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तीन हजार टाँक

सुधा मूित
ी टी.जे.एस. जॉज
को समिपत
िज ह ने मुझे अं ेजी म िलखने का
थम अवसर दान िकया।
लेखक य
अ कसर िव ािथय एवं उनक माता-िपता क प ा होते रहते ह, िजनम मुझे बताया जाता ह िक मेरी पु तक
उनक तथा ब च क िलए लाभ द रही ह। म उन सभी लोग को ध यवाद देना चाहती , िज ह ने मेरी िज ासा
क पा को ान एवं अनुभव से भरते ए जीवन क िविभ पहलु से मेरा प रचय कराया। इसम वे युवक एवं
युवितयाँ शािमल ह, िज ह ने मुझे दरशाया िक िकस कार वे अपने कट अनुभव को िकनार रखकर आनंद एवं
आशा क साथ जीवन म आगे बढ़।
कछ महानुभाव ह, जो महसूस करते ह िक मेरा अिधकांश लेखन का पिनक कथानक ह; परतु मेर जीवन ने
यथाथतः िस िकया ह िक म उससे सवथा अप रिचत रही ।
पं ह वष पूव सुिव प कार ी टी.जे.एस. जॉज ने मुझसे ‘ यू इिडयन ए स ेस’ म एक सा ािहक तंभ
िलखने का अनुरोध िकया। पहले-पहल म िझझक और मेरी िहचिकचाहट का मु य कारण यह था िक दसव
क ा तक मेरी पढ़ाई क ड़ मा यम क कल म ई थी। उस समय मेर िलए अं ेजी क अपे ा क ड़ म
िलखना सवथा वाभािवक एवं सुिवधाजनक था। जॉज ने मुझसे कहा, “भाषा एक वाहन ह। मह वपूण तो वह
य ह, जो कथानक बुनता ह। तुम एक कहानीकार हो। अतः अपनी कहानी क साथ ारभ करो, भाषा अपना
थान वयं बना लेगी।”
इस कार अं ेजी म मेरी लेखन या ा ारभ ई। एक अं ेजी लेिखका क प म म आज जो कछ भी , ी
जॉज क कारण । उ ह ने मेरी पहली पु तक का शीषक ‘वाइज एंड अदरवाइज’ िदया और उसक भूिमका भी
िलखी। उनक दूर ट और उ साहव न ने मुझे एक संकोची लेिखका से ब पिठत कथाकार बना िदया।
म अकसर ऐसी दुिनया का व न देखती , जो अनेक जॉज से प रपूण हो और आगे आकर ऐसे लेखक को
अपने अनुभव एवं उवरा क खोज हतु समथन एवं ो साहन दान कर।
1
तीन हजार टाँक
इ फोिसस फाउडशन क थापना हमने स 1996 म क । दुभा यवश, मुझे िकसी अलाभकर संगठन क काय-
णाली क िवषय म कोई िवशेष जानकारी नह थी। हाँ, सॉ टवेयर, मैनेजमट, ो ािमंग और सॉ टवेयर ब स से
िनपटने का मुझे अ छा ान था। मेरा अिधकतर समय परी ा , अंक तािलका एवं अंितम ितिथय तक काय
पूण करने म यतीत हो जाता था। फाउडशन क संक पना म िनिहत था िक वह आम आदमी क जीवन म अंतर
अव य लाए—ब जन िहताय, ब जन सुखाय; वह िकसी जाित, मत, भाषा या धम का िवचार िकए िबना सबको
सहायता उपल ध कराए।
हमार सम कपोषण, िश ा, ामीण िवकास, आ मिनभरता, दवा क उपल धता, सां कितक गितिविधय
एवं कला क पुन थान जैसे मु े िवचारणीय थे। इनक अित र देवदासी था का मु दा भी मेर म त क को
सवािधक सोचने पर िववश कर रहा था और यह था संपूण भारत म यापक प से चिलत थी।
‘देवदासी’ श द का अथ ह—‘ई र क सेिवका’। परपरागत तौर पर देवदािसयाँ संगीत एवं नृ यांगनाएँ थ ,
जो मंिदर म देवता को स करने हतु अपनी कला का अ यास िकया करती थ । समाज म उनका ऊचा
थान था। इसक सा य हम बदामी क गुफा क साथ-साथ देवदासी वीणापोिड, जो छठी एवं सातव शता दी
म उ री कनाटक क चालु य राजवंश क राजा क अ यंत ि य नतक थी, क कहािनय म देख सकते ह। राजा
ने मंिदर को अपार धन दान म िदया। बहरहाल, समय बीतने क साथ मंिदर न होते गए और देवदािसय क
परपरा गलत हाथ म चली गई। ारभ म छोटी लड़िकय को सिद छा एवं िन ा क आधार पर िकसी देवता
अथवा मंिदर क सेवा म समिपत कर िदया जाता था; परतु अंततः ‘देवदासी’ श द से स वकर (वे या) का
पयाय बन गया। कछ देवदासी क प म पैदा ई, जबिक अ य को उनक माता-िपता ारा अनेक कारण से
मंिदर म ‘बिलदान’ कर िदया गया। इसक अित र , कछ लड़िकय को बाल म दाद या खुजली जैसा रोग हो
जाने क कारण उनक देवदासी होने का ोतक मानकर मंिदर क हवाले कर िदया गया।
उनक यथा पर िवचार करते ए मुझे अपनी वष पूव कनाटक क बेलगाम जनपद थत ये मा गु ा
(या रणुका मंिदर) क या ा का मरण हो आया। मुझे याद आया िक िकस कार उ ह ने हर रग क साड़ी,
चूिड़याँ, माथे पर ह दी का पीला लेप एवं देवी का मुखौटा लगाए हाथ म ना रयल, नीम क पि याँ और कलश
िलये मंिदर म वेश िकया। ‘इस सम या से म य नह िनपट सकती?’ म चिकत थी। उस समय मुझे इस बात
का जरा भी भान नह आ िक म अपनी पहली ही प रयोजना हतु अ यंत किठन ल य का चयन कर रही ।
मासूिमयत एवं बल उ साह क साथ मने उ री कनाटक म एक ऐसे थान को चुना, जहाँ देवदासी था जोर
पर थी और धम क नाम पर वे यावृि चलाई जा रही थी। मेरी योजना देवदािसय से बातचीत करक उनक
िचंता व सम या को रखांिकत करना था, तािक मुझे उनक हालात को समझने म सहायता िमले और उसक
प ा म चचाएँ आयोिजत करक कछ महीन म उनक सम या को हल कर सक।
पहले िदन जनपद म एक नोटबुक और पेन लेकर—िबना कोई जेवर पहने या िबंदी लगाए—ज स एवं टी-शट
पहनकर टोपी लगाए ए म प च गई। थोड़ी देर बाद एक मंिदर क पास मुझे एक पेड़ क नीचे बैठी कछ
देवदािसयाँ िमल । वे एक-दूसर क बाल से जूएँ िनकालते ए आपस म बात कर रही थ ।
िबना कछ सोचे-िवचार म उनक पास प च गई और ‘नम कार अ मा’ कहकर उनक चचा म यवधान
डाला—‘‘म यहाँ आपक सहायता करने आई । आप सब मुझे अपनी सम याएँ बताएँ, तािक म उ ह िलख
लूँ।’’
वे अव य कोई गंभीर चचा कर रही थ , य िक उ ह ने मुझे िनगाह से घूरकर देखा। उ ह ने मेर ऊपर न
क झड़ी लगा दी।
‘‘कौन हो तुम? या हमने तु ह यहाँ आने का योता िदया ह?’’
‘‘ या तुम हमार बार म िलखने क िलए आई हो? यिद ऐसा ह तो हम तुमसे कोई बात नह करना चाहत ।’’
‘‘तुम कोई अिधकारी हो या कोई मं ी? यिद हम तु ह अपनी सम याएँ बताएँ तो या तुम उ ह हल कर
दोगी?’’
‘‘दूर हटो। जहाँ से आई हो, वह वापस लौट जाओ।’’
म वहाँ से नह िहली। सच क तो उनक बात से िवचिलत ए िबना म उनक पास ही खड़ी रही। ‘‘म
आपक मदद करना चाहती । कपया मेरी बात सुिनए। या आप लोग को ए स नामक खतरनाक बीमारी क
बार म जानकारी ह? उसका कोई इलाज नह ह ... ’’
एक देवदासी मेर ऊपर टट पड़ी और बोली, ‘‘फौरन दफा हो जाओ यहाँ से!’’
मने उनक चेहर पर ट डाली। वे अ यंत ोिधत थ ।
यह सोचकर िक शायद उ ह थोड़ा और समझाने क ज रत ह, म वह खड़ी रही।
िबना कोई चेतावनी िदए एक देवदासी खड़ी ई और अपनी च पल मेर ऊपर फकते ए िच ाई, ‘‘तुम
सरल क ड़ भाषा नह समझती हो या? फौरन दूर हो जाओ यहाँ से।’’
मने अ यंत अपमािनत एवं यिथत महसूस िकया। मुझे लगा िक मेर आँसू िनकल आएँगे। म िबना एक पल
गँवाए वहाँ से वापस चल पड़ी।
म अपमािनत होकर लौटी थी। घर प चने क बाद मने अपने आप से कहा, ‘म अब वहाँ दुबारा नह जाऊगी।’
बहरहाल, कछ िदन बाद मुझे खयाल आया िक औरत शायद इसिलए नाराज थ िक म गलत ितिथ और
समय पर उनसे िमलने प च गई थी।
अतः एक स ाह बाद म वहाँ िफर गई। यह मुलाकात टमाटर क खेत म ई। देवदािसयाँ टोक रय म रखे
िविभ आकार- कार क टमाटर को आपस म बाँट रही थ । एक मृदु मुसकान क साथ मने उ ह ‘हलो’ िकया
और बोली, ‘‘आपसे िमलने म िफर आ गई । कपया मेरी बात सुिनए। म सचमुच आपक मदद करना चाहती
।’’
वे मेर ऊपर हस , ‘‘हम तु हारी मदद नह चािहए। लेिकन या तुम कछ टमाटर खरीदना चाहोगी?’’
‘‘नह , मुझे टमाटर म कोई खास िच नह ह।’’
‘‘कसी औरत हो तुम? टमाटर को भला कौन पसंद नह करता!’’
मने उ ह बातचीत म उलझाने क एक बार िफर कोिशश क , ‘‘ या आपने ए स क बार म सुना ह? आपको
यह अव य मालूम होना चािहए िक सरकार इसक बार म जाग कता फलाने हतु ढर सारा धन खच कर रही
ह।’’
‘‘ या तुम सरकारी एजट हो या िकसी राजनीितक दल से संबंिधत हो? तु ह इस काम क िलए िकतना
कमीशन िमल रहा ह? मुझे बताओ। हमार े म ढग का अ पताल तक नह ह और तुम मुझे िकसी डरावनी
बीमारी क बार म िशि त करने का यास कर रही हो। हम तु हारी सहायता क कोई आव यकता नह ह। संकट
क समय हमारी देिवयाँ हमारी सहायता करगी।’’
म उनक बात सुनकर अवाक रह गई। उनसे बात करने हतु मेर पास श द नह थे।
एक ी ने िनणायक प से कहा, ‘‘यह औरत अव य कोई प कार ह। यही कारण ह िक इसक पास
कागज और कलम ह। यह हमार िवषय म िलखेगी और हमारा शोषण करक धन कमाएगी।’’ इतना सुनने क
बाद अ य य ने मेर ऊपर टमाटर फकना शु कर िदया।
इस बार मेरी भावनाएँ मुझ पर हावी हो गई और म रोने लगी। एक बार िफर म िससकते ए वहाँ से वापस
लौट आई।
म िनराश थी। मुझे इस प रयोजना पर काम य करना चािहए? वे मेरा अपमान य करती ह? ऐसी कौन सी
जगह ह, जहाँ लाभा वत होनेवाले लोग उनक भलाई क िलए कायरत य का अपमान करते ह? हाँ, इसे
छोड़कर म अपने अकादिमक पेशे म वापस लौट जाऊगी। फाउडशन कोई अ य टी चुन सकता ह।
घर प चने क बाद म अपना याग-प तैयार करने बैठ गई। मेर िपताजी सीिढ़य से नीचे उतर तो उ ह ने मुझे
िसर झुकाए कागज पर कछ िलखते देखकर पूछा, ‘‘इतनी य ता से तुम या िलख रही हो?’’
मने संपूण वृ ांत उ ह सुना िदया।
म यह देखकर हरान रह गई िक मुझसे हमदद जताने क बजाय वह मुसकरा रह थे। अपनी हसी दबाते ए
उ ह ने कहा, ‘‘म नह जानता था िक तुम इतनी अ यावहा रक हो।’’
मने ु ध होकर उनक ओर देखा।
िपताजी ि ज से आइस म िनकालकर लाए और बैठकर मुझसे उसे खाने क िलए कहने लगे। उ ह ने
मुसकराते ए कहा, ‘‘इससे तु हारा िच शांत हो जाएगा।’’
कछ समय बाद उ ह ने कहा, ‘‘याद रखो िक वे यावृि हमार समाज म ाचीनकाल से िव मान ह और
जीवन का अिभ अंग बन गई ह। सभी स यता क यह एक मूल सम या ह। अनेक राजा एवं संत ने इसे
समा करने क यास िकए, परतु वे इसे जड़ से नह िमटा पाए। दुिनया का कोई देश इससे मु नह ह। तब
िफर तुम अकले समूची णाली को कसे बदल सकती हो? तुम एक साधारण ी मा हो! तु ह करना यह
चािहए िक तुम अपनी अपे ा को घटाओ और अपने ल य को छोटा करो। उदाहरण क तौर पर, तुम
वे यावृि यागने हतु दस देवदािसय क सहायता करने का यास करो। उनका पुनवास करो और उ ह िदखाओ
िक सामा य जीवन जीने का या अथ होता ह। इससे यह बात प हो जाएगी िक उनक ब े अपनी माता
क पद-िच पर नह चलगे। इसे ही अपना ल य बनाओ और िजस िदन तुम यह ल य ा कर लोगी, म
अ यंत गौरवा वत महसूस क गा िक मने ऐसी बेटी को ज म िदया ह, िजसने दस असहाय औरत को अपना
नारक य जीवन यागकर आ मिनभर नारी बनने म सहायता क ।’’
‘‘लेिकन काका, उ ह ने मेर ऊपर च पल और टमाटर फक।’’ म अपने िपताजी को हमेशा ‘काका’ कहकर
पुकारती थी।
‘‘वा तव म आज तु ह तर िमली ह—च पल से टमाटर तक। यिद तुम इस काय को जारी रखते ए
तीसरी बार वहाँ जाओ तो संभव ह िक कोई और अ छी चीज पाओ।’’ उनक इस िवनोद से मेरा ोभ शांत आ
और मेर चेहर पर मुसकान तैर गई।
‘‘उ ह ने मुझसे बात तक नह क । िफर ऐसी थित म म उनक िलए काम कसे कर सकती ?’’
िपताजी मुझे ख चते ए दपण क सामने ले गए और बोले, ‘‘अपना िलया देखो। ज स, टी-शट और टोपी म
िकतनी अजीब लग रही हो। यह तु हारी शैली हो सकती ह; परतु आम आदमी या एक देहाती देवदासी जैसी
औरत तु हार साथ जुड़ना पसंद नह करगी। यिद तुम साड़ी व मंगलसू पहनो, माथे पर िबंदी लगाओ और बाल
को बाँधकर उनक पास जाओगी तो मुझे पूरा िव ास ह िक वे तुमसे पहले क अपे ा अिधक अ छी तरह
िमलगी और बात करगी। म भी तु हार साथ चलूँगा। मेर जैसा बूढ़ा आदमी तु हार इस अिभयान म अ यंत
सहायक सािबत हो सकता ह।’’
मने िवरोध जताते ए कहा, ‘‘उनक िलए म अपनी वेशभूषा नह बदल सकती और म ऐसी बनावटी बात म
यक न भी नह करती।’’
‘‘अ छा, यिद तुम उ ह बदलना चाहती हो तो पहले तु ह अपने आपको बदलना होगा। अपना यवहार
बदलो। अंितम िनणय तु हारा ही होगा।’’
िपताजी मुझे शीशे क सामने खड़ी छोड़कर बाहर िनकल गए।
िश ा, यवसाय या िववाह क िवषय म मेर माता-िपता ने मेर या अ य भाई-बहन क ऊपर अपनी पसंद या
मा यताएँ कभी भी नह थोप । उ ह ने हमेशा हम अपने सुझाव िदए और ज रत पड़ने पर हमारी सहायता क ;
परतु मने वही िकया, जो मुझे अ छा लगा।
कछ िदन तक म िद िमत रही। मने सामािजक काय हतु आव यक कौशल क िवषय म िवचार िकया। इस
यवसाय म कोई तड़क-भड़क या धन नह था और म उसम िकसी कॉरपोरट हाउस क ए जी यूिटव क तरह
यवहार नह कर सकती थी। मुझे भाषा-कौशल चािहए था, िजसम अं ेजी क कोई ज रत नह थी। इस बात से
कोई फक नह पड़ता िक म काय हतु या ा करक कह गई। मुझे जमीन पर बैठने और थानीय खाना खाने का
अ य त होना चािहए। मुझे धैयपूवक उनक बात सुननी चािहए और सबसे बड़ी बात यह िक मुझे अपने काम से
यार होना चािहए। मुझे िकस काय से अिधकतम संतोष िमलेगा—अपनी बाहरी वेशभूषा से या जो काय म करने
जा रही , उससे?
थोड़ आ मावलोकन क प ा मने अपनी वेशभूषा बदलकर पूरी तरह काम पर यान कि त करने का िनणय
िलया।
अपनी अगली या ा से पूव मने अपने बाल का जूड़ा बनाया और उसे फल से सजा िलया। मने दो सौ पए
क साड़ी, माथे पर िबंदी, मंगलसू और हाथ म काँच क चूिड़याँ पहनकर वयं को एक भारतीय नारी क
प रधान म ढाल िदया और िपताजी को साथ लेकर देवदािसय से िमलने चल पड़ी।
इस बार वहाँ प चने पर मेर वृ िपताजी को मेर साथ देखकर उ हने ‘नम ते’ कहा।
मेर िपताजी ने मेरा प रचय कराते ए कहा, ‘‘यह मेरी बेटी ह और यह एक अ यािपका ह। यह यहाँ छ याँ
मनाने आई ह। मने इसे बताया िक तुम लोग का जीवन िकतना किठन ह। तु हारी इस दशा का कारण तु हार
ब े ह। चाह तु हारा वा य खराब ही य न हो जाए, िफर भी तुम उ ह पढ़ाना-िलखाना चाहती हो। म ठीक
कह रहा न?’’
उ ह ने समवेत वर म कहा, ‘‘हाँ ीमान!’’
“चूँिक मेरी बेटी टीचर ह, इसिलए वह तु हार ब च क िश ा और अ छी नौकरी िदलाने क बार म सहायता
करगी। यह तु ह ऐसी छा वृि य क बार म बताएगी, िजनसे तुम अभी तक अनजान हो। इससे तु हारा आिथक
बोझ कम होगा। या तुम इससे संतु ट हो? यिद नह , तो भी कोई बात नह । वह िकसी अ य गाँव क देवदािसय
क मदद करने चली जाएगी। इस िवषय म सोचकर हम बताओ। दस िमनट बाद हम वापस यह िमलगे।”
िपताजी स ती से मेरा हाथ पकड़कर मुझे थोड़ी दूर तक ख च ले गए।
मने िपताजी से पूछा, “आपने यह सब य कहा? आपको सबसे पहले उ ह ए स जैसी खतरनाक चीज क
बार म बताना चािहए था।”
“मूख मत बनो। उसक बार म हम उ ह िकसी अ य समय पर बताएँगे। यिद तुम िकसी नकारा मक चीज से
शु आत करोगी तो उसे कोई पसंद नह करगा। पहला प रचय सदैव सकारा मक एवं लाभाथ म स ची आशा
जा करनेवाला होना चािहए। जैसा िक मने उ ह वचन िदया ह, पहले तुम उनक ब च को छा वृि िदलाने म
सहायता करोगी, उसक बाद ए स पर काम ारभ करोगी।”
मने न िकया, “काका, आपने उ ह यह य बताया िक म अ यािपका ? आप मुझे सामािजक कायकता
बता सकते थे।”
िपताजी ने मेर न का शांत रहकर खंडन िकया, “वे अ यापन को अ यंत स मानजनक यवसाय मानती ह;
और या तुम ोफसर नह हो?”
उनक रणनीित से अनिभ होते ए मने अिन छापूवक िसर िहला िदया।
जब हम वापस गए तो औरत हमारी बात सुनने को तैयार थ । उ ह ने मुझे ‘अ ा’ कहकर संबोिधत िकया।
क ड़ भाषा म बड़ी बहन को ‘अ ा’ कहते ह।
इस कार मने उनक ब च को छा वृि िदलाने म सहायता करने क वादे को पूरा करने हतु देवदािसय क
साथ काय ारभ कर िदया। उनक कछ ब च ने तो एक वष क भीतर ही कॉलेज जाना भी ारभ कर िदया। यह
सब होने क बाद ही मने ए स का िवषय उठाया और इस बार उ ह ने हमारी बात गौर से सुन ।
महीने-दर-महीने गुजरते गए। उनक साथ एक र ता कायम करने म मुझे लगभग तीन वष लग गए। अब म
उनक यारी अ ा थी। अंततः उ ह मुझ पर पया िव ास हो गया और वे मुझसे अपनी ममातक कहािनयाँ
साझा करने लग िक उ ह ने अब तक िकतनी यातना सही ह।
मासूम लड़िकय को उनक पितय , भाइय , िपता , दो त , चाचा और अ य संबंिधय ारा इस घृिणत
यवसाय म बेच िदया गया था। कछ याँ अपने प रवार क िलए धन अिजत करने और अपनी भावी पीिढ़य
को गरीबी से बचाने हतु वयं इस पेशे म िव ट ई। अब भी अनेक लड़िकय को नौकरी का लोभन देकर
से स वकर क प म इस धंधे म धकल िदया जाता ह। उनक यथा-कथा सुनते ए कई बार ऐसे ण भी
आए, जब म चाहकर भी अपने आँसू नह रोक पाई। कई देवदािसय ने मेरा हाथ थामकर मुझे सां वना दी। हरक
क कहानी िभ थी, परतु अंत सभी का समान था—वे सब उस समाज क हाथ सताई गई थ , िजसने उनका
शोषण िकया और अंततोग वा हीन-भावना एवं शम से भर िदया।
मने महसूस िकया िक धन उपल ध कराने मा से उनम आ मिव ास जा नह होगा और न ही उनम
आ मस मान का भाव पैदा होगा। इसिलए सव म समाधान क प म मने उ ह समान ल य क पूित क िलए
अपना िनजी संगठन बनाने हतु उनक सहायता करना आव यक समझा। कनाटक रा य सरकार क अनेक
अ छी नीितयाँ थ , जो आवास, िववाह एवं छा वृि य को ो साहन देती थ ; परतु यिद हम खासतौर से कवल
देवदािसय क िलए कोई संगठन या यूिनयन शु करते तो वे एक-दूसर क सम या पर यादा अ छी तरह
यान दे सकती थ । इस ि या म वे कछ ही समय म सश एवं आ मिनभर हो जाएँगी तथा वयं को संगिठत
करना भी सीख जाएँगी।
इस कार देवदािसय हतु एक संगठन बना िलया गया। मेरा िव ास ह िक भगवा एक ही समय म हर जगह
उप थत नह हो सकते, परतु अपनी जगह वे िकसी य को काय करने हतु भेज देते ह। ऐसे ही एक दयालु
एवं आदशवादी िद ी िनवासी युवक अभय कमार अनपेि त प से हमसे आ जुड़। वे मेर साथ काम करने क
इ छक थे, अतः सामािजक काय क ित उनक जुनून क परी ा लेने क उ दे य से मने उ ह किठनतम काय
स पने का िनणय िलया। मने अभय से कहा, ‘‘यिद तुम देवदािसय क साथ आठ महीने काम करने क बाद
जीिवत रह तो म तु ह इस प रयोजना म पूणकािलक प से समायोिजत करने क िवषय म िवचार क गी।’’
वादे क मुतािबक वह आठ महीने तक नजर नह आया और िफर एक िदन टहलते ए मेर कायालय म िव ट
आ। वह थोड़ा दुबला अव य हो गया था, परतु उसक चेहर क मुसकान भरपूर थी।
मने कहा, “अभय, अब तुम समझ गए होगे िक सामािजक काय िकतना किठन ह। इसम आगे बढ़ने क िलए
अ यिधक वचनब ता एवं ढ़ता क आव यकता होती ह। अब तुम अनेक िजंदिगय म बदलाव लाने क संतोष
क साथ वापस िद ी जा सकते हो। तुम एक अ छ य हो। मुझे पूरा िव ास ह िक यह छोटा अनुभव
तु हार साथ बना रहगा और आगे चलकर तु हारी मदद करगा।”
उसने मुसकराते ए शु क ड़ म उ र िदया, “िकसने कहा िक म वापस िद ी जाना चाहता ? मने
कनाटक म ठहरने और प रयोजना को पूरा करने का िनणय िलया ह।”
‘‘अभय, यह एक किठन काय ह। तुम अभी युवा हो और इस तरह क काय म यह ब त बड़ी कमी ह ... ।’’
मेरी आवाज मंद होने लगी और मुझे कछ समझ नह आया िक आगे या क ।
‘‘मैडम, आप उस िवषय म िचंता न कर। संभवतः जो काय मुझे िमल सकता था, आपने मुझे उससे भी उ म
काय िदया ह। मने सोचा था िक आप मुझे ड क जॉब दगी। मने कभी क पना भी नह क थी िक आप मुझे
देवदािसय क साथ काम करने का गौरवपूण काय स पगी। बीते वष ने मुझे उनक पीड़ा और अस किठनाइय
को समझने का अवसर िदया ह। यह जानते ए म यहाँ क अित र िकसी अ य थान पर काय कसे कर
सकता !’’
इतनी कम आयु क युवक म ऐसी ईमानदारी और क णा देखकर म दंग रह गई। मने उसे वजीफ क पेशकश
क , परतु उसने इशार से मना कर िदया।
“मुझे अिधक धन क आव यकता नह । मेर पास कछ कपड़ और एक कटर पहले ही ह। मुझे दो व का
भोजन, िसर ढकने क िलए छत और पे ोल क िलए थोड़ा सा धन चािहए, बस!’’
मने उसे अपलक ने से देखा और जाना िक म ऐसे य को देख रही , िजसे अपने जीवन का उ दे य
ा हो गया ह। उसने मुझे अलिवदा कहा और लंबे डग भरता आ मेर ऑिफस से िन या मक मु ा म बाहर
िनकल गया।
अंततः अभय प रयोजना मुख बन गया। मने पूण मनोयोग से उसका समथन िकया और ोजे ट क गित क
िवषय म उसक साथ िनयिमत तौर पर बात करने लगी।
एक िदन म देवदािसय से िमली और उनक ब च क क याण क िवषय म पूछताछ क ।
उ ह ने कहा, ‘‘हमारी सबसे बड़ी परशानी ब च क पढ़ाई को लेकर ह। कई बार हम उनक कल फ स दे
पाने म असमथ होती ह और तब हम उस माग पर चलना पड़ता ह, जहाँ ज दी पैसा कमाया जा सकता ह।’’
‘‘हम तु हार सभी ब च क शै िणक यय का यान रखगे, चाह वे िकसी भी क ा म पढ़ते ह ; परतु अब
चाह जो भी हो, तुम िकसी भी प र थित म देवदािसय क प म नह रहोगी।’’ मने उ ह िन या मक प से
उ र िदया।
औरत िबना िकसी संकोच क मेरी बात से सहमत हो गई। उ ह मेर और अभय क ऊपर िव ास था। वे
जानती थ िक हम अपना वचन िनभाएँगे।
सैकड़ ब च को प रयोजना म वेश िदया गया। उनम से कछ यावसाियक पा य म म गए, जबिक अ य
अपनी ाइमरी, िमिडल और हाई कल क ा क पढ़ाई पूरी करने म लग गए। हमने ए स जाग कता एवं
िनवारण िशिवर आयोिजत िकए। ब च एवं य को िचिक सा संबंधी अनेक मु पर िशि त करने हतु
नु ड़ नाटक एवं कला िशिवर ायोिजत िकए, िजनम उ ह यह भी समझाया गया िक बाल म खुजली या
इ फ शन होना िकसी भी प म देवदासी बनने का संकत नह ह। ब क यह एक सरल उपचार यो य रोग ह,
जो बाल क आपस म िचपक जाने क कारण होता ह और समय बीतने क साथ जटा का प धारण कर लेता
ह। औरत ने अपना उपचार कराया और यहाँ तक िक उनम से कछ ने तो अपना मुंडन ही करवा िलया।
िआखरकार हम उनक गारटीदाता बनकर उ ह ऋण िदलाने म सफल हो गए। औरत अकसर मुझसे कहती थ ,
‘‘अ ा,]िदलाने म हमारी मदद करो। ऋण क अदायगी न कर पाने क दशा म यह धोखा देने क समान होगा
और आप जानती ह िक हम ऐसा कभी नह करगी।’’
अब तक म यह बात जान गई थी िक कोई धनी य संभवतः मुझे ठग सकता ह, लेिकन हमारी देवदािसयाँ
ऐसा कभी नह करगी। उनका मुझ पर और मेरा उनपर अटट िव ास था।
दूसरी ओर, मुझे और अभय को जीवन जीना किठन हो गया। हम दलाल , थानीय गुंड एवं अ य लोग क
ओर से टलीफोन, प और संदेश क मा यम से जान से मार देने क धमिकयाँ िमलने लग । म अभय क िलए
यादा डर गई थी। य िप मने पुिलस सुर ा लेने क िलए कहा, परतु अभय ने साफ इनकार करते ए कहा,
‘‘हमारी देवदािसयाँ मेरी र ा करगी। मेर बार म िचंता न कर।’’
कछ स ाह बाद दलाल ने पेशा छोड़ चुक तीन देवदािसय क ऊपर तेजाब फक िदया। परतु हम सबने िफर
भी अपना इरादा नह बदला। एिसड क िशकार देवदािसय क ला टक सजरी कराई गई, िजससे उनका
आ मिव ास वापस लौटा। वे उस हमले से िब कल भी नह डर । हमारी श का ोत यही औरत थ , जो
सामूिहक प से इस घृिणत पेशे को छोड़ने क कोिशश कर रही थ । य िप सरकार ने उनक आय म वृिद क ;
अनेक औरत ने बकरी, गाय एवं भस पालना शु कर िदया।
समय गुजरने क साथ-साथ हमने छोट कल थािपत िकए, िजनम राि कालीन क ाएँ भी चलाई जाती थ ,
िजनम देवदािसयाँ भी पढ़ सकती थ । यह एक किठन लड़ाई थी, जो वष चली और सबने िमलकर यास
िकया। बारह वष क प ा िकसी िवषय पर चचा हतु कछ औरत ने मुझसे संपक िकया।
‘‘अ ा, हम एक बक शु करना चाहती ह; परतु हम डर ह िक हम इसे वयं चला पाएँगी।’’
‘‘तुम या सोचती हो िक बक म या होता ह?’’ मने पूछा।
‘‘आपको बक शु करने क िलए ब त सार धन क ज रत होगी और एक खाता खोलना होगा। आपको
अिनवायतः अ छ कपड़ पहनने ह गे। हमने देखा ह िक बकवाले आमतौर पर सूट व टाई पहनते ह और
वातानुकिलत कायालय म बैठते ह। लेिकन अ ा, हमार पास इन सब चीज क िलए धन नह ह।’’
देवदािसय ारा हमार सम यह सम या उठाए जाने क बाद अभय और मने औरत क साथ बैठकर उ ह
बक चलाने क आधारभूत बात समझाई। कछ पेशेवर लोग से भी संपक िकया गया और उनक मागदशन म
देवदािसय ने अपना िनजी बक खोल िदया। कानूनी और शासिनक सेवाएँ हमने उपल ध कराई। बहरहाल हमने
इस बात पर िवशेष बल िदया िक बक क कमचारी और अंशधारक कवल देवदासी समुदाय क ही ह । अंततः
औरत ने िफ ड िडपॉिजट क ज रए बचत क और कम याज दर पर ऋण िदए। सारा लाभ बक क सद य
म बाँट िदया जाना था। िआखरकार बक चल पड़ा। औरत वयं उसक िनदेशक बन और उसका संचालन
अपने हाथ म ले िलया।
तीन साल से भी कम अविध क प ा बक म 80 लाख पए जमा हो गए और पूव देवदािसय को नौक रयाँ
दी गई; परतु उसक सवािधक मह वपूण उपल ध यह रही िक लगभग 3,000 औरत देवदासी था से मु हो
गई।
बक क तीसरी वषगाँठ पर मुझे बक से एक प ा आ—
“हम यह बताने म खुशी हो रही ह िक बक क थापना क तीन वष पूर हो चुक ह। बक क िव ीय थित
मजबूत ह। अब हमम से कोई न तो देवदासी परपरा का पालन करती ह और न ही उसक ज रए धन अिजत
करती ह। हमने सौ-सौ पए जमा करक एक बड़ समारोह क िलए 3 लाख पए क रािश जुटाई ह। हमने
िकराए पर एक हॉल िलया ह और येक आगंतुक क िलए लंच क यव था क ह। हमार िलए यह एक बड़ा
िदन ह। कपया हमारा साथ द। अ ा, आप हम अ यंत ि य ह और हम आपको इस अवसर पर अपना मु य
अितिथ बनाना चाहती ह। आप सैकड़ बार अपने खच पर हमसे िमलने आई ह और अजनबी होते ए भी आपने
हमारी भलाई क िलए अकत धन यय िकया ह। इस बार हम आपक या ा हतु वातानुकिलत वॉ वो बस का
िटकट और एक अ छा होटल बुक करना चाहती ह। इस या ा पर यय होनेवाला सारा धन हमने िविधक,
मयािदत एवं नैितक प से अिजत िकया ह। हम पूण िव ास ह िक आप हमारी िवन ाथना को अव य
वीकार करगी।’’
प पढ़कर मेरी आँख म आँसू आ गए। स ह वष पूव िज ह ने मुझे च पल का उपहार िदया था, आज वे
अपने सव म साम य क अनुसार मेरी या ा हतु होनेवाले यय का भुगतान करना चाहती ह। म जानती थी िक
वातानुकिलत वॉ वो बस और होटल क आराम का उनक िलए या अथ ह।
मने समारोह म शािमल होने हतु िनजी खच पर जाने का िनणय िलया।
समारोह म प चने पर मने पाया िक वहाँ न कोई नेता था, न फलमाला और न ही लंबे भाषण जैसी कोई र म
थी। वह एकदम सादा काय म था। सबसे पहले कछ य ने देवदािसय ारा िलिखत एक गीत गाया, उसक
बाद एक अ य समूह ने अपनी मु या ा क अनुभव का उ ेख िकया। उनक ब च —िजनम से अनेक
डॉ टर, नस, वक ल, क, सरकारी कमचारी, अ यापक, रलवे कमचारी और बक अिधकारी बन चुक थे—ने
आकर िश ा म सहयोग और समथन देने हतु अपनी माता एवं संगठन को ध यवाद िदया।
उनक बाद मेरी बारी आई।
म खड़ी ई, परतु मेर श द ने मेरा साथ छोड़ िदया। मेरा म त क शू य हो गया और तब, दूर से ही मने
अपने िपताजी ारा कह गए श द को याद िकया—‘मुझे यह जानकर अ यंत गव महसूस होगा िक मने एक
ऐसी बेटी को ज म िदया ह, िजसने दस असहाय औरत का देवदासी (से स वकर) से वतं य क पम
कायाक प करने का किठन काय िकया।’
सामा यतया म एक आशु व ा , परतु उस िदन भावना मक प से मेरा कठ अव हो गया। मुझे कछ
समझ म नह आया िक कहाँ से ारभ क । मने अपने जीवन म पहली बार महसूस िकया िक िजस िदन म
ई र से िमलूँगी, म प ट और आ मिव ासपूवक क गी िक ‘ भु! आपने इस जीवनकाल म मुझे ब त कछ
िदया ह। मुझे आशा ह िक मने उसम से िआखर कछ तो वापस लौटाया। मने आपक 3,000 संतान क अपने
साम य क अनुसार सव म सेवा क और उ ह िनरथक एवं र देवदासी था से मु िदलाई। आपक संतान
आपक पु प ह और आपक वे पु प म वापस लौटा रही ।’
उसक प ा मेरी ट य पर पड़ी। वे मुझे सुनने को आतुर थ । वे सुनना चाहती थ िक म या क गी।
अभय भी वहाँ मौजूद था और देवदािसय ने हमार िलए जो कछ िकया, उसे देखकर वह अ यंत अिभभूत था।
छह वष क आयु म दादाजी ारा िसखाया गया सं कत का एक ोक मने उ धृत िकया—‘ह भु! न मुझे
रा य चािहए और न ही म राजा बनना चाहता । मुझे न तो पुनज म क कोई अिभलाषा ह और न ही वग क
विणम नौका क । मुझे आपसे कछ नह चािहए। ह भु! यिद आप मुझे कछ देना ही चाहते ह तो एक
कोमल दय और मजबूत हाथ दीिजए, तािक म अ य लोग क आँसू प छ सक।’
मौन होकर म वापस अपनी करसी पर आ गई। मुझे नह मालूम िक उस समय याँ या महसूस कर रही
ह गी।
एक वृ देवदासी मंच पर आई और गव से खड़ी हो गई। उसने ढ़ वर म कहा, ‘‘हम अपनी अ ा को
कछ िवशेष उपहार देना चाहती ह। यह एक कढ़ाईदार पलंगपोष ह और हमम से येक ने इसक कछ भाग म
टाँक लगाए ह। अतः इसम तीन हजार टाँक ह। संभव ह, यह खूबसूरत न हो, परतु हम सबक इ छा ह िक हम
इस पलंगपोष म एक साथ मौजूद रह।’’ त प ा उसने सीधे मेरी ओर देखते ए कहा, ‘‘हमार िदल क ओर
से यह आपका ह। यह आपको गरमी म ठडा और सद म गरम रखेगा—आपक ित ठीक हमार यार क तरह।
मुसीबत क िदन म आप हमार साथ थ और अब हम भी आपक साथ रहना चाहती ह।’’
वह मुझे ा होनेवाला अब तक का सव म उपहार था।

2
लड़क को कसे परा त कर
हा ल ही म म अमे रका क या ा पर गई। वहाँ मुझे एक जलसे को संबोिधत करना था। ोता म िव ाथ
और सफल एवं िति त दोन कार क लोग शािमल थे। म हमेशा ोता से वा ालाप को ाथिमकता देती
, अतः मने उ ह न पूछने हतु आमंि त िकया।
अनेक लोग ारा न पूछ िलये जाने क बाद एक अधेड़ य ने खड़ होकर पूछा, ‘‘मैडम, आप अपने
िवचार बड़ी प टता एवं आ मिव ासपूवक य करती ह। आप हमार साथ बड़ आराम से वा ा कर रही ह
... ’’
मने उन स न को टोकते ए कहा, ‘‘कपया मेरी शंसा न कर, ब क अपना न पूछ।’’
उ ह ने कहा, ‘‘म सोचता िक आपने अव य िवदेश म िश ा हण क होगी या िकसी पा ा य
िव िव ालय से एम.बी.ए. िकया होगा। या यही आपक आ मिव ास का कारण ह?’’
एक पल भी खराब िकए िबना मने उ र िदया, “यह आ मिव ास मुझे ‘मेर बी.वी.बी.’ से ा आ ह।”
नकता िमत िदखाई पड़ा।
“मेर बी.वी.बी. से आपका या आशय ह?”
मने मुसकराते ए कहा, “म बास पा वीर पा भूमार ी कॉलेज ऑफ इजीिनय रग एंड ट ोलॉजी क िवषय म
बात कर रही । यह भारत क कनाटक रा य क एक मझोले क बे बली म थत ह। मने कभी भारत क बाहर
िश ा ा नह क । मेर यहाँ खड़ होने का एकमा कारण वही कॉलेज ह। ”
हलक-फलक अंदाज म मने अपनी बात जारी रखी। मुझे पूरा यक न ह िक सॉ टवेयर उ ोग क िजतने युवा
लोग आज यहाँ उप थत ह, वे भारत और अमे रका म इ फोिसस क योगदान को अव य सराहगे। इ फोिसस ने
कनाटक म बगलु और भारत का मान बढ़ाया ह। यिद म बी.वी.बी. म नह होती तो इजीिनयर भी नह बनती।
यिद म इजीिनयर न होती तो अपने पित को सहयोग देने क कािबल न होती। और यिद मेर पित को उनक
प रवार का समथन न िमलता तो वे िकसी भी थित म इ फोिसस क थापना न कर पाते। उस थित म आज
आप लोग यहाँ मेरा भाषण सुनने हतु एक नह होते।’’
हरक य ने हसते ए तािलयाँ बजाई; परतु मेर कथन का अथ मुझे भलीभाँित ात था। स क समा क
प ा लोग चले गए। तब तक म अ यंत थक चुक थी। अतः आराम करने हतु कछ देर म एकांत म सोफ पर
बैठ गई।
मेरा मन अतीत म िवचरण करने लगा। स 1968 म म इजीिनयर बनने का व न सँजोए आ मिव ास एवं
साहस से ओत- ोत स ह वष या एक लड़क थी। म एक िढ़वादी म य वग य िशि त ा ण प रवार से
आती । मेर िपताजी बली, कनाटक क एक मेिडकल कॉलेज म सूित एवं ी रोग िव ान क ोफसर थे
और माताजी िववाह से पूव एक कल अ यािपका थ ।
मने अपनी िव िव ालय-पूव परी ा उ म अंक क साथ उ ीण क और अपने प रवारवाल को बताया िक
म इजीिनय रग क पढ़ाई करना चाहती । म िव ान एवं उसक योग क ित मं मु ध थी। इजीिनय रग िव ान
क उ ह शाखा म से एक थी, जो मेरी रचना मकता—िवशेषतया िडजाइन—म योग क अनुमित देती थी।
मेरी इ छा जानते ही घर पर मानो िबजली िगर पड़ी।
ता कािलक िति या त ध कर देनेवाली थी। उन िदन इजीिनय रग लड़क का िवषय था, इसिलए उसम
लड़िकय का वेश िनिष माना जाता था। यथा थित को लेकर कोई न उठाने क बजाय लड़िकय से
मेिडकल या साइस कॉलेज म जाने क अपे ा क जाती थी। िकसी ी क इजीिनय रग म वेश लेने का िवचार
संभवतः कभी उ प ही नह आ। यह सुअर क उड़ने क समान था।
म अपनी दादी क सबसे दुलारी पोती थी। उ ह ने भी मुझे उपे ापूण ट से देखा और कहा, ‘‘यिद तुम
इजीिनय रग करोगी तो उ री कनाटक म कोई लड़का तु हार साथ िववाह नह करगा। मिहला इजीिनयर क साथ
कौन िववाह करना चाहता ह! तु ह लेकर म अ यंत अ स ।’’ मेरी दादी ने कभी नह सोचा था िक उनक
मना करने क बावजूद म कोई काम क गी। बहरहाल, उ ह भी नह पता था िक तुंगभ ा नदी क उस पार मैसूर
शहर म नारायण मूित नामक य रहता ह, जो कालांतर म मेर साथ िववाह करना चाहगा।
दादाजी, जो इितहास क अ यापक थे और मेर थम गु भी और उ ह ने ही मुझे पढ़ना-िलखना िसखाया था,
ने हलका िवरोध िकया। उ ह ने कहा, ‘‘मेरी ब ची, तुम इितहास म काफ तेज हो। तो इसी े म कछ य नह
करत ? एक िदन तुम महा इितहासकार बन सकती हो। इजीिनय रग जैसे शु क िवषय क पीछ मत भागो।’’
गिणत म द मेरी माँ ने कहा, ‘‘तुम गिणत म अ यंत तेज हो। गिणत म ातको र उपािध ा कर ोफसर
क नौकरी य नह करत ? इससे िववाह क बाद भी तुम कॉलेज म काम कर सकती हो; जबिक इजीिनयर बनने
क बाद प रवार एवं नौकरी क बीच संतुलन बनाने हतु तु ह हमेशा संघष करना होगा।’’
िपताजी य क िश ा म िव ास रखनेवाले एक उदार य थे। उ ह ने एक ण िवचार करने क बाद
कहा, ‘‘म सोचता िक तु ह मेिडकल (िचिक सा) क पढ़ाई करनी चािहए। तुम लोग क साथ यवहार एवं
भाषा म अ यंत िनपुण हो। सच क तो मुझे इजीिनय रग क िवषय म अिधक जानकारी नह ह। हमार प रवार
म एक भी इजीिनयर नह ह। यह एक पु ष- धान काय ह और तु हारी क ा म एक भी लड़क नह होगी। यिद
चार वष िकसी सहली से बात िकए िबना िबताना पड़ तो कसा लगेगा? इस िवषय म सोचो। बहरहाल िनणय
तु ह करना ह और म तु हारा समथन क गा।’’
मेरी अनेक चािचय का िवचार था िक इजीिनय रग का चयन करने क बाद कोई भी मेर साथ िववाह नह
करगा। प रणाम व प मुझे िकसी अ य समुदाय क य से िववाह करना होगा, जो िक उन िदन सवथा
अ चिलत था।
मने परवाह नह क । इितहास क िव ाथ क प म मने ेनसांग क िकताब ‘सी-यू-क ’ पढ़ी थी। सांग क
भारत-या ा से पूव हरक य ने उसे पैदल या ा करने क िलए हतो सािहत िकया था; परतु उसने सबको
अनसुना करते ए या ा पर जाने का िनणय िलया। वह कछ ही समय म भारत क स ह वष य लंबी या ा करने
हतु िव यात हो गया। सांग से साहस क ेरणा लेते ए मने अपने घरवाल को बता िदया, ‘म इजीिनय रग करना
चाहती । चाह जो भी हो, म येक प रणाम भुगतने क िलए तैयार ।’
मने बी.वी.बी. कॉलेज ऑफ इजीिनय रग एंड ट ोलॉजी का आवेदन-प भरकर जमा करवा िदया और शी
ही मुझे सूचना भी िमल गई िक अंक क आधार पर कॉलेज म मेरा चयन हो गया ह। म आनंिदत थी, परतु मुझे
इस बात का कोई ान नह था िक कॉलेज टाफ को इससे िकतनी असुिवधा ई।
त कालीन धानाचाय बी.सी. खानापुर मेर िपताजी क प रिचत थे। एक िदन दोन क मुलाकात नाई क दुकान
म ई। धानाचाय ने अपनी वा तिवक किठनाई का वणन करते ए कहा िक म बड़ी दुिवधा म । उ ह ने
िपताजी से कहा, ‘‘डॉ टर साहब, म जानता िक आपक लड़क अ यंत बुिद मान ह। इसीिलए उसे कवल
मे रट क आधार पर वेश िमला ह। परतु म यावहा रक किठनाइय से भयभीत । कॉलेज म वह अकली
लड़क होगी। पहली सम या तो यह ह िक प रसर म एक भी मिहला साधन नह ह। दूसरी बात यह िक लड़क
अभी युवा ह और शारी रक प रवतन क कारण वे िन य ही उसे परशान कर सकते ह। हालाँिक वे कॉलेज क
टाफ क सामने तो कछ नह कर पाएँगे, परतु बाद म िन त ही उसे परशान कर सकते ह। चूँिक वे लड़िकय
क साथ बात- यवहार करने क अ य त नह ह, अतः न तो वे उसक साथ सहयोग करगे और न ही कोई
सहायता। लड़िकय का िपता होने क नाते म आपक बेटी क बार म भी िचंितत । या आप उसक िहत म उसे
अपना मन प रवितत करने क िलए समझा सकते ह?”
