया।
कु छ ही देर म सुयश उन पेड़ के पास प ंच गया। सुयश को उन पेड़
के म य एक िवशाल कुं ए के समान ग ा दखाई दया। िजसके चारो ओर
प थर क जगत बनी ई थी।
कुं ए के म य ऊपर क ओर एक लोहे के मोटे से पाइप पर एक िघरनी
बनी थी, िजससे एक मोटे र से के सहारे एक काफ बड़ी बा टी जैसी संरचना
लटक ई थी। यह बा टी देखने म कसी ‘हॉट एयर बैलून’ का ‘गो डोला’
जैसी लग रही थी। गो डोला से बंधी र सी काफ लंबी थी। र सी का दूसरा
िसरा एक िवशाल पेड़ के चारो ओर िलपटा था।
(गो डोलाः हॉट एयर बैलून के नीचे लटक बा के ट को कहते ह,
िजसम बैठकर या ी सफर करते ह)
“अरे इस जंगल म तो कुं आ भी है।” तौफ क ने कुं ए को देखते ए कहा-
“अव य ही कै र ने इस कुं ए म कोई रह य िछपाया होगा?”
“नह तौफ क अंकल, यह कोई कुं आ नह है, बि क िपरािमड के अंदर
वेश करने का एक ार है।” शैफाली ने कहा- “शायद आपने देखा नह क
उस र सी का दूसरा िसरा उस पेड़ से िलपटा आ है। अब अगर हम उस पेड़
क संरचना को यान से देख, तो हम पता चल जायेगा क वह पेड़ ाकृ ितक
नह बि क कृ ि म है य क वह पेड़ िसफ एक थान पर रखा है, िजससे यह
साफ पता चलता है क यह गो डोला एक कार क िल ट है, जो हमारे नीचे
जाने के िलये है। शायद नीचे कु छ ऐसा है, जो कै र हम दखाना चाहता
है?”
“पर ... पर या यह गो डोला हम सभी का भार एक साथ उठा
पायेगा?” सुयश ने अपनी चंता जताते ए कहा।
“र सी क मोटाई को देखकर मुझे साफ महसूस हो रहा है क हम
तीन के तो या यह गो डोला 10 इं सान का भी वजन उठा सकती है?”
शैफाली ने आ मिव ास भरे लहजे म कहा।
“तो फर देर करने का या फायदा? चलो हम इसका योग करके
नीचे िपरािमड क ओर चलते ह।” तौफ क ने कहा और पास पड़ी एक लंबी
सी छड़ी के सहारे , हवा म लटके गो डोला को अपनी ओर ख च िलया।
तौफ क ने कुं ए के ऊपर लगी िघरनी को ख चकर, गो डोला को कुं ए के
कनारे क ओर ले आया। इसके बाद उसने शैफाली को गो डोला म बैठने का
इशारा कया।
तौफ क का इशारा पाकर शैफाली ने एक बार गो डोला क र सी को
ख चकर देखा और फर संतु होने के बाद वह गो डोला के अंदर बैठ गई।
शैफाली को गो डोला म बैठते देख सुयश ने अपने हाथ म पकड़े ि म
को शैफाली को पकड़ाया व वयं उस गो डोला म सवार हो गया। सबसे अंत
म तौफ क भी गो डोला के अंदर बैठ गया।
जैसे ही सभी गो डोला म बैठे, गो डोला से बंधी र सी वाला पेड़
वतः ही चारो ओर घूमने लगा। जैसे-जैसे पेड़ म बंधी र सी खुलती जा रही
थी, गो डोला सभी को लेकर नीचे क ओर जाने लगा।
“जो भी कहो, पर तकनीक का ब त अ छा इ तेमाल कया है कै र
ने।” सुयश ने कै र क शंसा करते ए कहा।
“कै र क नह ये मेरे कै पर क बनाई ई तकनीक है।” शैफाली ने
थोड़ा जलने के अंदाज म कहा, िजसे सुनकर सुयश व तौफ क के चेहरे पर एक
मु कान सी आ गई।
उधर गो डोला लगातार नीचे क ओर जा रहा था। उस कुं ए क
दीवार पर जगह-जगह पर चमकते ए हीरे िचपके ए थे, िजसके काश से
वह पूरा का पूरा कुं आ काशमान दख रहा था।
लगभग 10 िमनट के बाद आिखरकार गो डोला एक गोल लेटफाम
पर जाकर उतरा।
गो डोला के सतह से टकराते ही तीन गो डोला से उतर गये। उनके
उतरते ही गो डोला वापस ऊपर क ओर चला गया।
“अरे ! यह गो डोला तो वापस ऊपर क ओर चला गया। अब हम
वापस कै से जायगे?” तौफ क ने ऊपर जाते गो डोला क ओर देखते ए कहा।
“इतना परे शान होने क आव यकता नह है तौफ क अंकल। यहाँ से
बाहर िनकलने का माग हम अव य ही िमल जायेगा। अभी तो बस हम इस
ि म क चाबी को ढू ंढना है बस।” शैफाली ने कहा और उस लेटफाम से
उतरकर अपने चारो ओर देखने लगी।
वह पूरा थान एक गोलाकार सुरंग के प म बना था, िजसके एक
ओर एक रा ता जाता आ दखाई दे रहा था।
सुयश के इशारे पर सभी उस सुरंग के अंदर क ओर चल दये। कु छ
टे ढ़े-मेढ़े रा ते के बाद वह सुरंग एक िवशालकाय िपरािमड के अंदर िनकली।
वह िपरािमड अंदर से इतना िवशाल था, क एक नजर म वह पूरे
शहर क भांित तीत हो रहा था। िपरािमड क दीवार पर भी चमक ले
प थर लगे थे, जो अपनी चमक से पूरे िपरािमड को काशमान बनाये थे।
वह पूरा िपरािमड अंदर से एक िवशाल यूिजयम क भांित तीत हो
रहा था, जहां पर िजधर नजर जा रही थी, उधर िसफ और िसफ ए टीक
व तुंए ही दखाई दे रह थ । कसी थान पर कु छ सोने के कवच वाले यो ा
खड़े थे? तो कसी थान पर क मती धातु से िन मत हजार पा िबखरे ए
थे। एक थान पर तो सोने क अश फयां और हीरे -जवाहरात का ढेर लगा
आ था।
“अरे बाप रे ! यहाँ तो एक िवशाल खजाना भरा आ है। इसक क मत
तो आज के समय म अरबो-खरब डॉलर से भी यादा होगी।” तौफ क उस
खजाने को आँख फाड़े देख रहा था।
“लगता है कै र ने इस िपरािमड का यह भाग, िम के िपरािमड क
तरह से बनाया है, य क िचचेन इ जा म खजाने जैसा कु छ नह था? वैसे
भी इस खजाने से हम कोई लेना-देना नह है। यहाँ तो बस हम चाबी को
ढू ंढना है। इसिलये सभी लोग कृ पया खजाने को देखकर िमत ना ह और
अपना यान चाबी ढू ंढने क ओर लगाय। .... और हां .... समय बचाने के
िलये हम सभी को चाबी को अलग-अलग दशा म ढू ंढना होगा।” शैफाली ने
तौफ क को खजाने के मायाजाल से वापस लाते ए कहा।
शैफाली क बात को समझ तीन अलग-अलग दशा म चल दये।
अब सभी उन क मती व तु के म य ि म क चाबी को ढू ंढने लगे।
कु छ देर इधर-उधर देखने के बाद तौफ क को, एक सुनहरे धातु से
बना छोटा सा ैगन दखाई दया, जो क अलग से एक प थर पर रखा आ
था।
सभी व तु से अलग होने क वजह से उस धातु के ैगन ने, तौफ क
का यान अपनी ओर ख च िलया।
तौफ क ने उस छोटे से ैगन को उठाकर अपने हाथ म ले िलया और
वा तुकला के इस सुंदर से नमूने को देखने लगा। ैगन ने अपने पंख फै ला रखे
थे और ैगन का मुंह खुला आ था।
तभी तौफ क क िनगाह उस ैगन के नीचे बने, एक छोटे से लीवर पर
गई। उस लीवर को देखने के बाद उ सुकतावश तौफ क ने उस लीवर का
खटका दबा दया।
तौफ क के ऐसा करते ही ैगन के मुंह से एक आग क तेज लपट
िनकली और सामने रखी एक मू त पर पड़ी। ैगन क आग से एक सेके ड म
वह मू त पूरी तरह से िपघल गई।
“अरे ! यह तो पुराने समय का कोई लाइटर दख रहा है? िजसे शायद
आग जलाने के िलये योग म लाया जाता था।” तौफ क ने उस ैगन सरीखे
लाइटर को बंद करते ए कहा- “पर जो भी हो, इसक अि म कमाल क
शि है, एक सेके ड म ही इसने एक मू त को िपघला दया।”
इससे पहले क तौफ क और कु छ कहता क तभी उसे शैफाली क
आवाज सुनाई दी- “सभी लोग इधर आ जाइये, मुझे यहाँ पर कु छ िमला है?”
शैफाली क आवाज सुनकर तौफ क, शैफाली क ओर चल दया, पर
ैगन पी लाइटर अभी भी उसके हाथ म था।
कु छ ही देर म तौफ क उस थान पर प ंच गया, िजधर शैफाली खड़ी
थी। तब तक सुयश भी भागकर उस थान पर प ंच गया था।
शैफाली इस समय एक वगाकार सफे द प थर के पास खड़ी थी। उस
प थर पर एक चाबी का गहरा िनशान अं कत था।
“आप लोग चाबी का यह गहरा िनशान देख रहे ह।” शैफाली ने
सबका यान प थर क ओर करते ए कहा- “इसे देखकर यह साफ पता लग
रहा है क पहले इस प थर पर एक चाबी लगी ई थी, परं तु हमसे पहले ही
कसी ने उस चाबी को यहाँ से िनकाल िलया है?”
“पर ... पर हमसे पहले यहाँ पर कौन आया?” तौफ क ने आ य से
शैफाली को देखते ए कहा- “कह .... कह जेिनथ, ऐले स या टी म से
कोई पहले ही तो इस थान पर नह प ंच गया? और वह चाबी िनकालकर
चला भी गया हो।”
“ऐसा संभव नह है तौफ क।” सुयश ने उस चाबी के थान पर अपना
हाथ फे रते ए कहा- “जब तक हमने माचू-िप चू को पार नह कया, तब
तक तो इस थान को कसी अदृ य दीवार ने ढक रखा था? इसिलये हमसे
पहले तो कसी का यहाँ पर आ पाना संभव ही नह है? .... मुझे लगता है क
इस थान पर कोई और भी रह य िछपा आ है? हम उस रह य को भी
ढू ंढना होगा।”
यह कहकर सुयश उस थान के चारो ओर देखने लगा।
तभी सुयश क नजर एक ी क ितमा पर पड़ी। उस ी ने अपने
चेहरे पर एक बड़े से सुनहरे बाज का मुखौटा पहन रखा था। बाज के मुखौटे
से बड़े से पंख िनकले थे, िजसने उस ी क आँख को छोड़कर, चेहरे के
बाक िह स को ढक रखा था। उस ी क ितमा के नीचे िम क ाचीन
भाषा म ‘रानी कला ा’ िलखा था, िजसे तौफ क ने पढ़कर सभी को बता
दया।
“इसका मतलब यह िपरािमड इसी रानी कला ा का है?” सुयश ने
उस मू त को देखते ए कहा।
सुयश को कला ा क मू त थोड़ी अजीब सी लगी। इसिलये वह उस
मू त क ओर बढ़ गया। पर जैसे ही सुयश कला ा क मू त के पास प ंचा,
अचानक से उसे लगा क उस मू त क आँख सजीव ह।
सुयश ने पलटकर पीछे हटने क कोिशश क , परं तु वह उन आँख के
मायाजाल से बच नह सका। अब सुयश अपने शरीर का कोई भी अंग नह
िहला पा रहा था?
िनयित ने एक बार पुनः मायाजाल का प लेकर सुयश को अपने
िशकं जे म जकड़ िलया था।
◆ ◆ ◆
जल लय

06.02.02, बुध वार, अटलां टस ीप, अटलां टक महासागर


पोसाइडन का अ भुत ि शूल पानी म गजना करता आ शारं गा क
ओर बढ़ रहा था। एक ऐसे देवयु क शु आत हो गई थी, िजसे कोई भी
लड़ना नह चाहता था? पर अब या हो सकता था? ि शूल तो पोसाइडन के
हाथ से छू ट चुका था।
इस समय अंत र का जीव वूडान अदृ य प म वहाँ पर उपि थत
था और मन ही मन अपनी जीत का ज भी मना रहा था क तभी वूडान का
मुंह खुला का खुला रह गया, य क पोसाइडन का अजेय ि शूल एक िविच
शि के सामने क गया था और वह शि थी लाव या।
वही लाव या िजसका ज म काला मोती क कण शि से लगभग
20,000 वष पहले आ था। .... वही लाव या जो मेघवण के यार म पागल
थी। .... वही लाव या िजससे पोसाइडन ने काला मोती छीना था।
लाव या इस समय जलपरी के भेष म थी, और वह शारं गा व
पोसाइडन के ि शूल के म य खड़ी थी। लाव या के चेहरे पर रौ ता भरी
नजर आ रही थी। लाव या क आँख म मानो र के समान लाल डोरे तैर
रहे थे। वह तो बस पोसाइडन को ही घूरे जा रही थी।
इस समय लाव या के शरीर से, एक तेज नीला काश फु टत हो
रहा था और पोसाइडन का ि शूल उसे नीले काश से छू कर हवा म ि थर हो
गया था।
पोसाइडन ने अपने हाथ को झटका देकर ि शूल को वापस बुलाने क
ब त कोिशश क , परं तु ि शूल अपने थान से टस से मस नह आ, वह तो
बस अब अपने थान पर थरथरा रहा था।
अपने सामने एक ऐसी महाशि को देख सभी हैरान थे, िजसके
सामने इस समय ीक देवता पोसाइडन भी बेबस नजर आ रहा था।
तभी धनुषा ने धीरे से अपने मि त क के ारा वा िण से पूछा- “यह
शि कौन है वा िण? या यह हमारी ओर है? और इसे तुमने भेजा है।”
“नह धनुषा, म वयं इस शि से प रिचत नह ँ, य क गु माता
क दी ई देवयु पु तक म ऐसी कसी शि का िववरण नह दया था?
परं तु म िजतना देख पा रही ँ, उससे तो यह साफ पता चल रहा है क यह
शि पोसाइडन क कोई पुरानी दु मन है? जो क उसे ढू ंढते ए यहाँ तक आ
प ंची है। .... पर जो भी हो, इस शि ने िब कु ल सही समय पर इस यु म
वेश कया है। इसिलये तुम लोग कु छ देर तक ि थित को भांपने क कोिशश
करो, जब तक म गु माता माया से इस शि के बारे म पता करती ँ।”
इतना कहकर वा िण क आवाज शांत हो गई।
तभी लाव या ने गरजते ए वर म पोसाइडन को ललकारा-
“पोसाइडन, लगता है क तुम आज यहाँ पर भी उसी कार कसी क
शि यां छीनने के िलये आये हो? िजस कार हजार वष पहले तुमने मेरा
काला मोती छीना था। उस समय मुझे अपनी शि य के बारे म अिधक पता
नह था। परं तु ब त अ छा आ क तुम आज मुझे यहाँ िमल गये। आज म
तु ह अपनी असली शि य से प रिचत कराऊंगी। ...... तु ह यहाँ देखकर
जाने य मुझे ऐसा लग रहा है? क तुमने ही मुझे मेरे मेघवण से दूर हजार
वष से यहाँ बंद कर रखा था। आज तुम लाव या के महा लय का य
दशन करोगे।”
इतना कहकर लाव या ने एक गु से से भरी चीख अपने मुंह से
िनकाली- “आऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
शायद यह लाव या के ारा वयं मृ यु को आहवान था य क
लाव या क इस चीख से ऐसी तरं ग िनकल क सभी के अपने कान पर हाथ
रखने के बाद, भी सबके कान से खून आ गया।
यहाँ तक क इस चीख ने समु म ि थत हजार छोटी मछिलय को
काल के गाल म भेज दया। लाव या क चीख सुन एक बार तो वूडान व
पोसाइडन भी िसहर उठे ।
लाव या क चीख से पोसाइडन का गु सा एक पल म हवा हो गया।
अब वह तेजी से अपने बचाव के बारे म सोचने लगा।
तभी लाव या ने पोसाइडन को एक जल से बने गोले म बंद कर दया,
जो क देखने म एक पारदशक बुलबुले के समान था। वयं को बुलबुले म
वेश करता देख पोसाइडन ने भी अपनी जलशि का योग कर दया।
पोसाइडन क जलशि ने बुलबुले को कठोर बना दया। बुलबुले के
कठोर बनते ही पोसाइडन ने अपने हाथ का एक ती हार उस बुलबुले पर
कर दया। बुलबुला एक पल म टू टकर िबखर गया।
अब पोसाइडन ने अपना हाथ लहर म चलाया। पोसाइडन के ऐसा
करते ही समु क लहर ने लयंकारी प ले िलया और लाव या क ओर
झपट । परं तु लाव या के शरीर के पास प ंचने से पहले ही वह लहर
लाव या क नीली ऊजा को छू कर शांत हो ग ।
“तुम इन सागर क लहर का योग मेरे िव करना चाहते हो ना।
.... तो फर चलो म तु ह दखाती ँ क यह सागर क लहर कसका कहना
मानती ह?”
इतना कहकर लाव या ने अपने हाथ को ऊपर क ओर उठा िलया।
लाव या के ऐसा करते ही समु का पूरा पानी तली को छोड़कर 500 फु ट
ऊपर तक हवा म उठ गया।
अब पूरा अटलां टस ीप िबना पानी के नजर आने लगा। दूर-दूर तक
कह भी एक बूंद पानी नजर नह आ रहा था?
“अब दखाओ अपनी जलशि पोसाइडन। जरा म भी तो देखूं क
िबना जल के तु हारे पास कतनी शि यां ह।” लाव या का एक-एक श द
िबजली क तरह कड़क रहा था।
उधर समु क सभी मछिलयां उस थान से पानी समा हो जाने के
कारण जमीन पर िगरकर तड़पने लग , परं तु लाव या को अपने ोध के
कारण कु छ भी नजर नह आ रहा था। लाव या तो लगातार खतरनाक और
खतरनाक होती जा रही थी।
सभी मछिलय को इस कार तड़पते देख कौ तुभ से रहा ना गया,
उसने अपने मुंह को गोल करके एक तेज सीटी बजाई। को तुभ के ऐसा करते
ही उसके मुंह से हजार न हे-न हे बुलबुले िनकलने लगे।
यह सभी बुलबुले तड़प रही मछिलय के गलफड़ के पास जाकर
िचपक गये। इ ह देखकर ऐसा महसूस हो रहा था क मानो यह मछिलय के
ऑ सीजन मा क ह । इस बुलबुले म थोड़ी सी नमी के साथ जल क कु छ बूंद
भी थ , िजसके कारण सभी मछिलय और जलीय जंतु ने अब छटपटाना
बंद कर दया।
तभी पोसाइडन ने समु क तली के अंदर रह रहे, असं य िवशाल
जीव का आहवान कर िलया, िजसम ‘साइ लो स’ सरीखे िवशाल दै य भी
थे।
यह सभी जीव जल के साथ धरा पर रहने म भी अ य त थे। इसिलये
इन सभी को िबना पानी के कसी भी कार क परे शानी नह हो रही थी?
इस समय सभी ांड र क भी अजीब सी मुि कल म थे, वह इस
यु म दोन म से कसी का भी साथ नह दे सकते थे?
.........................
दो त यहाँ का यु तो अपनी चरम सीमा पर प ंचने जा रहा है, तो
आइये चलते ह पृ वी पर रह रहे मनु य क ओर। जरा देख तो उन मनु य
पर इस यु का या असर हो रहा है?
नासा के वै िनक क िनगाह इस समय लगातार पृ वी के मानिच
क ओर थी, जहां पर 7 अलग-अलग थान से ती िस ल ा हो रहे थे।
“वकटे श सर, आपको या लगता है क िजस यु क चेतावनी
वा िण नामक उस लड़क ने दी थी, या वह समय से पहले ही शु हो चुका
है?” के िवन ने वकटे श क ओर देखते ए पूछा- “ य क आप देख रहे ह क
इस समय पृ वी के अलग-अलग भाग से जो िस ल हम ा हो रहे ह, वह
सभी िस ल शि शाली ‘इ ासोिनक तरं ग ’ के ह और ऐसे िस ल तभी
ा होते ह, जब क पृ वी क कोर म कोई िवशाल भूगभ य हलचल होती
है?”
“मुझे भी ऐसा लग रहा है क जो अंत र के जीव लैक होल क ओर
से आ रहे ह, उनके कु छ साथी शायद पहले से ही पृ वी पर उपि थत थे और
ांड र क से उनका यु शु हो चुका है। परं तु वा िण के कहे अनुसार
हम इस यु म कसी भी कार का ह त ेप नह करना है?” वकटे श ने अभी
भी पृ वी के मानिच पर नजर गड़ाते ए कहा।
तभी वेनेजुएला से आ रहे िस ल धीरे -धीरे कम होते दखाई दये, जो
क वहाँ के यु क समाि का संकेत थे।
“लगता है वेनेजुएला का यु समा हो चुका है। वहाँ से आ रहे
िस ल अब धीमे हो गये ह।” के िवन ने कहा।
तभी लूकस भागता आ उस क म दािखल आ।
“सर-सर! अचानक से अटलां टक महासागर क तली से हम एक ब त
ही शि शाली िस ल ा ए ह। अगर हम इन िस ल क तुलना रए टर
के ल के पैमाने से कर, तो इसक ती ता हम 16.2 ा ई है। जो क एक
कार के महा लय के िस ल ह। ऐसा लग रहा है क जैसे पृ वी क कोर म
कोई ब त ही ती ता का धमाका आ है और अगर ऐसा आ तो .... तो
यक न मािनये यह पृ वी के इितहास क सबसे शि शाली भूगभ य हलचल
है। .... और इस हलचल से एक िवशाल सुनामी उ प होने वाली है, िजससे
शायद पृ वी के सम त ीप जलम हो जाय और पृ वी से भूिम ही समा
हो जाये। ..... इतने िवशाल सुनामी से पूरी मानव जाित को खतरा हो गया
है।”
लूकस के श द सुन वकटे श के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लग । अब
वकटे श क िनगाह अपनी न पर ि थत पृ वी के मानिच क ओर ग ।
अब उस मानिच म भी िस ल क थ काफ शि शाली दखाई देने लगी
थी।
यह देख वकटे श तुरंत अपनी सीट से उठा और उसने अपने कमरे म
ि थत एक बटन को दबा दया। यह बटन एक खतरे का अलाम था, िजसे
ब त ही िवशेष प रि थित म ही दबाने क अनुमित थी।
“तुरंत को टल ए रया के सभी शहर को खाली कराने का एलट जारी
करवा दो, राहत व बचाव का काय करने वाली सभी एजे संयो को संदेश
भेजकर एलट पर डाल दो और मेरी बात अभी के अभी ेसीडट सर से कराई
जाये। उनसे कह दीिजये क सुपर इमजसी है। इसी के साथ लो रडा,
बरमूडा, यू ो रको, हवाई व अ य कै रे िबयन देश को सुनामी का संदेश
तुरंत भेज दया जाये। और तुम के िवन ... तुरंत कसी भी कार से वा िण से
स पक करने क कोिशश करो। मुझे जानना है क हम पर कतना बड़ा खतरा
आने वाला है?
तभी सैम भी भागता आ क म दािखल आ।
“सर, उ र अटलां टक महासागर के म य ि थत ‘काबो वद’ ीप जैसे
अनेक छोटे -बड़े ीप ती सुनामी के कारण पूरा का पूरा समु म जलम हो
गये ह। इसी के साथ आसमान छू ती लहर अब सहारा के रे िग तान क ओर
बढ़ रही ह। अगर यह लहर ऐसे ही बढ़ती रह तो पूरा मुम कन है क इस
बार सहारा का रे िग तान भी बाढ़ को देख लेगा। ....उधर कै रे िबयन ीप से
भी हम मैसेज िमला है क समु म 50 फु ट से भी यादा ऊंची लहर उठती
ई पाई गई ह। अगर ऐसा रहा तो 2 से 3 घंटे म सुनामी क यह जल लय
हमारे देश के पूव तट तक भी प ंच जायेगी और इतने कम समय म हम
यूयाक जैसे बड़े शहर को खाली नह करा सकते।”
वकटे श सिहत कसी भी वै ािनक को समझ म नह आ रहा था? क
वह इस मुसीबत का सामना कस कार कर? परं तु वहाँ उपि थत सभी
ि अब जान लगाकर दूसरे देश को संदेश भेजने म जुट गये।
सभी के मि त क म एक ही बात चल रही थी, क शायद वह संदेश के
मा यम से ही कु छ लाख लोग क जान बचाने म कामयाब हो जाय।
दो त आपने देख िलया क मनु य क जान कस कार से संकट म
फं सी ई है? तो आइये फर से चलते ह यु थल के समीप और देखते ह क
हमारे देवयो ा, हमारे ांड र क इस संकट का सामना कस कार से कर
रहे ह?
...........................
लाव या ोध से जमीन के अंदर से िनकल रहे दै य व िवशाल जीव
को देख रही थी, जो क पोसाइडन के बुलावे पर वहाँ आ प ंचे थे और
खतरनाक अंदाज म लाव या क ओर बढ़ रहे थे।
“अ छा, तो तुम अपनी जान बचाने के िलये अब इन क ड़ का सहारा
लेना चाहते हो, तो फर म भी तु ह अपनी सभी शि यां एक साथ दखाती
ँ, फर भले ही सभी शि य के योग के कारण मेरी जान ही य ना चली
जाये?”
इतना कहकर लाव या ने ोध से सम त शि य का आहवान करना
शु कर दया- “अि , जल, वायु, पृ वी, आकाश, विन व काश .... म एक
साथ तुम सभी का आहवान करती ँ। अपनी सम त शि य के साथ कट
हो और दखा दो इस पोसाइडन को क कण क शि आिखर होती या
है?”
लाव या के इतना कहते ही पूरे सागर क तली जोर से िथरकने लगी
और उसम से पृ वी क कोर का लावा ऊपर क ओर आने लगा। कई थान से
धरती भी चटक गई, िजसम पोसाइडन के कई िवशाल जीव समा गये। तभी
हवा का चंड बहाव भी कसी तूफान का प लेकर उस थान पर लय ढाने
लगा।
अब कु छ थान पर िबजली भी कड़कने लगी थी।
लाव या क स शि य को देख पोसाइडन कांप उठा। उसे लाव या
क इन शि य के बारे म िब कु ल भी नह पता था।
लाव या के ोध का इतना बुरा असर शु आ क पृ वी अपनी धुरी
से हटना शु हो गई।
तभी वातावरण म एक जोरदार काश उ प आ और वहाँ पर
माया कट हो गई। माया ने कट होते ही सबसे पहले एक सुर ा गोला
तैयार कया और पोसाइडन सिहत सभी ांड र क को उस सुर ा गोले
म सुरि त कर दया।
माया को वहाँ देख सभी आ यच कत रह गये, य क पोसाइडन
सिहत सभी माया को अ छी तरह से जानते थे।
“यह कै सी शि है गु माता?” धनुषा ने घबराते ए माया से पूछा-
“इतनी बड़ी महाशि क तो हम क पना भी नह कर सकते थे। इसके पास
तो स त व को भी िनयंि त करने क शि है।”
“यह महाशि कण से बनी है, िजसके कारण इसके पास स त व
को िनयंि त करने क भी शि यां ह, परं तु मुझे यह नह समझ आ रहा क
लाव या इतना उ ेिजत य है, जो यह स पूण सृि को समा करने क
कोिशश कर रही है? अव य ही इसम कु छ ना कु छ रह य िछपा है? और
इससे पहले क लाव या स पूण पृ वी के जीवन को न करे , मुझ उस कारण
को ढू ंढकर लाव या को रोकना ही होगा।”
इतना कहकर माया वह समु क तली म बैठ गई और यान क मु ा
म जाकर, योग के मा यम से लाव या के भूतकाल व वतमान को देखने लगी।
उधर माया के सुर ा गोले के बाहर ि थित लगातार बुरी और बुरी
होती जा रही थी, इधर सुर ा गोले के अंदर माया, लाव या का अतीत
तलाश रही थी।
आिखरकार 5 िमनट के बाद माया ने अपनी आँख खोल दी। माया के
आँख खोलते ही सभी उ सुकता से माया क ओर देखने लगे, परं तु माया ने
एक बार घूरकर पोसाइडन क ओर देखा और फर सुर ा गोले के अंदर से
लाव या के मि त क से स पक थािपत करने लगी।
“लाव या, मेरा नाम माया है। मने अपनी योगशि से तु हारे बारे म
सबकु छ जान िलया है। अगर तुम यह मृ यु का भयानक खेल खेलना बंद कर
दो, तो म तु ह बता सकती ँ क तु हारे साथ या आ है? ..... म तु ह
तु हारे मेघवण क मृ यु का रह य भी बता सकती ँ? और यह भी बता
सकती ँ क तु हारे साथ इतना बुरा खेल कसने खेला?”
“कौन हो तुम? और तुम मेरे मि त क म या कर रही हो?” लाव या,
माया क आवाज सुन और भी यादा ोिधत दखने लगी- “ या तुम उस दु
पोसाइडन क सेिवका हो, िजसने मुझसे मेरा मेघवण छीन िलया?”
“नह लाव या, म तु हारी ही तरह देवशि य क धारक ँ। तु हारी
इन स त व क शि य को भी मने ब त समय तक संभाल कर रखा था
और तुम पोसाइडन को गलत समझ रही हो, तु हारे मेघवण को तुमसे छीनने
वाला पोसाइडन नह बि क वयं तुम ही हो।” माया ने रह यो ाटन करते
ए कहा- “याद करो जब मेघवण ने तु ह येक माह क थम राि को
िमलने के िलये कहा था, तो तुमने वापस आकर अपनी कण शि से दूसरे
मेघवण का िनमाण कर दया था। उसके प ात् तुम पूरे माह अपने बनाये
ए मेघवण के साथ रहने लगी और येक माह क थम राि को असली
मेघवण से भी िमलती रही। एक राि जब तुम असली मेघवण से िमलने के
िलये वणा ीप गई थी, तो तु हारे ही समान एक दूसरी नीली जलपरी
लाव या बनकर नकली मेघवण के पास जा प ंची। वह पूरी रात उस मेघवण
के पास रही। उसे नकली मेघवण के पास रहना ब त पसंद आया। अब वह
हर माह क थम राि को तु हारे जाने के बाद, लाव या बनकर नकली
मेघवण के पास रहने लगी। कु छ समय के प ात् उस नीली जलपरी ने तु ह
अपने रा ते से हटाने का िनणय कया और जब तुम एक दन अपनी साधना
म लीन थी, तो उसने तु ह एक समय ार म फं साकर 20,000 वष आगे के
यािन क अभी के समय म भेज दया। इस समय म तुमने मेघवण को ढू ंढने
क ब त कोिशश क , परं तु तु ह ना तो असली मेघवण िमला और ना ही
नकली। तु ह लगा क मेघवण तु ह छोड़कर कह चला गया? इधर तुम चाह
कर भी एक और मेघवण का िनमाण नह कर सक , य क इस समयकाल म
तु हारे पास मेघवण का कोई िच नह था? उस नीली जलपरी ने भा यनगर
को भी तु हारी आँख से अदृ य कर दया था। अंततः तुम एक गुफा म जाकर
रहने लगी। उधर असली मेघवण सूयदेव से व णम नामक मिण ा कर
तु ह ढू ंढने िनकला। परं तु वह भा यनगर म ि थत नीली जलपरी के बनाये
समय ार को पार नह कर पाया और वह मृ यु को ा हो गया। ... अब
तुम ही बताओ लाव या क कसने तु हारे साथ गलत कया है?”
इतना कहकर माया चुप हो गई।
माया क बात समा होते ही लाव या बोल उठी- “झूठ कह रही हो
तुम, मेरे समान दूसरी कोई नीली जलपरी हो ही नह सकती। य क मेरा
िनमाण वयं कण शि से बने काला मोती ने कया है।”
“सही कहा लाव या क तु हारे समान कोई नह हो सकता? य क
तुम नीली जलपरी के समान हो। नीली जलपरी तो तु हारे ज म से पहले
जैसी थी, वह अब भी वैसी ही है। .... समझने क कोिशश करो लाव या
काला मोती ने नीली जलपरी को देखकर ही तु हारा िनमाण कया था,
इसिलये ही वह देखने म िब कु ल तु हारी तरह ही है।”
माया लगभग लाव या को समझाने म सफल होने वाली थी क तभी
लाव या के मि त क म एक और आवाज गूंजी- “माया गलत कह रही है
लाव या। यह तुमसे झूठ बोलकर तु हारे साथ छल करना चाहती है।”
अपने मि त क म आती इस दूसरी आवाज को सुनकर लाव या च क
गई- “अब यह दूसरी आवाज कसक है?”
“म तो तु हारे मन क आवाज ँ लाव या।” दूसरी आवाज पुनः
लाव या के मन म गूंजी- “तु ह मुझ पर संदेह करने क कोई आव यकता
नह है?”
अब लाव या फर से थोड़ा गड़बड़ाती दखाई देने लगी।
“यह लाव या के मि त क म दूसरी आवाज कै से गूंज रही है?
कह ????” अब माया यान से लाव या के शरीर को देखने लगी, तभी उसके
दमाग को एक झटका लगा- “अरे यह लाव या भी तो इस समय, एक कार
के जलीय जीव के प म है, तो फर कह ऐसा तो नह क वह अंत र का
जीव इस समय लाव या के मि त क से भी खेल रहा है?”
यह सोचकर माया ने एक चाल चल दी- “लाव या, अगर तुम स य
और अस य के बारे म जानना चाहती हो, तो तु ह इसी पल अपना जलपरी
का प यागकर क या का प धारण करना होगा।”
माया क बात सुन लाव या के मि त क से आती दूसरी आवाज घबरा
गई- “नह -नह लाव या, तु ह इस कपटी औरत क बात म नह आना है।
यह भी पोसाइडन क ही भांित तु हारी शि यां छीनना चाहती है।”
पर इस बार जाने या सोच लाव या ने अपना शरीर प रव तत कर
िलया।
अब वह एक लड़क के प म दखाई देने लगी। तभी उसके दमाग को
एक झटका लगा- “अरे ! यह म या कर रही ँ? मने एक साथ सभी स त व
का आहवान य कया? इससे तो पूरी पृ वी न हो सकती है। ...... पर
ऐसा मने य कया?”
अब लाव या के यान लगाते ही उसे अदृ य प म िछपा वूडान
दखाई दे गया।
“अ छा, तो यह जीव मेरे मि त क से खेल रहा था।” यह कहकर
लाव या ने वूडान के चारो ओर स त व का घेरा बना दया।
वूडान अपने आपको घेरे म फं सा देखकर उससे िनकलने क कोिशश
करने लगा, परं तु वह लाव या के च ूह से वयं को वतं नह करा
पाया।
उधर स त व से बना घेरा लगातार अपना आकार घटाता जा रहा
था। कु छ ही देर म उस घेरे ने वूडान को कण म िबखेर दया।
अब लाव या का यान वापस से पृ वी के वातावरण क ओर गया-
“मेरे पास समय ब त कम है। अगर मने शी ही इन स त व को नह
रोका, तो पृ वी अपनी क ा से भटककर सूय क ओर चली जायेगी और
उसके बाद पूरी पृ वी का अि त व ही समा हो जायेगा। .... पर अब म कस
कार से इतने कम समय म इन सभी स त व को रोकूं । .... अगर मने एक
साथ सबको रोकने क कोिशश क , तो मेरा शरीर भी कण म िबखर
जायेगा।”
तभी लाव या को वापस माया क आवाज सुनाई दी- “यह परे शानी
तु हारी ही उ प क ई है लाव या। इसिलये अब इसे तु ह ही रोकना
होगा। जरा एक बार सोच कर देखो क िजस कण क उ पि , देव ने
पृ वी के िनमाण के िलये क थी, उसी कण शि के कारण आज सम त
पृ वी का िवनाश हो रहा है। अब देर मत करो लाव या और अपने शरीर को
स त व को स प दो। इससे भले ही तु हारे शरीर का अंत हो जायेगा, परं तु
पृ वी सुरि त हो जायेगी। तुम पृ वी के िवनाश का कारण मत बनो
लाव या। याग दो अपना शरीर .... पृ वी क सुर ा के िलये कर दो अपना
बिलदान .... वैसे भी इस ज म म तो अब तु ह मेघवण ा नह होगा, तो
फर तुम इस जीवन का करोगी या?”
माया क बात ने लाव या पर अब अपना असर डालना शु कर
दया था।
“तुम सही कह रही हो माया। शायद िनयित क भी यही इ छा है।
इसिलये म आज पृ वी क सुर ा के िलये अपने ाण को यागने जा रही ँ,
परं तु मुझे वचन दो माया क भिव य म तुम मेरा मागदशन अव य करोगी
और मुझे मेरे मेघवण से अव य िमलवाओगी।”
“म तु ह वचन देती ँ।” अभी माया ने इतना ही कहा था क तभी
एक भयानक धमाके के साथ लाव या का शरीर टू टकर खंड-खंड हो गया।
कण शि से िन मत एक ऐसी यो ा, जो कु छ भी कर सकती थी?
िनयित के आगे हारकर कण म िवलीन हो गई।
लाव या के कण म िबखरते ही सभी स त व का लयंकारी प
वतः ही पृ वी के वातावरण से गायब हो गया।
अब जाकर कह पोसाइडन ने राहत क साँस ली। अपनी पूरी
जीवनकाल म पोसाइडन ने कभी भी ऐसी ि थित का सामना नह कया था?
तभी समु का पानी पुनः पहले के समान हो गया और पृ वी पर डू ब
चुके ीप से भी जल का तर घटना शु हो गया था।
माया ने पृ वी को एक जल लय से बचा िलया था।
अब सभी साग रका को ा करने के िलये अटलस के मं दर क ओर
चल दये।
◆ ◆ ◆
चैपटर-9
कला ा का मायाजाल

ितिल मा 7.67

सु सुयश केयशशरीर
अब कला ा क आँख म देखने लगा। तभी अचानक से
को एक झटका लगा और वह कला ा क आँख के
मायाजाल म फं स गया।
“ कतनी सुंदर ी है?” सुयश ने मू त को देखते ए कहा- “शायद
इसक सुंदरता क वजह से ही इसे यहाँ क रानी बनाया गया होगा? िजसे
राजा के मरने के बाद इस िपरािमड म जंदा ही दफन कर दया गया होगा।
काश उस समयकाल म म भी होता?”
सुयश के श द को सुन तौफ क व शैफाली को थोड़ा िविच सा लगा।
“यह आप या कह रहे ह कै टे न?” तौफ क ने सुयश के पास आते ए
कहा- “यह कोई असली िपरािमड नह है, बि क कै र का बनाया एक
मायाजाल है। इसक तुलना आप सजीव से य कर रहे ह?”
“चुप कर। तुझे मुझसे यादा समझ है या?” अचानक से सुयश ने
तौफ क को डांटते ए कहा- “यह सच क ी ही है .... और यह मेरी
शलाका से यादा खूबसूरत है। .... इसे देखने के बाद म तो इस थान से
जाना ही नह चाहता।”
अब तौफ क व शैफाली को कसी गड़बड़ का पूण अहसास हो गया?
तभी तौफ क क नजर भी कला ा क आँख से जा टकराई और इसी
के साथ वह भी कला ा क आँख के मायाजाल म फं स गया।
“तुम सही कह रहे हो कै टे न, कला ा सच म ब त खूबसूरत है। परं तु
अब इस पर मेरा अिधकार है, इसिलये तुम चुपचाप इस िपरािमड के बाहर
चले जाओ।” तौफ क ने सुयश को ध ा देते ए कहा।
तौफ क के ध े के भाव से सुयश लड़खड़ाकर कु छ पीछे चला गया,
पर अगले ही पल उसने वयं को संभाला और गु से म तौफ क को घूरते ए
कहा- “लगता है क तुम ऐसे नह मानोगे।”
यह कहकर सुयश ने अपने हाथ म पकड़ा ि म वह रखा और पास म
पड़ी एक एंटीक तलवार को अपने हाथ म उठा िलया।
सुयश को तलवार उठाते देख तौफ क ने भी अपने हाथ म पकड़े ैगन
वाले लाइटर को वह भूिम पर रखा और एक तलवार को अपने हाथ म उठा
िलया। कसी भी पल कु छ भी हो सकता था?
यह देख शैफाली चंता म पड़ गई- “लगता है क इन दोन को
कला ा क मू त ने अपने मायाजाल म फं सा िलया है? अब इससे पहले क
कोई दुघटना घटे मुझे तुरंत कु छ करना होगा?”
यह सोच शैफाली ने भी वहाँ पड़ी एक तलवार को उठाया और तेजी
से कला ा क मू त के पीछे जा प ंची। उधर सुयश ने अपनी तलवार का
एक तेज हार तौफ क पर कर दया था, िजसे तौफ क ने अपनी तलवार पर
रोकने क कोिशश क ।
“टनाकऽऽऽऽऽऽऽ।” सुयश व तौफ क क तलवार के टकराने से,
वातवरण म एक तेज आवाज उभरी। इसी के साथ सुयश के वार से तौफ क
क तलवार 2 टु कड़ म बदल गई। होती भी य ना? सुयश को तलवार से
लड़ने का ब त यादा अनुभव था।
अब सुयश ोिधत भाव से तौफ क क ओर बढने लगा। शैफाली समझ
गई क अब अगर उसने तुरंत कु छ नह कया? तो तौफ क खतरे म पड़ने
वाला है। इसिलये शैफाली ने िबना देर कये अपने हाथ म पकड़ी तलवार के
एक वार से ही कला ा क मू त के िसर को काट दया।
इसी के साथ तौफ क पर वार करता सुयश एक झटके से क गया-
“अरे ! यह म या कर रहा ँ?”
सुयश को अपने कृ य पर हैरानी के साथ शम भी आ रही थी। उसने
झट से अपने हाथ म पकड़ी तलवार को दूर फका और फर आगे बढ़कर
तौफ क के गले से लग गया- “मुझे मा करना दो त। म इस िपरािमड के
मायाजाल म फं सकर अपने ही दो त पर हाथ उठाने जा रहा था।”
तब तक तौफ क को भी उस मायाजाल के ख म होने का अहसास हो
चुका था।
“कोई बात नह कै टे न? म वयं भी कु छ समय के िलये इस मायाजाल
म फं स गया था।” तौफ क ने सुयश से अलग होते ए कहा- “पर अ छा आ
क शैफाली ने समय रहते हम इस मायाजाल से िनकाल िलया। .... इसिलये
मा मांगने क कोई ज रत नह है कै टे न।”
तभी दोन को शैफाली क आवाज सुनाई दी- “अगर आप लोग गले
िमल चुके ह , तो जरा अपने चारो ओर भी देख लीिजये। एक नई मुसीबत
तेजी से हमारी ओर बढ़ रही है।”
शैफाली क आवाज को सुन सुयश व तौफ क ने अपने चारो ओर देखा।
इस समय उनको चारो ओर से अनिगनत िवशाल िब छु ने घेर रखा था।
इतने सारे िवशाल िब छु को देख सभी परे शान हो उठे ।
“एक िब छू से लड़ना ही हमारे िलये मुि कल हो रहा था, फर इतने
सारे िब छु से कै से िनपटगे हम लोग?” सुयश ने चारो ओर देखते ए कहा।
तभी तौफ क क िनगाह सामने जमीन पर पड़े उस ैगन पी लाइटर
पर गई। उसे देखते ही तौफ क के दमाग म एक िवचार आया। इसी के साथ
तौफ क ने झपटकर सामने पड़े ैगन को उठा िलया।
“आप चंता ना कर कै टे न, म अके ले ही इन सभी िब छु को संभाल
लूंगा, आप दोन बस ज दी से ि म क चाबी को ढू ंढने क कोिशश करो।”
तौफ क ने सुयश व शैफाली से थोड़ा आगे आते ए कहा।
सुयश व शैफाली को तौफ क के श द तो समझ म नह आये, पर अब
वह दोन तौफ क के हाथ म पकड़े उस िविच धातु के ैगन को देख रहे थे।
तभी तौफ क ने आगे बढ़कर सामने से आ रहे एक िब छू क ओर,
ैगन को कसी गन क तरह तान दया। जैसे ही वह िब छू थोड़ा और आगे
आया, तौफ क ने ैगन का लीवर दबा दया।
लीवर के दबाते ही ैगन के मुंह से तेज आग क लपट िनकल और
उस आग ने िब छू को सेके ड म जला डाला। िजस जगह पर वह िब छू खड़ा
था, अब उस थान पर िसफ िब छू क राख दखाई दे रही थी।
“अरे वाह! यह तौफ क को इतना िविच हिथयार कहाँ से िमल
गया?” सुयश ने खुश होते ए कहा।
तब तक तौफ क 3-4 और िब छु के शरीर को जला चुका था। अब
बाक बचे िब छू तौफ क के ैगन से थोड़े सावधान दखने लगे थे। अब वह
िब छू आगे बढ़ने के थान पर अपने मुंह से ‘ - ’ क िविच सी विन
िनकालने लगे।
िब छु को अपने थान पर कता देख तौफ क को थोड़ा सा और
जोश आ गया। अब वह वयं आगे बढ़कर िब छु के पास प ंचकर उ ह
जलाने लगा।
िब छु को जलाते ए कई बार तौफ क ने वहाँ रखी, कई धातु क
एंटीक चीज को भी जला दया । ैगन क अि से जली ई धातु क चीज
िपघलकर इधर-उधर बहती दखाई दे रह थ ।
तभी तौफ क ने एक झटके से वहाँ ताबूत म रखी एक ममी को जला
दया। ताबूत के जलते ही वह पूरा थान जोर-जोर से कांपने लगा।
अब तौफ क ने ैगन क आग बंद कर दी और एक थान पर ककर
िपरािमड के िहलने का रह य जानने क कोिशश करने लगा।
“जाने य मुझे लग रहा है क अब यह िपरािमड न होने वाला है?”
शैफाली ने चीखते ए कहा- “लगता है क तौफ क अंकल ने िजस ममी को
न कया, यह उसी का िपरािमड था।”
तभी ऊपर से िपरािमड के कु छ टु कड़े बड़े प थर का प लेकर िगरने
लगे।
अब कसी के पास वहाँ से बचने के िलये कोई उपाय नह बचा था?
इसिलये तौफ क, शैफाली व सुयश वह कु छ बड़े बतन क ओट म िछपकर
खड़े हो गये।
िपरािमड के टू टे ए प थर अब सबके अगल-बगल िगर रहे थे।
तभी एक बड़ा सा िब छू रगता आ शैफाली के पास जा प ंचा। इस
समय शैफाली क नजर दूसरी ओर थी। यह देख िब छू ने अपने एक पैर से
शैफाली का दािहना पैर पकड़ िलया और उसे अपनी ओर ख चने लगा।
अब शैफाली उस बड़े बतन क ओट से बाहर आ गई। शैफाली अपने
हाथ से मु े मारकर िब छू से छू टने का यास कर रही थी, पर वह िब छू
फर भी उसे ख चता आ दूर ले जा रहा था।
तभी तौफ क क नजर शैफाली को ले जा रहे उस िब छू पर पड़ी। यह
देख तौफ क ने अपने हाथ म पकड़े उस ैगन को चीखते ए शैफाली क ओर
उछाल दया- “शैफालीऽऽऽऽऽऽ।”
शैफाली ने एक झटके से तौफ क क ओर देखा और फर हवा म
उछलकर आते उस ैगन पी लाइटर को हवा म ही कै च कर िलया।
अब शैफाली ने ैगन का मुंह उस िब छू क ओर करके उसका लीवर
दबा दया। एक पल म ही िब छू जलकर राख हो गया और इसी के साथ
शैफाली िब छू क पकड़ से छू ट गई।
तभी शैफाली क नजर जगह-जगह िपघली ई मू तय और बतन क
ओर ग । इसी के साथ शैफाली के दमाग म एक िवचार आया।
अब शैफाली भागकर उस वगाकार सफे द प थर के पास प ंच गई।
शैफाली ने अपने आस-पास नजर मारी। तभी शैफाली को पास म पड़ा आ,
सोने का एक फू लदान दखाई दया।
शैफाली ने िबना देर कये ए उस फू लदान को सफे द प थर पर बने
चाबी के िनशान के पास रखा। इसके बाद शैफाली ने ैगन का मुंह फू लदान
क ओर करके उसका लीवर दबा दया।
लीवर के दबते ही ैगन के मुंह से जोर क आग िनकली और इसी के
साथ वह फू लदान िपघल कर सफे द प थर पर फै ल गया।
दूसरी ओर प थर का िगरना जारी था, परं तु कसी कार से सुयश व
तौफ क भागकर शैफाली के पास प ंच गये और अब वो शैफाली क
बुि म ा का परी ण यान से देखने लगे।
शैफाली ने अब एक प थर के छोटे से टु कड़े से, प थर पर फै ले िपघले
ए सोने को साफ कर दया। कु छ बचा आ िपघला सोना अब सफे द प थर
पर बने चाबी वाले छे द म भर गया था।
शैफाली लगातार अपने मुंह से फूं क मारकर िपघले सोने को ठं डा करने
क कोिशश कर रही थी। चाबी के छे द म भरा िपघला सोना तेजी से सूख रहा
था, परं तु उतनी ही तेजी से वह िपरािमड न भी हो रहा था।
उधर सुयश, शैफाली क योजना को भली-भांित समझ गया था,
इसिलये वह भागकर ि म को उठा लाया।
तभी तौफ क क नजर अपने ऊपर क ओर गई। ऊपर िपरािमड का
एक बड़ा सा टु कड़ा टू टकर लटक रहा था। वह टु कड़ा काफ िवशाल था और
वह कसी भी समय उन सभी पर िगर सकता था।
अब शैफाली ने भी उस लटक रहे टु कड़े को देख िलया था। उसे देखते
ही शैफाली समझ गई क अब समय यादा नह बचा है, इसिलये उसने
िबना देर कये, एक नुक ले प थर से सफे द प थर पर बनी सोने क चाबी को
िनकाल िलया।
वैसे तो सोना काफ हद तक सूख गया था, परं तु हाथ से पकड़ने
लायक अव था म वह अब भी नह था। फर भी शैफाली ने िबना जलने क
परवाह कये उस चाबी को उठाकर अपने हाथ म पकड़ िलया और सुयश के
हाथ से ि म को पकड़कर उसम नविन मत सोने क चाबी को फं सा दया।
तभी उन सभी के ऊपर लटक रहा िवशाल प थर तेजी से नीचे क
ओर आने लगा। यही वह पल था, जब क शैफाली ने उस चाबी को ि म म
घुमा दया।
प थर तेजी से नीचे आया। प थर को नीचे आते देख सुयश व तौफ क
क आँख बंद हो ग , पर जब कु छ देर तक भी उन पर कोई प थर नह िगरा,
तो दोन ने अपनी आँख खोल द ।
इस समय उन दोन के सामने शैफाली खड़ी मु कु रा रही थी और
उसने अपने हाथ म ि म को पकड़ रखा था। ि म इस समय कसी कमल
के फू ल क भांित खुला आ था, पर िपरािमड का वहाँ पर कह भी
नामोिनशान नह दख रहा था?
इस समय वह सभी उस सरोवर के पास खड़े थे, जहां से इ ह वह
ि म िमला था।
एक पल म ही सुयश और तौफ क को समझ म आ गया, क प थर के
िगरने के कु छ ण पहले ही शैफाली ने ि म म चाबी को लगा दया था और
यही कारण था क वह लोग अभी तक जंदा थे।
सुयश और तौफ क दोन ने ही शैफाली को गले से लगा िलया। कु छ
ण क भावुकता के बाद, अब सबका यान उस खुले ए ि म पर गया,
िजसके बीचोबीच म एक गोल लाल रं ग का बटन लगा आ था।
शैफाली ने कु छ सोचने के बाद उस लाल रं ग के बटन को दबा दया।
शैफाली के ऐसा करते ही वह ि म शैफाली के हाथ से छू टकर जमीन
पर िगर गया। इसी के साथ उस ि म का आकार भी बड़ा होने लगा। कु छ ही
देर म ि म के तीन भाग कसी खुले ए हीरे क मा नंद चमकने लगे।
तभी एक-एक कर ि म के उन तीन भाग से जेिनथ, टी व
ऐले स बाहर आ गये।
इ ह जीिवत देखकर सुयश, शैफाली व तौफ क ब त खुश हो गये।
उधर ऐले स, टी व जेिनथ को भी तौफ क को जीिवत देखकर काफ
खुशी ई।
खुशी से एक-दूसरे के गले िमलने के बाद सभी ने पहले तौफ क क
कहानी सुनी। अलबट के मरने क खबर सुनकर सभी ब त यादा दुखी हो
गये। पर कु छ देर के बाद जब सभी थोड़ा संयत हो गये, तो सुयश ने ऐले स,
टी व जेिनथ से पूछ ही िलया- “हमारी तो सारी कहानी तुम लोग को
पता चल गई, पर तुमने यह नह बताया क तु हारे साथ या आ था?”
सुयश के श द सुनकर सबसे पहले जेिनथ बोल उठी- “म जब आप
सभी के साथ चीन क दीवार के ऊपर थी, तो हम सभी को े न के इं जन क
आवाज सुनाई दी, िजससे डरकर हम सभी भागे। म आप सभी म सबसे पीछे
थी। आप सबके िनकलने के बाद जैसे ही मने उस दीवार से हटने क कोिशश
क , मुझे िनकलने वाले ार के म य एक अदृ य दीवार सी महसूस ई,
िजसक वजह से म उस थान पर फं सी रह गई। पर जब े न मेरे िब कु ल
समीप प ंची, तो अचानक पता नह कै से? समय अपने थान पर क गया।
ना जाने म कतनी ही देर तक वैसी ही अव था म रही? तभी जाने कै से कु छ
देर पहले समय अपने आप शु हो गया, िजससे म अपने शरीर को जमीन से
िचपका कर लेटी रही। मेरे पास आ रही े न के नीचे काफ जगह थी, इसिलये
जब े न मेरे पास आई, तो वह मुझे िबना कु चले ए चली गई। े न के जाने के
बाद वहाँ मुझे एक हवा म ार बना दखाई दया, िजसम वेश करने के बाद
म आप सभी के सामने यहाँ पर िनकली ँ।”
इतना कहकर जेिनथ चुप हो गई।
जेिनथ के चुप होने के बाद टी ने बोलना शु कर दया- “म जब
कोलोिसयम के अंदर गई, तो मुझे टे िडयम के बीचोबीच जेिनथ खड़ी ई
दखाई दी, जो मेरी तरफ देखकर मु कु रा रही थी। पर जैसे ही मने अपनी
पलक झपकाई, अचानक से ही जेिनथ मेरे पीछे आ गई और उसने मुझपर
एक चाकू से हमला कर दया। पर जैसे ही जेिनथ ने मुझपर चाकू से हमला
कया, मेरे पास का भी समय अपने थान पर क गया। जब समय फर से
शु आ तो मने जेिनथ का वार बचाते ए, अपनी फू त से उस चाकू को
जेिनथ के ही पेट म मार दया। इसी के साथ वह नकली जेिनथ कह गायब
हो गई? तभी मेरे सामने भी एक हवा म एक ार दखाई दया। उसम घुसने
के बाद म आप सभी के सामने िनकली।”
“इसका मतलब क आप दोन क कहानी म समय का था।” शैफाली
ने कहा- “यािन क य द हम इस ि म क चािबय को नह ढू ंढ पाते, तो
आप सभी अपने थान पर समय के जाल म फं से ही रह जाते। .... अ छा
ऐले स भैया, अब आप भी बता दो क आपके साथ या आ था?”
“हम जब पे ा शहर म थे, तो हम एक संदक ू म बंद काँच का खरगोश
िमला। म अभी काँच के खरगोश को अपने हाथ म िलये उसे देख ही रहा था
क तभी पे ा शहर के बाहर से जेिनथ के चीखने क आवाज सुनाई दी।
शैफाली व कै टे न उस आवाज को सुन बाहर क ओर िनकल गये, परं तु म जैसे
ही बाहर क ओर िनकलने चला, मेरे हाथ म पकड़े खरगोश का आकार बढ़ता
आ महसूस आ। मने घबराकर खरगोश को वह जमीन पर िगरा दया।
िगरने के बाद खरगोश ने टी का प धारण कर िलया। म भावावेश म
टी से िलपट गया क तभी मेरे पास भी समय क गया। जब समय फर
से शु आ, तो मुझे अपनी गदन पर कसी चीज के चुभने का अहसास आ।
मने टी को तेजी से ध ा मार दया। ध ा मारने के बाद मुझे पता चला
क वह टी नह बि क कोई वपायर है, जो क गले लगने के बहाने मेरा
खून चूस रही थी। अब वह वपायर मेरी ओर झपटी, यह देख म एक दीवार के
सहारे खड़ा हो गया और जैसे ही वह वपायर मेरे ऊपर झपटी, म अपने थान
से हट गया। मेरे पीछे क दीवार पर एक बड़ी सी उभरी ई क ल िनकली
थी। मेरे सामने से हटते ही वह क ल वपायर के सीने म घुस गई। चूं क पे ा
शहर से िनकलने वाला मु य ार अब बंद हो चुका था, इसिलये अब म
बाहर िनकलने का रा ता ढू ंढने लगा। तभी मुझे एक दीवार म एक ार
दखाई दया, िजसम घुसने के बाद म यहाँ आप लोग के सामने िनकला।”
“अ छा तो तुम मेरे गायब होने के बाद वपायर के साथ ऐश कर रहे
थे।” टी ने ऐले स को िचढ़ाते ए कहा।
“िब कु ल ठीक कहा ... पर सच मानो वपायर और तुमम मुझे कोई
खास फक नह दखाई दया।” ऐले स ने भी मजा लेते ए कहा।
“ या मतलब? या म तु हारा खून चूसती ँ?” टी ने ऐले स का
दांया कान ख चते ए कहा।
इसी के साथ दोन क चुहलबािजयां फर से शु हो गई थ । पर सभी
को इन दोन क शरारत इस समय ब त अ छी लग रह थ ।
उधर सुयश क िनगाह ि म पर थी, जो फर से ि म क भांित बंद
हो गया था, पर उससे िनकली तेज रोशनी म सभी के सामने एक ार दखाई
दे रहा था, िजस पर िलखा था- “ितिल मा- 7.7”
“आिखरकार हम िबना यादा ित के ितिल मा के आिखरी ार तक
आ ही प ंचे।” जेिनथ ने अपने मन ही मन म कहा- “पर ओरस तुम इस समय
कहाँ हो? तुमने मेरी इस ार म कसी कार क कोई मदद य नह क ?
.... मत करो मदद, पर कम से कम एक बार ये तो बोल दो क तुम िब कु ल
ठीक हो। .... मुझे तु हारी ब त चंता हो रही है ओरस .... लीज जवाब दो
ओरस।”
पर इस बार भी ओरस ने जेिनथ क बात का कोई जवाब नह दया?
अंततः जेिनथ बुझे मन से सभी के साथ अगले ार म वेश कर गई।
इस ार म ‘समय’ जेिनथ के साथ नह था, पर उसे िव ास था क
ज दी ही समय उसके साथ होगा। ..... पर समय ..... वह तो िनरं तर अपने
वाह को बांधने क कोिशश कर रहा था, आिखर उसके वाह पर ही पृ वी
का भिव य जो टका था।
◆ ◆ ◆
कण-कण किणका

20,009 वष पहले ........


ह रत वन, िहमा ी पवत ृंख ला, िहमालय
िहमा ी पवत ृंखला के ह रत वन म चारो ओर ह रयाली छाई थी।
पूरा वन िविभ कार के वृ से भरा था।
वैसे तो यह वन वगलोक के रा य अमरावती से सबसे िनकट था,
फर भी इस थान पर देवता नह आते थे। हां यदा-कदा कु छ ऋिष इस
थान पर औषिध बनाने के िलये जड़ी-बू टयां ढू ंढने आते रहते थे।
अगर इस वन को इस पृ वी का सबसे रह यमई और घना वन कहा
जाये, तो अित योि नह होगी य क इस वन म ऐसे ब त से थान व
रह य िछपे ए ह, िजनक मानव तो या देवता को भी ान नह है?
ऐसे िनजन वन म किणका एक गुफा के अंदर िपछले 20 वष से तप या
कर रही थी।
आज से 23 वष पहले किणका को उसके िपता चं वीर ने उसक बहन
मिणका के साथ माता पावती से आशीवाद लेने भेजा था। जब किणका माता
पावती से आशीवाद लेकर चलने लगी, तो अचानक से उसे अपने नील व
का यान आया। किणका ने माता पावती को अपने नील व के बारे म बता
दया और उसने माता पावती से इस नील व का रह य पूछा। तब माता
पावती ने किणका को बताया क उसके व वाला ि एक देवपु ष है,
िजसका नाम नीलाभ है और उसक उ पि वयं महादेव ने क है। किणका,
नीलाभ के नाम को सुन उसक क पना म खो गई और मन ही मन उसे
अपना पित मानने लगी। माता पावती से किणका क यह ि थित देखी नह
गई, अतः माता पावती ने किणका को ह रत वन म जाकर महादेव क
तप या करने के िलये कहा। माता पावती ने बताया क क इसी कार के तप
से उ ह ने महादेव को स कया था और उ ह अपने वर के प म वरण
कया था। माता पावती का आदेश मान किणका वापस से चं ोदय वन म
प ंच गई, परं तु चं ोदय वन म उसे ना तो अपने िपता चं वीर कह दखाई
दये? और ना ही अपनी बहन मिणका। 3 वष तक अपने िपता और बहन को
ढू ंढने के बाद किणका आिखरकार, िहमा ी पवत ृंखला के िशखर पर ि थत
ह रत वन प ंच गई और महादेव क साधना म लीन हो गई। इधर किणका
अपनी साधना म लीन थी, उधर मयासुर ने मिणका को माया के प म
अपनी पु ी वीकार कर, उसका िववाह नीलाभ के साथ कर दया। किणका
इन सभी बात से परे अभी भी अपनी तप या म लीन थी। उसे िव ास था
क महादेव कभी ना कभी तो स ह गे? आज किणका को तप या म लीन
ए 20 वष बीत गये थे और नीलाभ के माया से िववाह को भी 1 वष हो
चुका था।
किणका के आसपास गुफा म ब त से घने वृ उग आये थे। ब त से
पि य ने भी किणका के शरीर पर अपने घ सले बना िलये थे। कु छ िवषैले
जीव भी किणका के आसपास घूम रहे थे।
तभी अचानक से किणका के सामने ि थत महादेव के िशव लंग के
सम , एक ती काश उ प आ। धीरे -धीरे यह काश एक योितपुंज का
प लेते ए महादेव क काया म प रव तत हो गया।
“उठो पु ी किणका, हम तु हारी इस तप या से अ यंत स ए।
मांगो या मांगती हो?” महादेव के द वर उस पिव गुफा म गूंज उठे ।
महादेव के वर को सुनकर किणका ने अपनी आँख खोल द । किणका
को अब अपने सामने महादेव सा ात खड़े दखाई दये।
“किणका का णाम वीकार कर महादेव।” यह कहकर किणका ने
महादेव के स मुख अपने हाथ जोड़ने चाहे, परं तु तभी किणका को अपने
हाथ के ऊपर बने, िचिड़या के घ सले म बैठे िचिड़या के न हे ब े दखाई
दये।
यह देख पहले किणका ने सावधानी से, िचिड़या के घ सले को अपने
हाथ से हटाकर, एक वृ क शाख पर रखा और फर अपने माथे को धरा से
लगाकर महादेव को णाम कया।
“आयु मान भव!” महादेव ने अपने दािहने हाथ को वरमु ा म करते
ए कहा।
महादेव, किणका के जीव के ित इस सेवाभाव को देख अ यंत स
हो गये और किणका के देखते ए उसके वर मांगने क ती ा करने लगे।
“हे महादेव, आप तो सव ाता ह, आप पहले से ही मेरे नील व के
बारे म जानते ह। तो अगर मुझे कु छ देना ही चाहते ह? तो मुझे नीलाभ को
पित के प म देने क कृ पा कर। म अपने बा यकाल से ही नीलाभ से ेम
करती ँ और मन ही मन उ ह अपने पित के प म मान चुक ँ।”
किणका के श द को सुन महादेव के चेहरे पर एक भीनी सी मु कान
िबखर गई। कु छ देर चुप रहने के बाद महादेव बोल उठे - “परं तु नीलाभ का
िववाह तो 1 वष पहले ही हो चुका है किणका और मने वयं उस िववाह म
नीलाभ क पि माया को आशीवाद भी दया था। ऐसे म मुझे नह लगता
क नीलाभ दूसरा िववाह करे गा।”
महादेव के श द को सुनकर किणका पर तो जैसे िबजली सी िगर गई।
“हे महादेव, जब आप सव ाता ह, तो फर आपने मुझे वरदान देने म
इतने वष य लगाये? अब तो यह सम या आपक है, मुझे तो इसके
अित र और कसी वरदान क आव यकता नह है?” किणका ने दुख भरे
श द म कहा।
किणका क बात सुन महादेव कु छ ण सोचने लगे और फर बोले-
“किणका, म तु हारे श द का अिभ ाय समझ गया, इसिलये म तु ह एक
अ भुत शि दान करता ँ। चूं क तु हारा नाम तु हारे माता-िपता ने
किणका रखा है, इसिलये म तु ह शरीर को कण म बदलने क शि दान
करता ँ। अब तुम इस सम त ांड के , कसी भी वातावरण म वयं को
सुरि त रख सकती हो और अपने शरीर को उस वातावरण के अनुसार ढाल
सकती हो। इसके अलावा तुम कण के भाव से कसी भी प ी का प भी
धारण कर सकती हो? .... अब रहा तु हारे मांगे ए वरदान का, तो मेरी
इस शि के भाव से िनयित तु ह वयं तु हारे ल य तक प ंचा देगी। आशा
करता ँ क तुम समय के इस च को भिव य म अव य समझ जाओगी,
परं तु एक बात का यान रखना क यह समयच तु हारी माता भागवी के
ारा िनधा रत कया गया है।”
इतना कहकर महादेव ने अपने ह त को पुनः वरमु ा म किणका क
ओर उठाया और वयं अ त यान हो गये।
किणका, महादेव के कहे अनेक श द को नह समझ पाई? उसे तो
यह भी समझ म नह आया क कण म बदलने क शि से वह भला नीलाभ
को कै से ा करे गी? परं तु इस समय उसने अपने मि त क पर जोर नह
डाला और महादेव के दये वरदान के परी ण म लग गई।
“ या क ं , सबसे पहले कस प ी का प धारण क ं ?”
कु छ देर सोचने के बाद किणका ने अपने शरीर को कण म िवभ कर
दया। कण म िवभ होने के बाद अब किणका को िसफ अपनी आ मा,
अपना अि त व महसूस हो रहा था।
धीरे -धीरे किणका के कण ने न ही िचिड़या नीिलमा का प धारण
कर िलया, जो क नीलांगी के प म उसके दय के सबसे समीप थी।
नीिलमा का प धारण कर किणका ने एक उड़ान भरी और ह रत वन
के बादल क ओर उड़ चली। अब तो वह बादल को बस अपने अंक (गोद) म
समेट लेना चाह रही थी।
◆ ◆ ◆
विनका यु

07.02.02, गु वार, मानसरोवर झील, िहमालय


“अ छा आ क हम उन अंत र के जीव से पहले ही इस थान पर
प ंच गये और हमने ‘ विनका’ को ा कर िलया।” किलका ने बारी-बारी
ि शाल, युगाका व सुवया क ओर देखते ए कहा।
“आप सही कह रही हो किलका, परं तु ऐसा ि शाल के कारण ही
संभव हो सका है य क वह पहले भी एक बार शि लोक जाकर ‘ विनका’
के थान को देख चुका था।” सुवया ने मानसरोवर झील के पानी से िनकलते
ए कहा।
अब चारो झील से िनकलकर बाहर आ गये।
(नोटः दो त ि शाल व किलका को आप सभी ने ‘मायावन’ पु तक के
कु छ दृ य म देखा था, जब किलका ने काश शि व ि शाल ने विन शि
ा करने के बाद िव ु ा से यु लड़ा था।)
“इससे पहले क अब हम पर कोई संकट आये या फर कोई अंत र
का जीव हम तक प ंचे? हम वा िण से स पक करके विनका को देवी माया
को स प देना चािहये।” युगाका ने अपने हाथ म पकड़ी विनका क ओर
देखते ए कहा।
तभी एक अंजान आवाज ने सबका यान अपनी ओर आकृ कया-
“इतनी ज दी भी या है युगाका? अभी तो तुम हमसे िमले भी नह हो।”
अंजान आवाज को सुन सभी ने अपना िसर घुमाकर उस दशा म
देखा, िजस ओर से वह अंजान आवाज आ रही थी।
सभी को कु छ दूरी पर हवा म उड़ रहे 2 अंत र के जीव दखाई दये।
एक के सीने पर बने गोले म ‘A7’ िलखा था और दूसरे के गोले म ‘P4’ िलखा
था।
तभी सभी के कान म वा िण क आवाज सुनाई दी- “िजसके गोले पर
‘A7’ िलखा है, उसका नाम एनम है और उसके पास अनेक माया शरीर
उ प करने क शि यां ह। .... ‘P4’ गोले वाली लड़क है, िजसका नाम
एरोबी है। एरोबी के पास अंत र के ‘ लैक होल’ क शि ह। एरोबी,
ए ोवस पावर के खतरनाक यो ा म से एक है और यह अपने अंत र
यान से तभी िनकलती है, जब क कोई िवशेष यु लड़ना हो? इसिलये सभी
लोग सावधान रह और यु के समय अपनी पूरी शि से लड़।”
वा िण क बात सुनकर सभी पूरी तरह से सतक हो गये।
(नोटः दो त एनम के िपछली पु तक म 2 यु हो चुके ह। एक यु
धरा और मयूर के साथ समु के अंदर आ था और दूसरा यु वेगा, वीनस व
युगाका के साथ अमे रका के एक पाक म आ था, जहां से एनम बचकर भाग
गया था।)
सभी को कु छ ना बोलते देख एनम क आँख, युगाका के हाथ म पकड़ी
विनका पु तक क ओर गई, परं तु एनम ने इस बार ज दबाजी करना उिचत
नह समझा य क िपछले यु म वह युगाका क शि यां देख चुका था।
तभी सुवया को आकाश माग से आता आ िलयो दखाई दया, जो क
आसमान से गोता लगाकर सीधे एनम क ओर आ रहा था। िलयो के पंख क
फड़फड़ाहट से एनम सावधान ना हो जाये, इसिलये िलयो इस समय अपने
पंख िब कु ल भी नह चला रहा था।
िलयो को देखकर युगाका ने एनम को अपनी बात म फं साते ए कहा-
“लगता है क तुम िपछली मुलाकात को भूल गये एनम। उस दन तो तुम
पाक से बचकर भाग गये थे, परं तु आज म तु ह यहाँ से जाने नह दूँगा।”
“उस दन मुझे तु हारी शि य का ान नह था युगाका, परं तु अब म
जान चुका ँ क तु हारे पास वृ शि है और इस बफ से भरे िहमालय पर,
मुझे तो आसपास कह भी कोई वृ नह दखाई दे रहा? मुझे समझ म नह
आया क ऐसे वातावरण म तु ह यहाँ पर लाया कौन है?” एनम ने युगाका
पर कटा करते ए कहा।
एनम ने युगाका क बात का अभी पूरी तरह से जवाब भी नह दया
था क तभी िलयो आसमान से एनम के ऊपर कू द गया।
िलयो ने एनम को बचने का कोई मौका नह दया? परं तु इस समय
पर िलयो भी धोका खा गया, य क एनम अपने थान पर था ही नह । बफ
पर तो उसका माया शरीर खड़ा था, जो क िलयो के कू दते ही अपने थान से
गायब हो गया।
तभी युगाका को अपने पीछे कसी का अहसास आ? ले कन इससे
पहले क युगाका, कु छ भी भांप पाता, युगाका के पीछे कट ए, असली
एनम ने युगाका के हाथ से विनका को छीन िलया।
युगाका अपने ऊपर ए इस अ यािशत हमले से एक पल के िलये
घबरा गया। तब तक एनम वापस अपने थान से गायब हो गया।
यह देख सुवया के हाथ म उसका तीर-धनुष नजर आने लगा।
तभी उस पूरे े म हजार एनम दखाई देने लगे। येक एनम के
हाथ म विनका थी। इसी के साथ वातावरण म एनम के हंसने क आवाज
गूंजने लगी- “हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ मुझे मूख बनाने चले थे और
वयं ही मूख बन गये।”
यह देखकर सुवया ने अपने हाथ म पकड़े धनुष क यंचा ख ची और
उस पर चढ़े तीर को आसमान क ओर चला दया। आसमान म काफ ऊपर
जाने के बाद वह तीर नीचे आने लगा, परं तु हर पल वह ि गुिणत होता जा
रहा था।
कु छ ही देर म वह सभी तीर नीचे दख रहे एनम के सभी शरीर पर
आकर िगरे । तीर के िगरने के कारण एनम के सभी शरीर अपने थान से
गायब हो गये।
यह देख सुवया आ य से भर उठी- “ या इनम से कोई भी असली
एनम नह था? ..... तो फर असली एनम विनका को लेकर कहाँ गया?”
“एनम विनका को लेकर कब का यहाँ से जा चुका है।” एरोबी ने
हंसते ए कहा- “धोका देना तु ह ही थोड़ी आता है।”
तभी युगाका ने एरोबी क ओर देख हंसते ए कहा- “तुमने सही कहा
क धोका देना तु ह भी आता है, य क म जानता ँ क एनम अभी यहाँ से
नह गया है। वह अब भी यह पर है, परं तु अदृ य अव था म है। .... को म
उसे अभी कट करता ँ।”
इतना कहकर युगाका ने किलका क ओर देखा। किलका, युगाका क
आँख के इशारे को समझ गई और उसने अपने हाथ से ती सूय का काश
उस पूरे थान पर फक दया।
सूय के ती काश के कारण, उस थान के बफ क ऊपरी पत थोड़ी
सी िपघल गई। बफ के िपघलते ही बफ क ऊपरी सतह पर पानी क कु छ बूंद
दखाई देने लग और इ ह बूंद के भाव से उस पूरे थान पर पड़े, वृ के
बीज को पानी िमल गया, िज ह युगाका ने झील के अंदर जाने के पहले ही
उस थान पर फक दये थे।
अगले ही पल उस पूरे बफ ले थान पर ऊंचे-ऊंचे वृ िनकलने शु हो
गये।
तभी वाातावरण म एनम के चीखने क आवाज जोर से गूंज उठी।
सबने आवाज क दशा म देखा। आवाज क दशा म एक मोटे से तने वाला
वृ था, िजसने क अपनी घनी शाख म एनम को पकड़ रखा था।
एनम उस वृ क पकड़ से छू टने के िलये, बुरी तरह से छटपटा रहा
था, परं तु ऐसा तीत नह हो रहा था क वह वृ एनम को छोड़ने वाला हो?
एनम को फं सता देख युगाका ने उस वृ को अपने हाथ से एक इशारा
कया। युगाका के उस इशारे से उस वृ क एक नुक ली डाल तेजी से नीचे
आई और एनम के पेट के आर-पार हो गई। एक पल म एनम क आ मा,
परमा मा से िमल गई।
एनम के मरने के बाद उस वृ ने एनम के शरीर को नीचे िगरा दया
और विनका को अपनी घनी शाख के म य िछपा िलया।
एनम को इस कार से मरते देख एरोबी पागल सी दखाई देने लगी।
अब एरोबी ने अपने दािहने हाथ को सामने क ओर करके हवा म
गोल नचाया। एरोबी के ऐसा करते ही, एरोबी के सामने हवा म एक ार बन
गया। वह ार कसी िसनेमा हाल के पद के आकार का दख रहा था। ार के
दूसरी ओर एक अंधेरे क दुिनया दखाई दे रही थी।
कसी को भी समझ म नह आया क एरोबी ने इस ार को य
बनाया है?
तभी अचानक से उस ार से िविच कार के जीव बाहर आने लगे।
उ ह देखकर ऐसा लग रहा था क मानो वह सभी जीव कसी दूसरी दुिनया
के ह ? वह सभी अलग-अलग आकार व कार के थे, परं तु देखने म वह सभी
खतरनाक दख रहे थे।
उनम से अिधकतर जीव हाथी व गडे के िमले जुले प लग रहे थे।
देखने म तो वह जीव गडे के समान थे, परं तु सभी जीव क 2 या 3 सूंड भी
थी, िजससे वह माग म आने वाले प थर और बफ को फकते ए सामने क
ओर भाग रहे थे।
उन जीव को भागते देखकर ऐसा लग रहा था, क मान उ ह हजार
वष के बाद उस ार से मुि िमली हो? वह सभी जीव अपने मुंह से तेज
आवाज भी िनकाल रहे थे।
ार से िनकलकर वह सभी जीव िहमालय पर अलग-अलग दशा
क ओर भाग िलये। उन जीव के कारण चारो ओर एक िविच सी चीख-
पुकार मच गई।
“यह सभी जीव हमारे ह फे रोना के अंधेरे भाग से ह, जो वहाँ पर
हजार वष से बंद थे, आज तुम लोग के कारण इन सभी जीव को वतं
होने का अवसर ा हो गया।” एरोबी ने भागते ए उन जीव क ओर
इशारा करते ए कहा- “अब यह सभी जीव िहमालय से होते ए, तु हारी
पूरी पृ वी पर फै ल जायगे और पृ वी के येक भूभाग को अंधेरे क दुिनया
म प रव तत कर दगे।”
एरोबी क बात सुन किलका ने एक बार भागते ए उन जीव क ओर
देखा और फर तुरंत अपना दािहना पैर धरा पर पटका। किलका के पैर
पटकते ही, उसके दोन पैर से लाल रं ग का एक तेज काश िनकलने लगा
और उस काश के कारण किलका हवा म उड़ने लगी।
किलका चारो ओर हवा म घूम-घूमकर, उन जीव पर काश शि
का हार करने लगी। किलका क काश शि अ यंत शि शाली थी,
य क िजस भी जीव को वह काश शि छू रही थी, वह उसी थान पर
भ म होकर िगर जा रहे थे।
किलका को उन जीव को संभालते देख, एरोबी ने ज दी-ज दी 2 और
ार हवा म बना दये।
अब एरोबी के बनाये एक ार से हवा म उड़ने वाले जीव और दूसरे
ार से पानी के अंदर रहने वाले िविच जीव िनकलने लगे। पानी के जीव
देखने म शाक, मगरम छ व कछु ए क भांित थे, परं तु उन सभी के 4 पैर थे।
अपने पैर के कारण पानी के वह जीव बफ पर चल रहे थे।
पानी के जीव को देख युगाका ने अपने व म िछपे कु छ िवशेष
आकार के बीज को उन जीव क ओर उछाल दया।
युगाका के बीज से वृ मानव क एक सेना िनकली और पानी के
जीव पर टू ट पड़ी। वृ मानव और म य जीव के म य घनघोर यु शु हो
गया।
युगाका ने भी वयं के हाथ को नुक ली लकड़ी के समान कर िलया
और वह भी इस यु म कू द पड़ा। युगाका अपने हाथ को बार-बार अलग-
अलग आकार देने लगा। कभी उसके हाथ कठोर लकड़ी के च के समान बन
जाते, तो कभी वह भाले व तलवार क भांित बन जाते। परं तु युगाका अपने
हाथ के येक आकार से म य जीव का खा मा करने म लग गया।
उधर उड़ने वाले जीव ने कु छ ही देर म िहमालय के आसमान को ढक
िलया था। वह ती आवाज करते येक दशा म िबखर रहे थे।
यह देख सुवया ने भी मोचा संभाल िलया। वह िलयो पर बैठकर
आसमान क ओर उड़ चली। सुवया ने एक बार हवा म उड़ते उन असं य
जीव क ओर देखा और फर अपने तीर-धनुष को हवा म उछाल कर फक
दया।
सुवया के ारा उछाला गया तीर-धनुष तुरंत ही हवा म िवलीन हो
गया।
अब सुवया ने िलयो पर बैठे-बैठे ही जोर क गजना क -
“ संहनखऽऽऽऽऽऽ”
इस िविच श द के उ ारण करते ही सुवया के दोन हाथ संह के
पंज म प रव तत हो गये। उन पंज पर खतरनाक दख रहे नुक ले नाखून
िनकले थे।
अब सुवया ने अपने दोन हाथ को सामने क ओर कर दया। सुवया
के ऐसा करते ही उसके हाथ से नुक ले नाखून िनकलकर हवा म उड़ रहे उन
जीव क ओर लपके ।
आ य क बात यह थी क सुवया के हाथ से नाखून, कसी गोली क
भांित िनकल रहे थे? हाथ से नाखून छू टते ही कसी भी दशा म वतः ही
घूम जा रहे थे? और हवा म उड़ रहे पि य को िनशाना बना रहे थे। ऐसी
ि थित म सुवया को िनशाना लगाने के आव यकता भी महसूस नह हो रही
थी।
चूं क संहनख के िनकलने क गित अ यंत ती थी, इसिलये हवा म
उड़ रहे जीव क सं या तेजी से घटने लगी।
हवा म उड़ते ए कु छ पि य को िलयो भी अपने पंज व मुख से मार
रहा था।
उधर बफ पर अब बस एक ही देवयो ा बचा था और वह था ि शाल,
जो क एरोबी के सामने खड़ा एरोबी पर हमला करने क युि ढू ंढ रहा था।
ि शाल जानता था क य द उसने एरोबी को वार करने का पहला
मौका दे दया, तो वह एरोबी के ही फै लाये जाल को सुलझाने क कोिशश
करता रह जायेगा। इसिलये ि शाल ने अपने ह ठ को गोल करके सीटी
बजाई।
ि शाल क इस कोिशश से कु छ होता दखाई नह दया? परं तु तभी
एरोबी को अपने पीछे से कसी िवशाल वाहन क जोर क आवाज सुनाई दी।
एरोबी इतनी तेज आवाज को सुन घबराकर पीछे क ओर पलट गई, परं तु
एरोबी को अपने पीछे कु छ भी दखाई नह दया?
एरोबी समझ गई क यह अव य ही ि शाल क कोई विन शि थी?
जो क ि शाल ने उसे परे शान करने के िलये चलाई थी।
अब एरोबी वापस पलटी, परं तु पीछे पलटते ही एरोबी च क गई,
य क इस समय ि शाल उसके ठीक पीछे कसी यो ा क भांित खड़ा था।
ि शाल के शरीर पर पहने व इस समय बदले-बदले से दख रहे थे।
अब ि शाल के शरीर पर नारं गी रं ग के व थे, और उसके सीने पर
काले रं ग से बने गोले म ‘ऊँ’ िलखा था। एरोबी का यान पीछे बंटाकर
ि शाल ने अपने देवयो ा के व धारण कर िलये थे।
ि शाल के दोन हाथ क कलाइय पर काले रं ग के 2 कवच लगे थे।
अब ि शाल ने अपने दोन हाथ के कवच को आपस म टकराकर, अपने हाथ
को एरोबी क ओर कर दया।
ि शाल के ऐसा करते ही ि शाल के हाथ से तेज गोल विन तरं ग
िनकल और एरोबी क ओर झपट । एरोबी को ि शाल से कसी ऐसे वार क
आशा नह थी? इसिलये वह विन तरं ग क चपेट म आ गई।
विन तरं ग के पहले वार से ही एरोबी को पूरा ांड नजर आ गया।
एरोबी समझ गई क वह ि शाल क विन तरं ग के वार सहन नह कर
सकती, इसिलये एरोबी ने तुरंत अपने व म हाथ डालकर एक छोटा सा
न बू के आकार का नारं गी गोला िनकाल िलया और िबना एक ण गंवाए
उस नारं गी गोले को बफ क ओर उछाल दया।
वह नारं गी गोला बफ को गलाता आ उसके अंदर समा गया।
ि शाल, एरोबी के इस वार को समझ नह पाया और यान से उस
थान को देखने लगा, जहां पर वह नारं गी गोला बफ म िव आ था।
अब उस थान पर िपघली ई बफ दखाई दे रही थी।
तभी ि शाल को एरोबी के तेज हंसने क आवाज सुनाई दी- “हाऽऽऽऽऽ
हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽ ि शाल उस गोले को कोई साधारण गोला मत
समझना, वह गोला कसी दूसरी आकाशगंगा का सूय है, िजसे मने छोटा
करके अपने व म िछपा रखा था। मेरे व से िनकलते ही, अब यह सूय
ित िमनट अपना आकार 10 गुना करता जायेगा और कु छ समय के बाद वह
तु हारे इस िवशाल िहमालय पवत को पूरी तरह से िपघलाकर रख देगा। इस
िहमपवत के िपघलने से आसपास के सभी े को भयानक बाढ़ और
िहम खलन का सामना करना पड़ेगा। अब बचा सकते हो तो बचा लो अपने
िहमालय को?”
यह कहकर एरोबी उस ओर चली गई, िजधर क एक वृ ने अपनी
शाख म विनका को िछपाया था।
एरोबी क बात सुनने के बाद ि शाल, एरोबी के पीछे नह गया। वह
तेजी से भागकर उस थान पर प ंच गया, जहां क वह नारं गी गोला
िहमालय क बफ म समाया था।
अब उस थान पर एक छोटा सा जलाशय बन गया था और उस
जलाशय के काफ अंदर वह नारं गी गोला दखाई दे रहा था। नारं गी गोले का
आकार इस समय कसी तरबूज के बराबर हो गया था।
ि शाल को समझ म नह आया क वह इस सूय को कस कार से
समा करे ?
यह देख ि शाल ने तुरंत सभी को आवाज लगाते ए कहा- “एरोबी ने
मुझ पर एक छोटे से सूय से हमला कया है, जो क हर पल अपना आकार
बढ़ा रहा है। या हमम से कोई भी इस सूय को रोक सकता है? अगर हां, तो
वह तुरंत मेरे पास आये।”
ि शाल क बात सुनकर युगाका तुरंत उसके पास आ प ंचा।
युगाका ने अपने हाथ को एक िवशाल लकड़ी के पंजे का आकार दया
और अपने हाथ को बफ म घुसाकर सूय को अपने हाथ म पकड़ िलया।
युगाका ने उस सूय को बाहर तो िनकाल िलया, परं तु तब तक उसका
हाथ जलने लगा, िजसका दद युगाका के चेहरे पर साफ नजर आने लगा।
युगाका को समझ ना आया क वह इस सूय का या करे ?
आिखरकार ती दद के कारण युगाका ने सूय को अपने हाथ से छोड़
दया और अपने हाथ क जलन को समा करने के िलये अपने हाथ को बफ
के अंदर घुसा दया।
उधर वह सूय अब िहमालय पर एक नये थान पर जलाशय का
िनमाण करने लगा।
तभी ि शाल को किलका क आवाज सुनाई दी- “म शायद उस सूय
का कु छ कर सकूं ? परं तु मेरे वहाँ आने के िलये, कसी को पहले मेरा काय
संभालना होगा? य क यह तीन ार अभी बंद नह ए ह और उनसे जीव
लगातार िनकलते ही जा रहे ह।”
किलका क बात सुन युगाका बोल उठा- “आप इस ओर आइये, तब
तक म इन सभी ार को बंद करने के बारे म सोचता ँ।”
यह कहकर युगाका ने अपने हाथ को बफ के अंदर से िनकाला और
उस ार क ओर बढ़ गया, िजस ार से जमीन के जीव बाहर िनकल रहे थे।
एरोबी के ारा बनाये गये तीन ार अब भी खुले ए थे और उनम से
िनरं तर नये जीव बाहर िनकलते जा रहे थे।
युगाका ने जमीन के ार के पास प ंचकर, अपने व से ढेर सारे
बीज िनकाले और वह सारे के सारे बीज एक साथ उस ार के समीप डाल
दये।
युगाका के ऐसा करते ही उस ार के पास से सैकड़ लताएं िनकलने
लग । कु छ ही देर म इन सभी लता ने अपनी सि मिलत शि से जल ार
को ढक िलया।
अब जल ार से नये जीव िनकलना बंद हो गये। यह देख युगाका खुशी
से िच लाया- “मने जल ार को बंद कर दया है, अब म इसी तरक ब से
बाक के दोन ार भी बंद करने जा रहा ँ।”
यह कहने के बाद युगाका भागकर बाक के दोन ार के पास प ंच
गया और उसने उन दोन ार को भी लता के बीज डालकर बंद कर
दया।
तीन ार को बंद होते देख, युगाका भी सुवया क भांित अपनी
शि य से बाक के जीव को समा करने म लग गया।
उधर किलका तेजी से उड़ते ए ि शाल के पास जा प ंची।
परं तु तब तक ि शाल के पास वाला सूय, अपने वृहद आकार म आ
गया था। इस समय सूय का आकार कसी फु टबाल के गोल पो ट के समान हो
गया था, िजसके कारण उसके आसपास का थान कसी झील के समान
दखाई देने लगा था।
सूय के इस आकार को देख किलका ने उस पर शीत ह के काश को
डालना शु कर दया। किलका के हाथ से शीत ह के नीली करण िनकलने
लग , परं तु वह नीली करण उस िविच सूय के भाव का कम नह कर पा
रह थ ।
शीत करण कु छ ण के िलये तो सूय को ढक रह थ , परं तु अगले ही
ण सूय पुनः अपने ताप के साथ शीत करण को काटकर बाहर आ जाता।
किलका समझ गई क इस सूय को इस कार से रोका नह जा सकता,
इसिलये किलका ने शीत करण के वाह को बंद कर दया।
अब किलका समझ नह पा रही थी क उस सूय को कस कार से
रोके ? उधर उस िविच सूय के ताप से िहमालय का िपघलना िनरं तर जारी
था।
पृ वी के ारं भ के बाद आज पहली बार िहमालय का अि त व खतरे
म था और इसी िहमख ड म उ प ए 2 यो ा बेबस नजर से, कभी अपना
आकार बढ़ा रहे, उस िविच सूय को तो कभी िहमालय के िपघल रहे
िहमख ड को िनहार रहे थे?
◆ ◆ ◆
चैपटर-10
टल रह य

