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पा रकार

आन कुमार

ISBN : 9788170284901

थम सं रण : 2016 © राजपाल ए सज़

VALMIKI RAMAYAN (Sanskrit Epic) by Valmiki

राजपाल ए सज़
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1. रामायण की ावना
आदश पु ष कौन है ?; का की उ ि ; किव की साधना; रामायण का
चार।

2. बालका
अयो ा का वैभव; दशरथ का ऐ य; पु ेि -य ; राम-ज ; कुमारों की िश ा-
दी ा; िव ािम का आगमन; ताड़का-वध; िस ा म-या ा; िमिथला की या ा;
अह ो ार; धनुभग, राम-सीता का िववाह; राम-परशुराम िववाद।

3. अयो ाका
जनगणमन-अिधनायक राम; रामािभषेक का ाव; म रा की कुम णा; रं ग
म भंग; ऋिषपथ पर थान; अयो ा म हाहाकार; भरत की िच कूट-या ा;
राम का िच कूट से थान।

4. अर का
द कार म वेश; िवराध-वध; दि ण के आ मों का िनरी ण; राम-अग
िमलन; पंचवटी-वास; शूपणखा की दु गित; खर-दू षण-वध; मारीच की माया
और सीता-हरण; राम का पंचवटी से थान; कब -वध; राम-शबरी-िमलन ।

5. िक ाका
राम-हनुमान-िमलन; राम-सु ीव की िम ता; बािल-वध; राम का एका वास;
राम की चेतावनी; सीता की खोज।

6. सु रका
हनुमान का लंका-गमन; सीता-हनुमान-िमलन; अशोक-वािटका का िवनाश;
रावण-हनुमान-संवाद; लंका-दहन; हनुमान की दे श-या ा।
7. यु का
सै - याण; लंका म हल-चल; राम-िवभीषण की मै ी; सेतु-िनमाण; लंका पर
चढ़ाई; यु ार ; दू सरे िदन का यु ; तीसरे िदन का यु ; चौथे िदन का यु ;
पां चव िदन का यु ; छठे िदन का यु ; सातव िदन का यु ; आठव िदन का
यु ; नव-दसव िदन के यु ; ारहव-बारहव-तेरहव िदन के यु ; राम-रावण
का महायु ; रावण-वध; राम-सीता का पुनिमलन; राम का दे श-आगमन;
राम का रा ािभषेक; राम-रा ।

प रिश

8. उपसंहार (प रिश -1)


सीता-प र ाग; राम की लंका-या ा; िवभीषण का उ ार; ल ण का प र ाग;
महा याण।

9. भगवान वा ीिक (प रिश -2)

10. वा ीिक-रामायण की सू यां (प रिश -3)


धम स ; कमफल; सफल जीवन; सुख; उ ाह; शोक; ोध : अपना और
पराया; िम ता; राजधम; लोक-नीित; द -नीित, िविवध।
रामायण की ावना
(बालका से)

आदश पु ष कौन है ?–तप यों और व ाओं म े तथा वेद शा , इितहास,


पुराण आिद के अिधकारी िव ान दे विष नारद से एक बार महिष वा ीिक ने यह
िकया…भगवन्! सम संसार म ऐसा कौन है जो अनुपम, गुणवान्, वीयवान्,
धम ानी, कृत , स व ा तथा ढ़ ती हो? कौन ऐसा पु ष है जो ई ा- े ष आिद
से रिहत, शा ा ा, मन ी, तेज ी, िव ान्, स र , अितशय पवान् तथा
अ तम लोक-िहतैषी हो? ऐसा साम वान् कौन है िजसके रण म ु होने पर
दे वता भी भयभीत हो जाते हों? आप जैसे ब ुत और सवदश महामुिन के मुख से
िकसी आदश पु ष का वृता सुनने की मेरी बड़ी इ ा है ।
ानवृ नारद स होकर बोले–मुिनवर! संसार म सवगुण-स पु ष दु लभ
ह । जहां तक हम ात है । इ ाकु-वंशो , जगि ात राम ही एकमा ऐसे
ह, िजनम सभी गुण एकसाथ िमलते ह । ऐसे यश ी महापु ष के िवषय म
आप ब त कुछ जानते ही होंगे । िफर भी, म आपको उनकी कुछ िवशेषताएं बताता
ं , ान से सुिनएः
राम प से च के समान अिभराम, बल वीय स , महा तेज ी और सव
शुभ ल णयु ह । उनके अंग- ंग सम, सु ढ़, सुिवभ और सुिवकिसत ह ।
भाव से वे और भी सौ , सुसं ृ त तथा महान् ह ।
राम की कृित अ शा , सरल और सुकोमल है । वे बड़े ही स दय,
िवनयी, उदार, सहनशील और समदश तथा मावान् पु ष ह । उनके िचत म िकसी
के ित कोई दु भाव नहीं रहता । लोक-रं जन के िलए वे बड़े से बड़ा ाग करने की
उ त रहते ह ।
सव समथ स ाधारी होकर भी राम मादी, अहं कारी या े ाचारी नहीं ह । वे
अ तम मयादावान् ह, िकसी भी प र थित म लोकधम की मयादा का उ ंघन नहीं
करते, सदा स और ाय के माग पर ही चलते ह । आ संयम, इ य-िन ह,
सदाचार-पालन तथा धमस के अनुशीलन म उनकी समता करने वाला
लोक म कोई नहीं है ।
राम बड़े ािभमानी, ावल ी, ढ़िन यी तथा कमशूर ह । भयंकर
प र थितयों म भी वे कत -िवमुख नहीं होते और अपने पौ ष परा म से बलतम
वैरी को भी परा करने का उ ाह रखते ह । संसार म उनके जोड़ का धुर र वीर
और श ुह ा दू सरा नहीं है । वे महारिथयों के भी महारथी माने जाते ह । दे वता,
दानव, मनु सभी उनका लोहा मानते ह ।
िव ा-बु म भी राम की सवमा ता िनिववाद है । ये अ ितभाशाली,
मेधावी, दे श-काल- ानी, आचार-कोिवद तथा सवशा िवशारद ह ।
िजस ि से भी दे खा जाए, राम एक आदश नर-नेता, पूण पु ष ही तीत होते ह
। बल-परा म, धम-उ ाह, मन ता-तेज ता, िव ा-बु , शील-सौज , संयम-
सदाचार, ाग, उदारता और कमवीरता आिद म उनकी बराबरी करने वाला कौन
है ! सार प म यही समिझए िक वे ग ीरता म समु के समान, धैय म िहमाचल के
समान, परा म म िव ु के समान, मा म पृ ी के समान, जा-पालन म जापित
के समान तथा स -पालन म दू सरे धम के समान ह । अपनी ऐसी ही िवशेषताओं के
कारण राम आज जगत् म सवपू तथा सवि य ह । स नों के बीच म वे स रताओं
से सेिवत समु के समान लगते ह ।
ऐसे मिहमावान् पु ष के िविश गुणों का पूरा प रचय उनके जीवन-च र से ही
िमल सकता है । इसिलए हम आपको सं ेप म राम का इितहास सुनाते ह ।
इसके उपरा नारद मािमक ढं ग से सवगुणिनधान राम का गौरवपूण वृता
सुनाने लगे । महिष वा ीिक को वह दयहारी एवं लोकोपयोगी वाता ब त ही ि य
लगी । उ ोंने म -मु होकर एक-एक संग को ान से सुना और कथा के त -
त को भली भां ित दयंगम िकया । एक आदश जननायक, आदश पु , आदश
पित, आदश वीर और आदश महामानव की कीित-कथा सुनकर वे कृताथ हो गए ।
का की उ ि –महिष वा ीिक को राम के ज से लेकर उनके
रा ािभषेक तक का इितहास सुनाकर दे विष नारद वहां से चले गए । उसके बाद
वा ीिक अपने धान िश भार ाज को साथ लेकर गंगा के समीप तमसा नदी के
िकनार गए । तटवत वन का अित नयनािभराम था । महिष इधर-उधर घूमकर
कृित की मनोरम छटा दे खने लगे । वहां ौंच पि यों का एक सु र जोड़ा
आन पूवक िवहार कर रहा था । सहसा एक ाध ने उन ीड़ास जीवों पर बाण
चला िदया । नरप ी िधर बहाता आ िगर पड़ा और छटपटाकर मर गया ।
अनािथनी ोंची अपने िचरसंगी को िनहत दे खकर अ क ण र म िवलाप
करने लगी ।
एक सीधे-सादे ेमी जीव की ह ा और उसकी िवयोिगनी के क ण न से
महिष का कोमल दय िवत हो गया । उनके मुख से सहसा यह शोको ार िनकल
पड़ा–रे िनषाद! तुझे अन काल तक कहीं भी स ित न ा हो; ोंिक तूने इस
जोड़े म से एक काममोिहत जीव को (अकारण) मार डाला है :

मा िनषाद ित ां तवमगमः शा ती: समाः ।


य ौ िमथुनादे कमवधी:काममोिहतम् ॥

शोक की ती ता म मुिन के मुख से यह वा अपने-आप िनकल पड़ा था । बाद


म, इसके अथ पर िवचार करके वे पछताने लगे । साधु पु ष अपने ोिहयों के
अपराधों को भी मा कर दे ते ह; लेिकन वा ीिक ने िणक आवेश म उस ाध
को घोर शाप दे डाला । इसके िलए उनका प ा ाप करना ाभािवक ही था । वे
मन ही मन भां ित-भां ित के तक-िवतक करते ए अपने िश भार ाज से
बोले–“भार ाज ! तुमने मेरा दयो ार तो सुना ही होगा! वह साधारण वा नहीं है ।
वह तो चार पदों से यु , सम अ र-वाली, गीितलय-ब िवल ण रचना है । मेरा
शोकजिनत वा िन य ही ोक (का , छ , यश: प) होगा; अ था नहीं
होगा ।”
भार ाज ने गु के उस मनोहर वा को कंठ थ कर िलया । तदन र महिष
तमसा म ान करके आ म म आए । बहां उ ोंने अपने िश ों को सारा हाल
बताया । भावुक दय के िलए वह साधारण घटना नहीं थी । ौंच-वध और ौंच-
न का क णाजनक बार-बार उनकी आं खों के आगे आ जाता था और
अ :करण म वही वेदनाजिनत वा गूंजने लगता था । दे र तक मनो म न करते-
करते उ उ वा का एक दू सरा ही अथ सूझ गया । वह यह था–हे ीमान्
(राम), आप अन काल तक लोक म िति त रहगे, ोंिक आपने कुिटल,
कुचाली, नीच रा स-द ती म से एक का, जो महाकामी था, संहार िकया है ।
इस सू के साथ महामनीषी वा ीिक एक नई िवचारधारा म बह चले । उनकी
ह ी झंकृत हो उठी, दय की सरस वृि यां जाग गई । उ ऐसा तीत आ
मानो ौंच-वध एक महान् काय के िलए दै वी संकेत था और उनके कंठ से जो छ
तः ु िटत आ था, वह मनोरमा मुखवािसनी सर ती का स े श या किव-
दय का उ वास था । उनका अ उ राम का जीवन-का िलखने के िलए
े रत करने लगा ।
महिष वा ीिक राम-िवषयक लोक-कथाओं के अित र नारद के मुख से
उनका मब -जीवन-च रत सुन चुके थे । ोक का आिवभाव यं उ ीं के मुख
से आ था । उ ोंने दोनों का सु र सम य करके सुसं ृ त भाषा म एक
सव पयोगी, सरस, सजीव महाका ुत करने का ढ़ संक िकया । उनका
शोकज ोक संसार के सव थम और सव े महाका का बीज बन गया ।
किव की साधना–महिष वा ीिक ने बड़े मनोयोग से राम-िवषयक स ूण
मौ खक सािह का संकलन अ यन और िववेचन िकया । वे का म राम का
सु र से सु र, िक ु स ा और भावशाली िच उप थत करना चाहते थे ।
इसिलए उ ोंने ेक घटना के स म अ ी तरह छानबीन करके जो कुछ
स था, उसी को हण िकया ।
शुभ मु त म महिष वा ीिक शु भाव से पूव की ओर मुख करके पिव
कुशासन पर बैठे और ग ीरतापूवक मनन करने लगे । उस समय वे व िवषय म
ऐसे त य हो गए िक राम के जीवन की सारी घटनाएं उनकी आँ खों के आगे नाचने
लगीं । उ अतीत का उ ल िच और राम का लोको र च र िदखाई पड़ने
लगा । वा ीिक के दय का रस- ोत उमड़ पड़ा । वे रसम होकर का -रचना म
लग गए । उ ोंने मधुर और संयत भाषा तथा सरस-जीव -शैली म राम का, ज से
रा ारोहण तक का इितहास ऐसी उ मता से िलखा िक ाचीन िवषय भी नवीन
और सवसामियक तीत होने लगा । अथ-गा ीय और पदलािल से यु तथा
नवरसों से ओत ोत उस मनोहर, ऐितहािसक का को सह ों ोकों म िलखकर
महिष ने छ: कां डों म िवभािजत िकया । पहले उ ोंने उसका नाम पौल -वध
(रावण-वध) रखा था । बाद म वह रामायण नाम से िव ात आ । िजस समय वह
िलखा गया, राम अयो ा के राजिसंहासन पर िवराजमान थे । संसार के
आिदका की रचना रामरा ही म ई थी ।
रामायण का चार–भगवान वा ीिक रामायण की रचना करके ही स ु नहीं
ए । उ ोंने लोक-क ाण की भावना से रत होकर लोक-रं जक सािह की सृि
की थी । जनता म उसके चार की आव कता थी । महिष के िश ों म लव और
कुश उसके िलए सबसे अिधक उपयु थे । दोनों अ मेधावी तथा कुशल
गायक थे । उनकी िश ा भी समा हो चुकी थी । अत: महिष ने उ ीं को स ूण
रामायण महाका क थ करा िदया ।
तदननतर गु की आ ा से दोनों कुमार जन-समाज म घूम-घूमकर रामायण का
गान करने लगे । जहां कहीं भी कोई सावजिनक समारोह होता, दोनों प ं च जाते
और मधुर क म रामायण का पाठ करके ोताओं को आकिषत कर लेते थे । इस
कार जनसाधारण म वा ीिक की रचना का चार होने लगा ।
एक िदन लव-कुश अयो ा नगरी म गाते ए घूम रहे थे । उसी समय उनपर
राम की ि पड़ी । वे उ अपने महल म ले गए । वहां दोनों ने राज-सभा म मीठे
र से रामायण का गान िकया । कथा के माधुय, का के माधुय और कंठ के
माधुय ने िमलकर ोताओं को रसम कर िदया । वा ीिक की रचना इतनी सजीव
थी िक भूतकाल की सभी घटनाएं सबकी आं खों के आगे आ गईं । सब एक र से
'ध -ध ' कह उठे । यं राम भी का पर मु हो गए । उ ोंने लव-कुश के
मुख से उसे आ ोपा सुना ।
बालका

अयो ा का वैभव–पूवकाल म सरयू नदी के िकनारे कोसल नाम का एक धन-जन


स सुिवशाल रा था । अयो ा नामक िव -िव ात नगरी उस रा की
राजधानी थी । उसका िनमाण यं जापित मनु ने िकया था । वह बारह योजन1
ल ी और तीन योजन चौड़ी थी । उसके चारों ओर ऊंची दीवार और गहरी खाई थी
। दु ग की दीवारों पर य -त सैकड़ों शति याँ 2 रखी ई थीं । राजसेना के अगिणत
श धारी सैिनक और महारथी बाहर-भीतर से उसकी र ा म त र रहते थे ।
उसका अयो ा3 नाम वा व म साथक था ोंिक बाहरी श ु उसम कहीं से, िकसी
भी कार वेश नहीं कर सकता था ।
शोभा और समृ म अयो ापुरी इ की अमरावती से धा करती थी । उसम
अनेक श माग, गगन श भ भवन, रमणीक उ ान-सरोवर और ीड़ा-गृह
आिद बने थे । सारी पुरी सह ों मनु ों से भरी ई थी । उसम एक से बढ़कर एक
िकतने ही तप ी, िव ान्, शूरवीर, िश ी, कलाकार और वसायी िनवास करते थे
। स सुिशि त और धनी-मानी नाग रकों का वैभव दे खते ही बनता था । घर-घर म
राजल ी का वास था । हाट भां ित-भां ित की उ मो म व ुओं से भरे -पूरे थे ।
सड़कों पर िदन-भर चहल-पहल रहती थी । वािण - वसाय का वह ब त बड़ा
के था ।
अयो ा के नाग रक धनधा पूण गृहों म रहते थे, उ म भोजन करते थे और
सु र व -आभूषण पहनते थे । उनके पास दू ध-दही के िलए अ ी से अ ी गौएं
थीं । सब सदा -पु और दीघजीवी रहकर जीवन का पूरा आन भोगते थे ।
समय-समय पर वहां य महो व और भां ित-भां ित के आमोद- मोद होते रहते थे ।
जनता सब कार से सुखी और स ु थी ।
अयो ा अपनी स ता के िलए ही नहीं, अपनी स ता के िलए भी संसार म
िस थी । वहां के ी-पु ष अ िश , िवनयी, सुिशि त और सदाचारी थे ।
एक-एक लोक-धम, कुल-मयादा और सविहत का ान रखता था । संयम-
सदाचार म तो साधारण नाग रक भी महिषयों की बराबरी करते थे । समाज म गुणी,
सुशील और च र वान ही िदखाई पड़ते थे । ोही, द ी, ू र , कापु ष,
ाथ , ाचारी, मुख, िनल , आलसी, मादी, िम ावादी, िन त और
ना क मनु ों के िलए अयो ा म थान नहीं था । सावजिनक जीवन म वणा म
धम की पूण ित ा थी । सव एकता, शा और पिव ता का वातावरण िमलता था

दशरथ का ऐ य–सभी ि यों से संसार म अयो ा के जोड़ की दू सरी नगरी
नहीं थी । उसी महापुरी म ब त पहले कोसल दे श के शासक राजा दशरथ बड़े ठाट
से रहते थे । वे उसी ाचीन और िति त इ ाकु वंश के र थे, िजसम सगर और
रघु जैसे तापी नर-नेता हो चुके थे ।
राजा दशरथ आठ सुयो म यों की सहायता से धम के अनुसार राजकाज
चलाते थे । उनकी राजसिमित म म यों के अित र विस , वामदे व, जाबािल,
का ायन और गौतम आिद भी स िलत थे । मह पूण िवषयों म राजधम का
िन य इ ीं की स ित से होता था । कोसल नरे श दशरथ इन सबके सहयोग से इ
की भां ित शासन करते थे । एक समृ शाली रा का स ूण वैभव उनके चरणों पर
पड़ा रहता था । अ दे शों के बड़े -बड़े स ाधारी भी उनकी मह ा को ीकार
करते थे ।
पु ेि -य –राजा दशरथ ने ब त िदनों तक राजल ी का भलीभां ित उपभोग
िकया । उ िकसी व ु की कमी नहीं थी; धन, मान, यश, ऐ य और सुख के सभी
साधन सुलभ थे । िफर भी राजा को अपना जीवन सूना-सा और सारा भव-िवभव
फीका लगता था; ोंिक वे जीवन के एक ब त बड़े सुख–स ान-सुख–से वंिचत थे
। उनकी तीन रािनयां थीं, लेिकन एक से भी कोई पु नहीं था । आयु के साथ-साथ
उनकी पु -लालसा भी बढ़ती ही जाती थी ।
राजा दशरथ धीरे -धीरे वृ हो चले, पर उनकी यह कामना पूरी नहीं ई । एक
िदन उ ोंने इस िवषय म अपने म यों और धमगु ओं से परामश िकया । सबने
उ पु - ा के िनिम कोई उ म य करने की स ित दी । यह काय िकसी
िस , तप ी और कमका ी िव ान् की अ ता म ही स हो सकता था ।
अत: राजसिचव सुम ने सोच-िवचार कर ऋ ृंग को य का आचाय बनाने का
ाव िकया । राजा ने इसे सहष ीकार कर िलया ।
ऋ ृंग उन िदनों अंगदे श म िनवास करते थे । दशरथ यं वहां गए और बड़े
आ ह से उ अयो ा ले आए । ऋ ृंग ने अथववेद के अनुसार पु ेि -य करने
का िन य िकया । उनके आदे श से सरयू नदी के िकनारे एक सु र य शाला का
िनमाण आ और सभी आव क व ुएं इक ी हो गई । दशरथ ने प और दू त
भेजकर दे श-िवदे श के गणमा यों को उस य म आम त िकया ।
िनयत समय पर िविवध दे शों के अनेक राजा, िव ान् और ऋिष-मुिन वहां आ
प ं चे । तप ी िव ान् ऋ ृंग ने शुभ मु त म य ार कर िदया । य -म ल
वेद-म ों की मंगल िन से गूंज उठा । म ो ारण के साथ ही अि म आ ितयां
पड़ने लगीं । सभी शा ो अनु ान उ म रीित से िकए गए । राजा दशरथ ने जब
अ म आ ित डाली तो ऐसा तीत आ मानी अि दे व यं एक णपा म खीर
लेकर उनके सामने कट हो गए ।
अ म, महातेज ी ऋ ृंग ने राजा को य ावशेष च समिपत करके कहा–
महाराज, यह िद पायस परम आरो दायक और पु दायक है । आपकी पि यां
इसका सेवन करके शी ही उ म स ान उ करने म समथ होंगी ।
िन ान राजा के िलए वह पु दायक योग एक कार से दै वी वरदान ही था ।
उ ोंने महा ा के साद को िसर से लगा िलया । ऋ ृंग तथा स ािनत
अितिथगण य -समा के बाद वहां से आदर-सिहत िवदा हो गए ।
राम-ज –राजा उस खीर को लेकर अ :पुर म गए । वहां उ ोंने उसम से
आधी खीर अपनी े रानी कौश ा को दी, शेष का आधा भाग दू सरी रानी सुिम ा
को िदया और बचे ए िह े म से दो भाग करके एक सबसे छोटी रानी कैकेयी को
तथा दू सरा िफर सुिम ा को िदया । रािनयों ने स मन से अपने-अपने िह े का
साद खाया । उसके भाव से वे कुछ ही िदनों म गभवती हो गईं ।
य के बाद बारहव महीने म चा मास के शु प की नवमी ितिथ को बड़ी
रानी कौश ा के गभ से िद ल णस शोभाधाम राम ने ज िलया । कुछ
समय के अन र कैकेयी के गभ से भरत और सुिम ा के गभ से ल ण तथा श ु
उ ए । चारों कुमार ज से ही अ थ, सु र तथा तेज ी थे । दशरथ
का सूना घर चारों ओर से भर गया । राजा- जा के हष का िठकाना न रहा । सारे
रा म धूमधाम से राजकुमारों का ज ो व मनाया गया ।
कुमारों की िश ा-दी ा–कुमारों का लालन-पालन बड़े य से होने लगा । धीरे -
धीरे वे बड़े ए और साथ-साथ खेलने-कूदने लगे । बचपन से ही उनम पर र बड़ी
ीित थी । यों तो राम को उनके सभी भाई िपता के तु मानते थे, लेिकन ल ण की
ा-भ सबसे बढ़-चढ़कर थी । वे राम के अनुज ही नहीं, अ तम सखा, सेवक,
सहायक और स े अनुयायी थे । राम भी उनके ित सहोदर से बढ़कर आ ीयता
िदखाते थे । भरत और श ु म भी ऐसी ही घिन ता थी । राम-ल ण की तरह उन
दोनों की भी एक अलग जोड़ी थी । दोनों जोिड़यों म िकसी कार का े ष-भाव नहीं
था । सभी बड़े मेल से रहते थे ।
चारों राजकुमार जब कुछ बड़े ए तो राजा दशरथ ने उनकी िश ा-दी ा का
उ म से उ म ब कर िदया । वे सुयो िश कों से वेद-शा , इितहास, पुराण,
राजनीित आिद के साथ-साथ धनुिव ा का भी अ यन और अ ास करने लगे ।
कुछ ही वष म उ ोंने िविवध िव ाओं और कलाओं म पूण यो ता ा कर ली ।
ानी और गुणी होने के साथ ही वे िस ह सूरमा भी हो गए । उनम राम सबसे
अिधक मेधावी, तेज ी और शूरवीर थे । भाइयों म ज से े होने के अित र
वे गुणों और च र से भी सव े थे । अपने पु ों के प-गुण, शील- भाव और
बल-तेज का सु र िवकास दे खकर राजा दशरथ को अपर ार हष आ ।
िव ािम का आगमन–चारों कुमार अब सुिशि त और नवयुवक हो गए थे,
अत: राजा को उनके िववाह की िच ा ई । एक िदन वे महलों म अपने म यों
और धमाचाय से इसी िवषय म बातचीत कर रहे थे । सहसा ारपाल ने महािष
िव ािम के आगमन की सूचना दी । राजा ने यं दौड़कर उनका ागत िकया ।
उ उ म आसन पर िबठाया । महिष को सेवा-स ार से स ु करके वे अ
न तापूवक बोले–भगवन्, आज आप यं अनु ह करके पधारे । इससे हम अपने
को ध मानते ह । कृपया अपने आने का योजन कह । हम सब कार से आपकी
सेवा के िलए उ त ह ।
तपोिनधान िव ािम स होकर बोले–राजन्! हम एक िवशेष योजन से
आपके पास आए ह । ब त िदनों से हम य करना चाहते ह, लेिकन महाबली
रा से रावण की ेरणा से उसके दो अनुयायी–मारीच और सुबा –बार-बार उसम
िव डाल दे ते ह । उस य की र ा के िलए हम आपके वीर पु राम को अपने साथ
ले जाना चाहते ह । मेरे साथ जाने म उनका अिहत नहीं, िहत ही होगा । कृपया उ
आज ही मेरे साथ जाने दीिजए ।
इसको सुनते ही राजा का िसर चकराने लगा । वे पु ेह से िवहल होकर
िव ािम से बोले–ऋिषराज! यह आपने ा कहा ? जो रावण बड़े -बड़े बलवानों के
दप को भी चूर कर दे ता है , िजसको दे वता, दानव, गंधव आिद भी नहीं जीत सकते,
उसका िवरोध कौन करे गा? यं उससे लड़कर पार पाना तो दू र रहा, म तो उसकी
सेना से भी यु करने म असमथ ं । मेरा राम अभी प ह वष का बालक है ,
कराल-िवकराल रा सों से लड़ने-िभड़ने की मता उसम कहां है ! म यं चतुरंिगणी
सेना लेकर चलूंगा और आपके य की र ा क ं गा । कृपा करके मेरे ाण ारे राम
को न ले जाइए । म इस साठ वष के बुढ़ापे म उसका िवयोग नहीं सह सकूंगा ।
िव ािम कुछ होकर बोले–राजा दशरथ, आपका यह आचरण रघुवंिशयों
की रीित-नीित के िव है । आप अपने वचन का पालन नहीं करना चाहते । अब म
यहां से जाता ं ...
राजा बड़ी उलझन म पड़ गए । तब राजगु विस ने उ समझाते ए कहा–
महाराज! आप महिष िव ािम को वचन दे चुके ह, अत: राम को उनके साथ जाने
दीिजए । महिष िव ािम एक िस , तप ी और अनेक गु िव ाओं के प त ह
। वे कुछ सोच-समझकर ही राम को अपने साथ ले जाना चाहते ह–
विश के कहने से दशरथ ने राम को िव ािम के हाथों म सौंप िदया । ल ण
भी े ा से बड़े भाई के साथ जाने को तैयार हो गए । गु -जनों के आशीवाद लेकर
दोनों धनुष-बाण सिहत िव ािम के साथ चल पड़े । सरयू के िकनारे -िकनारे वे
अयो ा से तीन कोस दू र िनकल गए! वहां िव ािम ने राम से कहा–व ! तु म
सब कार से सुपा मानकर बला-अितबला नामक योग की दो गु िव ाएं िसखाना
चाहता ं । उनके भाव से तु ारा आ बल बढ़ जाएगा, किठन से किठन काय म
भी तु िवफलता का अनुभव न होगा और तुम आसुरी श यों के आ मण से
सुरि त रहोगे । शी आचमन करके मुझसे इन िद िव ाओं को हण करो ।
राम ने तुर आचमन करके महिष से उन िव ाओं को िविधवत् हण िकया ।
उससे उनका आ पौ ष उदी हो गया । वे अपने भीतर नूतन श - ू ित का
अनुभव करने लगे । उस िदन तीनों सरयू नदी के िकनारे िटक गए, दू सरे िदन आगे
बढ़े । माग म िव ािम उ अनेक रोचक और उ ाहव क वृता सुनाते जाते थे ।
ताड़का-वध–चलते-चलते वे सरयू-गंगा के संगम पर प ं चे । वहां पर उ ोंने
नाव से गंगा को पार िकया । सामने एक भयंकर वन िमला । उसे दे खकर राम
िव ािम से बोले–आय! यह वन तो अित घना और भयावना जान पड़ता है । य -त
हाथी, िसंह, सूअर िदखाई पड़ रहे ह, अनेक िहं सक जीवों के श सुनाई पड़ते ह…
िव ािम ने कहा–हां राम! यह थान सचमुच बड़ा भयानक है । पहले यहां मलद
और क ष नामक दो समृ शाली जनपद थे । ताड़का नाम की एक दु ा रा सी ने
अपने ऊधमी पु मारीच की सहायता से दोनों बसे-बसाए जनपदों को उजाड़ िदया ।
म चाहता ं िक तुम अपने बा बल से इस थान का पुन ार करो । ताड़का यहां से
दो कोस की दू री पर रहती है । तुम उसे आज ही मारो । ी-वध के पाप का िवचार
न करना । िजसके क ों पर रा की र ा का भार हो, उसे लोकोपयोगी काय म
गत पाप या दोष का िवचार ागकर साहस के साथ अपना कत करना
चािहए, यही सनातन राजधम है ।
मन ी राम ने उ र िदया–आय! म ताड़का को अव मा ं गा ।
ऐसा कहकर उ ोंने धनुष की डोर खींची । उसकी टं कार से िदशाएं गूंज उठीं,
वन म जीव-ज ु भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे । महा-रा सी ताड़का उसे
सुनकर घबरा गई और िजधर से िन आई थी उसी ओर गरजती ई दौड़ी ।
पलमा म वह राम के समीप आ प ं ची और हाथों से पहले धूल उड़ाकर िफर प रों
की वषा करने लगी । राम ने बाणों से प रों को रोक िदया । वह अपनी दीघ भुजाओं
को फैलाकर राम की ओर आं धी की तरह झपटी । राम ने उसे बाणों से आहत कर
िदया । वह त ण अ हो गई और चारों ओर से प र बरसाने लगी । राम ने
श वेधी बाणों से आकाश को भर िदया । बाणों से िघरी ताड़का उन पर िबजली की
तरह टू ट पड़ी । राम ने संभलकर उसकी छाती म एक ऐसा ती ण बाण मारा िक वह
िचंघाड़ती ई िगर पड़ी और तड़पकर मर गई । िव ािम ने राम को गले से लगा
िलया और उनके बल-शौय की मु क से सराहना की ।
तीनों ने वह रात वहीं िबताई । दू सरे िदन ात:काल िव ािम ने राम को
द च , कालच , व ा , िशरा ऐषीक, ा , व णपाश, नारायणा ,
ापना , मोहना , आ े या आिद अनेकानेक िस िद ा दान िकए
और सबका योग-िव ान भी बता िदया ।
िस ा म-या ा–इसके बाद िव ािम दोनों भाइयों को लेकर आगे बढ़े और
चलते-चलते एक सु र-शा तपोवन के िनकट प ं चे । राम ने उस रमणीक थान
का प रचय पूछा ।
िव ािम बोले–व ! यह िस ा म1 नाम से िव ात वह तपोभूिम है , जहां िकसी
समय वामन ने अपना तप िस िकया था । म इसी आ म म िनवास करता ं ।
इसको तुम अपना ही समझो । रा स लोग यहां मेरे य म िनर र िव डालते ह ।
उनका दमन करने के िलए ही म तु साथ ले आया ं ...
िव ािम दोनों राजकुमारों को िस ा म म ले गए । आ मवािसयों ने उनका
यथोिचत स ार िकया । कुछ दे र िव ाम करने के उपरा राम ने िव ािम से
िनवेदन िकया–आय! हम दोनों भाई अब आ म की र ा के िलए तैयार ह, आप
िनि होकर य आर कर ।
िव ािम ने उसी िदन य आर कर िदया । वह छ: िदनों तक लगातार चलता
रहा, उस बीच म दोनों भाइयों ने एक ण के िलए भी िव ाम नहीं िकया । छठे िदन
आकाश म सहसा गजन-तजन का घोर श सुनाई पड़ा । दे खते-दे खते दो काले
बादल जैसे भीषण शरीरधारी रा स वहां आ धमके । उनम से एक तो ताड़का-पु
मारीच था और दू सरा उसका साथी सुबा । उनके पीछे और भी ब त-से रा स थे ।
सब र -मां स आिद दू िषत पदाथ लेकर य को िव ंस करने आए थे ।
राम ने त ाल मारीच पर वाय ा चलाया । उसके आघात से वह महादानव
मू त होकर वहां से दू र जा िगरा । सचेत होते ही वह चुपचाप दि ण की ओर भाग
गया । इधर दू सरे महारा स सुबा को राम ने आ ेया से मार िगराया । इसके
बाद उ ोंने वाय ा से सारी रा स म ली को न कर डाला ।
िव ािम का य िबना िकसी िव -बाधा के समा हो गया । वे परम कृताथ
होकर राम से बोले–महाबा राम! तुमसे मुझे ऐसी ही आशा थी । आज तु ारे ताप
से इस िस ा म का नाम साथक हो गया । ऋिष-समाज को तुमने एक ब त बड़े
संकट से मु कर िदया । तुम ध हो ।
मुिन-म ली म चारों ओर राम की बड़ाई होने लगी । राम ने वह रात वहीं बड़े
सुख से िबताई । दू सरे िदन वे िव ािम से हाथ जोड़कर बोले–दे व! हमारे िलए अब
आपकी ा आ ा है ?
िव ािम ेह पूवक बोले–सौ ! िमिथला के यश ी राजा जनक ने एक िवराट
य का आयोजन िकया है । हम लोग आज ही उसम स िलत होने के िलए जा रहे
ह । तुम दोनों भी हमारे साथ चलो । वहां य महो व तो दे खोगे ही, राजा जनक का
एक िविच धनुष भी दे खना, िजस पर आज तक कोई भी वीर ा नहीं चढ़ा सका
है । वैसा भारी धनुष तुमने नहीं दे खा होगा ।
िमिथला की या ा–िव ािम के साथ-साथ दोनों राजकुमारों ने भी िमिथला के
िलए थान िकया । माग से थान- थान पर रमते-िवरमते और महामनीषी के मुख
से अनेक िद ा ान सुनते ए वे कई िदनों की या ा के बाद िमिथला प ं चे । नगर
के बाहर सूना-सा आ म िदखाई पड़ा । राम ने कौतूहलवश िव ािम से उसका
इितहास पूछा ।
िव ािम बोले–राम ! िकसी समय महिष गौतम अपनी प ी अह ा के साथ
इसी आ म म रहते थे । तब इसकी शोभा कुछ और ही थी । अब वे इसको ागकर
चले गए ह । इसका एक दु ःखद इितहास है , उसे सुनो! इ ब त िदनों से अह ा के
प पर आस था । एक िदन गौतम बाहर गए थे । इ उनका कपट वेश बनाकर
आ म म आया और अह ा से ेम की बात करने लगा । अह ा को कुछ स े ह
तो आ, लेिकन वह कपटी इ की बातों म आ गई । इ उसका सती भंग
करके जैसे ही आ म से िनकला, महिष गौतम आ प ं चे । उसका रं ग-ढं ग दे खकर वे
सब-कुछ समझ गए । उ ोंने उसी ण इ को भीषण शाप दे कर अह ा का
प र ाग कर िदया । उसे छोड़कर वे यहां से चले गए । तब से वह दु ः खनी ल ा-
ािन से गड़ी ई, िन े -िनज व-सी आ म के एक कोने म पड़ी रहती है । संसार म
उसे पूछने वाला कोई नहीं ह ।
अह ो ार–राम इसको सुनकर दया-क णा से िवत हो गए और महिष
िव ािम के साथ उस अबला को दे खने गए, िजसे संसार ने पितता मानकर ाग
िदया था । वह प र की मूित की तरह िन ल बैठी थी । राम ने आगे बढ़कर ऋिष-
प ी के पैर छु ए । िजसे समाज प र की तरह ठु करा चुका था, उसकी राम ने पूजा
की । अह ा का भा जग गया । उसकी जड़ता और उदासी िमट गई । वह
सचमुच ध हो गई । इतने िदनों तक अपनी भूल का कठोर ायि त करके अह ा
अपने-आप शु हो गई थी । इ के पाप-अ ाचार के कारण उसके च र पर जो
कलंक लगा था, वह पिव ा ा राम की कृपा से धुल गया ।
स समाज म राम के इस काय की बड़ी सराहना ई । अह ा हष से िवहल
होकर अपने उ ारक के चरणों पर िगर पड़ी । उसने अितिथयों को आदर से
िबठाया और फल-मूल आिद से उनका यथोिचत स ार िकया ।
महामिहम िव ािम और कौशलकुमार राम के उधर आने का समाचार सुनकर
महिष गौतम भी वहां आ प ं चे । उ ोंने सब के आगे अह ा को शु दय से िफर
अपना िलया ।
इसके उपरा िव ािम सबको साथ लेकर राजधानी की ओर बढ़े । राजा
जनक ने दल-बल सिहत आगे बढ़कर उनका ागत िकया और दोनों राजकुमारों
का प रचय तथा कुशल- पूछा । िव ािम ने कुल के नाम से उनका प रचय िदया
और उनके शौय-परा म का वृता भी कह सुनाया । जनक ने सबको य भूिम के
िनकट ही एक रमणीय उ ान म ठहरा िदया ।
दू सरे िदन िव ािम सबको साथ लेकर य -म प म पधारे । दे श-दे श के
िव ानों और महिषयों की उप थित म वह य धूमधाम से स आ । इसके
अन र ऋिषवर िव ािम राम-ल ण को राजा जनक के पास ले गए और उनसे
बोले–राजन्! ये दोनों आपके सुनाभ नामक धनुष के िवषय म कुछ जानना चहते ह
और उसे दे खने की इ ा करते ह ।
जनक स होकर बोले–मुिनवर! सुनाभ, वा व म िशव का धनुष है । मेरे पूवज
राजा दे वराज ने उसको दे वताओं से पाया था । उस भारी धनुष को न तो कोई उठा
सकता है और न उस पर ा ही चढ़ा सकता है । मेरी क ा सीता जब छोटी थी,
तभी मने यह ण िकया था िक जो वीर पु ष िशव-धनुष को उठाकर उसपर डोरी
चढ़ा दे गा, उसी के साथ म सीता का िववाह क ं गा । मेरी क ा के प-गुण की
शंसा सुनकर अनेक राजाओं ने उसके साथ िववाह की कामना कट की । मने ण
के अनुसार ेक के सामने उस धनुष को रखवाया, लेिकन आज तक कोई उसे
उठा ही नहीं सका । म उसे इन कुमारों को दे खने के िलए यहीं मंगा दे ता ं ।
धनुभग–जनक की आ ा से ब त से-सेवक एक आठ पिहयोंवाली पेटी खींचकर
ले आए । उसी म सुनाभ धनुष रखा था । राम-ल ण उसको कौतूहल-भरी ि से
दे खने लगे । राम ने दे खते-दे खते उसे सहज ही म उठा िलया और उसपर डोरी भी
चढ़ा दी । ंचा को खींचते ही वह पुराना महाचाप बीच से टू टकर दो टु कड़े हो गया
। धनुभग का भूक या व पात जैसा श सुनकर सब घबरा गए ।
राजा जनक का दय हष से उछल पड़ा । वे राम के अद् भुत प-गुण, शौंय-
वीय पर मु होकर िव ािम से बोले–मुनी ! सीता के िलए मुझे मनचाहा वर िमल
गया । यिद आप ीकृित द तो म आज ही महाराजा दशरथ के पास राम-सीता के
िववाह का ाव भेज दू ं ।
िव ािम की अनुमित से राजा जनक ने दशरथ के नाम एक प िलखा और
अपने िव म यों को उसके साथ तुर अयो ा जाने का आदे श दे िदया ।
म गण शी गामी रथ म बैठकर चल पड़े और माग म तीन रात िबताकर
अयो ा प ं चे । वहां उ ोंने राजा दशरथ को जनक का िवशेष प िदया और राम-
ल ण का कुशल समाचार बताया ।
राजा उस ि य स ाद से अ स ए । उ ोंने म यों, पुरोिहतों और
ेही जनों से परामश करके जनक के ाव को मान िलया । िववाह का शुभ योग
िनकट था, इसिलए दू सरे ही िदन वहां से थान करने का िन य िकया गया ।
िववाह-या ा की सारी तैयारी एक ही िदन म हो गई ।
राम-सीता का िववाह–दू सरे िदन कोसलनरे श राजा दशरथ अपनी राज-
म ली और चतुरंिगणी सेना के साथ धूमधाम से राम का िववाह करने चल पड़े ।
पां चव िदन वे दल-बल सिहत िमिथला जा प ं चे । राजा जनक ने यो रीित से बरात
का ागत और ठहरने आिद का सु ब िकया ।
दू सरे िदन िववाह-स ी ार क अनु ान िकए गए । िव ािम की ेरणा से
जनक ने ल ण के साथ अपनी दू सरी क ा उिमला के िववाह की चचा चलाई ।
दशरथ ने इसे ीकार कर िलया । उसी अवसर पर िव ािम ने भरत-श ु के साथ
जनक के भाई राजा कुश ज की दो क ाओं के िववाह का भी ाव िकया । दोनों
प वालों ने इसे सहष ीकार कर िलया उसके तीसरे िदन एक साथ ही चारों
राजकुमारों का िववाह करना िनि त हो गया ।
िववाह के पूव ही भरत के मामा केकय-राजकुमार युधािजत भी वहां आ गए ।
उ केकय-नरे श ने भरत को लाने के िलए अयो ा भेजा था । वहां राम-िववाह का
समाचार पाकर वे जनकपुरी चले आए । राजा दशरथ ने उ अपने पास ठहरा िलया

िववाह के िदन जनक की महापुरी उ वमयी हो गई । एक-एक घर, एक-एक
ार और एक-एक माग तोरण-ब नवारों से सजाया गया था । चारों ओर मंगलवा ों
और मंगलगीतों की िन गूंज रही थी । महल और राजमाग दशकों से भरे थे । शुभ
मु त म एक ओर से पुरोिहतों के साथ अयो ा के चारों सु र राजकुमार िववाह-
म प म पधारे ; दू सरी ओर से िमिथला की चारों सविवभूिषता सु री राजक ाय
आईं । वैिदक िवधान से सभी मंगलकृ िकए गए । जनक ने अि के सम सीता
को राम के हाथों म सौंपते ए कहा–राजकुमार राम! आज से मेरी यह ि य पु ी
सीता तु ारी धमप ी बन रही है । छाया की भां ित सदा-सवदा तु ारी सहगािमनी
होकर रहे गी । तुम इसका पािण हण करो!
इसी कार अ तीनों का भी पािण हण कराया गया । िववाह के दू सरे िदन
िव ािम सबसे िवदा लेकर वहां से चले गए । जनक ने क ाओं को भां ित-भां ित की
मू वान व ुएं दीं और वर प वालों को चुर भट-उपहार से संतु कर िदया ।
इसके बाद बरात नव-वधुओं के साथ िवदा हो गई ।
राम-परशुराम िववाद–अयो ा का दल कुछ ही दू र गया था िक इतने म सहसा
भयंकर आं धी आई । उसके साथ ही िस ि य-संहारक, कोपमूित परशुराम हाथ
म फरसा और धनुष-बाण िलए आ प ं चे । ऐसा तीत आ, मानी यं लयंकर
ही कट हो गए ।
िजस धुरंधर सूरमा के नाम से ही संसार के बड़े -बड़े यो ा कां पते थे उसी को
दे खकर सारे अयो ावासी अधमरे हो गए ।
परशुराम सबका रा ा रोककर राम से ककश र म बोले–राम! तु ारे बल-
परा म की आजकल बड़ी चचा है , सुना है तुमने जनकपुरी म िशव के पुराने धनुष
को तोड़ डाला । इससे तु ारा मन और मान िन य ही ब त बढ़ गया होगा । म
तुमसे यु क ं गा और अभी तु ारा अहं कार चूर कर दू ं गा ।
राजा दशरथ इसे सुनते ही िगड़िगड़ाते ए बोले–हे तापी परशुराम! आप ा ण
ह, तप ी ह, ानी ह, कृपा करके मेरे ब ों को न मा रए । अब तो आप ा त
ाग चुके ह, अतः ा ण धम के अनुसार हम सब पर दया कीिजए, दे व!
िव वीर परशुराम भयभीत राजा की उपे ा करते ए राम से िफर बोले–राम!
तुमने महादे व का जीण-शीण धनुष तोड़ा है । अब मेरे इस सु ढ़ वै व चाप पर
ंचा चढ़ाओ । म तु ारे बल की परी ा करके तब यु का िन य क ं गा ।
मन ी युवक राम को वयोवृ परशुराम का दप अस हो गया । वे िनभय
होकर बोले–परशुरामजी! म आपके गौरव को जानता ं और मानता भी ं । लेिकन
आप अकारण मुझे असमथ मानकर नीचा िदखाना चाहते ह । अब मेरा पौ ष-
परा म दे खए ।
यह कहकर राम ने परशुराम के हाथ से धनुष-बाण ले िलया और दे खते-दे खते
उस वै व चाप को ंचायु करके उस पर बाण भी चढ़ा िदया । राम की
िवल ण मता दे खकर परशुराम चिकत-हत भ हो गए । राम ने उनके आगे ही
उस बाण को आकाश म मु कर िदया । उसके साथ ही परशुराम का मान भी
चला गया । वे राम को अनेकानेक आशीवाद दे कर उनकी भू र-भू र शंसा करते
ए वहां से त ाल लौट गए ।
इधर दशरथ भय से अचेत पड़े थे । राम ने उ सचेत करके कहा–िपताजी,
परशुराम चले गए । अब आगे बढ़ना चािहए ।–‘परशुराम चले गए,’ यह सुनकर
दशरथ ने मानो पुनज वन पाया । इसके बाद वे सबको लेकर आगे बढ़े और शी
अयो ा प ं च गए ।
बरात के आते ही महापुरी म हष का समु उमड़ पड़ा । पुरवािसयों ने शंख-
मृदंग बजाकर, गीत गाकर, लाजा-पु बरसाकर राजदल का ागत िकया । घर-
घर म, थान- थान पर मंगलो व मनाए गए ।
एक साथ चार कुल ल यों के शुभागमन से राजा दशरथ के घर की शोभा
चौगुनी हो गई । रािनयां दे वक ाओं जैसी पु वधुओं को पाकर अ स ईं ।
चारों राजकुमार आन से दा -सुख भोगने लगे । नवद ितयों म मु तः
राम-सीता म पर र बड़ा अनुराग था । सीता एक आदश प ी और आदश कुलवधु
थी । उसने अपने अनुपम प-गुण, स वहार से राम को ही नहीं, सारे प रवार को
वशीभूत कर िलया ।
राजकुल म िदनों-िदन सुख-सौभा की वृ होने लगी ।

1. एक योजन : चार कोस


2. तोप
3. अजेय; िजससे यु कर कोई न जीत सके ।
1. वतमान ब र
अयो ाका

िववाह के कुछ समय बाद भरत िपता के कहने से श ु के साथ निनहाल चले गए ।
केकय-दे श म मामा-नाना ने उ बड़े - ेह से रखा और अिधक काल तक वहीं रोक
िलया । अयो ा म केवल राम-ल ण रह गए ।
जनगणमन-अिधनायक राम–राम राज-काज म वृ िपता की सहायता करने
लगे । उनम कुछ ऐसी िवशेषताएं थीं, िजनके कारण वे थोड़े ही समय म पूिणमा के
च मा के समान सवि य हो गए ।
शरीर से राम अितशय पवान्, बल-वीयशाली तथा सव शुभ ल ण स थे ।
उनका ऐसा भावशाली था िक लोग सहज म दशनमा से उनके ित
अनुर हो जाते थे ।
भाव से वे और भी सौ तथा दे वता प थे । उनका अ :करण अ
िवशाल, पिव और मा-दया- ेम-उदारता जैसी सरस सा क भावनाओं से
ओत ोत था । वे बड़े ही स दय तथा शा ा ा थे; सदा सबका भला ही सोचते थे
और सुख-दु :ख म कभी हष-िवषाद से मोिहत नहीं होते थे ।
संयम और सदाचार-पालन म राम की बराबरी करनेवाला कोई नहीं था । राजपु
होकर भी वे तप ी की भां ित िनयम-संयम से रहते थे । स , धम और लोक तथा
कुल की रीित-नीित म उनकी असीम ा थी । लोक-धम की मयादा का उ ंघन न
तो वे यं करते थे और न दू सरों को करने दे ते थे । नीच और िन त आचार-िवचार
से उ घृणा थी ।
राम िवल ण ितभाशाली, सवशा -िवशारद् , कुशल राजनीित , े व ा
और पु षा रकोिवद (मनु के मन की बात को भां पने वाले, आदमी पहचानने
वाले) थे । उ ोंने सां गोपां ग वेदों का अ यन िकया था और धम के सू त ों को
भली भां ित समझा था । उ वयोवृ , ान-वृ और शीलवृ स नों की संगित
िवशेष ि य थी ।
राम जैसे ानी थे, वैसे ही ा ािभमानी, वीर, कठोर, स ती और महान
कम ोगी भी थे । उनम श -साम , साहस-उ ाह, धैय-आ िव ास आिद
सम वीरोिचत गुण थे । उनके हष- ोध कभी िन ल नहीं होते थे । स नों का
उपकार और दु जन का दमन करने म वे सवथा समथ थे और िकसी भी प र थित म
कभी आ दीनता या पौ षहीनता नहीं िदखाते थे ।
राम यु िव ा के पूण प त और धुरंधर महारथी तथा अि तीय धनुधर थे ।
उनके शौय-वीय पर जा को बड़ा भरोसा था ।
लोक म ित ा ा करने के िलए िकसी म इतने ही गुण ब त ह, लेिकन
राम म कुछ और भी िवशेषताएं थीं । वे स े दय से ािणमा के िहतैषी थे, सभी
वणों के और ेक अव था के मनु ों से ेम करते थे, उनके घरों पर जाकर
कुट ी की भां ित कुशल समाचार पूछते थे और सबके पा रवा रक हष-शोक म
स िलत होते थे । जनसाधारण के ित उनम इतनी आ ीयता थी िक सुखी जनों से
िमलकर वे सुख अनुभव करते थे और िकसी को दु खी दे खकर यं भी दु :खी हो
जाते थे । उ ोंने अपना सारा जीवन ही जनता को समिपत कर िदया था । लोक
अनुरंजन उनका सव ेय था और उसके िलए वे बड़े से बड़ा क झेल लेते थे ।
सामा वहार म राम अ िश , सरल और सरस थे । वे सबके आ -
स ान का ान रखते थे और िकसी को नीचा न िदखा कर सबको ऊपर उठाने का
य करते थे । श - भु के दशन की वृित उनम नहीं थी । राम िकसी भी
अव था म शील-सौज नहीं ागते थे । छोटे -बड़े सबसे वे ेमपूवक िमलते थे और
िमलने पर पहले ही स मुख से कुशल- पूछकर तब मधुर तथा दय श
श ों म बात करते थे । उनके मुख से ोध की दशा म भी कभी दु वचन नहीं
िनकलते थे । बातचीत म वे आ - शंसा, परिन ा, कुतक, दु रा ह और
िम ाभाषण से दू र रहते थे ।
राम परम गुण ाही थे–िकसी के अवगुण न दे खकर उसके गुणों पर ही ि रखते
थे । कोई उनका साधारण-सा भी काम कर दे ता तो उसे वे ब त मानते और उसके
उपकार को सदै व याद रखते थे, लेिकन दू सरों के अपकारों को तुर भूल जाते थे,
मा कर दे ते थे ।
इसी कार की राम म सैकड़ों िवशेषताएं थीं । लोकरं जन म वे च मा के समान,
मा-सिह ुता म पृ ी के समान और बल-परा म म इ के समान थे । कोसल
की जा ऐसे जनानुरागी महापु ष को शी अपने शासक के प म दे खना चाहती
थी । वे कोसलेश न होकर भी जनता के दयेश थे ।
पु वानों म े राजा दशरथ राम का आ ो ष दे खकर हष से फूले नहीं समाते
थे । वे अब अित वृ हो चले थे, अतएव अपने जीवनकाल ही म ऐसे सवगुणस
पु को रा के सम अिधकार सौंप दे ना चाहते थे । अपने परामशदाताओं की
स ित से उ ोंने राम को शी युवराज का पद दे ने का िन य कर िलया ।
रा ािभषेक का ाव–राजा य िप त थे, िफर भी इस िवषय म सबकी
स ित से ही काय करना आव क समझते थे । उ ोंने कैकय और िमिथला के
राजाओं को छोड़कर शेष सभी िम राजाओं को यथाशी अयो ा आने का
िनम ण भेजा, साथ ही, चुपचाप राम के अिभषेक की तैयारी भी आर कर दी ।
िनि त ितिथ पर सभी आम त राजागण तथा कोसल रा के चारों वणों के
जा- ितिनिध अयो ा के सभा-भवन म उप थत ए । राजा दशरथ ने सबके आगे
अपने वृ और असमथता का वणन करके, अपने तथा लोक के िहत िलए राम को
युवराज बनाने का ाव रखा और सबसे इस स म िवचार कट करने
का अनुरोध िकया ।
राजा के मुख से वा व म, लोकमत ही िनत आ था । जाजनों और
नरनायकों ने राम की भू र-भू र शंसा करके एक र से इस ाव का समथन
िकया । राम के पीछे ऐसा सुसंगिठत लोकबल दे खकर दशरथ को बड़ी स ता ई
। उ ोंने उप थत स नों को इस सु र िनणय के िलए दय से ध वाद िदया और
भरी सभा म म यों तथा पुरोिहतों से कहा–सवस ित से राम को युवराज बनाने का
िन य हो गया । म इस पिव चै मास म कल ही राम का अिभषेक करना चाहता ं
। कल ात:काल शुभ मु त म यह मंगलकाय ार हो जाएगा ।
इस घोषणा के बाद राजा ने अपने परम िव ासपा म ी सुम ारा राम को
सभा म बुलवाया । उ अपने पास े आसन पर बैठा कर वे बोले–राम! तुम मेरे
े पु हो । तुमने अपने लोको र गुण-च र से मुझे तथा सारी जा को मोिहत
कर िलया है । तुम इस रा के ामी होने के सवथा यो हो । जनता ने े ा से
तु अपना शासक िनवािचत िकया है । अतएव म कल ही तु युवराज-पद पर
िति त क ं गा । तुम सावधानी से राजधम का पालन करना और कुल की पर रा
के अनुसार जा-पालन म िन त र रहना ।
इसके बाद सभा िवसिजत ई । रा के अिधकारी और कमचारीगण महो व
के ब म हो गए । राजा दशरथ महल म पधारे । वहां उ ोंने राम को
एका म बुलाकर उनसे कहा–व ! मेरी अब एक ही लालसा शेष है िक म अपनी
आं खों से तु ऐ य भोगते दे खू । मेरे जीवन का अब कोई भरोसा नहीं है , इसीिलए
तु ारा अिभषेक शी हो जाना चािहए । इस समय भरत निनहाल म है । म चाहता
ं िक उसके दू र रहते-रहते यह काय हो जाए । कारण यह है िक भरत य िप स न
है , पर स नों का मन भी कभी-कभी चंचल हो जाता है । अतएव म कल ही तु
युवराज बनाकर रा के सम अिधकार तु सौंप ढू ं गा । तुम आज िवशेष
सावधान रहना, ोंिक ऐसे काय म नाना िव -बाधाओं की स ावना रहती है ।
यह कहकर राजा म यों के साथ अिभषेक स ी काय पर िवचार करने लगे
। राम उठकर कौश ा के महल म गए । वहां उ ोंने माता को शुभ संवाद सुनाया ।
ेहमयी कौश ा ने आन व क राम को दय से लगा िलया । उनके घर म उसी
ण से मंगलगान और दान-पु आिद होने लगे ।
राम के रा ािभषेक का समाचार रा -भर म िवद् युत की गित से फैल गया ।
महापुरी अयो ा महासागर की भां ित तरं िगत हो उठी । घर- ार, हाट-बाट तोरण-
ब नवारों से सजाए जाने लगे । घरों म यों और सड़कों पर बालकों की टोिलयां
आन त होकर बधाई के गीत गाने लगीं ।
म रा की कुम णा–एक ओर तो राजनगरी का मनोरम ृंगार और थान-
थान पर मंगलाचरण हो रहा था, दू सरी ओर रं ग म भंग डालने का गु कुच चल
पड़ा । इसकी संयोिजका थी–कैकेयी की एक मुंहलगी, कुबड़ी-कु पा दासी म रा

