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आ मसा ा कार
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उ ह ाि हुई, उसी कार केवल दो ही घंट म अ य मुमु ु जन को भी वे
आ म ान क ाि करवाते थे, उनके अ त ु ■स हुए ान योग से। उसे अ म माग
कहा। अ म, अथात् िबना म के, और म अथात् सीढ़ी दर सीढ़ी, मानुसार ऊपर
चढऩा। अ म अथात् ल ट माग, शॉट कट।
आ मसा ा कार
ा करने का सरल और सटीक िव ान
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दो कार के येय िन त करने चािहए िक हम संसार म इस कार रह, ऐसे जीएँ
िक िकसी को क नह हो, िकसी के लए द:ु खदायी नह हो। इस तरह हम अ छे , ऊँचे
स संगी पु ष , स े पु ष के साथ रह और कुसंग म नह पड़ रह, ऐसा कुछ येय होना
चािहए। और दस ू रे येय म तो य ‘ ानीपु ष’ िमल जाएँ तो (उनसे आ म ान ा
करके) उनके स संग म ही रह, उससे तो आपका हरएक काम हो जाएगा, सभी पज़ल
सॉ व हो जाएँ गे (और मो ा होगा)।
अत: मनु य का अंतम येय या? मो म जाने का ही, यही येय होना चािहए।
आपको भी मो म ही जाना है न? कब तक भटकना है? अनंत ज म से भटक-
भटक... भटकने म कुछ भी बाक नह रखा न! य भटकना पड़ा? य िक ‘म कौन
हूँ’, वही नह जाना। खुद के व प को ही नह जाना। खुद के व प को जानना
चािहए। ‘खुद कौन है’ वह नह जानना चािहए? इतने भटके िफर भी नह जाना आपने?
■सफ पैसे कमाने के पीछे पड़े हो? मो का भी थोड़ा बहुत करना चािहए या नह करना
चािहए? मनु य वा तव म परमा मा बन सकते ह। अपना परमा मा पद ा करना वह
सब से अंतम येय है।
मो , दो टेज पर
कता : मो का अथ साधारण प से हम ऐसा समझते ह िक ज म-मरण म से
मुि ।
दादा ी : हाँ, वह सही है लेिकन वह अंतम मुि है, वह सेक डरी टेज है। लेिकन
पहले टेज म पहला मो अथात् संसारी द:ु ख का अभाव बतता है। संसार के द:ु ख म
भी द:ु ख पश नह करे, उपाध म भी समाध रहे, वह पहला मो । और िफर जब यह
देह छूटती है तब आ यंतक मो है लेिकन पहला मो यह पर होना चािहए। मेरा मो
हो ही चुका है न! संसार म रह िफर भी संसार पश न करे, ऐसा मो हो जाना चािहए।
वह इस अ म िव ान से ऐसा हो सकता है।
२. आ म ान से शा त सुख क ाि
जीवमा या ढू ँ ढता है? आनंद ढू ँ ढता है, लेिकन घड़ीभर भी आनंद नह िमल
पाता। िववाह समारोह म जाएँ या नाटक म जाएँ , लेिकन वािपस िफर द:ु ख आ जाता है।
■जस सुख के बाद द:ु ख आए, उसे सुख ही कैसे कहगे? वह तो मूछा का आनंद
कहलाता है। सुख तो परमाने ट होता है।
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यह तो टे परेरी सुख ह और ब क क पत ह, माना हुआ है। हर एक आ मा या
ढू ँ ढता है? हमेशा के लए सुख, शा त सुख ढू ँ ढता है। वह ‘इसम से िमलेगा, इसम से
िमलेगा। यह ले लूँ, ऐसा क ँ , बंगला बनाऊँ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख
िमलेगा’, ऐसे करता रहता है। लेिकन कुछ भी नह िमलता। ब क और अधक जंजाल
म फँस जाता है। सुख खुद के अंदर ही है, आ मा म ही है। अत: जब आ मा ा करता
है, तब ही सनातन (सुख) ही ा होगा।
सुख और द:ु ख
जगत् म सभी सुख ही ढू ँ ढते ह लेिकन सुख क प रभाषा ही तय नह करते। ‘सुख
ऐसा होना चािहए िक ■जसके बाद कभी भी द:ु ख न आए।’ ऐसा एक भी सुख इस जगत्
म हो, तो ढू ँ ढ िनकालो, जाओ शा त सुख तो खुद के ‘ व’ म ही है। खुद अनंत सुख
धाम है और लोग नाशवंत चीज़ म सुख ढू ँ ढने िनकले ह।
‘ ानी’ ही मौ लक प ीकरण द
‘I’ भगवान है और ‘My’ माया है। ‘My’ वह माया है। ‘My’ is relative to ‘I’.
‘I’ is real. आ मा के गुण का इस ‘I’ म आरोपण करो, तब भी आपक शि याँ बहुत
बढ़ जाएँ गी। मूल आ मा ानी के िबना नह िमल सकता। परंतु ये ‘I’ and ‘My’
िब कुल अलग ही है। ऐसा सभी को, फ़ॉरेन के लोग को भी यिद समझ म आ जाए तो
उनक परेशािनयाँ बहुत कम हो जाएँ गी। यह साइ स है। अ म िव ान क यह
आ या मक research का िब कुल नया ही तरीका है। ‘I’ वह वाय भाव है और
‘My’ वह मा लक भाव है।
आपके पास ‘My’ जैसी कोई चीज़ है? ‘I’ अकेला है या ‘My’ साथ म है?
कता : वह भी मेरी।
दादा ी : और ब े िकसके?
कता : वे भी मेर।े
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दादा ी : और यह घड़ी िकसक ?
