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अहंकार - मूल ल य को छोट चाहत से बचाएँ

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Tejgyan Global Foundation is a charitable organisation with its headquarter
in Pune, India.

First Edition : February 2016

Publisher: WOW Publishings Pvt Ltd

सवा धकार सुर त

वॉव प ल श ज् ा. ल. ारा का शत यह पु तक इस शत पर व य क जा रही है क काशक क ल खत पूवानु त


के बना इसे ावसा यक अथवा अ य कसी भी प म उपयोग नह कया जा सकता। इसे पुनः का शत कर बेचा या
कराए पर नह दया जा सकता तथा ज दबंद या खुले कसी भी अ य प म पाठक के म य इसका प रचालन नह
कया जा सकता। ये सभी शत पु तक के खरीददार पर भी लागू ह गी। इस संदभ म सभी काशना धकार सुर त ह।
इस पु तक का आं शक प म पुनः काशन या पुनः काशनाथ अपने रकॉड म सुर त रखने, इसे पुनः तुत करने
क त अपनाने, इसका अनू दत प तैयार करने अथवा इले ॉ नक, मैके नकल, फोटोकॉपी और रकॉ डग आ द
कसी भी प त से इसका उपयोग करने हेतु सम त काशना धकार रखनेवाले अ धकारी तथा पु तक के काशक क
पूवानु त लेना अ नवाय है।

Jeevan Ka Mahan Niyam - Badalahat Ko Sweekar Karo


by Sirshree Tejparkhi
जीवन का महान नयम

बदलाहट को वीकार करो


वषय सूची

1 ई र अनेक, स य एक

2 हाथ उठने से पहले चेतना उठे

3 चार आ म

4 नज़र बदलाहट क खूबसूरती पर हो

5 अ वीकार भी वीकार हो

6 अपनी शुभे ा को बल द

7 बदलाहट खूबसूरत य है

8 बदलाहट म छपे उपहार खोल

9 कथा से मु पाएँ

10 कुदरत का कम संकेत (केस)

11 ‘बदलाहट न हो’, इस वचार को बदल

12 हक कत म म कौन ँ
जीवन का महान नयम

बदलाहट को वीकार करो

यारे खोजी!

आपको शुभे ा, हॅपी थॉट् स।

जस कार हमारे शरीर म साँस वतः ही अपने लय-ताल म लगातार चल रही है, वैसे ही
स य एक ऐसा संगीत है जो हमारे भीतर लगातार चल ही रहा है। आप साँस को कभी यह
नह बताते क उसे कतनी दे र साँस लेनी है और वह कतनी दे र बाद बंद हो जाए। आप
कहते ह- ‘यह लगातार चलती रहे।’ उसी तरह जब स य क समझ मलेगी तब पता चलेगा
क स य सतत आपके अंदर बना के अनुभूत हो ही रहा है।

आप जानते ह क यह धरती, जस पर आप बैठे ह, वह लगातार घूम रही है। मगर लगातार


घूमने क वजह से आपको ऐसा तीत नह होता क वह घूम रही है। हाँ, अगर पृ वी थोड़ी
दे र घुमना बंद कर दे तो आपको पता चलेगा क वह घूम रही थी। बलकुल उसी तरह जब
इंसान क साँस अटकती है और साँस लेने म तकलीफ होती है तब उसे पता चलता है क
साँस का लय-ताल म चलना वा य के लए कतना ज़ री है।

ता पय- अनुभव भी हमारे अंदर त है, कभी बंद ही नह आ इस लए इंसान को लगता


ही नह क ऐसी कोई ज़दा चीज़ हमारे अंदर है, जसे हम इसी जीवन म जानना है।

या इसे यूँ कह, स य कतने भी तेज़ वर म य न बताया जाए, आपको तब तक सुनाई


नह दे गा, जब तक आप हणशील नह ह। जब आप स य के त हणशील होते ह तब
स य संगीत बनने लगता है। जैसे आप दनभर अपने पसंद के गाने सुनते ह तो उससे बोर
नह होते य क वह संगीत आपके पसंद का होता है। वैसे ही हणशील होने के बाद स य
सुनना आपको अ ा लगने लगेगा।

मो के त लोग क भ - भ धारणाएँ ह। उनका मानना है क मो मृ यु के बाद ा त


होनेवाली अव ा है। जनम-मरण के च कर से मु ही मो है। मगर यहाँ कसके जनम-
मरण क बात हो रही है? इस पर कभी कसी ने सवाल ही नह उठाया। यहाँ अहंकार के
जनम-मरण के बारे म कहा जा रहा है। दनभर क घटनाओ म अहंकार का जनम-मरण
चल ही रहा है। मन के व कुछ आ तो अहंकार जागा, मन मुता बक कुछ आ तो
अहंकार शांत हो गया, सम पत हो गया। इस अहंकार के जनम-मरण से मु ही मो है।

इंसान जब बेहोशी म स य का असली अथ भूल जाता है तब वह झूठ धारणा ,


क पना , मा यता , मा यकथा का शकार बन जाता है। सभी मा यताएँ, अ ान,
बेहोशी, कथा से मु होने के लए स य का वण ज़ री है। स य सुनते-सुनते कब
कौन सी बात आपके दल को छू जाए और आपके अंदर के अ ान को तोड़ दे , यह आप
नह जानते। उस दन के बाद आप कहगे- ‘मेरा जो ःख था, स य सुनने के बाद समा त
हो गया और म मु हो गया।’ फर असली मो (अनुभव, आ मसा ा कार) कसे कहा
गया, इस सवाल का जवाब आपको खुद-ब-खुद मल जाएगा।

ई र अनेक, स य एक

अलग-अलग धम म लोग के ब त सारे सवाल होते ह, जनम से कुछ मो को लेकर होते


ह तो कुछ ई र के बारे म होते ह। सबने ई र के बारे म अलग-अलग बात कही ह य क
अलग-अलग वभाव के और अलग-अलग तरह के लोग होते ह। अगर एक च कार को
अनुभव ा त होगा तो वह अपना अनुभव च के ारा कट करेगा य क उसके लए
च ही बातचीत करने का बेहतर तरीका है। इस तरह के लोग नयनसुख होते ह यानी वे
च क भाषा ज द समझते ह। सरे तरह के लोग जो बोलकर, श द म अनुभव को
बताएँग,े श द म ही अनहद नाद करगे, ऐसे लोग ीकांत कहलाते ह। ीकांत यानी वे
कान ह, उ ह श द ज द पकड़ म आते ह। तीसरे तरह के लोग भावेश होते ह, वे भावना
को महसूस करते ह। वे हर व भावना और भ क ही बात करते ह।