मेर िपताजी ने उ र िदया, ‘‘ ोफसर साहब, म आपसे सहमत । म जानता िक आप सबकछ भलीभाँित
समझते ह; परतु मेरी बेटी इजीिनय रग करने क िलए अिडग ह। प ट क तो वह कछ गलत भी नह कर रही
ह। इसीिलए मने उसे पढ़ाई करने क अनुमित देने का िनणय िलया ह।’’
‘‘यिद ऐसी बात ह तो डॉ टर साहब, मेरी एक ाथना ह। आप उसे कपया कॉलेज म साड़ी पहनकर आने क
िलए कह, य िक वह पु ष क दुिनया ह। उस वातावरण म उसका साड़ी म आना ही ेय कर रहगा। उसे यह
भी समझा द िक वह लड़क क साथ अनाव यक बात न कर, वरना उससे िबना वजह अफवाह फलगी, जो
हमार समाज म लड़िकय क िलए अ छा नह ह। उसे यह भी बता द िक वह कॉलेज क कटीन म जाने और
वहाँ लड़क क साथ समय गुजारने से बचे।’’
िपताजी ने वापस लौटकर इस वा ालाप क िवषय म बताया। चूँिक अपना मन बदलने का मेरा कोई इरादा
नह था, इसिलए धानाचायजी क सभी सुझाव को मने फौरन मान िलया।
अंततोग वा कछ लड़क क साथ मेरी दो ती हो गई, परतु मने सदैव अपनी मयादा बनाए रखी। दरअसल ये
वही लड़क थे, जो कालांतर म मुझे जीवन का पाठ पढ़ाने वाले थे, जैसे— टकोण का मू य समझना, जब-तब
सम या क समय सहज रहने का मह व और खेल-भावना से सोचना। उन लड़क म से अनेक 50 वष बाद
बूढ़ हो चुक ह और मेर भाइय जैसे ह। कॉलेज प रसर म मिहला साधन क अभाव ने भारत म अनेक य
ारा झेली जानेवाली किठनाइय को समझने म मेरी मदद क । इस सम या ने मुझे कवल कनाटक म 13,000
शौचालय क िनमाण हतु े रत िकया!
इस बीच माँ ने मेरी यूशन फ स जमा कराने हतु एक शुभ िदन चुना। वह िदन महीने का अंितम गु वार था।
माँ उसी शुभ िदन फ स क 400 पए जमा कराने क िलए पीछ पड़ी थ , हालाँिक िपताजी क पास कवल 300
पए बचे थे। उ ह ने माँ से कहा, ‘‘कछ िदन ती ा करो। मुझे मेरा वेतन िमल जाएगा तो सुधा अपनी फ स
जमा करवा देगी।’’
माँ ने उनक बात को अनसुना करते ए कहा, ‘‘मेरी बेटी कॉलेज जा रही ह। यह बड़ा काम ह। हम हर हाल
म उसक फ स आज ही जमा करानी होगी—उसक पढ़ाई क िलए यह अ छा रहगा।’’
जब वे इस उधेड़बुन म लगे ए थे, तभी मेर िपताजी क सहायक डॉ. एस.एस. हीरमठ अपने ससुर पािटलजी
क साथ पधार, जो िक िश गाँव क िनकट बाड गाँव क सरपंच थे। म उसी क बे म पैदा ई थी। ी पािटल ने
िज ासावश पूछा, ‘‘अर भई, यह सब या चल रहा ह?’’
िपताजी ने उनक सम थित प ट कर दी।
उसक बाद उ ह ने अपने बटए से सौ पए का नोट िनकालकर िपताजी क हाथ पर रख िदया। उ ह ने कहा,
‘‘डॉ टर साहब, मेहरबानी करक यह धन वीकार कर लीिजए। म इस लड़क को िग ट करना चाहता ,
य िक यह लीक से हटकर कोई काम करने जा रही ह। मने ऐसे अनेक पैर स को देखा ह, जो अपने बेट क
फ स अदा करने क िलए अपनी जमीन-जायदाद तक बेच देते ह, तािक वे इजीिनयर बन सक। जबिक
वा तिवकता तो यह ह िक कई बार उ ह पता तक नह होता िक उनका ब चा ठीक से पढ़ भी रहा ह या नह ।
आप अपनी पु ी को देिखए। यह हर हालत म इजीिनय रग करना चाहती ह, और म समझता िक यह सही
ह।’’
िपताजी ने उनक ताव को ठकराते ए कहा, ‘‘नह िम टर पािटल, म ऐसा महगा िग ट नह ले सकता। म
इसे ऋण क तरह ले रहा और अगले महीने वेतन िमलने क बाद आपको लौटा दूँगा।’’
ऐसा लगा, मानो उ ह ने िपताजी क बात सुनी नह और कहा, ‘‘आपक पु ी क िलए सवािधक मह वपूण यह
ह िक वह अपना कोस पूरा कर और अ य लड़िकय क िलए आदश तुत कर।’’ इसक बाद वे मेरी ओर मुड़
और कहा, ‘‘सुधा, मुझे वचन दो िक तुम हमेशा मयािदत, िन प एवं अ यंत प र मी बनोगी और समाज तथा
अपने प रवार का नाम उ ल करोगी।’’
मने चुपचाप िसर िहला िदया।
कॉलेज म मेरा पहला िदन एक महीने बाद आया। मने पहली बार साड़ी पहनी, घर क सभी बड़ क पाँव छए
और माँ सर वती, िजनक मुझ पर िवशेष कपा रही ह, क ाथना क तथा कॉलेज क िलए चल पड़ी।
मेर कॉलेज प चते ही धानाचाय ने मुझे अपने पास बुलाया और एक चाबी देते ए कहा, ‘‘िमस
कलकण , इसे सँभालो। यह इले कल इजीिनय रग िवभाग क कोने म दूसरी मंिजल पर थत एक छोट
कमर क चाबी ह। आप अपनी आव यकतानुसार जब चाह, उसका योग कर सकती ह।’’
मने उ ह बारबार ध यवाद िदया और चाबी लेकर त काल कमरा देखने चली गई। मने उ सुकता से कमरा
खोला! कमर म टट ए दो ड क पड़ थे, परतु साधन का कोई संकत नह था। कमर म इतनी धूल जमी थी िक
मने उसम वेश करने का िवचार भी नह िकया। मुझे वहाँ देखकर हाथ म झा िलये एक सफाईकम भागता
आ आया। उसने मुझे देखे िबना ही कहा, ‘‘मुझे अ यंत खेद ह। ि ंिसपल साहब ने मुझे कल ही बताया था िक
कॉलेज म आज एक लड़क आएगी; परतु मने सोचा िक वे मजाक कर रह ह। यही सोचकर मने कमरा साफ
नह िकया। खैर, कोई बात नह , म इसे अभी साफ िकए देता ।’’
उसक सफाई करने क बाद भी कमरा गंदा ही था। मने उससे कहा िक आप कमरा छोड़ दो और मुझे एक
गीला कपड़ा लाकर दो। म कमर को वयं साफ कर लूँगी। कमर क संतोषजनक सफाई कर लेने क बाद मने
कपड़ पर पड़ी धूल झाड़ी और क ा म चली गई।
भूतल थत क ा म य ही मने वेश िकया, 149 जोड़ी नजर को अपनी ओर घूरते ए पाया, मानो म कोई
िविच ाणी । वैसे यह बात सही भी थी। उस ािण उ ान क म 150व जीव थी। मुझे पता था िक वे सीटी
बजाना चाह रह थे, परतु मने सीधे अपने िलए सीट खोजनी शु कर दी। पहली बच खाली थी। म जैसे ही बैठने
को ई, मने देखा िक िकसी ने सीट क बीचोबीच नीली याही िगरा दी। व तुतः वह मेर िलए ही िगराई गई थी।
मेरी आँख डबडबा आई, परतु मने आँसु को रोकते ए अखबार से सीट को प छकर साफ िकया और बच क
एक िकनार पर बैठ गई।
मने पीछ बैठ लड़क को कानाफसी करते साफ सुना। एक लड़का दूसर से कह रहा था िक “मूख, तूने
याही य िगराई? अब वह ि ंिसपल क पास जाकर िशकायत करगी।’’ एक अ य लड़क ने जवाब िदया, ‘‘वह
कसे मािणत करगी िक याही मने ही िगराई ह? िआखर 149 लोग ह यहाँ।’’
यिथत होने क बावजूद म ि ंिसपल क पास िशकायत करने नह गई, य िक उ ह ने िपताजी को पहले ही
चेतावनी दे रखी थी िक यिद मने िशकायत क तो लड़क मुझे आगे भी बार-बार परशान कर सकते ह और
िआखरकार तंग आकर मुझे कॉलेज छोड़ना पड़गा। मने चुप रहने का िनणय िलया, चाह लड़क मुझे सताने क
िकतनी ही कोिशश य न कर।
म भलीभाँित जानती थी िक लड़क मुझे परशान करने का कोई अवसर नह छोड़गे और दुःखी होकर अंततः
मुझे इजीिनय रग छोड़नी पड़गी। म शारी रक एवं मानिसक प से सश होने का उपाय सोचने लगी। यही मेरी
तप या होगी। समाधान क प म मने त काल िनणय िकया िक आगामी चार वष तक कोई भी क ा नह
छो ँगी और क ा क नो स बनाने म िकसी क सहायता भी नह लूँगी। मने यह भी िनणय िलया िक जब तक
इजीिनय रग क िड ी नह िमलती, हमेशा सफद साड़ी ही पहनूँगी, िमठाइय से परहज क गी, चटाई पर सोऊगी
और शीतल जल से ान क गी। मने आ मिनभर बनने का संक प िलया और तय िकया िक म अपनी सहली
और श ु वयं ही बनूँगी। य िप उस समय मुझे ात नह था िक ीम गव ीता म एक ोक पूववत
िव मान ह, िजसम ीक ण कहते ह, ‘आ मैव िह आ मनो ब धु आ मैव रपु आ मनः।’
वा तव म पढ़ाई म उ क होने क िलए हम ऐसी तप या करने क आव यकता नह ह; परतु म छोटी थी
और इजीिनय रग पास करने क िलए सार यास करने क ित ढ़ संक प थी।
मेर अ यापक े ठ और आ मीय थे। वे क ा म हमेशा मेरा खयाल रखते थे। समय-समय पर मुझसे पूछते
रहते थे, ‘‘िमस कलकण , आपक साथ सबकछ ठीक ह न?’’
यहाँ तक िक हमार कॉलेज क धानाचाय ो. खानापुर ने भी लीक से हटकर मेर क याण क िवषय म
जानकारी ा क और पूछा िक लड़क तु ह परशान तो नह करते।
बहरहाल, म अपने सहपािठय क बार म समान िवचार य नह कर सकती।
एक िदन वे क ा म फल का एक छोटा सा गु छ लेकर आए और अ यापक क अनुप थित म उसे मेर
बाल म लगा िदया, िजसका मुझे पता नह चला। मने पीछ बैठ लड़क म से िकसी को कहते सुना, ‘‘िमस
गुलद ता!’’ मने अपने बाल पर हाथ फरा और फल का गु छा िनकालकर फक िदया तथा कछ कह िबना वहाँ
से चली गई।
कई बार उ ह ने मेरी पीठ पर कागज क िवमान बनाकर फक। कागज खोलकर पढ़ने पर ‘एक ी का थान
रसोईघर या मेिडकल साइस या ोफसर क प म ह, इजीिनय रग कॉलेज म तो कदािप नह ’ जैसी िट पिणयाँ
पढ़ने को िमल ।
अ य म िलखा होता—‘हम सचमुच तु हार ऊपर दया आती ह। तुम देवी पावती क तरह तप या य कर रही
हो? कम-से-कम पावती क पास तप या करने का कारण तो था—वे िशव से िववाह करना चाहती थ । तु हारा
िशव कौन ह?’ म उन कागजी िवमान को रख लेती और जवाब देने से बचती।
हमार कॉलेज म एक िव ाथ -िम गितिविध होती थी, िजसे ‘िफशपॉ ड’ अथा म य ताल क प म जाना
जाता ह। यह वा तिवक म य ताल क बजाय एक म य पा था, िजसम बेनाम नो स या ‘िफश’ डाल िदए
जाते थे। कॉलेज का कोई भी य उसम अपनी िट पिणयाँ या िवचार िलखकर डाल सकता था, िज ह कॉलेज
क वािषको सव पर पढ़ा जाता था। सभी िव ाथ यह सुनने क िलए साल भर ती ा करते थे िक िकसक
मजािकया और हािजर-जवाब िट पिणयाँ इस साल चुनी गई ह। नािमत मेजबान कॉलेज क चौराह पर खड़ा होकर
उन नो स को ऊचे वर म पढ़ता था। हर साल यादातर नो स मेर बार म होते थे। अकसर म क ड़ तु क
का िनशाना बनती थी, िजनम से एक मुझे आज भी अ छी तरह याद ह, िजसका िहदी पांतर इस कार ह—
अ माँ, अ माँ वहाँ एक मीठा आलू ह,
कपया मुझे एक काली साड़ी दो और मुझे ससुराल भेज दो।
ऐसा इसिलए िलखा गया था, य िक म हमेशा सफद साड़ी पहनती थी।
कछ उ र भारतीय रोमांिटक छा ने िहदी िफ म ‘तीसरी कसम’ क पैरोडी बनाकर िलखा—
सजन र झूठ मत बोलो
सुधा क पास जाना ह।
न हाथी ह, न घोड़ा ह
वहाँ पैदल ही जाना ह।
लड़क मेरी िति या जानने क िलए मुझे किनखय से देखते; परतु म सरलता से अपने आँसु को रोक लेती
और हसने क कोिशश करती।
म जानती थी िक मेर सहपाठी एक कारण से अिभनय कर रह थे। ऐसा नह था िक वे आजकल क तरह मुझे
जान-बूझकर सताना या मुझपर ध स जमाना चाहते थे। उनक शरारत का कारण िसफ यह था िक वे अपने साथ
पढ़नेवाली छा ा क साथ आचरण करने हतु मानिसक व शारी रक प से अप रप थे। हमार संर णवादी
समाज म लड़क और लड़िकय क िम व िनकटता को हतो सािहत िकया जाता था। यही कारण था िक म
उनक िलए पराई और िदलच प थी। मेर मन ने लड़क क यवहार को उिचत ठहराया और मुझे उनसे िनपटने म
सहायता क । हालाँिक उसक बाद भी उनक ताने, यं य और िट पिणयाँ मुझे यिथत करते रह।
कॉलेज म मेरा एकमा मनोरजन मेरी िश ा थी। मने इजीिनय रग िवषय का आनंद िलया और परी ा म
सव म िकया। मने लुहारी, रतीबाजी, बढ़ईगीरी और वे डग जैसे दुदात िवषय म भी लड़क से े ठ दशन
िकया। लड़क नीला चोगा और म अपनी साड़ी क ऊपर नीला ए न पहनती थी। म जानती िक म अ यंत
मजािकया लगती; परतु जो िश ा म हण कर रही थी, उसक िलए वह क मत ब त छोटी थी।
प रणाम घोिषत कर िदए जाने क बाद मेर अंक क जानकारी मेर अित र हरक को थी। लगभग येक स
म मेर सहपाठी और व र छा का एकमेव यास मेर अंक ा करक उसे सूचनाप पर दिशत करना था,
तािक सब लोग उसे देख सक। मेरी िनजता लेश मा भी नह थी।
पढ़ाई क दौरान मने महसूस िकया िक ‘इजीिनय रग कवल पु ष का िवषय े ह’, यह कथन पूणतया
अस य ह। न कवल म पु ष क भाँित स म थी, वर मने अपनी क ा क सभी सहपािठय से अिधक अंक
ा िकए। इससे मुझे अित र आ मिव ास ा आ और मने क ा से अनुप थत न होना जारी रखा। म
प र मी बनी रही और अगली परी ा म िशखर पर प चने क िलए कतसंक प थी। म इस बात से जरा भी
िवचिलत नह ई िक मेर अंक सूचनाप पर दिशत िकए जा रह थे। इसक िवपरीत, मुझे इस बात का गव था
िक म सभी लड़क को उनक अपने ही खेल म परा त कर रही थी, य िक मने िव िव ालय म थम थान
ा करना जारी रखा।
आ मिनभर होने क मेरी यो यता ने मुझे ढ़ बनाया और िआखरकार लड़क ने मेरा स मान करना ारभ कर
िदया। सव ण , रखांकन हतु वे पूरी तरह मुझ पर िनभर हो गए तथा स ीय काय क उ र मुझसे पूछने लगे। मने
िम बनाना शु कर िदया और यहाँ तक िक आज भी िसिवल शाखा क रमेश जांगल, मेर योगशाला साथी
सुनील कलकण एवं फक र गौडा, एम.एम. कलकण , िहर गौडा, आनंद उठरी, गजानन ठाकर, काश
पडाक , एच.पी. सुदशन और रमेश लोडाया मेर अ छ िम म शािमल ह।
म अपने गु जन —सव ी एल.जे. नोरो हा, इले कल इजीिनय रग िवभाग; बगलु क उपहार व प ा
िश क योगा नरिस हा; ोफसर म ापुर, रसायन िवभाग; हाइ ोिल स से ो. कलकण एवं अनेक लोग को
कभी नह भूल सकती। क ा क दौरान मने पु तकालय म भी काफ समय िबताया। कछ ही समय म
पु तकालया य मेर ित काफ उदार बन गए और अंततोग वा वह मुझे अित र पु तक देने लगे।
म कॉलेज क सामने लगाए जानेवाले वृ क िवषय म माली से भी बार-बार चचा करती थी और अपनी
पढ़ाई क चार वष य अविध क दौरान वहाँ उससे ना रयल क पौधे लगवाए। म जब कभी भी बी.वी.बी. जाती ,
ना रयल क पेड़ को बड़ ेहपूवक िनहारती और प रसर म िबताए अपने विणम िदन को याद करती ।
चार वष बड़ी तेजी से बीत गए और अंततः कॉलेज से मेर िवदा होने का समय आ गया। मने वयं को दुःखी
महसूस िकया। यहाँ म एक भयभीत िकशोरी क प म आई और एक आ मिव ास से ओत- ोत मेधावी युवती
इजीिनयर क प म यहाँ से जा रही । कॉलेज ने मुझे िकसी भी चुनौती का सामना करने हतु लचीलापन
िसखाया; जैसे—प र थित क अनुसार यवहार म नरमी, अ य लोग क साथ े ठ एवं व थ संबंध थािपत
करने का मह व, सहपािठय क साथ नो स साझा करना तथा आ मकि त रहने क बजाय दूसर क साथ
सहयोग करना। इस कार म जब िम क बात करती , सामा यतया य क अपे ा पु ष क बार म
सोचती , य िक वा तव म म उनक साथ ही बड़ी ई। कालांतर म जब मने कॉरपोरट जग म वेश िकया,
पुनः वह पु ष- धान े था। अतः मेर सहयोिगय म बड़ी सं या म पु ष का होना वाभािवक था। कछ याँ
भी थ , िजनसे मेरा प रचय वष बाद आ।
कॉलेज महज ईट-गार से बनी दीवार क इमारत, बच या ड क नह ह। उससे भी आगे बढ़कर वह ान का
खजाना ह। सही िश ा आपको आ मिव ासी य बनाती ह और बी.वी.बी. ने मेर िलए यही िकया ह।
आगे चलकर मने भारतीय िव ान सं थान, बगलु से ातको र पूण िकया, त िप बी.वी.बी. का िवशेष
थान मेर दय म लगातार बना आ ह।
वृ ाव था क कारण जब िपताजी का िनधन हो गया तो मने उनक मृित म कछ करने का िनणय िलया।
उ ह ने तमाम बाधा एवं किठनाइय क बावजूद मुझे आगे बढ़कर इजीिनयर बनने क अनुमित दी थी। इसक
िलए उ ह प रवार और समाज क ओर से काफ कछ सुनना और सहन करना पड़ा। अतः उनक मृित म मने
हमार कॉलेज प रसर म ले र हॉल का िनमाण करवाया।
म जब कभी भी िवदेश म भाषण देने जाती , िविभ आयु वग क कम-से-कम पाँच लोग मेर पास आकर
बताते ह िक वे भी बी.वी.बी. से ह। म उनसे त काल जुड़ जाती । म उनक कोई सहायता तो नह कर सकती,
परतु मुसकराकर उनसे इतना अव य पूछती , ‘आप िकस वष ातक ए? आपक अ यापक कौन थे?
आपक क ा म िकतनी लड़िकयाँ पढ़ती थ ?’
अब जब कभी म कॉलेज जाती , िकसी बेटी क अपने घर आने जैसा उ सव होता ह। या ा क अंत म
अकसर म मंच क आंत रक चतुभुज म खड़ी हो जाती । मेरी मृितयाँ मुझे अतीत क अनेक अवसर पर ले
जाती ह, जहाँ म वयं को शै िणक उ क ता हतु पुर कार ा करते देखती । इसक बाद म कछ िमनट
सूचनाप क आगे खड़ी होकर तीय तल पर इले कल इजीिनय रग िवभाग क पास बने छोट से कमर क
ओर बढ़ जाती , जो अब ‘कलकण क ’ ह; परतु अब उसम धूल नजर नह आती। म उस बच को याद
करती , िजस पर बैठकर म परी ा क तैयारी करती थी। जब म अपने कछ िदवंगत सहपािठय एवं िश क
को याद करती तो मेर दय म अपनेपन क पीड़ा महसूस होती ह।
और तब, जैसे ही म सीिढ़य से नीचे उतरती , मेरा सामना लड़िकय क समूह से होता ह, जो स तापूवक
ज स- कट या पारप रक सलवार-कमीज पहने आपस म बातचीत म मगन होती ह। कॉलेज म अब लड़क क
साथ-साथ अनेक लड़िकयाँ भी ह। मुझे देखते ही वे यार से ऑटो ाफ लेने क िलए घेर लेती ह। भीड़ क बीच
ह ता र करते ए म अपने माता-िपता और पचास वष क या ा क िवषय म सोचती , िजससे मेरी आँख भर
आती ह।
ई र हमार बी.वी.बी. कॉलेज क र ा कर!

3
िवचार हतु भोजन
र खा मेरी बड़ी यारी सखी ह और हमार प रवार कई पीिढ़य से एक-दूसर को जानते ह। चूँिक काफ समय से
मने उसे नह देखा था, अतः मने उससे िमलने का िनणय िकया। मने फोन उठाकर उसका नंबर डायल िकया।
मेर िलए िपता तु य उसक िपता ी राव ने फोन उठाया, ‘‘हलो।’’
अिभवादन क आदान- दान क बाद मने कहा, ‘‘अंकल, म कल आपक घर लंच करने आ रही ।’’
उसक वन पित-िव ानी िपताजी अ यंत स होकर बोले, “अव य आओ। कल रिववार ह और हम थोड़ा
आराम से रहगे।” उ ह ने कहा, ‘‘ज दबाजी मत करना!’’
बगलु जैसे शहर म सा ािहक िदन म जयनगर से म े रम प चने म सामा यतया दो घंट लगते ह।
रिववार को आधा समय लगता ह। या ा करना अिधक सरल ह। अगले िदन उसक घर प चने पर मने सूँघकर
महसूस िकया िक लंच लगभग तैयार था और रसोई से आनेवाली खुशबू से जाना िक आज का भोजन कछ िभ
होगा। मेज पर कोई भी पारप रक क ड़ थाली नह लगाई गई और सच क तो खाना मेर अनुसार एकदम
बे वाद था।
“रखा, म ब त ख बू , इसिलए साधारण साड़ी पहनकर आई ।” मने मजाक करते ए कहा, ‘‘ या मेर
िलए िवशेष भोजन क यव था क गई ह, तािक म दुबारा न आऊ?”
वह मेरी पुरानी सहली थी और म जानती थी िक उसका गलत अथ लगाकर बुरा नह मानेगी।
रखा क िपता िदल से हसे और शरमाते ए बोले, ‘‘हाँ, आज मेरी माँ का ा ह। आज क िदन हम कवल
वदेशी स जय से भोजन बनाते ह।’’
मने चिकत होते ए पूछा, ‘‘ वदेशी से आपका या आशय ह? शायद फलगोभी, बंदगोभी और आलू को
छोड़कर या अपने देश म उपल ध सारी स जयाँ वदेशी नह ह?’’
रखा ने अ स ता जताते ए कहा, “ह भगवा ! तुमने गलत आदमी से गलत िदन पर गलत िवषय छड़ िदया
ह। म सोचती िक लंच क बाद तु ह चार घंट क िलए िपताजी क पास छोड़ दूँ, तािक तुम उनक साथ जी
भरकर बात कर सको। म तु ह चार घंट बाद पुनः िमलूँगी।”
म जानती थी िक रखा क िपताजी वन पित-िव ानी थे और इस िवषय म काफ जाग क थे। य िप म उ ह
काफ समय से जानती थी, परतु उनक य व का वह प पहले नह देखा था। शायद इसका कारण यह था
िक वे अपनी नौकरी क वष म अ यंत य त रहते थे और हम दोन खेलने एवं नादािनयाँ करने म म त रहती
थ।
मने पूछा, ‘‘अंकल, या यह सच ह?’’
उ ह ने सहमित म िसर िहलाया।
चूँिक म एक िकसान प रवार से आती थी, अतः स जय क बार म मुझे हमेशा िदलच पी रहती थी। मुझे
स जय क बार म प ट प से ात था िक कौन सी स जी हम िकस मौसम म उगा सकते ह, कौन सी नह
और य । बहरहाल खेती-िकसानी म िच रखनेवाले िम से जब कभी इस िवषय म चचा करती तो उनसे
उिचत उ र नह िमलता था। अंततोग वा यहाँ एक ऐसा य था, जो अपना ान मेर साथ बाँटना चाहता था।
अतः म अपने आपको रोक नह पाई।
मने कहा, ‘‘तुम जानती हो रखा, ऐसे िव ा िमलना किठन ह, जो अपने िवषय को अ य लोग को समझाने
म समय लगाएँ। आज गूगल मेरी दादी क समान ह। म िकसी चीज क बार म कछ जानने-समझने क िलए
वेबसाइट पर िकसी भी समय लॉग-ऑन करती ।’’
रखा ने अपने िपता क ओर आदरपूण नजर से देखा और मुसकराते ए बोली, ‘‘और अब तुम िव
ानकोश (ए साइ ोपीिडया) पर लॉग-ऑन कर रही हो।’’
लंच करते समय अ य अनेक िवषय पर बात होती रह । भोजन म चावल, िबना लाल िमच वाला सांबर,
काली िमच-यु दाल, गो रकाई, मेथी का साग, ककड़ी का रायता और चावल पायसम शािमल था। एक ओर
सादा दही और अचार भी रखा था। अ पताल म वा य-लाभ कर रह मरीज वाला वह लंच करने क बाद रखा
क िपताजी ने कहा, ‘‘आओ, बगीचे म चल।’’
रखा क प रवार क पास गली क नु ड़ पर एक पुराना घर था। उसक िपताजी ि िटश रलवे म काम करते थे
और ब त कम क मत म िकनार वाला लॉट खरीदने म सौभा यशाली रह। उसम उ ह ने छोटा सा घर और बड़ा
सा बगीचा बनवाया था। छोटी जगहवाले अपाटम स से भर बगलु जैसे शहर म बगीचे को शान और ऐशो-
आराम क चीज माना जाता था।
म और अंकल बगीचे म चले गए, जबिक रखा ने इस बीच झपक ली। वे एक बच पर जम गए और म
इधर-उधर िनगाह दौड़ाती रही। वह मुझे छोटा-मोटा जंगल जैसा नजर आया, िजसम एक िकचन गाडन भी था,
जहाँ अलग-अलग या रय म गाजर, मूली, मेथी और पालक बड़ करीने से बोए गए थे। कछ ग े भी लहराते
नजर आए, जबिक कोने म फल से लदा पपीते का एक बौना सा पेड़ खड़ा था। दूसर िकनार पर एक पं म
म क साथ-साथ पा रजात और िविभ रग वाले गुलाब क फल क पौधे खड़ थे।
मने सोचा, ‘इस थान को खूबसूरत बनाने क िलए अंकल और आंटी यहाँ ढर सारा समय ज र गुजारते
ह गे।’ लगभग सभी पेड़-पौधे व थ िदखाई पड़, मानो यहाँ रहकर वे अ यंत स ह !
अंकल ने आसमान क ओर देखते ए पूछा, ‘‘ या तुम समझती हो िक हमार आस-पास िजतनी स जयाँ ह,
सब भारत से ह? या वे अ य देश से आई ह?’’
मुझे लगा, जैसे म बचपन म अपने कल क अ यापक क सामने खड़ी । परतु म भयभीत नह थी। यिद म
उ ह गलत उ र देती तो भी मेरी गित रपोट पर कोई फक पड़ने वाला नह था। ‘‘हाँ अंकल, भारत म
शाकाहा रय क िवशालतम जनसं या ह। अतः समय क साथ-साथ हमने अलग-अलग िक म क शाकाहारी
यंजन बनाना सीख िलया। यहाँ तक िक मांसाहारी लोग भी योहार , िववाह , पु यितिथय एवं ावण मास जैसे
परपरागत अवसर पर मांस याग देते ह।’’
‘‘म हरक चीज क तु हार आकलन से सहमत , िसवाय इसक िक अिधकतर स जयाँ भारत म पैदा होती ह।
सच तो यह ह िक स जय क एक बड़ी सं या हमारी अपनी नह ह। वे िविभ देश से आई ह।’’
मने अिव ासपूवक उनक ओर देखा।
उ ह ने टमाटर क पौधे क ओर इशारा िकया। वह एक लता थी, िजसम अनेक फल लगे ए थे, िजसे बाँस
क मजबूत लाठी क सहार बाँधकर रखा गया था। ‘‘इसक तरफ देखो, या यह कोई भारतीय स जी ह?’’
मने टमाटर सूप, टमाटर रसम, टमाटर भात, सडिवच और चटनी क बार म िवचार िकया। ‘‘जी हाँ, सचमुच
यह भारतीय ही ह। हम इसका ितिदन उपयोग करते ह। यह भारतीय भोजन का अिभ अंग ह।’’
अंकल मुसकराए और बोले, ‘‘टमाटर क उ पि भारत नह , ब क मे सको म ई। स 1554 म यह यूरोप
आया। चूँिक उन िदन वहाँ कोई भी टमाटर नह खाता था, इसिलए अपने सुंदर गाढ़ लाल रग क कारण यह
सजावटी फल बन गया। एक समय यूरोप म यह मा यता भी चिलत हो गई िक टमाटर नपुंसकता क उपचार क
िलए उ म ह; जबिक कछ लोग का िवचार था िक यह िवषा ह। उ ह िवरोधाभासी मा यता क कारण इस
फल को लंबे समय तक उनक खुराक म शािमल होने से दूर रखा गया। इसक मू य क कमी अव य ही पेन
म ‘टोमैटो फ टवल’ क शु आत क असली वजह बनी, जहाँ इस िदन करोड़ टमाटर योग म लाए जाते ह।
टमाटर क िवषय म एक कहानी यह बताई जाती ह िक एक यूरोपीय यापारी ने टमाटर क पौध को अपनी
मजबूत चहारदीवारी से पड़ोिसय को यह िदखाने क िलए बाँध िदया िक इसक फल जहरीले नह ह, ब क ये
क मती और उपयोगी ह। धीर-धीर यह फल भारत प च गया और यहाँ एक वािण यक फसल क प म योग
होने लगा। यह अव य ही ि िटश शासनकाल म यहाँ आया होगा। परतु आज हम टमाटर क िबना कछ पकाने क
िवषय म सोच भी नह सकते।’’
मने बला कहा, ‘‘वाह अंकल! अब मुझे उस आव यक व तु क िवषय म बताइए, जो हमार भोजन म योग
तो होती हो, परतु हमारी न हो।’’
‘‘ वयं अनुमान लगाने का यास करो। सामा यतया हम इस खास स जी क िबना कछ भी नह पका
सकते।’’
मने आँख बंद कर सांबर क बार म सोचा। सांबर एक आव यक दि ण भारतीय भोजन ह तथा मटर-पनीर
परपरागत उ र भारतीय भोजन ह। थोड़ी देर सोचने क बाद मने उस सामा य त व को िमच कहा। मने अपने
िवचार को एक तरफ झटकते ए अनुमान लगाया िक िमच िकसी भी तरह आयाितत स जी नह हो सकती। मने
सोचा, िमच क बगैर कोई भी भारतीय भोजन नह बन सकता।
अंकल ने मेरी ओर देखकर कहा, ‘‘तुम सही हो। वह िमच ही ह।’’ उ ह ने मानो मेरा मन पढ़ िलया हो।
‘‘तु ह कसे पता?’’
‘‘ य िक यिद िमच को िकसी अ य देश से संबंिधत बताया जाए तो लोग हरान ए िबना न रह पाएँगे। म
लोग क िसर क भीतर घूमनेवाले च को उनक चेहर पर साफ देख सकता ।’’
मेरा अिव ास प ट था। हम िमच क िबना खाना कसे पका सकते ह? यह उतनी ही मह वपूण ह, जैसे
भारतीय खाने म नमक।
अंकल ने कहा, ‘‘िमच क बार म अनेक कहािनयाँ और उससे जुड़ कई िस ांत ह। वा कोिडगामा जब
ाजील होते ए पुतगाल से भारत आया तो अपने साथ अनेक बीज लाया। कालांतर म माक पोलो और अं ेज
भारत म आए। इस कार अनेक पौध क बीज यहाँ प चे। स य यह ह िक िजसे हम ‘ वदेशी’ कहते ह, वह
वा तव म हमारा नह ह। िमच, िशमला िमच, म , मूँगफली, काजू, फिलयाँ, आलू, पपीता, अनानास,
क टड, सेब, अम द और चीक क बार म सोचो—ये सभी दि ण अमे रक ह। समय क साथ हमने इ ह देशज
बना िलया और पकाना सीख गए। कछ लोग का मत ह िक िमच अपने ही नामवाले देश ‘िचली’ से आई,
जबिक अ य कहते ह िक यह मे सको से आई। एक िस ांत क अनुसार काली िमच नामक त व परपरागत
तौर पर भारत म खाने को तीखा और मजेदार बनाने हतु इ तेमाल िकया जाता था। कछ िव ान का िव ास ह
िक ई ट इिडया कपनी का एकमा ल य भारतीय काली िमच क यापार पर एकािधकार ा करना था,
िजसक प रणित अंत म भारत क उपिनवेश क प म ई। परतु जब हमने लाल िमच का योग करना आरभ
िकया तो उसका वाद काली िमच से अ छा लगा। तु ह एक उदाहरण देने हतु म काली िमच को क ड़ म
‘कालु िमनासु’ क नाम से संदिभत क गा। हमने िमच को भी उससे िमलता-जुलता नाम िदया—िमनािसन काई।
िहदी म इसे ‘िमच ’ क नाम से पुकारा जाता ह। ‘काली िमच और िमच क बीच ं यु आ, िजसम िमच
िवजयी ई और उसने अपने आपको नई राजकमारी क प म थािपत कर िलया। भारतीय आहार उ ोग म
आज भी उसी का शासन ह। उ री कनाटक अब अपनी लाल िमच क िलए िस ह।’’
‘‘यह सब तो म भी जानती , अंकल!’’ म आँख बंद करक अपने बचपन क िदन को याद करने लगी। मुझे
बचपन म सैकड़ एकड़ म लगे लाल िमच क पौधे याद आए। यह फसल दीपावली क मौसम म आती ह। मुझे
मरण ह िक बागदी जनपद लाल िमच क िब क िलए समिपत था। एक िदन अपने चाचा क साथ म वहाँ गई
थी और लाल िमच क पहाड़ को देखकर अचंिभत थी।
‘‘अर हाँ, तुम ठीक कह रही हो! वे लाल िमच चमक ले लाल रग क ह, लेिकन वा तव म तीखी या
जायकदार नह ह। इसक िवपरीत, आं देश क गुंटर े म पैदा होनेवाली िमच अिधक जायकदार ह। वे थोड़
गोल आकार क ह और रग म अिधक लाल नह ह। उ ह ‘गुंटर िमच’, कहा जाता ह। एक अ छा रसोइया खाने
को वािद एवं आकषक बनाने क िलए िभ कार क लाल िमच क िम ण का योग करता ह। इसी
कारण से उसे म वदेशी कहता ।’’
‘‘हमार खेत म दो अ य कार क िमच भी ह—एक िमच गांधार या रव ा िमच कहलाती ह, जो उलटी
उगती ह और दूसरी िशमला िमच ह।’’
अंकल ने सहमित जताई, ‘‘भारत क िशमला िमच और कछ नह , ब क प म म पाई जानेवाली हरी या
लाल बेल पे पर ह। परतु यिद तुम एक छोटी रव ा िमच खा लो तो तु ह बाथ म म बैठना पड़गा, पीठ म दद
हो जाएगा और काफ समय तक पानी पीते रहना होगा या तु ह आधा िकलो कडी, िमठाई या चॉकलेट खानी
पड़गी।’’
हम दोन हस पड़।
हसी सुनकर रखा क माँ बाहर आकर हमार साथ बैठ गई। ‘‘ या आप दोन आज क खाने क सूची का
मजाक उड़ा रह हो? मुझे दुःख ह िक उसम अिधक िक म नह थ । जब मने सुना िक आज तुम लंच पर आ रही
हो तो मने तु हार अंकल से कहा िक वे तु ह िकसी अ य रिववार को आने क िलए सूिचत कर द, य िक आज
का खाना बे वाद होने वाला था; परतु उ ह ने मुझसे कहा िक तुम प रवार क सद य क तरह हो और कतई बुरा
नह मानोगी।’’
उनक बात से मेरी िज ासा बढ़ी, ‘‘इस बे वाद खाने का या कारण ह, आप मुझे बताइए, आंटी?’’
‘‘मेरा अनुमान ह िक यह पागलपन का एक तरीका ह। पु यितिथय क दौरान हम िकसी अ य देश क
स जय और मसाल का योग नह करते। अतः हम मेथी, काली िमच, ककड़ी का योग करते ह। हमार
पूवज नई स जय का योग करने से डरते थे और इन आयात को िव ािम सृि कहते थे।’’
‘‘ऐसी चीज क बार म म पहली बार सुन रही । इसका या ता पय ह?’’
आंटी करसी ख चकर अम द क पेड़ क नीचे बैठ गई, ‘‘यह कथा कछ इस कार ह—ि शंक नाम क एक
राजा थे। वह जीिवत, सदेह वग जाने क इ छक थे। ऋिष िव ािम अपनी तप या क बल पर उ ह वग
भेजने म समथ थे; परतु देवता ने उ ह वापस धकल िदया, य िक वे इस बात से िचंितत थे िक इससे एक
परपरा बन जाएगी और लोग सदेह वगारोहण करने लगगे। उसे अनुमित नह िमली थी। िव ािम ने ि शंक को
पुनः वग क ओर भेजने का यास िकया, परतु देवता ने उसे वापस नीचे धकल िदया। कछ समय तक
ख चने-धकलने का यु चला और अंत म िव ािम ने ि शंक हतु एक नई दुिनया का िनमाण कर िदया, िजसे
उ ह ने ‘ि शंक वग’ क सं ा दी। यहाँ तक िक उ ह ने ऐसी स जय क सृि भी क , जो न तो वग म पाई
जाती थ , न ही पृ वी पर। इस कार बगन और फलगोभी को िव ािम क सृि माना जाता ह, िजसे
अिनवायतः िकसी ि यजन क पु यितिथ पर योग िकया जाना चािहए।’’
हम दोन क म य खामोशी छा गई और म आंटी क कहानी पर मनन करने लगी। कछ समय बाद मने देखा
िक रखा कछ कले, संतर और िमठाई का िड बा िलये चली आ रही थी।
उसने मुझसे कहा, ‘‘आओ, कछ लो। कला हमार बगीचे का ह और िमठाई भी हमार अपने उ पाद से बनी
ह। तु ह अव य ... ”
अंकल ने ह त ेप करते ए कहा, ‘‘ या तुम जानती हो िक हम अनेक ऐसी िमठाइयाँ बनाते ह, जो मूलतः
हमार देश क नह ह?’’
रखा ने कहा, ‘‘अ पा, इसे अम द और कले क कहानी बताइए। मुझे भी वह अ छी लगती ह।’’ मुझे कला
देते ए रखा मुसकराई।
अंकल मुसकराते ए हम कछ और जानकारी देने क िलए तैयार हो गए। उ ह ने कहा, ‘‘अम द क बीज
गोवा से आए। क ड़ म हम इसे ‘पेराला ह ू’ क नाम से पुकारते ह; य िक हमारा मत ह िक यह मूलतः पे ,
दि ण अमे रका से आया। आओ, तु ह एक कहानी बताता ।
“हमारी पुराकथा म दुवासा को िस ोधी ऋिष क प म विणत िकया गया ह। जो भी उ ह
करता था, उसे वे त काल शाप दे देते थे। कांदाली नामक ी से ऋिष का िववाह आ था। एक िदन उनक
प नी ने कहा, ‘ह ऋिषवर! लोग आपसे सदा भयभीत रहते ह, जबिक म आपक साथ दीघकाल से रह रही ।
या आपको नह लगता िक मुझे आपसे िकसी िवशेष वरदान क अपे ा करनी चािहए?’