कैकेयी को उस समय तक अिभषेक-स ी बातों का पता नहीं था । वह अपने
रं गभवन म आराम से सो रही थी । म रा ने छ े से नगरी का साज-बाज दे खा और
नीचे आकर एक दू सरी दासी से आक क हष व का कारण पूछा ।
दासी ने सब-कुछ बता िदया । उसे सुनते ही म रा का दय बैठ गया । वह
तुर कौश ा के महल की ओर दौड़ी । वहां राम-माता बड़े हष से भां ित-भां ित के
मंगल-कृ कर रही थी । कुबड़ी मन ही मन कुढ़ती ई त ाल लौटकर कैकेयी के
शयनागार म आई और ककश र म बोली–अरी मूढ़ रानी! उठ जाग, अचेत ों
पड़ी है , घोर अनथ होने वाला है ।
कैकेयी ने चौंककर पूछा–म रे , कुशल तो है ! तू इस तरह ों है ?
म रा और भी अिधक ता कट करके बोली–रानी! तुमने कुछ सुना िक
नहीं? तु ारे सुख-सौभा का अ होने वाला है । महाराज कल ही राम का
अिभषेक करगे । भरत को यहां से दू र भेजकर वे कौश ा के बेटे को ग ी दे ने जा
रहे ह । तुम सावधान हो जाओ ।
कैकेयी इसे सुनते ही उठ बैठी और म रा को एक सु र आभूषण भट करके
बोली–म रे ! तूने आज मुझे अ ि य संवाद सुनाया है । बता, म तुझे ा
पुर ार दू ँ ? ा सचमुच कल राम का अिभषेक होगा? मेरे िलए इससे बढ़कर
स ता की बात और ा होगी? म राम और भरत म कोई अ र नहीं मानती ।
म रा ितलिमला उठी और उस गहने को फककर रोषपूवक बोली–रानी!
तु ारी तो बु ही मारी गई है , इसी से शोक के थान पर तु हष हो रहा है । भला
कोई समझदार ी अपनी सौत के लड़के की उ ित दे खकर स होती है ! सोचो
तो, आगे तु ारी ा दशा होगी! राम अिधकार पाते ही सबसे पहले अपने ित ी
भरत का सवनाश करगे । भरत की उ ोंने मार डाला या दू र भगा िदया, तो तुम
कहीं की न रहोगी । तुम कौश ा की तु दासी बन जाओगी । तु ारी पु वधू को
सीता की चेरी बनकर रहना होगा । और म? म तो दासी की दासी बनकर ही रह
सकूंगी । इन बातों को अ ी तरह समझ लो रानी! मुझ से कौश ा का मान न दे खा
जाएगा ।
इतने पर भी कैकेयी िवचिलत नहीं ई और राम की शंसा करती ई बोली–
म रे ! राम का क ाण हो । उसके रा म सबका भला होगा । भाइयों म वे सबसे
े और े ह, अत: वही रा के स े अिधकारी ह । उनके अ ुदय से तुझे ा
स ाप हो रहा है ? म तो राम को भरत से भी अिधक मानती ं । वे मेरी सेवा
कौश ा से अिधक ही करते ह । उनके राजा होने से भरत का भी राजा होना ही
समझी, ोंिक राम भाइयों को अपने समान ही मानते ह और उ अपना सव
अपण करने को उ त रहते ह ।
म रा ल ी सां स लेकर िफर बोली–ओह! ा क ं ! अभा वश तु कुछ का
कुछ सूझ रहा है पगली रानी! िसंहासन पर एक ही बैठता है । राम के राजा
होते ही भरत के सारे अिधकार समा हो जाएं गे । वे मारे -मारे घूमगे । और सुनो,
तुमने सौभा के मद म चूर होकर कौश ा के साथ अब तक जो दु वहार िकया
है , उसका पूरा बदला वह राजमाता होते ही लेगी । इसिलए तुम सावधान हो जाओ
और ऐसा उपाय करो िक राम वन को चले जाएं और उनके थान पर भरत का
अिभषेक हो । अब अिधक सोचने-िवचारने का समय नही है …
म रा की कुम णा से कैकेयी की मित कुछ ही णों म पलट गई । वह िचंितत
होकर बोली–म रा, तू ठीक ही कहती है , लेिकन यह काय कैसे िस होगा?
दु ा दासी इतनी दे र म ब त-कुछ सोच चुकी थी । उसने शी उ र िदया–रानी!
इसका सहज उपाय सुनो । तु याद होगा िक एक बार महाराज श रासुर के
िव इ की सहायता करने गए थे । तुम भी पित के साथ गई थीं । यु म
महाराज दानवों के भीषण हार से आहत-अचेत होकर रथ म िगर पड़े थे । तुम उ
रण- े से बाहर उठा ले गईं, तब उनके ाण बचे । याद करो रानी! उस िदन इस
महान् उपकार के बदले म महाराज ने तुमसे दो इ त वर मां गने को कहा था ।
तुमने उस समय यही कहा था िक आगे जब आव कता होगी, वर मां ग लूगी । तु ीं
ने वहां से लौटने पर यह सब मुझे बताया था । अब वर मां गने का अ ा अवसर है ।
तुम कोप-भवन म जाकर अपने ये गहने-कपड़े उतारकर फक दो और मैले-कुचैले
कपड़े पहनकर ज़मीन पर लेट जाओ । राजा तु मनाने आएं गे, लेिकन उनके लाख
मनाने पर भी जब तक वे तु ारी मनोकामना पूण करने का वचन न द स न होना
।उ ित ाब करके पहले तो उस यु वाली घटना की याद िदलाना, िफर एक
वर से राम के िलए चौदह वष का वनवास और दू सरे से भरत का रा ािभषेक मां ग
लेना । चौदह वष म जा राम को भूल जाएगी और भारत की भुता सदा-सवदा के
िलए थािपत हो जाएगी…
रं ग म भंग–म रा की ेरणा से कैकेयी उसी समय कोप-भवन म प ं ची और
अपने ब मू व ाभूषण फककर मिलन वेश म भूिम पर लेट गई ।
राजा दशरथ तीसरे पहर के बाद अ :पुर म पधारे । कैकेयी को वे सबसे अिधक
चाहते थे, इसिलए पहले उसी के महल म गए । वहां ितहारी से पता चला िक रानी
कोप-भवन की ओर गई है । राजा होकर कोप-भवन म प ं चे । कैकेयी अशुभ
वेष म मुंह ढं के ठी पड़ी थी । उसके मू वान् व ाभूषण इधर-उधर िबखरे थे ।
वृ राजा को वह परम सु री त णी ाणों से भी अिधक ि य थी । वे पास
बैठकर धीरे -धीरे उसके शरीर पर हाथ फेरते ए बोले– ाणि ये! तेरा यह ा हाल
दे ख रहा ं ? सच-सच बता, तुझे ा ेश है ? तू ा चाहती है ? तेरी स ता के
िलए हम अपने ाण तक दे ने को तैयार ह । तेरे कहने से हम णमा म िकसी धनी
को िनधन, िनधन को धनी और राजा को रं क और रं क को राजा बना सकते ह ।
दे वी! तेरी इ ा के िव कुछ भी करने की श हमम नहीं है । तू स हो जा
और हम अपनी मनोकामना बता दे …
राजा के ब त मनाने पर कैकेयी धीरे से बोली–महाराज! यिद आप यह ित ा
कर िक म जो क ं गी, उसे आप मान लगे, तो म अपनी इ ा आपको बता दू ं गी, नहीं
तो थ के िलए ों क ं !
काममोिहत राजा ने कहा–मािननी! म अपने ज -ज ा र के पु ों की तथा
ाण ारे राम की शपथ लेकर कहता ं िक तू जो कहे गी, वही क ं गा ।
तब कैकेयी स होकर बोली–सूय, च , पृ ी, आकाश, दे वता आिद इसके
सा ी रह । महाराज! आपने श रासुर के यु म मुझसे दो वर मां गने को कहा था ।
मने उस समय कुछ नहीं मां गा लेिकन आज मां गती ं । एक वर तो म चाहती ं िक
राम के थान पर मेरे पु भरत का अिभषेक हो; और दू सरा यह िक राम तप ी के
वेश म तुर यहां से चले जाएं और चौदह वष वन म िनवास कर ।
कैकेयी के मुख से ऐसे दा ण वचन सुनकर राजा हो गए । उनके मुख से
उस समय केवल यही उ ार िनकले–मुझे िध ार है ! इसके बाद शोक की ती ता
के कारण वे मूिचछत हो गए । मू ा भंग होने पर उ ोंने कैकेयी को ितर ार-भरी
ि से दे खा और कहा–पािपनी! कुलघाितनी! िजस राम ने तेरी इतनी सेवा की है ,
िजसने तुझे अपनी जननी से भी अिधक माना, उसके िलए तेरे मन म ऐसा दु भाव ों
उ आ? तू तो अब तक िन उसकी शंसा करती थी, उसी को अपना े पु
कहती थी; िफर तेरी बु आज इस तरह ों पलट गई िक तू मुझे ित ाब
करके उसे घर से िनकलवाना चाहती है ? कैकेयी! म अपना सव ाग सकता ं ,
पर जीते-जी अपने दय-धन राम को िवलग न होने दू ं गा । म तेरे चरणों पर िसर
रखकर िवनती करता ं िक इस हठ को छोड़ दे । इस वृ ाव था म मेरे ऊपर दया
कर । म हाथ जोड़ता ं , तेरे पैरों पड़ता ं , तू राम को वन भेजने के िलए मुझे बा न
कर ।
राजा रोते ए कैकेयी के पैरों पर िगर पड़े । कैकेयी उनकी ाथना को टु कराकर
बोली–महाराज! आप नामी स ती होकर भी ित ा से िवमुख होना चाहते ह! यह
घोर ल ा और कलंक की बात होगी । आप अपने धम और यश की र ा कीिजए ।
यिद आप मेरी बात न मानगे तो म िवष खाकर आ ह ा कर लूंगी ।
राजा उस अि यवािदनी के मुख की ओर दे खकर ‘हा राम! हा राम!’ कहते ए
िगर पड़े । उनकी दशा पागलों जैसी हो गई । कुछ दे र म वे िफर संभलकर बोले–
दु े! तू यह नहीं सोचती िक यिद म धमा ा राम को घर से िनकाल दू ं गा तो संसार
मुझे ा कहे गा? म तो समाज म मुंह िदखाने के यो भी नहीं र ं गा । जो कौश ा
दासी, िम , प ी, बहन और माता के समान मेरी संभाल करती है और केवल तेरी
स ता के िलए िजसका म अब तक अनादर ही करता रहा, उसे ा कहकर
सा ना दू ं गा? कैकेयी! म राम के िबना जीिवत नहीं रह सकूंगा । िजसने तेरा इतना
भला िकया, उसी को तू आज जाल म फंसाकर मारना चाहती है ! वा व म, यह मेरे
ही कुकम का फल है । तेरे जैसी पािपनी को गले लगाकर मने अपने हाथ से अपने
गले म फां सी की र ी डाल ली है । मेरे िलए यह घोर दु :ख और ल ा की बात होगी
िक मेरे जीते-जी राम जैसा सुपु अनाथ की तरह मारा-मारा घूमे । अतएव कैकेयी!
म तेरे पैरों पड़ता ं , मेरे ऊपर दया कर; मेरे और मेरे महान् कुल की मानमयादा को
िम ी म मत िमला…
राजा इसी तरह दे र तक रोते-िगड़गेड़ाते रहे , लेिकन कैकेयी का डय िवत
नहीं आ । धीरे -धीरे िदन बीत गया । रात म दशरथ की मनो था और भी ती हो
गई । वे ित ापाश से छु टकारा पाने के िलए ब त छटपटाए, लेिकन कैकेयी अपने
हठ पर अड़ी ही रही । जागते-रोते रात बीत गई, पर राजा के दु :खों का अ नहीं
आ । सवेरे तक उनका शरीर िशिथल और पीला पड़ गया । उस दशा म कैकेयी ने
िफर कहा–महाराज! अब शी ाितशी राम को चौदह वष का बनवास और भरत को
राजग ी दे कर मेरी अिभलाषा पूण कीिजए, अ था म आ ह ा करने जा रही ं …
दशरथ ‘ ोध से कां पते ए बोले–अनाय! मने िववाह म अि दे व के सम म
पढ़कर तेरे िजस हाथ को पकड़ा था, उसे म आज छोड़ता ं । साथ ही, म तेरे गभ से
उ भरत का भी प र ाग करता ं । तेरे या भरत के हाथों से म अपना ेतकम
भी नहीं होने दू ं गा । राम- ोिहयों से मेरा कोई स नहीं है …
महल के एक कोने म यह सब हो रहा था; बाहर का दू सरा ही रं ग-ढं ग था । सारी
महापुरी सु र ढं ग से सज गई थी, थान- थान पर तोरण-ब नवार बने थे, घर-घर
पर रं ग-िबरं गी जाएं फहरा रही थीं, भां ित-भां ित के मंगलवा बज रहे थे, चारों ओर
अद् भूत उ ास छाया था । अिभषेको व दे खने के िलए बाहर से भी झुंड के झुंड
मनु गाते-बजाते चले आ रहे थे । महल के आसपास दशकों का िवशाल समुदाय
ेक ण बढ़ता ही जा रहा था ।
धीरे -धीरे अिभषेक का शुभ मु त िनकट आ गया । रा के गणमा नाग रक,
आम त राजागण तथा अनेक ऋिष-मुिन और पुरोिहत आिद सभाभवन म आ गए ।
ऐसे अवसर पर िजसे सबसे आगे रहना चािहए था, उसको वहां पर न दे खकर सबको
आ य आ।
महिष विस ने सुम ारा राजा दशरथ के पास शी पधारने का स े श भेजा ।
उस समय तक िकसी को कैकेयी के कुच का पता नहीं था, सुम शी ता से
महल म राजा के पास गए ।
राजा दशरथ िसर नीचा िकए उदास बैठे थे । वृ म ी ने जाते ही अिभवादन
करके उनसे अिभषेको व म पधारने का अनुरोध िकया । राजा उ र म एक श
भी नहीं बोले और सुम की तरफ एकटक दे खने लगे । तब कैकेयी बोली–सुम !
महाराज रात-भर अिभषेक के िवषय म िच न करते-करते थक गए ह, उ झपकी
आ रही है ; तुम शी राम को बुलाओ!
सुम राजा ा की ती ा म वहीं खड़े रहे । कुछ दे र बाद राजा ने यं कहा–
सुम ! मेरे ारे राम को शी बुला लाओ…
सुम रथ लेकर राम के भवन म गए । राम अिभषेक के िलए सुस त होकर
बैठे थे । िपता का स े श पाते ही वे ल ण को साथ लेकर तुर चल पड़े । माग म
दशना ुक जनता ने बड़े हष से उनका अिभन न िकया, अटा रयों से यों ने
उनके ऊपर फूल और लाजा बरसाई ।
जनता को आन से आ ोिलत करके लोकािभराम राम राजधाम म प ं चे ।
जाते ही उ ोंने माता-िपता के चरणों म णाम िकया । उ र म दशरथ केवल ‘राम’
कहकर चुप हो गए । वे न तो कुछ बोल सके और न राम की ओर दे खने का ही
साहस कर सके । राम ने राजा की ओर ान से दे खा । उनके मुख पर घोर उदासी
छाई ई थी, अंगों की का और चेतना म हो गई थी । वे अ ाकुल और
िवि -से िदखाई दे ते थे । राम को यह सब दे खकर बड़ा आ य आ । उ ोंने
कैकेयी से राजा की था का रह पूछा ।
कैकेयी धृ तापूवक बोली–राम! महाराज तु ारे ही स म एक बात को
लेकर बड़े धम-संकट म पड़ गए ह । संकोचवश वे तुमसे उिचत बात कहने म
िहचक रहे ह । यिद तुम इनके वचन का मान रख सको तो म सब कुछ तु
बता दू ं ।
राम ने सिवनय कहा–दे िव! म िपता की आ ा का पालन अव क ं गा; यिद वे
मुझे आग म कूदने को भी कहगे तो म सहष कूद पडूगा । आप मेरा िव ास कीिजए;
राम दो तरह की बात नहीं बोलता ।
तब कैकेयी राम को दे वासुर-सं ाम की सारी घटना सुनाकर बोली–राम! तु ारे
ित ाब िपता से मने एक वर यह मां गा िक तुम आज ही तप ी के वेश म यहां से
चले जाओ और चौदह वष तक वन म िनवास करो । अब तुम अपने और उनके
स -धम की र ा करो । इस िवषय म महाराज की आ ा की ती ा न करो । वे
मोहवश ऐसे िकंकत िवमूढ़ हो गए ह िक उनसे कुछ भी कहते नहीं बनता ।
कैकेयी के मुख से मृ ु-तु दु ःखद वचन सुनकर भी राम िथत नहीं ए ।
उ ोंने स मन से कहा–माता! म िपताजी की ित ा की र ा के िलए आज ही
यहां से चला जाऊंगा । आप भरत को बुलवा लीिजए; म अपना सव उ दे ने को
तैयार ं ।
इस पर कैकेयी पुनः बोली–राम, जब तक तुम नहीं जाओगे, महाराज इसी तरह
मोह-शोक म डूबते-उतराते रहगे, इसिलए तुम यशाशी दं डक वन को चले जाओ ।
राजा दशरथ इसे सुनते ही ‘िध ार है ’ कहकर शोक से मूिचठत हो गए । राम
कैकेयी को वन जाने का वचन दे कर अपनी माता से िवदा लेने गए । उस समय
उनका िच माया-मोह-मु स ासी की भां ित शा और िवकार-रिहत था । माग
म उ ोंने अिभषेक के िलए सुस त मंडप की तरफ दे खा तक नहीं । अपने छ -
चमर आिद ागकर वे स तापूवक कौश ा से िमलने गए । ल ण भी साथ थे ।
कौश ा उस िदन ब त स थीं, ोंिक उस िदन उनके पु का अिभषेक होने
वाला था । राम ने जाकर उ अपने वन-गमन का संवाद सुनाया । उस दय-
िवदारक समाचार को सुनते ही वे मूिचछत होकर िगर पड़ीं । चैत होकर उ ोंने
राम से सारा हाल पूछा और अपने कम को दोष दे ते ए कहा–बेटा! इससे बढ़कर
दु :ख की बात और ा होगी! मेरे भा म तो सुख था ही नहीं । सोचा था िक पु
होने पर मेरे िदन पलटगे, सो वह भी नहीं आ । म िनरं तर कैकेयी की सेवा म लगी
रहती थी, लेिकन उसकी दासी के बराबर भी मेरा मान नहीं था । अब तो कोई मुझे
और भी न पूछेगा । मेरे त-अनु ान आज िन ल हो गए ।
तेज ी ल ण उस समय तक चुप थे । कौश ा की बात सुनकर वे बोले–माता!
राजा एक तो कामी ह, दू सरे अित वृ , इससे उनकी बु हो गई है । भाई राम
ने कोई अपराध नहीं िकया है , िजसके िलए उ रा से िनवािसत िकया जाए । कौन
धमा ा िपता ऐसे स ु का प र ाग करे गा !
इसके बाद वे और भी अिधक ु होकर राम से बोले–भैया! आप अभी चलकर
अपना अिभषेक कराइए । हमारे रहते कौन आपको िसंहासन पर बैठने से रोकेगा ।
िपता भी यिद कैकेयी के कहने से इसम बाधक होंगे तो म उस बूढ़े, कामी, िनल ,
अधम , अिववेकी को आज अव मा ं गा । म अपने बाणों से भरत के िहत-साधकों
का सवनाश कर डालूंगा !
बीच ही म कौश ा ने राम से िफर कहा–बेटा! तु ारे िपता को कैकेयी ने बहका
िलया है , तुम उनकी अनुिचत बात मत मानो तु ारे ऊपर मेरा भी कुछ अिधकार है ।
म तु वन जाने से रोकती ं ।
राम ने िवनयपूवक उ र िदया–मां ! िपताजी की आ ा का उ ंघन करने की
श मुझम नहीं है । उनकी आ ा मेरे िलए ही नहीं, तु ारे िलए भी मा है , वे मेरे
िपता और तु ारे पित ह । अब तुम मुझे आज ही वन जाने की अनुमित दो ।
इसके बाद वे ल ण से बोले–ल ण! तुम मेरी बु के अनुसार चली । ोध-
शोक से िणक आवेश म धम की हािन करना उिचत नहीं है । अब तुम मेरे वन-
गमन की तैयारी करो । इसम महाराज और माता कैकेयी का कुछ दोष नहीं है । यह
सब भा का खेल है । जीवन म ऐसा उलट-फेर, चढ़ाव-उतार होता ही रहता है ।
ल ण पुनः दप से बोले–भैया! भा के भरोसे रहना तो कापु षों का काम है ।
म अपने पौ ष-परा म से आपको राजिसंहासन पर बैठाऊंगा । यिद िकसी ने
िवरोध िकया तो म अपने बा बल से अयो ा को मनु -रिहत बना दू ं गा ।
राम ग ीर होकर बोले–ल ण! अधम और अपवाद से यु रा मुझे नहीं
चािहए । म िपता के स -धम की र ा के िलए आज ही वन को जाऊंगा । मेरे जैसे
के िलए रा -लाभ और वनवास म कोई िवशेष अ र नहीं है । मुझे तो इनम
से वनवास ही महान अ ुदयकारक जान पड़ता है । तुम अनायोंिचत िवचार ाग दी
और शी मेरी या ा की तैयारी करो ।
ल ण चुप हो गए । कौश ा रोती ई राम से िलपट गई और यं भी उनके
साथ वन जाने का आ ह करने लगीं । राम ने उ समझा-बुझाकर वन जाने की
आ ा मां गी । कौश ा उ एकटक दे खती ई बोलीं–अ ा राम! जाना ही चाहते
हो तो जाओ । होनहार को कौन टाल सकता है । म चौदह वष तक तु ारी राह
दे खती बैठी र ं गी । तुम सकुशल लौटना । िजस धम का तुम िन पालन करते हो,
वही तु ारी र ा करे , माता-िपता के पु तु ारे सहायक हों, सभी िदशाएं तु ारे
िलए मंगलमयी हों, दे वता-मनु , पशु-प ी, पृ ी-आकाश, जल-वायु, सूय-च सभी
तु ारे ित क ाणकारी हों । मेरे त-पूजन का सम फल तु िमले; तु ारा
शा -अ यन सफल हो! लोक की दै वी श यां तु ारे अनुकूल हों! बेटा! जाओ,
म रोम-रोम से तु आशीवाद दे ती ं । तु ारी वनया ा तु ारे िलए और सभी के
िलए शुभ हो ।
धमशील कौश ा ने शुभ या ा के िनिम अनेक धािमक अनु ान िकए, और
िफर राम को दय से लगाकर िवदा कर िदया । राम वहां से सीता के पास गए ।
सीता को इन बातों का कुछ भी पता नहीं था । राम ने उ भी सारा हाल बताया और
अ म िवदा मां गते ए कहा–सीता! अब हम लोग चौदह वष बाद ही िफर िमलगे ।
तुम मेरी वृ ा माता की संभाल रखना और सदा भरत की इ ा के अनुकूल ही
चलना, ोंिक अब वे एक तो कुल के ामी, दू सरे दे श के राजा भी ह । तुम उनके
सामने भूलकर भी मेरी शंसा न करना, ोंिक ऐ यशाली पु षों को दू सरे की
शंसा अस होती है ।
सीता अ ाकुल होकर बोलीं–आयपु ! यह कैसे संभव है िक आप तो वन
म रह और म अयो ा के महलों म िनवास क ं । आपके िबना मेरे िलए ग का
वैभव भी तु है । म छाया की भां ित आपके साथ र ं गी । म आपकी अ ां िगनी और
सहगािमनी ं । मुझे आपके साथ रहने का अिधकार है । वन म आपके साथ दु :ख
भोगने पर भी मुझे महलों से अिधक सुख िमलेगा । आप मुझे भी साथ ले चिलए,
अ था आपके जाते ही म ाण ाग कर दू ं गी ।
राम ने वन के ेशों का वणन करके सीता को रोकना चाहा, पर वह बोली–
ामी! यह आपकी बड़ी कायरता है िक आप भयवश मुझे यहां छोड़कर अकेले
जाना चाहते ह । यिद मेरे िपता यह जानते िक आप पु ष के प म व ुतः ी ह तो
वे मुझे आपके हाथों म न सौंपते! आप अपने पौ ष की लाज रखने के िलए मुझे साथ
लेते चिलए । आपका संग मेरे िलए ग है और आपका िवयोग नरक! म आपका
साथ न छोडूगी ।
सीता रोती ई राम से िलपट गई । राम ने िववश होकर उ भी अपने साथ
चलने की ीकृित दे दी । उसी समय ल ण ने भी साथ चलने का हठ िकया । ब त
समझाने पर भी वे नहीं माने और बड़े भाई के पैर पकड़कर रोने लगे । अ म राम
ने कहा–अ ा ल ण! यिद कुटु ीजन तु मेरे साथ जाने की अनुमित द तो
गु वर विस के घर से मेरे सुरि त िद अ -श ले आओ और शी वन-गमन
की तैयारी करो ।
ल ण ने शी जाकर माता और प ी से वन जाने की ीकृित ली; िफर वे
विस के घर से अ -श लेकर राम की सेवा म उप थत हो गए । राम ने अपना
और सीता का सब सामान ा णों और सेवकों को दान कर िदया । तद र वे अपने
सेवकों से िवदा लेकर सीता-ल ण के साथ राजा दशरथ के पास गए ।
राम के वन-गमन का समाचार सारी अयो ा म फैल चुका था । चारों तरफ हष
के थान पर शोक छा गया । लोग बार-बार कैकेयी और दशरथ को िध ारते ए
राम के गुणों को याद करके रोने लगे । राम को राजा के महल की ओर जाते दे खकर
सब हाहाकार कर उठे ।
राजा दशरथ उस समय घोर मानिसक था से तड़प रहे थे । उ ोंने कौश ा-
सुिम ा को भी वहां बुलवा िलया था । राम उनसे अ म िवदा लेने आए । राजा उ
दे खते ही उठ खड़े ए और ेम से िवहल होकर उनकी ओर दौड़े लेिकन बीच ही म
मू त होकर िगर गड़े । राम-ल ण ने उ उठाकर पलंग पर िलटाया ।
राजा के चैत होने पर राम ने हाथ जोड़कर उनसे िनवेदन िकया–िपताजी! आप
कृपा करके मुझे द कवन जाने की अनुमित दीिजए । सीता और ल ण भी मेरे
साथ जाने का आ ह कर रहे ह और आपकी आ ा लेने आए ह । आप हम लोगों के
िलए िकसी कार का शोक न कर…
राजा राम की ओर अिनमेष ि से दे खकर बोले–राम! कैकेयी ने मेरी मित हर
ली । तुम मुझे पकड़कर ब ीगृह म डाल दो और यं आज ही अयो ा के राजा
बन जाओ ।
राम ने बड़ी न ता से कहा–िपताजी! मुझे रा का लोभ नहीं है । म आपके
वचन की र ा के िलए अब चौदह वष वन म ही िनवास क ं गा । आप मुझे जाने की
आ ाद।
राजा से कुछ कहते नहीं बनता था । कैकेयी उ बार-बार फटकारकर कहने
लगी–महाराज! शी जाने को किहए न! अब अिधक िवल न होना चािहए ।
राम यं शी जाने के िलए आ ह कर रहे थे । ऐसी प र थित म राजा दशरथ
िववश होकर बोले–राम! तुम धम ती हो; कोई तु कत -माग से िवचिलत नहीं
कर सकता । अत: व ! तुम क ाण के िलए, आ वृ के िलए और सकुशल
लौट आने के िलए स मन से वन को जाओ । म स की शपथ खाकर कहता ं
िक म अपनी त इ ा से तु वन जाने को नहीं कह रहा ं , पािपनी कैकेयी
मुझे अपने जाल म फसाकर ऐसा अनथ करवा रही है । राम! तुम मेरे धम और स
की र ा के िलए बड़ा दु र कम करने जा रहे हो । म तु रोम-रोम से आशीवाद
दे ता ं , तु ारा माग भयरिहत हो । बेटा! अब तुम संभवतः सदा के िलए मुझ से
िबछु ड़ रहे हो, ोंिक तु ारे लौटने तक म जीिवत नहीं र ं गा । इसिलए मेरे साथ
एक रात और िबता लो, तब जाओ । म तु एक िदन जी भरकर दे ख लू, तु ारे साथ
बैठकर भोजन कर लू, यही मेरी अ म लालसा है । मुझे और अपनी दु : खनी माता
को दे खो; आज हम दोनों के िलए क जाओ, कल सवेरे चले जाना ।
राजा का यह क णाजनक वचन सुनकर राम ने उ र िदया–िपताजी! म माता
कैकेयी को आज ही जाने का वचन दे चुका ं । अतएव मुझे आज ही जाने दीिजए ।
आपके धम और यश की र ा के िलए म बड़े हष ने वन को जा रहा ं ; चौदह वष
बीतते ही पुनः लौटकर आपके दशन क ं गा ।
दशरथ इसके आगे ा कहते! वे राम को छाती से लगाकर मू त हो गए ।
वहां के सभी लोग रोने लगे । थोड़ी दे र म राजा चैत ए और पास म खड़े सुम से
बोले–सुम ! राम की वनया ा का यथोिचत ब करो । उनके साथ धन-धा का
भंडार जाएगा, चतुर सेवक और मागदशक जाएं गे और मेरी चतुरंिगणी सेना भी
जाएगी ।
कैकेयी इसे सुनते ही चट-पट बोल उठी–महाराज! सब कुछ तो आप राम को दे
रहे ह, िफर भरत इस िन ार रा को लेकर ा करे गा! राम को तप ी की तरह
जाना चािहए ।
राजा तथा सभी उप थत लोग कैकेयी को िध ारने लगे । तब राम ने यं
िनवेदन िकया–िपताजी! जब मने रा ाग ही िदया तो सेना और राज स दा से
मुझे ा योजन! अब म सब कुछ भरत के िलए छोड़ जाता ं । मुझे तो अब
व ल-व चािहए... ।
कैकेयी तुर व ल-व ले आई और उ राम को दे कर बोली–लो राम, इ
पहनकर शी जाओ ।
राम ने उ लेकर पहन िलया । िफर कैकेयी ने सीता को भी तप नी का व
िदया । सीता उ पहनना नहीं जानती थीं, राम ने उसको उनकी रे शमी साड़ी के
ऊपर लपेट िदया । यह दे खते ही सब िच ा उठे –दशरथ, तु िध ार है ।
रािनयां सीता को िलपटाकर रोने लगीं । कुलगु विस की आं खों म आं सू आ गए ।
राजा दशरथ ब त ही दु :खी होकर कैकेयी से बोले–कैकेयी! तूने तो राम को ही
वनवास का वर मां गा था, िफर सीता के साथ ऐसा दु वहार ों कर रही है । म
अपनी पु वधू को इस वेश म नहीं दे ख सकता ।
इसके बाद राजा िसर नीचा करके बैठ गए । राम ने उनसे अ म िवदा मां गी ।
राजा कुछ दे र तो ‘राम-राम’ करते ए िवलाप करते रहे ; िफर सुम से बोले–
सुम ! राम को उ म रथ म बैठाकर अयो ा से बाहर प ं चा आओ । संसार म भले
आदिमयों को भलमनसाहत का बुरा फल ही िमलता है ; तभी तो सदाचारी पु माता-
िपता ारा घर से िनवािसत कर िदए जाते ह ।
सुम शी ही एक सु र रथ ले जाए । राजा ने उसम सीता के िलए उ म व
आिद रखवा िदए । इसके अन र राम-ल ण-सीता ने माता-िपता और गु जनों के
पैर छु ए । रािनयां तीनों को दय से लगाकर रोने लगीं ।
ल ण ने अपनी माता सुिम ा से जब अ म िवदा मां गी तो उस मन नी ने पु
का िसर सूचकर कहा–बेटा! बड़े भाई की सेवा के िलए म सहष तु वन जाने की
आ ा दे ती ं । छोटा भाई बड़े भाई के अनुशासन म रहे , यही लोक का सनातन धम
और उ कुल की पर रा है । राम के िलए तु अपना ाण भी दे ना पड़े तो
अव दे दे ना, घर का मोह न करना; राम को िपता, सीता को माता और वन को
अयो ा समझना । जाओ वीर पु ! िनि होकर राम के साथ जाओ…जाओ…
अ म, वहां से चलने के पूव राम सबके आगे हाथ जोड़कर बोले–आप सबसे
मेरी यह ाथना है िक इतने िदनों तक एकसाथ रहने के कारण यिद जाने या अनजाने
म मुझसे कोई अपराध आ हो, अथवा मने िकसी को भी कभी अि य वचन कहा हो
तो उसके िलए आप लोग मुझे मा कर द । अब म आप सबसे िवदा मां गता ं ।
सारा राज-भवन दन- न से गूंज उठा । राम सीता और ल ण के साथ
महल से बाहर िनकले । अ :पुर की यां भी रोती-िबलखती बाहर चली आईं ।
ऋिषपथ पर थान–रथ म राम-ल ण के अ -श रखे गए; िफर सीता को
उसम बैठाकर दोनों भाई भी बैठ गए । इसके उपरा सुम ने घोड़ों को आगे
बढ़ाया ।
राम के थान करते ही राजधानी म हलचल मच गई । मनु ही नहीं, पशु-प ी
भी शोक िवकल होकर िच ाने लगे । सारी जनता ु हो गई । िकतने ही लोग
राम का वन-गमन दे खकर मू त हो गए । पुरवासीगण अपने-अपने शरीर और
घर-बार की सुध-बुध भूलकर रथ के पीछे दौड़ पड़े । लोग बार-बार सुम को
पुकारकर कहते थे–म वर! घोड़ों को धीरे चलाइए, हम जी भरकर राम को दे ख
लेने दीिजए, अब हम राम कहां िमलगे? सबकी दशा पागलों जैसी हो गई थी ।
राजप रवार की दशा और भी शोचनीय थी । राजा दशरथ रािनयों के साथ महल
से बाहर िनकले और पैदल ही राम के रथ के पीछे दौड़े । उनके मुख से बार-बार
यही िनकलता था–राम, मेरे राम! मुझे छोड़कर कहां जाते हो! कौश ा का भी यही
हाल था । वे रथ के पीछे -पीछे ‘हा राम, हा ल ण, हा सीता, कहती ई पूरी श
से दौड़ी चली जाती थी । राम उस दय-िवदारक को अिधक नहीं दे खना चाहते
थे । उ ोंने रथ को वेग से आगे बढ़ाने की आ ा दी । इतने म दू र से राजा दशरथ ने
पुकारा-सुम ! रथ को खड़ा कर दो ।
राजा और राम के पर र िवरोधी आदे शों से सुम दु िवधा म पड़ गए । राम
उनके मनोभाव को समझकर तुर बोले–म वर इस समय आप मेरी ही आ ा के
अनुसार काय कीिजए । लौटने पर यिद राजा अपनी आ ा के उ ंघन का कारण
पूछे तो कह दीिजएगा िक उस कोलाहल म कुछ बात सुनाई ही नहीं पड़ी । यह म
इसिलए कहता ं िक इस प र थित म हम िजस उपाय से भी हो सके, दु :ख को
घटाने का ही य करना चािहए । मेरे कने से राजा का ेश और भी बढ़ जाएगा
अत: रथ को शी बढ़ाइए ।
सुम ने शी गामी घोड़ों को वेग से हां का । राजा दशरथ ने रथ के पीछे िफर
भागने की चे ा की, लेिकन म यों ने उ पकड़ िलया । वे अ ुपूण ने ों से एकटक
उस वेगगामी रथ को दे खने लगे । जब वह आँ खों से ओझल हो गया तो मोही राजा
उसके पीछे की उड़ती ई धूल को उचक-उचककर दे खने लगे । उस समय उसका
शरीर पु दशन के िलए ऊपर बढ़ता-सा जान पड़ता था । कुछ दे र म जब धूल का
दीखना ब हो गया तो वे हताश होकर पृ ी पर िगर पड़े । रािनयां उ उठाने
दौड़ीं । कैकेयी को सामने दे खकर राजा ितर ारपूवक बोले–दू र हट कुलनािशनी,
हम तुझे अपना शरीर नहीं छूने दगे ।
अ रािनयां उ उठाकर महल म ले गईं । भीतर प ं चकर राजा बोले–मुझे
राम-माता के भवन म ले चलो, मेरे िच को और कहीं शा न िमलेगी ।
उ कौश ा के भवन म ले जाया गया, पर वहां भी उनकी अ था शा
नहीं ई । वे िच ाकर कहने लगे–राम, बेटा राम! तुम हम इस तरह ागकर जा
रहे हो! अब हम इस जीवन म तु नहीं दे ख सकगे, तुम जब लौटोगे तो हम नहीं
रहगे… । राजा का िच राम म लगा था । उ आसपास कुछ सूझता ही नहीं था ।
सारा घर काटने को दौड़ता था । िदन तो िकसी कार बीत गया; राम के िवयोग की
पहली रात राजा को काल-राि जैसी भयंकर तीत ई । वे राम की एक-एक बात
को याद करके तड़पने लगे ।
उस िदन अयो ा म स ाटा छाया था । राम के िबना नगरी सूनी और उदास
लगती थी । वहां की सड़क सूनी थीं, घर-बाजार-चौपाल सूने थे; म रों के कपाट
ब थे; उस िदन िकसी ने भी स ा-पूजन आिद नहीं िकया । िकसी भी घर म चू ा
नहीं जला । पशुओं ने दाना-पानी और िचिड़यों ने दाना चुगना छोड़ िदया । िदशाएं
िदन म भी काली, भयावनी लगती थीं । लोगों को अपने तन, मन और बाल-ब ों की
भी सुध नहीं रही । सब राम के िवरह से ाकुल थे ।
उधर अयो ावािसयों की एक भारी भीड़ राम के रथ के पीछे दौड़ी जा रही थी ।
राम उनसे बार-बार लौट जाने की ाथना करते थे, लेिकन सब उनके साथ खंचे से
जा रहे थे । उनम अनेक वृ भी थे । उ दौड़ते-हां फते दे खकर राम को बड़ी दया
आई । वे रथ को रोककर सीता-ल ण सिहत पैदल ही आगे बढ़े और स ा होते-
होते तमसा नदी के िकनारे प ं चे । सब थककर चूर हो गए थे, इसिलए राम ने वहीं
डे रा डाल िदया । सुम और ल ण ने िमलकर राम-सीता के िलए कोमल प ों की
एक श ा बना दी । पुरवासी-गण भूिम पर लेट गए ।
राि म तमसा नदी के िकनारे राम ल ण से बोले–सौ ! आज वास की पहली
राि है । वन म चारों ओर स ाटा है , िदशाएं मिलन हो गई ह । यह थान रोता आ-
सा तीत होता है । यहां तुम अयो ा के राजसुखों की आकां ा मत करना । आज
अयो ापुरी म मेरे िलए हाहाकार मचा होगा । लोग मुझे ब त मानते थे । िपताजी की
न जाने ा दशा होगी । कहीं वे रोते-रोते अ े न हो जाएं । धमा ा भरत उनकी
संभाल करे गा… ।
इस कार बात करते-करते वे केवल जल पीकर तृणश ा पर लेट गए । उस
िदन िकसी ने कुछ नहीं खाया । धनुधारी ल ण दू र बैठकर पहरा दे ने लगे । सुम
भी उ ीं के पास बैठे रहे ।
राम रात रहते ही उठ बैठे और िनि त नाग रकों की ओर संकेत करके ल ण
से बोले–ल ण! कोसल रा के धनी-मानी नाग रकों को भूिम पर पड़े दे खकर मुझे
बड़ा दु :ख होता है ; ये लोग मेरे िलए घर-बार ागकर िकतना क भोग रहे ह । इनम
से एक भी े ा से अथवा मेरे कहने से नहीं लौटे गा; अतएव इनके जागने से पहले
ही हम चुपचाप चल दे ना चािहए । म ेमवश ही इ ागना चाहता ं ; इनका क
मुझसे नहीं दे खा जाता ।
पुरवािसयों को वहीं सोते छोड़कर राम-ल ण-सीता रथ-सिहत तमसा के पार
चले गए । वहां राम ने सुम से कहा–म वर! आप रथ को पहले उ र की ओर
कुछ दू र तक ले जाइए, िफर घूमा-िफराकर इधर ही लौटा लाइए–ऐसा कीिजए िक
इन नाग रकों को जागने पर हमारे माग का ठीक-ठीक पता न चले ।
सुम ने ऐसा ही िकया । इसके बाद राम-ल ण-सीता रथ म बैठे और अयो ा
के दि ण तपोवन की ओर चल पड़े ।
इधर जब लोगों की आं ख खुलीं तो राम को वहां न दे खकर सब चिकत एवं ख
हो गए और चारों ओर दौड़कर खोजने लगे । नदी के िकनारे िभ -िभ िदशाओं म
रथ िच दे खकर उनकी बु म म पड़ गई । ब त दे र तक इधर-उधर भटकने के
बाद सब रोते-पछताते अपने-अपने घरों को लौटे । महापुरी उजड़ी-सी लगती थी ।
स ा होने पर भी िकसी ने दीपक नहीं जलाया । अंधेरी नगरी म सव हाहाकार
मचा था ।
उधर सूय दय होते-होते राम ब त दू र िनकल गए । िदन म कोसल रा के
सुखी-स गां वों के हरे -भरे खेतों तथा पु त वनों को दे खते-दे खते वे शीतल
जलवाली गोमती नदी के िकनारे प ं चे । उसके पार आगे जाने पर का (सई)
नदी िमली । वहां कोसल रा की दि णी सीमा समा होती थी । का को
पार करके राम ने अ ुपूण ने ों से अपनी ज भूिम को दे खा और सुम से कहा–
सुम ! वह िदन कब आयेगा जब म वन से लौटकर माता-िपता से िमलूंगा और सरयू
के िकनारे सुपु त वनों म िवहार क ं गा ।
इसके बाद वे अयो ा की ओर मुख करके खड़े हो गए और हाथ जोड़कर बोले–
इ ाकुवंशीय राजाओं से प रपािलत पु र े अयो ा! हम तुमसे िवदा मां गते ह; अब
तो चौदह वष बाद वन से लौटकर ही हम पुन: तु ारा दशन करगे… ।
सीमा ा के ब त से लोग राम के पास इकटू े हो गए और उनके वनगमन का
वृता सुनकर रोने लगे । चारों ओर से यही िन आती थी–कामी राजा दशरथ को
िध ार है ! इस रा को छोड़कर चली, राम के साथ वन म रह ।
अपने ित ामवािसयों की ऐसी ीित-सहानुभूित दे खकर राम की आं खों म आं सू
आ गए । वे सबसे िवदा लेकर पुनः आगे बढ़े और स ा होते-होते गंगा के िकनारे
ृंगवेरपुर नामक थान पर प ं चे । वहां उ ोंने एक इं गुदी वृ के नीचे डे रा डाला ।
ंृगवेरपुर म नीच जाित के िनषादों का राजा गुह िनवास करता था । दशरथ और
राम से उसकी बड़ी घिन ता थी । राम के शुभागमन की सूचना पाते ही वह ब ु-
बा वों और सेवकों को साथ लेकर ागताथ दौड़ पड़ा । िनषादराज को आते
दे खकर राम यं उठकर आगे बढ़े और उससे ेमपूवक गले िमले । गुह अयो ा
के यश ी राजकुमारों को मुिनवेश म दे खकर ख हो गया और अ न ता से
बोला–राम! आज यह मेरा परम सौभा है िक आप हमारे जनपद म पधारे ! अयो ा
की भां ित ृंगवेरपुर को भी आप अपना ही समझे और मेरे िनवास- थान पर चलकर
सुख से ठहर । हम लोग यथाश आपकी सेवा करगे ।
इतने म िनषादराज के ब त से-सेवक नाना कार के ंजन लेकर आ प ं चे ।
राम ने गुह का ढ़ आिलंगन करके कहा–िनषादराज! म तो िपता की आ ा से
राजपाट तयागकर तप ी का जीवन तीत करने िनकला ं ; इसिलए िकसी ाम
या पुर म जाना और राजसी व ुओं का उपभोग करना मेरे िलए अनुिचत होगा ।
मुझे िकसी व ु की आव कता नहीं है ।
राम के रा -िनवासन से गुह को ब त दु :ख आ । वह हाथ जोड़कर बोला–
राम! म बड़ी स ता से अपना स ूण रा आपके चरणों म अिपत करता ं । आप
राजा होकर यहीं िनवास कर ।
राम ने मुिन त का प र ाग नहीं िकया । उस िदन भी वे केवल जल पीकर इं गुदी
वृ के नीचे तृणश ा पर सो गए । ल ण भाई-भाभी के शयन का ब करके
रात म पहरा दे ने लगे । गुह और सुम उ ीं के पास बैठ गए और रात-भर राम के
ही िवषय म बात करते रहे ।
ात:काल राम ने एक सु र नाव म अपना सामान रखवाया । उसके बाद वे
सुम से हाथ जोड़कर बोले–म वर! अब हम लोग आपसे िवदा मां गते ह । आप
अयो ा लौट जाइए और िजस कार भी हो सके महाराज के दु :ख को दू र करने की
चे ा कीिजए…िपताजी के चरणों म णाम किहए और यह बता दीिजएगा िक हम
रा - ाग और वनवास का कुछ भी ेश नहीं है ; हम लोग चौदह वष बाद पुन:
उनकी सेवा म उप थत होंगे । हमारी माताओं से भी ऐसा ही कह दीिजएगा । भरत
से मेरा यह स े श किहएगा िक वे सब माताओं के साथ एक-सा वहार कर और
महाराज को सब कार से स रख ।
उस अवसर पर ल ण भी सुम से बोले–म वर! आप मेरी ओर से राजा से
पूिछएगा िक उ ोंने राम जैसे िनरपराध े पु का प र ाग ों िकया! िजसके
च र से िपतृ-भाव नहीं कट होता, उसे म िपता नहीं मानता; मेरे ाता, िपता,
ामी सब कुछ एकमा राम ह । सवि य राम को घर और रा से िनवािसत करके
राजा ने लोक-िव आचरण िकया है । ऐसे लोक ोही को राजा होने का
अिधकार नही है …
राम ने बीच ही म सुम से कहा–आय सुम ! इन बातों को महाराज से न
किहएगा । उनके िच को दु :खी करना उिचत नहीं है । अब आप अयो ा के िलए
थान कर ।
वयोवृ सुम बालकों की तरह रोते ए बोले–राम, अपने इस वृ सेवक पर
कृपा कीिजए; मुझे भी अपने साथ लेते चिलए । म इस खाली रथ को लेकर अयो ा
नहीं जाऊंगा… ।
राम ने कहा–म वर! मुझे भी आपसे िबछु ड़ने म दु :ख हो रहा है , लेिकन राजा
और रा के िलए आपका यहां से लौट जाना ही ेय र है । आपके जाने से
कैकेयी को मेरे वन-गमन का पूण िव ास हो जाएगा और वह मेरे िपता को इस
स म अिधक क न दे गी ।
सुम मौन हो गए । राम ने वहीं बरगद का दू ध मंगवाया । उससे दोनों भाइयों ने
अपनी-अपनी जटाएं बनाईं । िफर वे गुह तथा सुम से िवदा लेकर सीता के साथ
नाव म बैठे और गंगा पार करके व दे श म प ं चे । आगे-आगे राम, बीच म सीता
और पीछे ल ण–इस म से तीनों वन के दु गम माग पर पैदल ही चल पड़े ।
िदन-भर चलने के बाद वे शाम को एक पेड़ के नीचे िटक गये । ल ण ने राम-
सीता के िलए कोमल प ों की सु र श ा बना दी । सबने साथ बैठकर वन के कंद-
मूल खाए ।
उस िनजन वन म राम अपने एकमा साथी ल ण से बोले–ल ण! आज
सुम भी चले गए । हम लोग अकेले ह । मुझे अयो ा की याद आ रही है । िपताजी
हम लोगों के िवयोग म िकतने दु :खी होंगे । कोई मूख भी ी के कहने से ऐसा अनथ
न करे गा, जैसा िक उ ोंने िकया है । मादास कािमयों की ऐसी ही दु गित होती है
। ल ण! म अपने बा बल से अभी अयो ा का रा ले सकता ं , िक ु अधम
और अपयश के भय से ऐसा नहीं करता । मुझे रा हािन का कुछ भी दु :ख-शोक
नहीं है । म सबसे अिधक उस माता के िलए िच त ं , िजसे मुझसे सुख की जगह
दु :ख ही िमला । म उसके िकसी काम नहीं आया । मुझे िध ार है ! ल ण! तुम
कल ही अयो ा चले जाओ और माता कौश ा और सुिम ा की संभाल करो ।
कैकेयी बड़े तु भाव की ी है ; वह भरत का बल पाकर हमारी-तु ारी माता
पर बड़ा अ ाचार करे गी…
इतना कहते-कहते राम की आं खों म आं सू आ गए । ल ण दे र तक पास
बैठकर उनको सा ना दे ते रहे । कुछ दे र बाद राम सीता के साथ पणश ा पर सो
गये; ल ण धनुष-बाण लेकर पहरा दे ने लगे ।
ातःकाल तीनो आगे बढ़े और सं ा होते-होते गंगा-यमुना के समीप महिष
भार ाज के आ म म प ं चे । भार ाज ने उ स ानपूवक अपने आ म म
ठहराया ।
दू सरे िदन राम महिष से आ ा लेकर आगे बढ़े और यमुना को पार करके दो
िदनों की या ा के बाद िच कूट प ं चे । वहां की शोभा दे खकर उनका िचत स हो
गया । ल ण ने म ािकनी नदी के िकनारे एक सु र पणकुटी बना दी । महा ा
राम उसी म सीता-ल ण के साथ बड़े सुख से रहने लगे । कृित के सुखद, शा ,
मनोरम वातावरण म वे रा - ाग और ि यजनों के िवयोग से तिनक भी िथत
नहीं ए और ल ण से बोले–ल ण! मेरा वनवास सफल हो गया; उससे मुझे दो
फल िमले–एक तो िपता के धम की र ा, दू सरा भरत का उपकार ।
अयो ा म हाहाकार–इधर सुम खाली रथ लेकर अयो ा लौटे । उस समय
तक लोगों को यह आशा थी िक राजम ी कदािचत् राम को समझा-बुझाकर लौटा
लाएं गे । उस आशा पर भी पानी िफर गया । लोग दौड़-दौड़कर सुम से पूछते थे–
म वर, राम कहां ह, उ आप कहां छोड़ आए?
सुम ा कहते! वे मुंह लटकाए ए सीधे राजमहल म गए । उ अकेले आते
दे खकर रािनयां हाहाकार कर उठीं । राजा ने होकर पूछा–सुम ! राम कहां
गए? मेरा बेटा राम इस समय कहां होगा, ा खाता होगा? सुम ! उसने िवदा होते
समय तुमसे कुछ कहा हो तो बताओ!
सुम ने रोते-रोते सारा हाल कह सुनाया । राजा अधीर होकर इस कार लाप
करने लगे–हा राम, हा ल ण, हा सीता, तुम लोग कहां हो! तु पता नहीं होगा िक
तु ारा िपता अनाथ की तरह तड़प-तड़पकर मर रहा है । आज मरते समय म अपने
ारे ब ों का मुंह दे खना चाहता ं , पर नहीं दे ख सकता–यह और कुछ नहीं, मेरे
पापों का ही फल है ।
कौश ा का इससे भी बुरा हाल था । वे िसर-छाती पीट-पीटकर रो रही थीं और
बार-बार सुम से यही कहती थीं िक मुझे िकसी तरह बेटे के पास प ं चा दी । राजा
उनकी दशा दे खकर और भी ख हो गए और उनसे अपने अपराध के िलए मा
मां गने लगे ।
राम को अयो ा से गए छः िदन हो गए थे । आधी रात के समय राजा दशरथ को
रह-रहकर अपने पूव कम का रण होने लगा । वे कौश ा के पास बैठकर आह
भरते ए बोले–कौश ा! मनु जैसा भी शुभ या अशुभ कम करता है , उसे वैसा ही
फल िमलता है । मने युवाव था म एक दु म िकया था, उसी का द आज मुझे
भोगना पड़ रहा है –पहले जो बीज बोया था, उसी के फलने का अब समय आ गया है

