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जीवन प रचय
म बु बोल रहा ँ
जीवन प रचय
गौ तम बु का ज म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुं बनी वन म आ। उनक
माता क पलव तु क महारानी महामाया दे वी जब अपने माता- पता के पास दे वदह जा रही
थ , तो उ ह ने रा ते म लुं बनी वन म बु को ज म दया।
ऐसा करते-करते उ ह छह वष बीत गए, इस बीच कतनी ही बार वे भूख के कारण मरते-
मरते बचे, ले कन अब तक उ ह अपने न के उ र नह मल पाए थे। तब वे फर कुछ
और करने के बारे म सोचने लगे। इस समय, उ ह अपने बचपन का एक पल याद आया,
जब उनके पता फसल बोने के लए खेत तैयार करना शु कर रहे थे। उस समय क बात
याद करके वे आनंद से भर गए और उसी आनंद म उनको यान-समा ध लग गई, तब उ ह
ऐसा महसूस आ क समय र हो गया है। यही वह समय था, जब उनको बो धत व
ा त आ। इसके बाद कठोर तप या छोड़कर उ ह ने आय अ ांग माग ढूँ ढ नकाला, जो
बीच का माग भी कहलाया जाता है। उसके बाद वे लोग को स ाग दखाने के लए चल
पड़े।
ह या, चोरी तथा भचार ये तीन बुराइयाँ शरीर क बुराइयाँ ह। झूठ बोलना, गाली दे ना,
बकवास करना तथा नदा करना ये चार बुराइयाँ जीवन क ह। लालच, े ष तथा ु ट ये
तीन मन क बुराइयाँ ह। अगर इन दस बुराइय से मनु य बच जाए तो वह सव े मनु य
हो जाता।
भगवान् बु के उपदे श
ह -धम म वेद का जो ान है, बौ धम म वही ान पटक का है। भगवान् बु ने
अपने हाथ से कुछ नह लखा था। उनके उपदे श को उनके श य ने पहले कंठ कया,
फर लख लया। वे उ ह पे टय म रखते थे। इसी से ' पटक' नाम पड़ा। पटक तीन ह—
ध मपद
ह -धम म गीता का जो ान है, बौ धम म वही ान ध मपद का है। गीता जस कार
महाभारत का एक अंश है, उसी तरह ध मपद सु पटक के खु क नकाय का एक अंश
है।
॥ ओ म ण पदमे म्॥ यह षडा रीय मं है, जसका उ लेख अवलो कते वरा म कया
गया है। यह मं सभी कार के खतर से सुर ा के लए जपा जाता है। बताया जाता है क
जो कोई इस मं को जपता है वह सब खतर से सुर त हो जाता है। इस मं का जप
बौ धम क महायान शाखा म मुख प से कया जाता है।
यह मं अकसर ाथना च , तूप क द वार, धम ान के प र , म णय आ द म खुदा
आ या च त प म मल जाता है। जस ाथना च पर यह मं खुदा होता है उसको
एक बार घुमाने पर माना जाता है क उसने इस मं को दस लाख बार जपा है। यह मं
अँगूठ या अ य आभूषण म भी मु त रहता है।
पारंप रक मंडल
मंडल यानी ऐसा तां क यं , जो गोलाकार होता है। यह यान का यं माना जाता है। यह
य प से यान और मनन करने म सहायता करता है। इसके इ तेमाल से भ जन को
स क ा त होती है।
इसके कई कार होते ह। इनम से सबसे च लत ' यानी बु ' का मंडल है। यह सबसे
ाचीन तां क यं है। इसे शु करण का महल कहा जाता है। यह एक जा ई चौकोर
होता है जो क अ या म क राह म आनेवाले अवरोध को हटाकर च का शु करण
करता है।
यान च
यह केवल त बती बौ भ ारा इ तेमाल कया जाता है। इसम 'ओ म ण पदमे म्'
मं खुदा होता है। ाथना च , जो छोटे आकार के होते ह, वे आम लोग और वा सय
ारा इ तेमाल म लाए जाते ह। बड़े आकार के च मठ , तूप म इ तेमाल होते ह।
बौ धम के आठ शुभ च न न ह—
(1) वेत शंख
वेत शंख जो दा हनी ओर कुंड लत हो, धम क मधुर, गहरी और संगीतमय श ा को
दरशाता है। यह हर कार के वहारवाले श य के लए उपयु है। यह शंख उनको
अ ानता से उठाकर अ े कम और सर क भलाई करने क ेरणा दे ता है।
(2) वजयी वज
वजयी वज जीवन म शारी रक, मान सक और अ य ग तरोध के व पाई गई वजय
का तीक है। यह बौ धम के स ांत क वजय का भी तीक है।
(3) वण मछली
वण मछली सभी जीव के नभय जीवन जीने का तीक है। जैसे मछली न चंत होकर
तैरती है, वैसे ही सभी जीव को नभय होकर जीना चा हए।
(4) प व छ ी
प व छ ी मनु य को बीमारी, वप और सभी वनाशी ताकत से सुर त रखने का
तीक है। यह तेज धूप से छाया का आनंद लेने का भी तीक है।
(5) धमच
यह बौ धम के सभी कार के स ांत , जनका क भगवान् बु ने अपने उपदे श म
उ लेख कया है, का तीक है। यह नरंतर वकास क ओर इं गत करता है।
बौ धम के अ ाकृत न
नवाण ही स य, बाक सब अस य
अ ाकृत का अथ है, जो ाकरण-स मत नह है। जब भगवान् बु से जीव, जगत् आ द
के वषय म चौदह दाश नक न कए जाते थे तो वे सदा मौन रह जाते थे। ये स
चौदह न न नां कत ह—
1. अनी वरवाद
बु ई वर क स ा नह मानते य क नया ती यसमु पाद के नयम पर चलती है।
ती यसमु पाद अथात् कारण-काय क शृंखला। इस शृंखला के कई च ह, ज ह बारह
अंग म बाँटा गया है। अतः इस ांड को कोई चलानेवाला नह है। न ही कोई
उ प कता, य क उ प कहने से अंत का भान होता है। तब न कोई ारंभ है और न
अंत।
2. अना मवाद
अना मवाद का यह मतलब नह क सच म ही 'आ मा' नह है। जसे लोग आ मा समझते
ह, वह चेतना का अ व वाह है। यह वाह कभी भी बखरकर जड़ से ब हो
सकता है और कभी भी अंधकार म लीन हो सकता है।
3. णकवाद
इस ांड म सबकुछ णक और न वर है। कुछ भी ायी नह । सबकुछ प रवतनशील
है। यह शरीर और ांड उसी तरह है जैसे क घोड़े, प हए और पालक के संग ठत प
को रथ कहते ह और इ ह अलग करने से रथ का अ त व नह माना जा सकता।
बौ तूप तीक
धमच
यह धमच बौ धम के नयम, ज म और पुनज म क नरंतरता का तीक होता है। ये
गोल आकार के होते ह, जनम चार ता ड़याँ होती ह। ता ड़याँ चार जन या बु के जीवन
के चार नणायक ण को इं गत करती ह।
अगर आठ ता ड़याँ ह तो ये 'अ ां गक माग' को दरशाती ह। स ाट् अशोक का धमच
ब त स है, ले कन इसके पहले भी भारतीय कला म इसका इ तेमाल कया जाता रहा