“य िप दुवासा अपनी प नी क ाथना से ए, िकतु उ ह ने उसे शाप नह िदया। उ ह ने प नी क कथन
पर िवचार िकया और िनणय िकया िक उसका अनुरोध उिचत ह। ऋिष ने कहा, ‘म तु ह कवल एक वरदान
दूँगा, अतः सावधानीपूवक िवचार करो।’
“थोड़ा िवचार करने क बाद उनक प नी ने कहा, ‘आप मेर िलए िकसी ऐसे फल क सृि क िजए, जो
अ ुत और सुंदर रग का हो। उसका वृ वग क बजाय पृ वी पर उगना चािहए। उसम सार देश म उ प
होने का गुण होना चािहए। उसे वषपयत फल दो और उसक फल गु छ म लग। फल म कोई बीज नह होना
चािहए और उसे खाने क बाद कोई क नह होना चािहए। हम क चे फल क स जी बना सक और पक जाने
पर उसे पूजा म चढ़ा सक। उसक पेड़ क सभी भाग का हम िकसी-न-िकसी प म उपयोग करने म स म ह ।’
“दुवासा क प नी उ ह फल क जो िवशेषताएँ बता रही थ , उसे सुनकर वे चिकत और भािवत थे। वे ोध
म शाप देने और शांत होने पर उसका समाधान बताने क िलए यात थे, लेिकन प नी क यह सरल िदखाई
देनेवाली ाथना उनक बुिद मानी क परी ा थी। उ ह ने सोचा, ‘इसम कोई आ य नह िक याँ चतुर होती
ह। मेर जैसे लोग प रणाम का पूणतया िवचार िकए िबना त काल हो जाते ह।’
“ऋिष ने देवी सर वती क ाथना क िक उ ह ान द, तािक वे अपनी प नी क माँग पूरी करक उसे संतु ट
कर सक। कछ िमनट बाद उ ह ने महसूस िकया िक अब वे अपनी प नी क इ छा पूण कर सकते ह। अतः
उ ह ने कदली फल (कला) क वृ क सृि कर दी, जो संपूण भारत म पाया जाता ह। वृ का येक भाग—
पि याँ, छाल, तना, फल एवं फल ितिदन उपयोग म लाए जाते ह। क चे कले को पकाया जा सकता ह और
पक कले का िछलका उतारकर आसानी से खाया जा सकता ह। ई र क पूजा का यह अिनवाय अंग ह। यह
फल बीज-रिहत ह और गु छ म पैदा होता ह। वय क वृ का जीवन एक वष का होता ह और उसक आस-
पास छोट-छोट अ य पौधे पाए जाते ह।
“ऋिष-प नी कांदाली अ यंत आनंिदत ई और पौधे का नामकरण कदरी क प म िकया। उसने घोषणा क ,
‘जो कोई भी इस फल को खाएगा, वह इस त य क बावजूद िक इसक सृि मेर ोधी पित ारा क गई ह,
कभी नह होगा।’
“समय बीतने पर लोग ने बड़ पैमाने पर इसे यार से खाना आरभ कर िदया। धीर-धीर इसका नाम ‘कदरी’ से
प रवितत होकर ‘कदली’ हो गया और कला सं कत म कदली फल क प म जाना जाने लगा।” कहानी क
अंत म अंकल ने गहरी साँस ली।
कहानी एक उवर क पना का प रणाम लगी, िजसे सुनकर म मुसकराई और आनंिदत ई। मेर मन म कला
खाने क ढ़ इ छा उ प ई और मने अपने सामने रखी लेट से एक कला उठा िलया। मने कहा, ‘‘िन संदेह
तुमने आज मुझे बे वाद भोजन िखलाया, परतु अब म सचमुच थोड़ा िम ा चाहती ।”
रखा ने िड बा खोल िदया। वह िभ कार क िमठाइय से भरा आ था। मने देखा िक उसम गुलाब जामुन,
झांगड़ी (गुलगुला) एवं गुलकद आिद था। गुलाबजामुन देखकर मेर मुँह म पानी आ गया। म खुद को रोक नह
पाई और झट से एक गुलाबजामुन उठाकर मुँह म डाल िलया। वह मीठा और मुलायम था। उसक वाद पर
हरान होते ए मने कहा, ‘‘वाह, या वािद ट िमठाई ह! भारतीय िमठाइय क मामले म हम कोई भी परािजत
नह कर सकता। मुझे नह पता िक अ य देश म लोग गुलाबजामुन क बगैर कसे रहते ह।’’
रखा ने टोकते ए कहा, ‘‘एक िमनट को, ऐसी िट पणी मत करो। गुलाबजामुन भारत का नह ह।’’
म रखा से कतई सहमत नह थी। इससे पहले िक वह मुझे रोक, म दूसरा गुलाबजामुन उठाकर िनगल गई।
‘‘म यह बात गंभीरतापूवक कह रही । एक बार एक भाषािव हमार कॉलेज म व य देने आए। उ ह ने
हम बताया िक हम अं ेजी क अलावा अनेक भाषाएँ बोलते ह, िजनम फारसी, अरबी और पुतगाली श द ह,
िजनसे हम प रिचत नह ह। ‘गुलाबजामुन’ फारसी श द ह और यह ईरान म बनाया जाता ह। यह भारत म मुगल
स तनत क दौरान फारसी क अदालती भाषा होने क कारण लोकि य आ। यही बात झांगड़ी क िलए भी सच
ह, जो िक एक आभूषण ह और कलाई म पहना जाता ह।’’
मने उ च वर म िशकायत करते ए कहा, ‘‘अब तुम मुझे यह बताओगी िक गुलकद िकसी अ य जगह का
ह।’’
वह दाँत िदखाते ए बोली, ‘‘तुम गलत नह हो। ‘गुलखंड’ भी एक फारसी श द ह। गुल कछ और नह ,
ब क गुलाब ह और खांड माने मीठा। त य यह ह िक गुल क उ पि ‘गुलाब’ नामक श द से ई ह।’’
इस तमाम जानकारी से मेरा िदमाग पूरी तरह खाली हो चुका था। संतर को देखकर मने बड़ गव से कहा,
‘‘अब म इसे संतरा नह , ब क इसक क ड़ नाम ‘नारगी’ से पुका गी।’’
अंकल ने अपना गला साफ करते ए कहा, ‘‘नारगी एक भारतीय श द ह, परतु इसक उ पि कनाटक म
नह ई। यह दो श द —नार (संतरा या सूय का रग) एवं रगी से बना ह।’’
वा ालाप मुझे सचमुच उबाऊ महसूस हो रहा था।
अंकल ने अपनी बात जारी रखते ए कहा, ‘‘जब लोग िकसी थान पर कछ समय िनवास करते ह तो
अनजाने ही भोजन एवं भाषा सिहत वहाँ क सं कित को भी अपना लेते ह। कई बार हम अपने थानीय भोजन म
प रवतन लाकर उसे अपना बना लेते ह। िजन यंजन क हमने आज चचा क , उनक मामले म भी ठीक यही
आ।’’
मने अपनी घड़ी पर नजर दौड़ाई। मेर िवदा होने का समय आ चुका था। मने उ ह—िवशेषतया अंकल को—
अ यिधक ध यवाद िदया, िज ह ने मेरा इतना ानव न िकया, िजतना िक गूगल भी नह कर सकता था।
जब म घर क िलए रवाना ई तो रिववार क शाम होने क बावजूद वहाँ भारी िफक जाम था, परतु रा ते म
बोर नह ई। दरअसल म अंकल क बात को याद करक अ यंत स थी और शायद उसी वजह से मुझे
अचानक एक घटना याद आई।
मेरी माँ क दो बहन थ । हालाँिक तीन बहन का िववाह एक ही रा य क पु ष क साथ आ था, परतु उनक
पितय क नौक रयाँ अलग-अलग े म थ । एक उ री कनाटक क पुराने मैसूर रा य म रहते थे, मेर पैर स
महारा म और तीसर कनाटक क सुदूर िकनार क मैदानी इलाक म रहते थे।
पितय क रटायर होने क बाद तीन बहन बली क समान े म रहने लग । अपने मौसेर भाई-बहन क
साथ रोजाना िमलने और एक साथ भोजन करने म बड़ा आनंद आता था। हम योहार को एक प रवार क प
म मनाते थे। खाना एक घर म बनता था, हालाँिक हरक अपने-अपने घर से विनिमत िमठाइयाँ लेकर आता था।
एक बार दीपावली को हम अनेक पकवान िमले। माँ ने पूड़ी और ीखंड (महारा क एक लोकि य िमठाई,
जो दही व चीनी से बनाई जाती ह), मेरी मैसूर वाली मौसी ने िकशिमश खीर एवं चावल आधा रत बीसी बेले
अ ा और तीसरी मौसी ने जाँगड़ी आधा रत िचपकनी िच एवं गद क आकारवाले गोल ल बनाए।
मने और मौसेर भाई-बहन ने खूब जमकर खाया, परतु कार म मने पहली बार महसूस िकया तीन बहन
अपने-अपने े क कोई-न-कोई चीज अव य लाई थ । पा रवा रक िनकटता क बावजूद येक गृिहणी का
खाना अलग िक म का था। म उनक कोई सहायता तो नह कर सक , परतु चिकत थी िक भारत क िविभ
भाग का भोजन िकतना मजेदार होगा।
मने पनीर िप ा, चीज डोसा और भारतीय चाइनीज फड क िवषय म िवचार िकया। अव य ही उनक भी
उ पि इसी तरह ई होगी।
वा तव म िकसने कहा िक भारत एक देश ह। यह एक उपमहा ीप ह—सां कितक ओज और खा
िविवधता क बावजूद िदल से भारतीय।

4
यांजिल नीर
ब चपन म म अपने दादा-दादी क साथ कनाटक क एक छोट से गाँव म रहती थी।
मेरी दादी क ण ा एक सुंदर ी थ , परतु िकसी योहार या मह वपूण अवसर क अित र मने उ ह
सजते-सँवरते ब त कम देखा।
एक िदन जब म कल से वापस आई तो पाया िक वे अपनी िस क क सािड़य और अ य ि य व तु वाला
लकड़ी का बड़ा सा संदूक खोलने जा रही थ । चूँिक वे उस खास संदूक को कभी-कभार ही खोलती थ , अतः
मेर िलए हमेशा आकषण का क रहा। म सदैव काम छोड़कर उनक पास प च जाती। इस बार भी वैसा ही था।
अपना ब ता एक ओर फककर म दौड़कर उनक पास चली गई। मने झाँककर संदूक क अंदर देखा। उसम
चाँदी क एक िसंदूर भरनी, चाँदी क द तेवाला छोटा दपण, टटा, िकतु उपयोगी हाथीदाँत का कघा और चाँदी क
कछ बरतन थे।
दादी ने बड़ गव से कहा, ‘‘इ ह िपताजी ने िववाह क समय मुझे िदया था।’’ उनक िपताजी काफ पहले गुजर
गए थे।
मने हाथ म लेकर कमकम क िडिबया देखी। वह गोल आकार क बौनी पगोडा जैसी थी। एक सेकड भी
सोचे िबना मने उसका ढ न हटा िदया। उसम तीन खाने थे। पहले म मधुम खीवाला मोम, दूसर म न हा सा
गोल दपण और सबसे नीचे कमकम रखने क जगह थी। म मं मु ध थी। मने थोड़ा सकचाते ए कहा, ‘‘अ वा,
आपक सभी व तु म मुझे कमकम भरनी सवािधक यारी लगी। मेर बड़ होने पर या इसे आप मुझे दगी?’’
‘‘मेर तेरह पोते-पोितयाँ ह, सबको कछ-न-कछ िमलेगा; परतु इसे म तु हार िलए रखूँगी।’’ प ट उ र देते
ए वे मुसकराई।
इसक बाद वे पूणाकार दपण क सम इ मीनान से बैठ गई। अपने बाल सँवार, नाक म नथनी और पीले
लाउज क साथ नौ गज क हरी बनारसी साड़ी पहनी, माथे पर िबंदी लगाई और कान म मोती क छोटी
बािलयाँ पहन तथा हाथ म सोने क दो चूिड़य क साथ हर काँच क चूिड़याँ पहन । त प ात अपने जूड़ को
फल से सजाया। वे उ री कनाटक क वृ मिहला क संपूण छिव तुत कर रही थ ।
मने पूछा, ‘‘अ वा, आज तो कोई योहार भी नह ह। आप इस तरह य सजी ह? या आप कह जा रही
ह?’’
“म दोपहर का भोजन करने बाहर जा रही और तु ह भी मेर साथ चलना ह। ज दी से तैयार हो जाओ।’’
कछ पल मेर चुप रहने क बाद उ ह ने आगे कहा, ‘‘अपनी अपरा क ा क िचंता मत करो। तु हारी टीचर
भी वहाँ आ रही ह।’’
एक ामीण कल म इस कार का तालमेल असामा य नह ह। कभी-कभी हम स ाह क म य एक िदन का
अवकाश ले लेते ह और उसक ितपूित रिववार को अवकाश न लेकर कर देते ह। चीज बड़ी तरल एवं जीवन
अ यंत सरल था, परतु म ऐसी कली थी, जो अपने ही वन म पु प बन रही थी।
मुझे दोबारा कहने क आव यकता नह पड़ी। म लंच पाट म शािमल होने क िवचार से ही स थी, अतः
कपड़ बदलने दौड़ पड़ी। उन िदन भी मने तैयार होने म कछ िमनट से अिधक कभी नह लगाया।
अ वा आमतौर पर बातूनी औरत नह थ , परतु उस िदन वे अ छ मूड म थ , य िक मेर दादाजी उनक साथ
ऐसे काय म म जाने क इ छक नह होते थे। उ ह ने अपने पित से कहा, ‘‘आज म लंच करने इिदरा क घर जा
रही । मने आपका खाना कले क प े से ढककर रख िदया ह। िजतनी ज दी हो सक, उसे खा लेना।’’
अपने दादाजी को म यार से ‘िश गाँव काका’ पुकारती थी। उ ह ने िसर िहलाया और अखबार पढ़ने लगे।
िमनट क अंदर हम इिदरा अ ी क घर क ओर पैदल चल पड़।
मने पूछा, ‘‘आज या अवसर ह?’’
‘‘मेरी सहली इिदरा वाराणसी से वापस आई ह और हम सबको लंच पर आमंि त िकया ह। इस अ ुत
उ सव को ‘काशी समाराधने’ कहा जाता ह।’’
‘‘वह या ह? यिद इिदरा अ ी िकसी या ा से लौटी ह तो हम उसका उ सव य मना रह ह? या यह
बली या गडाग जाकर वापस आने जैसा नह ह? तब तो हम कोई पाट या उ सव नह मनाते?’’
अ वा शरमाई—“काशी और बली जाने म भारी अंतर ह। काशी पृ वी पर सवािधक पिव थान ह। वहाँ
गंगाजी बहती ह। ऐसा माना जाता ह िक देव क देव भगवा िव नाथ वहाँ िनवास करते ह और सबको वरदान
देते ह। पृ वी ह पर वह उनका पसंदीदा थान ह। वहाँ ान करने क अ सी घाट ह। नगर म सं कत क हजार
िव ा रहते ह। जो साड़ी म आज पहने ए , इसे बनारसी साड़ी कहते ह। यिद तु ह उपहार क प म ऐसी
साड़ी िमले तो सौभा यशाली समझना, य िक यह काशी क पिव धरती से आई ह।’’
म उनसे पूण पेण सहमत नह थी। म समारोह म अ छी-अ छी चीज खाने क ती इ छा क बावजूद इस
न पर बनी रही िक ‘इस कार का लंच य आयोिजत िकया गया?’
‘‘इस बात से कोई फक नह पड़ता िक आप िकतने धनी या समिपत ह। काशी जाना सरल नह ह। वहाँ जाने
और वापस आने क या ा अ यंत दु कर ह। आपको अनेक न और बस से जाना होगा। पहली बात यह िक
वहाँ क लोग िभ भाषा बोलते ह, िजसे िहदी कहते ह। दूसर, वहाँ हमारा कोई र तेदार नही होता, िजसक यहाँ
हम ठहर सक या उनसे मागदशन ा कर सक। तीसर, शीतकाल म वहाँ इतनी अिधक सद होती ह िक आप
जमती गंगा म अपने पाँव नह रख सकते। चौथे, ी मकाल म गरमी धरती को इतना अिधक तपा देती ह िक
आप पूजा क िलए नंगे पाँव चल भी नह सकते। पाँचव, यिद वहाँ क थानीय लोग को मालूम हो जाए िक हम
लोग बाहरी ह तो अकसर वे हम ठगने क कोिशश करते ह। ऐसी िकवदंितयाँ भी ह िक लोग वहाँ जाकर वापस
नह लौटते। अतः जब कोई काशी से लौटता ह तो हम उसे सौभा यशाली समझते ह। यही कारण ह िक वे हम
दावत देते ह और हम उपहार का आदान- दान करते ह।’’
मने य ता से पूछा, ‘‘अ वा, आप उ ह या देने जा रही ह?’’
अ वा ने अपना बैग खोला। उसक अंदर ढर सार फल और फल क अित र एक सूती साड़ी थी।
‘‘और वे हम या दगी?’’
‘‘हम काशी का धागा और थोड़ा गंगाजल िमलेगा। ये दोन ही मू यवा ह। अपनी कलाई या गले म पहनो,
भगवा किठनाइय से तु हारी ितिदन र ा करगे।’’
‘‘यह तो सचमुच अ छी खबर ह। मुझे अपनी आनेवाली परी ा म पास होने क िलए सभी कार क सुर ा
क आव यकता थी।’’
मेरी मुसकान क गलत या या करते ए अ वा ने कहा, ‘‘तुम भा यशाली हो िक उसे इतनी छोटी आयु म
ा करोगी।’’
‘‘काशी धागा देखने म कसा ह?’’
दादी ने बताया, ‘‘वह साधारण गाँठ वाला काला धागा ह। काशी क सुर ा भगवा िशव क महा एवं
िन ावान सेवक भैरवनाथ करते ह। यिद तुम काशी जाने क बाद काल भैरव मंिदर क दशन न करो तो तु हारी
या ा अपूण मानी जाएगी। वह पर तु ह काशी धागा िमलेगा, िजसे भैरवनाथ क नाम पर पहनना होगा, तािक वे
तु हारी र ा कर। चूँिक काशी क या ा किठन ह, इसिलए वे तु हार सुरि त घर वापस प चने तक अ य प
से तु हार साथ चलगे। उसक प ा वे अ य ालु क सहायता करने वापस लौट जाते ह।’’
‘‘ ... ऊ ... ’’ मने सोचा, ‘अगर उ ह एक से अिधक लोग क सहायता करनी हो तो ... ?’
मेर न करने से पूव ही अ वा ने उ र दे िदया, ‘‘म जानती िक अब तुम मुझसे या पूछने जा रही हो।
भैरवनाथ अपनी इ छानुसार अनेक प धारण कर सकते ह।’’
उसक बजाय मने पूछा, ‘‘गंगाजल का या उपयोग ह?’’
उ ह ने मेर िसर पर यार से थपक देकर कहा, ‘‘अर मूख लड़क , अब म तुझे कसे बताऊ िक पिव
गंगाजल का या उपयोग ह। गंगा हमार देश का जीवन ह। हर कोई पिव गंगाजल का पान करना चाहता ह;
परतु दि ण भारत म रहनेवाले हम जैसे लोग क िलए यह संभव नह ह। इसिलए हम पिव गंगाजल सँभालकर
रखते ह और य क अंितम समय म उसक मुख म कछ बूँद डाल देते ह, तािक वे वग जा सक।’’
मने पूछा, ‘‘अ वा, अगर काशी इतना मह वपूण ह और आपका अ यंत िव ास भी ह तो आप और काका
वहाँ अव य जाइए। म भी आपक साथ चलूँगी।’’
अ वा िवचारम न हो गई। उ ह ने कहा, ‘‘म कनाटक क बाहर कभी नह गई। तुम जानती हो िक काका एवं
म या ा करते समय कछ भी खाने से परहज करते ह और काशी जाने म कम-से-कम दस िदन लगते ह। इससे
अ छा तो यह ह िक हम समूह म या ा कर, य िक हम वहाँ क थानीय भाषा नह आती। यहाँ ऐसा समूह बना
पाना किठन ह और हम बूढ़ भी हो रह ह। हम रा ते म बीमार होकर समूह पर भार नह बनना चाहते। अतः मेर
िलए काशी जाना एक व न ही बना रहगा। परतु म स िक इिदरा अपने र तेदार क साथ वहाँ हो आई ह।
उसक घर जाकर म कम-से-कम उससे िमल तो लूँगी और उसक कहािनयाँ भी सुन लूँगी।’’
उस समय म नह समझ पाई िक अ वा क मन म उस पिव थान क ित इतनी ा य थी।
शी ही हम इिदरा अ ी क घर प च गए। वहाँ का संपूण वातावरण उ सवीय था। कले क प े और तने
ार क िकनार पर बँधे थे। हर जगह फल से सजावट क गई थी। वेश ार पर फश पर रगोली सजाई गई
थी। मने अपनी सहिलय को खुशी से इधर-उधर भागते देखा। मेरी टीचर सभी अितिथय और ब च को शरबत
दे रही थ । एक ओर फल से सजी मेज पर गंगाजल से भर पचास बरतन रखे ए थे। सभी मटिकय क गले पर
काला धागा बँधा आ था। सभी थािलय क समीप कले का एक प ा रखा आ था, य िप कोई वहाँ बैठा नह
था। मेरा मन प े पर रखी िमठाइय क सं या िगनने दौड़ गया।
अ वा और मने मु य क म वेश िकया। चूँिक मेरी दादी वहाँ सबसे बड़ी और लोकि य मिहला थ , उ ह
वहाँ देखकर लोग अ यंत स ए। अ वा इिदरा अ ी क ओर मुड़ और बोल , ‘‘तुम बड़ी भा यवा हो िक
तुमने काशी-या ा क , गंगाजी म ान िकया और पूण गौरव क साथ भगवा िव नाथ क दशन िकए।’’
इिदरा अ ी ने सौ य मुसकान क साथ हम दोन को बैठने का आमं ण िदया। लोग उनक अिधकािधक
सं मरण सुनने हतु उनक आस-पास एक हो गए।
िकसी ने पूछा, ‘‘आप िस अ पूणा मंिदर क िवषय म या सोचती ह?’’
उ ह ने उ र िदया, ‘‘वह सुंदर था। भगवा िव नाथ क मंिदर से ठीक पहले थत ह। वह एकमा मंिदर ह,
िजसक िवषय म माना जाता ह िक भगवा िशव वहाँ अपना िभ ा-पा लेकर अपनी प नी से भोजन एवं िभ ा
माँगते ह। कहा जाता ह िक वे कछ िवशेष िदवस पर मंिदर म िदखाई देते ह।’’
लोग ने अिधक न करना शु कर िदया तो म ऊबने लगी।
मने दादी को धीर से कोहनी मारी। य ही वे मेरी ओर मुड़ , मने कले क प े क ओर संकत करते ए पूछा,
‘‘अ वा, वहाँ पर लंच क िलए कोई बैठ य नह रहा? मुझे भूख लगी ह। या म जाकर खाना खा सकती
?’’
‘‘इस िवषय म सोचो भी मत! वह भोजन भैरवनाथ क िलए ह। उ ह ब त सारा काम करक ज दी वापस भी
जाना ह। परतु तुम चाहो तो उनसे ाथना कर सकती हो।’’
मने उस थान पर िकसी को बैठ नह देखा। मुझे याद आया िक वे अ य रहते ह। अतः मने अपने दोन हाथ
जोड़कर कले क प े क ओर मुँह करक ाथना कर ली।
थोड़ी देर बाद हम सबने िमलकर वािद ट भोजन िकया।
वापस आते समय दादी ने िट पणी क , ‘‘यह सुनना िकतना िव मयकारी ह िक इिदरा ने गंगाजी से तीन
अंजिल जल लेकर उदीयमान रिव को णाम िकया! वह य अव य ही सुंदर रहा होगा। कभी-कभी मेरी भी
वैसा करने क इ छा होती ह। मने वयं को इस बात से राजी कर िलया ह िक मेर बगीचे क निदका भी गंगा का
एक अ य प ह और यिद म उसक पूजा क तो वह भी काशी म गंगाजी को पूजने जैसा ही उ म ह।’’
हमार वापस घर प चते-प चते शाम हो गई और मने अपने दादाजी को बरामदे म बैठ देखा। काका मेर अ छ
िम ह, अतः म िदन क घटना क जानकारी देने हतु दौड़कर उनक पास चली गई।
उनक पास प चते ही उ ह ने मुसकराकर पूछा, “ या तु हारी दादी ने तु ह इस िवषय म बताया िक काशी म
िकसका अिनवायतः याग करना होगा?”
“आप िकस िवषय म बात कर रह ह, काका?”
“ ाचीन समय म काशी क या ा म िदन नह , ब क महीन लगते थे। आज हमार पास रलगािड़याँ व सड़क
ह, परतु तब लोग को पैदल चलकर अनेक निदयाँ और जंगल पार करते समय माग म कई खतर का सामना
करना पड़ता था। अनेक लोग जीिवत वापस नह आ पाते थे। अकबर ने काशी म वेश हतु जिजया कर को
समा कर िदया था, परतु औरगजेब ने उसे पुनः लागू कर िदया। इसिलए काशी क या ा महगी हो गई। यिद
कोई य सफलतापूवक काशी क या ा कर लेता था तो वह गंगा से तीन अंजिल जल लेकर, सूय को सा ी
मानकर अपनी िकसी ि यतमो म व तु को यागने का ण लेता था। इस कार गंगा को िदया गया वचन
अनु ं य होता था और य को हर हाल म उसका पालन करना पड़ता था।”
काका क बात सुनकर म आनंिदत थी और उनक गहरी साँस लेने तक मने ती ा क ।
काका ने बताया, ‘‘कछ िनयम ह, िजनका पालन आपको अव य करना होगा।’’
‘‘कौन से िनयम?’’
‘‘कोई चावल, गे का आटा, दूध, मूँग क दाल, घी या म खन खाना नह छोड़ सकता। य अपने आस-
पास या अपने े म पैदा होनेवाली कोई स जी, फल या अपनी सबसे यारी िमठाई का याग कर सकता ह।
अतः यिद तु ह जलेबी अ छी लगती ह तो उससे दूर रहने का ण लेना होगा। परतु आप क ू जैसी अपनी
िकसी अि य व तु का प र याग नह कर सकते। जब भी तुम अपनी यागी ई ि य व तु को देखोगी तो तु ह
काशी क याद आएगी।’’
‘‘यह तो बड़ा किठन ह, काका!’’
काका ने जैसे मेरी बात सुनी ही न हो और उ ह ने बोलना जारी रखा, ‘‘यिद कोई पित-प नी एक साथ काशी
जाते ह तो वे समान व तु कोे छोड़ सकते ह। यह सरल ह और तब उ ह अलग-अलग भोजन नह बनाना पड़गा।
परतु यिद पित एवं प नी अलग-अलग जाते ह तो वे िभ -िभ चीज को याग सकते ह। उस थित म एक क
छोड़ी ई व तु से दूसर को भी परहज करना होगा।’’
इस बीच अ वा भी बरामदे म प च गई।
“यह तो बड़ा किठन ह।” म जोर से बोली, ‘‘काका, अपनी ि य व तु को यागना तो बड़ा किठन ह।’’
‘‘यह तो य पर िनभर करता ह। यिद आप अपने वचन को दय और आ मा से पूरा करना चाहते हो तो
समय क साथ व तु क ित आस भी छट जाएगी और इस कार सादा जीवन आपक आदत बन जाएगी।’’
मने शरारती अंदाज म कहा, ‘‘काका, आप काशी जाएँगे तो या छोड़गे?’’
काका अपनी आँख म चमक लाते ए बोले, ‘‘म तु हारी अ वा से यार करता , इसिलए काशी कभी नह
जाऊगा!’’
य िप अ वा बूढ़ी थ , िफर भी शरमाते ए अंदर चली गई।
वे थोड़ अिधक गंभीर वर म बोले, “वहाँ जाना हमार वश म नह ह। यह तो भगवा िव नाथ क इ छा ह।
हमारा समय आएगा तो वे हम बुला लगे।’’
समय पंख लगाकर उड़ने लगा। मौसम बीतते गए। अ वा काशी गए िबना ही वग िसधार गई। उनक मृ यु
उनक इ छानुसार भीमा मी को ई। ऐसा माना जाता ह िक उस िदन वग क ार खुले रहते ह। उस समय म
पुणे म थी और जब तक बली प ची, वे अ न म समािध थ हो चुक थ । म कवल उनक राख और दीवार पर
िच क ही दशन कर पाई। मेरी मृित म अ वा क एक सि य, खुशिदल, मददगार और यारी मिहला क छिव
अंिकत ह।
अ वा क अंितम िनदश क आधार पर मेरी चाची ने कमकम क िडिबया मुझे स प दी और मने उसे पुराने
खजाने क भाँित ितजोरी म सहजकर रख िदया; परतु म उसको कभी-कभार ही इ तेमाल करती थी, य िक तब
तक भारतीय बाजार म टकर िबंिदय ने तहलका मचा िदया था।
समय गुजरने क साथ मने गहन अ ययन ारभ कर िदया और बौ धम क ित पूण पेण मु ध हो गई।
बु क क णापूण दय ने मुझे इतना िवचिलत कर िदया िक म उसे य नह कर सकती और यह भी जाना
िक उ ह ने िस म य माग य िलया था। बु म का ितिनिध व एक च एवं दो िहरण ारा िकया
जाता ह। सारनाथ ने बु क जीवन म मह वपूण भूिमका अदा क थी और वाराणसी से कछ िकलोमीटर क
दूरी पर थत िहरण उ ान म उ ह ने अपना थम धम पदेश िदया था। तभी मुझे ात आ िक व णा और अ सी
निदय क उस थान पर गंगा से संगम होने क कारण शहर को अपना नाम ‘वाराणसी’ िमला। िचरकाल से इसे
एक पिव थान माना जाता ह।
स 629 म चीनी या ी ेनसांग ने भारत क या ा क तो उसने मंिदर , निदका और े ीय धना यता क
साथ वाराणसी का बड़ िव तार से वणन िकया; परतु अिधक य त िदनचया क कारण यह मेरी ाथिमकता
क सूची म िनचले पायदान पर था।
स 1995 म दीपावली क योहार क दौरान मुझे पु तक क प म एक उपहार ा आ। डायना एल. एक
ारा िलिखत उस पु तक का नाम था—‘बनारस : िसटी ऑफ लाइट’। मने योहार क अफरा-तफरी समा
होने क बाद पढ़ने क इरादे से एक तरफ रख िदया।
उस वष मेर प रवार ने परपरागत आरती क साथ दीपावली मनाने का िनणय िलया। मने शयनक म जाकर
पुरानी आलमारी खोली। पूजा क िलए चाँदी क लेट खोजनी शु क , तभी अचानक मुझे कमकम क िडिबया
िदखाई पड़ी। उसे देखते ही मुझे अ वा क याद आ गई और म लेट खोजना भूल गई। मने धीर से िडिबया
िनकाली और उनक कमकम लगाने क िविध का मरण िकया। मने उ ह काशी समाराधने हतु सजते देखा और
याद िकया िक िकस कार हम दोन लंच क िलए एक साथ पैदल गई थ । तब मने कमकम भरनी देने क िलए
दादी को ब त परशान िकया था। काशी क पिव ता म वे दय से िव ास करती थ , परतु उ ह ने काशी क
या ा कभी नह क और न ही कभी नह जा पाने का कोई अफसोस िकया। मने अपने बार म िवचार िकया,
‘काशी जाना अब उतना किठन नह ह। इसक अलावा मेर पास डायना क पु तक थी। वहाँ जाने से पूव शहर
को समझने म यह मेरी सहायता करगी। जो भी हो, अपनी दादी क िलए म यह या ा क गी ... ।’
मेरी माँ ने मुझे पुकारते ए कहा, ‘‘तुम अंदर यान कर रही हो या? यहाँ सब लोग तु हारी ती ा कर रह
ह।’’
मने फरती से चाँदी क लेट खोजकर कमकम भरनी क साथ माँ को थमा िदया।
उ ह ने कहा, ‘‘अित सुंदर! यह मेरी माँ क क मती धरोहर ह! आज ाथना क दौरान उनक भावना हमार
साथ रहगी।’’
योहार का मौसम समा होने क बाद मने डायना क पु तक पढ़नी शु क । व तुतः वह हॉवड म लेिखका
क पी-एच.डी. थीिसस थी। वह एक िवदेशी मिहला थी और हमार देश म धम थल का अ ययन करने हतु यहाँ
तीन वष रही। और एक म थी, जो यहाँ कछ नह कर रही थी। मुझे अपने आप पर शम आई। पु तक ने मुझे
शी ाितशी काशी जाने क ेरणा दी, तािक म अपने बा यकाल क िज ासा और दादी क इ छा पूण कर
सक।
फरवरी 1996 म म अकले वहाँ प च गई। एक होटल म ठहरी और शहर क कोने म थत भगवा िव नाथ
क मंिदर म दशन िकए। अ छी तरह नहा-धोकर वहाँ एक ए भ ारा तीन िब व प से उनक पूजा क
जाती थी। मंिदर क िनकट कटीले तार से िघरी ानवापी मसिजद ह, जहाँ सुर ा हतु बंदूकधारी हरी तैनात रहते
ह। मेर मानस-पटल पर उस थान क एक िभ छिव अंिकत थी, िजसे देखकर मुझे थोड़ी िनराशा ई; परतु
सार देश से पधार िविभ आयु वग क लोग क आ था देखकर म अचंिभत थी।
मंिदर म भगवा िव नाथ क दशन क बाद म मिणकिणका घाट देखने गई, जहाँ असं य शव का ितिदन
अंितम सं कार िकया जाता ह। बढ़ती सा रता एवं बदलती सं कित क बावजूद लोग का ढ़ िव ास ह िक
काशी म मृ यु होने से वग ा होता ह। मने कछ और घाट क या ा भी क और उस पिव नगर क गंदगी
देखकर दंग रह गई। म पं. मदन मोहन मालवीय क एकल यास से थािपत बनारस िहदू िव िव ालय देखने
भी गई और िहदु तानी राग को मनमोहक िच क मा यम से तुत करनेवाले सुंदर सं हालय देखे।
मने अ पूणा देवी, भैरवनाथ, संकट मोचन क नाम से िस हनुमान मंिदर—जहाँ भ से अिधक मंिदर
क सं या रहती ह—सिहत छोट-बड़ अगिणत मंिदर क पैदल या ा क । य िप मेर आस-पास ब तायत म
काले धागे िबक रह थे, परतु िव ास न होने क कारण मने एक भी नह खरीदा। पिव गंगाजल िविभ आकित
एवं आकार म चुर मा ा म िब हतु उपल ध था। आज भी उसे पिव ही माना जाता ह।
काशी क छोटी गिलय म म उ े यहीन, परतु स होकर घूमी। सुंदर य एवं मोहक सािड़य ने मुझे
अपनी ओर आकिषत िकया। भ य बनारसी साड़ी ीक, रोमन और भारतीय बुनावट क अ ुत खोज ह। म जब
भी िवदेश जाती , मेरी भट ऐसे लोग से होती ह, जो बॉडर, क मती जरी एवं प ू देखकर खुश होते ह। जो भी
उसे पहनता ह, उसक राजसी छिव टगोचर होती ह।
अ ुत बनारसी सािड़याँ काशी का गौरव ह, जो वष से प रवितत होते रहने क बावजूद आज भी आकषक
बनी ई ह। मने भी अपने िलए सायंकाल म पहनने क िलए उपयु एक खाक चमक ली एवं अ वा क तरह
गहर हर रग क बनारसी साड़ी खरीदने क योजना बनाई। िव ता ने मुझे एवं अ य राहगीर को आवाज दी।
साड़ी क खरीदारी मुझे अ यंत ि य ह, परतु तभी मने अपना इरादा बदल िदया। मने सोचा, ‘ऐसी भी या ज दी
ह! कल कछ अिधक सािड़याँ देखकर खरीद लूँगी।’ अतः म छोटी-मोटी खरीदारी करने िनकल गई।
तब म वापस घाट क ओर गई और अंत म य त दशा मेध घाट प ची। वहाँ एक भीड़ सं या आरती क
तैयारी कर रही थी। मने पयटक पर नजर दौड़ाई। वे न कवल िभ रा य , ब क िभ देश से भी आए थे। वे
अपने िनकट थ े क तसवीर ले रह थे। गंदगी, तंग गिलयाँ और उनक ए◌ेकांितक समीपता से वे कदािप
परशान नह थे। साधु अ यान म थे और अिधकतर ालु गंगा म डबक लगाने क तैयारी कर रह थे।
उ ह देखकर म आकिषत ई। ‘म भी गंगा म ान य नह कर सकती। संभवतः म भी गंगा म यांजिल नीर
का अ य देकर काशी का अपना अनुभव पूण कर लूँ।’
आस-पास का कचरा देखकर मेर मन म दूसरा िवचार आया। म वहाँ डबक नह लगाना चाहती थी। मुझे गंगा
घाट क समीप रहनेवाले अपने एक पुराने िम अजय क याद आई। म उससे अपने िलए उपयु कम
भीड़भाड़वाले िकसी अिधक व छ थान क बार म जानकारी ा करना चाहती थी।
मने पास म ही एक लडलाइन देखकर उसे फोन िकया। चूँिक मने अपनी या ा क पूव सूचना उसे नह दी
थी, अतः उसका होना वाभािवक था। उसने मुझे यथा थान बने रहने का स त िनदश िदया और कछ ही
िमनट म वह अपने कटर से वहाँ प च गया।
उसने जोर देकर कहा, ‘‘जब तु हारा िम इसी शहर म रहता ह तो तुम होटल म य ठहरी हो? तु ह त काल
मेर घर चलना होगा।’’
म राजी हो गई। उसक ेिहल आित य को अ वीकार करने का मेर पास कोई कारण नह था।
म उसक हवेली म िश ट हो गई। उसम तीन प रवार रहते थे। येक प रवार क अलग रसोई थी। एक
िवशाल भवन म वे अपने अलग खंड म रहते थे। अजय क िह सेवाले घर से शाम क रोशनी म गंगा का
चमकता आ य िदखाई देता था।
उसक प नी िनिश ने काशी क वािद ट िमठाइय , ब मू य भोजन एवं पान से मेरा स कार िकया। बाद म
वह मुझे िहदु तानी संगीत समारोह म ले गया और उ ताद िब म ाह खाँ एवं पं. रिवशंकर जैसे काशी क
महा संगीतकार क िवषय म बताया। उसने बताया िक काशी संगीत- ेिमय का भी ि य थान ह। शहर य िप
गंदा था, परतु जीवन एवं सं कित से ओत- ोत था।
ातःकाल भोर म ही म पिव डबक लगाने गंगा घाट प च गई। म सीिढ़य पर बैठ गई और उसक बाद
कध तक जल म िव ट हो गई। सद से म हत भ थी और मेर शरीर को नए तापमान से अ य त होने म थोड़ा
समय लगा।
मने हथेिलय म थोड़ा जल िलया और मेरा मन त काल वापस अ वा क पास प च गया। वे मुझे हरी साड़ी
और पीला लाउज पहने िदखाई पड़ , मानो वे बड़ यार से मुझे देखते ए गंगा क यांजिल नीर क िवषय म
बता रही ह । मने देखा िक काका सूया त क समय बरामदे म बैठ ए मुझसे कह रह ह िक काशी क या ा
करनेवाले य का िनणय भगवा िव नाथ ही करते ह। मेर वृ दादा-दादी को इस शहर एवं गंगा से
िकतना यार था! मेरी आँख म आँसू आ गए। म भा यशाली िक मुझे ऐसे शांत एवं ढ़ िव ासी दादा-दादी
िमले।
मने सोचा, ‘काशी क या ा अब िकतनी आसान ह।’ मने बगलु से िद ी क िलए उड़ान भरी और उसक
बाद िद ी से वाराणसी—यानी मा पाँच घंट म प च गई। अब वहाँ काशी समाराधने या पिव जल अथवा
काला धागा िवत रत करने क कोई परपरागत था नह ह। उसक िलए िकसी क पास न तो समय ह और न ही
झुकाव।
मने उदीयमान सूय क ओर िनहारा और वापस अतीत से वतमान म आ गई। मने थमांजिल ली और वयं से
कहा, ‘ह गंगा! सूयदेव को सा ी मानकर यह जल म अपने दादा-दादी क ओर से अिपत कर रही । वे इस
समय जहाँ कह भी ह , उनक आ मा को शांित िमले और वे स रह।’
मने राहत महसूस क और अपने दादा-दादी क इ छा पूण क ; य िप उ ह ने वैसा करने क िलए कभी नह
कहा।
तब मने तीयांजिल म पुनः जल िलया और स वर बोली, ‘ह गंगा! सूयदेव को सा ी मानकर म कहती
िक आप हमार देश क जीवन-रखा ह। आपने अपने तट पर अनेक सा ा य का उ थान एवं पतन देखा ह। इस
धरती पर ज म लेने हतु म गौरवा वत एवं कत । आप िनरतर समृ ह । आपक सेवा म अिपत करने हतु
मेर पास इस अंजिल भर जल क अित र कछ भी नह ।’
तृतीयांजिल म मने अपने दादा क श द का मरण िकया, ‘अपनी ि य व तु का याग कर दो।’
‘मुझे वयं को िकस चीज से अलग करना चािहए?’ म चिकत थी। मुझे जीवन, रग , आकितय , कित,
संगीत, कला, अ ययन, खरीदारी—िवशेषतया सािड़य क —से अिधक यार था। मिटयाले रग का मेरा चयन
लोकि य था और कई वष से सािड़य क िडजाइन म बदलाव देखना मुझे ि य था। यिद काशी जानना चाहती ह
िक म िकसे सवािधक यार करती तो ह गंगा! सूयदेव को सा ी मानकर अ , दवाइयाँ, या ा, पु तक एवं
संगीत जैसी आव यक चीज को छोड़कर अ य सम त कार क खरीदारी का आज से म प र याग करती । म
अपने जीवन क अंितम साँस तक इसे पूण क गी।’ कहकर मने अनु ठान पूण िकया और धीर से अपनी
हथेिलय का जल वापस गंगा म वािहत कर िदया।
मुझे महसूस आ िक जैसे मेर दादाजी यह कह अभी-अभी मुसकराए ह । कछ िमनट बाद म जल से बाहर
िनकल तौिलया लपेटकर सीिढ़य पर बैठ गई।
इस कार अब साड़ी क ित मुझे कोई लगाव नह रहगा और मेरी कोई भी सहली वैवािहक खरीदारी हतु अब
मुझसे अनुरोध नह करगी। म अपना ण पूरा कर पाने क ित िचंितत थी, य िक उस िदन मने काशी म
बनारसी सािड़याँ खरीदने क योजना बनाई थी। म आ यचिकत थी िक खरीदारी यागने क ेरणा ता कािलक
थी या िकसी कार पूव िनधा रत थी। आज क िदन म नह जानती।
म खड़ी ई, कपड़ बदले और अ वा क भरनी से कमकम पाउडर िनकालकर माथे पर लगाया। यह बीस
वष पुरानी बात ह।
स य यह ह िक ण-मु का ार िस आ। समय क साथ सं ह क इ छा समा हो गई। वष म एक
बार मेरी कछ जानी-मानी सहिलयाँ और बहन अपनी पसंद क सािड़याँ देत और म लंबे समय तक उ ह
स तापूवक पहनती रही। समय बीतने क साथ मेरी उसम भी िच समा हो गई और मने उनसे अनुरोध िकया
िक अब वे मुझे उपहार- व प कछ भी न द।
उस अंितमांजिल नीर ने मेर जीवन को हमेशा क िलए बदल िदया।

5
कटल ास
ग त वष म लंदन क ही ो अंतररा ीय हवाई अ पर िवमान म बैठने वाली थी। आमतौर पर म साड़ी पहनती
, परतु जब िवदेश म होती तो या ा करते समय सलवार-कमीज पहनती । अतः एक व र नाग रक क
प म परपरागत भारतीय प रधान म टिमनल क ार पर थी।
चूँिक बोिडग शु नह ई थी, म बैठकर अपने इद-िगद नजर दौड़ाने लगी। वह बगलु जानेवाली उड़ान
थी, अतः मने लोग को क ड़ म बातचीत करते सुना। मने अपनी आयु क अनेक दंपितय को देखा, जो अपने
ब च क सव या नया घर खरीदने म सहायता करक अमे रका या इ लड से वापस आ रह थे। मने कछ
ि तानी कारोबा रय को भारत क गित क िवषय म पर पर बातचीत करते देखा। कछ िकशोर वय क लड़क-
लड़िकयाँ अपने हाथ क गैजे स म य त थे, जबिक छोट ब े ार क समीप उछल-कद कर रह थे।
कछ िमनट बाद बोिडग क घोषणा ई और म पं म खड़ी हो गई। मेर आगे भारतीय-पा ा य िस क
प रधान म सजी-धजी, ऊची एड़ी क च पल पहने और गु का हडबैग िलये एक मिहला खड़ी थी। उसक
बाल सँवर ए थे और उसक सहली क मती िस क क साड़ी, मोितय क माला तथा उसी से िमलती-जुलती
बािलयाँ एवं हीर क चूिड़याँ पहने आगे खड़ी थी।
मने पास लगी विडग मशीन क ओर देखा और पं से िनकलकर थोड़ा पानी लेने क िलए सोचने लगी।
अचानक तभी मेर आगे खड़ी मिहला ने मेरी ओर बड़ी दयनीय ट से देखा। अपना हाथ बढ़ाते ए उसने
कहा, ‘‘ या म आपका बोिडग पास देख सकती , लीज?’’
म उसे अपना पास देने ही वाली थी; पर चूँिक वह एयरलाइन कम नह थी, मने पूछा, ‘‘ य ?’’
‘‘यह पं कवल िबजनेस ास क याि य क ह।’’ बड़ आ मिव ासपूवक कहते ए उसने इकोनॉमी
ास क लाइन क ओर उगली से संकत िकया। उसने कहा, ‘‘तु ह वहाँ खड़ी होना चािहए।’’
म उसे बताने ही वाली थी िक मेर पास िबजनेस ास का िटकट ह, परतु कछ सोचकर म िठठक गई। म यह
जानना चाहती थी िक म उसे िबजनेस ास म या ा करने यो य य नह लग रही? अतः मने दोहराते ए पूछा,
‘‘मुझे वहाँ य खड़ी होना चािहए?’’
वह शरमाई। ‘‘म समझाती तु ह। इकोनॉमी और िबजनेस ास क िटकट क क मत म भारी अंतर ह।
िबजनेस ास का िकराया दो-ढाई गुना अिधक ह।’’
उसक सहली ने टोकते ए कहा, ‘‘म सोचती , तीन गुना अिधक ह।’’
‘‘सही बात ह।’’ मिहला ने कहा, ‘‘इसीिलए िबजनेस ास िटकट क साथ कछ िवशेष सुिवधाएँ जुड़ी ई
ह।’’
उसे िमत करने हतु मने अनजान बनते ए कहा, ‘‘सचमुच! आप िकन सुिवधा क बात कर रही ह?’’
उसने खीझते ए कहा, ‘‘हम दो बैग ले जाने क अनुमित ह, लेिकन तुम कवल एक बैग ही ले जा सकती
हो। हम िवमान म दूसरी, कम भीड़वाली पं से चढ़ सकते ह। हम बिढ़या खाना और सीट दी जाती ह। हम
सीट को फलाकर उनपर सीधे लेट सकते ह। हमार सामने टी.वी. लगा होता ह और थोड़ से याि य हतु चार
साधन ह।’’
उसक सहली ने बात को आगे बढ़ाते ए कहा, ‘‘हमार बैग क जाँच क िलए ाथिमकता क सुिवधा
उपल ध ह, िजसका अथ ह िक प चने पर हम पहले बाहर आ सकते ह और उसी िवमान म कई बार आ-जा
सकते ह।’’
‘‘अब अगर तु ह फक समझ म आ गया हो तो जाकर इकोनॉमी ास क लाइन म लग जाओ।’’ मिहला ने
जोर देकर कहा।
‘‘लेिकन म वहाँ नह जाना चाहती। म तो यह र गी।’’
मिहला अपनी सहली क ओर मुड़कर बोली, ‘‘इन कटल ासवाले लोग क साथ बहस करना मु कल ह।
टाफ को आने दो, वही समझाएगा िक इसे कहाँ जाना चािहए। यह हमारी बात नह सुनेगी।’’
म ु ध नह ई। ‘कटल ास’ नामक श द अतीत क एक धमाक जैसा था, िजसने मुझे एक अ य घटना
क याद िदला दी।
एक िदन म अपने गृह नगर बगलु म सं ांत लोग क पाट म गई। वहाँ ब त सार रईस और समाज-सेवी
लोग मौजूद थे। म िकसी से क ड़ म बात कर रही थी। तभी एक आदमी वहाँ आया और बड़ी िवन ता से धीर
से मुझसे अं ेजी म बोला, ‘‘ या म आपको अपना प रचय दे सकता ? म ... ’’
वा तव म वह मुझे क ड़ म बोलते देखकर समझ रहा था िक मुझे अं ेजी समझने म कोई परशानी ह।
मने मुसकराते ए कहा, ‘‘आप मुझसे अं ेजी म बात कर सकते ह।’’
‘‘अर!’’ कहते ए वह थोड़ा चिकत आ—‘‘मुझे खेद ह। आपको क ड़ म बोलते ए सुना तो मुझे लगा
िक आपको अं ेजी बोलने म असुिवधा ह।’’
‘‘अपनी मातृभाषा जानने म िकसी कार क शम कसी! वा तव म, यह मेरा गौरव और अिधकार ह। म
अं ेजी म तभी बोलती , जब कोई क ड़ न समझ सकता हो।’’
हवाई अ पर लगी कतार आगे बढ़ने लगी और म अपने अतीत से वतमान म लौट आई। मुझसे आगे खड़ी
दोन मिहलाएँ आपस म कानाफसी करते ए कह रही थ , ‘‘अब इसे दूसरी पं म भेजा जाएगा। हम इसे बड़ी
देर से समझाने क कोिशश कर रही थ , लेिकन इसने हमारी बात सुनने से इनकार कर िदया।’’
प रचा रका को मेरा बोिडग पास िदखाने का नंबर आया तो मने देखा िक वे दोन मिहलाएँ दूर खड़ी होकर मेर
साथ होनेवाले यवहार का य देखने क ती ा कर रही थ । प रचा रका ने मेरा पास देखा और चहकते ए
बोली, ‘‘आपका पुनः वागत ह! हम िपछले स ाह िमले थे, नह ?’’
