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संभोग से समािध क ओर

ISBN: 978-0-88050-910-7
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ISBN- 978-0-88050-910-7
#1
संभोग : परमा मा क सृजन-ऊजा
मेरे ि य आ मन्!
ेम या है?
जीना और जानना तो आसान है, ले कन कहना ब त क ठन है। जैसे कोई मछली से पूछे
क सागर या है? तो मछली कह सकती है, यह है सागर, यह रहा चार तरफ, वही है।
ले कन कोई पूछे क कहो या है, बताओ मत, तो ब त क ठन हो जाएगा मछली को।
आदमी के जीवन म भी जो े है, सुंदर है और स य है, उसे जीया जा सकता है, जाना
जा सकता है, आ जा सकता है, ले कन कहना ब त मुि कल है। और दुघटना और दुभा य
यह है क िजसम जीया जाना चािहए, िजसम आ जाना चािहए, उसके संबंध म मनु य-
जाित पांच-छह हजार वष से के वल बात कर रही है।
ेम क बात चल रही है, ेम के गीत गाए जा रहे ह, ेम के भजन गाए जा रहे ह, और
ेम का मनु य के जीवन म कोई थान नह है। अगर आदमी के भीतर खोजने जाएं तो ेम
से यादा अस य श द दूसरा नह िमलेगा। और िजन लोग ने ेम को अस य िस कर
दया है और िज ह ने ेम क सम त धारा को अव कर दया है और बड़ा दुभा य यह
है क लोग समझते ह वे ही ेम के ज मदाता भी ह।
धम ेम क बात करता है, ले कन आज तक िजस कार का धम मनु य-जाित के ऊपर
दुभा य क भांित छाया आ है, उस धम ने ही मनु य के जीवन से ेम के सारे ार बंद कर
दए ह। और न इस संबंध म पूरब और पि म म कोई फक है, न हंद ु तान म और न
अमे रका म कोई फक है। मनु य के जीवन म ेम क धारा कट ही नह हो पाई। और नह
हो पाई तो हम दोष देते ह क मनु य ही बुरा है, इसिलए नह कट हो पाई। हम दोष देते
ह क यह मन ही जहर है, इसिलए कट नह हो पाई।
मन जहर नह है। और जो लोग मन को जहर कहते रहे ह, उ ह ने ही ेम को जहरीला
कर दया, ेम को कट नह होने दया है। मन जहर हो कै से सकता है? इस जगत म कु छ
भी जहर नह है। परमा मा के इस सारे उप म म कु छ भी िवष नह है, सब अमृत है।
ले कन आदमी ने सारे अमृत को जहर कर िलया है। और इस जहर करने म िश क, साधु-
संत और तथाकिथत धा मक लोग का सबसे यादा हाथ है।
इस बात को थोड़ा समझ लेना ज री है। य क अगर यह बात दखाई न पड़े तो मनु य
के जीवन म कभी भी ेम भिव य म भी नह हो सके गा। य क िजन कारण से ेम नह
पैदा हो सका है, उ ह कारण को हम ेम कट करने के आधार और कारण बना रहे ह!
हालत ऐसी ह क गलत िस ांत को अगर हजार वष तक दोहराया जाए तो फर हम यह
भूल ही जाते ह क िस ांत गलत ह; और दखाई पड़ने लगता है क आदमी गलत है,
य क उन िस ांत को पूरा नह कर पा रहा है।
मने सुना है, एक स ाट के महल के नीचे से एक पंखा बेचने वाला गुजरता था और जोर
से िच ला रहा था क अनूठे और अदभुत पंखे मने िन मत कए ह। ऐसे पंखे कभी भी नह
बनाए गए। ये पंखे कभी देखे भी नह गए ह। स ाट ने िखड़क से झांक कर देखा क कौन
है जो अनूठे पंखे ले आया है! स ाट के पास सब तरह के पंखे थे--दुिनया के कोने-कोने म जो
िमल सकते थे। और नीचे देखा, गिलयारे म खड़ा आ एक आदमी साधारण दो-दो पैसे के
पंखे ह गे और िच ला रहा है क अनूठे, अि तीय।
उस आदमी को ऊपर बुलाया और पूछा क इन पंख म या खूबी है? दाम या ह इन
पंख के ? उस पंखे वाले ने कहा क महाराज, दाम यादा नह ह। पंखे को देखते ए दाम
ब त कम ह, िसफ सौ पये का पंखा है। स ाट ने कहा, सौ पये! यह दो पैसे का पंखा, जो
बाजार म जगह-जगह िमलता है, और सौ पये दाम! या है इसक खूबी? उस आदमी ने
कहा, खूबी! यह पंखा सौ वष चलता है। सौ वष के िलए गारं टी है। सौ वष से कम म खराब
नह होता है। स ाट ने कहा, इसको देख कर तो ऐसा लगता है क यह स ाह भी चल जाए
पूरा तो मुि कल है। धोखा देने क कोिशश कर रहे हो? सरासर बेईमानी, और वह भी
स ाट के सामने! उस आदमी ने कहा, आप मुझे भलीभांित जानते ह, इसी गिलयारे म रोज
पंखे बेचता ।ं सौ पये दाम ह इसके और अगर सौ वष न चले तो िज मेवार म ।ं रोज तो
नीचे मौजूद होता ।ं और फर आप स ाट ह, आपको धोखा देकर जाऊंगा कहां?
वह पंखा खरीद िलया गया। स ाट को िव ास तो न था, ले कन आ य भी था क यह
आदमी सरासर झूठ बोल रहा है, कस बल पर बोल रहा है! पंखा सौ पये म खरीद िलया
गया और उससे कहा क सातव दन तुम उपि थत हो जाना।
दो-चार दन म ही पंखे क डंडी बाहर िनकल गई। सातव दन तो वह िबलकु ल मुदा हो
गया। ले कन स ाट ने सोचा क शायद पंखे वाला आएगा नह । ले कन ठीक समय पर
सातव दन वह पंखे वाला हािजर हो गया और उसने कहा, कहो महाराज!
उ ह ने कहा, कहना नह है, यह पंखा पड़ा आ है टू टा आ। यह सात दन म ही यह
गित हो गई, तुम कहते सौ वष चलेगा। पागल हो या धोखेबाज? या हो?
उस आदमी ने कहा क मालूम होता है आपको पंखा झलना नह आता है। पंखा तो सौ
वष चलता ही। पंखा तो गारं टीड है। आप पंखा झलते कै से थे?
स ाट ने कहा, और भी सुनो, अब मुझे यह भी सीखना पड़ेगा क पंखा कै से कया जाता
है!
उस आदमी ने कहा, कृ पा करके बताइए क इस पंखे क गित सात दन म ऐसी कै से बना
दी आपने? कस भांित पंखा कया?
स ाट ने पंखा उठा कर करके दखाया क इस भांित मने पंखा कया है।
उस आदमी ने कहा, समझ गया भूल। इस तरह पंखा नह कया जाता।
स ाट ने कहा, और या रा ता है पंखा झलने का?
उस आदमी ने कहा, पंखा पकिड़ए सामने और िसर को िहलाइए। पंखा सौ वष चलेगा।
आप समा हो जाएंगे, ले कन पंखा बचेगा। पंखा गलत नह है, आपके झलने का ढंग गलत
है।
यह आदमी पैदा आ है--पांच-छह हजार या दस हजार वष क सं कृ ित का यह आदमी
फल है। ले कन सं कृ ित गलत नह है, यह आदमी गलत है। आदमी मरता जा रहा है रोज
और सं कृ ित क दुहाई चलती चली जाती है-- क महान सं कृ ित, महान धम, महान सब
कु छ! और उसका यह फल है आदमी, उसी सं कृ ित से गुजरा है और यह प रणाम है उसका।
ले कन नह , आदमी गलत है और आदमी को बदलना चािहए अपने को। और कोई कहने
क िह मत नह उठाता क कह ऐसा तो नह है क दस हजार वष म जो सं कृ ित और
धम आदमी को ेम से नह भर पाए वह सं कृ ित और धम गलत ह ! और अगर दस हजार
वष म आदमी ेम से नह भर पाया तो आगे कोई संभावना है इसी धम और इसी सं कृ ित
के आधार पर क आदमी कभी ेम से भर जाए?
दस हजार वष म जो नह हो पाया, वह आगे भी दस हजार वष म होने वाला नह है।
य क आदमी यही है, कल भी यही होगा आदमी। आदमी हमेशा से यही है और हमेशा
यही होगा। और सं कृ ित और धम, िजनके हम नारे दए चले जाते ह, और संत और
महा मा क िजनक दुहाइयां दए चले जाते ह...सोचने के िलए हम तैयार नह क कह
हमारे बुिनयादी चंतन क दशा ही तो गलत नह है?
म कहना चाहता ं क वह गलत है। और गलत का सबूत है यह आदमी। और या सबूत
होता है? एक बीज को हम बोएं और फल जहरीले और कड़वे ह तो या िस होता है?
िस होता है क वह बीज जहरीला और कड़वा रहा होगा। हालां क बीज म पता लगाना
मुि कल है क उससे जो फल पैदा ह गे, वे कड़वे पैदा ह गे। बीज म कु छ खोजबीन नह क
जा सकती। बीज को तोड़ो-फोड़ो, कोई पता नह चल सकता क इससे जो फल पैदा ह गे,
वे कड़वे ह गे। बीज को बोओ, सौ वष लग जाएंग-े -वृ होगा, बड़ा होगा, आकाश म
फै लेगा, तब फल आएंगे--और तब पता चलेगा क वे कड़वे ह।
दस हजार वष म सं कृ ित और धम के जो बीज बोए गए ह, यह आदमी उसका फल है
और यह कड़वा है और घृणा से भरा आ है। ले कन उसी क दुहाई दए चले जाते ह हम
और सोचते ह क उससे ेम हो जाएगा। म आपसे कहना चाहता ,ं उससे ेम नह हो
सकता है। य क ेम के पैदा होने क जो बुिनयादी संभावना है, धम ने उसक ही ह या
कर दी है और उसम ही जहर घोल दया है।
मनु य से भी यादा ेम पशु और पि य म और पौध म दखाई पड़ता है; िजनके पास
न कोई सं कृ ित है, न कोई धम है। सं कृ त और सुसं कृ त और स य मनु य क बजाय
अस य और जंगल के आदमी म यादा ेम दखाई पड़ता है; िजसके पास न कोई िवकिसत
धम है, न कोई स यता है, न कोई सं कृ ित है। िजतना आदमी स य, सुसं कृ त और
तथाकिथत धम के भाव म मं दर और चच म ाथना करने लगता है, उतना ही ेम से
शू य य होता चला जाता है?
ज र कु छ कारण ह। और दो कारण पर म िवचार करना चाहता ।ं अगर वे खयाल म
आ जाएं तो ेम के अव ोत टू ट सकते ह और ेम क गंगा बह सकती है। वह हर
आदमी के भीतर है, उसे कह से लाना नह है। ेम कोई ऐसी बात नह है क कह खोजने
जाना है उसे। वह है। वह ाण क यास है हर एक के भीतर, वह ाण क सुगंध है येक
के भीतर। ले कन चार तरफ से परकोटा है उसके और वह कट नह हो पाती। सब तरफ
प थर क दीवार है और वे झरने नह फू ट पाते। तो ेम क खोज और ेम क साधना कोई
पािज टव, कोई िवधायक खोज और साधना नह है क हम जाएं और कह ेम सीख ल।
एक मू तकार एक प थर को तोड़ रहा था। कोई देखने गया था क मू त कै से बनाई जाती
है। उसने देखा क मू त तो िबलकु ल नह बनाई जा रही है; िसफ छैनी और हथौड़े से प थर
तोड़ा जा रहा है। तो उस आदमी ने पूछा क यह आप या कर रहे ह? मू त नह बनाएंग!े
म तो मू त का बनना देखने आया ।ं आप तो िसफ प थर तोड़ रहे ह।
उस मू तकार ने कहा क मू त तो प थर के भीतर िछपी है, उसे बनाने क ज रत नह
है; िसफ उसके ऊपर जो थ प थर जुड़ा है उसे अलग कर देने क ज रत है और मू त
कट हो जाएगी। मू त बनाई नह जाती, मू त िसफ आिव कृ त होती है, िड कवर होती है,
अनावृत होती है, उघाड़ी जाती है।
मनु य के भीतर ेम िछपा है, िसफ उघाड़ने क बात है। उसे पैदा करने का सवाल नह
है, अनावृत करने क बात है। कु छ है जो हमने ऊपर से ओढ़ा आ है, जो उसे कट नह
होने देता।
एक िच क सक से जाकर आप पूछ क वा य या है? और दुिनया का कोई िच क सक
नह बता सकता क वा य या है। बड़े आ य क बात है! वा य पर ही तो सारा
िच क सा-शा खड़ा है, सारी मेिडकल साइं स खड़ी है और कोई नह बता सकता क
वा य या है। ले कन िच क सक से पूछ क वा य या है? तो वह कहेगा, बीमा रय
के बाबत हम बता सकते ह क बीमा रयां या ह, उनके ल ण हम पता ह, एक-एक
बीमारी क अलग-अलग प रभाषा हम पता है। वा य? वा य का हम कोई भी पता
नह है। इतना हम कह सकते ह क जब कोई बीमारी नह होती, तो जो होता है, वह
वा य है।
वा य तो मनु य के भीतर िछपा है, इसिलए मनु य क प रभाषा के बाहर है। बीमारी
बाहर से आती है, इसिलए बाहर से प रभाषा क जा सकती है। वा य भीतर से आता है,
उसक कोई प रभाषा नह क जा सकती। इतना ही हम कह सकते ह क बीमा रय का
अभाव वा य है। ले कन यह वा य क कहां प रभाषा ई? वा य के संबंध म तो
हमने कु छ भी न कहा। कहा क बीमा रयां नह ह, तो बीमा रय के संबंध म कहा। सच यह
है क वा य पैदा नह करना होता, या तो िछप जाता है बीमा रय म या बीमा रयां हट
जाती ह तो कट हो जाता है।
वा य हमम है। वा य हमारा वभाव है।
ेम हमम है। ेम हमारा वभाव है।
इसिलए यह बात गलत है क मनु य को समझाया जाए क तुम ेम पैदा करो। सोचना
यह है क ेम पैदा य नह हो पा रहा है? बाधा या है? अड़चन या है? कहां कावट
डाल दी गई है? अगर कोई भी कावट न हो तो ेम कट होगा ही, उसे िसखाने क और
समझाने क कोई भी ज रत नह है। अगर मनु य के ऊपर गलत सं कृ ित और गलत
सं कार क धाराएं और बाधाएं न ह , तो हर आदमी ेम को उपल ध होगा ही। यह
अिनवायता है। ेम से कोई बच ही नह सकता। ेम वभाव है।
गंगा बहती है िहमालय से। बहेगी गंगा, उसके ाण ह, उसके पास जल है। वह बहेगी
और सागर को खोज ही लेगी। न कसी पुिलसवाले से पूछेगी, न कसी पुरोिहत से पूछेगी
क सागर कहां है? देखा कसी गंगा को चौर ते पर खड़े होकर पूछते क सागर कहां है?
उसके ाण म है िछपी सागर क खोज और ऊजा है, तो पहाड़ तोड़ेगी, मैदान तोड़ेगी और
प च ं जाएगी सागर तक। सागर कतना ही दूर हो, कतना ही िछपा हो, खोज ही लेगी।
और कोई रा ता नह है, कोई गाइड-बुक नह है क िजससे पता लगा ले क कहां से जाना
है, ले कन प च ं जाती है।
ले कन बांध बांध दए जाएं, चार तरफ परकोटे उठा दए जाएं। कृ ित क बाधा को
तोड़ कर तो गंगा सागर तक प च ं जाती है, ले कन अगर आदमी क इं जीिनय रं ग क
बाधाएं खड़ी कर दी जाएं, तो हो सकता है गंगा सागर तक न प च ं पाए। यह भेद समझ
लेना ज री है।
कृ ित क कोई भी बाधा असल म बाधा नह है, इसिलए गंगा सागर तक प च ं जाती है,
िहमालय को काट कर प च ं जाती है। ले कन अगर आदमी ईजाद करे , इं तजाम करे , तो
गंगा को सागर तक नह भी प च ं ने दे सकता है।
कृ ित का तो एक सहयोग है, कृ ित तो एक हामनी है। वहां जो बाधा भी दखाई पड़ती
है, वह भी शायद शि को जगाने के िलए चुनौती है। वहां जो िवरोध भी दखाई पड़ता है,
वह भी शायद भीतर ाण म जो िछपा है, उसे कट करने के िलए बुलावा है। वहां शायद
कोई बाधा नह है। वहां हम बीज को दबाते ह जमीन म; दखाई पड़ता है क जमीन क
एक पत बीज के ऊपर पड़ी है, बाधा दे रही है। ले कन वह बाधा नह दे रही। अगर वह पत
न होगी, तो बीज अंकु रत भी नह हो पाएगा। ऐसे दखाई पड़ता है क एक पत जमीन क
बीज को नीचे दबा रही है। ले कन वह पत दबा इसिलए रही है, ता क बीज दबे, गले और
टू ट जाए और अंकुर बन जाए। ऊपर से दखाई पड़ता है क वह जमीन बाधा दे रही है,
ले कन वह जमीन िम है और सहयोग कर रही है बीज को कट करने म।
कृ ित तो एक हामनी है, एक संगीतपूण लयब ता है।
ले कन आदमी ने जो-जो िनसग के ऊपर इं जीिनय रं ग क है, जो-जो उसने अपनी यांि क
धारणा को ठ कने क और िबठाने क कोिशश क है, उससे गंगाएं क गई ह, जगह-
जगह अव हो गई ह। और फर आदमी को दोष दया जाता है। कसी बीज को दोष देने
क ज रत नह है। अगर वह पौधा न बन पाए, तो हम कहगे क जमीन नह िमली होगी
ठीक, पानी नह िमला होगा ठीक, सूरज क रोशनी नह िमली होगी ठीक। ले कन आदमी
के जीवन म िखल न पाए फू ल ेम का, तो हम कहते ह--तुम हो िज मेवार। और कोई नह
कहता क भूिम न िमली होगी ठीक, पानी न िमला होगा ठीक, सूरज क रोशनी न िमली
होगी ठीक; इसिलए यह आदमी का पौधा अव रह गया, िवकिसत नह हो पाया, फू ल
तक नह प च ं पाया।
म आपसे कहना चाहता ं क बुिनयादी बाधाएं आदमी ने खड़ी क ह। ेम क गंगा तो
बह सकती है और परमा मा के सागर तक प च ं सकती है। आदमी बना इसिलए है क वह
बहे और ेम बहे और परमा मा तक प च ं जाए। ले कन हमने कौन सी बाधाएं खड़ी कर दी
ह?
पहली बात, आज तक मनु य क सारी सं कृ ितय ने से स का, काम का, वासना का
िवरोध कया है। इस िवरोध ने, मनु य के भीतर ेम के ज म क संभावना तोड़ दी, न
कर दी--इस िनषेध ने! य क स ाई यह है क ेम क सारी या ा का ाथिमक बंद ु काम
है, से स है। ेम क या ा का ज म, गंगो ी--जहां से गंगा पैदा होगी ेम क --वह से स है,
वह काम है। और उसके सब दु मन ह--सारी सं कृ ितयां, और सारे धम, और सारे गु , और
सारे महा मा--तो गंगो ी पर ही चोट कर दी, वह रोक दया। पाप है काम, अधम है काम,
जहर है काम। और हमने सोचा भी नह क काम क ऊजा ही, से स एनज ही अंततः ेम
म प रव तत होती और पांत रत होती है। ेम का जो िवकास है, वह काम क शि का
ही ांसफामशन है, वह उसी का पांतरण है।
एक कोयला पड़ा हो और आपको खयाल भी नह आएगा क कोयला ही पांत रत
होकर हीरा बन जाता है। हीरे और कोयले म बुिनयादी प से कोई भी फक नह है। हीरे म
भी वे ही त व ह जो कोयले म ह। और कोयला हजार वष क या से गुजर कर हीरा
बन जाता है। ले कन कोयले क कोई क मत नह है, उसे कोई घर म रखता भी है तो ऐसी
जगह जहां दखाई न पड़े। और हीरे को लोग छाितय पर लटका कर घूमते ह, क वह
दखाई पड़े। और हीरा और कोयला एक ही ह! ले कन कोई दखाई नह पड़ता क इन
दोन के बीच अंतसबंध है, एक या ा है।
कोयले क शि ही हीरा बनती है। और अगर आप कोयले के दु मन हो गए--जो क हो
जाना िबलकु ल आसान है, य क कोयले म कु छ भी नह दखाई पड़ता--तो हीरे के पैदा
होने क संभावना भी समा हो गई, य क कोयला ही हीरा बन सकता था।
से स क शि ही, काम क शि ही ेम बनती है।
ले कन उसके िवरोध म ह, सारे दु मन ह उसके । अ छे आदमी उसके दु मन ह। और
उसके िवरोध ने ेम के अंकुर भी नह फू टने दए। और जमीन से, थम से, पहली सीढ़ी से
न कर दया भवन को। फर वह हीरा नह बन पाता कोयला, य क उसके बनने के िलए
जो वीकृ ित चािहए, जो उसका िवकास चािहए, जो उसको पांत रत करने क या
चािहए, उसका सवाल ही नह उठता। िजसके हम दु मन हो गए, िजसके हम श ु हो गए,
िजससे हमारी ं क ि थित बन गई और िजससे हम िनरं तर लड़ने लगे--अपनी ही शि
से आदमी को लड़ा दया गया है, से स क शि से आदमी को लड़ा दया गया है। और
िश ाएं दी जाती ह क ं छोड़ना चािहए, कांि ल ट छोड़नी चािहए, लड़ना नह
चािहए। और सारी िश ाएं बुिनयाद म िसखा रही ह क लड़ो।
मन जहर है; तो मन से लड़ो। जहर से तो लड़ना पड़ेगा। से स पाप है; तो उससे लड़ो।
और ऊपर से कहा जा रहा है क ं छोड़ो। िजन िश ा के आधार पर मनु य ं से भर
रहा है, वे ही िश ाएं दूसरी तरफ कह रही ह क ं छोड़ो। एक तरफ आदमी को पागल
बनाओ और दूसरी तरफ पागलखाने खोलो क उनका इलाज करना है! एक तरफ क टाणु
फै लाओ बीमा रय के और फर अ पताल खोलो क बीमा रय का इलाज यहां कया
जाता है!
एक बात समझ लेनी ज री है इस संबंध म।
मनु य कभी भी काम से मु नह हो सके गा। काम उसके जीवन का ाथिमक बंद ु है,
उसी से ज म होता है। परमा मा ने काम क शि को ही, से स को ही सृि का मूल बंद ु
वीकार कया है। और परमा मा िजसे पाप नह समझ रहा है, महा मा उसे पाप बता रहे
ह! अगर परमा मा उसे पाप समझता है, तो परमा मा से बड़ा पापी इस पृ वी पर, इस
जगत म, इस िव म कोई भी नह है।
फू ल िखला आ दखाई पड़ रहा है। कभी सोचा है क फू ल का िखल जाना भी से सुअल
ए ट है! फू ल का िखल जाना भी काम क एक घटना है, वासना क एक घटना है! फू ल म है
या--उसके िखल जाने म? उसके िखल जाने म कु छ भी नह है, वे बंद ु ह पराग के , वीय के
कण ह, िज ह िततिलयां उड़ा कर दूसरे फू ल पर ले जाएंगी और नया ज म दगी।
एक मोर नाच रहा है--और किव गीत गा रहे ह और संत भी देख कर स ह गे। ले कन
उ ह खयाल नह क नृ य एक से सुअल ए ट है। मोर पुकार रहा है अपनी ेयसी को या
अपने ेमी को। वह नृ य कसी को रझाने के िलए है। पपीहा गीत गा रहा है; कोयल बोल
रही है; एक आदमी जवान हो गया है; एक युवती सुंदर होकर िवकिसत हो गई है। वे सब
क सब से सुअल एनज क अिभ ि यां ह। वह सब का सब काम का ही पांतरण है।
यह सब का सब काम क ही अिभ ि , काम क ही अिभ ंजना है। सारा जीवन, सारी
अिभ ि , सारी लाव रं ग काम क है।
और उस काम के िखलाफ सं कृ ित और धम आदमी के मन म जहर डाल रहे ह। उससे
लड़ाने क कोिशश कर रहे ह। मौिलक शि से मनु य को उलझा दया है लड़ने के िलए।
इसिलए मनु य दीन-हीन, ेम से र और थोथा और ना-कु छ हो गया है।
काम से लड़ना नह है, काम के साथ मै ी थािपत करनी है और काम क धारा को और
ऊंचाइय तक ले जाना है। कसी ऋिष ने कसी वधू को, नव वर और वधू को आशीवाद
देते ए कहा था क तेरे दस पु पैदा ह और अंततः तेरा पित तेरा यारहवां पु हो जाए।
वासना पांत रत हो, तो प ी मां बन सकती है।
वासना पांत रत हो, तो काम ेम बन सकता है।
ले कन काम ही ेम बनता है, काम क ऊजा ही ेम क ऊजा म िवकिसत होती है,
फिलत होती है। ले कन हमने मनु य को भर दया है काम के िवरोध म। इसका प रणाम
यह आ क ेम तो पैदा नह हो सका-- य क वह तो आगे का िवकास था, काम क
वीकृ ित से आता-- ेम तो िवकिसत नह आ और काम के िवरोध म खड़े होने के कारण
मनु य का िच यादा से यादा कामुक और से सुअल होता चला गया। हमारे सारे गीत,
हमारी सारी किवताएं, हमारे िच , हमारी प टं स, हमारे मं दर, हमारी मू तयां सब घूम-
फर कर से स के आस-पास क त हो ग । हमारा मन ही से स के आस-पास क त हो
गया। इस जगत म कोई भी पशु मनु य क भांित से सुअल नह है। मनु य चौबीस घंटे
से सुअल हो गया। उठते-बैठते, सोते-जागते से स ही सब कु छ हो गया। उसके ाण म एक
घाव हो गया--िवरोध के कारण, दु मनी के कारण, श ुता के कारण। जो जीवन का मूल
था, उससे मु तो आ नह जा सकता था, ले कन उससे लड़ने क चे ा म सारा जीवन
ण ज र हो सकता था, वह ण हो गया है।
और यह जो मनु य-जाित इतनी यादा कामुक दखाई पड़ रही है, इसके पीछे
तथाकिथत धम और सं कृ ित का बुिनयादी हाथ है। इसके पीछे बुरे लोग का नह , स न
और संत का हाथ है। और जब तक मनु य-जाित स न और संत के इस अनाचार से मु
नह होती, तब तक ेम के िवकास क कोई संभावना नह है।
मुझे एक घटना याद आती है। एक फक र अपने घर से िनकला था, कसी िम के पास
िमलने जा रहा था। िनकला है क घोड़े पर उसका चढ़ा आ एक बचपन का दो त घर
आकर सामने खड़ा हो गया है। उसने कहा क दो त, तुम घर पर को, वष से ती ा
करता था क तुम आओगे तो बैठगे और बात करगे, और दुभा य क मुझे कसी िम से
िमलने जाना है। म वचन दे चुका ं तो म वहां जाऊंगा। घंटे भर म ज दी से ज दी लौट
आऊंगा, तब तक तुम िव ाम करो।
उसके िम ने कहा क मुझे तो चैन नह है, अ छा होगा क म तु हारे साथ ही चला
चलूं। ले कन उसने कहा क मेरे कपड़े सब गंदे हो गए ह धूल से रा ते क । अगर तु हारे
पास कु छ अ छा कपड़ा हो तो मुझे दे दो, तो म डाल लूं और साथ हो जाऊं।
िनि त था उस फक र के पास। कसी स ाट ने उसे एक ब मू य कोट, एक पगड़ी और
धोती भट क थी। उसने स हाल कर रखी थी, कभी ज रत पड़ेगी तो पहनूंगा। वह ज रत
नह आई थी। िनकाल कर ले आया खुशी म।
िम ने जब पहन िलए, तब उसे थोड़ी ई या पैदा ई। िम ने पहन कर...तो िम स ाट
मालूम होने लगा। ब मू य कोट था, पगड़ी थी, धोती थी, शानदार जूते थे। और उसके
सामने वह फक र िबलकु ल ही नौकर-चाकर, दीन-हीन दखाई पड़ने लगा। उसने सोचा क
यह तो बड़ा मुि कल आ, यह तो बड़ा गलत आ। िजनके घर म ले जाऊंगा, यान इस पर
जाएगा, मुझ पर कसी का भी यान जाएगा नह । अपने ही कपड़े और आज अपने ही
कपड़ के कारण म दीन-हीन हो जाऊंगा।
ले कन बार-बार मन को समझाया क म फक र ,ं आ मा-परमा मा क बात करने
वाला। या रखा है कोट म, पगड़ी म, छोड़ो! पहने रहने दो, कतना फक पड़ता है! ले कन
िजतना समझाने क कोिशश क क कोट-पगड़ी म या रखा है, कोट-पगड़ी, कोट-पगड़ी
ही उसके मन म घूमने लगी।
िम दूसरी बात करने लगा। ले कन वह भीतर तो...ऊपर तो कु छ और दूसरी बात कर
रहा है, ले कन वहां उसका मन नह है। भीतर उसे बस कोट और पगड़ी! रा ते पर जो भी
आदमी देखता है, उसको कोई भी नह देखता, िम क तरफ सबक आंख जाती ह। वह
बड़ी मुि कल म पड़ गया क यह तो आज भूल कर ली--अपने हाथ से भूल कर ली। िजनके
घर जाना था, वहां प च ं ा। जाकर प रचय दया क मेरे िम ह जमाल, बचपन के दो त
ह, ब त यारे आदमी ह। और फर अचानक अनजाने मुंह से िनकल गया क रह गए कपड़े,
सो कपड़े मेरे ह। य क िम भी, िजनके घर गए थे, वे भी उसके कपड़ को देख रहे थे!
और भीतर उसके चल रहा था: कोट-पगड़ी। मेरी कोट-पगड़ी, और उ ह क वजह से म
परे शान हो रहा ।ं िनकल गया मुंह से क रह गए कपड़े, कपड़े मेरे ह!
िम भी हैरान आ, घर के लोग भी हैरान ए क यह या पागलपन क बात है।
खयाल उसको भी आया बोल जाने के बाद, तब पछताया क यह तो भूल हो गई। पछताया
तो और दबाया अपने मन को। बाहर िनकल कर मा मांगने लगा क मा कर दो, बड़ी
गलती हो गई। िम ने कहा, म तो हैरान आ क तुमसे िनकल कै से गया? उसने कहा क
कु छ नह , िसफ जबान क चूक हो गई। हालां क जबान क चूक कभी भी नह होती है।
भीतर कु छ चलता होता है, तो कभी-कभी बेमौके जबान से िनकल जाता है। चूक कभी नह
होती है। माफ कर दो, भूल हो गई। कै से यह खयाल आ गया, कु छ समझ म नह आता।
हालां क पूरी तरह समझ म आ रहा था क खयाल कै से आया है!
दूसरे िम के घर गए। अब वह तय करता रहा रा ते म क अब चाहे कु छ भी हो जाए,
यह नह कहना है क कपड़े मेरे ह, प ा कर लेना है अपने मन को। घर के ार पर उसने
जाकर िबलकु ल दृढ़ संक प कर िलया क यह बात नह उठानी है क कपड़े मेरे ह।
ले कन उस पागल को पता नह क िजतना वह दृढ़ संक प कर रहा है इस बात का, वह
दृढ़ संक प बता रहा है इस बात को क उतने ही जोर से उसके भीतर यह भावना घर कर
रही है क ये कपड़े मेरे ह। आिखर दृढ़ संक प कया य जाता है?
एक आदमी कहता है क म चय का दृढ़ त लेता !ं उसका मतलब है क उसके
भीतर कामुकता दृढ़ता से ध े मार रही है। नह तो और कारण या है? एक आदमी कहता
है क म कसम खाता ं क आज से कम खाना खाऊंगा! उसका मतलब यह है क कसम
खानी पड़ रही है, यादा खाने का मन है उसका। और तब अिनवाय पेण ं पैदा होता
है। िजससे हम लड़ना चाहते ह, वही हमारी कमजोरी है। और तब ं पैदा हो जाना
वाभािवक है।
वह लड़ता आ दरवाजे के भीतर गया, स हल-स हल कर बोला क मेरे िम ह। ले कन
जब वह बोल रहा है, तब उसको कोई नह देख रहा है, उसके िम को ही उस घर के लोग
देख रहे ह। तब फर उसे खयाल आया-- क मेरा कोट, मेरी पगड़ी। उसने कहा क दृढ़ता से
कसम खाई है, इसक बात नह उठानी है। मेरा या है कपड़ा-ल ा! कपड़े-ल े कसी के
होते ह! यह तो सब संसार है, यह तो सब माया है! ले कन यह सब समझा रहा है। ले कन
असिलयत तो बाहर से भीतर, भीतर से बाहर हो रही है। समझाया क मेरे िम ह,
बचपन के दो त ह, ब त यारे आदमी ह; रह गए कपड़े, कपड़े उ ह के ह, मेरे नह ह। पर
घर के लोग को खयाल आया क कपड़े उ ह के ह, मेरे नह ह--आज तक ऐसा प रचय
कभी देखा नह गया था।
बाहर िनकल कर मा मांगने लगा क बड़ी भूल ई जा रही है, म या क ं , या न
क ं , यह या हो गया है मुझे। आज तक मेरी जंदगी म कपड़ ने इस तरह से मुझे नह
पकड़ा था। कसी को नह पकड़ा है, ले कन अगर तरक ब उपयोग म कर तो कपड़े पकड़ ले
सकते ह। िम ने कहा, म जाता नह तु हारे साथ। पर वह हाथ जोड़ने लगा क नह , ऐसा
मत करो। जीवन भर के िलए दुख रह जाएगा क मने या दु वहार कया। अब म कसम
खाकर कहता ं क कपड़ क बात ही नह उठानी है, म िबलकु ल भगवान क कसम खाता
ं क कपड़ क बात नह उठानी है।
और कसम खाने वाल से हमेशा सावधान रहना ज री है; य क जो भी कसम खाता
है, उसके भीतर उस कसम से भी मजबूत कोई बैठा है, िजसके िखलाफ वह कसम खा रहा
है। और वह जो भीतर बैठा है वह यादा भीतर है, कसम ऊपर है और बाहर है। कसम
चेतन मन से खाई गई है। और जो भीतर बैठा है, वह अचेतन क परत तक समाया आ
है। अगर मन के दस िह से कर द, तो कसम एक िह से ने खाई है, नौ िह सा उलटा भीतर
खड़ा आ है। चय क कसम एक िह सा खा रहा है मन का और नौ िह सा परमा मा
क दुहाई दे रहा है, वह जो परमा मा ने बनाया है वह उसके िलए ही कहे चला जा रहा है।
गए तीसरे िम के घर। अब उसने िबलकु ल ही अपनी सांस तक पर संयम कर रखा है।
संयमी आदमी बड़े खतरनाक होते ह; य क उनके भीतर वालामुखी उबल रहा है, और
ऊपर से वे संयम साधे ए ह। और इस बात को मरण रखना क िजस चीज को साधना
पड़ता है--साधने म इतना म लग जाता है क साधना पूरे व हो नह सकती। फर
िशिथल होना पड़ेगा, िव ाम करना पड़ेगा। अगर म जोर से मु ी बांध लूं, तो कतनी देर
बांधे रख सकता ?ं चौबीस घंटे? िजतनी जोर से बांधूंगा, उतनी ही ज दी थक जाऊंगा
और मु ी खुल जाएगी।
िजस चीज म भी म करना पड़ता है, िजतना यादा म करना पड़ता है, उतनी ज दी
थकान आ जाती है, शि खतम हो जाती है और उलटा होना शु हो जाता है। मु ी बांधी
िजतनी जोर से, उतनी ही ज दी मु ी खुल जाएगी। मु ी खुली रखी जा सकती है चौबीस
घंटे, ले कन बांध कर नह रखी जा सकती है। िजस काम म म पड़ता है, उस काम को
आप जीवन नह बना सकते, कभी सहज नह हो सकता वह काम। म पड़ेगा, फर
िव ाम का व आएगा ही।
इसिलए िजतना सधा आ संत होता है उतना ही खतरनाक आदमी होता है; य क
उसका िव ाम का व आएगा, चौबीस घंटे म घंटे भर को उसे िशिथल होना पड़ेगा। उसी
बीच दुिनया भर के पाप उसके भीतर खड़े हो जाएंगे। नरक सामने आ जाएगा।
तो उसने िबलकु ल ही अपने को सांस-सांस रोक िलया और कहा क अब कसम खाता ं
क इन कपड़ क बात ही नह उठानी है।
ले कन आप सोच ल उसक हालत! अगर आप थोड़े-ब त भी धा मक आदमी ह गे, तो
आपको अपने अनुभव से भी पता चल सकता है क उसक या हालत ई होगी। अगर
आपने कसम खाई हो, त िलए ह , संक प साधे ह , तो आपको भलीभांित पता होगा क
भीतर या हालत हो जाती है।
भीतर गया। उसके माथे से पसीना चू रहा है। इतना म पड़ रहा है। िम डरा आ है
उसके पसीने को देख कर क वह उसक सब नस खंची ई ह। वह बोल रहा है एक-एक
श द-- क मेरे िम ह, बड़े पुराने दो त ह, ब त अ छे आदमी ह। और एक ण को वह
का। जैसे भीतर से कोई जोर का ध ा आया हो और सब बह गया, बाढ़ आ गई और सब
बह गया हो। और उसने कहा क रह गई कपड़ क बात, तो मने कसम खा ली है क कपड़
क बात ही नह करनी है।
यह जो इस आदमी के साथ आ, वह पूरी मनु य-जाित के साथ से स के संबंध म हो
गया है। से स को आ सेशन बना दया, से स को रोग बना दया, घाव बना दया और सब
िवषा कर दया। सब िवषा कर दया। छोटे-छोटे ब को समझाया जा रहा है क
से स पाप है। लड़ कय को समझाया जा रहा है, लड़क को समझाया जा रहा है क से स
पाप है। फर यह लड़क जवान होगी, यह लड़का जवान होगा; इनक शा दयां ह गी और
से स क दुिनया शु होगी। और इन दोन के भीतर यह भाव है क यह पाप है। और फर
कहा जाएगा ी को क पित को परमा मा मान। जो पाप म ले जा रहा है उसको
परमा मा कै से माना जा सकता है? यह कै से संभव है क जो पाप म घसीट रहा है वह
परमा मा हो? और उस लड़के को कहा जाएगा, उस युवक को कहा जाएगा क तेरी प ी
है, तेरी सािथनी है, तेरी संगी है। ले कन जो नरक म ले जा रही है! शा म िलखा है क
ी नरक का ार है। यह नरक का ार संगी और सािथनी? यह मेरा आधा अंग--यह नरक
क तरफ जाता आ आधा अंग मेरा यह--इसके साथ कौन सा सामंज य बन सकता है?
सारी दुिनया का दांप य जीवन न कया है इस िश ा ने। और जब दंपित का जीवन न
हो जाए तो ेम क कोई संभावना नह रही। य क जब पित और प ी ेम न कर सक
एक-दूसरे को, जो क अ यंत सहज और नैस गक ेम है, तो फर कौन और कसको ेम कर
सके गा? इस ेम को बढ़ाया जा सकता है क प ी और पित का ेम इतना िवकिसत हो,
इतना उदा हो, इतना ऊंचा बने क धीरे -धीरे बांध तोड़ दे और दूसर तक फै ल जाए। यह
हो सकता है। ले कन इसको समा ही कर दया जाए, तोड़ ही दया जाए, िवषा कर
दया जाए, तो फै लेगा या? बढ़ेगा या?
रामानुज एक गांव म ठहरे थे और एक आदमी ने आकर कहा क मुझे परमा मा को पाना
है। तो उ ह ने कहा क तूने कभी कसी को ेम कया है? उस आदमी ने कहा, इस झंझट म
म कभी पड़ा ही नह । ेम वगैरह क झंझट म नह पड़ा। मुझे तो परमा मा को खोजना है।
रामानुज ने कहा, तूने कभी झंझट ही नह क ेम क ?
उसने कहा, म िबलकु ल सच कहता ं आपसे।
और बेचारा ठीक ही कह रहा था। य क धम क दुिनया म ेम एक िडस-
ािल फके शन है, एक अयो यता है। तो उसने सोचा क अगर म क ं कसी को ेम कया
है, तो वे कहगे, अभी ेम- ेम छोड़, यह राग-वाग छोड़, पहले इन सबको छोड़ कर आ, तब
इधर आना। तो उस बेचारे ने कया भी हो तो वह कहता गया क मने नह कया है, नह
कया है। ऐसा कौन आदमी होगा िजसने थोड़ा-ब त ेम नह कया हो?
रामानुज ने तीसरी बार पूछा क तू कु छ तो बता, थोड़ा-ब त भी कभी भी कसी को?
उसने कहा, माफ क रए, आप य बार-बार वही बात पूछे चले जा रहे ह? मने ेम क
तरफ आंख उठा कर नह देखा। मुझे तो परमा मा को खोजना है।
तो रामानुज ने कहा, मुझे मा कर, तू कह और खोज। य क मेरा अनुभव यह है क
अगर तूने कसी को ेम कया हो तो उस ेम को फर इतना बड़ा ज र कया जा सकता
है क वह परमा मा तक प च ं जाए। ले कन अगर तूने ेम ही नह कया है तो तेरे पास
कु छ है ही नह िजसको बड़ा कया जा सके । बीज ही नह है तेरे पास जो वृ बन सके । तो
तू जा, कह और पूछ।
और जब पित और प ी म ेम न हो, िजस प ी ने अपने पित को ेम न कया हो और
िजस पित ने अपनी प ी को ेम न कया हो, वे बेट को, ब को ेम कर सकते ह, तो
आप
गलती म ह। प ी उसी मा ा म बेटे को ेम करे गी िजस मा ा म उसने अपने पित को
ेम कया है। य क यह बेटा पित का ही फल है; उसका ही ितफलन है, उसका ही
र ले शन है। यह इस बेटे के ित जो ेम होने वाला है, वह उतना ही होगा, िजतना
उसने पित को चाहा और ेम कया हो। यह पित क ही मू त है जो फर नई होकर वापस
लौट आई है। अगर पित के ित ेम नह है, तो बेटे के ित ेम स ा कभी भी नह हो
सकता। और अगर बेटे को ेम नह कया गया--पालना, पोसना और बड़ा कर देना ेम
नह है--तो बेटा मां को कै से ेम कर सकता है? बाप को कै से ेम कर सकता है?
वह जो यूिनट है जीवन का, प रवार, वह िवषा हो गया है--से स को दूिषत कहने से,
कं डेम करने से, नं दत करने से। और प रवार ही फै ल कर पूरा जगत है, पूरा िव है। और
फर हम कहते ह क ेम! ेम िबलकु ल दखाई नह पड़ता! ेम कै से दखाई पड़ेगा?
हालां क हर आदमी कहता है क म ेम करता ।ं मां कहती है, प ी कहती है, बाप कहता
है, भाई कहता है, बहन कहती है, िम कहते ह क हम ेम करते ह। सारी दुिनया म हर
आदमी कहता है क हम ेम करते ह। और दुिनया म इक ा देखो तो ेम कह दखाई ही
नह पड़ता! इतने लोग अगर ेम करते ह तो दुिनया म तो ेम क वषा हो जानी चािहए
थी; ेम के फू ल ही फू ल िखल जाने चािहए थे; ेम के दीये ही दीये जल जाते, घर-घर ेम
का दीया होता, तो दुिनया म इक ी इतनी रोशनी होती ेम क ।
ले कन वहां तो घृणा क रोशनी दखाई पड़ती है, ोध क रोशनी दखाई पड़ती है,
यु क रोशनी दखाई पड़ती है। ेम का तो कोई पता नह चलता। झूठी है यह बात!
और यह झूठ जब तक हम मानते चले जाएंगे तब तक स य क दशा म खोज भी नह हो
सकती। कोई कसी को ेम नह कर रहा है। और जब तक काम के िनसग को प रपूण
आ मा से वीकृ ित नह िमलती है, तब तक कोई कसी को ेम कर भी नह सकता है।
म आपसे कहना चाहता ं क काम द है, िडवाइन है। से स क शि परमा मा क
शि है, ई र क शि है। और इसीिलए तो उससे ऊजा पैदा होती है और नया जीवन
िवकिसत होता है। वही तो सबसे रह यपूण शि है, वही तो सबसे यादा िम टी रयस
फोस है। उससे दु मनी छोड़ द। अगर आप चाहते ह क कभी आपके जीवन म ेम क वषा
हो जाए, उससे दु मनी छोड़ द। उसे आनंद से वीकार कर। उसक पिव ता को वीकार
कर, उसक ध यता को वीकार कर। और खोज उसम और गहरे , और गहरे --तो आप हैरान
हो जाएंगे! िजतनी पिव ता से काम क वीकृ ित होगी, उतना ही काम पिव होता चला
जाता है; और िजतनी अपिव ता और पाप क दृि से काम से िवरोध होगा, काम उतना
ही पापपूण और कु प होता चला जाता है।
जब कोई अपनी प ी के पास ऐसे जाए जैसे कोई मं दर के पास जाता है, जब कोई प ी
अपने पित के पास ऐसे जाए जैसे सच म कोई परमा मा के पास जाता है। य क जब दो
ेमी काम से िनकट आते ह, जब वे संभोग से गुजरते ह, तब सच म ही वे परमा मा के
मं दर के िनकट से गुजर रहे ह। वह परमा मा काम कर रहा है, उनक उस िनकटता म।
वह परमा मा क सृजन शि काम कर रही है।
और मेरी अपनी दृि यह है क मनु य को समािध का, यान का जो पहला अनुभव
िमला हो कभी भी मनु य के इितहास म, तो वह संभोग के ण म िमला है और कभी नह ।
संभोग के ण म ही पहली बार यह मरण आया है आदमी को क इतने आनंद क वषा हो
सकती है। और िज ह ने सोचा, िज ह ने मेिडटेट कया, िजन लोग ने काम के संबंध पर
और मैथुन पर चंतन कया और यान कया, उ ह यह दखाई पड़ा क काम के ण म,
मैथुन के ण म, संभोग के ण म मन िवचार से शू य हो जाता है। एक ण को मन के
सारे िवचार क जाते ह। और वह िवचार का क जाना और वह मन का ठहर जाना ही
आनंद क वषा का कारण होता है।
तब उ ह सी े ट िमल गया, राज िमल गया क अगर मन को िवचार से मु कया जा
सके कसी और िविध से भी, तो भी इतना ही आनंद िमल सकता है। और तब समािध और
योग क सारी व थाएं िवकिसत , िजनम यान और सामाियक और मेिडटेशन और
ेयर, इनक सारी व थाएं िवकिसत । इन सबके मूल म संभोग का अनुभव है। और
फर मनु य को अनुभव आ क िबना संभोग म जाए भी िच शू य हो सकता है। और जो
रस क अनुभूित संभोग म ई थी, वह िबना संभोग के भी बरस सकती है। फर संभोग
िणक हो सकता है, य क शि और ऊजा का वह िनकास और बहाव है। ले कन यान
सतत हो सकता है। तो म आपसे कहना चाहता ं क एक युगल संभोग के ण म िजस
आनंद को अनुभव करता है, एक योगी चौबीस घंटे उस आनंद को अनुभव करने लगता है।
ले कन इन दोन आनंद म बुिनयादी िवरोध नह है। और इसिलए िज ह ने कहा क
िवषयानंद और ानंद भाई-भाई ह, उ ह ने ज र स य कहा है। वे सहोदर ह, एक ही
उदर से पैदा ए ह, एक ही अनुभव से िवकिसत ए ह। उ ह ने िनि त ही स य कहा है।
तो पहला सू आपसे कहना चाहता :ं अगर चाहते ह क पता चले क ेम-त व या है,
तो पहला सू है--काम क पिव ता, द ता, उसक ई रीय अनुभूित क वीकृ ित,
उसको परम दय से, पूण दय से अंगीकार। और आप हैरान हो जाएंगे, िजतने प रपूण
दय से काम क वीकृ ित होगी, उतने ही आप काम से मु होते चले जाएंगे। िजतना
अ वीकार होता है, उतने ही हम बंधते ह। जैसा वह फक र कपड़ से बंध गया। िजतना
वीकार होता है, उतने हम मु होते ह।
अगर प रपूण वीकार है, टोटल ए से टिबिलटी है जीवन का जो िनसग है उसक , तो
आप पाएंगे क वह प रपूण वीकृ ित को म आि तकता कहता ,ं वही आि तकता ि
को मु करती है।
नाि तक म उनको कहता ं जो जीवन के िनसग का अ वीकार करते ह, िनषेध करते ह--
यह बुरा है, यह पाप है, यह िवष है, यह छोड़ो, यह छोड़ो, यह छोड़ो। जो छोड़ने क बात
कर रहे ह, वे ही नाि तक ह।
जीवन जैसा है, उसे वीकार करो और जीओ उसक प रपूणता म। वही प रपूणता रोज-
रोज सी ढ़यां-सी ढ़यां ऊपर उठाती जाती है। वही वीकृ ित मनु य को ऊपर ले जाती है।
और एक दन उसके दशन होते ह, िजसका काम म पता भी नह चलता था। काम अगर
कोयला था तो एक दन हीरा भी कट होता है ेम का। तो पहला सू यह है।
दूसरा सू आपसे कहना चाहता ।ं और वह दूसरा सू भी सं कृ ित ने और आज तक क
स यता ने और धम ने हमारे भीतर मजबूत कया है। दूसरा सू भी मरणीय है। य क
पहला सू तो काम क ऊजा को ेम बना देगा और दूसरा सू ार क तरह रोके ए है
उस ऊजा को बहने से, वह बह नह पाएगी। वह दूसरा सू है मनु य का यह भाव क म ;ं
ईगो, उसका अहंकार, क म ।ं बुरे लोग तो कहते ही ह क म ।ं अ छे लोग और जोर से
कहते ह क म -ं -और मुझे वग जाना है, और मो जाना है, और मुझे यह करना है, और
मुझे वह करना है। ले कन म--वह म खड़ा आ है वहां भीतर।
और िजस आदमी का म िजतना मजबूत है, उतना ही उस आदमी क साम य दूसरे से
संयु हो जाने क कम हो जाती है। य क म एक दीवाल है, एक घोषणा है क म ।ं म
क घोषणा कह देती है: तुम तुम हो, म म ।ं दोन के बीच फासला है। फर म कतना ही
ेम क ं और आपको अपनी छाती से लगा लू,ं ले कन फर भी हम दो ह। छाितयां कतनी
ही िनकट आ जाएं, फर भी बीच म फासला है--म म ,ं तुम तुम हो। इसीिलए िनकटतम
अनुभव भी िनकट नह ला पाते। शरीर पास बैठ जाते ह, आदमी दूर-दूर बने रह जाते ह।
जब तक भीतर म बैठा आ है, तब तक दूसरे का भाव न नह होता।
सा ने कह एक अदभुत वचन कहा है। कहा है क द अदर इज़ हेल। वह जो दूसरा है,
वही नरक है। ले कन सा ने यह नह कहा क हाय द अदर इज़ अदर? वह दूसरा दूसरा
य है? वह दूसरा दूसरा इसिलए है क म म ।ं और जब तक म म ,ं तब तक दुिनया म
हर चीज दूसरी है, अ य है, िभ है। और जब तक िभ ता है, तब तक ेम का अनुभव नह
हो सकता।
ेम है एका म का अनुभव।
ेम है इस बात का अनुभव क िगर गई दीवाल और दो ऊजाएं िमल ग और संयु हो
ग ।
ेम है इस बात का अनुभव क एक ि और दूसरे ि क सारी दीवाल िगर ग
और ाण संयु ए, िमले और एक हो गए।
जब यही अनुभव एक ि और सम त के बीच फिलत होता है, तो उस अनुभव को म
कहता -ं -परमा मा। और जब दो ि य के बीच फिलत होता है, तो उसे म कहता -ं -
ेम।
अगर मेरे और कसी दूसरे ि के बीच यह अनुभव फिलत हो जाए क हमारी दीवाल
िगर जाएं, हम कसी भीतर के तल पर एक हो जाएं, एक संगीत, एक धारा, एक ाण, तो
यह अनुभव है ेम। और अगर ऐसा ही अनुभव मेरे और सम त के बीच घ टत हो जाए क
म िवलीन हो जाऊं और सब और म एक हो जाऊं, तो यह अनुभव है परमा मा।
इसिलए म कहता :ं ेम है सीढ़ी और परमा मा है उस या ा क अंितम मंिजल। यह
कै से संभव है क दूसरा िमट जाए? जब तक म न िमटूं तब तक दूसरा कै से िमट सकता है?
वह दूसरा पैदा कया है मेरे म क ित विन ने। िजतने जोर से म िच लाता ं क म, उतने
ही जोर से वह दूसरा पैदा हो जाता है। वह दूसरी ित विन है, उस तरफ इको हो रही है
मेरे म क । और यह अहंकार, यह ईगो ार पर दीवाल बन कर खड़ी है।
और म है या? कभी सोचा आपने क यह म है या? आपका हाथ है म? आपका पैर है?
आपका मि त क है? आपका दय है? या है आपका म?
अगर आप एक ण भी शांत होकर भीतर खोजने जाएंगे क कहां है म, कौन सी चीज है
म? तो आप एकदम हैरान रह जाएंगे--भीतर कोई म खोजे से िमलने को नह है। िजतना
गहरा खोजगे, उतना ही पाएंगे--भीतर एक स ाटा और शू य है, वहां कोई आई नह , वहां
कोई म नह , वहां कोई ईगो नह ।
एक िभ ु नागसेन को एक स ाट िम लंद ने िनमं ण दया था क तुम आओ दरबार म।
तो जो राजदूत गया था िनमं ण देन,े उसने नागसेन को कहा क िभ ु नागसेन, आपको
बुलाया है स ाट िम लंद ने। म िनमं ण देने आया ।ं तो वह नागसेन कहने लगा, म चलूंगा
ज र; ले कन एक बात िवनय कर दू,ं पहले ही कह दूं क िभ ु नागसेन जैसा कोई है नह ।
यह के वल एक नाम है, कामचलाऊ नाम है। आप कहते ह तो म चलूंगा ज र, ले कन ऐसा
कोई आदमी कह है नह ।
राजदूत ने जाकर स ाट को कह दया क बड़ा अजीब आदमी है वह। वह कहने लगा क
म चलूंगा ज र, ले कन यान रहे क िभ ु नागसेन जैसा कह कोई है नह , यह के वल एक
कामचलाऊ नाम है। स ाट ने कहा, अजीब सी बात है, जब वह कहता है, म चलूंगा।
आएगा वह!
वह आया भी रथ पर बैठ कर। स ाट ने ार पर वागत कया और कहा, िभ ु नागसेन,
हम वागत करते ह आपका। वह हंसने लगा। उसने कहा क वागत वीकार करता ,ं
ले कन मरण रहे, िभ ु नागसेन जैसा कोई है नह ।
स ाट कहने लगा, बड़ी पहेली क बात करते ह आप। अगर आप नह ह तो कौन है? कौन
आया है यहां? कौन वीकार कर रहा है वागत? कौन दे रहा है उ र?
नागसेन मुड़ा और उसने कहा क देखते ह, स ाट िम लंद, यह रथ खड़ा है िजस पर म
आया। स ाट ने कहा, हां, यह रथ है। तो िभ ु नागसेन पूछने लगा, घोड़ को िनकाल कर
अलग कर िलया जाए। घोड़े अलग कर िलए गए। और उसने पूछा स ाट से, ये घोड़े रथ ह?
स ाट ने कहा, घोड़े कै से रथ हो सकते ह? घोड़े अलग कर दए गए। सामने के डंडे िजनसे
घोड़े बंधे थे, खंचवा िलए गए। और उसने पूछा क ये रथ ह?
िसफ दो डंडे कै से रथ हो सकते ह? डंडे अलग कर दए गए। चाक िनकलवा िलए और
कहा, ये रथ ह?
स ाट ने कहा, ये चाक ह, ये रथ नह ह।
और एक-एक अंग रथ का िनकलता चला गया। और एक-एक अंग पर स ाट को कहना
पड़ा क नह , ये रथ नह ह। फर आिखर पीछे शू य बच गया, वहां कु छ भी न बचा। िभ ु
नागसेन पूछने लगा, रथ कहां है अब? रथ कहां है अब? और िजतनी चीज मने िनकाल ,
तुमने कहा, ये भी रथ नह ! ये भी रथ नह ! ये भी रथ नह ! अब रथ कहां है?
तो स ाट च क कर खड़ा रह गया--रथ पीछे बचा भी नह था और जो चीज िनकल गई
थ उनम कोई रथ था भी नह ।
तो वह िभ ु कहने लगा, समझे आप? रथ एक जोड़ था। रथ कु छ चीज का सं ह मा
था। रथ का अपना होना नह है कोई, ईगो नह है कोई। रथ एक जोड़ है।
आप खोज--कहां है आपका म? और आप पाएंगे क अनंत शि य के एक जोड़ ह; म
कह भी नह है। और एक-एक अंग आप सोचते चले जाएं तो एक-एक अंग समा होता
चला जाता है, फर पीछे शू य रह जाता है।
उसी शू य से ेम का ज म होता है, य क वह शू य आप नह ह, वह शू य परमा मा है।
एक गांव म एक आदमी ने मछिलय क एक दुकान खोली थी। बड़ी दुकान थी, उस गांव
म पहली दुकान थी। तो उसने एक ब त खूबसूरत त ती बनवाई और उस पर िलखाया--
े श फश सो ड िहयर--यहां ताजी मछिलयां बेची जाती ह।
पहले ही दन दुकान खुली और एक आदमी आया और कहने लगा, े श फश सो ड
िहयर? ताजी मछिलयां? कह बासी मछिलयां भी बेची जाती ह? ताजी िलखने क या
ज रत?
दुकानदार ने सोचा क बात तो ठीक है। इससे और थ बासे का भी खयाल पैदा होता
है। उसने े श अलग कर दया, ताजा अलग कर दया। त ती रह गई-- फश सो ड िहयर--
मछिलयां यहां बेची जाती ह।
दूसरे दन एक बूढ़ी औरत आई और उसने कहा क मछिलयां यहां बेची जाती ह--सो ड
िहयर? कह और कह भी बेचते हो?
उस आदमी ने कहा क यह िहयर िबलकु ल फजूल है। उसने त ती पर एक श द और
अलग कर दया, रह गया-- फश सो ड।
तीसरे दन एक आदमी आया और वह कहने लगा, फश सो ड? मछिलयां बेची जाती
ह? मु त भी देते हो या?
उस आदमी ने कहा, यह सो ड भी बेकार है। उस सो ड को भी अलग कर दया। अब रह
गई वहां त ती-- फश।
एक बु ा आया और कहने लगा, फश? अंधे को भी मील भर दूर से बास िमल जाती है।
यह त ती काहे के िलए लटकाई ई है यहां?
फश भी चली गई। खाली त ती रह गई वहां।
और एक आदमी आया और उसने कहा, यह त ती कसिलए लगाई है? इससे दुकान पर
आड़ पड़ती है।
वह त ती भी चली गई, वहां कु छ भी नह रह गया। इलीिमनेशन होता गया। एक-एक
चीज हटती चली गई। पीछे जो शेष रह गया--शू य।
उस शू य से ेम का ज म होता है, य क उस शू य म दूसरे के शू य से िमलने क मता
है। िसफ शू य ही शू य से िमल सकता है, और कोई नह । दो शू य िमल सकते ह, दो ि
नह । दो इं िडिवजुअल नह िमल सकते; दो वै यूम, दो एं टीनेस िमल सकते ह, य क
बाधा अब कोई भी नह है। शू य क कोई दीवाल नह होती, और हर चीज क दीवाल
होती है।
तो दूसरी बात मरणीय है: ि जब िमटता है, नह रह जाता; पाता है क ं ही नह ;
जो है वह म नह ,ं जो है वह सब है; तब ार िगरता है, दीवाल टू टती है। और तब वह
गंगा बहती है जो भीतर िछपी है और तैयार है। वह शू य क ती ा कर रही है क कोई
शू य हो जाए तो उससे बह उठूं ।
हम एक कु आं खोदते ह। पानी भीतर है; पानी कह से लाना नह होता। ले कन बीच म
िम ी-प थर पड़े ह, उनको िनकाल कर बाहर कर देते ह। करते या ह हम? करते ह हम--
एक शू य बनाते ह, एक खाली जगह बनाते ह, एक एं टीनेस बनाते ह। कु आं खोदने का
मतलब है खाली जगह बनाना। ता क खाली जगह म, जो भीतर िछपा आ पानी है, वह
कट होने के िलए जगह पा जाए, पेस पा जाए। वह भीतर है, उसको जगह चािहए कट
होने को। जगह नह िमल रही है; भरा आ है कु आं िम ी-प थर से। िम ी-प थर हमने
अलग कर दए, वह पानी उबल कर बाहर आ गया।
आदमी के भीतर ेम भरा आ है। पेस चािहए, जगह चािहए, जहां वह कट हो जाए।
और हम भरे ए ह अपने म से। हर आदमी िच लाए चला जा रहा है--म। और मरण
रख, जब तक आपक आ मा िच लाती है म, तब तक आप िम ी-प थर से भरे ए कु एं ह।
आपके कु एं म ेम के झरने नह फू टगे, नह फू ट सकते ह।
मने सुना है, एक ब त पुराना वृ था। आकाश म स ाट क तरह उसके हाथ फै ले ए
थे। उस पर फू ल आते थे तो दूर-दूर से प ी सुगंध लेने आते। उस पर फल लगते थे तो
िततिलयां उड़त । उसक छाया, उसके फै ले हाथ, हवा म उसका वह खड़ा प आकाश
म बड़ा सुंदर था। एक छोटा ब ा उसक छाया म रोज खेलने आता था। और उस बड़े वृ
को उस छोटे ब े से ेम हो गया। बड़ को छोट से ेम हो सकता है, अगर बड़ को पता न
हो क हम बड़े ह। वृ को कोई पता नह था क म बड़ा -ं -यह पता िसफ आदमी को
होता है--इसिलए उसका ेम हो गया।
अहंकार हमेशा अपने से बड़ को ेम करने क कोिशश करता है। अहंकार हमेशा अपने
से बड़ से संबंध जोड़ता है। ेम के िलए कोई बड़ा-छोटा नह । जो आ जाए, उसी से संबंध
जुड़ जाता है।
वह एक छोटा सा ब ा खेलता आता था उस वृ के पास; उस वृ का उससे ेम हो
गया। ले कन वृ क शाखाएं ऊपर थ , ब ा छोटा था, तो वृ अपनी शाखाएं उसके िलए
नीचे झुकाता, ता क वह फल तोड़ सके , फू ल तोड़ सके ।
ेम हमेशा झुकने को राजी है, अहंकार कभी भी झुकने को राजी नह है। अहंकार के पास
जाएंगे तो अहंकार के हाथ और ऊपर उठ जाएंगे, ता क आप उ ह छू न सक। य क िजसे
छू िलया जाए वह छोटा आदमी है; िजसे न छु आ जा सके , दूर संहासन पर द ली म हो,
वह आदमी बड़ा आदमी है।
वह वृ क शाखाएं नीचे झुक आत जब वह ब ा खेलता आ आता! और जब ब ा
उसके फू ल तोड़ लेता, तो वह वृ ब त खुश होता। उसके ाण आनंद से भर जाते।
ेम जब भी कु छ दे पाता है, तब खुश हो जाता है।
अहंकार जब भी कु छ ले पाता है, तभी खुश होता है।
फर वह ब ा बड़ा होने लगा। वह कभी उसक छाया म सोता, कभी उसके फल खाता,
कभी उसके फू ल का ताज बना कर पहनता और जंगल का स ाट हो जाता।
ेम के फू ल िजसके पास भी बरसते ह, वही स ाट हो जाता है। और जहां भी अहंकार
िघरता है, वह सब अंधकार हो जाता है, आदमी दीन और द र हो जाता है।
वह लड़का फू ल का ताज पहनता और नाचता, और वृ ब त खुश होता, उसके ाण
आनंद से भर जाते। हवाएं सनसनात और वह गीत गाता।
फर लड़का और बड़ा आ। वह वृ के ऊपर भी चढ़ने लगा, उसक शाखा से झूलने
भी लगा। वह उसक शाखा पर िव ाम भी करता, और वृ ब त आनं दत होता।
ेम आनं दत होता है, जब ेम कसी के िलए छाया बन जाता है।
अहंकार आनं दत होता है, जब कसी क छाया छीन लेता है।
ले कन लड़का बड़ा होता चला गया, दन बढ़ते चले गए। जब लड़का बड़ा हो गया तो
उसे और दूसरे काम भी दुिनया म आ गए, मह वाकां ाएं आ ग । उसे परी ाएं पास
करनी थ , उसे िम को जीतना था। वह फर कभी-कभी आता, कभी नह भी आता,
ले कन वृ उसक ती ा करता क वह आए, वह आए। उसके सारे ाण पुकारते क
आओ, आओ!
े िनरं तर ती ा करता है क आओ, आओ! ेम एक ती ा है, एक अवे टंग है।

