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आचामय चाणक्म

से जाने

जजॊदगी के हय ऩहरू को
आचामय चाणक्म
आज से कयीफ 2300 सार ऩहरे ऩहरे ऩैदा हुए चाणक्म बायतीम याजनीतत औय
अथयशास्त्र के ऩहरे विचायक भाने जाते हैं। ऩाटलरऩर
ु ऩटना( के शजक्तशार) नॊद(
िॊश को उखाड़ पेंकने औय अऩने लशष्म चॊदगप्ु त भौमय को फतौय याजा स्त्थावऩत
कयने भें चाणक्म का अहभ मोगदान यहा। ऻान के केंद्र तऺलशरा विश्िविद्मारम
भें आचामय यहे चाणक्म याजनीतत के चतुय खखराड़ी थे औय इसी कायण उनकी
नीतत कोये आदशयिाद ऩय नह)ॊ, फजकक व्मािहारयक ऻान ऩय टटकी है ।

आचामय चाणक्म एक ऐसी भहान विबतू त थे, जजन्होंने अऩनी विद्ित्ता औय


ऺभताओॊ के फर ऩय बायतीम इततहास की धाया को फदर टदमा। भौमय साम्राज्म
के सॊस्त्थाऩक चाणक्म कुशर याजनीततऻ, चतुय कूटनीततऻ, प्रकाॊड अथयशास्त्री के
रूऩ भें बी विश्िविख्मात हुए। इतनी सटदमाॉ गज
ु यने के फाद आज बी मटद
चाणक्म के द्िाया फताए गए लसद्ाॊत औय नीततमाॉ प्रासॊगगक हैं तो भार इसलरए
क्मोंकि उक उन्होंने अऩने गहन अयममन, गचॊतन औय जीिानानब
ु िों से अजजयत
अभक
ू म ऻान को, ऩयू ) तयह तन:स्त्िाथय होकय भानिीम ककमाण के उद्दे श्म से
अलबव्मक्त कि उकमा।

चाणक्म की सादगी ऩाटलरऩर ु के आचामय चाणक्म फहुत विद्िान औय न्मामवप्रम


होने के साथ एक सीधे सादे ईभानदाय सज्जन व्मजक्त बी थे। िे इतने फडे
साम्राज्म के भहाभॊरी होनेके फािजूद छप्ऩय से ढकी कुटटमा भें यहते थे। एक
आभ आदभी की तयह उनका यहनसहन था-। एक फाय मन
ू ान का याजदत
ू उनसे
लभरने याज दयफाय भें ऩहुॊचा याजनीतत औय कूटनीतत भें दऺ चाणक्म की चचाय
सनु कय याजदत
ू भॊरभ्ु ध हो गमा। याजदतू ने शाभ को चाणक्म से लभरने का
सभम भाॊगा। आचामय ने कहाआऩ यात को भेये घय आ सकते हैं। याजदत
ू -
चाणक्म के व्मिहाय से प्रसन्न हुआ। शाभ को जफ िह याजभहर ऩरयसय भें
उनके तनिास के फाये भें ऩछू ने रगा। याज प्रहय) ने फतामाआचामय चाणक्म तो -
फाहय यहते हैं। याजदत
ू ने साचा शामद भहाभॊरी का नगय के फाहय नगय के
सयोिय ऩय फना सॊद ु य भहर होगा। याजदत ू नगय के फाहय ऩहूॊचा। एक नागरयक
से ऩछ
ू ा कि उक चााणक्म कहाॉ यहते है। एक कुटटमा की ओय इशाया कयते हुए
नागरयक ने कहादे खखए-, िह साभने भहाभॊरी की कुटटमा है । याजदत
ू आश्चमय
चकि उकत यह गमा की चाणक्म जैसा चतुय भहाभॊरी एक कुटटमा भें यहता है । उसने
कुटटमा भें ऩहुॊचकय चाणक्म के ऩाॊि छुए। जफ िो याजदत ू औय चाणक्म फातें
कय यहे थे तो उन्होंने फात गचत के फीच गचयाग फझु ा टदमा । आगॊतुक के -
राऩ चर यहा था ऩछ
ू ने ऩय चाणक्म ने कहा की जफ तक याज्म साफन्धी िाताय
तफ तक जो टदमा जर यहा था िो याज को के टदए धन से खय)दे तेर से जर
यहा था रेकि उकन जफ फातचीत व्मजक्तगत हो गई तो भैंने सयकाय) को से जर
यहे टदए को फझ
ु ा कय अऩने व्मजक्तगत टदए को जरा लरमा है । जफ उसने
कुटटमा भें उनके यहने का कायण ऩछ
ू ा तो उन्होंने कहाअगय भैं जनता की कडी -
भेहनत औय ऩसीने की कभाई से फने भहरों से यहूॊगा तो भेये दे श के नागरयक
को कुटटमा बी नसीफ नह)ॊ होगी। चाणक्म की ईभानदाय) औय सादगी ऩय मन ू ान
का याजदत
ू है यान औय नतभस्त्तक हो गमा।

ितयभान दौय की साभाजजक सॊयचना, बभ


ू ॊडर)कृत अथयव्मिस्त्था औय शासन-
प्रशासन को सच
ु ारू ढॊ ग से फताई गई नीततमाॉ औय सर
ू अत्मगधक कायगय लसद्
हो सकते हैं।
॥ चाणक्मनीतत ॥

(वि मिाय(

अच्छे कामय
दारयद्र्मनाशनॊ दानॊ शीरॊ दग
ु तग तनाशनभ ् । अऻाननाशशनी प्रऻा बावना बमनाशशनी
॥ ०५-११ 11:

दरयद्रता का नाश दान से, दग


ु तय त का नाश शार)नता से, भख
ू त
य ा का नाश सद्फवु द् से औय बम का नाश
अच्छी बािना से होता है ।

मावत्स्व्थो ह्ममॊ दे हो मावन्भत्सृ मश्ु च दयू त् । तावदात्सभहहतॊ कुमागत्सप्राणान्ते ककॊ


करयष्मतत ॥ ०४-०४4:

मह नश्िय शय)य जफ तक तनयोग ि स्त्िस्त्थ है मा जफ तक भत्ृ मु नह)ॊ आती, तफ तक भनष्ु म को


अऩने सबी ऩण्
ु म-कभय कय रेने चाटहए क्मोँकि उक अॊत सभम आने ऩय िह क्मा कय ऩाएगा।

श्रत्सु वा धभं ववजानातत श्रत्सु वा त्समजतत दभ


ु तग तभ ् । श्रत्सु वा ऻानभवाप्नोतत श्रत्सु वा
भोऺभवाप्नम
ु ात ् ॥ ०६-०१ 1:

भनष्ु म शास्त्रों को ऩढ़कय धभय को जानता है, भख


ू त
य ा को त्मागकय ऻान प्राप्त कयता है तथा शास्त्रों को
सन
ु कय भोऺ प्राप्त कयता है ।

अतत ठीक नह)ॊ

अततरूऩेण वा सीता अततगवेण यावण् ।अततदानाद्फशरफगद्धो ह्मततसवगत्र वजगमेत ् ॥


०३-१२ 12:

अतत सद ॊु य होने के कायण सीता का हयण हुआ, अत्मॊत अहॊ काय के कायण यािण भाया गमा, अत्मगधक
दान के कायण याजा फलर फाॊधा गमा। अत् सबी के लरए अतत ठीक नह)ॊ है । 'अतत सियथा िजयमते।'
अतत को सदै ि छोड़ दे ना चाटहए।

अध्वा जया दे हवताॊ ऩवगतानाॊ जरॊ जया । अभैथन


ु ॊ जया ्त्रीणाॊ व्त्राणाभातऩो
जया ॥ ०४-१७ 17:
फहुत ज्मादा ऩैदर चरना भनष्ु मों को फढ़
ु ाऩा रा दे ता है , घोड़ो को एक ह) स्त्थान ऩय फाॊधे यखना औय
जस्त्रमों के साथ ऩरु
ु का सभागभ न होना औय िस्त्रों को रगाताय धऩ ु भें डारे यखने से फढ़ ु ाऩा आ
जाता है ।

अऩनी िस्त्तु का भहत्ि

अशरयमॊ नशरनीदरभध्मग् कभशरनीभकयन्दभदारस् ।


ववधधवशात्सऩयदे शभऩ
ु ागत् कुटजऩष्ु ऩयसॊ फहु भन्मते ॥ १५-१५ 15: कुभटु दनी के
ऩत्तो के भयम विकलसत उसके ऩयाग कणो से भस्त्त हुआ बौंया, जफ बा्मिश कि उकसी दसू य) जगह ऩय
जाता है तो िहा लभरने िारे कटसयै मा के पूरों के यस को बी अगधक भहत्ि दे ने रगता है ।

ऩततनगजहाततरीराभ ् उअन्त्रावऩगतोभघग्ु ततनजहाततचेऺु्

ऺीणो वऩनत्समजजतशीरगुणान्कुरीन् ॥ १५-१८ 18: चॊदन का कटा हुआ िऺ


ृ बी सग
ु ध
ॊ नह)ॊ
छोड़ता, फढ़
ू ा होने ऩय बी गजयाज क्रीड़ा नह)ॊ छोड़ता, ईख कोकहू भें ऩीसने के फाद बी अऩनी लभठास
नह)ॊ छोड़ती औय कुर)न व्मजक्त दरयद्र होने ऩय बी सश ु ीरता आटद गण ु ों को नह)ॊ छोड़ता।

अऩभान

तण
ृ ॊ रघु तण
ृ ात्सतर
ू ॊ तर ु ा ककॊ न नीतोऽसौ भाभमॊ
ू ादवऩ च माचक् । वामन
माचतमष्मतत ॥ १६-१६ 16: अऩभान कयाके जीने से तो अच्छा भय जाना है क्मोंकि उक प्राणों के
त्मागने से केिर एक ह) फाय कष्ट होगा, ऩय अऩभातनत होकय जीवित यहने से जीिनऩमयन्त द्ु ख
होगा।

अलबभान

दानाधथगनो भधक
ु या महद कणगतारैदग यू ीकृता् दयू ीकृता् करयवये ण भदान्धफद्
ु ध्मा ।
त्मैव गण्डमग्ु भभण्डनहातनये षा बॊग
ृ ा् ऩन
ु ववगकचऩद्मवने वसजन्त ॥ १७-१८ 18:
अऩने भद से अॊधा हुआ गजयाज (हाथी( मटद अऩनी भॊदफवु द् के कायण, अऩने गॊडस्त्थर (भस्त्तक( ऩय
फहते भद को ऩीने के इच्छुक बौयों को, अऩने कानों को पड़पड़ाकय बगा दे ता है तो इसभें बौयों की
क्मा हातन हुई है ? अथायत कोई हातन नह)ॊ हुई। िहाॊ से हटकय िे खखरे हुए कभरों का सहाया रे रेते है
औय उन्हें िहाॊ ऩयाग यस बी प्राप्त हो जाता है , ऩयन्तु बौयों के न यहने से हाथी के गॊडस्त्थर की शोबा
नष्ट हो जाती है ।

अरग-अरग दृजष्टकोण
एक एव ऩदाथग्तु त्रत्रधा बवतत वीक्षऺत् । कुणऩॊ काशभनी भाॊसॊ मोधगशब्
काशभशब् श्वशब् ॥ १४-१६ 16:

एक ह) िस्त्तु को तीन दृजष्टमों से दे खा जा सकता है । जैसे सद


ुॊ य स्त्री को मोगी भत
ृ क के रूऩ भें
दे खता है, काभक
ु व्मजक्त उसे कालभनी के रूऩ भें दे खता है औय कुत्ते के द्िाया िह भाॊस के रूऩ भें
दे खी जाती है ।

अशुब

नावऩत्म गह
ृ े ऺौयॊ ऩाषाणे गन्धरेऩनभ ् । आत्सभरूऩॊ जरे ऩश्मन ् शक्र्मावऩ धश्रमॊ
हये त ् ॥ १७-१३ 13:

नाई के घय जाकय केश कटिाना, ऩत्थय ऩय चॊदन आटद सग


ु जन्धत द्रव्म रगाना, जर भें अऩने चेहये की
ऩयछाई दे खना, मह इतना अशब
ु भाना जाता है कि उक दे ियाज इॊद्र बी स्त्िमॊ इसे कयने रगे तो उसके
ऩास से रक्ष्भी अथायत धन-साऩदा नष्ट हो जाती है ।

इच्छाएॊ

अधना धनशभच्छजन्त वाचॊ चैव चतष्ु ऩदा् । भानवा् ्वगगशभच्छजन्त


भोऺशभच्छजन्त दे वता् ॥ ०५-१८ 18:

तनधयन धन चाहते है , ऩशु िाणी चाहते है, भनष्ु म स्त्िगय की इच्छा कयते है औय दे िगण भोऺ चाहते है ।

अधभा धनशभच्छजन्त धनभानौ च भध्मभा् । उत्सतभा भानशभच्छजन्त भानो हह


भहताॊ धनभ ् ॥ ०८-०१ 1:

तनकृष्ट रोग धन की काभना कयते है , भयमभ रोग धन औय मश दोनों चाहते है औय उत्तभ रोग
केिर मश ह) चाहते है क्मोंकि उक भान-साभान सबी प्रकाय के धनो भें श्रेष्ठ है ।

ईजप्सतॊ भनस् सवं क्म समऩद्मते सख


ु भ ् । दै वामत्सतॊ मत् सवं
त्भात्ससन्तोषभाश्रमेत ् ॥ १३-१४ 14:

भन की इच्छा के अनस
ु ाय साये सख
ु कि उकसको लभरते है ? कि उकसी को नह)ॊ लभरते। इससे मह लसद् होता
है की 'दै ि' के ह) फस भें सफ कुछ है । अत् सॊतो का ह) आश्रम रेना चाटहए। सॊतो सफसे फड़ा धन
है । सख
ु औय द्ु ख भें उसे सभयस यहना चाटहए। कहा बी है ------'जाटह विगध याखे याभ ताटह विध
यटहमे। '
तण
ृ ॊ ब्रह्भववद् ्वगग्तण
ृ ॊ शयू ्म जीववतभ ् । जजताश्म तण
ृ ॊ नायी तन््ऩह
ृ ्म
तण
ृ ॊ जगत ् ॥ ०५-१४ 14:

ब्रह्भऻातनमो की दज् ष्ट भें स्त्िगय ततनके के सभान है , शयू िीय की दज् ष्ट भें जीिन ततनके के सभान है,
इॊद्रजीत के लरए स्त्री ततनके के सभान है औय जजसे कि उकसी बी िस्त्तु की काभना नह)ॊ है , उसकी दज् ष्ट
भें मह साया सॊसाय ऺणबॊगयु टदखाई दे ता है । िह तत्ि ऻानी हो जाता है ।

इनके फीच से नह)ॊ गुजयना

ववप्रमोववगप्रवह्न्मोश्च दमऩत्समो् ्वाशभबत्सृ ममो् । अन्तये ण न गन्तव्मॊ हर्म


वष
ृ ब्म च ॥ ०७-०५ 5: दो ब्राह्भणों के फीच से, अज्न औय ब्राह्भण के फीच से, ऩतत औय
ऩत्नी के फीच से, स्त्िाभी औय सेिक के फीच से तथा हर औय फैर के फीच से नह)ॊ गज
ु यना चाटहए।

इनको कबी नह)ॊ छूना

ऩादाभमाॊ न ्ऩश
ृ द
े जग्नॊ गुरॊ ब्राह्भणभेव च । नैव गाॊ न कुभायीॊ च न वद्ध
ृ ॊ न
शशशॊु तथा ॥ ०७-०६ 6:

ऩैय से अज्न, गरु


ु , ब्राह्भण, गौ, कन्मा, िद्
ृ औय फारक को कबी नह)ॊ छूना चाटहए।

इनसे दयू यहना

शकटॊ ऩञ्चह्तेन दशह्तेन वाजजनभ ् । गजॊ ह्तसहस्रेण दे शत्समागेन दज


ु न
ग भ् ॥
०७-०७ 7:

फैरगाड़ी से ऩाॊच हाथ, घोड़े से दस हाथ, हठी से हजाय हाथ दयू फचकय यहना चाटहए औय दष्ु ट ऩरु

(दष्ु ट याजा( का दे श ह) छोड़ दे ना चाटहए।

इनसे फचे

कुयाजयाज्मेन कुत् प्रजासख


ु ॊ कुशभत्रशभत्रेण कुतोऽशबतनवतगृ त् । कुदायदायै श्च कुतो
गह
ृ े यतत् कुशशष्मशशष्मभध्माऩमत् कुतो मश् ॥ ०६-१४ 14:

दष्ु ट याजा के याज्म भें प्रजा को सख


ु कहा? दष्ु ट लभर से शाॊतत कहा? दष्ु ट जस्त्रमों से घय भें सख
ु कहा?
दष्ु ट वियमागथयमों को ऩढ़ाने से मश कहा? अथायत मे सबी द्ु ख दे ने िारे है । इनसे सदै ि अऩना फचाि
कयना चाटहए।

ईश्िय हभाया यखिारा है


का धचन्ता भभ जीवने महद हरयववगश्वमबयो गीमते नो चेदबगकजीवनाम
जननी्तन्मॊ कथॊ तनभगभे । इत्समारोच्म भह
ु ु भह
ुग ु मद
ग ऩ
ु ते रक्ष्भीऩते केवरॊ
त्सवत्सऩादामफज
ु सेवनेन सततॊ कारो भमा नीमते ॥ १०-१७ 17:

मटद बगिान जगत के ऩारनकताय है तो हभें जीने की क्मा गचॊता है? मटद िे यऺक न होते तो भाता
के स्त्तनों से दध
ू क्मों तनकरता? मह) फाय-फाय सोचकय हे रक्ष्भीऩतत ! अथायत विष्णु ! भै आऩके
चयण-कभर भें सेिा हे तु सभम व्मतीत कयना चाहता हूॊ।

उऩमुक्त के ऩास जाना

गममते महद भग
ृ ेन्रभजन्दयॊ रभमते करयकऩारभौजततकभ ् । जमफक
ु ारमगते च
प्राप्मते वत्ससऩच्
ु छखयचभगखण्डनभ ् ॥ ०७-१८ 18:

भनष्ु म मटद लसॊह की भाॊद के तनकट जाता हे तो गजभोती ऩाता है औय लसमाय की भाॊद के ऩास से
तो फछड़े की ऩछ
ूॊ औय गधे के चभड़े का टुकड़ा ह) ऩाता है ।

कभय पर

आत्सभाऩयाधवऺ
ृ ्म परान्मेतातन दे हहनाभ ् । दारयद्र्मद्ु खयोगाणण फन्धनव्मसनातन
च ॥ १४-०२ 2:

भनष्ु म के अधभय रूऩी िऺ


ृ (अथायत शय)य( के पर -----दरयद्रता, योग, द्ु ख, फॊधन (भोह-भामा(, व्मसन
आटद है ।

कभागमत्सतॊ परॊ ऩॊस


ु ाॊ फवु द्ध् कभागनस
ु ारयणी । तथावऩ सधु धमश्चामाग सवु वचामैव कुवगते
॥ १३-१८ 18:

पर कभय के अधीन है, फवु द् कभय के अनस


ु ाय होती है, तफ बी फवु द्भान रोग औय भहान रोग सोच-
विचाय कयके ह) कोई कामय कयते है ।

वऩता यत्सनाकयो म्म रक्ष्भीमग्म सहोदया । शङ्खो शबऺाटनॊ कुमागन्न


दत्सतभऩ
ु ततष्ठते ॥ १७-०५ 5:

जजसका वऩता सभद्र


ु है, जजसकी फहन रक्ष्भी है, ऐसा होते हुए बी शॊख लबऺा भाॊगता है ।

मथा धेनस
ु हस्रेषु वत्ससो गच्छतत भातयभ ् । तथा मच्च कृतॊ कभग कतागयभनग
ु च्छतत
॥ १३-१५ 15.
जैसे हजायो गामों के भयम बी फछड़ा अऩनी ह) भाता के ऩास आता है ,उसी प्रकाय कि उकए गए कभय कताय
के ऩीछे -ऩीछे जाते है ।

्वमॊ कभग कयोत्समात्सभा ्वमॊ तत्सपरभश्नत


ु े । ्वमॊ भ्रभतत सॊसाये ्वमॊ
त्भाद्ववभच्
ु मते॥ ०६-०९ 9:

जीि स्त्िमॊ ह) (नाना प्रकाय के अच्छे -फयु े ( कभय कयता है, उसका पर बी स्त्िमॊ ह) बोगता है । िह स्त्िमॊ
ह) सॊसाय की भोह-भामा भें पॊसता है औय स्त्िमॊ ह) इसे त्मागता है ।

आम्ु कभग च ववत्सतॊ च ववद्मा तनधनभेव च । ऩञ्चैतातन हह सज्


ृ मन्ते
गबग्थ्मैव दे हहन् ॥ ०४-०१ 1:

मह तनजश्चत है की शय)यधाय) जीि के गबयकार भें ह) आम,ु कभय, धन, वियमा, भत्ृ मु इन ऩाॊचो की सजृ ष्ट
साथ-ह)-साथ हो जाती है ।

कभयशीर

उद्मोगे नाज्त दारयद्र्मॊ जऩतो नाज्त ऩातकभ ् । भौनेन करहो नाज्त नाज्त
जागरयते बमभ ् ॥ ०३-११ 11:

उद्मोग-धॊधा कयने ऩय तनधयनता नह)ॊ यहती है । प्रबु नाभ का जऩ कयने िारे का ऩाऩ नष्ट हो जाता
है । चुऩ यहने अथायत सहनशीरता यखने ऩय रड़ाई-झगड़ा नह)ॊ होता औय िो जागता यहता है अथायत
सदै ि सजग यहता है उसे कबी बम नह)ॊ सताता।

कलरमुग

करौ दशसहस्राणण हरय्त्समजतत भेहदनीभ ् । तदधं जाह्नवीतोमॊ तदधं ग्राभदे वता्


॥ ११-०४ 4:

कलरमग
ु के दस हजाय ि य फीतने ऩय श्री विष्णु (ऩारनकताय( इस ऩथ्
ृ िी को छोड़ दे ते है , उसके आधा
फीतने ऩय गॊगा का जर सभाप्त हो जाता है औय उसके आधा फीतने ऩय ग्राभ के दे िता बी ऩथ्
ृ िी को
छोड़ दे ते है ।

कामय व्मिहाय

अनवज्थतकामग्म न जने न वने सख


ु भ ् । जनो दहतत सॊसगागद्वनॊ
सॊगवववजगनात ् ॥ १३-१६ 16:
अव्मिजस्त्थत कामय कयने िारे को न तो सभाज भें औय न िन भें सख
ु प्राप्त होता है क्मोंकि उक सभाज
भें रोग उसे बरा-फयु ा कहकय जरते है औय तनजयन िन भें अकेरा होने के कायण िह द्ु खी होता है ।

अभमासाद्धामगते ववद्मा कुरॊ शीरेन धामगते । गण


ु ेन ऻामते त्सवामग् कोऩो नेत्रण

गममते ॥ ०५-०८ 8:

वियमा अभ्मास से आती है, सश


ु ीर स्त्िबाि से कुर का फड़प्ऩन होता है । श्रेष्ठत्ि की ऩहचान गण
ु ों से
होती है औय क्रोध का ऩता आॉखों से रगता है ।

आर्मोऩगता ववद्मा ऩयह्तगतॊ धनभ ् । अल्ऩफीजॊ हतॊ ऺेत्रॊ हतॊ


सैन्मभनामकभ ् ॥ ०५-०७ 7:

आरस्त्म से (अयममन न कयना( वियमा नष्ट हो जाती है । दस


ू ये के ऩास गई स्त्री, फीज की कभी से
खेती औय सेनाऩतत के न होने से सेना नष्ट हो जाती है ।

रारमेत्सऩञ्चवषागणण दशवषागणण ताडमेत ् । प्राप्ते तु षोडशे वषे ऩत्र


ु े शभत्रवदाचये त ् ॥
०३-१८ 18:

ऩर
ु से ऩाॊच ि य तक प्माय कयना चाटहए। उसके फाद दस ि य तक अथायत ऩॊद्रह ि य की आमु तक उसे
दॊ ड आटद दे ते हुए अच्छे कामय की औय रगाना चाटहए। सोरहिाॊ सार आने ऩय लभर जैसा व्मिहाय
कयना चाटहए। सॊसाय भें जो कुछ बी बरा-फयु ा है , उसका उसे ऻान कयाना चाटहए।

कार का विधान

कार् ऩचतत बत
ू ातन कार् सॊहयते प्रजा् । कार् सप्ु तेषु जागततग कारो हह
दयु ततक्रभ् ॥ ०६-०७ 7:

कार (सभम, भत्ृ म(ु ह) ऩॊच बत


ू ो (ऩथ्
ृ िी,जर, िाम,ु अज्न, आकाश( को ऩचाता है औय सफ प्राखणमों का
सॊहाय बी कार ह) कयता है । सॊसाय भें प्ररम हो जाने ऩय िह सप्ु तािस्त्था अथायत स्त्िप्नित यहता है ।
कार की सीभा को तनश्चम ह) कोई बी राॊघ नह)ॊ सकता।

तादृशी जामते फवु द्धव्मगवसामोऽवऩ तादृश् । सहामा्तादृशा एव मादृशी बववतव्मता


॥ ०६-०६ 6:

जैसी होनहाय होती है , िैसी ह) फवु द् हो जाती है, उयमोग-धॊधा बी िैसा ह) हो जाता है औय सहामक बी
िैसे ह) लभर जाते है ।
गन्ध् सव
ु णे परशभऺुदण्डे नाकरय ऩष्ु ऩॊ खरु चन्दन्म । ववद्वान्धनाढ्मश्च
नऩ
ृ जश्चयाम्ु धात्ु ऩयु ा कोऽवऩ न फवु द्धदोऽबत
ू ् ॥ ०९-०३ 3:

ब्रह्भा को शामद कोई फताने िारा नह)ॊ लभरा जो की उन्होंने सोने भें सग
ु ध
ॊ , ईख भें पर, चॊदन भें
पूर, विद्िान को धनी औय याजा को गचयॊ जीिी नह)ॊ फनामा।

ऩत्रॊ नैव मदा कयीरववटऩे दोषो वसन्त्म ककॊ नोरक


ू ोऽप्मवरोकते महद हदवा
सम ग म ककॊ दष
ू ् ु े भेघ्म ककॊ दष
ू णभ ् । वषाग नैव ऩतजन्त चातकभख ू णॊ मत्सऩव
ू ं
ववधधना रराटशरणखतॊ तन्भाजजगतॊु क् ऺभ् ॥ १२-०६ 6:

िसॊत ऋतु भें मटद कय)र के िऺ


ृ ऩय ऩत्ते नह)ॊ आते तो इसभें िसॊत का क्मा दो है ? सम
ू य सफको
प्रकाश दे ता है, ऩय मटद टदन भें उकरू को टदखाई नह)ॊ दे ता तो इसभें सम
ू य का क्मा दो है ? इसी
प्रकाय ि य का जर मटद चातक के भह
ुॊ भें नह)ॊ ऩड़ता तो इसभें भेघों का क्मा दो है ? इसका अथय
मह) है कि उक ब्रह्भा ने बा्म भें जो लरख टदमा है , उसे कौन लभटा सकता है ?