कता : वह भी मेरी।
दादा ी : िफर ‘मेरा ■सर, मेरा शरीर, मेरे पैर, मेरे कान, मेरी आँ ख’ ऐसा कहगे।
इस शरीर क सभी व तुओं को ‘मेरा’ कहते ह, तब ‘मेरा’ कहनेवाले ‘आप’ कौन ह?
यह नह सोचा? ‘My’ नेम इज़ चंदभ ू ाई’ ऐसा बोल और िफर कह ‘म चंदभ ू ाई हूँ’, इसम
कोई िवरोधाभास नह लगता?
दादा ी : आप चंदभ
ू ाई ह, लेिकन इसम ‘I’ ए ड ‘My’ दो ह। यह ‘I’ ए ड ‘My’
क दो रे वेलाइन अलग ही होती ह। पैरल
े ल ही रहती ह, कभी एकाकार होती ही नह ह।
िफर भी आप एकाकार मानते ह, इसे समझकर इसम से ‘My’ को सेपरेट कर दी■जए।
आपम जो ‘My’ है, उसे एक ओर र खये। ‘My’ हाट, तो उसे एक ओर रख। इस शरीर
म से और या- या सेपरेट करना होगा?
दादा ी : हाँ, सभी। पाँच इ याँ, पाँच कम याँ मन-बु -च -अहंकार सभी।
और ‘माइ इगोइज़म’ बोलते ह या‘आइ एम इगोइज़म’ बोलते ह?’
दादा ी : ‘माइ इगोइज़म’ कहगे तो उसे अलग कर सकगे। लेिकन उसके आगे जो
है, उसम आपका िह सा या है, यह आप नह जानते। इस लए िफर पूण प से
सेपरेशन नह हो पाता। आप, अपना कुछ हद तक ही जान पाएँ गे। आप थूल व तु ही
जानते ह, सू म क पहचान ही नह ह। सू म को अलग करना, िफर सू मतर को अलग
करना, िफर सू मतम को अलग करना तो ानीपु ष का ही काम है।
लेिकन एक-एक करके सारे पेयरपाटस अलग करते जाएँ तो ‘I’ और माइ, दोन
अलग हो सकते ह न? ‘I’ और ‘My’ दोन अलग करते-करते आ खर या बचेगा?
‘My’ को एक ओर रख तो आ खर या बचा?
कता : ‘I’।
जप-तप, त और िनयम
कता : त, तप, िनयम ज़ री ह या नह ?
दादा ी : तब कहाँ रहकर जान सकते ह उसे? संसार के अलावा और कोई जगह
है िक जहाँ रह सक? इस जगत् म सभी संसारी ही ह और सभी संसार म ही रहते ह।
यहाँ ‘म कौन हूँ’ यह जानने को िमले, ऐसा है। ‘आप कौन ह’ यह समझने का िव ान ही
है यहाँ पर। यहाँ आना, हम आपको पहचान करवा दगे।
मो का सरल उपाय
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जो मु हो चुके ह वहाँ पर जाकर यिद हम कह िक ‘साहब, मेरी मुि कर दी■जए!
वही अंतम उपाय है, सबसे अ छा उपाय। ‘खुद कौन है’ वह ान न हो जाए तो उसे
मो गत िमलेगी। और आ म ानी नह िमल तो (तब तक) आ म ानी क पु तक
पढऩी चािहए।
मो माग म तप- याग कुछ भी नह करना होता। ानीपु ष िमल जाएँ तो ानी
क आ ा ही धम और आ ा ही तप और यही ान, दशन, चा र और तप है, ■जसका
य फल मो है।
१. आव यकता गु क या ानी क ?
कता : दादाजी के िमलने से पहले िकसी को गु माना हो तो ? तो वे या
कर?
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दादा ी : गु तो रा ता िदखाते ह, माग िदखाते ह और ‘ ानीपु ष’ ान देते ह।
‘ ानीपु ष’ अथात् ■ज ह जानने को कुछ भी बाक नह रहा, खुद त व प म बैठे ह।
अथात् ‘ ानीपु ष’ आपको सबकुछ दे देते ह और गु तो संसार म आपको रा ता
िदखाते ह, उनके कहे अनुसार कर तो संसार म सुखी हो जाते ह। आध, याध और
उपाध म समाध िदलवाएँ वे ‘ ानीपु ष’।
दादा ी : ■जसका यह काम है, जो इसम ए सपट है, वह सोना और ताँबा दोन
अलग कर देगा। सौ टच सोना अलग कर देगा, य िक वह दोन के गुणधम जानता है िक
सोने के गुणधम ये ह और ताँबे के गुणधम ऐसे ह। उसी कार ानीपु ष आ मा के
गुणधम को जानते ह और अना मा के गुणधम को भी जानते ह।
जैसे अँगूठी म सोने और ताँबे का ‘िम चर’ हो तो उसे अलग िकया जा सकता है।
सोना और ताँबा दोन क पाउ ड व प ( प) हो जाते तो उ ह अलग नह िकया जा
सकता। य िक इससे गुणधम अलग ही कार के हो जाते। इसी कार जीव के अंदर
चेतन और अचेतन का िम चर है, वे क पाउ ड के प म नह ह। इस लए िफर से
अपने वभाव को ा कर सकते ह। क पाउ ड बन गया होता तो पता ही नह चलता।
चेतन के गुणधम का भी पता नह चलता और अचेतन के गुणधम का भी पता नह
चलता और तीसरा ही गुणधम उ प हो जाता। लेिकन ऐसा नह है। उनका तो केवल
िम चर बना है।
६. ‘ ानीपु ष कौन?’
संत और ानी क या या
कता : ये जो सभी संत हो चुके ह, उनम और ानी म िकतना अंतर है?
ानीपु ष क पहचान
कता : ानीपु ष को कैसे पहचान?
