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श न ( यो तष)

श न ह के त अनेक आखयान पुराण म ा त होते


ह।श नदे व को सूय पु एवं कमफल दाता माना जाता
है। ले कन साथ ही पतृ श ु भी.श न ह के स ब ध मे
अनेक ा तयां और इस लये उसे मारक, अशुभ और
ख कारक माना जाता है। पा ा य यो तषी भी उसे
ख दे ने वाला मानते ह। ले कन श न उतना अशुभ और
मारक नही है, जतना उसे माना जाता है। इस लये वह
श ु नही म है।मो को दे ने वाला एक मा श न ह
ही है। स य तो यह ही है क श न कृ त म संतुलन पैदा
करता है, और हर ाणी के साथ उ चत याय करता है।
जो लोग अनु चत वषमता और अ वाभा वक समता को
आ य दे ते ह, श न केवल उ ही को द डंत ( ता डत)
करते ह। अनुराधा न के वामी श न ह।
शन

संबंध ह

नवास थान श न म डल

ह शन ह

मं
ॐ शं शनै राय नमः॥

ॐ ां स: शनै राय
नम:॥[1]

Day श नवार

जीवनसाथी नीलादे वी अथवा धा मनी

सवारी सात सवा रयां: हाथी, घोड़ा,


हरण, गधा, कु ा, भसा , ग
और कौआ[2]

ब णंजी, उडु पी म श न महाराज क २३ फ़ ट ऊंची तमा

वै य कां त रमल:, जानां वाणातसी कुसुम


वण वभ शरत:।

अ या प वण भुव ग छ त त सवणा भ
सूया मज: अ ती त मु न वाद:॥
भावाथ:-श न ह वै यर न अथवा बाणफ़ूल या अलसी
के फ़ूल जैसे नमल रंग से जब का शत होता है, तो उस
समय जा के लये शुभ फ़ल दे ता है यह अ य वण को
काश दे ता है, तो उ च वण को समा त करता है, ऐसा
ऋ ष, महा मा कहते ह।

श न दे व का ज म
धम ंथो के अनुसार सूय क प नी सं ा क छाया के
गभ से श न दे व का ज म आ, जब श न दे व छाया के
गभ म थे तब छाया भगवान शंकर क भ म इतनी
यान म न थी क उसने अपने खाने पने तक शुध नह
थी जसका भाव उसके पु पर पड़ा और उसका वण
याम हो गया !श न के यामवण को दे खकर सूय ने
अपनी प नी छाया पर आरोप लगाया क श न मेरा पु
नह ह ! तभी से श न अपने पता से श ु भाव रखते थे !
श न दे व ने अपनी साधना तप या ारा शवजी को
स कर अपने पता सूय क भाँ त श ातक
और शवजी ने श न दे व को वरदान मांगने को कहा, तब
श न दे व ने ाथना क क युग युग म मेरी माता छाया
क पराजय होती रही ह, मेरे पता पता सूय ारा अनेक
बार अपमा नत कया गया ह ! अतः माता क इ छा ह
क मेरा पु अपने पता से मेरे अपमान का बदला ले
और उनसे भी यादा श शाली बने ! तब भगवान
शंकर ने वरदान दे ते ए कहा क नव ह म तु हारा
सव े थान होगा ! मानव तो या दे वता भी तु हरे नाम
से भयभीत रहगे ! अ धक जानकारी के लए दे खे लक
शन

पौरा णक संदभ
श न के स ब ध मे हमे पुराण म अनेक आ यान मलते
ह।माता के छल के कारण पता ने उसे शाप दया. पता
अथात सूय ने कहा,"आप ू रतापूण दे खने वाले
मंदगामी ह हो जाये".यह भी आ यान मलता है क
श न के कोप से ही अपने रा य को घोर भ से
बचाने के लये राजा दशरथ उनसे मुकाबला करने प ंचे
तो उनका पु षाथ दे ख कर श न ने उनसे वरदान मांगने
के लये कहा.राजा दशरथ ने व धवत तु त कर उसे
स कया।प पुराण म इस संग का स व तार वणन
है। वैवत पुराण म श न ने जगत जननी पावती को
बताया है क म सौ ज मो तक जातक क करनी का
फ़ल भुगतान करता ँ.एक बार जब व णु या ल मी ने
श न से पूंछा क तुम य जातक को धन हा न करते
हो, य सभी तु हारे भाव से ता डत रहते ह, तो श न
महाराज ने उ र दया,"माते री, उसमे मेरा कोई दोष
नही है, परम पता परमा मा ने मुझे तीनो लोक का
यायाधीश नयु कया आ है, इस लये जो भी तीनो
लोक के अंदर अ याय करता है, उसे दं ड दे ना मेरा काम
है".एक आ यान और मलता है, क कस कार से
ऋ ष अग त ने जब श न दे व से ाथना क थी, तो
उ होने रा स से उनको मु दलवाई थी। जस कसी
ने भी अ याय कया, उनको ही उ होने दं ड दया, चाहे
वह भगवान शव क अधा गनी सती रही ह , ज होने
सीता का प रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ
बोलकर अपनी सफ़ाई द और प रणाम म उनको अपने
ही पता क य म हवन कुंड मे जल कर मरने के लये
श न दे व ने ववश कर दया, अथवा राजा ह र रहे
ह , जनके दान दे ने के अ भमान के कारण स तनीक
बाजार मे बकना पडा और, मशान क रखवाली तक
करनी पडी, या राजा नल और दमय ती को ही ले
ली जये, जनके तु छ पाप क सजा के लये उ हे दर
दर का होकर भटकना पडा, और भूनी ई मछ लयां तक
पानी मै तैर कर भाग ग , फ़र साधारण मनु य के ारा
जो भी मनसा, वाचा, कमणा, पाप कर दया जाता है वह
चाहे जाने मे कया जाय या अ जाने म, उसे भुगतना तो
पडेगा ही.

म य पुराण म महा मा श न दे व का शरीर इ कां त


क नीलम ण जैसी है, वे ग पर सवार है, हाथ मे धनुष
बाण है एक हाथ से वर मु ा भी है,श न दे व का वकराल
प भयावह भी है।श न पा पय के लये हमेशा ही
संहारक ह। प म के सा ह य मे भी अनेक आ यान
मलते ह,श न दे व के अनेक म दर ह,भारत म भी श न
दे व के अनेक म दर ह, जैसे शगणापुर, वृंदावन के
को कला वन, वा लयर के श न राजी, द ली तथा
अनेक शहर मे महाराज श न के म दर ह।

खगोलीय ववरण
नव ह के क म म श न सूय से सवा धक री पर
अ ासी करोड, इकसठ लाख मील र है।पृ वी से श न
क री इकह र करोड, इक ीस लाख, तयालीस
हजार मील र है। श न का ास पच र हजार एक सौ
मील है, यह छ: मील त सेके ड क ग त से २१.५ वष
म अपनी क ा मे सूय क प र मा पूरी करता है।श न
धरातल का तापमान २४० फ़ोरनहाइट है।श न के चारो
ओर सात वलय ह,श न के १५ च मा है। जनका
येक का ास पृ वी से काफ़ अ धक है।

यो तष म श न
फ़ लत यो तष के शा ो म श न को अनेक नाम से
स बो धत कया गया है, जैसे म दगामी, सूय-पु ,
श न र और छायापु आ द.श न के न
ह,पु य,अनुराधा, और उ राभा पद.यह दो रा शय
मकर, और कु भ का वामी है।तुला रा श म २० अंश पर
श न परमो च है और मेष रा श के २० अंश प परमनीच
है।नीलम श न का र न है।श न क तीसरी, सातव , और
दसव मानी जाती है।श न सूय,च ,मंगल का
श ,ु बुध,शु को म तथा गु को सम मानता है।
शारी रक रोग म श न को वायु वकार,कंप, ह य और
दं त रोग का कारक माना जाता है।