है। सामा यतः च को चार दशा क ओर मुख कए ए सह के ऊपर बनाया जाता
है।
पारंप रक घंट
घं टयाँ आठ, बारह, सोलह, अठारह या बाईस अंगुल क ऊँचाईवाली हो सकती ह। इनका
आकार नीचे से गोल होता है और उसके ऊपर दे वी जनापरा मता का चेहरा बना होता है।
सबसे ऊपर कमल, चाँद और व बने होते ह। व के साथ इ तेमाल करने पर घंट ान
को इं गत करती है।
व
व म नौ, पाँच या तीन ता ड़याँ होती ह। शां तमय व के छोर पर ता ड़याँ आपस म मली
ई होती ह, जब क हसक व के छोर थोड़े फैले ए होते ह।
बौ मु ाएँ
(1) ग तमान धमच क मु ा
दा हने हाथ का अँगूठा और तजनी अँगुली बु और जुड़ने क कला को इं गत करती ह।
बाक क तीन खड़ी ई अँगु लयाँ बौ श ा का तीक है। बाएँ हाथ क मु ा मनु य क
म त मता को इं गत करती है, जस पर क वह ान के पथ और जुड़ने क ओर
बढ़ता है।
(2) यान क मु ा
मानव तं का णाली जो क म त क के उस भाग से जुड़ी होती है, जो परमानंद का
कारक होता है, इसक तं काएँ हाथ के अँगूठ से होकर गुजरती ह। इसे बौ धम म
बो ध च कहा जाता है। इस मु ा म दोन हाथ के अँगूठ का पर र जोड़ या मलन
बो ध च के भ व य म वकास क ओर इं गत करता है।
(3) सव ा त क मु ा
दा हने हाथ क मु ा सव ा त को इं गत करती है और बाएँ हाथ क मु ा यान- चतन
को दरशाती है। ये दोन मलकर बु क सव श क ओर इं गत करते ह। बु यान
म इस मु ा म बैठते थे।
(4) भू म पर दबाव दे ने क मु ा
दा हने हाथ क मु ा भू म पर दबाव दे ने क तथा बाएँ हाथ क मु ा यान करने क होती
है। ये दोन मलकर बु ारा सभी ग तरोध पर पाई वजय को इं गत करती ह। भू म को
छू ने क मु ा बु के उस वजय का च है, जब उ ह ने रा स मारा पर वजय पाई थी।
इसी कार महायान म पार मता माग पर जोर है। 'पार मता' श द 'परम' से बना है। इसका
अथ सबसे ऊँची अव ा है। पार मताएँ मु य प से छह कार क होती ह—
1. दान-पार मता : सर के हत के लए अपना व व छोड़ने का नाम दान है। दान-
पार मता तीन बात से होती है—
1. जब दान के पा क कोई सीमा नह रहती। ाणीमा दान का पा बन जाता
है।
2. जब दे ने क व तु क कोई सीमा नह रहती। मनु य अपना सबकुछ सर के
हत म लगाने को तैयार हो जाता है।
3. जब दान के बदले म कुछ भी पाने क आकां ा नह रहती।
2. शील-पार मता : 'शील' यानी सदाचार। अ हसा, स य आ द नै तक नयम को चोट
पर प ँचाने का नाम शील-पार मता है। हसा न शरीर से होनी चा हए, न वचन से, न
मन से। इसी तरह सरे नयम का पूरा-पूरा पालन होना चा हए।
3. शां त-पार मता : 'शां त' यानी मा, सहनशीलता। चाहे जतना क आए, धैय न
छोड़ना, वच लत न होना। मरने जैसा क होने पर भी शां त से उसे झेल लेना शांत-
पार मता है।
4. वीय-पार मता : 'वीय' यानी उ साह। अशुभ को छोड़कर पूरे उ साह के साथ आगे
बढ़ने का नाम वीय-पार मता है।
5. यान-पार मता : ' यान' यानी कसी एक व तु म च को एका करना। च जब
पूरी तरह वश म हो जाए, तो यान-पार मता स होती है।
6. ा-पार मता : ' ा' यानी स य का सा ा कार होना। च जब नमल हो जाता है,
तब ा क ा त होती है। नमल च से ही स य के दशन होते ह।
2. न ता
बु ने स य क तलाश म लगे एक से कहा, "य द तुम सचमुच स य क तलाश म
लगे हो तो एक चीज का पता तु ह होना चा हए, जो सव प र है..."
3. कौन ह साधु
महा मा बु के एक श य पूण ने उनसे धम क श ा ली। श ा पूरी करने के बाद उ ह ने
उनसे एक रा य म जाकर धम चार करने क आ ा माँगी। असल म उस रा य के लोग
ब त ू र और कठोर दल के माने जाते थे। बु ने पूण से पूछा, "वे तु ह अपश द कहकर
तु हारी नदा करगे, तो कैसा अनुभव करोगे?" पूण बोले, "म उ ह भला समझूँगा, य क
उ ह ने थ पड़ और घूस से हार नह कया।" बु बोले, "थ पड़ घूँसे मारकर आहत कर
तो?" पूण ने उ र दया, "तो भी उ ह स पु ष ही मानूँगा, य क श हार नह कया।"
बु बोले, "और य द श - हार कर तो?" पूण बोले, "उ ह सु दय ही समझूँगा, य क
उ ह ने मुझे जान से नह मारा।" बु ने फर पूछा, "तु ह जान से मार द तो?" पूण बोले,
"य द वे ःख- पी संसार से मुझे मु दला दगे, तो मुझ पर उपकार ही करगे।" भगवान्
बु अपने श य के जवाब से स ए और कहा, "जो मनु य कसी भी प र तम
सर का दोष नह दे खता, वह साधु पु ष है।"
4. तोल-मोल कर 'बोल'
भर ाज नाम के एक ा ण ने एक बार बु को खूब भला-बुरा कहा। जब वह ा ण
थककर चुप हो गया, तो बु ने न कया, "तु हारे घर कभी अ त थ आते ह?" ा ण ने
उ र दया, "अव य पधारते ह।" बु ने फर पूछा, "तुम जो सामान आ त य के दौरान दे ते
हो, उसे वे अ वीकार कर द, तो उनका या होगा?" ा ण ने खीझकर कहा, "वे व तुएँ
मेरे पास वापस आ जाएँगी।" बु ने आगे पूछा, "तु हारे ारा ोध म कहे गए अपश द
य द म अ वीकार कर ँ , तो वे कहाँ जाएँगी?" ल त ा ण बु के आगे नत-म तक
हो गया और मा-याचना करने लगा। बु कहते ह क य द आप सामनेवाले से
कुछ कहने जा रहे ह, तो तोल-मोल कर ही बोल।
5. अं तम स य
एक बार गौतमी नाम क ी अपने इकलौते पु क मृ यु से ब त ःखी हो गई। वह बु
के पास जाकर अपने ब े को जी वत करने के लए उनसे ाथना करने लगी। बु ने उसे
उपाय बताते ए कहा क वह कसी ऐसे घर से सरस के दाने लाए, जसके घर म कभी
कोई मृ यु न ई हो। मृत बालक को छाती से चपकाए गौतमी घर-घर घूमती फरी, ले कन
सभी जगह उसे एक ही उ र मला—ऐसा कोई घर नह , जहाँ आज तक कसी क मृ यु
नह ई हो। तब उसे यह बोध आ क मृ यु जीवन का अं तम स य है। जो ज म लेता है,
उसक मृ यु भी न चत है। उसने शव क अं तम या कर द और तुरंत बु के दशन
