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Table of Contents

‘दादा भगवान’ कौन ?


आ मसा ा कार
१. मनु य जीवन का येय या है?
दो कार के येय, सांसा रक और आ यं￸तक
मो , दो टेज पर
२. आ म ान से शा त सुख क ाि
सुख और द:ु ख
सनातन सुख क खोज
३. I and My are seperate
‘ ानी’ ही मौ लक प ीकरण द
सेपरेट, 'I' ए ड 'My'
४. ‘म’ क पहचान कैसे?
जप-तप, त और िनयम
ानी ही पहचान कराएँ ‘म’ क !
मो का सरल उपाय
५. ‘म’ क पहचान - ानीपु ष से?
१. आव यकता गु क या ानी क ?
अपण िव￸ध कौन करवा सकते ह?
आ मानुभूती िकस तरह से होती है?
अ म ान से नकद मो
ानी ही कराए आ मा-अना मा का भेद
ानीपु ष, व ड के ेटे ट साइ ट ट
६. ‘ ानीपु ष कौन?’
संत और ानी क या या
ानीपु ष क पहचान
७. ानीपु ष - ए. एम. पटेल (दादा ी)
८. िमक माग- अ म माग
अ म सरलता से कराए आ मानुभू￸त
‘मुझे’ िमला वही अ￸धकारी
म म ‘करना है’ और अ म म...
ो े े े
एका मयोग टू टने से अपवाद प से कट हुआ अ म
‘ ानी’ कृपा से ही ‘ ाि ’
अ म माग जारी है
९. ानिव￸ध या है?
१०. ानिव￸ध म या होता है?
कम भ मीभूत होते ह ानाि से
दज ू म से पूनम
११. आ म ान ाि के बाद आ ापालन का मह व
आ ा, ान के ोटे शन के लए (हेतु)
‘ ान’ के बाद कौन सी साधना?
आ ा से ती ग￸त
ढ़ िन य से ही आ ा पालन
‘आ ा’ पालन से वा तिवक पु षाथ क शु आत
१२. आ मानुभव तीन टेज म, अनुभव-ल य- ती￸त
१३. य स संग का मह व
उलझन के समाधान के लए स संग क आव यकता
बीज बोने के बाद म पानी ￱छड़कना ज़ री
िन य ट ग तो अंतराय ेक
गार टी स संग से, संसार के मुनाफे क
दादा के स संग क अलौिककता
रहो ानी क िवसीिनटी म
य स संग वह सव े
१४. दादा क पु तक तथा मेगेज़न का मह व
आ वाणी, कैसी ि याकारी !
य प रचय नह िमले तब
१५. पाँच आ ा से जगत् िनदोष
आ ापालन से बढ़े िनद ष ि
तब से हुआ समिकत!
■जतने दोष, उतने ही चािहए ￸त मण
ि िनजदोष के ￸त...
एडज ट एवरी हेर
पचाओ एक ही श द
प नी के साथ एडज टमे ट
भोजन म एडज टमे ट
नह भाए, िफर भी िनभाओ
सुधार या एडज ट हो जाएँ ?
े े ो ओ
टेढ़ के साथ एडज ट हो जाओ
￱शकायत? नह , ‘एडज ट’
￸डस्एडज टमे ट, यही मूखता
टकराव टालो
मत आओ टकराव म
टैिफक के लॉ से टले टकराव
सहन? नह , सो यूशन लाओ
टकराए, अपनी ही भूल से
साइ स, समझने जैसा
टकराव, वह अ ानता ही है अपनी
घषण से हनन, शि य का
कॉमनसे स, ऐवरी हेर एि केबल
हुआ सो याय
कुदरत तो हमेशा यायी ही है
कारण का पता चले, प रणाम से
भगवान के यहाँ कैसा होता है?
िनजदोष िदखाए अ याय
जगत् याय व प
िवक प का अंत, यही मो माग
भुगते उसी क भूल
कुदरत के यायालय म ...
आपको य भुगतना?
भुगतना खुद क भूल के कारण
प रणाम खुद क ही भूल का
भगवान का या कानून?
उपकारी, कम से मुि िदलानेवाले
ऐसा पृथ रण तो करो
मूल भूल कहाँ है?
खुद के दोष देखने का साधन - ￸त मण
मण-अ￸त मण- ￸त मण
￸त मण क यथाथ समझ
￸त मण क यथाथ िव￸ध
￸त मण िव￸ध
ि मंिदर िनमाण का योजन
ानिव￸ध या है?
www.dadabhagwan.org
ानीपु ष दादा भगवान क िद य ानवाणी

संकलन : पू य ी दीपकभाई देसाई

आ मसा ा कार

ा करने का सरल और सटीक िव ान

‘दादा भगवान’ कौन ?


जून १९५८ क एक सं या का करीब छ: बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर
का रे वे टेशन, ेटफाम नं. ३क बच पर बैठे ी अंबालाल मूलजीभाई पटेल पी
देहमंिदर म कुदरती प से, अ म प म, कई ज म से य होने के लए आतुर ‘दादा
भगवान’ पूण प से कट हुए। और कुदरत ने स■जत िकया अ या म का अ त ु आ य।
एक घंटे म उ ह िव दशन हुआ। ‘म कौन? भगवान कौन? जगत् कौन चलाता है? कम
या? मुि या?’ इ यािद जगत् के सारे आ या मक के संपूण रह य कट हुए।
इस तरह कुदरत ने िव के स मुख एक अि तीय पूण दशन तुत िकया और उसके
मा यम बने ी अंबालाल मूलजीभाई पटेल, गुजरात के चरोतर े के भादरण गाँव के
पाटीदार, कॉ टै ट का यवसाय करनेवाले, िफर भी पूणतया वीतराग पु ष!

‘ यापार म धम होना चािहए, धम म यापार नह ’, इस ■स ांत से उ ह ने पूरा


जीवन िबताया। जीवन म कभी भी उ ह ने िकसीके पास से पैसा नह लया, ब क
अपनी कमाई से भ को या ा करवाते थे।

ि ई ी े ो ी ं ो ी े
उ ह ाि हुई, उसी कार केवल दो ही घंट म अ य मुमु ु जन को भी वे
आ म ान क ाि करवाते थे, उनके अ त ु ■स हुए ान योग से। उसे अ म माग
कहा। अ म, अथात् िबना म के, और म अथात् सीढ़ी दर सीढ़ी, मानुसार ऊपर
चढऩा। अ म अथात् ल ट माग, शॉट कट।

वे वयं येक को ‘दादा भगवान कौन?’ का रह य बताते हुए कहते थे िक ‘‘यह


जो आपको िदखते ह वे दादा भगवान नह है, वे तो ‘ए.एम.पटेल’ है। हम ानी पु ष ह
और भीतर कट हुए ह, वे ‘दादा भगवान’ ह। दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ ह।
वे आप म भी ह, सभी म ह। आपम अ य प म रहे हुए ह और ‘यहाँ’ हमारे भीतर
संपूण प से य हुए ह। दादा भगवान को म भी नम कार करता हूँ।’’
अ म िव ान

आ मसा ा कार
ा करने का सरल और सटीक िव ान

१. मनु य जीवन का येय या है?


यह तो, पूरी लाइफ े चर हो गई है। य जी रहे ह, उसका भी भान नह है। यह
िबना येय का जीवन, इसका कोई मतलब ही नह है। ल मी आती है और खा-पीकर
मज़े लूट और सारा िदन ￵चता-वरीज़ करते रहते ह, यह जीवन का येय कैसे
कहलाएगा? मनु यपन य ही यथ गँवाये इसका या मतलब है? तो िफर मनु यपन ा
होने के बाद खुद के येय तक पहुँचने के लए या करना चािहए? संसार के सुख चाहते
ह , तो भौ￸तक सुख, तो आपके पास जो कुछ भी है उसे लोग म बाँटो।

इस दिु नया का कानून एक ही वा य म समझ लो, इस जगत् के सभी धम का सार


यही है िक, ‘यिद मनु य, सुख चाहता है तो जीव को सुख दो और द:ु ख चाहो तो द:ु ख
दो।’ जो अनुकूल हो वह देना। अब कोई कहे िक हम लोग को सुख कैसे द, हमारे पास
पैसा नह है। तो ■सफ पैस से ही सुख िदया जा सकता है ऐसा कुछ नह है, उसके ￸त
ओ लाइ↓जग नेचर (उपकारी वभाव) रखा जा सकता है, उसक सहायता कर सकते ह
जैसे कुछ लाना हो तो उसे लाकर दो या सलाह दे सकते हो, बहुत सारे रा ते ह
ओ लाइज करने के लए।

दो कार के येय, सांसा रक और आ यं￸तक

ो े े ि े ि ि ं ऐ े ीँ
दो कार के येय िन त करने चािहए िक हम संसार म इस कार रह, ऐसे जीएँ
िक िकसी को क नह हो, िकसी के लए द:ु खदायी नह हो। इस तरह हम अ छे , ऊँचे
स संगी पु ष , स े पु ष के साथ रह और कुसंग म नह पड़ रह, ऐसा कुछ येय होना
चािहए। और दस ू रे येय म तो य ‘ ानीपु ष’ िमल जाएँ तो (उनसे आ म ान ा
करके) उनके स संग म ही रह, उससे तो आपका हरएक काम हो जाएगा, सभी पज़ल
सॉ व हो जाएँ गे (और मो ा होगा)।

अत: मनु य का अं￸तम येय या? मो म जाने का ही, यही येय होना चािहए।
आपको भी मो म ही जाना है न? कब तक भटकना है? अनंत ज म से भटक-
भटक... भटकने म कुछ भी बाक नह रखा न! य भटकना पड़ा? य िक ‘म कौन
हूँ’, वही नह जाना। खुद के व प को ही नह जाना। खुद के व प को जानना
चािहए। ‘खुद कौन है’ वह नह जानना चािहए? इतने भटके िफर भी नह जाना आपने?
■सफ पैसे कमाने के पीछे पड़े हो? मो का भी थोड़ा बहुत करना चािहए या नह करना
चािहए? मनु य वा तव म परमा मा बन सकते ह। अपना परमा मा पद ा करना वह
सब से अं￸तम येय है।

मो , दो टेज पर
कता : मो का अथ साधारण प से हम ऐसा समझते ह िक ज म-मरण म से
मुि ।

दादा ी : हाँ, वह सही है लेिकन वह अं￸तम मुि है, वह सेक डरी टेज है। लेिकन
पहले टेज म पहला मो अथात् संसारी द:ु ख का अभाव बतता है। संसार के द:ु ख म
भी द:ु ख पश नह करे, उपा￸ध म भी समा￸ध रहे, वह पहला मो । और िफर जब यह
देह छूटती है तब आ यं￸तक मो है लेिकन पहला मो यह पर होना चािहए। मेरा मो
हो ही चुका है न! संसार म रह िफर भी संसार पश न करे, ऐसा मो हो जाना चािहए।
वह इस अ म िव ान से ऐसा हो सकता है।

२. आ म ान से शा त सुख क ाि
जीवमा या ढू ँ ढता है? आनंद ढू ँ ढता है, लेिकन घड़ीभर भी आनंद नह िमल
पाता। िववाह समारोह म जाएँ या नाटक म जाएँ , लेिकन वािपस िफर द:ु ख आ जाता है।
■जस सुख के बाद द:ु ख आए, उसे सुख ही कैसे कहगे? वह तो मूछा का आनंद
कहलाता है। सुख तो परमाने ट होता है।

ो े े ी औ ै
यह तो टे परेरी सुख ह और ब क क पत ह, माना हुआ है। हर एक आ मा या
ढू ँ ढता है? हमेशा के लए सुख, शा त सुख ढू ँ ढता है। वह ‘इसम से िमलेगा, इसम से
िमलेगा। यह ले लूँ, ऐसा क ँ , बंगला बनाऊँ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख
िमलेगा’, ऐसे करता रहता है। लेिकन कुछ भी नह िमलता। ब क और अ￸धक जंजाल
म फँस जाता है। सुख खुद के अंदर ही है, आ मा म ही है। अत: जब आ मा ा करता
है, तब ही सनातन (सुख) ही ा होगा।

सुख और द:ु ख
जगत् म सभी सुख ही ढू ँ ढते ह लेिकन सुख क प रभाषा ही तय नह करते। ‘सुख
ऐसा होना चािहए िक ■जसके बाद कभी भी द:ु ख न आए।’ ऐसा एक भी सुख इस जगत्
म हो, तो ढू ँ ढ िनकालो, जाओ शा त सुख तो खुद के ‘ व’ म ही है। खुद अनंत सुख
धाम है और लोग नाशवंत चीज़ म सुख ढू ँ ढने िनकले ह।

सनातन सुख क खोज


■जसे सनातन सुख ा हो गया, उसे यिद संसार का सुख पश न करे तो उस
आ मा क मुि हो गई। सनातन सुख, वही मो है। अ य िकसी मो का हम या
करना है? हम सुख चािहए। आपको सुख अ छा लगता है या नह , वह बताओ मुझे।

कता : उसी के लए तो भटक रहे ह सभी।

दादा ी : हाँ, लेिकन सुख भी टे परेरी नह चािहए। टे परेरी अ छा नह लगता।


उस सुख के बाद म द:ु ख आता है, इस लए वह अ छा नह लगता। यिद सनातन सुख
हो तो द:ु ख आए ही नह , ऐसा सुख चािहए। यिद वैसा सुख िमले तो वही मो है। मो
का अथ या है? संसारी द:ु ख का अभाव, वही मो ! वना द:ु ख का अभाव तो िकसी
को नह रहता!

एक तो, बाहर के िव ान का अ यास तो इस दिु नया के साइ ट ट टडी करते ही


रहते ह न! और दस ू रा, ये आं तर िव ान कहलाता है, जो खुद को सनातन सुख क
तरफ ले जाता है। अत: खुद के सनातन सुख क ाि करवाए वह आ मिव ान
कहलाता है और ये टे परेरी एडज टमे टवाला सुख िदलवाए, वह सारा बा िव ान
कहलाता है। बा िव ान तो अंत म िवनाशी है और िवनाश करनेवाला है और यह
अ म िव ान तो सनातन है और सनातन करनेवाला है।
३. I and My are seperate

‘ ानी’ ही मौ लक प ीकरण द
‘I’ भगवान है और ‘My’ माया है। ‘My’ वह माया है। ‘My’ is relative to ‘I’.
‘I’ is real. आ मा के गुण का इस ‘I’ म आरोपण करो, तब भी आपक शि याँ बहुत
बढ़ जाएँ गी। मूल आ मा ानी के िबना नह िमल सकता। परंतु ये ‘I’ and ‘My’
िब कुल अलग ही है। ऐसा सभी को, फ़ॉरेन के लोग को भी यिद समझ म आ जाए तो
उनक परेशािनयाँ बहुत कम हो जाएँ गी। यह साइ स है। अ म िव ान क यह
आ या मक research का िब कुल नया ही तरीका है। ‘I’ वह वाय भाव है और
‘My’ वह मा लक भाव है।

सेपरेट, 'I' ए ड 'My'


आपसे कहा जाए िक, Separate ‘I’ and ‘My’ with SeparatorU, तो आप
‘I’ और ‘My’ को सेपरेट कर सकगे या? ‘I’ ए ड ‘My’ को सेपरेट करना चािहए या
नह ? जगत् म कभी न कभी जानना तो पड़ेगा न! सेपरेट ‘I’ ए ड ‘My’। जैसे दधू के
लए सेपरेटर होता है न, उसम से मलाई सेपरेट (अलग) करते ह न? ऐसे ही यह अलग
करना है।

आपके पास ‘My’ जैसी कोई चीज़ है? ‘I’ अकेला है या ‘My’ साथ म है?

कता : ‘My’ साथ म होगा न!

दादा ी : या या ‘My’ है आपके पास?

कता : मेरा घर और घर क सभी चीज।

दादा ी : सभी आपक कहलाए? और वाइफ िकसक कहलाए ?

कता : वह भी मेरी।

दादा ी : और ब े िकसके?

कता : वे भी मेर।े

ी औ ीि
दादा ी : और यह घड़ी िकसक ?

कता : वह भी मेरी।

दादा ी : और ये हाथ िकसके?