ले कन वह कभी आता, कभी नह आता, तो वृ उदास हो जाता।
ेम क एक ही उदासी है--जब वह बांट नह पाता, तो उदास हो जाता है। जब वह दे
नह पाता, तो उदास हो जाता है। और ेम क एक ही ध यता है क जब वह बांट देता है,
लुटा देता है, तो वह आनं दत हो जाता है।
फर लड़का और बड़ा होता चला गया और वृ के पास आने के दन कम होते चले गए।
जो आदमी िजतना बड़ा होता चला जाता है मह वाकां ा के जगत म, ेम के िनकट आने
क सुिवधा उतनी ही कम होती चली जाती है। उस लड़के क एंबीशन, मह वाकां ा बढ़
रही थी। कहां वृ ! कहां जाना!
फर एक दन वहां से िनकलता था तो वृ ने उसे कहा, सुनो! हवा म उसक आवाज
गूंजी क सुनो, तुम आते नह , म ती ा करता !ं म तु हारे िलए ती ा करता ,ं राह
देखता ,ं बाट जोहता !ं
उस लड़के ने कहा, या है तु हारे पास जो म आऊं? मुझे पये चािहए!
हमेशा अहंकार पूछता है क या है तु हारे पास जो म आऊं? अहंकार मांगता है क कु छ
हो तो म आऊं। न कु छ हो तो आने क कोई ज रत नह । अहंकार एक योजन है, एक
परपज़ है। योजन पूरा होता हो तो म आऊं! अगर कोई योजन न हो तो आने क ज रत
या है!
और ेम िन योजन है। ेम का कोई योजन नह । ेम अपने म ही अपना योजन है,
वह िबलकु ल परपज़लेस है।
वृ तो च क गया। उसने कहा क तुम तभी आओगे जब म कु छ तु ह दे सकूं ? म तु ह सब
दे सकता ।ं य क ेम कु छ भी रोकना नह चाहता। जो रोक ले वह ेम नह है। अहंकार
रोकता है। ेम तो बेशत दे देता है। ले कन पये मेरे पास नह ह। ये पये तो िसफ आदमी
क ईजाद है, वृ ने यह बीमारी नह पाली है।
उस वृ ने कहा, इसीिलए तो हम इतने आनं दत होते ह, इतने फू ल िखलते ह, इतने फल
लगते ह, इतनी बड़ी छाया होती है; हम इतना नाचते ह आकाश म, हम इतने गीत गाते ह;
प ी हम पर आते ह और संगीत का कलरव करते ह; य क हमारे पास पये नह ह।
िजस दन हमारे पास भी पये हो जाएंगे, हम भी आदमी जैसे दीन-हीन मं दर म बैठ कर
सुनगे क शांित कै से पाई जाए, ेम कै से पाया जाए। नह -नह , हमारे पास पये नह ह।
तो उसने कहा, फर म या आऊं तु हारे पास! जहां पये ह, मुझे वहां जाना पड़ेगा। मुझे
पय क ज रत है।
अहंकार पया मांगता है, य क पया शि है। अहंकार शि मांगता है।
उस वृ ने ब त सोचा, फर उसे खयाल आया--तो तुम एक काम करो, मेरे सारे फल
को तोड़ कर ले जाओ और बेच दो तो शायद पये िमल जाएं।
और उस लड़के को भी खयाल आया। वह चढ़ा और उसने सारे फल तोड़ डाले। क े भी
िगरा डाले। शाखाएं भी टू ट , प े भी टू टे। ले कन वृ ब त खुश आ, ब त आनं दत आ।
टू ट कर भी ेम आनं दत होता है।
अहंकार पाकर भी आनं दत नह होता, पाकर भी दुखी होता है।
और उस लड़के ने तो ध यवाद भी नह दया पीछे लौट कर।
ले कन उस वृ को पता भी नह चला। उसे तो ध यवाद िमल गया इसी म क उसने
उसके ेम को वीकार कया और उसके फल को ले गया और बाजार म बेचा।
ले कन फर वह ब त दन तक नह आया। उसके पास पये थे और पय से पये पैदा
करने क वह कोिशश म लग गया था। वह भूल गया। वष बीत गए। और वृ उदास है और
उसके ाण म रस बह रहा है क वह आए उसका ेमी और उसके रस को ले जाए। जैसे
कसी मां के तन म दूध भरा हो और उसका बेटा खो गया हो, और उसके सारे ाण तड़प
रहे ह क उसका बेटा कहां है िजसे वह खोजे, जो उसे हलका कर दे, िनभार कर दे। ऐसे
उस वृ के ाण पीिड़त होने लगे क वह आए, आए, आए! उसक सारी आवाज यही
गूंजने लगी क आओ!
ब त दन के बाद वह आया। अब वह लड़का तो ौढ़ हो गया था। वृ ने उससे कहा क
आओ मेरे पास! मेरे आ लंगन म आओ!
उसने कहा, छोड़ो यह बकवास। ये बचपन क बात ह।
अहंकार ेम को पागलपन समझता है, बचपन क बात समझता है।
उस वृ ने कहा, आओ, मेरी डािलय से झूलो! नाचो!
उसने कहा, छोड़ो ये फजूल क बात। मुझे एक मकान बनाना है। मकान दे सकते हो
तुम?
वृ ने कहा, मकान? हम तो िबना मकान के ही रहते ह। मकान म तो िसफ आदमी रहता
है। दुिनया म और कोई मकान म नह रहता, िसफ आदमी रहता है। सो देखते हो आदमी
क हालत--मकान म रहने वाले आदमी क हालत? उसके मकान िजतने बड़े होते जाते ह,
आदमी उतना छोटा होता चला जाता है। हम तो िबना मकान के रहते ह। ले कन एक बात
हो सकती है क तुम मेरी शाखा को काट कर ले जाओ तो शायद तुम मकान बना लो।
और वह ौढ़ कु हाड़ी लेकर आ गया और उसने उस वृ क शाखाएं काट डाल ! वृ
एक ठूं ठ रह गया, नंगा। ले कन वृ ब त आनं दत था।
ेम सदा आनं दत है, चाहे उसके अंग भी कट जाएं। ले कन कोई ले जाए, कोई ले जाए,
कोई बांट ले, कोई सि मिलत हो जाए, साझीदार हो जाए।
और उस लड़के ने तो पीछे लौट कर भी नह देखा! उसने मकान बना िलया।
और व गुजरता गया। वह ठूं ठ राह देखता, वह िच लाना चाहता, ले कन अब उसके
पास प े भी नह थे, शाखाएं भी नह थ । हवाएं आत और वह बोल भी न पाता, बुला
भी न पाता। ले कन उसके ाण म तो एक ही गूंज थी-- क आओ! आओ!
और ब त दन बीत गए। तब वह बूढ़ा आदमी हो गया था वह ब ा। वह िनकल रहा था
पास से। वृ के पास आकर खड़ा हो गया। तो वृ ने पूछा-- या कर सकता ं और म
तु हारे िलए? तुम ब त दन बाद आए!
उसने कहा, तुम या कर सकोगे? मुझे दूर देश जाना है धन कमाने के िलए। मुझे एक
नाव क ज रत है!
तो उसने कहा, तुम मुझे और काट लो तो मेरी इस प ड़ से नाव बन जाएगी। और म ब त
ध य होऊंगा क म तु हारी नाव बन सकूं और तु ह दूर देश ले जा सकूं । ले कन तुम ज दी
लौट आना और सकु शल लौट आना। म तु हारी ती ा क ं गा।
और उसने आरे से उस वृ को काट डाला। तब वह एक छोटा सा ठूं ठ रह गया। और वह
दूर या ा पर िनकल गया। और वह ठूं ठ भी ती ा करता रहा क वह आए, आए। ले कन
अब उसके पास कु छ भी नह है देने को। शायद वह नह आएगा, य क अहंकार वह
आता है जहां कु छ पाने को है, अहंकार वहां नह जाता जहां कु छ पाने को नह है।
म उस ठूं ठ के पास एक रात मेहमान आ था, तो वह ठूं ठ मुझसे बोला क वह मेरा िम
अब तक नह आया! और मुझे बड़ी पीड़ा होती है क कह नाव डू ब न गई हो, कह वह
भटक न गया हो, कह कसी दूर कनारे पर िवदेश म कह भूल न गया हो, कह वह डू ब न
गया हो, कह वह समा न हो गया हो! एक खबर भर कोई मुझे ला दे--अब म मरने के
करीब -ं -एक खबर भर आ जाए क वह सकु शल है, फर कोई बात नह ! फर सब ठीक
है! अब तो मेरे पास देने को कु छ भी नह है, इसिलए बुलाऊं भी तो शायद वह नह
आएगा, य क वह लेने क ही भाषा समझता है।
अहंकार लेने क भाषा समझता है।
ेम देने क भाषा है।
इससे यादा और कु छ म नह क ग ं ा।
जीवन एक ऐसा वृ बन जाए और उस वृ क शाखाएं अनंत तक फै ल जाएं, सब
उसक छाया म ह और सब तक उसक बांह फै ल जाएं, तो पता चल सकता है क ेम या
है।
ेम का कोई शा नह है, न कोई प रभाषा है, न ेम का कोई िस ांत है।
तो म ब त हैरानी म था क या क ग ं ा आपसे क ेम या है। वह तो बताना मुि कल
है। आकर बैठ सकता -ं -अगर मेरी आंख म दखाई पड़ जाए तो दखाई पड़ सकता है,
अगर मेरे हाथ म दखाई पड़ जाए तो दखाई पड़ सकता है। म कह सकता -ं -यह है ेम।
ले कन ेम या है, अगर मेरी आंख म न दखाई पड़े, मेरे हाथ म न दखाई पड़े, तो
श द से िबलकु ल भी दखाई नह पड़ सकता है क ेम या है!