दादा ी : ानीपु ष तो िबना कुछ िकए ही पहचाने जाएँ ऐसे होते ह। उनक सुगध
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ही, पहचानी जाए ऐसी होती है। उनका वातावरण कुछ और ही होता है! उनक वाणी ही
अलग होती है! उनके श द से ही पता चल जाता है। अरे, उनक आँ ख देखते ही मालूम
हो जाता है। ानी के पास बहुत अधक िव सनीयता होती है, जबरद त िव सनीयता!
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और उनका हर श द शा प होता है, यिद समझ म आए तो। उनके वाणी-वतन और
िवनय मनोहर होते ह, मन का हरण करनेवाले होते ह। ऐसे बहुत सारे ल ण होते ह।
‘ ानी’ कृपा से ही ‘ ाि ’
कता : आपने जो अ म माग कहा, वह आपके जैसे ‘ ानी’ के लए ठीक है,
सरल है। लेिकन हमारे जैसे सामा य, संसार म रहनेवाले, काम करनेवाले लोग के लए
वह मु कल है। तो उसके लए या उपाय है?
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दादा ी : ‘ ानीपु ष’ के यहाँ भगवान कट हो चुके होते ह, चौदह लोक के नाथ
कट हो चुके होते ह, वैसे ‘ ानीपु ष’ िमल जाएँ तो या बाक रहेगा? आपक शि
से नह करना है। उनक कृपा से होता है। कृपा से सबकुछ ही बदल जाता है। इस लए
यहाँ तो जो आप माँगो वह सारा ही िहसाब पूरा होता है। आपको कुछ भी नह करना है।
आपको तो ‘ ानीपु ष’ क आ ा म ही रहना है। यह तो ‘अ म िव ान’ है। यानी
य भगवान के पास से काम िनकाल लेना है और वह आपको त ण रहता है,
घंटे-दो घंटे ही नह ।
अ म माग जारी है
इसम मेरा हेतु तो इतना ही है िक ‘मने जो सुख ा िकया, वह सुख आप भी ा
करो।’ अथात् ऐसा जो यह िव ान कट हुआ है, वह य ही दब जानेवाला नह है। हम
हमारे पीछे ािनय क वंशावली छोड़ जाएँ गे। हमारे उ राधकारी छोड़ जाएँं गे और
उसके बाद ािनय क लक चालू रहेगी। इस लए सजीवन मूत खोजना। उसके बगैर
हल िनकलनेवाला नह है।
म तो कुछ लोग को अपने हाथ ■स दान करने वाला हूँ। पीछे कोई चािहए िक
नह चािहए? पीछे वाल लोग को माग तो चािहए न?
९. ानिवध या है?
कता : आपक ानिवध या है?
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दादा ी : इसम लेने-देने जैसा कुछ होता नह है, केवल यहाँ बैठकर यह जैसा है
वैसा बोलने क ज रत है (‘म कौन हूँ’ उसक पहचान, ान कराना, दो घंटे का
ान योग होता है। उसम अड़तालीस िमिनट आ मा-अना मा का भेद करनेवाले
भेदिव ान के वा य बुलवाए जाते ह। जो सभी को समूह म बोलने होते ह। उसके बाद
एक घंटे म पाँच आ ाएँ उदाहरण देकर िव तारपूवक समझाई जाती ह, िक अब बाक
का जीवन कैसे यतीत करना िक ■जससे नए कम नह बँध और पुराने कम पूणतया ख म
हो जाएँ , साथ ही ‘म शु ा मा हूँ’ का ल य हमेशा रहा करे!)
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कम का बोझ वे सब टू ट जाते ह, वह दस
ू रा अनुभव। िफर आनंद ही इतना अधक होता
है िक ■जसका वणन ही नह हो सकता!!
दज
ू म से पूनम
हम जब ान देते ह तब अनािद काल से, अथात् लाख ज म क जो अमाव या
थी, अमाव या समझे आप? ‘नो मून’ अनािद काल से ‘डाकनेस म’ ही जी रहे ह सभी।
उजाला देखा ही नह । मून देखा ही नही था! तो हम जब यह ान देते ह तब मून कट
हो जाता है। पहले वह दजू चाँद के ■जतना उजाला देता है। पूरा ही ान दे देते ह िफर
भी अंदर िकतना कट होता है? दज ू के चँ मा ■जतना ही। िफर इस ज म म पूनम हो
जाए, तब तक का आपको करना है। िफर दज ू से तीज होगी, चोथ होगी, चोथ से पंचमी
होगी....और पूनम हो जाएगी तो िफर क पलीट हो गया! अथात् केवल ान हो गया। कम
नह बँधगे, कम बँधने क जाएँ गे। ोध-मान-माया-लोभ बंद हो जाएँ गे। पहले वा तव
म अपने आपको जो चंदभ ू ाई मानता था, वही ांत थी। वा तव म ‘म चंदभ ू ाई हूँ’ वह
गया। वह ांत गई। अब तुझे जो आ ाएँ दी ह, उन आ ाओं म रहना।
यहाँ ानिवध म आओगे तो म सभी पाप धो दँगू ा, िफर आपको खुद को दोष
िदखेगा और खुद के दोष िदखे तभी से समझना िक मो म जाने क तैयारी हुई।
आ ा, ान के ोटे शन के लए (हेतु)
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हमारे ान देने के प ात आपको आ म अनुभव हो जाने पर या काम बाक रहता
है? ानीपु ष क ‘आ ा’ का पालन। ‘आ ा’ ही धम और ‘आ ा’ ही तप। और
हमारी आ ा संसार ( यवहार) म ज़रा सी भी बाधक नह है। संसार म रहते हुए भी
संसार का असर नह हो, ऐसा यह अ म िव ान है।
आ ा से ती गत
कता : आपका ान ा करने के प ात् हमारी, महा माओं क जो गत होती
है उस गत क पीड िकस पर आधा रत है? या करने से तेज़ी से गत होगी?