राजा अपने पूवकृत अपराध को रण करके कहने लगा–कौश ा! मेरे हाथों से
जो दु म आ था, उसे ान से सुनो । एक बार वषा ऋतु म म सरयू के िकनारे
िशकार खेलने गया था । उन िदनों मुझे श वेधी बाण चलाने का सन था । म
अ ेरे म िशकार की ताक म बैठा था; एकाएक नदी के िकनारे से हाथी के गजन
जैसा श सुनाई पड़ा । मने उसी को ल करके एक श वेधी बाण चला िदया ।
ण ही भर बाद मुझे दू र पर िकसी मनु का हाहाकार सुनाई पड़ा । म घबराकर
उस ओर गया । वहां एक त ण तप ी घायल पड़ा तड़प रहा था, पास ही एक िम ी
का घड़ा भी पड़ा था । मुझे दे खते ही वह मरणास तप ी बोला–हाय! तुमने मुझे
अकारण ों मारा? म तो एक वनवासी था, अंधे मां -बाप के िलए पानी लेने आया था
। वे ास से ाकुल होकर मेरी ती ा करते होंगे और अब तो पानी के िबना वे मर
ही जाएं गे; उनका एकमा सहारा तुमने छीन िलया! अब इतनी कृपा करो िक उनके
पास जाकर यह समाचार बता दो… ।
…वह मुझे अपनी कुटी का रा ा बताकर तड़पता आ मर गया । म कुछ दे र
तो वहीं खड़ा रहा, िफर घड़े म जल लेकर उस मृत तप ी के आ म म गया ।
वहां उसके बूढ़े अ े मां -बाप बैठे थे । मेरे पैरों की आहट पाकर वे बोले–बेटा
वणकुमार! इतनी दे र कहां रहे ? हम ास से मर रहे ह...बोलो, बेटा!
मने लड़खड़ाती जीभ से उ र िदया–महा न् म आपका पु वणकुमार नहीं,
अयो ा का राजा दशरथ ं । इसके बाद डरते-कां पते ए मने उ वण की मृ ु
का दु :ख वृता सुनाया और अपनी भूल के िलए मा मां गी । उसे सुनते ही दोनों
अधमरे -से ए दा ण िवलाप करने लगे । उनके कहने से म उ उस तप ी के शव
के पास ले गया । दोनों उस शव से िलपटकर बड़ी दे र तक रोते रहे , िफर अपने
इकलौते पु की ह ा से ु होकर मुझे शाप दे ते ए बोले–राजन्, िजस तरह आज
हम पु के िवयोग म तड़प-तड़पकर मर रहे ह, उसी तरह एक िदन तुम भी मरोगे ।
मुझे यह शाप दे कर वे दोनों वहीं मर गए ।
दे वी! आज वह शाप ितफिलत होने जा रहा है । मेरी ृित ीण होती जा रही
है , इ यां िनज व हो गई ह, िच िवकल है । मेरा ाण अब इस शरीर से िनकलना
ही चाहता है । आज तो राम के श से ही मेरी जीवन-र ा हो सकती है पर वह
दु लभ है । मने राम के साथ िकतना अनुिचत वहार िकया, िफर भी उसने तो मेरा
भला ही िकया । मने उस िनरपराध पु को घर से, रा से िनकाल िदया, लेिकन
उसने मेरे िव एक श भी नहीं कहा । राम मेरी ेक बात को सदा मानता ही
रहा; कभी उसने मेरे सामने िसर नहीं उठाया । इससे अिधक दु :ख की बात और ा
होगी िक म मरते समय अपने उस ारे पु का मुंह भी नहीं दे ख सकता!
यह कहते-कहते राजा सहसा िच ा उठे –हा राम! हा मेरे शोकहतां राम, हा
िपतृव ल राम, मेरे लाल! मेरे कुलदीपक, मेरे नाथ, रघुन न राम! तुम कहां चले
गए! ...कौश ा, सुिम ा! अब म न बचूंगा, मेरा अ काल आ गया ।
‘राम-राम’ िच ाते ए दशरथ ने आधी रात के बाद ाण ाग िदए । अ :पुर
की यां ौंची की भां ित न करने लगीं । सारी अयो ा अगाध शोक-सागर म
डूब गई ।
दू सरे िदन म यों ने राजा के शव को एक तेल के भरे कड़ाह म रख िदया,
ोंिक उस समय उनके दाह-सं ार के िलए वहां एक भी राजकुमार नहीं था ।
राजप रषद ने रा की भावी व था पर िवचार करके भरत को शी बुलवाने का
िन य िकया । कई कुशल राजदू त शी गामी घोड़ों पर उसी िदन भेजे गए । उ यह
आदे श िदया गया िक केकय दे श म प ं चकर भरत से कोई दु :खद समाचार न
बताएं गे, केवल यही कहगे िक राजगु ओं ने उ िकसी आव क काय से तुर
बुलाया है ।
अयो ा के राजदू त कई िदनों की किठन या ा के बाद केकय दे श प ं चे । वहां
उ ोंने भरत से राजगु ओं का संदेश कहा । भरत यं कई िदनों से अयो ा के
िलए िच त थे । संदेश पाते ही वे निनहाल से िवदा लेकर श ु के साथ चल पड़े ।
आठव िदन उ ोंने अयो ापुरी म वेश िकया । वहां का हाल िविच था । चारों ओर
उदासी छाई थी । सड़कों पर झाडू तक नहीं लगी थी, हाट-बाज़ार ब थे, सभी
िदशाएं सूनी और भयानक लगती थीं । पुरवासीगण भरत को दे खते ही मुंह फेर लेते
थे । िकसी के चेहरे पर स ता नहीं िदखाई दे ती थी ।
भरत घबराए ए सीधे महाराज के भवन म गए । वहां उ न दे खकर वे कैकेयी
के महल म गए । कैकेयी ने दौड़कर भरत को गले से लगा िलया और अपने भाई-
बाप आिद का कुशल समाचार पूछा । भरत ने सं ेप म उ र दे कर पूछा–मां ,
िपताजी कहां ह?
कैकेयी बोली–बेटा, जीव मा की जो अ म गित होती है , तु ारे िपता उसी को
ा ए; अब वे इस संसार म नहीं रहे ।
इसे सुनते ही भरत पछाड़ खाकर िगर पड़े और फूट-फूटकर रोने लगे । कुछ दे र
बाद उ ोंने िफर पूछा–मां , बड़े भाई राम कहां ह?
कैकेयी ने कहा–बेटा! राम तो सीता-ल ण के साथ वन को चले गए । उन तीनों
को घर से िनकालकर तु ारे िपता ने उ ीं के िवयोग म ाण ाग िदया । अब तु ीं
कौसल रा के ामी हो… ।
यह सब सुनकर भरत को घोर दु :ख तथा आ य आ । उ ोंने माता से सब कुछ
बताने का आ ह िकया । तब कैकेयी ने सारा हाल कह सुनाया । अ म वह
धृ तापूवक बोली–बेटा भरत! मने यह सब तु ारे िलए ही िकया है ; अब तुम
महाराज का दाह-सं ार करके ठाठ से अयो ा के राजिसंहासन पर बैठी और
रा ल ी का उपभोग करो… ।
इन बातों से भरत के मन म रा के ित अनुराग के थान पर वैरा उ हो
गया । वे कैकेयी को िध ारते ए बोले–पािपनी! यह तूने ा िकया? तेरे कारण
इ ाकुवंश का गौरव ही न हो गया । िपतृ-तु राम का थान कौन ले सकता है !
वही इस कुल और रा के ामी होंगे । म उनका दास बनकर र गा... ।
भरत के आगमन का समाचार सुनकर रा के म ीगण भी वहां आ गए ।
सबके आगे भरत ने कैकेयी की भ ना करके कहा–म यो! म शपथपूवक कहता
ं िक मेरी मां ने जो कुछ िकया, उसम मेरा हाथ नहीं है ; म इन सब बातों को जानता
भी नहीं था ।
वहां से भरत कौश ा के पास गए और उनसे िलपटकर रोने लगे । सारी रात वे
िपता और बड़े भाई की याद करके रोते ही रहे । दू सरे िदन राजा दशरथ का शव तेल
म से िनकाला गया । भरत ने च न की िचता पर उनका दाह-सं ार िकया । उसके
बाद धूमधाम से राजा का ा आ।
ा के दू सरे िदन म यों और पुरोिहतों ने भरत से िसंहासन पर बैठने की
ाथना की । भरत ने कहा–म कुल धम के िवपरीत आचरण नहीं क ं गा । यह रा
मेरे बड़े भाई राम का है । म भी उ ीं का ं । मेरे ग य िपता के वही उ रािधकारी
ह । म सम लोक के क ाण के िलए उ वन से लौटा लाऊंगा ।
इसके बाद म यों से बोले–म कल ही भाई राम को मनाने जाऊंगा । मेरे साथ
सभी कुट ीजन, पुरोिहत और म गण जाएं गे । साथ-साथ अयो ा की चतुरंिगणी
सेना और जा भी चलेगी । आप लोग या ा की तैयारी कीिजए ।
भरत की िच कूट या ा–दू सरे िदन भरत राजसेना के साथ-साथ म यों,
राजप तों और रािनयों का दल तथा सह ों पुरवािसयों का समूह लेकर चल पड़े ।
हाथी-घोड़ों और रथ-पालिकयों का तां ता लग गया ।
चलते-चलते वे ृंगवेरपुर प ं चे और रात िबताने के िलए िटक गए । िनषादराज ने
दू र से उनकी सेना का पड़ाव दे खा । वह शंिकत होकर अपने सािथयों से बोला–
दे खो, तो यह अयो ा की चतुरंिगणी सेना जान पड़ती है । मुझे तो ऐसा लगता है िक
कैकेयीपु भरत रा -लोभवश राम को मारने जा रहा है । राम मेरे ामी और मेरे
िम ह । मेरे रहते कोई उनका अिन कैसे करे गा? मेरे सािथयों! यु के िलए तैयार
हो जाओ । हमारे पास पां च सौ नाव ह । ेक नाव म सौ-सौ श धारी युवक शी
बैठ जाएं । म आगे बढ़कर भेद लेता ं । यिद वे भातृ-भाव से राम के पास जाते होंगे
तो हम उ सहष जाने दगे; अ था आज इस गंगा के िकनारे हमारा उनका ाणा
सं ाम होगा । मेरा आदे श पाते ही तुम लोग भरत की सेना को आगे बढ़ने से रोक
दे ना ।
िनषादराज गुह अपने सैिनकों को कछार म िनयु करके यं भट साम ी
सिहत भरत से िमलने गया । भरत उससे बड़े ेम से िमले । दोनों म बात होने लगीं ।
भरत ने उससे राम का पता पूछा । गुह बोला–राजकुमार! म यं आपको उनके
पास प ं चा दुं गा; लेिकन आप इतनी बड़ी सेना लेकर ों जा रहे ह? राम के ित
आपके मन म कोई दु भावना तो नहीं है ?
भरत ने कहा–िनषादराज! म िपतृ-तु भाई को स ानपूवक वन से िलवाने जा
रहा ं ।
गुह की शंका िमट गई । वह भरत के पास बैठकर बात करने लगा । भरत उसके
साथ उस इं गुदी वृ के नीचे गए, जहां राम ने एक रात तीत की थी । उनकी
तृणश ा ों की ों बनी थी । उसे दे खते ही भरत का दय भर आया । रात म वे
यं उसी तृणश ा पर लेटे ।
ात:काल गुह की आ ा से पां च सी नाव घाट पर लगा दी गईं । भरत ने बरगद
के दू ध से अपनी जटा बनाई, व ल व घारण िकया । इसके बाद वे दल-बल
सिहत नदी के पार उतरे । वहां से उ ोंने गुह के साथ भर ाज के आ म की ओर
थान िकया ।
याग प ं चकर भरत महिष भार ाज से िमले । उनके साथ िवशाल सेना दे खकर
महिष को भी कुछ शंका ई । उ ोंने पूछा–भरत! चतुरंिगणी सेना के साथ तु यहां
आने की आव कता ों पड़ी? तुम वनवासी राम का अपकार तो नहीं करना
चाहते?
भरत ने आं खों म आं सू भरकर अपने आने का योजन बताया और उनसे राम के
िनवास- थान का पता पूछा । भार ाज का संदेह िमट गया । उ ोंने राम का पता
बताकर भरत के स ूण दल को उस िदन अपने पास ठहरा िलया । दू सरे िदन वे
लोग िच कूट की ओर चले ।
चलते-चलते वह महादल िच कूट के िनकट प ं चा । उसके कोलाहल से सारे
वन म हलचल मच गई । वन के जीव-ज ु इधर-उधर भागने लगे । दू र आकाश म
धुआं उठता िदखाई पड़ा वहां पर िकसी मनु के होने का अनुमान करके भरत
उसी ओर वेग से आगे बढ़े ।
इधर से राम ने पशु-पि यों को सहसा भागते दे खा । एक ओर आकाश म
अपर ार धूल उड़ती ई िदखाई पड़ी । धीरे -धीरे कोलाहल भी सुनाई पड़ने लगा ।
राम की आ ा से ल ण एक ल े वृ पर चढ़ गए और दू र तक ि दौड़ाकर
बोले–आय! सीता को िकसी सुरि त थान म बैठाकर शी धनुष-बाण उइाइए ।
अयो ा की चतुरंिगणी सेना जा फहराती चली आ रही है । िजस भरत के कारण
इतना अनथ आ, वही हम मारने आ रहा है । आज म उसको तथा केकेयी और
म रा को भी मारकर िच की ाला शा क ं गा… ।
यह कहकर उ वीर ल ण नीचे उतरे । कटु श ों म भरत की िन ा करते ए
यु के िलए स हो गए । उ अ उ ेिजत दे खकर राम ने कहा–ल ण!
यिद म िपता की इ ा के िव भरत को मारकर यं राजा बन जाऊं तो संसार म
मेरी बड़ी िन ा होगी । लोक-िन त राजा होने म ा गौरव है ! समु -पय पृ ी
का रा मेरे िलए दु लभ नहीं है , पर म अधम से इ -पद की भी आकां ा नहीं
करता । भरत भाव से ही साधु है ; वह िन य ही ेमवश मुझसे िमलने आता होगा ।
उसके साथ यिद तुम िकसी कार का दु वहार करोगे तो उसे म अपना अपमान
समझंगा । यिद केवल रा के कारण तु ारे मन म भाई के ित ऐसा दु भाव है तो
कही । म भरत से तु सारा रा िदलवा दू ं गा । वह मेरी बात नहीं टालेगा… ।
ल ण शा हो गए । उधर भरत अपने दल को वन म खड़ा करके यं श ु
के साथ आगे बढ़े और इधर-उधर दे खते ए राम की कुिटया के सामने प ं चे । महा
तेज ी राम महिष की भां ित एक चबूतरे पर िवराजमान थे । पास ही सीता और
ल ण भी बैठे थे । बड़े भाई को उस दशा म दे खकर भरत को बड़ी ािन ई । वे
ेम से िव ल होकर उनके चरण छूने दौड़े , लेिकन बीच ही म मूिचछत होकर िगर
पड़े । राम ने दौड़कर उ उठाया और छाती से लगा िलया । दोनों की आं खों से
आं सुओं की धारा बह चली । बड़े भाई का ेहािलंगन करके भरत और श ु सीता
और ल ण से िमले ।
राम ने िमलने के बाद ही भरत से िपता का हाल-चाल और उनके आने का
योजन पूछा । भरत रोते ए बोले–भैया! िपताजी तो आपके िवयोग म इस संसार से
चल बसे । यह सब मेरी दु ा माता के कारण आ । अब आप ही हम लोगों का
सहारा ह । आप अयो ा चलकर प रवार और रा को संभािलए । हम लोग यही
ाथना करने आए ह… ।
िपता की मृ ु का संवाद सुनकर राम कुछ णों के िलए रह गए, िफर रोते
ए बोले–भरत! यह मेरा दु भा है िक मेरे कारण िपताजी को ाण- ाग करना पड़ा
। अब तो म चौदह वष बाद ही वहां जाऊंगा… ।
इसके बाद राम अपने ग य िपता को ा िल दे ने म ािकनी नदी के िकनारे
गए । वहां इं गुदी के फलों से िप दान करके वे तः बोले–पू िपता! आज
आपको दे ने के िलए मेरे पास केवल यही है । आपका वनवासी पु यं िजस व ु
से जीवन-िनवाह करता है , उसी से आपको भी तृ करना चाहता है ।
इसके अन र राम अपनी पणकुटी म लौटे तो भरत के क ों पर हाथ रखकर
रोने लगे । उधर से विस के साथ राज-प रवार की यां भी वहां आ गई । राम
दौड़कर गु तथा माताओं के चरणों पर िगर पड़े । सीता और ल ण ने भी सबका
अिभवादन िकया ।
धीरे -धीरे वहां अयो ा का पूरा दल आ प ं चा । सबके बीच म भरत राम के
चरणों पर िसर रखकर कैकेयी के अपराधों के िलए मा मां गने लगे । उ ोंने अपने
को िनद ष बताते ए राम से अयो ा लौटने की ाथना की । राम ने उ दय से
लगाकर कहा–भाई भरत! जो कुछ आ है , उसके िलए म तु अथवा माता कैकेयी
को दोषी नहीं मानता । म अब माता-िपता की आ ा के अनुसार चौदह वष वन म ही
िनवास क ं गा । तुम भी िपताजी की आ ा का स ार करो… ।
इसके बाद राम अपने कुटु यों तथा पुरवािसयों से ेहपूवक िमले । िमलते-
िमलते रात बीत गई । दू सरे िदन भरत ने राम से लौटने का बड़ा आ ह िकया । वे
उनके पैर पकड़कर मनाने लगे, राम नहीं माने । उ ोंने कहा–भरत! हमारे
स ित िपता ने जैसी व था बां धी है , हम उसी के अनुसार काय करना चािहए ।
तुम जनसमुदाय के शासक बनो, म वन का राजा बनूगा । तु ारे ऊपर राजछ की
छाया हो, म वृ ों की छाया से संतोष क ं गा; श ु तु ारी सेवा सहायता करगे और
ल ण मेरी । हम चारों भाई अपना-अपना कत करके िपता के स -धम की र ा
कर, इसी म हमारा गौरव है ।
भरत ने पुनः िनवेदन िकया–भैया, जो कुछ हो रहा है , उससे लोक म मेरी बड़ी
अपकीित होगी । आप अयो ा चलकर रा कर, म आपके थान पर चौदह वष
वन म िनवास क ं गा । इसी िवचार से म यं जटा-चीर धारण करके यहां आया
…।
गु ओं, आ ीय जनों और पुरवािसयों ने भी ब त कहा, पर ु राम लौटने के
िलए तैयार नहीं ए । भरत अ तक अपने हठ पर अड़े रहे । तब राम ने उनसे
कहा–भरत! कदािचत् तु इस बात का पता नहीं है िक तु ारे नाना ने अपनी क ा
कैकेयी के िववाह के पूव िपताजी से यह वचन ले िलया था । िक उसके गभ से उ
पु ही राजिसंहासन का अिधकारी होगा । इसके अित र दे वासुर-सं ाम म
िपताजी ने माता कैकेयी को दो वर दान िकए थे । एक से उसने तु ारे िलए रा
और दू सरे से मेरे िलए वनवास मां गा है । ऐसी दशा म महाराज के वचन का मान
होना ही चािहए । तुम अयो ा जाकर रा करो, म तु शु दय से आशीवाद
दे ता ं …
सब लोग हताश हो गए । तब महाना क िव र जाबािल राम से बोले–राम!
आप बु मान् होकर भी धम के ढकोसले म ों पड़ते ह! राजा दशरथ के धम की
र ा के िलए अपनी हािन करना, अपना राजपाट छोड़कर वन म क भोगना कोरी
मूखता है । आप अपना ाथ दे खए, धम और स के पचड़े म न पिड़ए । संसार म
कोई िकसी का माता-िपता, भाई या सगा-स ी नहीं है । शु शोिणत के संयोग से
जीव अकेला उ होता है , अकेला ही मरता है । दशरथ से आप सवथा िभ ह ।
उनका अब पृ ी पर कोई अ ब नहीं है । इसिलए उनके ित ा िदखाना,
िप दान करना थ है । भला मरा आ आदमी भी कहीं खा सकता है ! आप जो
कुछ है उसी को स मािनए, परो म िव ास न कीिजए । अब दशरथ के
जीवन के साथ उनकी सभी बात समा हो गई, उनका-आपका ा नाता? आप
इस झूठे स को भूल जाइए और ठाठ से चलकर रा कीिजए, मनमाना सुख
भोिगए । बार-बार यह शरीर नहीं िमलता… ।
जाबािल का यह धम-िव लाप राम को ि य नहीं लगा । वे होकर बोले–
महष! म ऐसा मयादारिहत आचरण नहीं कर सकता । यिद म ही े ाचारी हो
जाऊंगा तो मेरे पीछे सभी छ हो जाएं गे, ोंिक राजा का जैसा आचरण होता है ,
वैसा ही जा का भी हो जाता है । आपके बताए ए माग पर चलने से मेरा ही नहीं,
सारे लोक का पतन हो जाएगा । म िवषम से िवषम प र थित म भी स को नहीं
छोडूगा, ोंिक स पर ही यह लोक िटका है ; स म ही धम की थित है और
स ही ई र है । रा के िलए स और धम को ाग दे ने से संसार म मेरी ा
ित ा रहे गी? इस कमभूिम म आकर मनु को सदा शुभ काय ही करने चािहए…

इसे सुनकर महिष जाबािल ने कहा–राम! अयो ावािसयों को अ दु :खी
दे खकर मने केवल आपको लौटाने के िवचार से ही ऐसा कहा था, आप जैसा उिचत
समझे वैसा कर ।
महिष विस ने भी राम से लौटने का अनुरोध िकया । भरत अपने हठ पर ही
अड़े थे । राम िकसी तरह नहीं माने । अ म भरत उनकी पादु काओं को पकड़कर
बोले–अ ा भैया! अपनी ये पादु काएं मुझे दे दीिजए, म इ ीं को लेकर यहां से चला
जाऊंगा । जब तक आप नहीं लौटगे, म मुिन त धारण करके नगर के बाहर र ं गा
और इन पादु काओं को आगे रखकर वहीं से राजकाज चलाऊंगा । यिद आप चौदह
वष बीतते ही न आएं गे तो म अि म जलकर ाण दे दू ं गा ।
राम ने अपनी पादु काएं दे दीं और भरत को छाती से लगाकर कहा–भरत! अब
तुम सबको लेकर लौट जाओ । तु मेरी और सीता की शपथ है , कभी माता कैकेयी
के साथ िकसी कार का दु वहार न करना । म चौदह वष बीतते ही अव लौट
आऊंगा ।
इसके बाद राम ने माताओं और गु जनों को अ म णाम िकया, सबको
अ ुपूण ने ों से दे खा । उनका गला ऐसा ं ध गया िक वे िबना बोले ही रोते ए कुटी
के भीतर चले गए । सीता और ल ण ने भी रोते ए सबका अिभवादन िकया । सब
लोग वहां से रोते ए लौट गए ।
भरत दल-बल सिहत अयो ा लौटे । वे वहां से राम की पादु काओं को िसर पर
रखकर राजधानी के बाहर न ाम नामक थान म िनवास करने गए । म यों,
पुरोिहतों और जाजनों के आगे उन पादु काओं को िसंहासन पर थािपत करके
उ ोंने कहा–अयो ावािसयों! हमारे -आपके िलए ये पिव पादु काएं राम के चरणों
की भां ित ही व नीय ह । इनके भाव से रा म धम थािपत रहे गा । यह रा
मेरा नहीं, मेरे बड़े भाई राम का है । म इसे उनकी धरोहर मानकर य से संभालूगा ।
मेरी मां के कारण मेरे ऊपर जो कलंक लगा है , उसे िमटाने के िलए म इसी ाम म
बैठकर चौदह वष तक तप क ं गा । धमा ा राम की चरण-पादु का मेरा पथ-
दशन करगी… ।
राम की पादु काओं पर छ -चंवर आिद लगाए गए । जटा-चीरधारी महा ा भरत
सां सा रक सुख-वैभव से स ास लेकर न ाम म बस गए और वहीं से राम के नाम
पर राज-काज चलाने लगे ।
राम का िच कूट से थान–भरत के चले जाने के बाद राम ने दे खा िक वहां के
ब त-से तप ी अपना-अपना आ म छोड़कर कहीं और जाने की तैयारी म ह ।
उ ोंने एक वृ तप ी से इसका कारण पूछा । वह बोला–राम! आपके यहां रहने
से रा सराज रावण का चचेरा भाई खर शंिकत हो गया है और जन थान1 के
तप यों पर घोर अ ाचार कर रहा है । हम लोग उसी के भय से भाग रहे ह । आप
यहां से चले जाते तो हम लोगों का बड़ा उपकार होता ।
राम पहले से ही अ जाने का िवचार कर रहे थे ोंिक वहां के एक-एक थान
को दे खकर उ ेही जनों की याद आती थी और वे मोह से ाकुल हो जाते थे ।
दू सरे , भरत की सेना के िटकने के कारण वह थान हाथी-घोड़ों के मल-मू से ब त
गंदा हो गया था । इन सब कारणों से उ वह थान छोड़ना पड़ा ।

1. वतमान महारा
अर का

द कार म वेश–सीता और ल ण के साथ राम ने दं डक1 नामक महावन म


वेश िकया । हरे -भरे कानन म भां ित-भां ित के पशु-प ी ीड़ा कर रहे थे । य -त
ऋिषयों के रमणीक आ म बने थे । सारा आकाश वेद- िन से श ायमान था । राम
उस तपोवन को दे खकर अ स ए।
रा सों के अ ाचार से पीिड़त ऋिष-मुिनयों ने आगे बढ़कर दोनों धनुधर
तप यों का ागत िकया । वे राम के वनवास का वृता सुन चुके थे और बड़ी
उ ुकता से उनकी ती ा कर रहे थे । उ ोंने अितिथयों का यथोिचत स ार
करके राम से कहा–रघुन न राम! आप चाहे नगर म रह या वन म, दोनों दशाओं म
हमारे ामी और संर क ह । हम आपकी शरण म ह, रा सों के अ ाचार से हम
बचाइए!
राम ने द कार वािसयों के क को ान से सुना और उ सुर ा का
आ ासन िदया । एक रात वहीं िबताकर दू सरे िदन वे गहन वन म िव ए।
िवराध-वध–कुछ दू र जाने पर उ यमराज-सा भयंकर एक िवशालकाय दानव
िमला । वह मुंह म िधर और चब लपेटे गरज रहा था । उसने झपटकर सीता को
पकड़ िलया और राम-ल ण से कहा–अरे ढोंिगयो! मुिन का वेश बनाकर साथ म
ऐसी सु री ी ों रखे हो? यह तो मेरे काम की है , तुम लोग चुपचाप यहां से भाग
जाओ…
राम ने उसका प रचय पूछा । वह कड़ककर बोला–म महाबली िवराध ं । तुम
दोनों यहां से अभी भाग जाओ, नहीं तो म फाड़कर खा जाऊंगा ।
राम-ल ण ने त ाल उस महादे पर बाणों से हार िकया । िवराध ोध से
उ हो गया । सीता को वहीं छोड़कर उसने उन दोनों भाइयों को अपनी दीघ
भुजाओं से पकड़ िलया । उ पकड़कर वह एक ओर को चल पड़ा । सीता रोने-
िच ाने लगीं ।
राम-ल ण अधीर या िन े नहीं ए । उ ोंने उसके दोनों हाथों को मरोड़कर
तोड़ डाला । भुजाहीन रा स भूिम पर िगर पड़ा । दोनों भाइयों ने उसे अ ी तरह से
मार-पीटकर जीते-जी एक गहरे गड् ढ़े म गाड़ िदया ।
दि ण के आ मों का िनरी ण-तीनों वहां से आगे बढ़े और स ा होते-होते
महा तप ी शरभंग के आ म म प ं चे । अितवृ शरभंग उस समय े ा से
शरीर- ाग करने जा रहे थे । राम को दे खते ही वे बोले–पधा रए राम! म केवल
आपसे िमलने के िलए ही का ं । मेरी अ म लालसा पूण हो गई । आपसे मेरा
यही अनुरोध है िक यहां के ऋिष-मुिनयों का जो भी उपकार हो सके, अव कर
दीिजएगा… ।
इसके बाद महिष शरभंग म ो ारण करते ए िलत िचता म समा गए ।
ऋिष-मुिनयों ने ग य आ ा के ित ां जिल अिपत करके राम से रा सों के
अ ाचार का हाल कहा और उ ऐसे रा सों के हाथ से मारे गए ऋिषयों के ब त से
कंकाल िदखाए । राम ने पीिड़तों के ित सहानुभूित कट की । उन सबको
अभयदान दे कर वे वहां से दू र महिष सुती ण के आ म म गए ।
महिष सुती ण ने उनका ागत-स ार िकया; रा सों के अ ाचार का
रोमां चकारी वृता सुनाया और उ आसुरी श के िवनाश के िलए उ ािहत
िकया ।
दू सरे िदन राम वहां से आगे बढ़े । माग म सीता ने कहा–आयपु ! ऋिष-मुिनयों
के कारण वन म रा सों से वैर लेना ठीक नहीं जान पड़ता ।
राम ने उ र िदया–सीता! ये िनबल िन हाय साधुजन ब त आशािव ास के
साथ मेरी शरण म आए ह । इनकी र ा करना मेरा धम है । ि य लोग इसिलए
श धारण करते ह िक संसार म कहीं पीिड़तों का श न सुनाई पड़े ।
राम ने द कार के िविवध भागों म कहीं दस महीने, कहीं वष-भर, कहीं
तीन-चार मास और कहीं आठ-दस महीने िनवास करके दस वष िबता िदए । सभी
थानों पर उ ोंने ऋिषयों को रा सों से सं और पीिड़त दे खा । दस वष बाद वह
लौटकर िफर महिष सुती ण से िमले । सुती ण ने उ महिष अग 1 से िमलने की
स ित दी ।
राम-अग िमलन–वहां से पां च योजन दू र दि ण िदशा म आय-जाित के
भावशाली नेता, आय स ता के अ दू त महिष अग िनवास करते थे । सीता-
ल ण सिहत महा ा राम उनके दशनाथ चल पड़े । चलते-चलते वे अग ा म के
समीप प ं चे । दू र से उसकी ओर संकेत करके उ ोंने ल ण से कहा–सौ ! इस
भ आ म को दे खने-मा से िच म नवीन ू ित आ जाती है । यह गुण-कम से
िव ात अग ऋिष का आ म है । इस दु गम दि ण िदशा म पहले कोई आने का
साहस नहीं करता था । ोंिक एक तो यहां चारों ओर रा सों का घोर आतंक था,
दू सरे बीच म िव ाचल पहाड़ था । भगवान अग ही सबसे पहले िव ाचल को
पार करके इधर आए । महा पवत उनके पैरों के नीचे आ गया, आय के िलए दि ण
िदशा का ार खुल गया । अ ऋिष-मुिन उ ीं के िदखाए ए माग से यहां आए ह ।
उनके भाव से जंगली जाितयों म भी आय-स ता का थोड़ा-ब त चार हो गया है
और रा सों का बल भी ीण होता जा रहा है । इस महापु ष ने यहां इतना
मह पूण काय िकया है िक यह दि ण िदशा अब अग के नाम से ही ात हो
गई है । आज हम ऐसे िस - िस कमयोगी के दशन का सौभा ा होगा । तुम
आगे बढ़कर जाओ और ऋिषवर अग को हमारे आगमन की सूचना दी ।
ल ण ने आ म के ार पर जाकर महिष के एक िश ारा राम-सीता के आने
का संदेश कहलाया । अग त ाल उठ खड़े ए और िश से बोले–राम के िलए
पूछने की आव कता नहीं थीं; उ आदरपूवक साथ ले आना चािहए था ।
सूय के समान तेज ी भगवान अग िश -म ली सिहत तुरंत बाहर िनकल
आए । राम, सीता और ल ण उनके चरणों पर िगर पड़े । अग उनको
आशीवाद दे कर बोले–पधा रए रघुन न! आपका ागत है । आप इतनी दू र से
मुझसे िमलने आए, यह मेरे िलए अ स ता की बात है । म तो यं आपसे
िमलना चाहता था । आपका स ूण वृता म सुन चुका ं । आप सचमुच ध ह ।
सीता और ल ण ने िवपि म भी आपका जैसा साथ िदया है , उसकी म सराहना
करता ं । आप तीनों आज हमारे अितिथ होकर पधारे ह, अतः सब कार से
स ा ह।
महिष के ेह-सौज से राम ग द हो गए । दोनों म बात होने लगीं । पर र
कुशल- के उपरा राम ने महिष से पूछा–भगवन आप आयावत को ागकर
इस जंगली दे श म ों आए?
अग ने उ र िदया–राम! रा सों ने इस दे श को ऋिष-शू बना िदया था ।
आसुरी श िदन- ितिदन बढ़ती जा रही थी । मुझसे यह नहीं दे खा गया । म
दि णवािसयों म स ता का चार करने का त लेकर िहमालय से यहां चला आया
। मेरे बाद ब त-से अ ऋिष-मुिन भी यहां आकर बस गए ह । रा सों की श
थोड़ी-ब त सीिमत हो गई है , लेिकन अब भी उनका संगठन अ बल है । मेरी
इ ा है िक आप ऋिष-समाज के संर क बनकर कुछ िदन द कार म ही
िनवास कर ।
बातचीत के अ म अग ने राम को िव ु से ा एक महाधनुष, ा से
ा एक अमोघ महाबाण और इ से ा दो ऐसे तूणीर भट िकए जो सदा िद
बाणों से भरे ही रहते थे । इसके बाद वे बोले–वीरा णी राम! म आपको सब कार से
समथ मानकर दु दम रा सों पर िवजय- ा के िनिमत ये महा भट करता ं ;
आप इ ीकार कर ।
राम ने उन िद ा ों को िसर से लगा िलया । महिष ने पूछने पर उ वहां से दो
योजन दू र पंचवटी1 नामक थान पर आ म बनाने की स ित दी ।
पंचवटी-वास–दू सरे िदन महिष अग का आशीवाद लेकर राम ने सीता-
ल ण सिहत पंचवटी की ओर थान िकया ।
गोदावरी नदी के िकनारे पंचवटी सचमुच एक परम रमणीक थान था । राम
उसको दे खकर अ स ए । उ ोंने ल ण से कहा–सौ ! म तो वनवास की
शेष अविध यहीं िबताना चाहता ं । तुम कोई अ ा थान चुनकर वहीं एक सु र
पणशाला बना दी ।
ल ण ने सिवनय उ र िदया–आय! म तो आपका अनुचर ं , जो थान आपको
ि य लगे, वही मेरे िलए सव म होगा । म वहीं आपके िलए उ म पणशाला बना
दू ं गा ।
राम ने घूम-घामकर एक थान पस िकया । ल ण ने भाई-भाभी के िलए बड़े
प र म से वहीं एक कुटी बना दी । राम को वह बड़ी सु र और सुखदायक जान
पड़ी । उ ोंने ल ण को दय से लगा िलया और कहा–ल ण! तु ारे साथ रहने
से मुझे ऐसा ात होता है मानो मेरे िपता अभी जीिवत ही ह । जैसा ेम मुझे िपताजी
से िमलता था वैसा ही तुमसे िमल रहा है । वे भी मेरे सुख का ऐसे ही ान रखते थे ।
इन सेवाओं के बदले म मेरा ेमािलंगन ही तु ारा पुर ार है ।
पंचवटी का वास राम को ब त ही ि य लगा । वे सीता के साथ िदनभर
गोदावरी के िकनारे पु त कुंजों और वनों म आन से िवहार करते थे । ल ण
िदन म उनके भोजन के िलए फल-मूल इक ा करते, सोने के िलए कोमल प ों की
श ा बनाते और रात म कुटी के ार पर खड़े होकर पहरा दे ते थे । उन तीनों को
भवन के कृि म जीवन की अपे ा वन का ाकृितक जीवन अिधक आन दायक
तीत आ । वहां उ ोंने तीन वष ब त सुख से तीत िकए ।
शूपणखा की दु गित–एक िदन तीनों कुटी के सामने चबूतरे पर बैठे थे । इतने म
कहीं से एक बनी-ठनी रा सी आई । राम को दे खते ही उसका मन हाथ से जाता
रहा । उसने िनकट आकर प रचय और वन म आने का योजन पूछा । राम ने सहज
भाव से सब कुछ बता िदया और अ म उसका भी प रचय पूछा ।
दानवी हाव-भाव िदखाती ई बोली–सुनी पिनधान! म महा तापी लंकापित
रावण की बहन शूपणखा ं । महाबली कुंभकण और िवभीषण मेरे सगे भाई तथा
खर और दू षण चचेरे भाई ह । संसार म मेरे समान सु री और सौभा शािलनी ी
दू सरी नहीं है । म तु े ा से अपना पित बनाना चाहती ं । तुम इस अभािगनी,
कु पा सीता को छोड़ो और मेरे साथ चलकर भोग-िवलासमय जीवन तीत करो ।
चलो, मेरी णय-िपपासा शा करो... ।
राम उस िवहा रणी की कुचे ा दे खकर हँ सते ए बोले–दे वी! सीता की
सौत होने म तु ा सुख िमलेगा! तुम ल ण से ऐसा ाव ों नहीं करतीं? वह
युवा है , सु र और इस समय ीहीन भी है ।
शूपणखा राम को छोड़कर ल ण के पीछे पड़ गई । ल ण ने उ र िदया–
दे वी! म तो बड़े भाई का दास ं । अत: मेरी भाया होने पर तु दासी बनना पड़े गा ।
यह तु ारी जैसी राजक ा के िलए क और अपमान की बात होगी ।
शूपणखा ल ण की ओर से िवर हो गई और राम से िफर बोली–अब समझी
दयेश! यह काली-कलूटी, बूढ़ी-बेडौल ी सीता ही हमारे -तु ारे बीच म बाधक है
। म इसको अभी मारकर खा जाऊंगी । बस सौत होने का ही न रहे गा । हम-तुम
महलों म राजसी सुख भोगगे; वन-उपवनों म ा ीड़ा करगे…
यह कहकर वह कामाचा रणी सीता की ओर दौड़ी । राम त ाल ल ण से
बोले–ल ण! नीच जनों से हास-प रहास नहीं करना चािहए । इसका दु ाहस तो
दे खो! यह अपने को प की रानी मान बैठी है । तुम शी इसका मान भंग करो ।
ल ण ने झपटकर तलवार से उसके नाक-कान काट िदए । यह िजधर से आई
थी, उसी ओर िच ाती ई भाग गई ।
खर-दू षण वध–वन के म भाग म रा सों का एक ब त बड़ा िशिवर था । वहां
रा से रावण के दो ितिनिध–खर और दू षण–सेना सिहत रहते थे । ि िशरा
नामक महायो ा उनका सेनापित था ।
शूपणखा र से भीगी ई रा सों की छावनी म प ं ची और रो-रोकर अपना
हाल कहने लगी । खर बहन की दु दशा दे खकर ोध से उ हो गया । उसने राम
को मारने के िलए तुर सैिनकों का एक दल भेजा । शूपणखा भी साथ-साथ गई ।
राम ने रा सों को दे खते ही ती ण बाणों से मार िगराया । शूपणखा रोती-िच ाती
िफर खर के पास प ं ची और उसे बार ार िध ारने लगी ।
महाबली खर एक मनु ारा रा सी श का अपमान नहीं सह सकता था ।
वह रथ म बैठकर स ूण सेना सिहत राम से यु करने चल पड़ा ।
रा सों की भयंकर सेना ने पंचवटी को चारों ओर से घेर िलया । राम सीता की
र ा का भार ल ण को सौंपकर यं यु के िलए आगे बढ़े । रा सों से उनका
भयंकर यु होने लगा । दे खते-दे खते उ ोंने सैकड़ों रा सों को बाणों से बींध डाला
। तब परा मी दू षण ने पूरी श से आ मण िकया । भीषण यु म वह भी राम
के बाणों से मारा गया । सेनापित ि िशरा की भी वही गित ई । अ म महारथी खर
ने राम को बाणों से ढक िदया । उसके कवच, धनुष आिद टू ट गए । राम ने तुर
अग का िदया आ वै व धनुष हाथ म िलया और उस पर उ ीं से ा इ -
बाण चढ़ाकर खर पर हार िकया । खर का व िवदीण हो गया । सवा घंटे म राम ने
चौदह सह रा सों को अकेले मार डाला । द कार से रा सों की स ा सदा
के िलए उठ गई ।
यु के बाद अग आिद ने आकर राम को मु कंठ से बधाई दी ।
मारीच की माया और सीता-हरण–शूपणखा रोती-िबलखती लंका की ओर
भागी और उस भाई की शरण म गई जो अपने बल-वैभव के िलए तीनों लोकों म
िव ात था, िजसके शरीर पर सैकड़ों यु -िच थे, िजसने अनेक बार दे वताओं का
मान-मदन िकया था । िजसने कुबेर से उसका पु क िवमान छीन िलया था और इ
के न न वन तथा कुबेर के चै रथ वन को उजाड़ डाला था । उसी महाश शाली
रा सराज रावण के सम जाकर शूपणखा अमष से बोली–अरे रावण! तेरे बल-
परा म को िध ार है , दे ख तेरे रहते एक मनु ने मेरी कैसी दु गित कर डाली!
तुझे पता न होगा िक राम नामक एक आदमी ने तेरे जन थानवासी भाई-ब ुओं को
मारकर ऋिषयों को रा दे िदया है । मेरी नाक के साथ तेरी भी नाक कट गई ।
िछ: िछः! तू अब कहीं मुंह िदखाने यो नहीं है … ।
रावण बड़े दप से बोला–बता-बता शूपणखा! िकसने तेरा अंग-भंग िकया? िकसने
मेरे अनुचरों को मारा? कौन है वह राम? द क वन म वह ों आया?
शूपणखा ने कहा–भैया! राम अयो ा के राजा दशरथ का बेटा है । उसके बाप ने
उसे रा से िनकाल िदया है । वह बड़ा बलवान और रण-कुशल, धनुधर है । उसी ने
मेरे नाक-कान कटवाए ह । भैया, खर-दू षण तथा सम रा सों को मारकर उसने
द कार पर अिधकार कर िलया है । उसके साथ उसका शूरवीर भाई ल ण
भी है और सुनो, राम अपने साथ अपनी अनुपम पलाव वती ी सीता को भी ले
आया है । वह िव सु री तु ारे यो है । म उसको तु ारे िलए लाना चाहती थी ।
बस, इसीिलए दु ल ण ने मेरे नाक-कान काट िलए । भैया! उस रमणी को हाथ से
न जाने दी । उसे ा करना चाहते हो तो काय-िस के िलए अभी दािहना पैर
उठाओ । श ु ने तु ारे ार पर आकर तु चुनौती दी है । तुम उसकी भाया का
अपहरण करके अपनी साम य कट करो ।
रावण ने शूपणखा की बातों से उ ेिजत होकर तुर अपना आकाश-गामी यान
मंगवाया । उस पर चढ़कर वह अकेला समु के पार प ं चा । समु के िकनारे 1 एक
आ म म ताड़का-पु मारीच मुिन बनकर रहता था । रावण उसके पास गया ।
मारीच ने रा सराज का यथोिचत स ार करके उसके पधारने का योजन पूछा ।
रावण बोला–मारीच! म एक आव क कायवश आया ं ; उसे ान से सुनो ।
कुछ िदनों से द कार म राम नाम का एक ऊधमी और च र हीन अपनी
ी और भाई के साथ आकर बस गया है । उसके बाप अयो ापित दशरथ ने उसे
घर और रा से िनवािसत कर िदया है । उस अधम ने इधर आकर एक तो
अनायास मेरी बहन शूपणखा के नाक-कान काट डाले; दू सरे , मेरे सीमार कों को
मारकर सारे द कार पर अिधकार जमा िलया है । जन थान म अब रा सों का
आिधप नहीं रहा । म उसकी सु री ी का अपहरण करके इसका बदला लेना
चाहता ं । यह काय तु ारे जैसे मायावी की सहायता से ही हो सकता है । म चाहता
ं िक तुम ण-मृग का प धारण करके सीता के सामने जाओ और उसे अपनी
ओर आकिषत करो । वह राम से ऐसी िविच व ु के िलए हठ करे गी । जब राम
तु पकड़ने दौड़े तो तुम भागकर दू र िनकल जाना और वहां से राम के र म ‘हा
ल ण! हा सीता!’ कहकर िच ाना । इसे सुनकर सीता हो जाएगी और
ल ण को राम की खोज-खबर लेने अव भेजेगी । बस, मेरा काम बन जाएगा । म
सीता को हर लाऊंगा । उसके बाद कामी राम प ी के िवयोग म या तो छटपटाकर
मर जाएगा अथवा इतना िनबल हो जाएगा िक म उसे आसानी से जीत लुंगा । अभी
उससे खुलकर लड़ना ठीक नहीं होगा, ोंिक खर-दू षण-ि िशरा जैसे धुर र वीरों
और चौदह सह रा सों को अकेले मारने वाला राम साधारण यो ा नहीं है । इस
समय तो यु से ही काम िनकालना चािहए । अत: तुम शी कपटवेश बनाकर
जाओ ।
रावण ने एक सां स म यह सब कह डाला । राम का नाम सुनते ही मारीच की
आपबीती घटना याद आई । उसका मुंह सूख गया । कुछ सोच-िवचार कर वह
बोला–राजन्! सदा मीठी-मीठी बात करने वाले तो ब त िमलते ह िक ु सुनने म
अि य और प रणाम म िहतकर वचन कहने-सुननेवाले िवरले ही होते ह । आपके
क ाण के िलए म एक अि य िक ु स ी बात कहता ं , वह यह िक कभी भूलकर
भी राम से वैर मोल लेने का दु ाहस न कीिजएगा । वह आपको तथा आपके सारे
रा को समूल न करने म समथ है । म उसके बल-परा म को अ ी तरह
जानता ं ।
इसके बाद मारीच रावण को अपना कटु अनुभव सुनाकर बोला–महाराज! तब से
म यिद म भी राम को दे खता ं तो डर के मारे मूिचछत हो जाता ं । यही नहीं,
िजन श ों के आिद म रे फ होता है –जैसे रथ, र , रमणी आिद–उनको सुनने से भी
मुझे कंपकपी होने लगती है । अब तो म राम के भय से तप ी बन गया ं , अतः
आपका िहत कैसे क ं ! अ ि यों से भी मुझे आपका ाव अ ा नहीं जान
पड़ता । राम सा ात् धममूित ह; अतएव आपको उनका आदर करना चािहए;
उनकी ी का अपहरण आपके िलए कलंक की बात होगी । आप राजा होकर
कुमाग म पैर न र खए । इसी म हमारा-आपका और सारी रा स जाित का क ाण
है ।
मारीच का ा ान रावण को ि य नहीं लगा । वह ु होकर बोला–मारीच! तू
मेरी अव ा कर रहा है । राम ने मेरे बहन-भाइयों पर जो अ ाचार िकया है , उसका
बदला म अव लूंगा । यह याद रख िक राम बाण से तो तू शायद बच भी जाए
लेिकन यिद मेरी बात न मानेगा तो म अभी तुझको मार डालूंगा ।
मारीच को िववश होकर रावण की बात माननी ही पड़ी । दोनों गगनगामी यान म
पंचवटी प ं चे । वहां मायावी मारीच अितसु र ण-मृग का प धारण करके आगे
गया और रामा म के आसपास चरने-िवचरने लगा । सीता उस समय बाहर फूल चुन
रही थी । उसने उस िविच मृग को दे खा । उसका शरीर तपाए ए ण की भां ित
दमक रहा था । उसम िविवध रं ग के मिण-र जड़े थे । उस मायामृग पर सीता का
मन मोिहत हो गया । उसने राम-ल ण को भी बुलाकर उसे िदखाया । उनके िलए
भी वह एक अद् थुत व ु थी । सीता ने राम को उसको पकड़ने का आ ह िकया ।
राम को उसके िवषय म कुछ संदेह तो आ, लेिकन वे भी धोखे म पड़ गए और
ल ण को सीता की रखवाली का भार सौंपकर यं धनुष-बाण लेकर मृग पकड़ने
दौड़े ।
छ वेशधारी मारीच एक ओर को भागा और बार-बार लुकता-िछपता दू र िनकल
गया । राम ने ब त यास िकया, लेिकन वह पकड़ म नहीं आया । अ म उ ोंने
ु होकर एक घातक बाण मारा । उसके लगते ही कपट-मृग भूिम पर िगर पड़ा ।
उसका असली प कट हो गया । वह त ाल राम के र का अनुकरण करके
िच ाया–‘हा सीता! हा ल ण! म मारा गया!’ इसके बाद ही वह छटपटाकर मर
गया । राम अ शंिकत होकर वेग से कुटी की ओर लौटे ।
इधर सीता उस पुकार को सुनते ही ाकुल हो गई और ल ण से बोली–
ल ण! तुमने भाई का आतनाद सुना! िन य ही वे िकसी महान् संकट म पड़ गए ह
। तुम उनकी र ा के िलए तुर जाओ ।
ल ण राम की आ ा के िव सीता को अकेली कैसे छोड़ते! उ ोंने
न तापूवक उ र िदया–दे वी! आप िच ा न कर; आय राम आ -र ा म यं समथ
ह । अभी जो पुकार सुनाई पड़ी है वह बनावटी जान पड़ती है ; इधर खरदू षण आिद
के वध के बाद रा सों से हमारा वैर बंध गया है । वे लोग हमसे बदला लेने के िलए
भां ित-भां ित के छल-कपट कर सकते ह । अत: हम सावधान रहना चािहए ।
सीता के बार-बार कहने पर भी ल ण, वहां से जाने को तैयार नहीं ए । तब
वह खोजकर बोली–ल ण, तुम भाई के िहतैषी नहीं, उनके श ु हो । सौतेली मां के
पु ऐसे ही होते ह । मुझे तो तुम भरत के गु सहायक जान पड़ते हो । उ ीं की
स ता के िलए तुम ऐसे संकट-काल म मेरे ामी के साथ िव ासघात कर रहे हो ।
मेरे ऊपर भी तु ारी कु ि है , इसिलए तु उनका मरना ही अ ा लगता होगा ।
नीच, अनाय, कामी, धूत! तेरी और भरत की कामना पूरी नहीं होगी । यिद आयपु
को आज कुछ हो गया तो म तुर ही गोदावरी म डूब मा ं गी । धमा ा राम की
भाया िकसी अ की होकर नहीं रहे गी ।
सीता के दु रा ह और दु वचनों से ल ण को अ ेश आ । वे धनुष-बाण
लेकर राम की खोज म चले गए । रावण इसी अवसर की ती ा म पास ही िछपा
बैठा था । उसने त ाल स ासी का वेश धारण िकया । एक हाथ म द -कम लु
िलए और दू सरे हाथ म छाता िलए वह वेद-म ों का उ ारण करता आ । सीता के
पास गया और बोला–सु री! तू कौन है , िकसकी ी है , कहां से आई है ? इस
भयानक वन म जहां चारों ओर नरभ ी रा स और िहं सक जीव भरे पड़े ह, तू ों
और कैसे रहती है ?
सीता ने साधु-महा ा और अितिथ के प म उसका ागत करके इन ों का
उ र िदया और उससे भी अपना नाम-धाम तथा योजन बताने की ाथना की ।
रावण ने खड़े -खड़े ग ीर र म कहा–सीते! सुन, म वह तापी लंकापित
रा से रावण ं , िजसके भय से तीनों लोक कां पते ह । मेरी इ ा है िक तू इस
रा - मूख स ासी राम को ागकर मेरी णमयी महापुरी लंका म चल और
मेरी पटरानी बनकर संसार का ऐ य भोग! यह तेरा सौभा है िक म यं अपनी
इ ा से तुझे लेने आया ं । मेरे साथ चल; राम से मत डर ोंिक उसम मेरी एक
उं गली के बराबर भी श नहीं है ।
सीता चौंककर पीछे हट गई और उस वंचक को डां टती ई बोली, रे नीच! तू
कपड़े से आग पकड़ना चाहता है ? अभी यहां से भाग जा, नहीं तो मेरे पितदे व आते
ही होंगे, वे तेरे जैसे पापी को कभी जीता न छोड़गे ।
रावण ने अिधक िवल करना ठीक न समझा । वह अपने असली प म कट
हो गया और सीता से बोला–पगली! उस दीन दु बल मनु को छोड़, तू मेरे जैसे सव
साम यवान की प ी होने के यो है । चल मेरे साथ… ।
यह कहते-कहते उसने झपटकर सीता को गोद म िबठा िलया । वह बार-बार
राम-ल ण का नाम लेकर िच ाने और छटपटाने लगी । रावण उसको लेकर
अपने यान म जा बैठा और आकाशमाग से लंका की ओर चल पड़ा ।
रा सराज के बा पाश म जकड़ी ई सीता राम-ल ण को बार-बार पुकारकर
रोने लगी । ऊपर से एक-एक वृ को स ोिधत करके वह कहती थी-हे वृ ! तुम
मेरी दु दशा दे ख रहे हो; मेरे ामी राम इधर आएं तो कृपा कर उनसे कह दे ना िक
दु रा ा रावण सीता को बलपूवक हर ले गया है । निदयों और पि यों आिद से भी
उसने ऐसी ही ाथना की । आगे जाने पर एक ब त बड़ा जीव बैठा िदखाई पड़ा ।
वह गृ जाित का वयोवृ राजा जटायु था । सीता ने आकाश से उसको पुकारकर
कहा–आय गृ राज! दौड़ो, बचाओ...! म राम की प ी सीता ं ...मुझे दु रावण
पकड़े िलए जा रहा है … ।
ऊंघता आ जटायु सीता का आतनाद सुनते ही चौंक पड़ा । वह दशरथ का िम
था और राम-सीता को भली-भां ित जानता था । उसने रावण को ललकार कर कहा–
अरे रावण! तुम राजा होकर भी एक अबला पर अ ाचार कर रहे हो! तु िध ार
है । रा सराज, ऐसा अधम न करो । इससे तु ारा सवनाश हो जाएगा… ।
महा अिभमानी रावण ने इन बातों पर ान नहीं िदया । तब वृ जटायु यह
कहता आ झपटा–खड़ा रह रावण! खड़ा रह! मेरे रहते तू मेरे िम की पु वधू को
इस तरह नहीं ले जा सकता । य िप तू युवा है , बलवान् है , अ -श से सुस त
है और म साठ वष का वृ तथा िनर ं , िफर भी म तुझे ऐसा अ ाय नहीं करने
दू ं गा । शौय-वीय का कुछ भी अिभमान हो तो ठहर, म तुझे यु की चुनौती दे ता ं ।
रावण ने यान को रोककर ती ण बाणों से जटायु पर हार िकया । जटायु भी पूरी
श से सबल, सश वैरी पर टू ट पड़ा । उसने रावण को त-िव त करके उसके
कवच, धनुष और यान आिद तोड़ डाले । वह सीता को िलए वहां से पैदल भागा,
लेिकन जटायु ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा । अ म रावण ने सीता को भूिम पर
पटककर अपनी तलवार िनकाली । िनह ा जटायु ाण-मोह ागकर उससे िभड़
गया । रावण ने तलवार से उसके दोनों पर काट डाले । गृ राज राम के िलए वीरता
से यु करता आ िगर पड़ा और अस पीड़ा से तड़पने लगा । सीता आ ीय की
भां ित दौड़कर उससे िलपट गई । रावण ने उसके केश पकड़कर खींचा । वह एक
ओर को भागी, लेिकन पकड़ ली गई । रावण उसे एक दू सरे यान म बैठाकर िफर
लंका की ओर चल पड़ा ।
उस शू माग म सीता की सहायता करने वाला कोई नहीं था । वह रावण को
कोसती-िच ाती चली जा रही थी । सहसा उसे एक पवत की चोटी पर पां च वानर
बैठे िदखाई पड़े । सीता ने रावण की आं ख बचाकर अपने कुछ गहनों को एक कपड़े
म बां धा और उस पोटली को पवत की चोटी पर िगरा िदया ।
रावण रोती-िबलखती सीता को लेकर समु -पार अपनी राजधानी म प ं चा । वहां
उसने सीता को अपने भवन का वैभव िदखाया, िफर राम की िन ा और अपनी
शंसा करके उसने सीता को अपनी पटरानी, दये री और लंका की स ा ी बनने
की ाथना की । कामातुर रावण सीता के प-लाव की शंसा करके उसके
चरणों पर िगर पड़ा और बोला–सु री! लंका का यह ऐ यशाली स ाट् आज से
तु ारा दास है । तुम उसकी कामना पूरी करो; जो कुछ तुम दे खती हो, वह तु ारा
ही है ।
रावण ने सीता को भां ित-भां ित के लोभन िदए, पर वह सबको ठु कराकर बोली–
पापी! तू मेरे मृत शरीर की चाहे जो दु गित कर ले, पर इस जीिवत शरीर पर तू
अिधकार नहीं कर सकता । म राम को छोड़कर म भी िकसी दू सरे की नहीं हो
सकती ।
सीता ने पु ष िसंह राम की बड़ाई करके रावण को कुते की तरह दु ार िदया ।
ब त मनाने पर भी जब वह नहीं मानी तो रावण ने कु होकर कहा–सुन री सीता! म
तुझे एक वष का समय दे ता ं ; यिद तू अपना भला चहती है तो इस बीच म स मन
से मेरी णियनी बन जा, नहीं तो वष-भर के बाद ही मेरे रसोईये तेरे शरीर को
काटकर मुझे उसका कलेवा खलायगे ।
इसके बाद हताश ेमी रावण ने सीता को अशोक वािटका नामक एक सुरि त
थान म भेज िदया । उसे मनाकर अथवा डरा-धमकाकर वश म करने के िलए वहां
अनेक िवकराल रा िसयां िनयु कर दी गईं । सीता अशोक वािटका म ब नी का
जीवन िबताने लगी । वह िदन-रात रोती ही रहती थी ।
राम का पंचवटी से थान–उधर राम अ होकर आ म की ओर
लौटे । दू र से उ ोंन ल ण को अपनी ओर आते दे खा । उनके कुछ कहने से पहले
ही राम बोल उठे –ल ण! तुमने ब त बुरा िकया; सीता को िकसके भरोसे छोड़
आए हो?
ल ण ने अपने आने का कारण बताया । राम ख होकर िफर बोले–ल ण
तुमने िववेक से काम नहीं िलया । तुम नाहक धोखे म पड़ गए । सीता का न जाने
ा हाल होगा ।
सीता के स म भां ित-भां ित की अशुभ आशंकाएं करते ए राम अपनी कुटी
के पास प ं चे । वहां स ाटा था, आस-पास के पेड़-पौधे रोते ए-से लगते थे, पु -
प व मुरझा गए थे, राम की कुिटया सूनी हो गई थी । उ ोंने ार पर प ं चते ही
सीता को कई बार पुकारा, पर कोई उ र न िमला । तब वे ाकुल होकर ल ण से
बोले–ल ण! दे खो, सीता कहां गई? कोई उसे हर तो नहीं ले गया? दे खो, वह कहीं
फल-फूल लेने या घूमने तो नहीं गई है ?
ल ण चारों ओर सीता को ढू ं ढ़ने लगे । राम ने बाहर-भीतर सव दे खा, पर
सीता नहीं िमली । वे ‘सीता-सीता’ िच ाते ए एक पेड़ से दू सरे पेड़ तक, एक नदी
से दू सरी तक दौड़ने लगे । उस समय वे वन म इधर-उधर भागते; िच ाते ए
उ जैसे िदखाई पड़ते थे । उ ोंने एक-एक वृ के पास जाकर पूछा–िम
त राज! बताओ, सीता कहां है ? तुमने मेरी सीता को कहीं दे खा हो तो कृपा करके
बता दो । इस कार वन के पशु-पि यों से, सूय से, पवन से और िदशाओं से भी
उ ोंने हाथ जोड़-जोड़कर सीता के बारे म पूछा । उ अ म यह िव ास हो गया
िक सीता को रा सों ने मारकर खा िलया होगा । वे शोक म िवहल होकर लाप
करने लगे ।
िवरही राम को वहां के एक-एक पेड़-पौधे म सीता की छिव िदखाई पड़ती थी । वे
उनसे िलपटकर रोने लगते थे । मृगों को दे खकर उ सीता के ने याद आते थे ।
गोदावरी को दे खते ही उनका िवरह दू ना हो जाता था, ोंिक उसके तट पर उ ोंने
सीता के साथ जीवन के िकतने ही मधुर ण िबताए थे । एक-एक थान के साथ
सीता की मधुर ृित जुड़ी थी । सीता से उ जो सुख िमला था, वही अब दु :ख का
कारण बन गया । वे बार-बार पुकारते थे–सीता कहां हो!–पर कहीं से कोई उ र नहीं
िमलता था ।
राम अ अधीर होकर ल ण से बोले–ल ण! जो राजमहलों का सुख-ऐ य
ागकर मेरे साथ आई थी, िजसने घोर िवपि म भी मेरा साथ नहीं छोड़ा, वह मेरी
वनसंिगनी कहां है ? राजपाट, घर-बार, सब-कुछ तो चला ही गया था, मेरी जीवन-
संिगनी भी चली गई! म अब इस दु :खी जीवन का अ कर लूंगा । तुम अब अयो ा
लौट जाओ ।
ल ण ने उ समझा-बुझाकर सीता को ढू ढ़ने के िलए उ ािहत िकया । दोनों
भाई एक-एक पहाड़, खोह-कगार, झाड़-झंखाड़ म य पूवक खोज करते ए दि ण
िदशा की ओर बढ़े । थोड़ी दू र जाने पर माग म कुछ फूल पड़े िमले । राम उ हाथ
म लेकर बोले–ल ण! ये तो मेरे लाए ए फूल ह । सीता ने बड़े ेम से इनकी माला
गूंथकर पहनी थी…
और आगे जाने पर िकसी के ल े-चौड़े पैरों के िच िदखाई पड़े । पास ही, सीता
के प रिचत पदिच भी थे । वहीं िकसी के छ , धनुष और कवच आिद टू टे पड़े थे ।
एक न - यान भी वहीं पड़ा था । भूिम पर य -त सीता के गहनों के मोती िबखरे
थे । दोनों भाई इस स म पर र तक-िवतक करते ए आगे बढ़े ।
कुछ दू र आगे खून से लथपथ जटायु िदखाई पड़ा । उसे दे खते ही राम ू
होकर ल ण से बोले–ल ण! गृ के वेश म िन य ही यह कोई मायावी रा स है ।
इसी ने सीता को मारकर खाया होगा । अब यह तृ होकर िव ाम कर रहा है । म
इसको अभी मा ं गा... ।
इतना कहकर राम ने धनुष पर बाण चढ़ाया । जटायु ने राम को आते दे ख िलया
था । वह मुख से िधर िगराता आ बोला–आयु ान! म जटायु ं । तु ारे िपता
दशरथ मेरे परम िम ों म से ह । तुम िजस दे वी को खोज रहे हो, उसे महाबली रावण
हर ले गया है । उसके साथ ही उस दु ने मेरा ाण भी हर िलया । मने यथाश
रावण के हाथ से सीता को छु ड़ाने की चे ा की, लेिकन मेरी नहीं चली । घमासान
यु म म उसकी तलवार से आहत होकर िगर पड़ा और अब अ म सां स ले रहा ं
। रावण यहां से सीता को लेकर दि ण की ओर गया है । तुम उसी ओर जाकर खोज
करो ।
इतना कहते ही जटायु की बोली ब हो गई, वह छटपटाकर मर गया । राम
धनुष-बाण फककर दौड़े और अपने मृत िहतैषी को य से लगाकर रोने लगे ।
रोते-रोते उ ोंने ल ण से कहा–ल ण! यह िपताजी का पुराना िम था अतएव
हमारे िलए यह िपता जैसा ही स ाननीय है । इसने मेरे काम के िलए अपने दु लभ
ाण तक गंवा िदया । नीच जाित का होकर भी गुण-च र से यह दे वता के समान
पू था । इसने यह िस कर िदया िक धमा ा और साधुच र ाणी ेक जाित
म हो सकता है । आज मुझे सीता-हरण का उतना शोक नहीं है , िजतना गृ राज के
आ -बिलदान का है । तुम वन से लकिड़यां बीन लाओ, म अपने हाथों से इस
महा ा का दाह-सं ार क ं गा ।
राम ने यं अपने िपतृसखा जटायु का दाह-कम िकया और गोदावरी के तट पर
जाकर मृता ा को जला िल दी । इसके बाद वे पुनः सीता की खोज म दि ण की
ओर बढ़े ।
कब -वध–चलते-चलते वे एक घने जंगल म प ं चे । वहां उ िकसी का
भयंकर गजन सुनाई पड़ा । दोनों भाई चौंककर इधर-उधर दे खने लगे । इतने म
कब नाम का एक भीमकाय दानव उनका रा ा रोककर खड़ा हो गया । उसके
हाथ, मुंह और पेट तो ब त ही बड़े थे, पर िसर नहीं के बराबर था । उसका िसर पेट
म था । ता य यह िक वह मूढ़ िदन-रात पेट भरने की िच ा म रहता था ।
कब ने एक-एक हाथ से दोनों को पकड़ िलया और अ हास करके कहा–
अहा-हा! बड़े भा से तुम लोग िमल गए; म ब त भूखा था ।
राम-ल ण ने चटपट अपनी-अपनी तलवार से उसकी एक-एक भुजा काट
डाली । भुजाहीन कब िच ाता आ पृ ी पर िगर पड़ा । उसकी बु िठकाने
आ गई । उसने न ता से उन दोनों का प रचय पूछा । ल ण ने अपने और राम के
प रचय के साथ उधर आने का योजन भी बताया । कब का मृ ुकाल समीप था
। वह अपने कुकम के िलए घोर प ा ाप करता आ बोला–महापु षो! मेरे पापी
हाथों को काटकर आपने अ ा ही िकया । म अपने रा सी कम से ऐसा िवकराल
बन गया था और इस िन त जीवन का अ करना चाहता था । आज आपके हाथों
से मेरा उ ार हो गया । मेरी मृ ु के बाद आप लोग मेरा दाह-सं ार भी कर द तो
बड़ी कृपा होगी । यिद इन अ म णों म म आपके िकसी काम आ सकूं तो अपने
को ध समझंगा ।
राम ने कहा–कब ! तुम यिद मेरी अप ता प ी सीता के बारे म कुछ जानते हो
तो बता दो !
कब का अ :करण सचमुच शु हो गया था । वह बोला–राम! इस स म
मुझे कुछ भी ात नहीं है । लेिकन म आपको एक उपाय बताता ं , उससे आपका
काय हो जाएगा । आप ऋ मूक पवत पर जाकर सु ीव नामक परम बु मान तथा
कायकुशल वानर से िमिलए और उससे मै ी थािपत कीिजए । वह आपका परम
सहायक होगा । इस समय उसे भी आप जैसे सहायक की आव कता है । आप
दोनों एक-दू सरे की सहायता करके अपना-अपना काम बना सकते ह ।
इसके बाद कब ने दि ण-पि म के कोने की ओर संकेत करके कहा–राम!
वही ऋ मूक पवत का रा ा है । आगे जाने पर प ा नामक सु र सरोवर िमलेगा
। उसके पि म-तट पर ग य महिष मतंग का आ म है । वहां उनकी एक भीलनी
िश ा शबरी रहती है । वहीं एक गुफा म सु ीव अपने चार सािथयों को लेकर रहता
है ।
राम शबरी-िमलन–इतना कहकर कब मर गया । राम-ल ण ने उसके शव
को एक ग े म डालकर जला िदया । उसके बाद वे आगे बढ़े और चलते-चलते मतंग
ऋिष के सु िस आ म म प ं चे । वृ ा तप नी शबरी के िलए राम के पम
मानो भगवान् ही वहां पधारे थे । उसने दौड़कर उनके चरण छु ए और आसन तथा
चुने ए फल-मूल आिद सामने रखकर कहा–दे व! आपके िच कूट पधारने का शुभ
समाचार म सुन चुकी थी । मेरे गु ओं ने कहा था िक आप इधर भी कभी न कभी
अव आएं गे । वे तो अब मर गए, पर म आज तक आपकी बाट जोहती बैठी रही ।
आज मेरी तप ा सफल हो गई । मेरे दे व! मने प ा के वनों से उ मो म फल-मूल
इक े कर रखे ह । आप इ ीकार कर ।
राम-ल ण ने उस नीच जाित की तप नी के हाथ से फल आिद लेकर बड़े ेम
से खाए । िफर उ ोंने उसके साथ महिष मतंग का आ म और वह य म प दे खा,
जहां उस तपोवन के ऋिषयों ने अपनी-अपनी आयु और तप ा पूरी करके य ाि म
े ा से अपने शरीरों की आ ित दी थी । शबरी के शरीर- ाग का समय आ गया
था । उसकी अ म लालसा पूरी हो चुकी थी । अब वह राम के आगे ही अपने जीण-
शीण कलेवर को ागना चाहती थी । राम ने इसके िलए अनुमित दे दी ।
शबरी ने अपनी िच ा तैयार की । राम-ल ण को णाम करके उनके दे खते-
दे खते वह उसम िव हो गई । दोनों भाई उस भीलनी की ऐसी धमिन ा दे खकर
चिकत हो गए ।
शबरी से िमलकर राम का िच शा और थ हो गया था । वे प ा सरोवर
के चारों ओर घूम-िफरकर वहां की ाकृितक छटा दे खने लगे ।