11 वष पहले ..............
07.02.91, गु वार, सीनोर रा य, अराका ीप

भा बताओ ई!नातुमक तोऊपरप ीनीले


के प म भी प रव तत हो सकते हो, तो
आसमान म उड़ने पर कै सा महसूस
होता है?” 12 वष य वीनस ने अपने भाई लुफासा क ओर देखते
ए कहा।
“अगर इस धरती पर रहने वाले येक जीव क बात कर, तो मुझे
सबसे अिधक खुशी आसमान म उड़ने वाला जीव बनने पर ही ा होती है।”
लुफासा ने वीनस को जलाते ए कहा- “नीले आसमान म दूर-दूर तक कसी
चीज से टकराने का कोई भय नह होता? नीचे देखने पर हर व तु न ही सी
दखाई देती है। कभी-कभी तो सोचना पड़ता है, क नीचे दख रही व तु
या हो सकती है? अलग-अलग रं ग म रं गी असली धरती का आन द तो
आसमान से ही तीत होता है। .... ऊपर उड़ते ए कभी-कभी तो बादल भी
चेहरे को चूम लेते ह, िजसके कारण पूरा चेहरा ओस क बूंदो से भीगा आ
तीत होता है। ...... इं धनुष को पास से देखना, बरसते ए बादल से ऊपर
उड़ना और फर गोता लगाकर अपने शरीर को िभगाना, एक अलग ही सुख
देता है। फर भीगे ए शरीर को शीतल, मंद हवा के झ के म सुखाना .....
तुम या जानो वीनस क आसमान म उड़ने पर कै सा सुख ा होता है?”
इतना बोलने के बाद लुफासा ने वीनस के सामने चुटक बजाते ए,
उसे दवा व से जगाया- “अरे कहाँ खो गई? .... जागो तुम आसमान म नह
यह धरती पर हो।”
लुफासा के चुटक बजाने से वीनस अचानक न द से जागी, परं तु अब
उसक आँख म लालच भरा आ साफ दखाई दे रहा था।
“भाई!” वीनस ने ब त ही यार से लुफासा को स बोिधत करते ए
कहा- “ या तुम कसी ऐसे िवशाल प ी का प धर सकते हो, जो कसी
न ही लड़क को भी आसमान म लेकर उड़ सके ?”
“हां-हां य नह ? म तो एक िवशाल ग ण भी बन सकता ँ .... पर
मुझे यहाँ पर कोई न ही लड़क दखाई नह दे रही? तो फर िवशाल प ी
बनने का या लाभ?” लुफासा ने जानबूझकर अंजान बनते ए कहा।
“ य भाई? म आपको दखाई नह दे रही या?” वीनस ने नाराजगी
दखाते ए कहा।
“पर तू न ही कहाँ है?” लुफासा ने फर से वीनस क खंचाई करते
ए कहा- “तू तो खा-खाकर पूरी भस हो गई है। तु हारा भार तो ग ण भी
नह उठा सकता।”
“ठीक है फर मत घुमाओ मुझे आसमान म।” वीनस ने अब झूठ-मूठ
का ामा करते ए कहा- “जा रही ँ म अपने कछु आ भाई के साथ समु क
सैर करने और हां .... अब म उसे ही अपना भाई क ँगी .... समझे लुफासा।”
“अरे -अरे ! सीधे ‘भाई’ से ‘लुफासा’ पर आ गई। ... अरे नाराज मत
हो, म तो बस यूं ही तु ह िचढ़ाने के िलये ऐसा कह रहा था।” लुफासा ने
अपने हिथयार डालते ए कहा।
“तो फर चलो, ज दी से ग ण बन जाओ। म आसमान क सैर करने
के िलये मरी जा रही ँ।” यह कह वीनस भागकर लुफासा के पास आ गई।
वीनस को पास आते देख लुफासा ने ग ण का प धारण कर िलया।
लुफासा के ग ण बनते ही वीनस झट से ग ण पर सवार हो गई।
“कसकर पकड़ना वीनस, नह तो आसमान से िगर गई, तो मुझे कु छ
मत कहना?” लुफासा ने वीनस को चेतावनी देते ए कहा।
लुफासा क बात सुनकर वीनस ने कसकर ग ण क पीठ के बाल को
पकड़ िलया।
अब लुफासा अपने पंख को फड़फड़ाता आ आसमान क ओर उड़
चला। कु छ ही पल म ग ण आसमान क ऊंचाइय पर था।
पहले कु छ ण म तो वीनस थोड़ा घबराई, परं तु कु छ देर के प ात्
वह सामा य दखने लगी। अब वह आसमान क ऊंचाइय का पूरा लु फ उठा
रही थी।
लुफासा भी आसमान म िबना गुलाटी मारे सीधा-सीधा उड़ रहा था।
लुफासा कभी ेत बादल के फाहे अपने पंख से उड़ा रहा था, तो कभी
आसमान म कड़कती िबजली के ऊपर उड़ रहा था।
कु छ भी हो पर लुफासा वयं को अराका ीप से दूर नह ले जा रहा
था? दोन ही आसमान क ऊंचाई पर ब त खुश थे।
तभी आसमान म एक जोर क आवाज गूंजी और 3 फु ट क एक हीरे के
समान आकृ ित हवा म कट हो गई, जो क ब त तेजी से आसमान से नीचे
क ओर िगर रही थी।
चूं क लुफासा का पूरा यान इस समय नीचे कड़कती ई िबजली क
ओर था, इसिलये वह उस हीरे को देख नह पाया।
हीरा िव ुत क गित से आकर ग ण बने लुफासा के िसर से जा
टकराया।
यह ट र इतनी खतरनाक थी क ग ण बना लुफासा, एक पल म
अचेत हो गया और इसी के साथ वीनस उसक पीठ से िगर गई।
इस भीषण ट र से लुफासा व वीनस सिहत वह हीरा तेजी से धरा क
ओर िगरने लगा।
वीनस तो ठीक से समझ भी ना पाई क उसके साथ या आ? जब
तक वीनस कु छ समझती तब तक उसका शरीर अराका ीप से कु छ ही दूरी
पर बचा था?
इस समय उस हीरे और वीनस के िगरने क गित लगभग बराबर थी।
यहाँ तक क दोन के म य अिधक दूरी भी नह थी।
िगरती ई वीनस को अब वह हीरा साफ दखाई दे रहा था।
ले कन इससे पहले क धरा पर िगरकर वीनस को कोई नुकसान
प ंचता? क तभी हवा म लकड़ी के 2 िवशाल हाथ कट ए और उन दोन
हाथ ने हीरे व वीनस को हवा म ही लपक िलया।
उन दोन लकड़ी के हाथ ने वीनस व हीरे को एक िवशाल वृ क
कोटर म डाल दया।
वीनस उस कोटर म फसलती ई तेजी से नीचे क ओर जाने लगी।
हीरे के पास म होने क वजह से पूरे थान पर तेज उजाला फै ल गया
था। यह तो भला था क इतना सब कु छ होने के बाद भी वीनस ने अपने होश
नह खोए थे।
कु छ देर बाद वीनस उस हीरे के साथ एक घने जंगल म जा िगरी।
वीनस समझ भी नह पाई क वह वृ क कोटर से जंगल म कै से आ िगरी?
जाने कै सा थान था क वीनस को िगरने के बाद भी िब कु ल चोट
नह लगी? इसिलये िगरते ही वीनस अपने थान से उठकर खड़ी हो गई।
“यह म कहाँ आ गई?” वीनस ने अपने चारो ओर देखते ए मन ही
मन सोचा। मुझे तो हवा म ही कसी लकड़ी के हाथ ने पकड़कर कसी
िवशाल वृ क कोटर म डाल दया था? और उस कोटर से होते ए म धरती
के अंदर क ओर जा रही थी। फर यह कौन सा थान है? जो क देखने म
िब कु ल धरती के कसी वन क भांित महसूस हो रहा है? .... यहाँ पर सूय
भी है और पेड़-पौधे भी ह। ... अरे हां .... वह आसमान से िगरने वाला हीरा
कै सा था? िजसने लुफासा पर आ मण करके उसे घायल कर दया था। वह
भी तो मेरे साथ-साथ ही िगर रहा था।”
यह सोच वीनस इधर-उधर देखने लगी। तभी उसक िनगाह अपने से
कु छ दूरी पर िगरे उस चमकते हीरे पर पड़ी।
वीनस तुरंत भागकर उस हीरे के पास प ंच गई।
हीरे के आसपास क जमीन क घास, हीरे के िगरने के कारण जल गई
थी, िजससे अभी भी ह का धुंआ िनकलकर वातावरण म फै ल रहा था।
“यह हीरा तो आकार म कु छ यादा ही बड़ा है? इस आकार का हीरा
तो मने अपने जीवन म कभी देखा ही नह है?” वीनस ने हीरे के चारो ओर
च र लगाते ए कहा।
तभी वीनस को उस पारदश हीरे के अंदर कु छ रं ग चमकते ए
दखाई दये? उन िविच रं ग को देख वीनस ने अपना चेहरा हीरे से सटाकर
हीरे के अंदर झांका। पर अंदर झांकते ही वीनस बुरी तरह से च क गई।
“अरे , इस हीरे के अंदर तो एक सतरं गी िततली है, जो क आकार म
भी काफ बड़ी है। इस िततली को इस हीरे म कसने बंद कर दया? ......
कह यह इस हीरे म बंद-बंद मर ना जाये? मुझे इस हीरे को तोड़कर इस
िततली को बाहर िनकालना होगा। नह तो मुझ पर एक जीवह या का पाप
लग जायेगा। ... पर इस कठोर से हीरे को तोड़ने के िलये तो मुझे कसी
शि शाली हिथयार क आव यकता होगी? और ऐसा शि शाली हिथयार
मुझे भला इस जंगल म कहाँ से िमलेगा?”
कु छ देर तक यूं ही देखते रहने के बाद वीनस ने उस हीरे को पश कर
िलया।
पर जैसे ही वीनस के हाथ उस हीरे को छु ए, वह हीरा वतः ही 8
भाग म कसी कमल के फू ल क तरह से खुल गया और इसी के साथ वह
सतरं गी िततली हीरे से बाहर आ गई।
बाहर आते ही सतरं गी िततली, तेजी से वीनस के चारो ओर उड़ने
लगी। उसे देखकर ऐसा तीत हो रहा था क मानो सतरं गी िततली वीनस
को उसे वतं करने के िलये ध यवाद दे रही हो।
वीनस को उस िततली का वयं के आस-पास उड़ना ब त भा रहा था।
तभी उड़ते-उड़ते वह िततली वीनस क पीठ पर आकर बैठ गई।
वीनस पीठ पर बैठी िततली को देख तो नह पा रही थी, परं तु उसका आभास
वीनस को अव य हो रहा था।
वीनस ने अपने हाथ को पीछे करके िततली को पकड़ने क कोिशश
क , परं तु वह िततली वीनस के हाथ नह लगी।
यह महसूस कर वीनस को ब त आ य आ।
“यह िततली मेरे हाथ क पकड़ म य नह आ रही है? जब क मुझे
उसका पश साफ महसूस हो रहा है।”
कु छ देर तक कोिशश करते रहने के बाद भी, जब सतरं गी िततली
वीनस क पकड़ म नह आई, तो वीनस ने अपने सामने क ओर देखा।
वीनस को कु छ दूरी पर एक छोटा सा व छ पानी का जलाशय
दखाई दया?
जलाशय को देख वीनस उस ओर बढ़ गई। कु छ ही देर म वीनस
जलाशय के समीप थी। वीनस ने जलाशय के पानी म झुककर अपनी आकृ ित
को देखा। जलाशय के व छ जल म वीनस को अभी भी अपनी पीठ पर
िचपक िततली दखाई दे रही थी।
तभी अचानक से वीनस क िनगाह जलाशय म दख रहे अपने चेहरे
क ओर गई। इसी के साथ वीनस जोर से च क गई और अपने चेहरे को
टटोलकर देखने लगी।
“यह मेरे चेहरे को या हो गया? म तो ऐसी नह दखती। ..... मेरा
चेहरा अपने आप प रव तत कै से हो गया? .... हे मेरे ई र ये कै सा मायाजाल
है? .... कह यह सब इस िततली क वजह से तो नह हो रहा? .... अव य ही
ऐसा ही आ होगा। ... मुझे िजतनी ज दी हो सके इस मायावी िततली से
अपना िप ड छु ड़ाना ही होगा। .... पर कै से? इस थान पर तो कोई मनु य
भी नह दखाई दे रहा? म सहायता मांगू भी तो कससे? .... चलो इस वन म
और आगे चलकर देखती ँ। शायद कोई मनु य इस वन म िमल ही जाये?”
यह सोचकर वीनस एक दशा क ओर चल दी।
वीनस िबना के लगातार आगे बढ़ती चली जा रही थी। काफ आगे
चलने के बाद वीनस के नथुन से एक सुगंध आकर टकराई।
“अरे ! यह सुगंध तो काफ अ छी तीत हो रही है। ऐसा लगता है क
जैसे आसपास कोई फू ल से भरा उ ान है? चलो उधर ही चलकर देखती ँ,
शायद मुझे कोई वहाँ पर दखाई दे जाये?”
यह सोच वीनस ने हवा के बहने क दशा देखी और उस दशा म चल
दी, िजधर से वह सुगंध आ रही थी।
कु छ देर के बाद वीनस एक ऊंचे से टीले के पास प ंच गई। वह सुगंघ
टीले के दूसरी ओर से आ रही थी।
वीनस सुगंध का पीछा करते ए टीले के ऊपर चढ़ गई।
वीनस का सोचना िब कु ल सही था, टीले के दूसरी ओर नारं गी रं ग के
फू ल का एक ब त बड़ा उ ान था। उस उ ान म हजार क सं या म फू ल
के वृ लगे थे, िजन पर लगे फू ल क सुगंध वातावरण म चारो ओर फै ली
ई थी।
“वाह! कतना सुंदर कृ ित का दृ य है, एक पल म ही यह दृ य मन
को मोह ले रहा है। .... इन फू ल को देखकर तो मन कर रहा है, क इन फू ल
के ऊपर उड़ते ए इस अ भुत दृ य को हमेशा-हमेशा के िलये अपनी पलक
म बंद कर लूं। .... इनके रं ग को चुरा लूं .... इनके अंदर उपि थत स पूण मधु
का रसपान कर लूं। ..... एक िमनट ..... म यह सब य सोच रही ँ? ....
माना क यह दृ य ब त ही सुंदर है, पर म .... ऐसा य महसूस कर रही ँ?
.... कह यह सब मेरी पीठ पर बैठी सतरं गी िततली के कारण तो नह हो
रहा? ..... नह ... नह मुझे सच म यह फू ल ब त अ छे लग रहे ह .... मुझे
इन फू ल को और नजदीक से देखना चािहये।”
यह सोच वीनस टीले से उतरकर फू ल के उ ान म आ गई, परं तु इस
समय वीनस ब त अलग सा महसूस कर रही थी।
वीनस अब उ ान म घूमती ई फू ल को हाथ लगा-लगा कर देख रही
थी।
तभी ना जाने कहाँ से एक नीली िततली उड़ती ई आई और वीनस के
हाथ पर आकर बैठ गई।
“अरे ! यह नीली िततली अचानक से कहाँ से आ गई और यह मेरे हाथ
पर य बैठ गई? ..... पर जो भी हो ... यह िततली तो इन फू ल से भी
खूबसूरत है और इसका नीला रं ग तो कृ ित का सबसे सुंदर रं ग तीत हो
रहा है। काश! यह सारे फू ल भी इस िततली के रं ग क तरह होते तो कतना
अ छा होता?”
अभी वीनस ने यह सोचा ही था क तभी उसके हाथ पर बैठी नीली
िततली के शरीर से नीला रं ग िनकलकर पूरे उ ान म फै ल गया। उ ान म
फै ले नीले रं ग के कारण, कु छ देर तक तो वीनस को कु छ दखाई भी नह
दया, परं तु जैसे ही उ ान म फै ला नीला रं ग थोड़ा कम आ, वीनस बुरी
तरह से च क गई।
इस समय उ ान म िखले सभी नारं गी फू ल, नीले रं ग म प रव तत हो
गये थे और वह सभी फू ल कसी िततली के आकार म नजर आ रहे थे? परं तु
अब वीनस के हाथ पर बैठी िततली का रं ग नारं गी हो गया था।
“यह कै सा चम कार है? मेरे सोचते ही नीली िततली अब नारं गी और
नारं गी फू ल अब नीले कै से हो गये?”
अभी वीनस इस चम कार पर आ य ही कर रही थी क तभी
उ ान म िखले सभी नीले फू ल िततली म प रव तत होकर उड़ने लगे।
एक पल के िलये ऐसा लगा क मानो नीला आसमान धरा पर उतर
आया हो।
तभी सभी नीली िततिलयां वीनस क पीठ से आकर िचपकने लग ।
कु छ ही देर म सभी िततिलय ने वीनस क पीठ पर एक जोड़ी िवशाल पंख
का आकार ले िलया।
अब वह पंख वतः ही फड़फड़ाने लगे और इससे पहले क वीनस कु छ
समझती उन पंख के कारण वीनस का शरीर हवा म उठ गया।
पहले तो वीनस थोड़ा घबराई, परं तु कु छ ही देर म वह संयत नजर
आने लगी।
“लगता है सतरं गी िततली कोई दैवीय शि है, जो मेरी इ छा क
पू त कर रही है। .... तो फर इससे पहले क यह दैवीय शि पुनः िततिलय
को फू ल म प रव तत करे , य ना आसमान म उड़कर थोड़ा आनंद उठा
िलया जाये?”
अब वीनस िततिलय से बने अपने नीले पंख को िनयंि त कर
आसमान म उड़ने लगी।
कु छ ही देर म वीनस ने उड़ना सीख िलया, अब वीनस आसमान म
ऊंचे और ऊंचे उड़ने क कोिशश करने लगी। कु छ पल के िलये वीनस यह भी
भूल गई क अभी कु छ समय पहले ही वह आसमान से िगरी थी।
इस समय वीनस काफ खुशी का अनुभव कर रही थी। तभी वीनस को
लुफासा क याद आ गई।
अब वीनस आसमान म कसी ऐसे ार को तलाशने लगी, िजसम से
होकर वह नीचे आ गई थी। काफ ऊंचाई पर प ंचने के बाद वीनस को
आसमान म एक अदृ य दीवार महसूस ई।
“अरे ! यहाँ तो एक अदृ य दीवार है, इसका मतलब म इससे ऊपर
नह जा सकती। ... तो फर वह ार कहाँ है, जो मुझे यहाँ पर लेकर आया
था?”
तभी वीनस को एक सफे द बादल का टु कड़ा दखाई दया, िजस पर
कु छ रोशनी सी होती दख रही थी।
“यह बादल पर या चीज चमक रही है? .... लगता है क यह कृ ि म
बादल ह और वहाँ पर कोई रह य िछपा है? मुझे वहाँ पर चलकर देखना
चािहये।”
वीनस उड़ती ई उस सफे द बादल के पास प ंच गई। बादल के ऊपर
एक सोने का चमचमाता आ बड़ा सा संदक ू रखा आ था। वीनस उस संदक ू
को देखकर आ य से भर उठी।
“यह सोने का संदकू इस बादल पर कसने िछपा कर रखा है?” वीनस
ने संदक
ू को यान से देखते ए कहा- “और यह कृ ि म बादल भी मखमल के
समान मुलायम लग रहे ह।” अव य ही इस संदक ू के अंदर कोई ना कोई
चम कारी चीज होगी? मुझे इसे खोलकर देखना चािहये।”
यह सोच वीनस बादल के ऊपर उतर गई।
बादल पर उतरते ही वीनस क पीठ से िचपक सभी नीली िततिलयां
आसमान म उड़ ग ।
“अरे ! यह सभी िततिलयां तो मुझे छोड़कर चली ग । अब म यहाँ से
नीचे कै से जाऊंगी?”
कु छ देर तक वीनस यूं ही सोचती रही, फर उसने आगे बढ़कर उस
िवशाल संदक ू के ढ न को खोल दया। परं तु संदक ू के अंदर का दृ य देख
वीनस आ यच कत हो उठी- “अरे ! इस संदक ू के अंदर तो सी ढ़यां बनी ह
और यह सी ढ़यां कह नीचे क ओर जा रही ह?”
वीनस आगे बढ़कर उस संदक ू के अंदर वेश कर गई और धीरे -धीरे
सी ढ़यां उतरने लगी।
सी ढ़य के दोनो ओर छोटे -छोटे ब ब लगे थे, िजनसे तेज सफे द काश
हो रहा था। इस काश के कारण वीनस को सी ढ़यां उतरने म परे शानी नह
हो रही थी।
लगभग 40-50 सी ढ़यां उतरने के बाद, वीनस को सी ढ़य के अंत म
एक ार दखाई दया। वीनस उस ार से बाहर िनकल गई।
अब वीनस एक ऊंची सी दीवार के पास खड़ी थी, जो क कसी
िवशाल भवन का िह सा लग रही थी।
वीनस अब अपने चारो ओर देखने लगी। दीवार के थोड़ा सा आगे एक
चौड़ी सी सड़क बनी थी, िजसके दोनो ओर फु टपाथ बना था।
उस थान को देखकर ऐसा लग रहा था क जैसे वह कसी राजभवन
क सड़क हो। सड़क पर अनेक कार के वाहन चल रहे थे। देखने म वह सभी
वाहन कसी ाचीन समय के तीत हो रहे थे? परं तु उन वाहन के चलने से
कसी कार क विन उ प नह हो रही थी?
“यह तो कोई शहर लग रहा है? पर यह सभी वाहन िबना कसी
आवाज के चल कै से रहे ह?”
अब वीनस ने सड़क के आगे क ओर देखा और फु टपाथ पर चलती ई
आगे क ओर बढ़ गई। दोन ओर क फु टपाथ पर भी कु छ लोग आ-जा रहे थे,
परं तु कसी ने भी वीनस पर यान नह दया?
कु छ आगे चलने के बाद वीनस को फु टपाथ के एक कनारे पर बैठा
आ एक बौना दखाई दया, जो जमीन पर कोई कपड़ा िबछाये बैठा आ
था। बौने का कद 3 फु ट का था।
वह बौना कोई मू तकार लग रहा था, य क उस बौने के सामने
सफे द रं ग के प थर से बनी तीन मू तयां खड़ी थ । वह मू तयां भी बौन क
ही थ । वह पूरी मू तयां तो सफे द प थर क थ , परं तु उनसे बनी बौन क
दा ढ़यां अलग-अलग रं ग क थ । एक मू त क दाढ़ी सफे द, एक क काली व
एक मू त क भूरी दाढ़ी थी।
उन मू तय क दाढ़ी देख वीनस उस थान पर क गई और उन
मू तय को देखने लगी।
वीनस को इस कार मू तय को देखते पाकर वह बौना बोल उठा-
“मेरा नाम जोजो है। मने ही इन मू तय को बनाया है। या तुम इन मू तय
को लेना चाहती हो न ही लड़क ?”
“म इन मू तय को नह ले सकती, परं तु म यह जानना चाहती ँ क
य द इन सभी मू तय का चेहरा एक समान है, तो इन सभी मू तय क दाढ़ी
अलग-अलग रं ग क य है?” वीनस ने जोजो से पूछ िलया।
“म येक मू त को कसी कहानी के पा क तरह मानकर उसका
िनमाण करता ँ, इसिलये मेरी हर मू त दूसरे से िभ होती है। जैसे सफे द
दाढ़ी वाले बौने का नाम करीट है, यह एक वै ािनक है। जब क भूरी दाढ़ी
वाले बौने का नाम रं जो व काली दाढ़ी वाले बौने का नाम शंजो है। यह
दोन ब त ही शैतान ह और एक दूसरे से यार व नफरत एक साथ करते ह।
यह तीन भाई ह और हमेशा एक साथ रहते ह .... और हां म इन तीन को
अपने बेटे क तरह से मानता ँ” जोजो ने कहा।
“अरे वाह! आपके तीन बेटे तो ब त ही अ छे ह। पर एक बात समझ
म नह आई क आप अपने बेट को बेचना य चाहते ह?” वीनस ने भोली
जुबान म जोजो से पूछा।
“म यहाँ से कु छ दूरी पर बसे अपने गाँव टन कन म रहता ँ और
फू ल क खेती करके अपनी जीिवका चलाता ँ। इस बार फू ल क फसल
अभी तैयार नह ई है, इसिलये म अपने ारा बनाई इन मू तय को बेचकर
ही कु छ धन एक करना चाहता ँ।” जोजो ने बेबसी दखाते ए कहा।
वीनस एक पल म समझ गई क िजन नारं गी फू ल को उसने
िततिलयां बना दया है, वह फू ल जोजो क ही फसल थे। अब वीनस का
दमाग तेजी से चलने लगा।
“ य ना सतरं गी िततली क शि य का योग करके जोजो क कोई
मदद ही कर दूँ?”
यह सोच वीनस बोल उठी- “बाबा, आपक मू तयां तो िब कु ल सजीव
लग रही ह, कह आपक परे शानी को देख आपके बेटे जीिवत तो नह हो
गये?”
इतना कहकर वीनस ने माग पर चल रहे 3 ि य को देखा और
जोजो क मू तय को बारी-बारी से छू िलया।
वीनस के इतना करते ही जोजो के सामने रखी तीन मू तयां सच म
सजीव हो ग ।
यह देख जोजो आ य से भर उठा और आ य भरी नजर से अपने
सामने खड़े तीन बौन को देखने लगा।
तभी तीन बौने दौड़कर जोजो के गले से लग गये- “बाबा, हम आ
गये। अब हम हमेशा आपके पास ही रहगे।”
तीन बौन को जीिवत होते देख वीनस ज दी से उस थान से आगे
बढ़ गई, पर वीनस अभी कु छ ही कदम चल पाई थी? क तभी कसी के
कदम क आहट सुन पीछे पलट गई।
वीनस के पीछे एक सफे द दाढ़ी वाला बूढ़ा खड़ा था, जो क देखने म
सटा लॉस क तरह लग रहा था। बूढ़े के पीछे एक सफे द रं ग क घोड़ागाड़ी
खड़ी थी।
ले कन इससे पहले क वीनस उस बूढ़े से कु छ बोल पाती क तभी उस
बूढ़े ने वीनस के िसर पर अपना हाथ रख दया।
इसी के साथ वीनस क आँख के सामने अंधकार सा छा गया।
जब वीनस क आँख खुल , तो उसने वयं को िनटी हाउस के कमरे
म पाया।
कु छ देर तक वीनस को कु छ भी समझ म नह आया? परं तु तभी
वीनस के दमाग को एक झटका लगा और वह तेजी से िब तर से उठकर बैठ
गई।
इस समय वीनस िनटी हाउस के ऊपरी भाग म थी, जहां पर कु छ
देर पहले उसने शैतान ितकड़ी क फोटो देखी थी।
वीनस ने अब अपने आसपास नजर घुमाई। वीनस से कु छ दूरी पर
वही सफे द दाढ़ी वाला बूढ़ा व जोजो सामने रखी कु सय पर बैठे ए थे।
अब एक-एक कर वीनस को िपछली घटनाएं याद आने लग क कै से
सतरं गी िततली ने वीनस का सामरा महल से अपहरण कर िलया था? और
वयं नकली वीनस बनकर वेगा के साथ चली गई थी। उसके बाद नीली
िततिलयां वीनस को लेकर उड़ ग थ । जब वीनस को होश आया, तो उसने
वयं को कसी टल हाउस म बंद पाया? वीनस कसी कार टल
हाउस के मायाजाल से िनकलकर जंगल म चली गई, जहां पर उसक
मुलाकात जोजो से ई थी। जोजो, वीनस को लेकर िनटी हाउस म आ
गया, जहां पर उसने वीनस को फल का जूस पीने को दया था। जूस पीकर
वीनस बेहोश हो गई थी। उसके बाद अभी वीनस को होश आया था।
तभी वीनस के दमाग को एक बार फर से झटका लगा- “ या कु छ
देर पहले म कोई व देख रही थी, िजसम लुफासा मुझे बचपन म ग ण
बनकर आकाश म घुमा रहा था, पर तभी म आसमान से एक जंगल म जा
िगरी। ..... एक िमनट .... वह जंगल तो यही था और ... और मने वहाँ पर
िजन बौन को देखा, वह तो शैतान ितकड़ी व जोजो ही थे .... िजसम मने ही
शैतान ितकड़ी को सतरं गी िततली क शि य से, मू त से जीिवत ि म
प रव तत कया था। ... कै सा िविच व था? .... शायद यह व मेरे
उलझे ए मि त क के कारण आया था, य क मेरे बचपन म तो मेरे साथ
कोई भी ऐसी घटना घटी ही नह थी? .... पर .... पर मने इस सफे द दाढ़ी
वाले बूढ़े को अपने व म कै से देख िलया? म तो इससे पहले कभी िमली भी
नह ँ?”
तभी सामने बैठे बूढ़े क आवाज ने वीनस को उसक सोच से िवराम
देते ए कहा- “तुम गलत सोच रही हो बेटी, तुमने जो अभी कु छ देर पहले
देखा, वह सब व नह था, बि क तु हारे ही बचपन क एक घटना थी और
तुम मुझसे भी पहले िमल चुक हो।”
बूढ़े क बात सुन वीनस घबराते ए बोली- “आप मेरे मन क बात
कै से सुन सकते ह? ..... कौन ह आप? यह जगह कौन सी है? और आप मुझे
िमत य कर रहे ह?”
“मेरा नाम टोबो है वीनस और इस समय तुम मेरे व त के अंदर
हो।” टोबो ने रह यो ाटन करते ए कहा।
“यह व त या है? और यह पृ वी के कस भूभाग म ि थत है?”
वीनस, टोबो को अ छे से बोलते देख अब थोड़ा सहज नजर आने लगी।
“ठीक है तो फर अब म शु से बताता ँ ... यान से सुनो हजार वष
पहले एक महाशि धारक लड़क मै ा ने एक महावृ का िनमाण कया।
मै ा के दये वरदान के कारण उस महावृ म अनेक िविच ताएं भर ग ।
मै ा ने उस महावृ को लाकर अराका ीप पर ि थत एक वन म लगा
दया। आज के समय म वह थान सामरा रा य क एक पहाड़ी पर ि थत है।
महावृ के अंदर एक सपन क अ भुत दुिनया है, िजसे व त कहा जाता
है। यािन क ऐसा महावृ जो अपने अंदर सपन का संसार समेटे हो।
महावृ ने व त के अंदर हजार ऐसे थान बनाये, जहां पर रह य व ान
का भंडार भरा है, जहां पर जाकर कोई भी ि ांड के रह य को
समझ सकता है? और अपनी यो यता के अनुसार अनेक रह यमई शि य
को भी ा कर सकता है। एक कार से व त एक अलग ही ांड है,
जहां पर महावृ के ही िनयम व कानून चलते ह। महावृ ने व त को
सजीव बनाने के िलये, हजार वष म एक ही समान चेहरे वाले सैकड़ लोग
का िनमाण कया। इन सभी लोग के नाम व काय अलग-अलग ह, परं तु
देखने म यह सभी एक समान ही दखाई देते ह। इन सभी लोग को ‘वुडमैन’
कहा जाता है। सभी वुडमैन एक अदृ य डोर से महावृ से बंधे ह और
महावृ के आदेशानुसार व त क सभी व था को सुचा प से
चलाने का काय करते ह। व त के िनमाण के बाद महावृ ने पृ वी के
कोने-कोने से लाकर अनेक जीव-जंतु , रह यमई स यता और जीिवत
ािणय को लाकर इस व त म बसाया। सैकड़ वष के बाद व त म
एक आधुिनक योगशाला का भी िनमाण कया गया, जो हमारी आकाशगंगा
के अनेक रह य को खोलने का काय करने वाली थी। इस काय के फल व प
महावृ ने एक ऐसे कृ ि म हीरे का िनमाण कया, जो हमारी आकाशगंगा का
एक च र लगाने के िलये आज से 12 वष पहले अंत र म भेजा गया। इस
कृ ि म हीरे के अंदर एक नीली िततली को रखा गया, िजससे अंत र का
च र लगाने के बाद सजीव पर होने वाले भाव को भी जाना जा सके ।
उस कृ ि म हीरे का कायकाल पूरे 1 वष का था और उसे महावृ वयं अपने
व त से देख रहे थे। वह कृ ि म हीरा 1 वष तक हमारी आकाशगंगा म
घूमता रहा। 1 वष पूण हो जाने के बाद, वह कृ ि म हीरा वापस पृ वी क
क ा म वेश कर गया। इससे पहले क वह कृ ि म हीरा सुरि त व त
वापस आ पाता क तभी रा ते म वह एक ग ण से टकरा गया। तुम उस
ग ण पर सवार थी। इस भयानक ट र से हीरा व तुम दोन ही अिनयंि त
होकर धरा क ओर िगरने लगे। यह देख महावृ ने दोन को ही आसमान म
लपक िलया और उ ह व त म वेश करा दया। उसके बाद जब तक
महावृ उस हीरे के पास अपने कसी वुडमैन को भेज पाते? तब तक तुमने
उस हीरे को खोल, उसम से िततली को बाहर िनकाल िलया। महावृ ने तु ह
िततली को िनकालते देख िलया, पर उ ह िततली म होने वाले बदलाव को
देख ब त ही आ य आ, य क कृ ि म हीरे के अंदर रखी नीली िततली,
इस या ा के दौरान बड़ी और सतरं गी हो गई थी। अब वह सतरं गी िततली
पता नह कस कार से तु हारी पीठ से िचपक गई? उस सतरं गी िततली के
फल व प तु हारे अंदर कु छ िविच शि यां आ ग । इ ह शि य के
भाव से तुमने पहले नारं गी फू ल को नीली िततली म प रव तत कर दया।
उसके प ात् उन नीली िततिलय क सहायता से, तुम उस मायावी वन के
गु ार तक जा प ंची। गु ार से होते ए तुम व त के राजभवन के
पास प ंच गई, जहां तुमने एक बार फर सतरं गी िततली क शि य का
योग करके तीन बौन क मू तय को जीिवत कर दया। महावृ को समझ
नह आ रहा था क सतरं गी िततली म कस कार क शि समा गई थी?
िजसके भाव से तुम असंभव से चम कार दखला रही थी। इसिलये महावृ
ने मुझे तु हारे पास भेज दया। म बेहोश करके तु ह वापस मायावी वन म ले
आया, जहां पर तुम अगले 50 वष तक रही। इन 50 वष म तुमने उस
मायावी वन से िनकलने क ब त कोिशश क , परं तु इस बार महावृ ने गु
ार का थान भी बदल दया, िजसके कारण तुम उस मायावी वन से बाहर
नह आ सक । इस समय अंतराल म तुमने सतरं गी िततली का नाम टल
रखा और उसके िलये एक वृ पर एक टल हाउस का िनमाण कया।
महावृ इन वष म लगातार, टल क शि य पर अ ययन कर रहे थे।
आिखरकार जब महावृ को टल क शि य का पूण प से पता चल
गया, तो उ ह ने मेरे मा यम से तु हारे सामने एक ताव रखा। वह ताव
था क य द तुम टल क शि य को उ ह स प दोगी, तो वह तु ह उस
मायावी वन से बाहर िनकाल दगे। तुमने सहष ही इस ताव को मान िलया
और अपनी टल क शि य को मेरे सुपुद कर दया। परं तु बाहर िनकलने
से पहले महावृ ने, तु हारी व त क सभी मृितय को तुमसे छीन
िलया। िजसके कारण व त से बाहर िनकलने के बाद, तु ह यहाँ का कु छ
भी याद नह रह गया? जब तुम व त से बाहर िनकली, तो यह वही
समयकाल था, जब तुम ग ण क पीठ से नीचे िगरी थी। उस समय तुमने
वयं को एक तालाब म िगरा आ पाया। तभी तु ह ढू ंढता आ वह ग ण
तु हारे पास आ गया और वह तु ह लेकर इस थान से चला गया। तुम यहाँ
से चली अव य गई, परं तु तु हारी मृितयाँ अभी भी व त म उसी थान
पर सुरि त थ । 11 वष प ात् तुमने एक बार फर सामरा रा य म वेश
कया। इस समय तुम वेगा के साथ थी और उससे िववाह करने वाली थी।
चूं क महावृ को सामरा रा य के राजघराने क सुर ा का दािय व दया
गया था, इसिलये महावृ को तु हारे सामरा रा य म प ंचने का भान हो
गया। अब महावृ ने एक पु तक साग रका क सहायता से तु हारा भिव य
देखा, तो उसे पता चला क भिव य म एक यु के दौरान तु हारी मृ यु होने
वाली है। इसिलये महावृ ने राजघराने क कु लवधु के ाण बचाने का
िन य कया और िबना कसी से बताये टल के एक छाया प को भेजकर
तु ह वापस व त म बुलवा िलया। टल क वह छाया प तु हारा प
धरकर वेगा के साथ रहने लगी। महावृ को पता था क य द उसने इस
रह य को समय से पहले कसी को भी बताया? तो यह युि फलीभूत नह
होगी। अब जब तु हारी आँख खुली तो तुमने वयं को उसी समय अंतराल म
पाया, िजस समय अंतराल म तुम व त से गई थी। पर इस बार तुम वयं
के ही बनाये टल हाउस म फं स गई। कु छ ही दन के बाद तुम टल
हाउस से बाहर आ गई और जोजो से जा िमली। जोजो तु ह िनटी हाउस म
ले गया और उसके बाद उसने मुझे वहाँ बुला िलया। ..... और अब जब तुम
सबकु छ जान ही चुक हो, तो हम तु ह तु हारी टल शि को वापस
करते ह और इसी के साथ तुमसे यह िनवेदन करते ह क जब तक हम ना कह,
तब तक तुम हमारे साथ इसी थान पर रहो। जब महावृ को लगेगा क अब
तु हारे ऊपर मंडरा रहा खतरा समा हो गया है, तो वो तु ह यहाँ से जाने के
िलये बोल दगे।”
इतना कहकर टोबो शांत हो गया और उ सुकता भरे भाव से वीनस
क ओर देखने लगा।
वीनस जो अब तक आ य भरे भाव से टोबो क कहानी सुन रही थी,
बोल उठी- “ठीक है, अगर महावृ चाहते ह क म कु छ दन तक और यहाँ
पर र ँ, तो म रह लूंगी, परं तु मुझे आपसे अभी कु छ का उ र और
चािहये, जो क अभी तक मेरे मि त क म उथल-पुथल कर रहे ह।”
“पूछो, या पूछना चाहती हो?” टोबो ने अपनी सफे द दाढ़ी को अपने
हाथ से सहलाते ए कहा।
“ या आप अभी तक यह पता लगा पाये क अंत र म भेजी गई
नीली िततली, अंत र क या ा के दौरान सतरं गी कै से हो गई? और उसम
कस कार क शि भरी है?” वीनस ने दीवार पर टं गी ‘शैतान ितकड़ी’ क
फोटो को देखते ए पूछा।
“हम अभी तक यह तो नह जान पाये क कृ ि म हीरे म बंद नीली
िततली, सतरं गी कै से हो गई? और उसम यह शि यां कहाँ से आ ? परं तु
आज के समय म हम टल क शि य से अव य प रिचत हो गये ह। .....
दरअसल टल के अंदर एक ऐसी शि समाई है, जो क पृ वी पर
उपि थत येक जीव या िनज व क शि य का थानांतरण कर सकती है।
.... अगर सरल भाषा म कह तो य द टल के सामने एक मछली व एक
िचिड़या है, तो वह मछली को िचिड़या क शि देकर हवा म उड़ा सकती है
और िचिड़या को मछली क शि देकर पानी के अंदर तैरा सकती है।”
“अरे ! यह तो ब त ही िविच शि है। ऐसी कसी शि के बारे म
तो मने सुना तक नह है?” वीनस ने आ यच कत होते ए कहा- “शायद
इसी के भाव से मने नांरगी फू ल को नीली िततली म प रव तत कर दया
था। ..... पर उन तीन बौन क मू तयां मने कस कार से जीिवत कर दी
थ ?”
“जब तुम जोजो क तीन मू तय को देख रही थी, तो तु हारे नजर
सड़क पर जा रहे 3 ि य क ओर गई थी। तुमने उ ह 3 जीिवत ि य
के भाव से तीन बौन को जीिवत कया था। उस दन के बाद से जोजो आज
तक उन 3 बौन को अपने बेटे क तरह से यार करता है और यह िनटी
हाउस भी जोजो ने ही उन तीन के िलये बनाया है। ... हां अब जोजो फू ल
को नह बेचता, बि क इस मायावी जंगल क िततिलय को पकड़कर बेचता
है और अपनी जीिवका चलाता है।” टोबो ने जोजो क ओर इशारा करते ए
कहा।
“मुझे एक बात और समझ म नह आई क जब म पहली बार व त
म आई थी, तो मेरा चेहरा इस जंगल म बदला-बदला य दख रहा था? वह
तो मेरे बचपन के चेहरे से िब कु ल भी नह िमल रहा था। इसी कारण से जब
म दूसरी बार यहाँ आई तो वयं के ही बचपन के प को पहचान नह
सक ?” वीनस ने अपने दमाग पर जोर देते ए कहा।
“यह व त का एक मायावी जंगल है, िजसम बाहर से आने वाले
हर ि को अपना चेहरा बदला आ सा तीत होता है। उसी के भाव से
तु ह भी अपना चेहरा बदला आ तीत आ। इसिलये जब तुम 50 वष तक
यहाँ रही, तो तुमने टल हाउस क दीवार से लेकर हर थान पर उसी
बदले ए प के िच बनाये थे, जो क तु ह नजर आ रहे थे।” टोबो ने कहा।
टोबो क बात सुनकर वीनस ने एक गहरी साँस लेते ए कहा- “तो
फर अब आप मुझे वेगा के पास कब भेजगे?”
“पहले तु ह अपने ही समय अंतराल म वापस जाकर पुनः कृ ि म हीरे
से टल क शि य को ा करना होगा, उसके बाद उिचत समय आने
पर हम वयं तु ह वेगा के पास भेज दगे। .... तो फर तैयार हो जाओ एक
आिखरी बार कृ ि म हीरे के पास जाने के िलये।”
टोबो के यह कहते ही जोजो भी अपने थान पर खड़ा हो गया, जो क
इस बात का संकेत था क वीनस के अब दोबारा से मायावी जंगल म जाने का
समय आ चुका था।
जोजो को खड़े होते देख वीनस भी उठ खड़ी ई और टोबो व जोजो के
साथ जंगल के उस थान क ओर चल पड़ी, िजधर उसने कृ ि म हीरे को
जमीन पर पड़े ए देखा था।
समय एक बार फर महावृ के मा यम से करवट बदलने को तैयार
था, परं तु इस बार यह करवट भिव य म कु छ उ मीद का संचार करने वाली
थी?
◆ ◆ ◆
िहम लय

07.02.02, गु वार, मानसरोवर झील, िहमालय


िहमालय पर उपि थत सूय येक ण अपने आकार को बढ़ाता जा
रहा था। इस समय उसका आकार एक छोटे से कमरे के समान हो गया था,
िजसके कारण िहमालय से अनेक नई न दय का उदय हो चुका था और यह
सभी न दयां आसपास के मैदान े म बाढ़ पी लय ला चुक थ ।
इतने िविच सूय को देख किलका को भी समझ म नह आ रहा था
क वह इस सूय को कस कार से रोके ?
पृ वी के ारं भ के बाद आज पहली बार िहमालय का अि त व खतरे
म था।
तभी युगाका व सुवया भी सभी जीव को समा कर ि शाल व
किलका के पास आ गये।
सुवया ने उस सूय पर अनेक कार के तीर का हार कया, परं तु
कोई भी तीर उस सूय के ताप को कम नह कर सका।
यह देख सुवया ने वा िण को याद कर िलया- “वा िण, मुझे लग रहा
है क हमम से कोई भी इस सम या का िनदान नह जानता, इसिलये तु ह
इस थान पर कसी ऐसे देवयो ा को भेजना होगा, जो क इस सूय को
समा कर हम इस िहम लय से बचा सके ?”
“ मा चाहती ँ सुवया, परं तु इस समय कोई भी दूसरा देवयो ा
आपके पास नह प ंच सकता? सभी देवयो ा अलग-अलग थान पर त
ह .... या फर ये क ँ क बाक के सभी देवयो ा दूसरे थान पर यु कर
रहे ह। ऐसे म आप सभी को िमलकर वयं ही इस सम या से बचने का कोई
तरीका ढू ंढना होगा? .... मेरा ऐसा िव ास है क आप अव य इस खतरे से
पृ वी को बचा लोगे। ..... सोचो ... थोड़ा और सोचो, तु ह इस सम या का
हल अव य ही िमलेगा।”
इतना कहकर वा िण क आवाज आनी बंद हो गई, परं तु वा िण के
इस िव ास भरे श द ने सभी को एक नया बल दया था। इसिलये सभी एक
बार पुनः नए िसरे से सोचने लगे।
“म इस सूय को अपनी वृ शि से कु छ ण के िलये ढक तो अव य
सकता ँ, परं तु कु छ ही देर बाद यह सूय फर से मेरी वृ शि को जलाकर
बाहर आ जायेगा।” युगाका ने अपनी िववशता कट करते ए कहा।
“मेरी भी विनशि इस सूय के सम काय नह करे गी।” ि शाल ने
कहा।
सभी को बारी-बारी बोलते देख किलका भी बोल उठी- “म भी अपनी
काश शि से इस सूय को नह रोक सकती य क म िसफ काश का
उ सजन कर उसक ती ता को बढ़ा सकती ँ, परं तु म कसी भी िसतारे के
काश को बािधत नह कर सकती?”
अब सभी क सि मिलत िनगाह सुवया क ओर घूम ग और सभी उसे
आशा भरी नजर से देखने लगे।
सभी को अपनी ओर देखते पाकर सुवया ने अपनी आँख बंद कर ल
और अपने मन ही मन संहराज का आहवान कया। सुवया के ऐसा करते ही
सुवया ने वयं को, संहलोक के ार पर ि थत, चतुमुख संहराज क मू त के
सम पाया।
सुवया जानती थी क यह उसका सू म शरीर है, सुवया का असली
शरीर तो अब भी िहमालय पर खड़ा था।
सुवया ने चतुमुख संहराज क मू त को णाम करते ए कहा- “हे
संहराज मेरी सहायता क िजये। इस समय म अपने कु छ सािथय के साथ
िहमालय पर ँ और एक िविच से सूय के कारण म ही नह अिपतु पूरी
पृ वी संकट म है। .... जािगये संहराज और मुझे उस सूय से िनपटने क युि
दान क रये। मुझे पता है क आपक दृि िजस ार क ओर होती है, उस
ार से यम भी वेश नह कर सकते। ... आप संहेश ह, सव ानी ह और
हजार वष से इस पृ वी के अ य जीव क सहायता करते आये ह .... कट
होइये संहराज और पूरी मानवता को इस संकट से िनकािलये।”
अभी सुवया ने इतना ही कहा था क तभी चतुमुख संहराज क मू त
सजीव हो गई।
संहराज को सजीव होते देख सुवया ने अपना िसर झुकाकर संहराज
को णाम कया।
“आयु मान भव पु ी सुवया।” संहराज ने सुवया क ओर देखते ए
कहा- “मने अपनी द शि य से उस िविच सूय को देख िलया है पु ी।
.... चूं क वह िविच सूय हमारी आकाशगंगा का नह है, इसिलये तुम सभी
िमलकर भी उस सूय को परा त नह कर सकते। उस सूय को समा करने के
िलये, उसे उसी आकाशगंगा म ले जाना होगा, िजस आकाशगंगा का वह सूय
है। यही कृ ित का िनयम है और यही िविध का िवधान भी। इसी कारण से
आकाशगंगा का संतुलन भी बना रहता है।”
“यह आप या कह रहे ह संहराज?” सुवया ने परे शानी भरी मु ा म
संहराज से कहा- “वह िविच सूय तो कसी ऐसी आकाशगंगा का है? जो
यहाँ से लाख काशवष दूर है, ऐसे म हमम से कोई भी उस सूय को वहाँ
नह ले जा सकता। .... तो या .... हम सभी अब अपने सामने पृ वी के
िवनाश को होते ए देखगे?”
सुवया क आवाज म अपार दद भरा था, परं तु संहराज क आवाज
अभी भी ि थर थी।
“सुवया, तुम एक संिहका हो पु ी, इस कार भयभीत होना तु हारी
वृित नह है। फर से अपने आसपास के वातावरण पर यान दो पु ी,
कभी-कभी हमारी सम या का िनदान हमारे सम ही होता है, परं तु हम उसे
देख नह पाते। वैसे भी ‘ संहपुराण’ म िलखा है क हम अपने भवन म िजस
ार का िनमाण बाहर िनकलने के िलये करते ह, वही ार हम हमारे भवन
के अंदर भी ले जाता है।”
इतना सुनने के बाद सुवया क आँख वतः ही खुल ग । इस समय
सुवया उस िविच सूय से कु छ दूरी पर खड़ी थी? और युगाका, किलका व
ि शाल, सुवया को आशा भरी नजर से देख रहे थे।
उधर सुवया अभी भी संहराज के कहे श द म ही उलझी ई थी-
“ या मतलब आ संहराज के श द का? या कहना चाहते थे वह? कह
उनके श द म कु छ िछपा आ तो नह ? ..... उ ह ने कहा क िजस ार का
योग हम भवन के अंदर जाने के िलये करते ह, उसी ार के ारा हम भवन
से बाहर भी िनकलते ह।”
अभी सुवया यह सोच ही रही थी क तभी उसके कान म एक उड़ने
वाले जीव क आवाज सुनाई दी, जो अभी भी युगाका क बनी लता को
काटकर, वायु ार से बाहर िनकलने क कोिशश कर रहा था।
उस जीव क आवाज सुन अचानक से सुवया क आँख चमक उठ । एक
पल म सुवया संहराज के कहे श द को समझ गई।
“तुरंत सभी लोग मेरी बात को यान से सुन।” सुवया ने सभी क ओर
बारी-बारी से देखते ए कहा- “हम इस सूय को अपनी आकाशगंगा से बाहर
फकना होगा और इसके िलये हम अपनी सि मिलत शि का योग करना
होगा।”
यह कहकर सुवया ने सभी को थोड़ा और पास बुलाया और धीमे श द
म अपनी युि को बताने लगी।
जैसे-जैसे सुवया बोलती जा रही थी, सभी क आँख क चमक बढ़ती
जा रही थी।
कु छ देर बाद युगाका तेजी से सुवया के सामने से हटा और उसने अपने
व म िछपे सभी बीज को िनकालकर बफ पर फक दये।
यह करने के बाद युगाका ने अपने दोन हाथ को आगे क ओर कर
दया।
युगाका के ऐसा करते ही उसके फके बीज से असं य वृ िनकलने
लगे। सभी वृ िनकलते ही युगका के शरीर से िलपटते जा रहे थे, िजसके
कारण युगाका के शरीर का आकार बढ़ता जा रहा था।
कु छ ही ण के प ात् युगाका वयं ही एक िवशाल चलते फरते वृ
के समान दखाई देने लगा।
अब युगाका ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उस िविच सूय को एक बार
फर से पकड़ िलया। इस समय सूय का ताप पहले से भी अिधक हो चुका था,
इसिलये युगाका के हाथ तुरंत जलना शु हो गये, परं तु युगाका ने सूय को
अपने हाथ से छोड़ा नह ।
युगाका सूय को उठाकर जल ार के पास ले आया और फर युगाका ने
जल ार पर लगी लता और बेल को ार से हटने का इशारा कया।
युगाका का इशारा पाते ही सभी लताएं एक झटके से जल ार से हट
ग । परं तु इससे पहले क कोई भी म य जीव पुनः से जल ार से िनकल
पाता? युगाका ने अपनी पूरी शि लगाकर सूय को उस जल ार म फक
दया।
सूय, जल ार से िनकलने का यास कर रहे कु छ म य जीव को िलये
ए जल ार के अंदर समा गया।
ठीक इसी समय किलका व ि शाल ने एक साथ, उस जल ार के अंदर
अपनी काश व विन शि से हार करना शु कर दया।
किलका व ि शाल क विन शि के हार से सूय उस अंधकार म भी
ती करण िबखेरने लगा। अब सूय क करण लगातार बढ़ती जा रह थ ।
धीरे -धीरे सूय का नारं गी काश, पीले व नीले रं ग से प रव तत होते ए ेत
रोशनी म बदल गया।
सूय क इस ती रोशनी से फे रोना ह के सम त जीव मारे गये।
तभी किलका व ि शाल ने अपनी शि य का योग करना बंद कर
दया। इसी के साथ किलका ने चीखकर कहा- “अब सभी लोग जमीन पर
लेट जाओ। इस सूय का काश इतना अिधक हो गया है क यह कसी
सुपरनोवा क भांित फटने वाला है।
किलका क चीख सुनकर सभी तुरंत वह जमीन पर लेट गये।
इसी के साथ किलका व ि काल ने अपनी-अपनी शि य से तीन
ार के आगे एक ऐसा कवच बना दया, िजसे पारकर ना तो विन और ना
ही काश पृ वी तक प ंच सक।
तभी फे रोना ह के वातावरण म सूय का एक तेज धमाका आ और
इसी के साथ फे रोना ह टु कड़े-टु कड़े होकर ए ोवस आकाशगंगा म फै ल
गया।
एक मह वाकां ी स यता का एक झटके म अंत हो गया था।
ि शाल व किलका के कवच के कारण, इस महािवनाश का कोई भी
असर पृ वी के वातावरण को नह आ था?
तभी हवा म बने वह तीन ार भी वहाँ से गायब हो गये। यह देख
सभी ने राहत क साँस ली।
अब सुवया का यान एरोबी क ओर गया, जो क अब वहाँ कह
दखाई नह दे रही थी?
“लगता है एरोबी विनका को लेकर यहाँ से भाग गई है।” सुवया ने
मु कु राते ए कहा- और हम इस यु को जीत गये ह।”
सुवया क बात सुनकर युगाका भी मु कु रा उठा- “अ छा आ क
हमने वा िण के लान के अनुसार असली विनका को पहले ही िछपा दया
था, नह तो वह भी एरोबी के हाथ म पड़ जाती। उधर एरोबी हमारी नकली
विनका म िछपाई शि को पहचान नह पाई और उसे असली विनका
समझकर ले भागी।”
“परं तु जब उसे विनका क असिलयत पता चलेगी, तो वह दुगनी
ताकत से हम पर दोबारा आ मण करे गी।” सुवया ने मु कु राते ए कहा।
तभी वा िण क आवाज वहाँ गूंज उठी- “आप सभी को यह यु
जीतने क ब त-ब त बधाई। .... वैसे एक चीज म आप लोग को बता दूँ क
किलका व ि शाल क शि य से आपने यह यु ही नह जीता, अिपतु
दु मन का पूरा ह ही तबाह कर दया है। अब उनक ही नह वरन् उनके
सबसे ाचीन यो ा पटॉ स क भी शि य का ोत समा हो गया है। अब
य द हमने अंत र से आये इन सभी यो ा को हरा दया, तो उनक
स पूण स यता, उनका अि त व सबकु छ समा हो जायेगा। इसिलये अब
आप लोग यहाँ कु छ समय के िलये आराम कर, जब तक म बाक के यु पर
नजर रखती ँ। या पता अब कसको मेरे मागदशन क आव यकता हो?”
इतना कहकर वा िण क आवाज आनी बंद हो गई।
अब सभी उस थान पर बैठकर वा िण के अगले आदेश क ती ा
करने लगे।
उधर युगाका अपने जले ए हाथ को देख रहा था, परं तु इस समय
उसक आँख म वयं के िलये संतुि के भाव थे।
◆ ◆ ◆
चैपटर-11
अनोखा वा यं

ितिल मा 7.71

सु नारंगी यश सिहत सभी िजस थान पर बाहर िनकले, वह एक


रं ग का ह था, िजसक जमीन नारं गी रं ग क थी। उस
नारं गी ह का आसमान िब कु ल दूध क तरह सफे द था, परं तु उस
आसमान म कोई भी सूय नह था? वह आसमान िबना सूय के काश के कै से
चमक रहा था? यह समझना थोड़ा मुि कल था।
उस ह क जमीन को देखकर ऐसा लग रहा था, क जैसे वष से उस
जमीन पर पानी क एक बूंद भी नह िगरी है। हर ओर बस रे त ही रे त नजर
आ रही थी।
“इस ह पर तो कु छ भी नह है?” ऐले स ने उस ह क जमीन को
देखते ए कहा- “मुझे तो लगा था क ितिल मा का आिखरी ार सबसे
खतरनाक होने वाला है।”
“पहली नजर म इस ह के ार को सरल मानना सही नह है
वाय ड जी।” टी ने ऐले स को समझाते ए कहा- “कै र क मता
को अब हम सभी मान चुके ह और िपछले सभी अनुभव को देखते ए मुझे
ऐसा नह लगता क कै र इस ार को सरल बनाने वाला है।”
टी क बात सुन ऐले स ने धीरे से अपना िसर िहलाया और टी
का हाथ थाम आगे क ओर बढ़ चला।
आसमान म सूय ना होने के बाद भी वह थान काफ गम महसूस हो
रहा था। ऊपर से आसमान म काश यादा होने क वजह से रे त को देखते
ए सभी क आँख च िधया रह थ । उस ह पर ना तो कोई पेड़ नजर आ
रहा था और ना ही कसी चीज क छाया वहाँ पर थी?
कसी को भी नह पता था क इस ह म जाना कहाँ है? पर फर भी
सभी एक अंजान दशा क ओर आगे बढ़ते जा रहे थे।
लगभग आधे घंटे चलने के बाद अचानक से ऐले स को सामने एक
िवशाल तालाब दखाई दया।
“अरे ! वह देखो हमसे कु छ दूरी पर, मुझे एक तालाब दखाई दे रहा
है।” ऐले स ने खुशी से सभी को तालाब दखाते ए कहा।
तालाब को देखकर सभी क आँख को थोड़ा सा सुकून िमला।
“चलो, कु छ तो दखाई दया इस ार म?” जेिनथ ने अपने माथे पर
एक हाथ क ओट बनाते ए, तालाब क ओर देखते ए कहा- “नह तो म
तो इस रे त को देख-देख कर बस पागल ए जा रही थी।”
अब सभी उस तालाब क ओर चल दये।
कु छ ही देर म सभी तालाब के पास प ंच गये। सुयश आगे बढ़कर
तालाब क ओर चल दया, परं तु जाने य तालाब के पास क रे त उसे ठं डी
तीत नह ई?
“दो त , तालाब के आसपास क रे त तो पानी क वजह से ठं डी होनी
चािहये थी, पर यहाँ ऐसा नह है।” सुयश ने तेज आवाज म कहा- “इसिलये
आप लोग अभी आगे मत बढ़ो, पहले म इस तालाब को जांच लेता ँ। कह
यह तालाब भी मायावन के तालाब क भांित कोई मायावी तालाब तो
नह ?”
सुयश क आवाज को सुनकर सभी अपने थान पर ही क गये। पर
सुयश िनरं तर तालाब क ओर आगे बढ़ता रहा।
कु छ ही देर म सुयश के पैर पानी से टकराये, परं तु सुयश को अपने
पैर पर पानी महसूस नह आ। यह देख सुयश थोड़ा और आगे क ओर बढ़
गया।
पानी के अंदर घुटन तक प ंचने के बाद भी सुयश को पानी िब कु ल
भी महसूस नह हो रहा था। तभी सुयश क नजर पानी क सतह पर गई,
िजसे देखकर वह और भी यादा च क गया।
“अरे ! पानी म मेरी परछाई य दखाई नह दे रही?” अब सुयश ने
अपने हाथ क अंजुली बनाई और झुककर उसम पानी को भरने क कोिशश
क । पर जैसे ही सुयश ने अपना हाथ पानी के बाहर िनकाला, उसे अपने हाथ
म गम रे त दखाई दी।
अब सुयश अपने दोन हाथ से उस पानी को पश करने लगा, पर
एक पल म ही सुयश को सबकु छ समझ म आ गया और वह सभी क ओर
देखते ए बोल उठा- “दो त यह कोई मायावी पानी है। यह पानी हम
दखाई तो दे रहा है, पर यह असल म यहाँ पर है नह । यािन क सरल भाषा
म क ँ, तो यह एक आभासी पानी है।”
“इसका मतलब यह कोई मृग-मरीिचका है।” तौफ क ने सुयश क ओर
देखते ए पूछा।
“नह मृग-मरीिचका तो दूर से दखाई देती है, पर वो पास प ंचने के
बाद दखाई नह देती। पर यह पानी तो िब कु ल पास से भी दखाई दे रहा
है। इसिलये हम इसे आभासी जल कह सकते ह।” सुयश ने कहा।
सुयश क बात सुनकर सभी लोग तालाब के पास आ गये। परं तु सबके
जांचने के बाद भी वह आभासी पानी ही तीत आ।
“स यानाश हो कै र का। यह कै सा ह बनाया है उसने?” ऐले स ने
खीझते ए कहा- “चलो दो त आगे बढ़कर कु छ और ढू ंढने क कोिशश करते
ह?”
ऐले स क बात सुन सभी दुखी मन से आगे क ओर बढ़ चले।
कु छ आगे बढ़ते ही टी को उस ह म एक थान पर एक घना पेड़
नजर आया।
“दो त , वह देखो उस थान पर एक घना पेड़ है। अव य ही कै र ने
वहाँ पर कोई ना कोई रह य िछपाया होगा?” टी ने पेड़ क ओर इशारा
करते ए कहा।
टी का इशारा देख सभी खुश होकर उस पेड़ क ओर बढ़ गये।
परं तु कु छ देर बाद जब सभी उस पेड़ के नीचे प ंचे तो उ ह पेड़ क छाया का
िब कु ल भी अहसास नह आ।
“लगता है क यह पेड़ भी आभासी है। य क इसके नीचे छाया का
िब कु ल भी अहसास नह हो रहा।” जेिनथ ने सभी क ओर देखते ए कहा।
जेिनथ क बात सुन तौफ क ने पेड़ को छू ने क कोिशश क , पर उसका
हाथ हवा म आरपार हो गया।
यह देख तौफ क थोड़ा ोिधत हो गया- “लगता है कै र जानबूझकर
अंितम ार म हमारी भावना से िखलवाड़ कर रहा है। .... अब अगर यह
कभी मेरे सामने आ गया, तो म इसे वह मार डालूंगा।”
“कै टे न अंकल, मुझे इस पेड़ के चारो ओर ब त ही ह का लाल रं ग का
घेरा बना दखाई दे रहा है। शायद यह आभासी ितिब ब का कोई चंह है,
जो कै र ने यहाँ पर लगा रखा है।” शैफाली ने उस पेड़ को यान से देखते
ए कहा।
तभी ऐले स को अपने पीछे एक ह का सा लहर का शोर सुनाई
दया। यह शोर सुनते ही ऐले स अपने थान से पलटकर, पीछे क ओर
देखने लगा। पर पीछे नजर जाते ही ऐले स आ य से भर उठा। ऐले स के
पीछे लहराता आ समु दखाई दे रहा था, िजसके बीच म सन राइ जंग
खड़ा दखाई दे रहा था।
यह देख ऐले स ने धीमी आवाज म सबका यान पीछे क ओर
कराया- “दो त , जरा अपने पीछे क ओर भी देख लो। इधर क ओर भी कु छ
अलग दखाई दे रहा है?”
ऐले स के श द सुन सभी पीछे पलटे और पीछे का नजारा देखते ही
सभी हैरान हो गये।
“यह ... यह पीछे इतना िवशाल समु कहाँ से आ गया? अभी हम
इसी रा ते से तो यहाँ तक आये थे।” टी क आवाज म दुिनया भर क
हैरत दखाई दे रही थी- “और वहाँ समु क लहर के बीच तो हमारा सन
राइ जंग खड़ा है।”
“ यादा हैरान होने क ज रत नह है दो त ।” शैफाली ने सभी को
चेतावनी देते ए कहा- “मुझे इस समु और सन राइ जंग के पास भी वैसा
ही लाल रं ग दखाई दे रहा है। इसका मतलब यह सब भी आभासी ही है।
इसिलये मुझे लग रहा है क कै र यह सब दखाकर हम िसफ मानिसक तौर
पर तोड़ना चाहता है।”
“शैफाली सही कह रही है दो त । हम यह सब देखकर समय बबाद
करने के थान पर आगे क ओर बढ़ना होगा, जहां असली ितिल म हमारा
इं तजार कर रहा है।” यह कहकर सुयश पीछे क ओर पलटा और आगे बढ़ने
लगा।
सुयश के कहे अनुसार सभी पलटकर एक दशा म चलने लगे।
अब उन सभी के पीछे दख रहा वृ , समु क लहर और सन
राइ जंग सब कु छ कह गायब हो गया?
चलते ए सभी एक ब त बड़े थान पर प ंच गये, जहां पर जमीन
पर एक गोलाकार रे खा बनी थी। उस गोलाकार रे खा क प रिध, कई
कलोमीटर क दख रही थी।
उस रे खा को देखकर सभी क गये।
“अब यह या हो सकता है?” जेिनथ ने रे खा को देखते ए कहा-
“ या यहाँ पर भी कोई आभासी चीज है, जो हम दखाई नह दे रही है?”
“नह , यहाँ पर कोई आभासी चीज नह है, य क मुझे यहाँ कह पर
भी वैसा लाल गोला दखाई नह दे रहा है, जैसा क आभासी चीज के चारो
ओर होता है।” शैफाली ने पुि करते ए कहा।
“तो फर अव य ही यहाँ से हमारा असली ितिल म शु हो रहा
होगा?” सुयश ने कहा- “चलो दो त , इस आिखरी ार म एक बार फर
अपनी सि मिलत शि से कै र को प रिचत कराते ह।”
सुयश के श द म एक गजब का आ मिव ास भरा था, जो सभी के
शरीर म एक पल म ही ऊजा का नया संचार कर गया।
अब सभी एक साथ आगे बढ़े और उस जमीन पर बनी रे खा को पार
कर गये।
जैसे ही सभी रे खा को पार कर थोड़ा आगे बढ़े, तभी उ ह जमीन के
नीचे से एक अजीब सी धड़धड़ाहट क आवाज सुनाई दी।
“सावधान दो त , लगता है क कोई अंजान मुसीबत हमारी ओर बढ़
रही है?” सुयश ने िच लाकर सभी को सावधान करते ए कहा।
तभी सबके सामने क जमीन एक तेज आवाज करती ई फट गई-
“धड़ाकऽऽऽऽ।”
अब उस जमीन से एक सफे द रं ग क मू त िनकलनी शु हो गई। सभी
यान से उस मू त क ओर देख रहे थे। कु छ देर म ही वह मू त पूरी क पूरी
जमीन से बाहर आ गई।
उस मू त का आकार लगभग 50 फट के आसपास था। वह मू त एक
पु ष क थी, जो क देखने म कसी ीक देवता क भांित तीत हो रहा था।
उस पु ष ने अपने हाथ म वीणा क तरीके का एक िविच सा वा यं
पकड़ रखा था।
मू त के िनकलने के बाद वहाँ क धरती फर से सपाट दखाई देने
लगी।
पूरी मू त के जमीन से बाहर आ जाने के बाद सुयश ने सभी क ओर
देखते ए पूछा- “ या कोई बता सकता है क यह मू त कसक है? और इस
मू त ने अपने हाथ म यह कै सा वा यं पकड़ रखा है?”
सुयश क बात सुन टी बोल उठी- “यह ीक देवता अपोलो क
मू त है। ीक माइथालोजी के िहसाब से अपोलो को सूय का देवता मानते ह।
देवता अपोलो को संगीत ब त ि य है, इसिलये इ ह ने अपने हाथ म एक
ाचीन वा यं ‘ कथारा’ पकड़ रखा है। कथारा, िगटार का एक ब त ही
ाचीन वजन है। िगटार क ही भांित इससे भी 7 वर िनकाले जा सकते ह।”

इतना कहकर टी चुप हो गई।


“इसका मतलब इस बार कै र ने कसी कार के संगीत से मायाजाल
का िनमाण कया है?” शैफाली ने कहा।
अभी सभी उस मू त को देख ही रहे थे क तभी ‘ज ऽऽऽऽऽऽऽ’ क
आवाज करती आसमान म एक बगनी रं ग क रे खा, कसी टू टते तारे क
भांित एक आक बनाती ई, एक िसरे से दूसरे िसरे क ओर गई।
इस रह यमई आवाज को सुन सभी आसमान क ओर देखने लगे। अब
पूरे आसमान म एक बगनी रं ग क धनुष के समान रे खा बन गई थी।
अभी सभी आसमान म बनी बगनी रे खा को देख ही रहे थे, क तभी
इ ह एक और टू टता तारा दखाई दया, जो क गाढ़े नीले रं ग का था। यह
तारा बगनी रं ग क रे खा के ऊपर एक गाढ़े नीले रं ग क रे खा बना गया।
तभी एक-एक कर 5 और तारे आसमान म टू टे, जो क मशः नीले,
हरे , पीले, नारं गी व लाल रं ग के थे। अब सभी तार ने ेत आसमान म एक
ब त ही खूबसूरत सा इं धनुष बना दया। िजसे सभी मं मु ध होकर देख
रहे थे।
“वाह! कतना सुंदर कृ ित का दृ य है।” जेिनथ ने इं धनुष के रं ग
को अपनी आँख म भरते ए कहा- “इतना सुंदर इं धनुष तो शायद ही
कसी मनु य ने पहले कभी देखा हो?”
“सही कह रही हो जेिनथ, पर काश यह दृ य हम ितिल मा के िसवा
कह और दखाई देता?” टी ने भी आह भरते ए कहा- “यहाँ तो अव य
ही यह दृ य अपने अंदर कु छ मुसीबत समेटे आया होगा?”
टी का यह बोलना ही था क तभी अपोलो क मू त एकाएक
सजीव हो गई और आसमान म कु छ ऊपर तक उठ गई।
अपोलो को इस कार जीिवत होते देख सभी घबरा गये।
“मुझे तो लगा था क इस ार म भी कै र ने कोई मि त क क पहेली
रखी होगी, पर अब तो लग रहा है क इस ार म हमारा सामना ीक देवता
अपोलो से होने वाला है।” सुयश ने आसमान म उड़ रहे अपोलो को देखते ए
कहा।
तभी अपोलो क मू त ने जाने या कया क आसमान से एक िवशाल
‘क पास’ (गोलाकार प रिध बनाने वाला गिणतीय कार) उस मैदान के
बीचोबीच आकर िगरा। उस क पास का एक िसरा जमीन म गड़ गया और
दूसरा िसरा एक ‘समकोण’ बनाता आ हवा म का था।
क पास इतना बड़ा था क उससे 1 कलोमीटर ि या को गोला
बनाया जा सकता था।
अब अपोलो ने अपने एक हाथ को हवा म गोलाकार घुमाया, िजससे
क पास का दूसरा िसरा उस मैदान म एक वृ ाकार गोला बनाने लगा। एक
गोला बनाने के बाद वह क पास अभी भी नह का। अब क पास ने अपने
आकार को थोड़ा और बढ़ाया और उस गोले से भी बड़ा एक दूसरा गोला
बनाने लगा।
“यह सब या हो रहा है कै टे न?” ऐले स ने धीरे से फु सफु साते ए
सुयश से पूछा।
पर सुयश ने कु छ भी बोलने के थान पर, अपने मुंह पर उं गली रखकर
ऐले स को चुप रहने का इशारा कया और पुनः उस मायाजाल को समझने
क कोिशश करने लगा।
अभी तक अपोलो ने कसी पर भी आ मण नह कया था? इसिलये
सुयश सिहत सभी लोग बस उसे देख रहे थे।
कु छ ही देर म क पास ने दूसरा गोला भी पूण कर िलया। इसी के साथ
वह क पास अपने थान से कह गायब हो गया?
क पास के गायब होते ही अपोलो अपने थान से उड़कर, मैदान म
बने दोन गोल के म य आ गया। कसी को अपोलो क कोई भी हरकत
समझ म नह आ रही थी?
तभी अपोलो ने अपने हाथ म पकड़े कथारा का एक िसरा तेजी से
जमीन पर पटक दया। अपोलो के ऐसा करते ही दोन गोल के म य का
थान एक तेज आवाज करता जमीन म समा गया।
अब उस मैदान के चारो ओर एक गहरी खाई सी बन गई थी, िजसम
से िपघला आ लावा िब कु ल साफ नजर आ रहा था। शायद वह ग ा उस
ह क कोर तक गया था।
सभी लोग िजस मैदान म खड़े थे, वह कसी अलग-थलग ीप क
भांित नजर आने लगा।
“अरे बाप रे ! जान य मुझे ऐसा लग रहा है क अपोलो हमसे यु
करने के िलये कसी कार के रं ग का िनमाण कर रहे ह? और यह ऐसा रं ग
होगा, जहां से हम भागकर भी नह जा सकगे।” जेिनथ ने भयभीत होते ए
कहा- “अब भला कसी देवता से कस कार यु कया जा सकता है?”
“घबराओ नह जेिनथ। घबराहट म इं सान अ सर गलितयां कर जाता
है।” तौफ क ने जेिनथ को समझाते ए कहा- “और वैसे भी यह ितिल मा का
आिखरी ार है, तो इसम कु छ अिधक परे शािनयां तो ह गी ही?”
तौफ क क बात सुनकर जेिनथ ने तौफ क के चेहरे को एक बार देखा
और फर धीरे से िसर िहलाकर अपनी सहमित दे दी।
तभी अपोलो उड़कर वापस से मैदान के अंदर आ गया, पर अपोलो क
दृि अभी भी मैदान के बाहर क ओर ही थी। अब अपोलो ने ना जाने या
कया? क उस थान से एक लकड़ी का अ चं ाकार पुल बन गया, जो उस
मैदान से बाहर क ओर जा रहा था। देखने से ही पता लग रहा था क वह
पुल ही अब इस मैदान से िनकलने का एकमा रा ता है।
इसके बाद अपोलो उसी थान पर प ंच गया, जहां से वह जमीन के
नीचे से िनकला था। अपनी पूववत थान पर प ंचने के बाद अपोलो फर से
मू त म प रव तत हो गया।
अपोलो को मू त म प रव तत होते देख अब जाकर सभी ने राहत क
साँस ली।
“बच गये।” जेिनथ ने सुकून भरी साँस लेते ए कहा- “अब जब
अपोलो फर से मू त म बदल ही चुके ह, तो फर य ना सबसे पहले उस
पुल को ही देख िलया जाये? या पता उस पुल के ारा हम इस मैदान से
बाहर िनकल सक?”
“बच तो गये, पर मुझे पूरा संदेह है क हम उस पुल के ारा इस
मैदान से बाहर तो नह जा सकगे।” टी ने संदेह करते ए कहा।
टी क बात सुनकर सभी पहले उस पुल के पास प ंच गये। पर
जैसे ही सुयश ने अपना पैर उस पुल क ओर बढ़ाया, उसे उस पुल के बीच
एक अदृ य दीवार सी महसूस ई।
“ टी का संदेह िब कु ल ठीक है। इस पुल पर एक अदृ य दीवार है,
िजसे हम फलहाल अभी तो नह पार कर सकते।” सुयश ने कहा।
सुयश के यह कहने पर टी व ऐले स ने भी बारी-बारी उस अदृ य
दीवार को छू कर देखा और फर िनराश होकर सभी वापस से अपोलो क
मू त के पास आ गये।
“अभी तक तो यही समझ म नह आया क हम इस ितिल म म करना
या है?” सुयश ने सभी क ओर बारी-बारी से देखते ए कहा- “वैसे या
कसी को कु छ भी समझ म आ रहा है यहाँ?”
सुयश के यह बोलते ही सभी ने एक साथ अपना चेहरा शैफाली क
ओर घुमा िलया और आशा भरी नजर से उसे देखने लगे।
यह देख सुयश के चेहरे पर ह क सी मु कु राहट आ गई।
तभी शैफाली ने बोलना शु कर दया- “जैसा क आप सभी ने देखा
क अपोलो ने कस कार हम इस मैदान म फं सा दया है? इस मैदान से
िनकलने का एक ही रा ता है, जो क वह पुल है, पर हम उस पुल से होकर
भी बाहर नह िनकल सकते। ... अब अगर म अपोलो क मू त क ओर देखूं,
तो यह साफ तीत हो रहा है क अपोलो को इस ार म हमसे यु करने के
िलये नह रखा गया है, अगर उ ह यु करने के िलये रखा गया होता, तो
कै र ने उनके हाथ म कथारा नह दया होता और अगर यान से देख तो
पता चलता है क अपोलो के हाथ म पकड़ा कथारा िब कु ल असली तीत
हो रहा है। तो इसका मतलब यह आ क अपोलो के हाथ म पकड़े कथारा
म कु छ ना कु छ रह य तो अव य ही िछपा आ है? .... अब जब हम अपोलो
क बात कर ही चुके ह, तो एक बार हम आसमान म बने उस इं धनुष पर
भी यान दे लेना चािहये। .... वैसे वह इं धनुष आसमान म है, इसिलये हम
वहाँ तक तो नह प ंच सकते, इसिलये कै र ने अव य ही इस इं धनुष म
कोई ऐसा रह य िछपाया है, जो क अपोलो या फर उसके कथारा से
स ब ध रखता है। .... अब हम यह देखना होगा क इं धनुष और कथारा म
ऐसी या समानता है? जो एक रह य का कारक हो सकती है?”
शैफाली क बात सुन सभी तेजी से सोचने लगे। अब वह कथारा और
इं धनुष म कसी कार क समानता को ढू ंढ रहे थे।
काफ देर के बाद टी ने अपना मुंह खोला- “मुझे तो अपोलो और
इं धनुष म एक समानता दखाई दे रही है और वह समानता है क अपोलो
सूय के देवता ह और इं धनुष भी सूय क करण से ही बनता है।”
“इस कार से देखा जाये तो हम इस समय सूय क ही धरती पर खड़े
ह और सूय क करण म भी इं धनुष क ही भांित 7 रं ग पाये जाते ह।”
ऐले स ने भी अपने ान का प रचय देते ए कहा।
“7 रं ग!” एकाएक टी ने च कते ए कहा- “ कथारा से भी तो 7
ही वर िनकलते ह .... और य द हम कथारा को अं ेजी म िलख तो उसम
भी 7 ही श द होते ह।”
“यह कौन सा लॉिजक आ?” तौफ क ने मु कु राते ए कहा- “इस
कार तो मेरा ज म भी 7 जुलाई को आ है, तो या कै र ने यह ितिल म
मेरे िलये ही बनाया है?”
“एक िमनट को, इस कार बहस करने से कु छ भी नह होगा?”
सुयश ने सभी को टोकते ए कहा- “हम कु छ करके ही देखना होगा? .... अब
हम कु छ भी करने के िलये इं धनुष तक तो नह प ंच सकते, इसिलये हम
अपोलो के हाथ म पकड़े कथारा को ही छे ड़ना होगा। ..... एक काम करो
ऐले स। चूं क यह मू त काफ ऊंची है, इसिलये तुम इस मू त के ऊपर चढ़
जाओ और कथारा का पहला वर ‘सा’ िनकालो। मुझे देखना है क कथारा
के वर म कोई रह य तो नह िछपा?”
“एक िमनट कये कै टे न।” तभी जेिनथ ने सुयश को टोकते ए कहा-
“यह भारतीय वीणा नह है, बि क एक ीक वा यं है, इसिलये इसके वर
‘सा, रे , गा, मा, पा, धा, िन’ के थान पर ‘डो, रे , मी, फा, सो, ला, टी’
ह गे।”
“इससे या फक पड़ता है जेिनथ। श द कु छ भी ह , पर संगीत के भाव
तो सबम एक ही होते ह।” सुयश ने कहा।
सुयश क बात सुनकर जेिनथ ने सहमित से अपना िसर िहला दया,
य क सुयश कह तो सही ही रहा था।
जेिनथ को देखने के बाद सुयश क नजर एक बार फर ऐले स क
ओर ग । सुयश को अपनी ओर देखते पाकर ऐले स ने अपने जूते मू त के
नीचे उतारे और फर तेजी से बंदर क तरह अपोलो क मू त पर चढ़ने
लगा, िजसे देखकर टी के चेहरे पर एक बार फर मु कान िथरक उठी,
पर इस बार टी ने अपने भाव को नह कया।
कु छ ही देर म ऐले स अपोलो के हाथ म पकड़े कथारा के तार के
पास प ंच गया।
सुयश का इशारा पाते ही ऐले स ने कथारा के पहले तार को जोर से
ख चकर छोड़ दया। इतना िवशाल कथारा होने के बाद भी उससे एक मधुर
विन िनकलकर पूरे ह के वातावरण म फै ल गई-
“डोऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ“
इसी के साथ इं धनुष के सबसे नीचे का बगनी रं ग जोर से एक बार
चमक उठा और उस इं धनुष के बगनी रं ग से एक करण िनकलकर उस ह
क धरती पर िगरी।
बगनी करण िजस थान पर िगरी, अब उस थान पर एक बगनी रं ग
क ऊजा का ार दखाई देने लगा।
“अरे वाह! ितिल मा का यह ार तो बड़ी ही आसानी के साथ पार हो
गया।” ऐले स ने अपोलो क मू त पर खड़े-खड़े ही चीखकर कहा।
“पर मुझे तो ऐसा नह लगता।” शैफाली के श द म इस समय
उलझन के भाव नजर आ रहे थे। जाने य उसका दल मानने को तैयार ही
नह था? क इतनी आसानी से ितिल मा का यह ार पार हो सकता है?
उस ार को अपने सामने देखकर तौफ क ने उस ार म वेश करने
क कोिशश क , पर तौफ क को वहाँ पर भी एक अदृ य दीवार दखाई दी।
“हम इस ार म भी वेश नह कर सकते।” तौफ क ने बुझे मन से
थोड़ा तेज आवाज म कहा- “इस ार के आगे भी कोई अदृ य दीवार है? जो
क हम इस ार म वेश नह करने दे रही है।”
तौफ क क बात सुन सुयश कु छ देर के िलये सोच म पड़ गया। तभी
शैफाली ने ऐले स से कथारा से दूसरा वर िनकालने का इशारा कया।
शैफाली का इशारा पाकर ऐले स ने कथारा के दूसरे तार को जोर से
ख च दया। वातावरण म एक बार फर से एक मधुर विन गूंज उठी-
“रे ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ“
इसी के साथ आसमान म उपि थत इं धनुष क गाढ़े नीले रं ग वाली
रे खा से एक करण िनकली और आसमान म गाढ़े नीले रं ग के बादल का
िनमाण करने लग ।
“यह बादल तो ब त ही िविच रं ग के ह, कह मायावन के खूनी
बादल क तरह से इसम भी कोई खतरनाक चीज तो नह भरी?” जेिनथ ने
सभी को मायावन के बादल क याद दलाते ए कहा।
अभी जेिनथ यह बोल ही रही थी क तभी उन बादल ने बरसना शु
कर दया। बादल से नीले रं ग क बूंदे िनकलकर उस ह क धरती को
िभगाने लग । पर अ छी बात यह थी क उन बादल म तेजाब के समान
कोई के िमकल नह भरा आ था? वह तो बा रश क साधारण बूंद क
मा नंद थ ।
इतनी गम और सूखी धरती को लगातार देखते रहने के बाद, इन
बा रश क बूंद को देखना एक अ छा अनुभव था। बा रश ब त तेज नह हो
रही थी, फर भी उसने कु छ ही देर म सभी के शरीर को पूरी तरह से िभगा
दया।
उस बा रश का एक असर यह आ था क अब उ ह आसमान कह -
कह पर ही दखाई दे रहा था? बाक का आसमान गाढ़े नीले बादल से ढक
सा गया था।
यह देख सुयश, ऐले स क ओर देखते ए तेज आवाज म बोला-
“ऐले स, तुम इन छोटी-छोटी परे शािनय पर यान मत दो। तुम कथारा का
तीसरा वर िनकालो।”
सुयश क आवाज सुन ऐले स ने अपनी पकड़ को अपोलो क मू त पर
थोड़ा और बढ़ाया और इसी के साथ कथारा के तीसरे तार को जोर से ख च
दया।
“मीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ“
एक बार फर वातावरण म मधुर आवाज फै लने के साथ, आसमान से
उतरकर नीली करण जमीन पर आ , इसी के साथ जमीन से नीले रं ग क
घास िनकलना शु हो गई।
हालां क घास अभी कु छ ही सटीमीटर लंबी िनकली थी क तभी
शैफाली के दमाग म खतरे क घंटी बजने लगी। अब वह तेजी से कु छ सोच
रही थी।
इससे पहले क सुयश, ऐले स को कथारा से अगला वर िनकालने
को कहता क तभी शैफाली ने तेज आवाज लगाकर सुयश का यान अपनी
ओर ख चा- “कै टे न अंकल! ..... मुझे इस इं धनुष क पहेली समझ म आ
गई।”
शैफाली के श द सुनकर ऐले स को छोड़कर बाक के सारे लोग
शैफाली के पास आ गये। ऐले स अभी भी अपोलो क मू त पर खड़ा था। उसे
यह तो नह पता चला क नीचे शैफाली या रह यो ाटन करने जा रही है?
पर वह इतना ज र समझ चुका था क शैफाली को ितिल म के बारे म कु छ
तो अव य ही समझ म आया है?
“कै टे न अंकल, कथारा से ‘सा, रे , गा, मा’ के थान पर ‘डो, रे , मी,
फा’ श द ही िनकल रहे ह। अगर हम यान से देख तो जब ऐले स भैया ने
पहला वर ‘डो’ िनकाला, उसी समय हमारे सामने एक ‘डोर’ यािन क
दरवाजा दखाई दया। उसके बाद दूसरे श द ‘रे ’ के समय ‘रे न’ यािन क
बा रश शु हो गई। ठीक इसी कार ‘मी’ श द के समय हमारे सामने
‘मीडो’ यािन क घास का मैदान बन गया। .... इससे पता चलता है क यह
कथारा अपने अंदर से ‘डो, रे , मी, फा’ श द ही िनकाल रहा है।”
“चलो मान िलया क कथारा ‘डो, रे , मी, फा’ श द ही िनकाल रहा
है, पर इन िपछले 3 श द ने हम कोई हािन नह प ंचाई है? इसिलये हम
इन वर को लगातार िनकालते रहना होगा।” सुयश ने शैफाली को समझाते
ए कहा- “ या पता इन 7 वर के बाद इस ितिल मा से बाहर िनकलने का
ार हम िमल जाये?”
अभी सुयश ने इतना ही कहा था क तभी सभी को ऐले स क घबराई
ई आवाज सुनाई दी- “कै टे न, मुझे कु छ दूरी पर आसमान के रा ते कु छ
आता आ दखाई दे रहा है? शायद कोई नई मुसीबत तेजी से हमारी ओर
बढ रही है?”
ऐले स क आवाज सुनकर सभी उस दशा म देखने लगे, िजधर
ऐले स इशारा कर रहा था।
पर नई मुसीबत लगातार उनक ओर बढ़ रही थी। शायद अब
मृ युसंगीत शु होने वाला था और वह सभी शनैः-शनैः अपनी ओर बढ़ रही
नई मुसीबत को िनहार रहे थे।
◆ ◆ ◆
अ ांग

20,009 वष पहले ........


ह रत वन, िहमा ी पवत ृंख ला, िहमालय
वगलोक म ि थत ह रत वन अपनी िविभ कार क औषिधय और
रह य के िलये िस था। इस समय नीलाभ व हनुका कु छ औषिधय को
ढू ंढते ए ह रत वन म घूम रहे थे।
ह रत वन म ि थत कु छ वृ इतने िवशाल थे, क वह आसमान छू ते
ए तीत हो रहे थे?
हनुका इस समय 1 वष का था और उसे गु वशि अभी तक ा
नह ई थी।
नीलाभ व हनुका लगातार घने वन क ओर बढ़ रहे थे।
“िपताजी हम इस घने वन म कौन सी औषिध ढू ंढने के िलये आये ह?”
हनुका ने अपनी भोली भाषा म नीलाभ से पूछा।
“पु , इस पृ वी पर अनेक कार क बीमा रयां ह, जो मनु य के
साथ जीव-जंतुओ को भी भािवत करती ह। म इस समय यहाँ पर एक ांस
से संबंिधत बीमारी को दूर करने क औषिध ढू ंढने आया ँ।” नीलाभ ने यार
से भोले हनुका को समझाते ए कहा।
“पर आपको कै से पता चलेगा िपताजी, क इतने वृ के म य ांस
क बीमारी को दूर करने वाली औषिध कौन से वृ म िछपी है?” हनुका ने
एक और करते ए कहा।
“पु , म सभी वृ के प को अपनी नािसका से सूंघकर देखता ँ।
इसी के मा यम से म यह जान जाता ँ, क उस वृ के प े कस काय के
िलये योग म लाये जा सकते ह? फर म उन वृ के प के मा यम से
औषिध का िनमाण करता ँ”
“अरे वाह! तो या आप नािसका क यह िव ा मुझे भी िसखायगे?”
हनुका ने उ सािहत होते ए कहा।
“पु हनुका, नािसका क शि को िनयंि त करना, हर जीव को
अव य आना चािहये य क पूरे जीवनकाल म कभी ना कभी तो हर जीव
ऐसी ि थित म प ंच जाता है, जब वह अपनी ांस पर िनयं ण नह रख
पाता, ले कन इसके िलये तु ह ित दन ातःकाल उठकर ाणायाम करना
होगा, इससे तु हारी नािसका क शि भी ती हो जायेगी और तुम अिधक
से अिधक समय तक ांस रोकने क कला भी सीख जाओगे।” नीलाभ ने
हनुका को ान देते ए कहा।
परं तु इससे पहले क हनुका कोई उ र देता? उसे वन के माग म पड़ा
एक बड़ा सा अजगर दखाई दया।
अजगर को देखते ही हनुका खुशी से उछल उठा- “अरे वाह! कतना
सुंदर िवषधर है, िपता ी या म इसके साथ थोड़ी देर के िलये खेल लूं।”
हनुका ने अजगर को पश करते ए कहा।
“अरे नह पु , वह भोजन करके सो रहा है। तु ह सोते ए िवषधर
को परे शान नह करना चािहये।” नीलाभ ने हनुका का हाथ अजगर से हटाते
ए कहा।
“ या िपता ी, अगर म कसी भी जीव से खेल नह सकता, तो फर
मेरे वन म आने का या लाभ? इससे अ छा तो म घर पर ही क जाता और
माता के हाथ के भोजन का वाद लेता। कम से कम मेरी वादेि य को तो
लाभ होता।” हनुका ने मुंह बनाकर होते ए कहा।
“अ छा ठीक है हनुका, य द हम आगे कोई और जीव िमला, जो क
सो नह रहा होगा, तो म तु ह उससे खेलने दूँगा।” नीलाभ ने हिथयार डालते
ए कहा।
“ये ई ना बात।” हनुका, नीलाभ क बात सुन एक ही ण म स
हो गया- “अब तो म ई र से ाथना क ँ गा क ज दी ही कोई अ छा सा
जीव मेरे खेलने के िलये भेज द?”
“लो ई र ने तु हारी सुन ली, वहाँ देखो सामने कु छ मृग िवचरण कर
रहे ह और देखने पर ही ात हो रहा है क वह सभी मृग स भी ह। ... तुम
चाहो तो उनके साथ खेल सकते हो हनुका।” नीलाभ ने हनुका को एक दशा
क ओर इशारा करते ए कहा।
“अरे वाह! यह तो वण सी वचा वाले मृग ह। इनके साथ खेलकर तो
ब त स ता होगी।” यह कह कर हनुका दौड़कर उन िहरन के झुंड क ओर
चला गया।
हनुका का चेहरा देखकर एक िहरन का छोटा ब ा अपनी माँ से
िचपक गया।
“लो, अब ये भी मेरे चेहरे से डर रहे ह। .... इस चेहरे को ना म एक
दन बदलकर र ँगा।” हनुका मन ही मन बुदबुदाया और धीरे -धीरे हाथ
बढ़ाते ए एक िहरन को छू िलया।
उस िहरन को हनुका का यह पश काफ अ छा लगा, इसिलये वह
हनुका के और पास आ गया। उस िहरन को हनुका के पास जाते देख, बाक
सभी िहरन हनुका से डरना बंद कर दये और इधर-उधर घूमकर अलग-
अलग वृ क हरी पि यां खाने लगे।
नीलाभ अब हनुका को उन िहरन के साथ खेलते देख, एक थान पर
बैठ गया।
हनुका अब न हे िहरन के पीछे भाग-भाग कर खेल रहा था।
तभी हनुका क िनगाह उस िहरन के ब े क ओर गई, जो पहले हनुका
से डरकर अपनी माँ के पास चला गया था।
वह िहरन का ब ा इस समय एक पीपल के वृ के पास खड़ा, उससे
पि यां तोड़ने क कोिशश कर रहा था। परं तु पीपल के वृ क पि यां कु छ
ऊंचाई पर लगे होने के कारण, वह उसे तोड़ नह पा रहा था।
हनुका ने अपनी गदन ऊंची करते िहरन के ब े को देखा और उसक
सहायता हेतु हँसते ए उधर ही आ गया।
“अरे अपनी गदन इतनी ऊंची मत करो न हे मृग, नह तो तुम मृग के
थान पर ऊंची गदन वाले जीव म प रव तत हो जाओगे। इस वृ क
पि यां तु हारी प ंच से बाहर ह।”
यह कहकर हनुका ने उस पीपल के वृ से कु छ पि यां तोड़कर नीचे
उस मृग के ब े क ओर फक द । हनुका के पि यां फकते ही कु छ अ य न हे
मृग भी उस ओर आ गये।
“लगता है क इन मृग के ब को इस वृ क पि यां अ यंत ि य ह।
को म इन लोग के िलये और भी पि य क व था कर देता ँ।”
यह कहकर हनुका पीपल के वृ के मोटे से तने के पास प ंचा और
उसे पकड़कर जोर-जोर से िहलाने लगा।
हनुका के इस कार से वृ के िहलाने से, उस वृ क असं य पि यां
टू टकर नीचे िगरने लग , परं तु हनुका अभी भी उस वृ को िहलाये जा रहा
था। कु छ ही ण म वृ के नीचे पि य का अंबार सा लग गया।
िजसे देखकर नीलाभ, हनुका क ओर भागा- “अरे -अरे पु , यह या
कर रहे हो? इस वृ क सभी पि यां तोड़ दोगे या?”
परं तु इससे पहले क नीलाभ भागकर हनुका के पास तक प ंच पाता,
क अचानक उस पीपल के वृ से 8 पि यां वतः ही धरा पर जा िगर और
नीचे लगे पि य के अंबार म समािहत हो ग ।
उन 8 पि य के धरा पर िगरते ही, धरा पर पड़ी सभी पि यां अपने
आप हवा म उठकर, कसी तेज बवंडर क भांित नाचने लग ?
यह बवंडर इतना ती था क हनुका इस बवंडर के भाव से उड़़कर
कु छ दूर जा िगरा? हनुका को उड़ते देख, वहाँ खड़े सभी सुनहरे मृग कु लांचे
मारते एक पल म वहाँ से भाग गये।
नीलाभ को यह समझ म नह आया, क यह बवंडर अचानक से उठा
कै से? परं तु नीलाभ ने इस समय बवंडर के थान पर, अपना यान हनुका क
ओर लगाना यादा उिचत समझा।
इसिलये नीलाभ कसी भी कार से बचते ए हनुका क दशा म
भागा? क तभी उस ती बवंडर ने नीलाभ के शरीर को अपनी चपेट म ले
िलया। नीलाभ के पैर बवंडर के कारण धरा से उखड़ गये और वह बवंडर के
साथ हवा म नाचने लगा।
इससे पहले क नीलाभ अपनी कसी भी चम कारी शि का योग
कर पाता? बवंडर से िनकला धूल का गुबार नीलाभ के मुंह और नाक से होते
ए, उसके शरीर के अंदर वेश कर गया।
अब नीलाभ को अपनी साँस कती ई सी महसूस होने लग । अपनी
कती साँस के कारण नीलाभ कसी भी कार के मं का उ ारण नह कर
पा रहा था? नीलाभ को अपना शरीर धीरे -धीरे िशिथल पड़ता महसूस होने
लगा।
कु छ ही देर म नीलाभ मू छत हो गया। नीलाभ के मू छत होते ही धूल
और पि य से बना बवंडर वयं ही शांत हो गया। बवंडर के शांत होते ही
नीलाभ का शरीर हवा से धरा पर आ िगरा।
बवंडर को शांत होते देख, हनुका भागकर नीलाभ के पास आ गया
और नीलाभ के अचेत शरीर को िहलाकर उठाने क कोिशश करने लगा।
“िपताजी ... िपताजी उ ठये .... यह आपको या हो गया? उ ठये
िपताजी, अब म कभी भी ऐसे मूखतापूण काय नह क ँ गा। उ ठये िपताजी।”
पर हनुका के इतने यास के बाद भी नीलाभ उठकर नह खड़ा आ।
यह देख न हा हनुका जोर-जोर से रोने लगा।
ठीक उसी समय नीिलमा बनकर आसमान म उड़ रही किणका को
हनुका का ं दन सुनाई दया, िजसे सुनकर वह नीचे आ गई।
“यह यित का छोटा सा बालक इस थान पर कै से आ गया? इस वन म
तो यित नह पाये जाते। .... अरे ! यह तो कसी ि के शरीर के पास बैठा
रो रहा है?”
यह देख नीिलमा उड़ती ई हनुका के पास जा प ंची, परं तु जैसे ही
नीिलमा क आँख नीलाभ पर पड़ , वह बुरी तरह से च क गई- “अरे ! यह तो
नीलाभ है। यह अचेत अव था म यहाँ कै से पड़ा है?”
अब नीिलमा ने किणका का प धारण कर िलया।
एक नीली िचि़ड़या को ी के प म आते देख हनुका च क गया और
रोना छोड़ यान से किणका को देखने लगा।
“आप कौन हो?” न हे हनुका ने किणका को देखते ए कहा- “ या
आप मेरे िपताजी को वापस मूछा से बाहर ला सकती हो?”
“तु हारे िपता!” हनुका को बोलते देख किणका आ य से भर उठी-
“ये तु हारे िपता ह?”
“हां, ये मेरे िपता ह, म इनके साथ इस वन म औषिध लेने आया था,
परं तु एक वायु के ती च वात के कारण ये बेसुध हो गये ह।” हनुका ने रोने
वाला मुंह बनाते ए कहा।
“वायु का च वात इस थान पर?” हनुका के श द सुन किणका क
िनगाह, तुरंत अपने चारो ओर दौड़ने लग । कु छ ही पल म किणका को एक
थान पर, हवा म ि थर पीपल के वह 8 प े दखाई दे गये, िज होने नीलाभ
का यह हाल कया था।
उन प को हवा म ि थर देखते ही किणका समझ गई, क अव य ही
इस थान पर कोई चम कारी शि है? परं तु इस समय किणका का पूरा
यान नीलाभ क क रही साँस क ओर था।
किणका ने आगे बढ़कर अपनी नजर, नीलाभ के नाक व खुले ए मुंह
पर डाला।
“अरे ! इनके मुख और नािसका के िछ म तो धूल भरी ई है। शायद
इसी वजह से यह साँस नह ले पा रहे ह और अचेत हो गये ह, परं तु इनके
मुख से यह धूल कस कार िनकाली जा सकती है? यह तो अ यािधक छोटे
कण म है ..... अरे हां, कण से याद आया, मुझे तो वयं महादेव ने कण म
बदलने क शि दी है। कह मुझे यह शि महादेव ने इसी समय के िलये तो
नह दी? .... अव य ही ऐसा ही होगा। महादेव भूत, भिव य, वतमान सब
जानते ह, उ ह ने इसी पल के िलये मुझे कण क शि दी है।”
अब किणका िबना देर कये कण म प रव तत हो गई और नीलाभ क
नािसका से होते ए अंदर वेश कर गई।
हनुका अचानक से किणका को अदृ य होते देख, इधर-उधर देखने
लगा।
उधर किणका कु छ ही देर म नीलाभ क नािसका म उस थान पर
प ंच गई, जहां क धूल के कण जमे ए थे। किणका ने उस थान पर एक
कण के अंदर वेश करने भर का थान ढू ंढ िनकाला।
किणका उस न हे िछ से नािसका के अंदर वेश कर गई। अंदर
प ंचने के बाद किणका ने उन धूल के कण को बाहर क ओर धके लना शु
कर दया। कु छ ही देर के प ात् किणका ने नीलाभ क नाक और मुंह म फं से
धूल के कण को बाहर िनकाल दया।
अब किणका, नीलाभ क नािसका से बाहर आकर पुनः ी म
प रव तत हो गई और नीलाभ के उठने क ती ा करने लगी। परं तु कु छ देर
के बाद भी नीलाभ मूछा से बाहर नह आया, तो किणका क िनगाह एक
बार फर से उन प क ओर गई, जो क अभी भी एक थान पर हवा म
ि थर थे।
किणका धीरे -धीरे उन प क ओर चल दी। वह प े भी अपने पास
आ रही किणका को यान से देख रहे थे।
किणका ने प के पास प ंचकर पहले उ ह णाम कया और फर
बोल उठी- “मुझे पता है क आप कोई अदृ य देवशि ह, िज ह ने इस प े
का प धारण कर रखा है। कृ पया अपने असली वेष म आकर मुझे दशन
दीिजये।”
किणका के श द सुन वह आठो प े हवा म नाचने लगे। उ ह देखकर
ऐसा लग रहा था क मानो उ ह किणका के श द ब त अ छे लगे ह।
तभी किणका को उन 8 प से, हवा म बनी गणेश जी क आकृ ित
दखाई दी- “ या आप िवनायक ह? आपका चेहरा इस समय उनसे ही िमल
रहा है।”
किणका के श द सुन उन 8 प ने धरा पर कु छ िलखना शु कर
दया। किणका उन श द को पढ़ने लगी- “अ ांग! ..... या ये आपका नाम
है?”
किणका के श द को सुन आठो पि यां खुशी से किणका के चारो ओर
नाचने लग ।
किणका को अ ांग क यह हरकत ब त अ छी लगी। अब किणका ने
अपने सीधे हाथ क हथेली को आगे क ओर कर दया।
किणका के हथेली को आगे करते ही, वह सभी प े एक न ही सी
िचिड़या का प लेकर किणका के हाथ म बैठ गया।
“अरे ! तुम तो मेरी तरह कोई भी प धारण कर सकते हो? ... लगता
है क तुम कोई चम कारी शि हो। .... या तुम मेरी साथ िम ता करोगे?”
किणका ने ‘आप’ से ‘तुम’ पर आते ए कहा।
किणका क बात सुनकर वह प े खुशी से नाचने लगे।
“अरे वाह! तुम तो मुझसे िम ता करने के िलये तैयार हो .... पर मेरी
िम ता से पहले तु ह मेरे उस िम नीलाभ को सही करना होगा। या तुम
ऐसा कर सकते हो?”
किणका क बात सुन वह आठो प े उड़ते ए नीलाभ के पास आये
और उसक नािसका व मुख पर बैठ गये।
उन प को देख हनुका च ककर किणका क ओर देखने लगा।
किणका ने हनुका को शांत रहने का इशारा कया और वयं अ ांग के
याकलाप को देखने लगी।
अब अ ांग के प से कसी कार क जीवनदाियनी वायु िनकली?
और वह वायु नीलाभ के शरीर म वेश कर गई।
इतना करने के बाद अ ांग वापस िचिड़या का प लेकर किणका के
कं धे पर आ बैठा।
किणका क बारीक िनगाह इस समय िसफ और िसफ नीलाभ पर थ ।
धीरे -धीरे नीलाभ क साँस अब संयत होने लग । कु छ पल के बाद
नीलाभ होश म आ गया। नीलाभ को होश म आते देख हनुका, नीलाभ के गले
से लग गया।
“आपको या हो गया था िपताजी? अगर आज ये देवी नह होत , तो
आप तो सदा-सदा के िलये सो जाते।” हनुका ने अपनी न ही भाषा म नीलाभ
को समझाने क कोिशश क ।
हनुका क बात सुन नीलाभ ने हनुका को वयं से अलग कया और
अपने हाथ जोड़कर किणका को ध यवाद देते ए कहा- “ या म जान सकता
ँ क आप कौन ह देवी? और मुझे आिखर या हो गया था?”
नीलाभ के श द सुन किणका ने अपने कं धे क ओर देखा, परं तु इस
समय अ ांग वहाँ पर नह था। अ ांग को गायब देख किणका समझ गई, क
अ ांग कसी और के सामने नह आना चाहता? इसिलये किणका ने एक
गहरी साँस भरी और फर नीलाभ को देखते ए बोल उठी- “मेरा नाम
किणका है, म अपनी शि य से एक िचिड़या का वेष धरकर इस थान से जा
रही थी, तभी मने आपको देखा। धूल के कु छ कण के आपके ांस नली म
चले जाने के कारण आप अचेत हो गये थे। मने आपके शरीर म वेशकर उन
धूल के कण को बाहर कर दया, िजससे आप मूछा से बाहर आ गये।”
किणका ने कहा।
“आपने मेरे ाण क र ा क है, इसिलये आप मुझसे जो चाह वो
मांग सकती ह।” नीलाभ ने कृ त भाव से कहा।
“तो फर कु छ ण के िलये आप हनुका को हमारे पास से दूर जाने के
िलये किहये, उसके प ात् ही हम आपसे अपनी इ छा कट करगे।” किणका
ने रह य भरे श द म कहा।
किणका के श द सुन नीलाभ को कु छ समझ म तो नह आया? परं तु
उसने हनुका को कु छ दूर जाने का इशारा कया?
नीलाभ का इशारा पाकर हनुका वहाँ से कु छ दूर चला गया।
“ठीक है, अब म आपसे अपनी इ छा कट करती ँ। ...... नीलाभ
आप मुझसे िववाह कर लीिजये। य क म आपको बा यकाल से ही अपने
पित के प म वीकार कर चुक ँ और हां मुझे आपके पहले िववाह के बारे
म सबकु छ पता है, इसिलये मुझे बहलाने क कोिशश मत क रयेगा।” किणका
ने तो एकदम से धमाका ही कर दया।
कु छ पल तक तो नीलाभ को कु छ समझ ही नह आया क किणका
एकाएक या बोल गई?
“यह आप या कह रह ह देवी? माना क आप अ यंत सुंदर ह, परं तु
म एक पि के रहते दूसरा िववाह कै से कर सकता ँ?” नीलाभ ने कहा।
अब किणका ने अपने नील व से लेकर महादेव के वरदान तक क
पूरी कहानी नीलाभ को कम श द म सुना दी- “अब आप ही बताइये नीलाभ
क म या क ं ? य द आपने मेरा वरण नह कया, तो आप मेरी मृ यु के
कारक बन सकते ह य क आपके िबना म अपने जीवन क क पना भी नह
कर सकती।”
किणका क बात सुन नीलाभ वयं को पूरी तरह से फं सा अनुभव
करने लगा।
कु छ देर तक दोन के बीच यूं ही स ाटा िबखरा रहा, फर इस स ाटे
को भंग कया किणका क आवाज ने।
“म समझ रही ँ नीलाभ क आप इस समय वयं को ब त ही
परे शानी म महसूस कर रहे ह, परं तु आपक इस सम या का िनदान मेरे पास
है, अगर आप आ ा द तो म अपने िवचार क ं ?”
किणका क बात सुन नीलाभ ने धीरे से अपना िसर िहलाकर किणका
को बोलने क अनुमित दे दी।
“नीलाभ म आपको दय से ेम करती ँ .... शरीर से नह वरन्
आपक आ मा से ेम करती ँ। मुझे पता है क पि के प म आप मुझे
अपना शरीर नह स पेगे। इसिलये अगर आप मुझे अपने शरीर के अंदर वास
करने का भी थान दे दगे, तब भी मुझे कोई आपि नह है? इससे म स पूण
जीवन आपके समीप रह सकती ँ। मुझे नह लगता क मेरी इस इ छा से
आपको कोई परे शानी होगी?” किणका ने नीलाभ के सम एक िविच सा
ताव रख दया।
“यह कै से संभव है? तुम मेरे शरीर के अंदर कस कार से वास कर
सकती हो? और शायद तु ह पता नह है क मेरे शरीर म इस पृ वी का सबसे
दुलभ िवष भरा है। इस िवष ने तो महादेव के कं ठ को भी नीला कर दया था,
फर तुम भला मेरे शरीर म कस कार रह पाओगी?” नीलाभ ने आ य भरे
श द म कहा।
“मुझे महादेव ने कण म बदलने का वरदान दया है और ऐसी ि थित
मम ांड के कसी भी वातावरण म रह सकती ँ? ... अभी कु छ देर पूव
भी मने आपके शरीर म वेश करके ही, आपक नािसका के अवरोध को
हटाया था, तो य द आपका िवष मुझ पर असर करता, तो म अभी तक यहाँ
पर जीिवत खड़ी नह होती। .... और य द म आपके शरीर म वास क ं गी, तो
कसी भी िवषम प रि थित म म आपक सहायता ही क ं गी? .... अब मान
भी जाइये नीलाभ, मने आपसे कोई पि का अिधकार तो नह मांगा, म तो
बस आपसे अपनी एक छोटी सी इ छा ही कट क है। शायद महादेव क
इ छा भी यही थी, इसिलये ही उ ह ने मुझे ऐसा वरदान दया है। .... और
हां अगर आप कह तो म आपके र के कण म जाकर िमल जाऊंगी, िजससे
जब तक आप मुझे वयं बाहर नह िनकालगे, तब तक म आपके शरीर से
बाहर नह िनकलूंगी।” किणका लगातार नीलाभ को मनाने क कोिशश करने
लगी।
आिखरकार किणका क अपार कोिशश को मूत प िमल ही गया और
नीलाभ ने किणका को अपने शरीर म रहने क आ ा दे दी।
नीलाभ क हां होते ही किणका, नीिलमा का प धारण कर कु छ देर
तक उड़कर, अपनी स ता का दशन करती रही और फर कण म
बदलकर अपने नये घर म वेश कर गई।
किणका का नील व अब पूण हो गया था और िनकुं भ का नीलपंख
भी उसके पु के पास प ंच गया था। यही तो समयच था, जो क सबको
एक अदृ य धागे म बांधे िनबाध बह रहा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-12
भूिमका यु