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हमारी आ ा के त ■स सयर रहना वह तो सब से बड़ा मु य गुण है। हमारी
आ ा पालन करने से जो अबुध हुआ वह हमारे जैसा ही हो जाएगा न! लेिकन जब तक
आ ा का सेवन है, तब तक िफर आ ा म बदलाव नह होना चािहए। तो परेशानी नह
होगी।
ढ़ िन य से ही आ ा पालन
दादा क आ ा का पालन करना है वही सब से बड़ी चीज़ है। आ ा का पालन
करना है ऐसा तय करना चािहए। आ ा का पालन हो पाता है या नह , वह आपको नह
देखना है। आ ा का ■जतना पालन हो सके उतना ठीक है, लेिकन आपको तय करना
चािहए िक आ ा पालन करना है।
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आप चंदभ ू ाई थे और पु षाथ करते थे वह ांत का पु षाथ था लेिकन जब ‘म
शु ा मा हूँ’ िक ाि क और उसके बाद पु षाथ करो, दादा क पाँच आ ा म रहो तो
वह रयल पु षाथ है। पु ष (पद) क ाि होने के बाद म (पु षाथ िकया) कहलाएगा।
दादा ी : आ मा का अनुभव हो गया, यानी देहा यास छूट गया। देहा यास छूट
गया, यानी कम बँधना क गया। िफर इससे यादा और या चािहए? पहले चंदभ ू ाई
या थे और आज चंदभ ू ाई या ह, वह समझ म आता है। तो यह प रवतन कैसे?
आ म-अनुभव से। पहले देहा यास का अनुभव था और अब यह आ म-अनुभव है।
१३. य स संग का मह व
कता : घर पर छड़कते ह न।
कता : दस साल।
िन य ट ग तो अंतराय ेक
कता : बाहर के ो ाम बन गए ह, इस लए आने म परेशानी होगी।
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दादा के स संग क अलौिककता
यिद कम का उदय बहुत भारी आए तब आपको समझ लेना है िक यह उदय भारी है
इस लए शांत रहना है और िफर उसे ठंडा करके स संग म ही बैठे रहना। ऐसा ही चलता
रहेगा। कैसे-कैसे कम के उदय आएँ , वह कहा नह जा सकता।
कता : आपके पास छ: महीने बैठ तो उसम थूल प रवतन होगा, िफर सू म
प रवतन होगा, ऐसा कह रहे ह?
दादा ी : हाँ, ■सफ बैठने से ही प रवतन होता रहेगा। अत: यहाँ प रचय म रहना
चािहए। दो घंटे तीन घंटे, पाँच घंटे। ■जतना जमा िकया उतना लाभ। लोग ान लेने के
बाद ऐसा समझते ह िक ‘हम तो अब कुछ करना ही नह है! लेिकन ऐसा नह है, य िक
अभी तक प रवतन तो हुआ ही नह !
दादा ी : ■जतना हो सके उतने ानी के पास जीवन िबताना चािहए वही गरज,
और कोई गज़ नह । रात-िदन, भले ही कह भी हो लेिकन दादा के पास ही रहना
चािहए। उनक (आ म ानी) क िवसीिनटी ( ी पड़े) वैसे रहना चािहए।
काम िनकाल लेना यानी या? ■जतना हो सके उतने अधक दशन करना। ■जतना
हो सके उतना स संग म आमने-सामने लाभ ले लेना, य का स संग। न हो सके तो
उतना खेद रखना अंत म! ानीपु ष के दशन करना और उनके पास स संग म बैठे
रहना।
य प रचय नह िमले तब
कता : दादा, यिद प रचय म नह रह सक, तब पु तक िकतनी मदद करत ह?
■जसे खुद क भूल पता चलेगी, ■जसे त ण अपनी भूल िदखेगी, जहाँ-जहाँ हो
वहाँ िदखे, नह हो वहाँ नह िदखे, वह खुद ‘परमा मा व प’ हो गया! ‘म चंदभ ू ाई
नह , म शु ा मा हूँ’ यह समझने के बाद ही िन प पाती हो पाते ह। िकसीका ज़रा-सा
भी दोष िदखे नह और खुद के सभी दोष िदख, तभी खुद का काय पूरा हुआ कहलाता
है। खुद के दोष िदखने लगे, तभी से हमारा िदया हुआ ‘ ान’ प रणिमत होना शु हो
जाता है। जब खुद के दोष िदखाई देने लगे, तब दसू र के दोष िदखते नह ह। और के
दोष िदख तो वह बहुत बड़ा गुनाह कहलाता है।
तब से हुआ समिकत!
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खुद का दोष िदख, तभी से ही समिकत हुआ, ऐसा कहलाएगा। खुद का दोष िदखे,
तब से समझना िक खुद जागृत हुआ है। नह तो सब न द म ही चल रहा है। दोष खतम
हुए या नह हुए, उसक बहुत चता करने जैसी नह है, लेिकन मु य ज़ रत जागृत क
है। जागृत होने के बाद िफर नये दोष खड़े नह होते ह और जो पुराने दोष ह, वे िनकलते
रहते ह। हम उन दोष को देखना है िक िकस तरह से दोष होते ह।
■जतने दोष, उतने ही चािहए त मण
‘अनंत दोष का भाजन है। तो उतने ही त मण करने पड़गे। ■जतने दोष भरकर
लाए हो, वे आपको िदखगे। ानी पु ष के ान देने के बाद दोष िदखने लगते ह, नह
तो खुद के दोष नह िदखते, उसी का नाम अ ानता। खुद का एक भी दोष नह िदखता
है और िकसीके देखने ह तो बहुत सारे देख ले, उसका नाम िम या व।’
ि िनजदोष के त...