उदा. नयन कहेगा- ‘मुुझे यान म ऐसी-ऐसी रोशनी दखी।’ सरा ( ीकांत) कहेगा- ‘मने
मू त के सामने बैठकर ऐसा अनहद नाद सुना।’ तीसरा कहेगा- ‘मने भ के भजन गाए।’
इ ह सुननेवाला कहेगा- ‘तीन एक ही अनुभव क बात कर रहे ह, बस इनके दे खने का
नज़ रया अलग है।’ जस तरह 9 नं. को उ टा दे खगे तो वह 6 नं. दखेगा और सीधी तरह
से दे खगे तो वह 9 नं. दखेगा। जब क आप जानते ह, दोन का मह व है। उ कोण
(हे लकॉ टर) से दोन सही दखता है। यही बात उपरो बताए गए तीन तरह के लोग के
साथ लागू होती है। य द उनका अनुभव कट करने का तरीका अलग-अलग है तो इसका
मतलब यह कतई नह क वे भ - भ चीज़ बता रहे ह।
अतः आपको धीरे-धीरे हे लकॉ टर क ू से दे खना सीखना होगा। चेतना का तर ऊपर
उठाना होगा, फर सभी सवाल के जवाब आपको अपने आप ही मल जाएँगे।

हाथ उठने से पहले चेतना उठे

लोग के जीवन म जो चल रहा है, उस पर उनके अनेक सवाल होते ह । जैसे- ‘घर म सास-
ब का झगड़ा, ऑ फस म बॉस के साथ कुछ बात को लेकर मनमुटाव, पड़ोस म पड़ोसी
के साथ कुछ अनबन। ऐसे म उनके मन म सवाल उठता है क ‘ये ऐसा है, वो वैसा है...
इसम म या क ँ ?’ जसका जवाब उ ह दया जाता है क हर इंसान या घटना को उ
कोण से दे ख। कस तरह के काय करने से यादा से यादा लोग का मंगल हो सकता
है, वह कर।

मानो, एक म र कसी ब े को काट रहा है तो उस प र त मआप पहले ब े को


बचाएँगे य क ब े म चेतना का तर म र क तुलना म ऊपर है। म र म भी ई र
(से फ) है पर वह सरे ान पर है।

इस तरह हर प र त म आपको अपनी चेतना उठाकर ही नणय लेना सीखना है। आप


कसी पर च लाते ह, गु सा करते ह तो आपको कहा जाएगा- ‘आवाज़ या हाथ उठने से
पहले आपक चेतना उठे ।’ जब चेतना उठे गी तब आपको वयं ही पता चलेगा क वाकई
मारने क ज़ रत है या समझाने के और तरीके भी हो सकते ह? चेतना उठे गी तो ही इस
तरह का मनन हो पाएगा य क एक ही जवाब हरेक को नह दया जा सकता। हर
पर त म अलग-अलग तसाद दे ने होते ह। कसी म स , कसी म अ , कसी म न
तो कसी म व तसाद। व यानी वपरीत, कसी म सम तसाद। जब चेतना ऊपर
उठे गी तब अलग-अलग घटना म आप सही तसाद दे ने का नणय ले पाएँगे। जो स य
आप सुन चुके ह, उस आधार पर या करना चा हए, वह आपको दखाई दे गा।

जब भी लगे चेतना कम हो रही है तब पहले चेतना को बढ़ाने का कम कर। बाद म


घटना म तसाद द। स य वण, मनन, पठन से चेतना बढ़ती है तो तुरंत पहले चेतना
को बढ़ाने का काय कर। ‘म कौन ँ’ यह फर से याद कर, शरीर से परे अपने होने के
एहसास (तेज ान) पर ा पत हो जाएँ। और उठ ई चेतना के साथ संसार क याएँ
करना शु कर।

इसे यूँ समझ- य द आपक लॉटरी लगे तो पैसे सँभालने क ज़ मेदारी भी आपक ही है।
वैसे ही जो ान पी खज़ाना आपको मला है, उसे माया क नया म रहते ए भी
आपको सँभालना है। संसार क घटना म भी अपनी चेतना को बरकरार रखने क
ज़ मेदारी आपको ही नभानी है। स य वण करने के बाद भी य द अपने आपको भूल
जाएँ तो बार-बार याद करने क ज़ मेदारी भी आपक वतः क है।

चार आ म

पुराने समय म लोग अपने जीवन को चार भाग म वभा जत करते थे। वे जीवन के पहले
प ीस साल माया से र रहकर गु कुल म बताते थे। फर आगे के प ीस साल संसार म
रहकर गृह ा म म बतातेे थे। इस तरह उनके जीवन के पचास साल पूरे हो जाते थे।
उसके बाद आगे के प ीस साल वे वान ा म यानी असली स य (फायनल टथ) क
तैयारी म लग जाते थे और फर अं तम के जो प ीस साल बचते थे, उसम वे उसी अनुभव
म रहकर आनंदमय जीवन जीते थे। उस समय म ऐसी सुंदर व ा थी।

पुराने समय म जहाँ पहले इंसान प ीस साल तक माया से र रहता था, वह आज ब ा


छोट उ से ही ट . वी. म माया का व ापन दे ख रहा है। जससे कम उ म ही उसके
दमाग म ‘म शरीर ूँ’, यह प का बैठ जाता है। य क उसे लगता है- ‘म शरीर ँ तो मुझे
श करना चा हए... बगर- प ा खाना चा हए... सुंदर दखने के लए ऐसे बाल बनाने
चा हए और यह म लगानी चा हए... इस तरह दखनेवाले लोग अ े , इस तरह
दखनेवाले बुरे।’ ये सब इंसान के दमाग म बचपन से ही गहराई म सेट हो जाता है। पहले
प ीस साल म ही वह माया के भाव म इतना जड़ हो जाता है क नया कुछ सुनना ही
नह चाहता तो आगे क बात होना संभव ही नह है।

इसके वपरीत य द शु के प ीस साल म इंसान के मन म ऐसी कुछ बात ग , जससे


उसक आंत रक सोच शु हो गई क ‘मुझे यह ःख य आता है, या सबको यह ःख
आता है? ज ह यह ःख आया, उ ह ने या कया?’ ऐसे सवाल उठने के साथ ही इंसान
खोजी बन जाता है।

पुराने जमाने म सं यासी जीवन क था थी मगर आज के युग म उसे लागू नह कर सकते।


आज समय है तेजसंसारी बनने का। तेजसंसारी वह होता है, जसम सं यासी और संसारी
दोन के गुण मौजूद होते ह। यह एक अलग आयाम हो गया और इसे लाने के लए हम नई
व ाएँ बनानी ह गी। आप जो कर रहे ह, उसम तेज क समझ जोड़नी होगी।

पहले प ीस साल ब ा गु कुल म था, गु के साथ था, वह एक सुंदर व ा म था तो


उसे कोई अड़चन नह आई मगर अब उसका ावहा रक जीवन शु होगा। उसक शाद
होगी, बीवी-ब े ह गे। अभी बीवी, प त, बॉस, पड़ोसी ऐसे लोग उसके सामने आएँगे। उसे
माँ और बीवी दोन को सँभालना होगा। इस तरह अब उसे बॉस, पड़ोसी, म सभी को
सँभालना है और सभी मु त म उसे अपनी-अपनी राय भी दगे। इस उदाहरण म आपके
लए संकेत है क संसार म रहते ए सभी बात का यान रखना है। आइए, एक कहानी
ारा इसे समझने का यास कर।