07.02.02, गु वार, रचट चर, सहारा म थल, मॉ रटािनया

र-पि म अ का म एक देश है, िजसका नाम है-


उ ‘मॉ रटािनया’। मॉ रटािनया देश का अिधकांश भाग िव के सबसे
बड़े रे िग तान ‘सहारा’ से िघरा आ है। सहारा रे िग तान क लंबाई 4800
कलोमीटर और चौड़ाई 1800 कलोमीटर है। यह पूण रे िग तान लगभग 92
लाख वग कलोमीटर म फै ला है।
सहारा रे िग तान के बीचोबीच 50 कलोमीटर ि या का एक िवशाल
गोला जमीन पर बना है। लोग कहते ह क यह एक ाकृ ितक आकृ ित है, जो
अंत र से भी दखाई देती है। यह आकृ ित अनेक अलग-अलग रं ग के गोल
से िन मत है। इस पूरी आकृ ित को रचट चर या ‘पृ वी क नीली आँख’
आ द नाम से जाना जाता है।

कु छ लोग इस आकृ ित को अटलां टस स यता से भी जुड़ा आ मानते


ह, तो कु छ लोग इसे कसी ाचीन स यता या एिलयन के ारा बनाये गये
अवशेष के प म जानते ह। कु छ लोग कहते ह क हजार वष पहले सहारा
रे िग तान पूरा समु से िघरा था। जैसे-जैसे इस थान पर समु का पानी
कम होता गया, वैसे-वैसे यह आकृ ित उभर कर सबके सामने आने लगी। परं तु
रे त के ऊपर इतना िवशाल गोला बना कै से इसका पूण माण कसी के पास
भी नह है?
आज भी रे त के समुंदर पर बना यह गोला अपनी नीली आँख से
अंत र को िनहार रहा था, क तभी उस गोले से लगभग 500 मीटर क
ऊंचाई पर हवा म एक ऊजा ार बनता दखाई दया और हवा के इस ार से
लकड़ी का बना एक ोन िनकलकर, नीली आँख के ऊपर च र लगाने लगा।
लकड़ी का वह ोन गोल आकृ ित का था, िजसक छत का िह सा
कसी पारदश ऊजा से बना था। उस ोन के बाहर छोटे -छोटे 4 पंखे लगे थे
और उसके अंदर 4 सीट भी लगी थ । 4 म से 3 सीट इस समय भरी दखाई
दी रही थी और उन सीट पर कलाट, वेगा व वीनस बैठे ए थे। ये वही
नकली वीनस थी, जो क टल का छाया प थी और िजसे महावृ ने
जानबूझकर वेगा के पास भेजा था।
वेगा और वीनस पीछे क सीट पर थे और कलाट आगे क सीट पर
बैठा था।
तभी कलाट ने तेज आवाज म कहा- “के मो लाज!”
कलाट के इतना कहते ही वह ोन आसमान के रं ग के समान हो गया
और नीचे से दखाई देना बंद हो गया।
“यह हम कहाँ आ गये बाबा?” वेगा ने िवशाल नीली आँख क ओर
देखते ए कहा- “ या आपको सच म लगता है क इसी थान पर ‘भूिमका’
होगी?”
“वा िण का कहा गलत नह हो सकता।” कलाट ने कहा- “भूिमका
इसी नीली आँख के अंदर बने कसी गु थान पर है? िजसे देवता ने
हजार वष पहले यहाँ िछपाया था। .... इसिलये अब बस हम यह देखना है
क इस नीली आँख के अंदर जाने का रा ता कहाँ से है? और इससे पहले क
कोई अंत र मानव यहाँ प ंचे, हम भूिमका को अपने संर ण म लेना
होगा।”
यह कहकर कलाट ने ोन को थोड़ा और नीचे ले िलया। अब ोन
नीली आँख के िब कु ल बीच वाले िह से के ऊपर उड़ने लगा।
लगभग 15 िमनट तक ोन इसी कार हवा म उड़़ता रहा, परं तु
कसी को भी उस थान पर ना तो कोई अदृ य ार दखाई दया? और ना
ही कोई अंत र मानव?
यह देख वेगा से रहा ना गया और वह बोल उठा- “बाबा, हम इस
कार आसमान म च र लगाने के थान पर नीचे उतरकर देखना होगा।
शायद नीचे उतरने पर कोई अदृ य ार िमल ही जाये?”
“नह वेगा, जाने कै से अंत र मानव को इन सभी पु तक के बारे म
पता चल गया है और वह इसे ा करने के िलये सभी थान पर फै ल गये
ह। ऐसे म यह भी हो सकता है क कोई अंत र मानव इस थान पर पहले
से ही िछप कर बैठा हो और हमारे नीचे उतरते ही हम पर आ मण कर दे।”
“तो फर ठीक है, आप आसमान म ही रिहये। म तो अब नीचे क ओर
चला।” यह कहकर वेगा ने ोन का ऊपरी ढ न हटाया और आसमान से
िबना कसी सुर ा के जमीन क ओर कू द गया?
यह देख वीनस अवाक रह गई, परं तु कलाट पर इस दृ य ने कोई भी
असर नह कया?
“तुम मुझ पर इस कार से स मोहन का योग नह कर सकते वेगा।
म तु हारा बाबा ँ ... इसिलये अब मुझ पर से इसका असर हटा दो।” कलाट
ने िबना पीछे क ओर मुड़े ए कहा।
कलाट क आवाज सुन वेगा पुनः िपछली सीट पर दखाई देने लगा,
परं तु इस समय उसके चेहरे पर एक भीनी सी मु कान थी।
इस समय ोन के ऊपर बनी छत खुली थी। तभी वेगा क जोिडयाक
वॉच से धरा त व का कण बाहर आ गया। उस कण ने वॉच से बाहर िनकलते
ही एक काले िब छू का प ले िलया और इससे पहले क कोई भी कु छ समझ
पाता, वह िब छू ोन से उछलकर नीचे कू द गया।
िब छू को नीचे क ओर िगरता आ देख कलाट ने ोन को िब कु ल ही
नीचे कर िलया। इस समय ोन रे त पर बनी नीली आँख से, मा 50 फु ट क
दूरी पर उड़ रहा था।
उधर हवा म तैरता आ िब छू नीली आँख के म य म जा िगरा। रे त
पर िगरते ही िब छू ने अपना डंक नीली आँख के म य दे मारा।
िब छू के ऐसा करते ही अचानक से नीली आँख के सभी गोले वृ ाकार
प रिध म गित करने लगे। नीली आँख के कु छ गोले ‘ लॉक वाइज’ तो कु छ
‘एंटी लॉक वाइज’ घूम रहे थे।
नीली आँख के गोल के गित करने क वजह से, उस थान पर एक रे त
का गुबार दखाई देने लगा, जो क शनैः-शनैः बढ़ता जा रहा था।
यह दृ य देख कलाट ने अपने ोन को ऊपर कर िलया।
“लगता है क मेरी घड़ी से िनकले धरा त व ने, िब छू बनकर भूिमका
से स पक थािपत कर िलया है, इसिलये भूिमका वयं अपने पास तक आने
का रा ता खोल रही है।” वेगा ने कहा- “आिखर भूिमका भी तो धरा त व से
ही िन मत है।”
लगभग 10 िमनट के बाद रे त का बवंडर वतः ही शांत हो गया। अब
सभी को वह थान िब कु ल साफ दखाई देने लगा।
परं तु रे त के समा होने के बाद वहाँ का नजारा कु छ बदला-बदला सा
दखाई दया। इस समय नीली आँख के सभी गोले जमीन से लगभग 20 फु ट
ऊपर तक आ गये थे और नीली आँख का बीच वाला भाग तो कसी मीनार
क भांित जमीन से 100 फु ट ऊपर नजर आ रहा था।
ऊंचाई से देखने पर इस समय रे िग तान का वह भाग कसी िवशाल
भूल-भुलैया क तरह नजर आ रहा था।
तभी वेगा क िनगाह मीनार के बीचोबीच रखी ‘भूिमका’ पु तक पर
पड़ी, िजसका कवर पेज हरे रं ग का था। उस पु तक से कु छ ऊपर एक नारं गी
रं ग का रे त का च हवा म नाच रहा था।
तभी वीनस को उस मीनार पर चढ़ती ई कोई चमकती सी चीज
दखाई दी?
यह देख वीनस ने चीखकर सभी का यान उस ओर कराया- “वह
चमकती ई चीज या है? जो तेजी से मीनार पर चढ़ रही है।”
वीनस क आवाज सुन सभी का यान उस ओर गया।
“यह तो पानी से बनी कोई पतली सी धारा लग रही है।” कलाट ने
कहा- “कह यह कोई अंत र मानव तो नह ? जो क अपनी कसी शि का
योग करके भूिमका तक प ंचने क कोिशश कर रहा है?”
तभी सभी के मि त क म वा िण क आवाज सुनाई दी- “सावधान
दो त , मीनार पर चढ़ने वाली व तु ‘पारा’ है, िजसे हम ‘मरकरी’ के नाम से
भी जानते ह। पारा एक रासायिनक त व है, िजसे सबसे भारी व भी कहा
जाता है और यह शि अंत र मानव ‘सलोहा’ के पास है। सलोहा अपने
शरीर को पारे म प रव तत करना जानता है। इसिलये वह वयं पारे म
प रव तत होकर, मीनार पर भूिमका को ा करने के िलये जा रहा है।
इसिलये इससे पहले क वह अपने काय म सफल हो, आपको उसे रोकना
होगा।”
वा िण क बात सुन कलाट ने तुरंत अपने अदृ य ोन को नीचे क
ओर कर दया। अब ोन तेजी से मीनार के ऊपरी भाग क ओर चल दया।
(नोटः सलोहा का एक यु अराका म लुफासा, सनूरा, रोजर, मेलाइट
व सुवया के साथ हो चुका है, जहां एला ा के मरने के बाद बाक के अंत र
मानव, सुवया क शुभाजना से डर कर भाग गये थे।)
सलोहा क गित काफ यादा थी, इसिलये वह मीनार पर पहले
प ंचने म सफल हो गया।
मीनार पर प ंचते ही सलोहा ने अपना वा तिवक प धारण कर
िलया।
अब सलोहा के सीने पर बना ‘A9’ साफ दखाई देने लगा। सलोहा
धीरे -धीरे चलता आ भूिमका क ओर बढ़ चला, क तभी वहाँ पर पड़े रे त के
कण ने एक िवशाल िब छू का आकार धारण कर िलया।
िब छू ने उ प होते ही सलोहा के ऊपर अपने िवषैले डंक का हार
कर दया। िब छू का डंक सलोहा के कं धे म जा धंसा, परं तु िब छू के डंक का
सलोहा पर कोई असर नह आ?
तभी सलोहा का हाथ एक तेज धार वाले हिथयार के प म बदल गया
और उसने एक ही वार से िब छू के िसर को ही काट दया।
िब छू का िसर कटते ही िब छू रे त म प रव तत होकर वह िबखर
गया। सलोहा एक बार फर भूिमका क ओर बढ़ने लगा।
इस बार कलाट का अदृ य ोन तेजी से नीचे आया और सलोहा से जा
टकराया।
ट र खतरनाक थी। सलोहा इस अदृ य वार से फसलता आ मीनार
से नीचे क ओर जाने लगा, परं तु आिखरी समय म सलोहा अपने हाथ से
‘ क’ बनाकर मीनार से लटक गया।
उधर ोन से ट र मारने के बाद, कलाट ने ोन को वह मीनार के
एक कोने पर उतार िलया। तब तक सलोहा अपने शरीर को िनयंि त करता
आ पुनः मीनार के ऊपर आ गया।
अब सलोहा ने ना जाने या कया क उसक आँख पर पारे क एक
पत नजर आने लगी। कु छ ही देर म यह पारे क पत एक काले रं ग के च म म
प रव तत हो गई।
एक पल म ही वेगा व कलाट को समझ आ गया क उस च म के
भाव से सलोहा को अब उनका ोन दखाई देने लगा है, य क सलोहा
अब एकटक कलाट के ोन को देख रहा था।
तभी सलोहा ने अपना मुंह खोल दया। सलोहा के ऐसा करते ही
सलोहा के मुंह से चाँदी के रं ग का धुंआ िनकलने लगा, जो क तेजी से कलाट
के ोन क ओर बढ़ा।
कलाट व वेगा सलोहा के इस वार को समझ नह पाये।
ोन तक प ंचते-प ंचते धुंए ने बादल का प ले िलया। कु छ ही पल
म उन बादल ने ोन को पूरा का पूरा घेर िलया।
मा 5 सेके ड के बाद ही बादल, ोन को छोड़कर आगे क ओर बढ़
गये। परं तु अब ोन अपने थान पर नह था। अब ोन के थान पर कु छ
राख पड़ी दखाई दे रही थी।
यह देख कलाट ने सभी को सावधान कया- “हम इन बादल क
पकड़ से बच कर रहना है य क जो बादल हमारे ोन को राख म प रव तत
कर सकते ह, वह हमारा हाल तो और भी बुरा कर दगे।”
तभी वह बादल पुनः पलटकर सभी क ओर आने लगे। यह देख
अचानक से वीनस क पीठ से 1 जोड़ी पंख िनकल आये। वीनस के पंख को
देख वेगा आ य से भर उठा।
“यह वीनस क कौन सी शि है? िजसके बारे म वीनस ने कभी भी
मुझे नह बताया?” वेगा ने मन ही मन सोचते ए कहा- “िपछले कु छ दन
से वीनस का वहार भी मुझे कु छ अजीब सा लग रहा है। या मुझे वीनस के
मि त क को पढ़ना चािहये? ... नह - नह .... यह सही नह होगा। ... हमारा
र ता तो िव ास क डोर से बंधा है। ऐसे म वीनस के मि त क को पढ़कर म
उस िव ास को ठे स नह प ंचाऊंगा।”
उधर वीनस ने अब अपने पीठ पर उगे पंख को तेज-तेज िहलाना शु
कर दया। वीनस के पंख के ती वाह के कारण बादल अब उस मीनार से
दूर होते जा रहे थे।
इस समय सभी का यान वीनस क ओर देख, सलोहा ने आगे बढ़कर
वीनस के गले को पकड़ िलया और उसे हवा म उठा दया।
एक सेके ड म ही वीनस का दम बुरी तरह से घुटने लगा। यह देख
कलाट के हाथ म एक तलवार दखाई देने लगी।
कलाट ने िबना मौका दये सलोहा का िसर उसक गदन से उड़ा दया।
िसर के कटते ही सलोहा अपने थान पर िगर पड़ा और वीनस उसक पकड़
से छू ट गई।
सलोहा क पकड़ से छू टते ही वीनस तेज साँस भरने लगी।
तभी मीनार पर पड़ा सलोहा का िसर व धड़ िपघलकर आपस म िमल
गये और अब उस थान पर एक नया सलोहा खड़ा होने लगा।
यह देख कलाट ने अपने व से 4 मटर के दाने के समान लाल रं ग के
छोटे गोले िनकाले और उसे दोबारा बन रहे सलोहा के पास फक दये।
कलाट के हाथ से िनकले लाल गोले कसी बम के समान तेज धमाके
करने लगे। इन धमाक के कारण सलोहा के शरीर के टु कड़े उछलकर दूर-दूर
तक जा िगरे और रे त म जाकर िमल गये।
यह देख सभी ने राहत क साँस ली और भूिमका क ओर बढ़ने लगे।
परं तु जैसे ही सभी भूिमका के पास तक प ंचे, भूिमका के ऊपर नाच
रहा रे त का च तेजी से नीचे आया और सभी को अपनी िगर त म ले िलया।
रे त के च वात म फं सकर सभी नाचने लगे। सभी के पैर हवा म थे
और रे त के च वात के म य नाच रहे थे।
तभी वेगा ने अपने हाथ म पहनी जोिडयाक वॉच को खोलकर ऊपर
क ओर उठा दया। वेगा के ऐसा करते ही हवा म नाच रहे सभी रे त के कण
जोिडयाक वॉच म समा गये।
“वाह! यह ई ना बात।” कलाट ने वेगा क शंसा करते ए कहा।
तभी पूरी मीनार को एक तेज झटका लगा, िजसके कारण सभी अपनी
जगह से िहल गये।
“अब यह झटका कै सा है? या यह भूकंप का झटका है?” वीनस ने
मीनार के चारो ओर देखते ए कहा- “अरे सलोहा के टकड़े भी अपने थान
से गायब ह। कह यह उसी के ारा फै लाई कोई नई परे शानी तो नह ?”
तभी वीनस को रे त के अंदर से िनकलता आ िवशाल ‘साही’ दखाई
दया, जो क चाँदी के समान चमचमा रहा था।
(साहीः एक कं टीला जीव, िजसके शरीर पर काँटे िनकले ए होते ह।
इस जीव को अं ेजी भाषा म पोकू पाइन के नाम से जाना जाता है।)
“सावधान वेगा, सलोहा एक नये प म पुनः वापस आ रहा है।”
वीनस ने सभी को सावधान करते ए कहा- “और इस बार इसका आकार
और भी बड़ा है। शायद सलोहा पृ वी के अंदर का मरकरी पीकर और भी
िवशालकाय हो गया है।”
तभी रे त के नीचे क धरती म उथल-पुथल सी शु हो गई और सभी
थान से अनेक धातु के टु कड़े िनकलकर रे त के ऊपर आने लगे।
वह सभी टु कड़े बाहर आते ही जाने कै से िपघलकर सलोहा के शरीर म
िमलते जा रहे थे? इसी के साथ सलोहा के शरीर का आकार भी, हर बीते
ण के साथ बढ़ता जा रहा था।
साही बने सलोहा ने अपने शरीर को एक जोर का झटका दया।
सलोहा के ऐसा करते ही उसके शरीर से असं य कांटे िनकलकर, मीनार पर
खड़े सभी लोग क ओर बढ़े।
यह देख कलाट ने िबना देर कये अपने व म िछपी, एक लाल
चादर को उठाकर हवा म फक दया।
कलाट के ारा फक गई लाल चादर तेजी से उड़ती ई सभी के आगे
आ गई और हवा म आ रहे सभी कांटे उस चादर म फं स गये।
चादर कलाट के इशारे पर सामने से हट गई। कलाट ने एक बार फर
अपनी सूझबूझ से वेगा व वीनस को बचा िलया।
तभी वीनस ने एक बार फर वेगा को च कत कर दया। वीनस के
हाथ से हीरे के समान कु छ संरचनाएं बाहर िनकल और हवा म उड़ती ई
सलोहा के शरीर म जा धंस ।
उन हीर के सलोहा के शरीर म धँसते ही सलोहा का शरीर तेजी से
बफ के समान जमने लगा।
सभी वीनस के इस कारनामे को देख रहे थे, पर इसी ण सभी से चूक
हो गई। य क कसी क नजर अब लाल चादर म धंसे उन साही के काँट
क ओर नह थी, जो क िपघलकर चादर से अलग हो गये थे।
िपघलने के बाद उन काँट ने एक तलवार का प ले िलया और इससे
पहले क कसी का भी यान उसक ओर जाता? वह तलवार पूरी क पूरी
वीनस के पेट म घुस गई।
यह देख वेगा व कलाट के मुंह से एक तेज चीख िनकल गई-
“वीनसऽऽऽऽऽऽऽ!”
वीनस अब अपने थान पर िगर गई, परं तु इस समय ना तो वीनस के
चेहरे पर दद के कोई भाव थे? और ना ही उसके शरीर से खून क एक बूंद
िनकली थी?
कलाट व वेगा आ य भरे भाव से वीनस के िगरे पड़े शरीर को देखने
लगे।
तभी वेगा ने वीनस के शरीर से तलवार ख चकर बाहर िनकाली और
उसे मीनार से दूर उछाल दया।
“तुम .... तुम वीनस नह हो सकती। कौन हो तुम?” वेगा ने वीनस क
ओर देखते ए कहा- “और मेरी वीनस कहाँ पर है?”
परं तु इससे पहले क वीनस कोई जवाब दे पाती, उसका शरीर वतः
ही अपने थान से गायब हो गया। यह देख वेगा व कलाट अवाक खड़े रह
गये।
“ या आपको इस बारे म कु छ भी पता है बाबा क मेरी वीनस कहाँ
गई?” वेगा ने उलझन भरे वर म कलाट से पूछा।
“मुझे भी इस बारे म कु छ नह पता है वेगा?” कलाट ने वेगा को देखते
ए ‘ना’ म िसर िहलाते ए कहा- “परं तु अभी अपना सारा यान सलोहा
पर रखो। वीनस के रह य को हम बाद म अव य पता कर लगे।”
कलाट क बात सुन वेगा क िनगाह वापस साही बने सलोहा क ओर
गई। इस समय साही का आकार पृ वी के अंदर से िनकली धातु के कारण,
मीनार से भी ऊंचा हो गया था।
अब वेगा ने अपनी घड़ी का ढ न खोल कर, उसम उपि थत पूरे रे त के
कण को बाहर िनकाल दया।
रे त के कण बाहर िनकलते ही एक साथ, सभी रािशय का आकार लेने
लगे। कु छ ही पल म सभी 12 रािशयां अलग-अलग प म वेगा के सामने
खड़ी थ ।
“सब िमलकर इस सलोहा को समा कर दो।” सभी रािशय को देखते
ए वेगा ने चीखकर कहा।
वेगा का आदेश िमलते ही सभी रािशयां एक साथ िवशाल सलोहा क
ओर बढ़ने लग ।
संहमानव ने अपने पंज और दांत से साही बने सलोहा के पैर पर
आ मण कर दया। िब छू मानव अपनी तलवार व डंक का वार साही पर
करने लगा और अ मानव ने अपने धनुष से साही पर तीर क बौछार कर
दी।
बाक क रािशयां भी अपने-अपने तरीक से साही पर टू ट पड़ी, परं तु
सभी रािशय के वार बेअसर होते दखाई दे रहे थे। अब सलोहा ने एक
िवशाल उड़ने वाले प ी का प धारण कर िलया और मीनार के चारो ओर
उड़ने लगा।
सलोहा को मीनार के ऊपर उड़ते देख कलाट ने अपनी लाल चादर को
आसमान क ओर उछाल दया। लाल चादर हवा म उछलते ही अपना
आकार बढ़ाने लगी। कु छ ही देर म लाल चादर ने आसमान को ढक िलया।
प ी बना सलोहा जब तक कलाट के इस वार को समझता, लाल
चादर हवा म उड़ रहे सलोहा को अपने अंदर सैकड़ बार लपेट िलया। लाल
चादर के इस वार से सलोहा मीनार के नीचे जा िगरा, परं तु चादर अभी भी
सलोहा को कोई भी मौका नह दे रही थी और लगातार ल बी होती ई
सलोहा को लपेटती जा रही थी।
कु छ ही देर म मीनार के नीचे लाल चादर का एक िवशाल गोला बना
दखाई देने लगा।
तभी लाल चादर बीचो-बीच से फट गई और उस थान पर एक बड़ा
सा ैगन खड़ा नजर आने लगा।
उस ैगन क पूंछ कांटे के समान थी, जो क अब कसी च क भांित
तेजी से नाच रही थी। ैगन क पूंछ क वार से ही लाल चादर फटी थी।
अब सलोहा ोध म सभी को देखने लगा।
तभी सलोहा ने दोबारा से अपना प प रव तत कया। अब वह एक
िवशाल ि ल मशीन बन गया और तेजी से मीनार के पास क रे त म नीचे
घुस गया।
वेगा और कलाट क िनगाह तेजी से चारो ओर फरने लग । उ ह पता
था क सलोहा अभी फर से कसी थान से िनकलेगा?
परं तु ऐसा नह आ, बि क मीनार जोर से िहलती ई नीचे क ओर
िगरने लगी। शायद सलोहा ने रे त के नीचे से मीनार क न व को ही नुकसान
प ंचा दया था।
मीनार अब भरभराकर नीचे िगर गई। कु छ रािशयां मीनार के मलबे
म उसके नीचे दब ग ।
कलाट व वेगा भी मीनार को िगरते देख कू द कर मीनार से नीचे आ
गये।
“सावधान रहना वेगा, सलोहा कसी भी थान से रे त से िनकलकर
हम पर हमला कर सकता है?” कलाट ने वेगा को सावधान करते ए कहा।
तभी कलाट को अपने जूते के नीचे कु छ िहलता आ महसूस आ। यह
महसूस होते ही कलाट ने उछलकर अपना जूता खोल दया। जूते के अंदर
कु छ भी नह था, परं तु जूते म अब एक छे द प दखाई दे रहा था।
तभी कलाट के मुंह से कराह िनकल उठी- “आह!”
कलाट क कराह सुनकर वेगा कलाट के पैर क ओर देखने लगा। तभी
वेगा क िनगाह कलाट क खाल के नीचे चलती ई कसी चीज पर पड़ी, जो
क तेजी से कलाट के शरीर के ऊपर क ओर जा रही थी।
अब कलाट के मुंह से तेज चीख िनकल गई।
तभी वह चीज कलाट के पेट व गदन से होती ई उसके मुंह तक प ंच
गई। अगले ही पल कलाट िबना कु छ बोले ही धड़ाम से नीचे िगर गया।
अब कलाट के मुंह और आँख से िपघला आ पारा बाहर िनकलने
लगा। एक ही पल म कलाट मु यु को ा हो गया।
कलाट को मरते देख वेगा के मुंह से एक तेज चीख िनकल गई-
“बाऽऽऽऽऽऽबाऽऽऽऽऽऽऽ।”
वेगा एक पल म भागते ए कलाट के पास जा प ंचा और कलाट का
िसर अपनी गोद म रखकर तेज आवाज म िवलाप करने लगा।
“नह बाबा, आप हम इस कार छोड़कर नह जा सकते। उ ठये
बाबा, हम एक साथ िमलकर इस सलोहा को अव य हरा दगे ..... उ ठये
बाबा उ ठये ..... नह तो म भाई और ि काली को या मुंह दखाऊंगा? उ ह
कै से बताऊंगा क मेरे ही सामने सलोहा ने आपको मौत के घाट उतार दया?
.... अरे िध ार है मुझ पर और मेरी शि य पर, जो क समय रहते मेरे
बाबा को नह बचा सक । .... उ ठये बाबा उ ठये।”
वेगा बार-बार कलाट को झकझोर रहा था, परं तु जो आ मा अब शरीर
से िनकल चुक थी, उसका वापस आना संभव नह था।
उधर सलोहा रे त के अंदर ही अंदर धीरे -धीरे वेगा क ओर भी बढ़ रहा
था, परं तु वेगा उस अंजान खतरे से बेखबर बेसुध सा कलाट के शरीर के पास
पड़ा िवलाप कर रहा था।
जाने िनयित ने वेगा के भिव य म या िलख रखा था? परं तु जो भी हो
अंत र का जीव इस समय पृ वी के यो ा पर भारी पड़ रहा था।
◆ ◆ ◆
आच का रह य

07.02.02, गु वार, नेिमरॉस ह, ए रयन आकाशगंगा


जे स को अपने िसर म तेज दद होता आ महसूस आ। जे स को ऐसा
लग रहा था क उसका शरीर हवा म उड़ रहा है। यह महसूस होते ही जे स
ने तेजी से अपनी आँख खोल द ।
जे स को अपने चारो ओर ती सफे द काश दखाई दया।
उस ती काश को महसूस कर, जे स ने पुनः अपनी आँख बंद कर
ल । परं तु कु छ ही ण के बाद जे स ने धीरे -धीरे िमचिमचाते ए अपनी
आँख को खोल दया।
कु छ ही देर म जे स क आँख उस सफे द काश को देखने म अ य त
हो ग ।
अब जे स ने अपने चारो ओर नजर दौड़ा । वह इस समय एक
िवशाल थान म ि थत एक बेड पर लेटा आ था। उस थान पर जमीन,
आसमान, दांये-बांये हर ओर िसफ सफे द रं ग ही दखाई दे रहा था। यहाँ तक
क िजस बेड पर लेटा था, वह भी सफे द रं ग का था और उस बेड पर िबछी
चादर भी सफे द रं ग क थी।
“यह कौन सी जगह है, यहाँ पर दूर-दूर तक सफे द रोशनी के िसवा
कु छ है ही नह ?”
जे स ने अपने मि त क पर जोर डाला। धीरे -धीरे उसे सबकु छ याद
आने लगा क कै से वह शलाका के एटनल लेम म कू दने के बाद, यू ान से
वापस आकिडया क ओर वापस जा रहा था? क तभी सड़क पर बने एक
रोशनी के सुनहरे ार म यू ान समा गई। उसके बाद जे स ने वयं को एक
सु वालामुखी के अंदर पाया, जहां जे स को अपने अंदर एक अतीि य
शि का अहसास आ। जे स उस वालामुखी से िनकलकर एक बूमरग जैसे
अंत र यान के पास प ंच गया। अभी जे स उस यान को देख ही रहा था क
तभी यान से िनकली करण ने जे स को अपनी ओर ख च िलया और इसके
बाद जे स पर बेहोशी छा गई। आँख खुलने के बाद जे स ने अपने आप को इस
थान पर पाया।
“ या यह थान उस अंत र यान के अंदर है या फर अंत र यान
के जीव मुझे उठाकर कसी और थान पर ले आये ह?” जे स मन ही मन
बड़बड़ाता आ बेड से उतरकर नीचे खड़ा हो गया।
ले कन इससे पहले क जे स कोई हरकत करता क तभी उस सफे द
थान पर एक ार खुला और उसम से एक ब त ही खूबसूरत लड़क
िनकलकर अंदर आ गई।
लगभग 5 फु ट 8 इं च लंबी वह लड़क देखने म को रयन तीत हो रही
थी। दूध सा सफे द रं ग और उस पर घने काले बाल उसके ि व को िनखार
रहे थे। उस लड़क ने अपने शरीर पर एक सफे द रं ग क चु त ेस पहन रखी
थी। लड़क क कमर पर एक सफे द बे ट लगी थी, िजसके बीचो-बीच एक
सुनहरे रं ग का िसतारा लगा था।
इतनी सारी सफे दी के बीच उस लड़क क बे ट पर बंधा िसतारा,
अपनी अलग ही चमक िबखेर रहा था। जे स मं मु ध सा उस लड़क को
देखने लगा। उस लड़क क खूबसूरती म जे स इतना यानम हो गया क
कु छ देर के िलये वह यह भी भूल गया क इस समय वह है कहाँ पर?
लड़क चलती ई जे स के पास प ंची और अं ेजी भाषा म बोल
उठी- “अब कै सा महसूस हो रहा है जे स?”
उस लड़क क आवाज सुनकर जे स के दमाग को एक झटका सा
लगा।
“तुम .... तुम मेरा नाम कै से जानती हो? .... और मुझे तु हारी आवाज
कु छ जानी-पहचानी सी य लग रही है? कौन हो तुम?” जे स ने हड़बड़ाते
ए उस लड़क से पूछ िलया।
“अरे वाह! ... मेरी इतनी तारीफ करते थे और अब मेरी आवाज भी
नह पहचान पा रहे।” लड़क ने मु कु राते ए कहा- “चलो, तु ह यादा
परे शान नह करते ह। .... मेरा नाम आच है जे स। अब तो मुझे पहचान
गये।”
“आच ऽऽऽऽ!” जे स आच का प रचय पाकर बुरी तरह से च क गया।
अब जे स उस आवाज को पहचान गया था।
“पर ... पर तुम तो एक लड़क हो। जब क आच तो एक क यूटर है।
... तुम आच कै से हो सकती हो?” जे स ने हैरानी भरे भाव से कहा।
“म ही आच ँ जे स और क यूटर के मा यम से म ही तुम लोग से
बात कर रही थी। .... पर यादा हैरान मत हो य क यह रह य तो शलाका
को भी नह पता।” आच क मु कु राहट बद तूर जारी थी- “वैसे एक रह य
क बात और बता देती ँ क तुम इस समय पृ वी पर नह हो, बि क पृ वी
से लाख काशवष दूर ए रयन आकाशगंगा म ि थत एक ह नेिमरॉस पर
हो। .... िजसके राजा आगस, शलाका के िपता ह। ... तो फर चलो देर ना
करते ए तु ह सीधे आगस से िमलाती ँ। ... अब वही तु ह आगे क सभी
बात बतायगे।”
यह कहकर आच ने जे स का हाथ पकड़ा और जे स को लेकर उस
ार से बाहर क ओर िनकल गई।
जे स को आच क वचा काफ मुलायम तीत हो रही थी।
उस ार से िनकलने के बाद जे स ने वयं को एक काँच क ूब म
पाया, िजसके बाहर क ओर शायद सागर था य क बाहर के पानी म
िविच कार के िवशाल जलीय जीव घूम रहे थे।
वह काँच क ूब पानी के अंदर कसी सुरंग क भांित दूर तक फै ली
ई थी? कु छ आगे चलने के बाद जे स को उस ूब म एक बड़ी सी काँच क
कृ ि म मछली दखाई दी, िजसक आँख के थान पर 2 सच लाइट लगी ई
थ।
वह काँच क मछली ऊपर से खुली ई थी और उसके अंदर बैठने के
िलये 2 काँच क सीट लग थ ।
आच , जे स को लेकर उस मछली म बैठ गई। दोन के बैठते ही
मछली के ऊपरी भाग को भी काँच के कवच ने पूरी तरह से ढक िलया। अब
वह काँच क मछली िब कु ल एक छोटी सी पनडु बी के समान लग रही थी।
तभी सीट से िनकली एक बे ट ने जे स और आच को सीट से बांध
दया।
जे स को पता नह था क उसे कस दशा म जाना है? परं तु बे ट को
देखकर वह इतना तो समझ गया क इस पनडु बी सरीखी जलीय यान क
गित तो तेज होने वाली थी। जे स अब अपने चारो ओर पानी म घूम रहे
िवशाल जलदै य को देखने लगा।
तभी मछलीनुमा जलयान उस काँच क ूब म फसलना शु हो गई
और इसी के साथ जे स क जलीय रोलरको टर या ा शु हो गई।
मछलीनुमा जलयान क गित इतनी तेज थी क कु छ देर बाद जे स को
अपने अगल-बगल के सभी दृ य दखाई देना बंद हो गये। अब उसे अपने
अगल-बगल बस कु छ सुनहरी लक र गित करती ई दखाई दे रही थ ।
लगभग 10 िमनट इसी गित से या ा करने के बाद उस जलयान क
गित धीमी होने लगी। अब जे स को पानी के अंदर एक िवशाल सुनहरा महल
बना आ दखाई देने लगा।
परं तु तभी अचानक से काँच क ूब आगे समा होती ई दखाई
दी। िजस थान पर काँच क ूब समा हो रही थी, उस थान पर सागर
का पानी एक दीवार के समान खड़ा था और जे स ने जो महल पानी के अंदर
देखा था, वह पानी के बाहर क ओर बना था।
“अरे -अरे ! यह ूब तो आगे समा हो रही है, यह जलयान अब हम
आगे कै से ले जायेगा?” जे स ने घबराकर आच क ओर देखते ए कहा।
जे स क बात सुन आच ने जे स को मु कु राकर देखा, परं तु कु छ कहा
नह ?
तभी वह जलयान पानी क दीवार को काटता आ हवा म आ गया।
जलयान के हवा म आते ही जे स ने कसकर आच का हाथ पकड़ िलया। जे स
को लगा क अब वह जलयान सीधे वहाँ से जमीन पर िगरे गा, परं तु ऐसा
आ नह ।
अचानक से मछलीनुमा जलयान ने अपना आकार बदल िलया। अब
वह काँच का एक प ी नजर आने लगा, िजसके दोन ओर 2 पंख थे।
अब वह जलयान, कसी वायुयान के समान अपने काँच के पंख
फड़फड़ाता आ, वायुमाग से सुनहरे महल क ओर बढ़ने लगा।
काँच के प ीनुमा यान म बैठकर हवा म उड़ना, जे स के िलये एक
िविच कं तु सुखद अहसास था। तभी जे स क नजर उस पूरे थान पर गई।
वह थान ब त ही िवशाल था, जो क चारो ओर से सागर के बीच
बना था। यहाँ तक क उसके आकाश म भी, सागर के पानी क दीवार थी,
परं तु उस पूरे थान पर बूंद भर भी पानी नह था।
ब त ही िविच तकनीक थी, िजसने सागर के बीच एक िवशाल शहर
का िनमाण कया था। जी हां, उस सुनहरे महल के चारो ओर एक भ व
िवकिसत नगर था, जहां पर अनेक वायुयान अब उड़ते दखाई देने लगे थे।
धीरे -धीरे हवा म तैरता आ जे स का वायुयान महल क िवशाल छत
पर उतरा।
वायुयान के उतरते ही ब त से सैिनक ने उस वायुयान को घेर िलया।
वह सभी सैिनक मनु य क ही भांित दख रहे थे, बस उन सभी के कान
मनु य से कु छ बड़़े थे।
वायुयान के कते ही उसका ऊपरी कवच वतः ही खुल गया और
आच के इशारे पर जे स िनकलकर वायुयान से बाहर आ गया।
जैसे ही जे स व आच वायुयान से बाहर िनकले, 2 सैिनक ने दोन के
सामने एक 4 फु ट क आयताकार सुनहरी लेट रख दी।
जे स को समझ नह आया क वह उस सुनहरी लेट का या करे ?
इसिलये वह एक बार फर से आच क ओर देखने लगा।
तभी आच जमीन पर रखी उस लेट पर खड़ी हो गई। अब उसने
जे स को भी ऐसा करने का इशारा कया।
आच का इशारा समझ जे स भी आच क ही भांित उस सुनहरी लेट
पर खड़ा हो गया।
आच ने जे स को लेट पर खड़े होते देख, अपने पैर से लेट पर ह क
चोट क । आच के ऐसा करते ही जे स और आच के पीछे 2 काँच क सीट
कट हो ग , िजसका िनचला िसरा मुड़कर सुनहरी लेट से जुड़ा आ था।
आच वयं एक सीट पर बैठ गई। आच को बैठते देख जे स भी दूसरी
सीट पर बैठ गया। अब वह दोन सीट, सुनहरी लेट के साथ हवा म तैरती
ई महल के एक ओर बढ़ गई।
जे स, नेिमरॉस ह क अित आधुिनक तकनीक को देख कर पूरी तरह
से हैरान था।
वैसे जे स क यह नई या ा भी कु छ देर म समा हो गई? अब जे स
ने वयं को एक भ दरबार म पाया, िजसके बीचोबीच एक ऊंचे से
संहासन पर एक ि िवराजमान था।
उस ि ने अपने शरीर पर कसी यो ा के समान सोने का भारी
कवच पहन रखा था। उस ि के बाल व दाढ़ी पूरी तरह से सफे द थ , परं तु
देखने म वह ि अभी भी काफ शि शाली दख रहा था।
जे स व आच के लेट से उतरते ही लेट पुनः सामा य हो गई और 2
सैिनक ने उस लेट को वहाँ से हटा दया।
“यह महाराज आगस ह। शलाका के िपता और इस नेिमरॉस ह के
राजा।” आच ने धीरे से जे स से कहा।
आच के श द सुनकर जे स ने झुककर आगस को अिभवादन कया
और फर शांत भाव से आगस के कु छ बोलने का इं तजार करने लगा?
तभी आगस अपने संहासन से उठ खड़े ए और चलते ए जे स के
समीप आ प ंचे।
“म जानता ँ जे स क इस समय तु हारे पास का भंडार होगा।
इसिलये जो कु छ भी पूछना चाहते हो, पूछ सकते हो।” आगस ने जे स के कं धे
पर हाथ रखते ए कहा।
“सर! म सबसे पहले आच के बारे म सबकु छ जानना चाहता ँ।”
जे स ने आच क ओर देखते ए कहा।
“सबसे पहले तो हम सर मत कहो य क हमारे रा य का कानून है
क सभी लोग एक दूसरे को नाम से स बोिधत करते ह, भले वह कसी भी
पद पर ह ? यहाँ ऊंच-नीच जैसा कु छ भी नह है? और यहाँ सभी नाग रक
को बराबर के अिधकार ह। .... अब आते ह तु हारे पर ... ले कन आच
के बारे म बताने के पहले म तु ह शलाका क कहानी सुनाना चाहता ँ, िजसे
सुनने के बाद तुम आच के बारे म बेहतर समझ पाओगे।”
इतना कहकर आगस ने कहानी को सुनाना शु कर दया- “यह बात
उस समय क है, जब मने पहली बार शलाका क माँ ऐलेना को नेिमरॉस पर
देखा था। ऐलेना पहली नजर म ही मुझे भा गई। मने ऐलेना के सामने िववाह
का ताव रखा। ऐलेना इस शत पर मुझसे िववाह करने को तैयार हो गई
क म उसे कभी भी पृ वी पर जाने के िलये मना नह क ँ गा। मुझे ऐलेना के
इस ताव से कोई आपि नह थी, इसिलये कु छ दन बाद हमारा िववाह
हो गया। िववाह के प ात् ऐलेना अपना काफ समय पृ वी पर िबताने लगी।
बाद म मुझे पता चला क ऐलेना को कसी ितिल मी अंगूठी क तलाश है?
िजसे पहनकर वह कसी ितिल म म वेश करना चाहती है? मने अपने वचन
के अनुसार कभी भी ऐलेना को मना नह कया। धीरे -धीरे हमारे 8 ब े ए।
िजनम 7 लड़के थे और एक सबसे छोटी लड़क थी। लड़क का नाम मने यार
से शलाका रखा। चूं क शलाका 7 भाइय के बाद ई थी, इसिलये मुझे
शलाका से ब त लगाव था। म शलाका को वयं से यादा दूर नह रखता
था। परं तु जब शलाका 5 वष क ई, तो मेरी ऐलेना से, पृ वी पर अिधक
समय िबताने के कारण तकरार हो गई। इस तकरार के फल व प ऐलेना
मुझसे ोिधत होकर हमेशा-हमेशा के िलये पृ वी पर चली गई। ऐलेना अपने
साथ सभी ब को भी ले गई। म शलाका से िमलने बीच-बीच म पृ वी पर
जाने लगा। परं तु जब शलाका 10 वष क हो गई, तो अचानक से ऐलेना ने
शलाका को कह पढ़ने के िलये भेज दया? मेरे बार-बार पूछने पर भी ऐलेना
ने मुझे शलाका का पता नह बताया। इस बात पर म ऐलेना से इतना नाराज
हो गया क मने ऐलेना को कभी ना देखने क कसम खा ली? इसिलये मने
अपना आकिडया नामक यान वह ऐलेना के पास छोड़ दया। म जानता था
क शलाका कभी तो आकिडया म वेश करे गी? इसिलये मने एक आच
नामक एक ‘क यूटर’ का िनमाण कया और आकिडया के सारा िनयं ण
उसके हाथ म दे दया। 10 वष के बाद शलाका अपनी पढ़ाई पूरी करके
वापस लौटी और उसने आकिडया म वेश कया। इसके बाद शलाका क हर
एक जानकारी आच िछपकर मुझे भेजती रही और शलाका को इस बात का
पता ही नह चला। बाद म मुझे पता चला क शलाका ने पढ़ाई के दौरान
अनेक द शि यां ा क ह। मुझे यह जानकर काफ खुशी ई। एक रात
म शलाका से िछपकर आकर िमला और मने उसे नेिमरॉस चलने के िलये
कहा, परं तु शलाका भी िब कु ल अपनी माँ पर गई थी, उसने मेरे थान पर
अपनी माँ और पृ वी को चुना। कु छ समय के बाद ऐलेना क मृ यु हो गई।
उस समय शलाका अंितम बार मुझसे िमली, तब वह ऐलेना का शरीर मुझे
सुपुद करने के िलये अंितम बार नेिमरॉस पर आई थी। यहाँ से जाने के कु छ
समय बाद मुझे आच से पता चला क शलाका कसी कारण से अ यंत
परे शान है? ले कन इससे पहले क म शलाका या उसके 7 भाइय के िलये
कु छ कर पाता, अचानक से एक रात शलाका अपने भाइय के साथ कह
गायब हो गई? मने उसके बाद आच से स पक करने क भी ब त कोिशश
क , परं तु शलाका ने आच क काय णाली और सुर ा व था को भी बंद
कर दया था। इसिलये मुझे उनका कह भी पता नह चला? इस घटना के
बाद म िवि क तरह से 5000 वष तक शलाका और उसके भाइय को
ढू ंढता रहा। परं तु ना तो शलाका का कह पता चला और ना ही आकिडया
का? 5000 वष के बाद शलाका अपने भाइय के साथ न द से जागी और
उसने आकिडया क सुर ा व था को फर से शु कर दया। तब मुझे पता
चला क शलाका कसी आयन नाम के ि से ेम करती थी और उस
आयन क मृ यु हो जाने के कारण, शलाका ने वयं को 5000 वष के िलये
सुलाया था। इस बार म कसी भी क मत पर शलाका व उसके भाइय को
पृ वी से नेिमरॉस लाने के िलये यास करने लगा? कु छ दन पहले शलाका ने
अपने भाइय को तो नेिमरॉस भेज दया, परं तु वयं फर कह गायब हो
गई? इस बार भी आच उसे ढू ंढने म असफल रही। इसिलये मने अपनी
वै ािनक शि य का योग कर तु ह यहाँ बुला िलया। अब तुम ही मेरी
आिखरी उ मीद हो जे स। य क मुझे पता है क िजस थान पर आच क
शि यां काय नह करत , उस थान पर भी तुम शलाका के साथ जा चुके
हो। तुम शलाका के कई दो त से भी िमल चुके हो और धीरे -धीरे शलाका
तु ह भी अपना दो त मानने लगी है। .... अब बताओ जे स, या तुम शलाका
को यहाँ लाने म मेरी सहायता करोगे?”
“देिखये सर! ... म ... म ... मेरा मतलब है क आगस, म शलाका क
इ छा के िव कोई भी काय नह क ँ गा। हां म उसे समझाने क कोिशश
अव य क ँ गा क वह यहाँ आकर आपके साथ रहे। परं तु म िजतना शलाका
को समझता ँ, वह पृ वी को छोड़कर यहाँ रहने नह आयेगी।” जे स को जो
भी सच लगा, उसने िबना डरे आगस को बता दया।
“म एक चीज और पूछना चाहता ँ आगस।” जे स ने कु छ देर क कर
आगस का चेहरा देखा और पुनः बोल उठा- “आपने कहा क आपने आच
नामक क यूटर का िनमाण कया, परं तु यह आच तो एक लड़क है, जो क
देखने म िब कु ल पृ वी वासी लगती है।”
“यह आच लड़क नह है। यह एक रोबोट है, िजसका िनमाण मने
कया है। परं तु अ य रोबोट क तरह इस आच के अंदर लोहा नह भरा है।
यह पूणतया ‘मानव सेल’ से िन मत है। मतलब इसक नस म भी खून
दौड़ता है, इसके भी शरीर का माँस असली है, इं सान क भांित इसम भी
भावनाएं ह और यह मनु य क भांित सोच-समझ कर वयं अपने िनणय
लेने म भी समथ है। हां यह बात अलग है क इसके मि त क म ांड क
ब त सी जानका रयां ह और यह कसी भी क यूटर से अपने ‘सेल’ के
मा यम से जानका रयां िनकालने म समथ है। अगर दूसरे श द म कह, तो
आच एक कार का ‘सुपर मानव’ है, जो कसी यूटट क तरह से
शि शाली है।”
आगस क बात सुनकर जे स हैरान हो गया। उसे तो िव ास ही नह
हो पा रहा था क इतनी सुंदर लड़क ई र क नह बि क कसी अंत र के
जीव क रचना है?
“अब मुझे जानना है क इस ह पर म वयं को इतना शि शाली
कै से महसूस कर रहा ँ क म अपने हाथ से बड़ी-बड़ी च ान को तोड़ रहा
ँ।” जे स ने पुरानी घटना को याद करते ए कहा- “ या मुझम भी कसी
कार क शि वेश कर गई है?
“मनु य के शरीर क आंत रक संरचना ब त ही सू म व ज टल होती
है। कहते ह क मनु य के शरीर म स पूण ांड समाया है। ठीक इसी कार
येक ह का भार एवं उसका गु वाकषण भी अलग होता है। इ ह दोन
या के फल व प येक मनु य का शरीर अलग-अलग ह पर अलग-
अलग ढंग से ित या देता है। तो अब तुम यह समझ लो क नेिमरॉस पर
तुम एक महाशि शाली पु ष हो, परं तु पृ वी पर वापस प ंचते ही तुम पुनः
सामा य मनु य बन जाओगे।” आगस ने जे स को िव ान का ान देते ए
कहा।
“अ छा, मुझे एक बात बताइये क पृ वी तो यहाँ से लाख काशवष
दूर है, फर आपने इतनी ज दी मुझे पृ वी से नेिमरॉस पर कै से बुला िलया?”
जे स ने आगस से पूछा।
“ य क हम अंत र क या ा करने के िलये कसी अंत र यान का
योग नह करते, बि क समय ार का योग करते ह और समय ार के िलये
दूरी के कोई मायने नह ह।” इस बार आच बोल उठी- “अंत र यान तो
हम िसफ यु म योग म लाते ह।”
“अरे हां! यु से याद आया क ए ोवस आकाशगंगा के फे रोना ह
से कु छ अंत र यान को हमने पृ वी क ओर जाते ए देखा है और उनके
साथ फे रोना ह के जनक पटॉ स को भी देखा गया है। कहा जाता है क
पटॉ स तभी अपने ह से िनकलते ह, जब फे रोना के लोग को कोई बड़ा यु
लड़ना होता है? इसका साफ मतलब है क पृ वी के लोग इस समय पूरी तरह
से संकट म ह और ऐसे समय म शलाका का ना िमलना, हमारी ता को
और भी अिधक बढ़ा रहा है।”
“अगर पृ वी पर संकट मंडरा रहा है, तो हम यहाँ या कर रहे ह। हम
तो शी से शी पृ वी क सहायता के िलये नेिमरॉस क सेना भेजनी
चािहये।” जे स ने आगस को घूरते ए कहा।
“एक बार पहले भी हम ीक देवता और अटलां टयन के बीच ए
यु म फं स कर देख चुके ह। उस यु का प रणाम पूरी अटलां टस स यता
को भुगतना पड़ा था। उस यु म हमारे भी ब त से यो ा मारे गये थे। उसके
बाद से ही हमने पृ वी के लोग से दूरी बना ली। अब हम पृ वीवािसय के
कसी भी यु म शािमल नह होना चाहते?”
“परं तु उस पृ वी पर तो आपक पु ी भी है। अगर इस यु के दौरान
शलाका ही मारी गई तो आप इतनी िवकिसत तकनीक और िव ान का या
करगे महान आगस?” जे स ने आगस के िब कु ल सही थान पर चोट करते
ए कहा।
जे स क बात सुन आगस कु छ देर के िलये सोच म पड़ गया।
तभी जे स ने एक और चोट मारते ए कहा- “अगर आप पटॉ स के
बारे म इतना अिधक कह रहे ह, तो फर पृ वी का अंत िनि त है य क
पृ वी का िव ान अभी इतना अिधक िवकिसत नह आ है क पृ वीवासी
फे रोना ह के लोग का सामना कर पाय। .... पर मुझे या? म तो अब
िवशाल नेिमरॉस के महान आगस क शरण म ँ। ... नेिमरॉस पर आकर तो
म वयं भी महाशि शाली बन चुका ँ, इसिलये मुझे यहाँ कु छ नह हो
सकता? और पृ वी का अंितम मनु य कहलाने का गौरव भी तो मुझे ा
होगा। यह गौरव भी मेरे िलये कसी मेडल से कम नह होगा?”
अभी जे स बोल ही रहा था क तभी एक वै ािनक सरीखा ि
घबराया आ, दरबार म वेश कया। वह ि इतनी ज दी म था क
उसने दरबार म आने के िलये आगस से आ ा भी नह ली।
“आगस अभी कु छ देर पहले ए ोवस आकाशगंगा म एक भयानक
धमाका आ। जब हमने अपने अंत र म ि थत दूरबीन से उस ओर देखा, तो
हम फे रोना ह के िबखरे ए टु कड़े पूरी आकाशगंगा म दखाई दये। हम
फे रोना ह के टू टने का कारण अभी पता नह चल पाया है, पर इतना अव य
है क फे रोना ह से कोई दूसरा ह तो नह टकराया है?” आने वाले
वै ािनक ने कहा।
“अब तो मनु य का अंत िनि त है य क फे रोना ह के लोग अपना
ह टू ट जाने के बाद अव य ही पृ वी को अपना िनवास थान बनायगे
य क पृ वी और फे रोना का वातावरण लगभग एक जैसा ही है।” आच ने
अपने ान का प रचय देते ए कहा।
आच क बात सुन जे स आशाभरी नजर से आगस क ओर देखने
लगा।
तभी आगस ने दहाड़कर कहा- “कमांडर अपनी सेना को तुरंत पृ वी
क ओर भेजो, हम अपनी पु ी के ाण संकट म नह डाल सकते और आच
तुम िजतनी ज दी हो सके शलाका से स पक करने क कोिशश करो। इस
काय म य द तु ह जे स क आव यकता हो, तो उसक सहायता भी ले सकती
हो।”
इतना कहकर आगस ने अपने दािहने हाथ को ऊपर क ओर उठाया,
जो क इस मी टं ग के समापन का एक छोटा सा संकेत था।
आगस के संकेत को देखकर आच ने जे स को अपने साथ आने का
इशारा कया और वयं एक दशा क ओर चल दी।
नेिमरॉस पर भी यु का िबगुल बज चुका था। अब देखना तो बस यह
था क या समय रहते नेिमरॉस के लोग पृ वी क सहायता के िलये प ंच
पाते ह? या नह ।”
◆ ◆ ◆
चैपटर-13
स मोहना

07.02.02, गु वार, रचट चर, सहारा म थल, मॉ रटािनया

स जोर सेहारा के म थल म वेगा, कलाट के शरीर के पास बैठा जोर-


रो रहा था। वेगा के िलये अब इस यु के कोई मायने नह
बचे थे? वेगा को िब कु ल भी उ मीद नह थी क उसका बाबा इतनी आसानी
से काल के गाल म समा जायेगा।
कलाट के मरने के बाद उसक लाल चादर हवा म उड़ती ई आई और
कलाट के ऊपर िबछ सी गई। अब वह चादर भी िनि य हो गई।
उधर वेगा का िवलाप तो मानो कने का नाम ही नह ले रहा था।
तभी वेगा को उसके दमाग म वा िण क आवाज सुनाई दी- “वेगा,
होश संभालो वेगा। तु हारे बाबा अब मर चुके ह और उ ह मारने वाला अभी
भी अपनी िविच शि य के साथ तु हारे आसपास घूम रहा है। .... या
तुम इस समय को िवलाप करके न करना चाहते हो, या फर अपने श ु को
समा कर अपने बाबा क मौत का बदला लेना चाहते हो।”
वा िण के श द ने वेगा पर भयानक प से असर कया।
अब वेगा ने कलाट का िसर वह रे त पर रखा और खड़ा होकर ोध से
चीख उठा- “सलोहाऽऽऽऽऽऽऽऽऽ या कायर क तरह से यु कर रहे हो?
बाहर आकर सामने से यु करो।”
वेगा ने चीखने के बाद अपने चारो ओर देखना शु कर दया।
परं तु जब कु छ देर तक सलोहा कसी भी थान से बाहर नह आया?
तो वेगा पुनः चीखकर बोला- “ठीक है, य द तुम बाहर नह िनकलना चाहते
तो म वयं अपनी शि य से तु ह इस रे त से बाहर िनकाल देता ँ।”
यह कहकर वेगा ने ना जाने या कया? क वेगा का शरीर हवा म
उठकर, नीली आँख के िब कु ल ऊपर आ गया। अब वेगा ने अपने दोन हाथ
को जोर से नीचे से ऊपर क ओर िहलाया।
वेगा के ऐसा करते ही जहां तक नजर जा रही थी, वहाँ क रे त जमीन
से थोड़ा ऊपर क ओर उठ गई और इसी के साथ वेगा को रे त के नीचे िछपा
सलोहा दखाई देने लगा। इस समय सलोहा अपने वा तिवक प म था।
अब वेगा के शरीर ने अपना आकार बढ़ाना शु कर दया। कु छ ही देर
म वेगा का शरीर आसमान छू ने लगा।
वेगा के इस भयानक प को देखकर सलोहा एक पल के िलये घबरा
उठा, फर अगले ही पल सलोहा ने अपने हाथ को तलवार के समान बनाया
और वेगा के पैर को काटने क कोिशश क ।
परं तु सलोहा क तलवार वेगा के शरीर से टकरा कर बेअसर हो गई।
यह देख सलोहा ने वेगा के चेहरे पर, पारे से बने तीर क बौछार कर
दी, परं तु सलोहा के काँच जैसे नुक ले तीर भी वेगा का कु छ भी नह िबगाड़
पाये?
तभी वेगा ने अपने िवशाल हाथ से सलोहा को पकड़ िलया और उसे
दबाना शु कर दया। वेगा के इस हार से सलोहा पारे म भी प रव तत
नह हो पा रहा था और पल ित पल कमजोर होता जा रहा था।
“अब तु हारा बचना नामुम कन है सलोहा, तु हारा अंत समय अब आ
गया है। मेरी इस पकड़ से ांड क कोई शि नह बच सकती?” वेगा ने
िब कु ल दहाड़ने वाले अंदाज म कहा।
“यह वेगा कौन सी शि का योग कर रहा है? िजसके भाव से म
पारे म नह बदल पा रहा।” सलोहा ने मन ही मन सोचा- “इस कार तो यह
सच म मुझे समा कर देगा। अब म वेगा के इस हार से कै से बचूं? ... यह
हार तो मेरा दम घ टता जा रहा है। .... अरे हां, वेगा भी तो साँस ले रहा
है, य द म वेगा क साँस को भी रोक दूँ, तो वेगा का भी दम घुटने लगेगा
और उस पल म वेगा क पकड़ से छू टने का यास कर सकता ँ।”
यह सोचते ही सलोहा ने छटपटाना बंद कर दया और अपना मुंह
खोलकर पारे का िवषा धुंआ वातावरण म फै ला दया। पारे के धुंए ने
आसपास के वातावरण क ऑ सीजन को तेजी से समा करना शु कर
दया।
सलोहा का यह यास काय कर गया य क अब सच म वेगा का दम
घुटने लगा, िजसके कारण वेगा का स मोहन समा हो गया।
“अरे ! यह वेगा तो अपने छोटे आकार म वह पर खड़ा है, जहां पर
कलाट का शरीर िगरा है। ..... इसका मतलब वेगा ने कसी कार के
स मोहन का योग करके मुझे फं साया था? .... तभी म क ँ क म पारे म
य नह प रव तत हो पा रहा ँ? .... असल म वेगा ने मुझे पकड़ा ही नह
था। .... वेगा के पास तो ब त क खतरनाक शि है, मुझे वेगा क इस शि
से बचना होगा, नह तो यह िबना मुझे छु ए ही मारने म सफल हो जायेगा।
.... पर कै से? ... वेगा क इस शि से कस कार बचा जा सकता है? ....
अरे हां वेगा मुझ पर स मोहन का योग अपनी आवाज या आँख के मा यम
से कर सकता है, तो फर य ना म अपना िसर ही गायब कर दूँ। ... अगर
मेरा िसर ही नह रहेगा, तो वेगा कसी भी कार से मुझे स मोिहत नह कर
पायेगा और रही बात वेगा को देखकर उस पर वार करने क , तो वह तो म
हवा के कं पन से भी जान जाऊंगा।”
यह सोच सलोहा ने अपने िसर को िपघला डाला। अब रे त पर िबना
िसर वाला सलोहा खड़ा था।
उधर वेगा वातावरण से ऑ सीजन समा हो जाने के कारण अपनी
साँस पर िनयं ण करने क कोिशश कर रहा था। िजसक वजह से वेगा
जोर-जोर से हांफ रहा था।
तभी सलोहा ने वेगा क साँस को महसूस कर, अपने शरीर से असं य
पारे के काँटे वेगा क ओर उछाल दये।
सलोहा का िनशाना िब कु ल अचूक था। सभी काँटे वेगा के शरीर म
धँस गये।
वेगा ने अपने दाँत को भ चकर अपने दद पर काबू पाया और
पलटकर हांफते ए सलोहा क ओर देखने लगा।
तभी वेगा को अपने शरीर के अंदर कु छ िपघलता आ सा महसूस
आ। अब वेगा ने अपने शरीर म धंसे पारे के काँट क ओर देखा, जो अपने
थान पर िपघलकर वेगा के शरीर के अंदर समाते जा रहे थे।
वेगा के पास ऐसी कोई भी शि नह थी? जो क इन पारे के काँट
को उसके शरीर से िनकाल सकता। वेगा समझ गया क ना तो अब वह यु
जीत सकता है? और ना ही सलोहा को हरा सकता है। उ टा वेगा वयं का
जीवन ही अब हारने वाला था।
वेगा को पता था क कु छ देर म ही उसका हाल भी कलाट के समान
होने वाला है, इसिलये वह धीरे से वह रे त पर बैठ गया और कु छ दूरी िगरी
पड़ी भूिमका नामक पु तक को देखने लगा?
इसी पु तक को बचाने के िलये वेगा आज काल के गाल म समा रहा
था।
तभी वेगा को अपना पूरा शरीर िपघलता आ सा महसूस आ। अब
वेगा घबराकर अपने शरीर को देखने लगा। सच म पारे के ती भाव के
कारण, वेगा का पूरा शरीर अब िपघलने लगा था।
कु छ ही देर म वेगा का पूरा शरीर पारे म प रव तत हो गया और
गलकर वह क रे त म जा िमला।
अब सलोहा ने अपने िसर को पुनः उगा िलया और धीरे -धीरे भूिमका
क ओर बढ़ने लगा। तभी सलोहा को िपघले ए वेगा का शरीर पुनः आकार
लेता आ दखाई दया।
यह देख सलोहा भूिमका को उठाना भूलकर आ य से वेगा के शरीर
को देखने लगा।
धीरे -धीरे पारे ने सलोहा क भांित वेगा के शरीर को पुनः पूण आकार
दे दया। वेगा एक बार पुनज िवत हो गया।
वेगा वयं भी आ य से अपने शरीर को देखने लगा।
“अरे ! म दोबारा कै से जीिवत हो गया? और यह मेरा शरीर अभी भी
पारे से भरा आ कै से दखाई दे रहा है?” वेगा ने तेज आवाज म आ य
करते ए कहा।
तभी वातावरण म एक महीन सी आवाज गूंजी- “मेरे रहते ए तुमने
मरने के बारे म सोच भी कै से िलया वेगा?”
इस आवाज को सुन वेगा खुशी से भर उठा और उस दशा क ओर
देखने लगा, िजधर से यह आवाज आई थी।
अब वेगा को हवा म उड़ती ई वीनस दखाई दी, िजसक पीठ पर 7
रं ग के पंख लगे ए थे।
“तुम कहाँ थी वीनस? और एकदम से यहाँ कै से आ गई? ... वह नकली
वीनस कौन थी? और वह तु हारा प धरकर मेरे पास या कर रही थी? ....
तु हारी पीठ पर दख रहे यह पंख कै से ह? .... और तुमने मुझे कस कार से
पुनज वन दया?” वेगा एक साँस म बोल उठा।
“सब बता दूँगी, पर जरा पहले इस सलोहा से तो िनपट लो, िजसने
बाबा को मार दया।” अब वीनस ने गु से से कलाट के शरीर क ओर देखते
ए कहा- “अब सलोहा को मारकर अपना बदला पूण करो वेगा य क मने
अपनी टल शि से, सलोहा क शि य को कु छ देर के िलये तु हारे
अंदर डाल दया है। िजसके भाव से अब तुम सलोहा क शि य के ारा,
सलोहा को मार सकते हो।”
वीनस क बात सुन वेगा ोध भरे भाव से सलोहा क ओर बढ़ा। उधर
सलोहा ने वीनस क बात सुनकर अपनी शि य का योग करना चाहा,
परं तु सलोहा अपनी शि य का योग कर नह पाया।
वेगा ने सलोहा क शि य से वयं के दोन हाथ को एक तेज धार
वाली आरी के समान बना िलया और इससे पहले क सलोहा कु छ और कर
पाता, वेगा ने अपने हाथ से सलोहा के शरीर के टु कड़े-टु कड़े कर डाले।
वेगा कसी िवि क तरह सलोहा के शरीर को काटता जा रहा था।
यह देख वीनस उड़ती ई वेगा के पास जा प ंची और उसने बड़े ही यार से
वेगा के कं धे पर हाथ रखते ए कहा- “बस वेगा, अब क जाओ। सलोहा
मारा जा चुका है। तुमने बाबा क मौत का बदला ले िलया।”
वीनस क बात सुन वेगा क गया। वेगा ने अब अपने हाथ को पुनः
सामा य कर िलया और वीनस के गले से लगकर िसस कयां लेने लगा।
वीनस, वेगा के िसर पर धीरे -धीरे हाथ फे रने लगी। कु छ देर तक ऐसे
ही ि थित बनी रही।
तभी एक जानी-पहचानी आवाज ने वेगा को च का दया- “सलोहा
अभी भी मरा नह है वीनस। कु छ देर बाद जैसे ही उसक शि यां वापस
उसके पास प ंचगी, वह पुनः जीिवत हो जायेगा।”
इस आवाज को सुन वेगा ने वीनस को वयं से दूर कया और आवाज
क दशा म देखने लगा।
यह आवाज टोबो क थी, जो वेगा और वीनस से कु छ दूरी पर खड़ा
दोन को िनहार रहा था।
“अरे टोबो, आप यहाँ कै से आ गये?” वेगा ने आ य से टोबो क ओर
देखते ए कहा।
“अरे वाह, वेगा क मृितयां तो ब त अ छी ह, यह तो इतने वष के
बाद भी, एक पल म मुझे पहचान गया।” टोबो ने मु कु राते ए कहा।
वेगा ने आगे बढ़कर टोबो को गले से लगा िलया- “ य नह
पहचानूंगा म अपने टोबो को? आपक वजह से ही तो मुझे स म .... मेरा
मतलब है क स मान िमला था।”
वेगा ‘स मोहन’ श द बोलते ए एकाएक क गया। अचानक से उसे
अपने वचन क याद आ गई, जो क उसने स मोहन ा करने से पहले
महावृ को दया था।
तभी वीनस क आवाज ने सभी का यान उसक ओर कर दया- “अरे
सलोहा के कटे ए शरीर के टु कड़े धीरे -धीरे िहलने लगे ह। टोबो, हमारे पास
समय ब त कम है, ज दी से इस सलोहा से िनपटने का कोई उपाय बताओ?
नह तो इस बार जीिवत होते ही वह मेरी शि क भी कोई ना कोई काट
िनकाल लेगा?”
वीनस क बात सुन टोबो ने अपने हाथ को हवा म िहलाया। टोबो के
ऐसा करते ही उसके हाथ म वही हीरा दखाई देने लगा, िजसम बैठकर
सतरं गी िततली पृ वी पर आई थी।
अब टोबो ने उस हीरे को कमल के फू ल के समान खोल दया और
ज दी-ज दी सलोहा के शरीर के टु कड़े उसम भरने लगा।
टोबो को ऐसा करते देख वेगा व वीनस भी सलोहा के शरीर के टु कड़े
हीरे म भरने लगे।
कु छ ही देर क कोिशश के बाद सलोहा के शरीर के सभी टु कड़े हीरे के
अंदर भर गये।
अब टोबो ने हीरे को फर से बंद कया और पूरी ताकत से आसमान
क ओर उछाल दया। ना जाने टोबो म कतनी शि थी? क वह हीरा
आसमान से होता आ, पृ वी क क ा के बाहर िनकल गया।
“अब यह हीरा धीरे -धीरे ांड का च र लगाते ए सूय के पास जा
प ंचेगा और सूय के भीषण ताप से सलोहा क पारा शि भी वतः ही न
हो जायेगी।” टोबो ने कहा।
सलोहा से पीछा छू टते देख वेगा ने तुरंत ही भूिमका को जमीन से
उठाकर अपने व म िछपा िलया।
अब वेगा धीरे से चलते ए कलाट के शरीर के पास प ंचा और अपने
घुटन के बल जमीन पर बैठ गया। वेगा क आँख से एक बार फर अ ुधारा
िनकलने लगी। परं तु इस समय वीनस उसके पास थी, जो उसे लगातार
िह मत बंधा रही थी।
कु छ देर के बाद टोबो ने अपनी का शि से एक ताबूत का िनमाण
कया और कलाट के शरीर को उसम रखकर नीली आँख के बीचोबीच रे त म
दबा दया।
अटलां टस का एक महायो ा इस देवयु क भट चढ़ गया था।
कु छ देर बाद जब वेगा थोड़ा संयत आ, तो वीनस ने वेगा को अपनी
पूरी कहानी सुना दी।
कहानी सुनने के बाद वेगा व वीनस उसी थान पर बैठ गये और
वा िण के अगले आदेश क ती ा करने लगे।
समय एक बार फर सूय के कालजयी रथ म बैठा तेजी से पि म दशा
क ओर भाग रहा था और पीछे से उसक नारं गी करण धरा पर, सूय व
समय क कथा कृ ित को सुनाने म लग थ ।
◆ ◆ ◆
शरभावतार

08.02.02, शु वार, गंध मादन पवत, िहमालय


नीले आसमान पर ेत बादल क टु कड़ी कसी रथ के समान हवा म
िवचरण कर रही थी? उ ह देखकर ऐसा लग रहा था क जैसे आसमान म
कोई धुिनया ई को धुनकर उनके फाहे उड़ा रहा हो?
उन ेत टु किड़य से कु छ नीचे, सफे द हंस का एक झु ड अपने पंख
फै लाये हवा म उड़ रहा था। यह सभी सफे द हंस (बार हेडेड गूज) िहमालय
क पहािड़य को पार करके मैदानी े क ओर जा रहे थे। यह पृ वी के
सबसे ऊंचाई पर उड़ने वाले प ी थे, जो अिधक ठं ड पड़ने पर मैदानी े
क ओर जाते थे।
इ ह हंस से कु छ दूरी पर नीलाभ भी, अपने नीलपंख क सहायता से
आसमान म उड़ रहा था। नीलाभ के आगे नीिलमा भी थी, जो नीलाभ का
उड़ते ए मागदशन कर रही थी।
“महादेव के 4 अवतार से तो म आशीवाद ा कर चुका ँ। अब मुझे
शी से शी महादेव के ‘शरभावतार’ से िमलकर उनसे भी आशीवाद ा
करना होगा। य क देवयु शु हो चुका है। इसिलये मेरा समय न करना
अ यंत ही िवनाशकारी िस हो सकता है। ” नीलाभ के मन मे इस समय
उथल-पुथल सी चल रही थी।
(नोटः िशव पुराण के अनुसार िहर यक यप को मारने के बाद, जब
भगवान िव णु के नर संह अवतार शांत नह ए, तो उ ह शांत करने के िलये
महादेव ने शरभ प ी का अवतार िलया था। शरभ प ी उस काल का सबसे
खतरनाक प ी माना जाता था, िजसके 8 पैर होते थे और वह संह से भी
अिधक शि शाली था।)
आ य क बात यह थी नीिलमा इतनी ऊंचाई पर भी ठीक से साँस ले
पा रही थी।
जब भी कोई िवशाल बादल का टु कड़ा नीिलमा के समीप से िनकलता,
नीिलमा उस बादल के ऊपर उठकर कु छ ढू ंढने क कोिशश कर रही थी?
िपछले 2 घंटे से नीिलमा व नीलाभ इसी कार बादल के समीप उड़
रहे थे, परं तु उ ह उनके ल य क ाि नह हो पा रही थी।
तभी एक िवशाल बादल का टु कड़ा नीिलमा को अपनी ओर आता
दखाई दया। यह बादल का टु कड़ा अ य टु कड़ से अिधक िवशाल था। बादल
क िवशालता उसे असामा य घोिषत कर रहे थे।
तभी उस बादल के टु कड़े से कसी प ी के कलरव क ती विन
सुनाई दी और नीिलमा के देखते ही देखते उस बादल क टु कड़ी से 5 हंस शोर
मचाते ए िनकले।
उन हंस के शोर म एक आ ोश सा झलक रहा था।
यह देख नीिलमा ने च -च करके नीलाभ का यान, उस बादल क
टु कड़ी क ओर कराया और वयं उस ओर चल दी।
नीलाभ भी नीिलमा के पीछे -पीछे उस ओर चल दया।
कु छ ही देर म नीलाभ व नीिलमा बादल के ऊपरी िह से म थे।
बादल का ऊपरी िह सा िब कु ल ठोस तीत हो रहा था और उस पर वण
से िन मत एक अ चं ाकार िवशाल ार बना था।
ार के ऊपर ‘प ीलोक’ िलखा था और उसके बाहर क ओर एक
िवशाल प ी क मू त बनी थी।
नीलाभ ‘प ीलोक’ का ार देख अ यंत स हो उठा- “अरे वाह
नीिलमा! तुमने आिखर प ीलोक ढू ंढ ही िलया, अ यथा हवा म घूमते इस
प ीलोक को ढू ंढना तो अ यंत ही दु कर काय था।” नीलाभ ने बादल के
ऊपर उतरते ए खुशी से कहा- “अब हम यहाँ शरभदेव अव य ही िमल
जायगे। ..... चलो अब प ीलोक के अंदर चलकर उ ह ढू ंढते ह।”
तभी नीिलमा भी बादल पर उतर गई। बादल पर उतरकर नीिलमा
ने किणका का प धारण कर िलया। परं तु जाने य किणका इस समय ब त
दख रही थी?
नीलाभ से किणका क ता िछपी ना रह सक , इसिलये उसने
किणका से पूछ िलया- “ या आ किणका, तुम इस थान पर इतनी
य दख रही हो? कोई परे शानी है या?”
नीलाभ क बात सुनकर किणका ने प ीलोक के ार क ओर देखा
और फर नीलाभ क ओर देखते ए बोल उठी- “हम इस समय प ीलोक के
ार पर ह, जहां पर पि य का कलरव होना वभािवक है, परं तु इस थान
पर एक िन त धता सी छाई ई है। ... पता नह य मुझे यह शांित िब कु ल
भी अ छी तीत नह हो रही? मेरा दय इस थान पर बुरी तरह से
िवचिलत हो रहा है। शायद .... शायद कोई अिन होने वाला है?”
बोलते ए अब किणका क आवाज भी कांपने लगी।
किणका के श द सुन नीलाभ पूण प से चौक ा हो गया य क वह
किणका के पूवाभास से अ छी तरह से प रिचत था।
“कह तो तुम सही रही हो किणका, य क यहाँ से िनकलने वाले वह
हंस भी अ यंत िवचिलत तीत हो रहे थे।” नीलाभ ने प ीलोक के ार के
अंदर झांकने क असफल कोिशश करते ए कहा- “परं तु हम यहाँ ककर इस
कार से समय भी न नह कर सकते, इसिलये हम िबना कु छ सोचे अभी
अंदर क ओर चलना चािहये और आगे आने वाली मुसीबत के िलये वयं को
तैयार कर लेना चािहये।”
नीलाभ क बात सही थी, इसिलये किणका ने अनमने मन से अपने
कदम को प ीलोक के ार के अंदर क ओर बढ़ा दया।
किणका आसानी से प ीलोक के खुले ार के अंदर वेश कर गई,
परं तु जैसे ही नीलाभ ने अपने कदम को अंदर क ओर रखने क कोिशश क ,
उसे प ीलोक के ार पर कोई अदृ य दीवार महसूस ई।
यह देख नीलाभ आ य से बोल उठा- “किणका, म प ीलोक म वेश
नह कर पा रहा ँ। शायद कोई अदृ य शि मुझे अंदर आने से रोक रही
है?”
नीलाभ क बात सुन किणका ठठककर अपने थान पर क गई। तभी
किणका को प ीलोक के अंदर का एक दृ य दखाई दे गया। उस दृ य को
देखते ही किणका सहम सी गई।
प ीलोक के अंदर चारो ओर जहां तक नजर जा रही थी, वहाँ तक
पि य के कं काल ही कं काल िबखरे ए थे। उस दृ य को देखकर ऐसा लग
रहा था क मानो वहाँ पर कोई ब त ही भयंकर महासं ाम आ हो?
प ीलोक के सभी भवन तो िब कु ल सही बने ए थे, परं तु दूर-दूर तक
वहाँ कोई जीिवत प ी दखाई नह दे रहा था? हां कु छ दूरी पर शरभदेव क
एक िवशाल मू त अव य दखाई दे रही थी, ले कन उस मू त के पास भी
अनेक पि य के कं काल िबखरे ए थे।
यह दृ य देख किणका के अंदर दद ही दद समा गया। इतना भीषण
प ीसंहार देखकर तो कोई भी िवचिलत हो सकता था, यह तो किणका थी
िजसे पि य से ब त लगाव था।
उधर नीलाभ अभी भी प ीलोक के अंदर वेश करने क कोिशश कर
रहा था।
नीलाभ को अंदर वेश ना करते देख किणका भी प ीलोक से बाहर
आ गई और उसने अंदर के दृ य को नीलाभ को अ रशः सुना दया।
किणका क बात सुन नीलाभ सोच म पड़ गया। कु छ देर सोचने के
बाद नीलाभ बोल उठा- “पता नह कसने कया है यह प ीसंहार? ... वैसे
शरभप ी तो वयं इतने ताकतवर होते ह क उ ह देखकर संह भी भाग
जाता है, फर वह लोग कौन ह गे, िजसने शरभदेव के रा य म प ंचकर इस
कार क िवनाशलीला क है? ..... परं तु सबसे बड़ी बात यह है क म इस
प ीलोक म य नह वेश कर पा रहा? जब क तुम आसानी से प ीलोक म
वेश कर गई। .... य द म अंदर वेश ही नह कर पाया, तो म शरभदेव से
आशीवाद कस कार ले पाऊंगा?”
तभी सोच म डू बी किणका बोल उठी- “य द आप कह तो म प ीलोक
के अंदर जाकर शरभदेव से िमल लूं। हो सकता है क मुझे आपको अंदर
बुलाने का कोई रा ता िमल ही जाये?”
“म इस देव थान पर अपनी शि य का योग नह करना चाहता
किणका। इसिलये तुम अके ले ही जाकर शरभदेव से िमलो और उनसे मेरे
अंदर वेश ना कर पाने का कारण पता करो। तब तक म यह बैठकर अपनी
योगशि से इस िवनाशलीला का कारण जानने क कोिशश करता ँ।”
नीलाभ के श द सुन किणका एक बार पुनः प ीलोक के अंदर क ओर
चल दी।
अंदर का दृ य देखकर किणका क आँख ोध से जल रह थ , परं तु
यह समय ोध कट करने का नह था। यह सोचकर किणका आगे बढ़ती जा
रही थी।
लगभग 10 िमनट तक प ीलोक क सड़क पर चलने के बाद, किणका
शरभदेव क मू त के पास प ंच गई।
मू त के पास प ंचकर किणका ने अपने हाथ जोड़कर शरभदेव का
आहवान करते ए कहा- “हे शरभदेव मुझे पता है क आप प ीलोक म
िनवास करते ह, इसिलये म आपक मू त के सम आपका आहवान करती ँ।
.... कट होइये शरभदेव .... कट होइये। .... हम महादेव के कथनानुसार
आपसे िमलना चाहते ह।”
किणका िनरं तर मू त के सम खड़े होकर शरभदेव का आहवान कर
रही थी।
लगभग 5 िमनट के बाद आँख बंद कये खड़ी किणका को अपने सामने
एक ती रोशनी महसूस ई। इस रोशनी को महसूस कर किणका ने अपनी
आँख खोल दी।
किणका को अपने सामने मू त के थान पर वयं शरभदेव खड़े दखाई
दये।
शरभदेव के 8 पैर थे और वह संह, मनु य व शरभ प ी का िमला-
जुला प दखाई दे रहे थे। शरभदेव क जटा म चं मा िवराजमान था, जो
क उनके चेहरे के आसपास एक ती चमक िबखेर रहा था।
“हे शरभदेव, सव थम म इस िवनाशलीला का कारण जानना चाहती
ँ। कौन है वह शि , जो क आपके रहते इस प ीलोक को एक खंडहर म
प रव तत करके चली गई? कौन है इन िनरीह पि य क मौत का कारण?
बताइये शरभदेव .... म एक न ही िचिड़या आपसे इस रह य को जानना
चाहती ँ और म यह भी जानना चाहती ँ क महादेव के परम िश य
नीलाभ इस प ीलोक म य वेश नह कर पा रहे ह?”
“म तु हारे शरीर से उठ रही शु ता को देख पा रहा ँ किणका। तुम
एक न ही िचिड़या नह हो, तुम तो अपने पंख के नीचे स पूण ांड को
समेटने क मता रखती हो और इसी कारण से तुम इस प ीलोक म वेश
कर पाई हो।” शरभदेव के श द म दुख भरा दखाई दे रहा था- “तुम सदैव
से कसी ना कसी कार से पि य से जुड़ी रही हो? इसिलये म तु ह इस
िवनाश का कारण बताता ँ।” इतना कह शरभदेव एक ण को के और
फर बोलना शु कर दया- “एक समय शरभ प ी इस धरती का सबसे
शि शाली जीव आ करता था। संह व गज भी शरभ प ी से भय खाते थे।
शरभ प ी का सबसे ि य भोजन सप व नाग आ करते थे। धीरे -धीरे धरती
पर शरभ पि य क सं या बढ़ती गई और कृ ित म एक असंतुलन ा
होने लगा। तब सभी नाग ने महादेव से अपनी था को कह सुनाया। नाग
क था सुनने के बाद महादेव ने शरभ पि य के िलये इस प ीलोक का
िनमाण कया और इनके िशकार करने के कु छ िनयम भी बनाये। िजसके
कारण धरती पुनः संतुिलत हो गई। अब शरभ प ी सप के अलावा अ य
आहार भी हण करने लगे। शरभ पि य के राजा ने इस थान पर मेरी
मू त बनाई और मुझे देवता मानकर मेरी पूजा करने लगे। .... आज से लगभग
5 दन पहले अचानक से मेरी अनुपि थित म, इस रा य पर नाग ने आ मण
कर दया। वह सभी नाग जाने कस कार क शि य से यु थे? क
उ ह ने 2 हर म ही सभी शरभ पि य को मार िगराया और इस पूरे नगर
को शमशान बना दया। जब म इस नगर म प ंचा तो कु छ अधमरे पि य ने
मुझे उन नाग के बारे म बताया। वह सभी नाग, नागलोक से अपनी सा ा ी
नीलांगी के साथ यहाँ पर आये थे और सभी पि य को मारने के बाद यहाँ से
चले गये।”
नीलांगी का नाम सुनते ही एक पल म किणका के सम नीलांगी का
चेहरा नाच उठा। किणका समझ नह पाई क नीलांगी तो वयं ही पि य से
ेह करती थी, वह भला य इन पि य को मारने लगी, परं तु अभी
किणका ने शरभदेव को बीच म टोकना उिचत नह समझा इसिलये यान से
वह उनक बात सुनती रही।
उधर शरभदेव िनरं तर बोलते जा रहे थे- “जब मुझे उन नाग के बारे
म पता चला तो मने अपनी शि य से इस नगर म सभी नाग का वेश
व जत कर दया। .... अब चूं क तु हारे नीलाभ का शरीर भी नाग के िवष से
िन मत है, इसीिलये वह इस प ीलोक म वेश नह कर पा रहा है। .... म
जानता ँ किणका क नीलाभ मुझसे यहाँ पर आशीवाद लेने आया है, तो
जाओ और जाकर कह दो नीलाभ से क य द वह नागलोक क सा ा ी
नीलांगी को मारकर उसका शीश मेरे पास ले आये, तो म उसे अपना
आशीवाद दान कर दूँगा, परं तु य द वह कसी भी कारण से ऐसा नह कर
पाता? तो म उसे कभी भी आशीवाद नह दूँगा? और मेरे आशीवाद के िबना
नीलाभ कभी भी महादेव क शि य का वरण नह कर सकता?”
इतना कहने के बाद शरभदेव पुनः मू त म प रव तत हो गये।
परं तु शरभदेव के इतने कड़े श द को सुनकर किणका का दय एक
ण के िलये कांप उठा। अब किणका थके -थके कदम से वापस प ीलोक के
ार क ओर चल दी। वह समझ गई थी क नीलाभ के िलये यह काय सरल
नह होने वाला।
कु छ देर म किणका नीलाभ के पास जा प ंची। किणका ने नीलाभ को
सारी कथा सुनाते ए शरभदेव क इ छा भी बता दी।
सबकु छ सुनने के बाद नीलाभ बादल से उठ खड़ा आ और दृढ़ वर म
किणका से बोल उठा- “चलो किणका, हम िबना समय गंवाये नागलोक क
ओर चलना होगा। य क अब शरभदेव क इ छा पूण करने के अलावा
हमारे पास और कोई रा ता भी नह बचा है?”
तभी नीलाभ के कान से नीले रं ग का धुंआ बाहर िनकला और उस
धुंए ने िनकुं भ का प धारण कर िलया। नीलाभ के िलये यह घटना कसी
आ य से कम नह थी? य क आज से पहले िनकुं भ कभी भी नीलाभ क
इ छा के िबना उसके शरीर से बाहर नह िनकला था।
इस समय िनकुं भ के चेहरे पर दुख व भय के भाव थे।
“ या आ िनकुं भ तुम इतना परे शान य दख रहे हो?” नीलाभ ने
िनकुं भ क ओर देखते ए पूछा।
“मुझे लगता है नीलाभ क तु ह इस काय को अपने हाथ म नह लेना
चािहये।” िनकुं भ ने कहा- “ य क तुम वयं िवष से बने हो, ऐसे म तुम भला
कसी नािगन को कै से नुकसान प ंचा सकते हो?”
िनकुं भ के श द म ाकु लता साफ झलक रही थी, िजसे नीलाभ तो
समझ नह पाया, परं तु किणका से िनकुं भ क ाकु लता िछपी ना रह सक ।
अब किणका क आँख कु छ सोचने वाले अंदाज म िसकु ड़ ग ।
“नीलाभ के शरीर म रहने वाला यह िनकुं भ कह नीलांगी वाला
िनकुं भ ही तो नह है? िजसने मुझे बचपन म नीलपंख दये थे।” किणका के
मि त क म इस समय तेजी से उथल-पुथल हो रही थी- “नह -नह , वह
िनकुं भ तो नाग था और .... और उसका चेहरा भी अलग था, जब क यह
िनकुं भ तो एक य है, जो एक काय के दौरान नीलाभ को िमला था और
नीलाभ ने इसे अपने कान म रहने का थान दे दया था। .... फर .... फर
यह िनकुं भ इतना घबरा य रहा है? .... लगता है क मुझे इस रह य का
पता लगाना ही होगा। .... अरे हां, इस काय म तो अ ांग मेरी सहायता कर
सकता है। उसी को याद करती ँ।”
उधर नीलाभ, िनकुं भ क बात सुनकर बोल उठा- “म जानता ँ
िनकुं भ क म इस कार से कसी भी नािगन का अिन नह कर सकता, परं तु
मेरे पास शरभदेव से आशीवाद ा करने का इसके अलावा और कोई रा ता
भी तो नह है? .... और तुमने देखा क यह नािगन तो वैसे भी ब त ही
खतरनाक है। अरे , इसम तो दया का कोई भाव भी नह है। ऐसे म इस
नािगन को मारना तो धमसंगत काय होगा।” नीलाभ ने िनकुं भ को समझाते
ए कहा।
“म तुमसे धम के बारे म कोई बहस नह करना चाहता नीलाभ?”
अचानक से िनकुं भ का वर कु छ बदला-बदला सा नजर आने लगा- “परं तु म
इतना चाहता ँ क तुम इस काय को नह करोगे। ... और अगर तुमने इस
काय को करने क कोिशश क , तो म इस काय म तु हारा साथ नह दूँगा।
इसिलये हठ मत करो नीलाभ और महादेव के कसी और अवतार से
आशीवाद ा करने के बारे म सोचो?”
परं तु िनकुं भ क बात सुन नीलाभ भी अड़ गया- “नह िनकुं भ, म
शरभदेव के इस काय को अव य क ँ गा, चाहे इसके िलये तुम मेरा साथ दो
या फर सदा-सदा के िलये मुझे छोड़कर चले जाओ।”
नीलाभ के श द क दृढ़ता देख िनकुं भ ने कु छ भी बहस करना उिचत
नह समझा और िबना नीलाभ से कु छ भी बोले, वापस से धुंए म प रव तत
होकर नीलाभ के कान म समा गया।
तभी नीलाभ के दृि किणका पर पड़ी, जो क उससे कु छ दूरी पर
खड़ी अ ांग से इशार म कु छ बात कर रही थी। अ ांग को बाहर देख
नीलाभ कु छ समझ नह पाया? परं तु वह किणका क ओर बढ़ गया।
अ ांग अपने आठो प से अलग-अलग आकृ ितयां, बनाकर किणका
को कु छ समझाने का यास कर रहा था। शायद किणका अ ांग क बात को
भली-भांित समझ गई थी, य क इस समय किणका के चेहरे पर भी
हवाइयां उड़ रह थ ।
किणका के चेहरे का उड़ा आ रं ग देखकर नीलाभ बोल उठा- “अरे !
तुम लोग यहाँ दूर खड़े आपस म या बात कर रहे हो? जरा मुझे भी तो कु छ
समझाओ?”
नीलाभ क आवाज सुन अ ांग अपने थान पर ि थर हो गया, परं तु
किणका अभी भी घबराई ई लग रही थी।
“क ... क .... कु छ नह ? हम तो बस यूं ही भिव य क बात पर चचा
कर रहे थे।” किणका ने कहा- “पर नीलाभ .... य ना हम इस काय को
अपने हाथ म ना ल और महादेव के अवतार से आशीवाद लेने का कोई दूसरा
उपाय सोच?”
“यह तुम सबको हो या गया है?” नीलाभ ने थोड़ा रोष कट करते
ए कहा- “तुम सभी इस काय के कारण इतना घबराए ए य लग रहे हो?
या तुम सभी को मुझ पर और मेरी शि य पर कसी कार का संदेह है?
या फर कु छ ऐसा है, जो तुम सभी मुझसे िछपा रहे हो? ... बताओ किणका
या बात है?”
परं तु नीलाभ क बात सुन किणका ने कोई उ र नह दया और वह
कण म प रव तत होकर वापस नीलाभ के शरीर म समा गई।
किणका को जाते देख अ ांग भी वापस से नीलाभ के व म जाकर
िछप गया।
सभी को जाते देख नीलाभ ने एक गहरी साँस भरी और बोल उठा-
“ठीक है, य द तुमम से कोई भी कु छ भी मुझे नह बताना चाहता तो कोई
बात नह ? परं तु तुम सभी एक बात यान से सुन लो क म इस काय को
करने जा रहा ँ और म नीलांगी का शीश लाकर शरभदेव को अव य दूँगा,
भले ही इस काय म मेरे ाण ही य ना चले जाएं?”
यह कहकर नीलाभ ने अपने नीलपंख को हवा म फड़फड़ाया और
नागलोक क ओर उड़ चला।
जो भी हो परं तु इस घटना के बाद से नीलाभ ब त ही ाकु ल दखने
लगा था।
ले कन नीलाभ से भी अिधक तेज गित से िनकुं भ व किणका क
धड़कन चल रह थी य क दोन ही नह चाहते थे क माँ और पु म कसी
भी कार का कोई महासं ाम हो? य क इस समय दोन म से कसी क भी
ित असहनीय होने वाली थी।
समय भी इस समय भिव य को देखकर सहमा आ लग रहा था।
◆ ◆ ◆
िहम-समािध