यह ान लेने के बाद अंदर खराब िवचार आएँ , उ ह देखना, अ छे िवचार आएँ
उ ह भी देखना। अ छे पर राग नह और खराब पर ेष नह । अ छा-बुरा देखने क हम
ज़ रत नह है। य िक मूलत: स ा ही अपने काबू म नह है। अत: ानी या देखते
ह? सारे जगत् को िनद ष देखते ह। य िक यह सब ‘ड चाज’ म है, उसम उस बेचारे
का या दोष? आपको कोई गाली दे, वह ‘ड चाज’। ‘बॉस’ आपको उलझन म डाले,
तो वह भी ‘ड चाज’ ही है। बॉस तो िनिम है। जगत् म िकसी का दोष नह है। जो दोष
िदखते ह, वह खुद क ही भूल है और वही ‘ लंडस’ ह और उसीसे यह जगत् कायम है।
दोष देखने से, उ टा देखने से ही बैर बँधता है।
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इस लए न तो आप उसे सीधी करो और न ही वह आपको सीधा करे। जैसा भी
िमला, वही सोने जैसा। कृत िकसी क कभी भी सीधी नह हो सकती। कु े क दम ु
टेढ़ी क टेढ़ी ही रहती है। इस लए आप सावधान होकर चलो। जैसी है वैसी ठीक है,
‘एडज ट एवरी हेर’।
आपको ज़ रत हो, तब सामनेवाला यिद टेढ़ा हो, िफर भी उसे मना लेना चािहए।
टेशन पर मज़दरू क ज़ रत हो और वह आनाकानी कर रहा हो, िफर भी उसे चार
आने यादा देकर मना लेना होगा और नह मनाएँ गे तो वह बैग हम खुद ही उठाना पड़ेगा
न!
शकायत? नह , ‘एडज ट’
घर म भी ‘एडज ट’ होना आना चािहए। आप स संग से देर से घर जाओ तो
घरवाले या कहगे? ‘थोड़ा-बहुत तो समय का यान रखना चािहए न?’ तब हम ज दी
घर जाएँ तो उसम या गलत है? अब उसे ऐसा मार खाने का व य आया? य िक
पहले बहुत शकायत क थ । उसका यह प रणाम आया है। उस समय स ा म आया
था, तब शकायत ही शकायत क थ । अब स ा म नह है, इस लए शकायत िकए
बगैर रहना है। इस लए अब ‘ स-माइनस’ कर डालो। सामनेवाला गाली दे गया, उसे
जमा कर लेना। फ़ रयादी होना ही नह है!
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घर म पत-प नी दोन िन य कर िक मुझे ‘एडज ट’ होना है, तो दोन का हल
आ जाएगा। वह यादा ख चतान करे, तब हम ‘एडज ट’ हो जाएँ तो हल िनकल
आएगा। यिद ‘एडज ट एवरी हेर’
नह हुए तो सभी पागल हो जाओगे। सामनेवाल को चढ़ाते रहे, इसी वजह से
पागल हुए ह।
■जसे ‘एडज ट’ होने क कला आ गई, वह दिु नया से ‘मो ’ क ओर मुड़ गया।
‘एडज टमे ट’ हुआ, उसीका नाम ान। जो ‘एडज टमे ट’ सीख गया, वह पार उतर
गया।
कुछ लोग को रात को देर से सोने क आदत होती है और कुछ लोग ज दी सोने
क आदत होती है, तो उन दोन का मेल कैसे होगा? और प रवार म सभी सद य साथ
रहते ह तो या होगा? घर म एक यि ऐसा कहनेवाला िनकले िक ‘आप कमअ ल के
ह’, तब आपको ऐसा समझ लेना चािहए िक यह ऐसा ही बोलनेवाला था। आपको
एडज ट हो जाना चािहए। इसके बजाय अगर आप जवाब दोगे तो आप थक जाओगे।
य िक वह तो आप से टकराया, लेिकन आप भी उससे टकराओगे तो आपक भी आँ खे
नह ह, ऐसा माणत हो गया न!
टकराव टालो
मत आओ टकराव म
‘िकसी के साथ टकराव म मत आना और टकराव टालना।’ हमारे इस वा य का
यिद आराधन करोगे तो ठे ठ मो तक पहुँचोगे। हमारा एक ही श द, य का य , पूरा
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का पूरा गले उतार ले, तो भी मो हाथ म आ जाए, ऐसा है।
टकराव से यह जगत् िन मत हुआ है। उसे भगवान ने, ‘बैर से बना है,’ ऐसा कहा
है। हर एक मनु य, अरे, जीवमा बैर रखता है। हद से यादा हुआ तो बैर रखे बगैर
रहेगा नह । य िक सभी म आ मा है। आ मशि सभी म एक समान है। कारण यह है
िक, इस पु ल (शरीर) क कमज़ोरी क वजह सहन करना पड़ता है, लेिकन सहन करने
के साथ वह बैर रखे बगैर रहता नह है। और िफर अगले ज म म वह उसका बैर वसूल
करता है वापस।
कोई मनु य बहुत बोले, तो उसके कैसे भी बोल से हम टकराव नह होना चािहए।
और अपनी वजह से सामनेवाले को अड़चन हो, ऐसा बोलना बड़े से बड़ा गुनाह है।
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टकराव टालना यानी सहन करना नह है। सहन करोगे तो िकतना करोगे? सहन
करना और ‘ ग’ दबाना, वे दोन एक जैसे ह। ‘ ग दबाई हुई िकतने िदन रहेगी?’
