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ramaeSvara

लेखक सपं ादक

वेददक दिवेदी डॉ. मारुदि शक्ु ला


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DWIVEDI

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First Printing Edition, 2023


ISBN 978-93-5749-499-1

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स्मदृ ि में...

स्व रामेश्वर प्रसाद दबू े " रमेश "


भदू मका
आज के कुछ वर्ष पहले कॉलेज के दौरान मेरी मल ु ाकाि श्री
वेददक दिवेदी से हुई। उस समय मझु े यह अनमु ान नहीं था दक एक
छोटी सी मल ु ाकाि आगे चल कर प्रगाढ़ भ्रािृत्व में पररवदिषि हो
जाएगी। मैं भी अपने पीएच. डी के काम में संदलप्त हो गया और
वेददक जी भी अपनी पढ़ाई के साथ साथ दिल्म लेखन के कायष में
लगे रहे। इसी प्रकार धीरे धीरे कॉलेज के दौरान ही हमारी मुलाकाि
होिी रही और हमारी दमत्रिा िथा भ्रािृत्व मजबूि होिा गया। वेददक
जी ने एक बार मझु े कहा दक वे एक पस्ु िक दलखने के इच्छुक हैं और
उनके इस दवचार को मैंने भी प्रोत्साहन ददया। कुछ महीने पहले ही
उन्होंने मझु े यह शभु सचू ना दी दक अपनी पहली पस्ु िक दजसका
शीर्षक ‘रामेश्वरा’ है, उसे वे जल्दी ही प्रकादशि करवाने वाले हैं और
इस पस्ु िक के संपादन का शुभ कायष उन्होंने मुझे सौंपा। वेददक जी
प्रारंभ से ही मझु े भैया कहकर संबोदधि करिे रहे हैं और मेरे ऊपर
दवश्वास करके ही उन्होंने यह महत्वपर्ू ष दादयत्व मुझे ददया, जो दक मेरे
दलए बड़े ही हर्ष का दवर्य है।
इस पस्ु िक का शीर्षक रामेश्वर से प्रेररि है। रामेश्वर शब्द के
अथष को दो प्रकार से समझा जा सकिा है। पहला, जो राम के ईश्वर हैं
अथाषि ‘महादेव’ और दसू रा, राम दजनके ईश्वर हैं अथाषि ‘महादेव’।
भगवान श्री राम और महादेव अथाषि भगवान दशव के समन्वय का
स्थापत्य दचरकाल से है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसी प्रकार इस
पस्ु िक में भी राम और महादेव की नगरी काशी का अद्भुि सगं म
देखने को दमलिा है। यह कहानी है समाज में व्याप्त दोर्ों की, बरु ाइयों
की। यह कहानी है मानव मात्र और समाज में बसे नैदिक मूल्यों की।
यह कहानी है स्वाथष की, परमाथष की, मन के भावों की, किषव्य की,
दनष्ठा की, पाखंड की, न्याय की, अन्याय की, दमत्रिा की और सबसे
बढ़ कर प्रेम की। प्रेम वह संबल रूपी लाठी है दजसके सहारे हम
जीवन की कदठन चढ़ाइयों को पार कर सकिे हैं। प्रेम वह प्रकाश है
जो हमारे जीवन से दनराशा और दख ु रूपी अधं कार को समाप्त कर
सकिा है।
यह कहानी है एक पत्रकार की जो समाज कल्यार् को
अपना धमष समझिा है और इस धमष का पालन करिे हुए अपने प्रार्
िक त्याग देिा है। यह कथा है एक वकील की दजसे सब कुछ जानिे
हुए भी अन्याय व अधमष का साथ देना पड़िा है परंिु अंि में वह
दवजय न्याय की ही करवािा है। यह कथा है एक कमषठ पदु लस
इस्ं पेक्टर की जो हमारे देश के लोकिंत्र में दसस्टम में फै ले हुए
भ्रष्टाचार िथा दबावों को झेलिे हुए भी अपने ईमान से दडगने को
िैयार नहीं है। यह कहानी है एक लड़की की जो अपने सभी मनोभावों
से जझू िे हुए अपने पररवार की दजम्मेदारी संभालिी है दजसमें उसका
प्रेम उसके पर्ू ष सहयोगी के रूप में खड़ा नजर आिा है। भार्ाई दृदष्ट से
इस पस्ु िक में खड़ी बोली दहदं ी के साथ साथ क्षेत्र दवशेर् में प्रयक्त

बोदलयों का भी प्रयोग देखने को दमलिा है। यह कहानी हमारे देश के
यवु ाओ ं के भदवष्य के दलए भी संदश े देिी है। यह कहानी प्रेम के साथ
समाज के दवदभन्न पहलओ ु ं को उजागर करिे हुए चलिी है।
यह कहानी है राम और स्वरा के प्रेम की दजसकी सहायिा से वह
दोनों अपने जीवन की िमाम कदठनाइयों का सामना करिे हैं और
अपनी मंदिल को पािे हैं। कहानी है यह ‘रामेश्वरा’ की।

— डॉ. मारुदि शक्ु ला


प्रस्िावना
जीवन के िमाम अनुभवों में से कुछ अंश दनकालकर इस
कहानी की माला में दपरोने की कोदशश है। 10 वीं कक्षा में जब
समाज से जड़ु ी बािें करने पर साथ पढ़ने वाले बच्चों िारा नेिा जी
कह सबं ोदधि दकया जािा था िो थोड़ा कष्ट होिा था पर आज इस
बाि की खश ु ी है दक समाज से जड़ु ने का सनु हरा अवसर मझु े
दवद्याथी जीवन से दमला।
आभार प्रकट करना चाहगूँ ा उन िमाम अध्यापकगर् व उन
दमत्रों का भी दजन्होंने दवद्याथी जीवन में मेरा उपहास दकया था। उन्हीं
उपहासों का पररर्ाम है दक मझु में अच्छाई-बरु ाई महससू करने का
गर्ु भी दवकदसि हुआ।
बचपन से ही पढ़ने में होनहार था अिः माूँ-बाप व घर के
अन्य सदस्यों के साथ बचपन से जहाूँ पढ़ाई की वहाूँ सभी
अध्यापकगर् भी चाहिे थे दक मैं दसदवल सवेंट बनूँ।ू आज क्षमा
माूँगिे हुए उन सभी शभु दचिं कों को यह कहना चाहुगूँ ा दक सवेंट
नामक शब्द में मझु े कोई ददलचस्पी न होने के कारर् मैं आपकी
उम्मीदों पर खरा न उिर पाया दकंिु मेरे जैसे उन िमाम नवजवानों को
रास्िा ददखाने का काम मैं करूंगा जो आज सामादजक न होने के
चलिे मानदसक कलेश व अन्य सभी अनैदिक कायों के भागीदार हो
रहे हैं।
हम सभी को दशदक्षि होने का अवसर इसदलए ददया जािा है
दजससे हम समाज के लायक बन सकें और समाज के लायक
इसदलए बनना है दजससे आपको यह ध्यान रहे दक पररवार दनयोजन
क्यों आवश्यक है। यािायाि के दनयम क्यों फॉलो करें ? बलात्कार
जैसे संगीन अपराधों के क्या निीजे हैं? नशे का दष्ु पररर्ाम क्या
होगा? यह सवाल भी आ सकिा है दक यह सब क्यों जाने?
अिः यह स्पष्ट कर रहा हूँ दक दजस सड़क पर यािायाि के
दनयमों को िोड़ दसगरे ट का धआ
ूँु उड़ािे आप चल रहे होिे हैं उन्हीं
सड़कों पर आपकी भी बहन – बेटी व पररवार के अन्य सदस्य भी
चल रहे होिे हैं। क्या आप नहीं चाहिे दक आपके पररवार का हर
सदस्य सरु दक्षि घर आए? अगर हाूँ, िो ठीक यदद नहीं िो एक बाि
सदैव याद रदखएगा दक दवज्ञान ने यह दसद्ध कर ददया है दक हर दिया
के बराबर ठीक दवपरीि ददशा में प्रदिदिया बल काम करिा है।
आपके बरु े काम आप िक भी लौट कर आ सकिे हैं।
यह पस्ु िक मेरी आने वाली दफल्म की कहानी है। जब िक
मैं प्रोड्यसू र िलाश रहा, आप पस्ु िक का ही आनदं उठाइए। परू ा
भरोसा है दक आपके जीवन में यह पस्ु िक दवर्ेश पररविषन लाएगी।
पस्ु िक दलखना िो चाहिा था लेदकन शीर्षक क्या हो ये बड़ा सवाल
था। पस्ु िक का शीर्षक अपने परम पज्ू यनीय गोलोकवासी स्व
दपिामह श्री रामेश्वर प्रसाद दबू े ‘रमेश’ जी के नाम पर दलया है। इसके
पीछे का कारर् यह है दक बचपन से जवानी िक दपिा जी व अन्य
सभी के िारा उन्हीं के दकस्से सनु िे आ रहा इसदलए अपनी पहली
कहानी को उन्हीं के नाम से शरू ु दकया।
पस्ु िक से जड़ु े कामों में सहयोगी डॉ. श्वेिा दिवेदी जी, बड़े
भाई डॉ. मारुदि शक्ु ला जी को दवशेर् आभार प्रकट करना चाहगूँ ा।
अब िक के जीवन में दहस्सेदार रहे हर अच्छे व बरु े हर व्यदक्त को
धन्यवाद कहिे हुए पस्ु िक को अपना कीमिी वक्त देने के दलए
आपका भी आभार व्यक्त करिा ह।ूँ

आपका
वेददक दिवेदी
-xi-
1.

बदं क
ू से दनकलने वाली गोली को शायद जीवन का मोल पिा होिा
है इसदलए उसे बंदक ू से बाहर दनकालने के दलए हम वैज्ञादनक िरकीबों के िारा
ज्यादा से ज्यादा बल का प्रयोग करिे हैं। हर साूँस अपने पीछे एक कहानी छोड़
रही है या दफर यों कहें दक हर दकरदार खदु में एक कहानी है। दकसी व्यदक्त का
दकरदार हम अपने मन के मिु ादबक अपनी निर में बनािे हैं। यह िकष भी
अक्सर दमलिा है दक जैसे हम स्वयं होिे हैं अपने सामने वाले में भी हम ठीक
वही दकरदार देखिे हैं।

एक शब्द है ‘प्रेम’। प्रेम के बारे में दजिना हम गाना, दलखना और


सनु ना पसंद करिे हैं उससे कहीं ज्यादा दवकृ ि रूप हमें असल जीवन में देखने

-1-
ramaeSvara

को दमलिा है। कच्ची उम्र में िो हम अपने दवपरीि जेंडर के प्रदि आकर्षर् को
प्रेम मानकर जन्मों िक साथ जीने-मरने की कसमें िक खा लेिे हैं लेदकन जैसे–
जैसे समझदारी नाम का शब्द हमें अपनी बाहों में जकड़ना शरू ु करिा है उसी
ददन से डर नाम की नींव हमारे अंदर पड़ने लगिी है। इस नींव के पड़ने की मख्ु य
वजह है समाज। समझदारी का पहला प्रमार् पत्र समाज से ही दमलिा है दफर
समझदारी और समाज के अटूट ररश्िे से डर का जन्म होिा है और हम िाउम्र
समझदार कहलाने के दलए हर वो काम करने को िैयार हो जािे हैं जो खदु से
ज्यादा समाज को पसंद हो। शायद यहीं से हम जीवन का मोल समझने में चक ू
जािे हैं और इसी जीवन का मोल हमसे ज्यादा बदं क ू की गोली समझिी है।
सजीव होने के नािे दनजीव वस्िु में सजीविा देखना उस िकष का प्रमार् है।

समय के साथ काफी कुछ बदल चक ु ा है। अब समाज का प्रेम को


लेकर सारा कायदा–कानून दसफष ग्रामीर् पररवेश या दफर आज भी उसी ग्रामीर्
दवचारधारा को लेकर जी रहे लोगों के बीच ही देखने को दमलिा है। दो प्रेम
करने वालों को चररत्रहीन िक की श्रेर्ी में रख ददया जािा है। बड़े शहरों या
दफर ऐसा व्यदक्त जो भीड़ की पकड़ से बाहर है, अथाषि वह लक्जरी लाइफ जी
रहा है और उसके कानों िक इनके व्यगं बार् व ऊल-जल ु ल
ू बािें नहीं पहुचूँ
सकिी हैं, िो यह समाज वाले उसे फै शन बिा यह कहिे हैं दक अब उनकी
बराबरी करोगे? हमारे जैसे हिारों लोग उनके दरवाजे पर झाड़़ू लगािे हैं।

मध्यमवगीय पररवार से सम्बदन्धि होने के चलिे आप एक बहुि बड़े


अपराधी हैं क्योंदक आपने प्रेम दकया है। यदद इन्हीं संवादों के बीच अपनी जबु ां
से कहीं यह बाि पछू दलया दक प्रेम करने का अदधकार दसफष अमीरों को है, प्रेम

-2-
वे ददक दिवे दी

िो कभी आदमी की हैदसयि देखकर होिा नहीं.! िो इिने में पड़ोसी भी


आपकी बाि को बीच में ही रोककर यह कह देिा है दक इनको दो अक्षर पढ़ने
शहर क्या भेजा अब हमें ही पढ़ाएगं े कायदा काननू । शेर्, प्रेम को लेकर अनेक
दटप्पदर्यां आपको पढ़ने को दमल जाएगं ी लेदकन समझने के दलए सीने में
एहसास लेकर धड़किे हुए ददल की भी िरूरि पड़ सकिी है।

वैसे ‘कायदा – काननू ’ से याद आया दक आज वारार्सी के वररष्ठ


पत्रकार धनजं य दसहं का बड़ी ही बेरहमी से अज्ञाि बदमाशों िारा कत्ल कर
ददया गया था। इनके पररवार में अब इनकी पत्नी व दो बेदटयां हैं दजनके जीवन
से जड़ु े िमाम पहलओ ु ं को हम आगे कहानी में जानेंगे। घर जाने में काफी राि
हो चक ु ी थी। धनजं य कुछ फाइलों को थैले में रख ऑदफस का शटर बदं कर
उसपर िाला लगा रहे होिे हैं।

“काफी देर कर दइ बाऊ साहब घर जाय में” - पीछे से साइदकल रोक मंगेश
पान वाला (उम्र 50) कहिा है। आगे बोलने से पहले वो दसू री िरि रोड पर
पान का पीच मारिा है।

मंगेश – अब िक िो आप चदल गए होि हैं भैया, काम ज्यादे आई गवा था


का? लागि है कउनों के दक ु ान पर िाला लगेक है..( मंगेश यह कहिे मस्ु कुरा
रहा होिा है, धनंजय भी िाला लगाकर चाभी जेब में रखकर )

धनंजय – कुछ अइसन ही समझ लेव काका, अपराध पे अंकुश िो लगावे के


ही पड़ी।

-3-
ramaeSvara

“अच्छा हम चलि हैन भैया, बड़ी राि है औ घर पहुचं े मा भी बखि लागे


अभी। राम राम भैया..! ” मंगश
े यह कहकर अपनी साइदकल पर बैठ वहां से
दनकल जािा है।

घर पर धनंजय की बीवी घड़ी की िरफ देख कर – “स्वरा, देख कहां रह गए


पापा िम्ु हारे ? इनका काम कमबख्ि खत्म होना जानिा ही नहीं।”

स्वरा (फोन कान पर लगा मस्ु कुरािे हुए) – पापा कहां रह गए आप? मम्मी ने
वकील करने को कहा है आप पर के स करने के दलए।

धनजं य – बेटा इससे पहले वो इस उम्र में मझु े िलाक देने को कहें िमु फोन
उनको दो। मस्ु कुरािे हुए धनंजय हेलमेट में फोन को फूँ सा बाइक पर बैठिे हैं
और स्वरा फोन अपनी माूँ को देिी है।

उमा (गस्ु से में) – जी बोदलए

धनंजय – आपकी नाराजगी के चलिे क्या बोलूँू मैं…

उमा – इस घर में मेरी नाराजगी से फकष दकसे पड़िा है?

धनंजय – मैडम काम पर आने के दलए सबु ह-सबु ह उठािी भी आप हैं।

उमा (धीरे से मस्ु कुराकर) – राि भर आपको फुसषि कहाूँ रहिी है सोने की वरना
मझु े क्यों जगाना पड़े?

धनंजय (रोमादं टक अंदाज में) – शादी के पहले सोचना था आपको क्योंदक राि
को काम करने की आदि है हमें।

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वे ददक दिवे दी

अब उमा हूँस कर यह कहिी हैं दक वो कब िक घर आयेंगे। इस पर


धनंजय ने बिाया दक उन्हें कुछ िरूरी काम से पदु लस स्टेशन जाना है िो देर
राि िक घर आयेंगे। उमा बच्चों को खाने के दलए बल ु ािी है और उधर धनजं य
बाइक स्टाटष कर थाने की िरफ चल पड़िे हैं।

धनंजय और उमा के बीच बढ़िी उम्र के बीच प्रेम भी मानो उिना ही


ज्यादा बढ़ रहा। यह गस्ु सा नहीं बदल्क दफि है जो ज्यादा बढ़ने पर गस्ु से का
रूप ले लेिी है मगर एक पत्रकार होने के नािे धनजं य भी यह जानिे हैं दक
दकसी बाि को दकस िरह पेश करें दक सामने वाला दनरुत्तर हो जाए।

बनारस में इन ददनों अपराध कुछ ज्यादा बढ़ गया था। छोटी उम्र के
बच्चों को इस पेशे में मादफया िारा लाने के दलए कई िरह के जाल दबछाए गए
थे। अवैध असलहे व कच्ची शराब के साथ गाजं े व अन्य मादक पदाथष के
सप्लाई जैसे काम करने वाले दगरोह का पदाषफाश करने के दलए धनंजय भी
पदु लस के साथ दमलकर काफी सदियिा से काम कर रहे थे।

स्वरा ने उमा से – पापा ने क्या कहा..?

उमा – यही दक आप और श्रदु ि दडनर कर लो उनको आने में देर हो जायेगी।

श्रदु ि (अपनी प्लेट लेकर) – मम्मा िब िो मझु े अके ले ही खाना पड़ेगा क्योंदक
आप और दीदी िो पापा के दबना खाने से रहे।

उमा – न..! िू और दीदी िेरी साथ खा रहे।

स्वरा – नहीं, मैं िो पापा के साथ ही खाऊूँ गी।

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ramaeSvara

श्रदु ि – मम्मा दी के शादी के बाद दवदाई में आपको और पापा को भी दवदा


करना पड़ेगा िब िो।

उमा (खाना श्रदु ि की प्लेट में रखिे हुए) – अच्छा, ऐसा क्यों..?

श्रदु ि – क्योंदक दी िो पापा के दबना खाना खायेंगी नहीं, और आप पापा को


खाना दखलाए दबना खदु नहीं खा सकिी। िब िो आप िीनों को एक घर में ही
रहना पड़ेगा न।

स्वरा ध्यान से श्रदु ि और अपनी माूँ की जगु ल बंदी सनु रही थी क्योंदक वो
जानिी है दक दोनों उसकी शादी की बाि कर रहे।

स्वरा – िेरी बाि मैं समझ रही लेदकन िेरी बत्तीसी वाले थोबड़े पर चाटे मारने
के दलए मैं कहीं नहीं जा रही।

श्रदु ि – दी, मिलब आपकी शादी कैं सल और आप इस घर की के यर टेकर...


(िेजी से हूँसिे हुए)

स्वरा (दचढ़ाने के अंदाज में) – नहीं, अपने बप्पा के अखबार में घरजमाई के
दलए ऐड देन वाली ह।ं

स्वरा की बाि पर सबकी हूँसी रुकने का नाम नहीं लेिी है।

दपिा को अपनी बेटी से कुछ ज्यादा ही प्रेम होिा है। वजह यह भी हो


सकिी है दक एक ददन उसे अपने से दरू कर देना पड़िा है और भेज देना होिा है
उन अंजान लोगों के बीच दजन्हें न उसने कभी देखा और न ही दजनके बारे में

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वे ददक दिवे दी

वह कुछ भी जान रही होिी है। भगवान राम को िो दसिष चौदह वर्ष का वनवास
हुआ था दकंिु एक बाप को अपनी बेटी को जीवनभर के दलए भेजना पड़िा है।
मदु श्कल िो िब होिी है जब अपने ही माूँ-बाप को पराया मान लेना पड़े और
पराए को अपना। ऐसी जगह िो वनवास से भी भयावह प्रिीि होिी है। दकिना
मदु श्कल होिा है एक स्त्री के दलए यह सब कुछ, शायद अगर हम खदु को एक
स्त्री की जगह रख देखें िो उसके त्याग के आगे हमारा जीवन कुछ भी नहीं। सच
में स्त्री स्वयं में शदक्त का रूप है क्योंदक एक परुु र् में शायद ही इिनी
सहनशीलिा व त्याग हो।

पदु लस स्टेशन में राि को कुछ लोग अपना काम कर रहे और कुछ लोग दशफ्ट
के दहसाब से घर जाने की िैयारी।

“श्यामदास..!” – इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश ने दसपाही को आवाि देकर बल


ु ाया।
श्यामदास – “जी साब जी, हुक्म करें ”।

वेदप्रकाश – कुछ आवश्यक काम से बाहर जा रहा मैं, पत्रकार धनंजय दसंह जी
िरूरी दस्िावेि लेकर आ रहे हैं जो सफे द पोशाक में घमू रहे मादफया के काले
कारनामों को उजागर करेंगे। मेरे बारे में पछ
ू ें िो कहना दक कल उनके ऑदफस
पर ही दमलने आऊूँ गा उनसे मैं।

“जी साब” - श्यामदास के चेहरे पर इस बार कई सारे प्रश्न दचन्ह थे।

इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश वहाूँ से दनकल जािे हैं। सबसे नजरें चरु ािे हुए
श्यामदास वाशरूम की िरफ जाने लगिा है। ऐसा लगा दक मानो उसकी लॉटरी
लगने वाली है दजसके बारे में दकसी को भनक िक न होने देगा।

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ramaeSvara

वारार्सी में शराब व अन्य कई अवैध कामों के सरगना दददववजय


पादटल की उसके सहयोगी कारोबारी इब्रादहम के साथ मीदटंग चल रही होिी
है। इस दौरान दोनों पक्ष के असलहाधारी भी मौजदू हैं। उत्तर प्रदेश में हदथयारों
के शौक से शायद ही कोई अछूिा हो। हर दसू रे घर से यवु ा नेिा व हर मोहल्ले
में चार से पाूँच असलहे के शौकीन िो आपको दमल ही जाएूँगे। ये अलग बाि
है दक शादी ब्याह में यपू ी के यवु ा पटाखों के बजाय राउंड फायर करने में ज्यादा
रुदचकर हैं। खैर, दददववजय पादटल की िारीि के पल ु बूँधने लगे थे और
दददववजय भी उिना ही अकड़िा जा रहा था।

इब्रादहम – पादटल साब, आपने िो परू े दसस्टम को यहीं से कंट्रोल कर रखा है।
पररंदा की कहावि िो परु ानी हो चली है, इहां दररंदा भी पर नाय मार सकि है।

सब इस बाि पर हसं िे है इससे पहले दक कोई कुछ कहिा इब्रादहम अपनी ही


बाि को आगे कहिा है।

इब्रादहम - कभी लखनऊ की िरफ रुख करें आप, िादक आपके स्वागि का
अवसर भी प्राप्त हो। िमाम साथी आपके दशषनादभलार्ी हैं।

दददववजय – खान दमयाूँ लखनऊ आने का िरूरि कभी महससू नहीं हुआ।
हमरे इशारे पय लखनऊ खदु इहाूँ आवे के िैयार है।

इब्रादहम – हाूँ हाूँ .....!

इससे पहले दक बाि आगे बढ़िी, दददववजय के फोन पर एक अंजान नंबर से


कॉल आिा है। फोन सामने टेबल पर बजिा है व उसके ठीक बगल रखी

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वे ददक दिवे दी

दपस्टल मेज की शोभा बढ़ा रही होिी है। दददववजय ने िोन उठाकर कान पर
लगाया।

“हेलो..!”- श्यामदास दबी आवाज में कहिा है।

दददववजय – कौन...?

श्यामदास – आप पादटल साहब बोल रहे हैं न?

दददववजय – हाूँ, कदहए...?

इसबार दददववजय ने थोड़ा खीझ कर कहा। शायद इिना सवाल जवाब कोई
करिा नहीं था। लोग अक्सर दसफष काम की ही बाि करिे हैं ऐसे नंबर पर।
दददववजय को यह थोड़ा अजीब लग रहा था।

श्यामदास – आपको यह बिाना था दक पत्रकार धनंजय दसंह आपके सारे


चररत्र प्रमार्पत्र के साथ अभी थोड़ी देर में थाने पर पधार रहे हैं दजन्हें आपने गैर
कानूनी िरीके से प्राप्त दकया है।

दददववजय – अबे िुम हो कौन, नाम बिाओ दजससे िुम्हारा पररचय पत्र िैयार
कर सकें । िुम सही बोल रहे इसपर यकीन भी क्यों करें ?

श्यामदास - हम कौन हैं, ई जाने खादिर परू ा उमर समय पड़ा है, अगर सबूि
थाने िक पहुचूँ ा िो आपका सारा भौकाल और प्रोटोकॉल हवा होई सकि है।

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ramaeSvara

इिना कहकर श्यामदास ने जल्दी से फोन रख ददया। दददववजय भी सारा प्रलाप


सनु , थोड़ा माथे पर जोर डालकर अपने मैनेजर चंदर को आवाि देिा है। चदं र
दददववजय के सामने खड़ा होिा है।

चंदर – आदेश करें साहब..!

दददववजय – पत्रकार धनंजय को कुछ ज्यादा ही नेकी की धनु सवार है। दपस्टल
की सारी गोली उनके हृदय में प्रवेश कराओ दजससे उनके खनू में हो रही
आयरन की कमी परू ी हो सके । उनके पास जो भी फाइल है कौनो भी हालि में
थाने िक न पहुचूँ ने पाए।

इिना कहकर दददववजय और इब्रादहम अपनी गादड़यों में बैठ वहां से


दनकल जािे हैं। चंदर अपने पाूँच लोगों को थाने के रास्िे पर भेज देिा है दजधर
से पत्रकार साब आने को हैं।

सच ही कहा गया है दक काननू के हाथ लबं े होिे हैं पर यह नहीं


बिाया गया दक पेट भी उिना ही दवस्िृि होिा है। अपना पेट भरने के दलए कुछ
लोग न्याय के मंददर को व्यापार का अड्डा बना देिे हैं। जनदहि की बािों को ये
दनरोध दजिना ही महत्वपर्ू ष समझिे हैं। ये सत्य और न्याय को िभी िक धारर्
करिे हैं, जब िक ररश्वि रूपी शिु ार्ु को बाहर न दनकलवा लें। इसके दनकलिे
ही ये न्याय और सत्य के उसल ू ों को एक झटके में कूड़ेदान में फें क सारी
जानकारी को बेच देिे हैं, दजससे अपरादधयों को सावधान होने का अवसर
दमल जािा है। श्यामदास भी कुछ ऐसी ही आदिों का ही दशकार था।

-10-
वे ददक दिवे दी

धनंजय अपनी बाइक पर एक सनु सान मोड़ को जैसे ही पार करिे हैं,
एक वैन सामने से आकर उन्हें टक्कर मारिी है। धनंजय बाइक समेि नीचे दगर
जािे हैं। जब िक वो कुछ दवचार करिे उन आददमयों में से एक बाहर
दनकलकर दपस्टल की सारी गोली उनके सीने पर दाग देिा हहै राि के गहरे
सन्नाटे में गोदलयों की आवाि सनु कुत्ते भौंकने लगिे हैं। इससे पहले दक वहाूँ
कोई आिा, वे सभी फरार हो जािे हैं। इस दौरान वे धनजं य के पास से फाइल
लेना भी भल ू जािे हैं ।

-11-
2.

भोर का समय। सरू ज अपनी लादलमा दबखेर रहा था। फरवरी महीने
का आदखरी सप्ताह और ठंड भी अब अपने आदखरी पड़ाव पर है। लोग सबु ह
घमू ने व कुछ अपनी आस्था के अनसु ार देवालयों के दलए दनकल रहे होिे हैं।
अचानक से दकसी की दनगाह सड़क पर पड़े आदमी पर पड़ी।

औरि – देखो-देखो कोई लाश है यहाूँ…!