नज़र बदलाहट क खूबसूरती पर हो

एक गाँव म दस अंधे रहा करते थे, जो भीख माँगकर अपना पेट पाला करते थे। एक दन वे
सब जंगल से गुजर रहे थे तब उ ह रा ते पर पेड़ से गरे ए कुछ फल मले। फल दे खकर
वे बड़े खुश ए और वे फल उ ह ब त पसंद आए। फल खाने के बाद वे आपस म बात
करने लगे क अब हम भीख माँगने क ज़ रत नह पड़ेगी। हम रोज़ जंगल जाएँगे और
फल खाकर अपना पेट भरगे।

अतः वे रोज़ जंगल जाने लगे, कभी वहाँ फल मलते तो कभी नह । इस तरह से उ ह
कभी-कभी भूखा ही रहना पड़ता था। एक दन उ ह कुछ री पर गरने क आवाज़ सुनाई
द , उ ह ने दे खा क एक पेड़ से फल गरा और जब उ ह ने उस पेड़ को हलाया तो और भी
ब त सारे फल गरे। वे उन फल को दे खकर बड़े खुश हो गए य क अब तो उ ह फल
का ोत (सोस) ही मल गया। अब वे रोज़ जंगल म जाते थे, पेड़ को हलाते थे तो ब त
सारे फल गरते थे। वे उन फल को बड़े आनंद से खाते थे। इस तरह वे सुकूनभरी ज़दगी
जीने लगे।

एक दन जब वे जंगल म गए, पेड़ को हलाया तो दे खा क फल नह गरे। य क मौसम


बदलते ही पेड़ पर फल आने बंद हो गए। जैसे उन दस अंध के जीवन म अचानक से एक
नया प रवतन आया, ठ क वैसे ही हमारे जीवन म भी घटनाएँ होती ह और प र तयाँ
बदल जाती ह ।
वपरीत प र तय मे हरेक इंसान क अलग-अलग त याएँ होती ह। अचानक एक
नई सीन आती है तो झटका लगता है, जसका लोग पर अलग-अलग भाव पड़ता है।
पहले तरह के लोग शॉक म चले जाते ह। उनका दमाग ही काम नह करता, उनक बोलती
बंद हो जाती है, ‘यह या आ, अब या होगा?’ सरे तरह के लोग ःख से परेशान
होकर रोने लगते ह। तीसरे तरह के लोग को कुछ सूझता ही नह क या कर और या न
कर? उ ह सब कुछ धुँधला-धुँधला सा दखाई दे ता है। उ ह समझ म नह आता क जो
शॉक म चले गए ह, उ ह बाहर नकाल या जो रो रहे ह, उ ह चुप कराएँ। चौथे तरह के लोग
इस आस म जीते ह क अब कुछ अ ा होगा, हो सकता है आज फल मले-कल फल
मले। पाँचव तरह के लोग उन प र तय से भागने का यास करते ह।

इन दस अंध म एक खोजी था, जसे घटना होने पर सवाल आते थे- ‘म कौन ?ँ ... या
यह संसार इसी तरह चलता रहेगा... या जीवन का यही ल य है?... सुबह उठते ही खाना-
पीना, सोना-उठना, आराम करना, शाद करना, ब े को ज म दे ना... उ ह बड़ा करना...
उनक शाद करवाना’ आ द। जब यह संसार नह था तब कैसे दखता था?’

इन सवाल के जवाब क तलाश म अंधा खोजी अ य म से कहता है- ‘चलो, म जंगल


म थोड़ी र जाता ,ँ कोई और पेड़ ढूँ ढ़ता ँ।’ अथात वह ऐसी जगह जाना चाहता है, जहाँ
उसे जीवन का ल य मले। पर आस-पास के लोग उसे डराते ह क जंगल खतरनाक है।
प के नीचे जीव-जंतु, साँप, ब ू रगते ह, तु ह काट खाएँग,े तुम वहाँ मत जाओ।’
संसार म भी जो अपने आपको जानने क तलाश म नकलता है, उसे यही सब सुनने को
मलता है क अ या म का माग ब त क ठन है, इसे समझने म सात ज म लगते ह वगैरह-
वगैरह।

इन दस अंध क कहानी म जो संकेत छपा है, उसे हम जानने का यास कर रहे ह क


इंसान के साथ जब भी कोई घटना होती है, अचानक उसके जीवन म बदलाहट होती है तो
वह हल जाता है। ठ क वैसे ही व ा, अव ा, वातावरण म बदलाहट होती रहती है।
वातावरण बदलता है तो अभी थोड़ी दे र पहले तक धूप थी तो अभी बा रश शु हो गई...
अभी ठं ढ तो थोड़ी दे र बाद गरमी शु हो गई, इसे ही वतावरण का बदलाहट कहते ह।
बदलाहट खूबसूरत होता है मगर यह बात इंसान को मालूम नह है। इस लए बदलाहट ई
नह क इंसान के अंदर अवरोध शु हो जाता है, उसे लगता है ऐसा नह होना चा हए।
इंसान का मन बदलाहट को बुरा समझकर उसका तरोध करता है और यही अवरोध
ःख तैयार करता है। आप जब उसे सा ी भाव से दे खगे तब पता चलेगा क जब-जब
आप ःखी ए ह, उसके पीछे का कारण मन का अ वीकार भाव ही है।
जब कभी हमारे शरीर म दद होता है तो वह बातचीत नह करता क हम दद हो रहा है,
चुपचाप उधर ही पड़ा रहता है मगर क पना करके दे ख क अगर दद भी बोलने लग जाए
तो या होगा? आप दे खगे परेशानी और यादा बढ़ जाएगी। दद बोलते रहेगा- ‘अरे! ज द
कुछ करो, कुछ करते य नह ? कतने मूख हो, तु ह कुछ सूझता नह है, तु ह कोई कुछ
बतानेवाला है या नह ? इस तरह अगर हर बीमारी बोलने लगे तो कतनी परेशानी हो
जाएगी। आप थोड़ा भी काम नह कर पाएँगे।

मन एक ऐसी ही बीमारी है, जो बोलती है इस वजह से ःख तैयार होता है वरना कोई भी


घटना ःखद नह है। घटना होने के बाद मन आकर जो जोड़ता है- ‘बुरा आ, लोग बुरे ह,
जीवन का कोई भरोसा नह है’, यही ःख लाता है। अगर आपने वह जोड़ना बंद कर दया
तो ःख वतः ही बंद हो जाएगा। हम इस बोलती बीमारी को समझना होगा क मन कैसे
घटना होने पर उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। लोग जब घटना के साथ भावना को जोड़ते ह
तब वह सम या बन जाती है, अ यथा घटना सम या है ही नह ।

इस लए आपको बताया जा रहा है क संसार म रहते ए जब भी घटनाएँ ह तब उनके


साथ अपनी भावना को नह जोड़गे तो घटना ःख नह दे गी। ले कन जब तक कहानी म
बताई यह समझ नह जुड़ती क बदलाहट को वीकार करो, बदलाहट खूबसूरत है, अ
है तब तक घटना म इमोशन जुड़ने ही वाला है। इस लए समझ को प का करना ब त
ज़ री है।