यङ्कॊ कयोतत याजानॊ याजानॊ यङ्कभेव च । धतननॊ तनधगनॊ चैव तनधगनॊ धतननॊ
ववधध् ॥ १०-०५ 5:

बा्म की शजक्त अत्मॊत प्रफर है । िह ऩर भें तनधयन को याजा औय याजा को तनधयन फना दे ती है । िह
धनी को तनधयन औय तनधयन को धनी फना दे ती है ।

खान ऩान

अजीणे बेषजॊ वारय जीणे वारय फरप्रदभ ् । बोजने चाभत


ृ ॊ वारय बोजनान्ते
ववषाऩहभ ् ॥ ०८-०७7:

अऩच होने ऩय ऩानी दिा है, ऩचने ऩय फर दे ने िारा है, बोजन के सभम थोड़ा-थोड़ा जर अभत
ृ के
सभान है औय बोजन के अॊत भें जहय के सभान पर दे ता है ।

शोकेन योगा वधगन्ते ऩमसा वधगते तन्ु । घत


ृ ेन वधगते वीमं भाॊसान्भाॊसॊ प्रवधगते ॥
१०-२० 20:

साग खाने से योग फढ़ते है, दध


ू से शय)य फरिान होता है , घी से िीमय (शजक्त( फढ़ता है औय भाॊस खाने
से भाॊस ह) फढ़ता है ।

दीऩो बऺमते ध्वान्तॊ कज्जरॊ च प्रसम


ू ते । मदन्नॊ बऺमते तनत्समॊ जामते तादृशी
प्रजा ॥ ०८-०३ 3:
जैसे द)ऩक का प्रकाश अॊधकाय को खा जाता है औय कालरख को ऩैदा कयता है , उसी तयह भनष्ु म
सदै ि जैसा अन्न खाता है , िैसी ह) उसकी सॊतान होती है ।

ख़ुशी

तुष्मजन्त बोजने ववप्रा भमयू ा घनगजजगते । साधव् ऩयसमऩत्सतौ खरा् ऩयववऩजत्सतषु


॥ ०७-०९ 9:

ब्राह्भण बोजन से सॊतष्ु ट होते है , भोय फादरों की गजयन से, साधु रोग दस
ू यों की सभवृ द् दे खकय औय
दष्ु ट रोग दस
ु यो ऩय विऩजत्त आई दे खकय प्रसन्न होते है ।

्वबावेन हह तुष्मजन्त दे वा् सत्सऩर


ु षा् वऩता । ऻातम् ्नानऩानाभमाॊ वातमदानेन
ऩजण्डता् ॥ १३-०३ 3:

उत्तभ स्त्िबाि से ह) दे िता, सज्जन औय वऩता सॊतष्ु ट होते है । फॊधु-फाॊधि खान-ऩान से औय श्रेष्ठ
िातायराऩ से ऩॊडडत अथायत विद्िान प्रसन्न होते है । भनष्ु म को अऩने भद
ृ र
ु स्त्िबाि को फनाए यखना
चाटहए।

गुणिान

एकोऽवऩ गण
ु वान्ऩत्र
ु ो तनगण
ुग ेन शतेन ककभ ् । एकश्चन्र्तभो हजन्त न च ताया्
सहस्रश् ॥ ०४-०६ 6:

सैकड़ो अऻानी ऩर
ु ों से एक ह) गण
ु िान ऩर
ु अच्छा है । यात्रर का अॊधकाय एक ह) चन्द्रभा दयू कयता है,
न की हजायों तायें ।

को हह बाय् सभथागनाॊ ककॊ दयू ॊ व्मवसातमनाभ ् । को ववदे श् सवु वद्मानाॊ क् ऩय्


वप्रमवाहदनाभ ् ॥ ०३-१३ 13:

सभथय को बाय कैसा ? व्मिसामी के लरए कोई स्त्थान दयू क्मा ? विद्िान के लरए विदे श कैसा? भधुय
िचन फोरने िारे का शरु कौन ?

दाने तऩशस शौमे वा ववऻाने ववनमे नमे । वव्भमो नहह कतगव्मो फहुयत्सना
वसन्
ु धया ॥ १४-०८ 8:

दान, तऩस्त्मा, िीयता, ऻान, नम्रता, कि उकसी भें ऐसी विशे ता को दे खकय आश्चमय नह)ॊ कयना चाटहए क्मोंकि उक
इस दतु नमा भें ऐसे अनेक यत्न बये ऩड़े है ।
धभागथक
ग ाभभोऺाणाॊ म्मैकोऽवऩ न ववद्मते । अजागर्तन्मेव त्म जन्भ
तनयथगकभ ् ॥ ०३-२० 20:

जजसके ऩास धभय, अथय, काभ औय भोऺ, इनभे से एक बी नह)ॊ है , उसके लरए अनेक जन्भ रेने का पर
केिर भत्ृ मु ह) होता है ।

मथा चतशु बग् कनकॊ ऩयीक्ष्मते तनघषगणच्छे दनताऩताडनै् । तथा चतुशबग् ऩर


ु ष्
ऩयीक्ष्मते त्समागेन शीरेन गण
ु ेन कभगणा ॥ ०५-०२ 2:
जजस प्रकाय तघसने, काटने, आग भें ताऩने-ऩीटने, इन चाय उऩामो से सोने की ऩयख की जाती है, िैसे ह)
त्माग, शीर, गण
ु औय कभय, इन चायों से भनष्ु म की ऩहचान होती है ।

व्माराश्रमावऩ ववकरावऩ सकण्टकावऩ वक्रावऩ ऩङ्ककरबवावऩ दयु ासदावऩ । गन्धेन


फन्धयु शस केतकक सवगजन्ता ये को गण
ु ् खरु तनहजन्त सभ्तदोषान ् ॥ १७-२१ 21:

हे केतकी ! मद्मवऩ तू साॊऩो का घय है, परह)न है , काॊटेदाय है , टे ढ़) बी है, कीचड़ भें ह) ऩैदा होती है,
फड़ी भजु श्कर से तू लभरती बी है , तफ बी सग
ु ध
ॊ रूऩी गण
ु से तभ
ु सबी को वप्रम रगती हो। िाकई
एक गण
ु सबी दो ो को नष्ट कय दे ता है ।

स जीवतत गण
ु ा म्म म्म धभग् स जीवतत । गुणधभगववहीन्म जीववतॊ
तनष्प्रमोजनभ ् ॥ १४-१३ 13:

जजसके ऩास गण
ु है, जजसके ऩास धभय है, िह) जीवित है। गण
ु औय धभय से विह)न व्मजक्त का जीिन
तनयथयक है ।

गुणों का भहत्त्ि

न वेजत्सत मो म्म गण
ु प्रकषं सतॊ सदा तनन्दतत नात्र धचत्रभ ् । मथा ककयाती
करयकुमबरबधाॊ भत
ु ताॊ ऩरयत्समज्म त्रफबततग गुञ्जाभ ् ॥ ११-०८ 8:

इसभें कोई आश्चमय नह)ॊ है कि उक जो जजसके गण


ु ों के भहत्त्ि को नह)ॊ जानता, िह सदै ि तनॊदा कयता है ।
जैसे जॊगर) बीरनी हाथी के गॊडस्त्थर से प्राप्त भोती को छोड़कय गज
ुॊ ापर की भारा को ऩहनती है ।

गुणा् सवगत्र ऩज् ू ेन्द्ु ककॊ तथा वन्द्मो


ू मन्ते न भहत्समोऽवऩ समऩद् । ऩण
तनष्करङ्को मथा कृश् ॥ १६-०७ 7:

गण
ु ों की सबी जगह ऩज
ू ा होती है , न की फड़ी साऩजत्तमों की। क्मा ऩखू णयभा के चाॉद को उसी प्रकाय से
नभन नह)ॊ कयते, जैसे दज
ू के चाॉद को ?
ु ैरत्सतभताॊ मातत नोच्चैयासनसॊज्थता् । प्रासादशशखय्थोऽवऩ काक् ककॊ
गण
गरडामते ॥ १६-०६ 6:

आचामय चाणक्म का भत है कि उक व्मजक्त अऩने गण


ु ों से ऊऩय उठता है । ऊॊचे स्त्थान ऩय फैठ जाने से ह)
ऊॊचा नह)ॊ हो जाता। उदाहयण के लरए भहर की चोट) ऩय फैठ जाने से कौआ क्मा गरुड़ फन जाएगा।

ऩयै रततगण
ु ो म्तु तनगण
ुग ोऽवऩ गण
ु ी बवेत ् । इन्रोऽवऩ रघत
ु ाॊ मातत ्वमॊ
प्रख्मावऩतैगण
ुग ै् ॥ १६-०८ 8:

दस
ु यो के द्िाया गण
ु ों का फखान कयने ऩय त्रफना गण
ु िारा व्मजक्त बी गण
ु ी कहराता है , कि उकन्तु अऩने
भख
ु से अऩनी फड़ाई कयने ऩय इॊद्र बी छोटा हो जाता है ।

गुप्त फात

ऩय्ऩय्म भभागणण मे बाषन्ते नयाधभा् । त एव ववरमॊ माजन्त


वल्भीकोदयसऩगवत ् ॥ ०९-०२ 2:

जो नीच व्मजक्त ऩयस्त्ऩय की गई गप्ु त फातों को दस


ु यो से कह दे ते है, िे ह) द)भक के घय भें यहने
िारे साॊऩ की बाॊतत नष्ट हो जाते है ।

गरु

एकभप्मऺयॊ म्तु गुर् शशष्मॊ प्रफोधमेत ् । ऩधृ थव्माॊ नाज्त तद्रव्मॊ मद्दत्सत्सवा
सोऽनण
ृ ी बवेत ् ॥ १५-०२ 2:

जो गरु
ु एक ह) अऺय अऩने लशष्म को ऩढ़ा दे ता है, उसके लरए इस ऩथ्
ृ िी ऩय कोई अन्म चीज ऐसी
भहत्िऩण
ू य नह)ॊ है , जजसे िह गरु
ु को दे कय उऋण हो सके।

एकाऺयप्रदातायॊ मो गर
ु ॊ नाशबवन्दते । श्वानमोतनशतॊ गत्सवा चाण्डारेष्वशबजामते ॥
१३-२० 20 :

जजस गरु
ु ने एक बी अऺय ऩढ़ामा हो, उस गरु
ु को जो प्रणाभ नह)ॊ कयता अथायत उसका साभान नह)ॊ
कयता, ऐसा व्मजक्त कुत्ते की सैकड़ो मोतनमों को बग
ु तने के उऩयाॊत चाॊडार मोतन भें जन्भ रेता है ।

खतनत्सवा हह खतनत्रेण बत
ू रे वारय ववन्दतत । तथा गुरगताॊ ववद्माॊ
शश्र
ु ष ू यु धधगच्छतत ॥ १३-१७ 17:
जजस प्रकाय पािड़े अथिा कुदार से खोदकय व्मजक्त धयती के नीचे से जर प्राप्त कय रेता है, उसी
प्रकाय एक लशष्म गरु
ु की भन से सेिा कयके विद्मा प्राप्त कय रेता है ।

गर
ु यजग्नद्गववजातीनाॊ वणागनाॊ ब्राह्भणो गर
ु ् । ऩततये व गर
ु ् ्त्रीणाॊ सवग्माभमागतो
गर
ु ् ॥ ०५-०१ 1:

जस्त्रमों का गरु
ु ऩतत है । अततगथ सफका गरु
ु है । ब्राह्भण, ऺत्ररम औय िैश्म का गरु
ु अज्न है तथा चायों
िणो का गरु
ु ब्राह्भण है ।

गह
ृ स्त्थाश्रभ

सानन्दॊ सदनॊ सत
ु ा्तु सधु धम् कान्ता वप्रमारावऩनी इच्छाऩतू तगधनॊ ्वमोवषतत
यतत् ्वाऻाऩया् सेवका् । आततथ्मॊ शशवऩज
ू नॊ प्रततहदनॊ शभष्टान्नऩानॊ गह
ृ े साधो्
सॊगभऩ
ु ासते च सततॊ धन्मो गह
ृ ्थाश्रभ् ॥ १२-०१ 1:

घय आनॊद से मक्
ु त हो, सॊतान फवु द्भान हो, ऩत्नी भधुय िचन फोरने िार) हो, इच्छाऩतू तय के रामक धन
हो, ऩत्नी के प्रतत प्रेभबाि हो, आऻाकाय) सेिक हो, अततगथ का सत्काय औय श्री लशि का ऩज
ू न प्रततटदन
हो, घय भें लभष्ठान ि शीतर जर लभरा कये औय भहात्भाओ का सत्सॊग प्रततटदन लभरा कये तो ऐसा
गह
ृ स्त्थाश्रभ सबी आश्रभों से अगधक धन्म है । ऐसे घय का स्त्िाभी अत्मॊत सख
ु ी औय सौबा्मशार)
होता है ।

गचॊता

उत्सऩन्नऩश्चात्सताऩ्म फवु द्धबगवतत मादृशी । तादृशी महद ऩव


ू ं ्मात्सक्म न
्मान्भहोदम् ॥ १४-०७ 7:

गचॊता कयने िारे व्मजक्त के भन भें गचॊता उत्ऩन्न होने के फाद की जो जस्त्थतत होती है अथायत उसकी
जैसी फवु द् हो जाती है , िैसी फवु द् मटद ऩहरे से ह) यहे तो बरा कि उकसका बा्मोदम नह)ॊ होगा।

कुग्राभवास् कुरहीनसेवा कुबोजनॊ क्रोधभख


ु ी च बामाग । ऩत्र
ु श्च भख
ू ो ववधवा च
कन्मा ववनाजग्नना षट्प्प्रदहजन्त कामभ ् ॥ ०४-०८ 8:

फयु े ग्राभ का िास, झगड़ारू स्त्री, नीच कुर की सेिा, फयु ा बोजन, भख
ू य रड़का, विधिा कन्मा, मे छ् त्रफना
अज्न के बी शय)य को जरा दे ते है ।

नाहायॊ धचन्तमेत्सप्राऻो धभगभेकॊ हह धचन्तमेत ् । आहायो हह भनष्ु माणाॊ जन्भना सह


जामते ॥ १२-२० 20:
फवु द्भान ऩरु
ु को बोजन की गचॊता नह)ॊ कयनी चाटहए। उसे केिर एक धभय का ह) गचॊतन-भनन
कयना चाटहए। िास्त्ति भें भनष्ु म का आहाय (भाॉ का दध
ू (तो उसके जन्भ के साथ-साथ ह) ऩैदा होता
है ।

जैसा याजा िैसी उसकी प्रजा

याक्षऻ धशभगणण धशभगष्ठा् ऩाऩे ऩाऩा् सभे सभा् । याजानभनव


ु तगन्ते मथा याजा
तथा प्रजा् ॥ १३-०८ 8:

जैसा याजा होता है, उसकी प्रजा बी िैसी ह) होती है । धभायत्भा याजा के याज्म की प्रजा धभायत्भा, ऩाऩी
के याज्म की ऩाऩी औय भयमभ िगीम याजा के याज्म की प्रजा भयमभ अथायत याजा का अनस
ु यण
कयने िार) होती है ।

जैसी चाह िैसे ह) कभय

गह
ृ ासतत्म नो ववद्मा नो दमा भाॊसबोजजन् । रव्मरबु ध्म नो सत्समॊ ्त्रैण्म
न ऩववत्रता ॥ ११-०५ 5:

घय-गह
ृ स्त्थी भें आसक्त व्मजक्त को विद्मा नह)ॊ आती। भाॊस खाने िारे को दमा नह)ॊ आती। धन के
रारची को सच फोरना नह)ॊ आता औय स्त्री भें आसक्त काभक
ु व्मजक्त भें ऩविरता नह)ॊ होती।

जैसे को तैसा

कृते प्रततकृततॊ कुमागवद्धॊसने प्रततहहॊसनभ ् । तत्र दोषो न ऩततत दष्ु टे दष्ु टॊ सभाचये त ्
॥ १७-०२ 2:

उऩकाय का फदरा उऩकाय से दे ना चाटहए औय टहॊसा िारे के साथ टहॊसा कयनी चाटहए। िहाॊ दो नह)ॊ
रगता क्मोंकि उक दष्ु ट के साथ दष्ु टता का व्मिहाय कयना ह) ठीक यहता है ।

ऻानी

अन्मथा वेदशा्त्राणण ऻानऩाजण्डत्समभन्मथा । अन्मथा तत्सऩदॊ शान्तॊ रोका्


जतरश्मजन्त चाह्न्मथा ॥ ०५-१० 10:

िेद ऩाॊडडत्म व्मथय है, शास्त्रों का ऻान व्मथय है, ऐसा कहने िारे स्त्िमॊ ह) व्मथय है । उनकी ईष्माय औय
द्ु ख बी व्मथय है । िे व्मथय भें ह) द्ु खी होते है, जफकि उक िेदों औय शास्त्रों का ऻान व्मथय नह)ॊ है ।

काभधेनग
ु ुणा ववद्मा ह्मकारे परदातमनी । प्रवासे भातस
ृ दृशी ववद्मा गुप्तॊ धनॊ
्भत
ृ भ ् ॥ ०४-०५ 5:
वियमा काभधेनु के सभान सबी इच्छाए ऩण
ू य कयने िार) है । वियमा से सबी पर सभम ऩय प्राप्त होते
है । ऩयदे स भें वियमा भाता के सभान यऺा कयती है । विद्िानो ने वियमा को गप्ु त धन कहा है, अथायत
वियमा िह धन है जो आऩातकार भें काभ आती है । इसका न तो हयण कि उकमा जा सकता हे न ह) इसे
चुयामा जा सकता है ।

तदहॊ समप्रवक्ष्माशभ रोकानाॊ हहतकामममा । मेन ववऻातभात्रेण सवगऻाअत्सवॊ


प्रऩद्मते ॥ ०१-०३ 3.

रोगो की टहत काभना से भै महाॊ उस शास्त्र को कहूॉगा, जजसके जान रेने से भनष्ु म सफ कुछ जान
रेने िारा सा हो जाता है ।

नाज्त काभसभो व्माधधनागज्त भोहसभो रयऩ्ु । नाज्त कोऩसभो वजह्ननागज्त


ऻानात्सऩयॊ सख
ु भ ् ॥ ०५-१२ 12:

काभ-िासना के सभान दस
ू या योग नह), भोह के सभान शरु नह)ॊ, क्रोध के सभान आग नह)ॊ औय ऻान
से फढ़कय सख
ु नह)ॊ।

रूऩमौवनसमऩन्ना ववशारकुरसमबवा् । ववद्माहीना न शोबन्ते तनगगन्धा्


ककॊशक
ु ा मथा ॥ ०३-०८ 8:

रूऩ औय मौिन से सॊऩन्न तथा उच्च कुर भें जन्भ रेने िारा व्मजक्त बी मटद वियमा से यटहत है तो
िह त्रफना सग
ु ध
ॊ के पूर की बाॊतत शोबा नह)ॊ ऩाता।

श्रोकेन वा तदधेन तदधागधागऺये ण वा । अफन्ध्मॊ हदवसॊ कुमागद्दानाध्ममनकभगशब्


॥ ०२-१३ 13:

एक श्रोक, आधा श्रोक, श्रोक का एक चयण, उसका आधा अथिा एक अऺय ह) सह) मा आधा अऺय
प्रततटदन ऩढ़ना चाटहए।

तऩ

मद्दूयॊ मद्दुयायाध्मॊ मच्च दयू े व्मवज्थतभ ् । तत्ससवं तऩसा साध्मॊ तऩो हह


दयु ततक्रभभ ् ॥ १७-०३ 3:

तऩ भें असीभ शजक्त है । तऩ के द्िाया सबी कुछ प्राप्त कि उकमा जा सकता है । जो दयू है , फहुत अगधक
दयू है , जो फहुत कटठनता से प्राप्त होने िारा है औय फहुत दयू ) ऩय जस्त्थत है, ऐसे सायम को तऩस्त्मा के
द्िाया प्राप्त कि उकमा जा सकता है । अत् जीिन भें साधना का विशे भहत्ि है । इसके द्िाया ह)
भनोिाॊतछत लसवद् प्राप्त की जा सकती है ।
तर
ु ना कयना

नाज्त भेघसभॊ तोमॊ नाज्त चात्सभसभॊ फरभ ् । नाज्त चऺु्सभॊ तेजो नाज्त
धान्मसभॊ वप्रमभ ् ॥ ०५-१७ 17:

फादर के जर के सभान दस
ू या जर नह)ॊ है , आत्भफर के सभान दस
ू या फर नह)ॊ है , अऩनी आॉखों के
सभान दस
ू या प्रकाश नह)ॊ है औय अन्न के सभान दस
ू या वप्रम ऩदाथय नह)ॊ है ।

त्मागना

त्समजेद्धभं दमाहीनॊ ववद्माहीनॊ गर


ु ॊ त्समजेत ् । त्समजेत्सक्रोधभख
ु ीॊ बामां
तन््नेहान्फान्धवाॊ्त्समजेत ् ॥ ०४-१६ 16:

दमाह)न धभय को छोड़ दो, वियमा ह)न गरु


ु को छोड़ दो, झगड़ारू औय क्रोधी स्त्री को छोड़ दो औय
स्त्नेहविह)न फॊध-ु फान्धिो को छोड़ दो।

दान, तऩ औय दमा

वप्रमवातमप्रदानेन सवे तष्ु मजन्त जन्तव् । त्भात्सतदे व वततव्मॊ वचने का


दरयरता ॥ १६-१४ 14:

जीिन की सभाजप्त के साथ सबी दान, मऻ, होभ, फारकि उक्रमा आटद नष्ट हो जाते है , कि उकन्तु श्रेष्ठ सऩ
ु ार
को टदमा गमा दान औय सबी प्राखणमों ऩय अबमदान अथायत दमादान कबी नष्ट नह)ॊ होता। उसका
पर अभय होता है, सनातन होता है ।

आतेषु ववप्रेषु दमाजन्वतश्च मच्रद्धमा ्वल्ऩभऩ


ु तै त दानभ ् । अनन्तऩायभऩ
ु तै त
याजन ् मद्दीमते तन्न रबेद्द्ववजेभम् ॥ १२-०२ 2:

जो व्मजक्त द्ु खी ब्राह्भणों ऩय दमाभम होकय अऩने भन से दान दे ता है, िह अनॊत होता है । हे याजन
! ब्राह्भणों को जजतना दान टदमा जाता है , िह उतने से कई गन
ु ा अगधक होकय िाऩस लभरता है ।

उऩाजजगतानाॊ ववत्सतानाॊ त्समाग एव हह यऺणभ ् । तडागोदयसॊ्थानाॊ ऩयीवाह


इवामबसाभ ् ॥ ०७-१४ 14:

कभाए हुए धन का दान कयते यहना ह) उसकी यऺा है। जैसे ताराफ के ऩानी का फहते यहना उत्तभ
है ।
जन्भ जन्भ मदभम्तॊ दानभध्ममनॊ तऩ् । तेनव
ै ाभमासमोगेन दे ही चाभम्मते
ऩन
ु ् ॥ १६-१९ 19:

अनेक जन्भो से कि उकमा गमा दान, अयममन औय तऩ का अभ्मास, अगरे जन्भ भें बी उसी अभ्मास के
कायण भनष्ु म को सत्कभी की ओय फढाता है, अथायत िह दस
ू ये जन्भ भें बी शास्त्रों के अयममन को
दान दे ने की प्रितृ त को औय तऩस्त्मायत जीिन को दस
ु यो के ऩास तक ऩहुॊचाता है ।

दे मॊ बोज्मधनॊ धनॊ सक
ु ृ ततशबनो सञ्चम्त्म वै श्रीकणग्म फरेश्च
ववक्रभऩतेयद्मावऩ कीततग् ज्थता । अ्भाकॊ भधद
ु ानबोगयहहतॊ नाथॊ धचयात्ससॊधचतॊ
तनवागणाहदतत नैजऩादमग
ु रॊ धषगन्त्समहो भक्षऺका् ॥ ११-१८ 18:

बा्मशार) ऩण्
ु मात्भा रोगो को खाद्म-साभग्री औय धन-धान्म आटद का सॊग्रह न कयके, उसे अच्छी
प्रकाय से दान कयना चाटहए। दान दे ने से कणय, दै त्मयाज फलर औय विक्रभाटदत्म जैसे याजाओ की कीततय
आज तक फनी हुई है । इसके विऩय)त शहद का सॊग्रह कयने िार) भधुभजक्खमाॊ जफ अऩने द्िाया
सॊग्रटहत भधु को कि उकसी कायण से नष्ट हुआ दे खती है तो िे अऩने ऩैयो को यगड़ते हुए कहती है कि उक
हभने न तो अऩने भधु का उऩमोग कि उकमा औय न कि उकसी को टदमा ह)।

ू ॊ कृऩमा सवगजन्तुषु । त्म ऻानेन भोऺेण ककॊ


म्म धचत्सतॊ रवीबत
जटाब्भरेऩनै् ॥ १५-०१ 1:

जजसका ह्रदम सबी प्राखणमों ऩय दमा कयने हे तु द्रवित हो उठता है, उसे ऻान, भोऺ, जटा औय बस्त्भ
रगाने की क्मा जरूयत है ?