कता : हाथ भी मेरे ह।

दादा ी : िफर ‘मेरा ■सर, मेरा शरीर, मेरे पैर, मेरे कान, मेरी आँ ख’ ऐसा कहगे।
इस शरीर क सभी व तुओं को ‘मेरा’ कहते ह, तब ‘मेरा’ कहनेवाले ‘आप’ कौन ह?
यह नह सोचा? ‘My’ नेम इज़ चंदभ ू ाई’ ऐसा बोल और िफर कह ‘म चंदभ ू ाई हूँ’, इसम
कोई िवरोधाभास नह लगता?

कता : लगता है।

दादा ी : आप चंदभ
ू ाई ह, लेिकन इसम ‘I’ ए ड ‘My’ दो ह। यह ‘I’ ए ड ‘My’
क दो रे वेलाइन अलग ही होती ह। पैरल
े ल ही रहती ह, कभी एकाकार होती ही नह ह।
िफर भी आप एकाकार मानते ह, इसे समझकर इसम से ‘My’ को सेपरेट कर दी■जए।
आपम जो ‘My’ है, उसे एक ओर र खये। ‘My’ हाट, तो उसे एक ओर रख। इस शरीर
म से और या- या सेपरेट करना होगा?

कता : पैर, इ याँ।

दादा ी : हाँ, सभी। पाँच इ याँ, पाँच कम याँ मन-बु￸ -￸च -अहंकार सभी।
और ‘माइ इगोइज़म’ बोलते ह या‘आइ एम इगोइज़म’ बोलते ह?’

कता : ‘माइ इगोइज़म’।

दादा ी : ‘माइ इगोइज़म’ कहगे तो उसे अलग कर सकगे। लेिकन उसके आगे जो
है, उसम आपका िह सा या है, यह आप नह जानते। इस लए िफर पूण प से
सेपरेशन नह हो पाता। आप, अपना कुछ हद तक ही जान पाएँ गे। आप थूल व तु ही
जानते ह, सू म क पहचान ही नह ह। सू म को अलग करना, िफर सू मतर को अलग
करना, िफर सू मतम को अलग करना तो ानीपु ष का ही काम है।

लेिकन एक-एक करके सारे पेयरपाटस अलग करते जाएँ तो ‘I’ और माइ, दोन
अलग हो सकते ह न? ‘I’ और ‘My’ दोन अलग करते-करते आ खर या बचेगा?
‘My’ को एक ओर रख तो आ खर या बचा?

कता : ‘I’।

दादा ी : वह ‘I’ ही आप ह! बस, उसी ‘I’ को रीयलाइज़ करना है।

वहाँ हमारी ज़ रत पड़ेगी। म आपम वह सभी अलग कर दँगू ा। िफर आपको ‘म


शु ा मा हूँ’ ऐसा अनुभव रहेगा। अनुभव होना चािहए और साथ-साथ िद यच ु भी देता
हूँ तािक आ मवत् सवभूतेषु िदखे (सभी म आ मा)।

४. ‘म’ क पहचान कैसे?

जप-तप, त और िनयम
कता : त, तप, िनयम ज़ री ह या नह ?

दादा ी : ऐसा है, िक केिम ट के यहाँ ■जतनी दवाइयाँ ह वे सभी ज़ री ह, लेिकन


वह लोग के लए ज़ री ह, आपको तो जो दवाइयाँ ज़ री ह उतनी ही बोतल आपको
ले जानी ह। वैसे ही त, तप, िनयम, इन सभी क ज़ रत है। इस जगत् म कुछ भी
गलत नह है। जप, तप कुछ भी गलत नह है। परंतु हर एक क ि से, हर एक क
अपे ा से स य है।

कता : तप और ि या से मुि िमलती है या?


ी औ ि े ि े ि ि ी ी ोँ ो े
दादा ी : तप और ि या से फल िमलते ह, मुि नह िमलती। नीम बोएँ तो कड़वे
फल िमलते ह और आम बोएँ तो मीठे फल िमलते ह। तुझे जैसे फल चािहए तू वैसे बीज
बोना। मो ाि का तप तो अलग ही होता है, आं तरतप होता है। और लोग बाहरी तप
को तप समझ बैठे ह। जो तप बाहर िदखते ह, वे तप तो मो म काम ही नह आएँ गे। उन
सबका फल तो पु य िमलेगा। मो म जाने के लए तो अंतर तप चािहए, अदीठ तप।

कता : मं जाप से मो िमलता है या ानमाग से मो िमलता है?

दादा ी : मं जाप आपको संसार म शां￸त देता है। मन को शांत करे, वह मं ,


उससे भौ￸तक सुख िमलते ह। और मो तो ानमाग के िबना नह हो सकता। अ ान से
बंधन है और ान से मुि है। इस जगत् म जो ान चल रहा है, वह इ य ान है। वह
ां￸त है और अ￸त य ान ही दरअसल ान है।

■जसे खुद के व प क पहचान करके मो म जाना हो उसे ि याओं क ज़ रत


नह है। ■जसे भौ￸तक सुख क आव यकता हो उसे ि याओं क ज़ रत है। ■जसे मो
म जाना हो उसे तो ान और ानी क आ ा ■सफ दो ही चीज़ क ज़ रत है।

ानी ही पहचान कराएँ ‘म’ क !


कता : आपने कहा िक आप अपने आप को पहचानो तो अपने आपको पहचानने
के लए या कर?

दादा ी : वह तो मेरे पास आओ। आप कह दो िक हम अपने आपको पहचानना है,


तब म आपक पहचान करवा दँ।ू

कता : ‘म कौन हूँ’ यह जानने क जो बात है, वह इस संसार म रहकर कैसे


संभव हो सकती है?

दादा ी : तब कहाँ रहकर जान सकते ह उसे? संसार के अलावा और कोई जगह
है िक जहाँ रह सक? इस जगत् म सभी संसारी ही ह और सभी संसार म ही रहते ह।
यहाँ ‘म कौन हूँ’ यह जानने को िमले, ऐसा है। ‘आप कौन ह’ यह समझने का िव ान ही
है यहाँ पर। यहाँ आना, हम आपको पहचान करवा दगे।

मो का सरल उपाय

ो ो े ँ ि ि े ी ि ी■
जो मु हो चुके ह वहाँ पर जाकर यिद हम कह िक ‘साहब, मेरी मुि कर दी■जए!
वही अं￸तम उपाय है, सबसे अ छा उपाय। ‘खुद कौन है’ वह ान न हो जाए तो उसे
मो ग￸त िमलेगी। और आ म ानी नह िमल तो (तब तक) आ म ानी क पु तक
पढऩी चािहए।

आ मा साइ टिफक व तु है। वे पु तक से ा ह ऐसी व तु नह है। वह अपने


गुणधम सिहत है, चेतन है और वही परमा मा है। उसक पहचान हो गई यानी हो चुका।
क याण हो गया और ‘वह आप’ खुद ही हो!

मो माग म तप- याग कुछ भी नह करना होता। ानीपु ष िमल जाएँ तो ानी
क आ ा ही धम और आ ा ही तप और यही ान, दशन, चा र और तप है, ■जसका
य फल मो है।

‘ ानीपु ष’ िमल तभी मो का माग आसान और सरल हो जाता है। खचड़ी


बनाने से भी आसान हो जाता है।

५. ‘म’ क पहचान - ानीपु ष से?

१. आव यकता गु क या ानी क ?
कता : दादाजी के िमलने से पहले िकसी को गु माना हो तो ? तो वे या
कर?

दादा ी : उनके वहाँ जाना, और नह जाना हो तो, जाना आव यक भी नह है।


आप जाना चाह तो जाना और मत जाना हो तो नह जाना। उ ह द ु : ख न हो, इस लए
भी जाना चािहए। आपको िवनय रखना चािहए। यहाँ पर ‘आ म ान’ लेते समय मुझसे
कोई पूछे िक, ‘अब म गु को छोड़ दँ?
ू ’ तब म कहूँगा िक, ‘मत छोड़ना। अरे, उ ह गु
के ताप से तो यहाँ तक पहुँच पाए हो।’ संसार का ान भी गु िबना नह होता और
मो का ान भी गु िबना नह होता। यवहार के गु ‘ यवहार’ के लए ह और
ानीपु ष ‘िन य’ के लए ह। यवहार रलेिटव है और िन य रयल है। रलेिटव के
लए गु चािहए और रीयल के लए ानीपु ष चािहए।

कता : ऐसा भी कहते ह न िक गु के िबना ान िकस तरह िमलेगा?

ी ो ि े ि े औ ी े े
दादा ी : गु तो रा ता िदखाते ह, माग िदखाते ह और ‘ ानीपु ष’ ान देते ह।
‘ ानीपु ष’ अथात् ■ज ह जानने को कुछ भी बाक नह रहा, खुद त व प म बैठे ह।
अथात् ‘ ानीपु ष’ आपको सबकुछ दे देते ह और गु तो संसार म आपको रा ता
िदखाते ह, उनके कहे अनुसार कर तो संसार म सुखी हो जाते ह। आ￸ध, या￸ध और
उपा￸ध म समा￸ध िदलवाएँ वे ‘ ानीपु ष’।

कता : ान गु से िमलता है, लेिकन ■जस गु ने खुद आ मसा ा कार कर


लया हो, उनके ही हाथ ान िमल सकता है न?

दादा ी : वे ‘ ानीपु ष’ होने चािहए और िफर ■सफ आ मसा ा कार करवाने से


कुछ नह होगा। जब ‘ ानीपु ष’, ‘यह जगत् िकस तरह से चल रहा है, खुद कौन है,
यह कौन है,’ ऐसे सभी प कर द, तब काम पूरा होता है, ऐसा है। वना, पु तक के
पीछे पड़ते रहते ह, लेिकन पु तक तो ‘हे पर’ ह। वह मु य चीज़ नह है। वह साधारण
कारण है, वह असाधारण कारण नह है। असाधारण कारण कौन-सा है? ‘ ानीपु ष’!

अपण िव￸ध कौन करवा सकते ह?


कता : ान लेने से पहले जो अपण िव￸ध करवाते ह न, उसम यिद पहले िकसी
गु के सम अपण िव￸ध कर ली हो, और िफर यहाँ वापस अपण िव￸ध कर तो िफर वह
ठीक नह कहलाएगा न?

दादा ी : अपणिव￸ध तो गु करवाते ही नह ह। यहाँ तो या- या अपण करना


है? आ मा के अलावा सभीकुछ। यानी सबकुछ अपण तो कोई करता ही नह है न!
अपण होता भी नह है और कोई गु ऐसा कहते भी नह ह। वे तो आपको माग िदखाते
ह, वे गाईड के प म काम करते ह। हम गु नह है, हम तो ानीपु ष ह और ये तो
भगवान के दशन करने ह। मुझे अपण नह करना है, भगवान को अपण करना है।

आ मानुभूती िकस तरह से होती है?


कता : ‘म आ मा हूँ’ उसका ान िकस तरह से होता है? खुद अनुभू￸त िकस
तरह से कर सकता है?

दादा ी : यही अनुभू￸त करवाने के लए तो ‘हम’ बैठे ह। यहाँ पर जब हम ‘ ान’


देते ह, तब ‘आ मा’ और ‘अना मा’ दोन को जुदा कर देते ह और िफर आपको घर
भेज देते ह।
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ान क ाि अपने आप नह हो सकती। यिद खुद से हो पाता तो ये साधु
स यासी सभी करके बैठ चुके होते। लेिकन वहाँ तो ानीपु ष का ही काम ह। ानीपु ष
उसके िनिम ह।

जैसे इन दवाओं के लए इन डॉ टर क ज़ रत पड़ती है या नह पड़ती या िफर


आप खुद घर पर दवाई बना लेते हो? वहाँ कैसे जागृत रहते हो िक कोई भूल हो जाएगी
तो हम मर जाएँ गे! और आ मा के संबध
ं म तो खुद ही िम चर बना लेता है! शा खुद
क अ से गु ारा दी गई समझ के िबना पढ़े और िम चर बनाकर पी गए। इसे
भगवान ने वछं द कहा है। इस वछं द से तो अनंत ज म का मरण हो गया! वह तो एक
ही ज म का मरण था!!!
अ म ान से नकद मो
‘ ानीपु ष’ अभी आपके सम य ह तो माग भी िमलेगा; वना ये लोग भी
बहुत सोचते ह, परंतु माग नह िमलता और उ टे रा ते चले जाते ह। ‘ ानीपु ष’ तो
शायद ही कभी, एकाध कट होते ह और उनके पास से ान िमलने से आ मानुभव
होता है। मो तो यहाँ नकद होना चािहए। यह पर देह सिहत मो बरतना चािहए। इस
अ म ान से नकद मो िमल जाता है और अनुभव भी होता है, ऐसा है!

ानी ही कराए आ मा-अना मा का भेद


जैसे इस अँगूठी म सोना और ताँबा दोन िमले हुए ह, इसे हम गाँव म ले जाकर
िकसी से कह िक, ‘भैया, अलग-अलग कर दी■जए न!’ तो या कोई भी कर देगा?
कौन कर पाएगा?

कता : सोनी ही कर पाएगा।

दादा ी : ■जसका यह काम है, जो इसम ए सपट है, वह सोना और ताँबा दोन
अलग कर देगा। सौ टच सोना अलग कर देगा, य िक वह दोन के गुणधम जानता है िक
सोने के गुणधम ये ह और ताँबे के गुणधम ऐसे ह। उसी कार ानीपु ष आ मा के
गुणधम को जानते ह और अना मा के गुणधम को भी जानते ह।

जैसे अँगूठी म सोने और ताँबे का ‘िम चर’ हो तो उसे अलग िकया जा सकता है।
सोना और ताँबा दोन क पाउ ड व प ( प) हो जाते तो उ ह अलग नह िकया जा
सकता। य िक इससे गुणधम अलग ही कार के हो जाते। इसी कार जीव के अंदर
चेतन और अचेतन का िम चर है, वे क पाउ ड के प म नह ह। इस लए िफर से
अपने वभाव को ा कर सकते ह। क पाउ ड बन गया होता तो पता ही नह चलता।
चेतन के गुणधम का भी पता नह चलता और अचेतन के गुणधम का भी पता नह
चलता और तीसरा ही गुणधम उ प हो जाता। लेिकन ऐसा नह है। उनका तो केवल
िम चर बना है।

ानीपु ष, व ड के ेटे ट साइ ट ट


वह तो ‘ ानीपु ष’ ही ह जो व ड के ेटे ट साइ ट ट ह, वे ही जान सकते ह,
और वे ही दोन को अलग कर सकते ह। वे आ मा-अना मा का िवभाजन कर देते ह
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इतना ही नह , लेिकन आपके पाप को जलाकर भ मीभूत कर देते ह, िद यच ु देते ह
और ‘यह जगत् या है, िकस तरह से चल रहा है, कौन चला रहा है’, वगैरह सभी प
कर देते ह, तब जाकर अपना काम पूण होता है।

करोड़ ज म के पु य जाग तब ‘ ानी’ के दशन होते ह, नह तो दशन ही कहाँ से


हो पाएँ गे? ान क ाि करने के लए ‘ ानी’ को पहचान! और कोई रा ता नह है।
ढू ँ ढनेवाले को िमल ही जाते ह!

६. ‘ ानीपु ष कौन?’

संत और ानी क या या
कता : ये जो सभी संत हो चुके ह, उनम और ानी म िकतना अंतर है?

दादा ी : संत कमज़ोरी छुड़वाते ह और अ छी चीज़ ■सखाते ह (अ छाइयाँ


■सखाते); जो गलत काम छुड़वाएँ और अ छा पकड़वाएँ वे संत कहलाते ह। जो पाप कम
से बचाएँ वे संत ह लेिकन जो पाप और पु य दोन से बचाएँ वे ानीपु ष कहलाते ह।
संतपु ष सही रा ते पर ले जाते ह और ानीपु ष मुि िदलवाते ह। ानीपु ष तो
अं￸तम िवशेषण कहलाते ह, वह अपना काम ही िनकाल ले। स े ानी कौन? िक ■जनम
अहंकार और ममता दोन न ह ।

■जसे आ मा का संपूण अनुभव हो चुका है, वे ‘ ानीपु ष’ कहलाते ह। वे पूरे


ांड का वणन कर सकते ह। सभी सवाल का जवाब दे सकते ह। ानीपु ष अथात्
व ड का आ य। ानीपु ष अथात् कट दीया।

ानीपु ष क पहचान
कता : ानीपु ष को कैसे पहचान?