मेरी बात को इतने म े और शांित से सुना, उससे ब त-ब त अनुगृहीत ।ं और अंत म


सबके भीतर बैठे परमा मा को णाम करता ।ं मेरे णाम वीकार कर।
#2
संभोग : अहं-शू यता क झलक
मेरे ि य आ मन्!
एक सुबह, अभी सूरज भी िनकला नह था और एक मांझी नदी के कनारे प च ं गया
था। उसका पैर कसी चीज से टकरा गया। झुक कर उसने देखा, प थर से भरा आ एक
झोला पड़ा था। उसने अपना जाल कनारे पर रख दया, वह सुबह सूरज के उगने क
ती ा करने लगा। सूरज उग आए, वह अपना जाल फके और मछिलयां पकड़े। वह जो
झोला उसे पड़ा आ िमल गया था, िजसम प थर थे, वह एक-एक प थर िनकाल कर शांत
नदी म फकने लगा। सुबह के स ाटे म उन प थर के िगरने क छपाक क आवाज सुनता,
फर दूसरा प थर फकता।
धीरे -धीरे सुबह का सूरज िनकला, रोशनी ई। तब तक उसने झोले के सारे प थर फक
दए थे, िसफ एक प थर उसके हाथ म रह गया था। सूरज क रोशनी म देखते से ही जैसे
उसके दय क धड़कन बंद हो गई, सांस क गई। उसने िज ह प थर समझ कर फक दया
था, वे हीरे -जवाहरात थे! ले कन अब तो अंितम हाथ म बचा था टु कड़ा और वह पूरे झोले
को फक चुका था। वह रोने लगा, िच लाने लगा। इतनी संपदा उसे िमल गई थी क अनंत
ज म के िलए काफ थी, ले कन अंधेरे म, अनजान, अप रिचत, उसने उस सारी संपदा को
प थर समझ कर फक दया था।
ले कन फर भी वह मछु आ सौभा यशाली था, य क अंितम प थर फकने के पहले सूरज
िनकल आया था और उसे दखाई पड़ गया था क उसके हाथ म हीरा है। साधारणतः सभी
लोग इतने सौभा यशाली नह होते ह। जंदगी बीत जाती है, सूरज नह िनकलता, सुबह
नह होती, रोशनी नह आती और सारे जीवन के हीरे हम प थर समझ कर फक चुके होते
ह।
जीवन एक बड़ी संपदा है, ले कन आदमी िसवाय उसे फकने और गंवाने के कु छ भी नह
करता है! जीवन या है, यह भी पता नह चल पाता और हम उसे फक देते ह! जीवन म
या िछपा था--कौन से राज, कौन सा रह य, कौन सा वग, कौन सा आनंद, कौन सी
मुि --उस सबका कोई भी अनुभव नह हो पाता और जीवन हमारे हाथ से र हो जाता
है!
इन आने वाले तीन दन म जीवन क संपदा पर ये थोड़ी सी बात मुझे कहनी ह। ले कन
जो लोग जीवन क संपदा को प थर मान कर बैठ गए ह, वे कभी आंख खोल कर देख
पाएंगे क िज ह उ ह ने प थर समझा है वे हीरे -मािणक ह, यह ब त क ठन है। और िजन
लोग ने जीवन को प थर मान कर फकने म ही समय गंवा दया है, अगर आज उनसे कोई
कहने जाए क िज ह तुम प थर समझ कर फक रहे थे वहां हीरे -मोती भी थे, तो वे नाराज
ह गे, ोध से भर जाएंगे। इसिलए नह क जो बात कही गई वह गलत है, बि क इसिलए
क यह बात इस बात का मरण दलाती है क उ ह ने ब त सी संपदा फक दी है।
ले कन चाहे हमने कतनी ही संपदा फक दी हो, अगर एक ण भी जीवन का शेष है तो
फर भी हम कु छ बचा सकते ह और कु छ जान सकते ह और कु छ पा सकते ह। जीवन क
खोज म कभी भी इतनी देर नह होती क कोई आदमी िनराश होने का कारण पाए।
ले कन हमने यह मान ही िलया है--अंधेरे म, अ ान म-- क जीवन म कु छ भी नह है
िसवाय प थर के ! जो लोग ऐसा मान कर बैठ गए ह, उ ह ने खोज के पहले ही हार
वीकार कर ली है।
म इस हार के संबंध म, इस िनराशा के संबंध म, इस मान ली गई पराजय के संबंध म
सबसे पहली चेतावनी यह देना चाहता ं क जीवन िम ी और प थर नह है। जीवन म
ब त कु छ है। जीवन के िम ी-प थर के बीच भी ब त कु छ िछपा है। अगर खोजने वाली
आंख ह , तो जीवन से वह सीढ़ी भी िनकलती है जो परमा मा तक प च ं ती है।
इस शरीर म भी--जो देखने पर ह ी, मांस और चमड़ी से यादा नह है--वह िछपा है
िजसका ह ी, मांस और चमड़ी से कोई भी संबंध नह है। इस साधारण सी देह म भी--जो
आज ज मती है, कल मर जाती है और िम ी हो जाती है--उसका वास है जो अमृत है, जो
कभी ज मता नह और कभी समा भी नह होता है। प के भीतर अ प िछपा है; और
दृ य के भीतर अदृ य का वास है; और मृ यु के कु हासे म अमृत क योित िछपी ई है।
मृ यु के धुएं म अमृत क लौ भी िछपी ई है, वह लेम, वह योित भी िछपी ई है,
िजसक कोई मृ यु नह है।
ले कन हम धुएं को देख कर ही वापस लौट आते ह और योित को नह खोज पाते ह। या
जो लोग थोड़ी िह मत करते ह, वे धुएं म ही खो जाते ह और योित तक नह प च ं पाते
ह। यह या ा कै से हो सकती है क हम धुएं के भीतर िछपी ई योित को जान सक, शरीर
के भीतर िछपी ई आ मा को पहचान सक, कृ ित के भीतर िछपे ए परमा मा के दशन
कर सक? यह कै से हो सकता है? उस संबंध म ही तीन चरण म मुझे बात करनी है।
पहली बात, हमने जीवन के संबंध म ऐसे दृि कोण बना िलए ह, हमने जीवन के संबंध म
ऐसी धारणाएं बना ली ह, हमने जीवन के संबंध म ऐसा फलसफा खड़ा कर रखा है क उस
दृि कोण और धारणा के कारण ही जीवन के स य को देखने से हम वंिचत रह जाते ह।
हमने मान ही िलया है क जीवन या है--िबना खोजे, िबना पहचाने, िबना िज ासा कए।
हमने जीवन के संबंध म कोई िनि त बात ही समझ रखी है।
हजार वष से हम एक ही बात मं क तरह पढ़ाई जा रही है क जीवन असार है,
जीवन थ है, जीवन दुख है। स मोहन क तरह हमारे ाण पर यह मं दोहराया गया है
क जीवन थ है, जीवन असार है, जीवन दुख है, जीवन छोड़ देने यो य है। यह बात,
सुन-सुन कर धीरे -धीरे हमारे ाण म प थर क तरह मजबूत होकर बैठ गई है। इस बात
के कारण जीवन असार दखाई पड़ने लगा है, जीवन दुख दखाई पड़ने लगा है। इस बात के
कारण जीवन ने सारा आनंद, सारा ेम, सारा स दय खो दया है। मनु य एक कु पता बन
गया है। मनु य एक दुख का अ ा बन गया है।
और जब हमने यह मान ही िलया है क जीवन थ है, असार है, तो उसे साथक बनाने
क सारी चे ा भी बंद हो गई हो तो आ य नह है। अगर हमने यह मान ही िलया है क
जीवन एक कु पता है, तो उसके भीतर स दय क खोज कै से हो सकती है? और अगर हमने
यह मान ही िलया है क जीवन िसफ छोड़ देने यो य है, तो िजसे छोड़ ही देना है, उसे
सजाना, उसे खोजना, उसे िनखारना, इसक कोई भी ज रत नह है।
हम जीवन के साथ वैसा वहार कर रहे ह, जैसा कोई आदमी टेशन पर िव ामालय के
साथ वहार करता है, वे टंग म के साथ वहार करता है। वह जानता है क ण भर
हम इस वे टंग म म ठहरे ए ह, ण भर बाद छोड़ देना है, इस वे टंग म से योजन
या है? अथ या है? वह वहां मूंगफली के िछलके भी डालता है, पान भी थूक देता है, गंदा
भी करता है और फर भी सोचता है, मुझे या योजन है? ण भर बाद मुझे चले जाना
है।
जीवन के संबंध म भी हम इसी तरह का वहार कर रहे ह। जहां से हम ण भर बाद
चले जाना है, वहां सुंदर और स य क खोज और िनमाण करने क ज रत या है?
ले कन म आपसे कहना चाहता ,ं जंदगी ज र हम छोड़ कर चले जाना है, ले कन जो
असली जंदगी है, उसे हम कभी भी छोड़ने का कोई उपाय नह है। हम यह घर छोड़ दगे,
यह थान छोड़ दगे; ले कन जो जंदगी का स य है, वह सदा हमारे साथ होगा, वह हम
वयं ह। थान बदल जाएंगे, मकान बदल जाएंगे, ले कन जंदगी? जंदगी हमारे साथ
होगी। उसके बदलने का कोई उपाय नह ।
और सवाल यह नह है क जहां हम ठहरे थे उसे हमने सुंदर कया था, जहां हम के थे
वहां हमने ीितकर हवा पैदा क थी, जहां हम दो ण को ठहरे थे वहां हमने आनंद का
गीत गाया था। सवाल यह नह है क वहां आनंद का गीत हमने गाया था। सवाल यह है
क िजसने आनंद का गीत गाया था, उसने भीतर आनंद क और बड़ी संभावना के ार
खोल िलए; िजसने उस मकान को सुंदर बनाया था, उसने और बड़े स दय को पाने क
मता उपल ध कर ली है; िजसने दो ण उस वे टंग म म भी ेम के िबताए थे, उसने
और बड़े ेम को पाने क पा ता अ जत कर ली है।
हम जो करते ह, उसी से हम िन मत होते ह। हमारा कृ य अंततः हम िन मत करता है,
हम बनाता है। हम जो करते ह, वही धीरे -धीरे हमारे ाण और हमारी आ मा का िनमाता
हो जाता है। जीवन के साथ हम या कर रहे ह, इस पर िनभर करे गा क हम कै से िन मत
हो रहे ह। जीवन के साथ हमारा या वहार है, इस पर िनभर होगा क हमारी आ मा
कन दशा म या ा करे गी, कन माग पर जाएगी, कन नये जगत क खोज करे गी।
जीवन के साथ हमारा वहार हम िन मत करता है--यह अगर मरण हो, तो शायद
जीवन को असार, थ मानने क दृि हम ांत मालूम पड़े, तो शायद हम जीवन को
दुखपूण मानने क बात गलत मालूम पड़े, तो शायद हम जीवन से िवरोधी ख अधा मक
मालूम पड़े।
ले कन अब तक धम के नाम पर जीवन का िवरोध ही िसखाया गया है। सच तो यह है क
अब तक का सारा धम मृ युवादी है, जीवनवादी नह । उसक दृि म, मृ यु के बाद जो है
वही मह वपूण है, मृ यु के पहले जो है वह मह वपूण नह है! अब तक के धम क दृि म
मृ यु क पूजा है, जीवन का स मान नह ! जीवन के फू ल का आदर नह , मृ यु के कु हला
गए, जा चुके, िमट गए फू ल क क क शंसा और ा है! अब तक का सारा धम
चंतन करता है क मृ यु के बाद या है-- वग, मो ! मृ यु के पहले या है, उससे आज तक
के धम को जैसे कोई संबंध नह रहा।
और म आपसे कहना चाहता :ं मृ यु के पहले जो है, अगर हम उसे ही स हालने म
असमथ ह, तो मृ यु के बाद जो है उसे हम स हालने म कभी भी समथ नह हो सकते। मृ यु
के पहले जो है, अगर वही थ छू ट जाता है, तो मृ यु के बाद कभी भी साथकता क कोई
गुंजाइश, कोई पा ता हम अपने म पैदा नह कर सकगे। मृ यु क तैयारी भी, इस जीवन म
जो आज पास है, मौजूद है, उसके ारा करनी है। मृ यु के बाद भी अगर कोई लोक है, तो
उस लोक म हम उसी का दशन होगा, जो हमने जीवन म अनुभव कया है और िन मत
कया है। ले कन जीवन को भुला देने क , जीवन को िव मरण कर देने क बात ही अब तक
कही गई है।
म आपसे कहना चाहता :ं जीवन के अित र न कोई परमा मा है, न हो सकता है।
म आपसे यह भी कहना चाहता :ं जीवन को साध लेना ही धम क साधना है और
जीवन म ही परम स य को अनुभव कर लेना मो को उपल ध कर लेने क पहली सीढ़ी है।
जो जीवन को ही चूक जाता है, वह और सब भी चूक जाएगा, यह िनि त है।
ले कन अब तक का ख उलटा रहा है। वह ख कहता है, जीवन को छोड़ो। वह ख
कहता है, जीवन को यागो। वह यह नह कहता क जीवन म खोजो। वह यह नह कहता
क जीवन को जीने क कला सीखो। वह यह भी नह कहता क जीवन को जीने के ढंग पर
िनभर करता है क जीवन कै सा मालूम पड़ेगा। अगर जीवन अंधकारपूण मालूम पड़ता है,
तो वह जीने का गलत ढंग है। यही जीवन आनंद क वषा भी बन सकता है, अगर जीने का
सही ढंग उपल ध हो जाए।
धम को म जीने क कला कहता ।ं वह आट ऑफ िल वंग है।
धम जीवन का याग नह , जीवन क गहराइय म उतरने क सी ढ़यां है।
धम जीवन क तरफ पीठ कर लेना नह , जीवन क तरफ पूरी तरह आंख खोलना है।
धम जीवन से भागना नह , जीवन को पूरा आ लंगन म लेने का नाम है।
धम है जीवन का पूरा सा ा कार।
यही शायद कारण है क आज तक के धम म िसफ बूढ़े लोग ही उ सुक रहे ह। मं दर म
जाएं, चच म, िगरजाघर म, गु ार म--और वहां वृ लोग दखाई पड़गे। वहां युवा
दखाई नह पड़ते, वहां छोटे ब े दखाई नह पड़ते। या कारण है? एक ही कारण है। अब
तक का हमारा धम िसफ बूढ़े का धम है। उन लोग का धम है, िजनक मौत करीब आ गई,
और अब जो मौत से भयभीत हो गए ह और मौत के बाद के चंतन के संबंध म आतुर ह
और जानना चाहते ह क मौत के बाद या है।
जो धम मौत पर आधा रत है, वह धम पूरे जीवन को कै से भािवत कर सके गा? जो धम
मौत का चंतन करता है, वह पृ वी को धा मक कै से बना सके गा? वह नह बना सका।
पांच हजार वष क धा मक िश ा के बाद भी पृ वी रोज अधा मक से अधा मक होती
चली गई है। मं दर ह, मि जद ह, चच ह, पुजारी ह, पुरोिहत ह, सं यासी ह, ले कन पृ वी
धा मक नह हो सक है और नह हो सके गी, य क धम का आधार ही गलत है। धम का
आधार जीवन नह है, धम का आधार मृ यु है। धम का आधार िखलते ए फू ल नह ह, क
ह। िजस धम का आधार मृ यु है, वह धम अगर जीवन के ाण को पं दत न कर पाता हो
तो आ य या है? िज मेवारी कसक है?
म इन तीन दन म जीवन के धम के संबंध म ही बात करना चाहता ं और इसिलए
पहला सू समझ लेना ज री है। और इस सू के संबंध म आज तक िछपाने क , दबाने क ,
भूल जाने क सारी चे ा क गई है; ले कन जानने और खोजने क नह ! और उस भूलने
और िव मृत कर देने क चे ा के दु प रणाम सारे जगत म ा हो गए ह।
मनु य के सामा य जीवन म क ीय त व या है--परमा मा? आ मा? स य?
नह ! मनु य के ाण म, सामा य मनु य के ाण म, िजसने कोई खोज नह क , िजसने
कोई या ा नह क , िजसने कोई साधना नह क , उसके ाण क गहराई म या है--
ाथना? पूजा?
नह , िबलकु ल नह ! अगर हम सामा य मनु य क जीवन-ऊजा म खोज कर, उसक
जीवन-शि को हम खोजने जाएं, तो न तो वहां परमा मा दखाई पड़ेगा, न पूजा, न
ाथना, न यान। वहां कु छ और ही दखाई पड़ेगा। और जो दखाई पड़ेगा, उसे भुलाने क
चे ा क गई है, उसे जानने और समझने क नह !
वहां या दखाई पड़ेगा अगर हम आदमी के ाण को चीर और फाड़ और वहां खोज?
आदमी को छोड़ द, अगर आदमी से इतर जगत क भी हम खोज-बीन कर, तो वहां ाण
क गहराइय म या िमलेगा? अगर हम एक पौधे क जांच-बीन कर, तो या िमलेगा?
एक पौधा या कर रहा है?
एक पौधा पूरी चे ा कर रहा है नये बीज उ प करने क । एक पौधे के सारे ाण, सारा
रस, नये बीज इक े करने, ज मने क चे ा कर रहा है।
एक प ी या कर रहा है? एक पशु या कर रहा है?
अगर हम सारी कृ ित म खोजने जाएं तो हम पाएंगे: सारी कृ ित म एक ही, एक ही
या जोर से ाण को घेर कर चल रही है और वह या है सतत सृजन क या। वह
या है एशन क या। वह या है जीवन को पुन ीिवत, नये-नये प म जीवन
देने क या। फू ल बीज को स हाल रहे ह, फल बीज को स हाल रहे ह। बीज या करे गा?
बीज फर पौधा बनेगा, फर फू ल बनेगा, फर फल बनेगा। अगर हम सारे जीवन को देख,
तो जीवन ज मने क एक अनंत या का नाम है। जीवन एक ऊजा है, जो वयं को पैदा
करने के िलए सतत संल है और सतत चे ाशील है।
आदमी के भीतर भी वही है। आदमी के भीतर उस सतत सृजन क चे ा का नाम हमने
से स दे रखा है, काम दे रखा है। इस नाम के कारण उस ऊजा को एक गाली िमल गई, एक
अपमान। इस नाम के कारण एक नंदा का भाव पैदा हो गया है। मनु य के भीतर भी
जीवन को ज म देने क सतत चे ा चल रही है। हम उसे से स कहते ह, हम उसे काम क
शि कहते ह।
ले कन काम क शि या है?
समु क लहर आकर टकरा रही ह समु के तट से हजार -लाख वष से। लहर चली
आती ह, टकराती ह, लौट जाती ह। फर आती ह, टकराती ह, लौट जाती ह। जीवन भी
हजार वष से अनंत-अनंत लहर म टकरा रहा है। ज र जीवन कह उठना चाहता है। ये
समु क लहर, जीवन क ये लहर कह ऊपर प च ं ना चाहती ह; ले कन कनार से
टकराती ह और न हो जाती ह। फर नई लहर आती ह, टकराती ह और न हो जाती ह।
यह जीवन का सागर इतने अरब वष से टकरा रहा है, संघष ले रहा है, रोज उठता है,
िगर जाता है। या होगा योजन इसके पीछे? ज र इसके पीछे कोई वृह र ऊंचाइयां छू ने
का आयोजन चल रहा है। ज र इसके पीछे कु छ और गहराइयां जानने का योजन चल
रहा है। ज र जीवन क सतत या के पीछे कु छ और महानतर जीवन पैदा करने का
यास चल रहा है।
मनु य को जमीन पर आए ब त दन नह ए, कु छ लाख वष ए। उसके पहले मनु य
नह था, ले कन पशु थे। पशु को आए ए भी ब त यादा समय नह आ। एक जमाना
था क पशु भी नह थे, ले कन पौधे थे। पौध को आए भी ब त समय नह आ। एक समय
था क पौधे भी नह थे, प थर थे, पहाड़ थे, न दयां थ , सागर था।
प थर, पहाड़, न दय क वह जो दुिनया थी, वह कस बात के िलए पीिड़त थी?
वह पौध को पैदा करना चाहती थी। पौधे धीरे -धीरे पैदा ए। जीवन ने एक नया प
िलया। पृ वी ह रयाली से भर गई। फू ल िखले।
ले कन पौधे भी अपने म तृ नह थे। वे सतत जीवन को ज म देते रहे। उनक भी कोई
चे ा चल रही थी। वे पशु को, पि य को ज म देना चाहते थे।
पशु-प ी पैदा ए। हजार -लाख वष तक पशु-पि य से भरा आ था यह जगत।
ले कन मनु य का कोई पता न था। पशु और पि य के ाण के भीतर िनरं तर मनु य
भी िनवास कर रहा था, पैदा होने क चे ा कर रहा था। फर मनु य पैदा आ। अब मनु य
कसिलए है?
मनु य िनरं तर नये जीवन को पैदा करने के िलए आतुर है। हम उसे से स कहते ह, हम
उसे काम क वासना कहते ह, ले कन उस वासना का मूल अथ या है? मूल अथ इतना है:
मनु य अपने पर समा नह होना चाहता, आगे भी जीवन को पैदा करना चाहता है।
ले कन य ? या मनु य के ाण म, मनु य से ऊपर कसी सुपरमैन को, कसी महामानव
को पैदा करने क कोई चे ा चल रही है?
िनि त ही चल रही है। िनि त ही मनु य के ाण इस चे ा म संल ह क मनु य से
े तर जीवन ज म पा सके , मनु य से े तर ाणी आिवभूत हो सके । नी शे से लेकर
अर वंद तक, पतंजिल से लेकर ब ड रसेल तक, सारे मनु य के ाण म एक क पना एक
सपने क तरह बैठी रही है क मनु य से बड़ा ाणी कै से पैदा हो सके !
ले कन मनु य से बड़ा ाणी पैदा कै से होगा? हमने तो हजार वष से इस पैदा होने क
कामना को ही नं दत कर रखा है। हमने तो से स को िसवाय गाली के आज तक दूसरा
कोई स मान नह दया। हम तो बात करने म भयभीत होते ह। हमने तो से स को इस
भांित िछपा कर रख दया है जैसे वह है ही नह , जैसे उसका जीवन म कोई थान नह है।
जब क स ाई यह है क उससे यादा मह वपूण मनु य के जीवन म और कु छ भी नह है।
ले कन उसको िछपाया है, उसको दबाया है। दबाने और िछपाने से मनु य से स से मु
नह हो गया, बि क मनु य और भी बुरी तरह से से स से िसत हो गया। दमन उलटे
प रणाम लाया है।
शायद आपम से कसी ने एक च वै ािनक कु ए के एक िनयम के संबंध म सुना होगा।
वह िनयम है: लॉ ऑफ रवस इफे ट। कु ए ने एक िनयम ईजाद कया है, िवपरीत प रणाम
का िनयम। हम जो करना चाहते ह, हम इस ढंग से कर सकते ह क जो हम प रणाम चाहते
थे, उससे उलटा प रणाम हो जाए।
एक आदमी साइ कल चलाना सीखता है। बड़ा रा ता है, चौड़ा रा ता है, एक छोटा सा
प थर रा ते के कनारे पड़ा आ है। वह साइ कल चलाने वाला घबराता है क म कह उस
प थर से न टकरा जाऊं। अब इतना चौड़ा रा ता है क अगर आंख बंद करके भी वह
चलाए, तो प थर से टकराना आसान बात नह है। इसके सौ म एक ही मौके ह क वह
प थर से टकराए। इतने चौड़े रा ते पर कह से भी िनकल सकता है। ले कन वह देख कर
घबराता है--कह म प थर से टकरा न जाऊं! और जैसे ही वह घबराता है--म प थर से न
टकरा जाऊं--सारा रा ता िवलीन हो गया, िसफ प थर ही दखाई पड़ने लगता है उसको।
अब उसक साइ कल का चाक प थर क तरफ मुड़ने लगता है। वह हाथ-पैर से घबराता है।
उसक सारी चेतना उस प थर को ही देखने लगती है। और एक स मोिहत, िह ोटाइ ड
आदमी क तरह वह प थर क तरफ खंचा जाता है और जाकर प थर से टकरा जाता है।
नया साइ कल सीखने वाला उसी से टकरा जाता है िजससे बचना चाहता है! लप पो ट से
टकरा जाता है, प थर से टकरा जाता है। इतना बड़ा रा ता था क अगर कोई िनशानेबाज
ही चलाने क कोिशश करता, तो उस प थर से टकरा सकता था। ले कन यह िस खड़
आदमी कै से उस प थर से टकरा गया?
कु ए कहता है, हमारी चेतना का एक िनयम है--लॉ ऑफ रवस इफे ट। हम िजस चीज से
बचना चाहते ह, चेतना उसी पर क त हो जाती है और प रणाम म हम उसी से टकरा
जाते ह।
पांच हजार वष से आदमी से स से बचना चाह रहा है और प रणाम इतना आ है क
गली-कू चे, हर जगह, जहां भी आदमी जाता है, वह से स से टकरा जाता है। वह लॉ ऑफ
रवस इफे ट मनु य क आ मा को पकड़े ए है।
या कभी आपने यह सोचा क आप िच को जहां से बचाना चाहते ह, िच वह
आक षत हो जाता है, वह िनमंि त हो जाता है! िजन लोग ने मनु य को से स के िवरोध
म समझाया, उन लोग ने ही मनु य को कामुक बनाने का िज मा भी अपने ऊपर ले िलया
है। मनु य क अित कामुकता गलत िश ा का प रणाम है। और आज भी हम भयभीत
होते ह क से स क बात न क जाए! य भयभीत होते ह? भयभीत इसिलए होते ह क
हम डर है क से स के संबंध म बात करने से लोग और कामुक हो जाएंगे।
म आपको कहना चाहता ,ं यह िबलकु ल ही गलत म है। यह शत ितशत गलत है।
पृ वी उसी दन से स से मु होगी, जब हम से स के संबंध म सामा य, व थ बातचीत
करने म समथ हो जाएंगे। जब हम से स को पूरी तरह से समझ सकगे, तो ही हम से स का
अित मण कर सकगे।
जगत म चय का ज म हो सकता है, मनु य से स के ऊपर उठ सकता है, ले कन से स
को समझ कर, से स को पूरी तरह पहचान कर। उस ऊजा के पूरे अथ, माग, व था को
जान कर उससे मु हो सकता है। आंख बंद कर लेने से कोई कभी मु नह हो सकता।
आंख बंद कर लेने वाले सोचते ह क आंख बंद कर लेने से श ु समा हो गया है, तो वे
पागल ह। म थल म शुतुरमुग भी ऐसा ही सोचता है। दु मन हमले करते ह तो शुतुरमुग
रे त म िसर िछपा कर खड़ा हो जाता है और सोचता है क जब दु मन मुझे दखाई नह पड़
रहा तो दु मन नह है। ले कन यह तक--शुतुरमुग को हम मा भी कर सकते ह, आदमी को
मा नह कया जा सकता।
से स के संबंध म आदमी ने शुतुरमुग का वहार कया है आज तक। वह सोचता है,
आंख बंद कर लो से स के ित तो से स िमट गया।
अगर आंख बंद कर लेने से चीज िमटती होत , तो ब त आसान थी जंदगी, ब त आसान
होती दुिनया। आंख बंद करने से कु छ िमटता नह , बि क िजस चीज के संबंध म हम आंख
बंद करते ह, हम माण देते ह क हम उससे भयभीत हो गए ह, हम डर गए ह। वह हमसे
यादा मजबूत है, उससे हम जीत नह सकते ह, इसिलए हम आंख बंद करते ह। आंख बंद
करना कमजोरी का ल ण है।
और से स के बाबत सारी मनु य-जाित आंख बंद करके बैठ गई है। न के वल आंख बंद
करके बैठ गई है, बि क उसने सब तरह क लड़ाई भी से स से ली है। और उसके प रणाम,
उसके दु प रणाम सारे जगत म ात ह।
अगर सौ आदमी पागल होते ह, तो उसम से अ ानबे आदमी से स को दबाने क वजह से
पागल होते ह। अगर हजार ि यां िह टी रया से परे शान ह, तो उसम सौ म से िन यानबे
ि य के िह टी रया के , िमरगी के , बेहोशी के पीछे से स क मौजूदगी है, से स का दमन
मौजूद है। अगर आदमी इतना बेचैन, अशांत, इतना दुखी और पीिड़त है, तो इस पीिड़त
होने के पीछे उसने जीवन क एक बड़ी शि को िबना समझे उसक तरफ पीठ खड़ी कर
ली है, उसका कारण है। और प रणाम उलटे आते ह।
अगर हम मनु य का सािह य उठा कर देख, अगर कसी देवलोक से कभी कोई देवता
आए या चं लोक से या मंगल ह से कभी कोई या ी आए और हमारी कताब पढ़े, हमारा
सािह य देखे, हमारी किवताएं पढ़े, हमारे िच देखे, तो ब त हैरान हो जाएगा। वह हैरान
हो जाएगा यह जान कर क आदमी का सारा सािह य से स ही से स पर य क त है?
आदमी क सारी किवताएं से सुअल य ह? आदमी क सारी कहािनयां, सारे उप यास
से स पर य खड़े ह? आदमी क हर कताब के ऊपर नंगी औरत क त वीर य है?
आदमी क हर फ म नंगे आदमी क फ म य है? वह आदमी ब त हैरान होगा; अगर
कोई मंगल से आकर हम इस हालत म देखेगा तो ब त हैरान होगा। वह सोचेगा, आदमी
से स के िसवाय या कु छ भी नह सोचता? और आदमी से अगर पूछेगा, बातचीत करे गा,
तो ब त हैरान हो जाएगा। आदमी बातचीत करे गा आ मा क , परमा मा क , वग क ,
मो क । से स क कभी कोई बात नह करे गा! और उसका सारा ि व चार तरफ से
से स से भरा आ है! वह मंगल ह का वासी तो ब त हैरान होगा। वह कहेगा, बातचीत
कभी नह क जाती िजस चीज क , उसको चार तरफ से तृ करने क हजार-हजार
पागल कोिशश य क जा रही ह?
आदमी को हमने परवट कया है, िवकृ त कया है और अ छे नाम के आधार पर िवकृ त
कया है। चय क बात हम करते ह। ले कन कभी इस बात क चे ा नह करते क पहले
मनु य क काम क ऊजा को समझा जाए, फर उसे पांत रत करने के योग भी कए जा
सकते ह। िबना उस ऊजा को समझे दमन क , संयम क सारी िश ा, मनु य को पागल,
िवि और ण करे गी। इस संबंध म हम कोई भी यान नह है! यह मनु य इतना ण,
इतना दीन-हीन कभी भी न था; इतना िवषा भी न था, इतना पायज़नस भी न था,
इतना दुखी भी न था।
म एक अ पताल के पास से िनकलता था। मने एक त ते पर अ पताल क एक सूचना
िलखी ई पढ़ी। िलखा था उस त ती पर--एक आदमी को िब छू ने काटा, उसका इलाज
कया गया, वह एक दन म ठीक होकर घर वापस चला गया है। एक दूसरे आदमी को सांप
ने काटा था, उसका तीन दन म इलाज कया गया, वह व थ होकर घर वापस लौट गया
है। उस पर तीसरी सूचना थी क एक और आदमी को पागल कु े ने काट िलया था। उसका
दस दन से इलाज हो रहा है। वह काफ ठीक हो गया है और शी ही उसके पूरी तरह
ठीक हो जाने क उ मीद है। और उस पर एक चौथी सूचना भी थी क एक आदमी को एक
आदमी ने काट िलया था। उसे कई स ाह हो गए, वह बेहोश है, और उसके ठीक होने क
भी कोई उ मीद नह है! म ब त हैरान आ। आदमी का काटा आ इतना जहरीला हो
सकता है?
ले कन अगर हम आदमी क तरफ देखगे तो दखाई पड़ेगा--आदमी के भीतर ब त जहर
इक ा हो गया है। और उस जहर के इक े हो जाने का पहला सू यह है क हमने आदमी के
िनसग को, उसक कृ ित को वीकार नह कया। उसक कृ ित को दबाने और जबरद ती
तोड़ने क चे ा क है। मनु य के भीतर जो शि है, उस शि को पांत रत करने क ,
ऊंचा ले जाने क , आकाशगामी बनाने का हमने कोई यास नह कया। उस शि के ऊपर
हम जबरद ती क जा करके बैठ गए ह। वह शि नीचे से वालामुखी क तरह उबल रही
है और ध े दे रही है। वह आदमी को कसी भी ण उलटा देने क चे ा कर रही है। और
इसीिलए जरा सा मौका िमल जाता है, तो आपको पता है सबसे पहली बात या होती है?
अगर एक हवाई जहाज िगर पड़े तो आपको सबसे पहले, उस हवाई जहाज म अगर
पायलट हो और आप उसके पास जाएं, उसक लाश के पास, तो आपको पहला या
उठे गा मन म? या आपको खयाल आएगा--यह हंद ू है या मुसलमान? नह । या आपको
खयाल आएगा क यह भारतीय है क चीनी? नह । आपको पहला खयाल आएगा--यह
आदमी है या औरत? पहला आपके मन म उठे गा--यह ी है या पु ष? या आपको
खयाल है इस बात का क यह य सबसे पहले खयाल म आता है? भीतर दबा आ
से स है। उस से स के दमन क वजह से बाहर ि यां और पु ष अितशय उभर कर दखाई
पड़ते ह।
या आपने कभी सोचा? आप कसी आदमी का नाम भूल सकते ह, जाित भूल सकते ह,
चेहरा भूल सकते ह। अगर म आप से िमलूं या मुझे आप िमल तो म सब भूल सकता -ं - क
आपका नाम या था, आपका चेहरा या था, आपक जाित या थी, उ या थी, आप
कस पद पर थे--सब भूल सकता ,ं ले कन कभी आपको खयाल आया क आप यह भी
भूल सके ह क िजससे आप िमले थे, वह आदमी था या औरत? कभी आप भूल सके इस
बात को क िजससे आप िमले थे, वह पु ष है या ी? कभी पीछे यह संदहे उठा मन म क
वह ी है या पु ष? नह , यह बात आप कभी भी नह भूल सके ह गे। य ले कन? जब
सारी बात भूल जाती ह तो यह य नह भूलता?
हमारे भीतर मन म कह से स ब त अितशय होकर बैठा है। वह चौबीस घंटे उबल रहा
है। इसिलए सब बात भूल जाती है, ले कन यह बात नह भूलती। हम सतत सचे ह।
यह पृ वी तब तक व थ नह हो सके गी, जब तक आदमी और ि य के बीच यह दीवार
और यह फासला खड़ा आ है। यह पृ वी तब तक कभी भी शांत नह हो सके गी, जब तक
भीतर उबलती ई आग है और उसके ऊपर हम जबरद ती बैठे ए ह। उस आग को रोज
दबाना पड़ता है। उस आग को ित ण दबाए रखना पड़ता है। वह आग हमको भी जला
डालती है, सारा जीवन राख कर देती है। ले कन फर भी हम िवचार करने को राजी नह
होते--यह आग या थी?
और म आपसे कहता ,ं अगर हम इस आग को समझ ल तो यह आग दु मन नह है,
दो त है। अगर हम इस आग को समझ ल तो यह हम जलाएगी नह , हमारे घर को गरम
भी कर सकती है स दय म, और हमारी रो टयां भी पका सकती है, और हमारी जंदगी के
िलए सहयोगी और िम भी हो सकती है। लाख साल तक आकाश म िबजली चमकती
थी। कभी कसी के ऊपर िगरती थी और जान ले लेती थी। कभी कसी ने सोचा भी न था
क एक दन घर म पंखा चलाएगी यह िबजली। कभी यह रोशनी करे गी अंधेरे म, यह
कसी ने सोचा नह था। आज? आज वही िबजली हमारी साथी हो गई है। य ? िबजली
क तरफ हम आंख मूंद कर खड़े हो जाते तो हम कभी िबजली के राज को न समझ पाते