पाने के लए नकल पड़ी। भगवान् बु ने उसे मृ यु का शोक करने के बजाय उस त
का चतन करने का सुझाव दया, जसम प ँचने पर ज म ही न हो। ज म के अभाव म
मृ यु क संभावना वयं समा त हो जाएगी। ान क बात सुनकर गौतमी ध य हो गई।
6. अपनी र ा
ब त पुरानी बात है। कसी जंगल म भगवान् बु को एक जहरीला साँप मला। उसका
आस-पास के गाँव म बड़ा आतंक था। बु ने उसे मनु य को काटने-डँसने से मना कया
और अ हसा का माग दखाया। साँप बु का अनुयायी हो गया। कुछ महीन बाद—
जब बु उसी जंगल के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे तो उ ह ने दे खा क लोग एक
साँप को ट-प र से मार रहे ह। बु ने लोग को उस साँप को मारने से रोका। तब उस
ल -लुहान घायल साँप ने बताया क वह वही भ साँप है जो उ ह जंगल म मला था।
साँप ने बताया क उसने बु के आदे श का पालन करते ए लोग को काटना-डँसना छोड़
दया था। फर भी लोग ने मार-मारकर उसक यह हालत कर द । भगवान् बु ने साँप से
कहा, "मने काटने-डसने के लए मना कया था म , फुफकारने के लए नह । तु हारी
फुफकार से ही लोग भाग जाते, ऐसा करने के लए म इस लए कह रहा ँ य क जो
कमजोर है, वह ठ क रा ते पर नह चल सकता।
7. म तु ह केवल भय दे सका
महा मा बु कसी उपवन म व ाम कर रहे थे। तभी ब का एक झुंड आया और पेड़
पर प र मारकर आम गराने लगा। एक प र बु के सर पर लगा और उससे खून बहने
लगा। बु क आँख म आँसू आ गए। ब ने दे खा तो भयभीत हो गए। उ ह लगा क
अब बु उ ह भला-बुरा कहगे। ब ने उनके चरण पकड़ लए और उनसे मायाचना
करने लगे। उनम से एक ने कहा, "हमसे भारी भूल हो गई है। हमने आपको मारकर ला
दया।" इस पर बु ने कहा, "ब , म इस लए ःखी ँ क तुमने आम के पेड़ पर प र
मारा तो पेड़ ने बदले म तु ह मीठे फल दए, ले कन मुझे मारने पर म तु ह केवल भय दे
सका।"
9. मन का मैल
एक वृ भ ु और एक युवा भ ु दोन नद कनारे से चले जा रहे थे, तभी उ ह ने दे खा
क एक युवती नद म डू ब रही है और बचाओ-बचाओ के लए आवाज दे रही है। वह युवा
भ ु तुरंत नद म कूदा और युवती को नद से बाहर नकाल लाया। इस तरह से उसने उस
युवती को बचा लया। इतने म वृ भ ु गरम हो गए, "अरे, तुमने उस म हला को छू
लया! अब म तु ह बु से क ँगा और तु ह दं ड/ ाय चत दलवाऊँगा" दोन बु के
सामने प ँचे।
वृ भ ु ने कहा, "इस बात का क इसने युवती को उठाकर नद से बाहर रखा, इसने उसे
छू लया, इसका चय नह रहा। इस लए इसे ाय च मलना चा हए।"
11. ेम का एक शा वत मू य है
एक बार महा मा बु अपने श य के साथ बैठे ए थे। बात चल रही थी क मनु य के संत
होने और दे वता होने क या कैसे बनती है। यह कैसे माना जाए क यह आदमी संत हो
गया है या दे वता क ेणी म प ँच गया है।
बु ने कहा, "नह आनंद, थोड़ी दे र ठहरकर उसी नहर से पानी ले आओ।" आनंद वहाँ
दोबारा प ँचा और दे खा क नहर का पानी नमल हो चुका था। आनंद ने लोटा भर जल
लया और लौट आया। अब नहर का पानी व था।
बु ने मुसकराते ए श य आनंद से कहा, "मनोवेग पर नयं ण से ही स ा सुख
हा सल होता है। ठ क उसी तरह, जस तरह कुछ दे र ती ा करने पर तु ह उसी ान से
साफ पानी ा त आ।"
15. क णा के भाव
गौतम बु अपने श य से कहा करते थे, "बु व को उपल होने से पूव क णा के भाव
से भर जाओ।" एक दन सा रपु ने पूछा, "आ खर इस बात के लए इतना आ ह य ?
य क हमने तो आपको कई बार यह कहते ए सुना है क बु व क णा को अपने साथ
लाता है, इस लए बु व से पूव क णा के भाव से भरने क या आव यकता है? यह बात
तो वरोधाभासी लगती है।"
16. म या
गौतम बु के जीवन का एक रोचक संग है, एक बार कुछ लोग ज म से अंधे युवा
को लेकर गौतम बु के पास आए और उन लोग ने नवेदन कया क इसे काश के
वषय म उपदे श कर। यह काश को मानने के लए तैयार नह है, पूरा गाँव हार गया
है। यह काश जैसे वराट् स य को म या कहता है।
तथागत बोले, "पूजा करने क दशाएँ भ ह। माता- पता और गृहप त पूव दशा ह,
आचाय द ण, ी-पु और म आ द उ र दशा ह। सेवक नीची तथा वण ा ण
ऊँची दशा ह। इनक पूजा से लाभ होता है।" गृह बोला, "और तो ठ क, भंते! परंतु
सेवक क पूजा कैसे? वे तो वयं मेरी पूजा करते ह?"
18. मृगतृ णा
जब महा मा बु ने राजा सेन जत क राजधानी म वेश कया तो वे वयं उनक
आगवानी के लए आए। वे महा मा बु के पता के म थे एवं उ ह ने बु के सं यास लेने
के बारे म सुना था।
" ःख के कसी कारण के न होने से बड़ा सुख और कोई नह है; और अपने म संतु रहने
से बड़ी कोई संप नह है।"
उसे दे खकर बु के एक श य ने उसके पास जाकर कहा, "अरे मूख! इस तरह य तड़प
रहा है? तुझे पता नह क तेरे नगर म भगवान् बु पधारे ए ह। तू उनके पास चल, उनके
उपदे श सुनकर तुझे शां त मलेगी।" भखारी भूख सहन करते-करते इतना श हीन हो
चुका था क वह चलने म भी असमथ था।
"इसके वपरीत इस बु ढ़या ने अपने मुँह का कौर ही मुझे दे डाला है। भले ही यह बु ढ़या
नधन है ले कन इसे संप क कोई लालसा नह है। यही कारण है क इसका दान मने
खुले दय से, दोन हाथ से वीकार कया है।"
21. उस शहर के लोग
एक बार गौतम बु ने कुछ श य के साथ कसी शहर म डेरा जमाया। जब श य शहर के
भीतर घूमने नकले तो लोग ने उ ह ब त बुरा-भला कहा। वे ोध म भरकर बु के पास
लौटे । बु ने पूछा, " या बात है? आप सब तनाव म य ह?" उनका एक श य बोला,
"हम यहाँ से तुरंत वहाँ चलना चा हए, जहाँ हमारा आदर हो। यहाँ तो लोग वहार के
सवा कुछ जानते ही नह ।"
बु मुसकराकर बोले, " या कसी और जगह पर तुम स वहार क अपे ा करते हो?"
