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ISBN: 978-0-88050-910-7
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This book is a series of original talks by Osho, given to a live audience. All of Osho’s talks have been published in full as books
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ISBN- 978-0-88050-910-7
#1
संभोग : परमा मा क सृजन-ऊजा
मेरे ि य आ मन्!
ेम या है?
जीना और जानना तो आसान है, ले कन कहना ब त क ठन है। जैसे कोई मछली से पूछे
क सागर या है? तो मछली कह सकती है, यह है सागर, यह रहा चार तरफ, वही है।
ले कन कोई पूछे क कहो या है, बताओ मत, तो ब त क ठन हो जाएगा मछली को।
आदमी के जीवन म भी जो े है, सुंदर है और स य है, उसे जीया जा सकता है, जाना
जा सकता है, आ जा सकता है, ले कन कहना ब त मुि कल है। और दुघटना और दुभा य
यह है क िजसम जीया जाना चािहए, िजसम आ जाना चािहए, उसके संबंध म मनु य-
जाित पांच-छह हजार वष से के वल बात कर रही है।
ेम क बात चल रही है, ेम के गीत गाए जा रहे ह, ेम के भजन गाए जा रहे ह, और
ेम का मनु य के जीवन म कोई थान नह है। अगर आदमी के भीतर खोजने जाएं तो ेम
से यादा अस य श द दूसरा नह िमलेगा। और िजन लोग ने ेम को अस य िस कर
दया है और िज ह ने ेम क सम त धारा को अव कर दया है और बड़ा दुभा य यह
है क लोग समझते ह वे ही ेम के ज मदाता भी ह।
धम ेम क बात करता है, ले कन आज तक िजस कार का धम मनु य-जाित के ऊपर
दुभा य क भांित छाया आ है, उस धम ने ही मनु य के जीवन से ेम के सारे ार बंद कर
दए ह। और न इस संबंध म पूरब और पि म म कोई फक है, न हंद ु तान म और न
अमे रका म कोई फक है। मनु य के जीवन म ेम क धारा कट ही नह हो पाई। और नह
हो पाई तो हम दोष देते ह क मनु य ही बुरा है, इसिलए नह कट हो पाई। हम दोष देते
ह क यह मन ही जहर है, इसिलए कट नह हो पाई।
मन जहर नह है। और जो लोग मन को जहर कहते रहे ह, उ ह ने ही ेम को जहरीला
कर दया, ेम को कट नह होने दया है। मन जहर हो कै से सकता है? इस जगत म कु छ
भी जहर नह है। परमा मा के इस सारे उप म म कु छ भी िवष नह है, सब अमृत है।
ले कन आदमी ने सारे अमृत को जहर कर िलया है। और इस जहर करने म िश क, साधु-
संत और तथाकिथत धा मक लोग का सबसे यादा हाथ है।
इस बात को थोड़ा समझ लेना ज री है। य क अगर यह बात दखाई न पड़े तो मनु य
के जीवन म कभी भी ेम भिव य म भी नह हो सके गा। य क िजन कारण से ेम नह
पैदा हो सका है, उ ह कारण को हम ेम कट करने के आधार और कारण बना रहे ह!
हालत ऐसी ह क गलत िस ांत को अगर हजार वष तक दोहराया जाए तो फर हम यह
भूल ही जाते ह क िस ांत गलत ह; और दखाई पड़ने लगता है क आदमी गलत है,
य क उन िस ांत को पूरा नह कर पा रहा है।
मने सुना है, एक स ाट के महल के नीचे से एक पंखा बेचने वाला गुजरता था और जोर
से िच ला रहा था क अनूठे और अदभुत पंखे मने िन मत कए ह। ऐसे पंखे कभी भी नह
बनाए गए। ये पंखे कभी देखे भी नह गए ह। स ाट ने िखड़क से झांक कर देखा क कौन
है जो अनूठे पंखे ले आया है! स ाट के पास सब तरह के पंखे थे--दुिनया के कोने-कोने म जो
िमल सकते थे। और नीचे देखा, गिलयारे म खड़ा आ एक आदमी साधारण दो-दो पैसे के
पंखे ह गे और िच ला रहा है क अनूठे, अि तीय।
उस आदमी को ऊपर बुलाया और पूछा क इन पंख म या खूबी है? दाम या ह इन
पंख के ? उस पंखे वाले ने कहा क महाराज, दाम यादा नह ह। पंखे को देखते ए दाम
ब त कम ह, िसफ सौ पये का पंखा है। स ाट ने कहा, सौ पये! यह दो पैसे का पंखा, जो
बाजार म जगह-जगह िमलता है, और सौ पये दाम! या है इसक खूबी? उस आदमी ने
कहा, खूबी! यह पंखा सौ वष चलता है। सौ वष के िलए गारं टी है। सौ वष से कम म खराब
नह होता है। स ाट ने कहा, इसको देख कर तो ऐसा लगता है क यह स ाह भी चल जाए
पूरा तो मुि कल है। धोखा देने क कोिशश कर रहे हो? सरासर बेईमानी, और वह भी
स ाट के सामने! उस आदमी ने कहा, आप मुझे भलीभांित जानते ह, इसी गिलयारे म रोज
पंखे बेचता ।ं सौ पये दाम ह इसके और अगर सौ वष न चले तो िज मेवार म ।ं रोज तो
नीचे मौजूद होता ।ं और फर आप स ाट ह, आपको धोखा देकर जाऊंगा कहां?
वह पंखा खरीद िलया गया। स ाट को िव ास तो न था, ले कन आ य भी था क यह
आदमी सरासर झूठ बोल रहा है, कस बल पर बोल रहा है! पंखा सौ पये म खरीद िलया
गया और उससे कहा क सातव दन तुम उपि थत हो जाना।
दो-चार दन म ही पंखे क डंडी बाहर िनकल गई। सातव दन तो वह िबलकु ल मुदा हो
गया। ले कन स ाट ने सोचा क शायद पंखे वाला आएगा नह । ले कन ठीक समय पर
सातव दन वह पंखे वाला हािजर हो गया और उसने कहा, कहो महाराज!
उ ह ने कहा, कहना नह है, यह पंखा पड़ा आ है टू टा आ। यह सात दन म ही यह
गित हो गई, तुम कहते सौ वष चलेगा। पागल हो या धोखेबाज? या हो?
उस आदमी ने कहा क मालूम होता है आपको पंखा झलना नह आता है। पंखा तो सौ
वष चलता ही। पंखा तो गारं टीड है। आप पंखा झलते कै से थे?
स ाट ने कहा, और भी सुनो, अब मुझे यह भी सीखना पड़ेगा क पंखा कै से कया जाता
है!
उस आदमी ने कहा, कृ पा करके बताइए क इस पंखे क गित सात दन म ऐसी कै से बना
दी आपने? कस भांित पंखा कया?
स ाट ने पंखा उठा कर करके दखाया क इस भांित मने पंखा कया है।
उस आदमी ने कहा, समझ गया भूल। इस तरह पंखा नह कया जाता।
स ाट ने कहा, और या रा ता है पंखा झलने का?
उस आदमी ने कहा, पंखा पकिड़ए सामने और िसर को िहलाइए। पंखा सौ वष चलेगा।
आप समा हो जाएंगे, ले कन पंखा बचेगा। पंखा गलत नह है, आपके झलने का ढंग गलत
है।
यह आदमी पैदा आ है--पांच-छह हजार या दस हजार वष क सं कृ ित का यह आदमी
फल है। ले कन सं कृ ित गलत नह है, यह आदमी गलत है। आदमी मरता जा रहा है रोज
और सं कृ ित क दुहाई चलती चली जाती है-- क महान सं कृ ित, महान धम, महान सब
कु छ! और उसका यह फल है आदमी, उसी सं कृ ित से गुजरा है और यह प रणाम है उसका।
ले कन नह , आदमी गलत है और आदमी को बदलना चािहए अपने को। और कोई कहने
क िह मत नह उठाता क कह ऐसा तो नह है क दस हजार वष म जो सं कृ ित और
धम आदमी को ेम से नह भर पाए वह सं कृ ित और धम गलत ह ! और अगर दस हजार
वष म आदमी ेम से नह भर पाया तो आगे कोई संभावना है इसी धम और इसी सं कृ ित
के आधार पर क आदमी कभी ेम से भर जाए?
दस हजार वष म जो नह हो पाया, वह आगे भी दस हजार वष म होने वाला नह है।
य क आदमी यही है, कल भी यही होगा आदमी। आदमी हमेशा से यही है और हमेशा
यही होगा। और सं कृ ित और धम, िजनके हम नारे दए चले जाते ह, और संत और
महा मा क िजनक दुहाइयां दए चले जाते ह...सोचने के िलए हम तैयार नह क कह
हमारे बुिनयादी चंतन क दशा ही तो गलत नह है?
म कहना चाहता ं क वह गलत है। और गलत का सबूत है यह आदमी। और या सबूत
होता है? एक बीज को हम बोएं और फल जहरीले और कड़वे ह तो या िस होता है?
िस होता है क वह बीज जहरीला और कड़वा रहा होगा। हालां क बीज म पता लगाना
मुि कल है क उससे जो फल पैदा ह गे, वे कड़वे पैदा ह गे। बीज म कु छ खोजबीन नह क
जा सकती। बीज को तोड़ो-फोड़ो, कोई पता नह चल सकता क इससे जो फल पैदा ह गे,
वे कड़वे ह गे। बीज को बोओ, सौ वष लग जाएंग-े -वृ होगा, बड़ा होगा, आकाश म
फै लेगा, तब फल आएंगे--और तब पता चलेगा क वे कड़वे ह।
दस हजार वष म सं कृ ित और धम के जो बीज बोए गए ह, यह आदमी उसका फल है
और यह कड़वा है और घृणा से भरा आ है। ले कन उसी क दुहाई दए चले जाते ह हम
और सोचते ह क उससे ेम हो जाएगा। म आपसे कहना चाहता ,ं उससे ेम नह हो
सकता है। य क ेम के पैदा होने क जो बुिनयादी संभावना है, धम ने उसक ही ह या
कर दी है और उसम ही जहर घोल दया है।
मनु य से भी यादा ेम पशु और पि य म और पौध म दखाई पड़ता है; िजनके पास
न कोई सं कृ ित है, न कोई धम है। सं कृ त और सुसं कृ त और स य मनु य क बजाय
अस य और जंगल के आदमी म यादा ेम दखाई पड़ता है; िजसके पास न कोई िवकिसत
धम है, न कोई स यता है, न कोई सं कृ ित है। िजतना आदमी स य, सुसं कृ त और
तथाकिथत धम के भाव म मं दर और चच म ाथना करने लगता है, उतना ही ेम से
शू य य होता चला जाता है?
ज र कु छ कारण ह। और दो कारण पर म िवचार करना चाहता ।ं अगर वे खयाल म
आ जाएं तो ेम के अव ोत टू ट सकते ह और ेम क गंगा बह सकती है। वह हर
आदमी के भीतर है, उसे कह से लाना नह है। ेम कोई ऐसी बात नह है क कह खोजने
जाना है उसे। वह है। वह ाण क यास है हर एक के भीतर, वह ाण क सुगंध है येक
के भीतर। ले कन चार तरफ से परकोटा है उसके और वह कट नह हो पाती। सब तरफ
प थर क दीवार है और वे झरने नह फू ट पाते। तो ेम क खोज और ेम क साधना कोई
पािज टव, कोई िवधायक खोज और साधना नह है क हम जाएं और कह ेम सीख ल।
एक मू तकार एक प थर को तोड़ रहा था। कोई देखने गया था क मू त कै से बनाई जाती
है। उसने देखा क मू त तो िबलकु ल नह बनाई जा रही है; िसफ छैनी और हथौड़े से प थर
तोड़ा जा रहा है। तो उस आदमी ने पूछा क यह आप या कर रहे ह? मू त नह बनाएंग!े
म तो मू त का बनना देखने आया ।ं आप तो िसफ प थर तोड़ रहे ह।
उस मू तकार ने कहा क मू त तो प थर के भीतर िछपी है, उसे बनाने क ज रत नह
है; िसफ उसके ऊपर जो थ प थर जुड़ा है उसे अलग कर देने क ज रत है और मू त
कट हो जाएगी। मू त बनाई नह जाती, मू त िसफ आिव कृ त होती है, िड कवर होती है,
अनावृत होती है, उघाड़ी जाती है।
मनु य के भीतर ेम िछपा है, िसफ उघाड़ने क बात है। उसे पैदा करने का सवाल नह
है, अनावृत करने क बात है। कु छ है जो हमने ऊपर से ओढ़ा आ है, जो उसे कट नह
होने देता।
एक िच क सक से जाकर आप पूछ क वा य या है? और दुिनया का कोई िच क सक
नह बता सकता क वा य या है। बड़े आ य क बात है! वा य पर ही तो सारा
िच क सा-शा खड़ा है, सारी मेिडकल साइं स खड़ी है और कोई नह बता सकता क
वा य या है। ले कन िच क सक से पूछ क वा य या है? तो वह कहेगा, बीमा रय
के बाबत हम बता सकते ह क बीमा रयां या ह, उनके ल ण हम पता ह, एक-एक
बीमारी क अलग-अलग प रभाषा हम पता है। वा य? वा य का हम कोई भी पता
नह है। इतना हम कह सकते ह क जब कोई बीमारी नह होती, तो जो होता है, वह
वा य है।
वा य तो मनु य के भीतर िछपा है, इसिलए मनु य क प रभाषा के बाहर है। बीमारी
बाहर से आती है, इसिलए बाहर से प रभाषा क जा सकती है। वा य भीतर से आता है,
उसक कोई प रभाषा नह क जा सकती। इतना ही हम कह सकते ह क बीमा रय का
अभाव वा य है। ले कन यह वा य क कहां प रभाषा ई? वा य के संबंध म तो
हमने कु छ भी न कहा। कहा क बीमा रयां नह ह, तो बीमा रय के संबंध म कहा। सच यह
है क वा य पैदा नह करना होता, या तो िछप जाता है बीमा रय म या बीमा रयां हट
जाती ह तो कट हो जाता है।
वा य हमम है। वा य हमारा वभाव है।
ेम हमम है। ेम हमारा वभाव है।
इसिलए यह बात गलत है क मनु य को समझाया जाए क तुम ेम पैदा करो। सोचना
यह है क ेम पैदा य नह हो पा रहा है? बाधा या है? अड़चन या है? कहां कावट
डाल दी गई है? अगर कोई भी कावट न हो तो ेम कट होगा ही, उसे िसखाने क और
समझाने क कोई भी ज रत नह है। अगर मनु य के ऊपर गलत सं कृ ित और गलत
सं कार क धाराएं और बाधाएं न ह , तो हर आदमी ेम को उपल ध होगा ही। यह
अिनवायता है। ेम से कोई बच ही नह सकता। ेम वभाव है।
गंगा बहती है िहमालय से। बहेगी गंगा, उसके ाण ह, उसके पास जल है। वह बहेगी
और सागर को खोज ही लेगी। न कसी पुिलसवाले से पूछेगी, न कसी पुरोिहत से पूछेगी
क सागर कहां है? देखा कसी गंगा को चौर ते पर खड़े होकर पूछते क सागर कहां है?
उसके ाण म है िछपी सागर क खोज और ऊजा है, तो पहाड़ तोड़ेगी, मैदान तोड़ेगी और
प च ं जाएगी सागर तक। सागर कतना ही दूर हो, कतना ही िछपा हो, खोज ही लेगी।
और कोई रा ता नह है, कोई गाइड-बुक नह है क िजससे पता लगा ले क कहां से जाना
है, ले कन प च ं जाती है।
ले कन बांध बांध दए जाएं, चार तरफ परकोटे उठा दए जाएं। कृ ित क बाधा को
तोड़ कर तो गंगा सागर तक प च ं जाती है, ले कन अगर आदमी क इं जीिनय रं ग क
बाधाएं खड़ी कर दी जाएं, तो हो सकता है गंगा सागर तक न प च ं पाए। यह भेद समझ
लेना ज री है।
कृ ित क कोई भी बाधा असल म बाधा नह है, इसिलए गंगा सागर तक प च ं जाती है,
िहमालय को काट कर प च ं जाती है। ले कन अगर आदमी ईजाद करे , इं तजाम करे , तो
गंगा को सागर तक नह भी प च ं ने दे सकता है।
कृ ित का तो एक सहयोग है, कृ ित तो एक हामनी है। वहां जो बाधा भी दखाई पड़ती
है, वह भी शायद शि को जगाने के िलए चुनौती है। वहां जो िवरोध भी दखाई पड़ता है,
वह भी शायद भीतर ाण म जो िछपा है, उसे कट करने के िलए बुलावा है। वहां शायद
कोई बाधा नह है। वहां हम बीज को दबाते ह जमीन म; दखाई पड़ता है क जमीन क
एक पत बीज के ऊपर पड़ी है, बाधा दे रही है। ले कन वह बाधा नह दे रही। अगर वह पत
न होगी, तो बीज अंकु रत भी नह हो पाएगा। ऐसे दखाई पड़ता है क एक पत जमीन क
बीज को नीचे दबा रही है। ले कन वह पत दबा इसिलए रही है, ता क बीज दबे, गले और
टू ट जाए और अंकुर बन जाए। ऊपर से दखाई पड़ता है क वह जमीन बाधा दे रही है,
ले कन वह जमीन िम है और सहयोग कर रही है बीज को कट करने म।
कृ ित तो एक हामनी है, एक संगीतपूण लयब ता है।
ले कन आदमी ने जो-जो िनसग के ऊपर इं जीिनय रं ग क है, जो-जो उसने अपनी यांि क
धारणा को ठ कने क और िबठाने क कोिशश क है, उससे गंगाएं क गई ह, जगह-
जगह अव हो गई ह। और फर आदमी को दोष दया जाता है। कसी बीज को दोष देने
क ज रत नह है। अगर वह पौधा न बन पाए, तो हम कहगे क जमीन नह िमली होगी
ठीक, पानी नह िमला होगा ठीक, सूरज क रोशनी नह िमली होगी ठीक। ले कन आदमी
के जीवन म िखल न पाए फू ल ेम का, तो हम कहते ह--तुम हो िज मेवार। और कोई नह
कहता क भूिम न िमली होगी ठीक, पानी न िमला होगा ठीक, सूरज क रोशनी न िमली
होगी ठीक; इसिलए यह आदमी का पौधा अव रह गया, िवकिसत नह हो पाया, फू ल
तक नह प च ं पाया।
म आपसे कहना चाहता ं क बुिनयादी बाधाएं आदमी ने खड़ी क ह। ेम क गंगा तो
बह सकती है और परमा मा के सागर तक प च ं सकती है। आदमी बना इसिलए है क वह
बहे और ेम बहे और परमा मा तक प च ं जाए। ले कन हमने कौन सी बाधाएं खड़ी कर दी
ह?