वाचाॊ शौचॊ च भनस् शौचशभजन्रमतनग्रह् । सवगबत


ू दमाशौचभेतच्छौचॊ ऩयाधथगनाभ ्
॥ ०७-२० 20:

फोरचार अथिा िाणी भें ऩविरता, भन की स्त्िछता औय महाॊ तक कि उक इजन्द्रमों को िश भें यखकय
ऩविर कयने का बी कोई भहत्ि नह), जफ तक कि उक भनष्ु म के भन भें जीिनभार के लरए दमा की
बािना उत्ऩन्न नह)ॊ होती। सच्चाई मह है कि उक ऩयोऩकाय ह) सच्ची ऩविरता है । त्रफना ऩयोऩकाय की
बािना के भन, िाणी औय इजन्द्रमाॊ ऩविर नह)ॊ हो सकती। व्मजक्त को चाटहए कि उक िह अऩने भन भें
दमा औय ऩयोऩकाय की बािना को फढ़ाए।

दग
ु ण
ुय

अत्समन्तकोऩ् कटुका च वाणी दरयरता च ्वजनेषु वैयभ ् । नीचप्रसॊग्


कुरहीनसेवा धचह्नातन दे हे नयकज्थतानाभ ् ॥ ०७-१७ 17:
अत्मॊत क्रोध कयना, कड़िी िाणी फोरना, दरयद्रता औय अऩने सगे-सॊफजन्धमों से िैय-वियोध कयना, नीच
ऩरु
ु ो का सॊग कयना, छोटे कुर के व्मजक्त की नौकय) अथिा सेिा कयना-----मे छ् दग
ु ण
ुय ऐसे है
जजनसे मक्
ु त भनष्ु म को ऩथ्ृ िीरोक भें ह) नयक के द्ु खो का आबास हो जाता है ।

अनारोतम व्ममॊ कताग अनाथ् करहवप्रम् । आतयु ् सवगऺेत्रष


े ु नय् शीघ्रॊ
ववनश्मतत ॥ १२-१९ 19:

त्रफना विचाय के खचय कयने िारा, अकेरे यहकय झगड़ा कयने िारा औय सबी जगह व्माकुर यहने िारा
भनष्ु म शीघ्र ह) नष्ट हो जाता है ।

कुचैशरनॊ दन्तभरोऩधारयणॊ फह्वाशशनॊ तनष्ठुयबावषणॊ च । सम


ू ोदमे चा्तशभते
शमानॊ ववभञ्
ु चतत श्रीमगहद चक्रऩाणण् ॥ १५-०४ 4:
गॊदे िस्त्र धायण कयने िारे, दाॊतो ऩय भैर जभाए यखने िारे, अत्मगधक बोजन कयने िारे, कठोय िचन
फोरने िारे, सम
ू ोदम से सम
ू ायस्त्त तक सोने िारे, चाहे िह साऺात विष्णु ह) क्मों न हो, रक्ष्भी त्माग
दे ती है ।

कोऽथागन्प्राप्म न गववगतो ववषतमण् क्माऩदोऽ्तॊ गता् ्त्रीशब् क्म न खजण्डतॊ


बवु व भन् को नाभ याजवप्रम् । क् कार्म न गोचयत्सवभगभत ् कोऽथॉ गतो
गौयवॊ को वा दज
ु न
ग दग
ु भ
ग ेषु ऩततत् ऺेभेण मात् ऩधथ ॥ १६-०४ 4:

आचामय चाणक्म का कहना है कि उक इस सॊसाय भें कोई बा्मशार) व्मजक्त ह) भोह-भामा से छूटकय
भोऺ प्राप्त कयता है । उनका कहना है -----'धन-िैबि को प्राप्त कयके ऐसा कौन है जो इस सॊसाय भें
अहॊ काय) न हुआ हो, ऐसा कौनसा व्मलबचाय) है , जजसके ऩाऩो को ऩयभात्भा ने नष्ट न कय टदमा हो,
इस ऩथ् ृ िी ऩय ऐसा कौन धीय ऩरु ु है, जजसका भन जस्त्रमों के प्रतत व्माकुर न हुआ हो, ऐसा कौन ऩरु

है , जजसे भत्ृ मु ने न दफोचा हो, ऐसा कौन सा लबखाय) है जजसे फड़प्ऩन लभरा हो, ऐसा कौनसा दष्ु ट है
जो अऩने साऩण
ू य दग
ु ण
ुय ों के साथ इस सॊसाय से ककमाण-ऩथ ऩय अग्रसय हुआ हो।'

न ध्मातॊ ऩदभीश्वय्म ववधधवत्ससॊसायववजच्छत्सतमे ्वगगद्वायकऩाटऩाटनऩटुधगभोऽवऩ


नोऩाजजगत् । नायीऩीनऩमोधयोरमग
ु रा ्वप्नेऽवऩ नाशरॊधगतॊ भात्ु केवरभेव
मौवनवनच्छे दे कुठाया वमभ ् ॥ १६-०१ 1:

सॊसाय के उद्ाय के लरए जजन रोगो ने विगधऩि


ू क
य ऩयभेश्िय का यमान नह)ॊ कि उकमा, स्त्िगय भें सभथय धभय
का उऩाजयन नह)ॊ कि उकमा, स्त्िप्न भें बी सन्
ु दय मि
ु ती के कठोय स्त्तनों औय जॊघाओॊ के आलरॊगन का बोग
नह)ॊ कि उकमा, ऐसे व्मजक्त का जन्भ भाता के मौिन रूऩी िन को काटने िार) कुकहाड़ी के सभान है ।
न ऩश्मतत च जन्भान्ध् काभान्धो नैव ऩश्मतत । भदोन्भत्सता न ऩश्मजन्त अथॉ
दोषॊ न ऩश्मतत ॥ ०६-०८ 8: जन्भ से अॊधे को कुछ टदखाई नह)ॊ दे ता, काभ भें आसक्त व्मजक्त
को बरा-फयु ा कुछ सझ
ु ाई नह)ॊ दे ता, भद से भतिारा फना प्राणी कुछ सोच नह)ॊ ऩाता औय अऩनी
जरूयत को लसद् कयने िारा दो नह)ॊ दे खा कयता।

ऩक्षऺण् काकश्चण्डार् ऩशन


ू ाॊ चैव कुतकुय् । भन
ु ीनाॊ ऩाऩश्चण्डार्
सवगचाण्डारतनन्दक् ॥ ०६-०२ 2: ऩक्षऺमों भें कौिा, ऩशओ
ु ॊ भें कुत्ता, ऋव -भतु नमों भें क्रोध
कयने िारा औय भनष्ु मो भें चुगर) कयने िारा चाॊडार अथायत नीच होता है ।

भख
ू ्
ग तु प्रहतगव्म् प्रत्समऺो द्ववऩद् ऩश्ु । शबद्मते वातम-शल्मेन अदृशॊ कण्टकॊ
मथा ॥ ०३-०७ 7:

भख
ु य व्मजक्त से फचना चाटहए। िह प्रत्मऺ भें दो ऩैयों िारा ऩशु है । जजस प्रकाय त्रफना आॉख िारे
अथायत अॊधे व्मजक्त को काॊटे बेदते है, उसी प्रकाय भख
ु य व्मजक्त अऩने कटु ि अऻान से बये िचनों से
बेदता है ।

रोबश्चेदगुणेन ककॊ वऩशन


ु ता मद्मज्त ककॊ ऩातकै् सत्समॊ चेत्सतऩसा च ककॊ शधु च
भनो मद्मज्त तीथेन ककभ ् । सौजन्मॊ महद ककॊ गण ु हहभा मद्मज्त ककॊ
ु ै् सभ
भण्डनै् सद्ववद्मा महद ककॊ धनैयऩमशो मद्मज्त ककॊ भत्सृ मन
ु ा ॥ १७-०४ 4:

रोब सफसे फड़ा अिगण


ु है, ऩय तनॊदा सफसे फड़ा ऩाऩ है , सत्म सफसे फड़ा तऩ है औय भन की ऩविरता
सबी तीथो भें जाने से उत्तभ है । सज्जनता सफसे फड़ा गण
ु है, मश सफसे उत्तभ अरॊकाय(आबू ण( है,
उत्तभ विद्मा सफसे श्रेष्ठ धन है औय अऩमश भत्ृ मु के सभान सिायगधक कष्टकायक है ।

दज
ु न

खरानाॊ कण्टकानाॊ च द्ववववधैव प्रततकक्रमा । उऩानन्भख


ु बङ्गो वा दयू तो वा
ववसजगनभ ् ॥ १५-०३ 3:

दष्ु टों औय काॊटो से फचने के दो ह) उऩाम है , जूतों से उन्हें कुचर डारना ि उनसे दयू यहना।

दज
ु न
ग ॊ सज्जनॊ कतभ
ुग ऩ
ु ामो नहह बत
ू रे । अऩानॊ शातधा धौतॊ न श्रेष्ठशभजन्रमॊ
बवेत ् ॥ १०-१० 10:

इस ऩथ्
ृ िी ऩय दज
ु न
य व्मजक्त को सज्जन फनाने का कोई उऩाम नह)ॊ है , जैसे सैकड़ो फाय धोने के
उऩयाॊत बी गद
ु ा-स्त्थान शद्
ु इन्द्र) नह)ॊ फन सकता।
न दज
ु न
ग ् साधदु शाभऩ ु तै त फहुप्रकायै यवऩ शशक्ष्मभाण् । आभर
ू शसतत् ऩमसा घत
ृ ेन
न तनमफवऺ ृ ो भधयु त्सवभेतत ॥ ११-०६ 6:
जजस प्रकाय नीभ के िऺ
ृ की जड़ को दध
ू औय घी से सीचने के उऩयाॊत बी िह अऩनी कड़िाहट
छोड़कय भद
ृ र
ु नह)ॊ हो जाता, ठीक इसी के अनरू
ु ऩ दष्ु ट प्रितृ तमों िारे भनष्ु मों ऩय सदऩ
ु दे शों का कोई
बी असय नह)ॊ होता।

चाण्डारानाॊ सहस्रैश्च सरू यशब्तत्सत्सवदशशगशब् । एको हह मवन् प्रोततो न नीचो


मवनात्सऩय् ॥ ०८-०५ 5:

तत्िदशी भतु नमों ने कहा है कि उक हजायों चाॊडारों के फयाफय एक मिन (ारेच्छ( होता है । मिन से
फढ़कय कोई नीच नह)ॊ है ।

दज
ु न
ग ्म च सऩग्म वयॊ सऩो न दज
ु न
ग ् । सऩो दॊ शतत कारे तु दज
ु न
ग ्तु ऩदे ऩदे
॥ ०३-०४ 4.

दज
ु न
य औय साॊऩ साभने आने ऩय साॊऩ का ियण कयना उगचत है , न की दज
ु न
य का, क्मोंकि उक सऩय तो एक
ह) फाय डसता है , ऩयन्तु दज
ु न
य व्मजक्त कदभ-कदभ ऩय फाय-फाय डसता है ।

दे िताओ का तनिास

अजग्नदे वो द्ववजातीनाॊ भन
ु ीनाॊ हृहद दै वतभ ् । प्रततभा ्वल्ऩफद्ध
ु ीनाॊ सवगत्र
सभदशशगन् ॥ ०४-१९ 19:

अज्न दे ि ब्राह्भणों, ऺत्ररमों औय िेश्मो के दे िता है । ऋव भतु नमों के दे िता ह्रदम भें है । अकऩ फवु द्
िारों के दे िता भतू तयमों भें है औय साये सॊसाय को सभान रूऩ से दे खने िारों के दे िता सबी जगह
तनिास कयते है ।

न दे वो ववद्मते काष्ठे न ऩाषाणे न भण्ृ भमे । बावे हह ववद्मते दे व्त्भाद्भावो


हह कायणभ ् ॥ ०८-११

न ह) रकड़ी मा ऩत्थय की भूततय भें , न टह लभट्टी भें दे िता का तनिास होता है ,अवऩतु दे िता का तनिास तो
बािों मातन रृदम भें होता है,अत् बाि टह सिोऩरय कायण है , (रृदम भें ह) दे िता का तनिास है .(

दे श की बराई

त्समजेदेकॊ कुर्माथे ग्राभ्माथे कुरॊ त्समजेत ् । ग्राभॊ जनऩद्माथे आत्सभाथे ऩधृ थवीॊ
त्समजेत ् ॥ ०३-१० 10:
कि उकसी एक व्मजक्त को त्मागने से मटद कुर की यऺा होती हो तो उस एक को छोड़ दे ना चाटहए। ऩयू े
गाॊि की बराई के लरए कुर को तथा दे श की बराई के लरए गाॊि को औय अऩने आत्भ-साभान की
यऺा के लरए साय) ऩथ्
ृ िी को छोड़ दे ना चाटहए।

द्िे बािना

आप्तद्वेषाद्भवेन्भत्सृ म्ु ऩयद्वेषाद्धनऺम् । याजद्वेषाद्भवेन्नाशो ब्रह्भद्वेषात्सकुरऺम्


॥ १०-११ 11:

अऩनी आत्भा से द्िे कयने से भनष्ु म की भत्ृ मु हो जाती है ----दस


ु यो से अथायत शरु से द्िे के
कायण धन का नाश औय याजा से द्िे कयने से अऩना सियनाश हो जाता है, कि उकन्तु ब्राह्भण से द्िे
कयने से साऩण
ू य कुर ह) का नाश हो जाता है ।

धन

अतततरेशन
े मद्रव्मभततरोबेन मत्ससख
ु भ ् । शत्रण
ू ाॊ प्रणणऩातेन ते ह्मथाग भा
बवन्तु भे ॥ १६-११ 11:

जो धन अतत कष्ट से प्राप्त हो, धभय का त्माग कयने से प्राप्त हो, शरओ
ु के साभने झक
ु ने अथिा
सभऩयण कयने से प्राप्त हो, ऐसा धन हभे नह)ॊ चाटहए।

अन्मामोऩाजजगतॊ रव्मॊ दश वषागणण ततष्ठतत । प्राप्ते चैकादशे वषे सभर


ू ॊ
तद्ववनश्मतत ॥ १५-०६ 6:

अन्माम से उऩाजजयत कि उकमा गमा धन दस ि य तक यहता है । ्मायहिें ि य के आते ह) जड़ से नष्ट हो


जाता है ।

अमत
ु तॊ ्वाशभनो मत
ु तॊ मत
ु तॊ नीच्म दष
ू णभ ् । अभत
ृ ॊ याहवे भत्सृ मवु वगषॊ
शङ्कयबष
ू णभ ् ॥ १५-०७ 7:

सभथय व्मजक्त द्िाया कि उकमा गमा गरत कामय बी अच्छा कहराता है औय नीच व्मजक्त के द्िाया कि उकमा
गमा अच्छा कामय बी गरत कहराता है । ठीक िैस,े जैसे अभत
ृ ा प्रदान कयने िारा अभत
ृ याहु के लरए
भत्ृ मु का कायण फना औय प्राणघातक वि बी शॊकय के लरए बू ण हो गमा।

आऩदथे धनॊ यऺेच्रीभताॊ कुत आऩद् । कदाधचच्चरते रक्ष्भी् सजञ्चतोऽवऩ


ववनश्मतत ॥ ०१-०७ 7.

आऩजत्त से फचने के लरए धन की यऺा कये क्मोंकि उक ऩता नह)ॊ कफ आऩदा आ जाए। रक्ष्भी तो चॊचर
है । सॊचम कि उकमा गमा धन कबी बी नष्ट हो सकता है।
आऩदथे धनॊ यऺेद्दायान ् यऺेद्धनैयवऩ । आत्सभानॊ सततॊ यऺेद्दायै यवऩ धनैयवऩ ॥ ०१-०६
6.

विऩजत्त के सभम काभ आने िारे धन की यऺा कये । धन से स्त्री की यऺा कये औय अऩनी यऺा धन
औय स्त्री से सदा कयें ।

ककॊ तमा कक्रमते रक्ष्ममा मा वधरू यव केवरा । मा तु वेश्मेव साभान्मा ऩधथकैयवऩ


बज्
ु मते ॥ १६-१२ 12:

उस रक्ष्भी (धन( से क्मा राब जो घय की कुरिधू के सभान केिर स्त्िाभी के उऩबोग भें ह) आए।
उसे तो उस िेश्मा के सभान होना चाटहए, जजसका उऩमोग सफ कय सके।

ऺीमन्ते सवगदानातन मऻहोभफशरकक्रमा् । न ऺीमते ऩात्रदानभबमॊ सवगदेहहनाभ ् ॥


१६-१५ 15:

ततनका हकका होता है , ततनके से बी हककी रुई होती है, रुई से हकका माचक (लबखाय)( होता है, तफ
िामु उसे उड़ाकय क्मों नह)ॊ रे जाती ? साबित् इस बम से कि उक कह)ॊ मह उससे बीख न भाॊगने रगे।

ऩ्
ु तक्था तु मा ववद्मा ऩयह्तगतॊ धनॊ । कामगकारे सभत्सु ऩन्ने न सा ववद्मा न
तद्धनभ ् ॥ १६-२० 20:

जो विद्मा ऩस्त्
ु तकों भें लरखी है औय कॊठस्त्थ नह)ॊ है तथा जो धन दस
ू ये के हाथो भें गमा है , मे दोनों
आिश्मकता के सभम काभ नह)ॊ आते, अथायत ऩस्त्
ु तको भें लरखी विद्मा औय दस
ू ये के हाथों भें गए धन
ऩय बयोसा नह)ॊ कयना चाटहए।

बोज्मॊ बोजनशजततश्च यततशजततवगयाङ्गना । ववबवो दानशजततश्च नाल्ऩ्म


तऩस् परभ ् ॥ ०२-०२ 2:

बोजन कयने तथा उसे अच्छी तयह से ऩचाने की शजक्त हो तथा अच्छा बोजन सभम ऩय प्राप्त होता
हो, प्रेभ कयने के लरए अथायत यतत-सख
ु प्रदान कयने िार) उत्तभ स्त्री के साथ सॊसगय हो, खूफ साया धन
औय उस धन को दान कयने का उत्साह हो, मे सबी सख
ु कि उकसी तऩस्त्मा के पर के सभान है, अथायत
कटठन साधना के फाद ह) प्राप्त होते है ।

म्माथाग्त्म शभत्राणण म्माथाग्त्म फान्धवा् । म्माथाग् स ऩभ


ु ाॉल्रोके
म्माथाग् स च ऩजण्डत् ॥ ०६-०५ 5:

जजसके ऩास धन है उसके अनेक लभर होते है , उसी के अनेक फॊध-ु फाॊधि होते है , िह) ऩरु
ु कहराता है
औय िह) ऩॊडडत कहराता है।
म्माथाग्त्म शभत्राणण म्माथाग्त्म फान्धवा् । म्माथाग् स ऩभ
ु ाॉल्रोके
म्माथाग् स च ऩजण्डत् ॥ ०७-१५ 15:

सॊसाय भें जजसके ऩास धन है , उसी के सफ लभर होते है , उसी के सफ फॊध-ु फाॊधि होते है , िह)ॊ श्रेष्ठ ऩरु

गगना जाता है औय िह) ठाठ-फाट से जीता है ।

ववत्सतॊ दे हह गण
ु ाजन्वतेषु भततभन्नान्मत्र दे हह तवधचत ् प्राप्तॊ वारयतनधेजर
ग ॊ घनभख
ु े
भाधम
ु म
ग त
ु तॊ सदा । जीवान््थावयजॊगभाॊश्च सकरान्सॊजीव्म बभ
ू ण्डरॊ बम
ू ् ऩश्म
तदे व कोहटगणु णतॊ गच्छन्तभमबोतनधधभ ् ॥ ०८-०४ 4:

हे फवु द्भान ऩरु


ु ! धन गण
ु िानो को दे , अन्म को नह)ॊ। दे खो, सभद्र
ु का जर भेघो के भॉह
ु भें जाकय
सदै ि भीठा हो जाता है औय ऩथ्
ृ िी के चय-अचय जीिों को जीिनदान दे कय कई कयोड़ गन
ु ा होकय कि उपय
से सभद्र
ु भें चरा जाता है ।

धनहीनो न हीनश्च धतनक् स सतु नश्चम् । ववद्मायत्सनेन हीनो म् स हीन्


सवगव्तुषु ॥ १०-०१ 1:

तनधयन व्मजक्त ह)न अथायत छोटा नह)ॊ है, धनिान िह) है जो अऩने तनश्चम ऩय दृढ़ है , ऩयन्तु विदमा
रूऩी धन से जो ह)न है , िह सबी चीजो से ह)न है ।

धभय के अनुसाय आचयण

अतनत्समातन शयीयाणण ववबवो नैव शाश्वत् । तनत्समॊ सॊतनहहतो भत्सृ म्ु कतगव्मो
धभगसङ्ग्रह् ॥ १२-१२ 12:

सबी शय)य नाशिान है, सबी धन-सॊऩजत्तमाॊ चरामभान है औय भत्ृ मु के तनकट है । ऐसे भें भनष्ु म को
सदै ि धभय का सॊचम कयना चाटहए। इस प्रकाय मह सॊसाय नश्िय है । केिर सद्कभय ह) तनत्म औय
स्त्थाई है । हभें इन्ह)ॊ को अऩने जीिन का अॊग फनाना चाटहए।

जीवन्तॊ भत
ृ वन्भन्मे दे हहनॊ धभगवजजगतभ ् । भत
ृ ो धभेण सॊमत
ु तो दीघगजीवी न
सॊशम् ॥ १३-०९ 9:

धभय से विभख
ु व्मजक्त जीवित बी भत
ृ क के सभान है , ऩयन्तु धभय का आचयण कयने िारा व्मजक्त
गचयॊ जीिी होता है ।

त्समज दज
ु न
ग सॊसगं बज साधस
ु भागभभ ् । कुर ऩण्
ु मभहोयात्रॊ ्भय तनत्समभतनत्समत्
॥ १४-२० 20:
दष्ु टो का साथ त्मागों, सज्जनों का साथ कयो, यात-टदन धभय का आचयण कयो औय प्रततटदन इस तनत्म
सॊसाय भें तनत्म ऩयभात्भा के वि म भें विचाय कयो, उसे स्त्भयण कयो।

धभागथक
ग ाभभोऺाणाॊ म्मैकोऽवऩ न ववद्मते । अजागर्तन्मेव त्म जन्भ
तनयथगकभ ् ॥ १३-१० 10:

धभय, धन, काभ, भोऺ इनभे से जजसने एक को बी नह)ॊ ऩामा, उसका जीिन व्मथय है।

न ववप्रऩादोदककदग भाणण न वेदशा्त्रध्वतनगजजगतातन ।


्वाहा्वधाकायवववजजगतातन श्भशानतुल्मातन गह
ृ ाणण तातन ॥ १२-१० 10:

जहाॊ ब्राह्भणों के चयण नह)ॊ धोमे जाते अथायत उनका आदय नह)ॊ कि उकमा जाता, जहाॊ िेद-शास्त्रों के
श्रोको की यितन नह)ॊ गज
ूॊ ती तथा मऻ आटद से दे ि ऩज
ू न नह)ॊ कि उकमा जाता, िे घय श्भशान के सभान
है ।

धूतय

नयाणाॊ नावऩतो धत
ू ्ग ऩक्षऺणाॊ चैव वामस् । चतुष्ऩादॊ शग
ृ ार्तु ्त्रीणाॊ धत
ू ाग च
भाशरनी ॥ ०५-२१ 21:

ऩरू
ु ों भें नाई धूतय होता है, ऩक्षऺमों भें कौिा, ऩशओ
ु ॊ भें गीदड़ औय जस्त्रमों भें भालरन धूतय होती है ।

नष्ट होना

असन्तष्ु टा द्ववजा नष्टा् सन्तष्ु टाश्च भहीबत


ृ ् । सरज्जा गणणका नष्टा
तनरगज्जाश्च कुराङ्गना ॥ ०८-१८ 18:

असॊतो ी ब्राह्भण औय सॊतो ी याजा (जकद) ह)( नष्ट हो जाते है । रज्जाशीर िेश्मा औय तनरयज्ज
कुर)न स्त्री नष्ट हो जाती है ।

नायाज होना

ु हो नाज्त स रष्ट् ककॊ


मज्भन्रष्ु टे बमॊ नाज्त तष्ु टे नैव धनागभ् । तनग्रहोऽनग्र
करयष्मतत ॥ ०९-०९9:

जजसके नायाज होने का डय नह)ॊ है औय प्रसन्न होने से कोई राब नह)ॊ है , जजसभे दॊ ड दे ने मा दमा
कयने की साभथ्मय नह)ॊ है, िह नायाज होकय क्मा कय सकता है ?