सरा श य बोला, "कम-से-कम यहाँ से तो भले लोग ही ह गे।" बु बोले, " कसी ान
को केवल इस लए छोड़ना गलत है क वहाँ के लोग वहार करते ह। हम तो संत ह। हम
चा हए क उस ान को तब तक न छोड़ जब तक वहाँ के हर को सुधार न डाल। वे
हमारे अ ा वहार करने पर सौ बार वहार करगे। ले कन कब तक? आ खर उ ह
सुधरना ही होगा और उ म ाणी बनने का यास करना ही होगा।"
22. स ा समपण
एक स ाट् गौतम बु के दशन को आया। वह बु के नकट आया। उसके बाएँ हाथ म
ब मू य र नज ड़त आभूषण था। जैसे ही उसने उसे बु को भट करने को आगे बढ़ाया,
बु ने कहा, " गरा दो।" स ाट् तो हैरान रह गया। उसे इसक अपे ा नह थी। उसे बड़ा
आघात लगा, ले कन जब बु ने कहा क गरा दो, तो उसने गरा दया। स ाट् एक सरी
चीज भी ले आया था, वह गुलाब का सुंदर फूल था। उसने वह भट करने के लए अपना
हाथ बु क तरफ बढ़ाया। बु ने फर कहा, " गरा दो।" अब तो स ाट् और भी परेशान
हो गया। अब उसके पास भट दे ने को और कुछ नह था, ले कन जब बु ने कहा क गरा
दो, तो उसने फूल भी गरा दया। तभी स ाट् को अचानक अपने म का मरण आया।
उसने सोचा क म वयं को ही य न भट कर ँ ।
इस बोध के साथ वह बु के स मुख झुक गया, ले कन बु ने फर कहा, " गरा दो।" अब
तो गराने को भी कुछ न था, और बु ने कहा, गरा दो। महाक यप, सा रपु , आनंद तथा
अ य श य, जो वहाँ मौजूद थे, हँसने लगे और स ाट् को बोध आ क यह कहना भी क
म अपने को भट करता ँ, अहंकारपूण है। यह कहना भी क म अब अपने को सम पत
करता ँ, समपण नह है। तब वह वयं ही गर पड़ा। बु हँसे और बोले, "तु हारी समझ
अ है।"
26. समझनेवाला
महा मा बु को एक सभा म भाषण करना था। जब समय हो गया तो महा मा बु आए
और बना कुछ बोले ही वहाँ से चल गए। तकरीबन एक सौ पचास के करीब ोता थे।
सरे दन तकरीबन सौ लोग थे पर फर उ ह ने ऐसा ही कया, बना बोले चले गए। इस
बार पचास कम हो गए।
केवल भीड़ यादा होने से कोई धम नह फैलता है। समझनेवाले चा हए, तमाशा दे खनेवाले
रोज इधर-उधर ताक-झाक करते ह। समझनेवाला धीरज रखता है। कई लोग को नया
का तमाशा अ ा लगता है। समझनेवाला शायद एक हजार म एक ही हो ऐसा ही दे खा
जाता है।
27. यास क नरंतरता
भगवान् बु ान ा त के लए घोर तप म लगे थे। उ ह ने शरीर को काफ क दया,
या ाएँ क , घने जंगल म कड़ी साधना क , पर आ म ान क ा त नह ई। एक दन
नराश हो बु सोचने लगे—मने अभी तक कुछ भी ा त नह कया।
पहले तो वह गलहरी जड़वत बैठ रही, फर कुछ दे र बाद उठकर झील के पास गई,
अपना सारा शरीर झील के पानी म भगोया और फर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी।
ऐसा वह बार-बार करने लगी। बु सोचने लगे : इस गलहरी का यास कतना मूखतापूण
है। या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी? कतु गलहरी यह म लगातार जारी था।
बु को लगा मानो गलहरी कह रही हो क यह झील कभी खाली होगी या नह , यह म
नह जानती, कतु म अपना यास नह छो ग ँ ी। अंततः उस छोट सी गलहरी ने भगवान्
बु को अपने ल य-माग से वच लत होने से बचा लया।
28. अनुयायी
उपाली ब त ही धनी था और गौतम बु के ही समकालीन एक अ य धा मक गु
नगंथा नाथपु ा का श य था। नाथपु ा के उपदे श बु से अलग कार के थे। उपाली
एक ब त ही वल ण व ा था और वाद- ववाद म भी ब त ही कुशल था। उसके गु ने
उसे एक दन कहा क वह कम के काय-कारण स ांत पर बु को बहस क चुनौती दे ।
एक लंबे और ज टल बहस के बाद बु उपाली का संदेह र करने म सफल रहे और
उपाली को बु से सहमत होना पड़ा क उसके धा मक गु के वचार गलत ह।
34. मन पी पा को भी शु व प व करो
एक बार एक धनी सेठ ने उनसे भ ाटन हेतु अपने घर आने का आ ह कया। बु ने
सहष इस ताव को मान लया। सेठ ने मेव क खीर बनवाई थी। गौतम बु उसके घर
प ँचे और गोबर से भरा कमंडल आगे बढ़ाते ए खीर उसम डालने के लए कहा। अ व
कमंडल दे ख सेठ ने उसे पहले धोया और फर उसम खीर भरकर बु के हाथ म दे दया।
यह दे ख बु ने सेठ से कहा, "हमारे आशीवाद को भी य द आप खीर जतना ही मू यवान
समझते हो तो उसे रखने के लए मन पी पा को भी शु व प व करो। गोबर जैसी
म लनता अपने अंतस के भीतर भरे रखने पर ये दान-धम आपके कसी काम न आ
सकेगा।" यह सुनकर सेठ क आँख खुल ग और उसने अपने पा अथात् अंतमन म भरे
गुण से मु पाने का न चय कया। सार यह है क धा मक कमकांड, तीथ ल क
या ा, त-उपवास और दाना द तभी साथक व पु य दे ते ह, जब क मन वकारर हत और
हमारी भावना शु हो।
37. प र और घी
स दय पहले कसी पंथ के पुरो हत नाग रक के मृत संबंधी क आ मा को वग भेजने के
लए एक कमकांड करते थे और उसके लए बड़ी द णा माँगते थे। उ कमकांड के
दौरान वे मं ो ार करते समय म के एक छोटे कलश म प र भरकर उसे एक छोट सी
हथौड़ी से ठ कते थे। य द वह पा टू ट जाता और प र बखर जाते तो वे कहते क मृत
क आ मा सीधे वग को ान कर गई है। अ धकतर मामल म म के साधारण
पा लोहे क हथौड़ी क ह क चोट भी नह सह पाते थे और पुरो हत को वांछनीय
द णा मल जाती थी।
अपने पता क मृ यु से ःखी एक युवक बु के पास इस आशा से गया क बु क
श ाएँ और धम अ धक गहन ह और वे उसके पता क आ मा को मु कराने के लए
कोई मह वपूण या अव य करगे। बु ने युवक क बात सुनकर उससे दो अ कलश
लाने के लए और उनम से एक म घी और सरे म प र भरकर लाने के लए कहा।
उपरो या करने के बाद युवक अ यंत उ साह म था। उसे लग रहा था क उसने पुरानी