“हाँ।” मने उ र िदया।
वह मुसकराते ए अगले या ी क ओर बढ़ गई।
घटना को नजरअंदाज करने क नीयत से म उन मिहला से आगे िनकल गई, लेिकन तभी मने अपना इरादा
बदला और वापस आ गई। मने उनसे पूछा, “कपया आप मुझे यह बताइए िक आपने कसे सोचा िक म िबजनेस
ास का िटकट नह खरीद सकती? अगर सचमुच मेर पास वह नह होता तो भी आपको मेर खड़ होने का
थान बताने का या अिधकार था? या मने आपसे काई सहायता माँगी थी?’’
वे अवाक होकर मुझे देखने लग ।
‘‘आपने ‘कटल ास’ श द का योग िकया। ास का अथ ब त धना य होना नह ह।’’ म उनक होश
िठकाने लगाने क िलए अपने आपको रोक नह पाई और बोलती गई, ‘‘पैसे कमाने क दुिनया म अनेक गलत
रा ते ह। आप सुख-सुिवधा खरीदने क िलए अमीर हो सकती ह, लेिकन वही पैसा आपक ास को प रभािषत
नह कर सकता और न ही आपको उसे खरीद पाने क मता दान करता ह। मदर टरसा अ यंत उ च ेणी क
मिहला थ । इसी कार मंजुल भागव और भारतीय मूल क अनेक महा गिणत ह। यह संक पना अब पुरानी हो
चुक ह िक अमीर होने से आपका दजा भी ऊचा हो जाता ह।’’
उ र क ती ा िकए िबना म आगे बढ़ गई।
लगभग आठ घंट बाद म अपने गंत य थल पर प च गई। काय िदवस होने क कारण म अिवलंब अपने
कायालय क िलए िनकल पड़ी, य िक वहाँ मेरा सारा िदन अनेक बैठक म य त रहने वाला था।
कछ घंट बाद म अ यिधक थक गई, अतः मने अपने काय म िनदेशक से अनुरोध िकया िक िआखरी मीिटग
वह खुद सँभाल ले।
‘‘मुझे अ यंत खेद सिहत कहना पड़ रहा ह िक उस चचा म अपक उप थित अिनवाय ह।’’ उसने उ र
िदया, ‘‘हमारी बैठक संगठन क मुख कायकारी अिधकारी क साथ ह और वह आपसे य गत तौर पर
िमलना चाहती ह। वह िपछले कछ महीन से मेर संपक म ह और य िप उ ह हमार िनणय से अवगत करा िदया
गया ह, िफर भी वह महसूस करती ह िक उनसे िमलने क बाद आपका िनणय बदल जाएगा। मने उ ह सूिचत
कर िदया ह िक आप चाह िकसी से भी िमल, यह िनणय उलटा नह जा सकता; िकतु उ ह मेरी बात पर यक न
नह ह। अतः म आपसे िनवेदन करती िक एक बार उनसे िमलकर इस अ याय को समा कर द।’’
मेर िलए यह थित कोई नई नह थी, अतः म िमलने क िलए सहमत हो गई।
समय बड़ी तेजी से िनकला जा रहा था और मुझे अभी उस िदन क अंितम बैठक म जाना था। तभी मुझे एक
आपातकािलक फोन िमला।
मने काय म िनदेशक से कहा, ‘‘बैठक शु करो, म थोड़ी देर म आ जाऊगी।’’
पं ह िमनट बाद जब मने स मेलन क म वेश िकया तो तुित क म य म उ ह मिहला को देखा, जो
मुझे हवाई अ पर िमली थ । उ ह साधारण व म देखकर म चिकत रह गई। एक ने खादी क साधारण
साड़ी और दूसरी ने मामूली सलवार-कमीज पहन रखी थी। व ढ़ क ोतक ह, इसक सा ात् दशन मुझे उस
िदन ए। जैसे िववाह क अवसर पर िकसी से बिढ़या िस क पहनने क अपे ा क जाती ह, सामािजक
कायकता से हमेशा अिनवायतः सादे व म िदखाई देने क उ मीद क जाती ह। जैसे ही उनम से एक ी
ने मुझे देखा, एक िविच खामोशी छा गई; परतु मने उसे पल भर म अनदेखा करते ए तुित जारी रखी, मानो
कछ आ ही न हो।
“इस गाँव म मेर कॉफ क बागान ह। बागान क सभी कमचा रय क ब े समीप क सरकारी कल म जाते
ह। उनम से कई कशा एवं बुिद मान ह; परतु कल म सुिवधाएँ नह ह। कल क इमारत क छत और यहाँ
तक िक पीने का व छ जल भी नह ह। न वहाँ बच ह, न साधन और न ही पु तकालय। आप कल म ब च
को वयं देख सकती ह। ... ”
मने वा य को पूरा करते ए कहा, ‘‘लेिकन िश क भी नह ह।’’
उसने मुसकराते ए िसर िहलाया। ‘‘हम यास (फाउडशन) से िनवेदन करते ह िक वह उदारतापूवक
िव ालय म एक सभागार सिहत उिचत सुिवधाएँ उपल ध कराए, तािक गरीब ब े बड़ कल म ा होनेवाली
आव यक सुिवधा का आनंद ले सक।’’
मेरी काय म िनदेशक कछ बोलने को ई, तभी मने उसे इशार से रोक िदया।
मने पूछा, ‘‘ कल म कल िकतने ब े ह?’’
‘‘लगभग 250।’’
‘‘उनम से बागान कमचा रय क िकतने ब े ह?’’
‘‘सभी।’’ उसने बड़ गव से बताया िक मेर िपताजी जब िवधायक थे, तभी उ ह ने िव ालय क वीकित ली
थी।
‘‘हमारा फाउडशन कवल उ ह ज रतमंद क सहायता करता ह, िजनका कोई देविपता (गॉडफादर) या
देवमाता (गॉडमदर) नह ह। सड़क पर रहनेवाले गृह-िवहीन मनु य या िदहाड़ी िमक क िवषय म सोिचए।
उनम से अिधकतर का कोई नह ह, जो मुसीबत म उनक मदद कर सक। हम ऐसे लोग क ब च क सहायता
करते ह। बागान क कमचारी आपक कारोबार क समृ म सहायक ह और उसक बदले उनक सहायता का
भार आप वयं वहन कर सकते ह। व तुतः यह सब करना आपका ही दािय व ह। उनक सहायता करने से आगे
चलकर आपको वयं सहायता ा होगी; परतु कवल वंिचत , उपेि त क संपूण िहत हतु चलाई जा रही
प रयोजना क सहायता करना फाउडशन क आंत रक नीित ह। संभव ह िक यह िवचार ‘कटल ास’ क
समझ से पर हो।’’
दोन याँ हत भ होकर एक-दूसर का मुँह ताकने लग ।
मने अपनी काय म िनदेशक क ओर देखकर कहा, ‘‘म तु ह एक कहानी सुनाना चाहती ।’’
म उसक हरान-परशान चेहर को देखकर समझ सकती थी िक इतनी गंभीर चचा क बीच कहानी?
मने कहानी शु क , ‘‘जॉज बनाड शा अपने समय क महा िचंतक थे। एक िदन एक ि तानी ब म
उनक स मान म राि भोज का बंध िकया गया। ब क िनयमानुसार पु ष क िलए सूट और टाई पहनना
अिनवाय था। संभवतः उन िदन ास क यही प रभाषा थी।
‘‘बनाड शॉ अ ुत य थे। वे ब म अपनी सामा य एवं आक मक वेशभूषा म पधार। उ ह देखकर
ारपाल ने बड़ी िवन ता से कहा, ‘ मा कर महोदय, म आपको प रसर म वेश करने क अनुमित नह दे
सकता।’
“‘ य नह ?’
“‘आप ब क स कोड का पालन नह कर रह ह, सर।’
“बनाड शॉ ने पूणतया उिचत प ीकरण देते ए कहा, ‘वह तो ठीक ह, परतु यह भोज मेर स मान म
आयोिजत िकया गया ह। अतः यहाँ मह व मेर श द का ह, मेर प रधान का नह ।’
“ ‘चाह जो भी हो सर, म आपको इन कपड़ म अंदर नह जाने दूँगा।’
“ ‘उ ह ने ारपाल को सहमत करने का भरपूर यास िकया, परतु वह टस-से-मस न आ। अतः शॉ वापस
अपने घर गए और उिचत कपड़ पहनकर ब म िव ट ए।
‘‘थोड़ी देर म क भर गया और लोग उनक भाषण क ती ा म बैठ गए। वे ोता को संबोिधत करने हतु
उठ, परतु पहले अपना कोट और टाई उतारकर एक करसी पर रख िदया। उ ह ने घोषणा क , ‘आज म कछ
बोलने नह जा रहा।’
“ ोता म अ यािशत बड़बड़ाहट शु हो गई। उ ह य गत प से जाननेवाले कछ लोग ने उनसे
उनक च र क िवपरीत यवहार का कारण पूछा।
‘‘शॉ ने कछ देर पहले ई घटना को उ धृत करते ए कहा, ‘जब मने कोट और टाई पहनी, तभी मुझे अंदर
आने क अनुमित िमली। मेरा मन मेर कपड़ से कदािप भािवत नह होता। इसका अथ यह ह िक आप सबक
िलए, जो इस ब क संर क ह, मेर िवचार क अपे ा मेर कपड़ अिधक मह वपूण ह। अतः मेरा थान मेर
कोट और टाई को लेने दीिजए।’ इतना कहकर वे कमर से बाहर िनकल गए।’’
मने खड़ होते ए कहा, ‘‘बैठक समा ई।’’ सरसरी तौर पर नम कार करक म वापस अपने क म लौट
गई।
मेरी काय म िनदेशक ने मेरा अनुसरण िकया, ‘‘ कल क िवषय म आपका िनणय सही था। परतु दूसरी
कहानी या ह और इस समय उसक या ासंिगकता थी? यह कटल- ास िबजनेस या ह? म कछ भी नह
समझ सक !’’
उसक वािजब संदेह पर म मुसकराई—‘‘कवल कटल ासवाले ही समझगे िक पीछ या आ। तुम उसक
िवषय म िचंता मत करो।’’

6
एक अिलिखत जीवन
स 1943 म मेर िपताजी महारा और कनाटक रा य क सीमा पर थत चंदागढ़ नामक गाँव क छोटी सी
िड पसरी म युवा िचिक सक क प म िनयु थे। वहाँ वष म आठ महीने िनरतर वषा होती रहती ह और शेष
चार महीन म वृ क कटाई का काय होता ह। गाँव चार ओर से घने जंगल से िघरा था, िजसक आबादी
नग य थी। चूँिक ि िटश अिधकारी जंगल म िशकार करने जाते थे, अतः उनक सुिवधा क िलए एक छोटा
ीिनक खोला गया था। कोई भी ामीण वहाँ नह जाता था, य िक वे थानीय दवा एवं जड़ी-बूिटय को
ाथिमकता देते थे। इस तरह उस ीिनक म मेर िपता को छोड़कर कोई और य नह था।
अपने थानांतरण क एक स ाह प ा मेर िपताजी वहाँ ऊबने लगे। उ ह पुणे क जीवंत शहर से उठाकर
इस िनजन एवं एकांत थान पर पटक िदया गया था। बाहरी दुिनया से उनका कोई संपक नह था। उनका
एकमा साथी दीवार पर टगा कलडर था। कभी-कभी वे टहलने क िलए बाहर िनकल जाते; परतु जंगल म बाघ
क गुराने का शोर सुनकर डर जाते और यथाशी अपने ीिनक म लौट आते थे। उनक िलए रात म डरकर
बाहर न िनकलना कोई आ यजनक बात नह थी, य िक जमीन पर अकसर साँप रगते िदखाई देते थे।
सिदय क एक सुबह अपने मु य ार क बाहर उ ह ने िकसी क जोर-जोर से साँस लेने क आवाज सुनी।
उ ह ने िह मत करक िखड़क से झाँका। उ ह ने देखा िक उनक बरामदे म एक मादा शेरनी अपने ब च क साथ
पाँव पसार ऊघ रही थी। डर क मार िपताजी ने सारा िदन ार नह खोला। दूसर िदन उ ह ने कवल िखड़क से
झाँककर देखा तो बरामदे क छत से साँप को र सय क तरह लटकते पाया।
मेर िपताजी यह य देखकर हरान रह गए और सोचने लगे िक शायद िकसी गलती क सजा क तौर पर
उनका इस गाँव म ांसफर िकया गया ह। इसक बावजूद वे थित को बदल नह सकते थे।
एक रात ज दी भोजन करक वे करोिसन लप क रोशनी म िकताब पढ़ रह थे और बाहर भीषण वषा हो रही
थी।
अचानक उ ह ने दरवाजे पर द तक सुनी। वे चिकत होकर सोचने लगे, ‘इस समय कौन हो सकता ह?’
ार खोलने पर ऊनी कबल म िलपट चार लठत को सामने खड़ा पाया। वे मराठी म बोले, ‘‘डॉ टर साहब,
अपना बैग उठाइए और फौरन हमार साथ चिलए।’’
मेर िपताजी को उनक देहाती मराठी साफ समझ म नह आई। वे िवरोध करते ए बोले, ‘‘ ीिनक बंद हो
चुका ह और जरा समय तो देिखए!’’
वे लोग कछ भी सुनने को तैयार नह थे और उ ह धकलते ए चीखकर बोले, “आपक भलाई इसी म ह िक
चुपचाप हमार साथ चिलए”
वे गूँगे मेमने क तरह उनक पीछ जाकर ती ारत बैलगाड़ी म बैठ गए। घनी काली रात और मूसलधार वषा
क बीच वे िकसी अनहोनी क आशंका से भयभीत थे। उ ह महसूस आ िक या ा म समय लग सकता ह।
अपने बचे-खुचे साहस क साथ उ ह ने पूछा, ‘‘तुम लोग मुझे कहाँ ले जा रह हो?’’
िकतु कोई उ र नह िमला।
कछ घंट बाद बैलगाड़ी एक थान पर प चकर खड़ी हो गई। लालटन क रोशनी म एक आदमी उ ह लेकर
चल पड़ा। िपताजी ने आस-पास नजर दौड़ाई तो धान क खेत क बीच उ ह एक घर िदखाई पड़ा। घर म वेश
करते ही एक मिहला का वर सुनाई िदया, ‘‘आइए-आइए, मरीज इधर इस कमर म ह।’’
उस गाँव म आने क बाद पहली बार उ ह अपना नर िदखाने का मौका िमला। रोगी लगभग सोलह वष क
एक युवा लड़क थी। उसे सव वेदना हो रही थी और उसक समीप एक बूढ़ी ी खड़ी थी। उसे देखकर
िपताजी क चेहर का रग उड़ गया। उ ह ने दूसर कमर म जाकर उसक प रवारवाल को समझाया, ‘‘देिखए, म
पु ष क िचिक सा करनेवाला डॉ टर और मुझे िडलीवरी कराने का कोई िश ण नह िमला ह। आपको हर
हाल म िकसी अ य य को बुलाना होगा।’’
प रवार कछ भी सुनने को तैयार नह था। ‘‘अ य कोई िवक प नह ह। जो भी ज री हो, सब आपको ही
करना होगा और हम आपको अ छा पैसा दगे। ब चा जीिवत या मृत िकसी भी दशा म पैदा हो, परतु लड़क को
ज र बचाना होगा।’’
िपताजी ने तक देते ए कहा, ‘‘मेरी पैसे म कोई िच नह ह। मेहरबानी करक अब आप मुझे जाने दीिजए।’’
लठत ने िपताजी को लड़क क कमर म धकला और दरवाजे पर बाहर से ताला लगा िदया। िपताजी डर गए।
वे जान गए िक अब कोई चारा नह ह। उ ह ने कछ सूितय म अपने मेिडकल कॉलेज क ोफसर क साथ
सहायक क तौर पर काम िकया था। इससे अिधक कछ नह । वे नवस होकर अपने अतीत क अनुभव को याद
करने लगे और उनक िचिक सा-भावना जाग उठी।
कमर म कोई मेज भी नह थी, अतः उ ह ने बूढ़ी औरत को पुआल क ग र लाने का संकत िकया, तािक
अ थायी मेज बनाई जा सक। उसक बाद उ ह ने अपने बैग से रबड़ क शीट िनकालकर पुआल क ग र पर
डाल दी।
उ ह ने लड़क को उसक ऊपर लेटने और बूढ़ी औरत को पानी गरम करने क िहदायत दी। तब तक मरोड़
समा हो चुक थी और लड़क पसीने से बुरी तरह भीग चुक थी। यही दशा डॉ टर क भी थी। लड़क ने रोते
ए िनरीह भाव से कहा, “आप मत बचाइए मुझे। म सारी रात इतनी पीड़ा नह सह सकती।”
‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘म यहाँ क एक बड़ जम दार क बेटी ।’’ बाहर इतनी तेज बा रश हो रही थी िक उनक िलए अंदर कछ
सुन पाना किठन था—‘‘चूँिक हमार गाँव म कोई हाई कल नह था, मेर माता-िपता ने मुझे पढ़ने क िलए दूर क
क बे म भेज िदया। वहाँ मुझे अपनी क ा क एक सहपाठी से यार हो गया। पहले मुझे मेर गभवती होने का पता
नह चला, परतु ात होने पर मने उसक सूचना गभ थ ब े क िपता को दी, जो त काल भाग खड़ा आ।
घटना क जानकारी मेर प रवारवाल को होने तक काफ देर हो चुक थी। इसिलए मेर घरवाल ने भगवा भरोसे
मुझे इस अ ात थान पर भेज िदया, तािक िकसी को कछ पता न चले।’’
तेज मरोड़ उठने क कारण वह खामोश हो गई।
कछ िमनट बाद उसने कहा, ‘‘डॉ टर, मुझे इस बात का प ा यक न ह िक ब चा पैदा हो जाने क बाद मेर
प रवारवाले उसे मार डालगे और मेरी जमकर िपटाई करगे।’’ उसक आँख भर आई तो उसने िपताजी का हाथ
थामते ए कहा, ‘‘मेहरबानी करक मुझे या मेर ब े को बचाने क कोिशश मत क िजए। मुझे मरने क िलए यहाँ
अकला छोड़ दीिजए। बस, म यही चाहती ।’’
िपताजी को शु म कछ समझ नह आया िक उसक बात का या जवाब द। त प ा उ ह ने उससे बड़ी
सहजता से कहा, ‘‘म एक डॉ टर और यह जानते ए िक म मरीज को बचाने क िलए कछ कर सकता ,
उसे िकसी भी थित म मरने नह दे सकता। मुझे अपना कत य पूरा करने म हतो सािहत मत करो।’’
लड़क चुप हो गई।
सव-पीड़ा ती , डरावनी एवं लंबी थी, िफर भी िपताजी बूढ़ी ी क सहायता से िडलीवरी कराने म सफल
रह। युवती उस यातना से त और पसीने से सराबोर हो गई। िनराशा म उसने अपनी आँख बंद कर ल और
यहाँ तक िक उसने ब े को देखने क इ छा भी य नह क । सकचाते ए कवल इतना ही पूछा, ‘‘लड़का ह
या लड़क ?’’
ब े क जाँच करक िपताजी ने उ र िदया, ‘‘लड़क ह।’’
वह रोते ए बोली, ‘‘ह भगवा ! यह भी लड़क ह। प रवार क पु ष क र ताड़ना क कारण इसका
जीवन भी मेर जैसा ही होगा। और इसका तो कोई िपता भी नह होगा।’’ वह जोर-जोर से सुबकने लगी। परतु
िपताजी ब े क साथ य त थे, अतः उसक बात नह सुन सक।
अचानक उसने महसूस िकया िक कछ गड़बड़ ह, ‘‘डॉ टर, ब ची रो य नह रही ह?’’ कोई जवाब न
पाकर वह बोली, ‘‘यिद यह जीिवत न हो तो मुझे खुशी होगी। यह एक अिभश जीवन जीने से बच जाएगी।’’
िपताजी ने ब े को उलटा लटकाकर हलक सी थपक दी और त काल ब ची क रोने क तेज आवाज से
कमरा भर गया। उन लोग ने ार खोल िदया और िपताजी से बोले, ‘‘डॉ टर, जाने क िलए तैयार हो जाइए।
हम आपको वापस प चा दगे।’’
िपताजी ने रोगी को अ छी तरह साफ िकया और उपकरण एकि त करक अपना बैग बंद कर िलया। बूढ़ी
मिहला कमर क सफाई करने लगी। िपताजी ने दुःखी लड़क से कहा, “यिद तु हारी इ छा हो तो तुम इस ब े
को लेकर यहाँ से भाग जाओ। पुणे जाकर वहाँ पुणे निसग कल क बार म पूछना। वहाँ तु ह गोखले नामक एक
क िमलेगा और उससे कहना िक आर.एच. ने तु ह भेजा ह। वह निसग कोस म वेश िदलाने म तु हारी
सहायता करगा। कछ ही समय म तुम नस बन जाओगी और अपना वतं जीवन जी सकोगी, इस यो यता क
साथ िक तु हार अंदर अपनी ज रत को पूरा कर पाने क मता ह। अपनी बेटी को गव से बड़ा करो। इसे कह
भी याग देने क िह मत न करना, वरना यह भी अपना जीवन तु हारी तरह क ट म िबताएगी। तु हार िलए यही
मेरा सव म सुझाव ह।’’
‘‘लेिकन डॉ टर, म पुणे जाऊगी कसे? म तो यह भी नह जानती िक वह ह कहाँ!’’
‘‘यहाँ से िनकट थ शहर बेलगाम जाना और वहाँ से पुणे जानेवाली बस म बैठ जाना।’’
िपताजी उसे अलिवदा कहकर कमर से बाहर आ गए।
एक बुजुग य ने उ ह सौ पए िदए, ‘‘डॉ टर, िडलीवरी म लड़क क मदद करने िलए यह आपक
फ स ह। म आपको चेतावनी देता िक यहाँ जो कछ भी आ, उसक िवषय म एक श द भी मत बोलना। यिद
आपने मुँह खोला और हम उसक भनक लग गई तो आपका िसर धड़ से अलग कर िदया जाएगा।’’
िपताजी ने अपनी मौन वीकित दी। तभी अचानक वह एक ण क िलए शांत हो गए। उ ह ने कहा, ‘‘ मा
क िजएगा, शायद म अपनी कची कमर म भूल आया । सुबह ीिनक म मुझे उसक ज रत होगी।’’
वे पीछ मुड़ और वापस कमर म दािखल हो गए, जहाँ सूता अपनी सोती ई नवजात को डबडबाई आँख से
िनहार रही थी। जैसे ही वृ मिहला क पीठ मेर िपताजी क ओर ई, उ ह ने पए लड़क को थमा िदए। ‘‘मेर
पास इस समय बस, इतना ही ह। जैसे मने तु ह समझाया ह, उसी तरह इस धन का उपयोग करना।’’
उसने पूछा, ‘‘डॉ टर, आपका नाम या ह?’’
‘‘मेरा नाम डॉ. आर.एच. कलकण ह; परतु सभी मुझे ‘आर.एच.’ कहते ह। साहसी बनो बेटी, गुडबाय एंड
गुडलक!’’
िपताजी वहाँ से वापस चल पड़। वापसी क या ा भी पहले जैसी ही दुःखद थी। अंततः वे भोर म घर प च
गए। वे बुरी तरह थक चुक थे, अतः लेटते ही उ ह न द ने अपने आगोश म ले िलया। अगली सुबह उनका मन
अपने पहले मरीज और पहली कमाई क इद-िगद च र काट रहा था। उ ह अपनी कमजो रय का ान था,
अतः वह यो य सूित रोग िवशेष (गायनेकोलॉिज ट) बनने क बार म िवचार करने लगे। बहरहाल, धन क
ता कािलक कमी क कारण उ ह अपना िवचार कछ समय क िलए थिगत करना पड़ा।
कछ माह प ा उनका िववाह हो गया और उ ह ने अपने गायनेकोलॉिज ट बनने क सपने को प नी क साथ
साझा िकया।
समय तेजी से बीत रहा था। उनका महारा एवं कनाटक क िभ -िभ थान पर थानांतरण िकया गया।
इस बीच उनक चार ब े हो गए। बयालीस वष क उ तक प चते-प चते दंपती ने आगे क पढ़ाई हतु
सावधानीपूवक पया धन बचा िलया और िपताजी ने अपनी इ छा पूरी करने का िनणय कर िलया। अतः वे
प रवार को बली म छोड़कर ए मोर मेिडकल कॉलेज म वेश लेने हतु चे ई चले गए और वहाँ
गायनेकोलॉिज ट सजन बनने का अपना सपना पूरा िकया। वे अपने समय क दुलभ पु ष गायनेकोलॉिज ट म से
एक थे।
वे वापस बली चले गए और कनाटक मेिडकल कॉलेज म ोफसर क प म काम करने लगे। दीन-हीन क
ित उनक स दयतापूण यवहार एवं िजन लड़िकय व मिहला का उ ह ने इलाज िकया था, उनक ित
वा तिवक िचंता ने उ ह एक डॉ टर और िश क दोन प म अ यंत लोकि य बना िदया। उनक वही िचंता
अपनी पुि य को िश ा क े म मनपसंद िवषय चुनने क अनुमित दान करने म ितिबंिबत ई, जो िक उन
िदन दुलभ थी।
िपताजी अनी रवादी (ना तक) थे। वे अकसर कहते थे, ‘ई र िगरजाघर, मसिजद या मंिदर म नह रहते।
म उ ह अपने सम त मरीज म देखता । जब सव क दौरान िकसी ी क मृ यु होती ह तो डॉ टर क िलए
वह एक रोगी क ित ह, परतु एक ब े हतु वह जीवनपयत माँ क ित ह। मुझे बताइए, माँ का थान कौन ले
सकता ह?’
रटायर होने क बावजूद सीखने क ित िपताजी क ललक कभी कम नह ई और वे सदैव सि य रह।
एक िदन िकसी अ य शहर म वे िचिक सा स मेलन म भाग लेने गए। वहाँ वे तीस वष या एक मिहला डॉ टर
से िमले। वह ामीण े म अपने अनुभव क आधार पर मामल को तुत कर रही थी। िपताजी को उसका
काय रोचक लगा, अतः वह तुित क प ा उसे अपने मन क बात बताने गए। उ ह ने कहा, ‘‘डॉ टर,
आपका शोध उ क ट ह। म आपक काम से अ यंत भािवत ।’’
उसने िपताजी को ध यवाद िदया।
तभी बाहर से िकसी ने मेर िपताजी को आवाज दी, ‘‘आर.एच., हम लोग लंच करने हतु आपक ती ा कर
रह ह। या आपको आने म अिधक समय लगेगा?’’
डॉ टर युवती ने पूछा, ‘‘डॉ टर साहब, आपका या नाम ह?’’
‘‘डॉ. आर.एच. कलकण या आर.एच.।’’
पल भर क चु पी क बाद उसने पूछा, ‘‘ या आप स 1943 म चंदागढ़ म थे?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘डॉ टर, म यहाँ से लगभग चालीस िकलोमीटर दूर एक गाँव म रहती । या म आपसे उस गाँव क अभी,
इसी समय संि या ा करने क ाथना कर सकती ?’’
िपताजी उस आक मक िनमं ण क िलए तैयार नह थे। वह उ ह अपने घर य बुला रही थी?
उ ह ने मामले को समा करने क उ दे य से उ र िदया, ‘‘संभवतः िकसी अ य समय, डॉ टर।’’
परतु वह डॉ टर युवती अपनी बात पर अड़ी रही, ‘‘आपको अव य चलना होगा, लीज! इसे आप ऐसे
य क ाथना समझ, जो वष से आपक ती ा कर रही ह।’’
मेर िपताजी ने उसक रह यमय उ र से परशान होकर पुनः इनकार कर िदया, परतु वह उनक साथ बहस
करती रही। उसक आँख म अपन व क चमक थी, इसीिलए वह इतनी उतावली थी। अंततः उ ह ने हार मान
ली और उसक साथ गाँव क िलए चल पड़।
रा ते म दोन ने िवचार का आदान- दान िकया और उसने अपने काम एवं उपल धय का बड़ा जोशीला
वणन िकया। वे घर क िनकट प चे तो िपताजी ने महसूस िकया िक उसका घर एक निसग होम था। वे सामने
क दरवाजे से दािखल ए और सामने िलिवंग म म एक अधेड़ मिहला को खड़ी देखा।
उनक आगे चल रही युवती ने कहा, “माँ, यह डॉ टर आर.एच. ह। या आप इतने वष से इ ह क ती ा
कर रही थ ?”
मिहला ने आगे आकर अपना म तक िपताजी क चरण पर रख िदया। उ ह ने महसूस िकया िक उनक पैर
मिहला क आँसु से गीले हो गए ह। बड़ा िव मयकारी य था। कौन थ ये याँ? िपताजी िककत यिवमूढ़
हो गए। तेजी से आगे क ओर झुक और मिहला को कध से पकड़कर अपने हाथ से उठा िलया।
‘‘डॉ टर, संभवतः आपको मेरी याद नह , परतु म आपको कभी नह भूल सकती। अव य आपने अपनी
पहली िडलीवरी मेरी ही कराई होगी।’’
िपताजी अब भी उसे नह पहचान पाए।
“ब त समय पूव आप महारा एवं कनाटक क सीमा पर बसे एक गाँव म रहते थे। एक रात को मूसलधार
वषा क दौरान आपने एक अिववािहत युवती क सव म उसक सहायता क थी। वह युवती म ही । कमर म
िडलीवरी टबल नह थी। आपने धान क ग र क तह लगाकर एक कामचलाऊ मेज तैयार क । कई घंट बाद
मने एक लड़क को ज म िदया।’’
मृितय क िबजली क धी और उस रात का येक य िपताजी क आँख क आगे सजीव हो उठा। उ ह ने
कहा, ‘‘सचमुच, म तु ह पहचान गया! वह म य राि थी और मने तु ह अपनी नवजात पु ी क साथ पुणे जाने
का सुझाव िदया था। म सोचता िक उस समय म भी तु हारी ही भाँित भयभीत था।’’
“मेर प रवारवाल ने िडलीवरी हतु आपको सौ पए िदए थे। उन िदन वह ब त बड़ी रािश थी, तब भी आप
वह मुझे देकर चले गए।’’
‘‘हाँ, मेरा मािसक वेतन उस समय पचह र पए था।’’ मेर िपताजी ने मुसकराते ए कहा।
‘‘आपने अपना अंितम नाम बताया था, परतु वषा क शोर क कारण म ठीक से सुन नह सक । आपक
सलाह मानते ए म पुणे गई, आपक िम गोखले से िमली और नस बन गई। वह सब अ यंत किठन था; परतु म
अपनी बेटी को अपने दम पर पालने-पोसने म स म हो गई। म अपनी बेटी को गायनेकोलॉिज ट बनाना चाहती
थी। सौभा यवश उसने भी मेरा व न साझा िकया। आज मेरी बेटी डॉ टर ह और एक डॉ टर से ही उसका
िववाह भी आ ह। दोन एक ही थान पर काम करते ह। एक बार मने आपको खोजने म महीन लगाए, परतु
भा य ने साथ नह िदया।
“उसक बाद हमने सुना िक स 1956 म रा य पुनगठन क बाद आप कनाटक चले गए। इस बीच गोखले
क भी मृ यु हो गई और आपको खोज पाने क सारी आशाएँ समा हो गई। मने भगवा से ाथना क िक वे
एक बार मुझे आपसे िमला द, तािक सही समय पर मागदशन हतु म आपको ध यवाद दे सक।’’
िपताजी को महसूस आ मानो वह बॉलीवुड क िकसी िफ म क पा ह और जीवन क अप रिचत रह य से
िघर ए ह। कछ क ण श द एवं उ साहव न ने एक युवती क िजंदगी बदल दी।
दोन ने अपने हाथ को एक साथ मजबूती से पकड़ िलया और बोल , ‘‘हम आपक अ यंत आभारी ह,
डॉ टर साहब! मेरी बेटी अपने निसग होम क उ ाटन हतु आपको यहाँ आमंि त करना चाहती थी, परतु उस
समय आपसे संपक न हो पाने क कारण हम बड़ी िनराशा ई। समय बीतने क साथ निसग होम अब ब त
अ छा चल रहा ह।’’
िपताजी ने अपनी नम आँख प छ और निसग होम का नाम जानने हतु आस-पास देखा। उ ह ने अपनी दािहनी
ओर देखा तो वयं उनक ि नामप पर पड़ी, िजसम िलखा था—‘आर.एच. डाय नॉ टक’।

7
घर जैसी कोई जगह नह
इ फोिसस फाउडशन अनेक कार क िनमाण प रयोजना म कायरत ह, जैसे गरीब रोिगय एवं उनक
तीमारदार हतु धमशाला बनाना, सुदूर े म ब च क िलए िव ालय, समु ी तूफान तथा बाढ़ जैसी ाकितक
आपदा से पीिड़त- भािवत हजार लोग हतु घर और हमार देश म व छता को ो सािहत करने क यास क
प म िव ालय एवं सावजिनक उपयोग हतु शौचालय का िनमाण शािमल ह।
उसक थापना क समय से ही म उसे अपने िनजी कायालय सिहत आ मिनभर बनाना चाहती थी; परतु
ारिभक अविध म येक िव वष क अंत म हमार बक खाते म वािषक िनधीयन क बावजूद 5,000 पए से
अिधक नह होते थे। दूसर क सहायता करने क हमारी इ छा-श ने अपने िनजी प रसर क िनमाण को
यूनतम ाथिमकता दी। फाउडशन अब भी अ पाविधक साविध जमा करता था और हम याज सुिन त करने
हतु अपनी नकदी क वाह को सावधानीपूवक यव थत करते थे तथा कछ ही वष म बड़ी रािश एक करने म
सफल रह।
एक िदन मुझे बगलु क लोकि य उपनगर जयनगर म एक पुरानी इमारत सिहत जमीन क सुंदर लॉट क
िब हतु उपल ध होने क जानकारी िमली। हमारा बचाया गया याज भूिम क य हतु पया था। चूँिक
पुरानी इमारत िकसी कायालय क आव यकता क िलए उपयु नह थी, उस िबंदु पर हमार िलए उसे
िगराना और अपनी िनजी िब डग बनाना आव यक था। अतः हमने पया धन क यव था होने तक भूिम को
यथाव छोड़ देने का िनणय िल या ।
अगले िव वष म भी हमार बक खाते म 5,000 से भी कम पए थे। हालाँिक कछ वष म हमने थोड़ा
याज बचा िलया था, िफर भी इमारत क िनमाण क लागत अिधक होने क कारण कायालय का िनमाण एक
व न ही बना रहा।
साल-दर-साल गुजरते गए और अंततोग वा वष 2002 म िनमाण ारभ करने हतु फाउडशन ने पया धन
बचा िलया था। म स थी। मेरा सपना पूरा होने को था। आगे कदम बढ़ाते ए मने एक वा तुकार से संपक
करक उसे हमार िलए सादा लान बनाने का िनदश िदया।
कछ िदन बाद मुझे म य-पूव क एक देश से वहाँ क मिहला संगठन को संबोिधत करने का आमं ण िमला।
मने उसे वीकार करने का िनणय िलया, य िक उसक त काल बाद मेरी कछ वा ाएँ दुबई एवं कवैत म
तािवत थ । म अपने सभी काय म एक ही दौर म पूर कर लेना चाहती थी, तािक िटकट क लागत क प
म कछ धन बचा सक।
म ज द ही अपनी मंिजल क ओर चल पड़ी। सभी दौर क तरह इसम भी अनेक बैठक एवं वा ाएँ
पं ब थ । वहाँ ऐसे भी काय म थे, िजनम े क जानी-मानी ह तय क भाग लेने क अपे ा थी। ऐसे
लोग से िमलकर मुझे साहस िमला, जो भारत म अपना घर-बार छोड़कर िवदेश म जा बसे और अनेक
मु कल क बावजूद अपनी सं कित व िन ा बनाए ए थे। हमने जो काम िकए और जो करने क सोच रह
थे, उसक िवषय म लोग ने कभी वा तिवक और कभी थोड़ी अितशयो पूण चचा क ।
अंततोग वा मेर अंितम संभाषण का िदन आया। यह सजीव नाे र एवं चचा का अ छा काय म था।
समारोह क समा पर म अपने होटल जाने को तैयार ई।
िनकलते समय वहाँ रा ते म मुझे कछ औरत िमल और िवन तापूवक बोल , ‘‘मैडम, आप यहाँ कोई चीज
खरीदना पसंद करगी या? यहाँ खरीदारी का अनुभव अ यंत अ ुत ह। शायद आप कछ मोती या सोना
खरीदना चाह?’’
मने उ र िदया, ‘‘नह । लेिकन या यहाँ मेर देखने लायक कोई रोचक चीज ह?’’
औरत थोड़ी देर चुप रहने क बाद अपना िसर िहलाते ए अिभवादन करक आगे बढ़ गई।
तभी मने देखा िक दो औरत मेरी ओर बढ़ी चली आ रही ह। उनम से एक ने धीमी आवाज म कहा, ‘‘मैडम,
हम आपको अपने छोट शरण थल (शे टर) म आमंि त करना चाहती ह। या आप हमारा अनुरोध वीकार
करगी?’’
मने पूछा, ‘‘वहाँ आपक शे टर म या ह?’’
‘‘हम चाहती ह िक आप उसे वयं देख। हम यहाँ अनेक कार क काय करती ह, परतु हम नह मालूम िक
हमारा कौन सा काम आपक िदल को छ जाए।’’
उनक बात गौर करने लायक थ । उनक िवन यवहार ने मेरी उ सुकता बढ़ाई। म राजी हो गई। मने कहा,
‘‘कपया मुझे कछ पल दीिजए। म आपक साथ अभी चलूँगी।’’
म मेजबान का शुि या अदा करक ती ारत औरत क साथ फरती से चल पड़ी। थोड़ी देर बाद हम एक
आवासीय े म थत छोट से घर म प च गए। पहली नजर म मुझे वह एक आउटहाउस जैसा लगा। वेश
करने पर शयन व म मुझे पाँच याँ िदखाई पड़ । उनम से कछ क आँख सूजी ई थ और उनक गाल पर
लाल िनशान थे, िजसे देखकर महसूस आ िक उनका वा य ठीक नह ह या स तो वे कदािप नह ह।
कछ िमनट बाद हम सब बैठ गई।
जो ी मुझे वहाँ ले गई थी, उससे मने पूछा, ‘‘म िकस भाषा म बोलूँ?’’
“िहदी ठीक ह, थोड़ी अं ेजी भी चलेगी।’’
औरत ने अपने-अपने रा य क नाम क साथ अपना प रचय देना शु िकया—एक तिमलनाड, दो आं
देश और एक करल से थी।
मेर साथ कछ खुशगवार वा ालाप क बाद आं देश क नाजनीन ने अपनी कहानी शु क —‘‘मैडम,
वष पहले म करीमनगर िजले म मेड थी और मेरी िववाह यो य तीन बेिटयाँ थ । एक एजट ने बताया िक मुझे
खाड़ी देश म इसी काम का भारत से काफ अिधक पैसा िमल सकता ह। साल म पं ह िदन क छ ी और
एक बार अपने प रवार से िमलने क िलए मु त हवाई या ा क सुिवधा िमलेगी। मने महसूस िकया िक यिद म
यहाँ तीन साल काम क गी तो अपनी बेिटय क शादी क िलए पया धन बचा लूँगी। वही सब तो म करना
चाहती थी। मेरी आिथक तंगी दूर हो जाएगी। मेरा शौहर स जी बेचने का काम करता था। उसने मुझे बार-बार
यक न िदलाया िक वह मेरी गैर-हािजरी म बेिटय क अ छी तरह देखभाल करगा। उसने ज द-से-ज द जाने
और रोजाना संपक करने क िलए मेरी हौसलाअफजाई क । इस तरह छोटी-मोटी बचत से जमा िकए पैसे और
अपने जेवर बेचकर मने पासपोट, वीजा, िकराया और एजट क कमीशन का भुगतान कर िदया।’’
पुरानी याद ताजा होते ही उसक आँख भर आई, ‘‘अलिवदा कहने क व मेरा िदल भारी हो गया और म
सहम गई। मने तो कभी करीमनगर से हदराबाद जैसे बड़ शहर क या ा भी नह क थी। तब म परदेश म
िब कल तनहा सारा इतजाम कसे कर पाऊगी? म अपने प रवार से जुदा कसे रह पाऊगी?
‘‘एजट ने मुझे भरोसा िदलाते ए कहा, ‘िजस प रवार म तुम काम करने जा रही हो, वह बड़ा रहमिदल ह।
तु हारी तरह उनका मजहब भी वही ह। तु ह वहाँ क माहौल म तालमेल िबठाने म यादा व नह लगेगा। मने
उनसे पहले ही बात कर ली ह। वे तु हार साथ प रवार क सद य क तरह पेश आएँगे। अगर तुम वहाँ खुश न
रह सको तो एक साल बाद वापस आ सकती हो और िफर बेशक वापस मत लौटना।’
‘‘एजट क वायदे से मुझे कछ राहत महसूस ई और मने िजंदगी म पहली बार अकले हदराबाद का सफर
िकया और वहाँ से यहाँ आने क िलए हवाई जहाज म बैठ गई।’’
मने उसे टोकते ए पूछा, ‘‘जहाज म तु ह डर नह लगा?’’
थोड़ा सोचकर नाजनीन बोली, ‘‘नह , कतई नह । हवाई जहाज म मेरी जैसी कई बूढ़ी और जवान औरत थ ।
यह जानकर अ छा लगा िक म अकली नह । हवाई अ क बाहर हम सबको एक-एक बुका देकर बस म
बैठने क िहदायत दी गई। गरमी बरदा त से बाहर थी और ऐसा महसूस आ जैसे हम भ ी पर बैठा िदया गया
हो। करीमनगर भारत क सबसे गरम जगह माना जाता ह; लेिकन इस देश क गरमी का तो बयान ही नह िकया
जा सकता। झुलसानेवाली गरमी क बावजूद बस एयरकडीशंड नह थी। एजट क वायदे क मुतािबक हम एक
आरामदेह बस क उ मीद कर रह थे। हमने उस सोच को बस मुहया न होने या राबता कायम न हो पाने क
खामी मानकर खा रज कर िदया। दरअसल हमम से यादातर लोग यह मान रह थे िक इतनी भीषण गरमी क
बाद दि ण भारत क कई शहर क तरह यहाँ भी बा रश होगी और गरमी से राहत िमलेगी।
‘‘एक घंट क या ा क बाद हम एक जगह उतार िदया गया, जहाँ से हम अलग-अलग घर म काम करने
हतु ले जाया गया।
“िजस घर म मुझे ले जाया गया, वह काफ बड़ा, खूबसूरत और वातानुकिलत था। मुझे िकचन क बगल म
एक छोटा सा कमरा दे िदया गया। सबसे पहले म हाउस मैनेजर से िमली, िजसने मेरा पासपोट ले िलया और
घर क साफ-सफाई का सामान देते ए िकसी ऐसी भाषा म कछ कहा, िजसे म समझ नह सक । खुशिक मती
से वहाँ संतोष नामक एक अ य भारतीय मिहला हाउसक पर थी, िजसने अनुवाद करक सबकछ मुझे समझा
िदया, ‘तु हारा काम अभी, इसी व से शु होता ह। पूर घर को अ छी तरह साफ करो। कोई दाग-ध बा नह
रहना चािहए। मैडम को धूल से स त नफरत ह। तु हार खाने-पीने का समय—ना ता सुबह 9 बजे, लंच दोपहर
बाद 3 बजे और िडनर रात 10 बजे ह। इसक अलावा तुम जब भी घर से बाहर जाओगी, हर हाल म बुक म ही
जाओगी।’
‘‘थोड़ा समय मने अपना सामान खोलने और नहाने म लगाया। उसक बाद संतोष से िमली और उसने मुझे
सफाई क सामान को इ तेमाल करने क बार म समझाया। उसने मुझे सफाई क िबजलीवाली मशीन भी िदखाई।
‘‘अगले कछ िदन तक मुझे मकान मालिकन नजर नह आई। वह या तो देश से बाहर गई थी या िकसी अ य
मंिजल पर रहती थी। मेरी बातचीत हमेशा मैनेजर से ही होती थी।
‘‘मेरी और संतोष क दो ती हो गई। एक दोपहर थोड़ी देर क िलए जब हम एकांत म िमले तो उसने मुझसे
पूछा, ‘तुम यहाँ य आई? यहाँ काम करने का माहौल अ छा नह ह। हम सुबह से शाम तक गधे क तरह
काम करते ह और जरा सा भी आराम नह करने िदया जाता। कई बार हम िबना िकसी गलती क मैनेजर क
गु से का िशकार होना पड़ता ह। हालाँिक हम घरलू काम क िलए आए थे, परतु अित र काम का बोझ भी
डाल िदया जाता ह। मुझे देखो, म रसोई म मदद करती , सभी छोट ब च को नहलाती , कपड़ पर ेस
करती और उसक बाद बरतन भी साफ करती । अब वह घर क सफाई क िलए तु ह लाए ह; लेिकन तु ह
इसक अलावा रसोइए क गैर-हािजरी या उसक भाग जाने क हालत म खाना भी बनाना पड़गा।’
‘‘मने ईमानदारी से जवाब िदया, ‘जब तक अ छी तन वाह िमलेगी, यादा काम करना भी पड़ तो या फक
पड़ता ह।’
‘‘संतोष बोली, ‘म भी पहले यही सोचती थी।’ वह दुःखी होकर बोली, ‘हम एक पया भी हमार हाथ म नह
िमलता। मािलक कभी कहता ह िक पैसा बक खाते म जमा करवा िदया गया ह या उसे तु हार प रवार को भेज
िदया गया ह। मुझे यहाँ आए ए एक साल हो गया ह, लेिकन मेरी तन वाह सीधे मुझे कभी नह िमली।’
“ ‘लेिकन हमार एजट ने तो कहा था िक ... ’
“ ‘इस बात से कोई फक नह पड़ता िक एजट कौन ह या उसने कहा या ह। वे सब एक जैसे ह। उ ह ने
हम ठगा ह, अ छी नौकरी और मोटी तन वाह का लालच देकर वे हम यहाँ लाए ह। वे जानते ह िक हम गरीब
लोग ह, अतः जो सपना वे हम िदखाते ह, हम उसपर बड़ी ज दी, िबना कछ जाने-समझे यक न कर लेते ह। वे
जानते ह िक एक बार हम यहाँ फस गए तो वापस लौट पाना मु कल ह। एजट को पता होता ह िक हम यहाँ
एकदम अकले ह। इस देश म हम िकसी आदमी को साथ िलये िबना बाहर भी नह िनकल सकते। मािलक भी
हमारा पासपोट अपने पास रख लेते ह, िजससे इस जगह को छोड़ पाना असंभव हो जाता ह।’
“ ‘यहाँ आने क बाद म पहली बार खौफजदा ई। मेरी समझ म कछ नह आया िक म या क । ‘संतोष,
तुम यहाँ एक साल से रह रही हो। तुम कब वापस जा रही हो? तुम नौकरी छोड़ोगी या कोई और काम
करोगी?’
