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संबंध ह
नवास थान श न म डल
ह शन ह
मं
ॐ शं शनै राय नमः॥
ॐ ां स: शनै राय
नम:॥[1]
Day श नवार
अ या प वण भुव ग छ त त सवणा भ
सूया मज: अ ती त मु न वाद:॥
भावाथ:-श न ह वै यर न अथवा बाणफ़ूल या अलसी
के फ़ूल जैसे नमल रंग से जब का शत होता है, तो उस
समय जा के लये शुभ फ़ल दे ता है यह अ य वण को
काश दे ता है, तो उ च वण को समा त करता है, ऐसा
ऋ ष, महा मा कहते ह।
श न दे व का ज म
धम ंथो के अनुसार सूय क प नी सं ा क छाया के
गभ से श न दे व का ज म आ, जब श न दे व छाया के
गभ म थे तब छाया भगवान शंकर क भ म इतनी
यान म न थी क उसने अपने खाने पने तक शुध नह
थी जसका भाव उसके पु पर पड़ा और उसका वण
याम हो गया !श न के यामवण को दे खकर सूय ने
अपनी प नी छाया पर आरोप लगाया क श न मेरा पु
नह ह ! तभी से श न अपने पता से श ु भाव रखते थे !
श न दे व ने अपनी साधना तप या ारा शवजी को
स कर अपने पता सूय क भाँ त श ातक
और शवजी ने श न दे व को वरदान मांगने को कहा, तब
श न दे व ने ाथना क क युग युग म मेरी माता छाया
क पराजय होती रही ह, मेरे पता पता सूय ारा अनेक
बार अपमा नत कया गया ह ! अतः माता क इ छा ह
क मेरा पु अपने पता से मेरे अपमान का बदला ले
और उनसे भी यादा श शाली बने ! तब भगवान
शंकर ने वरदान दे ते ए कहा क नव ह म तु हारा
सव े थान होगा ! मानव तो या दे वता भी तु हरे नाम
से भयभीत रहगे ! अ धक जानकारी के लए दे खे लक
शन
पौरा णक संदभ
श न के स ब ध मे हमे पुराण म अनेक आ यान मलते
ह।माता के छल के कारण पता ने उसे शाप दया. पता
अथात सूय ने कहा,"आप ू रतापूण दे खने वाले
मंदगामी ह हो जाये".यह भी आ यान मलता है क
श न के कोप से ही अपने रा य को घोर भ से
बचाने के लये राजा दशरथ उनसे मुकाबला करने प ंचे
तो उनका पु षाथ दे ख कर श न ने उनसे वरदान मांगने
के लये कहा.राजा दशरथ ने व धवत तु त कर उसे
स कया।प पुराण म इस संग का स व तार वणन
है। वैवत पुराण म श न ने जगत जननी पावती को
बताया है क म सौ ज मो तक जातक क करनी का
फ़ल भुगतान करता ँ.एक बार जब व णु या ल मी ने
श न से पूंछा क तुम य जातक को धन हा न करते
हो, य सभी तु हारे भाव से ता डत रहते ह, तो श न
महाराज ने उ र दया,"माते री, उसमे मेरा कोई दोष
नही है, परम पता परमा मा ने मुझे तीनो लोक का
यायाधीश नयु कया आ है, इस लये जो भी तीनो
लोक के अंदर अ याय करता है, उसे दं ड दे ना मेरा काम
है".एक आ यान और मलता है, क कस कार से
ऋ ष अग त ने जब श न दे व से ाथना क थी, तो
उ होने रा स से उनको मु दलवाई थी। जस कसी
ने भी अ याय कया, उनको ही उ होने दं ड दया, चाहे
वह भगवान शव क अधा गनी सती रही ह , ज होने
सीता का प रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ
बोलकर अपनी सफ़ाई द और प रणाम म उनको अपने
ही पता क य म हवन कुंड मे जल कर मरने के लये
श न दे व ने ववश कर दया, अथवा राजा ह र रहे
ह , जनके दान दे ने के अ भमान के कारण स तनीक
बाजार मे बकना पडा और, मशान क रखवाली तक
करनी पडी, या राजा नल और दमय ती को ही ले
ली जये, जनके तु छ पाप क सजा के लये उ हे दर
दर का होकर भटकना पडा, और भूनी ई मछ लयां तक
पानी मै तैर कर भाग ग , फ़र साधारण मनु य के ारा
जो भी मनसा, वाचा, कमणा, पाप कर दया जाता है वह
चाहे जाने मे कया जाय या अ जाने म, उसे भुगतना तो
पडेगा ही.