11 वष आगे .....................
08.02.2013, शु वार, ानगंज , लोक, िहमालय
िहमालय के पूव म िवशाल पवत के म य एक घाटी है। घाटी के चारो
ओर के पवत िहमखंड से ढके रहते ह, परं तु यह घाटी िहमखंड के म य होने
के बाद भी, काफ हरी-भरी रहती है। इस हरी-भरी घाटी के बीच म ि थत
है- “ लोक”
लोक िजसका िनमाण 20,000 वष पहले माया ने अपनी शि य
से कया था। कहते ह लोक पृ वी क मानव ारा िन मत सबसे े तम
रचना है। इस थान पर कृ ित के िनयम नह चलते। यािन क िवशाल
प थर का उड़ना, झरने का नीचे से ऊपर क ओर बहना, िबना कसी जड़ के
वृ व पु प का हवा म तैरना आम बात है।
इस लोक के बीच एक िवशाल कमल के फू ल पर ‘ महल’ ि थत
है। यह थान देव के िनवास थान के प म जाना जाता है। अभे समझे
जाने वाले इस महल के चारो ओर एक सुंदर झील है, िजसे ताल के
नाम से जाना जाता है।
ताल भी अ यंत मायावी है। कहते ह क समु मंथन से िनकले
अमृत को सभी देवता म बांटा गया। सभी देवता के अमृत पीने के बाद
बाक का अमृत, एक कलश म रखकर देव को दे दया गया। देव ने
इस कलश को ताल के कसी अ ात थान पर िछपा दया?
कालांतर म अनेक असुर और दै य ने इस कलश को पाने क
कोिशश क , परं तु पाना तो दूर वह सभी उस कलश के पास भी नह
प ंच पाये। सभी दै य लोक के चारो ओर ि थत िवशाल घने जंगल म
मारे गये।
लोक के बाहर ि थत िवशाल घने जंगल को, आज के समय म
ानगंज, शां ी-ला, शंभाला व िस आ म आ द नाम से जाना जाता है।
जो क भारत के अ णाचल देश व ित बत के बीच कह ि थत है?
भारतीय पुराण के अनुसार ानगंज िस पु ष और ऋिष-मुिनय
के ान का क है। इस थान पर अनेक मठ ह, जहां हंद ू व बौ धम को
मानने वाले अनेक ऋिष-मुिन व बौ िभ ु रहते ह। इन ऋिषय क साधना
के कारण इस थान का वातावरण अ यंत दैवीय हो गया है। कहते ह क इस
थान पर समय अपना कोई भाव नह डाल पाता, इसिलये यहाँ पर कसी
क मृ यु नह होती?
ानगंज क हवा म अनेक कमल के फू ल लहराते रहते ह, परं तु इन
फू ल को तोड़ना यहाँ पाप माना जाता है। आज भी ब त से मनु य के िलये
ानगंज कोई का पिनक थान है? िजसका कोई अि त व नह है? परं तु कु छ
बौ िभ ु का मानना है क वह ानगंज जा चुके ह।
आज का समय िव ान को तो मानता है, परं तु वेद म िलखी घटनाएं
उ ह कपोल कि पत लगती ह। तो आइये इस िवषय व ानगंज से थोड़ा दूर
हटकर देखते ह, जहां नीले आकाश म एक अि पुंज चमकता आ ानगंज क
घाटी क ओर बढ़ रहा है।
यह काशपुंज और कोई नह वरन् शलाका है, जो क आकाशमाग से
ानगंज क घाटी क ओर बढ़ रही है।
“म तो इस समयकाल म सूयाश का पता लगाने के िलये आई थी, परं तु
इस समयकाल म आकर पता चला क सूयाश तो मेरा ही पु है, िजसक माँ
यािन क भिव य क शलाका, उसे 3 वष पहले छोड़कर कह चली गई?
सूयाश से िमलने के बाद मने उसे वचन दया क जब तक म तु हारी माँ को
ढू ंढ नह लेती, तब तक इस समयकाल से वापस नह जाऊंगी। मुझे पता था
क िजसे आच नह ढू ंढ सकती, उसे अि का अव य ढू ंढ लेगी। इसिलये
सूयाि भवन से िनकलने के बाद, म सीधे अि का के पास प ंच गई। अि का
क शि य से मुझे भिव य क शलाका, िहमालय के कसी बफ ले थान पर
जमीन के अंदर दबी ई दखाई दी। अि का से मुझे िब कु ल िनि त थान
तो नह पता चला, परं तु यह अव य पता चल गया क वह थान ानगंज
क पवत ृंखला के पास का थान है। .... मुझे नह पता क उस शलाका
के साथ या आ? जो उसने इस कार िहम-समािध ले ली, परं तु मुझे इतना
अव य पता है क वह शलाका बफ के अंदर भी अभी जीिवत है। शायद िहम-
समािध लेने के बाद भी वह अपनी अि क शि य से अपने शरीर का ताप
सुरि त रखे है।”
तभी उड़ती ई शलाका क िनगाह कै लाश पवत क ओर गई। कै लाश
पवत को अपने सामने देख शलाका ने हाथ जोड़कर कै लाश पवत को णाम
कया और कु छ ण के िलये नीचे उतर गई।
सूय क सुनहरी करण कै लाश पवत के िशखर को, एक नारं गी रं ग क
आभा दान कर रहे थे। एक ही पल म शलाका को वेदालय क याद आ गई।
आिखर अपने जीवन के ब मू य 10 वष शलाका ने वह तो गुजारे थे।
उस थान को देख शलाका के सामने एक ण म ब त से बचपन के
दृ य घूम गये। आयन से िमलना, िविच ित पधा म भाग लेना और
अलौ कक थान क या ाएं करना।
अभी शलाका अपनी ही याद म खोई थी क तभी शलाका को कै लाश
पवत म एक थान पर ार खुलता दखाई दया।
यह ार िब कु ल वैसे ही खुला था, जैसे क हजार वष पहले वेदालय
के समय म खुलता था। शलाका यह देखकर च क गई।
“अरे ! यह वेदालय का ार कै से खुल रहा है? या वेदालय को पुनः
शु कर दया गया है या फर .... या फर म भी सुयश क तरह कसी कार
से हजार वष पीछे आ गई ँ?”
यह देख शलाका एक बड़ी सी च ान क ओर भागी। इससे पहले क
ार से िनकलने वाला कोई मनु य शलाका को देख पाता, शलाका उस बड़ी
च ान के पीछे जा िछपी?
परं तु च ान के पीछे प ंचते ही शलाका एक बार फर से च क गई?
य क उस च ान के पीछे कोई लड़क पहले से ही िछपी ई थी? शलाका
को देखते ही उस न ही लड़क ने अपने मुंह पर उं गली रखते ए शलाका को
चुप रहने का इशारा कया।
उस न ही लड़क का इशारा देख शलाका कु छ बोली तो नह , परं तु
वह यान से उस न ही लड़क को देखने लगी। वह न ही लड़क लगभग 8
वष क थी। उसने नीले रं ग के सुंदर व पहन रखे थे। उस लड़क क आँख
िब कु ल कसी िहरनी के समान थ । उसका स दय ऐसा था क शलाका तो
बस उसे देखे ही जा रही थी।
तभी उस न ही लड़क ने शलाका का चेहरा कै लाश पवत क ओर
घुमा दया, जहां पर खुले ार से 4 युवा ब े िनकल कर बाहर आ गये थे।
उन ब म 2 लड़के और 2 लड़ कयां थ , िजनक आयु लगभग 18 वष क
दख रही थी।
सभी ब ने आपस म कु छ बात क और फर कसी िविच शि का
योग कर वहाँ से उड़ गये?
उन ब के उड़ने के बाद शलाका अपने पास िछपी न ही लड़क क
ओर मुड़ी और उसे देखते ए बोली- “कौन हो तुम? और इस कार िछपकर
यहाँ या कर रही हो?”
“यही तो म आपसे करना चाहती ँ क आप कौन हो? इससे पहले
मने कभी आपको देखा नह ?” न ही लड़क ने उ टे शलाका से ही कर
िलया।
न ही लड़क क भोली जुबान देखकर, कु छ पल के िलये शलाका
सबकु छ भूल गई, फर थोड़ी देर के बाद मु कु राते ए बोली- “मेरा नाम
शलाका है। म भी पहले इसी वेदालय म पढ़ती थी।”
“ या सच!” शलाका क बात सुन न ही लड़क ने मु कु राते ए कहा-
“आप वेदालय से ही पढ़ी ह। तो फर मुझे वेदालय के अंदर के बारे म बताइये
ना?”
“अंदर के वेदालय?” शलाका को कु छ समझ नह आया।
“अरे बु धू, मने कभी वेदालय को अंदर से नह देखा है ना, इसिलये
ऐसे कह रही ँ।” न ही लड़क ने अपने माथे पर धीरे से चपत मारते ए
कहा।
“ या तु ह वेदालय पसंद है?” शलाका ने न ही लड़क से पूछा।
“हां।” न ही लड़क ने अपना िसर ‘हां’ म िहलाते ए कहा- “म
चाहती ँ क म भी वेदालय म पढ़ाई क ं .... पर मेरी माँ मुझे वेदालय नह
जाने देना चाहत ।”
“ठीक है, तो फर आप पहले मुझे अपने बारे म बताइये, फर म
आपक माँ से बात करके , आपको वेदालय म पढ़ने के िलये िभजवा दूँगी।”
शलाका ने अपने घुटने के बल बैठते ए कहा।
“ठीक है।” न ही लड़क ने अपना िसर िहलाया और फर बोलना शु
कर दया- “मेरा नाम नीलांगी है और मेरी माँ का नाम नीिलमा है। म यहाँ
से कु छ दूर ि थत एक गुफा म रहती ँ। मेरी माँ मुझे कभी कसी के सामने
नह आने देती? पता नह य वह हमेशा मुझे िछपा कर रखती ह? ये तो वह
जब गुफा म नह रहत तो म उनक अनुपि थित म िछपकर इधर-उधर
घूमती रहती ँ।”
“और आपके िपता? वह कहाँ रहते ह?” शलाका ने नीलांगी से पूछा।
“अरे ! उ ह का तो है यह वेदालय। .... लगता है आपको कु छ पता ही
नह है?” नीलांगी ने वापस से भोला सा मुंह बनाते ए कहा।
नीलांगी क बात सुन शलाका च क गई।
“ या नाम है आपके िपता का?” शलाका ने नीलांगी के िसर पर हाथ
फे रते ए पूछा।
“नीलाभऽऽऽ।” नीलांगी ने रह यो ाटन करते ए कहा- “वो तो
महागु ह इस वेदालय के । ... पर पता नह य माँ मुझे उनसे िमलाती तक
नह है?”
नीलांगी क बात सुन शलाका का दमाग चकरा गया।
“ या महागु ने सबसे िछपकर दूसरा िववाह भी कर रखा है?”
शलाका ने मन ही मन सोचते ए कहा- “ज र ऐसा ही आ होगा। गु माता
भी तो इतने वष से उ ह छोड़कर चली ग थ । ऐसे म महागु ने दूसरा
िववाह कर िलया होगा।”
“अरे , मेरी कहानी सुनकर आप या सेाचने लग ? अब आप भी तो
बताएं अपने बारे म। आप इस थान पर इतने वष बाद य आई ह?”
नीलांगी ने शलाका को धीरे से िहलाते ए कहा।
“म यहाँ अपनी बहन को ढू ंढने आई ँ, जो क इसी थान से कु छ दूरी
पर कह बफ म िछपी है?” शलाका ने कहा।
“परं तु इतने बड़े िहमालय पर आप उ ह ढू ंढेगी कै से?” नीलांगी ने
कहा- “आप कह तो आपक बहन को ढू ंढने म म आपक सहायता कर दूँ।”
“आप कस कार मेरी सहायता कर सकती हो? आप तो वयं इतनी
छोटी हो।” शलाका ने नीलांगी के गाल को ह के से ख चते ए कहा।
“शायद आप भूल रही ह क म कसक पु ी ँ? आपको मेरी शि य
का भान नह है अभी। ... आप तो बस यह बताइये क आपके पास आपक
बहन का कोई िच है या?” नीलांगी ने शलाका को हैरत म डालते ए
कहा।
“नह िच तो नह है मेरे पास, परं तु वह दखने म िब कु ल मेरी ही
तरह है।” शलाका ने आ य से नीलांगी क ओर देखते ए कहा।
“तो फर ठीक है। म अभी उ ह ढू ंढ देती ँ।” इतना कहकर नीलांगी ने
जोर से आवाज लगाई- “च ुराज कट हो।”
नीलांगी के इतना कहते ही नीलांगी के माथे पर तीसरा ने दखाई
देने लगा, जो नीलांगी के शेष 2 आँख से िभ दख रहा था।
शलाका अब आ य से नीलांगी क शि य को देख रही थी।
तभी नीलांगी ने पुनः जोर क आवाज लगाई- “च ुराज, मेरे सामने
खड़ी ी के समान इनक एक बहन है, जो क यह कह िहमालय पर ही
िहम-समािध िलये ए ह? आप जरा अपनी शि य से उ ह ढू ंढ दीिजये।”
नीलांगी का आदेश सुन नीलांगी के चेहरे पर बनी च ुराज क आँख,
नीलांगी के म तक से िनकलकर बाहर आ गई और उड़ती ई एक दशा क
ओर चल दी।
च ुराज क आँख को एक ओर जाते देखकर, शलाका ने नीलांगी क
ओर इस कार देखा, मानो क वह पूछना चाहती हो क च ुराज के पीछे
कस कार चलना है? परं तु तभी नीलांगी क पीठ पर नीलपंख उग आये
और वह हवा म उड़ते ए च ुराज के पीछे चल दी।
यह देख शलाका भी उड़कर च ुराज क आँख के पीछे चल दी।
कु छ देर तक उड़ने के बाद च ुराज एक थान पर उतरा और बफ क
ओर इशारा करने लगा।
नीलांगी व शलाका भी उस थान पर उतर गये।
च ुराज का इशारा पाते ही शलाका ने अपने दोन हाथ को आगे कर
दया। शलाका के ऐसा करते ही उसके हाथ से अि क लपट िनकलने लग ।
उन अि क लपट ने कु छ ही देर म उस थान पर एक बड़ा सा ग ा बना
दया।
कु छ देर बाद उस गडढे म शलाका को भिव य क शलाका दखाई दे
गई, जो क मू छत अव था म उस ग े म पड़ी थी।
शलाका ने ग े म वेश करके दूसरी शलाका को बाहर िनकाल दया।
अब शलाका ने अपनी मानिसक शि य से दूसरी शलाका को जगाना
शु कर दया।
कु छ ही देर के बाद दूसरी शलाका को होश आ गया। वह एक झटके से
उठ गई और अपने आसपास देखने लगी।
पहली शलाका पर नजर पड़ते ही दूसरी शलाका च क गई।
पहली शलाका ने कु छ ही देर म दूसरी शलाका को सं ेप म पूरी
कहानी सुना दी।
दूसरी शलाका ने सबसे पहले नीलांगी को गले से लगाते ए उसे
ध यवाद दया।
चूं क च ुराज का काय अब समा हो गया था, इसिलये वह वापस
नीलांगी के म तक म समाकर अदृ य हो गया।
“अब आप लोग आपस म िमिलये और म तो चली वेदालय क
ितयोिगता देखने।” नीलांगी ने भोली जुबान म कहा और उड़कर वहाँ से
चली गई।
नीलांगी के जाने के बाद पहली शलाका, दूसरी क ओर मुड़ी और बोल
उठी- “ये बताओ क तुम िबना कसी को बताये कहाँ चली गई थी? और
तुमने इस कार िहम-समािध य ली?”
दूसरी शलाका ने एक लंबी आह भरी और फर बोलना शु कर दया-
“ितिल मा के टू टने के बाद मने सुयश से िववाह कर िलया और हम िछपकर
यूयाक म एक साधारण सा जीवन िबताने लगे। सुयश तो इन सबसे खुश था,
परं तु वेदांत रह यम पढ़ने के प ात् मेरा मि त क ब त िवचिलत रहता था
और इसका कारण था, आयन के अमृत का आकृ ित ारा छीन िलया जाना। म
जब भी खाली होती, तो मुझे सूयाश व सुयश क चंता सताने लगती। मुझे
लगता क एक दन मेरी आँख के सामने, दोनो ही मृ यु को ा हो जायगे।
सुयश िपछले ज म म आयन होने के कारण दोबारा से अमृत नह ा कर
सकता था और सबकु छ जानने के बाद सुयश मुझे लोक जाने नह देता।
बस यही सब सोचकर एक दन मने िछपकर, लोक जाने का िनणय िलया
और िजस दन सूयाश का पांचवा ज म दन था, इस रात म दोन को छोड़कर
लोक अमृत लाने के िलये चल दी। मुझे िव ास था क अमृत लाने के बाद
म दोन को ही मना लूंगी। परं तु जब म ानगंज तक प ंची, तो मुझपर
अचानक से अनेक िविच शि य ने आ मण कर दया? शायद वह सभी
िविच शि यां अमृत क सुर ा के िलये थ । म ब त दन तक अलग-अलग
कार से लोक के अंदर वेश करने का माग ढू ंढती रही। आिखरकार एक
दन मुझे एक गु माग का पता चल ही गया। परं तु जब म उस गु माग से
होती ई लोक प ंची, तो उस माग के मुहाने पर एक िविच य मेरी
ती ा करते ए िमला। लोक के अंदर प ंच जाने के कारण मेरी सभी
चम कारी शि यां समा हो ग थ । तभी उस य ने मुझे उठाकर यहाँ
िहमालय पर ला पटका और इस बफ के अंदर मेरी िहम-समािध बना दी। य
के हार से म अनंतकाल के िलये मू छत हो गई, परं तु मू छत होने के पहले
मने अपने शरीर के चारो ओर अि का सुर ाकवच बना िलया था, इसी
सुर ा कवच के चलते म िपछले 2.5 वष से इस िहम-समािध म जीिवत
बची ई थी।”
“इसका मतलब अमृत तु ह भी ा नह आ। पर इस अमृत को ा
करने के लालच म तुम तु हारे पु का बचपन भी नह देख पाई।” पहली
शलाका ने कटा करते ए कहा- “यह तो भला हो तु हारे पु का, िजसने
भूतकाल से लाकर मुझे खड़ा कर दया। परं तु अब यह समय अपनी
असफलता को याद करने का नह है, इसिलये तुरंत मेरे साथ चलो और
चलकर अपने पित और पु से मा मांगो। .... और एक बात सदैव यान
रखना क ई र ने साधारण जीवन जीने वाले को कभी अमर व दया ही
नह है। इसीिलये तु हारे पु ने जब साधारण मनु य को बचाने का िनणय
िलया, तभी उसे भूतकाल म वतः ही अमर व ा हो गया। अतः ई र ने
य द तु ह कु छ शि यां दी ह? तो उन शि य का योग मानवता क भलाई
के िलये करो। हो सकता है क कु छ समय प ात् तुम दोन को भी वतः ही
अमर व ा हो जाये।”
पहली शलाका क बात सुनकर दूसरी शलाका ने धीरे से िसर िहला
दया।
शायद अब उसे सब कु छ समझ म आ गया था। समय का च ही ऐसा
है क िबना आगे बढ़े वह कोई भी व तु ा करने ही नह देता?
अब दोन शलाका आकाश माग से सूयाि भवन क ओर चल दये।
एक माँ ने अपने पु को दया वचन पूरा कर दया था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-14
मृ युसंगीत

ितिल मा 7.72

इ अनुसारसकोई
समय सभी क नजर आसमान क ओर थ । ऐले स के कहे
नई मुसीबत सभी क ओर बढ़ रही थी? तभी सभी को
आसमान म उ र दशा से आती ई एक िमसाइल दखाई दी। िमसाइल सीधे
उ ह क ओर आ रही थी।
िमसाइल को देखकर सभी क जान ही सूख गई।
वह िमसाइल इनके गोल े म आकर इनसे थोड़ी दूरी पर िगरी।
िमसाइल के िगरने से एक भीषण धमाका आ और इसी के साथ उस थान
क पूरी घास जलकर राख हो गई।
“कै टे न अंकल, मुझे लग रहा है क, आपको आपके का उ र
िमल गया होगा।” शैफाली ने सुयश क ओर देखते ए कहा- “यह िमसाइल
भी ‘मी’ वर के पहले श द से बनी थी। यािन क अब कै र ने हम पर वार
करना शु कर दया है। इसिलये हम ज दी से ज दी कथारा के बाक वर
को िनकालना होगा और उन वर से बने श द पर भी यान देना होगा।”
तभी सभी को हवा म एक और िमसाइल आती ई दखाई दी। वह
िमसाइल भी इनसे कु छ दूरी पर एक अलग थान पर िगरी, िजसे देखकर
शैफाली िच ला उठी- “कै टे न अंकल, इस िमसाइल का िनशाना हम लोग
नह बि क वह नीली घास है। िमसाइल हर बार एक नये थान पर िगर कर
नीली घास को जलाती जा रही है। अगर ऐसा आ तो कसी ना कसी समय
वह हमारे ऊपर भी िगर सकती है? इसिलये अब हम देर नह करनी चािहये
और कथारा के अगले वर को िनकालना चािहये।”
शैफाली क बात सुन सुयश ने अपना हाथ िहलाकर, ऐले स को
अगला वर िनकालने को कहा।
सुयश का इशारा देखकर ऐले स ने कथारा का अगला तार ख च
दया। इसी के साथ वातावरण म तेज ‘फा’ क आवाज उभरी।
इस आवाज के उभरते ही इं धनुष से हरी करण िनकल और उ ह ने
उस पूरे मैदान म हरे रं ग के िविच कोहरे को फै लाना शु कर दया।
जैसे ही उस पूरे वातावरण म कोहरा फै ला, सभी के चलने क गित
ब त धीमी हो गई।
“यह कोहरा भी कथारा के ‘फा’ वर से बना है। कोहरे को अं ेजी म
हम ‘फॉग’ कहते ह। ..... पर यह तो ब त ही िविच कोहरा है, इसम चलते
ए हम ऐसा तीत हो रहा है क मानो हम कसी पानी के अंदर आगे बढ़
रहे ह ?” शैफाली ने कहा- “लगता है क कै र इस ार म भी हमारी गित
को कम करना चाह रहा है।”
अब सुयश ने ज दी से ऐले स को फर से इशारा कर दया।
ऐले स ने अब कथारा से ‘सो’ वर को िनकाल दया। ऐले स के
ऐसा करते ही इं धनुष से पीली करण िनकल और उन करण ने सोने के
समान पीली धातु क पोशाक पहने 7 यो ा का िनमाण कर दया। उन
सात यो ा का शरीर लगभग 8 फट ऊंचा था।
उन यो ा के हाथ म सोने क तलवार थ । यो ा का पूरा शरीर
कवच से ढके होने के बाद भी उनक शि का अहसास हो रहा था।
6 यो ा 3-3 क दो लाइन म बंटे थे और एक यो ा उनके लीडर क
तरह सबसे आगे था।
तभी सभी यो ा एक ‘खटाक’ क आवाज के साथ स य हो गये और
सुयश सिहत सभी लोग को दौड़ाने लगे। भला िसफ इतना था क कोहरे के
कारण उन यो ा क गित काफ कम थी।
वह सभी यो ा इस समय कसी सेना के जवान क तरह से एक साथ
अपने पैर चला रहे थे, िजसके कारण वातावरण म उन यो ा के धातु के
जूत क आवाज तेजी से गूंज रही थी।
उन यो ा को अपनी ओर आते देख, सुयश ने जोर से आवाज लगाते
ए कहा- “इन यो ा क गित ब त कम है, ऐसे म हम इनसे आसानी से
बच सकते ह। इसिलये दो त िजतना देर हो सके , इन सभी यो ा से दूर
रहो। ..... और ऐले सऽऽऽऽ तुम ज दी से अगला वर िनकाल दो।”
उधर अब जमीन से िनकलने वाली घास का आकार सभी के घुटन
तक हो गया था, िजसक वजह से कभी-कभी कसी का पैर उस लंबी घास म
फं स जा रहा था, िजसके कारण सभी को भागने म परे शानी हो रही थी।
दूसरी ओर बा रश भी थमने का नाम ही नह ले रही थी और खाली थान
पर िमसाइल का आ मण भी जारी था। ऊपर से सबसे बुरा हाल उस हरे
कोहरे ने कर रखा था, िजसने सभी क गित िब कु ल ही धीमी कर दी थी और
तो और .... अब तो यो ा भी सबके पीछे पड़ गये थे।
येक ण सबक मुसीबत बढ़ती ही जा रह थ ।
इस समय सबसे बेहतर ि थित म ऐले स ही था, जो क चुपचाप
अपोलो क मू त पर बैठा नीचे के दृ य को देख रहा था। तभी सुयश का
कहना मान ऐले स ने कथारा के अगले वर को भी िनकाल दया-
“लाऽऽऽऽऽऽ”
‘ला’ क विन िनकलते ही इं धनुष से नारं गी रं ग क करण िनकल ,
परं तु वह करण मैदान के पुल को पारकर दूसरी ओर िगर । सभी के िलये यह
आ य क बात थी। सभी यो ा से बचते ए उस नारं गी करण के िगरने
के थान को देख रहे थे।
तभी उन नारं गी करण ने जमीन के नारं गी कण के साथ िमलकर
एक मानव शरीर का िनमाण करना शु कर दया।
“कै टे न, लगता है क एक नई मुसीबत हमारे िलये तैयार हो रही है।”
टी ने तेज आवाज म सुयश से कहा- “पर बेहतर यही है क वह मुसीबत
हमारे मैदान से बाहर क ओर बन रही है।
धीरे -धीरे उस मानव शरीर ने एक लड़क का आकार ले िलया, िजसने
इस समय काले रं ग क चु त ेस पहन रखी थी। दूरी ब त यादा होने क
वजह से और तेज बा रश व कोहरे के कारण, कसी को भी अभी तक उस
लड़क का चेहरा िब कु ल साफ दखाई नह दया था।
तभी उस लड़क के हाथ म एक चमकता आ लॉके ट दखाई दया,
िजसे तौफ क ने इतनी दूर से भी तुरंत पहचान िलया। अब तौफ क यान से
उस लड़क के चेहरे क ओर देखने लगा।
पर लड़क के चेहरे को पहचानते ही तौफ क के ह ठ जोर से कं पकं पाने
लगे। अंततः उसके मुंह से उस लड़क का नाम िनकल ही गया-
“लॉरे नऽऽऽऽऽऽ।”
तौफ क के फु सफु साते ए श द भी जाने कै से पूरे वातावरण म फै ल
गये। यह देख तौफ क ने अचकचा कर अपने चारो ओर देखा और फर उसक
िनगाह जेिनथ पर जाकर टक गई।
अब तौफ क कातर नजर से जेिनथ क ओर लगातार देखे जा रहा
था। उसे समझ म नह आ रहा था क वह इस समय सबके सामने कै सा
वहार करे ?
जेिनथ भी तौफ क के मनोभाव को ब त अ छी तरह से समझ रही
थी, पर कु छ भी बोलना उसके िलये भी संभव नह दख रहा था। कै र ने
इस बार तौफ क के मि त क से बुरी तरह से खेला था।
“यह तो लॉरे न है, जो क लाश म बदल गई थी और इस समय उसके
हाथ म वही लॉके ट है, जो उसने मरने के समय पहन रखा था।” सुयश ने तेज
आवाज म कहा- “लगता है क कै र ने इस बार ‘ला’ वर से ब त से श द
एक साथ बनाने क कोिशश क है। जैसे क ‘लॉरे न, लाश व लॉके ट’। .... पर
कै र हमारे साथ इस कार का खेल, खेल य रहा है? यह बात मुझे समझ
म नह आई?”
चूं क जेिनथ ने तौफ क से उसके राज को कसी से ना बताने का वचन
दया था? इसिलये वह कसी मूक दशक क भांित अंजान बनी ई थी।
तभी लॉरे न ने मैदान के दूसरी ओर से चलना शु कर दया और उस
पुल के बीचोबीच आकर खड़ी हो गई। लॉरे न अब ना तो वहाँ से आगे जा रही
थी और ना ही पीछे ही जा रही थी। वह तो जैसे अब एक बुत सी बन गई थी।
परं तु लॉके ट को उसने अपने सीधे हाथ म पकड़ कर अपना हाथ ऊंचा उठा
रखा था।
ऐसा लग रहा था क जैसे वह कसी को अपना लॉके ट दखाना चाह
रही हो?
इस बार ऐले स ने िबना सुयश का इशारा पाये ए ही, कथारा के
आिखरी वर के तार को ख च िलया। अब वातावरण म ‘टी’ क तेज आवाज
जोर से गूंजी।
‘टी’ क आवाज सुन शैफाली ने आसमान क ओर देखा। आसमान म
मौजूद लाल रं ग क रे खा जोर से चमक और उससे लाल करण िनकलकर
धरती क ओर लपक , पर बा रश क नीली बूंद ओर कोहरे के हरे रं ग के
कारण व लाल करण आसमान से कहाँ आकर िगर , यह शैफाली को दखाई
नह दया?
अब शैफाली थोड़ी बेचैन होकर अपने चारो ओर देखने लगी। पर उसे
कह भी कोई भी प रवतन होता आ नजर नह आया?
“कै टे न अंकल, या आप लोग को कथारा के ‘टी’ वर से बनने
वाला कोई श द नजर आ रहा है? य क ‘टी’ वर ही कथारा का अिखरी
वर है, इसिलये मुझे लग रहा है क उस ‘टी’ श द म ही इस ितिल म को
तोड़ने का कोई ना कोई रह य अव य िछपा होगा?” शैफाली ने सबके साथ
भागते ए सुयश से पूछा।
“नह शैफाली, मुझे ‘टी’ से बनने वाला कोई भी श द यहाँ नजर नह
आ रहा? ऊपर से इस कोहरे , बादल और और बा रश के कारण इं धनुष का
लाल रं ग भी तो नजर नह आ रहा, नह तो उसे देखकर ही बताया जा
सकता था क कथारा का आिखरी वर ‘टी’ कौन सा श द बना रहा है? ....
पर फलहाल तुम तेज भागो शैफाली य क उन यो ा क गित लगातार
बढ़ती जा रही है।”
सुयश क बात सुन शैफाली ने अपनी गित थोड़ी और बढ़ा दी।
“पर कै टे न, हम इन मुसीबत से िनपटने का कोई ना कोई उपाय तो
सोचना ही होगा? ऐसे हम कतनी देर तक िमसाइल या फर उन यो ा से
बचते रहगे?” जेिनथ ने भागते ए सुयश से कहा।
“िजसको भी भागने म यादा परे शानी महसूस हो रही हो, वह कसी
कार से अपोलो क मू त पर चढ़ जाये। ऐसे म वह भी ऐले स क तरह से
वयं को सुरि त महसूस करे गा।” सुयश ने भागते ए जेिनथ से कहा।
“पर कै टे न, अगर कै र ने यहाँ पर लॉरे न को रखा है, तो अव य ही
लॉरे न के पास भी कोई रह य हो सकता है? तो फर या हम एक बार लॉरे न
के पास प ंचने क कोिशश कर?” टी ने कहा।
“लॉरे न के पास प ंचना संभव नह है। तुम लोग ने देखा था क पुल
के पास एक अदृ य दीवार थी, जो क हम पुल पर जाने ही नह दे रही थी,
ऐसे म हमम से कोई भी लॉरे न के पास नह प ंच सकता?”
तभी एकाएक भाग रहे यो ा क गित और बढ़ गई। अब लगातार
उन लोग और यो ा के बीच का फासला घटता जा रहा था।
“शैफाली ज दी से कु छ करो? हमारे पास अब समय ब त कम बचा
है।” जेिनथ ने शैफाली क ओर देखते ए ाथना भरे वर म कहा।
“कै टे न अंकल, सबसे पहले हम इन यो ा से अपना पीछा छु ड़ाना
होगा। य क यह लगातार हमारे समीप प ंचते जा रहे ह और कसी भी
ण यह हमम से कसी को भी मार सकते ह? .... हमारे पास यहाँ कोई भी
हिथयार ऐसा नह है, िजसके ारा हम इन 8 फु ट के दै याकार यो ा को
मार सक। अगर हमम से कसी ने इन यो ा से तलवार छीन भी ली, तो
ऐसे म हम इन कवचधारी यो ा को इनक तलवार से मार भी नह
सकते। ..... इसिलये इ ह मारने का मुझे एक ही उपाय दखाई दे रहा है और
वह उपाय है ... वह पुल। चूं क यह सभी यो ा कसी सेना के जवान क तरह
से एक साथ अपने कदम चला रहे ह, इसिलये मुझे पूरा िव ास है क इनके
कदम के अनुनाद से वह पुल टू ट जायेगा। ..... पर .... पर हम कै से भी उस
पुल पर नह जा सकते? .... उधर िमसाइल ने भी इस मैदान क 70 ितशत
घास को जला डाला है, इसिलये अब िमसाइल का खतरा भी हमारे ऊपर
बढ़ता जा रहा है।”
शैफाली बोल तो सुयश से रही थी, परं तु उसक एक नजर उन बादल
के ऊपर आसमान म बने इं धनुष पर लगी ई थी।
तभी एक चम कार आ। बादल क ओट एक थान पर थोड़ी
कमजोर हो गई, िजसके कारण एक ण के िलये शैफाली को इं धनुष क
लाल करण जमीन क ओर आती ई दखाई दे गई।
शैफाली क ती ण िनगाह लगातार इं धनुष क लाल करण का
पीछा कर रह थ । आिखरकार शैफाली को वह लाल करण एक थान पर
िगरती ई दखाई दे ग और वह थान था ..... तौफ क का िसर।
एक पल से भी कम समय शैफाली को जैसे सबकु छ समझ आ गया।
अब उसने अचानक से भागना बंद कर दया और अपनी ओर आ रहे यो ा
को यान से देखने लगी।
शैफाली को इस कार बीच म कता देख सुयश सिहत सभी को ब त
आ य आ। इसिलये सुयश भी कु छ आगे जाकर ठठक कर क गया और
चीखकर शैफाली को खतरे से आगाह करने लगा- “शैफालीऽऽऽऽ भागो वहाँ
से। .... वह सभी यो ा तु हारी ओर ही आ रहे ह।”
पर शैफाली, सुयश क आवाज सुनने के बाद भी अपने थान पर खड़ी
रही।
सभी 7 यो ा अपने पैर चलाते तेजी से शैफाली क ओर बढ़े और फर
आ यजनक तरीके से शैफाली के बगल से होते ए आगे क ओर बढ़ गये।
सभी यो ा शैफाली के बगल से ऐसे िनकले, जैसे क उ ह शैफाली से
कु छ लेना-देना ही ना हो? यह देख शैफाली के चेहरे पर एक िवजयी मु कान
िथरक उठी। अगले ही पल शैफाली तेजी से मुड़ी और तौफ क को देखते ए
जोर से चीखी- “तौफ क अंकल, तेज भागोऽऽऽऽ यह सभी यो ा िसफ और
िसफ आपके ही पीछे ह। यह कसी और को कु छ भी नह कहगे?”
शैफाली क आवाज सुन तौफ क को छोड़कर, बाक के लोग अपने
थान पर क गये। शैफाली का कहना िब कु ल ठीक था, उन यो ा को
कसी से कु छ भी लेना-देना नह था? वह तो बस पागल क भांित तौफ क
के पीछे भाग रहे थे।
वह यो ा एक-एक कर सभी के बगल से होते ए तौफ क के पीछे
लपके , पर इस समय तौफ क क भागने क गित देखने लायक थी। तौफ क
अपनी आम क े नंग का अ छा उपयोग कर रहा था।
अब शैफाली भागती ई सभी के पास आ प ंची।
शैफाली को पास आते देख सुयश ने शैफाली से पूछ िलया- “तु ह कै से
पता चला शैफाली क वह सभी यो ा िसफ तौफ क के पीछे ह?”
“कै टे न अंकल, जब मने कथारा के सातव वर ‘टी’ को ढू ंढने के िलये
आसमान क ओर देखा, तो मुझे इं धनुष से िनकली लाल करण तौफ क
अंकल पर ही िगरती ई दखाई द । तभी मेरे दमाग म आया क ‘टी’ से तो
तौफ क अंकल का नाम भी है। यािन क हम िजस ‘टी’ श द को ढू ंढने के िलये
इधर-उधर देख रहे थे, वह श द हम लोग के बीच म ही था। पर उस लाल
करण के िगरने के बाद भी तौफ क अंकल के शरीर म कसी कार का कोई
बदलाव नह आया था? इसिलये मुझे यह तुरंत समझ म आ गया क कै र ने
इस ार को तोड़ने क ताकत िसफ और िसफ तौफ क अंकल को ही दी है ...
और आप लोग याद करो तौफ क अंकल ने कु छ देर पहले ही बोला था क
उनका ज म दन 7 जुलाई को पड़ता है। तभी मुझे लगा क यह यो ा हम
सबके नह बि क िसफ तौफ क अंकल के पीछे हो सकते ह। इसी बात को
जांचने के िलये म एक थान पर क गई और देिखये मेरा सोचना िब कु ल
सही िनकला। .... अब तो म दावे के साथ कह सकती ँ क उस पुल के पार
िसफ तौफ क अंकल ही जा सकते ह और जब वह यो ा तौफ क अंकल के
पीछे उस पुल पर जायगे, तो उन यो ा के कदम के एक साथ चलने क
वजह से, प थर का वह पुल टू ट जायेगा और इस कार वह सभी यो ा पुल
के नीचे दख रहे उस लावे म जल जायगे।”
“तो फर देर य कर रही हो? ज दी से यह योजना तौफ क को बता
दो, िजससे वह ज दी से ज दी उन यो ा से अपनी जान को बचा सके ।”
सुयश ने शैफाली को देखते ए कहा।
“म उ ह पुल के पार तो भेज दूँगी, परं तु अभी भी मुझे पुल पर लॉरे न
का खड़े होना समझ म नह आया और उ ह देखकर यह साफ लग रहा है क
उनके हाथ म पकड़े लॉके ट म भी कै र ने कु छ ना कु छ रह य तो िछपाया ही
होगा? ... बस इसी को समझने के िलये म अभी तौफ क अंकल से कु छ नह
बोल रही ँ?” शैफाली ने सुयश को समझाते ए कहा।
शैफाली के श द सुनकर जेिनथ एक पल के िलये िहल सी गई, य क
यहाँ खड़े लोग म िसफ उसी को पता था क लॉरे न के उस लॉके ट का या
रह य है? .... पर अपने वचन से बंधे होने के कारण जेिनथ अभी भी कु छ भी
बोलना नह चाहती थी? जाने य जेिनथ को लग रहा था क लॉरे न का
वहाँ पर होना, तौफ क के िलये कोई अ छा संकेत नह है?
तभी सभी को वह यो ा तौफ क के ब त पास आते दखाई दये। इस
समय तौफ क उस पुल के पास म ही था।
उन यो ा को अपने इतने पास आते देख तौफ क को ना जाने या
सूझा क वह पुल क ओर मुड़ गया? पुल के पहले पड़ने वाली अदृ य दीवार
ने तौफ क को नह रोका।
अब तौफ क तेजी से भागता आ लॉरे न के पास जाकर खड़ा हो गया।
लॉरे न को अपने सामने देख तौफ क ब त भावुक नजर आने लगा। कु छ पल
के िलये वह यह भी भूल गया क वह इस समय ितिल मा म खड़ा है, जहां
क दखने वाली हर चीज असली नह होती।
उधर पुल पर चढ़ने के कोिशश म लीडर यो ा का पैर पुल के कनारे
से फं स गया िजसक वजह से वह पुल के पहले ही जमीन पर िगर गया।
लीडर यो ा को िगरते देख बाक के यो ा अपने थान पर खड़े हो
गये और उस लीडर यो ा के वापस खड़े होने का इं तजार करने लगे।
तौफ क के िलये इतना समय काफ था, लॉरे न के साथ उस पुल के
दूसरी ओर जाने का। पर पता नह इस समय तौफ क या सोच रहा था? वह
सामने खड़ी लॉरे न के गले से लग गया।
“मुझे माफ कर देना लॉरे न ... मुझे पता है क तुम असली नह हो, पर
इस समय तु हारे िलये मेरी भावनाएं िब कु ल असली ह।” तौफ क, लॉरे न के
गले से िलपटा लगातार बोलता जा रहा था- “पता नह उस समय मेरे
दमाग म जेिनथ के ित कतनी बदले क भावना आ गई थी? जो मने उसके
िलये तु हारी जान ले ली। .... जो भी हो कै र ने ितिल मा का यह ार मेरे
ही दमाग को पढ़कर बनाया है और सच क ँ तो इसके िलये म कै र का
आभारी ँ। य क तु ह मारना मेरी जंदगी का सबसे खराब िनणय था ....
पर म आज इसी थान पर तु ह गले से लगाकर ायि त करना चाहता ँ।”
उधर दूर खड़े सभी लोग तेज िच लाकर, तौफ क को उस पुल से दूर
हटने के िलये कह रहे थे। सभी क तेज आवाज सुनकर तौफ क ने पीछे
पलटकर देखा और फर मु कु राते ए हाथ िहलाकर एक ‘ लाइं ग- कस’
जेिनथ क ओर उछाल दया।
उधर पुल के पास िगरा आ लीडर यो ा उठ खड़ा आ और उसने
आगे बढ़कर पुल पर अपना कदम रख दया। लीडर यो ा के पीछे -पीछे बाक
के यो ा भी कदमताल करते ए पुल के ऊपर आ गये।
इस समय जेिनथ क आँख से झर-झर आँसू बह रहे थे। वह लगातार
िच लाकर तौफ क को पुल से हटने का इशारा कर रही थी, पर जाने य इस
समय जेिनथ को महसूस हो गया था क अब तौफ क या करने जा रहा है?
पुल पर अब सभी यो ा आ गये थे और तेजी से तौफ क व लॉरे न क
ओर बढ़ते जा रहे थे। इस समय तौफ क क आँख म भी आँसु क बूंद
दखाई दे रह थ , ले कन चेहरे पर बा रश क बूंद होने के कारण कोई उन
आँसु क बूंद को समझ नह पा रहा था?
तौफ क ने उन यो ा क परवाह ना करते ए लॉरे न के हाथ म
पकड़ा लॉके ट वापस से लॉरे न के गले म पहना दया और उसे फर से गले से
लगा िलया।
यही वह पल था, जब क उन यो ा के कदमताल क वजह से
प थर से बना वह पुल टू ट गया और इसी के साथ तौफ क, लॉरे न को िलये
ए उस लावे म िगरने लगा।
तौफ क के पीछे -पीछे वह 7 यो ा भी उस लावे के कुं ड म िगर गये।
िगरते ए तौफ क क आँख म इस समय प ाताप के आँसू थे और थी
एक पुरसुकून शांित .............................. और फर एक महायो ा, एक
सव े िनशानेबाज, एक अंजान काितल, एक जेिनथ से यार करने वाला
आिशक और सबसे बढ़कर सबक जान बचाने वाला एक सुपरहीरो सरीखा
इं सान सदा-सदा के िलये इस दुिनया से िवदा ले चुका था।
वैसे तो इस समय सबक आँख म आँसू थे, परं तु जेिनथ तो रोते-रोते
जमीन पर िगर गई थी।
तौफ क के उस अि क भट चढ़ जाने के बाद, देवता अपोलो क मू त
वापस से जमीन म समा गई। इसी के साथ उस ह पर छाये गाढ़े नीले
बादल का झु ड भी कह गायब हो गया?
अब बा रश भी थम चुक थी और िमसाइल का आ मण भी बंद हो
चुका था। शायद वह सब भी इस यो ा क ांजली से संतु हो गये थे।
एक कार से ितिल मा का आिखरी ार भी समा हो गया था और
उन सभी के सामने दख रहे ार के पास से अदृ य दीवार भी हट चुक थी।
सभी जेिनथ को शांत कराने क कोिशश कर रहे थे, पर इस समय
जेिनथ को सबसे यादा िजसक ज रत थी, वह तो वयं जेिनथ को अपनी
आँख से िनहार रहा था, पर ज़ेिन स को दये वचन के कारण वह इस समय
जेिनथ क मदद करने नह गया था और वह था लैकून के समयच पर बैठा
आ डे फानो का युवराज ओरस। ..... जो शायद इस समय कसी नये यु
क तैयारी म त था?
आिखरकार काफ देर तक रोते रहने के बाद जेिनथ थोड़ा शांत हो
गई। उधर सुयश व वहां खड़े लोग के मि त क म अनेक ् थे, परं तु कोई
भी इस दमागी हालत म नह था, क वह आपस म एक दूसरे से कोई
पूछ पाता?
जेिनथ के शांत होते ही सभी ितिल मा के उस आिखरी ार से बाहर
क ओर चल दये।
कसी को नह पता था क इस आिखरी ार के बाद या होने वाला
है? उ ह तो बस अब काला मोती चािहये था। वह काला मोती जो हजार
वष से कसी यो ा के आने का इं तजार कर रहा था? ...........................
हजार वष का इं तजार।
◆ ◆ ◆
नागयु

08.02.02, शु वार, नागधरा रा य, दं ड कार य वन, पूव म य भारत


नीलाभ अपने नीलपंख फड़फड़ाते ए दंडकार य वन के एक िह से म
उतरा।
नीलाभ के पंख क फड़फड़ाहट से वन के छोटे -छोटे जीव अपने िबल
म घुस गये।
धरा पर उतरने के बाद नीलाभ ने अपने नीलपंख को अपने शरीर के
अंदर समेटा और सधे कदम से नागधरा रा य म बह रही ईव नदी क ओर
चल दया।
नीलाभ के चेहरे पर इस समय ोध के भाव साफ नजर आ रहे थे और
यह ोध के भाव प ीलोक के पि य क मृ यु के कारण थे।
वन के सूखे प को र दता आ नीलाभ, कु छ ही देर म एक ऊंचे
पवत के पास प ंच गया, जहां से एक तेज झरना नीचे क ओर िगर रहा था।
उस झरने से कु छ दूरी पर एक छोटी सी झील थी, जो आगे जाकर ईव
नदी म प रव तत हो रही थी। उस झील से कु छ दूरी पर महादेव का एक
ाचीन मं दर बना दखाई दे रहा था, िजसके शीष पर एक िवशाल ि शूल
लगा था।
नीलाभ िशव मं दर को देख उसक ओर बढ़ गया।
“इसी थान पर कह ना कह से नागलोक के अंदर वेश करने का
ार है? मुझे सव थम उस ार को ढू ंढना होगा।”
अभी नीलाभ यह सोच ही रहा था क तभी नीलाभ को अपने पीछे से
कसी सरसराहट क विन सुनाई दी। इस विन को सुनते ही नीलाभ तुरंत
अपने थान पर बैठ गया, य क यह विन कसी धनुष क यंचा ख चने
क थी?
नीलाभ के बैठते ही उसके िसर के ऊपर से एक साथ कई तीर िनकल
गये। य द नीलाभ बैठने म एक पल क भी देरी करता, तो वह सभी तीर
उसके िसर म घुस जाने थे।
अब नीलाभ ने धरा पर बैठे ए, मन ही मन कोई मं पढ़ा। नीलाभ के
ऐसा करते ही उसक दािहने हाथ पर बंधी ा क माला वतः ही टू टकर
िबखर गई, परं तु माला का एक भी ा जमीन पर नह िगरा।
शरीर से अलग होते ही वह सभी ा तेजी से उस दशा क ओर
बढ़े, िजधर से वह सभी तीर आये थे। तभी एक ा ने अपना आकार तेजी
से बढ़ाया और कु छ दूर ि थत एक बड़े से वृ से टकरा गया।
ा के टकराते ही वह वृ बुरी तरह से िहल गया। इसी के साथ
वृ क शाख पर बैठी ई 2 नागक याएं कसी पके फल क भांित धरा पर
आ िगर ।
दोनो ही नागक याएं कसी ी क तरह दख रह थ , परं तु उनके
व उ ह नागक या िस करने के िलये पया थे। दोनो नागक या ने
कसी यो ा क भांित नीले रं ग के व धारण कर रखे थे।
दोन नागक याएं िगरते ही िबजली क तेजी से उठ खड़ी । अब
दोन क नजर उस थान क ओर ग , िजधर कु छ देर पहले नीलाभ िगरा
था, परं तु अब उस थान पर नीलाभ कह दखाई नह दे रहा था?
“वह िविच पु ष कहाँ गायब हो गया? जो हमारे नागलोक म वेश
करने का माग ढू ंढ रहा था।” एक नागक या ने कहा।
परं तु इससे पहले क दूसरी नागक या कोई उ र दे पाती? क तभी
उ ह हवा म कसी प ी के पंख फड़फड़ाने क विन सुनाई दी। इस विन को
सुनकर दोन ने ऊपर क ओर देखा।
ऊपर देखते ही दोन बुरी तरह से च क ग , य क उनके िसर के
ऊपर नीलाभ अपने नीलपंख के सहारे हवा म उड़ रहा था।
नीलाभ के हाथ म बंधे सभी ा नीलाभ के चारो ओर वृ ाकार
आकार म गित कर रहे थे। इस समय सभी ा का आकार सामा य था।
नीलाभ को इस कार उड़ते देख, पुनः एक नागक या ने अपने धनुष
को संभाला और नीलाभ पर तीर चला दया, परं तु वह तीर नीलाभ का कु छ
नह िबगाड़ सका? उ टे नीलाभ ने उसे अपने हाथ से पकड़कर तोड़ दया।
अब नीलाभ हवा म लहराता उन दोन नागक या के पास उतरा।
“मुझे तु ह मारने म कोई िच नह है?” नीलाभ ने कहा- “मुझे तो
बस तुम नागलोक जाने का ार दखा दो। म तुम दोन को कु छ नह
क ँगा?”
“आप नागलोक य जाना चाहते हो?” एक नागक या ने डरते-डरते
नीलाभ से पूछ िलया।
“मुझे नागलोक क रानी नीलांगी का िसर चािहये।” नीलाभ ने ोध
म फुं फकारते ए कहा।
नीलाभ क बात सुनते ही दोन नागक या ने िबना अपने जीवन क
चंता कये, ोध म आकर नीलाभ पर तीर क बौछार कर दी।
परं तु नीलाभ ने अपने नीलपंख से अपने शरीर को ढक िलया। नीलपंख
से टकराते ही सभी तीर इधर-उधर िछटक गये। अब नीलाभ के हाथ म एक
चमचमाता आ सोने का राजदंड दखाई दया, जो क नीचे से कसी भाले
के समान नुक ला भी था।
ले कन इससे पहले क नीलाभ अपने राजदंड से कसी भी नागक या
का कोई अिहत कर पाता? क तभी नीलाभ को वन से पेड़ के िगरने क तेज
आवाज आती सुनाई द ।
यह िविच आवाज सुनते ही नीलाभ, उन नागक या को छोड़ उस
विन क दशा म देखने लगा।
“यह कै सी विन है? ऐसा लग रहा है क जैसे कोई िवशाल जीव, वन
के वृ को र दता आ इसी दशा क ओर आ रहा है।” नीलाभ ने कहा।
इस विन को सुन दोन नागक याएं तेजी से हंसने लग ।
“अब तु ह कोई नह बचा सकता? िजनक तु ह तलाश थी, वह तो
वयं तु ह ढू ंढती ई इधर क ओर ही आ रह ह। अगर अपने ाण से जरा
भी ेह है, तो तुरंत यहाँ से भाग जाओ युवक, अ यथा हमारी नागरानी
तु हारे ाण को छीन लगी।
नागक या क बात सुन नीलाभ के हाथ म एक वणपाश दखाई देने
लगा। नीलाभ के इशारे पर उस वणपाश ने दोन नागक या को बांधकर
एक वृ क शाख पर टांग दया।
ऐसा नीलाभ ने नागरानी का ोध बढ़ाने के िलये कया था।
तभी वन के एक भाग से महायो ा नीलांगी कट ई, िजसका
भयानक प देखकर तो एक बार नीलाभ भी आ य से भर उठा।
नीलांगी का आकार इस समय 50 फु ट के आसपास था। नीलांगी के
शरीर का ऊपरी भाग कसी क या क भांित और नीचे का भाग कसी नािगन
क तरह से था। नीलांगी के शरीर पर कसी देवी क भांित 8 हाथ दखाई दे
रहे थे और उसने अपने सभी हाथ म, कसी ना कसी कार का कोई अ -
श पकड़ रखा था?
नीलांगी के शरीर पर नीले रं ग के राजसी व थे और उसके माथे पर
एक वण मुकुट था, जो क उसके ि व को और भी यादा भावशाली
बना रहे थे। मुकुट के अंदर से झांक रहे नीलांगी के लंबे बाल उसके ोध को
दशा रहे थे।
नीलाभ तो नीलांगी का यह प देखकर भािवत हो गया, परं तु तुरंत
ही उसे अपने यहाँ आने का उ े य मरण हो आया। इसिलये वह अपने चेहरे
को स त बनाये अपने थान पर खड़ा रहा।
नीलांगी अपनी पूंछ के बल चलती ई नीलाभ के सामने आ खड़ी ई।
तभी नीलांगी क नजर पेड़ क शाख से लटक दोन नागक या पर पड़ी।
अगले ही पल नीलांगी के धनुष से एक तीर िनकला और उसने वणपाश को
काटने क असफल कोिशश क , परं तु नीलांगी का वह तीर नीलाभ के
वणपाश को काट नह पाया।
यह देख नीलांगी ने अपना मुख खोल दया। नीलांगी के ऐसा करते ही
उसके मुख से नीले रं ग के छोटे -छोटे 2 च िनकले और उन च ने वणपाश
को सहजता से काट दया।
वणपाश के कटते ही दोन नागक याएं धरा पर आ िगर । तभी कटा
आ वणपाश पुनः से जुड़ गया, परं तु नीलाभ ने एक इशारे से अपने
वणपाश को अदृ य कर दया।
अब वह लगातार नीलांगी को देखे जा रहा था।
तभी नीलांगी क कड़कदार आवाज पूरे वन म गूंज उठी- “कौन हो
तुम? और मुझसे य िमलना चाहते हो?”
“मेरा नाम नीलाभ है, म तु ह प ीलोक म ए िवनाश का दंड देने के
िलये यहाँ आया ँ और उस दंड के फल व प म तु हारा िसर काटकर
प ीलोक ले जाऊंगा। तु हारे िसर के बदले म शरभदेव मुझे द शि यां
दान करगे।”
नीलाभ क बात सुन नीलांगी जोर-जोर से हँसने लगी- “हाऽऽऽऽ
हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽ तुम मेरा िसर लेने आये हो। या तु ह पता भी है क
मेरे पास कस कार क शि यां ह? अरे मेरे सामने तो दै य क पूरी सेना
भी घबराकर भाग जाती है और तुम मेरे ही नागलोक म आकर मुझे ही यु
के िलये ललकार रहे हो। ... अभी भी समय है नीलाभ, तुम चाहो तो इस
थान से जा सकते हो, म तु ह बालक समझ कर मा कर दूँगी।”
“म िबना तु हारा िसर िलये इस थान से नह जाऊंगा। तुम चाहो तो
अपनी शि य का योग कर सकती हो।” नीलाभ ने कहा।
नीलाभ क बात सुन नीलांगी को ोध आ गया और नीलांगी ने अपने
एक हाथ म पकड़ा ि शूल को पीछे क ओर ख च िलया। ले कन इससे पहले
क नीलांगी, नीलाभ पर कोई वार कर पाती क तभी नीलांगी के बांए कान
म पहना वण कु डल वतः ही हवा के वाह से िहला और उसके कान म
एक फु सफु साती आवाज सुनाई दी- “नीलांगीऽऽऽऽऽऽऽ!”
नीलांगी इस आवाज को सुन बुरी तरह से च क गई और ि शूल को
नीलाभ पर फकने के थान पर अपने चारो ओर देखने लगी।
“िनकुं भ या यह तुम हो?” नीलांगी ने धीमी आवाज म इधर-उधर
देखते ए कहा, परं तु अचानक से नीलांगी ब त दखाई देने लगी।
परं तु जब कु छ देर तक नीलांगी को कोई आवाज नह सुनाई दी? तो
उसने िनकुं भ क आवाज को एक म समझा और पुनः अपना यान नीलाभ
क ओर लगा दया।
इस बार नीलांगी ने अपनी तलवार का वार नीलाभ पर कर दया।
नीलांगी का वार वयं पर होता देख नीलाभ के भी हाथ म एक तलवार
दखाई देने लगी। नीलाभ ने नीलांगी का वार अपनी तलवार पर रोक िलया।
दोन तलवार के टकराने पर वातावरण म एक जोर क आवाज गूंजी-
“टनाकऽऽऽऽ।”
परं तु नीलांगी के इस एक वार ने नीलाभ को समझा दया, क
नीलांगी म अपार शि भरी है। इसिलये अब उसने अपने मि त क को
िनयंि त कर यान से यु करने का िनणय ले िलया।
इस समय नीलाभ का पूरा यान नीलांगी के तलवार वाले हाथ पर
था, तभी नीलांगी का कु हाड़ा वाला हाथ तेजी से नीलाभ क ओर आया।
नीलाभ िबजली क फू त दखाते ए कु हाड़े के वार से बचा और अपने बांये
हाथ से कु हाड़े क लकड़ी पकड़कर लटक गया।
नीलांगी ने जैसे ही नीलाभ को कु हाड़े पर लटके देखा, उसने अपना
कु हाड़ा नीलाभ सिहत दूर उछाल दया।
नीलांगी के इस हार से नीलाभ हवा म तैरता आ झील के पानी म
िगरने लगा। ले कन िब कु ल सही समय पर नीलाभ क पीठ पर नीलपंख उग
आये। नीलाभ ने झील के पानी को अभी थोड़ा सा ही पश कया था क
नीलपंख क सहायता से वह हवा म उड़ने लगा।
नीलांगी का कु हाड़ा वापस हवा म घूमता आ नीलांगी के हाथ म जा
प ंचा। तभी नीलाभ के नीलपंख को देख नीलांगी को एक झटका सा लगा।
“अरे ! यह नीलपंख इस युवक के पास कहाँ से आ गये? यह नीलपंख
तो िनकुं भ ने एक लड़क किणका को दया था, िजसने अपने बा यकाल म
मेरे ाण क र ा क थी। ... कह इस युवक ने किणका क ह या कर उससे
नीलपंख को छीन तो नह िलया? ... अव य ही ऐसा ही आ होगा।”
नीलांगी के मन म यह िवचार आते ही नीलांगी का ोध और अिधक
बढ़ गया।
अब नीलांगी ने अपने एक हाथ म पकड़ा भाला तेजी से हवा म उड़ते
नीलाभ पर मार दया। भाला अपनी ओर आते देख नीलाभ ने अपने पंख क
सहायता से हवा म गुलाटी मार दी।
नीलाभ का यह यास तो सराहनीय था, फर भी नीलांगी का यह
वार नीलाभ के हाथ पर एक छोटी सी खर च मारता आ चला गया। िजसके
कारण नीलाभ के हाथ से र छलछला आया और नीलाभ के र क एक
बूंद धरा पर िगर गई।
जैसे ही नीलाभ क र बूंद धरा से टकराई, उन र क बूंद ने
नीिलमा िचिड़या का प ले िलया।
नीिलमा को देखते ही नीलांगी आ य से भर उठी।
“कौन हो तुम और तुमने मेरे जैसा वेष य बना रखा है?” नीलांगी ने
नीिलमा को देखते ए पूछा।
नीलांगी क बात सुन नीिलमा, किणका म प रव तत हो गई।
“म वही देवक या ँ माता, िजसने आपके ाण क र ा क थी।”
किणका ने हाथ जोड़कर नीलांगी को णाम करते ए कहा।
“ या तुम इ ह पहले से ही जानती हो किणका?” नीलाभ ने अपने
हाथ से रसते र क बूंद को साफ करते ए कहा।
“हां, म इ ह पहले से जानती ँ और इसीिलये म नह चाहती क आप
दोन का यु हो।” किणका ने अभी भी यु िवराम क कोिशश करते ए
कहा।
“ मा चाहता ँ किणका, परं तु मुझे स पूण पृ वी क र ा के िलये
शरभदेव से आशीवाद लेना ही होगा और उनका आशीवाद िबना नीलांगी के
शीश के हम नह िमलेगा।” नीलाभ ने कहा।
“ये या नीलांगी-नीलांगी लगा रखा है। यह आपक माता के समान
ह, इसिलये आपको इनसे स मान से बात करना चािहये।” एकाएक किणका
ने ु होते ए कहा।
किणका का ोिधत होना नीलाभ को िब कु ल भी समझ म नह आया,
परं तु अब उसका िन य अटल था, िजसे वह चाहकर भी वयं बदल नह
सकता था।
इसिलये नीलाभ ने किणका को दूर हटने का इशारा करते ए कहा-
“तुम जानती हो किणका क मेरे कोई माता-िपता नह ह और मेरा ज म
महादेव के आशीवाद व प आ है। इसिलये इस कार के कथन का योग
करना छोड़ो और मेरे रा ते से हट जाओ। अब मुझे नीलांगी का व करने से
कोई भी नह रोक सकता है?”
यह कहकर नीलाभ ने अपने नीलपंख हवा म फड़फड़ाये और अपनी
तलवार से नीलांगी क पूंछ पर हार कर दया। नीलाभ के वार से नीलांगी
का शरीर एक थान से थोड़ा सा कट गया और उस थान से र क एक
धार बह िनकली।
परं तु इस धार ने नीलांगी के ोध को और भी अिधक भड़का दया।
अब नीलांगी ने अपने मुख से काले बादल िनकाले। काले बादल ने नीलांगी
के मुख से िनकलते ही िवशाल प लेकर उस पूरे थान को घेर िलया।
काले बादल से अब ती िबजली कड़क रही थी। तभी एक िबजली
कड़क कर नीलांगी के ऊपर जा िगरी। नीलांगी ने इस िव ुता को हवा म
ही पकड़ िलया और उसे फककर नीलाभ पर मार दया।
िव ुता कड़कड़ाहट जैसी विन िनकालते ए नीलाभ के सीने पर
जा िगरा। नीलाभ, नीलांगी से कसी ऐसे वार क अपे ा नह कर रहा था?
इसिलये वह नीलांगी के वार को झेल नह पाया और आसमान से धरा पर
िगरकर बेहोश हो गया।
नीलाभ को धरा पर िगरते देख किणका चीखकर नीलाभ क ओर
भागी।
तभी नीलाभ के कान से नीले धुंए का प लेकर िनकुं भ बाहर आ गया
और नीलांगी के सम खड़ा हो गया।
अब देखते ही देखते िनकुं भ का चेहरा बदल गया और वह नीलांगी के
िनकुं भ के समान नजर आने लगा।
नीलांगी, िनकुं भ को इस कार सामने आते देख हत भ रह गई।
“तुम वेष बदलकर नीलाभ के पास या कर रहे हो िनकुं भ?” नीलांगी
ने िनकुं भ का हाथ थामते ए कहा- “तुमने तो सदा-सदा के िलये अपने पु के
पास रहने का ण िलया था। ठहरो ...... कह ...... कह नीलाभ हमारा पु
तो नह ?”
नीलांगी के श द सुनकर िनकुं भ ने धीरे से अपना िसर हां म िहला
दया।
“ओह! .... फर तो मुझे अपने पु का चेहरा नह देखना चािहये था।”
नीलांगी के श द म अब िनराशा झलकने लगी।
“म आप लोग क बात िब कु ल भी समझ नह पा रही ँ माता।”
किणका ने दोन के पास जाते ए कहा- “कृ पया सीधे श द म मुझे भी इस
रह य को बताइये और हो सके तो पहले नीलाभ को होश म लाइये।”
“अभी नीलाभ का होश म आना उिचत नह है किणका। इसिलये
पहले तुम हमारी कथा को सुन लो, फर हम नीलाभ के होश म आने के पहले
एक युि लगानी होगी, िजससे नीलाभ के ाण को बचाया जा सके ।”
नीलांगी का येक श द किणका को अचरज म डाल रहा था, परं तु धैय रखते
ए किणका अभी चुप ही रही।
“आज से 20,053 वष पहले जब एक दन म एक िविच जीव का
पीछा करते ए इस थान पर प ंची तो उस िविच जीव को मारते समय
मेरी भी मृ यु हो गई। ठीक उसी समय िनकुं भ को इस थान पर एक ऐसे
नागदेव िमले, िजनका नाम ने क था। ने क शेषनाग के छोटे भाई थे। और
वह अपने भाई वासु क के समान महादेव के कं ठ म थान पाना चाहते थे।
ने क ने अपनी नीलमिण से मुझे जीवनदान देते ए, एक िविच शि भी
दी। बाद म हम ने क क बात को मानकर भ पुर जा प ंचे, जहां पर एक
अ भुत ितयोिगता को जीतकर हम महादेव के िवशेष काय के पा बन गये।
महादेव ने उस िवशेष काय हेतु हमारे एक-एक नागदंत को ीरसागर के जल
म िछपा दया। बाद म समु मंथन के समय पर जब ीरसागर से 14 र
िनकले, तो उसम से एक र के थान पर कालकू ट िवष िनकला। इसी िवष
क एक बूंद से नीलाभ क उ पि ई। नीलाभ सदैव यही जानता रहा क
वह कालकू ट िवष से बना है और उसके कोई भी माता-िपता नह ह। परं तु
यह पूणतया अस य था। नीलाभ हम दोन का ही पु है। .... बाद म हमने
महादेव के सम नीलाभ से िमलने क इ छा क । तब महादेव ने
नीलाभ का भिव य देखकर बताया क य द नीलाभ को हम दोन के बारे म
पता चल गया, तो उसके ाण संकट म आ जायगे और य द मने कभी भी
नीलाभ का चेहरा देख िलया, तो उस दन मेरे या नीलाभ म से कसी एक क
मृ यु हो जायेगी? यह सुनकर हम पूरी तरह से िनराश हो गये और एक बार
फर ने क से िमलने के िलये उसक गुफा म गये। परं तु वहाँ जाकर हम
च ुराज से पता चला क ने क तो उसी दन पाषाण म प रव तत हो गया
था, िजस दन महादेव ने कालकू ट िवष को िपया था। शायद ने क को अपना
ल य यािन क महादेव के कं ठ का थान ा हो गया था। .... उधर जब
हमने च ुराज के सम अपनी सम या रखी तो च ुराज ने िनकुं भ को
िछपकर नीलाभ के शरीर म रहने के िलये कहा। च ुराज ने अपनी शि य
से िनकुं भ को एक य म प रव तत कर दया। इस कार से िनकुं भ सदैव
िपता के प म नीलाभ के पास रहा। बीच-बीच म िनकुं भ िसफ अपनी और
नीलाभ क कु शलता का समाचार कसी ना कसी कार से मेरे पास भेजता
रहा? और म .... पूरे जीवन पय त अपने पु क कु शलता के िलये उससे दूर
रही। .... पर जब आज मेरा पु मुझसे िमला भी, तो वह भी श ु के प म
और इसी प म मने नीलाभ को देख भी िलया। अब य द हम नीलाभ क
चेतना लौटने पर उसे यह सारी कथा सुनायगे, तो वह वयं के ाण यागकर
मेरे ाण क र ा करे गा, इसिलये म नह चाहती क नीलाभ क चेतना
लौटने पर, हमम से कोई भी उसे मेरे बारे म बताये?”
“परं तु माता, इस कार तो नीलाभ आपका व कर देगा।” किणका ने
रोनी सी सूरत बनाते ए कहा।
“यही तो म भी चाहती ँ पु ी, य क महादेव के कथन के अनुसार
आज य द मेरी मृ यु नह ई, तो कसी ना कसी कार से नीलाभ क मृ यु
होगी? और ऐसी ि थित म स पूण ांड संकट म पड़ जायेगा। .... इसिलये
मुझसे मोह मत करो पु ी। यही िविध का िवधान है और फर एक माँ भला
कस कार अपने पु को मृ यु क गोद म भेज सकती है? ... वह भी उस पु
के िलये िजसके िलये उसने अपना स पूण जीवन न कर िलया हो।” नीलांगी
ने कहा।
“परं तु माता, आप मेरी था को भी तो समिझये।” किणका क आँख
से अब अ ुधारा िनकलने लगी थी- “म कै से अपनी आँख के सामने एक माता
को उसके पु के ारा मरते ए देखूं? ऐसी ि थित म तो म भी पाप क
अिधका रणी बन जाऊंगी।”
“म तु हारे कथन का अिभ ाय समझ गई पु ी किणका। म नीलाभ से
यु करते समय कसी भी कार से वयं मृ यु का वरण क ं गी? इस कार
नीलाभ पर उसक माता क ह या का पाप नह चढ़ेगा।” नीलांगी ने कहा।
नीलांगी के श द सुनकर किणका बोल उठी- “पता नह यह कस
कार का समयच है माता? जो इस कार से हमारी परी ा ले रहा है। .....
परं तु माता इससे पहले क आप नीलाभ क चेतना को वापस कर, आपको
अपनी पु वधु को एक वचन देना होगा।”
अब नीलांगी ना समझ म आने वाले भाव से किणका को देखने लगी।
“तो फर वचन दीिजये माता क आप हमारी पु ी के प म पुनः ज म
लगी।”
किणका के श द ने कु छ देर तक नीलांगी को सोचने पर िववश कर
दया, परं तु कु छ देर के प ात् नीलांगी बोल उठी- “तुम नीलाभ के िलये
िब कु ल उपयु हो किणका। तुमम ेम भी है और याग भी। तुम िवन भी
हो और परम बुि क वािमनी भी। तुमने िजस कार से नीलाभ व वयं को
इस पाप से बचाकर, मुझे फर से धरा पर आने को िववश कया है, यह ब त
ही ती ण बुि वाला कर सकता है। इसिलये हे पु ी किणका, म नागलोक क
सा ा ी नीलांगी, तु ह आज यह वचन देती ँ, क म तु हारे व नीलाभ क
पु ी के प म पुनः धरा पर वापस आऊंगी और अपने इस ज म के अधूरे
काय को तु हारी सहायता से पूण क ं गी। उस समय म पु ी के कत का
वहन भी क ं गी और माता क इ छा का भान भी कराऊंगी।”
नीलांगी के इस ऊजामय वचन को सुन किणका पूण प से संतु हो
गई। तभी किणका को कु छ याद आया और वह पुनः नीलांगी क ओर मुख
करके बोल उठी।
“माता, मेरा मि त क 2 के उ र नह ढू ंढ पा रहा है, इसिलये म
चाहती ँ क आप मेरे उन का उ र द। .... मेरा पहला यह है क
आपने और िपता ी ने दूसरे पु को उ प करने के बारे म य नह सोचा?
इस कार से नीलाभ भी सुरि त रहता और आपक इ छा क पू त भी हो
जाती।” किणका ने कहा।
“ य क जब ने क क नीलमिण मुझे जीिवत करने के िलये मेरे शरीर
से पश क , तो मुझम उस नीलमिण के कारण कु छ शि यां आ ग और
इ ह शि य के साथ मेरे शरीर म ने क का िवष भी भर गया। यह िवष
कस कार का है? यह तु ह बताने क आव यकता नह है। बस इसी कारण
से िनकुं भ और मेरा िमलन अब संभव नह बचा था। इसिलये हमने अपना
पूरा यान िसफ और िसफ नीलाभ क ओर ही कर दया।” नीलांगी ने
किणका को समझाते ए कहा।
“अ छा माता, मेरा दूसरा है क आपने प ीलोक के सभी पि य
को य मारा? जब क अब तो वह सभी महादेव का आदेश मानकर शांित के
साथ प ीलोक म रह रहे थे।” किणका ने अपनी उ सुकता को शांत करते ए
कहा।
“पु ी, प ीलोक के अिधकांश शरभ प ी अभी भी िछपकर नाग को
खा रहे थे, यहाँ तक क उनका राजा तो न हे मासूम नागबालक का भ ण
कर रहा था। इसिलये मने प ीलोक पर आ मण कर उन सभी को समा
कर दया। ... म मानती ँ क इस यु म कु छ िनरपराध पि य क भी
ह या ई। ले कन यु म तो सदैव यही होता आया है पु ी। इसिलये अब
थ म उन पि य का दुख मत करो। .... हां अगर तुम एक नये िसरे से
प ीलोक क थापना करना चाहती हो, तो म तु ह एक रह य क बात
बताती ँ। प ीलोक के उ र म प ीलोक के राजा का महल है। उस महल के
एक क म हमने लगभग 100 शरभ पि य के अंडे जीिवत छोड़ दये ह।
अब भला नवजात से कै सा बैर? .... इसिलये य द तुम चाहो तो उन अंड से
एक बार पुनः प ीलोक को थािपत कर सकती हो, परं तु यान रहे ... इस
बार सभी शरभ पि य को अपना आहार बदलना होगा।”
नीलांगी के श द सुन किणका िन र हो गई। अब तो कसी भी कार
से किणका को नीलांगी म कोई भी दोष दखाई नह दे रहा था?
किणका को कु छ ना बोलते देख नीलांगी धीरे से नीलाभ के पास
प ंची और अपने दािहने हाथ को नीलाभ के माथे पर रख दया। कु छ देर तक
नीलांगी, नीलाभ के चेहरे को िनहारती रही और फर धीरे से नीलाभ के िसर
पर हाथ फे रकर उससे थोड़ा दूर हट गई।
नीलांगी के हाथ से िनकली नीली करण ने नीलाभ के माथे को
िब कु ल ठं डा कर दया। कु छ देर के बाद नीलाभ ने कराह कर अपनी आँख
खोल द ।
लगभग 5 सेके ड कु छ सोचने के बाद नीलाभ उठकर बैठ गया और
ोिधत भाव से नीलांगी को देखने लगा।
यु एक बार फर शु हो चुका था, परं तु इस बार इस यु का
प रणाम किणका व िनकुं भ को पता था। जहां एक ओर नीलाभ अपनी स पूण
शि के साथ नीलांगी पर हार कर रहा था, तो वह दूसरी ओर नीलांगी,
नीलाभ पर ह के हार कर रही थी।
लगभग 10 िमनट इसी कार यु होने के बाद आिखरकार इस यु
का समापन हो गया और नीलांगी का पैर फसल जाने के कारण वह वयं क
ही तलवार पर िगर गई।
िजसके कारण नीलांगी का िसर उसके धड़ से अलग हो गया और एक
वीर नागमाता का अंत हो गया। किणका को दये पहले वचन के अनुसार
नीलांगी ने अपनी मृ यु का पाप नीलाभ पर नह चढ़ने दया था और उसने
वयं अपनी मृ यु का वरण कया था।
नीलांगी का कटा आ िसर भी नीलाभ क लंबी आयु क कामना कर
रहा था। किणका व िनकुं भ इस दय िवदारक दृ य को देख वयं को रोक
नह पा रहे थे, इसिलये दोन ही नीलाभ के शरीर म समा गये और नीलाभ
अपनी माँ का शीश लेकर शरभदेव क ओर चल दया।
समयच ने एक नागक या के युग का अंत कर दया था या फर यूं
कह क िनयित ने अपने हर एक पा से उसका शीष अिभनय मांग िलया था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-15
अि का यु

08.02.02, शु वार, कै लाश मं दर, औरं गाबाद, भारत

आ मं दर ककिडया अदृ य अव था म तेजी से भारत म ि थत कै लाश


ओर बढ़ रहा था। इस समय आकिडया म शलाका व
आकृ ित उपि थत थे। आकृ ित का प भी शलाका के समान था, इसिलये
आकिडया के कं ोल म म इस समय 2 शलाका दखाई दे रह थ ।
आ यह था क जब शलाका ने भिव य क शलाका को ढू ंढकर, सूयाश
के पास प ंचा दया, तो सुयश व सूयाश ने भी भूतकाल क शलाका को
उसके समयकाल म जाने क आ ा दे दी।
यह शलाका जब चे टनट रज पाक के एटनल लेम से होते ए,
वापस अपने समयकाल म प ंची, तो उसे ना तो वहाँ जे स दखाई दया और
ना ही यू ान। तब शलाका ने आच से स पक करने क कोिशश क । आच
के ारा शलाका को पता चला क जे स, शलाका को गायब देखकर यूयाक
वापस चला गया है। आच ने यह झूठ इसिलये बोला था ता क शलाका को
जे स के नेिमरॉस ह पर जाने के बारे म ना पता चले। आच ने शलाका को
यह भी बता दया, क इस समय पृ वी पर देवयु क शु आत हो चुक है
और पृ वी के अलग-अलग भाग म ांड र क के ारा देवयु लड़ा जा
रहा है। यह सुनकर शलाका ने तुरंत मानिसक तरं ग से वा िण से स पक
थािपत कया और वा िण ने शलाका को आकृ ित के साथ अि का क सुर ा
के िलये भारत भेज दया।
इस समय आकृ ित अपना िसर झुकाये शलाका के सामने एक कु स पर
बैठी थी।
आकृ ित को इस हालत म देख शलाका से रहा ना गया और वह बोल
उठी- “तु ह अब इस कार श मदा होने क आव यकता नह है आकृ ित।
तुमने वेदालय के समय म जो कु छ भी कया, वह िसफ आयन का यार पाने
के िलये कया। इसिलये म इसम तु हारी कोई गलती नह मानती।”
शलाका क बात सुन आकृ ित क आँख से आँसू िनकलने लगे।
“म तुमसे एक बार फर मा मांगना चाहती ँ शलाका। मेरे कारण
तु हारा पूरा जीवन संकट से िघरा रहा। यहाँ तक क तु ह आयन का वह
यार भी हािसल नह हो सका, िजसक तुम वा तिवक अिधकारी थी। ....
मुझे भी समझना चािहये था क अगर आयन मुझसे यार ही नह करता था,
तो म उसे जबरद ती थोड़ी ना हािसल कर सकती थी। .... परं तु जाने उस
समय मुझे या हो गया था?” आकृ ित को इस समय वयं पर ोध आ रहा
था- “और एक तुम हो क तुमने मेरे पु को मुझसे िमलाने के िलये जमीन-
आसमान एक कर दया। .... सच म शलाका म ब त ही बेकार ी ँ।”
आकृ ित के श द को सुन शलाका को लगा, क य द उसने आकृ ित के
मि त क को इस समय दूसरी दशा म नह घुमाया, तो वह वयं ही
आ म लािन से अपना अिन कर बैठेगी। जब क शलाका को पता था क इस
समय आकृ ित का उसके साथ पूरे मन से रहना आव यक था, नह तो पता
नह दूसरे ह के जीव से यु करते समय उसे या- या मुि कल का
सामना करना पड़े?
यह सोच शलाका ने बातचीत के िवषय को बदलते ए कहा- “पर एक
बात है आकृ ित, उस समयकाल म तुमसे सुंदर और तेज दमाग वाली और
कोई लड़क वेदालय म नह थी? अगर तुम आयन के साथ सभी
ितयोिगता म भाग लेती, तो अव य ही आयन सभी ितयोिगताएं जीत
जाता।”
शलाका क बात सुन आकृ ित ने अपना िसर ऊपर क ओर उठाया और
शलाका को यान से देखते ए बोली- “ऐसी बात नह है शलाका, तुमने भी
आयन क अ छे से सहायता क थी। मने देखा था, कु छ थान पर तुमने
आयन के ाण क र ा के िलये वयं के ाण संकट म डाल दये थे।”
शलाका क युि काम कर गई थी। आकृ ित अब वेदालय के िसफ
अ छे समय को याद कर रही थी।
“ या हम फर से अ छे दो त नह बन सकते आकृ ित?” शलाका ने
आकृ ित से अपन व दखाते ए कहा- “ठीक वैसे ही जैसे क हम वेदालय के
शु आत के दन म थे। आिखर कब तक तुम एक गलती के िलये अपने आपको
दोष देती रहोगी। ..... हां मगर एक बात यान रखना क इस बार सुयश से
थोड़ा दूर रहना।”
शलाका ने आिखरी के श द थोड़ा हँसते ए कहे। शलाका के श द सुन
आकृ ित अपनी कु स से उठ खड़ी ई और आगे बढ़कर शलाका के गले से लग
गई। शलाका इस समय आकृ ित क मनोि थित को समझ रही थी, इसिलये
उसने भी आकृ ित को अपनी छोटी बहन क तरह गले से लगा िलया।
यह ि थित जाने कतनी देर तक बनी रही? तभी आच क आवाज
आकिडया म गूंज उठी- “शलाका इस समय हम कै लाश मं दर के पास प ंच
गये ह। अगर आप आ ा द तो िपछली बार क तरह इस बार भी कसी ऊंचे
से थान पर आकिडया को पाक कर दूँ?”
आच क बात सुन शलाका, आकृ ित से अलग ई और कं ोल म क
न क ओर देखने लगी।
तभी शलाका को कु छ दूर ि थत पहाड़ के पास धूल का गुबार उड़ता
आ दखाई दया। शलाका उस धूल के गुबार को देख कर च क गई।
“आच , यह सामने दख रहा धूल का गुबार कै सा है? या उस थान
पर कसी कार का तूफान आया है?” शलाका ने कहा।
“नह शलाका, यह तूफान नह हो सकता, य क उस थान क धूल
हवा म घूम नह रही है। यह या तो कसी बम के धमाके क वजह से है या
फर पहाड़ क कटाई के कारण हो सकती है।” आच ने कहा।
“आच , तुम आकिडया को जरा उस थान पर ले चलो, मुझे जाने य
थोड़ा संदेह सा हो रहा है?” शलाका ने आच को आदेश देते ए कहा।
शलाका का आदेश मान आच ने आकिडया को उस दशा क ओर
मोड़ दया। कु छ ही देर म आकिडया उस थान पर था, जहां से तेज धूल का
गुबार उठ रहा था। पर आकिडया क ऊंचाई जमीन से अिधक होने के कारण,
उस धूल के गुबार के उठने का रह य पता नह चल पा रहा था।
“आच , अपने कै नर क सहायता से नीचे का थान चेक करो और
बताओ क यह धूल का गुबार य उठ रहा है?” शलाका ने तेज आवाज म
कहा।
कु छ ण के बाद शलाका को आच क आवाज सुनाई दी- “शलाका,
इस धूल के गुबार के नीचे एक 5 मीटर ास का गहरा ग ा है। यह ग ा
अभी ताजा बना आ तीत हो रहा है। इसक गहराई लगभग 100 फु ट है
.... अरे ! नह -नह ... इस ग े क गहराई तो बढ़ती जा रही है। लगता है
कोई मशीन अभी भी ग े के अंदर है? जो क लगातार ग े क गहराई को
बढ़ाती जा रही है .... और मुझे उस ग े के नीचे से अब तेज ऊजा के िस ल
ा हो रहे ह। ऐसा लगता है क उस ग े के ठीक नीचे कोई महाशि
उपि थत है और वह ग ा उस महाशि को ा करने के िलये ही खोदा जा
रहा है। .... एक िमनट शलाका, मुझे ग े के अंदर ि ल मशीन के समान कोई
आकृ ित नजर आ रही है और ग े के ऊपर कोई इं सानी आकृ ित खड़ी है। जाने
य मुझे लग रहा है क यह वही अंत र के जीव ह, जो महाशि को ा
करने के िलये यहाँ तक आ प ंचे ह? .... अरे ! कोई गोल व तु तेजी से हमारी
ओर आ रही ...।”
ले कन इससे पहले क आच अपनी बात को पूरी कर पाती क तभी
कोई घन के समान कठोर चीज आकर तेजी से आकिडया से टकराई।
यह तो भला हो क खतरा भांपते ही, आच ने आकिडया को सुर ा
घेरे म ले िलया, नह तो इतनी भीषण ट र से तो आकिडया टू ट ही जाता,
परं तु आकिडया को इस ट र से तेज झटका अव य महसूस आ।
यह देख आच ने तुरंत आकिडया के आसमान म ऊपर क ओर उठा
िलया।
“आच , इस थान से दूर हट जाओ और हम इसी थान पर नीचे
उतार दो। अब हम देखते ह क कौन ह यह अंत र के जीव जो हमसे
अि का को छीनना चाहते ह?” शलाका ने लगभग गुराने वाले अंदाज म
कहा।
शलाका का आदेश मान आच ने आकिडया का गु ार खोल, शलाका
व आकृ ित को वह पर छोड़ दया और वयं आकिडया को लेकर उस थान से
थोड़ा दूर हट गई।
हवा म कू दते ही शलाका के हाथ म ि शूल नजर आने लगा। आकृ ित ने
भी अपनी ढाल को हाथ म ले िलया था। इसी ढाल के कारण आकृ ित भी हवा
म तैरती ई शलाका के साथ नीचे क ओर उतरने लगी।
वैसे तो इस ढाल म उड़ने क शि नह थी, परं तु िव म के साथ
अराका जाते समय, िव म ने आकृ ित क इस ढाल म ‘वायुच ’ डालकर
उड़ने लायक बना दया था।
तभी हवा म नीचे जा रही शलाका ने आकृ ित का हाथ पकड़कर उसे
अपनी ओर ख च िलया। आकृ ित, शलाका क इस हरकत को समझ नह
पाई। तभी एक फु टबाल के आकार का लाल गोला ती गित से उस थान से
िनकला, जहां क कु छ देर पहले आकृ ित उपि थत थी?
शलाका क तेज िनगाह और उसक फू त ने आकृ ित को बचा िलया।
अब आकृ ित ने तेजी से उस गोले क ओर देखा, जो क कु छ दूर जाकर
वापस उसी क ओर आ रहा था। जब तक आकृ ित कु छ समझती, लाल गोला
पुनः पीछे आकर, आकृ ित के शरीर से टकराया, परं तु इस बार आकृ ित ने
अपने हाथ म पकड़ी सुनहरी ढाल को आगे कर दया।
लाल गोले व सुनहरी ढाल के टकराने क भीषण आवाज पूरे
वातावरण म फै ल गई- “टनाकऽऽऽऽऽ।”
सुनहरी ढाल ने आकृ ित को पूरी तरह से सुरि त रखा था। अब
शलाका ने अपने हाथ म पकड़ा ि शूल पूरी ताकत से लाल गोले क ओर
उछाल दया।
शलाका का लयंकारी ि शूल ती अि फकता आ लाल गोले से जा
टकराया, इसी के साथ लाल गोला कण म िवभ होकर वायुम डल म
िबखर गया।
लाल गोले को कण म िबखरते देख, आकृ ित ने तेज फूं क अपने मुख से
मारी। आकृ ित क इस फूं क ने तेज हवा का प लेकर वायुम डल म
उपि थत सभी धूल के गुबार को एक ण म साफ कर दया।
धूल छटने के कारण शलाका व आकृ ित को जमीन पर बना ग ा साफ
दखाई देने लगा। परं तु शलाका क िनगाह ग े के थान पर, उस अंत र के
जीव पर थी, जो क ग े के मुहाने पर खड़ा, ग े के अंदर क ओर झांक रहा
था।
उस अंत र के जीव के चारो ओर वृ ाकार प रिध म, 2 गोले तेज
गित से नाच रहे थे। उनम से एक गोला नीला व एक पीले रं ग का था।
तभी शलाका व आकृ ित के कान म वा िण क आवाज सुनाई दी-
“सावधान शलाका व आकृ ित। इस समय जो जीव नीचे खड़ा है, इसका नाम
रं गो है। यह ए ोवस पावर का एक खतरनाक यो ा है, िजसने एक बार
पहले भी िव म से यु कया था और उस यु के दौरान िव म इससे बुरी
तरह से हार गया था। इसके पास अनेक ह क शि यां ह, िज ह यह सू म
आकार म अपने शरीर से िनयंि त करता है। कु छ देर पहले जो लाल गोला
तुमसे टकराया था, वह भी रं गो का एक सू म ह था। इसिलये इससे यु
करते समय तु ह इसक शि य का यान रखना होगा।”
वा िण क बात सुन आकृ ित क आँख म खून सा उतर आया- “तो
फर ठीक है वा िण, आज तुम भी आकृ ित क शि य को देख लो।”
इतना कहकर आकृ ित ने अपनी ढाल को नीचे क ओर करके एक
झटका दया। आकृ ित के ऐसा करते ही उसक ढाल से िवशाल गदा बाहर
िनकली और अपना आकार बढ़ाते ए रं गो के ऊपर जा िगरी।
गदा के जमीन से टकराते ही एक जोर का धमाका आ, परं तु जब गदा
अपने थान से हटी, तो आकृ ित क आँख फटी क फटी रह ग य क रं गो
ने अपने एक हाथ से उस शि शाली गदा को रोक रखा था।
“हे महादेव! यह तो दै य से भी अिधक शि शाली है।” आकृ ित ने
बुदबुदाते ए कहा।
अब रं गो भी हवा म नीचे उतर रही शलाका व आकृ ित को देखने
लगा।
तभी रं गो के हाथ म एक चौड़े मुंह वाली िविच सी गन दखाई दी।
रं गो ने दोनो क ओर मुंह करके उस गन का बटन दबा दया।
बटन दबाते ही उस छोटी सी गन से असं य रं ग-िबरं गे गोले िनकल
कर वह पहाड़़ पर िबखर गये।
शलाका व आकृ ित को रं गो क यह चाल समझ म नह आई य क
न हे कं चे के समान वह गोले सं या म अिधक से अिधक 100 दख रहे थे,
िजनसे कु छ भी िविच होता नह दखाई दे रहा था?
“इन रं ग-िबरं गे कं च से यह रं गो करना या चाहता है?” शलाका ने
मन ही मन म आकृ ित से पूछा।
“पता नह , मुझे भी रं गो क यह चाल समझ म नह आ रही और
उसको देखो वह कतने आराम से हमारे नीचे उतरने का इं तजार कर रहा
है।” आकृ ित ने भी अपने मन म शलाका को स बोिधत करते ए कहा।
शलाका व आकृ ित को कं च क ओर देखते पाकर रं गो, अपने पास
बने उस िवशाल ग े म कू द गया।
उधर जमीन पर पड़े कं चे अब ि गुिणत होने लगे। येक सेके ड वह
कं चे अपनी सं या को दुगना करते जा रहे थे।
अब जाकर शलाका व आकृ ित को रं गो क चाल समझ म आ गई।
“यह कं चे तो आकार म बढ़ते जा रहे ह आकृ ित। अगर यह इसी कार
बढ़ते रहे तो कु छ ही िमनट म यह कं चे इस पूरे थान को और कु छ ही घंट
म यह कं चे पूरी पृ वी को अपने अंदर समा लगे।” शलाका ने कहा- “वह देखो
अब रं गो भी अपने थान पर नह है। शायद वह हम इन कं च म फं साकर
वयं अि का को लेने जा चुका है। .... हम शी से शी इन कं च को समा
कर रं गो के पीछे जाना होगा।”
यह कहकर शलाका ने अपने दोन हाथ को कं च क ओर कर दया।
अब शलाका के हाथ से अि क तेज लपट िनकलन लग और उन कं च पर
जाकर िगरने लग । परं तु कु छ देर बाद ही शलाका को समझ म आ गया क
उसक अि इन कं च का कु छ नह िबगाड़ पा रह ह?
यह देख आकृ ित ने अपनी ढाल से एक िवशाल हथौड़ा िनकाला, जो
क बाहर िनकलते ही उन कं च को जोर-जोर से कू टने लगा, परं तु वह हथौड़ा
भी ना तो उन कं च को फोड़ पाया और ना ही उनक सं या ि गुिणत होने से
रोक पाया।
अब वह कं चे कसी वालामुखी के लावे क भांित, तेजी से उस पूरे
थान पर फै लते जा रहे थे और शलाका व आकृ ित को समझ नह आ रहा था
क ऐसी ि थित म वह अपनी कस शि का योग कर?
तभी आसमान म आकिडया कट आ और उससे तेज सुनहरी करण
िनकलकर उन सभी कं च पर िगरने लग । सुनहरी करण के िगरते ही वह
कं चे अपने थान से गायब होने लगे।
तभी शलाका के कान म जे स क आवाज सुनाई दी- “कम से कम
एक बार मुझे तो याद कर िलया होता।
जे स क आवाज सुन शलाका क िनगाह तेजी से उस ओर ग , िजधर
से वह आवाज आई थी। अब शलाका को आसमान से नीचे आता आ जे स
दखाई दया।
इस समय जे स के शरीर पर कसी यो ा क भांित सुनहरे कवच के
समान ेस थी, िजस पर ऊजा से बने कई छ ले नाच रहे थे। शायद वह छ ले
कसी कार का सुर ा कवच था? िजसे आगस ने जे स को दया था।
जे स को देख शलाका स हो उठी- “मुझे पता था जे स क तुम मेरे
अपन क तरह मुझे छोड़कर नह जाओगे। ... पर यह बताओ क इतनी
आधुिनक ेस तु ह कसने दे दी? और तुमने कस शि का योग कर इन
कं च को गायब कया है?”
“यह सब आच का कमाल है। उसी ने उन कं च को अंत र क एक
अंजान सी आकाशगंगा म ांसिमट कर दया है। उस आकाशगंगा का सूय
हमारे सूय से करोड़ गुना शि शाली है। वह सूय उन कं च को जलाकर राख
कर देगा और यह ेस भी मुझे आच ने दी है।” यह कहकर जे स ने अपने
चारो ओर देखा, परं तु उसे अपने आसपास कोई नजर नह आया?
“यह तुम अपने चारो ओर कसे ढू ंढ रहे हो जे स?” शलाका ने जे स
को अजीब सा वहार करते देख पूछ िलया।
“नह ... कु छ नह ?” जे स ने शलाका को झूठ तो बोल दया, परं तु
उसक िनगाह अभी भी अपने चारो ओर देख रह थ ।
“यह आच व आगस कहाँ चले गये? आये तो वह मेरे साथ ही थे।”
जे स ने मन ही मन सोचते ए कहा।
तभी जे स क नजर आकृ ित क ओर गई, िजसे देखकर वह च क गया-
“यह दूसरी शलाका कौन है? ... कह यह आकृ ित तो नह , जो तु हारा वेष
धारण कये यूयाक म घूम रही थी?”
जे स क बात सुन शलाका ने अपना िसर िहलाया और आकृ ित को भी
जे स का प रचय दे दया।
पूरी बात सुनने के बाद आकृ ित बोल उठी- “शलाका अब हम देर नह
करनी चािहये और तुरंत रं ग के पीछे जाना चािहये। कह ऐसा ना हो क
रं गो, अि का तक प ंच कर उसे ा कर ले?”
“यह संभव नह है आकृ ित, वह अि का है, जो स त व म से सबसे
शि शाली शि मानी जाती है। रं गो कु छ भी कर ले, परं तु अि क
शि य को िनयंि त कये िबना वह अि का को नह उठा सकता।” शलाका
ने कहा।
“परं तु तुम इतने िव ास के साथ कै से कह सकती हो क रं गो, अि का
को नह उठा पायेगा? और शायद तुम भूल रही हो क रं गो के पास सभी
ह को िनयंि त करने क शि यां ह, तो यह भी तो हो सकता है क वह
सूय क शि य का योग कर अि को िनयंि त कर ले। ठीक वैसे ही जैसे
आयन ने वेदालय के समय म एक बार कया था।” आकृ ित ने अपने दमाग
का प रचय देते ए कहा।
आकृ ित के श द को सुनकर एक पल के िलये शलाका िसहर उठी। तभी
अचानक से उस पूरे थान क जमीन जाने कै से अपने थान पर धँस गई?
उस देखकर ऐसा लग रहा था क मानो वह िवशाल पवत कसी
शि शाली भूकंप के झटके का िशकार हो गया हो?
जैसे ही सभी ने पवत को नीचे क ओर धँसते ए देखा, वह सभी तुरंत
जमीन को छोड़कर हवा म ऊपर उठ गये।
कु छ देर तो धूल का गुबार छाया रहा, परं तु आकृ ित ने एक बार फर
अपनी फूं क से धूल के उस गुबार को उड़ाया और अब सभी नीचे आकर उस
थान को यान से देखने लगे।
तभी शलाका क िनगाह नीचे दख रही मोर के मुख वाली पहाड़ी क
ओर गई। उस पहाड़ी को देख शलाका बुरी तरह से च क गई।
“अरे यह तो वही मोर के मुख वाली पहाड़ी है, िजसके पास म कै लाश
मं दर के ारा प ंचती थी, परं तु इस समय इसका झरना कै से का आ है?
कह रं गो इस पहाड़ी के ऊपर ि थत अि का के गु थान तक तो नह प ंच
गया?”
यह िवचार आते ही शलाका उड़कर मोर के मुख म वेश कर गई।
िपछली बार जे स भी शलाका के साथ इस थान पर आया था,
इसिलये वह भी इस थान को तुरंत पहचान गया।
अब जे स व आकृ ित भी उड़कर शलाका के पीछे चल दये।
उधर शलाका जैसे ही कु छ आगे बढ़ी? उसे उस थान का अि कुं ड
बुझा आ दखाई दया।
“हे मेरे ई र, यह सुवण वाला क अि कै से बुझ गई? शायद इसी के
बुझने के कारण धरती का लावा नीलजल म प रव तत नह हो पा रहा है।
िजसके कारण मोर मुख वाली पहाड़ी का झरना भी सूख गया है।” शलाका
अब तेज आवाज म बोल रही थी, िजसके कारण उसके श द जे स व आकृ ित
को भी साफ सुनाई दे रहे थे- “..... अब .... अब तो सुवण वाला बुझने के
कारण पाताललोक क अि भी समा हो जायेगी और फर धीरे -धीरे पृ वी
के उ री व दि णी ुव काम करना बंद कर दगे। िजसके बाद पृ वी का
अि त व ही समा हो जायेगा। मुझे .... मुझे कै से भी सुवण वाला को पुनः
विलत करना होगा?”
परं तु इससे पहले क शलाका अपनी कसी भी शि का योग कर
पाती? क तभी वहाँ से कु छ दूरी पर बनी दीवार पर मोरपंख लहराने लगे।
इसी के साथ अि का का गु ार खोलकर बाहर आता आ रं गो दखाई
दया।
इस समय रं गो का हाथ अि के समान दहक रहा था और उसके हाथ
म अि का साफ दखाई दे रही थी।
अि का को रं गो के हाथ म देख शलाका ने एक पल क भी देरी कये
िबना अपना ि शूल रं गो पर चला दया।
शलाका का ि शूल ती अि फकता आ रं गो क ओर झपटा, परं तु
रं गो के पास प ंच वह ि शूल हवा म क गया।
यह देख शलाका क साँस अटक गई- “म तो भूल ही गई थी क िजस
अि त व क शि से यह ि शूल बना है, उसी अि त व क शि से तो
अि का भी बनी है। यािन क जब तक अि का रं गो के हाथ म है, तब तक
मेरी अि व ि शूल उसका कु छ नह िबगाड़ सकते?”
शलाका को बेबस देख आकृ ित ने अपनी ढाल को आगे कर उसम से
सैकड़ तीर एक साथ रं गो पर मार दये। परं तु वह सभी तीर रं गो से कु छ
दूरी पर प ंचकर, हवा म ही जलकर राख हो गये।
यह देख आकृ ित ने ोध म अपना च बाहर िनकाल िलया। परं तु च
के उपयोग के पहले ही आकृ ित को अपना शरीर जमता आ सा महसूस आ।
अब वह अपने च का योग करना तो छोड़ो, अपने शरीर का कोई भी अंग
िहला भी नह पा रही थी?
कु छ ऐसा ही हाल इस समय जे स का भी था, वह भी अपने शरीर को
िब कु ल जमा आ सा महसूस करने लगा।?
कसी को समझ नह आ रहा था क यह रं गो ने कस कार क शि
का योग कया था?
जे स व आकृ ित को ज होते देख, शलाका ने अपने दोन हाथ को
आगे कर, रं गो पर अि करण फकना शु कर दया, परं तु रं गो शलाका के
इस हार से घबराया नह , बि क शांत भाव से अपने थान पर खड़ा रहा।
तभी शलाका के हाथ से िनकलती अि वतः ही धीरे -धीरे कम होना
शु हो गई। कु छ ही पल म शलाका भी बाक लोग क भांित जम गई।
अब रं गो को अि का ले जाने से कोई रोकने वाला नह था? परं तु
सम या इस समय अि का का जाना नह था, बि क सम या तो सुवण वाला
का बुझना था।
शनैः-शनैः पृ वी अपनी मृ यु क ओर बढ़ रही थी, परं तु इस समय
कोई भी यो ा पृ वी को बचाने के िलये वहाँ पर सही अव था म उपि थत
नह था?
◆ ◆ ◆
िनहा रका यु

