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1 ई र अनेक, स य एक
3 चार आ म
5 अ वीकार भी वीकार हो
6 अपनी शुभे ा को बल द
7 बदलाहट खूबसूरत य है
9 कथा से मु पाएँ
12 हक कत म म कौन ँ
जीवन का महान नयम
यारे खोजी!
जस कार हमारे शरीर म साँस वतः ही अपने लय-ताल म लगातार चल रही है, वैसे ही
स य एक ऐसा संगीत है जो हमारे भीतर लगातार चल ही रहा है। आप साँस को कभी यह
नह बताते क उसे कतनी दे र साँस लेनी है और वह कतनी दे र बाद बंद हो जाए। आप
कहते ह- ‘यह लगातार चलती रहे।’ उसी तरह जब स य क समझ मलेगी तब पता चलेगा
क स य सतत आपके अंदर बना के अनुभूत हो ही रहा है।
ई र अनेक, स य एक
उदा. नयन कहेगा- ‘मुुझे यान म ऐसी-ऐसी रोशनी दखी।’ सरा ( ीकांत) कहेगा- ‘मने
मू त के सामने बैठकर ऐसा अनहद नाद सुना।’ तीसरा कहेगा- ‘मने भ के भजन गाए।’
इ ह सुननेवाला कहेगा- ‘तीन एक ही अनुभव क बात कर रहे ह, बस इनके दे खने का
नज़ रया अलग है।’ जस तरह 9 नं. को उ टा दे खगे तो वह 6 नं. दखेगा और सीधी तरह
से दे खगे तो वह 9 नं. दखेगा। जब क आप जानते ह, दोन का मह व है। उ कोण
(हे लकॉ टर) से दोन सही दखता है। यही बात उपरो बताए गए तीन तरह के लोग के
साथ लागू होती है। य द उनका अनुभव कट करने का तरीका अलग-अलग है तो इसका
मतलब यह कतई नह क वे भ - भ चीज़ बता रहे ह।
अतः आपको धीरे-धीरे हे लकॉ टर क ू से दे खना सीखना होगा। चेतना का तर ऊपर
उठाना होगा, फर सभी सवाल के जवाब आपको अपने आप ही मल जाएँगे।
लोग के जीवन म जो चल रहा है, उस पर उनके अनेक सवाल होते ह । जैसे- ‘घर म सास-
ब का झगड़ा, ऑ फस म बॉस के साथ कुछ बात को लेकर मनमुटाव, पड़ोस म पड़ोसी
के साथ कुछ अनबन। ऐसे म उनके मन म सवाल उठता है क ‘ये ऐसा है, वो वैसा है...
इसम म या क ँ ?’ जसका जवाब उ ह दया जाता है क हर इंसान या घटना को उ
कोण से दे ख। कस तरह के काय करने से यादा से यादा लोग का मंगल हो सकता
है, वह कर।
इसे यूँ समझ- य द आपक लॉटरी लगे तो पैसे सँभालने क ज़ मेदारी भी आपक ही है।
वैसे ही जो ान पी खज़ाना आपको मला है, उसे माया क नया म रहते ए भी
आपको सँभालना है। संसार क घटना म भी अपनी चेतना को बरकरार रखने क
ज़ मेदारी आपको ही नभानी है। स य वण करने के बाद भी य द अपने आपको भूल
जाएँ तो बार-बार याद करने क ज़ मेदारी भी आपक वतः क है।
चार आ म
पुराने समय म लोग अपने जीवन को चार भाग म वभा जत करते थे। वे जीवन के पहले
प ीस साल माया से र रहकर गु कुल म बताते थे। फर आगे के प ीस साल संसार म
रहकर गृह ा म म बतातेे थे। इस तरह उनके जीवन के पचास साल पूरे हो जाते थे।
उसके बाद आगे के प ीस साल वे वान ा म यानी असली स य (फायनल टथ) क
तैयारी म लग जाते थे और फर अं तम के जो प ीस साल बचते थे, उसम वे उसी अनुभव
म रहकर आनंदमय जीवन जीते थे। उस समय म ऐसी सुंदर व ा थी।
एक गाँव म दस अंधे रहा करते थे, जो भीख माँगकर अपना पेट पाला करते थे। एक दन वे
सब जंगल से गुजर रहे थे तब उ ह रा ते पर पेड़ से गरे ए कुछ फल मले। फल दे खकर
वे बड़े खुश ए और वे फल उ ह ब त पसंद आए। फल खाने के बाद वे आपस म बात
करने लगे क अब हम भीख माँगने क ज़ रत नह पड़ेगी। हम रोज़ जंगल जाएँगे और
फल खाकर अपना पेट भरगे।
अतः वे रोज़ जंगल जाने लगे, कभी वहाँ फल मलते तो कभी नह । इस तरह से उ ह
कभी-कभी भूखा ही रहना पड़ता था। एक दन उ ह कुछ री पर गरने क आवाज़ सुनाई
द , उ ह ने दे खा क एक पेड़ से फल गरा और जब उ ह ने उस पेड़ को हलाया तो और भी
ब त सारे फल गरे। वे उन फल को दे खकर बड़े खुश हो गए य क अब तो उ ह फल
का ोत (सोस) ही मल गया। अब वे रोज़ जंगल म जाते थे, पेड़ को हलाते थे तो ब त
सारे फल गरते थे। वे उन फल को बड़े आनंद से खाते थे। इस तरह वे सुकूनभरी ज़दगी
जीने लगे।
इन दस अंध म एक खोजी था, जसे घटना होने पर सवाल आते थे- ‘म कौन ?ँ ... या
यह संसार इसी तरह चलता रहेगा... या जीवन का यही ल य है?... सुबह उठते ही खाना-
पीना, सोना-उठना, आराम करना, शाद करना, ब े को ज म दे ना... उ ह बड़ा करना...