खगोलीय ववरण
नव ह के क म म श न सूय से सवा धक री पर
अ ासी करोड, इकसठ लाख मील र है।पृ वी से श न
क री इकह र करोड, इक ीस लाख, तयालीस
हजार मील र है। श न का ास पच र हजार एक सौ
मील है, यह छ: मील त सेके ड क ग त से २१.५ वष
म अपनी क ा मे सूय क प र मा पूरी करता है।श न
धरातल का तापमान २४० फ़ोरनहाइट है।श न के चारो
ओर सात वलय ह,श न के १५ च मा है। जनका
येक का ास पृ वी से काफ़ अ धक है।
यो तष म श न
फ़ लत यो तष के शा ो म श न को अनेक नाम से
स बो धत कया गया है, जैसे म दगामी, सूय-पु ,
श न र और छायापु आ द.श न के न
ह,पु य,अनुराधा, और उ राभा पद.यह दो रा शय
मकर, और कु भ का वामी है।तुला रा श म २० अंश पर
श न परमो च है और मेष रा श के २० अंश प परमनीच
है।नीलम श न का र न है।श न क तीसरी, सातव , और
दसव मानी जाती है।श न सूय,च ,मंगल का
श ,ु बुध,शु को म तथा गु को सम मानता है।
शारी रक रोग म श न को वायु वकार,कंप, ह य और
दं त रोग का कारक माना जाता है।
ादस भाव मे श न
थम भाव मे श न
श न म द है और श न ही ठं डक दे ने वाला है,सूय नाम
उजाला तो श न नाम अ धेरा, पहले भाव मे अपना थान
बनाने का कारण है क श न अपने गोचर क ग त और
अपनी दशा मे शोक पैदा करेगा,जीव के अ दर शोक का
ख मलते ही वह आगे पीछे सब कुछ भूल कर केवल
अ धेरे मे ही खोया रहता है।श न जा टोने का कारक
तब बन जाता है, जब श न पहले भाव मे अपनी ग त
दे ता है, पहला भाव ही औकात होती है, अ धेरे मे जब
औकात छु पने लगे, रोशनी से ही प हचान होती है और
जब औकात छु पी ई हो तो श न का याह अ धेरा ही
माना जा सकता है। अ धेरे के कई प होते ह, एक
अ धेरा वह होता है जसके कारण कुछ भी दखाई नही
दे ता है, यह आंख का अ धेरा माना जाता है, एक
अ धेरा समझने का भी होता है, सामने कुछ होता है,
और समझा कुछ जाता है, एक अ धेरा बुराइय का होता
है, या जीव क सभी अ छाइयां बुराइय के अ दर
छु पने का कारण भी श न का दया गया अ धेरा ही माना
जाता है, नाम का अ धेरा भे होता है, कसी को पता ही
नही होता है, क कौन है और कहां से आया है, कौन माँ
है और कौन बाप है, आ द के ारा कसी भी प मे
छु पाव भी श न के कारण ही माना जाता है,
चालाक का पुतला बन जाता है थम भाव के श न के
ारा.श न अपने थान से थम भाव के अ दर थ त
रख कर तीसरे भाव को दे खता है, तीसरा भाव अपने से
छोटे भाई ब हनो का भी होता है, अपनी अ द नी
ताकत का भी होता है, परा म का भी होता है, जो कुछ
भी हम सर से कहते है, कसी भी साधन से, कसी भी
तरह से श न के कारण अपनी बात को सं े षत करने मे
क ठनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को
या तो समझ मे नही आता है, और आता भी है तो एक
भयानक अ धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को
न समझने के कारण कुछ का कुछ समझ लेता है,
प रणाम के अ दर फ़ल भी जो चा हये वह नही मलता
है, अ सर दे खा जाता है क जसके थम भाव मे श न
होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू
कर दे ता है, उसका कारण उसके ारा जोर जोर से
बोलने क आदत नही, थम भाव का श न सुनने के
अ दर कमी कर दे ता है, और सामने वाले को जोर से
