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: क
ै ा लक सं या के वण कौन - कौन से ह ?
भात काल क सं या - गाय ी का वण - लाल है ,
म या काल क सं या - सा व ी का वण - शु लवण
और सायं काल क सं या का वण - कृ णवण है
उपासना थय क उपासना के लए है
: क
ै ा लक सं या का प या है ?
ातःकाल क सं या - गाय ी - पा , म या सं या -
सा व ी - पा और सायं काल क सं या - सर वती -
व णु पा है ।
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: क
ै ा लक सं या का गो या - या है ?
ातः काल क सं या - गाय ी का गो - सांङ् यायन ,
म या काल क सं या - सा व ी का गो - का यायन एवं
सायं काल क सं या - सा व ी का गो - बा य है ।
: क
ै ा लक सं या म कौन - कौन धातु पा का योग
करना चा हये ?
भ न तथा टू टे पा से सं या करना न दन है । उसी
कार धारा से टू टे ए जल सं या करना मना है । नद म ,
तीथ म , द म - म के पा से , उ बर के पा से ,
सुवण - रजत - ता एवं लकडी के पा से सं या करनी
चा हए ।
:क
ै ा लक सं या - व दन म कौन - कौन से पा
अप व है ?
काँसा , लौह , शीशा . पीतल के पा से आचमन करने
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वाला कभी शु नही हो सकता। अतः इन धातु के बने
पा अप व ह इ ह सं या - व दन म योग न लेना
चा हये।
कन - कन
: ान पर सं या - व दन करना वशेष
फल द है ?
अपने धर अथात् अपने नवास ान पर सं या - व दन
करना समान फल दायक है। गाय के ान पर सौगुना ,
बगीचा तथा वन म हजार गुना , पव पर दस हजार गुना ,
नद के तट पर लाख गुना , दे वालय म करोड़ गुना ,
भगवान् सदा शव शङ् कर के स मुख बैठकर जप करना ,
सं या करने से अन त गुना फल मलता है । धर के बाहर
सं या करने से झूठ बोलने से लगा पाप , म सूँघने से
लगा पाप , दवा मैथनु करने से लगा पाप न होता है ।
अतः सं या धर से वाहर प व ान म करना चा हए ।
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: का ासन तथा व ासन का माप या होना चा हए ?
का ासन 24 अंगल ु ल बा 18 अंगलु चोड़ा 4 या 5 अंगल
ु
ऊँचा होना चा हए ,व ासन 2 हाथ से यादा ल बा नह
होना चा हए 1 एक हाथ से यादा चौड़ा न हो , 3 अंगल ु
से यादा मोटा नह होना चा हए ।
:भ म धारण कै से कर ?
ातः जल मलाकर , म या चंदन मलाकर तथा सायं
के वल भ म ही लगाव ।
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; पु धारण हेतु कौन सा लेना चा हए ?
ीग ाजी के तट पर उ म म को जो ललाट पर
लगाता है वह तमोनाश हेतु भगवान् ीसूयदे व के तेज को
लगाता है । गोमय को जलाकर क ई भ म ही पु
के यो य है । नानकर म - भ म - चंदन व जल से
पु अव य कर क तु जल म जल पु कर ।