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ओ. पी. झा
ISBN 9789350640005
सं करण : 2014 © एपीजे अ दल
ु कलाम
िह दी अनुवाद © राजपाल ए ड स ज़
ADAMYA SAHAS by APJ Abdul Kalam
(Hindi edition of Indomitable Spirit )
मु क : जी.एच. ि स ा. ल., नयी िद ी
राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट-िद ी-110006
फोन: 011-23869812, 23865483, फै स: 011-23867791
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अनु म
ेरक यि व
मेरे श क
श ा का उ े य
सृजनशीलता और नवीनता
कला और सािह य
शा त जीवन मू य
िव ान और अ यातम
भावी नाग रक
सश नारी
ानसंप समाज क ओर
िवक सत भारत का िनमाण
बु नाग रकता
रचना मक नेतृ व
अद य साहस
स दभ
ेरक यि व
सामा जक या राजनी तक, सभी
यव थओं क न व इंसान क भलाई पर
पड़ी है | कोई भी देश सफ संसदीय
कायदे-कानून से महान् नह होता, ब क
इस लए होता है िक उसके नाग रक भले
और महान् ह 1
ेरक यि व
मेरी ममतामयी माँ
ि तीय िव यु के दौरान हमारा प रवार किठनाइय के बीच से गुजर रहा
था। म उस समय दस साल का था और यु रामे रम म हमारे दरवाजे तक
ाय: पहुँच चुका था। सभी व तुओ ं क िक त हो गई थी। हमारा प रवार
एक िवशाल संयु प रवार था, जसम मेरे िपता एवं चाचाओं के प रवारजन
एक साथ रहते थे। इस िवशाल कुनबे को मेरी दादी और माँिमलकर
सँभालती थ । घर म कभी भी तीन-तीन पालन पर ब े झूलते रहते थे।
खुशी और गम का आना-जाना लगा रहता था।
येक यि का जीवन मानव इ तहास का एक पृ ह, चाहे वह िकसी भी
पद पर आसीन अथवा िकसी भी काय म संल हो
म अपने श क ी वामीयर के पास ग णत पढ़ने जाने के लए ाय: चार
बजे जग जाता था। वे एक अि तीय ग णत- श क थे। वे िन:शु क श ू न
पढ़ाते थे और एक साल म पाँच ही ब को पढ़ाते थे। अपने सभी छा पर
उ ह ने एक कठोर शत लगा रखी थी। शत यह िक सभी छा नान करके
सुबह पाँच बजे उनक क ा म उप थत हो जाएँ । मेरी माँ मुझसे पहले जग
जाती थी। वह मुझे नहलाती और श ू न के लए तैयार करती। म साढ़े
पाँच बजे घर वापस लौटता। उस समय नमाज़ अदा करने तथा अरबी
कूल म कुरान शरीफ सीखने के लए मुझे ले जाने को िपता मेरी ती ा
कर रहे होते। उसके बाद म अपने घर से तीन िकलोमीटर क दरू ी पर थत
रामे रम रोड रेलवे टेशन पैदल जाता। वहाँ से होकर गुजरने वाली
धनुषको ड मेल से समाचार-प का बंडल लेता और तेजी से शहर लौटता।
शहर म सबसे पहले मै ही लोग तक समाचार-प पहुँचाता था। यह
िज़ मेदारी िनभाने के बाद म आठ बजे तक घर वापस आ जाता। उस समय
मेरी माँ मुझे सामा य ना ता देत , जो मेरे अ य भाई-बहन को िदये जाने
वाले ना ते क तुलना म कुछ िवशेष होता, य िक म पढ़ाई और कमाई
एक-साथ करता था। कूल क छु ी के बाद शाम को म िफर ाहक से
बकाया रा श क वसूली के लए िनकल पड़ता।
उन िदन क एक घटना मुझे अभी भी याद है। हम सभी भाई-बहन साथ
बैठकर खाना खा रहे थे और माँ मुझे रोटी देती जा रही थी (चॅूक हम भात
खाने वाले लोग है इस लए चावल तो खुले बाजार म उपल ध था िकतु गेहूँ
पर राश नग थी)। जब म खाना खा चुका तो मेरे बड़े भाई ने मुझे एकांत म
बुलाकर डाँटा, “कलाम, जानते हो या हुआ? तुम रोटी खाते जा रहे थे
और माँ तु हे रोटी देती जा रही थी। उसने अपने िह से क भी सारी रोटी
तु ह दे द । अभी घर क प र थ त ठीक नही है। एक जमे ार बेटा बनो
और अपनी माँ को भूख मत मारो।”
ऊंचाईय को छुते है, लेिकन सीढी वही क वही रहती है। ‘सांप और सीढी’
खेल क भाँ त, सीढी एक यि को साप के लोक तक पहुँचा सि है और
असीिमत सफलताओं क दिु नया तक भी। ऐसा उदार ह इस पेशे का
वभाव। हमारे समाज म और एक ब े के जीवन म श क का थान माता-
िपता के बाद, लेिकन ई र से पहले आता ह-माता-िपता, गु और िफर
ई र। ऐसी मह ा, मेरी जानकारी म, दिु नया म िकसी और पेशे क नह है
िक वह समाज के लए श क से बढ़कर मह वपूण हो। 3
श क, िवशेषकर कूली श क के सामने यि के जीवन को सँवारने क
भारी ज मेदारी होती है। बचपन ही वह आधार शला है जस पर िज़दगी क
इमारत खड़ी होती है। जैसा बीज बचपन म बोया जाता है वैसा ही जीवन के
वृ म फल लगता है। इसी लए बचपन म दी जाने वाली श ा कॉलेज एवं
यिू नव सटी म दी जाने वाली श ा से अ धक मह वपूण होती है। 4
मै मनाता हूँ क दिु नया म समाज के लए श क से अ धक मह वपूण
दा य व िकसी अ य का नही है
श क का येय ब का च र िनमाण करना तथा ऐसे मू य को रोपना
होना चािहए जससे उनक सखने क मता म वृ हो। वे उनम वह
आ मिव ास पैदा कर िक छा क पनाशील एवं सृजनशील बन सक। इस
प म छा का िवकास ही उ ह भिव य क चुनौ तय का सामना करते हुए
त पधा म उतारेगा।
सामा य ि या म श क कुछे क सव म प रणाम देने वाले छा क ओर
आक षत होते है तथा और अ धक सफलता के लए उ ह सतत ो सािहत
करते रहते है। इसके िवपरीत एक श क क सबसे अहम भूिमका यह है िक
वह उन छा पर यान कि त करे जो पढ़ने म कमजोर है तथा उनमे
बेहतर समझदारी एवं सीखाने क वृ त िवक सत करने के यास करे।
ऐसा श क ही वा तिवक गु होता है।
हमारे देश के एक महान् नेता थे। भीमराव अ बेडकर। अ बेडकर के नाम
का मह व पुरे नाम भीमराव अ बेडकर म िनिहत है। भीमराव अछूत कही
जाने वाली एक जा त के िव ाथ थे तथा अ बेडकर उनके उ वण के
ा ण श क। श क अ बेडकर अपने िव ाथ भीमराव का बहुत यान
रखते थे। वे अपने िव ाथ को न सफ अपना ान देते थे, अिपतु खाने के
लए ाय: अपने भोजन का एक िह सा भी उसे देते थे। पढ़ाई समा करने
के बाद जब भीमराव बै र टर बने, तो अपने उस गु को याद रखने के लए
अपना नाम बदलकर भीमराव अ बेड़कर रख लया। 5
श क देश क रीढ़ होते है । वे ऐसे तंभ होते है जनके बल पर सभी
कार क आकां ाएँ साकार होती है
श क के गुण
महान श क एवं भारत के भूतपूव रा प त डॉ. सवप ी राधाकृ णन
श क को सलाह देते थे क —“हम सतत बौ धक िन ा एवं सावभौम
क णा क खोज म रहना चािहए। ये दो गुण िकसी स े श क क पहचान
ह।” 6
एक श क म अपने पेशे के त तब ता होनी चािहए। उसे श ण एवं
ब से ेम होना चािहए। श क को जीवनभर अ ययन करते रहना
चािहए। उसे न सफ िवषय क सै दां तक एवं यावहा रक बाते पढ़ानी
चािहए, ब क छा म हमारी महान् स यता क िवरासत एवं सामा जक
मू य क जम न भी तैयार करनी चािहए। आधुिनक ौ ोिगक क
सहायता से श क छा का ऐसा िवकास करे िक वे िबना िकसी श क
क सहायता लए वयं सीखने म स म हो सक। 7
वे श क ज ह ने मुझे भािवत िकया
मेरे जीवन म मेरे श क क अ यंत मह वपूण भूिमका रही है। म दो
श क को िवशेष प से याद करता हूँ, ज ह ने मुझे बहुत अ धक
भािवत िकया तथा मेरे जीवन को सँवारने म सहायक हुए।
मेरे थम श क
जब म रामे रम म पाँचव क ा म पढ़ता था तो ी शव सु य अ यर
मेरे श क हुआ करते थे। वे हमारे िव ालय के सव म श क म से थे।
उनक क ा म उप थत रहना सभी छा को अ छा लगता था ।
एक िदन उ ह ने प य को उड़ने क ि या समझाने के उ े य से क ा म
एक या यान िदया। उ ह ने लैकबोड पर पंख, पूछ ं एवं सर को प प
से दशाते हुए एक प ी का च बनाया। िफर उ ह ने बताया क िकस कार
अपने पंख फडफडाकर चिड़या उडान भारती है तथा िकस कार अपनी
पूँछ के सहारे उड़ान क िदशा बदलती है। इस िवषय पर उ ह ने लगभग
पचीस िमनट तक भाषण िदया। उस भाषण म उ ह ने उड़ान भरने,
आसमान म थर हो जाने तथा सामूिहक उड़ान जैसी कई धारणाओं को
िव तार से समझाया।
ान ा करने के लए चतन एवं क पना क वतं ता आव यक है और
श क को इसके लए उपयु माहोल का िनमाण करना चािहए
क ा के अंत म उ ह ने छा से पूछा िक उ ह ने जो पढ़ाया, उसे छा
समझ पाए या नह ? मने कहा िक म नह समझ पाया। यही बात कई अ य
छा ने भी दोहराई। ी अ यर हम लोग के जवाब से िवच लत नह हुए,
ब क सभी छा से शाम के व समु तट पर पहुँचने के लए कहा।
उस शाम रामे रम के समु तट पर पूरी क ा के छा जमा हुए थे। बालू के
टील से समु क लहर क टकराहट का हमने भरपूर लु फ उठाया। हमारे
श क अ यर जी ने हम दस अथवा बीस के समूह म उड़ते हुए समु ी प ी
िदखाए। उ ह देखकर हम लोग अ यंत चिकत हुए। उन उड़ते प य क
ओर इशारा करते हुए उ ह ने हमसे कहा िक हम उनक उड़ान पर गौर करे
और देखे क उड़ते समय वे कैसे नजर आते है, िकस कार अपने पंखो को
फडफडाते है। उ ह ने इस बात पर भी ज़ोर िदया िक हम उन प य क
पूछ
ं को यानपूवक देखना चािहए और ल य करना चािहए क अपनी
इ छत िदशा म मुड़ने के लए वे अपनी पूछं का उपयोग िकस तरह करते
ह।
एक अ छा श क यथात य योजना बना कर वयं को तथा अपने छा को
ान ाि के लए तैयार करता है
इसके बाद उ ह ने एक पूछा, “प ी के शरीर म इंजन कहा है और उस
इंजन को शि का बल कहा से िमलता है?” उ ह ने समझाया िक प ी को
शि उसके अपने जीवन एवं उड़ान भरने क ेरणा से िमलती है।ये सभी
बात उ ह ने हम वा तिवक जीवन क घटनाओं के उदाहरण देकर
समझायी। ी अ यर एक महान श क थे। वे हम कृ त म उपल ध
वा तिवक उदाहरण के आधार पर सैधां तक िवषय का ान देते थे। इसे
कहते ह—स ा अ यापन।
मेरे लए यह घटना सफ प ी क उड़ान-ि या समझने तक सीिमत नह
रही। प ी क उड़ान के पाठ ने मेरे िदल म एक खास भावना जगा दी। मने
सोचा िक भिव य म मेरे अ ययन का म उड़ान एवं उड़ान- णाली से
संबं धत रहेगा। ी अ यर के अ यापन एवं समु -िकनारे क उस घटना ने
भिव य म मुझे अपना पेशा चुनने म मदद क ।
एक िदन क ाएँ समा होने के बाद शाम को मने अपने श क से पूछा िक
िकस कार उड़ान- णाली से संबं धत अ ययन जारी रखने के लए आगे
पढाई क जाय? उ ह ने मुझे तस ी से समझाया िक पहले म अपनी
आठवी क पढ़ाई पूरी क ँ , िफर हाई कूल क ँ ; उसके बाद उड़ान-
णाली क श ा ा करने के लए िकसी इंजीिनय रग कॉलेज म दा खला
लूँ। उ ह ने कहा िक यिद म अपनी पूरी पढ़ाई अ छी तरह कर ले गया तो
उड़ान िव ान के े म कुछ करने म स म हो सकँू गा। उनक सलाह पर
चलते हुए जब मने कॉलेज म दा खला लया तो वहाँ भौ तक का अ ययन
िकया और म ास इं टी ट ू ऑफ टे नोलॉजी म मने एरोनॉिट स
इंजीिनय रग िवषय चुना। प ी के उडान के दशन और श क महोदय क
इस सलाह ने मेरे जीवन को एक ल य िदया। इससे मेरे जीवन म एक नया
मोड़ आया और संयोग से, इसी से मेरा पेशा तय हुआ। एक राकेट
इंजीिनयर, ऐरो पेस इं जिनयर तथा योिगिकवे ा के प म मेरा जीवन
पांत रत हो गया। 8
मेरे ि तीय श क
एरो पेस इंजीिनयर के प म मने र ा मं ालय, िद ी म काय िकया। इसके
बाद मने डफस डेवलपमट इ टे लशमट, बंगलोर म कायभार सँभाला।
वहाँ अपने िनदेशक क सलाह पर मने हूवर ा ट के िवकास क
प रयोजना चुनी।हूवर ा ट डज़ाइन के लए घूणन बल को संतु लत करने
वाले सुचा वाह हेतु नालीयु त-घूणन नोदक (ड टेड कंटा-रोटे टग
ोपेलर) के िवकास क आव यकता थी। म च लत नोदक ( ोपेलर) को
डज़ाइन करना तो जानता था, कतु त-घूणन नोदक को कैसे डज़ाइन
िकया जाय, यह नह जानता था। कुछे क िम ने सलाह दी िक म भारतीय
िव ान सं थान के ो. सतीश धवन से िमलूँ, जो अपने एअरोनॉिटकल
अनुसंधान के लए सुिव यात थे।
अपने िनदेशक डॉ. मदीर ा से अनुम त लेकर म ो. सतीश धवन से िमलने
गया। वे अपने छोटे-से कमरे म बैठे हुए थे। कमरा िकताब से भरा था तथा
एक दीवार पर एक लैकबोड लगा था। ो. धवन ने पूछा िक या सम या
है, जस पर म उनसे चचा करना चाहता हूँ। मने अपने प रयोजना-काय क
आव यकता का उ ेख िकया । वे मुझे उ िवषय पढ़ाने के लए तैयार हो
गए, बशत छह स ाह तक येक शिनवार को दोपहर बाद दो से तीन बजे
तक भारतीय िव ान सं थान क उनक क ा म म उप थत रहूँ। िव धवत
क ा शु होने से पहले उ ह ने मेरे लए संदभ साम ी एवं पु तक क एक
सूची तैयार क , तािक उस सबका अ ययन म पहले से कर रखँ।ू मने इसे
ानाजन का एक बहुत बड़ा अवसर माना तथा ो. धवन क क ा म
िनयिमत प से जाना ारंभ कर िदया। हर बार, क ा शु होने से पहले वे
िवषय संबधं ी मेरी समझ को परखने के लए मुझसे जिटल पूछा करते
थे। मने पहली बार यह महसूस िकया िक िकस कार एक अ छा श क
सफलतापूवक यथात य योजना बनाकर खुद को पढ़ाने तथा अपने छा
को ान ाि के लए तैयार करता है।
यह म अगले छह स ाह तक चलता रहा और म त-घूणन नोदक क
परेखा तैयार करने क सम वत अवधारणा को समझ गया। तब ो. धवन
ने मुझे एक िनधा रत हूवर ा ट संरचना के लए त-घूणन नोदक क
परेखा तैयार करने को कहा। उस समय मने महसूस िकया िक ो. सतीश
धवन न सफ एक महान श क थे, अिपतु एरोनॉिटकल णा लय के एक
अ त ू डेवलपमट इंजीिनयर भी थे। परेखा पूरी करने के बाद ो. धवन ने
उसक समी ा क । इसके बाद हम नोदक बनाने के लए तैयार थे, और
इसके लए एक िवशेष साम ी क आव यकता थी। चूँिक यह साम ी बाज़ार
म सहज उपल ध नह थी, अतएव ो. धवन ने उसके लए हद ु तान
एरोनॉिटकल लिमटेड के अ य से बात क और उनक सहायता से हम
उ साम ी हा सल कर पाए। इस कार बहु तरीय सडिवच संरचना एवं
असे बली का उपयोग करते हुए मने नोदक का िनमाण िकया।
टे ट टायल के दौरान कुछ सम याएँ उ प हुई, लेिकन जब भी
आव यकता होती ो. धवन परी ण देखने आ जाते और सम या का
समाधान ढू ँ ढने म सहायता करते। बाधारिहत परी ण अव था तक पहुँचने
के बाद त-घूणन नोदक का लगातार पचास घंटे तक परी ण िकया गया।
ो. धवन वयं वह परी ण देखते रहे और इसके बाद उ ह ने मुझे बधाई
दी। वह िदन मेरे लए एक महान िदन था जब मने देखा िक हमारे दारा
डझाइन िकया गया त-घूणन नोदक िमशन क आव यकताएँ पूरी कर
रहा है।
यह पहली परेखा थी जो हमने िवक सत क । इससे मेरा आ मिव ास
बढ़ा तथा बाद म अपने पेशे के दौरान कई जिटल एरो पेस णाली क
परेखाएँ मने िवक सत क । इस प रयोजना के मा यम से मने न सफ
त-घूणन नोदक क परेखा तैयार करने क तकनीक सीखी, अिपतु
िवकास के चरण म, कई कार क असफलताओं के बावजूद, सम या पर
काबू पाना तथा णाली को कायशील बनाना भी सीखा।
इन दोन श क से मने जीवन म दो मह वपूण बात सीख । पहली यह िक
श क ‘रोल मॉडल’ होता है। वह न सफ हम ान देता है, अिपतु हमारे
जीवन को सँवारते समय उसके मन म महान सपने एवं उ े य होते ह।
दस
ू री बात यह िक श ा एवं ानाजन क संपूण ि या का प रणाम यह
होना चािहए िक यि म पेशेवर मता का िवकास हो और उसम इस
आ मिव ास और इ छा-शि का उदय हो िक ढ़तापूवक सारी बाधाओं
को पार कर एक परेखा, एक उ पाद णाली का िवकास कर सक । 9
माता-िपता एवं श क को यह समझना चािहए िक इस संसार म हम म से
येक यि मानव इ तहास म एक पृ का िनमाण करता है; चाहे िकसी
भी है सयत का वह हो। म महसूस करता हूँ िक मानव इ तहास म मेरा
अनुभव न हे बद ु के समान है, कतु इस बद ु म जीवन है, इसम काश है।
इसके िवपरीत एक श क का जीवन कई दीप को व लत करता है। 10
श क आपको भिव य के लए तैयार करता है
सट जोसेफ कॉलेज ि चराप ी म, यव ु ा छा के प म, मुझे एक अनुपम
िद य यि व के दशन का सौभा य ा हुआ। वे येक िदन सुबह
कॉलेज कै पस से होते हुए बी. एस-सी. तथा एम. ए. के छा को ग णत
पढ़ाने के लए जाते थे। यव
ु ा छा उनको स मान क भावना से देखते थे।
उनका यि व िव ता एवं सं कृ त का सव े तीक था। जब वे चलते
थे तो लगता था जैसे उनके चार तरफ ान का काश फैला हुआ हो। ये
महान ह ती ग णत के स श क ो. तोता ी अयंगार थे।
श क का महान येय यव
ु ा म त क को तेज वी बनाना है
उस समय ‘कैलकुसल ीिनवासन’ मेरे ग णत श क थे। वे ो. तोता ी
अयंगार का उ ेख अ यंत स मान के साथ करते थे। उन िदन वे और ो.