08.02.02, शु वार, न लोक, कै पर लाउड


इस समय िव म व वा िण अपने न लोक क न शाला म न
पर नजर गड़ाये बैठे थे। हनुका उनसे कु छ दूरी पर एक िवशाल कु स पर बैठा
आ था।
इस समय तीन के ही शरीर पर चमचमाते ए सुनहरे कवच, कसी
यो ा के समान दखाई दे रहे थे?
“िव म अब मुझे इस देवयु के कारण थोड़ी घबराहट सी होने लगी
है।” वा िण ने कहा- “पता नह य मुझे ऐसा तीत हो रहा है क जैसे हम
यह यु हारने वाले ह? य क मुसीबत चारो ओर से बढ़ती ही जा रही ह
और ब त से यु म हम कमजोर पड़ते नजर आ रहे ह।”
“इतना परे शान मत हो वा िण, िपछली 3 रात से तुम सोई तक नह
हो। इसी वजह से थकान के कारण तु हारे मि त क म बुरे िवचार आ रहे ह।”
िव म ने वा िण को समझाते ए कहा- “और वैसे भी गु माता माया ने तु ह
पहले से ही सभी अंत र के यो ा के बारे म बता दया था। .... देखो ना
उसी के कारण हम कािशका, साग रका, विनका व भूिमका यु जीत चुके
ह। तुमने कै पर के कहे अनुसार इतने कम समय म भी यु क सभी
तैया रयां कर ल ह, फर तुम इतना परे शान य हो?”
“म जो कहना चाह रही ँ, वह तुम नह समझ पा रहे हो िव म।”
वा िण ने न पर नजर गड़ाये ए कहा- “हमने भले ही 4 यु जीत िलये
ह, परं तु तुमने देखा क हम सभी यु लगभग हारने क कगार पर आ गये थे।
अरे , वह तो हमारा भा य अ छा था क हम वह यु जीत गये। परं तु
आव यक नह है क हर समय भा य हमारा साथ दे ही। यह भी तो हो
सकता है क हम कोई यु हार जाय? और उन अंत र वािसय के हाथ
हमारी कोई स त व क पु तक लग जाये? अगर ऐसा आ तो वह पहले से
ही भिव य को देखकर यु का प रणाम जान सकते ह और ऐसी ि थित म
वह अपने िपछले लान के थान पर नया लान बना सकते ह। ... अ छा एक
चीज और है, हमारे पास इस समय यो ा क भी कमी है। जैसा क तुमने
देखा क हमने पृ वी के सभी महायो ा को स त व क पु तक बचाने का
काय दे रखा है। ले कन हमारे पास वयं ‘िनहा रका’ पु तक को बचाने के
िलये हम तीन के िसवा कोई नह है? ऐसे म य द लैक होल से िनकला वह
अंत र यान का झु ड हम तक आ प ंचा, तो हम पहले पृ वी के बाहर
वाल से यु लड़गे या फर पृ वी के अंदर बैठे दु मन से? और िव ास करो
िव म क य द लैक होल से आने वाले सभी अंत र यान कसी भी कार
से पृ वी क सतह तक प ंच गये, तो फर हम यह यु कसी भी हाल म नह
जीतगे? अरे सोचो, जब हम एक अंत र यान से आये 15 यो ा से सब
िमलकर नह लड़ पा रहे, तो उन असं य यान से आ रहे उन हजार
पर हवािसय से कस कार लड़ पायगे? ... अरे , हम तो अंत र से आ रहे
बाक के लोग क शि यां या फर उनके िव ान के बारे म तो कु छ भी नह
पता है? ...अब अगर वो लैक होल के ारा दूसरी आकाशगंगा से हमारे पास
आ रहे ह, तो उनका िव ान हमारे िव ान से हजार या फर लाख वष आगे
होगा। अब भला ऐसे म हम उन अंत र वािसय से कै से लड़ पायगे? ....
काश! काश ऐसे समय म कै पर हमारे पास होता। परं तु पता नह वह भी
कब तक लौटे गा? .... बस इसीिलये म परे शान ँ।”
“अरे बाप रे ! तुमने तो िज मेदा रय का पहाड़ अपने िसर पर उठा
रखा है।” िव म ने वा िण को सामा य करने क कोिशश करते ए कहा-
“इतने न हे से िसर पर इतना बड़ा पहाड़ लेकर तुम चल कै से लेती हो?”
ले कन इससे पहले क वा िण सामा य होकर िव म को कोई जवाब
दे पाती क तभी ‘अ त’ क तेज आवाज ने वा िण का यान भंग कया-
“वा िण, अंत र क ओर से कोई अंजानी व तु तेजी से हमारी ओर बढ़ रही
है? लगता है क यु समय से पहले शु हो गया है।”
(नोटः अ त व चं का वा िण क न शाला के कं ोलर ह, जो क
अंत र क हर गितिविध पर नजर रखते ह।)
अ त क बात सुन वा िण भागकर अ त क न के पास प ंच
गई।
वा िण क ती िनगाह उस अंजानी व तु पर जा पड़ , जो क तेज
गित से पृ वी क ओर आ रहा था।
“यह या व तु है? यह कोई अंत र यान तो नह लगती। मुझे तुरंत
इसके बारे म सभी जानकारी चािहये। जैसे क इसका आकार, इसक गित या
और कोई भी संदेहा पद चीज? जो भी इसके बारे म पता चले मुझे तुरंत
बताओ अ त।” वा िण के श द चंता से भरे थे।
कु छ देर बाद ही अ त बोल उठा- “यह कोई अंत र यान नह है,
य क इसक गित उन अंत र यान से भी तेज है। मुझे तो यह कोई शंकु के
आकार का उ का पंड लग रहा है, जो क हम तक अगले 4 घंट म प ंच
जायेगा और इसका आकार लगभग 1 कलोमीटर े फल का लग रहा है।
ले कन इतने भी आकार का य द कोई उ का पंड पृ वी पर िगरा तो भयानक
तबाही ला सकता है?”
“हम इस उ का पंड को पृ वी तक प ंचने से पहले ही अंत र म न
करना होगा। ... चं का, तुम तुरंत इस उ का पंड का ल य लेकर 3 वै णव
िमसाइल को छोड़ दो। वै णव िमसाइल क ट र से यह उ का पंड अंत र
म ही समा हो जायेगा।” वा िण ने चं का को आ ा देते ए कहा।
चं का ने अपना िसर िहलाया और उ का पंड का ल य लेकर
िमसाइल को सेट करने लगी। लगभग 20 सेके ड के बाद चं का ने िमसाइल
का बटन दबा दया।
बटन दबाते ही हवा म घूम रही न लोक क न शाला का एक
ार खुला और उसम से 3 वै णव िमसाइल िनकलकर काश क गित से
अंत र म उस ओर चल द , िजधर से वह उ का पंड आ रहा था।
िमसाइल क गित उ का पंड से भी तेज थी। लगभग 10 िमनट म ही
िमसाइल उ का पंड के पास प ंच गई।
वा िण, िव म, अ त, चं का और न शाला म ि थत सभी लोग
क िनगाह, इस समय उ का पंड पर ही टक थ । तभी तेज गजना करते
ए वै णव िमसाइल एक-एक करके उस उ का पंड से जा टकरा ।
अंत र म उस थान पर एक धूल का गुबार छा गया। परं तु जब धूल
का गुबार हटा, तो सभी को वह उ का पंड य का य पृ वी क ओर आता
दखाई दया।
यह देखकर वा िण आ य से भर उठी।
“अरे ! वै णव िमसाइल तो ब त ही शि शाली थी, फर भी वह इस
उ का पंड का कु छ नह िबगाड़ पाई? इसका मतलब यह उ का पंड कसी
ब त ही कठोर तारे का टू टा आ िह सा है? पर ... पर अब इस उ का पंड
को रोका कै से जाये?” वा िण ने परे शानी भरे भाव म कहा।
वा िण को परे शान देख हनुका, वा िण के पास आ गया।
“य द आप कह तो म अंत र म जाकर इस उ का पंड को तोड़
सकता ँ, भले ही यह कसी भी धातु का बना हो? परं तु यह मेरी शि से टू ट
ही जायेगा, ऐसा मेरा िव ास है और मेरे उड़ने क शि जब पृ वी के
वातावरण म इतना अिधक है, तो अंत र म िबना कसी वातावरण के तो म
और भी ती गित से उड़ पाऊंगा।” हनुका ने वा िण क ओर देखते ए कहा।
“आप ... या आप पहले कभी अंत र म गये ह यितराज?” िव म ने
संदेह कट करते ए हनुका से पूछ िलया- “अंत र ब त ही ठं डा होता है।
कु छ ही पल म वहाँ शरीर जम जाता है।
“नह , म कभी अंत र म नह गया, परं तु मुझे पूण िव ास है क
अंत र क ठं डक का सामना कर लूंगा। अरे , म जब सैकड़ वष तक
िहमालय क बफ म िछपकर रह सकता ँ, तो अंत र क ठ डक मेरा भला
या िबगाड़ लेगी? ... हां ांस स ब धी सम या के िलये आपको मुझे एक
अंत र म पहनने वाला िसर का टोप देना होगा, िजससे म अंत र म भी
साँस ले सकूं ।” हनुका ने वयं के अंदर जोश भरते ए कहा।
“वह तो ठीक है यितराज, हम आपको अंत र म पहनने वाला एक
हेलमेट दे सकते ह, वह हेलमेट हमने नई तकनीक से बनाया है। उस हेलमेट
म हम ऑ सीजन को ांसिमट िस टम के मा यम से र फल करते ह, िजससे
उसम कभी भी ऑ सीजन क कमी नह होती? परं तु अंत र म और भी
सम याएं हो सकती ह। य द आपको कु छ हो गया, तो हम महागु व
गु माता को या मुंह दखायगे?” वा िण ने हनुका को समझाते ए कहा।
“य द वह उ का पंड पृ वी से आकर टकरा गया, तो लाख लोग क
जान जा सकती है। ऐसी ि थित म आप दोनो वैसे भी अपना मुख दखाने
वाली ि थित म नह ह गे, तो आप लोग मुझे भेजने म य िहच कचा रहे ह?
वैसे भी ांड म अभी तक ऐसी कोई धातु नह है, िजसे म अपने बा बल से
तोड़ ना पाऊं, तो फर अंत र के ु ह व तारे मेरा भला या नुकसान
प ंचा पायगे। ... पृ वी पर हजार वष रहकर मने अनेक पवत को जड़ से
उखाड़कर फका है। समु के अंदर ि थत असं य िवशालकाय च ान को
अपनी भुजा क शि से चूर-चूर कर दया है। दै य , दानव व रा स का
काल ँ म। .... हनुका ँ म हनुका .... िजसक शि अपरं पार है। .... आप
िवचार करने म देर मत क रये आकाशकु मारी। म उस उ का पंड को तोड़ने के
िलये हो रहा ँ।”
हनुका के श द सुनकर िव म व वा िण के शरीर के रोएं भी रोमांच
से खड़े हो गये और आिखर उ ह ने हनुका को अंत र म जाने क आ ा दे
दी।
वा िण का इशारा पाकर चं का नई तकनीक से बना वह हेलमेट ले
आई।
आनन फानन म वह हेलमेट हनुका को पहना दया गया। वा िण ने
हनुका क कलाई पर एक र ट बड सरीखा यं भी बांध दया, िजसके ारा
हनुका को अंत र के माग का ान हो सके । इसी के साथ वा िण ने हनुका के
दोन कान के पीछे एक ब त ही छोटा सा यं लगा दया। यह यं वा िण से
स पक थािपत करने के िलये था।
अब हनुका अंत र म जाने के िलये पूरी तरह से तैयार था।
आिखरकार न शाला का ार खोल दया गया। इसी के साथ हनुका
ने िव म व वा िण को एक बार देखा और फर ंकार भरकर एक लंबी
छलांग लगाई।
अब हनुका उड़ता आ ती गित से अंत र क ओर चल दया।
िव म व वा िण साँस रोके हनुका को अंत र क ओर जाते देख रहे
थे। इस समय हनुका क गित देखने वाली थी। हनुका को देखकर ऐसा लग
रहा था क मानो वयं सूयदेव अपने ती गामी रथ पर बैठकर अंत र क
ओर जा रहे ह ।
कु छ ही पल म हनुका पृ वी का गु वाकषण पार करके अंत र म
प ंच गया। अंत र म प ंचते ही हनुका के शरीर को एक ती झटका लगा,
परं तु हनुका ने तेजी से वयं को संभाल िलया। िबना कसी पेस सूट के भी
हनुका का शरीर अंत र म सुरि त था?
वैसे तो हनुका ने पृ वी के वातावरण म हजार हवाई या ाएं क थ ,
परं तु अंत र को देखकर एक पल के िलये हनुका चकरा गया। कु छ पल तक
हनुका अंत र से अपनी खूबसूरत सी नीली-हरी पृ वी को देखता रहा और
फर उस उ का पंड क ओर ती गित से उड़ चला।
िव म व वा िण, हनुका को अंत र म भी सरलता से उड़ता देख
स हो गये। वह समझ गये क अब हनुका अपने काय म अव य ही सफल
होकर लौटे गा।
अब वा िण ने माइक के पास आते ए हनुका से पूछा- “यितराज,
अंत र म उड़ते ए कै सा महसूस कर रहे ह?”
“मुझे नह पता था क िसतारे व ांड म घूमते ह पास से इतने
सुंदर लगते ह। ... वापस लौटने के बाद म यह िसर का टोप अपने पास ही
रख लूंगा आकाशकु मारी। िजससे जब भी मन करे अंत र क सैर पर िनकल
आऊंगा।” हनुका ने स ता कट करते ए कहा- “पर आकाशकु मारी म
जैसे-जैसे पृ वी से दूर जा रहा ँ, मुझे अपनी गित कम होती य तीत हो
रही है?”
हनुका क बात सुन वा िण अचानक से घबरा उठी। उसने तुरंत हनुका
क गित मापने वाले यं पर िनगाह डाली, परं तु उस यं पर हनुका क गित
सामा य थी।
“नह यितराज आपक गित तो िब कु ल सही है, परं तु ांड अनंत
है, इसिलये अंत र म आपको अपनी सुपर पीड भी कम तीत हो रही है।”
वा िण ने हनुका को समझाया- “अ छा यितराज यान रिखयेगा, कु छ ण
म आप एक िनहा रका से होकर गुजरने वाले ह, परं तु वहाँ पर आपको
घबराने क आव यकता नह है य क िनहा रका िसफ अंत र म फै ले गैस
व धूल के बादल होते ह।”
तभी हनुका को कु छ दूरी पर आँख के समान दखने वाली एक िवशाल
नीले रं ग क िनहा रका दखाई दी, िजसके बीच का थान तो नीला था, परं तु
बाहरी थान अनेक रं ग से भरा नजर आ रहा था। उस िनहा रका म कु छ
थान पर तेज चमकदार चीज भी नाच रह थ ?
अगले ही पल हनुका का शरीर उस िनहा रका म वेश कर गया।
हनुका आ य से अपने चारो ओर िबखरे धूल व गैस के बादल को देखने
लगा।
तभी पृ वी पर उपि थत वा िण क नजर एक बार फर हनुका क
गित मापने वाले यं क ओर गई। इस बार वा िण च क गई।
“अरे ! यह हनुका क गित तो अब सच म कम होती जा रही है, यह
कै से संभव है? या इस िनहा रका का वयं कोई वातावरण है, जो हनुका क
गित को धीमा कर रहा है।” िव म ने भी च कते ए कहा।
तब तक हनुका को वयं भी गित धीमी होने का पता चल गया।
“ या आ आकाशकु मारी? या इस िनहा रका म कु छ गड़बड़ है?
य क आपने कहा था क यह गैस व धूल से बना है, तो फर यह मेरी गित
को कस कार कम कर रहा है?”
“मुझे लग रहा है यितराज क आपक शि य का क ‘गु व शि ’
थी, जो क कसी भी कार के गु वाकषण के म य ठीक कार से काम
करती थी। चूं क इस समय आप अंत र के ऐसे भाग म ह, जहां से दूर-दूर
तक कोई ह नह है? इसिलये इस थान पर आपक गु व शि ने काय
करना बंद कर दया है।” वा िण ने एक संभावना करते ए कहा।
“यह कै से संभव है? य द गु व शि ने काय करना बंद कया होता,
तो मेरी उड़ने क शि भी समा हो जाती और ऐसी ि थित म म इतनी देर
तक अंत र म कै से उड़ पाता?” हनुका ने वा िण को तक देते ए कहा।
“जहां तक आप कसी भी ह क गु वाकषण शि के भाव म थे,
तब तक आपक गु वशि काय कर रही थी। उसके प ात् आप अंत र के
िनवात म होने के कारण उड़ रहे थे। चूं क अंत र म कोई भी वातावरण
नह था, इसिलये गु वशि समा होने के बाद भी आप उसी वेग से
अंत र म उड़ रहे थे। परं तु जैसे ही आपके रा ते म िनहा रका आई,
िनहा रका के वातावरण के कारण आपका वेग िब कु ल ही समा हो गया।”
वा िण ने सभी किड़य को जोड़ते ए कहा।
“तो फर अब म इस िनहा रका से कै से िनकल पाऊंगा? जब क यहाँ से
दूर-दूर तक कोई ह नह ह?” अब हनुका ने परे शान होते ए कहा- “उधर
वह उ का पंड अभी भी ती गित से पृ वी क ओर आ रहा है। ऐसे म अब
उस उ का पंड को कौन रोके गा?”
“आप परे शान मत होइये यितराज। उस िनहा रका के अंदर आपके
शरीर पर कोई भाव नह पड़ रहा है। अब रही बात आपके साँस लेने क ,
तो वहाँ पर भी कोई परे शानी नह है? य क आपक ऑ सीजन हम यहाँ से
लगातार आपके पास भेजते रहगे। ... तो फर जब तक आप उस िनहा रका के
मण का आनंद उठाइये, तब तक म पहले उस उ का पंड से िनपटकर
आपको लाने के िलये कोई अंत र यान भेजती ँ।” वा िण ने शांत भाव से
हनुका से कहा, परं तु वा िण जानती थी क सम या ब त बड़ी थी य क
हनुका क दूरी पृ वी से ब त अिधक थी और उधर उ का पंड के पृ वी पर
प ंचने म मा 2 घंटे शेष बचे थे।
वा िण के श द सुनकर हनुका ने धीरे से अपना िसर िहला दया, परं तु
इससे पहले क हनुका वा िण से कु छ बोल पाता? क तभी अंत र म घूमता
एक बड़ा सा प थर आकर हनुका के हेलमेट से जोर से टकराया।
प थर के ती हार के कारण हनुका के हेलमेट म एक थान से दरार
आ गई और इसी के साथ हनुका का स पक वा िण से कट गया।
हनुका का स पक कटते देख वा िण जोर-जोर से माइक पर िच लाने
लगी- “यितराज ... यितराज ... आप िब कु ल भी परे शान मत होइये, म
आपके िलये तुरंत यहाँ से सहायता भेज रही ँ ... आप बस घबराना नह ....
आप सुन रहे हो ना यितराज? ... अ त, चं का यितराज से स पक करने क
कोिशश करो।”
वा िण को इस कार िच लाते देख िव म से रहा ना गया, उसने
वा िण के हाथ से माइक लेकर धीरे से अ त को पकड़ा दया और वा िण
को कसकर झकझोरते ए कहा- “शांत हो जाओ वा िण ... यितराज का
स पक हमसे कट चुका है और अब उनके बचने क संभावना भी िब कु ल
समा हो गई है। .... तुमने देखा क कसी प थर के उनके हेलमेट से टकरा
जाने के कारण उनके हेलमेट म दरार आ गई थी। .... अब हम उनसे स पक
करना तो छोड़ो, उ ह ऑ सीजन भी नह भेज सकते और उनक दूरी भी
हमसे इतनी अिधक है क जब तक हम उनके िलये कोई यान भेजगे? तब तक
वह ....... मृ यु को ा हो चुके ह गे। ..... इसिलये िह मत रखो वा िण ...
और इस समय अपना पूरा यान उस उ का पंड क ओर दो, जो क अभी
भी तेजी से हमारी ओर बढ़ रहा है। .... तु ह इस समय यितराज को छोड़ उन
लाख लोग के बारे म सोचना होगा, िजनके िलये यितराज ने अपने ाण
को यौछावर कर दया।”
िव म के श द काम कर गये य क वा िण ने अब अपने को कसी
कार से िनयंि त कर िलया था? ऐसा नह था क वा िण क आँख म आँसू
नह थे, परं तु उन आँसु के म य एक अि के समान जलती आँख भी थ ।
तभी चं का ने वा िण क बची-खुची जान भी िनकाल दी- “वा िण,
जरा इधर यान दीिजये, कोई िवशालकाय व तु पृ वी से भी हमारी ओर आ
रही है और ... और अव य ही इसका िनशाना हम लोग ही ह।”
यह श द सुन वा िण, िव म व अ त भागकर तेजी से चं का क
न के पास प ंच गये, जहां पर पृ वी का दृ य दख रहा था।
“जरा इस दृ य को ‘जूम’ करो चं का, मुझे देखना है क यह व तु
या हो सकती है? य क इसका आकार तो उस उ का पंड से भी बड़ा है।”
िव म ने चं का को आ ा देते ए कहा।
िव म क बात सुन चं का ने उस दृ य को ‘जूम’ कर दया। इसी के
साथ सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लग ।
“य ... य ... यह कै से संभव है?” वा िण ने लड़खड़ाते श द म कहा-
“यह तो कोई िवशाल पवत क चोटी तीत हो रही है। .... यह उड़ कै से रही
है? और कौन है वह अंजान शि , जो इसे उड़ाकर हमारी ओर ला रही है।
.... म .... मुझे नह लगता क कोई भी अंत र जीव इतना शि शाली है?
क वह कसी पवत को उड़ा सके ?”
“जाने य मुझे ऐसा महसूस हो रहा है वा िण क यह जो भी शि
है, वह हमसे ‘िनहा रका’ पु तक को छीनने के िलये आ रही है, जो क हमारे
पास यह न लोक म ही है।” िव म ने कहा- “ य क अब बस िनहा रका
व वेिगका पर ही आ मण होना बचा है ...... और य द ऐसा है, तो हम िबना
कसी देवयो ा के िनहा रका को कस कार बचा पायगे।”
“लगता है क तुम यह भूल रहे हो िव म क तुम भी एक ांडर क
हो और तु हारे पास भी वायुशि है।” वा िण ने कहा- “इसिलये देर मत
करो िव म और इससे पहले धरती क ओर से आ रहा वह पवत हम तक
प ंचे, तु ह अपना सव े दशन करते ए, आज िनहा रका को बचाना ही
होगा। ... तब तक म यहाँ से उ का पंड को न करने का कोई उपाय सोचती
ँ? ”
वा िण के श द को सुनकर िव म के शरीर म ऊजा का नया संचार हो
गया और वह िबना देर कये न शाला से बाहर क ओर चल दया।
देवयु पल- ितपल खतरनाक होता जा रहा था, परं तु वह मनु य ही
या जो इतनी आसानी से पराजय वीकार कर ले। ठीक यही सोच सभी
देवयो ा अपनी स पूण शि लगाकर पृ वी को बचाने म लगे थे।
इस कार जीत व हार का फै सला तो समय के हाथ म था, जो क
अंत र म भी अिवरल बह रहा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-16
वेिगका यु

08.02.02, शु वार, डे थ वैली रे िग तान, पूव कै लीफो नया, अमे रका

उ डेथ वैलीररेअमे रका के पूव कै लीफो नया म एक रे िग तान है, िजसे


िग तान कहा जाता है यािन क मौत क घाटी वाला
रे िग तान। वैसे तो यह े िब कु ल सपाट है, परं तु डेथ वैली रे िग तान क
एक खास बात है और वह है यहाँ पाये जाने वाले प थर का वतः चलना।
यहाँ चलने वाले प थर ह के नह होते, बि क 300 कलो से यादा
वजन के ही होते ह। इन प थर के चलने से जमीन पर उनके रगड़ के िनशान
बन जाते ह, जो क साफ दखाई देते ह।

वै ािनक दशक से इन चलते प थर का रह य सुलझाने म लगे ह,


परं तु कु छ छोटी-मोटी यो रय के अलावा वै ािनक के पास इन प थर के
चलने का कोई मािणक त य नह है। कु छ वै ािनक का मानना है क इस
रे िग तान म हजार वष पहले एक िवशाल झील आ करती थी, िजसके
सूखने के बाद यह थान अ यंत सपाट हो गया।
कु छ वै ािनक का कहना है क रात के समय, प थर के नीचे झील का
कु छ पानी जमा हो जाता है, जो क रात म तापमान िगरने के कारण बफ म
प रव तत हो जाता है और जब दन म तापमान बढ़ता है, तो प थर के नीचे
क बफ िपघल जाती है, िजसक वजह से वह प थर वतः ही कु छ दूरी तक
िखसक जाता है।
वैसे डेथ वैली रे िग तान अपने अ यंत िविच तापमान के िलये भी
जाना जाता है और यहाँ हवाएं भी लगभग 100 कलोमीटर ितघंटा के वेग
से चलती रहती ह।
आज डेथ वैली रे िग तान म कु छ अजीब सी घटना घ टत हो रही थी,
परं तु इस िविच घटना को मािणकता देने वाला कोई भी इं सान दूर-दूर
तक दखाई नह दे रहा था?
अचानक से डेथ वैली रे िग तान म बनी झील क सतह पर कु छ बफ
क बूंद जमती ई दखाई देने लग ।
िबना पानी क बूंद के बफ के कण का इस कार जमना, अपने आप
म कसी आ य से कम नह था?
कु छ ही देर म देखते ही देखते बफ क एक मोटी सी चादर पूरी झील
के ऊपर जम गई। इसी के साथ झील के ऊपर चल रही हवा क गित थोड़ी
और बढ़ गई।
नीचे बफ जमने व हवा के ती वेग के कारण, झील क जमीन पर
पड़े प थर धीरे -धीरे अपने थान से सरकने लगे, ले कन उन प थर का
सरकना बेतरतीब नह था।
वह प थर तो यािमित के िनयम का पालन करते ए, एक िनि त
अंदाज म जमीन पर सरक रहे थे। धीरे -धीरे वहाँ पड़े सभी प थर कसी
आकृ ित क रचना करने लगे? परं तु इस रचना का आकार इतना िवशाल था
क उसे जमीन से देख पाना संभव नह था।
परं तु यह रचना झील के ऊपर हवा म तैर रहा, एक युवा जोड़ा बड़ी
आसानी से देख रहा था। बि क यूँ कह क वही जोड़ा इस पूरी घटना के िलये
पूण प से िज मेदार था, तो गलत नह होता और वह जोड़ा था महाशि
धारक ोम व उसक पि ि काली का।
इस समय ि काली क ही िहमशि के भाव से यह पूरी िविच
घटना घट रही थी। ोम का वहाँ खड़े होना तो िनिम मा था। ि काली
के हाथ से िनकली बफ क ऊ मा इस पूरी घटना का िनमाण कर रही थी।
तभी झील क सतह पर सरक रहे प थर ने, उस झील के ऊपर बड़े-
बड़े हंदी के अ र म ‘वेिगका’ िलख दया।
जमीन पर वेिगका के िलखते ही उस थान पर एक जोर क आवाज
ई और झील क सतह एक गड़गड़ाहट के साथ नीचे क ओर धँसने लगी।
ोम व ि काली क िनगाह लगातार इस पूरी घटना पर लगी ई
थी।
कु छ ही देर म लगभग 100 फु ट तक झील क सतह नीचे चली गई।
अब झील का नीचे जाना क गया और इसी के साथ झील के नीचे से
िनकलकर, कोई व तु ऊपर क ओर आने लगी। परं तु जैसे-जैसे वह व तु
ऊपर क ओर आ रही थी, झील के ऊपर बह रही हवा क गित बढ़ती जा
रही थी।
कु छ ण म झील के नीचे से िवशाल वेिगका पु तक िनकलती ई
दखाई दी। पु तक इस समय जमीन पर िगरी ई थी, िजसके कारण ोम व
ि काली को पु तक का कवर पेज िब कु ल साफ दखाई दे रहा था।
वेिगका का कवर पेज गाढ़े नीले रं ग का था। पु तक के बीचोबीच म
सुनहरे रं ग का एक तीन आयामी उभरा आ िवशाल धनुष बना था, जो क
एक कार से पु तक के ऊपर बाहर क ओर िनकला था।
धनुष क यंचा पर एक तीर भी चढ़ा था, िजसका ल य ऊपर
आसमान क ओर था।
जैसे ही वेिगका पूण प से झील के बाहर आई, धनुष क यंचा
वतः ही खंचने लगी। यंचा के खंचने क ‘चर-चर’ क आवाज
वातावरण म गूंज उठी।
अब हवा का वेग एक िवशाल गोल बवंडर का प लेकर सुनहरे
तीर के चारो ओर घूमने लगा।
तभी यंचा ने सुनहरे तीर को आसमान क ओर छोड़ दया।
सुनहरा तीर बवंडर को अपने साथ लेकर, िव ुत क गित से आसमान
क ओर चल दया। ोम व ि काली क िनगाह इस समय तीर के ऊपर ही
थी।
आसमान म एक िनि त थान तक प ंचने के बाद सुनहरा तीर एक
थान पर क गया। उसे देखकर ऐसा लग रहा था क मानो उस सुनहरे तीर
को कसी ने पकड़ रखा हो?
तभी तीर के चारो ओर नाच रहे बवंडर ने, तीर के पास अदृ य
अव था म उपि थत कसी व तु पर हार करना शु कर दया?
अब वह अदृ य व तु अपने थान पर दखाई देने लगी।
वह ए ोवस पावर का एक अंत र जीव था, िजसके सीने पर बने
गोले म ‘A3’ िलखा था। अपने सामने अंत र जीव को देखकर ोम व
ि काली पूण प से सावधान दखाई देने लगे।
तभी वा िण क आवाज ोम व ि काली के मि त क म सुनाई दी-
“ ोम, यह ए ोवस पावर का सबसे खतरनाक यो ा डाक है, इसके पास
अंत र म उपि थत ‘डाक मैटर’ क शि है।”
“यह डाक मैटर या है?” ि काली ने वा िण को बीच म ही टोकते
ए पूछ िलया- “मने तो इस बारे म कभी भी नह सुना?”
“अंत र म पाया जाने वाला डाक मैटर एक ऐसा पदाथ है, जो क
ांड के स पूण र थान म काले रं ग के पदाथ के प म उपि थत है। हम
इसे ांड के खाली थान के प म जानते ह। यािन क सम त ांड म
हम िजतनी चीज दखाई देती ह, वह सभी ‘िवजुअल मैटर’ होती ह और
िजतना भाग अंधकार के प म हम दखाई देता है, वह सभी डाक मैटर है।
डाक मैटर ांड क सभी आकाशगंगा म संतुलन रखने का काय करता
है। डाक मैटर के कारण ही सभी ह अपने िसतारे का समान गित से च र
लगाते ह, भले ही उनक दूरी उनके िसतारे से कतनी ही य ना हो? डाक
मैटर हमारे ांड के कसी भी कण से कोई ित या नह करता? यहाँ तक
क यह इं सान के शरीर के भी पार िनकल जाता है। वै ािनक को लगता है
डाक मैटर एक ऐसे कण का समूह है, िजसे हम अभी तक समझ नह पाये ह।
इसिलये इसे वै ािनक ‘ टडड मॉडल’ या ‘सुपर िसमे ी’ भी कहते ह। सुपर
िसमे ी के इस अबूझ पा टकल का नाम वै ािनक ने ‘S पा टकल’ दया है।
डाक मैटर को हम अपनी आँख से देख नह सकते य क उसका भार ‘नह ’
के बराबर होता है। डाक मैटर िसफ गु वाकषण के साथ ही या करते ह।
एक ि क पूरी जंदगी म उसके शरीर से होकर िसफ ‘1 माइ ो ाम’ ही
डाक मैटर पार हो पाता है। यही वजह है क डाक मैटर इं सान के शरीर का
कु छ नह कर पाते, परं तु य द इं सान के शरीर से होकर पार करने वाले, डाक
मैटर क मा ा को बढ़ा दया जाये, तो यह डाक मैटर इं सान के शरीर को
ण भर म कण म प रव तत कर सकता है। सीधे श द म यह जान लो क
अंत र म िवशाल आकाशगंगा के िवनाश के िलये यह डाक मैटर ही
िज मेदार है। इसिलये इस डाक से लड़ते समय तु ह अ यािधक सावधान
रहने क आव यकता है। ले कन यह यान रखना क यह डाक िव ु ा से
भी यादा खतरनाक िस हो सकता है और डाक मैटर के बारे म हमारे
िव ान के पास अभी ब त अिधक जानकारी भी नह है। इसिलये तुम दोन
को कसी भी कार क प रि थित म संभल कर रहना होगा?”
वा िण क बात सुनकर ोम व ि काली स रह गये, उ ह तो सपने
म भी डाक मैटर जैसे कसी कण का पता नह था?
उधर डाक ने अभी भी सुनहरे तीर को अपने हाथ म पकड़ रखा था
क तभी बवंडर ने िवकराल प धारण कर डाक पर पूरी शि से हमला कर
दया।
डाक के कदम अब हवा म लड़खड़ाने लगे। यह देख डाक ने अपने
हाथ म पकड़ा सुनहरा तीर तोड़ डाला और अपना हाथ आसमान क ओर
करके गोल घुमा दया।
डाक के ऐसा करते ही झील के ऊपर आसमान म एक बड़ा सा छे द
बन गया और उस छे द म एक िवशाल काले रं ग का लैक होल नजर आने
लगा।
आसमान म कट होते ही उस लैक होल ने ोम व ि काली को
अपनी शि य से प रिचत करा दया। अब उस लैक होल ने हवा म घूम रहे
िवशाल बवंडर को अपने अंदर ख चना शु कर दया।
चूं क ोम व ि काली आसमान म दूसरी ओर थे, इसिलये डाक ने
उ ह अभी तक देखा नह था।
उधर कु छ ही पल म लैक होल ने उस बवंडर को अपने अंदर
समािहत कर िलया। परं तु हवा के बवंडर को अपने अंदर ख चने के बाद भी
लैक होल क ुधा अभी शांत नह ई थी। अब वह झील क सतह को कण
म बदलकर अपने अंदर क ओर ख चने लगा।
यह दृ य देखकर ोम समझ गया क अब और अिधक देर करने का
कोई मतलब नह है? इसिलये ोम ने ि काली को वह वेिगका के पास
उतारा और वयं झील क सतह पर घुटन के बल बैठ गया।
“हे भूदेवी, यह लैक होल आपक धरती के कण को हवा म ख च रहा
है, इसिलये िजस कार हो सके आप इन कण को लैक होल म खंचने से
रो कये।” ोम ने झील क सतह से थोड़ी सी िम ी को उठाकर मन ही मन
भूदेवी का आहवान कया।
“पु ोम, यह अंत र म पाया जाने वाला लैक होल है, िजससे
होकर काश भी बाहर नह िनकल सकता, ऐसे म म इसे एक िनि त समय
तक ही रोक सकती ँ, परं तु य द लैक होल क शि बढ़ी, तो म भी उसे
रोक नह पाऊंगी, इसिलये तु ह शी से शी इस मुसीबत का कोई हल
िनकालना होगा?” भूदेवी ने यह कहकर पृ वी के कण को अपनी शि य से
बांध दया।
अब धरती के कण का लैक होल म जाना क गया। यह देख डाक ने
ना जाने या कया? क अब लैक होल क शि 4 गुना तक बढ़ गई, िजससे
एक बार फर धरती के कण हवा म खंचने लगे।
ले कन अब धरती के कण के साथ-साथ वहाँ उपि थत च ान भी हवा
म उड़कर लैक होल म समाने लग ।
यह देख ि काली से ना रहा गया, उसने अपनी िहमशि का योग
करते ए धरती के कु छ ऊपर हवा म बफ क एक मोटी सी चादर िबछा दी?
परं तु इस काय को अंजाम देते ए ि काली अब डाक क नजर म आ
गई।
अचानक डाक िव ुत क तेजी से नीचे आया और िबना ि काली को
कोई मौका दये उसका हाथ पकड़कर उसे आसमान क ओर उछाल दया।
ना जाने डाक म कतनी शि थी? क ि काली आकाश म वयं को
रोक ही नह पा रही थी, वह तो बस तेजी से उड़ती ई लैक होल क ओर
जा रही थी।
यह देख ोम ने अपने माथे पर लगा छोटा सा सुनहरे रं ग का मुकुट
उतारकर आसमान क ओर उछाल दया और फर तेजी से चीख उठा-
“ पा ऽऽऽऽऽ।”
ोम के िसर से अलग होते ही मुकुट ने अपना आकार बदल िलया।
अब वह एक सोने के कै सूल क तरह नजर आने लगा।
कै सूल म प रव तत होने के बाद पा िबजली क तेजी से उड़ा
और अगले ही ण वह ि काली के समीप प ंच गया। अब कै सूल 2 भाग म
प रव तत हो गया और उसने ि काली को अपने अंदर िछपा िलया।
इसके बाद कै सूल पुनः जुड़ गया और हवा म लहराते ए ि काली को
लेकर आसमान से वापस ोम के पास आ गया।
यह सबकु छ इतनी तेजी से आ था क जब तक डाक कु छ समझता
ि काली पुनः ोम के पास खड़ी थी।
अब ोम हवा म उड़ते ए डाक के सामने जा प ंचा।
ोम को अपने सामने देख डाक खुशी से इस कार िखल गया, मानो
कसी बालक को ढेर सारे िखलौने दे दये गये ह ?
यह देख ोम सोच म पड़ गया- “जब तक मुझे डाक क पूरी
शि य का ान ना हो जाये, तब तक मुझे अपनी शि य का दशन करने
से बचना होगा। ठीक वैसे ही जैसा मने िव ु ा के साथ यु म कया था।”
यह सोच ोम ने आगे बढ़कर डाक के शरीर पर एक शि शाली
हार कर दया।
परं तु इससे पहले क ोम का घूंसा डाक से टकराता, डाक ने अपना
शरीर डाक मैटर के कण म प रव तत कर िलया।
ोम का घूंसा लहराते ए डाक के शरीर के आर पार हो गया। तभी
डाक ने ोम के शरीर पर डाक मैटर से हमला कर दया। डाक के शरीर से
िनकले कण तेजी के साथ ोम के शरीर से िलपट गये। इसी के साथ ोम के
मुख से चीख िनकल गई।
अब ोम का शरीर धीरे -धीरे कण म प रव तत होने लगा। ोम
लाख यास के बाद भी अपने शरीर को कण म बदलने से रोक नह पा रहा
था।
यह देख ोम ने पंचशूल का आहवान कर िलया। ले कन इससे पहले
क ोम पंचशूल से कु छ कर पाता क तब तक ोम का शरीर कण म
बदलकर हवा म िमल गया।
अब उस थान पर िसफ पा व पंचशूल हवा म नाच रहे थे।
यह देख ि काली के ोध का पारावार ना रहा, वह लयंकारी अंदाज
म चीखती ई डाक क ओर लपक - “डाक ऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
तभी वह पूरा थान बफ से जमने लगा। शायद यह ि काली के ोध
का तीक था, िजसने पृ वी को ‘आइस-एज’ के समय सा बना दया।
देखते ही देखते जमीन से हजार क सं या म बफ क च ान ऊपर
उठ और उ ह ने डाक को अपने अंदर बंद कर दया।
िजस बफ म डाक बंद था, अब उस बफ ने िसकु ड़ना शु कर दया।
ि काली को लग रहा था क वह डाक को उस बफ म पीस डालेगी,
परं तु ऐसा आ नह , डाक ब त ही आसानी से बफ से बाहर आ गया।
शायद यह भी डाक मैटर क ही शि थी, जो डाक को धरती के कसी भी
त व म बांधने म असफल रही थी?
अब ि काली वयं को ब त असहाय महसूस करने लगी, य क
उसके पास ऐसी कोई भी शि नह थी, िजससे वह डाक को मार सके ?
ि काली लगातार उस थान को देख रही थी, जहां पर पंचशूल व
पा हवा म लहरा रहे थे। उसक आँख से आँसु क धारा बहने लगी।
ि काली को िव ास ही नह हो रहा था, क िव ु ा से इतना
खतरनाक यु जीतने वाला यो ा एक पल भी डाक के सामने नह टक
पायेगा।
पर अब या हो सकता था? जो होना था, वह तो हो चुका था, एक
महायो ा कण म िवलीन हो गया था।
उधर डाक को मानो ि काली म कोई िच नह थी, वह तो हवा म
उड़ता आ वेिगका के पास जा प ंचा।
इधर पृ वी का अंत भी िनकट था य क लैक होल िनरं तर पृ वी को
कण म बदलकर अपनी ओर ख च रहा था।
◆ ◆ ◆
काला मोती

08.02.02, शु वार, पोसाइडन पवत, अराका ीप


सुयश, शैफाली, जेिनथ, टी व ऐले स ितिल मा के आिखरी ार
को भी पार कर गये थे। अब उनके सामने एक और ार था, जो क शायद
इस ितिल मा से बाहर िनकलने का ार था। वैसे तो ितिल मा के आिखरी
ार म सभी ने तौफ क को खोया था, परं तु फर भी बाहर का दृ य देखने के
िलये सभी के दल तेजी से धड़क रहे थे।
जेिनथ भी अब शांत हो गई थी, पर सच मानो तो इस समय जेिनथ
को कसी अपने क ब त ज रत थी और जेिनथ के िलये उसके अपने के नाम
पर िसफ एक ही नाम था और वह नाम था- ‘ओरस’। परं तु ओरस तो
ज़ेिन स को दये वचन के कारण, जेिनथ क सहायता करने नह आ रहा था।
ले कन ऐसा नह था क ओरस को इस समय जेिनथ के दुख का अहसास नह
था। ओरस इस समय भी लैकून के समयच पर बैठा आ जेिनथ को ही
िनहार रहा था।
वह दूसरी ओर सभी धड़कते दल से अपने सामने दख रहे ार म
वेश कर गये।
कसी को नह पता था क ितिल मा को तोड़ने के बाद या होने
वाला है? उ ह तो बस अब काला मोती चािहये था। वह काला मोती जो
हजार वष से कसी यो ा के आने का इं तजार कर रहा था?
सभी िजस थान पर िनकले, वहाँ का दृ य देखकर सभी हैरान हो
गये।
उनके सामने एक िवशाल मैदान था, िजसके ऊपर काँच का गोलाकार
डोम बना आ था। उस डोम के ऊपर िसतार भरा काला आसमान दखाई दे
रहा था। उस डोम क छत को देख कर यह महसूस हो रहा था क मानो वह
कोई न शाला हो या फर यह पूरा मैदान कसी अंत र म तैर रहा हो?
उस िवशाल मैदान म नीली ऊजा से बना, एक भिव य के शहर का
‘3D’ मॉडल दखाई दे रहा था, जो क जमीन से लगभग 5 फु ट क ऊंचाई
पर धीरे -धीरे हवा म घूम रहा था।
वह शहर 7 अलग-अलग रं ग के ारा पूणतः पानी पर बना आ था,
िजसके म य एक ब त ही िवकिसत महल बना आ था। हर रं ग को आपस
म जोड़ती काँच क ूबलाइन बनी थी, िजसम ऊजा से बने अित िवकिसत
जलयान घूम रहे थे। शहर के ऊपर आसमान म भी ब त से यान उड़ रहे थे।
येक भवन के चारो ओर ऊंचे-ऊंचे पानी के फ वारे चल रहे थे। वहाँ दख
रहे भवन का आकार भी िब कु ल िभ था। कोई भवन कसी ‘ि ल मशीन
क िबट’ के समान था? तो कोई खेत म लगी मकई (भु े ) के समान था? एक
िवशाल भवन का आकार तो मधुम खी के छ े के समान भी था। सभी भवन
आसमान छू ते ए दखाई दे रहे थे। कु छ भवन तो धीमी गित से अपने प रतः
घूम भी रहे थे, िजससे उन भवन पर लगी ‘सोलर लाइट’ सदैव सूय क ओर
ही थी। कु छ थान पर तो जमीन क सड़क भी वतः ही चलती ई दखाई दे
रही थी। सड़क पर अनेक थान पर कु सयां लग थ , िजन पर बैठकर लोग
भी चलती ई सड़क के ारा सफर कर रहे थे। एक नजर म ही वह आधुिनक
शहर का मॉडल, ‘भिव य का अटलां टस’ दखाई दे रहा था।
सभी इधर-उधर घूमते ए उस भ व िवकिसत शहर को िनहारने
लगे।
तभी शैफाली क नजर महल के बीच ि थत एक आधुिनक वेधशाला
क ओर गई, िजसके बीच म एक ी क ितमा खड़ी थी और उसने अपने
हाथ म काला मोती पकड़ रखा था।
उस ी को देखते ही शैफाली ह ठ ही ह ठ म बड़बड़ाई- “मॉम !”
वैसे तो शैफाली ने यह श द ब त ही धीमे से बोले थे, फर भी सभी
को शैफाली के श द साफ-साफ सुनाई दये। उस श द को सुनते ही सभी
समझ गये, क उनके सामने दख रही वह मू त अटलां टस क रानी लीटो
क है, िजसने िबना ितिल मी अंगूठी के ही काला मोती को हाथ म उठा
िलया था और इसी के कारण वह प थर म प रव तत हो गई थी।
“लगता है क रानी लीटो प थर बनने से पूव, इस भिव य के
अटलां टस शहर को बनाने का सपना देख रह थ , परं तु सपना पूरा होने के
पहले ही लीटो प थर म प रव तत हो ग ।” टी ने धीरे से फु सफु साते
ए ऐले स से कहा।
टी को बोलते देख ऐले स ने धीरे से मुंह पर उं गली रखकर, टी
को चुप रहने का इशारा कया और ऐसा ऐले स ने शैफाली के बदलते प को
देखकर कहा था।
जैसे-जैसे शैफाली, लीटो क मू त क ओर बढ़ रही थी, वैसे-वैसे वह
मै ा के प म प रव तत होती जा रही थी। यह देख सभी समझ गये क
ितिल मा का भाव अब समा हो गया है और मै ा क शि यां अब वापस
आ ग ह।
शैफाली इस समय ब त ही भावुक दख रही थी। शायद िजस माँ का
यार उसे आज तक नह िमल पाया था, उसक मू त को समीप देख शैफाली
के सारे भाव एक साथ उमड़ आये थे।
सभी इस कार साँस रोके शैफाली को आगे बढ़ते ए देख रहे थे,
मानो शैफाली क एक गलती से कह ितिल मा दोबारा ना शु हो जाये?
धीरे -धीरे शैफाली, लीटो क मू त के पास प ंच गई, परं तु तब तक
वह पूण प से मै ा म प रव तत हो गई थी।
शैफाली ने अपना दािहना हाथ आगे बढ़ाया, परं तु काला मोती लेने के
थान पर वह लीटो क मू त को पश करके देखने लगी। लीटो क मू त
को पश करते ए शैफाली के हाथ खुशी के कारण कांपने लगे।
ब त ही भावुक पल था। इस पल को देख कर ऐसा तीत हो रहा था
क मान 20,000 वष से यासे कसी ि को आज सागर के दशन हो गये
ह?
कु छ देर तक ऐसे ही ि थित बनी रही। फर शैफाली ने धीरे से लीटो
क मू त के हाथ से काला मोती ले िलया। परं तु जैसे ही काला मोती पूण प
से शैफाली के हाथ म आया, लीटो क मू त टू टकर उसी थान पर िबखर
गई।
शैफाली को ऐसी कोई आशा नह थी? परं तु मू त के टू टते ही शैफाली
को महसूस हो गया क आज 20,000 वष के बाद उसक माँ को मुि िमल
गई है।
शैफाली ने अपने हाथ म पकड़े काला मोती को, लीटो क टू टी ई
मू त क ओर कर दया। शैफाली के ऐसा करते ही काले मोती से ती नीली
ऊजा िनकली और उसने लीटो के शरीर के टु कड़ को, कण म बदल कर
हवा म िबखेर दया।
कण को हवा म िवलीन होते देख, शैफाली क आँख से 2 अ ु क बूंदे
िनकल और धरा पर जा िगर । शायद यह लीटो के िलये आिखरी ृ ांजली
व प थे।
शैफाली क आँख म आँसू देख, सभी शैफाली को सां वना देने के िलये
आगे बढ़ने लगे क तभी एक अंजान आवाज ने सभी को यह करने से रोक
दया- “ठहरो, तुम म से कोई भी शैफाली के शरीर को तब तक नह छु एगा,
जब तक उसके हाथ म काला मोती है। अगर तुमम से कसी ने ऐसा करने क
कोिशश क , तो वह भी लीटो क ही भांित प थर म प रव तत हो
जायेगा।”
इस अंजान आवाज को सुन सभी का यान उस दशा क ओर गया,
िजधर से वह आवाज आई थी।
उस थान पर हवा म लहराती ई माया खड़ी थी, जो क यार भरी
नजर से शैफाली को देख रही थी।
माया को अपने सामने पाकर शैफाली भी ब त खुश हो गई और वह
चलती ई माया के पास जा प ंची।
“अ छा आ माँ क आप आ ग । .... इस समय मुझे आपक सबसे
अिधक आव यकता थी।” शैफाली ने रोनी सी सूरत बनाते ए कहा।
अब माया भी हवा से नीचे आ गई और शैफाली के सामने जा खड़ी
ई।
शैफाली ने सावधानीवश अभी माया को गले से नह लगाया था, उसे
डर था क कह माया भी प थर म प रव तत ना हो जाये?
“परे शान मत हो मै ा, यह काला मोती मेरा कु छ नह िबगाड़ सकता?
इसिलये तुम इसे मुझे स प सकती हो।” माया ने शैफाली को देखते ए कहा।
माया क बात सुन शैफाली ने अपने हाथ म पकड़ा काला मोती माया
के हवाले कर दया।
परं तु जैसे ही काला मोती माया के पास प ंचा, माया के चारो ओर
एक पारदश करण का सुर ा कवच बन गया। इसी के साथ माया जोर-
जोर से हंसने लगी।
“हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ। आिखर तुम सब मूख, कै र के
बनाये जाल म फं स ही गये।” यह कहते-कहते माया का प प रव तत होने
लगा।
थोड़ी ही देर म सबके सामने माया नह , अिपतु लाल रं ग के व पहने
एक 6 फु ट का शि शाली यो ा खड़ा था, जो क शत- ितशत कै र था।
कै र क बात सुन सभी हैरान रह गये, उनम से कसी ने भी माया
पर संदेह नह कया था? और यह पर सभी मात खा गये।
कै र को अपने सामने देख सुयश ने िबना एक ण गंवाए, कै र पर
अपनी सूय शि का हार कर दया। सुयश के हाथ से सूय क ती करण
िनकलकर कै र क ओर बढ़ । परं तु सुयश क सूय शि कै र के कवच को
भेद नह पाई।
यह देख शैफाली ने भी कै र पर एक-एक कर कई ह का हार कर
दया, परं तु यह सब भी कै र के कवच के सामने थ गये।
“हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ अरे मूख , ये शि से िन मत
कवच है, जो क काले मोती ने बनाया है, तुम अपनी कसी भी शि का
योग करके इस कवच को तोड़ नह पाओगे? हां अगर तुम इस बात पर
हैरान हो क िबना ितिल मी अंगूठी पहने मने इस काले मोती को कै से उठा
िलया? और इस काले मोती ने मुझे प थर का य नह बनाया? तो इस
रह य को जान लो, य क म नह चाहता क मरने से पहले तुम लोग के
दमाग म कोई उलझन बची रह जाये? ... तो सुनो ... यह काला मोती िसफ
जीिवत जीव को ही प थर का बना सकता है और म तो कोई जीिवत जीव ँ
ही नह , फर भला यह काला मोती मेरा या िबगाड़ लेता? ..... अब म तुम
लोग को दखाता ँ क काले मोती म कतनी शि समाई है? ...... ले कन
उसके पहले य ना तुम लोग को कसी से िमला दूँ?”
इतना कहकर कै र ने एक जोर क आवाज लगाई- “ज़ेिन स।”
कै र के पुकारते ही जेिनथ के गले म पड़े लैकून से एक तेज नीली
रोशनी िनकली और अब सबके सामने ऊजा प म ज़ेिन स खड़ी दखाई देने
लगी।
“यह ज़ेिन स है, डे फानो ह क सबसे शि शाली क यूटर ो ाम,
जो क अब मेरे साथ है।” कै र ने मु कु राते ए कहा- “अब हम दोन
िमलकर, काला मोती क सहायता से एक नये ह का िनमाण करगे, िजस
पर हमारे जैसे ही जीव ह गे, िज ह हमने कृ ि म तरीके से बनाया होगा। ....
और हां जेिनथ तु ह अब ओरस का इं तजार करने क कोई ज रत नह है,
य क ज़ेिन स ने ओरस को लैकून के अंदर ि थत संरि का नामक एक ऐसे
थान पर फं सा दया है, िजससे अब वह कभी भी बाहर नह आ सकता?
इसिलये अब तुम सभी लोग मरने के िलये तैयार हो जाओ। .... पर हां म तु ह
अपने हाथ से नह मा ं गा, बि क तुम वयं ही अपने आपको मारोगे। ...
या आ कु छ समझ नह आया? ... कोई बात नह अभी समझ आ जायेगा?”
यह कहकर कै र वहाँ खड़े सभी लोग को एक-एक कर घूरने लगा,
परं तु कै र िजस भी यो ा को घूर रहा था, उसके हाथ म पकड़ा काला मोती
तेजी से उस यो ा के समान एक नकली यो ा बनाकर उसके सामने खड़ा
करता जा रहा था।
कु छ देर बाद सुयश, शैफाली, जेिनथ, ऐले स व टी के सामने,
िब कु ल उ ह के समान दूसरे यो ा खड़े थे, बस नकली यो ा के शरीर पर
पहनी ेस थोड़ी अलग थी।
तभी कै र फर से बोल उठा- “हां, एक बात और सुन लो क तु हारे
सामने दख रहे यह सभी नकली यो ा चेहरे से ही नह शि य म भी
तु हारे समान ह, इसिलये तु ह इ ह मारना आसान नह होगा। ..... तो फर
चलो एक नये यु क शु आत करते ह और देखते ह क तुम सब जीतते हो
या फर काले मोती से बने यह सब नकली यो ा? .... जो भी हो, परं तु मुझे
तो यह यु देखकर ब त मजा आने वाला है।”
यह कहकर कै र ने काले मोती क सहायता से, एक भ संहासन
का िनमाण कर िलया और उस पर बैठकर यु के शु होने का इं तजार करने
लगा।
अब आने वाले समय म इस यु का या प रणाम िनकलने वाला था,
यह कसी को नह पता था? परं तु जो भी हो इस देवयु का समापन तो
आज ही होने वाला था।
◆ ◆ ◆
मौत का चुंबन

08.02.02, शु वार, इलीिसयम, अंड रव ड


कै पर अपने माता व िपता को बचाने के िलये अंडरव ड के अंदर
आया था, पर अंदर आते ही वह वयं अपनी परछाई का िशकार बन गया।
“यह कै सा मायाजाल है? म तो अब वयं परछाई बनकर जमीन से
िचपक गया और ऐसी ि थित म म अपने शरीर के कसी भी अंग को िहला
भी नह पा रहा? अगर यही ि थित बनी रही तो म वयं को कै से बचा
पाऊंगा?”
उधर कै पर क परछाई वह खड़ी होकर कु छ देर तक कै पर को
देखती रही और फर वहाँ से कु छ दूर जाकर एक च ान पर आराम से बैठ
गई।
जो भी हो पर कै पर इस अंडरव ड के पहले ही मायाजाल म बुरी
तरह से उलझ गया था। उसे समझ नह आ रहा था क वह कै से इस मुसीबत
से बचे? य क उसे कोई भी मायाजाल बुनने के िलये, अपने हाथ को
िहलाना पड़ता था, परं तु इस समय हाथ िहलाना तो छोड़ो कै पर अपने
शरीर के कसी िह से को नह िहला पा रहा था?
उधर अंडरव ड म अपने महल म बैठे हेिडस क आँख म एक िवजयी
मु कान दखाई दे रही थी। उसने कै पर के अंडरव ड म वेश करते ही उसे
देख िलया था और उसी क भेजी ‘शैडो पावर’ का इस समय कै पर िशकार
बन गया था।
हेिडस इस समय पूरी तरह से िन ंत था। वह जानता था क
अंडरव ड के अंदर कै पर क अब कोई भी मदद नह कर सकता?
कै पर को आज इस मायाजाल म फं से 14 दन बीत चुके थे।
“हे ई र, मने तो वा िण से शी लौट आने का वचन दया था, परं तु
इस मायाजाल म म ऐसा फं सा क यहाँ से िनकलने का कोई रा ता ही नह
िमल रहा? .... माँ माया को भी म कई बार पुकार चुका ँ, परं तु उ ह ने भी
इस थान पर मुझे कोई उ र नह दया? ... या अब म स दय तक यहाँ
ऐसे ही फं सा र ँगा।”
सोचते-सोचते कै पर ने पास के प थर पर बैठी अपनी उस परछाई को
देखा, जो कै पर को जमीन म फं साकर वयं आराम से प थर पर बैठी थी।
तभी कै पर क परछाई ने ना जाने या देखा क वह तुरंत उसी प थर
के पीछे िछप गई?
अपनी परछाई को िछपते देख कै पर को ब त आ य आ और वह
उस दशा म देखने लगा, िजस दशा म देखते ए उसक परछाई िछप गई
थी।
अब कै पर क िनगाह एक बूढ़े से आदमी पर पड़ी, जो क धीरे -धीरे
चलता आ उसी दशा म आ रहा था। बूढ़े क कमर झुक ई थी, िजसके
कारण वह ठीक से चल भी नह पा रहा था।
बूढ़े ने अपने हाथ म एक मुड़ी-तुड़ी सी काली छड़ी पकड़ रखी थी।
बूढ़ा उसी छड़ी के सहारे चल रहा था।
कै पर को वह बूढ़ा ि थोड़ा रह यमई दखाई दया, य क इस
थान पर कसी मनु य का पाया जाने वैसे भी संभव नह था? और वह तो
एक बूढ़ा था, िजसक चलने क गित भी ब त धीमी थी।
“कौन हो सकता है यह बूढ़ा? और मेरी परछाई इस बूढ़े से डर य
रही है?”
जो भी हो परं तु कै पर को उस बूढ़े के कारण उ मीद क एक करण
दखाई देने लगी।
वह बूढ़ा धीरे -धीरे चलता आ उस थान पर प ंच गया, जहां कै पर
जमीन से िचपका आ था। बूढ़े को पास म देख कै पर ने चीखने क ब त
कोिशश क , परं तु उस बूढ़े क िनगाह कै पर पर नह पड़ी। शायद उस बूढ़े
क दूर क नजर भी कमजोर थी।
परं तु कु छ आगे बढ़ते ही बूढ़े के कदम थोड़े से लड़खड़ाये और इसी के
साथ उसके हाथ म पकड़ी काली छड़ी, जमीन पर िचपके कै पर के हाथ के
पास जा िगरी।
छड़ी के िगरने के कारण बूढ़ा अपने थान पर क गया और झुककर
नीचे िगरी छड़ी को उठाने लगा। परं तु छड़ी को उठाते-उठाते उस बूढ़े क
िनगाह कै पर पर जा पड़ी।
अब वह बूढ़ा छड़ी को उठाना छोड़ जमीन पर बैठकर कै पर को देखने
लगा।
““पता नह कस मूख ने इतनी अ छी त वीर को यहाँ जमीन पर
बना रखा है।” यह कहते ए बूढ़े ने कै पर के हाथ को छू कर देखा।
बूढ़े के छू ते ही कै पर को एक अजीब सा अहसास आ और उसने आगे
बढ़कर बूढ़े का हाथ पकड़ िलया।
बूढ़े का हाथ पकड़ते ही कै पर का हाथ जमीन से बाहर आ गया।
कै पर के िलये इतना समय काफ था, उसने तुरंत अपने हाथ को नचाया
और पूरा का पूरा जमीन से बाहर आ गया।
कै पर को जमीन से िनकलता देख बूढ़ा डर गया और वह कै पर से
थोड़ा दूर हट गया।
14 दन बाद जमीन से मु होने क खुशी कै पर से संभाली ना गई
और वह आगे बढ़कर बूढ़े के गले से लग गया। परं तु बूढ़े के गले से लगते ही
कै पर को एक अजीब सा अहसास आ।
“अरे ! यह बूढ़े क हि यां तो कसी युवा इं सान क तरह स त ह? ....
नह -नह यह इं सान बूढ़ा नह हो सकता। ... कह यह भी तो हेिडस के कसी
जाल का िह सा नह ?”
यह सोच कै पर उस बूढ़े से थोड़ा दूर हट गया और यान से उस बूढ़े
को देखने लगा, परं तु इससे पहले क कै पर बूढ़े का कोई अवलोकन कर पाता
क तभी कै पर के कान म कसी िवशाल जीव के दौड़ने क आवाज सुनाई
दी।
इस आवाज को सुनते ही कै पर का यान बूढ़े से हटकर, उस दशा क
ओर गया, िजधर से वह आवाज आ रही थी।
कै पर को कु छ दूरी पर भागकर आता आ, एक खतरनाक भसा
दखाई दया। भसे क आँख िब कु ल लाल थ और उसके नथुने से ह क -
ह क सी भाप िनकल रही थी।
उस भसे को देख कर यह महसूस हो रहा था, क वह भसा सा ात
मृ यु के देवता यम का वाहन हो और वह वहाँ कै पर को मारने के िलये ही
आ रहा हो।
तभी कै पर क परछाई उस भसे क ओर भागने लगी और कै पर के
देखते ही देखते वह परछाई उछलकर भागते ए भसे के अंदर समा गई।
परछाई के समाने के बाद भी भसे क ‘गित’ म कोई अंतर नह आया?
परं तु हां अब उसके शरीर म अंतर आना शु हो गया था। धीरे -धीरे वह एक
मानव आकृ ित म प रव तत होने लगा।
कु छ ही देर म उस भसे के शरीर का िनचला भाग कसी मनु य क
भांित हो गया, परं तु उसका िसर अब भी भसे क ही तरह था।
समीप आकर उस भसे ने कसी मनु य क भांित बोलना शु कर
दया- “कै पर, म हेिडस बोल रहा ँ। म यहाँ से ब त दूर अपने महल म
बैठा, तु हारी हर गितिविध को तब से देख रहा ँ, जब से तुम अंडरव ड म
वेश कये थे। यक न मानो अंडरव ड म तुम कसी भी थान पर मुझसे िछप
नह सकते? ..... म तु हारे बारे म सबकु छ जान गया ँ। तुम मेरी बेटी
सो फया और मेरोन के पु हो। इस कार से र ते म हम तु हारे नाना ए,
परं तु ये याद रखना क जब हमने अपनी सबसे यारी पु ी सो फया को माफ
नह कया, तो तु ह तो म कभी भी अपना नह सकता? वैसे म तु ह मारना
नह चाहता, परं तु म तु ह अंडरव ड से भागने का एक मौका अव य देना
चाहता ँ। तुम चाहो तो अपने ाण क र ा करते ए अंडरव ड से बाहर
चले जाओ, या फर इस जीव से यु करते ए यह पर समा हो जाओ। ...
म तु ह एक बात और बताना चाहता ँ क सो फया और मेरोन इलीिसयम
म उपि थत मेरे ही महल म ह, परं तु उ ह छु ड़ाना तो दूर तुम सैकड़ो वष
तक यास करने के बाद भी, उन दोन तक प ंच नह सकते। ........ यक न
करो, तुम इस जीव से अंडरव ड के अंदर जीत नह सकते, जब क ऐसे सैकड़
जीव ह, जो पूरे अंडरव ड म येक थान पर िबखरे ए ह और हां तु हारे
पास उपि थत बूढ़े के वेष म खड़ा, यह जीयूष भी तु ह इस थान पर नह
बचा पायेगा? ये वादा है मेरा।”
इतना कहकर हेिडस क आवाज आनी बंद हो गई, परं तु हेिडस के
मा यम से कै पर को यह तो पता लग गया था क मेरोन और सो फया
इलीिसयम म ही ह और उसके सामने खड़ा वह बूढ़ा सच म जीयूष है, जो क
उसे बचाने के िलये यहाँ तक आया था।
हेिडस के श द सुन बूढ़ा जीयूष के वेष म आ गया, परं तु जीयूष के हाथ
म पकड़ी काली छड़ी िब कु ल भी प रव तत नह ई। वह अब भी पहले के
ही समान थी।
वह दूसरी ओर खड़ा भसा आ ेय ने से कै पर को िनहार रहा था।
शायद वह कै पर के िनणय लेने का इं तजार कर रहा था।
कै पर ने एक नजर भसे पर मारी, परं तु भसे को शांत खड़ा देख
कै पर, जीयूष क ओर मुड़कर बोल उठा- “आप यहाँ पर य आए ह? यह
बात मुझे समझ म नह आई। आपने तो माता माया के सामने इस बात पर
अपनी सहमित जताई थी क आप हमारे यु म कसी भी कार से भाग
नह लगे?”
“म अभी भी तु हारे उस देवयु म भाग नह लूंगा कै पर, परं तु जब
मुझे यह पता चला क तुम मेरोन और सो फया को अंडरव ड से छु ड़ाने के
िलये जा रहे हो, तो मुझसे रहा ना गया और म तु ह बचाने के िलये यहाँ आ
प ंचा। म जानता ँ क तुम कतने भी शि शाली य ना हो? इस
अंडरव ड के अंदर हेिडस से नह जीत सकते। वह काली शि य व छल का
दे व ता है, जो क हजार वष से इसी थान पर रह रहा है। उसके पास
असीिमत काली शि यां ह, जो इसी अंडरव ड के अंधेरे म रहती ह। इसिलये
जब तक तुम सुरि त अंडरव ड से बाहर नह िनकल जाते, तब तक म
तु हारे साथ ँ पु ।”
जीयूष ने आिखरी म कहे ‘पु ’ श द को धीरे से बोला था, परं तु फर
भी कै पर ने उस श द को सुन िलया।
अब कै पर क िनगाह वापस से भसे क ओर गई और इसी के साथ
कै पर पैदल ही भसे क ओर चल दया।
कै पर का यह अंदाज जीयूष को भी समझ म नह आया, इसिलये वह
भी यान से कै पर को देखने लगे।
पास प ंचकर कै पर को जाने या सूझा? क उसने अपने हाथ का
मु ा बनाकर भसे के िसर पर मार दया।
कै पर का यह हार ब त ही शि शाली था य क कै पर के इस
हार से भसे क एक स घ टू ट गया और वह भसा डकराकर वह िगर गया।
जीयूष, कै पर क शि देखकर हैरान रह गये। तभी वह भसा फु त के
साथ जमीन से खड़ा आ और उसने कै पर को अपनी दूसरी बची स घ पर
उठाकर हवा म उछाल दया।
भसे के इस हार से कै पर ऊपर आसमान क ओर उछल गया, परं तु
कु छ ही ण म वह भसे के सामने जमीन पर आकर िगरा।
ले कन इससे पहले क भसा इस बार कै पर का कोई अिहत कर
पाता? क तभी जीयूष ने अपने हाथ म पकड़ी काली छड़ी को भसे क ओर
कर दया।
जीयूष के ऐसा करते ही काली छड़ी से ब त सारे बॉ संग ल स
िनकले और उन ल स ने भसे पर चारो ओर से आ मण कर दया।
ल स का हर हार भसे को धाराशाई करता जा रहा था, क तभी
कसी प ी के पंख फड़फड़ाने क तेज आवाज वातावरण म सुनाई दी।
इस आवाज को सुन जीयूष क नजर उस ओर चली गई, िजधर से यह
आवाज आ रही थी।
अब जीयूष को आसमान म पंख फै लाये, हवा म खड़ा एक िविच
मानव दखाई दया, जो क देखने म तो मनु य के समान था, परं तु उसक
पीठ पर काले रं ग के िवशाल पंख दखाई दे रहे थे। जीयूष इस प ीराज को
देखते ही पहचान गया।
“यह तो ‘थानाटोस’ है। .... मृ यु का देवता थानाटोस। इसका मतलब
हेिडस समय ना बबाद करते ए यह यु ज दी ही समा करना चाहता है,
तभी उसने सीधे थानाटोस को ही हमारे पास भेज दया।” जीयूष तेजी से
सोच रहा था- “अब य द मने जरा सी भी गलती क तो म भी हमेशा-हमेशा
के िलये इस थान पर फं स जाऊंगा और वैसे भी हेिडस को मेरी सभी शि य
के बारे म पता है। वह यह भी जानता है क मेरी आधी शि यां अंडरव ड म
काम नह करती ह।”
ले कन इससे पहले क जीयूष कै पर को कसी कार से सतक कर
पाता? तभी थानाटोस के हाथ से एक अि के समान र सी िनकली और
उसने जीयूष के हाथ से उसक काली छड़ी को छीन िलया।
जैसे ही छड़ी जीयूष के हाथ से िनकली, हवा म घूम रहे सभी ल स
भसे को छोड़कर जीयूष व कै पर क ओर लपके , परं तु तभी जीयूष ने अपनी
शि य का योग कर अपने व कै पर के आगे एक चाँदी के समान चमकता
आ ऊजा कवच बना दया।
अब कोई भी ल स उस ऊजा कवच को पार कर कै पर व जीयूष क
ओर नह आ पा रहे थे?
तभी जीयूष को अपने पीछे से एक आहट सुनाई दी। यह आहट सुन
जीयूष व कै पर तेजी से पीछे क ओर पलटे ।
जीयूष को अपने से कु छ दूरी पर एक लड़क हवा म खड़ी नजर आई,
जो क प रय के समान सफे द कपड़े पहनी थी। उस लड़क के बाल भी सफे द
थे और हवा म लहरा रहे थे।
“यह ‘थानाटोस’ व ‘मका रया’ ह कै पर, यह दोन ही मृ यु के देवी व
देवता ह। बस दोन के मृ यु देने का तरीका अलग-अलग है। जहां थानाटोस
कसी को भी ददनाक मौत देने के िलये िस है? वह मका रया कसी को
भी िबना दद क मौत देती है? मका रया हेिडस क बेटी है, परं तु इसे अपनी
मौसी समझने क भूल मत कर बैठना कै पर। यह हेिडस के िसवा कसी क
भी बात नह सुनती है?” जीयूष ने कै पर को सावधान करते ए कहा।
परं तु कै पर तो इस समय जैसे जीयूष क बात सुन ही नह रहा था,
वह तो मानो मका रया के स दय पर मं मु ध हो गया था। अब कै पर ने
जीयूष का बनाया आ सुर ा कवच अपने सामने से हटाया और धीरे -धीरे
मका रया क ओर बढ़ने लगा।
कै पर को इस कार मका रया क ओर बढ़ते देखकर, थानाटोस से
रहा ना गया और उसने कै पर पर अपनी काली शि का वार कर दया।
तभी मका रया के कं धे पर बैठा सफे द प ी तेजी से उड़ा और थानाटोस व
कै पर के बीच आ गया।
थानाटोस क काली शि यां सफे द प ी म वेश कर ग , परं तु उस
सफे द प ी का कु छ नह आ? वह पुनः आकर शांत भाव से मका रया के कं धे
पर बैठ गया।
“ क जाओ थानाटोस, इस बालक पर हार मत करो। यह सो फया
का पु है, इस िहसाब से तो इसे ....... यार से मृ यु के हवाले करना होगा।”
मका रया ने अजीब सी नजर से कै पर क आँख म झांकते ए कहा।
परं तु मका रया के श द को तो मानो कै पर सुन ही नह रहा था, वह
तो मं मु ध सा िनरं तर मका रया क ओर बढ़ रहा था।
यह देख जीयूष चीख उठा- “ क जाओ कै पर, मका रया को ‘मौत के
चुंबन क देवी’ भी कहा जाता है। यह इसी कार से कसी को भी मं मु ध
कर उसे मौत का चुंबन देने के िलये आक षत करती है, परं तु य द तुमने
मका रया को चूमने क कोिशश क , तो तुम तुरंत ही मृ यु को ा हो
जाओगे।”
परं तु जीयूष के श द भी कै पर को मका रया के ‘मोिहनी जाल’ से
नह िनकाल पाये।
कै पर अब बढ़ता आ मका रया के सामने जा प ंचा और उसके ह ठो
को चूमने के िलये आगे बढ़ने लगा।
यह देख जीयूष ने अपने िचरप रिचत अंदाज म अपना ‘थंडरबो ट’
बाहर िनकाल िलया। परं तु जैसे ही जीयूष क िनगाह थंडरबो ट पर पड़ी,
वह बुरी तरह से च क गया य क थंडरबो ट धीरे -धीरे जीयूष के हाथ से
गायब होता जा रहा था।
तभी जीयूष क िनगाह अपने पैर क ओर गई। जीयूष को अपने पैर
के नीचे क जमीन म वही परछाई घुसी ई दखाई दी, िजसने कै पर को
लंबे समय तक जमीन से िचपका कर रखा था।
उस परछाई को ठीक अपने नीचे देख जीयूष ने तुरंत अपने थान से
हटने क कोिशश क , परं तु तब तक देर हो चुक थी और उस परछाई ने
अपना हाथ जमीन से बाहर िनकाल कर जीयूष को जमीन के अंदर ख च
िलया।
परछाई जीयूष को जमीन म डालकर एक बार फर बाहर आ गई,
परं तु अब जीयूष का हाल कै पर क तरह हो गया था। अब जीयूष अपनी
कसी भी शि का योग नह कर पा रहा था?
इधर जीयूष पूरी तरह से परछाई के जाल म फं स गया था, तो उधर
मका रया के जाल म फं सा कै पर मका रया को चूमने क गलती कर बैठा।
मका रया को चूमते ही कै पर का शरीर अपने थान पर लहराया
और वह जमीन पर िगर गया।
एक पल से भी कम समय म कै पर मारा गया था। यही तो था
मका रया का जादू, िबना कै पर को क दये ए मका रया ने कै पर के
ाण को उसके शरीर से मु कर दया था।
अब मका रया ने कै पर के शरीर को अपने कं ध पर उठाया और
थानाटोस को लेकर इलीिसयम म ि थत हेिडस के महल क ओर उड़ चली।
जीयूष अब परछाई बना अंडरव ड क जमीन म सदा-सदा के िलये
कै द हो गया था। कै पर को बचाने तो जीयूष वयं आ गया था, परं तु जीयूष
को बचाने अब कसने आना था? इस का उ र तो िसफ और िसफ समय
के पास था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-17
अि दानव

08.02.02, शु वार, कै लाश मं दर, औरं गाबाद, भारत

पा शलाका,ताललोक का सुर ा ार टू ट चुका था और रं गो ने


आकृ ित व जे स क उपि थित म अि का को हािसल भी
कर िलया था। इस समय शलाका, जे स व आकृ ित अपने थान
पर ज खड़े थे और रं गो उन सभी के बीच से होता आ अि का को लेकर
मोर के मुख वाली पहाड़ी से बाहर क ओर िनकल रहा था।
सभी बेबस भाव से रं गो को बाहर क ओर जाते ए देख रहे थे क
तभी अचानक कसी अदृ य शि ने रं गो पर एक जोरदार हार कर दया।
इस भीषण हार के कारण रं गो अपने थान से उछलकर सुवण वाला
के बीच जाकर िगरा। इस अ यािशत वार से अि का रं गो के हाथ से छू टकर
सुवण वाला के पास जा िगरी।
शलाका, आकृ ित व जे स, रं गो पर ए इस वार को कु छ ण तक
समझ नह पाये, परं तु अब उ ह यह अहसास होने लगा था क कोई ना कोई
अदृ य प म यहाँ पर उपि थत है? और जो भी है, वह उनके साथ है।
उधर रं गो अब ोध म अपने थान पर खड़ा आ और अपने आसपास
देखने लगा। अपने आसपास कु छ ना नजर आता देख रं गो ने अपने व म
िछपा लाल रं ग का एक पारदश गोला िनकाल िलया।
उस पारदश गोले से तेज लाल रं ग क रोशनी िनकल रही थी। अब
रं गो ने उस लाल गोले को मोर के मुख वाली पहाड़ी के बाहर िनकलने वाले
ार क ओर फक दया।
रं गो के फकते ही वह लाल गोला और भी अिधक काशमान हो गया
और उस लाल गोले क रोशनी के कारण पूरी गुफा अंदर से लाल रं ग से
काशमान हो गई।
रं गो का यह यास काय कर गया था य क अब रं गो को अपने
सामने सुनहरा कवच पहने एक यो ा खड़ा दखाई दया, जो क और कोई
नह बि क आगस था।
आगस के साथ सफे द व पहने आच भी खड़ी थी। आगस को इस
थान पर अपने सामने खड़ा देख शलाका भौच रह गई।
“यह डैड एकाएक यहाँ पर कै से आ गये?” शलाका ने मन म सोचा।
परं तु जो भी हो शलाका इस समय आगस को अपने सामने देख ब त ही
यादा खुश हो गई थी।
आगस को जब पता चल गया क वह अब सबके सामने नजर आ रहा है,
तो वह वयं ही आच सिहत सभी के सामने सदृ य हो गया।
आगस और आच को देख जे स भी स हो उठा।
तभी आच ने अपने हाथ म पकड़ा, एक बोतल के ढ न के आकार का
इले ॉिनक यं वहाँ जमीन पर रख दया। इले ॉिनक यं के जमीन पर
रखते ही उससे तेज सुनहरी रोशनी िनकली और उस सुनहरी रोशनी ने एक
गोलाकार आकार के लोब का िनमाण कर दया।
सनहरे लोब का आकार लगभग 10 फु ट के आसपास था। तभी सभी को
उस इले ॉिनक यं के पास काले रं ग क परछाई के समान एक मानव
आकृ ित दखाई दी। देखने से ही पता चल रहा था क वह कसी ी क
आकृ ित है।
तभी वा िण क आवाज शलाका व आकृ ित को पुनः उनके कान म
सुनाई दी- “इस गोले म बंद वह परछाई, ए ोवस पावर क एक यो ा
‘वडी’ है, िजसे ‘शैडो गल’ के भी नाम से जाना जाता है। इसके पास कसी
क भी परछाई को अपने वश म कर लेने क ताकत है? वडी एक बार िजसक
भी परछाई को पश कर लेती है, उसके शरीर को िनयंि त करके बफ क
तरह जमा देती है। रं गो व वडी लान करके यहाँ पर आये थे। हम िसफ इस
थान पर रं गो दखाई दया, जब क वडी एक प थर क परछाई के प म
इस थान पर पहले से ही उपि थत थी। इसके प ात् जब तुम लोग रं गो से
यु कर रहे थे, तो वडी ने चुपके से तुम तीन क परछाई को छू कर तु हारे
शरीर को बफ क तरह से जमा दया था और तुम सभी समझते रहे क तुम
पर रं गो ने अपनी कसी शि से हार कया है?”
“परं तु नेिमरॉस ह क इस लड़क ने ऐसी कस शि का योग कया
है? जो वडी उस गोले से बाहर नह आ पा रही?” शलाका ने वा िण से पूछा-
“ य क परछाई को तो कसी भी गोले म नह बांधा जा सकता?”
“यह तो मुझे भी नह पता शलाका। यह तो तु ह वयं ही उस लड़क से
पूछना होगा, परं तु जो भी हो तु हारे िपता ने िब कु ल ठीक समय पर रं गो के
इस च ूह म वेश कया है। आज अगर यह समय पर नह आते, तो
अि का तो हाथ से जाती ही, साथ ही तु हारे भी ाण जा सकते थे।” वा िण
ने कहा।
उधर सुनहरे गोले म फं स जाने के कारण, वडी बुरी तरह से छटपटा कर
उस गोले से िनकलने क कोिशश कर रही थी, परं तु ना जाने वह गोला कस
ऊजा का बना था? क वडी उस गोले को भेद नह पा रही थी।
तभी शलाका, जे स व आकृ ित वापस से पहले के समान हो गये।
वयं को सही होता देख आकृ ित ने झपटकर अपने हाथ से िगरी
सुनहरी ढाल को तुरंत उठा िलया और सतक भाव से सामने खड़े रं गो को
देखने लगी।
आकृ ित क भांित शलाका ने भी फु त दखाते ए जमीन पर िगरी
अि का को उठा िलया।
जैसे ही शलाका ने अि का को जमीन पर उठाया, सुवण वाला के ऊपर
छत पर बनी अि प ी क आकृ ित जीिवत हो उठी और तेज ‘ - ’ क
आवाज करती रं गो के सामने आ खड़ी ई।
अि प ी ने एक नजर सब पर मारी और फर अपने मुख से एक जोर
क आग सुवण वाला पर उगल दी। अि प ी के ऐसा करते ही सुवण वाला
क अि वतः ही जल उठी और फर से उसने पृ वी के लावे को नीलजल म
प रव तत करना शु कर दया।
अब मोरपंख के मुख वाली पहाड़ी से फर से झरना िगरना शु हो गया।
यह देख शलाका ने थोड़ी राहत क साँस ली और आगस क ओर देखने लगी,
परं तु आगस ने अपने हाथ के इशारे से शलाका को वह कने को कहा।
आगस का इशारा देख शलाका पुनः रं गो क ओर देखने लगी। शलाका
को पता था क रं गो इतनी आसानी से हार मानने वाल म से नह है,
इसिलये अब वह और भी अिधक सतक नजर आने लगी।
तभी रं गो के शरीर के आसपास नाच रहा पीला गोला अपना आकार
बढ़ाता आ, आच के बनाये सुनहरे लोब से जा टकराया, परं तु आच का
सुनहरा लोब नह टू टा।
यह देख रं गो ने ोध से घूरकर वहाँ खड़े सभी को देखा और फर अपने
शरीर से िनकले उस पारदश लाल गोले म समा गया, जो क उसने आगस व
आच को कट करने के िलये फका था।
जैसे ही रं गो उस लाल गोले म समाया, रं गो का शरीर वतः ही अि
से जलने लगा। अब रं गो क आँख से भी तेज अि िनकलने लगी।
कसी को भी रं गो का यह वार समझ म नह आया य क अब उसके
शरीर म लगी अि के कारण उसका शरीर कसी वालामुखी के लावे के
समान िपघलने लगा।
धीरे -धीरे रं गो का पूरा शरीर िपघलकर उस लाल गोले म इक ा हो
गया।
“यह रं गो तो पूरी तरह से िपघल गया। या तुम बता सकती हो
वा िण क रं गो अब जीिवत है या फर मारा गया?” शलाका ने मन ही मन
वा िण से पूछा।
“कु छ कह नह सकती शलाका? पर मुझे नह लगता क रं गो इतनी
आसानी से मारा गया य क यह लाल गोला उसका ही बनाया आ है और
उसम वेश भी रं गो ने वयं ही कया था।” वा िण ने कहा- “अ छा
शलाका अभी म भी कसी यु म त ँ, इसिलये कु छ देर तुम लोग से
बात नह कर पाऊंगी। पर मुझे लगता है क अब यह यु तु हारे हाथ म आ
गया है य क इस समय तु हारे पास ब त से शि शाली लोग ह। इसिलये
अभी मुझे जाने क आ ा दो।”
इतना कहने के बाद वा िण क आवाज आनी बंद हो गई।
तभी शलाका को आगस क याद आ गई और वह भागकर आगस के गले
से लग गई- “मुझे माफ कर दीिजये डैड, मने आपको गलत समझा, परं तु
आपने समय रहते मेरी जान बचा ली।”
इस समय शलाका के चेहरे पर आ म लािन के भाव साफ नजर आ रहे
थे।
आगस भी कसी छोटे से ब े क भांित शलाका के िसर पर हाथ फे रने
लगा।
शलाका को आगस क ओर जाते देख जे स भी आच के पास आ गया,
परं तु इससे पहले क जे स, आच से कु छ कह पाता? क तभी उस थान पर
एक भीषण धमाका आ।
इस धमाके का वेग इतना अिधक था क वहाँ खड़े सभी लोग उछलकर
दूर जा िगरे ।
नीचे िगरते ही शलाका ने पलटकर धमाके का कारण जानना चाहा,
परं तु पीछे देखते ही शलाका के ाण उसके हलक म आ गये य क पीछे दख
रहा वह लाल पारदश गोला फट गया था, िजसम वेश कर रं गो लावे म
प रव तत आ था।
धमाके के बाद लाल गोले के िनशान तो कह भी नजर नह आ रहे थे,
परं तु रं गो के शरीर का लावा सुवण वाला क अि म वेश कर रहे, धरती
के लावे को अपने अंदर धीरे -धीरे समेटता जा रहा था। इसी के साथ रं गो
लावे से बने एक दानव का आकार ले रहा था, िजसका शरीर पल ित पल
बढ़ता जा रहा था।
कु छ ही देर म रं गो कसी दावानल क अि से बना एक दानव का प
ले चुका था।
रं गो को इस कार बनते देख आकृ ित ने अपने हाथ म पकड़ी सुनहरी
ढाल का मुख रं गो क ओर कर दया।
आकृ ित क सुनहरी ढाल से सैकड़ क सं या म, अ -श िनकलकर
रं गो के शरीर से जा टकराये, परं तु रं गो ने उन सभी अ -श को अपनी
वाला म िपघलाकर उसे भी अपने शरीर म समा िलया।
अब रं गो ने अपना लावे के समान दािहना हाथ आकृ ित क ओर बढ़ाया
और उसे पकड़ने का यास कया। यह देख आकृ ित ने अपनी ढाल को अपने
िसर के ऊपर क ओर कर िलया।
आकृ ित के ऐसा करते ही सुनहरी ढाल ने आकृ ित के चारो ओर एक ऊजा
का कवच बना दया, िजसके कारण रं गो, आकृ ित को पकड़ नह पाया।
आकृ ित को इस कार फं सता देख शलाका ने अपने ि शूल का हार
िवशाल रं गो के गले पर कर दया। शलाका का ि शूल रं गो के गले के आर-
पार हो गया, परं तु उससे रं गो पर कोई भाव नह पड़ा?
यह देख शलाका ने अपने हाथ से अि का ती हार रं गो के उस हाथ
पर कर दया, जो हाथ आकृ ित को पकड़ने क कोिशश कर रहा था, परं तु
शलाका के इस वार का भी रं गो पर कोई भाव नह पड़ा? उ टा रं गो ने
अब शलाका क अि शि को ही चूसना शु कर दया।
शलाका, रं गो के इस वार से चीख उठी। शलाका ने अब अपनी अि
वाह को रोकने क कोिशश क , परं तु शलाका अपने उ े य म सफल नह हो
सक । शलाका क अि लगातार रं गो ख चता जा रहा था।
यह देख आकृ ित के हाथ म च नजर आने लगा। आकृ ित ने िबना देर
कये रं गो के हाथ पर अपने च का हार कर दया। आकृ ित का च रं गो
के हाथ के आर-पार िनकल गया, परं तु वालामुखी बने रं गो पर आकृ ित के
इस च का भी कोई असर नह आ?
शलाका क अि व पाताल का लावा पीते ए रं गो अब ब त ही
िवशाल हो गया था।
रं गो ने लावे के समाने अपने हाथ को सुवण वाला पर रख दया और
एक जोर क ंकार भरी। रं गो के ऐसा करते ही उस थान का पवत अनेक
थान से िचटक गया और उसम से लावे क और धार िनकलकर उस थान
पर आने लग ।
तभी रं गो ने अपना मुंह खोलकर लावा का एक कु ला वहाँ खड़े लोग
क ओर कर दया।
रं गो के मुंह से िनकला लावा ती गित से हवा म उड़ता आ सभी क
ओर बढ़ा। यह देख आगस ने अपने हाथ से एक सुनहरा सुर ा कवच बनाया
और उसम जे स, आच व आकृ ित को सुरि त कर िलया।
तभी आच क नजर िपछले सुनहरे गोले पर पड़ी, िजसम से वडी
िनकलने क भरपूर कोिशश कर रही थी। यह देख आच ने अपने व से एक
छोटा सा यं िनकाला और तेजी से उसम कु छ करने लगी?
कु छ ही ण म आच के सामने मौजूद सुनहरा गोला िसकु ड़ते ए
अपने थान से गायब हो गया।
“मने वडी को सुदरू अंत र म ि थत एक ऐसे ह पर ांसिमट कर
दया है, जो पूणतया अंधेरे से िन मत है और आप लोग जानते ह क अंधकार
म परछाई का कोई अि त व नह रह जाता?” आच ने कहा।
आच क बात सुन जे स ने थोड़ी सी राहत ली य क इस समय एक
सम या का अंत हो चुका था।
तभी जे स शलाका को देखकर चीख उठा- “आच , अब कै से भी करके
शलाका को बचाना होगा? अगर हमने अब देर क तो शलाका आपनी
अि शि य के साथ रं गो के लावे म िमल जायेगी।”
“पर कै से जे स? अि क शि य क काट तो हमारे पास भी नह है।
हम भला ऐसी ि थित म शलाका को कै से बचा सकते ह?” आच ने अपनी
िववशता जािहर करते ए कहा- “अब तो शलाका को ई र ही बचा सकते
ह।”
“ या हम रं गो को भी वडी क तरह से अंत र के कसी ह पर नह
फक सकते?” जे स ने एक संभावना करते ए कहा।
“नह जे स, रं गो को कसी ह पर भेजने के िलये पहले उसके शरीर
पर िनयं ण आव यक है और हम अि पर कसी कार का िनयं ण कर नह
सकते? इसिलये रं गो के िलये ऐसा कर पाना संभव नह । परं तु इस थान को
देखकर इतना अव य तीत हो रहा है क शलाका क अि का ोत अव य
ही वह सुवण वाला है, तभी कु छ देर पहले सुवण वाला के बुझते ही शलाका
क अि का वाह भी क गया था। इसिलये य द हम कसी कार से उस
सुवण वाला क अि को शलाका के शरीर से पश करा द, तो मुझे लगता है
क शलाका एक बार पुनः शि मान हो जायेगी और ऐसी ि थित म वह रं गो
को भी मार सके गी। परं तु यह है क उस धधकती ई सुवण वाला को
शलाका तक प ंचाये कै से?” इस बार आच के थान पर आगस बोल उठा।
उधर शलाका धीरे -धीरे मृ यु क ओर बढ़ रही थी और रं गो लगातार
शि शाली होता जा रहा था।
शलाका क यह हालत देख आकृ ित से रहा ना गया और वह आगस क
ओर देखते ए बोल उठी- “तो फर ठीक है, आप मुझे इस सुर ा कवच से
बाहर जाने क आ ा दीिजये आगस। म शलाका को बचाने के िलये कु छ भी
क ं गी? ... मुझे उसक इस कार मृ यु िब कु ल भी वीकार नह है।”
यह कहकर जाने कै से आकृ ित, आगस के सुर ा कवच से बाहर आ गई?
और तेजी से सुवण वाला के समीप जा प ंची।
आकृ ित ने सुवण वाला को णाम कया और फर उसक कु छ अि को
अपने हाथ म भर िलया। परं तु जैसे ही आकृ ित कु छ आगे बढ़ी, सुवण वाला
क अि पुनः सुवण वाला के अि कुं ड म समा गई।
“लगता है क इस कार म इस अि को शलाका तक नह प ंचा
सकती .... तो फर इसके िलये मुझे कु छ अलग ही सोचना होगा?” अब
आकृ ित तेजी से अपना दमाग चला रही थी।
तभी कु छ सोचते-सोचते आकृ ित क आँख क चमक एकाएक बढ़ सी
गई।
अब आकृ ित पुनः सुवण वाला के अि कुं ड के पास प ंची और उसने
अपना दािहना हाथ अि कुं ड म डाल दया।
आकृ ित कु छ देर तक अपना हाथ अि कुं ड म डाले रही। धीरे -धीरे
अि कुं ड क वाला ने आकृ ित के हाथ को जलाना शु कर दया। इस समय
आकृ ित को तेज दद का अहसास हो रहा था, परं तु फर भी आकृ ित ने अपना
हाथ अि कुं ड से नह िनकाला।
अब अि कुं ड क आग आकृ ित क हथेिलयां जलाते ए, उसक कलाई
तक प ंच गई। जब आकृ ित को यह पूण िव ास हो गया क सुवण वाला क
अि पूण प से उसके हाथ म लग चुक है, तो आकृ ित ने अपना हाथ अि कुं ड
से बाहर िनकाल िलया और चलती ई शलाका क ओर चल दी।
जे स, आगस व आच आ य भरी िनगाह से आकृ ित को देख रहे थे।
उ ह िव ास नह हो रहा था क कोई ी कसी क जान बचाने के िलये इस
सीमा तक भी जा सकती है।
आकृ ित तेजी से शलाका क ओर बढ़ रही थी, परं तु उतनी ही तेजी से
सुवण वाला क अि भी आकृ ित के शरीर पर दौड़ती जा रही थी।
कु छ ही पल म सुवण वाला क अि ने आकृ ित के पूरे शरीर को अपने
घेरे म ले िलया, परं तु फर भी आकृ ित क नह रही थी। शलाका से आकृ ित
क दूरी अब ब त थोड़ी सी ही बची थी क तभी शलाका के शरीर से अि ने
िनकलना बंद कर दया और इसी के साथ शलाका का िन तेज शरीर धरा पर
िगर गया।
शायद रं गो ने शलाका के शरीर क पूरी अि को सोख िलया था।
आकृ ित ने भी शलाका को िगरते ए देख िलया, इसिलये उसने एक
लंबी सी छलांग लगाई और शलाका के ऊपर जा िगरी।
आकृ ित के िगरने से शलाका के शरीर ने भी आग को पकड़ िलया, परं तु
शलाका क आँख अब भी नह खुल ।
उधर रं गो लगातार िवशाल होता जा रहा था। रं गो क शि के
भाव से पृ वी का लावा कसी नदी क भांित उस थान पर िगरता जा रहा
था।
जे स, आगस व आच के पास अब वहाँ से िनकलने का भी समय नह
बचा था। कु छ देर म उस पूरे थान को लावे ने पूरी तरह से घेर िलया।
रं गो के शरीर मे बढ़ते लावे के कारण, पृ वी पर अब असं य
वालामुिखय ने फटना शु कर दया। पृ वी का वालामुखी वाला येक
भाग का आसमान धूल और काले धुंए से भर गया।
धीरे -धीरे पृ वी क कोर का लावा, पृ वी को फाड़कर अनेक थान से
बाहर आने लगा।
उधरे जे स, आगस, आच सिहत शलाका व आकृ ित क भी लावे म
समािध बन चुक थी।
परं तु शलाका ..... शलाका तो इस समय कह और ही थी?
.....................
शलाका ने अपनी आँख खोल , तो उसने वयं को एक पाक के सामने
पाया।
पाक के अ चं ाकार िवशाल ार पर ‘मयूर-वा टका’ िलखा था।
शलाका को समझ नह आया क वह अचानक से यहाँ कै से आ गई? वह तो
इस समय रं गो से यु कर रही थी।
चारो ओर स ाटा िबखरा आ था।
तभी शलाका को मयूरवा टका के अंदर से कसी मोर क आवाज सुनाई
दी- “िप ऽऽ िप ऽऽऽ।”
शलाका को उस मोर क आवाज ने अपनी ओर आकृ कया। कु छ
सोचने के बाद शलाका मयूरवा टका के अंदर वेश कर गई।
मोर क आवाज अभी भी वातावरण म गूंज रही थी।
मयूरवा टका के अंदर असं य वृ लगे थे, परं तु सभी वृ क आकृ ित
कसी मोर के समान थी और उन वृ पर लगे प े भी मोर के रं ग के समान
पीले, नीले व हरे रं ग के थे।
तभी शलाका को पुनः मोर क आवाज सुनाई दी। अब शलाका का यान
वृ से हटकर मोर क ओर चला गया और शलाका मोर क आवाज का
पीछा करते ए उस दशा म चल दी।
एक थान पर प ंचकर शलाका को एक िवशाल मोर दखाई दया। उस
मोर का आकार इतना िवशाल था क उसका िसर आसमान छू ता आ तीत
हो रहा था।
उस मोर के आसपास के पूरे थान पर लाख मोरपंख हवा म उड़ रहे
थे।
“यह मोर तो ब त ही िवशाल व अ भुत है। इस मोर के पीछे या
रह य हो सकता है?” शलाका मन ही मन सोच रही थी।
तभी उस िवशाल मोर ने अपनी साँस को जोर से अंदर क ओर ख चा।
इसी के साथ शलाका का शरीर भी हवा म उड़ता आ मोर के मुख म समा
गया।
मोर के मुख म वेश करते देख, शलाका के मुख से जोर क चीख िनकल
गई। इसी के साथ शलाका क आँख एक पल के िलये बंद हो गई।
जब शलाका ने अपनी आँख को खोला, तो उसने वयं को अनंत ांड
म पाया, जहां लाख -करोड़ो िसतारे ांड म घूम रहे थे।
शलाका का शरीर वयं से इधर-उधर गित करता आ, ांड म
िवचरण कर रहा था। लाख आकाशगंगा को बनते-िबगड़ते देखना शलाका
के िलये कसी व के सरीखा था।
अब तो शलाका सोच भी नह पा रही थी, क उसे यह दृ य कस कार
से दख रहे ह?
तभी शलाका को ांड के एक छोर पर एक नई आकाशगंगा बनती ई
दखाई दी, िजसका आकार मोर के पंख के समान था। उस आकाशगंगा के
म य एक ‘ यू ान टार’ दखाई दे रहा था, जो सफे द रं ग का था।
वह सफे द यू ान टार अपने आसपास के अनेक नारं गी व नीले
िसतार को अपने अंदर समािहत करता जा रहा था और उस खूबसूरत सी
आकाशगंगा का नविनमाण कर रहा था।
तभी शलाका को अपना शरीर कह खंचता आ सा महसूस आ?
शलाका उस आकाशगंगा से तेजी से वापस आ रही थी। उसे देख कर
ऐसा तीत हो रहा था क मानो कोई दृ य ‘ रवाइं ड’ होकर चलाया जा रहा
हो।
कु छ ही देर म शलाका ने वयं को वापस उसी िवशाल मोर के सामने
पाया, जहां क वह कु छ देर पहले थी।
शलाका को कु छ भी समझ म नह आ रहा था? क तभी शलाका को
आसमान से िगरती ई एक पानी क िवशाल बूंद दखाई दी, जो क शलाका
के िलये एक सागर के समान थी।
उस िवशाल बूंद ने शलाका के आसपास एक सागर क रचना कर दी।
शलाका उस िवशाल सागर म तैरने क कोिशश कर रही थी, परं तु वह
सही से तैर नह पा रही थी। तभी शलाका को पानी के अंदर एक न हा मोती
तैरकर उसके मुख क ओर आता आ दखाई दया।
अंजाने म ही शलाका का मुख खुला और वह न हा सफे द मोती शलाका
के मुख म वेश कर गया। तभी शलाका ने घबराकर अपनी आँख खोल द ।
इस समय शलाका वालामुखी के िवशाल लावे के अंदर थी और एक
ी का कं काल शलाका को अपनी बांह म जकड़े ए था।
कु छ देर तक शलाका को कु छ भी समझ म नह आया? परं तु जैसे ही
उसक िनगाह अपने से कु छ दूरी पर एक कवच के अंदर खड़े जे स, आगस व
आच क ओर गई, उसे एक पल म सबकु छ समझ म आ गया।
“अरे ! म तो रं गो से यु कर रही थी और रं गो ने मुझसे मेरी अि
शि को छीनना शु कर दया था। उसके बाद का मुझे कु छ याद नही? ....
या रं गो से यु के दौरान मेरी मृ यु हो गई थी? .... या फर जो कु छ मने
अभी देखा, वह सब सपना था। ... और ... और ये मुझे कस ी के कं काल ने
जकड़ रखा है .... कह .....कह यह आकृ ित तो नह ? ... नह -नह आकृ ित ने
तो अमृत पी रखा है, उसक भला मृ यु कै से हो सकती है?”
तभी शलाका क िनगाह उस ी क उं गली से कु छ दूरी पर गई, जहां
आकृ ित का च व सुनहरी ढाल िगरी ई थी।
यह देख शलाका के चेहरे पर घबराहट के िनशान साफ नजर आने लगे।
“यह ... यह तो आकृ ित ही है। तो ... तो या इसने मुझे अपना अमर व
दान कर नवजीवन दया है। यािन क मेरे सपन म जो सागर था, वह
वालामुखी का लावा था और िजस मोती को मने अंजाने म ही िनगल िलया
था, वही मोती आकृ ित क दी ई अमृत क बूंद थी, िजसने मुझे नया जीवन
दया है। .... इसका मतलब अि का के मोरपंख ने मुझे िजस ांड के दशन
कराये, उसम भी कोई रह य था? ..... सफे द रोशनी से ांड क रचना ....
यू ान टार का सभी सूय को िनगल लेना। .... या मतलब हो सकता है
इसका?”
तभी शलाका को उस िवशाल लावे के समु म 1 भीमकाय अि से बना
हाथ दखाई दया, जो क शायद टटोलकर लावे म पड़ी अि का को ढू ंढ रहे
था।
इस दृ य को देख शलाका को समझते देर ना लगी क यह हाथ अव य
ही रं गो का है।
अब शलाका क आँख ोध से जल उठ । उसने धीरे से आकृ ित के पंजर
को अपने शरीर से दूर कया और पूरी ताकत से चीख उठी।
शलाका क इस चीख ने शलाका के शरीर को एक यू ान टार क तरह
बना दया। अब शलाका के शरीर से तेज सफे द रोशनी िनकल रही थी, जो
क अपने आसपास के लावे को अपने अंदर समेटती जा रही थी।
कु छ ही देर म उस थान फै ला लावा पूरी तरह से शलाका के शरीर म
समा गया। परं तु शलाका क सफे द ऊजा ने यह पर बस नह कया, वह तो
अब रं गो के शरीर को भी अपनी ऊजा म समेटने लगी।
अब रं गो के चेहरे पर दहशत के भाव उभर आये। वह अपने आपको
बचाने क पूण कोिशश कर रहा था, परं तु वह अपने इस काय म पूरी तरह से
सफल नह हो सका। कु छ ही देर म शलाका ने रं गो के शरीर को अपनी ऊजा
से पूरा सोख िलया।
रं गो को सोखने के बाद शलाका पुनः अपने वा तिवक प म आ गई।
शलाका को वा तिवक प म आते देख आगस ने अपना कवच हटा दया
और जे स व आच सिहत शलाका के पास प ंच गये।
परं तु शलाका ने अभी कसी पर यान नह दया? उसने तो अि का को
उठाया और उसे एक झटके से खोल दया।
शलाका ने जैसे ही अि का को खोला, उसम से एक मोरपंख िनकलकर
बाहर आ गया। वह मोरपंख अब हवा म तैरता आ सुवण वाला के पास
जाकर ि थर हो गया।
इसके प ात् मोरपंख से एक सफे द ऊजा िनकली और उस पूरे थान पर
पड़ने लगी। सफे द ऊजा िजस भी थान पर पड़ रही थी, वह थान पुनः पहले
के समान होता जा रहा था।
कु छ ही देर म मोरपंख ने उस पूरे थान को पुनः पहले के समान बना
दया। अब अि का भी अपने थान पर पुनः ित थािपत हो गई।
यह देख शलाका धीरे -धीरे चलती ई आकृ ित के कं काल के पास आई
और उसने आकृ ित के कं काल को पहले झुककर णाम कया और फर अपने
हाथ क सफे द अि से उसे भी राख म प रव तत कर दया।
यह करने के बाद शलाका जमीन पर घुटन के बल बैठ गई और फू ट-फू ट
कर रोने लगी। जाने कै सा यार था? जाने कै सी दो ती थी? जो इतने वष क
दु मनी के बाद भी एक-दूसरे से इस कदर यार करती थी।
शलाका को रोते देख आगस व जे स पीछे से शलाका के पास आ गये
और उसके कं धे पर हाथ रखकर उसे सां वना देने लगे।
आयन के बाद आकृ ित को भी खोना शलाका पर ब त भारी पड़ा था।
एक देवयो ा सरीखी लड़क िनयित के च म फं स कर आज इस
मृ युलोक से जा चुक थी। अब इस धरा पर रह गई थ , तो बस उसक याद
.... जो हमेशा-हमेशा के िलये उसे याग क मू त के प म इितहास के सुनहरे
प म अं कत कर रह थ ।
◆ ◆ ◆
उड़ता पवत