पहली बात, आज तक मनु य क सारी सं कृ ितय ने से स का, काम का, वासना का
िवरोध कया है। इस िवरोध ने, मनु य के भीतर ेम के ज म क संभावना तोड़ दी, न
कर दी--इस िनषेध ने! य क स ाई यह है क ेम क सारी या ा का ाथिमक बंद ु काम
है, से स है। ेम क या ा का ज म, गंगो ी--जहां से गंगा पैदा होगी ेम क --वह से स है,
वह काम है। और उसके सब दु मन ह--सारी सं कृ ितयां, और सारे धम, और सारे गु , और
सारे महा मा--तो गंगो ी पर ही चोट कर दी, वह रोक दया। पाप है काम, अधम है काम,
जहर है काम। और हमने सोचा भी नह क काम क ऊजा ही, से स एनज ही अंततः ेम
म प रव तत होती और पांत रत होती है। ेम का जो िवकास है, वह काम क शि का
ही ांसफामशन है, वह उसी का पांतरण है।
एक कोयला पड़ा हो और आपको खयाल भी नह आएगा क कोयला ही पांत रत
होकर हीरा बन जाता है। हीरे और कोयले म बुिनयादी प से कोई भी फक नह है। हीरे म
भी वे ही त व ह जो कोयले म ह। और कोयला हजार वष क या से गुजर कर हीरा
बन जाता है। ले कन कोयले क कोई क मत नह है, उसे कोई घर म रखता भी है तो ऐसी
जगह जहां दखाई न पड़े। और हीरे को लोग छाितय पर लटका कर घूमते ह, क वह
दखाई पड़े। और हीरा और कोयला एक ही ह! ले कन कोई दखाई नह पड़ता क इन
दोन के बीच अंतसबंध है, एक या ा है।
कोयले क शि ही हीरा बनती है। और अगर आप कोयले के दु मन हो गए--जो क हो
जाना िबलकु ल आसान है, य क कोयले म कु छ भी नह दखाई पड़ता--तो हीरे के पैदा
होने क संभावना भी समा हो गई, य क कोयला ही हीरा बन सकता था।
से स क शि ही, काम क शि ही ेम बनती है।
ले कन उसके िवरोध म ह, सारे दु मन ह उसके । अ छे आदमी उसके दु मन ह। और
उसके िवरोध ने ेम के अंकुर भी नह फू टने दए। और जमीन से, थम से, पहली सीढ़ी से
न कर दया भवन को। फर वह हीरा नह बन पाता कोयला, य क उसके बनने के िलए
जो वीकृ ित चािहए, जो उसका िवकास चािहए, जो उसको पांत रत करने क या
चािहए, उसका सवाल ही नह उठता। िजसके हम दु मन हो गए, िजसके हम श ु हो गए,
िजससे हमारी ं क ि थित बन गई और िजससे हम िनरं तर लड़ने लगे--अपनी ही शि
से आदमी को लड़ा दया गया है, से स क शि से आदमी को लड़ा दया गया है। और
िश ाएं दी जाती ह क ं छोड़ना चािहए, कांि ल ट छोड़नी चािहए, लड़ना नह
चािहए। और सारी िश ाएं बुिनयाद म िसखा रही ह क लड़ो।
मन जहर है; तो मन से लड़ो। जहर से तो लड़ना पड़ेगा। से स पाप है; तो उससे लड़ो।
और ऊपर से कहा जा रहा है क ं छोड़ो। िजन िश ा के आधार पर मनु य ं से भर
रहा है, वे ही िश ाएं दूसरी तरफ कह रही ह क ं छोड़ो। एक तरफ आदमी को पागल
बनाओ और दूसरी तरफ पागलखाने खोलो क उनका इलाज करना है! एक तरफ क टाणु
फै लाओ बीमा रय के और फर अ पताल खोलो क बीमा रय का इलाज यहां कया
जाता है!
एक बात समझ लेनी ज री है इस संबंध म।
मनु य कभी भी काम से मु नह हो सके गा। काम उसके जीवन का ाथिमक बंद ु है,
उसी से ज म होता है। परमा मा ने काम क शि को ही, से स को ही सृि का मूल बंद ु
वीकार कया है। और परमा मा िजसे पाप नह समझ रहा है, महा मा उसे पाप बता रहे
ह! अगर परमा मा उसे पाप समझता है, तो परमा मा से बड़ा पापी इस पृ वी पर, इस
जगत म, इस िव म कोई भी नह है।
फू ल िखला आ दखाई पड़ रहा है। कभी सोचा है क फू ल का िखल जाना भी से सुअल
ए ट है! फू ल का िखल जाना भी काम क एक घटना है, वासना क एक घटना है! फू ल म है
या--उसके िखल जाने म? उसके िखल जाने म कु छ भी नह है, वे बंद ु ह पराग के , वीय के
कण ह, िज ह िततिलयां उड़ा कर दूसरे फू ल पर ले जाएंगी और नया ज म दगी।
एक मोर नाच रहा है--और किव गीत गा रहे ह और संत भी देख कर स ह गे। ले कन
उ ह खयाल नह क नृ य एक से सुअल ए ट है। मोर पुकार रहा है अपनी ेयसी को या
अपने ेमी को। वह नृ य कसी को रझाने के िलए है। पपीहा गीत गा रहा है; कोयल बोल
रही है; एक आदमी जवान हो गया है; एक युवती सुंदर होकर िवकिसत हो गई है। वे सब
क सब से सुअल एनज क अिभ ि यां ह। वह सब का सब काम का ही पांतरण है।
यह सब का सब काम क ही अिभ ि , काम क ही अिभ ंजना है। सारा जीवन, सारी
अिभ ि , सारी लाव रं ग काम क है।
और उस काम के िखलाफ सं कृ ित और धम आदमी के मन म जहर डाल रहे ह। उससे
लड़ाने क कोिशश कर रहे ह। मौिलक शि से मनु य को उलझा दया है लड़ने के िलए।
इसिलए मनु य दीन-हीन, ेम से र और थोथा और ना-कु छ हो गया है।
काम से लड़ना नह है, काम के साथ मै ी थािपत करनी है और काम क धारा को और
ऊंचाइय तक ले जाना है। कसी ऋिष ने कसी वधू को, नव वर और वधू को आशीवाद
देते ए कहा था क तेरे दस पु पैदा ह और अंततः तेरा पित तेरा यारहवां पु हो जाए।
वासना पांत रत हो, तो प ी मां बन सकती है।
वासना पांत रत हो, तो काम ेम बन सकता है।
ले कन काम ही ेम बनता है, काम क ऊजा ही ेम क ऊजा म िवकिसत होती है,
फिलत होती है। ले कन हमने मनु य को भर दया है काम के िवरोध म। इसका प रणाम
यह आ क ेम तो पैदा नह हो सका-- य क वह तो आगे का िवकास था, काम क
वीकृ ित से आता-- ेम तो िवकिसत नह आ और काम के िवरोध म खड़े होने के कारण
मनु य का िच यादा से यादा कामुक और से सुअल होता चला गया। हमारे सारे गीत,
हमारी सारी किवताएं, हमारे िच , हमारी प टं स, हमारे मं दर, हमारी मू तयां सब घूम-
फर कर से स के आस-पास क त हो ग । हमारा मन ही से स के आस-पास क त हो
गया। इस जगत म कोई भी पशु मनु य क भांित से सुअल नह है। मनु य चौबीस घंटे
से सुअल हो गया। उठते-बैठते, सोते-जागते से स ही सब कु छ हो गया। उसके ाण म एक
घाव हो गया--िवरोध के कारण, दु मनी के कारण, श ुता के कारण। जो जीवन का मूल
था, उससे मु तो आ नह जा सकता था, ले कन उससे लड़ने क चे ा म सारा जीवन
ण ज र हो सकता था, वह ण हो गया है।
और यह जो मनु य-जाित इतनी यादा कामुक दखाई पड़ रही है, इसके पीछे
तथाकिथत धम और सं कृ ित का बुिनयादी हाथ है। इसके पीछे बुरे लोग का नह , स न
और संत का हाथ है। और जब तक मनु य-जाित स न और संत के इस अनाचार से मु
नह होती, तब तक ेम के िवकास क कोई संभावना नह है।
मुझे एक घटना याद आती है। एक फक र अपने घर से िनकला था, कसी िम के पास
िमलने जा रहा था। िनकला है क घोड़े पर उसका चढ़ा आ एक बचपन का दो त घर
आकर सामने खड़ा हो गया है। उसने कहा क दो त, तुम घर पर को, वष से ती ा
करता था क तुम आओगे तो बैठगे और बात करगे, और दुभा य क मुझे कसी िम से
िमलने जाना है। म वचन दे चुका ं तो म वहां जाऊंगा। घंटे भर म ज दी से ज दी लौट
आऊंगा, तब तक तुम िव ाम करो।
उसके िम ने कहा क मुझे तो चैन नह है, अ छा होगा क म तु हारे साथ ही चला
चलूं। ले कन उसने कहा क मेरे कपड़े सब गंदे हो गए ह धूल से रा ते क । अगर तु हारे
पास कु छ अ छा कपड़ा हो तो मुझे दे दो, तो म डाल लूं और साथ हो जाऊं।
िनि त था उस फक र के पास। कसी स ाट ने उसे एक ब मू य कोट, एक पगड़ी और
धोती भट क थी। उसने स हाल कर रखी थी, कभी ज रत पड़ेगी तो पहनूंगा। वह ज रत
नह आई थी। िनकाल कर ले आया खुशी म।
िम ने जब पहन िलए, तब उसे थोड़ी ई या पैदा ई। िम ने पहन कर...तो िम स ाट
मालूम होने लगा। ब मू य कोट था, पगड़ी थी, धोती थी, शानदार जूते थे। और उसके
सामने वह फक र िबलकु ल ही नौकर-चाकर, दीन-हीन दखाई पड़ने लगा। उसने सोचा क
यह तो बड़ा मुि कल आ, यह तो बड़ा गलत आ। िजनके घर म ले जाऊंगा, यान इस पर
जाएगा, मुझ पर कसी का भी यान जाएगा नह । अपने ही कपड़े और आज अपने ही
कपड़ के कारण म दीन-हीन हो जाऊंगा।
ले कन बार-बार मन को समझाया क म फक र ,ं आ मा-परमा मा क बात करने
वाला। या रखा है कोट म, पगड़ी म, छोड़ो! पहने रहने दो, कतना फक पड़ता है! ले कन
िजतना समझाने क कोिशश क क कोट-पगड़ी म या रखा है, कोट-पगड़ी, कोट-पगड़ी
ही उसके मन म घूमने लगी।
िम दूसरी बात करने लगा। ले कन वह भीतर तो...ऊपर तो कु छ और दूसरी बात कर
रहा है, ले कन वहां उसका मन नह है। भीतर उसे बस कोट और पगड़ी! रा ते पर जो भी
आदमी देखता है, उसको कोई भी नह देखता, िम क तरफ सबक आंख जाती ह। वह
बड़ी मुि कल म पड़ गया क यह तो आज भूल कर ली--अपने हाथ से भूल कर ली। िजनके
घर जाना था, वहां प च ं ा। जाकर प रचय दया क मेरे िम ह जमाल, बचपन के दो त
ह, ब त यारे आदमी ह। और फर अचानक अनजाने मुंह से िनकल गया क रह गए कपड़े,
सो कपड़े मेरे ह। य क िम भी, िजनके घर गए थे, वे भी उसके कपड़ को देख रहे थे!
और भीतर उसके चल रहा था: कोट-पगड़ी। मेरी कोट-पगड़ी, और उ ह क वजह से म
परे शान हो रहा ।ं िनकल गया मुंह से क रह गए कपड़े, कपड़े मेरे ह!
िम भी हैरान आ, घर के लोग भी हैरान ए क यह या पागलपन क बात है।
खयाल उसको भी आया बोल जाने के बाद, तब पछताया क यह तो भूल हो गई। पछताया
तो और दबाया अपने मन को। बाहर िनकल कर मा मांगने लगा क मा कर दो, बड़ी
गलती हो गई। िम ने कहा, म तो हैरान आ क तुमसे िनकल कै से गया? उसने कहा क
कु छ नह , िसफ जबान क चूक हो गई। हालां क जबान क चूक कभी भी नह होती है।
भीतर कु छ चलता होता है, तो कभी-कभी बेमौके जबान से िनकल जाता है। चूक कभी नह
होती है। माफ कर दो, भूल हो गई। कै से यह खयाल आ गया, कु छ समझ म नह आता।
हालां क पूरी तरह समझ म आ रहा था क खयाल कै से आया है!
दूसरे िम के घर गए। अब वह तय करता रहा रा ते म क अब चाहे कु छ भी हो जाए,
यह नह कहना है क कपड़े मेरे ह, प ा कर लेना है अपने मन को। घर के ार पर उसने
जाकर िबलकु ल दृढ़ संक प कर िलया क यह बात नह उठानी है क कपड़े मेरे ह।
ले कन उस पागल को पता नह क िजतना वह दृढ़ संक प कर रहा है इस बात का, वह
दृढ़ संक प बता रहा है इस बात को क उतने ही जोर से उसके भीतर यह भावना घर कर
रही है क ये कपड़े मेरे ह। आिखर दृढ़ संक प कया य जाता है?
एक आदमी कहता है क म चय का दृढ़ त लेता !ं उसका मतलब है क उसके
भीतर कामुकता दृढ़ता से ध े मार रही है। नह तो और कारण या है? एक आदमी कहता
है क म कसम खाता ं क आज से कम खाना खाऊंगा! उसका मतलब यह है क कसम
खानी पड़ रही है, यादा खाने का मन है उसका। और तब अिनवाय पेण ं पैदा होता
है। िजससे हम लड़ना चाहते ह, वही हमारी कमजोरी है। और तब ं पैदा हो जाना
वाभािवक है।
वह लड़ता आ दरवाजे के भीतर गया, स हल-स हल कर बोला क मेरे िम ह। ले कन
जब वह बोल रहा है, तब उसको कोई नह देख रहा है, उसके िम को ही उस घर के लोग
देख रहे ह। तब फर उसे खयाल आया-- क मेरा कोट, मेरी पगड़ी। उसने कहा क दृढ़ता से
कसम खाई है, इसक बात नह उठानी है। मेरा या है कपड़ा-ल ा! कपड़े-ल े कसी के
होते ह! यह तो सब संसार है, यह तो सब माया है! ले कन यह सब समझा रहा है। ले कन
असिलयत तो बाहर से भीतर, भीतर से बाहर हो रही है। समझाया क मेरे िम ह,
बचपन के दो त ह, ब त यारे आदमी ह; रह गए कपड़े, कपड़े उ ह के ह, मेरे नह ह। पर
घर के लोग को खयाल आया क कपड़े उ ह के ह, मेरे नह ह--आज तक ऐसा प रचय
कभी देखा नह गया था।
बाहर िनकल कर मा मांगने लगा क बड़ी भूल ई जा रही है, म या क ं , या न
क ं , यह या हो गया है मुझे। आज तक मेरी जंदगी म कपड़ ने इस तरह से मुझे नह
पकड़ा था। कसी को नह पकड़ा है, ले कन अगर तरक ब उपयोग म कर तो कपड़े पकड़ ले
सकते ह। िम ने कहा, म जाता नह तु हारे साथ। पर वह हाथ जोड़ने लगा क नह , ऐसा
मत करो। जीवन भर के िलए दुख रह जाएगा क मने या दु वहार कया। अब म कसम
खाकर कहता ं क कपड़ क बात ही नह उठानी है, म िबलकु ल भगवान क कसम खाता
ं क कपड़ क बात नह उठानी है।
और कसम खाने वाल से हमेशा सावधान रहना ज री है; य क जो भी कसम खाता
है, उसके भीतर उस कसम से भी मजबूत कोई बैठा है, िजसके िखलाफ वह कसम खा रहा
है। और वह जो भीतर बैठा है वह यादा भीतर है, कसम ऊपर है और बाहर है। कसम
चेतन मन से खाई गई है। और जो भीतर बैठा है, वह अचेतन क परत तक समाया आ
है। अगर मन के दस िह से कर द, तो कसम एक िह से ने खाई है, नौ िह सा उलटा भीतर
खड़ा आ है। चय क कसम एक िह सा खा रहा है मन का और नौ िह सा परमा मा
क दुहाई दे रहा है, वह जो परमा मा ने बनाया है वह उसके िलए ही कहे चला जा रहा है।
गए तीसरे िम के घर। अब उसने िबलकु ल ही अपनी सांस तक पर संयम कर रखा है।
संयमी आदमी बड़े खतरनाक होते ह; य क उनके भीतर वालामुखी उबल रहा है, और
ऊपर से वे संयम साधे ए ह। और इस बात को मरण रखना क िजस चीज को साधना
पड़ता है--साधने म इतना म लग जाता है क साधना पूरे व हो नह सकती। फर
िशिथल होना पड़ेगा, िव ाम करना पड़ेगा। अगर म जोर से मु ी बांध लूं, तो कतनी देर
बांधे रख सकता ?ं चौबीस घंटे? िजतनी जोर से बांधूंगा, उतनी ही ज दी थक जाऊंगा
और मु ी खुल जाएगी।
िजस चीज म भी म करना पड़ता है, िजतना यादा म करना पड़ता है, उतनी ज दी
थकान आ जाती है, शि खतम हो जाती है और उलटा होना शु हो जाता है। मु ी बांधी
िजतनी जोर से, उतनी ही ज दी मु ी खुल जाएगी। मु ी खुली रखी जा सकती है चौबीस
घंटे, ले कन बांध कर नह रखी जा सकती है। िजस काम म म पड़ता है, उस काम को
आप जीवन नह बना सकते, कभी सहज नह हो सकता वह काम। म पड़ेगा, फर
िव ाम का व आएगा ही।
इसिलए िजतना सधा आ संत होता है उतना ही खतरनाक आदमी होता है; य क
उसका िव ाम का व आएगा, चौबीस घंटे म घंटे भर को उसे िशिथल होना पड़ेगा। उसी
बीच दुिनया भर के पाप उसके भीतर खड़े हो जाएंगे। नरक सामने आ जाएगा।
तो उसने िबलकु ल ही अपने को सांस-सांस रोक िलया और कहा क अब कसम खाता ं
क इन कपड़ क बात ही नह उठानी है।
ले कन आप सोच ल उसक हालत! अगर आप थोड़े-ब त भी धा मक आदमी ह गे, तो
आपको अपने अनुभव से भी पता चल सकता है क उसक या हालत ई होगी। अगर
आपने कसम खाई हो, त िलए ह , संक प साधे ह , तो आपको भलीभांित पता होगा क
भीतर या हालत हो जाती है।
भीतर गया। उसके माथे से पसीना चू रहा है। इतना म पड़ रहा है। िम डरा आ है
उसके पसीने को देख कर क वह उसक सब नस खंची ई ह। वह बोल रहा है एक-एक
श द-- क मेरे िम ह, बड़े पुराने दो त ह, ब त अ छे आदमी ह। और एक ण को वह
का। जैसे भीतर से कोई जोर का ध ा आया हो और सब बह गया, बाढ़ आ गई और सब
बह गया हो। और उसने कहा क रह गई कपड़ क बात, तो मने कसम खा ली है क कपड़
क बात ही नह करनी है।
यह जो इस आदमी के साथ आ, वह पूरी मनु य-जाित के साथ से स के संबंध म हो
गया है। से स को आ सेशन बना दया, से स को रोग बना दया, घाव बना दया और सब
िवषा कर दया। सब िवषा कर दया। छोटे-छोटे ब को समझाया जा रहा है क
से स पाप है। लड़ कय को समझाया जा रहा है, लड़क को समझाया जा रहा है क से स
पाप है। फर यह लड़क जवान होगी, यह लड़का जवान होगा; इनक शा दयां ह गी और
से स क दुिनया शु होगी। और इन दोन के भीतर यह भाव है क यह पाप है। और फर
कहा जाएगा ी को क पित को परमा मा मान। जो पाप म ले जा रहा है उसको
परमा मा कै से माना जा सकता है? यह कै से संभव है क जो पाप म घसीट रहा है वह
परमा मा हो? और उस लड़के को कहा जाएगा, उस युवक को कहा जाएगा क तेरी प ी
है, तेरी सािथनी है, तेरी संगी है। ले कन जो नरक म ले जा रही है! शा म िलखा है क
ी नरक का ार है। यह नरक का ार संगी और सािथनी? यह मेरा आधा अंग--यह नरक
क तरफ जाता आ आधा अंग मेरा यह--इसके साथ कौन सा सामंज य बन सकता है?