और न कभी उसका उपयोग कर पाते। वह हमारी दु मन ही बनी रहती। ले कन नह ,
आदमी ने िबजली के ित दो ताना भाव बरता। उसने िबजली को समझने क कोिशश क ,
उसने यास कए जानने के । और धीरे -धीरे िबजली उसक साथी हो गई। आज िबना
िबजली के ण भर जमीन पर रहना मुि कल मालूम होगा।
मनु य के भीतर िबजली से भी बड़ी ताकत है से स क ।
मनु य के भीतर अणु क शि से भी बड़ी शि है से स क ।
कभी आपने सोचा ले कन, यह शि या है और कै से हम इसे पांत रत कर? एक छोटे
से अणु म इतनी शि है क िहरोिशमा का पूरा का पूरा एक लाख का नगर भ म हो
सकता है। ले कन या आपने कभी सोचा क मनु य के काम क ऊजा का एक अणु एक नये
ि को ज म देता है? उस ि म गांधी पैदा हो सकता है, उस ि म महावीर पैदा
हो सकता है, उस ि म बु पैदा हो सकते ह, ाइ ट पैदा हो सकता है। उससे
आइं टीन पैदा हो सकता है और यूटन पैदा हो सकता है। एक छोटा सा अणु एक मनु य
क काम-ऊजा का, एक गांधी को िछपाए ए है। गांधी जैसा िवराट ि व ज म पा
सकता है।
ले कन हम से स को समझने को राजी नह ! ले कन हम से स क ऊजा के संबंध म बात
करने क िह मत जुटाने को राजी नह ! कौन सा भय हम पकड़े ए है क िजससे सारे
जीवन का ज म होता है उस शि को हम समझना नह चाहते? कौन सा डर है? कौन सी
घबराहट है?
मने िपछली बंबई क सभा म इस संबंध म कु छ बात क थी, तो बड़ी घबराहट फै ल गई।
मुझे ब त से प प च ं े क आप इस तरह क बात मत कह! इस तरह क बात ही मत कर!
म ब त हैरान आ क इस तरह क बात य न क जाए? अगर शि है हमारे भीतर तो
उसे जाना य न जाए? उसे य न पहचाना जाए? और िबना जाने-पहचाने, िबना उसके
िनयम समझे, हम उस शि को और ऊपर कै से ले जा सकते ह! पहचान से हम उसको जीत
भी सकते ह, बदल भी सकते ह। ले कन िबना पहचाने तो हम उसके हाथ म ही मरगे और
सड़गे, और कभी उससे मु नह हो सकते।
जो लोग से स के संबंध म बात करने क मनाही करते ह, वे ही लोग पृ वी को से स के
ग े म डाले ए ह, यह म आपसे कहना चाहता ।ं जो लोग घबराते ह और जो समझते ह
धम का से स से कोई संबंध नह , वे खुद तो पागल ह ही, वे सारी पृ वी को भी पागल
बनाने म सहयोगी हो रहे ह।
धम का संबंध मनु य क ऊजा के ांसफामशन से है। धम का संबंध मनु य क शि को
पांत रत करने से है। धम चाहता है क मनु य के ि व म जो िछपा है, वह े तम
प से अिभ हो जाए। धम चाहता है क मनु य का जीवन िन से उ क एक या ा
बने, पदाथ से परमा मा तक प च ं जाए। ले कन यह चाह तभी पूरी हो सकती है...हम जहां
जाना चाहते ह उस थान को समझना उतना उपयोगी नह , िजतना उस थान को
समझना उपयोगी है जहां हम खड़े ह; य क वह से या ा शु करनी पड़ती है।
से स है फै ट, से स जो है वह त य है मनु य के जीवन का। और परमा मा? परमा मा
अभी दूर है। से स हमारे जीवन का त य है। इस त य को समझ कर हम परमा मा के स य
तक या ा कर भी सकते ह। ले कन इसे िबना समझे एक इं च आगे नह जा सकते, को के
बैल क तरह इसी के आस-पास घूमते रहगे, इसी के आस-पास घूमते रहगे।
मने जो िपछली सभा म कु छ बात कह तो मुझे ऐसा लगा क जैसे हम जीवन क
वा तिवकता को समझने क भी तैयारी नह दखाते! तो फर हम और या कर सकते ह?
और आगे या हो सकता है? फर ई र, परमा मा क सारी बात सां वना क , कोरी
सां वना क बात ह और झूठी ह। य क जीवन के परम स य, चाहे कतने ही न ह , उ ह
जानना ही पड़ेगा, समझना ही पड़ेगा।
तो पहली बात तो यह जान लेनी ज री है क मनु य का ज म से स से होता है। मनु य
का सारा ि व से स के अणु से बना आ है। मनु य का सारा ाण से स क ऊजा से
भरा आ है। जीवन क ऊजा अथात काम क ऊजा। यह जो काम क ऊजा है, यह जो
से स इनज है, यह या है? यह य हमारे जीवन को इतने जोर से आंदोिलत करती है?
य हमारे जीवन को इतना भािवत करती है? य हम घूम-घूम कर से स के आस-पास,
इद-िगद ही च र लगाते ह और समा हो जाते ह? कौन सा आकषण है इसका?
हजार साल से ऋिष-मुिन इनकार कर रहे ह, ले कन आदमी भािवत नह आ मालूम
पड़ता है। हजार साल से वे कह रहे ह क मुख मोड़ लो इससे! दूर हट जाओ इससे! से स
क क पना और कामना छोड़ दो! िच से िनकाल डालो ये सारे सपने! ले कन आदमी के
िच से ये सपने िनकले नह ह। िनकल भी नह सकते ह इस भांित। बि क म तो इतना
हैरान आ -ं -इतना हैरान आ ं म--वे या से भी िमला ,ं ले कन वे या ने मुझसे
से स क बात नह क ! उ ह ने आ मा-परमा मा के संबंध म पूछताछ क । और म साधु-
सं यािसय से भी िमलता ।ं वे जब भी अके ले म िमलते ह, तो िसवाय से स के और कसी
बात के संबंध म पूछताछ नह करते। म ब त हैरान आ! म हैरान आ ं इस बात को
जान कर क साधु-सं यािसय को, जो िनरं तर इसके िवरोध म बोल रहे ह, वे खुद भी िच
के तल पर वह िसत ह, वह परे शान ह! तो जनता म आ मा-परमा मा क बात करते ह,
ले कन भीतर उनके भी सम या वही है। होगी भी। वाभािवक है, य क हमने उस
सम या को समझने क ही चे ा नह क है। हमने उस ऊजा के िनयम भी नह जानने
चाहे। और हमने कभी यह भी नह पूछा क मनु य का इतना आकषण य है? कौन
िसखाता है से स आपको?
सारी दुिनया तो िसखाने के िवरोध म सारे उपाय करती है। मां-बाप चे ा करते ह क
ब े को पता न चल जाए। िश क चे ा करते ह। धम-शा चे ा करते ह। कह कोई कू ल
नह , कह कोई यूिनव सटी नह । ले कन आदमी अचानक एक दन पाता है क सारे ाण
काम क आतुरता से भर गए ह! यह कै से हो जाता है? िबना िसखाए यह कै से हो जाता है?
स य क िश ा दी जाती है, ेम क िश ा दी जाती है, उसका तो कोई पता नह चलता।
इस से स का इतना बल आकषण, इतना नैस गक क या है? ज र इसम कोई रह य है
और इसे समझना ज री है। तो शायद हम इससे मु भी हो सकते ह।
पहली बात तो यह क मनु य के ाण म से स का जो आकषण है, वह व तुतः से स का
आकषण नह है। मनु य के ाण म जो कामवासना है, वह व तुतः काम क वासना नह
है। इसिलए हर आदमी काम के कृ य के बाद पछताता है, दुखी होता है, पीिड़त होता है।
सोचता है क इससे मु हो जाऊं, यह या है? ले कन शायद आकषण कोई दूसरा है। और
वह आकषण ब त रलीजस, ब त धा मक अथ रखता है। वह आकषण यह है क मनु य के
सामा य जीवन म िसवाय से स क अनुभूित के वह कभी भी अपने गहरे से गहरे ाण म
नह उतर पाता है। और कसी ण म कभी गहरे नह उतरता है। दुकान करता है, धंधा
करता है, यश कमाता है, पैसे कमाता है, ले कन एक अनुभव काम का, संभोग का, उसे
गहरे से गहरे ले जाता है। और उसक गहराई म दो घटनाएं घटती ह।
एक--संभोग के अनुभव म अहंकार िवस जत हो जाता है, ईगोलेसनेस पैदा हो जाती है।
एक ण के िलए अहंकार नह रह जाता, एक ण को यह याद भी नह रह जाता क म ।ं
या आपको पता है, धम के े तम अनुभव म म िबलकु ल िमट जाता है, अहंकार िबलकु ल
शू य हो जाता है! से स के अनुभव म ण भर को अहंकार िमटता है। लगता है क ं या
नह । एक ण को िवलीन हो जाता है मेरापन का भाव।
दूसरी घटना घटती है: एक ण के िलए समय िमट जाता है, टाइमलेसनेस पैदा हो जाती
है।
जीसस ने कहा है समािध के संबंध म: देयर शैल बी टाइम नो लांगर। समािध का जो
अनुभव है, वहां समय नह रह जाता। वह कालातीत है। समय िबलकु ल िवलीन हो जाता
है। न कोई अतीत है, न कोई भिव य--शु वतमान रह जाता है।
से स के अनुभव म यह दूसरी घटना घटती है--न कोई अतीत रह जाता है, न कोई
भिव य। समय िमट जाता है, एक ण के िलए समय िवलीन हो जाता है।
ये धा मक अनुभूित के िलए सवािधक मह वपूण त व ह--ईगोलेसनेस, टाइमलेसनेस। ये
दो त व ह, िजनक वजह से आदमी से स क तरफ आतुर होता है और पागल होता है। वह
आतुरता ी के शरीर के िलए नह है पु ष क , न पु ष के शरीर के िलए ी क है। वह
आतुरता शरीर के िलए िबलकु ल भी नह है। वह आतुरता कसी और ही बात के िलए है।
वह आतुरता है--अहंकार-शू यता का अनुभव, समय-शू यता का अनुभव। ले कन समय-
शू य और अहंकार-शू य होने के िलए आतुरता य है? य क जैसे ही अहंकार िमटता है,
आ मा क झलक उपल ध होती है। जैसे ही समय िमटता है, परमा मा क झलक उपल ध
होती है।
एक ण को होती है यह घटना, ले कन उस एक ण के िलए आदमी कतनी ही ऊजा,
कतनी ही शि खोने को तैयार है! शि खोने के कारण पछताता है बाद म क शि
ीण ई, शि का अप य आ। और उसे पता है क शि िजतनी ीण होती है, मौत
उतनी करीब आती है।
कु छ पशु म तो एक ही संभोग के बाद नर क मृ यु हो जाती है। कु छ क ड़े तो एक ही
संभोग कर पाते ह और संभोग करते ही करते समा हो जाते ह। अ का म एक मकड़ा
होता है। वह एक ही संभोग कर पाता है और संभोग क हालत म ही मर जाता है। इतनी
ऊजा ीण हो जाती है।
मनु य को यह अनुभव म आ गया ब त पहले क से स का अनुभव शि को ीण करता
है, जीवन-ऊजा कम होती है और धीरे -धीरे मौत करीब आती है। पछताता है आदमी।
ले कन इतना पछताने के बाद फर पाता है क कु छ घिड़य के बाद फर वही आतुरता है।
िनि त ही इस आतुरता म कु छ और अथ है जो समझ लेना ज री है।
से स क आतुरता म कोई रलीजस अनुभव है, कोई आि मक अनुभव है। उस अनुभव को
अगर हम देख पाएं तो हम से स के ऊपर उठ सकते ह। अगर उस अनुभव को हम न देख
पाएं तो हम से स म ही जीएंगे और मर जाएंगे। उस अनुभव को अगर हम देख
पाएं...अंधेरी रात है और अंधेरी रात म िबजली चमकती है। िबजली क चमक अगर हम
दखाई पड़ जाए और िबजली को अगर हम समझ ल, तो अंधेरी रात को हम िमटा भी
सकते ह। ले कन अगर हम यह समझ ल क अंधेरी रात के कारण िबजली चमकती है, तो
फर हम अंधेरी रात को और घना करने क कोिशश करगे, ता क िबजली चमके ।
से स क घटना म िबजली चमकती है एक। वह से स से अतीत है, ांसड करती है, पार
से आती है। उस पार के अनुभव को अगर हम पकड़ ल, तो हम से स के ऊपर उठ सकते ह,
अ यथा नह । ले कन जो लोग से स के िवरोध म खड़े हो जाते ह, वे अनुभव को समझ भी
नह पाते क वह अनुभव या है। वे कभी यह ठीक िव ेषण भी नह कर पाते क हमारी
आतुरता कस चीज के िलए है।
म आपसे कहना चाहता ं क संभोग का इतना आकषण िणक समािध के िलए है। और
संभोग से आप उस दन मु ह गे, िजस दन आपको समािध िबना संभोग के िमलना शु
हो जाएगी। उसी दन संभोग से आप मु हो जाएंगे, से स से मु हो जाएंगे। य क एक
आदमी हजार पये खोकर थोड़ा सा अनुभव पाता हो; और कल हम उसे बता द क पये
खोने क कोई ज रत नह , इस अनुभव क तो खदान भरी पड़ी ह, तुम चलो इस रा ते से
और उस अनुभव को पा लो। तो फर वह हजार पये खोकर उस अनुभव को खरीदने
बाजार म नह जाएगा।
से स िजस अनुभूित को लाता है, अगर वह अनुभूित क ह और माग से उपल ध हो
सके , तो आदमी का िच से स क तरफ बढ़ना अपने आप बंद हो जाता है। उसका िच
एक नई दशा लेना शु कर देता है। इसिलए म कहता ,ं जगत म समािध का पहला
अनुभव मनु य को से स के अनुभव से ही उपल ध आ है।
ले कन वह ब त महंगा अनुभव है, वह अित महंगा अनुभव है। और दूसरे कारण ह क
वह अनुभव कभी एक ण से यादा गहरा नह हो सकता। एक ण को झलक िमलेगी
और हम वापस अपनी जगह पर लौट आते ह। एक ण को कसी लोक म उठ जाते ह,
कसी गहराई पर, कसी पीक ए सपी रएंस पर, कसी िशखर पर प च ं ना होता है। और
हम प च ं भी नह पाते और वापस िगर जाते ह। जैसे समु क एक लहर आकाश म उठती
है--उठ भी नह पाती प च ं भी नह पाती, हवा म, िसर उठा भी नह पाती और िगरना
शु हो जाता है। ठीक हमारा से स का अनुभव: बार-बार शि को इक ा करके हम उठने
क चे ा करते ह-- कसी गहरे जगत म, कसी ऊंचे जगत म--एक ण को हम उठ भी नह
पाते और सब लहर िबखर जाती है, हम वापस अपनी जगह खड़े हो जाते ह। और उतनी
शि और ऊजा को गंवा देते ह।
ले कन अगर सागर क लहर बफ का प थर बन जाए, जम जाए और बफ हो जाए, तो
फर उसे नीचे िगरने क कोई ज रत नह है। आदमी का िच जब तक से स क तरलता
म बहता है, तब तक वापस उठता है, िगरता है; उठता है, िगरता है; सारा जीवन यही
करता है। और िजस अनुभव के िलए इतना ती आकषण है--ईगोलेसनेस के िलए, अहंकार
शू य हो जाए और म आ मा को जान लूं; समय िमट जाए और म उसको जान लूं जो
इटरनल है, जो टाइमलेस है; उसको जान लूं जो समय के बाहर है, अनंत और अना द है--
उसे जानने क चे ा म सारा जगत से स के क पर घूमता रहता है।
ले कन अगर हम इस घटना के िवरोध म खड़े हो जाएं िसफ, तो या होगा? तो या हम
उस अनुभव को पा लगे जो से स से एक झलक क तरह दखाई पड़ता था?
नह , अगर हम से स के िवरोध म खड़े हो जाते ह तो से स ही हमारी चेतना का क बन
जाता है, हम से स से मु नह होते, उससे बंध जाते ह। वह लॉ ऑफ रवस इफे ट काम
शु कर देता है। फर हम उससे बंध गए। फर हम भागने क कोिशश करते ह। और
िजतनी हम कोिशश करते ह, उतने ही बंधते चले जाते ह।
एक आदमी बीमार था और बीमारी कु छ उसे ऐसी थी क दन-रात उसे भूख लगती थी।
सच तो यह है, उसे बीमारी कु छ भी न थी। भोजन के संबंध म उसने कु छ िवरोध क
कताब पढ़ ली थ । उसने पढ़ िलया था क भोजन पाप है, उपवास पु य है। कु छ भी खाना
हंसा करना है। िजतना वह यह सोचने लगा क भोजन करना पाप है, उतना ही भूख को
दबाने लगा; िजतना भूख को दबाने लगा, उतनी भूख असट करने लगी, जोर से कट होने
लगी। तो वह दो-चार दन उपवास करता था और एक दन पागल क तरह कु छ भी खा
जाता था। जब कु छ भी खा लेता था तो ब त दुखी होता था, य क फर खाने क
तकलीफ झेलनी पड़ती थी। फर प ा ाप म दो-चार दन उपवास करता था और फर
कु छ भी खा लेता था। आिखर उसने तय कया क यह घर रहते ए नह हो सके गा ठीक,
मुझे जंगल चले जाना चािहए।
वह पहाड़ पर गया। एक िहल टेशन पर जाकर एक कमरे म रहा। घर के लोग भी
परे शान हो गए थे। उसक प ी ने यह सोच कर क शायद वह पहाड़ पर अब जाकर
भोजन क बीमारी से मु हो जाएगा, उसने खुशी म ब त से फू ल उसे पहाड़ पर
िभजवाए-- क म ब त खुश ं क तुम शायद पहाड़ से अब व थ होकर वापस लौटोगे; म
शुभकामना के प म ये फू ल तु ह भेज रही ।ं
उस आदमी का वापस तार आया। उसने तार म िलखा--मेनी थ स फॉर द लावस, दे
आर सो िडलीिशयस। उसने तार कया क ब त ध यवाद फू ल के िलए, बड़े वा द ह।
वह फू ल को खा गया, वहां पहाड़ पर जो फू ल उसको भेजे गए थे! अब कोई आदमी फू ल
को खाएगा, इसका हम खयाल नह कर सकते। ले कन जो आदमी भोजन से लड़ाई शु
कर देगा, वह फू ल को खा सकता है।
आदमी से स से लड़ाई शु कया, और उसने या- या से स के नाम पर खाया, इसका
आपने कभी िहसाब लगाया? आदमी को छोड़ कर, स य आदमी को छोड़ कर,
होमोसे सुअिलटी कह है? जंगल म आ दवासी रहते ह, उ ह ने कभी क पना भी नह क
है क होमोसे सुअिलटी जैसी चीज भी हो सकती है-- क पु ष और पु ष के साथ संभोग
कर सकते ह, यह भी हो सकता है! यह क पना के बाहर है। म आ दवािसय के पास रहा ं
और उनसे मने कहा क स य लोग इस तरह भी करते ह। वे कहने लगे, हमारे िव ास के
बाहर है। यह कै से हो सकता है?
ले कन अमे रका म उ ह ने आंकड़े िनकाले ह--पतीस ितशत लोग होमोसे सुअल ह!
और बेि जयम और वीडन और हालड म होमोसे सुअ स के लब ह, सोसाइटीज ह,
अखबार िनकलते ह। और वे सरकार से यह दावा करते ह क होमोसे सुअिलटी के ऊपर से
कानून उठा दया जाना चािहए, य क चालीस ितशत लोग िजसको म
◌ानते ह, तो इतनी बड़ी माइना रटी के ऊपर हमला है यह आपका। हम तो मानते ह क
होमोसे सुअिलटी ठीक है, इसिलए हमको हक होना चािहए।
कोई क पना नह कर सकता क यह होमोसे सुअिलटी कै से पैदा हो गई? से स के बाबत
लड़ाई का यह प रणाम है। िजतना स य समाज है, उतनी वे याएं ह! कभी आपने यह
सोचा क ये वे याएं कै से पैदा हो ग ? कसी आ दवासी गांव म जाकर वे या खोज सकते
ह आप? आज भी ब तर के गांव म वे या खोजनी मुि कल है। और कोई क पना म भी
मानने को राजी नह होता क ऐसी ि यां हो सकती ह जो क अपनी इ त बेचती ह ,
अपना संभोग बेचती ह । ले कन स य आदमी िजतना स य होता चला गया, उतनी
वे याएं बढ़ती चली ग । य ?
यह फू ल को खाने क कोिशश शु ई है। और आदमी क जंदगी म कतने िवकृ त प
से से स ने जगह बनाई है, इसका अगर हम िहसाब लगाने चलगे तो हम हैरान रह जाएंगे
क यह आदमी को या आ है? इसका िज मा कस पर है, कन लोग पर है?
इसका िज मा उन लोग पर है, िज ह ने आदमी को से स को समझना नह , लड़ना
िसखाया है। िज ह ने स ेशन िसखाया है, िज ह ने दमन िसखाया है। दमन के कारण से स
क शि जगह-जगह से फू ट कर गलत रा त से बहनी शु हो गई है। सारा समाज पीिड़त
और ण हो गया है।
इस ण समाज को अगर बदलना है, तो हम यह वीकार कर लेना होगा क काम क
ऊजा है, काम का आकषण है। य है काम का आकषण? काम के आकषण का जो बुिनयादी
आधार है, उस आधार को अगर हम पकड़ ल, तो मनु य को हम काम के जगत से ऊपर उठा
सकते ह। और मनु य िनि त काम के जगत के ऊपर उठ जाए, तो ही राम का जगत शु
होता है।
खजुराहो के मं दर के सामने म खड़ा था और दस-पांच िम को लेकर वहां गया था।
खजुराहो के मं दर के चार तरफ क दीवाल पर तो मैथुन-िच ह, कामवासना क
मू तयां ह। मेरे िम कहने लगे क मं दर के चार तरफ यह या है? मने उनसे कहा,
िज ह ने यह मं दर बनाया था, वे बड़े समझदार लोग थे। उनक मा यता यह थी क जीवन
क बाहर क प रिध पर काम है। और जो लोग अभी काम से उलझे ह, उनको मं दर म
भीतर वेश का कोई हक नह है।
फर म अपने िम को कहा, भीतर चल! फर उ ह भीतर लेकर गया। वहां तो कोई
काम- ितमा न थी, वहां भगवान क मू त थी। वे कहने लगे, भीतर कोई ितमा नह है!
मने उनसे कहा क जीवन क बाहर क प रिध पर कामवासना है। जीवन क बाहर क
प रिध, दीवाल पर कामवासना है। जीवन के भीतर भगवान का मं दर है। ले कन जो अभी
कामवासना से उलझे ह, वे भगवान के मं दर म वेश के अिधकारी नह हो सकते, उ ह
अभी बाहर क दीवाल का ही च र लगाना पड़ेगा। िजन लोग ने यह मं दर बनाया था, वे
बड़े समझदार लोग थे। यह मं दर एक मेिडटेशन सटर था। यह मं दर एक यान का क
था। जो लोग आते थे, उनसे वे कहते थे, बाहर पहले मैथुन के ऊपर यान करो, पहले से स
को समझो! और जब से स को पूरी तरह समझ जाओ और तुम पाओ क मन उससे मु हो
गया है, तब तुम भीतर आ जाना। फर भीतर भगवान से िमलना हो सकता है।
ले कन धम के नाम पर हमने से स को समझने क ि थित पैदा नह क , से स क श ुता
पैदा कर दी! से स को समझो मत, आंख बंद कर लो, और घुस जाओ भगवान के मं दर म
आंख बंद करके ।
आंख बंद करके कभी कोई भगवान के मं दर म जा सका है? और आंख बंद करके अगर
आप भगवान के मं दर म प च ं भी गए, तो बंद आंख म आपको भगवान दखाई नह पड़गे,
िजससे आप भाग कर आए ह वही दखाई पड़ता रहेगा, आप उसी से बंधे रह जाएंग।े
शायद कु छ लोग मेरी बात सुन कर समझते ह क म से स का प पाती ।ं मेरी बात सुन
कर शायद लोग समझते ह क म से स का चार करना चाहता ।ं अगर कोई ऐसा
समझता हो तो उसने मुझे कभी सुना ही नह है, ऐसा उससे कह देना। इस समय पृ वी पर
मुझसे यादा से स का दु मन आदमी खोजना मुि कल है। और उसका कारण यह है क म
जो बात कह रहा ,ं अगर वह समझी जा सक , तो मनु य-जाित को से स के ऊपर उठाया
जा सकता है, अ यथा नह । और िजन थोथे लोग को हमने समझा है क वे से स के दु मन
थे, वे से स के दु मन नह थे। उ ह ने से स म आकषण पैदा कर दया, से स से मुि पैदा
नह क । से स म आकषण पैदा हो गया िवरोध के कारण।
मुझसे एक आदमी ने कहा है क िजस चीज का िवरोध न हो, उसको करने म कोई रस ही
नह रह जाता। चोरी के फल खाने िजतने मधुर और मीठे होते ह, उतने बाजार से खरीदे
गए फल कभी नह होते। इसीिलए अपनी प ी उतनी मधुर कभी नह मालूम पड़ती,
िजतनी पड़ोसी क प ी मालूम पड़ती है। वे चोरी के फल ह, वे व जत फल ह। और से स
को हमने एक ऐसी ि थित दे दी, एक ऐसा चोरी का जामा पहना दया, एक ऐसे झूठ के
िलबास म िछपा दया, ऐसी दीवाल म खड़ा कर दया, क उसने हम ती प से
आक षत कर िलया है।
ब ड रसेल ने िलखा है क जब म छोटा ब ा था, िव टो रयन जमाना था, ि य के पैर
भी दखाई नह पड़ते थे। वे कपड़े पहनती थ , जो जमीन पर िघसटता था और पैर नह
दखाई पड़ता था। अगर कभी कसी ी का अंगूठा दख जाता था, तो आदमी आतुर
होकर अंगूठा देखने लगता था और कामवासना जग जाती थी! और रसेल कहता है क अब
ि यां करीब-करीब आधी नंगी घूम रही ह और उनका पैर पूरा दखाई पड़ता है, ले कन
कोई असर नह होता!
तो रसेल ने िलखा है क इससे यह िस होता है क हम िजन चीज को िजतना यादा
िछपाते ह, उन चीज म उतना ही कु ि सत आकषण पैदा होता है।
अगर दुिनया को से स से मु करना है, तो ब को यादा देर तक घर म न रहने क
सुिवधा होनी चािहए। जब तक ब े घर म न खेल सक--लड़के और लड़ कयां--उ ह न
खेलने देना चािहए। ता क वे एक-दूसरे के शरीर से भलीभांित प रिचत हो जाएं और कल
रा त पर उनको कसी ी को ध ा देने क कोई ज रत न रह जाए। ता क वे एक-दूसरे
के शरीर से इतने प रिचत हो जाएं क कसी कताब पर नंगी औरत क त वीर छापने क
कोई ज रत न रह जाए। वे शरीर से इतने प रिचत ह क शरीर का कु ि सत आकषण
िवलीन हो सके ।
ले कन बड़ी उलटी दुिनया है। िजन लोग ने शरीर को ढांक कर, िछपा कर खड़ा कया है,
उ ह लोग ने शरीर को इतना आक षत बना दया है, यह हमारे खयाल म नह आता!
िजन लोग ने शरीर को िजतना ढांक कर िछपा दया है, शरीर को उतना ही हमारे मन म
चंतन का िवषय बना दया है, यह हमारे खयाल म नह आता।
ब े न होने चािहए, देर तक न खेलने चािहए, लड़के और लड़ कयां एक-दूसरे को
न ता म देखना चािहए, ता क उनके पीछे कोई भी पागलपन न रह जाए और उनके इस
पागलपन का जीवन भर रोग उनके भीतर न चलता रहे। ले कन वह रोग चल रहा है। और
उस रोग को हम बढ़ाते चले जाते ह। और उस रोग के फर हम नये-नये रा ते खोजते ह।
गंदी कताब छपती ह, जो लोग गीता के कवर म भीतर रख कर पढ़ते ह। बाइिबल म
दबा लेते ह, और पढ़ते ह। ये गंदी कताब...तो हम कहते ह, ये गंदी कताब बंद होनी
चािहए! ले कन हम यह कभी नह पूछते क गंदी कताब पढ़ने वाला आदमी पैदा य हो
गया है? हम कहते ह, नंगी त वीर दीवार पर नह लगनी चािहए! ले कन हम कभी नह
पूछते क नंगी त वीर कौन आदमी देखने को आता है?
वही आदमी आता है जो ि य के शरीर को देखने से वंिचत रह गया है। एक कु तूहल
जाग गया है-- या है ी का शरीर? और म आपसे कहता ,ं व ने ी के शरीर को
िजतना सुंदर बना दया है, उतना सुंदर ी का शरीर है नह । व म ढांक कर शरीर
िछपा नह है और उघड़ कर कट आ है। यह सारी क सारी चंतना हमारी िवपरीत फल
ले आई है।
इसिलए आज एक बात आपसे कहना चाहता ं पहले दन क चचा म, वह यह--से स
या है? उसका आकषण या है? उसक िवकृ ित य पैदा ई है? अगर हम ये तीन बात
ठीक से समझ ल, तो मनु य का मन इनके ऊपर उठ सकता है। उठना चािहए। उठने क
ज रत है।
ले कन उठने क चे ा गलत प रणाम लाई है; य क हमने लड़ाई खड़ी क है, हमने
मै ी खड़ी नह क । दु मनी खड़ी क है, स ेशन खड़ा कया है, दमन कया है; समझ पैदा
नह क ।
अंडर ट डंग चािहए, स ेशन नह । समझ चािहए। िजतनी गहरी समझ होगी, मनु य
उतना ही ऊपर उठता है। िजतनी कम समझ होगी, उतना ही मनु य दबाने क कोिशश
करता है। और दबाने के कभी भी कोई सफल प रणाम, सुफल प रणाम, व थ प रणाम
उपल ध नह होते।
मनु य के जीवन क सबसे बड़ी ऊजा है काम। ले कन काम पर क नह जाना है; काम
को राम तक ले जाना है। से स को समझना है, ता क चय फिलत हो सके । से स को
जानना है, ता क हम से स से मु हो सक और ऊपर उठ सक।
ले कन शायद ही, आदमी जीवन भर अनुभव से गुजरता है, शायद ही उसने समझने क
कोिशश क हो क संभोग के भीतर समािध का ण भर का अनुभव है। वही अनुभव ख च
रहा है। वही अनुभव आक षत कर रहा है। वही अनुभव पुकार दे रहा है क आओ।
यानपूवक उस अनुभव को जान लेना है क कौन सा अनुभव मुझे आक षत कर रहा है?
कौन मुझे ख च रहा है?
और म आपसे कहता ,ं उस अनुभव को पाने के सुगम रा ते ह। यान, योग, सामाियक,
ाथना, सब उस अनुभव को पाने के माग ह। ले कन वही अनुभव हम आक षत कर रहा है,
यह सोच लेना, जान लेना ज री है।
एक िम ने मुझे िलखा क आपने ऐसी बात कह , क मां के साथ बेटी बैठी थी, वह सुन
रही है! बाप के साथ बेटी बैठी है, वह सुन रही है! ऐसी बात सबके सामने नह करनी
चािहए।
मने उनसे कहा, आप िबलकु ल पागल ह। अगर मां समझदार होगी, तो इसके पहले क
बेटी से स क दुिनया म उतर जाए, उसे से स के संबंध म अपने सारे अनुभव समझा देगी।
ता क वह अनजान, अधक ी, अप रप से स के गलत रा त पर न चली जाए। अगर बाप
यो य है और समझदार है, तो अपने बेटे को और अपनी बेटी को अपने सारे अनुभव बता
देगा। ता क बेटे और बे टयां गलत रा त पर न चले जाएं, जीवन उनके िवकृ त न हो जाएं।
ले कन मजा यह है क न बाप का कोई गहरा अनुभव है, न मां का कोई गहरा अनुभव है।
वे खुद भी से स के तल से ऊपर नह उठ सके । इसिलए घबराते ह क कह से स क बात
सुन कर ब े भी इसी तल म न उलझ जाएं। ले कन म उनसे पूछता ,ं आप कसक बात
सुन कर उलझे थे? आप अपने आप उलझ गए थे, ब े भी अपने आप उलझ जाएंगे। यह हो
भी सकता है क अगर उ ह समझ दी जाए, िवचार दया जाए, बोध दया जाए, तो शायद
वे अपनी ऊजा को थ करने से बच सक, ऊजा को बचा सक, पांत रत कर सक।
रा ते के कनारे पर कोयले का ढेर लगा होता है। वै ािनक कहते ह क कोयला ही
हजार साल म हीरा बन जाता है। कोयले और हीरे म कोई रासायिनक फक नह है, कोई
के िमकल भेद नह है। कोयले के भी परमाणु वही ह जो हीरे के ह; कोयले का भी
रासायिनक-भौितक संगठन वही है जो हीरे का है। हीरा कोयले का ही पांत रत, बदला
आ प है। हीरा कोयला ही है।
म आपसे कहना चाहता ं क से स कोयले क तरह है, चय हीरे क तरह है। ले कन
वह कोयले का ही बदला आ प है। वह कोयले का दु मन नह है हीरा। वह कोयले क
ही बदलाहट है। वह कोयले का ही पांतरण है। वह कोयले को ही समझ कर नई दशा
म ले गई या ा है।
से स का िवरोध नह है चय, से स का ही पांतरण है, ांसफामशन है। और जो
से स का दु मन है, वह कभी चय को उपल ध नह हो सकता है।
चय क दशा म जाना हो--और जाना ज री है, य क चय का मतलब या
है? चय का इतना मतलब है: वह अनुभव उपल ध हो जाए, जो क चया जैसा है।
जैसा भगवान का जीवन हो, वैसा जीवन उपल ध हो जाए। चय यानी क चया,
जैसा जीवन। परमा मा जैसा अनुभव उपल ध हो जाए।
वह हो सकता है अपनी शि य को समझ कर पांत रत करने से।
आने वाले दो दन म, कै से पांत रत कया जा सकता है से स, कै से पांत रत हो जाने
के बाद काम राम के अनुभव म बदल जाता है, वह म आपसे बात क ं गा। और तीन दन
तक चा ग ं ा क ब त गौर से सुन लगे, ता क मेरे संबंध म कोई गलतफहमी पीछे आपको
पैदा न हो जाए। और जो भी ह --ईमानदारी से और स -े -उ ह िलख कर दे दगे, ता क
आने वाले िपछले दो दन म म उनक आप से सीधी-सीधी बात कर सकूं । कसी को
िछपाने क ज रत नह है। जो जंदगी म स य है, उसे िछपाने का कोई कारण नह है।
कसी स य से मुकरने क ज रत नह है। जो स य है, वह स य है--चाहे हम आंख बंद कर,
चाह आंख खुली रख।
और एक बात म जानता ,ं धा मक आदमी म उसको कहता ं जो जीवन के सारे स य
को सीधा सा ा कार करने क िह मत रखता है। जो इतने कमजोर, कािहल और नपुंसक ह
क जीवन के त य का सामना भी नह कर सकते, उनके धा मक होने क कोई उ मीद
कभी नह हो सकती है।
ये आने वाले चार दन के िलए िनमं ण देता ।ं य क ऐसे िवषय पर यह बात है क
शायद ऋिष-मुिनय से आशा नह रही है क ऐसे िवषय पर वे बात करगे। शायद आपको
सुनने क आदत भी नह होगी। शायद आपका मन डरे गा। ले कन फर भी म चा ग ं ा क
इन पांच दन म आप ठीक से सुनने क कोिशश करगे। यह हो सकता है क काम क समझ
आपको राम के मं दर के भीतर वेश दला दे। आकां ा मेरी यही है। परमा मा करे वह
आकां ा पूरी हो।