08.02.02, शु वार, न लोक, कै पर लाउड


िव म न शाला का ार खोलकर बाहर आ गया। इस समय उसने
पीले व काले रं ग क एक चु त सी पोशाक पहन रखी थी।
िव म ने एक बार अपने चारो ओर फै ले ेत बादल को देखा और
फर वह ती गित से उड़ता आ पृ वी क ओर चल दया।
कु छ ही देर के बाद िव म को वह उड़ता आ पवत िवशाल पवत
दखाई दे गया, जो हवा म धीमी गित से ऊपर क ओर आ रहा था। वह पवत
इतना िवशाल था क वह न लोक से टकराकर पूरे न लोक को समा
कर सकता था।
िम ी और च ान से िन मत इस पवत पर िवशाल वृ भी लगे
दखाई दे रहे थे।
अब िव म क नजर पृ वी के उस भूभाग पर गई, जहां से उखड़कर
यह पवत ऊपर क ओर आया था। पवत के उखड़ जाने के कारण उस थान
पर िवशाल ग ा बन गया था, िजसम क अब पृ वी के अंदर से िनकला पानी
भर रहा था।
िव म के देखते ही देखते पृ वी का वह ग ा एक कृ ि म झील म
प रव तत हो गया।
“यह पवत उड़ कै से सकता है? और नीचे देखकर तो साफ पता चल
रहा है क कसी ने इस पवत को उखाड़ा है? ... परं तु इतना शि शाली कौन
हो सकता है? .... जो भी हो मुझे अपनी वायुशि का योग कर इस पवत
को न लोक से टकराने से रोकना होगा। ... पर इतने िवशाल पवत पर मेरी
वायुशि का या भाव पड़ेगा? .... लगता है क आज मुझे कसी अलग
कार से, अपनी स पूण वायुशि को एकि त कर इसे रोकना होगा।”
यह सोच िव म ने हवा म उड़ते ए अपने दोन हाथ को ऊपर क
ओर उठाया। िव म के ऐसा करते ही िव म के दोन हाथ के ठीक ऊपर 2
शि शाली बवंडर उ प हो गये।
िव म ने उन दोन बवंडर को नीचे क ओर मार दया। िव म के हाथ
से िनकले वह दोनो बवंडर, कृ ित के रौ प को द शत करते ए पवत क
ओर बढ़ चले।
कु छ ही पल म उन दोन बवंडर ने पवत के ऊपर िवनाश करना शु
कर दया। पवत के ऊपर लगे िवशाल वृ , बवंडर के भाव से उखड़कर हवा
म उड़ने लगे।
परं तु पवत पर नजर पड़ते ही िव म च क गया।
“मेरे बवंडर के भाव से पवत पर लगे वृ तो उखड़ गये, परं तु पवत
क िम ी व च ान तो अब भी अपने थान पर ह। ऐसा कै से संभव है? पवत
क िम ी व च ान कस कार से आपस म जुड़ी ह? जो यह अपने थान से
िहल भी नह रह ह। .... और यह पवत मेरे इतने शि शाली बवंडर के बाद
भी इतनी आसानी से ऊपर क ओर कै से जा रहा है?”
तभी िव म के कान म वा िण क आवाज सुनाई दी- “िव म तु ह
पहले यह पता करना होगा क यह पवत उड़ कस कार रहा है? तभी तुम
इसे रोकने का उपाय जान पाओगे।”
वा िण क बात सुन िव म ने अपने व म िछपा एक छोटा सा यं
िनकाल िलया और देर ना करते ए उसे आसमान म ऊपर क ओर उछाल
दया।
िव म के हाथ से िनकला वह छोटा यं कसी म छर क तरह
िमनिमनाते ए न शाला क ओर उड़ चला। उस यं क गित ब त ही
तेज थी।
कु छ ही देर म वह यं न शाला के पास तैर रहे एक ह के लेटी रं ग
के बादल म वेश कर गया। उस यं के लेटी बादल म वेश करने के मा 5
सेके ड के अंदर ही, उन बादल से लेटी रं ग के लाख छोटे -छोटे ट ी जैसे
इले ािनक क ड़े िनकले और ती गित से िव म क ओर बढ़ चले।
उन लाख इले ािनक क ड़ के आसमान म उड़ने के कारण, कु छ देर
के िलये आसमान का भी रं ग बदलकर लेटी नजर आने लगा।
िव म ने उन क ड़ को आते देख अपना दािहना हाथ उड़ते ए पवत
क ओर कर दया।
अब सभी क ड़े हवा म नाचते ए उड़ते पवत क ओर चल दये। पवत
के पास प ंचकर सभी क ड़े पवत के चारो ओर िततर-िबतर हो गये।
उन क ड़ को देखकर साफ पता चल रहा था, क वह सभी क ड़े उस
पवत को कै न करके देख रहे थे।
तभी वा िण क आवाज फर से िव म को सुनाई दी- “िव म मुझे
उड़ते पवत का हर ओर से कै न ा हो चुका है और जैसा क म देख पा रही
ँ, क इस पवत के ऊपर उ री भाग म मुझे 2 जीिवत ाणी नजर आ रहे ह,
जो क एक साथ, एक थान पर खड़े ह। .... परं तु वह अपनी कस शि का
योग कर इस पवत को उड़ा रहे ह? यह नह पता चल पा रहा है। को म
‘िप सी’ का एक झु ड पवत के उस ओर भेजती ँ, जहां पर वह दोन ाणी
खड़े ह। इससे िप सी कै न करने के थान पर, सीधे-सीधे मुझे उन ािणय
के 3 डी िच भेजने लगगे। ... तब तक तुम भी अपने बवंडर को पवत के
उ र दशा क ओर मोड़कर उसी थान पर प ंचो।”
वा िण क बात सुन िव म िबना देरी कये उड़ते पवत के उ र दशा
क ओर चल दया।
कु छ ही देर म िव म को पवत के ऊपर खड़े 2 अंत र के जीव दखाई
दये, जो आसपास खड़े थे और िबना बवंडर से डरे िव म को अपनी ओर
आते ए देख रहे थे।
तभी िव म को पुनः वा िण क आवाज सुनाई दी- “यह कै से संभव है
िव म? यह अंत र के जीव देखने म तो िब कु ल ए ोवस पावर के अ य
जीव क भांित दख रहे ह, परं तु इनक ेस के ऊपर बने गोले म तो ‘D1’ व
‘M1’ िलखा है। जहां ‘M1’ वाला यो ा पु ष है और ‘D1’ वाली यो ा ी
है। परं तु मेरे पास ए ोवस पावर के यो ा क जो िल ट है, उनम तो इन
नंबर वाले जीव के बारे म तो कु छ भी नह िलखा है? ... तो या ए ोवस
पावर के ुप म और भी यो ा ह? िजनक जानकारी गु माता को भी नह है
..... या फर कसी कार से ए ोवस पावर को उनके ह से नई सहायता
िमली है? ... अब तो इनसे लड़ना और खतरनाक हो सकता है िव म, य क
इन अंत र के जीव क शि य के बारे म तो हम कु छ भी नह जानते?”
“कोई बात नह वा िण? अब जब ओखली म िसर दे ही दया है, तो
मूसल से या डरना? इसिलये आज तुम अपने िव म क िवनाशकारी
शि य को भी देख लो।”
यह कहकर िव म ने वयं को भी एक खतरनाक बवंडर म प रव तत
कर िलया और वहाँ खड़े दोन अंत र के जीव पर आ मण कर दया।
िव म ने उन अंत र के जीव को िहलाने के िलये अपनी पूरी शि
लगा दी, परं तु वह लाख कोिशश के बाद भी उन दोन अंत र जीव के पैर
ना िहला सका।
तभी ‘D1’ ने ना जाने या कया क पवत पर रखी एक भारी च ान
अपने थान से वतः ही िहली और िव म के बवंडर को पार करती ई
िव म के सीने से जा टकराई।
िव म को अंत र के जीव से ऐसी कोई आशा नह थी, इसिलये वह
च ान के हार से बच नह पाया और उछलकर पवत पर ि थत दूसरी च ान
से जा टकराया।
इससे पहले क िव म अपने बचाव म और कु छ कर पाता? क तभी
उस च ान से 2 प थर के हाथ िनकले, िजस पर िव म आकर िगरा था। इसी
के साथ उन प थर के हाथ ने िव म को जोर से पकड़ िलया।
िव म अपनी पूरी शि लगाकर भी उन प थर के हाथ से छू ट नह
पा रहा था।
तभी िव म को वा िण क आवाज सुनाई दी- “इन अंत र के जीव
के पास तो धराशि है। .... धरा से याद आया क धरा व मयूर को भी इ ह
अंत र के जीव ने पकड़ िलया था। ... कह ... इन जीव ने धरा व मयूर को
मारकर उनसे धराशि छीन तो नह ली? .... नह -नह , य द धरा व मयूर
को कु छ आ होता, तो धराशि वतः ही गु माता के पास लौट आती और
ऐसी ि थित म गु माता को उनक मृ यु का पता चल जाता।”
तभी िव म के श द ने एक पल के िलये वा िण को िहलाकर रख
दया- “कह यह दोन अंत र के जीव धरा व मयूर ही तो नह ह? य क
इन दोनो के सीने पर ‘D1’ व ‘M1’ ही िलखा है, जो क धरा व मयूर के
नाम के पहले अ र के समान है। हो सकता है क ए ोवस पावर ने कसी
कार से दोन को अपने िनयं ण म लेकर अपने समान बना दया हो?”
“कह तो तुम ठीक रहे हो मयूर। यािन क इन पर कसी भी कार का
वार करने के पहले एक बार इ ह जांच लेने म कोई बुराई नह है?” वा िण ने
भी मयूर क बात का समथन करते ए कहा।
अब वा िण ने ‘िप सी’ नामक क ड़ के मा यम से ‘D1’ व ‘M1’ के
शरीर को कै न करना शु कर दया।
कु छ ही देर म िव म को वा िण क आ य भरी आवाज सुनाई दी-
“तु हारा अंदाजा िब कु ल सही िनकला िव म। इन दोन के शरीर को कै न
करने पर साफ पता चल रहा है क यह दोन धरा व मयूर ही ह, जो कसी
कार से ए ोवस पावर के वश म ह? ..... अब हम इन पर कसी भी कार
का जानलेवा हार नह कर सकते? .... एक कार से देखा जाये, तो
ए ोवस पावर ने लगातार मर रहे अपने सािथय को देखते ए इस कार
का लान कया है। ऐसे म य द हम इ ह मारने म सफल हो जाते, तो उनके 2
ित ंदी कम हो जाते और य द यह दोन हमारे पास से िनहा रका को ले
जाने म सफल हो जाते, तो िबना र क िलये उ ह िनहा रका ा हो जाती।
.... अब तो हम कसी भी कार से धरा व मयूर को पहले अंत र जीव के
मायाजाल से बाहर िनकालना होगा।”
“परं तु तुम ऐसा कस कार कर पाओगी वा िण?” िव म ने च ान म
फं से ए ही वा िण से कर िलया।
“म ऐसा अपनी मानिसक तरं ग से कर सकती ँ िव म। िपछली बार
जब तुम ऐसे ही एक जीव से लड़ते ए अपने सुर ा कवच के अंदर चले गये
थे, तो उस समय मने एक ऐसे यं का िनमाण करना शु कर दया था, जो
क मेरी मानिसक शि य को बढ़ाकर तु ह सुर ा कवच से बाहर िनकाल
लेती, परं तु िपछली बार तक वह यं पूण नह आ था। ... ले कन इस बार
वह यं पूण हो चुका है। .... तो य द तुम कु छ समय तक इन दोन को अपनी
शि य से उलझा कर रख सको, तो म इन दोन को िबना हािन प ंचाये
ए ोवस पावर के मायाजाल से बाहर िनकाल सकती ँ।”
“ठीक है वा िण, तुम तुरंत अपना योग करना शु कर दो, तब तक
म इ ह उलझाये रखने क कोिशश करता ँ ... परं तु यान रहे वा िण, िजस
गित से यह पवत उड़ते ए न लोक क ओर जा रहा है, तुम यह समझ लो
क तु हारे पास मा 15 िमनट का ही समय शेष है। तब तक य द तुमने इ ह
नह रोका, तो यह पवत पूरे न लोक को न कर देगा।” िव म ने यह कहा
और इसी के साथ अपने व के अंदर िछपी एक सुनहरी अंगूठी को
िनकालकर अपने दािहने हाथ क अनािमका उं गली म पहन िलया।
िव म के ऐसा करते ही िव म का शरीर पूण प से वायु म प रव तत
हो गया। इसी के साथ िव म च ान क पकड़ से छू ट गया।
िव म को च ान क पकड़ से छू टते देख मयूर ने िव म पर नुक ले
प थर क बौछार कर दी, परं तु वह सभी नुक ली च ान िव म के शरीर के
आरपार हो ग ।
तभी िव म ने मयूर के पीछे उड़ रहे बवंडर को मयूर के पास कर
दया।
मयूर अपने पीछे आहट सुन जैसे ही पीछे क ओर मुड़ा, ठीक उसी
समय पर िव म ने अपने शरीर को पुनः सामा य कर िलया और एक जोर
का घूंसा, मयूर के चेहरे पर जड़ दया।
मयूर को घूंसा मारने के बाद िव म ने अपने शरीर को फर से वायु
का बना िलया।
अब िव म, मयूर के चारो ओर उड़कर मयूर के शरीर पर बार-बार
इसी अंदाज म घूंसे बरसाने लगा। यह देख मयूर ोध से भर उठा।
अब मयूर ने ोध म आकर कु छ अजीब से अंदाज म अपने हाथ को
हवा म घुमाया, परं तु िव म को मयूर के इस वार से कु छ होता दखाई नह
दया?
यु अभी भी जारी था। उधर वा िण लगातार अपना यान के ि त
करके धरा से स पक करने क कोिशश कर रही थी क तभी अ त क
आवाज ने वा िण का यान भंग कया।
“वा िण .... पता नह कै से पृ वी का भार ब त तेजी से बढ़ता जा
रहा है? और यह अपनी क ा से धीरे -धीरे िखसककर सूय क ओर जा रही है।
य द ऐसी ि थित कु छ देर और बनी रही तो सूय के ताप से पृ वी क ओजोन
पत समा हो जायेगी और पृ वी, सूय के ताप से जलकर भ म हो जायेगी।”
अ त ने कहा।
अ त क बात सुन वा िण भागकर अ त के पास आ गई। वा िण ने
कु छ देर तक इस ि थित को देखा और फर चं का को स बोिधत करते ए
कहा- “चं का, तुम तुरंत कै पर के ारा बनवाई गई मशीन ‘ओजोने स’ के
ारा पृ वी क ओजोन पत को और भी अिधक मोटा कर दो, िजससे सूय क
हािनकारक िव करण पृ वी पर ना प ंच सक। तब तब म फर से धरा से
स पक करने क कोिशश करती ँ।”
परं तु अभी वा िण वापस से धरा से स पक कर भी नह पाई थी क
तभी अ त क आवाज ने एक बार फर से वा िण को िहला दया।
“वा िण, धरती क ओर से आ रहा उड़ता पवत अब हमसे 5 िमनट
क दूरी पर बचा है, हम तुरंत उस पवत से बचने के िलये कोई ना कोई उपाय
करना ही होगा? नह तो वह पवत हमसे टकरा जायेगा?” अ त ने कहा-
“य द आप कह तो वै णव िमसाइल से हम उस पवत को उड़ा द। इससे
हमारा न लोक तुरंत सुरि त हो जायेगा।”
“नह अ त, य द हमने उस पवत को वै णव िमसाइल से उड़ाने क
कोिशश क , तो उस पवत के असं य टु कड़े धरती पर जा िगरगे और ऐसी
ि थित म धरती के उस भाग का स पूण जीवन समा हो जायेगा, जहां पर
यह पवत जाकर िगरे गा। इसिलये यह करना तो उिचत नह होगा। .....
अ त, तुम एक काम करो।” वा िण ने अ त को समझाते ए कहा- “िव म
लाख कोिशश करके भी इस पवत को हम तक आने से रोक नह पायेगा,
इसिलये तुम जरा ‘िप सी’ क सहायता से पवत को एक बार फर से कै न
करो और देखो क या पवत के अंदर कसी कार क धातु भी उपि थत है
और यह चेक करके मुझे तुरंत बताओ।”
इतना कहकर वा िण चं का क ओर मुड़ते ए बोली- “हां चं का,
या तुमने ओजोन पत को मोटा कर दया?”
“जी वा िण, मने ओजोन पत को मोटा कर दया। अब यह ब त लंबे
समय तक सूय के ताप से हमको बचा लेगी, परं तु इस समय एक और सम या
हमारी ओर बढ़ रही है। .... लगता है क आप उस उ का पंड को कु छ ण
के िलये भूल गई ह, िजसे रोकने के िलये यितराज अंत र म गये थे। ... वह
उ का पंड भी अब हमसे िसफ आधा घंटे क दूरी पर है और उस उ का पंड
पर तो वै णव िमसाइल का भी कोई असर ......?”
कहते-कहते अचानक से चं का चुप हो गई और अपनी न को और
यान से देखने लगी।
“वा .... वा िण।” अचानक से चं का ने हकलाते ए वा िण को
पुकारा- “अब हमारी ओर 1 नह वरन् 25 उ का पंड एक साथ बढ़ रहे ह।
.... शायद पृ वी का भार बढ़ने से वह सभी हमारी ओर आक षत हो गये ह।
.... अब तो हमारा बचना िब कु ल ही असंभव है।”
“कु छ भी असंभव नह है चं का?” अब वा िण ने अपने एक-एक
श द को चबाते ए कहा- “देवता हमारे साथ ह। वह अव य ही हमारे बचाव
के िलये कु छ ना कु छ करगे? हम बस िह मत नह हारनी है चं का। हम
अपने मरते दम तक यह देवयु लड़ते रहना है। .... म ... म देखती ँ क म
या कर सकती ँ?”
यह कहकर वा िण ने फर से अ त क ओर देखा, जो क पवत को
कै न कर चुका था।
वा िण को अपनी ओर देखते पाकर अ त बोल उठा- “वा िण उस
पवत के अंदर ब त सी धातुएं व त व भरे ह, परं तु सबसे अिधक ाकृ ितक
चु बक का िवशाल भंडार है, िजसका नाथ पोल ऊपर क ओर व साउथ पोल
पवत के नीचे क ओर है।”
अ त क बात सुनकर वा िण क आँख चमक उठ - “तो फर एक
काम करो अ त, तुम न लोक के बादल क िनचली सतह चु बक य तरं ग
के ारा नाथ पोल म प रव तत कर दो, इससे जब पवत हमारे पास प ंचेगा
तो एक जैसे पोल होने के कारण चु बक के िनयम के अनुसार हमसे नह
टकरायेगा और जब तक धरा व मयूर पवत के पोल को प रव तत करगे, तब
तक म दोनो को िनयंि त कर लूंगी।”
“ठीक है वा िण।” अ त ने अपना िसर िहलाकर वीकृ ित दी और
वा िण क बात पर अमल करना शु कर दया।
अब वा िण को कु छ समय िमल गया था, धरा के मि त क को अपने
िनयं ण म लेने का और वा िण तेजी से अपने काय म जुट गई।
इस समय देवयु के प रणाम का एक ब त बड़ा भाग वा िण के हाथ
म था। शायद यही यु क वह िनणायक भूिमका थी, िजसे बार-बार कै पर
वा िण को समझाने क कोिशश कर रहा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-18
समयधारा

08.02.02, शु वार, पोसाइडन पवत, अराका ीप

इ िब कु लसउसमय सुयश, शैफाली, जेिनथ, ऐले स व टी के सामने,


ह के समान दूसरे यो ा खड़े थे, बस नकली यो ा के
शरीर पर पहनी ेस थोड़ी अलग थी। इन सभी यो ा को कै र ने काला
मोती क शि से बनाया था, जो क वहाँ पर रखे एक संहासन पर बैठा यु
के शु होने का इं तजार कर रहा था।
ज़ेिन स भी कै र से कु छ दूरी पर खड़ी थी और बीच-बीच म वह कै र
व उसके हाथ म पकड़े काला मोती क ओर देख रही थी।
वह दूसरी ओर ऐसा नह था क सभी अपने सामने खड़ी मुसीबत से
डर गये थे, परं तु उन सभी के िलये अपने ही लोन से यु करना थोड़ा
अजीब सा लग रहा था।
तभी लोन सुयश ने िबना मौका दये असली सुयश पर अपनी सूय
शि का हार कर दया। असली सुयश इस समय पूरी तरह से सावधान था,
इसिलये उसने पहले ही अपने शरीर के चारो ओर सूय कवच का िनमाण कर
िलया। अब लोन सुयश क सूय करण का असली सुयश पर कोई भाव
नह पड़ रहा था?
वह एक ओर लोन ऐले स ने अपनी जीभ लंबी कर असली ऐले स को
अपनी िगर त म ले िलया। वयं को जीभ म िलपटा देख असली ऐले स ने
अपने शरीर पर काँटे उगा िलये, िजसके कारण लोन ऐले स क जीभ
जगह-जगह से कट गई। अब असली ऐले स ने अपने शरीर को व का
बनाकर लोन ऐले स के शरीर पर एक जोर का घूंसा जड़ दया। इस
शि शाली हार से लोन ऐले स दूर जा िगरा।
उधर लोन मै ा, टी व जेिनथ ने भी सभी असली यो ा पर वार
करने शु कर दये। सबसे खतरनाक यु दोन मै ा म हो रहा था। दोन
बढ़-चढ़कर एक दूसरे पर वार कर रह थ , परं तु कोई भी हार मानने को
तैयार नह था?
जेिनथ व टी अपने लोन से हाथ व मु के ारा लड़ रह थ ।
जहां एक ओर सभी यु म त थे, वह दूसरी ओर कै र त मयता से
उस यु को देख रहा था।
तभी लोन टी लड़ते-लड़ते असली ऐले स के पास आ गई। यह देख
ऐले स ने अपने व हाथ का हार लोन टी के िसर पर कर दया।
असली ऐले स के हार से लोन टी एक पल म मारी गई।
असली सुयश ने भी लोन टी को मरते देख िलया, इसिलये उसने
िबना देर कये लोन मै ा पर अपनी सूय तलवार का योग कर दया। चूं क
लोन मै ा का पूरा यान असली मै ा से ही लड़ने म था, इसिलये वह
असली सुयश के ारा फक गई तलवार को देख नह पाई।
सुयश क सूय तलवार ने एक झटके म लोन मै ा का िसर काट दया।
लोन मै ा के मरते ही असली मै ा ने तुरंत सुर ा बुलबुला बनाया
और उसम असली टी व जेिनथ को िछपा िलया।
यही वो समय था जब क लोन सुयश क सूय करण आकर असली
जेिनथ पर िगर , ले कन मै ा के बने बुलबुले से टकरा कर वह िबखर ग ।
तभी असली मै ा ने लोन सुयश पर ‘शिन ह क रं ग’ का योग कर
दया। शिन ह क रं ग को अपनी ओर बढ़ते देख लोन सुयश ने अपने चारो
ओर सुर ा कवच बनाना चाहा, परं तु तब तक देर हो चुक थी य क शिन
ह क रं ग ने तब तक लोन सुयश के शरीर को बीच से काट डाला।
अब िसफ 2 ही लोन बचे थे और वह थे जेिनथ व ऐले स के । यह देख
मै ा व सुयश ने आँख ही आँख म एक दूसरे को देखा और फर एक-एक
िशकार को चुन िलया।
मै ा ने लोन ऐले स पर अनेक ह से हमला कर दया, िजसे कारण
लोन ऐले स बुरी तरह से जल कर मर गया।
जब क लोन जेिनथ को तो सुयश ने अपनी तलवार से 2 टु कड़ म बांट
दया।
अब सभी फर से कै र के सामने खड़े, उसे घूर रहे थे।
यह देख कै र काला मोती िलये ए अपने थान से खड़ा हो गया और
सभी क तारीफ करते ए बोला- “मान गये तुम लोग को ..... अपने लो स
को भी इतनी आसानी से हरा दया। .... परं तु तुम लोग इस काले मोती क
शि को नह जानते, म हजार वष तक यहाँ बैठा तुम लोग के िलये इस
काले मोती से नए-नए जीव बनाकर तुमसे लड़ाता रह सकता ँ। आिखर कब
तक तुम जीतते रहोगे? कभी ना कभी कोई ना कोई शि तो तुम लोग को
मारे गी?”
ले कन इससे पहले क कै र क बात का कोई भी यो ा उ र दे पाता
क तभी वातावरण म एक जोर क आवाज गूंज उठी- “नह , मेरे रहते ऐसा
कभी नह होगा।”
सभी ने आवाज क दशा म देखा, जहां क ओरस अपने हाथ म एक
छोटा सा गोलाकार यं पकड़े खड़ा था।
ओरस को देखते ही जेिनथ के चेहरे पर खुशी क लहर उठने लग , परं तु
इस समय जेिनथ जहां खड़ी थी, वहाँ से िहली भी नह । वह बस चुपचाप
ओरस को देख रही थी।
“अरे ! तु ह यह यं कहाँ से िमला? .... यह तो .... ।” कहते-कहते कै र
ने अपनी बात को अधूरा छोड़ दया।
“यह यं मुझे तु हारे अराका वाली गु योगशाला से िमला।” ओरस
ने उस यं को अपनी मु ी म दबाते ए कहा- “यह वही यं है कै र, जो
कै पर ने तु ह बनाते समय बनाया था। इस एक छोटे से यं म तु हारी पूरी
जंदगी क मैमोरी है। ... एक कार से तु हारी जंदगी इस यं से ही जुड़ी
ई है। य द मने अपनी मु ी से इस यं को तोड़ डाला, तो तु हारी तुरंत मृ यु
हो सकती है। .... मने सही कहा ना कै र। .... तो फर अब देर ना करो और
इससे पहले क म तु हारे इस मैमोरी यं को तोड़ दूँ, तुम वह काला मोती,
शैफाली के हवाले कर दो।”
ओरस क बात सुन सभी के चेहरे पर खुशी क लहर दौड़ गई। अब उ ह
इस यु को भी जीतने का अहसास हो चला था।
ले कन तभी कै र ने काला मोती को उठाकर उसका योग करना शु
कर दया। यह देख ज़ेिन स ने िबजली क फू त दखाते ए ओरस के हाथ से
वह यं िलया और िबना देर कये उसे एक पल म तोड़ दया।
जैसे ही ज़ेिन स ने उस मैमोरी यं को तोड़ा, कै र अपने थान पर
िगर गया और उसके हाथ से काला मोती छू टकर वह जमीन पर िगर गया।
ज़ेिन स ने अब उस यं को वह पर फक दया।
उधर काले मोती को जमीन पर िगरता देख शैफाली ने फर से उसे उठा
िलया। अब सभी खुशी मनाते ए ज़ेिन स व ओरस के पास आ गये।
“जैसा मने सोचा था, वैसा ही आ।” ज़ेिन स ने ऐले स व टी क
ओर देखते ए कहा- “इस बार मने तुम दोनो क जान बचा ही ली।”
“मने भी तु ह गलत समझा था ज़ेिन स, हो सके तो मुझे इसके िलये
मा कर देना।” ओरस ने ज़ेिन स से माफ मांगते ए कहा।
अभी सब खुशी ठीक से मना भी नह पाये थे क तभी शैफाली के हाथ
म पकड़ा काला मोती वतः ही खंचकर वापस से कै र के हाथ म प ंच
गया।
जी हां, वह बला ही या, जो इतनी आसानी से समा हो जाये? कै र
अभी जीिवत था।
काला मोती एक बार फर कै र के हाथ म प ंच चुका था और काला
मोती के हाथ म आते ही, कै र ने एक बार फर वयं को सुर ा गोले म
िछपा िलया।
“तु ह या लगा था ओरस क म इस ज़ेिन स क स ाई को नह
जानता था। ..... अरे ! तु हारी एक-एक बात का रकाड पहले से ही मेरे पास
था। इसिलये मने अपने मैमोरी काड को इस यं क गहराई म िछपा दया
था। तुम लोग ने इस यं के िसफ बाहरी खोल को तोड़ा था और ... और म
तो बस नाटक करते ए िगरा था। ... म देखना चाहता था क मेरे मरने का
ज तुम लोग कस कार मनाते हो? ..... ले कन इस बार म तुम लोग को
कोई भी मौका नह देना चाहता? इसिलये तुम सभी एक साथ मरने के िलये
तैयार हो जाओ। म काला मोती क सहायता से तुम सभी के शरीर को
आपस म जोड़कर, एक नये जीव का िनमाण क ँ गा। उस जीव के पास तुम
सभी क शि यां ह गी और वह इस पूरे ांड को जीतने म मेरी सहायता
करे गा।”
यह कहकर कै र ने िबना मौका दये काले मोती का योग सभी लोग
पर कर दया।
पर .... पर काला मोती से कसी भी कार क कोई करण नह
िनकल ? वह तो बस एक साधारण गद के समान ही नजर आ रहा था।
यह देख कै र ने घबराते ए कहा- “यह ... यह काला मोती को या
हो गया? इसक शि यां काम य नह कर रह ?”
तभी फर से एक नई आवाज वातावरण म गूंजी, जो क कसी ी क
थी- “ य क यह असली काला मोती नह है। जब तुम नीचे िगरकर मरने का
नाटक कर रहे थे, तो उसी समय हमने काला मोती को बदल दया था”
इसी के साथ हवा म उड़ते ए 3 लोग उधर ही आते ए दखाई दये।
इनम से एक को तो ओरस व ज़ेिन स पहचानते थे, परं तु बाक 2 को कोई
नह जानता था।
वह तीन लोग थे- चं वीर, भागवी व नोवान और वह अंजान आवाज
भागवी क थी।
नोवान को देख ओरस व ज़ेिन स आ य से भर गये।
तभी भागवी ने सुयश व मै ा क ओर देखते ए कहा- “अभी आपस म
प रचय देने का समय नह है यो ा , पहले जरा इस कै र को इसके कये
क सजा तो दे दो। .... य क इसके आसपास बना सुर ा कवच भी काला
मोती के समान नकली है।”
भागवी क बात सुनकर सुयश व मै ा ने एक साथ कै र पर अनेक
करण क बौछार कर दी। बेचारा कै र, िबना कु छ जाने ही अपने यं के
साथ कण म िबखरकर वातावरण म िमल गया।
तभी एक तेज रोशनी का झमाका आ और सबक आँख बंद हो ग ,
जब सबक आँख खुल तो उ ह ने अपने आपको पोसाइडन पवत के नीचे खड़े
ए पाया।
दूर-दूर तक सूय क रोशनी चमचमा रही थी और चारो ओर एक अजीब
सी शांित छाई थी।
इस समय शैफाली के हाथ म काला मोती था और वह सभी अराका ीप
क धरती पर िबना कसी ितिल म के वा तिवक वातावरण म साँस ले रहे
थे?
ओरस ने अपने चारो ओर देखा, परं तु उसे ज़ेिन स कह दखाई नह
दी? यह देख ओरस नोवान के पास आ गया।
“देवता नोवान या आप बता सकते ह क यह लोग कौन ह? और
अचानक से ज़ेिन स कहाँ चली गई?” ओरस ने नोवान से पूछा
“इनका नाम भागवी व चं वीर है। हजार वष पहले महादेव ने भागवी
को ासन म प रव तत कर दया था और चं वीर को तुमने फ नी स के प
म पहले भी देखा है। यह दोनो एक ाचीन घटना के बाद अलग हो गये थे।
परं तु आज हजार वष के बाद हमने भागवी को पुनः ासन से ी म
प रव तत कर उ ह आपस म िमला दया।”
यह कहकर नोवान ने वहाँ खड़े सभी लोग को भागवी व चं वीर क
पूरी कहानी सुना दी, िजसम भिव य के सूयाश क वह कहानी भी थी,
िजसके तहत् सूयाश को समयशि िमली थी।
कहानी सुनने के बाद सुयश बोल उठा- “इसका मतलब भिव य म मेरा
व शलाका का िववाह हो जायेगा और उसके बाद हमारे एक पु भी होगा,
िजसका नाम सूयाश होगा।”
“ऐसा अब ज री नह है सुयश।” भागवी ने कहा- “यह सब तो पहले
आ था, जब हम ासन के प से मुि नह िमली थी। अब जब क हमने
इस समयकाल म कु छ प रवतन कये ह? तो उस प रवतन के कारण अव य
ही भिव य म भी कु छ बदलाव आ गये ह गे? .... आप लोग ने देखा क जैसे
आप लोग ितिल मा को तोड़कर समय क ‘मु य-धारा’ म प ंचे, भिव य का
समय वतः ही बदल गया। तो फर अब जब भिव य म जेिनथ को समयच
िमला ही नह , तो वह भला ज़ेिन स के प म कै से रह सकती थी? इसिलये
ज़ेिन स क समयशि पुनः मेरे अंदर समा गई और ज़ेिन स अपने थान से
हवा म िवलीन हो गई।”
“पर एक बात मेरी समझ म नह आई।” जेिनथ ने सोचते ए कहा-
“ क य द भूतकाल के बदलने पर ज़ेिन स गायब हो गई, तो ओरस व लैकून
अभी तक यहाँ पर कै से ह? य क य द इस घटना के बाद भिव य म
समयच का िनमाण ही नह आ, तो फर िगरोट भी डे फानो पर नह
प ंचा होगा .... और फर ऐसे म ओरस का उ प होना तो संभव ही नह ।
.... यह रह य मुझे समझ म नह आ रहा।”
“ य क ज़ेिन स को पहले से ही यह बात पता थी क कसी ना कसी
दन वह भूतकाल म बदलाव करने म अव य सफल हो जायेगी, इसिलये
ओरस व लैकून को उसने समय क ‘मु य-धारा’ से हटाकर ‘िभ -धारा’ म
डाल दया था। इसिलये भूतकाल म बदलाव होने के बाद भी ओरस व लैकून
सुरि त ह।” भागवी ने कहा।
“यह समय क ‘मु य-धारा’ व ‘िभ -धारा’ या होती ह?” जेिनथ ने
कु छ ना समझते ए कहा।
“हम िजस समय काल म रहते ह, उस समयकाल को 4 धारा म बांटा
गया है- मु य-धारा, मूल-धारा, सू म-धारा व ‘िभ -धारा’। मु य-धारा
हमारे जीवन क मु य धारा को करता है। यािन क हमारे आसपास जो
भी घटनाएं ित दन घटती ह, उसे मु य-धारा कहते ह। जब क मूल-धारा,
सू म-धारा व िभ -धारा समय के अलग-अलग आयाम ह, िजनके बारे म म
आपको फर कभी बताऊंगी? आप तो अभी बस इतना समझ लो क समय के
अंदर भी ‘िसकु ड़न’ व ‘फै लाव’ होते ह, जो समय क मु य-धारा से अलग
काय करते ह।”
जेिनथ को भागवी क कही एक बात भी समझ म नह आई? वह तो
बस इस बात से स थी क ओरस अब कह नह जायेगा?
“मुझे भी एक बात पूछनी है।” सुयश ने सोचते ए कहा- “आपने कहा
क महादेव के कथनानुसार आपको कसी देवपु के हाथ से मुि िमलनी
थी, परं तु इस समयकाल म तो ऐसा नह आ। तो या महादेव का कथन
िम या िस आ?”
“नह सुयश, महादेव का कथन कभी भी िम या िस नह हो सकता?
य द आप यान से इस पूरे घटना म को देखो, तो आपको पता चलेगा क
य द देवपु सूयाश ने मुझ पर सूयशि का योग नह कया होता, तो मेरी
समयशि से िगरोट डे फानो नह प ंच पाता और य द िगरोट डे फानो
नह प ंचता तो चं वीर भला लैकून के ारा वापस पृ वी पर आकर मुझे
कै से िमलता? तो महादेव का कथन िम या नह था। मुझे मुि िमलने क
शु आत तो सूयाश के ही हाथ से ई थी। हां उसम समय अव य लग गया।”
“हे देवी भागवी, अब मेरी भी सम या का समाधान क रये और इस
भारी-भरकम काले मोती का आकार थोड़ा कम कर दीिजये। य क इतना
भारी काला मोती उठाकर म अिधक समय तक घूम नह सकती।” मै ा ने
शैफाली का प लेते ए कहा।
शैफाली क बात सुन भागवी के हाथ से ती नीली करण िनकल और
फर वह करण फु टबॉल के आकार के काले मोती पर जा िगर । नीली करण
के िगरते ही काला मोती का आकार घटते ए एक न हे से मोती के बराबर
हो गया।
अब वह काला मोती शैफाली के उं गली म पहनी ितिल मी अंगूठी म
समा गया।
“अब यह रं ग ही ‘ ि का’ के नाम से जानी जायेगी, जो सदैव पिव
हाथ म ही पहनी जा सके गी।” भागवी ने कहा- “कभी भी कोई बुरा इं सान
इस अंगूठी को नह पहन पायेगा?”
सुयश अभी भागवी क बात सुन ही रहा था क तभी उसे अपने
मि त क म एक ी क आवाज आती सुनाई दी- “ितिल मा तोड़ने क ब त-
ब त शुभकामनाएं। अब जरा अपने इस िम क भी थोड़ी सहायता कर
दो।”
वैसे तो सुयश ने यह आवाज हजार वष के बाद सुनी थी, फर भी वह
इस आवाज को तुरंत पहचान गया। यह आवाज वा िण क थी, जो उसे एक
देवयु म भाग लेने के िलये बुला रही थी।
यािन क ितिल मा तोड़ने के बाद भी सुयश को एक पल का भी आराम
नह िमला था। पर वह देवयो ा ही या, जो देवयु के समय भी आराम क
बात करे ?
सुयश ब त देर तक वा िण क बात सुनता रहा और फर वह अपने
सािथय क ओर चल दया।
समयच ने देवयु के आिखरी प को पलटना शु कर दया था।
◆ ◆ ◆
यितराज

08.02.02, शु वार, लू आई नेबुला, िम क वे आकाशगंगा


हनुका इस समय लू आई िनहा रका के म य फं सा आ था।
हनुका जब वा िण से बात कर रहा था, उसी समय अंत र म घूमता
एक बड़ा सा प थर आकर हनुका के हेलमेट से टकराया था, िजसके कारण
हेलमेट मे दरार आ गई थी और हनुका का स पक वा िण से कट गया था।
दरार अभी ह क थी, परं तु फर भी हेलमेट म उपि थत ऑ सीजन
धीरे -धीरे कम होती जा रही थी।
“मेरे हेलमेट म दरार आ जाने के कारण म ब त अिधक देर तक इस
अंत र म साँस नह ले पाऊंगा। ऊपर से आकाशकु मारी से स पक भी कट
गया है िजसके कारण मुझे अपनी पृ वी से दूरी का भी पता नह चल पा रहा
है। मुझे कु छ भी करके आसपास ि थत कसी भी ह पर जाना होगा? िजससे
उस ह के गु वाकषण के कारण मेरी गु वशि वापस आ सके । ..... परं तु
आकाशकु मारी के अनुसार तो यहाँ से दूर-दूर तक कोई भी ह उपि थत नह
है? .... फर म भला वयं को इस मुसीबत से कै से बचा पाऊंगा? ...... हे माँ
गंगे मेरी सहायता करो। अब तो आपका ही सहारा है।”
हनुका तेजी से सभी देवी-देवता का आहवान करने लगा। हनुका ने
आज से पहले कभी भी इतना असहाय महसूस नह कया था?
धीरे -धीरे समय का पिहया आगे बढ़ता जा रहा था और इसी के साथ
हनुका के हेलमेट क ऑ सीजन भी समा होती जा रही थी।
हनुका क गित अब ि थर हो गई थी और वह िनहा रका म एक थान
पर िब कु ल क गया था। आिखरकार हनुका के हेलमेट से ऑ सीजन क
आिखरी बूंद भी समा हो गई।
अब हनुका के िलये एक-एक पल भारी होने वाला था क तभी हनुका
को नीलाभ क कही एक बात याद आ गई, जो नीलाभ ने हनुका के बचपन म
कही थी, जब नीलाभ हनुका के साथ वन म औषिध लेने गया था- “पु
हनुका, नािसका क शि को िनयंि त करना हर जीव को अव य आना
चािहये य क पूरे जीवनकाल म कभी ना कभी तो हर जीव ऐसी ि थित म
प ंच जाता है, जब वह अपनी ांस पर िनयं ण नह रख पाता, ले कन
इसके िलये तु ह ित दन ातःकाल उठकर ाणायाम करना होगा, इससे
तु हारी नािसका क शि भी ती हो जायेगी और तुम अिधक से अिधक
समय तक ांस रोकने क कला भी सीख जाओगे।”
नीलाभ क कही बात याद आते ही हनुका ने ाणायाम का योग
करते ए अपनी ांस को िनयंि त कर िलया। आिखर िपता का दया एक
और ान हनुका के ाण क र ा कर रहा था।
“ध यवाद िपता ी, य द आप मुझे ांस रोकने क िव ा नह
िसखाते, तो आज मेरा अंत िनि त था, परं तु अब म आपके ारा िसखाई गई
िव ा से, अगले 2 घंटे तक अपनी ांस रोक सकता ँ।” हनुका ने मन ही मन
अपने िपता को ध यवाद देते ए कहा- “परं तु अब मुझे इस थान से िनकलने
के िलये कोई उपाय करना ही होगा? परं तु या? िबना गु वाकषण तो म
कु छ भी नह कर सकता?”
तभी हनुका क ती ण िनगाह अंत र से आ रहे एक उ का पंड पर
पड़ी, जो क ती गित से हनुका क ओर ही आ रहा था।
“अरे ! यह तो वही उ का पंड है, िजसको न करने के िलये म
न लोक से िनकला था। ... यह तो मेरी ओर ही आ रहा है और इसका ल य
पृ वी ही है। ..... य द कसी कार से म इस उ का पंड पर सवार हो जाऊं,
तो म पृ वी तक वापस प ंच सकता ँ .... और यह भी हो सकता है क इस
उ का पंड का अपना गु वाकषण हो। ऐसी ि थित म मेरी शि यां वापस
आ सकती ह।”
यह सोच हनुका अपने हाथ-पैर मारकर अपने शरीर को गित देने क
कोिशश करने लगा, परं तु अनेक यास के बाद भी हनुका अपने शरीर को
र ी भी नह िहला सका।
उधर उ का पंड ती गित से िनहा रका तक आ प ंचा, परं तु हाय रे
क मत उ का पंड से हनुका क दूरी लगभग 20 मीटर थी और इस समय
यह 20 मीटर क दूरी भी हनुका के िलये काशवष के समान तीत हो रही
थी।
हनुका जानता था क मा कु छ सेके ड म ही उ का पंड िनहा रका
को पार करता आ आगे बढ़ जायेगा और इसी के साथ हनुका क उ मीद को
भी ख म हो जाना था, इसिलये हनुका ने तुरंत अपने दमाग का योग
कया।
हनुका ने अपने िसर पर बंधा हेलमेट एक झटके से उतार िलया और
उसे दोन हाथ से पकड़कर पूरी शि से उ का पंड क िवपरीत दशा म
उछाल दया।
हनुका का यह यास काय कर गया और हेलमेट फकने के यास म
हनुका का शरीर थोड़ा सा िहलते ए िवपरीत दशा क ओर चल दया और
यह िवपरीत दशा उ का पंड क ओर थी।
हनुका का शरीर गित करता आ उ का पंड क ओर बढ़ा। उ का
पंड क गित ब त ती थी, परं तु आिखरी समय पर उ का पंड के
गु वाकषण के कारण, हनुका का शरीर उ का पंड के ऊपर खंच गया।
उ का पंड पर िगरते ही हनुका ने राहत क साँस ली और उ का पंड
क एक च ान को पकड़कर उससे िचपक गया।
िविच प रि थित थी, िजस उ का पंड को न करने के िलये हनुका
अंत र म आया था, वही उ का पंड इस समय हनुका के ाण को बचा
रहा था।
इधर तो हनुका के ाण पर आया संकट दूर हो गया, तो आइये चलते
ह और देखते ह क या वा िण भी पृ वी पर आये संकट को दूर कर पा रही
है?
..................................
वा िण इस समय अपनी मानिसक शि य से धरा के मि त क को
िनयंि त करने क कोिशश कर रही थी।
उधर अंत र से लगभग 25 उ का पंड पृ वी क ओर बढ़ रहे थे और
दूसरी ओर धरती क ओर से उड़ता आ एक िवशाल पवत बस न लोक से
टकराने ही वाला था।
उड़ते पवत क दूरी अब न लोक से लगभग 50 मीटर ही बची थी
क तभी अ त ने वा िण के लान के अनुसार न लोक के बादल क
िनचली सतह को चु बक य तरं ग के ारा नाथ पोल म प रव तत कर दया।
वा िण के अि तीय िवचार आिखरकार काम कर ही गये, य क
उड़ता पवत न लोक के बादल के ठीक नीचे प ंचकर ि थर हो गया।
ठीक उसी समय पर वा िण को और भी सफलता ा हो गई और
उसने धरा के मि त क को ए ोवस पावर के िनयं ण से बाहर िनकाल
िलया।
“यह म कहाँ आ गई?” होश म आते ही धरा ने अपने आसपास देखते
ए कहा- “और यह िव म व मयूर आपस म यु य कर रहे ह?”
तभी वा िण क आवाज धरा के मि त क म गूंजी- “म वा िण बोल
रही ँ धरा, परं तु अभी कु छ भी बताने का समय नह है? तुम बस सं ेप म
यह जान लो, क कु छ समय के िलये अंत र के जीव ने तु हारे और मयूर के
मि त क पर अिधकार कर िलया था। तु हारा मि त क तो मने वतं करा
िलया, परं तु मयूर का मि त क अभी भी अंत र जीव के वश म है।”
“ठीक है, तो म पहले मयूर के मि त क को अंत र जीव के िनयं ण
से मु करती ँ।” धरा ने तेजी से ि थित का जायजा लेते ए कहा।
“नह धरा, मयूर के मि त क को म िनयं ण म लेती ँ, तब तक तुम
अपनी धरा शि य से पृ वी के भार को सामा य करो, य क भार बढ़ने के
कारण वह अपनी धुरी से सूय क ओर िखसक रही है। इसके प ात् तु ह इस
उड़ते ए पवत को सकु शल यथा थान पर ले जाना होगा।”
वा िण क बात सुन धरा अंदर तक िहल गई- “ या यह सब हमने
कया है?”
“हां धरा, यह सब तु ही दोन ने कया है, पर शी ता करो धरा।
य क हमारे पास समय कम है और अभी हम ब त से काय करने ह।” यह
कहकर वा िण ने मयूर के मि त क को िनयं ण म लेना शु कर दया।
उधर धरा अपनी पूरी शि लगाकर पृ वी के भार को सामा य करने
म लग गई।
लगभग 10 िमनट के अथाह प र म के प ात् धरा ने पृ वी के भार
को सामा य करके पृ वी को वापस से उसक क ा म ला खड़ा कया।
तब तक वा िण ने भी मयूर के मि त क को सामा य कर उसे भी
वा तिवक ि थित के बारे म बता दया।
अब धरा व मयूर उड़ते पवत को नीचे उतारने म लग गये।
तभी वा िण के वर िव म के कान से टकराये- “िव म अब उड़ते
पवत को धरा व मयूर संभाल लगे, तुम तुरंत न शाला म वापस प ंचो
य क सभी 25 उ का पंड अलग-अलग ओर से पृ वी के पास प ंचने ही
वाले ह। हम अब तुरंत कसी भी कार से इन उ का पंड को न करना
होगा?”
वा िण क बात मानकर िव म तुरंत न शाला क ओर उड़ चला।
कु छ ही ण म िव म वापस से वा िण, अ त व चं का के पास
खड़ा था।
“वा िण, इन उ का पंड को न करने के िलये हम वै णव िमसाइल
को ि ल करके इन उ का पंड के अंदर डालना होगा। तभी हम इन उ का
पंड को न कर सकते ह।” अ त ने कहा- “परं तु अब हमारे पास िसफ 10
िमनट का ही समय बचा है और इतने कम समय म हम इन सभी उ का पंड
को न नह कर सकते।”
तभी चं का बोल उठी- “वा िण, उधर पृ वी के सम त बड़ देश के
उ ािधकारी हमसे स पक करके इस देवयु म भाग लेने क बात कर रहे ह।
शायद उ ह ने भी पृ वी पर आ रहे अनेक संकट को देख िलया है।”
“चं का, तुम पृ वी के सम त लोग को दोबारा से एक मैसेज भेज
कर उ ह शांत रहने के िलये कहो। उनसे कह दो क हमारे रहते पृ वी को कु छ
नह होगा? इसिलये वह सभी वयं को इस यु से दूर रख और अ त तुम
तुरंत मेरा व िव म का पेस सूट लाकर दो। हम वयं अंत र म जाकर इन
उ का पंड को अपनी शि य से न करने के बारे म सोचते ह ... और हां
अ त पृ वी अपने वा तिवक थान पर आ चुक है, परं तु तुम बढ़ी ई
ओजोन पत को कम मत होने देना, य क हम नह पता क उ का पंड को
न करने म कस कार क िव करण पृ वी तक प ंचने क कोिशश करे ?”
वा िण क बात सुन अ त व चं का ने अपने सभी कमचा रय को
यु तर पर काय म लगा दया।
कु छ ही देर म एक कमचारी वा िण व िव म का पेस सूट लेकर आ
गया, जो क देखने म इनके सामा य सूट के जैसा ही पीले व काले रं ग का था,
परं तु उसम लगे असं य बटन उस सूट क िवशेषता को द शत कर रहे थे।
ले कन इससे पहले क िव म व वा िण पेस सूट को पहनकर तैयार
हो पाते क तभी अ त एक बार फर से चीख उठा, परं तु इस बार अ त क
चीख म खुशी के भाव थे।
“वा िण हमारी ओर आ रहा एक उ का पंड पता नह कस कार से
वतः ही न हो गया।” अ त ने एक न क ओर इशारा करते ए कहा।
“यह कै से संभव आ? ..... यह अंत र म हमारी सहायता करने कौन
आ गया?” वा िण ने आ य से न क ओर देखते ए कहा- “अ त जरा
उस न ए उ का पंड क ओर, अपनी दूरबीन से जूम करके दखाओ।”
वा िण क बात सुन अ त ने खगोलीय दूरबीन को जूम कर दया।
तभी उ ह एक सुनहरी रोशनी न ए उ का पंड से होकर एक ओर
जाती ई दखाई दी।
“अ त जरा उस सुनहरी रोशनी पर जूम करो। या वह कोई
आधुिनक िमसाइल है? य क उसका आकार 50 फु ट के आसपास है और
उसक गित विन क गित के समान दख रही है।” िव म ने अ त को आ ा
देते ए कहा।
िव म क बात सुन अ त ने उस सुनहरी रोशनी को और फोकस म ले
िलया।
अब सभी को वह सुनहरी रोशनी िब कु ल साफ-साफ दखाई दे रही
थी, वह और कोई नह बि क हनुका था, जो विन क गित से अंत र म
उड़ता आ एक-एक कर सभी उ का पंड को न कर रहा था।
“इसी बात पर बोलो महाबली हनुका क जय।” हनुका को देख
वा िण ने खुशी से भरते ए हनुका के नाम का जोर से जयकारा लगाया।
“परं तु यितराज िबना कसी हेलमेट के अंत र म साँस कै से ले रहे ह?
और इनक शि यां कै से वापस आ ग ?” अ त ने वा िण क ओर देखते ए
कहा।
“यितराज इस समय पृ वी से अिधक दूर नह ह, िजसके कारण उनक
गु व शि पुनः वापस आ गई है।” वा िण ने कहा- “परं तु यह लू आई
िनहा रका से बचकर इतनी दूर कै से वापस आ गये? और यह अंत र म साँस
कै से ले रहे ह, इस का उ र तो मुझे भी नह पता? ले कन इतना मुझे
अव य पता है क देवता हमारे साथ ह, इसिलये हम इस यु को कसी भी
कार से जीतगे। ऐसा मेरा िव ास है और यह िव ास मेरे शरीर मे जब तक
साँस है, तब तक बना रहेगा।”
उधर हनुका ने कु छ ही देर म पृ वी क ओर आ रहे सभी उ का पंड
को अंत र म ही न कर दया।
इस समय एक बड़ी सम या का अंत हो गया था, परं तु अगली बड़ी
सम या भी अब पृ वी से अिधक दूर नह थी और वह सम या थी- लैक होल
से िनकला अंत र यान का वह झु ड, िजनके पास असं य िवशाल व
आधुिनक यान थे।
समय का च अंत र म भी अनवरत् चल रहा था और पटॉ स इस
समयच को लेने व अपना नया ह देखने के िलये बुरी तरह से उ सुक थे।
◆ ◆ ◆
महाकाली ि काली

08.02.02, शु वार, डे थ वैली रे िग तान, पूव कै लीफो नया, अमे रका


डेथ वैली रे िग तान के ऊपर इस समय ब त ही खतरनाक मौसम हो
रहा था।
झील के आकाश म एक लैक होल उस थान क सभी चीज को
आकाश म ख च रहा था और धरती पर डाक वेिगका को अपने िनयं ण म
लेने क कोिशश कर रहा था।
हवा म एक थान पर ोम का पंचशूल व पा घूम रहे थे, जो क
ोम के कण म बदल जाने के बाद शायद वयं को विम विवहीन महसूस
कर रहे थे।
कु छ दूरी पर ि काली वयं को असहाय महसूस करती ई, हवा म
िबखरे ोम के शरीर के कण को देख रही थी।
ि काली को िव ास ही नह हो रहा था, क िव ु ा से इतना
खतरनाक यु जीतने वाला यो ा एक पल भी डाक के सामने नह टक
पायेगा।
अब डाक ने अपनी डाक मैटर शि का योग वेिगका पर भी कर
दया। शायद वह वेिगका को अपने साथ ले जाने के थान पर उसे न कर
देना यादा बेहतर समझ रहा था।
अब वेिगका भी धीरे -धीरे कण म बदलने लगी क तभी ि काली ने
अपनी िहमशि का योग करते ए झील के धरातल पर उपि थत सभी
प थर को वापस से बेतरतीब कर दया।
ि काली के ऐसा करते ही वेिगका वापस जमीन म समाने लगी।
वेिगका को वापस जमीन म समाते देख डाक को ोध आ गया और उसने
ि काली पर भी डाक मैटर का वार कर दया।
परं तु इससे पहले क ि काली का शरीर भी कण म बदल जाता क
तभी पंचशूल ने बीच म आकर डाक मैटर के सभी कण को अपने अंदर
समािहत कर िलया।
यह देख डाक च क गया।
“यह कौन सी शि है, जो डाक मैटर को भी अपने अंदर ख च रही है,
तो या पृ वी का िव ान हमारी सोच से अिधक िवकिसत है, जो इ ह ने
डाक मैटर क भी काट बना ली है।” डाक मन मे सोचने लगा, परं तु उसने
अपने आ य को ि काली पर नह होने दया।
ले कन ि काली भी इस घटना को देख च क गई।
“पंचशूल और पा अभी तक यहाँ पर उपि थत ह, जब क ोम
क मृ यु के बाद तो इन दोन शि य को यहाँ से चल जाना चािहये था।
कह ऐसा तो नह क ोम अभी भी जीिवत है और वह कसी ना कसी प
म यहाँ उपि थत है? तभी उसके पंचशूल ने मुझे बचाया, परं तु जब पृ वी क
कोई शि डाक मैटर से या नह करती? तो पंचशूल ने कस शि का
योग कर डाक मैटर से मुझे बचाया।”
तभी ि काली का यान अपने दािहने हाथ क ओर गया, िजसम
ि काली क कलाई के प रतः काले कण से बना एक गोल रं ग घूम रहा था।
“अरे ! यह कण से बना रं ग मेरी कलाई पर कहाँ से आ गया?”
ि काली ने अपनी कलाई पर बने रं ग को देखते ए कहा।
अभी ि काली अपनी कलाई के चारो ओर घूम रहे रं ग को देख ही
रही थी क तभी रं ग के नीचे कलाई पर काले कण से पंचशूल क आकृ ित
बन गई। वह आकृ ित देखने म कसी टै टू के समान दख रही थी।
“लगता है क कोई अदृ य अव था म मुझे कु छ बताने का य कर
रहा है? कौन है सकता है वह? .... कह ोम तो नह ? हां ोम के िसवा
यहाँ और कोई नह हो सकता? ... पर मेरी कलाई पर बने इस पंचशूल का
या रह य है? कह ोम मुझे पंचशूल धारण करने को तो नह कह रहा? ...
नह -नह पंचशूल धारण करते ही मेरी मृ यु हो जायेगी। य क पंचशूल को
तो कोई सूयपु ही धारण कर सकता है।”
ि काली काफ देर तक सोचती रही, परं तु जैसे ही उसक िनगाह
डाक पर पड़ी, ि काली ने ोध म आकर पंचशूल को अपने दािहने हाथ से
पकड़ िलया।
पंचशूल को पकड़ते ही ि काली क आँख के सामने एक जोर क
िबजली कड़क और उसे एक ती झटका लगा।
तेज काश क वजह से ि काली को कु छ भी दखाई नह दया? कु छ
देर बाद जब ि काली क आँख उस तेज काश म देखने लायक हो ग , तो
सामने का नजारा देख ि काली आ य से भर उठी।
इस समय ि काली हवा म तैर रही थी और उसके सामने षटकोण
जैसी आकृ ित वाले अनेक िड बे हवा म तैर रहे थे। कु छ थान पर िविच से
क ड़े भी थे, जो क रं ग-िबरं गे िततली के यूपा जैसे लग रहे थे।
कु छ अजीब से उड़ने वाले व कु छ जमीन पर रगने वाले जीव भी थे।
जगह-जगह पर रं ग-िबरं गे के झरने व कु छ थान पर पारदश बुलबुले
भी थे?
“यह कै सा थान है? और म पंचशूल को छू ते ही यह कस थान पर
आ गई? तभी ि काली को अपना शरीर कसी थान क ओर खंचता सा
तीत आ?
अनेक िविच थान से गुजरने के बाद ि काली एक ऐसे थान पर
प ंच गई, जहां चारो ओर हरा-भरा घास का मैदान था।
तभी ि काली क नजर घास के पास पड़े एक प थर पर पड़ी, िजस
पर कोई इं सान बैठा आ था? िजसक पीठ ि काली क ओर थी।
ि काली उस थान पर कसी इं सान को बैठे देख उ सुकतावश घूमते
ए उस इं सान के चेहरे क ओर आ गई। परं तु उस ि का चेहरा देखते ही
ि काली बुरी तरह से च क गई। वह ि और कोई नह बि क ोम था,
जो इस समय साधारण पट-शट पहने उस प थर पर बैठा था।
ोम के हाथ पर नीिलमा बैठी थी। जी हां नीली िचिड़या नीिलमा,
नीलाभ क नीिलमा या फर यूँ कह क महान शि धारक, कण म
प रव तत होने वाली किणका, िजसे नीिलमा के प म रहना ब त भाता था।
चूं क ि काली ने नीिलमा को कभी नह देखा था, इसिलये उसका
यान नीली िचिड़या से यादा ोम पर था।
इसिलये ि काली भागकर ोम के पास प ंच गई- “तुम कहाँ चल
गये थे ोम, मुझे तो लगा क डाक ने तु ह मार दया। .... पर तुम इस
थान पर कै से आ गये? और यह कौन सा थान है, जो मेरे पंचशूल पकड़ते
ही मुझे भी यहाँ पर ले आया?”
ि काली क बात सुन ोम, नीिलमा को उठाये ए अपने थान से
खड़ा हो गया।
“तुम इस समय ांड म उपि थत एक कण के अंदर हो ि काली।
िजसे कण ार भी कहते ह।” ोम ने धमाका करते ए कहा- “यह वह थान
है, जो 2 आयाम के बीच ि थत होता है। म भी कण म बदलकर इस थान
तक प ंचा ँ।”
“म भी से या मतलब है तु हारा ोम?” ि काली ने शं कत अंदाज
म पूछा- “ या म भी पंचशूल को पकड़ते ही कण म िवभ हो गई थी?”
“नह ि काली, तुम इस समय भी पंचशूल को हाथ म िलये ए डाक
के सामने हो। कण म तो म िवभ आ था। तु हारा तो िसफ छाया प यहाँ
पर है, िजसे नीिलमा ने अपनी शि य से यहाँ बुलाया है।” ोम ने नीिलमा
क ओर इशारा करते ए कहा।
ोम का इशारा देख ि काली ने पहली बार नीिलमा को यान से
देखा।
“मुझे कु छ समझ नह आ रहा ोम?” ि काली ने रोने वाले अंदाज म
कहा- “ या तुम जरा खुलकर बताओगे क यह नीिलमा कौन है? और यह
तु ह यहाँ य लेकर आई है? और ... और सबसे पहले यह बताओ क तुम
जीिवत हो या ....।” ि काली अपने आधे श द को ही बोल चुप हो गई।
शायद वह नह चाहती थी क कु छ भी गलत उसके मुंह से िनकले?
ि काली के श द सुन नीिलमा, ोम के हाथ से उड़ी और उड़ते ए
ही उसने अपना प प रव तत कर िलया। अब नीिलमा किणका के प म
उसके सामने थी।
नीिलमा का इस कार से प बदलना ि काली को समझ म नह
आया।
तभी किणका ने बोलना शु कर दया- “अभी सबकु छ बताने का
समय नह है ि काली य क डाक अब कभी भी वेिगका को ा कर
सकता है, इसिलये अभी तुम िसफ उतना जान लो, िजतना जानना अभी
आव यक है। .... मेरा नाम किणका है और म महागु नीलाभ क ....प ...
पहली शि ँ, जो क इन अंत र के जीव से यु करने और तुम दोन को
बचाने के िलये आई ँ। मेरे पास कण म बदलने क शि है और म इ ह
कण के अंदर ि थत इस ‘कण ार’ म रहती ँ। जब मुझे पता चला क तुम
दोन का सामना डाक से होने वाला है, तो म नीलाभ के आने के पहले ही
तु ह बचाने के िलये इस थान पर आ गई। मुझे पता था क इस धरा क कोई
भी शि डाक का मुकाबला नह कर सकती? य क डाक , डाक मैटर क
शि का योग करता है। इसिलये िजस समय डाक ने ोम पर अपनी
शि का योग कया, म ोम के सभी कण को लेकर कण के आयाम म आ
गई। इसिलये ोम अभी भी जीिवत है, परं तु म ोम को तब तक सही नह
करना चाहती, जब तक तुम डाक का अंत ना कर दो य क य द समय से
पहले डाक को यह पता चल गया क हमारे पास उसके डाक मैटर को समा
करने वाली शि है, तो वह आकाशगंगा क अ य शि य का योग भी कर
सकता है और फर वैसी ि थित म उसे मार पाना िब कु ल ही असंभव हो
जायेगा।”
“परं तु म भला डाक को कै से मार सकती ँ? मेरे पास तो ोम
िजतनी शि यां भी नह ह।” ि काली ने शंका भरे वर म कहा- “और डाक
पर तो इस पृ वी के कसी भी त व का कोई असर नह होता?”
“मार सकती हो ि काली, एक तुम ही हो जो क डाक का अंत कर
सकती हो, परं तु इसके िलये तु ह माँ काली का आहवान करके मेरी शि य
को धारण करना होगा। ... अब शी ता करो ि काली और महाकाली का
आहवान करो। वह तु ह आशीवाद व प अपना प अव य दान करगी।”
किणका ने ि काली का उ साह बढ़ाते ए कहा।
तभी ि काली को अपना शरीर वापस लौटता आ महसूस आ। अब
ि काली वापस झील क सतह पर खड़ी थी और उसके हाथ म पंचशूल थमा
था।
उस ि थित को देखकर ि काली को यह महसूस आ क मानो वह एक
सेके ड म ही कण ार से िनकलकर वापस आ गई हो।
“लगता है क कण ार म समय ब त धीरे चलता है या फर क
जाता है, तभी म एक ण म वापस आ गई। अरे हां ... अब मुझे किणका क
बात मानकर, देर ना करते ए महाकाली का आहवान करना होगा।”
इसी के साथ ि काली ने आँख बंद कया और पंचशूल को हाथ म िलये
ए, मन ही मन महाकाली का यान करने लगी। कु छ ही देर म ि काली क
आँख म महाकाली का अ भुजाधारी प दखाई देने लगा। महाकाली ने
ि काली को आशीवाद देते ए कहा- “एवम तु।”
महाकाली का आशीवाद िमलते ही ि काली ने अपनी आँख खोल द ।
परं तु जैसे ही ि काली क िनगाह वयं पर पड़ी, वह आ य से भर उठी।
इस समय ि काली का शरीर भी महाकाली के समान दख रहा था।
ि काली के शरीर पर ि ने व अ भुजा आ गये थे। सभी हाथ म
िविभ कार के अ -श दखाई दे रहे थे। ि काली के एक हाथ म
पंचशूल भी दखाई दे रहा था। दूसरे हाथ म कृ पाण िलये ए ि काली
सा ात मृ यु तीत हो रही थी। पा इस समय ि काली के म तक पर
िवराजमान था। तभी ि काली क नजर अपने बगल म गई, जहां पर एक
िवशाल संह मुंह फाड़े डाक को देख रहा था।
तभी संह ने दहाड़ कर डाक को चुनौती तुत क । तब तक डाक
वेिगका को झील के नीचे से िनकाल चुका था।
परं तु ि काली का यह िविच प देख एक पल के िलये डाक िसहर
उठा।
तभी ि काली के मुख से एक जोर क गजना िनकली- “डाक ऽऽऽऽऽऽ।”
ले कन ि काली के मुख से िनकली यह आवाज शत- ितशत किणका
क थी, िजसने अपने कण से ि काली को महाकाली का प दया था।
अब ि काली क िनगाह सबसे पहले झील के ऊपर बने लैक होल क
ओर गई, जो क अभी भी पृ वी के कण को ख चने म लगा था। यह बात
अलग थी क पृ वी पर कु छ थान से अब लावा िनकलने लगा था, परं तु
लैक होल पर लावे का भला या भाव पड़ना था, वह तो कण क भांित
लावे को भी िनगलता जा रहा था।
जैसे ही ि काली ने लैक होल को घूर कर देखा, ि काली के म तक
पर बनी तीसरी आँख खुल गई और उसम से कालाि का मुख िनकलकर
लैक होल क ओर बढ़ चला।
आसमान क ओर जाता आ कालाि पूण प से अि से बना था।
कु छ ही ण म कालाि उस लैक होल के पास प ंच गया।
अब कालाि ने अपना िवशाल मुख खोला और लैक होल को अपने
मुख म भर िलया।
एक पल म सबकु छ िनगल लेने वाला लैक होल वयं कालाि के मुख
म जाकर िवलीन हो गया। लैक होल से अपनी भूख िमटाने के बाद कालाि
वापस ि काली क तीसरी आँख म समा गया।
यह देख डाक के मुख पर ोध भर आया। अब वह फर एक बार डाक
मैटर म प रव तत हो गया और ि काली क ओर झपटा। परं तु जैसे ही वह
ि काली के पास प ंचा, ि काली ने पंचशूल को डाक के डाक मैटर से छु आ
दया।
ि काली के ऐसा करते ही पंचशूल से एक तेज ऊजा िनकली और उसने
डाक के शरीर को अपने अंदर ख चना शु कर दया।
अब डाक जोर से चीखने लगा। उसे तो िव ास ही नह हो पा रहा
था क पृ वी का कोई त व भला डाक मैटर को कै से िनगल सकता है? परं तु
उसे यह नह पता था क पंचशूल पृ वी क धातु से नह बना था।
पंचशूल तो हजार वष पहले डाक क ही तरह, एक दै य कालके य
को मारने के िलये िन मत आ था। अब पंचशूल क धातु म डाक मैटर को
समा करने क शि कहाँ से आई? यह तो भिव य के अंधेरे म था .... नह -
नह भूतकाल के अंधेरे म िलपटा कसी अंजान ह म दफन था।
कु छ ही ण के बाद डाक के चीख बंद हो ग और वह पूरा का पूरा
पंचशूल के अंदर समा गया।
तब तक वेिगका भी पु तक से ी म प रव तत हो गई थी। वेिगका ने
ि काली के सम हाथ जोड़कर अिभवादन कया और फर पुनः पु तक म
प रव तत होकर झील क तली म समा गई।
अब ि काली ने अपने चारो ओर देखा। ि काली के ऐसा करते ही उस
थान का वातावरण पुनः पहले के समान हो गया।
तभी ि काली के सम कण का एक ार खुला और उसम से ोम व
किणका िनकलकर बाहर आ गये।
दोन के बाहर िनकलते ही ि काली का शरीर सामा य होने लगा।
जैसे ही ि काली का शरीर पूण प से सामा य हो गया, ि काली के
हाथ से पंचशूल िनकलकर वापस ोम के हाथ म आ गया और पा भी
मुकुट के प म ोम के िसर पर िवराजमान हो गया।
इस समय ोम क आँख म ि काली के िलये स मान ही स मान
भरा था और होता भी य ना? ि काली ने वह कर दखाया था, जो क
असं य देवशि यां होने के बाद भी ोम नह कर पाया था।
यही तो था आ दशि का वह नारी प, िजसने आ दशि को अनंत
ांड क जननी बनाया था।
इस कार अंधकार पर एक बार फर शि ने िवजय ा कर ली थी।
◆ ◆ ◆
चैपटर-19
मायाजाल

09.02.02, शिनवार, एथस, ीस

रोन।” सो फया ने पीछे से मेरोन को टोकते ए कहा- “कहाँ


मे खोए-खोए रहते हो आजकल? देखो तुम अपने ऑ फस का लंच
बॉ स फर से आज भूलने वाले थे।”
यह कहकर सो फया ने डाइ नंग टे बल पर रखा लंच बॉ स उठाकर,
घर के बाहर िनकलते मेरोन को पकड़ा दया।
मेरोन ने बुझी-बुझी आँख से सो फया को देखा और फर बोल उठा-
“पता नह सो फया, पर जाने य म अपनी इस टीन भरी जंदगी से ऊब
सा गया ँ। रोज वही ऑ फस जाना, शाम को घर आना और फर काम
करते-करते सो जाना। या तु ह यह जंदगी अ छी लग रही है?”
मेरोन क बात सुन सो फया ने एक लंबी सी आह भरी और फर
मेरोन का हाथ पकड़कर धीरे से बोल उठी- “मेरोन, माना क हम जीयूष
और हेिडस के ब े ह, पर इस जंदगी का चुनाव हमने ही तो कया था। याद
करो वह दन जब हम अपने कै पर को माया को स पकर वापस हेिडस के
पास माफ मांगने गये थे। अगर उस समय पर हेिडस ने हम माफ ही ना
कया होता, तो सोचो या हम अभी तक जीिवत होते? या फर हम अपने
कै पर के साथ ऐसे खुशी भरा जीवन िबताते। अरे शु मनाओ क तु हारे
िपता जीयूष क तरह मेरे िपता हेिडस ने हम मारने क कोिशश नह क ,
बि क तु हारे िपता जीयूष को मनाकर हम इस कार अपना अलग जीवन
जीने क आ ा दे दी। अब जब ये हमारा ही चुनाव था, तो तुम इस जीवन पर
इतनी चंता य कर रहे हो? अरे हर 25 से 30 साल बाद हम अपने
रहने का थान व अपनी जीवन शैली तो बदलते ही ह ना। िजससे साधारण
लोग हमारे बारे म जान ना सक। तो फर तुम इतना परे शान य हो?”
सो फया क बात सुन मेरोन ने अपने लंच बॉ स को अपने बैग म डाल
िलया और सो फया का चेहरा अपने दोन हाथ से पकड़ते ए कहा।
“ऐसा कु छ भी नह है सो फया, जैसा क तुम समझ रही हो। .... म
अपनी इस जंदगी से ब त खुश ँ, पर या कभी-कभी तु ह नह लगता क
तु हारे आसपास कु छ गड़बड़ है? या फर कोई ऐसा है जो लगातार हम देख
रहा है? या तु ह अपने आसपास के लोग सामा य दखते ह? मेरा मतलब है
क हमारे आसपास के लोग एक जैसा वहार करते नह दखाई देते? या
तु ह नह लगता क हम इतने वष से नकली जंदगी जी रहे ह?” मेरोन ने
अपने दमाग पर जोर डालते ए कहा- “म यह कहना चाहता ँ सो फया क
हमारे आसपास सबकु छ इतना वि थत कै से है?”
“शायद तुम कु छ यादा ही सोचने लगे हो मेरोन या फर ये भी हो
सकता है क अिधक काम करने क वजह से तु हारा दमाग थोड़ा असंतुिलत
हो गया है। .... य क मुझे तो कभी ऐसा महसूस नह होता मेरोन। ... अगर
तुम कहो तो कु छ दन के िलये कह वैकेशन लान कर या?” सो फया ने
मेरोन को समझाते ए कहा।
“नह -नह उसक कोई ज रत नह है।” मेरोन ने यह कहा और फर
सो फया को ‘बाय’ करता आ घर के बाहर क ओर बढ़ गया।
सो फया थोड़ी देर तक मेरोन को जाते देखती रही और फर पलटकर
वापस घर के अंदर आ गई।
“कै पर .... कै पर। अरे कतना सोओगे? देखो सूरज िसर पर आ गया
है। कॉलेज क छु य का ये मतलब नह क तुम दन भर सोते ही रहोगे।”
सो फया तेज आवाज लगाती ई कै पर के कमरे क ओर बढ़ गई- “ये लड़का
भी ना, कभी-कभी िब कु ल इं सान क तरह वहार करने लगता है।
सो फया घर क सी ढ़यां चढ़ते ए घर के ऊपर वाले िह से क ओर
आ गई।
कै पर के कमरे के पास प ंचकर सो फया ने कमरे का दरवाजा
खटखटाते ए, फर एक बार कै पर को आवाज लगाई- “कै पर, अगर तुम
जवाब नह देते, तो म कमरे म आ रही ँ।”
यह कहकर सो फया ने एक ण इं तजार कया और फर कै पर के
कमरे का दरवाजा खोल दया।
परं तु कै पर के कमरे का दरवाजा खोलते ही सो फया एक पल के स
रह गई य क अब जो नजारा सो फया के सामने था, वह कसी के भी दल
क धड़कन रोकने के िलये काफ था?
कै पर के कमरे के दरवाजे के पीछे पूरा ांड दखाई दे रहा था।
िवशाल सूय दरवाजे के िब कु ल करीब था और बाक के ह हवा म तैर रहे
थे। अंत र म ब त से टू टते तारे भी एक ओर से दूसरी ओर जा रहे थे।
सो फया ने एक झटके से अपने आगे बढ़ रहे पैर को पीछे कर िलया
और एक चीख के साथ तुरंत दरवाजा बाहर से बंद कर िलया- “ईऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
सो फया अब दरवाजे से सटी जोर-जोर से साँस ले रही थी। उसे समझ
म नह आ रहा था क यह सब उसे कै से दखाई दे रहा था? अब सो फया के
मन म मेरोन क कही बात बार-बार सुनाई दे रही थी- “ या तु ह नह
लगता क हम इतने वष से नकली जंदगी जी रहे ह?”
“ या ... या मेरोन सही कह रहा था? या हमारे घर म कु छ गड़बड़
है?” कु छ देर तक ऐसे ही साँस लेने के बाद सो फया ने फर से धीरे से कै पर
के कमरे का दरवाजा खोला, पर इस बार सबकु छ सामा य था। कै पर अपने
िब तर पर आराम से सो रहा था।
यह देख सो फया ने पूरा दरवाजा खोल दया और डरी-डरी िनगाह
से अपने चारो ओर देखने लगी, परं तु जब उसे कमरे म सबकु छ सामा य
दखाई दया, तो वह समझ नह पाई क कु छ देर पहले उसके साथ घटी
घटना कोई म थी या सच क घटना?
अब सो फया कमरे म सो रहे कै पर क ओर बढ़ी क तभी घर क
डोरबेल क आवाज ने सो फया का यान भंग कया- “ टं ग-टांग।”
“इस समय कौन आ सकता है? अभी तो कसी के आने का समय नह
आ?” सो फया ने सोचा और फर कै पर को छोड़कर घर के मु य ार क
ओर चल दी।
मु य ार खोलते समय जाने य सो फया के हाथ कांपने लगे। उसे
रह-रह कर कु छ देर पहले बीती घटना याद आ रही थी।
सो फया ने धड़कते दल से दरवाजा खोल दया।
दरवाजे के सामने कोई नह था? तभी सो फया क नजर घर के बाहर
के दृ य पर पड़ी, तो वह हैरान रह गई।
घर के सामने बनी ऊंची-ऊंची िब डंगे वतः ही टू टकर आसमान क
ओर जा रह थ । सड़क पर चल रही कार व बड़े वाहन भी एक िनि त दूरी
तक सड़क पर िघसटने के बाद आसमान क ओर उड़ जा रहे थे। सड़क पर
लोग चीखते ए इधर-उधर भाग रहे थे।
तभी सो फया क नजर आसमान क ओर गई। आसमान म दख रहे
चाँद का आकार कु छ यादा ही बड़ा लग रहा था। वह चाँद भी धीरे -धीरे
टू टकर अंत र म िमलता जा रहा था।
ब त ही भयावह दृ य था। उस दृ य को देखकर ऐसा लग रहा था क
मान आज पृ वी का अंत होने वाला हो?
सो फया इस दृ य को देखकर ब त यादा ही डर गई। उसे समझ म
नह आ रहा था क ऐसी ि थित म वह कै से वयं को संभाले। तभी अचानक
से सो फया को मेरोन व कै पर का याल आया।
सो फया घर का दरवाजा बंद करके तुरंत कै पर के कमरे क ओर
भागी।
“लगता है क मेरोन सही कह रहा था। इस थान पर कु छ तो गड़बड़
है। ... या फर ये भी हो सकता है क मेरोन ने पहले से ही इन िवनाशकारी
पल को महसूस कर िलया हो।”
सो फया धड़धड़ाते ए कै पर के कमरे म िव हो गई और कै पर
को झंझोड़कर जगाने लगी।
सो फया के इतनी तेज िहलाने पर कै पर उठकर बैठ गया।
“ या आ मॉम ? आप मुझे ऐसे य जगा रह ह?” कै पर ने आँख
मलते ए घबराए वर म सो फया से पूछा- “सबकु छ ठीक तो है ना?”
“कु छ भी ठीक नह है कै पर? चाँद टू टकर पृ वी पर िगर रहा है और
पृ वी कण म टू टकर अपने िवनाश क ओर बढ़ रही है। तुम तुरंत उठो, हम
शी से शी कसी सुरि त थान पर प ंचना होगा।” सो फया ने कै पर का
हाथ पकड़कर ख चते ए घबराए वर म कहा।
“ रलै स मॉम । ये सब आप या बोल रही हो? आपक तिबयत तो
ठीक है ना? या फर आप हर रोज क तरह से फर मुझे झूठ बोलकर उठाना
चाह रह ह?” कै पर ने बेड से उतरते ए कहा।
“मेरी तिबयत ठीक है बेटा। पर घर के बाहर का दृ य देखकर तु हारी
तिबयत अव य खराब हो जायेगी। ... अब देर ना करो कै पर, तुरंत मेरे साथ
चलो।”
यह कहकर सो फया लगभग घसीटते ए कै पर को कमरे से िनकाली
और उसे घर के बाहर क ओर लेकर चल दी।
कै पर को कु छ भी समझ म नह आ रहा था? परं तु माँ को इतना
घबराया आ देखकर कै पर ने यादा सवाल नह कये और माँ के साथ
चुपचाप चलने लगा।
सो फया घर के मु य ार के पास प ंचकर, कु छ ण के िलये क
और फर उसने एक झटके से घर का मु य ार खोल दया।
परं तु बाहर सबकु छ सामा य था। सभी सामने क िब डंगे िब कु ल
सुरि त थ और सड़क पर भी सभी लोग सामा य कार से इधर-उधर जा
रहे थे।
यह देखकर सो फया िब कु ल हैरान हो गई।
“य ... यह कै से हो सकता है? अभी कु छ देर पहले ही तो मने यहाँ से
पृ वी को समा होते देखा था, फर .... फर इतनी ज दी सबकु छ ठीक कै से
हो सकता है?” सो फया अब पागल के समान हरकत करने लगी- “मेरा
यक न करो कै पर। अभी इस थान पर कु छ भी सही नह हो रहा था। वो
सब मने अपनी आँख से देखा था।”
सो फया को इस कार ित या देते देख, कै पर से रहा ना गया और
वह सो फया को लेकर वापस घर म आ गया। कै पर ने सो फया को सहारा
देकर एक कु स पर बैठाया और फर उसके सामने घुटन के बल बैठते ए
कहा- “म आपक बात पर िव ास करता ँ मॉम । मुझे पता है क आप
मुझसे झूठ नह बोलगी। पर मुझे लग रहा है क आप कु छ समय के िलये
‘टाइम ि लप’ करके कसी और समयकाल म चली गई ह गी? ऐसा होता है
मॉम । दुिनया म ब त से लोग ह, िजनके साथ ऐसी घटनाएं घटी ह और फर
आप तो अंडरव ड के महान स ाट हेिडस क बेटी ह, फर तो आपके साथ
ऐसा होना वभािवक ही है। ... यह भी तो हो सकता है क कसी कार से
आपको भिव य दखाई देने लगा हो? आजकल भिव य क घटना को देखने
को ‘देजा-वू’ कहा जाता है।”
कै पर ने सो फया को समझाने के इरादे से अनेक कार के उदाहरण
दे डाले।
अब सो फया थोड़ा सा सामा य दखने लगी थी। सो फया को सामा य
देख कै पर सो फया के पास से उठा और कचन जाकर सो फया के िलये एक
िगलास पानी ले आया।
पर जैसे ही कै पर सो फया के सामने पानी लेकर प ंचा, अचानक से
कै पर का वह हाथ तेजी से कांपने लगा, िजस हाथ म कै पर ने िगलास पकड़
रखा था।
इससे पहले क सो फया व कै पर कु छ समझ पाते, अचानक से उनके
घर क छत एक झटके से उखड़कर कह उड़ गई?
यह देख कै पर के हाथ से घबराकर िगलास छू टकर िगर गया। परं तु
िगलास के टू टने क आवाज छत से आती हवाओ क वजह से सुनाई नह दी।
अब छत से सो फया व मेरोन को वही दृ य दखने लगा, जो क कु छ
देर पहले सो फया को दखाई दया था- “टू टता चं मा, िबखरती धरती,
जमीन पर चलती कार आसमान म ि थत लैक होल म समाना और पृ वी
का अंत।”
“म .... म इसी दृ य के बारे म तुमसे बता रही थी कै पर।” सो फया
ने आसमान क ओर देखते ए घबराकर कहा- “अब बताओ क ये ‘देजा-वू’
है या फर ‘टाइम ि लप’?”
तभी आसमान के लैक होल ने उनके घर के सामान को भी अपनी
ओर ख चना शु कर दया। यह देख कै पर व सो फया ने घबराकर कमरे म
उपि थत, एक-एक खंभे को पकड़ िलया और उस तेज खंचाव से बचने क
कोिशश करने लगे।
ले कन लैक होल का खंचाव लगातार बढ़ता जा रहा था। सो फया
तेजी से अपना दमाग चला रही थी, परं तु उसे बचने का कोई उपाय नजर
नह आ रहा था?
तभी अचानक से जाने कै से कै पर का हाथ खंभे से छू ट गया और इसी
के साथ कै पर चीखता आ आसमान क ओर चला गया।
यह देख सो फया के भी मुंह से तेज चीख िनकल गई-
“कै परऽऽऽऽऽऽऽऽ।”
इसी के साथ सो फया ने अपनी आँख जोर से बंद कर ल । कु छ देर
बाद सो फया को अपने आसपास से आवाज आनी बंद हो गई। तब सो फया
ने धीरे से अपनी आँख खोल ।
पर फर से इस बार सो फया के सामने का नजारा बदला आ था।
इस समय सो फया ने वयं को घास के मैदान म बने एक झोपड़ी के
िनकट पाया। झोपड़ी के आसपास इस समय कोई भी दखाई नह दे रहा था?
उस थान पर या तो दूर-दूर तक हरी घास के मैदान थे या फर ऊंची-ऊंची
पवनच यां, िजनके पंखे हवा के वाह से िबना आवाज कये धीरे -धीरे चल
रहे थे?
“यह या मायाजाल है? अब म कहाँ आ प ंची? ये जगह तो मेरे घर
से िब कु ल ही अलग है।” सो फया लगातार सोच रही थी- “और जहां तक
मुझे याद है, म कभी भी ऐसे थान पर नह रही ँ? .... मेरोन और कै पर
कहाँ गये? या उस थान पर आई लय ने उन दोन को मुझसे छीन
िलया?”
लगातार सो फया के दमाग म बेिसर पैर क बात चल रह थ क
तभी सो फया को एक धीमी सी आवाज सुनाई दी- “मॉम ! या आप मुझे
सुन रह ह? म तु हारा कै पर ँ .... देखो म तु ह लेने के िलये आ गया मॉम
। ... अब म तु ह कभी भी इतनी तकलीफ म नह रहने दूँगा। .... आँख खोलो
मॉम .... आँख खोलो।”
कै पर क आवाज कसी कुं ए से आती ई सुनाई दी?
“यह ... यह आवाज तो कै पर क ही है।” कै पर क आवाज सुनकर
सो फया क आँख से खुशी के आँसू िनकलने लगे- “इसका मतलब क वह
जीिवत है और मुझे पुकार रहा है।”
कै पर क आवाज धीरे -धीरे बढ़ती जा रही थी।
तभी सो फया ने झटके से अपनी आँख खोल द । एक बार फर
सो फया को अपने सामने का नजारा बदला आ दखाई दया।
इस बार सो फया ने वयं को एक कबाड़खाने म मौजूद एक ताबूत म
बंद पाया। ताबूत पूरा का पूरा काँच से बना था और उसके अंदर काले रं ग का
धुंआ भरा आ था।
सो फया ने ताबूत का ढ न हटाया और उससे िनकलकर बाहर आ
गई।
“उफ् ये मेरा पूरा शरीर कै से अकड़ गया? ऐसा लग रहा है क जैसे म
ब त लंबे समय से इस ताबूत के अंदर थी। ... पर .... पर यह जगह कौन सी
है? और कै पर कहाँ गया? िजसक आवाज सुनकर म जागी थी।”
तभी सो फया क िनगाह कु छ दूरी पर रखे दूसरे ताबूत पर पड़ी। दूसरे
ताबूत म भी कोई लेटा आ था, परं तु दूरी अिधक होने के कारण सो फया को
उस ि का चेहरा नह दखाई दे रहा था
सो फया चलती ई उस दूसरे ताबूत के िनकट आ गई, परं तु जैसे ही
दूसरे ताबूत म लेटे चेहरे पर सो फया क नजर पड़ी, वह बुरी तरह से च क
गई, य क दूसरे ताबूत म मेरोन लेटा था।
मेरोन को देखकर सो फया भागकर उसके पास प ंच गई और ताबूत
म सो रहे मेरोन को जगाने क कोिशश करने लगी।
सो फया के ताबूत खोलने से मेरोन के ताबूत का पूरा काला धुंआ
बाहर आ गया और इसी के साथ मेरोन भी ताबूत म उठकर बैठ गया और
अपने पास बैठी सो फया को यान से देखने लगा।
“यह हम कहाँ आ गये सो फया? हम तो इस समय एथस म थे।”
मेरोन ने आ य से अपने चारो ओर देखते ए कहा।
तभी एक तीसरी आवाज ने दोन को ही च का दया- “आप एथस म
नह बि क हजार वष से इसी थान पर थे।”
इस अंजानी आवाज को सुन सो फया च क गई, य क इस आवाज
को वह पहचान गई थी। यह आवाज शत- ितशत कै पर क थी।
“कै पर, मेरे बेटे कहाँ हो तुम? तुम हम दखाई य नह दे रहे?”
सो फया ने चारो ओर देखते ए कहा।
सो फया का इतना कहना था क तभी सो फया से कु छ दूरी पर कै पर
खड़ा नजर आने लगा? सो फया व मेरोन ने आगे बढ़कर कै पर को गले से
लगा िलया।
कु छ देर तक ऐसी अव था म रहने के बाद कै पर दोन से अलग आ।
“अब इससे पहले क आप लोग मुझसे कु छ पूछ? म वयं ही आप
दोन को पूरी कहानी बता देता ँ।” इतना कहकर कै पर एक ण को का
और उसने फर से बोलना शु कर दया।
“बात आज से 19,130 वष पहले क है, जब आप दोन मुझे देवी
माया को स प कर अंडरव ड क ओर चल दये थे। आप को लग रहा था क
हेिडस आप दोन को मा करके आपके िववाह को मा यता दे देग एवं
आपको रहने के िलये थान भी दे दगे। ऐसा आपने इसिलये सोचा था य क
तीन भाइय म से िसफ हेिडस ने ही मुझ पर आ मण नह कया था। यह
सोच आप दोन सीधे अंडरव ड आकर हेिडस के सामने जा खड़े ए। उधर
हेिडस को पहले ही काली शि य के मा यम से यह पता चल गया था क म
कस कार जीयूष के थंडरबो ट व पोसाइडन क समु क लहर से भी बच
गया था। हेिडस जान गया क आने वाले भिव य म म एक महायो ा बनने
वाला ँ। इसिलये हेिडस आप दोन से नम से पेश आने लगा। हेिडस ने
आपको मादान देने का नाटक कया और आप दोन के सामने मेरा एक
नकली बालक प तुत कर दया, जो क देखने म ब मेरी ही तरह था।
इसके प ात् हेिडस ने अपनी काली शि य से एक मायाजाल का िनमाण
कया और एक दन आप दोन को बेहोश करके यहाँ रखे ताबूत म डाल
दया। अब आप दोन के शरीर तो यहाँ ताबूत म बंद थे, परं तु मायाजाल के
अंदर आप लोग एक नकली दुिनया म हजार वष से जी रहे थे। आप दोन
को तो पता भी नह था क आपके साथ या हो रहा है? इधर हेिडस हजार
वष से अपने ल य क ाि का इं तजार कर रहा था। उसे पता था क कसी
दन म अपने माता-िपता को छु ड़ाने के िलये अंडरव ड अव य आऊंगा? और
उसका सोचना सही िनकला। आिखरकार इतने वष के बाद म यहाँ आ
प ंचा। मुझे देखकर हेिडस ब त स आ और उसने कु छ दन के िलये
मुझे छाया शि का योग कर जमीन के अंदर फं सा दया? हेिडस जानता
था क िबना कसी क बाहरी सहायता िलये, म अब उस परछाई के जाल से
मु नह हो सकता था। अपने लान के अनुसार कु छ दन के बाद वह मेरे
पास आता और मुझे जीयूष व पोसाईडन के िव भड़काकर अपनी ओर
िमला लेता। परं तु यहाँ हेिडस से एक चूक हो गई, वह पूरी तरह से मेरे जीवन
व मेरी शि य के बारे म नह जानता था य क माता माया ने मुझे स पूण
ांड क नजर से दूर शि यां दी थ । इसिलये हेिडस को मेरे व जीयूष के
बीच ए समझौते के बारे म भी कु छ भी नह पता था? उधर जब से म
अंडरव ड के िलये िनकला था, जीयूष ने भी मुझपर अपनी नजर गड़ा रख
थ और मेरे परछाई म फं सते ही वह मुझे बचाने के िलये अंडरव ड के अंदर
आ गये। यहाँ पर भी हेिडस से एक गलती हो गई, जब उसने एक भसे पी
जीव को भेजकर उसके मुख से हम चेतावनी दी, तो जोश म आकर हेिडस
कु छ यादा ही बोल गया। हेिडस के श द के मा यम से मुझे यह पता चल
गया क इलीिशयम के चारो ओर खतरनाक जीव घूमते ह, िज ह समा कये
िबना इलीिशयम के महल तक नह प ंचा जा सकता और इस दौरान हेिडस
लगातार मुझे देखता भी रहेगा। ऐसे म मुझे आप लोग को बचाने म ब त
अिधक समय लग जाता। इसिलये मने एक लान कया और इस लान के
तहत म जानबूझकर उस भसे जैसे जीव से िनह था ही लड़ने के िलये प ंच
गया। जब मने भसे के िसर पर एक जोर का घूंसा मारा, तो भसे ने मुझे
अपनी स घ से आसमान क ओर उछाल दया। बस ठीक उसी समय मने
हवा म एक दूसरे कै पर का िनमाण कया और वयं अपनी शि य से अपने
को एक ऐसे कवच म डाल िलया, िजसके रहते ना तो कोई शि मुझे देख
पाती और ना ही महसूस कर पाती? यािन क भसे के ारा आसमान म
उछाले जाने के बाद आसमान से जो कै पर नीचे आया, वह मेरे ारा बनाया
गया नकली कै पर था। अब म पूरे यु के दौरान वहाँ आराम से खड़े होकर
इस पूरे यु को देखता रहा और वहाँ उपि थत कसी को भी मेरी इस हरकत
का पता ही ना चला। कु छ देर बाद जीयूष को मुझे बचाते देखकर हेिडस बुरी
तरह से जल उठा और उसने हम दोन को मारने के िलये मृ यु के देवता
‘थानाटोस’ व मृ यु क देवी ‘मका रया’ को भेज दया। उसके बाद नकली
कै पर से एक छोटे से यु के बाद मका रया ने नकली कै पर को मार दया।
उधर छाया शि ने जीयूष को मेरी ही तरह से जमीन म कै द कर दया। ....
मका रया मेरे नकली व प को मारकर इलीिशयम क ओर चल दी। म
अदृ य प म अब मका रया के पीछे था। इस कार म अपने लान के
अनुसार आसानी से इलीिशयम के अंदर आ गया। चूं क मेरे मरने और जीयूष
के जमीन म फं स जाने के बाद, हेिडस पूण प से िन ंत हो गया था,
इसिलय मुझे अदृ य प म आपको ढू ंढने म अिधक समय नह लगा, परं त
जब म यहाँ आपके पास प ंचा तो आपको पूण प से उस मायाजाल म फं से
ए पाया। मेरे िलये आप दोन को उस मायाजाल को तोड़े िबना आपको
िनकालना असंभव दखा, इसिलये मने अपनी शि य का योग करके
आपके व पी मायाजाल को तोड़ना शु कर दया। आप दोन ने
मायाजाल के अंदर जो िवनाशलीला देखी, वह सब मेरे ारा ही फै लाई गई
थी। अगर म ऐसा ना करता तो मायाजाल से आपको िनकालना ब त ही
मुि कल हो जाता। .... इस कार आप दोन अब मेरे सामने सुरि त खड़े
हो।”
इतना कहकर कै पर चुप हो गया।
कै पर को चुप होते देख सो फया बोल उठी- “तो फर हम इस
अंडरव ड से तुरंत िनकल जाना होगा। य क य द हेिडस को हमारे ताबूत
से िनकलने के बारे म पता चल गया, तो वह इस बार हम जीिवत नह
छोड़ेगा।”
“घबराइये मत मॉम , अब हेिडस हमारा कु छ नह िबगाड़ सकता? म
इस बात का आपको वचन देता ँ क हम यहाँ से िनकलने म कतना भी देर
लगाय? परं तु हेिडस को हमारे बारे म कु छ भी पता नह चलेगा?” कै पर ने
सो फया को िनभय करते ए कहा।
“तुम हेिडस के बारे म इतने िव ास के साथ कै से कह सकते हो
कै पर? शायद तु ह हेिडस क शि य के बारे म पता नह है। इस अंडरव ड
के अंदर आकर तो उसे जीयूष भी नह हरा सकते।” सो फया ने कै पर को
समझाते ए कहा।
“म जीयूष नह ँ मॉम । आपको भी अभी तक मेरी शि य के बारे म
कु छ नह पता, इसिलये ही आप इस कार क बात कर रह ह। वैसे म एक
बात और आपको बताना चाहता ँ क मायाजाल का िनमाण िसफ हेिडस ही
नह कर सकता। मायाजाल का िनमाण करना म हेिडस से भी अ छी तरह से
जानता ँ।” कै पर ने मु कु राते ए कहा।
“म कु छ समझी नह कै पर? जरा ठीक से समझाओ मुझे।” सो फया ने
अपनी भ ह को िसकोड़ते ए पूछा।
“दरअसल मने वयं हेिडस के चारो ओर एक ऐसे मायाजाल का
िनमाण कया है क हेिडस उसम बुरी तरह से फं सा आ है। .... आप यक न
मान हेिडस तो अभी मका रया व थानाटोस के साथ िमलकर मेरे नकली
शरीर क आ मा को वश म करने म लगा है और जब तक हम यहाँ से िनकल
नह जाते, तब तक वह मेरी आ मा क शि य को अपने साथ िमलाकर
जीयूष व पोसाइडन से जीतने म लगा रहेगा और ऐसा इसिलये होगा य क
इस समय हेिडस अपने सभी सािथय के साथ मेरे बनाये नकली अंडरव ड म
जी रहा है और जब तक म उसे वहाँ से नह िनकालूंगा, तब तक वह मेरे
बनाये मायाजाल से बाहर नह आ सकता।” कै पर ने थोड़ा सा रोष कट
करते ए कहा- “और सच मािनये मॉम , इससे बेहतर सजा उसके िलये और
को ई नह हो सकती। जरा वो भी तो चखे मायाजाल के अंदर रहने का
वाद।”
कै पर क बात सुनकर सो फया व मेरोन दोन ही कै पर को यार
भरी नजर से देखने लगे। उ ह यह साफ पता चल गया था क कै पर अब
सच म बड़ा हो गया था।
अब कै पर मेरोन व सो फया को लेकर अंडरव ड से बाहर जाने वाले
रा ते क ओर चल दया। परं तु अंडरव ड से िनकलने के पहले कै पर जीयूष
को आजाद करना नह भूला था।
काली शि यां कतनी भी शि शाली य ना हो जाय? स य को लंबे
समय तक हरा नह सकत । स य तो कसी ना कसी समय उसके बनाये
मायाजाल से बाहर आ ही जाता है?
◆ ◆ ◆
आकाशगंगा