या से भी अ धक मह वपूण और श शाली या वयं क है। बु के पास लौटकर
उसने सारा ववरण कह सुनाया, "दोन कलश को पानी के भीतर ठ कने पर वे टू ट गए।
उनके भीतर त प र तो पानी म डू ब गए ले कन घी ऊपर आ गया और नद म र तक
बह गया।"
"तो सुनो उनक , जो जाग गए ह। ज ह कुछ दखाई पड़ा है। गुण उनक । ले कन उसी
सुख पर क मत जाना, सुन-सुनकर अगर क गए तो एक तरह का सुख तो मलेगा,
ले कन वह भी ब त र जानेवाला नह है।" इस लए बु ने कहा, "समा ध म सुख है।
बु ो पाद म सुख है, यह तो परम ा या ई सुख क । फर यह भी तो आ नह है। तो
उनके वचन सुनो, उनके पास उठो-बैठो, जनके भीतर यह ां त घट है। जनके भीतर यह
सूरज नकला है। जनका भात हो या है। जहाँ सूय दय आ है, उनके पास रमो, इसम
सुख है। मगर इसम ही क मत जाना। यान रखना क जो उनको आ है, वह तु ह भी
करना है। उस करने के उपाय का नाम समा ध है। सुनो बु क और चे ा करो बु जैसे
बनने क । उस चे ा का नाम समा ध है। उस चे ा का फल है बु ो पोद। सुनो बु के
वचन, फर बु जैसे बनने क चे ा म लगना— यान, समा ध, योग। और जस दन बन
जाओ, उस दन परम सुख।"
तथागत ने युवती क ओर दे खा और कहा, "जो तुम चाहते हो, वही करो। पर मेरी एक शत
है क प र मारने का अ धकारी वही है, जसने कभी भचार न कया हो और न ही
उसके मन म ऐसे वचार कभी आए ह ।" इतना कहकर तथागत शांत हो गए। चार ओर
मौन था। कुछ समय बाद लोग क भीड़ मन म प चा ाप का भाव लए ए वहाँ से वदा
हो गई। इस घटना से यही स य उभरता है क हम खुद अपने त याय कर सकते ह,
सर के त नह , य क हमारी जानकारी सर के वषय म अधूरी होती है। य द हम
कसी के त याय करना चाहते ह, तो उसे ऐसा यार और नेह मलना चा हए क खुद
ही अपने दोष को वीकार कर ले और उ ह पुनः न दोहराने का त ले।
41. मौन का मह व
एक , कोई ज ासु, एक दन आया। उसका नाम मौलुंकपु था, एक बड़ा ा ण
व ान्; पाँच सौ श य के साथ बु के पास आया था। न चत ही उसके पास ब त सारे
न थे। एक बड़े व ान् के पास ढे र सारे न होते ही ह, सम याएँ ही सम याएँ। बु ने
उसके चेहरे क तरफ दे खा और कहा, "मौलुंकपु , एक शत है। य द तुम शत पूरी करो,
केवल तभी म उ र दे सकता ँ। म तु हारे सर म भनभनाते न को दे ख सकता ँ। एक
वष तक ती ा करो। यान करो, मौन रहो। जब तु हारे भीतर का शोरगुल समा त हो
जाए, जब तु हारी भी क बातचीत क जाए, तब तुम कुछ भी पूछना और म उ र ँ गा।
यह म वचन दे ता ँ।"
मौलुंकपु हँसने लगा, और उसने कहा, "आपने मुझे भी धोखा दया। वह सा रपु ठ क
कहता था। अब कोई न ही पूछने के लए नह रहा। तो म या पूछूँ? मेरे पास पूछने के
लए कुछ भी नह है।"
बु ऐसे चलते रहे मानो कुछ सुना ही नह । पीछे से और जोर से आवाज आई, "म कहता
ँ ठहर जा।" बु क गए और पीछे पलटकर दे खा तो सामने एक खूँखार काला
खड़ा था। लंबा-चौड़ा शरीर, बढ़े ए बाल, एकदम काला रंग, लंब-े लंबे नाखून, लाल-लाल
आँख, हाथ म तलवार लए वह बु को घूर रहा था। उसके गले म उँ ग लय क माला
लटक रही थी। वह ब त ही डरावना लग रहा था।
43. ेम का अमोघ अ
उन दन कौशल म राजा सेन जत रा य करता था। अँगु लमाल के आतंक से वह बेहद
परेशान था। उसे पकड़ने के लए उसने अपनी पूरी सेना तैनात कर रखी थी, अ -श
का उपयोग कया, ले कन अँगु लमाल उनके हाथ नह आया।
बु ने कहा, " या बात है?इतने परेशान य दखाई दे रहे हो? या कसी राजा ने तुम पर
हमला कर दया है?"
सेन जत बोला, "भंत,े कसी ने हमला नह कया। मेरे रा य म अँगु लमाल नाम के डाकू
ने तबाही मचा रखी है। म उसी को पकड़ने क दन-रात को शश कर रहा ँ।"
तब बु ने पास बैठे क बाँह पकड़कर उसे राजा के सामने कर दया। बोले, "यह
रहा अँगु लमाल।"
उसने अँगु लमाल का बड़े ेम से अ भवादन कया और उससे कहा, "म तु हारे भोजन,
व , आवास आ द क व ा कर दे ता ँ।"
अ यंत वन भाव से अँगु लमाल बोला, "राजन, आप चता न कर, मुझे सबकुछ मल
गया है।"
44. उ क गनती
एक समय क बात है। एक बार गौतम बु से मलने स ाट् सेन जत आए। उन दोन क
बातचीत के समय कसी सरे ने बीच म कोई दखल नह द । इसक एक मु य
वजह यह थी क वयं गौतम बु स ाट् से बात कर रहे थे। हालाँ क हर कोई यह जानना
चाहता था क दोन के बीच या बातचीत हो रही है? ले कन कुछ ही दे र बाद एक भ ु को
बीच म दखल दे नी ही पड़ी। उसने उन दोन से मा माँगी। दरअसल, उसे बु का संदेश
लोग तक प ँचाने के लए सूया त के पहले जाना था, ले कन वे बगैर बु के पैर छु ए जा
नह सकते थे।
गौतम बु ने कहा, " सफ यह जान लेना ही क अभी तक तुम मुदा थे, ब त बड़ी शु आत
है।"
45. अ धकार
सुबह का समय था। ठं डी-ठं डी हवा बह रही थी। मगध के राजकुमार स ाथ राजमहल के
बाग म घूम रहे थे। राजकुमार को लोग यार से गौतम पुकारते थे। उनके साथ उनका चचेरा
भाई दे वद भी था। गौतम ब त दयालु वभाव के थे। वह पशु-प य को यार करते, पर
दे वद कठोर वभाव का था। पशु-प य के शकार म उसे बड़ा आनंद मलता।
बाग ब त सुंदर था। तालाब म कमल खले ए थे। फूल पर रंग- बरंगी तत लयाँ मँडरा
रही थ । पेड़ पर च ड़याँ चहचहा रही थ । राजकुमार गौतम को दे खकर बाग के खरगोश
और हरन उनके चार ओर जमा हो गए। गौतम ने बड़े यार से उ ह हरी-हरी घास खलाई।
उसी बीच दे वद ने एक ततली पकड़ उसके पंख काट डाले। गौतम को ब त ःख आ,
"यह या दे वद , तुमने ततली के पंख य काटे ?"