1. गंगा-गोदावरी के बीच का भाग


1. अग –पवत को ंिभत करनेवाला ।
1. वतमान नािसक
1. वतमान मु ई
िक ाका

वस ऋतु के आगमन से सारा कानन कुसुिमत एवं सुरिभत हो गया था । िविवध रं ग


के फु त कमलों से सुशोिभत प ा सरोवर के िकनारे िवचरण करते ए राम ने
ल ण को वहां का नयनािभराम िदखाकर कहा–ल ण! कुसुमाकर का वैभव
दे खी । वन ित भां ित-भां ित के कुसुमों से अलंकृत है । कृित फूली नहीं समाती ।
पवन पु त ु मलताओं से िहलिमलकर ीड़ा कर रहा है । आसपास के झूमते ए
वृ एक-दू सरे के साथ माला की तरह गुंथे ए जान पड़ते ह । उनकी शाखाओं पर
मरों का दल गुंजन करता है । ऐसा लगता है मानो ये पेड़ यं नाचते-गाते ए
वस ो व मना रहे ह । वायु के झोंके से झड़ते ए फूलों को दे खकर ऐसा तीत
होता है मानो आकाश से सून-वषा हो रही है । पृ ी पर सु र सुकोमल पु श ा
िबछी है । शीतल-म -सुग समीर चल रहा है । कमल-वन मधुपों के गीत से
गुंजायमान है , आ -वन म मत कोिकला वोल रही है , सभी िदशाएं पि यों के
कलनाद से िननािदत ह । वन म चारों, ओर उ ास छाया है । पशु-पि यों के ेमी
जोड़े य -त िवहार कर रहे ह । िहरण-िहरिणयों का आमोद- मोद दे खो । उधर
पवत पर मु मोरनी नाचती ई अपने ेमी मोर से िमलने जा रही है । ये जीव
िकतने भा शाली ह!...
...ल ण! यह सब मुझसे नहीं दे खा जाता । कोमल किलयों के मृदुहास और
मरों के िवलास से िच को सुख-शा िमलना तो दू र रहा, उलटे स ाप बढ़ता है
। सुिवकिसत कमलों को दे खते ही सीता के सुकुमार अंगों की ृित सजीव हो उठती
है । अशोक, पलाश के लाल फूल मुझे दहकते अंगारे जैसे लगते ह । वस की वायु
औरों के िलए सुखदायक हो सकती है , लेिकन मुझे तो वह जला ही रही है । पि यों
का गाना और चहकना मुझे ि य नहीं लगता । वे तु जीव आज मेरा उपहास कर
रहे ह ोंिक म अकेला ं … ।
...ल ण! सीता के िबना मेरा जीवन िकतना नीरस और िन ल हो गया है ! जो
मेरे सुख के िलए भवन को ागकर वन म चली आई थी, म उसकी र ा नहीं कर
सका! िजसने दु :ख के िदनों म मेरा इतना साथ िदया, म उसके काम नहीं आया! ा
यह कम ािन की बात है ? भाई ल ण! म अब ऐसे दु :खी और िनरथक जीवन का
अ कर लूंगा । तुम मुझे यहीं छोड़कर घर लौट जाओ… ।
सीता के िवरह म राम शोक से िवकल हो गए । ल ण ने उ सा ना दे ते ए
कहा–भैया! धैय र खए । ब त ेहयु (तैलयु , ेमयु ) होने से दीपक की बती
जल जाती है । मनु की भी यही दशा होती है । अिधक अनुराग से स ाप ही बढ़ता
है । आप िच को शा करके उ ाह के साथ उ ोग कीिजए । उ ाह से बढ़कर
दू सरा कोई बल नहीं है । संसार म उ ाही पु ष के िलए कुछ भी दु लभ नहीं होता ।
चिलए; हम भाभी को खोजने का ढ़ यास करगे । खोई ई व ु िबना य के नहीं
िमलती । हम यथाशी सु ीव से िमलना है । उनकी सहायता से हमारा काय अव
िस हो जाएगा ।
दोनों भाई घूमते-घूमते ऋ मूक पवत की ओर चल पड़े ।
राम-हनुमान-िमलन–िक ापित वानरराज बाली के भय से उसका भाई
सु ीव अपने चार िव ासपा सहायकों के साथ ऋ मूक पवत पर िछपा बैठा था ।
दू र से दो धनुधर वीरों को अपनी ओर आते दे खकर उसे यह शंका ई िक बाली ने
उसके वध के िलए ही उन दोनों को भेजा होगा । वह घबरा गया और अपने सब
सािथयों को लेकर पवत के उ िशखर पर जा बैठा । वहां भी उसे यही जान पड़ा
मानो मृ ु िसर पर आ प ं ची है । न रहते बनता था और न भागते । सु ीव को इस
कार सं दे खकर उसके मुख सहायक हनुमान ने िनवेदन िकया–राजन्! इन
धनुधा रयों को िबना जानेबूझे अपना वैरी और बािल का िहतैषी मानकर शंिकत होना
तथा भागना उिचत नहीं है । पहले इनका भेद लेकर तब कत का िन य करना
चािहए ।
सु ीव को हनुमान की बु और श का बड़ा भरोसा था । उसने उ ीं को
आग ुकों से तुर िमलने और प रचय ात करने का आदे श िदया ।
हनुमान स ासी का वेश धारण करके राम-ल ण के समीप गए और उ
िश तापूवक णाम करके सुसं ृ त भाषा म बोले–स नों! आप लोग प से
दे वता या िवल ण महापु ष जान पड़ते ह । म आपका ागत करता ं । आप दोनों
के शुभागमन से इस थान की मिहमा बढ़ गई है । ा म यह पूछने की धृ ता कर
सकता ं िक आप कौन ह, कहां से और िकस अिभ ाय से इस दु गम वन म पधारे
ह? मुझे तो ऐसा लगता है िक आप दोनों के प म सूय और च ही पृ ी पर
अवतीण ए ह । स -स बताइए, आप लोग नर-शरीरधारी दे वता ह या कहीं के
राजकुमार? िद राजल णों से स होकर भी आप तप ी के वेश म ों घूम
रह ह?
यितवेशधारी हनुमान ने इस कार अ िश , सुकोमल तथा संयत भाषा म
राम-ल ण से उनका प रचय पूछा । दोनों भाई उनकी बातों को ान से सुनते रहे ,
यं कुछ नहीं बोले । तब हनुमान् ने पुनः िनवेदन िकया–स नों! संभवतः आप लोग
िकसी अप रिचत से बातचीत करना उिचत नहीं समझते; इसीिलए मौन ह । आपसे
कुछ पूछने के पहले मुझे अपना ही प रचय दे ना चािहए । म वानर-जाित म उ
मा त का पु हनुमान ं । मुझे किपवर सु ीव ने आपके पास भेजा है । म उसका
सखा और सिचव ं । सु ीव अपने बड़े भाई बािल के अ ाचार से पीिड़त होकर
आजकल ऋ मूक पवत पर रहते ह । आप दोनों को सहसा इधर आते दे खकर
उ भावतः कौतूहल तथा कुछ स े ह भी आ । उ ोंने त ाल मुझे आपसे
िमलने का आदे श िदया । आपके बारे म हम पहले कुछ संशय था, इसीिलए मने
छ वेश म आना ही ठीक समझा । आप लोगों के दशनमा से वह दू र हो गया । अब
आप कृपा करके अपना प रचय द और मेरे साथ ऋ मूक पवत पर पधारने का क
कर । सु ीव बड़े धमा ा, बु मान् और गुण ाही ह । आप जैसे महापु षों से
िमलकर उ बड़ी स ता होगी । म उनकी ओर से आपको सादर आम त करता
ं।
हनुमान के मधुर, तथा भावशाली संभाषण और स वहार से राम का िच
स हो गया । वे ल ण से म र म बोले–ल ण! हम लोग िजनसे िमलना
चाहते ह, उ ीं के सुयो म ी ह । हीनजाित के होकर भी ये िवल ण, बु -स
तथा वेद-शा , ाकरण आिद के प त जान पड़ते ह । ऐसी शु , सरस,
श पंचरिहत और सारगिभत वाणी कोई िव ान् ही बोल सकता है । इस
वा िवशारद के मुख से एक भी अशु और िनरथक वा नहीं िनकला । बोलते
समय इनके मुख, ने , ललाट तथा अ अंगों से िकसी तरह का िवकार नहीं िदखाई
पड़ा । अपने भाव को इ ोंने नपेतुले श ों म ाभािवक ढं ग से कर िदया ।
इनका उ ारण िकतना , मधुर और सुसंयत था! दय, क और िसर से
िनकली ई ऐसी सरस, साथक िच वाणी से तलवारधारी वैरी का भी िच मोिहत हो
सकता है । राजाओं के काय ऐसे ही चतुर कायसाधकों से िस होते ह । तुम इनकी
बातों का बु मानी से उ र दो ।
तब ल ण राम की ओर संकेत करके हनुमान से बोले–िव र हनुमान! ये
ि भुवन-िव ात कोसल-नरे श महाराज दशरथ के े पु , मेरे ामी, रघुकुल-
ितलक महा ा राम ह और म इनका अनुज तथा अनुचर ल ण ं । हम लोग घर,
प रवार और रा ागकर चौदह वष तक वन म िनवास करने आए ह । हमारे साथ
म पू भाई की धमप ी जनक-न नी सीता भी थीं । उ पंचवटी से कोई दु रा ा
रा स हर ले गया है । हम लोग उ ीं की खोज म इधर-उधर घूम रहे ह । इस परदे श
म हमारा कोई सखा-सहायक नहीं है । माग म कब के मुख से किपवर सु ीव की
बड़ाई सुनकर हम लोग उनसे िमलने और सहायता मां गने आए ह । एक िदन जो
सबके आ यदाता और सह ों मनु ों के र क तथा पालक थे, िजसका मुंह बड़े -
बड़े राजा भी ताकते थे, वही जगत ू राम आज सु ीव के कृपािभलाषी होकर
उनकी शरण चाहते ह । जो दू सरों का दु :ख हरण करने म समथ ह, वही राम आज
यं महादु :खी होकर आप सबकी सहानुभूित चाहते ह । हम आपके यश ी ामी
का आमं ण ीकार करते ह ।
हनुमान ने मन ही मन समझ िलया िक राम और सु ीव एक-सी थित म ह, अत:
दोनों सहज एक-दू सरे के घिन िम और उपकारी बन जाएं गे । दोनों को
आदरपूवक अपने साथ लेकर ऋ मूक की ओर चले ।
राम-सु ीव की िम ता–ऋ मूक के िनकट प ं चकर राम-ल ण खड़े हो गए
। हनुमान ने आगे बढ़कर सु ीव से सारा हाल कहा । सु ीव अ स आ और
त ाल मनु का प धारण करके पवत से नीचे उतर आया । उसने राम के आगे
अपना दािहना हाथ बढ़ाकर कहा–पधा रए धम ा राम! आपका ागत है ।
हनुमान से मुझे आपका प रचय िमल चुका है । यह मेरा सौभा है िक आप मेरे
साथ मै ी करके मुझे गौरवा त करने आए ह । म ढ़ िम ता के िलए अपना हाथ
बढ़ाता ं ।
राम ने सु ीव से हाथ िमलाकर उसे छाती से लगा िलया । हनुमान ने उसी समय
लकिड़यों से आग जलाई । राम अि दे व को सा ी करके सु ीव से बोले–सु ीव!
आज से तुम मेरे सु द् हो, हम तु ारे सुख-दु ख को अपना ही समझे… ।
सु ीव ने भी अि के सम इसी कार मै ी की शपथ ली । इसके बाद वह दोनों
भाइयों को पवत के ऊपर ले गया । वहां उनके िलए कोमल प ों का आसन िबछाया
गया । हनुमान ने ल ण को च न की एक फूली ई टहनी भट की ।
राम और सु ीव म बात होने लगीं । सु ीव ने कहा–पु ष-िसंह राम! मुझे म वर
हनुमान ने आपके आने का उ े बता िदया है । आप सीता की िच ा छोिड़ए, वे
जहां कहीं भी होंगी, म उ अव ढू ं ढ़ लाऊंगा ।…कुछ समयपूव एक रा स िकसी
ी को हरकर आकाश माग से ले जा रहा था । उस अबला के मुख से बार-बार ‘हा
राम', 'हा ल ण' की पुकार सुनाई पड़ती थी । उसने हम यहां बैठे दे खकर पोटली म
अपने कुछ गहने िगरा िदए थे । वे अभी तक मेरे पास सुरि त ह, आप उ दे खए ।
मेरा तो अनुमान है िक िजस ी को हमने दे खा था, वे सीता ही थीं ।
यह कहकर सु ीव अपनी गुफा म गया और वहां से उन गहनों को ले आया ।
राम ने उ दे खते ही पहचान िलया । उनकी आं खों से आं सुओं की धारा बह चली ।
उन आभूषणों को ल ण के आगे रखकर वे बोले–ल ण! इ पहचानते हो?
ल ण ने ब त दु :ख के साथ उ र िदया–भैया! म इन केयूरकुंडलों के बारे म तो
कुछ नहीं कह सकता, लेिकन नूपुरों को पहचान रहा ं । भाभी के चरण छूते समय
म इ ीं को िन दे खता था ।
राम शोक से अधीर हो गए । सु ीव ने उ समझाते ए कहा–वीरवर राम!
आपको दु :खी और अधीर न होना चािहए । मुझे दे खए, मेरे ऊपर भी ऐसी ही िवपित
है । म तु जाित का अिशि त ाणी ं , िफर भी दु :खी या अधीर नहीं होता । आप
तो नर ही नहीं, नरनाथ ह, परम बु मान् और सुिशि त महापु ष ह । आप जैसे
ानी का शोक होना अशोभनीय है । आप शोक का प र ाग कीिजए । शोक से
मनु का आ तेज न हो जाता है । शोकाकुल ाणी कभी सुखी नहीं हो सकता ।
अतएव धैय र खए, सीता आपको आव िमलगी । िजसने भी उनका अपहरण
िकया होगा, म उसे सप रवार मार कर आपका ि य काय क ं गा ।
राम को इन वचनों से थोड़ी शा और ू ित िमली । उ ोंने थ िचत होकर
सु ीव से कहा–सु ीव! एक स े िम से जैसी सहानुभूित और स ेरणा िमलनी
चािहए, वैसी ही तुम से मुझे िमली है । अब तुम पहले मुझे काम बताओ । उसको
करके तब म अपने काम की िच ा क ं गा ।
सु ीव ग द् होकर बोले–राम! िम चाहे धनी हो या िनधन, सुखी हो या दु खी,
िनद ष हो या सदोष, िवपि म वही मनु का सबसे बड़ा सहारा होता है । आप जैसे
सवसमथ िम का अनु ह कभी िन ल न होगा । म आपका ब त भरोसा करके
अपनी क -कथा सुनाता ं । आपने जग िस परा मी वानरस ाट् बािल का नाम
तो सुना होगा । वह िक ा का राजा और मेरा बड़ा भाई है । उसने मुझे ितर ार
के साथ घर और रा से िनकाल िदया है । मेरी प ी छीन ली है और मेरे सभी
िहतैषी िम ों को ब ीगृह म डाल िदया है । वह एक बार नहीं, कई बार मेरे वध की
चे ा कर चुका है । उस महाश शाली राजा के भय से म भागा-भागा घूमता ं ।
इस घोर िवपि म यही चार वानर–हनुमान, नल, नील, तार–मेरे स े साथी ह । इ ीं
की सहायता से म अभी तक िकसी तरह अपने जीवन की र ा करता रहा ं । अब म
आप जैसे वीर िम की शरण म ं । कृपया मेरे उस बलवान वैरी को मार कर मुझे
महाभय से मु कीिजए ।
इतना सुनने के बाद राम ने पूछा–तु ारी और बािल की श ुता का सू पात कैसे
आ, करो ।
सु ीव कहने लगा–राम! बचपन म हम दोनों भाई एकसाथ बड़े ेम से रहते थे ।
िपताजी की मृ ु के बाद बािल ही िक ा का राजा बना । म उसकी सेवा म रहने
लगा । बािल ने थोड़े ही समय म अपने बा बल से बड़े -बड़े नामी रा सों और ग वा
आिद को परािजत करके चारों ओर अपनी धाक जमा ली । कुछ काल बाद एक
सु री ी के पीछे उसम और दु दुभी रा स के पु मायावी म अनबन हो गई ।
दोनों का वैर ब त िदनों तक चलता रहा…
… एक िदन मायावी ने अ राि के समय िक ा के नगर ार पर आकर
ककश र म बािल को ललकारा । श ुदपहारी बािल जाग गया और रािनयों के
मना करने पर भी ताल ठोकता आ बाहर िनकल आया । भाई के ेहवश म भी
सहायता के िलए दौड़ पड़ा…
…मायावी हम दोनों को दे खते ही भाग खड़ा आ । हमने चां दनी रात म उसे
खदे ड़ िदया । ब त दू र जाने पर एक ल ी-चौड़ी सुरंग िमली । वह दानव उसी म
घुस गया और हमारे बार-बार पुकारने पर भी बाहर नहीं िनकला । अ म, बािल ने
अ ु होकर मुझसे कहा–सु ीव! म इस दु गम िबल म जाकर उस अधम
रा स को मा ं गा । तुम मेरे लौटने तक यहीं बैठे रहना और सावधानी से िबल ार
की र ा करना । तु मेरे चरणों की शपथ है ।…
…बािल िसंह की भां ित दहाड़ता आ सुरंग के भीतर चला गया । म दीघकाल
तक उसकी ती ा करता बैठा रहा । मेरे मन म भां ित-भां ित की अशुभ आशंकाएं
उठने लगीं, पर म वहां से नहीं टला । एक िदन सहसा सुरंग से फेिनल र की धारा
िनकली, साथ ही ब त-से दानवों का कोलाहल भी सुनाई पड़ा । मने उस समय बािल
का गजन नहीं सुना । इन सब ल णों से मुझे यह िव ास हो गया िक दानवों ने
िमलकर बािल को मार डाला है । म भयवश उस सुरंग के ार को एक भारी िशला से
अ ी तरह ब करके िक ा चला गया । वहां सबको मने बािल की मृ ु का
समाचार बताया और िविधवत् उसका ा कम िकया । तदन र राजम यों ने
िमलकर मुझे िक ा के राजिसंहासन पर बैठाया और म रा करने लगा ।…
…अब आगे का हाल सुिनए–मेरा अनुमान अस िनकाला । मेरे रा ािभषेक के
कुछ ही समय बाद बािल मायावी रा स को मारकर लौटा । मुझे दे खते ही वह ोध
से उ हो गया । मने उसे णाम िकया अपना मुकुट उसके चरणों पर रख िदया
और अपनी ओर से ब त कुछ सफाई दी, लेिकन वह स नहीं आ । उसने सबके
आगे मेरी भ ना करते ए कहा–ओह! इस नीच ातृ ोही ने रा के लोभ से मेरे
साथ कैसा िव ासघात िकया! यह जान-बूझकर मेरे साथ गया था । इसके भरोसे म
सुरंग म घुस गया । ब त ढू ं ढ़ने पर कई िदनों बाद वह दानव िमला । मने उसे और
उसके सभी सािथयों को पकड़-पकड़कर मार डाला । उनके न-ची ार से
सारी सुरंग गूंज उठी और र की धारा बह िनकली । यह किठन काय करके जब
म थका-मां दा बाहर की ओर आया, तो ार ब िमला । यह दु उसको एक बड़ी
भारी िशला से ब करके भाग आया था । म िकसी तरह उस िशला को तोड़कर
बाहर िनकला । अब यहां आकर दे खता ं िक यह महाशय मुझे मृ ु के मुख म
डालकर यं राजा बन बैठा है ।
…राम! िजन बातों से मुझे इस िवषय म धोखा आ था, उ बािल को बताकर
मने उससे बार ार मा मां गी, लेिकन उसने उसी समय मुझे वहां से खदे ड़ िदया ।
मेरी प ी तक मुझसे छीन ली गई । उसे बािल की उपप ी बनने के िलए िववश होना
पड़ा । तब से म इधर-उधर मारा-मारा िफरता ं । हर जगह बािल के गु सैिनक
मेरे पीछे लगे ही रहते ह । कुछ िदनों से म इसी पवत पर वास कर रहा ं । बािल
शापवश इस पवत पर नहीं आता, इससे यह थान सुरि त है । य िप म िनद ष ं ,
िफर भी बािल ने मुझे दोषी बनाकर मेरे ऊपर घोर अ ाचार िकया है । अब आप
कृपा करके मेरे ातृ पी वैरी को मा रए और अपने इस दु :खी-दीन िम की र ा
कीिजए ।...
राम सहज भाव से बोले–सु ीव! मै ी का फल उपकार ही होता है । िजस
च र हीन बािल ने तु ारी भाया का अपहरण करके तु ारे साथ ऐसा अ ाय िकया
है , उसे म अव मा ं गा । तु शी ही कुलल ी और राजल ी–दोनों ा
होंगी ।
राम के आ ासन से सु ीव को स ोष नहीं आ । वह बोला–रघुन न! यह
माना िक आप यथाश मेरी सहायता करगे, लेिकन बािल को परािजत करना
सहज नहीं है । वह ऐसा श शाली है िक पवत-िशखरों को खंड-खंड करके गद
की तरह उछाल दे ता है । वन के बड़े -बड़े वृ ों को एक ध े से िगरा दे ना उसके
िलए साधारण काम है । उसने गोलभ नामक अित परा मी ग वराज के साथ प ह
वष तक लगातार यु करके उसे पछाड़ िदया था । एक बार जंगली भसे के समान
भीषण शरीरधारी दु दम रा स दु दुिभ उससे लड़ने आया था । दोनों म भयंकर
म यु आ । अ म बािल ने उस बलवान् रा स को पृ ी पर पटककर मार
डाला । उसके बल-परा म का हाल कहां तक क ं ! सामने के सात सालवृ ों
(साखू) को दे खए । बािल उ एक बार म झकझोर कर उनका एक-एक पता िगरा
सकता है । ऐसे महाबली से आप कैसे पार पाएं गे?
इस पर ल ण ने सु ीव से पूछा–वानरे सु ीव! आपको इस बात का िव ास
केसे होगा िक आय राम बािल का वध करने म समथ ह?
सु ीव ने उ र िदया–राजकुमार! मुझे राम के श -साम य का ान नहीं है ,
इसिलए थोड़ी शंका होती है । यिद वे इन वृ ों म से एक को भी एक बाण से काट द
तो मेरा स े ह िमट जाएगा ।
राम ने िद बाण ारा णमा म सातों सालों को एक साथ काटकर िगरा िदया
। सु ीव उनकी िवल ण मता दे खकर चिकत हो गया । उसने राम से हाथ
जोड़कर कहा–महाबा राम! अब मुझे िव ास हो गया िक बािल आपके हाथों से
अव मारा जाएगा । मेरी स ता के िलए उसे शी मा रए ।
राम बािल वध के िलए उ त हो गए । उ ोंने सु ीव से कहा–सु ीव! अब
िक ा चली और आगे बढ़कर बािल को ललकारो । म पास ही पेड़ों की आड़ म
िछपा र ं गा; वहीं से बािल पर बाण चलाऊंगा ।
बािल-वध–सु ीव सबको साथ लेकर िक ा नगरी के समीप प ं चा । वहां
राम आिद पेड़ों की ओट म खड़े हो गए । सु ीव लंगोट कसकर आगे बढ़ा और बािल
को बार ार ललकारने लगा । बािल तुर ही नगर- ार से बाहर िनकला और ोध
से उ होकर सु ीव की ओर झपटा । दोनों म भयंकर म यु होने लगा । राम
धनुष पर बाण चढ़ाए खड़े ही रह गए । बािल-सु ीव के प-रं ग म इतनी समानता
थी िक दू र से उ ठीक-ठीक पहचाना ही नहीं जा सकता था । ऐसी थित म धोखा
हो सकता था, अत: राम ने बाण नहीं मारा । उधर बािल ने सु ीव को पीटते-पीटते
िगरा िदया । वह िकसी तरह ाण बचाकर ऋ मूक पवत की ओर भागा । बािल भी
उसके पीछे ललकारता आ दौड़ा और कुछ दू र तक पीछा करने के बाद ‘जा, तुझे
छोड़ िदया’ कहकर लौट आया ।
राम-ल ण आिद सु ीव के पास प ं चे । बािल ने उसकी एक-एक नस ढीली
कर दी थी । राम को दे खते ही वह रोषपूवक बोला–राम! आपका िव ास करके मने
धोखा खाया । आप यिद बािल को नहीं मारना चाहते थे तो पहले कह दे ते ।…
राम ने अपनी किठनाई बताकर कहा–िम ! कहीं बािल के धोखे म म तु मार
दे ता, तो कैसा अनथ होता! अब तुम एक बार िफर यु के िलए चली और इस बार
ऐसा िच धारण कर लो, िजससे म तु दू र से ही पहचान लूं ।”
सु ीव ब त डर गया था । िफर भी, राम के आ ह से वह गले म नागपु ी की
माला पहनकर पुनः िक ा की ओर अ सर आ । महापुरी के बाहर प ं चकर
अ लोग पेड़ों की आड़ म िछप गए । सु ीव ने आगे बढ़कर गगनभेदी िसंहनाद
िकया और बािल को यु के िलए ललकारा ।
बािल अपने अ :पुर म बैठा था । सु ीव का रणाहान सुनते ही वह दप से पैर
पटकता आ बाहर िनकला । उस समय उसकी बु मान प ी तारा ने उसे रोककर
कहा–मेरे नाथ! परािजत सु ीव इतनी ज ी दु बारा लौटकर आपको ललकार रहा है
। इससे मुझे शंका होती है िक उसे कोई बल सहायक िमल गया है । कुछ िदन पूव
अंगद को गु चरों से पता चला था िक अयो ा से राम-ल ण नामक दो धनुधर
राजकुमार इधर आए ह । वे धुरंधर वीर कहे जाते ह । कौन जाने, सु ीव ने उनसे
मै ी कर ली हो और वे यहां उसकी सहायता करने आए हों! आप इस समय क
जाइए । सु ीव आपका छोटा भाई है । उसे आप युवराज का पद दे कर ेह और
उपकार से अपना बना ल तो ेय र होगा ।
बािल तारा को िझड़ककर बोला–भी ! सु ीव भाई के प म नहीं, श ु के प
म आया है । म म भी श ु का गजन-तजन नहीं सह सकता । तू राम के िवषय म
शंका न कर । म राम की जानता ं । वे बड़े मयादाशील ह, अकारण मेरे ऊपर
हार नहीं करगे । म तुझे वचन दे ता ं िक सु ीव का वध नहीं क ं गा । बस, उसका
दं भ-अहं कार चूर करके छोड़ दू ं गा ।
महाबली बाली िसंह की तरह दहाड़ता आ आगे बढ़ा । सु ीव के पैर के नीचे
की धरती खसकने लगी । िफर भी, राम के भरोसे मैदान म डटा ही रहा । बािल ने
झपटकर सु ीव को एक घूंसा मारा । उसके मुख से र िनकलने लगा । एक बार
लड़खड़ाकर वह िफर संभल गया । दोनों म घमासान यु होने लगा । उस समय
ऐसा तीत होता था मानो सूय और च ही पृ ी पर आकर लड़ रहे थे । बािल के
आगे सु ीव का बल-पौ ष धीरे -धीरे म पड़ गया । उसको अ ाकुल
दे खकर राम ने एक संघा क बाण मारा उससे बािल का व िवदीण हो गया । वह
िधर बहाता आ धड़ाम से िगर पड़ा ।
वानरराज के धराशायी होते ही सु ीव के सभी गु सहायक कट हो गए ।
बािल धनुधारी राम की ओर दे खकर बोला–राम! यह आपने ा िकया? आप तो एक
यश ी राजपु ह और बड़े धमा ा कहे जाते ह । आपने ऐसा अधम और अ ाय
ों िकया? मने आपका ा िबगाड़ा था? म तो एक बनवासी ाणी था । कभी मने
आपका अपमान या आपके रा का अिहत भी नहीं िकया था । िफर आपने अकारण
मुझे ों मारा? आप तो साधारण नर नहीं, नरे र ह, िफर ऐसे दु म म कैसे वृत
ए? आप तो पूरे वंचक िनकले? स समाज म आप इस बात का ा उ र दगे?
संसार आपको ा कहे गा? यिद आप मुझसे लड़ना चाहते थे तो सामने आकर
लड़ते; म आपकी यु -वासना शा कर दे ता । आपने ाथवश सु ीव को स
करने के िलए मेरी ह ा की है । यिद आप मुझसे कहते तो म एक िदन म सीता को
ला दे ता और साथ ही आपके अपकारी रा स को भी पकड़ लाता । साधारण काय
के िलए आपने ऐसा अनथ कर डाला! यह आपके िलए घोर कलंक की बात होगी ।
बािल को उस समय अस वेदना ही रही थी । वह अिधक नहीं बोल पाया । राम
उसकी ताड़ना से होकर बोले–बािल, तुम िजस धम की दु हाई दे रहो हो, मने
उसी के अनुसार काय िकया है । तुमने अपने छोटे भाई सु ीव के जीते-जी उसकी
धमप ी मा को, जो धमानुसार तु ारी पु वधू के तु है , अपनी ी बना रखा है
। इस पापकम के िलए तु मृ ुदंड दे ना उिचत ही है । इसके अित र मुझे सु ीव
का भी उपकार करना था, ोंिक वह मेरा िम है । अतएव मने धम-र ा और िम -
र ा के िनिम तु मारा है । तुम पशुकम म िल होकर पितत हो गए थे, अत:
तुमको िछपकर मारने म मने कोई दोष नहीं समझा । दु जीवों का वध इसी कार
िकया जाता है ।
बािल मृ ु की घिड़यां िगन रहा था । उसने राम से हाथ जोड़कर न तापूवक
िनवेदन िकया–राम! जो होना था, सो हो चुका । मुझे पर- ी हरण का द िमल
गया । मेरे कठोर श ों के िलए आप मुझे मा कर । मेरा अ काल िनकट है । मुझे
एक ही िच ा है िक म अपनी ी तारा और अपने एकमा पु अंगद को अनाथ
छोड़कर इस संसार से जा रहा ं । उनका ा होगा? कहीं सु ीव उनसे मेरे बैर का
बदला न ले । राम! आपसे मेरी यह अ म ाथना है िक उन पर कृपा ि र खएगा
। अंगद को म ब त ार करता था । उसका िवशेष ान र खएगा ।
राम ने बािल को आ ासन दे ते ए कहा–वानरराज! तुम िच ा न करो । हम
और सु ीव िपता की भां ित अंगद का पालन करगे ।
बािल क से मू त हो गया । उसी समय उसकी प ी तारा हाहाकार करती
ई वहां आई और पित से िलपटकर िवलाप- लाप करने लगी । हनुमान् ने उसे
ब त समझाया । पर वह कैसे मानती! उसकी आं खों के आगे ही उसका सौभा
लुट रहा था । बािल की सां स धीमी पड़ गई थी । उसने एक बार आं ख खोलकर
सु ीव को पास बुलाया और धीरे से कहा–सु ीव, म सदा के िलए जा रहा ं । तुम
िपछली बातों को भूल जाओ । प र थितयों से िववश होकर मने तु ारे साथ जो
कठोर वहार िकया हो, उसके िलए मुझे दोष न दे ना । भैया! हम दोनों के भा म
साथ-साथ सुख से रहना नहीं िलखा था । अब म चला सु ीव! तुम इस वानर-रा
को संभलो । अंगद का ान रखना । यह ब त लाड़- ार म पला है । आज से तुम
उसके िपता बनो । तारा के सुख-स ान का भी ान रखना । रा के काय म
िकसी कार का माद न करना । अब तुम मेरे गले से सोने की िद माला
उतारकर पहन लो । उसम रा - ी िनवास करती है ... ।
सु ीव भाई के ेह-भरे वचन सुनकर रोने लगा । बािल ने उसे अपने हाथ से
अपनी माला उतारकर दे दी । इसके बाद वह अपने युवा पु अंगद से बोला–बेटा! म
तु सु ीव के हाथों म सौंपकर अब इस संसार से जा रहा ं । तुम मेरे थान पर
सु ीव को ही अपना िपता मानना और उ ीं की इ ा के अनुसार चलना । तु ारे
अपराध करने पर भी म तु सदा ार ही करता था, दू सरा कोई ऐसा न करे गा ।
अत: भिव म ब त सावधान रहना । मेरी एक बात और मानना–वह यह िक सदा
म म माग का ही अनुसरण करना; िकसी से अिधक ेम या बैर न करना; ोंिक
दोनों ही अिन कारक होते ह ।
इतना कहकर बािल ने ाण ाग िदए । वानर-समाज म हाहाकार मच गया ।
सभी उसके गुणों को याद करके रोने लगे । िक ा सूनी जान पड़ने लगी । सु ीव
को उस समय याद आया िक बािल यु म भी भाईपन का ान रखता था और जान-
बूझकर सदा मृदु हार ही करता था । उ ेिजताव था म भी उसने अपना बड़ न
नहीं छोड़ा । बड़े भाई की अनेक िवशेषताओं को रण करके वह अपनी ही ि म
दोषी बन गया और िसर पीट-पीटकर रोने लगा । राम की आां खों म भी आं सू आ गए