“ ‘हम यहाँ मािलक क मरजी क िबना न तो नौकरी छोड़ सकते ह, न दूसरा कोई काम कर सकते ह।
यादातर मािलक इसक इजाजत नह देते। इसिलए म वापस जाने क भरपूर कोिशश कर रही ; लेिकन मुझे
िकराए क िलए पैसा और मेरा पासपोट चािहए।’
“ ‘ या तुम पीछ अपने प रवारवाल से बात करती हो?’
“ ‘हाँ, म िच ी िलखकर उसे एजट को देती , लेिकन मुझे नह मालूम िक वह मेर घरवाल तक प चती
ह या नह । आज तक मुझे एक भी जवाब नह िमला ह। एजट मुझे मेर प रवार क बार म जो बताता ह, उसे
कवल सुन भर लेती । मुझे मालूम ह िक उ ह ने मुझे यहाँ फोन करने क कोिशश क थी, लेिकन फोन रसीव
करना इस घर क िनयम क स त िखलाफ ह। मैडम नह चाहत िक उनक लडलाइन पर कोई कमचारी
य गत फोन ले। इसक अलावा, म यह भी जानती िक उनक िलए यहाँ फोन करना आसान नह ह और म
अपनी दुःख भरी दा तान उ ह सुनाना भी नह चाहती। म सुनती िक येक छह महीने बाद एकमु त रकम
उ ह भेजी जाती ह। लेिकन अगर एक बार मुझे िटकट िमल जाए तो म लौट जाऊगी और िफर कभी वापस नह
आऊगी।’
‘‘यह सुनकर मुझे थोड़ी तस ी ई िक उसका प रवार कछ पैसे पा रहा ह। मने पूछा, ‘ या इनक हर महीने
पैसा भेजने क िज मेदारी नह ह?’
“ ‘एजट हमसे यादा होिशयार ह। वे कम-से-कम छह महीने क तन वाह अपने पास बकाया रखते ह।
अगर म यहाँ से वापस अपने देश जाऊ और वापस न लौट तो वह पैसा वे अपने पास रख लगे। कई लोग
अपना बकाया लेने क च र म वापस आ जाते ह और िफर फस जाते ह। यह म जारी रहता ह। हमार जैसी
िव ीय थितवाल क िलए छह महीने क तन वाह िजतनी बड़ी रकम छोड़ पाना आसान नह ह।’
“ ‘तुम कब घर जाने क योजना बना रही हो?’
“ ‘यह मािलक पर िनभर ह। कभी वह कमचा रय को पं ह महीने म भेजते ह और कभी दो साल बाद। म
नह जानती िक वे मुझे वापस भेजने का फसला कब करगे। म अब उनक भाषा समझ सकती , लेिकन यही
जताती , जैसे म कछ नह जानती। मुझे पता चला ह िक मैडम करल म मॉनसून मनाने भारत जा रही ह। चूँिक
म करल से ही आई और थानीय भाषा जानती , इसिलए मैडम ब च क देखभाल क िलए मुझे अपने
साथ ले जाना चाहती ह। वहाँ प चकर म मैडम से कछ िदन क िलए अपने प रवारवाल से िमलने क इजाजत
माँगूँगी और अगर वे इनकार कर दगी तो म वापस नह आऊगी।’ संतोष ने जोर देकर कहा िक ‘म ऐसे मुकाम
पर प च चुक , जहाँ मेर िलए पैसे क ब त यादा अहिमयत नह ह।’
‘‘म उस रात सो नह सक । या एजट ने मुझे धोखा िदया ह? मेर प रवार को वाकई िकतना पैसा िमलेगा?
मेर पास अिधक िवक प न होने क कारण मने तय िकया िक मेरी भलाई इसी म ह िक सबकछ सहते ए काम
जारी रखूँ।
“शु आती कछ ह ते सबकछ ठीक नजर आया। नौकर को बचा आ, लेिकन अ छा खाना िदया जाता था
और मुझे काम क बार म भी कोई िशकायत नह थी। कछ व बाद, खासतौर से मैडम क िहदु तान जाने क
िसलिसले म, मुझसे दूसर काम भी कराए जाने लगे। संतोष भी उनक साथ जाने क तैयारी कर रही थी और मुझे
मालूम था िक वह वापस लौटकर नह आएगी। इसिलए मने उसे घरवाल क िलए खत िलखकर िदया और
उससे गुजा रश क िक वह इस खत को भारत प चकर पो ट कर दे।
“संतोष मालिकन क साथ वहाँ से रवाना हो गई। उसक जाते ही मैनेजर ने मुझे िहदायत दी िक संताेष का
सारा काम अब तु ह करना होगा। चूँिक मािलक क बड़ से घर म मेहमान ब त आते थे, इसिलए वहाँ खाना
बनाने और सफाई का ढर सारा काम था। घर म कल िमलाकर चौदह ब े थे और उन सभी क दो त बार-बार
आते रहते थे। म िकसी पंछी क तरह िपंजर म कद होकर रह गई। चूँिक काम का बोझ दुगुने से भी यादा हो
गया, िजसक वजह से मेरी कवत घट गई और मैनेजर नाराज होने लगी। उसे मेरी परशािनय से कोई सरोकार
नह था और वह कछ भी सुनने को राजी नह थी। वह छड़ी िदखाकर कहती िक ‘काम क बोझ क िशकायत
मत करो। तु ह उसक िलए पैसा िदया जाता ह। म कोई दूसरी बात नह सुनना चाहती।’
‘‘काम का बोझ बेतहाशा बढ़ जाने क वजह से अगर िदन म म कछ व आराम करती और मैनेजर मुझे
देख लेती थी तो उसी छड़ी से मेरी िपटाई कर देती। संतोष क िपटाई क िनशान याद करते ही मेरी ह काँप
जाती। मेर घर म िकसी ने कभी मेरी िपटाई नह क थी। बेशक हम गरीब थे, लेिकन इ त से जीते थे।
‘‘तनहाई और काम क बोझ ने मेरी सेहत पर असर डालना शु कर िदया, िजससे काम करने क मेरी कवत
घटने लगी। मुझे प रवार, ब च और दो त क ब त याद आती। िदन गुजरने क साथ-साथ मेरी िजंदगी म
तकलीफ क अलावा कछ नह बचा।’’
मने उसे टोकते ए पूछा, ‘‘संतोष क चले जाने क बाद अब तुम अपनी िद त िकसक साथ साझा करती
हो?’’
नाजनीन बोली, ‘‘कोई नह ह अब। कोठी म एक माली ह, जो बाहर लॉन और पौध क देखभाल करता ह।
इस मु क क कानून क मुतािबक म उससे कभी बात नह कर सकती। चूँिक मेर पास रात को पहननेवाले महज
तीन कपड़ ह, िज ह म रातोिदन पहनती , अतः बाहर नह जा सकती। अपने साथ लाए ए कपड़ पहनने क
मुझे इजाजत नह ह। मुझे कवल फिमली क साथ खरीदारी करने क इजाजत थी, वह भी कपड़ क ऊपर बुका
पहनकर। इसीिलए बात करने क िलए मेरा कोई दो त या जानकार नह था।
‘‘मैडम ज द ही िहदु तान से नाराज और आगबबूला होकर लौट आई। उ ह ने मैनेजर से कहा, ‘इन
िहदु तानी औरत पर पैनी नजर रखना शु करो। अपने घर प च जाने क बाद संतोष कभी वापस नह आई।
उसने मुझे धोखा िदया। इसिलए इस औरत को ज दी घर जाने क इजाजत मत देना।’
‘‘उनक बात से मेरी िह मत जवाब दे गई और म अकले म रोने लगी—‘या अ ाह! म अपने कनबे से
दोबारा कब िमल पाऊगी।’
‘‘एक सुबह मने मैडम और मैनेजर क बातचीत सुनी। मैडम ने मैनेजर से कहा, ‘तुम चाह जो कहो, घरलू
काम क िलए िहदु तानी औरत सबसे अ छी ह। वे खामोशी से अपना काम करती ह, न पलटकर जवाब देती ह
और न यादा िशकायत ही करती ह।’
“मैनेजर ने कछ कहा, िजसे म समझ नह पाई। मालिकन ने उसे दो और औरत को काम पर रखने क
िहदायत दी।
‘‘मुझे िकसी अ य क उस नरक म आने क बात सुनकर जहाँ एक ओर घृणा ई, वह कछ उ मीद भी जगी
िक समय क साथ मेर काम का बोझ भी घट जाएगा।
‘‘कछ ह त बाद म तेज बुखार क चपेट म आ गई।’’
‘‘ या तुम डॉ टर क पास गई?’’ मने पूछा।
‘‘नह , मैनेजर ने मुझे ोिसन क गोली दे दी। वजह चाह जो भी हो, हम डॉ टर क पास कभी नह ले जाया
जाता था। मुझे बुखार क बावजूद काम करना पड़ा। एक िदन बाद बुखार और तेज हो गया। म इस बात से डर
गई िक कह मेरा शरीर जवाब न दे दे। घबराकर म मैनेजर क पास गई और उससे िकसी नजदीक डॉ टर या
अ पताल ले जाने क िम त क ।
‘‘मैनेजर बड़ी मुँहफट थी। उसने कहा, ‘आज ब त सार मेहमान आने वाले ह और मेर पास तु ह कह ले
जाने का व नह ह।’
‘‘म लगभग टट गई। मने रोते ए कहा, ‘आज म काम नह कर सकती। मुझे ब त दद हो रहा ह और मेरा
िसर फट रहा ह।’
‘‘उसने बड़ी लापरवाही से िकचन म जाकर एक च मच आग म गरम िकया और मेरा हाथ पकड़कर गरम
च मच मेरी कलाई पर दबा िदया। म कराह पड़ी और उसने मुझे चुप करा िदया। ‘यह रोना-धोना छोड़ो, यहाँ
तु हारी मदद करने कोई नह आएगा। तुम महज एक नौकरानी हो और उसी तरह पेश आओ। जाओ और काम
पर लग जाओ।’
“मेरा िज म डर क मार थरथर काँपने लगा। या मौत आने तक मेरा नसीब ऐसा ही रहगा? आनेवाले िदन
क मुझे जानकारी नह ह। बुखार उतर गया और मेरा शरीर थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा। लेिकन अंदर से म
मर चुक थी। सवेर उठने क मुझे इ छा नह होती थी; लेिकन मेर पास कोई चारा नह था। म रोबोट क तरह
जी रही थी। मुझे कभी सोचने क फरसत िमलती तो म कवल अपने घर-प रवार म लौटने क बार म सोचती।
‘‘एक िदन घर म मेर और माली मा ित क अलावा कोई नह था। उसने मुझसे एक कप चाय देने का
अनुरोध िकया। म बुका पहनकर उसे चाय देने चली गई।
‘‘इससे पहले िक वह चाय क चु कयाँ लेना शु कर, मने उससे गुजा रश क िक वह घर लौटने म मेरी
मदद कर। ‘म यहाँ िकसी को नह जानती और तु ह तो मालूम ही ह िक यहाँ नौकरािनय क साथ कसा बरताव
होता ह। अगर मुझे यहाँ कछ हो गया तो मेर घरवाल को उसक कोई खबर भी नह िमलेगी। तुम मेर भाई जैसे
हो, मेहरबानी करक मेरी मदद करो।’
‘‘उसने कहा, ‘यहाँ से भागने क बार म कभी सोचना भी मत।’ वह मुझे घबराया आ नजर आया। ‘अगर
अिधका रय ने तु ह खोज िलया और पकड़कर यहाँ वापस ले आई तो तु हार साथ अस रतापूण यवहार
करगे। िफर भी, म अपने प रिचत कछ लोग से बात करक तु ह बताऊगा।’
‘‘मने उसक पैर छए। मुझे लगा जैसे अ ाह ने मेरी मदद क िलए इस रहमिदल इनसान को अपने फ र ते
क तौर पर मेर पास भेज िदया था।
‘‘एक महीना बीत गया। पहले क तरह एक िदन िफर हम दोन को अकले िमलने का मौका िमला। वह ईद
का िदन था और घर क सार लोग शाम क दावत म गए थे। उसने बताया, ‘एक िहदु तानी काय म म मेरी
मुलाकात दो दयालु औरत से ई। म समझता िक शायद वे तु हारी कछ सहायता कर सकती ह।’
“ ‘म आपक बड़ी एहसानमंद । उनसे तु हारी मुलाकात कसे ई?’
“ ‘मािलक ने एक बार मुझसे एक सरकारी अफसर को फल प चाने क िलए कहा था। वह एक िहदु तानी
शादी म शािमल होने आया था। उसने मुझे थोड़ी देर इतजार करने क िलए कहा। उसी दौरान मने दूसर लोग से
उन दो औरत क बार म सुना। िकसी तरह मने उन दोन को देख िलया। पु ष होने क नाते म इस देश म कह
भी आने-जाने क िलए वतं । मेरी मुलाकात उनसे एक-दो बार और ई, तभी मने उनसे तु हारी तकलीफ
क चचा क । उ ह ने मुझसे कहा िक म तु ह इस बात क जानकारी दे दूँ िक तु हार िलए यहाँ नौकरी छोड़ने म
बड़ा जोिखम ह। लेिकन अगर तुम छोड़ने का फसला कर लोगी तो वे तु ह वापस भेजने क पूरी कोिशश
करगी। म तु ह उनक पास ले जा सकता , लेिकन तभी, जब तुम कोई सामान खरीदने बाजार जाना, य िक
वहाँ से बच िनकलना आसान ह।’
“ ‘मने अपना िसर िहलाया और सही व आने तक इतजार करने का फसला िकया।
“ ‘इस बीच मा ित ने मुझे उस जगह का न शा और िदशा-िनदश िदया, तािक व आने पर म उस जगह
को ढढ़ सक। मने हर चीज को अ छी तरह याद कर िलया, तािक म वहाँ िकसी मुगालते क बगैर प च जाऊ।
मा ित ने पहले ही मेरी उ मीद से यादा काम कर िदया था, इसिलए मने उसे और परशान न करने का फसला
िकया। ऐसे काम क िलए इस देश म बड़ी कठोर सजा ह।
‘‘ह त बाद मुझे मैडम ने अपना संदेश प चाने या दूत काय क िलए भेजा। मेर िलए भागने का यही मौका
था। मने बुका पहना, बाजार गई, सामान खरीदकर उसे ाइवर क हवाले िकया और उससे कहा िक म
गुसलखाने होकर अभी आती । जैसे ही म ाइवर क आँख से ओझल ई, म वहाँ से भाग खड़ी ई। चूँिक
वहाँ कई औरत ने बुका पहन रखा था, इसिलए मेर गुम होने क बार म महसूस होने म ाइवर को कछ व
लगा। म जानती थी िक उसक िलए अब मुझे ढढ़ पाना किठन ह। मने अपने िदल क तेज धड़कन क साथ
चलना जारी रखा। कभी दौड़ते और कभी चलते ए आधे घंट क अंदर म अपनी मंिजल पर प च गई। मेर पास
शरीर पर पहने कपड़ क अलावा कछ भी नह था। िआखरकार म आपक सामने ।’’
नाजनीन क कहानी ख म होते ही अपने भयानक अतीत से राहत पाने हतु वह करसी पर लुढ़क गई।
शे टरवाली दोन औरत मेरी तरफ मुड़ । उनम से एक ने बताया, ‘‘यह दो िदन पहले आई ह।’’
कमर म खामोशी छा गई। मने सोचा, ‘िकसी क साथ भी ऐसा नह होना चािहए।’
करल क ेसी ने त धता भंग करते ए अपनी यथा-कथा शु क । वह खूबसूरत और वाचाल थी। उसे
भी एजट ने यूटर क नौकरी िदलाने क बहाने ठगा था। य िप उसक कहानी नाजनीन से काफ िभ थी।
ेसी एक अनाथ लड़क थी, जो सरकारी अनाथालय म पली-बढ़ी थी। वह एक कॉ वट कल म टीचर थी
और उसका वेतन उसक िलए पया था; लेिकन उससे छोटा सा अपना घर खरीदने का सपना पूरा नह हो
सकता था। ेसी एक लड़क को पसंद करती थी, परतु उसक पास कोई थायी नौकरी या आय नह थी। चूँिक
उनक पास कोई संपि नह थी, इसिलए दोन ने आपस म िमलकर फसला िकया िक ेसी यूशन पढ़ाने क
िलए बाहर चली जाए। इससे दोन को घर खरीदने हतु पया पैसा कमाने का अवसर िमलेगा और बाद म वे
अपनी गृह थी बसा लगे।
िजस घर म उसे ले जाया गया, उसे देखकर वह दंग रह गई। गृह वामी क चार प नयाँ और सोलह ब े
एक साथ रहते थे। उनम से कवल दस ब े ही नसरी, ाइमरी या िमिडल कल जाने क आयु क थे। ेसी उन
ब च को अं ेजी, गिणत, इितहास, कला, द तकारी और अ य गुण िसखाती थी। ारिभक कछ वष तक
सबकछ ठीक-ठाक रहा और उसक साथ अ छा यवहार िकया जाता था। उसका िनयो ा उसे छह महीने म
एक बार मोटी रकम देता और यहाँ तक िक भारत आने क िलए साल म एक बार सवेतन छ ी भी देता था।
ब च का भी उससे काफ लगाव था और उसक साथ नाजनीन जैसा यवहार नह होता था।
समय बीतने क साथ ब े अपनी िकशोराव था म प चने लगे और उनक सहपािठय व र तेदार का घर म
बार-बार आना-जाना शु हो गया। उसे वहाँ रहने म अब काफ किठनाई होने लगी। जब उसने मािलक क
एक बीवी को अपनी परशानी बताने क कोिशश क तो उसने ेसी का मजाक उड़ाते ए कहा, ‘‘हाँ ेसी, तुम
हो ही इतनी खूबसूरत िक अनेक लोग तु ह पाने क इ छा करगे। स चाई यह ह िक अगर मेरा शौहर भी तु हार
साथ रात िबताए तो मुझे कोई हरानी नह होगी।’’
उस िदन से ेसी वयं को लेकर भयभीत रहने लगी। उसने बड़ ब च को पढ़ाने से परहज करना शु कर
िदया और मािलक को बता भी िदया िक उनको अब मेरी मदद क कोई ज रत नह ह। लेिकन िकसी ने उसक
बात नह सुनी।
‘‘ब च को पढ़ाने क िलए तु ह वेतन िदया जाता ह और तु ह अपनी िज मेदारी पूरी करनी होगी।’’ मािलक
बोला, ‘‘इससे यादा कछ नह कहना ह।’’ और हाथ लहराते ए उसक बात खा रज कर दी।
एक िदन ब च का एक दो त उसक कमर म आ गया और ेसी को जबरद ती चूमने क कोिशश करने
लगा। उसने बु मान और पूरी ताकत से उसे ध ा देकर कमर से बाहर िनकाल िदया और उसका िज
िकसी से नह िकया।
अगले िदन उसने देखा िक अ दुल नाम का लड़का बड़ा नाराज था।
पूछने पर उसने बताया, ‘‘मेरा दो त िकसी वजह से नाराज ह। मने जब उससे आज घर आने क िलए कहा
तो उसने तु हारी वजह से आने से इनकार कर िदया। मुझे बताओ, तुमने या िकया?’’
ेसी को सोलह वष य एक ब े क साथ अपनी तकलीफ साझा करने म किठनाई तो ई, लेिकन उसने सोचा
िक अपने िश य को स य से अवगत कराना बु मान होगी।
उसक हसी देखकर ेसी हरान रह गई। अ दुल ने कहा, ‘‘तुम अ यंत आकषक हो। खुद पर काबू न रख
पाने क िलए म अपने दो त को दोष नह दूँगा। अगर तुम कक फाितमा क तरह भ ी होत तो तु ह कोई नह
चाहता।’’
यह सुनते ही ेसी का शरीर काँपने लगा। िफर भी उसने ढ़तापूवक कहा, ‘‘अ दुल, म तु हारी टीचर ।’’
‘‘अब म ब चा नह , ब क जवान हो गया तथा औरत को दूसर नज रए से देखता ।’’ कहकर अ दुल
वहाँ से चला गया।
‘‘तभी से मने महसूस िकया िक यह घर मेर िलए एक टाइम बम ह। उस घर क दबाव क अपे ा म अपने
देश म िकराए क घर म ही ठीक थी। यिद मेर साथ कछ हो जाता तो कोई भी—न मािलक और न ही उसक
बीिवयाँ—मुझे बचात । म भा यशाली थी िक मेरा पासपोट मेर पास था। हालाँिक मेर पास पैसा नह था, लेिकन
म उन दयालु औरत को जानती थी, जो ऐसी तनावपूण थितय म य क सहायता करती ह।’’
मने पूछा, ‘‘इनक बार म तु ह कसे ात आ?’’
‘‘सौभा य से। गत िदसंबर म म एक ि समस पाट म गई थी। वह मेरा इनसे और इनक काम से प रचय
आ।” उसने जमीन क तरफ देखते ए कहा, “एक बार सही समय देखकर अपना सारा सामान मािलक क
घर म छोड़कर म इस शे टर म आ गई। वहाँ मेर पास कहने को कछ नह था। आज म इस दुिनया म शिमदगी
और पीड़ा महसूस कर रही , जहाँ आधी आबादी अपने आपको सुरि त महसूस नह करती।’’
दो अ य य —तिमलनाड क रोजा और आं देश क नीना—ने रोते ए अपनी दा तान सुनाई। उनका
अनुभव अ यंत दुःखद था। दोन अलग-अलग माग से आई थ , परतु दोन क साथ उनक िनयो ा ने
बला कार िकया था।
उनक कहानी सुनकर म भी अपने आँसू नह रोक पाई। इन औरत क िजंदगी िकतनी तकलीफदेह तरीक से
गुजरी। ऐसे हादस को कोई कसे भूल पाएगा? वयं को संयत करने म मुझे कछ पल लगे।
मने अपने पास बैठी दोन औरत पर िनगाह डाली और पूछा, ‘‘तुम इ ह कसे वापस भेजती हो?’’
उनम से एक ने कहा, ‘‘एक बार जब ये शे टर म आ जाती ह तो हम भारतीय दूतावास जाती ह और वहाँ से
इनक िलए नया पासपोट बनवाती ह। यह काम बड़ा किठन ह और कई बार हमार सामने सम याएँ खड़ी हो
जाती ह, िजससे देर हो जाती ह। लेिकन असली सम या इनक यहाँ से रवानगी ह। एक िन त अविध क बाद
हम शे टर म इनको नह रख सकते। अतः िजतनी ज दी हो सक, हम इनक िलए एक तरफ क िकराए का
यथाशी बंध करती ह। यिद हम अ प सूचना पर िटकट बुक करवाना पड़ तो उसक िलए अिधक मू य
चुकाना पड़ता ह।’’
‘‘िटकट क िलए पैसा कौन देता ह?’’
‘‘हम आसपास से माँगते ह और यथासंभव सभी से मदद माँगते ह। कम वेतन पानेवाले भारतीय क सं या
अिधक ह, लेिकन उनक अपनी आिथक सम याएँ और मु े होते ह। िजन लोग क पास पैसा होता भी ह, वे
वा तव म अिधक समय तक हमारी मदद नह करते। कछ लोग हम देने क बजाय बाजार से सोना खरीद लेते ह
या अपने यार-दो त और उनक प रवार क साथ पाट करने म उड़ा देते ह। अमीर लोग इसे रोजमरा क सम या
मानते ह। वे लोग एक या दो मामल म हमारी मदद करने क इ छक होते ह; परतु हमार शे टर म हर ह ते
लगभग पाँच पीिड़त औरत आती ह। दानदाता देर-सबेर िटकट क िलए पैसा देना बंद कर देते ह। कभी-कभार
दुकानदार अपनी ओर से िटकट खरीद देते ह। लेिकन हर कोई िकसी िदन पकड़ जाने क कारण डरता ह। अ य
लोग कधे उचकाते ए कह देते ह िक यह उनक सम या नह ह। वे औरत पर पैसा बनाने का आरोप लगाते ह।
वे महसूस करते ह िक यहाँ आने से पहले एजसी का स यापन करना उनक िज मेदारी ह। कछ समय पूव जब
हमने शे टर खोला था तो अपना सारा पैसा इसम झ क िदया था। लेिकन हम लोग भी ब त अमीर नह ह और
मुझे डर ह िक हम इसे यादा समय तक चलाने म स म नह ह गे।’’
यह एक िनराशाजनक िवचार था। किठन प र थितय म फसी य क िलए शे टर आशा क एक िकरण
था। ऐसे थान क न होने पर वे बेचारी भागकर कहाँ जाएँगी?
मने घड़ी देखी। मेरा िम से िमलने का समय हो चुका था, अतः मने उ ह अलिवदा कहा और भारी मन से
शे टर छोड़ िदया।
हम रा ते म सुंदर मकान , चौड़ी सड़क और खूबसूरत कार क बीच से होकर गुजर। मने िकसी पर यान
नह िदया। म कवल उन चार औरत का पीछा कर रह उनक दुःखद अतीत क बार म सोचती रही। अचानक
मेरा िवचार बदल गया।
‘‘वापस चलो।’’ मने ाइवर से कहा।
शे टर म वापस लौटकर म दोन औरत से िमली। मने कहा, ‘‘इ फोिसस फाउडशन ज रतमंद य को
एक तरफ का िटकट ायोिजत करने म स ह, चाह वे अपने गाँव, क बे या शहर जाएँ। शे टर ारा उनका
स यापन होने क त काल बाद हम या ा- यय का यान रखगे। लेिकन आप लोग को उ ह समय रहते उनका
पासपोट िदलाने म सहायता करनी होगी और यह सुिन त करना होगा िक वे िबना िकसी बाधा क उड़ान
पकड़ने क िलए तैयार ह।’’
औरत मुसकराते ए राजी हो गई।
यु र म म भी मुसकराई और मने महसूस िकया िक जैसे मेरा कोई भार कम हो गया हो।
मने उनसे कहा, ‘‘इन औरत को बताओ िक भारत बदल रहा ह। वह जमाना गुजर गया, जब लोग छोटी सी
तन वाह क िलए काम िकया करते थे। शहर म जहाँ पित-प नी दोन नौकरी करते ह, उ ह घर क िलए एक
भरोसेमंद और अ छ हाउसक पर क ज रत होती ह, िजसक न िमलने पर कई औरत अपनी नौकरी छोड़ देती
ह। ईमानदारी क भारत म अभी भी ब त क मत ह और शहरी े म माँग क कारण यादा-से- यादा लोग
अपनी इ छा-श से अपने ही देश म रहना पसंद करते ह।’’
उनम से एक बोली, ‘‘औरत इस बदलाव क खबर से खुश ह गी।’’ वह लगातार मुसकराती रही, ‘‘इस
अमू य सहयोग क िलए ई र फाउडशन और आपक र ा कर।’’
अगले िदन वापस आते समय मने लाइट म सोचा, म मदद नह कर सक ; परतु हम िकतने भा यवा ह िक
भारत म रहते ह। हो सकता ह िक हमारा देश दुिनया म ब त अमीर और सव े न हो, लेिकन हम यहाँ
अ यिधक आजादी ह। हम आसानी से नौकरी बदल सकते ह और िकसी अ य क बे या शहर म रह सकते ह।
और कछ नह तो हमार पास एक प रवार तो ह, जो मुसीबत क समय हम रहने क जगह दे सकता ह। जब तक
हम देश से बाहर नह जाते, हम सचमुच पता नह चलता िक हम िकतने भा यशाली ह।
आदत क मुतािबक मने औरत क अनुमािनत या ा- यय का िहसाब लगाना शु कर िदया। उ ह ने कहा था
िक बीस से प चीस मामले सालाना होते ह। यह अित र वािषक अनुदान कायालय क इमारत क िनमाण हतु
जोड़ी मेरी सारी बचत को पाँच वष म चट कर जाएगा। इस िवचार से मुझे थोड़ी मायूसी ई।
मुझे कायालय क िनमाण या इन औरत को शरण—दोन म से िकसी एक का चयन करना था। म जानती थी
िक सचमुच मेर पास कोई दूसरा िवक प नह था। अपने िनणय पर पुनिवचार करने क थित भी नह थी। मेरी
अंतरा मा और म अभी भी कछ वष तक तीन कमर वाली िकराए क जगह म रह सकते थे।
यह पं ह वष पुरानी बात ह।
बीस साल क बाद हम िपछले साल अपने िनजी कायालय एवं घर म जा पाए। मने इमारत का नाम ‘नेरालु’—
अथा शरण- थली रखा।

8
एक श शाली राजदूत
दय से म एक कथाकार , अतः िफ म से मुझे यार, िच हो तो इसम कोई आ य नह ।
हमार बचपन म बॉलीवुड आज क अपे ा िब कल िभ था। अिधकांश िफ म ेत- याम ( लैक एंड
हाइट) होती थ । बाद म ई टमैन कलर िफ म आई और ेत- याम िफ म म कछ रगीन गाने िदखाए जाने
लगे। अंततोग वा रगीन फ चर िफ म आई।
मीना कमारी क जडी से अकसर मेरी आँख म आँसू आ जाते, जबिक मधुबाला और आशा पारख क
िफ म का सुंदर नृ य संयोजन मेर मन म बस गया। म साधना व वहीदा रहमान क वाभािवक स दय को भुला
नह सकती तथा संजीव कमार का सश अिभनय और राजेश ख ा का क र मा हमारी पीढ़ी क समा होने
तक कायम रहगा।
मने तकनीक क योग क मा यम से साधारण-मासूम यार से लेकर आज क आ ामक बो ड दशन एवं
ािसकल नृ य से वतमान ि ल टाइप ेक डांस तक क बॉलीवुड क िवकास को करीब से देखा ह।
उन िदन आमतौर पर िफ म को िनिष और मेर जैसे गाँव म ऐयाशी माना जाता था। हम िश गाँव म रहते
थे, जहाँ एक भी िफ मी िथएटर नह था। इसक अलावा, उन िदन िबजली भी नह थी; परतु खुशी क बात यह
थी िक गरिमय म पयटक टॉक ज आते थे और िफ म िदखाने क िलए खासतौर से टट लगाए जाते थे। हमारी
चाहत को ई र का यही वरदान था। हम जब भी िफ म देखने क इ छा होती तो िकसी वय क य क साथ
जाते और वही िनणय करता िक हम कौन सी िफ म देखगे। हम कवल ‘ ीक ण तुलाभारम’, ‘राम वनवास’
और ‘िग रजा क याणम’ जैसी धािमक व ेरणा द िफ म देख सकते थे। कई बार अपवाद व प हम िकसी
वय क क देखरख म बाल िफ म देखने क अनुमित भी िमल जाती थी। उसक बाद हम अपने िम को उनक
बार म बताते थे। िजस िदन वह भा यशाली िदन आता, म और मेर कजन ज दी से भरपेट खाना खा लेते, तािक
िफ म क बीच हम उठना न पड़। िफ म देखने क बाद हम काफ िदन तक उसक बार म बात करते।
बहरहाल िफ म देखने क साल म कछ इने-िगने िद न ही थे।
कोई भी चीज हमेशा एक जैसी नह रहती। जीवन बदला और म िश ा हतु बली नामक छोट शहर म आ
गई, जहाँ अनेक िफ मी िथएटर थे। वहाँ भी िकसी िकशोरी क राेमांिटक य देखने पर िनषेध जारी था। कभी-
कभार खुश होकर यिद म सहिलय क साथ णय य देख लेती और घर आकर अपनी चाची या प रवार क
अ य िकसी व र सद य को वैसी ही बात करते सुनती या उनक कोई हरकत देखती तो अपनी आँख बंद कर
लेती थी।
महीने-दर-महीने म ढ़तर होती गई। येक परी ा-स क समा क प ा हम लड़िकयाँ िमलकर िफ म
देखने जात । अपने घरवाल से झूठ बोल देत िक हम िफ म ‘दशावतारम’ देखने जा रही ह, िकतु वा तव म
अपने व नल नायक राज कमार क िफ म देखत । हमम से हरक का गु प से एक ि य हीरो होता था,
परतु उसक बार म एक-दूसर से बात करने म िझझक महसूस होती थी।
कॉलेज प चने क बाद म पूरी तरह बो ड मानी जाने लगी। मने अपने पैर स से कहा, ‘‘अब म धािमक
िफ म नह देखती। अब तक मने िजतनी धािमक िफ म देख ली ह, वे आजीवन याद रहगी। अब म राजेश
ख ा क िफ म देखना चाहती ।’’
म एक संयु प रवार म रहती थी और प था िक िकसी मनमोहक सुपर टार क िफ म देखने क मेरी
पारदश इ छा जानकर प रवार क बड़ सद य त ध और शायद थोड़ा यिथत भी ए। वे मानते थे िक उ ह
देखकर लड़िकयाँ िबगड़ जाती ह और उनक बु खराब हो जाती ह।
उस िदन क बाद से चाची मेर अंक पर बारीक से नजर रखने लग । अगर उसम मामूली कमी भी आती तो
उनक िट पणी होती, ‘‘इसम हरानीवाली कौन सी बात ह िक तु हार अंक नीचे जा रह ह। घिटया रोमांिटक
िफ म ने तु हारा िदमाग खराब कर िदया ह और अब तुम पढ़ाई पर पहले जैसा यान नह दे पाओगी।’’
मेर और चचेरी बहन क कम अंक आने पर बेचार राजेश ख ा को अनजाने ही दोषी माना जाता था।
बाद म अपनी ातको र िश ा हतु म बगलु प ची। वह तो वग था! मैजे टक क नाम से िव यात े म
लगभग तीस िथएटर थे। सड़क क एक ओर संगम, अलंकार, क पे गौड़ा और मैजे टक जैसे मश र िथएटर
थे। म एक बार म दो िफ म देखने का बंध कर लेती थी।
एक बार म अपने िनजी उपकरण कामकाजी मिहला हॉ टल, पुणे म छोड़ आई। वहाँ मुझे रोकनेवाला कोई
नह था और िफ म क ित मेरा ेम छलाँग मारने लगा। उनका जुनून इस कदर बढ़ गया िक म पढ़ाई तभी कर
पाती, जब बैक ाउड म िकसी िफ म क कहानी चल रही हो। कई िव ाथ मेरा मजाक उड़ाने लगे।
एक िदन कछ लड़िकयाँ मेरी एक सहली क घर इक ा ई। एक ने मुझसे कहा, “िफ म मनोरजन का
अ ुत साधन ह, परतु यह रोजाना िम ा खाने जैसा ह। वह आपक वा य क िलए ठीक नह ह। एक सीमा
क बाद आपको उससे अ िच हो जाएगी।”
मने िवरोध करते ए कहा, ‘‘कतई नह । आप अलग-अलग िदन पर अलग-अलग िमठाई खाइए और
आपको कभी अ िच नह होगी। यही बात िफ म पर भी लागू होती ह।’’
‘‘कहना सरल ह, लेिकन उसपर अमल करना आसान नह ह। या तुम रोजाना एक िफ म देखने क इ छा
रखती हो?’’
‘‘हाँ, वाकई मेरी यही इ छा ह और मुझे कोई संदेह नह ह िक म ऐसा कर सकती ।
मेरी सहिलयाँ झूम उठ । ‘‘ठीक, अगर यह बात ह तो लगी शत! अगर तुम 365 िदन म 365 िफ म देख
लोगी तो हम तु ह सौ पए दगी और ‘िमस िसनेमा’ क प म तु हारा स मान करगी।’’
मने उ ेिजत होकर िसर िहलाया और इस कार मेरी िफ मी या ा शु हो गई।
िफ म देखने क िलए पुणे एक बड़ा शहर था। उन िदन वहाँ ‘िनलयम’ िथएटर म राज कपूर क िफ म चल
रही थ । वह िन य उनक िभ -िभ िफ म िदखाता था। मने उनक पुरानी से लेकर नई तक सारी िफ म देख
डाल । उनक समा क बाद मने ‘ल मी नारायण’ िथएटर म अिभनेता-िनदशक गु द क सभी िफ म देख ।
बो रयत कभी कह नजर नह आई। उनक िफ म समा होने लग तो मराठी िफ म म द भात िफ म
कपनी ने मेर हॉ टल से थोड़ी ही दूरी पर थत ‘नटराज’ िथएटर म अपनी िफ म का दशन ारभ िकया। उनम
से कछ िफ म उन िदन क थ , जब मेर िपताजी िव ाथ थे। इस कार मने ‘मानुष’, ‘कनक’, ‘शेजरी’ और
‘रामशा ी’ जैसी िफ म भी देख । िदन क समय िफ म क पया आपूित नह होती थी, अतः मने रा ल 70
एम.एम. िथएटर म— Gone with the Wind, To Sir with Love, Come September, The Ten
Commandments जैसी अं ेजी ािसक िफ म देख , िजनम चाल चैपिलन, लॉरल एंड हाड ने अिभनय िकया
था और साथ ही उपशीषक वाली मूक िफ म भी देख । द न िथएटर कभी-कभी क ड़ िफ म भी िदखाता
था।
वष क अंत म मने सभी 365 िफ म देख डाल और इतनी ए सपट हो गई िक िकसी भी िफ म क रिटग क
बार म अपनी सहिलय को बता सकती थी। म िकसी िफ म क सफलता क मूलभूत त व से भी अवगत हो
गई। इसक पूवापे ा म ठोस कहानी, अ छा संगीत, चटपटी वा ा, उ म पटकथा एवं संवाद, मु य
भूिमकावाले कलाकार ारा सुंदर अिभनय, उिचत वेशभूषा, अ तीय िनदशन और सचेत संपादन शािमल ह।
इसक प ा भा य का न पैदा होता ह, जो आज तक अप रभािषत ह। मेरा सामना े ठ कहानीवाली ऐसी
िफ म से भी आ ह, जो बॉ स ऑिफस पर जाकर िपट गई। अतः सफलता का कोई िन त फॉमूला नह ह।
कई बार अ यंत नाटक यता एवं अवा तिवक कहानीवाली िफ म शु आत से ही तहलका मचा देती ह।
िफ म म मेरी गहरी िच मुझे नायक क अिभनय मता और िनदशक क कौशल का मू यांकन करने क
तर तक ले गई। इस कार धीर-धीर म िफ मी पंिडत बन गई।
अब म अपने य त काय म क कारण चाहकर भी अिधक िफ म देख पाने म असमथ । िफर भी, घर क
बजाय िथएटर म िफ म देखने को ाथिमकता देती ।
उन देश क या ा म भी मेरी िच ह, िज ह लोकि य पयटन थल क प म नह जाना जाता। कछ वष पूव
इस सूची म मने ईरान, पोलड, यूबा, बहामास, उ बेिक तान और आइसलड को जोड़ िदया। अ पदिशत देश
म अनेक लाभ ह। एक तो उनम भीड़ नह होती और होटल आर ण भी कम ही होता ह। इन देश क हवाई
िटकट अ प सूचना पर ही उपल ध हो जाती ह और आपको अपनी पसंद क थान पर कह भी घूमने-िफरने क
आजादी होती ह। िजन चार देश क बाजार , स जय , रवाज , भोजन और फशन जैसी िवशेषता से मेरा
प रचय कराया गया, उनम बहामास सवािधक आकषक था। मने िकसान क मंिडय म जाकर वहाँ क थानीय
चीज क नमूने िलये और मनपसंद चीज उठाकर खाने क िलए साथ लाई।
अपनी ईरान या ा क दौरान म ाचीन पिशया देखने को उ सुक थी, य िक मुझे पता चल गया था िक उ री
कनाटक म हम जो थानीय भाषा बोलते ह, उसम फारसी क 5,000 श द ह। यह ऐितहािसक संबंध आिदल
शाही कमत क िदन से जुड़ा ह। उन िदन सरकारी, अदालती और सै य भाषा फारसी थी। अतः इसम कोई
आ य नह िक फारसी वा तुकला क अनेक श द एवं बारीिकय को थानीय लोग ने अपना िलया, िज ह
कनाटक क बीजापुर एवं बीदर म आज भी देखा जा सकता ह।
ाचीनकाल म यापार रा य क आमदनी का मुख सोत था। उन िदन अनेक यापारी समूह सि य थे, जो
चीन से भारत म सामान लाते थे और भारत से पा ा य देश म भेज देते थे। इस यापार ने भोजन, नृ य, िसनेमा
और कपड़ क मा यम से सां कितक संबंध क सहयोग को ो सािहत िकया।
मने सं कित, यापार और िकराए इ यािद को भलीभाँित समझने क उ दे य से मुख शहर िशराज क थानीय
बाजार क या ा करने का िनणय िलया। मने एक य को छोट से टॉल पर नान बनाने म य त देखा। कछ
लोग अपने ऑडर क पूरा होने क ती ा कर रह थे। उसक ि या बड़ी रोचक थी और कछ िमनट म नान
बनाकर परोस िदए जाते थे। ईरान म जब िकसी क यहाँ मेहमान आते ह तो औरत भारत क तरह रसोई म जाकर
रोिटयाँ नह सकत । इसक बजाय घर क पु ष नान और माली रोटी क दुकान पर जाकर अपनी ज रत क
मुतािबक रोिटयाँ खरीद लाते ह।
रोिटयाँ बनते देखकर मुझे भूख लगी और मने नान लेने क िलए नानवाले से संपक िकया और अं ेजी म कहा,
‘‘म दो नान खरीदना चाहती ।’’
यह प ट था िक उसे अं ेजी नह आती थी, लेिकन वह मेरी बात समझ गया। उसने ज द ही दो गरम नान
कागज पर रखकर मुझे दे िदए। मने महसूस िकया िक वह मेरी साड़ी और माथे पर लगी िबंदी देख रहा था।
चूँिक मुझे क मत मालूम नह थी, इसिलए मने उसे बड़ा करसी नोट िदया, तािक वह अपने पैसे रखकर शेष
मुझे वापस कर दे।
उसने नोट देखकर कहा, ‘‘अिमताभ ब चन?’’
जब मने कोई जवाब नह िदया तो वह बोला, ‘‘सलमान खान, शाह ख खान!’’
बॉलीवुड क मश र अिभनेता का नाम सुनकर मने महसूस िकया िक वह या कहना चाहता ह। मने जवाब
िदया, ‘‘हाँ, म भी उ ह क देश क ।’’
उसने मुसकराते ए कहा, “कोई पैसा नह ।”
मेर जोर देने पर भी उसने इनकार कर िदया। उसने आगे कहा, ‘‘इिडया, बॉलीवुड, बड़ी अ छी बात ह।
अ छा नाच, अ छ कपड़, अ छा संगीत ईरानवाले पसंद करते ह।’’
म समझ गई िक ईरानी लोग बॉलीवुड को पसंद करते ह। चूँिक म उनक पसंदीदा अिभनेता क देश से आई
थी, इसिलए उस आदमी ने मुझसे एक भी पैसा नह िलया। रोिटयाँ वह मुझे भट क तौर पर देना चाहता था।
संभवतः उसे अपने ि य नायक क देशवासी क िलए बदले म कछ करने का यही तरीका सूझा होगा।
‘‘सलाम!’’ कहकर उसने मेरी तं ा भंग क और मेर पीछवाले ाहक क ओर बढ़ गया।
म उन बेशक मती नान को लेकर अपने होटल क कमर म आई और टी.वी. चालू कर िदया। यह देखकर मेरी
खुशी और हरानी का िठकाना न रहा िक अिमताभ ब चन िफ म ‘कभी खुशी, कभी गम’ म जया भादुड़ी क
साथ फारसी म वा ालाप कर रह थे। मुझे कोई संदेह न रहा िक इस देश म बॉलीवुड िफ म क ित िन त ही
लगाव ह। ईरानी भले ही गान का अथ न समझ पाएँ, परतु उ ह हमारी कहािनयाँ, लहराते ए सुंदर िस क क
लहगे, िथरकने को िववश करनेवाला संगीत, िफ मी सेट क भ यता और नायक क अदाकारी अव य ही
पसंद आते ह।
मेरी अगली या ा यूबा क राजधानी हवाना क थी। शहर प मी स यता से कटा एवं अिधकांश िव से
एकदम अलग-थलग ह। थानीय भाषा पेनी ह, िजसम म ‘ ािसयास’ या ध यवाद क अित र एक भी श द
बोल नह सकती थी। म इस बात से हरान थी िक वहाँ एक भी भारतीय पयटक नह था। मौसम गरम था और
गरमी से बचाने हतु वहाँ सुंदर छायादार बाजार थे। बाजार म ह तिश प, फल और जूस सिहत लगभग सभी
व तुएँ िब हतु उपल ध थ ।
अतः हाथ म ना रयल पानी का िगलास िलये अपनी बहन क साथ म इस बाजार से उस बाजार तक आ-जा
रही थी। उसने लकड़ी और चमड़ क व तु से भर टोर म एक बैग देखा। इधर म बैग का िनरी ण करने म
उसक मदद कर रही थी, उधर उसने भारतीय क ज मजात आदत (चाह िकसी क आिथक थित कसी भी
हो) क अनुसार बैग क क मत क बार म मोल-भाव करना शु कर िदया। िव ता ने मू य बताने हतु हाथ से
संकत करते ए कहा, ‘‘पं ह पेसो।’’ मने वहाँ एक युवक को हमारी बातचीत म वाभािवक िच लेते खड़ा
देखा। िआखरकार जो चीज मेरी बहन खरीदने जा रही थी, उसका वा तिवक मू य जाने िबना ही त काल दस का
संकत कर िदया। दुकानदार यारह पेसो तक नीचे आ गया, िकतु मेरी बहन ने बड़ घमंड से उसक बात सुनने से
इनकार कर िदया। ी मुसकराते ए दस पेसो म बैग देने को तैयार हो गई और पेनी भाषा म कछ बोली। सौदा
तय होने क दर यान माधुरी दीि त और आिमर खान क नाम मुझे सुनाई पड़।
हम वहाँ से जाने ही वाले थे िक एक ओर खड़ा युवक अंततः टटी-फटी अं ेजी म बोल पड़ा, ‘‘ या आप
जानती ह िक उस मिहला ने यह बैग आपको कवल दस पेसो म य दे िदया?’’
मने अपना िसर इनकार म िहलाया िक म नह जानती।
‘‘वह कह रही ह िक आिमर खान और माधुरी दीि त क फन ( शंसक) ह। वह चाहती ह िक आप उ ह
बताएँ िक उनक शंसक हवाना और शेष यूबा म भी ह।’’
म आ यचिकत थी। ‘‘ या आप इससे पूछ सकते ह िक यह उनक िफ म कहाँ देखती ह?’’