दादा ी : ानीपु ष तो िबना कुछ िकए ही पहचाने जाएँ ऐसे होते ह। उनक सुगध

ही, पहचानी जाए ऐसी होती है। उनका वातावरण कुछ और ही होता है! उनक वाणी ही
अलग होती है! उनके श द से ही पता चल जाता है। अरे, उनक आँ ख देखते ही मालूम
हो जाता है। ानी के पास बहुत अ￸धक िव सनीयता होती है, जबरद त िव सनीयता!

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और उनका हर श द शा प होता है, यिद समझ म आए तो। उनके वाणी-वतन और
िवनय मनोहर होते ह, मन का हरण करनेवाले होते ह। ऐसे बहुत सारे ल ण होते ह।

ानीपु ष अबुध होते ह। जो आ मा के ानी होते ह न, वे तो परम सुखी होते ह


और उ ह क￸च मा दख ु नह होता। इस लए वहाँ पर अपना क याण होता है। जो खुद
का क याण करके बैठे ह , वे ही और का क याण कर सकते ह। जो खुद तैर सके वेही
हम िकनारे पहुँचाएँ गे। जो खुद तैर सके वे ही हम िकनारे पहुँचाएँ गे। वहाँ पर लाख लोग
तैरकर पार िनकल जाते ह।

ीम राजचं जी ने या कहा है िक, ‘ ानीपु ष कौन िक ■ज ह क￸चत् मा भी


िकसी भी कार क पृहा नह है, दिु नया म िकसी कार क ■ज ह भीख नह है,
उपदेश देने क भी ■ज ह भीख नह है, ￱श य क भी भीख नह है, िकसी को सुधारने
क भी भीख नह है, िकसी कार का गवü नह है, गारवता नह है, मा लक भाव नह
है।

७. ानीपु ष - ए. एम. पटेल (दादा ी)


‘दादा भगवान’, जो चौदह लोक के नाथ ह। वे आपम भी ह, लेिकन आपम कट
नह हुए ह। आपम अ य प से ह और यहाँ य हुए ह। जो य हुए ह, वे फल देते
ह। एक बार भी उनका नाम ल तो भी काम िनकल जाए, ऐसा है। लेिकन पहचान कर
बोलने से तो क याण हो जाएगा और सांसा रक चीज़ क यिद अड़चन हो तो वह भी दरू
हो जाएगी।

ये जो िदखाई देते ह, वे ‘दादा भगवान’ नह ह। आपको, जो िदखाई देते ह, उ ह


ही ‘दादा भगवान’ समझते होगे, है न? लेिकन यह िदखाई देनेवाले तो भादरण के पटेल
ह। म ‘ ानीपु ष’ हूँ और जो भीतर कट हुए ह, वे दादा भगवान ह। म खुद भगवान
नह हूँ। मेरे भीतर कट हुए दादा भगवान को म भी नम कार करता हूँ। हमारा दादा
भगवान के साथ जुदापन (￱भ ता) का ही यवहार है। लेिकन लोग ऐसा समझते ह िक ये
खुद ही दादा भगवान ह। नह , खुद दादा भगवान कैसे हो सकते ह? ये तो पटेल ह,
भादरण के।

(यह ान लेने के बाद) दादाजी क आ ा का पालन करना यानी वह


‘ए.एम.पटेल’ क आ ा नह है। खुद ‘दादा भगवान’ क , जो चौदह लोक के नाथ ह,
उनक आ ा है। उसक गार टी देता हूँ। यह तो मेरे मा यम से यह सब बात िनकली ह।
इस लए आपको उस आ ा का पालन करना है। ‘मेरी आ ा’ नह है, यह दादा भगवान
क आ ा है। म भी उन भगवान क आ ा म रहता हूँ न!
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८. िमक माग- अ म माग
मो म जाने के दो माग ह : एक ‘ िमक माग’ और दस ू रा ‘अ म’ माग। िमक
अथात् सीढ़ी दर सीढ़ी चढऩा। जैसे िमक म प र ह कम करते जाओगे, वैसे-वैसे वह
आपको मो म पहुँचाएँ गे, वह भी बहुत काल के बाद और यह अ म िव ान यानी या?
सीढ़ीयाँ नह चढऩी है, ल ट म बैठ जाना है और बारहव मंिज़ल पर पहुँच जाना है,
ऐसा यह ल ट माग िनकला है। सीधे ही ल ट म बैठकर, बीवी-ब के साथ बेटे-
बेिटय क शादी करवाकर, सभीकुछ करके मो म जाना। ये सभी करते हुए भी आपका
मो नह जाएगा। ऐसा अ म माग, अपवाद माग भी कहलाता है। वह हर दस लाख वष
म कट होता है। तो जो इस ल ट माग म बैठ जाएगा। उसका क याण हो जाएगा। म
तो िनिम हूँ। जो इस ल ट म जो बैठ गए, उनका हल िनकल आया न! हल तो
िनकालना ही होगा न? हम मो म जानेवाले ही ह, उस ल ट म बैठे होने का माण तो
होना चािहए या नह होना चािहए? उसका माण यानी ोध-मान-माया-लोभ नह ह ,
आत यान-रौ यान नह ह । तब िफर पूरा काम हो गया न?

अ म सरलता से कराए आ मानुभू￸त


िमक माग म तो िकतना अ￸धक य न करने पर आ मा है ऐसा यान आता है,
वह भी बहुत अ प और ल य तो बैठता ही नह । उसे ल य म रखना पड़ता है िक
आ मा ऐसा है। और आपको तो अ म माग म सीधा आ मानुभव ही हो जाता है। ■सर
द:ु खे, भूख लगे, बाहर भले ही िकतनी भी मु कल आएँ , लेिकन अंदर क शाता (सुख
प रणाम) नह जाती, उसे आ मानुभव कहा है। आ मानुभव तो द:ु ख को भी सुख म
बदल देता है और िम या वी को तो सुख म भी द:ु ख महसूस होता है।

यह अ म िव ान है इस लए इतनी ज दी समिकत हो जाता है, यह तो बहुत ही


उ कार का िव ान है। आ मा और अना मा के बीच यानी आपक और पराई चीज़
दोन का िवभाजन कर देते ह, िक यह आपका है और यह आपका नह है, दोन के बीच
म िविदन वन अवर (मा एक ही घंटे म) लाइन ऑफ ￸डमाकेशन (भेदरेखा) डाल देता
हूँ। आप खुद मेहनत करके करने जाओगे तो लाख ज म म भी िठकाना नह पड़ेगा।

‘मुझे’ िमला वही अ￸धकारी


कता : यह माग इतना आसान है, तो िफर कोई अ￸धकार (पा ता) जैसा
देखना ही नह ? हर िकसी के लए यह संभव है?
ी ो े े ैि ￸ ी ँ े े
दादा ी : लोग मुझे पूछते है िक, म अ￸धकारी (पा ) हूँ या? तब मने कहा, ‘मुझे
िमला, इस लए तू अ￸धकारी।’ यह िमलना, तो साय टिफक सरकम टे शयल एिवड स
है इसके पीछे । इस लए हम जो कोई िमला, उसे अ￸धकारी समझा जाता है। वह िकस
आधार पर िमलता है? वह अ￸धकारी है, इसी वजह से तो मुझसे िमलता है। मुझसे
िमलने पर भी यिद उसे ाि नह होती, तो िफर उसका अंतराय कम बाधक है।
म म ‘करना है’ और अ म म...
एक भाई ने एक बार िकया िक म और अ म म फक या है? तब मने बताया
िक, म यानी जैसा िक सभी कहते ह िक यह उ टा (गलत) छोड़ो और सीधा (सही)
करो। बार-बार यही कहना, उसका नाम िमक माग। म यानी सब छोड़ने को कह,
यह कपट-लोभ छोड़ो और अ छा करो। यही आपने देखा न आज तक? और यह
अ म यानी, करना नह , करोिम-करो■स-करो￸त नह !

अ म िव ान तो बहुत बड़ा आ य है। यहाँ ‘आ म ान’ लेने के बाद दस


ू रे िदन से
यि म प रवतन हो जाता है। यह सुनते ही लोग को यह िव ान वीकार हो जाता है
और यहाँ ￴खचे चले आते ह।

अ म म मूल प से अंदर से ही शु आत होती है। िमक माग म शु ता भी अंदर


से नह हो सकती, उसका कारण यह है िक केपे■सटी नह है, ऐसी मशीनरी नह है
इस लए बाहर का तरीका अपनाया है लेिकन वह बाहर का तरीका अंदर कब पहुँचेगा?
मन-वचन-काया क एकता होगी, तब अंदर पहुँचेगा और िफर अंदर शु आत होगी।
मूलत: (आजकल) तो मन-वचन-काया क एकता ही नह रही।

एका मयोग टू टने से अपवाद प से कट हुआ अ म


जगत् ने टेप बाय टेप, मश: आगे बढऩे का मो माग ढू ँ ढ िनकाला है लेिकन
वह तभी तक सही था जब तक िक जो मन म हो, वैसा ही वाणी म बोल और वैसा ही
वतन म हो, तभी तक वैसा मो माग चल सकता है, वना यह माग बंद हो जाता है। तो
इस काल म मन-वचन-काया क एकता टू ट गई है इस लए िमक माग े चर हो गया
है। इस लए कहता हूँ न िक इस िमक माग का बेज़मे ट सड़ चुका है, इस लए यह
अ म िनकला है। यहाँ पर सबकुछ अलाउ हो जाता है, तू जैसा होगा वैसा, तू मुझे यहाँ
पर िमला न तो बस! यानी हम और दस
ू री कोई झंझट ही नह करनी।

‘ ानी’ कृपा से ही ‘ ाि ’
कता : आपने जो अ म माग कहा, वह आपके जैसे ‘ ानी’ के लए ठीक है,
सरल है। लेिकन हमारे जैसे सामा य, संसार म रहनेवाले, काम करनेवाले लोग के लए
वह मु कल है। तो उसके लए या उपाय है?

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दादा ी : ‘ ानीपु ष’ के यहाँ भगवान कट हो चुके होते ह, चौदह लोक के नाथ
कट हो चुके होते ह, वैसे ‘ ानीपु ष’ िमल जाएँ तो या बाक रहेगा? आपक शि
से नह करना है। उनक कृपा से होता है। कृपा से सबकुछ ही बदल जाता है। इस लए
यहाँ तो जो आप माँगो वह सारा ही िहसाब पूरा होता है। आपको कुछ भी नह करना है।
आपको तो ‘ ानीपु ष’ क आ ा म ही रहना है। यह तो ‘अ म िव ान’ है। यानी
य भगवान के पास से काम िनकाल लेना है और वह आपको ￸त ण रहता है,
घंटे-दो घंटे ही नह ।

कता : यानी उ ह सब स प िदया हो, तो वे ही सब करते ह?

दादा ी : वे ही सब करगे, आपको कुछ भी नह करना है। करने से तो कम बँधेगे।


आपको तो ■सफ ल ट म बैठना है। ल ट म पाँच आ ाएँ पालनी ह। ल ट म बैठने के
बाद भीतर उछलकूद मत करना, हाथ बाहर मत िनकालना, इतना ही आपको करना है।
कभी ही ऐसा माग िनकलता है, वह पु यशा लय के लए ही है। व ड का यह यारहवाँ
आ य कहलाता है! अपवाद म ■जसे िटिकट िमल गई, उसका काम हो गया।

अ म माग जारी है
इसम मेरा हेतु तो इतना ही है िक ‘मने जो सुख ा िकया, वह सुख आप भी ा
करो।’ अथात् ऐसा जो यह िव ान कट हुआ है, वह य ही दब जानेवाला नह है। हम
हमारे पीछे ािनय क वंशावली छोड़ जाएँ गे। हमारे उ रा￸धकारी छोड़ जाएँं गे और
उसके बाद ािनय क ￴लक चालू रहेगी। इस लए सजीवन मू￷त खोजना। उसके बगैर
हल िनकलनेवाला नह है।

म तो कुछ लोग को अपने हाथ ■स￸ दान करने वाला हूँ। पीछे कोई चािहए िक
नह चािहए? पीछे वाल लोग को माग तो चािहए न?

९. ानिव￸ध या है?
कता : आपक ानिव￸ध या है?

दादा ी : ानिव￸ध तो सेपरेशन (अलग) करना है, पु ल (अना मा) और आ मा


का! शु चेतन और पु ल दोन का सेपरेशन।

कता : यह ■स ांत तो ठीक ही है लेिकन उसक प ￸त या है, वह जानना है।

ी े े े े ै ो ै े ँ ै ै ै
दादा ी : इसम लेने-देने जैसा कुछ होता नह है, केवल यहाँ बैठकर यह जैसा है
वैसा बोलने क ज रत है (‘म कौन हूँ’ उसक पहचान, ान कराना, दो घंटे का
ान योग होता है। उसम अड़तालीस िमिनट आ मा-अना मा का भेद करनेवाले
भेदिव ान के वा य बुलवाए जाते ह। जो सभी को समूह म बोलने होते ह। उसके बाद
एक घंटे म पाँच आ ाएँ उदाहरण देकर िव तारपूवक समझाई जाती ह, िक अब बाक
का जीवन कैसे यतीत करना िक ■जससे नए कम नह बँध और पुराने कम पूणतया ख म
हो जाएँ , साथ ही ‘म शु ा मा हूँ’ का ल य हमेशा रहा करे!)

१०. ानिव￸ध म या होता है?


हम ान देते ह, उससे कम भ मीभूत हो जाते ह और उस समय कई आवरण टू ट
जाते ह। तब भगवान क कृपा होती है और साथ वह खुद जागृत हो जाता है। जागने के
प ात वह जागृ￸त जाती नह है। िफर िनरंतर जागृत रह सकते ह। यानी िनरंतर ती￸त
रहेगी ही।आ मा का अनुभव हुआ यानी देहा यास छूट गया। देहा यास छूट गया यानी
कमबँध ने भी बंद हो गए। पहली मुि अ ान से होती है। िफर एक दो ज म म अं￸तम
मुि िमल जाती है।

कम भ मीभूत होते ह ानाि से


■जस िदन यह ‘ ान’ देते ह उस िदन या होता है? ानाि से उसके जो कम ह,
वे भ मीभूत हो जाते ह। दो कार के कम भ मीभूत हो जाते ह और एक कार के कम
बाक रहते ह। जो कम भाप जैसे ह, उनका नाश हो जाता है। और जो कम पानी जैसे ह,
उनका भी नाश हो जाता है लेिकन जो कम बफ जैसे ह, उनका नाश नह होता। य िक
वे जमे हुए ह। जो कम फल देने के लए तैयार हो गया है, वह िफर छोड़ता नह है।
लेिकन पानी और भाप व प जो कम ह, उ ह ानाि ख म कर देती है। इस लए ान
पाते ही लोग एकदम ह के हो जाते ह, उनक जागृ￸त एकदम बढ़ जाती है। य िक जब
तक कम भ मीभूत नह होते, तब तक मनु य क जागृ￸त बढ़ती ही नह । जो बफ व प
कम ह वे तो हम भोगने ही पड़गे। और वे भी सरलता से कैसे भोग, उसके सब रा ते
हमने बताए ह िक, ‘‘भाई, यह ‘दादा भगवान के असीम जय जयकार हो बोलना’, ि मं
बोलना, नव कलम बोलना।’’

संसारी द:ु ख का अभाव, वह मुि का थम अनुभव कहलाता है। जब हम आपको


‘ ान’ देते ह, तब वह आपको दस ू रे ही िदन से हो जाता है। िफर यह शरीर का बोझ,

ो े े ि ं ी ￸ ो
कम का बोझ वे सब टू ट जाते ह, वह दस
ू रा अनुभव। िफर आनंद ही इतना अ￸धक होता
है िक ■जसका वणन ही नह हो सकता!!

कता : आपके पास से ान िमला, वही आ म ान है न?

दादा ी : जो िमलता है, वह आ म ान नह है। भीतर कट हुआ वह आ म ान


है। हम बुलवाते ह और आप बोलो तो उसके साथ ही पाप भ मीभूत होते ह और भीतर
ान कट हो जाता है। वह आपके भीतर कट हो गया है न?