ादस भाव मे श न

ज म कुंडली के बारह भाव मे ज म के समय श न


अपनी ग त और जातक को दये जाने वाले फ़ल के
त भावानुसार जातक के जीवन के अ दर या उतार
और चढाव मलगे, सबका वृतांत कह दे ता है।

थम भाव मे श न
श न म द है और श न ही ठं डक दे ने वाला है,सूय नाम
उजाला तो श न नाम अ धेरा, पहले भाव मे अपना थान
बनाने का कारण है क श न अपने गोचर क ग त और
अपनी दशा मे शोक पैदा करेगा,जीव के अ दर शोक का
ख मलते ही वह आगे पीछे सब कुछ भूल कर केवल
अ धेरे मे ही खोया रहता है।श न जा टोने का कारक
तब बन जाता है, जब श न पहले भाव मे अपनी ग त
दे ता है, पहला भाव ही औकात होती है, अ धेरे मे जब
औकात छु पने लगे, रोशनी से ही प हचान होती है और
जब औकात छु पी ई हो तो श न का याह अ धेरा ही
माना जा सकता है। अ धेरे के कई प होते ह, एक
अ धेरा वह होता है जसके कारण कुछ भी दखाई नही
दे ता है, यह आंख का अ धेरा माना जाता है, एक
अ धेरा समझने का भी होता है, सामने कुछ होता है,
और समझा कुछ जाता है, एक अ धेरा बुराइय का होता
है, या जीव क सभी अ छाइयां बुराइय के अ दर
छु पने का कारण भी श न का दया गया अ धेरा ही माना
जाता है, नाम का अ धेरा भे होता है, कसी को पता ही
नही होता है, क कौन है और कहां से आया है, कौन माँ
है और कौन बाप है, आ द के ारा कसी भी प मे
छु पाव भी श न के कारण ही माना जाता है,
चालाक का पुतला बन जाता है थम भाव के श न के
ारा.श न अपने थान से थम भाव के अ दर थ त
रख कर तीसरे भाव को दे खता है, तीसरा भाव अपने से
छोटे भाई ब हनो का भी होता है, अपनी अ द नी
ताकत का भी होता है, परा म का भी होता है, जो कुछ
भी हम सर से कहते है, कसी भी साधन से, कसी भी
तरह से श न के कारण अपनी बात को सं े षत करने मे
क ठनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को
या तो समझ मे नही आता है, और आता भी है तो एक
भयानक अ धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को
न समझने के कारण कुछ का कुछ समझ लेता है,
प रणाम के अ दर फ़ल भी जो चा हये वह नही मलता
है, अ सर दे खा जाता है क जसके थम भाव मे श न
होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू
कर दे ता है, उसका कारण उसके ारा जोर जोर से
बोलने क आदत नही, थम भाव का श न सुनने के
अ दर कमी कर दे ता है, और सामने वाले को जोर से
बोलने पर ही या तो सुनायी दे ता है, या वह कुछ का कुछ
समझ लेता है, इसी लये जीवन साथी के साथ कुछ
सुनने और कुछ समझने के कारण मान सक ना समझी
का प रणाम स ब ध मे कडु वाहट घुल जाती है, और
स ब ध टू ट जाते ह। इसक थम भाव से दसवी नजर
सीधी कम भाव पर पडती है, यही कम भाव ही पता का
भाव भी होता है।जातक को कम करने और कम को
समझने मे काफ़ क ठनाई का सामना करना पडता है,
जब कसी कार से कम को नही समझा जाता है तो जो
भी कया जाता है वह कम न होकर एक भार व प ही
समझा जाता है, यही बात पता के त मान ली जाती
है, पता के त श न अपनी स त के अनुसार अंधेरा
दे ता है, और उस अ धेरे के कारण पता ने पु के त
या कया है, समझ नही होने के कारण पता पु म
अनबन भी बनी रहती है,पु का लगन या थम भाव का
श न माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता को
जो काम नही करने चा हये वे उसको करने पडते ह,
क ठन और एक सीमा मे रहकर माता के ारा काम
करने के कारण उसका जीवन एक घेरे म बंधा सा रह
जाता है, और वह अपनी शरीरी स त को उस कार से
योग नही कर पाती है जस कार से एक साधारण
आदमी अपनी ज दगी को जीना चाहता है।

सरे भाव म श न
सरा भाव भौ तक धन का भाव है,भौ तक धन से
मतलब है, पया,पैसा,सोना,चा द ,हीरा,मोती,जेवरात
आ द, जब श न दे व सरे भाव मे होते है तो अपने ही
प रवार वालो के त अ धेरा भी रखते है, अपने ही
प रवार वाल से लडाई झगडा आ द करवा कर अपने
को अपने ही प रवार से र कर दे ते ह,धन के मामले मै
पता नही चलता है कतना आया और कतना खच
कया, कतना कहां से आया, सरा भाव ही बोलने का
भाव है, जो भी बात क जाती है, उसका अ दाज नही
होता है क या कहा गया है, गाली भी हो सकती है और
ठं डी बात भी, ठं डी बात से मतलब है नकारा मक बात,
कसी भी बात को करने के लये कहा जाय, उ र म न
ही नकले. सरा श न चौथे भाव को भी दे खता है, चौथा
भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने
सुख के त भी चौथे भाव से पता कया जाता है, सरा
श न होने पर या ा वाले काय और घर मे सोने के
अलावा और कुछ नही दखाई दे ता है। सरा श न सीधे
प मे आठव भाव को दे खता है, आठवा भाव शमशानी
ताकत क तरफ़ झान बढा दे ता है,
भूत, ेत, ज और पशाची श य को अपनाने म
अपना मन लगा दे ता है, शमशानी साधना के कारण
उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब
और भूत के भोजन म उसक च बढ जाती है। सरा
श न यारहव भाव को भी दे खता है, यारहवां भाव
अचल स प के त अपनी आ था को अ धेरे मे
रखता है, म और बडे भाई ब हनो के त दमाग म
अ धेरा रखता है। वे कुछ करना चाहते ह ले कन
के दमाग म कुछ और ही समझ मे आता है।

तीसरे भाव म श न
तीसरा भाव परा म का है, के साहस और ह मत
का है, जहां भी रहता है, उसके पडौ सय का है।
इन सबके कारण के अ दर तीसरे भाव से श न पंचम
भाव को भी दे खता है, जनमे श ा,संतान और तुरत
आने वाले धनो को भी जाना जाता है, म क
सहभा गता और भाभी का भाव भी पांचवा भाव माना
जाता है, पता क मृ यु का और दादा के बडे भाई का
भाव भी पांचवा है। इसके अलावा नव भाव को भी
तीसरा श न आहत करता है, जसमे धम, सामा जक
हा रकता, पुराने री त रवाज और पा रवा रक चलन
आ द का ान भी मलता है, को तीसरा श न आहत
करता है। मकान और आराम करने वाले थानो के त
यह श न अपनी अ धेरे वाली नी त को तपा दत करता
है।न नहाल खानदान को यह श न ता डत करता है।
चौथे भाव मे श न