सारी दुिनया का दांप य जीवन न कया है इस िश ा ने। और जब दंपित का जीवन न
हो जाए तो ेम क कोई संभावना नह रही। य क जब पित और प ी ेम न कर सक
एक-दूसरे को, जो क अ यंत सहज और नैस गक ेम है, तो फर कौन और कसको ेम कर
सके गा? इस ेम को बढ़ाया जा सकता है क प ी और पित का ेम इतना िवकिसत हो,
इतना उदा हो, इतना ऊंचा बने क धीरे -धीरे बांध तोड़ दे और दूसर तक फै ल जाए। यह
हो सकता है। ले कन इसको समा ही कर दया जाए, तोड़ ही दया जाए, िवषा कर
दया जाए, तो फै लेगा या? बढ़ेगा या?
रामानुज एक गांव म ठहरे थे और एक आदमी ने आकर कहा क मुझे परमा मा को पाना
है। तो उ ह ने कहा क तूने कभी कसी को ेम कया है? उस आदमी ने कहा, इस झंझट म
म कभी पड़ा ही नह । ेम वगैरह क झंझट म नह पड़ा। मुझे तो परमा मा को खोजना है।
रामानुज ने कहा, तूने कभी झंझट ही नह क ेम क ?
उसने कहा, म िबलकु ल सच कहता ं आपसे।
और बेचारा ठीक ही कह रहा था। य क धम क दुिनया म ेम एक िडस-
ािल फके शन है, एक अयो यता है। तो उसने सोचा क अगर म क ं कसी को ेम कया
है, तो वे कहगे, अभी ेम- ेम छोड़, यह राग-वाग छोड़, पहले इन सबको छोड़ कर आ, तब
इधर आना। तो उस बेचारे ने कया भी हो तो वह कहता गया क मने नह कया है, नह
कया है। ऐसा कौन आदमी होगा िजसने थोड़ा-ब त ेम नह कया हो?
रामानुज ने तीसरी बार पूछा क तू कु छ तो बता, थोड़ा-ब त भी कभी भी कसी को?
उसने कहा, माफ क रए, आप य बार-बार वही बात पूछे चले जा रहे ह? मने ेम क
तरफ आंख उठा कर नह देखा। मुझे तो परमा मा को खोजना है।
तो रामानुज ने कहा, मुझे मा कर, तू कह और खोज। य क मेरा अनुभव यह है क
अगर तूने कसी को ेम कया हो तो उस ेम को फर इतना बड़ा ज र कया जा सकता
है क वह परमा मा तक प च ं जाए। ले कन अगर तूने ेम ही नह कया है तो तेरे पास
कु छ है ही नह िजसको बड़ा कया जा सके । बीज ही नह है तेरे पास जो वृ बन सके । तो
तू जा, कह और पूछ।
और जब पित और प ी म ेम न हो, िजस प ी ने अपने पित को ेम न कया हो और
िजस पित ने अपनी प ी को ेम न कया हो, वे बेट को, ब को ेम कर सकते ह, तो
आप
गलती म ह। प ी उसी मा ा म बेटे को ेम करे गी िजस मा ा म उसने अपने पित को
ेम कया है। य क यह बेटा पित का ही फल है; उसका ही ितफलन है, उसका ही
र ले शन है। यह इस बेटे के ित जो ेम होने वाला है, वह उतना ही होगा, िजतना
उसने पित को चाहा और ेम कया हो। यह पित क ही मू त है जो फर नई होकर वापस
लौट आई है। अगर पित के ित ेम नह है, तो बेटे के ित ेम स ा कभी भी नह हो
सकता। और अगर बेटे को ेम नह कया गया--पालना, पोसना और बड़ा कर देना ेम
नह है--तो बेटा मां को कै से ेम कर सकता है? बाप को कै से ेम कर सकता है?
वह जो यूिनट है जीवन का, प रवार, वह िवषा हो गया है--से स को दूिषत कहने से,
कं डेम करने से, नं दत करने से। और प रवार ही फै ल कर पूरा जगत है, पूरा िव है। और
फर हम कहते ह क ेम! ेम िबलकु ल दखाई नह पड़ता! ेम कै से दखाई पड़ेगा?
हालां क हर आदमी कहता है क म ेम करता ।ं मां कहती है, प ी कहती है, बाप कहता
है, भाई कहता है, बहन कहती है, िम कहते ह क हम ेम करते ह। सारी दुिनया म हर
आदमी कहता है क हम ेम करते ह। और दुिनया म इक ा देखो तो ेम कह दखाई ही
नह पड़ता! इतने लोग अगर ेम करते ह तो दुिनया म तो ेम क वषा हो जानी चािहए
थी; ेम के फू ल ही फू ल िखल जाने चािहए थे; ेम के दीये ही दीये जल जाते, घर-घर ेम
का दीया होता, तो दुिनया म इक ी इतनी रोशनी होती ेम क ।
ले कन वहां तो घृणा क रोशनी दखाई पड़ती है, ोध क रोशनी दखाई पड़ती है,
यु क रोशनी दखाई पड़ती है। ेम का तो कोई पता नह चलता। झूठी है यह बात!
और यह झूठ जब तक हम मानते चले जाएंगे तब तक स य क दशा म खोज भी नह हो
सकती। कोई कसी को ेम नह कर रहा है। और जब तक काम के िनसग को प रपूण
आ मा से वीकृ ित नह िमलती है, तब तक कोई कसी को ेम कर भी नह सकता है।
म आपसे कहना चाहता ं क काम द है, िडवाइन है। से स क शि परमा मा क
शि है, ई र क शि है। और इसीिलए तो उससे ऊजा पैदा होती है और नया जीवन
िवकिसत होता है। वही तो सबसे रह यपूण शि है, वही तो सबसे यादा िम टी रयस
फोस है। उससे दु मनी छोड़ द। अगर आप चाहते ह क कभी आपके जीवन म ेम क वषा
हो जाए, उससे दु मनी छोड़ द। उसे आनंद से वीकार कर। उसक पिव ता को वीकार
कर, उसक ध यता को वीकार कर। और खोज उसम और गहरे , और गहरे --तो आप हैरान
हो जाएंगे! िजतनी पिव ता से काम क वीकृ ित होगी, उतना ही काम पिव होता चला
जाता है; और िजतनी अपिव ता और पाप क दृि से काम से िवरोध होगा, काम उतना
ही पापपूण और कु प होता चला जाता है।
जब कोई अपनी प ी के पास ऐसे जाए जैसे कोई मं दर के पास जाता है, जब कोई प ी
अपने पित के पास ऐसे जाए जैसे सच म कोई परमा मा के पास जाता है। य क जब दो
ेमी काम से िनकट आते ह, जब वे संभोग से गुजरते ह, तब सच म ही वे परमा मा के
मं दर के िनकट से गुजर रहे ह। वह परमा मा काम कर रहा है, उनक उस िनकटता म।
वह परमा मा क सृजन शि काम कर रही है।
और मेरी अपनी दृि यह है क मनु य को समािध का, यान का जो पहला अनुभव
िमला हो कभी भी मनु य के इितहास म, तो वह संभोग के ण म िमला है और कभी नह ।
संभोग के ण म ही पहली बार यह मरण आया है आदमी को क इतने आनंद क वषा हो
सकती है। और िज ह ने सोचा, िज ह ने मेिडटेट कया, िजन लोग ने काम के संबंध पर
और मैथुन पर चंतन कया और यान कया, उ ह यह दखाई पड़ा क काम के ण म,
मैथुन के ण म, संभोग के ण म मन िवचार से शू य हो जाता है। एक ण को मन के
सारे िवचार क जाते ह। और वह िवचार का क जाना और वह मन का ठहर जाना ही
आनंद क वषा का कारण होता है।
तब उ ह सी े ट िमल गया, राज िमल गया क अगर मन को िवचार से मु कया जा
सके कसी और िविध से भी, तो भी इतना ही आनंद िमल सकता है। और तब समािध और
योग क सारी व थाएं िवकिसत , िजनम यान और सामाियक और मेिडटेशन और
ेयर, इनक सारी व थाएं िवकिसत । इन सबके मूल म संभोग का अनुभव है। और
फर मनु य को अनुभव आ क िबना संभोग म जाए भी िच शू य हो सकता है। और जो
रस क अनुभूित संभोग म ई थी, वह िबना संभोग के भी बरस सकती है। फर संभोग
िणक हो सकता है, य क शि और ऊजा का वह िनकास और बहाव है। ले कन यान
सतत हो सकता है। तो म आपसे कहना चाहता ं क एक युगल संभोग के ण म िजस
आनंद को अनुभव करता है, एक योगी चौबीस घंटे उस आनंद को अनुभव करने लगता है।
ले कन इन दोन आनंद म बुिनयादी िवरोध नह है। और इसिलए िज ह ने कहा क
िवषयानंद और ानंद भाई-भाई ह, उ ह ने ज र स य कहा है। वे सहोदर ह, एक ही
उदर से पैदा ए ह, एक ही अनुभव से िवकिसत ए ह। उ ह ने िनि त ही स य कहा है।
तो पहला सू आपसे कहना चाहता :ं अगर चाहते ह क पता चले क ेम-त व या है,
तो पहला सू है--काम क पिव ता, द ता, उसक ई रीय अनुभूित क वीकृ ित,
उसको परम दय से, पूण दय से अंगीकार। और आप हैरान हो जाएंगे, िजतने प रपूण
दय से काम क वीकृ ित होगी, उतने ही आप काम से मु होते चले जाएंगे। िजतना
अ वीकार होता है, उतने ही हम बंधते ह। जैसा वह फक र कपड़ से बंध गया। िजतना
वीकार होता है, उतने हम मु होते ह।
अगर प रपूण वीकार है, टोटल ए से टिबिलटी है जीवन का जो िनसग है उसक , तो
आप पाएंगे क वह प रपूण वीकृ ित को म आि तकता कहता ,ं वही आि तकता ि
को मु करती है।
नाि तक म उनको कहता ं जो जीवन के िनसग का अ वीकार करते ह, िनषेध करते ह--
यह बुरा है, यह पाप है, यह िवष है, यह छोड़ो, यह छोड़ो, यह छोड़ो। जो छोड़ने क बात
कर रहे ह, वे ही नाि तक ह।
जीवन जैसा है, उसे वीकार करो और जीओ उसक प रपूणता म। वही प रपूणता रोज-
रोज सी ढ़यां-सी ढ़यां ऊपर उठाती जाती है। वही वीकृ ित मनु य को ऊपर ले जाती है।
और एक दन उसके दशन होते ह, िजसका काम म पता भी नह चलता था। काम अगर
कोयला था तो एक दन हीरा भी कट होता है ेम का। तो पहला सू यह है।
दूसरा सू आपसे कहना चाहता ।ं और वह दूसरा सू भी सं कृ ित ने और आज तक क
स यता ने और धम ने हमारे भीतर मजबूत कया है। दूसरा सू भी मरणीय है। य क
पहला सू तो काम क ऊजा को ेम बना देगा और दूसरा सू ार क तरह रोके ए है
उस ऊजा को बहने से, वह बह नह पाएगी। वह दूसरा सू है मनु य का यह भाव क म ;ं
ईगो, उसका अहंकार, क म ।ं बुरे लोग तो कहते ही ह क म ।ं अ छे लोग और जोर से
कहते ह क म -ं -और मुझे वग जाना है, और मो जाना है, और मुझे यह करना है, और
मुझे वह करना है। ले कन म--वह म खड़ा आ है वहां भीतर।
और िजस आदमी का म िजतना मजबूत है, उतना ही उस आदमी क साम य दूसरे से
संयु हो जाने क कम हो जाती है। य क म एक दीवाल है, एक घोषणा है क म ।ं म
क घोषणा कह देती है: तुम तुम हो, म म ।ं दोन के बीच फासला है। फर म कतना ही
ेम क ं और आपको अपनी छाती से लगा लू,ं ले कन फर भी हम दो ह। छाितयां कतनी
ही िनकट आ जाएं, फर भी बीच म फासला है--म म ,ं तुम तुम हो। इसीिलए िनकटतम
अनुभव भी िनकट नह ला पाते। शरीर पास बैठ जाते ह, आदमी दूर-दूर बने रह जाते ह।
जब तक भीतर म बैठा आ है, तब तक दूसरे का भाव न नह होता।
सा ने कह एक अदभुत वचन कहा है। कहा है क द अदर इज़ हेल। वह जो दूसरा है,
वही नरक है। ले कन सा ने यह नह कहा क हाय द अदर इज़ अदर? वह दूसरा दूसरा
य है? वह दूसरा दूसरा इसिलए है क म म ।ं और जब तक म म ,ं तब तक दुिनया म
हर चीज दूसरी है, अ य है, िभ है। और जब तक िभ ता है, तब तक ेम का अनुभव नह
हो सकता।
ेम है एका म का अनुभव।
ेम है इस बात का अनुभव क िगर गई दीवाल और दो ऊजाएं िमल ग और संयु हो
ग ।
ेम है इस बात का अनुभव क एक ि और दूसरे ि क सारी दीवाल िगर ग
और ाण संयु ए, िमले और एक हो गए।
जब यही अनुभव एक ि और सम त के बीच फिलत होता है, तो उस अनुभव को म
कहता -ं -परमा मा। और जब दो ि य के बीच फिलत होता है, तो उसे म कहता -ं -
ेम।
अगर मेरे और कसी दूसरे ि के बीच यह अनुभव फिलत हो जाए क हमारी दीवाल
िगर जाएं, हम कसी भीतर के तल पर एक हो जाएं, एक संगीत, एक धारा, एक ाण, तो
यह अनुभव है ेम। और अगर ऐसा ही अनुभव मेरे और सम त के बीच घ टत हो जाए क
म िवलीन हो जाऊं और सब और म एक हो जाऊं, तो यह अनुभव है परमा मा।
इसिलए म कहता :ं ेम है सीढ़ी और परमा मा है उस या ा क अंितम मंिजल। यह
कै से संभव है क दूसरा िमट जाए? जब तक म न िमटूं तब तक दूसरा कै से िमट सकता है?
वह दूसरा पैदा कया है मेरे म क ित विन ने। िजतने जोर से म िच लाता ं क म, उतने
ही जोर से वह दूसरा पैदा हो जाता है। वह दूसरी ित विन है, उस तरफ इको हो रही है
मेरे म क । और यह अहंकार, यह ईगो ार पर दीवाल बन कर खड़ी है।
और म है या? कभी सोचा आपने क यह म है या? आपका हाथ है म? आपका पैर है?
आपका मि त क है? आपका दय है? या है आपका म?
अगर आप एक ण भी शांत होकर भीतर खोजने जाएंगे क कहां है म, कौन सी चीज है
म? तो आप एकदम हैरान रह जाएंगे--भीतर कोई म खोजे से िमलने को नह है। िजतना
गहरा खोजगे, उतना ही पाएंगे--भीतर एक स ाटा और शू य है, वहां कोई आई नह , वहां
कोई म नह , वहां कोई ईगो नह ।
एक िभ ु नागसेन को एक स ाट िम लंद ने िनमं ण दया था क तुम आओ दरबार म।
तो जो राजदूत गया था िनमं ण देन,े उसने नागसेन को कहा क िभ ु नागसेन, आपको
बुलाया है स ाट िम लंद ने। म िनमं ण देने आया ।ं तो वह नागसेन कहने लगा, म चलूंगा
ज र; ले कन एक बात िवनय कर दू,ं पहले ही कह दूं क िभ ु नागसेन जैसा कोई है नह ।
यह के वल एक नाम है, कामचलाऊ नाम है। आप कहते ह तो म चलूंगा ज र, ले कन ऐसा
कोई आदमी कह है नह ।
राजदूत ने जाकर स ाट को कह दया क बड़ा अजीब आदमी है वह। वह कहने लगा क
म चलूंगा ज र, ले कन यान रहे क िभ ु नागसेन जैसा कह कोई है नह , यह के वल एक
कामचलाऊ नाम है। स ाट ने कहा, अजीब सी बात है, जब वह कहता है, म चलूंगा।
आएगा वह!
वह आया भी रथ पर बैठ कर। स ाट ने ार पर वागत कया और कहा, िभ ु नागसेन,
हम वागत करते ह आपका। वह हंसने लगा। उसने कहा क वागत वीकार करता ,ं
ले कन मरण रहे, िभ ु नागसेन जैसा कोई है नह ।
स ाट कहने लगा, बड़ी पहेली क बात करते ह आप। अगर आप नह ह तो कौन है? कौन
आया है यहां? कौन वीकार कर रहा है वागत? कौन दे रहा है उ र?
नागसेन मुड़ा और उसने कहा क देखते ह, स ाट िम लंद, यह रथ खड़ा है िजस पर म
आया। स ाट ने कहा, हां, यह रथ है। तो िभ ु नागसेन पूछने लगा, घोड़ को िनकाल कर
अलग कर िलया जाए। घोड़े अलग कर िलए गए। और उसने पूछा स ाट से, ये घोड़े रथ ह?
स ाट ने कहा, घोड़े कै से रथ हो सकते ह? घोड़े अलग कर दए गए। सामने के डंडे िजनसे
घोड़े बंधे थे, खंचवा िलए गए। और उसने पूछा क ये रथ ह?
िसफ दो डंडे कै से रथ हो सकते ह? डंडे अलग कर दए गए। चाक िनकलवा िलए और
कहा, ये रथ ह?
स ाट ने कहा, ये चाक ह, ये रथ नह ह।
और एक-एक अंग रथ का िनकलता चला गया। और एक-एक अंग पर स ाट को कहना
पड़ा क नह , ये रथ नह ह। फर आिखर पीछे शू य बच गया, वहां कु छ भी न बचा। िभ ु
नागसेन पूछने लगा, रथ कहां है अब? रथ कहां है अब? और िजतनी चीज मने िनकाल ,
तुमने कहा, ये भी रथ नह ! ये भी रथ नह ! ये भी रथ नह ! अब रथ कहां है?
तो स ाट च क कर खड़ा रह गया--रथ पीछे बचा भी नह था और जो चीज िनकल गई
थ उनम कोई रथ था भी नह ।
तो वह िभ ु कहने लगा, समझे आप? रथ एक जोड़ था। रथ कु छ चीज का सं ह मा
था। रथ का अपना होना नह है कोई, ईगो नह है कोई। रथ एक जोड़ है।
आप खोज--कहां है आपका म? और आप पाएंगे क अनंत शि य के एक जोड़ ह; म
कह भी नह है। और एक-एक अंग आप सोचते चले जाएं तो एक-एक अंग समा होता
चला जाता है, फर पीछे शू य रह जाता है।
उसी शू य से ेम का ज म होता है, य क वह शू य आप नह ह, वह शू य परमा मा है।
एक गांव म एक आदमी ने मछिलय क एक दुकान खोली थी। बड़ी दुकान थी, उस गांव
म पहली दुकान थी। तो उसने एक ब त खूबसूरत त ती बनवाई और उस पर िलखाया--
े श फश सो ड िहयर--यहां ताजी मछिलयां बेची जाती ह।
पहले ही दन दुकान खुली और एक आदमी आया और कहने लगा, े श फश सो ड
िहयर? ताजी मछिलयां? कह बासी मछिलयां भी बेची जाती ह? ताजी िलखने क या
ज रत?
दुकानदार ने सोचा क बात तो ठीक है। इससे और थ बासे का भी खयाल पैदा होता
है। उसने े श अलग कर दया, ताजा अलग कर दया। त ती रह गई-- फश सो ड िहयर--
मछिलयां यहां बेची जाती ह।
दूसरे दन एक बूढ़ी औरत आई और उसने कहा क मछिलयां यहां बेची जाती ह--सो ड
िहयर? कह और कह भी बेचते हो?