तारा उस समय सबसे अिधक दु :खी थी । वह रोती-छटपटाती राम के पास
प ं ची और बोली–राम! मने आपकी बड़ी शंसा सुनी थी । आपने ऐसा अनुिचत
काय ों िकया? ी के िबना िकसी युवक को क होता है , उसे आप जानते ही ह ।
मेरे िबना मेरे ि यतम ग म भी सुखी न होंगे, अतः आपसे मेरी ाथना है िक मुझे
भी मारकर उनके पास प ं चा द । इस ीदान से आपको ब त पु िमलेगा ।
राम ने दु : खनी तारा और सु ीव तथा अंगद को सां ना दे कर बािल की अ ेि -
ि या करने का आदे श िदया । ल ण और सु ीव आिद बािल के मृत शरीर को एक
सुस त िशिवका म रखकर धूमधाम से शान ले गए । वहां सु ीव ने च न की
िचता पर उसका दाह-सं ार िकया ।
इसके बाद सभी मुख वानर राम के पास लौट आए । उन सबकी इ ा यही थी
िक राम यं िक ा म चलकर अपने हाथों से सु ीव का रा ािभषेक कर ।
हनुमान ने इसके िलए उनसे अनुरोध भी िकया, लेिकन ढ़ ती राम सहमत नहीं ए
। एक िनिशचत समय तक िकसी ाम या पुर म जाना उनके िलए अनुिचत था–
उ ोंने वानरों को इस स म उिचत आदे श दे कर सु ीव से कहा–िम ! अब तुम
जाकर अपना अिभषेक कराओ और राजकाज संभलो, अंगद को युवराज का पद दे
दे ना । अब वषा ऋतु आ गई है , अतः सीता के अ ेषण का काय नहीं हो सकता ।
मुझे िव ास है िक तुम वषा के समा होते ही मेरा काय अव करोगे । म तब तक
िक ा के पास ही िकसी एकां त थान म िनवास क ं गा ।
सु ीव ने राम के ित हािदक कृत ता कट करके उनसे कहा–महाभाग! आप
मेरा िव ास कीिजए । म यह ित ा करता ं िक वषा ऋतु के बीतते ही आपका
काय अव कर दू ं गा ।
राम ने उसे ेमपूवक िवदा िकया । वह दल-बल सिहत वानरों की समृ शािलनी
महापुरी म आया । जा ने धूमधाम से उसका ागत िकया । राजदु ग म िविधवत्
उसका रा ािभषेक आ । राजा होते ही सु ीव ने अंगद को गले से लगाकर युवराज
के आसन पर िबठा िदया । राम की कृपा से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गईं ।
राम का एका वास–सु ीव को िक ा भेजकर राम-ल ण वण
नामक सुर पवत की एक गुफा म िनवास करने लगे । उ ोंने वहीं वषा के चार
मास तीत िकए । वन-पवत के रमणीक थानों म भी राम के िच को शा नहीं
िमलती थीं । च ोदय से उनका स ाप बढ़ जाता था । काले बादलों म चमकती
िबजली उ रा स के अंक म छटपटाती ई सीता की याद िदला दे ती थी । उन
िदनों राम को रह-रहकर भरत और अयो ा की भी ब त याद आती थी । कभी-
कभी वे अपने व सु ीव के भा की तुलना करके ल ण से कहते–ल ण! सु ीव
इस समय रमणी और राजल ी का उपभोग करता होगा । लेिकन म रा और
ी, दोनों से वंिचत ं । इस कुसमय म मेरा माग भी दु गम हो गया है । म कौन-सा
सुख भोगू ,कहां जाऊं, ा क ं ?
ल ण उ िनर र सा ना दे ते रहते थे । दोनों भाइयों को एक ही भरोसा था
िक सु ीव वषाकाल के बाद उनके काम को अपने िसर पर उठा लेगा ।
उधर सु ीव रा पाकर बािल की िवधवा ी तारा के साथ भोग-िवलास म म
हो गया । सुरा-सु री के आगे कत का ान िकसे रहता है ! वषा के बाद
शर ाल आ प ं चा, आकाश मेघ-रिहत हो गया । िफर भी सु ीव ने राम के काय म
हाथ नहीं लगाया । एक िदन हनुमान के ब त कहने पर उसने सेनापित नील को
बुलाया और उसे प ह िदन के भीतर पृ ी के सम वानरों को इक ा करने का
आदे श िदया । नील ने सभी िदशाओं म शी गामी दू त भेज िदए । सु ीव िफर
अ :पुर म जाकर रम गया ।
राम की चेतावनी–सीता के िवयोग म राम को एक-एक िदन युग के समान जान
पड़ रहा था । शरद् ऋतु के आते ही उनकी ता बढ़ गई । कई िदनों तक वे इस
आशा म बैठे रहे िक सु ीव दल-बल सिहत आता होगा, लेिकन वह नहीं आया । एक
िदन राम अ ख होकर ल ण से बोले–ल ण! वषा ऋतु बीत गई, उ ोग-
काल आ प ं चा, लेिकन म सु ीव को यहां नहीं दे खता । सीता को खोजने की कोई
व था नहीं ई । म इस समय रा ुत, ीहीन, िन हाय, परदे शी तथा
संकट ँ और अनाथ की भां ित सु ीव की शरण म आया ँ , िफर भी, उसे मेरे
ऊपर दया नहीं आती । मुझे दीन-हीन मानकर वह मेरी उपे ा कर रहा है । उसे मेरे
उपकार और अपनी ित ा का भी कुछ ान नहीं है । तुम आज ही िक ा
जाओ और उस कृत से श ों म कह दो िक यमलोक का माग ब नहीं आ
है । िजस माग से बािल गया है , उसी माग से म सु ीव को भी ब ु-बा वों सिहत भेज
दू ं गा ।
शी कोपी ल ण पहले से ही सु ीव से िचढ़े बैठे थे । राम की बातों से उनका
ोध भड़क उठा । वे सु ीव के ित कठोर वचन बोलते ए धनुष-बाण लेकर खड़े
हो गए । धीर-वीर राम ने उ आव कता से अिधक उ ेिजत दे खकर िफर कहा–
सौ ! इस बात को याद रखना िक सु ीव हमारा िम है , उसके साथ िकसी कार
का अनुिचत वहार मत करना । वह इतने िदनों बाद भोग-िवलास के चुर साधन
पाकर सां सा रक िवषयों म आस हो गया है । जहां तक हो सके, उसे समझा-
बुझाकर ठीक रा े पर लाना होगा ।
वीरवर ल ण ने िक ा के िलए थान िकया । चलते-चलते वे पवतों के
बीच म थत अनेक अ ािलकाओं, पु त काननों, सुिवभ माग तथा दे वालयों से
सुशोिभत महापुरी िक ा म प ं चे । िवशाल राजदु ग के चारों ओर सैकड़ों
श धारी सैिनक पहरा दे रहे थे । सारी पुरी वीर वानरों से भरी थी ।
महाधनुधर ल ण के आते ही सारी राजधानी म हलचल मच गई । राजम यों
ने सैिनकों को नगर-र ा के िलए तुर सावधान कर िदया । सह ों भीमकाय वानर
वृ तथा िशलाखंड लेकर पवतों पर खड़े हो गए और आ मण की ती ा करने लगे

ल ण धनुष पर टं कार दे ते ए राजमहल म घुस गए । िकसी ने उनको रोकने
का साहस नहीं िकया । अ :पुर के ार पर प ं च कर वे यं ही खड़े हो गए । वहां
अंगद ने दौड़कर उनका अिभवादन िकया । ल ण ने उसी के ारा सु ीव के पास
अपने आने का संदेश कहलाया ।
ल ण का उ प दे खकर अंगद भयभीत हो गया था । उसने तुर भीतर
जाकर सु ीव से िनवेदन िकया–तात! महा ा राम के तेज ी भाई ल ण धनुष-
बाण लेकर ार पर खड़े ह और आपसे शी िमलना चाहते ह । इस समय वे अ
ु जान पड़ते ह ।
सु ीव यों के बीच म मदो पड़ा था । अंगद के बार-बार कहने पर वह
उ ेिजत होकर बोला–ल ण को यहां इस तरह आने की आव कता ों पड़ी?
मने उनका कोई अपकार नहीं िकया, िफर वे ों ू ह? जान पड़ता है , मेरे
श ुओं ने उ भड़का िदया है । मुझे राम-ल ण का लेशमा भी भय नहीं है । िफर
भी, म उनके ोध का कारण जानना चाहता ं । िम को इस कार कुिपत नहीं
होना चािहए । मै ी करना सहज है , पर उसे िनबाहना किठन है ... ।
उसी समय हनुमान भी वहां आ गए । उ ोंने सु ीव को उसकी भूल बताई । तब
तक उसका मद भी ब त-कुछ उतर चुका था । वह अपराधी की तरह भयभीत
होकर तारा से बोला...ि ये! म तो ल ण के आगे जाने का साहस नहीं क ं गा, तु ीं
जाओ । वे तु ारे ऊपर ोध नहीं करगे, ोंिक स ु ष यों के साथ िकसी
कार का दु वहार नहीं करते ।
तारा भी उस समय मद से िवहल थी । सु ीव के बार ार आ ह करने पर वह
ल ण के पास गई । ल ण ने उसे दे खते ही अपना िसर झुका िलया । तारा उनके
सामने संभलकर खड़ी हो गई और बोली–राजकुमार! आप हषपूवक यहां पधारते तो
मुझे आ य न होता । लेिकन आप इतने ों ह? िकसी ने आपका कुछ अि य
तो नहीं िकया?
ल ण ने उ र िदया–दे िव! हम राजा सु ीव के दु वहार से ब त ही ु
होकर यहां आए ह । उ ोंने वषा ऋतु के समा होते ही सीता की खोज कराने की
ित ा की थी । उ न उसका ान है और न राम के महान् उपकार का । सब-
कुछ भूलकर वे कािमनी और सुरा के सेवन म लगे ह । हम इस अपमान को नहीं सह
सकते, अत: उनसे शी िमलना चाहते ह ।
मृदुभािषणी तारा इसे सुनकर बोली–राजकुमार! जनों को इस कार कोप
नहीं करना चािहए । आपने हम लोगों का जो उपकार िकया है और आपके ित जो
हमारा कत है , उसे म जानती ं , और यह भी जानती ं िक उसके िलए उ ोग
करने का समय आ गया है । िक ु, इधर आपके िम भोग-िवलास म लगे रहे , इससे
उ इसका िवशेष ान नहीं रहा । काम-वासना के ती होने पर मनु सब कुछ
भूल जाता है । आप कामत म वीण नहीं जान पड़ते, तभी इस कार ु हो गए
ह । कृपया अपने िम को इस ाभािवक दोष के िलए मा कीिजए । जब बड़े -बड़े
ऋिषमुिन भी काम-मोिहत होकर अपना कत भूल जाते ह तो चंचल कृित के
वानरराज का काम-कामी होना आ य की बात रहीं है । उ ोंने इस दशा म भी
आपके काय की अवहे लना नहीं की है । वे इसी काम के िलए दे श-िवदे श के सभी
वानरों को बुलाने का आदे श दे चुके ह । उनसे थोड़ी-ब त जो असावधानी ई हो,
उसे िम -भाव से मा कर दीिजए और अ :पुर म चलकर उनसे ेमपूवक िमिलए

तारा के अनुरोध से ल ण सु ीव के अ :पुर म िव ए । भीतर रमिणयों के
नूपुरों की झंकार सुनकर वे ल त हो गए । दू र से उ ोंने सोने के पलंग पर िद
व ाभूषणधारी सु ीव को बैठे दे खा । आसपास अनेक सविवभूिषता सुकुमा रयां
खड़ी थीं । सु ीव को दे खते ही ल ण का दबा आ ोध िफर उमड़ आया । वे उसे
फटकारने लगे । सु ीव घबराकर चुपचाप खड़ा हो गया ।
तारा ने अपने कोमल तथा तकयु वचनों से ल ण को िफर शा िकया ।
उ स दे खकर सु ीव अ न ता के साथ बोला–िम ल ण! मेरा जो कुछ
ऐ य आप दे ख रहे ह, वह राम की कृपा का ही फल है । म उनके महान् उपकार
को कभी नहीं भूलूंगा । मुझे वे अपना दास समझे और सेवा म मुझसे जो ुिट ई हो,
उसे मा कर द । सेवक से भूल होती ही रहती है ।
ल ण की दु भावनाएं िनमूल हो गईं । वे सु ीव के ित ेह-सौज दिशत
करते ए बोले–िम वानरराज ! मेरे पू भाई और आपके अ तम िहतैषी राम
आजकल अ दु :खी ह । उनके दु :ख-शोक से सं ु होकर ही मने आपको कुछ
कटु श कहे ह । उनके िलए म मा चाहता ं । आप यं चलकर ी राम को
सां ना द और अपनी पूव ित ा के अनुसार, हमारे काय म जो भी सहायता कर
सक, कर । हम आपका बड़ा भरोसा है ।
सु ीव ने ल ण को उ म आसन पर बैठाकर उनका यथोिचत आदरस ार
िकया । इसके बाद वह हनुमान् से बोला–हनुमान्! जहां भी िजतने वानर हों सबको
शी ाितशी बुलाने के िलए दु बारा दू त भेजो । जो वानर दीघसू ी या िवषयी हों उ
समझा-बुझाकर, भय िदखाकर या लोभन दे कर िजस तरह भी हो सके बुलवाओ ।
मेरे सम यूथपितयों को मेरा यह आदे श भेज दो िक वे अपने-अपने दल लेकर दस
िदन के भीतर यहां आ जाएं । जो इस आ ा का उ ंघन करे गा उसे कठोर
ाणद िदया जाएगा ।
हनुमान् ने शी ही सभी िदशाओं म दू तों के दू सरे दल भेज िदए । चारों ओर से
दल के दल वानर पहले ही चल पड़े थे । ल ण के वहां रहते-रहते वानरों के अनेक
यूथ आ गए और ब त-से दू र आते िदखाई पड़े । सु ीव ने यूथपितयों को सेना-सिहत
वण पवत पर चलने का आदे श िदया । इसके बाद वह ल ण के साथ सोने की
पालकी म बैठ कर यं राम से िमलने गया ।
राम के पास प ं चकर वानरराज उनके चरणों पर िगर पड़ा । राम ने अ ेह
से उसका आिलंगन िकया, कुशल- पूछा और अ म कहा–िम ! उ ोग-काल
आ गया है , म तु ारे भरोसे बैठा ं , अब तुम सीता को खोजने म मेरी जो भी
सहायता कर सकते हो, शी करो... ।
सु ीव ने कहा–िम वर! आप िनि रह । इस काय के िनिम सैकड़ों
यूथपितयों की अ ता म अनेक दे शों की सेनाएं आ गई ह । उनम वानर और रीछ
जाित के असं वीर ह । अ थानों के सैिनक भी आते ही होंगे ।
दोनों म बात हो ही रही थीं, इतने म दू र अपर ार धूल उड़ती िदखाई पड़ी ।
साथ ही भयंकर कोलाहल भी सुनाई पड़ा । सु ीव के यूथपित अपनी-अपनी सेना
लेकर झपटे चले आते थे । सेनापित नील अपने िवशाल दल के साथ आता िदखाई
पड़ा । नील भी सह ों वानरों को लेकर चला आ रहा था । महाबली बािल का वीर
पु अंगद लाखों वानर सैिनकों को िलए ए सबसे आगे प ं चने के िलए था ।
हनुमान का उ ाह तो दे खने ही यो था । वे दल के साथ बार ार िसंहनाद करते
ए महावेग से दौड़े आ रहे थे । वृ जा व रीछों का ब त बड़ा झु िलए आता
था । इसी कार तारा के िपता सुषेण, हनुमान् के िपता केसरी तथा ब त-से अ
वानर-सरदार अपना-अपना सुसंगिठत दल लेकर राम की सहायता के िलए चले आ
रहे थे । ‘राजा सु ीव और राजािधराज राम की जय’ से आकाश बार-बार थरा उठता
था ।
दे खते-दे खते लाखों-करोड़ों वानर वण के पास आकर जमा हो गए । तब
सु ीव ने राम से िनवेदन िकया–महानुभाव! मेरे साथी सैिनक और सेनापित आपकी
सेवा म उप थत ह । ये बड़े आ ाकारी, साहसी, परा मी तथा काम पी
(इ ानुसार िविवध प धारण करने म कुशल) वानर ह । आप इनसे और मुझसे जो
सेवा चाह ले सकते ह । सब आपके आदे श की ती ा म ह ।
राम अ स होकर बोले–वानरे सु ीव! आ ा तो आप ही दे सकते ह ।
पहले हम यह पता लगाना है िक सीता अभी तक जीिवत है या नहीं, और यिद जीिवत
है तो कहां िकस प र थित म है । इस काम को आप िजस ढं ग से कराना चाह कराएं
। आगे का काय म तो बाद म ही िनि त होगा ।
सु ीव ने वानरों को सारा योजन बताया और सीता को चारों िदशाओं म ढू ं ढ़ने
के िलए स ूण सेना को चार दलों म बां टा और ेक दल के नायक को एक-एक
िदशा के सम नगरों, ीपों और वनों तथा पवतों आिद का पूरा िववरण बता िदया ।
दि ण िदशा म सीता के िमलने की अिधक स ावना थी, अत: उधर के िलए अंगद
की अ ता म हनुमान्, नील, जा व आिद चुने ए धीर-वीर िनयु िकए गए ।
इस कार की व था करके सु ीव ने हनुमान् को एका म बुलाया और कहा–
हनुमान्! मुझे तु ारा बड़ा भरोसा है । तुम बु और बल दोनों म सव े हो ।
तु ारे ही उ ोग से यह काय सफल हो सकता है । तुम सीता की खोज करने म कुछ
उठा न रखना ।
राम ने भी हनुमान् को बुलाकर उनके हाथ म अपनी नामां िकत मुि का दी और
कहा–किपवर! मेरा दय कह रहा है िक तुम सीता को खोजने म अव सफल होगे
। यिद सीता िमले तो उसे यह अंगूठी दे दे ना । इसको पाकर वह अ स होगी
और तु ारा िव ास कर लेगी । मेरी ओर से उस दु : खनी का हालचाल पूछना और
मेरा यह संदेश कह दे ना िक उसके िबना मेरा यह जीवन सूना हो गया है , म ब त ही
दु :खी ं और शी ही उसके उ ार का उपाय क ं गा ।
इसके उपरा वानरे र सु ीव ने सम वानरों को स ोिधत करके कहा–मेरे
वीरो! तुम लोग अपनी-अपनी िनिद िदशा म जाकर, िजस कार भी हो सके, सीता
और रावण का पता लगाओ । इस काय के िलए तु एक मास का समय िदया जाता
है । इस अविध म जो भी लौटकर सीता का कुशल-संवाद सुनाएगा, वह मुझे ाणों से
भी अिधक ि य होगा । म उसे मुंहमां गा पुर ार दू ं गा । इसके िवपरीत जो वानर
लौटने म िवल या िकसी तरह का माद करे गा, उसे मृ ुदंड िदया जाएगा ।
सु ीव का आदे श सुनते ही वानरगण िच ाकर बोले–‘राजा सु ीव की जय!
महाराजा राम की जय ! हम सीता को ढू ं ढगे! रावण जीता न बचेगा!’ इस कार
दपयु वचन कहते और घोर गजन करते ए वानरों के दल बड़े उ ाह से िविवध
िदशाओं म चल पड़े ।
सीता की खोज–वानर लोग चारों ओर बड़ी त रता से सीता की खोज करने
लगे । पूव, पि म और उ र के दल सभी दु गम थानों म जाकर हताश हो गए और
महीने-भर के भीतर लौट आए । दि ण िदशा का दल िनि त अविध के भीतर न
लौटा । अंगद, हनुमान् और जा व आिद िव ाचल की गुफाओं म, वनों, पवतों
और झािड़यों तक म सीता की खोज करते और अनेक संकटों को झेलते ए दि ण
के समु -तट पर जा प ं चे । सामने अगाध सागर गरज रहा था । इतने िदनों के घोर
म और क से िथत वानरगण वहीं हताश होकर बैठ गए । उ िक ा से
चले तीन-चार महीने हो चुके थे । अब लौटने म ाणद का भय था । इसिलए वे
दु िवधा म पड़ गए–न आगे जा सकते थे और न पीछे लौट सकते थे ।
सभी वानर अधमरे -से होकर समु के िकनारे पड़े थे । उसी समय पवत की
चोटी पर एक भयंकर शरीरधारी गृ िदखाई पड़ा । वह जटायु का बड़ा भाई स ाित
था । उसे दे खते ही ब त-से वानर यह िच ाते ए भागे-हाय! हम तो थ ही मारे
गए । हमसे अ ा तो जटायु ही था, जो राम का कुछ उपकार करके ही मरा... ।
जटायु का नाम और उसका मृ ु-संवाद सुनकर अितवृ स ाित बोला–अरे ।
यह ा दय-िवदारक समाचार सुना रहे हो! वानरो, घबराओ मत, कृपा करके
अपना प रचय दो और यह बताओ िक जटायु कब और कैसे मरा?
स ाित के पूछने पर वानरों ने सारा हाल कह सुनाया । उसे सुनकर स ाित
बोला–िम ो! िजसके वध का वृता तुमने अभी सुनाया है , वह मेरा छोटा भाई था ।
म तो वृ ाव था के कारण शरीर से ब त ही िनबल हो गया ं , लेिकन बु और
वाणी से ही राम की थोड़ी-ब त सहायता कर सकता ं । कुछ समय पूव मने रावण
को एक अप ता ी के साथ इधर से जाते दे खा था । वह ी बार-बार ‘हा राम! हा
ल ण!’ कहकर िच ा रही थी । स वत: वे सीता ही थीं । तुम लोग यहां से
िकनारे -िकनारे सुदूर दि ण चले जाओ और वहीं से सौ योजन ल े समु को िकसी
तरह पार करने की चे ा करो । उस पार रावण की महापुरी लंका म तु सीता का
दशन िमल सकता है । म तु ारी सफलता की कामना करता ं । उससे मुझे और
मेरे ग य भाई की आ ा को ब त ही स ोष होगा ।
स ाित वानरों को उ ािहत करके चला गया । वानरगण उसके बताए माग से
आगे बढ़े और कई िदनों की किठन या ा के बाद दि ण सागर के िकनारे प ं च गए
। अब उनके सामने उस िवशाल समु को पार करने की िवकट सम ा उप थत
ई । अंगद ने अपने सभी सािथयों से पूछा, पर ु कोई भी इतनी ल ी समु ी या ा
करने का साहस नहीं कर सका । तब अंगद यं ही इसके िलए तैयार आ, लेिकन
वयोवृ जा व ने दल नेता को संकट म डालना ठीक नहीं समझा । उस दु गम
सागर को पार करके महाबलवान् श ु के दु ग म प ं चना और वहां से िफर जीिवत
लौट आना सहज नहीं था । इस दु र काय के िलए कोई भी आगे नहीं आ रहा था ।
अंगद ब त उदास हो गया था ।
तब जा व ने कहा–युवराज! आप िच ा न कीिजए । हमारे दल म एक ऐसा
वीर है जो इस काय को करने म समथ है । म उसे जानता ं और उसी को इसके
िलए े रत क ं गा ।
हनुमान उस समय तक चुपचाप िवचारम बैठे थे । जा व ने उनकी ओर
दे खकर ग ीर र से कहा–वानर जाित के र , वीरा णी हनुमान! तुम मौन ों
बैठे हो? बल-बु -तेज म म तु राम-ल ण-सु ीव से कम नहीं मानता । उठो
महावीर! आज संसार तु ारा बल-परा म दे खना चाहता है । सबकी आं ख तु ारे
ही ऊपर लगी ह । उठो! लंका के िलए थान करो!
जा व की ेरणा से महामन ी हनुमान ने इस मह ाय को करने का ढ़
संक कर िलया । वे िसंह की तरह अंगड़ाई लेते ए कमर कसकर तैयार हो गए
और अपने सािथयों से बोले–भाइयो! आप लोग िच ा न कीिजए, म इस िवशाल
सागर को पार करके राम का ि य काय अव क ं गा । इसके िलए म आप सबका
आशीवाद चाहता ं ।
वानरगण हनुमान की जय बोलते ए हष से उछल पड़े । उस समय हनुमान का
मुखम ल आ तेज से दमक रहा था । उ ोंने सबके आगे हाथ जोड़कर जाने की
आ ा मां गी । जा व ने वानर म ली की ओर से उ िवदा करते ए कहा–वीर-
िशरोमिण हनुमान! तुम ऋिष-मुिनयों के आशीवाद और िम ों की शुभकामनाएं
लेकर जाओ, तु ारा माग मंगलमय हो, तुम सफल होकर सकुशल लॉटो । हम
सबका जीवन और मान-स ान तु ारे ही हाथ म है ।
वायुतु वेगवान् हनुमान बड़े आ िव ास के साथ वहां से उछलकर महे
पवत पर जा खड़े ए । उ ोंने िन य कर िलया िक लाखों िव बाधाओं के होते ए
भी लंका प ं चकर ही रहगे । शरीर से तो नहीं, लेिकन मन से वे उसी ण रावण की
दु भ महापुरी म प ं च गए ।
सु रका

हनुमान का लंका-गमन–िम ों ारा अिभन त महावीर हनुमान अद उ ाह


और ा ािभमान के साथ िसर ऊंचा करके महे पवत के उ िशखर पर खड़े हो
गए । उस समय वे िवकराल फणधारी महासप के समान तीत होते थे । उनका
सु ढ़, सुिवशाल शरीर भातकाल की र यों से अ दे दी मान हो रहा था ।
उ ोंने सामने अन सागर और अन आकाश को दे खा; िफर अपने अंग- ंग
को सुिवकिसत और स ुिलत करके मन ही मन सम लोक-श यों को नम ार
िकया । इसके बाद अपनी दीघ भुजाओं को आगे फैला करके बड़े वेग से उछले और
पृ ी, आकाश तथा समु को क ायमान करते ए वायुगित से लंका की ओर चल
पड़े ।
महामन ी रामदू त हनुमान अगम, असीम िस ु के ऊपर महामेघ की भां ित
गजन करते और अपने व थल से वायुम ल को चीरते ए आगे बढ़े । माग म
मैनाक पवत मानो उनके ागताथ खड़ा था । हनुमान के नहीं, उसको छूते ए
आगे िनकल गए । कुछ दू र जाने पर उ रा सी जैसी भयावनी नागमाता सुरसा
खड़ी िमली । हनुमान को दे खते ही वह अपना ल ा-चौड़ा मुंह फैलाकर उनकी ओर
दौड़ी । हनुमान त ाल न तापूवकक बोले–दे िव! म इस समय महा ा राम की
अप ता भाया सीता की खोज म जा रहा ं । ऐसे शुभ काय म मुझे आपका
आशीवाद और सहयोग चािहए । यिद आप खाना ही चाहती ह, तो कृपा करके मुझे
इतना अवकाश तो द िक म लंका से लौटकर ीराम को सीता का समाचार बता दू ं ।
उसके बाद म यथाशी आपके पास आ जाऊंगा । तब आप मुझे मारकर अपनी
इ ा पूरी कर लीिजएगा ।
सुरसा डपटकर बोली–मेरे आगे से कोई बचकर नहीं जा सकता; म आज तुझे
िनगलकर ही र ं गी ।
वह अपने मुख को बढ़ाने लगी । उसके साथ हनुमान भी अपने शरीर को बढ़ाते
गए । अ म, जब सुरसा का मुंह खूब चौड़ा हो गया तो वे बड़ी शी ता से अपने
अंगों को समेटकर उसम चले गए और ण ही भर म िफर बाहर िनकल आए ।
इसके बाद उ ोंने पुनः िनवेदन िकया–नागमाता! आपका मान-मनोरथ पूरा हो गया;
अब म आपसे आगे जाने की अनुमित चहता ं ।
सुरसा ने हनुमान की बु म ा और वहारकुशलता से स होकर उ
आशीवाद-सिहत आगे जाने की अनुमित दे दी ।
हनुमान ती गित से िफर अपने ल की ओर चले । आगे जाने पर उ एक
दू सरी िवपि का सामना करना पड़ा । समु म िसंिहका नाम की एक बूढ़ी रा सी
रहती थी । उसने जल म हनुमान की परछाई पकड़ ली । उनकी गित क गई ।
िसंिहका ने अपनी अद् भुत आकषण-श ारा उ धीरे -धीरे अपनी ओर खींच
िलया । हनुमान उस रा सी के मुंह म पड़ गए । उ ोंने त ाल अपने ती ण नखों से
उसका पेट फाड़ डाला ।
इस कार अपने बु , बल और पु षाथ से अनेक िव बाधाओं को जीतते ए
महापरा मी हनुमान उसी िदन सागर के दू सरे तट पर जा प ं चे । आगे ब त
िछपकर जाने की आव कता थी, इसिलए वे अपने िवराट् शरीर को संकुिचत
करके वामन जैसे हो गए ।
समु के िकनारे ल नामक एक पवत था । हनुमान चुपचाप उसकी एक चोटी
पर चढ़ गए और वहीं से लंका का दे खने लगे । रा सराज रावण ारा शािसत
परम समृ शािलनी लंका चारों ओर से गहरी खाई और परकोटों से िघरी थी ।
अगिणत श धारी सैिनक बाहर से उसकी र ा कर रहे थे । नगर-दु ग की दीवारों
पर सैकड़ों शति यां रखी थीं । शर ाल के मेघ जैसी शु गगन श अ ािलकाएं
दू र से ही िदखाई पड़ती थीं । उनके दरवाजे सोने के बने थे । भवनों पर ण के
कलश जगमगा रहे थे । दे वताओं के चतुर िश कार िव कमा ारा ि कूट पवत पर
िनिमत वह अमरावती जैसी महापुरी आकाश म उड़ती-सी तीत होती थी । हनुमान
उसकी शोभा और सुर ा की व था दे खकर चिकत हो गए । िदन म िकसी भी
ओर से उसके भीतर वेश करना किठन था । अत: वहीं ककर राि की ती ा
करने लगे ।
रात होते ही हनुमान िब ी की तरह दु बककर लुकते-िछपते आगे बढ़े और एक
ओर से परकोटे को फां दकर लंकापुरी म िव हो गए । भीतर जाकर उ ोंने
रा सों की राजधानी का वैभव दे खा । उसम ण, मिण-र ों से अलंकृत अगिणत
भ भवन, अनेक श माग और उ ान, सरोवर तथा ीड़ागृह आिद बने थे ।
थान- थान पर काश का समुिचत ब था । चारों ओर मंगल वा ों की िन गूंज
रही थी । य -त शूल-चापधारी सैिनक सावधानी से पहरा दे रहे थे । हनुमान ने वहां
कई गु चर भी दे खे । उनम कोई जटाएं बढ़ाए था, कोई केश मुंडाए था, कोई न
और कोई िभ ुक का वेश बनाए था । उन सब की आं ख बचाकर वे रावण के दु भ
राजदु ग म जा प ं चे । वह सोने के परकोटे से िघरा था । भीतर एक से एक बढ़कर
सैकड़ों उ मो म भवन थे । उन सब के दरवाजे और कशूरे सोने के बने थे ।
खड़िकयों और सीिढ़यों म हीरे -मोती-प े जड़े थे । भोग-िवलास, शोभा- ृंगार के
सभी साधन वहां उपल थे । महा तापी रावण का राज ासाद इ भवन को भी
ल त करता था ।
च मा उदय हो आया था । चां दनी रात म हनुमान वहां की अ ािलकाओं पर
चढ़कर एक-एक करके भीतरी भाग को दे खने लगे । ब त खोजने पर भी सीता नहीं
िमलीं । तब वे चुपके से रावण के शयनागार म घुसे । रावण एक सुस त श ा पर
बड़े आराम से सो रहा था । आस-पास अनेक सु रयां भी सो रही थीं । इधर-उधर
मिदरा की ािलयां पड़ी थीं । दीपकों के म काश म हनुमान ने उन कामिनयों
को दे खा–िकसी के मोितयों के हार-टू टे थे, िकसी के व िशिथल हो गए थे, िकसी
के आभूषण खसककर िगर पड़े थे । सभी हास-िवलास से थककर एक-दू सरे के
सहारे सोई थीं । वे रा सराज रावण की पित ता पि यां थीं । रावण ने उनम से एक
का भी बलपूवक अपहरण नहीं िकया था । सभी उसके गुणों पर आस होकर
े ा से उसकी णियनी बनी थीं ।
हनुमान बड़ी सावधानी से घूम-घूमकर रावण के अ :पुर का िनरी ण करने लगे
। ब त-सी लाव वती वे ाएं भूिम पर िन ाम पड़ी थीं । नृ -संगीत के बाद वे
वहीं थककर सो गई थीं । कोई अपनी ढोलक को, कोई वीणा को और कोई मृदंग
को िलपटाए पड़ी थी । घूमते-घूमते हनुमान ने एक अितिवभूिषत श ा पर एक
अ सु री ी को शयन करते दे खा । वह वा व म रावण की पटरानी
म ोदरी थी; लेिकन हनुमान को यह म आ िक कहीं वही तो सीता नहीं है । कुछ
दे र तक मन ही मन तक-िवतक करने के बाद उ ोंने अ म यही िन य िकया िक
वह सीता कदािप नहीं हो सकती ोंिक महा ा राम की सती-सा ी िवयोिगनी प ी
इस कार ृंगार करके पर-पु ष के शयन-म र म सुख की नींद नहीं सोएगी ।
हनुमान वहां से िनराश होकर रावण की मधुशाला म गए और िन ाम
िवलािसनी यों म सीता की खोज करने लगे । उस समय उ पर ी-दशन के
पाप का ान आया और संकोच म पड़ गए । उ ोंने अपने दय को टटोला और
त: कहा–म इन यों को कु ि से नहीं दे ख रहा ं , इ दे खने से मेरे िच म
कोई िवकार नहीं उ आ, मेरा अ :करण शु है और म शुभ उ े से ही इ
दे खता ं , जब तक मेरा मन मेरे वश म है , तब तक मुझे पर ी-दशन का पाप नहीं
लग सकता । सीता की खोज यों म ही हो सकती है , अत: मेरी यह चे ा अनुिचत
नहीं है ।
हनुमान इस कार संशय रिहत होकर सीता की खोज म पुनः वृत ए । एक
थान पर उ ोंने ‘पु क' नामक उस चािलत िवमान को दे खा, िजसे रावण कुबेर
से बलपूवक छीन लाया था । मिण-र ों से जिटत और सु र पंखों से यु वह एक
अद् भुत व ु थी । उसको दे खने के बाद हनुमान लंकापित के दु ग से बाहर िनकल
आए और राजधानी के उ ानों, लताम पों आिद म सीता को ढू ं ढ़ने लगे । उ ोंने
एक-एक गली-चौराहे , ताल-तलैया तक म खोज की, नगरी का एक-एक कोना छान
डाला, पर सीता कहीं नहीं िमलीं ।
हनुमान हताश नहीं ए । उ ोंने परकोटे पर चढ़कर चारों ओर ि दौड़ाई ।
दू र भां ित-भां ित के वृ ों से सुशोिभत रावण की अशोक वािटका िदखाई पड़ी ।
हनुमान मन ही मन भगवान की ुित करके उस ओर चल पड़े । वहां पहरे दारों की
आं ख बचाकर वे चुपके से भीतर घुस गए ।
रा सराज की अशोक वािटका सचमुच अतीव सु र थी । उसम रं ग-िबरं गे फूलों
वाले अशोक, च ा, मौलिसरी आिद के सैकड़ों वृ लगे थे, थान- थान पर
कमनीयकुंज, लता-िवतान, ीड़ा-सरोवर आिद बने थे । बीच म कैलास पवत-सा
भ एक उ ान-गृह था । उसके चबूतरे सोने के बने थे, सीिढ़यों पर मिणयां जड़ी थीं
। हनुमान एक घने अशोक वृ पर चढ़कर बैठ गए और वहीं से िछपे-िछपे उस
भवन को दे खने लगे । उसके बाहरी ख म कई काली-कलूटी, डरावनी रा िसयां
बैठी थीं । उनम से िकसी का मुंह गधी जैसा, िकसी का भस-सा और िकसी का
िसया रन जैसा था । सबके शरीर पर इतने बड़े -बड़े बाल थे िक जान पड़ता था मानो
वे क ल ओढ़े बैठी थीं । उनके बड़े -बड़े दां त, िवकराल ने और ल े-ल े ती ण
नख दू र से ही भय उ करते थे । कुछ बैठी थीं और कुछ हाथ म शूल-मु र िलए
खड़ी थीं ।
उ ीं रा िसयों के बीच म, धुएं से िघरी अि -िशखा के समान एक ीणकाय ी
अ मिलन कपड़े पहने बैठी थी । उसके चेहरे पर घोर उदासी छाई थी और ने ों
से लगातार आं सू टपक रहे थे । हनुमान ने उसे ान से दे खा और कुछ-कुछ
पहचाना भी । उसका प उस अप ता नारी से िमलता-जुलता था, िजसे कुछ ही
समय पूव उ ोंने ऋ मूक पवत से दे खा था । उसी ने ऊपर से गहने फके थे । िजस
रं ग के कपड़े म गहने बंधे थे, उसी रं ग का कपड़ा उसके शरीर पर िदखाई दे ता था ।
इन बातों से हनुमान को िव ास हो गया िक वह वा व म सीता ही ह । पित के
ेमवश जो राज-सुखों को लात मारकर वन म चली आई थीं और फल-मूल खाकर
वन म भी भवन से अिधक सुख का अनुभव करती थीं, िजनके िबना राम का जीवन
सूना हो गया था, उ ीं सती-सा ी सीता का दशन करके हनुमान कृताथ हो गए ।
उ ोंने हष से ग द होकर मन ही मन उस दे वी की णाम िकया ।
हनुमान ब त दे र तक वहीं से बैठे-बैठे सीता की क णाजनक दशा दे खते रहे ।
राि के अ म हर म वेद-पाठ के साथ अनेक मंगलवा ों की िन सुनाई पड़ी ।
रावण को जगाने के िलए नाना कार के मां गिलक कृ होने लगे । रावण श ा से
उठा और अनेक अनुचर-अनुच रयों के साथ सीधे अशोक वािटका म प ं चा ।
हनुमान उसे दे खते ही एक डाली से िचपक गए ।
सीता रावण की आते दे खकर भय से थरथराने लगीं । वह उनके सामने जाकर
खड़ा हो गया और मधुर र म बोला–सु री! मुझसे डरती ों हो? म तु अपने
ाणों से भी अिधक चाहता ं ...मेरा कहना मानो, इस फूल जैसे शरीर को इस तरह
न न करो...यौवन बार-बार नहीं िमलता...इसका आन कर दू ं गा, इस पृ ी को
जीतकर तु ारे िपता जनक को सौंप दू ं गा...च मुखी! सुलोचने! अपने इस
ेमपुजारी की ाथना मान लो...उस जंगली राम की िच ा छोड़ो, उस द र के पास
ा रखा है ! अब तू उसे दे ख भी नहीं सकेगी, इसिलए उसे भूल जा और लंके र की
दये री बनकर यथे सुख भोग ।
सीता के मन पर इन बातों का उलटा ही असर पड़ा । वह रोती ई बोलीं-पापी!
अनाय! तु पर ी से ऐसा घृिणत ाव करने म ल ा नहीं आती! तुम अपनी
पि यों के पास जाकर ऐसी ेम की बात करो । म राजा दशरथ की कुलवधू और
धमा ा राम की पित ता धमप ी ं । िजस कार सूय से उसकी ोित को अलग
करना अस व है , उसी कार राम से मुझे अलग नहीं िकया जा सकता । तुम यिद
अपना और अपने भाई-ब ुओं का क ाण चाहते हो, तो मुझे मेरे ामी के पास
प ं चा दो और उनसे अपने अपराध के िलए मा मां ग लो, नहीं तो राम अपने बाणों
से तु ारा और इस सारी लंका का सवनाश कर डालगे ।
रावण इस ताड़ना से हत भ हो गया और सीता को धमकाता आ बोला–सीते!
मने तुझे एक वष का समय िदया था, उसम केवल दो मास शेष ह । म िफर कहता ं
िक यिद इस बीच तूने मेरे ाव को न माना, तो मेरे रसोइये तेरे शरीर के टु कड़े -
टु कड़े करके मुझे उसी का कलेवा खलाएं गे ।
सीता ने ितर ार के साथ उ र िदया–रावण! म तु ारी घुड़की-धमकी की
परवाह नहीं करती । तुम यिद स े शूर होते तो मुझे इस तरह धोखे से चुराकर न
लाते ।
रावण की आं ख ोध से लाल हो गईं । वह उप थत रा िसयों से बोला–तुम
लोग, िजस तरह भी हो, दो महीने के भीतर इसे ठीक रा े पर लाओ ।
इसके बाद वह अकड़ता आ वहां से चला गया । रा िसयां सीता को डराने-
धमकाने लगीं । सीता दु :ख से ाकुल होकर रोती ई बोली–हा मेरे राम! तुम कहां
हो? ा तुम मुझे भूल गए? नहीं, नहीं, तुम मुझे भूले न होगे । मेरे ामी ऐसे कृत
नहीं ह िक सामने ीित कर और पीठ पीछे भूल जाएं ...
सीता के दयो ार सुनकर ि जटा नाम की वृ ा रा सी अ रा िसयों से
बोली–अरी पािपिनयों! तुम लोग सीता को नहीं पहचान सकोगी! िपछली रात मने यह
दे खा है िक राम के िकसी दू त ने आकर सारी लंका को भ कर िदया और यह
महापुरी समु म िवलीन हो गई । उसी म मने िवभीषण के अित र अ
सबको बड़े बुरे वेश म दि ण िदशा की ओर जाते दे खा है । यह सब शुभ नहीं है ।
जान पड़ता है , सीतापित राम के हाथों से इस रा का िवनाश होने वाला है । तुम
लोग समय रहते चेत जाओ । सीता को स रखने म ही हमारा क ाण है ।
सीता-हनुमान िमलन–सीता अपने िवषादपूण जीवन से ऊब गई थीं । इतने
िदनों म राम का कोई स े श न िमलने से उ ोंने उनके पुनिमलन की आशा भी छोड़
दी थी । रावण का अ ाचार अस हो गया था, अत: उ ोंने अपने दु :खी जीवन का
अ करने का िन य कर िलया । वे आ ह ा के िवचार से टहलने के बहाने उठीं
और धीरे -धीरे घूमती-िफरती उसी वृ के नीचे जाकर खड़ी हो गई, िजसपर हनुमान
िछपे बैठे थे ।
हनुमान ब त दे र से बैठे-बैठे सब कुछ दे ख-सुन रहे थे । अब वे सीता से िमलने
के िलए हो गए । उनके आगे सहसा कट होकर सं ृ त भाषा म बातचीत
करना ठीक नहीं था । उस दशा म स वत: सीता उ मायावी रावण समझकर
िच ा उठतीं और रा िसयां उनका िच ाना सुनकर दौड़ पड़तीं । इससे बना-
बनाया काम िबगड़ जाता । अतएव दू रदश हनुमान ने एक िन य तो यह िकया िक
पेड़ पर से ही सीता को राम का वृता सुनाकर धीरे -धीरे अपनी ओर आकिषत
करना चािहए और दू सरा यह िक उनसे जन-साधारण की ऐसी भाषा म बातचीत
करनी चािहए, िजसे रा िसयां न समझ ।
सीता िजस समय गले म दु प ा बां धकर आ ह ा की तैयारी कर रही थीं,
हनुमान इस कार गुनगुनाने लगे–अयो ा म दशरथ नाम के एक तापी राजा
थे...उनके जये पु राम बड़े धमा ा और शूरवीर थे...उ ोंने जनकपुरी म जाकर
िशवधनुष तोड़ा...राजा जनक ने उनके शौय-वीय पर मु होकर उनके साथ अपनी
सवशुभल ण-स ा क ा सीता का िववाह कर िदया...राम-सीता म पर र बड़ा
ेम था...एक िदन वयोवृ राजा दशरथ ने अपने ाण ारे पु को युवराज बनाने का
िन य िकयाIअयो ा म धूमधाम से रामािभषेक की त ारी होन लगी लेिकन…
हनुमान इस कार म से राम-वनवास, सीता-हरण, जटायु मरण, राम-सु ीव-
मै ी, बािल-वध और सीता अ ेषण आिद का वृता सं ेप म कह गए । सीता ने
उसे सुना और चौंककर ऊपर दे खा । वहां राजा सु ीव के सिचव, बु मानों म े
हनुमान बैठे िदखाई पड़े । उ दे खते ही वे घबरा गईं और ‘हा राम! हा ल ण!
कहकर रोने लगीं । तब हनुमान धीरे -धीरे नीचे उतरे और उ णाम करके बोले–
दे िव! आप कौन ह? ा आप िकसी ेह- जन के िवयोग से पीिड़त ह? आप तो
िकसी उ वंश की राजक ा तीत होती ह! स किहए, आप महा ा राम की
धमप ी सीता तो नहीं ह?
सीता को ब त िदनों बाद कोई सुख-दु :ख पूछने वाला िमला था, इससे उनके
िच को थोड़ी शा िमली । उ ोंने हनुमान को सं ेप म अपना प रचय िदया और
अ म उनका भी प रचय पूछा ।
हनुमान हष से पुलिकत होकर बोले–दे िव, म िक ापित वानरे सु ीव का
अनुचर और ीराम का दू त हनुमान ं । आपके पितदे व ने मुझे आपका कुशल-
समाचार लेने के िलए भेजा है । उनके छोटे भाई ल ण ने आपको णाम कहा है ।
सीता के िलए यह आक क घटना थी । वे आ यचिकत होकर सोचने लगीं िक
कहीं उ म या धोखा तो नहीं हो रहा है । हनुमान उनके मनोभाव को तुर ताड़
गए और अ मधुर श ों म बोले–दे िव, मेरे िवषय म आप स े ह न कर, म
सचमुच राम का दू त ं और केवल आपको दे खने के िलए ही दु गम समु को
लां घकर इतनी दू र रा सों की इस दु भ पुरी म आया ं । महा यश ी राम और
उनके अ तम ेही ाता ल ण आपको िन रण करते ह । िक ापित
सु ीव की िवशाल सेना लेकर वे शी ही आपका उ ार करने आएं गे ।
हनुमान यह कहते ए सीता के िनकट चले गए । सीता उनके प म कपट-
वेशधारी रावण की आशंका से भयभीत होकर पीछे हट गई और बोलीं-वानर! तु ारे
ित मेरे मन म स े ह होता है , लेिकन साथ ही न जाने ों मेरा दय तु ारी ओर
अपने-आप खंचा जा रहा है । ा तुम सचमुच मेरे ि यतम के दू त हो? तु ारी
उनसे कहां भेट ई? मेरे ामी के िवषय म तु जो कुछ भी ात हो, कृपा करके
मुझे सुनाओ ।
हनुमान ने सीता को अपनी और राम की भट तथा राम-सु ीव की मै ी का
िववरण सुनाया और संगवश उनके फके ए आभूषणों की चचा करके कहा–दे वी!
राम उन आभूषणों को दय से लगाकर रोते-रोते मूिचछत हो गए थे । आपके िबना
उ कुछ भी अ ा नहीं लगता । उ ोंने आपको ढू ं ढ़ने के िलए चारों िदशाओं म
लाखों वानर भेजे ह...
राम के प-गुण का यथात वणन करके हनुमान ने सीता को राम ारा भेजी
ई नामां िकत मुि का दी । उसे दे खते ही सीता की आं खों म आं सू छलछला आए ।
उ ोंने ि यतम की ेह-भट को दय से लगा िलया और हष से िवहल होकर कहा–
किपवर! तुम अव ही मेरे ामी के िव ासपा दू त हो । तुमने उनका और मेरा
ब त बड़ा काय िकया है । हनुमान! मुझे उनके िवषय म और कुछ बताओ । वे
मुझसे िवर तो नहीं हो गए? मेरे उ ार का य तो कर रहे ह! सच-सच बताओ,
जो धीर-वीर राम अपने पैतृक रा को तृणवत् ागकर मेरे साथ पैदल ही वन की
ओर चल पड़े थे, जो कभी भय, क या शोक से िवचिलत नहीं ए थे, वे इस महा
िवपि म ाकुल और हताश तो नहीं हो गए ह? अयो ापित भरत ने मेरे अपहरण
और बड़े भाई के घोर संकट का समाचार पाकर म यों-सिहत अपनी अ ौिहणी
सेना तो भेजी ही होगी? ल ण तो सुख से ह! राम अपने उस छोटे भाई को मुझसे भी
अिधक चाहते ह ।
हनुमान ने कहा–दे वी, महा ा राम इस समय आपके िवरह से ब त ही संत ह
।उ ाय: रात म नींद नहीं आती, कभी आती भी है तो वे 'हा सीते ।' कहते ए
शी ही जाग जाते ह । ल ण उनकी सेवा म सदा त र रहते ह । आपके िबना उन
दोनों का जीवन ब त ही शोकपूण हो गया है ।
सीता इसको सुनकर ख हो गई और दीघाँ ु वास के साथ बोलीं–हनुमान!
तु ारा यह वचन-िमि त वा अमृत के समान है । शोक से मनु का पु षाथ न
हो जाता है । जब राम इस कार शोक- िथत ह तो मेरा उ ार कैसे होगा?
हनुमान ने िनवेदन िकया–दे िव! आप इसकी िच ा न कीिजए, अभी मेरी पीठ पर
बैठ जाइए, म आज ही आपको समु के पार राम के पास प ं चा दू गां ।
सीता ने तुर उ र िदया–हनुमान, ऐसी बात से तो तु ारी किपता ही कट
होती है । इस छोटे से शरीर पर तुम मुझे लेकर इतनी दू र कैसे जाओगे? कहीं म
डरकर बीच समु म िगर गई या रा सों ने पीछा करके पकड़ िलया तो ा होगा?
एक तो तुम अकेले, दू सरे अ -श भी नहीं िलए हो । वे तु मारकर मुझे कहीं
ऐसी जगह पर िछपा दगे जहां पता भी न चले । इसके अित र म े ा से तु ारा
या िकसी परपु ष का शरीर भी नहीं छू सकती! अतएव तुम जाकर सेना-सिहत राम
को ही ले आओ और मेरा उ ार करो ।
हनुमान ने कहा–अ ा माता! अब मेरा यहां ठहरना उिचत नहीं है । म शी ही
महा ा राम को आपका हाल बताऊंगा और उ इस काय के िलए े रत क ं गा ।
आपका कोई संदेश हो तो कृपा करके मुझे बताइए और अपना कोई िच भी दे
दीिजए िजसे म आपकी ओर से उ भट कर सकूं ।
सीता ने कहा–हनुमान! िमलते ही मन नी कौश ा के यश ी पु के चरणों म
मेरा सादर अिभवादन कहना और िजनके कारण सुिम ा सुपु वती कहलाती ह,
िज ोंने भाई के िलए राजसुखों को ागकर सेवा त ले िलया है , जो मुझे माता तथा
राम को िपता-तु मानते ह, िज दे खकर राम िपता को भूले और िजनको आयपु
मुझसे भी अिधक ार करते ह–उन वीरवर ल ण से मेरा शुभाशीवाद कहना और
यह भी कह दे ना िक जैसे भी स व हो, मेरे उ ार का उपाय कर । यहां मेरी जो
दु दशा हो रही है , उसे राम को बताना और उनसे कहना िक अब म महीने-दो महीने
से अिधक जीिवत नहीं र ं गी । वे जो भी कर सक, इसी बीच कर ।
इसके बाद उ ोंने अपना चूड़ामिण उतारकर हनुमान को िदया और कहा–लो
हनुमान! मेरा यह ृित-िच मेरे ामी को दे दे ना ।
हनुमान ने उसको आदरपूवक लेकर अपने पास रख िलया और हाथ जोड़कर
िवदा मां गी । सीता उस समय दु :ख से कातर हो गई और हनुमान को अ ुपूण ने ों से
दे खकर बोलीं–वीर ! उिचत समझो तो आज कहीं ठहर जाओ, कल चले जाना ।
तु ारे एक िदन ठहरने से इस दु : खनी को कुछ तो सहारा िमलेगा । हनुमान! तु ारे
जाने के बाद म शायद ही जीती बचूं । भिव ब त आशापूण नहीं जान पड़ता ।
राजा सु ीव वानर-सेना के साथ इस अगम सागर को कैसे पार करगे? रा सों की
भयंकर सेना कैसे परा होगी?
हनुमान ने कहा–सती सीता! आप िकसी तरह का संशय न कर । राम-ल ण के
साथ राजा सु ीव वानरों और रीछों की महासेना लेकर ब त शी यहां आएं गे ।
उनके सभी सैिनक मेरे समान या मुझसे बढ़-चढ़कर ह । म तो उनका एक साधारण
अनुचर ं , तभी तो दू त बनाकर भेजा गया ं । जब म ही यहां तक चला आया तो
महाबली वानरों के आने म ा दे र-स े ह हो सकता है । मेरे वहां प ं चने-भर की
दे र है , उसके बाद आप महाधनुधर राम और ल ण को लंका के ार पर दे खगी ।
अब आप मुझे जाने की आ ा द ।
सीता ने आं खों म आं सू भरकर कहा–जाओ महावीर! तु ारी या ा मंगलमय हो!
सबसे मेरा हाल कह दे ना ।
अशोक-वािटका का िवनाश–हनुमान सीता से िवदा लेकर वहां से चल पड़े
और एका म खड़े होकर सोचने लगे िक मु काय तो िस हो ही गया, अब
श ुओं को अपना परा म िदखाकर उनका बलाबल भी जान लेना चािहए । उ ोंने
अपने शरीर को तुर ही बढ़ाकर िवकराल प धारण िकया; इसके बाद वे म
गजराज की भां ित रावण के उस ीड़ा-कानन पर टू ट पड़े और वहां के वृ ों, कुंजों
और िच गृहों आिद को न - करने लगे । अशोक वन दे खते-दे खते शोकवन हो
गया । हनुमान ने भीतर के रा सों को खदे ड़-खदे ड़कर मार डाला । रा स पहरे दार
भयभीत होकर भाग खड़े ए । रा िसयों ने होकर सीता से उस वानर का
प रचय पूछा!
सीता ने कहा–म ा जानू! वह तो कोई मादी दानव जान पड़ता है ; पता नहीं,
कैसे और कहां से आया है ।
सभी रा िसयां भागकर रावण के दरबार म प ं ची और हाहाकार करके बोलीं–
नाथ! बचाइए! आज बड़े सवेरे एक वानर न जाने कहां से आकर सीता से कुछ गु
बात कर रहा था । उसने सीता के िनवास- थान को छोड़कर शेष सभी थानों को
उजाड़ डाला है । सारी वािटका िव हो गई, सभी सैिनक भी मारे गए ।
रावण इसको सुनते ही ोध से ितलिमला उठा । उसने हनुमान को पकड़ने के
िलए त ाल सैिनकों का एक दल भेजा । हनुमान तोरण ार पर बैठे थे । रा स
सैिनकों को दे खते ही उ ोंने घोर िसंहनाद करके ग ीर र म कहामहाबली राम
की जय ! वीरवर ल ण की जय !! राम से रि त िक ापित राजा सु ीव की
जय !!! म कोसले राम का दू त हनुमान ं । एक ा, एक सह रावण भी यु म
मेरा सामना नहीं कर सकते... ।
यह कहकर हनुमान ने तोरण- ार से एक लोहे का छड़ िनकाला और उसी से
सारे रा सों को मार िगराया । उनके जय-जयकार से सारी लंका थरा उठी । रा स
लोग भय से कां पने लगे । रावण ने ब त सैिनक और महारथी भेजे, पर हनुमान ने
िकसी को जीिवत न छोड़ा । तब उसने अपने वीरपु महारथी अ यकुमार को सेना
सिहत भेजा । सु ीव का साहसी सेनापित हनुमान बार ार राम-ल ण-सु ीव की
जय बोलते ए िभड़ गया । दोनों म घमासान यु आ । अ म हनुमान ने
अ यकुमार और उसके सैिनकों को मार डाला । रावण इस समाचार को सुनकर
अ ु और आतंिकत हो गया । उसने त ाल अपने परा मी पु , इ -
िवजेता मेघनाद को हनुमान से यु करने की आ ा दी ।
महारथी मेघनाद धनुष पर टं कार दे ता आ अशोक वािटका के ार पर प ं चा ।
हनुमान को दे खते ही उसने बाणों की झड़ी लगा दी । हनुमान ने भी हाथ म एक
िवशाल वृ लेकर उसका सामना िकया । दोनों म बड़ी दे र तक भीषण यु होता
रहा । मेघनाद के सभी अ -श िवफल हो गए । तब उसने ा का योग
िकया । हनुमान उसके आघात से भूिम पर िगर पड़े । मेघनाद की आ ा से
रा सगण उ बां धकर रावण के पास ले गए ।
रावण-हनुमान-संवाद–हनुमान ने राजिसंहासन पर िवराजमान् सूय के समान
दे दी मान महा तापी लंके र रावण को दे खा । उसके िवल ण और
ऐ य को दे खकर वे मन ही मन कहने लगे-अहो! रा सराज कैसा तेज ी और
साम यवान है ! यिद इसम एक दोष न होता तो यह इ सिहत सम दे वताओं का
ामी होने यो था ।
रावण ने हनुमान को व ि से दे खकर अपने धानम ी ह से कहा–
म वर! इस दु से पूछो िक यह कौन है , कहां से, िकसकी आ ा से और ों यहां
आया है ? अशोक वािटका को उजाड़ने और मेरे पु तथा अगिणत सैिनकों के वध
का दु ाहस इसने ों िकया?
राजब ी हनुमान से ह ने पूछा–वानर! डरो मत । यिद तुम ाणर ा चाहते
हो तो हम सच-सच अपना प रचय, आने का योजन तथा ऐसा उप व करने का
रह बता दो । यिद ऐसा न करोगे तो तु ारे अपराधों के िलए तु िन य ही कठोर
मृ ु-द िदया जाएगा ।
हनुमान धैयपूवक रावण को स ोिधत करके बोले–महाराज! म िक ापित
राजा सु ीव का सिचव और महा ा राम का दू त–हनुमान ं । मने अशोक वािटका
म थोड़ा-ब त उ ात इस अिभ ाय से िकया था िक आपके सैिनक मुझे पकड़कर
आपके सामने उप थत कर द और मुझे सहज म ही राजदशन का सौभा ा हो
जाए । आपके पास तक अ िकसी उपाय से मेरी प ं च नहीं हो सकती थी । अतएव
मने शुभ उ े की पूित के िलए िववश होकर साधारण उप व िकया था । आपके
श धारी यो ाओं ने जब मेरे ऊपर आ मण िकया, तो मुझे आ र ा के िनिम
उनसे लड़ना पड़ा । ऐसी दशा म म उनके वध के िलए दोषी नहीं ं । अब मेरे आने
का योजन सुिनए—
...म राजा सु ीव की आ ा से यहां आया ं । उ ोंने आपका कुशलसमाचार
पूछा है और आपके िहत के िलए एक स े श भेजा है । आप सुन ही चुके होंगे िक
महाबा राम ने बािल को मारकर सु ीव को िक ा का राजा बना िदया है । इस
उपकार के बदले म राजा सु ीव ने राम की अप ता भाया सीता की खोज और
उनका उ ार करने की ित ा की है । म मु तः इसी काय के िलए इधर भेजा गया
था । मने सती सीता को आपके यहां ब नी के प म दे ख िलया है । आप तो
धमशा के का प त तथा तेज ी और तापी राजा ह । आपने एक पर ी
को बलपूवक अपने यहां रखना कैसे उिचत समझा? यह तो घोर अधम एवं िन नीय
कम है । अत: राजा सु ीव ने यह कहलाया है िक आप यथाशी सीता को
स ानपूवक लौटा द, अ था आपको इसका अनथकारी प रणाम भोगना पड़े गा ।
राम से बैर करने का दु ाहस न कीिजए । लोक की ात-अ ात श यां िमलकर
भी यु म महाधनुधर राम का सामना नहीं कर सकगी... ।
महामानी रावण को इस तरह की बात अस थीं । उसने ु होकर अपने
सैिनकों को हनुमान का वध करने का आदे श िदया । उसके छोटे भाई िवभीषण ने
त ाल सामने आकर िनवेदन िकया–महाराज! आप ोध के आवेश म नीित के
िव कोई काय न कर । यह आप जैसे महा ानी और आचारकोिवद् के िलए बड़े
कलंक की बात होगी । राजधम के अनुसार दू त अव है । उसे आप अ कार से
द दे सकते ह, जैसे अंग-भंग करवाना, कोड़े लगवाना, िसर मुंडवाना, शरीर म
कोई िचह बनवा दे ना आिद । इस पराधीन ाणी का ा दोष! द तो वा व म
उसे िमलना चािहए, िजसने इसे यहां आने के िलए बा िकया है । मेरी राय म तो
इसको जीवनदान दे ने म ही आपका बड़ न है । इसके मुख से आपके बल-वैभव
का वणन सुनकर आपके श ुगण ठं डे पड़ जाएं गे ।
रावण ने िवभीषण की स ित मानकर सैिनकों को आदे श िदया िक हनुमान की
पूंछ म आग लगाकर उसे सारे नगर म घुमाओ और जब पूंछ जल जाए तो छोड़ दो ।
लंका-दहन–रावण की आ ा से रा सों ने पहले हनुमान की पूंछ म ढे र के ढे र
कपड़े लपेटकर उसे तेल से अ ी तरह तर िकया, िफर उसम आग लगा दी । इसके
बाद वे उ बां धकर एक-एक सड़क पर घुमाने लगे । चारों ओर दशकों की, ताली
पीटने वालों की भीड़ लग गई । लंकावािसयों के िलए यह बिढ़या कौतुक था । वे
हनुमान की दु गित दे खकर हँ सते थे और दू र से उनके ऊपर ईंट-प र फकते थे ।
हनुमान को भी इसम आन आ रहा था, ोंिक इस बहाने उ लंका के सभी
थान दे खने का सु र अवसर िमल गया था ।
घूमते-घूमते हनुमान एकाएक रा सों को झटका दे कर िनकल भागे और नगर के
फाटक पर चढ़ गए । वहां फुत से अपने ब खोलकर वे पास के एक ऊंचे मकान
की छत पर कूद पड़े । उनकी जलती ई पूंछ से उस मकान म आग लग गई । वहां
से कूदकर वे दू सरे मकान की छत पर प ं चे । वह भी जलने लगा । इस तरह वे एक-
एक करके सभी मकानों म आग लगाते घूमने लगे । सारी लंका धकधकाकर जलने
लगी-सबके अ , व , घर- ार भ होने लगे, िदशाएं ालामुखी हो गई । रावण
की णपुरी म दा ण हाहाकार मच गया, सह ों आकुल- ाकुल रा स ी-ब ों
सिहत िच ाते ए इधर-उधर भाग चले । िकसी ने हनुमान को पकड़ने या मारने की
चे ा नहीं की, ोंिक चारों और भगदड़ मची थी, सब अपनी-अपनी जान बचाने की
ही िच ा म थे ।
हनुमान लंकापुरी म अपना तथा अपने प का बल कािशत करके समु के
िकनारे गए । वहां उ ोंने जल म अपनी पूंछ की ाला बुझाई । उ ेिजताव था म
उ सीता का ान नहीं आया था । अब वे सोचने लगे िक कहीं उस भयानक
अि का म सीता भी न जल गई हों । हनुमान होकर अशोक वािटका की
ओर दौड़े । वहां सीता को सुरि त दे खकर वे अ स ए । सीता ने बड़े हष से
उनका ागत िकया ।
हनुमान की दे श-या ा–हनुमान ने एक साथ ही राम के ब त-से काय कर
िदए थे । उ ोंने सीता का पता तो लगाया ही, उसके साथ-साथ रा सों के दे श म
अपनी और सु ीव तथा स ूण वानर-सेना की धाक भी जमा दी । सीता को अब राम
की िवजय म स े ह नहीं रहा । हनुमान उनसे अ म िवदा लेकर समु के िकनारे
आए । वहां उ ोंने श ु की िव पुरी को ितर ार के साथ दे खकर घोर िसंहनाद
िकया । उसके बाद वे िजस माग से आए थे, उसी से दू ने उ ाह के साथ लौट पड़े ।
इधर अंगद, जा व आिद हनुमान की बाट जोहते बैठे थे । सहसा उनके कानों
म ग ीर गजन की िन पड़ी । ऐसा जान पड़ा, मानो दि ण िदशा का आकाश ही
फट रहा है । ण- ण पर वह िन ती होती जाती थीं । वानरगण चौंककर ऊंचे-
ऊंचे वृ ों और पवत-िशखरों पर चढ़ गए । थोड़ी दे र म लंका की ओर से एक
काश-पुंज बड़े वेग से आता िदखाई पड़ा । शी ही सब कुछ हो गया । उनके
साथी महावीर हनुमान अपने तेज से िदगिदग को आलोिकत करते और बारं बार
राम-सु ीव की जय बोलते हरहराते चले आ रहे थे । सबने समझ िलया िक कृतकृ
होकर ही लौटे ह ।
वानरों म स ता की लहर उमड़ पड़ी । सब तािलयां पीट-पीटकर नाचने लगे ।
हनुमान दे खते-दे खते आ प ं चे । वानरगण 'हनुमान की जय' कहते ए उन पर पु -
वषा करने लगे । अंगद-जा व ने आगे बढ़कर उ दय से लगा िलया । सब
उ घेरकर बैठ गए और सीता का वृता पूछने लगे ।
हनुमान ने अपने सािथयों को लंका का सारा हाल बताया । उसे सुनकर वानरों के
हष का िठकाना न रहा । वे उ बार-बार बधाई दे ने लगे । हनुमान ने अ म सबसे
सिवनय िनवेदन िकया–िम ो! राम की कृपा और आप सबकी स ावना से ही मेरा
यह उ ोग सफल आ है । अभी आगे ब त कुछ करना है । म रा सों के रा म
राम-ल ण-सु ीव की जय-घोषणा करके लौटा ं । अब उसे साथक करना है ।
लंके र रावण साधारण वैरी नहीं है । उसके हाथों से शी ाितशी सीता का उ ार
करना होगा । अतः हम अब राम-सु ीव के पास चलना चािहए ।
वानरगण हनुमान को आगे करके महे पवत से नीचे उतरे और हष तथा
अिभमान से झूमते ए िक ा की ओर चल पड़े । उस समय सबकी ि हनुमान
पर थी । ऐसा लगता था मानो सब उ अपनी आं खों पर उठाए चले जा रहे थे । दल
का ेक सद उनकी सफलता को अपनी सफलता मानकर गव का अनुभव कर
रहा था । सभी राम-सु ीव को सीता का संवाद सुनाने के िलए आतुर थे ।
चलते-चलते वे सु ीव के मधुवन नामक फलो ान म प ं चे । सु ीव का मामा
दिधमुख उसका धान र क था । वानरगण उससे िबना पूछे ही भीतर घुस गए और
फलों को मनमाना तोड़कर खाने लगे । दिधमुख और उसके सािथयों ने उ रोका,
पर उस समय वे दू सरे ही रं ग म थे । उ ोंने उ ान-र कों को ही मार-पीटकर बाहर
िनकाल िदया । दिधमुख रोता-िच ाता आ राजा सु ीव से िशकायत करने चला
गया । वानर लोग फल और मधु से तृ होकर मधुवन म ऊधम मचाने लगे ।
दिधमुख ने सु ीव के पास जाकर वानरों के े ाचार का हाल कहा । उसे
सुनते ही सु ीव ने समझ िलया िक दि ण िदशा का दल काय म सफलता ा
करके लौटा है । उसने राम-ल ण को भी यह संवाद सुनाया । उ ोंने भी वानरों की
इस छ ता को शुभ ल ण ही समझा ।
दिधमुख अपना रोना रो रहा था । सु ीव ने उसको चुप कराकर कहा–म उन
वानरों के काय से ब त स ं । तुम शी जाओ और उ मेरे पास वण पवत
पर भेज दो ।
दिधमुख अपना-सा मुंह लेकर लौट गया । वहां प ं चकर दे खा तो वानरगण खा-
पीकर मौज कर रहे थे । उसने उ राजा सु ीव का संदेश सुनाया । राजा ा सुनते
ही वानरों का दल पूरे वेग से वण पवत की ओर चल पड़ा ।
सु ीव ने दू र से वानरों को बड़े उ ाह से आते दे खा । वह राम से बोला–
रघुन न! सामने दे खए । मेरे िव ासपा अनुचर काम पूरा करके ही आ रहे ह ।
यिद ये सफल न ए होते, तो िनि त अविध के बाद यहां लौटने का साहस न करते ।
ये बात हो ही रही थीं िक इतने म वानरों का दल वहां आ प ं चा । सबने आते ही
सु ीव और राम-ल ण का अिभवादन िकया और िच ाकर कहा–सीता िमल गई!
राम इसको सुनकर ग द हो गए और बड़ी आतुरता से पूछने लगे–वानरो! ा
सीता सचमुच िमल गई? इस समय वे कहां ह? उनकी ा दशा है ? शी कहो... ।
हनुमान ने आगे बढ़कर राम को सारा हाल बताया और सीता की चूड़ामिण
उनके हाथों म रख दी । राम अपनी दु : खनी भाया के ृित-िच को दय से
लगाकर रोते-रोते सु ीव से बोले–सु ीव! इसे मेरे सुर राजा जनक ने सीता को
िववाह के शुभ अवसर पर िदया था । िपता की दी ई यह व ु सीता को ब त ही
ि य थी । इसे वह सदा अपने िसर पर धारण िकए रहती थी... ।
सीता की याद करके राम अ िवकल हो गए और हनुमान से बार-बार पूछने
लगे–हनुमान! बताओ, सीता कैसी है ? भयानक रा स-रा िसयों के बीच म वह
सुकुमारी कैसे रहती है ? उसने तुमसे जो-जो कहा हो, बताओ! हनुमान! तुम मुझे
िकसी कार सीता के पास शी प ं चा दो, म अब उसके िबना एक ण भी नहीं जी
सकता ।
हनुमान ने उ उिचत नीित से सा ना दे कर लंकािवजय के िलए उ ािहत
िकया ।
यु का