"म इसे धागा बाँधकर नचाऊँगा। बड़ा मजा आएगा।" दे वद हँस रहा था।
"नह दे वद , यह ठ क बात नह है। भगवान् ने ततली को पंख उड़ने के लए दए ह।
उसके पंख काटकर तुमने अपराध कया है।" गौतम ने कहा।
"अगर तुम ततली और च ड़य के बारे म सोचते रहे तो राजा कैसे बन सकोगे गौतम? तुम
खरगोश से खेलो, म कसी प ी का शकार करता ँ।" हँसता आ दे वद बाग के सरी
ओर चला गया।
गौतम सोच म डू बे बाग म घूम रहे थे। तभी आकाश म सफेद हंस उड़ते ए दखाई दए।
सारे हंस पं बनाकर उड़ रहे थे। उनक आवाज समझ पाना संभव नह था। ऐसा लग
रहा था जैसे वे खुशी के गीत गा रहे ह । गौतम हंस को यार से दे ख रहे थे। अचानक हंस
चीख पड़े।
हंस क पं टू ट गई थी। अचानक खून से लथपथ एक हंस गौतम के पाँव के पास आ
गरा। हंस के शरीर म एक बाण लगा आ था। घायल हंस क से कराह रहा था। गौतम
को लगा मानो हंस उनसे दया क भीख माँग रहा हो। हंस के क से गौतम को ब त ःख
आ। वे सोचने लगे, "कुछ दे र पहले यह हंस कतना खुश था। अपने सा थय के साथ गीत
गाता आकाश म उड़ रहा था। एक बाण ने इसे इसके सा थय से अलग कर दया। यह
अ याय कसने कया?"
गौतम ने बड़ी सावधानी से उसके शरीर से बाण बाहर नकाल दया। उसके घाव को धोकर
साफ कया। यार पाकर हंस ने गौतम क गोद म सर छपा लया।
"नह दे वद , यह हंस मेरी शरण म आया है। यह हंस मेरा है।" गौतम ने शां त से जवाब
दया।
"बेकार क बात मत करो, गौतम। मने इसका शकार कया है। हंस मुझे दे दो।" दे वद ने
गु से से कहा।
"म यह हंस तु ह नह ँ गा, दे वद । इसे मने बचाया है। इस हंस पर तु हारा कोई अ धकार
नह है।" गौतम अपनी बात पर अटल थे।
गौतम और दे वद के बीच बहस छड़ गई। दोन ही अपनी बात पर अड़े थे। अंत म दे वद
ने कहा, "ठ क है, चलो महाराज के पास। वे ही हमारा याय करगे।"
दोन बालक गौतम के पता महाराज शु ोधन के पास प ँचे। दे वद ब त ोध म था, पर
गौतम शांत थे।
दे वद ने महाराज से कहा, "महाराज, मने आकाश म उड़ते इस हंस का शकार कया है।
इस हंस पर मेरा अ धकार है। मुझे मेरा हंस दलाया जाए।"
महाराज ने गौतम से कहा, "राजकुमार गौतम, तु हारा भाई ठ क कहता है। शकार कए
गए प ी पर शकारी का हक होता है। दे वद का हंस उसे दे दो।"
"नह महाराज, मारनेवाले से बचानेवाला यादा बड़ा होता है। दे वद ने इस हंस के ाण
लेने चाहे, पर मने इसक जान बचाई है। अब आप ही बताइए, इस हंस पर कसका
अ धकार होना चा हए?" गौतम ने कहा।
"हाँ, तब यह हंस तु हारा शकार होता और तु ह तु हारा हंस ज र दया जाता।" बड़ी
शां त से महाराज ने समझाया।
गौतम ने यार से हंस को सीने से चपटा लया। हंस ने खुश होकर चैन क साँस ली।
महाराज ने हंस क स ता दे खी। अचानक उनके मुँह से नकला—भ क से र क बड़ा
है। अथात् मारकर खानेवाले से र ा करनेवाला महान् है।
"भीतर से सड़ने का अथ है— दखावे के सदगुण वाला जीवन जीना, संघ को धोखा दे ना
और धम को अपनी इ ा और आकां ा क पू त के लए योग करना।
47. गाँठ
एक दन बु ातः भ ु क सभा म पधारे। सभा म ती ारत उनके श य यह दे ख
च कत ए क बु पहली बार अपने हाथ म कुछ लेकर आए थे। उनके हाथ म एक
माल था। बु के हाथ म माल दे खकर सभी समझ गए क इसका कुछ वशेष
योजन होगा।
"तुम सही कहते हो, शा रपु ", बु ने कहा, "अब म इन गाँठ को खोल दे ता "ँ , यह
कहकर बु माल के दोन सर को एक सरे से र ख चने लगे। "तु ह या लगता है,
शा रपु , इस कार ख चने पर या म इन गाँठ को खोल पाऊँगा?"
"तुम स य कहते हो, शा रपु , तुम ध य हो, य क यही जानना सबसे आव यक है।
आधारभूत न यही है। जस सम या म तुम पड़े हो उससे बाहर नकलने के लए यह
जानना ज री है क तुम उससे त य कर ए, य द तुम यह बु नयाद व मौ लक
परी ण नह करोगे तो संकट अ धक ही गहराएगा"।
"ले कन व व म सभी ऐसा ही कर रहे ह। वे पूछते ह, 'हम काम, ोध, लोभ, मोह,
अहंकार, प र ह, आ द-आ द वृ य से बाहर कैसे नकल', ले कन वे यह नह पूछते क
'हम इन वृ य म कैसे पड़े?'
48. रेत का घर
एक गाँव म नद के तट पर कुछ ब े खेल रहे थे। रेत के घर बना रहे थे। कसी का पैर
कसी के घर म लग जाता तो रेत का घर बखर जाता। झगड़ा हो जाता। मारपीट हो जाती।
तूने मेरा घर मटा दया। वह उसके घर पर कूद पड़ता है। वह उसका घर मटा दे ता है और
फर अपना घर बनाने म त लीन हो जाता है।
महा मा बु चुपचाप खड़े अपने भ ु के साथ ये तमाशा दे ख रहे थे, पर ब े इतने
त थे क उ ह कुछ भी पता नह लगा। घर बनाना ऐसी तता क बात है, सर से
अ ा बनाना है, उनसे ऊँचा बनाना है।
तयो गता है, जलन है, ई या है। सब अपने-अपने घर को बड़ा करने म लगे ह परंतु कसी
ने सच ही कहा है— जतने ऊँचे महल तु हारे, उतना ही गरने का डर है। जसको तुमने
सागर समझा, पगले जीवन एक लहर है। इस सबके बीच एक ी ने घाट पर आकर
आवाज द , साँझ हो गई है, माँ घर म याद करती है, घर चलो। ब ने च ककर दे खा।
दन बीत गया है, सूरज डू ब गया है। अँधेरा उतर रहा है। वे अपने ही घर पर उछले-कूदे ।
सब म टयामेट कर डाला, अब कोई झगड़ा नह क तू मेरे घर पर कूद रहा या म तेरे घर पर
कूद रहा ँ।
49. मु का माग
गौतम बु ने 29 वष क आयु म ःख से मु ा त करने का उपाय ढूँ ढ़ने के लए अपने
प रवार और गृह जीवन को छोड़ दया। नरंतर चतन-मनन के बाद 35 वष क आयु म
उ ह ने इसका रा ता खोज भी लया। 45 वष तक उ ह ने लगातार अपने वचार का चार
कया। जब उनका अंत समय आया, वह एक वृ के नीचे लेट गए और मृ यु क ती ा
करने लगे।
उस समय उनका केवल एक ही श य उनके पास था, आनंद। आनंद ही लंबे समय से बु
क सेवा कर रहा था। आनंद ने सोचा क बु का अंत समय नकट है। अगर यह बात पास