इिने में भीड़ इधर इकट्ठा होने लगी। भीड़ में िरह-िरह की बािें भी होना शरू

हो गई।ं

-12-
वे ददक दिवे दी

एक आदमी – बढ़िे अपराध पर जाने कब लगाम लगेगी..?

दसू रा आदमी – ठीक है लेदकन पहले हमें थाने पर सचू ना देनी चादहए।

भीड़ में से दकसी ने पदु लस हेल्पलाइन नम्बर पर कॉल दकया व थोड़ी


ही देर में इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुचं जािे हैं।

वेदप्रकाश (हैरानी से) – बॉडी को सबसे पहले दकसने देखा?

भीड़ एक दसू रे का चेहरा देखिी है। ऐसे मामलों में लोग आगे आने
से बचना चाहिे हैं। इसके दलए दसफष समाज ही दोर्ी है, यह कहना सही नहीं।
बदल्क उिना ही दोर् दसस्टम का भी है। कोई बोलने की दहम्मि कर भी दे िो
थाने व कचहरी के चक्कर में वह भी बेमिलब दपस जािा है।

भीड़ में से एक – दकसने पहले देखा ये िरूरी नहीं, िरूरी ये है दक अपने


दडपाटषमेंट के अंदर झाूँक कर देखो। िुम्हारी नाकामी से हर रोज कोई न कोई
पररवार उजड़ ही जािा है।

दसू री मदहला (िेज आवाज में) – समझ नहीं दमलिा दक सरकार इनको
िनख्वाह दसफष आराम करने का देिी है या काम काम करने की। बाि रही काम
करने की, वह िो पररर्ाम देख के ही पिा चल रहा है। दजम्मेदारी नाम की कोई
चीज भी है आप लोगों के जेहन में?

वेदप्रकाश – हाूँ, हम ही िो ऐसे अपरादधयों को अपना हीरो मानिे हैं। इनके धंधे
के प्रोटेक्शन की िनख्वाह पािे हैं। हर पाूँच साल पर उूँगली करने से पहले
दकसको उूँगली कर रहे पर दवचार करिे िो आिी ही नहीं ऐसी नौबि। राि को

-13-
ramaeSvara

कच्ची शराब और अलग – अलग प्रकार का नशा आपके होनहार कुटुंबी जन


ही करिे हैं। हमको सल्ु फा लेने की आदि नहीं है मैडम। काश कोई काम करने
से पहले आप लोग पररर्ाम की भी सोचिी िो ...।(गहरी सांस लेकर) खैर, हम
भी आपके ही बीच से हैं। इस वदी के पीछे एक आम आदमी ही है। हमें अपना
काम करने दें और इसमें हमारा सहयोग करें ।

वेदप्रकाश बॉडी को पोस्टमॉटषम के दलए भेज धनंजय के पास से


दमले दस्िावेजों से उनकी पहचान कर पररवार को सदू चि करने के दलए एक
दसपाही और इस्ं पेक्टर को भेजिे हैं।

कमाल का है हमारा समाज। हर गनु ाह को दसफष और दसफष दसस्टम


के माथे पर मढ़ना जानिा है। क्या गलिी दसफष प्रशासन व सरकार की है या
दफर दददववजय को ही गनु हगार मान लें? इस बाि पर हम ध्यान क्यों नहीं देिे
दक उसकी जहरीली शराब का सेवन वेदप्रकाश या पादटल खदु नहीं करिे
बदल्क हम आप में से ही वह लोग हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से उसके व्यापार को
आगे बढ़ािे हैं।

इन नैदिकिा के मल्ू यों का पाठ दकसके सामने करें ? हम िो अपने


घर का कूड़ा भी सरकार से ही साफ करवाना चाहिे हैं। नददयों का खस्िा हाल,
वलोबल वादमिंग जैसी िमाम समस्याओ ं का ठे का िो सरकार के पास है, वह भी
इसदलए क्योंदक हमने उन्हें वोट ददया है और वो सत्ता में हैं। आज हम अपने माूँ
– बाप को अनाथ आश्रम में दशफ्ट करके अपने घर को ज्यादा अट्रैदक्टव बनाने
िक का काम करिे हैं जबदक उन्होंने अपना जीवन और अपने जीवन की सारी

-14-
वे ददक दिवे दी

कमाई हमें सौंप दी। आपके एक वोट और उनके जीवन की िलु ना करने पर हर
दोर् सरकार पर थोपने की आदि से शायद ही सधु ार आ सकिा है।

धनंजय की हत्या की खबर से परू े शहर में हलचल मच चक ु ी है।


सामादजक कायषकिाषओ ं व राजनीदिक व्यदक्तयों ने इस घटना की दनदं ा की।
सोशल मीदडया से लेकर सड़कों िक लोगों में आिोश ददख रहा था।

लाइव मीदडया हेड ऑदफस में मदहला एक


ं र िेज स्वर में यह खबर सनु ा रही
है…

मदहला एंकर – नमस्कार! आपको ले चलिे हैं वारार्सी, दजसे बाबा दवश्वनाथ
की नगरी कहा जािा है जहाूँ एक वररष्ठ पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी
गई है। हमारे सवं ाददािा ने बिाया दक देर राि कुछ िरूरी दस्िावेज के साथ वो
ऑदफस से थाने की िरफ दनकल रहे थे। इस दौरान बदमाशों ने उनपर
िाबड़िोड़ फायररंग कर दी। आदखर दकस गहरी दनद्रा में सो रहा था प्रशासन?
आदखर कौन लोग शादमल हैं इस घटना के पीछे ? कहीं इस घटना के पीछे
दकसी कट्टरपंथी की सादजश िो नहीं? जल्द ही नजदीक आ रहा है लोकसभा
चनु ाव…!

यह सब सनु आपको हैरानी िो हो रही होगी लेदकन विषमान समय में


वारदाि को अवसर बना ठे ले की चाट की िरह िीखा व चटपटा बनाने में लग
जािी है मीदडया। परू ी खबर में धनजं य व उनके कामों को बिाने के बजाय कुछ
इसे सत्ता पक्ष को बचाने िो कुछ इसे दवपक्ष के दलए एजेंडा बना इसे जािीय रंग
देने का काम करिे हैं।

-15-
ramaeSvara

इसी का लाभ उठा जािीय सगं ठन व सत्ता के बाहर बैठे लोग सत्ता पक्ष व
प्रशासन पर आरोप – प्रत्यारोप के बहाने अपना चेहरा चमकाने में लग जािे हैं।

यह दसलदसला यहीं नहीं रुकिा बदल्क कादिल का नाम बिाने या


उसका दसर कलम करने वाले को लाखों का इनाम देने िक की घोर्र्ा हो
जािी है। क्या सच में यह लोग इन घटनाओ ं से इिना आहि होिे हैं? सच में
यह संवेदनशील हैं या संवेदनहीन, जानना बड़ा ही कदठन है।

वेदप्रकाश धनंजय के पररजनों को समझा-बुझा कर अंदिम दिया की िैयारी


करवािे हैं।

शमशान पर हजारों की संख्या में लोग जमा हैं।

“धनंजय दसंह जी अमर रहें...” के नारे से परू ा शहर गूँजू रहा था। धनंजय जी
समाज के हर वगष व हर धमष के व्यदक्त के न्याय की आवाि बनने में पीछे नहीं
हटिे थे। आज ये लोग भी अपने कलम के दसपाही को अदं िम दवदाई देने के
दलए ओि-प्रोि थे।

परु ोदहि – दचिा को अदवन कौन देगा?

िभी दददववजय का बेटा अदभसार पादटल अपने दोस्िों के साथ यहाूँ पहुचूँ िा है।
काली गाड़ी के साथ आूँखों पर काले चश्मे। चेहरे की भाव भंदगमा से आप
उनका उद्देश्य जान सकिे हैं।

-16-
वे ददक दिवे दी

अदभसार (छुपी हूँसी के साथ) – दबलोंदगंग फ्रॉम व्हेयर पंदडि जी? यह भी नहीं
पिा दक पत्रकार साहब के के वल दो पदु त्रयाूँ हैं। पत्रु की भदू मका में इस पनु ीि
कायष के दलए हम पधारे हैं यहाूँ।

वेदप्रकाश (आगे बढ़कर) - बेटा िमु भी अपने माूँ-बाप की सकल सपं दत्त के
इकलौिे वाररस हो। अगर िुम्हें कुछ हो गया िो...! और हाूँ, प्रशासन उनकी
सारी संपदत्त पर सरकारी मोहर लगाने ने िदनक भी देर नहीं करे गी। जाओ पछू
कर आओ उनसे दक दजिनी गमी िमु ददखा रहे हो उसकी एक भी दहस्से की
आग उनकी िीली में है दक नहीं। क्योंदक उम्र का भी दडमांड होिा है, उनका हो
भी गया है, उम्र।

अदभसार (दचढ़कर) – िुमको बाद में देख लेंगे इस्ं पेक्टर, नाउ डीयर अंकल
आपकी आत्मा को स्वगष में आसन दमले – दसहं ासन दमले।

अपने दोस्िों के साथ यहाूँ से रंगबाजी झाड़कर दनकल जािा है।

उमा (रोिे हुए) – इन जैसे दररंदों को जवाब देने के दलए हमें अपनी बेदटयों को
बेटों के बराबर ही लाकर खड़ा करना होगा। अपने दपिा की दचिा को स्वरा ही
अदवन देगी।

इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश स्वरा के हाथ से धनंजय का अंदिम संस्कार


करवािे हैं। एक बेटी के दलए यह बड़ा ही कदठन समय था। वह जानिी थी दक
अपने भी यहीं िक साथ देिे हैं। सच यह भी था दक उसके पररवार की मदु श्कलें
अब और अदधक बढ़ने वाली थी। बड़े ही संजीदा माहौल में यह प्रदिया पर्ू ष
होिी है।

-17-
ramaeSvara

धनजं य के पास से दमली फाइल के आधार पर वेदप्रकाश िेजी से एक्शन लेिे


हैं। मख
ु दबरों की मदद से उन्होंने उन पाूँचो व्यदक्तयों को दहरासि में ले दलया
दजन्होंने इस घटना को अंजाम ददया था।

पावर ऐसी चीज है दक दजसके भी पास रहे वो इस्िेमाल िो करिा ही


है। धादमषक स्थलों पर दशषन से लेकर बीयर-वाइन शॉप की लाइन िक लोग
पावर का प्रदशषन करिे ददख जाएूँगे। अपराधी के पकड़े जाने पर उस के स से
सम्बदन्धि अदधकारी का िबादला होना आम बाि हो चक ु ी है। दििीयक रूप
में इसे पॉदलदटकल पावर का इस्िेमाल भी कहिे हैं। अदभसार के कहे मिु ादबक
उसने वो कर ददया जो वह चाहिा था। समझ नहीं आिा दक बेटे को खश ु करने
के दलए या दफर बढ़िे खिरे को भाूँप कर दददववजय ने यह सब दकया था।

शाम को स्व. धनंजय दसंह के आवास पर इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश पहुचूँ िे हैं। दनश्चेि
पड़ी उमा के दसरहाने श्रदु ि होिी है। स्वरा आगे बढ़कर दरवाजा खोलिी है।

स्वरा – आइए अंकल…!

दोनों साथ उमा के पास िक आिे हैं। स्वरा उन्हें सोफे पर बैठने के दलए कह
खदु माूँ को उठाने में श्रदु ि का सहयोग करिी है।

वेदप्रकाश ( दख
ु ी होकर ) – भाभी जी, मझु े अिसोस है दक धनजं य जी के
कादिलों के इिने करीब पहुचं कर भी मझु े वापस लौटना पड़ रहा है…!

श्रदु ि- इसका क्या मिलब अंकल, यह क्या कह रहे हैं आप?

-18-
वे ददक दिवे दी

वेदप्रकाश – हाूँ बेटा, दददववजय पादटल ने पॉदलदटकल लोगों की मदद से मेरा


ट्रांसफर करवा ददया है।

स्वरा – िो अब के स दकसके पास है?

वेदप्रकाश – अभी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है बेटा। अब िमु को साहस
से काम लेना पड़ेगा। भाभी और श्रदु ि की दजम्मेदारी भी अब िुम्हारे कंधों पर
है। अपने दपिा की िरह बहादरु बनना पड़ेगा िम्ु हें। जाने से पहले सोचा दमल लूँू
एक बार, और हाूँ… मेरे लायक कोई सहायिा हो िो िुरंि कहना।

स्वरा – ठीक है अंकल...!

वेदप्रकाश वहाूँ से उमा को नमस्कार कर दनकलिे हैं। स्वरा उनको


छोड़ने दरवाजे िक आिी है। परू े संवाद के दौरान उमा के आूँखों से आूँसू बंद न
होना व होठों से एक भी शब्द न दनकलना उनकी वेदना को प्रददशषि कर रहा
था। एक पत्नी के दलए पदि उसका संसार होिा है। संसार के अदस्ित्वहीन होने
पर जीवन की कल्पना ही क्या है?

इस्ं पेक्टर साब अपनी बाइक से वहां से दनकल जािे हैं। थोड़ी ही दरू
आगे चलकर अदभसार अपने दोस्िों के साथ एक मोड़ पर उनसे दमलिा है।
गली पिली होने के नािे अदभसार गाड़ी रोकिा है और वेदप्रकाश भी बाइक
रोक देिे हैं।

अदभसार – सर, डायलॉग नहीं बोलेंगे आज?

उसके दोस्ि ठहाके मारकर हूँसिे हैं।

-19-
ramaeSvara

वेदप्रकाश (मस्ु कुराकर) – बेटा अभी बाि आज समझ में आई दक िू अपने


बाप की इकलौिी औलाद क्यों है? िेरे बाप ने हमेशा अपनी पॉवर का
इस्िेमाल गलि जगह ही दकया। मन में शंका िो इस बाि को लेकर भी है दक
िुझे इस ददु नया में लाने के दलए पावर था भी उसमें या दफर दकु ान से पावर
कै प्सल
ू ... अरे नहीं उसके नाजायज कामों की िरह कहीं िू भी िो नाजायज…
पछ
ू ना आज। वरना कोई माूँ–बाप अपने बच्चे की दजंदगी इस िरह बबाषद िो
नहीं होने देंगे। इिना कह कर वेदप्रकाश आगे बढ़ जािे हैं।

सबु ह–सबु ह दददववजय ने टीवी ऑन दकया। एक


ं र सबु ह की ब्रेदकंग न्यिू सनु ा
रही थी।

एंकर - नमस्कार मैं हूँ रंजना और आप देख रहे हैं ‘सबु ह का सच’। वररष्ठ
पत्रकार धनंजय की मडषर – दमस्ट्री ने अब नया मोड़ दलया है। यह बिाया जा
रहा दक पदु लस अधीक्षक के दनदेश पर सभी अदभयक्तु ों को दगरफ्िार कर दलया
गया है। इन अपरादधयों ने अपना गनु ाह स्वीकार करिे हुए इसे आपसी रंदजश
बिाया। जो लोग भी इस के स को व्यापारी व समादजक कायषकिाष दददववजय
पादटल से जोड़ इसे राजनीदिक मोड़ देना चाह रहे थे, उन्हें बड़ा झटका लगा है।

दददववजय ने मत्रं ी सजं य पादटल को िोन दकया। दजससे वह इस ट्रासं फर के


दलए शदु िया अदा कर सके ।

दददववजय - नमस्कार मंत्री जी..!

सजं य – नमस्कार! साहब, कै से हैं आप?

-20-
वे ददक दिवे दी

दददववजय (मस्ु कुराकर) – आपके रहिे कोई हमें कष्ट हो िो उसका िात्पयष आप
जानिे हैं।

सजं य – अरे साहब, सरकार दकसी की भी हो, मंदत्रमण्डल िो आपका ही है।


आपको कष्ट मिलब प्रदेश पर गम के बादल। आपका सेवा ही हमारा पहला
धमष, बस आने वाले चनु ाव में दसर पर हाथ बना रहे आपका।

दददववजय – िरूर, आपकी कायषशल ै ी की दमसाल देिे हैं हम। आप जैसे लोगों
की ही देन है दक प्रदेश में दवपक्ष व प्रशासन की जीदवका चल रही। बाकी अगर
अपराध खत्म हो गया और अपरादधयों का भय नहीं रहा िो शासन व सत्ता की
क्या ही जरूरि पड़ेगी लोगों को?

सजं य इस बाि पर हूँसिा है और कॉल कट होिा है। अब बारी मीदडया की है।

मीदडया जो विषमान समय में स्वयं में दकसी न्यायालय से कम नहीं है।
के स भले ही अभी न्यायालय में पेंदडग पड़ा हो, लेदकन सत्रू ों के मिु ादबक ये
दकसी को भी बा- इज्िि बरी कर देिे हैं। ऐसे समय में जब न्यायालय में ढेरों
मामले लदं बि हैं, सरकार को न्यिू चैनल वालों से इनपर सनु वाई करवानी
चादहए। सत्रू ों के दहसाब से कुछ ही महीनों में सारे के स रफा- दफा कर देंगे।

शायद लोकिंत्र की सेहि दबगाड़ने में इनका यह योगदान स्वर्ष


अक्षरों में दलखा जाए। इिनी व्यस्ििा के बीच एक सामान्य नागररक कोटष के
फै सले को नहीं बदल्क न्यिू चैनलों पर देखकर उस घटना पर एकं सष के दनर्षय
को अंदिम दनर्षय मान लेिा है। ऐसा भी नहीं दक विषमान समय में सत्य के दलए
लड़ने वाला कोई नहीं। धनंजय जी सच्चाई की ही दमसाल थे, जो समाज में

-21-
ramaeSvara

फै ल रहे अनैदिक कायों के दखलाफ लड़े और अपनी जान िक की बािी लगा


दी।

कभी – कभी दोर्ी खदु अपने ही जाल में उलझ जािा है। वही होने
वाला था अब दददववजय पादटल के साथ। वैसे भी बनारस महादेव की नगरी है।
बाबा काल भैरव अथाषि काशी के कोिवाल की माया अब शायद शरू ु हो
चक
ु ी थी। कहा भी िो गया है दक ‘हरर इच्छा बलवान’ ...!

-22-
3.

धनजं य के ना होने के बाद अब पररवार की दजम्मेदारी बड़ी होने के


नािे स्वरा के कंधों पर थी। हालाि को दोर् देकर कुछ नहीं हादसल होना था।
यह बाि स्वरा जल्द ही समझ गई। घर का खचष और छोटी बहन श्रदु ि की
पढ़ाई, यह सारी दजम्मेदाररयाूँ अब उसे परे शान कर रही थीं।

घर पर स्वरा श्रदु ि व उसकी माूँ साथ थीं। शाम होने को है। समय
अपनी गदि से चल रहा, यह आने वाला हर सवेरा और शाम हमें ज्ञाि करािा
है। स्वरा अपनी माूँ से दहम्मि करके कहिी है…

स्वरा - माूँ मैं अब नौकरी करना चाहिी ह।ूँ जो बीि गया उसे िो हम-आप
बदल नहीं सकिे लेदकन हमें अपने दलए और पापा की लड़ाई लड़ने के दलए
आगे आना होगा।

-23-
ramaeSvara

उमा – बेटा… अब िमु को जो सही लगे।

इिना कहकर उनकी आूँखों से आूँसू दगरने लगिे हैं िभी श्रदु ि भी
वहाूँ आ जािी है। दोनों बहन की उम्र में दसफष दो साल का अंिर था। शायद वो
एक – दसू रे के ददल की बाि को समझिी थीं। माूँ कमजोर न पड़ जाए इसदलए
दोनों बहन आगे बढ़कर उन्हें गले से लगा लेिी हैं।

उमा – बेटा वकील भैया ने भी बुलाया था िो उनसे बाि कर लो और दमल लो


जाकर।

स्वरा – हाूँ माूँ, मैं राजेश अक


ं ल के यहाूँ जॉब के दसलदसले में जा रही ह।ूँ लौटिे
वक्त दमल लूँगू ी।

यह कहकर स्वरा वहाूँ से दनकलने लगी। दनकलिे-दनकलिे अपनी छोटी बहन


को आवाज देिी है।

स्वरा - श्रदु ि कुछ चादहए िुम्हें? मैं बाहर जा रही ह।ूँ

श्रदु ि – नहीं दीदी…।

स्वरा अपनी स्कूटी पर वहाूँ से दनकल जािी है।

थाने में आज इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध दसहं का पहला ही ददन था। एक दसपाही इन्हें
के दबन िक छोड़िा है।

“ साहब कुछ चादहए िो बिाना हमें ” – दसपाही

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वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध ( कुसी पर आराम की साूँस लेकर ) – जी दबल्कुल.!

यदद आप अपने जीवन में कुछ कर रहे होिे हैं िो यह समदझए दक आप पर


कई दगद्ध नजरें गड़ाए हुए हैं या दफर ये लाइन भी दफट बैठिी है – ‘मस्ु कुराइए..!
आप कै मरे की निर में हैं।’

श्यामदास ने अपना काम कर ददया था। दददववजय के गप्तु ागं ों में एक


अगं यह भी था जो अब उसे हर समाचार मीदडया से पहले पहुचूँ ा ददया करिा
था। अदनरुद्ध को अपने प्रभाव में लेने के दलए अदभसार का आगमन वारार्सी
पदु लस स्टेशन पर हो चक ु ा था। श्यामदास चालाक लोमड़ी की िरह अपनी दमु
दहलािे हुए आगे – आगे और अदभसार पादटल व उसके दोस्ि खदु को शेर
समझ दबना पछ ू े अदनरुद्ध के के दबन में दादखल हो जािे हैं।
अदभसार कुसी पर बैठकर – कहो इस्ं पेक्टर…!

इिने में अदभसार की बाि काटकर श्यामदास बोलना शरू


ु कर देिा
है।

श्यामदास – साब, ये पादटल साहब के बेटे अदभसार पादटल हैं। पत्रकार धनंजय
दसंह के के स के बारे में आपसे दमलने आए हैं।

अदनरुद्ध – “अच्छा…!”

यह कहकर मस्ु कुरा देिे हैं।

अदनरूद्ध (आगे बाि परू ी करिे हुए) - कुछ बाकी रह गया हो िो बोल दीदजए
श्यामदास सर। वैसे अंदर कै से प्रवेश दकए दबना अनमु दि के हमारे ?

-25-
ramaeSvara

अदभसार – मझु े दकसी की अनमु दि की जरूरि नहीं पड़िी।

अदनरुद्ध (व्यगं कसिे हुए) – अब ये न कहना आगे दक चच्चा दवधायक हैं


हमारे , क्योंदक बाबा हमारे मख्ु यमत्रं ी रहकर ररटायर हुए हैं।

श्यामदास – साब आप िो बड़े मजादकया हैं…!

अदनरुद्ध (इसबार गस्ु से में) – चपु , पहले इज्जि से बाहर दनकलो और इजाजि
लेकर ही अंदर आओ दफर हम सोचेंगे की िुमसे क्या बाि करना है क्या नहीं।

अदभसार का दोस्ि अब्दल


ु – लगिा है नई ज्वाइदनगं है।
(उनमें से दसू रा) अदभनव - गमी ज्यादा है इसीदलए अभी।

इससे पहले की इनमें से कोई िीसरा बोलिा इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध बोल पड़िे
हैं।

अदनरुद्ध (अपने अंदाज में) – बड़े ढीठ हो बे िुम सब। अच्छा ज्वाइदनंग की
बाि िूने कही ( अब्दल
ु के िरफ इशारा करके ) न? हाूँ बेटा, ज्वाइदनंग लेटर िनू े
ही साइन दकया? गमी की बाि दकसने कही, हाूँ ( अदभनव की िरफ इशारा
करके ) िूने? थमाषमीटर हो क्या बे िमु ? अब मझु े कोई बाि नहीं करनी, दबना
कोई सवाल करे दनकल लो नहीं िो लॉकअप के दरवाजे पर िाला नहीं लगाने
का हुक्म जारी कर भी दे रहा हूँ अभी से।

-26-
वे ददक दिवे दी

दकिना अजीब लगिा है ये सब। दजसका जो काम नहीं, वह वही कर


रहा। इस्ं पेक्टर साब का काम हवलदार, और हवलदार का काम बाहर पान
गमु टी पर बैठा पाना वाला कर देिा है।

इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध ये समझ चकु े थे दक इस दिरस्कार भरे स्वागि का


राज धनंजय हत्याकांड की िरफ इशारा कर रहा है। आवश्यकिा से ज्यादा
िारीफ भी मदु श्कल में डाल देिी है, यह यहाूँ से समझा जा सकिा है।

स्वरा अपने दपिा के दमत्र राजेश के होटल में पहुचूँ उसके के दबन में
दादखल होिी है। राजेश ने स्वरा को बैठने के दलए कहा। स्वरा बैठिी है। राजेश
ने पानी के दलए नौकर को आवाि दी।

राजेश – बोलो बेटी, कै से आना हुआ?

स्वरा – अक
ं ल मैंने ररज्यमू े आपको मेल कर ददया था। उसी के दसलदसले में
आई थी दमलने आपसे।

राजेश (होटल प्रकाश के मादलक) – हाूँ, दमला मझु े। आपके दपिा मेरे अच्छे
दोस्ि थे बेटा। यकीन नहीं होिा दक अब वो हमारे बीच नहीं। यह होटल अपना
ही समझो। आज से इसकी सारी दजम्मेदारी आपकी। उम्मीद है दक िमु इसे
अच्छे से संभाल लोगी। बाकी दकसी चीज की जरूरि हो िो दनःसंदहे कहना
मझु से।

स्वरा – थैंक्स अंकल, हम सदैव आपके आभारी रहेंगे। मैं कल से ज्वाइन करिी
ह।ूँ

-27-
ramaeSvara

राजेश – ठीक है बेटा।

स्वरा के जीवन का नया सफर अब एक होटल मैनेजर के रूप में यहीं


से शरू
ु होिा है। स्वरा ने लखनऊ से होटल मैनेजमेंट का कोसष दकया था,
दजसके चलिे ये सब कुछ हो पाया। वह खश ु ी के साथ वहाूँ से दनकल सीधे
वकील देवव्रि पाण्डेय के यहाूँ आ जािी है। देवव्रि पाण्डेय, धनजं य के करीबी
दोस्ि थे।

“नमस्िे अंकल” – स्वरा ने देवव्रि से कहा।

देवव्रि – आओ बेटा, िम्ु हारा ही इिं जार कर रहा था मैं। िमु को यह बिाना था
दक दददववजय पादटल ने इस्ं पेक्टर वेदप्रकाश जी का ट्रांसफर करवा ही ददया।

स्वरा – जी अंकल, जाने के पहले घर पर आए थे। काफी परेशान भी लग रहे थे


वो।

देवव्रि – हाूँ बेटा, वेदप्रकाश जी, मैं और आपके पापा हर शाम को एक साथ
ही बैठकर ढेरों बाि दकया करिे थे। आपके पापा ने दददववजय के दखलाफ
काफी जानकारी इकट्ठी कर ली थी जो उसे जेल के दरवाजे िक ले जािे।

स्वरा – अब के स दकसके पास है?

देवव्रि – अदनरुद्ध दसहं , अभी नई ज्वाइदनगं है। काफी यवु ा है। देखो क्या होिा
है आगे। अगर उसने हमारा साथ ददया िो के स हम ही जीिेंगे। िुम एक बार
दमल लो जाकर उससे।

-28-
वे ददक दिवे दी

स्वरा – ठीक है, अंकल।

देवव्रि – और क्या कर रही हो आजकल?

स्वरा – राजेश अक ं ल से दमलकर आ रही अभी, उन्हीं के होटल में मैनेजर के


पोस्ट पर बाि हुई है आज।

देवव्रि – राजेश जी अच्छे आदमी हैं और आपके पापा के अच्छे दोस्ि भी।
कोई भी बाि हो उनसे खल ु के कह देना।
स्वरा – जी अंकल। अब मैं चलिी ह।ूँ माूँ भी इिं जार कर रही होंगी… नमस्िे।

देवव्रि - नमस्िे बेटा, आराम से जाना और घर पहुचूँ के कॉल कर देना मझु े।

स्वरा स्कूटी स्टाटष कर वहाूँ से दनकल जािी है। देवव्रि स्वरा को इस िरह आगे
बढ़िा देख बेहद खश ु हो रहा था।
अच्छे कमष और ईमानदार होने का ईनाम जीिे जी िो नहीं मगर हमारे
न होने के बाद िरूर दमलिा है, वह भी हमारे पररवार को। लोग हमेशा उन्हें
सम्मान देिे हैं और उनके साथ खड़े भी होिे हैं। आपकी अच्छाई आपके
पररजनों को स्वादभमान से जीना दसखािी है।

“श्यामदास सर” – इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध ने आवाज लगाई।

श्यामदास (भागकर आिा है) – अरे साब जी, क्यों शदमिंदा कर रहे हैं मझु े…!

