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सं या वषयक मरणीय त य

: तीन काल क सं या का नाम या है ?


भात काल क सं या का नाम - गाय ी , म या काल
क सं या का नाम - सा व ी और सायं काल क सं या का
नाम - सर व त है ऐसा त व ऋ षय का वचन है ।

: क
ै ा लक सं या के वण कौन - कौन से ह ?
भात काल क सं या - गाय ी का वण - लाल है ,
म या काल क सं या - सा व ी का वण - शु लवण
और सायं काल क सं या का वण - कृ णवण है
उपासना थय क उपासना के लए है

: क
ै ा लक सं या का प या है ?
ातःकाल क सं या - गाय ी - पा , म या सं या -
सा व ी - पा और सायं काल क सं या - सर वती -
व णु पा है ।
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: क
ै ा लक सं या का गो या - या है ?
ातः काल क सं या - गाय ी का गो - सांङ् यायन ,
म या काल क सं या - सा व ी का गो - का यायन एवं
सायं काल क सं या - सा व ी का गो - बा य है ।

: क
ै ा लक सं या म कौन - कौन धातु पा का योग
करना चा हये ?
भ न तथा टू टे पा से सं या करना न दन है । उसी
कार धारा से टू टे ए जल सं या करना मना है । नद म ,
तीथ म , द म - म के पा से , उ बर के पा से ,
सुवण - रजत - ता एवं लकडी के पा से सं या करनी
चा हए ।

:क
ै ा लक सं या - व दन म कौन - कौन से पा
अप व है ?
काँसा , लौह , शीशा . पीतल के पा से आचमन करने
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वाला कभी शु नही हो सकता। अतः इन धातु के बने
पा अप व ह इ ह सं या - व दन म योग न लेना
चा हये।

कन - कन
: ान पर सं या - व दन करना वशेष
फल द है ?
अपने धर अथात् अपने नवास ान पर सं या - व दन
करना समान फल दायक है। गाय के ान पर सौगुना ,
बगीचा तथा वन म हजार गुना , पव पर दस हजार गुना ,
नद के तट पर लाख गुना , दे वालय म करोड़ गुना ,
भगवान् सदा शव शङ् कर के स मुख बैठकर जप करना ,
सं या करने से अन त गुना फल मलता है । धर के बाहर
सं या करने से झूठ बोलने से लगा पाप , म सूँघने से
लगा पाप , दवा मैथनु करने से लगा पाप न होता है ।
अतः सं या धर से वाहर प व ान म करना चा हए ।

:सं या - करने का समय अगर नकल जाए तो या


या करना चा हए ?
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कसी कारण से सं या का समय नकल जाये वल ब हो
जाये तो ी सूयनारायण भगवान् को चौथा अघ दे ना
चा हए इस अघ दान से काला त मणज य पाप न होता
है।

: सं या - व दन करने के लये कौन से आसन उपयु


है ?
कृ णमृग चम पर बैठने से ान स , ा चम पर बैठने
से मो ा त , ःख नाश के क बल पर वैठना चा हए ।
अ भचार कम करने के लए नील वण के आसन ,
वशीकरण के लए र वण , शा त कम के लए क बल
का आसन , सभी कार के स के लये क बल का
आसन ेय कर है । बांस पर बैठने द र ता ,प थर पर
बैठने से गुदा रोग , पृ वी पर बैठने से ःख , बधी ई
लकड़ी अथात् छे द कया आ { कल लगी ई } पर
बैठकर सं या द करने से भा य , घास पर बैठने से धन
और यश क हानी , प पर बैठकर जप करने - सं या
करने से च ता तथा व म होता है ।

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: का ासन तथा व ासन का माप या होना चा हए ?
का ासन 24 अंगल ु ल बा 18 अंगलु चोड़ा 4 या 5 अंगल

ऊँचा होना चा हए ,व ासन 2 हाथ से यादा ल बा नह
होना चा हए 1 एक हाथ से यादा चौड़ा न हो , 3 अंगल ु
से यादा मोटा नह होना चा हए ।

: लकड़ी क खड़ाऊँ कहाँ - कहाँ नह पहना चा हए ?


आ यागार म , गौशाला म . दे वता तथा ा ण के
स मुख , आहार के समय ,जप के समय पा का का याग
कर दे ना चा हए ।

:भ म धारण कै से कर ?
ातः जल मलाकर , म या चंदन मलाकर तथा सायं
के वल भ म ही लगाव ।

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; पु धारण हेतु कौन सा लेना चा हए ?
ीग ाजी के तट पर उ म म को जो ललाट पर
लगाता है वह तमोनाश हेतु भगवान् ीसूयदे व के तेज को
लगाता है । गोमय को जलाकर क ई भ म ही पु
के यो य है । नानकर म - भ म - चंदन व जल से
पु अव य कर क तु जल म जल पु कर ।

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