सै - याण–हनुमान के मुख से उनके समु ो ंघन, सीता-िमलन और लंका-दहन


का गौरवपूण वृ ां त सुनकर राम अ स ए और सबके आगे उनकी सराहना
करते ए बोले–महावीर हनुमान ने जो अद् भुत काय िकया है , वह दू सरों की क ना
से परे है । इ ोंने िजस ढं ग से अपने कत का पालन िकया है , उससे राजा सु ीव
का मान तो बढ़ा ही है , साथ-साथ मेरा भी एक ब त बड़ा काय िस हो गया है ।
महा ा हनुमान ने मेरा और ल ण का तथा सारे रघुवंश का जो उपकार िकया है ,
उसका बदला म कैसे चुकाऊं! आज तो म इ अपना ेहािलंगन दे कर ही स ोष
क ं गा ।
यह कहते ए राम ने अपने अन िहतैषी को ेमपूवक दय से लगा िलया ।
हनुमान हष से ग द हो गए ।
इसके उपरा राम कुछ दे र तक मौन बैठे रहे , िफर सु ीव से बोले–िम सु ीव!
सीता का पता तो लग गया, लेिकन उसका िमलना असंभव जान पड़ता है । हमारे -
उसके बीच म अथाह समु है ।
सागर की िवशालता का ान करके राम ब त उदास और िन े हो गए । तब
सु ीव ने कहा–महाबा राम! आप जैसे बु मान् और साम यवान् को इस कार
िवषाद नहीं होना चािहए । शोक शौयनाशक है , शोकाकुल ाणी के बने-बनाए
काम भी िबगड़ जाते ह । अब आप शोक ागकर ोध कीिजए । श ु के वास थान
का पता तो लग ही गया है , अब हम वहां ससै प ं चने का उ ोग करना चािहए । ये
काम पी बलवान् वानर लंका-िवजय के िलए आतुर ह । आ ा पाते ही ये जलती ई
आग म भी कूद पड़गे । आव कता होगी तो ये सागर पर सेतु बना दगे । हमारे
लंका प ं चते ही रावण तो मरा समिझए । अतएव वीरा ा राम! उिठए, पु षाथ का
आ य लीिजए, उ महीन होकर बैठने से िस नहीं िमलेगी ।
वीरवर हनुमान ने भी ऐसे ही उ ाहवधक वचन कहे । राम की सारी ता और
िशिथलता दू र हो गई । वे सु ीव से बोले–वानरराज! आज उ राफा ुनी न है ।
इसी न म सीता का ज आ था । िवजय-या ा का यही शुभ मु त है । म अभी
थान करना चाहता ं । वृ , िनबल तथा बाल-सैिनकों को साथ ले चलने की
आव कता नहीं है । कुछ सैिनकों को िक ा की र ा के िलए भी छोड़ना
पड़े गा । शेष सेना की रण-या ा का ब शी करो । हम और हमारे सैिनकों को
इस या ा म ब त सतक रहना है , श ुगण फल-मूल-जल आिद म िवष िमला सकते
ह । माग के वनों, खोह-कगारों म सावधानी से दे ख लेना चािहए िक कहीं अपकारी
लोग िछपे न बैठे हों ।
सु ीव ने शी ही यथोिचत व था कर दी । राम बड़े उ ाह से उठे और ग ीर
र म वानर-सेनापितयों से बोले–वीरो! लंका-िवजय के िलए सेना आगे बढाओ ।
राम का आदे श सुनते ही वानर सैिनक हष से उछल पड़े । उनके िसंहनाद से
आकाश थराने लगा । सु ीव ने सेनानायक नील को आगे बढ़ने का संकेत िकया ।
महाबली नील एक लाख सैिनकों को लेकर बारं बार गजन करता आ आगे बढ़ा ।
उनके पीछे अ यूथपित अपने-अपने िवशाल दल लेकर चले । हनुमान ने राम को
तथा अंगद ने ल ण को अपने-अपने कधों पर िबठा िलया । उनके पीछे राजा सु ीव
और जा व सेना के पृ भाग की र ा करते ए चले । राम चल पड़ी ।
माग का िविच था । अगिणत वानरिसंह बार-बार दहाड़ते, पैर पटकते और
पेड़-प रों को तोड़ते-फोड़ते दौड़े चले जाते थे । पृ ी पर कोलाहल मचा था,
आकाश म धूल ही धूल िदखाई दे ती थी, िदशाएं वीरों के िसंहनाद और जयघोष से
कां प उठती थीं । राम की वानर-सेना आं धी-तूफान की तरह हरहराती ई चली जा
रही थी । नील आगे-आगे रा ा िदखाता और सैिनकों को ामों म अ ाचार करने से
रोकता जाता था ।
राम उस समय ब त स थे । माग म वे ल ण से बोले–सौ ! इस समय सूय
की भा िकतनी िनमल है ! सभी िदशाएं स ह, पवन अ कोमल, सुखकर तथा
हमारे अनुकूल है , वन असमय म भी फूले-फले ह, मृग तथा प ी मधुर र म बोलते
ह, स ूण सेना म हष ाह ा है –ये सब िवजयसूचक शुभ ल ण ह । सारा
वातावरण हमारे अनुकूल है , हम अव सफलता िमलेगी ।
िवजयािभलाषी राम िबना थके और िबना के िदन-रात बढ़ते ही चले गए ।
चलते-चलते वानर-सेना महे पवत पर जा प ं ची । उसके आगे जाने का माग नहीं
था । सामने महासागर लहर- पी असं िजहाओं से अनगल लाप सा करता
िदखाई पड़ा । नील ने वहीं सुर ा का ब करके सेना का पड़ाव डाला ।
लंका म हलचल–हनुमान के लौट जाने के बाद िवभीषण रावण के पास गया
और बोला–भैया! रामदू त हनुमान ने जो कुछ िकया उसे आप दे ख ही रहे ह । सारी
लंका म हाहाकार मचा है । भिव म भी घोर अनथ की स ावना है । अतएव मेरी
स ित है िक आप सीता को स ानपूवक राम के पास भेज द । इसी म आपका
और सारी रा स जाित का क ाण है । राम जैसे महा परा मी से अकारण वैर
करना ठीक नहीं... ।
इसे सुनते ही रावण ु होकर बोला–िवभीषण! मेरे सामने राम की बड़ाई मत
करो । म उसके भय से सीता को नहीं लौटाऊंगा ।
िवभीषण को फटकार कर रावण सभा-भवन म गया । वहां उसने मेघनाद,
कु कण तथा अपने म यों और सेनापितयों को बुलाकर रा की सुर ा के
स म आव क आदे श िदए । इसके बाद वह सबके सामने अपनी बड़ाई और
राम की बुराई करने लगा । दरबा रयों ने भी ल ी-चौड़ी बातों से उसका समथन
िकया । िवभीषण उन सबको फटकारता आ बोला–आप लोग राम के बल को जाने
िबना ही द िदखा रहे ह । श ु को कभी छोटा नहीं मानना चािहए । राम के साथ
अ ाय आ है । अ ायी की जीत नहीं होती । मेरी ाथना है िक महाराज समय
रहते चेत जाएं और सीता को राम के पास भेज द । राम जैसे धमा ा और सवमा
शूर से श ुता करना दे श-जाित के िलए घातक होगा ।
रावण इसे सुनते ही ोध से भड़क उठा और दां त पीसता आ बोला–श ु या
ु सप के साथ रहना भला है , लेिकन कभी ऐसे के साथ न रह जो ऊपर से
तो िहतैषी और भीतर-भीतर श ु का शुभिच क हो । ब ुगण ब ुओं से े ष रखते
ही ह और उनकी िवपि से स भी होते ह । सम भयों की अपे ा ब ु-भय कहीं
अिधक दु :खदायक है ।
इसके बाद रावण ने भरी सभा म िवभीषण के ित अपश ों की झड़ी लगा दी ।
िवभीषण अपने चार अनुचरों के साथ उठ खड़ा आ और बोला–राजन्! आप
दु कारते ही ह तो म जाता ं । आपके िसर पर काल नाच रहा है , आप इन चाटु कारों
के बहकावे म पड़कर अपना िववेक खो बैठे ह, इसीिलए मेरी क ाणकारी बात भी
आपको अि य लग रही ह । म अधम म आपका साथ नहीं दू गा ।
िवभीषण अपने िव ासपा अनुचरों के साथ सभा-भवन से बाहर िनकल गया
और उ लेकर आकाश-माग से राम के िशिवर की ओर चल पड़ा ।
राम-िवभीषण की मै ी–िवभीषण समु के पार वानरों की छावनी के समीप
प ं चा और दू र से ही पुकारकर बोला–म दु रा सराज रावण का अनुज िवभीषण ं
। मने उससे सीता को लौटाने की ाथना की, इस पर उसने भरी सभा म मेरा
अपमान िकया । अब म राम की शरण म आया ं । आप लोग कृपया मेरी ाथना
राम तक प ं चा द ।
पां च श धारी रा सों के आगमन से वानरगण शंिकत हो गए थे । सु ीव यं
यह स े श लेकर राम के पास गया और उनसे बोला–महाराज! रा स भाव से ही
मायावी और िव ासघाती होते ह, मेरी राय म ये पां चों रावण के गु चर ह, ये
िमलकर भेद लेने या भेदभाव उ करने आए ह । यिद िवभीषण सचमुच रावण से
होकर आया हो, तो भी उसका िव ास न करना चािहए । जो अपने िवपि
सगे भाई का न आ, वह दू सरे का ा होगा! इसे तो पकड़कर द दे ना चािहए ।
ाय: सभी वानर सेनापितयों ने िवभीषण के स म ऐसा ही मत कट िकया ।
राम ने ग ीरता से उ र िदया– िम ों! यिद वह िम भाव से आया है तो उसे अपनाना
ही मेरा धम है । बु मानी भी इसी म है िक हम उसे फोड़कर अपनी ओर िमला ल ।
ब त स व है िक िवभीषण इस संकटकाल म बलवान् भाई का नाश कराके अपना
ाथ िस करना चाहता हो । सु ीव! सभी भाई भरत जैसे और सभी पु मेरे जैसे
अथवा सभी िम तु ारे जैसे नहीं होते ।
इतने पर भी सु ीव ने िवभीषण को अपनाने की नीित का घोर िवरोध िकया । तब
राम ढ़तापूवक बोले–सु ीव! जो एक बार भी मेरी शरण म आ जाता है और अपने
मुख से कह दे ता है िक 'म तु ारा ं उसे म अपना ही लेता ं , यह मेरा िनयम है ।
िवभीषण ा, यिद यं रावण ही आया हो तो उसे िनभय होकर आने दो ।
सु ीव िवभीषण के पास गया और उसको तथा उसके सािथयों को आदरपूवक
राम के पास ले गया । िवभीषण दौड़कर राम के चरणों पर िगर पड़ा और बोला–
राजन्! म रावण का ितर ृ त अनुज िवभीषण ं । मने उसके अनौिच का समथन
नहीं िकया, इसीिलए वह इतना हो गया िक मुझे उसके रा से िनकल जाना ही
उिचत जान पड़ा । अब म इन ािमभ अनुचरों के साथ आपकी शरण म ं ।
हमारे ऊपर कृपा कीिजए ।
राम ने यो रीित से िवभीषण का स ार िकया और पास िबठाकर वहां के वीरों
का प रचय पूछा । िवभीषण ने सब कुछ बताकर अ म कहा–महाराज! लंका
म एक से बढ़कर एक शूरवीर ह । मेरा मंझला भाई कु कण भी अद् भुत बलशाली
है । रावण का पु मेघनाद इ जीत नाम से िस है । इ आिद भी उस धुरंधर
महारथी का सामना नहीं कर सकते । रावण का धान सेनापित ह भी एक माना
आ यो ा है । उसने कैलास पवत पर मिणभ को परािजत करने म अद् भुत
िव म दिशत िकया था । अ वीरों म सेनापित महोदर, महापा व तथा अक न
िवशेष प से उ ेखनीय ह । लंका म लाखों रा सों की अ -श से सुस त
चतुरंिगणी सेना है । उसकी सहायता से रावण कई बार लोकपालों और दे वताओं
तक को जीत चुका है ।
रावण की सैिनक श का िववरण सुनकर राम ने कहा–िवभीषण! म ित ा
करता ं िक इन सबको मारकर म तु लंका का राजा बनाऊंगा ।
िवभीषण राम के चरणों पर म क रखकर बोला–महाराज, म लंका-िवजय म
ाणपण से आपका साथ दू ं गा ।
राम ने उसी समय ल ण ारा समु -जल मंगवाकर सबके आगे िवभीषण का
रा ािभषेक कर िदया । उसके प म उ एक दू सरा काम का साथी िमल गया ।
सेतु-िनमाण–वानर-सेना के सामने समु को पार करने की किठन सम ा थी ।
राम तीन िदन तक समु के िकनारे कुशा िबछाकर पड़े -पड़े भावी काय म पर
िवचार करते रहे । अ म समु को सुखाने का िन य करके उ ोंने धनुष पर एक
अमोघ ा चढ़ाया । उससे समु म भीषण हलचल होने लगी, पृ ी उत
होकर फट गई, जल पीछे हटने लगा और थोड़ी दे र म ही वह थान म थल-सा हो
गया । अथाह और ु समु उथला और शा िदखाई दे ने लगा । समु ने मानो
उ पार जाने का रा ा दे िदया ।
यूथपित नील को ऐसा तीत आ मानो समु उसे सेतु-िनमाण का संकेत कर
रहा है । वह राम से बोला–महाराज, आ ा हो तो म इस समु पर पुल बना सकता ं

राम ने अनुमित दे दी । दे व-िश ी िव कमा का सुपु नील बड़े मनोयोग से इस
काय म जुट गया । लाखों और करोड़ों वानर गािड़यों म बड़े -बड़े वृ और
िशलाख ले आए । ब त-से वानर सूत और मानद पकड़कर खड़े हो गए ।
नील काठ और प र की सहायता से ठीक-ठीक नापकर पुल बनाने लगा । उसने
पां च िदन के भीतर सौ योजन ल े समु पर सम, सु ढ़ और सुिव ृत सेतु बना
िदया । इस काय म वह दू सरा िव कमा ही िस आ।
लंका पर चढ़ाई–पुल के बनते ही लंका का मनोनीत राजा िवभीषण अपने
अनुचरों के साथ उस पार चला गया और हाथ म गदा लेकर सेतु की र ा करने लगा
। इसके बाद स ूण राम-सेना धूमधाम से चल पड़ी । वानर-वीरों के िसंहनाद के
आगे महासागर का गजन म पड़ गया ।
उस पार प ं चकर वीरा णी राम सेना का नायक करते ए पैदल आगे बढ़े ।
सुवेल पवत के पास प ं चकर उ ोंने वहीं सेना का पड़ाव डाल िदया ।
रावण ने जब यह सुना िक राम की सेना समु पर पुल बनाकर लंका की सीमा
पर आ गई है तो उसके आ य का िठकाना न रहा । उसने शुक और सारण नामक
दो िव ासपा अमा ों को श ु की सैिनक श का पता लगाने के िलए भेजा । वे
वानर प बनाकर राम के सै -िशिवर म प ं चे और बड़ी सावधानी से वहां एक-
एक बात का पता लगाने लगे । वहां सेना पहाड़ी जंगल म दू र-दू र तक फैली थी ।
उसका ब त-सा भाग तो आ गया था, शेष पुल को पार करके आ रहा था । ऐसी दशा
म सै -सं ा का अनुमान करना किठन था । शुक-सारण िछपे-िछपे घूम रहे थे,
इतने म िवभीषण ने उ पहचानकर पकड़ िलया । दोनों राम के सामने उप थत
िकए गए । वहां उ ोंने श ों म ीकार कर िलया िक वे रावण की आ ा से
सेना का भेद लेने आए थे ।
इस पर राम मु राकर बोले–अगर तुम लोगों का योजन पूरा हो गया हो तो
जहां जाना चाहो जा सकते हो और यिद अभी कुछ दे खना-बूझना हो तो जाकर यं
दे ख लो अथवा िवभीषण सब-कुछ िदखा दगे । तुम लोग दू त हो, अतः तु ारे साथ
िकसी कार का दु वहार या अ ाचार नहीं होगा । यहां से जाने पर मेरा यह
स े श रावण से कह दे ना िक िजस बल पर उसने मेरी भाया का अपहरण िकया है ,
अब उस बल को मेरे सामने िदखाए, कल ात:काल लंकापुरी और सम रा स-
सेना पर मेरे बाण व की तरह िगरगे ।
यह कहकर उ ोंने दोनों को ब न से मु करा िदया । वे राम की जय बोलते
ए लौट गए । रावण के पास जाकर उ ोंने राम के बल, भाव और सौज की
बड़ाई करके उनका रण-स े श कहा । रावण उ लेकर महल की सबसे ऊंची
अ ािलका पर गया और वहीं से राम के सै -िशिवर का िनरी ण करने लगा । सारी
लंका वानरों से िघरी जान पड़ती थी । रावण सारण से उस सेना के मुख वीरों का
िववरण पूछने लगा ।
सारण दू र खड़े वानर वीरों की ओर संकेत करके बोला–दे खए ामी! जो इस
ओर मुख करके बार ार गजन कर रहा है , िजसके िसंहनाद से सम लंका
क ायमान है , वह सु ीव की सेना का अ गामी वीर सेनापित नील है । और जो
लंका की ओर व - ि से दे खकर बार-बार ज ाई लेता है , वह िवशालकाय वानर
बािल-पु अंगद है । दे खए, वह िनभय होकर आपको यु के िलए ललकार रहा है
।...अंगद के पीछे नील नामक परा मी वानर िदखाई दे ता है । उसी ने समु पर पुल
बां धा है ।...दू र पर ऋतुराज जा वान अपने दल-बल के साथ खड़ा है ।...और राजन्,
वह जो मत गजराज की भां ित खड़ा है , उसे तो आप पहचानते ही होंगे । वह वायुपु
के नाम से िव ात केसरीपु हनुमान है । उसके बल-िव म के िवषय म कुछ
कहना नहीं है ।...हनुमान के समीप ही सवशा -पारं गत, धममयादार क,
िव िव ात वीर महाधनुधर राम िवराजमान ह । उनके पास ही त ण जैसे वण
वाले, परम तेज ी ल ण िदखाई दे ते ह । राम के वाम पा व म अपने चार मंि यों
के साथ िवभीषण बैठे ह । उ राम ने लंका के राजपद पर अिभिष िकया है ।...
राम और िवभीषण के बीच िहमालय पवत के समान अचल वानरे सु ीव िवराज
रहे ह ।...दे श-दे श के अगिणत वानर सैिनक यु के िलए कमर कसे तैयार ह । इस
महासेना को जीतना किठन है । अकेले राम ही अपने िद ा ों से लंका को भ
करने म समथ ह । अतएव राजन्! मेरी स ित यह है िक सीता को लौटाकर राम से
िम ता कर लीिजए ।
शुक ने भी ऐसे ही िवचार िकए । रावण को उनकी बात ि य नहीं लगीं ।
वह दोनों को डां टकर बोला–मूढ़ म यों! तुम लोग पढ़-िलखकर भी नीितयु
वहार नहीं जानते, तभी मेरे सामने श ु की शंसा कर रहे हो । ऐसे मूख म यों
को साथ रखकर भी म रा को चला रहा ं , यह कम आ य की बात नहीं है । दू र
रहो, म श ु- शंसकों को नहीं दे खना चाहता ।
शुक-सारण वहां से चले गए । अ ब त-से गु चरों ने भी आकर राम-सेना की
सबलता का िववरण सुनाया । रावण कुछ होकर अ :पुर म चला गया । वहां
उसकी मां और मामा ने सीता को लौटाने और राम से मेल करने की सलाह दी, पर
उसने िकसी की नहीं सुनी । वह दप से बोला–भले ही मेरे शरीर के दो टु कड़े हो
जाएं , लेिकन म श ु के आगे िसर नहीं झुका सकता ।...सारे श ु इस पार आ गए,
यह अ ा ही आ, अब उनम से एक भी जीिवत नहीं लौट सकेगा ।
इसके बाद रावण महायु की तैयारी करने लगा । उसकी आ ा से सारी
चतुरंिगणी सेना लंका की र ा करने के िनिम स हो गई । महापुरी म चारों ओर
यो ा ही यो ा िदखाई पड़ने लगे ।
इधर राम ने सेना को चार दलों म िवभािजत करके यह आदे श िदया िक वे यं
तथा ल ण, िवभीषण और उनके चार म ी ही मानव-वेश म रहगे, शेष सैिनकों का
िच वानर ही होगा । सारी व था करके वे स ापूव अपने मुख सहयोिगयों के
साथ सुबेल पवत के सव िशखर पर चढ़ गए । वहां से उ ोंने णमयी लंका का
भ दे खा । नीले रं ग की वेशभूषा से स त असं रा स सैिनकों की
ेिणयां ऐसी लगती थीं मानो परकोटे के भीतर अनेक परकोटे बने ह ।
राम वह रात वहीं िबताकर सवेरे नीचे उतरे । शुभ मु त म यु ातुर सेना को
लेकर वे लंका की ओर वेग से चल पड़े । ि कूट पवत के पास प ं चकर उ ोंने
सैिनकों को योजना के अनुसार िभ -िभ िदशाओं म जाने का आदे श िदया । दे खते-
दे खते लाखों करोड़ों-वानरों ने ि कूटाचल को चारों ओर से घेर िलया । राम के
िनभींक सैिनक रा से की दु गम महापुरी पर आ मण करने के िलए हो गए
। लंका की िदशाएं वानर वीरों के िसंहनाद से कां पने लगीं ।
लंका का घेरा डालकर राम ने अंगद से कहा–सौ ! राजधम के अनुसार श ु को
रण-िनम ण दे कर तब यु आर करना चािहए । तुम मेरे दू त बनकर रावण के
पास जाओ और उसे मेरा यह स े श सुना दो िक उसने िजस बल पर मेरी धमप ी
सीता का अपहरण िकया है , उसे चूर करने के िलए म, राम, लंका के ार पर आ
प ं चा ं ...यिद वह अब भी अपना भला चाहता है तो सीता को लौटाकर मेरे सामने
आ समपण कर दे , अ था म उसका और उसकी सारी सेना का संहार करके
िवभीषण को लंका का राजा बना दू ं गा । उस अधम से कहना िक यु म आने से पूव
वह अपने हाथ से ही अपना ा कर ले, ोंिक बाद म उसे पूछने वाला कोई न
रहे गा ।
अंगद आकाश-माग से रावण के सभा-भवन म प ं चा । वहां उसने सबके आगे
राम का स े श ों का ों कह सुनाया । रावण उसे सुनते ही ोध से उ हो
गया और सैिनकों से बोला–दे खते ा हो, पकड़ी इस दु को ।
चार बलवान् रा सों ने झपटकर अंगद को पकड़ िलया । बािल-पु अंगद ने उ
ऐसा झटका िदया िक चारों के चारों पछाड़ खाकर िगर पड़े । इसके बाद वह रावण
के महल के कगूरे को लात से ढहाकर आकाश-माग से दू र िनकल गया । रावण को
इस घटना से अ ोभ आ । उसने दे खा िक सारी लंका वानरों से िघरी है ।
राजधानी के बाहर भयंकर कोलाहल मचा था ।
यु ार –अंगद के आते ही राम यु के िलए उठ खड़े ए । उ ोंने एक बार
लंका पर ि डाली, कुछ णों के िलए सीता का ान िकया, तदु परा लंका पर
धावा बोल िदया । राम की रण-घोषणा के साथ ही सेना म शंख और तूय बजने लगे ।
आकाश 'राम-ल ण-सु ीव की जय' से िननािदत हो उठा । वानरों ने धूमधाम से
लंका पर चढ़ाई कर दी । ब त-से साहसी वीर उछलकर परकोटे की दीवारों पर चढ़
गए और वहीं से श ु को यु के िलए ललकारने लगे ।
रा से रावण ने त ाल अपनी सेना को बाहर िनकलकर यु करने की आ ा
दी । रा सराज की अ -श से सुस त चतुरंिगणी सेना डं के बजाती लंका के
चारों फाटकों से बाहर िनकली । दू र-दू र तक फैले पहाड़ी जंगलों म वानरों और
रा सों म घमासान यु ार हो गया । रा स यो ाओं ने शूल, प रघ, गदा, शत ी
और तलवार तथा बाणों से भीषण हार िकया । इधर से राम-ल ण अपने ती ण
बाणों से तथा िवभीषण और उसके चारों अनुचर गदाओं से श ु-संहार करने लगे ।
वानरगण िशलाख और पादपा बरसाते ए वै रयों से िभड़ गए । भयंकर
मारकाट होने लगी । दे खते-दे खते चारों ओर र की निदयां बह चलीं ।
सूया होने पर भी यु ब न आ । दोनों दलों के सैिनक 'मारो, काटो' कहते
ए अंधेरे म लड़ने लगे । रणभूिम म हताहतों के ढे र लग गए । वह राि कालराि के
समान भयानक हो गई । रा स-सेना पर राम-ल ण के बाण और वानर-सेना पर
मेघनाद के बाण अख मेघधारा के समान बरस रहे थे ।
मायावी महारथी मेघनाद ने अपने चेतना-नाशक बाणों से वानर-सेना की िथत
कर िदया । अंगद ने एक भारी िशलाख से उसके रथ को चूर कर डाला । तब
उसने एक गु थान म िछपकर बाणों की वषा ार की । इ -िवजेता मेघनाद के
कूट बाणों से राम-ल ण के मम िबंध गए, उनके हाथों से धनुष भी िगर पड़े । उसके
नागपाश नामक महा से दोनों मृत ाय होकर लड़खड़ाते ए भूिम पर िगर पड़े
और अचेत हो गए । रा सगण उ मृत समझकर हष से उछल पड़े । मेघनाद सभी
वानर यूथपितयों को मूिचंछत और आहत करके डींग हां कता आ रावण के पास
लौट गया ।
वानर-सेना म घोर उदासी छा गई । सबने यही समझा िक राम-ल ण मर गए ।
सु ीव आिद मुख वानर वीर उ घेरकर बैठ गए और रोने लगे ।
उधर लंका म राम-ल ण की मृ ु का िढं ढोरा िपटवा िदया गया । रावण ने सीता
को भी कई रा िसयों के साथ पु क िवमान म बैठाकर राम की अपमृ ु का
दे खने के िलए भेजा ।
शोक-संत सीता िवमान से राम और ल ण की दु गित दे खकर दा ण िवलाप
करने लगी । ि जटा उ िकसी तरह ढाढस बंधाकर वापस ले गई ।
राम कुछ दे र बाद चैत ए । अपने पास ही ल ण को आहत और अचेत पड़ा
दे खकर उ घोर दु :ख आ । वे रोते ए बोले–अब ल ण के िबना मेरा जीना और
सीता को ा करना थ है । संसार म खोजने पर सीता जैसी नारी िमल सकती है ,
लेिकन ल ण जैसा भाई, सु द और सूरमा कहां िमलेगा ।
इसके बाद वे ल ण को स ोिधत करके बोले–भैया ल ण! म जब-जब दु :खी
होता था, तुम मुझे धैय बंधाते थे । आज तो म ब त दु :खी ं , तुम मौन ों हो? ारे
भाई! जैसे वन-या ा म तुमने मेरा साथ िदया था, वैसे ही परलोक-या ा म म तु ारे
पीछे आता ं ।
िफर वे सु ीव आिद की ओर दे खकर बोले–जहां तक मुझे रण है , इस भाई ने
कभी ु होने पर भी मेरी बात का अनादर नहीं िकया । मेरे िलए इसने अपनी स ा
ही िमटा दी थी । िम ों! अब मुझम लंका को जीतने का उ ाह नहीं है । तुम लोग
मुझे यहीं छोड़कर अपने-अपने घरों को लौट जाओ । म ित ा करके भी िवभीषण
को लंका का राजा नहीं बना सका, यह िम ा लाप आज मेरे दय को जला रहा
है ... ।
राम की इन बातों से सभी को अ दु :ख आ । सु ीव ने सुषेण नामक
यूथपित को बुलाकर कहा–दे खो, तुम दोनों भाइयों को सावधानी से िक ा उठा
ले जाओ, म रावण को मारकर सीता को वहां ले आऊंगा ।
ये बात हो ही रही थीं िक इतने म िवनता-पु ग ड़ आ प ं चा । उसने त ाल
दोनों का उपचार करके उ नागपाश के भाव से मु एवं पूणतया थ बना
िदया । उनके घाव भर गए । राम ने अ कृत होकर उसका प रचय पूछा । वह
बोला–राम! मेरा नाम ग ड़ है । म सदा घूमता रहता ं और िजसकी जो कुछ भी
सहायता बन पड़ती है , कर दे ता ं । म े ा से ही यहां आया ं । अब आप लोग
सावधानी से यु कीिजए, ोंिक रा स लीग कपट-यु म बड़े द ह ।
ग ड़ चला गया । वानर दल म िफर भेरी-मृदंग बजने लगे । सब पुन: यु के
िलए तैयार हो गए ।
उधर लंका म िवजयो व मनाया जा रहा था । अधराि म वानरों का गजन और
दु दुिभयों का िननाद सुनकर रावण चौंक पड़ा । दू तों से पता लगाने पर उसे ात
आ िक राम-ल ण मरे नहीं, जीिवत ह और पहले की ही भां ित पूणतया थ हो
गए ह । उसने तुर महारथी धू ा को आगामी यु का सेनापित बनाकर श ुओं
का सवनाश करने का आदे श िदया ।
दू सरे िदन का यु –दू सरे िदन ात:काल रा स-दल बादल की तरह गरजता
आ बाहर िनकला और यु ातुर वानरों पर टू ट पड़ा । हनुमान के दल ने आगे
बढ़कर महारथी धू ा की चतुरंिगणी सेना से लोहा िलया । वानरों-रा सों म िवकट
सं ाम िछड़ गया । रा सों ने ती ण अ ों से सह ों वानरों को मार कर िगरा िदया ।
वानरों के अ नख, दं त, पेड़ और प र ही थे । उ ोंने इ ीं से डटकर यु िकया