इस लए सहन करना तो सीखना ही नह । सो यूशन लाना सीखो। अ ान दशा म तो
सहन ही करना होता है। बाद म एक िदन ‘ ग’ उछलती है, वह सब िबखेर देती है।
िकसी के कारण यिद हम सहन करना पड़े, वह अपना ही िहसाब होता है। लेिकन
आपको पता नह चलता िक यह िकस बहीखाते का और कहाँ का माल है, इस लए हम
ऐसा मानते ह िक इसने नया माल देना शु िकया है। नया माल कोई देता ही नह , िदया
हुआ ही वापस आता है। यह जो आया, वह मेरे ही कम के उदय से आया है, सामनेवाला
तो िनिम है।
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दादा ी : इस दीवार के साथ कोई लड़ेगा तो िकतने समय तक लड़ सकेगा? यिद
इस दीवार से कभी ■सर टकरा जाए, तो आप उसके साथ या करोगे? ■सर टकराया,
यानी आपक दीवार से लड़ाई हो गई, अब या दीवार को मारोगे? इसी कार ये जो
बहुत े श कराते ह, वे सभी दीवार ह! इसम सामनेवाले को या देखना, आपको अपने
आप समझ लेना है िक ये दीवार जैसे ह, िफर कोई तकलीफ़ नह है।
घषण से हनन, शि य का
सारी आ मशि यिद िकसी चीज़ से ख म होती ह , तो वह है घषण से। ज़रा भी
टकराए तो ख म। सामनेवाला टकराए, तब हम संयमपूवक रहना चािहए। टकराव तो
होना ही नह चािहए। यिद ■सफ घषण न हो, तो मनु य मो म चला जाए। िकसी ने
इतना ही सीख लया िक ‘मुझे घषण म नह आना है’, तो िफर उसे गु क या िकसी
क भी ज़ रत नह है। एक या दो ज म म सीधे मो म जाएगा। ‘घषण म आना ही नह
है’ ऐसा यिद उसक ा म बैठ गया और िन य ही कर लया, तब से ही वह समिकत
हो गया!
पहले जो घषण हो चुके थे और उससे जो नुकसान हुआ था, वही वापस आता है।
लेिकन अब यिद नया घषण पैदा करोगे, तो िफर शि याँ चली जाएँ गी। आई हुई शि भी
चली जाएगी और यिद खुद घषण होने ही न द, तो शि उ प होती रहेगी!
इस दिु नया म बैर से घषण होता है। संसार का मूल बीज बैर है। ■जसके बैर और
घषण - ये दो बंद हो गए, उसका मो हो गया। ेम बाधक नह है, बैर जाए तो ेम
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उ प हो जाए।
हुआ सो याय
कुदरत तो हमेशा यायी ही है
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जो कुदरत का याय है, उसम एक ण के लए भी अ याय नह हुआ। यह कुदरत
जो है, वह एक ण के लए भी अ यायी नह हुई। कोट म अ याय हुआ होगा, लेिकन
कुदरत कभी अ यायी हुई ही नह ।
जगत् म याय ढू ँ ढने से ही तो पूरी दिु नया म लड़ाइयाँ हुई ह। जगत् याय व प ही
है। इस लए इस जगत् म याय ढू ँ ढना ही मत। जो हुआ, सो याय। जो हो गया वही
याय। ये कोट आिद सब बने वे, याय ढू ँ ढते ह इस लए! अरे भाई, याय होता होगा?!
उसके बजाय ‘ या हुआ’ उसे देखो! वही याय है। याय-अ याय का फल, वह तो
िहसाब से आता है और हम उसके साथ याय जॉइ ट करने जाते ह, िफर कोट म ही
जाना पड़ेगा न!
कोई द:ु ख दे तो जमा कर लेना। जो तूने पहले िदया होगा, वही वापस जमा करना
है। य िक िबना वजह कोई िकसी को द:ु ख पहुँचा सके, यहाँ ऐसा कानून ही नह है।
उसके पीछे कॉज़ होने चािहए। इस लए जमा कर लेना।
चोर, चोरी करने को धम मानता है, दानी, दान देने को धम मानता है। ये लोकभाषा
है, भगवान क भाषा नह है। भगवान के यहाँ ऐसा वैसा कुछ है ही नह । भगवान के यहाँ
तो इतना ही है िक, ‘िकसी जीव को द:ु ख नह हो, वही हमारी आ ा है!’
‘हुआ सो याय’ समझे तो पूरा संसार पार हो जाए, ऐसा है। इस दिु नया म एक
सेक ड भी अ याय होता ही नह । याय ही हो रहा है। लेिकन बु हम फँसाती है िक
इसे याय कैसे कह सकते ह? इस लए हम मूल बात बताना चाहते ह िक यह कुदरत का
है और बु से आप
अलग हो जाओ। बु इसम फँसाती है। एक बार समझ लेने के बाद बु का
मानना मत। हुआ सो याय। कोट के याय म भूल-चूक हो सकती है, उ टा-सीधा हो
जाता है, लेिकन इस याय म कोई फक नह ।
याय खोजते तो दम िनकल गया है। इ सान के मन म ऐसा होता है िक मने इसका
या िबगाड़ा है, जो यह मेरा िबगाड़ता है। याय ढू ँ ढने से तो इन सभी को मार पड़ी है,
इस लए याय नह ढू ँ ढना। याय खोजने से इन सभी को मान खा-खाकर िनशान पड़
गए और िफर भी अंत म हुआ तो वही का वही। आ खर म वही का वही आ जाता है। तो
िफर पहले से ही य न समझ जाएँ ? यह तो केवल अहंकार क दखल है!
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भुगते उसी क भूल
कुदरत के यायालय म ...