तोता ी अयंगार थम वष के छा क क ाएँ लेते थे। मुझे ो. अयंगार क ,
आधुिनक बीजग णत, सां यक आिद िवषय क , क ा म बैठने का
अवसर िमला था । और एक बार मने सुना िक वे ‘कॉ पले स वै रएब स’
पढ़ा रहे ह।
कैलकुसल ीिनवासन अपनी क ा के दस मेधावी छा को सेट जोसेफ
कॉलेज के ग णत ब के लए चुनते थे जहाँ ो. तोता ी अयंगार या यान
िदया करते थे। सन् 1952 म िदये गये उनके एक या यान को म अभी भी
याद करता हूँ, जसम उ ह ने चार महान ग णत एवं खगोलवे ाओं,
आयभ , भा कर, हगु और रामानुजम् क उपल धय से हम प र चत
कराया था। वह या यान मेरे कान म अभी भी गूँज रहा है। ऐसी ेरक
िव द ा एवं या यान ही मेरी श ा के आधार बने।
आशा और मू य आधा रत श ण म िव ास करने वाले ाथिमक,
मा यिमक और काँलेज श ा के मेरे श क ने मुझे कई दशक आगे के
लए तैयार कर िदया । 11
श ण का येय
श ण का उ े य छा म रा िनमाण क मताएँ पैदा करना है। ये
मताएँ श ण सं थान के येय से ा होती ह तथा श क के अनुभव
से सु ढ़ होती ह, तािक श ण सं थान से िनकलने के बाद छा म
नेतृ वकारी िव श ताएँ आ जाएँ ।
देश के सवा धक मेधावी यि य को श क बनना चािहए
मेरे मानस म एक च उभरता है िक येक श ण सं थान के प रसर से
सैकड़ -हज़ार बु छा , श ा ा कर, बाहर आ रहे ह तथा िव शां त
एवं समृ क िदशा म अ सर देश और दिु नया को संप बना रहे ह। 12
एक कथन है, “यिद आप िन ावान ह तो और कोई चीज अथ नह रखती।
यिद आप िन ावान नह ह तो िकसी भी दस ू री चीज का कोई अथ नह है।”
इस कथन से एक समी ा मक संदेश िमलता है। यिद समाज म एक लाख
यो य, च र वान एवं िन ावान छा हो जाएँ तो वतमान कमजोर समाज को
येक पाँच वष म एक बड़ा सुखद झटका िदया जा सकता है। और यह
काय श क, जो िक गु ह, ेरणा ोत ह, वही कर सकते ह। 13
अ ययन एवं अ ययन का दोहरा दा य व
अ ययन के लए चतन एवं क पना क वतं ता आव यक है। यह श क
एवं श ा णाली के दारा ही स भव होता है। श क को चुनौतीपूण
पूछने चािहए तथा छा को उनके बारे म सोचने एवं उ चत उ र के साथ
सामने आने क अनुम त देनी चािहए। श क को भी छा दारा पूछे गये
के उ र ढू ँ ढने चािहए अथवा, कम से कम, छा को वे ऐसी ि तो
दान ही कर जससे छा वयं उ र ढू ँ ढ सक। व तुत: श क को एक
आजीवन वाय श ाथ का िनमाण करना है जो एक बु नाग रक के
प म िवक सत होगा। 14
िवगत पाँच वष के दौरान देश के सभी भाग के दस लाख से अ धक छा
से म िमल चुका हूँ, िवशेषकर दस से स ह वष क आयु वग के, और मेरी
को शश रहती है िक म कम से कम उनके दस-पं ह के उ र दँ।ू इसके
साथ-साथ, म अपने वेबसाइट के मा यम से भारत एवं िवदेश के छा के
हजार के उ र दे चुका हूँ। म इन िव श ज ासु यव
ु ाओं के िवषय म,
खास करके श क को, बताना चाहता हूँ तािक वे हमारे िव ा थय क
अपे ाएँ , आकां ाएँ , बौ क सजगता एवं सपन को समझ सक ।
कनाटक रा य िव ान प रषद के रजत जयंती समारोह म बंगलोर के बारह
िव भ िव ालय से आए छ ने िव ान संबध ं ी कुछे क िदलच प पूछे।
ाथना कूल क नौव क ा के मा टर वल पी.आचाय ने पूछा, “समय
और सव यापी गु वाकषण के बीच या संबध ं है?” मने इस बहुत अ छे
क शंसा क और उसे बताया िक समय, अंत र एवं सव यापी
गु वाकषण क अवधारणा बड़ी िदलच प है तथा इसने अ यंत मेधावी
यि य क अपनी ओर आक षत िकया है। मने कहा, “अपने यमान के
कारण िवशाल कण के बीच जो खचाव होता है, उसम लगने वाले बल को
गु वाकषण कहते ह। िकसी व तु का भार उसके यमान तथा
गु वाकषण े म उसक थ त से िनधा रत होता है। गु व के ल ण
के िवषय म पया जानकारी िमल चुक है, िफर भी गु वाकषण बल का
मुख कारण एक ही बना हुआ है। सामा य सापे ता गु वाकषण का
अब तक का सबसे सफल स ांत है। यह दशाता है िक यमान एवं ऊजा
क व रेखा और अंत र -समय जस प रघटना को ज म देते है उसे
गु व कहते ह।”
श क क भूिमका उस सीढी जैसी है जसके दारा लोग जीवन क
ऊँचाइय को छूते ह, लेिकन सीढी वही रहती है
अगला एथेना प लक कूल क दसव क ा के छा मा टर भरत
चौधरी ने पूछा। था, “हम लोग अंत र क तुलना म समु के रह य
क अ धक खोज य नह करते?” मने उसे बताया िक समु क सीमा
पृ वी के आकार म सीिमत है, कतु अंत र अनंत है। समु क गहराइय
क तुलना म अंत र क ऊँचाइय तक पहुँचना आसान है। समु क
गहराइय म पहुँचने क िद त के बावजूद हम लोग इसम खोज कर रहे ह
और इसके अनेक लाभ भी ा हो रहे ह। समु क गहराइय म से कई
कार के ान भ डार, समु ी जीवन के िव भ िदलच प प तथा िविवध
ाकृ तक संसाधन लगातार खोजे जा रहे ह।
एक छा ने पूछा, “एक वै ािनक तथा एक दाशिनक म या अंतर है?” मने
कहा िक दाशिनक एवं
वै ािनक, दोन क चतन- ि या समान है। वै ािनक स ांत के िवषय म
इस तरह सोचता है िक उसे माण देकर स िकया ज सके, जबिक एक
दाशिनक धमशा ीय, दाशिनक एवं आ या मक िवचार के िवषय म
सोचता है जसके माण समाज क ग तशीलता म िनिहत ह। िव ान के
प रणाम अंतत: ौ ोिगक के प म सामने आते ह और उससे समाज का
िहत होता है। दशनशा समाज क ग तशीलता का पथ श त करता है।
श क क छा के ऐसे का वागत करना चािहए। खासकर चौदह से
स ह वष क उ के बीच यव ु ा म त क को िव भ िवषय के सौ दय,
चुनौ तय एवं आनंद से प र चत कराना बहुत मह वपूण है। यही वह समय
है जब छा िनणय लेते ह िक वे िव ान, इंजीिनय रग, चिक सा, कानून
अथवा मानिवक म से िकसे अपने उ अ ययन के लए चुन । 15
े मन-म त क वाल को ही श क बनना चािहए
श क होने के नाते म कह सकता हूँ िक श क िकसी भी देश क रीढ़ होते
ह। वे ऐसे तंभ होते ह जन पर देश क आकां ाएँ िटक रहती ह तथा
साकार होती ह। रचना मकता श ा- ि या, कूल के प रवेश तथा इस
सबसे भी बढ़कर छा के म त क को बु बनाने क श क क मता
का प रणाम होती है। श क समुदाय ही व तुत: बु नाग रक का
िनमाता है। महान श ािवद डॉ. सवप ी राधाकृ णन् के अनुसार, “देश के
े मन-म त क वाले यि य को ही श क बनना चािहए।” 16
एक श क का जीवन कई दीप को व लत करता ह
हमारे ाथिमक एवं मा यिमक िव ालय म लगभग पचास लाख श क
कायरत ह। इनम से अ धकांश देश के िव भ भाग म फैले छह लाख गाँव
म श ण काय करते ह। गाँव म कूल संबध ं ी सुिवधाएँ दान करना ही
पया नह है, ब क वहाँ पढ़ाई- लखाई का सम वत वातावरण सुलभ
कराना भी ज़ री है, साथ ही सभी प रवार के लए एक ऐसा आ थक
वातावरण भी ज़ री है, तािक श क एवं छा , दोन म ही गाँव म रहने
का आकषण बना रहे। श क म एक वाभािवक वृ अपना थानांतरण
शहरी े म करवाने क देखी जाती है। उ ह लगता है िक बड़े शहर म ही
वे अपने ब को ठीक से पढ़ा- लखा सकगे। वे यह भी महसूस करते ह िक
शहरी े म उपल ध सुिवधाओं के बीच ही वे अपने ान क ीवृ कर
सकते ह।
सरकार को इस सम या क ओर अिवल ब यान देने क आव यकता है।
इस हेतु एक यापक काय म बनाया जाना चािहए, तािक गाँव म िनयु
इन श क के जीवन को आरामदायक एवं आकषक बनाया जा सके। ऐसा
ामीण े म शहरी सुिवधाएँ दान करके िकया जा सकता है। इसके लए
भौ तक, इले टोिनक तथा ान-संब ता (knowledge connectivity)
का सार करना होगा, तािक गाँव म आ थक समृ हो । 17
ौ ोिगक -आधा रत अ यापन
शहरी एवं ामीण, दोन े के हमारे कूल अनुभवी श क क कमी क
सम या से जूझ रहे ह, य िक त यि श क क उपल धता अ यंत
कम है । क ाओं म औसतन चालीस से साठ तक छा रहते ह, जबिक
उनके बीच सफ एक श क होता है। उस एक श क के लए यह असंभव
है क चालीस िमनट क अव ध म सभी छा पर बराबर यान दे सके।
इससे गुणव ा पर असर पड़ता है तथा उवर म त क वाले छा क
पहचान नह हो पाती है। कभी-कभी तो छा कूल ही छोड़ देते ह।
इस सम या के समाधान म ौ ोिगक मददगार हो सकती है। ौ ोिगक
उपकरण एवं तरीय श क के मेल से इस अंतर को समा िकया जा
सकता है, जससे पढ़ाई म छा क च जगायी एवं कायम रखी जा
सकेगी । 18
श क-िदवस मनाएँ
डॉ. सवप ी राधाकृ णन् हमारे देश के रा प त भी रहे ह और एक े
अ यापक भी। उनका ज मिदन 5 सत बर है। जब भी कभी उनसे उनके
ज मिदन को सावजिनक प से मनाने क बात कही जाती थी तो वे कहते
िक मेरा ज मिदन नह , 5 सत बर को अ यापक िदवस ही मनाएँ जससे
सभी अ यपक को स मान िमले। 20
छा को तो यह िदन बड़े उ साह से मनाना ही चािहए, मेरी ि म छा के
अ भभावक को उतने ही उ साह से भाग लेना चािहए। देश के येक
कूल म 5 सत बर को अ यापक िदवस बड़े उ साह से आयो जत कर।
उस िदन हम अपने अ यापक का स मान कर िक कैसे उनह ने पूरा जीवन
देश क भावी-पीढ़ी के िनमाण म लगाया है और उनके पढ़ाए हुए छा िकस
कार देश के भावी नाग रक बनकर समाज और देश क सेवा कर रहे ह।
उस िदन िवशेष
उपल धय के लए जन अ यापक को हम स मािनत करते ह, उससे
अ य अ यापक भी ेरणा लेते ह। यही अ यापक िदवस का उ े य है। 21
अंतत: श ा का उ े य है-स य क खोज। इस खोज का के अ यापक
होता है जो अपने िव ा थय को श ा के मा यम से जीवन म और यवहार
म स ाई क श ा देता है। छा को जो भी किठनाई होती है, जो भी
ज ासा होती है, जो वे जानना चाहते ह, उन सब के लए वे अ यापक पर
ही िनभर करते ह। उनके लए उनका अ यापक एक तरह से
ए साइ ोपी डया है जसके पास सभी के उ र ह।
यिद श क के मागदशन म येक यि श ा को उसके वा तिवक अथ
म हण कर मानवीय ग तिव ध के येक े म उसका सार करता है तो
मौजूदा 21व सदी म दिु नया काफ सुद
ं र हो जाएगी। 22
श ा का उ े य
जब ान- ाि का मक़सद
तय होता है तो सृजनशीलता पनपती है।
सृजनशीलता के फलने-फूलने
से सोचने-समझने के रा ते खुलते ह।
सोचने-समझने के माहौल
म ान का काश फैलता है।
जब ान का काश फैलता है तब
अथ यव था
फलती–फूलती है 1
श ा का उ े य
ब क मु कुराहट बनी रहे
न ह ब को आप हमेशा मु कुराते हुए पाते ह। कतु जब वे कध पर ब ता
ढोते हुए ाइमरी कूल जाने लगते ह तब उनक मु कुराहट कम हो जाती
है। जब वे सेकंडरी कूल म पहुँचते ह तो उनक मु कुराहट और भी कम हो
जाती है। हायर सेकंडरी कूल म तो उनक मु कुराहट गायब ही हो जाती
है।
कॉलेज पहुँचने पर वे अ धक गंभीर हो जाते ह और कॉलेज के बाद वे
लगातार च तत रहने लगते ह। इस चतनीय अव ध के दौरान ब े और
माता-िपता के मन म िकसी खास पेशे को अपनाने म होने वाली तयोिगता
और उससे जुड़ी िव ीय संभावना संबध ं ी बाते छायी रहती है। हम सभी को
इस सम या का समाधान ढू ँ ढना है।
या हम ऐसी श ा णाली का िनमाण नह कर सकते जसम पढ़ाई शु
करने से लेकर रोजगार पाने तक, संपूण अव ध के दौरान ब के चेहरे पर
मु कुराहट बनी रहे ? या ऐसा करना संभव है? जी हाँ, संभव है, यिद हम
संपूण श ा णाली को सृजनशील बना द और झान तथा मता के
आधार पर सभी यव ु क को पूण रोजगार उपल ध करा सक।
ाइमरी कूल के तर पर िकताबी पढ़ाई के बोझ को कम करके श ा
णाली म सृजनशीलता को ो सािहत िकया जा सकता है। सेकंडरी कूल
के तर पर ब क सृजनसशीलता म और िनखार लाया जा सकता है।
अंतत: उ श ा ा कर छा वावल बी बन, जससे वे उ मशील ह
और रोजगार खोजने के बजाय खुद रोजगार पैदा कर। 2
श ा ान और बु के रा ते से गुज़रने वाली एक अनंत या ा है
ाइमरी तर पर श ा ब के अपने प रवेश के त च जगाए और
चतन ि या का द तकारी तथा शारी रक कौशल से संबध ं थािपत करे।
ायमरी श ा म पा म, पढ़ाने के तौर-तरीके और परी ा णाली म
सुधार क आव यकता है तािक ब म सृजनशीलता खले और िनखरे।
िव भ कार क ग तिव धय के मा यम से ब म छपी तभा को
उभारने, कुछ नया कर िदखाने और सृजनशीलता िनखारने पर जोर िदया
जा सकता है। सेकंडरी कूल के तर पर योग, सम या िनदान और टीम
ग तिव ध पर बल देना चािहए। 3
क ा म पढ़ाई जतनी मह वपूण है उतना ही मह वपूण यह है िक क ा के
बाहर ब े वयं के अनुभव के आधार पर या सीख रहे ह। ब को े ण,
े अ ययन, योग और प रचचा के मा यम से सीखने क ि या म
सि य प से भाग लेना चािहए। इस मक़सद को पाने के लए िव ालय को
श ा क क जगह अपने आपको ऐसे क के प म ढालना चािहए जहाँ
ान के साथ-साथ कौशल ा िकया जा सके । 4
श ा णाली म इस बात पर बल देना चािहए िक छा व- ेरणा से सीखने
यो य हो जाए
माता-िपता क भूिमका
ब को श त और तेज वी नाग रक बनाने म माता-िपता क मह वपूण
भूिमका होती है। उ ह अपने ब क अ छी श ा के त सजग रहने क
आव यकता है। ब के सामने माता-िपता को अपने यवहार और आचरण
क िमसाल रखनी चािहए। इससे ब के मन म माता-िपता के त ेम
और ा का िवकास होगा तथा वे उ ह अपना आदश मानंगे। 5
सामूिहक िमशन
ब े जब तक स ह साल के होते ह तब उ ह सँवारने का सामूिहक िमशन
माता-िपता, श क , घर एवं िव ालय प रसर के ज मे होता है। िकसी ब े
को बु नाग रक बनाने म िपता, माता और श क क भूिमका मह वपूण
होती है।
घर म ब का लालन-पालन बड़े यार और नेह से िकया जाता है। कतु
जब वे थोड़े बड़े होकर िव ालय जाने लायक होते ह तो उ ह मू य
आधा रत श ा क ज़ रत होती है। ऐसी श ा िव ालय म दी जाती है।
िव ालय के माहौल का बड़ा मह व है जहाँ ब का च र िनमाण िकया
जाता है। ब के लए सीखने क असली अव ध पाँच से लेकर स ह वष
क उ तक होती है। इस अव ध के दौरान छा लगभग 25,000 घंटे
िव ालय म रहते ह। जहाँ घर म नेह और ममता का माहौल होता है वह
िदन का अ धकांश समय अगले िदन के लए होमवक तैयार करने, पढने,
खाने-पीने, खेलने और सोने म बीत जाता है। इस कार ब के लए
िव ालय का समय सबसे अ धक िनमाण का समय होता है। अतएव
िव ालय का माहौल सबसे खूबसूरत होना चािहए। िव ालय म मू य
आधा रत श ा दी जानी चािहए जसका कुछ िमशन हो। उदार और
पारदश समाज के िनमाण के लए िव ालय प रसर म बारह साल तक
मू य आधा रत श ा दान करना अिनवाय है। मुझे यन ू ानी श क
बे टोलोजी का कथन याद आता है-“सात साल तक कोई ब ा मेरी
िनगरानी म रहे, िफर भगवान हो या शैतान, कोई उसम प रवतन नह ला
सकता।” ऐसी मता एक श क म ही हो सकती ह। 6
िव ालय क भूिमका
ब म सृजनशीलता बढ़ाने, पढ़ाई म च बनाए रखने और िव ालय
छोड़ने क दर म कमी लाने के लए देश म कई श ा मॉडल चलाए जा रहे
ह।
सीखते रहने का संक प
ो. एम. आर. राजू, आं देश के भीमावरम के पास अपने पु तैनी गाँव,
पे ामीरम म रहते ह। ो. राजू क जदगी वाकई इस बात का एक बेहतरीन
उदाहरण है-िकस तरह अमरीका म काम करने वाले एक जाने माने
ना भक य वै ािनक ने अपनी नौकरी छोड़ी और लौट आए अपने गाँव।
अपने प रवारजन क मदद से पे ामीरम गाँव और उसके आसपास के
इलाके क हालत सुधारने क ढ़ इ छाशि के साथ वे लौटे थे।
अपनी खुद क पूँजी से उ ह ने गाँव म महा मा गाँधी मेमो रयल मे डकल
ट ट शु िकया। दस साल म उ ह ने भारत और दस ू रे देश के कई
सं थान से आए वयंसेिवय क मदद से गाँव के लोग क ज़दगी को
बदल कर रख िदया है।
उ ह ने तीन से पाँच साल तक के ब के च र िनमाण पर खासतौर से
ज़ोर िदया। गाँव म इस उ के सौ ब े ह। इनम से पचास ऐसे घर से ह
जनक आमदनी अ छी है और ये ाइवेट कूल म पढ़ते ह। वही तीस
बहुत गरीब प रवार से ह जो बालवाडी कूल म पढ़ते ह जसे रा य
सरकार चलाती है। शेष बीस ब े ोफेसर एम. आर. राजू के कूल म पढ़ने
आते ह। इधर कूल म ब के माता-िपता को एक िदन क आधी िदहाड़ी
एक ब े क फ स के तौर पर देनी होती है, जबिक लड़िकय क फ स दस
पये तमाह है।
इस कूल म खेलकूद भरे माहौल, खाने-पीने क चजो और यारभरी
देखरेख पर ज़ोर िदया जाता है। यहाँ ब को सफाई और वा य के त
सजग बनाया जाता है। उदाहरण के तौर पर उ ह बताया जाता है िक खाने
से पहले हाथ धोने का या मह व है। कूल म साफ-सुथरे रहने के संबध
ं म
बताए जाने से वे इतने सजग हो जाते ह िक वे घर म िकसी भी सद य को
हाथ धोए िबना खाना नह खाने देते।
श क जब ब से िमलते ह तो वे उनके साथ वै ािनक जैसा यवहार
करते ह। इससे ब म सृजनशीलता पनपती है। ब को अं ेजी वणमाला
का अ र “B” िदखाकर पूछा जाता है िक इसे देखकर उ ह या समझ
आती है, तो वे कहते ह िक यह च मे जैसा लगता है। इसी कार आँ ख या
ह ठ का आरेख ख चने पर ब े पूरे चेहरे क त वीर बना देते ह। इससे ब
क सृजना मक मता य होती है।
जब एक बार ये ब े ो. राजू के कूल म तीन साल तक पढ़ लेते ह तो उ ह
पढ़ने म मजा आने लगता है और िफर वे अपनी पढ़ाई पूरी होने से पहले
कूल जाना बंद नह करते। इससे गाँव का माहौल ही पूरी तरह से बदल
गया है और ब के कूल छोड़ने क दर म भी कमी आयी है। इस गाँव और
आसपास के इलाके म आ मिव ास से भरी यव ु ा पीढ़ी का उदय हो रहा ह।
या हम एक ऐसी श ा- णाली का िवकास कर सकते है जसम ब के
चेहरे पर मु कान बनी रहे
ो. राजू और उनके साथी जस िव ध से ब को सखाते ह उसे बाल
मनोवै ािनक और श ािवद ने तैयार िकया है। इस िव ध से ब े िनयिमत
प से कूल म भत होने से पहले सीखने के लए ज ासु हो जाते ह और
जब वे कूल म भत होते ह तो बड़े जोश से पढ़ाई करते ह। कई दस
ू रे
कूल भी अब इसी रा ते पर चल पड़े ह। 7
आजीवन िव ाथ
ब म समझ-बूझ पैदा करने वाले सभी गुण के िवकास के लए अज़ीम
ेमजी फाउं डेशन ने रा य सरकार एवं िव भ बहुआयामी संगठन के
साथ िमलकर ऐसे कूल खोलने क शु आत क है जनम ब का मन
लगा रहे। इस काय म का मु य उ े य है िक ब े कूल म दा खला ल,
और कम से कम पाँच वष तक कूल म पढ़। यह काय म ठीक से चल रहा
है। इसके मु य कारण ह- श क , गाँव के बुजुग और कूल सिम त
सद य क तब ता। इस काय म के तहत कई कार के उपाय िकए
जाते ह जससे क ा क ग तिव धय को बढ़ावा िदया जाता है और पढ़ाई-
लखाई के काम क देखरेख के लए शै णक शासन के साथ-साथ
समाज को सबल बनाने म सहयोग िदया जाता है। इस काय म के तहत
क ा, पेयजल, सफाई और ब के शारी रक-मान सक-सामा जक
वा य क देखरेख संबध ै ा कराने क को शश क
ं ी तरीय सेवा मुहय
जाती है। ऐसे पा म पर ज़ोर िदया जाता है जसम लग-भेद समा
करने के त संवेदनशीलता,सा रता, अंक ान, जीवन के लए उपयोगी
ान, झान और कौशल तथा समझ-बुझ बढ़ाने वाले काम पर यान िदया
जाता है ।
िव ालय म दी जाने वाली श ा जीवन-मू य पर आधा रत और सो े य
होनी चािहए
शु म ही यिद ऐसी िव ध से ब को सीखने के लए तैयार कर लया जाता
है जसम वे हँसते-खेलते हुए सीख और उ ह परी ा का कोई डर न हो तो
वे खुद ही सीखने म च लेने लगते ह। 8
व- ेरणा से सीखना
आज के संचार और सूचना के यगु म छा के पास िव भ त से ा
सूचनाओं का जमावड़ा है। इंटरनेट के मा यम से पूरे सूचना संसार तक
पहुँच होने के कारण आज के छा के लए यह संभव हो गया है िक वह एक
अ छे खासे पु तकालय को अपने साथ लैपटॉप कं यट ू र म लेकर घूमे। अब
उ ह अपने िदमाग के भंडार का िवशेष उपयोग करने और याददा त पर बल
देने क आव यकता नह है। अब श ा णाली म इस बात पर बल देना
चािहए िक छा सूचना के अथाह सागर म से उपयोगी ान के मोती चुनने
म श त हो जाएँ । इस िदशा म श क को छा का मागदशन करना
चािहए और वे छा म ऐसा हुनर पैदा कर द िक छा व- ेरणा से सीखने
लग।
श ािवद म कूल और कूली श ा के त एक नया ि कोण िवक सत
हो। उनम एक ऐसे शै णक प रवेश क क पना हो जसम सखने के तौर-
तरीक को अपनाकर छा खुद सखने के कािबल हो जाय। छा को खुद
सीखने लायक बनाने के लए हम भाषण क घु ी नह िपला सकते, इसे
यवहार म अपनाकर ा िकया जा सकता है। और िवक सत िकया जा
सकता है। कूल छा म यह गुण पढ़ाने के तौर-तरीक से ही िवक सत कर
सकता है । 9
औ े े औ ो
माता-िपता और श क के सामने घर और िव ालय दोन का साझा
िमशन होना चािहए
तभा क पहचान
जमनी म ज म लेने वाले अ बट आइं टाइन एक यवु ा छा के प म पढ़ने
के लए वी जरलड के यू रख पॉलीटे नक सं थान गए। इस सं थान
म वेश पाने के लए हाई कूल का ड लोमा ज़ री नह था, सफ इसक
किठन वेश परी ा म पास ेड़ िमल जाना चािहए। आइं टाइन इस वेश
परी ा म असफल हो गए, कतु ग णत और भौ तक म उ ह काफ उ
अंक ा हुए। इससे इस सं थान के सपल इतने भािवत हुए िक
उ ह ने आइं टाइन को अगले स म िबना िकसी वेश परी ा के भत
करने का वादा िकया।
इस घटना से िकसी सं थान म वेश के लए लचीले तौर-तरीक के मह व
पर काश पड़ता है। साथ ही श क म ऐसी िवशेष मता होनी चािहए िक
वे िकसी खास िवषय म छा क च को परख सक और उसक तभा
को उस िदशा म िनखार सक । 10
हम जैसा समाज बनाना चाहते ह हम वैसी ही श ा देनी चािहए
श ा का िमशन
बचपन से लेकर जीिवकोपाजन के लए वृ त अपनाने तक हमम से येक
पढ़ाई- लखाई के कई दौर से गुजरते ह। शशु, िकशोर और वय क से लेकर
नेता बनने तक क कई अव थाओं के य मेरे मन म वैसे ही घूम रहे ह।
सभी लोग के जीवन म अपनी आव यकता को पूरा करने क चुनौती होती
है, कतु हमम से येक यि इसे अलग-अलग तरीके से पूरा करते ह।
शशु दसू रे से मदद क अपे ा रखता है। िकशोर कोई काम अपने बल पर
करना चाहता है। यव ु क कोई काम लोग के साथ करना चाहता है, कतु एक
सुयो य नेता लोग क मदद के लए तैयार रहता है।
श ा णाली का यह दा य व है क वह एक शशु को सुयो य अगुआ
बनाए-उसे ‘दसू रे से मदद चाहने वाले’ क जगह ‘दस
ु रे को मदद करने
वाला बनाए’।
इसके लए कूल-कॉलेज के सपल को दरू ि संप होना चािहए। साथ
ही उसम ब को े रत करने क मता हो। सपल को यह सुिन त
करना पड़ेगा िक श क छा को इस तरीके से पढ़ाए िक छा क
बेहतरीन तभा उभरकर सामने आए। इसके लए सपल को खुद एक
सुयो य श क बनना पड़ेगा। सपल, श क एवं माता-िपता के सामूिहक
यास से छा म सव म सृजनशीलता पनपेगी। 11
डॉ. सवप ी राधाकृ णन के अनुसार – “हम जैसा समाज बनाना चाहते ह
हम वैसी श ा देनी चािहए। हम चाहते ह िक हमारा आधुिनक लोकतं
मानवीय ग रमा और गुण पर आधा रत एक सि य लोकतं हो। िफलहाल
तो ये बात महज़ आदश ह कतु हम इ ह साकार करना चािहए।” 12
इ सव सदी म श ा का मॉडल
एक द ु त श ा मॉडल समय क माँग है। वह यह सुिन त करे क छा
बड़े होकर रा क आ थक ग त म सहयोग द।
पूरी श ा णाली छा म मता जगाने वाली हो। इसके पाँच पहलू ह-
अनुसंधान और ज ासा, सृजन शलता और नवीनता, उ - तरीय
तकनीक के उपयोग क मता, उ मशीलता और नै तक नेतृ व।
अनुसंधान और ज ासा : हमने अभी तक जो ान और सूचना अ जत क
है, इ सव सदी म इसका सही कार से बंधन करने के साथ-साथ
उसम हम मानवीय मू य जोड़ सकते ह। हम अपने छा म ऐसी
कािब लयत भर द िक हमने जो ान का संसार रचा है और उसम उ भर
इजाफा करते रहे ह उसके बीच वे सही रा ते क तलाश कर सक। आज
ौ ोिगक के सहारे हम सही अथ म जीवनभर सीखने लायक बन सकते
ह। थायी आ थक ग त के लए ऐसी मता का होना आव यक है।
सृजन शलता और नवीनता : हमारे पास बेहद ख़ुशी देने वाला सूचना
संसार है। जब सूचना को नेटवक के मा यम से उपल ध कराया जाता है तो
इसक मता और उपयोिगता म िदन दगु नी रात चौगुनी वृ होती है, जैसा
िक मैटकाफ के िनयम म पूवानुमान लगाया गया। इ सव सदी म उपल ध
सूचना के िवशाल सागर का बंधन िकसी आदमी के बल-बूते क बात नह
है। इसे यि के हाथ म समटने के बजाय नेटवक के मा यम से उपल ध
करना होगा। छा को यह सीखना चािहए िक सामूिहक प से ान का
बंधन कैसे िकया जाए।
हमने अभी तक जो ान और जानकारी अ जत क है, इ सव सदी म
उसे बंधन और मानवीय मू य से जोड़ने क आव यकता है
उ - तरीय ौ ोिगक के उपयोग क मता : सभी छा को अपने
सीखने क िकया को आगे बढ़ाने के लए सबसे उ त ौ ोिगक का ान
होना चािहए। िव िव ालय को चािहए िक वे छा को पया कं यट ू र
सुिवधा, योगशाला सुिवधा, इंटरनेट सुिवधा तथा उनम समझ-बुझ क
ै ा कराएँ । नवीन ौ ोिगक एवं सूचना ां त
मता बढ़ाने वाला माहौल मुहय
के आने से हम ऐसा नह मान सकते िक श क क भूिमका कमजोर पड़
जाएगी, ब क पूरी दिु नया म श ा णाली श क के सहयोग से चलेगी
य िक ौ ोिगक क मदद से कािबल श क देश के कोने-कोने म ान
फैला सकते ह।
उ मशीलता : ब म उ मशीलता के त झान बचपन से ही पैदा
करना चािहए और यह यास िव िव ालय तर तक करना चािहए। हम
अपने छा को सखाना चािहए िक वृहत् लाभ के लए वे सोच-समझकर
जो खम उठाएं , कतु यापार म सदाचार का भाव हो। वे अपने म उ चत
काय करने क वृ िवक सत कर। इस मता के सहारे वे जीवन म आगे
चुनौतीपूण काय करने के लायक हो सकगे।
नै तक नेतृ व : नै तक नेतृ व के दो पहलू ह। इनके तहत पहली
आव यकता है िक मानव जीवन को बेहतर के लए स मोहक और सश
सपने ह । दसू री आव यकता यह है िक आपम वयं उ चत काय करने और
दस
ू र को ऐसा करने के लए े रत करने क वृ हो।
सं ेप म, ज ासा, सृजनशीलता, ौ ोिगक ,उ मशीलता और नै तक
नेतृ व जैसी पाँच मताओं का िवकास श ा ि या के मा यम से िकया
जाना चािहए। यिद इन पाँच मताओं का िवकास हम अपने छा म करते
ह तो हम अपने बल-बूते पर सीखने वाले लोग का िनमाण करगे (अपने
बल-बूते पर सीखने वाल का मतलब है- व- ेरणा से, जीवनभर आ म-
िनयंि त रहकर सीखने वाले) । इनम अपने से बड़ के त स मान होगा
और साथ म वे उ चत ढंग से उनसे भी करने म समथ ही सकगे। ऐसे
नेता ‘ वयं संगिठत नेटवक’ के प म सामूिहक तर पर काम करते ह।
इनम िकसी भी देश को एक खुशहाल देश बनाने क मता होती है।
वा तिवक श ा मानवीय ग रमा और यि के वा भमान म वृ करती है
तथािप, श ा क सबसे मह वपूण भूिमका यह है िक वह छा म ‘हम यह
कर सकते ह’ का भाव भरे। 13
श ा रोजगार देने वाली हो
उपयोगी हुनर सखाना
हालांिक अ र-अंक ान होना िकसी नाग रक के लए अिनवाय है, िफर भी
सफ़ इसी क बदौलत लाभकारी रोजगार िमलना संभव नह । जन लोग ने
केवल हाई कूल तक पढ़ाई क है उनम सही और आ थक प से उपयोगी
हुनर का होना ज़ री है। देश म ऐसे नौजवान क काफ बड़ी तादाद है।
उ ह रोजगार पाने या अपना कारोबार शु करने के लए श त िकए
जाने क आव यकता है। उ ह िविनमाण, मर मत, होटल, वा य सेवा,
फुटकर कारोबार या िफर इले ट शयन, बढ़ई के काय म श त िकया
जा सकता है। आधुिनक तयोगी अथ यव था म तरीय हुनर क
आव यकता है और हमारा दा य व है िक हम अपने नाग रक को ऐसे हुनर
म हो शयार बनाएँ । 14
उ िमय का िनमाण
देश म उ श ा म काफ िव तार हुआ है। येक वष तीस लाख से
अ धक नातक तैयार होते ह। कतु हमारे यहाँ इतने रोजगार के अवसर
नह ह क इन सभी नातक को रोजगार िमल सके। फल व प श त
बेरोजगार क सं या म बढ़ोतरी होती जा रही है। इसका एक कारण यह भी
है िक आधुिनक अथ यव था म जस तरह के हुनर क आव यकता होती
है और हम जो श ा दी जाती है उसके बीच काफ असंतुलन है। इससे
सामा जक यव था म असंतुलन पैदा होना तय है। हम रोजगार िदलाने
वाली उ श ा क आव यकता है। श ा को अ धक आकषक बनाने के
साथ-साथ ईसम रोजगार क संभावना बढ़ाने के लए बहुआयामी रणनी त
अपनाने क आव यकता है। आ खर, हम इसके लए कौन-सी प त
अपनाएं गे ?