09.02.02, शिनवार, नासा, वा शंग टन डी.सी. अमे रका


ातःकाल का समय था, ले कन िपछली राि कोई भी ठीक से सो
नह पाया था।
नासा के वै ािनक लगातार न पर नजर गड़ाये बैठे थे। इस समय
सबक िनगाह अंत र वाली न पर थी, िजस पर 4 से 5 कलोमीटर
े फल के , 100 से भी यादा अंत र यान दखाई दे रहे थे।
“सर! यह सभी वही अंत र यान ह, िज ह क हमने कु छ दन पहले
लैक होल से िनकलते ए देखा था।” के िवन ने वकटे श क ओर देखते ए
कहा- “पर सर, जरा इन अंत र यान का आकार तो देिखये। ये सब कतने
यादा बड़े ह? और इनक सं या भी 100 से यादा ह। अगर इन सभी ने एक
साथ पृ वी पर आ मण कर दया, तो या हमारे ांड र क हम बचा
पायगे?”
के िवन क बात सुन वकटे श के चेहरे पर कु छ देर के िलये चंता क
लक र उभर , परं तु तुरंत ही वह फर से सामा य होते ए बोल उठा- “मुझे
लगता है क वा िण नामक वह ांड र क पृ वी को अव य बचा लेगी।
तुमने देखा के िवन क िपछले 2 दन म पृ वी के अलग-अलग भूभाग पर
कस कार क ाकृ ितक मुसीबत आ थ , फर भी वा िण व उसके अ य
सािथय ने कतने अ छे तरीके से सबकु छ स भाल िलया? म तो सोच रहा ँ
क इस यु के समा होने के बाद कु छ दन के िलये वा िण के पेस टे शन
पर ही काम क ं । इससे मुझे नई वै ािनक तकनीक को सीखने का मौका
िमल जायेगा।”
“सर, यह आप कै से कह सकते ह क वा िण के पास कोई पेस टे शन
है?” लूकस ने बीच म बोलते ए पूछा।
“तुमने देखा नह लूकस क कस कार वा िण ने हम सभी से स पक
थािपत कया? और पृ वी के अलग-अलग भूभाग म होने वाली हरकत पर
नजर रखा। इससे साफ पता चलता है क अव य ही वा िण के पास कोई
िछपा आ पेस टे शन है? और म अपनी यह बात यु के बाद सािबत करके
दखा भी दूँगा।” वकटे श ने अपने दािहने हाथ का मु ा बनाकर हवा म
लहराते ए कहा।
“कह तो आप सही रहे ह सर।” के िवन ने कहा- “ले कन एक बात है
सर क वा िण व उसके दो त के पास अन त ांड क शि यां ह। हमने
उन सभी क शि य को भूगभ य हलचल के प म महसूस करके देखा है।
.... अब वेनेजुएला म घटी घटना को ही ले लीिजये। उस थान पर पता नह
कस कार का यु हो रहा था? परं तु आकाशीय िबजली को इतना िवकराल
प धारण करते मने तो कभी भी नह देखा था। और ... और फर उसके बाद
अटलां टक महासागर क तली म आये उस िवशाल भूकंप को हम कै से भूल
सकते ह? िजसक ती ता रए टर के ल पर 16.2 िमली थी। वह तो एक
महा लय के संकेत थे। परं तु इससे पहले क उस भूकंप से आई सुनामी हमारा
अि त व समा कर पाती, क तभी इन ांड र क ने जाने कै से उस
सुनामी को भी काबू म कर िलया? इसके बाद िहमालय पर दूसरे सूय के
दखने के बाद िहमालय का िपघलना, मॉ रटािनया म ि थत सहारा
रे िग तान म आई भूगभ य हलचल, भारत के औरं गाबाद म अचानक से
वालामुखी का फटना, अचानक से पवत क एक िवशाल चोटी का हवा म
उड़ना और फर आिखर म कै लीफो नया क मौत क घाटी म यूँ कसी लैक
होल का कट होकर पृ वी के सभी त व को हवा म ख चना। यह सभी
घटनाएं ये बताने के िलये काफ ह क इन ांड र क के पास कृ ित क
शि यां ह और वह हम और हमारी धरती को अव य बचा लगे।”
के िवन क बात सुन वकटे श ने एक जोर क साँस ली और फर धीरे -
धीरे साँस छोड़ते ए कहा- “तुम सही कह रहे हो के िवन, पर म तो कु छ और
ही सोच कर घबरा रहा ँ?”
अब के िवन सवािलया िनगाह से वकटे श क ओर देखने लगा।
“सोचो के िवन, वा िण ने तो हम इन अंत र यान से सावधान कया
था, परं तु इन अंत र यान के पृ वी के िनकट आने के पहले ही यु शु हो
गया था। इसका साफ मतलब है क पृ वी के कु छ श ु पहले से ही पृ वी पर
उपि थत थे, ले कन वा िण ने उनके िलये हम चेतावनी नह दी थी। इससे
पता चलता है क आज का दन हमारे िलये और भी भारी हो सकता है।”
वकटे श क बात सुन सभी के दल म एक अंजाना सा भय घर कर
गया, परं तु कसी ने भी इस डर को दूसरे पर जािहर नह कया?
तभी लूकस क आवाज ने अि म घी का काम कर दया- “सर, इनके
सबसे बड़े यान के पीछे से, चाँद के समान एक छोटा उप ह तेजी से हमारी
ओर ही आ रहा है, मुझे लगता है क ये अंत र वासी ही इस उप ह को
अपनी शि य से पृ वी क ओर धके ल रहे ह।”
“कह यह कोई उ का पंड तो नह है?” के िवन ने न क ओर देखते
ए कहा- “ य क कोई अंजान उप ह, िबना हम दखाई दये इतनी शी ता
से हमारी आकाशगंगा म कै से आ सकता है?”
“नह यह कोई उ का पंड नह है?” वकटे श ने कहा- “इसका आकार
िब कु ल गोल है और गोल आकार वाले पंड हमेशा उप ह या ह ही हो
सकते ह। परं तु डरने क कोई बात नह है, वा िण इस उप ह को आसानी से
मार िगरायेगी, जैसा क कल उसने कई उ का पंड के साथ कया था।”
ले कन अभी वेकटे श ने इतना ही कहा था क तभी वह उप ह एक
तेज धमाका करता आ वयं ही ला ट हो गया और उसके हजार .... नह
... नह लाख टु कड़े तेज गित से पृ वी क ओर आने लगे।
उप ह के टु कड़े बड़े ही आ यजनक तरीके से सभी अंत र यान के
बगल से होते ए पृ वी क ओर बढ़ रहे थे।
“अब या होगा सर? उप ह के टु कड़े तो सं या म ब त यादा ह,
ऐसे म वा िण इन सभी टु कड़ को पृ वी पर िगरने से नह रोक सकती।”
के िवन के श द म इस बार भय साफ नजर आ रहा था।
दो त आप देख रहे ह क अंत र म यु शु हो चुका है .... तो फर
हम यहाँ नासा म बैठकर, इस यु को न पर य देख? आइये सीधे यु
के मैदान म चलते ह और वह से वयं अपनी आँख से इस यु को देखते ह।
........................................
“अब या कर वा िण? हम इन सभी टु कड़ को पृ वी पर िगरने से
नह रोक सकते।” चं का ने न पर देखते ए गंभीर श द म कहा।
चं का क बात सुन वा िण ने धीरे से अपना िसर िहलाया और फर
मै ा से कहा- “मै ा, इस समय पृ वी क पूव दशा क ओर से, कसी अंजान
उप ह के ब त से टु कड़े पृ वी पर िगरने के िलये आ रहे ह? तु ह इन सभी
टु कड़ से पृ वी को बचाना होगा। एक तुम ही हो िजसके पास ह को
िनयंि त करने क शि है, इसिलये तु ह हम इस मुसीबत से बचा सकती
हो।”
वा िण क बात अंत र म घूम रही मै ा के मि त क म साफ सुनाई
दे रही थी।
“पर वा िण, तुमने तो मुझे पृ वी क उ र दशा क सुर ा का भार
दया है, ऐसे म तुम अचानक से अपने िनणय कै से बदल सकती हो?” मै ा ने
आ य से भरते ए कहा।
“ मा चाहती ँ मै ा, परं तु गु माता माया ने मुझे ही इस यु का
कमांडर िनयु कया है और य द हर देवयो ा मुझसे ऐसे ही पूछता
रहा तो म उसके का उ र दूँगी या फर यु क वा तिवक ि थित पर
िनयं ण रखूंगी। इसिलये आप कृ पया पूव दशा क ओर जाकर ि थित को
िनयं ण म कर।” वा िण ने मै ा को समझाते ए कहा।
वा िण के श द सुन मै ा ोिधत होने के थान पर मु कु रा उठी। वह
समझ गई क इस यु क बागडोर सही हाथ म है, जो आयु व शि य से
हटकर काय का िनधारण कर रही है। इसिलये मै ा िबना कोई पूछे, तेजी
से पूव दशा क ओर उड़ चली?
मै ा जैसे ही पूव दशा क ओर िनकली, तभी उ र दशा से पे टॉ स
का यान िनकलकर सामने आ गया। पे टॉ स का यान उन सभी यान म
सबसे बड़ा था।
इससे पहले क कोई कु छ समझ पाता? क तभी पे टॉ स के यान का
एक शटर खुला और उसम से एक के बाद एक हजार िमसाइल उड़कर पृ वी
क ओर आने लग ।
सभी िमसाइल एक सीध म ना चलकर हवा म जलेबी क तरह घूमती
ई आ रह थ ।
“वा िण, लगता है क पे टॉ स कसी कार से आपक आवाज सुन
रहा था? य क मै ा के िनकलते ही उसने उ र दशा से असं य िमसाइल
छोड़ द ह।” अ त ने घबराते ए कहा- “तुरंत आ ा दीिजये वा िण या
हम पे टॉ स क िमसाइल को न करने के िलये वै णव िमसाइल का योग
करना है?”
वा िण ने अ त क बात सुनी, परं तु उसने अ त को कोई उ र नह
दया? वा िण क नजर लगातार पास आ रही उन िमसाइल क ओर थ ।
कु छ देर तक िमसाइल को देखते रहने के बाद वा िण ने सुयश से
स पक करना शु कर दया- “सुयश तुरंत उ र दशा क ओर प ंचो और
सामने से आ रही सभी िमसाइल को न कर दो।”
“ठीक है वा िण।” सुयश ने उ र दया और िबना कु छ सोचे समझे,
सूय क गित से पृ वी क उ र दशा क ओर उड़ चला।
पे टॉ स ने दमाग लगाते ए एक साथ 2 दशा से हमले का लान
कया था।
तभी वा िण ने नोवान से स पक करते ए कहा- “नोवान, तुम तो
फे रोना ह क अिधकांश यु नीितय के बारे म जानते हो। जरा मुझे यह
बताओ क पे टॉ स यु को जीतने के िलये या तरीका अपनाता है?”
“वा िण, पे टॉ स अपनी जीत के िलये, पहले आ ामक तरीका
अपनाता है, ले कन जब उसे लगता है क वह हार भी सकता है, तो वह पीछे
िपछड़ कर दुगनी ताकत से हमला बोलता है। दु मन उसके पीछे िपछड़ने को
अपनी जीत समझने लगता है और इसी कारण से वह हार जाता है। ले कन
इन सबसे बड़ी बात यह है क पे टॉ स को हराने के िलये हम कसी ना कसी
कार से उसके यान के अंदर वेश करना होगा? और ऐसा संभव नह है
य क यु के दौरान पे टॉ स के यान का दरवाजा िसफ और िसफ राजा
एला का के शरीर से िनकलने वाली ऊजा को महसूस कर वतः ही खुलता है
और राजा एला का यु के दौरान कभी भी पे टॉ स के ार के पास नह
जाता? यही कारण है क पे टॉ स ने आज तक कोई भी यु नह हारा है?”
नोवान ने वा िण को समझाते ए कहा।
“मतलब यह यु शतरं ज के खेल क भांित है, यािन क राजा तक
प ंचे तो वजीर भी हमारे िनयं ण म आ जायेगा। .... इसका मतलब
पे टॉ स को हराने क चाबी राजा एला का है।” वा िण ने अपने दमाग म
नोवान क कही बात को सेव करते ए कहा- “वैसे इतने सारे यान म राजा
एला का का यान है कौन सा?”
“राजा एला का का यान इन सभी यान के म य म कह होगा? उनके
यान पर फे रोना ह का एक शाही मुकुट बना है। .... फे रोना ह के लोग
अपने राजा के यान को िछपाकर रखते ह।” नोवान ने कहा।
“पर अगर इस यु म राजा का कोई काय ही नह है? तो फे रोना के
लोग राजा को यु म लेकर य चलते ह?” वा िण ने ना समझने वाले भाव
से पूछा।
“ य क फे रोना के लोग का मानना है क राजा शुभता का तीक
होता है और वह िजस यु म सेना के साथ होता है, उस यु म फे रोना वासी
कभी हार नह सकते?” नोवान ने वा िण को समझाते ए कहा।
ले कन इससे पहले क वा िण कोई और बात नोवान से पूछ पाती?
क तभी चं का क आवाज ने वा िण का यान भंग कया- “वा िण, मै ा
पूव दशा म प ंच चुक है।”
चं का क बात सुन वा िण भागकर उस न के पास प ंच गई,
िजस न पर मै ा दखाई दे रही थी।
उधर मै ा क नजर लगातार पास आ रहे उप ह के लाख टु कड़ पर
थ।
“यह टु कड़े तो सं या म ब त ही यादा ह, इ ह पृ वी पर प ंचने से
पहले कै से रोका जा सकता है? और वह भी इतने कम समय म।” मै ा
लगातार सोच रही थी- “यह सभी टु कड़े ‘महािव फोट’ (िबग-बग) के ारा
बने ह, िजससे क नई आकाशगंगा का िनमाण होता है। यािन क इन
सबको जोड़ने वाली ऊजा अभी कु छ घंट तक इनम बनी रहेगी। ... तो फर
य ना म उसी ऊजा का योग करके इस उप ह को फर से जोड़ने क
कोिशश क ं ?”
यह सोच मै ा ने अपना प प रवतन करना शु कर दया।
मै ा अब अंत र क ऊजा को सोखकर अपने शरीर का आकार बढ़ाने
लगी। पल ित पल मै ा के शरीर का आकार बढ़ता जा रहा था। कु छ ही देर
म मै ा का शरीर महाकाय बन गया। अब उसके शरीर पर तीन िसर नजर
आने लगे।
यही था महा ैगन लैडन और लीटो क बेटी का असली प, जो
उसने पूरी दुिनया क नजर से िछपा कर रखा था। मै ा का यह प देख एक
बार तो वा िण भी िसहर उठी।
िवशाल आकार लेते ही मै ा ने तेजी से पास आ रहे सभी टु कड़ पर
अंत र क ऊजा का वार कर दया। अब मै ा के दोन हाथ से समु ी हरे
रं ग क तरं ग िनकलकर उन टु कड़ पर पड़ने लग ।
मै ा का यह लान काम कर गया य क अंत र म िबखरे सभी
टु कड़े अब वापस जुड़ने लगे।
इस समय मै ा का पूरा यान उन उप ह के टु कड़ पर लगा था,
इसिलये वह दूसरी ओर उपि थत अंत र यान क ओर से आ रही,
गोलाकार तरं ग को देख नह पाई।
अगले ही पल उन गोलाकार तरं ग ने मै ा के मि त क पर हार
कया। उन तरं ग के हार से मै ा का िसर घूमने लगा। यह देख मै ा ने तुरंत
अपने शरीर का आकार पहले के समान कर िलया और वयं को अपने सुर ा
बुलबुले के अंदर कै द कर िलया।
“हे ई र, यह तो इ ासोिनक तरं ग थ , जो ांड म 2 ह के
टकराने पर उ प होती ह। अ छा आ मने अपने शरीर का आकार घटा
िलया, नह तो वह तरं गे मेरे ाण भी ले सकती थ ।” मै ा ने अंत र यान
क ओर घूर कर देखते ए कहा- “इस यान से तो म बाद म िनपटती ँ। अभी
तो पहले उन टु कड़ पर यान दूँ, जो क मेरा यान बटने के कारण िब कु ल
मेरे पास प ंचने वाले ह। .... पर इतने कम समय म म अब वापस इन टु कड़
को, पहले के समान जोड़ नह सकती। इसका मतलब क अब मुझे इन टु कड़
को रोकने के िलये कसी दूसरी युि का योग करना पड़ेगा?”
तभी मै ा के मि त क म एक िवचार आया। अब उसने शरीर के चारो
ओर बना सुर ा का बुलबुला हटाया और तेजी से उड़कर उन टु कड़ क ओर
चल दी।
“यह मै ा कर या रही है?” अ त ने वा िण क ओर देखते ए
कहा- “ या वह वयं उन टु कड़ से टकराकर उ ह रोकने वाली है?
अ त के श द सुनकर वा िण भी थोड़ा परे शान दखने लगी, य क
उसे भी मै ा क यह तरक ब ब त िविच सी तीत हो रही थी। उसने तो
इस काय के िलये मै ा का चुनाव इसिलये कया था य क उसे पता था क
मै ा के पास ह क शि है, परं तु इस समय तो कु छ उ टा होता दखाई दे
रहा था?
उधर मै ा िव ुत क गित से उड़ती ई उन टु कड़ के पास प ंच गई।
परं तु यह या? .... मै ा तो उन टु कड़ को न करने के थान पर उनसे
बचती ई, पृ वी से दूर जा रही थी।
सभी साँस रोके मै ा के इस कृ य को देख रहे थे।
कु छ ही पल म मै ा सभी टु कड़ को पारकर उनके पीछे प ंच गई।
टु कड़ के पीछे प ंचते ही मै ा ने अपने हाथ से एक नये िसतारे का उदय कर
दया। जैसे ही वह सफे द िसतारा मै ा के हाथ म आया, मै ा ने उसे उन
टु कड़ के पीछे फक दया।
मै ा के फकते ही वह सफे द िसतारा तेजी से अपना आकार बढ़ाने
लगा। जैसे-जैसे िसतारे का आकार बढ़ने लगा, उसक गु वाकषण शि के
कारण पृ वी क ओर जा रहे सभी उप ह के टु कड़े तेजी से उसम िचपकने
लगे।
यह देख वा िण के ह ठ पर मु कान आ गई। आती भी य ना?
आिखर उसने सही समय पर उिचत पा का चयन कया था।
कु छ ही देर म वा िण के हाथ से िनकले िसतारे ने उप ह के सभी
टु कड़ को वयं पर िचपका िलया। सभी टु कड़ को समा होते देख मै ा ने
अपने हाथ के इशारे से िसतारे का आकार घटाना शु कर दया।
कु छ पल के बाद सफे द िसतारा पुनः मै ा के हाथ म समा गया।
अब मै ा ने घूरकर उस यान क ओर देखा और फर उस यान पर
अपने चं गोले का हार कर दया।
मै ा का चं गोला ती गित से आगे बढ़ा और उस अंत र यान से जा
टकराया।
एक ही पल म उस अंत र यान के टु कड़े-टु कड़े हो गये। सबकु छ
इतनी तेजी से आ क यान म बैठा सैिनक बेचारा समझ भी नह पाया क
उसके साथ या आ?
अंत र यान को समा कर चं गोला वापस से गायब हो गया। इसी
के साथ मै ा ने पृ वी के पूव दशा क सुर ा का भार संभाल िलया।
मै ा क मुसीबत को समा होते देख वा िण क िनगाह उस न
पर जम गई, िजधर सुयश गया था।
सुयश इस समय पृ वी के उ री भाग म प ंच गया था और घूम-
घूमकर पास आती िमसाइल को देख रहा था। वह सभी िमसाइल चल तो
टे ढ़ी-मेढ़ी रह थ , परं तु फर भी एक-दूसरे से टकरा नह रह थ ।
“ये िमसाइल तो एक सीध म चल ही नह रह ह, ऐसे म म अपनी
सूय करण से इन पर ल य कै से साध पाऊंगा? .... नह -नह म अपने पहले
ही काय म िवफल नह होना चाहता। मुझे आयन क तरह से सोचना होगा।”
अब सुयश ने कु छ पल के िलये अपनी आँख बंदकर सूयदेव का
आहवान कया।
तभी एक िवचार सुयश के मि त क म कसी सूय करण क तरह
चमका- “यह सभी िमसाइल एक-दूसरे से इसिलये नह टकरा रह य क
यह सभी चु बक य शि पर काय कर रह ह और चु बक य शि का सबसे
बड़ा दु मन ऊ मा होता है। तो फर य द म इन पर सूय क ऊ मा का हार
क ं , तो यह सभी िमसाइल, पृ वी तक प ंचने से पहले ही आपस म
टकराकर न हो जायगी। यािन क इसके िलये मुझे अपने शरीर के ऊ मकण
का योग करना होगा।”
यह सोच सुयश एक थान पर ठहर गया और सूय शि से अपने
शरीर को गम करने लगा। अब सुयश के शरीर से ती सूय क करण
िनकलन लग ।
कु छ ही देर म सुयश वयं एक चलते- फरते सूय म प रव तत हो गया,
िजससे िनकलकर तेज नांरगी रं ग क ऊ मा वातावरण म फै लने लगी। अब
सुयश एक ही थान पर कसी सूय क भांित िव ुत क गित से च र लगाने
लगा।
सुयश के वयं के प रतः नाचते ही उसके शरीर का ताप तेजी से
अंत र म अपना आकार बढ़ाने लगा। कु छ ण के बाद सुयश के शरीर से
िनकली ऊ मा इतनी ती हो गई क वह पूरे आकाश म एक नये सूय क
भांित फै ल गई।
अब पृ वी क ओर आ रही सभी िमसाइल सुयश के शरीर से िनकली
ऊ मा क चपेट म आ ग । सुयश को सोचना िब कु ल सही था अब सभी
िमसाइल आपस म टकराना शु हो ग ।
कु छ ही देर म पृ वी क ओर आ रह सभी िमसाइल न हो ग ।
यह देख सुयश पुनः अपने वा तिवक प म आ गया।
अब जाकर वा िण ने राहत क साँस ली। वा िण क िनगाह एक बार
फर से अंत र म खड़े उन सभी यान क ओर गई, जो पृ वी पर आ मण
करने क मंशा से आये थे।
ले कन थोड़ी देर बीत जाने के बाद भी अंत र यान क ओर से कोई
नया आ मण नह कया गया? इस समय पूरे अंत र म एक अजीब से
शांित छाई ई थी, परं तु वा िण जानती थी क इस शांित म कह ना कह
एक िछपी ई लय भी है?
अंत र के इस िन त ध वातावरण म भी समय अपनी सामा य गित
से चल रहा था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-20
धनु व ा

09.02.02, शिनवार, अराका ीप, अटलां टक महासागर

सु भगदड़़बहका कामाहौल
समय था, परं तु इस समय अराका ीप पर िब कु ल
था। अराका ीप के सभी िनवासी, ज दी से
ज दी अराका ीप को छोड़ देना चाहते थे और यह सब हो रहा था
वा िण के कहने पर।
सभी पु तक को ा करने के िलये यु हो चुके थे। वा िण को पता
चल गया था क मकोटा व िव ु ा एक हो चुके ह और वह ए ोवस पावर
के बचे ए यो ा को लेकर कसी भी पल अराका ीप पर आ मण कर
सकते ह।
इसिलये सुर ा क दृि से वा िण ने जमीन के अंदर रह रहे सभी
सामरा व सीनोर के िनवािसय को वहाँ से हटाने का लान बनाया था।
वा िण नह चाहती थी क अटलां टस क आिखरी स यता का अंत
हो? अतः वह ज दी से ज दी सभी अराकावािसय को वहाँ से िनकाल देना
चाहती थी।
अपने लान के फल व प वा िण ने एक रात पहले ही म यलोक से
मंगाकर, कु छ िविच से जलयान अराका ीप पर िभजवा दये थे। यह
िविच जलयान देखने म चपटी त तरी के समान थे, परं तु यह पूरे के पूरे
काँच जैसी पारदशक धातु से िन मत थे। यह जलयान जल क सतह पर भी
चल सकते थे और पानी के अंदर भी। हां इ ह चलाने के िलये कसी भी ि
क ज रत नह थी।
इस समय अराका ीप के दोन रा य क दु मनी समा हो चुक थी,
इसिलये िजसे भी जहां भी जगह िमल रही थी, वह उस जलयान म बैठकर
अराका से दूर जा रहा था।
आिखरकार 7 जलयान म भरे सभी या ी म यलोक क ओर चल
दये। इस समय म यलोक का यु समा हो चुका था, इसिलये वह सबसे
सुरि त थान था।
जब अराका का यु समा हो जाता, तो सभी नाग रक वापस से
अराका लौट आने थे।
इन सभी नाग रक को सुरि त म यलोक प ंचाने का भार ऐले स
के कं ध पर डाला गया था, इसिलये ऐले स इन सभी जलयान के आगे-आगे
चल रहा था।
ऐले स भी इस समय एक छोटे से जलयान म उपि थत था, जो क
ोन के समान था। यह वही जलयान था, िजसम बैठकर युगाका व ि काली
कई बार या ा कर चुके थे। यह ोननुमा जलयान सामरा रा य क वै ािनक
तकनीक से िन मत था, जो क आवाज से चलता था।
ऐले स जानता था क उसका काय इतना सरल नह होने वाला
य क अभी तक ए ोवस पावर का अंत र यान उसी अटलां टक
महासागर म था, िजस अटलां टक महासागर से इस समय ऐले स जा रहा
था।
अराका ीप से म यलोक का रा ता 6 घंटे का था। परं तु ऐले स के
अके ले होने के कारण उसे यह रा ता ब त उबाऊ लग रहा था।
3 घंटे का माग तीत हो चुका था। परं तु रा त म अभी तक कोई भी
परे शानी नह ई थी? हां कभी-कभी समु के कु छ िवशाल जलीय जंतु
अव य िमले थे, पर कोई भी ऐले स क वशीि य शि के आगे कु छ कर
नह पाई?
तभी ऐले स को आगे दख रहा समु के पानी का रं ग थोड़ा अलग
दखाई दया।
“अभी तक तो हम िजतने भी थान से िनकले, उस सभी थान पर
समु के पानी का रं ग ह का हरा था, परं तु इस थान के पानी का रं ग तो
गाढ़े नीले रं ग का दखाई दे रहा है? या इस थान पर कोई खतरा हो
सकता है?”
यह सोचकर ऐले स ने सभी जलयान को उस थान से पहले ही रोक
दया।
कु छ देर तक अपनी वशीि य शि का योग करने के बाद ऐले स
को यह तो पता चल गया क यह नीला पानी ब त यादा दूर तक नह
फै ला? परं तु इसका कारण अभी भी ऐले स को समझ नह आ रहा था।
अब ऐले स अपने जलयान से िनकला और धीरे -धीरे तैरता आ नीले
पानी क ओर बढ़ने लगा। नीले पानी के पास प ंचकर ऐले स ने नीले पानी
को हाथ से छू कर देखा। ऐले स को वह नीला पानी थोड़ा गाढ़ा सा तीत
आ।
“यह पानी तो ब त ही गाढ़ा है। या इसम कु छ िमला आ है? ....
लगता है क मुझे इसके अंदर वेश करके देखना होगा।”
अब ऐले स उस नीले पानी के अंदर वेश कर गया। पर जैसे ही
ऐले स दूसरी ओर से बाहर िनकला, उसे उस पानी के म य एक ांड
घूमता आ नजर आया। उस ांड म असं य िसतारे थे, जो क ऐले स के
चारो ओर धीमी गित से नाच रहे थे।
“यह पानी के म य ांड कै से आ गया? इस थान पर िब कु ल
अंत र का अहसास हो रहा है। इसका मतलब अव य ही यहाँ पर कोई
अंत र का जीव िछपा है?”
ऐले स इस समय िबना पानी के हवा म लहरा रहा था। सुर ावश
ऐले स ने अपने शरीर को व के समान बना िलया।
तभी ऐले स को एक थान पर एक अंत र जीव खड़ा दखाई दया,
िजसके सीने पर ‘A2’ िलखा आ था।
चूं क वा िण इस समय वयं के यु म उलझी ई थी, इसिलये उसने
पहले ही सभी अराकावािसय को अंत र जीव क जानकारी दे दी थी।
उसी जानकारी के फल व प ऐले स नीडो को पहचान गया।
“अ छा तो ये नीडो है, िजसके पास नेबुला पावर है और उसी शि के
मा यम से इसने समु के अंदर इस कार क रचना क है। मुझे इससे
सावधान रहना होगा। ... पर यह इतनी देर से एक थान पर ही य खड़ा
है? और यह मुझ पर आ मण य नह कर रहा? कह इसम नीडो क कोई
चाल तो नह ?”
यह सोच ऐल स वयं ही हवा म तैरते ए नीडो क ओेर चल पड़ा।
नीडो, ऐले स को अपनी ओर आते ए देख रहा था, परं तु फर भी वह अपने
थान पर शांत खड़ा था।
नीडो के पास प ंचकर ऐले स ने नीडो के शरीर को छू ने क कोिशश
क , परं तु इस कोिशश के बाद तुरंत ऐले स को असिलयत का पता चल गया।
“अरे ! म तो कसी िवशाल पारदश बतन म ँ और नीडो बाहर पानी
म है। इसीिलये नीडो अपने थान से नह हट रहा। ... कह ऐसा तो नह क
नीडो ने जानबूझकर मुझे इस बतन के अंदर डाला है? .... लगता है क इस
नीडो को मेरी शि य का ान नह है। म अभी इस बतन के साथ-साथ
नीडो का म भी तोड़ता ँ।”
यह कहकर ऐले स ने अपनी पूरी शि से पारदश बतन पर हार
कर दया।
एक जोर क आवाज वातावरण म गूंजी- “ट ऽऽऽऽऽऽ।”
परं तु उस काँच के बतन पर खर च भी नह आई। यह देख ऐले स क
आँख कु छ सोचने वाले अंदाज म िसकु ड़ ग ।
ऐले स ने अपनी शरीर क वचा को और कठोर बनाकर पारदश
बतन पर एक हार और कर दया। परं तु इस बार भी ऐले स के घूंसे से कोई
िन कष नह िनकला।
अब ऐले स क गु से भरी नजर नीडो से जा िमल । नीडो ऐले स को
अपनी ओर देखते पाकर मु कु राने लगा।
तभी ऐले स को वह पारदश बतन छोटा होता आ महसूस आ।
“अरे ! यह पारदश बतन तो लगातार छोटा होता जा रहा है, इस
कार तो यह मुझे पीस डालेगा। .... मुझे कसी भी कार इस बतन से बाहर
आना होगा।
उधर ऐले स को बतन म संघष करते देख नीडो ने ना जाने या
कया? क अब पारदश बतन छोटा होने के साथ-साथ, धीरे -धीरे पानी म
ऊपर क ओर उठने लगा।
“अब तो यह बतन मुझे लेकर समु क सतह क ओर जा रहा है। मुझे
तुरंत इस बतन क कोई कमजोरी ढू ंढनी ही होगी? .... वैसे जब म इस बतन
के अंदर आया, तो इसक एक ओर क दीवार नह थी। यािन क इसक उस
ओर क दीवार का िनमाण नीडो ने बाद म कया है।”
अब ऐले स अपनी आँख क शि को बढ़ाकर यान से उस बतन को
देखने लगा।
ब त यान से देखने के बाद ऐले स को उस बतन क बाहरी सतह
पर, एक थान पर एक महीन दरार दखाई दी। अगर और कोई होता, तो
उस दरार को कभी भी नह देख पाता? परं तु ऐले स इस समय अपनी आँख
को कै नर क तरह से योग कर रहा था, इसिलये उसे वह दरार आसानी से
दखाई दे गई।
यह देख ऐले स ने उस थान पर भी अंदर से चोट करके देख िलया,
परं तु वह दरार अंदर से िब कु ल भी कमजोर नह थी।
“इस बतन क बाहरी दीवार कमजोर है, जो क बाहर से टू ट सकती
है, परं तु अब भला इस थान पर मुझे कौन सहायता करे गा?”
धीरे -धीरे समय बीतता जा रहा था। कु छ देर के बाद वह पारदश
बतन पूरी तरह से समु क सतह पर आ गया, परं तु समु क सतह पर
प ंचकर भी बतन का उठना बंद नह आ। अब वह बतन हवा म ऊपर क
ओर जाने लगा।
तभी ऐले स क ती िनगाह ने नीडो को पानी के अंदर भी देख
िलया, जो क अब उन सभी जलयान के सामने खड़ा था। नीडो को देखकर
साफ पता चल रहा था क नीडो के इरादे उस जलयान को लेकर कु छ ठीक
नह ह?
तभी ऐले स को हवा म एक ओर से आते ए असं य तीर दखाई
दये।
“इस थान पर यह तीर कौन चला रहा है? मेरी जानकारी म तो इस
कार से तीर चलाने वाली सुवया ही है, िजसके बारे म वा िण ने बताया
था, परं तु वह तो इस थान से ब त दूर है। ऐसे म यह तीर चलाने वाला
कौन हो सकता है?”
तभी सभी तीर आकर उस पारदश बतन के उसी थान पर धँसने
लगे, िजस थान पर बतन म दरार दख रही थी। हर अगले धँसते तीर के
साथ वह पारदश बतन लगातार कमजोर होता जा रहा था।
इस घटना को देखकर ऐले स यह तो समझ गया क तीर चलाने
वाला दो त है, दु मन नह । परं तु वह तीर ब त दूर समु म उभरे ए एक
पवत से आ रहे थे, िजसके कारण ऐले स को उस दो त के बारे म कु छ पता
नह चल पा रहा था?
“लगता है क वा िण ने मेरे िलये कसी बैकअप का लान भी कर
रखा था। ... चलो अ छा ही है, इस कार से म इस संकट से बच जाऊंगा।”
तभी एक आिखरी तीर ने उस बतन को दरार वाले थान से चटकाकर
तोड़ दया।
बतन के चटकते ही ऐले स हवा से पानी म आ िगरा, परं तु अब
ऐले स ने देर नह क और तेजी से उस थान क ओर तैरने लगा, िजधर
नीडो सभी जलयान के सामने खड़ा था।
“य द म अपने इसी वेष म नीडो के सामने गया तो नीडो कसी और
शि का योग कर मुझे मार देगा। तो फर य ना म नीडो के िबना
अहसास कये उसके पीछे तक प ंच जाऊं और उसे धोके से मार दूँ। ... उसने
भी तो मुझे धोका ही देकर पारदश बतन म फं साया था।”
यह सोच ऐले स ने अपनी वचा को शाक मछली के समान बना
िलया और पानी म तेजी से तैरता आ जलयान क ओर बढ़ चला।
कु छ ही देर म ऐले स जलयान के पास था। अब ऐले स को जलयान
के सामने खड़ा नीडो साफ दखाई दे रहा था, परं तु इस समय नीडो क पीठ
ऐले स क ओर थी।
इस समय य द ऐले स के शरीर पर मनु य क वचा होती, तो उसके
तैरने पर अव य ही आवाज आती, परं तु शाक क वचा होने के कारण नीडो
को अपने पीछे से ऐले स का आना महसूस ही नह आ।
अब ऐले स ने अपने शरीर क वचा पर बडे़-बड़े काँटे उगाकर, नीडो
पर पीछे से हमला कर दया। ऐले स नीडो के पास प ंचकर उससे तेजी से
िलपट गया। ऐले स ने नीडो से िलपटते ही अपने शरीर के काँट का आकार
और भी अिधक बढ़ा िलया।
जब तक नीडो समझता, तब तक वह मृ यु को ा हो गया था।
नीडो को मारने के बाद ऐले स ने राहत क साँस ली और फर से
अपने जलयान म बैठकर, म यलोक क ओर बढ़ गया।
परं तु जाते ए भी ऐले स के मि त क म एक बार-बार घूम रहा
था क वह तीर कसने चलाये थे? और अगर वह दो त था, तो वह ऐले स के
सामने य नह आया?
◆ ◆ ◆
ांड र क

09.02.02, शिनवार, न लोक, कै पर लाउड


इस समय अंत र म एक िन त ध सी शांित छाई ई थी। कोई कसी
पर आ मण नह कर रहा था? सभी बस एक-दूसरे क सेना को देख रहे थे।
परं तु वा िण को जाने य ये शांित ब त यादा ही अखर रही थी?
वा िण क िनगाह बार-बार अलग-अलग न पर जा रही थी।
तभी वा िण क नजर पृ वी क बाहरी क ा म घूम रहे एक अमे रक
सेटेलाइट पर पड़ी। वा िण के देखते ही देखते उस अमे रक सेटेलाइट पर
लगे, सोलर पैनल का एक छोटा सा िह सा वतः ही टू ट गया।
यह देख वा िण चीख उठी- “धोका ..... पे टॉ स शांित का बहाना
कर हम धोका दे रहे ह। कोई अंजान व तु अदृ य अव था म पृ वी क ओर
बढ़ रही है? .... बैकअप ... हम बैकअप क आव यकता है। ..... सावधान
ओरस पृ वी क दि ण दशा से, हमारी सुर ा को लांघकर कोई अंजान
अदृ य व तु पृ वी क ओर बढ़ रही है? और हमम से कोई भी उसे रोक पाने
म असमथ है? पृ वी क सतह से टकराने के पहले तु ह उस अदृ य व तु को
न करना होगा ओरस।”
“मुझे तु हारा मैसेज िमल गया है वा िण, म इस समय पृ वी क
ओजोन लेयर के ठीक नीचे ँ और तु हारे कहे अनुसार दि ण दशा क ओर
बढ़ रहा ँ। मेरे रहते कोई भी अदृ य व तु पृ वी पर नह िगर सकती?” यह
कहकर ओरस ने अपने उड़ने क गित थोड़ी और बढ़ा दी और काश क गित
से दि ण दशा क ओर चल दया।
कु छ ही पल म ओरस पृ वी के दि ण दशा म प ंच गया। इस समय
दि ण दशा क ओजोन लेयर एक थान से हटती ई सी दख रही थी।
यह देख ओरस ने अपने कड़े पर लगा काला बटन दबा दया। अब
ओरस के सामने आधुिनक हिथयार क एक िल ट दखाई देने लगी।
ओरस ने िबना देर कये एक लाल रं ग क िविच सी गन का चुनाव
कर िलया। ओरस के बटन दबाते ही, वह लाल गन ओरस के हाथ म थी। अब
ओरस ने गन का मुख उस दशा क ओर कर दया, िजधर ओजोन लेयर
हटती ई सी तीत हो रही थी।
ओरस के ारा गन का लीवर दबाते ही, उस गन से अनेक लाल रं ग के
छोटे -छोटे गोले िनकले और ओजोन लेयर के पास जाकर फट गये।
ओजोन लेयर के पास का पूरा थान लाल रं ग क रोशनी से भर गया।
इसी के साथ ओरस को एक बड़ा सा अंत र यान दखाई दे गया, जो क
कट होते ही तेजी से पृ वी क सतह क ओर बढ़ने लगा।
यह देख ओरस ने उस पर अपनी लेजर गन से हमला कर दया। ओरस
का िनशाना िब कु ल ठीक था, लेजर गन ने उस अंत र यान को एक थान
से तोड़ दया, परं तु अब ि थित और भी बदतर हो गई, य क अब वह यान
िबना कसी िनयं ण के ती गित से पृ वी क ओर जाने लगा?
यह देख ओरस उड़ता आ उस यान के पीछे भागा, परं तु उस यान क
गित ब त तेज थी, कु छ ही देर म ओरस काफ पीछे छू ट गया। यह देख
ओरस काफ घबरा गया य क अब उस यान को पृ वी से टकराने से ओरस
नह बचा सकता था।
उधर यह दृ य देख वा िण क आँख भी भय से चौड़ी हो ग य क
उसके पास भी इस ि थित से बचने के िलये कोई बैकअप नह था?
“वा िण, वह अिनयंि त यान ऑ े िलया महा ीप क घनी आबादी
क ओर जा रहा है। हमारे पास अब इतना समय नह बचा है क हम उस
यान को बीच म ही रोक सक। ज दी बताइये क हम या करना है?” चं का
ने घबराते ए कहा।
चं का क बात सुन वा िण ने माया को पुकारना शु कर दया-
“सहायता क रये गु माता, एक थान क ि थित मेरे िनयं ण से बाहर हो
रही है।”
वा िण का इतना कहना था क तभी ओरस के सामने माया कट हो
गई और उसने िबना एक ण गंवाए ओरस के आगे एक ऊजा ार उ प कर
दया।
ओरस पूरी शि से अंत र यान के पीछे जा रहा था, इसिलये उसे
अपने सामने एकाएक उ प ए माया ार का पता ही नह चला। परं तु
अगले ही ण ओरस को सबकु छ पता चल गया, य क वह माया ार के
दूसरी ओर से ऑ े िलया महा ीप के एक िह से म जाकर िगरा, जो क घनी
आबादी से कु छ ही दूरी पर था?
एक ण को तो ओरस को कु छ भी समझ म नह आया? परं तु जैसे ही
उसक िनगाह आकाश से जमीन क ओर आ रहे अंत र यान पर पड़ी, वह
एक पल म सबकु छ समझ गया।
“वा िण म कसी कार से पृ वी पर आ गया ँ? और वह अंत र
यान अब मेरे सामने है, इसिलये परे शान होने क कोई आव यकता नह है?
अब म सबकु छ ठीक कर दूँगा।”
यह कहकर ओरस िव ुत क गित से उस अंत र यान क ओर
लपका।
वा िण समझ नह पा रही थी क ओरस इतनी ती गित से िगर रहे
अंत र यान को कै से रोक पायेगा? परं तु वा िण ने तुरंत चं का से कहकर
अपनी सेटेलाइट को उस दशा क ओर मुड़वा िलया, िजधर वह अंत र
यान िगर रहा था।
वा िण को उस अंत र यान के दृ य िमलने लगे थे।
अंत र यान अब पृ वी क सतह से अिधक दूर नह था, मा 5
सेके ड म उसे पृ वी से टकरा जाना था। यह देख वा िण क धड़कन कु छ
सेके ड के िलये क सी गई ...... 5 .....4 ......3 ......2 ....1
परं तु तभी पृ वी पर टकराने से 1 सेके ड पहले ही वह अंत र यान
कह गायब हो गया?
“अरे ! वह अंत र यान कहाँ गया?” वा िण खुशी से चीखकर बोली-
“उसके िगरने क तो आवाज भी सुनाई नह दी।”
तभी वा िण को ओरस क आवाज सुनाई दी- “ य क मने उस
अंत र यान को अपने ज़े टोनाइजर के ारा च टी के आकार म प रव तत
कर दया है। अब भला च टी पृ वी पर िगरकर भला कह आवाज करती है
या?”
ओरस क बात सुनकर वा िण ने एक बार फर राहत क साँस ली।
पर राहत क साँस लेना, इस समय तो जैसे वा िण के भा य म ही
नह था य क तभी वा िण को नोवान क आवाज सुनाई दी- “सावधान
वा िण, पे टॉ स अब पूरी शि से हमला करने जा रहा है य क मुझे ब त
दूर अंत र म एक िनहा रका का झु ड इधर ही आता आ दखाई दे रहा है
और जैसा क तुम जानती हो क पृ वी क आकाशगंगा म िनहा रका नह ह।
इसका साफ मतलब है क यह ांडीय बादल पे टॉ स अपनी शि से
इधर बुला रहा है। .... एक िमनट वा िण, यह िनहा रकाएं सुनहरे रं ग क ह
.... इसका मतलब क यह वह िनहा रकाएं ह, जो कसी भी उस आकाशगंगा
को िनगल जाती ह, जहां जीवन होता है। यह उन सभी ह को यू ान टार
म प रव तत कर देती ह और इनसे बच पाना कसी भी हाल म संभव नह
होगा?”
नोवान क बात सुनकर वा िण के पसीने छू ट गये।
तभी पे टॉ स के यान के पास एक सीध म घूम रहे 5 जुगनू जैसी
आकृ ित दखाई दी। उस आकृ ित पर नजर पड़ते ही नोवान पुनः बोल उठा-
“यह तो पे टॉ स क पंचतारा शि है। हे ई र लगता है क पे टॉ स अब
यु को ज दी से ज दी जीतना चाहता है।”
“नोवान आप पहेिलयां मत बुझाइये और मुझे ज दी से पे टॉ स क
पंचतारा शि के बारे म बताइये।” वा िण ने थोड़ा रोष कट करते ए
कहा।
“पे टॉ स क पंचतारा शि 5 सूय क शि है, जो क एक सीध म
गित करते ह। यह पंचतारा शि कु छ ही ण म इस आकाशगंगा को
पूणतया जला देगी और यहाँ के हर एक ह को एक नया सूय बना देगी।”
नोवान ने कहा।
पे टॉ स क दोन शि य के बारे म जानने के बाद अब वा िण ब त
तेजी से अपना दमाग चला रही थी।
“कौन कर सकता है पे टॉ स क इन दोन शि य का अंत? अरे कोई
तो होगा हमारे पास इस समय, जो हम इस मुसीबत से िनकाल सके ?”
तभी वा िण के कान म एक आवाज सुनाई दी- “म अंत र से आ
रही सुनहरी िनहा रका को वश म कर सकता ँ।”
चूं क वा िण अभी सबक आवाज नह पहचानती थी, इसिलये उसे
यह नह पता चल पाया क यह श द कसने कहे? इसिलये वा िण क
िनगाह अपने सामने रखे एक यं क ओर गई, िजस पर सभी देवयो ा के
नाम िलखे थे और उन सभी के नाम के ऊपर एक हरे रं ग क लाइट जल रही
थी।
परं तु एक नाम के ऊपर क लाइट इस समय लाल रं ग क थी और वह
नाम था- “चं वीर।”
वा िण ने िबना देर कये चं वीर को आडर दनदना दया- “ठीक है
तो आप तुरंत उस िनहा रका को रो कये, तब तक म पंचतारा को रोकने के
िलये कोई और बंध करती ँ?”
तभी वा िण को अपने मि त क म सुयश क आवाज सुनाई दी-
“वा िण मुझे लगता है क शायद म इस पंचतारा शि को रोक सकता ँ?”
“परं तु आयन .... मेरा मतलब है क सुयश तु हारे श द म मुझे पूण
िव ास नह दखाई दे रहा।” वा िण ने सुयश को समझाते ए कहा।
“तु हारे पास और कोई िवक प नह है वा िण, मुझे नह लगता क
मै ा पंचतारा क ऊजा सोख पाएगी, य क हजार वष पहले वह पंचशूल
क ऊजा भी सोख नह पाई थी, इसी कारण से उसक मृ यु ई थी और मेरे
पास सूयशि है, जो करोड़ िड ी तापमान को भी सोखने म स म है। यह
भी सोचो क पंचतारा है तो सूय का ही िवकिसत प। इसिलये मुझसे सही
िवक प तु हारे पास नह है।” सुयश ने वा िण को समझाते ए कहा।
तब तक पंचतारा शि ने अपना आकार बढ़ाना शु कर दया। उसके
ताप का असर सीधा-सीधा पृ वी पर दखाई देने लगा। पंचतारा शि के
भाव से पृ वी क ओजोन लेयर भी टू टने लगी।
“ यादा मत सोचो वा िण, हमारे समय ब त कम है। मुझे पंचतारा
शि को सोखने क आ ा दो।” सुयश ने वा िण से आ ह करते ए कहा।
“ठीक है सुयश ... म तु ह आ ा देती ँ, पर यान रखना तु हारे पास
इस ज म म मरने का िवक प नह है, इसिलये जीिवत वापस लौटना आयन।
अपने िलये नह तो अपनी शलाका के िलये।” कहते-कहते वा िण का गला
थोड़ा ं ध गया। शायद हजार वष पहले क दो ती इस िनणय के आड़े आ
रही थी।
वा िण का आदेश पाते ही सुयश, काश क गित से पंचतारा क ओर
चल दया।
उधर चं वीर भी फ नी स का वेष धरकर एक बार फर अंत र क
एक शि से लड़ने चल दया था।
यह देवयु पुनः एक थान पर प ंचकर पलटता आ दखाई दे रहा
था।
◆ ◆ ◆
गु शि

09.02.02, शिनवार, अराका ीप, अटलां टक महासागर


इस समय अराका ीप के तट पर सनूरा, जेिनथ व टी खड़ थ ।
तीन ने अपने शरीर पर चु त यो ा के समान व पहन रखे थे।
लुफासा हर बार क तरह इस बार भी चील बनकर, आसमान क
ऊंचाइय से अराका क सुर ा व था स भाल रहा था।
तभी सनूरा ने धीरे से जेिनथ व टी क ओर देखते ए पूछा- “आप
दोन के पास कौन सी महाशि ह?”
सनूरा क बात सुनकर जेिनथ ने टी क ओर देखा और फर
मु कु राते ए बोली- “हमारे पास िव ास क शि है, िजसके ारा हम
अपने सभी यु जीत जाती ह।”
“िव ास क शि ? .... ये कस कार काम करती है?” सनूरा ने ना
समझ म आने वाले भाव से पूछा।
“ मा चाहते ह सनूरा, परं तु हमारे पास कसी भी कार क शि
नह है? हम तो आपसे मजाक कर रहे थे।” टी ने सनूरा से कहा।
“तो फर ... तो फर आप इन ांड र क के म य, इस यु म या
कर रही ह?” सनूरा ने हड़बड़ाते ए कहा- “इसका मतलब क य द हम पर
आ मण आ तो उससे अराका को बचाने के िलये िसफ म और लुफासा ही
ह।”
सनूरा के िलये तो यह समझना ही मुि कल हो रहा था क यह दोन
िबना कसी शि के इस थान पर कर या रही ह? परं तु सनूरा, वा िण के
चयन पर सवाल नह उठाना चाहती थी, इसिलये यादा कु छ नह बोली?
“अ छा तो आप लोग सामने खड़े रथ से कोई भी हिथयार उठा लो?
और कोिशश करना क इस यु म सबसे पीछे रहो।” सनूरा ने रथ क ओर
इशारा करते ए कहा।
सनूरा क बात सुन टी व जेिनथ रथ क ओर बढ़ गये। रथ के अंदर
िविभ कार के अ -श रखे थे।
टी ने इधर-उधर देखते ए एक लंबे फल वाला चाकू उठा िलया,
परं तु जेिनथ को तो उन हिथयार म से कु छ भी समझ म नह आया, इसिलये
वह खाली हाथ ही रथ के पास से वापस आ गई।
सनूरा ने एक नजर टी के हाथ म पकड़े चाकू पर मारी और फर
जेिनथ को खाली हाथ देखकर मु कु रा उठी। वह समझ गई क इन दोन ने
इसके पहले कोई यु नह लड़ा है? यह दोन तो गलती से इस थान पर फं स
गई ह।
तभी सनूरा को समुद क ओर से तेज ‘ - ’ क आवाज सुनाई दी।
यह आवाज सुनते ही सनूरा सावधान मु ा म दखाई देने लगी य क यह
संकेत लुफासा का था, जो क एक कार के यु का संकेत था।
अब सनूरा को आसमान म उड़कर चील बना लुफासा आता दखाई
दया। परं तु जैसे ही सनूरा क नजर लुफासा के पीछे के समु पर पड़ी, एक
ण म उसक साँस सूख ग । य क लुफासा के पीछे ब त दूर समु क एक
ऊंची लहर अराका क ओर ही आ रही थी। वह लहर आसमान छू ती ई
दखाई दे रह थ ।
तभी टी व जेिनथ क िनगाह भी उन समु क लहर पर पड़ी।
इतनी िवशाल लहर को देख तो टी के हाथ म थमा चाकू भी नीचे िगर
गया।
तभी अचानक जेिनथ के मि त क म एक िवचार आया- “इस सुनामी
से अराका को बचाने के िलये कै पर क योगशाला म जाना होगा, जो क
अराका के नीचे ि थत है।”
“अरे ! यह िवचार वतः ही मेरे मि त क म कै से उठ रहे ह?” जेिनथ ने
अपने मन से बात करते ए कहा- “मुझे तो कै पर क योगशाला क कोई
जानकारी नह है? .... नह -नह म कै पर क योगशाला के बारे म तो
सबकु छ जानती ँ .... पर कै से? और म वहाँ तक प ंचूंगी कै से? .... अरे हां,
याद आया। कै पर क योगशाला म जाने का एक रा ता तो मेरे गले म
ि थत लैकून से जाता है। ... पर म िबना ज़ेिन स या ओरस क सहायता के
अपने ही गले म ि थत लैकून के अंदर कै से जा सकती ँ? .... एक िमनट ...
म लैकून के अंदर जा तो सकती ँ, परं तु उसके िलये मुझे अपनी आँख बंदकर
लैकून के बारे म सोचना होगा।”
अजीब सी ि थित थी जेिनथ के िलये वह अपने ही दमाग म खोई ई
वयं से ही बात कर रही थी। तभी ना जाने या सोचकर जेिनथ ने अपनी
आँख बंद कर ल और लैकून के बारे म सोचने लगी।
कु छ देर ऐसे ही सोचते रहने के बाद जेिनथ ने जब अपनी आँख खोल ,
तो वह सच म लैकून के अंदर थी।
“यह तो म सच म लैकून के अंदर आ गई और यह पूरा लैकून मुझे
जाने य देखा-देखा लग रहा है? कह ऐसा तो नह क ज़ेिन स जाते ए
अपनी सारी मृितयां मुझे दे गई है? या फर कसी कार से म अब भी
ज़ेिन स के सू म शरीर से जुड़ी ई ँ। ज र कु छ ऐसा ही आ है? परं तु अब
जब मुझे इस बारे म पता चल गया है, तो मुझे देर ना करते ए अराका को
इस िवशाल समु क लहर से बचाना होगा। हां याद आया इस फ नी स क
मू त के पीछे एक क है। उस क के ारा म कै पर क योगशाला म प ंच
सकती ँ।”
अब जेिनथ ने देर नह कया और भागती ई फ नी स के पीछे के क
म वेश कर गई। उस क म एक ओर एक ांसिमट मशीन रखी थी। जेिनथ
फटाफट से उस मशीन के लेटफाम पर खड़ी हो गई और उसने उस मशीन
पर लगे नीले बटन को दबा दया।
जेिनथ के ऐसा करते ही मशीन से नीली रोशनी िनकलकर जेिनथ पर
िगरी और इसी के साथ जेिनथ ांसिमट होकर कै पर क योगशाला म
प ंच गई।
जेिनथ को अपने सामने अनेक चलती ई न दखाई दे रह थ ।
तभी जेिनथ क िनगाह उस न क ओर गई, िजस पर समु तट के
कनारे खड़ी ई जेिनथ, सनूरा और टी दखाई दे रह थ ।
“अरे ! म तो जेिनथ के एक प म वहाँ समु तट पर भी खड़ी ँ। यह
कै से संभव है? या म एक ही समय पर 2 प धारण कर सकती ँ? ... अरे ये
सब सोचकर म बेकार अपना समय न कर रही ँ। मुझे तुरंत पहले अराका
के ऊपर सुर ा कवच चढ़ाना होगा।”
उधर समु कनारे सनूरा व टी क हालत खराब थी, य क
इतनी बड़ी सुनामी से तो दोन म से कोई भी नह िनपट सकता था? इसिलये
दोन ने जेिनथ को पीछे भागने का इशारा कया, परं तु जेिनथ पीछे भागने
क जगह अपने ही थान पर खड़ी रही।
यह देख टी ने जेिनथ को ख चते ए कहा- “तु ह या हो गया है
जेिनथ? इससे पहले क यह िवशाल लहर हम बहाकर समा कर द, हम
पीछे क ओर जाना ही होगा।”
“ य जाना होगा हम पीछे ?” जेिनथ ने अचानक से अजीब से अंदाज
म कहा- “ य ना हम इस अराका ीप के ऊपर एक सुर ा कवच बना द।”
इतना कहकर जेिनथ ने अपना एक हाथ ऊपर क ओर उठा दया।
ठीक इसी समय पर कै पर क योगशाला म बैठी जेिनथ ने अराका ीप के
ऊपर सुर ा कवच चढ़ा दया।
अब अराका के ऊपर एक गोलाकार िवशाल काँच का कवच बनना शु
हो गया। कवच को बनते देख, चील के प म उड़ रहा लुफासा भी कवच के
अंदर आ गया।
परं तु इस समय सबसे अिधक आ य तो सनूरा व टी को हो रहा
था।
“तुम तो कह रही थी क तुम दोन म कसी भी कार क शि नह
है? तो फर जेिनथ ने यह सब कै से कया?” सनूरा ने टी क ओर देखते
ए कहा।
“आप क ही तरह म भी इस समय आ य म ँ य क यक न क रये
अभी तक तो जेिनथ के पास कोई भी शि नह थी? फर भला यह सब
‘जादू’ इसने कै से कया? यह मेरी भी समझ से बाहर है।“
तभी लहराती ई सागर क आसमान छू ती लहर अराका ीप पर आ
िगर , ले कन सुर ा कवच चढ़ जाने के कारण अराका का कोई नुकसान नह
आ?
इधर समु कनारे खड़ी जेिनथ भी अपने 2 प से पूरी तरह से हैरान
थी, परं तु उसने अपनी हैरानी को टी या सनूरा पर नह कया?
अब समु क लहर भी धीरे -धीरे सामा य होती जा रह थ ।
तभी समु क लहर के बीच से एक बार फर वही िचर-प रिचत
अंत र यान बाहर िनकल आया, जो क पहले भी एक बार अराका पर
आ मण करने आ चुका था।
वह यान अराका ीप से कु छ दूरी पर आकर क गया। यान के कने
के बाद उस यान का ऊपरी िह सा कसी शटर क भांित खुल गया और उससे
6 लोग िनकलकर यान के ऊपर आ खड़े ए।
उनम से 4 तो ए ोवस पावर के वही जीव थे, िजनके शरीर के ऊपर
बने गोले म कु छ ना कु छ िलखा था? यान पर खड़े बाक के 2 लोग मकोटा व
िव ु ा थे।
मकोटा को देखते ही लुफासा व सनूरा के दल म नफरत क लहर दौड़
गई। परं तु िव ु ा को उनम से कोई भी नह पहचानता था?
“ये छठी ी कौन है? देखने से तो यह पृ वीवासी ही लग रही है।”
सनूरा ने अपने मि त क के मा यम से लुफासा से पूछा।
वा िण ने मन से मन म बात करने क तकनीक सभी लोग को बांट
दी थी।
“मुझे भी नह पता सनूरा।” लुफासा ने कहा- “कह यह मकोटा क
पि तो नह ? जो अभी तक िछपकर कह रह रही होगी।”
अभी यह सब बात कर ही रहे थे क तभी अचानक पूरी अराका क
धरती तेजी से िहल उठी। इससे पहले क यह लोग कु छ समझ पाते अराका
क धरती दूसरी बार िहल उठी?
अब कै पर क योगशाला म बैठी जेिनथ के सू म प ने बारी-बारी
सभी न पर देखना शु कर दया। कु छ ही देर म जेिनथ क नजर एक
न पर जाकर टक गई।
उस न पर अराका ीप का पानी के नीचे वाला भाग दख रहा
था। अब जेिनथ क नजर पानी के अंदर घूम रह सैकड़ हेल मछिलय के
ऊपर गई। वही हेल मछिलयां बार-बार अपने िसर से अराका ीप पर चोट
कर रह थी, िजसक वजह से अराका पर भूकंप सा तीत हो रहा था।
यह देख जेिनथ ने वहाँ लगे कई बटन एक साथ दबा दये। जेिनथ के
ऐसा करते ही अराका ीप के सभी कनार से 20 फु ट लंबे धारदार चाकू
िनकल आये।
तभी कु छ हेल मछिलय ने चाकू क परवाह ना करते ए अराका
ीप पर पुनः चोट मारी। परं तु चोट मारते ही लंबे फल वाले चाकू हेल
मछिलय के िसर म घुस गये।
यह देख बाक बची हेल मछिलयां अराका ीप से दूर हटने लग ,
परं तु यह दृ य भी जेिनथ को गवारा नह था। उसने एक और बटन दबा
दया, िजसके फल व प अराका ीप से िनकले चाकू तेजी से पानी म
च ाकार गित करने लगे। यािन क अराका ीप वयं एक िवशाल च क
भांित बन गया। िजसके कारण दूर जा रही कई हेल मछिलयां अराका ीप
के कृ ि म च से मारी ग ।
उधर लुफासा व सनूरा समझ गये क वा िण ने अव य ही िबना
बताये अराका ीप के िनमाता को भी अपनी ओर िमला िलया है, िजसके
कारण िनमाता बार-बार उ ह मुसीबत से बचा रहा है।
अपने 2 यास को िवफल जाते देख, अचानक िव ु ा, अंत र यान
से हवा म उठी और उसने अपने शरीर का आकार बढ़ाना शु कर दया।
कु छ ही देर म िव ु ा का आकार 500 फु ट का हो गया। अब िव ु ा
के हाथ म देवी महाकाली का कृ पाण नजर आने लगा।
िव ु ा का यह प देख सभी घबरा गये। उ ह ने कभी कसी को
इतने भयानक अवतार म नह देखा था? परं तु मकोटा िव ु ा का यह प
देख अ यंत स हो उठा।
तभी िबना कसी को कोई मौका दये िव ु ा ने अपने कृ पाण का एक
वार अराका के सुर ा कवच पर कर दया।
िव ु ा के इस वार से ती विन उ प हो गई।
अब िव ु ा अराका के कवच पर एक ही थान पर लगातार अपने
कृ पाण से वार करने लगी। धीरे -धीरे िव ु ा क मेहनत रं ग लाती जा रही
थी और अराका का कवच टू टता जा रहा था।
अब िव ु ा के कहर से अराका के लोग को बचाने वाला कोई नह
था? सभी डरे -सहमे से िव ु ा के इस महाकाली अवतार को िनहार रहे थे।
◆ ◆ ◆
पंचतारा

09.02.02, शिनवार, न लोक, कै पर लाउड


वा िण इस समय ब त ही बेचैन नजर आ रही थी। य क उसके
सामने एक साथ 2 परे शािनयां खड़ी थ ।
एक परे शानी सुनहरी िनहा रका के प म पृ वी को िनगलने आ रही
थी, तो दूसरी मुसीबत पंचतारा के प म पृ वी को जलाने क कोिशश कर
रही थी।
वा िण ने इन दोन परे शािनय से बचने के िलये सुयश व चं वीर को
भेज दया था, परं तु फर भी वा िण कु छ घबराई ई सी लग रही थी,
य क वा िण सुयश व चं वीर क जीत को लेकर पूरी तरह से आ त नह
थी।
तभी वा िण को अपने मि त क म एक आवाज सुनाई दी- “ या आ
मेरा दो त इतना परे शान य दख रहा है?”
यह आवाज सुनते ही खुशी के मारे वा िण क आवाज कांप गई-
“कै पर!”
“भगवान का शु है क तुम अभी तक मेरी आवाज नह भूली।”
कै पर ने इस माहौल म भी वा िण से शरारत करते ए कहा।
कै पर क आवाज सुन वा िण का चेहरा सभी के सामने बनने-िबगड़ने
लगा। वा िण इस समय अपने भाव को वश म नह कर पा रही थी। इसिलये
वह सबके सामने से हटकर न शाला के बाहर के भाग क ओर आ गई।
सभी से थोड़ा दूर जाने के बाद वा िण ने अपनी भावना को
िनयंि त करते ए कहा- “तुम ब त ग दे दो त हो कै पर। मुझे .... मुझे
इतने बड़े यु म अके ला छोड़कर चले गये। ... तुमने यह भी नह सोचा क म
भला इतनी शि य को कै से संभाल पाऊंगी? यहाँ सभी मुझसे बड़े ह। तु ह
या पता क मने कै से सब पर िनयं ण पाया है? अरे िजस समय मुझे
तु हारी सबसे अिधक आव यकता थी, उसी समय म तुम मुझे छोड़कर चले
गये। .... और ... और तुमने तो शी वापस लौटने का वचन दया था। .... ये
है तु हारी शी ता। ... एक दन और क जाते, तो पता नह मुझसे बात भी
कर पाते क नह ? .... तुम बस एक बार मेरे सामने आ जाओ .... तो म तु ह
बताती ँ। .... छोड़ूंगी नह तु ह।”
वा िण तो मानो भावावेश म बोलती ही जा रही थी और कै पर ....
कै पर तो िब कु ल शांत होकर वा िण क बात सुन रहा था।
जब वा िण ने अपनी पूरी भड़ास िनकाल ली, तो कै पर धीरे से बोल
उठा- “अब अगर ोध शांत हो गया हो तो मेरी भी बात सुन लो। ..... जरा
अपनी न शाला क िखड़क से बाहर झांक लो, म बाहर ही ँ।”
कै पर क बात सुन वा िण ने तुरंत अपनी आँख से िनकले आँसु को
ज दी से प छा और न शाला क िखड़क के पास आ गई।
बाहर कै पर अपने दागरिहत सफे द पंख वाले घोड़े जीको पर उड़
रहा था।
जैसे ही कै पर क नजर वा िण से टकराई, उसने एक लांइग कस
हवा म उछाल दी।
“दु कह का!” वा िण ने मु कु रा कर कहा और फर न शाला का
ार खोल दया।
कै पर जीको सिहत न शाला के अंदर आ गया। अंदर आकर कै पर
घोड़े से उतरा और वा िण के गले से लग गया।
तभी कै पर को अपने पीछे से िव म क आवाज सुनाई दी- “ई र का
शु है क तुम आ गये कै पर, नह तो सच म म तो वा िण को खो ही देता।
िपछले 3 दन से यह ब त यादा परे शान दख रही थी।”
िव म को देख कै पर वा िण से अलग आ और िव म के गले से लग
गया। दोनो ने एक दूसरे क पीठ पर थपक देकर, एक-दूसरे म उ साह का
संचार कया और फर दोन अलग हो गये।
“अब तुम आ गये हो कै पर, तो अपने यु क कमान वयं से
संभालो। म तो थक गई ँ सबको आदेश दे-देकर।” वा िण ने कहा।
“अरे नह -नह । मुझे तो इस यु के बारे म कु छ भी नह पता? इस
यु क कमांडर तो तुम ही हो वा िण, मुझे तो बस इतना बताओ क हम
कस थान पर फं सते ए दख रहे ह? और तुमने मेरी तैया रय को पूरा
कया क नह ?”
यह कहकर कै पर वा िण से यु क जानका रयां लेता रहा। लगभग
10 िमनट के बाद कै पर को यु क मौजूदा जानकारी हो गई।
तभी चं का क तेज आवाज ने सभी का यान उसक ओर ख चा-
“वा िण, चं वीर फ नी स का प लेकर िनहा रका तक प ंच गये ह।
आपको इस दृ य को देखना चािहये।”
चं का क बात सुनकर िव म-वा िण व कै पर भागते ए,
न शाला के अंदर के िह से क ओर चल दये।
सभी को उधर आते देख चं का ने एक न क ओर इशारा कया,
िजस पर इस समय फ नी स बना चं वीर दखाई दे रहा था, जो क िवशाल
आकार म सुनहरी िनहा रका के पास प ंच गया था।
चं वीर ने अब पृ वी क ओर देखते ए अपने मुंह से एक ती अि के
समान ऊजा िनकाली। चं वीर के मुख से िनकलते ही उस ऊजा ने आगे बढ़
रही िनहा रका के सामने एक ांडीय दीवार बना दी।
उस दीवार को देख चं वीर ने राहत क साँस ली और फर सुनहरी
िनहा रका को जांचने के िलये उसके अंदर वेश कर गया।
परं तु जैसे ही चं वीर ने िनहा रका के अंदर वेश कया, उसे अपने
पंख क गित थमती ई सी महसूस ई।
“इस िनहा रका के अंदर मेरे पंख थम गये ह, इसका मतलब इसका
घन व ब त अिधक है। अब देखता ँ क यह मेरे शरीर के बाक िह स पर
या भाव डालती है?” चं वीर ने अब अपने शरीर को िब कु ल ही ढीला
छोड़ दया और अपने शरीर के कण के मा यम से िनहा रका क जांच करने
लगा।
तभी अचानक ही चं वीर के शरीर को एक झटका लगा।
“अरे ! यह िनहा रका तो कसी सजीव क भांित मेरे शरीर के कण
पर हार कर रही है। लगता है क ये नािभक य िवखंडन के िस ांत पर काय
करती है और इसी िस ांत का योग कर आकाशगंगा को समा करती है,
ले कन इसे शायद पता नह है क म अपने कण के नािभक को जोड़कर रखने
क कला जानता ँ, इसिलये यह कु छ भी करके मेरे शरीर को तोड़ नह
सकती?”
(नोटः ांड क येक व तु कण से बनी है और येक कण के अंदर
इले ान, ोटान और यू ान पाये जाते ह, िजसम इले ान ऋणा मक ऊजा
व ोटान धना मक ऊजा रखते ह, परं तु यह दोन त व अपने नािभक म
उपि थत यू ान के च र लगाते ह। यू ान इन दोन कण को बांधे रखता
है, परं तु य द कसी भी कारण से कण का नािभक टू ट जाता है, तो पूरा कण
िबखर जाता है।)
चं वीर आज अपने हजार वष के ान का पूरा योग कर रहा था।
चं वीर लगातार सुनहरी िनहा रका पर अ ययन कर रहा था क
तभी चं वीर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आये।
“अरे इस िनहा रका म तो एक ऐसा कण है, िजसे मने आज तक नह
देखा। इस कण के अंदर तो नािभक ही नह है और यह कण कसी अ ात
ऊजा से अपने कण को बांधे रख रहा है। यह कै से संभव है? यह तो कृ ित के
िनयम से िब कु ल अलग कण है। .... अरे यह अ ात कण तो मेरे कण के
नािभक को भी समा कर रहा है, इस कार से तो मेरा शरीर भी इस
िनहा रका के अंदर समा जायेगा .... पर ... पर अब म इससे बचूं कै से? मेरे
पास तो इस कण से लड़ने क शि ही नह है। ...... वा िण ... वा िण या
तुम मुझे सुन पा रही हो?”
परं तु चं वीर को वा िण क कोई आवाज सुनाई नह दी? अब
चं वीर बुरी तरह से सुनहरी िनहा रका के म य फं स गया था।
उधर वा िण को िनहा रका के म य का दृ य दख तो रहा था, परं तु
वह भी चं वीर से स पक नह कर पा रही थी।
“लगता है चं वीर, उस िनहा रका को समा नह कर पायेगा।”
िव म ने न पर नजर गड़ाये ए कहा- “अब या कर वा िण?”
ले कन इससे पहले क वा िण कोई उ र दे पाती क तभी अ त ने
वा िण का यान दूसरी न क ओर लगाया।
“वा िण, सुयश और पंचतारा के म य भी यु शु हो चुका है।”
अ त ने कहा।
अब सभी चं वीर वाली न को छोड़कर सुयश वाली न क
ओर आ गये।
पंचतारा का आकार अब काफ बड़ा हो गया था, परं तु वह पांचो
िसतारे अभी भी एक सीध म घूम रहे थे।
पंचतारा के कारण उस थान का तापमान भी अब ब त अिधक हो
गया था।
तभी सुयश ने आगे बढ़कर उस पंचतारा के म य ि थत तारे को अपने
हाथ से पकड़ िलया और उसक ऊजा को अपने शरीर के अंदर समािहत करने
लगा।
धीरे -धीरे म य वाले तारे क ऊजा कम होनी शु हो गई। यह देख
वा िण सिहत सभी के चेहरे पर मु कान िथरक उठी। उ ह लगा क कम से
कम सुयश तो यह यु जीत ही जायेगा क तभी म य वाले तारे क चमक
अचानक से फर बढ़ गई।
“अरे ! यह म य वाला तारा तो कनारे वाले तार क ऊजा ख चकर
फर से काशमान हो रहा है।” सुयश ने वा िण से बात करते ए कहा-
“लगता है क मुझे एक साथ इन सभी तार क ऊजा को ख चना होगा।
“परं तु सुयश .... या तुम सभी पांच िसतार क ऊजा एक साथ
ख च पाओगे?” वा िण ने अपनी शंका कट करते ए कहा- “य द तु ह
कसी भी कार क शंका है? तो तुम क जाओ सुयश। हम इस पंचतारा से
बचने क कोई दूसरी योजना बनाते ह?”
“नह वा िण, अब हमारे पास दूसरी योजना पर काय करने के िलये
समय नह है। पंचतारा के तापमान से पृ वी क ओजोन लेयर न होती जा
रही है। अगर कु छ ही देर म हमने इस पर िनयं ण नह थािपत कया तो
यह पृ वी क ओजोन लेयर के साथ-साथ इस पूरी आकाशगंगा को जला
देगा। ... इसिलये अब म एक साथ इन सभी तार क ऊजा ख चने जा रहा
ँ। ”
इतना कहकर सुयश ने वा िण के उ र क ती ा भी नह क और
अपनी पूरी शि लगाकर पंचतारा क ऊजा को अपने शरीर म समािहत
करने लगा।
धीरे -धीरे सुयश का शरीर ऊजा से भरता जा रहा था, परं तु सुयश
अपनी अद य इ छाशि से पंचतारा क ऊजा को लगातार ख चता जा रहा
था।
इस समय वा िण क न शाला म सभी क साँस क थ ।
तभी अचानक पंचतारा क ऊजा म तेज बढ़ोतरी ई और एक धमाके
से सुयश का शरीर कण म िबखरकर पूरी आकाशगंगा म िबखर गया, परं तु
सुयश ने िबखरने से पहले उस पंचतारे का अंत कर दया था।
ांड का एक अि तीय यो ा जो क सूयपु था, सूय क ही अनंत
ऊजा म िवलीन हो गया।
“आयनऽऽऽऽऽऽऽऽ।” वा िण के मुंह से एक तेज चीख िनकल गई- “अब
म शलाका को या मुंह दखाऊंगी? उसे कै से बताऊंगी क उसका आयन मेरे
कारण इस ज म म उसका नह हो पाया? या शलाका मुझे इस अ य
अपराध के िलये मा करे गी?”
कहते-कहते वा िण उस थान पर नीचे बैठ गई। वा िण क आँख से
िनरं तर आँसू बह रहे थे, परं तु अब कु छ भी नह हो सकता था? इसिलये
िव म व कै पर, वा िण को चुप कराने क कोिशश करने लगे।
कु छ देर तक बैठी रहने के बाद वा िण एकाएक ोध से खड़ी ई और
एक मशीन क ओर चल दी- “अब इस पे टॉ स को म सजा दूँगी।”
यह कहते ए वा िण ने एक ऊंची सी मशीन पर लगा बटन दबा
दया।
वा िण के ऐसा करते ही न शाला के पास वाले बादल का शटर
हटा और उसम से असं य अंत र यान िनकलकर आकाश क ओर चल
दये।
उन सभी अंत र यान को कु छ िविच जीव चला रहे थे। यह वही
िविच जीव थे, जो कै र के कहने पर अंत र म िस ल भेजने के िलये गये
थे। कै पर ने इसी जीव को देखकर वा िण को देवयु के बारे म बताया था।
यह सभी जीव कै पर के कहने पर वा िण ने िछपकर बनाये थे।
कु छ ही ण म वा िण क यह आधुिनक सेना, पे टॉ स क सेना के
सामने खड़ी थी।
तभी वा िण ने उस मशीन पर लगा दूसरा बटन दबा दया। यह बटन
अंत र म यु का ऐलान था।
वा िण के बटन दबाते ही वा िण क िविच सेना ने पे टॉ स के
अंत र यान पर लेजर करण से आ मण कर दया।
पे टॉ स क सेना ने भी वा िण क सेना का जवाब देना शु कर
दया।
अंत र म फु लझिड़यां छू टने लग थ और इस समय नासा सिहत
िव के सभी देश क िनगाह अंत र के उस यु पर थी। आिखर उनका
भिव य भी तो उसी यु पर टका था।
◆ ◆ ◆
चैपटर-21
मकड़जाल

09.02.02, शिनवार, अराका ीप, अटलां टक महासागर

इ अराकास ीपसमयके ऊपर


िव ु ा िवशाल आकार धारण कर, अपने कृ पाण से
बने कवच पर ती गित से हार कर रही थी।
धीरे -धीरे िव ु ा का ये यास सफल होता आ दखाई देने लगा और
अराका के कवच म दरार नजर आने लगी।
तभी िव ु ा ने उछलकर एक जोर का आिखरी हार अराका के
कवच पर कर दया। िव ु ा के इस हार से अराका का कवच टू टकर िबखर
गया। इसी के साथ िव ु ा ने अपने िवशाल प के साथ अराका क धरती
पर कदम रख दया।
िव ु ा इस समय पूण प से महाकाली के समान नजर आ रही थी,
िजसका रौ प देख जेिनथ, टी, लुफासा व सनूरा दहल रहे थे।
तभी िव ु ा ने एक भयानक गजना करते ए कहा- “म इस अराका
ीप पर उपि थत सभी यो ा को एक साथ यु का आहवान करती ँ। ....
है इस अराका पर कोई वीर? जो मेरा सामना कर सके ।”
ले कन इससे पहले क लुफासा या सनूरा म से कोई भी िव ु ा क
इस ललकार को वीकार कर उसके सामने आ पाता क तभी एक पतली सी
आवाज ने सभी का यान भंग कया।
“ या आप मुझसे यु करने के िलये तैयार हो रा स माँ?”
इस धीमी आवाज को सुन िव ु ा क िनगाह नीचे क ओर गई।
िव ु ा के सामने जमीन पर एक 5 फु ट का बालक खड़ा था, परं तु आ य क
बात यह थी क वह बालक पूरा का पूरा लकड़ी से बना था। उस बालक के
हाथ म एक छोटा सा लकड़ी का डंडा था।
लकड़ी के न हे से बालक को देख िव ु ा ने अपना आकार सामा य
कर िलया और उस बालक के सामने जा खड़ी ई। अब िव ु ा के हाथ से
महाकाली का कृ पाण गायब हो गया था।
“तुम तो लकड़ी से बने हो बालक। कौन हो तुम और तुम मुझसे यु
करने य आये हो? या तु ह अपने जीवन से कोई मोह नह ?” िव ु ा ने
अपने चेहरे पर मु कान लाते ए कहा।
“मेरा नाम ‘ वि ल’ है रा स माँ और म महावृ का पु ँ। म इसी
अराका ीप पर हमेशा से रहता आया ँ, इसिलये मुझसे आपक ललकार
देखी नह गई और म आपसे यु करने के िलये चला आया। म जानता ँ क
आपको मुझसे परािजत होने का डर सता रहा होगा, परं तु या क ं , मुझे भी
तो अपने का धम का िनवाह करना है?”
“तु हारी आवाज तो ब त ही मीठी है वि ल, परं तु तु हारे िवचार
से चुनौती क खुशबू आ रही है। म नह जानती क तु हारे पास कौन सी
शि यां ह? परं तु फर भी तु हारा इस कार चुनौती देना, मेरे मन म तु हारे
ित संदेह उ प कर रहा है, इसिलये अब म तु ह एक बालक नह बि क
अपने ित ंदी के प म देख रही ँ। .... अतः सावधान हो जाओ वि ल म
तुम पर वार करने जा रही ँ।”
यह कहकर िव ु ा ने अपना हाथ ऊपर उठाया। ऐसा करते ही
िव ु ा के हाथ म एक दोधारी चमचमाती ई तलवार कट हो गई। अब
िव ु ा ने वि ल पर वार करने के िलये, अपना हाथ ऊपर क ओर उठाया
क तभी िव ु ा को अपने हाथ म कु छ िलपटता आ सा महसूस आ?
यह महसूस करते ही िव ु ा क िनगाह अपने उठे ए हाथ क ओर
गई, परं तु ऊपर देखते ही िव ु ा बुरी तरह से च क गई। इस समय िव ु ा
का हाथ उसके आस-पास उपि थत पेड़ ने पकड़ रखा था।
“अ छा तो तु हारे पास वृ शि है।” िव ु ा ने तीखी नजर से
वि ल क ओर देखते ए कहा- “अब मुझे तुम जैसे बालक पर हाथ उठाने म
कोई लािन नह होगी?”
इतना कहकर िव ु ा ने अपनी पूरी शि लगाकर, अपने दािहने
हाथ को झटका दया।
िव ु ा के ऐसा करते ही वह दोन वृ जड़ से उखड़ गये, िज ह ने
िव ु ा का हाथ पकड़ रखा था। अब िव ु ा ने अपनी तलवार का तेज
हार वि ल पर कर दया।
परं तु यह या? वि ल ने िव ु ा का हार अपने हाथ म पकड़े
लकड़ी के डंडे पर रोक िलया। यह देख िव ु ा क आँख म आ य ही
आ य भर गया।
“तुम तो कोई मायावी बालक लग रहे हो? और तु हारे इस दंड म तो
कोई िविच शि भरी ई है? अब तो तु ह मारने के प ात, म तु हारा
लकड़ी का यह दंड अपने पास रख लूंगी। .... महादेव के ि सपमुखी दंड के
िछन जाने के बाद, थम बार म इस कार का दंड देख रही ँ।” िव ु ा ने
कहा।
“ठीक है रा स माँ, तो म आपको यह वचन देता ँ, क य द आपने
मुझे परािजत कर दया, तो म वयं ही आपको अपना दंड दे दूँगा। परं तु अभी
तो मुझे परािजत कर दखाइये।”
यह कहकर वि ल ने अपना डंडा पीछे क ओर ख चा। वि ल के
ऐसा करते ही िव ु ा क तलवार, खंचकर वि ल के हाथ म आ गई।
परं तु वि ल ने उस तलवार का योग करने के थान पर उसे दूर फक दया
और इससे पहले क िव ु ा वि ल पर दूसरा हार कर पाती, वि ल हवा
म उड़ता आ अराका ीप के अंदर क ओर चल दया।
“अ छा तो यह बालक उड़ना भी जानता है। कोई बात नह , अब म
इसका पीछा पाताल तक नह छोड़ूंगी?” यह कहकर िव ु ा उस बालक के
पीछे -पीछे उड़ चली।
उड़ते ए िव ु ा को कु छ दूरी पर एक महािवशाल वृ दखाई
दया, िजसक शाखाएं आकाश को छू रह थ । वि ल उड़ता आ उसी
महावृ क ओर जा रहा था।
“ कतना िवशाल वृ है, ऐसा वृ तो मने आज तक कह भी नह
देखा? इस वृ क तो जड़ भी पाताल क गहराई तक ह गी।” िव ु ा उड़ते
ए तेजी से सोच रही थी- “यह अराका भी ना जाने कतने रह य को अपने
अंदर समेटे है। कभी समय िमला तो म इसके रह य को अव य जानना
चा ँगी।”
धीरे -धीरे महावृ िनकट आता जा रहा था। तभी िव ु ा को वि ल
उस महावृ क एक मोटी सी शाख पर उतरता आ दखाई दया।
यह देख िव ु ा भी उस शाख पर उतर गई। परं तु जैसे ही वि ल ने
िव ु ा को उस शाख पर उतरते ए देखा, वह भागकर उस शाख म
उपि थत एक बड़े से कोटर म कू द गया।
वि ल को िवशाल कोटर म वेश करते देख िव ु ा भी तेजी से उस
कोटर के अंदर समा गई।
जैसे ही िव ु ा उस कोटर म समाई, महावृ खुशी से झूमते ए
अपने आकार को घटाने लगा। उसे देखकर ऐसा लग रहा था क जैसे महावृ
ने जानबूझकर िव ु ा को फं साने का लान कया था।
इधर िव ु ा महावृ के व त के अंदर चली गई थी, तो उधर
वि ल व िव ु ा के आँख से ओझल होने के बाद मकोटा के चेहरे पर एक
जहर बुझी मु कान िथरक उठी।
िव ु ा को अराका ीप के अंदर क ओर जाते देख एक बार तो
लुफासा का भी मन आ क वह भी उनके पीछे -पीछे चला जाये, परं तु सामने
समु क लहर पर खड़े मकोटा व ए ोवस पावर के कु छ यो ा को देख,
लुफासा अभी भी चील का प धर आसमान म उड़ता रहा।
तभी ओरे ना व ीवेन उछलकर अंत र यान के नीचे आ ग और
समु क लहर पर चलती ई अराका ीप क ओर बढ़ चल ।
“सावधान टी व जेिनथ, ओरे ना व ीवेन हमारी ओर ही बढ़ रही
ह। अब हम दोन को ही इ ह रोकना होगा य क हमारे िसवा अब इ ह
रोकने वाला अराका पर कोई नह है? इसिलये िजसके पास जो भी शि है,
उसका योग करो, परं तु कै से भी इन लोग को जीतने नह देना है?”
सनूरा ने जेिनथ व टी को सावधान करते ए कहा। इसके बाद
सनूरा तुरंत ही िवशाल काली िब ली म प रव तत हो गई।
सनूरा ने अपने िशकार को िचि हत कर िलया। वह ीवेन थी, जो क
कसी क भी आधी शि य को छीनकर उ ह के समान बन जाती थी।
ीवेन को सनूरा क ओर जाते देख जेिनथ और टी ओरे ना क ओर
बढ़ चल ।
मकोटा व ए ोवस पावर क बाक बचे 2 यो ा अंत र यान पर
अभी भी खड़े थे। शायद उ ह कसी का इं तजार था? य क जाने य
मकोटा बार-बार अपने हाथ पर पहने एक िविच यं को देख रहा था।
देखने से ही पता चल रहा था क वह िविच यं इस पृ वी का तो नह था।
शायद वह िविच यं मकोटा को फे रोना ह के उ ह जीव ने दया था।
उधर सनूरा के पास प ंचते ही ीवेन ने सनूरा के ही समान िवशाल
िब ली का प धारण कर िलया और गुराती ई सनूरा से िभड़ गई। दोन के
बीच अंतर िसफ इतना था क ीवेन इस समय गाढ़े नीले रं ग क िब ली
बनी थी, जब क सनूरा येक बार क तरह अपने काले रं ग के अवतार म
थी।
सनूरा ने हवा म छलांग लगाई और ीवेन के िसर पर एक जोर का
पंजा मार दया। सनूरा के पंज से ीवेन घायल ज र हो गई, परं तु अगले ही
पल ीवेन सनूरा को पहली बार उसी क शि य का वाद चख दया।
ीवेन इस बार छलांग लगाते ए हवा म उड़ने लगी और जैसे ही वह
सनूरा के ठीक ऊपर प ंच गई, उसने सनूरा क पीठ पर अपने दाँत जोर से
गड़ा दये। एक पल म ही सनूरा क पीठ का कु छ माँस ीवेन के मुंह म आ
गया।
घायल सनूरा ने घूरकर ीवेन क ओर देखा और फर गु थम-गु था
होते ए ीवेन पर आ मण कर दया।
इस यु म धीरे -धीरे ीवेन, सनूरा पर भारी पड़ती जा रही थी।
लुफासा से यह सब देखा नह जा रहा था, परं तु लुफासा ने सनूरा के
ाण बचाने के थान पर मकोटा पर नजर रखना, यादा उिचत समझा।
उधर ओरे ना िबना कसी शि का योग कये ए टी व जेिनथ से
लड़ रही थी? टी अपनी फू त के कारण अिधकांशतः ओरे ना के वार से
बच जा रही थी।
तभी जेिनथ ने उछलकर एक जोर का वार ओरे ना के पेट पर कर
दया। जेिनथ के शि शाली हार से ओरे ना दूर जा िगरी। इस बार टी ने
ओरे ना को िगरने के बाद कोई मौका नह दया और िबजली क तेजी से
ओरे ना पर एक साथ कई हार कर दये।
टी के वार से ओरे ना के मुंह से खून आ गया, परं तु फर भी ओरे ना
मु कु राती ई उठी और एक बार फर दोन पर टू ट पड़ी।
तभी जाने य कै पर क योगशाला म बैठी जेिनथ क आँख कु छ
सोचने वाले अंदाज म िसकु ड़ ग ।
“मुझे यह यु कु छ समझ म नह आ रहा? मकोटा बार-बार अपने
हाथ म बंधे यं को देख रहा है, जब क उसके पास खड़ी बाक दोन अंत र
यो ा सामने हो रहे इस यु म भाग भी नह ले रह ह। ... अब आते ह
ओरे ना क ओर तो ओरे ना भी िबना कसी शि का योग करे यह यु लड़
रही है? .... कह ना कह कु छ ना कु छ तो गड़बड़ है? ... पर या गड़बड़ हो
सकती है? .... एक िमनट ओरे ना के पास तो मि त क म वेश करने क शि
है? तो अभी तक इसने कसी के मि त क म वेश य नह कया?”
अभी जेिनथ यह सोच ही रही थी क तभी उसे अपने पीछे कसी के
होने का अहसास आ? यह अहसास होते ही जेिनथ तेजी से पीछे क ओर
पलटी।
परं तु पीछे पलटते ही जेिनथ को अपनी साँस कती ई सी महसूस
ई य क उसके िब कु ल पीछे ओरे ना खड़ी थी।
दोन ही आ य से एक-दूसरे को देखने लग ।
“तुम ... तुम यहाँ तक कै से आ गई? तु ह यहाँ का माग कसने बताया?
... और समु तट पर लड़ रही वह दूसरी ओरे ना कौन है?” जेिनथ ने आ य
भरे वर म ओरे ना से कया।
“यही तो म तुमसे पूछना चाहती ँ क तुम य द यहाँ हो तो मेरे
वा तिवक शरीर से लड़ने वाली वह लड़क कौन है?” ओरे ना ने उ टे जेिनथ
से ही कर िलया।
परं तु ओरे ना के से जेिनथ को यह तो पता चल ही गया क यह
ओरे ना का असली शरीर नह बि क ऊजा प है।
अब जेिनथ क िनगाह ओरे ना के थान पर उसके पीछे लगे एक सुर ा
यं क ओर गई। एक सेके ड से भी कम समय म जेिनथ के दमाग म एक
लान आया और उस लान को मूत प देने के िलये जेिनथ ने ओरे ना से बात
करते ए एक दशा म जाना शु कर दया।
“दरअसल तु हारे जैसी शि मेरे पास भी है, इसिलये म भी उस
शि का योग कर जेिनथ के दमाग से होती ई इस योगशाला तक आ
गई।” जेिनथ ने कहा- “म चाहती थी क म इस योगशाला पर िनयं ण
करके तुम सभी लोग को रोक लूं और यह सब म इस योगशाला के
वा तिवक अिधकारी के आने से पहले करना चाहती थी, परं तु मेरे सामने एक
सम या है क मेरा ऊजा प तु हारे समान कु छ उठा नह सकता? म तो बस
अपने ऊजा प का योग कसी चीज को देखने के िलये कर सकती ँ।”
बोलते-बोलते जेिनथ एक ऊंची सी मशीन के पास प ंच गई और
इससे पहले क ओरे ना का ऊजा प कु छ समझ पाता क तभी जेिनथ ने उस
ऊंची मशीन म लगा एक लाल बटन दबा दया। जेिनथ के ऐसा करते ही
कै पर क योगशाला का सुर ा तं जाग उठा और उसने ओरे ना के ऊजा
प पर, लाल करण का हार कर उसे जकड़ िलया।
अब ओरे ना गु से से जेिनथ को घूरने लगी।
“तु ह या लगता है क तुम मुझे पकड़कर हमारे लान को जान
जाओगी? ऐसा कभी नह हो सकता जेिनथ। म तु ह कु छ भी बताने से पहले
मरना पसंद क ं गी। तुम तो िसफ इतना जान लो क तुम सभी का समय अब
आ चुका है। तुम सब िमलकर भी हमसे जीत नह सकते य क कु छ ही ण
म तु हारी आधी शि यां हमारे पास ह गी।”
“ठीक है ओरे ना, य द तुम मुझे कु छ भी बताने के िसवा मरना ही
चाहती हो, तो म तु हारी यह इ छा अव य पूरी क ं गी, परं तु यहाँ एक
अ ात थान पर नह , बि क वहाँ अराका के समु तट पर सबके सामने।”
इधर जेिनथ ने ओरे ना के सामने ये कहा, उधर समु तट के पास खड़ी
जेिनथ ने ओरे ना का िसर पकड़कर जोर से एक ओर घुमा दया। जेिनथ के
इस वार से असली ओरे ना क गदन क ह ी टू ट गई और इसी के साथ ओरे ना
का ऊजा प भी कै पर क योगशाला से गायब हो गया।
ओरे ना को मरते देख टी ने जोर क ंकार भरी। टी क ंकार
सुन सनूरा से लड़ती ई ीवेन अपने थान पर क गई। ीवेन ने मरी पड़ी
ओरे ना को देखा और फर यु छोड़कर अपने वा तिवक आकार म आ गई।
ीवेन को यु छोड़ते देख सनूरा भी अपने असली प म आ गई।
अब ीवेन चलती ई ओरे ना के शव के पास प ंची और उसके शरीर
को उठाकर, दुखी मन से अंत र यान क ओर चल पड़ी।
ीवेन को इस कार वापस लौटते देख सनूरा खुशी से भर उठी, उसे
लगा क यह यु समा हो गया, परं तु कु छ ही ण म सनूरा क खुशी
काफू र हो गई, य क अब वह अंत र यान समु क लहर से िनकलकर
ठीक अराका के पास प ंच गया था और उस पर खड़े लोग को देखकर साफ
लग रहा था, क अब वह सभी एक साथ यु करने वाले ह।
तभी अराका क धरती पर हवा म एक गोला उ प आ और उसम
से िनकलकर रोजर, मेलाइट, ा व िशव या बाहर आ गये। इस समय
कािशका पु तक छोटे प म िशव या के हाथ म थी।
मेलाइट व रोजर को आते देख सनूरा खुशी से भर उठी। उसने भागकर
मेलाइट को गले से लगा िलया।
“तुम िब कु ल सही समय पर आई हो मेलाइट। य क अराका पर एक
नया यु शु होने वाला है और इस समय हमारे पास यादा यो ा भी नह
थे।” सनूरा ने खुशी करते ए कहा।
तभी समु क लहर एक थान वतः ही ऊंची उठने लग और इससे
पहले क कोई कु छ समझ पाता उ ह लहर पर खड़े ए कौ तुभ, धनुषा,
िपनाक व सारं गा दखाई दये। इस समय साग रका पु तक धनुषा के पास
थी। इन चारो को भी वहाँ पर देख ा व िशव या स हो गये। उ ह ने
सभी को इन चारो के बारे म बता दया।
इस समय अराका पर लगातार महायो ा क सं या बढ़ती जा रही
थी।
अगले ही ण इस ृंखला म कु छ नये नाम और भी जुड़ गये और वह
नाम थे- “ि शाल, किलका, युगाका व सुवया के । यह सभी आकाश माग से
अराका पर उतरे ।
सुवया इस समय अपने संह पर सवार थी और युगाका व ि शाल को
किलका ने अपने काश शि से बने रथ पर बैठा रखा था।
सुवया आते ही सनूरा व मेलाइट के साथ खड़ी हो गई। युगाका भी
इतने महायो ा को एक साथ अराका पर देखकर अ यंत स हो उठा।
उसे अब अराका क जीत का िव ास हो चला था।
इतने सारे यो ा के बढ़ जाने के बाद मकोटा व सभी अंत र के
जीव कु छ कदम पीछे हो गये?
तभी सबक नजर आकाश माग से आती नीली िततिलय के एक झु ड
पर गई। कु छ ही देर म वह सभी नीली िततिलयां अराका ीप पर उतर ग ।
अब उन िततिलय के झु ड के म य सभी को वेगा, वीनस व टोबो दखाई
दये। इस समय सभी क नजर वीनस के चमचमाते टल जैसे पंख पर
थी।
नीचे उतरते ही वेगा व वीनस ने िसर झुकाकर युगाका को णाम
कया।
वीनस को आया देख लुफासा भी चील का अवतार याग कर वीनस के
पास आ गया। कु छ देर यूं ही देखते रहने के बाद लुफासा ने वीनस को गले से
लगा िलया।
“हो सके तो मुझे मा कर देना वीनस।” लुफासा ने ं धे गले से कहा-
“म तु ह व सामरा रा य के लोग को उस बात क सजा देना चाहता था, जो
क युगाका के िपता ने कभी कया ही नह था? .... मुझे वेगा से कोई बैर
नह ? .... और मुझे यह र ता पसंद है।”
वीनस ने भी लुफासा को रोते देख उसे माफ कर दया। बस इससे
यादा अभी इस समय पर कोई बात संभव भी नह थी, इसिलये सभी का
यान अब अपने सामने खड़े उन अंत र के जीव क ओर था।
वैसे लुफासा, वीनस, वेगा व युगाका को एक साथ देख मकोटा क
आँख जल उठ , परं तु इतने यो ा के सम अभी कु छ भी कहना सही नह
था? इसिलये मकोटा अपने थान पर खड़ा सभी को देखता रहा।
तभी 2 ओर से यो ा का एक समूह और अराका के तट पर उतरा।
दािहनी ओर से आने वाले समूह म एक उड़ने वाली कार व एक
अि पंड था। अराका पर उतरकर अि पंड शलाका म प रव तत हो गया।
उड़ने वाली कार यू ान थी, िजसम जे स, आच व आगस थे।
बांई ओर से एक बफ का पंड व एक सुनहरा गोला आता दखाई
दया, जो क मशः ि काली व ोम थे। ोम के हाथ म चमचमाता आ
पंचशूल साफ नजर आ रहा था।
नीचे उतरते ही ोम क िनगाह शलाका पर पड़ी। ोम से नजर
िमलते ही शलाका ने अपनी नजर को नीचे क ओर झुका िलया। यह देख
ोम ने घबराकर उस भीड़ म आकृ ित को ढू ंढने क कोिशश क , परं तु आकृ ित
ोम को कह दखाई नह दी?
यह देख ोम समझ गया क आकृ ित अब इस दुिनया म नह है। कोई
और समय होता तो शायद ोम अपनी कोई ित या अव य जािहर
करता? परं तु यह समय ित या जािहर करने का नह , बि क अपनी शि
के प रचय का था। इसिलये ोम अपने थान पर शांत खड़ा रहा।
पर ोम क था, िबना कु छ कहे ही ि काली समझ गई, इसिलये
उसने धीरे से ोम का हाथ अपने हाथ म थाम िलया। उधर ोम व
ि काली को सुरि त देख युगाका के भी चेहरे पर राहत के भाव उभरे ।
य क युगाका को कलाट क मृ यु का पता पहले ही चल चुका था और वह
अब अपने प रवार क कोई भी ित और नह होने देना चाहता था?
इधर सभी के मि त क म कु छ ना कु छ झंझावात चल रहे थे, परं तु
उधर मकोटा लगातार अपने हाथ म पहने यं को बार-बार देख रहा था।
अराका ीप पर िजतने भी यो ा बढ़ते जा रहे थे, मकोटा के हाथ म
बंधे यं क न पर बनी एक लाइन, उतनी ही तेजी से लाल होती जा रही
थी।
शायद यह यं अपने अंदर कु छ रह य समेटे था? िजसके खुलने का
समय ती गित से पास आता जा रहा था।
समय ब त तेजी से अपना मकड़जाल बुन रहा था और शतरं ज क
िबसात पर दोनो प अपने-अपने मि त क का योग कर चाल चलने म लगे
थे।
◆ ◆ ◆
लयकण