इस जगत् के यायाधीश तो जगह-जगह होते ह लेिकन कम जगत् के कुदरती
यायाधीश तो एक ही ह, ‘भुगते उसी क भूल’। यही एक याय है, ■जससे पूरा जगत्
चल रहा है और ांत के याय से पूरा संसार खड़ा है।
एक णभर के लए भी जगत् याय से बाहर नह रहता। ■जसे इनाम देना हो, उसे
इनाम देता है। ■जसे दंड देना हो, उसे दंड देता है। जगत् याय से बाहर नह रहता,
याय म ही है, संपूण यायपूवक ही है। लेिकन सामनेवाले क ि म यह नह आता,
इस लए समझ नह पाता। जब ि िनमल होगी, तब याय िदखेगा। जब तक वाथ ि
होगी, तब तक याय कैसे िदखेगा?
आपको य भुगतना?
हम द:ु ख य भुगतना पड़ा, यह ढू ँ ढ िनकालो न? यह तो हम अपनी ही भूल से
बँधे हुए ह। लोग ने आकर नह बाँधा। वह भूल ख म हो जाए तो िफर मु । और वा तव
म तो मु ही ह, लेिकन भूल क वज़ह से बँधन भुगतते ह।
भुगतना खद
ु क भूल के कारण
जो द:ु ख भुगते, उसी क भूल और जो सुख भोगे तो, वह उसका इनाम। लेिकन
ांत का कानून िनिम को पकड़ता है। भगवान का कानून, रयल कानून तो ■जसक
भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह कानून ए ज़े ट है और उसम कोई प रवतन कर ही
नह सकता। जगत् म ऐसा कोई कानून नह है िक जो िकसीको भोगवटा (सुख-द:ु ख का
असर) दे सके!
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हमारी कुछ भूल होगी तभी तो सामनेवाला कहेगा न? इस लए भूल ख म कर दो
न! इस जगत् म कोई जीव िकसी भी जीव को तकलीफ नह दे सकता, ऐसा वतं है
और जो तकलीफ देता है वह पहले जो दखल क थी उसी का प रणाम है। इस लए भूल
ख म कर डालो िफर िहसाब नह रहेगा।
जगत् द:ु ख भोगने के लए नह है, सुख भोगने के लए है। ■जसका ■जतना िहसाब
होगा उतना ही होता है। कुछ लोग ■सफ सुख ही भोगते ह, वह कैसे? कुछ लोग ■सफ
द:ु ख ही भोगते ह वह कैसे? खुद ही ऐसा िहसाब लेकर आया है इस लए। जो द:ु ख खुद
को भोगने पड़ते ह वह खुद का ही दोष है, िकसी दस ू रे का नह । जो द:ु ख देता है, वह
उसक भूल नह है। जो द:ु ख देता है, उसक भूल संसार म और जो उसे भुगतता है,
उसक भूल भगवान के िनयम म होती है।
प रणाम खद
ु क ही भूल का
जब कभी भी हम कुछ भी भुगतना पड़ता है, वह अपनी ही भूल का प रणाम है।
अपनी भूल के िबना हम भुगतना नह होता। इस जगत् म ऐसा कोई भी नह है िक जो
हम कच मा भी द:ु ख दे सके और यिद कोई द:ु ख देनेवाला है, तो वह अपनी ही भूल
है। सामनेवाले का दोष नह है, वह तो िनिम है। इस लए ‘भुगते उसी क भूल’।
भगवान का या कानून?
भगवान का कानून तो या कहता है िक ■जस े म, ■जस समय पर, जो भुगतता
है, वह खुद ही गुनहगार है। िकसीक जेब कट जाए तो काटनेवाले के लए तो आनंद क
बात होगी, वह तो जलेिबयाँ खा रहा होगा, होटल म चाय-पानी और ना ता कर रहा
होगा और ठीक उसी समय ■जसक जेब कटी है, वह भुगत रहा होगा। इस लए
भुगतनेवाले क भूल। उसने पहले कभी चोरी क होगी, इस लए आज पकड़ा गया और
जेब काटनेवाला जब पकड़ा जाएगा, तब चोर कहलाएगा।
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पूरा जगत् सामनेवाले क गलती देखता है। भुगतता है खुद, लेिकन गलती
सामनेवाले क देखता है। ब क इससे तो गुनाह दगु ने होते जाते ह और यवहार भी
उलझता जाता है। यह बात समझ गए तो उलझन कम होती जाएगी।
सास बहू से लड़ रही हो, िफर भी बहू मज़े म हो और सास को ही भुगतना पड़े, तब
भूल सास क है। जेठानी को उकसाकर आपको भुगतना पड़े तो वह आपक भूल और
िबना उकसाए भी वह देने आई, तो िपछले ज म का कुछ िहसाब बाक होगा, उसे चुकता
िकया। इस जगत् म िबना िहसाब के आँ ख से आँ ख भी नह िमलती, तो िफर बाक सब
िबना िहसाब के होता होगा? आपने ■जतना-■जतना ■जस िकसीको िदया होगा, उतना-
उतना आपको वापस िमलेगा, तब आप खुश होकर जमा कर लेना िक, हाश, अब मेरा
िहसाब पूरा होगा। नह तो भूल करोगे तो िफर से भुगतना ही पड़ेगा।
अपनी ही भूल क मार पड़ रही है। ■जसने प थर फका उसक भूल नह है, ■जसे
प थर लगा उसक भूल है! आपके इद-िगद के बाल-ब क कैसी भी भूल या द ु कृ य
ह , लेिकन यिद उसका असर आप पर नह होता तो आपक भूल नह है और अगर
आप पर असर होता है तो वह आपक ही भूल है, ऐसा िन त प से समझ लेना!