श ा णाली के ऊपर एक बड़ी ज मेदारी है क वह ब े को नेतृ व दान
करने वाला नाग रक बनाए-‘मदद क चाहत रखनेवाले’ क जगह ‘मदद के
लए त पर यि ’ बनाए
श ा णाली म उ मशीलता के मह व पर काश डालना चािहए और
कॉलेज से ही छा को तैयार िकया जाना चािहए िक वे अकेले या लोग के
साथ िमलकर छोटे-मोटे उ ोग-धंधे शु कर सक। इससे धन पैदा करने के
लए उनम सृजनशीलता, वतं ता और मता का उदय होगा। िव भ
कार के हुनर और काम करने क मता से यि उ मी बनता है। ये
कौशल सभी छा को सखाया जाना चािहए। 15
छा क आकां ा
आज क यव ु ा छा -पीढ़ी ऐसी श ा णाली चाहती है जो उसके खोजी
और सृजनशील मन को सबल बनने के साथ-साथ उसके सामने चुनौती
तुत करे। देश का भिव य उन पर िटका हुआ है। वे वतमान म श ा
णाली के संबध ं म सोच-िवचार करना चाहते ह। एक अ छी श ा णाली
म ऐसी मता होनी चािहए जो छा को ान ाि क ती ज ासा को
शांत कर सके। 16
श ा का सबसे मह वपूण पहलू है िक वह छा म ‘हम ऐसा कर सकते ह’
का भाव भर दे
शै णक सं थान को ऐसे पा म बानाने के लए खुद को तैयार करना
चािहए जो िवक सत भारत क सामा जक और ौ ोिगक संबध ं ी
आव यकताओं के त संवेदनशील हो। वतमान पा म म िवकास
काय म छा क ग तिव धय को अिनवायत: थान िदया जाना चािहए
तािक ान समाज क भावी पीढ़ी पूरी तरह से सामा जक प रवतन के सभी
पहलुओ ं के अनुकूल हो सके।
श ा ान और बु के रा ते से गुजरने वाली एक अनंत या ा है। ऐसी
या ा से मानवता के िवकास के नए दरवाजे खुलने लगते ह जहाँ संक णता,
कलह, इ या, घृणा और श ुता को कोई थान नह । इससे मानव का
यि व संपूण, िवन और संसार के लए उपयोगी बनता है। सही श ा से
मानवीय ग रमा, वा भमान और िव -बंधु व म बढ़ो री होती है। ये गुण
श ा के आधार होते ह। 17
सृजनशीलता और नवीनता
एक तेज वी म त क
इस धरती पर,
धरती के िनचे
या ऊपर आसमान म
सबसे सश संसाधन है 1
सृजनशीलता और नवीनता
मन क सुंदरता से सृजनशीलता
मन क सुंदरता से सृजनशीलता पैदा होती है। िकसी भी देश के िकसी भी
िह से म, कह भी िमल सकती है यह। मछुआरे क झ पड़ी, िकसान के घर,
द ू धए क डेयरी, मवे शय के जनन क या िफर क ाओं, योगशालाओं,
उ ोग और अनुसंधान तथा िवकास क —कह से भी शु हो सकता है
सृजनशीलता का सल सला।
कुछ नया खोज िनकालने या पहले से मौजूद िकसी चीज़ को नये ढंग से पेश
करने जैसे सृजनशीलता के बहुत से पहलू ह। पहले से मौजूद िवचार म
कुछ जोड़ या घटाकर, उनम बदलाव लाकर या उनका नये ढंग से योग
करना सृजनशीलता से ही संभव होता है। नयेपन और बदलाव
को वीकार करना, िवचार और संभावनाओं से खेलना, नज रए का
लचीलापन, हर अ छी चीज को और बेहतर बनाने के बारे म सोचते हुए उसे
अपनाने क आदत सृजनशीलता क पहचान है। अपने काम को पूरी लगन
से करते हुए धीरे-धीरे अपनी सोच के ज रए उसम बदलाव और बेहतरी
लाने का सल सला ही सृजनशीलता है। जो चीज दस ू र को जैसी नजर
आती है उसे वैसे ही देखते हुए उसके बारे म अलग ढंग से सोचना
सृजनशीलता का अहम् पहलू है।
मानव मन कुदरत क एक अनोखी देन है। सोचने-िवचारने क शि को
अपनी पूँजी मानकर चल, भले ही जदगी म कैसे भी उतार-चढ़ाव य न
आएं । चतन ही ग त है। चतन से रिहत होना िकसी यि , सं था और
देश के लए िवनाशकारी होता है। चतन या िवचार से जीवन म सि यता
आती है। िबना सि यता वाला ान बेकार और बेमानी है। ान के साथ
सि यता भी हो तो खुशहाली आती है। 2
मानव म त क क सृजना मक और क पनाशील मता हमेशा िकसी
कं यट
ु र से आगे ही रहेगी
सृजनशीलता को ो साहन
इसम कोई शक नह िक हर इंसान के िदमाग म सृजनशीलता के बीज
मौजूद होते ह, कतु उ ह अंकु रत और अ भ य करने के लए मन से
यास करना पड़ता है। हर एक इंसान सृजनशील है, हर मन म ज ासा
होती है और हम चािहए िक जब कोई ब ा करे तो हम उसक ज ासा
को ज़ र शांत कर। श क और माता-िपता क यह बुिनयादी िज़ मेदारी
है। यिद बचपन म ही ऐसा िकया जाए तो सृजनशीलता पोिषत होगी और
ब का बौ क िवकास होगा।
मन क सुंदरता से ही सृजनशीलता पैदा होती है। सृजनशीलता िवचार को
कलाकृ त, कहानी या किवता म बदल देती है।
सीखने से सृजनशीलता आती है
सृजनशीलता सोचने क राह बनाती है
सोचने से ान ा होता है
ान यि क महान बनाता है। 3
\
सृजनशीलता का पोषण
ं म केरल के सुदरू ामीण े के लवलीजेन नामक यव
इस संबध ु क का
िज़ करना उ चत होगा। वह िव ान का छा था और अपना ेजुएशन पूरा
नह कर सका। उसने मुझे प लखा क उसने ग णत क एक नए थयॅरी
क खोज क है और वह मुझे िमलना चाहता है। मुझे प के मा यम से उस
लड़के क बात म स ाई जान पड़ी। चूँिक उसने मुझे प लखा था,
इसी लए मुझे लगा क िवशेष का एक दल, उसक खोज पर गौर करे
और उ चत अनुसंधानकताओं से उसे िमलाये। इसी लए कुछ िदन के लए
मने उसे िद ी बुलाया।
सृजनशीलता है िकसी भी चीज को अलग ढंग से देखना
उसके काम को देखकर म आ य से भर उठा। उसके िन कष रामानुजम क
नंबर थयॅरी के समीकरण जैसे थे। कतु रामानुजम के समीकरण क उसे
पहले से जानकारी नह थी। उसक खोज रामानुजम क थयॅरी से तो
िमलती-जुलती थी ही, साथ ही उसने इसम कुछ नई बात भी जोड़ी थ ।
अतएव उसके िन कष म नयापन था। एक बड़ी सीमा तक ग णत के े म
खोज कृ त के मनोरम रह य को देखने क इ छा का प रणाम होती है।
इसी भावना से े रत होकर ाचीनकाल से खगोलिव सतार से भरे
आकाश क घटनाओं म िदलच पी लेते रहे ह। कृ त क घटनाओं को
जानने क आकां ा मनु य म ज मजात होती है, भले ही वह ग णतीय
ृख
ं ला या अनु म के प म अ भ य हो। यह उ ेख काफ िदलच प
होगा क लवलीजेन इन िदन पावर सी वे स और सीरीज़ जैसे आकषक
िवषय म रमा हुआ है। मने महसूस िकया िक उसे ग णत क अ छी श ा
और अ छे श क क देखरेख क ज़ रत है, जैसे ो. हाड ने रामानुजम
क देखरेख क थी। ऐसे उ साही यव ु क को हम कैसे ो सािहत कर? या
हमारे श क, समाजसेवक अथवा सामा जक कायकता ऐसी यव ु ा
तभाओं क पहचान कर उनके िवकास म मदद कर सकते ह? 4
सृजनशीलता क कोई सीमा नह
म जाने-माने राजनी तक काटू िन ट ी के. शंकर क दरू ि क सराहना
करता हूँ िक उ ह ने ब म सृजनशीलता के िव भ पहलुओ ं से जुड़ी
संभावना को देखा।
मन क सुंदरतासे ही सृजनशीलता पैदा होती है
म अड़सठ देश के ब के बनाए च को देखते हुए हैरत म पड़ गया। ब
ने च कला, किवता, कहानी और लेख म असाधारण तभा का दशन
िकया। जहाँ बड़े होकर लोग देश-सीमा, जाती-धम और अमीर-गरीब संबध ं ी
बात करने लगते ह, वह इन ब क रचनाओं म सीमा और संक णता क
कोई जगह नह । ब का मन िनमल होता है जसम भेदभाव क गुज ं ाइश
नह । दिु नया क इस नई पीढ़ी को देखकर वाकई उ मीद जगती है और मेरा
भरोसा बढ़ जाता है िक यह पृ वी उनके हाथ म सलामत रहेगी । जतने
ब क रचनाओं को देखने का मुझे मौका िमला, वे सभी मेरी मृ त म वष
तक तरोताजा बने रहगे। यहाँ म इनम से कुछ क चचा करना चाहता हूँ।
जो सपने देखते ह और उ ह सच करने क िह मत रखते ह उ ह दिु नया
स मान और नेह देती है
जमनी क ऐं थया यू स क प टग देखकर मुझे बेहद खुशी हुई। उसने
ई टर के िदन ामीण अंचल के खुशनुमा य को चि त िकया है। उसने
जो चटक रंग चुने, उ ह देखकर मुझे समु के िकनारे बसे अपने गाँव क
याद आ गयी, जहाँ मेरा बचपन बीता। भारत क चौदह वष या सुजाता
च वत ने अपनी एक कहानी म म यवग य नै तकता को पा रवा रक
प रवेश म अ भ य िकया है और यह भी िदखाया है िक चुनाव के दौरान
वोट कैसे ख़रीदे जाते ह। साफ है क उसका यव ु ा मन बदलाव चाहता है।
तेरह साल क आ ा कृ णा ने भी खूब िदमाग लगाया है और अपनी क पना
को खुलकर उड़ने क छूट दी है। उसने यह क पना क है िक सन् 3000
ई वी के आसपास पृ वी पर कैसा नजारा होगा। उसक क पना के
मुतािबक नाग रक को मजबूरन मंगल ह पर जाकर बसना पड़ेगा जहाँ एक
पूरी स यता फल-फूल रही होगी। इंसान क बनायी इस उ त स यता पर
एक िवनाशकारी ाकृ तक घटना का खतरा अचानक मँडराने लगता है—
वृह प त क ओर से एक ए टेरॉयड यानी ु ह से ट र का खतरा । तब
मंगल के वै ािनक अपनी और बढ़ रहे इस ु ह पर ना भक य ह थयार
क बौछार करने का एक नायाब तरीका खोज िनकालते ह। इस बमबारी से
वह ु ह न हो जाता है और इस तरह सन् 3000 म कृ त के तांडव के
बावजूद वै ािनक सूझबूझ से मंगल क स यता का कुछ नह िबगड़ता।
िकतनी बिढ़या वै ािनक सोच है आ ा कृ णा क !
स क बारह वष या ब ी अ ा स याकोवा क किवता ‘नेवर थक ऑफ़
इलनेस’ यानी ‘बीमारी का याल न लाओं’ भी अदभूत है। कोई भी
मह वपूण काम करते समय म हमेशा मान बैठता था िक कोई न कोई
सम या ज र आएगी, लेिकन सम याओं को हावी नह होने देना चािहए।
मेरी सलाह, खासतौर से ब के लए, यही है िक सम याओं पर काबू
पाकर सफल होना चािहए। अ ा स याकोवा क किवता म यही सोच
त विनत हुई है। उसक किवता म छपे उ साह बढ़ाने वाले इस संदेश
और सलाह म बहुत दम है िक इंसान म व थ रहने के लए िकसी भी
बीमारी का सामना करने क िह मत होने चािहए।
ढ़ संक प से पुरानी मा यताओं को बदलकर आप हमेशा सफल हो सकते
ह
ीलंका क दस वष या सिव ा कुमारी ेमसुंदरा क किवता भी मुझे अ छी
लगी। उसने मछली पकड़ने के पेशे और मछुआर क छिव क जैसी
क पना क है उससे इस ब ी क देखने-समझने क मता का पता चलता
है। क िनया के तेरह साल के एक ब े ने हवाई जहाज़ के अपने उस पहले
सफ़र का अनुभव लखा है जसका अपहरण कर लया गया। पूरी घटना
क ब े के िदमाग पर काफ गहरी छाप पड़ी। उसने अपने अनुभव और
भाव को बड़े भावशाली श द म य िकया है। 5
सृजनशीलता जीवन क िदशा बदलती है
सृजनशीलता के सहारे जीवन क िदशा को मोड़ देने वाले कुछ महापु ष
का म यहाँ उ ेख करना चाहूँगा। ाकृ तक चयन स ांत के णेता चा स
डा वन ने मानव जाती के िवकास के संबध
ं म हम दस
ू रे ढंग से सोचने पर
िववश िकया। थामस अ वा एडीसन ने िव ुत् का अिव कार िकया, इससे
िव ान और ौ ोिगक के येक े म ां त आयी। महा मा गांधी ने
अ हसा आं दोलन के मा यम से द ण अ का म न लीय भेदभाव के
िव और भारत म ि िटश शासन के िव जंग छे डी तथा देश को
आजादी िदलायी।बीसव सदी क ये तीन मह वपूण घटनाएँ सृजनशील मन
क देन ह।
आसमान क ओर नज़र दौड़ाओं! पाओगे िक हम अकेले नह ह। सारे
ांड का हमसे दो ताना है और जो सपने देखता है वह कुछ भी पा सकता
है। जैसे-चं शेखर सु ह यम ने लैक होल क खोज क ; और चं शेखर
ारा ईजाद िकए गये तरीके से आज हम यह पता लगा सकते ह क सूरज
कब तक रौशनी िबखेरता रहेगा। इसी तरह का काम सर सी. वी. रमन ने
िकया। उ ह ने समु क ओर नज़र घुमायी और अपने मन म उठे सवाल
पर गौर िकया िक उसका रंग नीला य है। वह इस सवाल का जवाब
तलाशते हुए उस नतीजे पर पहुँचे जसे िव ान क दिु नया ने ‘रमन इफे ट’
के प म जाना। जैसे अ बट आइं टीन ने िदमाग को उलझाने वाली
हांड क खूिबय को देखते हुए उसक िफतरत के बारे म सवाल उठाए,
और उनके जवाब तलाशते हुए E = mc2 वाला मशहूर समीकरण रच
डाला। जब िव ान वै ािनक ने इसे अपनाया तो हम ना भक य शि से
िबजली हा सल हुई। इससे उलट, यही समीकरण अगर दस ू रे ढंग से
इ तेमाल िकया जाता है तो भरी तबाही फ़ैलाने वाले ह थयार तैयार होते ह।
नई खोज क ि या के ज रए ही ान धन-स पदा म पांत रत होता है
पुराने जमाने म आमतौर पर महान खगोलशा ी तोलेमी के स ांतो के
आधार पर तमाम तार और ह क चाल का िहसाब लगाया जाता था। तब
माना जाता था िक पृ वी सपाट है। यह सािबत करने म वै ािनक को
िकतनी मश त करनी पड़ी िक पृ वी गोल है और सूरज के च र लगाती
है। तीन महान खगोलशा य कॉपरिन स, गै ल लयो और के लर ने
खगोलशा को एक नयी िदशा दी। पृ वी गोल है और सूरज के च र
लगाती है और खुद सूरज आकाशगंगा म एक अलग गोल रा ते म घूम रहा
है-यह जानकारी आज हम िकतनी मासूम लगती है, जबिक सच यह है िक
आज के दौर क सारी वै ािनक ग त िपछली सिदय के उन वै ािनक
क खोज क बदौलत ही संभव हुई है। 6
सृजनशीलता अस भव को संभव बना सकती है
िपछले साठ साल म िव ान और ौ ोिगक म हमने देखा है िक जसे
अस भव माना जाता था, वह घट गया और जसे स भव समझते रहे, वह
अब तक नह हुआ। लेिकन वह होगा ज़ र। खासतौर से एरोनॉिट स,
पेस टे नोलॉजी, इले टॉिन स, नए पदाथ , कं यूटर साइंस और
सॉ टवेयर के मामले म दिु नया ने नए आयाम हा सल िकए ह। आने वाले
दशक म शायद हम ऐसी यूिनफाइड फ ड योरी तैयार होते देख जसम
गु वीय और िव ुतचुंबक य शि याँ और सामा य सापे कता स ांत,
पेस और समय एक साथ शािमल ह । हो सकता है आज के ब े आगे
चलकर िकसी ह या चाँद पर उ ोग लगते या मानव ब ती बसते देख।
शायद दिु नया म कई बार इ तेमाल होने लायक ऐसे लॉ च वेिहकल स टम
यािन हाइपर लेन का दौर आ जाए जनक िबजली क ज़ रत सौर ऊजा
से पूरी हो, य िक अगले पचास से सौ साल के अंदर जैव इंधन यािन
पेटो लयम और कोयले आधा रत ई ंधन क कमी हो जाएगी। यह सब
सृजनशील सोच के ज़ रए ही मुमिकन है। 7
िकसी देश के राजनी तक और आ थक तं म जान फँू कने म उसक खोजी
वृ संजीवनी बूटी कम करती है
एरोडायनािम स के िनयम के अनुसार भँवरे क बनावट ऐसी होती है िक
उसके लए उड़ना असंभव है। लेिकन उसका उड़ने का इरादा बड़ा प ा
होता है। भ रा लगातार पंख फडफडाता रहता है और उसम जतनी
ाणशि होती है वह सारी उसे आगे बढ़ाने म लग जाती है। बहुत तेज़ी से
पंख फड़फड़ाने के कारण एक तरह का भँवर सा बन जाता है जसके
खचाव क वजह से भँवरा उड़ने म सफल हो जाता है। इस तरह प े इरादे
के साथ को शश करने से आप वह सब करने म सफल हो सकते ह जसे
असंभव माना जाता है। इतनी शि होती ह सृजनशीलता म!