बोलने पर ही या तो सुनायी दे ता है, या वह कुछ का कुछ
समझ लेता है, इसी लये जीवन साथी के साथ कुछ
सुनने और कुछ समझने के कारण मान सक ना समझी
का प रणाम स ब ध मे कडु वाहट घुल जाती है, और
स ब ध टू ट जाते ह। इसक थम भाव से दसवी नजर
सीधी कम भाव पर पडती है, यही कम भाव ही पता का
भाव भी होता है।जातक को कम करने और कम को
समझने मे काफ़ क ठनाई का सामना करना पडता है,
जब कसी कार से कम को नही समझा जाता है तो जो
भी कया जाता है वह कम न होकर एक भार व प ही
समझा जाता है, यही बात पता के त मान ली जाती
है, पता के त श न अपनी स त के अनुसार अंधेरा
दे ता है, और उस अ धेरे के कारण पता ने पु के त
या कया है, समझ नही होने के कारण पता पु म
अनबन भी बनी रहती है,पु का लगन या थम भाव का
श न माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता को
जो काम नही करने चा हये वे उसको करने पडते ह,
क ठन और एक सीमा मे रहकर माता के ारा काम
करने के कारण उसका जीवन एक घेरे म बंधा सा रह
जाता है, और वह अपनी शरीरी स त को उस कार से
योग नही कर पाती है जस कार से एक साधारण
आदमी अपनी ज दगी को जीना चाहता है।
सरे भाव म श न
सरा भाव भौ तक धन का भाव है,भौ तक धन से
मतलब है, पया,पैसा,सोना,चा द ,हीरा,मोती,जेवरात
आ द, जब श न दे व सरे भाव मे होते है तो अपने ही
प रवार वालो के त अ धेरा भी रखते है, अपने ही
प रवार वाल से लडाई झगडा आ द करवा कर अपने
को अपने ही प रवार से र कर दे ते ह,धन के मामले मै
पता नही चलता है कतना आया और कतना खच
कया, कतना कहां से आया, सरा भाव ही बोलने का
भाव है, जो भी बात क जाती है, उसका अ दाज नही
होता है क या कहा गया है, गाली भी हो सकती है और
ठं डी बात भी, ठं डी बात से मतलब है नकारा मक बात,
कसी भी बात को करने के लये कहा जाय, उ र म न
ही नकले. सरा श न चौथे भाव को भी दे खता है, चौथा
भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने
सुख के त भी चौथे भाव से पता कया जाता है, सरा
श न होने पर या ा वाले काय और घर मे सोने के
अलावा और कुछ नही दखाई दे ता है। सरा श न सीधे
प मे आठव भाव को दे खता है, आठवा भाव शमशानी
ताकत क तरफ़ झान बढा दे ता है,
भूत, ेत, ज और पशाची श य को अपनाने म
अपना मन लगा दे ता है, शमशानी साधना के कारण
उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब
और भूत के भोजन म उसक च बढ जाती है। सरा
श न यारहव भाव को भी दे खता है, यारहवां भाव
अचल स प के त अपनी आ था को अ धेरे मे
रखता है, म और बडे भाई ब हनो के त दमाग म
अ धेरा रखता है। वे कुछ करना चाहते ह ले कन
के दमाग म कुछ और ही समझ मे आता है।
तीसरे भाव म श न
तीसरा भाव परा म का है, के साहस और ह मत
का है, जहां भी रहता है, उसके पडौ सय का है।
इन सबके कारण के अ दर तीसरे भाव से श न पंचम
भाव को भी दे खता है, जनमे श ा,संतान और तुरत
आने वाले धनो को भी जाना जाता है, म क
सहभा गता और भाभी का भाव भी पांचवा भाव माना
जाता है, पता क मृ यु का और दादा के बडे भाई का
भाव भी पांचवा है। इसके अलावा नव भाव को भी
तीसरा श न आहत करता है, जसमे धम, सामा जक
हा रकता, पुराने री त रवाज और पा रवा रक चलन