तनकट सॊफॊध सािधानी के साथ


अजग्नयाऩ् ज्त्रमो भख
ू ाग् सऩाग याजकुरातन च । तनत्समॊ मत्सनेन सेव्मातन सद्म्
प्राणहयाणण षट्प् ॥ १४-१२ 12:

अज्न, ऩानी, जस्त्रमाॊ, भख


ू ,य साॊऩ औय याजाकुर से तनकट सॊफध
ॊ सािधानी के साथ कयना चाटहए क्मोंकि उक
मे छ् तत्कार प्राणों को हयने िारे है ।

तनधयन

अऩत्र
ु ्म गह
ृ ॊ शन्
ू मॊ हदश् शन्
ू मा्त्सवफान्धवा् । भख
ू ्
ग म हृदमॊ शन्
ू मॊ सवगशन्
ू मा
दरयरता ॥ ०४-१४ 14:

त्रफना ऩर
ु के घय सन
ु ा है । त्रफना फॊध-ु फाॊधिों के टदशाएॊ सन
ू ी है । भख
ू य का ह्रदम बािों से सन
ू ा है ।
दरयद्रता सफसे सन
ू ी है, अथायत दरयद्रता का जीिन भहाकष्टकायक है ।

त्समजजन्त शभत्राणण धनैववगहीनॊ ऩत्र


ु ाश्च दायाश्च सहृ
ु ज्जनाश्च । तभथगवन्तॊ
ऩन
ु याश्रमजन्त अथो हह रोके भनष्ु म्म फन्ध्ु ॥ १५-०५ 5:

तनधयन होने ऩय भनष्ु म को उसके लभर, स्त्री, नौकय, टहतै ी जन छोड़कय चरे जाते है , ऩयन्तु ऩन
ु ् धन
आने ऩय कि उपय से उसी के आश्रम रेते है ।

वयॊ वनॊ व्माघ्रगजेन्रसेववतॊ रभ


ु ारमॊ ऩत्रपरामफस
ु ेवनभ ् । तण
ृ ेषु शयमा
शतजीणगवल्करॊ न फन्धभ
ु ध्मे धनहीनजीवनभ ् ॥ १०-१२ 12:

फड़े-फड़े हागथमों औय फाघों िारे िन भें िऺ


ृ का कोट रूऩी घय अच्छा है, ऩके परों को खाना, जर का
ऩीना,ततनको ऩय सोना,ऩेड़ो की छार ऩहनना उत्तभ है, ऩयन्तु अऩने बाई-फॊधुओ के भयम तनधयन होकय
जीना अच्छा नह)ॊ है ।

ऩत्नी

न दानै् शध्
ु मते नायी नोऩवासशतैयवऩ । न तीथगसेवमा तद्वद्भत्ुग ऩदोदकैमगथा ॥
१७-१० 10:

स्त्री न तो दान से, न सैकड़ो उऩिास-व्रतो से, न तीथायटन कयने से उस प्रकाय से शद्
ु हो ऩाती है , जैसे
िह अऩने ऩतत के चयण-जर से शद्
ु होती है ।

ऩत्समयु ाऻाॊ ववना नायी ह्मऩ


ु ोष्म व्रतचारयणी । आमष्ु मॊ हयते बत्ुग सा नायी नयकॊ
व्रजेत ् ॥ १७-०९ 9:
ऩतत की आऻा के त्रफना जो स्त्री उऩिास औय व्रत कयती है , िह अऩने ऩतत की आमु को कभ कयने
िार) होती है , अथायत ऩतत को नष्ट कयके सीधे नकय भें जाती है ।

वयमेत्सकुरजाॊ प्राऻो ववरूऩाभवऩ कन्मकाभ ् । रूऩशीराॊ न नीच्म वववाह् सदृशे


कुरे ॥ ०१-१४ 14.

फवु द्ह)न व्मजक्त को अच्छे कुर भें जन्भ रेने िार) कुरूऩ कन्मा से बी वििाह कय रेना चाटहए, ऩयन्तु
अच्छे रूऩ िार) नीच कुर की कन्मा से वििाह नह)ॊ कयना चाटहए क्मोंकि उक वििाह सॊफध
ॊ सभान कुर भें
ह) श्रेष्ठ होता है ।

ववषादप्मभत
ृ ॊ ग्राह्मभभेध्मादवऩ काञ्चनभ ् । अशभत्रादवऩ सद्वत्सृ तॊ फारादवऩ
सब
ु ावषतभ ् ॥ ०१-१६ 16.

वि से अभत
ृ , अशद्
ु स्त्थान से सोना, नीच कुर िारे से विद्मा औय दष्ु ट स्त्िबाि िारे कुर की गन
ु ी
स्त्री को ग्रहण कयना अनगु चत नह)ॊ है ।

सा बामाग मा शधु चदग ऺा सा बामाग मा ऩततव्रता । सा बामाग मा ऩततप्रीता सा बामाग


सत्समवाहदनी ॥ ०४-१३ 13:

ऩत्नी िह) है जो ऩविर औय चतयु है, ऩततव्रता है, ऩत्नी िह) है जजस ऩय ऩतत का प्रेभ है , ऩत्नी िह) है
जो सदै ि सत्म फोरती है ।

ऩरयजस्त्थतत के अनुसाय कामय

उऩसगेऽन्मचक्रे च दशु बगऺे च बमावहे । असाधज


ु नसमऩके म् ऩरामेत्सस जीवतत ॥
०३-१९ 19:

दे श भें बमानक उऩद्रि होने ऩय, शरु के आक्रभण के सभम, बमानक दलु बयऺ(अकार( के सभम, दष्ु ट का
साथ होने ऩय, जो बाग जाता है , िह) जीवित यहता है ।

प्र्तावसदृशॊ वातमॊ प्रबावसदृशॊ वप्रमभ ् । आत्सभशजततसभॊ कोऩॊ मो जानातत स


ऩजण्डत् ॥ १४-१५ 15:

जो प्रस्त्ताि के मो्म फातों को, प्रबाि के अनस


ु ाय वप्रम कामय को मा िचन को औय अऩनी शजक्त के
अनस
ु ाय क्रोध कयना जानता है , िह) ऩॊडडत है ।

ऩय)ऺा
जानीमात्सप्रेषणे बत्सृ मान्फान्धवान ् व्मसनागभे । शभत्रॊ चाऩजत्सतकारेषु बामां च
ववबवऺमे ॥ ०१-११ 11.

नौकयों को फाहय बेजने ऩय, बाई-फॊधओ


ु को सॊकट के सभम तथा दोस्त्त को विऩजत्त भें औय अऩनी
स्त्री को धन के नष्ट हो जाने ऩय ऩयखना चाटहए, अथायत उनकी ऩय)ऺा कयनी चाटहए।

ऩयोऩकाय

ऩयोऩकयणॊ मेषाॊ जागततग हृदमे सताभ ् । नश्मजन्त ववऩद्तेषाॊ समऩद् ्म्ु ऩदे
ऩदे ॥ १७-१५ 15:

जजन सज्जनों के ह्रदम भें ऩयोऩकाय की बािना जाग्रत यहती है , उनकी तभाभ विऩजत्तमा अऩने आऩ
दयू हो जाती है औय उन्हें ऩग-ऩग ऩय साऩजत्त एिॊ धन-ऐश्िमय की प्राजप्त होती है।

्वह्तग्रधथता भारा ्वह्तघष्ृ टचन्दनभ ् ।

्वह्तशरणखतॊ ्तोत्रॊ शक्र्मावऩ धश्रमॊ हये त ् ॥ ०९-१२ 12:


अऩने हाथों से गथ
ुॊ ी हुई भारा, अऩने हाथो से तघसा हुआ चॊदन औय अऩने हाथ से लरखा स्त्रोत, इन
सफको अऩने ह) कामय भें रगाने से, दे िताओॊ के याजा इॊद्र की श्रीरक्ष्भी (धन-साऩजत्त-ऐश्िमय( बी नष्ट
हो जाती है ।

ऩाऩ

याजा याष्रकृतॊ ऩाऩॊ याऻ् ऩाऩॊ ऩयु ोहहत् । बताग च ्त्रीकृतॊ ऩाऩॊ शशष्मऩाऩॊ
गुर्तथा ॥ ०६-१० 10:

याजा अऩनी प्रजा के द्िाया कि उकए गए ऩाऩ को, ऩयु ोटहत याजा के ऩाऩ को, ऩतत अऩनी ऩत्नी के द्िाया
कि उकए गए ऩाऩ को औय गरु
ु अऩने लशष्म के ऩाऩ को बोगता है ।

वऩता

जतनता चोऩनेता च म्तु ववद्माॊ प्रमच्छतत । अन्नदाता बमत्राता ऩञ्चैते वऩतय्


्भत
ृ ा् ॥ ०५-२२ 22:

भनष्ु म को जन्भ दे ने िारा, मऻोऩिीत सॊस्त्काय कयाने िारा ऩयु ोटहत, वियमा दे ने िारा आचामय, अन्न
दे ने िारा, बम से भजु क्त टदराने िारा अथिा यऺा कयने िारा, मे ऩाॊच वऩता कहे गए है ।

ऩर

एकेन शष्ु कवऺ
ृ ण
े दह्मभानेन वजह्नना । दह्मते तद्वनॊ सवं कुऩत्र
ु ण े कुरॊ मथा ॥
०३-१५ 15:

आग से जरते हुए सखू े िऺ


ृ से साया िन जर जाता है जैसे की एक नारामक (कुऩर
ु ( रड़के से कुर
का नाश होता है ।

एकेनावऩ सऩ
ु त्र
ु ण े ववद्मामत
ु तेन साधन
ु ा । आह्राहदतॊ कुरॊ सवं मथा चन्रे ण
शवगयी ॥ ०३-१६ 16:

जजस प्रकाय चन्द्रभा से यात्रर की शोबा होती है, उसी प्रकाय एक सऩ


ु र
ु , अथायत साधु प्रकृतत िारे ऩर
ु से
कुर आनजन्दत होता है ।

एकेनावऩ सव
ु ऺ
ृ ेण ऩजु ष्ऩतेन सग
ु जन्धना । वाशसतॊ तद्वनॊ सवं सऩ
ु त्र
ु ण े कुरॊ मथा ॥
०३-१४ 14:

एक ह) सग
ु जन्धत पूर िारे िऺ
ृ से जजस प्रकाय साया िन सग
ु जन्धत हो जाता है, उसी प्रकाय एक सऩ
ु र

से साया कुर सश
ु ोलबत हो जाता है ।

ककॊ जातैफह
ग ु शब् ऩत्र
ु ्ै शोकसन्ताऩकायकै् । वयभेक् कुरारमफी मत्र ववश्राममते
कुरभ ् ॥ ०३-१७ 17:

शौक औय द्ु ख दे ने िारे फहुत से ऩर


ु ों को ऩैदा कयने से क्मा राब है ? कुर को आश्रम दे ने िारा तो
एक ऩर
ु ह) सफसे अच्छा होता है ।

ककॊ तमा कक्रमते धेन्वा मा न दोग्री न गशबगणी । कोऽथग् ऩत्र


ु ण े जातेन मो न
ववद्वान ् न बजततभान ् ॥ ०४-०९ 9:

उस गाम से क्मा राब, जो न फच्चा जने औय न ह) दध


ू दे । ऐसे ऩर
ु के जन्भ रेने से क्मा राब, जो
न तो विद्िान हो, न कि उकसी दे िता का बक्त हो।

भख
ू जग श्चयामज
ु ागतोऽवऩ त्भाज्जातभत
ृ ो वय् । भत
ृ ् स चाल्ऩद्ु खाम मावज्जीवॊ
जडो दहे त ् ॥ ०४-०७ 7:

फहुत फड़ी आमु िारे भख


ू य ऩर
ु की अऩेऺा ऩैदा होते ह) जो भय गमा, िह अच्छा है क्मोंकि उक भया हुआ
ऩर
ु कुछ दे य के लरए ह) कष्ट दे ता है , ऩयन्तु भख
ू य ऩर
ु जीिनबय जराता है ।

ऩज
ू ा ऩाठ
ववप्रो वऺ
ृ ्त्म भर
ू ॊ च सन्ध्मा वेद् शाखा धभगकभागणण ऩत्रभ ् । त्भान्भर
ू ॊ
मत्सनतो यऺणीम तछन्ने भर
ू े नैव शाखा न ऩत्रभ ् ॥ १०-१३ 13:

ब्राह्भण िऺ
ृ है, सॊयमा उसकी जड़ है , िेद शाखाए है, धभय तथा कभय ऩत्ते है इसीलरए ब्राह्भण का
कतयव्म है कि उक सॊयमा की यऺा कये क्मोंकि उक जड़ के कट जाने से ऩेड़ के ऩत्ते ि ् शाखाए नह)ॊ यहती।

काष्ठऩाषाणधातूनाॊ कृत्सवा बावेन सेवनभ ् । श्रद्धमा च तथा शसवद्ध्त्म


ववष्णुप्रसादत् ॥ ०८-१२ 12:

रकड़ी, ऩत्थय औय धात-ु सोना, चाॊद), ताॊफा, ऩीतर आटद की फनी दे िभतू तय भें दे ि-बािना अथायत दे िता को
साऺात रूऩ से विद्मभान सभझकय ह) श्रद्ासटहत उसकी ऩज
ू ा-अचयना कयनी चाटहए। जो भनष्ु म जजस
बाि से भतू तय का ऩज
ू न कयता है , श्री विष्णन
ु ायामण की कृऩा से उसे िैसी ह) लसवद् प्राप्त होती है ।

प्रधानता

सवौषधीनाभभत
ृ ा प्रधाना सवेषु सौख्मेष्वशनॊ प्रधानभ ् । सवेजन्रमाणाॊ नमनॊ प्रधानॊ
सवेषु गात्रेषु शशय् प्रधानभ ् ॥ ०९-०४ 4:

सबी औ गधमों भें अभत


ृ प्रधान है , सबी सख
ु ो भें बोजन प्रधान है , सबी इजन्द्रमों भें नेर प्रधान है साये
शय)य भें लसय श्रेष्ठ है ।

प्रेभ का फॊधन

फन्धनातन खरु सजन्त फहूतन प्रेभयज्जुकृतफन्धनभन्मत ् । दारबेदतनऩण


ु ोऽवऩ
षडॊतघ्र-तनगजष्क्रमो बवतत ऩॊकजकोशे् ॥ १५-१७ 17:

मह तनश्चम है कि उक फॊधन अनेक है , ऩयन्तु प्रेभ का फॊधन तनयारा है । दे खो, रकड़ी को छे दने भें सभथय
बौंया कभर की ऩॊखुडड़मों भें उरझकय कि उक्रमाह)न हो जाता है , अथायत प्रेभयस से भस्त्त हुआ बौंया कभर
की ऩॊखुडड़मों को नष्ट कयने भें सभथय होते हुए बी उसभे छे द नह)ॊ कय ऩाता।

फयाफय)

शाजन्ततल्
ु मॊ तऩो नाज्त न सन्तोषात्सऩयॊ सख
ु भ ् । अऩत्समॊ च करत्रॊ च सताॊ
सङ्गततये व च ॥ ०८-१४ 14:
शाॊतत के फयाफय दस
ू या तऩ नह)ॊ है , सॊतो से फढ़कय कोई सख
ु नह)ॊ है , रारच से फड़ा कोई योग नह)ॊ है
औय दमा से फड़ा कोई धभय नह)ॊ है ।

फारक

भाता शत्र्ु वऩता वैयी माभमाॊ फारा न ऩाहठता् । सबाभध्मे न शोबन्ते हॊ सभध्मे
फको मथा ॥ ०२-११ 11:

जो भाता-वऩता अऩने फच्चों को नह)ॊ ऩढ़ाते, िे उनके शरु है । ऐसे अऩढ़ फारक सबा के भयम भें उसी
प्रकाय शोबा नह)ॊ ऩाते, जैसे हॊ सो के भयम भें फगर
ु ा शोबा नह)ॊ ऩाता।

रारनाद्फहवो दोषा्ताडने फहवो गण


ु ा् । त्भात्सऩत्र
ु ॊ च शशष्मॊ च ताडमेन्न तु
रारमेत ् ॥ ०२-१२ 12:

अत्मगधक राड़-प्माय से ऩर
ु औय लशष्म गण
ु ह)न हो जाते है औय ताड़ना से गन
ु ी हो जाते है । बाि मह)
है कि उक लशष्म औय ऩर
ु को मटद ताड़ना का बम यहे गा तो िे गरत भागय ऩय नह)ॊ जामेंगे।

त्रफछुड़ने ऩय शौक कैसा 15:

अनेक यॊ ग औय रूऩों िारे ऩऺी सामॊ कार एक िऺ


ृ ऩय आकय फैठते है औय प्रात्कार दसों दशाओॊ भें
उड़ जाते है । ऐसे ह) फॊध-ु फाॊधि एक ऩरयिाय भें लभरते है औय त्रफछुड़ जाते है । इस वि म भें शौक
कैसा ?

त्रफना ऩाखॊड तथा टदखािे के कामय कयना

तद्भोजनॊ मद्द्ववजबत
ु तशेषॊ तत्ससौहृदॊ मजत्सक्रमते ऩयज्भन ् । सा प्राऻता मा न
कयोतत ऩाऩॊ दमबॊ ववना म् कक्रमते स धभग् ॥ १५-०८ 8:

बोजन िह) है जो ब्राह्भण के कयने के फाद फचा यहता है , बराई िह) है जो दस


ू यों के लरए की जाती
है , फवु द्भान िह) है जो ऩाऩ नह)ॊ कयता औय त्रफना ऩाखॊड तथा टदखािे के जो कामय कि उकमा जाता है, िह
धभय है ।

फवु द्भान

अथगनाशॊ भन्ताऩॊ गह
ृ े दश्ु चरयतातन च । वञ्चनॊ चाऩभानॊ च भततभान्न
प्रकाशमेत ् ॥ ०७-०१ 1:
फवु द्भान ऩरु
ु धन के नाश को, भन के सॊताऩ को, गटृ हणी के दो ो को, कि उकसी धूतय ठग के द्िाया ठगे
जाने को औय अऩभान को कि उकसी से नह)ॊ कहते।

अहो फत ववधचत्राणण चरयतातन भहात्सभनाभ ् । रक्ष्भीॊ तण


ृ ाम भन्मन्ते तद्भाये ण
नभजन्त च ॥ १३-०५ 5:

अहो ! आश्चमय है कि उक फड़ो के स्त्िबाि विगचर होते है , िे रक्ष्भी को तण


ृ के सभान सभझते है औय
उसके प्राप्त होने ऩय, उसके बाय से औय बी अगधक नम्र हो जाते है ।

एतदथे कुरीनानाॊ नऩ
ृ ा् कुवगजन्त सङ्ग्रहभ ् । आहदभध्मावसानेषु न ते गच्छजन्त
ववकक्रमाभ ् ॥ ०३-०५ 5:

इसीलरए याजा खानदानी रोगो को ह) अऩने ऩास एकर कयता है क्मोंकि उक कुर)न अथायत अच्छे
खानदान िारे रोग प्रायाब भें , भयम भें औय अॊत भें, याजा को कि उकसी दशा ने बी नह)ॊ त्मागते।

क् कार् कातन शभत्राणण को दे श् कौ व्ममागभौ । कश्चाहॊ का च भे शजततरयतत


धचन्त्समॊ भह
ु ु भह
ुग ु ् ॥ ०४-१८ 18:

फवु द्भान व्मजक्त को फाय-फाय मह सोचना चाटहए कि उक हभाये लभर कि उकतने है, हभाया सभम कैसा है -अच्छा
है मा फयु ा औय मटद फयु ा है तो उसे अच्छा कैसे फनामा जाए। हभाया तनिास-स्त्थान कैसा है (सख
ु द,
अनकु ू र अथिा विऩय)त(, हभाय) आम कि उकतनी है औय व्मम कि उकतना है , भै कौन हूॊ- आत्भा हूॊ, अथिा
शय)य, स्त्िाधीन हूॊ अथिा ऩयाधीन तथा भेय) शजक्त कि उकतनी है ।

तन््ऩह
ृ ो नाधधकायी ्मान ् नाकाभो भण्डनवप्रम् । नाववदग्ध् वप्रमॊ
ब्रम
ू ात्स्ऩष्टवतता न वञ्चक् ॥ ०५-०५ 5:

जजसका जजस िस्त्तु से रगाि नह)ॊ है , उस िस्त्तु का िह अगधकाय) नह)ॊ है । मटद कोई व्मजक्त सौंदमय
प्रेभी नह)ॊ होगा तो श्रॊग
ृ ाय शोबा के प्रतत उसकी आसजक्त नह)ॊ होगी। भख
ू य व्मजक्त वप्रम औय भधुय
िचन नह)ॊ फोर ऩाता औय स्त्ऩष्ट िक्ता कबी धोखेफाज, धूतय मा भक्काय नह)ॊ होता।

ऩत्र
ु ाश्च ववववधै् शीरैतनगमोज्मा् सततॊ फध
ु ्ै । नीततऻा् शीरसमऩन्ना बवजन्त
कुरऩजू जता् ॥ ०२-१० 10:

फवु द्भान रोगो का कतयव्म होता है की िे अऩनी सॊतान को अच्छे कामय-व्माऩाय भें रगाएॊ क्मोंकि उक नीतत
के जानकाय ि सद्व्मिहाय िारे व्मजक्त ह) कुर भें साभातनत होते है ।

ऩधृ थव्माॊ त्रीणण यत्सनातन जरभन्नॊ सब


ु ावषतभ ् । भढ
ू ै ् ऩाषाणखण्डेषु यत्सनसॊऻा
ववधीमते ॥ १४-०१ 1:
इस ऩथ्
ृ िी ऩय तीन ह) यत्न है -----जर, अन्न, औय भधुय िचन ! फवु द्भान व्मजक्त इनकी सभझ
यखता है, ऩयन्तु भख
ू य रोग ऩत्थय के टुकड़ो को ह) यत्न कहते है ।

फवु द्धमग्म फरॊ त्म तनफद्ध


ुग ेश्च कुतो फरभ ् । वने शसॊहो मदोन्भत्सत् भशकेन
तनऩाततत् ॥ १०-१६ 16:

जो फवु द्भान है, िह) फरिान है , फवु द्ह)न के ऩास शजक्त नह)ॊ होती। जैसे जॊगरे भें सफसे अगधक
फरिान होने ऩय बी लसॊह भतिारा खयगोश के द्िाया भाया जाता है ।

म्म नाज्त ्वमॊ प्रऻा शा्त्रॊ त्म कयोतत ककभ ् । रोचनाभमाॊ ववहीन्म
दऩगण् ककॊ करयष्मतत ॥ १०-०९ 9:

जजनको स्त्िमॊ फवु द् नह)ॊ है, शास्त्र उनके लरए क्मा कय सकता है ? जैसे अॊधे के लरए दऩयण का क्मा
भहत्ि है ?