चौथे भाव का मु य भाव के लये काफ़ क


दे ने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले
साधन, तथा शरीर का पानी इस श न के भाव से गंदला
जाता है, आजीवन क दे ने वाला होने से पुराणो मे इस
श न वाले का जीवन नक मय ही बताया जाता है।
अगर यह श न तुला,मकर,कु भ या मीन का होता है, तो
इस के फ़ल म क मे कुछ कमी आ जाती है।

पंचम भाव का श न

इस भाव मे श न के होने के कारण को म वे ा


बना दे ता है, वह कतने ही गूढ म के ारा लोगो का
भला करने वाला तो बन जाता है, ले कन अपने लये
जीवन साथी के त,जायदाद के त, और नगद धन के
साथ जमा पूंजी के लये ख ही उठाया करता है।संतान
मे श न क स त ी होने और ठं डी होने के कारण से
संत त मे वलंब होता है,क या संतान क अ धकता होती
है, जीवन साथी के साथ मन मुटाव होने से वह अ धक
तर अपने जीवन के त उदासीन ही रहता है।

ष भाव म श न

इस भाव मे श न कतने ही दै हक दै वक और भौ तक
रोग का दाता बन जाता है, ले कन इस भाव का श न
पा रवा रक श ुता को समा त कर दे ता है,मामा खानदान
को समा त करने वाला होता है,चाचा खा दान से कभी
बनती नही है। अगर कसी कार से नौकरी वाले
काम को करता रहता है तो सफ़ल होता रहता है, अगर
कसी कार से वह मा लक वाले कामो को करता है तो
वह असफ़ल हो जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठव
भाव को दे खने के कारण से र से कसी भी
काम या सम या को नही समझ पाता है, काय से कसी
न कसी कार से अपने त जो खम को नही समझ
पाने से जो भी कमाता है, या जो भी कया जाता है,
उसके त अ धेरा ही रहता है, और अ मात सम या
आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा दे ता
है। बारहवे भाव मे अ धेरा होने के कारण से बाहरी
आफ़त के त भी अ जान रहता है, जो भी कारण
बाहरी बनते ह उनके ारा या तो ठगा जाता है या बाहरी
लोग क श न वाली चाला कय के कारण अपने को
आहत ही पाता है। खुद के छोटे भाई ब हन या कर रहे
ह और उनक काय णाली खुद के त या है उसके
त अ जान रहता है। अ सर इस भाव का श न कही
आने जाने पर रा त मे भटकाव भी दे ता है, और अ सर
ऐसे लोग जानी ई जगह पर भी भूल जाते है।
स तम भाव मे श न

सातवां भाव प नी और म णा करने वाले लोगो से


अपना स ब ध रखता है।जीवन साथी के त अ धेरा
और दमाग मे नकारा मक वचारो के लगातार बने रहने
से अपने को हमेशा हर बात म छु ही समझता
रहता है,जीवन साथी थोडे से समय के बाद ही नकारा
समझ कर अपना प ला जातक से झाड कर र होने
लगता है, अगर जातक कसी कार से अपने त
सकारा मक वचार नही बना पाये तो अ धकतर मामलो
मे गृ थय को बरबाद ही होता दे खा गया है, और दो
शा दय के प रणाम स तम श न के कारण ही मलते
दे खे गये ह,स तम श न पुरानी रवाज के त और
अपने पूवज के त उदासीन ही रहता है, उसे केवल
अपने ही त सोचते रहने के कारण और मै कुछ नही
कर सकता ,ँ यह वचार बना रहने के कारण वह अपनी
पुरानी मयादा को अ सर भूल ही जाता है, पता और
पु मे काय और अकाय क थ त बनी रहने के कारण
अनबन ही बनी रहती है। अपने रहने वाले थान
पर अपने कारण बनाकर अशां त उ प करता रहता है,
अपनी माता या माता जैसी म हला के मन मे वरोध भी
पैदा करता रहता है, उसे लगता है क जो भे उसके त
कया जा रहा है, वह गलत ही कया जा रहा है और इसी
कारण से वह अपने ही लोग से वरोध पैदा करने मे नही
हचकता है। शरीर के पानी पर इस श न का भाव
पडने से दमागी वचार गंदे हो जाते ह, अपने
शरीर म पेट और जनन अंगो मे सूजन और म हला
जातक क ब चादानी आ द क बीमा रयां इसी श न के
कारण से मलती है।

अ म भाव म श न
इस भाव का श न खाने पीने और मौज म ती करने के
च कर म जेब हमेशा खाली रखता है। कस काम को
कब करना है इसका अ दाज नही होने के कारण से
के अ दर आवारागीरी का उदय होता दे खा गया है
उ च का श न अ ी य ान क मता भी दे ता ह गु त
ान भी श न का कारक ह

नवम भाव का श न

नवां भाव भा य का माना गया है, इस भाव म श न होने


के कारण से क ठन और ख दायी या ाय करने को
मलती ह, लगातार घूम कर से स आ द के कामो मे
काफ़ परेशानी करनी पडती है, अगर यह भाव सही
होता है, तो मजा कया होता है, और हर बात को
चुटकुल के ारा कहा करता है, मगर जब इस भाव मे
श न होता है तो सी रयस हो जाता है, और
एका त म अपने को रखने अपनी भलाई सोचता है, नव
भाव बाले श न के के कारण अपनी प हचान
एका त वासा झगडा न झासा वाली कहावत से पूण
रखता है। खेती वाले कामो, घर बनाने वाले काम
जायदाद से जुडे काम क तरफ़ अपना मन लगाता है।
अगर कोई अ छा ह इस श न पर अपनी नजर रखता है
तो जज वाले कामो क तरफ़ और कोट कचहरी
वाले काम क तरफ़ अपना झान रखता है। जानवर
क डा टरी और जानवर को सखाने वाले काम भी
करता है, अ धकतर नव श न वाले लोग को जानवर
पालना ब त अ छा लगता है। कताब को छापकर
बेचने वाले भी नव श न से कही न कही जुडे होते ह।

दसम भाव का श न
दसवां श न क ठन कामो क तरफ़ मन ले जाता है, जो
भी मेहनत वाले काम,लकडी,प थर, लोहे आ द के होते
हवे सब दसवे श न के े मे आते ह, अपने
जीवन मे काम के त एक े बना लेता है और उस
े से नकलना नही चाहता है।रा का असर होने से या
कसी भी कार से मंगल का भाव बन जाने से इस
कार का यातायात का सपाही बन जाता है, उसे
ज दगी के कतने ही काम और कतने ही लोग को
बारी बारी से पास करना पडता है, दसव श न वाले क
नजर ब त ही तेज होती है वह कसी भी रखी चीज को
नही भूलता है, मेहनत क कमाकर खाना जानता है,
अपने रहने के लये जब भी मकान आ द बनाता है तो
केवल चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने
के लये कभी भी ब ढया आलीशान मकान नही बन
पाता है।गु सही तरीके से काम कर रहा हो तो
ए यू टव इ जी नयर क पो ट पर काम करने वाला
बनजाता है।

यारहवां श न

श न दवाइय का कारक भी है, और इस घर मे जातक


को साइं ट ट भी बना दे ता है, अगर जरा सी भी बुध
साथ दे ता हो तो ग णत के फ़ामूले और नई खोज
करने मे मा हर हो जाता है। चै रट वाले काम करने मे
मन लगता है, मकान के चर खडा करने और वापस
बगाड कर बनाने मे मा हर होता है, के पास
जीवन मे दो मकान तो होते ही है। दो त से हमेशा
चाल कयां ही मलती है, बडा भाई या ब हन के त
का झान कम ही होता है। कारण वह न तोकुछ
शो करता है और न ही कसी कार क मदद करने मे
अपनी यो यता दखाता है, अ धकतर लोगो के इस
कार के भाई या ब हन अपने को जातक से र ही
रखने म अपनी भलाई समझते ह।