उस आदमी ने कहा क यह िहयर िबलकु ल फजूल है। उसने त ती पर एक श द और
अलग कर दया, रह गया-- फश सो ड।
तीसरे दन एक आदमी आया और वह कहने लगा, फश सो ड? मछिलयां बेची जाती
ह? मु त भी देते हो या?
उस आदमी ने कहा, यह सो ड भी बेकार है। उस सो ड को भी अलग कर दया। अब रह
गई वहां त ती-- फश।
एक बु ा आया और कहने लगा, फश? अंधे को भी मील भर दूर से बास िमल जाती है।
यह त ती काहे के िलए लटकाई ई है यहां?
फश भी चली गई। खाली त ती रह गई वहां।
और एक आदमी आया और उसने कहा, यह त ती कसिलए लगाई है? इससे दुकान पर
आड़ पड़ती है।
वह त ती भी चली गई, वहां कु छ भी नह रह गया। इलीिमनेशन होता गया। एक-एक
चीज हटती चली गई। पीछे जो शेष रह गया--शू य।
उस शू य से ेम का ज म होता है, य क उस शू य म दूसरे के शू य से िमलने क मता
है। िसफ शू य ही शू य से िमल सकता है, और कोई नह । दो शू य िमल सकते ह, दो ि
नह । दो इं िडिवजुअल नह िमल सकते; दो वै यूम, दो एं टीनेस िमल सकते ह, य क
बाधा अब कोई भी नह है। शू य क कोई दीवाल नह होती, और हर चीज क दीवाल
होती है।
तो दूसरी बात मरणीय है: ि जब िमटता है, नह रह जाता; पाता है क ं ही नह ;
जो है वह म नह ,ं जो है वह सब है; तब ार िगरता है, दीवाल टू टती है। और तब वह
गंगा बहती है जो भीतर िछपी है और तैयार है। वह शू य क ती ा कर रही है क कोई
शू य हो जाए तो उससे बह उठूं ।
हम एक कु आं खोदते ह। पानी भीतर है; पानी कह से लाना नह होता। ले कन बीच म
िम ी-प थर पड़े ह, उनको िनकाल कर बाहर कर देते ह। करते या ह हम? करते ह हम--
एक शू य बनाते ह, एक खाली जगह बनाते ह, एक एं टीनेस बनाते ह। कु आं खोदने का
मतलब है खाली जगह बनाना। ता क खाली जगह म, जो भीतर िछपा आ पानी है, वह
कट होने के िलए जगह पा जाए, पेस पा जाए। वह भीतर है, उसको जगह चािहए कट
होने को। जगह नह िमल रही है; भरा आ है कु आं िम ी-प थर से। िम ी-प थर हमने
अलग कर दए, वह पानी उबल कर बाहर आ गया।
आदमी के भीतर ेम भरा आ है। पेस चािहए, जगह चािहए, जहां वह कट हो जाए।
और हम भरे ए ह अपने म से। हर आदमी िच लाए चला जा रहा है--म। और मरण
रख, जब तक आपक आ मा िच लाती है म, तब तक आप िम ी-प थर से भरे ए कु एं ह।
आपके कु एं म ेम के झरने नह फू टगे, नह फू ट सकते ह।
मने सुना है, एक ब त पुराना वृ था। आकाश म स ाट क तरह उसके हाथ फै ले ए
थे। उस पर फू ल आते थे तो दूर-दूर से प ी सुगंध लेने आते। उस पर फल लगते थे तो
िततिलयां उड़त । उसक छाया, उसके फै ले हाथ, हवा म उसका वह खड़ा प आकाश
म बड़ा सुंदर था। एक छोटा ब ा उसक छाया म रोज खेलने आता था। और उस बड़े वृ
को उस छोटे ब े से ेम हो गया। बड़ को छोट से ेम हो सकता है, अगर बड़ को पता न
हो क हम बड़े ह। वृ को कोई पता नह था क म बड़ा -ं -यह पता िसफ आदमी को
होता है--इसिलए उसका ेम हो गया।
अहंकार हमेशा अपने से बड़ को ेम करने क कोिशश करता है। अहंकार हमेशा अपने
से बड़ से संबंध जोड़ता है। ेम के िलए कोई बड़ा-छोटा नह । जो आ जाए, उसी से संबंध
जुड़ जाता है।
वह एक छोटा सा ब ा खेलता आता था उस वृ के पास; उस वृ का उससे ेम हो
गया। ले कन वृ क शाखाएं ऊपर थ , ब ा छोटा था, तो वृ अपनी शाखाएं उसके िलए
नीचे झुकाता, ता क वह फल तोड़ सके , फू ल तोड़ सके ।
ेम हमेशा झुकने को राजी है, अहंकार कभी भी झुकने को राजी नह है। अहंकार के पास
जाएंगे तो अहंकार के हाथ और ऊपर उठ जाएंगे, ता क आप उ ह छू न सक। य क िजसे
छू िलया जाए वह छोटा आदमी है; िजसे न छु आ जा सके , दूर संहासन पर द ली म हो,
वह आदमी बड़ा आदमी है।
वह वृ क शाखाएं नीचे झुक आत जब वह ब ा खेलता आ आता! और जब ब ा
उसके फू ल तोड़ लेता, तो वह वृ ब त खुश होता। उसके ाण आनंद से भर जाते।
ेम जब भी कु छ दे पाता है, तब खुश हो जाता है।
अहंकार जब भी कु छ ले पाता है, तभी खुश होता है।
फर वह ब ा बड़ा होने लगा। वह कभी उसक छाया म सोता, कभी उसके फल खाता,
कभी उसके फू ल का ताज बना कर पहनता और जंगल का स ाट हो जाता।
ेम के फू ल िजसके पास भी बरसते ह, वही स ाट हो जाता है। और जहां भी अहंकार
िघरता है, वह सब अंधकार हो जाता है, आदमी दीन और द र हो जाता है।
वह लड़का फू ल का ताज पहनता और नाचता, और वृ ब त खुश होता, उसके ाण
आनंद से भर जाते। हवाएं सनसनात और वह गीत गाता।
फर लड़का और बड़ा आ। वह वृ के ऊपर भी चढ़ने लगा, उसक शाखा से झूलने
भी लगा। वह उसक शाखा पर िव ाम भी करता, और वृ ब त आनं दत होता।
ेम आनं दत होता है, जब ेम कसी के िलए छाया बन जाता है।
अहंकार आनं दत होता है, जब कसी क छाया छीन लेता है।
ले कन लड़का बड़ा होता चला गया, दन बढ़ते चले गए। जब लड़का बड़ा हो गया तो
उसे और दूसरे काम भी दुिनया म आ गए, मह वाकां ाएं आ ग । उसे परी ाएं पास
करनी थ , उसे िम को जीतना था। वह फर कभी-कभी आता, कभी नह भी आता,
ले कन वृ उसक ती ा करता क वह आए, वह आए। उसके सारे ाण पुकारते क
आओ, आओ!
े िनरं तर ती ा करता है क आओ, आओ! ेम एक ती ा है, एक अवे टंग है।
म
ले कन वह कभी आता, कभी नह आता, तो वृ उदास हो जाता।
ेम क एक ही उदासी है--जब वह बांट नह पाता, तो उदास हो जाता है। जब वह दे
नह पाता, तो उदास हो जाता है। और ेम क एक ही ध यता है क जब वह बांट देता है,
लुटा देता है, तो वह आनं दत हो जाता है।
फर लड़का और बड़ा होता चला गया और वृ के पास आने के दन कम होते चले गए।
जो आदमी िजतना बड़ा होता चला जाता है मह वाकां ा के जगत म, ेम के िनकट आने
क सुिवधा उतनी ही कम होती चली जाती है। उस लड़के क एंबीशन, मह वाकां ा बढ़
रही थी। कहां वृ ! कहां जाना!
फर एक दन वहां से िनकलता था तो वृ ने उसे कहा, सुनो! हवा म उसक आवाज
गूंजी क सुनो, तुम आते नह , म ती ा करता !ं म तु हारे िलए ती ा करता ,ं राह
देखता ,ं बाट जोहता !ं
उस लड़के ने कहा, या है तु हारे पास जो म आऊं? मुझे पये चािहए!
हमेशा अहंकार पूछता है क या है तु हारे पास जो म आऊं? अहंकार मांगता है क कु छ
हो तो म आऊं। न कु छ हो तो आने क कोई ज रत नह । अहंकार एक योजन है, एक
परपज़ है। योजन पूरा होता हो तो म आऊं! अगर कोई योजन न हो तो आने क ज रत
या है!
और ेम िन योजन है। ेम का कोई योजन नह । ेम अपने म ही अपना योजन है,
वह िबलकु ल परपज़लेस है।
वृ तो च क गया। उसने कहा क तुम तभी आओगे जब म कु छ तु ह दे सकूं ? म तु ह सब
दे सकता ।ं य क ेम कु छ भी रोकना नह चाहता। जो रोक ले वह ेम नह है। अहंकार
रोकता है। ेम तो बेशत दे देता है। ले कन पये मेरे पास नह ह। ये पये तो िसफ आदमी
क ईजाद है, वृ ने यह बीमारी नह पाली है।
उस वृ ने कहा, इसीिलए तो हम इतने आनं दत होते ह, इतने फू ल िखलते ह, इतने फल
लगते ह, इतनी बड़ी छाया होती है; हम इतना नाचते ह आकाश म, हम इतने गीत गाते ह;
प ी हम पर आते ह और संगीत का कलरव करते ह; य क हमारे पास पये नह ह।
िजस दन हमारे पास भी पये हो जाएंगे, हम भी आदमी जैसे दीन-हीन मं दर म बैठ कर
सुनगे क शांित कै से पाई जाए, ेम कै से पाया जाए। नह -नह , हमारे पास पये नह ह।
तो उसने कहा, फर म या आऊं तु हारे पास! जहां पये ह, मुझे वहां जाना पड़ेगा। मुझे
पय क ज रत है।
अहंकार पया मांगता है, य क पया शि है। अहंकार शि मांगता है।
उस वृ ने ब त सोचा, फर उसे खयाल आया--तो तुम एक काम करो, मेरे सारे फल
को तोड़ कर ले जाओ और बेच दो तो शायद पये िमल जाएं।
और उस लड़के को भी खयाल आया। वह चढ़ा और उसने सारे फल तोड़ डाले। क े भी
िगरा डाले। शाखाएं भी टू ट , प े भी टू टे। ले कन वृ ब त खुश आ, ब त आनं दत आ।
टू ट कर भी ेम आनं दत होता है।
अहंकार पाकर भी आनं दत नह होता, पाकर भी दुखी होता है।
और उस लड़के ने तो ध यवाद भी नह दया पीछे लौट कर।
ले कन उस वृ को पता भी नह चला। उसे तो ध यवाद िमल गया इसी म क उसने
उसके ेम को वीकार कया और उसके फल को ले गया और बाजार म बेचा।
ले कन फर वह ब त दन तक नह आया। उसके पास पये थे और पय से पये पैदा
करने क वह कोिशश म लग गया था। वह भूल गया। वष बीत गए। और वृ उदास है और
उसके ाण म रस बह रहा है क वह आए उसका ेमी और उसके रस को ले जाए। जैसे
कसी मां के तन म दूध भरा हो और उसका बेटा खो गया हो, और उसके सारे ाण तड़प
रहे ह क उसका बेटा कहां है िजसे वह खोजे, जो उसे हलका कर दे, िनभार कर दे। ऐसे
उस वृ के ाण पीिड़त होने लगे क वह आए, आए, आए! उसक सारी आवाज यही
गूंजने लगी क आओ!
ब त दन के बाद वह आया। अब वह लड़का तो ौढ़ हो गया था। वृ ने उससे कहा क
आओ मेरे पास! मेरे आ लंगन म आओ!
उसने कहा, छोड़ो यह बकवास। ये बचपन क बात ह।
अहंकार ेम को पागलपन समझता है, बचपन क बात समझता है।
उस वृ ने कहा, आओ, मेरी डािलय से झूलो! नाचो!
उसने कहा, छोड़ो ये फजूल क बात। मुझे एक मकान बनाना है। मकान दे सकते हो
तुम?
वृ ने कहा, मकान? हम तो िबना मकान के ही रहते ह। मकान म तो िसफ आदमी रहता
है। दुिनया म और कोई मकान म नह रहता, िसफ आदमी रहता है। सो देखते हो आदमी
क हालत--मकान म रहने वाले आदमी क हालत? उसके मकान िजतने बड़े होते जाते ह,
आदमी उतना छोटा होता चला जाता है। हम तो िबना मकान के रहते ह। ले कन एक बात
हो सकती है क तुम मेरी शाखा को काट कर ले जाओ तो शायद तुम मकान बना लो।
और वह ौढ़ कु हाड़ी लेकर आ गया और उसने उस वृ क शाखाएं काट डाल ! वृ
एक ठूं ठ रह गया, नंगा। ले कन वृ ब त आनं दत था।
ेम सदा आनं दत है, चाहे उसके अंग भी कट जाएं। ले कन कोई ले जाए, कोई ले जाए,
कोई बांट ले, कोई सि मिलत हो जाए, साझीदार हो जाए।
और उस लड़के ने तो पीछे लौट कर भी नह देखा! उसने मकान बना िलया।
और व गुजरता गया। वह ठूं ठ राह देखता, वह िच लाना चाहता, ले कन अब उसके
पास प े भी नह थे, शाखाएं भी नह थ । हवाएं आत और वह बोल भी न पाता, बुला
भी न पाता। ले कन उसके ाण म तो एक ही गूंज थी-- क आओ! आओ!
और ब त दन बीत गए। तब वह बूढ़ा आदमी हो गया था वह ब ा। वह िनकल रहा था
पास से। वृ के पास आकर खड़ा हो गया। तो वृ ने पूछा-- या कर सकता ं और म
तु हारे िलए? तुम ब त दन बाद आए!
उसने कहा, तुम या कर सकोगे? मुझे दूर देश जाना है धन कमाने के िलए। मुझे एक
नाव क ज रत है!
तो उसने कहा, तुम मुझे और काट लो तो मेरी इस प ड़ से नाव बन जाएगी। और म ब त
ध य होऊंगा क म तु हारी नाव बन सकूं और तु ह दूर देश ले जा सकूं । ले कन तुम ज दी
लौट आना और सकु शल लौट आना। म तु हारी ती ा क ं गा।
और उसने आरे से उस वृ को काट डाला। तब वह एक छोटा सा ठूं ठ रह गया। और वह
दूर या ा पर िनकल गया। और वह ठूं ठ भी ती ा करता रहा क वह आए, आए। ले कन
अब उसके पास कु छ भी नह है देने को। शायद वह नह आएगा, य क अहंकार वह
आता है जहां कु छ पाने को है, अहंकार वहां नह जाता जहां कु छ पाने को नह है।
म उस ठूं ठ के पास एक रात मेहमान आ था, तो वह ठूं ठ मुझसे बोला क वह मेरा िम
अब तक नह आया! और मुझे बड़ी पीड़ा होती है क कह नाव डू ब न गई हो, कह वह
भटक न गया हो, कह कसी दूर कनारे पर िवदेश म कह भूल न गया हो, कह वह डू ब न
गया हो, कह वह समा न हो गया हो! एक खबर भर कोई मुझे ला दे--अब म मरने के
करीब -ं -एक खबर भर आ जाए क वह सकु शल है, फर कोई बात नह ! फर सब ठीक
है! अब तो मेरे पास देने को कु छ भी नह है, इसिलए बुलाऊं भी तो शायद वह नह
आएगा, य क वह लेने क ही भाषा समझता है।
अहंकार लेने क भाषा समझता है।
ेम देने क भाषा है।
इससे यादा और कु छ म नह क ग ं ा।
जीवन एक ऐसा वृ बन जाए और उस वृ क शाखाएं अनंत तक फै ल जाएं, सब
उसक छाया म ह और सब तक उसक बांह फै ल जाएं, तो पता चल सकता है क ेम या
है।
ेम का कोई शा नह है, न कोई प रभाषा है, न ेम का कोई िस ांत है।
तो म ब त हैरानी म था क या क ग ं ा आपसे क ेम या है। वह तो बताना मुि कल
है। आकर बैठ सकता -ं -अगर मेरी आंख म दखाई पड़ जाए तो दखाई पड़ सकता है,
अगर मेरे हाथ म दखाई पड़ जाए तो दखाई पड़ सकता है। म कह सकता -ं -यह है ेम।
ले कन ेम या है, अगर मेरी आंख म न दखाई पड़े, मेरे हाथ म न दखाई पड़े, तो
श द से िबलकु ल भी दखाई नह पड़ सकता है क ेम या है!
मेरी बात को इतने ेम और शांित से सुना, उसके िलए अनुगृहीत ।ं और अंत म सबके
भीतर बैठे ए परमा मा को णाम करता ।ं मेरे णाम वीकार कर।
#3
संभोग : समय-शू यता क झलक
मेरे ि य आ मन्!
एक छोटी सी कहानी से म अपनी बात शु करना चा ग ं ा। ब त वष बीते, ब त
स दयां, कसी देश म एक बड़ा िच कार था। वह जब अपनी युवा अव था म था, उसने
सोचा क म एक ऐसा िच बनाऊं, िजसम भगवान का आनंद झलकता हो। म ऐसी दो
आंख िचि त क ं , िजनम अनंत शांित झलकती हो। म ऐसे एक ि को खोजू,ं एक ऐसे
मनु य को, िजसका िच , जीवन के जो पार है, जगत से जो दूर है, उसक खबर लाता हो।
और वह अपने देश के गांव-गांव घूमा, जंगल-जंगल उसने छाना, उस आदमी को, िजसक
ितछिव वह बना सके । और आिखर एक पहाड़ पर गाय चराने वाले एक चरवाहे को उसने
खोज िलया। उसक आंख म कोई झलक थी। उसके चेहरे क प-रे खा म कोई दूर क
खबर थी। उसे देख कर ही लगता था क मनु य के भीतर परमा मा भी है। उसने उसके
िच को बनाया। उस िच क लाख ितयां गांव-गांव, दूर-दूर के देश म िबक । लोग ने
उस िच को घर म टांग कर अपने को ध य समझा।
फर बीस वष बाद, वह िच कार बूढ़ा हो गया था। और उस िच कार को एक खयाल
और आया। जीवन भर के अनुभव से उसे पता चला था क आदमी म भगवान ही अगर
अके ला होता तो ठीक था, आदमी म शैतान भी दखाई पड़ता है। उसने सोचा क म एक
िच और बनाऊं, िजसम आदमी के भीतर शैतान क छिव हो, तब मेरे दोन िच पूरे
मनु य के िच बन सकगे।
वह फर गया बुढ़ापे म--जुआघर म, शराबखान म, पागलघर म--उसने खोजबीन क
उस आदमी क , जो आदमी न हो, शैतान हो; िजसक आंख म नरक क लपट जलती ह ;
िजसके चेहरे क आकृ ित उस सबका मरण दलाती हो, जो अशुभ है, कु प है, असुंदर है।
वह पाप क ितमा क खोज म िनकला। एक ितमा उसने परमा मा क बनाई थी, वह
एक ितमा पाप क भी बनाना चाहता था।
और ब त खोजने के बाद एक कारागृह म उसे एक कै दी िमल गया, िजसने सात ह याएं
क थ और जो थोड़े ही दन बाद मृ यु क ती ा कर रहा था, फांसी पर लटकाया जाने
को था। उस आदमी क आंख म नरक के दशन होते थे, घृणा जैसे सा ात थी। उस आदमी
क चेहरे क प-रे खा ऐसी थी क वैसा कु प मनु य खोजना मुि कल था।
उसने उसके िच को बनाया। िजस दन उसका िच बन कर पूरा आ, वह अपने पहले
िच को भी लेकर कारागृह म आया और दोन िच को पास-पास रख कर देखने लगा क
कौन सी कलाकृ ित े बनी है? तय करना मुि कल था। िच कार खुद भी मु ध हो गया
था। दोन ही िच अदभुत थे। कौन सा े था, कला क दृि से, यह तय करना मुि कल
था।
और तभी उस िच कार को पीछे कसी के रोने क आवाज सुनाई पड़ी। लौट कर देखा,
तो वह कै दी जंजीर म बंधा रो रहा है िजसक उसने त वीर बनाई थी! वह िच कार
हैरान आ। उसने कहा क मेरे दो त, तुम य रोते हो? िच को देख कर तु ह या
तकलीफ ई?