अ वीकार भी वीकार हो

अतः कोई भी घटना होने पर अपने आपसे पूछ- ‘ या म यह वीकार कर सकता ?ँ ’ आप


वयं को अपने हाथ से ैकेट क मु ा दखा सकते ह। वातावरण बदल गया तो कह- ‘ या
म इसे वीकार कर सकता ?ँ ’ जैसे- आपका ापार ब त अ ा चल रहा था, अचानक
उसम कुछ नरमी आ गई। इस प र त म कल तक जो आपका ब त स मान कर
रहा था, आपसे मीठा बोल रहा था, वही अचानक से कड़वा बोलने लगे तो अपने आपसे
पूछ- ‘ या म इस बदलाहट को वीकार कर सकता ?ँ ’ अगर पूरी समझ हैतो जवाब ‘हाँ’
ही आएगा। जवाब ‘नह ’ आए तो कहगे- ‘चलो, अ वीकार को तो वीकार करते ह, मेरी
इस व जो अ वीकार क अव ा है, उसे म वीकार करता ँ।’ इस तरह आप अ वीकार
को भी वीकार करगे।

एक डॉ टर ने मरीज़ से कहा- ‘अब म तु ह ऐसी दवाई दे ता ँ क तुम फर से जवान


हो जाओगे।’ इस पर मरीज़ ने घबराकर डॉ टर से कहा- ‘अरे! नह -नह , ऐसा मत
करना वरना मेरी पे न बंद हो जाएगी।’

अथात उस इंसान को लग रहा है अगर म जवान हो जाऊँगा तो मेरी पे न बंद हो जाएगी।


मगर उसे यह समझ म नह आ रहा है क जवान होना कतनी खूबसूरत बदलाहट है।

जवान वही, जसके पास जा त है। जैसे जसके पास धन होता है, वह धनवान कहलाता
है, जो दया भाव रखता है, उसे दयावान कहते ह। वैसे ही जो जा त है, वह जवान है।
उपरो घटना म उस इंसान को जा त मलने जा रही थी मगर छोट बात (पे न) म
अटककर उसने बड़ी चीज़ को अ वीकार कर दया। कहने का अथ- इंसान अपने जीवन म
छोटे -छोटे सुख को पकड़कर बैठा है, उसे छोड़ना नह चाहता इस लए एक पं आती है-
‘बड़ी इ ा को छोट -छोट इ ा से बचाओ।’

अपनी शुभे ा को बल द

इंसान शुभे ा रखता है मु क , आनंद म जीने क , वतमान म रहने क , ‘म जो ँ’, वह


बनकर स य के साथ जीवन जीने क मगर वह अपनी छोट -छोट इ ा को छोड़ नह
पाता है, उसे वे यादा यारी लगती ह। मानो, कसी ने कहा- ‘चलो, आज स य- वण
करते ह’ और सरी तरफ ट . वी. पर उसका पसंद दा धारावा हक आ रहा है तो इंसान
छोट -छोट इ ा म अटक जाता है। ऐसे म वह स य- वण का नह , ट .वी. दे खने का
चुनाव कर लेता है।

हम अपने आस-पास कई बदलाव दे खते या सुनते आए ह मगर उस पर कभी इस से


मनन नह कया क जीवन म छोटा सा बदलाव भी खूबसूरती लेकर आता है। इसे एक
उदाहरण से समझ क बदलाहट खूबसूरत य होती है? कुछ लोग को कसी कारणवश
या नौकरी के कारण एक शहर से सरे शहर श ट होना पड़ता है। जब वे शु -शु म नए
शहर म जाते ह तो उ ह पहले ब त बुरा लगता है। उ ह लगता है क हम अपना शहर
छोड़कर यहाँ नह आना चा हए था। ले कन कुछ समय बाद उस शहर म उ ह अ े दो त
मल जाते ह। उनका ापार अ ा चलने लगता है। कसी आ या मक सं ा से जुड़ने के
कारण उ ह जीवन जीने क कला आ जाती है। अब अगर कोई उ ह पूछेगा तो वे यही
कहगे- ‘उस समय शहर छोड़ना बलकुल वीकार नह हो रहा था ले कन अब लगता है
अ ा आ हम यहाँ आए अ यथा ब त सारी चीज़ से हम वं चत रह जाते। हम अब पता
चला क इस बदलाहट ने हमारे जीवन को एक नया आयाम दया है।’

बलकुल इसी तरह हम भी अपनेे जीवन म ई घटना को दे ख क कैसे पहले बदलाहट


अ नह लगी। ले कन कुछ समय गुजर जाने के बाद उ ह घटना के लए हम कह
पाएँ क ‘अ ा आ ये घटनाएँ ।’

जैसे कोई ब ा एक कूल से सरे कूल म जाता है तो पहले वह ब त ःखी होता है।
फर उसे नए म मलते ह तो वह कहता है- ‘अगर मने वह कूल नह बदला होता तो ये
म मुझे कहाँ मलते!’ हालाँ क पहले ब े को ब त तकलीफ होती है। ब े के लए
अगर ट चर भी बदल गया तो उसे ःख होता है। मानो, कसी व ाथ का लास ट चर
बदल गया, उसक बदली हो गई, वह ट चर कह और चला गया तो कुछ समय तक, जब
तक वह व ाथ जीवन का सबक नह सीखता, जीवन के नयम नह जानता तब तक वह
ःखी रहता है।

वा त वकता यह है क संसार कुदरती नयम पर चल रहा है। कुदरत नयम के अनुसार


काय कर रही है। बदलाहट कुदरत का नयम है, जो होने ही वाला है। वातावरण ऐसा ही
रहनेवाला नह है जैसा अब है, यह बदलनेवाला है। अगर आपको यह नयम समझा है तो
वह बदलते ही आपको खुशी हो सकती है। वरना कहगे, ‘अरे! फर गरमी आ गई, फर
बा रश शु हो गई, अब या होगा?’ इस तरह इंसान जीवनभर कुढ़ते रहता है। फर भी
बदलाहट तो होती ही है। या कुढ़ने से बदलाहट बंद होती है? नह । अतः इन उदाहरण से
समझ क बदलाहट खूबसूरत य है य क उससे नई चीज़, नया आयाम आता है।
बदलाहट खूबसूरत य है

ब त बार आपने दे खा होगा क ट .वी. पर लंबे समय तक एक ही धारावा हक चलते रहता


है। ऐसे म कई बार करदार नभानेवाला इंसान बदल जाता है। कोई धारावा हक छोड़कर
चला जाता है तो उसक जगह पर कोई नया इंसान आ जाता है। शु म उस इंसान का
अ भनय आपको पसंद नह आता, वीकार ही नह होता, लगता है पुरानावाला ही अ ा
था। सोच, इतनी छोट बदलाहट भी इंसान को पसंद नह आती। फर कुछ समय गुजर
जाने के बाद वही इंसान कहता है- ‘अरे! यह इंसान भी अ भू मका नभा रहा है।’ ऐसा
य आ? इंसान का मन ब त थोड़ा दे ख पाता है। थोड़े प रवतन को भी वह बुरा समझ
लेता है। इस लए डर व असुर ा के भाव म घरकर वह बदलाहट का तरोध करता है। ये
सब हमारे ही जीवन के उदाहरण ह, जसे हम समझ रहे ह क बदलाहट कैसे अ है।