उनक शाद करवाना’ आ द। जब यह संसार नह था तब कैसे दखता था?’
अ वीकार भी वीकार हो
जवान वही, जसके पास जा त है। जैसे जसके पास धन होता है, वह धनवान कहलाता
है, जो दया भाव रखता है, उसे दयावान कहते ह। वैसे ही जो जा त है, वह जवान है।
उपरो घटना म उस इंसान को जा त मलने जा रही थी मगर छोट बात (पे न) म
अटककर उसने बड़ी चीज़ को अ वीकार कर दया। कहने का अथ- इंसान अपने जीवन म
छोटे -छोटे सुख को पकड़कर बैठा है, उसे छोड़ना नह चाहता इस लए एक पं आती है-
‘बड़ी इ ा को छोट -छोट इ ा से बचाओ।’
अपनी शुभे ा को बल द
जैसे कोई ब ा एक कूल से सरे कूल म जाता है तो पहले वह ब त ःखी होता है।
फर उसे नए म मलते ह तो वह कहता है- ‘अगर मने वह कूल नह बदला होता तो ये
म मुझे कहाँ मलते!’ हालाँ क पहले ब े को ब त तकलीफ होती है। ब े के लए
अगर ट चर भी बदल गया तो उसे ःख होता है। मानो, कसी व ाथ का लास ट चर
बदल गया, उसक बदली हो गई, वह ट चर कह और चला गया तो कुछ समय तक, जब
तक वह व ाथ जीवन का सबक नह सीखता, जीवन के नयम नह जानता तब तक वह
ःखी रहता है।
ऐसे ही नौकरी म कसी इंसान क एक शहर से सरे शहर बदली हो जाती है। उसे एक
डपाटमट से सरे डपाटमट म भेज दया जाता है तो कैसा ःख शु हो जाता है। इंसान
तुरंत कहता है- ‘मेरे साथ ब त बुरा हो गया।’ ऐसे म उसे समझ याद दलाई जाएगी क
‘ को, ज द ठ पा मत लगाओ य क बदलाहट म नयापन है। नए का वागत करना
सीखो, नए को पहचानो।’
हमारे अंदर जो अनुभव है, वह भी नीत-नया है मगर हमने उसे पुराना मानकर दे खना ही
बंद कर दया है। आँख बंद करगे तो अंधेरा ही अंधेरा रहेगा, ऐसा हम लगने लगता है। अब
आपको उस अनुभव को फर से दे खने का श ण मल रहा है इस लए नया दे ख, नए का
वागत कर। घटना उपहार दे ने के लए आती है। प रवतन अ ा है इस कोण से
जीवन म आए बदलाव को दे ख । प रवतन हमारी शां त खोने नह आया है, यह हम
खलने-खोलने के लए आया है, हमारे जीवन म नयापन लाने के लए आया है।
जो गुजर गया है, वह अपनी या ा म आगे है। वह पीछे के लोग को बताना चाहता है क
‘मेरे लए मत रोना’ मगर वह बता नह पाता य क अभी तक वैसे मोबाईल नह बने ह।
आगे जब ऐसे मोबाईल बन जाएँग,े जनसे हम जो गुजर गए ह, उनसे बातचीत कर पाएँगे।
तब मृ यु को लेकर होनेवाले डर समा त हो जाएँगे। जब मन करेगा तब हम उनसे वातालाप
कर पाएँगे। पता चलेगा क वे कह गए नह ह मा तरंग ( वे सी) बदल गई है। वे
अलग लेवल पर अपनी अ भ कर रहे ह।
अगर आपने बदलाहट को समझ लया तो हर चीज़ खुद-ब-खुद वीकार होती जाएगी।
जैस-े वातावरण, मृ यु, ापार, , व ाआ द म आई बदलाहट को आप सहजता
से वीकार कर पाएँगे। उदा. खाने का ड बा दे नेवाला एक दन ड बा दे ने से मना कर दया
तो आपको बुरा नह लगेगा। साथ ही नए वचार आएँगे- ‘अब कोई सरा नया ड बेवाला
मलेगा, जो उससे बेहतर खाना लाएगा।’ जस तरह के वा य के लए आप ाथना कर
रहे थे, उसी तरह का खाना आपको मलेगा। इस तरह आप इस बदलाव म छपे उपहार
को खुलने दगे।
इंसान जब भी कुछ दे खता है, सुनता है तब उसके बारे म कथाएँ बनाने लगता है। एक य
है, जसम सामनेवाले ने आपक तरफ दे खा नह तो मन बड़बड़ करने लगता है क ‘यह
इंसान मुझे पसंद नह करता, घमंडी है।’ अब वाकई वह पसंद नह करता या यह तु हारी