आ द का ान भी मलता है, को तीसरा श न आहत
करता है। मकान और आराम करने वाले थानो के त
यह श न अपनी अ धेरे वाली नी त को तपा दत करता
है।न नहाल खानदान को यह श न ता डत करता है।
चौथे भाव मे श न
पंचम भाव का श न
ष भाव म श न
इस भाव मे श न कतने ही दै हक दै वक और भौ तक
रोग का दाता बन जाता है, ले कन इस भाव का श न
पा रवा रक श ुता को समा त कर दे ता है,मामा खानदान
को समा त करने वाला होता है,चाचा खा दान से कभी
बनती नही है। अगर कसी कार से नौकरी वाले
काम को करता रहता है तो सफ़ल होता रहता है, अगर
कसी कार से वह मा लक वाले कामो को करता है तो
वह असफ़ल हो जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठव
भाव को दे खने के कारण से र से कसी भी
काम या सम या को नही समझ पाता है, काय से कसी
न कसी कार से अपने त जो खम को नही समझ
पाने से जो भी कमाता है, या जो भी कया जाता है,
उसके त अ धेरा ही रहता है, और अ मात सम या
आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा दे ता
है। बारहवे भाव मे अ धेरा होने के कारण से बाहरी
आफ़त के त भी अ जान रहता है, जो भी कारण
बाहरी बनते ह उनके ारा या तो ठगा जाता है या बाहरी
लोग क श न वाली चाला कय के कारण अपने को
आहत ही पाता है। खुद के छोटे भाई ब हन या कर रहे
ह और उनक काय णाली खुद के त या है उसके
त अ जान रहता है। अ सर इस भाव का श न कही
आने जाने पर रा त मे भटकाव भी दे ता है, और अ सर
ऐसे लोग जानी ई जगह पर भी भूल जाते है।
स तम भाव मे श न
अ म भाव म श न
इस भाव का श न खाने पीने और मौज म ती करने के
च कर म जेब हमेशा खाली रखता है। कस काम को
कब करना है इसका अ दाज नही होने के कारण से
के अ दर आवारागीरी का उदय होता दे खा गया है
उ च का श न अ ी य ान क मता भी दे ता ह गु त
ान भी श न का कारक ह
नवम भाव का श न
दसम भाव का श न
दसवां श न क ठन कामो क तरफ़ मन ले जाता है, जो
भी मेहनत वाले काम,लकडी,प थर, लोहे आ द के होते
हवे सब दसवे श न के े मे आते ह, अपने
जीवन मे काम के त एक े बना लेता है और उस
े से नकलना नही चाहता है।रा का असर होने से या
कसी भी कार से मंगल का भाव बन जाने से इस
कार का यातायात का सपाही बन जाता है, उसे
ज दगी के कतने ही काम और कतने ही लोग को
बारी बारी से पास करना पडता है, दसव श न वाले क
नजर ब त ही तेज होती है वह कसी भी रखी चीज को
नही भूलता है, मेहनत क कमाकर खाना जानता है,
अपने रहने के लये जब भी मकान आ द बनाता है तो
केवल चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने
के लये कभी भी ब ढया आलीशान मकान नही बन
पाता है।गु सही तरीके से काम कर रहा हो तो
ए यू टव इ जी नयर क पो ट पर काम करने वाला
बनजाता है।
यारहवां श न
बारहवां श न
अंकशा मशन
यो तष व ा मे अंक व ा भी एक मह व पूण व ा
है, जसके ारा हम थोडे समय म ही कता का प
उ र दे सकते ह, अंक व ा म ८ का अंक श न को
ा त आ है। श न परमतप वी और याय का कारक
माना जाता है, इसक वशेषता पुराण म तपा दत है।
आपका जस तारीख को ज म आ है, गणना क रये,
और योग अगर ८ आये, तो आपका अंका धप त
श न र ही होगा.जैस-े ८,१७,२६ तारीख
आ द.यथा-१७=१+७=८,२६=२+६=८.