आइए, कुछ और उदाहरण दे खते ह, जससे बदलाहट के नयम पर हमारी समझ और


व ास दोन बढ़े ।

कसी इंसान क कान रोड वा डग (अ त मण) म चली गई। इस घटना से उस इंसान


को ब त ःख आ। एक पल के लए उसे लगा क मेरा सब कुछ ख म हो गया है... अब
मेरे ापार का या होगा?...मेरे ब क पढ़ाई का या होगा?... ऐसे अन गनत सवाल
उसके मन म उठने लगे। उसे लगा ब त बुरा आ मगर उसी इंसान से दस साल बाद अगर
आप पूछगे तो वह यही कहनेवाला है- ‘अरे! ब त अ ा हो गया, हम इस इलाके म आ
गए, बजनेस बढ़ गया, अ े लोग से मुलाकात हो गई, अ े और पढ़े - लखे ाहक आने
लग गए। पहले से ब त अ ा ापार चल रहा है। अ ा आ वह घटना ई।’

ऐसे ही नौकरी म कसी इंसान क एक शहर से सरे शहर बदली हो जाती है। उसे एक
डपाटमट से सरे डपाटमट म भेज दया जाता है तो कैसा ःख शु हो जाता है। इंसान
तुरंत कहता है- ‘मेरे साथ ब त बुरा हो गया।’ ऐसे म उसे समझ याद दलाई जाएगी क
‘ को, ज द ठ पा मत लगाओ य क बदलाहट म नयापन है। नए का वागत करना
सीखो, नए को पहचानो।’

हमारे अंदर जो अनुभव है, वह भी नीत-नया है मगर हमने उसे पुराना मानकर दे खना ही
बंद कर दया है। आँख बंद करगे तो अंधेरा ही अंधेरा रहेगा, ऐसा हम लगने लगता है। अब
आपको उस अनुभव को फर से दे खने का श ण मल रहा है इस लए नया दे ख, नए का
वागत कर। घटना उपहार दे ने के लए आती है। प रवतन अ ा है इस कोण से
जीवन म आए बदलाव को दे ख । प रवतन हमारी शां त खोने नह आया है, यह हम
खलने-खोलने के लए आया है, हमारे जीवन म नयापन लाने के लए आया है।

हम जीवन का महान रह य समझ रहे ह क ‘बदलाहट खूबसूरत है’ तो अब हर घटना


वीकार होगी, आनंद आएगा। फर चाहे कोई बीमारी आए या कसी क मृ यु हो जाए, वह
भी हम सहजता से वीकार कर पाएँगे। मृ यु भी एक बदलाव ही है, जहाँ इंसान का ूल
शरीर समा त हो जाता है और सू म शरीर के साथ उसक या ा जारी रहती है मगर इंसान
को मालूम नह है तो कसी के मरने पर वह ःखी होता है।

एक छोटा ब ा जब कशोर अव ा म जाता है, कशोर से जवान होता है। इस प रवतन


से उसे ःख नह होता, उस समय वह यह नह सोचता क ‘ कशोर मर गया, जवान मर
गया।’ वहाँ उसे समझ रहती है क कशोर अब जवान हो गया है। वैसे ही आपको यह
समझ रखनी है क बूढ़ा इंसान अब सू म शरीर बन गया है। आ कुछ नह , सफ
बदलाहट ई, जो खूबसूरत है मगर अ ान के कारण लगता है क इंसान मर गया ।

जो गुजर गया है, वह अपनी या ा म आगे है। वह पीछे के लोग को बताना चाहता है क
‘मेरे लए मत रोना’ मगर वह बता नह पाता य क अभी तक वैसे मोबाईल नह बने ह।
आगे जब ऐसे मोबाईल बन जाएँग,े जनसे हम जो गुजर गए ह, उनसे बातचीत कर पाएँगे।
तब मृ यु को लेकर होनेवाले डर समा त हो जाएँगे। जब मन करेगा तब हम उनसे वातालाप
कर पाएँगे। पता चलेगा क वे कह गए नह ह मा तरंग ( वे सी) बदल गई है। वे
अलग लेवल पर अपनी अ भ कर रहे ह।

बदलाहट म छपे उपहार खोल

अगर आपने बदलाहट को समझ लया तो हर चीज़ खुद-ब-खुद वीकार होती जाएगी।
जैस-े वातावरण, मृ यु, ापार, , व ाआ द म आई बदलाहट को आप सहजता
से वीकार कर पाएँगे। उदा. खाने का ड बा दे नेवाला एक दन ड बा दे ने से मना कर दया
तो आपको बुरा नह लगेगा। साथ ही नए वचार आएँगे- ‘अब कोई सरा नया ड बेवाला
मलेगा, जो उससे बेहतर खाना लाएगा।’ जस तरह के वा य के लए आप ाथना कर
रहे थे, उसी तरह का खाना आपको मलेगा। इस तरह आप इस बदलाव म छपे उपहार
को खुलने दगे।

उपहार खुलने तक आप न तो परेशान ह गे, न ही अनुमान लगाएँगे। येक घटना जो


वतमान म हो रही है, वह कुदरत से आया आ उपहार है, इस व ास के साथ वीकार
करगे। कुदरत लगातार बदलाहट के ारा आपको मागदशन दे ही रही है। आप आगे बढ़
और सम या को क चड़ नह , ट चर समझ। य क बदलाहट ःख दे ने के लए नह ब क
आपको कुछ सखाने के लए आई है। आप पृ वी पर जीवन के जो भी सबक सखने आए
ह, कुदरत घटना ारा उसी ओर आपका यान आक षत करती है।

वतमान म जो भी चल रहा है, अगर वह मन मुता बक नह आ तो लोग सर पर इ ज़ाम


लगाने लगते ह। जैस-े अगर बेटा माँ का कहा नह सुनता तो सास को लगता है ऐसा ब
क वजह से आ है... ब ा बगड़ गया तो ब को लगता है सास क वजह से ऐसा आ
है। ऐसे ही कुछ भी अनचाहा आ तो मन कसी न कसी पर बॉस, पड़ोसी, भाई, सास,
ब पर इ ज़ाम लगाते रहता है। जब बदलापूर टे शन पर इंसान उतर जाता है तब वह खुद
को याद दलाए क बदलाहट खूबसूरत है। बदलाहट न हो यह हठ नह करना है, बदलाहट
से बदला लेने के बारे म भी नह सोचना है। बदलाहट होती है तो शक होता है क ‘फलाँ
क वजह से ऐसा आ है।’ शक होने क वजह से इंसान बदला लेने के बारे म
सोचता है। ऐसे म मन को कहे- ‘शकुनी नह बनना है, बदलापूर टे शन पर नह उतरना
है।’

इंसान जब भी कुछ दे खता है, सुनता है तब उसके बारे म कथाएँ बनाने लगता है। एक य
है, जसम सामनेवाले ने आपक तरफ दे खा नह तो मन बड़बड़ करने लगता है क ‘यह
इंसान मुझे पसंद नह करता, घमंडी है।’ अब वाकई वह पसंद नह करता या यह तु हारी
कथा है, इस पर इंसान सोच ही नह पाता और अपने मन क कथा को ही सच मान लेता
है।