मेरी बात को इतने ेम और शांित से सुना, उसके िलए अनुगृहीत ।ं और अंत म सबके
भीतर बैठे ए परमा मा को णाम करता ।ं मेरे णाम वीकार कर।
#3
संभोग : समय-शू यता क झलक
मेरे ि य आ मन्!
एक छोटी सी कहानी से म अपनी बात शु करना चा ग ं ा। ब त वष बीते, ब त
स दयां, कसी देश म एक बड़ा िच कार था। वह जब अपनी युवा अव था म था, उसने
सोचा क म एक ऐसा िच बनाऊं, िजसम भगवान का आनंद झलकता हो। म ऐसी दो
आंख िचि त क ं , िजनम अनंत शांित झलकती हो। म ऐसे एक ि को खोजू,ं एक ऐसे
मनु य को, िजसका िच , जीवन के जो पार है, जगत से जो दूर है, उसक खबर लाता हो।
और वह अपने देश के गांव-गांव घूमा, जंगल-जंगल उसने छाना, उस आदमी को, िजसक
ितछिव वह बना सके । और आिखर एक पहाड़ पर गाय चराने वाले एक चरवाहे को उसने
खोज िलया। उसक आंख म कोई झलक थी। उसके चेहरे क प-रे खा म कोई दूर क
खबर थी। उसे देख कर ही लगता था क मनु य के भीतर परमा मा भी है। उसने उसके
िच को बनाया। उस िच क लाख ितयां गांव-गांव, दूर-दूर के देश म िबक । लोग ने
उस िच को घर म टांग कर अपने को ध य समझा।
फर बीस वष बाद, वह िच कार बूढ़ा हो गया था। और उस िच कार को एक खयाल
और आया। जीवन भर के अनुभव से उसे पता चला था क आदमी म भगवान ही अगर
अके ला होता तो ठीक था, आदमी म शैतान भी दखाई पड़ता है। उसने सोचा क म एक
िच और बनाऊं, िजसम आदमी के भीतर शैतान क छिव हो, तब मेरे दोन िच पूरे
मनु य के िच बन सकगे।
वह फर गया बुढ़ापे म--जुआघर म, शराबखान म, पागलघर म--उसने खोजबीन क
उस आदमी क , जो आदमी न हो, शैतान हो; िजसक आंख म नरक क लपट जलती ह ;
िजसके चेहरे क आकृ ित उस सबका मरण दलाती हो, जो अशुभ है, कु प है, असुंदर है।
वह पाप क ितमा क खोज म िनकला। एक ितमा उसने परमा मा क बनाई थी, वह
एक ितमा पाप क भी बनाना चाहता था।
और ब त खोजने के बाद एक कारागृह म उसे एक कै दी िमल गया, िजसने सात ह याएं
क थ और जो थोड़े ही दन बाद मृ यु क ती ा कर रहा था, फांसी पर लटकाया जाने
को था। उस आदमी क आंख म नरक के दशन होते थे, घृणा जैसे सा ात थी। उस आदमी
क चेहरे क प-रे खा ऐसी थी क वैसा कु प मनु य खोजना मुि कल था।
उसने उसके िच को बनाया। िजस दन उसका िच बन कर पूरा आ, वह अपने पहले
िच को भी लेकर कारागृह म आया और दोन िच को पास-पास रख कर देखने लगा क
कौन सी कलाकृ ित े बनी है? तय करना मुि कल था। िच कार खुद भी मु ध हो गया
था। दोन ही िच अदभुत थे। कौन सा े था, कला क दृि से, यह तय करना मुि कल
था।
और तभी उस िच कार को पीछे कसी के रोने क आवाज सुनाई पड़ी। लौट कर देखा,
तो वह कै दी जंजीर म बंधा रो रहा है िजसक उसने त वीर बनाई थी! वह िच कार
हैरान आ। उसने कहा क मेरे दो त, तुम य रोते हो? िच को देख कर तु ह या
तकलीफ ई?
उस आदमी ने कहा, मने इतने दन तक िछपाने क कोिशश क , ले कन आज म हार गया
।ं शायद तु ह पता नह क पहली त वीर भी तुमने मेरी ही बनाई थी। ये दोन त वीर
मेरी ह। बीस साल पहले पहाड़ पर जो आदमी तु ह िमला था, वह म ही ।ं और इसिलए
रोता ं क मने बीस साल म कौन सी या ा कर ली-- वग से नरक क ! परमा मा से पाप
क!
पता नह यह कहानी कहां तक सच है। सच हो या न हो, ले कन हर आदमी के जीवन म
दो त वीर ह। हर आदमी के भीतर शैतान है और हर आदमी के भीतर परमा मा भी। और
हर आदमी के भीतर नरक क भी संभावना है और वग क भी। हर आदमी के भीतर
स दय के फू ल भी िखल सकते ह और कु पता के गंदे डबरे भी बन सकते ह। येक आदमी
इन दो या ा के बीच िनरं तर डोल रहा है। ये दो छोर ह, िजनम से आदमी कसी को भी
छू सकता है। और अिधक लोग नरक के छोर को छू लेते ह और ब त कम सौभा यशाली ह
जो अपने भीतर परमा मा को उघाड़ पाते ह ।
या हम अपने भीतर परमा मा को उघाड़ पाने म सफल हो सकते ह? या हम वह
ितमा बनगे जहां परमा मा क झलक िमले? यह कै से हो सकता है--इस के साथ ही
आज क दूसरी चचा म शु करना चाहता ।ं यह कै से हो सकता है क आदमी परमा मा
क ितमा बने? यह कै से हो सकता है क आदमी का जीवन एक वग बने--एक सुवास,
एक सुगंध, एक स दय? यह कै से हो सकता है क मनु य उसे जान ले िजसक कोई मृ यु
नह ? यह कै से हो सकता है क मनु य परमा मा के मं दर म िव हो जाए?
होता तो उलटा है। बचपन म हम कह वग म होते ह और बूढ़े होते-होते नरक तक प च ं
जाते ह! होता उलटा है। होता यह है क बचपन के बाद जैसे रोज हमारा पतन होता है।
बचपन म तो कसी इनोसस, कसी िनद ष संसार का हम अनुभव करते ह; और फर धीरे -
धीरे एक कपट से भरा आ, पाखंड से भरा आ माग हम तय करते ह। और बूढ़े होते-होते
न के वल हम शरीर से बूढ़े हो जाते ह, बि क हम आ मा से भी बूढ़े हो जाते ह। न के वल
शरीर दीन-हीन, जीण-जजर हो जाता है, बि क आ मा भी पितत, जीण-जजर हो जाती है।
और इसे ही हम जीवन मान लेते ह और समा हो जाते ह!
धम इस संबंध म संदहे उठाना चाहता है। धम एक बड़ा संदह े है इस संबंध म-- क यह
आदमी क जीवन क या ा गलत है क वग से हम नरक तक प च ं जाएं। होना तो उलटा
चािहए। जीवन क या ा उपलि ध क या ा होनी चािहए-- क हम दुख से आनंद तक
प च ं , हम अंधकार से काश तक प चं , हम मृ यु से अमृत तक प चं जाएं। ाण के ाण
क अिभलाषा और यास भी वही है। ाण म एक ही आकां ा है क मृ यु से अमृत तक
कै से प च ं ? ाण म एक ही यास है क हम अंधकार से आलोक को कै से उपल ध ह ?
ाण क एक ही मांग है क हम अस य से स य तक कै से जा सकते ह?
िनि त ही स य क या ा के िलए, िनि त ही वयं के भीतर परमा मा क खोज के
िलए, ि को ऊजा का एक सं ह चािहए, कं जरवेशन चािहए, ि को शि का एक
संवधन चािहए, उसके भीतर शि इक ी हो क वह शि का एक ोत बन जाए, तभी
ि व को वग तक ले जाया जा सकता है। वग िनबल के िलए नह है। जीवन के स य
उनके िलए नह ह जो दीन-हीन हो जाते ह शि को खोकर। जो जीवन क सारी शि को
खो देते ह और भीतर दुबल और दीन हो जाते ह, वे या ा नह कर सकते। उस या ा पर
चढ़ने के िलए, उन पहाड़ पर चढ़ने के िलए शि चािहए। और शि का संवधन धम का
सू है--शि का संवधन, कं जरवेशन ऑफ एनज । कै से शि इक ी हो क हम शि के
उबलते ए भंडार हो जाएं?
ले कन हम तो दीन-हीन जन ह। सारी शि खोकर हम धीरे -धीरे िनबल होते चले जाते
ह। सब खो जाता है भीतर, र ता रह जाती है एक खाली। भीतर एक खालीपन के
अित र और कु छ भी नह छू टता। हम शि को कै से खो देते ह?
मनु य का शि को खोने का सबसे बड़ा ार से स है। काम मनु य क शि के खोने का
सबसे बड़ा ार है, जहां से वह शि को खोता है। और जैसा मने कल आपसे कहा, कोई
कारण है िजसक वजह से वह शि को खोता है। शि को कोई भी खोना नह चाहता है।
कौन शि को खोना चाहता है? ले कन कु छ झलक है उपलि ध क , उस झलक के िलए
आदमी शि को खोने को राजी हो जाता है। काम के ण म कु छ अनुभव है, उस अनुभव
के िलए आदमी सब कु छ खोने को तैयार हो जाता है। अगर वह अनुभव कसी और माग से
उपल ध हो सके तो मनु य से स के मा यम से शि को खोने को कभी भी तैयार नह हो
सकता।
या और कोई ार है उस अनुभव को पाने का? या और कोई माग है उस अनुभूित को
उपल ध करने का--जहां हम अपने ाण क गहरी से गहरी गहराई म उतर जाते ह, जहां
हम जीवन का ऊंचा से ऊंचा िशखर छू ते ह, जहां हम जीवन क शांित और आनंद क एक
झलक पाते ह? या कोई और माग है? या कोई और माग है अपने भीतर प च ं जाने का?
या वयं क शांित और आनंद के ोत तक प च ं जाने क और कोई सीढ़ी है?
अगर वह सीढ़ी हम दखाई पड़ जाए तो जीवन म एक ांित घ टत हो जाती है, आदमी
काम के ित िवमुख और राम के ित स मुख हो जाता है। एक ांित घ टत हो जाती है,
एक नया ार खुल जाता है।
मनु य क जाित को अगर हम नया ार न दे सक तो मनु य एक रिपटी टव स कल म,
एक पुन ि वाले च र म घूमता है और न होता है। ले कन आज तक से स के संबंध म
जो भी धारणाएं रही ह, वे मनु य को से स के अित र नया ार खोलने म समथ नह
बना पा । बि क एक उलटा उप व आ। कृ ित एक ही ार देती है मनु य को, वह से स
का ार है। अब तक क िश ा ने वह ार भी बंद कर दया और नया ार खोला नह !
शि भीतर घूमने लगी और च र काटने लगी। और अगर नया ार शि के िलए न
िमले, तो घूमती ई शि मनु य को िवि कर देती है, पागल कर देती है। और िवि
मनु य फर न के वल उस ार से, जो से स का सहज ार था, िनकलने क चे ा करता है,
वह दीवाल और िखड़ कय को तोड़ कर भी उसक शि बाहर बहने लगती है। वह
अ ाकृ ितक माग से भी से स क शि बाहर बहने लगती है।
यह दुघटना घटी है। यह मनु य-जाित के बड़े से बड़े दुभा य म से एक है। नया ार नह
खोला गया और पुराना ार बंद कर दया गया। इसिलए म से स के िवरोध म, दु मनी के
िलए, दमन के िलए अब तक जो भी िश ाएं दी गई ह, उन सबके प िवरोध म खड़ा आ
।ं उन सारी िश ा से मनु य क से सुअिलटी बढ़ी है, कम नह ई, बि क िवकृ त ई
है।
या कर ले कन? कोई और ार खोला जा सकता है?
मने आपसे कल कहा, संभोग के ण क जो तीित है, वह तीित दो बात क है:
टाइमलेसनेस और ईगोलेसनेस क । समय शू य हो जाता है और अहंकार िवलीन हो जाता
है। समय शू य होने से और अहंकार िवलीन होने से हम उसक एक झलक िमलती है जो
हमारा वा तिवक जीवन है। ले कन ण भर क झलक और हम वापस अपनी जगह खड़े
हो जाते ह। और एक बड़ी ऊजा, एक बड़ी वै ुितक शि का वाह, इसम हम खो देते ह।
फर उस झलक क याद, मृित मन को पीड़ा देती रहती है। हम वापस उस अनुभव को
पाना चाहते ह, वापस उस अनुभव को पाना चाहते ह। और वह झलक इतनी छोटी है, एक
ण म खो जाती है! ठीक से उसक मृित भी नह रह जाती क या थी झलक, हमने या
जाना था? बस एक धुन, एक अज, एक पागल ती ा रह जाती है फर उस अनुभव को
पाने क । और जीवन भर आदमी इसी चे ा म संल रहता है, ले कन उस झलक को एक
ण से यादा नह पा सकता है।
वही झलक यान के मा यम से भी उपल ध होती है। मनु य क चेतना तक प च ं ने के दो
माग ह--काम और यान, से स और मेिडटेशन। से स ाकृ ितक माग है, जो कृ ित ने दया
आ है। जानवर को भी दया आ है, पि य को भी दया आ है, पौध को भी दया
आ है, मनु य को भी दया आ है। और जब तक मनु य के वल कृ ित के दए ए ार का
उपयोग करता है, तब तक वह पशु से ऊपर नह है। नह हो सकता। वह सारा ार तो
पशु के िलए भी उपल ध है।
मनु यता का ारं भ उस दन से होता है, िजस दन से मनु य से स के अित र एक नया
ार खोलने म समथ हो जाता है। उसके पहले हम मनु य नह ह, नाम मा को मनु य ह।
उसके पहले हमारे जीवन का क पशु का क है, कृ ित का क है। तब तक हम उसके
ऊपर नह उठ पाए, उसे ांसड नह कर पाए, उसका अित मण नह कर पाए; तब तक
हम पशु क भांित ही जीते ह। हमने कपड़े मनु य के पहन रखे ह, हम भाषा मनु य क
बोलते ह, हमने सारा प मनु य का पैदा कर रखा है; ले कन भीतर गहरे से गहरे मन के
तल पर हम पशु से यादा नह होते। नह हो सकते ह। और इसीिलए जरा सा मौका
िमल जाए और हमारी मनु यता को जरा सी छू ट िमल जाए, तो हम त काल पशु हो जाते
ह।
हंद ु तान-पा क तान का बंटवारा आ। और हम दखाई पड़ गया क आदमी के कपड़
के भीतर जानवर बैठा आ है। हम दखाई पड़ गया क वे लोग जो कल मि जद म ाथना
करते थे और मं दर म गीता पढ़ते थे, वे या कर रहे ह? वे ह याएं कर रहे ह, वे बला कार
कर रहे ह, वे सब कु छ कर रहे ह! वे ही लोग जो मं दर और मि जद म दखाई पड़ते थे, वे
ही लोग बला कार करते ए दखाई पड़ने लगे! या हो गया इनको?
अभी दंगा-फसाद हो जाए, अभी यहां दंगा हो जाए, और यह आदमी को दंगे म मौका
िमल जाएगा अपनी आदिमयत से छु ी ले लेने का और फौरन वह जो भीतर िछपा आ
पशु है, कट हो जाएगा! वह हमेशा तैयार है, वह ती ा कर रहा है क मुझे मौका िमल
जाए। भीड़-भाड़ म उसे मौका िमल जाता है, तो वह ज दी से छोड़ देता है अपना खयाल--
वह जो बांध-बूंध कर उसने रखा आ है। भीड़ म मौका िमल जाता है उसे भूल जाने का क
म भूल जाऊं अपने को!
इसिलए आज तक अके ले आदिमय ने उतने पाप नह कए ह, िजतने भीड़ म आदिमय
ने पाप कए ह। अके ला आदमी थोड़ा डरता है क कोई देख लेगा! अके ला आदमी थोड़ा
सोचता है क म यह या कर रहा !ं अके ले आदमी को अपने कपड़ क थोड़ी फ होती
है क लोग या कहगे--जानवर हो! ले कन जब बड़ी भीड़ होती है तो अके ला आदमी
कहता है--अब कौन देखता है! अब कौन पहचानता है! वह भीड़ के साथ एक हो जाता है।
उसक आइड टटी िमट जाती है। अब वह फलां नाम का आदमी नह है, अब एक बड़ी भीड़
है। और बड़ी भीड़ जो करती है वह भी करता है--ह या करता है, आग लगाता है, बला कार
करता है। भीड़ म उसे मौका िमल जाता है क वह अपने पशु को फर से छु ी दे दे, जो
उसके भीतर िछपा है।
और इसीिलए आदमी दस-पांच वष म यु क ती ा करने लगता है, दंग क ती ा
करने लगता है। अगर हंद-ू मुि लम का बहाना िमल जाए तो हंद-ू मुि लम सही, अगर
हंद-ू मुि लम का न िमले तो गुजराती-मराठी भी काम कर सकता है। अगर गुजराती-
मराठी न हो, तो हंदी बोलने वाला और गैर- हंदी बोलने वाला भी काम कर सकता है।
कोई भी बहाना चािहए आदमी को, उसके भीतर के पशु को छु ी चािहए। वह घबरा जाता
है पशु भीतर बंद रहते-रहते। वह कहता है, मुझे कट होने दो।
और आदमी के भीतर का पशु तब तक नह िमटता है, जब तक पशुता का जो सहज माग
है, उसके ऊपर मनु य क चेतना न उठे । पशुता का सहज माग--हमारी ऊजा, हमारी शि
का एक ही ार है बहने का--वह है से स। और वह ार बंद कर द तो क ठनाई खड़ी हो
जाती है। उस ार को बंद करने के पहले नये ार का उदघाटन होना ज री है, जीवन-
चेतना नई दशा म वािहत हो सके ।
ले कन यह हो सकता है; यह आज तक कया नह गया। नह कया गया, य क दमन
सरल मालूम पड़ा, पांतरण क ठन। दबा देना कसी बात को आसान है। बदलना, बदलने
क िविध और साधना क ज रत है। इसिलए हमने सरल माग का उपयोग कया क दबा
दो अपने भीतर।
ले कन हम यह भूल गए क दबाने से कोई चीज न नह होती है, दबाने से और
बलशाली हो जाती है। और हम यह भी भूल गए क दबाने से हमारा आकषण और गहरा
होता है। िजसे हम दबाते ह, वह हमारी चेतना क और गहरी पत म िव हो जाता है।
हम उसे दन म दबा लेते ह, वह सपन म हमारी आंख म झूलने लगता है। हम उसे
रोजमरा दबा लेते ह, वह हमारे भीतर ती ा करता है क कब मौका िमल जाए, कब म
फू ट पडू ,ं िनकल पडू ।ं िजसे हम दबाते ह उससे हम मु नह होते, हम और गहरे अथ म,
और गहराइय म, और अचेतन म, और अनकांशस तक उसक जड़ प च ं जाती ह और वह
हम जकड़ लेता है।
आदमी से स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है, पशु
क तो से स क कोई अविध होती है, कोई पी रयड होता है वष म; आदमी क कोई
अविध न रही, कोई पी रयड न रहा। आदमी चौबीस घंटे, बारह महीने से सुअल है! सारे
जानवर म कोई जानवर ऐसा नह है क जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से
भरा आ हो। उसका व है, उसक ऋतु है; वह आती है और चली जाती है। और फर
उसका मरण भी खो जाता है। आदमी को या हो गया? आदमी ने दबाया िजस चीज को
वह फै ल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फै ल गई है।
कभी आपने इस पर िवचार कया क कोई पशु हर ि थित म, हर समय कामुक नह
होता। ले कन आदमी हर ि थित म, हर समय कामुक है। जैसे कामुकता उबल रही है, जैसे
कामुकता ही सब कु छ है। यह कै से हो गया? यह दुघटना कै से संभव ई है? पृ वी पर िसफ
मनु य के साथ ई है और कसी जानवर के साथ नह -- य ?
एक ही कारण है, िसफ मनु य ने दबाने क कोिशश क है। और िजसे दबाया, वह जहर
क तरह सब तरफ फै ल गया। और दबाने के िलए हम या करना पड़ा? दबाने के िलए हम
नंदा करनी पड़ी, दबाने के िलए हम गाली देनी पड़ी, दबाने के िलए हम अपमानजनक
भावनाएं पैदा करनी पड़ । हम कहना पड़ा क से स पाप है। हम कहना पड़ा क से स
नरक है। हम कहना पड़ा क जो से स म है, वह ग हत है, नं दत है। हम ये सारी गािलयां
खोजनी पड़ , तभी हम दबाने म सफल हो सके । और हम खयाल भी नह क इन नंदा
और गािलय के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया।
नी शे ने एक वचन कहा है, जो ब त अथपूण है। उसने कहा है क धम ने जहर िखला
कर से स को मार डालने क कोिशश क थी। से स मरा तो नह , िसफ जहरीला होकर
जंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नह । ले कन और गड़बड़ हो गई बात। वह
जहरीला भी हो गया और जंदा है।
यह जो से सुअिलटी है, यह जहरीला से स है। से स तो पशु म भी है, काम तो पशु
म भी है, य क काम जीवन क ऊजा है; ले कन से सुअिलटी, कामुकता िसफ मनु य म
है। कामुकता पशु म नह है। पशु क आंख म देख, वहां कामुकता दखाई नह पड़ेगी।
आदमी क आंख म झांक, वहां एक कामुकता का रस झलकता आ दखाई पड़ेगा।
इसिलए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। ले कन दमन करने वाले पागल क कोई सीमा
नह है क वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
मने कल आपको कहा था क अगर हम दुिनया को से स से मु करना है, तो ब े और
बि य को एक-दूसरे के िनकट लाना होगा। इसके पहले क उनम से स जागे--चौदह साल
के पहले--वे एक-दूसरे के शरीर से इतने प प से प रिचत हो ल क वह आकां ा
िवलीन हो जाए।
ले कन अमे रका म अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है। और वह नया आंदोलन वहां
के ब त धा मक लोग चला रहे ह। शायद आपको पता भी न हो, वह नया आंदोलन बड़ा
अदभुत है। वह आंदोलन यह है क सड़क पर गाय, भस, घोड़े, कु ,े िब ली को भी िबना
कपड़ के नह िनकाला जाए, उनको कपड़े पहना कर िनकाला जाए! उनको भी कपड़े
पहनाने चािहए; य क नंगे पशु को देख कर ब े िबगड़ सकते ह! बड़े मजे क बात है।
नंगे पशु को देख कर ब े िबगड़ सकते ह। अमे रका के कु छ नीितशा ी इसके बाबत
आंदोलन और संगठन और सं थाएं बना रहे ह क पशु को भी सड़क पर न नह लाया
जा सके ! आदमी को बचाने क इतनी कोिशश चल रही ह। और कोिशश बचाने क जो
करने वाले लोग ह, वे ही आदमी को न कर रहे ह।
कभी आपने खयाल कया क पशु अपनी न ता म भी अदभुत है और सुंदर है। उसक
न ता म भी वह िनद ष है, सरल और सीधा है। कभी आपको, पशु न है, यह भी खयाल
शायद ही आया हो। जब तक क आपके भीतर ब त नंगापन न िछपा हो, तब तक आपको
पशु नंगा नह दखाई पड़ सकता है। ले कन वे जो भयभीत लोग ह, वे जो डरे ए लोग ह,
वे भय और डर के कारण सब कु छ कर रहे ह आज तक। और उनके सब करने से आदमी रोज
नीचे से नीचे उतरता जा रहा है।
ज रत तो यह है क आदमी भी कसी दन इतना सरल हो क न खड़ा हो सके --
िनद ष और आनंद से भरा आ। ज रत तो यह है! जैसे महावीर जैसा ि न खड़ा हो
गया। लोग कहते ह क उ ह ने कपड़े छोड़े, कपड़ का याग कया। म कहता ,ं न कपड़े
छोड़े, न कपड़ का याग कया; िच इतना िनद ष हो गया होगा, इतना इनोसट, जैसे
छोटे ब का, तो वे न खड़े हो गए ह गे। य क ढांकने को जब कु छ भी नह रह जाता
तो आदमी न हो सकता है। जब तक ढांकने को कु छ है हमारे भीतर, तब तक आदमी अपने
को िछपाएगा। जब ढांकने को कु छ भी नह है, तो न हो सकता है। चािहए तो एक ऐसी
पृ वी क आदमी भी इतना सरल होगा क न होने म भी उसे कोई प ा ाप, कोई पीड़ा
न होगी। न होने म भी उसे कोई अपराध न होगा।
आज तो हम कपड़े पहन कर भी अपराधी मालूम होते ह! हम कपड़े पहन कर भी नंगे ह!
और ऐसे लोग भी रहे ह, जो न होकर भी न नह थे।
नंगापन मन क एक वृि है।
सरलता, िनद ष िच -- फर न ता भी साथक हो जाती है, अथपूण हो जाती है; वह भी
एक स दय ले लेती है।
ले कन अब तक आदमी को जहर िपलाया गया है। और जहर का प रणाम यह आ क
हमारा सारा जीवन एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक िवषा हो गया है।
ि य को हम कहते ह, पित को परमा मा समझना! और उन ि य को बचपन से
िसखाया गया है क से स पाप है, नरक है। वे कल िववािहत ह गी। वे उस पित को कै से
परमा मा मान सकगी जो उ ह से स म और नरक म ले जा रहा है? एक तरफ हम िसखाते
ह पित परमा मा है और प ी का अनुभव कहता है क यही पहला पापी है जो मुझे नरक म
घसीट रहा है।
एक बहन ने मुझे आकर कहा--िपछली मी टंग म जब म यहां बोला, भारतीय िव ाभवन
म, तो एक बहन मेरे पास उसी दन आई और उसने कहा-- क म ब त गु से म ,ं म ब त
ोध म ।ं से स तो बड़ी घृिणत चीज है। से स तो पाप है। और आपने से स क इतनी
बात य क ? म तो घृणा करती ं से स को।
अब यह प ी है, इसका पित है, इसके ब े ह, बि यां ह; और यह प ी से स को घृणा
करती है! यह पित को कै से ेम कर सकती है जो इसे से स म ले जा रहा है? यह उन ब
को कै से ेम कर सकती है जो से स से पैदा हो रहे ह? इसका ेम जहरीला रहेगा। इसके
ेम म जहर िछपा रहेगा। पित और इसके बीच एक बुिनयादी दीवाल खड़ी रहेगी। ब
और इसके बीच एक बुिनयादी दीवाल खड़ी रहेगी। य क वह से स क दीवाल और
से स क कं डेमनेशन क वृि बीच म खड़ी है। ये ब े पाप से आए ह। यह पित और मेरे
बीच पाप का संबंध है। और िजनके साथ पाप का संबंध है, उनके ित हम मै ीपूण हो
सकते ह? पाप के ित हम मै ीपूण हो सकते ह?
सारी दुिनया का गृह थ जीवन न कया है से स को गाली देने वाले, नंदा करने वाले
लोग ने। और वे इसे न करके जो दु प रणाम लाए ह, वह यह नह है क से स से लोग
मु हो गए ह । जो पित अपनी प ी और अपने बीच एक दीवाल पाता है पाप क , वह
प ी से कभी भी तृि अनुभव नह कर पाता। तो आस-पास क ि य को खोजता है,
वे या को खोजता है। खोजेगा। अगर प ी से उसे तृि िमल गई होती तो शायद इस
जगत क सारी ि यां उसके िलए मां और बहन हो जात । ले कन प ी से भी तृि न
िमलने के कारण सारी ि यां उसे पोटिशयल औरत क तरह, पोटिशयल पि य क तरह
मालूम पड़ती ह, िजनको प ी म बदला जा सकता है।
यह वाभािवक है, यह होने वाला था। यह होने वाला था, य क जहां तृि िमल सकती
थी, वहां जहर है, वहां पाप है, और तृि नह िमलती है। और वह चार तरफ भटकता है
और खोजता है। और या- या ईजाद करता है खोज कर आदमी! अगर उन सारी ईजाद
को हम सोचने बैठ तो घबरा जाएंगे क आदमी ने या- या ईजाद क ह! ले कन एक
बुिनयादी बात पर खयाल नह कया क वह जो ेम का कु आं था, वह जो काम का कु आं
था, वह जहरीला बना दया गया है।
और जब पित और प ी के बीच जहर का भाव हो, घबराहट का भाव हो, पाप का भाव
हो, तो फर यह पाप क भावना पांतरण नह करने देगी। अ यथा मेरी समझ यह है क
एक पित और प ी अगर एक-दूसरे के ित समझपूवक ेम से भरे ए, आनंद से भरे ए
और से स के ित िबना नंदा के से स को समझने क चे ा करगे, तो आज नह कल उनके
बीच का संबंध पांत रत हो जाने वाला है। यह हो सकता है क कल वही प ी मां जैसी
दखाई पड़ने लगे।
गांधीजी उ ीस सौ तीस के करीब ीलंका गए थे। उनके साथ क तूरबा साथ थ ।
संयोजक ने समझा क शायद गांधीजी क मां साथ आई ई ह, य क गांधीजी क तूरबा
को खुद भी बा ही कहते थे। लोग ने समझा क शायद उनक मां ह गी। संयोजक ने
प रचय देते ए कहा क गांधीजी आए ह और बड़े सौभा य क बात है क उनक मां भी
साथ आई ई ह। वह उनके बगल म बैठी ई ह।
गांधीजी के से े टरी तो घबरा गए क यह तो भूल हमारी है, हम बताना था क साथ म
कौन है। ले कन अब तो बड़ी देर हो चुक थी। गांधी तो मंच पर जाकर बैठ भी गए थे और
बोलना शु कर दया था। से े टरी घबड़ाए ए ह क गांधी पीछे या कहगे! उ ह क पना
भी नह हो सकती थी क गांधी नाराज नह ह गे, य क ऐसे पु ष ब त कम ह जो प ी
को मां बनाने म समथ हो जाते ह। ले कन गांधीजी ने कहा क सौभा य क बात है क िजन
िम ने मेरा प रचय दया है, उ ह ने भूल से एक स ी बात कह दी है। क तूरबा कु छ वष
से मेरी मां हो गई है। कभी वह मेरी प ी थी। ले कन अब वह मेरी मां है।
इस बात क संभावना है क अगर पित और प ी काम को, संभोग को समझने क चे ा
कर, तो एक-दूसरे के िम बन सकते ह और एक-दूसरे के काम के पांतरण म सहयोगी
और साथी हो सकते ह। और िजस दन कोई पित और प ी अपने आपस के संभोग के संबंध
को पांत रत करने म सफल हो जाते ह, उस दन उनके जीवन म पहली दफे एक-दूसरे के
ित अनु ह और े ट ूड का भाव पैदा होता है, उसके पहले नह । उसके पहले वे एक-
दूसरे के ित ोध से भरे रहते ह, उसके पहले वे एक-दूसरे के बुिनयादी श ु बने रहते ह,
उसके पहले उनके बीच एक संघष है, मै ी नह ।
मै ी उस दन शु होती है िजस दन वे एक-दूसरे के साथी बनते ह और उनके काम क
ऊजा को पांतरण करने म मा यम बन जाते ह। उस दन एक अनु ह, एक े ट ूड, एक
कृ त ता का भाव ापन होता है। उस दन पु ष आदर से भरता है ी के ित, य क ी
ने उसे कामवासना से मु होने म सहायता प च ं ाई। उस दन ी अनुगृहीत होती है पु ष
के ित क उसने उसे साथ दया और उसक वासना से मुि दलवाई। उस दन वे स ी
मै ी म बंधते ह, जो काम क नह , ेम क मै ी है। उस दन उनका जीवन ठीक उस दशा
म जाता है, जहां प ी के िलए पित परमा मा हो जाता है और पित के िलए प ी परमा मा
हो जाती है--उस दन!
ले कन वह कु आं तो िवषा कर दया गया है। इसिलए मने कल कहा क मुझसे बड़ा
श ु से स का खोजना क ठन है। ले कन मेरी श ुता का यह मतलब नह है क म से स को
गाली दूं और नंदा क ं । मेरी श ुता का मतलब यह है क म से स को पांत रत करने के
संबंध म दशा-सूचन क ं । म आपको क ं क वह कै से पांत रत हो सकता है। म कोयले
का दु मन ,ं य क म कोयले को हीरा बनाना चाहता ।ं म से स को पांत रत करना
चाहता ।ं वह कै से पांत रत होगा? उसक या िविध होगी?
मने आपसे कहा, एक ार खोलना ज री है--नया ार।
ब े जैसे ही पैदा होते ह, वैसे ही उनके जीवन म से स का आगमन नह हो जाता है।
अभी देर है। अभी शरीर शि इक ी करे गा। अभी शरीर के अणु मजबूत ह गे। अभी उस
दन क ती ा है जब शरीर पूरा तैयार हो जाएगा, ऊजा इक ी होगी। और ार जो बंद
रहा है चौदह वष तक, वह खुल जाएगा ऊजा के ध े से, और से स क दुिनया शु होगी।
एक बार ार खुल जाने के बाद नया ार खोलना क ठन हो जाता है। य क सम त
ऊजा का िनयम यह है, सम त शि य का, वे एक दफा अपना माग खोज ल बहने के
िलए तो वे उसी माग से बहना पसंद करती ह।
गंगा बह रही है सागर क तरफ, उसने एक बार रा ता खोज िलया। अब वह उसी रा ते
से बही चली जाती है, बही चली जाती है। रोज-रोज नया पानी आता है, उसी रा ते से
बहता आ चला जाता है। गंगा रोज नये रा ते नह खोजती है।
जीवन क ऊजा भी एक रा ता खोज लेती है, फर वह उसी से बहती चली जाती है।
अगर जमीन को कामुकता से मु करना है, तो से स का रा ता खुलने के पहले नया
रा ता-- यान का रा ता--तोड़ देना ज री है। एक-एक छोटे ब े को यान क अिनवाय
िश ा और दी ा िमलनी चािहए।
पर हम तो उसे से स के िवरोध क दी ा देते ह, जो क अ यंत मूखतापूण है। से स के
िवरोध क दी ा नह देनी है। िश ा देनी है यान क , पािज टव, क वह यान को कै से
उपल ध हो। और ब े यान को ज दी उपल ध हो सकते ह। य क अभी उनक ऊजा का
कोई भी ार खुला नह है। अभी ार बंद है, अभी ऊजा संरि त है, अभी कह भी नये ार
पर ध े दए जा सकते ह और नया ार खोला जा सकता है। फर यही बूढ़े हो जाएंगे और
इ ह यान म प च ं ना अ यंत क ठन हो जाएगा।
ऐसे ही, जैसे एक नया पौधा पैदा होता है, उसक शाखाएं कह भी झुक जाती ह, कह
भी झुकाई जा सकती ह। फर वही बूढ़ा वृ हो जाता है। फर हम उसक शाखा को
झुकाने क कोिशश करते ह। फर शाखाएं टू ट जाती ह, झुकती नह ।
बूढ़े लोग यान क चे ा करते ह दुिनया म, जो िबलकु ल ही गलत है। यान क सारी
चे ा छोटे ब पर क जानी चािहए। ले कन मरने के करीब प च ं कर आदमी यान म
उ सुक होता है! वह पूछता है-- यान या? योग या? हम कै से शांत हो जाएं? जब जीवन
क सारी ऊजा खो गई, जब जीवन के सब रा ते स त और मजबूत हो गए, जब झुकना
और बदलना मुि कल हो गया, तब वह पूछता है, अब म कै से बदल जाऊं? एक पैर आदमी
क म डाल लेता है और दूसरा पैर बाहर रख कर पूछता है, यान का कोई रा ता है?
अजीब सी बात है। िबलकु ल पागलपन क बात है। यह पृ वी कभी भी शांत और
यान थ नह हो सके गी, जब तक यान का संबंध पहले दन के पैदा ए ब े से हम न
जोड़गे। अंितम दन के वृ से नह जोड़ा जा सकता। थ ही हम ब त म उठाना पड़ता
है बाद के दन म शांत होने के िलए, जो क पहले एकदम हो सकता था।
छोटे ब को यान क दी ा, काम के पांतरण का पहला चरण है--शांत होने क
दी ा, िन वचार होने क दी ा, मौन होने क दी ा। ब े ऐसे भी मौन ह, ब े ऐसे भी
शांत ह। अगर उ ह थोड़ी सी दशा दी जाए और उ ह मौन और शांत होने के िलए घड़ी भर
क िश ा दी जाए, तो जब वे चौदह वष के होने के करीब आएंगे, जब काम जगेगा, तब
तक उनका एक ार खुल चुका होगा। शि इक ी होगी और जो ार खुला है उसी ार से
बहनी शु हो जाएगी। उ ह शांित का, आनंद का, कालहीनता का, िनरहंकार भाव का
अनुभव से स के ब त अनुभव के पहले उपल ध हो जाएगा। वही अनुभव उनक ऊजा को
गलत माग से रोके गा और ठीक माग पर ले आएगा।
ले कन हम छोटे-छोटे ब को यान तो नह िसखाते, काम का िवरोध िसखाते ह! पाप
है, गंदगी है, कु पता है, बुराई है, नरक है--यह सब हम बताते ह! और इस सबके बताने से
कु छ भी फक नह पड़ता, कु छ भी फक नह पड़ता। बि क हमारे बताने से वे और भी
आक षत होते ह और तलाश करते ह क या है यह गंदगी, या है यह नरक, िजसके िलए
बड़े इतने भयभीत और बेचैन ह?
और फर थोड़े ही दन म उ ह यह भी पता चल जाता है क बड़े िजस बात से हम
रोकने क कोिशश कर रहे ह, खुद दन-रात उसी म लीन ह। और िजस दन उ ह यह पता
चल जाता है, मां-बाप के ित सारी ा समा हो जाती है।
मां-बाप के ित ा समा करने म िश ा का हाथ नह है। मां-बाप के ित ा
समा करने म मां-बाप का अपना हाथ है। आप िजन बात के िलए ब को गंदा कहते ह,
ब े ब त ज दी पता लगा लेते ह क उन सारी गंदिगय म आप भलीभांित लवलीन ह।
आपक दन क जंदगी दूसरी है और रात क दूसरी। आप कहते कु छ ह, करते कु छ ह। छोटे
ब े ब त ए यूट आ जवर होते ह। वे ब त गौर से िनरी ण करते रहते ह क या हो रहा
है घर म! वे देखते ह क मां िजस बात को गंदा कहती है, बाप िजस बात को गंदा कहता है,
वही गंदी बात दन-रात घर म चल रही है। इसका उ ह ब त ज दी बोध हो जाता है।
उनका सारा ा का भाव िवलीन हो जाता है-- क धोखेबाज ह ये मां-बाप! पाखंडी ह!
िहपो े ट ह! ये बात कु छ और कहते ह, करते कु छ और ह।
और िजन ब का मां-बाप पर से िव ास उठ गया, वे ब े परमा मा पर कभी िव ास
नह कर सकगे, इसको याद रखना। य क ब के िलए परमा मा का पहला दशन मां-
बाप म होता है। अगर वही खंिडत हो गया, तो ये ब े भिव य म नाि तक हो जाने वाले ह।
ब को पहले परमा मा क तीित अपने मां-बाप क पिव ता से होती है। पहली दफा
ब े मां-बाप को ही जानते ह िनकटतम और उनसे ही उ ह पहली दफा ा और रवरस
का भाव पैदा होता है। अगर वही खंिडत हो गया, तो इन ब को मरते दम तक वापस
परमा मा के रा ते पर लाना मुि कल हो जाएगा। य क पहला परमा मा ही धोखा दे
गया। जो मां थी, जो बाप था, वही धोखेबाज िस आ।
आज सारी दुिनया म जो लड़के यह कह रहे ह क कोई परमा मा नह है, कोई आ मा
नह है, कोई मो नह है, धम सब बकवास है--उसका कारण यह नह है क लड़क ने
पता लगा िलया है क आ मा नह है, परमा मा नह है। उसका कारण यह है क लड़क ने
मां-बाप का पता लगा िलया है क वे धोखेबाज ह। और यह सारा धोखा से स के आस-
पास क त है। यह सारा धोखा से स के क पर खड़ा आ है।
ब को यह िसखाने क ज रत नह क से स पाप है, बि क ईमानदारी से यह िसखाने
क ज रत है क से स जंदगी का एक िह सा है और तुम से स से ही पैदा ए हो और
हमारी जंदगी म वह है। ता क ब े सरलता से मां-बाप को समझ सक और जब जीवन को
वे जान तो वे आदर से भर सक क मां-बाप स े और ईमानदार थे। उनको जीवन म
आि तक बनाने म इससे बड़ा संबल और कु छ भी नह होगा क वे अपने मां-बाप को स ा
और ईमानदार अनुभव कर सक।
ले कन आज सब ब े जानते ह क मां-बाप बेईमान और धोखेबाज ह। यह ब े और मां-
बाप के
बीच एक कलह का कारण बनता है। से स का दमन पित और प ी को तोड़ दया है।
मां-बाप और ब को तोड़ दया है।
नह , से स का िवरोध नह , नंदा नह , बि क से स क िश ा दी जानी चािहए। जैसे ही
ब े पूछने को तैयार हो जाएं, जो भी ज री मालूम पड़े, जो उनके समझ के यो य मालूम
पड़े, वह सब उ ह बता दया जाना चािहए। ता क वे से स के संबंध म अित उ सुक न ह ;
ता क उनका आकषण न पैदा हो; ता क वे दीवाने होकर गलत रा त से जानकारी पाने क
कोिशश न कर।
आज ब े सब जानकारी पा लेते ह यहां-वहां से। गलत माग से, गलत लोग से उ ह
जानकारी िमलती है, जो जीवन भर उ ह पीड़ा देती है। और मां-बाप और उनके बीच एक
मौन क दीवार होती है, जैसे मां-बाप को कु छ भी पता नह और ब को भी कु छ पता
नह ! उ ह से स क स यक िश ा िमलनी चािहए--राइट एजुकेशन।
और दूसरी बात, उ ह यान क दी ा िमलनी चािहए--कै से मौन ह , कै से शांत ह , कै से
िन वचार ह । और ब े त ण िन वचार हो सकते ह, मौन हो सकते ह, शांत हो सकते ह।
चौबीस घंटे म एक घंटे अगर ब को घर म मौन म ले जाने क व था हो--िनि त ही,
वे मौन म तभी जा सकगे, जब आप भी उनके साथ मौन बैठ सक। हर घर म एक घंटा मौन
का अिनवाय होना चािहए। एक दन खाना न िमले घर म तो चल सकता है, ले कन एक
घंटा मौन के िबना घर नह चल सकता है। वह घर झूठा है, उस घर को प रवार कहना
गलत है, िजस प रवार म एक घंटे के मौन क दी ा नह है।
वह एक घंटे का मौन चौदह वष म उस दरवाजे को तोड़ देगा--रोज ध े मारे गा--उस
दरवाजे को तोड़ देगा, िजसका नाम यान है। िजस यान से मनु य को समयहीन,
टाइमलेसनेस, ईगोलेसनेस, अहंकार-शू य अनुभव होता है, जहां से आ मा क झलक
िमलती है। वह झलक से स के अनुभव के पहले िमल जानी ज री है। अगर वह झलक
िमल जाए तो से स के ित अितशय दौड़ समा हो जाएगी। ऊजा इस नये माग से बहने
लगेगी।
यह म पहला चरण कहता ।ं चय क साधना म, से स के ऊपर उठने क साधना म,
से स क ऊजा के ांसफामशन के िलए पहला चरण है यान। और दूसरा चरण है ेम। ब े
को बचपन से ही ेम क दी ा दी जानी चािहए।
हम अब तक यही सोचते रहे ह क ेम क िश ा मनु य को से स म ले जाएगी। यह
बात अ यंत ांत है। से स क िश ा तो मनु य को ेम म ले जा सकती है, ले कन ेम क
िश ा कभी कसी मनु य को से स म नह ले जाती। बि क स ाई उलटी है। िजतना ेम
िवकिसत होता है, उतनी ही से स क ऊजा ेम म पांत रत होकर बंटनी शु हो जाती
है।
जो लोग िजतने कम ेम से भरे होते ह, उतने ही यादा कामुक ह गे, उतने ही से सुअल
ह गे।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही यादा घृणा होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतना ही िव ष े होगा।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही ई या होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उतनी ही उनके जीवन म ित पधा होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही चंता और दुख होगा।
दुख, चंता, ई या, घृणा, ष
े , इन सबसे जो आदमी िजतना यादा िघरा है, उसक
शि यां सारी क सारी भीतर इक ी हो जाती ह। उनके िनकास का कोई माग नह रह
जाता। उनके िनकास का एक ही माग रह जाता है--वह से स है।
ेम शि य का िनकास बनता है। ेम बहाव है। एशन, सृजना मक है ेम, इसिलए
वह बहता है और एक तृि लाता है। वह तृि से स क तृि से ब त यादा क मती और
गहरी है। िजसे वह तृि िमल गई--वह फर कं कड़-प थर नह बीनता, िजसे हीरे -
जवाहरात िमलने शु हो जाते ह।
ले कन घृणा से भरे आदमी को वह तृि कभी नह िमलती है। घृणा म वह तोड़ देता है
चीज को। ले कन तोड़ने से कभी कसी आदमी को कोई तृि नह िमलती। तृि िमलती है
िनमाण करने से। ष े से भरा आदमी संघष करता है। ले कन संघष से कोई तृि नह
िमलती। तृि िमलती है दान से, देने से; छीन लेने से नह । संघष करने वाला छीन लेता है।
छीनने से वह तृि कभी नह िमलती, जो कसी को दे देने से और दान से उपल ध होती है।
मह वाकां ी आदमी एक पद से दूसरे पद क या ा करता रहता है, ले कन कभी भी
शांत नह हो पाता। शांत वे होते ह, जो पद क या ा नह , बि क ेम क या ा करते ह।
जो ेम के एक तीथ से दूसरे तीथ क या ा करते ह।
िजतना आदमी ेमपूण होता है, उतनी तृि , एक कं टटमट, एक गहरा संतोष, एक आनंद
का भाव, एक उपलि ध का भाव उसके ाण के रग-रग म बहने लगता है। उसके सारे
शरीर से एक रस झलकने लगता है, जो तृि का रस है, जो आनंद का रस है। वैसा तृ
आदमी से स क दशा म नह जाता। जाने के िलए, रोकने के िलए चे ा नह करनी
पड़ती; वह जाता ही नह । य क यही तृि ण भर को से स से िमलती थी, ेम से यह
तृि चौबीस घंटे को िमल जाती है।
तो दूसरी दशा है-- क ि व का अिधकतम िवकास ेम के माग पर होना चािहए।
हम ेम कर, हम ेम द, हम ेम म जीएं। और ज री नह है क हम ेम मनु य को ही दगे
तभी ेम क दी ा होगी। ेम क दी ा तो पूरे ि व के ेमपूण होने क दी ा है, वह
तो टु बी ल वंग होने क दी ा है। एक प थर को भी हम उठाएं तो ऐसे उठा सकते ह जैसे
िम को उठा रहे ह, और एक आदमी का हाथ भी हम ऐसे पकड़ सकते ह जैसे श ु का हाथ
पकड़े ए ह। एक आदमी व तु के साथ भी ेमपूण वहार कर सकता है, एक आदमी
आदिमय के साथ भी ऐसा वहार करता है जैसा व तु के साथ भी नह करना चािहए।
घृणा से भरा आ आदमी व तुएं समझता है मनु य को। ेम से भरा आ आदमी व तु
को भी ि व देता है।
एक फक र से िमलने एक जमन या ी गया आ था। वह कसी ोध म होगा। उसने
दरवाजे पर जोर से जूते खोल दए, जूत को पटका, ध ा दया दरवाजे को जोर से।
ोध म आदमी जूते भी खोलता है तो ऐसे जैसे जूते दु मन ह । दरवाजा भी खोलता है
तो ऐसे जैसे दरवाजे से कोई झगड़ा हो!
दरवाजे को ध ा देकर वह भीतर गया। उस फक र से जाकर नम कार कया। उस फक र
ने कहा क नह , अभी म नम कार का उ र न दे सकूं गा। पहले तुम दरवाजे से और जूत से
मा मांग आओ।
उस आदमी ने कहा, आप पागल हो गए ह? दरवाज और जूत से मा! या उनका भी
कोई ि व है?
उस फक र ने कहा, तुमने ोध करते समय कभी भी न सोचा क इनका कोई ि व
है। तुमने जूते ऐसे पटके जैसे उनम जान हो, जैसे उनका कोई कसूर हो; तुमने दरवाजा ऐसे
खोला जैसे क तुम दु मन हो। नह , जब तुमने ोध करते व उनका ि व मान िलया,
तो पहले जाओ मा मांग कर आ जाओ, तब म तुमसे आगे बात क ं गा, अ यथा म बात
करने को नह ।ं
अब वह आदमी दूर जमनी से उस फक र को िमलने गया था, इतनी सी बात पर
मुलाकात न हो सके गी। मजबूरी थी। उसे जाकर दरवाजे पर हाथ जोड़ कर मा मांगनी
पड़ी क िम , मा कर दो! जूत को कहना पड़ा, माफ क रए, भूल हो गई हमने जो
आपको इस भांित गु से म खोला!
उस जमन या ी ने िलखा है क ले कन जब म मा मांग रहा था तो पहले तो मुझे हंसी
आई क म या पागलपन कर रहा !ं ले कन जब म मा मांग चुका तो म हैरान आ,
मुझे एक इतनी शांित मालूम ई िजसक मुझे क पना नह हो सकती थी क दरवाजे और
जूत से मा मांग कर शांित िमल सकती है! म जाकर उस फक र के पास बैठा, वह हंसने
लगा। और उसने कहा, अब ठीक, अब कु छ बात हो सकती है। तुमने थोड़ा ेम जािहर
कया, अब तुम संबंिधत हो सकते हो, समझ भी सकते हो; य क अब तुम फु ि लत हो,
अब तुम आनंद से भर गए हो।
सवाल मनु य के साथ ही ेमपूण होने का नह , ेमपूण होने का है। यह सवाल नह है
क मां को ेम दो! ये गलत बात ह। जब कोई मां अपने ब े को कहती है क म तेरी मां ं
इसिलए ेम कर, तब वह गलत िश ा दे रही है। य क िजस ेम म ‘इसिलए’ लगा आ
है, ‘देयरफोर’, वह ेम झूठा है। जो कहता है, इसिलए ेम करो क म बाप ,ं वह गलत
िश ा दे रहा है। वह कारण बता रहा है ेम का। ेम अकारण होता है, ेम कारण सिहत
नह होता। मां कहती है, म तेरी मां ,ं मने तुझे इतने दन पाला-पोसा, बड़ा कया,
इसिलए ेम कर! वह वजह बता रही है, ेम ख म हो गया। अगर वह ेम भी होगा तो
ब ा झूठा ेम दखाने क कोिशश करे गा-- य क यह मां है, इसिलए ेम दखाना पड़
रहा है।
नह , ेम क िश ा का मतलब है: ेम का कारण नह , ेमपूण होने क सुिवधा और
व था क ब ा ेमपूण हो सके ।
जो मां कहती है, मुझसे ेम कर, य क म मां ,ं वह ेम नह िसखा रही। उसे यह
कहना चािहए क यह तेरा ि व, यह तेरे भिव य, यह तेरे आनंद क बात है क जो भी
तेरे माग पर पड़ जाए, तू उससे ेमपूण हो--प थर पड़ जाए, फू ल पड़ जाए, आदमी पड़
जाए, जानवर पड़ जाए। यह सवाल जानवर को ेम देने का नह , फू ल को ेम देने का
नह , मां को ेम देने का नह , तेरे ेमपूण होने का है! य क तेरा भिव य इस पर िनभर
करे गा क तू कतना ेमपूण है, तेरा ि व कतना ेम से भरा आ है, उतना तेरे जीवन
म आनंद क संभावना बढ़ेगी।
ेमपूण होने क िश ा चािहए मनु य को, तो वह कामुकता से मु हो सकता है।
ले कन हम तो ेम क कोई िश ा नह देते। हम तो ेम का कोई भाव पैदा नह करते।
हम तो ेम के नाम पर भी जो बात करते ह, वह झूठ ही िसखाते ह उनको।
या आपको पता है क एक आदमी एक के ित ेमपूण है और दूसरे के ित घृणापूण हो
सकता है? यह असंभव है। ेमपूण आदमी ेमपूण होता है, आदिमय से कोई संबंध नह है
उस बात का। अके ले म बैठता है तो भी ेमपूण होता है। कोई नह होता तो भी ेमपूण
होता है। ेमपूण होना उसके वभाव क बात है। वह आपसे संबंिधत होने का सवाल नह ।
ोधी आदमी अके ले म भी ोधपूण होता है। घृणा से भरा आदमी अके ले म भी घृणा से
भरा होता है। वह अके ले भी बैठा है तो आप उसको देख कर कह सकते ह क यह आदमी
ोधी है। हालां क वह कसी पर ोध नह कर रहा है। ले कन उसका सारा ि व ोधी
है। ेमपूण आदमी अगर अके ले म भी बैठा है तो आप कहगे, यह आदमी कतने ेम से भरा
आ बैठा है।
फू ल एकांत म िखलते ह जंगल के तो वहां भी सुगंध िबखेरते रहते ह, चाहे कोई सूंघने
वाला हो या न हो। रा ते से कोई िनकले या न िनकले, फू ल सुगंिधत होता रहता है। फू ल
का सुगंिधत होना वभाव है। इस भूल म आप मत पड़ना क आपके िलए सुगंिधत हो रहा
है।
ेमपूण होना ि व बनाना चािहए। वह हमारा ि व हो, इससे कोई संबंध नह
क वह कसके ित।
ले कन िजतने ेम करने वाले लोग ह, वे सोचते ह क मेरे ित ेमपूण हो जाए, और
कसी के ित नह । और उनको पता नह क जो सबके ित ेमपूण नह , वह कसी के
ित ेमपूण नह हो सकता! प ी कहती है पित से, मुझे ेम करना बस! फर आ गया
टाप, फर इधर-उधर कह देखना मत, फर और कह तु हारे ेम क जरा सी धारा न
बहे, बस ेम यानी इस तरफ। और उस प ी को पता नह क यह ेम झूठा वह अपने हाथ
से कए ले रही है। जो पित ेमपूण नह है हर ि थित म, हरे क के ित, वह प ी के ित भी
ेमपूण कै से हो सकता है? ेमपूण चौबीस घंटे के जीवन का वभाव
है। वह ऐसी कोई बात नह क हम कसी के ित ेमपूण हो जाएं और कसी के ित
ेमहीन हो जाएं।
ले कन आज तक मनु यता इसको समझने म समथ नह हो पाई! बाप कहता है क मेरे
ित ेमपूण! ले कन घर म जो चपरासी है उसके ित? वह तो नौकर है! ले कन उसे पता
नह क जो बेटा एक बूढ़े नौकर के ित ेमपूण नह हो पाया है--वह बूढ़ा नौकर भी कसी
का बाप है--वह आज नह कल जब उसका बाप भी बूढ़ा हो जाएगा, उसके ित भी ेमपूण
नह रह जाएगा। तब यह बाप पछताएगा क मेरा लड़का मेरे ित ेमपूण नह है। ले कन
इस बाप को पता ही नह क लड़का ेमपूण हो सकता था उसके ित भी, अगर जो भी
आस-पास थे, सबके ित ेमपूण होने क िश ा दी गई होती तो वह इसके ित भी ेमपूण
होता।
ेम वभाव क बात है, संबंध क बात नह है।
ेम रलेशनिशप नह है, ेम है टेट ऑफ माइं ड। वह मनु य के ि व का भीतरी अंग
है।
तो हम ेमपूण होने क दूसरी दी ा दी जानी चािहए--एक-एक चीज के ित। अगर
ब ा एक कताब को भी गलत ढंग से रखे तो गलती बात है, उसे उसी ण टोकना चािहए
क यह तु हारे ि व के िलए शोभादायक नह क तुम इस भांित कताब को रखो। कोई
देखेगा, कोई सुनेगा, कोई पाएगा क तुम कताब के साथ दु वहार कए हो! तुम एक कु े
के साथ गलत ढंग से पेश आए हो! यह तु हारे ि व क गलती है।
एक फक र के बाबत मुझे खयाल आता है। एक छोटा सा फक र का झोपड़ा था। रात थी,
जोर से वषा होती थी। रात के बारह बजे ह गे, फक र और उसक प ी दोन सोते थे,
कसी आदमी ने दरवाजे पर द तक दी। छोटा था झोपड़ा, कोई शायद शरण चाहता है।
उसक प ी से उसने कहा क ार खोल दे, कोई ार पर खड़ा है, कोई या ी, कोई
अप रिचत िम ।
सुनते ह उसक बात? उसने कहा, कोई अप रिचत िम ! हमारे तो जो प रिचत ह, वे भी
िम नह होते। उसने कहा, कोई अप रिचत िम ! यह ेम का भाव है।
कोई अप रिचत िम ार पर खड़ा है, ार खोल!
उसक प ी ने कहा, ले कन जगह तो ब त कम है, हम दो के लायक ही मुि कल से है।
कोई तीसरा आदमी भीतर आएगा तो हम या करगे?
उस फक र ने कहा, पागल, यह कसी अमीर का महल नह है क छोटा पड़ जाए, यह
गरीब क झोपड़ी है। अमीर का महल छोटा पड़ जाता है हमेशा, एक मेहमान आ जाए तो
महल छोटा पड़ जाता है। यह गरीब क झोपड़ी है।
उसक प ी ने कहा, इसम झोपड़ी...अमीर और गरीब या सवाल? जगह छोटी है।
उस फक र ने कहा, जहां दल म जगह बड़ी हो वहां झोपड़ा महल क तरह मालूम होता
है और जहां दल म छोटी जगह हो वहां झोपड़ा तो या महल भी छोटा और झोपड़ा हो
जाता है। ार खोल दे! ार पर खड़े ए आदमी को वापस कै से लौटाया जा सकता है?
अभी हम दोन लेटे थे, अब तीन लेट नह सकगे, तीन बैठगे, बैठने के िलए काफ जगह है।
मजबूरी थी, प ी को दरवाजा खोल देना पड़ा। एक िम आ गया, पानी से भीगा आ।
उसके कपड़े बदले। फर वे तीन बैठ कर गपशप करने लगे। दरवाजा फर बंद है।
फर क ह दो आदिमय ने दरवाजे पर द तक दी। अब उस फक र ने उस िम को कहा-
-वह दरवाजे के पास था-- क दरवाजा खोल दो, मालूम होता है कोई आया।
उस आदमी ने कहा, कै से खोल दूं दरवाजा, जगह कहां है यहां?
वह आदमी अभी दो घड़ी पहले आया था खुद और भूल गया यह बात क िजस ेम ने
मुझे जगह दी थी, वह मुझे जगह नह दी थी, ेम था उसके भीतर इसिलए जगह दी थी।
अब फर कोई दूसरा आ गया, फर जगह बनानी पड़ेगी। ले कन उस आदमी ने कहा, नह ,
दरवाजा खोलने क ज रत नह ; मुि कल से हम तीन बैठे ए ह!
वह फक र हंसने लगा। उसने कहा, बड़े पागल हो! मने तु हारे िलए जगह नह क थी,
ेम था इसिलए जगह क थी। ेम अब भी है, वह तुम पर चुक नह गया और समा नह
हो गया। दरवाजा खोलो! अभी हम दूर-दूर बैठे ह, फर हम पास-पास बैठ जाएंगे। पास-
पास बैठने के िलए काफ जगह है। और रात ठं डी है, पास-पास बैठने म आनंद ही और
होगा।
दरवाजा खोलना पड़ा। दो आदमी भीतर आ गए। फर वे पास-पास बैठ कर गपशप
करने लगे। और थोड़ी ही देर बीती है और रात आगे बढ़ गई है और वषा हो रही है, और
एक गधे ने आकर िसर लगाया दरवाजे से। पानी म भीग गया है। वह रात शरण चाहता है।
उस फक र ने कहा क िम ो--वे दो िम दरवाजे पर बैठे ए थे जो पीछे आए थे--दरवाजा
खोल दो! कोई अप रिचत िम फर आ गया।
उन लोग ने कहा, यह िम वगैरह नह है, यह गधा है। इसके िलए ार खोलने क कोई
ज रत नह ।
उस फक र ने कहा, तु ह शायद पता नह , अमीर के दरवाजे पर आदमी के साथ भी गधे
जैसा वहार कया जाता है। यह गरीब क झोपड़ी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा
वहार करने क आदत से भरे ह। दरवाजा खोल दो!
पर वे दोन कहने लगे, जगह?
उस फक र ने कहा, जगह ब त है; अभी हम बैठे ह, अब हम खड़े हो जाएंग।े खड़े होने के
िलए काफ जगह है। और फर तुम घबराओ मत, अगर ज रत पड़ेगी तो म हमेशा बाहर
होने के िलए तैयार ।ं ेम इतना कर सकता है।
एक ल वंग ए ट ूड, एक ेमपूण दय बनाने क ज रत है। जब ेमपूण दय बनता
है, तो ि व म एक तृि का भाव, एक रसपूण तृि ... या आपको कभी खयाल है, जब
भी आप कसी के ित जरा से ेमपूण ए ह, पीछे एक तृि क लहर छू ट गई है? या
आपको कभी भी खयाल है क जीवन म तृि के ण वे ही रहे ह, जो बेशत ेम के ण रहे
ह गे, जब कोई शत न रही होगी ेम क । और जब आपने रा ते चलते एक अजनबी आदमी
को देख कर मु कु रा दया होगा--उसके पीछे छू ट गई तृि का कोई अनुभव है? उसके पीछे
साथ आ गया एक शांित का भाव! एक ाण म एक आनंद क लहर का कोई पता है--जब
राह चलते कसी आदमी को उठा िलया हो, कसी िगरते को स हाल िलया हो, कसी
बीमार को एक फू ल दे दया हो? इसिलए नह क वह आपक मां है, इसिलए नह क वह
आपका िपता है। नह , वह आपका कोई भी नह है। ले कन एक फू ल कसी बीमार को दे
देना आनंदपूण है।
ि व म ेम क संभावना बढ़ती जानी चािहए। वह इतनी बढ़ जानी चािहए--पौध
के ित, पि य के ित, पशु के ित, आदिमय के ित, अप रिचत के ित, अनजान
लोग के ित, िवदेिशय के ित, जो ब त दूर ह उनके ित, चांद-तार के ित-- ेम
हमारा बढ़ता चला जाए।
िजतना ेम हमारा बढ़ता है, उतनी ही से स क जीवन म संभावना कम होती चली
जाती है।
ेम और यान, दोन िमल कर उस दरवाजे को खोल देते ह जो परमा मा का दरवाजा
है।
ेम + यान = परमा मा। ेम और यान का जोड़ हो जाए और परमा मा उपल ध हो
जाता है।
और उस उपलि ध से जीवन म चय फिलत होता है। फर सारी ऊजा एक नये ही
माग पर ऊपर चढ़ने लगती है। फर बह-बह कर िनकल नह जाती। फर जीवन से बाहर
िनकल-िनकल कर थ नह हो जाती। फर जीवन के भीतरी माग पर गित करने लगती
है। उसका एक ऊ वगमन, एक ऊपर क तरफ या ा शु होती है।
अभी हमारी या ा नीचे क तरफ है। से स, ऊजा का अधोगमन है, नीचे क तरफ बह
जाना है। चय, ऊजा का ऊ वगमन है, ऊपर क तरफ उठ जाना है।
ेम और यान, चय के सू ह।
तीसरी बात कल आपसे करने को ं क चय उपल ध होगा तो या फल होगा? या
होगी उपलि ध? या िमल जाएगा?
ये दो बात मने आज आपसे कह -- ेम और यान। मने यह कहा क छोटे ब से इनक
िश ा शु हो जानी चािहए। इससे आप यह मत सोच लेना क अब तो हम ब े नह रहे,
इसिलए करने को कु छ बाक नह है। यह आप मत सोच कर चले जाना, अ यथा मेरी
मेहनत फजूल गई। आप कसी भी उ के ह , यह काम शु कया जा सकता है। यह काम
कभी भी शु कया जा सकता है। हालां क िजतनी उ बढ़ती चली जाती है, उतना
मुि कल होता चला जाता है। ब के साथ हो सके , सौभा य! ले कन कभी भी हो सके ,
सौभा य! इतनी देर कभी भी नह ई है क हम कु छ भी न कर सक। हम आज शु कर
सकते ह।
और जो लोग सीखने के िलए तैयार ह, वे बुढ़ापे म भी ब जैसे ही होते ह, वे बुढ़ापे म
भी शु कर सकते ह। अगर उनक सीखने क मता है, अगर ल नग का ए ट ूड है, अगर
वे इस ान से नह भर गए ह क हमने सब जान िलया और सब पा िलया, तो वे सीख
सकते ह और वे छोटे ब क भांित नई या ा शु कर सकते ह।
बु के पास एक िभ ु कु छ वष से दीि त था। एक दन बु ने उससे पूछा क िभ ु,
तु हारी उ या है? उस िभ ु ने कहा, मेरी उ ? पांच वष! बु कहने लगे, पांच वष? तुम
तो कोई स र वष के मालूम पड़ते हो! कै सा झूठ बोलते हो!
उस िभ ु ने कहा, ले कन पांच वष पहले ही मेरे जीवन म यान क करण फू टी। पांच
वष पहले ही मेरे जीवन म ेम क वषा ई। उसके पहले म जीता था, वह सपने म जीना
था, वह न द म जीना था। उसक िगनती अब म नह करता ।ं कै से क ं ? जंदगी तो इधर
पांच वष से शु ई, इसिलए म कहता ,ं मेरी उ पांच वष है।
बु ने अपने िभ ु से कहा, िभ ुओ, इस बात को खयाल म रख लेना। अपनी उ आज
से तुम भी इसी तरह जोड़ना। यही उ को नापने का ढंग समझना।
अगर ेम और यान का ज म नह आ है तो उ फजूल चली गई। अभी आपका ठीक
ज म भी नह आ है। और कभी भी इतनी देर नह ई, जब क हम यास कर, म कर
और हम अपने नये ज म को उपल ध न हो जाएं।
इसिलए मेरी बात से यह नतीजा मत िनकाल लेना आप क आप तो अब बचपन के पार
हो चुके, इसिलए यह बात आने वाले ब के िलए है। कोई आदमी कसी भी ण इतनी
दूर नह िनकल गया है क वापस न लौट आए। कोई आदमी कतने ही गलत रा त पर
चला हो, ऐसी जगह नह प च ं गया है क ठीक रा ता उसे दखाई न पड़ सके । कोई
आदमी कतने ही हजार वष से अंधकार म रह रहा हो, इसका मतलब यह नह है क वह
दीया जलाएगा तो अंधकार कहेगा क म हजार वष पुराना ,ं इसिलए नह टू टता! दीया
जलाने से एक दन का अंधकार भी टू टता है, हजार साल का अंधकार भी उसी तरह टू ट
जाता है। दीया जलाने क चे ा बचपन म आसानी से हो सकती है, बाद म थोड़ी क ठनाई
है।
ले कन क ठनाई का अथ असंभावना नह है। क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा म।
क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा संक प। क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा लगनपूवक,
यादा सात य से तोड़ना पड़ेगा, ि व क जो बंधी धाराएं ह उनको, और नये माग
खोलने पड़गे।
ले कन जब नये माग क जरा सी भी करण फू टनी शु होती है, तो सारा म ऐसा
लगता है क हमने कु छ भी नह कया और ब त कु छ पा िलया है। जब एक करण भी
आती है उस आनंद क , उस स य क , उस काश क , तो लगता है क हमने तो िबना कु छ
कए पा िलया है। य क हमने जो कया था, उसका तो कोई भी मू य नह था। जो हाथ
म आ गया है, वह तो अमू य है।
इसिलए यह भाव मन म आप न लगे। ऐसी मेरी ाथना है।