बारहवां श न

नवां घर भा य या धम का होता है तो बारहवा घर धम


का घर होता है, को बारहवा श न पैदा करने के
बाद अपने ज म थान से र ही कर दे ता है, वह री
श न के अंश पर नभर करती है, के दमाग मे
काफ़ वजन हर समय महसूस होता है वह अपने को
संसार के लये वजन मानकर ही चलता है, उसक झान
हमेशा के लये धन के त होती है और जातक धन के
लये हमेशा ही भटकता रहता है, कजा मनी बीमा रयो
से उसे नफ़रत तो होती है मगर उसके जीवन साथी के
ारा इस कार के काय कर दये जाते ह जनसे जातक
को इन सब बात के अ दर जाना ही पडता है।
श न क प हचान

जातक को अपने ज म दनांक को दे खना चा हये, य द


श न चौथे, छठे , आठव, बारहव भाव मे कसी भी रा श
म वशेषकर नीच रा श म बैठा हो, तो न त ही
आ थक, मान सक, भौ तक पीडाय अपनी महादशा,
अ तदशा, म दे गा, इसमे कोई स दे ह नही है, समय से
पहले या न महादशा, अ तदशा, आर भ होने से पहले
श न के बीज मं का अव य जाप कर लेना
चा हये.ता क श न ता डत न कर सके, और श न क
महादशा और अ तदशा का समय सुख से बीते.याद रख
अ त श न भयंकर पीडादायक माना जाता है, चाहे वह
कसी भी भाव म य न हो.?

अंकशा मशन
यो तष व ा मे अंक व ा भी एक मह व पूण व ा
है, जसके ारा हम थोडे समय म ही कता का प
उ र दे सकते ह, अंक व ा म ८ का अंक श न को
ा त आ है। श न परमतप वी और याय का कारक
माना जाता है, इसक वशेषता पुराण म तपा दत है।
आपका जस तारीख को ज म आ है, गणना क रये,
और योग अगर ८ आये, तो आपका अंका धप त
श न र ही होगा.जैस-े ८,१७,२६ तारीख
आ द.यथा-१७=१+७=८,२६=२+६=८.

अंक आठ क यो तषीय प रभाषा

अंक आठ वाले जातक धीरे धीरे उ त करते ह, और


उनको सफ़लता दे र से ही मल पाती है। प र म ब त
करना पडता है, ले कन जतना कया जाता है उतना
मल नही पाता है, जातक वक ल और यायाधीश तक
बन जाते ह, और लोहा, प थर आ द के वसाय के
ारा जी वका भी चलाते ह। दमाग हमेशा अशा त सा
ही रहता है, और वह प रवार से भी अलग ही हो जाता
है, साथ ही दा प य जीवन म भी कटु ता आती है। अत:
आठ अंक वाले य को थम श न के व धवत
बीज मं का जाप करना चा हये.तदोपरा त साढे पांच
र ी का नीलम धारण करना चा हये.ऐसा करने से
जातक हर े म उ त करता आ, अपना ल य शी
ा त कर लेगा.और जीवन म तप भी कर सकेगा,
जसके फ़ल व प जातक का इहलोक और परलोक
साथक ह गे. श न धान जातक तप वी और परोपकारी
होता है, वह यायवान, वचारवान, तथा व ान भी होता
है, बु कुशा होती है, शा त वभाव होता है, और वह
क ठन से क ठन प र थ त म अपने को ज दा रख
सकता है। जातक को लोहा से जुडे वयवसाय मे लाभ
अ धक होता है। श न धान जातक क अ तभावना
को कोई ज द प हचान नही पाता है। जातक के अ दर
मानव परी क के गुण व मान होते ह। श न क स त
चालाक , आलसी, धीरे धीरे काम करने वाला, शरीर म
ठं डक अ धक होने से रोगी, आलसी होने के कारण बात
बात मे तक करने वाला, और अपने को दं ड से बचाने के
लये मधुर भाषी होता है। दा प यजीवन सामा य होता
है। अ धक प र म करने के बाद भी धन और धा य कम
ही होता है। जातक न तो समय से सोते ह और न ही
समय से जागते ह। हमेशा उनके दमाग म च ता घुसी
रहती है। वे लोहा, ट ल, मशीनरी, ठे का, बीमा, पुराने
व तु का ापार, या राज काय के अ दर अपनी
काय करके अपनी जी वका चलाते ह। श न धान
जातक म कुछ क मया होती ह, जैसे वे नये कपडे
प हनगे तो जूते उनके पुराने ह गे, हर बात म शंका करने
लगगे, अपनी आदत के अनुसार हठ ब त करगे,
अ धकतर जातक के वचार पुराने होते ह। उनके सामने
जो भी परेशानी होती है सबके सामने उसे उजागर करने
म उनको कोई शम नही आती है। श न धान जातक
अ सर अपने भाई और बा धव से अपने वचार
वपरीत रखते ह, धन का हमेशा उनके पास अभाव ही
रहता है, रोग उनके शरीर म मानो हमेशा ही पनपते रहते
ह, आलसी होने के कारण भा य क गाडी आती है और
चली जाती है उनको प हचान ही नही होती है, जो भी
धन पता के ारा दया जाता है वह अ धकतर मामल
म अप य ही कर दया जाता है। अपने म से वरोध
रहता है। और अपनी माता के सुख से भी जातक
अ धकतर वं चत ही रहता है।