श न के त अ य जानका रयां
श न को स तुलन और याय का ह माना गया है। जो
लोग अनु चत बात के ारा अपनी चलाने क को शश
करते ह, जो बात समाज के हत म नही होती है और
उसको मा यता दे ने क को शश करते है, अहम के
कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते ह, अनु चत
वषमता, अथवा अ वभा वक समता को आ य दे ते ह,
श न उनको ही पी डत करता है। श न हमसे कु पत न
हो, उससे पहले ही हमे समझ लेना चा हये, क हम कह
अ याय तो नही कर रहे ह, या अनाव यक वषमता का
साथ तो नही दे रहे ह। यह तपकारक ह है, अथात तप
करने से शरीर प रप व होता है, श न का रंग गहरा नीला
होता है, श न ह से नरंतर गहरे नीले रंग क करण
पृ वी पर गरती रहती ह। शरी म इस ह का थान उदर
और जंघा म है। सूय पु श न ख दायक, शू वण,
तामस कृ त, वात कृ त धान तथा भा य हीन नीरस
व तु पर अ धकार रखता है। श न सीमा ह कहलाता
है, य क जहां पर सूय क सीमा समा त होती है, वह
से श न क सीमा शु हो जाती है। जगत म स चे और
झूठे का भेद समझना, श न का वशेष गुण है। यह ह
क कारक तथा दव लाने वाला है। वप , क ,
नधनता, दे ने के साथ साथ ब त बडा गु तथा श क
भी है, जब तक श न क सीमा से ाणी बाहर नही होता
है, संसार म उ त स भव नही है। श न जब तक जातक
को पी डत करता है, तो चार तरफ़ तबाही मचा दे ता है।
जातक को कोई भी रा ता चलने के लये नही मलता है।
करोडप त को भी खाकप त बना दे ना इसक स त है।
अ छे और शुभ कम बाले जातक का उ च होकर
उनके भा य को बढाता है, जो भी धन या संप जातक
कमाता है, उसे स पयोग मे लगाता है। गृह थ जीवन को
सुचा प से चलायेगा.साथ ही धम पर चलने क
ेरणा दे कर तप या और समा ध आ द क तरफ़ अ सर
करता है। अगर कम न दनीय और ू र है, तो नीच का
होकर भा य कतना ही जोडदार य न हो हरण कर
लेगा, महा कंगाली सामने लाकर खडी कर दे गा, कंगाली
दे कर भी मरने भी नही दे गा, श न के वरोध मे जाते ही
जातक का ववेक समा त हो जाता है। नणय लेने क
श कम हो जाती है, यास करने पर भी सभी काय
मे असफ़लता ही हाथ लगती है। वभाव मे चड चडापन
आजाता है, नौकरी करने वाल का अ धका रय और
सा थय से झगडे, ापा रय को ल बी आ थक हा न
होने लगती है। व ा थय का पढने मे मन नही लगता है,
बार बार अनु ीण होने लगते ह। जातक चाहने पर भी
शुभ काम नही कर पाता है। दमागी उ माद के कारण
उन काम को कर बैठता है जनसे करने के बाद केवल
पछतावा ही हाथ लगता है। शरीर म वात रोग हो जाने के
कारण शरीर फ़ूल जाता है, और हाथ पैर काम नही करते
ह, गुदा म मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके
सही प से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से
गुदा माग म मुलायम भाग म ज म हो जाते ह, और
भग दर जैसे रोग पैदा हो जाते ह। एका त वास रहने के
कारण से सीलन और नमी के कारण ग ठया जैसे रोग हो
जाते ह, हाथ पैर के जोड मे वात क ठ डक भर जाने
से गांठ के रोग पैदा हो जाते ह, शरीर के जोड म सूजन
आने से दद के मारे जातक को पग पग पर क ठनाई
होती है। दमागी सोच के कारण लगातार नश के
खचाव के कारण नायु म बलता आजाती है। अ धक
सोचने के कारण और घर प रवार के अ दर लेश होने
से व भ कार से नशे और मादक पदाथ लेने क
आदत पड जाती है, अ धकतर बीडी सगरेट और