अदनरुद्ध (मस्ु कुरािे हुए) – जरा गाड़ी दनकालो, एक चक्कर लगाया जाए
बनारस की गदलयों का।

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ramaeSvara

श्यामदास – जी साब जी, अभी दनकालिा ह।ूँ वैसे भी यह शहर बड़ा कमाल है।
कोई जीना चाहे या नहीं लेदकन मरना काशी में ही चाहिा है। खदु िो वो स्वगष
में सैटल हो जािे हैं और जाूँच – पड़िाल कर हमारी दजंदगी…!

अदनरुद्ध - अब चलें हम… (दोनों पदु लस वाहन से दनकलिे हैं)।

स्वरा घर पहुचूँ कर स्कूटी खड़ी करिी है और िेजी सी अपनी माूँ की िरफ बढ़


उन्हें गले से लगा लेिी है।

स्वरा– मम्मा मझु े नौकरी दमल गई।

उमा (खश
ु होकर) – अच्छा। कहाूँ और काम क्या करना होगा बेटा..?
अब िब िक यह कोलाहल सनु श्रदु ि भी वहाूँ आ गई होिी है।

श्रदु ि- मझु े भी बिाइए दक कहाूँ?

स्वरा– राजेश अंकल के होटल में, मझु े मैनेजर का पोस्ट दमला है।

सभी एक साथ गले लग जािे हैं पररवार की इस दख ु की घड़ी में दफर


से जीने की छोटी–सी उम्मीद जल उठी थी। ऐसे माहौल से अपने पररवार को
दनकालने के दलए बड़ी होने के नािे स्वरा ने यह दजम्मा उठाया। धनजं य के न
होने के बाद आज पहली बार घर में हूँसी सनु ाई दी।

भल ू ने को भले ही गलि समझें लेदकन भलू ना आदमी के दलए प्रकृ दि


का वरदान है। आप ऐसा भी न समझें दक मैं भल ू ने की बीमारी को भी अच्छा
बिा रहा ह।ूँ इस िरह भल ू ना भी अच्छा नहीं दक शाम को अपना घर ही भल ू

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वे ददक दिवे दी

जाएूँ आप। मैं ऐसी िमाम यादों के वजदू को कम होने की बाि कर रहा हूँ
दजससे हमारी दजंदगी दवराम लेने लग जािी है।

अदनरुद्ध ने दसपाही श्यामदास से गाड़ी रोकने को कहा और उिरकर सड़क के


दकनारे पर दस्थि मगं ेश पान वाले की दक
ु ान पर पहुचूँ गए।
मंगेश ने डर कर अदनरुद्ध से – “नमस्िे साहब। कइसे आना भवा ईहाूँ, बिाइए
सरकार का सेवा करूूँ”?

अदनरुद्ध – पान दखलाओ वो भी मीठा, बाकी अगर कुछ कहना हो िो कहो।


हम सनु ने के दलए ही आए हैं यहाूँ। दिरस्कार भरा नमस्कार यह बिा रहा है दक
नाराि काफी हैं आप इस वदी से।

मंगेश (दबी आवाि में) - सरकार आप दसस्टम में हौ िो आप स्वयं सब


जानि...!

दसपाही श्यामदास को इसी िरफ आिे देखा मंगेश चपु हो जािा है। अदनरुद्ध ने
पलट कर श्यामदास को देखा और बोले।

अदनरुद्ध – ड्राइदवगं सीट में चींटी भरी है क्या…?

श्यामदास (जी हुजरू ी में) – अरे नहीं साहब, मैं िो ऐसे ही आपके पास आ गया।
सोचा, अके ले खड़े हैं आप।

अदनरुद्ध (ऊूँ ची आवाि में ) – िमु हमको भले न जानों ढगं से लेदकन हम
िुमसे वादकफ हैं। अगर िुम्हारा वायरलेस अभी भी बदं ना हुआ िो सारी

-31-
ramaeSvara

फ्रीक्वेंसी ठीक जगह डालकर इन्हीं िरंगों के माध्यम से िम्ु हारा पागलपन भी
ठीक कर दगूँू ा। जाओ गाड़ी स्टाटष करो अब। मैं आिा ह…ूँ ।

श्यामदास सर झक
ु ाकर चला जािा है। उसे अब मालमू हो चक ु ा था
दक इस्ं पेक्टर साब उसके बारे में सब जान चक
ु े हैं। अगर उसने कुछ भी दकया िो
उसके दलए उलझने बढ़ जायेंगी। इस घटना के बाद लगािार इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध
ने धनंजय दसंह के स के बारे में सारी जानकारी जटु ाना शरू
ु कर ददया। मंगेश की
मदद से उन सभी िक पहुचूँ कर अदनरुद्ध ने सच्चाई का पिा लगाया जो
दददववजय से परे शान थे। कहीं न कहीं पत्रकार धनजं य दसहं ने उन लोगों का
सहयोग भी दकया था।

प्रयागराज हाईकोटष के पररसर में चाय की दक ु ान पर वकीलों का


जमावड़ा लगा था। बीच में एक नौजवान काले कोट में चाय की चस्ु की के साथ
ग़िल के शेर पढ़ रहा था। इस बाररश में यह दृश्य क्या ही कमाल था।

एक वकील - राघव भैया, कुछ और सनु ाइए। हम वकीलों पर भी कुछ दलखा


दक नहीं आपने?

सब ने हाूँ में हाूँ और “इरशाद” कहिे हुए ग़िल पढ़ने को कहा।

राघव ने भी चाय की चस्ु की ली और ग़िल पेश की।

राघव – अजष दकया है -

-32-
वे ददक दिवे दी

‘‘दबछड़ कर दफर दमले जो हाल पछू ें गे,


मेरे दबन कै से गिु रे साल पछू ें गे।१।

नहीं मझु सा कोई आदशक़ जमाने में,


मझु े मालमू है दिलहाल पछू ें ग।े २।

अदालि में वकीलों का यही पेशा है,


सवालों से ही हाल-ओ-चाल पछ
ू ें गे ।३।’’

इस शेर पर सभी ने राघव बाबू को कंधे पर उठा दलया। “वाह—


वाह” और खश ु ी की हूँसी से परू ी दक
ु ान गूँजू रही थी। राघव दीदक्षि जी की उम्र
महि 27 साल थी। लखनऊ यदू नवदसषटी से इन्होंने लॉ परू ा दकया था। अपने
इसी अदं ाज से लोगों में इन्होंने अपना दबदबा कायम कर रखा था। इसी बीच
राघव का फोन बजा और वो बाहर आ जािे हैं।

“नमस्कार राघव भैया”– भैरव (पेशे से दलाल)

राघव – अबे कहाूँ गायब हो आजकल? कोई अच्छा के स ददलाओगे या दफर


सब कुछ छोड़ के हम अब ग़िल – शायरी का फील्ड ट्राई करें ?

भैरव ( मजादकया अंदाज में ) – अरे भैया, ऐसा न कहें। हमार दक


ु ान कय दफर
का होएगा?

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ramaeSvara

यह कहकर दोनों हूँसने लगिे हैं।

राघव – थोड़ा काम से आ रहे हैं बनारस, दमलो आके ।

भैरव – िरूर भैया, प्रकाश होटल पर करें गे इिं जार आपका, लोके शन भेज देंगे
हम आपको।

राघव (होटल का नाम सनु हूँसिे हुए) – बेटा बजट से बाहर जा रहे हो लेदकन
ठीक है, आिे हैं हम।

कॉल कट हो जािा है और राघव चाय खत्म कर अपने चैंबर की िरफ बढ़


जािा है।

आज की सबु ह खदु में कई सारे राज समेटे हुए थी। स्वरा जल्दी िैयार
हो रही थी। उसका होटल पर जॉब का आज पहला ददन था। श्रदु ि फोन का
कै मरा ऑन कर – “दीदी स्माइल”…। जैसे ही स्वरा इस िरफ मड़ु ी, एक प्यारी
सी हसीं के साथ िस्वीर फोन में कै द हो चक
ु ी थी।
“दकसी की निर ना लगे िुम्हें ” – उमा ने उसकी निर उिारिे हुए कहा।

“अच्छा माूँ अब बस भी करो” स्वरा ने मस्ु कुराकर कहा। “अब मझु े दनकलना
है। मैं नहीं चाहिी दक देर हो जाए मझु े” ।

िैयार होकर अपनी स्कूटी से स्वरा होटल के दलए दनकल जािी है।

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वे ददक दिवे दी

इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध को सचू ना दमली थी दक होटल प्रकाश में आज ड्रवस से


िस्करों की मीदटंग होने वाली है इसदलए पदु लस टीम के साथ वो भी होटल की
िरफ चल ददए।

भैरव होटल पहुचूँ कर राघव को फोन लगािा है। फोन की घटं ी बजिी है। राघव
कार पादकिं ग में लगा कर कॉल ररसीव करिा है।

“हाूँ भैरव” – राघव

“कहाूँ पहुचूँ े भैया” – भैरव ने पछू ा

राघव – “ गाड़ी पाकष कर रहा, पहुचूँ गया ह”ूँ ।

राघव गाड़ी पाकष कर नीचे उिरिा है। सामने पदु लस जीप भी आकर रुकिी
है। राघव इन्स्पेक्टर की िरफ देखिा है। अदनरुद्ध दसपादहयों को होटल के अदं र
जाने का इस्ं ट्रक्शन देकर पीछे मड़ु िा है और राघव को देखिा है।

“रघ”ु – अदनरुद्ध!

“अन्नी” – राघव!

दोनों िेजी से एक दसू रे की िरफ बढ़कर गले से लग जािे हैं।

अदनरुद्ध (गले लगे रहकर) - यार… िुम नहीं जानिे दक मैं दकिना खश ु ह।ूँ
इिने ददनों बाद हम दमल रहे, साले नंबर भी चेंज कर दलया िुमने िो?

-35-
ramaeSvara

राघव – अबे ऐसा कुछ नहीं, दजगर हो िमु मेरे। सोचा नहीं था दक िमु दबछड़ी
हुई महबूबा की िरह दमलोगे। साले गले से हट जाओ या फ्लेवर बदल गया है
जो दलपट कर लत्ु फ उठा रहे हो मझु से और ये बिाओ दक यहाूँ कब आये?

अदनरुद्ध (उसके व्यंग पर हूँसिे हुए) – एक महीना हुआ अभी। अच्छा सारी
बािें यहीं करोगे या अदं र भी चलोगे?

दोनों होटल में प्रवेश करिे हैं। राघव ने भैरव को कॉल दकया ।

“यहाूँ हूँ भैया मैं” – भैरव

दोनों भैरव की िरफ आगे बढ़िे हैं । भैरव हैरानी से अदनरुद्ध को देखिा है।

भैरव - इस्ं पेक्टर साहब आप..?

राघव – मिलब जानिे हो इनको..?

दोनों बैठिे हैं।

भैरव – “राघव भैया, बनारस के भैरव हैं हम। ई शहर में हवा भी हमें बिा के
चलिी है। आप पहले दमल चक ु े हैं क्या इस्ं पेक्टर साहब से..?”
राघव – दभु ाषवय से हम रूममेट हैं। हम दोनों ने अपना ग्रेजएु शन साथ में और
एक ही कॉलेज से परू ा दकया है।

अदनरुद्ध और राघव एक दसू रे को देख परु ाने ददन याद कर हूँसने


लगिे हैं। दोनों की रहस्य भरी मस्ु कान को देख भैरव अचंदभि हो जािा है।

-36-
वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध – भैरव, मझु े एक मदद चादहए िमु से..!

भैरव – कदहए आप, मैं परू ी मदद करूूँगा आपकी।

अदनरुद्ध - पत्रकार धनजं य दसहं की हत्या से जड़ु े मामले में क्या जानकारी है
िुम्हें..?

भैरव – साब जी क्या ही कहें, काफी भले आदमी थे वो। (इनक्वायरी डेस्क पर
एम्प्लॉय से बाि कर रही लड़की की िरफ इशारा कर) उन्हीं की बड़ी बेटी
स्वरा, आज यहाूँ ज्वाइन हुई है मैनजे र की पोस्ट पर।

दोनों हैरानी से स्वरा की िरफ देखिे हैं, इिने में भैरव ने उससे आवाि लगा दी।

भैरव – मैडम ..!

स्वरा जैसे ही मड़ु िी है उसकी दनगाह राघव और अदनरुद्ध पर पड़िी है। राघव –
अदनरुद्ध अपनी जगह खड़े हो कर स्वरा को देखने लगिे हैं। िीनों की दनगाहें
एक दसू रे से हट ही नहीं रही थीं। उनकी धड़कनों की रफ्िार को आसानी से
सनु ा जा सकिा था। इसे संयोग कहें या दकस्मि का खेल?

स्वयं कल्पना करें आप। एक लड़की दजससे आप कॉलेज के समय में बेपनाह
मोहब्बि करिे रहे हों और वह कई साल बाद अचानक आपके सामने आ
जाए। परू ी कहानी क्या थी यह समझने के दलए हमें अिीि में चलना होगा, जहाूँ
आप दमलेंगे 7 साल पहले के राघव, अदनरुद्ध और स्वरा से।

-37-
4.

12 वीं का ररजल्ट आने का ददन घोदर्ि होिे ही नींद िो आने से


रहिी है। सपनों में भी दफदजक्स का न्यमू ेररकल और के दमस्ट्री के इक्वेशन ही
ददखिे हैं और इसकी जगह बायोलॉजी वालों को हृदय की आिं ररक संरचना
का आदलदं व दनलय की सरं चना के साथ घोंघे ही ददखाई देिे हैं।

इससे भला राघव और अदनरुद्ध को क्या ही फकष पड़िा जब उन्होंने


इदिहास की परीक्षा के ददन मगु ल-ए-आिम की सारी लाइन छाप दी थी।
इन्होंने अपना रास्िा अलग चनु ने का ठाना था िो इटं रमीदडएट में कला वगष से
पढ़ाई की। लखनऊ यदू नवदसषटी में दहदं ी की कक्षा में जब प्रोफे सर ने यह पछू ा
दक दकिने लोग साइसं से आटष में दादखला दलए और कौन – कौन शरू ु से ही
आदटषस्ट हैं? उसी दौरान अदनरुद्ध और राघव की मल ु ाकाि हुई। क्लास खत्म
होने पर अदनरुद्ध राघव एक दसू रे से पररचय करिे हैं।

-38-
वे ददक दिवे दी

“ मैं अदनरुद्ध दसंह, गोरखपरु से” - अदनरुद्ध ने राघव से कहा।

राघव ने अदनरुद्ध से हाथ दमलािे हुए – “ राघव दीदक्षि, बस्िी से।”

अदनरुद्ध ने खश
ु ी से – हम दोनों िो पड़ोसी दनकले भाई। वैसे, कहाूँ रह रहे हो?
राघव (लंबी साूँस लेकर) - दफलहाल एक ररश्िेदार के यहाूँ। कोई रूम हो िो
बिाना भाई, मैं भी िलाश कर रहा ह।ूँ

अदनरुद्ध – मैं यहीं पास में रहिा ह,ूँ गल्सष कॉलेज के पास। मझु े भी रूममेट
चादहए। अगर चाहो िो मेरे साथ रह सकिे हो।

राघव (हूँसिे हुए) – मझु े िो कोई भी ददक्क्त नहीं भाई। कला वगष िो आपने
ददल से लगा दलया है।

दोनों एक साथ हूँसिे हैं इस बाि पर।

राघव - ठीक है दफर मैं दशफ्ट होिा हूँ सोमवार िक।

अदनरुद्ध - हाूँ िरूर भाई। मेरी कोई मदद चादहए होगी िो बोलना।

दोनों एक दसू रे का नम्बर एक्सचेंज करिे हैं। अदनरुद्ध राघव को रूम ददखाने
साथ ले जािा है।

इनके रूम से थोड़ी ही दरू पर एक प्राइवेट कॉलेज था। धनंजय ने


स्वरा का एडदमशन यहीं करवाया था। स्वरा यहीं से होटल मैनेजमेंट का कोसष
कर रही थी।

-39-
ramaeSvara

अपने जीवन का सबसे शानदार पल गजु ारने के बाद अब हम खदु


के प्रदि थोड़ी दजम्मेदारी महससू कर कोई भी काम जो शरू ु करिे हैं उसे उसी
गंभीरिा के साथ परू ा करने के दलए मेहनि भी करिे हैं। राघव व अदनरुद्ध भी
मध्यमवगीय पररवार से थे। दोनों के आचरर् में कािी समानिा थी। जल्द ही
दोनों एक – दसू रे का भरोसा जीिने में कामयाब भी रहे। देखिे ही देखिे दो
साल यूँू ही गजु र गए।

स्वरा क्लास करके अपने दोस्िों के साथ हॉस्टल के दलए दनकल रही
थी। राघव और अदनरुद्ध आज कॉलेज नहीं गए थे वे सब्जी व अन्य सामान
लाने के दलए बाजार आए थे। अदनरुद्ध की निर सामने से आ रहीं लड़दकयों
पर पड़ी।

अदनरुद्ध – रघ,ु उधर देखो…!

राघव स्वरा को देखिे हुए – हाूँ, देख िो मैं भी वहीं रहा ह।ूँ लेदकन मैं दजसको
देख रहा िमु उससे दरू ही रहना और ये लो साले साइदकल संभालो ।

राघव अपनी हरक्यदू लस साइदकल अदनरुद्ध को थमाकर अपने कपड़े और


बालों पर हाथ फे र स्वरा की िरफ देखने लगा।

अदनरुद्ध – अबे रघ,ु साले मरवाओगे क्या..! ऐसे घरू ोगे िो लोग क्या कहेंगे..?
सब इधर ही देख रहे।

“ कहने दो अन्नी” एकटक स्वरा को देखिे हुए राघव – “ कुछ िो लोग कहेंगे
ये गाना बचपन से सनु िा आ रहा ह।ं अपने स्कूल में आटष से पढ़ने वाला

-40-
वे ददक दिवे दी

अके ला छात्र और अपने खानदान में आटष से पढ़ने वाला, अपने मां – बाप का
इकलौिा लौंडा ह।ं लोगों के कहने का अब फकष नहीं पड़िा। िुम धीरे –से
साइदकल इनके पीछे लगाओ”।

अबिक उन लड़दकयों में से एक ने इन्हें देख दलया था। एक लड़की दजसका


नाम ज्योदि था स्वरा से हूँस के बोली।

ज्योदि – स्वरा उधर देख… काफी देर से िझु को ही घरू े जा रहा है।

स्वरा ने राघव को देखकर नजरें चरु ा लीं – “ घरू ने से इन्हें कौन रोक सकिा है,
घर में अपनी माूँ – बहन को नहीं देख पािे”।

दसू री लड़की दजसका नाम साइना था – “ये बोल कौन रहा है”।

सब लड़दकयां हूँसने लगीं। राघव और अदनरुद्ध चपु के – चपु के उनके पीछे


चले जा रहे थे।

“ये बेचारे िो पीछे ही आ रहे हैं, इनको दनराश नहीं करना चादहए वरना पाप
लगेगा” - ज्योदि पीछे देखकर बोली।

स्वरा ने खीझ कर – “ नंबर दलखकर दे दो अपना और कमा लो पण्ु य। वैसे भी


िुमको िो िजबु ाष है इन सबका। एक नंबर और सेव कर लो फोन में”।

सब हूँसने लगिी हैं।

“यार मेरा प्यार सच्चा है, आई लव माई सदचन” – ज्योदि।

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ramaeSvara

साइना – “अच्छा छोड़ ना यार इिना क्या भाव देना, वरना हॉस्टल का चक्कर
लगािे दफरें गे रोज ये”।

हॉस्टल गेट के अंदर जािे वक्त स्वरा ने मस्ु कुराकर राघव को देखा और अंदर
चली गई।

अदनरुद्ध साइदकल रोक कर – “पकड़ अपनी साइदकल। िुम्हारी वजह से आज


मैं चक
ू गया वरना नंबर लेकर ही रहिा”।
राघव – “यार िमु िो भाई हो मेरे, बाि करिे िो हो िुम बदबिा से। िो उसको
ही सभं ालो। अब मझु े सच्चा प्यार हो गया है। मेरा हटषबीट भी धका – धक चल
रहा था देख के उसको। अब कै से भी करके िमु को मेरा काम िो कराना ही
पड़ेगा। एक बाि और… वो भाभी है िुम्हारी…भाभी!”

“अच्छा” अदनरुद्ध मस्ु कुराकर – “ िो शादी भी कर दलए िमु मन ही मन”।

“ हाूँ, और नहीं िो क्या” – राघव।

इससे पहले वाडषन इनसे सवाल जवाब करिा इन्होंने साइदकल घमु ाई
और िेजी से रूम की िरफ चल ददए। जल्दी-जल्दी सब्जी खरीदी। पनीर वाले
से पनीर पैक करने का ऑडषर दे ददया। मानो आज राघव की लॉटरी लगी हो।
पाटी का परू ा बंदोबस्ि हो चक ु ा था। मन में ढेरों िरंगें और अदनरुद्ध से ढेरों
सवाल दक स्वरा को कै से इप्रं ेस दकया जाए। अदनरुद्ध ने भी अवसर का भरपरू
लाभ उठा एक दोस्ि होने का सारा ििष अदा दकया। रूम पर पहुचूँ कर राघव ने

-42-
वे ददक दिवे दी

साउंड को फोन से कनेक्ट कर ददया। सामान को रख दोनों गाने के हर स्टेप पर


ठुमके लगाने लगे।

“खलु ा है मेरा दपंजरा िू आ मेरी मैना” परू े कमरे का माहौल बन चक


ु ा था।
साउंड की आवाि – लो बैट्री।

गाना चलना अब बंद।

अदनरुद्ध – देखे? िुम्हारी खश


ु ी इसे भी सहन नहीं। क्या कहेंगे इस पर पंदडि
जी?

राघव – साले सब खेल िुम्हारी गंदी निर का है।

अदनरुद्ध – िो दरू रखो भाई मझु े अपनी प्रेम कहानी से।

राघव – अन्नी िू मेरा भाई है। मैंने िो मजाक में बोला यार। िुम्हारे दबना ये
अबोध बालक अपनी मंदजल को कै से पाएगा।

दोनों इस बाि पर हूँसिे हैं। और खाना बनाना शरू


ु करिे हैं।
राघव – अन्नी ये बिाओ दक उस िक मेरा संदश
े जाएगा कै से?

अन्नी – कबिू र ट्राइ करो ससरु ।

राघव – हसं न भेज द?ूँू

अन्नी – उसका बाप भी कालनेदम ही छोड़ेगा िुम्हारे पीछे । वैसे हसं वाला
आइदडया रामायर् से चरु ाए न िुम?

-43-
ramaeSvara

राघव – साले िम्ु हें मेरे दस दसर ददखिे हैं?

अन्नी (ठहाके मारकर) – अरे मैं हूँ न यार। पहले खाने का इिं जाम हो जाए दफर
कुछ करिे हैं।

खाना बनिा है। दोनों खाने के बाद पढ़ने की िैयारी करिे हैं। आगे
फाइनल ईयर का एवजाम भी आ रहा था। अदनरुद्ध ने फोन में इस्ं टाग्राम ऑन
दकया। स्िीन पर स्िॉल करिे ही एक ओपन माइक कराने वाली संस्था का
पोस्ट उसके सामने आिा है। िस्वीर देखकर मानो अदनरुद्ध की साूँसे रुक गई
हो।

अदनरुद्ध (जल्दी से) – रघ.ु .! ये देखो..!

राघव (उसकी िरफ बढ़कर) – क्या हुआ फोन हैंग?

जैसे ही राघव की नजरें फोन की स्िीन पर गई ं वो भी ज्यों का त्यों खड़ा रह


गया। दोनों दजस मद्रु ा में थे वैसे ही खड़े रहे और ओपन माइक का वो पोस्टर
देखे जा रहे थे।

अदनरुद्ध – नाम?

राघव – स्वरा दसंह...

अदनरुद्ध – दपिा?

राघव – श्री धनंजय दसंह (जबदक पोस्टर में धनंजय दसंह है)

-44-
वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध इस बाि पर राघव की िरफ देखिे हुए उसकी इस हरकि पर मस्ु करा
कर कहिा है ।

अदनरुद्ध – यहीं से चरर् पकड़ लो साले, इिनी िमीज से कभी मेरे बाप का
नाम िो नहीं लेिे।

राघव – भक साले, िमु से कौन बोल रहा है बे?

अदनरुद्ध का फोन छीन राघव दबस्िर पर आराम फरमािे हुए अब िक स्वरा की


इस्ं टा आईडी पर फॉलो ररक्वेस्ट डाल देिा है।

अदनरुद्ध – पंदडि ये ने भल ू ना दक मेरा फोन दलए हो बेहिर होगा दक अपने


आईडी से फॉलो – अनफॉलो करो अन्यथा ये आरोप बदाषश्ि नहीं करूूँगा दक
मैंने िुम्हारा काम दबगाड़ ददया।

राघव हूँसिे हुए उसके फोन से फॉलो ररक्वेस्ट कैं सल करिा है और अपना फोन
हाथ में लेिे हुए।

राघव – यार िू मेरा...

अदनरुद्ध – दोस्ि नहीं भाई है, ये मैं जानिा ह।ूँ

दोनों हूँसिे हैं। पास लेट कर दोनों एक ही फोन की स्िीन पर दनगाहें गड़ा के
रखिे हैं। राघव अपनी आईडी से स्वरा को फॉलो करिा है।

-45-
ramaeSvara

उधर ज्योदि के पास स्वरा का फोन रहिा है। जैसे ही वो पीछा करने
वाले लड़के का चेहरा पहचानिी है, फॉलो ररक्वेस्ट एक्सेप्ट कर फॉलो बैक भी
दे देिी है।

राघव और अदनरुद्ध के चेहरे पर चमक सी आ गई थी। दोनों की


मनोदशा इस दौरान समान थी।

आप कल्पना करें दक इस समय आपके मन में क्या चल रहा होिा। प्रेम स्वयं में
एक बहुि बड़ा पररविषन है।

हर चीज के दो पहलू होिे हैं। ठीक वैसा ही प्रेम का भी है। अगर सच


में वह प्रेम है िो शायद आप सौभावयशाली हैं दक आपको सच्चा प्रेम दमला।
अन्यथा इस उम्र में बबाषदी के सारे रास्िे भी प्रेम से होकर ही गजु रिे हैं। इस उम्र
में सकारात्मक व नकरात्मक दोनों ऊजाषएूँ हमारे अंदर बहुि ही ज़्यादा दवद्यमान
होिी हैं। हम खदु को दकस ऊजाष के प्रभाव में ढालेंगे ये हमारे आने वाले कल
के दलए बहुि बड़ी चनु ौिी होिी है।

यह बाि भी स्पष्ट करना चाहिा हं दक प्रेम व आकर्षर् में फकष होिा


है। अगर दकसी के साथ अपनी खश ु ी व दःु ख साझा करिे हुए आप सख ु दव
एक दसू रे के दलए सहयोगी महससू कर रहे हैं िो उसे प्रेम नहीं कहा जा सकिा
है। शायद ऐसे में अगर हम यह दनर्षय कर लें दक हम जीवन में इसी के साथ
आगे बढ़ेंगे िो वह गलि भी हो सकिा है। एक समय बीिने के बाद आप खदु
समझ जायेंगे दक क्या सही है और क्या गलि। दकसी भी ररश्िे को यदद आप

-46-
वे ददक दिवे दी

समझना चाहिे हैं िो आप उसे समय दें व अपने आगामी जीवन से जड़ु ी
योजनाओ ं पर चचाष करें ।

विषमान की खदु शयों में ढल कर हम भदवष्य पर दवचार ही न करें


यह भी गलि होगा लेदकन भदवष्य के डर से विषमान को खो दें यह भी मैं सही
नहीं मानिा। ऐसी दस्िदथ में बेहिर होगा दक आप ररश्िों के सकारात्मक व
नकारात्मक दोनों पहलओु ं पर गंभीरिा से दवचार करें व हर पररर्ाम से दनपटने
के दलए खदु को िैयार रखें।

सगं ि के महत्व को भी स्पष्ट करना चाहगूँ ा। संगि से व्यदक्त का चररत्र


दनमाषर् होिा है। हमारे जीवन में हर अच्छे -बुरे कायों पर अपना पक्ष रखने वाला
और हर पररदस्थदि में आपके साथ खड़े रहने वाले साथी का होना भी
आवश्यक होिा है। एक अच्छा दमत्र उस ढाल की भाूँदि होिा है जो िलवार के
वार का वजन दकए दबना हर वार से आपको बचाने के दलए ित्पर रहिा है। इस
बाि से सदैव सावधान रहें दक दजसके दलए आप समदपषि हैं वह दमत्र के वेश में
कालनेदम भी हो सकिा है।

कुछ ररश्िों की हकीकि को यदद आप समय रहिे समझ गए िो आप


जीवन में हर ऊूँ चाई को छू सकिे हैं। ररश्िों की पहचान बहुि िरूरी है और
पहचान करने का सही िरीका है उस ररश्िे को समय देना। काफी दहम्मि के
बाद अदनरुद्ध के कहने पर राघव ने मैसेज में “एच - आई” दलखकर भेज ही
ददया।

इन सारी घटनाओ ं से स्वरा अजं ान थी। दोस्ि होने की दजम्मेवारी


ज्योदि भी परू ा दनभा रही थी। उसने भी मैसेज का ररप्लाई कर ददया। आने वाले

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ramaeSvara

रदववार को ओपन माइक का स्लॉट बदु कंग दलक ं भेजिे हुए दलखा दक मैं
उसकी दोस्ि ज्योदि। इस इवेंट में स्वरा अपनी पोएट्री परफॉमष करेगी।

अदनरुद्ध (हूँसिे हुए) – बेटा अच्छा मजाक हो रहा है साथ िुम्हारे । इससे पहले
दक ओपन माइक का स्लॉट फुल हो जाए, िमु रदजस्टर कर दो। मैं भी िुम्हारी
सेफ्टी के दलए साथ चल रहा ये कत्तई मि भल ू ना।
राघव (बैठकर) – साले िुम्हारा क्या काम वहाूँ?