श न के त अ य जानका रयां
श न को स तुलन और याय का ह माना गया है। जो
लोग अनु चत बात के ारा अपनी चलाने क को शश
करते ह, जो बात समाज के हत म नही होती है और
उसको मा यता दे ने क को शश करते है, अहम के
कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते ह, अनु चत
वषमता, अथवा अ वभा वक समता को आ य दे ते ह,
श न उनको ही पी डत करता है। श न हमसे कु पत न
हो, उससे पहले ही हमे समझ लेना चा हये, क हम कह
अ याय तो नही कर रहे ह, या अनाव यक वषमता का
साथ तो नही दे रहे ह। यह तपकारक ह है, अथात तप
करने से शरीर प रप व होता है, श न का रंग गहरा नीला
होता है, श न ह से नरंतर गहरे नीले रंग क करण
पृ वी पर गरती रहती ह। शरी म इस ह का थान उदर
और जंघा म है। सूय पु श न ख दायक, शू वण,
तामस कृ त, वात कृ त धान तथा भा य हीन नीरस
व तु पर अ धकार रखता है। श न सीमा ह कहलाता
है, य क जहां पर सूय क सीमा समा त होती है, वह
से श न क सीमा शु हो जाती है। जगत म स चे और
झूठे का भेद समझना, श न का वशेष गुण है। यह ह
क कारक तथा दव लाने वाला है। वप , क ,
नधनता, दे ने के साथ साथ ब त बडा गु तथा श क
भी है, जब तक श न क सीमा से ाणी बाहर नही होता
है, संसार म उ त स भव नही है। श न जब तक जातक
को पी डत करता है, तो चार तरफ़ तबाही मचा दे ता है।
जातक को कोई भी रा ता चलने के लये नही मलता है।
करोडप त को भी खाकप त बना दे ना इसक स त है।
अ छे और शुभ कम बाले जातक का उ च होकर
उनके भा य को बढाता है, जो भी धन या संप जातक
कमाता है, उसे स पयोग मे लगाता है। गृह थ जीवन को
सुचा प से चलायेगा.साथ ही धम पर चलने क
ेरणा दे कर तप या और समा ध आ द क तरफ़ अ सर
करता है। अगर कम न दनीय और ू र है, तो नीच का
होकर भा य कतना ही जोडदार य न हो हरण कर
लेगा, महा कंगाली सामने लाकर खडी कर दे गा, कंगाली
दे कर भी मरने भी नही दे गा, श न के वरोध मे जाते ही
जातक का ववेक समा त हो जाता है। नणय लेने क
श कम हो जाती है, यास करने पर भी सभी काय
मे असफ़लता ही हाथ लगती है। वभाव मे चड चडापन
आजाता है, नौकरी करने वाल का अ धका रय और
सा थय से झगडे, ापा रय को ल बी आ थक हा न
होने लगती है। व ा थय का पढने मे मन नही लगता है,
बार बार अनु ीण होने लगते ह। जातक चाहने पर भी
शुभ काम नही कर पाता है। दमागी उ माद के कारण
उन काम को कर बैठता है जनसे करने के बाद केवल
पछतावा ही हाथ लगता है। शरीर म वात रोग हो जाने के
कारण शरीर फ़ूल जाता है, और हाथ पैर काम नही करते
ह, गुदा म मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके
सही प से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से
गुदा माग म मुलायम भाग म ज म हो जाते ह, और
भग दर जैसे रोग पैदा हो जाते ह। एका त वास रहने के
कारण से सीलन और नमी के कारण ग ठया जैसे रोग हो
जाते ह, हाथ पैर के जोड मे वात क ठ डक भर जाने
से गांठ के रोग पैदा हो जाते ह, शरीर के जोड म सूजन
आने से दद के मारे जातक को पग पग पर क ठनाई
होती है। दमागी सोच के कारण लगातार नश के
खचाव के कारण नायु म बलता आजाती है। अ धक
सोचने के कारण और घर प रवार के अ दर लेश होने
से व भ कार से नशे और मादक पदाथ लेने क
आदत पड जाती है, अ धकतर बीडी सगरेट और
त बाकू के सेवन से य रोग हो जाता है, अ धकतर
अ धक तामसी पदाथ लेने से कसर जैसे रोग भी हो जाते
ह। पेट के अ दर मल जमा रहने के कारण आंत के
अ दर मल चपक जाता है, और आंतो मे छाले होने से
अ सर जैसे रोग हो जाते ह। श न ऐसे रोग को दे कर जो
कम जातक के ारा कये गये होते ह, उन कम का
भुगतान करता है। जैसा जातक ने कम कया है उसका
पूरा पूरा भुगतान करना ही श नदे व का काय है। श न क
म ण नीलम है। ाणी मा के शरीर म लोहे क मा ा
सब धातु से अ धक होती है, शरीर म लोहे क मा ा
कम होते ही उसका चलना फ़रना भर हो जाता है।
और शरीर म कतने ही रोग पैदा हो जाते ह। इस लये ही
इसके लौह कम होने से पैदा ए रोग क औष ध खाने
से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चा हये
क श न खराब चल रहा है। श न मकर तथा कु भ रा श
का वामी है। इसका उ च तुला रा श म और नीच मेष
रा श म अनुभव कया जाता है। इसक धातु लोहा,
अनाज चना, और दाल म उडद क दाल मानी जाती है।

भारत म तीन चम का रक श न स
पीठ
श न के चम का रक स पीठ म तीन पीठ ही मु य
माने जाते ह, इन स पीठ मे जाने और अपने कये
गये पाप क मा मागने से जो भी पाप होते ह उनके
अ दर कमी आकर जातक को फ़ौरन लाभ मलता है।
जो लोग इन चम का रक पीठ को कोरी क पना मानते
ह, उअ के त केवल इतना ही कहा जा सकता है, क
उनके पुराने पु य कम के अनुसार जब तक उनका
जीवन सुचा प से चल रहा तभी तक ठ क कहा जा
सकता है, भ व य मे जब क ठनाई सामने आयेगी, तो वे
भी इन स पीठ के लये ढूं ढते फ़रगे, और उनको भी
याद आयेगा क कभी कसी के त मखौल कया था।
अगर इन स पीठ के त मा यता नही होती तो आज
से साढे तीन हजार साल पहले से कतने ही उन लोग
क तरह बु मान लोग ने ज म लया होगा, और अपनी
अपनी करते करते मर गये ह गे.ले कन वे पीठ आज भी
य के य है और लोग क मा यता आज भी वैसी क
वैसी ही है।

महारा का शगणापुर गांव का स


पीठ

शगणापुर गांव मे श नदे व का अ त चम कार है। इस


गांव म आज तक कसी ने अपने घर म ताला नही
लगाया, इसी बात से अ दाज लगाया जा सकता है क
कतनी महानता इस स पीठ म है। आज तक के
इ तहास म कसी चोर ने आकर इस गांव म चोरी नही
क , अगर कसी ने यास भी कया है तो वह फ़ौरन ही
पी डत हो गया। दशन, पूजा, तेल नान, श नदे व को
करवाने से तुर त श न पीड़ा म कमी आजाती है,
ले कन वह ही यहां प ंचता है, जसके ऊपर श नदे व क
कृपा हो गयी होती है।

म य दे श के वा लयर के पास
श न रा म दर

महावीर हनुमानजी के ारा लंका से फ़का आ


अलौ कक श नदे व का प ड है, श नशचरी अमाव या
को यहां मेला लगता है। और जातक श न दे व पर तेल
चढाकर उनसे गले मलते ह। साथ ही पहने ये कपडे
जूते आ द वह पर छोड कर सम त द र ता को याग
कर और लेश को छोड कर अपने अपने घर को चले
जाते ह। इस पीठ क पूजा करने पर भी तुर त फ़ल
मलता है।