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भूल िकसक है? तब कहगे िक कौन भुगत रहा है, इसका पता लगाओ। नौकर के
हाथ से दस िगलास टू ट गए तो उसका असर घर के लोग पर होगा या नह होगा? अब
घर के लोग म ब को तो कुछ भुगतने का नह होता, लेिकनउनके माँ-बाप अकुलाते
रहगे। उसम भी माँ थोड़ी देर बाद आराम से सो जाएगी, लेिकन बाप िहसाब लगाता
रहेगा, िक पचास पय का नुकसान हुआ। वह यादा अलट है, इस लए यादा
भुगतेगा। ‘भुगते उसी क भूल’। वह इतना पृथ रण करते-करते आगे बढ़ता चढ़ेगा, तो
सीधा मो म पहुँच जाएगा।
कता : कुछ लोग ऐसे होते ह िक हम िकतना भी अ छा कर, लेिकन वे समझते
ही नह ?
कोई पूछे िक म अपनी भूल कैसे ढू ँ ढूँ? तो हम उसे ■सखाते ह िक तुझे कहाँ-कहाँ
भुगतना पड़ता है? वही तेरी भूल। तेरी या भूल हुई होगी िक ऐसा भुगतना पड़ा? यह
ढू ँ ढ िनकालना।
खद
ु के दोष देखने का साधन - त मण
मण-अत मण- त मण
संसार म जो कुछ भी हो रहा है वह मण है। जब तक वह सहज प से होता है,
तब तक मण है, लेिकन यिद ए सेस ( यादा) हो जाए तो वह अत मण कहलाता है।
■जसके त अत मण हो जाए, उससे यिद छूटना हो तो उसका त मण करना ही
पड़ेगा, मतलब धोना पड़ेगा, तब साफ होगा। पूव ज म म जो भाव िकया िक, ‘फलाने
( यि ) को चार धौल दे देनी है।’ इसी वजह से जब इस ज म म वह पक म आता है,
तब चार धौल दे दी जाती है। वह अत मण हुआ कहलाएगा, इस लए उसका त मण
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करना पड़ेगा। सामनेवाले के ‘शु ा मा’ को याद करके, उसके िनिम से त मण
करना चािहए।
कोई खराब आचरण हुआ, वह अत मण कहलाता है। जो खराब िवचार आया,
वह तो दाग़ कहलाता है, िफर वह मन ही मन म काटता रहता है। उसे धोने के लए
त मण करने पड़गे। इस त मण से तो सामनेवाले का भी आपके लए भाव बदल
जाता है, खुद के भाव अ छे ह तो और और के भाव भी अ छे हो जाते ह। य िक
त मण म तो इतनी अधक शि ह िक बाघ भी कु े जैसा बन जाता है! त मण
कब काम आता है? जब कोई उ टे प रणाम आएँ , तब काम आता है।
त मण क यथाथ समझ
तो त मण यानी या? त मण यानी सामनेवाला हमारा जो अपमान करता
है, तब हम समझ जाना चािहए िक इस अपमान का गुनहगार कौन है? करनेवाला
गुनहगार है या भुगतनेवाला गुनहगार है, पहले हम यह डसीज़न लेना चािहए। तो अपमान
करनेवाला वह िब कुल भी गुनहगार नह होता। वह िनिम है। और अपने ही कम के
उदय को लेकर वह िनिम िमलता है। मतलब यह अपना ही गुनाह है। अब त मण
इस लए करना है िक सामनेवाले के त खराब भाव हुआ। उसके लए नालायक है,
लु ा है, ऐसा मन म िवचार आ गए हो तो त मण करना है। बाक कोई भी गाली दे तो
वह अपना ही िहसाब है। यह तो िनिम को ही काटते ह(दौड़ता है) और उसीके यह सब
झगड़े ह।
त मण क यथाथ िवध
कता : त मण म या करना है?
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दादा ी : मन-वचन-काया, भावकम- यकम-नोकम, चंदल ू ाल तथा चंदल
ू ाल के
नाम क सव माया से भ , ऐसे उसके ‘शु ा मा’ को याद करके कहना िक, ‘हे
शु ा मा भगवान! मने ज़ोर से बोल िदया, वह भूल हो गई इस लए उसक माफ माँगता
हूँ, और िफर से वह भूल नह क ँ गा, ऐसा िन य करता हूँ, िफर कभी भी ऐसी भूल नह
हो, ऐसी शि देना।’ ‘शु ा मा’ को याद िकया या दादा को याद करके कहा िक, ‘यह
भूल हो गई है’; तो वह आलोचना है, और उस भूल को धोना मतलब त मण और
‘ऐसी भूल िफर कभी भी नह क ँ गा’, ऐसा तय करना वह या यान है! समानेवाले
को नुकसान हो ऐसा करे अथवा उसे हमसे द:ु ख हो, वे सभी अत मण ह और उसका
तुरत ं ही आलोचना, त मण और या यान करना पड़ता है।
त मण िवध
य दादा भगवान क सा ी म, देहधारी (■जसके त दोष हुआ हो, उस यि
का नाम) के मन-वचन-काया के योग, भावकम- यकम-नोकम से भ ऐसे हे
शु ा मा भगवान, आपक सा ी म, आज िदन तक मुझसे जो जो ् दोष हुए ह, उसके
लए मा माँगता हूँ। दयपूवक बहुत प ाताप करता हूँ। मुझे मा क ■जए। और िफर से
ऐसे दोष कभी भी नह क ँ , ऐसा ढ़ िन य करता हूँ। उसके लए मुझे परम शि
दी■जए।
ानिवध या है?
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यह भेद ान का योग है, जो ो री स संग से भ है।
ान य लेना चािहए?
पा रवा रक संबध
ं ो और काम-काज म सुख-शांत अनुभव करने के लए।
आ म ान ाि के लए य आना आव यक है ?