अदनरुद्ध – ज्योदि का प्रकाश िो मैं ही बनूूँगा या वो भी अदधकार नहीं है मझु े


और िम्ु हारा क्या भरोसा दपट – दपटा जाओ वहाूँ पर?

राघव – वो सब ठीक है लेदकन अपनी अश्लीलिा यहाूँ न प्रददशषि करना


क्योंदक अगर मेरा नाम खराब हुआ िो..

अदनरुद्ध – िो क्या..?

राघव – िो ये दक मेरा सच्चा प्यार है, िमु समझो मेरे भाई..

अदनरुद्ध (हाथ जोड़ कर) – भाई बस करो, मैं अब रो दगूँू ा क्योंदक िुम्हारा
सच्चा प्यार िो ठीक पर उसका क्या पहले ये जान लो। भाई िुम्हारी मनोदस्थदि
ठीक नहीं लग रही इस फॉमष के साथ मेंटल हॉदस्पटल में भी एक स्लॉट बुक कर
लूँ?ू

हूँसिे हुए राघव फॉमष भरने के दलए कहिा है। अदनरुद्ध ने फॉमष भरना
शरू
ु दकया और पहले अपना ऑदडयंस के रूप में भरकर सदब्मट दकया।

-48-
वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध – भाई मैं िो हो गया ऑदडयंस, अब िुम कहो, ऑदडयंस में जाना है
या परफॉमेंस?

राघव – अन्नी, िमु नहीं जानिे दक मैं राइटर ह?ूँ

अदनरुद्ध – मैं िो ये भी जानिा हूँ दक दो-चार देशों का संदवधान भी आप ही के


िारा दलखा गया है।

राघव – िुम से बोलना ही बेकार है, नरमंडु हो िमु चदू िए!

अदनरुद्ध – ठीक है िुम बने रहो “शेक्सपीयर”।

राघव – और कोई नाम नहीं दमला?

अदनरुद्ध – दमलिा, मगर मैं िो चदू िया ह।ूँ ये लो िुम्हारा िॉमष भी सदब्मट कर
ददये हैं।

राघव – मेरे पास समय कम है।

अदनरुद्ध (शॉक्ड) – कौन सी बीमारी है, दकस स्टेज पर पहुचूँ ी अभी? मिलब
प्यार का पचं नामा होना िय है िुम्हारे ?

राघव – अबे मझु े कदविा दलखने के दलए समय कम है और िुम्हें क्या सझू
रहा? वैसे भी अगर मर भी गया िो िुमको क्या?

अदनरुद्ध की आूँखें इस बाि पर नम हो गई।ं राघव ने यह देख उसे गले से लगा


कर कहा।

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ramaeSvara

राघव – इिना इमोशनल कब से? मझु े िो लगा था दक िमु मझु े िभी िक याद
रखोगे जब िक हम यहाूँ साथ हैं।

अदनरुद्ध (धीमी आवाि में) – घर छोड़ने के बाद आज इिने साल हुए। कभी
घर की याद िो नहीं आई मझु े लेदकन जब भी घर रहा, िुम्हारी याद िरूर आई।
दोस्ि, साूँसे भले साथ छोड़ दें पर मैं कभी नहीं छोड़ने वाला।

यह कह दोनों एक दसू रे के गले लग जािे हैं। ज्योदि भी इस्ं टाग्राम वाली


बाि स्वरा से कहिी है। स्वरा उससे अपना फोन लेकर मैसेज चेक करिी है।

स्वरा (हूँसिे हुए) – िमु भी परू ा मेंटल के स हो।

ज्योदि – कौन सा पहली बार सनु रही?

स्वरा – ये देखो, मेरे सारे पोस्ट पर लाइक और कमेंट भी आना शरू


ु हो गया है।
इसका नाम राघव है ना?

ज्योदि – मैं िो चली मेरे जान के पास, िू अपना सभं ाल।

स्वरा – मैं कोई जवाब नहीं देने वाली और मझु े भी सोना है अब।

अगला ददन था रदववार। ये रदववार भी अपने साथ एक नया दकस्सा


लेकर आ रहा था। दो अजं ान लोगों का सज्ञं ान बनने के दलए प्रकृ दि का खेल
शरू
ु हो चकु ा था। सब सो गए लेदकन राघव अपनी परू ी दशद्दि से कदविा
दलखने की जी िोड़ कोदशश कर रहा था। उसकी कोदशश दकिना रंग लािी है
यह हम देखेंगे इवेंट में।

-50-
5.

ददन रदववार, ओपन माइक इवेंट। लगभग सारे प्रदिभागी आ चक ु े थे।


आयोजक ने जैसे ही बोलना चाहा अदनरुद्ध और राघव एक साथ बोलिे हैं
“मैम, मे आई कम इन?”

यह सनु िे ही सब पीछे देखिे हैं और सबकी हूँसी अब रोके नहीं रुक रही थी।

लड़की (इवेंट हेड) – वेलकम सर, गीि लगाया जाए इनके दलए “देर लगी
आने में िमु को ...”

राघव व अदनरुद्ध मन में कई दकश्िों में गादलयाूँ उसे देकर स्थान ले लेिे हैं।

-51-
ramaeSvara

इवेंट हेड – आप सभी का सादहदत्यक अनभु दू ि के इस इवेंट में स्वागि है।


नवाबों के शहर लखनऊ में ये हमारा पाचं वा इवेंट है। हमें खश
ु ी है दक आप
सभी ने इस इवेंट में प्रदिभाग दकया। अब ये मंच आपके हवाले। आज के इवेंट
में पहली प्रदिभागी हैं स्वरा दसंह।

सब िादलयाूँ बजाकर अदभवादन करिे हैं। अदनरुद्ध और राघव पीछे बैठ एक


दसू रे से खसु फुसहाट करिे हैं।

राघव – यार डर लग रहा मझु े अब।

अदनरुद्ध – क्यों?

राघव – लड़की इिनी भी सदंु र हो सकिी है आज जान पाया।

अदनरुद्ध – अब क्या होिा है क्या नहीं बाद में। देख आगे क्या हो रहा।

स्वरा (माइक पर) – नमस्कार मैं स्वरा दसंह

राघव – अन्नी आवाि सनु रहा है ना..?

अदनरुद्ध – उससे ज्यादा मझु े िेरी धड़कनें सनु ाई दे रही हैं। खदु को संभाल मेरे
दोस्ि क्योंदक िेरा सच्चा प्यार है (मजे लेिे हुए)

स्वरा कदविा पढ़ना शरू


ु करिी है

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वे ददक दिवे दी

मैं रंगों में दजंदगी देखिी ह।ूँ

कंगन लाल होिा है, माूँग होिी है दसदं रू ी,


अगर न हों ये दोनों, है सहु ागन अधरू ी।

बहन भी खोजिी है, रंग-दबरंगी राखी,


फसल पीली हो जाए, िब मनिी है बैसाखी।

वदी हो खाकी, बच्चों का ख़्वाब है,


रंग। आदशक़ी का, गल
ु ाबी गल
ु ाब है।

स्याही नीली हो, दकस्मि सूँवार देिी है,


काले काजल से माूँ, बरु ी निर उिार देिी है।

रंग और रंगहीन, में भी भेद होिा है,


जब हो खत्म दजदं गी, रंग सिे द होिा है।

रंग भगवा िो दहदं ,ू हरा मसु लमान बना,


दोनों साथ में दमले, िो दहदं स्ु िान बना।

बाूँटा रंगों को मजहब में, ये दररंदगी देखिी ह,ूँ


हाूँ सच है मैं रंगों में दजंदगी देखिी ह।ूँ

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ramaeSvara

कदविा खत्म होिे ही परू ा हॉल िादलयों से गूँजू उठा। सब ने स्वरा की


िारीफ की। इस दौरान स्वरा ने राघव की िरफ देखा था दजसके बाद एसी में भी
राघव के पसीने दनकल रहे थे। अदनरुद्ध लगािार इशारों में ज्योदि से निर लड़ा
रहा था। दोनों एक दसू रे से इस्ं टा के इनबॉक्स में दवचार का आदान प्रदान कर
रहे थे। इस बीच कई सारे लोगों ने प्रदिभाग दकया और अब राघव का नाम भी
मंच से बोला गया। पहली बार मचं पर खड़ा होने का अनुभव आप सब भी
जानिे ही होंगे। वही हाल था राघव का भी, लेदकन अदनरुद्ध की िादलयों ने
उसमें ऊजाष का संचार कर ददया था।

राघव – मेरा नाम राघव दीदक्षि है। मैं आप सभी के बीच अपनी कदविा पढ़िा
ह।ूँ

भीड़ – स्वागि है, इरशाद.....

राघव – कदविा की लाइन पढ़िा है ….

बाबू ने दकया बबाषद,

प्यार मोहब्बि मदु ाषबाद।

प्यार मोहब्बि धोखा था,


वो पढ़ने का मौका था।
उसके चक्कर में जेल हुआ,
मैं भी कॉलेज में फे ल हुआ।

-54-
वे ददक दिवे दी

सच से वादकफ हुआ,
जानू के जाने के बाद।

प्यार मोहब्बि मदु ाषबाद


बाबू ने दकया बबाषद।

सच क्या है बिलािा ह,ूँ


सीधे मद्दु े पर आिा ह।ूँ
पढ़ने कोदचगं आई थी,
वो पररयों की परछाई ंथी।
सोना के सपने आिे थे,
उन ददनों सोने के बाद।

प्यार मोहब्बि मदु ाषबाद,


बाबू ने दकया बबाषद।

दजसमें कोई कमी नहीं थी,


वही कमीना दगा दे गया।
मेरा घर बसने से पहले,
उसे उसके घर से भगा ले गया।

-55-
ramaeSvara

इश्क़ के आिकं वादी,


कहिे इसे दजहाद।

प्यार मोहब्बि मदु ाषबाद


बाबू ने दकया बबाषद।

कदविा के हर एक बदं पर लोगों की िादलयाूँ और वाह- वाह रुक


नहीं रहे थे। सब लोगों ने इस हास्य कदविा को खबू पसंद दकया। इवेंट खत्म
हुआ और सब वहाूँ से दनकल गए। ये दोनों भी सारे दादयत्व का दनवषहन कर
रूम पर पहुचूँ े।

राघव – अन्नी, देखा मेरा कमाल?

अदनरुद्ध – साले, दकस जन्म का पाप पढ़ कर आया है। ये िरीका है दकसी को


इप्रं ेस करने का? लोगों की िाली और हूँसी में िेरे प्यार की धज्जी उड़िे ददख
रही थी मझु े। िू शकल से जैसा ददखिा है न, उसका दवलोम है।

राघव – िू िो है न समानाथी, परू े इवेंट में ज्योदि को िाड़ रहा था। साले िेरा
पाप लगा है मझु े जो मैंने ये कदविा सनु ायी। अगर मेरा काम दबगड़ा िो िेरा
दियाकमष आम की लकड़ी की जगह मॉदटषन से करूंगा दजससे िुझे मच्छर का
जन्म भी न दमले।

-56-
वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध – िेरी िो सेदटंग हो गई यार ऊपर। दफल्हाल अभी िो मैं भौंरा हूँ और
मझु े ज्योदि के आस – पास मूँडराने दे।

ज्योदि और स्वरा भी हॉस्टल पहुचूँ चक


ु ी होिी हैं।
स्वरा – कै सी लगी मेरी कदविा िुम्हें?

ज्योदि – एक दम संस्कार से दलप्त।

स्वरा – मिलब िम्ु हें नहीं पल्ले पड़ी?

ज्योदि – िू कुछ िड़किा-भड़किा नहीं दलख सकिी क्या जैसा आज दीदक्षि


जी ने सनु ाया?

स्वरा (न खश
ु होने का ददखावा कर) – उसे कहिे हैं अश्लील होना।
ज्योदि – यही िो दडमांड है अपनी मेरी जान।

स्वरा – चलो हटो, अपना शारीररक िापमान घटाने के दलए िोन कर लो अपने
आदशक को, राह देखिा होगा बेचारा।

ज्योदि – वो बेचारा नहीं, मेरा जेम्स बॉन्ड है।

हूँसिे हुए स्वरा अपनी छोटी बहन से कॉल पर बाि करने लगिी है और ज्योदि
भी सदचन से।

ऐसा नहीं था दक राघव ने इवेंट में अपना प्रभाव नहीं जमाया था।
बेशक उसकी कदविा में हास्य रस था लेदकन स्वरा की िरफ घमू ी हर निर खदु

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ramaeSvara

में कमाल का एहसास समेटे हुई थी। शब्द िो हर कोई समझ सकिा है लेदकन
प्रेम वही है जो आूँखें भी पढ़ ले।

स्वरा के मन में भी राघव का ख्याल अपना स्थान बना चक ु ा था। यह


कह सकिे हैं दक राघव बाबू का प्यार अब सच्चा प्यार बनने के काफी करीब
था। धीरे -धीरे दोनों की बािें शरू
ु हो गई।ं अदनरुद्ध को कानों – कान यह खबर
राघव ने नहीं होने दी। स्वरा ने यह कह रखा था दक सही समय आने पर वो
ज्योदि को और राघव भी अदनरुद्ध को बिा देगा।

प्यार का रंग दोनों िरफ गहरािा गया। दोनों अपनी दजम्मेदाररयों को


भी समझिे थे और हर चीज की सीमा भी समझिे थे। कॉलेज से रूम और रूम
से ओपन माइक आना जाना लगा रहिा था। अदनरुद्ध के बदबिा की शादी िय
हो जािी है। जब राघव ये जानिा है िो अदनरुद्ध का उपहास करिा है दक भौंरा
अब दकस फूल पर मडं राएगा? इन सभी रंगों के बीच जाने समय कब रुका था।
परीक्षा की िैयारी शरू
ु होने लगी। सबका यह आदखरी सत्र चल रहा था। एक
ददन राघव को स्वरा का कॉल आिा है।

स्वरा – हैलो।

राघव – जी, बोदलए।

स्वरा (गहरी साूँस लेकर) – क्या हो रहा…?

राघव – आपको याद करिे हुए परीक्षा की िैयारी।

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वे ददक दिवे दी

स्वरा (हूँसकर) – बेहिर होगा दक जो दकिाब में है वो याद करें क्योंदक परीक्षा
में मैं नहीं आने वाली।

राघव – कोदशश िो बहुि करिा हूँ मगर आपकी यादों से पीछा छुड़ा पाना
आसान नहीं।

स्वरा – अच्छा जी

राघव – हाूँ जी।

कुछ इस िरह शरू ु होकर बािें खत्म होने का नाम कहाूँ लेिी हैं।
कभी-कभी यह भी देखने को दमल जािा है दक कुछ व्यदक्तयों का जीवन ही इन
बािों में बीि जािा है। वैसे मझु े िो यह अनुभव नहीं क्योंदक ज्यादा बाि करना
मझु े आिा भी नहीं। कभी–कभी यह भी सोचिा हं दक आदमी भला क्या ही
बाि करिा होगा। आदखर वो कौन–सी बािें हैं जो खत्म होने का नाम नहीं लेिी
हैं। लेदकन यहाूँ ऐसा नहीं था क्योंदक दोनों ही समय के महत्व को बखबू ी
समझिे थे।

स्वरा – एवजाम के खत्म होने के बाद दमलिे हैं अब।

राघव – हाूँ ठीक है यार, पेपर अच्छे से दनपट जाए सब।

स्वरा – मेरा िो दनकल जाएगा, अपना सोदचए आप। क्योंदक दसलेबस से


ज्यादा िो मझु े याद दकया गया है।

राघव – मैडम , पदण्डि को ख्याल है दक जीवन में और भी दजम्मेदाररयाूँ उस


पर हैं।

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ramaeSvara

स्वरा – इसी अदं ाि के िो कायल हैं हम।

राघव – हाय, मैं िो शरमा गया।

स्वरा – वो िो पहले ही ददन से आपका हाल है।

दोनों हूँसिे हैं और स्वरा फोन रखिी है।

इटं रमीदडएट के बाद दजस गम से हम पार पािे हैं दफर एकबार वही
मंजर सामने आने को िैयार था। परीक्षा के फॉमष भरे जा चक ु े थे और अब िो
परीक्षा की दिदथ भी घोदर्ि हो चकु ी थी। जैसे-जैसे ददन कम होिा मानो ददल
की बेचैनी भी उिनी ही बढ़िी।

ररश्िे बनिे हैं और दबगड़िे हैं। दोनों हाल में एक छाप छोड़ जािे हैं ये
ररश्िे हमारे मन में। कभी दकसी के िारा कही बाि का याद आना या दिर दकसी
वस्िु को देखकर कोई ख्याल अचानक से मन उठना। यह सभी कहीं न कहीं
हमें एहसास ददलािे हैं दक हमारे अंदर एक ददल भी है। बढ़िी उम्र हमारी
दजम्मेदाररयों को भी बढ़ा देिी हैं। पररवार की िमाम उम्मीदें और उन्हें परू ा करने
हेिु आपको दमले कुछ साल और महज ददन के नौ घंटे।

पढ़ाई का उद्देश्य सीखना होिा है लेदकन दकिाब का शरुु आिी पृष्ठ


हमने पढ़ा ही कहाूँ। हम िो सीधे रटने और दडग्री प्राप्त करने के उद्देश्य से जी
िोड़ मेहनि करने लगे। रटने की जगह अगर हम सीखें भी िो शायद जीवन में
आने वाली कदठनाइयों से दनपटने में आसानी हो। दकिनी भी परीक्षाएूँ आपने
उत्तीर्ष की हों मगर वो दसफष आपको कागज पर ही उत्तीर्ष कर पािी हैं। असल

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वे ददक दिवे दी

में आप उत्तीर्ष िब माने जािे हैं जब जीवन अपना प्रश्नपत्र आपके सामने रखे
और आप उसे दबना कोई कारर् ददए हल करें । आपके पास यहाूँ दसफष दो ही
दवकल्प होिे हैं, या िो हाूँ या िो न। इनमें से कोई नहीं का दवकल्प आपको नहीं
दमलने वाला।

वैसे दो दवकल्प वालों के जीवन में सहजिा होिी है दकंिु दजनके


जीवन में दोनों दवकल्प के अलावा कोई िीसरा दवकल्प मानने वाले लोग
शादमल हों िब यह मादनए दक उनके जीवन से समस्या का अिं कभी हो ही
नहीं सकिा। जो व्यदक्त सबका है वो दकसी का नहीं होिा है। इस कथन को
जीवन में उिारने वाला व्यदक्त हमेशा सरु दक्षि रहेगा व कदठनाई का सामना
करना पड़ सकिा है लेदकन ऐसा नहीं दक कदठनाई का अिं नहीं। जीवन में सत्य
का चनु ाव करना हमें आना चादहए, वो भी स्वयं की िकष शदक्त से।

इन सभी का उल्लेख इसदलए दकया गया क्योंदक राघव, अदनरुद्ध व


स्वरा जैसे िमाम लोग जो इस दौर से गजु र रहे होिे हैं अपना एक स्पष्ट रास्िा
चनु सकें । अन्यथा सब पाने के चक्कर में हाथ कुछ भी नहीं लगिा। ये भी कह
सकिे हैं दक -

“अंि समय समय दोनों गए,


न माया दमली न राम।।’’
परीक्षाएूँ खत्म हुई।ं राघव व स्वरा दोनों ने एक दसू रे से दमलने की
इच्छा व्यक्त की। राघव हर बार की िरह इस बार भी खश ु था। कपड़े प्रेस कर,
बालों को कंघी कर दनधाषररि स्थान पर पपहुचूँ ा स्वरा पहले से ही वहाूँ उसका

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ramaeSvara

इिं जार कर रही होिी है। राघव को देख स्वरा खड़ी हो उसका अदभवादन कर
बैठने के दलए कहिी है। राघव बैठिा है।

राघव – क्या बाि है, मस्ि लग रही हो।

स्वरा आगे के लट को कान पर लगािे हुए – क्यों पहले नहीं लगिी थी?

राघव – पहले और अब में िो जमीं – आसमान का अिं र है।

स्वरा (मस्ु कुराकर) – स्पष्टीकरर्...!

राघव – यही दक पहले मैं आपको डर के , चोरी छुपे देखा करिा था िो ठीक से
देख नहीं पािा था। जब ठीक से देख नहीं पािा था िो क्या ही बिाऊूँ ? हाूँ, अब
मैं डरिा भी नहीं और जी भर के देख भी सकिा ह।ं

स्वरा – अच्छा जी, वैसे खबू सरू िी पर हक है हमारा।

दोनों साथ हूँसिे हुए दो मैगी व चाय का ऑडषर देिे हैं।

स्वरा – भल
ू िो नहीं जाओगे मझु े?
राघव – भलू ने के दलए थोड़ी दकए हैं प्यार। इस दवर्य पर हम गंभीर हैं साहब।
शादी होगी अपनी वो भी धमू – धाम से मैडम।

स्वरा – काश ऐसा हो पािा!

राघव – इसमें काश क्या, ऐसा ही होगा।

-62-
वे ददक दिवे दी

मैगी व चाय अब िक टेबल पर लग चक


ु ा था। राघव ने मैगी स्वरा की िरफ
बढ़ािे हुए।

राघव – िरूर िुमको भखू लगी है और भख


ू लगने पर िुम्हारा ददमाग भी न
थोड़ा कम काम करिा है।

स्वरा (दवचार पर्ू ष मद्रु ा में) – यार, मैं मजाक नहीं कर रही। िुमको पिा है न दक
हम दोनों का सरनेम भी अलग है। लोग क्या कहेंगे। सब हूँसगें े हम पर दक दपिा
की आजादी ने इसे दबगाड़ ददया है। दपिा जी को अगर कोई कुछ कहेगा िो मैं
बदाषश्ि नहीं कर सकिी। मेरे दपिा ही मेरी ददु नया है। मैं ऐसा कुछ नहीं करूूँगी
दजससे लोग मेरे दपिा का उपहास करें । मैं यही कहने आई थी दक अब बाि नहीं
हो पायेगी हमारी। िमु अपना ख्याल रखना और अपने कै ररयर पर ध्यान दो।

दजदं गी में बवाल मचना इसे भी कहिे हैं। यूँू मानो दक राघव के पास
कहने के दलए कोई शब्द अब शेर् नहीं था। कुछ घटनाएं जीवन को खामोशी
की िरफ बढ़ने के दलए मजबरू करिी हैं। खामोशी एक ऐसा समदं र है दजसमें
डूबने के बाद हम स्वयं को समझने लगिे हैं। प्रेम चचं ल होिा है ऐसा वो कहिे
हैं दजन्हें इसकी समझ नहीं। प्रेम को समझने के दलए जीवन कम पड़ सकिा है।
जरूरि को परू ा करना प्रेम नहीं होिा।

उम्र के ऐसे पड़ाव पर कोई क्या सोचे। जीवन में ऐसा कोई साथी होना
भी आवश्यक है जो मागषदशषन कर सके । दबना मागषदशषक के जीवन को सही
ददशा दमल पाना मदु श्कल है। यह भी कहना चाहगूँ ा दक इस समय सारा ज्ञान
फे ल हो जािा है जब ये नशा सर चढ़ के बोलने लगिा है। जो आज जाना
चाहिा है उसे जाने देना चादहए क्योंदक दकसी प्रकार उसे अगर आज रोक भी

-63-
ramaeSvara

दलया िो वह कल चला जाएगा। ऐसे वक्त पर राघव की आूँखों में आूँसू और


ददल में जाने दकिनी भावनाएूँ उमड़ रहीं थीं। क्या कहें हम? दकसे गलि और
दकसे सही?

वैसे सही गलि कहने का अदधकार हमें िभी है जब कोई काम हमसे
पछ
ू कर दकया जाए। सलाह िो बड़ी चीज है बदल्क मैं मानिा हूँ दबना माूँगे िो
मरिे हुए को भी पानी नहीं देना चादहए क्योंदक अगर वह मरा िो उसका
इल्जाम आप पर आ सकिा है और जेल िक का सिर आपको िय करना पड़
सकिा है। कहने वाले िो कहेंगे लेदकन कुछ हम जैसे लोग भी दमलेंगे आपको।

इिना कहकर स्वरा वहाूँ से चली जािी है। राघव ने उसे रोकने की
कोदशश भी नहीं की। उधर ज्योदि ने भी अदनरुद्ध को टेक्स्ट मैसेज कर ददया था
दक वो दकसी दसू रे की अमानि है। कुछ ददन ददष भरे गाने सनु ने के बाद दोनों ने
आगे के जीवन के बारे में दवचार दकया।

घर वालों के कहने के मिु ादबक अदनरुद्ध प्रयागराज जाकर दसदवल


सदवषस की िैयारी करने लग गया था। राघव ने उसी यदू नवदसषटी से लॉ दकया था।
िब के दबछड़े दो साथी और दो प्रेमी साि साल बाद यहाूँ दमले थे। इसे आप
क्या नाम देंगे इसकी कल्पना स्वयं करें ।

भैरव – राघव भैया, इस्ं पेक्टर साब..? कहाूँ खो गए आप सब?