महा मा : हाँ, हो गया है।

दादा ी : आ मा ा करना या कुछ आसान है? उसके पीछे ( ानिव￸ध के


समय) ानाि से पाप भ मीभूत हो जाते ह। और या होता है? आ मा और देह जुदा
हो जाते ह। तीसरा या होता है िक भगवान क कृपा उतरती है, ■जससे िनरंतर जागृ￸त
उ प हो जाती है, उससे ा क शु आत हो जाती है।

दज
ू म से पूनम
हम जब ान देते ह तब अनािद काल से, अथात् लाख ज म क जो अमाव या
थी, अमाव या समझे आप? ‘नो मून’ अनािद काल से ‘डाकनेस म’ ही जी रहे ह सभी।
उजाला देखा ही नह । मून देखा ही नही था! तो हम जब यह ान देते ह तब मून कट
हो जाता है। पहले वह दजू चाँद के ■जतना उजाला देता है। पूरा ही ान दे देते ह िफर
भी अंदर िकतना कट होता है? दज ू के चँ मा ■जतना ही। िफर इस ज म म पूनम हो
जाए, तब तक का आपको करना है। िफर दज ू से तीज होगी, चोथ होगी, चोथ से पंचमी
होगी....और पूनम हो जाएगी तो िफर क पलीट हो गया! अथात् केवल ान हो गया। कम
नह बँधगे, कम बँधने क जाएँ गे। ोध-मान-माया-लोभ बंद हो जाएँ गे। पहले वा तव
म अपने आपको जो चंदभ ू ाई मानता था, वही ां￸त थी। वा तव म ‘म चंदभ ू ाई हूँ’ वह
गया। वह ां￸त गई। अब तुझे जो आ ाएँ दी ह, उन आ ाओं म रहना।

यहाँ ानिव￸ध म आओगे तो म सभी पाप धो दँगू ा, िफर आपको खुद को दोष
िदखेगा और खुद के दोष िदखे तभी से समझना िक मो म जाने क तैयारी हुई।

११. आ म ान ाि के बाद आ ापालन का मह व

आ ा, ान के ोटे शन के लए (हेतु)
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हमारे ान देने के प ात आपको आ म अनुभव हो जाने पर या काम बाक रहता
है? ानीपु ष क ‘आ ा’ का पालन। ‘आ ा’ ही धम और ‘आ ा’ ही तप। और
हमारी आ ा संसार ( यवहार) म ज़रा सी भी बाधक नह है। संसार म रहते हुए भी
संसार का असर नह हो, ऐसा यह अ म िव ान है।

यह काल कैसा है िक सव कुसंग है। रसोईघर से लेकर ऑिफस


म, घर म, रा ते म, बाहर, गाड़ी म, टेन म, इस तरह सब जगह कुसंग ही है।
कुसंग है, इस लए यह जो ान मने आपको दो घंट म िदया है, उसे यह कुसंग ही खा
जाएगा। कुसंग नह खा जाएगा? उसके लए पाँच आ ाओं क ोटे शन बाड़ दी िक यह
ोटे शन करते रहगे तो अंदर दशा म ज़रा भी फक नह पड़ेगा। वह ान उसे दी गई
थ￸त म ही रहेगा। यिद बाड़ टू ट जाए तो ान को ख म कर देगा, धूल म िमला देगा।

यह ान जो मने िदया है वह भेद ान है और जुदा भी कर िदया है लेिकन अब वह


जुदा ही रहे, उसके लए ये पाँच वा य (आ ा) म आपको ोटे शन के लए देता हूँ
तािक यह जो क लयगु है न, उस कलयगु म लूट न ल सभी। बोधबीज उगे तो पानी
वगैरह ￱छड़कना पड़ेगा न? बाड़ बनानी पड़ेगी या नह बनानी पड़ेगी?

‘ ान’ के बाद कौन सी साधना?


कता : इस ान के बाद म अब िकस कार क साधना करनी चािहए?

दादा ी : साधना तो, इन पाँच आ ाओं का पालन करते हो न, वही! अब और


कोई साधना नह है। बाक सभी साधना बँधनकारक है। ये पाँच आ ा छुड़वाएँ गी।

कता : ये जो पाँच आ ाएँ है, इनम ऐसा या है?

दादा ी : पाँच आ ाओं क एक बाड़ ह, तो यह आपका माल अंदर चुरा न ल वैसी


बाड़ आप बनाकर रखो तो अंदर ए ज़े ट जैसा हमने िदया है वैसा ही रहेगा और बाड़
ढीली हुई तो कोई घुसकर िबगाड़ देगा। तो उसे रपेयर करने वापस मुझे आना पड़ेगा।
जब तक इन पाँच आ ाओं म रहोगे, तब तक हम िनरंतर समा￸ध क गार टी देते ह।

आ ा से ती ग￸त
कता : आपका ान ा करने के प ात् हमारी, महा माओं क जो ग￸त होती
है उस ग￸त क पीड िकस पर आधा रत है? या करने से तेज़ी से ग￸त होगी?

दादा ी : पाँच आ ा पाल तो सबकुछ तेज़ी से होगा और पाँच आ ा ही उसका


कारण है। पाँच आ ा पालने से आवरण टू टता जाता है। शि याँ कट होती जाती ह।
जो अ य शि याँ ह, वे य होती जाती ह। पाँच आ ा पालन से ऐ य य होता है।
सभी तरह क शि याँ कट होती ह। आ ापालन करने पर िनभर करता है।

ी े ￸ ■ ो े ै ी
हमारी आ ा के ￸त ■स सयर रहना वह तो सब से बड़ा मु य गुण है। हमारी
आ ा पालन करने से जो अबुध हुआ वह हमारे जैसा ही हो जाएगा न! लेिकन जब तक
आ ा का सेवन है, तब तक िफर आ ा म बदलाव नह होना चािहए। तो परेशानी नह
होगी।

ढ़ िन य से ही आ ा पालन
दादा क आ ा का पालन करना है वही सब से बड़ी चीज़ है। आ ा का पालन
करना है ऐसा तय करना चािहए। आ ा का पालन हो पाता है या नह , वह आपको नह
देखना है। आ ा का ■जतना पालन हो सके उतना ठीक है, लेिकन आपको तय करना
चािहए िक आ ा पालन करना है।

कता : आ ा पालन कम या यादा हो पाए तो, उसम हज नह है न?

दादा ी : हज नह , ऐसा नह है। आपको तय करना है िक आ ा का पालन करना


ही है? सुबह से तय करना है िक ‘मुझे पाँच आ ा म रहना है, पालन करना है।’ तय
िकया तभी से हमारी आ ा म आ गया मुझे इतना ही चािहए।

आ ा का पालन करना भूल जाए तो ￸त मण करना िक ‘हे दादा दो घंट के लए


म भूल गया था, आपक आ ा भूल गया लेिकन मुझे तो आ ा का पालन करना है। मुझे
माफ क ■जए।’ तो िपछली सभी परी ाएँ पास। सौ के सौ मा ् स पूर।े इससे जो खमदारी
नह रहेगी। आ ा म आजाओगे तो संसार पश नह करेगा। हमारी आ ा का पालन
करोगे तो आपको कुछ भी पश नह करेगा।

‘आ ा’ पालन से वा तिवक पु षाथ क शु आत


मने आपको ान िदया तो आपको कृ￸त से जुदा िकया। ‘म शु ा मा’ यानी पु ष
और उसके बाद म वा तिवक पु षाथ है, रयल पु षाथ है यह।

कता : रयल पु षाथ और रलेिटव पु षाथ उन दोन के बीच का फक बताइए


ना।

दादा ी : रयल पु षाथ म करने क चीज़ नह होती। दोन म फक यह है िक


रयल पु षाथ अथात् ‘देखना’ और ‘जानना’ और रलेिटव पु षाथ यानी या? भाव
करना। म ऐसा क ँ गा।

ं ई े औ े े ं￸ ेि
आप चंदभ ू ाई थे और पु षाथ करते थे वह ां￸त का पु षाथ था लेिकन जब ‘म
शु ा मा हूँ’ िक ाि क और उसके बाद पु षाथ करो, दादा क पाँच आ ा म रहो तो
वह रयल पु षाथ है। पु ष (पद) क ाि होने के बाद म (पु षाथ िकया) कहलाएगा।

कता : यह जो ान बीज बोया वही काश है, वही यो￸त है?

दादा ी : वही! लेिकन बीज के प म। अब धीरे-घीरे पूनम होगी। पु ल और पु ष


दोन जुदा हुए, तभी से सही पु षाथ शु होता है। जहाँ पर पु षाथ क शु आत हुई,
तो वह दजू से पूनम कर देगा। हाँ! इन आ ाओं का पालन िकया तो वैसा होगा। और
कुछ भी नह करना है ■सफ आ ा का पालन करना है।

कता : दादा, पु ष हो जाने के बाद का पु षाथ का वणन तो क ■जए थोड़ा। वह


यि यवहार म कैसा बताव करता है?

दादा ी : है ना यह सब, ये अपने सभी महा मा पाँच आ ा म रहते ह न! पाँच


आ ा वही दादा, वही रयल पु षाथ। पाँच आ ा का पालन करना, वही पु षाथ है और
पाँच आ ा के प रणाम व प या होता है? ाता- ा पद म रहा जा सकता है और
हम कोई पूछे िक खरा पु षाथ या है? तो हम कहगे, ‘ ाता- ा’ रहना, वह तो ये
पाँच आ ाएँ ाता- ा रहना ही ■सखाती है न? हम देखते ह िक जहाँ-जहाँ ■जसने
स े िदल से पु षाथ शु िकया है उस पर हमारी कृपा अव य बरसती ही है।

१२. आ मानुभव तीन टेज म, अनुभव-ल य- ती￸त


कता : आ मा का अनुभव हो जाने पर या होता है?

दादा ी : आ मा का अनुभव हो गया, यानी देहा यास छूट गया। देहा यास छूट
गया, यानी कम बँधना क गया। िफर इससे यादा और या चािहए? पहले चंदभ ू ाई
या थे और आज चंदभ ू ाई या ह, वह समझ म आता है। तो यह प रवतन कैसे?
आ म-अनुभव से। पहले देहा यास का अनुभव था और अब यह आ म-अनुभव है।

ती￸त अथात् पूरी मा यता सौ ￸तशत बदल गई और ‘म शु ा मा ही हूँ’ वही


बात पूरी तरह से तय हो गई। ‘म शु ा मा हूँ’ वह ा बैठती है लेिकन वापस उठ जाती
है और ती￸त नह ऊठती। ा बदल जाती है, लेिकन ती￸त नह बदलती यह
ती￸त यानी मान लो हमने यहाँ ये लकड़ी रखी अब उस पर बहुत दबाव आए तो ऐसे
टेड़ी हो जाएगी लेिकन थान नह छोड़ेगी। भले ही िकतने ही कम का उदय आए,
खराब उदय आए लेिकन थान नह छोड़ेगी। ‘म शु ा मा हूँ’ वह गायब नह होगा।
औ ी￸ े ी े ी￸ े े ी ो
अनुभव, ल य और ती￸त ये तीन रहगे। ती￸त सदा के लए रहेगी। ल य तो
कभी-कभी रहेगा। यापार म या िकसी काम म लगे िक िफर से ल य चूक जाएँ और
काम ख म होने पर िफर से ल य म आ जाएँ । और अनुभव तो कब होगा, िक जब काम
से, सबसे िनवृत होकर एकांत म बैठे ह तब अनुभव का वाद आएगा। य िप अनुभव तो
बढ़ता ही रहता है।

अनुभव ल य और ती￸त। ती￸त मु य है, वह आधार है। वह आधार बनने के


बाद ल य उ प होता है। उसके बाद ‘म शु ा मा हूँ’ वह िनरंतर ल य म रहता ही है
और जब आराम से बैठे ह और ाता- ा रह तब वह अनुभव म आता है।

१३. य स संग का मह व

उलझन के समाधान के लए स संग क आव यकता


इस ‘अ म िव ान’ के मा यम से आपको भी आ मानुभव ही ा हुआ है। लेिकन
वह आपको आसानी से ा हो गया है, इस लए आपको खुद को लाभ होता है, ग￸त
क जा सकती है। िवशेष प से ‘ ानी’ के प रचय म रहकर समझ लेना है।

यह ान बारीक़ से समझना पड़ेगा। य िक यह ान घंटेभर म िदया गया है।


िकतना बड़ा ान! जो एक करोड़ साल म नह हो सके वही ान घंटेभर म हो जाता है।
मगर बे■सक (बुिनयादी) होता है। िफर िव तार से समझ लेना पड़ेगा न? उसे योरेवार
समझने के लए तो आप मेरे पास बैठकर पूछोगे तब म आपको समझाऊँ। इस लए हम
कहा करते ह न िक स संग क बहुत आव यकता है। आप य - य यहाँ गु थी पूछते
जाएँ , य - य वे गु थी अंदर खुलती जाती है। वे तो ■जसे चुभ, उसे पूछ लेना चािहए।

बीज बोने के बाद म पानी ￱छड़कना ज़ री


कता : ान लेने के बाद भी ‘म शु ा मा हूँ’ ऐसा यान म लाना पड़ता है, वह
कुछ किठन है।

दादा ी : नह , ऐसा होना चािहए। रखना नह पड़ेगा अपने आप ही रहेगा। तो


उसके लए या करना पड़ेगा? उसके लए मेरे पास आते रहना पड़ेगा। जो पानी ￱छड़का
जाना चािहए वह ￱छड़का नह जाता इस लए इन सब म मु कल आती है। आप यापार
पर यान नह दो तो यापार का या होगा?
कता : डाउन हो जाएगा।

दादा ी : हाँ, ऐसा ही इसम भी है। ान ले आए तो िफर उस पर पानी ￱छड़कना


पड़ेगा, तो पौधा बड़ा होगा। छोटा पौधा होता है न, उस पर भी पानी ￱छड़कना पड़ता है।
तो कभी-कभी महीने दो महीने म ज़रा पानी ￱छड़कना चािहए।

कता : घर पर ￱छड़कते ह न।

दादा ी : नह , लेिकन घर पर हो ऐसा नह चलेगा। ऐसा तो चलता होगा? आमने-


सामने। जब ानी यहाँ पर आएँ ह और आपको उसक क मत ही न हो... कूल गए थे
या नह ? िकतने साल तक गए थे?

कता : दस साल।

दादा ी : तो या सीखा वहाँ? भाषा! इस अं ज े ी भाषा के लए दस साल िनकाले


तो यहाँ मेरे पास तो छ: महीने कहता हूँ। छ: महीने अगर मेरे पीछे घूमोगे न तो काम हो
जाएगा।

िन य ट ग तो अंतराय ेक
कता : बाहर के ो ाम बन गए ह, इस लए आने म परेशानी होगी।

दादा ी : वह तो यिद आपका भाव ट ग होगा तो वह टू ट जाएगा। अंदर अपना


भाव ट ग है या ढीला है वह देख लेना है।

गार टी स संग से, संसार के मुनाफे क


मेरे यहाँ सभी यापारी आते ह न, और वे भी ऐसे जो यिद दक
ु ान पर एक घंटे देरी
से जाएँ तो पाँचसौ हज़ार पये का नुकसान हो जाए ऐसे। उनसे मने कहा, ‘यहाँ पर
आओगे उतने समय पर नुकसान नह होगा और यिद बीच रा ते म आधे घंटे िकसी
दक
ु ान म खड़े रहोगे तो आपको नुकसान होगा। यहाँ पर आओगे तो जो खमदारी मेरी
य िक इसम मुझे कोई लेना- देना नह है। यानी आप यहाँ पर अपने आ मा के लए ही
आए इस लए कहता हूँ सभी से, आपको नुकसान नह होगा, िकसी भी कार का, यहाँ
पर आओगे तो।

े ं ौि
दादा के स संग क अलौिककता
यिद कम का उदय बहुत भारी आए तब आपको समझ लेना है िक यह उदय भारी है
इस लए शांत रहना है और िफर उसे ठंडा करके स संग म ही बैठे रहना। ऐसा ही चलता
रहेगा। कैसे-कैसे कम के उदय आएँ , वह कहा नह जा सकता।

कता : जागृ￸त िवशेष प से बढ़े उसका या उपाय है?

दादा ी : वह तो स संग म पड़े रहना, वही है।

कता : आपके पास छ: महीने बैठ तो उसम थूल प रवतन होगा, िफर सू म
प रवतन होगा, ऐसा कह रहे ह?