उस आदमी ने कहा, मने इतने दन तक िछपाने क कोिशश क , ले कन आज म हार गया
।ं शायद तु ह पता नह क पहली त वीर भी तुमने मेरी ही बनाई थी। ये दोन त वीर
मेरी ह। बीस साल पहले पहाड़ पर जो आदमी तु ह िमला था, वह म ही ।ं और इसिलए
रोता ं क मने बीस साल म कौन सी या ा कर ली-- वग से नरक क ! परमा मा से पाप
क!
पता नह यह कहानी कहां तक सच है। सच हो या न हो, ले कन हर आदमी के जीवन म
दो त वीर ह। हर आदमी के भीतर शैतान है और हर आदमी के भीतर परमा मा भी। और
हर आदमी के भीतर नरक क भी संभावना है और वग क भी। हर आदमी के भीतर
स दय के फू ल भी िखल सकते ह और कु पता के गंदे डबरे भी बन सकते ह। येक आदमी
इन दो या ा के बीच िनरं तर डोल रहा है। ये दो छोर ह, िजनम से आदमी कसी को भी
छू सकता है। और अिधक लोग नरक के छोर को छू लेते ह और ब त कम सौभा यशाली ह
जो अपने भीतर परमा मा को उघाड़ पाते ह ।
या हम अपने भीतर परमा मा को उघाड़ पाने म सफल हो सकते ह? या हम वह
ितमा बनगे जहां परमा मा क झलक िमले? यह कै से हो सकता है--इस के साथ ही
आज क दूसरी चचा म शु करना चाहता ।ं यह कै से हो सकता है क आदमी परमा मा
क ितमा बने? यह कै से हो सकता है क आदमी का जीवन एक वग बने--एक सुवास,
एक सुगंध, एक स दय? यह कै से हो सकता है क मनु य उसे जान ले िजसक कोई मृ यु
नह ? यह कै से हो सकता है क मनु य परमा मा के मं दर म िव हो जाए?
होता तो उलटा है। बचपन म हम कह वग म होते ह और बूढ़े होते-होते नरक तक प च ं
जाते ह! होता उलटा है। होता यह है क बचपन के बाद जैसे रोज हमारा पतन होता है।
बचपन म तो कसी इनोसस, कसी िनद ष संसार का हम अनुभव करते ह; और फर धीरे -
धीरे एक कपट से भरा आ, पाखंड से भरा आ माग हम तय करते ह। और बूढ़े होते-होते
न के वल हम शरीर से बूढ़े हो जाते ह, बि क हम आ मा से भी बूढ़े हो जाते ह। न के वल
शरीर दीन-हीन, जीण-जजर हो जाता है, बि क आ मा भी पितत, जीण-जजर हो जाती है।
और इसे ही हम जीवन मान लेते ह और समा हो जाते ह!
धम इस संबंध म संदहे उठाना चाहता है। धम एक बड़ा संदह े है इस संबंध म-- क यह
आदमी क जीवन क या ा गलत है क वग से हम नरक तक प च ं जाएं। होना तो उलटा
चािहए। जीवन क या ा उपलि ध क या ा होनी चािहए-- क हम दुख से आनंद तक
प च ं , हम अंधकार से काश तक प चं , हम मृ यु से अमृत तक प चं जाएं। ाण के ाण
क अिभलाषा और यास भी वही है। ाण म एक ही आकां ा है क मृ यु से अमृत तक
कै से प च ं ? ाण म एक ही यास है क हम अंधकार से आलोक को कै से उपल ध ह ?
ाण क एक ही मांग है क हम अस य से स य तक कै से जा सकते ह?
िनि त ही स य क या ा के िलए, िनि त ही वयं के भीतर परमा मा क खोज के
िलए, ि को ऊजा का एक सं ह चािहए, कं जरवेशन चािहए, ि को शि का एक
संवधन चािहए, उसके भीतर शि इक ी हो क वह शि का एक ोत बन जाए, तभी
ि व को वग तक ले जाया जा सकता है। वग िनबल के िलए नह है। जीवन के स य
उनके िलए नह ह जो दीन-हीन हो जाते ह शि को खोकर। जो जीवन क सारी शि को
खो देते ह और भीतर दुबल और दीन हो जाते ह, वे या ा नह कर सकते। उस या ा पर
चढ़ने के िलए, उन पहाड़ पर चढ़ने के िलए शि चािहए। और शि का संवधन धम का
सू है--शि का संवधन, कं जरवेशन ऑफ एनज । कै से शि इक ी हो क हम शि के
उबलते ए भंडार हो जाएं?
ले कन हम तो दीन-हीन जन ह। सारी शि खोकर हम धीरे -धीरे िनबल होते चले जाते
ह। सब खो जाता है भीतर, र ता रह जाती है एक खाली। भीतर एक खालीपन के
अित र और कु छ भी नह छू टता। हम शि को कै से खो देते ह?
मनु य का शि को खोने का सबसे बड़ा ार से स है। काम मनु य क शि के खोने का
सबसे बड़ा ार है, जहां से वह शि को खोता है। और जैसा मने कल आपसे कहा, कोई
कारण है िजसक वजह से वह शि को खोता है। शि को कोई भी खोना नह चाहता है।
कौन शि को खोना चाहता है? ले कन कु छ झलक है उपलि ध क , उस झलक के िलए
आदमी शि को खोने को राजी हो जाता है। काम के ण म कु छ अनुभव है, उस अनुभव
के िलए आदमी सब कु छ खोने को तैयार हो जाता है। अगर वह अनुभव कसी और माग से
उपल ध हो सके तो मनु य से स के मा यम से शि को खोने को कभी भी तैयार नह हो
सकता।
या और कोई ार है उस अनुभव को पाने का? या और कोई माग है उस अनुभूित को
उपल ध करने का--जहां हम अपने ाण क गहरी से गहरी गहराई म उतर जाते ह, जहां
हम जीवन का ऊंचा से ऊंचा िशखर छू ते ह, जहां हम जीवन क शांित और आनंद क एक
झलक पाते ह? या कोई और माग है? या कोई और माग है अपने भीतर प च ं जाने का?
या वयं क शांित और आनंद के ोत तक प च ं जाने क और कोई सीढ़ी है?
अगर वह सीढ़ी हम दखाई पड़ जाए तो जीवन म एक ांित घ टत हो जाती है, आदमी
काम के ित िवमुख और राम के ित स मुख हो जाता है। एक ांित घ टत हो जाती है,
एक नया ार खुल जाता है।
मनु य क जाित को अगर हम नया ार न दे सक तो मनु य एक रिपटी टव स कल म,
एक पुन ि वाले च र म घूमता है और न होता है। ले कन आज तक से स के संबंध म
जो भी धारणाएं रही ह, वे मनु य को से स के अित र नया ार खोलने म समथ नह
बना पा । बि क एक उलटा उप व आ। कृ ित एक ही ार देती है मनु य को, वह से स
का ार है। अब तक क िश ा ने वह ार भी बंद कर दया और नया ार खोला नह !
शि भीतर घूमने लगी और च र काटने लगी। और अगर नया ार शि के िलए न
िमले, तो घूमती ई शि मनु य को िवि कर देती है, पागल कर देती है। और िवि
मनु य फर न के वल उस ार से, जो से स का सहज ार था, िनकलने क चे ा करता है,
वह दीवाल और िखड़ कय को तोड़ कर भी उसक शि बाहर बहने लगती है। वह
अ ाकृ ितक माग से भी से स क शि बाहर बहने लगती है।
यह दुघटना घटी है। यह मनु य-जाित के बड़े से बड़े दुभा य म से एक है। नया ार नह
खोला गया और पुराना ार बंद कर दया गया। इसिलए म से स के िवरोध म, दु मनी के
िलए, दमन के िलए अब तक जो भी िश ाएं दी गई ह, उन सबके प िवरोध म खड़ा आ
।ं उन सारी िश ा से मनु य क से सुअिलटी बढ़ी है, कम नह ई, बि क िवकृ त ई
है।
या कर ले कन? कोई और ार खोला जा सकता है?
मने आपसे कल कहा, संभोग के ण क जो तीित है, वह तीित दो बात क है:
टाइमलेसनेस और ईगोलेसनेस क । समय शू य हो जाता है और अहंकार िवलीन हो जाता
है। समय शू य होने से और अहंकार िवलीन होने से हम उसक एक झलक िमलती है जो
हमारा वा तिवक जीवन है। ले कन ण भर क झलक और हम वापस अपनी जगह खड़े
हो जाते ह। और एक बड़ी ऊजा, एक बड़ी वै ुितक शि का वाह, इसम हम खो देते ह।
फर उस झलक क याद, मृित मन को पीड़ा देती रहती है। हम वापस उस अनुभव को
पाना चाहते ह, वापस उस अनुभव को पाना चाहते ह। और वह झलक इतनी छोटी है, एक
ण म खो जाती है! ठीक से उसक मृित भी नह रह जाती क या थी झलक, हमने या
जाना था? बस एक धुन, एक अज, एक पागल ती ा रह जाती है फर उस अनुभव को
पाने क । और जीवन भर आदमी इसी चे ा म संल रहता है, ले कन उस झलक को एक
ण से यादा नह पा सकता है।
वही झलक यान के मा यम से भी उपल ध होती है। मनु य क चेतना तक प च ं ने के दो
माग ह--काम और यान, से स और मेिडटेशन। से स ाकृ ितक माग है, जो कृ ित ने दया
आ है। जानवर को भी दया आ है, पि य को भी दया आ है, पौध को भी दया
आ है, मनु य को भी दया आ है। और जब तक मनु य के वल कृ ित के दए ए ार का
उपयोग करता है, तब तक वह पशु से ऊपर नह है। नह हो सकता। वह सारा ार तो
पशु के िलए भी उपल ध है।
मनु यता का ारं भ उस दन से होता है, िजस दन से मनु य से स के अित र एक नया
ार खोलने म समथ हो जाता है। उसके पहले हम मनु य नह ह, नाम मा को मनु य ह।
उसके पहले हमारे जीवन का क पशु का क है, कृ ित का क है। तब तक हम उसके
ऊपर नह उठ पाए, उसे ांसड नह कर पाए, उसका अित मण नह कर पाए; तब तक
हम पशु क भांित ही जीते ह। हमने कपड़े मनु य के पहन रखे ह, हम भाषा मनु य क
बोलते ह, हमने सारा प मनु य का पैदा कर रखा है; ले कन भीतर गहरे से गहरे मन के
तल पर हम पशु से यादा नह होते। नह हो सकते ह। और इसीिलए जरा सा मौका
िमल जाए और हमारी मनु यता को जरा सी छू ट िमल जाए, तो हम त काल पशु हो जाते
ह।
हंद ु तान-पा क तान का बंटवारा आ। और हम दखाई पड़ गया क आदमी के कपड़
के भीतर जानवर बैठा आ है। हम दखाई पड़ गया क वे लोग जो कल मि जद म ाथना
करते थे और मं दर म गीता पढ़ते थे, वे या कर रहे ह? वे ह याएं कर रहे ह, वे बला कार
कर रहे ह, वे सब कु छ कर रहे ह! वे ही लोग जो मं दर और मि जद म दखाई पड़ते थे, वे
ही लोग बला कार करते ए दखाई पड़ने लगे! या हो गया इनको?
अभी दंगा-फसाद हो जाए, अभी यहां दंगा हो जाए, और यह आदमी को दंगे म मौका
िमल जाएगा अपनी आदिमयत से छु ी ले लेने का और फौरन वह जो भीतर िछपा आ
पशु है, कट हो जाएगा! वह हमेशा तैयार है, वह ती ा कर रहा है क मुझे मौका िमल
जाए। भीड़-भाड़ म उसे मौका िमल जाता है, तो वह ज दी से छोड़ देता है अपना खयाल--
वह जो बांध-बूंध कर उसने रखा आ है। भीड़ म मौका िमल जाता है उसे भूल जाने का क
म भूल जाऊं अपने को!
इसिलए आज तक अके ले आदिमय ने उतने पाप नह कए ह, िजतने भीड़ म आदिमय
ने पाप कए ह। अके ला आदमी थोड़ा डरता है क कोई देख लेगा! अके ला आदमी थोड़ा
सोचता है क म यह या कर रहा !ं अके ले आदमी को अपने कपड़ क थोड़ी फ होती
है क लोग या कहगे--जानवर हो! ले कन जब बड़ी भीड़ होती है तो अके ला आदमी
कहता है--अब कौन देखता है! अब कौन पहचानता है! वह भीड़ के साथ एक हो जाता है।
उसक आइड टटी िमट जाती है। अब वह फलां नाम का आदमी नह है, अब एक बड़ी भीड़
है। और बड़ी भीड़ जो करती है वह भी करता है--ह या करता है, आग लगाता है, बला कार
करता है। भीड़ म उसे मौका िमल जाता है क वह अपने पशु को फर से छु ी दे दे, जो
उसके भीतर िछपा है।
और इसीिलए आदमी दस-पांच वष म यु क ती ा करने लगता है, दंग क ती ा
करने लगता है। अगर हंद-ू मुि लम का बहाना िमल जाए तो हंद-ू मुि लम सही, अगर
हंद-ू मुि लम का न िमले तो गुजराती-मराठी भी काम कर सकता है। अगर गुजराती-
मराठी न हो, तो हंदी बोलने वाला और गैर- हंदी बोलने वाला भी काम कर सकता है।
कोई भी बहाना चािहए आदमी को, उसके भीतर के पशु को छु ी चािहए। वह घबरा जाता
है पशु भीतर बंद रहते-रहते। वह कहता है, मुझे कट होने दो।
और आदमी के भीतर का पशु तब तक नह िमटता है, जब तक पशुता का जो सहज माग
है, उसके ऊपर मनु य क चेतना न उठे । पशुता का सहज माग--हमारी ऊजा, हमारी शि
का एक ही ार है बहने का--वह है से स। और वह ार बंद कर द तो क ठनाई खड़ी हो
जाती है। उस ार को बंद करने के पहले नये ार का उदघाटन होना ज री है, जीवन-
चेतना नई दशा म वािहत हो सके ।
ले कन यह हो सकता है; यह आज तक कया नह गया। नह कया गया, य क दमन
सरल मालूम पड़ा, पांतरण क ठन। दबा देना कसी बात को आसान है। बदलना, बदलने
क िविध और साधना क ज रत है। इसिलए हमने सरल माग का उपयोग कया क दबा
दो अपने भीतर।
ले कन हम यह भूल गए क दबाने से कोई चीज न नह होती है, दबाने से और
बलशाली हो जाती है। और हम यह भी भूल गए क दबाने से हमारा आकषण और गहरा
होता है। िजसे हम दबाते ह, वह हमारी चेतना क और गहरी पत म िव हो जाता है।
हम उसे दन म दबा लेते ह, वह सपन म हमारी आंख म झूलने लगता है। हम उसे
रोजमरा दबा लेते ह, वह हमारे भीतर ती ा करता है क कब मौका िमल जाए, कब म
फू ट पडू ,ं िनकल पडू ।ं िजसे हम दबाते ह उससे हम मु नह होते, हम और गहरे अथ म,
और गहराइय म, और अचेतन म, और अनकांशस तक उसक जड़ प च ं जाती ह और वह
हम जकड़ लेता है।
आदमी से स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है, पशु
क तो से स क कोई अविध होती है, कोई पी रयड होता है वष म; आदमी क कोई
अविध न रही, कोई पी रयड न रहा। आदमी चौबीस घंटे, बारह महीने से सुअल है! सारे
जानवर म कोई जानवर ऐसा नह है क जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से
भरा आ हो। उसका व है, उसक ऋतु है; वह आती है और चली जाती है। और फर
उसका मरण भी खो जाता है। आदमी को या हो गया? आदमी ने दबाया िजस चीज को
वह फै ल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फै ल गई है।
कभी आपने इस पर िवचार कया क कोई पशु हर ि थित म, हर समय कामुक नह
होता। ले कन आदमी हर ि थित म, हर समय कामुक है। जैसे कामुकता उबल रही है, जैसे
कामुकता ही सब कु छ है। यह कै से हो गया? यह दुघटना कै से संभव ई है? पृ वी पर िसफ
मनु य के साथ ई है और कसी जानवर के साथ नह -- य ?
एक ही कारण है, िसफ मनु य ने दबाने क कोिशश क है। और िजसे दबाया, वह जहर
क तरह सब तरफ फै ल गया। और दबाने के िलए हम या करना पड़ा? दबाने के िलए हम
नंदा करनी पड़ी, दबाने के िलए हम गाली देनी पड़ी, दबाने के िलए हम अपमानजनक
भावनाएं पैदा करनी पड़ । हम कहना पड़ा क से स पाप है। हम कहना पड़ा क से स
नरक है। हम कहना पड़ा क जो से स म है, वह ग हत है, नं दत है। हम ये सारी गािलयां
खोजनी पड़ , तभी हम दबाने म सफल हो सके । और हम खयाल भी नह क इन नंदा
और गािलय के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया।
नी शे ने एक वचन कहा है, जो ब त अथपूण है। उसने कहा है क धम ने जहर िखला
कर से स को मार डालने क कोिशश क थी। से स मरा तो नह , िसफ जहरीला होकर
जंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नह । ले कन और गड़बड़ हो गई बात। वह
जहरीला भी हो गया और जंदा है।
यह जो से सुअिलटी है, यह जहरीला से स है। से स तो पशु म भी है, काम तो पशु
म भी है, य क काम जीवन क ऊजा है; ले कन से सुअिलटी, कामुकता िसफ मनु य म
है। कामुकता पशु म नह है। पशु क आंख म देख, वहां कामुकता दखाई नह पड़ेगी।
आदमी क आंख म झांक, वहां एक कामुकता का रस झलकता आ दखाई पड़ेगा।
इसिलए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। ले कन दमन करने वाले पागल क कोई सीमा
नह है क वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
मने कल आपको कहा था क अगर हम दुिनया को से स से मु करना है, तो ब े और
बि य को एक-दूसरे के िनकट लाना होगा। इसके पहले क उनम से स जागे--चौदह साल
के पहले--वे एक-दूसरे के शरीर से इतने प प से प रिचत हो ल क वह आकां ा
िवलीन हो जाए।
ले कन अमे रका म अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है। और वह नया आंदोलन वहां
के ब त धा मक लोग चला रहे ह। शायद आपको पता भी न हो, वह नया आंदोलन बड़ा
अदभुत है। वह आंदोलन यह है क सड़क पर गाय, भस, घोड़े, कु ,े िब ली को भी िबना
कपड़ के नह िनकाला जाए, उनको कपड़े पहना कर िनकाला जाए! उनको भी कपड़े
पहनाने चािहए; य क नंगे पशु को देख कर ब े िबगड़ सकते ह! बड़े मजे क बात है।
नंगे पशु को देख कर ब े िबगड़ सकते ह। अमे रका के कु छ नीितशा ी इसके बाबत
आंदोलन और संगठन और सं थाएं बना रहे ह क पशु को भी सड़क पर न नह लाया
जा सके ! आदमी को बचाने क इतनी कोिशश चल रही ह। और कोिशश बचाने क जो
करने वाले लोग ह, वे ही आदमी को न कर रहे ह।
कभी आपने खयाल कया क पशु अपनी न ता म भी अदभुत है और सुंदर है। उसक
न ता म भी वह िनद ष है, सरल और सीधा है। कभी आपको, पशु न है, यह भी खयाल
शायद ही आया हो। जब तक क आपके भीतर ब त नंगापन न िछपा हो, तब तक आपको
पशु नंगा नह दखाई पड़ सकता है। ले कन वे जो भयभीत लोग ह, वे जो डरे ए लोग ह,
वे भय और डर के कारण सब कु छ कर रहे ह आज तक। और उनके सब करने से आदमी रोज
नीचे से नीचे उतरता जा रहा है।
ज रत तो यह है क आदमी भी कसी दन इतना सरल हो क न खड़ा हो सके --
िनद ष और आनंद से भरा आ। ज रत तो यह है! जैसे महावीर जैसा ि न खड़ा हो
गया। लोग कहते ह क उ ह ने कपड़े छोड़े, कपड़ का याग कया। म कहता ,ं न कपड़े
छोड़े, न कपड़ का याग कया; िच इतना िनद ष हो गया होगा, इतना इनोसट, जैसे
छोटे ब का, तो वे न खड़े हो गए ह गे। य क ढांकने को जब कु छ भी नह रह जाता
तो आदमी न हो सकता है। जब तक ढांकने को कु छ है हमारे भीतर, तब तक आदमी अपने
को िछपाएगा। जब ढांकने को कु छ भी नह है, तो न हो सकता है। चािहए तो एक ऐसी
पृ वी क आदमी भी इतना सरल होगा क न होने म भी उसे कोई प ा ाप, कोई पीड़ा
न होगी। न होने म भी उसे कोई अपराध न होगा।
आज तो हम कपड़े पहन कर भी अपराधी मालूम होते ह! हम कपड़े पहन कर भी नंगे ह!