राघव – जब दनगाहें दमलिी हैं महबूब से,

रे लगाड़ी की िरह धड़कन चले

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वे ददक दिवे दी

शेर सनु कर अदनरुद्ध मस्ु कुरािा है क्योंदक एक सीधे-साधे रघु से


शायर बनने िक का सिर वह जानिा था। भैरव से रहा नहीं गया िो उसने पछ ू
दलया।

भैरव – क्या बाि है भैया जी, कमाल की लाइन कही आपने। पर कुछ समझ
नहीं पाया मैं।

अदनरुद्ध – ये समझने के दलए कभी फुसषि से बैठेंगे पहले ये बिाओ दक


दददववजय पादटल िक कै से पहुचूँ ा जाए। अब उम्मीद सब िुम्हीं पर दटकी है
भैरव।

भैरव – इसी काम से िो मैंने बल


ु वाया था रघु भैया को। अपराधी से लेके रक्षक
िक कल दददववजय के बेटे के जन्मददन के उपलक्ष्य में रखी पाटी पर पहुचूँ रहे।
हमें भी प्रदिभागी बनना चादहए। क्या पिा कोई रास्िा दनकले वहीं से आगे का।

अदनरुद्ध – अबे माथा चढ़ गया है, दबन बल


ु ाए िो अपने बाप के घर न जाएूँ
हम, दपिाजी जब पड़ोसी के बच्चे को गोद लेने की बाि करिे हैं िब मैं घर
लौटना आवश्यक समझिा ह।ूँ

भैरव – रघु भैया हम िो वहाूँ जा ही रहे, बाकी आपके थाने को भी कड़ी सरु क्षा
के दलए आदेश ददया गया है।

राघव – दसदवल ड्रेस में आना साले, थोड़ा मडू हम भी बना लेंगे क्योंदक मफ़्ु ि
की पाटी का सबसे ज्यादा मजा िमु ही उठािे हो।

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ramaeSvara

सब एक साथ हूँसिे हैं। स्वरा भी इन सभी घटनाओ ं के बाद परु ानी यादों को
समेटे हुए कुछ न याद रहने का बहाना करिी है।

दसपाही अदनरुद्ध से कुछ बरामद न होने की जानकारी देिे हैं। सभी वहाूँ से
दनकलिे हैं। राघव की दनगाहें दनकलिे वक्त स्वरा को ढूूँढ रही होिी हैं लेदकन
स्वरा मड़ु के राघव की िरफ देख पानी की दहम्मि नहीं जटु ा पािी है। राि को
स्वरा घर आिी है। हर रोि की िरह व्यवहार न करिे हुए वह आज थोड़ा उदास
लग रही थी।

श्रदु ि – क्या हुआ दी, परे शान लग रही हो?

स्वरा – नहीं पगली, कल िुम्हें ददल्ली दनकलना है न। यही सोच कर मन नहीं


लग रहा।

उमा – मैं िो बड़ी खशु ह।ूँ सारा ददन घर के दकसी कोने में शांदि िो होिी नहीं।
न जाने दकिनी बािें करनी होिी है इसे।

श्रदु ि – माूँ िुम नहीं समझोगी.!

उमा – हाूँ, सारी समझदारी िो िुझे ही दी है भगवान ने।

स्वरा – वैसे माूँ क्यों न श्रदु ि की शादी पहले करें ? दजससे ये िोन वाली बीमारी
खत्म हो जाए।

उमा – सही कहा बेटा िमु ने।

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वे ददक दिवे दी

श्रदु ि – दी, ऐसा कुछ नहीं है। मझु े िो अपनी दोस्िों के साथ घमू ने जाना है। उसी
का प्लान हम कॉल पर कर रहे थे। वैसे भी इस बार मेरा मास्टसष खिम हो रहा।
पाटी िो बनिी है। वैसे कल शाम को बस है। मेरी पैदकंग कर देना आप दोनों
दमलकर।

स्वरा – जो हुक्म शहजादी…!

दददववजय के लोग अदभसार के जन्मददन की िैयारी में लगे थे।


आगामी चनु ाव में दददववजय अपने बेटे को यथू आइकॉन बनाकर लॉन्च करने
के दलए िैयारी कर रहा था। देश – प्रदेश से सत्ता व दवपक्ष के लोग व हर
दवभाग के लोग इस पाटी का दहस्सा बनने वाले थे। इस्ं टा पर राम के नाम से
स्वरा को मैसेज आिा है।

राम – हाय..!

स्वरा – हैलो

राम – क्या हो रहा है मैडम?

स्वरा – बस सोने की िैयारी, श्रदु ि को कल ददल्ली भी दनकलना है। अभी


उसकी पैदकंग की।

राम – सहयोग करें हम?

स्वरा – सहयोग नहीं, योग करें । लग रहा दक नौ महीने बाद....!

राम – खदु को देदखए मैडम, डेवलपमेंट ददख जाएगा।

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ramaeSvara

स्वरा – हाहाहा.. क्या फकष पड़िा है, झेलना…।

राम – वैसे अच्छी लग रही थी।

स्वरा – वो िो मैं ह…
ूँ ।

इधर अदनरुद्ध थाने पहुचूँ के के स की फाइल्स देख रहा था। कच्ची


शराब व लटू जैसे िमाम मामलों के साथ ही छोटे दववादों को जल्द ही दनपटाने
की परू ी कोदशश में अदनरुद्ध लगा था।

श्यामदास – साहब कल दददववजय साहब के …

उसकी बाि को बीच में ही रोक कर अदनरुद्ध ने खीझ कर कहा।

अदनरुद्ध – हाूँ जानिा हूँ दक िम्ु हारे मादलक की शैिान सिं ान के पैदा होने का
जलसा है।

श्यामदास – नहीं साब जी, अब मैं पहले जैसा नहीं। मैं िो यह बिाने आया था
आपको दक कल मंत्री संजय पादटल भी उस जश्न में शादमल होने आ रहे।
प्रोटोकॉल में िो जाना ही पड़ेगा न।

यह कहिे श्यामदास की आूँखें भर आई थीं। जब िक हम या हमारे


लोग भी बरु ाइयों के दशकार न हों जाएूँ हमें कुछ भी बरु ा नहीं लगिा। श्यामदास
का इक्कीस वर्ीय बेटा अदभजीि ड्रवस व नशे के दलदल में बरु ी िरह फूँ स
चकु ा था। ये सारे अवैध कामों का एक ही मादलक था, दददववजय पादटल। अपने
बेटे को लाख समझा कर भी वो अब हार चक ु ा था। उसने यह मान दलया था

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वे ददक दिवे दी

दक उसके बुरे कमों का फल उसे दमल रहा है। अदनरुद्ध श्यामदास को रोिा देख
अपने जगह पर खड़ा होिा है।

अदनरुद्ध – सब ठीक िो है न, या दफर मेरी बािों पर…?

श्यामदास (रोिे हुए) – नहीं साहब, अब मझु े अपनी हर गलिी पर पछिावा हो


रहा है। जाने – अंजाने में मैं भी चंद रुपयों के दलए अपनी ईमानदारी बेच अपनी
औलाद के दलए पूँजू ी जटु ाने में लगा था। लेदकन जब औलाद ही नहीं रहेगी िो
पूँजू ी दकस काम की? साहब, मैं दददववजय के सारे कारनामों के बारे में आपको
सच - सच बिाऊूँ गा।

अदनरुद्ध – श्यामदास, मझु े इस बाि से खश ु ी है दक िुम अब बदल चक ु े हो।


हमारे कंधों पर समाज के दनमाषर् की बहुि बड़ी दजम्मेदारी है जो हमें समझनी
पड़ेगी। खादी वदी का रंग दमट्टी के रंग से ही प्रेररि है। दमट्टी भी दजस िरह सभी
जीवों का ख्याल रखिी है वैसे ही देश के अंदर पदु लस की भदू मका है। हम
समाज में समृदद्ध के प्राथदमक माध्यम हैं। अब वक्त आ गया है दददववजय के
कारनामों के दहसाब का।

राि में जश्न का माहौल। पत्रु के जन्म ददवस पर दपिा का भव्य


आयोजन। यह भी कह सकिे हैं दक आयोजन के पीछे का रहस्य अपने
कारोबार को सरु दक्षि करना था। अदभसार के दोस्ि अदभनव, अब्दल ु या यों
कहें दक अदभसार को बबाषद करने में इनका भी योगदान कम नहीं था। संगि का
असर िो होिा है लेदकन दकसपर असर हो रहा है, यह जान पाना और भी
हास्यप्रद है।

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ramaeSvara

वफादारी और गल ु ामी में फकष भी जानना बहुि जरूरी है। दोस्ि


वफादार होने चादहए न दक गल ु ाम। चमकदार चीज की ददु नया दीवानी हो चली
है। ईमानदारी, वफादारी जैसे शब्द अब दवलप्तु होने की कगार पर हैं। मेरा
आशय यह नहीं दक अब हैं ही नहीं। हैं लेदकन न्यनू िम आधार पर।

अदभसार – का इिं जाम है?

अब्दल
ु – नाच गाना फुल है, प्राइवेट व्यव्स्था हम दकए हैं।
अदभनव – साले िुम्हरे चक्कर में अगर ओवर डोज हुआ और मचा ड्रामा िो
चाचा हम दोनों को छोड़ेंगे नहीं। परू ा बनारस यहाूँ जटु रहा और िमु अलग
माहौल रच रहे हो।

अदभसार – फटी िुम्हारी दफर? जन्मददन हमारा है िो जश्न भी िो होना चादहए।


डर दनकाल के मजे लो।

इन सभी के साथ शाम को महदफल सजी। नृत्य का दवर्ेश प्रबंध


आज के ददन दकया गया था। निषदकयों को बुलाने का पेशा िो परु ाना है और
पवू ािंचल इसका ज्वलिं उदाहरर् है। आगे की सफे द कुदसषयाूँ उन राजनेिाओ ं व
अदधकाररयों के दलए थीं जो बेदटयों की सरु क्षा के दलए कसम खाए होिे हैं।
जैसे-जैसे महदफल जमिी है िमच ं े और नोटों की गड्दडयाूँ रुकने का नाम नहीं
लेिी हैं।

भैरव व राघव भी पाटी में शादमल होने के दलए पहुचूँ चक


ु े थे और
थोड़ी देर बाद मंत्री जी संजय पादटल के आगमन के साथ ही अदनरुद्ध भी

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वे ददक दिवे दी

प्रोटोकॉल में वहाूँ हादजर होिा है। हाव – भाव के साथ लोगों का दमलना शरू

हुआ व अपने आदमी को भेजकर दददववजय अपने बेटे को आने के दलए कहिा
है।

-71-
6.

नाच गाने के बीच महदिल सजी हुई थी। लोग सेल्फी और


शभु कामनाओ ं के साथ सौभावय प्राप्त होने का संदश
े सोशल मीदडया पर साझा
करिे नहीं थक रहे थे।

गिब का दौर आ चक ु ा है। ददल के दमलने से ज्यादा स्टैंडडष दमलना


चादहए। ऐसा मैं नहीं कह रहा बदल्क आज के समाज की दडमांड है। दडमांड को
न मानने वाले या िो प्राचीन कहे जाएूँगे या दफर यह भी सनु ने को दमल सकिा
है दक दजन सभ्यिाओ ं ने समय के साथ खदु को नहीं बदला, उनका पिन हो
गया। आज की यवु ा पीढ़ी ने इस बाि को गंभीरिा से ले दलया है। नशे के बढ़िे
व्यापार में अपना सहयोग देने के दलए वो बढ़ चढ़कर इसमें दहस्सा ले रहे।

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वे ददक दिवे दी

सादहत्यकारों ने कहा है दक इन्हें ददशा दनदेश देने वाला कोई नहीं। अगर इन्हें
कोई बिाए दक ये गलि कर रहे हैं, िो ये सही रस्िे पर आ सकिे हैं।

यह कथन भी प्राचीन हो चक ु ा है। इसकी जगह कोई नया कथन


अब प्रयोग में आना चादहए क्योंदक नशे के हर सामान पर दलखा होिा है दक
यह स्वास््य के दलए हादनकारक है। अब और दकस िरह उन्हें बिाया जाए या
दफर दकसी नई िकनीक से मानव शरीर के अंदर ऐसी व्यव्स्था की जाए दक
मादक पदाथों के अदं र प्रवेश करिे ही चालान कट जाए। चालान कुछ इस िरह
का हो दक शराब का सेवन करने पर चार ददन िक आूँख से कुछ ददखाई नहीं
देगा। धम्रू पान करने से पेशाब नली के साथ मलाशय भी ब्लॉक हो जाएगा।

ये उदाहरर् काल्पदनक हैं व इनका प्रयोग हास्य व्यंग के रूप में दकया
गया है। नैदिक ज्ञान ही समाज दनमाषर् व व्यदक्त दनमाषर् की प्रयोगशाला है। हमें
यह पिा हो दक रोज के जीवन में कब, कहाूँ, कै से व्यवहार करना है िो शायद
एक सभ्य व दोर्रदहि समाज हम आने वाली पीढ़ी को दे पाएूँ दकंिु अपवादों
के रहिे यह सभं व है, भला कै से माना जाए?

ऐसे ही अपवाद भी इस जश्न में शादमल हैं। अदभसार ने अपने दोस्ि


अदभनव व अब्दल ु के सहयोग से नई पीढ़ी के आकर्षर् के दलए सबसे छुपा
कर एक स्थान पर िरह - िरह के नशे के सामान का प्रबंध भी कराया था। ऐसा
नहीं दक दददववजय इन सब चीिों से अजं ान था बदल्क सच िो यह है दक वह
खदु ये सब चाहिा था।

इन सभी नशे के सामान का एकमात्र व्यापारी वही था। बेटे की


जन्मददन पाटी की आड़ में उसने िरह-िरह के नए सैंपल को माके ट में उिारने

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ramaeSvara

से पहले उन्हें लोगों िक मफ्ु ि में पहुचूँ ा रहा था। दददववजय को यह मालमू था
दक जब िक लोग इन सभी के बारे में जानेंगे नहीं, माके ट का माहौल िैयार नहीं
हो पाएगा।

मंत्री संजय पादटल के साथ कुछ दवदेशी मेहमान भी इस जश्न का


दहस्सा थे। बड़े पैमाने पर वह अपने व्यापार का दवस्िार कर रहा था। व्यापार
करने वाले हर क्षर् अपनी चीिों को और भी आगे पहुचूँ ाने के बारे में ही
सोचिे हैं। उनके दलए हर प्रकार का जश्न भी अपने प्रचार का मौका होिा है।
ऐसा ये इसदलए करिे हैं दजससे काननू की निरों में धल
ू झोंकी जा सके ।
जब एक बड़ा व्यापारी आमदं त्रि करिा है िो हर एक व्यदक्त जो सत्ता व
शासन का दहस्सा है, उसका मेहमान िरूर बनिा है। दोनों एक दसू रे के परू क हैं।
धन आज के समय में सबसे ज्यादा महत्वपर्ू ष होिा ददख रहा है। ररश्िों की
साूँसे भी धन रूपी ईधन
ं से चलने लगी हैं। ऐसा नहीं दक दकसी को आज के
समय में ररश्िों की कद्र नहीं। कद्र है, मगर उिनी ही दजिना भोजन में नमक।
अगर ज्यादा नजदीकी बढ़ जाए और ज्यादा धन का अभाव हो िो ये
समदझएगा की दवस्फोट कभी भी हो सकिा है।

वक्त के साथ क्या कुछ नहीं बदला इस पर दवचार करना आवश्यक


है। हम आज पहले से ज्यादा जागरूक हैं लेदकन यह जागरूकिा दकस काम की
यदद इससे समाज व संसार का भला न हो। हम जैसे-जैसे बुदद्धमान होिे गए वैसे
- वैसे प्रकृ दि का दोहन भी करिे गए। अपनी सदु वधा की िलाश में हम अपने
अदस्ित्व िक को चनु ौिी देिे निर आ रहे।

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वे ददक दिवे दी

नशे में हम शादं ि खोजिे दफर रहे हैं। िमाम प्रकार की नशीली
दवाओ ं का सेवन आज नई पीढ़ी कर रही है। क्या अब भी कहा जा सकिा है
दक लोग जागरूक नहीं? कम उम्र के उन बच्चों का भदवष्य भी सोदचए जो नशे
की िरफ बढ़ रहे हैं।

अदनरुद्ध, भैरव व राघव एक कोने में खड़े कुछ ईमानदार पत्रकार


मण्डली को आपस में बािें करिे सनु रहे थे। अदभसार अपने दोस्िों के साथ
हॉल में प्रवेश करिा है।

अत्याधदु नक लाइट्स के बीच अदभसार का आगमन होिा है।


दददववजय व मंत्री के साथ ही अन्य कई सत्ता - शासन के लोग उसे जन्मददन की
शभु कामनाओ ं सदहि भेंट देिे हैं। के क कटिे ही शहर के नए यवु ा अदभनव के
दलए नारेबाजी करिे हैं। दफल्मी अदं ाि में ये सारा काम समापन की ओर बढ़िा
है और सब नाच–गाने व अपनी सदु वधा के अनुसार नशे में डूबने लगिे हैं।

अदनरुद्ध - भैरव, िमु कुछ ट्राई करो। मफ्ु ि का माल है सब।

भैरव - साहब बड़े खद्दु ार हैं हम। सचू ना का सौदा करिे हैं स्वादभमान का नहीं।

राघव – वाह, क्या बाि है। वैसे अदनरुद्ध वदी की वफादारी ददखाने का मौका
दमलिा है क्या कभी?

अदनरुद्ध - यार अभी िक िो नहीं दमला लेदकन दजस ददन लोकित्रं का


वास्िदवक अथष लोग समझने लगे व अपने मि का सही इस्िेमाल करने लगे,
हमारी दकस्मि भी पलटेगी। वदी के पावर का एहसास िो करवा ही देंगे इन भ्रष्ट
प्रजा के रक्षकों को।

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ramaeSvara

भैरव - वैसे, पत्रकार धनजं य दसहं हत्याकाडं में इसी सजं य पादटल ने अहम
भदू मका दनभाई थी। वेदप्रकाश जी का ट्रांसफर भी इसी ने करवाया था। अब िो
दनयम काननू बस एक खेल हो गया है।

राघव - और हम हैं इस खेल के दसकंदर। क्योंदक कौन–सी चाल कब चलनी है


और कौन–सा मोहरा रास्िे से कै से हटेगा, ये हम बखबू ी जानिे हैं।

अदनरुद्ध - हमें भी गांजे व दबना काम के कट्टे में चालान करना एवं संददवध
हालाि में भागना ददखाकर दकसी को भी गोली मारने का अदधकार प्राप्त होिा
है।

इस बाि पर िीनों हूँसिे हैं। अदनरुद्ध की कही गई बािें सच थी।


ज्यादािर गांजे में चालान दनदोर् लोगों पर होिा है। अक्सर ऐसी धमदकयाूँ
यवु ाओ ं को दमल ही जािी हैं जब वे अपने अदधकारों का उपयोग करने लगिे
हैं। इस बाि का मैं स्वयं भी प्रमार् ह।ूँ

शासन व सत्ता का ररश्िा पदि–पत्नी का है। अपराध िो पत्नी के भाई


जैसा है जो अपनी बहन की मदद से भरपरू संरक्षर् प्राप्त कर लेिा है। अपराध
जगि की सचू ी उठा कर देख लीदजएगा, सबका सबं धं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
कहीं न कहीं नेिाओ ं से देखने को दमल जाएगा।

संजय – अदभसार बाबू क्या योजना है आगे? कुछ सोचा िो होगा ही आपने..।

अदभसार – सोचना क्या है, आपकी उम्र हो चली है। आपके बाद इस कुसी में
अपना भदवष्य देखने लगा ह।ूँ

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वे ददक दिवे दी

संजय (चेहरे पर प्रश्न दचन्ह के साथ) – अच्छा मजाक करिे हो अदभसार बाबू।

मंत्री जी को यह बाि अंदर िक चभु ी थी। उनके चेहरे पर यह स्पष्ट


रूप से ददखाई दे रहा था। मत्रं ी की भाव भंदगमा समझ दददववजय ने उनके कंधे
पर हाथ रख इशारों में ही बाि को टालने के दलए कहा।

दददववजय – अदभसार, जाओ जश्न का आनदं उठाओ। यवु ा साथी िुम्हारे


लालादयि हैं भेंट करने के दलए िमु से।

अदभसार – हाूँ, दपिा जी मैं भी यही सोच रहा था।

दददववजय – बेटा अभी िुम्हारी सोचने की उम्र नहीं जो हम बोलें उिना ही करो।
िुम्हारी महत्त्वाकांक्षा को सही समय पर महत्व दे कर उपयोग में लाने का प्रयास
दकया जाएगा।

अदभनव व अब्दल ु के साथ अदभसार यहाूँ से जािा है। नशे का


सैंपल भर- भर कर यवु ाओ ं के समक्ष परोसा जा रहा है और ये यवु ा भी उसको
बबाषद न होने देने के दलए दबा के सेवन कर रहे हैं।

बेखौफ और दबदं ास रूपी आधदु नकिा में ये भल


ू बैठे हैं दक नौ महीने
इनके जीवन रूपी अंकुर को अपने खनू से सींचने वाली माूँ पर क्या बीििी है,
जब वो सनु िी है दक उसका बेटा नशे के चलिे दकसी गभं ीर बीमारी या दफर
नशे की लि में अपनी माूँ को ही भल
ू चक
ु ा है। उधर स्वरा होटल से घर आिी
है अपने कपड़े बदल कर वह खाना खाने बैठिी है िभी उसका िोन बजिा है।

स्वरा – हाूँ बिा श्रदु ि..!

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ramaeSvara

श्रदु ि – कुछ नहीं दीदी बस याद कर दलया आपको क्योंदक आपको िो मेरी
याद आने से रही।

स्वरा – िेरे खाली ददमाग़ में इन सब के अलावा कुछ आिा भी है या नहीं?

श्रदु ि (मस्ु कुराकर) – आिा है न दीदी, लेदकन आपसे पछ


ू ने में डर लगिा है।
स्वरा – अच्छा, ऐसी कौन सी बाि है दजसे िू पछ
ू ने से डर रही?
श्रदु ि – दीदी ये राम नाम से मैसेज आया था आपके इस्ं टा पर, चैट पढ़ा था मैंने
एक बार आपका। आदखर कब िक छुपाने का प्लान है?

स्वरा (दबी सी मस्ु कान के साथ) – शैिान, मिलब िनू े खोज ही दलया।

श्रदु ि – हाूँ, अब बिाओ – बिाओ ..!

स्वरा – दोस्ि है मेरा, समय आने दो िब माूँ से बाि करेंगे।

श्रदु ि – मेरा कोई गलि मिलब नहीं था दीदी। मझु े पिा है दक आप जो दनर्षय
लेंगी वह सही होगा।

स्वरा – पढ़ाई पर ध्यान देना। दकसी भी चीि की िरूरि हो बेदझझक बोल देना
मझु से।

स्वरा अपनी माूँ को फोन देिी है। देर िक िीनों आपस में बाि करिे
हैं व सब के चेहरे पर हूँसी भी देखने को दमलिी है। दपिा के जाने के बाद घर में
दबखरे मािम को स्वरा अच्छे से समेट रही थी।

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वे ददक दिवे दी

वक्त का खेल समझना िरूरी है। आज जो है कल नहीं होगा यह


सत्य भी मान लेना चादहए हमें। एक और बाि जोड़ रहा दक सच को स्वीकार
करना उिना आसान भी नहीं है दजिना हम सोचिे हैं। सच को धारर् करने के
दलए दस्थर मन की िरूरि होिी है। मन के दस्थर होने पर हमें दकसी भी प्रकार
का भय नहीं होिा है। भय से मक्त
ु व्यदक्त कोई भी कायष कर सकिा है व दबना
पररर्ाम की दचिं ा दकए दकसी बाि को लेकर हर नाममु दकन हद िक भी जा
सकिा है।

सत्य की खोज में िो जीवन दनकल जािा है लेदकन बहुि से लोग


आज हैरान–परे शान होकर सत्य की खोज में अपना जीवन खचष करने को िैयार
हैं। मैंने यह माना है दक मृत्यु ही जीवन का सबसे बड़ा सत्य है। शायद एक से दो
लोग ही इस सत्य को स्वीकार कर पायेंगे। कुछ आलोचक यह कह सकिे हैं दक
यह दलखिे समय मैं नकारात्मक ऊजाष का दशकार हो रहा होऊूँ गा, दकंिु ऐसा
कुछ भी नहीं।

लोग चपु हो गए, मीदडया भी शािं । पत्नी की भी स्मृदि में अब


बेदटयों की यादें जगह बनाना शरूु कर चक ु ी थीं। श्रदु ि अपने कॉलेज के कामों
में खो गई लेदकन बड़ी बेटी होने के नािे स्वरा को जो प्रेम अपने दपिा से दमला
था, वो आज भी नहीं भल ू ी थी। अपने दजम्मेदाररयों से जझू िे हुए वो अपने दपिा
के हत्यारों को सजा ददलवाने के दलए लगािार के स से जड़ु े हर मामले में
जागरूक थी।

-79-
ramaeSvara

अदभसार के जन्मोत्सव का नशा आज भी कुछ वदी वालों पर चढ़ा हुआ था।


आज की सबु ह स्वरा अपने काम पर जाने के पहले थाने पहुचूँ ी। एक सब
इस्ं पेक्टर के िारा दकया गया उपहास अदनरुद्ध िक पहुचूँ ा।

अदनरुद्ध (गस्ु से में) – दांि ज्यादा साफ हो गया हो िो महूँु के अंदर छुपा के ही
रखो क्योंदक दकसी लड़की के हाथ मूँहु पर िमाचा जड़े जाने पर ये दािं बाहर
भी दनकल कर आ सकिे हैं।

सब चपु हो जािे हैं। स्वरा उस ददन के बाद आज पहली बार थाने में अदनरुद्ध से
दमली थी। उसे पिा चलिा है दक यह के स अदनरुद्ध के पास है।

अदनरुद्ध – आइए मैम, मैंने ही आप को बल


ु ाया था।
स्वरा उसके के दबन में साथ आिी है। अदनरुद्ध एक दसपाही से चाय भेजने को
कहिा है।

स्वरा – िुम यहाूँ कै से, और कब आना हुआ? उस ददन अचानक से मैंने होटल
में देखा था।

अदनरुद्ध – हाूँ, ये मेरी पहली पोदस्टंग है। िुम्हारे दपिा जी का के स अब मैं ही


देख रहा अब। उसी से जड़ु े कुछ दबदं ओ ु ं पर चचाष करने के दलए बल ु ाया था मैंने।
स्वरा की आूँखें नम हो जािी हैं। अदनरुद्ध उसे दहम्मि बाधं ने को कहिा है और
पानी का दगलास आगे करिा है।

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वे ददक दिवे दी

अदनरुद्ध – ज्वाइदनंग के बाद ही मझु े जब पिा चला दक धनंजय दसंह जी िुम्हारे


दपिा हैं, मझु े भी िुम्हारे ही दजिना दःु ख हुआ। मैंने इस के स पर काम दकया है
और यह भी जानिा हूँ दक सारी घटना के पीछे दददववजय पादटल का ही हाथ है।
मैंने िुम्हारे वकील से भी बाि की है। इस के स में कई राजनीदिक लोग भी
शादमल हैं। आगे लोकसभा का चनु ाव भी आ रहा है। िमु हाईकोटष में पनु ः
यादचका दायर करो। अगर िुम्हें दकसी सहयोग की िरूरि होगी िो राघव है
वहाूँ पर। िुम्हारी मदद भी कर देगा।

स्वरा – ये सब िो ठीक है, लेदकन ये बिाओ दक और भी कुछ दकया जा


सकिा है?

अदनरुद्ध – दवपक्ष के नेिाओ ं से भी दमलो। वे अपने राजनीदिक लाभ के दलए


के स के पनु ः खल
ु ने में िम्ु हारी मदद करेंगे।
स्वरा – शदु िया अदनरुद्ध हमारे पररवार के इस दःु ख की घड़ी में साथ देने के
दलए। ये मेरा काडष रखो और कभी भी कुछ पछू ना हो के स से सम्बदन्धि िो
कॉल कर सकिे हो।

अदनरुद्ध – जी..!

दसपाही – साहब चाय…

अदनरुद्ध – बड़ा जल्दी ले आए..?

दसपाही – अरे साब वो…

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ramaeSvara

अदनरुद्ध उसकी बाि परू ी होने से पहले ही स्वरा को रुकने का इशारा


कर दसपाही से चाय टेबल पर रख बाहर जाने को कहिा है। दसपाही के जाने के
बाद स्वरा भी अदनरुद्ध से वहाूँ से जाने की इजाजि लेिी है।

स्वरा – मझु े होटल के दलए लेट हो रहा। कभी घर पर आओ िो माूँ से दमलािी


हूँ और चाय भी पी लेंगे हम साथ में।

अदनरुद्ध – हाूँ, िरूर..!