त बाकू के सेवन से य रोग हो जाता है, अ धकतर
अ धक तामसी पदाथ लेने से कसर जैसे रोग भी हो जाते
ह। पेट के अ दर मल जमा रहने के कारण आंत के
अ दर मल चपक जाता है, और आंतो मे छाले होने से
अ सर जैसे रोग हो जाते ह। श न ऐसे रोग को दे कर जो
कम जातक के ारा कये गये होते ह, उन कम का
भुगतान करता है। जैसा जातक ने कम कया है उसका
पूरा पूरा भुगतान करना ही श नदे व का काय है। श न क
म ण नीलम है। ाणी मा के शरीर म लोहे क मा ा
सब धातु से अ धक होती है, शरीर म लोहे क मा ा
कम होते ही उसका चलना फ़रना भर हो जाता है।
और शरीर म कतने ही रोग पैदा हो जाते ह। इस लये ही
इसके लौह कम होने से पैदा ए रोग क औष ध खाने
से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चा हये
क श न खराब चल रहा है। श न मकर तथा कु भ रा श
का वामी है। इसका उ च तुला रा श म और नीच मेष
रा श म अनुभव कया जाता है। इसक धातु लोहा,
अनाज चना, और दाल म उडद क दाल मानी जाती है।
भारत म तीन चम का रक श न स
पीठ
श न के चम का रक स पीठ म तीन पीठ ही मु य
माने जाते ह, इन स पीठ मे जाने और अपने कये
गये पाप क मा मागने से जो भी पाप होते ह उनके
अ दर कमी आकर जातक को फ़ौरन लाभ मलता है।
जो लोग इन चम का रक पीठ को कोरी क पना मानते
ह, उअ के त केवल इतना ही कहा जा सकता है, क
उनके पुराने पु य कम के अनुसार जब तक उनका
जीवन सुचा प से चल रहा तभी तक ठ क कहा जा
सकता है, भ व य मे जब क ठनाई सामने आयेगी, तो वे
भी इन स पीठ के लये ढूं ढते फ़रगे, और उनको भी
याद आयेगा क कभी कसी के त मखौल कया था।
अगर इन स पीठ के त मा यता नही होती तो आज
से साढे तीन हजार साल पहले से कतने ही उन लोग
क तरह बु मान लोग ने ज म लया होगा, और अपनी
अपनी करते करते मर गये ह गे.ले कन वे पीठ आज भी
य के य है और लोग क मा यता आज भी वैसी क
वैसी ही है।
म य दे श के वा लयर के पास
श न रा म दर
श न मं [3]
श न ह क पीडा से नवारण के लये पाठ, पूजा, तो ,
मं और गाय ी आ द को लख रहा ँ, जो काफ़
लाभकारी स ह गे. न य १०८ पाथ करने से चम कारी
लाभ ा त होगा।
व नयोग:-श ो दे वी त मं य स धु प ऋ ष:
गाय ी छं द:, आपो दे वता, श न ी यथ जपे
व नयोग:।
नीचे लखे गये को क के अ ग को उंग लय से
छु य:-
अथ दे हा ग यास:-श ो शर स ( सर), दे वी: ललाटे
(माथा).अ भषटय मुखे (मुख), आपो क ठे (क ठ),
भव तु दये ( दय), पीतये नाभौ (ना भ), शं क ाम
(कमर), यो: ऊव : (छाती), अ भ जा वो: (घुटने),
व तु गु फ़यो: (गु फ़), न: पादयो: (पैर)।
अथ कर यास:-श ो दे वी: अंगु ा याम नम:।अ भ ये
त जनी याम नम:। आपो भव तु म यमा याम
नम:.पीतये अना मका याम नम:। शं योर भ
क न का याम नम:। व तु न:
करतलकरपृ ा याम नम:।
अथ दया द यास:-श ो दे वी दयाय नम:।अ भ ये
शरसे वाहा.आपो भव तु शखायै वषट।पीतये
कवचाय ँ(दोनो क धे)।शं योर भ ने ाय वौषट।
व तु न: अ ाय फ़ट।
यानम:-नीला बर: शूलधर: करीट
गृद ् थत ासकरो धनु मान.चतुभुज: सूयसुत:
शा त: सदाअ तु म ं वरदोअ पगामी॥
श न गाय ी:- ॐ कृ णांगाय व महे र वपु ाय धीम ह
त : सौ र: चोदयात.
वेद मं :- ॐ ाँ स: भूभुव: व: औम श ो
दे वीर भ य आपो भव तु पीतये शं योर भ व तु न:।
औम व: भुव: भू: ां औम श न राय नम:।
जप मं :- ॐ ां स: श न राय नम:। न य
२३००० जाप त दन।