नई ड जटल अथ यव था म जो सूचना सा रत होती या फैलती है वह
नयी सोच का सृजन करती है और रा ीय स पदा म योगदान करती है
भँवरे क उड़ान ही नह , इंसान के आसमान म उड़ने क बात को भी
असंभव माना जाता था। सन् 1890 म लंदन क रॉयल सोसायटी कं
त कालीन अ य और जाने-मने वै ािनक लाड के वन ने कहा क हवा
से भारी कोई भी चीज़ न खुद उड़ सकती है और न ही उसे उड़ाया जा
सकता है। इस बात को दो दशक ही बीते िक राइट बंधुओ ं के प े इरादे क
बदौलत यह सािबत हो गया िक आदमी भी उड़ सकता है। उनक इस एक
उपल ध ने प रवहन के े म ां त ला दी और दिु नया को छोटा कर
िदया।
मशहूर रॉकेट डजाइनर बॉन ॉन ने सैटन-v रॉकेट बनाया था जससे
अंत र याि य सिहत यान को छोड़ा गया। और इस तरह चाँद पर चलने
का आदमी का सपना सच हुआ। उ ह ने एक बार कहा था-‘‘अगर मुझे
अ धकृत कर िदया जाय तो म श दकोश से असंभव श द ही िमटा दँ।ू ” 8
सृजनशील भारतीय
भारत म िवकास के हर दौर म नए-नए काम और सृजनशील चतन होते
देखे गए ह। 1960 के दशक म हम लोग सपने म भी नह सोच सकते थे िक
ना भक य ऊजा से िबजली भी बनायी जा सकती है या िफर ना भक य
औष ध से थायरॉयड़ क बीमा रयां और कसर का इलाज संभव हो सकेगा।
लेिकन होमी भाभा क बदौलत ना भक य ऊजा से बनी िबजली तार म
दौड़ी। एक दशक के अंदर ना भक य ऊजा से बनी िबजली का उ पादन
20,000 मेगावॉट से यादा हो जाएगा।
1980 के दशक म सूचना ौ ोिगक क ि से भारत का कह थान नह
था, लेिकन कुछ यव ु ा इस े म आगे आए और भारत के िनयम-कानून के
सकुड़े-से दायरे के बावजूद उ ह ने नए ढंग क सृजनशील सोच से काम
लया और संभव करके िदखा िदया क िकस तरह आई. टी. से जुड़ी
सेवाओं के ज रए िवदेश से पैसा कमाया जा सकता है। आ खरकार सरकार
को भी आई. टी. े म नई एवं लचीली नी त अपनानी पड़ी। अब हमारे
यव
ु ा आई. टी. कारोबारी िवदेश को अपनी सेवाएँ देकर पं ह सौ लाख
डॉलर कमा रहे ह। इसी तरह दवा कंपिनयाँ भी भारत क अथ यव था को
मजबूत बना रही ह। 9
भावी िवकास
स पु तक ‘द एज ऑफ िद चुअल मशी स’ के लेखक रे कु जिवल
का मानना है क एक हजार डॉलर मू य वाला कं यूटर सन् 2009 म त
सेकंड एक लाख करोड़ गणना करेगा तथा 2019 तक त सेकंड दस
लाख करोड़ गणना करेगा, जो क इंसानी िदमाग क मता के बराबर होगा।
सन् 2029 तक एक कं यट
ू र म एक हज़ार इंसानी िदमाग के बराबर शि
होगी। इस तरह आगामी यगु म आदमी अपने कुछ काम को
कं यूटरचा लत रोबोट को स प सकेगा और अपनी अदभुत तभा व
क पनाशीलता के सहारे म त क का इ तेमाल कं यट
ू र से भी आगे क
कोई उपल ध संभव बनाने के लए कर सकेगा।
इस शता दी के अंत तक इंसानी सोच और मशीनी बु ी, जसका सजक
भी खुद इंसान ही है, के बीच तालमेल बढ़ेगा। क पना कर उस समय क ,
जब मानव म त क और कं यूटर क संरचना म कोई फक नह रहेगा। तब
इंसान मशीन पर अपना वच व कैसे कायम रख सकेगा ? साफ है िक आने
वाले समय म कं यूटर इंसान को चुनौती देने जा रहा है। यह सवाल न सफ
जीव िव ािनय और जैव ौ ोिगक िवद , ब क पुरे वै ािनक समुदाय के
सामने चुनौती पेश करता है क मनु यिन मत कं यूटर कह मनु य से
अ धक वच व वाला न हो जाय ! संयोग से, मानव म त क क
सजना मक और क पनाशील मता हमेशा मशीन से आगे ही रहेगी और
मशीन पर उसका वच व कायम रहेगा।
मानव ‘जीनोम’ (genome) म सॉ टवेयर भरा पड़ा है। मानव क नैस गक
तभा को पूरी तरह से िनखारने के लए इस सॉ टवेयर को पूण सि य
िकया जाना अभी बािक है । 10
सृजनशीलता नवीनता और समृ का पथ श त करती ह
थर सूचना का िवकास नह होता। नई ड जटल अथ- यव था म जो
सूचना सा रत होती या फैलती है वह नयी यिु य का सृजन करती है
और रा ीय स पदा म योगदान करती है।
नई खोज क ि या के ज रये ही ान धन-स पदा म पांत रत होता है।
नव- वतन एक मब , संगिठत एवं ता कक कम है, जो सामा यतया
िव ेषण परी ण और योग से गुज़र कर ही अं तम प रण त तक पहुँचता
है। 11
नव- वतन अथात् नई खोज के लए साहस क ज़ रत होती है :
अलग ढंग से सोचने का साहस
अ वेषण का साहस
असंभव को संभव कर िदखने का साहस
सम याओं से जूझने और सफलता हा सल करने
का साहस। 12
सामा यतौर पर नई खोज बाज़ार से े रत होती है। च लत ौ ोिगक क
जगह नई ौ ोिगक अपनाकर या िफर िकसी बहुत भावी तरीके से मू य
कम करके अथवा उ पाद या प त म सुधार के ज रये नई खोज तक
पहुँचा जा सकता है। नए उ पाद के आने से उ म के िकसी े म लागत
क तुलना म लाभ अ धक होता है। जैसा हम ऑ टकल संचार के े म
ग त बनाम लागत के प म देखते ह। जहाँ िनमाण ि या म लचीलापन हो
वहाँ कई व तुओ ं म से एक का चयन बनाम लागत पर यान िदया जाता है
और उप ह क मदद से िकए जाने वाले काम म ाहक क संतुि बनाम
लागत पर गौर िकया जाता है।
अनुसंधान, िवकास और सं थागत बदलाव सिहत अ य ोत से नई खोज
का ज म होता है। इस लए नई खोज के लए हमारे देश म एक स म ढाँचा
खड़ा करने क ज रत है। ऐसे ढाँचे के अंतगत एक-दस ु रे पर िनभर रहने
वाली सं थाओं (यूिनव सटी, कॉलेज, शोध सं थान, टे नोलॉजी देने वाली
कंपनी) के बीच तालमेल बैठाने वाल (िवशेष , तकनीक सेवा या सलाह
देने वाले) और ाहक के बीच िनकट संबध ं थािपत करने वाले तं
िवक सत ह गे जससे गुणव ा के साथ-साथ उ पादकता म भी बढ़ोतरी
होगी। इस कार नए ढाँचे म जो तं िवक सत ह गे वे दिु नया म हो रहे ान
के फैलाव को संपी डत कर उसका उपयोग थानीय आव यकताओं क
पू त म करगे। आ खर म इससे नए ान का सार और नई ौ ोिगक का
िनमाण होगा।
िव बाज़ार म यावसा यक प से उपयोगी और तयोगी उ पाद के
साथ-साथ राजिन तक और आ थक तं म जान फँू कने म िकसी देश क
खोजी मता का बहुत बड़ा हाथ होता है। यह मता शु प से वै ािनक
या तकनीक उपल ध से अलग है। इसके अंतगत आ थक उ त म नई
ौ ोिगक के उपयोग पर यान िदया जाता है। इस कार खोजी मता
िवक सत करने के लए िनजी े , सावजिनक े और श ािवद के बीच
तालमेल बैठाते हुए सहयोग क आव यकता है। 13
मानव- चतन का आधार
सृजनशीलता मानव- चतन का आधार है। चाहे िकतनी भी ग त और मृ त
वाले कं यूटर िवक सत हो जाएँ , मानव चतन का थान हमेशा सबसे ऊपर
रहेगा। सृजनशीलता जैसा गुण इंसान म सदा मौजूद रहेगा और ौ ोिगक
से ा होने वाली यापक गणन मता जैसा मजबूत ह थयार इंसान के
पास होगा। उसका उपयोग वह इस दिु नया को और खूबसूरत बनाने क
अपनी योजना को साकार करने म करेगा। 14
कला और सािह य
कृ त क आतं रक सुंदरता क लोक-क याणकारी अ भ यि है कला।
वह चाहे काटू न, मू त या िफर सािह यक कृ त के प म हो। कला संसार
को देखने और इससे आनंिदत होने के लए मधुर भाव भर देती है। ऐसा
भाव मौन रहते हुए भी ेम, स ता, नेह और शां त का संदेश बखूबी
िबखेरता है… 1
कला और सािह य
कला जीने के लए सहारा देती है
धरती पर िव भ कालखंड म कई महान मानव स यताओं का ज म हुआ,
कतु उनम से कुछ ही स यताओं का अ त व कायम रह पाया। वही
स यताएँ कायम रह जनम भिव य को समझने और प रवतन क ग त के
साथ कदम-से-कदम िमलाकर चलने क मता थी। यह मता इंसान क
सोच से पैदा होती है। इस सोच को आकार देने म सािह य, किवता और
अ य तकपूण सामि य का सहयोग रहता है। ाचीनकाल म दाशिनक और
बाद के समय म वै ािनक, ौ ोिगक िवशेष , अथशा ी और
समाजशा ी, सभी ने िमलकर िव भ स यताओं को संप बनाया।
भारतीय स यता ने िव भ सं कृ तय के संपक से होने वाले प रवतन को
वीकार करते हुए उ ह अपने म रचा-बसा लया। यही कारण है क हमारी
सौ करोड़ क जनसं या वाले समाज म िव भ सं कृ तय , भाषाओं और
धम के मानने वाले लोग ह, कतु मान सक तर पर हम सभी एक ह।
इसका ेय हमारे चतक को जाता है। हमारे यहाँ महाभारत, त ु रल,
कबीरवाणी और नारायणीयम जैसे ंथ क परंपरा रही है। यह परंपरा
सिदय बाद आज भी कायम है और फल-फूल रही है । 2
पु तक हमारी जीवनभर क साथी ह
िकसी अ छी पु तक के संपक म आने और उसका सं ह करने से ज़दगी
हमेशा के लए खुशहाल बन जाती है। अ छी पु तक हमारी थायी साथी
बन जाती ह। कई पु तक काफ पहले लखी गई ं, कतु वे अभी भी
जीवनभर हमारा मागदशन करती ह और आगे भी कई पीिढ़य को िदशा
िदखाती रहगी ।
कला जदगी क खूबसूरतीको बड़ी नजाकत से पेश करती है। यह मानव के
अ त व को अथ देने के साथ-साथ उसे शि दान करती है।
बारह साल क उ म अ बट आइं टाइन ने अपने पथ दशक मै स
टालमुड से यू डयन लेन यॉमेटी पर एक पु तक पाकर िव मय का
अनुभव िकया था। इस पु तक को पढ़ने से आइं टाइन ने िवचार क
असली दिु नया म कदम रखा और वे समझ पाए िक सवमा य स य क
खोज िबना िकसी महँगी योगशाला और उपकरण क मदद के भी क जा
सकती है। इस ि या को सफ मन क शि से िनयंि त िकया जाता है।
मेरी ि य पु तक
जब म यवु क से िमलता हूँ तो अ सर दो से सामना होता है : आपक
ि य पु तक कौन-सी है? आजकल आप कौन-सी पु तक पढ़ रहे ह?
सािह यकार को यह अवसर िमला है िक वे मानव को चुनौ तय से
जूझनेऔर जीवन म सफल होने म सहायता कर सकते ह
हालांिक म सभी कार क पु तक पढ़ना पसंद करता हूँ, िफर भी तन
पु तक को पढ़कर मुझे काफ आनंद आया। इनम से एक है— ल लयन
इचलर वा सन ारा संपािदत ‘लाईट ॉम मेनी लै पस’। यह िकताब मने
सन 1953 म मुरे बाजार, चे ै क िकताब क एक पुरानी दक ु ान से खरीदी।
पाँच दशक से भी अ धक समय से यह िकताब मेरी अ भ िम और
हमसफ़र रही है। जब कभी म सम याओं से घर जाता हूँ तो इस पु तक
को पलटता हूँ और अपना गम भूल जाता हूँ। जब कभी म खुशी से झूमने
लगता हूँ तो यह पु तक मेरे मन को भीतर से छूती है और मेरी सोच
संतु लत हो जाती है। एक बार िफर से मुझे इस पु तक के मह व का
एहसास हुआ जब मेरे एक यायाधीश िम ने इस पु तक का नया सं करण
मुझे भट िकया। उ ह ने कहा िक सबसे बिढ़या चीज़ जो वे मुझे दे सकते ह,
वह यह पु तक है। हो सकता है आज से पचास वष बाद यही पु तक
आपके सामने नए प म आए।
दसू रा ंथ जसके त म ा रखता हूँ वह है— त व व
ु र र चत
‘ त ु रल’। मुझे इसम जीवन-आचरण का आदश व प िमलता है।
लेखक क सोच रा , भाषा, धम और सं कृ त क सकंु चत सीमाओं से परे
है। सचमुच ऐसी सोच से मानव मन उदार बनता है।
तीसरी पु तक है—डॉ. एले सस करेल क लखी हुई ‘मैन द अननोन’।
नोबेल पुर कार से स मािनत डॉ. एले सस एक चिक सक थे जो बाद म
दाशिनक बन गए। इस पु तक म काश डाला गया है िक बीमारी के दौरान
मन और शरीर दोन के इलाज क ज रत होती है य िक दोन म अ भ
संबध
ं है। आप एक का इलाज कर और दस ू रे पर यान न द, ऐसा ही नह
सकता। जो ब े डॉ टर बनने का सपना देख रहे ह उ ह यह िकताब िवशेष
प से पढ़नी चािहए। वे समझ पाएँ गे िक मानव शरीर महज एक यांि क
णाली नह है। यह एक बु धम ापूण और सुिनयो जत संरचना है जो
मान सक और शारी रक अवयव के मेल से बनी है। यह एक जिटल और
संवेदनशील संरचना है । 3
आधी सदी से अ धक का व त
मने िबताया िकताब के संग,
िकताब मेरी दो त, मेरी हमसफ़र,
िकताब के सहारे
मने देखे सपने
सपने बन गए मक़सद,
िकताब के सहारे बाधा हौसला
मकसद पूरा करने का,
असफलता के व त
िकताब ने बढ़ाई मेरी िह मत
िकताब मग दो त, मेरी हमसफ़र,
अ छी िकताब देवदत
ू बन
मेरे लए पैगाम लाय
मरे िदल को हौले से सहलाया,
इसी लए म अपने यव
ु ा सा थय से
कहता हूँ-िकताब से दो ती कर
ये ह तु हारी अ छी दो त, हमसफ़र
िकताब मेरी दो त, मेरी हमसफ़र’। 4
लेखक समाज क चेतना के हरी होते ह
लेखक क भूिमका और मह व
मानव जीवन म लेखक क अ यंत मह वपूण भूिमका है। एक लेखक क
अ छी पु तक कई पीिढ़य के लए ान और संप का ोत होती है। कई
बार ऐसा होता है िक लेखक के जीवन-काल म कोई पु तक पाठक को
े रत नह कर पाती है कतु बाद म जब समाज पु तक के सही मह व को
समझ पाता है तो पु तक म छपे संदेश यक नन दिु नया क नज़र म आ
जाते ह। इसके बाद उस पु तक क चमक िदखने लगती ह। सचमुच कई
ऐसी े कृ तयाँ ह जो कई पीिढ़य से अपनी चमक कायम रखे हुए ह । 5
अड़तीसव ानपीठ पुर कार से स मािनत तिमल लेखक जयका तन
कहते ह-‘मेरी सफलता तभी है जब मेरी रचना म आप (पाठक) वयं से
हटकर कुछ ढू ंढने लगते ह। सािह य क सफलता का मापदंड है िक वह
पाठक के सामने एक ऐसा माग तुत करे जस पर चलकर पाठक अपने
वयं के दायरे से हटकर एक अलग दिु नया को देख सक ।
िकसी अ छे पु तक के संपक म आने और उसे पढ़ने से जदगी खुशहाल
बन जाती ह
म जीवन के त जयकांतन के इस ि कोण का शंसक हूँ जसका
उ ह ने ‘एक सािह यकार के राजिन तक अनुभव’ नामक िनबंध-सं ह क
भूिमका म वणन िकया है। इसम वे कहते ह—“ या ान और उ साह से
भरे हमारे वतं ता सेनािनय और समाजवादी चतक के लए ऐसा समय
नह आया है िक वे आपस म संगिठत होकर एक नए वतं समाज के
िनमाण के लए ब लदान द? सािह यकार का मन इसके लए याकुल है|”
इसी कार एक संदभ म जयकांतन इस बात को सरल ग से कहते
ह-‘सािह य क दिु नया म लोग मुझे अछूत मानते ह, िफर भी म सािह य-
लेखन करता रहूँगा। म प रवतन के लए यास करता रहूँगा। म प रवतन के
लए यास करता रहूँगा। जैसे जग गु आिद शंकराचाय ने द ा ेय को
अपना गु वीकार िकया। यह मेरी इ छा नह है ब क ई र क इ छा
है।”
यह एक अ यंत ही सुंदर और मा मक कथन है। जब भी म इस कथन को
पढ़ता हूँ तो मेरी आँ ख से आँ सू छलक आते ह य िक हम अपने चार ओर
द:ु ख और भा यवाद पाते ह, कतु हमारे अंदर क िन ा उ ह चौनती दे रही
है। सािह य इसी तरह हमारे मन को सबल बनाता है। लेखक समाज क
चेतना के हरी होते ह।
हमारे चतक और लेखकगण यव ु क को तेज वी मन वाले नेता बना सकते
ह। वे अपने लेखन से यव
ु क के मन म उदारता और मानवता के भाव भर
सकते ह। वे नई पीढ़ी
को अद य साहस क याद िदला सकते ह जसके सहारे वे िकसी भी कार
क दबु लता और अभाव पर िवजय ा कर सकते ह। यह लेखक पर बाहर
से थोपा गया दा य व नह है ब ल्क उ ह यह अवसर िमला है िक वे मानव
को बदहाली से मुि पाने और जीवन म सफल होने म सहयोग दे सक।
कोई देश अपनी ाकृ तक संपदा,जैव-िविवधता और अपने नाग रक के
बल पर समृ होता है। कतु चतक िकसी देश के गौरव क चार चाँद
लगाते ह। वे समाज को आने वाले समय के लए तैयार करते ह और समाज
को प रवतन के अनुकूल बनाते ह । 6
ब और छा को इस बात के लए े रत करना चािहए िक ‘रोज़ एक घंटे
पु तक पढ़। कुछ ही वष म वे ान के भंडार बन जाएं गे ।’
लोग पु तक भट करने क आदत डाल ल, खासकर यव ु ाओं को। इस काय
से यव
ु क तेज वी बनगे और हमारे समाज को एक ानसंप समाज बनाने
म मदद िमलेगी । 7
भावना मक एकता के लए संगीत, नृ य और नाटक
हमारी स यता म सािह य, नृ य और नाटक के पाँच हज़ार वष क
गौरवशाली परंपरा रही है। कलाकार को अपनी कला का दशन करते
देखकर म सोचने लगता हूँ िक या संगीत और नृ य का उपयोग िव शां त
और आपसी एकता के लए िकया जा सकता है। हाल के वष म आतंकवाद
ने कई मासूम क जान ले ली है। इस सम या के हल के लए या सै य,
आ थक और कानूनी तरीक के सवा कोई अ य उपाय है? मेरा ढ़ िव ास
है िक आतंकवाद को समा करने म संगीत-नृ य भावशाली औज़ार हो
सकते ह ।
संगीत-नृ य आपको एक अलग दिु नया म ले जाते ह जहाँ आप ख़ुशी और
सुकून क साँस ले पाते ह ।संगीत - नृ य का सृजन तभी हो सकता है जब
कलाकार का मन शांत और स हो। ऐसी मान सक अव था म वे अपने
समाज के सामने अमन-चैन का पैगाम देने वाले के प म आगे आते ह । 8
दिु नया म शां त और एकता कायम करने म नृ य-संगीत का उपयोग एक
भावशाली मा यम के प म िकया जा सकता है ।
संगीत लोग के मन के तार को जोड़ता है। इसका िकतना खूबसूरत
उदाहरण कनाटक संगीत है। इसक ि मू त ने तंजौर जले म तेलुगू और
सं कृत म अपनी कृ तय को गाया, पुरद
ं र दास ने क ड़ म गाया,
अ माचाय ने तेलुगू म और अ णािग रनाकर ने तिमल म। कतु संगीत
ेिमय के लए भाषा कभी बाधक नह रही। केरल म टावनकोर, आं देश
म त प त, तािमलनाडु म तंजौर और कनाटक मे मैसूर के संगीत घराने
िकसी हार म र न क तरह चमक रहे ह। हार के ये मनके एक ही संगीत के
धागे म िपरोये हुए ह। संगीत अपने आप म बहुत बड़ा मा यम है और इसम
भाषा कभी बाधक नह हो सकती । 9
भारत म आधुिनक नृ य के जनक माने जाने वाले उदयशंकर ने भारतीय
नृ य – संगीत को िब कुल नए और सटीक ढंग से प रभािषत िकया। भारत
म च लत सभी कार के शा ीय और लोकनृ य क उ ह ने सराहना
क । उ ह ने इनक िवशेषताओं म एकता के सू को तलाश कर भारतीय
नृ य क श दावली को उ तरीय िव तार िदया। वे 1980 एवं 1940 के
दशक म भारतीय कला म पुनजागरण के अ दत ू थे। उ ह ने भारतीय नृ य-
संगीत से प मी जगत का प रचय कराया। इससे पूरी दिु नया म भारतीय
नृ य-संगीत क शंसा क जाने लगी और इसे स मान क ि से देखा
जाने लगा। उदयशंकर ने िकसी भी भारतीय शा ीय नृ य म कोई
औपचा रक श ण नह लया था, िफर भी नृ य क दिु नया म उ ह ने
अपनी अलग पहचान बनायी। यह इस बात को स करता है िक उनम
ज मजात तभा थी । 10
देश के िव भ भाग क अपनी या ा के दौरान म महसूस करता हूँ िक
ामीण और जनजातीय समाज म नृ य के त काफ लगाव है। थोड़ा भी
मौका पाकर वे अ सर गाने-नाचने लगते ह। इससे वे न सफ अपने किठन
ामीण जीवन के ग़म को भुला देते ह ब क अपनी सिदय पुरानी
सां कृ तक परंपरा को बनाए रखते, चा रत और िवक सत करते ह। हमारे
देश के इ तहास म संगीत, नृ य और रंगमंच के िवकास म ामीण समाज का
काफ योगदान रहा है। हमारी सामा जक सं कृ त म िविवध धाराओं के
संगम से कला मक परंपरा समृ हुई है और इसे ो सािहत िकया जाना
चािहए । 11
हमारे मन को उजावान बनाने के लए नाटक मनोरंजन का एक मह वपूण
साधन है। यह लोग तक संदेश फैलाने का एक सश मा यम है और लोग
के जेहन म क पनाशील िवचार और सोच डालता है। सनेमा, टी.वी. और
म टीमी डया के दबाव म यह कला-मा यम जूझ रहा है। | इनक अपनी
भूिमका है, िफर भी हमारे ाचीन नाटक के बहुत से व प को बचाए
रखने के साथ-साथ इनम व णत मू यवान कथाओं को भी सुर त रखने
क ज़ रत है । 12
हमारी सं कृ त िविवध धाराओं का संगम है
ि
िफ म का भाव
िफ म उ ोग से जुड़े लोग म यह मता है िक वे दशक को लाने- हँसाने
, गु सा िदलाने , े रत करने और कई बार उ ह अवसाद त तक कर देने
का काम करते ह। वे दशक के मम को छू लेते ह। वे दशक के िदल पर
ता का लक भाव तो छोड़ते ह ही , कई बार तो यह भाव काफ लंबे
समय तक कायम रहता है। एक िफ म म इतनी शि होती है । 13
कला उ साह बढ़ाती है
हाल ही म मुझे ‘आ टकुलेश स-वॉय सन ॉम िद क टे पोरेरी इं डयन
िवजुअल आट’ नामक पु तक के अ ययन का अवसर िमला। इसम म
भारतीय यकला और च कला से जुड़े कलाकार क िवशेषता ढू ंढने
लगा। साथ ही उनका मा यम या है? समाज और कला के बीच कौन-सा
संबध
ं है ? कलाकार के मा यम-रंग- श और समाज के बीच या कोई
संबधं है ? जैसे मन म उठने लगे ।
संगीत एक मा यम ह जसम भाषा कोई बाधक नह
जब एम. एफ. हुसन ै कहते ह िक च कला समाज से िनकलती है तो इसका
अथ है : ‘यिद समाज औसत दज का ह तो उसम औसत दज क प टग ही
िमलगी; यिद समाज बु और खुशहाल है तो प टग म इस बात क झलक
िमल जाएगी।’ इस पु तक को पढ़ते हुए मने महसूस िकया िक सभी पटर
और कलाकार का यि व अनुपम होता है । उ ह भािवत करने वाली
येक घटना म वे सौ दय खोजते ह। जहाँ आर. के. ल मण क िकसी
पृ भूिम के िव खड़े कौअे क त वीर बनाने म आनंद आता ह, वहीँ के
के हे बर रेखाओं क लया मक ग तिव ध से भािवत िदखते ह। इस संदभ
म म एक कलाकार के कथन से पूणतया सहमत हूँ। वे कहते ह-“एक
कलाकार को ात चीज़ क जानकारी होनी चािहए, अ ात तो वत:
कट हो जाएगा ।’
कुछ समय पहले मने ‘जीवन वृ ’ नामक एक किवता तिमल म लखी और
उसका अं ेज़ी म अनुवाद िकया। इस किवता म जीवन को उ साहपूवक
जीने का संदेश है। किवता लखते समय कभी भी मने नह सोचा था िक
इसम जीवन क त वीर, स दय और सृजनशीलता कट हो पाएगी। उसी
समय मानव नामक एक यव ु ा कलाकार रा प त भवन आए और वहाँ
ककर उ ह ने मुगल गाडन के ाकृ तक सौ दय को चि त िकया। वे
अपने प रवार के साथ वहाँ दो स ाह के और इस दौरान उ ह ने बहुत से
च बनाए जनसे जीवन छलक रहा था। ऐसा लगा जैसे मने उनके च म
फूल क खूबसूरती को देखा, उनक खुशबू ली और फूल म स चत मधु
को चखा। उ ह ने जब मेरी किवता ‘जीवन वृ ’ को देखा तो उ ह वह
अ छी लगी । वे मुगल गाडन के सुंदर प रवेश म सात िदन रहे l इस दौरान
उ ह ने ‘जीवन वृ ’ को बोलने वाले वृ म बदल िदया।
यह िकतनी अछी रचना बन गई ! मने पहली बार महसूस िकया िक िकसी
पटर क क पना म िकस तरह प टग और किवता का सम वत प रहता
है, जससे नई रचना ज म लेती है। यह नई रचना आपके मम को छूती है,
आपक भावना पर नेहलेप लगाती है, िम त कला म मौजूद खूबसूरती
और अमन का संचार कलाकार म करती है और कलाकार के मन तथा
आ मा क आनंद से भर देती है । 14
कलाकार का यि व बेजोड़ होता हl वे जीवन को समृ करने वाली
येक घटना म सौ दय ढू ंढते ह
सृजनशीलता और समृ
िकसी देश क खुशहाली का सीधा संबध ं उसके कलाकार और लेखक क
सृजनशीलता से है। इ तहास म जाने पर आप पाएग िक िकसी शासन के
वणकाल के दौरान सबसे अ धक सं या म कलाकार -लेखक क
रा या य िमला।
भारत को एक िवक सत रा बनाने म कला और सािह य के िव ा थय का
मह वपूण योगदान है। वे सृजनशील मनोरंजन और इसके बंधन के े म
रोजगार के काफ अवसर पा सकगे। ये ऐसे े ह जनम भिव य म समाज
काफ समय और धन खच करगे l कलाकार जनता और नी त –
िनमाताओं के बीच तालमेल बनाने के मा यम ह गे l वे जनता और
वै ािनक– ो ोिगक िवशेष के बीच सेतु का काम करगे। 15
कला कृ त म मौजूद आं त रक सुंदरता क लोक क याणकारी अ भ यि
है। वह चाहे काटू न, मू त या िफर सािह यक कृ त के प म हो-सभी म
संसार को देखने और इससे आनंिदत होने के लए मधुर जीवन भाव भर
देती है। ऐसा भाव मौन रहते हुए भी ेम, हा य, नेह और शां त का संदेश
बखूबी िबखेरता ह l कला जदगी क खूबसूरती को बड़ी सौ यता से पेश
करती है। इसे नई ऊँचाइय पर ले जाती है जो अपने आप म एक बेहतर
और सुसं कृत दिु नया है। कला मानव के अ त व को अथ देने के साथ-
साथ इसे मजबूती देती है। यह जीवन के उ े य को उ चत ठहराती है।
कलह से भरे इस संसार म, जहाँ मानवीय मू य को बड़ी बेरहमी से कुचला
जा रहा है और भौ तक सुख-सुिवधा के च र म जीवन का सौ दय न हो
गया है, वहाँ इससे अ धक आपक या ज ासा हो सकती है! इससे
अ धक आप या देखने क उ मीद कर सकते ह ! 16
शा त जीवन मू य
फूल को देखो-वह
िकतनी उदारता से
अपनी खुशबू और शहद
बाँटता है l वह हर
िकसी को देता है , यार
िबखेरता है, और जब
उसका काम पूरा हो
जाता है तो चुपचाप
झड जाता है l फूल क
तरह बनने क को शश
करो, जसम इतनी
खूिबय के बावजूद ज़रा
भी घमंड नह 1
शा त जीवन मू य
सदाचार
म एक भजन क चचा करना चाहूँगा जसे मने पिव शां त िनलयम म
सुना था। यह भजन सदाचार के िवकास के मा यम से शां त क कामना
करता है :
जहाँ दय म हो सदाचार , च र
सुंदर होता है
सुंदरता हो जब च र म , घर म
आती ह समरसता ,
और समरसता घर म होने पर ,
रा म रहती ह यव था
रा म हो ठीक यव था , शां त रहे
सारी दिु नया म l
हम देख सकते ह िक दय, च र , रा और संसार िकस खब ू सूरती से एक
दसू रे से जुड़े ह। मनु य के मन म सदाचार क भावना कैसे भरी जाए?