न सुनकर दुकानदार मिहला मुसकराई और युवक से कछ कहा।
युवक ने मेरी ओर मुड़ते ए बताया, ‘‘यह डी.वी.डी. खरीदकर देखती ह।’’
मने पूछा, ‘‘ या वे चोरी क होती ह?’’
वह बोला, ‘‘मुझे नह पता। अगर आप चाहती हो तो म पूछ।’’
चूँिक हम ठीक से संवाद नह कर पा रह थे, इसिलए मने बातचीत को आगे न बढ़ाने का फसला िकया।
य िप मेर सभी न का उ र नह िमला, परतु यह साफ था िक बॉलीवुड क अंतररा ीय तर पर बड़ी
उप थित ह और उसी क वजह से मुझे पाँच पेसो क छट िमली।
मुझे मुंबई क अपनी एक या ा का मरण आ, जब मने नई उ क एक भारतीय अिभनेता-िनदशक से
िफ म क िवषय म अ यंत जोशीली चचा क थी। सचमुच!
मने कहा, ‘‘बॉलीवुड िसफ िसनेमा तक ही सीिमत नह ह। यिद कोई य उ म मू य क बार म बात
करता ह तो उसका भाव भीड़ म िकसी य पर पड़ता ह। कोई उनक िवषय म िलखता ह तो उससे कछ
और लोग बदल सकते ह; परतु यिद उसे िकसी सश कथानक क मा यम से बॉलीवुड म िदखाया जाता ह तो
उसका जबरद त असर पड़ता ह। अिभनेता क प म य को सही संदेश क संचार का दािय व अव य
िनभाना चािहए।’’
वह मेरी बात से सहमत हो गया।
बॉलीवुड का सचमुच असाधारण भाव ह।
मेर या ा अिभयान का अगला पड़ाव उ बेिक तान का िवशालतम शहर बुखारा था। शाम को जब म टहलने
गई तो लोकि य गीत ‘तुझम रब िदखता ह’ का धीमा वर मेर कान म सुनाई पड़ा। वह ‘मेरी रब ने बना दी
जोड़ी’ िफ म का गीत था। जैसे छोट ब े हमिलन क पायड पाइपर क पीछ भागने से वयं को रोक नह पाते,
मेर भी पाँव उस संगीत क ोत क ओर चल पड़।
कछ ही िमनट म म एक तालाब क समीप थत एक र तराँ ‘ याबी हाउस’ क सामने प च गई। मने अंदर
जाने क कोिशश क तो गेटक पर ने हाथ क इशार से रोक िदया।
उसने कहा, ‘‘मुझे खेद सिहत कहना पड़ रहा ह िक र तराँ आज पूरी तरह भर चुका ह और सभी मेज बुक हो
चुक ह।’’
मने कहा, ‘‘लेिकन वह मेरा गीत ह।’’ िकसी छह वष य ब े क तरह उ ेिजत एवं गव महसूस करते ए मने
अंदर क ओर इशारा करते ए कहा, ‘‘म उसी देश से आई , िजसका यह संगीत ह।’’
मुझे अंदर जाने देने क िलए गेटक पर मुसकराकर एक ओर हट गया।
शी ता से म मु य क म िव ट ई और सीधे गायक क पास प चकर उसक अदायगी पर यान कि त
िकया। अब तक संगीत बदलकर ‘आिशक 2’ का ‘तुम ही हो’ बजने लगा। गायक ने गाना समा िकया तो मने
उससे कहा, ‘‘म भारत से और यह गीत मेर ही देश का ह।’’
उसने पूछा, ‘‘िहदु तान?’’
मने ‘हाँ’ म िसर िहलाया।
‘‘नम ते!’’ कहकर वह खुशी से झूम उठा, मानो मने उसक मन क बात कह दी हो।
मने आस-पास देखा और र तराँ म मौजूद अ य लोग क बार म पहली बार जाना।
हमने फरती से बात करने क कोिशश क । वह उ बेक और म फारसी िमि त िहदी म बोल रही थी। हम
संवाद करने म सफल नह ए।
तब वह मुसकराया और उसक सुरीली आवाज िफजाँ म गूँज उठी—‘म शायर तो नह ’। थानीय लोग म वह
गीत अव य ही लोकि य रहा होगा, तभी तो कमरा तािलय से गूँज उठा।
यह अंत र अिभयान या खेल म जीत जैसी कोई बड़ी उपल ध नह थी, परतु दुिनया क िकसी अ ात कोने
म भारत का कोई कतरा सुनने क िलए लोग का एक साथ एक होना उनक चाहत का नमूना अव य था। मेरा
मन गव क भावना से भर गया िक म एक िवशेष देश से संबंध रखती ।
यहाँ तक िक इ लड जैसे देश म लोग बॉलीवुड नृ य से यार करते ह। वहाँ क भारतीय र तराँ लोकि य ह
और अकसर बॉलीवुड थीम पर आधा रत ह। आइसलड क रकजािवक म भी ‘गांधी’ नामक र तराँ ह।
व जरलड क इटरलेकन थान पर िस भारतीय िफ म िनमाता वग य यश चोपड़ा क मूित लगी ह और
उरी आ स क पहािड़य पर माउट िटटिलस क वेश ार पर शाह ख खान व काजोल का पो टर लगा ह।
बॉलीवुड ने हॉलीवुड क खान-पान म भी योगदान िकया ह। िम क बार म कला, बादाम, भुनी श र, वनीला
आइस म से बना िप गी चॉ स नामक पेय ह, िजसे प मी हॉलीवुड ने ि यंका चोपड़ा क नाम पर तैयार िकया
ह। दूसरी ओर लूबेरी, लैकबेरी, रसभरी और ॉबेरी िमि त वािद ट शीतल पेय ह, िजसे अिभने ी म का
सहरावत क नाम पर ‘म का शेक’ कहा जाता ह।
युवितयाँ भी अब इन अिभनेि य क तरह कपड़ पहनना पसंद करती ह। मने अपनी सहली क बुटीक म
अनेक लड़िकय को िफ म ‘बड बाजा बरात’ म अनु का शमा और ‘हम आपक ह कौन’ म माधुरी दीि त
ारा पहने गए कपड़ क बार म पूछते देखा ह।
उ बेिक तान से पूव म आइसलड गई। दि ण भारतीय होने क नाते मुझे कभी वेटर पहनने क आदत नह
थी। तब म कपड़ क पाँच परत कसे पहन सकती थी? मुझे लगा िक उस देश क या ा क ित उ सुक
होनेवाली म अकली मिहला थी। म इस बात से आ त थी िक चूँिक वहाँ जमानेवाली सद पड़ती ह, अतः
िकसी भारतीय से मेरी मुलाकात नह होगी।
पूव िनयोिजत दौर क अंतगत अंततः जब म आइसलड प ची तो वहाँ मेरी मुलाकात एक अ छ गाइड से ई,
िजसने ऐसी भाषा म मेरा वागत िकया, िजसे म समझ नह सक । उसने पूछा, ‘‘ या आप थानीय लोग का
‘गे आ’ गीत देखना पसंद करगी?’’
म उसका एक भी श द नह समझ पाई और खामोशी से उसक ओर देखा, िजससे वह अ यंत दुखी नजर
आया। अतः उसने अपने बैग से काजोल और शाह ख खान अिभनीत िफ म ‘िदलवाले’ क डी.वी.डी.
िनकाली।
मेर ऊपर रोशनी पड़ते ही मने हामी भरी, ‘‘हाँ!’’ मने िफ म देखी थी और वह थान देखकर हरान रह गई,
जहाँ उसक एक गीत को िफ माया गया था।
लैक सड बीच क रा ते म उसने मुझे गीत का वीिडयो िदखाया। काले ककड़ और बफ क तैरते टकड़ को
देखकर मेरी साँस कने लगी और मने वहाँ अिधक समय िबताने का काय म रद्द कर िदया।
गाइड बोला, ‘‘हम सब इस गीत को बेहद यार करते ह, य िक इसने आइसलड को आपक देश क लोग
क बीच अ यंत लोकि य बना िदया ह और हमार देश क पयटन संभावना म वृ ई ह।’’
जैसे ही हम वापस होटल क ओर रवाना ए, मेर आगे चलनेवाले पेनी पयटक ने कहा, ‘‘यह बात िब कल
सच ह। हम भी बॉलीवुड से काफ लाभ आ ह। िफ म ‘िजंदगी न िमलेगी दोबारा’ का गीत ‘सेनो रटा’ क
शूिटग पेन म ई थी, िजसने हमार देश को मश र कर िदया। िफ म ने टमाटर उ सव को भी िस िदलाई।”
मने सहमित म िसर िहलाया, “िफ म ने वाकई पेन को भारतीय का पसंदीदा पयटन थल बना िदया। हम
बास लोना एवं मैि ड जैसे शहर और ला टोमैिटनो फ टवल अ यंत खूबसूरत लगते ह। देश क पयटन आय
बढ़ाने क िलए िकसी को िफ म क िनदशक जोया अ तर को पुर कार देने पर िवचार करना चािहए।”
म वापस बैठ गई और मेरा िदमाग बॉलीवुड क ेत- याम से लेकर रगीन िफ म , पृ वीराज कपूर से लेकर
रणवीर कपूर और साल म कवल तीन महीने चलनेवाले घुमंतू टॉक ज से लेकर आज क ऑन िडमांड उपल ध
िफ म क िफ मी सफर तक का च र लगाने लगा।
बॉलीवुड ने िफ म उ ोग क एक अंग से लेकर कारोबारी पीढ़ी क साझीदार तक क प म महारत हािसल
क ह। सबसे बड़ी बात यह िक यह हमार देश का अ ुत राजदूत ह।

9
रासलीला एवं वीिमंग पूल
ह रक था कनाटक रा य का एक पारप रक कला ा प ह, िजसम सू धार या दास अपनी छोटी सी मंडली क
साथ गाँव-गाँव जाकर िहदू धम ंथ क कहािनयाँ एवं वीरगाथाएँ सुनाता ह। मंडली जब हमार गाँव िश गाँव आई
तो लोग बड़ी उ सुकता से सारी रात चलनेवाली कथा सुनने हतु मंिदर म इक ा हो गए। तंबूर क धुन पर नृ य
क मा यम से अनेक कहािनयाँ िदखाई गई। संपूण क य सू धार क कौशल एवं नृ य पर िनभर था।
ऐसी ही एक शाम को म अपनी चचेरी बहन क साथ गोिपका व -हरण क ह रकथा म गई। उस मंडली क
ह रकथा दास सु िस संचालक गोपीनाथ थे, जो भागवत पुराण क कहािनय को मंिचत करने एवं ोता
को मं मु ध करने क िलए िव यात थे। कहािनय क िवषय सामा यतया ीक ण क चपलता , माँ का यार
एवं गोिपय क भ पर आधा रत होते थे।
उस िदन गोपीनाथ ने कहा, ‘‘कपया सब लोग अपनी आँख बंद कर ल। आज वृंदावन शहर का मह वपूण
िदन ह। आइए, मेर साथ टहलते ए सब यमुना नदी क तट पर चल। जल शीतल ह, कमल िखले ए ह और
नदी मंद गित से बह रही ह। एक बार वहाँ प च जाने पर अपने आस-पास देख। आपको वहाँ मण करती
गोिपयाँ िदखाई दगी। उनक कपड़ का या रग ह?’’
एक छोटी लड़क िच ाकर बोली, ‘‘लाल और हरा।’’
दूसरी बोली, ‘‘पीला और नारगी।’’
गोपीनाथ ने कहा, ‘‘अब नदी क िनकट उस बड़ एवं सुंदर हर वृ को देखो। गोिपय ने नहाने क बाद पहनने
क िलए अपने सूखे व उतारकर उस वृ क डाल पर टाँग िदए ह। अब वे नहाने क िलए नदी म उतर गई
ह और जल- ड़ा कर रही ह। आइए, अब क ण को खोज। आपक राय म कहाँ ह वह?’’
ोता म से कोई उ च वर म बोला, ‘‘वह कदंब क पेड़ क पीछ ह।’’
दूसरी आवाज आई, ‘‘वह यशोदा क पास ह।’’
गोपीनाथ िनरतरता म बोले, ‘‘आइए, क ण क पास चल। वह वहाँ पास क एक वृ क ऊची डाल पर
बैठकर अपना समय यथ कर रह ह।’’
मंडली क एक न ही लड़क ने गोपी क वेश म कहा, ‘‘अर, वह तो बड़ा नटखट ह, लेिकन मुझे ि य ह!
उसे देखते ही मेर अधर पर मुसकान आ जाती ह। वैसे, मेरी माँ हमार घर से सारा म खन चुरा ले जाने क
कारण उससे ब त होती ह।’’
अब मंडली ने मंच सँभाला और ह रकथा जारी रही।
एक ी ने कहा, ‘‘मेरी सास ने मुझे क ण से न बोलने का िनदश िदया ह, य िक वह घर क िपछले ार
से िव ट होकर हमारा सारा दूध पी गया।’’
एक िशकायती वर गूँजा—‘‘म अपनी मटक लेकर जब भी जल लेने जाती , वह ककड़ी मारकर उसे तोड़
देता ह। मेरा पित उससे अ यिधक ह।’’
मंडली क गोपी बनी एक अ य लड़क ने जोर देकर कहा, ‘‘हम उसे सबक ज र िसखाना चािहए।’’
गोपीनाथ ने बीच म टोकते ए कहा, ‘‘क ण ने उनक सारी बात सुन ल और चोरी से उनक व छपा
िदए। ान क प ा जब गोिपयाँ वृ क िनकट गई तो आ यचिकत होकर बोल , ‘अर, हमार व तो कह
िदखाई नह दे रह! अब हम इतने कम एवं गीले व म घर कसे जाएँगी? िकसने चुरा िलये हमार व ?’ तभी
उ ह वृ क ऊपर से आती ई मधुर विन सुनाई पड़ी। उ ह ने उस िदशा म देखा तो क ण एक हाथ म व
िलये दूसर हाथ से आँख मूँदकर बाँसुरी बजाते िदखाई पड़ा। ‘अव य ही इसने हमारी सारी बात सुन ली ह। अब
यह हमसे बदला लेगा और आसानी से हमार व नह लौटाएगा।’ अब वे उसक मनुहार करने लग । य ने
या कहा?’’
ोता म से एक लड़क चीखी, ‘‘ह क ण! कपया मेरी साड़ी वापस लौटा दो न!’’
दूसरी गोपी िच ाई, ‘‘और मेरी भी। वह मेरी सबसे अ छी साड़ी ह।’’
गोिपय क आँख अब भी बंद थ । उ ह ने उसी दशा म अपनी-अपनी साड़ी का िववरण देना ारभ कर िदया

‘‘वह लाल िकनारवाली काली साड़ी मेरी ह।’’
‘‘अर, वह हर और आम क रगवाली साड़ी मुझे दे दो।’’
गोपीनाथ स थे। उ ह ने कहा, ‘‘अर हाँ, तुम सबने अब क ण को देख िलया ह।’’
क ण, गोिपय और ोता क म य वा ालाप तब तक जारी रहा, जब तक िक गोिपय ने अपने हाथ
उठाकर आ मसमपण नह कर िदया, ‘‘ह क ण! तुम एक दयालु बालक हो और हमार दय क दशा समझते
हो। कपया हम सािड़याँ लौटा दो, वरना हमार पास गीले व म घर लौटने क अित र अ य कोई िवक प
नह ह। हम पूणतया तु हार ऊपर िनभर ह।’’
गोपीनाथ ने कहा, ‘‘क ण ने मुसकराते ए व को नीचे फकना ारभ कर िदया। गोिपयाँ अपने व
पहनकर पूरी तरह तैयार हो गई तो क ण वृ से नीचे उतर आया और नृ य ारभ हो गया।’’
संपूण वातावरण संगीत एवं नृ य क विनय से गुंजा रत हो उठा और राि क समा स तापूण
वातावरण म ई। ह रकथा दास ने हम अपनी आँख खोलने क िलए कहा। हमने पाया िक ढाई घंट बीत गए थे।
एक न ही लड़क क प म मेर मन म अनेक क पनाएँ उभर । यमुना नदी का बहाव, गुलाबी कमल,
चमक ली व रगीन गोिपयाँ, भगवा क ण एवं उनक नटखट, िकतु क णापूण लीला और बाँसुरी क मधुर
विन इ यािद देखकर म आनंिदत हो उठी!
वष बाद म वृंदावन गई। यह देखकर मुझे अ यंत िनराशा ई िक यमुना एक पूण नदी न होकर गंदी निदका
बनकर रह गई थी। इस थान का अब यवसायीकरण हो गया था।
मने देखा िक लगभग सभी पुजारी भ को धागा बँधे एक वृ क ओर जाने का िनदश दे रह थे। उ ह ने
कहा, ‘‘भगवा क ण ने इसी वृ पर बैठकर गोिपय क व नीचे फक थे।’’
भ ने वृ को नतम तक होकर कपड़ का छोटा सा टकड़ा उसम बाँध िदया।
उसक छिव कहानी क मेरी क पना क अनु प नह थी, अतः म आँख बंद करक लौट पड़ी। मने सोचा िक
यह सब देखकर म अपने बचपन क छिवय को न नह क गी।
बड़ी होकर मने महसूस िकया िक आधुिनक िव म इस कार क कहानी को उ पीड़न माना जाएगा। स य
यह ह िक ऐसी संक पना ाचीनकाल म िव मान नह थी। ई र को एक सवश मान सखा माना जाता ह—
ऐसा िक हम जब चाह, उससे िमल सक और अपनी इ छानुसार कभी भी और कसे भी बात कर सक। इन
कथा का आशय ई र क मानवीय प को उनक ित ा बनाए रखते ए सामने लाना ह। इसीिलए उ ह
आठ वष क नटखट बालक क प म दरशाया गया ह, जो अपने ालु क साथ यार एवं मासूिमयत क
साथ छड़छाड करक आनंिदत होकर अपना समय यतीत करता ह। यही कारण ह िक याँ उसक साथ नाचती
ह और वयं को पूणतया भगवा को समिपत कर देती ह तथा उनक ित अपनी िन ा का दशन करती ह,
िजसक प ा भगवा उनक मनोकामना पूण कर देते ह।
दशक बाद म दो न ही लड़िकय —क णा और अनु का क दादी बनी। जब वे थोड़ी बड़ी ई तो मने अपने
बचपन क कछ कहािनय को उनक साथ साझा करने का िनणय िलया। मने सोचा िक वे मेरी ही तरह य का
अवलोकन करगी।
एक िदन जब म लंदन थत उनक घर म उनक साथ खेल रही थी तो उ ह ने मुझसे कहानी सुनाने का आ ह
िकया। मने उ ह भगवा क ण एवं गोिपय क वही कथा सुनाई। चूँिक वे त मयता से सुन रही थ , इसिलए मने
उसम अ य पा क कहानी भी जोड़ दी।
‘‘ ौपदी अ यंत आित यवा नारी थ और इ थ म रहते ए अनेक अितिथय का वागत-स कार करती
थ । दुभा यवश प र थितय क प रवितत हो जाने क कारण उ ह अपने पितय क साथ लंबे वनवास हतु जाना
पड़ा। वे सोचकर यिथत ई िक अब म अपने अितिथय का पूवव स कार कसे कर पाऊगी।
‘‘उनक पित युिधि र ने सूय देव क आराधना क और उनक सम अितिथय क देखभाल कर पाने म
अपनी असमथता का वणन िकया। अतः सूय देव ने उ ह आशीवाद सिहत एक पा िदया। उ ह ने कहा, ‘यह
एक िवशेष पा ह, िजसे अ य पा कहते ह। इसका योग करक आप अपनी इ छत सं या म अितिथय को
भोजन करवा सकते ह; परतु एक शत पर।’
‘‘युिधि र ने पूछा, ‘वह शत या ह, भु?’
‘‘ ‘गृिहणी क भोजन कर लेने क बाद आप इसम कछ भी पका नह सकते। इस पा का पुनः योग अगले
िदन सूय दय क बाद ही िकया जा सकगा।’
‘‘युिधि र ने कहा, ‘ठीक ह, भु!’
‘‘ ौपदी ने स तापूवक अपने अितिथय को िविवध कार का भोजन कराना ारभ कर िदया।
“शी ही उसक सहष आित य-स कार का समाचार दुय धन क कान म प च गया, िजससे उसे इस त य
क बावजूद िक उसक चचेर भाई वनवास म अ यंत दयनीय जीवन िबता रह थे, बड़ी ई या ई। कछ िदन
प ा ोधी ऋिष दुवासा दुय धन क महल म पधार। वहाँ उनक साथ महा अितिथय जैसा यवहार िकया
गया और उ ह यथा यो य िदए जा सकनेवाले येक उपहार िदए।
‘‘दुवासा ऋिष दुय धन क आित य से अ यंत स ए और आशीवाद देकर बोले, ‘तुमने मेर िश य सिहत
मेरा जो स कार िकया ह, उससे म अ यंत स । अपनी इ छानुसार कछ भी माँग लो, म तु हारी इ छा पूण
क गा।’
‘‘दुय धन और उसक कपटी मामा शकिन ने पहले ही तय कर िलया था िक यिद ऋिष दुवासा उ ह अवसर
दगे तो वे या माँगगे।
‘‘अपने वनवासी भाइय क ित कि म सिद छा का दशन करते ए दुय धन मुसकराकर बोला, ‘मेर चचेर
भाई पांडव अ यंत ावा एवं धमिन ह। यिद आप उ ह भी अपना आशीष द तो मुझे हािदक स ता
होगी। आप अभी चलगे तो देर शाम तक उनक यहाँ प च जाएँगे। बस, म यही चाहता ।’
‘‘दुवासा अपने िश य सिहत थान कर गए।
‘‘ऊपरी तौर पर दुय धन का अनुरोध अ यंत साधारण एवं उसक दय क िवशालता दिशत करनेवाला तीत
आ, परतु वह स य से कोस दूर था। शकिन और दुय धन जानते थे िक दुवासा अपने िश य सिहत जब तक
पांडव क घर प चगे, ौपदी अपना भोजन समा कर चुक होगी और पांडव उन सबको भोजन नह करा
पाएँगे। अंततः दुवासा अ यंत ोिधत होकर पांडव को ाप दे दगे।
‘‘कई घंट क या ा क बाद दुवासा पांडव क िनवास- थान पर प चे और बोले, ‘तु हारा चचेरा भाई
दुय धन एक े ठ यजमान ह। उसने मुझसे तु हारा आित य वीकार करने और तु ह आशीवाद देने क ाथना
क ह। पहले म अपने िश य सिहत समीप थ स रता म ान करने जाऊगा। हमार लौटने तक भोजन तैयार
रखो।’
‘‘दुवासा क जाते ही युिधि र दौड़कर रसोई म जा प चे और देखा िक ौपदी अ य पा को धो रही थी,
िजससे वे अ यंत यिथत ए। ‘ ौपदी, दुवासा अपने िश य क साथ शी ही यहाँ भोजन हतु पधारने वाले ह
और तुम पहले ही अपना भोजन समा कर चुक हो! म उनक ोध का कारण नह बनना चाहता। अब हम
या करना चािहए?’
‘‘सूया त शी ही होने वाला था, िजससे ौपदी िचंितत हो उठी। कोई समाधान न सूझने पर उसका यान
क ण क ओर गया, जो उसक िलए भाई से भी बढ़कर थे। तभी उसने घोड़ क पग विन सुनी और उसक घर
क ओर एक रथ आता आ िदखाई पड़ा। वह ार क ओर दौड़ी, परतु पल भर म ही क ण ने खुले ार से
घर म वेश िकया।
‘‘जब उ ह ने ौपदी और शेष पांडव क लटक ए चेहर देखे तो पूछा, ‘आप सब इतने दुःखी य ह?’
‘‘युिधि र ने उ ह व तु थित से अवगत कराया। क ण ने कहा, ‘पा मेर पास लाइए।’
“उदास ौपदी उ ह अ य पा िदखाते ए बोली, ‘ ाता ी, इसम कछ भी नह ह। आप वयं देख
लीिजए।’
“क ण बोले, ‘बहन, आप एक रानी हो सकती ह, परतु िन य ही एक अ छी दासी कदािप नह । यह देखो,
तुमने चावल का एक दाना इसम छोड़ िदया ह।’ क ण ने दाना उठाकर खा िलया और लंबी डकार ली। ‘म
स और मेरा पेट भर गया ह। भगवा तु हारी र ा कर।’ इतना कहकर वे पांडव क रोकने से पहले ही
वहाँ से िनकल गए।
‘‘इस बीच दुवासा और उनक िश य का ान समा होने वाला ही था िक अचानक उ ह ने महसूस िकया,
जैसे उ ह ने अभी-अभी पूण भोजन िकया हो। उनक पेट अ यंत भर ए एवं संतु ट थे। उ ह ने एक-दूसर क
ओर देखा। एक िश य ने साहस करक दुवासा से कहा, ‘गु वर, हम अपना पेट पूरी तरह भरा आ महसूस कर
रह ह और अब कछ भी नह खा सकते। हम पांडव क िनवास पर जाने का िवचार याग देना चािहए, य िक
हम कछ खा पाने क थित म नह ह गे, िजससे उ ह बुरा लग सकता ह।’
“दुवासा ने मुसकराकर कहा, ‘हाँ, मेर ब चो, म जानता िक तुम सब कसा अनुभव कर रह हो। जीवन म
लोभ क कोई सीमा नह ह। भूख जैसी चीज क भी मयादा ह। एक बार पेट भर जाने क बाद इससे कोई अंतर
नह पड़ता िक तुम या कहते या करते हो, परतु वयं को खाने क िलए िववश नह कर सकते। म पांडव को
यह से आशीवाद दे दूँगा और हम यहाँ से थान कर जाएँगे।’ ”
कहानी समा हो जाने क बाद क णा और अनु का ने मेर चेहर क ओर देखा।
‘‘आज मने तु ह दो कहािनयाँ सुनाई ह। तुम उनक िवषय म अव य सोचो और कल मेर सम उ ह
दोहराना।’’ मने कहा।
दोन लड़िकयाँ पर पर कहानी क चचा करते ए अपने कमर म चली गई।
म स थी िक मने उ ह दो मह वपूण पौरािणक कहािनयाँ अ यंत सरल िविध से िसखा द ।
अगली सुबह ना ता करने क बाद क णा मेर आगे आकर बैठ गई और बोली, ‘‘अ ी, मने आपक कहानी
थोड़ी बदल दी ह।’’
‘‘वह कसे, मुझे बताओ तो जरा?’’
अनु का भी मेर पास आ चुक थी और क णा ने अपनी कहानी शु क , ‘‘क ण एक यारा न हा लड़का था,
जो बड़ा नटखट था। वह अकसर अपने िम क घर जाकर िकसी क अनुमित िलये िबना ि ज खोलकर जो भी
चाहता, खा लेता। इससे उनक माताएँ होती थ । िफर भी हरक को वह ि य था।
‘‘वह िप ा, पा ता, सडिवच, चीज, पनीर, म खन, घी, फल और अपनी पसंद क सारी चीज िनकाल लेता
था।’’ कहते ए अनु का िखिलखलाकर हस पड़ी।
क णा बोली, ‘‘शांत रहो, म कहानी सुना रही । वह ि समस का मौसम था और सभी कल बंद थे। एक
िदन लड़िकय और उनक माता ने इनडोर विमंग पूल पर िमलने का िनणय िकया। जब सार एक हो गए
तो उ ह ने व बदलनेवाले कमर म विमंग सूट पहना, अपने कपड़ लॉकर म रखकर ताला लगा िदया और
चािबयाँ कमर क बाहर पड़ी बच पर रखकर पूल (पोखर) म कद पड़ ।
‘‘बाहर कड़कड़ाती सद क बावजूद वे ज द ही गरम जल क पूल म उतर गई और जल- ड़ा करने लग ।
एक बात जो वे नह जानती थ , वह यह िक क ण भी वह था। उसने पहली मंिजल से लड़िकय को देखा और
पूल क तरफ वाली िखड़क खोल दी।
‘‘लड़िकयाँ उसी क बार म बात कर रही थ । उनम से एक ने कहा, ‘अर, क ण बड़ा आकषक ह, परतु वह
मुझे सताता ह। एक िदन उसने मेरी कक ज खा ल , लेिकन मने िकसी से उसक िशकायत नह क ।’
“ ‘अर, वह अकसर मेरी पिसल चुरा लेता ह।’
‘‘अ य लड़क बुदबुदाई, ‘तु हारी पिसल? वह तो मेर िखलौने भी उठा ले जाता ह।’
“ ‘हम मु या यािपका से उसक िशकायत अव य करगी।’
‘‘क ण ने उनक िट पिणयाँ सुन , व बदलनेवाले कमर म गया और लॉकर क चािबयाँ लेकर वहाँ से
चंपत हो गया।
‘‘तैरने क बाद लड़िकय एवं उनक माता ने ान िकया और लॉकर से अपने कपड़ लेने क िलए एक
हो गई। परतु चािबयाँ गायब थ ।
‘‘उ ह ने कमचा रय से पूछा, ‘हमारी चािबयाँ कौन ले गया?’
“‘मैडम, िदन क इस समय यहाँ कवल लड़िकय को वेश करने क अनुमित ह, कोई अ य वेश नह कर
सकता।’
“एक माँ ने कहा, ‘लेिकन हम सद से दुःखी और गीली ह। हम घर कसे जाएँगी?’
‘‘एक लड़क चीखी—‘मेर नए जूते भी लॉकर म ह।’
“ ‘मुझे यहाँ से एक बथड पाट म जाना ह और कपड़ लॉकर म ह। अब म या क ?’
‘‘प रचा रका बोली, ‘म नह जानती िक या करना चािहए। मुझे कछ िमनट का समय दीिजए, म मैनेजर से
बात करक आती ।’
‘‘अचानक उ ह बजो क धुन सुनाई पड़ी। उ ह ने मधुर संगीत क ोत का पता लगाने क िलए आस-पास
नजर दौड़ाई तो देखा िक क ण उनक ठीक ऊपर पहली मंिजल क आँगन म खड़ा ह। उसक हाथ क एक
उगली म चािबय का गु छा लटक रहा था।
‘‘जब उसे महसूस आ िक लड़िकय ने उसे देख िलया ह, उसने बजो बजाना बंद कर िदया और बोला,
‘लड़िकयो! यिद तुम हडिम स से मेरी िशकायत करोगी तो तुमम से िकसी को भी अपने कपड़ वापस नह
िमलगे।’
‘‘एक लड़क बोली, ‘हम तुम पर मुकदमा चलाएँगी।’
“ ‘तुम सब मेर ऊपर मुकदमा चलाना चाहती हो तो चलाओ, लेिकन कपड़ क बगैर तुम कह भी नह जा
पाओगी और वैसे भी, बाहर बफ पड़ रही ह।’
‘‘लड़िकय ने एक वर म कहा, ‘ह क ण! हम अ यंत खेद ह।’
“ ‘यिद हम िशकायत करना चाहत तो पहले ही कर देत । तुम हम अ यंत ि य हो और तु हारी चपलताएँ
हम यारी लगती ह। इस स चाई को तुम भी जानते हो। इसिलए यह सब बंद करो। इस तरह यहाँ खड़-खड़ हम
सद लग जाएगी। तुम भी नह चाहते िक हम बीमार पड़। य ?’
‘‘क ण मुसकराया और चािबयाँ लड़िकय क ओर फक द । कपड़ पहनकर लड़िकयाँ नजदीक कफ म
क ण क साथ गरम चॉकलेट खाने चली गई।’’ मेरी बड़ी पोती ने अपनी कहानी समा क ।
अनु का ने जोर से ताली बजाई और हसी। उसे कहानी म ब त मजा आया।
अपनी शंसा दरशाने हतु मने िसर िहलाया। त य यह था िक म लंदन म िकए गए कहानी क उस नए
बदलाव हतु पूरी तरह असहज थी। पुरानी कहानी ने मुझे यमुना नदी, शीतल जल, िखलते कमल और क ण का
बाँसुरी-वादन महसूस कराया, परतु ई र क इस शहरी प से खुद को संपृ कर पाना मेर िलए किठन था।
िझझकते ए म अनु का क ओर मुखाितब ई, ‘‘आगे मुझे दूसरी कहानी का कौन सा सं करण सुनने को
िमलेगा?’’
अपनी बारी क ती ा कर रही अनु का ने कहानी शु क , ‘‘ ौपदी एक सुंदर एवं सश रानी थी। एक
िदन उसने शहर छोड़कर सुदूर गाँव म रहने का िनणय िकया। वह वहाँ ोत का साफ पानी पीती थी, पेड़-पौध
से सीधे आहार ा त करती थी और घर आनेवाले सभी अितिथय क िलए भोजन बनाती थी। बहरहाल, कई बार
भोजन कम पड़ जाता था। उसने वह सम या अपने पित
युिधि र क सम उठाई, िज ह ने इस मु े को अपने िम सूय क साथ साझा िकया।
‘‘सूय बड़ा संसाधन-संप था। उसने युिधि र और ौपदी को एक ेशर ककर व कछ यौिगक िदए। सूय ने
कहा, ‘जब कभी तुम इसम चावल पकाओ, उनम इन वा यव क यौिगक को िमला देना। उस पक ए
चावल क दो च मच एक य क िलए पया ह गे। इससे तु ह अिधक मा ा म पकाना और आहार क िलए
घंट भटकना नह पड़गा। लेिकन ौपदी, तु हार एक बार खा लेने और बरतन साफ कर लेने क बाद तुम उस
िदन दुबारा खाना नह पका सकोगी। इससे क टाणु दूर भगाने म सहायता िमलेगी और भोजन क व छता भी
बनी रहगी। इसिलए इसक योग क िवषय म हमेशा सावधान रहना।’
“ ौपदी ने िसर िहलाया और उस िदन से उसने िन य अितिथय क िलए ऑगिनक चावल पकाना शु कर
िदया।
‘‘एक िदन उसक अंकल उसे िबना कोई खबर िदए कई लाग क साथ आ गए। उ ह ने ौपदी से कहा,
‘ ौपदी, मने सुना ह िक तुम बड़ वािद ट चावल पकाती हो। म आज उसका वाद चखना चाहता । म और
मेर साथी पहले तैरने जाएँगे और िफर वापस लौटकर वािद ट भोजन करगे।’
‘‘ ौपदी िचंितत हो गई। पहले तो उसक अंकल ने अपने आने क पूव सूचना नह दी और दूसर, वह ब त
सार लोग क साथ अचानक उसक ार पर भोजन करने क िलए आ धमक। इसक अलावा, ौपदी ने भोजन
करक बरतन भी धो िदए थे। वह अंकल को उनक संतु ट हतु चावल का एक ही दाना देना चाहती थी, परतु
युिधि र ने उसे रोक िदया। ‘अंकल ने कई बार हमारी सहायता क ह, यारी प नी! उ ह कछ मत कहो। तुम
जानती हो िक वे िकतने ोधी ह! हम ऐसा कोई काम नह करना चािहए, िजसका हम बाद म अफसोस हो।’
‘‘ ौपदी िचंितत थी। इतने लोग को अब वह कसे खाना िखलाएगी? उसने त काल अपने भाई क ण को
बुलाया, जो बड़ा दयालु, सहायक और रणनीितक िचंतक था। वह उसक मदद करने आया और ौपदी से कहा
िक अपना पा िदखाओ। क ण ने उसम िचपक चावल क एक दाने को िनकालकर खा िलया।
“ ‘ह म, चावल सचमुच वािद ह; लेिकन मुझे पूरा भरोसा ह िक अब तु हार अंकल और उनक साथी
खाने क िलए वापस नह आएँगे।’
‘‘ ौपदी ने पूछा, ‘ य ?’
‘‘क ण ने एक रह यमयी मुसकान क साथ कहा, ‘वे जानते ह, य ।’ और िकसी अ य से िमलने चला
गया।
‘‘इस बीच विमंग पूल म समूह क येक य ने िफटकरीवाला पानी पी िलया। चूँिक उस िदन पानी म
िफटकरी क मा ा अिधक थी, इसिलए सबने असुिवधा महसूस क और बाथ म क ओर दौड़ लगानी शु
कर दी। अंत म अंकल ने अपने सािथय से कहा, ‘मुझे लगता ह िक हम सब बीमार हो गए ह और इस समय
हमारी ऊजा ीण हो गई ह। अब हम ौपदी क घर भोजन क िलए नह जाना चािहए।’
‘‘समूह ने बड़बड़ाते ए अपनी सहमित दी।
‘‘इसिलए अंकल ने ौपदी क मोबाइल पर फोन करक कहा, ‘मेरी यारी ब ची, मुझे माफ कर दो। आज
हम तु हार घर भोजन करने म असमथ ह, िकसी अ य समय आने का वादा करते ह।’
‘‘ ौपदी मुसकराई। हमेशा क तरह मेरा भैया मेरी मदद करने आज भी आ गया। ‘आपका यहाँ हमेशा
वागत ह अंकल, लेिकन मेहरबानी करक अगली बार मुझे थोड़ा पहले बता दीिजएगा।’”
मेरी िक याँ उड़ चुक थ । कहािनय का कसे कायाक प हो गया था! उस नूतन पांतरण क प ा मेर
अंदर इतनी िह मत नह बची िक म उसे दरबार म ौपदी क चीर-हरण क कहानी सुना पाती।

10
इ फोिसस फाउडशन म एक िदन
शो भा मेर कल क सहिलय म से एक ह। बली जैसे छोट क बे म िनकट थ िसखय हतु एक-दूसर क
साथ अ य भाई-बहन क भाँित िमल-जुलकर रहना सामा य बात ह। जीवन म आमतौर पर मोड़ आते ही ह और
हम भी िभ -िभ मोड़ से गुजरना पड़ा। शोभा बली म बस गई, जबिक म बगलु चली आई। कनाटक म
अ य ब च क तरह उसक ब े भी सॉ टवेयर इजीिनयर बनकर बगलु आ गए। अतः वह ब च से िमलने
बार-बार बगलु आती और जब भी संभव होता, मुझसे िमलती थी।
एक िदन उसने मेर ऑिफस म फोन िकया। चूँिक म एक मीिटग म थी, इसिलए उसक पास संदेश िभजवा
िदया िक म उसे बाद म फोन क गी। जब मने शाम को उसे फोन िकया तो उसने पूछा, ‘‘तुमने मुझे वापस
कॉल करने म इतना समय य लगा िदया?’’
‘‘शोभा, मुझे अपने िनजी फोन का उ र देने हतु अभी थोड़ी देर पहले ही समय िमला।’’
थोड़ी गंभीर आवाज म वह बोली, ‘‘म जानती िक तुम ब त य त रहती हो। लेिकन म तुमसे जब भी बात
करने क मंशा से फोन करती तो मुझे बड़ी किठनाई होती ह—कभी तुम काम कर रही होती हो, या ा कर रही
होती हो या कभी िकसी से िमलने हतु बाहर गई होती हो। जब म समझती िक इस समय तुम घर पर होगी, तब
भी तुमसे बात नह हो पाती। म कवल तु ह अपने पौ क पहले ज मिदन पर आमंि त करना चाहती थी। वह
सोमवार को ह और तुम अपनी सुिवधानुसार जब भी समय िमले, अव य आना।’’
‘‘अर, शोभा! िकसी काय-िदवस, वह भी खासतौर से सोमवार, को तुमसे िमल पाना लगभग असंभव ह।’’
जैसे िक पुरानी सहिलयाँ करती ह, शोभा ने पूछा, ‘‘ या तुम अपनी घिन सखी क िलए एक घंटा भी नह
िनकाल सकत ? म जानती िक तुम फाउडशन क अ य हो और अव य ही अनुदान माँगने हतु लोग िमलने
आते ही रहते ह, लेिकन तुम उ ह िफर िकसी िदन आने क िलए भी तो कह सकती हो। मुझे प ा यक न ह िक
वे दोबारा अव य आएँगे।’’
मने उ र िदया, ‘‘वह इतना आसान नह ह। जयनगर से तु हार घर आने और वापस लौटने म दो घंट लगते
ह। मेरा आधा िदन िनकल जाता ह। फाउडशन म एक-एक िदन अनेक गितिविधय से भरा होता ह, िजनम से
कछ को प ट कर पाना सरल नह ह। जो वहाँ काम नह करता, उसकोे लोग को धन या अनुदान देना सरल
काय लग सकता ह। यिद तुम सचमुच जानना चाहती हो िक म या करती तो आओ, मेर साथ साये क तरह
लगकर एक िदन िबताओ और देखो। शायद तब तुम सामािजक काय क जिटल कित क एक झलक देख
पाओगी।’’
शोभा उ साहपूवक राजी हो गई और एक सोमवार को मेर साथ ऑिफस म समय िबताने हतु आ गई।
उसक आने से म खुश थी। मने उसे बता िदया, ‘‘जैसे ही म अपनी िदनचया शु क , तुम िबना कोई
िट पणी िकए कवल देखती जाना, ठीक ह?’’
उसने मुसकराकर सहमित म िसर िहला िदया।
इस बीच मने अपनी सहाियका आशा को उन लोग क सूची दी, िजनसे मुझे उस िदन बात करनी थी। ज दी
ही फोन क घंटी बजी। हरकत म आकर शोभा ने उ र दे िदया।
एक अ य आवाज आई, ‘‘हम बली से ह और ीमती सुधा मूित को अ छी तरह जानते ह। म उनसे बात
करना चा गी।’’
‘‘आपका या नाम ह, मैडम?’’
‘‘उषा, उषा पािटल।’’
आशा ने मुझसे पूछा, ‘‘कोई उषा पािटल लाइन पर ह, आपक बात कराऊ?’’
बली म उषा एक आम नाम ह और वैसे ही अंितम नाम पािटल ह। म बली म कम-से-कम दस उषा
पािटल को जानती थी, िजनम एक पड़ोसी, एक सहपािठन, एक चचेरी बहन, एक चचेर भाई क प नी, एक
दो त, एक पुजारी क लड़क तथा कछ अ य और। म चिकत थी िक यह श स कौन थी।
मेरी तरह आशा भी आशंिकत थी।
मने आशा से फोन लेकर कहा, ‘‘सुधा मूित बोल रही ।’’
‘‘म उषा पािटल और बली क िनकट एक गाँव कडगोल से बोल रही । मेर बेट को नौकरी चािहए।’’
‘‘ या म तु ह जानती ?’’
‘‘नह , लेिकन आप बली से ह। इसीिलए म आ त िक आप बलीवाल क सहायता अव य करगी।’’
‘‘उषाजी, आपने यह य कहा िक आप मुझे जानती ह?’’
‘‘म आपको अखबार और टलीिवजन क ज रए जानती ।’’ उसने औिच य जताने क कोिशश क —‘‘परतु
मने यह नह कहा िक आप मुझे जानती ह। खैर, उसे छोिड़ए, मेरा पु ज द रोजगार पाने का इ छक ह।’’
मने ढ़ता से कहा, ‘‘इ फोिसस म लोग क भरती क िलए म िज मेदार नह । कपया आप मानव संसाधन
िवभाग को इ-मेल भेज दीिजए। वे अपने िनयमानुसार काररवाई करगे।’’
उसने कहा, ‘‘लेिकन आप एक श द िलख दगी तो आपक अनुरोध को वे नह ठकराएँगे।’’
‘‘मुझे खेद ह उषाजी, परतु यह पेशेवर क िनयु का मामला ह और कमचा रय क िनयु सा ा कार
एवं परी ण क बाद ही होती ह। म फाउडशन चलाती और िकसी अ य िवभाग क ि या म ह त ेप नह
करती।’’
उषा आ त नह थी। वह मायूस होकर बोली, ‘‘ या आप िकसी संपक य का िववरण दे सकती ह?’’
मने उ र िदया, ‘‘आप इ-मेल से र यूमे भेज सकती ह।’’
‘‘ लीज, एक िमनट हो ड क िजए, तािक इ-मेल ए स िलखने क िलए म कागज-कलम ढढ़ लूँ।’’
मेर पास इतजार करने का समय नह था, अतः फोन वापस आशा को थमा िदया, ‘‘उसे भरती िवभाग का इ-
मेल पता दे दो और आज क बाद यिद कोई कह िक वह मुझे अ छी तरह जानती/जानता ह तो यह अव य
पूछना िक या म भी उसे जानती ।’’
म जाकर अपने इ-मेल देखने लगी।
मेरी से टरी लीना बोली, ‘‘मैडम, आज आपक िलए 410 इ-मे स ह।”
सं या असामा य नह ह। ‘‘आओ, इसे ेणी क आधार पर वग कत करक अलग कर ल, िफर नीचे से आरभ
कर।’’
वग करण हो जाने क बाद हम शु हो गए। पहला इ-मेल ऐसा था, िजसम मुझे िकसी देवी क तरह विणत
िकया गया था। मने कहा, ‘‘लीना, िसफ अंितम पं पढ़ो।’’
लीना ने प ट िकया, ‘‘इसम एक मंिदर क िनमाण हतु अनुदान का िनवेदन िकया गया ह।’’
मने कहा, ‘‘फाउडशन िकसी धािमक िनमाण या पुनवास म सहायता नह करता, जब तक िक वह क या
रा य सरकार ारा घोिषत पुराता वक मह व का न हो। मेरी ओर से खेद जता दो।’’
इससे पहले िक लीना और म दूसर इ-मेल क तरफ बढ़ते, ऑिफस म मोबाइल फोन िचंिचयाने लगा, जो
अनेक मेसेजेस क आने का ोतक था। वे सभी एक संदेश क यु र म आए थे, िजसम कहा गया था िक
‘इ फोिसस फाउडशन सभी आवेदक को छा वृि याँ दान करता ह। फाउडशन से तुरत संपक कर।’
फोन क घंिटयाँ भी बजने लग ।
खबर पूरी तरह अस य थी। कई साल पहले फाउडशन ने सीिमत छा वृि य का ताव िकया था, परतु
िनधा रत अविध पूरी होने क बाद उसे िनर त कर िदया गया था। हम इस बात क जानकारी थी िक इसक
बावजूद लोग उस सूचना को वा सएप क मा यम से सा रत िकए जा रह थे। प रणाम व प िव ािथय और
उनक पैर स ने इ-मेल, प एवं फोन क बाढ़ लगा दी।
मने आशा से कहा िक येक न का उ र उसी मा यम से दो, िजस मा यम से वह ा आ था। म
जानती थी िक इससे आशा कछ घंट तक य त रहगी।
यह हो जाने क बाद लीना और मने दूसरा इ-मेल खोला। एक िव िव ालय मुझे डॉ टरट क मानद उपािध
देना चाहता था।
लीना उ ेिजत थी, परतु म नह । शी ही हमने ासंिगक पं पढ़ी, िजसम कहा गया था िक एक बार
डॉ टरट ा कर लेने क बाद आप भूतपूव छा ा बन जाएँगी और हम आ त ह िक उसक बाद आप अपने
तरीक से िव िव ालय क सहायता कर सकती ह।
ह, म तु हारी पीठ खुजलाऊ और तुम मेरी। मने लीना से कहा, “डॉ टरट को िवन तापूवक ठकरा दो।’’
अगला अनुरोध मुंबई क एक कॉलेज क वािषको सव म मु य अितिथ बनने क िलए आया था। आमतौर पर
म अपने काम म बाधक काय म म नह जाती, लेिकन कछक म शािमल होने क कोिशश अव य करती ।
लीना ने मुझे बताया िक काय म तो मा दो घंट का ही ह, परतु मुंबई जाने और वापस आने क या ा म डढ़
िदन लग जाएँगे। पहले मने इनकार करने का िवचार िकया, परतु िफर िव ािथय क िवषय म सोचा, जो मुझे
हमेशा ि य रह ह।
मने कहा, ‘‘यिद उस िदन मुझे िकसी काम से मुंबई जाना हो तो म शािमल हो सकती ।’’
उसने मेरी डायरी क जाँच करक बताया, ‘‘आप उस तारीख को दोपहर बाद बैठक म भाग लेने मुंबई जा
रही ह और सुबह कछ घंट का समय आपक पास उपल ध ह। भा यवश काय म थल हवाई अ क पास
ही ह और आप िवमान से उतरने क बाद सीधे वहाँ जा सकती ह। हम आपक उड़ान को पुनिनधा रत कर सकते
ह और आप बगलु से तड़क रवाना हो सकती ह।’’
‘‘कॉलेज बंधन को बता दो िक म 9.30 से थोड़ा पहले वहाँ प च जाऊगी और अिनवायतः ातः 11 बजे
वहाँ से थान कर जाऊगी।’’
फोन क तेज आवाज ने हमारी बातचीत को बािधत कर िदया और आशा ने फोन उठाया, ‘‘हलो!’’