नीला न समाभासम् र वपु म् यमा जम्।
छायामात ड स भूतम् तं नमा म शनै रम्
श न बीज म और अ ो रशतनामावली
[4]
श न बीज म –
श न अ ो रशतनामावली
ॐ शनै राय नमः ॥ ॐ शा ताय नमः ॥ ॐ
सवाभी दा यने नमः ॥ ॐ शर याय नमः ॥ ॐ
वरे याय नमः ॥ ॐ सवशाय नमः ॥ ॐ सौ याय नमः ॥
ॐ सुरव ाय नमः ॥ ॐ सुरलोक वहा रणे नमः ॥ ॐ
सुखासनोप व ाय नमः ॥ ॐ सु दराय नमः ॥ ॐ घनाय
नमः ॥ ॐ घन पाय नमः ॥ ॐ घनाभरणधा रणे नमः ॥
ॐ घनसार वलेपाय नमः ॥ ॐ ख ोताय नमः ॥ ॐ
म दाय नमः ॥ ॐ म दचे ाय नमः ॥ ॐ
महनीयगुणा मने नमः ॥ ॐ म यपावनपदाय नमः ॥ ॐ
महेशाय नमः ॥ ॐ छायापु ाय नमः ॥ ॐ शवाय नमः ॥
ॐ शततूणीरधा रणे नमः ॥ ॐ चर थर वभा वाय नमः
॥ ॐ अचंचलाय नमः ॥ ॐ नीलवणाय नमः ॥ ॐ
न याय नमः ॥ ॐ नीलांजन नभाय नमः ॥ ॐ
नीला बर वभूशणाय नमः ॥ ॐ न लाय नमः ॥ ॐ
वे ाय नमः ॥ ॐ व ध पाय नमः ॥ ॐ
वरोधाधारभूमये नमः ॥ ॐ भेदा पद वभावाय नमः ॥
ॐ व दे हाय नमः ॥ ॐ वैरा यदाय नमः ॥ ॐ वीराय
नमः ॥ ॐ वीतरोगभयाय नमः ॥ ॐ वप पर परेशाय
नमः ॥ ॐ व व ाय नमः ॥ ॐ गृ नवाहाय नमः ॥ ॐ
गूढाय नमः ॥ ॐ कूमागाय नमः ॥ ॐ कु पणे नमः ॥
ॐ कु सताय नमः ॥ ॐ गुणा ाय नमः ॥ ॐ गोचराय
नमः ॥ ॐ अ व ामूलनाशाय नमः ॥ ॐ
व ाव ा व पणे नमः ॥ ॐ आयु यकारणाय नमः ॥
ॐ आप नमः ॥ ॐ व णुभ ाय नमः ॥ ॐ व शने
नमः ॥ ॐ व वधागमवे दने नमः ॥ ॐ व ध तु याय
नमः ॥ ॐ व ाय नमः ॥ ॐ व पा ाय नमः ॥ ॐ
व र ाय नमः ॥ ॐ ग र ाय नमः ॥ ॐ व ांकुशधराय
नमः ॥ ॐ वरदाभयह ताय नमः ॥ ॐ वामनाय नमः ॥
ॐ ये ाप नीसमेताय नमः ॥ ॐ े ाय नमः ॥ ॐ
मतभा षणे नमः ॥ ॐ क ौघनाशक नमः ॥ ॐ
पु दाय नमः ॥ ॐ तु याय नमः ॥ ॐ तो ग याय
नमः ॥ ॐ भ व याय नमः ॥ ॐ भानवे नमः ॥ ॐ
भानुपु ाय नमः ॥ ॐ भ ाय नमः ॥ ॐ पावनाय नमः
॥ ॐ धनुम डलसं थाय नमः ॥ ॐ धनदाय नमः ॥ ॐ
धनु मते नमः ॥ ॐ तनु काशदे हाय नमः ॥ ॐ तामसाय
नमः ॥ ॐ अशेषजनव ाय नमः ॥ ॐ
वशेशफलदा यने नमः ॥ ॐ वशीकृतजनेशाय नमः ॥
ॐ पशूनां पतये नमः ॥ ॐ खेचराय नमः ॥ ॐ खगेशाय
नमः ॥ ॐ घननीला बराय नमः ॥ ॐ का ठ यमानसाय
नमः ॥ ॐ आयगण तु याय नमः ॥ ॐ नील छ ाय नमः
॥ ॐ न याय नमः ॥ ॐ नगुणाय नमः ॥ ॐ गुणा मने
नमः ॥ ॐ नरामयाय नमः ॥ ॐ न ाय नमः ॥ ॐ
व दनीयाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥ ॐ द दे हाय नमः
॥ ॐ द ना तहरणाय नमः ॥ ॐ दै यनाशकराय नमः ॥
ॐ आयजनग याय नमः ॥ ॐ ू राय नमः ॥ ॐ
ू रचे ाय नमः ॥ ॐ काम ोधकराय नमः ॥ ॐ
कल पु श ु वकारणाय नमः ॥ ॐ प रपो षतभ ाय
नमः ॥ ॐ परभी तहराय नमः ॥ ॐ
भ संघमनोऽभी फलदाय नमः ॥
श न तो म् [5]
कोणोऽ तको रौ यमोऽथ ब ुः कृ णः श नः
पगलम दसौ रः।
न यं मृतो यो हरते य पीड़ा त मै नमः
ीर वन दनाय।।
सुराऽसुरा कपु षोरगे ा ग धव- व ाधर-प गा ।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
नरा नर ाः पशवो मृगे ाः व या ये क टपतं भृं ाः।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
दे शा गा ण वना न य सेना नवेशाः पुरप ना न।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
तलैयवैमाणगुडा दानैल हेन नीला बरदानतो वा।
ीणा त म ै नजवासरे च त मै नमः
ीर वन दनाय।।
यागकूले यमुनातटे च सर वतीपु डजले गुहायाम्।
यो यो गनां यानगताऽ प सू म त मै नमः
ीर वन दनाय।।
अ य दे शात् वगृहं व तद यवारे स नरः सुखी