स्वरा यहाूँ से दनकलिी है। अदनरुद्ध उसे बाहर िक छोड़ने भी आिा


है। धड़कनों का िेज चलना या िो डर का प्रिीक है या दफर दकसी ऐसे व्यदक्त
के सामने आने का दजसे आप पहले से जानिे हों और आपकी जीवन में उसका
हस्िक्षेप रहा हो।

स्पष्ट करना चाहगूँ ा दक दोस्ि की गलषफ्रेंड को सामने बैठा देख यह


होना स्वाभादवक था। हम लड़कों में यह गर्ु भी होिा है (दसफष कुछ में)।
कॉलेज की यादें और राघव की बािें अब अदनरुद्ध व स्वरा के मन में एक साथ
चल रहीं थी। अदनरुद्ध हैरान था दक राघव का नाम लेने पर स्वरा ने कुछ कहा
क्यों नहीं। एक लड़का दजससे कोई लड़की बेपनाह मोहब्बि करिी रही हो,
भला कै से भल ू सकिी है? वैसे हो भी सकिा है दक इिने बड़े हादसे ने उसे
बदलने के दलए मजबरू कर ददया हो।

इधर स्वरा के मन में इस बाि की खश


ु ी थी के स अदनरुद्ध के पास है
और वह उसका साथ भी दे रहा। कॉलेज के ददनों की आदिें उसकी आज भी

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वे ददक दिवे दी

नहीं बदली हैं। राघव की बाि भी बड़े िरीके से कही दजससे मझु े बुरा लग रहा
या नहीं यह जान सके ।

अदनरुद्ध अपने के दबन में आकर राघव को िरु ं ि कॉल करिा है। अदनरुद्ध का
कॉल देख राघव अपनी बेंच से उठकर दकनारे आिा है।

राघव – हाूँ, अन्नी बोलो

अदनरुद्ध – भाभी जी आई थी आज थाने।

राघव – भैया नहीं आए थे क्या? वैसे भाभी िमु से दमलने थाने पर क्यों गई,ं िुम्हें
कहीं बाहर भी िो बुला सकिी थीं न और िमु िो जानिे हो थाने का माहौल..!

अदनरुद्ध – अबे मेरी भाभी नहीं, मैं िो स्वरा की बाि कर रहा। याद करो, उस
ददन होटल मैनेजर की ड्रेस में।

राघव – अच्छा…। सनु ो मझु े कुछ िरूरी काम है।

अदनरुद्ध – बड़ी मस्ि लग रही थीं यार भाभी जी (दचढ़ाने के अंदाि में) ।

राघव – साले एक वकील की दनजी दिंदगी में हस्िक्षेप करने का के स िैयार


करूूँ?

अदनरुद्ध (हूँसिे हुए) – गांजे के के स में अंदर जानें को िैयार रहना दफर िो।

राघव – आओ कभी प्रयागराज, पाप धल


ु लो अपने संगम में नहा कर।

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ramaeSvara

अदनरुद्ध – थोड़े और ददन रुक जाओ भाई। कुछ अपरादधयों को िम्ु हारे बेंच
िक पहुचूँ ा द,ूँू दजससे मेरे पाप के भागीदार िमु भी रहो।

दोनों साथ हूँसिे हैं और कॉल कट होिा है।

ऐसे ही समय उसी रफ्िार से आगे बढ़िा ही चला। हर कोई समय के


साथ या दफर समय के पीछे – पीछे चला जा रहा था।

कुछ लोग हम जैसे आलसी भी होिे हैं जो समय का न ही पीछा


करिे हैं और न ही उसके साथ चलिे हैं। हम बस गौर से देखिे हैं समय के साथ
होने वाली हर गदिदवदध को। इन गदिदवदधयों को अपने ख्यालों में गूँथू कर
कहादनयाूँ बनाना हमारा काम है। जी हाूँ, हम कलमकार हैं। हमारे दलए दो ही
काम है, पहला सोना और दसू रा स्वप्न देखना। यह दोनों काम परू ा होने के बाद
जो समय बच जाए उसमें सभी को दमलाकर एक नई ददु नया का दनमाषर् करना।

हमारी ददु नया में दसफष वही होिा है जो हम चाहिे हैं। हमने वहाूँ पर
समय को भी पीछे करने का इिं जाम कर रखा है, इसके दलए हमें अपनी आूँखें
बंद कर ख्यालों में खो जाना होिा है। हम कलमकारों के पास जज़्बाि की कमी
नहीं होिी है। वह सब कुछ हम महससू करिे हैं जो इस धरिी पर हर जीव।

हमने महससू दकया धनजं य का वो सघं र्ष जो समाज को सधु ारने के


दलए उसने दकया, स्वरा का वो छुपा हुआ ददष दजसे उसने सीने में दबा रखा है,
अदनरुद्ध का वो प्रयास दजससे राघव को दफर से स्वरा दमले व दददववजय की
आूँखों में वो महत्त्वाकाक्ष
ं ाएं दजन्हें परू ा करने के दलए वह दकसी भी हद िक
जाने को िैयार है।

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वे ददक दिवे दी

इन सबको समय ने दोहराना शरू ु दकया है। स्वरा, राघव व अदनरुद्ध


का कॉलेज के ददनों के बाद दोबारा दमलना। अदभसार, अदभनव व अब्दल ु का
अदनरुद्ध से टकराना। दददववजय पादटल व सजं य पादटल की यारी पर अदभसार
के व्यंग का प्रहार होना। यह कोई सामान्य घटना नहीं बदल्क भदवष्य के दलए
समय का इशारा है जो आज हमें छोटा सा इत्तफाक लग रहा।

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7.

जो आशक ं ा हमने व्यक्त की, हुआ भी वही। स्वरा, देवव्रि व


अदनरुद्ध की कोदशश रंग लाई। हाईकोटष ने धनंजय दसंह हत्याकांड फाइल को
पनु ः खोला व इसपे पनु ः जाूँच के आदेश दे ददए। सामने लोकसभा का चनु ाव
था दजससे सजं य पादटल भी खल ु कर दददववजय का समथषन नहीं कर रहा था।
कहीं न कहीं महीनों पहले अदभसार के िारा कही गई बाि उसे चभु रही थी।
आज की राजनीदि में एक राजनेिा अपने से ज्यादा प्रदिभा वाले व्यदक्त को भी
राजनीदि में आगे दनकलने देने का कोई अवसर नहीं देिा है। सत्ता का सख ु व
रुिबा, वह भी पवू ािंचल में कोई कभी अपने से दरू नहीं जाने देना चाहिा।

सजं य – दददववजय बाबू हम िो आपके रहम – ओ – करम पर जीदवि रहने


वाले व्यदक्त हैं। हमारी का औकाि की आपका अनादर कर सकें । बस इिना ही

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वे ददक दिवे दी

कहेंगे दक अदभसार का भी ख्याल रदखए साथ – साथ। उसका भी उम्र हो चला


है बहकने का। चनु ाव िक यदद कोई गड़बड़ हुआ िो हम भी नहीं बचा पाएगं े।

दददववजय (दबी हुई नाराजगी दशाषिे हुए) –शब्द बड़े ही कीमिी हैं आपके । ग्रंथों
में सक
ं दलि करवायेंगे इन्हें इस चनु ाव के बाद। बाि रही अदभसार की िो ठीक
ही कहा आपने, उसकी भी उम्र हो चली है। आदखर कब िक गधों पर बाजी
लगाऊूँ मैं..! दमलिे हैं मैदान में।

दददववजय को यह समझ आ गया था दक अपराध की ददु नया में अब


उसे संरक्षर् देने वाला कोई नहीं। अपने बेटे अदभसार को दवपक्ष की पाटी से
चनु ाव लड़वाने का दनर्षय उसके िारा दकया गया।

इधर श्रदु ि भी घर आई हुई थी। दपिा के के स में दफर से सनु वाई होने
की खशु ी में घर पर आज छोटी–सी पाटी रखी गई थी। देवव्रि व अदनरुद्ध भी
इस पाटी का दहस्सा थे व राजेश भी स्वरा के घर आए हुए थे।

देवव्रि – अदनरुद्ध बाबू, आपने बड़ी मदद की हमारी। हम ददल से आपके


शिु गजु ार हैं।
उमा – हाूँ बेटा, वेदप्रकाश जी के िबादले के बाद हमें ऐसा लगा था दक अब
न्याय दमलना नाममु दकन है। हमारी टूटी कश्िी को डूबने से बचाया है िुमने।

अदनरुद्ध – ऐसा कुछ नहीं माूँ जी, ये िो दादयत्व था मेरा। एक प्रशासदनक


दसपाही होने के नािे सब को न्याय ददलाने में खदु को शादमल कर पाना गवष की
बाि है मेरे दलए।

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ramaeSvara

स्वरा – मम्मा, सबकी मदद करने की भावना इनमें शरू ु से ही है। लखनऊ में
एक इवेंट के दौरान कॉलेज टाइम में मल
ु ाकाि हो चक
ु ी है हमारी।
श्रदु ि – िब िो आप दोनों दोस्ि हुए..!

अदनरुद्ध (जल्दी से) – नहीं जी, दोस्ि के दोस्ि (दफर कुछ सोचिे हुए) हाूँ
दोस्ि..!

श्रदु ि को कुछ राज का अंदाजा लग चक ु ा था। वो निरों से ही दीदी


को इशारा कर चपु चाप खाने लगिी है। सब खश ु थे। अदनरुद्ध सबसे निरें चरु ा
कर श्रदु ि को देखे जा रहा था। श्रदु ि भी बीच-बीच में अदनरुद्ध की िरि मड़ु िी
थी। दोनों िरि समान भाव का होना भी लग रहा था िभी अदनरुद्ध का िोन
बजिा है। स्वरा की निर फोन पर पड़ी।

फोन के स्िीन पर दलखा था “रघ”ु ..! अदनरुद्ध फोन लेिा है और वहाूँ से


दकनारे जाने लगिा है िब िक उमा उसे रोककर।

उमा – कोई बाि नहीं बेटा कर लो यहीं बाि, हमें कोई ददक्कि नहीं।

स्वरा और श्रदु ि दोनों अपनी हूँसी दबाने की कोदशश करिे हैं लेदकन
यह कहाूँ सभं व था? दोनों की हूँसी के बावजदू अदनरुद्ध सामान्य ददखने की
कोदशश करिा है।

ऐसा दसफष अदनरुद्ध के ही नहीं बदल्क हमारी पीढ़ी के हर नौजवान के


साथ होिा है। बड़ों के सामने अगर दोस्ि का कॉल आ जाए िो यह डर सिाने
लगिा है दक िोन का वॉल्यमू कहीं गलिी से भी िेज न रहे। फोन की क्षमिा से

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वे ददक दिवे दी

भी अदधक वॉल्यमू कम करवाने का प्रयास हम करिे हैं क्योंदक यह पिा होिा


है दक आधदु नक गादलयों का शंखनाद हमारे कानों में होने वाला है।

वो गादलयाूँ अगर गलिी से हमारा पड़ोसी भी सनु ले िो उसके घर


पर चढ़ कर ठोकने के दलए िैयार हो जाएगा चाहे भले वह एवरेज में रोज
गाली-गलौज हमारे घर से करिा हो। इस समय यह बाि रोज के ड्रामे को पार
कर इस दनष्कर्ष पर पहुचूँ चकु ी होिी है दक दकसी बाहरी ने गाली ददया कै से।
हम दो पररवारों में कुछ भी हो मगर कोई बाहरी कुछ बोला िो हम दोनों पररवार
दमलकर धावा बोलेंगे।

अिः इस दौर में ऐसी नौबि न आने देने के दलए दोस्िों का िोन अके ले में ही
उठाएूँ। अदनरुद्ध भी िोन उठािा है।

राघव – कहाूँ मर रहे हो साले, इिनी देर से िमु को ररंग कर रहा। मैंने एक बार ये
भी सोचा दक 100 नंबर डायल करूूँ पर बाद में ये ख्याल आया दक गर्ु वत्ता व
जानकारी के दलए कॉल ररकॉडष भी होिा है और अभद्रिा करने पर कानूनी
कायषवाही हो सकिी है और िुम्हें गाली ददए दबना मेरा ददन नहीं बनिा…!

अदनरुद्ध – ह.ूँ .!

राघव – मैं िबसे बोले जा रहा और िुम हूँ कह रहे हो। साले कहीं दकसी खिरे
में िो नहीं। दकसी ने दकडनैप दकया हो िो लाल बटन दबाना दजससे मैं बच
जाऊूँ ।

अदनरुद्ध – उह.ूँ .ह…


ूँ .!

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ramaeSvara

राघव – बोलेगा भी कमीने कहाूँ है.?

अदनरुद्ध – स्वरा के घर..!

अदनरुद्ध के मूँहु से ये सनु ने के बाद मानो राघव को साूँप सूँघू गया।


वह फोन रख देिा है। इस सारी घटना को दोनों बहनें बड़े ध्यान से देख रही थीं।
इस जमाने की दोस्िी से वो अंजान नहीं थीं और अदनरुद्ध के इस हाल पर हूँसे
जा रही थीं।

भोजन के उपरांि अदनरुद्ध सबसे दवदा लेिा है। िेजी से वहाूँ से दनकलिे हुए
वो राघव को कॉल करिा है।

राघव – हाूँ, बोलो बे..!

अदनरुद्ध – शांदि दमली दक नहीं। कभी िो िमीज से बोल ददया करो। समझबय
नहीं करिे हो कौनो बाि का िुम। सामने सब थे िबय चपु थे हम।

राघव – अच्छा सनु भाई, मैं वारार्सी कुछ काम से आया ह।ूँ खाने के साथ
एक साफ चद्दर और एक्सटेंशन बोडष का इिं जाम करो।

अदनरुद्ध ( मस्ु कुरािे हुए ) – मैगी उबाल लेना बे। मैं खाना खा चक
ु ा हूँ भाभी
जी के हाथ का।

यह कह अदनरुद्ध फोन रखिा है।

घर का काम दनपटा कर स्वरा और श्रदु ि साथ – साथ कमरे में आिी हैं।

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वे ददक दिवे दी

श्रदु ि – दीदी वैसे ये इस्ं पेक्टर इिना डर क्यों रहा था आपसे..?

स्वरा – मझु े िो नहीं लगा दक डर रहा है और िेरा ध्यान भी उसी िरफ था।

श्रदु ि – नहीं दीदी, ऐसा कुछ नहीं पर आज जाननी है मझु े परू ी बाि।

स्वरा – कौन सी बाि..?

श्रदु ि – ये राम कौन है? कहीं वो अदनरुद्ध का दोस्ि िो नहीं जो अभी कॉल पर
था..?

स्वरा – नहीं पागल। अच्छा बैठो, िम्ु हें समझािी ह।ूँ कॉलेज से लौटिे समय
एक बार अदनरुद्ध और इसके दोस्ि राघव ने हमें देखा था। दोनों काफी परे शान
थे हमारे हॉस्टल का चक्कर लगा – लगाकर। इत्तफाक से इस्ं टाग्राम पर ओपन
माइक इवेंट का पोस्टर इन्हें ददखा और ये मेरी आईडी िक पहुचूँ े। राघव का
मैसेज आया था और उसके मैसेज का जवाब मेरी एक दोस्ि ने ददया था। दफर
हम ओपन माइक इवेंट में दमले। कॉलेज के ददनों में मेरी राघव से बाि होिी थी।
हम अच्छे दोस्ि थे। राघव इस ररश्िे को लेकर काफी सीररयस था लेदकन मैं ये
सब नहीं चाहिी थी। आदखरकार वो एक ब्राह्मर् था और मैं क्षदत्रय। कोई
मानिा भी िो नहीं इस ररश्िे को। इसदलए मैंने समाज के डर से ये ररश्िा िोड़ा
और दफर कभी हमारी बाि भी नहीं हुई। उस दौरान हम आदखरी बार दमले और
अचानक से इिने सालों बाद हम दफर एक दसू रे के सामने आ गए। अदनरुद्ध भी
काफी अच्छा लड़का है। दोनों की दोस्िी बड़ी कमाल की है। वह िो आज भी
चाहिा है दक दकसी न दकसी बहाने से राघव और मेरी बाि करवा सके ।

श्रदु ि – क्या करिा है वो अभी..?

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ramaeSvara

स्वरा – अदनरुद्ध ने बिाया था दक हाईकोटष प्रयागराज में वकील है अभी। दजस


होटल में मैं मैनेजर ह,ूँ पहली बार हम सब वहीं आमने-सामने हुए।

श्रदु ि – और अभी ये राम..?

स्वरा (शरमा कर) – मेरा राम, दजससे मैं बहुि प्यार करिी ह।ूँ

श्रदु ि – दीदी आपने मझु े अब िक बिाया िक नहीं। वो िो अच्छा हुआ दक मैंने


खदु ही सब पिा लगा दलया।

स्वरा – वैसे अब मैं व्यस्ि रहगूँ ी। सो जाओ बाब,ू बाय एंड गडु नाईट…।

स्वरा के इस्ं टा पर राम का मैसेज शो होिा है और वह राम से बािें


करने लग जािी है। श्रदु ि ने स्वरा की आईडी पर अदनरुद्ध को खोज दनकाला
और अदनरुद्ध को फॉलो कर दलया।

इधर राघव, अदनरुद्ध के फ्लैट पर पहुचूँ कर बेल बजािा है। राघव ने दरवाजा
खोला।

अदनरुद्ध – स्वागि है वकील साहब…!

राघव – शदु िया भोसड़ी के ..!

अदनरुद्ध – नाराि क्यों हैं आप इस नाचीि पर..?

राघव – साले हमारे एक्स ससरु ाल में आहार लेके आ रहे हो और उम्मीद कर
रहे हो दक हम गाली भी न दें। शि
ु मनाओ दक बाई दमस्टेक हम वकील हो गए

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वे ददक दिवे दी

वरना कट्टे का प्रचलन भी है हमारे यहाूँ। सीधे दपछवाड़े पर गोली दागिे और


िुम को िो आगे भी मारिे साले।

अदनरुद्ध – अबे वो क्यों..? िमु से दकिनी बार कहूँ दक स्वरा से बाि करने की
कोदशश करो। क्या पिा वो मान जाए..!

राघव – इस बाि की गारंटी दो दक वो मान ही जाएगी। वो नहीं िो क्या, शायरी


िो है मेरे पास। भाई ये सब छोड़ो, मैं चला दकचन में मैगी बनाने और दफर मझु े
आराम भी करना है। िमु अपना कुछ सोच लो। िमु जैसे चदू िए पर समय खचष
नहीं करने वाला मैं, समझे?

अदनरुद्ध – बकचोददयों में िमु से कोई नहीं जीि सकिा। मरो साले, रंडवा ही
मरोगे या दफर दमल जाएगी दक कोई एक दकलो पाजेब वाली, दजसका पैर अगर
गलिी से भी िुम्हारे पैर से राि को छू गया िो िुम्हें अपना कमरा भी श्मशान
नजर आएगा। नसीब में यही दलखा है िेरे कमीने।

िब िक अदनरुद्ध अपने िोन पर श्रदु ि का फॉलो ररक्वेस्ट देखिा है।


इस पल उसे वही खशु ी महससू हो रही थी जो सालों पहले स्वरा को देख राघव
ने महससू की थी। अंिर बस इिना है दक इस बार श्रदु ि ने स्वरा की जगह ले
रखी थी और अदनरुद्ध ने राघव की।

श्रदु ि – इस्ं पेक्टर साब… क्या घरू रहे थे हमें…?

अदनरुद्ध – नहीं जी मैं कहाूँ वो िो…।

श्रदु ि – हाूँ हाूँ, बना लीदजए बािें। वो िो काम है पदु लस वालों का।

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ramaeSvara

अदनरुद्ध – नहीं जी वो िो मैं…।

श्रदु ि – वैसे दनहायि शरीफ आप हैं या दिर ढोंग कर रहे हैं..?

अदनरुद्ध – नहीं जी वो िो मैं…!

श्रदु ि – हा हा हा….

राघव प्लेट में मैगी लेकर अदनरुद्ध की िरफ बढ़ा चला आिा है। अदनरुद्ध ने
श्रदु ि की इस्ं टा प्रोफाइल खोल उसकी हर फोटो को लाइक करना शरू
ु कर ददया
था। राघव की नजर उस पर पड़िी है।

राघव – क्या कर रहे हो बे, ये िो ओल्ड वजषन हो गया है लड़दकयों को इप्रं ेस


करने का। दोस्ि, उसको आने दो। हम लड़कों को कभी इनके सामने नहीं
झकु ना चादहए।
अदनरुद्ध – अबे पदण्डि, मेरी कुण्डली में शदन काहे बन रहे। घर बस जाने दो
मेरा भी भाई। कॉलेज टाइम में भी िमु ने स्वरा से ख्यालों में ही साि फे रे लेकर
मझु े भाभी बोलने को मजबरू दकया था। कहीं दफर से वही प्लान िो नहीं
िुम्हारा। भाई अब हम िुम्हारी बािों में आने से रहे और हाूँ, ये भाभी है िेरी,
कोई आधदु नक शेर पढ़ने से पहले ये सोच लेना और मैं बदाषश्ि भी नहीं करूूँगा
हाूँ।

दोनों की इन शरारिों में आज भी वो बचपन दिंदा था। दोस्िी की


एक अलग ही पररभार्ा है जो दसिष महससू की जा सकिी है। दोस्िी ही वो
सीढ़ी है जो हमारे सपनों की ऊूँ चाईयों को हर हाल में छू लेना की दहम्मि देिी

-94-
वे ददक दिवे दी

है। कुछ ही लोग होिे हैं दजन्हें दोस्िी नसीब होिी है और उससे भी कम लोग
होिे हैं दजन्हें प्रेम नसीब होिा है।

अक्सर सवाल आिा है दक प्रेम और दोस्िी में पहले आप दकसे


चनु ेंगे िो मेरा जवाब आज भी है - दोस्िी। दजन ररश्िों में दोस्िाना अदं ाि न
शादमल हो उन ररश्िों की उम्र कम होिी है। एक अच्छे दोस्ि ही कल को अच्छे
प्रेमी भी बनिे हैं। जहाूँ प्रेम हो वहाूँ कुछ शेर् नहीं रहिा है। अच्छा भाई भी
दोस्ि ही होिा है और अच्छे माूँ-बाप भी दोस्ि ही होिे हैं। यह सब समझना
उिना आसान नहीं है दजिना पढ़ना। जीवन में अगर आपके चार अच्छे दोस्ि
बन गए िो खदु को बहुि बड़ा खश ु नसीब समझना।
उधर दददववजय अपने सहयोदगयों को एक बैठक के दलए आमंदत्रि
करिा है। इस बैठक का उद्देश्य था दक राजनीदि में दकस प्रकार प्रवेश दकया
जाए। अपराधी से लेकर िमाम सामादजक अपवाद इस बैठक में शादमल थे।
बैठक बस कहने के दलए थी क्योंदक संजय पादटल की बािें पहले ही दददववजय
के अदं र आग लगा चक ु ी थीं। बैठक में सभी लोग उपदस्थि थे। अदभसार भी
इस बैठक में अपने दोस्िों के साथ मौजदू था।

इब्रादहम – पादटल साब, कै से याद करना हुआ? आदेश कररए आप। क्या कर
सकिे हैं आपके दलए?

सभु ार् यादव (पवू ष दवधानसभा प्रत्याशी) – साहब हम जौन कुछ आज िक


हादसल दकए हैं सब आपय के बदौलि है। ईशारा करयूँ आप, कसम महादेव
की, नजारा बदल देंग।े

-95-
ramaeSvara

दददववजय – बाि बस इिनी सी है दक मैं चाहिा हूँ दक मेरा बेटा अदभसार


इसबार लोकसभा का चनु ाव लड़े। यह मेरा अंदिम दनर्षय भी है और अब दजद
भी। कौन-कौन मेरे इस दनर्षय में मेरा साथ दे रहा और कौन मेरे दखलाफ जाने
की सोच रहा है? अब िक संजय पादटल नामक साूँप को आस्िीन में रख कर
चला। यह देखना चाहिा हूँ दक और भी दकिने दवर्धारी अभी शेर् हैं? बाद में
दकसी भी िरह का दकंिु-परंिु मैं सनु ने से रहा। आगामी लोकसभा चनु ाव में
संजय पादटल के दवरूद्ध अदभसार को चनु ाव में उिारना है। दवपक्ष की पाटी से
ही हमें दटकट दमल सकिा है। िैयारी कररए, वक्त आ गया है अपनी िाकि का
सदपु योग करने का।

अब्दल
ु – चाचा जी हम सब िैयार हैं। एक सपना जैसन है हम लोग खादिर ई।
हम िो पदहले कह रहे थे दक भईया जी के ऊपर राजनीदि ही सटू करिा है।
आदखर खदु ा ने वो ददन ददखा ही ददया आज।

अदभनव – कसम भगवान की, िांदि ला देंगे चाचा जी अदभसार भईया के


दलए। सबके पैर पर दगरना पड़ा िो वो भी कर लेंगे। अब भईया जी को चनु ाव
जीिने से कोई नहीं रोक सकिा है।

दददववजय – जोश का इस्िेमाल होश में करना। जो कुछ भी हो रहा है िमु जैसे
चदू ियों के प्रभाव के चलिे हो रहा। मेहनि में कमी रह गई िो चौराहे पर नंगा
टाूँग देंगे। करिे रहना प्रदशषन अपने जोश का दफर।

सब लोग हूँसिे हैं। अदभसार को सब लोग बधाई देिे हैं और सभी दमलकर यह
योजना बनाने लगिे हैं दक दकससे दमलने पर कौन-सा काम आसान होगा।

-96-
वे ददक दिवे दी

लोकिंत्र का खस्िा हाल देदखए। दकसी भी दरवाजे से प्रवेश यहाूँ पाया जा


सकिा है।

लोकिादं त्रक समाज दल में राष्ट्रीय अध्यक्ष को सदू चि कर पाटी ज्वाइन करने
का समय ले दलया गया। दनधाषररि समय पर महूँगी गादड़यों के कादफले के बीच
दजंदाबाद के नारों के साथ अदभसार का कादफला सड़क पर आिा है।

इन गादड़यों व पूँजू ीवाद की चमक देखने वालों के आूँखों में जम रही


थी। राजनीदि दकसी भी पाटी की हो जब िक पीयर्ू दमश्रा जी का गीि ‘आरंभ
है प्रचंड’ न चल जाए पवू ािंचल की राजनीदि अधरू ी होिी है। कादफले के आगे
एक बड़ी गाड़ी में साउंड पर पीयर्ू जी की आवाज और उसी में घल ु के
दजंदाबाद के नारे जब कानों िक पहुचूँ रहे थे िो मानो खनू में एक नया उबाल
शादमल हो रहा था।

कलम के कमाल का धनु जब सवार होिा है िो व्यदक्त कुछ भी करने


को िैयार होिा है। गीि और कदविाओ ं का लोकिादं त्रक महत्व आज से नहीं
बदल्क आदद से ही है। यद्ध
ु ों से लेकर वैवादहक कायषिम िक गीि का महत्व है
और कोई भी इससे अंजान नहीं। शेर्, पीयर्ू दमश्रा जी के चाहने वालों को दसफष
पवू ािंचल या राजनीदिक बंधन में कै द नहीं कर रहा बदल्क यह स्पष्ट कर रहा हं
दक असामादजक कहे जाने वालों के ददलों में भी दमश्रा जी के गानों ने जगह
बना रखी है।

इस प्रकार से घटनाएं आपस में जड़ु कर कहानी का दनमाषर् कर रही


हैं। अदभसार का क्षेत्र में दनकलना शरू
ु हुआ। धीरे –धीरे चनु ाव नजदीक आ रहा
था। वैसे ही राजनीदि की सरगमी भी बढ़ रही थी। संजय पादटल को यह सब

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ramaeSvara

दबल्कुल पसदं नहीं आ रहा था। यह स्पष्ट था दक राजनीदि में कोई दकसी का
दोस्ि या दश्ु मन नहीं होिा है। संजय पादटल और दददववजय एक दसू रे के
सहयोगी थे और आज इनसे बड़ा एक – दसू रे का दवरोधी भी कोई नहीं। संजय
पादटल भी राजनीदि का मादहर दखलाड़ी और सत्ता पाटी में मंत्री भी था। समय
देख उसने अपना ट्रंप काडष खेल ददया।

अदनरुद्ध को अपने आवास पर बल ु ा पत्रकार धनंजय दसंह के के स में


दनष्पक्ष जाूँच कर जल्द से जल्द पररवार को न्याय ददलवाने की बाि कही।
अदनरुद्ध समझ चक ु ा था दक खेल फूँ स चकु ा है। भैरव भी अपने दनजी लाभ व
राजनीदिक गोदटयों को सेट करने के दलए इस समय दददववजय के गटु में
शादमल था। धन की िरूरि िो हर दकसी को है और पाटी से जड़ु े होने के
कारर् भैरव को उसका साथ भी देना पड़ रहा था। मीदडया ने के स को बढ़ा-
चढ़ा कर ददखाना शरू ु दकया। दददववजय ने पैसे का सदपु योग कर उसी के स में
मंत्री जी से जड़ु े कुछ पेपर मीदडया को ब्रेदकंग न्यिू में दे ददए। खेल िो उलझ
चक ु ा था। देखना अहम होगा दक आगे क्या।

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8.