और ऐसे लोग भी रहे ह, जो न होकर भी न नह थे।
नंगापन मन क एक वृि है।
सरलता, िनद ष िच -- फर न ता भी साथक हो जाती है, अथपूण हो जाती है; वह भी
एक स दय ले लेती है।
ले कन अब तक आदमी को जहर िपलाया गया है। और जहर का प रणाम यह आ क
हमारा सारा जीवन एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक िवषा हो गया है।
ि य को हम कहते ह, पित को परमा मा समझना! और उन ि य को बचपन से
िसखाया गया है क से स पाप है, नरक है। वे कल िववािहत ह गी। वे उस पित को कै से
परमा मा मान सकगी जो उ ह से स म और नरक म ले जा रहा है? एक तरफ हम िसखाते
ह पित परमा मा है और प ी का अनुभव कहता है क यही पहला पापी है जो मुझे नरक म
घसीट रहा है।
एक बहन ने मुझे आकर कहा--िपछली मी टंग म जब म यहां बोला, भारतीय िव ाभवन
म, तो एक बहन मेरे पास उसी दन आई और उसने कहा-- क म ब त गु से म ,ं म ब त
ोध म ।ं से स तो बड़ी घृिणत चीज है। से स तो पाप है। और आपने से स क इतनी
बात य क ? म तो घृणा करती ं से स को।
अब यह प ी है, इसका पित है, इसके ब े ह, बि यां ह; और यह प ी से स को घृणा
करती है! यह पित को कै से ेम कर सकती है जो इसे से स म ले जा रहा है? यह उन ब
को कै से ेम कर सकती है जो से स से पैदा हो रहे ह? इसका ेम जहरीला रहेगा। इसके
ेम म जहर िछपा रहेगा। पित और इसके बीच एक बुिनयादी दीवाल खड़ी रहेगी। ब
और इसके बीच एक बुिनयादी दीवाल खड़ी रहेगी। य क वह से स क दीवाल और
से स क कं डेमनेशन क वृि बीच म खड़ी है। ये ब े पाप से आए ह। यह पित और मेरे
बीच पाप का संबंध है। और िजनके साथ पाप का संबंध है, उनके ित हम मै ीपूण हो
सकते ह? पाप के ित हम मै ीपूण हो सकते ह?
सारी दुिनया का गृह थ जीवन न कया है से स को गाली देने वाले, नंदा करने वाले
लोग ने। और वे इसे न करके जो दु प रणाम लाए ह, वह यह नह है क से स से लोग
मु हो गए ह । जो पित अपनी प ी और अपने बीच एक दीवाल पाता है पाप क , वह
प ी से कभी भी तृि अनुभव नह कर पाता। तो आस-पास क ि य को खोजता है,
वे या को खोजता है। खोजेगा। अगर प ी से उसे तृि िमल गई होती तो शायद इस
जगत क सारी ि यां उसके िलए मां और बहन हो जात । ले कन प ी से भी तृि न
िमलने के कारण सारी ि यां उसे पोटिशयल औरत क तरह, पोटिशयल पि य क तरह
मालूम पड़ती ह, िजनको प ी म बदला जा सकता है।
यह वाभािवक है, यह होने वाला था। यह होने वाला था, य क जहां तृि िमल सकती
थी, वहां जहर है, वहां पाप है, और तृि नह िमलती है। और वह चार तरफ भटकता है
और खोजता है। और या- या ईजाद करता है खोज कर आदमी! अगर उन सारी ईजाद
को हम सोचने बैठ तो घबरा जाएंगे क आदमी ने या- या ईजाद क ह! ले कन एक
बुिनयादी बात पर खयाल नह कया क वह जो ेम का कु आं था, वह जो काम का कु आं
था, वह जहरीला बना दया गया है।
और जब पित और प ी के बीच जहर का भाव हो, घबराहट का भाव हो, पाप का भाव
हो, तो फर यह पाप क भावना पांतरण नह करने देगी। अ यथा मेरी समझ यह है क
एक पित और प ी अगर एक-दूसरे के ित समझपूवक ेम से भरे ए, आनंद से भरे ए
और से स के ित िबना नंदा के से स को समझने क चे ा करगे, तो आज नह कल उनके
बीच का संबंध पांत रत हो जाने वाला है। यह हो सकता है क कल वही प ी मां जैसी
दखाई पड़ने लगे।
गांधीजी उ ीस सौ तीस के करीब ीलंका गए थे। उनके साथ क तूरबा साथ थ ।
संयोजक ने समझा क शायद गांधीजी क मां साथ आई ई ह, य क गांधीजी क तूरबा
को खुद भी बा ही कहते थे। लोग ने समझा क शायद उनक मां ह गी। संयोजक ने
प रचय देते ए कहा क गांधीजी आए ह और बड़े सौभा य क बात है क उनक मां भी
साथ आई ई ह। वह उनके बगल म बैठी ई ह।
गांधीजी के से े टरी तो घबरा गए क यह तो भूल हमारी है, हम बताना था क साथ म
कौन है। ले कन अब तो बड़ी देर हो चुक थी। गांधी तो मंच पर जाकर बैठ भी गए थे और
बोलना शु कर दया था। से े टरी घबड़ाए ए ह क गांधी पीछे या कहगे! उ ह क पना
भी नह हो सकती थी क गांधी नाराज नह ह गे, य क ऐसे पु ष ब त कम ह जो प ी
को मां बनाने म समथ हो जाते ह। ले कन गांधीजी ने कहा क सौभा य क बात है क िजन
िम ने मेरा प रचय दया है, उ ह ने भूल से एक स ी बात कह दी है। क तूरबा कु छ वष
से मेरी मां हो गई है। कभी वह मेरी प ी थी। ले कन अब वह मेरी मां है।
इस बात क संभावना है क अगर पित और प ी काम को, संभोग को समझने क चे ा
कर, तो एक-दूसरे के िम बन सकते ह और एक-दूसरे के काम के पांतरण म सहयोगी
और साथी हो सकते ह। और िजस दन कोई पित और प ी अपने आपस के संभोग के संबंध
को पांत रत करने म सफल हो जाते ह, उस दन उनके जीवन म पहली दफे एक-दूसरे के
ित अनु ह और े ट ूड का भाव पैदा होता है, उसके पहले नह । उसके पहले वे एक-
दूसरे के ित ोध से भरे रहते ह, उसके पहले वे एक-दूसरे के बुिनयादी श ु बने रहते ह,
उसके पहले उनके बीच एक संघष है, मै ी नह ।
मै ी उस दन शु होती है िजस दन वे एक-दूसरे के साथी बनते ह और उनके काम क
ऊजा को पांतरण करने म मा यम बन जाते ह। उस दन एक अनु ह, एक े ट ूड, एक
कृ त ता का भाव ापन होता है। उस दन पु ष आदर से भरता है ी के ित, य क ी
ने उसे कामवासना से मु होने म सहायता प च ं ाई। उस दन ी अनुगृहीत होती है पु ष
के ित क उसने उसे साथ दया और उसक वासना से मुि दलवाई। उस दन वे स ी
मै ी म बंधते ह, जो काम क नह , ेम क मै ी है। उस दन उनका जीवन ठीक उस दशा
म जाता है, जहां प ी के िलए पित परमा मा हो जाता है और पित के िलए प ी परमा मा
हो जाती है--उस दन!
ले कन वह कु आं तो िवषा कर दया गया है। इसिलए मने कल कहा क मुझसे बड़ा
श ु से स का खोजना क ठन है। ले कन मेरी श ुता का यह मतलब नह है क म से स को
गाली दूं और नंदा क ं । मेरी श ुता का मतलब यह है क म से स को पांत रत करने के
संबंध म दशा-सूचन क ं । म आपको क ं क वह कै से पांत रत हो सकता है। म कोयले
का दु मन ,ं य क म कोयले को हीरा बनाना चाहता ।ं म से स को पांत रत करना
चाहता ।ं वह कै से पांत रत होगा? उसक या िविध होगी?
मने आपसे कहा, एक ार खोलना ज री है--नया ार।
ब े जैसे ही पैदा होते ह, वैसे ही उनके जीवन म से स का आगमन नह हो जाता है।
अभी देर है। अभी शरीर शि इक ी करे गा। अभी शरीर के अणु मजबूत ह गे। अभी उस
दन क ती ा है जब शरीर पूरा तैयार हो जाएगा, ऊजा इक ी होगी। और ार जो बंद
रहा है चौदह वष तक, वह खुल जाएगा ऊजा के ध े से, और से स क दुिनया शु होगी।
एक बार ार खुल जाने के बाद नया ार खोलना क ठन हो जाता है। य क सम त
ऊजा का िनयम यह है, सम त शि य का, वे एक दफा अपना माग खोज ल बहने के
िलए तो वे उसी माग से बहना पसंद करती ह।
गंगा बह रही है सागर क तरफ, उसने एक बार रा ता खोज िलया। अब वह उसी रा ते
से बही चली जाती है, बही चली जाती है। रोज-रोज नया पानी आता है, उसी रा ते से
बहता आ चला जाता है। गंगा रोज नये रा ते नह खोजती है।
जीवन क ऊजा भी एक रा ता खोज लेती है, फर वह उसी से बहती चली जाती है।
अगर जमीन को कामुकता से मु करना है, तो से स का रा ता खुलने के पहले नया
रा ता-- यान का रा ता--तोड़ देना ज री है। एक-एक छोटे ब े को यान क अिनवाय
िश ा और दी ा िमलनी चािहए।
पर हम तो उसे से स के िवरोध क दी ा देते ह, जो क अ यंत मूखतापूण है। से स के
िवरोध क दी ा नह देनी है। िश ा देनी है यान क , पािज टव, क वह यान को कै से
उपल ध हो। और ब े यान को ज दी उपल ध हो सकते ह। य क अभी उनक ऊजा का
कोई भी ार खुला नह है। अभी ार बंद है, अभी ऊजा संरि त है, अभी कह भी नये ार
पर ध े दए जा सकते ह और नया ार खोला जा सकता है। फर यही बूढ़े हो जाएंगे और
इ ह यान म प च ं ना अ यंत क ठन हो जाएगा।
ऐसे ही, जैसे एक नया पौधा पैदा होता है, उसक शाखाएं कह भी झुक जाती ह, कह
भी झुकाई जा सकती ह। फर वही बूढ़ा वृ हो जाता है। फर हम उसक शाखा को
झुकाने क कोिशश करते ह। फर शाखाएं टू ट जाती ह, झुकती नह ।
बूढ़े लोग यान क चे ा करते ह दुिनया म, जो िबलकु ल ही गलत है। यान क सारी
चे ा छोटे ब पर क जानी चािहए। ले कन मरने के करीब प च ं कर आदमी यान म
उ सुक होता है! वह पूछता है-- यान या? योग या? हम कै से शांत हो जाएं? जब जीवन
क सारी ऊजा खो गई, जब जीवन के सब रा ते स त और मजबूत हो गए, जब झुकना
और बदलना मुि कल हो गया, तब वह पूछता है, अब म कै से बदल जाऊं? एक पैर आदमी
क म डाल लेता है और दूसरा पैर बाहर रख कर पूछता है, यान का कोई रा ता है?
अजीब सी बात है। िबलकु ल पागलपन क बात है। यह पृ वी कभी भी शांत और
यान थ नह हो सके गी, जब तक यान का संबंध पहले दन के पैदा ए ब े से हम न
जोड़गे। अंितम दन के वृ से नह जोड़ा जा सकता। थ ही हम ब त म उठाना पड़ता
है बाद के दन म शांत होने के िलए, जो क पहले एकदम हो सकता था।
छोटे ब को यान क दी ा, काम के पांतरण का पहला चरण है--शांत होने क
दी ा, िन वचार होने क दी ा, मौन होने क दी ा। ब े ऐसे भी मौन ह, ब े ऐसे भी
शांत ह। अगर उ ह थोड़ी सी दशा दी जाए और उ ह मौन और शांत होने के िलए घड़ी भर
क िश ा दी जाए, तो जब वे चौदह वष के होने के करीब आएंगे, जब काम जगेगा, तब
तक उनका एक ार खुल चुका होगा। शि इक ी होगी और जो ार खुला है उसी ार से
बहनी शु हो जाएगी। उ ह शांित का, आनंद का, कालहीनता का, िनरहंकार भाव का
अनुभव से स के ब त अनुभव के पहले उपल ध हो जाएगा। वही अनुभव उनक ऊजा को
गलत माग से रोके गा और ठीक माग पर ले आएगा।
ले कन हम छोटे-छोटे ब को यान तो नह िसखाते, काम का िवरोध िसखाते ह! पाप
है, गंदगी है, कु पता है, बुराई है, नरक है--यह सब हम बताते ह! और इस सबके बताने से
कु छ भी फक नह पड़ता, कु छ भी फक नह पड़ता। बि क हमारे बताने से वे और भी
आक षत होते ह और तलाश करते ह क या है यह गंदगी, या है यह नरक, िजसके िलए
बड़े इतने भयभीत और बेचैन ह?
और फर थोड़े ही दन म उ ह यह भी पता चल जाता है क बड़े िजस बात से हम
रोकने क कोिशश कर रहे ह, खुद दन-रात उसी म लीन ह। और िजस दन उ ह यह पता
चल जाता है, मां-बाप के ित सारी ा समा हो जाती है।
मां-बाप के ित ा समा करने म िश ा का हाथ नह है। मां-बाप के ित ा
समा करने म मां-बाप का अपना हाथ है। आप िजन बात के िलए ब को गंदा कहते ह,
ब े ब त ज दी पता लगा लेते ह क उन सारी गंदिगय म आप भलीभांित लवलीन ह।
आपक दन क जंदगी दूसरी है और रात क दूसरी। आप कहते कु छ ह, करते कु छ ह। छोटे
ब े ब त ए यूट आ जवर होते ह। वे ब त गौर से िनरी ण करते रहते ह क या हो रहा
है घर म! वे देखते ह क मां िजस बात को गंदा कहती है, बाप िजस बात को गंदा कहता है,
वही गंदी बात दन-रात घर म चल रही है। इसका उ ह ब त ज दी बोध हो जाता है।
उनका सारा ा का भाव िवलीन हो जाता है-- क धोखेबाज ह ये मां-बाप! पाखंडी ह!