उ र दे श के कोशी के पास कौ कला


वन म स श न दे व का म दर

लोग क हंसी करने क आदत है। रामायण के पु पक


वमान क बात सुन कर लोग जो नही समझते थे, वे
हंसी कया करते थे, जब तक वयं रामे रम के दशन
नही कर, तब तक प थर भी पानी म तैर सकते ह,
व ास ही नही होता, ले कन जब रामकु ड के पास
जाकर उस प थर के दशन कये और सा ात प से
पानी म तैरता आ पाया तो सवाय नम कार करने के
और कुछ समझ म नही आया। जब भगवान ी कृ ण
का बंशी बजाता आ एक पैर से खडा आ प दे खा
तो समझ म आया क व ान ने श न दे व के बीज मं
म जो (शं) बीज का अ छर चुना है, वह अगर रेखां कत
प से सजा दया जाये तो वह और कोई नही वयं
श नदे व के प मे भगवान ी कृ ण ही माने जायगे.यह
स पीठ कोसी से छ: कलोमीटर र और न द गांव से
सटा आ को कला वन है, इस वन म ापर युग म
भगवान ी कृ ण जो सोलह कला स पूण ई र ह, ने
श न को कहावत और पुराण क कथा के अनुसार
दशन दया, और आशीवाद भी दया क यह वन उनका
है, और जो इस वन क प र मा करेगा, और श नदे व क
पूजा अचना करेगा, वह मेरी कृपा क तरह से ही श नदे व
क कृपा ा त कर सकेगा.और जो भी जातक इस श न
स पीठ के त दशन, पूजा पाठ का अ तमुखी होकर
स ावना से व ास करेगा, वह भी श न के कसी भी
उप व से त नही होगा.यहां पर श नवार को मेला
लगता है। जातक अपने अपने ानुसार कोई दं डवत
प र मा करता है, या कोई पैदल प र मा करता है, जो
लोग श न दे व का राजा दशरथ कृत तो का पाठ करते
ए, या श न के बीज मं का जाप करते ये प र मा
करते ह, उनको अ छे फ़ल क शी ा त हो जाती है।
श न क साढ़े साती
यो तष के अनुसार श न क साढे साती क मा यताय
तीन कार से होती ह, पहली लगन से सरी च लगन
या रा श से और तीसरी सूय लगन से, उ र भारत म च
लगन से श न क साढे साती क गणना का वधान
ाचीन काल से चला आ रहा है। इस मा यता के अनुसार
जब श नदे व च रा श पर गोचर से अपना मण करते
ह तो साढे साती मानी जाती है, इसका भाव रा श म
आने के तीस माह पहले से और तीस माह बाद तक
अनुभव होता है। साढे साती के दौरान श न जातक के
पअले कये गये कम का हसाब उसी कार से लेता है,
जैसे एक घर के नौकर को पूरी ज मेदारी दे ने के बाद
मा लक कुछ समय बाद हसाब मांगता है, और हसाब
म भूल होने पर या ग ती करने पर जस कार से सजा
नौकर को द जाती है उसी कार से सजा श न दे व भी
हर ाणी को दे ते ह। और यही नही जन लोग ने अ छे
कम कये होते ह तो उनको साढे शाती पुर कार भी दान
करती है, जैसे नगर या ाम का या शहर का मु खया
बना दया जाना आ द.श न क साढे साती के आ यान
अनेक लोग के ा त होते ह, जैसे राजा व मा द य,
राजा नल, राजा ह र , श न क साढे साती संत
महा मा को भी ता डत करती है, जो जोग के साथ
भोग को अपनाने लगते ह। हर मनु य को तीस साल मे
एक बार साढे साती अव य आती है, य द यह साढे साती
धनु, मीन, मकर, कु भ रा श मे होती है, तो कम
पीडाजनक होती है, य द यह साढे साती चौथे, छठे ,
आठव, और बारहव भाव म होगी, तो जातक को अव य
खी करेगी, और तीनो सुख शारी रक, मान सक, और
आ थक को हरण करेगी.इन साढे सा तय म कभी
भूलकर भी "नीलम" नही धारण करना चा हये, य द
कया गया तो वजाय लाभ के हा न होने क पूरी
स भावना होती है। कोई नया काम, नया उ ोग, भूल कर
भी साढे साती म नही करना चा हये, कसी भी काम को
करने से पहले कसी जानकार यो तषी से जानकारी
अव य कर लेनी चा हये.यहां तक क वाहन को भी
भूलकर इस समय म नही खरीदना चा हये, अ यथा वह
वाहन सुख का वाहन न होकर ख का वाहन हो
जायेगा.हमने अपने पछले प चीस साल के अनुभव मे
दे खा है क साढे साती म कतने ही उ ोगप तय का बुरा
हाल हो गया, और जो करोडप त थे, वे रोडप त होकर
एक गमछे म घूमने लगे.इस कार से यह भी नौभव
कया क श न जब भी चार, छ:, आठ, बारह मे वचरण
करेगा, तो उसका मूल धन तो न त होगा ही, कतना ही
जतन य न कया जाये.और श न के इस समय का
वचार पहले से कर लया गया है तो धन क र ा हो
जाती है। य द सावधानी नही बरती गई तो मा पछतावा
ही रह जाता है। अत: येक मनु य को इस समय का
श न आर भ होने के पहले ही जप तप और जो वधान
हम आगे बातायगे उनको कर लेना चा हये. श न दे व के
कोप से बचने के लए रावण ने उ ह अपनी कैद म पैर
से बांध कर सर नीचे क तरफ कये ए रखा था ता क
शनक व रावण पे न पड़े। आज भी कई ह
जाने अनजाने रावण क भां त तीका मक तौर पे श न
त प को कान या वाहन म पैर से बांध कर उ टा
लटकाते ह। हालां क पौरा णक सुझाव ी हनुमान क
भ करने का है, यो क श न दे व ने हनुमान जी को
वरदान दया था क हनुमान भ पर श न क व
नह पड़ेगी।

श न परमक याण क तरफ़ भेजता है


श नदे व परमक याण कता यायाधीश और जीव का
परम हतैषी ह माने जाते ह। ई र पारायण ाणी जो
ज म ज मा तर तप या करते ह, तप या सफ़ल होने के
समय अ व ा, माया से स मो हत होकर प तत हो जाते
ह, अथात तप पूण नही कर पाते ह, उन तप व क
तप या को सफ़ल करने के लये श नदे व परम कृपालु
होकर भावी ज म म पुन: तप करने क ेरणा दे ता है।
े काण कु डली मे जब श न को च मा दे खता है, या
च मा श न के ारा दे खा जाता है, तो उ च को ट का
संत बना दे ता है। और ऐसा पा रवा रक मोह से
वर होकर कर महान संत बना कर बैरा य दे ता है।
श न पूव ज म के तप को पूण करने के लये ाणी क
सम त मनोवृ य को परमा मा म लगाने के लये
मनु य को अ त र हत भाव दे कर उ च तरीय महा मा
बना दे ता है। ता क वतमान ज म म उसक तप या
सफ़ल हो जावे, और वह परमान द का आन द लेकर
भु दशन का सौभा य ा त कर सके.यह च मा और
श न क उपासना से सुलभ हो पाता है। श न तप करने
क ेरणा दे ता है। और श न उसके मन को परमा मा म
थत करता है। कारण श न ही नव ह म जातक के
ान च ु खोलता है।