मेरी बात को इतनी शांित और ेम से सुना, उसके िलए ब त-ब त अनुगृहीत ।ं और


अंत म सबके भीतर बैठे परमा मा को णाम करता ।ं मेरे णाम वीकार कर।
#4
समािध : अहं-शू यता, समय-शू यता का अनुभव
मेरे ि य आ मन्!
एक छोटा सा गांव था। उस गांव के कू ल म िश क राम क कथा पढ़ाता था। करीब-
करीब सारे ब े सोए ए थे।
राम क कथा सुनते समय ब े सो जाएं, यह आ य नह । य क राम क कथा सुनते
समय बूढ़े भी सोते ह। इतनी बार सुनी जा चुक है जो बात, उसे जाग कर सुनने का कोई
अथ भी नह रह जाता।
ब े सोए थे। और िश क भी पढ़ा रहा था, ले कन कोई भी उसे देखता तो कह सकता था
वह भी सोया आ पढ़ाता है। उसे राम क कथा कं ठ थ थी। कताब सामने खुली थी,
ले कन कताब पढ़ने क उसे ज रत न थी। उसे सब याद था, वह यं क भांित कहे जाता
था। शायद ही उसे पता हो क वह या कह रहा है।
तोत को पता नह होता क वे या कह रहे ह। िज ह ने श द को कं ठ थ कर िलया है,
उ ह भी पता नह होता क वे या कह रहे ह।
और तभी अचानक एक सनसनी दौड़ गई क ा म। अचानक ही कू ल का िनरी क आ
गया था। वह कमरे के भीतर गया। ब े सजग होकर बैठ गए। िश क भी सजग होकर
पढ़ाने लगा। उस िनरी क ने कहा क म कु छ पूछना चा ग ं ा। और चूं क राम क कथा
पढ़ाई जाती है, इसिलए राम से संबंिधत ही कोई पूछूं। उसने ब से एक सीधी सी
बात पूछी। उसने पूछा क िशव का धनुष कसने तोड़ा था?
उसने सोचा क ब को तोड़-फोड़ क बात ब त याद रह जाती है, उ ह ज र याद
होगा क कसने िशव का धनुष तोड़ा था।
ले कन इसके पहले क कोई बोले, एक ब े ने हाथ िहलाया और खड़े होकर कहा क
मा क रए, मुझे पता नह क कसने तोड़ा था। एक बात िनि त है क म पं ह दन से
छु ी पर था, मने नह तोड़ा है। और इसके पहले क मेरे पर कोई इलजाम लग जाए, म
पहले ही साफ कर देना चाहता ं क धनुष का मुझे कोई पता ही नह है। य क जब भी
इस कू ल म कोई चीज टू टती है तो सबसे पहले मेरे ऊपर दोषारोपण आता है, इसिलए म
िनवेदन कए देता ।ं
िनरी क तो हैरान रह गया। उसने सोचा भी न था क कोई यह उ र देगा। उसने
िश क क तरफ देखा। िश क अपना बत िनकाल रहा था और उसने कहा क ज र इसी
बदमाश ने तोड़ा होगा। इसक हमेशा क आदत है। और अगर तूने नह तोड़ा था तो तूने
खड़े होकर य कहा क मने नह तोड़ा है? और उसने इं सपे टर से कहा, आप इसक बात
म मत आएं, यह लड़का शरारती है। और कू ल म सौ चीज टू ट तो िन यानबे यही तोड़ता
है।
तब तो वह िनरी क और हैरान हो गया। फर उसने कु छ भी वहां कहना उिचत न
समझा। वह सीधा धान अ यापक के पास गया। जाकर उसने कहा क यह-यह घटना
घटी है। राम क कथा पढ़ाई जाती थी िजस क ा म, उसम मने पूछा क िशव का धनुष
कसने तोड़ा था? तो एक ब े ने कहा क मने नह तोड़ा, म पं ह दन से छु ी पर था। यहां
तक भी गनीमत थी। ले कन िश क ने यह कहा क ज र इसी ने तोड़ा होगा, जब भी कोई
चीज टू टती है तो यही िज मेवार होता है। इसके संबंध म या कया जाए?
उस धान अ यापक ने कहा, इस संबंध म एक ही बात क जा सकती है क अब बात को
आगे न बढ़ाया जाए। य क लड़क से कु छ भी कहना खतरा मोल लेना है, कसी भी ण
हड़ताल हो सकती है, अनशन हो सकता है। अब िजसने भी तोड़ा हो, तोड़ा होगा। आप
कृ पा कर और बात बंद कर। कोई दो महीने से शांित चल रही है कू ल म, उसको भंग करने
क कोिशश मत कर। न मालूम कतना फन चर तोड़ डाला है लड़क ने, हम चुपचाप देखते
रहते ह। कू ल क दीवाल टू ट रही ह, हम चुपचाप देखते रहते ह। य क कु छ भी बोलना
खतरनाक है, हड़ताल हो सकती है, अनशन हो सकता है। इसिलए चुपचाप देखने के
िसवाय कोई माग नह ।
वह इं सपे टर तो अवाक! वह तो आंख फाड़े रह गया! अब कु छ कहने का उपाय न था।
वह वहां से सीधा, कू ल क जो िश ा सिमित थी, उसके अ य के पास गया। और उसने
जाकर कहा क यह हालत है कू ल क ! राम क कथा पढ़ाई जाती है, वहां ब ा कहता है
क मने िशव का धनुष नह तोड़ा, िश क कहता है इसी ने तोड़ा होगा, धान अ यापक
कहता है क िजसने भी तोड़ा हो, बात को रफा-दफा कर द, शांत कर द। इसे आगे बढ़ाना
ठीक नह , हड़ताल हो सकती है। आप या कहते ह?
उस अ य ने कहा क ठीक ही कहता है धान अ यापक। कसी ने भी तोड़ा हो, हम
ठीक करवा दगे सिमित क तरफ से। आप फन चर वाले के यहां िभजवा द और ठीक करवा
ल। इसक चंता करने क ज रत नह क कसने तोड़ा। सुधरवाने का उपाय होगा,
आपको सुधरवाने क ज रत है और या करना है!
वह कू ल का इं सपे टर मुझसे यह सारी बात कहता था। वह मुझसे पूछने लगा क या
ि थित है यह?
मने उससे कहा, इसम कु छ बड़ी ि थित नह है। मनु य क एक सामा य कमजोरी है,
वही इस कहानी म कट होती है। और वह कमजोरी या है? वह कमजोरी यह है क िजस
संबंध म हम कु छ भी नह जानते ह, उस संबंध म भी हम ऐसी घोषणा करना चाहते ह क
हम जानते ह। वे कोई भी कु छ नह जानते थे क िशव का धनुष या है? या उिचत न
होता क वे कह देते क हम पता नह है क िशव का धनुष या है। ले कन अपना अ ान
कोई भी वीकार नह करना चाहता है।
और मनु य-जाित के इितहास म इससे बड़ी कोई दुघटना नह घटी है क हम अपना
अ ान वीकार करने को राजी नह होते। जीवन के कसी भी के संबंध म कोई भी
आदमी इतनी िह मत और साहस नह दखा पाता क मुझे पता नह है। यह कमजोरी
ब त घातक िस होती है। सारा जीवन थ हो जाता है। और चूं क हम यह मान कर बैठ
जाते ह क हम जानते ह, इसिलए जो उ र हम देते ह वे इतने ही मूढ़तापूण होते ह, िजतने
उस कू ल म दए गए थे--ब े से लेकर अ य तक। िजसका हम पता नह है, उसका उ र
देने क कोिशश िसवाय मूढ़ता के और कह भी नह ले जाएगी।
फर यह तो हो भी सकता है क िशव का धनुष कसने तोड़ा या नह तोड़ा, इससे जीवन
का कोई गहरा संबंध नह है। ले कन िजन के जीवन से ब त गहरे संबंध ह, िजनके
आधार पर सारा जीवन सुंदर बनेगा या कु प हो जाएगा, व थ बनेगा या िवि हो
जाएगा; िजनके आधार पर जीवन क सारी गित और दशा िनभर है, उन के संबंध म
भी हम यह भाव दखलाने क कोिशश करते ह क हम जानते ह। और फर जो हम जीवन
म उ र देते ह वे बता देते ह क हम कतना जानते ह। एक-एक आदमी क जंदगी बता
रही है क हम जंदगी के संबंध म कु छ भी नह जानते ह। अ यथा इतनी असफलता, इतनी
िनराशा, इतना दुख, इतनी चंता!
यही बात म से स के संबंध म भी आपसे कहना चाहता ं हम कु छ भी नह जानते ह।
आप ब त हैरान ह गे। आप कहगे, हम यह मान सकते ह क ई र के संबंध म कु छ नह
जानते, आ मा के संबंध म कु छ नह जानते; ले कन हम यह कै से मान सकते ह क हम काम
के , यौन के और से स के संबंध म कु छ नह जानते? सबूत है--हमारे ब े पैदा ए ह, प ी
है--हम से स के संबंध म नह जानते ह!
ले कन म आपसे िनवेदन करना चाहता -ं -यह ब त क ठन पड़ेगा, ले कन इसे समझ
लेना ज री है--आप से स के अनुभव से गुजरे ह गे, ले कन से स के संबंध म आप उतना
ही जानते ह िजतना छोटा सा ब ा जानता है, उससे यादा कु छ भी नह जानते। अनुभव
से गुजर जाना जान लेने के िलए पया नह है।
एक आदमी कार चलाता है, वह कार चलाना जानता है और हो सकता है हजार मील
कार चला कर वह आ गया हो। ले कन इससे यह कोई मतलब नह होता क वह कार के
भीतर के यं और मशीन और उसक व था, उसके काम करने के ढंग के संबंध म कु छ भी
जानता हो। वह कह सकता है क म हजार मील चल कर आया ं कार से--म नह जानता
ं कार के संबंध म? ले कन कार चलाना एक ऊपरी बात है और कार क पूरी आंत रक
व था को जानना िबलकु ल दूसरी बात है।
एक आदमी बटन दबाता है और िबजली जल जाती है। वह आदमी यह कह सकता है क
म िबजली के संबंध म सब जानता ।ं य क म बटन दबाता ं और िबजली जल जाती है,
बटन दबाता ं िबजली बुझ जाती है। मने हजार दफा िबजली जलाई और बुझाई, इसिलए
म िबजली के संबंध म सब जानता ।ं हम कहगे वह पागल है। बटन दबाना और िबजली
जला लेना और बुझा लेना ब े भी कर सकते ह, इसके िलए िबजली के ान क कोई भी
ज रत नह है।
ब े कोई भी पैदा कर सकता है। से स को जानने से इसका कोई संबंध नह । शादी कोई
भी कर सकता है। पशु भी ब े पैदा कर रहे ह। ले कन वे से स के संबंध म कु छ जानते ह,
इस म म पड़ने का कोई कारण नह । सच तो यह है क से स का कोई िव ान ही
िवकिसत नह हो सका, से स का कोई शा ठीक से िवकिसत नह हो सका, य क हर
आदमी यह मानता है क हम जानते ह! शा क ज रत या है? िव ान क ज रत या
है?
और म आपसे कहता ं क इससे बड़े दुभा य क और कोई बात नह है। य क िजस
दन से स का पूरा शा और पूरा िवचार और पूरा िव ान िवकिसत होगा, उस दन हम
िबलकु ल नये तरह के आदमी को पैदा करने म समथ हो सकते ह। फर यह कु प और यह
अपंग मनु यता पैदा करने क ज रत नह है। ये ण और रोते ए और उदास आदमी
पैदा करने क ज रत नह है। ये पाप और अपराध से भरी ई संतित को ज म देने क
ज रत नह है।
ले कन हम कु छ भी पता नह है! हम िसफ बटन दबाना और बुझाना जानते ह और उसी
से हमने समझ िलया है क हम िबजली के जानकार हो गए ह। से स के संबंध म पूरी
जंदगी बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है--बटन दबाना और बुझाना।
इससे यादा कु छ भी नह ! ले कन चूं क यह म है क हम सब जानते ह, इसिलए इस
संबंध म कोई शोध, कोई खोज, कोई िवचार, कोई चंतन का कोई उपाय नह है। और इसी
म के कारण क हम सब जानते ह, हम कसी से न कभी कोई बात करते ह, न िवचार
करते ह, न सोचते ह! य क जब सभी को सब पता है तो ज रत या है?
और म आपसे कहना चाहता ं क जीवन म और जगत म से स से बड़ा न कोई रह य है
और न कोई गु और गहरी बात है। अभी हमने अणु को खोज िनकाला है। िजस दन हम
से स के अणु को भी पूरी तरह जान सकगे, उस दन मनु य-जाित ान के एक िबलकु ल
नये जगत म िव हो जाएगी। अभी हमने पदाथ क थोड़ी-ब त खोज-बीन क है और
दुिनया कहां से कहां प च
ं गई। िजस दन हम चेतना के ज म क या और क िमया को
समझ लगे, उस दन हम मनु य को कहां से कहां प च ं ा दगे, इसको आज कहना क ठन है।
ले कन एक बात िनि त कही जा सकती है क काम क शि और काम क या जीवन
और जगत म सवािधक रह यपूण, सवािधक गहरी, सबसे यादा मू यवान बात है। और
उसके संबंध म हम िबलकु ल चुप ह। जो सवािधक मू यवान है, उसके संबंध म कोई बात
भी नह क जाती है। आदमी जीवन भर संभोग से गुजरता है और अंत तक भी नह जान
पाता क या था संभोग।
तो जब मने पहले दन आपसे कहा क शू य का, अहंकार-शू यता का, िवचार-शू यता का
अनुभव होगा, तो अनेक िम को यह बात अनहोनी, आ यजनक लगी है। एक िम ने
लौटते ए मुझे कहा, यह तो हम खयाल म भी न था, ले कन ऐसा आ है।
एक बहन ने आज मुझे आकर कहा, ले कन मुझे तो इसका कोई अनुभव नह है। आप
कहते ह तो इतना मुझे खयाल आता है क मन थोड़ा शांत और मौन होता है, ले कन मुझे
अहंकार-शू यता का या कसी और गहरे अनुभव का कोई भी पता नह ।
हो सकता है अनेक को इस संबंध म िवचार मन म उठा हो। उस संबंध म थोड़ी सी बात
और गहराई म प कर लेनी ज री ह।
पहली बात, मनु य ज म के साथ ही संभोग के पूरे िव ान को जानता आ पैदा नह
होता है। शायद पृ वी पर ब त थोड़े से लोग, अनेक जीवन के अनुभव के बाद, संभोग क
पूरी क पूरी कला और पूरी क पूरी िविध और पूरा शा जानने म समथ हो पाते ह। और
ये ही वे लोग ह जो चय को उपल ध हो जाते ह। य क जो ि संभोग क पूरी बात
को जानने म समथ हो जाता है, उसके िलए संभोग थ हो जाता है, वह उसके पार िनकल
जाता है, अित मण कर जाता है। ले कन इस संबंध म कु छ ब त प बात नह कही गई
ह।
एक बात, पहली बात प कर लेनी ज री है वह यह क यह म छोड़ देना चािहए क
हम पैदा हो गए ह इसिलए हम पता है-- या है काम, या है संभोग। नह , पता नह है।
और नह पता होने के कारण जीवन पूरे समय काम और से स म उलझा रहता है और
तीत होता है।
मने आपसे कहा, पशु का बंधा आ समय है, उनक ऋतु है, उनका मौसम है। आदमी
का कोई बंधा आ समय नह है। य ? पशु शायद मनु य से यादा संभोग क गहराई म
उतरने म समथ है और मनु य उतना भी समथ नह रह गया है! िजन लोग ने जीवन के
इन तल पर ब त खोज क है और गहराइय म गए ह और िजन लोग ने जीवन के ब त
से अनुभव संगृहीत कए ह, उनको यह जानना, यह सू उपल ध आ है क अगर संभोग
एक िमनट तक के गा तो आदमी दूसरे दन फर संभोग के िलए लालाियत हो जाएगा।
अगर तीन िमनट तक क सके तो एक स ाह तक उसे से स क वह याद भी नह आएगी।
और अगर सात िमनट तक क सके तो तीन महीने तक के िलए से स से इस तरह मु हो
जाएगा क उसक क पना म भी िवचार िव नह होगा। और अगर तीन घंटे तक क
सके तो जीवन भर के िलए मु हो जाएगा, जीवन म उसको क पना भी नह उठे गी।
ले कन सामा यतः ण भर का अनुभव है मनु य का। तीन घंटे क क पना करनी भी
मुि कल है। ले कन म आपसे कहता ं क तीन घंटे अगर संभोग क ि थित म, उस समािध
क दशा म ि क जाए तो एक संभोग पूरे जीवन के िलए से स से मु करने के िलए
पया है। इतनी तृि पीछे छोड़ जाता है, इतना अनुभव, इतना बोध छोड़ जाता है क
जीवन भर के िलए पया हो जाता है। एक संभोग के बाद ि चय को उपल ध हो
सकता है।
ले कन हम तो जीवन भर संभोग के बाद भी उपल ध नह होते। या है? बूढ़ा हो जाता
है आदमी, मरने के करीब प च ं जाता है और संभोग क कामना से मु नह हो पाता!
संभोग क कला और संभोग के शा को उसने समझा नह है। और न कभी कसी ने
समझाया है, न िवचार कया है, न सोचा है, न बात क है, कोई संवाद भी नह आ जीवन
म-- क अनुभवी लोग उस पर संवाद करते और िवचार करते। हम िबलकु ल पशु से भी
बदतर हालत पर उस ि थित म ह।
आप कहगे क एक ण से तीन घंटे तक संभोग क दशा ठहर सकती है, ले कन कै से?
कु छ थोड़े से सू आपको कहता ,ं उ ह थोड़ा खयाल म रखगे तो चय क तरफ जाने
म बड़ी या ा सरल हो जाएगी।
संभोग करते ण म ास िजतनी तेज होगी, संभोग का काल उतना ही छोटा होगा।
ास िजतनी शांत और िशिथल होगी, संभोग का काल उतना ही लंबा हो जाएगा। अगर
ास को िबलकु ल िशिथल रहने का थोड़ा सा अ यास कया जाए, तो संभोग के ण को
कतना ही लंबा कया जा सकता है। और संभोग के ण िजतने लंबे ह गे, उतने ही संभोग
के भीतर से समािध का जो सू मने आपसे कहा है--िनरहंकार भाव, ईगोलेसनेस और
टाइमलेसनेस का अनुभव शु हो जाएगा। ास अ यंत िशिथल होनी चािहए। ास के
िशिथल होते ही संभोग क गहराई, अथ और नये उदघाटन शु हो जाएंगे।
और दूसरी बात, संभोग के ण म यान दोन आंख के बीच, जहां योग आ ाच को
बताता है, वहां अगर यान हो तो संभोग क सीमा और समय तीन घंट तक बढ़ाया जा
सकता है। और एक संभोग ि को सदा के िलए चय म िति त कर देगा--न के वल
इस ज म के िलए, बि क अगले ज म के िलए भी।
क ह एक बहन ने प िलखा है और मुझे पूछा है क िवनोबा तो बाल- चारी ह, या
उनको समािध का अनुभव नह आ होगा? मेरे बाबत पूछा है क मने तो िववाह नह
कया, म तो बाल- चारी ,ं मुझे समािध का अनुभव नह आ होगा?
उन बहन को, अगर वे यहां मौजूद ह तो म कहना चाहता ,ं िवनोबा को या मुझे या
कसी को भी िबना अनुभव के चय उपल ध नह होता--वह अनुभव चाहे इस ज म का
हो, चाहे िपछले ज म का हो। जो इस ज म म चय को उपल ध होता है, वह िपछले
ज म के गहरे संभोग के अनुभव के आधार पर, और कसी आधार पर नह । कोई और
रा ता नह है।
ले कन अगर िपछले ज म म कसी को गहरे संभोग क अनुभूित ई हो तो इस ज म के
साथ ही वह से स से मु पैदा होगा। उसक क पना के माग पर से स कभी भी खड़ा नह
होगा। और उसे हैरानी होगी दूसरे लोग को देख कर क यह या बात है! लोग य पागल
ह? य दीवाने ह? उसे क ठनाई होगी यह जांच करने म भी क कौन ी है, कौन पु ष
है? इसका भी िहसाब रखने म और फासला करने म क ठनाई होगी।
ले कन कोई अगर सोचता हो क िबना गहरे अनुभव के कोई बाल- चारी हो सकता
है, तो बाल- चारी नह होगा, िसफ पागल हो जाएगा। जो लोग जबरद ती चय
थोपने क कोिशश करते ह, वे िसफ िवि होते ह, और कह भी नह प च ं ते। चय
थोपा नह जाता। वह अनुभव क िन पि है। वह कसी गहरे अनुभव का फल है। और वह
अनुभव संभोग का ही अनुभव है। अगर वह अनुभव एक बार भी हो जाए तो अनंत जीवन
क या ा के िलए से स से मुि हो जाती है।
तो दो बात मने कह उस गहराई के िलए-- ास िशिथल हो, इतनी िशिथल हो क जैसे
चलती ही नह ; और यान, सारा अटशन आ ाच के पास हो, दोन आंख के बीच के
बंद ु पर हो। िजतना यान मि त क के पास होगा, उतने ही संभोग क गहराई अपने आप
बढ़ जाएगी। और िजतनी ास िशिथल होगी, उतनी लंबाई बढ़ जाएगी। और आपको
पहली दफा अनुभव होगा क संभोग का आकषण नह है मनु य के मन म, मनु य के मन म
समािध का आकषण है। और एक बार उसक झलक िमल जाए, एक बार िबजली चमक
जाए और हम दखाई पड़ जाए अंधेरे म क रा ता या है, फर हम रा ते पर आगे िनकल
सकते ह।
एक आदमी एक गंदे घर म बैठा है। दीवाल अंधेरी ह और धुएं से पुती ई ह। घर बदबू से
भरा आ है। ले कन िखड़क खोल सकता है। उस गंदे घर क िखड़क म खड़े होकर भी वह
देख सकता है--दूर आकाश को, तार को, सूरज को, उड़ते ए पि य को। और तब उस घर
के बाहर िनकलने म क ठनाई न रह जाएगी। िजसे एक बार दखाई पड़ गया क बाहर
िनमल आकाश है, सूरज है, चांद है, तारे ह, उड़ते ए प ी ह, हवा म झूमते ए वृ
और फू ल क सुगंध है, मुि है बाहर, वह फर अंधेरी और धुएं से भरी ई और सीलन
और बदबू से भरी ई कोठ रय म बैठने को राजी नह होगा, वह बाहर िनकल जाएगा।
िजस दन आदमी को संभोग के भीतर समािध क पहली, थोड़ी सी भी अनुभूित होती है,
उसी दन से स का गंदा मकान, से स क दीवाल, अंधेरे से भरी ई थ हो जाती ह और
आदमी बाहर िनकल आता है।
ले कन यह जानना ज री है क साधारणतः हम उस मकान के भीतर पैदा होते ह,
िजसक दीवाल बंद ह, जो अंधेरे से पुती ह, जहां बदबू है, जहां दुगध है। और इस मकान के
भीतर ही पहली दफा मकान के बाहर का अनुभव करना ज री है, तभी हम बाहर जा
सकते ह और इस मकान को छोड़ सकते ह। िजस आदमी ने िखड़क नह खोली उस मकान
क और उसी मकान के कोने म आंख बंद करके बैठ गया है क म इस गंदे मकान को नह
देखूंगा, वह चाहे देखे और चाहे न देख,े वह गंदे मकान के भीतर ही है और भीतर ही रहेगा।
िजनको आप चारी कहते ह--तथाकिथत जबरद ती थोपे ए चारी--वे से स के
मकान के भीतर उतने ही ह, िजतना क कोई भी साधारण आदमी है। वे आंख बंद कए बैठे
ह, आप आंख खोले ए बैठे ह, इतना ही फक है। जो आप आंख खोल कर कर रहे ह, वे आंख
बंद करके भीतर कर रहे ह। जो आप शरीर से कर रहे ह, वे मन से कर रहे ह। और कोई भी
फक नह है।
इसिलए म कहता ं क संभोग के ित दुभाव छोड़ द। समझने क चे ा, योग करने क
चे ा कर, और संभोग को एक पिव ता क ि थित द।
मने दो सू कहे। तीसरी एक भाव-दशा चािहए संभोग के पास जाते समय, वैसी भाव-
दशा जैसे कोई मं दर के पास जाता है। य क संभोग के ण म हम परमा मा के िनकटतम
होते ह। इसीिलए तो संभोग म परमा मा सृजन का काम करता है और नये जीवन को ज म
देता है। हम एटर के िनकटतम होते ह। संभोग क अनुभूित म हम ा के िनकटतम
होते ह। इसीिलए तो हम माग बन जाते ह और एक नया जीवन हमसे उतरता है और
गितमान हो जाता है। हम ज मदाता बन जाते ह। य ? ा के िनकटतम है वह ि थित।
अगर हम पिव ता से, ाथना से से स के पास जाएं, तो हम परमा मा क झलक को
अनुभव कर सकते ह।
ले कन हम तो से स के पास एक घृणा, एक दुभाव, एक कं डेमनेशन के साथ जाते ह।
इसिलए दीवाल खड़ी हो जाती है और परमा मा का वहां कोई अनुभव नह हो पाता।
से स के पास ऐसे जाएं जैसे मं दर के पास। प ी को ऐसा समझ जैसे क वह भु है। पित
को ऐसा समझ जैसे क वह परमा मा है। और गंदगी म, ोध म, कठोरता म, ष े म, ई या
म, जलन म, चंता के ण म कभी भी से स के पास न जाएं। होता उलटा है। िजतना
आदमी चंितत होता है, िजतना परे शान होता है, िजतना ोध से भरा होता है, िजतना
घबराया होता है, िजतना एंि वश म होता है, उतना ही यादा वह से स के पास जाता है।
आनं दत आदमी से स के पास नह जाता। दुखी आदमी से स क तरफ जाता है। य क
दुख को भुलाने के िलए इसको एक मौका दखाई पड़ता है।
ले कन मरण रख क जब आप दुख म जाएंग,े चंता म जाएंगे, उदास, हारे ए, ोध म,
लड़े ए जाएंगे, तब आप कभी भी से स क उस गहरी अनुभूित को उपल ध नह कर
पाएंगे, िजसक क ाण म यास है। वह समािध क झलक वहां नह िमलेगी। ले कन
यही उलटा होता है।
मेरी ाथना है: जब आनंद म ह , जब ेम म ह , जब फु ि लत ह और जब ाण
ेयरफु ल ह , जब ऐसा मालूम पड़े क आज दय शांित से और आनंद से, कृ त ता से भरा
आ है, तभी ण है--तभी ण है संभोग के िनकट जाने का। और वैसा ि संभोग म
समािध को उपल ध होता है। और एक बार भी समािध क एक करण िमल जाए तो
संभोग से सदा के िलए मु हो जाता है और समािध म गितमान हो जाता है।
ी और पु ष का िमलन एक ब त गहरा अथ रखता है। ी और पु ष के िमलन म
पहली बार अहंकार टू टता है और हम कसी से िमलते ह।
मां के पेट से ब ा िनकलता है और दन-रात उसके ाण म एक ही बात लगी रहती है,
जैसे क हमने कसी वृ को उखाड़ िलया जमीन से, तो उस पूरे वृ के ाण तड़फते ह क
जमीन से कै से वापस जुड़ जाए। य क जमीन से जुड़ा आ होकर ही उसे ाण िमलता
था, रस िमलता था, जीवन िमलता था, वाइटेिलटी िमलती थी। जमीन से उखड़ गया, तो
उसक सारी जड़ िच लाएंगी क मुझे जमीन म वापस
भेज दो! उसका सारा ाण िच लाएगा क मुझे जमीन म वापस भेज दो! वह उखड़
गया, टू ट गया, अप टेड हो गया।
आदमी जैसे ही मां के पेट से बाहर िनकलता है, अप टेड हो जाता है। वह सारे जीवन
और जगत से एक अथ म टू ट गया, अलग हो गया। अब उसक सारी पुकार और सारे ाण
क आकां ा जगत और जीवन और अि त व से, एि झ टस से वापस जुड़ जाने क है। उसी
पुकार का नाम ेम क यास है।
ेम का और अथ या है? हर आदमी चाह रहा है क म ेम पाऊं और ेम क ं ! ेम का
मतलब या है? ेम का मतलब है क म टू ट गया ,ं आइसोलेट हो गया ,ं अलग हो गया
,ं म वापस जुड़ जाऊं जीवन से।
ले कन इस जुड़ने का गहरे से गहरा अनुभव मनु य को से स के अनुभव म होता है, ी
और पु ष को होता है। वह पहला अनुभव है जुड़ जाने का। और जो ि इस जुड़ जाने के
अनुभव को ेम क यास, जुड़ने क आकां ा के अथ म समझेगा, वह आदमी एक दूसरे
अनुभव को भी शी उपल ध हो सकता है।
योगी भी जुड़ता है, साधु भी जुड़ता है, संत भी जुड़ता है, समािध थ ि भी जुड़ता है,
संभोगी ि भी जुड़ता है।
संभोग करने म दो ि जुड़ते ह। एक ि दूसरे ि से जुड़ता है और एक हो जाता
है।
समािध म एक ि समि से जुड़ता है और एक हो जाता है।
संभोग दो ि य के बीच िमलन है।
समािध एक ि और अनंत के बीच िमलन है।
वभावतः, दो ि य का िमलन ण भर को हो सकता है। एक ि और अनंत का
िमलन अनंत के िलए हो सकता है। दोन ि सीिमत ह, उनका िमलन असीम नह हो
सकता है। यही पीड़ा है, यही क है सारे दांप य का, सारे ेम का-- क िजससे हम जुड़ना
चाहते ह उससे भी सदा के िलए नह जुड़ पाते, ण भर को जुड़ते ह और फर फासले हो
जाते ह। फासले पीड़ा देते ह, फासले क देते ह, और िनरं तर दो ेमी इसी पीड़ा म परे शान
रहते ह क फासला य है? और हर चीज फर धीरे -धीरे ऐसी मालूम पड़ने लगती है क
दूसरा फासला बना रहा है। इसिलए दूसरे पर ोध पैदा होना शु हो जाता है।
ले कन जो जानते ह, वे यह कहगे क दो ि अिनवायतः दो अलग-अलग ि ह। वे
जबरद ती ण भर को िमल सकते ह, ले कन सदा के िलए नह िमल सकते। यही ेिमय
क पीड़ा और क है क िनरं तर एक संघष खड़ा हो जाता है। िजसे ेम करते ह, उसी से
संघष खड़ा हो जाता है; उसी से तनाव, अशांित और ष े खड़ा हो जाता है! य क ऐसा
तीत होने लगता है, िजससे म िमलना चाहता ,ं शायद वह िमलने को तैयार नह ,
इसिलए िमलना पूरा नह हो पाता।
ले कन इसम ि य का कसूर नह है। दो ि अनंतकालीन तल पर नह िमल
सकते, एक ण के िलए िमल सकते ह। य क ि सीिमत ह, उनके िमलने का ण भी
सीिमत होगा। अगर अनंत िमलन चािहए तो वह परमा मा से हो सकता है, वह सम त
अि त व से हो सकता है।
जो लोग संभोग क गहराई म उतरते ह, उ ह पता चलता है--एक ण िमलने का इतना
आनंद है, तो अनंतकाल के िलए िमल जाने का कतना आनंद होगा! उसका तो िहसाब
लगाना मुि कल है। एक ण के िमलन क इतनी अदभुत तीित है, तो अनंत से िमल जाने
क कतनी तीित होगी, कै सी तीित होगी! जैसे एक घर म दीया जल रहा हो और उस
दीये से हम िहसाब लगाना चाह क सूरज क रोशनी म कतने दीये जल रहे ह? िहसाब
लगाना ब त मुि कल हो जाएगा। एक दीया ब त छोटी बात है। सूरज ब त बड़ी बात है।
सूरज पृ वी से साठ हजार गुना बड़ा है। दस करोड़ मील दूर है, तब भी हम तपाता है, तब
भी हम झुलसा देता है। उतने बड़े सूरज को एक छोटे से दीये से हम तौलने जाएं तो कै से
तोल सकगे?
ले कन नह , एक दीये से सूरज को तौला जा सकता है; य क दीया भी सीिमत है और
सूरज भी सीिमत है। दीये म एक कडल का लाइट है, तो अरब -खरब कडल का लाइट
होगा सूरज म; ले कन सीमा आंक जा सकती है, तौली जा सकती है। ले कन संभोग म जो
आनंद है और समािध म जो आनंद है, उसे फर भी नह तौला जा सकता। य क संभोग
अ यंत िणक दो ु ि य का िमलन है और समािध बूंद का अनंत के सागर से िमल
जाना है। उसे कोई भी नह तौला जा सकता है। उसे तौलने का कोई भी उपाय नह है। उसे
कोई माग नह क हम जांच क वह कतना होगा।
इसिलए जब वह उपल ध होता है--जब वह उपल ध हो जाता है--तो फर कहां से स!
फर कहां संभोग! फर कहां कामना! जब उतना अनंत िमल गया तब कोई कै से सोचेगा,
कै से िवचार करे गा उस ण भर के सुख को पाने के िलए! तब वह सुख दुख जैसा तीत
होता है। तब वह सुख पागलपन जैसा तीत होता है। तब वह सुख शि का अप य
तीत होता है। और चय सहज फिलत हो जाता है।
ले कन संभोग और समािध के बीच एक सेतु है, एक ि ज है, एक या ा है, एक माग है।
समािध िजसका अंितम छोर है आकाश म जाकर, संभोग उस सीढ़ी का पहला सोपान है,
पहला पाया है। और जो इस पाए के ही िवरोध म हो जाते ह वे आगे नह बढ़ पाते, यह म
आपसे कह देना चाहता ।ं जो इस पहले पाए को इनकार करने लगते ह वे दूसरे पाए पर
पैर नह रख सकते ह, म आपसे यह कह देना चाहता ।ं इस पहले पाए पर भी अनुभव से,
ान से, बोध से पैर रखना ज री है। इसिलए नह क हम उसी पर के रह जाएं, बि क
इसिलए क हम उस पर पैर रख कर आगे िनकल जा सक।
ले कन मनु य-जाित के साथ एक अदभुत दुघटना हो गई। जैसा मने कहा, वह पहले पाए
के िवरोध म हो गया है और अंितम पाए पर प च ं ना चाहता है! उसे पहले पाए का ही
अनुभव नह , उसे दीये का भी अनुभव नह और वह सूरज के अनुभव क आकां ा करता
है।
यह कभी भी नह हो सके गा। जो दीया िमला है कृ ित क तरफ से, पहले उस दीये क
रोशनी को समझ लेना ज री है। पहले उस दीये क हलक सी रोशनी को, जो ण भर म
जीती है और बुझ जाती है, जरा सा हवा का झ का िजसे िमटा देता है, उस रोशनी को भी
जान लेना ज री है। ता क सूरज क आकां ा क जा सके , ता क सूरज तक प च ं ने के िलए
कदम उठाया जा सके , ता क सूरज क यास, असंतोष, आकां ा और अभी सा भीतर पैदा
हो सके ।
संगीत के एक छोटे से अनुभव से उस परम संगीत क तरफ जाया जा सकता है। काश के
एक छोटे से अनुभव से अनंत काश क तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना,
पूरे सागर को जान लेने के िलए पहला कदम है। एक छोटे से अणु को जान कर हम पदाथ
क सारी शि को जान लेते ह।
संभोग का एक छोटा सा अणु है, जो कृ ित क तरफ से मनु य को मु त म िमला आ है।
ले कन हम उसे जान नह पाते ह। आंख बंद करके जी लेते ह कसी तरह, पीठ फे र कर जी
लेते ह कसी तरह। उसक वीकृ ित नह है हमारे मन म, वीकार नह है हमारे मन म।
आनंद और अहोभाव से उसे जानने और जीने और उसम वेश करने क कोई िविध नह है
हमारे हाथ म।
मने जैसा आपसे कहा, िजस दन आदमी इस िविध को जान पाएगा, उस दन हम दूसरे
तरह के मनु य को पैदा करने म समथ हो जाएंगे।
म इस संदभ म आपसे यह कहना चाहता ं क ी और पु ष दो अपोिजट पो स ह
िव ुत के --पािज टव और िनगे टव, िवधायक और नकारा मक दो छोर ह। उन दोन के
िमलन से एक संगीत पैदा होता है; िव ुत का पूरा च पैदा होता है।
म आपसे यह भी कहना चाहता ं क जैसा मने कहा क अगर गहराई और देर तक
संभोग िथर रह जाए-- ी और पु ष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पार तक संभोग म
रह जाए--तो दोन के पास काश का एक वलय, दोन के पास काश का एक घेरा िन मत
हो जाता है। दोन क िव ुत जब पूरी तरह िमलती है तो आस-पास अंधेरे म भी एक
रोशनी दखाई पड़ने लगती है। कु छ अदभुत खोिजय ने उस दशा म काम कया है और
फोटो ाफ भी िलए ह। िजस जोड़े को उस िव ुत का अनुभव उपल ध हो जाता है, वह
जोड़ा सदा के िलए संभोग के बाहर हो जाता है।
ले कन यह हमारा अनुभव नह है। और ये बात अजीब लगगी, क यह तो हमारे अनुभव
म नह है यह बात। अगर अनुभव म नह है तो उसका मतलब है क आप फर से सोच,
फर से देख और जंदगी को--कम से कम से स क जंदगी को--क ख ग से फर से शु कर,
समझने के िलए, बोधपूवक जीने के िलए।
मेरी अपनी अनुभूित यह है, मेरी अपनी धारणा यह है क महावीर या बु या ाइ ट
और कृ ण आकि मक प से पैदा नह हो जाते ह। यह उन दो ि य के प रपूण िमलन
का प रणाम है। िमलन िजतना गहरा होगा, जो संतित पैदा होगी वह उतनी ही अदभुत
होगी। िमलन िजतना अधूरा होगा, जो संतित पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दिलत
होगी।
आज सारी दुिनया म मनु यता का तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते ह क
नीित िबगड़ गई है, इसिलए तर नीचे जा रहा है। लोग कहते ह क किलयुग आ गया है,
इसिलए तर नीचे जा रहा है। गलत, बेकार क और फजूल क बात कहते ह। िसफ एक
फक पड़ा है। मनु य के संभोग का तर नीचे उतर गया है। मनु य के संभोग ने पिव ता खो
दी है। मनु य के संभोग ने वै ािनकता खो दी है, सरलता और ाकृ ितकता खो दी है।
मनु य का संभोग जबरद ती, एक नाइटमेयर, एक दुखद व जैसा हो गया है। मनु य के
संभोग ने एक हंसा मक ि थित ले ली है। वह एक ेमपूण कृ य नह है, वह एक पिव
और शांत कृ य नह है, वह एक यानपूण कृ य नह है। इसिलए मनु य नीचे उतरता चला
जाएगा।
एक कलाकार कु छ चीज बनाता हो--कोई मू त बनाता हो--और कलाकार नशे म हो, तो
आप आशा करते ह क कोई सुंदर मू त बन पाएगी? एक नृ यकार नाच रहा हो, ोध से
भरा हो, अशांत हो, चंितत हो, तो आप आशा करते ह क नृ य सुंदर हो सके गा?
हम जो भी करते ह, वह हम कस ि थित म ह, इस पर िनभर होता है। और सबसे यादा
उपेि त, िन ले टेड से स है, संभोग है। और बड़े आ य क बात है, उसी संभोग से जीवन
क सारी या ा चलती है! नये ब ,े नई आ माएं जगत म वेश करती ह!
शायद आपको पता न हो, संभोग एक िसचुएशन है, िजसम एक आकाश म उड़ती ई
आ मा अपने यो य ि थित को समझ कर िव होती है। आप िसफ एक अवसर पैदा करते
ह। आप ब े के ज मदाता नह ह, िसफ एक अवसर पैदा करते ह। वह अवसर िजस आ मा
के िलए ज री, उपयोगी और साथक मालूम होता है, वह आ मा िव होती है।
अगर आपने एक ण अवसर पैदा कया है, अगर ोध म, दुख म, पीड़ा म और चंता म
आप ह, तो जो आ मा अवत रत होगी वह आ मा इसी तल क हो सकती है, इससे ऊंचे तल
क नह हो सकती है। े आ मा क पुकार के िलए े संभोग का अवसर और सुिवधा
चािहए, तो े आ माएं ज मती ह और जीवन ऊपर उठता है।
इसिलए मने कहा क िजस दन आदमी संभोग के पूरे शा म िन णात होगा, िजस दन
हम छोटे-छोटे ब से लेकर सारे जगत को उस कला और िव ान के संबंध म सारी बात
कह सकगे और समझा सकगे, उस दन हम िबलकु ल नये मनु य को--िजसे नी शे सुपरमैन
कहता था, िजसे अर वंद अितमानव कहते थे, िजसको महान आ मा कहा जा सके --वैसा
ब ा, वैसी संतित, वैसा जगत िन मत कया जा सकता है। और जब तक हम ऐसा जगत
िन मत नह कर लेते ह, तब तक न शांित हो सकती है िव म, न यु क सकते ह, न
घृणा के गी, न अनीित के गी, न दु र ता के गी, न िभचार के गा, न जीवन का यह
अंधकार के गा। लाख राजनीित िच लाते रह...
(बा रश क हलक बौछार, ोता म कु छ हलन-चलन।)
मत फ कर, यह पांच िमनट के पानी िगरने से कोई फक नह पड़ेगा। बंद कर ल छाते!
य क दूसरे लोग के पास छाते नह ह; यह ब त अधा मक होगा क कु छ लोग छाता
खोल ल। उसे बंद कर ल! सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोग के पास नह ह और
आप खोल कर बैठगे तो कै सा बे दा होगा, कै सा असं कृ त होगा। उसको बंद कर ल! म
ज र, मेरे ऊपर छ पर है, तो िजतनी देर आप पानी म बैठे रहगे, मी टंग के बाद उतनी देर
म पानी म खड़ा हो जाऊंगा।
...नह िमटगे यु , नह िमटेगी अशांित, नह िमटेगी हंसा, नह िमटेगी ई या। कतने
दन हो गए! दस हजार साल हो गए! मनु य-जाित के पैगंबर, तीथकर, अवतार समझा रहे
ह क मत लड़ो, मत करो हंसा, मत करो ोध। ले कन कसी ने कभी नह सुना। िज ह ने
हम समझाया क मत करो हंसा, मत करो ोध, उनको हमने सूली पर लटका दया। यह
उनक िश ा का फल आ।
गांधी हम समझाते थे क ेम करो, एक हो जाओ! हमने गोली मार दी। यह कु ल उनक
िश ा का फल आ। दुिनया के सारे मनु य, सारे महापु ष हार गए ह, यह समझ लेना
चािहए। असफल हो चुके ह। आज तक का कोई भी मू य जीत नह सका। सब मू य हार
गए। सब मू य असफल हो गए। बड़े से बड़े पुकारने वाले लोग, भले से भले लोग भी हार
गए और समा हो गए। और आदमी रोज अंधेरे और नरक म चला जाता रहा है।
या इससे यह पता नह चलता क हमारी िश ा म कह कोई बुिनयादी भूल है!
अशांत आदमी इसिलए अशांत है क वह अशांित म ज मता है। उसके पास अशांित के
क टाणु ह। उसके ाण क गहराई म अशांित का रोग है। ज म के पहले दन वह अशांित
को, दुख और पीड़ा को लेकर पैदा आ है। ज म के पहले ण म ही उसके जीवन का सारा
व प िन मत हो गया है।
इसिलए बु हार जाएंगे, महावीर हारगे, कृ ण हारगे, ाइ ट हारगे। हार चुके ह। हम
िश तावश यह कहते ह क वे नह हारे ह तो दूसरी बात है, ले कन वे सब हार चुके ह।
और आदमी रोज िबगड़ता चला गया है, रोज िबगड़ता गया है। अ हंसा क इतने दन क
िश ा, और हम छु री से एटम और हाइ ोजन बम पर प च ं गए ह। यह अ हंसा क िश ा
क सफलता होगी?
िपछले पहले महायु म तीन करोड़ लोग क हमने ह या क थी। और उसके बाद--
शांित और ेम क बात करने के बाद--दूसरे महायु म हमने साढ़े सात करोड़ लोग क
ह या क । और उसके बाद भी िच ला रहे ह ब ड रसेल से लेकर िवनोबा तक सारे लोग क
शांित चािहए, शांित चािहए, और हम तीसरे महायु क तैयारी कर रहे ह। और तीसरा
महायु दूसरे महायु को ब का खेल बना देगा।
आइं टीन से कसी ने पूछा था क तीसरे महायु म या होगा? आइं टीन ने कहा क
तीसरे के बाबत कु छ भी नह कहा जा सकता, ले कन चौथे के संबंध म म कु छ कह सकता
।ं पूछने वाल ने कहा, आ य! आप तीसरे के संबंध म नह कह सकते तो चौथे के संबंध म
या कहगे? आइं टीन ने कहा, चौथे के संबंध म एक बात िनि त है क चौथा महायु
कभी नह होगा। य क तीसरे के बाद कसी आदमी के बचने क कोई उ मीद नह ।
यह मनु य क सारी नैितक और धा मक िश ा का फल है।
म आपसे कहना चाहता ,ं इसक बुिनयादी वजह दूसरी है। जब तक हम मनु य के
संभोग को सु वि थत, मनु य के संभोग को आ याि मक, जब तक हम मनु य के संभोग
को समािध का ार बनाने म सफल नह होते, तब तक अ छी मनु यता पैदा नह हो
सकती है। रोज बदतर से बदतर मनु यता पैदा होगी, य क आज के बदतर ब े कल
संभोग करगे और अपने से बदतर लोग को ज म दे जाएंगे। हर पीढ़ी नीचे उतरती चली
जाएगी, यह िबलकु ल ही िनि त है, इसक ोफे सी क जा सकती है, इसक भिव यवाणी
क जा सकती है।
और अब तो हम उस जगह प च ं गए ह क शायद और पतन क गुंजाइश नह है। करीब-
करीब सारी दुिनया एक मैड हाउस, एक पागलखाना हो गई है।
अमे रका के मनोवै ािनक ने िहसाब लगाया है क यूयाक जैसे नगर म के वल अठारह
ितशत लोग मानिसक प से व थ कहे जा सकते ह। अठारह ितशत! अठारह ितशत
लोग मानिसक प से व थ ह, तो बयासी ितशत लोग क या हालत है? बयासी
ितशत लोग करीब-करीब िवि होने क हालत म ह।
आप कभी अपने संबंध म कोने म बैठ कर िवचार करना, तो आपको पता चलेगा क
पागलपन कतना है भीतर! कसी तरह दबाए ह पागलपन को, कसी तरह स हल कर
चले जा रहे ह, वह बात दूसरी है। जरा सा कोई ध ा दे दे, और कोई भी आदमी पागल हो
सकता है। यह संभावना है क सौ वष के भीतर सारी मनु यता एक पागलघर बन जाए,
सारे लोग करीब-करीब पागल हो जाएं! फर हम एक फायदा होगा क पागल के इलाज
क कोई ज रत न रहेगी। एक फायदा होगा क पागल के िच क सक नह ह गे। एक
फायदा होगा क कोई अनुभव नह करे गा क कोई पागल है। य क पागल का पहला
ल ण यह है क वह कभी नह मानता क म पागल ।ं इतना ही फायदा होगा। ले कन
यह णता बढ़ती चली जाती है। यह रोग, यह अ वा य, यह मानिसक चंता और
मानिसक अंधकार बढ़ता चला जाता है।
या म आपसे क ं क से स को ि चुएलाइज कए िबना, संभोग को आ याि मक बनाए
िबना कोई नई मनु यता पैदा नह हो सकती है? इन तीन दन म यही थोड़ी सी बात मने
आपसे कह । िनि त ही एक नये मनु य को ज म देना है। मनु य के ाण आतुर ह
ऊंचाइय को छू ने के िलए, आकाश म उठ जाने के िलए, चांद-तार जैसे रोशन होने के
िलए, फू ल जैसे िखल जाने के िलए, नृ य के िलए, संगीत के िलए, आदमी क आ मा रोती
है और यासी है। और आदमी को के बैल क तरह एक च र म घूमता है और उसी म
समा हो जाता है, च र के बाहर नह उठ पाता है! या है कारण?
कारण एक ही है। मनु य के ज म क या बे दी है, ए सड है। मनु य के पैदा होने क
िविध पागलपन से भरी ई है। मनु य के संभोग को हम ार नह बना सके समािध का,
इसिलए।
मनु य का संभोग समािध का ार बन सकता है। इन तीन दन म इसी छोटे से मं पर
मने सारी बात कह । और अंत म एक बात दोहरा दूं और आज क चचा म पूरी क ं ।
म यह कह देना चाहता ं क जीवन के स य से आंख चुराने वाले लोग मनु य के श ु ह।
जो आपसे कहे क संभोग और से स क बात िवचार भी नह करनी चािहए, वह आदमी
मनु य का दु मन है। य क ऐसे ही दु मन ने हम सोचने नह दया। अ यथा यह कै से
संभव था क हम आज तक वै ािनक दृि न खोज लेते और जीवन को नया करने का योग
न खोज लेते! जो आपसे कहे क से स का धम से कोई संबंध नह है, वह आदमी सौ
ितशत गलत बात कहता है। य क से स क ऊजा ही प रव तत और पांत रत होकर
धम के जगत म वेश पाती है। वीय क शि ही ऊ व वी होकर मनु य को उन लोक म
ले जाती है, िजनका हम कोई भी पता नह है, जहां कोई मृ यु नह है, जहां कोई दुख नह
है, जहां आनंद के अित र और कोई अि त व नह है।
उस सत्-िचत्-आनंद म ले जाने वाली शि और ऊजा कसके पास है और कहां है?
हम उसे य कर रहे ह। हम उन पा क तरह ह िजनम छेद ह, िज ह हम कु म
डालते ह ख चने के िलए। ऊपर तक पा तो आ जाता है, शोरगुल भी बीच म ब त होता
है और पानी िगरता है और लगता है क पानी आता होगा। ले कन पानी सब बीच म िगर
जाता है, खाली पा हाथ म वापस आ जाते ह। हम उन नाव क तरह ह िजनम छेद ह।
हम नाव को खेते ह--िसफ डू बने के िलए; नाव कसी कनारे पर नह प च ं ा पात , िसफ
मझधार म डु बा देती ह और न कर देती ह।
और ये सारे िछ मनु य क से स ऊजा के गलत माग से वािहत और बह जाने के
कारण ह। और उन गलत माग पर बहाने वाले लोग वे नह ह िज ह ने नंगी त वीर
लटकाई ह, वे नह ह िज ह ने नंगे उप यास िलखे ह, वे नह ह जो नंगी फ म बना रहे ह।
मनु य क ऊजा को िवकृ त करने वाले वे लोग ह िज ह ने मनु य को से स के स य से
प रिचत होने म बाधा दी है। और वे ही लोग के कारण ये नंगी त वीर िबक रही ह, नंगी
फ म िबक रही ह, लोग नंगे लब को ईजाद कर रहे ह और गंदगी के नये-नये और
बे दगी के नये-नये रा ते िनकाल रहे ह। कनके कारण? ये उनके कारण िजनको हम साधु
और सं यासी कहते ह! उ ह ने इनके बाजार का रा ता तैयार कया है। अगर गौर से हम
देख तो वे इनके िव ापनदाता ह, वे इनके एजट ह।
एक छोटी सी कहानी, म अपनी बात पूरी कर दूग ं ा।
एक पुरोिहत जा रहा था अपने चच क तरफ। दूर था गांव, भागा आ चला जा रहा था।
तभी उसे पास क खाई म जंगल म एक आदमी पड़ा आ दखाई पड़ा--घाव से भरा आ,
खून बह रहा है, छु री उसक छाती म चुभी है। पुरोिहत को खयाल आया क चलूं, म इसे
उठा लू।ं ले कन उसने देखा क चच प च ं ने म देर हो जाएगी और वहां उसे ा यान देना
है और लोग को समझाना है। आज वह ेम के संबंध म ही समझाने जाता था। आज उसने
िवषय चुना था: लव इज़ गॉड। ाइ ट के वचन को चुना था क ई र, परमा मा ेम है।
वह यही समझाने जा रहा था, वह उसी का िहसाब लगाता आ भागा जा रहा है।
ले कन उस आदमी ने आंख खोल और उसने िच लाया क पुरोिहत, मुझे पता है क तू
ेम पर बोलने जा रहा है। म भी आज सुनने आने वाला था। ले कन दु ने मुझे छु री मार
कर यहां पटक दया है। ले कन याद रख, अगर म जंदा रह गया तो गांव भर म खबर कर
दूग
ं ा क आदमी मर रहा था और यह आदमी ेम पर ा यान देने चला गया! देख, आगे
मत बढ़!
इससे पुरोिहत को थोड़ा डर लगा। य क अगर यह आदमी जंदा रह जाए और गांव म
खबर कर दे, तो लोग कहगे क ेम का ा यान बड़ा झूठा था, आपने इस आदमी क
फ न क जो मरता था! तो मजबूरी म उसे नीचे उतर कर उसके पास जाना पड़ा। वहां
जाकर उसका चेहरा देखा तो वह ब त घबराया। चेहरा तो पहचाना आ सा मालूम
पड़ता था! उसने कहा, ऐसा मालूम होता है मने तु ह कह देखा है! और उस मरणास
आदमी ने कहा, ज र देखा होगा। म शैतान ,ं और पाद रय से अपना पुराना नाता है।
तुमने नह देखा होगा तो कसने मुझे देखा होगा!
तब उसे खयाल आया क वह तो शैतान है, चच म उसक त वीर लटक ई है। उसने
अपने हाथ अलग कर िलए और कहा क मर जा! शैतान को तो हम चाहते ह क वह मर
ही जाए। अ छा आ क तू मर जा। म तुझे बचाने का य उपाय क ं ? मने तेरा खून भी
छू िलया, यह भी पाप आ। म जाता ।ं
वह शैतान जोर से हंसा, उसने कहा, याद रखना, िजस दन म मर जाऊंगा, उस दन
तु हारा धंधा भी मर जाएगा। मेरे िबना तुम जंदा नह रह सकते हो। म ,ं इसिलए तुम
जंदा हो। म तु हारे धंधे का आधार ।ं मुझे बचाने क कोिशश करो! नह तो िजस दन
शैतान मर जाएगा, उसी दन पुरोिहत, पंडा, पुजारी सब मर जाएगा; य क दुिनया
अ छी हो जाएगी, पंड,े पुजारी, पुरोिहत क कोई ज रत नह रह जाएगी।
पुरोिहत ने सोचा और घबराया क यह तो ब त बेिसक, ब त बुिनयादी बात कह रहा है
वह आदमी। उसने उसे त काल कं धे पर उठा िलया और कहा, यारे शैतान, घबराओ मत!
म ले चलता ं अ पताल, तु हारा इलाज करवाऊंगा, तुम ज दी ही ठीक हो जाओगे।
ले कन देखो, मर मत जाना। तुम ठीक कहते हो, तुम मर गए तो हम िबलकु ल बेकार हो
जाने वाले ह।
हम खयाल भी नह आ सकता क पुरोिहत के धंधे के पीछे शैतान है। हम यह भी खयाल
नह आ सकता क शैतान के धंधे के पीछे पुरोिहत है। यह जो शैतान का धंधा चल रहा है--
से स का शोषण चल रहा है सारी दुिनया म, हर चीज के पीछे से स का शोषण चल रहा
है--हम खयाल भी नह आ सकता क पुरोिहत का हाथ है इसके पीछे। पुरोिहत ने िजतनी
नंदा क है, से स उतना आकषक हो गया है। फर उसने िजतने दमन के िलए कहा है,
आदमी उतना भोग म िगर गया है। पुरोिहत ने िजतना इनकार कया क से स के संबंध म
सोचना ही मत, से स उतनी ही अनजान पहेली हो गई और हम उसके संबंध म कु छ भी
करने म असमथ हो गए।
नह ! ान चािहए। ान शि है। और से स का ान बड़ी शि बन सकता है। अ ान
म जीना िहतकर नह है। और से स के अ ान म जीना तो िबलकु ल िहतकर नह है। यह
भी हो सकता है क हम न जाएं चांद पर। कोई ज रत नह है चांद पर जाने क । चांद को
जान लेने से कोई मनु य-जाित का ब त िहत नह हो जाएगा। यह भी ज री नह है क
हम पैिस फक महासागर क गहराइय म उतर पांच मील, जहां क सूरज क रोशनी भी
नह प च ं ती। उसको जान लेने से भी मनु य-जाित का कोई ब त परम मंगल हो जाने
वाला नह है। यह भी ज री नह है क हम एटम को तोड़ और पहचान। ले कन एक बात
िबलकु ल ज री है, सबसे यादा ज री है, अ टीमेट कं सन क है, और वह यह है क हम
मनु य के से स को ठीक से जान ल और समझ ल, ता क नये मनु य को ज म देने म सफल
हो सक।
ये थोड़ी सी बात तीन दन म मने आपसे कह । कल आपके के उ र दूग
ं ा। और चूं क
कल का दन खाली छू ट गया, कु छ िम आए और भीग कर लौट गए, तो मेरे ऊपर उनका
ऋण हो गया है, तो कल म दो घंटे उ र दे दूग
ं ा ता क आपको कोई अड़चन और तकलीफ
न हो। अपने आप िलख कर दे दगे--ईमानदारी से! य क यह मामला ऐसा नह है क
आप परमा मा, आ मा के संबंध म िजस तरह क बात पूछते ह, वे यहां पूछ। यह मामला
जंदगी का है और सीधे और स े अगर आपने पूछे तो हम इन िवषय क और गहराई
म भी उतरने म समथ हो सकते ह।

मेरी बात को इतने ेम से सुना, उसके िलए अनुगृहीत ।ं और अंत म सबके भीतर बैठे
परमा मा को णाम करता ,ं मेरे णाम वीकार कर।
#5
समािध : संभोग-ऊजा का आ याि मक िनयोजन
मेरे ि य आ मन्!

िम ने ब त से पूछे ह। सबसे पहले एक िम ने पूछा है क ओशो, मने बोलने के िलए से स या काम का


िवषय य चुना है?

इसक थोड़ी सी कहानी है। एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कु छ लोग बंबई
कहते ह। उस बड़े बाजार म एक सभा थी। और उस सभा म एक पंिडत जी, कबीर या
कहते ह, इस संबंध म बोलते थे। उ ह ने कबीर क एक पंि कही और उसका अथ
समझाया। उ ह ने कहा क कबीरा खड़ा बाजार म, िलए लुकाठी हाथ; जो घर बारै
आपना, चले हमारे साथ। उ ह ने यह कहा क कबीर बाजार म खड़ा था और िच ला कर
लोग से कहने लगा क लकड़ी उठा कर म बुलाता ं उ ह, जो अपने घर को जलाने क
िह मत रखते ह , वे हमारे साथ आ जाएं।
उस सभा म मने देखा क लोग यह बात सुन कर ब त खुश ए। मुझे बड़ी हैरानी ई!
मुझे हैरानी यह ई क वे जो लोग खुश हो रहे थे, उनम से कोई भी अपने घर को जलाने
को कभी भी तैयार नह था। ले कन उ ह स देख कर मने समझा क बेचारा कबीर आज
होता तो कतना खुश न होता! जब तीन सौ साल पहले वह था और कसी बाजार म उसने
िच ला कर कहा होगा, तो एक भी आदमी खुश नह आ होगा। आदमी क जात बड़ी
अदभुत है। जो मर जाते ह, उनक बात सुन कर लोग खुश होते ह। और जो जंदा होते ह,
उ ह मार डालने क धमक देते ह।
मने सोचा, आज कबीर होते इस बंबई के बड़े बाजार म, तो कतने खुश होते क लोग
कतने स हो रहे ह! कबीर जी या कहते ह, इसको सुन कर लोग स हो रहे ह।
कबीर जी को सुन कर वे कभी भी स नह ए थे।
ले कन लोग को स देख कर मुझे ऐसा लगा क जो लोग अपने घर को जलाने के िलए
भी िह मत रखते ह और खुश होते ह, उनसे आज कु छ दल क बात कही जाएं। तो म भी
उसी धोखे म आ गया, िजसम कबीर और ाइ ट और सारे लोग हमेशा आते रहे ह। तो मने
लोग से स य क कु छ बात कहनी चाही। और स य के संबंध म कोई बात कहनी हो तो उन
अस य को सबसे पहले तोड़ देना ज री है जो आदमी ने स य समझ रखे ह। िज ह हम
स य समझते ह और जो स य नह ह, जब तक उ ह न तोड़ दया जाए, तब तक स य या
है, उसे जानने क तरफ कोई कदम नह उठाया जा सकता है।
मुझे कहा गया था उस सभा म क म ेम के संबंध म कु छ क ।ं और मुझे लगा क ेम के
संबंध म तब तक बात समझ म नह आ सकती, जब तक क हम काम और से स के संबंध
म कु छ गलत धारणाएं िलए ए बैठे ह। अगर गलत धारणाएं ह से स के संबंध म, तो ेम
के संबंध म हम जो भी बातचीत करगे, वह अधूरी होगी, वह झूठी होगी, वह स य नह हो
सकती।
इसिलए उस सभा म मने काम और से स के संबंध म कु छ कहा। और यह कहा क काम
क ऊजा ही पांत रत होकर ेम क अिभ ि बनती है।
एक आदमी खाद खरीद लाता है, गंदी और बदबू से भरी ई। और अगर अपने घर के
पास ढेर लगा ले तो सड़क पर से िनकलना मुि कल हो जाएगा, इतनी दुगध वहां फै लेगी।
ले कन एक दूसरा आदमी उसी खाद को बगीचे म डालता है और फू ल के बीज डालता है।
फर वे बीज बड़े होते ह, पौधे बनते ह, और फू ल आते ह। और फू ल क सुगंध पास-पड़ोस
के घर म िनमं ण बन कर प च ं जाती है। राह से िनकलते ए लोग को भी वह सुगंध
छू ती है, वह पौध का लहराता आ संगीत अनुभव होता है। ले कन शायद ही कभी आपने
सोचा हो क फू ल से जो सुगंध बन कर कट हो रहा है, वह वही दुगध है जो खाद से कट
होती थी। खाद क दुगध बीज से गुजर कर फू ल क सुगंध बन जाती है।
दुगध सुगंध बन सकती है। काम ेम बन सकता है।
ले कन जो काम के िवरोध म हो जाएगा, वह उसे ेम कै से बनाएगा? जो काम का श ु
हो जाएगा, वह उसे कै से पांत रत करे गा? इसिलए काम को, से स को समझना ज री
है--यह मने वहां कहा--और उसे पांत रत करना ज री है।
मने सोचा था, जो लोग िसर िहलाते थे घर जल जाने पर, वे लोग मेरी बात सुन कर बड़े
खुश ह गे। ले कन मुझसे गलती हो गई। जब म मंच से उतरा, तो उस मंच पर िजतने नेता
थे, िजतने संयोजक थे, वे सब भाग चुके थे। वे मुझे उतरते व मंच पर कोई भी नह िमले।
वे शायद अपने घर चले गए ह गे, कह घर म आग न लग जाए, उसे बुझाने का इं तजाम
करने भाग गए थे। मुझे ध यवाद देने को भी संयोजक वहां नह थे। िजतनी भी सफे द
टोिपयां थ , िजतने भी खादी वाले लोग थे, वे मंच पर कोई भी नह थे, वे जा चुके थे। नेता
बड़ा कमजोर होता है, वह अनुयाियय के पहले भाग जाता है।
ले कन कु छ िह मतवर लोग ज र ऊपर आए। कु छ ब े आए, कु छ बि यां आ ; कु छ
बूढ़े, कु छ जवान। और उ ह ने मुझसे कहा क आपने वह बात हम कही है, जो हम कसी ने
भी कभी नह कही। और हमारी आंख खोल दी ह। हम ब त ही काश अनुभव आ है।
तो फर मने सोचा क उिचत होगा क इस बात को और ठीक से पूरी तरह कहा जाए,
इसिलए यह िवषय मने आज यहां चुना। इन चार दन म वह कहानी जो वहां अधूरी रह
गई थी, उसे पूरा करने का कारण यह था क लोग ने मुझे कहा। और वह उन लोग ने कहा
िजनक जीवन को समझने क हा दक चे ा है। और उ ह ने चाहा क म पूरी बात क ।ं एक
तो कारण यह था।
और दूसरा कारण यह था क वे जो लोग भाग गए थे मंच से, उ ह ने जगह-जगह जाकर
कहना शु कर दया क मने तो ऐसी बात कही ह िजनसे धम का िवनाश हो जाएगा! मने
तो ऐसी बात कही ह िजनसे क लोग अधा मक हो जाएंगे!
तो मुझे लगा क उनका भी कहना पूरा प हो सके , उनको भी पता चल सके क लोग
से स के संबंध म समझ कर अधा मक होने वाले नह ह। नह समझा है उ ह ने आज तक,
इसिलए अधा मक हो गए ह। अ ान अधा मक बना सकता है; ान कभी भी अधा मक
नह बना सकता। और अगर ान अधा मक बनाता हो, तो म कहता ं क ऐसा ान
उिचत है जो अधा मक बना दे, उस अ ान क बजाय जो क धा मक बनाता हो। य क
जो अ ान धा मक बनाता हो, तो वह धम भी दो कौड़ी का है जो अ ान क बुिनयाद पर
खड़ा होता हो। धम तो वही स य है जो ान के आधार पर खड़ा होता है।
और मुझे नह दखाई पड़ता क ान मनु य को कभी भी कोई हािन प च ं ा सकता है।
हािन हमेशा अंधकार से प च
ं ती है और अ ान से।
इसिलए अगर मनु य-जाित हो गई, यौन के संबंध म िवकृ त और िवि हो गई,
से स के संबंध म पागल हो गई, तो उसका िज मा उन लोग पर नह है िज ह ने से स के
संबंध म ान क खोज क है। उसका िज मा उन नैितक, धा मक और थोथे साधु-संत पर
है िज ह ने मनु य को हजार वष से अ ान म रखने क चे ा क है। यह मनु य-जाित
कभी क से स से मु हो गई होती। ले कन नह यह हो सका। नह हो सका उनक वजह
से जो अंधकार कायम रखने क चे ा कर रहे ह।
तो मने समझा क अगर थोड़ी सी करण से इतनी बेचैनी ई है तो फर पूरे काश क
चचा कर लेनी उिचत है। ता क साफ हो सके क ान मनु य को धा मक बनाता है या
अधा मक बनाता है। यह कारण था इसिलए यह िवषय चुना। और अगर यह कारण न
होता तो शायद मुझे अचानक खयाल न आता इसे चुनने का। शायद इस पर म कोई बात न
करता। इस िलहाज से वे लोग ध यवाद के पा ह िज ह ने अवसर पैदा कर दया और यह
िवषय मुझे चुनना पड़ा। और अगर आपको ध यवाद देना हो तो मुझे मत देना। वह
भारतीय िव ाभवन म िज ह ने सभा आयोिजत क थी, उनको ध यवाद देना। उ ह ने ही
यह िवषय चुनवा दया है। मेरा इसम कोई हाथ नह है।

एक िम ने पूछा है क मने कहा क काम का पांतरण ही ेम बनता है। तो उ ह ने पूछा है क ओशो, मां का
बेटे के िलए ेम-- या वह भी काम है, वह भी से स है?