यातः।
गृहा गतो यो न पुनः या त त मै नमः
ीर वन दनाय।।
ा वयंभूभुवन य य ाता हरीशो हरते पनाक ।
एक धा ऋ युजः साममू त त मै नमः
ीर वन दनाय।।
श य कं यः यतः भाते न यं सुपु ैः पशुबा धवै ।
पठे ु सौ यं भु व भोगयु ः ा ो त नवाणपदं
तद ते।।
कोण थः प लो ब ुः कृ णो रो ोऽ तको यमः।
सो रः शनै रो म दः प लादे न सं तुतः।।
एता न दश नामा न ात थाय यः पठे त्।
शनै रकृता पीड़ा न कदा चद् भ व य त।।
।। इ त ीदशरथकृत शनै र तो ं स पूणम् ।।
श न चालीसा [6]
जय गणेश ग रजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
द नन के ःख र क र, क जै नाथ नहाल।।
जय जय ी श नदे व भु, सुन वनय महाराज।
कर ँ कृपा हे र व तनय, राख जन क लाज।।
श न यं वधान [9]
श न यं
श न यं को स करके घर म था पत करने से हर
कार का श न दोष र होने लगता है और साथ ही श न
दे व क कृपा भी ा त होने लगती है। कु भ और मकर
राशी के वामी गृह श न दे व है और वे अपनी राशी म
थोड़े कमजोर होते है इस लए कु भ और मकर राशी के
जातक को स श न यं घर म था पत कर उसक
पूजा अव य करनी चा हए। जस जातक क कुंडली म
ल न म श न है उ ह भी श न यं ारा श न आराधना
करनी चा हए। जो जातक श न क साढ़े साती और
ढईया से परेशान है उ ह भी स श न यं ारा लाभ
अव य ा त होता है। इन सबके अ त र जीवन म जब
हर तरफ से ःख और पीड़ाएं आने लग तो ऐसे म श न
आराधना करने से लाभ अव य मलता है।
श न संबंधी व तुएँ
नीलम, नी लमा, नीलम ण, जामु नया, नीला कटे ला,
आ द श न के र न और उपर न ह। अ छा र न श नवार
को पु य न म धारण करना चा हये.इन र न मे कसी
भी र न को धारण करते ही चालीस तशत तक फ़ायदा
मल जाता है। [10]
श न क जुड़ी बू टयां
श न स ब धी ापार और नौकरी
काले रंग क व तुय, लोहा, ऊन, तेल, गैस, कोयला,
काबन से बनी व तुय, चमडा, मशीन के पाट् स, पे ोल,
प थर, तल और रंग का ापार श न से जुडे जातक
को फ़ायदा दे ने वाला होता है। चपरासी क नौकरी,
ाइवर, समाज क याण क नौकरी नगर पा लका वाले
काम, जज, वक ल, राज त आ द वाले पद श न क
नौकरी मे आते ह।
श न स ब धी दान पु य
स दभ
1. ी श नदे व का श न अमाव या पर पूजन व ध ।
श नधाम। अ भगमन त थ: ३० सतंबर २०१२
2. श नधाम । भगवान श न का उ व
3. "श न मं " . m-hindi.webdunia.com.
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4. "श न अ ो रशतनामावली" .
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5. "श न तो म्" . sanskritdocuments.org.
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6. "श न चालीसा" . dharmyatra.org. अ भगमन
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7. "श न व प र-कवचम्" . jyotish-
tantra.blogspot.com. अ भगमन त थ 3
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8. "श न संबंधी रोग" . mnaidunia.jagran.com.
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9. "श न यं वधान" . m-
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10. "श न के र न एवं उपर न" .
shanideva.blogspot.com. अ भगमन त थ
4 मई 2019.
बाहरी क ड़याँ
श न दे व् प रचय
श न दे व् का ज म
इ ह भी दे ख
शन
श नवार त कथा
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