वववेककनभनप्र
ु ाप्ता गण
ु ा माजन्त भनोऻताभ ् । सत
ु याॊ यत्सनभाबातत
चाभीकयतनमोजजतभ ् ॥ १६-०९ 9:

जो व्मजक्त वििेकशीर है औय विचाय कयके ह) कोई कामय साऩन्न कयता है , ऐसे व्मजक्त के गण
ु श्रेष्ठ
विचायों के भेर से औय बी सन्
ु दय हो जाते है । जैसे सोने भें जड़ा हुआ यत्न स्त्िमॊ ह) अत्मॊत शोबा को
प्राप्त हो जाता है ।

सशु सद्धभौषधॊ धभं गह


ृ जच्छरॊ च भैथन
ु भ ् । कुबत
ु तॊ कुश्रत
ु ॊ चैव भततभान्न
प्रकाशमेत ् ॥ १४-१७ 17:

फवु द्भान िह) है जो अतत लसद् दिा को, धभय के यहस्त्म को, घय के दो को, भैथन
ु अथायत साबोग की
फात को, स्त्िादह)न बोजन को औय अततकष्टकाय) भत्ृ मु को कि उकसी को न फताए। बाि मह है कि उक कुछ
फातें ऐसी होती है, जजन्हे सभाज भें तछऩाकय ह) यखना चाटहए।

फयु े कभो के साथ जीना व्मथय है

ह्तौ दानवववजजगतौ श्रतु तऩट


ु ौ साय्वतरोहहण नेत्रे साधवु वरोकनेन यहहते ऩादौ न
तीथं गतौ । अन्मामाजजगतववत्सतऩण
ू भ
ग द
ु यॊ गवेण तुङ्गॊ शशयो ये ये जमफक
ु भञ्
ु च
भञ्
ु च सहसा नीचॊ सतु नन्द्मॊ वऩ्ु ॥ १२-०४ 4:

दोनों हाथ दान दे ने से यटहत, दोनों कार िेदशास्त्र को सन


ु ने के वियोधी, दोनों नेर भहात्भाओॊ के दशयन
से िॊगचत, दोनों ऩैय तीथयमारा से दयू औय केिर अन्माम के द्िाया कभाए धन से ऩेट बयकय अहॊ काय
कयने िारे, हे यॊ गे लसमाय ! तनॊदा के मो्म इस नीच शय)य को छोड़ दे ।
भह
ु ू तभ
ग वऩ जीवेच्च नय् शत
ु रेन कभगणा । न कल्ऩभवऩ कष्टे न रोकद्वमववयोधधना
॥ १३-०१ 1:

उत्तभ कभय कयते हुए एक ऩर का जीिन बी श्रेष्ठ है, ऩयन्तु दोनों रोकों (रोक-ऩयरोक( भें दष्ु कभय
कयते हुए ककऩ बय के जीिन (हजायों ि ो का जीना( बी श्रेष्ठ नह)ॊ है ।

ब्राह्भण

अकृष्टपरभर
ू ातन वनवासयतत् सदा । कुरतेऽहयह् श्राद्धभवृ षववगप्र् स उच्मते ॥
११-११

त्रफना जोते हुए स्त्थान के पर, भर


ू खाने िारा, अथायत ईश्िय की कृऩा से प्राप्त हय बोजन से सॊतष्ु ट
होने िारा, तनयन्तय िन से प्रेभ यखने िारा औय प्रततटदन श्राद् कयने िारा ब्राह्भण ऋव कहराता है ।

एकाहाये ण सन्तुष्ट् षट्प्कभगतनयत् सदा । ऋतक


ु ाराशबगाभी च स ववप्रो द्ववज
उच्मते ॥ ११-१२ 12:

जो व्मजक्त एक फाय के बोजन से सॊतष्ु ट हो जाता है, छ् कभो (मऻ कयना, मऻ कयाना, ऩढ़ना, ऩढ़ाना,
दान दे ना, दान रेना( भें रगा यहता है औय अऩनी स्त्री से ऋतक
ु ार (भालसक धभय( के फाद ह) प्रसॊग
कयता है , िह) ब्राह्भण कहराने का सच्चा अगधकाय) है ।

दे वरव्मॊ गुररव्मॊ ऩयदायाशबभशगनभ ् । तनवागह् सवगबत


ू ेषु ववप्रश्चाण्डार उच्मते ॥
११-१७ 17:

दे िता का धन, गरु


ु का धन, दस
ू ये की स्त्री के साथ प्रसॊग (सॊबोग( कयने िारा औय सबी जीिों भें
तनिायह कयने अथायत सफका अन्न खाने िारा ब्राह्भण चाॊडार कहराता है ।

ऩठजन्त चतुयो वेदान्धभगशा्त्राण्मनेकश् । आत्सभानॊ नैव जानजन्त दवॉ ऩाकयसॊ


मथा ॥ १५-१२ 12:

फवु द्ह)न ब्राह्भण िैसे तो चायों िेदो औय अनेक शास्त्रों का अयममन कयते है, ऩय आत्भऻान को िे
नह)ॊ सभझ ऩाते मा उसे सभझने का प्रमास ह) नह)ॊ कयते। ऐसे ब्राह्भण उस करछी की तयह होते है ,
जो तभाभ व्मॊजनों भें तो चरती है , ऩय यसोई के यस को नह)ॊ जानती।

ऩयकामगववहन्ता च दाजमबक् ्वाथगसाधक् । छरी द्वेषी भद


ृ ्ु क्रूयो ववप्रो भाजागय
उच्मते ॥ ११-१५ 15:
दस
ू ये के कामय भें विघ्न डारकय नष्ट कयने िारा, घभॊडी, स्त्िाथी, कऩट), झगड़ार,ू ऊऩय से कोभर औय
बीतय से तनष्ठुय ब्राह्भण त्रफराऊ (नय त्रफराि( कहराता है , अथायत िह ऩशु है, नीच है ।

ऩीत् क्रुद्धेन तातश्चयणतरहतो वल्रबो मेन योषा दाफाल्माद्ववप्रवमै् ्ववदनवववये


धामगते वैरयणी भे । गेहॊ भे छे दमजन्त प्रततहदवसभभ
ु ाकान्तऩज
ू ातनशभत्सतॊ
त्भाजत्सखन्ना सदाहॊ द्ववजकुरतनरमॊ नाथ मत
ु तॊ त्समजाशभ ॥ १५-१६ 16:

रक्ष्भी बगिान विष्णु से कहती है 'हे नाथ ! ब्राह्भण िॊश के आगस्त्त्म ऋव ने भेये वऩता (सभद्र
ु (को
क्रोध से ऩी लरमा, विप्रिय बग
ृ ु ने भेये ऩयभवप्रम स्त्िाभी (श्री विष्ण(ु की छाती भें रात भाय), फड़े-फड़े
ब्राह्भण विद्िानों ने फचऩन से रेकय िद्
ृ ािस्त्था तक भेय) शरु सयस्त्िती को अऩनी िाणी भें धायण
कि उकमा औय मे (ब्राह्भण( उभाऩतत (शॊकय( की ऩज
ू ा के लरए प्रततटदन हभाया घय (श्रीपर ऩर आटद(
तोड़ते है । हे नाथ ! इन्ह) कायणों से सदै ि द्ु खी भैं आऩके साथ यहते हुए बी ब्राह्भण के घय को छोड़
दे ती हूॊ।

राऺाहदतैरनीरीनाॊ कौसम
ु बभधस
ु वऩगषाभ ् । ववक्रेता भद्मभाॊसानाॊ स ववप्र् शर

उच्मते ॥ ११-१४ 14:

राख आटद, तेर, नीर, पूर, शहद, घी, भटदया (शयाफ( औय भाॊस आटद का व्माऩाय कयने िारा ब्राह्भण
शद्र
ू कहराता है ।

रौककके कभगणण यत् ऩशन


ू ाॊ ऩरयऩारक् । वाणणज्मकृवषकभाग म् स ववप्रो वैश्म
उच्मते ॥ ११-१३ 13:

जो ब्राह्भण दतु नमादाय) के काभों भें रगा यहता है, ऩशओ


ु ॊ का ऩारन कयने िारा औय व्माऩय तथा
खेती कयता है, िह िैश्म (िखणक( कहराता है ।

वाऩीकूऩतडागानाभायाभसयु वेश्भनाभ ् । उच्छे दने तनयाशङ्क् स ववप्रो मरेच्छ


उच्मते ॥ ११-१६ 16:

फािड़ी, कुआॊ, ताराफ, फगीचा औय दे ि भॊटदय को तनबयम होकय तोड़ने िारा ब्राह्भण ारेच्छ (नीच(
कहराता है ।

बजक्त

भाता च कभरा दे वी वऩता दे वो जनादग न् । फान्धवा ववष्णुबतताश्च ्वदे शो


बव
ु नत्रमभ ् ॥ १०-१४ 14:

जजसकी भाता रक्ष्भी है, वऩता विष्णु है, बाई-फॊधु विष्णु के बक्त है, उनके लरए तीनो रोक ह) अऩने
दे श है ।
मेषाॊ श्रीभद्मशोदासत
ु ऩदकभरे नाज्त बजततनगयाणाॊ मेषाभाबीयकन्मावप्रमगुणकथने
नानयु तता यसऻा । मेषाॊ श्रीकृष्णरीरारशरतयसकथासादयौ नैव कणौ धधक् तान ्
धधक् तान ् धधगेतान ् कथमतत सततॊ कीतगन्थो भद
ृ ॊ ग् ॥ १२-०५ 5:

जजनकी बजक्त मशोदा के ऩर


ु (श्रीकृष्ण( के चयणकभरों भें नह)ॊ है , जजनकी जजह्िा अह)यों की कन्माओॊ
(गोवऩमों( के वप्रम (श्री गोविन्द( के गण
ु गान नह)ॊ कयती, जजनके कान ऩयभानॊद स्त्िरूऩ श्रीकृष्णचन्द्र की
र)रा तथा भधुय यसभमी कथा को आदयऩि
ू क
य सन
ु ने भें नह)ॊ है , ऐसे रोगो को भद
ृ ॊ ग की थाऩ, गधक्काय
है , गधक्काय है (गधक्तान ्-धक्तान( कहती है ।

बम

तावद्भमेषु बेतव्मॊ मावद्भमभनागतभ ् । आगतॊ तु बमॊ वीक्ष्म प्रहतगव्मभशङ्कमा ॥


०५-०३ 3: बम से तबी तक डयना चाटहए, जफ तक बम आए नह)ॊ। आए हुए बम को दे खकय तनशॊक
होकय प्रहाय कयना चाटहए, अथायत उस बम की ऩयिाह नह)ॊ कयनी चाटहए।

तनववगषण
े ावऩ सऩेण कतगव्मा भहती पणा । ववषभ्तु न चाप्म्तु घटाटोऩो
बमङ्कय् ॥ ०९-१० 10: वि ह)न सऩय को बी अऩना पन पैराकय पुपकाय कयनी चाटहए। वि के
न होने ऩय पुपकाय से उसे डयाना अिश्म चाटहए।

बभ
ृ ण कयने िारा

भ्रभन्समऩज्
ू मते याजा भ्रभन्समऩज्
ू मते द्ववज् । भ्रभन्समऩज्
ू मते मोगी ्त्री
भ्रभन्ती ववनश्मतत ॥ ०६-०४ 4: प्रजा की यऺा के लरए बभ
ृ ण कयने िारा याजा साभातनत
होता है , बभ
ृ ण कयने िारा मोगी औय ब्राह्भण साभातनत होता है , कि उकन्तु इधय-उधय घभ
ू ने िार) स्त्री
बष्ृ ट होकय नष्ट हो जाती है ।

भॊगराचयण

काष्ठॊ कल्ऩतर् सभ
ु ेरचरजश्चन्ताभणण् प्र्तय् सम
ू ाग्तीव्रकय् शशी ऺमकय् ऺायो
हह वायाॊ तनधध् । काभो नष्टतनव
ु शग रहदगततसत
ु ो तनत्समॊ ऩश्ु काभगौ-नैताॊ्ते
तर
ु माशभ बो यघऩ
ु ते क्मोऩभा दीमते ॥ १२-१६ 16:

हे यघऩ
ु तत ! याभ ! ककऩिऺ
ृ काष्ठ है ,सभ
ु ेरु ऩियत है , गचन्ताभखण ऩत्थय है, सम
ू य तीक्ष्ण कि उकयणों िारा है ,
चन्द्रभा ऺीण होता यहता है, सभद्र
ु खाया है, काभदे ि अनॊग (त्रफना शय)य का( है , याजा फलर दै त्मऩर
ु है
औय काभधेनु ऩशु है । मे सबी उत्तभ है , ऩयन्तु भै जफ आऩकी तर
ु ना कयता हूॊ प्रबु ! तो आऩकी
कि उकससे उऩभा करू, मह भेय) सभझ भें नह)ॊ आता, अथायत प्रबु ! आऩकी उऩभा तो कि उकसी से बी नह)ॊ द)
जा सकती। मह याभोऩासना का सन्
ु दय श्रोक है ।

धभे तत्सऩयता भख
ु े भधयु ता दाने सभत्सु साहता शभत्रेऽवञ्चकता गयु ौ ववनमता
धचत्सतेऽततभबीयता । आचाये शधु चता गण
ु े यशसकता शा्त्रेषु ववऻानता रूऩे
सन्
ु दयता शशवे बजनता त्सवयमज्त बो याघव ॥ १२-१५ 15:

भहव य िलशष्ठ याभ से कहते है ------'हे याभ ! धभय के तनिायह भें सदै ि तत्ऩय यहने, भधुय िचनों का
प्रमोग कयने, दान भें रूगच यखने, लभर से तनश्छर व्मिहाय कयने, गरु
ु के प्रतत सदै ि विनम्रता यखने,
गचत्त भें अत्मॊत गॊबीयता को फनाए यखने, ओछे ऩन को त्मागने, आचाय-विचाय भें ऩविरता यखने, गण

ग्रहण कयने के प्रतत सदै ि आग्रह यखने, शास्त्रों भें तनऩण
ु ता प्राप्त कयने तथा लशि के प्रतत सदा
बजक्त-बाि यखने के गण
ु केिर ता
ु हाये बीतय ह) टदखराई ऩड़ते है इसीलरए रोग ता
ु हें भमायदा
ऩरु
ु ोत्तभ कहते है ।'

प्रणमम शशयसा ववष्णॊु त्रैरोतमाधधऩततॊ प्रबभ


ु ् । नानाशा्त्रोद्धृतॊ वक्ष्मे
याजनीततसभच्
ु चमभ ् ॥ ०१-०१

सियशजक्तभान तीनो रोको के स्त्िाभी श्री विष्णु बगिान को शीश निाकय भै अनेक शास्त्रों से तनकारे
गए याजनीतत साय के तत्ि को जन ककमाण हे तु सभाज के साभख
ु यखता हूॊ।

भथना

इऺुदण्डाज्तरा् शर
ू ा् कान्ता हे भ च भेहदनी । चन्दनॊ दधध तामफर
ू ॊ भदग नॊ
गुणवधगनभ ् ॥ ०९-१३ 13:

ईख, ततर, ऺुद्र, स्त्री, स्त्िणय, धयती, चॊदन, दह),औय ऩान, इनको जजतना भसरा मा भथा जाता है, उतनी
गण
ु -िवृ द् होती है ।

भन को िश भें यखो

मदीच्छशस वशीकतुं जगदे केन कभगणा । ऩयु ा ऩञ्चदशा्मेभमो गाॊ चयन्ती तनवायम
॥ १४-१४ 14:

मटद एक ह) कभय से सभस्त्त सॊसाय को िश भें कयना चाहते हो तो ऩॊद्रह भख


ु ों से विचयण कयने िारे
भन को योको, अथायत उसे िश भें कयो। ऩॊद्रह भख
ु है ------भह
ुॊ , आॉख, नाक, कान, जीब, त्िक, हाथ, ऩैय,
लरॊग, गद
ु ा, यस, गॊध, स्त्ऩशय औय शब्द।
भन भें कुटटरता

अन्तगगतभरो दष्ु ट्तीथग्नानशतैयवऩ । न शध्


ु मतत मथा बाण्डॊ सयु ामा दाहहतॊ च
सत ् ॥ ११-०७ 7:

जजस प्रकाय शयाफ िारा ऩार अज्न भें तऩाए जाने ऩय बी शद्
ु नह)ॊ हो सकता, उसी प्रकाय जजस
भनष्ु म के ह्रदम भें ऩाऩ औय कुटटरता बय) होती है, सैकड़ों तीथय स्त्थानो ऩय स्त्नान कयने से बी ऐसे
भनष्ु म ऩविर नह)ॊ हो सकते।

भनष्ु म मोतन

ऩन
ु ववगत्सतॊ ऩन
ु शभगत्रॊ ऩन
ु बागमाग ऩन
ु भगही । एतत्ससवं ऩन
ु रगभमॊ न शयीयॊ ऩन
ु ् ऩन
ु ् ॥
१४-०३ 3:

धन, लभर, स्त्री, ऩथ्


ृ िी, मे फाय-फाय प्राप्त होते है, ऩयन्तु भनष्ु म का शय)य फाय-फाय नह)ॊ लभरता है ।

भामा-भोह के जार

धभागख्माने श्भशाने च योधगणाॊ मा भततबगवत


े ् । सा सवगदैव ततष्ठे च्चेत्सको न
भच्
ु मेत फन्धनात ् ॥ १४-०६ 6:

धालभयक कथा सन
ु ने ऩय, श्भशान भें गचता को जरते दे खकय, योगी को कष्ट भें ऩड़े दे खकय जजस प्रकाय
िैया्म बाि उत्ऩन्न होता है, िह मटद जस्त्थय यहे तो मह साॊसारयक भोह-भामा व्मथय रगने रगे, ऩयन्तु
अजस्त्थय भन श्भशान से रौटने ऩय कि उपय से भोह-भामा भें पॊस जाता है ।

फन्धाम ववषमासङ्गो भत
ु त्समै तनववगषमॊ भन् । भन एव भनष्ु माणाॊ कायणॊ
फन्धभोऺमो् ॥ १३-१२ 12:

भन को वि मह)न अथायत भामा-भोह से भक्


ु त कयके ह) भोऺ की प्राजप्त हो सकती है क्मोंकि उक भन भें
वि म-िासनाओॊ के आिागभन के कायण ह) भनष्ु म भामा-भोह के जार भें आसक्त यहता है । अत्
भोऺ (जीिन-भयण( से छुटकाया ऩाने के लरए भन का विकाययटहत होना आिश्मक है ।

म्म ्नेहो बमॊ त्म ्नेहो द्ु ख्म बाजनभ ् । ्नेहभर


ू ातन द्ु खातन तातन
त्समतत्सवा वसेत ् सख
ु भ ् ॥ १३-०६ 6:

जजसे कि उकसी से रगाि है , िह उतना ह) बमबीत होता है । रगाि द्ु ख का कायण है । द्ु खो की जड़
रगाि है । अत् रगाि को छोड़कय सख
ु से यहना सीखो।
लभर

न ववश्वसेत्सकुशभत्रे च शभत्रे चावऩ न ववश्वसेत ् । कदाधचत्सकुवऩतॊ शभत्रॊ सवं गुह्मॊ


प्रकाशमेत ् ॥ ०२-०६ 6:

फयु े लभर ऩय अऩने लभर ऩय बी विश्िास नह) कयना चाटहए क्मोंकि उक कबी नायाज होने ऩय साबित्
आऩका विलशष्ट लभर बी आऩके साये यहस्त्मों को प्रकट कय सकता है ।

ऩयोऺे कामगहन्तायॊ प्रत्समऺे वप्रमवाहदनभ ् । वजगमेत्सतादृशॊ शभत्रॊ ववषकुमबॊ ऩमोभख


ु भ्
॥ ०२-०५ 5:

जो लभर प्रत्मऺ रूऩ से भधयु िचन फोरता हो औय ऩीठ ऩीछे अथायत अप्रत्मऺ रूऩ से आऩके साये
कामो भें योड़ा अटकाता हो, ऐसे लभर को उस घड़े के सभान त्माग दे ना चाटहए जजसके बीतय वि बया
हो औय ऊऩय भह
ॊु के ऩास दध
ू बया हो।

ववद्मा शभत्रॊ प्रवासे च बामाग शभत्रॊ गह


ृ े षु च । व्माधधत्मौषधॊ शभत्रॊ धभो शभत्रॊ
भत
ृ ्म च ॥ ०५-१५ 15:

विदे श भें वियमा ह) लभर होती है , घय भें ऩत्नी लभर होती है , योगगमों के लरए औ गध लभर है औय
भयते हुए व्मजक्त का लभर धभय होता है अथायत उसके सत्कभय होते है ।

भुजक्त ऩाने के लरए

भजु ततशभच्छशस चेत्सतात ववषमाजन्वषवत्सत्समज । ऺभाजगवदमाशौचॊ सत्समॊ ऩीमष


ू वजत्सऩफ
॥ ०९-०१ 1:

मटद भजु क्त चाहते हो तो सभस्त्त वि म-िासनाओॊ को वि के सभान छोड़ दो औय ऺभाशीरता, नम्रता,
दमा, ऩविरता औय सत्मता को अभत
ृ की बाॊतत वऩमो अथायत अऩनाओ।

भख
ू य

वमस् ऩरयणाभेऽवऩ म् खर् खर एव स् । समऩतवभवऩ भाधम


ु ं
नोऩमातीन्रवारणभ ् ॥ १२-२३

जो व्मजक्त अऩने फुढ़ाऩे भें बी भूखय है िह सचभुच ह) भूखय है . उसी प्रकाय जजस प्रकाय इन्द्र
िरुण का पर कि उकतना बी ऩके भीठा नह)ॊ होता.

भेहभान के साथ बोजन कयना


दयू ागतॊ ऩधथ श्रान्तॊ वथ
ृ ा च गह
ृ भागतभ ् । अनचगतमत्सवा मो बङ्
ु तते स वै चाण्डार
उच्मते ॥ १५-११ 11:

अचानक दयू से आमे थके-हाये ऩगथक से त्रफना ऩछ


ू े ह) जो बोजन कय रेता है, िह चाॊडार होता है ।

भौन यहना

मे तु सॊवत्ससयॊ ऩण
ू ं तनत्समॊ भौनेन बञ्
ु जते । मग
ु को हटसहस्रॊ तै् ्वगगरोके भहीमते
॥ ११-०९ 9:

जो कोई प्रततटदन ऩयू े सॊित-बय भौन यहकय बोजन कयते है , िे हजायों-कयोड़ो मग


ु ों तक स्त्िगय भें ऩज
ू े
जाते है ।

मऻ

अन्नहीनो दहे राष्रॊ भन्त्रहीनश्च ऋजत्सवज् । मजभानॊ दानहीनो नाज्त मऻसभो


रयऩ्ु ॥ ०८-२३ 23:

अन्नह)न मऻ याजा को, भॊरह)न मऻ कयने िारे ऋजत्िजों को औय दानह)न मऻ मजभान को जराता
है । मऻ के फयाफय कोई शरु नह)ॊ है ।

मे रोग ऩथ्
ृ िी ऩय बाय हैं

भाॊसबक्ष्मै् सयु ाऩानैभख


ुग ैश्चाऺयवजजगत्ै । ऩशशु ब् ऩर
ु षाकायै बागयाक्रान्ता हह भेहदनी
॥ ०८-२२ 22:

जो व्मजक्त भाॊस औय भटदया का सेिन कयते है, िे इस ऩथ्


ृ िी ऩय फोझ है । इसी प्रकाय जो व्मजक्त
तनयऺय है, िे बी ऩथ्
ृ िी ऩय फोझ है । इस प्रकाय के भनष्ु म रूऩी ऩशओ
ु के बाय से मह ऩथ्
ृ िी हभेशा
ऩीडड़त औय दफी यहती है ।

मेषाॊ न ववद्मा न तऩो न दान ऻानॊ न शीराॊ न गण


ु ो न धभग् । ते भत्समगरोके
बवु व बायबत
ू ा भनष्ु मरूऩेण भग
ृ ाश्चयजन्त ॥ १०-०७ 7:

जजसके ऩास न वियमा है, न तऩ है , न दान है औय न धभय है , िह इस भत्ृ मु रोक भें ऩथ्
ृ िी ऩय बाय
स्त्िरूऩ भनष्ु म रूऩी भग
ृ ों के सभान घभ
ू यहा है । िास्त्ति भें ऐसे व्मजक्त का जीिन व्मथय है । िह
सभाज के कि उकसी काभ का नह)ॊ है ।

यऺा कयना
ववत्सतेन यक्ष्मते धभो ववद्मा मोगेन यक्ष्मते । भद
ृ न
ु ा यक्ष्मते बऩ
ू ् सजत्स्त्रमा यक्ष्मते
गह
ृ भ ् ॥ ०५-०९ 9:

धभय की यऺा धन से, वियमा की यऺा तनयन्तय साधना से, याजा की यऺा भद
ृ ु स्त्िबाि से औय ऩततव्रता
जस्त्रमों से घय की यऺा होती है ।

यहने का स्त्थान

अमभभत
ृ तनधानॊ नामकोऽप्मोषधीनाभ ् अभत
ृ भमशयीय् काजन्तमत
ु तोऽवऩ चन्र् ।
बवततववगतयजश्भभगण्डरॊ प्राप्म बानो् ऩयसदनतनववष्ट् को रघत्सु वॊ न मातत ॥ १५-
१४
ऩयाए घय भें यहने से कौन छोटा नह)ॊ हो जाता ? मह दे खो अभत
ृ का खजाना, ओ गधमों का स्त्िाभी,
शय)य औय शोबा से मक्
ु त मह चन्द्रभा, जफ सम
ू य के प्रबा-भॊडर भें आता है तो प्रकाशह)न हो जाता है ।

कष्टॊ च खरु भख
ू त्सग वॊ कष्टॊ च खरु मौवनभ ् । कष्टात्सकष्टतयॊ चैव
ऩयगेहतनवासनभ ् ॥ ०२-०८ 8:

तनजश्चत रूऩ से भख
ू त
य ा द्ु खदामी है औय मौिन बी द्ु ख दे ने िारा है ऩयॊ तु कष्टो से बी फड़ा कष्ट
दस
ू ये के घय ऩय यहना है ।

धतनक् श्रोत्रत्रमो याजा नदी वैद्म्तु ऩञ्चभ् । ऩञ्च मत्र न ववद्मन्ते न तत्र
हदवसॊ वसेत ् ॥ ०१-०९

जहाॊ धनी, िैटदक ब्राह्भण, याजा,नद) औय िैद्म, मे ऩाॊच न हों, िहाॊ एक टदन बी नह)ॊ यहना चाटहमें।
बािाथय मह कि उक जजस जगह ऩय इन ऩाॊचो का अबाि हो, िहाॊ भनष्ु म को एक टदन बी नह)ॊ ठहयना
चाटहए।

भख
ू ाग मत्र न ऩज्
ू मन्ते धान्मॊ मत्र सस
ु जञ्चतभ ् । दामऩत्समे करहो नाज्त तत्र श्री्
्वमभागता ॥ ०३-२१ 21:

जहाॊ भख
ू ो का साभान नह)ॊ होता, जहाॊ अन्न बॊडाय सयु क्षऺत यहता है, जहाॊ ऩतत-ऩत्नी भें कबी झगड़ा
नह)ॊ होता, िहाॊ रक्ष्भी त्रफना फर
ु ाए ह) तनिास कयती है औय उन्हें कि उकसी प्रकाय की कभी नह)ॊ यहती।

मत्रोदकॊ तत्र वसजन्त हॊ सा-्तथैव शष्ु कॊ ऩरयवजगमजन्त । न हॊ सतल्


ु मेन नये ण
बाव्मॊ ऩन
ु ्त्समजन्त् ऩन
ु याश्रमन्ते ॥ ०७-१३ 13:
जजस सयोिय भें जर यहता है , हॊ स िह) यहते है औय सख
ू े सयोिय को छोड़ दे ते है । ऩरु
ु को ऐसे हॊ सो
के सभान नह)ॊ होना चाटहए जो कि उक फाय-फाय स्त्थान फदर रे।

मज्भन्दे शे न समभानो न वजृ त्सतनग च फान्धवा् । न च ववद्मागभोऽप्मज्त वासॊ


तत्र न कायमेत ् ॥ ०१-०८ 8.