ान च ुनम तेअ तु क यपा मज सूनवे.तु ो ददा स


बैरा यं ो हर स त णात.
तप से संभव को भी असंभव कया जा सकता है।
ान, धन, क त, ने बल, मनोबल, वग मु , सुख
शा त, यह सब कुच तप क अ न म पकाने के बाद
ही सुलभ हो पाता है। जब तक अ न जलती है, तब
तक उसम उ मा अथात गम बनी रहती है। मनु य
मा को जीवन के अंत तक अपनी श को थर
रखना चा हये.जीवन म श थलता आना असफ़लता
है। सफ़लता हेतु ग तशीलता आव यक है, अत:
जीवन म तप करते रहना चा हये.मनु य जीवन म
सुख शा त और समृ क वृ तथा जीवन के
अ दर आये लेश, ख, भय, कलह, े ष, आ द से
ाण पाने के लये दान, मं का जाप, तप, उपासना
आ द ब त ही आव यक है। इस कारण जातक चाहे
वह स य न हो ह चाल को दे ख कर दान, जप,
आ द ारा ह का अनु ह ा त कर अपने ल य क
ा त करे.अथात ह का शोध अव य करे.
जस पर ह परमकृपालु होता है, उसको भी इसी
तरह से तपाता है। पदम पुराण म राजा दसरथ ने
कहा है, श न ने तप करने के लये जातक को जंगल
म प ंचा दया.य द वह तप म ही रत रहता है, माया
के लपेट म नह आता है, तप छोड कर अ य काय
नही करता है, तो उसके तप को श न पूण कर दे ता है,
और इसी ज म म ही परमा मा के दशन भी करा दे ता
है। य द तप न करके और कुछ ही करने लगे यथा
आये थे ह र भजन क , ओटन लगे कपास, माया के
वशीभूत होकर कुच और ही करने लगे, तो श नदे व
उन पर कु पत हो जाते ह।
व णोमाया भगवती यया स मो हतं जगत.इस
गु मयी माया को जीतने हेतु तथा कंचन ए म
का मनी के प र याग हेतु आ मा को बारह चौदह
घंटे न य त उपासना, आराधना और भु च तन
करना चा हये.अपने ही अ त:करण से पू छना चा हये,
क जसके लये हमने संसार का याग कया, संक प
करके चले, क हम तु ह यायगे, फ़र भजन य नही
हो रहा है। य द च को एका करके शा त पूवक
अपने मन से ही करगे, तो न त ही उ र
मलेगा, मन को एका कर भजन पूजन म मन लगाने
से एवं जप ारा इ छत फ़ल ा त करने का उपाय
है। जातक को नव ह के नौ करोड मं का सव
थम जाप कर ले या करवा ले.
काशी म श नदे व ने तप या करने के बाद
ह व ा त कया था
क द पुराण के काशी ख ड म वृतांत आता है, क
छाया सुत ी श नदे व ने अपने पता भगवान सूय दे व से
कया क हे पता! म ऐसा पद ा त करना चाहता
ँ, जसे आज तक कसी ने ा त नही कया, हे पता !
आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना बडा हो, मुझे
आपसे अ धक सात गुना श ा त हो, मेरे वेग का
कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह दे व, असुर, दानव,
या स साधक ही य न हो.आपके लोक से मेरा लोक
सात गुना ऊंचा रहे. सरा वरदान म यह ा त करना
चाहता ँ, क मुझे मेरे आरा य दे व भगवान ीकृ ण के
य दशन ह , तथा मै भ ान और व ान से पूण
हो सकूं.श नदे व क यह बात सुन कर भगवान सूय स
तथा गदगद ए, और कह, बेटा ! मै भी यही चाहता ँ,
के तू मेरे से सात गुना अ धक श वाला हो.मै भी तेरे
भाव को सहन नही कर सकूं, इसके लये तुझे तप
करना होगा, तप करने के लये तू काशी चला जा, वहां
जाकर भगवान शंकर का घनघोर तप कर, और
शव लग क थापना कर, तथा भगवान शंकर से
मनवां छत फ़ल क ा त कर ले.श न दे व ने पता क
आ ानुसार वैसा ही कया, और तप करने के बाद
भगवान शंकर के वतमान म भी थत शव लग क
थापना क , जो आज भी काशी- व नाथ के नाम से
जाना जाता है, और कम के कारक श न ने अपने
मनोवां छत फ़ल क ा त भगवान शंकर से क , और
ह म सव प र पद ा त कया।

श न मं [3]
श न ह क पीडा से नवारण के लये पाठ, पूजा, तो ,
मं और गाय ी आ द को लख रहा ँ, जो काफ़
लाभकारी स ह गे. न य १०८ पाथ करने से चम कारी
लाभ ा त होगा।

व नयोग:-श ो दे वी त मं य स धु प ऋ ष:
गाय ी छं द:, आपो दे वता, श न ी यथ जपे
व नयोग:।
नीचे लखे गये को क के अ ग को उंग लय से
छु य:-
अथ दे हा ग यास:-श ो शर स ( सर), दे वी: ललाटे
(माथा).अ भषटय मुखे (मुख), आपो क ठे (क ठ),
भव तु दये ( दय), पीतये नाभौ (ना भ), शं क ाम
(कमर), यो: ऊव : (छाती), अ भ जा वो: (घुटने),
व तु गु फ़यो: (गु फ़), न: पादयो: (पैर)।
अथ कर यास:-श ो दे वी: अंगु ा याम नम:।अ भ ये
त जनी याम नम:। आपो भव तु म यमा याम
नम:.पीतये अना मका याम नम:। शं योर भ
क न का याम नम:। व तु न:
करतलकरपृ ा याम नम:।
अथ दया द यास:-श ो दे वी दयाय नम:।अ भ ये
शरसे वाहा.आपो भव तु शखायै वषट।पीतये
कवचाय ँ(दोनो क धे)।शं योर भ ने ाय वौषट।
व तु न: अ ाय फ़ट।
यानम:-नीला बर: शूलधर: करीट
गृद ् थत ासकरो धनु मान.चतुभुज: सूयसुत:
शा त: सदाअ तु म ं वरदोअ पगामी॥
श न गाय ी:- ॐ कृ णांगाय व महे र वपु ाय धीम ह
त : सौ र: चोदयात.
वेद मं :- ॐ ाँ स: भूभुव: व: औम श ो
दे वीर भ य आपो भव तु पीतये शं योर भ व तु न:।
औम व: भुव: भू: ां औम श न राय नम:।
जप मं  :- ॐ ां स: श न राय नम:। न य
२३००० जाप त दन।
नीला न समाभासम् र वपु म् यमा जम्।
छायामात ड स भूतम् तं नमा म शनै रम्

श न बीज म और अ ो रशतनामावली
[4]

श न बीज म –

ॐ ाँ सः शनै राय नमः ॥

श न अ ो रशतनामावली
ॐ शनै राय नमः ॥ ॐ शा ताय नमः ॥ ॐ
सवाभी दा यने नमः ॥ ॐ शर याय नमः ॥ ॐ
वरे याय नमः ॥ ॐ सवशाय नमः ॥ ॐ सौ याय नमः ॥
ॐ सुरव ाय नमः ॥ ॐ सुरलोक वहा रणे नमः ॥ ॐ
सुखासनोप व ाय नमः ॥ ॐ सु दराय नमः ॥ ॐ घनाय
नमः ॥ ॐ घन पाय नमः ॥ ॐ घनाभरणधा रणे नमः ॥
ॐ घनसार वलेपाय नमः ॥ ॐ ख ोताय नमः ॥ ॐ
म दाय नमः ॥ ॐ म दचे ाय नमः ॥ ॐ
महनीयगुणा मने नमः ॥ ॐ म यपावनपदाय नमः ॥ ॐ
महेशाय नमः ॥ ॐ छायापु ाय नमः ॥ ॐ शवाय नमः ॥
ॐ शततूणीरधा रणे नमः ॥ ॐ चर थर वभा वाय नमः
॥ ॐ अचंचलाय नमः ॥ ॐ नीलवणाय नमः ॥ ॐ
न याय नमः ॥ ॐ नीलांजन नभाय नमः ॥ ॐ
नीला बर वभूशणाय नमः ॥ ॐ न लाय नमः ॥ ॐ
वे ाय नमः ॥ ॐ व ध पाय नमः ॥ ॐ
वरोधाधारभूमये नमः ॥ ॐ भेदा पद वभावाय नमः ॥
ॐ व दे हाय नमः ॥ ॐ वैरा यदाय नमः ॥ ॐ वीराय
नमः ॥ ॐ वीतरोगभयाय नमः ॥ ॐ वप पर परेशाय
नमः ॥ ॐ व व ाय नमः ॥ ॐ गृ नवाहाय नमः ॥ ॐ
गूढाय नमः ॥ ॐ कूमागाय नमः ॥ ॐ कु पणे नमः ॥
ॐ कु सताय नमः ॥ ॐ गुणा ाय नमः ॥ ॐ गोचराय
नमः ॥ ॐ अ व ामूलनाशाय नमः ॥ ॐ
व ाव ा व पणे नमः ॥ ॐ आयु यकारणाय नमः ॥
ॐ आप नमः ॥ ॐ व णुभ ाय नमः ॥ ॐ व शने
नमः ॥ ॐ व वधागमवे दने नमः ॥ ॐ व ध तु याय
नमः ॥ ॐ व ाय नमः ॥ ॐ व पा ाय नमः ॥ ॐ
व र ाय नमः ॥ ॐ ग र ाय नमः ॥ ॐ व ांकुशधराय
नमः ॥ ॐ वरदाभयह ताय नमः ॥ ॐ वामनाय नमः ॥
ॐ ये ाप नीसमेताय नमः ॥ ॐ े ाय नमः ॥ ॐ
मतभा षणे नमः ॥ ॐ क ौघनाशक नमः ॥ ॐ
पु दाय नमः ॥ ॐ तु याय नमः ॥ ॐ तो ग याय
नमः ॥ ॐ भ व याय नमः ॥ ॐ भानवे नमः ॥ ॐ
भानुपु ाय नमः ॥ ॐ भ ाय नमः ॥ ॐ पावनाय नमः
॥ ॐ धनुम डलसं थाय नमः ॥ ॐ धनदाय नमः ॥ ॐ
धनु मते नमः ॥ ॐ तनु काशदे हाय नमः ॥ ॐ तामसाय
नमः ॥ ॐ अशेषजनव ाय नमः ॥ ॐ
वशेशफलदा यने नमः ॥ ॐ वशीकृतजनेशाय नमः ॥
ॐ पशूनां पतये नमः ॥ ॐ खेचराय नमः ॥ ॐ खगेशाय
नमः ॥ ॐ घननीला बराय नमः ॥ ॐ का ठ यमानसाय
नमः ॥ ॐ आयगण तु याय नमः ॥ ॐ नील छ ाय नमः
॥ ॐ न याय नमः ॥ ॐ नगुणाय नमः ॥ ॐ गुणा मने
नमः ॥ ॐ नरामयाय नमः ॥ ॐ न ाय नमः ॥ ॐ
व दनीयाय नमः ॥ ॐ धीराय नमः ॥ ॐ द दे हाय नमः
॥ ॐ द ना तहरणाय नमः ॥ ॐ दै यनाशकराय नमः ॥
ॐ आयजनग याय नमः ॥ ॐ ू राय नमः ॥ ॐ
ू रचे ाय नमः ॥ ॐ काम ोधकराय नमः ॥ ॐ
कल पु श ु वकारणाय नमः ॥ ॐ प रपो षतभ ाय
नमः ॥ ॐ परभी तहराय नमः ॥ ॐ
भ संघमनोऽभी फलदाय नमः ॥