दरअसल यही तो मनु य को बनाने वाली–यानी दैवीय शि य का उ े य
है। 2
आज हम बड़े ही अजीब हालात से गुजर रहे ह। जहाँ तमाम लोग हर व
खुद से, समाज से, और रा से एक िक म क लड़ाई लड़ रहे ह। हर पल
हमारे िदमाग म यह जंग चल रही है िक हम िकस तरफ जाएँ ? जब सही
िनणय करने म किठनाई हो तो हम ई र से ाथना करनी चािहए िक वह
हमारी बु को सदाचार क और े रत करे। 3
स ी नै तक श ा से समाज और रा का उ थान होगा
समाज के िव भ अंग म सदाचार पैदा करना हम सभी क ज मेदारी है l
पूरे समाज को सदाचारी बनाने के लए प रवार, श ा, सेवा, कै रयर,
यापार, उ ोग, लोक शासन, राजनी त, सरकार, कानून- यव था और
यायालय म, सभी जगह सदाचार होना चािहए। 4
घर म सदाचार
यिद िकसी देश को ाचार मु करना ह और वहो के लोग को उदार
बनाना ह तो इसके लए तीन मह वपूण यि ह जो प रवतन ला सकते ह-
िपता, माता और श क। 5
भारतीय िव ान सं थान ,बगलोर के एक कमचारी ने मुझसे इस घटना का
ज िकया l उसने अपनी बेटी को सखाया िक वह हमेशा स य बोले। यिद
वह ऐसा करती है तो उसे जदगी म िकसी से डरने क ज़ रत नह । आज
वह दस साल क है, परंतु जब वह दस ू री क ा म पढ़ती थी तो वह अपने
िपता के दो त के यहाँ एक समारोह म भाग लेने के लए चले जाने के कारण
कूल नह जा सक । छु ी के लए उसके आवेदन प म िपता ने लखा िक
अप रहाय कारण से उनक बेटी कूल नह जा सक । ब ी ने तुरत ं िवरोध
िकया िक अप रहाय कारण क जगह हम समारोह म भाग लेना य नह
लखते? आप ने ही मुझे सखाया िक झूठ नह बोलना चािहए, कतु मुझे
अब य झूठ बोलना चािहए? िपता को तुरत ं अपनी गलती का एहसास
हुआ और उ ह ने िफर से छु ी के लए आवेदन प लखा जसम उ ह ने
अनुप थ त के सही कारण का उ ेख िकया।
राजा से लेकर जनता तक सभी के लए सदाचार जीवन का आधार है
ब को छोटी उ म ईमानदारी के पाठ पढ़ाने का इतना सश असर होता
है िक यिद हम अपने सदाचार के माग से भटक जाते ह तो हम ब े सही
रा ते पर ले जाते ह। ईमानदारी सदाचार से पनपती है। यिद एक बार आपने
ब को ईमानदारी का सबक सखा िदया और उनके मन क सही रा ते
पर ला िदया तो प रवार म च र िनमाण क ि या शु हो जाती है। हर
ब ा और माँ-बाप के िदल म एक ही वािहश हो िक उसका घर सदाचारी
लोग का घर बन।
छा से बातचीत के दौरान एक बार कनाटक के शमोगा के एक लड़के ने
मुझसे पूछा-‘’समाज म ाचार, जसक जड़ इस देश म कसर क तरह
फैल गई है, को रोकने के लए छा क या भूिमका हो सकती है?” इस
के मा यम से यवु ा मन का दद कट होता है। मेरे लए यह एक बहुत ही
मह वपूण था य िक यह मुझसे एक ब े ने पूछा था। मने कहा देश
म सौ करोड़ लोग ह और करीब बीस करोड़ घर । सामा य तौर पर अ छे
लोग सभी जगह िमल जाते ह िफर भी कुछ लाख घर म रहने वाले लोग
पारदश नह ह और देश क कानून यव था का आदर नह करते ह। ऐसे
म हम या कर सकते ह! ऐसे घर म माता-िपता के सवा एक-दो लड़के-
लड़क हो सकते ह। यिद इन घर के माता-िपता सदाचार के माग से भटक
जाते ह तो ब े ेम और नेह क ह थयार बनाकर माँ-बाप क सदाचार के
माग पर वापस ला सकते ह। मने बैठक म उप थत सभी ब से पूछा क
यिद कुछ ब के माता-िपता पारद शता के माग से भटक जाते ह तो या वे
अपने माता-िपता से कहगे िक वे सही काम नह करते ह। अ धकांश ब ने
िबना िकसी झझक के जवाब िदया क वे ऐसा ही करगे। ऐसा आ मिव ास
ेम को ह थयार बनाने के कारण ही पनपता है।
सदाचार का माग : यि से रा तक
मानव अपने दय क पिव ता के सहारे एक बु द नाग रक का सवागीण
जीवन जीता है। मानव जीवन के उतार-चढ़ाव के संदभ म इस बात को
चीनी दाशिनक क यू सयस बड़े ही खूबसूरत अंदाज म पेश करते ह। वे
कहते ह :
“ज लोग संसार म नै तक समरसता चाहते ह, उ ह सबसे पहले अपने
रा ीय जीवन को यव थत करना चािहए। जो रा ीय जीवन को यव थत
करना चाहते उ ह अपने पा रवा रक जीवन को यव थत करना चािहए।
जो अपने पा रवा रक जीवन को सँवारना चाहते ह उ ह अपनी िनजी जदगी
यव थत करनी चािहए। जो अपनी िनजी जदगी को यव थत कर दय
को पिव बनाना चाहते ह उ ह अपनी इ छाशि को संतु लत करना
चािहए। जो अपनी इ छाशि को द ु त बनाना चाहते ह उनम पहले अपने
म समझ पैदा करनी होगी। ान क खोज से समझ पैदा होती है। जब चीज़
का ान हो जाता है तो समझ प ही जाती है। जब समझ प हो जाती
है तो इ छाशि द ु त हो जाती है। जब इ छाशि संतु लत होती है तो
हदय पिव हो जाता है। जब हदय पिव हो जाता है तो िनजी जीवन सुधर
जाता है। जब िनजी जीवन यव थत हो जाता है तो पा रवा रक जीवन
सुधर जाता है। पा रवा रक जीवन ठीक होने से रा ीय जीवन यव थत हो
जाता है। रा ीय जीवन यव थत होने से िव म शां त कायम होती है।
राजा से लेकर सामा य आदमी तक के लए सदचारपूण जीवन जीना ही,
सभी बात का आधार है। 14
सदाचार के साथ म करना ही
हमारे जीवन क ेरक यो त ह,
यिद हम किठन म करते ह
तो हम सभी खुशहाल बन सकते ह,
महान िवचारो को धारण करे
ि याशील बनने के लए उठ खड़े है,
सदाचार ही हमारे पथ दशकदशक हो | 15
िव ान और अ या म
िव ान मानवता को ई र का सबसे बड़ा वरदान है। तक आधा रत िव ान
समाज क पूँजी होता है। िव ान और ो ोिगक के अ या मसे जुड़ने पर
ही दोन का भािव य िटका हुआ है 1
िव ान और अ या म
िव ान सबसे बड़ा वरदान है
ऐसा माना जाता है िक ई र सव े ाणी क रचना करना चाहता था। वह
इस िदशा म लाख वष यास करता रहा| अपनी क पना के ाणी क
परेखा तैयार करने और उसे एक आकृ त देने म जुटा रहता। वह आकृ त
को जाँचना-परखता रहा, उसम सुधर करता रहा और अंततः उसम ाण
डाल िदए| वह ाणी मानव ही था। उस ाणी म जैसे ही जीवन का संचार
हुआ वैसे ही दो बात देखने क िमल । पहली बात यह थी िक उसने अपनी
आँ ख खोल और मु कुराया| इससे ई र स हुआ। दस ू री बात यह हुई
िक मानव ने अपना मुँह खोला और उससे जो श द िनकल, वे ई र के त
ध यवाद के श द थे। ई र अ यंत स हुआ। वह अपनी रचना को
देखकर खुशी से महसूस करने लगा िक मानव ने दो अ छे काय िकए ह।
अचानक ई र को लगा िक आदमी म कुछ कमी रह गई है। अगले ही ण
उसने आग क रचना कर डाली जससे शैतान पैदा हो गया। शैतान ने पैदा
होते ही खुदा से कहा-‘‘ऐ खुदा! तुमने आदमी के बनाने म लाख साल
लगाए, कतु तुमने मुझे आग से एक ही ण म पैदा कर िदया| इस लए मुझसे
बढ़कर कोई नह है|” ई र जसने इस जहान क बनाया, तारे और ह से
भरे ांड को बनाया, वह शैतान क बात से हैरान हो गया।
एक तरफ तो उसने इंसान जैसे खुबसूरत ाणी को बनाया और दस ू री तरफ
शैतान को भी पैदा िकया। ई र ने इस पर काफ सोचा। उसने दोन पर गौर
िकया। िफर इंसान और शैतान को साथ बैठाकर अपना यह संदेश िदया मने
इंसान को बनाया और उसम सोचने-समझने क शि दी। म खुद के बनाए
सभी ा णय को आदेश देता हूँ िक वे अपनी िदमागी ताकत का इ तेमाल
कर मेरे प तक पहुँचने क को शश कर ।”
िव ान और अ या म, दोन मानव-क याण के िनिम एक ही परमा मा का
अनु ह चाहते ह
तुफ के सूफ़ किव मी ने भी कहा है :
“देवदत
ू अपने ान के बल पर वतं है
जानवर अपनी अ ानता के कारण आज़ाद है
इन दोन के बीच जो है उसे इंसान कहते ह
और इंसान िदन-रात संघष करता रहता है ।”
यह मानव जीवन का िमशन है और िव ान मानवता को ई र का सबसे
बड़ा वरदान है | तक-आधा रत िव ान समाज क पूँजी है। हम िव ान,
ौ ोिगक , चिक सा, राजनी त, नी त-िनमाण, धमशा , धम या याय
जैसे िकसी े म कायरत रह, हम आम लोग क सेवा करनी ही होगी
य िक ान और सभी कार के काय का मूलमं मानव क याण है । 2
िव ान सावभौिमक है
िव ान के अंतगत ज ासा कट क जाती है और कृ त के िनयम म
किठन प र म और अनुसंधान से, उन ज ासाओं का िनदान ढू ँ ढा जाता
है। िव ान के े म तब तक ज ासा कट क जाती रहेगी, जब तक
उनका संतोषजनक उ र नह िमल जाता। दिु नया का िवकास सीधे काय-
कारण संबधं से नह हुआ है, िफर भी, मानव क ज ासू वृ के कारण
ही यह धरती आज रहने लायक बन सक है । 3
िव ान बेहतर भौ तक जीवन क राह िदखाता है और अ या म स ी राह
पर चलाना
िव ान एक रोमांचकारी िवषय है और एक वै ािनक के लए समूचे जीवन
का एक िमशन। िव ान म िनपुण होने के लए ग णत का ान आव यक है।
ग णत और िव ान के संयोग से एक दीि पैदा होती है। ज़ री यह होता है
िक स ांत को सामने रख कर योग िकया जाय। जो छा के मन म
ज ासा उ प करते ह और यिद वे िव ान से जुड़े ह तो छा िव ान क
तरफ आक षत होते ह। इसके साथ ही ये यावहा रक प से अनुकूल
ह तथा इन पर िवचार करना मनोरंजक हो। ान के इस संसार म श क
क ेरणा ोत बनना चािहए, जो येक िदन कुछ न कुछ सीखने का
हौसला भी रखते ह ।
हम एक ऐसी श ा णाली का िनमाण करना है जसम ये सभी खूिबयां ह
और यह सफ श क और श ािवद के हाथ म है। िव ान के े म जो
भी सम याएँ सुलझायी जाती ह उनका इस बात से कोई लेना-देना नह है
िक आप िकस देश म रहते ह। िव ान का े सीमाहीन है । 4 सूचना
ौ ोिगक म ग त से दिु नया म द ू रयाँ िमट गई और यह संसार एक
िव ाम बन गया है। दिु नया क वा तिवक जिटल सम याओं के िनदान
हेतु दिु नया के वै ािनक के बीच तालमेल होना अिनवाय है। ाचीन काल
म भारत क श ा, वै ािनक अनुसंधान और दशन का गढ़ माना जाता था,
कतु कुछ दशक से भारत के वै ािनक का ख पूव से प म क ओर हो
गया है। देर से ही सही, प मी देश के वै ािनक िफर भारत क ओर
आकृ होने लगे ह। ऐसा भारतीय वै ािनक क तभा और मता को
पहचानने और देश म िव ान संबध ं ी सुिवधाओं के कारण संभव हो सका है
। 5
हम अपने ब क श ा का मह च बताएं गे िक श ा से ान क
ाि हाती है और ान के सहारे ब े सफल होते है ।
छा क भूिमका
िवक सत भारत महज एक सपना नह । जब यह सपना सच हो जाएगा तो
इसका सबसे अ धक लाभ यव ु क को होगा। इस लए यह मह वपूण है िक
इस सपने को साकार करने म आपको शु से ही सहयोग करना चािहए।
इसे आप अपनी शै णक और पा रवा रक सीमाओं म रहते हुए अपनी
यो यता के अनु प बेहद अनोखे अंदाज म िनभा सकते ह। माता-िपता और
ब क टोली म यह चता उमड़ती-घुमड़ती रहती है िक पढ़ाई पूरी करने
के बाद कौन-सा रोजगार िमलेगा। छोटी-मोटी बाधाओं से घबराए िबना
जस िवषय का आप अ ययन करते ह, यिद उसम आपका दशन उ कृ
बना रहता है तो इसम कोई शक नह िक आपक संभावना और भिव य
जगमगाते रहगे| सीमा के बाद कोई और सीमा नह होती| रोजगार के
अवसर क कोई कमी नह , कतु जब कोई यि बहुत ही खसम-खास
चाहत रखता है और कहता है क उसे सफ सरकारी नौकरी चािहए तो
काफ िद त आती ह। यिद आप उ मशीलता, डजाइन, उ ोग, अपने
नए िवचार के साथ कृिष काय करने, सूचना ौ ोिगक उ पाद बनाने के
बारे म सोच सकते ह तो आपके सामने अनंत संभवनाएँ ह| भावी यवु ा पीढ़ी
के लए यह बहुत मह वपूण है िक वे ान और शारी रक सहयोग के
ह थयार का उपयोग करते हुए सभी े म सहयोग करने का मन बना ल।
एक िवक सत रा का बहुत ही मह वपूण पैमाना है-उसका सा र तर। सौ
करोड़ लोग को श त करना कोई खेल नह | यह ल य अपने यव ु क के
सहयोग से ही ा िकया जा सकता है। आपम से ऐसे बहुत से खुशनसीब ह
जो अ छे कूल म पढ़कर तरीय श ा ले रहे ह। कतु बहुत से आपके
भाई-बहन को यह नसीब नह , खासकर जो आपके आसपास क गाँव म
रहते ह |
सतार को न छू पाना कोई शम क बात नह , कतु सतार को छू पाने का
सपना ही न होना, वाकई शम क बात है
एक िवक सत रा क पहचान है क उसम अमीर-गरीब के भेद को
ढ़तापूवक िमटा िदया जाता है। इसका एक तरीका यह है िक आपका
कूल आपके पड़ोस के एक गाँव को अपना ले। आपम से येक छुि य के
िदन उस गाँव म जा सकते ह और कम से कम दो लोग क सा र बनाने म
सहयोग देकर ान के दीप को जला सकते ह। 13
इसके साथ ही ब े अपने कूल प रसर या घर म दस पौधे लगा सकते ह।
आज से कुछ साल के बाद हम सभी हरे-भरे प रवेश म काम कर सकग
जससे हमारे अंदर सृजना मक सोच और सि यता पनपेगी।
छा बुजुग ,बीमार और िवकलांग लोग क देखभाल कर सकते ह। ऐसे
भ यवहार से िवकास के लए अनुकूल और शां तपूण माहौल तैयार होगा।
आप जो भी काम करते ह उसे शत- तशत िन ापूवक पूरा कर।
अनुशासन, ढ़िन य और लगन से सफलता िमलती है। इस बात को संत
त व व ु र ने एक त ु रल म बड़ी सुंदरता से कहा है—
ஆ க அத னா ெச அைச லா
ஊ க ைடயா ைழ.
इसका अथ है िक सफलता और धन अपना माग ढू ँ ढ लेते ह और उस
यि तक पहुँच जाते ह जसम ढ़ इ छाशि और योजनायु लगन
होती है| नसीब उस इंसान तक खुद चलकर आ जाता है जसम अद य
उ साह और कभी न प त होने वाली िह मत होती है । 14
छा के लए छः-सू ी शपथ
जागृत नारी
जब हम भिव य क कारोबारी और रा ीय आं दोलन म भाग लेने क इ छा
रखने वाली मिहलाओं के बारे म सोचते ह तो मुझे महाकिव सु यम
भारती क याद आती है। भारतीय नारी के िवषय म अपने सपन को उ ह ने
सन् 1910 म रची गयी इस किवता म इस प म संजोया है :
अपनी भुजाएँ उठाए
ल य क ओर बढ़ रही ना रयाँ,
अपनी आ था पर ढ़
िनभय होकर पथ पर बढ़ रही ना रयाँ!
उनम हे आकाश छूती
ान क ग रमा ऐसी ।
सुसं कृत ना रयाँ
आरोिपत मयादा के आगे न डगने वाली ना रयाँ
अ ान के अंधकार को भगा रह
मुि के माग को अपना रह ये ना रयाँ
ान के काश से भरपूर ।
यही है धम उनका
जानती ह जागृत ना रयाँ !