िहपो े ट ह! ये बात कु छ और कहते ह, करते कु छ और ह।
और िजन ब का मां-बाप पर से िव ास उठ गया, वे ब े परमा मा पर कभी िव ास
नह कर सकगे, इसको याद रखना। य क ब के िलए परमा मा का पहला दशन मां-
बाप म होता है। अगर वही खंिडत हो गया, तो ये ब े भिव य म नाि तक हो जाने वाले ह।
ब को पहले परमा मा क तीित अपने मां-बाप क पिव ता से होती है। पहली दफा
ब े मां-बाप को ही जानते ह िनकटतम और उनसे ही उ ह पहली दफा ा और रवरस
का भाव पैदा होता है। अगर वही खंिडत हो गया, तो इन ब को मरते दम तक वापस
परमा मा के रा ते पर लाना मुि कल हो जाएगा। य क पहला परमा मा ही धोखा दे
गया। जो मां थी, जो बाप था, वही धोखेबाज िस आ।
आज सारी दुिनया म जो लड़के यह कह रहे ह क कोई परमा मा नह है, कोई आ मा
नह है, कोई मो नह है, धम सब बकवास है--उसका कारण यह नह है क लड़क ने
पता लगा िलया है क आ मा नह है, परमा मा नह है। उसका कारण यह है क लड़क ने
मां-बाप का पता लगा िलया है क वे धोखेबाज ह। और यह सारा धोखा से स के आस-
पास क त है। यह सारा धोखा से स के क पर खड़ा आ है।
ब को यह िसखाने क ज रत नह क से स पाप है, बि क ईमानदारी से यह िसखाने
क ज रत है क से स जंदगी का एक िह सा है और तुम से स से ही पैदा ए हो और
हमारी जंदगी म वह है। ता क ब े सरलता से मां-बाप को समझ सक और जब जीवन को
वे जान तो वे आदर से भर सक क मां-बाप स े और ईमानदार थे। उनको जीवन म
आि तक बनाने म इससे बड़ा संबल और कु छ भी नह होगा क वे अपने मां-बाप को स ा
और ईमानदार अनुभव कर सक।
ले कन आज सब ब े जानते ह क मां-बाप बेईमान और धोखेबाज ह। यह ब े और मां-
बाप के
बीच एक कलह का कारण बनता है। से स का दमन पित और प ी को तोड़ दया है।
मां-बाप और ब को तोड़ दया है।
नह , से स का िवरोध नह , नंदा नह , बि क से स क िश ा दी जानी चािहए। जैसे ही
ब े पूछने को तैयार हो जाएं, जो भी ज री मालूम पड़े, जो उनके समझ के यो य मालूम
पड़े, वह सब उ ह बता दया जाना चािहए। ता क वे से स के संबंध म अित उ सुक न ह ;
ता क उनका आकषण न पैदा हो; ता क वे दीवाने होकर गलत रा त से जानकारी पाने क
कोिशश न कर।
आज ब े सब जानकारी पा लेते ह यहां-वहां से। गलत माग से, गलत लोग से उ ह
जानकारी िमलती है, जो जीवन भर उ ह पीड़ा देती है। और मां-बाप और उनके बीच एक
मौन क दीवार होती है, जैसे मां-बाप को कु छ भी पता नह और ब को भी कु छ पता
नह ! उ ह से स क स यक िश ा िमलनी चािहए--राइट एजुकेशन।
और दूसरी बात, उ ह यान क दी ा िमलनी चािहए--कै से मौन ह , कै से शांत ह , कै से
िन वचार ह । और ब े त ण िन वचार हो सकते ह, मौन हो सकते ह, शांत हो सकते ह।
चौबीस घंटे म एक घंटे अगर ब को घर म मौन म ले जाने क व था हो--िनि त ही,
वे मौन म तभी जा सकगे, जब आप भी उनके साथ मौन बैठ सक। हर घर म एक घंटा मौन
का अिनवाय होना चािहए। एक दन खाना न िमले घर म तो चल सकता है, ले कन एक
घंटा मौन के िबना घर नह चल सकता है। वह घर झूठा है, उस घर को प रवार कहना
गलत है, िजस प रवार म एक घंटे के मौन क दी ा नह है।
वह एक घंटे का मौन चौदह वष म उस दरवाजे को तोड़ देगा--रोज ध े मारे गा--उस
दरवाजे को तोड़ देगा, िजसका नाम यान है। िजस यान से मनु य को समयहीन,
टाइमलेसनेस, ईगोलेसनेस, अहंकार-शू य अनुभव होता है, जहां से आ मा क झलक
िमलती है। वह झलक से स के अनुभव के पहले िमल जानी ज री है। अगर वह झलक
िमल जाए तो से स के ित अितशय दौड़ समा हो जाएगी। ऊजा इस नये माग से बहने
लगेगी।
यह म पहला चरण कहता ।ं चय क साधना म, से स के ऊपर उठने क साधना म,
से स क ऊजा के ांसफामशन के िलए पहला चरण है यान। और दूसरा चरण है ेम। ब े
को बचपन से ही ेम क दी ा दी जानी चािहए।
हम अब तक यही सोचते रहे ह क ेम क िश ा मनु य को से स म ले जाएगी। यह
बात अ यंत ांत है। से स क िश ा तो मनु य को ेम म ले जा सकती है, ले कन ेम क
िश ा कभी कसी मनु य को से स म नह ले जाती। बि क स ाई उलटी है। िजतना ेम
िवकिसत होता है, उतनी ही से स क ऊजा ेम म पांत रत होकर बंटनी शु हो जाती
है।
जो लोग िजतने कम ेम से भरे होते ह, उतने ही यादा कामुक ह गे, उतने ही से सुअल
ह गे।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही यादा घृणा होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतना ही िव ष े होगा।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही ई या होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उतनी ही उनके जीवन म ित पधा होगी।
िजनके जीवन म िजतना कम ेम है, उनके जीवन म उतनी ही चंता और दुख होगा।
दुख, चंता, ई या, घृणा, ष
े , इन सबसे जो आदमी िजतना यादा िघरा है, उसक
शि यां सारी क सारी भीतर इक ी हो जाती ह। उनके िनकास का कोई माग नह रह
जाता। उनके िनकास का एक ही माग रह जाता है--वह से स है।
ेम शि य का िनकास बनता है। ेम बहाव है। एशन, सृजना मक है ेम, इसिलए
वह बहता है और एक तृि लाता है। वह तृि से स क तृि से ब त यादा क मती और
गहरी है। िजसे वह तृि िमल गई--वह फर कं कड़-प थर नह बीनता, िजसे हीरे -
जवाहरात िमलने शु हो जाते ह।
ले कन घृणा से भरे आदमी को वह तृि कभी नह िमलती है। घृणा म वह तोड़ देता है
चीज को। ले कन तोड़ने से कभी कसी आदमी को कोई तृि नह िमलती। तृि िमलती है
िनमाण करने से। ष े से भरा आदमी संघष करता है। ले कन संघष से कोई तृि नह
िमलती। तृि िमलती है दान से, देने से; छीन लेने से नह । संघष करने वाला छीन लेता है।
छीनने से वह तृि कभी नह िमलती, जो कसी को दे देने से और दान से उपल ध होती है।
मह वाकां ी आदमी एक पद से दूसरे पद क या ा करता रहता है, ले कन कभी भी
शांत नह हो पाता। शांत वे होते ह, जो पद क या ा नह , बि क ेम क या ा करते ह।
जो ेम के एक तीथ से दूसरे तीथ क या ा करते ह।
िजतना आदमी ेमपूण होता है, उतनी तृि , एक कं टटमट, एक गहरा संतोष, एक आनंद
का भाव, एक उपलि ध का भाव उसके ाण के रग-रग म बहने लगता है। उसके सारे
शरीर से एक रस झलकने लगता है, जो तृि का रस है, जो आनंद का रस है। वैसा तृ
आदमी से स क दशा म नह जाता। जाने के िलए, रोकने के िलए चे ा नह करनी
पड़ती; वह जाता ही नह । य क यही तृि ण भर को से स से िमलती थी, ेम से यह
तृि चौबीस घंटे को िमल जाती है।
तो दूसरी दशा है-- क ि व का अिधकतम िवकास ेम के माग पर होना चािहए।
हम ेम कर, हम ेम द, हम ेम म जीएं। और ज री नह है क हम ेम मनु य को ही दगे
तभी ेम क दी ा होगी। ेम क दी ा तो पूरे ि व के ेमपूण होने क दी ा है, वह
तो टु बी ल वंग होने क दी ा है। एक प थर को भी हम उठाएं तो ऐसे उठा सकते ह जैसे
िम को उठा रहे ह, और एक आदमी का हाथ भी हम ऐसे पकड़ सकते ह जैसे श ु का हाथ
पकड़े ए ह। एक आदमी व तु के साथ भी ेमपूण वहार कर सकता है, एक आदमी
आदिमय के साथ भी ऐसा वहार करता है जैसा व तु के साथ भी नह करना चािहए।
घृणा से भरा आ आदमी व तुएं समझता है मनु य को। ेम से भरा आ आदमी व तु
को भी ि व देता है।
एक फक र से िमलने एक जमन या ी गया आ था। वह कसी ोध म होगा। उसने
दरवाजे पर जोर से जूते खोल दए, जूत को पटका, ध ा दया दरवाजे को जोर से।
ोध म आदमी जूते भी खोलता है तो ऐसे जैसे जूते दु मन ह । दरवाजा भी खोलता है
तो ऐसे जैसे दरवाजे से कोई झगड़ा हो!
दरवाजे को ध ा देकर वह भीतर गया। उस फक र से जाकर नम कार कया। उस फक र
ने कहा क नह , अभी म नम कार का उ र न दे सकूं गा। पहले तुम दरवाजे से और जूत से
मा मांग आओ।
उस आदमी ने कहा, आप पागल हो गए ह? दरवाज और जूत से मा! या उनका भी
कोई ि व है?
उस फक र ने कहा, तुमने ोध करते समय कभी भी न सोचा क इनका कोई ि व
है। तुमने जूते ऐसे पटके जैसे उनम जान हो, जैसे उनका कोई कसूर हो; तुमने दरवाजा ऐसे
खोला जैसे क तुम दु मन हो। नह , जब तुमने ोध करते व उनका ि व मान िलया,
तो पहले जाओ मा मांग कर आ जाओ, तब म तुमसे आगे बात क ं गा, अ यथा म बात
करने को नह ।ं
अब वह आदमी दूर जमनी से उस फक र को िमलने गया था, इतनी सी बात पर
मुलाकात न हो सके गी। मजबूरी थी। उसे जाकर दरवाजे पर हाथ जोड़ कर मा मांगनी
पड़ी क िम , मा कर दो! जूत को कहना पड़ा, माफ क रए, भूल हो गई हमने जो
आपको इस भांित गु से म खोला!
उस जमन या ी ने िलखा है क ले कन जब म मा मांग रहा था तो पहले तो मुझे हंसी
आई क म या पागलपन कर रहा !ं ले कन जब म मा मांग चुका तो म हैरान आ,
मुझे एक इतनी शांित मालूम ई िजसक मुझे क पना नह हो सकती थी क दरवाजे और
जूत से मा मांग कर शांित िमल सकती है! म जाकर उस फक र के पास बैठा, वह हंसने
लगा। और उसने कहा, अब ठीक, अब कु छ बात हो सकती है। तुमने थोड़ा ेम जािहर
कया, अब तुम संबंिधत हो सकते हो, समझ भी सकते हो; य क अब तुम फु ि लत हो,
अब तुम आनंद से भर गए हो।
सवाल मनु य के साथ ही ेमपूण होने का नह , ेमपूण होने का है। यह सवाल नह है
क मां को ेम दो! ये गलत बात ह। जब कोई मां अपने ब े को कहती है क म तेरी मां ं
इसिलए ेम कर, तब वह गलत िश ा दे रही है। य क िजस ेम म ‘इसिलए’ लगा आ
है, ‘देयरफोर’, वह ेम झूठा है। जो कहता है, इसिलए ेम करो क म बाप ,ं वह गलत
िश ा दे रहा है। वह कारण बता रहा है ेम का। ेम अकारण होता है, ेम कारण सिहत
नह होता। मां कहती है, म तेरी मां ,ं मने तुझे इतने दन पाला-पोसा, बड़ा कया,
इसिलए ेम कर! वह वजह बता रही है, ेम ख म हो गया। अगर वह ेम भी होगा तो
ब ा झूठा ेम दखाने क कोिशश करे गा-- य क यह मां है, इसिलए ेम दखाना पड़
रहा है।
नह , ेम क िश ा का मतलब है: ेम का कारण नह , ेमपूण होने क सुिवधा और
व था क ब ा ेमपूण हो सके ।
जो मां कहती है, मुझसे ेम कर, य क म मां ,ं वह ेम नह िसखा रही। उसे यह
कहना चािहए क यह तेरा ि व, यह तेरे भिव य, यह तेरे आनंद क बात है क जो भी
तेरे माग पर पड़ जाए, तू उससे ेमपूण हो--प थर पड़ जाए, फू ल पड़ जाए, आदमी पड़
जाए, जानवर पड़ जाए। यह सवाल जानवर को ेम देने का नह , फू ल को ेम देने का
नह , मां को ेम देने का नह , तेरे ेमपूण होने का है! य क तेरा भिव य इस पर िनभर
करे गा क तू कतना ेमपूण है, तेरा ि व कतना ेम से भरा आ है, उतना तेरे जीवन
म आनंद क संभावना बढ़ेगी।
ेमपूण होने क िश ा चािहए मनु य को, तो वह कामुकता से मु हो सकता है।
ले कन हम तो ेम क कोई िश ा नह देते। हम तो ेम का कोई भाव पैदा नह करते।
हम तो ेम के नाम पर भी जो बात करते ह, वह झूठ ही िसखाते ह उनको।
या आपको पता है क एक आदमी एक के ित ेमपूण है और दूसरे के ित घृणापूण हो
सकता है? यह असंभव है। ेमपूण आदमी ेमपूण होता है, आदिमय से कोई संबंध नह है
उस बात का। अके ले म बैठता है तो भी ेमपूण होता है। कोई नह होता तो भी ेमपूण
होता है। ेमपूण होना उसके वभाव क बात है। वह आपसे संबंिधत होने का सवाल नह ।
ोधी आदमी अके ले म भी ोधपूण होता है। घृणा से भरा आदमी अके ले म भी घृणा से
भरा होता है। वह अके ले भी बैठा है तो आप उसको देख कर कह सकते ह क यह आदमी
ोधी है। हालां क वह कसी पर ोध नह कर रहा है। ले कन उसका सारा ि व ोधी
है। ेमपूण आदमी अगर अके ले म भी बैठा है तो आप कहगे, यह आदमी कतने ेम से भरा
आ बैठा है।
फू ल एकांत म िखलते ह जंगल के तो वहां भी सुगंध िबखेरते रहते ह, चाहे कोई सूंघने
वाला हो या न हो। रा ते से कोई िनकले या न िनकले, फू ल सुगंिधत होता रहता है। फू ल
का सुगंिधत होना वभाव है। इस भूल म आप मत पड़ना क आपके िलए सुगंिधत हो रहा
है।
ेमपूण होना ि व बनाना चािहए। वह हमारा ि व हो, इससे कोई संबंध नह
क वह कसके ित।
ले कन िजतने ेम करने वाले लोग ह, वे सोचते ह क मेरे ित ेमपूण हो जाए, और
कसी के ित नह । और उनको पता नह क जो सबके ित ेमपूण नह , वह कसी के
ित ेमपूण नह हो सकता! प ी कहती है पित से, मुझे ेम करना बस! फर आ गया
टाप, फर इधर-उधर कह देखना मत, फर और कह तु हारे ेम क जरा सी धारा न
बहे, बस ेम यानी इस तरफ। और उस प ी को पता नह क यह ेम झूठा वह अपने हाथ
से कए ले रही है। जो पित ेमपूण नह है हर ि थित म, हरे क के ित, वह प ी के ित भी
ेमपूण कै से हो सकता है? ेमपूण चौबीस घंटे के जीवन का वभाव
है। वह ऐसी कोई बात नह क हम कसी के ित ेमपूण हो जाएं और कसी के ित
ेमहीन हो जाएं।
ले कन आज तक मनु यता इसको समझने म समथ नह हो पाई! बाप कहता है क मेरे
ित ेमपूण! ले कन घर म जो चपरासी है उसके ित? वह तो नौकर है! ले कन उसे पता
नह क जो बेटा एक बूढ़े नौकर के ित ेमपूण नह हो पाया है--वह बूढ़ा नौकर भी कसी
का बाप है--वह आज नह कल जब उसका बाप भी बूढ़ा हो जाएगा, उसके ित भी ेमपूण
नह रह जाएगा। तब यह बाप पछताएगा क मेरा लड़का मेरे ित ेमपूण नह है। ले कन
इस बाप को पता ही नह क लड़का ेमपूण हो सकता था उसके ित भी, अगर जो भी
आस-पास थे, सबके ित ेमपूण होने क िश ा दी गई होती तो वह इसके ित भी ेमपूण
होता।
ेम वभाव क बात है, संबंध क बात नह है।
ेम रलेशनिशप नह है, ेम है टेट ऑफ माइं ड। वह मनु य के ि व का भीतरी अंग
है।
तो हम ेमपूण होने क दूसरी दी ा दी जानी चािहए--एक-एक चीज के ित। अगर
ब ा एक कताब को भी गलत ढंग से रखे तो गलती बात है, उसे उसी ण टोकना चािहए
क यह तु हारे ि व के िलए शोभादायक नह क तुम इस भांित कताब को रखो। कोई
देखेगा, कोई सुनेगा, कोई पाएगा क तुम कताब के साथ दु वहार कए हो! तुम एक कु े
के साथ गलत ढंग से पेश आए हो! यह तु हारे ि व क गलती है।
एक फक र के बाबत मुझे खयाल आता है। एक छोटा सा फक र का झोपड़ा था। रात थी,
जोर से वषा होती थी। रात के बारह बजे ह गे, फक र और उसक प ी दोन सोते थे,
कसी आदमी ने दरवाजे पर द तक दी। छोटा था झोपड़ा, कोई शायद शरण चाहता है।
उसक प ी से उसने कहा क ार खोल दे, कोई ार पर खड़ा है, कोई या ी, कोई
अप रिचत िम ।
सुनते ह उसक बात? उसने कहा, कोई अप रिचत िम ! हमारे तो जो प रिचत ह, वे भी
िम नह होते। उसने कहा, कोई अप रिचत िम ! यह ेम का भाव है।
कोई अप रिचत िम ार पर खड़ा है, ार खोल!
उसक प ी ने कहा, ले कन जगह तो ब त कम है, हम दो के लायक ही मुि कल से है।
कोई तीसरा आदमी भीतर आएगा तो हम या करगे?
उस फक र ने कहा, पागल, यह कसी अमीर का महल नह है क छोटा पड़ जाए, यह
गरीब क झोपड़ी है। अमीर का महल छोटा पड़ जाता है हमेशा, एक मेहमान आ जाए तो
महल छोटा पड़ जाता है। यह गरीब क झोपड़ी है।
उसक प ी ने कहा, इसम झोपड़ी...अमीर और गरीब या सवाल? जगह छोटी है।
उस फक र ने कहा, जहां दल म जगह बड़ी हो वहां झोपड़ा महल क तरह मालूम होता
है और जहां दल म छोटी जगह हो वहां झोपड़ा तो या महल भी छोटा और झोपड़ा हो
जाता है। ार खोल दे! ार पर खड़े ए आदमी को वापस कै से लौटाया जा सकता है?
अभी हम दोन लेटे थे, अब तीन लेट नह सकगे, तीन बैठगे, बैठने के िलए काफ जगह है।
मजबूरी थी, प ी को दरवाजा खोल देना पड़ा। एक िम आ गया, पानी से भीगा आ।
उसके कपड़े बदले। फर वे तीन बैठ कर गपशप करने लगे। दरवाजा फर बंद है।
फर क ह दो आदिमय ने दरवाजे पर द तक दी। अब उस फक र ने उस िम को कहा-
-वह दरवाजे के पास था-- क दरवाजा खोल दो, मालूम होता है कोई आया।
उस आदमी ने कहा, कै से खोल दूं दरवाजा, जगह कहां है यहां?
वह आदमी अभी दो घड़ी पहले आया था खुद और भूल गया यह बात क िजस ेम ने
मुझे जगह दी थी, वह मुझे जगह नह दी थी, ेम था उसके भीतर इसिलए जगह दी थी।
अब फर कोई दूसरा आ गया, फर जगह बनानी पड़ेगी। ले कन उस आदमी ने कहा, नह ,
दरवाजा खोलने क ज रत नह ; मुि कल से हम तीन बैठे ए ह!
वह फक र हंसने लगा। उसने कहा, बड़े पागल हो! मने तु हारे िलए जगह नह क थी,
ेम था इसिलए जगह क थी। ेम अब भी है, वह तुम पर चुक नह गया और समा नह
हो गया। दरवाजा खोलो! अभी हम दूर-दूर बैठे ह, फर हम पास-पास बैठ जाएंगे। पास-
पास बैठने के िलए काफ जगह है। और रात ठं डी है, पास-पास बैठने म आनंद ही और
होगा।
दरवाजा खोलना पड़ा। दो आदमी भीतर आ गए। फर वे पास-पास बैठ कर गपशप
करने लगे। और थोड़ी ही देर बीती है और रात आगे बढ़ गई है और वषा हो रही है, और
एक गधे ने आकर िसर लगाया दरवाजे से। पानी म भीग गया है। वह रात शरण चाहता है।
उस फक र ने कहा क िम ो--वे दो िम दरवाजे पर बैठे ए थे जो पीछे आए थे--दरवाजा
खोल दो! कोई अप रिचत िम फर आ गया।
उन लोग ने कहा, यह िम वगैरह नह है, यह गधा है। इसके िलए ार खोलने क कोई
ज रत नह ।
उस फक र ने कहा, तु ह शायद पता नह , अमीर के दरवाजे पर आदमी के साथ भी गधे
जैसा वहार कया जाता है। यह गरीब क झोपड़ी है, हम गधे के साथ भी आदमी जैसा
वहार करने क आदत से भरे ह। दरवाजा खोल दो!
पर वे दोन कहने लगे, जगह?