जजस दे श भें साभान नह)ॊ, आजीविका के साधन नह)ॊ, फन्ध-ु फाॊधि अथायत ऩरयिाय नह)ॊ औय विद्मा
प्राप्त कयने के साधन नह)ॊ, िहाॊ कबी नह)ॊ यहना चाटहए।

वयॊ न याज्मॊ न कुयाजयाज्मॊ वयॊ न शभत्रॊ न कुशभत्रशभत्रभ ् । वयॊ न शशष्मो न


कुशशष्मशशष्मो वयॊ न दाय न कुदयदाय् ॥ ०६-१३ 13:

त्रफना याज्म के यहना उत्तभ है , ऩयन्तु दष्ु ट याजा के यहना अच्छा नह)ॊ है । त्रफना लभर के यहना अच्छा
है , कि उकन्तु दष्ु ट लभर के साथ यहना उगचत नह)ॊ है । त्रफना लशष्म के यहना ठीक है , ऩयन्तु नीच लशष्म को
ग्रहण कयना ठीक नह)ॊ है । त्रफना स्त्री के यहना उगचत है , कि उकन्तु दष्ु ट औय कुकटा स्त्री के साथ यहना
उगचत नह)ॊ है ।

ववप्राज्भन्नगये भहान्कथम क्ताररभ


ु ाणाॊ गण् को दाता यजको ददातत वसनॊ
प्रातगह
गृ ीत्सवा तनशश । को दऺ् ऩयववत्सतदायहयणे सवोऽवऩ दऺो जन्
क्भाज्जीवशस हे सखे ववषकृशभन्मामेन जीवाममहभ ् ॥ १२-०९ 9:

एक ब्राह्भण से कि उकसी ने ऩछ
ू ा ----'हे विप्र ! इस नगय भें फड़ा कौन है ? ब्राह्भण ने उत्तय टदमा ----
'ताड के िऺ
ृ ों का सभह
ू ।' प्रश्न कयने िारे ने एक ऩर फाद कि उपय ऩछ
ू ा -----'इसभें दानी कौन है ?' उत्तय
लभरा -----'धोफी है । िह) प्रात्कार प्रततटदन कऩड़ा रे जाता है औय शाभ को दे जाता है ।' ऩछ
ू ा गमा -
----'चतयु कौन है ?' उत्तय लभरा ------'दस
ु यो की स्त्री को चुयाने भें सबी चतयु है ।' आश्चमय से उसने
ऩछ
ू ा ------'तो लभर ! महाॊ जीवित कैसे यहते हो ?' उत्तय लभरा ------'भें जहय के कीड़ों की बाॊतत कि उकसी
प्रकाय जी यहा हूॊ।

शैरे शैरे च भाणणतमॊ भौजततकॊ न गजे गजे । साधवो न हह सवगत्र चन्दनॊ न


वने वने ॥ ०२-०९ 9:

हय एक ऩियत भें भखण नह)ॊ होती औय हय एक हाथी भें भक्


ु ताभखण नह)ॊ होती। साधु रोग सबी जगह
नह)ॊ लभरते औय हय एक िन भें चॊदन के िऺ
ृ नह)ॊ होते।

रयश्ते नाते
दयू ्थोऽवऩ न दयू ्थो मो म्म भनशस ज्थत् । मो म्म हृदमे नाज्त
सभीऩ्थोऽवऩ दयू त् ॥ १४-०९ 9:

जो जजसके भन भें है, िह उससे दयू यहकय बी दयू नह)ॊ है औय जो जजसके ह्रदम भें नह)ॊ है , िह सभीऩ
यहते हुए बी दयू है ।

एकोदयसभद्भ
ु त ू ा एकनऺत्रजातका् । न बवजन्त सभा् शीरे मथा फदयकण्टका् ॥
०५-०४ 4:

एक ह) भाता के ऩेट से औय एक ह) नऺर भें जन्भ रेने िार) सॊतान सभान गण


ु औय शीर िार)
नह)ॊ होती, जैसे फेय के काॊटे।

जन्भभत्सृ मू हह मात्समेको बन
ु तत्समेक् शब
ु ाशब
ु भ ् । नयकेषु ऩतत्समेक एको मातत ऩयाॊ
गततभ ् ॥ ०५-१३ 13:

भनष्ु म अकेरा ह) जन्भ रेता है औय अकेरा ह) भयता है । िह अकेरा ह) अऩने अच्छे -फयु े कभो को
बोगता है । िह अकेरा ह) नयक भें जाता है ऩयभ ऩद को ऩाता है ।

ते ऩत्र
ु ा मे वऩतुबत
ग ता् स वऩता म्तु ऩोषक् । तजन्भत्रॊ मत्र ववश्वास् सा बामाग
मत्र तनवतगृ त् ॥ ०२-०४ 4:

ऩर
ु िे है जो वऩता बक्त है। वऩता िह) है जो फच्चों का ऩारन-ऩो ण कयता है । लभर िह) है जजसभे
ऩण
ू य विश्िास हो औय स्त्री िह) है जजससे ऩरयिाय भें सख
ु -शाॊतत व्माप्त हो।

दयु ाचायी दयु ादृजष्टदग यु ावासी च दज


ु न
ग ् । मन्भैत्री कक्रमते ऩॊशु बनगय् शीघ्रॊ ववनश्मतत ॥
०२-१९ 19:

फयु ा आचयण अथायत दयु ाचाय) के साथ यहने से, ऩाऩ दज् ष्ट यखने िारे का साथ कयने से तथा अशद्

स्त्थान ऩय यहने िारे से लभरता कयने िारा शीघ्र नष्ट हो जाता है ।

म्म ऩत्र
ु ो वशीबत
ू ो बामाग छन्दानग
ु ाशभनी । ववबवे मश्च सन्तुष्ट्त्म ्वगग
इहै व हह ॥ ०२-०३ 3:

जजसका ऩर
ु आऻाकाय) हो, स्त्री उसके अनस
ु ाय चरने िार) हो, अथायत ऩततव्रता हो, जो अऩने ऩास धन
से सॊतष्ु ट यहता हो, उसका स्त्िगय मह)ॊ ऩय है ।

याजऩत्सनी गयु ो् ऩत्सनी शभत्रऩत्सनी तथैव च । ऩत्सनीभाता ्वभाता च ऩञ्चैता


भातय् ्भत
ृ ा् ॥ ०५-२३ 23:
याजा की ऩत्नी, गरु
ु की स्त्री, लभर की ऩत्नी, ऩत्नी की भाता (सास( औय अऩनी जननी ----मे ऩाॊच
भाताएॊ भानी गई है । इनके साथ भाति
ृ त ् व्मिहाय ह) कयना चाटहए।

सत्समॊ भाता वऩता ऻानॊ धभो भ्राता दमा सखा । शाजन्त् ऩत्सनी ऺभा ऩत्र
ु ् षडेते
भभ फान्धवा् ॥ १२-११ 11:

सत्म भेय) भाता है , वऩता भेया ऻान है, धभय भेया बाई है, दमा भेय) लभर है, शाॊतत भेय) ऩत्नी है औय
ऺभा भेया ऩर
ु है, मे छ् भेये फॊध-ु फाॊधि है ।

सभाने शोबते प्रीतत् याक्षऻ सेवा च शोबते । वाणणज्मॊ व्मवहाये षु हदव्मा ्त्री
शोबते गह
ृ े ॥ ०२-२० 20:

लभरता फयाफय िारों भें शोबा ऩाती है ,नौकय) याजा की अच्छी होती है, व्मिहाय भें कुशर व्माऩाय) औय
घय भें सद
ॊु य स्त्री शोबा ऩाती है ।

सक
ु ु रे मोजमेत्सकन्माॊ ऩत्र
ु ॊ ववद्मासु मोजमेत ् । व्मसने मोजमेच्छत्रॊु शभत्रॊ धभेण
मोजमेत ् ॥ ०३-०३ 3.

कन्मा का वििाह अच्छे कुर भें कयना चाटहए। ऩर


ु को वियमा के साथ जोड़ना चाटहए। दश्ु भन को
विऩजत्त भें डारना चाटहए औय लभर को अच्छे कामो भें रगाना चाटहए।

रज्जा नह)ॊ यखना

धनधान्मप्रमोगेषु ववद्मासङ्ग्रहणे तथा । आहाये व्मवहाये च त्समततरज्ज् सख


ु ी
बवेत ् ॥ १२-२१ 21:

धन औय अन्न के व्मिहाय भें , विद्मा ग्रहण कयने भें, बोजन कयने भें औय व्मिहाय भें जो व्मजक्त
रज्जा नह)ॊ यखता, िह सदै ि सख
ु ी यहता है

ितयभान भें जजमो

गते शोको न कतगव्मो बववष्मॊ नैव धचन्तमेत ् । वतगभानेन कारेन वतगमजन्त


ववचऺणा् ॥ १३-०२ 2:

फीते हुए का शोक नह)ॊ कयना चाटहए औय बविष्म भें जो कुछ होने िारा है , उसकी गचॊता नह)ॊ कयनी
चाटहए। आए हुए सभम को दे खकय ह) विद्िान रोग कि उकसी कामय भें रगते है ।

िश भें कयना
रबु धभथेन गह्
ृ णीमात ् ्तबधभञ्जशरकभगणा । भख
ू ं छन्दोऽनव
ु त्सृ त्समा च मथाथगत्सवेन
ऩजण्डतभ ् ॥ ०६-१२ 12:

रोबी को धन से, घभॊडी को हाथ जोड़कय, भख


ू य को उसके अनस
ु ाय व्मिहाय से औय ऩॊडडत को सच्चाई
से िश भें कयना चाटहए।

ह्ती अङ्कुशभात्रेण वाजी ह्तेन ताड्मते । शङ्


ृ गी रगुडह्तेन खड्गह्तेन
दज
ु न
ग ् ॥ ०७-०८ 8: हाथी को अॊकुश से, घोड़े को चाफक
ु से, सीॊग िारे फैर को डॊडे से औय दष्ु ट
व्मजक्त को िश भें कयने के लरए हाथ भें तरिाय रेना आिश्मक है ।

िाणी का आनॊद

तावन्भौनेन नीमन्ते कोककरैश्चैव वासया् । मावत्ससवगजनानन्ददातमनी वातप्रवतगते


॥ १४-१८ 18:

कोमर की िाणी तबी तक भौन यहती है , जफ तक कि उक सबी जनों को आनॊद दे ने िार) िाणी प्रायाब
नह)ॊ हो जाती।

विद्मा

आहायतनराबमभैथन
ु ातन सभातन चैतातन नण
ृ ाॊ ऩशन
ू ाभ ् । ऻानॊ नयाणाभधधको
ववशेषो ऻानेन हीना् ऩशशु ब् सभाना् ॥ १७-१७ 17:

बोजन, नीॊद, डय, सॊबोग आटद, मे ितृ त (गण


ु ( भनष्ु म औय ऩशओ
ु ॊ भें सभान रूऩ से ऩाई जाती है । ऩशओ

की अऩेऺा भनष्ु मों भें केिर ऻान (फवु द्( एक विशे गण
ु , उसे अरग से प्राप्त है । अत् ऻान के त्रफना
भनष्ु म ऩशु के सभान ह) होता है ।

ऩ्
ु तकप्रत्सममाधीतॊ नाधीतॊ गुरसजन्नधौ । सबाभध्मे न शोबन्ते जायगबाग इव
ज्त्रम् ॥ १७-०१ 1:

जजस प्रकाय ऩय-ऩरु


ु से गबय धायण कयने िार) स्त्री शोबा नह)ॊ ऩतत, उसी प्रकाय गरु
ु के चयणो भें
फैठकय विद्मा प्राप्त न कयके इधय-उधय से ऩस्त्
ु तके ऩढ़कय जो ऻान प्राप्त कयते है, िे विद्िानों की
सबा भें शोबा नह)ॊ ऩाते क्मोंकि उक उनका ऻान अधूया होता है । उसभे ऩरयऩक्िता नह)ॊ होती। अधूये ऻान
के कायण िे शीघ्र ह) उऩहास के ऩार फन जाते है ।

ककॊ कुरेन ववशारेन ववद्माहीनेन दे हहनाभ ् । दष्ु कुरॊ चावऩ ववदष


ु ो दे वयै वऩ स
ऩज्
ू मते ॥ ०८-१९ 19 :
विद्माविह)न अथायत भख
ू य व्मजक्तमों के फड़े कुर के होने से क्मा राब ? विद्िान व्मजक्त का नीच
कुर बी दे िगणों से साभान ऩाता है ।

ववद्वान्प्रश्मते रोके ववद्वान ् सवगत्र ऩज्


ू मते । ववद्ममा रबते सवं ववद्मा सवगत्र
ऩज्
ू मते ॥ ०८-२० 20:

सॊसाय भें विद्िान की ह) प्रशॊसा होती है , विद्िान व्मजक्त ह) सबी जगह ऩज


ू े जाते है । विद्मा से ह)
सफ कुछ लभरता है , विद्मा की सफ जगह ऩज
ू ा होती है।

शन
ु ् ऩच्
ु छशभव व्मथं जीववतॊ ववद्ममा ववना । न गह्
ु मगोऩने शततॊ न च
दॊ शतनवायणे ॥ ०७-१९ 19:

जजस प्रकाय कुत्ते की ऩछ


ूॊ गप्ु त स्त्थानों को ढाॊऩ सकने भें व्मथय है औय भच्छयों को काटने से बी नह)ॊ
योक ऩाती, उसी प्रकाय त्रफना विद्मा के भनष्ु म जीिन व्मथय है ।

विद्माथी

सख
ु ाथॉ चेत्सत्समजेद्ववद्माॊ ववद्माथॉ चेत्सत्समजेत्ससख
ु भ ् । सख
ु ाधथगन् कुतो ववद्मा सख
ु ॊ
ववद्माधथगन् कुत् ॥ १०-०३ 3.

विदमाथी को मटद सख
ु की इच्छा है औय िह ऩरयश्रभ कयना नह)ॊ चाहता तो उसे विदमा प्राप्त कयने
की इच्छा का त्माग कय दे ना चाटहए। मटद िह विदमा चाहता है तो उसे सख
ु -सवु िधाओॊ का त्माग
कयना होगा क्मोंकि उक सख
ु चाहने िारा विदमा प्राप्त नह)ॊ कय सकता। दस
ू य) ओय विदमा प्राप्त कयने
िारो को आयाभ नह)ॊ लभर सकता।

काभक्रोधौ तथा रोबॊ ्वादश


ु ङ्
ृ गायकौतुके । अतततनराततसेवे च ववद्माथॉ ह्मष्ट
वजगमेत ् ॥ ११-१० 10:

काभ (व्मलबचाय(, क्रोध (अबीष्ट की प्राजप्त न होने ऩय आऩे से फाहय होना(, रारच (धन-प्राजप्त की
रारसा(, स्त्िाद (जजह्िा को वप्रम रगने िारे ऩदाथो का सेिन(, श्रॊग
ृ ाय (सजना-धजना(, खेर औय
अत्मगधक सेिा (दस
ु यो की चाकय)( आटद दग
ु ण
ुय विद्माथी के लरए िजजयत है । विद्माथी को इन आठों
दग
ु ण
ुय ों का सियथा त्माग कय दे ना चाटहए।

विद्िान

दत
ू ो न सञ्चयतत खे न चरेच्च वाताग ऩव
ू ं न जजल्ऩतशभदॊ न च सङ्गभोऽज्त ।
व्मोजमन ज्थतॊ यववशाशशग्रहणॊ प्रश्तॊ जानातत मो द्ववजवय् स कथॊ न ववद्वान ्
॥ ०९-०५ 5:
न तो आकाश भें कोई दतू गमा, न इस सॊफध
ॊ भें कि उकसी से फात हुई, न ऩहरे कि उकसी ने इसे फनामा औय
न कोई प्रकयण ह) आमा, तफ बी आकाश भें बभ
ृ ण कयने िारे चॊद्र औय सम ू य के ग्रहण के फाये भें जो
ब्राह्भण ऩहरे से ह) जान रेता है , िह विद्िान क्मों नह)ॊ हैं? अथायत िास्त्ति भें िह विद्िान है, जजसकी
गणना से ग्रहों की चर का सह)-सह)-ऩता रगामा जाता यहा है ।

भातव
ृ त्सऩयदाये षु ऩयरव्मेषु रोष्रवत ् । आत्सभवत्ससवगबत
ू ेषु म् ऩश्मतत स ऩजण्डत् ॥
१२-१४ 14:

जो व्मजक्त दस
ू ये की स्त्री को भाता के सभान, दस
ू ये के धन को ढे रे (कॊकड़( के सभान औय सबी जीिों
को अऩने सभान दे खता है, िह) ऩॊडडत है , विद्िान है ।

विनम्रता

वयॊ प्राणऩरयत्समागो भानबङ्गेन जीवनात ् । प्राणत्समागे ऺणॊ द्ु खॊ भानबङ्गे हदने


हदने ॥ १६-१७ 17:

भधयु िचन सबी को सॊतष्ु ट कयते है इसलरए सदै ि भद


ृ ब
ु ा ी होना चाटहए। भधयु िचन फोरने भें कैसी
दरयद्रता ? जो व्मजक्त भीठा फोरता है , उससे सबी प्रसन्न यहते है ।

धन्मा द्ववजभमी नौका ववऩयीता बवाणगवे । तयन्त्समधोगता् सवे उऩरयष्ठा्


ऩतन्त्समध् ॥ १५-१३ 13:

इस सॊसाय सागय को ऩाय कयने के लरए ब्राह्भण रूऩी नौका प्रशॊसा के मो्म है , जो उकट) टदशा की
औय फहती है । इस नाि भें ऊऩय फैठने िारे ऩाय नह)ॊ होते, कि उकन्तु नीचे फैठने िारे ऩाय हो जाते है ।
अत् सदा नम्रता का ह) व्मिहाय कयना चाटहए।

विनाश कार भें विऩय)त फवु द्

न तनशभगतो न चैव न दृष्टऩव


ू ो न श्रम
ू ते हे भभम् कुयॊ ग् । तथाऽवऩ तष्ृ णा
यघन
ु न्दन्म ववनाशकारे ववऩयीतफवु द्ध् ॥ १६-०५ 5:

स्त्िणय भग
ृ न तो ब्रह्भा ने यचा था औय न कि उकसी औय ने उसे फनामा था, न ऩहरे कबी दे खा गमा था,
न कबी सनु ा गमा था, तफ श्री याभ की उसे ऩाने (भाय)च का भामािी रूऩ कॊचन भग ृ ( की इच्छा हुई,
अथायत सीता के कहने ऩय िे उसे ऩाने के लरए दौड़ ऩड़े। कि उकसी ने ठीक ह) कहा है ------'विनाश कारे
विऩय)त फवु द्।' जफ विनाश कार आता है, तफ फवु द् नष्ट हो जाती है ।

विऩजत्त
अनागतववधाता च प्रत्समत्सु ऩन्नभतत्तथा । द्वावेतौ सख
ु भेधेते मद्भववष्मो
ववनश्मतत ॥ १३-०७ 7:

बविष्म भें आने िार) सॊबावित विऩजत्त औय ितयभान भें उऩजस्त्थत विऩजत्त ऩय जो तत्कार विचाय
कयके उसका सभाधान खोज रेते है , िे सदा सख
ु ी यहते है । इसके अरािा जो ऐसा सोचते यहते है कि उक
'मह होगा, िैसा होगा तथा जो होगा, दे खा जाएगा ' औय कुछ उऩाम नह)ॊ कयते, िे शीघ्र ह) नष्ट हो
जाते है ।

विश्िास नह)ॊ कयना

नदीनाॊ श्त्रऩाणीनाॊनखीनाॊ शङ्


ृ धगणाॊ तथा । ववश्वासो नैव कतगव्म् ्त्रीषु
याजकुरेषु च ॥ ०१-१५ 15.

राफे नाख़न
ू िारे टहॊसक ऩशओ
ु ,ॊ नटदमों, फड़े-फड़े सीॊग िारे ऩशओ
ु , शस्त्रधारयमों, जस्त्रमों औय याज
ऩरयिायो का कबी विश्िास नह)ॊ कयना चाटहए।

वि

तऺक्म ववषॊ दन्ते भक्षऺकामा्तु भ्तके । वजृ श्चक्म ववषॊ ऩच्


ु छे सवागङ्गे
दज
ु न
ग े ववषभ ् ॥ १७-०८ 8:

तऺक (एक साॊऩ का नाभ( के दाॊत भें वि होता है, भक्खी के सय भें वि होता है, त्रफच्छू की ऩछ
ूॊ भें
वि होता है, ऩयन्तु दष्ु ट व्मजक्त के ऩयू े शय)य अथायत सये अॊगो भें वि होता है ।

व्मथय

ू ान्नबोजना् । ते द्ववजा् ककॊ करयñष्मजन्त तनववगषा


अधागधीताश्च मैवेदा्तथा शर
इव ऩन्नगा् ॥ ०९-०८ 8:

धन के लरए िेद ऩढ़ाने िारे तथा शद्र


ु ो के अन्न को खाने िारे ब्राह्भण वि ह)न सऩय की बाॊतत क्मा
कय सकते है, अथायत िे कि उकसी को न तो शाऩ दे सकते है , न ियदान।

नाजग्नहोत्रॊ ववना वेदा न च दानॊ ववना कक्रमा । न बावेन ववना शसवद्ध्त्भाद्भावो


हह कायणभ ् ॥ ०८-१० 10:

मऻ न कयने िारे का िेद ऩढ़ना व्मथय है । त्रफना दान के मऻ कयना व्मथय है । त्रफना बाि के लसवद्
नह)ॊ होती इसलरए बाि अथायत प्रेभ ह) सफ भें प्रधान है ।
तनगण
ुग ्म हतॊ रूऩॊ द्ु शीर्म हतॊ कुरभ ् । अशसद्ध्म हता ववद्मा ह्मबोगेन हतॊ
धनभ ् ॥ ०८-१६ 16:

गण
ु ह)न व्मजक्त की सद
ुॊ यता व्मथय है, दष्ु ट स्त्िबाि िारे व्मजक्त का कुर नष्ट होने मो्म है , मटद रक्ष्म
की लसवद् न हो तो विद्मा व्मथय है, जजस धन का सदऩ
ु मोग न हो, िह धन व्मथय है।

वथ
ृ ा वजृ ष्ट् सभर
ु े षु वथ
ृ ा तप्ृ त्म बोजनभ ् । वथ
ृ ा दानॊ सभथग्म वथ
ृ ा दीऩो
हदवावऩ च ॥ ०५-१६ 16:

सभद्र
ु भें ि ाय का होना व्मथय है , तप्ृ त व्मजक्त को बोजन कयना व्मथय है, धतनक को दान दे ना व्मथय है
औय टदन भें द)ऩक जराना व्मथय है ।

हतॊ ऻानॊ कक्रमाहीनॊ हतश्चाऻानतो नय् । हतॊ तनणागमकॊ सैन्मॊ ज्त्रमो नष्टा
ह्मबतक
ग ृ ा् ॥ ०८-०८ 8:

त्रफना कि उक्रमा के ऻान व्मथय है , ऻानह)न भनष्ु म भत


ृ क के सभान है , सेनाऩतत के त्रफना सेना नष्ट हो
जाती है औय ऩतत के त्रफना जस्त्रमाॊ ऩततत हो जाती है, अथायत ऩतत के त्रफना उनका जीिन व्मथय है ।

शजक्त

अन्नाद्दशगुणॊ वऩष्टॊ वऩष्टाद्दशगण


ु ॊ ऩम् । ऩमसोऽष्टगण
ु ॊ भाॊसाॊ भाॊसाद्दशगण
ु ॊ घत
ृ भ्
॥ १०-१९ 19:

अन्न की अऩेऺा उसके चूणय अथायत वऩसे हुए आटे भें दस गनु ा अगधक शजक्त होती है । दध
ू भें आटे से
बी दस गनु ा अगधक शजक्त होती है । भाॊस भें दध
ू से बी आठ गनु ा अगधक शजक्त होती है । औय घी
भें भाॊस से बी दस गन
ु ा अगधक फर है ।

कवम् ककॊ न ऩश्मजन्त ककॊ न बऺजन्त वामसा् । भद्मऩा् ककॊ न जल्ऩजन्त ककॊ
न कुवगजन्त मोवषत् ॥ १०-०४ 4:

कवि रोग क्मा नह)ॊ दे खते ? जस्त्रमाॊ क्मा नह)ॊ कय सकती ? भटदया ऩीने िारे क्मा-क्मा नह)ॊ फकते ?
कौिे क्मा-क्मा नह)ॊ खाते ?