और भी कु छ लोग ने इसी तरह के पूछे ह।


इसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी होगा।
अगर मेरी बात आपने यान से सुनी है, तो मने कहा क से स के अनुभव क बड़ी
गहराइयां ह िजन तक आदमी प च ं भी नह पाता है। तीन तल ह से स के अनुभव के , वह
म आपसे क ।ं
एक तल तो शरीर का तल है--िबलकु ल फिजयोलािजकल। एक आदमी वे या के पास
जाता है। उसे जो से स का अनुभव होता है, वह शरीर से गहरा नह हो सकता। वे या
शरीर बेच सकती है, मन नह बेचा जा सकता। और आ मा के बेचने का तो कोई उपाय
नह है। शरीर िमल सकता है। एक आदमी बला कार करता है, तो बला कार म कसी का
मन भी नह िमल सकता और कसी क आ मा भी नह । शरीर पर बला कार कया जा
सकता है, आ मा पर बला कार करने का न कोई उपाय खोजा जा सका है, न खोजा जा
सकता है। तो बला कार म भी जो अनुभव होगा, वह शरीर का होगा।
से स का ाथिमक अनुभव शरीर से यादा गहरा नह होता। ले कन शरीर के अनुभव
पर ही जो क जाते ह, वे से स के पूरे अनुभव को उपल ध नह होते। उ ह, मने जो
गहराइय क बात कही ह, उसका उ ह कोई भी पता नह चल सकता। और अिधक लोग
शरीर के तल पर ही क गए ह।
इस संबंध म यह भी जान लेना ज री है क िजन देश म भी ेम के िबना िववाह होता
है, उस देश म से स शरीर के तल पर ही क जाता है, उससे गहरा नह जा सकता। िववाह
दो शरीर का हो सकता है, िववाह दो आ मा का नह । दो आ मा का ेम हो सकता
है। तो अगर ेम से िववाह िनकलता हो, तब तो िववाह एक गहरा अथ ले लेता है। और
अगर िववाह दो पंिडत के और दो योितिषय के िहसाब- कताब से िनकलता हो, और
जाित के िवचार से िनकलता हो, और धन के िवचार से िनकलता हो, तो वैसा िववाह कभी
भी शरीर से यादा गहरा नह जा सकता।
ले कन ऐसे िववाह का एक फायदा है। शरीर मन क बजाय यादा ि थर चीज है।
इसिलए शरीर िजन समाज म िववाह का आधार है, उन समाज म िववाह सुि थर होगा,
जीवन भर चल जाएगा। शरीर अि थर चीज नह है। शरीर ब त ि थर चीज है। उसम
प रवतन ब त धीरे -धीरे आता है और पता भी नह चलता। शरीर जड़ता का तल है।
इसिलए िजन समाज ने यह समझा क िववाह को ि थर बनाना ज री है--एक ही िववाह
पया हो, बदलाहट क ज रत न पड़े, उनको ेम अलग कर देना पड़ा। य क ेम होता
है मन से और मन चंचल है।
जो समाज ेम के आधार पर िववाह को िन मत करगे, उन समाज म तलाक अिनवाय
होगा। उन समाज म िववाह प रव तत होगा; िववाह थायी व था नह हो सकती।
य क ेम तरल है।
मन चंचल है। शरीर ि थर और जड़ है।
आपके घर म एक प थर पड़ा आ है। सुबह प थर पड़ा था, सांझ भी प थर वह पड़ा
रहेगा। सुबह एक फू ल िखला था, सांझ तक मुझा जाएगा और िगर जाएगा। फू ल जंदा है,
ज मेगा, जीएगा, मरे गा। प थर मुदा है, वैसे का वैसा सुबह था, वैसा ही शाम पड़ा रहेगा।
प थर ब त ि थर है।
िववाह प थर क तरह है। शरीर के तल पर जो िववाह है, वह ि थरता लाता है, समाज
के िहत म है। ले कन एक-एक ि के अिहत म है। य क वह ि थरता शरीर के तल पर
लाई गई है और ेम से बचा गया है। इसिलए शरीर के तल से यादा पित और प ी का
संभोग और से स नह प च ं पाता गहरे म। एक यांि क, एक मैकेिनकल टीन हो जाती
है। एक यं क भांित जीवन हो जाता है से स का। उस अनुभव को रपीट करते रहते ह
और जड़ होते चले जाते ह। ले कन उससे यादा गहराई कभी भी नह िमलती।
जहां ेम के िबना िववाह होता है उस िववाह म और वे या के पास जाने म बुिनयादी
भेद नह है, थोड़ा सा भेद है। बुिनयादी नह है वह। वे या को आप एक दन के िलए
खरीदते ह और प ी को आप पूरे जीवन के िलए खरीदते ह। इससे यादा फक नह पड़ता।
जहां ेम नह है, वहां खरीदना ही है, चाहे एक दन के िलए खरीदो, चाहे पूरी जंदगी के
िलए खरीदो। हालां क साथ रहने से रोज-रोज एक तरह का संबंध पैदा हो जाता है
एसोिसएशन से। लोग उसी को ेम समझ लेते ह। वह ेम नह है। ेम और ही बात है।
शरीर के तल पर िववाह है इसिलए शरीर के तल से गहरा संबंध कभी भी नह उ प हो
पाता। यह एक तल है।
दूसरा तल है से स का--मन का तल, साइकोलािजकल। वा यायन से लेकर पंिडत कोक
तक िजन लोग ने भी इस तरह के शा िलखे ह से स के बाबत, वे शरीर के तल से गहरे
नह जाते। दूसरा तल है मानिसक। जो लोग ेम करते ह और फर िववाह म बंधते ह,
उनका से स शरीर के तल से थोड़ा गहरा जाता है। वह मन तक जाता है। उसक गहराई
साइकोलािजकल है। ले कन वह भी रोज-रोज पुन होने से थोड़े दन म शरीर के तल
पर आ जाता है और यांि क हो जाता है।
पि म ने जो व था िवकिसत क है दो सौ वष म ेम-िववाह क , वह मानिसक तल
तक से स को ले जाती है। और इसीिलए पि म म समाज अ त त हो गया है; य क
मन का कोई भरोसा नह है। वह आज कहता है कु छ, कल कु छ कहने लगता है। सुबह कु छ
कहता है, सांझ कु छ कहने लगता है। घड़ी भर पहले कु छ कहता है, घड़ी भर बाद कु छ कहने
लगता है।
शायद आपने सुना होगा क बायरन ने जब शादी क , तो कहते ह क तब तक वह कोई
साठ-स र ि य से संबंिधत रह चुका था। एक ी ने उसे मजबूर ही कर दया िववाह के
िलए। तो उसने िववाह कया। और जब वह चच से उतर रहा था िववाह करके अपनी प ी
का हाथ हाथ म लेकर--घं टयां बज रही ह चच क ; मोमबि यां अभी जो जलाई गई ह,
जल रही ह; अभी जो िम वागत करने आए थे, वे िवदा हो रहे ह; और वह अपनी प ी
का हाथ पकड़ कर सामने खड़ी घोड़ागाड़ी म बैठने के िलए चच क सी ढ़यां उतर रहा है--
तभी उसे चच के सामने ही एक और ी जाती ई दखाई पड़ी। एक ण को वह भूल गया
अपनी प ी को, उसके हाथ को, अपने िववाह को। सारा ाण उस ी का पीछा करने
लगा।
जाकर वह गाड़ी म बैठा। ब त ईमानदार आदमी रहा होगा। उसने अपनी प ी से कहा
क तूने कु छ यान दया? एक अजीब घटना घट गई। कल तक तुझसे मेरा िववाह नह आ
था तो म िवचार करता था क तू मुझे िमल पाएगी या नह ? तेरे िसवाय मुझे कोई भी नह
दखाई पड़ता था। और आज जब क िववाह हो गया है, म तेरा हाथ पकड़ कर नीचे उतर
रहा ,ं मुझे एक ी दखाई पड़ी गाड़ी के उस तरफ जाती ई--और तू मुझे भूल गई और
मेरा मन उस ी का पीछा करने लगा। और एक ण को मुझे लगा क काश, यह ी मुझे
िमल जाए!
मन इतना चंचल है। तो िजन लोग को समाज को वि थत रखना था, उ ह ने मन के
तल पर से स को नह जाने दया, उ ह ने शरीर के तल पर रोक िलया। िववाह करो, ेम
नह । फर िववाह से ेम आता हो तो आए, न आता हो न आए। शरीर के तल पर ि थरता
हो सकती है। मन के तल पर ि थरता ब त मुि कल है।
ले कन मन के तल पर से स का अनुभव शरीर से यादा गहरा होता है। पूरब क बजाय
पि म का से स का अनुभव यादा गहरा है। तो पि म के जो मनोवै ािनक ह ायड से
जुंग तक, उन सारे लोग ने जो भी िलखा है, वह से स क दूसरी गहराई है, वह मन क
गहराई है।
ले कन म िजस से स क बात कर रहा ,ं वह तीसरा तल है। वह न आज तक पूरब म
पैदा आ है, न पि म म। वह तीसरा तल है--ि चुअल। वह तीसरा तल है--आ याि मक।
शरीर के तल पर भी एक ि थरता है, य क शरीर जड़ है। और आ मा के तल पर भी
एक ि थरता है, य क आ मा के तल पर कोई प रवतन कभी होता ही नह । वहां सब
शांत है, वहां सब सनातन है। बीच म एक तल है मन का, जहां तरलता है, पारे क तरह
तरल है मन, जरा म बदल जाता है।
पि म मन के साथ योग कर रहा है, इसिलए िववाह टू ट रहा है, प रवार न हो रहा
है। मन के साथ िववाह और प रवार खड़े नह रह सकते। अभी दो वष म तलाक है, कल दो
घंटे म तलाक हो सकता है। मन तो घंटे भर म बदल जाता है। तो पि म का सारा समाज
अ त त हो गया है। पूरब का समाज वि थत था। ले कन से स क जो गहरी अनुभूित
थी, वह पूरब को उपल ध नह हो सक ।
एक और ि थरता है, एक और घड़ी है--अ या म क । उस तल पर जो पित-प ी एक बार
िमल जाते ह या दो ि एक बार िमल जाते ह, उ ह तो ऐसा लगता है क वे अनंत ज म
के िलए एक हो गए। वहां फर कोई प रवतन नह है। उस तल पर चािहए ि थरता। उस
तल पर चािहए अनुभव।
तो म िजस अनुभव क बात कर रहा ,ं िजस से स क बात कर रहा ,ं वह ि चुअल
से स है। आ याि मक अथ िनयोजन करना चाहता ं काम क वासना म। और अगर मेरी
यह बात समझगे तो आपको पता चल जाएगा क मां का बेटे के ित जो ेम है, वह
आ याि मक काम है, वह ि चुअल से स का िह सा है।
आप कहगे, यह तो ब त उलटी बात है! मां का बेटे के ित काम का या संबंध?
ले कन जैसा मने कहा क पु ष और ी, पित और प ी एक ण के िलए िमलते ह, एक
ण के िलए दोन क आ माएं एक हो जाती ह। और उस घड़ी म जो उ ह आनंद का
अनुभव होता है, वही उनको बांधने वाला हो जाता है। कभी आपने सोचा क मां के पेट म
बेटा नौ महीने तक रहता है और मां के अि त व से िमला रहता है। पित एक ण को
िमलता है। बेटा नौ महीने के िलए एक होता है, इक ा होता है। इसीिलए मां का बेटे से जो
गहरा संबंध है, वह पित से भी कभी नह होता। हो भी नह सकता। पित एक ण के िलए
िमलता है अि त व के तल पर, जहां एि झ टस है, जहां बीइं ग है, वहां एक ण को
िमलता है, फर िबछु ड़ जाता है। एक ण को करीब आते ह और फर कोस का फासला
शु हो जाता है। ले कन बेटा नौ महीने तक मां क सांस से सांस लेता है, मां के दय से
धड़कता है, मां के खून से खून, मां के ाण से ाण। उसका अपना कोई अि त व नह होता,
वह मां का एक िह सा होता है।
इसीिलए ी मां बने िबना कभी भी पूरी तरह तृ नह हो पाती। कोई पित ी को
कभी तृ नह कर सकता, जो उसका बेटा उसको कर देता है। कोई पित कभी उतना गहरा
कं टटमट उसे नह दे पाता, िजतना उसका बेटा उसको दे पाता है। ी मां बने िबना पूरी
नह हो पाती। उसके ि व का पूरा िनखार और पूरा स दय उसके मां बनने पर कट
होता है। उससे उसके बेटे के आि मक संबंध ब त गहरे ह।
और इसीिलए आप यह भी समझ लो क जैसे ही ी मां बन जाती है, उसक से स म
िच कम हो जाती है। यह कभी आपने खयाल कया? जैसे ही ी मां बन जाती है, से स
के ित उसक िच कम हो जाती है। फर से स म उसे उतना रस नह मालूम पड़ता।
उसने एक और गहरा रस ले िलया है--मातृ व का। वह एक ाण के साथ और नौ महीने
तक इक ी जी ली है, अब उसे से स म रस नह रह जाता।
अ सर पित हैरान होते ह। य क पित के िपता बनने से पु ष म कोई फक नह पड़ता।
ले कन मां बनने से ी म बुिनयादी फक पड़ जाता है। िपता बनने से पित म कोई फक नह
पड़ता। य क िपता कोई ब त गहरा संबंध नह है। जो नया ि पैदा होता है उससे
िपता का कोई गहरा संबंध नह है। िपता िबलकु ल सामािजक व था है, सोशल
इं टी ूशन है। िपता के िबना भी दुिनया चल सकती है। इसीिलए िपता से कोई गहरा
संबंध नह है बेटे का।
मां से उसके ब त गहरे संबंध ह। और मां तृ हो जाती है उसके बाद, और उसम एक
और ही तरह क आ याि मक ग रमा कट होती है। जो मां नह बनी है ी, उसको देख;
और जो मां बन गई है, उसे देख। और उन दोन क चमक और उनक ऊजा और उनका
ि व अलग मालूम डेगा। मां म एक दीि दखाई पड़ेगी--शांत। जैसे नदी जब मैदान
म आ जाती है तब शांत हो जाती है। जो अभी मां नह बनी है, उस ी म एक दौड़
दखेगी। जैसे पहाड़ पर नदी दौड़ती है, झरने क तरह टू टती है, िच लाती है, गड़गड़ाहट
है, आवाज है, दौड़ है। मां बन कर वह एकदम शांत हो जाती है।
इसीिलए म आपसे इस संदभ म यह भी कहना चाहता ं क िजन ि य को से स का
पागलपन सवार हो गया है--जैसे पि म म--वे इसीिलए मां नह बनना चाहत , य क
मां बनने के बाद से स का रस कम हो जाता है। पि म क ी मां बनने से इनकार करती
है, य क मां बनी क से स का रस गया। से स का रस तभी तक रह सकता है, जब तक
वह मां न बने।
तो पि म क अनेक कू मत घबरा गई ह इस बात से क यह रोग अगर बढ़ता चला गया
तो उनक सं या का या होगा! हम यहां घबरा रहे ह क हमारी सं या न बढ़ जाए।
पि म म मु क घबरा रहे ह क उनक सं या कह कम न हो जाए! य क ि य को
अगर इतने ती प से यह भाव पैदा हो जाए क मां बनने से से स का रस कम हो जाता
है और वे मां न बनना चाह तो या कया जा सकता है! कोई कानूनी जबरद ती क जा
सकती है? कसी को संतित-िनयमन के िलए तो कानूनी जबरद ती भी क जा सकती है क
हम जबरद ती ब े नह होने दगे। ले कन कसी ी को मजबूर नह कया जा सकता क
ब े पैदा करने ही पड़गे।
पि म के सामने हमसे बड़ा सवाल है। हमारा सवाल उतना बड़ा नह है। हम सं या को
रोक सकते ह जबरद ती, कानूनन। ले कन सं या को कानूनन बढ़ाने का कोई भी रा ता
नह है। कसी ि को जबरद ती नह क जा सकती क तुम ब े पैदा करो। और आज
से दो सौ साल के भीतर पि म के सामने यह ब त भारी हो जाएगा। य क पूरब क
सं या बढ़ती चली जाएगी, वह सारी दुिनया पर छा सकती है। और पि म क सं या
ीण होती जा सकती है। ी को मां बनने के िलए उ ह फर से राजी करना पड़ेगा।
और उनके कु छ मनोवै ािनक ने यह सलाह देनी शु क है क बाल-िववाह शु कर
दो, अ यथा खतरा है। य क ी होश म आ जाती है तो वह मां नह बनना चाहती, उसे
से स का रस लेने म यादा ठीक मालूम पड़ता है। इसिलए बचपन म शादी कर दो, उसे
पता ही न चले वह कब मां बन गई।
पूरब म जो बाल-िववाह चलता था, उसके एक कारण म यह भी था। ी िजतनी युवा
हो जाएगी और िजतनी समझदार हो जाएगी और से स का जैसे रस लेने लगेगी, वैसे वह
मां नह बनना चाहेगी। हालां क उसे कु छ पता नह क मां बनने से या िमलेगा। यह तो
मां बनने से ही पता चल सकता है। उसके पहले कोई उपाय नह है।
ी तृ होने लगती है मां बन कर-- य ? उसने एक आ याि मक तल पर से स का
अनुभव कर िलया ब े के साथ। और इसीिलए मां और बेटे के पास एक आ मीयता है। मां
अपने ाण दे सकती है बेटे के िलए। मां बेटे के ाण लेने क क पना भी नह कर सकती है।
प ी पित के ाण ले सकती है। िलए ह अनेक बार। और अगर नह भी लेती तो पूरी
जंदगी म ाण लेने क हालत पैदा कर देती है। ले कन बेटे के िलए क पना भी नह कर
सकती। वह संबंध ब त गहरा है।
और म आपसे यह भी कह दू,ं जब उसका अपने पित से संबंध भी इतना गहरा हो जाता
है, तो पित भी उसे बेटे क तरह दखाई पड़ने लगता है, पित क तरह नह । यहां इतनी
ि यां बैठी ह और इतने पु ष बैठे ह। म उनसे यह पूछता ं क जब उ ह ने अपनी प ी को
ब त ेम कया है तो या उ ह ने इस तरह वहार नह कया है जैसे छोटा ब ा अपनी
मां के साथ करता है? या आपको इस बात का खयाल है क पु ष के हाथ ी के तन क
तरफ य प च ं जाते ह?
वे छोटे ब े के हाथ ह, जो अपनी मां के तन क तरफ जा रहे ह। जैसे ही पु ष ी के
ित गहरे ेम से भरता है, उसके हाथ उसके तन क तरफ बढ़ते ह-- य ? तन से या
संबंध है से स का? तन से कोई संबंध नह है। तन से मां और बेटे का संबंध है। बचपन से
वह जानता रहा है। बेटे का संबंध तन से है। और जैसे ही पु ष गहरे ेम से भरता है, वह
बेटा हो जाता है।
और ी का हाथ कहां प च ं जाता है?
वह पु ष के िसर पर प च ं जाता है। उसके बाल म अंगुिलयां चली जाती ह। वह पुराने
बेटे क याद है। वह पुराने बेटे का िसर है, िजसे उसने सहलाया है। इसिलए अगर ठीक से
ेम आ याि मक तल तक िवकिसत हो जाए तो पित आिखर म बेटा हो जाता है। और बेटा
हो जाना चािहए, तो आप समिझए क हमने तीसरे तल पर से स का अनुभव कया--
अ या म के तल पर, ि चुएिलटी के तल पर। इस तल पर एक संबंध है िजसका हम कोई
पता ही नह ! पित-प ी का संबंध उसक तैयारी है, उसका अंत नह है। वह या ा क
शु आत है, पूणता नह है।
इसीिलए पित-प ी सदा क म रहते ह, य क वह या ा है, या ा सदा क म होती है।
मंिजल पर शांित िमलती है। पित-प ी कभी शांत नह हो सकते। वह बीच क या ा है।
और अिधक लोग या ा म ही ख म हो जाते ह, मुकाम पर कभी प च ं ही नह पाते।
इसिलए पित-प ी के बीच एक इनर कांि ल ट चौबीस घंटे चलती है। चौबीस घंटे एक
कलह चलती है। िजसे हम ेम करते ह, उसी के साथ चौबीस घंटे कलह चलती है! ले कन
न पित समझता, न प ी समझती क कलह का कारण या है? पित सोचता है क शायद
दूसरी ी होती तो सब ठीक हो जाता। प ी सोचती है क शायद दूसरा पु ष होता तो
सब ठीक हो जाता। यह जोड़ा गलत हो गया।
ले कन म आपसे कहता ं क दुिनया भर के जोड़ का यही अनुभव है। और आपको अगर
बदलने का मौका दे दया जाए तो इतना ही फक पड़ेगा जैसे क कु छ लोग अरथी को लेकर
मरघट जाते ह--कं धे पर रख कर अरथी को--एक कं धा दुखने लगता है तो उठा कर दूसरे
कं धे पर रख लेते ह। थोड़ी देर राहत िमलती है, कं धा बदल गया। थोड़ी देर के बाद पता
चलता है क बोझ उतना का उतना ही फर शु हो गया है।
पि म म इतने तलाक हो रहे ह। उनका अनुभव यह है क दूसरी ी दस-पांच दन के
बाद पहली ी फर सािबत हो जाती है। दूसरा पु ष पं ह दन के बाद पहला पु ष फर
सािबत हो जाता है। इसके कारण गहरे ह। इसके कारण इस ी और इस पु ष से संबंिधत
नह ह। इसके कारण इस बात से संबंिधत ह क ी और पु ष का, पित और प ी का
संबंध बीच क या ा का संबंध है, वह मुकाम नह है, वह अंत नह है। अंत तो वह होगा
जहां ी मां बन जाएगी और पु ष फर बेटा हो जाएगा।
तो म आपसे कह रहा ं क मां और बेटे का संबंध आ याि मक काम का संबंध है। और
िजस दन ी और पु ष म, पित और प ी म भी आ याि मक काम का संबंध उ प होगा,
उस दन फर मां-बेटे का संबंध थािपत हो जाएगा। और वह थािपत हो जाए तो एक
तृि , िजसको मने कहा कं टटमट, अनुभव होगा। और उस अनुभव से चय फिलत होता
है।
तो यह मत सोच क मां और बेटे के संबंध म कोई काम नह है। आ याि मक काम है।
अगर हम ठीक से कह तो आ याि मक काम को ही ेम कह सकते ह, वह ेम है। ि चुअल
जैसे ही से स हो जाता है, वह ेम हो जाता है।

एक िम ने इस संबंध म और एक बात पूछी है। उ ह ने पूछा है क ओशो, आपको हम से स पर कोई


अथा रटी, कोई ामािणक ि नह मान सकते ह। हम तो आपसे ई र के संबंध म पूछने आए थे और आप
से स के संबंध म बताने लगे। हम तो सुनने आए थे ई र के संबंध म। तो आप हम ई र के संबंध म बताइए!

उ ह शायद पता नह क िजस ि को हम से स के संबंध म भी अथा रटी नह मान


सकते, उससे ई र के संबंध म पूछना फजूल है। य क जो पहली सीढ़ी के संबंध म कु छ
नह जानता, उससे आप अंितम सीढ़ी के संबंध म पूछना चाहते ह? अगर से स के संबंध म
जो मने कहा वह वीकाय नह है, तो फर तो भूल कर ई र के संबंध म मुझसे पूछने कभी
मत आना। य क वह बात ही ख म हो गई। पहली क ा के यो य भी म िस नह आ,
तो अंितम क ा के यो य कै से िस हो सकता ?ं
ले कन उनके पूछने का कारण है। अब तक काम को और राम को दु मन क तरह देखा
जाता रहा है। से स को और परमा मा को दु मन क तरह देखा जाता रहा है। अब तक
ऐसा समझा जाता रहा है क जो राम क खोज करते ह, उनको काम से कोई संबंध नह है।
और जो लोग काम क या ा करते ह, उनको अ या म से कोई संबंध नह है।
ये दोन बात बेवकू फ क ह। आदमी काम क या ा भी राम क खोज के िलए ही करता
है। वह काम का इतना ती आकषण, राम क ही खोज है। और इसीिलए काम म कभी
तृि नह िमलती; कभी ऐसा नह लगता क बस पूरा हो गया सब। वह जब तक राम न
िमल जाए तब तक लग भी नह सकता है। और जो लोग काम के श ु होकर राम को
खोजते ह, राम क खोज नह है वह, वह िसफ राम के नाम म काम से ए के प है, पलायन
है; काम से बचना है। इधर ाण घबराते ह, डर लगता है, तो राम क चद रया ओढ़ कर
उसम छु प जाना है और राम-राम, राम-राम, राम-राम जपते रहना है क वह काम क
याद न आए। जब भी कोई आदमी राम-राम, राम-राम जपते िमले, तो जरा गौर करना।
उसके भीतर राम-राम के जप के पीछे काम का जप चल रहा होगा, से स का जप चल रहा
होगा। ी को देखेगा और माला फे रने लगेगा, कहेगा: राम-राम, राम-राम, राम-राम। वह
ी दखी क वह यादा जोर से माला फे रता है, यादा जोर से राम राम कहता है। य ?
वह भीतर जो काम बैठा है, वह ध े मार रहा है। राम का नाम ले-ले कर उसे भुलाने क
कोिशश करता है। ले कन इतनी आसान तरक ब से अगर जीवन बदलते होते तो दुिनया
कभी क बदल गई होती। उतना आसान रा ता नह है।
तो म आपसे कहना चाहता ं क काम को समझना ज री है अगर आप अपने राम क
और परमा मा क खोज को भी समझना चाहते ह। य ? यह इसिलए म कहता ं क एक
आदमी बंबई से कलक ा क या ा करना चाहे, वह कलक े के संबंध म पता लगाए क
कलक ा कहां है, कस दशा म है। ले कन उसे यही पता न हो क बंबई कहां है और कस
दशा म है और कलक े क वह या ा करना चाहे, तो या वह कभी सफल हो सके गा?
कलक ा जाने के िलए सबसे पहले यह पता लगाना ज री है क बंबई कहां है जहां म
।ं वह कस दशा म है? फर कलक े क तरफ दशा-िवचार क जा सकती है। ले कन
मुझे यही पता नह क बंबई कहां है, तो कलक े के बाबत सारी जानकारी फजूल है।
य क या ा मुझे बंबई से शु करनी पड़ेगी। या ा का ारं भ बंबई से करना है। और
ारं भ पहले है, अंत बाद म है।
आप कहां खड़े ह? राम क या ा करना चाहते ह, वह ठीक। भगवान तक प च ं ना चाहते
ह, वह ठीक। ले कन खड़े कहां ह आप? खड़े तो काम म ह, खड़े तो वासना म ह, खड़े तो
से स म ह। वह आपका िनवासगृह है, जहां से आपको कदम उठाने ह और या ा करनी है।
तो पहले तो उस जगह को समझ लेना ज री है जहां हम ह। जो ए चुअिलटी है उसे पहले,
जो वा तिवक है उसे पहले समझ लेना ज री है, तब हम उसे भी समझ सकते ह जो
संभावना है। जो पािसिबिलटी है, जो हम हो सकते ह, उसे जानने के िलए, जो हम ह उसे
पहले जान लेना ज री है। अंितम कदम को समझने के पहले पहला कदम समझ लेना
ज री है, य क पहला कदम ही अंितम कदम तक प च ं ाने का रा ता बनेगा। और अगर
पहला कदम ही गलत हो गया तो अंितम कदम कभी भी सही नह होने वाला है।
राम से भी यादा मह वपूण काम को समझना है, परमा मा से भी यादा मह वपूण
से स को समझना है। य इतना मह वपूण है? इसिलए मह वपूण है क अगर परमा मा
तक प च ं ना है तो से स को िबना समझे आप नह प चं सकते ह।
इसिलए यह मत पूछ। रह गई अथा रटी क बात क म अथा रटी ं या नह --यह कै से
िनणय होगा? अगर म ही इस संबंध म कु छ क ग ं ा तो वह िनणायक नह रहेगा, य क
मेरे संबंध म ही िनणय होना है। अगर म ही क ं क म अथा रटी ,ं तो उसका कोई मतलब
नह है; अगर म क ं क म अथा रटी नह ,ं तो उसका भी कोई मतलब नह है; य क
मेरे दोन व के संबंध म िवचारणीय है क अथा रटे टव आदमी कह रहा है क गैर-
अथा रटे टव। म जो भी क ग ं ा इस संबंध म, वह फजूल है। म अथा रटी ं या नह , यह तो
आप थोड़े से स क दुिनया म योग करके देख। और जब अनुभव आएगा तो पता चलेगा
क जो मने कहा था, वह अथा रटी थी या नह । उसके िबना कोई रा ता नह है।
म आपसे कहता ं क तैरने का यह रा ता है। आप कह क ले कन हम कै से मान क आप
तैरने के संबंध म ामािणक बात कह रहे ह? तो म कहता ं क चिलए, आपको साथ लेकर
नदी म उतरा जा सकता है, आपको नदी म उतारे देता ।ं मने जो कहा है आपको, अगर
वह कारगर हो जाए पार होने म और हाथ-पैर चलाने म और तैरने म, तो आप समझना
क जो मने कहा है वह कु छ जान कर कहा है।
उ ह ने यह भी कहा है क ायड अथा रटी हो सकते ह।
ले कन म आपसे कहता ,ं जो म कह रहा ,ं उस पर ायड दो कौड़ी भी नह जानते।
ायड मानिसक तल से कभी भी ऊपर नह उठ पाया। उसको क पना भी नह है
आ याि मक से स क । ायड क सारी जानकारी ण से स क है--िह टे रक,
होमोसे सुअिलटी, मै टरबेशन--इस सबक खोजबीन है। ण से स, िवकृ त से स के
बाबत खोजबीन है। पैथॉलािजकल है, बीमार क िच क सा क वह खोज है। ायड एक
डा टर है। फर पि म म िजन लोग का उसने अ ययन कया, वे मन के तल के से स के
लोग ह। उसके पास एक भी अ ययन नह , एक भी के स िह ी नह , िजसको ि चुअल
से स कहा जा सके ।
तो अगर खोज करनी है क जो म कह रहा ं वह कहां तक सच है, तो िसफ एक दशा म
खोज हो सकती है, वह दशा है तं । और तं के बाबत हमने हजार साल से सोचना बंद
कर दया है। तं ने से स को ि चुअल बनाने का दुिनया म सबसे पहला यास कया था।
खजुराहो म खड़े मं दर, पुरी और कोणाक के मं दर सबूत ह।
कभी आप खजुराहो गए ह? कभी आपने जाकर खजुराहो क मू तयां देखी ह?
तो आपको दो बात अदभुत अनुभव ह गी। पहली तो बात यह क न मैथुन क
ितमा को देख कर भी आपको ऐसा नह लगेगा क उनम जरा भी कु छ गंदा है, जरा भी
कु छ अ ली है। न मैथुन क ितमा को देख कर कह भी ऐसा नह लगेगा क कु छ
कु प है, कु छ बुरा है। बि क मैथुन क ितमा को देख कर एक शांित, एक पिव ता का
अनुभव होगा, जो बड़ी हैरानी क बात है! वे ितमाएं, आ याि मक से स को िजन लोग
ने अनुभव कया था, उन िशि पय से िन मत करवाई गई ह। उन ितमा के चेहर पर...
आप एक से स से भरे ए आदमी को देख, उसक आंख देख, उसका चेहरा देख। वह
िघनौना, घबराने वाला, कु प तीत होगा। उसक आंख से एक झलक िमलती ई मालूम
होगी, जो घबराने वाली और डराने वाली होगी। यारे से यारे आदमी को, अपने
िनकटतम यारे से यारे ि को भी ी जब से स से भरा आ पास आते ए देखती है
तो उसे दु मन दखाई पड़ता है, िम नह दखाई पड़ता। यारी से यारी ी को अगर
कोई पु ष अपने िनकट से स से भरा आ आता आ दखाई देगा तो उसे उसके भीतर
नरक दखाई पड़ेगा, वग नह दखाई पड़ सकता।
ले कन खजुराहो क ितमा को देख, तो उनके चेहर को देख कर ऐसा लगता है, जैसे
बु का चेहरा हो, महावीर का चेहरा हो। मैथुन क ितमाएं और मैथुनरत जोड़े के चेहरे
पर जो भाव ह, वे समािध के ह। और सारी ितमा को देख ल और पीछे एक हलक सी
शांित क झलक छू ट जाएगी, और कु छ भी नह । और एक आ य आपको अनुभव होगा।
आप सोचते ह गे क नंगी त वीर और मू तयां देख कर आपके भीतर कामुकता पैदा होगी।
तो म आपसे कहता ,ं फर आप देर न कर और सीधे खजुराहो चले जाएं। खजुराहो पृ वी
पर इस समय अनूठी चीज है।
ले कन हमारे कई नीितशा ी, पु षो मदास टंडन और उनके कु छ साथी इस सुझाव के
थे क खजुराहो के मं दर पर िम ी छाप कर दीवाल बंद कर देनी चािहए, य क उनको
देखने से वासना पैदा हो सकती है। म तो हैरान हो गया!
खजुराहो के मं दर िज ह ने बनाए थे, उनका खयाल यह था क इन ितमा को अगर
कोई बैठ कर घंटे भर देखे तो वासना से शू य हो जाएगा। वे ितमाएं आ जे ट् स फॉर
मेिडटेशन रह हजार वष तक। वे ितमाएं यान के िलए आ जे ट का काम करती रही
ह। जो लोग अित कामुक थे, उ ह खजुराहो के मं दर के पास भेज कर उन पर यान करवाने
के िलए कहा जाता था क तुम यान करो--इन ितमा को देखो और इनम लीन हो
जाओ।
और यह आ य क बात है...हालां क हमारे अनुभव म है, ले कन हम खयाल नह ।
आपको पता है, रा ते पर दो आदमी लड़ रहे ह और आप रा ते से चले जा रहे ह , तो
आपका मन होता है क खड़े होकर वह लड़ाई देख ल। ले कन य ? आपने कभी खयाल
कया? लड़ाई देखने से आपको या फायदा है? हजार ज री काम छोड़ कर आप आधे घंटे
तक दो आदिमय क मु े बाजी देख सकते ह खड़े होकर--फायदा या है? शायद आपको
पता नह , फायदा एक है। दो आदिमय को लड़ते देख कर आपके भीतर जो लड़ने क
वृि है वह िवस जत होती है, उसका िनकास होता है, वह एवोपरे ट हो जाती है।
अगर मैथुन क ितमा को कोई घंटे भर तक शांत बैठ कर यानम होकर देखे, तो उसके
भीतर जो मैथुन करने का पागल भाव है, वह िवलीन हो जाता है।
एक मनोवै ािनक के पास एक आदमी को लाया गया था। वह एक द तर म काम करता
है। और अपने मािलक से, अपने बॉस से ब त है। मािलक उससे कु छ भी कहता है तो
उसे ब त अपमान मालूम होता है और उसके मन म होता है क िनकालूं जूता और इसे मार
दू।ं ले कन मािलक को जूता कै से मारा जा सकता है? हालां क ऐसे नौकर कम ही ह गे
िजनके मन म यह खयाल न आता हो क िनकालूं जूता और मार दू।ं ऐसा नौकर खोजना
मुि कल है। अगर आप मािलक ह तो भी आपको पता होगा और आप अगर नौकर ह तो भी
आपको पता होगा-- क नौकर के मन म नौकर होने क भारी पीड़ा है और मन होता है क
इसका बदला ले लूं। ले कन नौकर अगर बदला ले सकता तो नौकर होता य ?
तो वह बेचारा मजबूर है और दबाए चला जाता है, दबाए चला जाता है। फर तो हालत
उसक ऐसी ण हो गई क उसे यह डर पैदा हो गया क कसी दन आवेश म म जूता मार
ही न दू।ं तो वह जूता घर ही छोड़ जाता है। ले कन द तर म उसे जूते क दन भर याद
आती है और जब भी मािलक दखाई पड़ता है वह पैर टटोल कर देखता है क जूता?
ले कन जूता तो वह घर छोड़ आया है, और खुश होता है क अ छा आ म छोड़ आया,
कसी दन आवेश के ण म िनकल आए जूता तो मुि कल हो गई।
ले कन घर जूता छोड़ आने से जूते से मुि नह होती। जूता उसका पीछा करने लगा।
वह कागज पर कु छ भी बनाता है तो जूता बन जाता है। वह रिज टर पर कु छ ऐसे ही िलख
रहा है और पाता है क जूते ने आकार लेना शु कर दया। उसके ाण म जूता िघरने
लगा है। वह ब त घबरा गया है और उसे ऐसा डर लगने लगा है धीरे -धीरे क म कसी भी
दन हमला कर सकता ।ं
तो उसने अपने घर आकर कहा क अब मुझे नौकरी पर जाना ठीक नह , म छु ी लेना
चाहता ;ं य क अब हालत ऐसी हो गई है क म दूसरे का जूता िनकाल कर भी मार
सकता ।ं अब अपने जूते क ज रत नह रह गई है। मेरे हाथ दूसरे लोग के पैर क तरफ
भी बढ़ने क कोिशश करते ह।
तो घर के लोग ने समझा क वह पागल हो गया है, उसे एक मनोवै ािनक के पास ले
गए। उस मनोवै ािनक ने कहा क इसक बीमारी बड़ी नह , छोटी सी है। इसके मािलक
क एक त वीर घर म लगा लो और इससे कहो क रोज सुबह पांच जूते धा मक भाव से
मारा करे । पांच जूते मारे , तब द तर जाए--िबलकु ल रलीजसली। ऐसा नह क कसी
दन चूक जाए। जैसे लोग यान, जप करते ह। िबलकु ल व पर पांच जूते मारे । द तर से
लौट कर पांच जूते मारे ।
वह आदमी पहले तो बोला क यह या पागलपन क बात है! ले कन भीतर उसे खुशी
मालूम ई। वह हैरान आ, उसने कहा, ले कन मुझे भीतर खुशी मालूम हो रही है।
त वीर टांग ली गई और वह रोज पांच जूते मार कर द तर गया। पहले दन ही जब वह
पांच जूते मार कर द तर गया तो उसे एक बड़ा अदभुत अनुभव आ--मािलक के ित
उसने द तर म उतना ोध अनुभव नह कया। और पं ह दन के भीतर तो वह मािलक के
ित अ यंत िवनयशील हो गया। मािलक को भी हैरानी ई। उसे तो कु छ पता नह क
भीतर या चल रहा है। उसने उसको पूछा क तुम आजकल ब त आ ाकारी, ब त िवन ,
ब त हंबल हो गए हो। बात या है? उसने कहा, वह मत पूिछए, नह तो सब गड़बड़ हो
जाएगा।
या आ? त वीर को जूते मारने से कु छ हो सकता है? ले कन त वीर को जूते मारने से,
वह जो जूते मारने का भाव है, वह ितरोिहत आ, वह एवोपरे ट आ, वह वा पीभूत आ।
खजुराहो के मं दर या कोणाक और पुरी के मं दर जैसे मं दर सारे देश के गांव-गांव म
होने चािहए। बाक मं दर क कोई ज रत नह है, वे बेवकू फ के सबूत ह, उनम कु छ नह
है। उनम न कोई वै ािनकता है, न कोई अथ है, न कोई योजन है। वे िनपट गंवारी के
सबूत ह। ले कन खजुराहो के मं दर ज र अथपूण ह। िजस आदमी का भी मन से स से
ब त भरा हो, वह जाकर उन पर यान करे ; और वह हलका लौटेगा, शांत लौटेगा।
तं ने ज र से स को आ याि मक बनाने क कोिशश क थी। ले कन इस मु क के
नीितशा ी और जो मॉरल ीचस ह, उन दु ने उनक बात को समाज तक नह प च ं ने
दया। वे मेरी बात भी नह प च ं ने देना चाहते ह।
यहां से म भारतीय िव ाभवन से बोल कर जबलपुर वापस लौटा और तीसरे दन मुझे
एक प िमला क अगर आप इस तरह क बात कहना बंद नह कर देते ह तो आपको गोली
य न मार दी जाए?
म उ ह उ र देना चाहता था, ले कन वे गोली मारने वाले स न ब त कायर मालूम
पड़े, न उ ह ने नाम िलखा था, न पता िलखा था। शायद वे डरे ह गे क म पुिलस को न दे
दू।ं ले कन अगर वे यहां कह ह --अगर ह गे तो कसी झाड़ के पीछे या कह दीवाल के
पीछे िछपे ह गे--अगर वे यहां कह ह तो म उनको कहना चाहता ं क पुिलस को देने क
कोई भी ज रत नह है। वे अपना नाम और पता मुझे भेज द, ता क म उनको उ र दे सकूं ।
ले कन अगर उनक िह मत न हो तो म उ र यह दए देता ,ं ता क वे सुन ल।
पहली तो बात यह है क इतनी ज दी गोली मारने क मत करना। य क गोली मारते
ही, जो बात म कह रहा ं वह परम स य हो जाएगी, इसका उनको पता होना चािहए।
जीसस ाइ ट को दुिनया कभी क भूल गई होती, अगर उसको सूली पर न लटकाया
गया होता। जीसस ाइ ट को दुिनया कभी क भूल गई होती, अगर उसको सूली न िमली
होती। सूली देने वाले ने बड़ी कृ पा क ।
और मने तो यहां तक सुना है कु छ इनर स क स म--जो जीवन क गहराइय क खोज
करते ह, उनसे मुझे यह भी ात आ है-- क जीसस ने खुद अपनी सूली लगवाने के िलए
योजना और षड् यं कया था। जीसस ने चाहा था क मुझे सूली लगा दी जाए। य क
सूली लगते ही, जो जीसस ने कहा है, वह करोड़ -करोड़ वष के िलए अमर हो जाएगा और
हजार लोग के , लाख लोग के काम आ सके गा।
इस बात क ब त संभावना है। य क जुदास, िजसने ईसा को बेचा तीस पय म, वह
ईसा के यारे से यारे िश य म से एक था। और यह संभव नह है क जो वष से ईसा के
पास रहा हो, वह िसफ तीस पये म ईसा को बेच दे, िसवाय इसके क ईसा ने उसको कहा
हो क तू कोिशश कर, दु मन से िमल जा, और कसी तरह मुझे उलझा दे और सूली लगवा
दे! ता क म जो कह रहा ,ं वह अमृत का थान ले ले और करोड़ लोग का उ ार बन
जाए।
महावीर को अगर सूली लगी होती तो दुिनया म के वल तीस लाख जैन नह होते, तीस
करोड़ हो सकते थे। ले कन महावीर शांित से मर गए, सूली का उ ह पता भी नह था। न
कसी ने लगाई, न उ ह ने लगवाने क व था क । आज आधी दुिनया ईसाई है। उसका
िसवाय इसके कोई कारण नह क ईसा अके ला सूली पर लटका आ है--न बु , न
मोह मद, न महावीर, न कृ ण, न राम। सारी दुिनया भी ईसाई हो सकती है। वह सूली पर
लटकने से यह फायदा हो गया।
तो म उनसे कहता ं क ज दी मत करना, नह तो नुकसान म पड़ जाओगे।
दूसरी बात यह कहना चाहता ं क घबराएं न वे। मेरे इरादे खाट पर मरने के ह भी
नह । म पूरी कोिशश क ं गा क कोई न कोई गोली मार ही दे! तो म खुद ही कोिशश
क ं गा, ज दी उनको करने क आव यकता नह है। समय आने पर म चा ग ं ा क कोई
गोली मार ही दे! जंदगी भी काम आती है और गोली लग जाए तो मौत भी काम आती है
और जंदगी से यादा काम आ जाती है। जंदगी जो नह कर पाती है, वह गोली लगी ई
मौत कर देती है।
अब तक हमेशा यह भूल क है दु मन ने, नासमझी क है। सुकरात को िज ह ने सूली पर
लटका दया, िज ह ने जहर िपला दया; मंसूर को िज ह ने सूली पर लटका दया; और
अभी गोडसे ने गांधी को गोली मार दी। गोडसे को पता नह क गांधी के भ और गांधी
के अनुयायी गांधी को इतने दूर तक मरण कराने म कभी भी सफल नह हो सकते थे,
िजतना अके ले गोडसे ने कर दया है। और अगर गांधी ने मरते व , जब उ ह गोली लगी
और हाथ जोड़ कर गोडसे को नम कार कया होगा, तो बड़ा अथपूण था वह नम कार।
वह अथपूण था क मेरा अंितम िश य सामने आ गया। अब जो मुझे आिखरी और हमेशा के
िलए अमर कए दे रहा है। भगवान ने आदमी भेज दया िजसक ज रत थी।
जंदगी का ामा, वह जो जंदगी क कहानी है, वह ब त उलझी ई है। वह इतनी
आसान नह है। खाट पर मरने वाले हमेशा के िलए मर जाते ह, गोली खाकर मरने वाल
का मरना ब त मुि कल हो जाता है।
सुकरात से कसी ने पूछा--उसके िम ने-- क अब तु ह जहर दे दया जाएगा और तुम
मर जाओगे, तो हम तु हारे गाड़ने क कै सी व था कर? जलाएं, क बनाएं, या कर?
सुकरात ने कहा, पागलो, तु ह पता नह है क तुम मुझे नह गाड़ सकोगे। तुम जब सब
िमट जाओगे, तब भी म जंदा र ग ं ा। मने मरने क तरक ब जो चुनी है, वह हमेशा जंदा
रहने वाली है।
तो वे िम अगर कह ह तो उनको पता होना चािहए, ज दी न कर। ज दी म नुकसान
हो जाएगा उनका। मेरा कु छ होने वाला नह है। य क िजसको गोली लग सकती है, वह
म नह ;ं और जो गोली लगने के बाद भी पीछे बच जाता है, वही ।ं तो वे ज दी न कर।
और दूसरी बात यह क वे घबराएं भी न। म हर तरह क कोिशश क ं गा क खाट पर न
मर सकूं । वह मरना बड़ा गड़बड़ है। वह बेकार ही मर जाना है। वह िनरथक मर जाना है।
मर जाने क भी साथकता चािहए। और तीसरी बात यह क वे द तखत करने से न
घबराएं, न पता िलखने से घबराएं। य क अगर मुझे लगे क कोई आदमी मारने को
तैयार हो गया है, तो वह जहां मुझे बुलाएगा, म चुपचाप िबना कसी को खबर कए वहां
आने को हमेशा तैयार ,ं ता क उस पर पीछे कोई मुसीबत न आए।
ले कन ये पागलपन सूझते ह। इस तरह के धा मक...और िजस बेचारे ने िलखा है, उसने
यही सोच कर िलखा है क वह धम क र ा कर रहा है। उसने यही सोच कर िलखा है क
म धम को िमटाने क कोिशश कर रहा ,ं वह धम क र ा कर रहा है। उसक नीयत म
कह कोई खराबी नह है। उसके भाव बड़े अ छे और बड़े धा मक ह। ऐसे ही धा मक लोग
तो दुिनया को द त म डालते रहे ह। उनक नीयत बड़ी अ छी है, ले कन बुि मूढ़ता क
है।
तो हजार साल से तथाकिथत नैितक लोग ने जीवन के स य को पूरा-पूरा कट होने म
बाधा डाली है, उसे कट नह होने दया। नह कट होने के कारण एक अ ान ापक हो
गया। और उस अ ान क अंधेरी रात म हम टटोल रहे ह, भटक रहे ह, िगर रहे ह। और वे
मॉरल टीचस, वे नीितशा के उपदेशक, हमारे इस अंधकार के बीच म मंच बना कर
उपदेश देने का काम करते रहते ह!
यह भी सच है क िजस दन हम अ छे लोग हो जाएंगे, िजस दन हमारे जीवन म स य
क करण आएगी, समािध क कोई झलक आएगी, िजस दन हमारा सामा य जीवन भी
परमा म-जीवन म पांत रत होने लगेगा, उस दन उपदेशक थ हो जाएंगे, उनक कोई
जगह नह रह जाने वाली है। उपदेशक तभी तक साथक है, जब तक लोग अंधेरे म भटकते
ह।
गांव म िच क सक क तभी तक ज रत है, जब तक लोग बीमार पड़ते ह। िजस दन
आदमी बीमार पड़ना बंद कर देगा, उस दन िच क सक को िवदा कर देना पड़ेगा। तो
हालां क िच क सक ऊपर से बीमार का इलाज करता आ मालूम पड़ता है, ले कन भीतर
से उसके ाण क आकां ा यही होती है क लोग बीमार पड़ते रह। यह बड़ी उलटी बात
है! य क िच क सक जीता है लोग के बीमार पड़ने पर। उसका ोफे शन बड़ा
कं ािड टरी है, उसका धंधा बड़ा िवरोधी है। कोिशश तो उसक यह है क लोग बीमार
पड़ते रह। और जब मले रया फै लता है और लू क हवाएं आती ह, तो वह भगवान को
एकांत म ध यवाद देता है। य क यह धंधे का व आया--सीजन!
मने सुना है, एक रात एक मधुशाला म बड़ी देर तक कु छ िम आकर खाना-पीना करते
रहे, शराब पीते रहे। उ ह ने खूब मौज क । और जब वे चलने लगे आधी रात को तो
शराबखाने के मािलक ने अपनी प ी को कहा क भगवान को ध यवाद, बड़े भले लोग
आए। ऐसे लोग रोज आते रह तो कु छ ही दन म हम मालामाल हो जाएं। िवदा होते
मेहमान को सुनाई पड़ गया और िजसने पैसे चुकाए थे उसने कहा क दो त, भगवान से
ाथना करो क हमारा भी धंधा रोज चलता रहे, तो हम तो रोज आएं।
चलते-चलते उस शराबघर के मािलक ने पूछा क भाई, तु हारा धंधा या है?
उसने कहा, मेरा धंधा पूछते हो, म मरघट पर लकिड़यां बेचता ं मुद के िलए। जब
आदमी यादा मरते ह, तब मेरा धंधा चलता है, तब हम थोड़े खुश होते ह। हमारा धंधा
रोज चलता रहे, हम रोज यहां आते रह।
िच क सक का धंधा है क लोग को ठीक करे । ले कन फायदा, लाभ और शोषण इसम है
क लोग बीमार पड़ते रह। तो एक हाथ से िच क सक ठीक करता है और उसके ाण के
ाण क ाथना होती है क मरीज ज दी ठीक न हो जाए।
इसीिलए पैसे वाले मरीज को ठीक होने म बड़ी देर लगती है। गरीब मरीज ज दी ठीक
हो जाता है; य क गरीब मरीज को यादा देर बीमार रहने से कोई फायदा नह है,
िच क सक को कोई फायदा नह है। िच क सक को फायदा है अमीर मरीज से! तो अमीर
मरीज लंबा बीमार रहता है। सच तो यह है क अमीर अ सर ही बीमार रहते ह। वह
िच क सक क ाथनाएं काम कर रही ह। उसक आंत रक इ छा भी उसके हाथ को रोकती
है क मरीज एकदम ठीक ही न हो जाए।
उपदेशक क ि थित भी ऐसी ही है। समाज िजतना नीित हो, िजतना िभचार फै ले,
िजतना अनाचार फै ले, उतना ही उपदेशक का मंच ऊपर उठने लगता है। य क ज रत
आ जाती है क वह लोग को कहे: अ हंसा का पालन करो, स य का पालन करो,
ईमानदारी वीकार करो; यह त पालन करो, वह त पालन करो। अगर लोग ती ह ,
अगर लोग संयमी ह , अगर लोग शांत ह , ईमानदार ह , तो उपदेशक मर गया। उसक
कोई जगह न रही।
और हंद ु तान म सारी दुिनया से यादा उपदेशक य ह? ये गांव-गांव गु और घर-घर
वामी और सं यासी य ह? यह महा मा क इतनी भीड़ और यह कतार य है?
यह इसिलए नह है क आप बड़े धा मक देश ह जहां क संत-महा मा पैदा होते ह। यह
इसिलए है क आप इस समय पृ वी पर सबसे यादा अधा मक और अनैितक देश ह,
इसिलए इतने उपदेशक को पालने का ठे का और धंधा िमल जाता है। हमारा तो जातीय
रोग हो गया।
मने सुना है क अमे रका म कसी ने एक लेख िलखा आ था। कसी िम ने वह लेख मेरे
पास भेज दया। उसम एक कमी थी, उ ह ने मेरी सलाह चाही। कसी ने लेख िलखा था
वहां--मजाक का कोई लेख था--उसने िलखा था क हर आदमी और हर जाित का ल ण
शराब िपला कर पता लगाया जा सकता है क बेिसक कै रे टर या है? तो उसने िलखा था
क अगर डच आदमी को शराब िपला दी जाए तो वह एकदम से खाने पर टू ट पड़ता है,
फर वह कचेन के बाहर ही नह िनकलता, फर वह एकदम खाने क मेज से उठता ही
नह । बस शराब पी क वह दो-दो, तीन-तीन घंटे खाने म लग जाता है। अगर च को
शराब िपला दी जाए तो शराब पीने के बाद वह एकदम नाच-गाने के िलए त पर हो जाता
है। और अगर अं ेज को शराब िपला दी जाए तो वह एकदम चुप होकर एक कोने म मौन
हो जाता है। वह वैसे ही चुप बैठा रहता है। और शराब पी ली, तो उसका कै रे टर है, वह
और चुप हो जाता है। ऐसे दुिनया के सारे लोग के ल ण थे। ले कन भूल से या अ ान के
वश भारत के बाबत कु छ भी नह िलखा था। तो कसी िम ने मुझे लेख भेजा और कहा क
आप भारत के कै रे टर के बाबत या कहते ह? अगर भारतीय को शराब िपलाई जाए तो
या होगा?
तो मने कहा क वह तो जग-जािहर बात है। भारतीय शराब पीएगा और त काल उपदेश
देना शु कर देगा। यह उसक कै रे टरि टक है। वह उनका जातीय गुण है।
यह जो उपदेशक का समाज और साधु-संत और महा मा क ये लंबी कतार ह, ये
रोग के ल ण ह, ये अनीित के ल ण ह। और मजा यह है क इनम से कोई भी भीतरी दय
से कभी नह चाहता क अनीित िमट जाए, रोग िमट जाए; य क उसके िमटने के साथ वे
भी िमट जाते ह। ाण क पुकार यही होती है क रोग बना रहे और बढ़ता चला जाए।
और उस रोग को बढ़ाने के िलए जो सबसे सुगम उपाय है, वह यह है क जीवन के संबंध
म सवागीण ान उ प न हो सके । और जीवन के जो सबसे यादा गहरे क ह, िजनके
अ ान के कारण अनीित और िभचार और ाचार फै लता है, उन क को आदमी कभी
भी न जान सके । य क उन क को जान लेने के बाद मनु य के जीवन से अनीित त काल
िवदा हो सकती है।
और म आपसे कहना चाहता ं क से स मनु य क अनीित का सवािधक क है। मनु य
के िभचार का, मनु य क िवकृ ित का सबसे मौिलक, सबसे आधारभूत क वहां है। और
इसीिलए धमगु उसक िबलकु ल बात नह करना चाहते!
एक िम ने मुझे खबर िभजवाई है क कोई संत-महा मा से स क बात नह करता। और
आपने से स क बात क तो हमारे मन म आपका आदर ब त कम हो गया है।
मने उनसे कहा, इसम कु छ गलती न ई। पहले आदर था, उसम गलती थी। इसम या
गलती ई? मेरे ित आदर होने क ज रत या है? मुझे आदर देने का योजन या है?
मने कब मांगा है क मुझे आदर द? देते थे तो आपक गलती थी; नह देते ह, आपक कृ पा
है। म महा मा नह रहा। मने कभी चाहा होता क म महा मा होऊं तो मुझे बड़ी पीड़ा
होती। और म कहता, मा करना, भूल से ये बात मने कह द ।
म महा मा था नह , म महा मा ं नह , म महा मा होना चाहता नह । जहां इतने बड़े
जगत म इतने लोग दीन-हीन ह, वहां एक आदमी महा मा होना चाहे, उससे यादा िन
वृि और वाथ से भरा आ आदमी नह है। जहां इतने दीन-हीन जन ह, जहां इतनी
हीन आ मा का िव तार है, वहां महा मा होने क क पना और िवचार ही पाप है।
महान मनु यता म चाहता ।ं महान मनु य म चाहता ।ं महा मा होने क मेरे मन म
कोई भी इ छा और आकां ा नह है। महा मा के दन िवदा हो जाने चािहए। महा मा
क कोई ज रत नह । महान मनु य क ज रत है। महान मनु यता क ज रत है। ेटमैन
नह , ेट युमैिनटी! बड़े आदमी ब त हो चुके। उनसे या फायदा आ? अब बड़े
आदिमय क ज रत नह , बड़ी आदिमयत क ज रत है।
तो मुझे ब त अ छा लगा क कम से कम एक आदमी का इ यूजन तो टू टा। एक आदमी
तो िडसइ यूजंड आ। एक आदमी को तो यह पता चल गया क यह आदमी महा मा नह
है। एक आदमी का म टू ट गया, यह भी बड़ी बात है।
वे शायद सोचे ह गे क इस भांित कह कर वे शायद मुझे लोभन दे रहे ह क मुझे
महा मा और मह ष बनाया जा सकता है, अगर म इस तरह क बात न क ं ।
आज तक मह षय और महा मा को इसी तरह बनाया गया है। और इसीिलए उन
कमजोर लोग ने इस तरह क बात नह क िजनसे महा मापन िछन सकता था। अपने
महा मापन के बचा रखने के िलए--उस लोभन म--जीवन का कतना अिहत हो सकता
है, इसका उ ह ने कोई भी खयाल नह कया है।
मुझे चंता नह है, मुझे िवचार भी नह है, मुझे खयाल भी नह है! और मुझे घबराहट ही
होती है, जब कोई मुझे महा मा मानना चाहे। और आज क दुिनया म महा मा बन जाना
और मह ष बन जाना इतना आसान है, िजसका कोई िहसाब नह । हमेशा आसान रहा है।
हमेशा आसान रहा है। वह सवाल नह है। सवाल यह है क महान मनु य कै से पैदा हो--
उसके िलए हम या कर सकते ह? या सोच सकते ह? या खोज कर सकते ह? और मुझे
लगता है क मने बुिनयादी सवाल पर जो बात आपसे कही ह, वे आपके जीवन म एक
दशा तोड़ने म सहयोगी हो सकती ह। उनसे एक माग कट हो सकता है। और मशः
आपक वासना का पांतरण आ मा क दशा म हो सकता है। अभी हम वासना ह, आ मा
नह । कल हम आ मा भी हो सकते ह। ले कन वह ह गे कै से? इसी वासना के सवाग
पांतरण से! इसी शि को िनरं तर ऊपर से ऊपर ले जाने से!
जैसा मने कल आपको कहा, उस संबंध म भी ब त से ह, उसके संबंध म एक बात
क ग ं ा।
मने आपको कहा क संभोग म समािध क झलक का मरण रख, रमब रं ग रख और उस
बंद ु को पकड़ने क कोिशश कर--उस बंद ु को जो िव ुत क तरह संभोग के बीच म
चमकता है समािध का। एक ण को जो चमक आती है और िवदा हो जाती है, उस बंद ु
को पकड़ने क कोिशश कर क वह या है? उसे जानने क कोिशश कर। उसको पकड़ ल
पूरी तरह से क वह या है?
और एक दफा उसे आपने पकड़ िलया, तो उस पकड़ म आपको दखाई पड़ेगा क उस
ण म आप शरीर नह रह जाते ह--बॉडीलेसनेस। उस ण म आप शरीर नह ह। उस ण
म एक झलक क तरह आप कु छ और हो गए ह, आप आ मा हो गए ह।
और वह झलक आपको दखाई पड़ जाए तो फर उस झलक के िलए यान के माग से
म कया जा सकता है। उस झलक को फर यान क तरफ से पकड़ा जा सकता है। उस
झलक को फर यान के रा ते से जाकर प रपूण प से, पूरे प से जाना और जीया जा
सकता है। और वह अगर हमारे ान, जानने और जीवन का िह सा बन जाए तो आपके
जीवन म से स क कोई जगह नह रह जाएगी।