कथा से मु पाएँ

एक इंसान कहता है- ‘इस इंसान ने मुझे दस साल पहले थ पड़ मारी थी ले कन उस थ पड़


को म आज तक भूला नह ँ, इस इंसान से तो म बदला लेकर ही र ँगा।’ अब उसे यह
नह समझता क सामनेवाले ने दस साल पहले उसे एक थ पड़ मारी थी मगर वह दस साल
से उस नफरत को पालकर, बदला लेने क सोच-सोचकर अपने आपको रोज़ थ पड़ मार
रहा है। फक बस इतना ही है क उसने शारी रक थ पड़ मारी और वह इंसान अपने
आपको मान सक थ पड़ मार रहा है। जब उससे पूछेगे क ‘उस इंसान ने दस साल पहले
एक थ पड़ मारी तो तुम इतनी शकायत कर रहे हो, तुम खुद को जो हर दन थ पड़ मार
रहे हो, उसक शकायत य नह कर रहे हो!’ तब वह मनन करने के लए ववश होगा-
‘हाँ, म नफरत म जलकर अपने आपको ही थ पड़ मार रहा ँ।’
जब हम जो जैसा है, उसे वैसा वीकार कर पाएँगे, कोई भी बात का मतलब नह नकालगे
तब हर शकायत से मु होकर सोचगे क ‘सामनेवाले ने यह चीज़ यहाँ रख द य क
यहाँ रख द । बस! इससे यादा अथ नह नकालना हैै।’ इससे आपके अंदर कथा बननी
बंद हो जाएगी। अब आपको घटना सम या नह लगेगी, बदलाहट खूबसूरत लगेगी। आज
यह आपको थोड़े म बताया गया मगर इस बात म गहराई छपी है। इस समझ के साथ
संसार म जाकर काम कर। अ यथा उलटा च चलता रहेगा। लोग पर इ ज़ाम लगाएँग,े
शकायत करगे।

कुदरत का कम संकेत (केस)

कुछ लोग भा य पर इ ज़ाम लगाते ह क ‘हमारा भा य ही खराब है।’ कुछ लोग ई र से


शकायत करते ह और जो भी र ते मले उनके लए कहते ह क ‘पुराने ज म म हमने
बुरा कम कया था इस लए ऐसी बीवी मली, ऐसा प त मला, ऐसे सास-ससुर मले’
आ द। कह न कह इ ज़ाम लगाने क मन क आदत होती है। मगर अब आपको इ ज़ाम
नह लगाना है ब क बदलाहट को नई नज़र से दे खना है। जीवन म कुछ बदलाहट ई र
को आपक ाथना का जवाब दे ने के लए आती है। इसे कम संकेत समझ। कैसे? आइए,
एक उदाहरण ारा समझते ह।

य द एक इंसान को अचानक पाँव म, पीठ म दद होता है तो उसे कुदरत ने कम संकेत


दया क ‘सारा दन आगे झुककर बैठकर या खड़े होकर काम करते हो तो यह कम संकेत
है क अब पाँव का, पीठ का ायाम शु करो।’

इस तरह जब भी आपम बदलाहट लानी हो, ई र को आपक ाथना का जवाब दे ना हो


तब कुदरत आप पर केस करती है। के.एस. यानी कम संकेत। य द शरीर म दद आ तो
तरोध आता है। मन कहता है- ‘बुरा आ’ मगर आप कम संकेत को समझ गए तो सही
कदम उठाएँगे। खान-पान म बदलाहट लानी है तो वह लाएँगे, ायाम क कमी से दद
आया हो तो वह शु करगे। बाहर कोई केस करता है तो हम कतना बुरा लगता है। मगर
कुदरत हम मदद करने के लए केस करती है। जैसे शु आत म बताई गई दस अंध क
कहानी म भी एक अंधे ने संकेत समझा, मनन कया। जो लोग मनन करते ह, वे संकेत
समझते ह और कुदरत आपको कई लोग ारा संकेत दे ते रहती है।

यह कहावत आपने सुनी होगी क ‘कुदरत के कानून म न दे र है, न अंधेर है सफ समझ


का फेर है।’ आज हम कुछ बात समझ रहे ह। कसी स य ान के बारे म आपको भी
कसी ने बताया होगा और कई महीन बाद आज आप संकेत पकड़कर स य तक प ँच
पाए ह । ठ क ऐसे ही दस अंध क कहानी म एक अंधे खोजी ने कम संकेत पहचाना और
वह सरे पेड़ क खोज म नकल गया। जब उसे फल दे नेवाला पेड़ मला तब उसे ब त
खुशी ई और बछड़े दो त भी याद आए। उसे लगा क ‘म उन दो त के पास जाऊँ,
जाकर उ ह बताऊँ।’ ले कन उनम से कुछ म वापस से भीख माँगने लगे थे। कुछ म
पहले से गरे ए सड़े-गले फल खाकर कमज़ोर हो गए थे। ब त दन बाद जब यह अंधा
वापस उनके पास आया और बताया क ‘चलो, मुझे सरा फल से भरा पेड़ मल गया है’
तब पुराने म उसे ही बहका आ समझने लगे।

जो लोग भगवान बु क कहानी जानते ह उ हं पता है, ान मलने के बाद जब वे अपने


पुराने म के पास गए और उ ह बताया क ‘शरीर को तपानेवाली साधना क , भूखे
रहने क ◌़ज़ रत नह है’ तब उन दो त ने भी भगवान बु को योग समझा और
उनका अनादर कया। ठ क वैसा ही उस अंधे खोजी के साथ आ ले कन उसने अपनी
खोज जारी रखी और यह पता लगाना शु कया क कब वातावरण म बदलाहट शु
होती है, कब पेड़ से फल गरने कम होते जाते ह! य क अचानक से फल गरने बंद नह
होते, कुदरत ब त पहले से कम संकेत दे ने लगती है क ‘प रवतन आनेवाला है। नई
व ा करने क ज़ रत है।’ इस तरह अंधा खोजी नए पेड़ क तलाश करने लगता है
और ऐसे ही खोज करते-करते एक दन उसे पूरे जगंल का न ा, जंगल का राज़ पता चल
जाता है।

उस अंधे खोजी क तरह हम भी जीवन का स य (न ा) जतनी ज द हो सके, समझ


लेना चा हए। कुछ लोग यह सोचकर क 50 साल के बाद अ या म म जाएँगे, वे स य से
अन भ रहते ह। जब क जतना ज द स य मले उतना ही जीवन सुंदर होगा। जवानी को
मौका करके ल। लोग जवानी का समय यूँ ही थ म गँवा दे ते ह। उ ह ात नह है क यह
जो उ है इसम वे अपनी ताकत का उपयोग स य ा त के लए कर सकते ह। सोच,
भगवान महावीर या भगवान बु ने ऐसा या कया, जस वजह से आज भी लोग को
लाभ मल रहा है। उ ह ने उस जवानी का फायदा लया, साधनाएँ क और ब त कम उ
म उ ह ान मला। ठ क वैसे ही इस मौके का उस अंधे खोजी ने भी फायदा उठाया और
उसे पूरा न ा मालूम पड़ गया।

आगे उस अंधे खोजी क कहानी म या आ, वह हम जान रहे ह और उसके मा यम से


हम अपने बारे म कुछ सबक हा सल कर रहे ह। जंगल के बीच म एक राजमाग था, जो
अंधे खोजी को मल गया। वह उस राजमाग से आगे गया तो उसे एक अ ताल मला,
जहाँ पर अंध के आँख का ऑपरेशन होता था। अब दे ख, कहानी कहाँ से कहाँ प ँच गई,
उसक आँख का ऑपरेशन आ और उसे सब दखने लगा। उसने दे खा क अ ताल म
सभी लोग हँसते रहते ह।