कछ सेकड म उसने फोन मुझे थमा िदया, ‘‘कसाब लाइन पर ह।’’
म डर गई। िकसी समय कसाब एक पािक तानी आतंकवादी था, िजसे 26/11 को मुंबई क ताज होटल पर
हमले क िलए दोषी िस िकया गया था। जहाँ तक म जानती , उसे फाँसी दे दी गई ह। परतु कई बार जो
िदखाई पड़ता ह, वह होता नह ह। ‘‘ या वाकई वह मुझे फोन कर रहा ह, और य ?’’
मने आशा से कहा, ‘‘एक िमनट मुझे सोचने दो, िफर कसाब से कहना िक म उससे बात क गी।’’
उसने उससे संि बात करक मुझसे कहा, ‘‘कसाब ब त ोिधत ह। वह कह रहा ह िक म एक देशभ
नाग रक और मुझसे पूछ रहा ह िक म उसे इस कार संबोिधत य कर रही ।”
म िद िमत थी। ‘‘तुमने उससे या कहा, आशा?’’
‘‘आप ने सुबह मुझे पहले जो िल ट दी थी, मने उसी से नंबर िमलाकर उ ह हो ड करने का अनुरोध िकया
और इस बीच कॉल आपक फोन पर ांसफर कर दी।’’
‘‘मने तु ह कभी िकसी कसाब का नंबर नह िदया और न ही तु ह उस नाम वाले िकसी य को कॉल
करने को कहा। कसाब जह ुम म जा चुका ह। या तुम जानती हो िक वह कौन था?’’
प र थित क परवाह िकए िबना उसने लापरवाही से जवाब िदया, ‘‘म नह जानती।’’
‘‘फोन मुझे दो।’’
म दूसरी ओर फोन पर एक आदमी क फफकार सुन सकती थी।
मने कहा, ‘‘हलो!’’
‘‘मेर दादा एक वतं ता सेनानी थे और मने पूव िवधायक क प म देश क सेवा क ह। मुझे अपनी
सं कित पर गव ह। मुझे ‘कसाब’ कहकर संबोिधत करने क तु हारी िह मत कसे ई?’’
म सकचाई। आशा ने कसाबे को फोन िकया था, परतु गलत उ चारण क कारण उसक विन क यात
आतंकवादी क नाम जैसी िनकली। यह एक स चे देशभ का पूण िनरादर एवं अपमान था।
‘‘म सुधा मूित बोल रही , सर! एक गलतफहमी क कारण ऐसा आ। मुझे इसका बेहद अफसोस ह और म
आपसे मा-याचना करती । मने अपने टाफ से कहा था िक वह आपको सूिचत कर दे िक आज कह बाहर
जाने क कारण म िववाह म शािमल हो पाने म असमथ । लेिकन म हवाई अ ा जाते समय आपक घर
अव य आऊगी।’’
मेरी आवाज सुनकर वे शांत हो गए। फोन काटकर मने आशा से पूछा, ‘‘तुमने उ ह ‘कसाब’ य पुकारा?’’
‘‘मैडम, िजस समय मने उ ह कॉल िकया, ठीक उसी समय तीन फोन बजने लगे। मने उ ह कसाबे ही कहा
था। हो सकता ह िक उ ह ने गलती से ‘कसाब’ सुन िलया हो। वरना उ ह िभ नाम से पुकारने क पीछ मेरा या
उ दे य हो सकता ह?’’
इस बीच कायालय बंधक क णमूित ने आकर बताया, ‘‘मैडम, पेमट वाउचर तैयार ह।’’
हमार ऑिफस क तरह इसका लेन-देन भी कशलेस (नकदी-रिहत) ह। हमारी यह नीित वष 2016 म करसी
क िवमु ीकरण क दौरान वरदान िस ई, य िक हम अपे ाकत कम भािवत ए।
सी.एस.आर. बंधक शांत ने ह त ेप करते ए पूछा, ‘‘ या आपने हमार कमचा रय क एक अलाभकर
शाखा को िनकट अतीत म अपनी चंडीगढ़ या ा क दौरान समतु य अनुदान देने का वचन िदया ह?’’
मने उ र िदया, ‘‘हाँ, मने िदया ह। यह उ ह हमार कछ सी.एस.आर. यास म संिल करने का अ छा
उपाय ह और इससे उ ह कछ गितिविधय हतु धनाजन क ेरणा िमलेगी। मने इसे हदराबाद, पुणे, मगलोर,
ित वनंतपुरम, चे ई और भुवने र जैसे अ य िवकास क म भी ो सािहत िकया ह।’’
शांत क माथे पर िचंता क रखाएँ साफ नजर आई। ‘‘हम इस वष हतु िनधा रत रािश से पहले ही अिधक
खच कर चुक ह। यह हमारी इस साल क योजना क साथ मेल नह खाता। कपया हमार नवीनतम बजट क
समी ा क िजए।’’
म उसक िचंता समझ गई। शांत िव पर िनगरानी और बजट पर पैनी नजर रखता था।
‘‘हम इसे सँभाल लगे। अ छा यही ह िक हम बजट क िचंता करने क बजाय यो य प रयोजना को तैयार
रख। आव यकता होगी तो हम और धन हतु अनुरोध कर सकते ह। हमार पास ऐसी प रयोजनाएँ ह, िजनम
िवलंब हो सकता ह या जो अभी तैयार नह ह। इसिलए िचंता करने क कोई आव यकता नह ह।’’
चूँिक कभी म ोफसर थी, अतः म अपने ऑिफस म अकसर हरक से अ यािपका क तरह बात करती ।
अिधकांश समय शांत और मेरी काय म िनदेशक ुित हमारी चतुराई भरी बात का िनशाना होते थे, य िक वे
दोन हमारी वािषक बैलस शीट और सी.एस.आर. ल य क ा हतु उ रदायी थे।
मेर िनयिमत ह त ेप क बावजूद उपल ध िव से जब वचनब ताएँ अिधक हो जाती थ तो अकसर दोन
िचंितत हो जाते थे।
अगला फोन ब ेरघ ा रा ीय उ ान क बंधन क ओर से अनुदान पूण करने हतु आया।
िपछली गरिमय म हम पता चला था िक पानी क अ यिधक कमी क कारण पशु को तकलीफ ई।
शासन ने चीत क बैठने हतु एक टब का िनमाण करवाया था, परतु सं मण एवं रोग से बचने क िलए कछ
िदन बाद पानी को बदला जाना ज री था। चीत क बीमार होने पर उनका इलाज कर पाना किठन था, अतः
कयरटकर पानी क कमी क ित हमेशा सतक रहते थे। मने अपने ठकदार को बुलाकर बोरवेल क खुदाई करने
और एक ओवरहड पानी क टक बनाने का िनदश िदया। अनेक लोग ने उस इलाक म पानी क कमी क बहाने
हम रोकना चाहा, परतु हम िकसी तरह आगे बढ़ते गए। हम पशु क भलाई क िलए कोिशश करनी थी।
एक और कॉल हम यह सूिचत करने हतु आई िक बोरवेल म चुर मा ा म पानी था। पशु को अंततः
अ छी ािलटी का पया पेय जल िमलेगा और वे रोग से यथासंभव मु रहगे। मने उस महती कपा हतु
ई र को ध यवाद िदया।
मने लीना पर िनगाह डाली। वह अभी भी या ा, लंिबत मुलाकात, खेद और नई पहल जैसी िविभ ेिणय
क इ-मेल छाँटने म य त थी। हरक अपने काम म म न था। कई बार म महसूस करती िक अिधकतर काम
उिचत तरीक से कर िलया गया ह और मेर पास करने को अिधक कछ नह ह। आमतौर पर कवल कछ नए
ताव अपवाद- व प या वृिदध क कारण मेर सम लाए जाते थे।
वह िकसी आगंतुक से ुित क मुलाकात का समय था। वह ऊपरी मंिजल पर मीिटग क िलए कॉ स म
म गई और म फोन क घंटी अनवरत बजते रहने क बावजूद अपने िलए रखी मेल को कन करने लगी।
कछ िमनट बाद मेर ठकदार ने आव यक अपडट हतु फोन िकया। उसने कहा, ‘‘मैडम, कछ मजदूर एक
ह ता पहले छ ी पर गए थे, परतु अभी तक वापस नह लौट ह। यिद हम कवल मौजूदा मजदूर क साथ काम
चलाना पड़ा तो ोजे ट पूरा होने म एक महीने का िवलंब हो जाएगा।’’
मने िवरोध करते ए कहा, ‘‘तुम ऐसा नह कर सकते। मने उ ाटन हतु मु यमं ी को पहले ही आमंि त कर
िलया ह और येक चीज क योजना बन चुक ह। तु ह िकसी तरह काम अव य पूरा करना होगा।’’
‘‘मैडम, िफर आप ही मुझे बताएँ िक म या क ?’’
म नह जानती थी िक वह या कर सकता ह, परतु लगातार यही कहता रहा िक तेजी से काम पूरा कर देगा।
लंबी बहस क बाद उसने कहा िक वह तेजी से काम करगा और मा 15 िदन का िवलंब होगा। वह उ ाटन
क ितिथ तक समय पर काम िनपटा देगा। अनुभव ने मुझे िसखाया ह िक अिधकतर िनमाण काय म िवलंब होता
ही ह। इस बात से कोई फक नह पड़ता िक कोई य प रयोजना बंधन म िकतना कशल ह। इसीिलए मने
उसे कछ छट दे दी।
तभी ुित ने मुझे अपने साथ मीिटग म भाग लेने का अनुरोध िकया। उसने कहा, ‘‘ ताव से संबंिधत हमार
िनणय क सूचना मने दे दी ह। परतु टीम आपसे िमलने क इ छक ह। उसम तीन लोग ह। म सोचती िक
उनसे अभी िमल लेना ही ठीक ह, वरना वे िफर आएँगे।’’
इ फोिसस फाउडशन म हमारी अपनी नीितयाँ एवं रणनीितयाँ ह। हम राजनीितक दल क िलए िकसी अनुदान
क मंजूरी नह देते और न ही ताव क समी ा क दौरान जाित, वण या धम क आधार पर कोई िनणय िलया
जाता ह। हमारी एक बा नीित ह, येक प रयोजना हतु आंत रक एवं बा लेखा परी ा तथा तृतीय प
मू यांकन िकया जाता ह और िक त म धन क अदायगी क ित हमारा झुकाव होता ह।
चूँिक प रयोजना हमार िलए ेय कर नह थी, अतः ुित ने उसे िनर त करने हतु चुना था।
फाउडशन म हम मानते ह िक यिद िकसी ताव को र कर रह ह तो हम उसक सूचना यथासंभव
शी ाितशी अव य देनी चािहए। आिदिनशू अं यिनशू से अ छा ह, अथा ारिभक िनराशा अंत क
असहमित से बेहतर ह।
‘‘ठीक ह, म चलती ।’’ कहकर म उसक साथ ऊपर चली गई।
अिधकतर लोग मुझसे िमलने पर बल देते ह। कछ लोग सोचते ह िक यिद वे मुझ पर सीधे दबाव डालगे तो म
झुक सकती , परतु वे स चाई से अनिभ ह। ुित और मेरा टकोण सवदा समान होता ह।
परतु मने ुित क सहायता करने क उ दे य से आगंतुक से िमलने का िनणय िकया। मेरी अपे ा क अनुसार
वे अगले तीस िमनट तक अपने ताव क खूिबय पर बोलते रह। अंत म मने कहा, ‘‘अनुदान उपल ध कराना
हमारी इ छा एवं िच पर िनभर नह ह। आप लोग इस त य को कपया समझने का यास कर िक यहाँ कछ
िनयम और ि याएँ ह, िजनका हम पालन करना पड़ता ह। ुित ने सही िनणय से आपको अवगत करवा िदया
ह और दुभा यवश हम आपक राय से सहमत होने म असमथ ह।”
वे ए, परतु इस िबंदु से आगे कछ नह िकया जा सकता था।
कई बार ऐसे अवसर भी आते ह, जब कपनी क िनदेशक अपने पास आए प एवं अनुरोध को हमार पास
भेज देते ह। हम सकारा मक ढग से उनका मू यांकन करते ह और उ ह वीकत या िनर त कर देते ह। म
ि या को भािवत करने क उ दे य से मुझ पर कभी कोई दबाव न डालने हतु बंधन को ध यवाद देती ।
लंच का समय हो गया। चूँिक मेरा घर िनकट ही था, अतः मने शोभा से कहा, “आओ, चल और खाकर
ज दी वापस आ जाएँ।’’
घर प चने पर सुर ा गाड ने सूिचत िकया िक मेरी बेटी अि ता ने फोन िकया था।
जब पलटकर मने उसे फोन िकया तो उसने मेर ऊपर न क बौछार कर दी, ‘‘आप कल कहाँ थ ? या
आप बीमार ह या वहाँ कछ ऐसा आ ह, जो आप मुझे नह बता रही हो? म अ यंत िचंितत थी।’’
म उसक आवाज से चिकत थी। ‘‘म यहाँ बगलु म ठीक-ठाक और बैठक म भाग ले रही । तुम य
िचंितत हो?’’
उसने कहा, ‘‘मने कल सुबह जब िस यो रटी टाफ से बात क तो उ ह ने बताया िक आप टॉयलेट म थ ।
जब मने दोपहर बाद फोन िकया, तब भी वही उ र िमला। यही कहानी शाम को और िफर रात को उ ह ने
बताया िक आप सो रही थ । आज सुबह उ ह ने बताया िक आप ऑिफस जाने क िलए िनकल चुक ह। मने
आपको इ-मेल भेजा, तब भी आपक आवाज सुनने को नह िमली। आप सारा िदन आराम क म य थ ?’’
उसक वर म िचंता क झलक थी।
मने शांितपूवक कहा, ‘‘अि ता, साँस लो! रोजाना थोड़ा ाणायाम िकया करो। म अभी हाल म िनिमत और
उ ाटन िकए गए टॉयलेट का थल िनरी ण करने गई थी। उसक बाद अ य बैठक और उ ह कसे बनाया
जाए, इस पर एक पैनल प रचचा शु हो गई। मने िस यो रटी टाफ से कहा िक म शौचालय प रयोजना काय
हतु जा रही , संभवतः उसने गलत तरीक से समझा और कवल ‘टॉयलेट’ श द उ ह याद रहा। इतना डरो मत!
जहाँ तक तु हार इ-मेल का न ह, अ यंत य त िदन होने क कारण उसे म अभी देख नह पाई ।’’
मने त काल संतु ट का वर सुना।
फोन रखने क बाद म मु य ार पर गई और वहाँ मौजूद सुर ा गाड से पूछा, ‘‘ या मने कल तुम सबको
सूिचत नह िकया था िक म शौचालय प रयोजना क कारण देर से वापस आऊगी?’’
‘‘कल म यूटी पर नह था, मैडम। कलवाले गाड क कान म सं मण हो गया ह, अतः आज उसने छ ी
ले ली ह।’’
लंच क दौरान म और मेरा रसोइया िकराने क सामान क सूची बनाने लगे। वह जानना चाहता था िक रात को
खाने पर िकतने लोग आएँगे और िडनर का मे यू या रहगा। मेरा मन बहरहाल अभी तक ऑिफस क मामल म
ही लगा आ था और वहाँ से अचानक यान हटाकर घरलू बातचीत म शािमल हो पाना मेर िलए किठन था।
मने कहा, ‘‘इस मामले म हम बाद म शाम को बात करगे। तब तक आपक पास जो कछ ह और उससे जो बना
सकते हो, वही बनाओ।’’
ज दी से लंच करक म शोभा क साथ ऑिफस लौट आई।
मेरा अगला सा ा कार ऐसा था, जो काफ समय पहले होना था। सबसे पहले जो तीन लोग िमलने आए थे,
उ ह ने एक साथ बोलना शु कर िदया, िजससे म कछ समझ नह पाई। इसिलए मने उनसे एक-एक करक
बोलने का आ ह िकया।
पहले य ने कहा, ‘‘मुझे इस े म काम करने क िलए अनेक पुर कार िमल चुक ह।’’
दूसर ने बात आगे बढ़ाते ए कहा, ‘‘मेर राजनीितक संबंध ह, िजससे काम बन जाएगा।’’
तीसर य ने कहा, ‘‘सबसे पहले तो म आपको यह बता दूँ िक हम यहाँ िकसिलए आए ह और पेयजल
प रयोजना क मा यम से कसे शहरी गरीब क सहायता कर सकते ह।’’
मने िवन तापूवक कहा, ‘‘कपया, मुझे आपसे कछ न करने क अनुमित दीिजए। आप जहाँ काम करने क
इ छक ह, उस तािवत े म या कभी गए ह? यिद गए ह तो िजन लोग को पेयजल िवत रत िकया जाना
ह, उनक जनसं या या ह और उसम पु ष एवं य का औसत या ह?’’
तीन चुप रह।
मने पूछताछ क िदशा बदल दी, ‘‘आपको पेयजल क आपूित कहाँ से होगी?’’
कोई उ र नह ।
मने पुनः यास िकया, ‘‘ या वहाँ पहले से कोई णाली मौजूद ह, जो िन य ह? और यिद ऐसा ह तो
य ?’’
कोई उ र न पाकर मने हाथ खड़ कर िदए। मने कहा, ‘‘पहले आप लोग इन न क समाधान सिहत एक
संशोिधत ताव और उसक काया वयन योजना तैयार क िजए। उसक बाद हम अगली आंत रक समी ा म इस
पर चचा करगे। आप लोग यिद मुझे उस थान का िववरण द तो म वहाँ का य गत दौरा क गी। इस बात
से कोई फक नह पड़ता िक राजनीितक प से उस े म िकसका भाव ह या िक हम पुर कार कौन देगा।
हमारा ल य िवशेष तौर पर वंिचत या अ प सुिवधा ा लोग ह और हम अपनी कोिशश से उनक मदद
करक उनक चेहर पर मुसकान देखने क आशा करते ह। ’’
तीन लोग िनराश नजर आए, िजसका सवािधक कारण संभवतः यह था िक मने उनक प रयोजना हतु कोई
धन देने का वचन नह िदया।
म उ ह अलिवदा कह ही रही थी, तभी दरवाजे पर द तक देकर लीना अंदर आ गई। ‘‘मैडम, आपको अपनी
या ा योजना पर पुनिवचार करना होगा। आपक अनुप थित म गत स ाह मेर पास पूर देश से िभ -िभ
थान पर प रयोजना िनरी ण हतु अनेक फोन आए। प रयोजना िनरी ण क काय को हम शांत, ुित एवं
आपक बीच िवभािजत करते ह। मुझे ितिथय को तय करने हतु आपका थोड़ा समय आज ही चािहए।’’
मने कमर म लगे कलडर पर नजर डाली और कहा, ‘‘मेर टर स ाहांत म तय करो, तािक काय-िदवस म म
अपना दैनंिदन काय कर सक। यिद मुझे िद ी जाना हो तो एक ही समय म ज मू और लखनऊ सिहत सभी
े ीय प रयोजना दौर क योजना बनाओ। म अनाव यक या ा से यथासंभव परहज करती ।’’
लीना ने िसर िहलाया और आँख म आ मिव ास क चमक िलये वापस चली गई। वह मेरी मण योजना
क पहली अपने आप सुलझा लेगी।
म अपने क म वापस गई। सारी इ-मे स छाँटकर संबंिधत लोग को िनदिशत क जा चुक थ । कवल मेर
िलए बची इ-मेल का मने जवाब देना शु कर िदया।
उसक बाद डाक से आई िचि य क बारी आई। मेर अनेक ल य म से एक अपने कायालय को कागज-
रिहत बनाना ह, परतु उसे म ज दी पूरा होता नह देखती। हम अब भी मुि त पु तकाएँ, अनुरोध-प एवं
िनमं ण-प ा होते रहते ह।
चूँिक म एक लेिखका , अतः मुझे अनेक पु तक ‘स ेम भट’ क प म भी ा होती ह। आजकल एक
मजाक चिलत ह िक लेखक क सं या पाठक क सं या से अिधक हो गई ह। कछ लेखक मुझसे अपनी
पु तक हतु ‘ ा थन’ िलखने का अनुरोध करते ह। अ य चाहते ह िक म उनक पु तक को पु तकालय एवं
िव ालय म भंडारण क मा यम से उनका चार क कछ तथा अपनी पु तक क बार म मेरा िवचार जानने हतु
प िलखते ह। कछ लेखक मेर पास अपनी मूल पांडिलिपयाँ भेज देते ह और मुझसे उ ह वापस भेजने का
अनुरोध करते ह, िजससे अनाव यक बाधा उ प होती ह। पु तकालय हतु आई पु तक को चयन सिमित क
पास भेज िदया जाता ह, जबिक ा थन और िवचार क अनुरोध को मेर अ यंत य त काय म क कारण
िनर त कर िदया जाता ह। आमतौर पर शाम तक मेरी कचर क टोकरी भर जाती ह।
उसक बाद फाउडशन कायालय म मेर पाठक क प क बारी आती ह। उनम िमि त िति याएँ होती ह—
कछ अपने अनुभव को साझा करते ह, कछ मेर लेखन क िकसी प क आलोचना करते ह, जबिक अ य
उनक शंसा करते ह। उन प को अपने िनजी समय म उ र देने क िलए म घर ले जाती ।
एक यूज चैनल से आए फोन ने मेर काय म बाधा डाली। प कार ने मौजूदा सरकार क बार म मेरा िवचार
जानना चाहा। उसने यह भी पूछा िक करसी क िवमु ीकरण एवं उसक काया वयन पर आपक या िवचार ह?
मने िट पणी करने से इनकार कर िदया। मने कहा िक म अपने काम म अ छी हो सकती , परतु मेर पास
ऐसे मामल पर िट पणी करने क कोई वीणता नह ह।
मने प को इधर-उधर करना शु िकया, िजनम से कछ को उिचत उ र हतु लीना क पास रवाना कर िदया।
सेना क शहीद क प रवार क ओर से भी प का एक गु छ था, िजसम हमार छोट से योगदान हतु फाउडशन
को ध यवाद िदया गया था। दो अ य प ने भी मेरा यान आक िकया—एक क सरकार क ओर से आया
था और दूसरा रा य सरकार क ओर से। दोन ही प म कछ प रयोजना म फाउडशन से सहायता का
अनुरोध िकया गया था। उ ह अगले स ाह क आंत रक समी ा क काय-सूची म डाल िदया गया।
लीना मुझे ताजा जानकारी देने हतु कमर म आई। ‘‘मैडम, मने आपक या ा योजना तैयार कर ली ह। आगामी
तीन महीन तक आप ित माह पं ह िदन क या ा पर रहगी। अिधकांश स ाहांत क हािन तो आपको होगी
ही, उसक साथ-साथ आपको अपनी भतीजी क शादी एवं िपताजी क पु यितिथ भी छोड़नी पड़गी। या यह
ठीक ह?’’
‘‘अित सुंदर लीना, ध यवाद! मेर िपताजी ने मुझे िसखाया था िक काम ही पूजा ह। म जानती िक यिद इस
समय वे यहाँ होते तो वयं समझ जाते।’’
लीना ने मेरा या ा िववरण क णमूित को स प िदया, िजसने त ण मेरी िटकट और यथासंभव कपनी क
अितिथ गृह म मेर ठहरने का बंध करना ारभ कर िदया। गे ट हाउस म ठहरने से मेरी योजना क म य
सम वय करना आसान था और इससे धन क भी बचत होती ह, अ यथा मुझे होटल पर खच करना पड़ता।
कछ देर बाद ुित ने आकर कहा, ‘‘मेर पास एक खुशखबरी ह। िजन ब च क हमने गिणत ओिलंपयाड म
सहायता क थी, उ ह एम.आई.टी. और कॉलटक म वेश िमल गया ह। अपनी ेस वा ा म उ ह ने फाउडशन
को हािदक ध यवाद िदया और कहा िक दस हजार पए क हमारी छोटी सी भट ने उ ह िव ान िवषय का चयन
करने हतु े रत िकया। एक इ-मेल पावागढ़ से भी आई ह। ने हीन ब च क िलए काम करनेवाले िन वाथ
वामीजी ने िलखा ह िक िमड-ड मील काय म ब च को िव ालय म रोक रहने म सफल रहा ह। संगीत
क ा हतु िदए गए दान से ब े स ह। अभी हाल ही म उ ह एक पुर कार भी ा आ ह। उ ह ने गव
से मुसकराते अपने मेधावी ब च क एक तसवीर भी भेजी ह।’’
उसक चले जाने क बाद म कछ देर शांत होकर बैठी रही।
फोन क घनघनाती घंटी ने मुझे झकझोरकर अपने िवचार क दुिनया से बाहर िनकाला। अपनी वृि क
अनुसार मने फोन उठाया, परतु उसक ए सटशन पर बैठी लीना पहले ही फोन उठा चुक थी। फोनकता लीना
पर चीखते ए कह रहा था, ‘‘फाउडशन ने जो धन मुझे िदया ह, म उससे अिधक पाने क यो य । तुम कवल
एक से टरी हो। अपने बॉस से मेरी बात कराओ और उसे बताओ िक म कौन । यिद तुम बात नह कराओगी
तो म मीिडया म जाकर फाउडशन क बार म उ ह बताऊगा। अतः सावधान रहना।’’
म त काल लीना क कमर म गई और फोन उससे ले िलया। मने पूछा, ‘‘ या सम या ह, सर?’’
‘‘मने िव ालय हतु दो करोड़ पए का अनुरोध िकया था, लेिकन आपने मा दो लाख प ी दी। यह
फाउडशन क िलए बड़ी तु छ रािश ह। म चाहता नह , प टीकरण क माँग करता । म एक भावशाली
कायकता और यिद चा तो फाउडशन क नाम को कलंिकत कर सकता ।’’
‘‘अव य। म आपको प टीकरण दूँगी। हम ितिदन सौ से अिधक वा तिवक ाथना-प और लगभग दो सौ
फोन आते ह। हम िकसी दबाव म काम नह करते और न ही अपने अनुदान से िकसी लाभ क परवाह ह। हमार
यहाँ एक थािपत ि या ह और अनुदान का िवतरण हम अपने सव म फसले क अनुसार करते ह। गित
समी ा क िबना हम अपने अनुदान म वृिद नह करते। अनुभव ने हम िसखाया ह िक काम वयं बोलता ह।
इसक अलावा यासीगण ह, जो िनणय ि या म शािमल होते ह। हो सकता ह िक हम कल फाउडशन म न रह,
परतु थािपत ि याएँ जारी रहगी। एक बात म आपको और बताना चाहती िक हम मीिडया से िब कल
भयभीत नह ह, य िक हम कोई गलत काम नह करते और न ही कछ िछपाते ह।’’
उस य ने खामोश होकर अपना गला साफ िकया, ‘‘ठीक ह, यिद हम अ छी तरह काम कर और समी ा
म उ ीण हो जाएँ तो या आप अगले वष हमारी सहायता करगी?’’
‘‘शायद! हम अनेक संगठन क सहायता करते ह और उनम से े ठ संगठन से वयं संपक करने म हम
डर नह लगता। कवल काम क गुणव ा हम आकिषत करती ह और हम अपने लाभािथय क संबंध क
धमिकय क कतई िचंता नह करते।’’
मने अ प ट प से सुना, जैसे वह मा-याचना कर रहा हो।
मेर िलए वह अ यंत दुःखद िदन था और म उसे छोड़ने क मूड म नह थी। ‘‘सर, फाउडशन म हमार सम
भी किठनाइयाँ आती ह, परतु हम यह सुिन त करने का यास करते ह िक उनसे दूसर क साथ हमार संबंध
भािवत न ह ।’’ मने अयािचत परामश िदया।
घड़ी पर नजर गई तो लगभग 5.30 बज रह थे। म थोड़ी देर और बैठने क योजना बना रही थी, परतु शोभा
करसी छोड़कर खड़ी हो गई।
उसने कहा, ‘‘म सोचती िक अब मुझे जाना चािहए।’’
उसे िवदा करने क िलए म उसक साथ मु य ार तक गई। रा ते म हम वागत क नजर आया, जहाँ हमने
अपने कछ पुर कार को दिशत िकया था।
पुर कार क ओर संकत करक उसने पूछा, ‘‘ या तु ह इन सब पर गव ह?’’
‘‘बचपन म म गव करती थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया और मेरा अनुभव बढ़ा, मने महसूस िकया िक मुझे
काम से आनंद िमलता ह, न िक इन पुर कार से। आज मेर िलए भले इनक कोई अहिमयत न हो, परतु मेर
संगठन क िलए ये मह वपूण ह।
उसने कहा, ‘‘मुझे बताओ िक तुम अपने शेष वष इस ध यवाद रिहत काय म य खपाना चाहती हो? तुम
बैठकर आराम करो, अपने पोती-पोत क साथ समय िबताओ और अपने जीवन म तनाव कम करने हतु शािदय ,
ज म-िदवस म भाग लो।’’
मने कहा, ‘‘स य यह ह िक म उन सबसे अिधक भा यशाली । मुझे अपने काम से यार ह और इसी क
कारण मेर िलए मेरा येक िदन छ ी का िदन ह। छ ी से कौन यार नह करता!’’
शोभा कार म बैठते ए मुसकराई और िसर िहलाया। अलिवदा का संकत करक म वापस काम म लग गई।

11
म नह , हम कर सकते ह
हा ल ही म म अपने भतीजे क शादी म शािमल ई। वह अपनी उन चचेरी बहन से िमलने का अ ुत अवसर
था, िजनक साथ मने अपना बचपन िबताया था, परतु काफ लंबे समय से िमल नह सक थी। िववाह समारोह
शु आ तो अपनी कछ बहन क साथ म एक कोने म आराम से बैठ गई।
मेरी एक बहन ने बताया, ‘‘म अपने समुदाय म ला टर (हसी) ब क अ य । कभी हमार िकसी स म
आओ। वैसे ही हमारी मुलाकात िकसी से नह होती। इस बहाने कम-से-कम म तु ह कछ समय देख तो
सकगी।’’
बुजुग ी-पु ष को सुबह पाक म एक होकर हा-हा-हा करक हसते देखना सामा य बात ह। कई बार मुझे
आ य होता ह िक िकस तरह लोग ऐसे हस लेते ह। एक बार मुझसे वैसी ही एक सभा म शािमल होने का
अनुरोध िकया गया। म उनसे या और िकस िवषय म बात क गी, मुझे कछ समझ म नह आया। अतः मने
िवन तापूवक इनकार कर िदया।
एक अ य बहन ने कहा, ‘‘म अपने अपाटमट समुदाय म हाउसवाइफ एसोिसएशन क सिचव (से टरी) ।
मने यह बात अपने सद य को पहले ही बता दी ह िक तुम मेरी बहन हो। तुम वहाँ आकर उ ह संबोिधत करो।’’
‘‘लेिकन तुम लोग क िकस िवषय म िदलच पी ह?’’
‘‘तुम एक चतुर िनवेिशका हो। अतः मिहला को बचत करने और अपनी तरह उसे उ च आयवाली
लाभ द योजना म िनवेश करने क सुझाव दो।’’
‘म तु हारी बात ठीक से समझ नह पाई। या तुम इसक बार म थोड़ा खुलकर बता सकती हो?’’
‘‘ठीक ह। हर आदमी जानता ह िक कसे तुमने इ फोिसस म दस हजार पए िनवेश िकए और बदले म लाख
पए बना िलये।’’
मने गंभीर वर म कहा, ‘‘मने वह िनवेश क िलए नह िकया था। वे पैसे अपने पित क व न को पूरा करने
हतु बीज धन क प म िदए थे। वह ऐसा व न था, िजसे उन िदन असंभव माना जाता था। अब वह सफल ह,
इसीिलए तुम मुझे बु मती अरबपित बता रही हो। यिद सफल नह हो पाते तो तुम मेर उसी फसले को एक
मूखतापूण कदम बतात । तुम सबको गलतफहमी ह। म िनवेश क िवषय म बात करने यो य सही य नह ।
इसक बजाय तुम मुझसे पैसा कसे खच करना चािहए, इस िवषय म राय ले सकती हो। मेरी द ता क अनुसार
यह अिधक उपयु रहगा।’’
मेर आस-पास बैठ लोग हस पड़।
तीसरी बहन बोली, ‘‘म एक िवशेष अनुरोध करना चाहती । मेरी सहली क लड़क बड़ी तेज िव ाथ ह
और ... ’’
‘‘ या वह इ फोिसस म नौकरी हतु आवेदन करने क योजना बना रही ह?’’ मने उसे इसिलए टोका, य िक
म सचमुच सहायता नह कर सकती थी।
‘‘थोड़ा धैय रखो!’’ कहकर उसने मुझे रोका, ‘‘मुझे अपनी बात पूरी करने दो। मने सोचा था िक िजस े म
तुम काम करती हो, उसम अब तक तुमने अिधकािधक धैय रखना सीख िलया होगा। लड़क तु हारा मागदशन
चाहती ह। उसक पास पहले ही एक अमे रक िव िव ालय म वेश-प क साथ-साथ नौकरी का भी ताव
ह। वह दोन म से िकसी एक का चयन करना चाहती ह।”
“इस मामले म म अिधक मागदशन नह दे सकती। इसका िनणय प रवार क आिथक थित, लड़क क
मह वाकां ा और क रअर योजना क साथ-साथ प रवार क अ य सामािजक पहलु पर िनभर ह।’’
‘‘आओ, िमलो उससे। उसे वा तव म तु हारी सहायता क आव यकता ह।’’
म उदासीन थी, लेिकन कहा, ‘‘ठीक ह, उससे कहो िक वह कल मेर ऑिफस म ातः 9 बजे मुझसे िमले।’’
अगली सुबह म जया नाम क िठगनी सी लड़क से िमली। वह शरमीली और बेचैन थी।
म उसे सामा य एवं संयत बनाना चाहती थी, अतः उसे बैठने क िलए कहा और एक कप चाय िपलाई। उसक
बाद मने उसक माकशीट माँगी। उसका शै िणक रकॉड काफ अ छा था। मने इधर-उधर क बात करने क
बजाय उससे सीधे पूछा, ‘‘जया, तु हार मन म या चल रहा ह? अगले दस वष म तुम खुद को कहाँ देखना
चाहती हो?’’
वह चुप रही।
मने अपना न िफर दोहराया, ‘‘तुम कॉरपोरट ोफशनल बनना चाहती हो या िश ा क े म जाना चाहती
हो या शायद कछ और?’’
उसने अब भी कोई उ र नह िदया।
मने मुसकराते ए उससे पूछा, ‘‘ या तुम मुझसे डरी ई हो? म शैतान जैसी िदखाई देती ?’’
वह मुसकराई और अपने िसर को जोर से िहलाया। उसक बाद वह अ यंत कोमल वर म अपने भिव य क
योजना क बार म बताने लगी।
मने देखा िक उपल धय क बावजूद उसम आ मिव ास नह था।
मने कहा, ‘‘जया, शै िणक उ क ता ही सबकछ नह ह। तु हार अंदर आ मिव ास होना चािहए। हमारी
िश ा- णाली क एक कमजोरी यह ह िक यह हम गुणव ा नह िसखाती। हमार माता-िपता, समाज और भरती
ि या सवािधक यान हमार ा ांक पर देते ह। म तु ह ऐसे अनेक लोग क उदाहरण दे सकती , जो अिधक
पढ़ नह थे, परतु उ ह ने अपने िलए अ छा िकया; य िक उ ह अपने ऊपर िव ास था। आ मिव ास का यह
अथ नह िक सबकछ हमार इशार पर चलेगा। वह तो हम हमार माग म आनेवाली अप रहाय असफलता को
वीकार करने क यो यता दान करता ह और आगे बढ़ने क आशा जगाता ह।’’
िबना िकसी चेतावनी क जया ब ची क तरह सुबकने लगी। दय-िवदारक य था।
सव थम म च क । मने सोचा, शायद मने उसका वभाव जाने िबना ही उसे अिधक कड़ी खुराक दे दी थी।
भारत म हमम से अिधकांश लोग को अयािचत परामश देने म महारत हािसल होती ह और म भी कोई अपवाद
नह ।
मने उसे एक िटशु पेपर िदया और कहा, ‘‘जया, यिद मने तु हारा िदल दुखाया हो तो मुझे अफसोस ह। परतु
म नह जानती िक तु ह या क । तुम मुझे यादा बता भी तो नह रही हो।’’
लड़क ने शांत होकर अपने आँसू प छ। बोलते समय उसक आवाज काँप रही थी, ‘‘नह मैडम, म आपक
सलाह सुनकर नह रोई। स चाई यह ह िक अिधकतर लोग क सम म खुद को कमजोर महसूस करती ।’’
‘‘ य ? तु हारी उ का कोई भी य इतनी अिधक उपल ध ा करक वयं को गौरवा वत महसूस
करगा।”
थोड़ी देर चुप रहने क बाद वह बोली, ‘‘मैम, मेर िपताजी शराबी ह।’’
म चुप रही।
इस बार वह कछ अिधक प टता से बोली, ‘‘अब वे ‘ए ए’ म ह, परतु मेर बचपन म काफ िभ थे। वे
अकसर शराब पीकर मेरी माँ को गाली देते थे। उ ह ने ब त यातना सही और मेर पास उनक सहायता करने का
कोई उपाय नह सूझ रहा था। म अपने पापा क ोध से डरी ई, अ स एवं तनावपूण माहौल म बड़ी ई।
तब मने सोचा िक हालात को बदलने का मेर पास कवल एक ही उपाय ह िक म कड़ी मेहनत करक खूब पढ़ाई
क और कोई नौकरी हािसल क , तािक माँ को लेकर वहाँ से कह और चली जाऊ। मेरी एक छोटी बहन भी
ह। लेिकन माँ अपना घर नह छोड़ना चाहती। वह हमेशा िचंितत रहती ह।’’
‘‘म तु हारी माँ क मजबू रय को समझ सकती । हमार समाज म अपने पितय से अलग रहनेवाली
मिहला क बार म अनेक लोग क यही िचंता होती ह िक उनक बेटी क वैवािहक संभावनाओ पर िकतना
असर पड़ता ह।’’
‘‘आप ठीक कह रही ह, मैम। माँ कहती ह िक मुझे बाहर चले जाना चािहए और लौटकर िफर कभी भारत
नह आना चािहए। वह चाहती ह िक म जाित और धम का िवचार िकए िबना िकसी अ छ य से शादी कर
लूँ। उसक कवल एक ही शत ह िक वह िपय ड़ नह होना चािहए। परतु म माँ और बहन को पीछ छोड़कर
जाना नह चाहती। म उनक खाितर यह रहना चाहती । म अ यंत िद िमत , मैम। इसी कारण आपक
सलाह चाहती ।’’
‘ए ए’ श द मेर िदमाग म घूम रहा था। मने पूछा, ‘‘ए ए या ह?’’
‘‘गुमनाम शराबी। यह अ कोहल क आदी ी-पु ष क सहायता करनेवाला समूह ह। िपताजी को संयमी
बनने म अनेक वष लगे। परतु उनक कारण जो अँधेरा छाया, वह मेर दय और जीवन पर थायी दाग छोड़ गया
ह। म उनक साथ अपनी कोई िनजी बात साझा करना पसंद नह करती और न ही म उनसे कोई सलाह लेती ।
मेर मन म उनक ित कोई आदर नह ह।’’
‘‘जया, म ‘ए ए’ क िवषय म यादा नह जानती, परतु हम उन प र थितय का ान नह ह, िज ह ने उ ह
शराब क ओर मोड़ा। वे अब बदल चुक ह और ऐसा लगता ह िक अ छा आदमी बनने क जी-तोड़ कोिशश
कर रह ह। सव म उपाय यही ह िक न तो तुम होओ और न ही सम या से भागने क कोिशश करो।
उनक साथ बातचीत शु करने का कोई ज रया खोजो। तु हार िपता अपने अतीत क क य हतु खेद अव य
जताएँगे। या तु हारी माँ क ित उनका यवहार अब ठीक ह?’’
‘‘हाँ, जब से उ ह ने शराब छोड़ी ह, वे माँ क साथ अ छा बरताव करते ह।’’
मने जान िलया िक अब वह पहले से अ छा महसूस कर रही ह।
‘‘जया, तुम उ ह लेकर िकसी सलाहकार क पास जाओ और चीज को समझो। िकसी तीसर प क सहायता
लेने से चीज को अिधक प टता से समझने म मदद िमलती ह। तुम एक वष क िलए अपना वेश थिगत
करक यहाँ काम करना शु करो। अविध बीतने क बाद अपने जीवन का वयं या सलाहकार क सहायता से
पुनमू यांकन करो और तब तुम सही िनणय कर पाओगी। इतनी बड़ी िजंदगी म अपनी भलाई समझने क िलए
एकाध वष लगा देना लाभदायक ह।’’
वह मुसकराई और उसक आँख खुशी से चमक उठ । उसने मुझे ध यवाद िदया और िवदा हो गई।
उस िदन मेर िवचार पर ‘ए ए’ हावी रहा। फाउडशन म हम मुसीबतजदा लोग तक प चने हतु पहले ही
यिथत रहते ह। धम का वतः यही अथ ह िक हम परशान लोग क सहायता कर, िबना यह सोचे िक वह
कौन और कहाँ से ह। यह िब कल शु एवं सादा ह और मेर मन को आसानी से शांित नह िमलेगी। इसक
अित र , हमने इस कार क सम या पर पहले कभी काम नह िकया था और मेर िलए पहले उसे समझना
ज री था। मने ‘ए ए’ क िवषय म ऑनलाइन कछ सूचना ा क , परतु वह पया नह थी। मेर िदमाग म
िविवध न द तक देने लगे। वह या था और एक शराबी क जीवन म उसने सचमुच या भूिमका िनभाई?
िकसी भी ी या पु ष को कौन सी चुनौितय का सामना करना पड़ता ह? या िकसी क आिथक या
पा रवा रक थित से इसम अंतर पड़ता ह? परामश से कसे सहायता िमलती ह? शराब छड़ाने क सफलता दर
या ह और वहाँ से संयिमत य कहाँ जाता ह?
यह प ट था िक मुझे अिधक जानकारी ा करने क आव यकता थी। म िकसी ऐसे य से िमलना
चाहती थी, जो उस सम या को थोड़ा बेहतर तरीक से समझता हो। मुझे एक पुरानी सहली क धुँधली सी याद
आई, िजसने कई वष पूव बताया था िक उसका दामाद इस लत का िशकार ह। म संपक बनाए रखने क मामले
म ब त अ छी नह थी और आशंिकत रही िक वह मुझसे इस बार म बात भी करगी या नह ।
एक चांस लेने क िलए मने उसे फोन िकया। म संकोच कर रही थी। उसने फोन उठाया तो हम दोन ने कछ
देर अपने गुजर जमाने क बार म बात क । अंततः मने उससे पूछा, ‘‘कई साल पहले तुमने मुझे बताया था िक
तु हारा दामाद रमेश नशा-मु क गया ह। अब वह कसा ह?’’
‘‘ई र क कपा और ‘ए ए’ क सहायता से अब उसक लत छट गई ह और वह बड़ मजे म िजंदगी गुजार
रहा ह।’’
‘‘अगर म उससे उसक ुप क बार म कछ न क तो या वह बुरा मानेगा? म उसक मरजी से ही बात
क गी। म तु ह आ त कर सकती िक यह बात म अपने तक ही सीिमत रखूँगी।’’
‘‘ज र, म उससे इस िवषय म बात क गी। यिद वह बात करने को तैयार होगा तो म तु ह उसका फोन नंबर
मेसेज कर दूँगी।’’
“ध यवाद!”
