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रामायण के अनसुने रहस्य

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रामायण के अनसुने रहस्य

जिनके बारे मैं शायद आप नही जानते हो, रामायण को ऋषि वाल्मीकी द्वारा लिखा गया था।जिसमें उन्होंने ने मूल रूप से भगवान राम ओर सीता के
जन्म से लेके मृत्यु तक की सभी बातों का उल्लेख किया गया है। भगवान राम अयोध्या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे, राजा दशरथ को चार पुत्र
थे जिनका नाम राम, भरत, लक्ष्मण ओर शत्रुघन थे और सीता माता मिथिला नरेश जनक की पुत्री थी ऐसा माना जाता है के राजा जनक को कोई
संतान नही थे एक ऋषि के कहने पे अपने नगर मैं पड़े सूखे के अकाल को ख़त्म करने के लिए यग़ किया ओर यग के बाद उन्होंने राजा को हल जोतने
के लिए कहा और हल जोतने के समय उन्हें वहाँ पे सोने की टोकरी से मिटी मैं लिपटी हुए एक सुन्दर कन्या मिली जिसे हाथों मैं लेते हे उन्हें पिता होने
के ऐहसास हुआ। राजा ने उस कन्या को अपना लिया ओर सीता नाम दिया जिन्हें हम माता सीता के नाम से जानते है।
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रामायण के अनसुने रहस्य १

हम आपको रामायण के कु छ ओर अनसुने रहस्य के बारे मैं बताते है ।महाराज दशरत के पुत्रों के बारे में हम सभी जानते है ,परंतु उनकी पुत्री
के बारे में बहोत कम लोग जानते है।महाराज दशरत की सबसे पहली और सबसे बड़ी संतान उनकी पुत्री शांता थी, जिसकी माता कौशल्या थी
।ऐसी मान्यता है की अंग देश के राजा रोमपद और रानी वर्शनी अयोध्या आए तब बातचीत के दौरान महाराज दशरत को ये पता चला की
उन्हें कोई संतान नही है ।तब महाराज दशरत न उन्हें कहा मैं अपनी पुत्री आपको दूँगा ,यह सुन राजा रोमपद बड़े ख़ुश हुए उन्होंने बड़े प्यार से
शांता का पालन पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य पूरे किए।एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बात कर रहे थे,उसी समय द्वार
पर एक ब्राह्मण आए और उन्होंने राजा से प्रार्थना की, वर्षा के दिनो में खेती के जुताई में राज दरबार से उन्हें मद्दत मिले, राजा को यही सुनाई
दिया और वे पुत्री से बात करते रहे।द्वार पर आए नागरिक को की याचना न सुनन्ने से ब्रह्मण को बुरा लगा और वे राजा रोमपद का राज्य
छोड़कर चले गए।वह ब्राह्मण इंद्र देव के भक्त थे, अपने भक्त की ऐसी दशा देखकर इंद्र देव राजा रोमपद पर रूष्ट हुए।और उन्होंने उनके राज्य में
पर्यापत्य वर्षा नही की,इससे खेतों में खड़ी फ़सले मुरझाने लगी।इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद ऋशेंग ऋषि के पास गए और उन्हें उपाय
पूछा।ऋषि ने बताया की वे इंद्र देव को प्रसन्न कर ने के लिए यज्ञ करे ,ऋषि ने यज्ञ किया और खेत खलियान पानी से भर गए।इसके बाद ऋशेंग
ऋषि का विवाह राजकु मारी शांता से हुआ।ऋशेंग ऋषि ने ही महाराज दशरत के लिए पुत्र प्राप्ति का यज्ञ किया था ।
रामायण के अनसुने रहस्य-२

हम सभी जानते है की प्रभु श्री राम, भगवान विष्णु के अवतार


है ,परंतु उनके अंन्य भाई भरत ,लक्ष्मण ,शत्रुग़्न किस के
अवतार है ।कहा जाता है की लक्ष्मण शेषनाग के अवतार है,जो
शिरसागर में स्तित प्रभु विष्णु का आसान है,जबकि भरत और
शत्रुग़्न भगवान विष्णु द्वारा हथोमे धारण किए गए सुधरशन चक्र
तथा शंख शेल के अवतार थे।

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रामायण के अनसुने रहस्य-३

रामायण के हर हज़ार श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है
।गायत्री मंत्र में २४ अक्षर होते है और वाल्मीकि रामायण में २४००० श्लोक है ।
एक हज़ार श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है।यह मंत्र
इस पवित्र महा काव्य का सार है।रुग्ह वेद में गायत्री मंत्र को सर्व प्रथम उल्लेखित
किया गया है।
रामायण के अनसुने रहस्य-4

क्या आप जानते है की सीता स्वयमवर में उपरूक्कत शिव भगवान के धनुष्य का क्या नाम था।हम सब
यह जानते है की प्रभु श्री राम का विवाह सीता माता से एक स्वयमवर के माधम से हुआ था,उस
स्वयमवर में शिव भगवान के धनुष्य का उपयोग किया गया था।जिस पर राजकु मारों को प्रतिंचा चढ़ाना
था।परंतु बहोत से कम लोग को यह पता होगा की शिव भगवान के उस धनुष्य का नाम पिनाग़ था ।
रामायण के अनसुने रहस्य-५