दादा ी : हाँ, ■सफ बैठने से ही प रवतन होता रहेगा। अत: यहाँ प रचय म रहना
चािहए। दो घंटे तीन घंटे, पाँच घंटे। ■जतना जमा िकया उतना लाभ। लोग ान लेने के
बाद ऐसा समझते ह िक ‘हम तो अब कुछ करना ही नह है! लेिकन ऐसा नह है, य िक
अभी तक प रवतन तो हुआ ही नह !

रहो ानी क िवसीिनटी म


कता : महा माओं को या गज़ रखनी रखनी चािहए, पूण पद के लए?

दादा ी : ■जतना हो सके उतने ानी के पास जीवन िबताना चािहए वही गरज,
और कोई गज़ नह । रात-िदन, भले ही कह भी हो लेिकन दादा के पास ही रहना
चािहए। उनक (आ म ानी) क िवसीिनटी ( ी पड़े) वैसे रहना चािहए।

यहाँ ‘स संग’ म बैठे-बैठे कम के बोझ कम होते जाते ह और बाहर तो िनरे कम के


बोझ बढ़ते ही रहते ह। वहाँ तो िनरी उलझन ही ह। हम आपको गार टी देते ह िक
■जतना समय यहाँ स संग म बैठोगे उतने समय तक आपके कामधंधे म कभी भी
नुकसान नह होगा और लेखा-जोखा िनकालोगे तो पता चलेगा िक फायदा ही हुआ है।
यह स संग, यह या कोई ऐसा-वैसा स संग है? केवल आ मा हेतु ही जो समय िनकाले
उसे संसार म कहाँ से नुकसान होगा? ■सफ फायदा ही होता है। पर तु ऐसा समझ म आ
जाए, तब काम होगा न? इस स संग म बैठे यानी आना य ही बेकार नह जाएगा। यह तो
िकतना सुंदर काल आया है! भगवान के समय म स संग म जाना हो तो पैदल चलते-
चलते जाना पड़ता था! और आज तो बस या टेन म बैठे िक तुर त ही स संग म आया
जा सकता है!!
ं े
य स संग वह सव े
यहाँ बैठे हुए यिद कुछ भी न करो िफर भी अंदर प रवतन होता ही रहेगा य िक
स संग है, सत् अथात् आ मा उसका संग! ये सत् कट हो चुका, तो उनके संग म बैठे
ह। यह अं￸तम कार का स संग कहलाता है।

स संग म पड़े रहने से यह सब खाली हो जाएगा य िक साथ म रहने से हम ( ानी


को) देखने से हमारी डायरे ट शि याँ ा होती ह, उससे जागृ￸त एकदम बढ़ जाती है!
स संग म रह पाएँ ऐसा करना चािहए। ‘इस’ स संग का साथ रहा तो काम हो जाएगा।

काम िनकाल लेना यानी या? ■जतना हो सके उतने अ￸धक दशन करना। ■जतना
हो सके उतना स संग म आमने-सामने लाभ ले लेना, य का स संग। न हो सके तो
उतना खेद रखना अंत म! ानीपु ष के दशन करना और उनके पास स संग म बैठे
रहना।

१४. दादा क पु तक तथा मेगेज़न का मह व

आ वाणी, कैसी ि याकारी !


यह ‘ ानी पु ष’ क वाणी है और िफर ताज़ी है। अभी के पयाय ह, इस लए उसे
पढ़ते ही अपने सारे पयाय बदलते जाते ह, और वैसे-वैसे आनंद उ प होता जाता है।
य िक यह वीतरागी वाणी है। राग- ेष रिहत वाणी हो तो काम होता है नह तो काम
नह होता। भगवान क वाणी वीतराग थी, इस लए उसका असर आज तक चल रहा है।
तो ‘ ानी पु ष’ क वाणी का भी असर होता है। वीतराग वाणी के अलावा दसू रा कोई
उपाय नह है।

य प रचय नह िमले तब
कता : दादा, यिद प रचय म नह रह सक, तब पु तक िकतनी मदद करत ह?

दादा ी : सब मदद करत ह। यहाँ क , दादा क येक चीज़, दादा के वे श द ह


(पु तक के), आशय जो दादा का है, मतलब सभी चीज़ है प करती है।

कता : मगर सा ात प रचय और इसम अंतर रहेगा न?


ी ो ि ं े े ँ ो ी ं ो ै ो
दादा ी : वह तो, यिद अंतर देखने जाएँ तो सभी म अंतर होता है। इस लए हम तो
■जस समय जो आया वह करना है। ‘दादा’ नह ह तब या करोगे? दादाजी क पु तक
है, वह पढऩा। पु तक म दादाजी ही ह न? वना आँ ख बंद क िक तुरत ं दादाजी िदखाई
दगे।

१५. पाँच आ ा से जगत् िनदोष


‘ व प ान’ िबना तो भूल िदखती ही नह । य िक ‘म ही चंदभ
ू ाई हूँ और मुझ म
कोई दोष नह है, म तो सयाना-समझदार हूँ,’ ऐसा रहता है और ‘ व प ान’ क
ाि के बाद आप िन प पाती हुए, मन-वचन-काया पर आपको प पात नह रहा।
इस लए खुद क भूल, आपको खुद को िदखती ह।

■जसे खुद क भूल पता चलेगी, ■जसे ￸त ण अपनी भूल िदखेगी, जहाँ-जहाँ हो
वहाँ िदखे, नह हो वहाँ नह िदखे, वह खुद ‘परमा मा व प’ हो गया! ‘म चंदभ ू ाई
नह , म शु ा मा हूँ’ यह समझने के बाद ही िन प पाती हो पाते ह। िकसीका ज़रा-सा
भी दोष िदखे नह और खुद के सभी दोष िदख, तभी खुद का काय पूरा हुआ कहलाता
है। खुद के दोष िदखने लगे, तभी से हमारा िदया हुआ ‘ ान’ प रणिमत होना शु हो
जाता है। जब खुद के दोष िदखाई देने लगे, तब दसू र के दोष िदखते नह ह। और के
दोष िदख तो वह बहुत बड़ा गुनाह कहलाता है।

इस िनद ष जगत् म जहाँ कोई दोिषत है ही नह , वहाँ िकसे दोष द? जब तक दोष


ह, तब तक सारे दोष िनकलगे नह , तब तक अहंकार िनमूल नह होगा। जब तक
अहंकार िनमूल न हो जाए, तब तक दोष धोने ह। अभी भी यिद कोई दोिषत िदखता है,
तो वह अपनी भूल है। कभी न कभी तो, िनद ष देखना पड़ेगा न? हमारे िहसाब से ही है
यह सब। इतना थोड़े म समझ जाओ न, तो भी सब बहुत काम आएगा।

आ ापालन से बढ़े िनद ष ि


मुझे जगत् िनद ष िदखता है। आपको ऐसी ि आएगी, तब यह पज़ल सॉ व हो
जाएगा। म आपको ऐसा उजाला दँगू ा और इतने पाप धो डालूँगा िक ■जससे आपको
उजाला रहे और आपको िनद ष िदखता जाए। और साथ-साथ पाँच आ ाएँ दँगू ा। उन
पाँच आ ाओं म रहोगे तो जो िदया हुआ ान है, उसे वे ज़रा भी े चर नह होने दगी।

तब से हुआ समिकत!
ो ि ी े ी ि ऐ ो ि े
खुद का दोष िदख, तभी से ही समिकत हुआ, ऐसा कहलाएगा। खुद का दोष िदखे,
तब से समझना िक खुद जागृत हुआ है। नह तो सब न द म ही चल रहा है। दोष खतम
हुए या नह हुए, उसक बहुत ￵चता करने जैसी नह है, लेिकन मु य ज़ रत जागृ￸त क
है। जागृ￸त होने के बाद िफर नये दोष खड़े नह होते ह और जो पुराने दोष ह, वे िनकलते
रहते ह। हम उन दोष को देखना है िक िकस तरह से दोष होते ह।
■जतने दोष, उतने ही चािहए ￸त मण
‘अनंत दोष का भाजन है। तो उतने ही ￸त मण करने पड़गे। ■जतने दोष भरकर
लाए हो, वे आपको िदखगे। ानी पु ष के ान देने के बाद दोष िदखने लगते ह, नह
तो खुद के दोष नह िदखते, उसी का नाम अ ानता। खुद का एक भी दोष नह िदखता
है और िकसीके देखने ह तो बहुत सारे देख ले, उसका नाम िम या व।’

ि िनजदोष के ￸त...
यह ान लेने के बाद अंदर खराब िवचार आएँ , उ ह देखना, अ छे िवचार आएँ
उ ह भी देखना। अ छे पर राग नह और खराब पर ेष नह । अ छा-बुरा देखने क हम
ज़ रत नह है। य िक मूलत: स ा ही अपने काबू म नह है। अत: ानी या देखते
ह? सारे जगत् को िनद ष देखते ह। य िक यह सब ‘￸ड चाज’ म है, उसम उस बेचारे
का या दोष? आपको कोई गाली दे, वह ‘￸ड चाज’। ‘बॉस’ आपको उलझन म डाले,
तो वह भी ‘￸ड चाज’ ही है। बॉस तो िनिम है। जगत् म िकसी का दोष नह है। जो दोष
िदखते ह, वह खुद क ही भूल है और वही ‘ लंडस’ ह और उसीसे यह जगत् कायम है।
दोष देखने से, उ टा देखने से ही बैर बँधता है।

एडज ट एवरी हेर


पचाओ एक ही श द
‘एडज ट एवरी हेर’ इतना ही श द यिद आप जीवन म उतार लोगे तो बहुत हो
गया। आपको अपने आप शां￸त ा होगी। इस क लयगु के ऐसे भयंकर काल म यिद
एडज ट नह हुए न, तो ख म हो जाओगे!
ं औ ो ेि ो ो ी
संसार म और कुछ नह आए तो हज नह लेिकन एडज ट होना तो आना ही
चािहए। सामनेवाला ‘￸डसएडज ट’ होता रहे, लेिकन आप एडज ट होते रहोगे तो
संसार-सागर तैरकर पार उतर जाओगे। ■जसे दस
ू र से अनुकूल होना आया, उसे कोई
द:ु ख ही नह रहता। ‘एडज ट एवरी हेर’! येक के साथ एडज टमे ट हो जाए, यही
सब से बड़ा धम है। इस काल म तो ￱भ -￱भ कृ￸तयाँ ह, इस लए िफर एडज ट हुए
िबना कैसे चलेगा?

यह आइस ीम आपसे नह कहती िक मुझ से दरू रहो। आपको नह खाना हो तो


मत खाओ। लेिकन ये बुज़ुग लोग तो उस पर ￸चढ़ते रहते ह। ये मतभेद तो यगु प रवतन
के ह। ये ब े तो ज़माने के अनुसार चलगे।

हम या कहते ह िक ज़माने के अनुसार एडज ट हो जाओ। लड़का नई टोपी


पहनकर आए, तब ऐसा मत कहना िक, ‘ऐसी कहाँ से ले आया?’ उसके बजाय
एडज ट हो जाना िक, ‘इतनी अ छी टोपी कहाँ से लाया? िकतने म लाया? बहुत
स ती िमली?’ इस कार एडज ट हो जाना।

अपना धम या कहता है िक असुिवधा म सुिवधा देखो। रात म मुझे िवचार आया


िक, ‘यह च र मैली है।’ लेिकन िफर एडज टमे ट ले लया तो िफर इतनी मुलायम
महसूस हुई िक बीत ही मत पूछो। पंचे य ान असुिवधा िदखाता है और आ म ान
सुिवधा िदखाता है। इस लए आ मा म रहो।

यह तो, अ छा-बुरा कहने से वे हम सताते ह। हम तो दोन को समान कर देना है।


इसे ‘अ छा’ कहा, इस लए वह ‘बुरा’ हुआ। तब िफर वह सताता है। कोई सच बोल रहा
हो उसके साथ भी और कोई झूठ बोल रहा हो उसके साथ भी ‘एडज ट’ हो जाओ। हम
कोई कहे िक ‘आपम अ ल नह है।’ तब हम तुरत ं उससे एडज ट हो जाएँ गे और उसे
कहगे िक, ‘वह तो पहले से ही नह थी। आज तू कहाँ से खोजने आया है? तुझे तो आज
मालूम हुआ, लेिकन म तो यह बचपन से ही जानता हूँ।’ यिद ऐसा कह तो झंझट िमट
जाएगी न? िफर वह हमारे पास अ ल खोजने आएगा ही नह ।

प नी के साथ एडज टमे ट


हम िकसी कारणवश देर हो गई, और प नी कुछ कहा-सुनी करने लगे िक, ‘इतनी
देर से आए हो? मुझे ऐसा नह चलेगा।’ और ऐसा वैसा कहने लगे... उसका िदमाग़ घूम
जाए, तब आप कहना िक ‘हाँ, तेरी बात सही है, तू कहे तो वापस चला जाऊँ और तू
कहे तो अंदर आकर बैठूँ।’ तब वह कहे, ‘नह , वापस मत जाना। यहाँ सो जाओ
चुपचाप।’ लेिकन िफर पूछो, ‘तू कहे तो खाऊँ, वना सो जाऊँ।’ तब वह कहे ‘नह , खा
ो ो े ि ो ि
लो।’ तब आपको उसका कहा मानकर खा लेना चािहए। अथात् एडज ट हो गए। िफर
सुबह फ ्ट ास चाय देगी और अगर धमकाया तो िफर चाय का कप मुँह फुलाकर देगी
और तीन िदन तक वही ■सल■सला जारी रहेगा।

भोजन म एडज टमे ट


यवहार िनभाया िकसे कहगे िक जो ‘एडज ट एवरी हेर’ हुआ! अब ￸डवेलपमे ट
का ज़माना आया है। मतभेद नह होने देना। इस लए अभी लोग को मने सू िदया है,
‘एडज ट एवरी हेर’! कढ़ी खारी बनी तो समझ लेना िक दादाजी ने एडज टमे ट लेने
को, कहा है। िफर थोड़ी सी कढ़ी खा लेना। हाँ, अचार याद आए, तो िफर मँगवा लेना
िक थोड़ा सा अचार ले आओ। लेिकन झगड़ा नह , घर म झगड़ा नह होना चािहए। खुद
िकसी जगह मुसीबत म फँस जाएँ , तब वहाँ खुद ही एडज टमे ट कर ले, तभी संसार
सुद
ं र लगेगा।

नह भाए, िफर भी िनभाओ


तेरे साथ जो-जो ￸डसएडज ट होने आए, उसके साथ तू एडज ट हो जा। दैिनक
जीवन म यिद सास-बहू के बीच या देवरानी-जेठानी के बीच ￸डसएडज टमे ट होता हो,
तो ■जसे इस संसारी च से छूटना हो, तो उसे एडज ट हो ही जाना चािहए। प￸त-
प नी म से यिद कोई एक यि , दरार डाले, तो दसू रे को जोड़ लेना चािहए, तभी संबध

िनभेगा और शां￸त रहेगी। इस रलेिटव स य म आ ह, िज़द करने क ज़रा सी भी
ज़ रत नह है। ‘इ सान’ तो कौन, िक जो एवरी हेर एडज टेबल हो।

सुधार या एडज ट हो जाएँ ?


हर बात म हम सामनेवाले के साथ एडज ट हो जाएँ तो िकतना सरल हो जाए! हम
साथ म या ले जाना है? कोई कहे िक, ‘भैया, बीवी को सीधा कर दो।’ ‘अरे, उसे
सीधी करने जाएगा तो तू टेढ़ा हो जाएगा।’ इस लए वाइफको सीधी करने मत बैठना,
जैसी भी हो उसे करे ट कहना। आपका उसके साथ हमेशा का साथ हो तो अलग बात
है, यह तो एक ज म के बाद, िफर न जाने कहाँ खो जाएँ गे। दोन के मृ यक
ु ाल अलग,
दोन के कम अलग! कुछ लेना भी नह -देना भी नह ! यहाँ से वह िकसके वहाँ जाएँ गी,
उसका या िठकाना ? आप उसे सीधी करो और अगले जनम म जाए िकसी और के
िह से म!