महारथी धू ा ने अपने च बाणों से वानर-सेना को िततर-िबतर कर िदया ।
अब हनुमान कोप करके आगे बढ़े और पेड़ों-प रों से रा सों को खदे ड़-खदे ड़कर
मारने लगे । उ ोंने एक भारी िशला से धू ा के रथ को चूर-चूर कर डाला और
दू सरी और दू सरी िशला से उसके िसर को । धू ा के मरते ही सारे रा स सं
होकर भाग गए ।
तीसरे िदन का यु –तीसरे िदन रावण की आ ा से वीरवर वज़दं सेना-सिहत
यु -भूिम म आया । उस िदन भी दोनों दलों म भीषण सं ाम आ । अ म, अंगद
ने तलवार से वज़दं को मार िगराया । रा स-सेना के पैर उखड़ गए ।
चौथे िदन का यु –चौथे िदन रा स-िसंह अक न चतुरंग सै लेकर रण े
म आया और वानर-सेना पर टू ट पड़ा । दोनों सेनाओं म रोमां चकारी यु होने लगा ।
अक न के आ मण को वानर वीर नहीं रोक पाए । तब हनुमान हाथ म एक शाल
वृ लेकर उससे िभड़ गए । उ ोंने अक न को सबके दे खते-दे खते मार िगराया ।
रा स-सेना अक न के िबना कां पने लगी और हिथयार छोड़कर भाग खड़ी ई ।
पांचव िदन का यु –अब तक रावण को िव ास था िक वह राम की सेना को
सहज म ही परा कर दे गा । अपने दो नामी सेनापितयों के मारे जाने के बाद वह
सतक हो गया । इस बार उसने अपने धान सेनापित ह को श ु के उ ूलन का
भार सौंपा ।
महाकाल-सा िवकराल सेनानायक ह धनुष-बाण लेकर रथ म बैठा और
चतुरंिगणी सेना-सिहत दु दुिभ बजाता आ लंका के ार से बाहर िनकला । सामने
महाबली नील की सेना रा ा रोके खड़ी थी । दोनों सेनाओं म मुठभेड़ हो गई । दोनों
ओर से यो ा ाणों का मोह छोड़कर पर र िभड़ गए । ह ने थोड़ी ही दे र म
रण भूिम को वानरों का शान बना िदया । वानरगण िच ाते ए भाग चले ।
रा सों ने उ खदे ड़-खदे ड़कर मारना ार िकया । नील अपनी सेना की दु गित
दे खकर ु हो उठा । उसने लपककर ह के रथ के घोड़ों को मार िगराया ।
ह बाण मारना ही चाहता था, इतने म नील ने उसके हाथ से धनुष छीन िलया ।
तब वह मूसल लेकर दौड़ा । नील एक वृ लेकर लड़ने लगा । उस म दोनों
बुरी तरह घायल हो गए, िफर भी कोई पीछे नहीं हटा । अ म अंगद ने एक
िशलाख से रावण के महामानी सेनापित का म क चूर कर डाला । नायकहीन
रा स सैिनक िसर पर पैर रखकर लंका की ओर भाग खड़े ए ।
छठे िदन का यु – ह की वीरगित का समाचार सुनकर रावण शोक से
ाकुल हो गया । यह उसके िलए एक ब त बड़ी चेतावनी थी । छठे िदन वह
धूमधाम से अपने दे दी मान रथ म बैठकर यु के िलए बाहर िनकला और सेना-
सिहत यु थल की ओर चल पड़ा ।
राम ने दू र से ही उस दल को आते दे खकर िवभीषण से पूछा–िवभीषण! यह
सुिवशाल चतुरंिगणी सेना िकसकी है ? इसम तो ब त-से शूरवीर िदखाई पड़ते ह ।
िवभीषण बोला–महाराज! दे खए, वह जो िसंह-िच ां िकत जा वाले रथ म बैठा
बार-बार धनुष को टं कृत कर रहा है , वह वीर मेघनाद है । उसके पास ही दू सरा
तेज ी धनुधर महारथी अितकाय है । जो मत गजराज पर बैठा िसंहनाद कर रहा है ,
वह धीर-वीर सहोदर है । ऊंचे बैल पर ती ण ि शूल िलए िवकट वीर ि िशरा है और
िद रथ म सूय-सा का मान, िहमालय-सा िवशालकाय, लयंकर िशव-सा
श ुदपहारी, छ -मुकुटधारी, महा तापी लंके र रावण है ।
रावण को दे खते ही राम बोल उठे –अहो! रा सराज रावण तो सचमुच
महातेज ी है । इसके दी मान् मुखम ल की ओर तो कोई दे ख भी नहीं सकता
। ऐसा भावशाली िकसी दे वता का भी नहीं है । यह कृ होकर िन य ही
तीनों लोकों को जीत सकता है । आज मेरा सौभा है िक यह मेरे सामने आ गया ।
मेरे दय की ाला आज ही शा होगी ।
राम-ल ण धनुष-बाण लेकर खड़े हो गए । रावण ने श ु-सेना पर बड़े वेग से
आ मण िकया । सु ीव उसके एक बाण से आहत होकर िगर पड़ा । वानर-सेना के
मुख वीरों ने िमलकर रावण से लोहा िलया, लेिकन उसके बाणों ने सबकी गित
त कर दी । रणभूिम म लय का उप थत हो गया । ए वहां से भाग
चले ।
महावीर हनुमान िसंहनाद करते ए रावण की ओर झपटे । उ ोंने रथ पर
चढ़कर रावण को एक ऐसा घूंसा मारा िक उसका िसर चकरा गया । ण-भर बाद
थिचत होने पर वह बोला–वानर, श ु होने पर भी तेरा बल-िव म सराहनीय है ,
अब म एक ही घूंसे से तुझे यमलोक भेज दू ं गा ।
यह कहकर रावण ने हनुमान की छाती म घूंसा मारा । वे मू त हो गए । उसके
बाद रावण ने सेनापित नील पर एक च बाण चलाया । वह आहत होकर िगर
पड़ा । इस कार अनेक परा मी वानर यूथपितयों को परा करके उसने अगिणत
श ुओं को मार-मारकर िबछा िदया । रावण की मौव की टं कार से सारा यु े
िनत हो रहा था ।
उधर से ल ण पैदल ही रावण को ललकारते ए दौड़े । रावण ने बड़े अिभमान
से अपना रथ उनके आगे बढ़ाया । दोनों म भयंकर बाण-यु होने लगा । दोनों ने
एक दू सरे के बाणों को काट डाला । अ म, रावण ने ु होकर ल ण के ऊपर
अि वत् जा मान एक महाश छोड़ी । उससे ल ण का व थल अ
त हो गया । वे अचेत होकर पृ ी पर िगर पड़े । हनुमान उ तुर राम के पास
उठा ले गए । रावण िफर वानर-सेना को ई की तरह धुनने लगा ।
उस समय दोनों ओर के वीरों- ितवीरों म थान- थान पर भयंकर सं ाम हो रहा
था । सारी रणभूिम म रावण का घोर आतंक छाया था । कोई भी उसके सामने जाने
का साहस नहीं करता था । ऐसी दशा म राम यं उससे यु करने चले । हनुमान ने
उ अपने क े पर िबठा िलया । रावण के सामने प ं चते ही वे ललकारकर बोले–
खड़ा रह रावण, अब तू बचकर नहीं जा सकता ।
यह सुनकर रावण ोध से ितलिमला उठा । उसने पहले तो हनुमान को बाण से
बींधा, िफर राम के ऊपर महाबाणों की झड़ी लगा दी । राम ने ती णतम बाणों से
उसके जा-मुकुट-धनुष आिद काट डाले । वह िदन-भर यु करते-करते थक गया
था । इसीिलए पूण परा म नहीं िदखा सका । राम के बाणों से उसके अंग-अंग जजर
और िशिथल हो गए । ऐसी दशा म, राम ने अ ाचार करना उिचत नहीं समझा । वे
रावण से बोले–रा सराज ! तू आज अपने बल-परा म का अ ा प रचय दे कर थक
गया है । तेरा धनुष भी टू ट गया है । म इस दशा म तुझे नहीं मा ं गा । तू लंका म
जाकर िव ाम कर, थ होने पर िफर आना, तब हम दोनों का ाणा क सं ाम
होगा ।
रावण अ ख और ल त होकर लौट गया । उसका ऐसा मान-मदन कभी
नहीं आ था । राम को उसने जैसा समझ रखा था, वे उससे कहीं अिधक बढ़-
चढ़कर िनकले । उस िदन रावण का आ िव ास िडग गया । उसने घोर संकटकाल
म अपने महाश शाली भाई-कु कण को बुलाना आव क समझा । वह ब त
समय से भोगिवलास म म कहीं बेखटके सो रहा था । रावण ने म यों को उसे
शी जगाने की आ ा दी ।
रावण के म यों ने कु कण के िव ाम- थल म जाकर बड़ी किठनाई से
उसकी िन ा भंग की और रावण का स े श तथा रा स-सेना के पराभव का हाल
कहा । उसे सुनते ही कु कण ोध से दां त पीसता आ उठा और रावण के
राजमहल की ओर चल पड़ा ।
वानरों ने दू र से उस भूधराकार महादानव को दे खा । वह महाकाल, सचल
क लपवत और कालमेघ-सा अ भयंकर लगता था । वानर लोग डरकर इधर-
उधर भागने लगे, राम ने िवभीषण से उस अद् भुत शरीरधारी का प रचय पूछा ।
िवभीषण बोला–राजन्! यह यम और इ को परािजत करने वाला महापरा मी,
महा ोधी कु कण है । इसका शरीर जैसा िवशाल है , वैसा ही सु ढ़ भी है ।
मदो कु कण म गज की भां ित झूमता, पैर पटकता अपने बड़े भाई रावण
के पास प ं चा । रावण ने उसे उ म आसन पर िबठाकर यु का दु :खद हाल
सुनाया, िफर िगड़िगड़ाकर कहा–भैया! इस समय मेरी और दे शजाित की लाज
तु ारे हाथ म है । तुम राम को ससै मारकर हम सबका उ ार करो ।
कु कण ने रावण को फटकारते ए कहा–महाराज! मने और िवभीषण तथा
म ोदरी ने पहले ही आपसे कहा था िक सीता के िलए राम से वैर न मोल लीिजए,
पर आपने नहीं माना । अब आप ही उस दु म का द भोिगए ।
रावण होकर बोला–कु कण! मेरे दोषों को याद िदलाने की अपे ा यह
अ ा होगा िक तुम मेरी समयोिचत सहायता करो । स ा भाई वही है जो िवपि म
कुमागगामी भाई की भी सहायता करे ।
कु कण ने कहा–भैया! स े भाई को ऐसे समय म जो करना चािहए, म वही
क ं गा । राम मेरे जीते-जी आपका अिहत नहीं कर सकेगा । म उसकी सारी सेना
को रौद डालूगा ।
सातव िदन का यु –यु के सातव िदन कु कण ने अपना अभे कवच
पहना, हाथ म व -तु भयंकर शूल िलया और रावण का आशीवाद लेकर सेना-
सिहत यु के िलए थान िकया । दू र से उसका िवकराल प और चमचमाता
शूल दे खकर ब त-से वानर िबना मारे मर गए ।
कु कण ु सागर की भां ित गरजता आ श ुसेना के िसर पर जा धमका
और वानरों को िनदयता से मार-मारकर िगराने लगा । दे खते-दे खते उसने रणभूिम
को शवों से पाट िदया । वानर-सेना म हाहाकार मच गया । अंगद, हनुमान, नील
आिद ने दल-बल के साथ उसको रोकने की ब त चे ा की, लेिकन उसने सबको
पछाड़ िदया । सु ीव भी उसके हार से आहत होकर रणभूिम म िगर पड़ा । इस
बीच म हनुमान ने उसके महाशूल को पकड़कर तोड़ डाला । कु कण हाथ म एक
महामु र लेकर उससे भीषण संहार करने लगा ।
थान- थान पर वानरों और रा सों म ख यु हो रहे थे । राम-ल ण रा स
महारिथयों से यु करने म थे । कु कण वानर-सेना को रौदता आ सीधा
राम के सामने जा प ं चा । राम को श ु-महारिथयों से िघरे दे खकर िवभीषण गदा
घुमाता आ कु कण के आगे खड़ा हो गया । उसे दे खते ही कु कण ु होकर
बोला–िवभीषण! म इस समय ोध के आवेश म ं । अपना भला चाहो तो मेरे आगे
से हट जाओ । म अपने हाथ से अपने भाई को नहीं मारना चाहता ।
िवभीषण की आं खों मे आं सू आ गए । वह वहां से हट गया । कु कण राम को
ललकारकर बोला–अरे राम! इधर आकर परा म िदखाओ । म वह कु कण ं
िजसने कई बार दे वों-दानवों का अिभमान चूर कर िदया है । मुझे खर, कब , बािल
या मारीच न समझना ।
उस समय कई योजन ल े-चौड़े पहाड़ी यु े म रोमां चकारी यु हो रहा था
। वानर-सेना की ओर से वृ ों और िशलाओं की लगातार वषा हो रही थी । रा सों
की ओर से तीर-तलवार शूल-गदा तोमर और शति यों ारा भयंकर हार-संहार हो
रहा था । कहीं-कहीं ित यों म म यु मचा था । गजन-तजन, घात- ितघात
और अ -श ों की झंकार तथा आहतों की ची ार से आकाश श ायमान था ।
चारों ओर र की निदयां बह रही थीं: हाथी, घोड़ों और मृत सेिनकों के ढे र लगे थे ।
ऐसे समय म राम कु कण का यु ाहान सुनकर उसकी ओर बाण बरसाते ए
दौड़े । कु कण ने सभी बाणों को अपने मु र से रोक िलया । दोनों म दे र तक यु
होता रहा । राम ने उसके दोनों हाथ काट डाले । िफर भी वह शां त नहीं आ और
वानरों को पैरों से रौदता आ राम की ओर वेग से झपटा । राम ने तुर ऐ ा से
उसका म क काट डाला । रा स-सेना िच ाती ई यु भूिम से भाग गई ।
आठव िदन का यु –कु कण की मृ ु से रावण की मानो दि ण भुजा ही कट
गई । वह िसर पीट-पीटकर रोने लगा । म यों आिद ने समझा-बुझाकर िकसी तरह
उसे शा िकया । धीरे -धीरे उसका शोक ोध म प रणत हो गया ।
आठव िदन रावण ने ि िशरा, अितकाय, नरा क, दे वा क और महोदर नामक
धुर र यो ाओं के साथ भयंकर सेना यु भूिम म भेजी । राम की सेना वहां पहले ही
डटी थी ।
दोनों दलों म घमासान यु िछड़ गया । अंगद ने महाबली नरा क को और
हनुमान ने वेदा क को मार िगराया । तब ि िशरा ने ती णतम बाणों से हनुमान पर
आ मण िकया । हनुमान ने लपककर ि िशरा की तलवार छीन ली और उससे
उसका वध कर डाला । दू सरी ओर राम, ल ण, सु ीव, िवभीषण, जा व रा सों
की िवशाल सेना का संहार कर रहे थे ।
उधर से इ -व ण आिद को परा करने वाला, श ुदपहारी महारथी अितकाय
अपने सुती ण लौह-बाणों से वानरों को मार-मारकर िगरा रहा था । बड़े -बड़े यूथपित
भी उसके वेग को नहीं रोक पाए । वह सबको पछाड़ता और दहाड़ता आ राम-
ल ण के िनकट आ प ं चा और ककश र म बोला–िजसे अपने बल-शौय का
अिभमान हो, वह मेरे सामने आ जाए ।
उ वीर ल ण ने उसका रण-िनम ण तुर ीकार कर िलया । दोनों ओर से
िद बाणों की वषा होने लगी । अितकाय ने ल ण के सारे बाणों को काटकर उ
िथत कर िदया । तब उ ोंने च ा मारा । ब त रोकने पर भी वह नहीं
का । उससे अितकाय का म क कटकर िगर पड़ा । रा स सेना की कमर टू ट
गई । सभी रा स सैिनक अ -श फककर भाग खड़े ए ।
नव िदन का यु –एक-एक करके लंका के ब त से बल यो ा मारे गए ।
रावण के दु :ख का िठकाना न रहा । वह ल ी सां स लेता आ बोल उठा–अहो! राम
सचमुच बड़े ही बलवान ह, उनके भय से आज मेरी महापुरी के सारे ार ब ह ।
िपता को अ िथत दे खकर मेघनाद ने श ु-संहार का बीड़ा उठाया । यु
के नव िदन उसने िविधवत् हवन तथा श ा पूजन िकया । िफर रावण का
आशीवाद लेकर वह अपने िवशाल रथ म बैठा और रा स-वािहनी के साथ यु थल
म आया । दोनों दलों म शंख और रणतूय बजने लगे । यु आर हो गया । मेघनाद
ने अपने िलत बाणों से वानरों की अ सेना को न - कर िदया । बड़े -बड़े
वानर यूथपित आहत-मूिचछत होकर िगर पड़े । ब त से खोह-क राओं म भाग गए
। मेघनाद कभी तो अ होकर यु करता था और कभी सहसा कट हो जाता था
। इस कार वानर-सेना के वीरों को धोखा दे कर उसने अपने माया-बाणों से सबको
िथत कर िदया । राम-ल ण भी उसका सामना नहीं कर पाए, ोंिक वे बाण-
वृि तो दे खते थे, पर यं मेघनाद को नहीं दे ख पाते थे । दोनों भाई उसके ा ों
से आहत और मूिचछत होकर िगर पड़े । िवजयी मेघनाद सबका दप चूर करके
सेना-सिहत लौट गया ।
उस िदन वानर-सेना की बुरी दशा थी । य -त मृतों के ढे र लगे थे; सभी मुख
वीर अचेत और अधमरे -से हो गए थे; चारों ओर आहतों का ची ार गूंज रहा था ।
धीरे -धीरे रात हो गई । अंधेरे म िवभीषण और हनुमान मशाल लेकर अपने
सािथयों की खोज-खबर लेने िनकले । उ ोंने वृ सेनापित जा व को भूिम पर
पड़े दे खा । वह अस पीड़ा से ऐसा ाकुल था िक आं ख भी नहीं खोल पाता था ।
िवभीषण ने पास जाकर उसे णाम िकया ।
जा व कराहता आ बोला–रा से ! म आपकी बोली से ही पहचान रहा ं ।
कृपा करके यह बताइए िक वानर े हनुमान तो जीिवत ह न!
िवभीषण बोला–आय! आप पहले राम-ल ण-सु ीव आिद का कुशल समाचार
न पूछकर हनुमान का ही ों पूछते ह? ा अ लोगों के जीवन की िच ा आपको
नहीं है ?
जा व ने कहा–रा से ! यिद हनुमान जीिवत ह तो म यह मानूगा िक सारी
सेना मृत होने पर भी जीिवत है । इसीिलए उसके स म मुझे िवशेष िच ा है ।
तब हनुमान ने अपना नाम लेकर जा व को णाम िकया, जा व
आशीवाद दे कर बोला–वानरकेसरी! तु ीं सेना के ाणाधार हो । तु ारे अित र
अ कोई हम लोगों के ाण बचाने म समथ नहीं है । तुम अभी वायुवेग से िहमालय
पवत पर जाओ । वहां ोणाचल नामक एक औषिध-पवत है , िजस पर भां ित-भां ित
की चम ारी जड़ी-बूिटयां िमलती ह । उ ीं म से तुम ये चार िद औषिधयां ले
आओ–1. मृतसंजीवनी (मृत या अ मृत को जीवनीश दे ने वाली) 2.
िवश करणी (घावों को भरने वाली), 3. सावणकरणी (शरीर को का दे ने वाली),
4. स ानकरणी (टू टी हिड़यों को जोड़ने वाली) । ये औषिधयां रात म भी चमकती
रहती ह । इ शी ाितशी लाकर तुम सबका उपचार करो ।
महावीर हनुमान अिवल आकाश-माग से िहमालय की ओर चल पड़े और
ब त शी ही जा व के बताए ए थान पर प ं च गए । ोणाचल पर उ अनेक
कार की दी मती बूिटयां िदखाई पड़ीं, इससे वे म म पड़ गए । उ ोंने
जगमगाती जड़ी-बूिटयों का एक पवत-ख उखाड़ िलया । उसे लेकर वे वेग से
लौट पड़े और रात ही म अपने सािथयों के पास आ गए । उन िवल ण औषिधयों के
भाव से राम-ल ण तथा अ आहत-अचेत वीर पूणतया थ और सचेत हो गए
। वानर-सेना म नवजीवन का संचार आ । यूथपितयों ने अ - सेना को पुनः
संगिठत िकया ।
सु ीव ने रात ही म सैिनकों को लंका पर आ मण करने की आ ा दी । वानर-
रीछ मशाल लेकर दौड़ पड़े और खाई-परकोटों को लां घते ए भीतर घुस गए । वहां
उ ोंने फाटकों, छ ों और महलों म आग लगा दी । लंका के बाहरी भाग िलत
हो उठे , चारों ओर भगदड़ मच गई । राम-ल ण ने उसी समय लंका-दु ग के मु
ार को बाणों से ढहा िदया । उनके अंगारे जैसे बाण लंकापुरी म िगरने लगे,
अटा रयां ख -ख होने लगीं ।
उधर मेघनाद के मुख से राम-ल ण सिहत स ूण वानर-सेना के िवनाश का
समाचार सुनकर रावण परम िनि हो गया था । उसके सभी सैिनक और सेनापित
सुख की नींद सो रहे थे । एकाएक ऐसा उ ात दे खकर सब ह े -ब े हो गए ।
रा से ने कु -िनकु नामक कु कण के दो महावलवान् पु ों की अ ता म
एक िवशाल सेना यु के िलए भेजी ।
दोनों सेनाओं म दा ण राि -यु होने लगा । लड़ते-लड़ते रात बीत गई, लेिकन
यु नहीं का । वानरों ने श ु के सह ों सैिनक, हाथी, घोड़े मार िगराए । टू टे -फूटे
रथों की िगनती ही नहीं थी । रण थली र -मां स से लाल हो गई ।
दसव िदन का यु –दसव िदन के यु म सु ीव ने कु को और हनुमान ने
िनकु को मार डाला । दोनों के मरने पर रावण ने खरपु महारथी मकरा को
भेजा । वह राम से अपने िपता की मृ ु का बदला लेना चाहता था इसिलए बाण पर
बाण मारता आ सीधे उ ीं के सामने प ं चा । दोनों म दे र तब बाण-यु होता रहा ।
अ म राम ने उसे आ ेया से मार िगराया । रा स-सेना मैदान छोड़कर भाग गई
। रणभूिम म वानरों की िवजय-दु दुिभ बजने लगी ।
ारहव, बारहव, तेरहव िदन के यु – ारहव िदन मेघनाद ने य शाला म
जाकर िविधवत् य और अ -पूजन िकया । इसके बाद वह अपने िद ा ों को
लेकर सेना-सिहत यु े म प ं चा । वहां मायाबल से सामने धुएं का पहाड़ खड़ा
करके वह उसी के पीछे से ती ण नाराच मारने लगा । राम-ल ण उसके बाणों को
बड़ी फुत से काटते थे लेिकन यं उसको नहीं मार पाते थे ोंिक वह अ था ।
वानर-सेना पर मेघनाद के महा व की तरह िगर रहे थे ।
राम ने उसके मायाजाल को िछ -िभ करने के िलए एक च िद ा
िनकाला । मेघनाद उसी समय यु ब करके लंका चला गया । कुछ ही दे र बाद
वह रथ म एक दु बली-पतली ी को साथ लेकर िफर आया । दू र से दे खने पर वह
सीता ही जान पड़ती थी । मेघनाद उस ी को सबके आगे िनदयता से मारने लगा ।
वह ‘हा राम, हा राम' कहकर रोने-िच ाने लगी । हनुमान मेघनाद की ओर यह
कहते ए दौड़े –अरे नीच! यह ा करता है । सती सीता ने तेरा ा िबगाड़ा है ! दीन
दु : खनी अबला पर ा बल िदखाता है ।
हनुमान के साथ उनके दल के अ यो ा भी िशला लेकर दौड़े , लेिकन मेघनाद
ने बाणों से सबकी गित त कर दी और सबके आगे तलवार से उस ी को
टु कड़े -टु कड़े कर िदया । इसके बाद वह पुकारकर बोला–अरे वानरो! राम-प ी
सीता अब नहीं रही, तुम लोग थ ों ाण गंवाते हो ।
वानर-सैिनक आतंिकत होकर भागने लगे । हनुमान सबको बटोरकर मेघनाद
की सेना पर टू ट पड़े । रा स-दल अ बल था । िफर भी उ ोंने ब त-से
शूरवीरों को मार िगराया । उस समय मेघनाद के महा भी हनुमान के वेग को नहीं
रोक सके । वानर सं ा म कम थे, इसिलए लड़ते-लड़ते थक गए । तब हनुमान
अपने सािथयों से बोले–िम ो! िजस के िलए यु ठाना था, वह अब नहीं रही, इसिलए
अब लड़ने का उ ाह नहीं होता । चलो, पहले राम-ल ण-सु ीव को सब हाल बता
द । िफर वे जो कहगे, िकया जाएगा ।
हनुमान दल-बल सिहत लौट गए । मेघनाद का योजन सफल हो गया । वह भी
सेना लेकर वापस चला गया ।
हनुमान ने राम के पास जाकर आं खों-दे खा हाल कहा । सीतावध का समाचार
सुनते ही राम शोक से िवहल हो गए । उनकी आं खों से आं सुओं की धारा बह चली ।
सारी सेना म घोर उदासी छा गई । उस प र थित म िवभीषण राम को सा ना दे ता
आ बोला–महाराज! यह धोखा जान पड़ता है । रावण जीते-जी सीता को िकसी भी
तरह हाथ से न जाने दे गा । इन लोगों ने िजस सीता का वध दे खा है , वह मायावी सीता
रही होगी । हम दु खशोक ाग कर दू ने उ ाह से िवजयो ोग करना चािहए ।
मेघनाद सबको धोखा दे कर एका म िवजय-य करने गया है । यिद वह य
स हो गया तो उसे कोई भी परािजत नहीं कर सकेगा । अतएव मेरी स ित यह
है िक आप तो यहीं रहकर वानरों को धैय बंधाइए और ल ण तथा अ ा चुने ए
वीरों को मेरे साथ भेज दीिजए । हम लोग उस य को भंग करके मेघनाद की मार
डालगे ।
राम की आ ा से महातेज ी ल ण यु के िलए स हो गए । सेना सिहत
अनेक मुख यूथपित, िवभीषण और उसके चारों श धारी म ी भी उनके साथ
चल पड़े । ब त दू र जाने पर उ एक वन म रा सों की ूिहत सेना िदखाई पड़ी ।
मेघनाद उसी के बीच म एक िवशाल वृ के नीचे िविधवत् िवजय-य कर रहा था ।
िवभीषण के अनुरोध से ल ण ने जाते ही उस रा सी सेना पर बाणवषा ार
कर दी । वानरों और रीछों ने भी धावा बोल िदया । रा स सैिनक भी भां ित-भां ित के
अ -श लेकर दौड़ पड़े । मेघनाद य को अधूरा ही छोड़कर रथ म बैठा और
बाण बरसाता आ वेग से आगे झपटा । महावीर हनुमान हाथ म एक ब त बड़ा वृ
लेकर श ु सेना के िसर पर नाच रहे थे । उनका रण-ता व दे खकर मेघनाद ने उन
पर महा ों की झड़ी लगा दी, पर वे एक पग भी पीछे नहीं हटे । सभी महा ों को
उ ोंने हाथ से पकड़कर तोड़ डाला ।
उसी समय िवभीषण के कहने से ल ण ने आगे बढ़कर मेघनाद को ललकारा ।
महारथी मेघनाद तुर सामने आ गया और दू र से ही िवभीषण को दु ारकर
बोला–िवभीषण! तू लंकापित रावण का भाई और मेरा चाचा होकर भी ऐसे लोगों का
साथ दे रहा है जो न तो तेरे सजातीय ह और न सगे-स ी! पराये लोगों म चाहे गुण
ही गुण हों और जनों म सैकड़ों अवगुण ही ों न हों, पर गुणी परजन से गुणहीन
जन भी भला होता है -अपना-अपना ही है , पराया सदा पराया ही रहता है । तूने
इसका िवचार नहीं िकया और िवपित म ब ु-बा वों को छोड़कर वैरी का प हण
कर िलया । कुल ोही! तुझे िध ार है , सारा संसार तेरे इस कुकृ की िन ा करे गा

िवभीषण ने उ र िदया–नीच! बु मानों की नीित है िक दु अनाचारी को अि
से जलते घर की भां ित ाग दे ना चािहए । मने तुम लोगों को तु ारे दु म के
कारण ागा है । अब न तू बचेगा और न तेरा बाप! अब यमलोक म जाकर ही य
करना ।
मेघनाद ोध से ितलिमला उठा और सम श ु-यो ाओं को संबोिधत करके
बोला– ा तुम लोग यह भूल गए िक म वही मेघनाद ं िजसने पहले ही िदन तुम
सबको मृत-तु बनाकर छोड़ िदया था? यहां से भाग जाओ, नहीं तो म तुम लोगों
की ध यां उड़ा दू ं गा ।
वीर े ल ण धनुष पर टं कार दे ते ए बोले–रा स! शरद् के बादलों की तरह
थ ों गरजते हो? अभी तक तुम िछप-िछपकर कपट-यु करते रहे । छल की
जीत का ा अिभमान करते हो! अब खुलकर अपना शौय-परा म िदखाओ! म
तु ारा दप चूर कर दू ं गा ।
इसके बाद दोनों धुर र वीरों म ाणा क सं ाम िछड़ गया । जा व अपनी
रीछ-सेना लेकर और हनुमान, अंगद, नील आिद वानर-सेना को लेकर रा सों की
महासेना पर टू ट पड़े । श ुओं ने भी शूल, गदा, तोमर, तलवार और बाणों तथा
शति यों से भीषण हार िकए । उनके सह ों हाथी, घोड़े और रथ घोर श करते
ए दौड़ने लगे । राम-सेना और रावण-सेना म ऐसा घमासान यु पहले कभी नहीं
आ था ।
ल ण य िप रथहीन थे, िफर भी उ ोंने रथ थ मेघनाद को बाणों से ढक िदया
। दोनों ओर से अिभम त महाबाणों की झड़ी लग गई । लड़ते-लड़ते दोनों के
कवच टू ट गए; शरीर िधर से भीग गए, पर िकसी ने मुंह नहीं मोड़ा ।
वह रोमां चकारी यु लगातार तीन िदनों तक चलता रहा । उस बीच म दोनों ओर
के लाखों यो ा काम आए, िफर भी िकसी प का यु ो ाह म नहीं आ ।
ल ण ने मेघनाद के सारथी को मारा, तब वह एक हाथ से रथ संचालन और दू सरे
हाथ से बाणवषा करने लगा । वानर-वीरों ने उसके घोड़ों को भूिम पर पटक िदया
और रथ को तोड़ डाला । इतने पर भी मेघनाद िवचिलत नहीं आ । उसने बाणों से
ल ण को जजर कर िदया । अ रा स महारिथयों को अपने थान पर खड़ा
करके वह यं दू सरा रथ लेने चला गया ।
थोड़ी ही दे र म वह एक दू सरे उ म रथ म िफर आ प ं चा और वानरसेना को
लौह-बाणों से िव करने लगा । ल ण िसंहनाद करते ए उसकी ओर दौड़े ।
दोनों िवजय ती धनुधा रयों म िफर अद् भुत सं ाम होने लगा । बाणों से आकाश
आ ािदत हो गया, चारों ओर अंधेरा छा गया । अपने-पराये का भेद करना किठन
हो गया ।
ल ण तीन िदन से अकेले खड़े -खड़े इ िजत और उसके सहायक महारिथयों
से यु कर रहे थे । िवभीषण धनुष-बाण लेकर उनके समीप खड़ा हो गया और
श ुओं के हार से उनकी र ा करने लगा । तीसरे िदन ल ण और मेघनाद ने
वा णा , रौ ा , आ ेया और सूया आिद का योग िकया । बाणाि से चारों
िदशाएं िलत हो उठीं । दोनों के िद ा ण- ण पर टकराने लगे । सं ा-पूव
ल ण ने मेघनाद पर अमोघ ऐ ा चलाया । वह िकसी भी अ से शा नहीं हो
सका । मेघनाद का म क कटकर भूिम पर िगर पड़ा । जैसे सूय के अ होने पर
उसकी िकरण नहीं ठहरतीं, वैसे ही मेघनाद के मरने पर उसकी बची-बचाई सेना भी
वहां नहीं की । वानर लोग उछल-उछलकर ल ण की जय बोलने लगे ।
दु दम वैरी से लगातार तीन िदनों तक यु करते-करते ल ण थकावट से चूर हो
गए थे । उनके शरीर को मेघनाद के बाणों ने जजर कर िदया था । हनुमान और
िवभीषण के सहारे वे िकसी तरह राम के पास प ं चे ।
राम ने िवजयी भाई को दे खते ही गले से लगा िलया और गोद म बैठाकर कहा–
ल ण! तुम ध हो । अब समझ लो िक रावण भी मारा गया और हमने लंका को
भी जीत िलया । रा सराज की दािहनी भुजा कट गई । आज तो म श ुहीन हो गया ं
। तु ारे जैसे शूरवीर भाई की सहायता से म स ूण पृ ी को जीत सकता ं ... ।
राम ने बार-बार ल ण के शरीर पर हाथ फेरा, उ तथा उनके सम
सहयोिगयों को बधाई दी और वानर-यूथपित सुषेण से सबका शी उपचार करने को
कहा ।
यु -िचिक क सुषेण ने ल ण को एक िद औषिध सुंघाई ।
उससे उनकी पीड़ा शा हो गई, धंसे ए बाणों की नोक बाहर आ गई और
शरीर के सभी घाव भी भर गए । उसने अ आहतों को भी इसी उपाय से रात-भर
म ही थ एवं चैत कर िदया ।
उधर मेघनाद की मृ ु का संवाद सुनकर रावण शोक से पागल हो गया और िसर
पीट-पीटकर रोने लगा । सारी लंका म हाहाकार मच गया ।
रावण दे र तक िवलाप- लाप करता रहा, िफर ोध से उ होकर उसने रात
रहते ही श ु-वध के िलए एक बड़ी सेना भेजी । रा सों ने वानरसेना पर घातक
श ा ों से हार िकया । उनका िवनाशकारी का दे खकर राम ने गा वा का
योग िकया । उससे श ु-सैिनकों की बु मोिहत हो गई । हर एक अपने सामने
राम को बाण िलए दे खता था और अपने साथी को ही राम मानकर उससे िभड़ जाता
था । राम ने दो-ढाई घ े म ही रा स-सेना के सह ों हाथी-घोड़े -रथ और पैदल न
कर िदए । बचे बचाए यो ा ाण लेकर भाग गए ।
राम-रावण का महायु –यु के चौदहव िदन रावण अ ु होकर अपने
सेनापितयों से बोला–सेनापितयों! आज म यं राम से यु करने जाऊंगा और बाणों
से पृ ी, समु , आकाश को पाट दू ं गा । िजनके भाई, पु , पित मारे गए ह, उनके
आं सू म आज पोंछ दू ं गा । आज राम-रावण म से एक ही जीिवत बचेगा–या तो म राम
को मार डालूँगा अथवा वे ही मुझे मार डालगे । आज लंका की सारी चतुरंिगणी सेना
मेरे साथ यु भूिम म चलेगी । तुम लोग एक-एक घर से रा सों को यथाशी
बुलवाओ और सभी यु -साधन लेकर मेरे साथ अंितम यु के िलए चलो ।
मु त-भर म लंके र की रण-या ा की तैयारी हो गई । रावण बड़े उ ाह से यु
के िलए सुस त होकर आठ घोड़ों के रथ म बैठा । शंख-नगाड़े बजने लगे ।
अपने सभी म यों, सेनापितयों और महारिथयों के साथ महाबा रावण मनु -
शीषां िकत जा फहराता आ आगे बढ़ा । उस समय वह सा ात् यमराज-सा
भािसत होता था । रण े म प ं चते ही उसने वानरों की अ सेना को ई की तरह
धुन डाला । िजधर भी रावण का रथ बढ़ा, उधर हताहत वानरों से पृ ी पट उठी ।
वह अि की तरह सबको बाणों से भ करता आ वानर-सेना के म म जा प ं चा
और यूथपितयों पर हार करने लगा ।
दू सरी ओर वानरों-रा सों का तुमुल सं ाम िछड़ गया । दोनों सेनाएं ी ऋतु के
तालाबों की तरह ीण होने लगीं । सु ीव ने उस िदन ऐसा परा म िदखाया िक
श ुओं के छ े छूट गए । उसने रावण के महाधनुधर सेनापित िव पा को मार
डाला । उसके बाद वह पास म पड़ा एक प रघ लेकर दू सरे सेनापित महोदर से िभड़
गया । महोदर बड़ी फुत से बाण चला रहा था । सु ीव ने उसके घोड़ों को मार
िगराया । तब वह गदा लेकर दौड़ा । सु ीव प रघ से यु करने लगा । दोनों के श
टू ट गए, तब वे म यु करने लगे । लड़ते-लड़ते दोनों ने पास म पड़े खड् ग उठा
िलए । दोनों ओर से तलवार चलने लगीं । सु ीव ने उसका म क काटकर फक
िदया । रावण का तीसरा धान वीर महापा व अंगद के हाथ से मारा गया ।
रावण ने राम-सेना के ूह को शी ाितशी िछ -िभ करने के िलए महाभयंकर
तमासा का योग िकया । उससे वानरों के शरीर जलने लगे । सारी सेना म
भगदड़ मच गई ।
तब ल ण ने आगे बढ़कर रावण पर अि िशला के समान ती ण बाणों से हार
िकया । रावण सभी बाणों को माग ही म काटकर ल ण का ितर ार करता आ
सीधे अपने ित ी राम के सामने जा प ं चा । दोनों म रोमां चक यु ार हो
गया । च बाणों के टकराने से ण- ण पर िवद् यु ात-सा होने लगा । दोनों ओर
से समु की लहरों की भां ित बाणों की लहर उमड़ पड़ीं । िदन रहते भी िदशाओं म
अ कार छा गया । लोकों को लाने वाले रावण के ऊपर राम ने अनेक रौ ा
चलाए, पर वह िवचिलत नहीं आ । उसने घोर आसुरा मारा; उसे राम ने
आ ेया से शा कर िदया । तब उसने व -सा अमोघ रौ ा छोड़ा । यह भी
राम के गा वा से िन ल हो गया । उसके बाद रावण ने च सौरा मु
िकया । उससे न ों-जैसे चमकते-दमकते असं अि -च फूट िनकले । राम ने
उसको भी दे खते-दे खते शा कर िदया ।
रावण रथा ढ़ होने के कारण दु िवजेय हो गया था । ल ण ने एक बाण से
उसके सारथी का िसर और दू सरे से उसका सु ढ़ महाचाप काट डाला । उसी समय
िवभीषण ने गदा से उसके घोड़ों को मार िगराया । महापरा मी रावण ने रथ से
उतरकर िवभीषण को मारने के िलए मय दानव ारा िनिमत व तु दे दी मान
एक अमोध महाश हाथ म उठाई । ल ण िवभीषण को पीछे करके यं रावण
पर बाण-वषा करने लगे । ोध के आवेश म रावण ने वह श ुघाितनी श उ ीं
पर छोड़ दी । आघात से ल ण आहत-अचेत होकर रणभूिम म िगर पड़े । राम ने
दौड़कर उस घातक महा को ल ण की छाती से िनकाला । इस बीच म रावण ने
उ भी बाणों से िथत कर िदया । इसके बाद वह दू सरा रथ लेने चला गया ।
ल ण की दशा मृत जैसी हो गई थी । राम अ दु :खी होकर वानर यूथपित
सुषेण से बोला–सुषेण! यिद ल ण मर गए तो म अयो ा का रा लेकर ा
क ं गा । यां और ब ु-बा व तो जगह-जगह सुलभ ह, पर म वह थान नहीं
दे खता, जहां भाई िमल सके । म लौटकर माता सुिम ा को कौन-सा मुंह िदखाऊंगा ।
जब लोग मुझसे पूछगे िक जो ल ण तु ारे पीछे -पीछे गए थे, वे कहां ह, तो म ा
उ र दू ं गा...
राम को अ ाकुल दे खकर सुषेण ने हनुमान ारा उन चम ारी औषिधयों
को िफर मंगवाया, िजनका योग थम िदन के यु म िकया गया था । उ सूंघते
ही ल ण उठ बैठे और थोड़ी ही दे र म पहले की तरह थ हो गए ।
इतने म दू र पर रावण दू सरे िद रथ म आता िदखाई पड़ा । राम धनुष-बाण
लेकर उठ खड़े ए और अपने सािथयों से बोले–वीरो! िजस काय के िलए यह िवराट्
आयोजन िकया गया था, वह आज अव पूरा हो जाएगा । हम दोनों म से अब एक
ही शेष रहे गा । आज या तो म रावण को मार डालूगा अथवा वही मुझे मार डालेगा ।
उसी समय सहसा इ -सारथी मातिल वहां इ का अ सुस त रथ लेकर
आ प ं चा । उसने राम से हाथ जोड़कर िनवेदन िकया–वीरा णी राम! इस महान!
लोकोपकारी काय म आपकी किठनाई का अनुभव करके दे वराज इ ने आपके
िलए अपना िद तम रथ, धनुष-बाण और श तथा कवच सिहत भेजा है । कृपया
इसे ीकार कर ।
राम उन यु -साधनों से स त होकर इ के रथ म बैठे । रावण अपने तेज से
िदशाओं को आलोिकत करता आ प ं चा । दोनों महारिथयों म ै रथ यु ार हो
गया, दोनों ओर से ण- ण पर िद ा ों की बौछार होने लगीं ।
महा परा मी रावण ने मातिल को तथा इ के रथ के घोड़ों को बाणों से बींध
डाला और दे खते-दे खते रथ की पताका भी काटकर िगरा दी । राम उसके अनवरत
हारों से ऐसे िथत हो गए िक उ धनुष पर बाण चढ़ाने म भी किठनाई होने लगी
। रामच को रावण-रा से िसत दे खकर सबको अ दु :ख आ । उसी समय
रावण ने उ र म 'खड़ा रह राम, खड़ा रह' कहते ए एक महाभंयकर शूल
चलाया । राम िकसी भी अ से उसका िनवारण नहीं कर सके । तब उ ोंने इ
की भेजी ई श छोड़ी । उसके आघात से रावण का शूल टु कड़े -टु कड़े हो गया ।
रावण ने बड़ी शी ता से पुनः हार िकया । आकाश म उसके बाणों की सह ों
धाराएं िदखाई पड़ने लगीं । राम भी बुरी तरह घायल हो गए, लेिकन मैदान म डटे ही
रहे । उ ोंने दु वाय अ ों से रावण के िसर और दय पर आघात िकया । रावण का
िसर चकराने लगा । वह मूिचछत होकर रथ म िगर पड़ा । राम ने त ण हार ब
कर िदया ।
रावण का सारथी अपने ामी के ाण बचाने के िलए रथ को वहां से दू र भगा ले
गया । सचेत होने पर रावण अ ु होकर सारथी से बोला–अरे पामर! तूने यह
ा िकया । ा तुझे यह पता नहीं िक म यु से कभी पीछे नहीं हटता । तूने तो मेरी
ब त िदनों की कमाई कीित ही न कर दी! जान पड़ता है िक तुझे श ुओं ने कुछ दे -
िदलाकर िमला िलया है । मुझे शी राम के स ुख ले चल । यु म श ुओं को मारे
िबना रावण नहीं लौटे गा ।
रावण-वध-सारिथ ने श ा ों से प रपूण रथ को वेग से बढ़ाया । उसे आते
दे खकर मातिल ने अपने रथ को ऐसी चतुराई से हां का िक रावण का रथ राम की
बायीं ओर पड़ गया । राम-रावण िसंहनाद करके ै रथ-यु म वृत ए । दोनों म
संहारक महा ों के टकराने से ण- ण पर भीषण नाद और अि ोट होने लगा
। आकाश के नीचे बाणों का एक दू सरा आकाश ही बन गया । िदशाओं म आग-सी
लग गई । राम-रावण का वह सं ाम ऐसा अद् भुत था िक दोनों ओर के सैिनक
आ यचिकत होकर उसे दे खने लगे । दे वता, ग व और महिष आिद भी दू र से उस
अभूतपूव यु को दे खकर पर र कहते थे िक आकाश की उपमा समु से और
समु की उपमा आकाश से दे सकते है , लेिकन राम-रावण के यु की उपमा राम-
रावण के यु से ही दी जा सकती है ।
राम-रावण दोनों ही उस िदन अपना स ूण बल-िव म िदखा रहे थे । दोनों
िधर से नहाए जैसे लगते थे । उनके बाण ही नहीं, रथ भी बार-बार टकरा जाते थे ।
रावण की आ ा से उसके सारिथ ने रथ को राम के सामने िभड़ाकर खड़ा कर िदया
। वह िनकट से हार करने लगा । राम और मातिल दोनों उसके हारों से त-
िव त हो गए ।
राम-रावण का ै रथ-यु पूरे चौबीस घ े अिवराम गित से होता रहा । राम
बार ार महान् उ ोग करके भी श ु को पीछे नहीं हटा सके । वह बाणों के
अित र गदा, मूसल, शूल, च , वृ , िशलाख आिद आयुधों से िनर र हार
करता रहा था । रावण का णो ाद दे खकर मातिल राम से बोला–वीरवर राम! आप
इस कार असावधान होकर यु ों कर रहे ह? आप ा का योग कीिजए,
रावण को अ िकसी अ से आप नहीं जीत सकते ।
तब राम ने भगवान अग से ा सूयवत् जा मान, वज़ािधक ती ण,
िवषधर सप-तु भयंकर ा को अिभमंि त करके धनुष पर चढ़ाया और रावण
को ल करके पूरी श से मु कर िदया । मृ ु-सा अवाय वह महा रावण के
लाख य करने पर भी नहीं का और उसके दय को िवदीण करके पृ ी म समा
गया ।
महातेज ी रावण टू टे पहाड़ की तरह रथ से पृ ी पर िगर पड़ा । िजसके भय से
यम और इ भी कां पते थे, िजसने बलपूवक कुबेर का पु क िवमान छीन िलया था,
िजसका लोहा सभी दे व और असुर मानते थे, वह लोक को लाने वाला महा तापी
लंके र रावण रणभूिम म सदा के िलए सो गया । उसकी बची ई सेना हाहाकार
करती भाग गई । राम-सेना म िवजय-दु दुिभ बजने लगी । वानरों के जयघोष से
आकाश थरा उठा । राम ने लंका को जीत िलया । उनका और उनके सािथयों का
उ ोग सफल हो गया ।
रावण-वध से दे वताओं और ऋिष-मुिनयों को असीम हष आ । वे चारों ओर से
राम को बधाई दे ने दौड़ पड़े । सबने बार ार उनकी ृित करके कहा–महाराज!
आप मनु नहीं, िव ु भगवान् के अवतार ह ।
इस पर राम सहजभाव से बोले–आप लोग जो भी कह, म तो अपने को केवल
एक मनु और दशरथ का पु राम ही मानता ं ।
उधर रावण के मरते ही सम लंका म घोर दन- न मच गया । झु ढू ं ढ़-
ढू ं ढ़कर दा ण िवलाप करने लगीं । उनम रावण की सभी पि यां भी थीं ।
उस समय िवभीषण की आ ीयता भी जाग उठी । वह रावण के शव के पास
बैठकर बोला–भैया! आज म तु ारी ा दशा दे ख रहा ं ! तुम लंका को सूनी करके
हमसे सदा के िलए िबछु ड़ गए । आज मानो सूय पू ी पर िगर पड़ा, धैय,
सहनशीलता, तप ा, शूरता का तीक न हो गया, संसार का का िव ान्,
च सूरमा, तापी राजा और वीरों का आ यदाता चल बसा, सुनीित ों की मयादा
न हो गई ।
िवभीषण को शोक से कातर दे ख महामना राम उसे सां ना दे ते ए बोले–
िवभीषण! तु ारे यश ी भाई ने अ तक परा म िदखाते ए स ी वीरगित पाई
है । ऐसी कीितदायी मृ ु के िलए शोक नहीं करना चािहए । सदा िकसी की िवजय
ही नहीं होती! वीर या तो श ु को मार डालता है अथवा यं वीरगित ा करता है
। दोनों दशाओं म उसकी सराहना ही होती है । रावण को वीरवां िछत गित ा ई
है , अत:उसके िलए शोक करना उिचत नहीं है ।
िवभीषण रावण की िवशेषताओं को रण करके राम से बोला–राम! मेरे इस
वीर भाई ने अपने बा -बल से संसार के सम मािनयों के म क झुका िदए थे,
इसने महादे व के आसन, कैलास पवत को भी िहला िदया था । आज तक यह इ ािद
से भी नहीं हारा था । यह काल का भी काल था । इसने ब त दान िदया था, ब त
दे व-पूजन, िव -पूजन िकया । आि तों का पालन-पोषण, िम ों का उपकार और
श ुओं का मान-मदन िकया । यह बड़ा तप ी, वेद- ानी, कमका ी, नीित और
सवश ा कोिवद महारथी था । म ऐसे भाई की अ ेि शेष नहीं है ।
राम ने कहा–िवभीषण! वैर तो जीवन तक ही रहता है । अब तो रावण जैसे
तु ारा भाई है , वैसे ही मेरा भी है । इसके ित मेरे मन म कोई दु भाव नहीं है । तुम
भाई रावण का धूमधाम से दाह-सं ार करो ।
िवभीषण िफर भी कुछ सोचकर बोला–राजन! बड़ा भाई होने के नाते यह भले ही
पू हो, लेिकन च र से आदर का पा नहीं था । म ऐसे अधम , ू र, ी-चोर का
ेतकम नहीं क ं गा ।
राम ने उ र िदया–िवभीषण! कुछ दोषों के होते ए भी सुनते ह, रावण परम
ानी, तप ी, महा ा, बलवीयशाली, महातेज ी तथा ात यो ा था । उसका
उिचत स ान होना ही चािहए । तुम वैर-भाव को ागकर यो रीित से उसका
दाह-कम करो ।
िवभीषण ने राम की आ ा से राजधानी म जाकर रावण की शमशान-या ा का
ब िकया । ा ण लोग ग य रा सराज के शव को क ों पर शान ले गए ।
वहां उ ोंने रावण को च न-िचता पर रखकर वैिदक िविध से उसका दाह-सं ार
िकया । उसके बाद िवभीषण राम के पास लौट आया ।
यु -समा के बाद राम ने सु ीव को गले से लगा िलया । तद र वे सै -
िशिवर म गए । वहां सभी यूथपितयों और सैिनकों से िमलकर उ ोंने सबके ित
हािदक कृत ता कट की । उस अवसर पर िवभीषण का भी यथोिचत स ार
करके वे ल ण से बोले–सौ , मेरी िवजय म िवभीषण का ब त बड़ा हाथ है , अब
म इ आज ही लंका का राजा बनाना चाहता ं । तुम मेरी ओर से राजधानी म
जाकर इनका रा ािभषेक करो ।
ल ण िवभीषण को लेकर लंका के राजदु ग म पधारे । वहां उ ोंने शा ो
िविध से उनका रा ािभषेक िकया । सारी लंका राम और िवभीषण के जयघोष से
िननािदत हो उठी ।
इधर राम सीता के िलए थे । उ ोंने हनुमान से कहा–सौ ! शी लंका
जाओ और राजा िवभीषण की अनुमित लेकर सीता से िमली । उसे हमारा कुशल-
समाचार बताकर लौट आना ।
हनुमान तुर िवभीषण के पास गए और उसकी आ ा लेकर अशोकवन म
प ं चे । सीता को दे खते ही उ ोंने आदरपूवक णाम िकया, लेिकन वे हषाितरे क के
कारण एक श भी नहीं बोल सकीं । हनुमान उ सं ेप म सारा हाल बताकर
बोले–दे वी? आपके सौभा से महा ा राम िवजयी ए । उ ोंने रावण को मारकर
िवभीषण को लंका का राजा बना िदया । अब आप इस कार से अपने ही घर म ह ।
रा सराज िवभीषण भी आपकी सेवा म शी ही उप थत होंगे ।
सीता हष से ग द होकर बोलीं-किपवर! मुझ से तो कुछ बोला ही नहीं जाता ।
इस ि य संवाद के िलए म तु ा उपहार ं ? तुमने हमारा बड़ा उपकार िकया है ।
हनुमान ने हाथ जोड़कर िनवेदन िदया–दे वी! आपके ेहपूण वचन मेरे िलए तीनों
लोकों की स दा से भी अिधक मू वान् ह । मने ब त कुछ पाया । अब म उन
रा िसयों को आपके आगे मार डालना चाहता ं , िज ोंने इतने िदनों तक आपको
भां ित-भां ित के क िदए ह ।
सीता ने कहा–नहीं हनुमान! ऐसा न करो । वे बेचारी दािसयां पराधीन थीं । इ ोंने
जो कुछ िकया, रावण की आ ा से िकया । उसम इनका ा दोष! म तो यह मानती
ं िक मुझे अपने ही भा -दोष के कारण यह क भोगना पड़ा है । अत: इनके
ऊपर ोध करना अनुिचत है । अपराध िकससे नहीं होता! यिद इ ोंने अपराध भी
िकया हो तो हम उस पर ान न दे ना चािहए । साधु को तो भले-बुरे सबके साथ सदा
भला वहार करना चािहए । मुझे इनसे िकसी तरह का बदला नहीं लेना है ।
इसके बाद हनुमान िवदा मां गते ए बोले–दे िव! महा ा राम के िलए कोई स े श
हो तो कृपा करके बताइए ।
सीता ने कहा–हनुमान! और कुछ नहीं । बस, म तो अब शी ाितशी आयपु
का दशन करना चाहती ं ।
हनुमान उ आ ासन दे कर लौट गए । राम ब त िदनों बाद सीता का संवाद
सुनकर अ स ए । िवभीषण राजा होते ही उनके दशनाथ वहां आ गया था ।
उससे उ ोंने कहा–िम िवभीषण! सीता को सु र वेश म यहां लाने की शी
व था करो ।
राम-सीता का पुनिमलन–िवभीषण तुर राजभवन म गया और वहां यों का
दल और नाना भां ित के व ाभूषण आिद लेकर अशोकवािटका प ं चा । सीता का
अिभवादन करके उसने उ राम का स े श कहा । सीता ने त ाल ान िकया,
अमू व ाभूषण पहने । उसके बाद िवभीषण उ धूमधाम से एक सजी-सजाई
पालकी म बैठाकर राम के िशिवर की ओर ले गया ।
राम सैिनकों की भीड़ म िच ाम बैठे थे । िवभीषण ने सबके सामने सीता को
पालकी से बाहर िनकालना उिचत नहीं समझा, इसिलए वह हाथ म छड़ी लेकर
सबको वहां से हटाने लगा । राम इसको नहीं दे ख सके । वे िवभीषण को डां टते ए
बोले–िवभीषण! तुम मेरे सैिनकों के साथ ऐसा दु वहार ों कर रहे हो? ये सब मेरे
आ ीय ह । इनके आगे सीता को परदा करने की आव कता नहीं है । यों का
पाित ही उनका सव म आवरण है । सीता से कहो िक पालकी से उतरकर
पैदल मेरे सामने आए, मेरे सभी साथी उसको दे खना चाहते ह ।
िवभीषण ने सीता से यह स े श कहा । वे लजाती-सकुचाती पालकी से उतर पड़ीं
और धीरे -धीरे राम के पास गई । राम को ब त िदनों बाद दे खकर उनका दय भर
आया । वे एक बार ‘आयपु ' कहकर रोने लगीं । राम कुछ दे र तक मौन बैठे रहे ।
उसके बाद सहसा गंभीर र म बोले–भ े ! पु षाथ से जो कुछ स व था, मने कर
िदया । अपमािनत होने पर भी जो पु ष अपने अपकारी से बदला नहीं लेता, वह
संसार म अधम माना जाता है । मने अपने महाबैरी को परािजत करके तु उसके
ब न से छु ड़ा िलया । आज मेरी-सु ीव की मै ी, हनुमान का समु ो ंघन तथा
लंकादहन, सेतु-िनमाण, िवभीषण की सहायता, हम सबका िवजयो ोग–यह सब
सफल हो गया ।...सीते! तु यह भली भां ित समझ लेना चािहए िक मने यह महत्
काय तु ारे िलए नहीं, मु तः अपने आ -स ान और अपने ात कुल के
गौरव की र ा के िनिम भी िकया है । अब म तु पुनः अपनाने म असमथ
ं , ोंिक तुम इतने िदनों तक पराये घर म रही हो, रावण की गोद म बैठ चुकी हो
और तु ारे ऊपर उस कामी की कु ि पड़ चुकी है । रावण तु ारे प-लाव पर
आस था, अतएव उसने तु ारे च र को भी दू िषत कर िदया हो तो आ य नहीं!
अतएव म तु ारे िलए अपने यश ी कुल को कलंिकत नहीं क ं गा । तुम जहां
चाहो, िजसके साथ चाहो, जा सकती हो । हमारा-तु ारा अब कोई स नहीं रहा

इतने िदनों बाद िमलने पर सीता को िजससे अिधकािधक ेह-सहानुभूित की
आशा थी, उसी के मुख से ऐसे अपमानजनक और दयिवदारक वचन सुनकर एक
बार तो वे हो गई, िफर आं सू पोंछकर राम से बोलीं-आयपु ! आप गंवारों की-
सी बात ों करते ह? रावण मुझे बलपूवक पकड़ ले गया था, इसे आप जानते ही ह
। उस दशा म यिद उसके शरीर से मेरे शरीर का श हो ही गया तो इसम मेरा ा
दोष! म े ा से उसके अंक म नहीं गई थी । य िप मेरा शरीर पराधीन था, लेिकन
मन तो उस समय भी आप ही म लगा था । आज मेरे च र पर िम ा कलंक
लगाकर आपने मुझे जीते-जी मार डाला! यिद मुझे ागना ही था तो हनुमान ारा
पहले ही कहला दे ते । म उसी समय ाण ाग दे ती । तब आपको इतना क भी न
उठाना पड़ता । आज तो आपने मुझे तु यों की ेणी म रख िदया है । आपको
इसका भी ान नहीं है िक म राजा जनक की क ा और आपकी धमप ी ं ।
आपकी ि म मेरे शील-सदाचार का कुछ भी मू नहीं है ।...
यश नी सीता राम से इतना कहकर ल ण से बोलीं-ल ण, तुम मेरे िलए
शी िचता बनाओ, ऐसे दु :ख की वही औषिध है । िम ापवाद के साथ जीिवत रहने
की अपे ा मर जाना ही ेय र है । म पितदे व के आगे ही इस ितर ृ त जीवन का
अ कर लूँगी ।
ल ण इन बातों से ब त दु :खी थे । सीता की आ ा सुनकर उ ोंने राम की ओर
दे खा । उनकी भी वैसी ही इ ा जानकर उ ोंने िबना ितवाद िकए िचता बना दी ।
उस समय तक वहां ब त–से लोग जमा हो गए थे । सीता राम की प र मा करके
िलत िचता के समीप गई और उप थत ा णों का अिभवादन करके बोलीं–
सूय, च , पवन, पृ ी, िदशाएं –ये सब मेरे च र के सा ी ह । यिद मेरा आचरण
शु हो, यिद मने मन-वचन-कम से राम के अित र अ िकसी का िच न न
िकया हो, तो सब लोकों के सा ी अि दे व मेरी र ा कर ।
यह कहती ई शु ाचा रणी महासती सीता िचता म वेश कर गई । चारों ओर
से लोग हाहाकार करके बोल उठे -सीता िनद ष ह!-राम की आं खों म आं सू छलछला
आए । उनकी अ रा ा भी कह उठी िक सीता सवथा शु है । अि -परी ा ारा
सीता के च र की शु ता मािणत हो गई । राम ने त ाल उठकर सीता को हण
कर िलया और सबके आगे कहा–सीता सब कार से शु और सदाचा रणी है ,
इसम स े ह नहीं । लेिकन यिद म इसे यों ही अपना लेता तो लोक म मेरी बड़ी िन ा
होती ।
राम-सीता के पुनिमलन से सबको हािदक आन आ । राम ने िम ों सिहत वह
रात वहीं बड़े सुख से तीत की । दू सरे िदन ात:काल िवभीषण जब उनसे िमलने
आया तो वे पैदल अयो ा लौटने की तैयारी कर रहे थे । िवभीषण ने उनसे अ
आ हपूवक लंका म ठहरने का अनुरोध िकया, लेिकन वे नहीं माने । वनवास की
अविध समा हो चली थी । राम का मन ेही जनों से िमलने के िलए हो
उठा था ।
िवभीषण को आ ह छोड़ना ही पड़ा । वह यं लंका गया और राम की या ा के
िलए िव कमा का बनाया आ सु र, सुिवशाल पु क िवमान ले आया । वह िवमान
दे खने म एक सुस त नगर-सा लगता था । उसम अनेक म प, आसन तथा
झरोखे आिद बने थे । िवभीषण उसकी राम की सेवा म उप थत करके न ता से
बोला–मानद राम! मेरे यो कोई सेवा हो तो किहए ।
राम कुछ सोच-िवचारकर बोले–रा से ! इन यो ाओं ने हमारी बड़ी सहायता
की है । इस दु िवजय लंका को हम इ ीं की सहायता से जीत सके ह । मेरे रहते-रहते
तुम इ यथे पुर ार दे कर स ु कर सको तो मुझे हािदक स ता होगी ।
इनका ऐसा आदर-स ार करो िक ये सदा-सवदा तु ारे कृत बने रह ।
िवभीषण ने ढे र के ढे र मिण, र , ण और व आिद मंगवाकर वानरों को
भट-उपहार से स ु कर िदया । इसके बाद सीता और ल ण को साथ लेकर राम
पु क िवमान म बैठे और सु ीव, िवभीषण तथा सम यूथपितयों और सैिनकों के
ित कृत ता कट करके उनसे िवदा मां गने लगे ।
उस समय सु ीव, िवभीषण तथा बानर-सेनापितयों ने भी अयो ा तक जाने की
इ ा कट की । राम ने उ सहष िवमान म बैठा िलया । कुबेर का िद िवमान
हं स जैसे पंखों को फैलाए वेग से अयो ा की ओर चल पड़ा ।
िवमान पर से राम ने सीता को वे थान िदखाए जहां यु म अगिणत वानरों और
रा सों का संहार आ था । समु -तट और सेतु के िदखाते ए वे िक ा के
समीप प ं चे । दू र से ही उसकी ओर संकेत करके राम बोले–जानकी! उ मो म
भवनों, उपवनों से शोिभत वानरराज सु ीव की राजधानी को दे खो । यहीं मने बािल
को मारा था ।
सीता ने उसे दे खकर राजा सु ीव तथा अ मुख वीरों की पि यों को भी साथ
ले चलने का आ ह िकया । राम ने सु ीव से परामश करके िवमान को रोका ।
सु ीव आिद अपनी पि यों को ले आए । सबको बैठाकर राम ने िवमान को आगे
बढ़ाया । थान- थान पर वे अपने सुप रिचत थानों को िदखाते जाते थे । ऋ मूक
पवत के ऊपर प ं चते ही उ ोंने कहा–सीता! यही वह ऋ मूक पवत है , जहां मेरी
और सु ीव की मै ी ई थी...यहां म तु ारी याद करके ब त रोया था । आगे हरे -भरे
कानन के बीच म प ा नामक सरोवर है । वहीं तप नी शबरी से मेरी भट ई थी
।...दू र पर वह थान है जहां मने कब को मारा था ।... अब हम वहां प ं च गए जहां
जटायु ने तु ारे िलए रावण से यु करके अपने ाण गंवाए थे ।... सामने वह थान
है , जहां मने खर, दू षण और ि िशरा को ससै मारा था ।... अब हम पंचवटी प ं च
गए ।... दे खो, हमारी कुिटया अभी तक ों की ों खड़ी है ।... पास ही गोदावरी
िदखाई दे ती है ।.. भगवान अग का आ म दे खी ।
...सीता! यह दे खो, िच कूट आ गया । यहीं भाई भरत मुझे मनाने आया था ।...
दू र पर भार ाज ऋिष का आ म िदखाई दे ता है ।... और वह रही ि पथगा गंगा ।...
आगे मेरे िम िनषादराज की राजधानी ृंगवेरपुर है ।... ब त दू र पर मेरे िपता की
राजधानी अयो ा िदखाई पड़ रही है , उसे णाम करो ।
अयो ा का नाम सुनते ही सब उचक-उचककर उसे दे खने लगे । ऊंची और
धवल अ ािलकाओं से सुशोिभत वह महापुरी दू र से अमरावती जैसी लगती थी ।
वनवास के पूरे चौदह वष बाद राम भार ाज के आ म म पधारे । महिष ने
उनका ागत करते ए कहा–पधा रए रघुनायक! आज आपको इस प म
दे खकर मुझे बड़ी स ता हो रही है । आपका िवजय-वृता म सुन चुका ं । एक
िदन हमारे साथ रहकर कल अयो ा जाइएगा आपके प रवार म सब सकुशल ह ।
भरत जटा-चीर धारण करके न ाम म रहते ह और आपकी पादु काओं को आगे
रखकर वहीं से अयो ा का शासन चलाते ह ।
राम वहीं क गए, उसी िदन वनवास की अविध पूरी हो रही थी । उ सहसा
याद पड़ा िक भरत ने िच कूट म कहा था िक यिद आप चौदह वष बीतते ही न लौटे
तो म अि म जलकर मर जाऊंगा । और भी ब त कुछ सोचकर वे एका म
हनुमान से बोले–किपवर! म चाहता ं िक तुम अभी न ाम चले जाओ, माग म
ृंगवेरपुर म मेरे िम िनषादराज से िमलकर मेरा कुशल समाचार कह दे ना । वह
तु न ाम का ठीक माग बता दे गा । वहां प ं चकर भरत से कहना िक म लंका
को जीतकर सीता, ल ण, िक ापित सु ीव और लंकापित िवभीषण तथा
अ ा महाबली िम ों के साथ शी ही अयो ा आ रहा ं । उसके बाद आकृित,
वाणी तथा चे ाओं से उसके मन का भाव ताड़ना । स व है इतने िदनों तक ऐ य
भोगते-भोगते भरत को रा से मोह हो गया हो और उ मेरा वहां आना ि य न लगे
। उस दशा म तुम मुझे तुर लौटकर सूिचत कर दे ना, म वह रा उ ीं को दे दू ं गा