के गाँव म रहनेवाले बु के श य को न बताई जाए तो वे नाराज ह गे। आनंद के यह
बताने पर लोग बु का दशन करने उस वृ के पास प ँचने लगे। आसपास के इलाक म
इस बात क चचा फैल गई। एक अपनी ज ासा के समाधान के लए काफ उ सुक
था।
वह भोलाभाला ामीण था और नयादारी को ढं ग से नह जानता था, फर भी उसके मन
म एक ज ासा थी, जसे लेकर वह परेशान था। बु ने उसे अपने पास बुलाया। उस
ामीण ने हाथ जोड़कर बु से जीते जी मु पाने का माग बताने क ाथना क । बु ने
ामीण से कहा, "जीते जी ज म-मरण से मु ा त करना चाहते हो तो जीवन म तीन
बात याद रखो और इन बात पर अमल भी करो।" सब लोग यान से सुनने लगे। बु ने
कहा, "पहली बात है पाप से, जहाँ तक संभव हो, बचो। सरी बात है जीवन म जतने भी
पु य कम कर सकते हो, करो एवं तीसरी बात है अपना मन, च नमल रखो।" ये श द
कहते ही बु ने अपने ाण याग दए। बु क इन तीन श ा को अपनाकर ामीण
ने जीते जी मु का माग पाया। ये तीन श ाएँ मानवता के लए अमू य दे न ह।
51. भ ु क यो यता
बौ मठ म सुवास नामक भ ु ब त ही मह वाकां ी था। वह चाहता था क बु क
तरह वह भी नव भ ु को द त करे और उसके श य उसक चरण-वंदना कर। मगर
वह समझ नह पा रहा था क अपनी यह इ ा कैसे पूरी करे। वह आम तौर पर सरे
भ ु से कटा-कटा सा रहता था। कई बार जब सरे भ ु उसे कुछ कहते तो वह उनसे
री बनाने क को शश करता या ऐसा कुछ कहता जससे उसक े ता सा बत हो। सरे
भ ु इस कारण उससे नाराज रहते थे।
एक दन बु ने जब वचन समा त कया और सभा ल खाली हो गया तो अवसर दे ख
सुवास ऊँचे त त पर वराजमान बु के पास जा प ँचा और कहने लगा, " भु, मुझे भी
आ ा दान कर क म भी नव भ ु को द त कर अपना श य बना सकूँ और आपक
तरह महा मा कहलाऊँ।" यह सुनकर बु खड़े हो गए और बोले, "जरा मुझे उठाकर
ऊपरवाले त त तक प ँचा दो।" सुवास बोला, " भु, इतने नीचे से तो म आपको नह उठा
पाऊँगा। इसके लए तो मुझे आपके बराबर ऊँचा उठना पड़ेगा।"
52. स ा साधु
भगवान् बु ने अपने श य को द ा दे ने के उपरांत उ ह धमच - वतन के लए अ य
नगर और गाँव म जाने क आ ा द । बु ने सभी श य से पूछा, "तुम सभी जहाँ कह
भी जाओगे वहाँ तु ह अ े और बुरे—दोन कार के लोग मलगे। अ े लोग तु हारी
सहायता करगे। बुरे लोग तु हारी नदा करगे और गा लयाँ दगे। तु ह इससे कैसा लगेगा?"
हर श य ने अपनी समझ से बु के न का उ र दया। एक गुणी श य ने बु से कहा,
"म कसी को बुरा नह समझता। य द कोई मेरी नदा करेगा या मुझे गा लयाँ दे गा तो म
समझूँगा क वह भला है य क उसने मुझे सफ गा लयाँ ही द , मुझ पर धूल तो
नह फक ।"
"म उसे ध यवाद ँ गा, य क उसने मुझे केवल डंडे से ही मारा, ह थयार से नह मारा।"
"ले कन माग म तु ह डाकू भी मल सकते ह, जो तुम पर घातक ह थयार से हार कर
सकते ह।"
" जस कसी काम से गृह आजी वका अ जत करता है चाहे खेती से, धनु व ा से,
पशुपालन से, राजा क नौकरी से उसम उसको पारंगत होना चा हए और आल य नह
करना चा हए। उसको अपने काय के उ चत तौर-तरीके जानने चा हए और अपने काय म
नपुणता और द ता उ प करनी चा हए। यह नरंतर यास क उपल (उ ानपाद-
संपदा) कहलाती है।"
द घजानु ने आगे पूछा, "भंत,े आर -संपदा या है?"
"जो संप एक गृह ारा मेहनत, ईमानदारी और सही तरीक से कमाई गई होती है,
उसे वह ऐसा दे खभाल करके ऐसा संचालन करता है, ता क राजा उसको हड़प न ले, चोर
उसे चुरा न सके, आग उसे जला न सके, पानी उसे बहा न दे और न ही भटके ए
उ रा धकारी उसे ले उड़, यह आर -संपदा है।"
द घजानु ने पूछा, "भंत,े क याण म ता या है?"
भगवान् बु ने कहा, " जस कसी ाम या शहर म गृह रहता है, वह सबसे बातचीत
करता है, बहस करता है, चाहे वह वृ या युवा तथा सुसं कृत ह , ासंप , शील
कुशलता से पूण ह , याग और बु से संप ह । वह ाक ालु के अनुसार
काय करता है, शीलवान के शील के साथ, या गय के याग के साथ, ावान क ा
के साथ। यह क याण म ता कहलाती है।"
ज ासु द घजानु ने आगे पूछा, "भंते, समजी वता या है?"
"एक गृह अपनी आय तथा य जानते ए एक संतु लत जीवनयापन करता है, न
फजूलखच , न कंजूसी, यह जानते ए क उसक आय य से बढ़कर रहेगी, न क
उसका य आय से बढ़कर।
"जैसे क एक तुलाधर सुनार, या उसका शा गद तराजू पकड़कर जानता है क कतना
झुक गया है, कतना उठ गया है, उस कार एक गृह अपनी आय तथा य को
जानकर संतु लत जीवन जीता है, न वह बेहद खच ला, न केवल बेहद कंजूस, इस कार
समझते ए क उसक आय य से बढ़कर रहेगी न क उसका आय से अ धक होगा।
"य द एक गृह कम आयवाला खच ला जीवन तीत करेगा, तो लोग उसे कहगे, यह
अपनी संप का ऐसे आनंद ले रहा है जैसे कोई बेल फल खाता है। य द एक चुर
आयवाला गृह कंजूसी का जीवन तीत करेगा तो लोग कहगे क यह भु खड़
क तरह मरेगा।
"इस कार सं चत धन संप , चार कार से नाश होता है :
1.अ धक भोग वलास, 2.म दरापान क लत, 3. जुआ और 4. पापी लोग से दो ती,
संग त तथा साँठ-गाँठ।
"जैसे क एक बड़े तालाब म चार जल वेश तथा चार जल नकास के रा ते ह , य द कोई
वेश माग बंद कर दे तथा नकास माग खोल दे और तब पया त वषा न हो, तो
तालाब म जल क कमी क उ मीद रहेगी, ले कन वृ क नह , वैसे ही सं चत संप के
वनाश के चार रा ते ह—अ धक भोग वलास, म दरापान क लत, जुआ और पापी लोग
से दो ती, संग त तथा साँठ-गाँठ।
भगवान् ने उ र दया, "इसम गृह ा संप होता है, वह समयक संबु तथागत क
बु व उपल से आ व त होता है, पूणतया ान ा त, व ा तथा आचरण से संप ,
सुगत, लोक को जाननेवाले, सखाए जाने यो य मनु य के नायक, दे व तथा मनु य के
गु , सव तथा ध य ह, इसे कहते ह ा संपदा।"
द घजानु ने पूछा, "भंत,े शील क उपल या है?"