ो े ी ी ो औ ी ो ी े ै ी
इस लए न तो आप उसे सीधी करो और न ही वह आपको सीधा करे। जैसा भी
िमला, वही सोने जैसा। कृ￸त िकसी क कभी भी सीधी नह हो सकती। कु े क दम ु
टेढ़ी क टेढ़ी ही रहती है। इस लए आप सावधान होकर चलो। जैसी है वैसी ठीक है,
‘एडज ट एवरी हेर’।

टेढ़ के साथ एडज ट हो जाओ


यवहार तो उसी को कहगे िक, एडज ट हो जाएँ तािक पड़ोसी भी कह िक ‘सभी
घर म झगड़े होते ह, मगर इस घर म झगड़ा नह है।’ ■जसके साथ रास न आए, वह
पर शि याँ िवक■सत करनी ह। अनुकूल है, वहाँ तो शि है ही। ￸तकूल लगना, वह तो
कमज़ोरी है। मुझे सबके साथ य अनुकूलता रहती है? ■जतने एडज टमे ट लोगे,
उतनी शि याँ बढ़गी और अशि याँ टू ट जाएँ गी। सही समझ तो तभी आएगी, जब सभी
उ टी समझ को ताला लग जाएगा।

नरम वभाववाल के साथ तो हर कोई एडज ट होगा मगर टेढ़े, कठोर, गम


िमज़ाज लोग के साथ, सभी के साथ एडज ट होना आया तो काम बन जाएगा। भड़कोगे
तो नह चलेगा। संसार क कोई चीज़ हम ‘िफट’ नह होगी, हम ही उसे ‘िफट’ हो जाएँ
तो दिु नया सुंदर है और उसे ‘िफट’ करने गए तो दिु नया टेढ़ी है। इस लए एडज ट
एवरी हेर!

आपको ज़ रत हो, तब सामनेवाला यिद टेढ़ा हो, िफर भी उसे मना लेना चािहए।
टेशन पर मज़दरू क ज़ रत हो और वह आनाकानी कर रहा हो, िफर भी उसे चार
आने यादा देकर मना लेना होगा और नह मनाएँ गे तो वह बैग हम खुद ही उठाना पड़ेगा
न!

￱शकायत? नह , ‘एडज ट’
घर म भी ‘एडज ट’ होना आना चािहए। आप स संग से देर से घर जाओ तो
घरवाले या कहगे? ‘थोड़ा-बहुत तो समय का यान रखना चािहए न?’ तब हम ज दी
घर जाएँ तो उसम या गलत है? अब उसे ऐसा मार खाने का व य आया? य िक
पहले बहुत ￱शकायत क थ । उसका यह प रणाम आया है। उस समय स ा म आया
था, तब ￱शकायत ही ￱शकायत क थ । अब स ा म नह है, इस लए ￱शकायत िकए
बगैर रहना है। इस लए अब ‘ स-माइनस’ कर डालो। सामनेवाला गाली दे गया, उसे
जमा कर लेना। फ़ रयादी होना ही नह है!

￸ ी ो ि ि े ो ै ो ो
घर म प￸त-प नी दोन िन य कर िक मुझे ‘एडज ट’ होना है, तो दोन का हल
आ जाएगा। वह यादा ख चतान करे, तब हम ‘एडज ट’ हो जाएँ तो हल िनकल
आएगा। यिद ‘एडज ट एवरी हेर’
नह हुए तो सभी पागल हो जाओगे। सामनेवाल को ￸चढ़ाते रहे, इसी वजह से
पागल हुए ह।

■जसे ‘एडज ट’ होने क कला आ गई, वह दिु नया से ‘मो ’ क ओर मुड़ गया।
‘एडज टमे ट’ हुआ, उसीका नाम ान। जो ‘एडज टमे ट’ सीख गया, वह पार उतर
गया।

कुछ लोग को रात को देर से सोने क आदत होती है और कुछ लोग ज दी सोने
क आदत होती है, तो उन दोन का मेल कैसे होगा? और प रवार म सभी सद य साथ
रहते ह तो या होगा? घर म एक यि ऐसा कहनेवाला िनकले िक ‘आप कमअ ल के
ह’, तब आपको ऐसा समझ लेना चािहए िक यह ऐसा ही बोलनेवाला था। आपको
एडज ट हो जाना चािहए। इसके बजाय अगर आप जवाब दोगे तो आप थक जाओगे।
य िक वह तो आप से टकराया, लेिकन आप भी उससे टकराओगे तो आपक भी आँ खे
नह ह, ऐसा मा￱णत हो गया न!

हम कृ￸त को पहचानते ह, इस लए आप टकराना चाहो तो भी म टकराने नह


दँगू ा, म खसक जाऊँगा। वना दोन का ए सडे ट हो जाएगा और दोन के
पेयरपाट◌्स टू ट जाएँ गे। िकसी का बंपर टू ट जाए तो अंदर बैठे हुए क या हालत
होगी? बैठनेवाले क तो ददु शा हो जाएगी न! इस लए कृ￸त को पहचानो। घर म सभी
क कृ￸तयाँ पहचान लेनी है।

ये टकराव या रोज़-रोज़ होते ह? वे तो जब अपने कम का उदय हो, तभी होते


ह, उस समय हम ‘एडज ट’ होना है। घर म प नी के साथ झगड़ा हुआ हो तो उसके
बाद उसे होटल ले जाकर, खाना खलाकर खुश कर देना। अब तंत नह रहना चािहए।

जो भी थाली म आए वह खा लेना। जो सामने आया, वह संयोग है और भगवान ने


कहा है िक संयोग को ध ा मारेगा तो वह ध ा तुझे लगेगा। इस लए हमारी थाली म हम
नह चती चीज़ रखी ह , तब भी उसम से दो चीज़ खा लेते ह।

■जसे एडज ट होना नह आया, उस मनु य को मनु य कैसे कहगे? जो संयोग के


वश होकर एडज ट हो जाए, उस घर म कुछ भी झंझट नह होगा। (संयोग का) लाभ
उठाना हो तो एडज ट हो जाओ। यह तो फायदा भी िकसी चीज़ का नह , और बैर
बाँधेगे, वह अलग।

येक यि के जीवन म कुछ ि सपल (■स ांत) होने ही चािहए। िफर भी


संयोगानुसार वतन करना चािहए। संयोग के साथ एडज ट हो जाए, वह मनु य। यिद
े ं ो े े ो े ो ँ े ऐ
येक संयोग म एडज टमे ट लेना आ जाए तो ठे ठ मो म पहुँचा जा सके, ऐसा ग़ज़ब
का ह￱थयार है।

￸डस्एडज टमे ट, यही मूखता


अपनी बात सामनेवाले को ‘एडज ट’ होनी ही चािहए। अपनी बात सामनेवाले को
‘एडज ट’ नह हो तो वह अपनी ही भूल है। भूल सुधरे तो ‘एडज ट’ हो पाएगा।
वीतराग क बात ‘एवरी हेर एडज टमे ट’ क है। ‘￸डसएडज टमे ट’ ही मूखता है।
‘एडज टमे ट’ को हम याय कहते ह। आ ह-दरु ा ह, वह कोई याय नह कहलाता।

अभी तक एक भी मनु य हम से ￸डसएडज ट नह हुआ है। और इन लोग को तो


घर के चार सद य भी एडज ट नह होते ह। यह एडज ट होना आएगा या नह आएगा?
ऐसा हो सकेगा िक नह हो सकेगा? हम जैसा देखते ह वैसा तो हम आ ही जाता है न?
इस संसार का िनयम या है िक जैसा आप देखोगे उतना तो आपको आ ही जाएगा।
उसम कुछ सीखने जैसा नह रहता।

संसार म और कुछ भले ही न आए, तो कोई हज नह है। काम-धंधा करना कम


आता हो तो हज नह है, लेिकन एडज ट होना आना चािहए। अथात्, व तु थ￸त म
एडज ट होना सीखना चािहए। इस काल म एडज ट होना नह आया तो मारा जाएगा।
इस लए ‘एडज ट ए ी हेर’ होकर काम िनकाल लेने जैसा है।

टकराव टालो
मत आओ टकराव म
‘िकसी के साथ टकराव म मत आना और टकराव टालना।’ हमारे इस वा य का
यिद आराधन करोगे तो ठे ठ मो तक पहुँचोगे। हमारा एक ही श द, य का य , पूरा
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का पूरा गले उतार ले, तो भी मो हाथ म आ जाए, ऐसा है।

हमारे एक श द का यिद एक िदन भी पालन करे तो ग़ज़ब क शि उ प होगी!


भीतर इतनी सारी शि याँ ह िक कोई कैसे भी टकराव करने आए, िफर भी हम उसे
टाल सकते ह।

यिद भूल से भी तुम िकसी के टकराव म आ गए तो उसका समाधान कर लेना।


सहजता से, उस टकराव म से घषण क ￵चगा रयाँ उड़ाए िबना िनकल जाना।

टैिफक के लॉ से टले टकराव


येक टकराव म हमेशा दोन को नुकसान होता है। आप सामनेवाले को द:ु ख
पहुँचाओगे तो साथ साथ, वैसे ही, उसी ण आपको भी द:ु ख पहुँचे बगैर रहेगा नह । यह
टकराव है। इस लए मने यह उदाहरण िदया है िक रोड पर टैिफक का धम या है, िक
टकराओगे तो आप मर जाओगे, टकराने म जो खम है। इस लए िकसी के साथ टकराना
नह । इसी कार यवहा रक काय म भी टकराना नह ।

यिद कोई आदमी लड़ने आए और श द बम के गोले जैसे आ रहे ह , तब आपको


समझ लेना चािहए िक टकराव टालना है। आपके मन पर िब कुल असर न हो, िफर भी
कभी कोई असर हो जाए, तब समझना चािहए िक सामनेवाले के मन का असर हम पर
पड़ा है। तब हम खसक जाना चािहए। यह सब टकराव है। इसे जैसे-जैसे समझते
जाओगे, वैसे-वैसे टकराव टलते जाएँ गे। टकराव टालने से मो होता है।

टकराव से यह जगत् िन मत हुआ है। उसे भगवान ने, ‘बैर से बना है,’ ऐसा कहा
है। हर एक मनु य, अरे, जीवमा बैर रखता है। हद से यादा हुआ तो बैर रखे बगैर
रहेगा नह । य िक सभी म आ मा है। आ मशि सभी म एक समान है। कारण यह है
िक, इस पु ल (शरीर) क कमज़ोरी क वजह सहन करना पड़ता है, लेिकन सहन करने
के साथ वह बैर रखे बगैर रहता नह है। और िफर अगले ज म म वह उसका बैर वसूल
करता है वापस।

कोई मनु य बहुत बोले, तो उसके कैसे भी बोल से हम टकराव नह होना चािहए।
और अपनी वजह से सामनेवाले को अड़चन हो, ऐसा बोलना बड़े से बड़ा गुनाह है।

सहन? नह , सो यूशन लाओ

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टकराव टालना यानी सहन करना नह है। सहन करोगे तो िकतना करोगे? सहन
करना और ‘ ग’ दबाना, वे दोन एक जैसे ह। ‘ ग दबाई हुई िकतने िदन रहेगी?’
इस लए सहन करना तो सीखना ही नह । सो यूशन लाना सीखो। अ ान दशा म तो
सहन ही करना होता है। बाद म एक िदन ‘ ग’ उछलती है, वह सब िबखेर देती है।

िकसी के कारण यिद हम सहन करना पड़े, वह अपना ही िहसाब होता है। लेिकन
आपको पता नह चलता िक यह िकस बहीखाते का और कहाँ का माल है, इस लए हम
ऐसा मानते ह िक इसने नया माल देना शु िकया है। नया माल कोई देता ही नह , िदया
हुआ ही वापस आता है। यह जो आया, वह मेरे ही कम के उदय से आया है, सामनेवाला
तो िनिम है।

टकराए, अपनी ही भूल से


इस दिु नया म जो भी टकराव होता है, वह आपक ही भूल है, सामनेवाले क भूल
नह है! सामनेवाले तो टकराएँ गे ही। ‘आप य टकराए?’ तब कहगे, ‘सामनेवाला
टकराया इस लए!’ तो आप भी अंधे और वह भी अंधा हो गया।

टकराव हुआ तो आपको समझना चािहए िक ‘ऐसा मने या कह िदया िक यह


टकराव हो गया?’ खुद क भूल मालूम हो जाएगी तो हल आ जाएगा। िफर पज़ल सॉ व
हो जाएगी। वना जब तक हम ‘सामनेवाले क भूल है’ ऐसा खोजने जाएँ गे तो कभी भी
यह पज़ल सॉ व नह होगा। ‘अपनी ही भूल है’ ऐसा मानोगे तभी इस संसार का अंत
आएगा। अ य कोई उपाय नह है। िकसी के भी साथ टकराव हुआ, तो वह अपनी ही
अ ानता क िनशानी है।

यिद एक ब ा प थर मारे और खून िनकल आए, तब ब े को या करोगे? गु सा


करोगे। और आप जा रहे ह और पहाड़ पर से एक प थर िगरा, आपको वह लगा और
खून िनकला, तब िफर या करोगे? गु सा करोगे? नह । उसका या कारण? वह पहाड़
से िगरा है। और वहाँ वह लड़का प थर मारने के बाद पछता रहा हो िक मुझसे यह या
हो गया! और यिद पहाड़ से िगरे तो, िकसने िगराया?

साइ स, समझने जैसा


कता : हम े श नह करना हो, लेिकन कोई सामने से आकर झगड़ने लगे, तब
या कर?

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दादा ी : इस दीवार के साथ कोई लड़ेगा तो िकतने समय तक लड़ सकेगा? यिद
इस दीवार से कभी ■सर टकरा जाए, तो आप उसके साथ या करोगे? ■सर टकराया,
यानी आपक दीवार से लड़ाई हो गई, अब या दीवार को मारोगे? इसी कार ये जो
बहुत े श कराते ह, वे सभी दीवार ह! इसम सामनेवाले को या देखना, आपको अपने
आप समझ लेना है िक ये दीवार जैसे ह, िफर कोई तकलीफ़ नह है।

आपको इस दीवार को डाँटने क स ा है? ऐसा ही सामनेवाले के लए है। और


उसके िनिम से जो टकराव है, वह तो छोड़ेगा नह , उससे बच नह सकते। यथ शोर
मचाने का या मतलब? जब िक उसके हाथ म स ा ही नह है। इस लए आप भी दीवार
जैसे हो जाओ न! आप बीवी को डाँटते रहते हो, लेिकन उसके अंदर जो भगवान बैठे ह,
वे नोट करते ह िक यह मुझे डाँटता है। और यिद वह आपको डाँटे, तब आप दीवार जैसे
बन जाओ तो आपके भीतर बैठे हुए भगवान आपको ‘हे प’ करगे।
िकसी के साथ मतभेद होना और दीवार से टकराना, ये दोन बात समान ह। इन
दोन म भेद नह है। दीवार से जो टकराता है, वह नह िदखने क वज़ह से टकराता है
और मतभेद होता है, वह भी नह िदखने क वज़ह से मतभेद होता है। आगे का उसे
िदखता नह है, आगे का उसे सो यश ु न नह िमलता, इस लए मतभेद होता है। ये
ोध-मान-माया-लोभ वगैरह करते ह, वह नह िदखने क वज़ह से ही करते ह! तो
ऐसे बात को समझना चािहए न! ■जसे लगी उसका दोष न! दीवार का कोई दोष है? तो
इस संसार म सभी दीवार ही ह। दीवार टकराए, तब आप उसके साथ खरी-खोटी करने
नह जाते न? िक ‘यह मेरा सही है’ ऐसे लड़ने क झंझट म आप नह पड़ते न? वैसे ही
ये सभी दीवार क थ￸त म ही ह। उससे सही मनवाने क ज़ रत ही नह है।

टकराव, वह अ ानता ही है अपनी


टकराव होने का कारण या है? अ ानता। जब तक िकसी के भी साथ मतभेद
होता है, तो वह आपक िनबलता क िनशानी है। लोग गलत नह ह, मतभेद म गलती
आपक है। लोग क ग़लती होती ही नह है। वह जान-बूझकर भी कर रहा हो, तो हम
वहाँ पर मा माँग लेनी चािहए िक, ‘‘भैया, यह मेरी समझ म नह आता है।’’ जहाँ
टकराव हुआ, वहाँ अपनी ही भूल है।

घषण से हनन, शि य का
सारी आ मशि यिद िकसी चीज़ से ख म होती ह , तो वह है घषण से। ज़रा भी
टकराए तो ख म। सामनेवाला टकराए, तब हम संयमपूवक रहना चािहए। टकराव तो
होना ही नह चािहए। यिद ■सफ घषण न हो, तो मनु य मो म चला जाए। िकसी ने
इतना ही सीख लया िक ‘मुझे घषण म नह आना है’, तो िफर उसे गु क या िकसी
क भी ज़ रत नह है। एक या दो ज म म सीधे मो म जाएगा। ‘घषण म आना ही नह
है’ ऐसा यिद उसक ा म बैठ गया और िन य ही कर लया, तब से ही वह समिकत
हो गया!