हनुमान आकाश-माग से अयो ा की ओर चल पड़े और माग म िनषादराज से
िमलते ए शी न ाम प ं च गए । वहां जटा-चीरधारी ीणकाय भरत रा के
धान अिधका रयों के बीच म मृगचम पर िवराजमान थे । हनुमान् ने जाते ही
अिभवादन करके उनसे कहा–महानुभाव! आप िदन-रात िजनकी िच ा म म रहते
ह, उ ीं माह ा राम का शुभसंवाद लेकर म हनुमान् आपकी सेवा म उप थत आ
ं । वे लंकापित रावण को मारकर सीता, ल ण, वानरराज सु ीव और रा े
िवभीषण तथा अ ब त-से वीर िम ों के साथ शी यहां पधारगे ।
इसे सुनते ही भरत हष से िवहल हो गए । उ ोंने उठकर हनुमान् को दय से
लगा िलया और उसके क ों को पिव ेमा ुओं से िभगोते ए कहा–अहो! आज
मेरे जीवन का सबसे सु र िदन है । इतने िदनों बाद मुझे मेरे वनवासी ामी का
सुखद समाचार िमला है । आज मेरा मनोरथ पूरा हो गया । सौ ! इस ि य संवाद के
िलए म तु एक लाख गाएं , सी गां व और प ी बनने के िलए सोलह सु री षोडशी,
सविवभूिषता कुमा रयां भट करता ं ।
इसके बाद भरत ने सु ीव-मै ी और रावण-वध आिद का स ूण वृता सुना ।
िफर वे श ु से बोले–सौ ! अयो ा जाकर पू भाई राम के ागत का ब
करो, पुरोिहतों और ा णों को मंगलकृ करने का आदे श दो । सारी अयो ापुरी
को तोरण-ब नवारों से सजवा दो और घोषणा करवा दो िक सब लोग अयो ापित
की अगवानी के िलए शी आ जाएं , चतुरंिगणी सेना आगे बढ़कर महाराज का
ागत करे गी ।...
अयो ा म जैसे ही राम के शुभागमन का समाचार प ं चा वैसे ही सारी महापुरी
हष से तरं िगत हो गई । घर- ार, हाट-माग सजाए जाने लगे । रा के म ी,
सेनापित, सभी धान कमचारी और नाग रक उ मो म वाहनों म बैठकर राम के
ागताथ दौड़ पड़े । राजमहल की यां भी कौश ा, सुिम ा को आगे करके
पालिकयों म न ाम जा प ं ची । अयो ा की राजचतुरंिगणी जा फहराती ई
चल पड़ी । भेरी, शंख, मृदंग आिद की िन से सारा न ाम गूंज उठा ।
धममूित भरत राम की पादु काओं को िसर पर रखकर दल-बल सिहत आगे बढ़े ।
पीछे -पीछे सै -दल, राजसमाज और नाग रकों का िवशाल समुदाय चला ।
पुरवािसयों के गगनभेदी हषनाद, मंगलवा ों की िन तथा हाथी-घोड़ों और रथों के
श म माग म कोलाहल मच गया ।
राम का दे श-आगमन–कुछ दू र जाने पर आकाश म च मा के समान िद
िवमान आता िदखाई पड़ा । सब एक र म िच ा उठे -राम आ गए, राम आ गए ।
दे खते-दे खते पु क िवमान पृ ी पर आ लगा । भरत दौड़कर उस पर चढ़ गए
और राम के चरणों पर िगर पड़े । राम ने उ उठाया, ीितपूवक दय से लगाया
और गोद म बैठा िलया । इसके अन र भरत सीता, ल ण और अ लोगों से िमले
। उस समय सु ीव तथा उनके सभी यूथपित और िवभीषण आिद मानव- प म थे ।
भरत-सु ीव का दु बारा आिलंगन करके बोले–वानरराज! मनु उपकार करने से
िम और अपकार करने से श ु बनता है । अब तक हम चार ही भाई थे, अब आप
जैसे िहतैषी सुहद को पाकर हम चार से पां च हो गए ।–िवभीषण से भी उ ोंने ऐसे ही
ेहपूण वचन कहे । भरत के साथ-साथ श ु भी सबसे िवमान म ही िमले ।
इसके बाद राम-ल ण-सीता ने नीचे उतरकर माताओं और गु ओं के चरण
छु ए । सारी जनता ने बार ार जय-जयकार करके उनका अिभवादन िकया और
एक र से िच ाकर कहा–महाबा राम! आपका ागत है !
राम, सीता और ल ण पर चारों ओर से लाजा और फूलमालाओं की वषा होने
लगी । उसी समय भरत ने राम की पादु काएं उनके चरणों म पहना दीं और हाथ
जोड़कर कहा–भैया! अपनी यह धरोहर लीिजए । अब तक इस रा को म आपकी
थाती मानकर संभालता रहा । आपके ताप से मने रा को पहले की अपे ा दस-
गुणा अिधक धन-वैभव-स बना िदया । अब म आपकी व ु आपको समिपत
करता ं ।
राम ने ग द होकर भरत को छाती से लगा िलया । िफर सबको िवमान म साथ
लेकर वे न ाम आए । वहां नीचे उतरते ही उ ोंने पु क को कुबेर के पास भेज
िदया । िफर भरता म म आकर राम, ल ण, भरत ने अपने-अपने बाल कटाए,
ान िकया और मू वान् व तथा हार-केयूर-कु ल आिद पहने । रािनयों ने
िमलकर सीता का ृंगार िकया । वृ ा कौश ा ने अपने हाथों से वानर- यों के
सम ृंगार िकए । उस िदन उनका हष समाता ही न था ।
इसके अन र राम एक सुस त रथ म सवार ए । भरत सारिथ के थान पर
बैठे, श ु राजछ लेकर खड़े ए । एक ओर से ल ण और दू सरी ओर से
िवभीषण चंवर डु लाने लगे । इस तरह राम पूरे ठाठ से दल-बल सिहत अयो ा की
ओर अ सर ए । सु ीव और हनुमान आिद िद व ाभूषण पहनकर सुस त
गजराजों पर चले । राम के पीछे अपार जनसमूह उनका जयगान करता चल पड़ा ।
पूरे चौदह वष बाद राम ने धूमधाम से अपनी राजधानी म वेश िकया । सारी
नगरी उ ासमयी थी, िदशाएं हषनाद और वा नाद से िनर र िनत- ित िनत
हो रही थीं । राजमाग के दोनों ओर अपार जनसमुदाय खड़ा था । अटा रयों से लाजा-
पु ों की वषा हो रही थी ।
राम का रा ािभषेक–राम धूमधाम से अपने राजभवन म प ं चे और ब त
िदनों से िबछु ड़े ए ेही जनों से िमले । सु ीव-िवभीषण आिद राज-अितिथयों को
उ ोंने स ानपूवक सु र भवनों म ठहराया । दू सरे ही िदन शुभ मू त म विस के
हाथ से उनका रा ािभषेक स आ । राम-सीता के साथ अपने िपता के
िसंहासन पर बैठे । सारे रा म बड़े उ ाह से मंगलो व मनाया गया । जनता
अपने दय-स ाट को कोसल-नरे श के प म दे खकर फूली नहीं समाई ।
राम ने मु ह से सबको चुर भट-उपहार िदए । सु ीव, िवभीषण, अंगद,
हनुमान्, जा व आिद को उ ोंने इस अवसर पर अमू ृित-िच दान िकए
। सीता ने भी हनुमान को िद व और आभूषण दे कर स ािनत िकया । िफर वे
हाथ म अपना सु र क हार लेकर राम का मुंह ताकने लगीं । राम उनके
अिभ ाय को जान गए और बोले–सौभा शािलनी! िजस िकसी पर तुम सवािधक
स हो, उसी को यह दे दो ।
सीता ने बड़े हष से वह मिण-र -जिटत मु ाहार सवगुणस हनुमान को दे
िदया । हनुमान ने उसको आदरपूवक िसर से लगाकर गले म पहन िलया ।
सु ीव-िवभीषण आिद अयो ा म कुछ िदनों तक बड़े सुख से रहे , िफर वे राम से
िवदा लेकर अपने-अपने दे शों को लौट गए ।
राम-रा –लोकानुरागी राम बड़े उ ाह से रा -रं जन म वृत ए । अपनी
िवल ण यो ता और कमत रता से उ ोंने रा को थोड़े ही समय म उ ित के
िशखर पर प ं चा िदया । राम-रा एक आदश रा हो गया । राम यं जैसे
संयमी, सदाचारी और कत परायण थे, वैसे ही उनके जाजन भी हो गए । सब
िनर र राम का ान रखते थे और उनका गुणगान करते ए उ ीं के चरण-िच ों
पर चलते थे । राम की स ता के िलए िविवध वण के लोग िनयम-संयम से अपने-
अपने कत का पालन करते थे और पर र भाई-भाई की तरह ेम से रहते थे ।
कोई िकसी के साथ ई ा- े ष और िकसी कार का दु ्यवहार नहीं करता था । सब
ावल ी और परोपकारी थे । रोग-शोक का कहीं नाम भी नहीं था । लोग ह -पु
और िच ा-शोक से मु होकर दीघ-जीवन का पूरा आन भोगते थे । िकसी की
अकाल मृ ु नहीं होती थी । रा म कहीं िकसी कार का कलह, उप व या
े ाचार नहीं होता था । राम ने रा ीय च र की मयादा थािपत करके सव ित
का ार खोल िदया । उससे रा की श , स दा और स ता की िदन- ितिदन
उ ित ही होती गई । लोग ब त वष तक राम ारा ित ािपत सुरा का सुख-
वैभव भोगते रहे ।
राम ने अपने जीवन-काल म अनेक लोकोपयोगी काय तथा अ मेध य आिद
िकए । इससे उनकी मिहमा स ूण संसार म ा हो गई ।
प रिश -1

उपसंहार

रामायण ( ि भाग) तथा महाभारत के अनुसार राम ने ारह सह वष रा


िकया था । िकसी शरीरधारी का इतने िदनों तक जीिवत रहना अस व है । अतएव
इस अ ु म त इतना ही है िक राम ने ब त िदनों तक रा िकया था । उनके
उस ल े जीवन म ब त-सी उ ेखनीय बात ई होंगी, पर उनका ामािणक
िववरण उपल नहीं है । रामायण के शु पाठ म उनके रा ारोहण तक का ही
इितहास है ।
बाद म, िकसी ने पुराणों की शैली म उ रका की रचना करके राम के
परलोक-गमन तक का वृता िलख डाला है । ीमद् भगवत, अ ा रामायण,
प पुराण, रघुवंश और उ रराम च रत आिद म भी इस िवषय की थोड़ी-ब त
साम ी िमलती है । यहां हम इन ों से राम के शेष जीवन की कुछ मह पूण
घटनाएं दे ते ह ।
1. सीता-प र ाग–िसंहासन पर बैठने के कुछ समय बाद एक िदन राम ने
अपने और सीता के बारे म लोकापवाद सुना । कथास र ागर म, गुणा की
बृह था के आधार पर, िलखा है िक वह अपवाद िकसी धोबी के मुख से सुना गया
था । ीमद् भगवत के अनुसार राम एक रात वेश बदल कर घूम रहे थे । उ ोंने
िकसी को अपनी प ी से यह कहते सुना-कुलटा! िनकल जा यहां से; म राम जैसा
ी-कामी नहीं ं िक पराये घर म रही ई ी को िफर अपने घर म रख लूँ ।...
अ ा ों म िलखा है िक राम ने अपने एक गु चर से एक िदन यह पूछा िक
जनता हमारे िकसी काय से अस ु तो नहीं है ?
गु चर ने िनवेदन िकया–महाराज! आपकी केवल एक ही बात लोगों को
खटकती है ; वह यह िक आपने रावण के घर म इतने िदनों तक रही ई जानकी को
पुनः प ीवत् हण कर िलया । लोग आपस म कहते ह िक अब तो कोई भी
अपनी -िवहा रणी भाय को घर म रहने से नहीं रोक सकता ।
राम इस लोकापवाद से भयभीत हो गए । उ ोंने इस पर ग ीरता से िवचार
िकया और अपने भाइयों को एका म बुलाकर उनसे कहा–मेरी अ रा ा कहती
है िक सीता सवथा िनद ष है , लेिकन लोक को इस िवषय म कुछ स े ह है । उनके
कारण समाज म मेरी िन ा हो रही है और लोकादश दू िषत होने का भय है । अतएव
म सीता का प र ाग करने जा रहा ं । तुम लोग इसे बुरा न मानना ।
इसके बाद वे अपने परम आ ाकारी भाई ल ण से बोले–ल ण! तु मेरे
चरणों की शपथ है , तुम कल ही सीता को तपोवन िदखाने के बहाने गंगा पार तमसा
के तटवत वन म ले जाओ और महिष वा ीिक के आ म के पास छोड़ आओ...
यह कहते-कहते राम की आं ख सजल हो गई और वे चुपचाप उठकर महल म
चले गए । दू सरे िदन ल ण सीता को तपोवन-या ा के बहाने रथ म लेकर चल पड़े
। सीता उस समय गभवती थीं । अयो ा से थान करते समय उनका दय
अनायास धड़कने लगा । ल ण ऊपर से तो शा , िक ु भीतर ही भीतर अ
दु :खी थे ।
दू सरे िदन रथ गंगा के िकनारे प ं चा । दोनों नाव से उस पार प ं चे । तमसा के
िकनारे प ं चकर ल ण खड़े हो गए और रोने लगे । सीता को बड़ा आ य आ,
उ ोंने इसका कारण पूछा । ल ण िसर नीचा करके बोले–दे िव! आज तो मेरा मर
जाना ही अ ा है , म अ कठोर कम करने जा रहा ं । महाराज ने लोकापवाद
से भयभीत होकर आपका प र ाग कर िदया है । म उनकी आ ा से आपको वन म
छोड़ने आया ं । पास ही, िपताजी के िम महिष वा ीिक रहते ह । मुझे िव ास है
िक वे आपकी संभाल करगे ।...
सीता के स म जो अपवाद फैला था, ल ण ने कह सुनाया । सीता को
उससे अस दु :ख आ । वे ल ण से बोलीं-ल ण! मने कौन-सा ऐसा पाप िकया
था िजसका मुझे यह फल िमल रहा है ? ऋिषयों को म कौन-सा मुंह िदखाऊंगी! लोग
जब मुझसे पूछेगे िक तु ारे पित ने तु घर से ों िनकाल िदया, तो म ा उ र
दू ं गी?
ल ण रोते ए बोले–दे िव, म पराधीन ं , इस िन ठुरता के िलए आप मुझे मा
कर ।
सीता ने कहा–सौ ! तु ारा या महाराज का कोई दोष नहीं, मेरे ही ज -
ज ा र के पाप उदय ए ह । तुम महाराज की आ ा का पालन करो । यहां से
लौटकर मेरी पूजनीय सास-माँ ओं को मेरा णाम कहना और महाराज से कह दे ना
िक मेरे कारण लोक म उनकी िन ा होती है तो उसे दू र करने के िलए म बड़े से
बड़ा क सह लूंगी; मुझे सब तरह से पित का िहत करना चािहए ।
ल ण सीता को वहीं छोड़कर रोते ए लौट गए । सीता वन म अकेली बैठकर
रोने लगीं । कुछ मुिनकुमारों ने उ दे खा और जाकर महिष वा ीिक को सूिचत
िकया । वा ीिक यं सीता के पास आए और उ सा ना दे कर अपने आ म म
ले गए । आ म के पास ही कुछ मुिन-पि यां रहती थीं । सीता उ ीं के साथ
तप नी की भां ित रहने लगीं । महिष ने उ पु ीवत् अ ेम से रखा ।
कुछ महीनों के बाद सीता के गभ से एक साथ दो कुमारों का ज आ । महिष
वा ीिक ने यं दोनों बालकों के धािमक सं ार िकए । एक का नाम उ ोंने लव
रखा और दू सरे का कुश । दोनों धीरे -धीरे बड़े होने लगे । उनके कारण सीता का
जीवन ब त कुछ सरस हो गया । जब वे कुछ और बड़े ए तो महिष वा ीिक उ
िविवध िवषयों की िश ा दे ने लगे । उन िदनों वे रामायण की रचना कर रहे थे । उसे
भी उ ोंने दोनों कुमारों को धीरे -धीरे क थ करा िदया । सीता अपने पु ों के सुख
से अपना तथा अपने ि यतम राम का गुणगान सुनकर फूली नहीं समाती थी । उन
बालकों को यह पता नहीं था िक वे राम के पु ह । दोनों अपने की ऋिष-स ान
मानते थे ।
उधर राम ने सीता को घर से तो िनकाल िदया, लेिकन उ वे अपने दय से नहीं
िनकाल पाए । उ ोंने दू सरा िववाह नहीं िकया । य आिद म धमप ी के थान पर
वे अपने साथ सीता की ण- ितमा रख लेते थे । प र ा सीता को जब यह ात
आ तो उ ोंने इसे अपना अहोभा समझा ।
कई वष बाद राम ने अ मेध य करने का िन य िकया और अपने भाइयों को
सेना-सिहत िद जय के िलए भेजा । इस संग म एक कथा यह है िक जब य का
घोड़ा घूमता-घूमता वा ीिक आ म के िनकट प ं चा तो लव-कुश ने उसे पकड़
िलया और सेनापितयों के ब त कहने पर भी नहीं छोड़ा । उस समय तक दोनों
त ण हो चुके थे और महािष वा ीिक ने उ धनुिव ा का भी अ ा अ ास करा
िदया था । राम की चतुरंिगणी सेना म भरत, श ु और ल ण के अित र
हनुमान, अंगद, जा व जैसे िस परा मी वीर भी थे । दोनों तेज ी कुमारों ने
िकसी की परवाह नहीं की ।
अ म, भयंकर यु िछड़ गया । राम की सारी सेना लव-कुश से परा हो गई;
बड़े -बड़े शूरवीर आहत होकर रणभूिम म िगर पड़े । महा तापी राम अपनी सेना का
पराभव सुनकर यं यु के िलए आए । लव-कुश ने उनका भी सामना िकया । राम
के पूछने पर उ ोंने माता के नाम से अपना प रचय िदया । राम ने दोनों को दय से
लगा िलया । सीता उसी समय धरती म समा गई ।
मु -मु ाचीन ों म इससे िभ कथा िमलती है । वह इस कार है :
िद जय के उपरा राम ने अ मेध य का अनु ान िकया । उस समय तक
रामायण-का पूरा हो चुका था । लव-कुश चारों ओर घूम-घूमकर उसका चार
कर रहे थे । य के अवसर पर महिष वा ीिक भी िश म ली सिहत अयो ा
आए और एका म िटक गए । उ ोंने लव-कुश को यह आदे श िदया िक तुम लोग
अयो ा की गिलयों म, सड़कों पर, राजभवन के ार पर, सभाओं म और य शाला
के आसपास मधुर क से रामायण का गान करो और यिद कोई तु ारा प रचय
पूछे तो केवल इतना ही बताना िक हम वा ीिक के िश ह ।
लव-कुश रामायण की कथा गाते ए घूमने लगे । राम ने भी उनका दयहारी
गान सुना और उ सभा म बुलाकर सबके सामने गाने का आदे श िदया । दोनों राम
के ितिब जैसे लगते थे । सब उनकी ओर एकटक दे खने लगे । उ ोंने राम-
समाज म रामायण का ऐसा सु र पाठ िकया िक ोतागण आन से िव ल हो गए ।
राम ने उनका प रचय तथा रामायण- णेता का नाम पूछा । दोनों कुमार बोले–
महाराज, हम महिष वा ीिक के िश ह; िजस रचना का हमने पाठ िकया है , वह
उ ीं की कृित है ।
राम कई िदनों तक स ूण रामायण का पाठ ान से सुनते रहे । उनके जीवन
की अनेक सुखद ृितयां सजीव हो गईं । वे यं महिष वा ीिक से िमलने गए ।
एक मत यह भी है िक राम ने वा ीिक को दू त ारा आम त िकया । वा ीिक ने
आकर उनसे भट की और सीता को पुनः अपनाने का अनुरोध िकया । उनके मुख से
सीता के च र की शंसा सुनकर राम िवनयपूवक बोले–मुिनवर! मेरी भी गत
धारणा यही है िक सीता परम सतीसा ी है । मने उसे े ा से नहीं, समाज के भय
से छोड़ा है । उिचत यह होगा िक वह समाज के सम अपनी िनद िषता िस करे ,
तब म उसे सहष अपना लूगा ।
महिष वा ीिक ने कहा–ठीक है राम! ऐसा ही होगा । आप नाग रकों की एक
सभा बुलाइए । सीता सबके आगे शपथ लेकर अपने को िनद ष घोिषत करे गी ।
राम ने दू सरे िदन य शाला म सभा का आयोजन िकया । अयो ा के नाग रक
तथा अनेक ऋिष-मुिन वहां आकर बैठे । उसके बाद महिष वा ीिक सीता को साथ
लेकर सभा म उप थत ए । सीता गे आ व पहने थीं और ल ा से िसर झुकाए
धीरे -धीरे चल रही थीं । महिष ने िवराट् सभा म राम को स ोिधत करके कहा–
राजन्! म भरी सभा म यह घोषणा करता ं िक सीता पित ता और सदाचा रणी है ;
यिद इसम कुछ भी अस हो तो मुझे मेरी तप ा का फल न िमले; आप इस
महासती को सहधिमणी के प म पुनः हण कीिजए । इसके गभ से उ लव
और कुश आप ही के आ ज ह ।...
राम ने उ र िदया–मुिन े ! इस स म मेरे िलए समाज का िनणय ही मा
होगा । सीता को जो कुछ कहना है , सबके आगे कहे और जनता का िव ास ा
करे ।
सीता उस समय ल ा-संकोच से भूिम म गड़ी जा रही थीं । लव-कुश को महिष
वा ीिक के हाथों म सौंपकर वे आगे बड़ीं और सबके आगे शपथ लेकर बोली–मने
म भी कभी अपने पित राम के अित र अ िकसी पु ष का िच न नहीं
िकया है । यिद यह स हो तो धरती माता अब मुझे अपनी गोद म थान दे !...
उसी ण वहां की धरती फट गई । दु : खनी सीता सबके दे खते-दे खते रसातल म
चली गई । दशकगण िसहर उठे । राम सीता को बचाने के िलए दौड़े , पर वे सदा-
सवदा के िलए जा चुकी थीं । उनकी उ ल कीित ही शेष थी । इस घटना से राम के
दय को जो चोट प ं ची, उसका वणन नहीं हो सकता । वे जीवन-भर सीता के िलए
रोते रहे ।
2. राम की लंका-या ा–पद् मपुराण के अनुसार–राम ने एक बार लंका-या ा
करने का िन य िकया । भरत ने भी साथ जाने का आ ह िकया । राम ने पु क
िवमान मंगवाया । दोनों भाई उसी पर बैठकर चले और माग म सु ीव को भी साथ
लेते ए लंका प ं चे ।
लंका म राम के पधारते ही चहल-पहल मच गई । लोग उनके दशन के िलए दौड़
पड़े , थान- थान पर हष व मनाए गए । िवभीषण के आ ह-अनु ह से राम को
वहां कई िदनों तक क जाना पड़ा । उस बीच म एक िदन रावण की माता कैकसी
ने भी उनके दशन की इ ा कट की । राम को जब िवभीषण से उनके आने की
सूचना िमली तो वे बोले–भाई तु ारी मां मेरी भी मां ही है ; म यं उनसे िमलने
चलता ं ।
राम ने यं जाकर कैकसी को णाम िकया और न तापूवक कहा–दे वी! आप
मेरी धममाता ह, मेरे िलए माता कौश ा के समान ही पू ह । आपका दशन
करके म अपने को ब त भा शाली मानता ं ।
इस कार अपने शील-स वहार से वहां के लोक- दय को जीतकर राम
अयो ा लौट आए ।
3. िवभीषण का उ ार–पद् मपुराण म रामायण के और िवभीषण के स म
एक कथा इस कार है :
एक बार राम को यह सूचना िमली िक लंकापित िवभीषण िवड़ दे श म ब ी
बना िलया गया है । वे उसके उ ार के िलए दौड़ पड़े वहां । िव घोष नामक गां व के
ा णों ने िवभीषण को बां ध रखा था । राम के वहां प ं चते ही ा णों ने उनका
ागत-स ार करके कहा–महाराज! इस दु रा स ने एक तप ी ा ण को
अकारण पैरों से रौदकर मार डाला । यह आपका दास कहलाता है , अतः आप ही
अब इसको उिचत द द ।
राम बड़े धमसंकट म पड़ गए । कुछ दे र तक इस िवषय म ग ीरता से िवचार
करके उ ोंने कहा–स नो! ायत: भृ के अपराध का द उसके ामी को
िमलना चािहए ।* िवभीषण के अपराध को म अपने ऊपर लेता ं । आप मुझे जो
द दे ना चाह, दे सकते ह ।
ा ण लोग एक-दू सरे को मुंह ताकने लगे । तब राम ने ऋिषयों से इस पाप का
ायि त पूछा और तदनुसार िवभीषण से ा णों को दान या द के प म तीन
सौ साठ गाएं िदला दीं । िवभीषण मु हो गया । राम उसको डां टते ए बोले–
िवभीषण! तुम मेरे भ बनते हो, अतः तु साधु, सदाचारी और दयालु तो होना ही
चािहए; भिव म तुम ऐसा कोई काय न करना िजससे मेरे स ान पर चोट प ं चे ।
इस कठोर चेतावनी के साथ उ ोंने िवभीषण को िवदा कर िदया ।
4. ल ण का प र ाग–कौश ा, सुिम ा, कैकेयी का गवास पहले ही हो
चुका था, धीरे -धीरे राम का भी अ काल समीप आ गया । जीवन के अ म िदनों म
उ एक और महान् दु :ख सहना पड़ा । इसकी कथा इस कार है –
एक िदन एक िवल ण तप ी राम से िमलने आया । कहते ह, वह यं काल या
कालदू त था और उ मृ ु का स े श बताने आया था । उसने राम से एका म
गु वाता करने की इ ा कट की । राम ने उसे अपने पास बुलवाया और ल ण
को यह आदे श दे कर ार पर खड़ा कर िदया िक यिद कोई भीतर आएगा तो उसे
मृ ुद िदया जाएगा ।
राम और तप ी म बात हो ही रही थीं िक इतने म ार पर कोपमूित दु वासा आ
प ं चे । वे राम से तुर िमलने के िलए थे । ल ण ने उनसे राम का आदे श
बताया और कुछ ठहरने की ाथना की, पर वे नहीं माने और शाप दे ने को तैयार हो
गए । ल ण को िववश होकर भीतर जाना ही पड़ा । उस समय तक राम और
तप ी की वाता समा हो चुकी थी । राम दु वासा के आने की सूचना पाकर बाहर
िनकले और उनका ागत करके बोले–ऋिषवर! किहए, ा आ ा है ?
दु वासा ने कहा–राजन्! म अभी अपना उपवास समा करके उठा ं ; आपके
यहां जो भोजन तैयार ही शी मंगवा दीिजए ।
राम ने त ाल उनके भोजन की व था कर दी । दु वासा खा-पीकर डकार लेते
ए लौट गए । उनके जाने के बाद राम ने ल ण की ओर ग ीर ि से दे खा, पर
कुछ कहा नहीं । ल ण उनके मन के भाव को ताड़ गए और यं ही अपराधी की
भां ित बोले–महाराज! मने आपकी आ ा का उ ंघन िकया है , अतः मुझे आप
मृ ुद दीिजए, मेरे िलए अपना राजधम न ािगए!
राम ने सोच-िवचारकर कहा–ल ण! स नों के िलए प र ाग और वध दोनों
बराबर ह । (प र ागो वधी वािप सतामेवोभयं समम्’ –उ र-का ) । म तु ारा
प र ाग करता ं । तुम अभी यहां से चले जाओ, िजससे धम की हािन न हो ।
यह कहकर राम ने अ ुपूण ने ों से अपने परम ेही भाई को अ म बार दे खा
। ल ण की भी आं ख सजल हो गईं । वे पू भाई के चरण छूकर भवन से बाहर
िनकले और िबना िकसी से िमले चुपचाप सरयू नदी के िकनारे चले गए । वहां उ ोंने
उसी ण ाण ाग िदया ।
5. महा याण–ल ण का मृ ु-संवाद राम के िलए अस हो गया । वे जीवन से
िवर होकर बोले–भाई ल ण िजस माग से गया है , म भी उसी माग से उसके
पीछे -पीछे जाऊंगा । जीवन-भर वह मेरा अनुगामी था, अब म उसका अनुगामी
बनूगा ।
इसके बाद उ ोंने कोसल रा को दो भागों म बां टकर कुश को दि ण कोसल
का तथा लव को उ र कोसल का राजा बना िदया । भाइयों और भतीजों को वे पहले
ही दू र-दू र के िविभ ा ों म रा ािधकार दे चुके थे । इस कार रा और
प रवार की व था करके राम महाया ा के िलए तैयार हो गए । उस समय अगिणत
ी-पु ष राजभवन को घेरे खड़े थे । कहते ह, सु ीव, िवभीषण तथा हनुमान भी
उस अवसर पर वहां प ं च गए थे ।
राम ने िविधपूवक धािमक कृ िकए । िफर वे शा -भाव से सरयू तट की ओर
अ सर ए । िवशाल जन-समुदाय चुपचाप उनके पीछे चला । नदी के िकनारे
प ं चकर उ ोंने सब से िवदा ली । हनुमान और िवभीषण भी ाण- ाग के िलए
आतुर थे, पर राम ने उ रोक िदया । भरत, श ु और सु ीव को अनुमित िमल गई

राम ने सबके आगे सरयू नदी म जल-समािध ले ली । भरत, श ु और सु ीव के
साथ सह ों मनु ों ने परलोकगामी राम का अनुगमन िकया । जनता िन ाण-सी
हो गई ।

*
भृ ापरा धे सव ािमनोद इ ते ।
प रिश -2

भगवान वा ीिक

वा ीिक को हम केवल ाचीन महिष और आिदकिव के प म ही जानते ह । वे


कौन थे, कब ए थे और कहां के िनवासी थे–इन बातों का ठीक-ठाक िनणय अभी
तक नहीं हो पाया । उनके जीवन के स म जो साम ी उपल है , उसे हम यहां
सं ेप म दे ते ह:
1. महाभारत तथा कितपय पुराणों के अनुसार–वा ीिक महिष चेता की
अयोिनज स ान थे । उनका ार क नाम था–र ाकर । महिष चेता ने र ाकर
को बा ाव था ही म ाग िदया था । नीच जाित के लोगों के यहां उसका पालन-
पोषण आ । फल प वह कुछ पढ़-िलख नहीं सका और कुसंगित म पड़कर
डाकू बन गया ।
एक िदन दे विष नारद हाथ म वीणा िलए कहीं जा रहे थे । र ाकर डाकू उ
एका म पकड़कर पीटने लगा ।
नारद शा -भाव से बोले–भैया! हम थ ों मारते हो? हमारे पास तो बस
वीणा और कौपीन है ; तु इनकी आव कता हो तो सहष ले ली ।
र ाकर उनकी वीणा दे खकर बोला–यह िकस काम आती है ?
नारद ने उ र िदया–म इसे बजाकर गाता ं ।
र ाकर ने िफर कहा–अ ा, कुछ गाओ ।
नारद वीणा बजाकर ह रकीितन करने लगे । उससे र ाकर के दय की मू त
सद् वृि यां जाग गईं; वह शा हो गया । तब नारद ने उससे पूछा–भाई, तुम ऐसा
ू र कम ों करते हो?
र ाकर बोला– ा क ं ! मेरा प रवार ब त बड़ा है ; म ही अकेला कमाने वाला
ं , लूटमार करके िकसी तरह अपना और अपने कुटु यों का पालन-पोषण करता
ं।
नारद ने कहा–लेिकन यह तो सोचो िक इस पाप के कारण तु ारी िकतनी दु गित
होगी । तुम िजन लोगों के िलए ऐसा कुकृ करते हो, ा वे तु ारे पाप म भी
साझीदार होंगे? एक बार उनसे पूछो तो सही!
उस समय तक र ाकर का दय पूण प से शु नहीं आ था । वह नारद को
एक पेड़ से बां धकर अपने घर गया । वहां उसने अपने कुटु यों से उ का
उ र पूछा । वे लोग बोले–अपने कम का अ ा-बुरा फल आप भोिगए हम तो बस
भोजन-व से योजन है ।
र ाकर ख हो गया । उसने वन म जाकर दे विष को मु कर िदया और रोते
ए उसने कहा–भगवन्! इस पापी का उ ार कीिजए ।
नारद ने उसे राम-नाम जपने का उपदे श िदया, लेिकन वह पापी राम श का
उ ारण नहीं कर सका । तब दे विष ने उसे ‘मरा-मरा’ का अख जाप करने को
कहा । र ाकर ानम होकर ‘मरा-जाप’ जपने लगा । उसके शरीर पर िम ी का
ढे र लग गया, पर वह अपने आसन से नहीं उठा । ब त वष बाद एक िदन उधर
ा का शुभागमन आ । उ ोंने र ाकर को िम ी के ढे र से बाहर िनकाला और
अपने कम लु के जल से उसे शु एवं चैत िकया । वह व ीक से िनकला था,
अत: ा ने उसका नाम वा ीिक रख िदया ।
2. आ ा रामायण म िलखा है िक राम अपनी वनया ा म िच कूट के पास
महिष वा ीिक से िमलने गए थे । वा ीिक ने उ अपने जीवन का यह वृता
सुनाया था ।
“म ा ण कुल म उ आ था, लेिकन नीचों की कुसंगित के कारण मेरा
आचरण हो गया । मने नीच जाित की ी से िववाह कर िलया उससे मेरे ब त-
से पु भी हो गए । म िनजन थानों म लूटमार करके अपनी तथा ी-ब ों की
जीिवका चलाता था ।
...एक िदन मुझे वन म सात तेज ी ऋिष जाते िदखाई पड़े । म ‘ठहरो-ठहरो’
कहता आ उनकी ओर झपटा । ऋिषयों ने मेरा योजन पूछा । मने कहा–तुम लोगों
के पास जो कुछ हो, चुपचाप मेरे सामने रख दो, म डाकू ं ।
...ऋिषयों ने मुझसे पूछा–तुम ऐसा िन त काय ों करते हो?
...मने कहा–अपने घरवालों के पालन-पोषण के िलए ।
...ऋिषयों ने िफर कहा–द ु! िजनके िलए तुम यह पाप-संचय करते हो ा वे
भी तु ारे साथ उसका फल भोगने के िलए तैयार होंगे? तुम एक बार उनसे यह पूछ
लो, िफर जैसी इ ा हो करो । तु ारे लौटने तक हम यहीं खड़े रहगे ।
...मने ी-ब ों से यह पूछा । ेक ने यही कहा िक हम तु ारा पाप
अपने िसर ों ल, हम तो बस तु ारी कमाई से मतलब है । इससे मेरे मन म
त ाल वैरा उ हो गया । म अपने दु म के िलए पछताता आ सातों
ऋिषयों के पास लौटा । उनके दशन से मेरा अ :करण शु हो गया । म धनुष-बाण
फककर उनके चरणों पर िगर पड़ा ।
...उन महा ाओं ने मुझसे कहा–उठो, हम तु क ाण का माग बताते ह । जब
तक हम लोग यहां दु बारा न लौट, तुम शु मन से ‘मरा-मरा’ का जप करो ।
...मुझे यह म दे कर वे लोग चले गए । म बैठकर ‘मरा-मरा’ जपने लगा ।
उसम मेरा िच ऐसा रम गया िक मुझे अपने शरीर का भी ान नहीं रहा । दीघकाल
तक उसी अव था म रहने से मेरे ऊपर दीमकों का घरोंदा (व ीक) बन गया । ब त
वष (एक सह युग?) बाद सातों ऋिष िफर लौटे । उ ोंने मुझे पुकारा । म उस
व ीक से बाहर िनकला । ऋिषगण बोले–मुिनवर! यह तु ारा दू सरा ज आ है ।
तुम व ीक से िनकले हो, अतः अब से तु ारा नाम वा ीिक होगा ।
...इस कार ‘मरा-मरा’ के प म आपके नाम का जप करके म कुछ का कुछ
हो गया ।
ये कथाएं संभवत: जन ुितयों के आधार पर िलखी गई ह । इनम स का अंश
िकतना है , यह बताना किठन है । इससे इतना तो है िक वा ीिक का
वा िवक नाम कुछ और था । बाद म, िकसी कारण से वे वा ीिक नाम से पुकारे
जाने लगे । हो सकता है िक वे तु घराने के रहे हों और िम ी के घर या घरौदे म ही
उनका ार क जीवन बीता हो, इससे लोग उ वा ीिक कहने लगे हों । वे बड़े
घराने के होते तो उनका नाम ऐसा न होता । िन वग के लोगों से उनका घिन
स अव था । आज भी वे अछूतों के गु माने जाते ह । अपने जीवन म आगे
चलकर उ ोंने अपनी साधना से महिष का पद ा कर िलया । उ कथाओं से
दू सरी बात यह िस होती है िक वा ीिक महाभारत-काल के ब त पहले हो चुके थे
और संभवत: राम के समसामियक थे । उ ोंने ‘मरा-मरा’ के प से राम-राम
जपकर िस ा की थी, यह सब बात कोरी क ना जान पड़ती है । िजस समय
की यह घटना कही जाती है , उस समय तो संभवत: राम का ज भी नहीं आ था ।
अतएव इन कथाओं की स ता संिद है ।
3. रामायण म यं वा ीिक ने अपने स म कुछ नहीं कहा है । बालका
के थम सग म वा ीिक-नारद-संवाद तथा ौंच-वध स ी जी संग है , वह
ही िकसी दू सरे का िलखा आ है । रामायण की सभी ाचीन ितयों म वह पाठ
िमलता है । ाचीन सािह कारों ने भी ौंच-वध की घटना का उ ेख िकया है ।
वा ीिक-िल खत न होने पर भी वह उनके जीवन की एक ऐितहािसक घटना जान
पड़ती है । उनके दय पर उसकी छाप इतनी गहरी पड़ी थी िक वे रामायण की
रचना करते समय भी उसको भूल नहीं सके । रामायण म जहां कहीं भी दन-
न का संग आया है , वहां वा ीिक को ौंची-िवलाप की याद आ गई है ।
यथा-‘ ोऽचीनािमव नारीणां िननाद सु ुवे’-(अयो ाका ), ‘ ोऽचीनािमव
िन न:’ (यु का ) । संभवत: रामायण की रचना के उपरा िकसी िव ान् ने उस
संग को ‘भूिमका’ के प म मूल ंथ के साथ जोड़ िदया है । अब वह रामायण का
एक मह पूण अंग है और पूवकाल से ही ‘मूल रामायण’ के नाम से िस है ।
उ संग के अनुसार वा ीिक राम के समकािलक एक महिष थे और तमसा
नदी के तट पर आ म बनाकर रहते थे । वहीं उनके िच म िकसी आदश मानव का
लोकरं जक वृता िलखने का िवचार उठा । उ ोंने इस िवषय म एक िदन दे विष
नारद से बातचीत की । नारद ने उ नर-िशरोमिण राम का ललाम च र सुनाया ।
वा ीिक को एक सु र कथानक और आदश च रतनायक िमल गया । तब उ ,
संभवत: का के उपयु छ की िच ा ई । वे मन ही मन इसी िवषय का
िच न करते ए ानाथ तमसा नदी के िकनारे गए । वहां उ ोंने एक िन ठुर ाध
के हाथों एक ेमास ौंच प ी की ह ा का दे खा; साथ ही, ौंची का
ममिवदारक न सुना । स दय महिष की आ ा कराह उठी । उनके मुख से
उनकी अ वदना ोक प म फूट पड़ी ।
वा ीिक का शोको ार साधारण वा नहीं, ोक था । इससे उ उसी छ
म राम-कथा िलखने की ेरणा िमली । ा ने उ वैसे ही छ ों म राम की मनोहर
एवं पिव कथा िलखने का आदे श िदया–‘कु रामकथा पु ां ोकब ां मनोरमाम्
। महिष ने बड़े प र म से चौबीस सह ोकों म आिदका का िनमाण कर
डाला-‘रघुवंश च रतं चकार भगवानृिष: ।’
िजस समय इस का की रचना ई, राम अयो ा म शासन कर रहे थे ।
वा ीिक ने लव-कुश नामक अपने दो िश ों को स ूण रामायण क थ करा दी
। दोनों चारों ओर गा-गाकर उसका चार करने लगे । राम ने भी उनके मुख से
वा ीिक-रिचत अपना पूव-च रत सुना और मु क से उसकी सराहना की ।
बस, रामायण के ामािणक सं रणों म इसके अित र वा ीिक के जीवन
की अ िकसी घटना का उ ेख नहीं है । केवल दाि णा पाठ म यह िलखा है
िक राम से उनकी िच कूट के पास भट ई थी । िव ानों के मत से यह अंश ि
है ।
रामायण के छ: का ों के साथ बाद म एक उ रका भी जोड़ िदया गया है ।
वह न तो वा ीिक की कृित है और न ब त ाचीन ही है । उसम सीता-वनवास के
संग म वा ीिक का उ ेख है । उनके अनुसार ल ण सीता की तमसा के दि ण
तट पर अपने िपता दशरथ के िम महिष वा ीिक के आ म के पास छोड़ आए थे
। अनािथनी सीता को महिष अपने आ म म ले गए । वहीं लव-कुश का ज आ।
महिष ने दोनों को बड़े ेह से पाला-पोसा और पढ़ा-िलखाकर सब कार से सुयो
बना िदया । रामायण की रचना के बाद उ ोंने लव-कुश को ही उसके चार का
काय सौंपा । दोनों ने राम के अ मेध य म जाकर रामायण का पाठ िकया । उसे
सुनकर राम ने उनका प रचय पूछा और सीता को बुलवाया । महिष वा ीिक यं
सीता को लेकर उप थत ए । उ ोंने सवसम सीता के सती की सा ी दी ।
उसी अवसर पर सीता भूिम म वेश कर गई ।
यह घटना भी िनराधार नहीं है । पूवकाल से ही ऐसी जन ुित चली आ रही है ।
ाचीन ंथकारों ने भी इसके त को ीकार िकया है ।
4. सारां श यह िक वा ीिक पहले जो भी और जैसे भी रहे हों, रामायण की रचना
के समय वे महिष के प म िव ात थे । उनकी कृित से ही उनके का
आभास िमलता है । का म किव व ुतः अपने ही आदश प का िच ण करता है
। िजस किव ने राम को अपना च रतनायक चुना और मु क से उनका गुणगान
िकया, वह राम के समान ही महान् रहा होगा । हनुमान् िकसी कामी के आरा नहीं
हो सकते । उसी कार राम िकसी तु दय के उपा नहीं हो सकते । रामायण
से यह िस होता है िक वा ीिक स - ाय के समथक, धम के परम उपासक और
स े लोकिहत-िच क थे । तप ी होने के अित र वे वेद शा के एकािधकारी
िव ान्, रसिस कवी र तथा जगद् गु भी थे । ‘नानृिषः कु ते का म् के अनुसार
वे किव होने के पूण अिधकारी थे । ‘ ोक’ के आिव ार तथा थम ब का
की रचना का ेय उ ीं की है । भारतवष के सभी ाचीन सािह कारों ने उ
आिदकिव तथा आदश किव ीकार िकया है । ‘मधुमयभिणतीनां मागदश महिष:
।’ उ ीं के स म कहा गया है । वे सािह -जगत् के एक अवतारी पु ष थे ।
वा ीिक के जीवन के स म यही मानना चािहए िक वे राम के समकािलक
थे । यिद इसे न भी मान तो इतना तो िनि त ही है , वे ईसा से कम से कम पां च सौ वष
पूव ए थे । िव ानों के मत से रामायण की रचना ईसा के पां च सौ वष पहले के
िकसी युग म ई थी । महाभारत म वा ीिक का उ ेख है । इससे वे ास के
पूववत िस होते ह । उनके िवषय म एक मत यह भी है िक उ ोंने राम-ज के
ब त पहले ही रामायण की रचना कर डाली थी । यह कोरी क ना है । उपल
माणों से यही िस होता है िक वे राम के समकालीन थे ।
प रिश -3

वा ीिक रामायण की सूिवतयां

धम–धमादथ: भवित धमा भवते सुखम् ।


धमण लभते सव धम सारिमदं जगत्॥

—अर का
(धम से ही धन, सुख तथा सब कुछ ा होता है । इस संसार म धम ही सार
व ु है ।)

स –स मेवे रो लोके स े धमः सदाि तः ।


स मूलािन सवािण स ा ा परं पदम्॥

—अयो ाका
(स ही संसार म ई र है , धम भी स के ही आि त है ; स ही सम भव-
िवभव का मूल है ; स से बढ़कर और कुछ नहीं है ।)

कमफल–यदाच रत क ािण! शुभं वा यिद वाऽशुभम् ।


तदे व लभते भ े ! क ा कमजमा नः॥

—अयो ाका
(दशरथ कौश ा से–हे क ािण! मनु जैसा भी अ ा या बुरा कम करता है ,
उसे वैसा ही फल िमलता है । कता को अपने कम का फल अव भोगना पड़ता
है –“जो जस क रअ सो तस फल चाखा ।”)
अिव ान फलं यो िह कम ेवनुधावित ।
स सोचे लवेलायां यथा िकंशुकसेवकः॥

—अयो ाका
(जो मनु िबना प रणाम पर िवचार िकए ही आं ख मूंदकर काम करता है वह
बाद म–फल ा के समय–पलाश वृ की सेवा करने वाले की तरह पछताता है –
उसका म सफल नहीं होता ।

सफल जीवन–सुजीवं िन श यः परै पजी ते ।


राम! त तु दु ज वं यः परानुपजीवित॥

—अयो ाका
(िजसके आ य म अनेक पु ष जीते ह उसी का जीवन साथक है , जो दू सरों के
सहारे जीता है , उस असमथ-परावल ी का जीना न जीने के समान है ।

सुख–दु लभं िह सदा सुखम् ।—अयो ाका


(सुख सदा नहीं बना रहता ।)

न सुखा ते सुखम् ।–सुख से सुख की वृ नहीं होती ।

सुदुखं शियतः पूव ा ेदं सुखमु मम् ।


ा कालं न जानीते िव ािम ो यथा मुिनः॥

—िक ाका
(िकसी को जब ब त िदनों तक अ िधक दु :ख भोगने के बाद महान् सुख
िमलता है तो उसे िव ािम मुिन की भां ित समय का ान नहीं रहता–सुख का
अिधक समय भी थोड़ा ही जान पड़ता है ।)

उ ाह–उ ाहो बलवानाय ना ु ाहा रं बलम् ।


सो ाह िह लोकेषु न िकि दिप दु लभम्॥
—िक ाका
(ल ण राम से–आय! उ ाह बड़ा बलवान् होता है , उ ाह से बढ़कर कोई बल
नहीं है । उ ाही पु ष के िलए संसार म कुछ भी दु लभ नहीं है ।)

अिनवदो िह सततं सवाथषु वतकः ।


करोित सफलं ज ो: कम य करोित सः॥

—सु रका
(उ ाह ही मनु को सदा सब काय म वृ करता है । उ ाह ही जीव के
ेक काय को सफल बनाता है ।)

शोक–यो िवशादं सहते िव मे समुप थते ।


तेजसा त हीन पु षाथ न िस ित ।

—िक ाका
(जो मनु परा म िदखाने के अवसर पर िवषाद होता है , उसका आ तेज
न हो जाता है और पु षाथ िस नहीं होता ।)

िन ाह दीन शोकपयाकुला न: ।
सवाथा वसीद सनं चािधग ित॥

—यु का
(उ ाहहीन, दीन और शोकाकुल मनु के सभी काम िबगड़ जाते ह; वह घोर
िवपि म फंस जाता है ।)

ये शोकमनुव े न तेषां िव ते सुखम् ।

—िक ाका
(शोक मनु ों को कभी सुख नहीं िमलता ।)

शोक: शौयापकषणः ।
—यु का
(शोक मनु के शौय को न कर दे ता है ।)

ोध–वा ावा ं कुिपतो न िवजानाित किहिचत् ।


नाकायम कु नावा ं िव ते िचत्॥

—सु रका
( ोध की दशा म मनु को कहने और न कहने यो बातों का िववेक नहीं
रहता । कु मनु कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है । उसके
िलए कुछ भी अकाय और अवा नहीं है ।)

अपना-पराया–गुणगान् व परजनः जनो िनगुणोऽिप वा ।


िनगणः जनः ेयान् यः पर: पर एव सः॥

—यु का
(पराया मनु भले ही गुणवान् हो तथा जन सवथा गुणहीन ही ों न हो,
लेिकन गुणी परजन से गुणहीन जन ही भला होता है । अपना तो अपना है और
पराया पराया ही रहता है ।)

िम ता–उपकारफलं िम मपकारोऽ रल णम् ।

—िक ाका
(उपकार करना िम ता का ल ण है और अपकार करना श ुता का ।)

सवथा सुकरं िम ं दु रं ितपालनम् ।

—िक ाका
(िम ता करना सहज है लेिकन उसको िनभाना किठन है ।)

न सु ो िवप ाथ दीनम ुपप ते ।


स ब ुय ऽपनीतेषु साहा ायोपक ते॥
—यु का
(सु द् वही है जो िवपि दीन िम का साथ दे और स ा ब ु वही है जो
अपने कुमागगामी ब ु की भी सहायता करे ) ।

आ तो वािप द र ो वा दु ः खत सु खतोऽिपवा ।
िनद ष सदोष वय ः परमा गित:॥

—िक ाका
(चाहे धनी हो या िनधन, दु :खी हो या सुखी, िनद ष हो या सदोष–िम ही मनु
का सबसे बड़ा सहारा होता है ।)

वसे ह सप ेन ु े नाशुिवषेण च ।
न तु िम वादे न संवसे ु सेिवना॥

—यु ख
(श ु और ु महािवषधर सप के साथ भले ही रह, पर ऐसे मनु के साथ
कभी न रह जो ऊपर से तो िम कहलाता हो, लेिकन भीतर-भीतर श ु का
िहतसाधक हो ।)

राजधम–पातकं वा सदोषं वा क ं र ता सदा ।


रा भारिनयु ानामेष धमः सनातनः॥

—बालक

(िजसके क ों पर शासन का भार हो उसे गत पाप और दोष का िवचार


ागकर िजस कार भी हो सके, सदा जा का िहत ही करना चािहए । यही सनातन
राजधम है ।)

लोक-नीित–न चाित णय: कायः कत ोऽ णय ते ।


उभयं िह महान् दोस ाद र व॥

—िक ाका
(मृ ु-पूव बािल ने अपने पु अंगद को यह अ म उपदे श िदया था–तुम िकसी
से अिधक ेम या अिधक वैर न करना, ोंिक दोनों ही अ अिन कारक होते
ह, सदा म म माग का ही अवल न करना ।)

द -नीित–गुरो विल कायाकायमजानतः


उ थं ितप काय भवित शासनम् ।।

—अयो ाका
(यिद गु भी मादवश क -अक का िवचार छोड़ दे और कुमागगामी
हो जाए तो उसे भी द दे ना आव क है ।)

यािन िम ािभश ानां पत ूिण रावण ।


तािन पु पशू ित ी थमनुशासतः॥

—अयो ाका
(िम ा अपराधों के िलए द त िनद ष यों के ने ों से जो अ ु िगरते ह, वे
े ाचारी शासक का सवनाश कर डालते ह ।)

िविवध–पौ षेण तु यो यु ः स तु शूर इित ृत: ।

—यु का
(पु षाथ ही शूरवीर कहलाता है ।)

गज न वृथा शूरा िनजला इव तोयदाः ।

—यु का
(शूर लोग जल-शू बादलों की भां ित थ नहीं गरजते ।)

सव च िव ित ।

—यु का
( ोधी पु ष से सभी डरते ह ।)

मृदुिह प रभूयते ।

—अयो ाका
(मृदु पु ष का अनादर होता है ।)

यु िस िह च ला ।

—सु रक
(यु म सफलता अिनि त होती है ।)

भावो दु रित मः ।

—यु का
( भाव का अित मण किठन है ।)

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