एक िम ने पूछा है क ओशो, अगर इस भांित से स िवदा हो जाएगा तो दुिनया म संतित का या होगा?


अगर इस भांित सारे लोग समािध का अनुभव करके चय को उपल ध हो जाएंगे तो ब का या होगा?

ज र इस भांित के ब े पैदा नह ह गे िजस भांित आज पैदा होते ह। यह ढंग कु े,


िबि लय और इि लय का तो ठीक है, आदिमय का ठीक नह । यह कोई ढंग है? यह कोई
ब क कतार लगाए चले जाना--िनरथक, अथहीन, िबना जाने-बूझ-े -यह भीड़ पैदा करते
चले जाना। यह भीड़ कतनी हो गई? यह भीड़ इतनी हो गई है क वै ािनक कहते ह क
अगर सौ बरस तक इसी भांित ब े पैदा होते रहे और कोई कावट नह लगाई जा सक ,
तो जमीन पर टे नी िहलाने के िलए भी जगह नह बचेगी। हमेशा आप सभा म ही खड़े ए
मालूम ह गे। जहां जाएंगे, वह सभा मालूम होगी। सभा करना ब त मुि कल हो जाएगा।
टे नी िहलाने क जगह नह रह जाने वाली है सौ साल के भीतर, अगर यही ि थित रही।
वे िम ठीक पूछते ह क अगर इतना चय उपल ध होगा तो ब े कै से पैदा ह गे?
उनसे भी म एक और बात कहना चाहता ,ं वह भी अथ क है और आपके खयाल म आ
जानी चािहए। चय से भी ब े पैदा हो सकते ह, ले कन चय से ब के पैदा करने
का सारा योजन और अथ बदल जाता है। काम से ब े पैदा होते ह, से स से ब े पैदा होते
ह।
से स से ब े पैदा होना--ब े पैदा करने के िलए कोई से स म नह जाता है। ब े पैदा
होना आकि मक है, ए सीडटल है। से स म आप जाते ह कसी और कारण से, बीच म ब े
आ जाते ह। ब के िलए आप कभी से स म नह जाते ह। िबना बुलाए मेहमान ह ब े।
और इसीिलए ब के ित आपके मन म वह ेम नह हो सकता। जो िबना बुलाए
मेहमान के ित कब होता है? घर म कोई आ जाए अितिथ िबना बुलाए तो जो हालत घर
म हो जाती है--िब तर भी लगाते ह उसको सुलाने के िलए, खाना भी िखलाते ह उसको
िखलाने के िलए, आवभगत भी करते ह, हाथ भी जोड़ते ह--ले कन पता होगा आपको क
िबना बुलाए मेहमान के साथ या घर क हालत हो जाती है! यह सब ऊपर-ऊपर होता है,
भीतर कु छ भी नह । और पूरे व यही इ छा होती है क कब आप िवदा ह , कब आप
जाएं।
िबना बुलाए ब के साथ भी दु वहार होगा, सद वहार नह हो सकता। य क उ ह
हमने कभी चाहा न था, कभी हमारे ाण क वे आकां ा न थे। हम तो कसी और ही
तरफ गए थे, वे बाइ- ॉड ट ह, ॉड ट नह । आज के ब े ॉड ट नह ह, बाइ- ॉड ट ह।
वे उ पि नह ह। वह उ पि के साथ, जैसे गे ं के साथ भूसा पैदा हो जाता है, वैसी हालत
है। आपका िवचार, आपक कामना दूसरी थी, ब े िबलकु ल आकि मक ह।
और इसीिलए सारी दुिनया म हमेशा से यह कोिशश चली है--वा यायन से लेकर आज
तक यह कोिशश चली है-- क से स को ब से कसी तरह मु कर िलया जाए। उसी से
बथ-कं ोल िवकिसत आ, संतित-िनयमन िवकिसत आ, कृ ि म साधन िवकिसत ए क
हम ब से भी बच जाएं और से स को भी भोग ल। ब से बचने क चे ा हजार साल
से चल रही है। आयुवद के ंथ म दवाइय का उ लेख है, िजनको लेने से ब े नह ह गे,
गभधारण नह होगा। आयुवद के तीन-चार-पांच हजार साल पुराने ंथ इसका िवचार
करते ह। और अभी आज का आधुिनकतम वा य का िमिन टर भी इसी क बात करता
है। य ? आदमी ने यह ईजाद करने क चे ा य क ?
ब े बड़े उप व का कारण हो गए। वे बीच म आते ह, िज मेवा रयां ले आते ह। और भी
एक खतरा--ब के आते से ही ी प रव तत हो जाती है। पु ष भी ब े नह चाहता।
नह होते ह तो चाहता है, इस कारण नह क ब से ेम है, बि क अपनी संपि से ेम
है--कल मािलक कौन होगा? ब से ेम नह है। बाप जब चाहता है क ब ा हो जाए एक
घर म, लड़का नह है, तो आप यह मत सोचना क लड़के के िलए बड़े उनके ाण आतुर हो
रहे ह। नह , आतुरता यह हो रही है क म पये कमा-कमा कर मरा जा रहा ,ं न मालूम
कौन क जा कर लेगा! एक हकदार मेरे खून का उसको बचाने के िलए होना चािहए।
ब के िलए कोई कभी नह चाहता क ब े आ जाएं। ब से हम बचने क कोिशश
करते रहे ह। ले कन ब े पैदा होते चले गए। हमने संभोग कया और ब े बीच म आ गए।
वह उसके साथ जुड़ा आ संबंध था। यह कामज य संतित है। यह बाइ- ॉड ट है
से सुअिलटी क । और इसीिलए मनु य इतना ण, इतना दीन-हीन, इतना उदास, इतना
चंितत है।
चय से भी ब े आएंग।े ले कन वे ब े से स के बाइ- ॉड ट नह ह गे। उन ब के
िलए से स एक वीिहकल होगा। उन ब को लाने के िलए से स एक मा यम होगा। से स
से कोई संबंध नह होगा। जैसे एक आदमी बैलगाड़ी म बैठ कर कह गया। उसे बैलगाड़ी से
कोई मतलब है? वह हवाई जहाज म बैठ कर गया। उसे हवाई जहाज से कोई मतलब है?
आप यहां से बैठ कर द ली गए हवाई जहाज म। हवाई जहाज से आपको कोई भी मतलब
है? कोई भी संबंध है? कोई भी नाता है? कोई नाता नह है। नाता है द ली जाने से। हवाई
जहाज िसफ वीिहकल है, िसफ मा यम है।
चय को जब लोग उपल ध ह और संभोग क या ा समािध तक हो जाए, तब भी वे
ब े चाह सकते ह। ले कन उन ब का ज म उ पि होगी, वे ॉड ट ह गे, वे एशन
ह गे, वे सृजन ह गे। से स िसफ मा यम होगा। और िजस भांित अब तक यह कोिशश क
गई है--इसे ब त गौर से सुन लेना--िजस भांित अब तक यह कोिशश क गई है क ब से
बच कर से स को भोगा जा सके , वह नई मनु यता यह कोिशश कर सकती है क से स से
बच कर ब े पैदा कए जा सक।
मेरी आप बात समझे?
चय अगर जगत म ापक हो जाए तो हम एक नई खोज करगे, जैसे हमने पुरानी
खोज क है क ब से बचा जा सके और से स का अनुभव पूरा हो जाए। इससे उलटा
योग आने वाले जगत म हो सकता है, जब चय ापक होगा, क से स से बचा जा
सके और ब े हो जाएं। और यह हो सकता है, इसम कोई भी क ठनाई नह है। इसम जरा
भी क ठनाई नह है, यह हो सकता है।
चय से जगत के अंत होने का कोई संबंध नह है। जगत के अंत होने का संबंध
से सुअिलटी से पैदा हो गया है। तुम करते जाओ ब े पैदा और जगत अंत हो जाएगा। न
एटम बम क ज रत है, न हाइ ोजन बम क ज रत है। यह ब क इतनी बड़ी तादाद,
यह कतार, यह काम से उ प ए क ड़े-मकोड़ जैसी मनु यता, यह अपने आप न हो
जाएगी।
चय से तो एक और ही तरह का आदमी पैदा होगा। उसक उ ब त लंबी हो सकती
है। उसक उ इतनी लंबी हो सकती है, िजसक हम कोई क पना भी नह कर सकते ह।
उसका वा य अदभुत हो सकता है क उसम बीमारी पैदा न हो। उसका मि त क वैसा
होगा, जैसी कभी-कभी कोई ितभा दखाई पड़ती है। उसके ि व म सुगंध ही और
होगी, बल ही और होगा, स य ही और होगा, धम ही और होगा। वह धम को साथ लेकर
पैदा होगा।
हम अधम को साथ लेकर पैदा होते ह और अधम म जीते ह और अधम म मरते ह, और
इसिलए दन-रात जंदगी भर धम क चचा करते ह। शायद उस मनु यता म धम क कोई
चचा नह होगी, य क धम लोग का जीवन होगा। हम चचा उसी क करते ह जो हमारा
जीवन नह होता; जो जीवन होता है उसक हम चचा नह करते। हम से स क चचा नह
करते, य क वह हमारा जीवन है। हम ई र क चचा करते ह, य क वह हमारा जीवन
नह है। असल म, िजस चीज को हम जंदगी म उपल ध नह कर पाते, बातचीत करके
उसको पूरा कर लेते ह।
आपने खयाल कया होगा, ि यां पु ष से यादा लड़ती ह। ि यां लड़ती ही रहती ह,
कु छ न कु छ खटपट पास-पड़ोस, सब तरफ चलती रहती है। कहते ह क दो ि यां साथ-
साथ ब त देर तक शांित से बैठी रह, यह ब त क ठन है।
मने तो सुना है क चीन म एक बार एक बड़ी ितयोिगता ई और उस ितयोिगता म
चीन के सबसे बड़े झूठ बोलने वाले लोग इक े ए। झूठ बोलने क ितयोिगता थी क
कौन सबसे बड़ा झूठ बोलता है, उसको पहला पुर कार िमल जाएगा।
एक आदमी को पहला पुर कार िमल गया। और उसने यह बात बोली थी िसफ क म एक
बगीचे म गया। दो औरत एक ही बच पर पांच िमनट तक चुप बैठी रह । और लोग ने कहा
क इससे बड़ा झूठ कु छ भी नह हो सकता! यह तो अ टीमेट अन थ हो गया। और भी
बड़ी-बड़ी झूठ लोग ने बोली थी। उ ह ने कहा, वह सब बेकार, पुर कार इसको दे दो। यह
आदमी बाजी मार ले गया।
ले कन कभी आपने सोचा क ि यां इतनी बात य करती ह? पु ष काम करते ह,
ि य के हाथ म कोई काम नह है। और जब काम नह होता तो बात होती है।
भारत इतनी बातचीत य करता है? वही ि य वाला दुगुण है। काम कु छ भी नह है,
बातचीत-बातचीत है।
चय से एक नये मनु य का ज म होगा, जो बातचीत करने वाला नह , जीने वाला
होगा। वह धम क बात नह करे गा, धम को जीएगा। लोग भूल ही जाएंगे क धम कु छ है,
वह इतना वभाव हो सकता है। उस मनु य के बाबत िवचार करना भी अदभुत है। वैसे
कु छ मनु य पैदा होते रहे ह। आकि मक था उनका पैदा होना।
कभी एक महावीर पैदा हो जाता है। ऐसा सुंदर आदमी पैदा हो जाता है क अगर वह
व पहने तो उतना सुंदर न मालूम पड़े। न खड़ा हो जाता है। उसके स दय क सुगंध फै ल
जाती है सब तरफ। लोग महावीर को देखने चले आते ह। वह ऐसा मालूम होता है,
संगमरमर क ितमा हो। उसम इतना वीय कट होता है क--उसका नाम तो वधमान
था--लोग उसको महावीर कहने लगते ह। उसके चय का तेज इतना कट होता है क
लोग अिभभूत हो जाते ह क वह आदमी ही और है।
कभी एक बु पैदा होता है, कभी एक ाइ ट पैदा होता है, कभी एक कन यूिशयस पैदा
होता है। पूरी मनु य-जाित के इितहास म दस-प ीस नाम हम िगन सकते ह जो पैदा ए
ह।
िजस दन दुिनया म चय से ब े आएंग-े -और यह श द ही सुनना आपको अजीब
लगेगा क चय से ब े! म एक नये ही कं से ट क बात कर रहा ।ं चय से िजस दन
ब े आएंगे, उस दन सारे जगत के लोग ऐसे ह गे--ऐसे सुंदर, ऐसे शि शाली, ऐसे
मेधावी, ऐसे िवचारशील। फर कतनी देर होगी उन लोग को क वे परमा मा को न
जान? वे परमा मा को इसी भांित जानगे, िजस तरह हम रात को सोते ह।
ले कन िजस आदमी को न द नह आती, उससे अगर कोई कहे क म िसफ त कए पर
िसर रखता ं और सो जाता ,ं तो वह आदमी कहेगा, यह िबलकु ल गलत, झूठ बात है। म
तो ब त करवट बदलता ,ं उठता ,ं बैठता ,ं माला फे रता ,ं गाय-भस िगनता ;ं
ले कन कु छ नह ! न द आती नह । आप झूठ कहते ह। ऐसा कै से हो सकता है क त कए पर
िसर रखा और न द आ जाए। त कए पर िसर रखा और न द आ जाती है? आप सरासर झूठ
बोलते ह! य क मने तो ब त योग करके देख िलया; न द तो कभी नह आती, रात-रात
गुजर जाती है।
अमे रका म यूयाक जैसे नगर म तीस से लेकर चालीस ितशत लोग न द क दवाएं
लेकर सो रहे ह। और अमे रक मनोवै ािनक कहता है क सौ वष के भीतर यूयाक जैसे
नगर म एक भी आदमी सहज प से नह सो सके गा, दवा लेनी ही पड़ेगी। तो यह हो
सकता है क यूयाक म सौ साल बाद होगा, दो सौ साल बाद हंद ु तान म होगा; य क
हंद ु तान के नेता इस बात के पीछे पड़े ह क हम उनका मुकाबला करके रहगे! हम उनसे
पीछे नह रह सकते। वे कहते ह क हम उनसे पीछे नह रह सकते, उनक सब बीमा रय
म हम मुकाबला करके रहगे!
तो यह हो सकता है क पांच सौ साल बाद सारी दुिनया के लोग न द क दवा लेकर ही
सोएं! और ब ा जब पहली दफा पैदा हो मां के पेट से, तो वह दूध न मांगे, वह कहे--
े लाइजर! नौ महीने सो नह पाया तु हारे पेट म, े लाइजर कहां है? तो पांच सौ साल
बाद उन लोग को यह िव ास दलाना क ठन होगा क आज से पांच सौ साल पहले सारी
मनु यता आंख बंद करती थी और सो जाती थी। वे कहगे, इं पािसबल! असंभव है यह बात।
यह नह हो सकता। कै से हो सकती है यह बात!
म आपसे कहता ,ं उस चय से जो जीवन उपजेगा, उसको यह िव ास करना क ठन
हो जाएगा क लोग चोर थे, लोग बेईमान थे, लोग ह यारे थे, लोग आ मह याएं कर लेते
थे, लोग जहर खाते थे, लोग शराब पीते थे, लोग छु रे भ कते थे, लोग यु करते थे। यह
उनको िव ास करना मुि कल होगा क यह कै से हो सकता है?
काम से अब तक उ पि ई है। और वह भी उस काम से जो फिजयोलािजकल से यादा
नह है। एक आ याि मक काम का ज म हो सकता है और एक नये जीवन का ारं भ हो
सकता है। उस नये जीवन के ारं भ के िलए ये थोड़ी सी बात इन चार दन म मने आपसे
कही ह।
मेरी बात को इतने ेम और इतनी शांित से--और ऐसी बात को, िज ह ेम और शांित
से सुनना ब त मुि कल गया होगा, बड़ी क ठनाई मालूम पड़ी होगी।
एक िम तो मेरे पास आए और कहने लगे क म डर रहा था क कह दस-बीस आदमी
खड़े होकर यह न कहने लग क बंद क रए, यह बात नह होनी चािहए!
मने कहा, इतने िह मतवर आदमी भी होते तो भी ठीक था। इतने िह मतवर आदमी भी
कहां ह क कसी को कह द क बंद क रए यह बात! अगर इतने ही िह मतवर आदमी इस
मु क म होते तो बेवकू फ क कतार, जो कु छ भी कह रही है मु क म, वह कभी क बंद हो
गई होती। ले कन वह बंद नह हो पा रही। मने कहा, म तो ती ा करता ं क कभी कोई
बहादुर आदमी खड़े होकर कहेगा क बंद कर दो यह बात, उससे कु छ बात करने का मजा
होगा।
तो ऐसी बात को, िजनसे क िम डरे ए थे क कह कोई खड़े होकर न कह दे, आप
इतने ेम से सुनते रहे, आप बड़े भले आदमी ह और िजतना आपका ऋण मानूं उतना कम
है। अंत म यही कामना करता ं परमा मा से क येक ि के भीतर जो काम है, वह
राम के मं दर तक प च ं ाने क सीढ़ी बन सके । ब त-ब त ध यवाद! और अंत म सबके
भीतर बैठे ए परमा मा को णाम करता ।ं मेरे णाम वीकार कर।
ओशो--एक प रचय

हम कौन ह, इसे समझने क दशा म ओशो ने जो अि तीय योगदान दया है उसे कसी
ेणी म नह बांधा। वे एक रह यवादी, अंतर-जगत के वै ािनक और िव ोही चेतना ह।
उनक संपूण िच इस बात म है क मानवता को त काल एक नई जीवन-शैली खोज
िनकालने क आव यकता के ित कै से सजग कया जाए। अतीत का अनुसरण कए जाना
इस अि तीय और अित सुंदर ह के अि त व को ही संकट म डाल देने के िलए आमं ण
देना है।

ओशो क बात का सार-िनचोड़ यह है क के वल वयं को बदलने, एक-एक ि के


बदलने, के प रणाम व प हमारा संपूण ‘‘ व’’--हमारा समाज, हमारी सं कृ ित, हमारे
िव ास, हमारा संसार--सभी कु छ बदल जाता है। और इस बदलाव का ार है-- यान।

ओशो ने एक वै ािनक क तरह अतीत के सारे दृि कोण पर समी ा और योग कए ह


और आधुिनक मनु य पर उनके भाव का परी ण कया है, तथा उनक किमय को दूर
करते ए इ सव सदी के अित याशील मन के िलए एक नवीन ारं भ बंद:ु ‘ओशो
स य यान ’ का आिव कार कया है। OSHO Active Meditations उनके अनूठे ओशो
स य यान इस तरह रचे गए ह क वे पहले शरीर और मन म एकि त तनाव को रे चन
हो सके , िजसम रोजमरा के जीवन म सहज ि थरता फिलत हो व िवचाररिहत िव ांित
अनुभव क जा सके ।

एक बार जब आधुिनक जीवन क आपाधापी थमना शु ई, तो ‘‘स यता’’


‘‘िनि यता’’ म प रव तत होने लगती है, यही वा तिवक यान क शु आत का ारं भ
बंद ु है। इसे सहयोग देने के िलए, अगले कदम के प म ओशो ने ाचीन ‘सुनने क कला’
को सू म समकालीन िविध के प म पांत रत कया है, वह ह ‘ओशो- वचन।’ यहां
श द संगीत हो जाते ह, और ोता खोज पाता है उसे जो सुन रहा है, और ि का यान
जो सुना जा रहा है उसके साथ-साथ सुनने वाले पर भी बना रहता है। जैस-जैसे मौन
उतरता है, वैसे-वैसे जो भी सुनने यो य है वह जैसे कसी जादुई ढंग से सीधे-सीधे समझ
िलया जाता है, मन के िबना कसी अवरोध के जो क इस सू म या म के वल ह त ेप
और बाधा भर डाल सकता है।
यह हजार वचन अथव ा क ि गत तलाश से लेकर आज समाज के सम उपि थत
सवािधक वलंत सामािजक व राजनैितक सम या तक सब-कु छ पर काश डालते ह।
ओशो क पु तक िलखी नह गई ह, अिपतु अंतरा ीय ोता के सम उनक त ण दी
गई विनमु त ऑिडयो/वीिडयो वाता के संकलन ह। जैसा क वे कहते ह: ‘‘तो याद
रहे, म जो भी कह रहा ं वह के वल तु हारे िलए ही नह ... म भिव य क पी ढ़य के िलए
भी बोल रहा ।ं ’’

ओशो को लंदन के दॅ संडे टाइ स ने ‘‘बीसव सदी के 1000 िनमाता ’’ म से एक कह कर


व णत कया है। Tom Robbins सु िस अमरीक लेखक टॉम रािब स ने िलखा है क
ओशो ‘‘जीसस ाइ ट के बाद सवािधक खतरनाक ि ह।’’ भारत के संडे िमड-डे ने
ओशो को गांधी, नेह और बु के साथ उन दस लोग म चुना है िज ह ने भारत का भा य
बदल दया।
अपने काय के बारे म ओशो ने कहा है क वे एक नये मनु य के ज म के िलए प रि थितयां
तैयार कर रहे ह। इस नये मनु य को वे ‘ज़ोरबा द बु ा’ कहते ह--जो ‘ज़ोरबा द ीक’
क तरह पृ वी के सम त सुख को भोगने क मता रखता हो और गौतम बु क तरह
मौन ि थरता म जीता हो।

ओशो के हर आयाम म एक धारा क तरह बहता आ वह जीवन-दशन है जो पूरब क


समयातीत ा और पि म के िव ान और तकनीक क सव संभावना को एक साथ
समािहत करता है।

ओशो आंत रक पांतरण के िव ान म अपने ांितकारी योगदान के िलए जाने जाते ह


और यान क उन िविधय के तोता ह जो आज के गितशील जीवन को यान म रख कर
रची गई ह। Osho's talks

ओशो क दो आ मकथा मक कृ ितयां:


ऑटोबायो ाफ ऑफ ए ि चुअली इनकरे ट िमि टक, (सट मा टस ेस, यू एस ए) (बुक
एंड ई-बुक)
Autobiography of a Spiritually Incorrect Mystic,
ि ल सेस ऑफ ए गो डन चाइ ड ड, ( हंदी पु तक: व णम बचपन) (ओशो मीिडया
इं टरनेशनल, पुण,े भारत) (बुक एंड ई-बुक)
Glimpses of a Golden Childhood
ओशो इं टरनेशनल मेिडटे शन रज़ॉट
OSHO International Meditation Resort

हर वष मेिडटेशन रज़ॉट 100 से भी अिधक देश से आने वाले हजार िम का वागत


करता है। ऱजॉट का अनूठा प रसर अिधक होशपूण, िव ांत, उ सवमय व सृजना मक
जीवन जीने के एक नये ढंग का य अनुभव करने के िलए अवसर दान करता है।
चौबीस घंटे और पूरे वष चलने वाले काय म का भ , िविवधतापूण चुनाव उपल ध है-
-कु छ भी न करना व के वल िव ाम उनम से एक है!

यहां के सभी काय म ओशो क ज़ोरबा द बु ा’ क अंतदृि पर आधा रत ह। ज़ोरबा एक


गुणा मक प से नये ढंग का मनु य जो दैनं दन जीवन को सृजना मक ढंग से जीने के साथ
ही मौन और यान म ठहर जाने क मता रखता है।

थान - Location
मुंबई से सौ मील दि णपूव म फलते-फू लते आधुिनक शहर पुणे म ि थत ओशो इं टरनेशनल
मेिडटेशन ऱजॉट छु यां िबताने का एक ऐसा थल है जो और से सवथा िभ है। वृ
क कतार से िघरे आवासीय े म मेिडटेशन ऱजॉट 28 एकड़ के दशनीय बगीच म
फै ला आ है।

ओशो यान
हर तरह के ि के अनु प दन भर चलने वाले यान-काय म म स य और िनि य,
परं परागत और ांितकारी, तथा खासकर ओशो डाइनैिमक मेिडटेशन जैसी यान-िविधयां
उपल ध ह। OSHO Active Meditations. ये सभी यान-िविधयां िव के संभवतः
सवािधक भ व िवशाल यान-सभागार ‘ओशो ऑिडटो रयम’ म होती ह। OSHO
Auditorium.

ओशो म टीव सटी


यहां होने वाले िविभ ि गत सेशन, कोस और वकशॉप अपने आप म सृजना मक कला
से लेकर सम वा य तक, ि गत पांतरण, मानवीय र ते एवं जीवन-प रवतन,
काय- यान, गु -िव ान, तथा खेल व मनोरं जन म ‘‘झेन’’ ढंग तक सब-कु छ समािहत
करते ह। OSHO Multiversity’s म टीव सटी क सफलता का राज इस त य म है क
इसके सम त काय म यान से जुड़े होते ह, जो इस समझ को बढ़ावा देता है क मनु य
के वल अंग का जोड़ मा नह है, वरन उससे बढ़ कर ब त कु छ है।

ओशो बाशो पा - OSHO Basho Spa


वैभवमय बाशो पा म उपल ध है हरे -भरे पेड़ व ह रयाली भरे वातावरण के बीच खुली
हवा म तैरने का आनंद िवशालकाय ि व मंग-पूल म। अनूठे ढंग से बनी िवशाल ज़कू जी,
सौना, िजम, टेिनस कोट... मनमोहक सुंदर पृ भूिम म उभर-उभर आते ह।

भोजन - Cuisine
अलग-अलग ढंग के िविभ भोजन- थल पर परोसे जाने वाले सु वादु व शाकाहारी
पा ा य, एिशयायी व भारतीय भोजन म मेिडटेशन ऱजॉट के िलए िवशेष प से उगाई
गई आगिनक सि जय का ही उपयोग होता है। ेड और के क इ या द ऱजॉट क अपनी
बेकरी म ही तैयार कए जाते ह।

सां य गितिविधयां
चुनने के िलए सां य-गितिविधय क िल ट लंबी है िजसम नृ य करना सबसे ऊपर है।
अ य गितिविधय म तार क छांव म फु लमून- यान, वैरायटी शो, संगीत-काय म तथा
दैिनक जीवन के िलए यान शािमल ह।
सुिवधाएं
आप ित दन उपयोग म आने वाली बुिनयादी चीज मेिडटेशन ऱजॉट के गैले रया से
खरीद सकते ह। Galleria. म टीमीिडया गैलरी म ओशो क सभी मीिडया साम ी
उपल ध है। बक, ैवल एजसी तथा साइबर कै फे क सुिवधाएं भी प रसर के भीतर ही
उपल ध ह। खरीददारी के शौक न िम के िलए पुणे म सभी चुनाव उपल ध ह--
परं परागत भारतीय व तु से लेकर अंतरा ीय ड् स के टोस तक।

आवास
आप ओशो गे टहाउस के सु िचपूण कमर म ठहरने का चुनाव कर सकते ह। OSHO
Guesthouse, अगर आप लंबे समय तक कना चाहते ह तो ‘िल वंग-इन’ काय म के
पैकेज भी चुन सकते ह। OSHO Living-In इसके अित र नजदीक ही ब त कार के
होटल व स वस अपाटमट भी उपल ध ह।
अिधक जानकारी के िलए:

ओशो क अि तीय वाणी को अब आप िविभ भाषा व ा प म िन िलिखत


ऑनलाइन वेबसाइट पर पा सकते ह:
ओशो क अ य अि तीय साम ी िविभ भाषा और ा प म पाने के िलए देख:
www.osho.com/allaboutosho

ओशो इं टरनेशनल क आिधका रक और संपूण वेबसाइट:


www.osho.com

ओशो स य यान िविधयां:


www.osho.com/meditate

iosho, ओशो के ढेर िडिजटल अनुभव िजनम ओशो झेन टैरो, टीवी, लाइ ेरी,
होरो कोप, ई- ी टंग और रे िडयो। कृ पया एक ण के िलए ठह रए, एकबारगी पंजीकरण
के िलए--जो आपको सदैव के िलए लॉिगन सुिवधा दान करती है। पंजीकरण है और
वैिलड ई-मेल आईडी के साथ हर कसी के िलए उपल ध:
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ओशो इं टरनेशनल मेिडटेशन ऱजॉट आने क योजना बनाएं:


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