कथा है, इस पर इंसान सोच ही नह पाता और अपने मन क कथा को ही सच मान लेता
है।
कथा से मु पाएँ
ये सारी बात जब उस खोजी ने सुनी तो उसम स य जानने क यास जगी। लोग के बताए
अनुसार उसने अ ताल के पीछे जो आ म था, वहाँ जाकर वण कया। वहाँ कुछ लोग
से बातचीत ई तो आवाज़ से पहचाना क सबसे पहले जो म चले गए थे, वे म उसे
मले। य क आवाज़ से ही वे एक- सरे को जानते थे। उ ह ने कहा- ‘चलो, हम पुराने
म के पास जाते ह, उ ह भी इसके बारे म बताते ह।’ मगर जब तक वे पुराने म के
पास प ँचते, तब तक उनक चता चता बन चुक थी।
एक बार एक गाँव से दस लोग शहर जा रहे थे। शहर जाते समय रा ते म उ ह नद पार
करनी पड़ती थी। सभी ने नद पार क और सोचा हम एक बार अपनी गनती कर लेते ह
क कह कोई डू बा तो नह य क जब वे लोग गाँव से नकल रहे थे तब गाँववाल ने उनसे
कहा था- ‘आप लोग आपस म एक- सरे का खयाल रखना और दस जा रहे हो तो वापस
आते समय भी सभी साथ ही लौटकर आना।’ इस लए अब उनम से एक ने गनना शु
कया । गनने पर नौ ही लोग हो रहे थे इस लए सभी परेशान हो गए क हमारा एक साथी
कहाँ गया! सरे ने गनना शु कया मगर वह भी वही गलती कर रहा था। अपने आपको
छोड़कर सबको गन रहा था और सब परेशान हो रहे थे।
इस कहानी से हम पता चला क सब लोग कतने मूख ह। लोग खुद को छोड़कर सबक
गनती कर रहे ह। ठ क इसी तरह इंसान के साथ भी होता है, वह ‘म कौन ँ’ यह जानने
पृ वी पर आया है मगर अपने आपको छोड़कर उसे सबको जानने क पड़ी रहती है- ‘यह
पड़ोसी कौन है? उसके पास कौन मेहमान आया है? उसके पास कौन सी कार है? उस कार
म ए.सी. है या नह ? उसके लोग बड़े जान-पहचानवाले लगते ह’ आ द। वह खुद क पूछ-
ताछ छोड़कर नयाभर क पूछ-ताछ करते रहता है।
असली चम कार तो वह है जब इंसान खुद को जानने लगे और वही बनकर जीए। इससे
बाक चम कार अपने आप ही जीवन म होने लगगे। जसम आप फँसगे नह । हालाँ क
बोनस म तो ब त सी बात ह गी। असली आनंद तो आने ही वाला है, उसे कह तलाश
करने क ज़ रत ही नह है।
हक कत म म कौन ँ
ऐसे म आपसे कहा जाएगा मानो, आपका भाई न द म सोया आ है और कोई आपसे
आकर पूछे क ‘यह कौन है?’ तो आप या कहेगे? यही क ‘यह मेरा भाई है।’ फर य द
आपसे कहा जाए क ‘यह तु हारा भाई कैसे हो सकता है? यह तो सोया आ है?’ तब भी
आप यही कहगे- ‘सोया आ है तो या आ, है तो मेरा भाई ही।’ ठ क इसी तरह य द
आप कसी को अ ा इंसान न मानते ह तो समझ यह रख क उस शरीर म चेतना का
तर न न है। कसी शरीर म चेतना बेहोश होती है। कहने का अथ शरीर अलग-अलग ह
मगर ई रीय चेतना सबम एक ही है। इंसान ज़दा है, ज़दा होने का अनुभव ही चेतना है,
वह से काय हो रहे ह। फर चाहे वे काय बेहोशी म ही य न हो रहे ह । यू नवसल आय
सबके अंदर एक ही है। शरीर ई र नह होता, शरीर तो शव है। शव यानी लाश। शरीर लाश
है, कैलाश कोई और है। शरीर शव है, शव कोई और है। इस लए शरीर को शव (भगवान,
ई र, अ लाह) समझने क भूल कभी न कर।
लोग अ ान क वजह से ानी बन जाते ह और कहते ह- ‘हम स य मालूम है’ मगर उनके
जीवन म स य उतरा नह होता है। जीवन वैसे ही शकायतभरा, ःखी होता है। हालाँ क
मन को नमल, ेमन, अकंप और आ ाकारी बनना था, वह तो बन ही नह पाया और
अ ान म इंसान कहता है- ‘हम सब मालूम है।’ ऐसा ान होना, न होने के बराबर है।
... सर ी
परश
सर ी - अ प प रचय
सर ी - अ प प रचय