फाहुवीमं फरॊ याऻाॊ ब्रह्भणो ब्रह्भववद्फरी । रूऩमौवनभाधम


ु ं ्त्रीणाॊ फरभनत्सु तभभ ्
॥ ०७-११ 11:

याजा की शजक्त उसके फाहुफर भें , ब्राह्भण की शजक्त उसके तत्ि ऻान भें औय जस्त्रमों की शजक्त
उनके सौंदमय तथा भाधम
ु य भें होती है ।
सद्म् प्रऻाहया तुण्डी सद्म् प्रऻाकयी वचा । सद्म् शजततहया नायी सद्म्
शजततकयॊ ऩम् ॥ १७-१४ 14:

'तण्
ु डी' (कॊु दरू( को खाने से फवु द् तत्कार नष्ट हो जाती है , 'िच, के सेिन से फवु द् को शीघ्र विकास
लभरता है , स्त्री के सभागभ कयने से शजक्त तत्कार नष्ट हो जाती है औय दध
ू के प्रमोग से खोई हुई
ताकत तत्कार िाऩस रौट आती है ।

ू तन्ु स चाङ्कुशवश् ककॊ हज्तभात्रोऽङ्कुशो दीऩे प्रज्वशरते प्रणश्मतत


ह्ती ्थर
तभ् ककॊ दीऩभात्रॊ तभ् । वज्रेणावऩ हता् ऩतजन्त धगयम् ककॊ वज्रभात्रॊ नगा-्तेजो
म्म ववयाजते स फरवान््थर
ू ेषु क् प्रत्समम् ॥ ११-०३ 3:

हाथी भोटे शय)य िारा है, ऩयन्तु अॊकुश से िश भें यहता है । क्मा अॊकुश हाथी के फयाफय है ? द)ऩक के
जरने ऩय अॊधकाय नष्ट हो जाता है । क्मा अॊधकाय द)ऩक फयाफय है ? िज्र से फड़े-फड़े ऩियत लशखय
टूटकय गगय जाते है । क्मा िज्र ऩियतों के सभान है ? सत्मता मह है कि उक जजसका तेज चभकता यहता है ,
िह) फरिान है । भोटे ऩन से फर का अहसास नह)ॊ होता।

शरु

अनर
ु ोभेन फशरनॊ प्रततरोभेन दज
ु न
ग भ ् । आत्सभतुल्मफरॊ शत्रॊु ववनमेन फरेन वा ॥
०७-१० 10:

अऩने से शजक्तशार) शरु को विनमऩि


ू क
य उसके अनस
ु ाय चरकय, दफ
ु र
य शरु ऩय अऩना प्रबाि डारकय
औय सभान फर िारे शरु को अऩनी शजक्त से मा कि उपय विनम्रता से, जैसा अिसय हो उसी के अनस
ु ाय
व्मिहाय कयके अऩने िश भें कयना चाटहए।

ऋणकताग वऩता शत्रभ


ु ागता च व्मशबचारयणी । बामाग रूऩवती शत्र्ु ऩत्र
ु ् शत्रयु ऩजण्डत्
॥ ०६-११ 11:

कजयदाय वऩता शरु है , व्मलबचारयणी भाता शरु है, भख


ू य रड़का शरु है औय सन्
ु दय स्त्री शरु है ।

भख
ू ागणाॊ ऩजण्डता द्वेष्मा अधनानाॊ भहाधना् । ऩयाॊगना कुर्त्रीणाॊ सब
ु गानाॊ च
दब
ु ग
ग ा् ॥ ०५-०६ 6:

भख
ू ो के ऩॊडडत, दरयद्रो के धनी, विधिाओॊ की सह
ु ागगनें औय िेश्माओॊ की कुर-धभय यखने िार) ऩततव्रता
जस्त्रमाॊ शरु होती है ।

रबु धानाॊ माचक् शत्रभ


ु ख
ूग ागनाॊ फोधको रयऩ्ु । जाय्त्रीणाॊ ऩतत् शत्रश्ु चौयाणाॊ
चन्रभा रयऩ्ु ॥ १०-०६ 6:
रोलबमों का शरु लबखाय) है, भख
ू ो का शरु ऻानी है, व्मलबचारयणी स्त्री का शरु उसका ऩतत है औय चोयो
का शरु चॊद्रभा है ।

शय)य नश्िय है

दे हाशबभाने गशरतॊ ऻानेन ऩयभात्सभतन । मत्र मत्र भनो मातत तत्र तत्र सभाधम् ॥
१३-१३ 13:

ऩयभ तत्िऻान प्राप्त होने ऩय जफ भनष्ु म दे ह के अलबभान को छोड़ दे ता है अथायत जफ उसे आत्भा-
ऩयभात्भा की तनत्मता औय शय)य की ऺणबॊगयु ता का ऻान हो जाता है तो िह इस शय)य के भोह को
छोड़ दे ता है । तदऩ
ु याॊत उसका भन जहाॊ-जहाॊ बी जाता है , िहाॊ-िहाॊ उसे लसद् ऩरु
ु ों की सभागधमों की
अनब
ु तू त होती है ।

शय)य भें टदखाई न दे ने िार) आत्भा तनिास कयती है

ऩष्ु ऩे गन्धॊ ततरे तैरॊ काष्ठे ऽजग्नॊ ऩमशस घत


ृ भ ् । इऺौ गड
ु ॊ तथा दे हे ऩश्मात्सभानॊ
वववेकत् ॥ ०७-२१ 21:

जजस प्रकाय पूर भें गॊध, ततरो भें तेर, रकड़ी भें आग, दध
ू भें घी, गन्ने भें लभठास आटद टदखाई न दे ने
ऩय बी वियमभान यहते है , उसी प्रकाय भनष्ु म के शय)य भें टदखाई न दे ने िार) आत्भा तनिास कयती
है । मह यहस्त्म ऐसा है कि उक इसे वििेक से ह) सभझा जा सकता है ।

शास्त्रों का ऩठन

प्रातद्गमत
ू प्रसङ्गेन भध्माह्ने ्त्रीप्रसङ्गत् । यात्रौ चौयप्रसङ्गेन कारो गच्छजन्त
धीभताभ ् ॥ ०९-११ 11:

प्रात्कार जआ
ु रयमो की कथा से (भहाबायत की कथा से(, भयमाह्न (दोऩहय( का सभम स्त्री प्रसॊग से
(याभामण की कथा से( औय यात्रर भें चोय की कथा से (श्री भद् बागित की कथा से( फवु द्भान रोग
अऩना सभम काटते है ।

जरे तैरॊ खरे गुह्मॊ ऩात्रे दानॊ भनागवऩ । प्राऻे शा्त्रॊ ्वमॊ मातत वव्तायॊ
व्तश
ु जततत् ॥ १४-०५ 5:

ऩानी भें तेर, दष्ु ट व्मजक्तमों भें गोऩनीम फातें, उत्तभ ऩार को टदमा गमा दान औय फवु द्भान के ऩास
शास्त्र-ऻान मटद थोड़ा बी हो तो स्त्िमॊ िह अऩनी शजक्त से विस्त्ताय ऩा जाता है ।

लशऺा
ववनमॊ याजऩत्र
ु भ े म् ऩजण्डतेभम् सब
ु ावषतभ ् । अनत
ृ ॊ द्मत
ू काये भम् ्त्रीभम् शशऺेत
कैतवभ ् ॥ १२-१८ 18:

याजऩर
ु ों से नम्रता, ऩॊडडतों से भधुय िचन, जुआरयमों से असत्म फोरना औय जस्त्रमों से धूतत
य ा सीखनी
चाटहए।

शद्

शद्ध
ु ॊ बशू भगतॊ तोमॊ शद्ध
ु ा नायी ऩततव्रता । शधु च् ऺेभकयो याजा सन्तोषो ब्राह्भण्
शधु च् ॥ ०८-१७ 17:

ऩथ्
ृ िी के बीतय का ऩानी शद्
ु होता है , ऩततव्रता स्त्री ऩविर होती है, ककमाण कयने िारा याजा ऩविर
होता है औय सॊतो ी ब्राह्भण ऩविर होता है ।

तैराभमङ्गे धचताधभ
ू े भैथन
ु े ऺौयकभगणण । तावद्भवतत चाण्डारो मावत्स्नानॊ न
चाचये त ् ॥ ०८-०६ 6:

(शय)य भें ( तेर रगाने ऩय, गचता का धआ


ु ॊ रगने ऩय, स्त्री सॊबोग कयने ऩय, फार कटिाने ऩय, भनष्ु म
तफ तक चाॊडार, अथायत अशद्
ु ह) यहता है , जफ तक िह स्त्नान नह)ॊ कय रेता।

ब्भना शद्
ु ध्मते का्मॊ ताम्रभमरेन शद्
ु ध्मतत । यजसा शद्
ु ध्मते नायी नदी
वेगेन शद्
ु ध्मतत ॥ ०६-०३ 3:

काॊसे का ऩार याख द्िाया भाॊजने से शद्


ु होता है, ताॊफे का ऩार खटाई के यगड़ने से शद्
ु होता है । स्त्री
यजस्त्िरा होने से ऩविर होती है औय नद) तीव्र गतत से फहने से तनभयर हो जाती है ।

ऩादशेषॊ ऩीतशेषॊ सन्ध्माशेषॊ तथैव च । श्वानभत्र


ू सभॊ तोमॊ ऩीत्सवा चान्रामणॊ चये त ्
॥ १७-११ 11:

ऩैयो के धोने से फचा हुआ, ऩीने के फाद ऩार भें फचा हुआ औय सॊयमा से फचा हुआ जर कुत्ते के भर ू
के सभान है । उसे ऩीने के फाद ब्राह्भण, ऺत्ररम औय िैश्म चॊद्रामण व्रत को कये , तबी िे ऩविर हो
सकते है ।

शोबा

गुणो बष ू मते कुरभ ् । प्रासादशशखय्थोऽवऩ काक् ककॊ गरडामते


ू मते रूऩॊ शीरॊ बष
॥ ०८-१५ 15:
गण
ु से रूऩ की शोबा होती है , शीर से कुर की शोबा होती है , लसवद् से विद्मा की शोबा होती है औय
बोग से धन की शोबा होती है ।

कोककरानाॊ ्वयो रूऩॊ ्त्रीणाॊ रूऩॊ ऩततव्रतभ ् । ववद्मा रूऩॊ कुरूऩाणाॊ ऺभा रूऩॊ
तऩज्वनाभ ् ॥ ०३-०९ 9:

कोमर की शोबा उसके स्त्िय भें है , स्त्री की शोबा उसका ऩततव्रत धभय है, कुरूऩ व्मजक्त की शोबा
उसकी विद्िता भें है औय तऩजस्त्िमों की शोबा ऺभा भें है ।

श्रधा

अन्त्सायववहीनानाभऩ
ु दे शो न जामते । भरमाचरसॊसगागन्न वेणश्ु चन्दनामते ॥
१०-०८ 8:

शन्
ू म ह्रदम ऩय कोई उऩदे श रागू नह)ॊ होता। जैसे भरमाचर के साफन्ध से फाॊस चॊदन का िऺ
ृ नह)ॊ
फनता।

श्री कृष्ण र)रा


उव्मां कोऽवऩ भहीधयो रघत
ु यो दोभमां धत
ृ ो रीरमा तेन त्सवॊ हदवव बत
ू रे च सततॊ
गोवधगनो गीमसे । त्सवाॊ त्रैरोतमधयॊ वहाशभ कुचमोयग्रे न तद्गण्मते ककॊ वा केशव
बाषणेन फहुना ऩण्
ु मैमश
ग ो रभमते ॥ १५-१९ 19:

श्री कृष्ण को उराहना दे ती हुई गोऩी कहती है कि उक हे कन्है मा ! तभ


ु ने एक फाय गोिधयन नाभक ऩियत
को क्मा उठा लरमा कि उक तभु इस रोक भें ह) नह)ॊ, ऩयरोक भें बी गोिधयनधाय) के रूऩ भें प्रलसद् हो
गए, ऩयन्तु आश्चमय तो इस फात का है कि उक भै तीनो रोको के स्त्िाभी अथायत ता
ु हे अऩने ह्रदम ऩय
धायण कि उकए यहती हूॊ औय यात-टदन भैं ता
ु हाय) गचॊता कयती हूॊ, ऩय भझ
ु े कोई त्रररोकधाय) जैसी ऩदिी
नह)ॊ दे ता।

श्रेष्ठ

दह्मभाना् सत
ु ीव्रेण नीचा् ऩयमशोऽजग्नना अशतता्तत्सऩदॊ गन्तॊु ततो तनन्दाॊ
प्रकुवगते । दरयरता धी यतमा ववयाजतेकुव्त्रता शभ्र
ु तमा ववयाजते कदन्नता
चोष्णतमा ववयाजते कुरूऩता शीरतमा ववयाजते ॥ ०९-१४ 14:

दरयद्रता के सभम धैमय यखना उत्तभ है , भैरे कऩड़ों को साप यखना उत्तभ है , घटटमा अन्न का फना
गभय बोजन अच्छा रगता है औय कुरूऩ व्मजक्त के लरए अच्छे स्त्िबाि का होना श्रेष्ठ है ।
नान्नोदकसभॊ दानॊ न ततधथद्गवादशी सभा । न गामत्रमा् ऩयो भन्त्रो न भातुदैवतॊ
ऩयभ ् ॥ १७-०७ 7:

अन्नदान ि जरदान से फड़ा कोई अन्म दान नह)ॊ, द्िादशी ततगथ के सभान कोई अन्म ततगथ नह)ॊ,
गामरी भॊर के सभान कोई अन्म भॊर नह)ॊ औय भाता के सभान कोई दस
ू या दे िता नह)ॊ।

सॊकोच न कयना

धनधान्मप्रमोगेषु ववद्मासङ्ग्रहणे तथा । आहाये व्मवहाये च त्समततरज्ज् सख


ु ी
बवेत ् ॥ ०७-०२ 2:

धन औय अन्न के रेनदे न भें , विद्मा ग्रहण कयते सभम, बोजन औय अन्म व्मिहायों भें सॊकोच न
यखने िारा व्मजक्त सख
ु ी यहता है ।

इतने रोग

एकाककना तऩो द्वाभमाॊ ऩठनॊ गामनॊ त्रत्रशब् । चतशु बगगभ


ग नॊ ऺेत्रॊ ऩञ्चशबफगहुबी
यण् ॥ ०४-१२ 12:

तऩस्त्मा अकेरे भें, अयममन दो के साथ, गाना तीन के साथ, मारा चाय के साथ, खेती ऩाॊच के साथ औय
मद्
ु फहुत से सहामको के साथ होने ऩय ह) उत्तभ होता है ।

सकृज्जल्ऩजन्त याजान् सकृज्जल्ऩजन्त ऩजण्डता् । सकृत्सकन्मा् प्रदीमन्ते


त्रीण्मेतातन सकृत्ससकृत ् ॥ ०४-११ 11:

याजा रोग एक ह) फाय फोरते है (आऻा दे ते है (, ऩॊडडत रोग कि उकसी कभय के लरए एक ह) फाय फोरते है
(फाय-फाय श्रोक नह)ॊ ऩढ़ते(, कन्माएॊ बी एक ह) फाय द) जाती है । मे तीन एक ह) फाय होने से विशे
भहत्ि यखते है ।

सॊगठन की शजक्त

फहूनाॊ चैव सत्सत्सवानाॊ सभवामो रयऩञ्


ु जम् । वषागधायाधयो भेघ्तण
ृ ैयवऩ तनवामगते ॥
१४-०४ 4:

मह एक तनजश्चत तथ्म है कि उक फहुत से रोगो का सभह


ू ह) शरु ऩय विजम प्राप्त कयता है , जैसे ि ाय
की धाय को धायण कयने िारे भेघों के जर को ततनको के द्िाया (ततनके का फना छप्ऩय( ह) योका
जा सकता है ।

सॊग्रह अच्छी प्रकाय से


धभं धनॊ च धान्मॊ च गयु ोवगचनभौषधभ ् । सग
ु ह
ृ ीतॊ च कतगव्मभन्मथा तु न
जीवतत ॥ १४-१९ 19:

धभय, अन्न, धन, गरु


ु का उऩदे श औय गण
ु काय) औ गध का सॊग्रह अच्छी प्रकाय से कयना चाटहए।
अन्मथा जीिन का ककमाण नह)ॊ होता। जीिन नष्ट हो जाता है ।

सॊतजु ष्ट

जरत्रफन्दतु नऩातेन क्रभश् ऩम


ू त
ग े घट् । स हे तु् सवगववद्मानाॊ धभग्म च धन्म
च ॥ १२-२२

फूॊद-फूॊद से सागय फनता है . इसी तयह फूॊद-फूॊद से ऻान, गुण औय सॊऩजत्त प्राप्त होते है .

आत्सभवगं ऩरयत्समज्म ऩयवगं सभाश्रमेत ् । ्वमभेव रमॊ मातत मथा याजान्मधभगत्


॥ ११-०२ 2:

जो अऩने स्त्िगय को छोड़कय दस


ू ये के स्त्िगय का आश्रम ग्रहण कयता है, िह स्त्िमॊ ह) नष्ट हो जाता है ,
जैसे याजा अधभय के द्िाया नष्ट हो जाता है । उसके ऩाऩ कभय उसे नष्ट कय डारते है ।

सन्तोषज्त्रषु कतगव्म् ्वदाये बोजने धने । त्रत्रषु चैव न कतगव्मोऽध्ममने


जऩदानमो् ॥ १३-१९ 19:

अऩनी स्त्री, बोजन औय धन, इन तीनों भें सॊतो कयना चाटहए औय विद्मा ऩढ़ने, जऩ कयने औय दान
दे ने, इन तीनो भें सॊतो नह)ॊ कयना चाटहए।

सन्तोषज्त्रषु कतगव्म् ्वदाये बोजने धने । त्रत्रषु चैव न कतगव्मोऽध्ममने


जऩदानमो् ॥ ०७-०४ 4:

अऩनी स्त्री, बोजन औय धन, इन तीनो भें सॊतो यखना चाटहए औय विद्मा अयममन, तऩ औय दान
कयने-कयाने भें कबी सॊतो नह)ॊ कयना चाटहए।

सन्तोषाभत
ृ तप्ृ तानाॊ मत्ससख
ु ॊ शाजन्तये व च । न च तद्धनरबु धानाशभतश्चेतश्च
धावताभ ् ॥ ०७-०३ 3:

शाॊत गचत्त िारे सॊतो ी व्मजक्त को सॊतो रुऩी अभत


ृ से जो सख
ु प्राप्त होता है, िह इधय-उधय
बटकने िारे धन रोलबमों को नह)ॊ होता।

धनेषु जीववतव्मेषु ्त्रीषु चाहायकभगसु ।


अतप्ृ ता् प्राणणन् सवे माता मा्मजन्त माजन्त च ॥ १६-१३ 13:

इस सॊसाय भें आज तक कि उकसी को बी प्राप्त धन से, इस जीिन से, जस्त्रमों से औय खान-ऩण से ऩण


ू य
तजृ प्त कबी नह)ॊ लभर)। ऩहरे बी, अफ बी औय आगे बी इन चीजो से सॊतो होने िारा नह)ॊ है ।
इनका जजतना अगधक उऩबोग कि उकमा जाता है, उतनी ह) तष्ृ णा फढ़ती है ।

सॊसाय की भमायदा

दाक्षऺण्मॊ ्वजने दमा ऩयजने शाठ्मॊ सदा दज


ु न
ग े प्रीतत् साधज
ु ने ्भम् खरजने
ववद्वज्जने चाजगवभ ् । शौमं शत्रज
ु ने ऺभा गर
ु जने नायीजने धत
ू त
ग ा इत्सथॊ मे ऩर
ु षा
करासु कुशरा्तेष्वेव रोकज्थतत् ॥ १२-०३ 3:

जो ऩरु
ु अऩने िगय भें उदायता, दस
ू ये के िगय ऩय दमा, दज
ु न
य ों के िगय भें दष्ु टता, उत्तभ ऩरु
ु ों के िगय भें
प्रेभ, दष्ु टों से सािधानी, ऩॊडडत िगय भें कोभरता, शरओ
ु ॊ भें िीयता, अऩने फज
ु ुगो के फीच भें
सहनशजक्त,स्त्री िगय भें धूतत
य ा आटद कराओॊ भें चतयु है , ऐसे ह) रोगो भें इस सॊसाय की भमायदा फॊधी
हुई है ।

सच्चा साथी

आतुये व्मसने प्राप्ते दशु बगऺे शत्रस


ु ङ्कटे । याजद्वाये श्भशाने च मज्तष्ठतत स
फान्धव् ॥ ०१-१२ 12.

फीभाय) भें, विऩजत्तकार भें,अकार के सभम, दश्ु भनो से द्ु ख ऩाने मा आक्रभण होने ऩय, याजदयफाय भें
औय श्भशान-बलू भ भें जो साथ यहता है, िह) सच्चा बाई अथिा फॊधु है ।

गह
ृ ीत्सवा दक्षऺणाॊ ववप्रा्त्समजजन्त मजभानकभ ् । प्राप्तववद्मा गुरॊ शशष्मा दग्धायण्मॊ
भग
ृ ा्तथा ॥ ०२-१८ 18:

ब्राह्भण दक्षऺणा ग्रहण कयके मजभान को, लशष्म विद्मायममन कयने के उऩयाॊत अऩने गरु
ु को औय
टहयण जरे हुए िन को त्माग दे ते है ।

तनधगनॊ ऩर
ु षॊ वेश्मा प्रजा बग्नॊ नऩ
ृ ॊ त्समजेत ् । खगा वीतपरॊ वऺ
ृ ॊ बत
ु त्सवा
चाभमागतो गह
ृ भ ् ॥ ०२-१७ 17:

िेश्मा तनधयन भनष्ु म को, प्रजा ऩयाजजत याजा को, ऩऺी परयटहत िऺ
ृ को ि अततगथ उस घय को, जजसभे
िे आभॊत्ररत कि उकए जाते है, को बोजन कयने के ऩश्चात छोड़ दे ते है ।
रोकमात्रा बमॊ रज्जा दाक्षऺण्मॊ त्समागशीरता । ऩञ्च मत्र न ववद्मन्ते न
कुमागत्सतत्र सॊज्थततभ ् ॥ ०१-१० 10.

जहाॊ जीविका, बम, रज्जा, चतयु ाई औय त्माग की बािना, मे ऩाॊचो न हों, िहाॊ के रोगो का साथ कबी न
कयें ।

सत्मता

सत्समेन धामगते ऩथ्ृ वी सत्समेन तऩते यवव् । सत्समेन वातत वामश्ु च सवं सत्समे
प्रततजष्ठतभ ् ॥ ०५-१९ 19:

सत्म ऩय ऩथ्
ृ िी टटकी है, सत्म से सम
ू य तऩता है , सत्म से िामु फहती है , सॊसाय के सबी ऩदाथय सत्म भें
तनटहत है ।

सत्सॊगतत

गुण्ै सवगऻतुल्मोऽवऩ सीदत्समेको तनयाश्रम् । अनर्घमगभवऩ भाणणतमॊ हे भाश्रमभऩेऺते


॥ १६-१० 10:

जो व्मजक्त कि उकसी गण
ु ी व्मजक्त का आगश्रत नह)ॊ है, िह व्मजक्त ईश्िय)म गण
ु ों से मक्
ु त बी कष्ट
झेरता है, जैसे अनभोर श्रेष्ठ भखण को बी सि
ु णय की जरूयत होती है । अथायत सोने भें जड़े जाने के
उऩयाॊत ह) उसकी शोबा भें चाय चाॉद रग जाते है ।

दशगनध्मानसॊ्ऩशैभत्सग सी कूभॉ च ऩक्षऺणी । शशशॊु ऩारमते तनत्समॊ तथा सज्जन-


सॊगतत् ॥ ०४-०३ 3:

जजस प्रकाय भछर) दे ख-ये ख से, कछुिी गचडड़मा स्त्ऩशय से (चोंच द्िाया( सदै ि अऩने फच्चों का ऩारन-
ऩो ण कयती है , िैसे ह) अच्छे रोगोँ के साथ से सिय प्रकाय से यऺा होती है ।

सॊसायववषवऺ
ृ ्म द्वे परेऽभत
ृ ोऩभे । सब
ु ावषतॊ च स्
ु वाद ु सङ्गतत् सज्जने जने
॥ १६-१८ 18:

इस सॊसाय रूऩी वि -िऺ


ृ ऩय दो अभत
ृ के सभान भीठे पर रगते है । एक भधुय औय दस
ू या सत्सॊगतत।
भधयु फोरने औय अच्छे रोगो की सॊगतत कयने से वि -िऺ
ृ का प्रबाि नष्ट हो जाता है औय उसका
ककमाण हो जाता है ।
सत्ससङ्गाद्भवतत हह साधन
ु ा खरानाॊ साधन
ू ाॊ न हह खरसॊगत् खरत्सवभ ् ।
आभोदॊ कुसभ
ु बवॊ भद
ृ े व धत्सते भद्
ृ गन्धॊ नहह कुसभ
ु ातन धायमजन्त ॥ १२-०७ 7:

अच्छी सॊगतत से दष्ु टों भें बी साधुता आ जाती है । उत्तभ रोग दष्ु ट के साथ यहने के फाद बी नीच
नह)ॊ होते। पूर की सग
ु ध
ॊ को लभट्टी तो ग्रहण कय रेती है , ऩय लभट्टी की गॊध को पूर ग्रहण नह)ॊ
कयता।

साधभ
ु म्ते तनवतगन्ते ऩत्र
ु शभत्राणण फान्धवा् । मे च तै् सह गन्ताय्तद्धभागत्ससक
ु ृ तॊ
कुरभ ् ॥ ०४-०२ 2:

साधु भहात्भाओ के सॊसगय से ऩर


ु , लभर, फॊधु औय जो अनयु ाग कयते है, िे सॊसाय-चक्र से छूट जाते है
औय उनके कुर-धभय से उनका कुर उज्जिर हो जाता है ।

साधन
ू ाॊ दशगनॊ ऩण्
ु मॊ तीथगबत
ू ा हह साधव् । कारेन परते तीथं सद्म्
साधस
ु भागभ् ॥ १२-०८ 8:

साधु अथायत भहान रोगो के दशयन कयना ऩण्


ु म तीथो के सभान है । तीथायटन का पर सभम से ह)
प्राप्त होता है, ऩयन्तु साधओ
ु ॊ की सॊगतत का पर तत्कार प्राप्त होता है ।

सादा जीिन

अशतत्तु बवेत्ससाधब्र
ु ह्ग भचायी वा तनधगन् । व्माधधतो दे वबततश्च वद्ध
ृ ा नायी
ऩततव्रता ॥ १७-०६ 6:

शजक्तह)न भनष्ु म साधु होता है , धनह)न व्मजक्त ब्रह्भचाय) होता है ,योगी व्मजक्त दे िबक्त औय फढ़
ू ) स्त्री
ऩततव्रता होती है ।

साधू

मग
ु ान्ते प्रचरेन्भेर् कल्ऩान्ते सप्त सागया् । साधव् प्रततऩन्नाथागन्न चरजन्त
कदाचन ॥ १३-२१

जफ मग
ु का अॊत हो जामेगा तो भेरु ऩियत डडग जाएगा. जफ ककऩ का अॊत होगा तो सातों
सभुद्र का ऩानी विचलरत हो जामेगा. रेकि उकन साधु कबी बी अऩने अयमाजत्भक भागय से नह)ॊ
डडगेगा
प्ररमे शबन्नभमागदा बवजन्त ककर सागया् । सागया बेदशभच्छजन्त प्ररमेऽवऩ न
साधव् ॥ ०३-०६ 6:

प्ररम कार भें सागय बी अऩनी भमायदा को नष्ट कय डारते है ऩयन्तु साधु रोग प्ररम कार के आने
ऩय बी अऩनी भमायदा को नष्ट नह)ॊ होने दे त।े

साय तत्ि को ग्रहण कयना

अनन्तशा्त्रॊ फहुराश्च ववद्मा् ्वल्ऩश्च कारो फहुववर्घनता च । मत्ससायबत


ू ॊ
तदऩ
ु ासनीमाॊ हॊ सो मथा ऺीयशभवामफभ ु ध्मात ् ॥ १५-१० 10:

शास्त्रों का अॊत नह)ॊ है, विद्माएॊ फहुत है , जीिन छोटा है, विघ्न-फाधाएॊ अनेक है । अत् जो साय तत्ि है,
उसे ग्रहण कयना चाटहए, जैसे हॊ स जर के फीच से दध ू को ऩी रेता है ।