पहले जो घषण हो चुके थे और उससे जो नुकसान हुआ था, वही वापस आता है।
लेिकन अब यिद नया घषण पैदा करोगे, तो िफर शि याँ चली जाएँ गी। आई हुई शि भी
चली जाएगी और यिद खुद घषण होने ही न द, तो शि उ प होती रहेगी!

इस दिु नया म बैर से घषण होता है। संसार का मूल बीज बैर है। ■जसके बैर और
घषण - ये दो बंद हो गए, उसका मो हो गया। ेम बाधक नह है, बैर जाए तो ेम

उ प हो जाए।

कॉमनसे स, ऐवरी हेर एि केबल


कोई हम से टकराए लेिकनहम िकसी से नह टकराएँ , इस तरह रह तो
‘कॉमनसे स’ उ प होगा। लेिकन हम िकसी से टकराना नह चािहए, वना
‘कॉमनसे स’ चला जाएगा! अपनी ओर से घषण नह होना चािहए। सामनेवाले के घषण
से अपने म ‘कॉमनसे स’ उ प होता है। आ मा क यह शि ऐसी है िक घषण के
समय कैसे बताव करना, उसके सारे उपाय बता देती है और एक बार िदखा दे, तो िफर
वह ान जाएगा नह । ऐसा करते करते ‘कॉमनसे स’ बढ़ता जाता है।

इस दीवार के लए उ टे िवचार आएँ तो हज नह है, य िक एकप ीय नुकसान है।


जब िक िकसी जीिवत यि को लेकर एक भी उ टा िवचार आया तो जो खम है। दोन
तरफ से नुकसान होगा। लेिकन हम उसका ￸त मण कर तो सारे दोष चले जाएँ गे।
इस लए जहाँ-जहाँ घषण होते ह, वहाँ पर ￸त मण करो, तो घषण ख म हो जाएँ गे।

■जसे टकराव नह होगा, उसका तीन ज म म मो होगा, उसक म गार टी देता


हूँ। टकराव हो जाए, तो ￸त मण कर लेना। वे सब टकराव ह गे ही। जब तक यह
िवकारी कारण है, संबध
ं ह, तब तक टकराव ह गे ही। टकराव का मूल ही यह है। ■जसने
िवषय को जीत लया, उसे कोई नह हरा सकता। कोई उसका नाम भी नह ले सकता।
उसका भाव पड़ता है।

हुआ सो याय
कुदरत तो हमेशा यायी ही है

ो ै े ी
जो कुदरत का याय है, उसम एक ण के लए भी अ याय नह हुआ। यह कुदरत
जो है, वह एक ण के लए भी अ यायी नह हुई। कोट म अ याय हुआ होगा, लेिकन
कुदरत कभी अ यायी हुई ही नह ।

यिद कुदरत के याय को समझोगे िक ‘हुआ सो याय’, तो आप इस जगत् म से


मु हो पाओगे वना कुदरत को ज़रा-सा भी अ यायी समझा तो वह आपके लए जगत्
म उलझने का ही कारण है। कुदरत को यायी मानना, उसका नाम ान। ‘जैसा है वैसा’
जानना, उसका नाम ान और ‘जैसा है वैसा’ नह जानना, उसका नाम अ ान।

जगत् म याय ढू ँ ढने से ही तो पूरी दिु नया म लड़ाइयाँ हुई ह। जगत् याय व प ही
है। इस लए इस जगत् म याय ढू ँ ढना ही मत। जो हुआ, सो याय। जो हो गया वही
याय। ये कोट आिद सब बने वे, याय ढू ँ ढते ह इस लए! अरे भाई, याय होता होगा?!
उसके बजाय ‘ या हुआ’ उसे देखो! वही याय है। याय-अ याय का फल, वह तो
िहसाब से आता है और हम उसके साथ याय जॉइ ट करने जाते ह, िफर कोट म ही
जाना पड़ेगा न!

आपने िकसी को एक गाली दी तो िफर वह आपको दो-तीन गा लयाँ दे देगा,


य िक उसका मन आप पर गु सा होता है। तब लोग या कहते ह? तूने य तीन
गा लयाँ दी, इसने तो एक ही दी थी। तब उसम या याय है? उसका हम तीन ही देने
का िहसाब होगा, िपछला िहसाब चुका देते ह या नह ? कुदरत का याय या है? जो
िपछला िहसाब होता है, वह सारा इक ा कर देता है। अब यिद कोई ी उसके प￸त को
परेशान कर रही हो, तो वह कुदरती याय है। उसका प￸त समझता है िक यह प नी बहुत
खराब है और प नी या समझती है िक प￸त खराब है। लेिकन यह कुदरत का याय ही
है।

वह तो इस ज म क पसीने क कमाई है, लेिकन पहले का सारा िहसाब है न! बही


खाता बाक है इस लए, वना कोई कभी हमारा कुछ भी नह ले सकता। िकसी से ले
सके, ऐसी शि ही नह है। और ले लेना वह तो हमारा कुछ अगला-िपछला िहसाब है।
इस दिु नया म ऐसा कोई पैदा ही नह हुआ िक जो िकसी का कुछ कर सके। इतना
िनयमवाला जगत् है।

कारण का पता चले, प रणाम से


यह सब रज़ ट है। जैसे परी ा का रज़ ट आता है न, यह मैथेमिै ट स (ग￱णत)
म सौ मा ् स म से पंचानवे मा ् स आएँ और इं लश म सौ मा ् स म से प ीस मा ् स
आएँ । तब या हम पता नह चलेगा िक इसम कहाँ भूल रह गई है? इस प रणाम से,
ि े ई े े े ं ो ो ो े े
िकस कारण से भूल हुई वह हम पता चलेगा न? ये सारे संयोग जो इक ा होते ह, वे
सभी प रणाम ह। और उस प रणाम से, या कॉज़ था, वह भी हम पता चलता है।

इस रा ते पर सभी लोग का आना-जाना हो और वहाँ बबूल का काँटा सीधा पड़ा


हुआ हो, बहुत से लोग आते-जाते ह लेिकन काँटा वैसे का वैसा पड़ा रहता है। वैसे तो
आप कभी भी बूट-च पल पहने बगैर घर से नह िनकलते लेिकन उस िदन िकसी के
यहाँ गए और शोर मचे िक चोर आया, चोर आया, तब आप नंगे पैर दौड़े और काँटा
आपके पैर म लग जाए। तो वह आपका िहसाब!

कोई द:ु ख दे तो जमा कर लेना। जो तूने पहले िदया होगा, वही वापस जमा करना
है। य िक िबना वजह कोई िकसी को द:ु ख पहुँचा सके, यहाँ ऐसा कानून ही नह है।
उसके पीछे कॉज़ होने चािहए। इस लए जमा कर लेना।

भगवान के यहाँ कैसा होता है?


भगवान याय व प नह है और भगवान अ याय व प भी नह है। िकसी को
द:ु ख नह हो, वही भगवान क भाषा है। याय-अ याय तो लोकभाषा है।

चोर, चोरी करने को धम मानता है, दानी, दान देने को धम मानता है। ये लोकभाषा
है, भगवान क भाषा नह है। भगवान के यहाँ ऐसा वैसा कुछ है ही नह । भगवान के यहाँ
तो इतना ही है िक, ‘िकसी जीव को द:ु ख नह हो, वही हमारी आ ा है!’

िनजदोष िदखाए अ याय


केवल खुद के दोष के कारण पूरा जगत् अिनयिमत लगता है। एक ण के लए भी
अिनयिमत हुआ ही नह । िब कुल याय म ही रहता है। यहाँ क कोट के याय म फक
पड़ जाए, वह गलत िनकले लेिकन इस कुदरत के याय म फक नह होता।

और एक सेक ड के लए भी याय म फक नह होता। यिद अ यायी होता तो कोई


मो म जाता ही नह । ये तो कहते ह िक अ छे लोग को परेशािनयाँ य आती ह?
लेिकन लोग, ऐसी कोई परेशानी पैदा नह कर सकते। य िक खुद यिद िकसी बात म
दखल नह करे तो कोई ताक़त ऐसी नह है िक जो आपका नाम दे। खुद ने दखल क है
इस लए यह सब खड़ा हो गया है।
जगत् याय व प
यह जगत् ग प नह है। जगत् याय व प है। कुदरत ने कभी भी िब कुल,
अ याय नह िकया। कुदरत कह पर आदमी को काट देती है, ए सडे ट हो जाता है, तो
वह सब याय व प है। याय के बाहर कुदरत गई नह । यह बेकार ही नासमझी म कुछ
भी कहते रहते ह और जीवन जीने क कला भी नह आती, और देखो तो ￵चता ही
￵चता। इस लए जो हुआ उसे याय कहो।

‘हुआ सो याय’ समझे तो पूरा संसार पार हो जाए, ऐसा है। इस दिु नया म एक
सेक ड भी अ याय होता ही नह । याय ही हो रहा है। लेिकन बु￸ हम फँसाती है िक
इसे याय कैसे कह सकते ह? इस लए हम मूल बात बताना चाहते ह िक यह कुदरत का
है और बु￸ से आप
अलग हो जाओ। बु￸ इसम फँसाती है। एक बार समझ लेने के बाद बु￸ का
मानना मत। हुआ सो याय। कोट के याय म भूल-चूक हो सकती है, उ टा-सीधा हो
जाता है, लेिकन इस याय म कोई फक नह ।

याय खोजते तो दम िनकल गया है। इ सान के मन म ऐसा होता है िक मने इसका
या िबगाड़ा है, जो यह मेरा िबगाड़ता है। याय ढू ँ ढने से तो इन सभी को मार पड़ी है,
इस लए याय नह ढू ँ ढना। याय खोजने से इन सभी को मान खा-खाकर िनशान पड़
गए और िफर भी अंत म हुआ तो वही का वही। आ खर म वही का वही आ जाता है। तो
िफर पहले से ही य न समझ जाएँ ? यह तो केवल अहंकार क दखल है!

िवक प का अंत, यही मो माग


बु￸ जब भी िवक प िदखाए न, तब कह देना, जो हुआ वही याय। बु￸ याय
ढू ँ ढती है िक ये मुझसे छोटा है और मेरी मयादा नह रखता। वह मयादा रखे तो याय
और न रखे वह भी याय। बु￸ ■जतनी िन ववाद होगी, उतने ही हम िन वक प ह गे
िफर!

याय ढू ँ ढने िनकले तो िवक प बढ़ते ही जाएँ गे और यह कुदरती याय िवक प को


िन वक प बनाता जाता है। जो हो चुका है, वही याय है। और इसके बावजूद भी पाँच
आदिमय का पंच जो कहे, वह भी उसके िव म चला जाता है, तब वह उस याय को
भी नह मानता, िकसी क बात नह मानता। तब िफर िवक प बढ़ते ही जाते ह। अपने
इद-िगद जाल ही बुन रहा है वह आदमी कुछ भी ा नह करता। बहुत द:ु खी हो जाता
है! इसके बजाय पहले से ही ा रखना िक हुआ सो याय। और कुदरत हमेशा याय
ही करती रहती है, िनरंतर याय ही कर रही है लेिकन वह माण नह दे सकती। माण
तो ‘ ानी’ देते ह िक कैसे यह याय है? कैसे हुआ, वह ‘ ानी’ बता देते ह। उसे संतु
कर द और तब िनबेड़ा आता है। िन वक पी हो जाएगा तो िनबेड़ा आएगा।

े ी
भुगते उसी क भूल
कुदरत के यायालय म ...
इस जगत् के यायाधीश तो जगह-जगह होते ह लेिकन कम जगत् के कुदरती
यायाधीश तो एक ही ह, ‘भुगते उसी क भूल’। यही एक याय है, ■जससे पूरा जगत्
चल रहा है और ां￸त के याय से पूरा संसार खड़ा है।

एक णभर के लए भी जगत् याय से बाहर नह रहता। ■जसे इनाम देना हो, उसे
इनाम देता है। ■जसे दंड देना हो, उसे दंड देता है। जगत् याय से बाहर नह रहता,
याय म ही है, संपूण यायपूवक ही है। लेिकन सामनेवाले क ि म यह नह आता,
इस लए समझ नह पाता। जब ि िनमल होगी, तब याय िदखेगा। जब तक वाथ ि
होगी, तब तक याय कैसे िदखेगा?

आपको य भुगतना?
हम द:ु ख य भुगतना पड़ा, यह ढू ँ ढ िनकालो न? यह तो हम अपनी ही भूल से
बँधे हुए ह। लोग ने आकर नह बाँधा। वह भूल ख म हो जाए तो िफर मु । और वा तव
म तो मु ही ह, लेिकन भूल क वज़ह से बँधन भुगतते ह।

जगत् क वा तिवकता का रह य ान लोग के ल य म है ही नह और ■जससे


भटकना पड़ता है, वह अ ान- ान के बारे म तो सभी को खबर है। यह जेब कटी,
उसम भूल िकसक ? इसक जेब नह कटी और तु हारी ही य कटी? दोन म से अभी
कौन भुगत रहा है? ‘भुगते उसी क भूल!’

भुगतना खद
ु क भूल के कारण
जो द:ु ख भुगते, उसी क भूल और जो सुख भोगे तो, वह उसका इनाम। लेिकन
ां￸त का कानून िनिम को पकड़ता है। भगवान का कानून, रयल कानून तो ■जसक
भूल होगी, उसी को पकड़ेगा। यह कानून ए ज़े ट है और उसम कोई प रवतन कर ही
नह सकता। जगत् म ऐसा कोई कानून नह है िक जो िकसीको भोगवटा (सुख-द:ु ख का
असर) दे सके!