उस फक र ने कहा, जगह ब त है; अभी हम बैठे ह, अब हम खड़े हो जाएंग।े खड़े होने के
िलए काफ जगह है। और फर तुम घबराओ मत, अगर ज रत पड़ेगी तो म हमेशा बाहर
होने के िलए तैयार ।ं ेम इतना कर सकता है।
एक ल वंग ए ट ूड, एक ेमपूण दय बनाने क ज रत है। जब ेमपूण दय बनता
है, तो ि व म एक तृि का भाव, एक रसपूण तृि ... या आपको कभी खयाल है, जब
भी आप कसी के ित जरा से ेमपूण ए ह, पीछे एक तृि क लहर छू ट गई है? या
आपको कभी भी खयाल है क जीवन म तृि के ण वे ही रहे ह, जो बेशत ेम के ण रहे
ह गे, जब कोई शत न रही होगी ेम क । और जब आपने रा ते चलते एक अजनबी आदमी
को देख कर मु कु रा दया होगा--उसके पीछे छू ट गई तृि का कोई अनुभव है? उसके पीछे
साथ आ गया एक शांित का भाव! एक ाण म एक आनंद क लहर का कोई पता है--जब
राह चलते कसी आदमी को उठा िलया हो, कसी िगरते को स हाल िलया हो, कसी
बीमार को एक फू ल दे दया हो? इसिलए नह क वह आपक मां है, इसिलए नह क वह
आपका िपता है। नह , वह आपका कोई भी नह है। ले कन एक फू ल कसी बीमार को दे
देना आनंदपूण है।
ि व म ेम क संभावना बढ़ती जानी चािहए। वह इतनी बढ़ जानी चािहए--पौध
के ित, पि य के ित, पशु के ित, आदिमय के ित, अप रिचत के ित, अनजान
लोग के ित, िवदेिशय के ित, जो ब त दूर ह उनके ित, चांद-तार के ित-- ेम
हमारा बढ़ता चला जाए।
िजतना ेम हमारा बढ़ता है, उतनी ही से स क जीवन म संभावना कम होती चली
जाती है।
ेम और यान, दोन िमल कर उस दरवाजे को खोल देते ह जो परमा मा का दरवाजा
है।
ेम + यान = परमा मा। ेम और यान का जोड़ हो जाए और परमा मा उपल ध हो
जाता है।
और उस उपलि ध से जीवन म चय फिलत होता है। फर सारी ऊजा एक नये ही
माग पर ऊपर चढ़ने लगती है। फर बह-बह कर िनकल नह जाती। फर जीवन से बाहर
िनकल-िनकल कर थ नह हो जाती। फर जीवन के भीतरी माग पर गित करने लगती
है। उसका एक ऊ वगमन, एक ऊपर क तरफ या ा शु होती है।
अभी हमारी या ा नीचे क तरफ है। से स, ऊजा का अधोगमन है, नीचे क तरफ बह
जाना है। चय, ऊजा का ऊ वगमन है, ऊपर क तरफ उठ जाना है।
ेम और यान, चय के सू ह।
तीसरी बात कल आपसे करने को ं क चय उपल ध होगा तो या फल होगा? या
होगी उपलि ध? या िमल जाएगा?
ये दो बात मने आज आपसे कह -- ेम और यान। मने यह कहा क छोटे ब से इनक
िश ा शु हो जानी चािहए। इससे आप यह मत सोच लेना क अब तो हम ब े नह रहे,
इसिलए करने को कु छ बाक नह है। यह आप मत सोच कर चले जाना, अ यथा मेरी
मेहनत फजूल गई। आप कसी भी उ के ह , यह काम शु कया जा सकता है। यह काम
कभी भी शु कया जा सकता है। हालां क िजतनी उ बढ़ती चली जाती है, उतना
मुि कल होता चला जाता है। ब के साथ हो सके , सौभा य! ले कन कभी भी हो सके ,
सौभा य! इतनी देर कभी भी नह ई है क हम कु छ भी न कर सक। हम आज शु कर
सकते ह।
और जो लोग सीखने के िलए तैयार ह, वे बुढ़ापे म भी ब जैसे ही होते ह, वे बुढ़ापे म
भी शु कर सकते ह। अगर उनक सीखने क मता है, अगर ल नग का ए ट ूड है, अगर
वे इस ान से नह भर गए ह क हमने सब जान िलया और सब पा िलया, तो वे सीख
सकते ह और वे छोटे ब क भांित नई या ा शु कर सकते ह।
बु के पास एक िभ ु कु छ वष से दीि त था। एक दन बु ने उससे पूछा क िभ ु,
तु हारी उ या है? उस िभ ु ने कहा, मेरी उ ? पांच वष! बु कहने लगे, पांच वष? तुम
तो कोई स र वष के मालूम पड़ते हो! कै सा झूठ बोलते हो!
उस िभ ु ने कहा, ले कन पांच वष पहले ही मेरे जीवन म यान क करण फू टी। पांच
वष पहले ही मेरे जीवन म ेम क वषा ई। उसके पहले म जीता था, वह सपने म जीना
था, वह न द म जीना था। उसक िगनती अब म नह करता ।ं कै से क ं ? जंदगी तो इधर
पांच वष से शु ई, इसिलए म कहता ,ं मेरी उ पांच वष है।
बु ने अपने िभ ु से कहा, िभ ुओ, इस बात को खयाल म रख लेना। अपनी उ आज
से तुम भी इसी तरह जोड़ना। यही उ को नापने का ढंग समझना।
अगर ेम और यान का ज म नह आ है तो उ फजूल चली गई। अभी आपका ठीक
ज म भी नह आ है। और कभी भी इतनी देर नह ई, जब क हम यास कर, म कर
और हम अपने नये ज म को उपल ध न हो जाएं।
इसिलए मेरी बात से यह नतीजा मत िनकाल लेना आप क आप तो अब बचपन के पार
हो चुके, इसिलए यह बात आने वाले ब के िलए है। कोई आदमी कसी भी ण इतनी
दूर नह िनकल गया है क वापस न लौट आए। कोई आदमी कतने ही गलत रा त पर
चला हो, ऐसी जगह नह प च ं गया है क ठीक रा ता उसे दखाई न पड़ सके । कोई
आदमी कतने ही हजार वष से अंधकार म रह रहा हो, इसका मतलब यह नह है क वह
दीया जलाएगा तो अंधकार कहेगा क म हजार वष पुराना ,ं इसिलए नह टू टता! दीया
जलाने से एक दन का अंधकार भी टू टता है, हजार साल का अंधकार भी उसी तरह टू ट
जाता है। दीया जलाने क चे ा बचपन म आसानी से हो सकती है, बाद म थोड़ी क ठनाई
है।
ले कन क ठनाई का अथ असंभावना नह है। क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा म।
क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा संक प। क ठनाई का अथ है: थोड़ा यादा लगनपूवक,
यादा सात य से तोड़ना पड़ेगा, ि व क जो बंधी धाराएं ह उनको, और नये माग
खोलने पड़गे।
ले कन जब नये माग क जरा सी भी करण फू टनी शु होती है, तो सारा म ऐसा
लगता है क हमने कु छ भी नह कया और ब त कु छ पा िलया है। जब एक करण भी
आती है उस आनंद क , उस स य क , उस काश क , तो लगता है क हमने तो िबना कु छ
कए पा िलया है। य क हमने जो कया था, उसका तो कोई भी मू य नह था। जो हाथ
म आ गया है, वह तो अमू य है।
इसिलए यह भाव मन म आप न लगे। ऐसी मेरी ाथना है।
मेरी बात को इतने ेम से सुना, उसके िलए अनुगृहीत ।ं और अंत म सबके भीतर बैठे
परमा मा को णाम करता ,ं मेरे णाम वीकार कर।
#5
समािध : संभोग-ऊजा का आ याि मक िनयोजन
मेरे ि य आ मन्!
इसक थोड़ी सी कहानी है। एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कु छ लोग बंबई
कहते ह। उस बड़े बाजार म एक सभा थी। और उस सभा म एक पंिडत जी, कबीर या
कहते ह, इस संबंध म बोलते थे। उ ह ने कबीर क एक पंि कही और उसका अथ
समझाया। उ ह ने कहा क कबीरा खड़ा बाजार म, िलए लुकाठी हाथ; जो घर बारै
आपना, चले हमारे साथ। उ ह ने यह कहा क कबीर बाजार म खड़ा था और िच ला कर
लोग से कहने लगा क लकड़ी उठा कर म बुलाता ं उ ह, जो अपने घर को जलाने क
िह मत रखते ह , वे हमारे साथ आ जाएं।
उस सभा म मने देखा क लोग यह बात सुन कर ब त खुश ए। मुझे बड़ी हैरानी ई!
मुझे हैरानी यह ई क वे जो लोग खुश हो रहे थे, उनम से कोई भी अपने घर को जलाने
को कभी भी तैयार नह था। ले कन उ ह स देख कर मने समझा क बेचारा कबीर आज
होता तो कतना खुश न होता! जब तीन सौ साल पहले वह था और कसी बाजार म उसने
िच ला कर कहा होगा, तो एक भी आदमी खुश नह आ होगा। आदमी क जात बड़ी
अदभुत है। जो मर जाते ह, उनक बात सुन कर लोग खुश होते ह। और जो जंदा होते ह,
उ ह मार डालने क धमक देते ह।
मने सोचा, आज कबीर होते इस बंबई के बड़े बाजार म, तो कतने खुश होते क लोग
कतने स हो रहे ह! कबीर जी या कहते ह, इसको सुन कर लोग स हो रहे ह।
कबीर जी को सुन कर वे कभी भी स नह ए थे।
ले कन लोग को स देख कर मुझे ऐसा लगा क जो लोग अपने घर को जलाने के िलए
भी िह मत रखते ह और खुश होते ह, उनसे आज कु छ दल क बात कही जाएं। तो म भी
उसी धोखे म आ गया, िजसम कबीर और ाइ ट और सारे लोग हमेशा आते रहे ह। तो मने
लोग से स य क कु छ बात कहनी चाही। और स य के संबंध म कोई बात कहनी हो तो उन
अस य को सबसे पहले तोड़ देना ज री है जो आदमी ने स य समझ रखे ह। िज ह हम
स य समझते ह और जो स य नह ह, जब तक उ ह न तोड़ दया जाए, तब तक स य या
है, उसे जानने क तरफ कोई कदम नह उठाया जा सकता है।
मुझे कहा गया था उस सभा म क म ेम के संबंध म कु छ क ।ं और मुझे लगा क ेम के
संबंध म तब तक बात समझ म नह आ सकती, जब तक क हम काम और से स के संबंध
म कु छ गलत धारणाएं िलए ए बैठे ह। अगर गलत धारणाएं ह से स के संबंध म, तो ेम
के संबंध म हम जो भी बातचीत करगे, वह अधूरी होगी, वह झूठी होगी, वह स य नह हो
सकती।
इसिलए उस सभा म मने काम और से स के संबंध म कु छ कहा। और यह कहा क काम
क ऊजा ही पांत रत होकर ेम क अिभ ि बनती है।
एक आदमी खाद खरीद लाता है, गंदी और बदबू से भरी ई। और अगर अपने घर के
पास ढेर लगा ले तो सड़क पर से िनकलना मुि कल हो जाएगा, इतनी दुगध वहां फै लेगी।
ले कन एक दूसरा आदमी उसी खाद को बगीचे म डालता है और फू ल के बीज डालता है।
फर वे बीज बड़े होते ह, पौधे बनते ह, और फू ल आते ह। और फू ल क सुगंध पास-पड़ोस
के घर म िनमं ण बन कर प च ं जाती है। राह से िनकलते ए लोग को भी वह सुगंध
छू ती है, वह पौध का लहराता आ संगीत अनुभव होता है। ले कन शायद ही कभी आपने
सोचा हो क फू ल से जो सुगंध बन कर कट हो रहा है, वह वही दुगध है जो खाद से कट
होती थी। खाद क दुगध बीज से गुजर कर फू ल क सुगंध बन जाती है।
दुगध सुगंध बन सकती है। काम ेम बन सकता है।
ले कन जो काम के िवरोध म हो जाएगा, वह उसे ेम कै से बनाएगा? जो काम का श ु
हो जाएगा, वह उसे कै से पांत रत करे गा? इसिलए काम को, से स को समझना ज री
है--यह मने वहां कहा--और उसे पांत रत करना ज री है।
मने सोचा था, जो लोग िसर िहलाते थे घर जल जाने पर, वे लोग मेरी बात सुन कर बड़े
खुश ह गे। ले कन मुझसे गलती हो गई। जब म मंच से उतरा, तो उस मंच पर िजतने नेता
थे, िजतने संयोजक थे, वे सब भाग चुके थे। वे मुझे उतरते व मंच पर कोई भी नह िमले।
वे शायद अपने घर चले गए ह गे, कह घर म आग न लग जाए, उसे बुझाने का इं तजाम
करने भाग गए थे। मुझे ध यवाद देने को भी संयोजक वहां नह थे। िजतनी भी सफे द
टोिपयां थ , िजतने भी खादी वाले लोग थे, वे मंच पर कोई भी नह थे, वे जा चुके थे। नेता
बड़ा कमजोर होता है, वह अनुयाियय के पहले भाग जाता है।
ले कन कु छ िह मतवर लोग ज र ऊपर आए। कु छ ब े आए, कु छ बि यां आ ; कु छ
बूढ़े, कु छ जवान। और उ ह ने मुझसे कहा क आपने वह बात हम कही है, जो हम कसी ने
भी कभी नह कही। और हमारी आंख खोल दी ह। हम ब त ही काश अनुभव आ है।
तो फर मने सोचा क उिचत होगा क इस बात को और ठीक से पूरी तरह कहा जाए,
इसिलए यह िवषय मने आज यहां चुना। इन चार दन म वह कहानी जो वहां अधूरी रह
गई थी, उसे पूरा करने का कारण यह था क लोग ने मुझे कहा। और वह उन लोग ने कहा
िजनक जीवन को समझने क हा दक चे ा है। और उ ह ने चाहा क म पूरी बात क ।ं एक
तो कारण यह था।
और दूसरा कारण यह था क वे जो लोग भाग गए थे मंच से, उ ह ने जगह-जगह जाकर
कहना शु कर दया क मने तो ऐसी बात कही ह िजनसे धम का िवनाश हो जाएगा! मने
तो ऐसी बात कही ह िजनसे क लोग अधा मक हो जाएंगे!
तो मुझे लगा क उनका भी कहना पूरा प हो सके , उनको भी पता चल सके क लोग
से स के संबंध म समझ कर अधा मक होने वाले नह ह। नह समझा है उ ह ने आज तक,
इसिलए अधा मक हो गए ह। अ ान अधा मक बना सकता है; ान कभी भी अधा मक
नह बना सकता। और अगर ान अधा मक बनाता हो, तो म कहता ं क ऐसा ान
उिचत है जो अधा मक बना दे, उस अ ान क बजाय जो क धा मक बनाता हो। य क
जो अ ान धा मक बनाता हो, तो वह धम भी दो कौड़ी का है जो अ ान क बुिनयाद पर
खड़ा होता हो। धम तो वही स य है जो ान के आधार पर खड़ा होता है।
और मुझे नह दखाई पड़ता क ान मनु य को कभी भी कोई हािन प च ं ा सकता है।
हािन हमेशा अंधकार से प च
ं ती है और अ ान से।
इसिलए अगर मनु य-जाित हो गई, यौन के संबंध म िवकृ त और िवि हो गई,
से स के संबंध म पागल हो गई, तो उसका िज मा उन लोग पर नह है िज ह ने से स के
संबंध म ान क खोज क है। उसका िज मा उन नैितक, धा मक और थोथे साधु-संत पर
है िज ह ने मनु य को हजार वष से अ ान म रखने क चे ा क है। यह मनु य-जाित
कभी क से स से मु हो गई होती। ले कन नह यह हो सका। नह हो सका उनक वजह
से जो अंधकार कायम रखने क चे ा कर रहे ह।
तो मने समझा क अगर थोड़ी सी करण से इतनी बेचैनी ई है तो फर पूरे काश क
चचा कर लेनी उिचत है। ता क साफ हो सके क ान मनु य को धा मक बनाता है या
अधा मक बनाता है। यह कारण था इसिलए यह िवषय चुना। और अगर यह कारण न
होता तो शायद मुझे अचानक खयाल न आता इसे चुनने का। शायद इस पर म कोई बात न
करता। इस िलहाज से वे लोग ध यवाद के पा ह िज ह ने अवसर पैदा कर दया और यह
िवषय मुझे चुनना पड़ा। और अगर आपको ध यवाद देना हो तो मुझे मत देना। वह
भारतीय िव ाभवन म िज ह ने सभा आयोिजत क थी, उनको ध यवाद देना। उ ह ने ही
यह िवषय चुनवा दया है। मेरा इसम कोई हाथ नह है।
एक िम ने पूछा है क मने कहा क काम का पांतरण ही ेम बनता है। तो उ ह ने पूछा है क ओशो, मां का
बेटे के िलए ेम-- या वह भी काम है, वह भी से स है?
हम कौन ह, इसे समझने क दशा म ओशो ने जो अि तीय योगदान दया है उसे कसी
ेणी म नह बांधा। वे एक रह यवादी, अंतर-जगत के वै ािनक और िव ोही चेतना ह।
उनक संपूण िच इस बात म है क मानवता को त काल एक नई जीवन-शैली खोज
िनकालने क आव यकता के ित कै से सजग कया जाए। अतीत का अनुसरण कए जाना
इस अि तीय और अित सुंदर ह के अि त व को ही संकट म डाल देने के िलए आमं ण
देना है।
थान - Location
मुंबई से सौ मील दि णपूव म फलते-फू लते आधुिनक शहर पुणे म ि थत ओशो इं टरनेशनल
मेिडटेशन ऱजॉट छु यां िबताने का एक ऐसा थल है जो और से सवथा िभ है। वृ
क कतार से िघरे आवासीय े म मेिडटेशन ऱजॉट 28 एकड़ के दशनीय बगीच म
फै ला आ है।
ओशो यान
हर तरह के ि के अनु प दन भर चलने वाले यान-काय म म स य और िनि य,
परं परागत और ांितकारी, तथा खासकर ओशो डाइनैिमक मेिडटेशन जैसी यान-िविधयां
उपल ध ह। OSHO Active Meditations. ये सभी यान-िविधयां िव के संभवतः
सवािधक भ व िवशाल यान-सभागार ‘ओशो ऑिडटो रयम’ म होती ह। OSHO
Auditorium.
भोजन - Cuisine
अलग-अलग ढंग के िविभ भोजन- थल पर परोसे जाने वाले सु वादु व शाकाहारी
पा ा य, एिशयायी व भारतीय भोजन म मेिडटेशन ऱजॉट के िलए िवशेष प से उगाई
गई आगिनक सि जय का ही उपयोग होता है। ेड और के क इ या द ऱजॉट क अपनी
बेकरी म ही तैयार कए जाते ह।
सां य गितिविधयां
चुनने के िलए सां य-गितिविधय क िल ट लंबी है िजसम नृ य करना सबसे ऊपर है।
अ य गितिविधय म तार क छांव म फु लमून- यान, वैरायटी शो, संगीत-काय म तथा
दैिनक जीवन के िलए यान शािमल ह।
सुिवधाएं
आप ित दन उपयोग म आने वाली बुिनयादी चीज मेिडटेशन ऱजॉट के गैले रया से
खरीद सकते ह। Galleria. म टीमीिडया गैलरी म ओशो क सभी मीिडया साम ी
उपल ध है। बक, ैवल एजसी तथा साइबर कै फे क सुिवधाएं भी प रसर के भीतर ही
उपल ध ह। खरीददारी के शौक न िम के िलए पुणे म सभी चुनाव उपल ध ह--
परं परागत भारतीय व तु से लेकर अंतरा ीय ड् स के टोस तक।
आवास
आप ओशो गे टहाउस के सु िचपूण कमर म ठहरने का चुनाव कर सकते ह। OSHO
Guesthouse, अगर आप लंबे समय तक कना चाहते ह तो ‘िल वंग-इन’ काय म के
पैकेज भी चुन सकते ह। OSHO Living-In इसके अित र नजदीक ही ब त कार के
होटल व स वस अपाटमट भी उपल ध ह।
अिधक जानकारी के िलए:
iosho, ओशो के ढेर िडिजटल अनुभव िजनम ओशो झेन टैरो, टीवी, लाइ ेरी,
होरो कोप, ई- ी टंग और रे िडयो। कृ पया एक ण के िलए ठह रए, एकबारगी पंजीकरण
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