जब लोग से उसने इसका राज़ पूछा तो उ ह ने बताया क ‘जब हम स य का वण करते


ह तब हँसते हऔर जब यादा परेशान होते ह तब भी हँसते ह।’ अब उसके सामने जीवन
का रह य खुलने लगा क ‘खुश रहना ही परेशा नय से मु होने क दवा है।’ अ धकतर
लोग का तक कहता है- ‘सुख म ही खुश रहा जा सकता है, ःख म कहाँ कोई खुश रह
सकता है?’ जब क वा त वकता यह है क ःख म खुश रहना अ त आव यक है य क
उसी से ही तो ःख समा त होकर सम या का समाधान मलता है।

ये सारी बात जब उस खोजी ने सुनी तो उसम स य जानने क यास जगी। लोग के बताए
अनुसार उसने अ ताल के पीछे जो आ म था, वहाँ जाकर वण कया। वहाँ कुछ लोग
से बातचीत ई तो आवाज़ से पहचाना क सबसे पहले जो म चले गए थे, वे म उसे
मले। य क आवाज़ से ही वे एक- सरे को जानते थे। उ ह ने कहा- ‘चलो, हम पुराने
म के पास जाते ह, उ ह भी इसके बारे म बताते ह।’ मगर जब तक वे पुराने म के
पास प ँचते, तब तक उनक चता चता बन चुक थी।

ता पय- लोग बदलाहट को वीकार न करके, चता म चता तक प ँच जाते ह।

‘बदलाहट न हो’, इस वचार को बदल

उपरो कहानी के मा यम से हमने यह जानने का यास कया क बदलाहट को खूबसूरत


समझा तो सम या है ही नह । सम या बनानेवाला भी अंदर है और उसका इलाज़ भी अंदर
ही है तो बाहर दोष लगाना बंद हो जाएगा। जब भी लगे क वातावरण बदल गया...
व ा बदल गई... ापार बदल गया... वकशॉप बदल गया... ा ध आ गई...
वातावरण म बदलाहट... मौसम म बदलाहट... कसी क मृ यु... आ द म आपका चैन नह
खोना चा हए।

आप नए कोण से बदलाहट को दे खना सीखगे। जब ऐसी बदलाहट आए तो मन म


कह- ‘मेरी द योजना के अनुसार यह आव यक है, जो भी ज़ रत है वह आ जाए।’
उदा. आपका कोई म शहर छोड़कर सरे शहर जा रहा है तो खुद से कह- ‘ठ क है द
योजना के अनुसार उसका जाना सही है तो भले ही जाए।’ जैसे ही आप ाथना करते ह
‘ द योजना के अनुसार’ वैसी नई चीज़ आपके पास नया आयाम, नया वकास, नया
पांतरण लेकर आती है तब बदलाहट खूबसूरत हो जाती है।
अतः बदलाहट न हो इस वचार को बदल। घटना कोई भी हो, कम से कम आप अपनी
भावना को बदल सकते ह। मानो, आप मं दर गए और आपक च पल चोरी हो गई। अब
उसके लए आप कुछ नह कर सकते मगर अपने वचार तो बदल सकते ह। आप सोच
सकते ह क उस च पल क जसे ज़ रत थी, वह उस तक प ँच गई। इस तरह अपने
वचार बदलने का नणय आप ही को लेना होगा, न क मं दर के भगवान को।

कुछ लोग क सोच ऐसी भी होती है क य द उनक च पल चोरी हो जाए तो वे कसी और


क च पल पहनकर चले आते ह। समझ नह है तो इंसान इस तरह का कम करता है। मगर
अब समय आया है अपने वचार को बदलने का और यह बदलेगा भ यु तसाद दे ने
से। इसी से नए जीवन का नमाण होगा। वरना पुराने कम करते रहगे तो वे ही चीज़ मलते
रहगी, जो आज तक मलते आई ह। अब नया कम शु होगा, उसे ही तेजकम कहा गया
है। इस तेजकम के साथ आप आगे बढ़गे।

आइए, अब दस अंध क एक और कहानी से कुछ समझने का यास करते ह।

एक बार एक गाँव से दस लोग शहर जा रहे थे। शहर जाते समय रा ते म उ ह नद पार
करनी पड़ती थी। सभी ने नद पार क और सोचा हम एक बार अपनी गनती कर लेते ह
क कह कोई डू बा तो नह य क जब वे लोग गाँव से नकल रहे थे तब गाँववाल ने उनसे
कहा था- ‘आप लोग आपस म एक- सरे का खयाल रखना और दस जा रहे हो तो वापस
आते समय भी सभी साथ ही लौटकर आना।’ इस लए अब उनम से एक ने गनना शु
कया । गनने पर नौ ही लोग हो रहे थे इस लए सभी परेशान हो गए क हमारा एक साथी
कहाँ गया! सरे ने गनना शु कया मगर वह भी वही गलती कर रहा था। अपने आपको
छोड़कर सबको गन रहा था और सब परेशान हो रहे थे।

इस कहानी से हम पता चला क सब लोग कतने मूख ह। लोग खुद को छोड़कर सबक
गनती कर रहे ह। ठ क इसी तरह इंसान के साथ भी होता है, वह ‘म कौन ँ’ यह जानने
पृ वी पर आया है मगर अपने आपको छोड़कर उसे सबको जानने क पड़ी रहती है- ‘यह
पड़ोसी कौन है? उसके पास कौन मेहमान आया है? उसके पास कौन सी कार है? उस कार
म ए.सी. है या नह ? उसके लोग बड़े जान-पहचानवाले लगते ह’ आ द। वह खुद क पूछ-
ताछ छोड़कर नयाभर क पूछ-ताछ करते रहता है।

उसी व वहाँ से एक साधु गुजर रहा था। उस साधु को उ ह ने रोका और अपनी सम या


बताई क ‘हमारा एक साथी डू ब गया है। हम दस लोग थे मगर अब गनती म नौ ही लोग
हो रहे ह तो कृपया आप हमारी सहायता कर।’ साधु ने दे ख लया क दस तो इधर ह ही।
उसने कहा- ‘अ ा ऐसा करते ह क अब तुम सब लोग एक लाइन म खड़े हो जाओ, म
हरेक के सर पर एक डंडा मा ँ गा, जसे डंडा लगे वह कहे- ‘म ँ एक, म दो ँ।’ इस तरह
सबको डंडा पड़ा और दस तक क गनती पूरी हो गई। सब ब त खुश हो गए क यह तो
चम कार हो गया ले कन आप जानते ह यहाँ कैसा चम कार आ!