भगवान् बोले, "इसम गृह ाणी ह या से, चोरी से, यौन- म याचार से, झूठ बोलने से
तथा नशीले पदाथ से जो मृ तनाशक तथा माद उ प करता है— वरत रहता है। यह
कहलाता है शील संपदा।"
"भंते, याग क उपल या है?"
54. आ पाली और भ ु
बु अपने एक वास म वैशाली आए। कहते ह क उनके साथ दस हजार श य भी हमेशा
साथ रहते थे। सभी श य त दन वैशाली क ग लय म भ ा माँगने जाते थे। वैशाली म
ही आ पाली का महल भी था। वह वैशाली क सबसे सुंदर ी और नगरवधू थी। वह
वैशाली के राजा, राजकुमार , और सबसे धनी और श शाली य का मनोरंजन
करती थी। एक दन उसके ार पर भी एक भ ुक भ ा माँगने के लए आया। उस
भ ुक को दे खते ही वह उसके ेम म पड़ गई। वह त दन ही राजा और राजकुमार को
दे खती थी पर मा एक भ ापा लये ए उस भ ुक म उसे अनुपम ग रमा और स दय
दखाई दया।
वह अपने परकोटे से भागी आई और भ ुक से बोली, "आइए, कृपया मेरा दान गृहण
कर।"
उस भ ुक के पीछे और भी कई भ ुक थे। उन सभी को अपनी आँख पर व वास नह
आ। जब युवक भ ु आ पाली क भवन म भ ा लेने के लए गया तो वे ई या और
ोध से जल उठे ।
युवक भ ु ने कहा, "मुझे इसके लए अपने वामी तथागत बु से अनुम त लेनी होगी।
य द वे अनुम त दगे तो म यहाँ क जाऊँगा।"
उसके बाहर नकलने पर अ य भ ु ने उससे बात क । उसने आ पाली के नवेदन के
बारे म बताया। यह सुनकर सभी भ ु बड़े ो धत हो गए। वे तो एक दन के लए ही इतने
ई यालु हो गए थे और यहाँ तो पूरे चार महीन क योजना बन रही थी। युवक भ ु के बु
के पास प ँचने से पहले ही कई भ ु वहाँ प ँच गए और उ ह ने इस वृ ांत को बढ़ा-
चढ़ाकर सुनाया, "वह ी वै या है और एक भ ु वहाँ पूरे चार महीन तक कैसे रह सकता
है?"
बु ने कहा, "शांत रहो। उसे आने दो। अभी उसने कने का न चय नह कया है। वह
वहाँ तभी केगा, जब म उसे अनुम त ँ गा।"
युवक भ ु आया और उसने बु के चरण छू कर सारी बात बताई, "आ पाली यहाँ क
नगरवधू है। उसने मुझे चातुमास म अपने महल म रहने के लए कहा है। सारे भ ु कसी-
न- कसी के घर म रहगे। मने उसे कहा है क आपक अनुम त मलने के बाद ही म वहाँ रह
सकता ँ।"
बु ने कहा, "तुम सब अपनी चया का पालन करो। मुझे अपने श य पर व वास है। मने
उसक आँख म दे खा है क उसके मन म अब कोई इ ाएँ नह ह। य द म उसे अनुम त न
भी दे ता तो भी उसे बुरा नह लगता, मने उसे अनुम त द और वह चला गया। मुझे उसके
यान और संयम पर व वास है। तुम सभी इतने और च तत य हो रहे हो? य द
उसका ध म अटल है तो आ पाली भी उससे भा वत ए बना नह रहेगी, और य द
उसका ध म नबल है तो वह आ पाली के सामने समपण कर दे गा। यह तो भ ु के लए
परी ण का समय है, बस चार महीन तक ती ा कर लो। मुझे उस पर पूण व वास है।
वह मेरे व वास पर खरा उतरेगा।"
चार महीन के बाद युवक भ ु वहार लौट आया और उसके पीछे -पीछे आ पाली भी बु
के पास आई। आ पाली ने बु से भ ुणी संघ म वेश दे ने क आ ा माँगी। उसने कहा,
"मने आपके भ ु को अपनी ओर ख चने के हरसंभव यास कए पर म हार गई। उसके
आचरण ने मुझे यह मानने पर ववश कर दया क आपके चरण म ही स य और मु का
माग है। म अपनी सम त संपदा भ ु संघ के लए दान म दे ती ँ।"
55. पटाचारा
पटाचारा ाव ती के नगरसेठ क पु ी थी। कशोरवय होने पर वह अपने घरेलू नौकर के
ेम म पड़ गई। जब उसके माता- पता उसके ववाह के लए उपयु वर खोज रहे थे, तब
वह नौकर के साथ भाग गई। दोन अप रप व प त-प नी एक छोटे से नगर म जा बसे।
कुछ समय बाद पटाचारा गभवती हो गई। वयं को अकेले पाकर उसका दल घबराने लगा
और उसने प त से कहा, "हम यहाँ अकेले रह रहे ह। म गभवती ँ और मुझे कसी क
सहायता क आव यकता है। आप आ ा द तो म अपने माता- पता के घर चली जाऊँ?"
जब उसे प त मृत मला तो वह फूट-फूटकर रोने लगी, "हाय! मेरे कारण ही मेरे प त क
मृ यु हो गई!"
अब अपने माता- पता के सवा उसका कोई न था। वह उनके नगर क और बढ़ चली।
रा ते म नद पड़ती थी। उसने दे खा क दोन ब को साथ लेकर नद पार करना क ठन
था इस लए बड़े ब े को उसने एक कनारे पर बठा दया और सरे को छाती से
चपकाकर सरे कनारे को बढ़ चली। वहाँ प ँचकर उसने छोटे ब े को कपड़े म
लपेटकर झा ड़य म रख दया और बड़े ब े को लेने के लए वापस नद म उतर गई। नद
पार करते समय उसक आँख छोटे ब े पर ही लगी ई थ । उसने दे खा क एक बड़ा ग
ब े पर झपटकर उसे ले जाने क चे ा कर रहा है। वह चीखी- च लाई, ले कन कुछ नह
आ। सरे कनारे पर बैठे ब े ने जब अपनी माँ क चीख-पुकार सुनी तो उसे लगा क
माँ उसे बुला रही है। वह झटपट पानी म उतर गया और तेज बहाव म बह गया।
इस अ यंत साधारण घटना म पटाचारा को समा ध का सू् मल गया। पहली बार उड़ेले
गए पानी के समान कुछ जीव अ पायु म ही मर जाते ह, सरी बार उड़ेले गए पानी के
समान कुछ जीव म यम वयता म चल बसते ह और तीसरी बार उड़ेले गए पानी के जैसे
कुछ जीव अं तम वयस म मरते ह। सभी मरते ह। सभी अ न य ह।"
ऐसे म पटाचारा को यह भान आ जैसे अनंत क णावान भु बु उससे कह रहे ह, "हाँ,
पटाचारे, सम त ाणी मरणधमा ह।"
इस कार पटाचारा उन बौ सा धका म गनी गई जनको नः यास ही एक
जीवनकाल म ही नवाण ा त हो गया।