धनंजय दसंह हत्याकांड में लबं ी जाूँच के बाद संजय पादटल की भी


सदं लप्तिा पाई गई। दददववजय पादटल का नाम उछलने पर उसने यह िकष ददया
दक इसमें सत्ता पक्ष की सादजश है। सत्ता पक्ष अपने दागी मंत्री को बचाने के
दलए हमें बदनाम कर रही है।

दददववजय का यह खेल काम कर गया। उसके अवैध कारोबारों के


दखलाफ कोई ठोस गवाह व सबिू दमल पाना मदु श्कल था। इन सभी के बीच वो
दनर्ाषयक समय आया दजसका सबको इिं जार था। लोकसभा चनु ाव की
घोर्र्ा हुई। आचायष संदहिा लगने के बाद पदु लस वालों को अपने हाथ खोलने

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ramaeSvara

का मौका दमला। अदनरुद्ध ने अपनी िाकि का भरपरू उपयोग दकया। सत्ता पाटी
का समथषन भी अदनरुद्ध को दमल रहा था।

इधर अदभसार ने भी धन व अपने बाि करने के हुनर से सबका ददल


जीिा था। कांटेदार पौधे में कहीं न कहीं गल ु ाब भी दखला होिा है। अदभसार
वही गल
ु ाब का फूल था। गल ु ाब के सारे गर्ु इसमें थे।
चनु ावी मचं से उसने यवु ाओ ं के उत्थान के दलए कई सारे अहम बािें
भी की। पाटी िारा आयोदजि जन जागरर् कायषिम के मचं पर अदभसार को
भी आवाज ददया गया था। हर िरफ लोगों के दसर व हाथ लहरािे झंडे ही
ददखाई दे रहे थे।

अदभसार (हाथ उठाकर जनिा का अदभवादन करिे हुए) – जन शदक्त को


प्रर्ाम व सत्तारूढ़ पाटी को नमन करिा ह।ूँ ये नमन इसदलए क्योंदक इस चनु ाव
के बाद इनकी पाटी के दसंबल पर दसफष फूल-माला ही चढ़ाया जाएगा। मझु े परू ा
यकीन है दक ये चनु ाव इिना दनर्ाषयक हो रहा दक अपराध के नींव पर खड़ी इस
पाटी का पिन दनदश्चि है। मैं आपको व अपनी पाटी के लोगों को ये दवश्वास
ददलाना चाहिा हूँ दक दजस प्रकार सभी ने 40 प्रदिशि यवु ाओ ं को दटकट देकर
उन्हें ससं दीय क्षेत्र में भेजने का काम दकया है, दनदश्चि ही हम सभी यवु ा इस
बदलाव को सलाम करें गे। यवु ा भारि के कंधों पर देश की दजम्मेदारी सौंपने का
काम हमारी पाटी ने दकया है। पाटी को भी ये पिा है दक बढ़िी बेरोजगारी जैसी
िमाम समस्याओ ं पर दजिनी मेहनि से काम यवु ा वगष कर सकिा है उिना कोई
नहीं। यवु ा जानिा है दक एक यवु ा को क्या चादहए। उसकी मल ू भिू जरूरिें क्या
हैं। एक यवु ा ही समझ सकिा है एक यवु ा के ददल की बाि को। यवु ा अवस्था

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वे ददक दिवे दी

में हर कोई िमाम रूदढ़यों व जािीय भावनाओ ं से मक्त ु रहिा है। हर यवु ा की
दोस्िी यारी हर जादि – वगष के लोगों के साथ है। शायद ही कोई होगा जो
कुरीदियों से ग्रदसि हो। मैं आपको यकीन ददला रहा हूँ दक यदद आपने अवसर
ददया िो अपने संसदीय क्षेत्र में मोहल्ला के मिु ादबक आधदु नक पस्ु िकालय
बनाने का काम मैं करूंगा। दशक्षा समाज के दवकास की प्राथदमक सीढ़ी है।
रोजगार के अनेकों आयाम महु यै ा कराने का काम मेरे िारा दकया जाएगा। समय
का अभाव है बस मेरी एक बाि याद रदखएगा दक जो आज िक कोई नहीं कर
पाया वो आपका ये बेटा करके ददखायेगा। जय दहदं …!

अदभसार के भार्र् पर लोगों की िादलयाूँ रूकी ही नहीं। ददन


प्रदिददन अदभसार के भार्र्ों पर रील बनना और उसकी लोकदप्रयिा का बढ़ना
थमा नहीं। संजय पादटल को घेरने में कोई कसर न िो दददववजय ने छोड़ी और न
ही अदभसार ने। दपिा के यकीन पर खरा उिरने का काम अदभसार ने दकया था।

एक ददन देर राि जनसपं कष से लौटने के बाद अदभसार अपने कायाषलय पर


अब्दल
ु व अदभनव के साथ बैठकर बािें कर रहा था।
अदभसार – अदभनव भाई, जीवन में परम सख
ु दसफष पॉदलदटक्स में ही है।
अदभनव – भैया जी एक बाि का खिरा हमको ददख रहा है..!

अब्दल
ु – अदभनव ठीक कह रहा। खिरा िो बहुि बड़ा है। हम लोगन का िो
भल
ु ाय ही जाओगे आप सासं द बनने के बाद। आपके पास आए के दलए
अनुमदि दलऐ के पड़ी।

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ramaeSvara

अदभसार – िमु दोनों चदू िया ही रह जाओगे साले। हमारे दनजी शौक का
इिं जाम िुम्हीं लोग करोगे। ये समझो दक मेरे दनजी सदचव रहोगे यार।

अदभसार व अब्दल
ु इस बाि पर अदि प्रसन्न होिे हैं।
दोस्ि वही अच्छा जो श्री कृ ष्र् जी की िरह राह बिाए और कर्ष की
िरह सदैव आपके हर दनर्षय पर जी जान लगा दे। अगर जी हुजरू ी करने वाले
नमनू े आपके दनजी जीवन के सदचव हैं दफर आपका उद्धार होने से कोई नहीं
रोक सकिा।

अब्दल
ु व अदभनव ने अदभसार को बबाषद करने में कोई कसर नहीं
छोड़ी थी। हर शदनवार को देर राि अदभसार के ऑदफस में नशे के इिं जाम के
साथ ही रुपए की चमक ददखा कर नई उम्र की लड़दकयों को उसके कमरे िक
पहुचूँ ाने का काम करिे थे। अदभसार की ये कहानी सालों से चली आ रही थी।
न जाने दकिनी मासमू ों को बहला फुसला कर उन्हें ड्रवस का आदी बनािे।
उसके बाद वो उनका यौन शोर्र् भी करिे।

एक बार बरु ाई के दलदल में दगर जाने के बाद उभर पाना बहुि ही
मदु श्कल होिा है। ऐसी उम्र में यह खयाल रखना बहुि ही आवश्यक है दक हम
कौन सा दनर्षय दकसके कहने पर ले रहे हैं। नैदिक ज्ञान यदद आप में रहेगा,
आपका जीवन सदैव उन्नदि के मागष पर अग्रसर ही रहेगा।

अब्दल ु – भैया जी समय हो रहा है। वो आ रही होगी, आप अपने कमरे में
जाए।ं

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वे ददक दिवे दी

अदभसार – ऐसा फील होने लगा है दक परू े बनारस के जमाई हम ही बन गए हैं।

वह अंदर जािा है। अदभनव और अब्दल ु के चेहरे पर एक प्रश्नवाचक मस्ु कान


देखने को दमल रही थी। इसके पीछे कौन–सा रहस्य पनप रहा था, यह िो समय
ही बिा सकिा था।

श्रदु ि भी बनारस में ही थी। स्वरा को नौकरी के चलिे वक्त दमल नहीं
पािा था दजससे श्रदु ि ही के स से जड़ु ी हर चीिों को सभं ाल रही थी। बढ़िी
मल
ु ाकािें दोनों को एक-दसू रे के पास ला रही थीं।
श्रदु ि और अदनरुद्ध एक दसू रे से प्रेम करने लगे थे। दोनों यह बाि
समझिे थे लेदकन पहले प्रेम का प्रदशषन कौन करे, यह खदु में एक बड़ा सवाल
होिा है। दकसी से अपने ददल की मनोदशा व्यक्त करना आसान काम नहीं।
सच्चे प्यार में शब्दों का अभाव होिा है। शब्द भी ऐसे समय में आपके
एहसासों का इम्िहान ले रहे होिे हैं। डर भी रहिा है दक कहीं सामने वाले के
ददल में ये भावना न हुई िो बाि दबगड़ जाएगी।

दकसी लड़की के मूँहु से यह सनु ने के बाद दक हम दसफष दोस्ि हैं, वो


भी अच्छे वाले, लड़के पर क्या बीि रही होिी है यह वही बिा पाएगा दजसने
यह महससू दकया हो।

इधर कोटष के कामों में व्यस्ि चल रहे राघव की दिंदगी में एक अलग
ही मोड़ आ चक ु ा था। अचानक देर राि उसे बस्िी पदु लस स्टेशन से कॉल
आिी है।

बस्िी पदु लस – वकील साब बोल रहे हैं..?

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ramaeSvara

राघव – जी बिाए,ं आप कौन..?

बस्िी पदु लस – जी हम बस्िी कोिवाली से बाि कर रहे हैं।

राघव – जी कदहए…!

बस्िी पदु लस – सर देर राि दकसी दववाह समारोह से लौटिे वक्त आपके
पररवार का एक्सीडेंट हो गया है। हमें दःु ख के साथ आपको यह बिाना पड़ रहा
है दक..!

राघव – सब ठीक िो हैं न..?

बस्िी पदु लस – जी लोगों की पहचान हुई है। आपके दपिा, माूँ व बहन िीनों
इस हादसे का दशकार हुए हैं। आप दजिनी जल्दी हो सके पहुचूँ ें।

यह बिा कॉल कट हो जािा है। फोन छूट कर नीचे दगर जािा है।
राघव को यह नहीं सझू रहा था दक वह क्या करे । दकसी बेटे के दलए यह सनु ना
ठीक वैसा ही होिा है जैसे खौलिे िेल में दकसी ने ठंडे पानी का छीटा मार
ददया हो।

एक वकील साथी को बुलाकर वह घर के दलए दनकलिा है। इधर परू े


क्षेत्र में ये खबर आग की िरह िै ल चकु ी थी। गाूँव व हर कोई जो भी यह सनु िा
अपने माथे पर हाथ रख लेिा। सबु ह होने िक लोगों का हुजमू पहुचूँ चक ु ा था।
राघव भी पहुचूँ कर दस्िावेजों पर हस्िाक्षर करिा है।

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वे ददक दिवे दी

कुछ दस्थदियों का दचत्रर् करना हम कलमकारों के दलए बड़ा ही


मदु श्कल होिा है। पररवार के दियाकमष को दवदध दवधान से कर राघव खदु को
अपने पररवार की यादों में कै द कर अके लेपन में कै द कर लेिा है। 13 ददन बीि
गए थे लेदकन राघव के चेहरे पर कोई भाव ददख ही नहीं रहा था। उसकी आूँखों
से दसफष आूँसू ही बह रहे थे जो सभी सवालों के जवाब थे।

सब ररश्िेदार भी सांत्वना दे अपने घर को प्रस्थान कर चक


ु े होिे हैं। एक कमरे में
इसी हाल में राघव खदु को कै द कर लेिा है।

चनु ाव प्रचार की आदखरी राि थी। अगले ही ददन यानी 5 िारीख को


मिदान होना था। चनु ाव अपने चरम पर था। शदनवार का ददन था। आज
अदभसार के ऐशो आराम का ददन था लेदकन चनु ावी सरगमी के चलिे
कायषकिाष व कई बड़े नेिा भी दददववजय के साथ अदभसार के कायाषलय पर
मौजदू होिे हैं। दबगड़ी हुई आदि का कोई इलाज नहीं होिा है और ना ही
इसपर कोई दनयंत्रर् होिा है।

अदभसार – अब्दल
ु , इिं जाम कर मेरा।
अब्दल
ु – भैया जी मदु श्कल है थोड़ा।
अदभनव – हमारे जेब में माल है लेदकन चला कै से जाए यहाूँ से? आपके दपिा
श्री नजर गड़ाए हैं हमीं पर भैया।

अदभसार उठकर गाड़ी पर सवार होिा है व अदभनव ड्राइदवगं सीट व अब्दल



पीछे ।

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ramaeSvara

दददववजय – कहाूँ चले…?

अदभसार – दपिा जी कुछ यवु ा साथी को गस्ि पर लगाए हैं हम दजससे कौनों
प्रकार की गड़बड़ी न होने पाए। हम जायजा लेकर आिे हैं।

वो सभी वहाूँ से दनकल जािे हैं। सबसे पहला होटल वही था जहाूँ स्वरा काम
करिी थी। ये सभी अंदर घसु िे हैं।

अदभनव – 2 घण्टे के दलए हमें रूम चादहए यहाूँ।

स्वरा – सर आज वॉच मैन और मैं ही ह।ूँ कल वोदटंग है दजसकी वजह से सारे


स्टाफ की छुट्टी कर दी गई है और मझु े भी घर दनकलना है। सॉरी आप कहीं
और देख लीदजए।

अब्दल
ु बढ़ कर आगे आिा है और रौब झाड़िे हुए।
अब्दल
ु – नहीं पिा क्या हम कौन है?
स्वरा घड़ी की िरफ देखिी है दजसमें अभी 7PM हो रहा था। यह सोचकर की
कोई दववाद ना हो और वह 9 PM िक घर दनकल जाएगी।

स्वरा – आईडी ..?

अदभनव – अदभसार पादटल दलख लो, भावी सांसद हैं यहाूँ के ।

स्वरा उन्हें चाभी दे रूम नंबर 308 बिा देिी है।

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वे ददक दिवे दी

अदभसार – हमें कै से पिा दक 308 कहाूँ है? चदलए हमें वहाूँ िक छोड़ कर
आइए।

स्वरा (दहचदकचाकहट के साथ) – ओके सर…!

स्वरा आगे चलिी है और दलफ्ट के दलए बटन दबािी है। थोड़ी देर में दलफ्ट
खलु िी है। स्वरा बहुि ही असहज महससू कर रही थी। वो िीनों स्वरा को हवस
की नजरों से घरू े जा रहे थे। जैसे ही दलफ्ट का दरवाजा बदं हुआ स्वरा की
धड़कने और भी बढ़ गई। िीसरे फ्लोर पर दलफ्ट रुकिी है।

स्वरा जल्दी से बाहर दनकलिी है िभी उसके साड़ी का एक कोना


दलफ्ट में फूँ स जािा है। स्वरा उसे छुड़ाने के दलए जैसे ही झक
ु िी है उसका पल्लू
दगर जािा है। इन िीनों की दनगाहें स्वरा के सीने पर थीं। जल्दी से साड़ी को
छुड़ा वो पल्लू ठीक कर जल्दी से कमरा नंबर 308 िक पहुचूँ िी है।

कमरे का दरवाजा खोल कर वो जैसे ही कुछ बोलने के दलए पीछे की


िरफ मड़ु िी है अदभनव व अब्दल ु बाहर से दरवाजा बंद कर लेिे हैं और
अदभसार स्वरा को अपनी बाजओ ु ं में कस लेिा है। स्वरा दचल्लािी है और
छुड़ाने की कोदशश करिी है लेदकन अदभसार की हैवादनयि से खदु को बचा
नहीं पािी है। चीखने–दचल्लाने की आवाि धीरे -धीरे कम होिी गई। एक घण्टे
के बाद अदभसार कमरे से बाहर दनकलिा है और अपने सादथयों के साथ वहाूँ
से दनकल जािा है।

उन िीनों को जल्दबाजी में दनकलिे देख वॉचमैन िेजी से ऊपर


आिा है और वो स्वरा को आवाि लगािा है। कोई उत्तर न दमलने पर वो

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ramaeSvara

रदजस्टर देख सीधे रूम नबं र 308 में पहुचूँ िा है। रूम का दरवाजा खोलिे ही वो
स्वरा को बेहोशी की हालि में दनवषस्त्र देखिा है। जल्दी से वह बेडशीट खींच
स्वरा के ऊपर डालिा है व भागकर होटल के मादलक राजेश को कॉल कर
सारी दास्िां सनु ािा है।

थोड़ी ही देर में राजेश और उनके साथ डॉक्टसष व अदनरुद्ध के थाना पररसर में
आने की वजह से उसके साथ मदहला पदु लसकमी भी पहुचूँ िे हैं। मदहला
कांस्टेबल अंदर कमरे में दादखल होिी है। मीदडया को भी अब िक खबर लग
चकु ी होिी है। ब्रेदकंग न्यिू में यह खबर चलने लगिी है। श्रदु ि फोन में यह खबर
देख फौरन अदनरुद्ध को कॉल करिी है।

श्रदु ि – आप कहाूँ हैं अभी और न्यिू में ये सब क्या चल रहा.?

अदनरुद्ध – श्रदु ि, संभालो अपने आपको। मैं िुम्हें बाद में कॉल करिा हूँ और
माूँ का ख्याल रखना।

स्वरा के घर में दफर वही दससदकयाूँ सनु ाई दे रहीं थी जो धनंजय के न होने पर


सनु ाई दे रही थीं। श्रदु ि को कुछ समझ में नहीं आ रहा था दक वह क्या करे ।

इधर काननू ी प्रदिया के मिु ादबक स्वरा को फौरन हॉदस्पटल भेजा


जािा है। डॉक्टरों ने यह पदु ष्ट की दक स्वरा जीदवि है। श्रदु ि व उसकी माूँ
अदनरुद्ध के कहे मिु ादबक अपने वकील देवव्रि के साथ थाने पहुचूँ िी हैं।
बलात्कार जैसी संगीन धाराओ ं में मकु दमा दिष होिा है।

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वे ददक दिवे दी

दददववजय ने इधर खेल पलट ददया था। मीदडया कॉन्फ्रेंस बुलाकर उसने यह
अपना पक्ष रखा।

दददववजय – देदखए, मेरा बेटा यह चनु ाव बड़े अंिराल से जीि रहा है। सत्तारूढ़
पाटी अपने विषमान मत्रं ी को बचाने के दलए हमारे दखलाफ ये सादजश रच रही
है। ऐसे ही धनंजय दसंह हत्याकांड में मझु े बदनाम करने का परू ा जाल दबछाया
गया था और यह भी सत्ता पक्ष के लोगों की सादजश है व जानबूझकर वररष्ठ
पत्रकार धनजं य दसहं जी की बेटी को दनशाना बनाया गया है। यह हमारे
अल्पसंख्यक व बहुजन समाज के नेित्ृ व को कमजोर करने व उन्हें भ्रदमि करने
की एक सादजश रची गई है। जनिा कल अपने एक – एक वोट से अपने यवु ा
नेिा अदभसार पादटल को दवजयी बनाने व सजं य पादटल जैसे भ्रष्ट लोगों को
सत्ता के बाहर का रास्िा ददखाने का काम करे गी।

इधर संजय पादटल ने भी मीदडया को बल


ु ा अपना बयान जारी दकया।
सजं य पादटल – एक व्यापारी नहीं बदल्क बलात्कारी के दपिा िारा पत्रु मोह में
दलप्त होने के कारर् एक बेटी की आवाज को दबाने की कोदशश की जा रही है।
परू ी घटना को चनु ावी व जािीय रंग देने का काम उनके िारा दकया जा रहा है।
बाि रही धनंजय दसंह हत्याकांड की, िो कोटष में मामला लंदबि है और पदु लस
िारा मामले की छान बीन की जा रही है। जल्द ही दधू का दधू और पानी का
पानी हो जाएगा।

इधर ित्काल ऊपर से आदेश लेकर अदनरुद्ध िारा अदभसार व उसके


सादथयों को दगरफ्िार कर दलया जािा है। पदु लस मामले में जाूँच होने की बाि
कह लोगों से शांदि बनाए रखने की अपील करिी है।

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ramaeSvara

सबु ह िक अखबार के पहले पेज पर यह हेडलाइन छाप लोगों के


सामने परोस ददया जािा है दक “पटेल समाज के नेित्ृ व को कमजोर करने की
कोदशश या दफर कुछ और..?” बलात्कार की घटना को जािीय मोड़ ददया जा
चक
ु ा था दजससे यह पिा लग रहा था दक पत्रकार की कलम दबक चक ु ी है।
सबु ह परू े शहर में इस घटना को लेकर बािें चल रही थी। दकसी ने
कहा बरु ा हुआ िो कोई कहिा है दक लड़दकयों से नौकरी कराने पर यही सब
देखने को दमलेगा। दकसी का जवाब था दक जवान बेटी को घर में दबठाने की
जगह नौकरी पर भेज उसके रूप का प्रदशषन करा रहीं। जब धनजं य के कोई बेटा
नहीं िो घर को बेच दोनों बेदटयों की शादी क्यों नहीं करवा दी उसकी माूँ ने?
एक और व्यदक्त यह कहिा है दक िरूर संजय पादटल के साथ दमलकर खेल
रचा है परू े पररवार ने और दसू री बेटी िो उस पदु लस वाले के साथ घमू िी दफर
रही है।

ऐसी बहुि सारी बािें िकष – दविकष का दहस्सा थीं। समाज की सोच
को एक अखबार की हेडलाइन िारा दकस प्रकार मोड़ा गया है आप संभविः
समझ सकिे हैं। लोकित्रं का चौथा स्िभं दकस दस्िदथ में है यह अदं ाजा लगा
लें। शेर् समाज की सोच का अंदाजा इसी बाि से लगा लें दक आज भी मिदान
प्रदिशि 50% से ज्यादा बड़ी मदु श्कल से हो पािा है। यही हैं अपने लोकिंत्र के
दजम्मेदार नागररक। मिदान की प्रदिया परू ी होिी है।

इधर श्रदु ि स्वरा के फोन से राम का नबं र दनकाल बार – बार कॉल
करिी है और अदनरुद्ध भी राघव का नबं र ट्राई करिा है। राम के नंबर पर परू ी

-110-
वे ददक दिवे दी

घटं ी बजिी है लेदकन कॉल नहीं उठिा है और राघव का नबं र बंद आिा है।
भैरव अब िक दददववजय पर अपना जादू चलाने में कामयाब हो चकु ा था।
भैरव – पादटल साहब एक वकील को मैं जानिा हूँ जो हर कीमि पर अदभसार
बाबू को बचा सकिा है।

दददववजय – ठीक है दफर। िमु और चंदर ये काम संभालो और पैसे की परवाह


दबल्कुल मि करना। अभी चनु ाव पररर्ाम आने िक न ही जमानि दमल पाएगी
और न ही कोई सनु वाई हो पायेगी। िब िक सभी दस्िावेज िैयार कर लो िमु
दोनों। दकसी भी प्रकार की लापरवाही मैं बदाषश्ि नहीं करने वाला।

भैरव – बेदफि रदहए पादटल साब। ये बनारस के भैरव का के स है अब। परू ी


िाकि लगा देंगे हम।

अदनरुद्ध भैरव को कॉल करिा है। भैरव बाहर आकर फोन उठािा है।

अदनरुद्ध – भैरव, राघव का फोन नहीं उठ रहा। कोई जानकारी है िुम्हें दक वो


कहाूँ है?

भैरव – नहीं साब, हमको का पिा। आपके पक्के दमत्र हैं, हम िो आप से ये


पछ
ू ने वाले थे।
कॉल कट हो जािा है। अदनरुद्ध, श्रदु ि व उसकी माूँ के साथ देवव्रि
हॉदस्पटल पहुचूँ िे हैं। डॉक्टर से बाि करने पर यह मालमू हुआ दक स्वरा खिरे
से बाहर है लेदकन इस सदमे को बदाषश्ि न कर पाने के कारर् वह आदं शक रूप

-111-
ramaeSvara

से कोमा में जा चक
ु ी है। वह ठीक िो होगी मगर कब िक, इसके बारे में कुछ
नहीं कहा जा सकिा है।

उमा व श्रदु ि बाहर से ही स्वरा को देखकर रोने लगिे हैं। देवव्रि उन्हें
समझाने की कोदशश करिा है। श्रदु ि को लेकर अदनरुद्ध एकांि में आिा है।
उसके हाथों में हाथ रख अदनरुद्ध समझाने की कोदशश करिा है।

अदनरुद्ध – िुम्हारी कोई बाि हुई थी स्वरा से? उसने कभी कुछ बिाया था
िुम्हें?

श्रदु ि – ऐसी कोई बाि नहीं बिाई थी दीदी ने मझु े। एक बाि बिाना चाहगूँ ी दक
राम नाम के दकसी लड़के से दीदी की बाि होिी थी। उन्होंने बिाया था दक वो
उससे प्रेम करिी हैं।

अदनरुद्ध यह सनु कर स्िब्ध होिा है। वह श्रदु ि से वो नंबर लेकर कॉल


करिा है। कॉल न उठने पर वह नबं र को जाूँच के दलए भेजिा है दजससे यह
जानकारी हो सके दक राम कौन है। अदनरुद्ध कुछ िरूरी काम से थाने दनकलिा
है।

-112-
9.

आज का ददन अत्यिं महत्वपर्ू ष था। देश के सबसे बड़े लोकिादं त्रक


पवष के लोकसभा चनु ाव का पररर्ाम आज आने वाला था। श्रदु ि को राम की
िलाश थी। अदनरुद्ध को स्वरा को न्याय ददलाने के दलए प्रमार् की िरूरि थी।
भैरव को दददववजय से अच्छी कमाई करने के दलए एक अच्छे वकील यानी
राघव की िलाश थी। दददववजय को िलाश थी ऐसे लोगों का दजनसे वो स्वरा
व धनंजय दसंह के स से जड़ु े हर व्यदक्त की जीवन लीला को समाप्त करवा सके ।
सब एक दसू रे से बरु ी िरह जड़ु े हुए थे।

सबकी नजर चनु ाव के निीजों पर थी। सबु ह 10 बजिे ही आूँकड़े


आने शरू
ु हो जािे हैं। लोकिादं त्रक समाज दल दोपहर िक अन्य पादटषयों को
बराबर की टक्कर देिी है। शाम िक यह पाटी अन्य सभी राजनीदिक पादटषयों

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ramaeSvara

को पीछे छोड़िे हुए पर्ू ष बहुमि हादसल कर लेिी है। अदभसार भी चनु ाव जीि
जािा है व संजय पादटल की चनु ाव में बरु ी िरह हार होिी है।

उत्सव िो मनाना ही चादहए क्योंदक अपने लोकिंत्र में एक


बलात्कारी को लोग अपना नेिा चनु संसद में भेजने का कायष करिे हैं। दसफष
यही नहीं बदल्क िमाम दागी छदव के लोग चनु ावों में लोगों िारा नेिा चनु े जाने
के उपरांि सफे द पोशाक पहन कर लोकित्रं के मंददर में दनज दहि व िमाम
अनगषल कृ त्य करिे नजर आिे हैं। इनके नीचे काम करने वाले लोग बकायदा
प्रदिया से चनु कर आए हुए होिे हैं व सभी कायों की देख रे ख भी वही करिे
हैं।

इस बाि का दावा कर सकिा हूँ दक ऐसे बहुि से जादहल भी इस


लोकिंत्र के मंददर में देविा बने बैठे हैं जो ऑन कै मरा लोकिंत्र भी नहीं दलख
सकिे। खैर क्या कर सकिे हैं हम क्योंदक “ये पदब्लक है सब जानिी है।’’

चनु ाव जीिने के बाद अदभसार को जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट दमलने


लगा। अदनरुद्ध के हाथ भी अब बंध चक ु े थे क्योंदक सत्ता का हस्िांिरर् हो
चक
ु ा था। पनु ः स्वरा के पररवार की उम्मीदें टूटने लगीं थी। लग रहा था मानो
सत्य और न्याय के दलए अब कोई जगह शेर् नहीं रही है।

श्रदु ि अब भी राम की िलाश में थी। श्रदु ि का गस्ु सा भी जायज था।


ऐसा कौन प्रेमी हो सकिा है जो इिने बड़े हादसे के बाद एक बार भी अपनी
प्रेदमका का हाल जानने भी ना आया हो। श्रदु ि का अब प्रेम को लेकर नजररया

-114-
वे ददक दिवे दी

बदलने लगा था। अदनरुद्ध से मामले को ठंडा पड़िा देख श्रदु ि की लड़ाई हो
जािी है। अदनरुद्ध श्रदु ि को समझाने की कोदशश करिा है।

अदनरुद्ध – श्रदु ि बाि को समझने की कोदशश करो। हम अपनी लड़ाई लड़ रहे


हैं। हमें न्याय िरूर दमलेगा। लोग हमारी लड़ाई में हमारा साथ देंग।े

श्रदु ि (रोिे हुए िेज आवाज में) – अरे कौन से न्याय और कौन से लोगों की
बाि कर रहे हो। इस शहर में न्याय और सच भला दकसे दप्रय है। कहाूँ चले गए
थे ये न्याय और सच को मानने वाले लोग जब मेरे बाप को गोदलयों से भनू
ददया गया था? कै से अपना कह दूँू इस समाज को दजसने मेरी ही बहन के साथ
रे प करने वाले को अपना नेिा चनु दलया? अरे ये सब भी रोएगं े दजस ददन इनके
घर की इज्जि सड़क पर नीलाम होगी।

यह कहकर वो रोने लगिी है। उसकी माूँ व देवव्रि उसे संभालिे हैं।
अदनरुद्ध की भी आूँख भर आिी है। भला वो कै से कहे दक दसफष वदी उसके
पास है और सारा पावर िो लोकित्रं के देविाओ ं यानी नेिाओ ं के पास है।

इन सारी घटनाओ ं से अजं ान उधर राघव अपने गाूँव में घर के एक


कोने में पड़ा होिा है। भैरव ने राघव को खोज दनकाला। घर पहुचूँ उसने बेल
बजाया। राघव दरवाजा खोलिा है।

राघव – भैरव िमु ?