09.02.02, शिनवार, न लोक, कै पर लाउड


अंत र म यु क शु आत हो गई थी। पे टॉ स के अंत र यान का
सामना इस समय वा िण क बनाई िविच जीव क सेना से था।
दोनो ओर से ेपा व लेजर करण से यु चल रहा था।
धीरे -धीरे वा िण क सेना का पलड़ा भारी होता जा रहा था य क
वा िण क सेना के पास अंत र यान क सं या अिधक थी।
तभी पे टॉ स का अंत र यान धीरे -धीरे पीछे क ओर जाने लगा।
पे टॉ स के यान को पीछे जाते देख फे रोना ह के बाक के यान भी पीछे क
ओर जाने लगे।
उसी समय वा िण को नोवान क कही बात याद आ गई। अब वा िण
ने चीखकर सभी को आगाह करते ए कहा- “सावधान दो त , पे टॉ स
अपनी पूरी शि से आ मण करने वाला है।”
तभी पे टॉ स के यान से एक लाल रं ग क करण िनकलकर अंत र
म िगरी और उस थान पर एक िवशाल ऊजा ार दखाई देने लगा।
इससे पहले क कोई उस ऊजा ार का रह य जान पाता, क तभी
उस ऊजा ार से िबजली क तेजी से हजार यान िनकलकर वा िण क सेना
पर टू ट पड़े।
एक ही पल म पे टॉ स क सेना वा िण के जीव पर भारी पड़ने
लगी।
यह देख वा िण ने मन म सोचना शु कर दया- “पे टॉ स ने इस
ार के पीछे अपनी आधी सेना को इसी समय के िलये रख छोड़ा था। लगता
है क िबना पे टॉ स को हराये इस यु को नह जीता जा सकता और म इस
यु को िजतना अिधक ख चूगी, मेरे जीतने के ितशत उतने ही कम होते
जायगे। ले कन ... ले कन अभी तो मुझे कसी कार से पे टॉ स के खोले इस
ार को बंद करना होगा? .... पर कै से? ..... हां यितराज।”
यह सोच वा िण ने हनुका को याद कया- “यितराज, अब समय आ
गया है। अब आप र भैरवी क िडिबया को खोल द और र मेघ क शि से
पे टॉ स के ार को बंद करने का यास कर। अब इन फे रोना ह के लोग
को अपनी पौरािणक शि का प रचय देने का समय आ गया है।”
“जी आकाशकु मारी, म तो कब से इसी पल क ती ा कर रहा था।”
हनुका ने स होते ए कहा।
वा िण का आदेश मान हनुका ने अपने व म िछपी र भैरवी क
िडिबया को िनकाल िलया। यह वही िडिबया थी, िजसे नीलाभ ने लोक म
हनुका को दान क थी।
हनुका ने अपने शरीर का आकार बढ़ाया और र भैरवी क िडिबया
को खोलकर, उसम उपि थत र क एक बूंद को अपनी हथेली पर रगड़
दया।
हनुका के ऐसा करते ही हनुका क हथेली से गाढ़ा लाल रं ग का धुंआ
िनकलने लगा और अंत र म बादल के समान फै लने लगा।
इस समय पे टॉ स क नजर हनुका क हथेली से िनकले ‘र मेघ’ पर
थी। तभी र मेघ से लाख िपशाच ने िनकलना शु कर दया।
वह सभी िपशाच र मेघ से िनकलते ही उड़कर, पे टॉ स के अंत र
यान क वंड न पर िचपकने लगे। िजसके कारण फे रोना ह के यान
चालक को बाहर का दृ य दखना बंद हो गया। अब उनके यान आपसे म ही
टकराकर न होने लगे।
िपशाचसेना को अपनी ओर देख वा िण के बनाये जीव का साहस
और भी अिधक हो गया। परं तु सम या अभी भी समा नह ई थी, य क
पे टॉ स के ार से अभी भी अंत र यान िनकलते जा रहे थे।
तभी वा िण को सुदरू अंत र से कु छ और अंत र यान आते दखाई
दये, जो क सं या म ब त अिधक थे।
“हे मेरे ई र, उ र दशा से तो और भी अंत र यान आ रहे ह।
जब क सुयश क मृ यु के बाद उ र दशा थोड़ी कमजोर हो गई है।” इस
समय वा िण के चेहरे के भाव देखने वाले थे।
तभी अ त बोल उठा- “वा िण, उ र दशा क ओर से आ रहे यान
हमसे स पक करने क कोिशश कर रहे ह।”
यह सुन वा िण भागकर अ त क न के पास आ गई।
“उनसे स पक करो, म देखना चाहती ँ क वह हमसे या चाहते ह?”
वा िण ने कहा।
वा िण का आदेश सुन अ त ने लाइन को कने ट कर दया। अब
सामने क न पर एक चेहरा नजर आने लगा।
“हम सभी नेिमरॉस ह के जीव ह। हम आपके श ु नह बि क िम ह
और अपने राजा महान आगस के कहने पर पृ वी क सुर ा के िलये आये ह।
आपक एक ांड र क शलाका हमारे आगस क पु ी ह। आगस नह
चाहते क शलाका या उनके रहने वाले ह को कसी भी कार का नुकसान
हो? .... अब हम आपसे इस यु म शािमल होने क अनुमित चाहते ह।”
यह सुनते ही वा िण के चेहरे पर मु कान िथरक उठी- “हम आपको
यु क अनुमित देते ह। जाइये और जाकर समा कर दीिजये पे टॉ स के
उस ार को, िजससे िनरं तर नये अंत र यान बाहर आ रहे ह।”
वा िण क बात सुन नेिमरॉस ह के सभी यान तेजी से उड़कर
पे टॉ स के ार के पास प ंच गये और उ ह ने ना जाने कै सी करण से उस
ार पर हार करना शु कर दया।
नेिमरॉस के आ मण से अब पे टॉ स ार धीरे -धीरे बंद होने लगा।
उधर पे टॉ स क नजर लगातार यु पर बनी ई थी। तभी पे टॉ स
क आँख भय से चौड़ी हो ग , य क राजा एला का का यान बीच से गायब
था।
“ ीटे स पहले ही िछपकर पृ वी पर घुसने के यास म, ओरस के
हाथ मारा जा चुका है और अब एला का के यान का ना दखाई देना, एक
और परे शानी का संकेत तो नह ?” पे टॉ स के थम गु ने यान म
चहलकदमी करते ए कहा।
“परं तु अभी कु छ ण पहले तक तो एला का का यान हमारी सुर ा के
घेरे म था, अचानक से वह चला कहाँ गया? ... कह कोई आंत रक खतरा
हमारे बीच तो नह ?” दूसरे गु ने अपनी शंका करते ए कहा।
तभी उनके यान के अंदर एक अजीब सा सायरन बज उठा, जो इस
बात का संकेत था क पे टॉ स के यान के बाहर कोई है?
इस विन को सुन चौथे गु ने भागकर पे टॉ स यान के बाहर के
कै मरे को ऑन कर दया।
परं तु यान के बाहर का नजारा देखते ही पे टॉ स बुरी तरह से च क
गये।
“अरे ! यह तो राजा एला का ह, यह हमारे यान के बाहर कहाँ से आ
गये?” पांचवे गु ने कहा- “ या इन पर कसी कार का आ मण आ है?
.... या फर यह श ु क कोई चाल है? या कर या हम इनके िलये त काल
यान का ार खोल देना चािहये?”
तभी तीसरे गु ने सभी का यान सुर ा क ओर दलाया- “हम
एला का को देखकर अपने यान का ार खोलने क आव यकता नह है। य द
यह एला का असली ह, तो हमारा यान वतः ही उनके शरीर को महसूस कर
यान का ार खोल देगा और य द कु छ देर तक हमारा यान इनके शरीर को
महसूस नह कर पायेगा, तो इस एला का को हम वयं नकली मानकर
समा कर दगे।”
सभी को तीसरे गु का िवचार बेहतर लगा, इसिलये सभी गु अब
यान क गितिविध पर नजर रखकर यान के ार क ओर देखने लगे।
तभी पे टॉ स के यान ने एला का के शरीर को महसूस कर यान का
ार खोल दया। एला का अब यान के अंदर आ गया।
एला का के अंदर आते ही सभी गु ने एला का को घेर िलया।
“आपका यान अचानक से कहाँ चला गया एला का? और आप हमारे
यान के ार तक कै से प ंचे? या कसी ने आप पर कोई आ मण कया था?
बताइये एला का आप कु छ बोलते य नह ?” थम गु ने कहा।
“म अपने अंत र यान के क म बैठकर यु को देख रहा था क
तभी जाने कै से पृ वी का कोई यो ा िछपकर मेरे यान के पास प ंच गया।
उस यो ा ने मेरे यान पर कसी िविच करण का हमला कया। उन
िविच करण के भाव से मेरा यान एक पल म ही जलकर राख हो गया।
.... परं तु वह करण पता नह कस कार क थ ? य क उन करण ने मुझे
कोई हािन नह प ंचाई? अब मने वयं को अंत र म पाया। वयं को
अंत र म देख म अ यंत घबरा गया और भागकर आपके यान के पास आ
गया। .... पे टॉ स, पृ वी के सभी यो ा ब त ही खतरनाक ह, हम ज दी से
ज दी इस यु का प रणाम अपने प म करना होगा।”
इतना कहकर एला का पास म रखी एक कु स पर बैठ गया और
पे टॉ स क ओर देखने लगा। एला का क बात सुन सभी गु एक-दूसरे का
मुंह देखने लगे।
तभी एक भीषण िव फोट क आवाज से अंत र का वह िह सा पूरी
तरह से िहल गया।
िव फोट क आवाज सुन पे टॉ स क नजर बाहर क न पर पड़ी।
बाहर पे टॉ स का बनाया आ ार, नेिमरॉस ह के लोग ने न कर दया
था।
उस ार को न होते देख थम गु ने ोध म आते ए कहा- “यह
पृ वी के क ड़े तो कु छ यादा ही समय न कर रहे ह? लगता है क अब हम
ए ोवस पावर को बचाने का िवचार अपने मि त क से याग देना चािहये।
और .....।”
“और हम लयकण का योग कर इस पूरी आकाशगंगा को न कर
देना चािहये।” दूसरे गु ने थम गु क बात को पूण करते ए कहा।
तभी बाक के 3 गु भी एक वर म बोल उठे - “हां-हां अब हम
लयकण का योग कर लेना चािहये। लयकण अपने सामने आने वाले
येक त व को न कर देगा।”
सामूिहक िनणय लेने के बाद पे टॉ स ने और देर करना उिचत नह
समझा और अपने यान म लगी एक महामशीन के पास आ गये।
थम गु ने एक बार फर बाक के 4 गु और एला का क ओर
देखा। सभी क सहमित देख थम गु ने महामशीन का बटन दबा दया।
महामशीन का बटन दबाते ही पे टॉ स के यान से एक अितसू म
न हा कण िनकलकर अंत र म आ गया।
“अब हम अपनी सुर ा का यान रखते ए यहाँ से चलने क तैयारी
करनी होगी।” चौथे गु ने कहा- “ य क कु छ ही ण के बाद यह पूरी
आकाशगंगा लयकण के ारा समा हो जायेगी।”
एला का के चेहरे पर इस समय अजीब से भाव थे, परं तु उसने कु छ
कहा नह ?
तभी ि तीय गु ने एक मशीन का बटन दबाकर, अपने अंत र यान
के सामने एक ऊजा ार उ प कर िलया।
उधर लयकण से एक ऊजा िनकलकर तेजी से पृ वी क ओर बढ़ी।
उस ऊजा के रा ते म जो कु छ भी आ रहा था, वह कण म बदलता जा रहा
था।
धीरे -धीरे कण ने अंत र म सुर ा कर रहे सभी देवयो ा को भी
समा कर दया और पृ वी को भी कण म बदलना शु कर दया।
परं तु इसके आगे का दृ य पे टॉ स देख नह पाये और वह ऊजा ार
म वेश कर उस थान से दूर-ब त दूर चले गये।
एक कार से वह ांड के दूसरे छोर से बाहर िनकले, िजसके आगे
कोई आकाशगंगा या ह दखाई नह दे रहा था।
पे टॉ स अब आ य से अपने चारो ओर देखने लगे। तभी पे टॉ स को
उस थान पर लाने वाला ऊजा ार अपने थान से अदृ य हो गया।
.............................
उधर वा िण भी लयकण के ारा समा होने वाली पृ वी को देख
रही थी। वा िण समझ गई थी क अब सृि का िवनाश सुिनि त है। वह
सभी इस यु को जीतकर भी हार गये थे।
अब लयकण ने न लोक को भी अपने घेरे म ले िलया। वा िण से
यह लय देखी नह गई और उसने घबराकर अपनी आँख बंद कर ल ।
कु छ देर तक वा िण अपनी मृ यु का इं तजार करती रही, परं तु जब
उसके बाद भी वा िण को अपने शरीर म कोई प रवतन नह दखाई दया?
तो वा िण ने अिव ास भरी नजर से अपनी आँख खोल द ।
परं तु आँख खोलते ही वा िण को पृ वी सिहत स पूण ांड सुरि त
दखाई दया। यह देख वह च क कर अपने चारो ओर देखने लगी। इस समय
वा िण के समान ही न शाला के लोग भी आ यच कत दख रहे थे।
“ये सब या हो रहा है? हम बच कै से गये? और पे टॉ स का यान
कहाँ चला गया?” वा िण ने तेज आवाज म कहा।
तभी वा िण क नजर अपने सामने मु कु राते ए कै पर पर पड़ी।
जाने य वा िण को कै पर क मु कु राहट ब त ही रह यमई दखाई दी।
यह देख वा िण से रहा ना गया और उसने पूछ ही िलया।
“ या तुमने कोई चम कार कया है कै पर?”
“हम अंत र का यह यु जीत चुके ह वा िण।” कै पर ने
रह यो ाटन करते ए कहा- “दरअसल जब म यहाँ पर आया तो पे टॉ स के
बारे म तुमने मुझे सबकु छ बता दया। तु हारी बात से मुझे एला का के बारे
म भी पता चल गया। अब मेरा दमाग एक ही झटके म पे टॉ स को ‘शह
और मात’ देने के बारे म सोचने लगा, परं तु यह सब इतना आसान नह था।
इसिलये मने अपने छाया शरीर को तुम लोग के पास रखा और वयं नोवान
व ओरस को लेकर अदृ य प म अंत र म प ंच गया। सबसे पहले मने
नोवान को पे टॉ स के यान म वेश करने के िलये मना िलया। एकमा वह
ही था, जो क एला का का प धारण कर सकता था। उसे पे टॉ स व
फे रोना ह के बारे म भी सब कु छ पता था? अब मने नोवान को अपनी
शि य से एला का का प देकर, उसे पे टॉ स के अंत र यान के अंदर भेज
दया।”
“एक िमनट को कै पर, नोवान ने तो कहा था क पे टॉ स का यान
िसफ राजा एला का के शरीर को महसूस करके खुलता है, तो फर तुमने
एला का बने नोवान को पे टॉ स के यान के अंदर कै से भेजा? वह तो नकली
था और जािहर सी बात है नकली एला का को यान का ार महसूस नह कर
पाता।” वा िण ने पूछा।
“तुमने िब कु ल ठीक कहा वा िण। नकली एला का के अंदर असली
एला का जैसी सुगंध नह हो सकती थी, इसिलये मने पहले ही ओरस के
जे़ टोनाइजर के ारा एला का के यान को एक छोटे से िखलौने के प म
प रव तत कर दया था। इसके बाद मने उस छोटे से िखलौने को एला का
बने नोवान क जेब म डाल दया था। ... फर जब पे टॉ स के यान ने नोवान
के शरीर को महसूस करने क कोिशश क , तो वैसी ि थित म नोवान क जेब
म रखे िखलौने के कारण, असली एला का का शरीर भी कै न हो गया और
उस असली शरीर को महसूस कर यान ने अपना ार खोल दया। अब
एला का बना नोवान आसानी से पे टॉ स के यान म वेश कर गया। कु छ ही
देर बाद नोवान ने मुझे िस ल के मा यम से बताया, क पे टॉ स अब
लयकण के ारा सबकु छ समा करने जा रहा है। यह सुन मने तुरंत ही एक
िवशाल मायाजाल क रचना क और पे टॉ स सिहत सभी को उस
मायाजाल म फं सा दया। ऐसी ि थित म येक इं सान वही देख व महसूस
कर रहा था, जो क म उसे अपने मायाजाल के मा यम से दखाना चाहता
था। अब मने पे टॉ स को अपने ऊजा ार से ांड के आिखरी छोर पर भेज
दया और पे टॉ स अंत तक यही समझता रहा क वह अपने बनाये ए ार
म वेश कर रहा है।”
“इसका मतलब क अब पे टॉ स कभी भी हमारी आकाशगंगा तक
नह प ंच सकता?” वा िण ने आ य से कै पर को देखते ए कहा।
“नह , मने पे टॉ स को ांड के आिखरी छोर पर भेज दया है,
िजससे पे टॉ स को हमारी पृ वी तक वापस प ंचने म करोड़ काशवष
लग सकते ह। ... हां परं तु पे टॉ स को उस आकाशगंगा म भेजने के यास म
नोवान को भी उनके साथ भेजना पड़ गया। य क मेरे पास नोवान को
वापस अंत र म बुलाने का समय नह बचा था और म देर करके पे टॉ स
को सोचने का मौका नह देना चाहता था। ..... और हां म तु ह एक बात और
बताना चाहता ँ क सुयश व चं वीर िब कु ल सुरि त ह।”
“ याऽऽऽऽऽऽ!” यह रह यो ाटन वा िण के िलये सुखद था- “परं तु
कै से? मने तो उन दोन को ही उनके काय के म य समा होते देखा था।”
“उन दोन ने ही अपना काय सकु शल पूण कर िलया था, परं तु मने
अपने मायाजाल के मा यम से पे टॉ स व तुम लोग को वही दखाया, जो
क म चाहता था। .... म पे टॉ स को मायाजाल के अंदर पूरे म म रखना
चाहता था, िजससे क उ ह कसी भी कार का संदेह ना हो? ... और देखो म
अपने काय म पूरी तरह से सफल रहा। यािन क मने िबना यु लड़े ही यह
यु जीत िलया।” कै पर ने कहा।
कै पर क बात सुनकर वा िण के चेहरे खुशी क लहर दौड़ गई।
“सच म तु हारा जैसा कोई नह है कै पर? मुझे तु हारे जैसा िम
िमला, इसके िलये म ई र को ध यवाद देती ँ।” वा िण ने कहा और अब
उसक नजर पृ वी पर हो रहे आिखरी यु पर जा टक ।
देवयो ा क उपि थित म आधा यु तो जीता जा चुका था, परं तु
जब तक पूण यु का प रणाम ना आ जाये, तब तक उस यु को जीता आ
नह माना जा सकता?
तो आइये एक बार फर पृ वी क ओर चलते ह और देख क अंितम
यु कस कार चल रहा है?
◆ ◆ ◆
अंितम यु

09.02.02, शिनवार, अराका ीप, अटलां टक महासागर


अराका ीप पर अं ितम यु क तै या रयां शु हो चु क थ । एक-
एक कर सभी दे व यो ा व ां ड र क अराका पर आते जा रहे थे ।
अराका ीप के तट पर जगह भरती जा रही थी। पृ वी के िलये यह
पहला समय था, जब क इतने सारे यो ा एक थान पर एकि त ए थे ।
इस समय सभी यो ा कु छ ना कु छ सोच रहे थे ? परं तु उन सबके
सामने खड़ा मकोटा अपने हाथ म पहने यं को बार-बार दे ख रहा था।
अराका ीप पर िजतने भी यो ा बढ़ते जा रहे थे , मकोटा के हाथ म
बं धे यं क न पर बनी एक लाइन, उतनी ही ते जी से लाल होती जा
रही थी।
तभी एक साथ आकाश माग से ब त से यो ा का समू ह अराका
के तट पर उतरा। इस समू ह म िव म, वा िण, धरा, मयू र , हनु का, माया,
ओरस, नीिलमा, चं वीर, भागवी, सु य श, कै पर व मै ा शािमल थे । इस
समय मै ा अपने गो पर सवार थी, तो कै पर अपने ि य घोड़े जीको पर
बै ठा आ था। बाक सभी भी कसी ना कसी कार से उड़ते ए अराका
तक प ंचे थे ?
इन सबसे अलग ऐले स भी, अब सभी सामरा व सीनोर वािसय
को म यलोक छोड़कर अराका ीप पर आ गया था। ऐले स आकर टी
के पास खड़ा हो गया था। वह जानता था क शायद उनम से कोई इस यु
के बाद जीिवत ना बचे ? परं तु वह अब इन बचे ए समय को टी के ही
साथ िबताना चाहता था।
सु य श उतरते ही शलाका के पास प ंच गया। सु य श के आने के बाद
शलाका थोड़ा बे ह तर महसू स करने लगी।
उधर बार-बार अपने हाथ म थम यं को दे ख रहे मकोटा क आँ ख
चमक उठ य क अब उसके हाथ म थमे यं क लाइन पू ण हो गई थी
और उस यं से हरे रं ग क रोशनी िनकलने लगी थी।
यह दे ख मकोटा ने धीरे से ीवे न को अपनी पलक झपकाकर कोई
इशारा कया?
मकोटा का इशारा पाते ही ीवे न अपने थान से उड़ती ई अराका
ीप के तट के ऊपर जा प ंची। कसी को समझ नह आ रहा था क इतने
यो ा को दे ख ने के बाद भी ीवे न उनक ओर य आ रही है?
तभी अचानक से जाने या आ? क ीवे न के शरीर म कु छ
बदलाव आने लगे । अब ीवे न का शरीर एक अ भु जा वाली यु व ती म
प रव तत हो गया। दे ख ते ही दे ख ते ीवे न के शरीर पर 3 िसर नजर आने
लगे ।
यह दे ख वा िण क आँ ख कु छ सोचने वाले अं दाज म िसकु ड़ गई?
“लगता है क ीवे न ने अपनी अ बल शि का योग करना शु
कर दया है। पर मै ने तो सोचा था क ीवे न िजसके सामने होगी, उस
यो ा क दे व शि य का आधा भाग ले ले गी, परं तु मु झे नह पता था क
यह एक साथ सभी दे व यो ा क शि य का आधा भाग ले ले गी। ....
अ ब जै से 3 िसर इसने मै ा क शि य से िलये ह। अ भु जाधारी प
इसने किणका क शि य से िलया है। इसके एक हाथ म सू य , दूस रे म
अि है, जो क सु य श व शलाका क शि यां ह। इसी कार इसने अपने
बाक के हाथ म च , ढाल, तीर-धनु ष , तलवार, पं च शू ल आ द पकड़़
रखा है, जो यहाँ उपि थत कसी ना कसी क शि के ोत ह? .... इसका
साफ मतलब है क हम इससे लड़ते समय अपनी शि य का कम और
अपने मि त क का यादा योग करना होगा।”
तभी ीवे न ने अपने शरीर के चारो ओर सू य का सु र ा कवच भी
चढ़ा िलया।
अब अराका ीप के तट पर खड़े सभी यो ा यही नह समझ पा रहे
थे क वह ीवे न से यु कस कार कर?
तभी ीवे न ने कै पर क शि का योग कर पू रे अराका ीप पर
एक भू ल -भु लै या के समान ऊजा का जाल बना दया। इस ऊजाजाल से
िनकलने का िसफ एक ही माग था और वह माग भी इतना सं क रा था क
उसम से कोई एक ही यो ा बाहर आ सकता था।
यह दे ख कै पर ने उस भू ल -भु लै या पी मायाजाल को तोड़ने क
कोिशश क , परं तु कै पर भी अपनी शि से बने इस मायाजाल को तोड़
नह पाया।
यह दे ख मकोटा के चे ह रे पर मु कान िबखर उठी- “वाह! या चाल
चली है ीवे न ने ? अब इस सं क रे माग से एक समय म एक ही यो ा बाहर
आ सकता है और उस एक यो ा को तो ीवे न आसानी से समा कर दे गी।
.... भला हो पे टॉ स का जो उसने यु से पहले ही, इन यं को हम बचे
ए लोग के पास अदृ य अव था म िभजवा दया। अब यह यं हम सभी
क शि य को 10 गु ना तक बढ़ाकर इन सभी दे व यो ा को समा
करने म हमारी मदद करे गा। इसी यं क सहायता से हम यह पता चला,
क अब पृ वी के सभी शि धारक हमारे सामने ह। यािन क कोई भी
यो ा बाद म आकर हमारा खे ल नह िबगाड़ सकता? अब बस िव ु ा भी
अपने चरण का काय पू ण करके महावृ के व त पर अिधकार जमा ले ।
.... बस इसके बाद हम यह यु जीतने से कोई भी नह रोक सकता?”
इधर मकोटा अपने सपन म खोया आ था और उधर यु शु भी
हो चु का था।
सबसे पहले उस मायाजाल से बाहर िनकलने वाल म माया ही थी,
जो अपने माया ार के मा यम से बाहर आ गई थी।
माया ने िबना दे र कये दे व राज इं के िव ु ता का योग ीवे न
पर कर दया, परं तु तभी ीवे न के िसर पर कसी िहरणी के समान लं बी-
लं बी स घे िनकल आई और उसने िव ु ता क पू री िव ु त को अपनी
स घ म समे ट कर माया क ओर ही उछाल दया।
िव ु ता जाकर माया के शरीर से टकराया, यह दे ख किणका तु रं त
कण म प रव तत होकर मायाजाल से बाहर आ गई और उसने नीचे
िगरती मिणका को अपने शरीर का सहारा दे दया।
“घबराओ मत मिणका, मे रे रहते तु ह कु छ नह होगा?” इस समय
किणका क आँ ख म वाला सी दख रही थी।
उधर हजार वष के बाद किणका को अपने सामने दे ख माया
आ य से भर उठी- “किणका तु म यहाँ कै से आ गई? या तु म भी वे ष
बदलकर इन यो ा म िछपी ई थ ?”
“हां मिणका, म कसी कारणवश तु हारे सामने नह आना चाहती
थी, इसिलये ही इन यो ा के म य िछपकर खड़ी थी। .... उठो, आओ
अब चलकर जरा इस दु ीवे न का अं त करते ह।” यह कहकर किणका ने
माया को सहारा दे क र खड़ा कर दया और फर दोन बहन ीवे न क ओर
दे ख ने लग ।
तभी ीवे न ने मै ा के चं गोले को किणका पर फककर मार दया,
परं तु इससे पहले क वह चं गोला किणका से टकरा पाता क तभी
चं वीर ने उस चं गोले को अपने हाथ क शि से बीच म ही रोक
िलया।
“ब त लं बे समय के बाद आज मे री दोन पु ि यां मु झे िमली ह,
इसिलये आज तो म इन दोन को कोई हािन नह प ंचाने दूँगा?” चं वीर
ने यह कहकर चं गोले को दूर उछाल दया।
तभी माया ने मन ही मन िवषक या थे नो को याद कर िलया।
माया के ऐसा करते ही समु क लहर के बीच से थे नो िनकल आई। ऐसा
नह था क थे नो एकाएक वहाँ कट हो गई थी, माया ने पहले से ही
थे नो को अराका के पास िछपे रहने को कहा था।
समु से िनकलकर थे नो, ीवे न के सामने आ गई। माया को लगा
था क ऐसा करने पर थे नो, ीवे न को प थर का बना दे गी, परं तु ऐसा
आ नह । थे नो के दे ख ने के बाद भी ीवे न को कु छ नह आ? और ऐसा
मै ा क आँ ख के कारण आ था।
अब माया समझ गई क थे नो से बचने के िलये ीवे न ने मै ा क
शि का योग कया था। तभी ीवे न ने थे नो के ऊपर सु य श क
सू य करण का हार कर दया।
सू य करण के भाव से थे नो का शरीर जलने लगा। अपने शरीर को
जलता दे ख थे नो समु के अं द र कू द गई।
तभी किणका ने ीवे न पर अपने कण से आ मण कर दया।
किणका के कण को दे ख ीवे न ने अपना शरीर भी कण म प रव तत कर
िलया और फर किणका के कण को अपने शरीर से जोड़कर वह पु नः
अ भु जाधारी प म आ गई।
अब ीवे न ने किणका के ऊपर पं च शू ल का हार कर दया। हवा म
चमचमाता पं च शू ल किणका क ओर लपका। किणका के पास पं च शू ल से
बचने का कोई उपाय नह था? परं तु जै से ही पं च शू ल किणका के समीप
प ंचा, अचानक से समय अपने थान पर क गया और भागवी ने
भागकर किणका को उसके थान से हटा दया।
यह दे ख ीवे न ने भागवी क ही शि का योग कर समय को
वापस से खोल दया।
तभी ीवे न को पीछे से ध ा लगा और ठीक उसी समय उसके
सामने एक ऊजा ार उ प हो गया। ीवे न पर लगे ध े के कारण ीवे न
उस ऊजा ार के अं द र समा गई। जै से ही ीवे न उस ऊजा ार म समाई,
उसके पीछे मौजू द रोजर ने ऊजा ार को बं द कर दया।
रोजर ने अपनी शि से ीवे न को एक पल म दूस रे ह पर भे ज
दया। पर अभी रोजर ठीक से साँ स भी नह ले पाया था क तभी ीवे न
दूस रे ार से फर वहाँ कट हो गई। ऐसा ीवे न ने रोजर क ही शि का
योग करके कया था।
कट होते ही ीवे न ने रोजर पर सू य गोला फक कर मार दया,
परं तु वह सू य गोला रोजर क नािभ म समा गया।
तभी ीवे न पर मायाजाल के नीचे से किलका ने अपनी काश शि
से आ मण कर दया। परं तु ीवे न पर काश शि से कोई भाव नह
पड़ा, उ टा वह और भी उ हो गई?
ीवे न ने किलका पर अपना च फक कर मार दया। ीवे न का
च भू ल -भु लै या के मायाजाल को काटता आ ते जी से किलका क ओर
झपटा, परं तु इससे पहले क वह च किलका का कु छ भी िबगाड़ पाता?
ओरस ने अपने ज़े टोनाइजर से ीवे न के च को अ यं त सू म बना दया।
अब वह च िसफ किलका के कं धे को रगड़ मारता आ चला गया।
इस कार ये क यो ा अपने - अपने तरीके से ीवे न पर वार कर
रहा था, परं तु ीवे न के पास तो जै से हर शि क काट थी। वह सभी से
बचती ई उन पर ही हमले कर रही थी।
परं तु मकोटा को दे व यो ा के ारा ीवे न पर बार-बार वार
करना अखरने लगा।
अब मकोटा ने धीरे से रे ने से कु छ कहा? मकोटा के श द सु न रे ने भी
उड़ती ई, अराका ीप के ऊपर प ंची और फर उसने अपने शरीर से
एक े त रोशनी का महािव फोट कर दया।
चूं क सभी यो ा का यान इस समय ीवे न क ओर था, इसिलये
वह रे ने के महािव फोट को दे ख नह पाये , परं तु जब तक सभी दे व यो ा
कु छ समझते , तब तक रे ने क शि के भाव से सभी अपने थान पर जम
गये ।
अब कतनी भी कोिशश के बाद कोई भी यो ा िहल नह पा रहा
था? ले कन इन सारे यो ा म 2 लोग ऐसे थे , जो क ना िसफ िहल-डु ल
पा रहे थे , बि क सबकु छ दे ख व समझ भी पा रहे थे और वह 2 लोग थे -
“ टी व जे स।”
अब सबकु छ इ ह 2 कं ध पर टका था। यािन क यह इस यु का
एक ऐसा मोड़ था, िजस मोड़ पर सभी शि धारक का भिव य 2 ऐसे
हाथ म था, िजनके पास कोई शि नह थी?
इसीिलये तो कहते ह क समय से बलवान कोई नह होता?
◆ ◆ ◆
चैपटर-22
महाशि नीलाभ

09.02.02, शिनवार, अराका ीप, अटलां टक महासागर

भी को अपने थान पर ि थर होते देख मकोटा खुश हो


स गया- “भला हो इस यं का िजसने हम रे ने क शि से बचा
िलया, नह तो इन देवयो ा के समान हम भी अपने थान पर जम जाते।
अब ीवेन ने अपने मायाजाल को पूणतया हटा िलया और एक-एक
यो ा के पास जाकर उ ह देखने लगी।
“हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ हाऽऽऽऽ हाऽऽऽऽऽ ... आिखर सबके सब फं स गये
हमारे जाल म। अब इ ह या पता था? क रे ने क ‘सामा य शि ’ या है?
अरे यही तो है रे ने क सामा य शि , क िजस-िजस यो ा के पास कसी भी
कार क चम कारी या वै ािनक शि है, वह सभी रे ने के महािव फोट से
अपने थान पर जम जायगे। .... अब इस ीप पर िसफ एक ही शि और है
और वह है महावृ । ले कन हमारे बनाये गये लान के फल व प िव ु ा,
अब तक महावृ पर अपना िनयं ण पा चुक होगी और अगर ऐसा नह
होता, तो महावृ ने अब तक इस यु म भाग ले िलया होता। ....... चलो
रे ने, अब देर ना करते ए सभी से पहले सातो पु तक को ले लेते ह। य क
कु छ देर बाद तो सभी मरने ही वाले ह, ऐसे म यह स त व क पु तक लेकर
या करगे?” ीवेन ने रे ने क ओर देखते ए कहा।
ीवेन क बात सुनकर रे ने देवयो ा व ांड र क से स त व
क पु तक लेने लगे।
इस समय टी व जे स का दमाग ब त तेज चल रहा था। वह
जानते थे क इस समय सभी देवयो ा िनि य हो गये ह और शायद ई र ने
ऐसे समय के िलये ही उन 2 िबना शि वाल को इस यु म शािमल कया
था। परं तु दखावे के िलये वह दोन भी अ य लोग क तरह बुत बने खड़े थे
पर क मत कु छ ऐसी थी क दोन ही ऐसे थान पर बुत बने खड़े थे,
िजनके आसपास कोई भी स त व क पु तक िलये नह खड़ा था, इसिलये
वह दोन अभी अपने थान से िहलकर, ीवेन व रे ने को अपनी उपि थित के
बारे म नह बताना चाह रहे थे।
उधर कु छ ही देर म ीवेन व रे ने ने सभी पु तक को अपने अिधकार
म ले िलया।
इस समय सबकु छ मकोटा के िहसाब से चल रहा था।
सभी पु तक लेने के बाद ीवेन ने रे ने क ओर देखा, मानो वह उससे
पूछना चाह रही हो क या अब इन देवया ा को मार द।
ले कन इससे पहले क रे ने, ीवेन को कोई जवाब दे पाती क तभी
उनके कान म 2 अंजान आवाज पड़ , जो क वह कह पास से आ रह थ ?
उस आवाज को सुन ीवेन व रे ने भी अ य देवयो ा क तरह जमकर वहाँ
खड़े हो गये। इस समय ीवेन अपना अ भुजाधारी प याग कर अपने
सामा य प म आ गई थी।
“भाई रं जो, आज का दन कतना सुहाना है। जाने य मुझे ऐसा
महसूस हो रहा है क आज हम दोन भाइय को ब त सी द शि यां
िमलने वाली ह।” काली दाढ़ी वाले बौने शंजो ने कहा।
“सच भाई मुझे भी कु छ ऐसा ही अहसास हो रहा है? पर ये बताओ क
य द हम एक द शि िमली तो उसे कौन रखेगा?” रं जो ने अपनी भूरी
दाढ़ी को हाथ लगाते ए पूछा।
“अरे , इसम सोचना या है बु े? म तेरे से छोटा ँ, तो फर य द 1
द शि िमली तो उसे म ही रखूंगा। इतना तो करे गा ना तू अपने छोटे
भाई के िलये।” शंजो ने रं जो के सामने अपनी काली दाढ़ी का दशन करते
ए कहा।
“तूने फर मुझे बु ा बोला।” रं जो ने गु साते ए कहा- “म िसफ तेरे
से 1 िमनट ही बड़ा ँ।”
“म नह मानता इस बात को, ये सब तेरे ारा फै लाया गया ामक
चार है, जो तूने मुझे नीचा दखाने के िलये फै लाया है। तेरी दाढ़ी पककर
भूरी हो गयी है, मेरी तो अभी भी काली-काली है। िजसका साफ मतलब है
क म तेरे से ब त छोटा ँ।” शंजो ने उछल-उछल कर अपनी काली दाढ़ी
को दखाते ए रं जो को िचढ़ाने वाले अंदाज म कहा।
यह सुन रं जो ोध म अपने मुंह से झाग फकने लगा। उसने आगे
बढ़कर शंजो को पटक दया और उसके सीने पर चढ़कर उसक दाढ़ी नोचने
लगा- “आज तो म तेरी दाढ़ी न च कर ही र ँगा। ना रहेगी दाढ़ी .... ना तू
मुझे कभी िचढ़ायेगा।”
“अरे कमीने रं जो .... छोड़ मेरी दाढ़ी। अगर मेरी दाढ़ी का एक भी
बाल टू टा, तो म तेरे सब जगह के बाल न च डालूंगा ... तू अभी मुझे जानता
नह है।”
यह कहकर दोन बौने एक बार फर पटका-पटक करके लड़ने लगे।
“लगता है क तू आज मेरे अि शि से मरना चाहता है।” रं जो ने
कहा- “ठहर अभी तेरी दाढ़ी म आग लगाता ँ। तुझे अभी मेरी शि य का
अंदाजा नह है।”
“अरे ! जा-जा बड़ा आया शि य वाला। अरे य द मने अपनी
वायुशि का योग तुझ पर कर दया, तो तू उड़कर अराका ीप से बाहर
जाकर िगरे गा।” शंजो ने भी अपने बल का दशन करते ए कहा।
दोन के झगड़े के कारण उनके हाथ म पकड़ा वह छोटा सा यं उनसे
कु छ दूर जमीन पर जा िगरा और वह जोर-जोर से बजने लगा- “बीप ....बीप
....बीप .... बीप।”
इस आवाज को सुन दोन बौन ने लड़ना छोड़ दया और उस यं क
ओर देखने लगे।
“इस यं क आवाज तो इस बार ब त तेज सुनाई दे रही है। इसे
सुनकर तो ऐसा लग रहा है क यहाँ कह आसपास कोई बड़ी महाशि
िछपी है?” रं जो ने जमीन से उठते ए कहा।
“कह तो तू सही रहा है भाई, पर उस ओर चलने के पहले हो सके तो
अपने इस छोटे भाई को माफ कर देना। मुझे तुम पर हाथ नह उठाना
चािहये था। जो भी हो परं तु तुम मेरे बड़े भाई हो। वैसे मेरे भाई तु ह कह
चोट तो नह आई?” शंजो ने रं जो के कपड़े पर लगी धूल झाड़ते ए कहा।
“नह -नह मेरे भाई, मुझे तो िब कु ल भी चोट नह आई। पर अगर
तु ह चोट लगी हो तो तुम भी अपने इस 1 िमनट बड़े भाई को माफ कर
देना।” रं जो ने भी शंजो से माफ मांगते ए कहा- “चलो अब उस ओर
चलते ह, िजस ओर से यह िस ल आ रहे ह।”
यह कहकर रं जो- शंजो ने जमीन पर पडा यं उठाया और एक-दूसरे
के गले म हाथ डालकर आगे बढ़ गये।
तभी रं जो क नजर समु तट के पास खड़े असं य देवयो ा पर
पड़ी।
“ शंजो मेरे भाई, वह देखो कसी ने अराका के समु तट पर कतने
सारे पुतले बनाकर खड़े कये ह? लगता है क इ ह म से कसी पुतले के पास
वह महाशि है? िजसे ा कर हम दुिनया के सबसे शि शाली बौने बन
जायगे।” रं जो ने शंजो के िसर को जबद ती समु तट क ओर घुमाते ए
कहा।
समु तट के कनारे इतने पुतल को खड़े देख रं जो व शंजो ने दौड़
लगा दी।
चूं क ीवेन व रे ने को दोन बौन क बात साफ सुनाई दे रही थी,
इसिलये वह दोन शांत भाव से वहाँ खड़ी रह । परं तु ीवेन के दमाग म एक
बात आ चुक थी क इन बौन के पास जो यं है, उससे महाशि को ढू ंढकर
अपने वश म कया जा सकता है।
ीवेन क नजर रं जो और शंजो पर ही जम थ ।
तभी रं जो अपने यं को लेकर टी के पास जा खड़ा आ और
आ य से टी क ओर देखने लगा।
“भाई शंजो, यह यं तो इस लड़क के पुतले क ओर इशारा कर रहा
है। लगता है इन सभी पुतल म इसी पुतले के पास सबसे बड़ी शि है।”
रं जो ने टी क आँख म झांकते ए कहा।
इधर टी को कु छ भी समझ म नह आ रहा था? क कौन ह यह
दोनो बौने? जो उसे सवशि मान समझ रहे ह।
ले कन इससे पहले क बौने टी के सामने कोई हरकत कर पाते?
क तभी ीवेन ने पीछे से जाकर रं जो के हाथ से उस यं को छीन िलया
और उन दोन बौन क आधी शि भी ले ली।
“अरे -अरे , इन पुतल के बीच खड़ी जीिवत लड़क , तुम कौन हो?”
रं जो ने ीवेन से पूछा- “और तुमने हमारा यं य छीन िलया?”
“मुझे तो ये लड़क अराका ीप क नह लगती।” शंजो ने ीवेन को
देखते ए कहा- “पर लगता है क इस बेचारी को कसी सप ने काट िलया
है? देखो तो बेचारी का रं ग सप के िवष के कारण नीला पड़ गया है।”
ीवेन इस समय टी के ब त पास खड़ी थी और उसक पीठ इस
समय टी क ही ओर थी। टी के पास इससे सुनहरा अवसर नह
िमलता? इसिलये टी िबना एक पल गंवाये, ीवेन क ओर झपटी और
इससे पहले क ीवेन कु छ भी समझ पाती? क तभी टी ने ीवेन के
गदन पर अपने कराटे का एक चाप लगा दया।
टी का कराटे का वार इतना खतरनाक था क ीवेन को एक
सेके ड का भी समय नह िमला और वह गदन क ह ी टू टने के कारण, वह
सबके सामने ढेर हो गई।
िजस ीवेन को इतने सारे यो ा िमलकर नह हरा पा रहे थे, उसे एक
साधारण लड़क ने मार िगराया। उधर ीवेन को मरता देख दोन बौनो ने
जोर से शोर मचा दया।
“मार डाला-मार डाला, पुतले ने नीली लड़क को मार डाला। म पहले
ही कह रहा था क यह लडक ही सबसे शि मान है।“ रं जो जोर-जोर से
िच लाता आ बोला।
बौन का शोर सुनकर रे ने का भी यान टी क ओर चला गया।
अब रे ने, टी क ओर लपक , परं तु जैसे ही रे ने यू ान के पास से िनकली,
यू ान के अंदर बैठे जे स ने यू ान का एक बटन दबा दया।
बटन के दबते ही यू ान के अगले भाग से 8 से 10 तीर तेजी से
िनकले और उधर से िनकल रही, रे ने के शरीर म जा घुसे।
तीर के हार से रे ने का शरीर लहराकर वह जमीन पर िगर गया।
यह देख दोन बौन ने अपना यं उठाया और उस थान से भाग
िनकले।
“भाग रं जो, ये सब पुतले नह भूत ह, जो पास जाने वाले को मार रहे
ह। नह तो आज हम अराका के तट से हमारे घर ले जाने वाला कोई नह
होगा?” शंजो भागते ए बोला।
“लगता है आज तक िजन-िजन लोग क द शि यां हमने चुराई
ह, वो सभी भूत बनकर हमसे अपनी शि य को लेने के िलये आये ह।
इसिलये भागते रहो भाई और पीछे पलटकर मत देखना, मने सुना है क भूत
पीछे देखने वाले क लंगोटी ख च लेते ह।” रं जो भागते ए िच लाया।
“पर मने तो आज नीचे लंगोटी पहनी ही नह है।” शंजो घबराकर
बोला।
“तो फर तेरा कु छ और ख च लगे। ...... इसिलये घर प ंचने से पहले
कना नह भाई।” रं जो डरकर िच लाया।
दोन ही भाई िबना के और िबना पीछे देखे वहाँ से भाग गये। परं तु
आज अंजाने म ही रं जो- शंजो ने बड़ा काम कर दया था।
उधर मकोटा ने जैसे ही ीवेन व रे ने को मरते देखा, वयं उतरकर
अराका ीप के तट क ओर चल दया। इस समय ए ोवस पावर क
आिखरी यो ा एरोबी भी मकोटा के साथ थी।
मकोटा व एरोबी को अपनी ओर आता देखकर टी व जे स घबरा
गये।
“रे ने व ीवेन तो मारे गये, फर ये सभी यो ा अभी तक अपने प म
य नह आये?” टी ने जे स को देख घबराते ए कहा- “उधर मकोटा
तेजी से हमारी ओर आ रहा है। हम तो ये भी नह पता क मकोटा के पास
शि यां कौन-कौन सी ह? ऐसे म हम भला िबना शि य के उनका मुकाबला
कस कार करगे? .... वैसे या तु हारे पास कोई शि है जे स?”
टी क बात सुन जे स भी घबरा गया- “नह मेरे पास कोई शि
नह है और शायद इसीिलये हम अभी तक िबना जमे ए खड़े ह। य द हमारे
पास भी कोई शि होती, तो हम भी इन लोग के म य जमे ए खड़े ए
होते। .... मेरे पास तो बस यह कार है और म इस कार के अभी यादा कं ोल
के बारे म जानता भी नह ँ। ... पर तुम य द कहो तो म तु ह यहाँ से लेकर
भाग सकता ँ।” जे स ने टी से कहा।
पर ऐसा लगा क जैसे क मकोटा, जे स क बात सुन रहा हो। य क
जे स के यह बोलते ही मकोटा के सपदंड से 2 जाल िनकले और उन दोन
जाल ने टी व जे स को अपने अंदर बंद कर िलया।
अब तो उस थान पर कोई भी देवयो ा सामा य अव था म नह था?
यह देख मकोटा ने जाने या कया क उसी समय एरोबी का शरीर मकोटा
के शरीर के अंदर समा गया और इसी के साथ मकोटा एक िवशाल मकड़ी म
प रव तत होने लगा।
कु छ ही देर म मकोटा एक 8 पैर वाली 50 फु ट ऊंची िवशाल मकड़ी
म प रव तत हो गया। उस मकड़ी के कमर से ऊपर का भाग मकोटा का था,
बस उसके नीचे 8 पैर थे, िजनक सहायता से वो तेजी से भाग रहा था।
“अब म कसी को कोई भी समय नह दूँगा और अभी सबका व
करके इस पूरी पृ वी पर अपना िनयं ण हािसल कर लूंगा।
यह कहकर मकोटा आगे बढ़ता आ सबसे पहले माया के पास जा
प ंचा।
“यह प रवार इन सबम सबसे अिधक खतरनाक लग रहा है, इसिलये
सबसे पहले म इ ह ही समा क ँ गा।” इतना कहते ही मकोटा के हाथ म
एक तेज दोधारी तलवार दखाई देने लगी, िजसक चमक उस पूरे थान को
रौशन कर रही थी।
ले कन इससे पहले क मकोटा, माया का कु छ भी अिहत कर पाता क
तभी एक बार फर से एक दशा से वही रह यमय तीर आते दखाई दये।
उन सभी तीर का िनशाना मकोटा ही था। मकोटा ने तुरंत अपने जादू
से एक िवशाल ढाल का िनमाण कर दया और वयं उस ढाल के पीछे िछप
गया।
“अब यह तीर कहाँ से आ रहे ह? या इनम से कोई देवयो ा अभी भी
कह िछपा आ है? और वही मुझ पर यह तीर चला रहा है? ... पर ... पर
वह दखाई भी तो नह दे रहा और यह तीर भी काफ दूर से अराका ीप पर
आ रहे ह। य द ऐसी ि थित म म सबको छोड़कर उस तीरं दाज को मारने
गया और इधर यह सब होश म आ गये, तब तो ब त ही बुरा हो जायेगा। ...
तो फर म थोड़ी देर तक इसी थान पर िछपकर देखता ँ, हो सकता है क
कु छ देर बाद तीर आने बंद हो जाय।”
अभी मकोटा यह सब सोच ही रहा था क तभी उसे समु के अंदर से
एक िवशाल चं मा िनकलता आ दखाई दया। उस चं मा का आकार
चं ाकार था।
“अब यह कौन सी नई मुसीबत है? जो समु के अंदर से इतने िवशाल
आकार म कट हो रही है।” मकोटा आ य से समु से िनकलती उस आकृ ित
को देखने लगा।
कु छ ही देर म वह िवशाल चं मा जटा के साथ समु से बाहर आ
गया, परं तु समु से िनकलने वाली आकृ ित का अभी भी िनकलना जारी था।
कु छ ही देर म तीसरा ने िलये एक िवशाल ललाट दखाई दया, िजस पर
चंदन से िशव लंग के आकार का टीका लगा आ था।
मकोटा के चेहरे पर अब दहशत के भाव दखाई देने लगे।
“यह ... यह कै से संभव है? िव ु ा ने कहा था क देवता इस देवयु
म भाग नह लगे और अगर ऐसा उ ह ने कया तो सम त रा स व असुर भी
इस देवयु म भाग लेने लगगे। .... तो फर यह महादेव य समु से कट
हो रहे ह?”
इस समय मकोटा के दमाग म ब त से घूम रहे थे, परं तु महादेव
के अवतार को समु से िनकलते देख मकोटा यह समझ गया था क अब वह
यह यु कसी भी हाल म नह जीत सकता?
उधर धीरे -धीरे महादेव के िवशाल अवतार का समु से िनकलना
जारी रहा। कु छ देर के प ात् महादेव एक िवशाल अवतार म घुटन तक
समु के बाहर थे।
दरअसल यह महादेव नह बि क नीलाभ था, जो कु छ ण के िलये
महादेव का अवतार िलये ए था।
अब नीलाभ क नजर मकोटा के ऊपर पड़ी, जो क माया पर तलवार
ताने उस पर आ मण क मु ा म खड़ा था। यह दृ य देख नीलाभ को ोध
आ गया।
नीलाभ ने अपनी भुजा पर लगा ा का एक मनका तोड़कर
मकोटा पर मार दया। नीलाभ का फका गया मनका िवशाल आकार लेते
ए, ती गित से मकोटा से आकर टकरा गया।
मकोटा मनके के हार से उछलकर दूर जा िगरा। परं तु इतने समय म
मकोटा यह तो जान गया था क यह महादेव नह बि क उनके वेष म कोई
और है?
इसिलये मकोटा ने िगरते ही अपने गले म पड़ी एक माला को हवा म
उछाल दया। मकोटा क माला म 3 छोटी खोपिड़यां लग थ । हवा म
उछलते ही माला क खोपिड़य ने अपना आकार बढ़ाकर अराका के बराबर
कर िलया।
अब वह माला ि भुज का आकार ले नीलाभ के शरीर को तीन ओर से
कसने लगी।
वैसे तो मकोटा का यह यास सराहनीय था, परं तु यह माला कु छ
ण तक भी नीलाभ को घेरे नह रख सक ।
नीलाभ के ि शूल के वार ने इस माला को िछ -िभ करके हवा म
िबखेर दया।
यह देख मकोटा ने अपने सपदंड को हवा म उछाल दया। हवा म
घूमते सपदंड ने अराका ीप का एक तेज च र लगाया और फर नीलाभ के
सामने जाकर ठहर गया।
जैसे ही सपदंड एक थान पर ठहरा, अराका ीप के नीचे से लाख क
सं या म टे रटु ला मकिड़यां िनकलकर नीलाभ क ओर चल द ।
यह देख नीलाभ ने अपना तीसरा ने खोल दया और उन सभी
मकिड़य को जलाना शु कर दया। कु छ ही देर म सभी मकिड़यां मारी ग ।
ले कन इससे पहले क मकोटा अपने सपदंड का योग दोबारा से कर पाता,
नीलाभ के तीसरे ने ने मकोटा के सपदंड को भी जला दया।
अब मकोटा ने अपने हाथ म पहना सपाकार कड़ा नीलाभ क ओर
उछाल दया। हवा म उछलते ही वह कड़ा एक िवशाल सप म प रव तत
होकर नीलाभ क ओर चल दया। परं तु नीलाभ ने उस सप को अपने पास
तक प ंचने के पहले ही अपनी िवषफुं कार से हवा म ही जला डाला।
मकोटा के सभी श धीरे -धीरे समा होते जा रहे थे। यह देख मकोटा
ने अपने शरीर के आकार को थोड़ा और बढ़ाया व उछलकर नीलाभ के हाथ
पर आ प ंचा। मकोटा के हाथ म अभी भी दोधारी तलवार थी।
मकोटा ने अपनी दोधारी तलवार का वार नीलाभ के हाथ पर कर
दया। मकोटा के इस वार से नीलाभ के हाथ पर ह क सी खर च आ गई।
यह देख नीलाभ ने अपनी जटा म लगा चं मा, अपने दािहने हाथ से
ख चकर िनकाल िलया। नीलाभ के ऐसा करते ही नीलाभ के घने बाल
िब कु ल महाकाल क तरह से खुल कर हवा म लहराने लगे।
इसी के साथ नीलाभ ने चं मा को कसी कटार क भांित अपने हाथ
म पकड़ा और एक झटके म अपना हाथ लहराकर मकोटा का िसर धड़ से
अलग कर दया।
मकोटा का कटा आ िसर समु क लहर के बीच जा िगरा। अब
नीलाभ ने मकोटा के शरीर को भी समु म फक दया । नीलाभ के इतना
करते ही उसके हाथ से चं मा वतः िनकला और फर उसके बाल को
संवारते ए जटा म यथा थान पर लग गया।
चूं क अब देवयु समा हो चुका था, इसिलये नीलाभ का शरीर
धीरे -धीरे छोटा होने लगा। जब नीलाभ का पूरा शरीर सामा य हो गया, तो
नीलाभ अराका ीप के तट पर आ गया।
नीलाभ ने टी व जे स के ऊपर पड़े जाल को काट दया। टी व
जे स तो नीलाभ के शि दशन से िब कु ल मोिहत हो गये थे।
“हे महागु , अब जरा यह बताने का क कर क रे ने के मरने के बाद
भी, अभी तक सभी अपनी िपछली अव था म य नह आये? या इसम भी
कोई रह य िछपा है?” टी ने नीलाभ से िनवेदन करते ए कहा।
टी क बात सुन नीलाभ ने कु छ ण के िलये अपनी आँख को बंद
कर िलया। कु छ समय प ात् जब नीलाभ ने अपनी आँख खोल , तो समाधान
उसके सामने था।
“रे ने का शरीर मरने के बाद भी रे ने क शि यां अभी भी काय कर
रह ह। हम रे ने क शि य को पूण प से समा करने के िलये रे ने के शरीर
को जलाना होगा।” नीलाभ ने कहा।
नीलाभ क बात सुन जे स यू ान म बैठ गया और उसने यू ान का
अगला िसरा रे ने के शरीर क ओर करके यू ान म लगा अि का बटन दबा
दया।
जे स के ऐसा करते ही यू ान के अगले िसरे से तेज अि क लपट
िनकल और उन लपट ने पल भर म ही रे ने के शरीर को वाहा कर दया।
रे ने का शरीर जलते ही सभी अपने होश म आ गये। चूं क सभी का
िसफ शरीर ही ज आ था, इसिलये सबने रं जो- शंजो, टी, जे स व
नीलाभ का यु देख िलया था। इसिलये कसी को भी यु के बारे म कु छ भी
पूछने क आव यकता नह पड़ी?
तभी सभी को हवा म उड़ती ई िव ु ा उसी दशा क ओर आती ई
दखाई दी।
िव ु ा को उस ओर आते देख सभी यो ा फर से सावधान क मु ा
म आ गये, परं तु तभी वा िण ने अपने हाथ के इशारे से कसी को भी
आ मण ना करने के िलये कहा?
िव ु ा वा िण के पास आकर क गई और फर हाथ जोड़कर बोली-
“वा िण, तुमने िजस कार मेरे पु कालबा को ऋिष िव ाकु से मादान
दलाकर मुझे वापस दया था, उसी कार आज मने भी इस देवयु म
तु हारी सहायता करके अपना ऋण बराबर कर दया है। मैने इस यु म
सदैव ही तु हारी योजना के अनुसार ही काम कया। िजस दन अराका पर
ोम व जैगन का यु हो रहा था, उस दन मने जानबूझकर मकोटा को वहाँ
से भागने के िलये िववश कया। उसके प ात् मकोटा को ए ोवस पावर के
साथ िमलाकर स त व क पु तक क जानकारी दी। ऐसा हमने इसिलये
कया था, िजससे यह सभी अंत र के जीव हम पर एक साथ आ मण ना
कर और अलग-अलग जगह पर हम आसानी से इनक सं या को कम कर
सक। तु हारी योजना िब कु ल सटीक थी य क जब अंितम यु के िलये
अंत र के जीव यहाँ पर आये, तो वह सं या म 15 के थान पर के वल 5 ही
बचे थे। इसके प ात् मने मकोटा को महावृ के बारे म बताकर वयं को
मकोटा से अलग कर िलया। ऐसे म मकोटा अंितम समय तक यही समझता
रहा क म महावृ को अपने वश म करके उसे अराका का िनयं ण दलवा
दूँगी। हम चाहते तो उसी दन मकोटा को अराका पर मार सकते थे, परं तु
वैसी ि थित म हम ए ोवस पावर क एकता को तोड़ नह पाते। ... और हां,
मने इस काय म तु हारा साथ दया, इसका यह मतलब मत िनकाल लेना क
म तु हारी िम बन गई ँ। मेरा तु हारी सहायता करना िसफ इस यु के
िलये था। इसके प ात् य द हम कभी भी कसी भी थान पर िमले? तो फर
से श ु क भांित ही िमलगे। तो अब म अपने पित बाणके तु को लेकर इस
थान से जा रही ँ। .... आ य म मत रहो मेरे पित बाणके तु ने भी कई
मौक पर बाण चलाकर आपक सहायता ही क है।”
इतना कहकर िव ु ा ने एक बार सभी देवयो ा क ओर देखा और
फर हवा म उड़कर उस दशा क ओर चली गई, िजधर से कु छ समय पहले
बाणके तु ने आ मण कया था।
तभी युगाका, लुफासा को गले लगाते ए बोल उठा- “चूं क यह
भयानक यु समा हो गया है, इसिलये आज से सामरा व सीनोर रा य क
सीमाएं पूरी तरह से एक क जाती ह। इसी के साथ म लुफासा को इस पूरे
अराका ीप का राजा घोिषत करता ँ और म वयं उसके सेनापित के प म
अराका ीप पर बना र ँगा।”
युगाका के श द सुनकर लुफासा भावुक हो गया और उसने युगाका को
गले से लगा िलया। लुफासा को ऐसा करते देख सनूरा, वेगा, वीनस व
ि काली भी दोन के गले से जा लगे।
जब सभी अलग ए तो लुफासा बोल उठा- “चूं क मेरे भाई युगाका ने
मुझे इस अराका ीप का राजा घोिषत कया है, तो म इस राजा क हैिसयत
से आप सभी देवयो ा को अगले 3 दन तक अराका के रा यउ सव म
शािमल होने का आ ह करता ँ। कृ पया हम आित य का एक मौका देते ए
अब अगले 3 दन तक इसी थान पर रह।”
लुफासा का यह िनमं ण सभी ने वीकार कर िलया। हां इसके पहले
वा िण ने अ त व चं का से कहकर पृ वीवािसय को देवयु क समाि
का ऐलान करवा दया।
आज पृ वीवािसय के िलये भी उ सव क रात थी। आिखर उन सभी
ने पृ वी के अंत को टलते ए जो देखा था।
इधर सभी देवयो ा पैदल ही लुफासा के महल क ओर चल दये,
परं तु हर कसी के दल म इस समय थोड़ी ब त उथल-पुथल चल रही थी।
तो आइये हम भी पैदल चलते ह, इस छोटे से कारवां के साथ, अपने
सपन का संसार लेकर ....... या पता यह सपन क दुिनया हम भिव य के
दशन करवा दे-
............................................
“ या आ टी? तुम यु समा होने के बाद भी खुश नह दख
रही।” ऐले स, टी के हाथ को अपने हाथ म िलये ए चल रहा था।
“ या यार? अब फर से वही इटली जाकर एक बो रं ग सी जंदगी
जीनी पड़ेगी।” टी ने अफसोस जािहर करते ए कहा- “ या तु ह नह
लगता क एडवचर म थोड़ी सी कमी रह गई?”
टी के श द सुनकर ऐले स हाथ जोड़कर उसी थान पर बैठ गया-
“हे मेरी माँ, अब बस करो। मेरे िलये इतना ही एडवचर काफ था। .... अरे
हर समय जान हलक म रह रही थी क पता नह अगला दन देखना भा य म
िलखा है क नह ? और तुम कह रही हो क एडवचर थोड़ा कम था। .... अब
अगर तु ह और एडवचर चािहये तो इसी अराका पर क जाओ। म पूरी तरह
से आ त ँ, क इस थान पर हमेशा कु छ ना कु छ परे शािनयां आती ही
रहगी।”
“ठीक है ..... इसके बारे म भी सोचती ँ। अभी तो 3 दन ह ना हमारे
पास।” यह कह टी ने ऐले स का हाथ और जोर से थामा और आगे क
ओर बढ़ गई।
...................
ोम इस समय अपना मुंह नीचे कये जा रहा था क तभी पीछे से
कसी ने उसके कं धे पर हाथ रखा। ोम ने पलटकर पीछे क ओर देखा।
ोम के पीछे शलाका खड़ी थी।
“म जानती ँ ोम क म आकृ ित क जगह को नह भर सकती। परं तु
म इतना वादा तुमसे अव य करती ँ क म कभी भी तु ह तु हारी माँ क
कमी का अहसास नह होने दूँगी।” शलाका ने कहा।
“मुझे आपसे कोई िशकायत नह है माँ, म तो बस ई र से यह कहना
चाहता ँ क उसने जो कु छ भी मुझे दया, म उसका सदैव आभारी र ँगा,
परं तु उसने जो मुझसे छीना है, वह भी अमू य था।” कहते-कहते ोम क
आँख से आँसू िनकल आये।
तभी पीछे से आ रहे सुयश ने ोम को गले से लगाते ए कहा- “हो
सके तो मुझे भी मा कर देना पु । मुझे तु ह तु हारी माँ से अलग नह
करना चािहये था और अगर कभी भिव य म मुझे इस ायि त को भी
करना पड़ा, तो वह मुझे सहष वीकार होगा।”
“इसम आपका कोई कसूर नह है? िजसका कसूर था वह तो हजार
वष पहले वयं से ायि त कर चुका है। अब हम एक प रवार क तरह से
रहना चािहये। बस इससे यादा म कु छ नह क ँगा? हां परं तु म आपको एक
वचन अव य देता ँ क अब कभी म अपने इस प रवार को दोबारा से
िबखरने नह दूँगा।” ोम के श द म दद भरा था।
ोम के श द सुन सुयश ने उसे कसकर अपनी बांह म भर िलया।
शायद आज ोम ने वह कहा था जो क कभी भी आयन कह नह पाया था?
इसिलये सुयश को ोम पर ब त ही गव महसूस हो रहा था।
तभी ि काली ने ोम के दािहने हाथ क उं गिलय को धीरे से पकड़
िलया। यह इस बात का संकेत था, क तुम अब जहां भी रहोगे, मुझे सदैव
अपने साथ पाओगे।
शलाका ने ि काली का ोम क उं गली पकड़ना देख िलया, इसिलये
धीरे से सुयश को पीछे क ओर ख च िलया।
“अब उन दोन को अके ला भी छोड़ दीिजये। देिखये कतना यारा
जोड़ा लग रहा है?” शलाका ने सुयश को आँख मारते ए कहा।
“मुझे नह लगता क तुम उन दोन को अके ला छोड़ना चाहती हो।
मुझे तो ऐसा लग रहा है क तुम हम दोन को अके ले म रखना चाह रही हो।”
सुयश ने अथपूण मु कान िबखेरते ए कहा।
“अ छा जी, तो अब आपके मन क कढ़ाई जो क हजार वष से चू हे
पर थी, उसम से भी वा द िमठाइय क सुगंध आने लगी है।” शलाका ने
धीरे से सुयश का हाथ पश करते ए कहा।
शलाका के श द सुन सुयश ने हड़बड़ा कर इधर-उधर देखा क कह
शलाका क बात को कोई सुन तो नह रहा?
“हमने कु छ नह सुना कै टे न? हम तो दूसरे क पाटमे ट म थे।” तभी
साथ चलते रोजर ने धीरे से सुयश को छे ड़ा और िबना एक ण गंवाए
मेलाइट का हाथ पकड़कर आगे क ओर चला गया।
“वैसे अपनी जंदगी को लेकर या लान है आगे का?” शलाका ने
सुयश से पूछ िलया।
“अभी कु छ खास सोचा नह है? पर दल यही कह रहा है क इस
मायावी दुिनया से दूर यूयाक म कह घर लेकर एक साधारण सी जंदगी
शु कर? ठीक वैसे ही जैसी क हमने 5000 वष पहले शु क थी।” सुयश ने
शलाका को पुरानी याद दलाते ए कहा।
परं तु शलाका तो पुरानी नह नई याद म खो गई थी। सूयाश क
याद म .... वह जानती थी क अव य ही भिव य बदल गया होगा, परं तु
उसे पता था क ई र उसके सूयाश को उसे अव य देगा।
............................................
कु छ आगे जाकर रोजर को मेलाइट ने पकड़ िलया- “ य छे ड़ रहे थे
कै टे न को? अरे छे ड़ना ही था तो मुझे छे ड़ लेते। म या बुरी ँ?”
“तुम बुरी तो नह हो। पर ..... ।” इतना कहकर रोजर ने अपनी बात
को अधूरा छोड़ दया।
“पर! .... पर या रोजर?” मेलाइट ने ‘पर’ श द पर जोर देते ए
कहा।
“तुम बुरी तो नह हो, पर जबसे तु हारी बहन अमारा को देखा है,
ऐसा लगता है क जैसे वह तुमसे कु छ यादा सुंदर है? उसक आँख बड़ी ....
उसक गदन सुराहीदार .... उसके ह ठ .....।”
पर अभी रोजर यादा श द बोल भी नह पाया था क मेलाइट ने
अपने नम हाथ से रोजर को कू टना शु कर दया- “अ छा, तो तु ह म नह
मेरी बहन अ छी लग रही है और उसक तारीफ तो ऐसे कर रहे हो, जैसे क
उसे घूर-घूर कर देखा हो। अभी बताती ँ तु ह ... आज तो तुम गये काम से।”
मेलाइट क नकली मार से रोजर भागकर आगे चला गया क तभी
रोजर क नािभ से ती काश िनकलने लगा, जो क ेम क कोपल के
फू टने का संकेत था।
यह देख रोजर वापस से मेलाइट के पास आ गया और कान पकड़ते
ए बोला- “अ छा माफ कर दो, तुम ही पूरी पृ वी पर सबसे यादा सुंदर
हो।
रोजर क बात सुन अब मेलाइट के चेहरे पर नूर थोड़ा बढ़ सा गया।
उसने धीरे से रोजर का हाथ थामा और आगे क ओर बढ़ गई।
............................................
“ कतना खुशी भरा दन है आज।” चं वीर ने माया व किणका को
एक-एक हाथ को पकड़ते ए कहा- “आज हजार वष के बाद पूरा प रवार
एक साथ िमला है।”
“सच कह रहे हो चं । कतने लंबे समय के बाद आज हम सभी एक
साथ ह?” भागवी ने कहा- “और महादेव से मेरी यही ाथना है क अब वह
हमारे प रवार को कभी भी दूर ना कर?”
महादेव का नाम सुन किणका ने कनिखय से पीछे आ रहे नीलाभ को
देखा। आिखर किणका के िलये तो नीलाभ ही महादेव के समान था।
तभी माया ने नीलाभ का हाथ थाम उसे आगे क ओर ख च िलया-
“आप इतना दूर-दूर य चल रहे ह? हजार वष क दूरी या अभी भी कम
लग रही है? .... अब इनसे िमलो, यह है हमारी बहन किणका। .... म चाहती
ँ क मेरे माता-िपता के साथ किणका भी अब हमारे घर पर रहे और हां इस
बात का यान रखना क किणका के िलये अपने समान वर ढू ंढने का
अित र भार अब आपके ही पास है।”
“पर ... पर किणका हमारे साथ कै से रह सकती है? .... मेरा ये कहना
है क एक बार किणका से पूछ तो लो क वह हमारे साथ रहना चाहती भी है
या नह ?” नीलाभ ने हड़बड़ाते ए कहा।
“अरे अब इसम किणका से या पूछना? वह मेरी बहन है, वह मेरी
बात को काटे गी थोड़ी ना। अरे , जब तक इसके िलये कोई सुयो य वर नह
िमल जाता, तब तक हम दोन बहन िन ंत होकर रहगी एक ही घर म।”
माया ने नीलाभ को जोर देते ए कहा।
तभी हनुका चलता आ माया के पास आ गया- “माता, हम तो
लुफासा के राजसी मेहमान ह। ऐसे म तो पूरा खाना राजसी रसोइय ही
बनायगे, परतु मुझे तो आपके हाथ का भोजन करना है।”
“कोई बात नह पु ? म लुफासा से कहकर तु हारे िलये अपने क म
ही एक रसोई क व था करवा लूंगी और फर म अपने यारे से पु को
उसक इ छानुसार भोजन करवाऊंगी।” माया ने हनुका को यार भरे श द
म कहा।
“अरे वाह! फर तो महल क ओर ज दी-ज दी चलो माता, मेरे पेट म
तो आपके श द सुनकर ही हाथी दौड़ने लगे ह।” यह कहकर हनुका जमीन
पर गुलाटी मारने लगा।
हनुका क यह हरकत देख किणका भी खुश हो गई। परं तु नीलाभ के
चेहरे पर इस समय 12 बजे ए थे। उसे यही डर था क कह किणका का
रह य माया पर खुल ना जाये?
............................................
“कै पर, या तुमने इतने वष म मुझे कभी याद कया?” मै ा ने
कै पर क आँख म झांकते ए पूछा।
“मै ा, इतने वष म कोई ऐसा दन नह गया? जब क मैने तु ह याद
ना कया हो। .... पर सच पूछो तो मुझे ेत महल म जाने से डर लगता था
और ये डर तु हारी याद का था, जो क उस महल के कण-कण म िबखरी ई
थी। शु के दन म मने अपना कु छ समय ेत महल म िबताया भी, परं तु
जैसे ही म ब के उस कृ ि म सपन के संसार को देखता था, मुझे तु हारे
साथ िबताये गये हर एक पल याद आने लगते और वह पल ..... वह पल मुझे
ब त दद देते थे मै ा। इसिलये कु छ समय के बाद मने ेत महल जाना छोड़
दया। अब बचा म यलोक के पास बना मायामहल। हां यह वही मायामहल
था, जो तुमने और मने ब त मेहनत से सागर क लहर पर बनाया था, िजसे
छीनने पोसाइडन वयं आ गया था, पर उस महल क याद भी मुझे काटने को
दौड़ने लग , तो फर मने वहाँ भी जाना बंद कर दया। इसके बाद म
लगातार अपने काम पर यान देने लगा। म हर पल यही कोिशश करता क
म कसी भी समय खाली ना र ँ? य क खालीपन हमेशा मुझे तु हारी याद
दलाता था। .... पर जाने य मुझे िव ास था, क कभी ना कभी तो तुम
वापस आओगी? .... और देखो आज तुम आ गई। ... हां ये बात अलग है क
इस समय तु हारी आ मा एक छोटी सी ब ी के अंदर है, परं तु है तो वह मेरी
मै ा ही ना। .... मै ा ... मै ा .... अरे चलते-चलते सो गई या?”
मै ा तो जैसे कै पर के श द म खो गई थी, वह अपना हर बीता पल
आज कै पर के श द म जीना चाहती थी। जब कै पर ने मै ा को याद म
खोया देखा, तो उसने भी मै ा को फर से परे शान नह कया और मै ा का
हाथ पकड़े धीरे -धीरे आगे बढ़ता रहा।
............................................
“कै पर-कै पर।” वा िण ने धीमी आवाज म पीछे से कै पर को
पुकारा, पर कै पर तो इस समय अपनी ही धुन म खोया आगे बढ़ रहा था,
इसिलये उसे तो वा िण क आवाज ही नह सुनाई दी।
“अरे ! य कर रही हो अब उसे परे शान वा िण।” िव म ने वा िण
को िचढ़ाते ए कहा- “देख नह रही क कै पर अपनी हजार वष पुरानी
पि से िमलकर कतना स है? और एक तुम हो क भोजन म कं कड़ क
तरह घुसी ही जा रही हो। .... अरे अब भूल जाओ अपने दो त को। वह नह
आने वाला अब तु हारे हाथ।”
“भोजन म कं कड़! ... नह -नह िव म, तु हारा इस श द को कहने का
या मतलब है, जरा खुलकर समझाओ। ... या म कं कड़ ँ?” वा िण ने
िव म के श द को सुनकर भड़कते ए कहा।
“हां तुम कं कड़ हो। पर ये जान लेना क य द तुम कं कड़ हो, तो म
तु हारा शंकर ँ। ... अब ऐसे ही लोग थोड़ी ना कहते ह क शंकर कण-कण
म िव मान ह। म भी तु हारे ेम म तु हारी आ मा के अंदर िव मान ँ
वा िण।” अचानक से िव म ने भावुक होते ए कहा- “म जानता ँ वा िण
क तुमसे अ छा जीवनसाथी मुझे कभी नह िमलेगा? पर अब तो ये ांड
र क का काय मुझे भी परे शान करने लगा है। म भी कै पर-मै ा, ोम-
ि काली, वेगा-वीनस या फर सुयश-शलाका क तरह से अपना घर बसाना
चाहता ँ। परं तु यह ांड र क का काय हम ऐसा करने से रोकता है। ....
वा िण, हम सदैव साथ तो रहते ह, परं तु या हम कभी भी एक हो पायगे?
या फर ऐसे ही पृ वी क सुर ा करते-करते कसी दन अपने ाण का
याग कर दगे?”
“अरे ! मेरे शंकर, यह समय अभी इतनी बड़ी-बड़ी बात सोचने का
नह है। अभी तो समय है क तुम िसफ अपने कं कड़ म खो जाओ। बाक इन
बड़ी बात के िलये तो हम इस उ सव के बाद भी सोच लगे।” वा िण ने
िव म पर यार लुटाते ए कहा।
वा िण क बात सुन िव म ने अपने िसर को एक ह का सा झटका
दया और फर खुशी-खुशी वा िण के साथ महल क ओर चल दया।
............................................
“जेिनथ, मुझे एक बात समझ म नह आई।” ओरस ने जेिनथ के चेहरे
क ओर देखते ए कहा- “ क जब रे ने ने सभी शि धारक को ज कर
दया था, तो उस समय के वल जे स व टी ही सामा य अव था म थे
य क उनके पास कोई भी द शि नह थी। परं तु द शि तो तु हारे
भी पास नह है। ऐसे म तुम कै से ज हो गई?”
“म ... म भी ज नह थी। वो तो म भी टी व जे स के समान
नाटक ही कर रही थी, परं तु रे ने व ीवेन मेरी ओर आए ही नह , इसिलये
मुझे उ ह मारने का मौका नह िमल पाया।”
जाने य जेिनथ ने ज़ेिन स क पावर के बारे म ओरस को कु छ नह
बताया? उधर जेिनथ क इस हरकत से जेिनथ के मि त क वाली जेिनथ भी
च क गई, जो क लैकून के एक गु कमरे म एक कु स पर बैठी ई थी।
“जेिनथ, म सोच रहा ँ क लैकून को वापस उसके प म लाकर
डे फानो पर बसा दूँ और डे फानो का पुन नमाण क ं । तु हारा इस बारे म
या कहना है?” ओरस ने जेिनथ से सुझाव मांगते ए पूछा।
“तु हारा िवचार तो अ छा है, पर अगर हम पृ वी पर ही बस जाय
तो कै सा रहेगा?” जेिनथ ने अपने मन क बात करते ए कहा।
“हां ... यह भी ठीक है .... पर म देवता नोवान व अपने िपता िगरोट
का व पूरा करना चाहता ँ, जेिनथ।” ओरस ने कहा।
“ठीक है ओरस, हम इस िवषय पर उ सव के बाद बात करगे।” जेिनथ
ने बुझे मन से कहा और ओरस के साथ महल क ओर चल दी। हां ... इस
समय उसे तौफ क क ब त याद आ रही थी।
............................................
“वेगा, तु हारा भिव य को लेकर या लान है?” वीनस ने वेगा से
पूछा- “मेरा मतलब है क तुम इस यु के बाद कहाँ रहना चाहते हो?
अमे रका म या फर इसी अराका पर?”
“देखो वीनस, जंदगी तो अमे रका म ही है, मगर प रवार तो अराका
पर है। कु छ नया सीखने के िलये हम अमे रका म रहना होगा, परं तु र ते क
िमठास तो अराका पर ही बरकरार रहेगी। ... आंऽऽऽऽ सच क ँ, तो म अभी
िनणय नह ले पा रहा वीनस, पर एक बात है, अब जहां भी रहगे वहाँ साथ-
साथ ही रहगे।” वेगा ने अपने दल के उ ार कट करते ए कहा।
वेगा क बात सुन वीनस ने धीरे से वेगा के बाल को सहलाया और
महल क ओर चल दये। ले कन वीनस ने मन म सोच िलया था क य द
अराका पर रहे, तो उसका अिधकांश समय महावृ के व त म ही बीतने
वाला था।
............................................
“जे स!” आगस ने जे स को देखते ए धीरे से कहा- “तु ह समय
िनकाल कर शलाका से एक बार बात करनी ही होगी। म चाहता ँ क
शलाका मेरे साथ नेिमरॉस पर चलने के िलये तैयार हो जाये बस। .... और
अगर तुमने ऐसा करवा दया तो तुम मुझसे जो भी मांगोगे, म तु ह वो दे
दूँगा।”
“महान आगस, जरा यान से देिखये शलाका व सुयश को। शलाका व
ोम को। या आपको नह लगता क शलाका यह पृ वी पर ही स है।
ऐसे म आप उसे बार-बार पृ वी से लाख काशवष दूर नेिमरॉस पर य ले
जाना चाहते ह? अरे ब त मुि कल से शलाका को इतनी सारी खुिशयां एक
साथ िमली ह और आप ऐसे समय पर उसे फर से खुिशय से दूर करना
चाहते ह। ... आपके पास तो शलाका के 7 भाई ह। अरे या हो जायेगा, य द
एक लड़क आपके पास नह होगी? .... फर भी म आपक भावना को
देखते ए शलाका से एक बार तो बात क ँ गा और उसे मनाने क कोिशश
भी क ँ गा, परं तु य द उसके बाद भी वह नह मानी, तो आपको भी उसक
भावना का स मान करते ए, अपना यह िवचार यागना होगा।”
जे स क बात सुन आगस को बुरा अव य लगा, परं तु उसने जे स से
अभी कु छ कहना उिचत नह समझा। इसिलये वह आगे क ओर बढ़ चला।
जे स ने एक नजर पीछे से आ रही आच क ओर देखा और फर वह
भी आगे क ओर चल दया।
धीरे -धीरे शाम हो रही थी। सूय अपनी नारं गी करण को चारो ओर
िबखेरता आ पि म दशा म एकाकार होने जा रहा था।
◆ ◆ ◆
अंत ही आरं भ

6 माह के प ात् ..... अग त 2003


दो त आप यही सोच रहे ह गे क इस कथा ृंखला का तो अंत हो
गया, फर इस अ याय म म आपको दखाना या चाहता ँ? अरे ! यह
सोचना तो आपका काय है क यह कथा का अंत है या फर एक नये युग का
आरं भ। ..... तो आइये देखते ह क इस देवयु के 6 माह के बाद कौन कहाँ
पर या कर रहा है?
देवयु के बाद लुफासा का रा यािभषेक कया गया, िजसम लुफासा
को अराका ीप का राजा िनयु कया गया। युगाका को अराका रा य का
सेनापित बनाया गया। युगाका ने देवी महाकाली क मू त के सामने एक बड़े
से िव ालय का िनमाण कराया, िजसम सभी अराका के ब को पढ़ाई के
साथ-साथ यु का भी िश ण दया जाने लगा। इस िव ालय का नाम
‘का शाला’ रखा गया। का शाला म पढ़ाई क िज मेदारी महावृ के कृ ि म
पु वि ल को दी गई। हां ये वही वि ल था, जो एक लकड़ी का बालक था
और जो िव ु ा को व त के अंदर ले गया था। वि ल का काय स ाह म
एक दन सभी बालक का प रचय वृ से कराना था, जहां एक काय के
अंतगत वृ व बालक िमलकर का के एक नये अिव कार को ज म देते। हां
वि ल सभी को वष म एक दन व त घुमाने के िलये अव य ले जाता
था, िजससे िजस बालक म िजतना नर हो, वह महावृ के मा यम से अपने
नर को और तराश ले। देवयु के 1 माह बाद लुफासा ने सनूरा से िववाह
कर िलया। सनूरा अब अराका रा य क महारानी है। महावृ आज भी अपने
ान से अराका रा य को स प और ान का भंडार बनाने म यासरत है।
कलाट के ना रहने के बाद कलाट क योगशाला का पूरा भार करीट, रं जो
व शंजो को चला गया। जहां एक ओर करीट िनत नये अिव कार करता
रहता है, वह रं जो व शंजो आज भी मशीन से द शि य को ढू ंढने म
लगे ह। अराका ीप म अब पानी के नीचे भी दुिनया बसाई जा चुक है और
समु के नीचे टू ट चुके अटलां टस का िनमाण काय भी जारी है। आशा करता
ँ क ज दी ही अटलां टस नाम क वह चम कारी दुिनया एक बार फर से
दुिनया क िनगाह म आ जायेगी। अराका म मौजूद कै पर क गु
योगशाला को हमेशा-हमेशा के िलये बंद कर दया गया है और पोसाइडन
पवत के आसपास का े अराका के यूिजयम के प म थािपत कर दया
गया है। अराका के मायावन वाले भाग को एक टू र ट लेस क तरह
िवकिसत कर दया गया है, िजसम पृ वी के सबसे भ जंगल का िनमाण
कया गया है। इस जंगल म अब अनेक आ य ह, जैसे क मेडूसा महल,
कलाट न शाला, मुफासा अभयार य, कागोशी वन िवहार, अलबट
वन पित संसार, तौफ क एडवचर कप, मकोटा िपरािमड, लीटो िव ान
क , ूनो िचिड़याघर, कै र सागर व लैडन पवत आ द। इस जंगल के
आ य अब सैलािनय को लुभाने के िलये कये जाते ह। अराका के इस वन
का पूरा कायभार वेगा व वीनस संभालते ह। इस तरह से वह पृ वी के अ य
देश से जुड़े भी ए ह और अपने प रवार के पास भी ह। इस थान पर
अनेक लुभावने होटल बनाकर यहाँ सैलािनय को बुलाया जाता है। पूरी
पृ वी पर इस होटल क माक टं ग का काय भार ऐले स व टी के कं ध पर
डाला गया। ऐले स व टी माक टं ग के मा यम से यहाँ सैलािनय को लाते
ह और अराका क अथ व था म योगदान भी करते ह। इस कार अराका
आज पूरी दुिनया म एकमा कृ ि म ीप का तमगा हािसल कर समु क
लहर पर इधर-उधर घूम रहा है और अपने िव ान से दुिनया के सभी देश
को आक षत कर रहा है।
उधर सुयश ने शलाका के साथ अमे रका म रहना वीकार कर िलया।
इसके तहत सुयश ने यूयाक के एक िविश े म, 3000 वग फट म
सूयाि भवन नामक एक सुंदर से घर का िनमाण कराया और एक साधारण
इं सान क तरह जीने लगा। उधर शलाका ने अब आकिडया को यूयाक क
ऐरी झील म िछपा दया और जे स व आच को उसक देखभाल का काय दे
दया। आगस के कहने पर जे स ने शलाका को ब त मनाने क कोिशश क ,
परं तु शलाका नेिमरॉस ह पर जाने को नह तैयार ई। इसिलये आगस,
आच को शलाका के पास छोड़ वयं नेिमरॉस ह वापस लौट गया। शलाका
स ाह म एक बार, एक िवशेष यं के ारा अपने भाइय से बात करती है।
शलाका ने यू ान को भी आकिडया म िछपाकर रखा है। यह बात और है क
कभी-कभी दुिनया क नजर से िछपकर सुयश व शलाका यू ान म बैठकर
लांग ाइव पर जाते ह, ले कन उस समय यू ान वयं को कसी सामा य
कार क तरह से बना लेती है। जे स भी आच के साथ यूयाक म घूमता
रहता है और उसे वा तिवक दुिनया से ब कराता रहता है। आकिडया म
आज भी एक टीकर वाला ार है, जो क सूयाि भवन म ि थत शलाका के
कमरे म खुलता है। शलाका कभी-कभी पुरानी याद ताजा करने के िलये
आकिडया जाती है। हां एक बार शलाका ने फर से चे टनट रज पाक जाकर
समय ार से भिव य म जाने क सोची, परं तु अब वह समय ार बंद हो चुका
है। अब शलाका को इं तजार है तो बस सूयाश के आने का। .... सूयाश क याद
शलाका के दमाग से कभी गई ही नह ? उधर ोम भी ि काली के साथ
अपने तथाकिथत िपता महे शमा के घर यूयाक म ही रहता है। ोम का
घर सूयाि भवन से अिधक दूर नह है, इसिलये माह म एक बार ोम,
सुयश व शलाका से िमलने उनके घर जाता है। ोम ने सी े ट स वस फर से
वाइन कर ली है, परं तु उसने कभी कसी को नह बताया क उसके पास
कौन सी महाशि यां ह? उधर ि काली ने भी यूयाक म एक आइस म का
पालर खोल िलया है, िजसम वह रोज नई आइस म को बनाकर ब को
लुभाती है। अब िवशेष बात यह है क ि काली आइस म के यह नये लेवर
अराका ीप के नविन मत फल से बनाती है, जो वेगा व वीनस उसे अराका
ीप से िभजवाते ह, बाक बचा आइस म क बफ का, तो उसके िलये
ि काली वयं क शि य का भी सहारा ले लेती है।
वह दूसरी ओर मेलाइट, रोजर को लेकर ीस म ि थत अपने
िनि फया महल म आ गई। रोजर व मेलाइट शान से सीरीिनया के जंगल म
रहते ह। इन दोन को देवी आटिमस क सुर ा भी ा है। स ाह म एक
दन मेलाइट अपनी चारो बहन को अपने घर खाने पर बुलाती है, जहां
उसक बहने रोजर को छे ड़ती रहती ह, पर रोजर को अब उसक ये जंदगी
ब त ही भाने लगी है। हां कभी-कभी दोन गो पर बैठकर आसमान म भी
उड़ते ह, परं तु अभी भी रोजर को ैगन पवत पर िबखरे अनेक रह य लुभाते
ह और वह मेलाइट से िछपकर उन रह य क खोज म जाता रहता है।
आिखर रोमांच का शौक जो लग गया था रोजर को। हां रोजर आ या म के
ारा अभी भी अपनी शि य को समझने क कोिशश कर रहा है।
सुवया अराका से लौटकर अपने वणा ीप पर वापस आ गई। ना
...ना ... च कये नह , यह वही वणा ीप है, जहां हजार वष पहले
मेघवण रा य कया करता था। मेघवण के मरने के प ात् वहाँ का राजा
‘ संह प’ को बनाया गया। बाद म माया ने वणा ीप को संहलोक म
प रव तत कर दया। यह वही ीप था, जहां पर सूयदेव ने पंचशूल का
िनमाण कया था। सुवया को वापस लौटने के बाद कसी ने पहचाना ही नह
य क सुवया उस थान पर 5000 वष के बाद आई थी। इतने बदलाव देख
सुवया ने वणा ीप के वन क एक गुफा को अपना ठकाना बना िलया
और अपने संह िलयो के साथ वह रहने लगी। सुवया जानती थी क कसी
ना कसी दन कोई तो आएगा उसे वापस उसके रा य म ले जाने के िलये?
वह जेिनथ अराका ीप से िनकलकर ओरस के साथ पे रस आ गई।
वहाँ जेिनथ ने अपने सभी दो त से ओरस को अपने पित के प म प रचय
कराया। कु छ ही दन के अंदर जेिनथ ने पे रस म एक बड़ी सी जगह खरीदी
और वहाँ पर फ नी स इं टनेशनल के नाम से अपनी कं पनी क शु आत क ।
जेिनथ ने फ नी स इं टरनेशनल कं पनी क लैब म एक थान पर लैकून को
भी बड़ा करके थािपत करवा दया। पर जेिनथ या ओरस के िसवा लैकून म
कसी का भी वेश व जत था? कु छ दन के बाद ओरस समयच के ारा
लैकून से डे फानो व अ य ह पर भी जाने लगा। वैसे तो जेिनथ क जंदगी
अब अ छी गुजर रही थी, परं तु दूसरी जेिनथ को उसने अब भी ओरस क
नजर से बचाये रखा था। .... पता नह या परे शानी थी, परं तु जब से दूसरी
जेिनथ आई थी, इस जेिनथ का वभाव थोड़ा बदला-बदला सा लग रहा था।
जो जेिनथ कभी ओरस के प पर मर िमटी थी, वह जेिनथ अब अपना
यादातर समय काम म लगा रही थी। वह वयं को काफ उलझी-उलझी सी
महसूस कर रही थी। ऐसा नह था क ओरस को जेिनथ क परे शािनयां दख
नह रह थ , परं तु वह दूसरी जेिनथ के रह य को नह जानता था।
वह दूसरी ओर कै पर, मै ा को लेकर मायामहल म रहने के िलये
चला गया। वैसे तो कै पर का मन मै ा के साथ ेत महल म रहने का था,
परं तु अब कै पर वा िण से ेत महल को वापस नह मांगना चाहता था।
मायामहल, म यलोक के पास समु क गहराई म बना था, इसिलये गो
भी हाइ ा के प म उ ह के साथ रहने लगा। कै पर व मै ा हर दन समु
व आसमान म घूमने भी जाते थे। कभी-कभी कै पर वा िण क गित देखने
के िलये न लोक भी जाता था, तो कभी दोन िहमालय पर माया से भी
िमलने को जाते थे। कै पर ने अपने माता-िपता को जीयूष क िनगरानी म
ीस के शहर एथस म रखा था। सो फया व मेरोन भी एथस म रहकर अब
खुलकर जी रहे थे। कु ल िमलाकर कै पर व मै ा क जंदगी ब त ही अ छी
चल रही थी।
उधर माया ने वापस नीलाभ के साथ रहना शु कर दया था। यह
बात अलग थी क अब किणका भी उनके साथ थी। माया अब भी हनुका से
उतना ही ेम करती थी, िजतना क वह पहले करती थी। माया और नीलाभ
एक बार फर से वेदालय को खोलने क योजना पर काय करने लगे। िनकुं भ
अब भी नीलाभ के शरीर म अपना घर बनाये था और कसी काय के दौरान
किणका भी नीिलमा बनकर नीलाभ के साथ चली जाया करती थी।
चं वीर व भागवी ने नीलाभ व माया के साथ रहना वीकार नह
कया, इसिलये दोनो वापस से चं ोदय वन म ि थत चं महल म रहने लगे।
बीच-बीच म दोन पुरानी मृितय को ताजा करने के िलये ि कालदश
मं दर भी जाने लगे। वैसे चं वीर चाहता तो वापस से अपने चं ोदय रा य
जा सकता था, परं तु चं ोदय रा य म अब चं वीर का बनाया आ हमश ल
राजा बनकर बैठा था और चं वीर वापस से उससे रा य लेना नह चाहता
था, इसिलये दोन शांित के साथ चं ोदय वन के चं महल म रहने लगे।
चं वीर क नजर अब कालाि के रह य को सुलझाने म लगी थ ।
स पु तक को वापस उनके यथा थान पर रख दया गया था।
पृ वीवासी भी अब ांडर क के रह य को सुलझाने म लगे थे, परं तु
वा िण के िसवा पृ वीवािसय ने कसी का भी चेहरा नह देखा था, इसिलये
उह ांडर क क कोई जानकारी नह थी?
पृ वी के हर वह भूभाग, जो क देवयु के दौरान टू ट गया था, माया
ने देवता क मदद से पुनः उस थान को पहले के समान कर दया, िजससे
पृ वी के लोग के िलये स पु तक तक प ंचने का माग पुनः बंद हो गया।
अब पृ वीवासी पुनः पहले के समान जी रहे थे, परं तु उ ह ांड
र क के ारा लड़ा गया यह यु आजीवन याद रहने वाला था।
“स त व से छू टी करण, कण से बना ि काल,
अंत आ है देवयु का, या आरं भ आ है मायाजाल”
तो दो त इस कथा ृंखला का अंत इस थान पर होता है। अब
आपको सोचना है क यह इस कथा का अंत था या फर आरं भ
................................
◆ ◆ ◆
लेखक के बारे म
िशवे सूयवंशी

“कृ ित का संकलन ,ँ नये श द का संचार ँ म,


अनकही गाथा ,ँ या मि त क का िवचार ँ म,
मेरे कथन क क पना का सागर असीम है,
ल ज म िबखरी ई, वीणा क झंकार ँ म,
मत दीिजये मेरे अलफाज को पंि य क चुनौती,
जो ह को महका दे, फजा म िबखरी वो बयार ँ म,
मेरा वजूद छाया है अनंत ांड क गहराई म,
िशवे ँ म, कताब म िसमटा संसार ँ म।“

दो त इ धनुष के रं ग क मांिनद होती है एक लेखक क रचनाएं। िजस कार इ धनुष म सात रं ग होते ह, ठीक उसी
कार लेखक क रचना म भी सात रं ग पाये जाते ह। हर रं ग अपने आप म एक अलग पहचान रखता है।
एक उ तरीय लेख िलखने के िलए, सबसे पहले एक स मोहक कथानक क आव यकता होती है, फर इसके एक एक
पा को मनका समझकर माला म िपरोया जाता है, िजससे पाठक को हर एक पा के जीवंत दशन हो सके । फर
क पना के असीम सागर म डु बक लगाकर मोितय क तरह एक-एक श द को चुनकर उनके भाव को अिभ करना
पड़ता है। तब कह जाकर तैयार होती है एक लेखक क रचना?

दो त मेरा नाम िशवे सूयवंशी है। आपके िलए शायद यह लेखक व इसक लेखनी नयी है। पर यह कलम आज से
लगभग 25 वष पहले से, िनरं तर रात क त हाइय म कोरे कागज पर एक अनकही द तक देती चली आ रही है। यह
अनकही द तक ‘ रं ग ऑफ़ अटलां टस’ नामक एक कथा ृंखला का प लेकर अब आपके सम है। यह मेरा वादा है क
इस कथा ृंखला क हर एक पु तक अपने आप म अि तीय होगी। इस ृंखला क आठव और अंितम पु तक
‘महासं ाम’ आपके हाथ म है।
इस ृंखला क अ य पु तक के नाम नीचे दये ए ह, जो क िपछले कु छ समय अंतराल म कािशत हो चुक ह-
1) सन राइ जंग
2) अटलां टस
3) मायावन
4) ितिल मा
5) देवशि
6) काला मोती
7) देवयु
मेरे ारा िलखी जाने वाली अगली पु तक का नाम है- “ कलश”
इस पु तक म देवयो ा आयन क लोक से अमृत लाने क एक अिव मरणीय गाथा है।

तो दो त मेरा नाम आपके िलए नया ज र है, पर मेरी लेखनी आपको नयी नह लगेगी।
दूसर को बनाने म तमाम उ गुजारी है,
पंख नये ह, पर अब मेरे उड़ने क बारी है।

दो त इस कताब को िलखने म ब त समय और मेहनत लगी है। इसे पढ़कर कृ पया र ू के मा यम से अपने िवचार
ज र क रयेगा।
इस उप यास के बारे म अपनी अमू य सुझाव हम अव य भेज। हमारी मेल आई डी है

मेल आई डीः shivendra.suryavanshi2@gmail.com


फे सबुक पेजः @shivendrasuryavanshitheauthor

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