मुझे िव ास है िक किव का यह सपना हमारे देश क ना रय के जीवन म
सच हो जाएगा । 11
ानसंप समाज क ओर
समृ और स ा के लए ान मुख ेरक त व रहा है, इस लए पूरी
दिु नया मै ान- ाि को ाथिमकता दी जाती है | हमारे देश मै ान के
आदान- धान क सं कृ त बड़ी ही पुरातन और बेजोड है 1
ानसंप समाज क ओर
ानसंप समाज का उदय
िवगत सदी के दौरान िव म काफ प रवतन हुआ। म आधा रत
कृिष धान समाज के थान पर ा ोिगक , पूँजी और म के बंधन पर
िटका औ ोिगक समाज मह वपूण हो गया। इस कार के बंधन से
तयोिगता आधा रत लाभ ही िमला। सदी के अं तम दशक म उस सूचना
यगु का आगमन हुआ जसम संब ता (connectivity) और सॉ टवेयर
उ पाद िकसी देश क अथ यव था के मु य ोत होते ह |
21व सदी म एक नए समाज का उदय हो रहा है जहाँ पूँजी और म के
थान पर ान उ पादन का मुख ोत है। ान के बेहतर इ तेमाल से
कोई रा खूब धन-संप अ जत कर सकता है| इससे वा य, श ा,
आधारभूत संरचना और सामा जक संकेतक जैसी जीवन तर से जुड़ी
सेवाओं म भी सुधार होता है।
ान ाि क आधारभूत संरचना का िनमाण और उसका रख-रखाव, ान
फ़ैलाने वाले चारक को तैयार करना और सूजन, िवकास तथा नए ान
के दोहन से उनक उ पादकता म बढ़ोतरी करना ानसंप समाज क
खुशहाली िनधा रत करने के मुख कारक ह। कोई रा ानसंप समाज
क अव था तक पहुँचा है अथवा नह , इसका िनणय इस बात से होता है
िक वह अथ यव था के सभी े म ान का सृजन और उपयोग िकतने
भावी ढंग से करता है। 2
ाचीन ान हमारे देश का अनमोल संसाधन है| यह रा ीय ग त के साथ-
साथ िव तर पर अपनी पहचान बनाने के लए अिनवाय है
ानसंप समाज के आयाम
ान-आधा रत अथ णाली म समाज का उ े य बदल जाता है| इसम सम
िवकास क मौ लक आव यकताएँ पूरी करने के थान पर सश करण
उ े य बन जाता है।
श ा णाली म पा -पु तक के श ण के थान पर जीवन-
मू य, तभा और गुणव ा पर जोर देते हुए सृजनशीलता और
िवचार-िविनमय ारा वंय सीखने क िव ध अपनायी जाएगी।
इसम कम करने वाले,कुशल या कम कुशल िमक के थान पर,
सुिव , वयं समथ और लचीला कुशलता वाले लोग ह गे |
इस समाज म काम का व प संगिठत और मशीन आधा रत होने
के थान पर अपे ाकृत कमसंगिठत और सॉ टवेयर संच लत होगा|
बंधन क परेखा तिन ध व करने वाली होगी न िक आदेश देने
वाली।
औ ोिगक अथ यव था क तुलना म इसम पयावरण और
पा र थ तक पर द ु भाव कम पड़गे।
अंत म यह िक, अथ यव था ान आधा रत होगी, न िक उ ोग
आधा रत। 3
ानसंप समाज के अंग
ानसंप समाज के दो बहुत मह वपूण अंग ह—सामा जक पांतरण और
धन-संप अजन |
ानसंप समाज के ल य क िदशा म बढ़ने के लए एक रा ीय कायदल ने
कि क (core) े क पहचान क है। ये ह-सूचना ौ ोिगक , जैव-
ौ ोिगक , अंत र ौ ोिगक , मौसम-पूवानुमान, आपदा- बंधन दरू -
चिक सा (टेली मे ड सन), दरू - श ा, वदेशी ान उ पाद को बनाने वाली
ौ ोिगक , सेवा– े और इनफ टेनमट| इन े म तेजी से अपनी मता
बढ़ाने क आव यकता है तािक चुर िवकास और ग त हो, जससे समाज
क काया पलट जाय|
21व सदी म एक नए समाज का उदय हो रहा है जसमे पूँजी और म क
तुलना म ान को मु य उ पाद माना जा रहा है
ानसंप समाज के िनमाण का दस ू रा प है-धन पैदा करना। इसका
ताना-बाना पहचान िकए गए देश के कि क े के इद-िगद ही खड़ा िकया
जाएगा। इन े म धन पैदा करने के िव ध तं (methodology) को इस
कार िवक सत करना होगा िक वष 2008 तक 50 अरब डालर तवष
िनयात का ल य पूरा िकया जा सके। िवशेष प से सूचना ौ ोिगक
से टर के मा यम से ही यह ल य हा सल करना होगा। साथ ही सामा जक
पांतरण के लए, घरेलु आपू त के उ े य से, 30 अरब डॉलर मू य के
सूचना ौ ोिगक उ पाद तैयार करने क मता भी िवक सत करनी होगी।
नी तगत और शासिनक ि याओं का िवकास, िनयं णकारी प तय म
प रवतन, पेटट क पहचान और सबसे बढकर यव ु ा तथा ऊजावान नेतृ व-
वग का सृजन ानसंप समाज के वे अंग ह, जनका उ चत थान
सुिन त करना होगा| धन-संप पैदा करने के लए, साथ म यह भी ज़ री
होगा िक यापार नी त म नाग रक के िहत का यान रखा जाय, उपयोग
करने वाल के अनुकूल ौ ोिगक का िनमाण िकया जाय और तीव त
वाली उ ोग –अनुसंधान-अकादमी सहयोिगताएँ कायम क जाएँ । 4
जहाँ ानसंप समाज के दो आयामी उदे य ह –समाज का पांतरण और
धन- संप पैदा करना, वहीँ एक तीसरा आयाम भारत को एक ानसंप
शि के प म बदलना भी है। किठन प र म से अ जत धन और
प रव तत समाज-ये दो तंभ ह ानसंप समाज के। अत: उसके
अ त व को सुर त रखने के लए इन तंभ क सुर ा करनी होगी| इस
तरह तीसरा आयाम हुआ- ान का संर ण।
ड जटल पु तकालय क शु आत
ड जटल पु तकालय से आशय मौजूदा पार प रक पु तकालय को
ड जटल िव ध से जोड़ देना नह है। इसम ान के बा ोत िकताब
और पि का के साथ-साथ ान के आतं रक ोत भाषण, लोकसंगीत
च कला और भ च के प म सूचना और हमारी परंपरा संर त
रहेगी। यह मह वपूण है िक हम अपने ड जटल पु तकालय म ान और
सं कृ त के िविवध प को एक कृत करने का िमशन अपना ल। 5
हमारा िमशन है िक सृजनशीलता और सभी कार के मानव ान तक पहुँच
होने के लए भारतीय िव ान सं थान और कानगी मेलन िव िव ालय के
सहयोग से सुचना ौ ोिगक मं ालय ारा संचा लत भारतीय ड जटल
पु तकालय के लए पोटल ( वेश ार) का िनमाण िकया जाय। इस
पु तकालय का उ ाटन सन् 2003 म िकया गया था और संपूण देश म
इसके 20 क कायशील ह। इनम 50,000 से अ धक पु तक का
ड जटलीकरण िकया जा चुका है जनम करीब 30,000 पु तक नौ िव भ
भारतीय भाषाओं म ह।
ड जटल पु तकालय म सभी के लए सामान प से ान उपल ध रहता
है चाहे उसका िनवास- थान, जा त, मजहब, रंग या आ थक थ त कुछ
भी हो
ड जटल पु तकालय का लाभ यह है िक इस तक सभी लोग क समान
प से पहुँच होगी, चाहे वे कह के रहने वाले ह , िकसी जा त, मजहब और
वण के ह या िफर उनक आ थक थ त कसी भी य न हो। ड जटल
पु तकालय लोग को जोड़ता है, न िक उनके िबच फूट डालता है। यह
अतीत और वतमान का संगम है तथा इससे भिव य साकार होता है|
ड जटल पु तकालय भारत म मौजूद ड जटल असमानता को दरू करेगा।
यह असमानता हमारे लए चता का िवषय है। 6
परंपरागत ान का संर ण
हमारे गाँव म ान का िवशाल भंडार है। यह भंडार ामीण समाज के
इ तहास, लोक संगीत, सां कृ तक परंपरा, कला, पारंप रक औष ध ान,
िवपणन सुचना और अ य तौर-तरीक के प म उपल ध है। इन सूचनाओं
के| मौ खक आदान- दान क परंपरा अब तक चली आ रही है। इसे एक
पीढ़ी के लोग दसू री पीढ़ी को देते आए ह, कतु यह परंपरा धीरे-धीरे न हो
रही है। ान के इस भंडार का संर ण आव यक है तािक इससे भावी पीढ़ी
को लाभ िमल सके।
िव भ ोत से ा ान को अ धक संप ान माना जाता है
भारत म सािह य, संगीत तथा ताड़प पर अंिकत पारंप रक चिक सा
णाली एवं िव ान का िवशाल भंडार है। इस मह वपूण ान का संर ण
आव यक है। ताड़प का कैन करना ही पया नह होगा य िक इसे
पढ़ने वाले और पढ़कर इसम दज पेड़-पौध और र न को पहचानने वाले
बहुत कम लोग बचे ह। जो थोड़े-से लोग इसे पढ़ सकते ह, उनम से बहुत
कम लोग इसे लख सकते ह। जो लोग इसे लख सकते ह उनम से िगने-
चुने लोग इसे कं यूटर के ड जटल प म अंिकत कर सकते ह। ाचीन
लिपय को पहचानने म ि म एक जिटल सम या है। तकनीक प से
इसका हल ाय: उपल ध नह है | मेरा सुझाव है क जस ताडप को
कैन िकया जाना है उसे िवशेष से पढ़वा कर उनक आवाज को रेकाड
कर लया जाय। िफर इसे वेब पर डालकर िवशेष क िन प राय माँगी
जाय। इसम येक ताड़प म दज आँ कड़ क जाँच क जाय। इन आँ कड़
का उपयोग ताडप पढ़ने वाले िवशेष क भावी पीढ़ी तैयार करने म क
जा सकती है। अब ताड़प पढ़ने वाले बहुत कम लोग बचे ह। 7
संब ता से सशि करण
संब ता ही शि है। संब ता ही संप है। संब ता ही ग त है।
सौ करोड़ क आबादी वाले देश म खुशहाली लाने के लए सश करण के
मूलमं ह-जनता और सरकार के बीच सहयोग तथा सावजिनक और िनजी
े क िव भ सं थाओ के बीच सहभािगता| सहयोग-आधा रत ग त
और आ थक खुशहाली के लए इस सहभािगता को तेजी से और िनरंतर
सूचना- वाह के मा यम से आधार दान िकया जाता है। यह सूचना और
जानकारी के िव तार का यगु है। इसका लाभ अथ यव था के तीन े -
कृिष, उ ोग और जन-सेवाओं क होगा।
तािवत िवकास मॅाडल म अथ यव था के तीन े के बीच संपक के
लए चार ि ड (संपक के ) ह- ान ि ड, वा य ि ड, ई-गवन स ि ड
और ामीण ि ड। इस ि ड यव था से ामीण े के 70 करोड़ लोग
तथा शहरी े के 30 करोड़ लोग के जीवन म खुशहाली आएगी। इस
ि या से गरीबी-रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे 26 करोड़ लोग के
जीवन म प रवतन आएगा।
बडिव थ असंतुलन को िमटाकर ानसंप समाज म समरसता कायम
करता है
ान-ि ड
भारत म मौजूदा समय म ऐसे आभासी (virtual) िव िव ालय और श ा
सं थान को साकार करने क ि या चल रह है, जनके ारा ान क
भागीदारी, ान का सार और ान का पुनरोपयोग संभव हो सके।
आभासी िव िव ालय भिव य क ौ ोिगक और अ यंत कम लागत म
उ - तरीय श ा देश म मुहयै ा कराते ह। िफर भी ये आभासी
िव िव ालय, प रसर आधा रत असली िव िव ालय क जगह नह ले
पाए ह। आभासी िव िव ालय के सामने दोन कार के श ा सं थान
क खूिबयाँ सुलभ कराने क चुनौती है।
श ा के तीन उपकरण ह – या यान,पु तकालय और योगशाला।
वा तिवक दिु नया म समान पहुँच कमोबेश लोकतांि क प से होती है,
कतु आभासी िव िव ालय म समान पहुँच का मतलब है नेटवक म
उपल ध सव म संसाधन,चाहे वह श क, पु तकालय या योगशाला
कुछ भी ह । प रणाम व प ने क ही अपने येक यो ा
के लए सव म संसाधन सुलभ करता है।
ने क के लए बडिव थ क मता बढ़ने क आव यकता होती है।
या यान के लए उपयु कुछ सौ िकलोबाइट क जगह औपचा रक
ड जटल पु तकालय के लए कुछ मेगावाट मता और इंटरनेट वाली
अनोपचा रक ान क दिु नया क जगह िव ान और अ भयं ण के ान से
संप िव क सुदरू योगशालाओं के बीच गीगाबाइट मता वाले संपक
चािहए| बडिव थ के स ते होने और आसानीपूवक काफ सं या म
उपल ध होने से यह िव िव ालय दरू थ उपकरण और जिटल सुिवधाओं
के उपयोग म स म हो सकगे। इन सुिवधाओं के उपयोग से उ श ा के
े म अ यापन, पढ़ाई और शोध के तौर-तरीक म प रवतन हो सकता है
और अंततः पूरी श ा णाली म सभी लोग तक इसक समान पहुँच हो
सकेगी।
बडिव थ असंतुलन को दरू कर ानसंप समाज म समरसता लाता है।
हमारे पास ानसंप सं थाएँ ह, कतु देश के िव भ े तक ान क
समान प से पहुँच के लए हम पूरे देश म संब ता कायम करनी होगी
तािक रा ीय ान ि ड क थापना संभव हो सके।
वा य-ि ड
उ िवशेष ता ा और सामा य चिक सा से संबं धत िव भ वा य
सेवा क को पर पर जोड़कर रा ीय वा य ि ड क थापना करने क
आव यकता है। वा य सेवा श ण सं थान और चिक सा
अनुसंधान सं थान के बीच संपक से कायम नेटवक के मा यम से िवल ण
रोग के अ ययन और अनुभव को लेकर उ िवशेष ता ा सं थान के
बीच िवचार का आदान- दान संभव हो सकेगा। इसक मदद से िव भ
सं थान के िवशेष चिक सक जिटल बीमा रय के संबध ं म आपस म
चचा कर सकगे तथा उपचार के लए सुझाव दे सकगे ।
ई- शासन-ि ड
आज दिु नया के अ धकांश देश उ म शासन को एक मह वपूण ल य मान
कर चल रहे ह और पारदश शासन के लए कई िव श उपाय िकए गए ह।
इंटरनेट ां त इस िदशा म पहल करने वाला एक मह वपूण मा यम सािबत
हुआ है, य िक इससे िकसी भी कार क सूचना कह भी ा क जा
सकती है। जनता को सेवा उपल ध कराना सरकार क मुख ज मेदारी
है। खासकर भारत जैसे एक सौ करोड़ क जनसं या वाले लोकतांि क
देश म ई- शासन को चािहए िक वह तेजी से लोग को सूचना उपल ध
करवाए। इसके साथ ही, क तथा रा य सरकार के बीच सूचना का वाह
तेजी से हो।
िव च प र य: म क पना करता हूँ एक चुनावी प र य का, जसम कोई
उ मीदवार िकसी समय मतदान े से नामांकन भरेगा। तुरत ं चुनाव
अ धकारी रा ीय नाग रक पहचान डाटाबेस के आधार पर उस उ मीदवार
क उ मीदवारी का स यापन कर लेगा। उसके संबध ं म शै णक जानकारी
िव िव ालय के रेकाड से िमल जाएगी| जस लोग के यह उसने काम
िकया है उन िनयो ाओं से उसक रोजगार संबध ं ी जानकारी िमल जाएगी|
उसके आय और धन के ोत संबधी जानकारी आयकर िवभाग से िमल
जाएगी। उसक भूिम संबधं ी जानकारी देश के िव भ भाग म फैले भूिम
ा धकरण के पंजीकरण से िमल जाएगी। पु लस के पास मौजूद अपराध
रेकाड और या यक णाली से उसके िवचार और यवहार क जानकारी
िमल जाएगी|
आव यक सूचनाएँ संगृहीत करने और उ चत समय पर िबना पूवा ह के
तुत करने वाली देश भर म रा य और क सरकार क वेब सेवा
डायरे टरी (वेब स वसेस डायरे टरीज) क मदद से चुनाव अ धकारी
कं यूटर ट मनल से कुछ ही सेकंड म सारे िववरण ा कर लेगा | कृि म
बु यु सॉ टवेयर उ मीदवार क िव सनीयता का िव ेषण करता है
और यह बताता है िक वह िकतना सफल राजनी त होगा। देश के सुदरू
भाग म बैठा वह चुनाव अ धकारी उ मीदवार क पा ता के संबध
ं म िनणय
ले नेता है और चुनाव ि या शु हो जाती है। आभासी मतदान क के
मा यम से सभी मतदाता घर-बैठे मतदान करते ह।
या यह एक सपना है? या ऐसा करना संभव है? यिद ऐसा संभव है, तो
हमारे पास ऐसी सुिवधा कब होगी? या हम अपने सौ करोड़ नाग रक को
सु-शासन दे सकते ह? या ऐसा शासन तेजी से सुिवधा उपल ध करवा
सकगा? या शासन वा तिवक लेन-देन और क पत लेन-देन के भेद को
समझ सकेगा? या िकसी िवशेष सेवा जाँच सूची के आधार पर हेरा-फेरी
के मामले म सरकार त काल कारवाई कर सकती है? या यह ई- शासन
वैसी लागत पर चल सकता है जसे हमारा देश वहन कर सके? यिद यह
णाली लागू होती है तो इसे सही अथ म ई- शासन माना जाएगा।
ड जटल पु तकालय म भुत और वतमान का संगम होता है तथा इससे
भिव य छलकने लगता है
ऐसी णाली थािपत करने के लए रा य और जला शासन, चुनाव
आयोग, िव िव ालय, बक, गृह पु लस िवभाग, बीमा कपनी जैसे िव भ
सरकारी िवभाग को जो नेवाले उ - तरीय बडिव थ सं थान म उद
एवं ै तज ि ड क थापना क आव यकता है तािक तेजी से इन ि ड से
सूचना ली जा सके और इनम सूचना उपल ध करवायी जा सके जससे सु-
शासन के ल य को ा िकया जा सके।
ामीण-ि ड
मेरे मन म ाम पंचायत म ाम ान क क थापना का प र य है।
ामीण को ानसंप बनाने के साथ-साथ यह उनके लए ान से जोड़ने
वाले थानीय क के प म काय करेगा। यह काय ामीण े म शहरी
सुिवधा धान कराने [ ोवाइ डग अरबन एमेिनटीज टु रल ए रयाज़
(पुरा)] के सम ढाँचे के अंतगत होगा।
ाम ान के को िकसान, मछुआर , द तकार, यापारी, यवसायी,
उ मी, बेरोजगार यव
ु क और छा क आव यकता के अनु प अिनवाय
सुचना उपल ध करवानी होगी| उपल ध करवायी गयी सुचना क थानीय
ासंिगकता अ यंत मह वपूण है। लोग को सरल सूचना चािहए, कतु
सुचना णाली के संयोजक के लए अकसर ऐसा करना किठन होता है
य िक उ ह आकड़ के तर को उठाने क आव यकता होती है।
शी त अनुभवी लोग को सुचना तैयार करने के लए तैनात करना होगा,
जो लोग को मौसम का पूवानुमान, मौसम संबधं ी जानकारी, मछली यापार
संबध
ं ी आँ कड़े, कृिष और अ य ामीण उ पाद से संबं धत जानकारी सरल
भाषा म बता सक। ये आँ कड़े आपस म जुड़े िव भ सं थान से ा ह गे
और उनसे लोग को उ चत समय पर सेवा िमलेगी | कतु सुचना के उपयोग
करने वाल के अनुकूल िनयिमत प से द ु त सूचना उपल ध करवाना
सचमुच एक चुनौती होगी |
ाम ान क को जन अ य बात पर यान देना चािहए वे ह-गाँव म
िवकास काय को लागू करने के लए यव
ु क को अ धकार संप बनाना और
ामीण उ ोग क थापना करना जनसे यापक पैमाने पर रोजगार
उपल ध करवाया जा सके। अतएव यह अिनवाय है िक ये क उ ोग,
ब कग और िवपणन सं थाओ के बीच संपक थािपत करते हुए लोग को
कौशल और ान दान करने म स म ह । िव भ ोत पर आधा रत
ान क अ धक संप ान माना जाता है।
ो ो
िवक सत रा को ल य को साकार करना
भारत का कुल भौगो लक े फल लगभग 33 लाख वग िकलोमीटर है
जसम सात हजार िक.मी. लंबी तटीय रेखा है। भारतीय भू-भाग कह
समु तल के बराबर है तो कह समु तल से 8600 मीटर ऊँचा है। भारत म
कह समु , पहाड़ी, पवत, म भूिम , ीप और घाटी ह तो कह मैदानी
इलाके ह। देश क सी करोड़ से अ धक जनसं या का 70 तशत भाग
छह लाख गाँव म िनवास करता है। भारत म ाकृ तक संसाधन भरपूर ह।
िव भ े म दिु नया के कई देश से ट र लेते हुए यह अपना वच व
बनाए हुए है। कतु ये सारी उपल धयाँ छतरायी हुई ह। इनके िवषय म
लोग को जानकारी बहुत कम है। हम ग त के लए सामा जक प रवतन
और थायी िवकास चािहए। ये दोन पहलू समय पर ा िकए जा सकते ह
सफ ानसंप समाज के िनमाण से, जो पूरे रा क सश बनाएगा।
एक ानसंप समाज के प म िवक सत होने क मता भारत के पास है।
इस ल य क हा सल करने क चाभी है |इले टोिनक और ान क
संयो जता | लगभग एक अरब लोग को पर पर जोड़ने के माग म बहुत सी
चुनौ तयाँ हमारे सामने है। भारत को एक िवक सत रा के प म देखने के
लए हम उन चुनौ तय का सामना करने के लए तैयार रहना होगा। 8
िवक सत भारत का िनमाण
हम सब िमलकर एक ऐसे देश का िनमाण कर जो रहने के लए सबसे
खुशहाल जगह म से एक हो और जो अपने करोड़ लोग के चहरे पर
मु कान िबखेरता रहे। 1
िवक सत भारत का िनमाण
रा यि से बड़ा होता है
वतं ता आं दोलन ने हमारे अंदर यह भाव भर िदया िक रा िकसी यि
या सं था से बड़ा होता है। कतु िवगत कुछ दशक से यह रा ीय भाव लु
होता जा रहा है। आज आव यकता है िक सभी राजनी तक दल आपस म
सहयोग करते हुए इस वलंत का उ र द-“भारत कब एक िवक सत
रा बनेगा?” 2
आव यकता है िक लोग क सोच म समरसता हो। हम यह सोचने और
महसूस करने क ज रत है िक रा िकसी यि या सं था से बड़ा होता
है। हम लोग के िदमाग म यह बात घर कर गई है िक ‘हम यह नह कर
सकते’। िफर भी देश के िव भ सं थान म काम करने और िमशन के प
म चलने वाली प रयोजनाओं म कई प रणाम को नज़दीक से देखने के बाद
मेरा अनुभव यह है िक प उ े य से जब भी हमने कोई ल य पाने का
िनणय लया तब हमने उसे ा िकया |सावजिनक और िनजी े दोन का
अनुभव रहा है िक जब भी हम िमशन के प म कोई काम करने का संक प
लेते ह तो हम हमेशा कामयाबी िमलती है। 3
रा ीय स मान का भाव
जब भी आप मी डया और अ य मा यम से सां कृ तक हमले क महसूस
कर बेचन ै होते ह तब आप महसूस कर िक आप एक शा त स यता क
संतान ह। हमने कई हमल क झेला है। हमारे ऊपर कई वंश का शासन
रहा है, कतु आज हमारे देश पर ऐसे िकसी हमले का खतरा नह है और
यह आजाद है। जतने भी िवदेशी आ मण हुए, उनके साथ आने वाली
सां कृ तक िवशेषताओं को हमने अपनाया।आज हमने िविवधतापूण सौ
करोड़ क आबादी क देखरेख के लए अपने नेतृ व म महान गुण पैदा कर
लया है। 4 अब हम अपने देश को खतरा पहुँचाने वाले िकसी धम या िकसी
यि क सनक का समथन नह करना चािहए।
हम अपने प र म से िवकासशील भारत क िवक सत भारत म बदलगे
धम-िनरपे ता के स ांत के त अटू ट िन ा होनी चािहए। धम-िनरपे ता
हमारी रा ीयता का आधार है और हमारी स यता का एक सबल प है।
सभी धम के नेताओं को एक ही तरह का संदेश देना चािहए जससे लोग
के िदलो-िदमाग म एकता का भाव पैदा हो। शी ही हमारा देश अपने
व णम यगु म वेश करेगा। 5
जब आपके मन म पराजय का भाव उभरे तो आप घबराएं नह और महसूस
कर िक आप एक महान देश के नाग रक ह। हम खा ा उ पादन म
आ मिनभर ह। हम अपना संचार उप ह खुद बनाते ह और अपना दरू
संवेदी उप ह खुद छोड़ते ह। जब भारत एक परमाणु और ेपा संप
देश बन गया तब िवक सत देश ने हमारे ऊपर आ थक और ौ ोिगक य
तबंध लगा िदया | हमने अपनी कृिष , ौ ोिगक य और औ ोिगक
ताकत के साथ-साथ जनता के उ साह क बदौलत इस तबंध को झेल
लया। इस उ साह क बनाए रख और इसे ग तशील बनाकर िनखारते रह।
जब आप दिु नया क और नज़र डालते ह गे तो कई बार अपने देश क सौ
िवकासशील देश के साथ देखकर िनराश हो जात ह गे और सोचते ह गे िक
हमारा देश तथाक थत ‘जी-8’ क सूची म नह है। उस समय आप देश के
सौ करोड़ तेज वी मान को याद कर। तेज वी मन इस जहान म, जमीन पर
और आसमान म सबसे सश संसाधन ह। हम अपनी मेहनत से
िवकासशील भारत क िवक सत रा बना दगे। यही है-सह ा दी िमशन
2020-एक िवक सत भारत।’ 6
पहला सपना
हमने वतं ता के लए पहला सपना सन् 1857 म देखा, जसके
प रणाम व प रा ीयता क बल भाव का उदय हुआ। लोग मन और
उ े य के तर पर एक होकर ब लदान के लए तैयार हो गए।
बहुत से भारतीय के मन म जीवन के येक े म िवदे शय से आगे बढ़ने
क वािहश थी। यह मह वपूण िवचार आ म अ भ यि क आव यकता
म प रणत हो गया और यही भाव राि य आं दोलन के दौरान भारतीय
नौजवान के िदलो-िदमाग पर छा गया। यह बात राि य आं दोलन का
िह सा बन गई िक हम अपनी मता को य कर और प मी देश क
िदखा द िक हम िकसी मायने म उनसे कम नह । इस पहले सपने से
राजनी तक, सावजिनक जीवन ,संगीत ,का य ,सािह य और िव ान सिहत
सभी े म वतं ता आदोलन ने उ - तरीय नेता िदये।
कोई देश वैसा ही होता है जैसे उसके नाग रक होते ह। जनता क नै तकता,
जीवन-मू य और च र रा क बुनावट म बड़ी बारीक से गुथ ं े रहते ह
दस
ू रा सपना
वतं ता के लगभग छह दशक के बाद भारत को एक िवक सत देश बनाने
क आकां ा लोग के िदल म उमड़ने लगी है। देश के लए यह दस ू रा सपना
है। इस चुनौती के लए हम अपने आपको कैसे तैयार करगे? 7
ो े े
अपनी िवशाल जनसं या का एक बड़ा िह सा यव
ु क का होना हमारे देश
क अ दतीय शिकत है करने वाल के जीवन तर म सुधार होगा।
िवक सत भारत का व प
मेरे मन म तयोिगताशील िवक सत भारत का व प इस कार है :
एक ऐसा देश जहाँ गरीबी का कोई िनशान न हो। जहाँ िनर रता और
मिहलाओं पर अ याचार क कोई जगह न हो। जहाँ के लोग के जीवन
म अलगाव क भावना न हो।
म दख
ु ी लोग के दद को दरू करने क िज़ मेदारी लूग
ं ा।
म मू य आधा रत श ा और धम को आ या मक शि बनाते
हुए भारत को एक आ थक शि बनाने के ल य को साकार
करने म भाग लूग
ं ा।
सश करण
जीवन के त आदर का भाव सचमुच हक कत म बदल सकता है, यिद इस
दाशिनक िवचार को अमली जामा पहनाया जाए। ऐसा समाज के िब भ
घटक को सश करके िकया जा सकता है। जब माता-िपता ब े को उसके
जीवन के िव भ चरण म सश बनाते ह तभी वह ब ा एक िज़ मेदार
नाग रक बनता है। जब एक श क ान और अनुभव से समृ होता है तो
जीवन-मू य म िव ास करने वाले यव ु क का उ व होता है। जब िकसी
यि या टीम को ौ ोिगक का सहारा िमलाता है तो उसम उ तर
उपल ध क संभावना बल जाती है। जब िकसी गाँव का नेता ामीण
जनता को सबल बनाता है तो रा ीय िवकास के िव भ े क िदशा देने
वाले नेता सामने आते ह। जब धम सश होकर आ या मक शि के प
म उभरता है तो लोग के िदल म शां त और खुशहाली के फूल खलने
लगते ह। िवक सत रा के प म भारत के पांतरण क शि से
सश करण ही है। 14
रचना मक नेतृव
रचना मक नेतृव अपनी परंपरागत भूिमका से हटकर कमांडर के थान पर
कोच, बंधक के थान पर पथ दशक,िनदेशक के थान पर तिन ध
तथा स मान क अपे ा रखने वाले यि के थान पर आ म स मान क
भावना वाले लाने का मु कल कम कर रहा है | 1
रचना मक नेतृव
आव यक है नेतृव क
िवक सत भारत िनमाण के लए कोण से बाते आव यकता है ?के हमारा देश
ाकृ तक संसाधन एवं मानव-शि से संप है। देश क सी करोड़ (एक
अरब) जनसं या म से स र करोड़ लोग पतीस वष से कम उ के ह।
भारत रा को दरअसल यव ु ा नेतृ व क आव यकता है, जो भारत क एक
िवक सत रा म पा तरत करने के लए आव यक प रवतन को सही
िदशा दे सके।
नेता नए ढंग के े संगठन का िनमाण करते ह। कुशल नेता िकसी संगठन
के लए टीम बनाने म े संगठन का िनमाण करते है| कुशल नेता िकसी
संगठन के लए टीम बनाने म े यि य को चु बक क तरह अपने और
आक षत करते ह। वे असफलताओं के दौर म भी ेरणादायी नेतृ व दान
करते ह, य िक वे खतर से डरते नह । नेता व तुत: वह है, जो दस
ू र से
यह अपे ा रखने के बजाय िक वे उसके लए या कर सकते ह, यह
सोचता है िक वह दसू र के लए या कर सकता है। 2
नेता के आव यक गुण
जून, 1988 म जब म डफस रसच डजाइन लेबोरेटरी (डी.आर.डी.एल.)