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हमारी कुछ भूल होगी तभी तो सामनेवाला कहेगा न? इस लए भूल ख म कर दो
न! इस जगत् म कोई जीव िकसी भी जीव को तकलीफ नह दे सकता, ऐसा वतं है
और जो तकलीफ देता है वह पहले जो दखल क थी उसी का प रणाम है। इस लए भूल
ख म कर डालो िफर िहसाब नह रहेगा।

जगत् द:ु ख भोगने के लए नह है, सुख भोगने के लए है। ■जसका ■जतना िहसाब
होगा उतना ही होता है। कुछ लोग ■सफ सुख ही भोगते ह, वह कैसे? कुछ लोग ■सफ
द:ु ख ही भोगते ह वह कैसे? खुद ही ऐसा िहसाब लेकर आया है इस लए। जो द:ु ख खुद
को भोगने पड़ते ह वह खुद का ही दोष है, िकसी दस ू रे का नह । जो द:ु ख देता है, वह
उसक भूल नह है। जो द:ु ख देता है, उसक भूल संसार म और जो उसे भुगतता है,
उसक भूल भगवान के िनयम म होती है।

प रणाम खद
ु क ही भूल का
जब कभी भी हम कुछ भी भुगतना पड़ता है, वह अपनी ही भूल का प रणाम है।
अपनी भूल के िबना हम भुगतना नह होता। इस जगत् म ऐसा कोई भी नह है िक जो
हम क￸च मा भी द:ु ख दे सके और यिद कोई द:ु ख देनेवाला है, तो वह अपनी ही भूल
है। सामनेवाले का दोष नह है, वह तो िनिम है। इस लए ‘भुगते उसी क भूल’।

कोई प￸त और प नी आपस म बहुत झगड़ रहे ह और जब दोन सो जाएँ , िफर


आप गुपचुप देखने जाओ तो प नी गहरी न द सो रही होती है और प￸त बार-बार करवट
बदल रहा होता है, तो आप समझ लेना िक प￸त क भूल है सारी, य िक प नी नह
भुगत रही है। ■जसक भूल होती है, वही भुगतता है और यिद प￸त सो रहा हो और प नी
जाग रही हो, तो समझना िक प नी क भूल है। ‘भुगते उसी क भूल’। पूरा जगत् िनिम
को ही काटने दौड़ता है।

भगवान का या कानून?
भगवान का कानून तो या कहता है िक ■जस े म, ■जस समय पर, जो भुगतता
है, वह खुद ही गुनहगार है। िकसीक जेब कट जाए तो काटनेवाले के लए तो आनंद क
बात होगी, वह तो जलेिबयाँ खा रहा होगा, होटल म चाय-पानी और ना ता कर रहा
होगा और ठीक उसी समय ■जसक जेब कटी है, वह भुगत रहा होगा। इस लए
भुगतनेवाले क भूल। उसने पहले कभी चोरी क होगी, इस लए आज पकड़ा गया और
जेब काटनेवाला जब पकड़ा जाएगा, तब चोर कहलाएगा।

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पूरा जगत् सामनेवाले क गलती देखता है। भुगतता है खुद, लेिकन गलती
सामनेवाले क देखता है। ब क इससे तो गुनाह दगु ने होते जाते ह और यवहार भी
उलझता जाता है। यह बात समझ गए तो उलझन कम होती जाएगी।

इस जगत् का िनयम ऐसा है िक जो आँ ख से िदखे, उसे भूल कहते ह। जबिक


कुदरत का िनयम ऐसा है िक जो भुगत रहा है, उसी क भूल है।

िकसी को क￸चत् मा द:ु ख नह द और कोई हम द:ु ख दे तो उसे जमा कर ल तो


हमारे बही खाते का िहसाब पूरा हो जाएगा। िकसी को नह देना, नया यापार शु नह
करना और जो पुराना हो उसका समाधान कर लया, यानी िहसाब चुक गया।

उपकारी, कम से मुि िदलानेवाले


जगत् म िकसी का दोष नह है, दोष िनकालनेवाले का दोष है। जगत् म कोई दोिषत
है ही नह । सब अपने-अपने कम के उदय से है। जो भी भुगत रहे ह, वह आज का
गुनाह नह है। िपछले ज म के कम के फल व प सब हो रहा है। आज तो उसे पछतावा
हो रहा हो लेिकन कॉ टै ट हो चुका है, तो अब या हो सकता है? उसे पूरा िकए िबना
चारा ही नह है।

सास बहू से लड़ रही हो, िफर भी बहू मज़े म हो और सास को ही भुगतना पड़े, तब
भूल सास क है। जेठानी को उकसाकर आपको भुगतना पड़े तो वह आपक भूल और
िबना उकसाए भी वह देने आई, तो िपछले ज म का कुछ िहसाब बाक होगा, उसे चुकता
िकया। इस जगत् म िबना िहसाब के आँ ख से आँ ख भी नह िमलती, तो िफर बाक सब
िबना िहसाब के होता होगा? आपने ■जतना-■जतना ■जस िकसीको िदया होगा, उतना-
उतना आपको वापस िमलेगा, तब आप खुश होकर जमा कर लेना िक, हाश, अब मेरा
िहसाब पूरा होगा। नह तो भूल करोगे तो िफर से भुगतना ही पड़ेगा।

अपनी ही भूल क मार पड़ रही है। ■जसने प थर फका उसक भूल नह है, ■जसे
प थर लगा उसक भूल है! आपके इद-िगद के बाल-ब क कैसी भी भूल या द ु कृ य
ह , लेिकन यिद उसका असर आप पर नह होता तो आपक भूल नह है और अगर
आप पर असर होता है तो वह आपक ही भूल है, ऐसा िन￸ त प से समझ लेना!

ऐसा पृथ रण तो करो

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भूल िकसक है? तब कहगे िक कौन भुगत रहा है, इसका पता लगाओ। नौकर के
हाथ से दस िगलास टू ट गए तो उसका असर घर के लोग पर होगा या नह होगा? अब
घर के लोग म ब को तो कुछ भुगतने का नह होता, लेिकनउनके माँ-बाप अकुलाते
रहगे। उसम भी माँ थोड़ी देर बाद आराम से सो जाएगी, लेिकन बाप िहसाब लगाता
रहेगा, िक पचास पय का नुकसान हुआ। वह यादा अलट है, इस लए यादा
भुगतेगा। ‘भुगते उसी क भूल’। वह इतना पृथ रण करते-करते आगे बढ़ता चढ़ेगा, तो
सीधा मो म पहुँच जाएगा।
कता : कुछ लोग ऐसे होते ह िक हम िकतना भी अ छा कर, लेिकन वे समझते
ही नह ?

दादा ी : सामनेवाला नह समझे तो वह अपनी ही भूल का प रणाम है। यह जो


दस
ू र क भूल देखते ह, वह तो िब कुल गलत है। खुद क भूल से ही िनिम िमलता है।
यह तो जीिवत िनिम िमले तो उसे काटने दौड़ता है और अगर काँटा लगा हो तो या
करेगा? चौराहे पर काँटा पड़ा हो, हज़ार लोग गुज़र जाएँ िफर भी िकसीको नह चुभता,
लेिकन चंदभू ाई िनकले िक काँटा उसके पैर म चुभ जाता है। ‘ यव थत शि ’ का तो
कैसा है? ■जसे काँटा लगना हो उसी को लगेगा। सभी संयोग इक े कर देगी, लेिकन
उसम िनिम का या दोष?

कोई पूछे िक म अपनी भूल कैसे ढू ँ ढूँ? तो हम उसे ■सखाते ह िक तुझे कहाँ-कहाँ
भुगतना पड़ता है? वही तेरी भूल। तेरी या भूल हुई होगी िक ऐसा भुगतना पड़ा? यह
ढू ँ ढ िनकालना।

मूल भूल कहाँ है?


भूल िकसक ? भुगते उसक ! या भूल? तब कहते ह िक ‘म चंदभ ू ाई हूँ’ यह
मा यता ही आपक भूल है। य िक इस जगत् म कोई दोिषत नह है। इस लए कोई
गुनहगार भी नह है, ऐसा ■स होता है। द:ु ख देनेवाला तो िनिम मा है, लेिकन मूल
भूल खुद क ही है। जो फायदा करता है, वह भी िनिम है और जो नुकसान कराता है,
वह भी िनिम है, लेिकन वह अपना ही िहसाब है, इस लए ऐसा होता है।

खद
ु के दोष देखने का साधन - ￸त मण

मण-अ￸त मण- ￸त मण
संसार म जो कुछ भी हो रहा है वह मण है। जब तक वह सहज प से होता है,
तब तक मण है, लेिकन यिद ए सेस ( यादा) हो जाए तो वह अ￸त मण कहलाता है।
■जसके ￸त अ￸त मण हो जाए, उससे यिद छूटना हो तो उसका ￸त मण करना ही
पड़ेगा, मतलब धोना पड़ेगा, तब साफ होगा। पूव ज म म जो भाव िकया िक, ‘फलाने
( यि ) को चार धौल दे देनी है।’ इसी वजह से जब इस ज म म वह पक म आता है,
तब चार धौल दे दी जाती है। वह अ￸त मण हुआ कहलाएगा, इस लए उसका ￸त मण

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करना पड़ेगा। सामनेवाले के ‘शु ा मा’ को याद करके, उसके िनिम से ￸त मण
करना चािहए।

कोई खराब आचरण हुआ, वह अ￸त मण कहलाता है। जो खराब िवचार आया,
वह तो दाग़ कहलाता है, िफर वह मन ही मन म काटता रहता है। उसे धोने के लए
￸त मण करने पड़गे। इस ￸त मण से तो सामनेवाले का भी आपके लए भाव बदल
जाता है, खुद के भाव अ छे ह तो और और के भाव भी अ छे हो जाते ह। य िक
￸त मण म तो इतनी अ￸धक शि ह िक बाघ भी कु े जैसा बन जाता है! ￸त मण
कब काम आता है? जब कोई उ टे प रणाम आएँ , तब काम आता है।

￸त मण क यथाथ समझ
तो ￸त मण यानी या? ￸त मण यानी सामनेवाला हमारा जो अपमान करता
है, तब हम समझ जाना चािहए िक इस अपमान का गुनहगार कौन है? करनेवाला
गुनहगार है या भुगतनेवाला गुनहगार है, पहले हम यह ￸डसीज़न लेना चािहए। तो अपमान
करनेवाला वह िब कुल भी गुनहगार नह होता। वह िनिम है। और अपने ही कम के
उदय को लेकर वह िनिम िमलता है। मतलब यह अपना ही गुनाह है। अब ￸त मण
इस लए करना है िक सामनेवाले के ￸त खराब भाव हुआ। उसके लए नालायक है,
लु ा है, ऐसा मन म िवचार आ गए हो तो ￸त मण करना है। बाक कोई भी गाली दे तो
वह अपना ही िहसाब है। यह तो िनिम को ही काटते ह(दौड़ता है) और उसीके यह सब
झगड़े ह।

िदन भर म जो यवहार करते ह उसम जब कुछ उ टा हो जाता है, तो हम पता


चलता है िक इसके साथ उ टा यवहार हो गया, पता चलता है या नह चलता? हम जो
यवहार करते ह, वह सब मण है। मण यानी यवहार। अब िकसी के साथ उ टा
हुआ तब, हम ऐसा पता चलता है िक इसके साथ कड़क श द िनकल गए या वतन म
उ टा हुआ, वह पता चलता है या नह चलता? तो वह अ￸त मण कहलाता है।

अ￸त मण अथात् हम उ टा चले। उतना ही सीधा वापस आए उसका नाम


￸त मण।

￸त मण क यथाथ िव￸ध
कता : ￸त मण म या करना है?

ी ो ं ं े
दादा ी : मन-वचन-काया, भावकम- यकम-नोकम, चंदल ू ाल तथा चंदल
ू ाल के
नाम क सव माया से ￱भ , ऐसे उसके ‘शु ा मा’ को याद करके कहना िक, ‘हे
शु ा मा भगवान! मने ज़ोर से बोल िदया, वह भूल हो गई इस लए उसक माफ माँगता
हूँ, और िफर से वह भूल नह क ँ गा, ऐसा िन य करता हूँ, िफर कभी भी ऐसी भूल नह
हो, ऐसी शि देना।’ ‘शु ा मा’ को याद िकया या दादा को याद करके कहा िक, ‘यह
भूल हो गई है’; तो वह आलोचना है, और उस भूल को धोना मतलब ￸त मण और
‘ऐसी भूल िफर कभी भी नह क ँ गा’, ऐसा तय करना वह या यान है! समानेवाले
को नुकसान हो ऐसा करे अथवा उसे हमसे द:ु ख हो, वे सभी अ￸त मण ह और उसका
तुरत ं ही आलोचना, ￸त मण और या यान करना पड़ता है।

￸त मण िव￸ध
य दादा भगवान क सा ी म, देहधारी (■जसके ￸त दोष हुआ हो, उस यि
का नाम) के मन-वचन-काया के योग, भावकम- यकम-नोकम से ￱भ ऐसे हे
शु ा मा भगवान, आपक सा ी म, आज िदन तक मुझसे जो जो ् दोष हुए ह, उसके
लए मा माँगता हूँ। दयपूवक बहुत प ाताप करता हूँ। मुझे मा क ■जए। और िफर से
ऐसे दोष कभी भी नह क ँ , ऐसा ढ़ िन य करता हूँ। उसके लए मुझे परम शि
दी■जए।

् ोध-मान-माया-लोभ, िवषय-िवकार, कषाय आिद से िकसी को भी द:ु ख


पहुँचाया हो, उस दोषो को मन म याद कर।

ऐसे (इस तरह) ￸त मण करने से लाइफ भी अ छी बीतती है और मो म भी


जा सकते ह! भगवान ने कहा है िक, ‘अ￸त मण का ￸त मण करोगे तभी मो म जा
पाओगे।’
ि मंिदर िनमाण का योजन
जब भी कभी मूल पु ष, जैसे िक ी महावीर भगवान, ी कृ ण भगवान, ी राम
भगवान सशरीर उप थत रहते ह, तब वे लोग को धम संबध ं ी मतमतांतर से बाहर
िनकालकर आ मधम म थर करते ह। परंतु काल मानुसार मूल पु ष क अनुप थ￸त
म आिह ता-आिह ता लोग म मतभेद होने से धम म बाड़े-सं दाय का उ व होने के
प रणाम व प सुख और शां￸त का मश: लोप होता है।

अ म िव ानी परम पूजनीय ी दादा भगवान ने लोग को आ मधम क ाि तो


करवाई ही, पर साथ-साथ धम म या ‘तू-तू, म-म’ के झगड़ को दरू करने और
लोग को संक ण धा मक प पात के दरु ा ह के जो खम से परे हटाने के लए एक
अनोखा, ां￸तकारी कदम उठाया, जो है संपूण िन प पाती धमसंकुल का िनमाण।

मो के येय क पूणाहु￸त हेतु ी महावीर वामी भगवान ने जगत को आ म ान


ाि का माग िदखाया था। ी कृ ण भगवान ने गीता के उपदेश म अजुन को ‘आ मवत्
सवभूतेषु’ क ि दान क थी। जीव और ￱शव का भेद िमटने पर ही हम खुद ही ￱शव
व प होकर ￸चदानंद प: ￱शवोऽहम् ￱शवोऽहम् क दशा को ा करते ह। इस कार
सभी धम के मूल पु ष के दय क बात आ म ान ाि क ही थी। अगर यह बात
समझ म आ जाए तो उसके लए पु षाथ क शु आत होती है और हर एक को
आ म ि से देखने के साथ ही अभेदता उ प होती है। िकसी भी धम का खंडन-मंडन
नह हो, िकसी भी धम के माण को ठे स न पहुँचे ऐसी भावना िनरंतर रहा करती है।

परम पूजनीय दादा भगवान (दादा ी) कहा करते थे िक जाने-अनजाने म िकसी


क भी िवराधना हो गई हो, उन सभी क आराधना होने पर वे सारी िवराधनाएँ धुल
जाती ह। ऐसे िन प पाती ि मंिदर संकुल म वेश करके सभी भगवंत क मू￷तय के
स मुख सहज प से म तक जब झुकता है तब भीतर क सारी पकड, दरु ा ह, भेदभाव
से भरी हुई सारी मा यताएँ िमटने लगती ह और िनरा ही होने लगते ह।

दादा भगवान प रवार का मु य के ि मंिदर अडालज म थत है। उसके अलावा


गुजरात के अहमदाबाद, राजकोट, मोरबी, भुज, गोधरा, भादरण, चलामली और वासणा
(■ज. वडोदरा) आिद जगह पर िन प पाती ि मंिदर का िनमाण हुआ है। मुबं ई और
सुरे नगर म ि मंिदर का िनमाण काय चालु है।

ानिव￸ध या है?
े ो ै ो ो ी ं े￱ ै
यह भेद ान का योग है, जो ो री स संग से ￱भ है।

म परम पू य दादा भगवान को जो आ म ान कट हुआ, वही ान आज भी


उनक कृपा से तथा पू य नी माँ के आशीवाद से, पू य दीपकभाई के मा यम से ा
होता है।

ान य लेना चािहए?

ज म-मरण के फेर म से मु होने के लए।

वयं का आ मा जागृत करने के लए ।

पा रवा रक संबध
ं ो और काम-काज म सुख-शां￸त अनुभव करने के लए।

ानिव￸ध से या ा होता है?

आ मजागृ￸त उ प होती है।

सही समझ से जीवन- यवहार पूण करने क चािबयाँ ा होती ह।

अनंत काल के पाप भ मीभूत हो जाते ह।

अ ान मा यताएँ दरू होती ह।

ान जागृ￸त म रहने से नये कम नह बंधते और पुराने कम िनजरा होते ह।

आ म ान ाि के लए य आना आव यक है ?

आ म ान ानी क कृपा और आशीवाद का फल है। इसके लए य आना


आव यक है।

पू य नी माँ और पू य दीपकभाई के टीवी या वीसीडी स संग काय म और


दादाजी क पु तक ान क भूिमका तैयार करा सकती ह, परंतु आ मसा ा कार नह
करवा सकते।

अ य साधन से शां￸त अव य िमलती है परंतु ■जस कार पु तक म ￸चि त दीपक


काश नह दे सकता, परंतु य का￱शत दीपक ही काश दे सकता है। उसी कार
आ मा जागृत करने के लए तो वयं आ कर ान ा करना पड़ता है।
ि े े
ान ाि के लए धम या गु बदलने नह ह।

ान अमू य है, अत: उसे ा करने के लए कुछ भी मू य नह देना है।

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