भैरव – हाूँ भैया, आपको खोजिे-खोजिे यहाूँ िक पहुचूँ ही गया।

राघव – कहो, कै से आना हुआ..?

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ramaeSvara

भैरव – एक के स था भैया। बड़ी पाटी है और िगड़ा के स भी अगर आप के स


जीिे िो परू े हाईकोटष में आपसे बड़ा वकील कोई न कहलाएगा।

राघव – 20 लाख में सेट कराओ मामला दफर..!

भैरव – ये लीदजए चेक (ब्लैंक चेक में 20 लाख भरिे हुए)

राघव – फाइल यहीं पर छोड़ दो मैं देख लूँगू ा।

भैरव – भैया एक बार सनु िो लीदजए। मामला बलात्कार का है और बलात्कार


करने वाले को बचाने के पैसे दमल रहे आपको और..!

राघव – अरे ठीक है भाई, मझु े बस पैसे से मिलब है अब क्योंदक नेकी का फल


अब चख चक ु ा मैं। सारे उसल
ू की पदु ड़या बनाकर पैसे उसलनू े का काम अब
जारी। पररवार िो नहीं रहा कम से कम पैसे िो रहेंगे मेरे पास।

भैरव – ठीक है, दफर इस कॉन्ट्रैक्ट पेपर पर साइन कर दीदजए। आप दकसी भी


कीमि पर के स से वापस नहीं हो सकिे।

राघव दबना कुछ देखे और पढ़े ही करारनामे पर हस्िाक्षर कर देिा


है। भैरव यह सब देख कर हैरान था। वह वहाूँ से दनकलिा है। बाद में गाूँव के
एक व्यदक्त ने उसे सारा वृत्तािं बिाया। भैरव िब समझ पाया दक पहले और
अब के राघव में इिना पररविषन कै से।

-116-
वे ददक दिवे दी

दफलहाल वो ददन आिा है और अदभसार, अब्दल ु व अदभनव की


पेशी बनारस के दजला न्यायालय में होिी है। स्वरा के वकील के िौर पर अपना
पेपर बेंच को देवव्रि ने ददया।

जज – दसू रे पक्ष का वकील कौन है..?

िभी भैरव के साथ कोटष में राघव की एंट्री होिी है। राघव के दबखरे बाल व
बढ़ी दाढ़ी उसे सच में खलनायक के रूप में सश ु ोदभि कर रहे थे। सबकी निरें
राघव पर दटकी थीं। स्वरा के पररवार व अदनरुद्ध सदहि बहुि से पत्रकार वहाूँ
मौजदू थे। दददववजय पादटल ने पहले ही सारे सबूिों को दमटा ददया था।
मेदडकल से लेकर गवाह िक का इिं जाम उसने भली भाूँदि कर रखा था।
अदनरुद्ध, राघव को इस िरह देख हैरान था।

राघव ने अपना पेपर बेंच को सदब्मट दकया। जज ने आगे की कायषवाही शरू



की।

जज – कोटष की कायषवाही शरू


ु की जाए। पहले पीदड़िा पक्ष अपनी बाि रखे।
देवव्रि (आगे बढ़कर) – माय लॉडष! अदभसार ने मेरी क्लाइटं स्वरा का बड़े ही
बेरहमी से रेप दकया है व अदभनव और अब्दल ु ने इसमें अदभसार का परू ा साथ
ददया है। अिः इन्हें दोर्ी मानिे हुए कड़ी से कड़ी सजा सनु ाई जाए।

राघव – आराम से वकील साब। इिनी भी जल्दी क्या है? आपने कहा और हम
मान लें दक अदभसार पादटल ही दोर्ी हैं? वैसे भी जनिा ने भारी बहुमि दे
आपके सारे आरोप को पहले ही धलु ददया है। कहा भी गया है दक सबसे बड़ी

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ramaeSvara

अदालि जनिा की होिी है। िो जनिा की अदालि में अदभसार बेगनु ाह


सादबि हो ही गए हैं और यहाूँ भी हो जाएगं े।

जज – आप दोनों कोटष का समय ना जाया करिे हुए सबिू व गवाह पेश करें ।

देवव्रि – सर मैं के स को देख रहे इस्ं पेक्टर अदनरुद्ध दसहं को कटघरे में बल
ु ाने
की इजाजि चाहिा ह।ूँ

जज – इजाजि है..!

अदनरुद्ध कटघरे में आ कर खड़ा होिा है। गीिा की शपथ उसे ददलाई जािी है।

देवव्रि – अदनरुद्ध जी आप जज साहब को सारा वृत्तािं बिाए।ं

अदनरुद्ध – महोदय उस राि यानी मिदान के ददन के ठीक पहले अदभसार ही


अपने दोस्िों के साथ होटल में आया था। यह मझु े वॉचमैन ने बिाया था। सबसे
पहले कमरे में वॉचमैन ही गया था।

राघव – मिलब जज साहब इन्हें कुछ नहीं पिा। सब सच दसफष वो वॉचमैन ही


बिा सकिा है। मैं चाहगूँ ा दक उसे गवाह के रूप में पेश दकया जाए।

जज – वॉचमैन को पेश दकया जाए..।

अदनरुद्ध – सर उस राि से ही उसका कुछ पिा नहीं चल रहा है। मैंने ढूंढ़ने की
बहुि कोदशश की और उसका नबं र भी बदं आ रहा है। हम जल्द ही उसे खोज
दनकालेंगे। हमें थोड़ा और वक्त चादहए।

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वे ददक दिवे दी

जज – कोटष पदु लस को सबूिों और गवाहों को लाने के दलए 10 ददन का वक्त


देिी है।

अगली सनु वाई िब िक स्थदगि रहिी है और जमानि भी आज दमल नहीं


पािी है।

सभी के जाने के बाद दददववजय अपने लोगों के साथ बाहर आिा है। राघव
को रास्िे में रोक।

दददववजय – धन्यवाद आपको यह के स देखने के दलए। जड़ु के रदहए हमसे


दजंदगी बदल जाएगी आपकी।

राघव – दजदं गी हम िमु से कमाए पैसों से बदल लेंगे। मैं जो कर रहा ये मेरे
किषव्य मात्र है। शि
ु मनाओ कोट पहनने के बाद िुम जैसे अपरादधयों का
कालाधन हम स्वीकार कर ले रहे।

दददववजय आगे बढ़ जािा है। सामने से अदनरुद्ध श्रदु ि व उमा को गाड़ी िक


छोड़िा है। पदु लस अन्य िीनों अपरादधयों को वैन में दबठा थाने ले जािी है।

राघव, भैरव के साथ उसके घर आिा है। शाम के बाद राि आिी है। श्रदु ि
अपनी माूँ को घर छोड़ खदु बहन के पास रुकिी है। वह अभी भी उस उम्मीद में
थी दक शायद राम आए क्योंदक उसने उस नंबर पर मैसेज ड्रॉप दकया था।

वह जानना चाहिी थी दक आदखर कौन है वो इसं ान दजससे उसकी


बहन प्यार के दावे करिी थी और जो अब िक उसका हाल पछ ू ने भी न आया।
श्रदु ि डर रही थी दक कहीं राम नाम का व्यदक्त अदभसार िो नहीं। कोई भी प्रेमी

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ramaeSvara

दकिना भी नाराज क्यों न हो मगर ऐसी हालि में सामने िरूर आिा। कहीं ऐसा
न हो की अदभसार ही राम है और दी ने ये सोचा दक होटल में आज कोई नहीं,
लाओ उसे दमलने को बुला लें। अगर ये बाि है िो कोई अपनी प्रेदमका के साथ
ऐसा क्यों करे गा? हो सकिा है दक अदभसार यानी राम को फूँ साने के दलए कहीं
दकसी और ने ये दकया हो..!

दीदी ने बिाया था दक कॉलेज के ददनों में राघव और उनके बीच


दोस्िी के नािे ही सही मगर एक ररश्िा था। कहीं इन सबके पीछे खदु राघव िो
नहीं है जो ये जानकर दक दीदी राम यानी अदभसार से प्रेम करिी हैं बदला ले
रहा हो?

वह िरु ं ि कॉल कर ये सारी बािें अदनरुद्ध को भी बिािी है। अदनरुद्ध िुरंि


भैरव के घर पहुचूँ िा है।

अदनरुद्ध – कहीं इन सबके के पीछे िेरा हाथ िो नहीं? बिा क्या खेल चल रहा
है ददमाग में िेरे।

राघव – खेल िो िेरे और श्रदु ि के बीच चल रहा है जो आज परू ा बनारस


जानिा है। एक पदु लस वाले के नािे अपना काम कर, मझु े मेरा काम करने दे। ये
दववाद नहीं चाहिा हूँ मैं।

अदनरुद्ध – एक बाद याद रखना दक आज से िेरे और मेरे बीच कोई ररश्िा नहीं।
मझु े दघन आिी है दक कभी हम भी एक दसू रे के दलए जीिे और मरिे थे। अगर
इन सबके पीछे िू ही है ये सादबि हो गया िो िझु े मझु से कोई नहीं बचा पाएगा।

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वे ददक दिवे दी

राघव – खोखली धमदकयों से डर जाए उनमें से नहीं हूँ मैं। मझु े मि दसखा ये
प्यार और सच्चाई की बाि। उस ददन क्यों चपु था जब स्वरा मझु े छोड़ कर गई
थी? बहुि कुछ बिाया होगा श्रदु ि ने िझु े जो ये आरोप लगाया है मझु पर। अब
मझु े भी यकीन नहीं हो रहा दक िू मेरा दोस्ि था कभी..!

काफी राि भी हो गई थी। भैरव भी आ चक


ु ा था अब। अदनरुद्ध वहाूँ
से चला जािा है। राघव भैरव से उसकी मोटरसाइदकल ले कर अस्पिाल जािा
है जहाूँ स्वरा एडदमट थी। अपनी िाकि व सझू -बझू का इस्िेमाल कर राघव
चपु के से स्वरा के पास िक पहुचूँ जािा है।

अपने प्रेम को इस हाल में देख राघव से एक शब्द भी नहीं कहा जा


रहा था। उसकी आूँखो से बस आूँसओ ु ं की बरसाि हो रही थी। प्रेम में पत्थर भी
ददल बनकर धड़कने लग जािा है। दफलहाल वह िो एक इसं ान के साथ – साथ
प्रेमी भी था। इससे पहले उसे वहाूँ कोई देखे वह दनकल जािा है।

जीवन में ऐसा मोड़ आएगा शायद ही कोई सोच सकिा है। हूँसिे –
खेलिे सारे ररश्िे दबगड़ने लगे थे। मािम का माहौल हर दकरदार पर छाने लगा
था। अदनरुद्ध सदहि श्रदु ि का परू ा पररवार मन्निे माूँग रहा था दक स्वरा को होश
आ जाए।

दजस चीज की हमें दकसी मदु श्कल में सबसे ज्यादा िरूरि हो वही हमें नहीं
दमलिी है। श्रदु ि को राम नहीं दमल रहा। अदनरुद्ध को राघव का साथ नहीं दमल
रहा और इधर जनिा के लोकदप्रय सांसद अदभसार पादटल को जमानि नहीं
दमल रही।

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ramaeSvara

थाने पर स्वरा और अदभसार के के स से जड़ु ा एक दस्िावेज कोटष की


िरि से आया हुआ था दजसे अदनरुद्ध पढ़िा है। दददववजय ने अपनी िाकि का
एहसास जज साहब को करवा ददया था। एक बंद दलफाफे में पैगाम व पैसों से
भरा बैग उनके घर िक पहुचूँ चकु ा था। अपनी जान व अपनों की परवाह हर
कोई करिा है। जज साहब भी अब संकट में थे।

10 ददन यूँू ही देखिे – देखिे दनकल गए। कोटष में अदभसार व उसके दोस्िों की
पेशी होिी है।

जज – कोटष में इस के स से जड़ु े सबूि व गवाह पेश दकए जाएूँ।

अदनरुद्ध कटघटरे में आिा है।

अदनरुद्ध – जज साब के स से जड़ु े सारे सबूिों व गवाहों को अदभसार के दपिा


यानी दददववजय पादटल के िारा पैसों से दमटा व चपु करा ददया गया है।

राघव – ऑब्जेक्शन माई लॉडष, इस्ं पेक्टर साब िो दसिष आरोप लगाना ही
जानिे हैं। ऐसी ही फुिी अगर ये अपनी ड्यटू ी में ददखािे िो कुछ न कुछ िरूर
हाथ लगिा। हाथ िो िब कुछ लगिा जज साब जब अदभसार दोर्ी होिा। कोटष
को ये भी बिाना चाहगूँ ा दक कॉलेज के ददनों से ही जान पहचान है स्वरा व
इस्ं पेक्टर साब की। काफी कुछ जानकारी है इन्हें उस बेचारी के बारे में। जज
साब सनु ा है स्वरा की छोटी बहन यानी श्रदु ि दसंह से इनका प्रेम भी प्रगदि पर
है। दोनों का सरनेम यानी जादि समान है। अिः लोग यह कह रहे दक अच्छा है
दोनों एक दसू रे को पहले से ही जान रहे। िो क्या दफर सारा सच जानिे हुए
अपनी प्रेदमका के कहने पर उसके दपिा की हत्या का बदला लेने के दलए एक

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वे ददक दिवे दी

लोकदप्रय जननेिा व यवु ा सांसद को बदनाम करने के दलए मत्रं ी सजं य पादटल
के साथ दमलकर ये गंदा खेल खेला गया है? इस खेल में दकिने पैसों पर अपना
ईमान दाूँव पर दकसने लगाया ये बिाया जाएगा?

देवव्रि – ऑब्जेक्शन माई लॉडष..!

जज – ऑब्जेक्शन ओवररूल्ड। अब िक ठोस सबूि व गवाह न दमल पाने के


कारर् अदभसार, अदभनव व अब्दल ु पर कोई आरोप दसद्ध नहीं हो पाया है।
कोटष इन िीनों की जमानि मंजरू करिी है। अदनरुद्ध दसंह को अब इस के स से
हटाया जािा है। अपर पदु लस आदधकारी इस के स के दलए दकसी और को
दनयक्त
ु करें व मामले की दनष्पक्ष जाूँच कराएं। अगली िारीख िक के स को
स्थदगि दकया जािा है।

स्वरा की माूँ और श्रदु ि यह सनु ने के बाद परू ी िरह टूट चक


ु े थे।
दददववजय ने राघव की पीठ थपथपायी और आगे बढ़ गए। कोटष के बाहर भारी
सख्ं या में लोग अपने सासं द को जेल से ररहा होने की व जीि की बधाई दे रहे
थे। कुछ इस प्रकार का माहौल था।

राम कौन है? यह सवाल बना रह गया। अपने समथषकों के साथ


दददववजय व अदभसार बगं ले की िरफ दनकल जािे हैं। राघव और भैरव भी
साथ घर आिे हैं। धीरे – धीरे ददन ढला और राि हुई। सच को मायसू ी ने घेर
रखा था। डॉक्टर का कॉल आिा है दक स्वरा की हालि में कुछ सधु ार आया है।

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ramaeSvara

अदनरुद्ध, उमा व श्रदु ि िीनों जल्दी से अस्पिाल के दलए दनकलने को िैयार


होिे हैं िभी अदनरुद्ध को अंजान नंबर से कॉल आिा है। वह उन दोनों को
वकील देवव्रि के साथ आने के दलए बोलिा है।

इधर अदभनव और अब्दल ु ने स्वरा को होश आने की बाि अदभसार को


बिाई। उन दोनों ने बिाया दक देवव्रि को उन्होंने पैसे देकर खरीद दलया है।

अदभसार – आगे क्या योजना है?

अब्दल
ु – गाड़ी में पेट्रोल रखवा ददया ह।ूँ वकील उन दोनों को लेकर शहर के
बाहर चल रहे दब्रज कंस्ट्रक्शन के पास आ रहा है। उधर ज्यादािर कोई नहीं
आिा जािा।

अदभसार – चलो आज इस खेल को यहीं खत्म करिे हैं। आज शदनवार के ददन


धनंजय की छोटी बेटी की बारी है।

दबना दकसी को कुछ बिाए अदभसार, अदभनव व अब्दल


ु पाटी से
दनकलकर उसी स्थान पर पहुचूँ जािे हैं।

अदभसार – कुछ रखे हो कमीनों..?

अदभनव – भैया जी परू ा इिं जाम है। हम दोनों को पिा है आज शदनवार है


इसदलए परू ा खेल सेट करने दनकल ददए थे।

अब्दल
ु और अदभनव ने अदभसार का वीदडयो बना रखा था। वह दजिनी बार
दजन – दजन लड़दकयों के साथ सोया था, उन सब की सीडी को उन दोनों ने

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वे ददक दिवे दी

भैरव को बेच ददया था। वकील देवव्रि की बेटी व भैरव की बहन भी वीदडयो में
थी। यह दोनों भी इस बाि से अंजान थे दक भैरव की कोई बहन भी है। भैरव ने
वीदडयो देखने के बाद अब्दल
ु व अदभनव को कहा दक दददववजय उन दोनों के
इनकाउंटर का जाल दबछा रहा। पदु लस की मदद से स्वरा के रे प का इल्जाम िुम
दोनों पर लगाकर यह के स बंद दकया जाना है। िुम दोनों की भलाई इसी में है
दक अदभसार को लेकर इस जगह पर पहुचूँ ो।

अदभसार को अब्दल
ु व अदभनव ने वही बिाया था जो उनसे भैरव ने कहा था।
अदभनव बीयर गाड़ी के बोनट पर रखिा है और जेब से पाउडर दनकाल कश
िैयार करिा है। अदभसार पहला कश खींचिा है िभी देवव्रि उन दोनों को
लेकर पहुचूँ िे हैं।

अदभसार – आओ वकील साहब…।

श्रदु ि – अंकल ये आप…!

वह गाड़ी में रखा अपना फोन लेने के दलए भागिी है िभी अब्दल
ु आगे बढ़कर
उसे पकड़ लेिा है।

अदभसार – चाची शरू


ु से िुम्हारा डायलॉग सनु िे आ रहा हूँ मैं। आज कुछ नहीं
बोलोगी।

उमा (रोिे हुए) – छोड़ दो मेरी बेटी को। मैं िुम्हारे आगे हाथ जोड़िी ह।ूँ अपनी
दोनों बेदटयों को लेकर मैं इस शहर से दरू चली जाऊूँ गी।

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ramaeSvara

अदभसार – आप कष्ट न करो चाची। इस शहर से मैं ही आपको बहुि दरू भेज
देिा ह।ूँ

अब्दल
ु व अदभनव दोनों माूँ-बेटी को पास में दबजली के पोल पर बाूँध देिे हैं।
अदभसार गाड़ी से पेट्रोल दनकाल दोनों के ऊपर फें किा हैं। खदु को
छुड़ाने की लाख कोदशश दोनों कर रही होिी हैं। उनके रोने -चीखने का इनपर
कोई असर नहीं पड़ रहा था।

िीनों गाड़ी के पास आकर बीयर पीिे हैं। अदभनव दसगरेट दनकाल
अदभसार को देिा है। अदभसार दसगरे ट दनकाल कर महूँु में दबा लाइटर जलािा
है। दसगरे ट जलने के बाद जैसे ही वो लाइटर उमा व श्रदु ि की िरफ फें कने वाला
होिा है, एक भारी बोल्डर उनके ऊपर दगरिा है। इससे पहले कोई कुछ समझ
पािा गाड़ी समेि िीनों उस दवशाल दब्रज के पत्थर के नीचे दम िोड़ चक ु े होिे
हैं।

भैरव दसू री िरफ से बाहर दनकल कर आिा है। भैरव व देवव्रि श्रदु ि व उमा की
रस्सी खोलिे हैं।

श्रदु ि – अंकल ये क्या हो रहा यहाूँ? और इस इसं ान को िो मैंने उस कमीने


वकील राघव के साथ देखा था।

भैरव (मस्ु कुराकर) – दीदी मैं उसी कमीने वकील का खास आदमी ह।ूँ आपको
दकसी राम की िलाश थी। आप अब कॉल लगाइए उस नंबर पर।

-126-
वे ददक दिवे दी

स्वरा जल्दी से गाड़ी के पास जाकर अपने फोन से राम का नबं र


डायल करिी है। ररंग बजिी है। श्रदु ि को दकसी के फोन के बजने की आवाि
भी सनु ाई देिी है। उसी साइट पर बनी अस्थाई दलफ्ट से राघव और अदभनव
ऊपर िे न से उिर नीचे आिे हैं। जैसे – जैसे दोनों इन लोगों के पास आिे हैं
फोन की आवाि और िेज हो जािी है। श्रदु ि लगािार कॉल दकए जा रही थी।
अचानक राघव और अदनरुद्ध दोनों को साथ इसी जगह देख हैरानी से पछ ू िी है।
श्रदु ि – ये राम के नबं र पर कॉल करने पर राघव के पास कॉल क्यों जा रहा? िमु
दोनों ऊपर क्या कर रहे थे?

दोनों एक दसू रे को देख मस्ु कुरािे हैं।

श्रदु ि – बिाओ मझु े दक क्या है ये सब?

अदनरुद्ध – इसका परू ा नाम कभी मझु े भी नहीं पिा था।

एक पेपर को श्रदु ि के हाथ में देकर।

अदनरुद्ध – अदभसार के वकील का नाम पढ़ो।

श्रदु ि जल्दी से फोन के फ्लैश लाइट से पेपर पढ़िी है।

श्रदु ि – राघव राम दीदक्षि…!

यह पढ़कर श्रदु ि की आूँखें भर आिी हैं और वह दौड़कर राघव के गले लग


जािी है।

-127-
ramaeSvara

श्रदु ि – मझु े माि कर दीदजए। मैंने आपको बरु ा भला कहा। दीदी ने मझु े राम के
बारे में बिाया था। उन्होंने मझु से कहा था दक आपकी और उनकी बाि उस ददन
आदखरी मल ु ाकाि के बाद नहीं हुई।
राघव (श्रदु ि के आूँसू पोंछिे हुए) – स्वरा ने लेदकन मझु े ये बिाया था दक बहुि
सारे सवाल करने वाली एक छोटी बहन भी है मेरी।

सभी हूँसने लगिे हैं।

देवव्रि – भाभी, भैरव ने मझु े सारा सच बिाया। ये िीनों दसफष स्वरा के ही नहीं
बदल्क शहर के बहुि सारे मासमू ों के गनु हगार थे दजनको बहला फुसला कर
इन्होंने शोर्र् दकया था। इनका यही अंि होना था। अब हमें यहाूँ से दनकलना
चादहए।

सभी लोग जल्दी से वहाूँ से दनकल अस्पिाल पहुचूँ िे हैं। स्वरा सब लोगों
को एक साथ देखिी है। श्रदु ि जल्दी से स्वरा के पास जाकर गले लग जािी है।

श्रदु ि – दीदी अब मैं जान चक


ु ी हूँ दक आपका राम कौन है।
देवव्रि – हाूँ बेटा, आज अगर िुम्हारा ये राम ना होिा िो शहर की बहुि सारी
िमु जैसी बेदटयों को भी न्याय नहीं दमल पािा। इस राम ने सच में राम होने का
सारा किषव्य दनभाया और अके ले दकिना कुछ सहिा रहा।

यह सब सनु स्वरा के आूँखों से आूँसू छलक आिा है। िरु ं ि राघव आगे बढ़कर
स्वरा के आूँसू पोंछिा है।

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वे ददक दिवे दी

राघव राम दीदक्षि – सभी जो कह रहे हैं वह सब कुछ भी नहीं। जो भी मैंने


दकया सब अपने प्यार की िाकि के सहारे दकया।

उमा अपने आूँखों में खश


ु ी के आूँसू को रोकने की कोदशश करिी है।
और आगे बढ़कर स्वरा का हाथ राघव के हाथ में रख सौंपिे हुए।

उमा – बेटा अब से राम और स्वरा को इस समाज से डरने की िरूरि नहीं है।


हर ररश्िे को एक ही पैमाने पर रख कर नहीं मापा जा सकिा है। मझु े दकसी की
परवाह नहीं है िुम दोनों हमेशा खश
ु रहो।
श्रदु ि भी अदनरुद्ध की ओर देखिी है। उमा ने आगे बढ़कर श्रदु ि का
हाथ अदनरुद्ध के हाथों में सौंप ददया। इधर दफर से धनंजय के पररवार में इिनी
सारी खदु शयाूँ एक साथ लौट आई थीं।

स्वरा भी अब ‘स्वरा राघव राम दीदक्षि’ थी।

सबु ह की ब्रेदकंग न्यिू होिी है दक शहर के बाहर एक हादसे में यवु ा


सासं द अदभसार पादटल की हुई मौि। बोल्डर दगरने से हुआ यह हादसा।

यह रही राम और स्वरा के प्रेम की कहानी ‘रामेश्वरा’।

राघव खदु एक वकील था और वह रोज अदालि में बलात्कार


आदद जैसे मामलों को देखिा था। एक ही के स को दनपटने में कई साल लगिे हैं
इसदलए अदभसार को उसके दकए की सजा राघव ने अपने अंदाज में दी। स्वरा
के साथ जो भी हुआ था उसकी परू ी खबर फौरन भैरव ने राघव िक पहुचूँ ायी
थी।

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ramaeSvara

राघव ने भैरव को यह बाि दकसी को न बिाने के दलए कहा था।


जानबूझकर अदभसार का के स खदु राघव ने अपने हाथ में दलया दजससे वो
के स से जड़ु ी हर गदिदवदध पर नजर रख सके और उस ददन थाने पर कोटष से
आए पेपर में राघव का परू ा नाम पढ़ अदनरुद्ध भी समझ चक
ु ा था दक राघव ही
राम है और वह जानबूझकर ये सब कर रहा दजससे लोगों का ध्यान उसकी
िरफ न जाए। बाहर से जड़ु ी अन्य खबर भैरव उस िक ले आिा था। यही थी
परू े घटना के पीछे की परू ी कहानी।

बलात्कार जैसी सगं ीन घटना पीदड़िा के पररवार को घटु -घटु कर


जीने के दलए बाध्य कर देिी है। ऐसे में पीदड़िा का पररजन या िो आत्महत्या
या दफर कानून को अपने हाथ में लेने के दलए मजबूर होिा है। सरकार को ऐसे
मामलों को लेकर एक दवशेर् प्रकार का कानून बनाना चादहए दजससे दफर
दकसी राघव को अपने प्रेम या दफर दकसी बाप को अपनी बेटी और दकसी भाई
को अपनी बहन के दलए काननू न िोड़ना पड़े।

“अदालि में वकीलों का यही पेशा है,


सवालों से ही हाल – ओ – चाल पूछेंगे। ”
- राघव राम दीदक्षि

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