म कायरत था तो इंटी ेटेड गाइडेड िमसाइल डेवलपमट ो ाम को मंजूरी
िमलने वाली थी। ‘पृ वी’, ‘आि ’, ‘आकाश’, ‘ि शूल’ एव नाग जैसी
िमसाइल के लए अलग-अलग प रयोजना िनदेशक का चयन िकया जाना
था। इस ति त पद के लए कई अनुभवी वै ािनक दौड़ म थे। इनम से
कई काफ व र थे और उनक उ पचास वाय से अ धक थी।
इन प रयोजनाओं क अगुआई करने म स म सबसे उपयु यि के
चयन हेतु हमने एक नई ि या अपनायी। प रयोजना िनदेशक के चयन के
लए अपे त आव यक मानदंड को अं तम प देने के उ े य से मने
डी.आर.डी.एल. क बंधक प रष क एक बैठक बुलाये और येक
सद य से कहा िक वहाँ रखे लैक बोड पर वह अपनी समझ से एक गुण
लख दे जसे वह करत ह प रयोजना िनदशक के पद के लए सबसे
अिनवाय मानता हो। येक सद य ने एक-एक गुण लखा। उसके बाद जो
सूची बनी वह इस कार थी :
े ो ो ेऔ े ै
कुशल नेता ल गो को चु बक क भती अपने और आक षत करते है
रचना मक नेतृ व
सन् 2020 तक भारत क िवक सत रा म पांत रत करने के िवचार क
सफलता म रचना मक नेतृ व का िवकास एक मह वपूण संघटक है।
कौन है वह रचना मक नेता? या ह एक रचना मक नेता क िवशेषताएँ ?
रचना मक नेतृ व अपनी परंपरागत भूिमका से हटकर कमांडर के थान पर
कोच, बंधक के थान पर पथ- दशक, िनदेशक के थान पर तिन ध
तथा स मान क अपे ा रखने वाले यि के थान पर आ म-स मान क
भावना वाले य को लाने का मु कल काम अंजाम देता है।
देश म रचना मक नेतृ व का अनुपात जतना अ धक होगा, ‘िवक सत
भारत’ जैसे सपने क सफलता उतनी ही अ धक सश और संभा य
होगी। 13
सश करण : नेतृ व का ल य
राजनी त, शासन, धम, यवसाय एवं िव ान सिहत जीवन के सभी े
म बु एवं क पनाशील नेतृ व का
िवकास आव यक है। इन सभी े का असर रा एवं समाज के िवकास
पर पड़ता है। बु नेतृ व ही सश करण क धुरी है। अतएव समय क
माँग है िक समाज के िव भ वग म बु नेतृ व का िवकास हो जनम
शां त, ग त एवं िवकास के त क पनाशीलता एवं वचनब ता हो।
जब कोई नेता अपने सं थान म कायरत लोग क सश बनाता है तो ऐसे
नेताओं का ज म होता है, जो वयं रा के िवकास का म बदल दे सकते
ह। 14
अद य साहस
हम अपने भीतर एक कार का िवजय-भाव
जागृत करना होगा। एक ऐसा भाव, जो इस
धराधाम पर हमारा समु चत थान हम िदलाए।
एक ऐसा भाव, जो इस बात को मा यता दे िक
एक महँ स यता के उ रा धकारी होने के नाते,
हम् इस धरती पर समु चत थान ा
करने क हकदार ह/ अगर यह भाव, यह अद य
साहस हम अपने भीतर जागृत कर सक तो हम
हमारा उ चत थान हा सल करने से कोई नह
रोक सकता 1
अद य साहस
असमथता से लड़ने का साहस
अलग-अलग कार क िवकलांगता से त करीब एक
हज़ार ब को, जो एिब ल प स म भाग लेने आए थे,
रा प त भवन म आमंि त िकया गया। मने उनके सामने,
इसी िवशेष अवसर के लए लखी गई अपनी एक
छोटी-सी किवता पटू कर सुनाई :
हम ह ई र क संतान
हीरे से भी कड़ा ह हमारा मन,
हम ह गे कामयाब
अपने मजबूत इराद से हम ह गे कामयाब
ा है हम जब इ र का वरदान
िफर िकसी िवरोधी से हम य ह परेशान!
यह सुनकर मु तफा नामक एक ईरानी ब ा मेरे पास आया। उसके अपने
पैर नह थे, वह कृि म पैर के सहारे चल रहा था। उसने मेरे हाथ म एक
कागज़ थमा िदया, जस पर फारसी म एक सुंदर किवता लखी हुई थी।
उस किवता का शीषक था ‘साहस’। उसका िह दी अनुवाद कुछ इस कार
होगा-
मेरे अपनी पैर नह ,
पर, मन कहता ह, रोओ मत,
य िक नह झुकाना चाहता म अपना सर
िकसी बादशाह के भी आगे।
म इस लड़के क सकारा मक सोच और उ मीद क िकरण थामे जीवन से
जूझने क िह मत को देखकर सचमुच भावुक हो उठा। 2
अ याय से लड़ने का साहस
इस संग म म अपनी द ण अ का क या ा के सं मरण क चचा करना
चाहूँगा। सन् 2004 म द ण अ का क या ा के दौरान, महा मा गांधी के
पद च ह तलाशते हुए, पीटरमेिटजबग जाने के लए डरबन के नज़दीक
पेन रच रेलवे टेशन पर म टेन म बैठा। इसी क टेशन से उ ह ने अपनी
भा यिनणायक या ा ारंभ क जान वाली थी जसने उनके जीवन क िदशा
ही बदल दी।
वे ि टो रया जाने के लए 7 जून, 1898 को टेन म सवार हुए, जहाँ उ ह
अपने मुवि ल से िमलना था। उनके लए थम ेणी क सीट आर त
थी। टेन पीटरमेिटजबग टेशन पर रात के करीब 9 बजे पहुँची, जहाँ एक
गोरा या ी ड बे म घुसा। एक काले आदमी को थम ेणी के ड बे म
सफर करते देख, वह आपे से बाहर हो गया। वह तुरत ं बाहर आया और दो
अ धकारीय के साथ वापस लौटा। उ ह ने गांधी को वैन क पाटमट म
जाकर बैठने क कहा। जब गांधीजी ने िवरोध जताते हुए ड बा बदलने से
इ कार कर िदया तो एक कां टेबल ने उ ह ध ा देकर टेन से बाहर कर
िदया और उनका सामान भी बाहर फक िदया। गांधीजी वह छूट गए और
टेन चली गई।
उपल ध के उ तर ल य क ओर ले जाने वाली ि अद य साहस का
पहला कदम है
गांधीजी को मजबूरीवश ती ालय म रात गुजारनी पड़ी। उस रात ह य
तक को कँपा देने वाली ठंड पड़ रही थी। हालाँिक उनके सामान म
ओवरकोट भी था, िफर भी दबु ारा अपमािनत न होना पड़े इस भय से
उ ह ने ओवरकोट नह पहना। गांधीजी के मन म भारत लौटने का िवचार
आया, कतु उ ह ने सोचा िक ऐसा करना कायरता होगी। उ ह ने वह
ककर न लीय भेदभाव के अ भशाप से संघष करने का संक प लया।
इस घटना ने गांधीजी के जीवन क िदशा ही मोड़ दी। उ ह ने कहा-‘‘मने
अपनी सि य अ हसा का आरंभ उसी िदन िकया।”
गांधीजी ने जस टेन और जस ड बे म या ा क थी, मने भी ठीक उसी
जैसी टेन और उसी जैसे ड बे म या ा क । जब म पीटरमेिटज़बग टेशन
पर उतरा तो देखा िक जस थान पर गांधीजी को ध े देकर टेन के ड बे
से बाहर फका गया था वहाँ एक मृ तपि का लगी हुई है। उस पि का पर ये
श द अंिकत ह-
“इस पि का के थान पर 7 जून, 1898 क रात एम. के. गांधी को थम
ेणी ड बे से उतार िदया गया था। इस घटना ने गांधीजी के जीवन क
िदशा ही बदल दी। यह से उ ह ने न लीय भेदभाव के िव संघष छे ड़ा
और इसी िदन से उनके जीवन म सि य अ हसा क शु आत हुई।” 3
अद य साहस का दस ू रा क़दम है-िकसी ल य या येय को पूरा करने के
रा ते म आने वाली सभी बाधाओं पर िवजय पाने क मता
अद य साहस
म अपनी द ण अ का या ा के दौरान डॉ. ने सन मंडेला से िमला।
द ण अ का को वतं ता िदलाने म डॉ. ने सन मंडेला क अहम्
भूिमका रही है। उनम दो ेरणादायक गुण ह-अद य साहस और
माशीलता।
द ण अ का का केपटाऊन शहर अपने टेबल पवत शखर के लए
मशहूर है। उसक तीन चोिटयाँ ह : टेबल पीक, डेिवल पीक और फेक
पीक। िदन म इन चोिटय के बीच का नज़ारा बड़ा ही सुहावना होता है।
कभी काले बादल तो कभी उजले बादल इन चोिटय को चूमते रहते ह।
टेबल माउं टेन अटलांिटक महासागर के बहुत ही करीब है। केपटाउन से
रोबेन आइलड क या ा हमने हेलीकॉ टर से क । जब हम रोबेन आइलड
पहुँचे तो महासागर के गजन को छोड़ कर पूरा ीप खामोशी क चादर से
लपटा हुआ था। उस खामोशी को महसूस कर एक िवचार मन म क ध उठा
: यह वही जगह है जहाँ एक यि क वतं ता को बेिड़य म जकड़ िदया
गया था!
उस ीप पर हमारा वागत ी अहमद कै ाडा ने िकया। ी कै ाडा द ण
अ का के ही ह और डॉ. ने सन मंडेला के साथ जेल म रह चुके ह। वहाँ
हम वह कमरा िदखाया गया जसम डॉ. ने सन मंडेला को छ बीस वष तक
कैद रखा गया था। मुझे इस बात से हैरानी हुई िक इतने छोटे-से कमरे म
सोने के साथ-साथ दसू रे ज़ री
आ मबल से शि िमलती है
काम कोई इंसान कैसे कर पाता होगा! हम याद रखना चािहए िक छह फुट
ल बे डॉ. ने सन मंडेला को इसी छोटे-से कमरे म छ बीस वष तक, रंगभेद
के िव संघष के दौरान, कैद रखा गया। उनके जीवन का एक बड़ा
िह सा इस ीप के इसी छोटे-से कमरे म बीता था। उ ह तपती धूप म कुछ
घंट के लए पहाड़ के नज़दीक खदान म काम करने के लए ले जाया जाता
था। उसी दरिमयान उनक आँ ख क रोशनी को त पहुँची और उनक
देखने क मता कम हो गई। शारी रक यं णाएँ झेलते हुए भी उ ह ने
दिु नया को िदखा िदखा िक उनम अद य साहस कूट-कूट कर भरा है। कैद
के दौरान ही उ ह ने बड़े ही बारीक अ र म आज़ादी के बारे म एक िकताब
लखी। रात म जब जेल के वाडन सोने चले जाया करते थे तो वे यह
िकताब लखते थे। अंत म, बारीक अ र म लखी गई वह िकताब ‘ए ल ग
वाक टु डम’ के नाम से का शत हुई और दिु नया भर म स हुई।
डॉ. नेलसन मंडला से उनके जोहंसबग थत घर म िमलना भी मेरे लए
एक बहुत बड़ी घटना थी। जब मने उनके कमरे म वेश िकया तो देखा िक
उनके तीन आयामी यि व से खुशी का फ वारा फूट रहा है। मने उसम
उस फौलादी श सयत को देखा जसक बदौलत द ण अ का को
रंगभेद के अ भशाप से मुि िमली। मने उनम उस श सयत के भी दशन
िकए जसने द ण अ का के रा प त का दा य व सँभालने पर उन लोग
को भी समान नाग रक के प म अपनाया ज ह ने उनके साथ बुरा बताव
िकया था-रंगभेद क नी त लागू क और उ ह जेल म रखा। जब मने उनसे
हाथ िमलाया तो महसूस िकया िक म िकसी महामानव से हाथ िमला रहा हूँ।
मने डॉ. ने सन मंडेला से जो एक बहुत बड़ी श ा ली वह कोई बाईस सौ
साल पहले रची गई एक त ु रल म व णत है, जसका अथ है-‘जो आपके
साथ बुरा बताव करे उसके लए सबसे बड़ा दंड यह है िक आप उसके साथ
अ छा बताव कर।” 4
अद य साहस या ह?
इसी संदभ म देख तो अद य साहस के दो पहलू ह। एक है वह ि जो
उपल ध के उ तर ल य क ओर ले जाती है। मुझे संत किव त व व ु र
के ‘ त ु रल’ क 2200 साल पहले लखी गई दो पंि याँ याद आती ह,
ெவ ள தைனய மல ட மா த த உ ள
தைனய உய
இ ைப இ ைப ப ப இ ைப இ ைப
படாஅ தவ
इनका मतलब है िक सफल नेतृ व करणे वाले सम याओं के आगे कभी हार
नह मानते। वह सभी प र थ तय पर काबू प् लेते ह और सम याओ पर
िवजय पाते ह। म समझता हूँ िक इन दोन कुरल म अद य साहस क
प रभाषा समािहत है। 5
आ मबल
म अपनी बु गा रया या ा के दौरान वहाँ क रा ीय कला दीघा भी गया,
जहाँ मैने अ धकांशतया बु गा रयाई कलाकारो क बनाई कालाकृ तयो क
एक दशनी देखी। उसम बु गा रयाई कलाकार ला जू बोजािदजेव के
ज मिदवस के उपल य म उनक कलाकृ तयाँ भी द शत क गई थी।
उनका दायाँ हाथ लकवा त हॉ जाणे के बाद बाय हाथ से बनाई गई
उनक कलाकृ तय सिहत सैकडो अ य कलाकृ तयाँ देखकर म बेहद
भािवत और े रत हुआ। अपने अंदर छपे अद य साहस के कारण वे बाय
हाथ से भी कलाकृ तयाँ बना सके। इससे मुझे आभास हुआिक शारी रक
अ मता के कारण रचना मक तभा दब नह सकती, य क इ सान को
श तो उसके आ मबल से िमलती है। इसी ेरणा से इ सान अपनी
जदगी का ल य पुरा करने के लए आगे बढता है। 6
िवकलांगता का भाव तो इ सान के िदमाग म होता है। िनमल और तेज वी
िदमाग वाला य एक मू यवान नाग रक होता है, भले व शारी रक प से
िवकलांग हो। िवकलांग य के जीवन म अद य साहस भरकर उसे
खुशहाल बनाया जा सकता है। 7
दिु नया आपको िकस बात के लए याद करेगी
म अपने िमलने आने वाल के सामने अ सर दो रखता हूँ:
आपने जदगी म अभी तक या सीखा?
आप िकस बात के लए याद रखे जाएँ गे?
एच.आई.वी./ए स भािवत लोग के भारतीय नेटवक के लए रा ीय
अ धवा ृ ता अ धकारी के प म काम करने वाली एच.आई.वी./ए स से
त ीमती आशा रामैया ने इन दोन ो का बडा ही मा मक उ र िदया-
“मेरे जीवन म सीखने का असली दरू तब शु हुआ जाब मुझे पता
चला िक मै एच.आई.वी.-ए स ग से त हूँ और मुझे जदगी क
स ाइय से -ब- होना पडा। मेरे प त के प रवार ने मुझे अपने घर
से िनकाल िदया और यहाँ तक िक मेरे िपता ने भी अपने घर से मुझे
िनकाल जाने के लए कहा। मेरी दश िकसी ऐसी प र य ा औरत क
त ह थी जसे अकेले जदगी का सामना करने के लए छोड िदया
गया हो। पेड से िगरे िकसी ऐसे प े क त ह जो हवा के झ क के
साथ उडते रहाणे को अ भश होता है। सबसे पहले तो मेरे सामने
अपने अ त व को बचाने क चुनौती थी। इसका ेय मेरे अंदर के
नारी व को जाता है जसके सहारे म इस सदमे को पाच सक और
घर से बाहर िनकाले जाने के आघात से उबार सक । मने महसूस
िकया िक भारत म एच.आई.वी./ए स से भािवत दस ु रे इंसानो क
जदगी म बदलाव अपनी लगातार क को शशो और साथ रहने वाले
एच.आई.वी. पी डत लोग के सहयोग से न सफ मुझे समाज ने
वीकार कर लया है, ब क उ पदो पर कायरत लोग भी िव भ
मु ो पर मेरे पास िवचार, मागदशन और सलाह के लए आते ह। मेरे
माता-िपता को गव है िक म बहुत-से लोग के लए ेरणा का ोत
बन गयी हूँ। प रवार और सा थयो क मदद से मने एक एच.आई.वी
भािवत य से शादी क । मेरे प त ने मेरा हौसला बढाया िक
अ य एच.आई.वी. पी डत लोग क जदगी म खुशहाली लाने के
लए म काम कर रही हूँ।
रा के इ तहास म अपने एक पृ क रचना के लए आप याद िकए जाएँ गे
“जब हमने एक ब ा पैदा करने का िनणय लया तो मुझे अहसास
हुआ िक अिन तता के भँवर म फैसला कारण िकतना किठन होता
है। याह िब कुल अनजान राह पर कदम बढाने जैसा था। मन म
आशंका राहती िक या पता ब ा भी एच.आई.वी. भािवत हो जाए!
ब े को एच.आई.वी. न हो इसके लए हमने सभी कार के चिक सा
िनदशो का पालन िकया। आ खरकार हम सफलता िमली। काई
साल तक इंतजार करने के बाद याह सािबत हो गया िक हमारा ब ा
एच.आई.वी. सं िमत नह है। अब आगामी बीस साल के लए अपने
ब े के भिव य क योजना बनाने क ज मेदारी हमारे ऊपर है। ब े
क श ा, सुर ा और भिव य सुिन त कर अपने माता-िपता होणे
के दा य व का पालन करते हुए हम अपनी जदगी के अनमोल ण
का उपयोग कर सके ह। हमने जाना िक सपने वैसे हे साच नह हो
जाते, ब क सपन के अनुसार हम खुद को ढालना पडता है और
भावी खतरो को जानते हुए भी ज मेदारी िनभानी पडती है, तभी
सपने सच होते ह।
ो ैऔ ो ँ ै
आपको खुद आपण िनमाण करना है और जदगी को सँवारना है
“मने जदगी का सामना करणे के लए जस िह मत से काम लया
और संघष के दौरान मुजे जो आशा क िकरण िदखाई दी उसे लोग
म फ़ैलाने के कारण म देशभर के एच.आई.वी./ए स पीिड़त लोग ,
अपने प रवार और सगे-संबं धय के बीच या क जाऊँगी।11
आशा ने न सफ िह मत से रोग का मुकाबला िकया ब क माता-िपता, प त
और समाज ने उसके चेहरे पर जो का लख पोत दी थी, उसे भी उसने
बहादरु ी से धो डाला। इसे ही म कहता हूँ अद य साहस। 8
िकस बात के लए दिु नया म याद िकए जाने क तम ा आपके िदल म है?
या आपक कमाना है िक लोग आपक पी-एच.डी. क थी सस के लए
आपको याद रख? या िफर आपक वािहश है िक अपनी नै सोच के लए
लोग क मृ त म आपक जगह बनी रहे? आपको खुद अपना िनमाण
करना है और जदगी को सँवरना है। आपको अपनी वािहश एक पृ पर
दज करदेनी चािहए। हो सकता है वह पृ मानव इ तहास का बहुत
मह वपूण पृ बन जाए और रा के इ तहास म उसी एक पृ क रचना के
लए आप याद िकए जाए-चाहे उस पृ पर कोई अिव कार अंिकत हो, या
कोई नै सोच या खोज! या िफर वह अ याय के िव द संघष का घोषणाप
हो। 9
अद य साहस जगाइए!
“म यवु ाओं और यव ु तयो से कहना चाहूँगा िक आप िनराश न ह और
िह मत न हार। सफलता सफ सामने आए काम को िह मत के साथ पूरा
करने से ही िमल सकती है। िबना िकसी िववाद म पड़े हुए मै ढ़तापूवक यह
कह सकता हूँ िक भारतीय क मेधा िकसी टयूटॉिनक, नॉ डक या एं लो-
सै सन य से काम खर नह । हममे सफ िह मत क कमी है, हममे वह
ज बा नह जसके सहारे इ सान कहाँ पहूँच जाता है। जैसा म महसूस
करता हूँ, हम भारतीयो म हीनभावना घर कर गई है। मेरी नजर म आज
भारत क सबसे बडी आव यकता हौसलाप त करने वाले इस भाव को ही
िमटा देने क है।” ये श द नोबेल पुर कार ा भारतीय वै ािनक सर सी.