असली चम कार तो वह है जब इंसान खुद को जानने लगे और वही बनकर जीए। इससे
बाक चम कार अपने आप ही जीवन म होने लगगे। जसम आप फँसगे नह । हालाँ क
बोनस म तो ब त सी बात ह गी। असली आनंद तो आने ही वाला है, उसे कह तलाश
करने क ज़ रत ही नह है।

इस तरह आपने एक नई और एक पुरानी कहानी सुनी, दोन का मम एक ही था खुद को


जानना।

हक कत म म कौन ँ

स य वण म आपको जो सीख मली है, उसका नरंतरता से अ यास कर। जब आप ‘म


कौन ’ँ यान म बैठगे तो जो भी रटे -रटाए, घसे- पटे आज तक अपने आपको मान रखे
ए सारे जवाब आएँगे- ‘म पु ष ँ... ी ँ... ह ँ... मुसलमान .ँ .. बहन ँ-भाई ँ...
काला -ँ गोरा .ँ .. माट -ँ बु ँ...’ जो भी ह, सब सम पत कर दए तो आप खाली हो
जाएँगे। दनभर म जो भी कचरा भर जाता है, वह नकल जाएगा। फर आप जो शु ह,
वह बन जाएँगे।

आपका यान यादा से यादा दय ान (तेज ान) पर रहे, यह अ यास से ही होगा।


गृ हणी है तो वह रसोई घर म काम करते-करते दय ान पर रहते ए काय करके दे खे।
दय ान पर जाने म कन यूजन लगे तो ‘स य क पं , जस पर आपक ढ़ता हो,
दोहराएँ। इससे आप अपने दय ान पर प ँच जाएँगे। आप बार-बार भूल जाएँगे ले कन
वापस से याद दलाएँगे तो रसोई घर का काय भी टै बलाइजेशन के लए न म बनेगा।
जो लोग ऑ फस म कं यूटर पर काय कर रहे ह, वे बीच-बीच म दय ान पर जाएँ और
खुद को याद दलाएँ। व ाथ बीच-बीच म खुद को याद दलाए क दय ान पर रहकर
ही मेरी अ पढ़ाई हो सकती है। अगर कोई कुछ बता रहा है तो उसे भी दय ान पर
रहकर ही सुन। वरना कोई चुटकुला सुना रहा है मगर वह य द सुना आ हो तो हम कहते
ह- ‘हाँ, मुझे मालूम है।’ य द समझ होगी तो कहगे- ‘चलो! अभी दय ान पर रहकर
सुनते ह।’ ऐसे म सुनानेवाल को भी आनंद आएगा और आप भी उसका आनंद लगे। इस
तरह बार-बार दय ान पर जाने का अ यास कर।

कुछ लोग के मन म एक बात रह जाती है क ‘म सबके साथ अ ा वहार कर सकता


ँ ले कन मेरे पड़ोसी या बॉस के साथ नह ।’ सास कहेगी- ‘म सभी को अ ा मान सकती
ँ मगर अपनी ब को नह ।’ ब कहेगी- ‘म सभी को अ ा मान सकती ँ मगर सास को
नह ।’ प नी कहेगी- ‘मेरा प त शराब पीता है, मुझे मारता है’, इसके साथ मेरी कभी नह
बनेगी।’ कोई कहेगा- ‘यह मेरा पड़ोसी है, मेरे घर के सामने कचरा फककर जाता है।
इस लए इन सबको म अ ा इंसान नह मान सकता।’

ऐसे म आपसे कहा जाएगा मानो, आपका भाई न द म सोया आ है और कोई आपसे
आकर पूछे क ‘यह कौन है?’ तो आप या कहेगे? यही क ‘यह मेरा भाई है।’ फर य द
आपसे कहा जाए क ‘यह तु हारा भाई कैसे हो सकता है? यह तो सोया आ है?’ तब भी
आप यही कहगे- ‘सोया आ है तो या आ, है तो मेरा भाई ही।’ ठ क इसी तरह य द
आप कसी को अ ा इंसान न मानते ह तो समझ यह रख क उस शरीर म चेतना का
तर न न है। कसी शरीर म चेतना बेहोश होती है। कहने का अथ शरीर अलग-अलग ह
मगर ई रीय चेतना सबम एक ही है। इंसान ज़दा है, ज़दा होने का अनुभव ही चेतना है,
वह से काय हो रहे ह। फर चाहे वे काय बेहोशी म ही य न हो रहे ह । यू नवसल आय
सबके अंदर एक ही है। शरीर ई र नह होता, शरीर तो शव है। शव यानी लाश। शरीर लाश
है, कैलाश कोई और है। शरीर शव है, शव कोई और है। इस लए शरीर को शव (भगवान,
ई र, अ लाह) समझने क भूल कभी न कर।

लोग अ ान क वजह से ानी बन जाते ह और कहते ह- ‘हम स य मालूम है’ मगर उनके
जीवन म स य उतरा नह होता है। जीवन वैसे ही शकायतभरा, ःखी होता है। हालाँ क
मन को नमल, ेमन, अकंप और आ ाकारी बनना था, वह तो बन ही नह पाया और
अ ान म इंसान कहता है- ‘हम सब मालूम है।’ ऐसा ान होना, न होने के बराबर है।

अं तम ान भ से मलता है। भ म ही इंसान जुआ खेलना, शराब पीना, नशा करना


सारे सन छोड़कर शरीर को मं दर जैसा प व बना लेता है। समझ बढ़ने के साथ वतः
ही कुछ चीज़ होने लगती ह, उसे करना नह पड़ता। वतः ही लगेगा क अब हम ई र के
ेमी ह।

इस मागदशन म कहानी के ारा आपको कुछ संकेत दए गए। जन पर अमल कर, उ ह


जीवन म उतार, इसी शुभे ा के साथ हॅपी थॉट् स।

... सर ी
परश
सर ी - अ प प रचय

सर ी क आ या मक खोज का सफर उनके बचपन से ारंभ हो गया था| इस खोज के


दौरान उ ह ने अनेक कार क पु तक का अ ययन कया| इसके साथ ही अपने
आ या मक अनुसंधान के दौरान अनेक यान प तय का अ यास कया| उनक इसी
खोज ने उ ह कई वैचा रक और शै णक सं ान क ओर बढ़ाया| इसके बावजूद भी वे
अं तम स य से र रहे| उ ह ने अपने त कालीन अ यापन काय को भी वराम लगाया ता क
वे अपना अ धक से अ धक समय स य क खोज म लगा सक| जीवन का रह य समझने के
लए उ ह ने एक लंबी अव ध तक मनन करते ए अपनी खोज जारी रखी| जसके अंत म
उ ह आ मबोध ा त आ| आ मसा ा कार के बाद उ ह ने जाना क अ या म का हर माग
जस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अ डर टै डंग)|

सर ी कहते ह क ‘स य के सभी माग क शु आत अलग-अलग कार से होती है ले कन


सभी के अंत म एक ही समझ ा त होती है| ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने
आपम पूण है| आ या मक ान ा त के लए इस ‘समझ’ का वण ही पया त है|’

सर ी ने दो हजार से अ धक वचन दए ह और स र से अ धक पु तक क रचना क है|


ये पु तक दस से अ धक भाषा म अनुवा दत क जा चुक ह और मुख काशक ारा
का शत क गई ह, जैसे पगुइन बु स, हे हाऊस प लशस, जैको बु स, हद पॉकेट बु स,
मंजुल प ल शग हाऊस, भात काशन, राजपाल ऍ ड स स इ या द|

सर ी - अ प प रचय

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