साथयक जीिन

अन्मामाजजगतववत्सतऩण
ू भ
ग द
ु यॊ गवेण तुङ्गॊ शशयोये ये ज मफक
ु भञ्
ु च भञ्
ु च सहसा
नीचॊ सतु नन्द्मॊ वऩ्ु ॥०५-०५

अन्माम से उऩाजजयत धन से जजसका ऩेट बया हुआ है औय लसय गिय से ऊॉचा उठा हुआ है ये ये लसमायरूऩी
नीच भनुष्म! तू ऐसे नीच औय अत्मन्त तनॊदतनम शय)य को अततशीध्र छोड़ दे , त्माग दे अथायत ऐसे गुणयटहत
जीिन की अऩेऺा शीध्र भय जाना उत्तभ है।

तनभन्त्रोत्ससवा ववप्रा गावो नवतण


ृ ोत्ससवा् । ऩत्समत्सु साहमत
ु ा बामाग अहॊ
कृष्णचयणोत्ससव् ॥ १२-१३ 13:

तनभॊरण ऩाकय ब्राह्भण प्रसन्न होते है , जैसे हय) घास दे खकय गौओ के लरए उत्सि अथायत प्रसन्नता
का भाहौर फन जाता है । ऐसे ह) ऩतत के प्रसन्न होने ऩय स्त्री के लरए घय भें उत्सि का सा दृश्म
उऩजस्त्थत हो जाता है , ऩयन्तु भेये लरए बी ण यण भें अनयु ाग यखना उत्सि के सभान है । भेये लरए
मद्
ु यत होना जीिन की साथयकता है ।

सीखने की चाह

गीवागणवाणीषु ववशशष्टफवु द्ध ्तथावऩ बाषान्तयरोरऩ


ु ोऽहभ ् । मथा सध
ु ामाभभये षु
सत्समाॊ ्वगागङ्गनानाभधयासवे रधच् ॥ १०-१८ 18:
मद्वऩ भेय) फवु द् दे ििाणी (सॊस्त्कृत( भें श्रेष्ठ है, तफ बी भै दस
ू य) बा ा का रारची हूॊ। जैसे अभत
ृ ऩीने
ऩय बी दे िताओॊ की इच्छा स्त्िगय की अप्सयाओॊ के ओष्ट रूऩी भद् को ऩीने की फनी यहती है ।

सीधाऩन

नात्समन्तॊ सयरैबागव्मॊ गत्सवा ऩश्म वन्थरीभ ् । तछद्मन्ते सयरा्तत्र


कुबजाज्तष्ठजन्त ऩादऩा् ॥ ०७-१२ 12:

सॊसाय भें अत्मॊत सयर औय सीधा होना बी ठीक नह)ॊ है । िन भें जाकय दे खो की सीधे िऺ
ृ ह) काटे
जाते है औय टे ढ़े-भेढे िऺ
ृ मों ह) छोड़ टदए जाते है ।

सुख - द्ु ख

महद याभा महद च यभा महद तनमो ववनमगण


ु ोऩेत् । तनमे तनमोत्सऩजत्सत्
सयु वयनगये ककभाधधतमभ ् ॥ १७-१६ 16:

मटद स्त्री सन्


ु दय हो औय घय भें रक्ष्भी हो, ऩर
ु विनम्रता आटद गण
ु ों से मक्
ु त हो औय ऩर
ु का ऩर
ु घय
भें हो तो इससे फढ़कय सख
ु तो इन्द्ररोक भें बी नह)ॊ। ऐसी जस्त्थतत भें स्त्िगय घय भें ह) है ।

सॊसायताऩदग्धानाॊ त्रमो ववश्राजन्तहे तव् । अऩत्समॊ च करत्रॊ च सताॊ सङ्गततये व च


॥ ०४-१० 10:

इस सॊसाय भें द्ु खो से द्ध प्राणी को तीन फातों से सख


ु शाॊतत प्राप्त हो सकती है - सऩ
ु र
ु से,
ऩततव्रता स्त्री से औय सद्सॊगतत से।

याजा वेश्मा मभश्चाजग्न्त्कयो फारमाचकौ । ऩयद्ु खॊ न जानजन्त अष्टभो


ग्राभकण्टक् ॥ १७-१९ 19:

याजा, िेश्मा, मभयाज, अज्न, चोय, फारक, लबऺु औय आठों गाॊि का काॊटा, मे दस
ू ये के द्ु ख को नह)ॊ
जानते।

वद्ध
ृ कारे भत
ृ ा बामाग फन्धह
ु ्तगतॊ धनभ ् । बोजनॊ च ऩयाधीनॊ ततस्र् ऩॊस
ु ाॊ
ववडमफना् ॥ ०८-०९ 9:

फढ़
ु ाऩे भें स्त्री का भय जाना, फॊधु के हाथो भें धन का चरा जाना औय दस
ू ये के आसये ऩय बोजन का
प्राप्त होना, मे तीनो ह) जस्त्थततमाॊ ऩरु
ु ों के लरए द्ु खदामी है ।
क्म दोष् कुरे नाज्त व्माधधना को न ऩीडडत् । व्मसनॊ केन न प्राप्तॊ क्म
सौख्मॊ तनयन्तयभ ् ॥ ०३-०१ 1.

दो कि उकसके कुर भें नह)ॊ है ? कौन ऐसा है , जजसे द्ु ख ने नह)ॊ सतामा ? अिगण
ु कि उकसे प्राप्त नह)ॊ हुए
? सदै ि सखु ी कौन यहता है ?

कान्ताववमोग् ्वजनाऩभानॊ ऋण्म शेषॊ कुनऩ


ृ ्म सेवा । दारयद्र्मबावाद्ववभख
ु ॊ
च शभत्रॊ ववनाजग्नना ऩञ्च दहजन्त कामभ ् ॥ ०२-१४ 14:

स्त्री का विमोग, अऩने रोगो से अनाचाय, कजय का फॊधन, दष्ु ट याजा की सेिा, दरयद्रता औय अऩने
प्रततकूर सबा, मे सबी अज्न न होते हुए बी शय)य को द्ध कय दे ते है ।

सोच विचाय कयके कामय कयना

दृजष्टऩत
ू ॊ न्मसेत्सऩादॊ व्त्रऩत
ू ॊ वऩफेज्जरभ ् । शा्त्रऩत
ू ॊ वदे द्वातम् भन्ऩत
ू ॊ
सभाचये त ् ॥ १०-०२ 2:

अच्छी तयह दे खकय ऩैय यखना चाटहए, कऩड़े से छानकय ऩानी ऩीना चाटहए, शास्त्र से (व्माकयण से(
शद्
ु कयके िचन फोरना चाटहए औय भन भें विचाय कयके कामय कयना चाटहए।

दानेन ऩाणणनग तु कङ्कणेन ्नानेन शवु द्धनग तु चन्दनेन । भानेन तजृ प्तनग तु
बोजनेन ऻानेन भजु ततनग तु भण्
ु डनेन ॥ १७-१२ 12:

हाथ की शोबा दान से होती है , न की कॊगन ऩहनने से, शय)य की शवु द् स्त्नान से होती है , न की चन्दन
रगाने से, फड़ो की तजृ प्त साभान कयने से होती है, न कि उक बोजन कयाने से, शय)य की भजु क्त ऻान से
होती है , न की शय)य का शग
ॊृ ाय कयने से।

म्भाच्च वप्रमशभच्छे त्सतु त्म ब्रम


ू ात्ससदा वप्रमभ ् । व्माधो भग
ृ वधॊ कतुं गीतॊ
गामतत स्
ु वयभ ् ॥ १४-१०10:

जजससे अऩना टहत साधना हो, उससे सदै ि वप्रम फोरना चाटहए जैसे भग
ृ को भायने के लरए फहे लरमा
भीठे स्त्िय भें गीत गाता है ।

इजन्रमाणण च सॊममम फकवत्सऩजण्डतो नय् । दे शकारफरॊ ऻात्सवा सवगकामागणण


साधमेत ् ॥ ०४-१७
फगुरे की बाॊतत अऩनी इॊटद्रमों को िश भे कय दे श कार अऩने फर को जानकय ह) अऩने साये
कामय कयना चाटहए।

अधीत्समेदॊ मथाशा्त्रॊ नयो जानातत सत्सतभ् । धभोऩदे शववख्मातॊ कामागकामं


शब
ु ाशब
ु भ ् ॥ ०१-०२

इस याजनीतत शास्त्र का विगधऩि


ू क
य अयममन कयके मह जाना जा सकता है कि उक कौनसा कामय कयना
चाटहए औय कौनसा कामय नह)ॊ कयना चाटहए। मह जानकय िह एक प्रकाय से धभोऩदे श प्राप्त कयता है
कि उक कि उकस कामय के कयने से अच्छा ऩरयणाभ तनकरेगा औय कि उकससे फयु ा। उसे अच्छे फयु े का ऻान हो
जाता है ।

नदीतीये च मे वऺ
ृ ा् ऩयगेहेषु काशभनी । भन्त्रहीनाश्च याजान् शीघ्रॊ
नश्मन्त्समसॊशमभ ् ॥ ०२-१५ 15:

नद) के कि उकनाये खड़े िऺ


ृ , दस
ू ये के घय भें गमी स्त्री, भॊरी के त्रफना याजा शीघ्र ह) नष्ट हो जाते है ।
इसभें सॊशम नह)ॊ कयना चाटहए।

भनसा धचजन्ततॊ कामं वाचा नैव प्रकाशमेत ् । भन्त्रेण यऺमेद्गूढॊ कामे चावऩ
तनमोजमेत ् ॥ ०२-०७ 7:

भन से विचाये गए कामय को कबी कि उकसी से नह)ॊ कहना चाटहए, अवऩतु उसे भॊर की तयह यक्षऺत कयके
अऩने (सोचे हुए( कामय को कयते यहना चाटहए।

मो रव
ु ाणण ऩरयत्समज्म अरव
ु ॊ ऩरयषेवते । रव
ु ाणण त्म नश्मजन्त चारव
ु ॊ नष्टभेव
हह ॥ ०१-१३ 13.

जो अऩने तनजश्चत कभों अथिा िास्त्तु का त्माग कयके, अतनजश्चत की गचॊता कयता है , उसका अतनजश्चत
रक्ष्म तो नष्ट होता ह) है, तनजश्चत बी नष्ट हो जाता है ।

भणणरण्
ुग ठतत ऩादाग्रे काच् शशयशस धामगते । क्रमववक्रमवेरामाॊ काच् काचो
भणणभगणण् ॥ १५-०९ 9:

भखण ऩैयों भें ऩड़ी हो औय काॊच लसय ऩय धायण कि उकमा गमा हो, ऩयन्तु क्रम-विक्रम कयते सभम अथायत
भोर-बाि कयते सभम भखण भखण ह) यहती है औय काॊच काॊच ह) यहता है ।

सोते हुए को जगाना


अहहॊ नऩ
ृ ॊ च शादग र
ू ॊ वद्ध
ृ ॊ च फारकॊ तथा । ऩयश्वानॊ च भख
ू ं च सप्त सप्ु तान्न
फोधमेत ् ॥ ०९-०७ 7:

साॊऩ, याजा, लसॊह, फयय (ततैमा( औय फारक, दस


ू ये का कुत्ता तथा भख
ू य व्मजक्त, इन सातो को सोते से नह)ॊ
जगाना चाटहए।

ववद्माथॉ सेवक् ऩान्थ् ऺुधातो बमकातय् । बाण्डायी प्रततहायी च सप्त


सप्ु तान्प्रफोधमेत ् ॥ ०९-०६ 6:

वियमाथी, नौकय, ऩगथक, बख ू से व्माकुर, बम से रस्त्त, बॊडाय) औय द्िायऩार, इन सातों को सोता हुआ
दे खे तो तत्कार जगा दे ना चाटहए क्मोंकि उक अऩने कभो औय कतयव्मों का ऩारन मे जागकय अथायत
सचेत होकय ह) कयते है ।

स्त्री

अध् ऩश्मशस ककॊ फारे ऩतततॊ तव ककॊ बवु व । ये ये भख


ू ग न जानाशस गतॊ
तारण्मभौजततकभ ् ॥ १७-२० 20:

नीचे की ओय दे खती एक अधेड़ िद्


ृ स्त्री से कोई ऩछ
ू ता है -----'हे फारे ! तभ
ु नीचे क्मा दे ख यह) हो
? ऩथ्
ृ िी ऩय ता
ु हाया क्मा गगय गमा है ? तफ िह स्त्री कहती है -----'ये भख
ू य ! तभ
ु नह)ॊ जानते, भेया
मि
ु ािस्त्था रूऩी भोती नीचे गगयकय नष्ट हो गमा है ।'

अनभमासे ववषॊ शा्त्रभजीणे बोजनॊ ववषभ ् । दरयर्म ववषॊ गोष्ठी वद्ध


ृ ्म तरणी
ववषभ ् ॥ ०४-१५ 15:

फाय-फाय अभ्मास न कयने से वियमा वि फन जाती है। त्रफना ऩचा बोजन वि फन जाता है , दरयद्र के
लरए स्त्िजनों की सबा मा साथ औय िद्
ृ ो के लरए मि
ु ा स्त्री वि के सभान होती है ।

अनत
ृ ॊ साहसॊ भामा भख
ू त्सग वभततरोशबता । अशौचत्सवॊ तनदग मत्सवॊ ्त्रीणाॊ दोषा्
्वबावजा् ॥ ०२-०१ 1:

झठ
ू फोरना, उतािराऩन टदखाना, छर-कऩट, भख
ू त
य ा, अत्मगधक रारच कयना, अशद्
ु ता औय दमाह)नता, मे
सबी प्रकाय के दो जस्त्रमों भें स्त्िाबाविक रूऩ से लभरते है ।

जल्ऩजन्त साधगभन्मेन ऩश्मन्त्समन्मॊ सववभ्रभा् । हृदमे धचन्तमन्त्समन्मॊ न


्त्रीणाभेकतो यतत् ॥ १६-०२ 2:

आचामय चाणक्म का भानना है कि उक कुरटा (चरयरह)न( जस्त्रमों का प्रेभ एकाजन्तक न होकय फहुजनीम
होता है । उनका कहना है की कुरटा जस्त्रमाॊ ऩयाए व्मजक्त से फातचीत कयती है, कटाऺऩिू क
य दे खती है
औय अऩने ह्रदम भें ऩय ऩरु
ु का गचॊतन कयती है, इस प्रकाय चरयरह)न जस्त्रमों का प्रेभ अनेक से होता
है ।

दष्ु टा बामाग शठॊ शभत्रॊ बत्सृ मश्चोत्सतयदामक् । ससऩे च गह


ृ े वासो भत्सृ मयु े व न
सॊशम् ॥ ०१-०५ 5.

दष्ु ट स्त्री, छर कयने िारा लभर, ऩरटकय कय तीखा जिाफ दे ने िारा नौकय तथा जजस घय भें साॊऩ
यहता हो, उस घय भें तनिास कयने िारे गह
ृ स्त्िाभी की भौत भें सॊशम न कये । िह तनजश्चत भत्ृ मु को
प्राप्त होता है ।

भख
ू शग शष्मोऩदे शन
े दष्ु ट्त्रीबयणेन च । द्ु णखतै् समप्रमोगेण ऩजण्डतोऽप्मवसीदतत
॥ ०१-०४ 4.

भख
ू य छारों को ऩढ़ाने तथा दष्ु ट स्त्री के ऩारन ऩो ण से औय दखु खमों के साथ सॊफध
ॊ यखने से, फवु द्भान
व्मजक्त बी द्ु खी होता है । तात्ऩमय मह कि उक भख
ू य लशष्म को कबी बी उऩदे श नह)ॊ दे ना चाटहए, ऩततत
आचयण कयने िार) स्त्री की सॊगतत कयना तथा द्ु खी भनष्ु मो के साथ सभागभ कयने से विद्िान
तथा बरे व्मजक्त को द्ु ख ह) उठाना ऩड़ता है ।

मो भोहान्भन्मते भढ
ू ो यततेमॊ भतम काशभनी । स त्मा वशगो बत्सू वा नत्सृ मेत ्
क्रीडाशकुन्तवत ् ॥ १६-०३ 3:

जो भख
ु य व्मजक्त भामा के भोह भें िशीबत
ू होकय मह सोचता है कि उक अभक
ु स्त्री उस ऩय आसक्त है,
िह उस स्त्री के िश भें होकय खेर की गचडड़मा की बाॊतत इधय-से-उधय नाचता कि उपयता है ।

्त्रीणाॊ द्ववगण
ु आहायो रज्जा चावऩ चतग
ु ण
ुग ा । साहसॊ षड्गण
ु ॊ चैव
काभश्चाष्टगण
ु ् ्भत
ृ ् ॥ ०१-१७ 17.

ऩरु
ु ों की अऩेऺा जस्त्रमों का बोजन दग
ु ना, रज्जा चौगन
ु ी, साहस छ् गन
ु ा औय काभ (सेक्स की इच्छा(
आठ गन
ु ा अगधक होता है ।

जस्त्थयता

चरा रक्ष्भीश्चरा् प्राणाश्चरे जीववतभजन्दये । चराचरे च सॊसाये धभग एको हह


तनश्चर् ॥ ०५-२० 20:

रक्ष्भी अतनत्म औय अजस्त्थय है , प्राण बी अतनत्म है । इस चरते-कि उपयते सॊसाय भें केिर धभय ह) जस्त्थय
है ।

स्त्नान –दान
इऺुयाऩ् ऩमो भर
ू ॊ तामफर
ू ॊ परभौषधभ ् । बऺतमत्सवावऩ कतगव्मा् ्नानदानाहदका्
कक्रमा् ॥ ०८-०२ 2:

ईख, जर, दध
ू , भर
ू (कॊद(, ऩान, पर औय दिा आटद का सेिन कयके बी, स्त्नान-दान आटद कि उक्रमाए की
जा सकती है ।

स्त्िबाविक कभय

अत्समासन्ना ववनाशाम दयू ्था न परप्रदा । सेव्मताॊ भध्मबावेन याजा वजह्नगर


ुग ्
ज्त्रम् ॥ १४-११ 11:

याजा, अज्न, गरु


ु औय स्त्री, इनसे साभान्म व्मिहाय कयना चाटहए क्मोंकि उक अत्मॊत सभीऩ होने ऩय मह
नाश के कायण होते है औय दयू यहने ऩय इनसे कोई पर प्राप्त नह)ॊ होता।

आचाय् कुरभाख्मातत दे शभाख्मातत बाषणभ ् । समभ्रभ् ्नेहभाख्मातत


वऩयु ाख्मातत बोजनभ ् ॥ ०३-०२ 2.

भनष्ु म का आचयण-व्मिहाय उसके खानदान को फताता है , बा ण अथायत उसकी फोर) से दे श का ऩता


चरता है, विशे आदय सत्काय से उसके प्रेभ बाि का तथा उसके शय)य से बोजन का ऩता चरता है ।

फरॊ ववद्मा च ववप्राणाॊ याऻाॊ सैन्मॊ फरॊ तथा । फरॊ ववत्सतॊ च वैश्मानाॊ शर
ू ाणाॊ
ऩारयचमगकभ ् ॥ ०२-१६ 16:

ब्राह्भणों का फर विद्मा है, याजाओॊ का फर उनकी सेना है , िेश्मो का फर उनका धन है औय शद्र


ू ों का
फर छोटा फन कय यहना, अथायत सेिा-कभय कयना है ।

दातत्सृ वॊ वप्रमवततत्सृ वॊ धीयत्सवभधु चतऻता । अभमासेन न रभमन्ते चत्सवाय् सहजा


गुणा् ॥ ११-०१ 1:

दान दे ने का स्त्िबाि, भधुय िाणी, धैमय औय उगचत की ऩहचान, मे चाय फातें अभ्मास से नह)ॊ आती, मे
भनष्ु म के स्त्िाबाविक गण
ु है । ईश्िय के द्िाया ह) मे गण
ु प्राप्त होते है । जो व्मजक्त इन गण
ु ों का
उऩमोग नह)ॊ कयता, िह ईश्िय के द्िाया टदए गए ियदान की उऩेऺा ह) कयता है औय दग
ु ण
ुय ों को
अऩनाकय घोय कष्ट बोगता है ।

स्त्िगय

्वगगज्थतानाशभह जीवरोके चत्सवारय धचह्नातन वसजन्त दे हे । दानप्रसॊगो भधयु ा च


वाणी दे वाचगनॊ ब्राह्भणतऩगणॊ च ॥ ०७-१६ 16:
स्त्िगय से इस रोक भें आने ऩय रोगो भें चाय रऺण प्रकट होते है -----दान दे ने की प्रितृ त, भधुय िाणी,
दे िताओ का ऩज
ू न औय ब्राह्भणों को बोजन दे कय सॊतष्ु ट कयना।

हय कि उकसी से सीखें

इजन्रमाणण च सॊममम यागद्वेषवववजजगत् । सभद्ु खसख


ु ् शान्त् तत्सत्सवऻ्
साधर
ु च्मते ॥ ०६-१७ 17:

सपर व्मजक्त िह) है जो फगर


ु े के सभान अऩनी साऩण
ू य इजन्द्रमों को सॊमभ भें यखकय अऩना लशकाय
कयता है । उसी के अनस
ु ाय दे श, कार औय अऩनी साभथ्मय को अच्छी प्रकाय से सभझकय सबी कामो
को कयना चाटहए। फगर
ु े से मह एक गण
ु ग्रहण कयना चाटहए, अथायत एकाग्रता के साथ अऩना कामय
कये तो सपरता अिश्म प्राप्त होगी, अथायत कामय को कयते िक्त अऩना साया यमान उसी कामय की
औय रगाना चाटहए, तबी सपरता लभरेगी।

गूढभैथन
ु चारयत्सवॊ कारे कारे च सङ्ग्रहभ ् । अप्रभत्सतभववश्वासॊ ऩञ्च शशऺेच्च
वामसात ् ॥ ०६-१९ 19:

भैथुन गप्ु त स्त्थान भें कयना चाटहए, तछऩकय चरना चाटहए, सभम-सभम ऩय सबी इजच्छत िस्त्तओ
ु ॊ का
सॊग्रह कयना चाटहए, सबी कामो भें सािधानी यखनी चाटहए औय कि उकसी का जकद) विश्िास नह)ॊ कयना
चाटहए। मे ऩाॊच फातें कौिे से सीखनी चाटहए।

प्रत्समत्सु थानॊ च मद्ध


ु ॊ च सॊववबागॊ च फन्धष
ु ु । ्वमभाक्रमम बत
ु तॊ च शशऺेच्चत्सवारय
कुतकुटात ् ॥ ०६-१८ 18:

ब्रह्भह
ु ू तय भें जागना, यण भें ऩीछे न हटना, फॊधुओ भें कि उकसी िस्त्तु का फयाफय बाग कयना औय स्त्िमॊ
चढ़ाई कयके कि उकसी से अऩने बक्ष्म को छीन रेना, मे चायो फातें भग
ु े से सीखनी चाटहए। भग
ु े भें मे
चायों गण
ु होते है । िह सफ
ु ह उठकय फाॊग दे ता है । दस
ू ये भग
ु े से रड़ते हुए ऩीछे नह)ॊ हटता, िह अऩने
खायम को अऩने चूजों के साथ फाॊटकय खाता है औय अऩनी भग ु ी को सभागभ भें सॊतष्ु ट यखता है ।

प्रबत
ू ॊ कामगभल्ऩॊ वा मन्नय् कतशुग भच्छतत । सवागयमबेण तत्सकामं शसॊहादे कॊ प्रचऺते
॥ ०६-१६ 16:

काभ छोटा हो मा फड़ा, उसे एक फाय हाथ भें रेने के फाद छोड़ना नह)ॊ चाटहए। उसे ऩयू ) रगन औय
साभथ्मय के साथ कयना चाटहए। जैसे लसॊह ऩकड़े हुए लशकाय को कदावऩ नह)ॊ छोड़ता। लसॊह का मह एक
गण
ु अिश्म रेना चाटहए।

फह्वाशी ्वल्ऩसन्तष्ु ट् सतनरो रघच


ु त
े न् । ्वाशभबततश्च शयू श्च षडेते श्वानतो
गुणा् ॥ ०६-२० 20:
फहुत बोजन कयने की शजक्त यखने ऩय बी थोड़े बोजन से ह) सॊतष्ु ट हो जाए, अच्छी नीॊद सोए, ऩयन्तु
जया-से खटके ऩय ह) जाग जाए, अऩने यऺक से प्रेभ कये औय शयू ता टदखाए, इन छ् गण ु ों को कुत्ते से
सीखना चाटहए।

म एताजन्वॊशततगण
ु ानाचरयष्मतत भानव् । कामागव्थासु सवागसु अजेम् स
बववष्मतत ॥ ०६-२२ 22:

जो भनष्ु म उऩयोक्त फीस गण


ु ों को अऩने जीिन भें उतायकय आचयण कये गा, िह सदै ि सबी कामो भें
विजम प्राप्त कये गा।

शसॊहादे कॊ फकादे कॊ शशऺेच्चत्सवारय कुतकुटात ् । वामसात्सऩञ्च शशऺेच्च षट्प्शन


ु ्त्रीणण
गदग बात ् ॥ ०६-१५ 15:

शेय औय फगर
ु े से एक-एक, गधे से तीन, भग
ु े से चाय, कौए से ऩाॊच औय कुत्ते से छ् गण
ु (भनष्ु म को(
सीखने चाटहए।

सश्र
ु ान्तोऽवऩ वहे द्भायॊ शीतोष्णॊ न च ऩश्मतत । सन्तष्ु टश्चयते तनत्समॊ त्रीणण शशऺेच्च
गदग बात ् ॥ ०६-२१ 21:

अत्मॊत थक जाने ऩय बी फोझ को ढोना, ठॊ ड-े गभय का विचाय न कयना, सदा सॊतो ऩि
ू क
य विचयण कयना,
मे तीन फातें गधे से सीखनी चाटहए।

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