दस िमनट क अंदर मुझे रमेश का संपक िववरण िमल गया और मने उसे त काल फोन िकया। फोन क दूसरी
ओर जो वर सुनाई पड़ा, उससे लगा जैसे वह य लगभग चालीस वष क उ का होगा।
रमेश बड़ी गमजोशी से बोला, ‘‘आंटी, मुझे इस बात क खुशी ह िक आप ‘ए ए’ क बार म कछ जानना
चाहती ह। म आपको अपनी दा तान सुनाऊगा और आप चाह तो उसक बार म िलख भी सकती ह। यिद मेरी
गलितय से िकसी को कछ सीखने का अवसर िमले तो इससे अ छा या होगा।’’
मने सुझाव िदया, ‘‘तुम भोजन करने हमार यहाँ य नह आ जाते! तब हम आराम से बैठकर बात करगे।’’
ज द ही हमने घर म लंच पर िमलने का िनणय िलया।
अपने आ मिव ास और आचरण क अनुसार वह समय पर प च गया। हम खाने क मेज पर बैठ गए। वहाँ
िकसी औपचा रकता एवं िवन वा ालाप क कोई आव यकता नह थी।
िबना िकसी लाग-लपेट क म सीधे मु े पर आ गई और उससे कहा, ‘‘ए ए क साथ अपने अनुभव क बार
म मुझे बताओ।’’
‘‘मने आपक पु तक पढ़ी ह, िजसका शीषक था—‘वह िदन, जब मने दूध पीना बंद िकया’। परतु यिद मुझे
िलखना होता तो उसका शीषक कछ इस तरह होता—वह िदन, जब मने शराब पीनी शु क ” कहकर वह
शरमा गया।
‘‘म बताता िक यह सब कसे शु आ।
‘‘म एक िढ़वादी प रवार म पैदा आ। जब हम ब े थे तो हमसे सूया त से पूव घर प च जाने क अपे ा
क जाती थी और यहाँ तक िक चाय या कॉफ पीने क भी अनुमित नह थी। तरल पेय क नाम पर कवल दूध,
पानी और तीथा (पिव जल) पी सकते थे। म अ यंत मेधावी छा था और मने बारहव क ा उ म अंक क
साथ उ ीण क ।
‘‘कछ िदन क बाद मेर कछ सहपािठय और मने ज न मनाने का िनणय िकया। हमने एक र ाँ म जाकर
हाड ि क का ऑडर िदया। उससे पहले मने ए कोहल कभी नह चखा था। मेरा सहपाठी, जो कग क एक
कॉफ िकसान का पु और मेरा करीबी दो त भी था, उसने मुझे िववश िकया—‘अर, आओ न यार, एक-एक
पैग ि क हो जाए! आजकल सामािजक तौर पर पीना वीकाय ह और इसम कोई हािन भी नह होती। एक या दो
पैग पीने से तु ह परी ा म हािसल ए अंक से भी यादा खुशी िमलेगी। इसे लो।’ कहकर उसने बफ डालकर
ह क का एक पैग मुझे थमा िदया।
‘‘हमम से अिधकांश नौिसिखए थे। हालाँिक उसका वाद थोड़ा खराब था, िफर भी हम सबने पीने क बाद
अ छा महसूस िकया और कछ राहत भी िमली। कछ समय तक मुझे ऐसे महसूस आ जैसे म हवा म उड़ रहा
। संगीत अ छा था और मेर आस-पास क दुिनया बेहद खूबसूरत लगने लगी। वहाँ कोलाहल था, िजसका मने
खूब आनंद िलया।
‘‘शाम रात म बदल गई और हमने खाने का ऑडर दे िदया। हालाँिक उन िदन म बड़ा पेट था, िफर भी, मेरा
मन कछ भी खाने को न आ। खाने क बजाय म चुपक से बार म प च गया और वहाँ दूसरा पैग ले िलया। मेज
पर बैठ दो त ने तािलयाँ बजाई, ‘पहले तुम िकतना डर रह थे और अब देखो अपने आपको।’
‘‘पीते-पीते काफ रात गई। मेर दो त ने अपनी कार म मुझे घर छोड़ा। चूँिक काफ देर हो चुक थी, मेर
पैर स पहले ही सो गए थे, इसिलए अंदर जाने हतु मने अपनी चाबी इ तेमाल क और जाकर िब तर पर लुढ़क
गया।
‘‘अगली सुबह 7.30 बजे तक म िहला भी नह । जब मने अपनी आँख खोल तो सूय क िकरण िखड़क क
आर-पार तेज चमक रही थ ।
‘‘उस िदन देर हो गई। आमतौर पर म सुबह 6 बजे उठ जाता । जब माँ ने मुझे देखा तो पूछा, ‘तु हारी
तबीयत ठीक नह ह या?’ मने अपना िसर िहलाया, जो भारी महसूस आ और मुझे हलका िसरदद भी था।
“ ‘कसी रही पाट ?’
“ ‘अ छी थी।’
‘‘बाथ म म जाकर मने ान िकया, उसक बाद थोड़ा बेहतर महसूस आ। उसक बाद म अपने दैिनक
काय म लग गया और िदन ढलने क बाद ए कोहल क बार म सोचा। पीने क बाद िजस ऊचाई पर वह मुझे ले
जाती थी, उससे म अ यंत आनंिदत होता।
‘‘कछ िदन बाद मेरी दोबारा पीने क इ छा ई, अतः मने अपने दो त को फोन िकया। वह हसकर बोला,
‘नो ॉ लम, मैन। आओ, एक और पाट कर लेते ह।’
‘‘इस बार कवल हम दोन ही थे। मेर दो त ने मुझे िभ -िभ कार क ए कोहल क ािलटी और क मत
क बार म िसखाया, य िक म उ सुकता से अपने पैग का इतजार कर रहा था। हमने िनयिमत तौर पर िमलना
शु कर िदया और म अनजाने ही ए कोहल का आदी हो गया। मेरा मन अब पीने क िलए रोजाना ललकने
लगा।
‘‘एक महीने बाद मुझे मुंबई क एक कॉलेज म वेश िमल गया और मने घर छोड़ िदया। अब म पूरी तरह
आजाद था और मुंबई म मेरा हाथ पकड़नेवाला कोई नह था। मने अलग-अलग सहपािठय क साथ पीना शु
कर िदया। हगओवर क कारण या िपछली रात ठीक से न सो पाने क कारण क ाएँ छोड़ने क बावजूद मने
अ छ अंक पाने का बंध कर िलया। यहाँ तक िक मुझे अ छी नौकरी भी िमल गई, िजससे मुझे अ छी आय
होने लगी। वह भी मेर िलए अिभशाप बन गई, य िक अिधक यय वहन कर सकने क कारण म पीने भी
अिधक लगा।
‘‘कछ वष बाद मुझे बगलु ांसफर कर िदया गया। तब तक मेर पैर स ने ऊपरी मंिजल पर घर बनवा िदया
था और मने उनसे कहा िक म उसी म रहना पसंद क गा। एक सुंदर लड़क क साथ यव थत प से मेरा
िववाह हो गया। परतु जब प नी ने मेर साथ रहना शु िकया तो कछ ही िदन म उसे मेरी पीने क लत का पता
चल गया। होकर वह मेर बेबस माता-िपता से लड़ पड़ी, य िक उसे लगा िक उ ह मेर शराब पीने क लत
क जानकारी थी और उ ह ने जान-बूझकर उससे िछपाया था।
‘‘माँ अ यंत भयभीत हो गई। उसे मेरी लत क कोई जानकारी नह थी। िजस एकमा ल ण का उसे ान
आ, वह यह िक म जरा-जरा सी बात पर ोिधत होने लगा था; लेिकन उसक मायूसी ने मेर काय थल पर
तनाव अव य बढ़ा िदया। िन य ही उसक ोध का कारण म ही था। अतः म प नी क साथ एक धम पदेश
ितिदन सुनने लगा, िजससे मुझे बड़ी खीझ होने लगी। प नी मुझे ख चकर मंिदर और गु क पास ले जाने
लगी। उ ह ने मुझ पर िजतना अिधक दबाव डाला उतना ही अिधक म ु ध होने लगा। इन सबक बावजूद प नी
ने मुझ पर अपना िव ास बनाए रखा। वह कहती, ‘आप बु मान ह और यह आदत छोड़ सकते ह। म यह भी
जानती िक आप अपनी इ छा को िनयंि त कर सकते ह।’
‘‘कभी-कभी उसक बात से मुझे श िमलती, परतु म ए कोहल से दूर िफर भी नह हो पाया।’’
म आ यचिकत थी। इस आयु और ऐसे िदन म यह िकसी क साथ भी हो सकता था। मने उसे रोक िदया।
‘‘अ छा, अब यह बताओ िक ए ए क िवषय म तु ह जानकारी कसे िमली?’’
‘‘आंटी, अब आप मेरी या ा को अव य समझ सकती ह। म िदनोिदन बदतर होता गया और अपनी ही पैदा
क गई सम या म डबता गया। एक िदन मुझे कग क अपने पुराने िम का फोन आया। वह अपने कजन क
साथ बगलु आ रहा था और उसने मुझे होटल म बुलाया। उसक बात सुनकर म अ यंत स आ और
सोचा िक िम क साथ एक यादगार शाम िबताएँगे। अंत म जब मने उसे देखा तो िचंता म पड़ गया। जवान
और सुंदर लड़का एक बूढ़ आदमी क तरह िदखाई पड़ा, जो अ थपंजर मा बनकर रह गया था।
‘‘मुलाकात क थोड़ी देर बाद मने उससे पूछा, ‘ या हम कछ पीने क िलए मँगाएँ?’
“ ‘मेर सामने शराब का नाम भी मत लो। यह मेरी जान ले रहा ह। ब त िदन पहले मने शादी करने से
इनकार कर िदया। मेर माता-िपता ने मुझे इस नरक से बचाने क कोिशश क , परतु अब मुझे लीवर िसरोिसस हो
गया ह। म तु ह बता नह सकता िक मुझे अपने अतीत क ित िकतना खेद ह! म एक सं ांत प रवार म पैदा
आ और कग जैसे अ ुत थान पर बड़ा आ, जहाँ म कछ अ छा कर सकता था। लोग हमेशा वहाँ छ याँ
िबताने क योजना बनाते ह और म पहले ही वग म रह रहा था। मुझे कित िवशेष होना चािहए था, लेिकन म
ए कोहल िवशेष बन गया। मेर पास अब अिधक समय शेष नह ह। मेर पुराने अजीज दो त, अपना जीवन
बरबाद मत करो। मुझसे कछ सीखो। मृ यु क समीप बैठा य हमेशा स य ही बताएगा। यह रोग कसर से भी
बुरा ह। यिद तु ह कसर हो तो लोग तु हार साथ हमदद जताएँगे और ऐसी अनेक दवाइयाँ और श य िचिक सा
उपल ध ह, िजससे तु ह पुराने जीवन म लौटने का अवसर िमल सकता ह। लेिकन एक म , िजसक सामने
अँधेरा-ही-अँधेरा ह। ई र का ध यवाद िक म िववािहत नह , अ यथा एक अ य य का जीवन भी न
कर देता।’
‘‘उसक श द ने मुझे झकझोर िदया। यह सब इसक साथ कसे आ होगा? हम जैसे लोग ने ऐसी िजंदगी क
क पना भी नह क होगी।
‘ ‘घर आकर म सारी रात करवट बदलता रहा। म उसक और अपने बार म सोचना बंद नह कर सका। मेरा
जीवन नरक बन चुका था। कई बार रात को अिधक पी लेने क कारण अगले िदन काम पर नह जा पाता था।
मुझसे कम होिशयार लोग पदो ित पाने लगे और मुझे बार-बार नजरअंदाज िकया जा रहा था। मुझे पया
भरोसेमंद नह समझा जा रहा था। इस बीच मेरी हालत क बार म माँ और प नी से र तेदार ारा लगातार
पूछताछ क जाती रही। यह बात िदन क रोशनी क तरह साफ थी िक म भी उसी नाव का मुसािफर बन गया
था, िजसम मेरा दो त सवार था। येक िवचार ने मुझे अंदर तक िहला िदया।
‘‘अगले िदन ातःकाल मेर िम क होटल से उसक कजन का फोन आया। उसने कहा, ‘तु हार दो त क
कल रात मृ यु हो गई ह। उससे िमलनेवाले तुम िआखरी य थे।’
‘‘म आ य और डर क मार थरथर काँपने लगा। वह मेर जीवन का िन नतम िबंदु था और म अपने शरीर
को काँपने से नह रोक सका। कपन बंद होने क बाद मने शराबवाली अलमारी से ए कोहल क सारी बोतल
िनकालकर कचर म फक द ।
‘‘अपने प रवार क सहायता से मने ‘ए ए’ क बार म जानकारी ा क और शराब नशा-मु िशिवर म
भरती हो गया। मुझे संयिमत होने म कछ वष लगे और तब से म ऐसा ही । अब मने अपना जीवन उन लोग
क सहायता म अिपत कर िदया, जो शराब क कारण दयनीय दशा म ह। म उनक साथ काम करता और उ ह
समझाता िक जीवन म अब भी आशा ह। वे अब भी ठीक हो सकते ह।’’
अपनी बात पूरी करने क बाद उसने अपना बैग खोला। उसने उसे कछ सेकड तक उलट-पलटकर उसम से
एक पु तक िनकाली और मुझे थमा दी। “यह पु तक ‘ए ए’ और उनक बारह िस ांत ( ट स) पर ह। इनम
िजन लोग को हमने यिथत िकया ह, उनसे मा-याचना, दूसर क सहायता और ई र को आ मसमपण
शािमल ह।’’
पढ़ने क इ छा से मने उससे वह पु तक ले ली।
उसने कहा, ‘‘आंटी, म अपने अतीत पर बेहद शिमदा ; परतु मुझे इस बात का गव भी ह िक म उसे पीछ
छोड़ चुका । मुझे वापस लाने म मेरी प नी और माँ ने मह वपूण भूिमका िनभाई ह।’’
इतना सबकछ जानकर म अचंिभत थी। उसने मेर िलए एक नया ार खोल िदया था।
उसने कहा, ‘‘आंटी, आप एक ‘ए ए’ मीिटग म अव य जाइए, लीज। वहाँ खुली और बंद दो कार क
बैठक होती ह। खुली बैठक म कोई भी जा सकता ह, जबिक बंद बैठक कवल सद य क िलए होती ह।
इले ॉिनक िसटी म कल एक खुला स आयोिजत ह, जहाँ म चेयरमैन ।’’
मने च कते ए ऊची आवाज म पूछा, “चेयरमैन?”
‘‘हाँ, परतु श द क िनयिमत अथ म नह । वहाँ चेयरमैन एक कार से गु होता ह, जो अपने अनुभव बताता
ह, अपनी या ा क चुनौितय और कमजो रय क बार म भी बताता ह। वह सद य को कछ िमनट क नशे क
इ छा पर िवजय पाने क नु खे भी देता ह, तािक य पीने क इ छा याग सक।’’
मने कहा, ‘‘म कल तु हारी बैठक म शािमल होऊगी। तुमने अपनी कहानी मुझे इसिलए बताई, य िक तुम
मुझे जानते हो; लेिकन अ य लोग अपने जीवन क अंधकारमय ण को मेर साथ य साझा करना चाहगे?’’
‘‘एक बार म आपको खुले स म ले जाने क अनुमित अ य सद य से ले लूँ तो कोई िद त नह होगी।
उनम से यादातर लोग बात करने क इ छक होते ह, य िक वे सम या को पहचानते ह और वा तिवक प से
संयिमत बनना चाहते ह। वे नह जानते िक इसक िलए वे कहाँ जाएँ, तभी ‘ए ए’ उनक जीवन म वेश करता
ह।’’ उसने धैयपूवक प ट िकया।
‘‘अब तुम वयं गु हो तो तु हार बार म या क ? अब तु ह िकससे बात करनी ह?’’
उसने मुसकराते ए कहा, ‘‘मेरा भी एक गु ह और म उससे सा ािहक भट करता । िआखरकार म भी तो
इनसान ही न!’’
हमारी बातचीत दूसरी िदशा म मुड़ गई और हमने कछ देर दशनशा पर बात क । उसक वापस जाने का
समय हो गया तो उसने कहा, ‘‘कल िमलूँगा आपसे। म आपको चच क जगह क बार म सूिचत कर दूँगा।’’
मने उ सुकता से पूछा, ‘‘तुम चच म य िमल रह हो?”
‘‘हम कह भी िमल सकते ह, आंटी। बगलु जैसे शहर म हम तीस लोग औसत आकार क कमर म नह
समा सकते। यिद िकराए पर कोई थान लेने क बार म सोच तो खच का बजट बनाना पड़गा। जब हम लोग से
अनुरोध करते ह िक वे अपवाद क तौर पर अपने प रसर का उपयोग यूनतम िकराए पर या िनःशु क करने द तो
हमारा उ दे य जानने क बाद वे त काल इनकार कर देते ह। हम अपने िमलने क थान को खोजते ए भटक
रह थे, इसिलए हमने एक चच से संपक िकया। चच का मैनेजमट दयालु था, अतः उसने प रसर म एक थान
का उपयोग करने क अनुमित दे दी।’’
मने अपने मन म पाप को माफ कर देने क मानव कित को बढ़ावा देने क िलए चच क अिधका रय को
ध यवाद िदया। यही जीवन का सार ह।
‘‘उ ह ने कहा िक हम अपनी साम य क अनुसार कछ दान भी दे सकते ह, परतु इस बात पर बल िदया िक
हम थान को व छ रख।’’
मने अ ानतावश पूछा, ‘‘चचवाल ने ऐसा य कहा? या लोग अपने ि स वहाँ ले जाते ह?’’
‘‘छोड़ो भी न, आंटी। ‘ए ए’ नशा छड़ाने क िलए काम करता ह और पूरा स भी इसी िवषय पर ह। शराब
पीनेवाले ब त से लोग धू पान भी करते ह। यिद हम ग एिड शन को तीन भाइय म से एक मानते ह तो यह
सबसे बुरा ह। ए कोहल का नंबर उसक बाद आता ह। धू पान उनका सबसे छोटा तीसरा भाई ह। सबसे बड़
भाई क साथ दो िकशोर होते ह, जबिक मझला भाई हमेशा सबसे छोट क साथ होता ह। इसिलए हम मेज पर
ऐश (राखदानी) रख देते ह और जाने से पहले उसे साफ कर देते ह।’’
‘‘उन बैठक का खच कौन उठाता ह? या इ फोिसस फाउडशन सहायता कर सकता ह?’’
उसने उ र िदया, ‘‘ध यवाद, आंटी! परतु ‘ए ए’ इस मोरचे पर िकसी से कोई सहायता नह लेता।’’
शी ही रमेश चला गया।
अगले िदन म बताए गए थान एवं समय पर एक ि यन कल म प च गई। वहाँ य एवं पु ष क
संयु भीड़ बाहर खड़ी थी। शाम ढल रही थी और रात लगभग होने ही वाली थी।
अचानक मने असहज महसूस िकया। लेखक होने क कई बार नकारा मक पहलू भी होते ह। चाह वह िकसी
का मेरी उप थित क बार म िकया गया न ही य न हो।
‘‘ये य आई ह?’’
‘‘ या ये हमार बार म कछ िलखने जा रही ह?’’
तभी रमेश ने मुझे अंदर बुलाया। उसने कहा िक वह आज स नह लेगा। म कमर म वेश करक एक कोने
म बैठ गई। वह मेज और बचवाला एक िनयिमत ास म था। वहाँ डी.वी.डी., ओवरहड ोजे टर या अ य
कोई आधुिनक उपकरण नह था।
पाँच िमनट क अंदर कमरा भर गया। वहाँ िविभ आयु एवं िलंग क लोग थे, परतु य एवं लड़िकय क
सं या पु ष से कम थी। उनम कछ िवदेशी भी थे। िव ािथय क एक दल ने कमर म वेश िकया और कमर
क एक कोने म पीछ जाने से पूव अपनी उप थित क उ ोषणा क । िकसी ने मेरी ओर यान नह िदया और म
अब भी अपने आप म डबी ई थी।
एक अधेड़ य आ त भाव से कमर म आया और उसने सबका अिभवादन िकया। इसक बाद वह
हमारी ओर मुँह करक बैठ गया। उसने एक पु तका खोलकर वे बारह िबंदु पढ़, िजनक बार म मने एक िदन
पूव ही जाना था। मने कछ चेहर पर तनाव और िचंता क रखाएँ महसूस क । उसक बाद चेयरमैन ने कहा,
‘‘सभी साथी सद य , अितिथय और िव ािथय का वागत ह। आज का यह खुला स ह। आज म आपको
कछ खुशखबरी देना चा गा। साथी भरत, आप कहाँ ह?’’
चालीस साल क एक आदमी ने अपना हाथ उठाया।
‘‘भरत आज यहाँ अपना पहला ज मिदन पूरा कर रह ह। स क अंत म हम कक काटगे।’’
सबने तािलयाँ बजाई। मेरी समझ म कछ नह आया िक यह सब या चल रहा ह। चेयरमैन क इस कथन का
या अथ ह िक आज उसका पहला ज मिदन ह?
‘‘हमार आज क मेहमान इस उ सव को देखकर थोड़ा चिकत ह गे, लेिकन पहला ज मिदन एक ब त बड़ी
उपल ध ह। इसका अथ यह ह िक एक वष से भरत ने शराब नह पी ह।’’
मने सोचा, ‘अ छा, तो यह बात ह।’’
‘‘चेयरमैन होने क नाते पहले म अपना अनुभव शेयर क गा। मेर पीने क शु आत कॉलेज म लोग को पीते
देखकर ई। पीना शांितदायक था और मुझे पाट म होने पर गव था। अगले कछ वष म म शराबी बन गया।
उसक बावजूद म अ छी नौकरी, सुंदर लड़क और लोग क शंसा पाने म सफल रहा। सही समय देखकर मने
अपनी ेिमका से िववाह करने क बार म पूछा, परतु उसने इनकार कर िदया। उसने कहा िक म जब भी तुमसे
िमली, तुम हर बार मुझे िपए ए िमले। तुम तो िबना िवचार िदन म भी शराब पी लेते हो। इसिलए म िदल टट
जाने क बहाने पहले से भी अिधक शराब पीने लगा।
‘‘अंततः एक िदन मेर पैर स ने मुझे िध ारते ए कहा, ‘अब तो जागो! लड़क को तु ह छोड़कर गए ए
कई वष बीत गए और अब वह दो ब च क माँ बन चुक ह। यहाँ एक तुम हो िक अपनी िजंदगी शराब म
बरबाद िकए जा रह हो। इसका उसक साथ कोई लेना-देना नह ह। तुम िसफ एक िपय ड़ हो, बस! हम
तु हारी िजंदगी को वापस पटरी पर लाने क िलए मदद करने को अब भी तैयार ह, बशत तुम इस बात को
महसूस करो िक तुम या बन गए हो।’
‘‘म अ यंत आ। उ ह ने मुझे शराबी कहने क िह मत कसे क ? म जब चा , शराब छोड़ सकता । म
िनयंि त हो गया। अतः अगले दो िदन तक मने शराब को हाथ भी नह लगाया और सोचा िक मने अपने
आपको सािबत कर िदया ह। तीसर िदन माता-िपता पास क ही एक मंिदर म जाना चाहते थे और मने उनसे कहा
िक म आपको अपनी गाड़ी से मंिदर तक ले चलूँगा। मने फरती से ान करक दाढ़ी बनाई और लोशन लगाकर
एकदम अ छा िदखने लगा।
‘‘थोड़ी देर बाद हम मंिदर क िलए रवाना हो गए। गाड़ी चलाते समय मेरी जीभ हलक से मेर ह ठ पर लग
गई। उसने लोशन का वाद चख िलया और मंिदर प चते-प चते मुझे शराब क तलब लग गई। म अपने पैर स
को मंिदर पर उतारकर उसक समीप थ एक बार म प च गया और वहाँ चार घंट ठहरा। मेरी करतूत से अनजान
मेर पैर स ने मंिदर म मेर िलए पूजा क , मेरा इतजार िकया और उसक बाद ऑटो र शा लेकर वापस घर चले
गए।
‘‘वही मेरा थान िबंदु था। उस िदन मने महसूस िकया िक म शराब क िबना िजंदा नह रह सकता। अतः म
‘ए ए’ म आ गया और उ ह ने मेरी कहानी यान से सुनी। उस थान पर मुझे मेर जैसे अनेक लोग िमले और म
यह जानकर खुश आ िक इस कारोबार म म अकला नह था। हमारा नारा ह—‘म नह , हम कर सकते ह’।”
चेयरमैन ने अपने स मुख बैठी भीड़ को सीधे देखते ए कहा, ‘‘यिद आप ठहरना और हमार साथ होना चाहते
ह तो वैसा ही क िजए। आपका यहाँ सदैव वागत ह। जो लोग सोचते ह िक यह थान उनक िलए नह ह तो म
आपको बता दूँ िक इस गली क सामने दूसरी ओर बार (मयखाना) ह। आपको वहाँ जाने क पूरी आजादी ह।’’
वह लोग क िनकलने क ती ा म खामोश हो गया। एक आदमी कछआ चाल से चला।
तब उसने कहा, ‘‘कवल एक शराबी ही अपने दूसर शराबी साथी को समझ सकता ह। यहाँ आपका िनणय
करनेवाला कोई नह ह। म आपको अपने अनुभव एवं िवचार साझा करने क िलए आमंि त करता ।’’
तब तक वातावरण एकदम अनौपचा रक हो गया और म जरा भी असहज महसूस नह कर रही थी।
बच पर बैठी एक युवा ी खड़ी ई और अपना प रचय देते ए बोली, ‘‘म रवीना शराबी ।’’
अ य सद य ने िति या देते ए कहा, ‘‘हाय, रवीना शराबी!’’
‘‘म एक ऐसे सं ांत प रवार से आती , जहाँ सामािजक म पान हमारी सं कित का एक अंग ह। हमार
पैर स ने ांस म पढ़ाई क थी, अतः शराब और उसक िविभ िवशेषता क बार-बार चचा करते। शराब से
मेरा प रचय सोलह वष क उ म कराया गया, िकतु उसक मा ा सीिमत थी। अगले वष म कॉलेज म पढ़ाई
हतु िद ी गई और मेर पैर स अ छ वेतन क संभावनावाली नौकरी क तलाश म म य-पूव रवाना हो गए। म
एक आवासीय छा ावास म ठहरी, जहाँ लड़िकयाँ अकसर वोदका और ह क जैसी कड़ी शराब पीती थ ।
पहले तो उ ह ने मेरा उपहास िकया और कहा िक चखकर तो देखो िक हम या पी रही ह। अतः म चखते-
चखते अ य कार क शराब भी पीने लगी। उस समय मेर पैर स मेर िलए मािसक भ ा भेजते थे। जब कभी वे
मुझसे मेर खच क िवषय म पूछते तो म शराब पर होनेवाले खच को छपा लेती। एक बार शु कर देने क बाद
झूठ बोलने क मुझे आदत पड़ गई और मने शायद ही कभी उसक बार म वयं को दोषी महसूस िकया।
“मेर ेजुएशन क आस-पास म बार म गई और एक लड़क से िमली। हम काफ समय तक एक-दूसर क
आदत और वभाव जानने क नीयत से साथ-साथ रह। हमने अपने संबंध क जानकारी पैर स को दी, िज ह ने
हमार र ते को मंजूरी दे दी और आलीशान तरीक से हमारी शादी संप हो गई। उ र भारतीय रवाज क
मुतािबक रसे शन क िदन भारी मा ा म वाइन िलकर परोसी गई। मेहमान ने मु त समझकर जमकर पी। शादी
क बाद म और मेर पित बगलु िश ट हो गए। पित क घर लौटने पर हम रोजाना साथ बैठकर शराब पीते। मुझे
शु र लाने क िलए दो पैग से अिधक पीने क ज रत पड़ने लगी और पीने क बाद मुझे न तो उ टी ई, न ही
िसरदद। मने उसे अ छी िक म क समझकर खुराक थोड़ी बढ़ा दी।’’
अचानक रवीना का वर कोमल हो गया, ‘‘कछ स ाह बाद मुझे पता चला िक म गभवती । म एक
गायनेकोलॉिज ट ( ी रोग िवशेष ) क पास गई। मने उसे शराब क बार म नह बताया। गभ-धारण क तीसर
महीने क दौरान मने पेट क आस-पास बड़ी बेचैनी महसूस क और डॉ टर से दोबारा िमलने गई।
‘‘िनयिमत जाँच क दौरान उसने पूछा, ‘ या तुम ए कोहल पी रही हो? शायद वाइन?’
‘‘तेज शराब िलकर, जो तब भी म कभी-कभार पी लेती थी, को छपाते ए मने कहा, ‘वाइन।’
“ ‘बंद कर दो उसे।’
‘‘मने कोिशश क , परतु खुद पर िनयं ण नह रख पाई। मने सोचा डॉ टर इन चीज क बार म अिधक
सावधान होते ह। एक घूँट यहाँ-वहाँ पी लेने से ब े को कोई नुकसान नह होगा। यही सोचकर ठीक अगले ही
िदन मने संतर क रस म वोदका िमलाकर पी ली और अपने पित क साथ पीना जारी रखा।
‘‘नौ महीने बाद मने एक लड़क को ज म िदया, िजससे हमार प रवार आनंिदत हो उठ। घर म सबने वाइन
और शपेन क साथ ज न मनाया; लेिकन मेर िलए वह पया नह था। मुझे अिधक चािहए थी। नवजात क
देखरख करना मेरी क पना से अिधक थकाऊ था। पैर स जब सोने चले गए तो मने डाइिनंग म म बने िमनी
बार म वोदका पी।
‘‘एक वष बीत गया और मेरा बेटा तेजी से बढ़ने लगा। मने महसूस िकया िक उसक मानिसक वृिद ीण
थी। म उसे लेकर डॉ टर क पास भागी। एक महीने क जाँच क बाद इस बात क पुि हो गई िक मेरा बेटा
मानिसक प से कमजोर ह और मंद बु ही रहगा। डॉ टर ने िट पणी क , ‘म आशा करती िक तुम
गभाव था क दौरान पी नह रही होगी।’
‘‘उसका असर मेर घर पर पड़ा। पीने से मुझे तो कोई नुकसान नह आ, लेिकन मेर बेट को ‘खास’ बना
िदया। उस बेचार ने इसक लायक कछ भी नह िकया था, िफर भी वह मेर गुनाह क क मत चुका रहा था।
‘‘म खुद को माफ नह कर सक और अपनी िजंदगी समा करने क बार म सोचने लगी; लेिकन बेट क
खयाल ने मुझे अगला कदम उठाने से रोक िदया। यिद म इसक पास नह र गी तो इसक देखभाल कौन करगा?
इसक भिव य का या होगा? मने और मेर पित ने एक-दूसर को दोष देने क बजाय खुद को एक साथ बेट का
अपराधी माना। हमने एक-दूसर से श ा कर शराब छोड़ने का फसला कर िलया। वह बड़ा किठन समय
था और हम अपने यास म िवफल होते रह। हाँ, हमने शाम को पीना ज र बंद कर िदया।
‘‘सौभा य से हम ‘ए ए’ िमल गया और म शाम को इसक बैठक म शािमल होने हतु समय अव य
िनकालती । िवद ाल अ यंत किठन एवं पीड़ादायी था। एक बार शाम बीत जाने क बाद म अिधक िनयंि त हो
जाती और घर वापस लौट जाती । मेर बेट का चेहरा मेर िलए संपूण मरण-प ह, जो मुझे शराब को हाथ
न लगाने क ेरणा देता ह। भगवा ने ऐसी खतरनाक चीज धरती पर य बनाई?’’ उसक आंत रक भावनाएँ
बल हो उठ और आवाज काँपने लगी, ‘‘मुझे दूसरा ब चा पैदा करने म डर लगता ह। यिद दूसरा ब चा भी
मेर पहले बेट जैसा ही आ तो या होगा?’’
चेयरमैन ने वेश िकया, ‘‘अपनी िनजी कहानी साझा करने क िलए आपको ध यवाद, रवीना शराबी! लोग ‘ए
ए’ म तब आते ह, जब वे अपने जीवन क यूनतम िबंदु पर प च जाते ह। यह िबंदु य -दर- य िभ
होता ह। हमार पास एक बार एक िकशोर वय लड़का आया, िजसने अपनी माँ से शराब खरीदने क िलए पैसा
माँगा। जब माँ ने इनकार कर िदया तो उसने उसे ध ा देकर उसका पैर ित त कर िदया। वह लँगड़ाने लगी।
चलने-िफरने म माँ क अ मता बेट क िलए शा त चेतावनी थी िक कसे उसने अपनी माँ को दुःखी कर िदया
और यही उसका ाय िबंदु था। जब लोग अिधकतम संभव ईमानदारी से प रवतन हतु यहाँ आते ह तो उ ह
इस बात का भरोसा होता ह िक हम उसे संभव बनाने म उनक सहायता कर सकते ह।’’
इसक बाद अगली पं म बैठ एक अधेड़ य ने अपना प रचय िदया। उसने कहा, ‘‘म हरी ए कोहिलक
और एक संप प रवार से आता । मेर पास कोई बहाना नह ह। मुझे पीने क लत अपने िम क साथ
शराब सेवन का आनंद लेने क कारण लगी। चूँिक मेर िपता का अपना यापार था, इसिलए मने ेजुएशन क
बाद उनक साथ काम करने का फसला िकया और मा रया नामक से टरी से मुझे यार हो गया। वह मेरी
कमजो रय और पीने क बार म भी जानती थी। समय गुजरने क साथ हम िववाह क िवषय म गंभीरता से सोचने
लगे। उसने मुझसे कहा, ‘म चाहती िक तुम शराब पीना छोड़ दो। ई र क कपा और यार से तुम इसे छोड़
दोगे, इसका मुझे प ा यक न ह।’
‘‘पहले मेर पैर स हमार र ते को लेकर िझझक रह थे, परतु ज द ही उ ह ने मा रया को अपना िलया और
धूमधाम से हमारी शादी हो गई। मने अब भी पीना जारी रखा। दो वष क बाद मेर माता-िपता क एक कार
दुघटना म मृ यु हो गई और जो कछ उ ह ने बनाया था, उसका अकला वा रस म ही था। मने ऑिफस सँभाला
और मा रया ने िव सिहत घर क पूरी िज मेदारी अपने ऊपर ले ली। हमारी एक लड़क भी ई और िजंदगी बड़
मजे से कट रही थी। मेरा म पान अब भी जारी था।
‘‘जब मा रया इस िवषय म मुझसे बात करती तो म उसे अनसुना कर देता और उसक श द पर यान न देता।
म बार म खच करने क िलए उससे रोजाना पैसे माँगता था। एक िदन उसने हाथ खड़ कर िदए—‘नह , अब
तु ह इसक िलए आगे से कोई पैसा नह िमलेगा। म तु ह यार करती । मने तुमसे इस उ मीद म शादी क िक
तुम सुधर जाओगे। तुम िपता बनने क बावजूद जस-क-तस हो।’
“उसक बात से म भड़क उठा और उसे गािलयाँ देने लगा। मने उससे कहा िक यह मेरा पैसा ह और इस पर
तु हारा कोई अिधकार नह ह। आँख म आँसू भरकर उसने मुझे कछ पैसे थमा िदए और म सीधे बार क ओर
िनकल गया। अगली सुबह मुझे अपनी हरकत पर अफसोस आ और मने उससे माफ माँग ली, ‘मुझे बेहद
अफसोस ह, मा रया, िक मने तु हारा िदल दुखाया। म गलत था। म िफर कभी ऐसा नह क गा।’
‘‘लेिकन मने िफर वही िकया, बार-बार िकया।
“एक िदन वही घटना वतः दोबारा घट गई और मा रया ने मुझे पैसे देने से इनकार कर िदया। मेरी बेटी पास
ही खेल रही थी और म नफरत से मा रया पर िच ाया, ‘जो म चाहता , यिद तुम वह मुझे नह दोगी तो म
बेबी क साथ कछ कर दूँगा और तुम पछताओगी।’ म अ यंत ोिधत था, इसीिलए वह सब कहा था। म अपनी
बेटी से जान से बढ़कर यार करता था।
‘‘परतु मा रया पीली पड़ गई। शायद उसने सोचा होगा िक म जो कह रहा , वो कर भी सकता । उसने
सारा पैसा िनकालकर मेर हाथ पर रख िदया, ‘लो इसे।’ कहकर वह मेरी बेटी क साथ कमर से बाहर िनकल
गई। सारा पैसा लेकर मने अपने कछ दो त को फोन िकया और पसंदीदा बार म प च गया। उसक मािलक को
म जानता था। लोग मुझसे िमलने अकसर वहाँ आते और मेर अ छ वभाव क तारीफ करते, य िक उन सबका
भुगतान म ही करता था; परतु मन-ही-मन म मा रया क िलए अब भी पागल था। म उसे िदखाना चाहता था िक
म कोई ‘जो का गुलाम’ नह , इसिलए आम िदन क अपे ा उस िदन यादा पी। मािलक ने मुझे बार क
ऊपर बने एक कमर म सोने क इजाजत दे दी, य िक म चलने या गाड़ी चलाने क हालत म नह था।
‘‘अगली सुबह जब म घर आया तो मुझे ि ज पर एक संदेश िमला। वह मा रया का ह तिलिखत नोट था
—‘म अपनी बेटी क साथ जा रही । तुम कभी नह बदलोगे। तुमने मेरी िजंदगी तबाह कर दी, लेिकन म नह
चाहती िक मेरी बेटी का जीवन भी एक शराबी बाप क हाथ बरबाद हो।’
‘‘मने अपाटमट म आस-पास देखा, उसक सार कपड़ गायब थे।
‘‘लेिकन मुझे पता था िक वह वापस आ जाएगी। अपनी घरलू सम या को भुलाने क िलए मने और
अिधक शराब पीना शु कर िदया। बहरहा ल, मा रया वापस नह आई। ह ते महीन म और महीने साल म
बदल गए। म नह जानता िक वह कहाँ थी।
‘‘कछ साल क अंदर ॉपट और कारोबार सिहत मेरा सबकछ ख म हो गया।
‘‘अब उसी लोकि य बार क मािलक ने अपने बाउसर को िहदायत दी िक वे िबना पैसे क मुझे अंदर न आने
द। मेर दो त भी मुझे भूल गए। मेरी हालत इतनी बुरी हो गई िक मने चौराह क लाल बि य पर भीख माँगना
शु कर िदया। भीख माँगने से जो पैसे िमलते, वे सब देसी शराब खरीदने और पीने म उड़ जाते।
“एक िदन मने चौराह क िफक लाइट पर मा रया को एक वाहन म ब ची क साथ बैठ देखा। जब म
उसक िनकट गया तो पता चला िक वह मेरी बेटी क साथ सचमुच मा रया ही थी। मने खुश होकर कार क
िखड़क पर द तक दी। बहरहाल, उसने हाथ लहराते ए मुझे खा रज कर िदया और बेटी से कहा, ‘अनजान
लोग से कभी बात मत करना। इस गंदे आदमी को देखो, यह कह काम करने क बजाय भीख माँग रहा ह।’
‘‘उसने मुझे नह पहचाना! इससे पहले िक म कछ बोल पाता, ब ी हरी हो गई और कार दौड़ गई।
‘‘वह मेर जीवन का यूनतम िबंदु था—म अपनी प नी, बेटी और जो कछ मेर बाप-दादा ने बनाया था,
सबकछ गँवा चुका था। मेर प रवार ने ब त नीचे से शु आत क थी। मेर दादा एक क क प म कोलार से
बगलु आए थे। कड़ी मेहनत से काम करक उ ह ने पैसे बचाए और अपना यापार शु िकया। उ ह अमीर
बनने म दशक लग गए। उनका नाम हरी था और मेरा नामकरण भी उ ह क नाम पर आ। लेिकन मुझे
देिखए, मने उनका सारा खजाना लुटा िदया और िभखारी बन गया। वह , उसी समय मेरी आ मह या कर लेने
क इ छा ई।
‘‘म नह जानता िक कौन मुझे एक चच क खुले ‘ए ए’ स म ले गया और कई वष बाद पहली बार मने
उ मीद क िकरण देखी। मने लोग को अपने अंधकारमय समय क िवषय म बात करते सुना। वे लोग भी मेरी
ही तरह थे और अपना सबकछ लुटा चुक थे। इसक बाद अपने जीवन को नए िसर से सुखमय बनाया। संभवतः
म भी कोिशश कर सकता था। यह पं ह वष पुरानी बात ह और अब म काफ समय से नशा-मु हो चुका ।
अब म अपना जीवन अपने जैसे अ य लोग क सेवा म िबताता और उ ह ‘ए ए’ म लाकर नई या ा शु
करने म उनक सहायता करता ।”
हरी क तारीफ क बाद कमर म खामोशी छा गई। हमम से येक अपने-अपने िवचार म म न हो गया।
मने सोचा, ‘उसक बेटी अब अव य ही नौकरी कर रही होगी और संभव ह िक उसक शादी भी हो गई हो।
उसक प नी एक साहसी मिहला ह। उसने अपने और अपनी बेटी क िलए सही फसला िलया। लेिकन उ ह ने
कसी िजंदगी गुजारी! शराब क लत क कारण सबको जीवन भर क ट सहना पड़ा।’
म नह जानती िक म पान कोई औपचा रक तौर पर मा यता ा रोग ह, परतु ‘ए ए’ िजनक िलए काम
करता ह, उनक िलए एक वरदान ह।
कागज क कप म हम सबको कॉफ परोसी गई और एक डोरीवाला पस तथा एक गोल मेडल िवत रत िकया
गया। चेयरमैन ने घोषणा क —‘‘यिद आप ‘ए ए’ क सद य ह, तभी आिथक योगदान कर सकते ह। हम अ य
लोग से धन वीकार नह करते।’’
उप थत लोग म से कछ ने योगदान िकया तथा अिधकतर ने मेडल खरीद कर अपने दय से लगाया और
ाथना क ।
अंत म चेयरमैन ने भरत को कक काटने हतु आमंि त िकया। उ ह ने कहा, ‘‘हमने आज भरत क
प रवारवाल को भी आमंि त िकया ह, य िक उनक सहयोग क िबना भरत इस मुकाम तक नह प च सकता
था।’’
भरत ने बड़ गव से कक पर लगी इकलौती मोमब ी जलाई और कक काटा। उसक प ा भरत ने नई
िजंदगी देने क िलए अपने प रवार और ‘ए ए’ क लोग को कोिटशः ध यवाद िदया।
उसक िपता ने तब उसे एक मेडल दान िकया। वे अ यंत भावुक हो गए और कछ बोल नह पाए। वयं को
संयत करने क बाद उ ह ने कहा, ‘‘भरत मेरा इकलौता ब चा ह और मने उसक साथ उसक ज मिदन एवं
िववाह सिहत अनेक काय म मनाए ह; परतु आज उसका असली ज मिदन ह। लंबे समय तक म उसक जैसा
पु होने क कारण शिमदा रहा; परतु अब वह बदल चुका ह और मुझे उसका िपता होने पर गव ह।’’
भरत ने मुसकराते ए अपने िपताजी क कध को थपकाते ए वहाँ एक लोग क ओर कत ता से देखा।
उसने कहा, “शराबी हमेशा शराबी ही रहता ह। म कभी अ व थ होता तो ए कोहल-यु कोई दवा, यहाँ
तक िक एक च मच कफ सीरप भी नह लेता। परतु आज म जहाँ , वहाँ खुश और म इस कार का
ज मिदन हर साल मनाते रहने का वचन देता ।”
मने पास ही खड़ी भरत क प नी पर ट डाली। उसक िलए खुशी मनाने जैसा कोई कारण नह था, य िक
उसने अपने पित क कारण सामािजक उलाहना झेली थी। स चे साथी क िबना उसका जीवन दुःखद हो गया
था। िफर भी आज वह अपने पित क बगल म खड़ी थी।
कछ देर बाद सभा समा हो गई और लोग थान करने लगे। म भी खड़ी हो गई और रमेश बाहर इतजार
कर रही गाड़ी तक मेर साथ आया।
मने रमेश से पूछा, ‘‘ या येक य संयमी बन जाता ह?’’
‘‘यह िनभर करता ह, आंटी! लोग क पुनः िबगड़ जाने क अवसर होते ह। यही कारण ह िक हम अपनी
तलब पर काबू रखने क िलए िनयिमत तौर पर िमलते रहते ह। यहाँ तक िक अब भी जब कभी म शराब का
िव ापन या टी.वी. पर िकसी िफ म म पीने-िपलाने का य देखता तो उसे फौरन बंद कर देता । म ऐसी
िकसी शादी म नह जाता, जहाँ शराब परोसी जाती हो। राह से भटक जाना बड़ा आसान ह। ई र क ित
आ मसमपण ‘ए ए’ म एक मह वपूण कदम ह और यह बड़ा सहायक ह। ई र का अथ कोई िवशेष धािमक
देवता नह ह। येक य क दय म उसका भगवा ह। सरल अथ म इसे सव च श कह सकते ह।
‘ए ए’ म हमार पास अपने भगवा क चयन क आजादी ह। यह एक महा संगठन ह और अकले बगलु म
इसक 80 क ह। ‘ए ए’ 186 देश म कायरत ह। आंटी, इसम कोई आ य नह िक हमार पूवज बुिद मान थे।
उ ह ने हम बुरी आदत से दूर रहना िसखाया था। इसक शु आत सामािजक म पान से हो सकती ह; परतु
दुभा यवश कछ लोग इसम फसकर रह जाते ह तथा एक बार फस जाने क बाद उनका जीवन दयनीय हो जाता
ह। यिद उ ह ने पहली बार इसका वाद नह चखा होता तो वे कभी शराबी नह बनते।’’
कार म बैठकर मने स 1940 क मश र एवं लोकि य मराठी नाटक ‘एकाच याला’ क बार म सोचा। एक
अ य नाटक था ‘देवदास’, जो ऐसे य क बार म था, जो लोग क िव ास क अनुसार इसिलए बोतल क
ओर मुड़ा, य िक वह अपनी यारी पारो क साथ शादी नह कर सका। िकतु स य यह ह िक वह कवल एक
शराबी था।
एक अ य मराठी नाटक ‘नायक’ म सुधाकर एवं उसक प नी िसंधु स दंपती ह। एक िदन उसका शराबी
दो त सुधाकर पर ज न मनाने क िलए एक घूँट पीने का दबाव डालता ह। यहाँ तक िक वह उसे एक पैग भी
लाकर देता ह। िसंधु अपने पित क पीने का िवरोध करती ह तो उसका उपहास करते ए वह कहता ह, ‘‘ओ
िसंधु, िचंता मत करो। एक पैग म हमारी िजंदगी का जहाज तो नह डब जाएगा।’’
दुभा य से, उसक पित को उसका वाद अ छा लगा और वह देखते-ही-देखते शराब का गुलाम बन जाता ह।
नाटक म िदखाया गया िक कसे उनक िजंदगी तबाह हो गई। यिद म पान क आपक नीयत ह तो तबाही क
या ा म पहला पैग ही काफ ह। दुभा यवश जब तक आप पहला िगलास नह चखते, तब तक कोई
भिव यवाणी नह कर सकता।
कौन कहता ह िक धन जीवन का अंितम उ दे य ह? नह ! सही समय पर आपको इसका पता चल जाएगा।
जीवन क अनेक उ े य म एक उ दे य मानव- वभाव को समझने क यो यता ा करना और िकसी
िगर ए साथी को ऊपर उठाकर समाज का उपयोगी सद य बनाना भी ह। हम सभी अपने जीवन म कछ
लड़ाइयाँ हार जाते ह, परतु हम यु जीत सकते ह।
आशा सदैव िव मान ह।
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