वी. रमन के ह, जो उ होने सन् 1969 म बयासी वष क उ म यव ु ा
नातको के संमेलन म कहे थे। 10
िवकलांगता का भाव इंसान के िदमाग म होता है
िकस कार अद य साहस से सफलता पाने और इस दिु नया को खुशहाली
तथा शां त के सवात म बदल देने क ताकत िमलती है, इस बात को गु देव
रवी नाथ टैगोर क इस किवता म बडे ही मा मक प म तुत िकया
गया है-
मेरे भु, तेरे चरणो म पहुच
ं े मेरी याह ाथना-
दरू कर दो, भु, मेरे दय क ु ता,
दो मुझे श सहज भाव से
अपने आनंद और िवषद सहाने क /
दो मुझे शि
जससे मेरा अनुराग तेरी सेवा म सुफल हो।
भु, ऐसी शि दो मुझे
िक दीनजन से कभी िवमुख न होऊँ मै
ऐसी शि मुझे दो, भु,
िक उ दट-उ म िकसी शि के आगे घुटने न टेकँू कभी।
भु ऐसी शि दो मुझे िक िदनानुिदन क ु ताओ के संमुख
सर सदा मेरा ऊँचा रहे।
मेरे भु, शि दो मुझे
िक सादर-स ेम अपनी शि -साम य सारी
अ पत कर पाऊँ म तु हारे ीचरणो म! 11
स दभ
ेरक यि व
1. 57 व गणतं िदवस क पूवसं या पर रा को संबोधन : 25-01-2006
2. रा ीय मिहला आयोग, नई िद ी म अ भभाषण : 17-01-2005
3. इं डयन इं टी ट
ू ऑफ साइंस, बंगलोर म अ भभाषण : 14-10-2004
4. बाल िदवस क पूवसं या पर आकाशवाणी से सा रत अ भभाषण : 13-11-2004
5. आम प लक कूल, उधमपुर म अ भभाषण : 03-05-2004
मेरे श क
1. ीनगर म श क के साथ िवचार-िविनमय के दौरान अ भभाषण : 19-08-2004
2. पी.जी.आई. सभागार, चंडीगढ़ म श क को संबोधन : 04-09-2003
3. ‘ श क को राि य स मान’ क तु त के अवसर पर संबोधन, नई िद ी : 05-09-2004
4. बोधगया म श क के साथ िवचार-िविनमय : 31-05-2003
5. ‘ श क को राि य स मान’ क तु त के अवसर पर संबोधन, नई िद ी : 05-09-2004
6. ‘ श क को राि य स मान’ क तु त के अवसर पर संबोधन, नई िद ी : 05-09-2004
7. िव भारती िव िव ालय, कोलकाता म अ भभाषण एवं िवचार-िविनमय के दौरान एक का उ र देते हु ए : 01-10-2004
8. श क िदवस, 2003 क पूव सं या पर आकाशवाणी से सारण, 04-09-2003
9. ीनगर म श क के साथ िवचार-िविनमय के दौरान अ भभाषण : 19-08-2004
10. श क िदवस, 2003 क पूव सं या पर आकाशवाणी से सारण : 04-09-2003
11. थम कं यूटर लटरेसी ए सेले स अवाड फॉर कूल के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 29-08-2002
12. िव भारती िव िव ालय, कोलकाता म अ भभाषण : 01-10-2004
13. कूल श क के साथ मुलाकात, भुवने र : 14-05-2003
14. श क िदवस के अवसर पर रा को संबोधन, नई िद ी : 05-09-2005
15. श क िदवस के अवसर पर रा को संबोधन, नई िद ी : 05-09-2005
16. श क िदवस, 2003 क पूव सं या पर आकाशवाणी से सारण, 04-09-2003
17. ‘ श क को राि य स मान’ क तु त के अवसर पर संबोधन, नई िद ी : 05-09-2004
18. क यूटर लटरेसी लटरेसी ए सेले स अवाड फॉर कूल के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 07-12-2005
19. क यूटर लटरेसी लटरेसी ए सेले स अवाड फॉर कूल के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 29-08-2002
20. ‘ ेजे टेशन ऑफ अवाडस टु आउट ट डग िटचस’ के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 05-09-2005
21. ‘ ेजे टेशन ऑफ अवाडस टु आउट ट डग िटचस’ के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 05-09-2005
22. ‘ ेजे टेशन ऑफ अवाडस टु आउट ट डग िटचस’ के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 05-09-2005
श ा का उ े य
1. रा ीय युवा स मलेन, उ ाटन स , सू ूर, मैसूर : 15-10-2004
2. तीसरे वा षक कं यूटर लटरेसी ए सेले स अवाडस म अ भभाषण, नई िद ी : 07-12-2005
3. रा यपाल के स मेलन म अ भभाषण, नई िद ी : 14-06-2005
4. पहले वा षक कं यूटर लटरेसी ए सेले स अवाडस म अ भभाषण, नई िद ी : 25-08-2002
5. पां डचेरी म छा के साथ बातचीत : 01-11-2004
6. प शेषि बाल भवन सीिनयर सेकंडरी कूल, चे ै म अ भभाषण : 01-12-2005
7. सी.बी.एस.सी. के लैिटनम जुिबली म अ भभाषण, नई िद ी : 28-07-2004
8. दुसरे वा षक कं यूटर लटरेसी ए सेले स अवाडस म अ भभाषण, नई िद ी : 04-08-2004
9. ीनगर म श क के साथ बातचीत : 19-08-2004
10. श क िदवस के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 05-09-2003
11. ीनगर म श क के साथ बातचीत : 19-08-2004
12. च डीगढ़ म श क िदवस के अवसर पर : 04-09-2003
13. जैन िव भारती सं थान म दी ांत अ भभाषण, नई िद ी : 20-10-2005
14. परमपावन आचाय महा ाण अ या म साधना क , महरौली म स मेलन के दौरान अ भभाषण : 14-10-2005
15. ‘क रयर 2004’ मुब ं ई म अ भभाषण : 08-02-2004
16. श क िदवस 2005 के अवसर पर अ भभाषण, नई िद ी : 05-09-2005
17. रा पती भवन, नई िद ी म इचर कूल, फरीदाबाद के छा के साथ बातचीत : 31-08-2004
सृजनशीलता और नवीनता
1. वेद यास िव ालय, मलापुरा बा, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
2. बाल िव ान कां ेस, चंदीगढ़ म अ भभाषण : 05-01-2004
3. शंकर अंतररा ीय बाल तयोिगता के पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 22-03-2004
4. पीटर हॅाफ, िहमाचल देश म कॉलेज/यूिनव सटी छा के साथ बातचीत : 23-12-2004
5. शंकर अंतररा ीय बाल तयोिगता के पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 22-03-2004
6. जे.एन.आर.एम.ऑ डटो रयम, पोट लेयर म अ भभाषण : 05-05-2005
7. बाल योग िम मंडल, मुग ं ेर म अ भभाषण : 14-02-2004
8. जे.एन.आर.एम.ऑ डटो रयम, पोट लेयर म अ भभाषण : 05-05-2005
9. रा पती भवन, नई िद ी म वष 2002-2003 के लए रा ीय बाल ी पुर कार समारोह म अ भभाषण : 10-02-2004
10. दी इं डयन कूल, दुबई म अ भभाषण : 19-10-2003
11. नेशनल इनोवेशन फाउं डेशन, अहमदाबाद के तृतीय वा षक पुर कार िवतरण समारोह म अ भभाषण : 05-01-2005
12. सौरा िव िवदयालय, राजकोट, गुजरात म वा षक या यान : 12-01-2006
13. नेशनल इनोवेशन फाउं डेशन, अहमदाबाद के तृतीय वा षक पुर कार िवतरण समारोह म अ भभाषण : 05-01-2005
14. िव भारती िव िव ालय, कोलकाता म अ भभाषण : 01-10-2004
कला और सािह य
1. शंकर अंतररा ीय बाल तयोिगता के पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 17-01-2003
2. वष 2002 के लए 38व ानपीठ पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 27-09-2005
3. 11व िद ी पु तक मेला, ग त मैदान, नई िद ी म अ भभाषण : 27-08-2005
4. अ ा िव िव ालय, चनै के कुलप त के कायालय म अि सगागुरल के 1,00,000व त क तु त : 19-06-2003
5. 11व िद ी पु तक मेला, ग त मैदान, नई िद ी म अ भभाषण : 27-08-2005
6. वष 2002 के लए 38व ानपीठ पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 27-09-2005
7. 11व िद ी पु तक मेला, ग त मैदान, नई िद ी म अ भभाषण : 27-08-2005
8. संगीत नाटक अकादेमी पुर कार के दौरान अ भभाषण, नई िद ी : 26-08-2005
9. बंगलोर गायन समाज के शता दी समारोह म अ भभाषण : 21-01-2003
10. रामकृ ण िववेकानंद िमशन, कोलकाता म अ भभाषण : 21-01-2003
ो े ो
11. बंगलोर गायन समाज के शता दी समारोह म अ भभाषण : 21-01-2003
12. ी रा ा ये री भारत ना मंिदर, मुब
ं ई के हीरक जयंती समारोह म अ भभाषण : 12-09-2005
13. 52व राि य िफ म पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 02-10-2005
14. आर.के.ल मण के काटू न क दशनी, जयपुर : 17-11-2005
15. रिव भारतीय िव िव ालय, कोलकाता म अ भभाषण : 01-10-2004
16. शंकर अंतररा ीय बाल तयोिगता के पुर कार समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 17-01-2003
शा त जीवन-मू य
1. जवाहरलाल नेह िव िव ालय, म अ भभाषण नई िद ी : 12-01-2005
2. ी स य साई ं अंतररा ीय क और िव ालय म अ भभाषण : 20-10-2003
3. भारतीय उ िव ालय, दुबई म अ भभाषण : 20-10-2003
4. टांसपेरे सी इंटरनेशनल इं डया, के द ण ए शया चै टर के े ीय स मेलन म अ भभाषण : 25-11-2005
5. भारत काउ स एं ड गाइ स के 15व राि य ज बूरी म अ भभाषण, ह र ार : 16-10-2005
6. टांसपेरे सी इंटरनेशनल इं डया, के द ण ए शया चै टर के े ीय स मेलन म अ भभाषण : 25-11-2005
7. 57 व गणतं िदवस क पूवसं या पर रा को संबोधन : 25-01-2006
8. टांसपेरे सी इंटरनेशनल इं डया, के द ण ए शया चै टर के े ीय स मेलन म अ भभाषण : 25-11-2005
9. 57 व गणतं िदवस क पूवसं या पर रा को संबोधन : 25-01-2006
10. महान ज मिदवस पर िवचार, नई िद ी : 04-07-2005 (घटना)
11. क वशन ऑन इवा यूशन ऑफ ए गुड म ू न बीइंग के उ ाटन स म अ भभाषण :20-10-2003
12. भारतीय उ िव ालय, दुबई म अ भभाषण : 20-10-2003
13. अंतरा ीय बाल सारण िदवस पर आकाशवाणी रेका डग : 11-12- 2005
14. रा ीय युवा स मेलन के उ ाटन अवसर पर अ भभाषण, सु ुर, मैसूर : 15-12-2004
15. 57 व गणतं िदवस क पूव सं या पर रा को संबोधन, नई िद ी : 25-01-2006
िव ान और अ या म
1. जैन िव भारती सं थान के चौथे दी ांत समारोह म अ भभाषण : 20-10-2005
2. जैन िव भारती सं थान के चौथे दी ांत समारोह म अ भभाषण : 20-10-2005
3. 12व रा ीय बाल िव ान कां ेस म अ भभाषण, गुवाहाटी : 31- 12-2004
4. श क िदवस, 2005 के उपल य म रा को संबोधन, नई िद ी : 05-09-2005
5. बंगाल इंजीिनय रग और िव ान िव िव ालय, शवपुर, हावड़ा, कोलकाता म अ भभाषण : 13-07-2005
6. जादवपुर िव िव ालय, कोलकाता के वण जयंती समारोह म अ भभाषण : 13-07-2005
7. भारतीय भौ तक प रसंघ म अ भभाषण, आई. आई.टी., नई िद ी : 31-03-2005
8. थम कं यूटर लटरेसी ए सले स अवा स फॉर कूल म अ भभाषण, नई िद ी : 29-08-2002
9. बंगाल इंजीिनय रग और िव ान िव िव ालय, शवपुर, हावड़ा, कोलकाता म अ भभाषण : 13-07-2005
10. िववेकानंद इं ट ट ू ऑफ़ वै ू एजुकेशन एं ड क चर, पोरबंदर म उ ाटन अ भभाषण, पोरबंदर : 12-01-2006
11. जवाहरलाल नेह िव िव ालय म अ भभाषण, नई िद ी : 12-01-2005
12. गुवाहाटी के िव भ कूल के छा के बीच अ भभाषण : 16-01-2003
13. आ या मक उ ान के उ ाटन पर अ भभाषण, रा प त भवन, नई िद ी : 26-06-2004
14. रा ीय ौ ािगक सं थान, ीनगर के छा के साथ बातचीत : 19-08-2004
15. दयावती मोदी अकादेमी कूल के छा को संदेश : 20-07-2004
16. ी अरिव द भवन, कोलकाता, ीमाँ के 125व ज मिदवस के उपल य म अ भभाषण : 27-02-2005
भावी नाग रक
1. जे.एस.एस. कूल सेतुर म अ भभाषण, मैसूर : 27-12-2002
2. भारत काउ स एं ड गाइ स के 15व रा ीय जंबूरी म अ भभाषण, ह र ार : 16-10-2005
3. रा यपाल के स मेलन म अ भभाषण, रा प त भवन, नई िद ी : 14-06-2005
4. रा ीय युवा स मेलन, सेतूर, मैसूर म अ भभाषण : 15-10-2004
5. पीटर हाफ, िहमाचल देश म कॉलेज और िव िव ालय के छा से संवाद : 23-12-2005
6. नंदगाँव, महारा म अ भभाषण : 15-10-2004
7. रा ीय युवा स मेलन, सेतूर, मैसूर म अ भभाषण : 15-10-2004
8. थम बाल श ा स मेलन-2002 म अ भभाषण, नई िद ी : 14-11-2002
9. जे.एस.एस. कूल, सेतूर, मैसूर म अ भभाषण : 15-10-2004
10. एयर कूल, फरीदाबाद के छा के साथ बातचीत, रा प त भवन, नई िद ी : 31-08-2005
11. 12व रा ीय िव ान कां ेस म अ भभाषण : 27-12-2002
12. जे.एस.एस. कूल, सेतूर, मैसूर म अ भभाषण : 27-12-2002
13. त चराप ी म छा के साथ बातचीत और अ भभाषण : 27-12-2002
14. वेद यास िव िव ालय, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
15. पदम शेषाि बाल भवन सीिनयर सेकडरी कूल, चे ै के िव ा थय के बीच अ भभाषण : 01-12-2005
16. रा प त के पदभार हण के अवसर पर अ भभाषण : 25-07-2002
17. त चराप ी के िव ा थय के संवाद : 20-12-2003
18. रा प त के पदभार हण के अवसर पर अ भभाषण : 25-07-2002
सश नारी
1. मिहला पु लसक मय के दुसरे रा ीय स मेलन म अ भभाषण, मसूरी : 27-07-2005
2. मिहला पु लसक मय के दुसरे रा ीय स मेलन म अ भभाषण, मसूरी : 27-07-2005
3. िबशप कॉटन बा लका िव ालय, बंगलोर म अ भभाषण : 05-11-2004
4. ीत मंिदर (िनधन और अनाथ ब के लए बाल गृह) म अ भभाषण, पुणे : 01-02-2005
5. तीसरे िव मिहला िव ान संघटन क महासभा और नई सह ा दी म मिहलाओं के अनुसंधान का िव ान और ौ ािगक पर भाव
िवषय पर स मेलन म अ भभाषण, बंगलोर : 21-11-2005
6. आर.बी.वी.आर.आर. मिहला महािव ालय, हैदराबाद म अ भभाषण : 05-08-2005
7. तीसरे िव मिहला िव ान संगठन क महासभा और नई सह ा दी म मिहलाओं के अनुसंधान का िव ान और ौ ोिगक पर भाव
िवषय पर स मेलन म अ भभाषण, बंगलोर : 21-11-2005
8. मिहला पु लसक मय के दुसरे रा ीय स मेलन म अ भभाषण, मसूरी : 27-07-2005
9. भारतीय मिहला ेस कोर के वा षक समारोह म अ भभाषण, नई िद ी : 19-10-2005
10. मिहला पु लसक मय के दुसरे रा ीय स मेलन म अ भभाषण, मसूरी : 27-07-2005
11. आर.बी,वी.आर.आर. मिहला महािव ालय, हैदराबाद म अ भभाषण : 05-08-2005
ानसंप समाज क ओर
े
1. दून कूल, देहरादून म अ भभाषण : 19-10-2002
2. भारतीय बंधन सं थान, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
3. इंटरनेशनल कां स ऑन ड जटल लाइ ेरीज़ का उ ाटन अ भभाषण, 2004, नई िद ी : 24-02-2004
4. दून कूल, देहरादून म अ भभाषण : 19-10-2002
5. इंटरनेशनल कां स ऑन ड जटल लाइ ेरीज़ का उ ाटन अ भभाषण, 2004, नई िद ी : 24-02-2004
6. इं डया पोटल के ड जटल पु तकालय के उ ाटन अवसर पर अ भभाषण; रा प त भवन, नई िद ी : 08-09-2003
7. इंडो-यू. एस. िम लयन बुक ड जटल लाइ ेरी टीय रग किमटी म (वी डयो क फेर सग मा यम से) अ भभाषण, नई िद ी : 29-05-
2005
8. इं डया ए पावड इवे ट, नई िद ी के तयोिगय से बातचीत और अ भभाषण, नई िद ी : 20-12-2005
िवक सत भारत का िनमाण
1. बंगलोर अंतरा ीय क के उ ाटन अवसर पर अ भभाषण : 21-11-2005
2. भारत वाउ स और गाइ स के 15व रा ीय जंबूरी के उ ाटन अवसर पर अ भभाषण, ह र ार : 16-10-2005
3. बंगलोर अंतरा ीय क के उ ाटन अवसर पर अ भभाषण : 21-11-2005
4. बाल िव ान कां ेस, चंडीगढ़ म अ भभाषण : 21-11-2005
5. भारत के रा प त का पदभार हण करने पर अ भभाषण : 25-07-2002
6. बाल िव ान कां ेस, चंडीगढ़ म अ भभाषण : 05-01-2004
7. रा ीय ौ ािगक सं थान, ीनगर के छा के साथ बातचीत : 19-08-2004
8. गुवाहाटी म छा का, अ भभाषण : 16-01-2003
9. बंगलोर अंतरा ीय क , बंगलोर म अ भभाषण : 21-11-2005
10. बंगलोर अंतरा ीय क , बंगलोर म अ भभाषण : 21-11-2005
11. भारत रा प त के पदभार हण के अवसर पर अ भभाषण : 25-07-2002
12. रा यसभा के 200व स के उ ाटन अवसर पर संबोधन, नई िद ी : 11-12-2003
13. भारतीय बंधन सं थान, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
14. रा ीय ौ ािगक सं थान, ीनगर के छा के साथ बातचीत : 25-09-2003
15. 57 व गणतं िदवस क पूव सं या पर रा को संबोधन, नई िद ी : 25-01-2006
16. ी अरिब दो भवन, कोलकाता, ीमाँ के 125व ज मिदवस के उपल य म अ भभाषण : 27-02-2004
17. ी अरिब दो भवन, कोलकाता, ीमाँ के 125व ज मिदवस के उपल य म अ भभाषण : 27-02-2004
बु नाग रकता
1. सौरा िव िव ालय, राजकोट, गुजरात के वा षक या यान म अ भभाषण : 12-01-2006
2. अल अमीन प लक कूल, को म अ भभाषण : 26-05-2003
3. ी स य साई ं इंटरनेशनल सटर एं ड कूल, नई िद ी म अ भभाषण : 08-02-2003
4. अल अमीन प लक कूल, को म अ भभाषण : 26-05-2003
5. रामकृ ण िमशन, कोलकाता म वामी िववेकानंद के पैतुक घर और सां कृ तक क के उ ाटन समारोह म अ भभाषण : 01-10-2004
6. िव भारती कोलकाता म श क और छा के साथ बातचीत और अ भभाषण : 01-10-2004
7. कोलकाता म ीअर वद भवन, ीमाँ के 125व ज मिदवस के उपल य म अ भभाषण : 27-02-2004
8. िद रीजनल कां स ऑफ़ िद साउथ ए शयन चे टस ऑफ़ टांसपेरे सी इंटरनेशनल इं डया, नई िद ी के उ ाटन समारोह म अ भभाषण :
25- 11-2005
9. ी स य साई ं इंटरनेशनल सटर एं ड कूल, नई िद ी म अ भभाषण : 08-02-2003
10. गुड़गाँव म कनवशन ऑफ़ इवो युशन ऑफ़ ए गुड म ू न बीइंग के दौरान अ भभाषण : 19-04-2003
11. जे.न.यू., नई िद ी के श क एवं छा के साथ बातचीत और अ भभाषण : 12-01-2005
12. िव भारती, कोलकाता म श क और छा के साथ बातचीत और अ भभाषण : 01-10-2004
13. 57 व गणतं िदवस क पूव सं या पर रा को संबोधन, नई िद ी : 25-01-2006
14. गुड़गाँव म कनवशन ऑफ़ इवो युशन ऑफ़ ए गुड म ू न बीइंग के दौरान अ भभाषण : 19-04-2003
15. सतीश धवन पेस सटर, ीह रकोटा म छा को संबोधन : 10-10-2003
रचना मक नेतृ व
1. इं डयन इं ट ट ू ऑफ़ मैनेजमट, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
2. इं डयन इं ट ट ू ऑफ़ मैनेजमट, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
3. लोयोला इं ट ट ू ऑफ़ िबजनेस एडिमिन टेशन, चे ई म अ भभाषण : 1-12-2005
4. तिमलनाडु चे बर ऑफ़ कॉमस एं ड इंड टी, मदुरै के यंग इ टर े योर कूल म अ भभाषण : 27-08-2004
5. वी.एस.सी.सी., त अन तपुरम के युवा अ भयंताओं से बातचीत : 28-07-2005
6. कंचनबाग के.वी. कूल, हैदराबाद म अ भभाषण : 19-01-2004
7. जादवपुर िव िव ालय, कोलकाता के वण जयंती समारोह के अवसर पर अ भभाषण : 13-07-2005
8. लोयोला इं ट ट ू ऑफ़ िबजनेस एडिमिन टेशन, चे ई म अ भभाषण : 1-12-2005
9. एस.एस.एन. कॉलेज ऑफ़ इंजीिनय रग, कलप म, चे ई म अ भभाषण : 17-12-2003
10. भागव सभागार, पीजी.आई., चंडीगढ़ म अ भभाषण : 29-09-2003
11. तिमलनाडु चे बर ऑफ़ कॉमस एं ड इंड टी, मदुरै के यंग इ टर े योर कूल म अ भभाषण : 27-08-2004
12. नई िद ी म लघु उ िमय के रा ीय स मेलन एवं रा ीय पुर कार िवतरण के अवसर पर अ भभाषण : 28-10-2005
13. इं डयन इं ट ट ू ऑफ़ मैनेजमट, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
14. बंगलोर अंतरा ीय क , बंगलोर म अ भभाषण : 21-11-2005
अद य साहस
1. वेद यास िव ालय, मलापुर बा, को झकोड म अ भभाषण :25-09-2003
2. संजय कूल, गोवा म अ भभाषण : 13-01-2004
3. से कड लेिफनट अ ण खेतरपाल क मृ त म अ भभाषण : 16-11-2005
4. िबशप कॉटन ग स कूल, बंगलोर म अ भभाषण : 05-11-2004
5. िववेकानंद इं ट टू ऑफ़ वै ू एजुकेशन एं ड क चर, पोरबंदर म उ ाटन अ भभाषण, पोरबंदर : 12-01-2006
6. बाल िदवस क पूण सं या पर आकाशवाणी से सारण : 13-11-2003
7. संजय कूल, गोवा म अ भभाषण : 13-01-2004
8. िव ान भवन, नई िद ी म नेशनल अवा स फॉर डसएब ड के दौरान अ भभाषण : 03-12-2005
9. भारतीय िव ान सं थान, बंगलोर के श क एवं छा के साथ बातचीत और अ भभाषण : 14-10-2004
10. वेद यास िव ालय, मलापुर बा, को झकोड म अ भभाषण : 25-09-2003
11. िव भारती, कोलकाता म अ भभाषण : 01-10-2004
अद य साहस रा प त ए.पी.जे. अ दल ु कलाम के जीवन-दशन और चतन
का सारत व है। रामे रम् के सागरतट से रा प त भवन तक फैले उनके
जीवन और जीवन-दशन का आइना…
अद य साहस देश के थम नाग रक के िदल से िनकली वह आवाज़ है, जो
गहराई के साथ देश और देशवा सय के सुनहरे भिव य के बारे म सोचती
है…
अद य साहस जीवन अनुभव से ेरणा द च ण है। एक चतक के प म,
एक वै ािनक और एक श क के प म तथा रा प त के प म अ दल ु
कलाम के यि व के अनेक ेरणादायी प इस पु तक म सजीव हो उठे
ह, जो उनके भाषण और आलेख पर आधा रत ह।
ए.पी.जे. अ दल
ु कलाम, जुलाई 2002 म, भारत के रा प त के पद पर
ति त हुए। उससे पहले वे सुर ा एवं अंत र अनुसंधान के े म एक
मुख वै ािनक क भूिमका िनभा चुके थे। देश के थम उप ह- पण-
यान के िवकास म उनका दा य वपूण योगदान अिव मरणीय है। कई
मह वपूण पद पर रहने के अलावा वे भारत सरकार के धान वै ािनक
सलाहकार रहे ह। कुछ अस तक अ ा यूिनव सटी, चे ई म वे ोफेसर भी
रहे।
डॉ अ दल
ु कलाम का ज म 15 अ टू बर, 1931 को हुआ। उ ह देश के तीन
सव नाग रक अलंकरण ा करने का गौरव हा सल है : उ ह 1981 म
प भूषण, 1991 म प िवभूषण और 1997 म भारतर न से स मािनत
िकया गया ।
उ ह ने क◌इ पु तक क रचना क , जनम ‘इं ङया 2020 : ए िवज़न
फार िद यू िमलेिनयम’, ‘ व स आफ फायर’, ‘इ ाइटेड माइ स’ तथा
‘एनवाइज नग एन ए पावड नेशन’ के नाम मुख ह।