लक्ष्मण को और कौन से नाम स जाना जाता है? लक्ष्मण को गुदाके श के नाम से भी जाना जाता था।ऐसा माना जाता है की वनवास के
चौदा वर्ष के दौरान भैया राम और भाभी सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण कभी सोते नही थे, इसीलिए उन्हें गुदाके श के नाम से भी जाना
जाता था।वनवास के पहेले रात जब राम और सीता सो रहे थे, तब निद्रा देवी लक्ष्मण के साम ने प्रकट हुई तब उन्होंने निद्रा देवी से ऐसा
वरदान माँगा की चौदा वर्ष के वनवास में उन्हें कभी भी नींद ना आए, और वह अपने भैया -भाभी का सरक्षण करे।निद्रा देवी इस बात पर
प्रसन्न हुई, और उनसे कहा की अगर कोई तुम्हारे बदले चौदा वर्ष तक सोए, तो मैं तुम्हें ये वरदान दे सकती हूँ।लक्ष्मण की सलाह पर
निद्रा देवी सीता की बहन और लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के पास पोहची, उर्मिला ने लक्ष्मण के बदले सोना स्वीकार कर लिया।और इस
तरह उर्मिला चौदा वर्ष तक लक्ष्मण और अपनी नींद भोगती रही।
रामायण के अनसुने रहस्य-६

वनवास के दौरान राम, सीता ,और लक्ष्मण जिस वन में रहते है उस वन का नाम क्या था? हम
सभी जानते है की, वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण वन में रहते थे। उस वन का नाम
दंडकारण्य था।उस वन में ही उन्होंने अपना वनवास काटा था।उस वन में अनेक भयंकर राक्षस
रहते थे इसीलेए उसका नाम दंडकारण्य था,दंड अर्थ सज़ा देना और अरण्य का मतलब वन था ।
रामायण के अनसुने रहस्य-७

रावण के ध्वज में प्रतीक के रूप में क्या था? रावण के ध्वज में प्रतीक के रूप में वीना का चित्र था।रावण एक
उत्कृ ष्ट वीना वादक था। रावण सभी रक्षसोका राजा था।परंतु वह बचपन में सभी लोगों से डरता था,क्योंकि
उसके दस सिर थे। भगवान शिव के प्रति उसकी दृढ़ आस्था थी।रावण एक बहोत बड़ा विद्वान था,उस ने कई
वेदों का अध्यन किया था। रावण एक उत्कृ ष्ट वीना वादक था,परंतु वह इस बात को इतना महत्व नही देता
था।लेकिन उसे यंत्र बजाना बहोत पसंद था।
रामायण के अनसुने रहस्य-८

राम ने आख़िर क्यूँ लक्ष्मण को मृतु दंड दिया? रामायण में बताया गया है की,राम ने अपने प्रिय अनुज को न चाहते हुए भी मृतु दंड दिया था।यह
घटना उस समय की है जब प्रभु श्री राम लंका पे विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या आए थे।बताया जाता है की यम लोक से यमराज कु छ महत्व पूर्ण
चर्चा करने आए थे।उस वक़्त जब वे राम के पास आते है तब वे राम से वचन लेते है की, इस महत्व पूर्ण चर्चा के समय कोई भी उस कक्ष में ना आ
पाए, ना कोई उनकी बात सुन पाए, अगर कोई आता है, या कोई भी उनकी बातें सुनता है तो आप उसे मृतु दंड देंगे।और इस प्रकार प्रभु श्री राम
उन्हें वचन देते है ,और लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त करते हुए कहते है की वे किसी को भी अंदर ना आने दे ,अनन्था मैं उसे मृतु दंड दूँगा।लक्ष्मण
अपने भाई की बात सुन द्वार पर खड़ा होता है, उसके कु छ समय बाद, वहाँ पर ऋषि दुर्वासा का आगमन हुआ।तभी लक्ष्मण को ऋषि दुर्वासा अपने
आगमन की जानकारी देने के लिए कहते है ।
रामायण के अनसुने रहस्य-८

तब लक्ष्मण ने बड़ी विनम्रता के साथ मना कर दिया ।इस बात पर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हुए तथा सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही,तभी
लक्ष्मण मन ही मन सोच लेते है की उन्हें स्वयंम का बलिदान देना ही होगा ।ताकि अयोध्या नगर वासी ऋषि के श्राप से बच सके ।लक्ष्मण भीतर
जाकर ऋषि दुर्वसा के आगमन का सूचना देते है।अब प्रभु श्री राम दुविधा में आगए क्योंकि अपने वचन के अनुसार उन्होंने लक्ष्मण को मृतु दंड देना
था।इस दुविधा की घड़ी में श्री राम ने अपने गुरु ऋषि वशिष्ट को स्मरण किया और इस दुविधा का उपाय पूछा, तब ऋषि वशिष्ट ने कहा की अनपे
प्रिय वस्तु का त्याग करना भी मृतु दंड के बराबर होता है, तो तुम लक्ष्मण का त्याग कर दो ,उसी समय लक्ष्मण विचलित होकर कहते है भैया आप
अपने वचन का पालन करते हुए मुझे मृतु दंड दे दो परंतु मेरा त्याग मत करो,और यह कहकर लक्ष्मण जल समाधि ले लेता है ।
रामायण के अनसुने रहस्य
प्रभू श्री राम ने सरु नदी में जल समाधि ली थी ।ऐसा कहा जाता की देवी
सीता माता ने जब अपना परीत्याग कर पृथ्वी में समा गयी थी, तो उसके बाद
श्री राम ने भी सरूँ नदी जल समाधि ले कर पृथ्वी लोक का परित्याग किया
था ।
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