इसका न य १०८ पाठ करने से श न स ब धी सभी


पीडाय समा त हो जाती ह। तथा पाठ कता धन धा य
समृ वैभव से पूण हो जाता है। और उसके सभी
बगडे काय बनने लगते है। यह सौ तशत अनुभूत है।

श न तो म् [5]
कोणोऽ तको रौ यमोऽथ ब ुः कृ णः श नः
पगलम दसौ रः।
न यं मृतो यो हरते य पीड़ा त मै नमः
ीर वन दनाय।।
सुराऽसुरा कपु षोरगे ा ग धव- व ाधर-प गा ।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
नरा नर ाः पशवो मृगे ाः व या ये क टपतं भृं ाः।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
दे शा गा ण वना न य सेना नवेशाः पुरप ना न।
पी त सव वषम थतेन त मै नमः
ीर वन दनाय।।
तलैयवैमाणगुडा दानैल हेन नीला बरदानतो वा।
ीणा त म ै नजवासरे च त मै नमः
ीर वन दनाय।।
यागकूले यमुनातटे च सर वतीपु डजले गुहायाम्।
यो यो गनां यानगताऽ प सू म त मै नमः
ीर वन दनाय।।
अ य दे शात् वगृहं व तद यवारे स नरः सुखी
यातः।
गृहा गतो यो न पुनः या त त मै नमः
ीर वन दनाय।।
ा वयंभूभुवन य य ाता हरीशो हरते पनाक ।
एक धा ऋ युजः साममू त त मै नमः
ीर वन दनाय।।
श य कं यः यतः भाते न यं सुपु ैः पशुबा धवै ।
पठे ु सौ यं भु व भोगयु ः ा ो त नवाणपदं
तद ते।।
कोण थः प लो ब ुः कृ णो रो ोऽ तको यमः।
सो रः शनै रो म दः प लादे न सं तुतः।।
एता न दश नामा न ात थाय यः पठे त्।
शनै रकृता पीड़ा न कदा चद् भ व य त।।
।। इ त ीदशरथकृत शनै र तो ं स पूणम् ।।

श न चालीसा [6]
जय गणेश ग रजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
द नन के ःख र क र, क जै नाथ नहाल।।
जय जय ी श नदे व भु, सुन वनय महाराज।
कर ँ कृपा हे र व तनय, राख जन क लाज।।

जय त जय त श नदे व दयाला, करत सदा भ न


तपाला,
चा र भुजा, तनु याम वराजै, माथे रतन मुकुट छ व
छाजै।
परम वशाल मनोहर भाला, टे ढ़ भृकु ट
वकराला,
कु डल वन चमाचम चमके, हये माल मु न म ण
दमकै।।

कर म गदा शूल कुठारा, पल बच कर अ र ह


संहारा,
पगल, कृ णो, छाया न दन, यम, कोण थ, रौ , ःख
भंजन।
सौरी, म द श न दश नामा, भानु पु पूज ह सब
कामा,
जा पर भु स ै जाह , रंक ं राव कर ण
माह ।।

पवत ँ तृण होइ नहारत, तृण ँ को पवत क र डारत,


राज मलत वन राम ह द हयो, कैकेइ ँ क म त ह र
ली हयो।
वन ँ म मृग कपट दखाई, मातु जानक गई चुराई,
लखन ह श वकल क रडारा, म चगा दल म
हाहाकारा।।

रावण क ग त-म त बौराई, रामच स बैर बढ़ाई,


दयो क ट क र कंचन लंका, ब ज बजरंग बीर क
डंका।
नृप व म पर तु ह पगु धारा, च मयूर नग ल गै
हारा,
हार नौलखा ला यो चोरी, हाथ पैर डरवायो तोरी।।

भारी दशा नकृ दखायो, तेल ह घर को


चलवायो,
वनय राग द पक महँ क ह , तब स भु ै सुख
द हय ।
हर नृप ना र बकानी, आप ँ भरे डोम घर पानी,
तैसे नल पर दशा सरानी, भूंजी-मीन कूद गई पानी।।

ी शंकर ह ग ो जब जाई, पारवती को सती कराई,


त नक वकलोकत ही क र रीसा, नभ उ ड़ गयो
गौ रसुत सीसा।
पा डव पर भै दशा तु हारी, बची ोपद हो त उघारी,
कौरव के भी ग त म त मारयो, यु महाभारत क र
डारयो।।

र व कहँ मुख महँ ध र त काला, लेकर कू द परयो


पाताला,
शेष दे व-ल ख वनती लाई, र व को मुख ते दयो
छु ड़ाई।
वाहन भु के सात सुजाना, हय, द गज, गदभ, मृग,
वाना,
ज बुक सह आ द नख धारी, सो फल यो तष कहत
पुकारी।।
गज वाहन ल मी गृह आव, हय ते सुख स प
उपजावै,
गदभ हा न करै ब काजा, सह स करै राज
समाजा।
ज बुक बु न क र डारै, मृग दे क ाण संहारै,
जब आव ह भु वान सवारी, चोरी आ द होय डर
भारी।।

तैस ह चा र चरण यह नामा, वण लौह चाँद अ


तामा,
लौह चरण पर जब भु आव, धन जन स प न
कराव।
समता ता , रजत शुभकारी, वण सवसुख मंगल
भारी,
जो यह श न च र नत गावै, कब ँ न दशा नकृ
सतावै।।
अ त नाथ दखाव लीला, कर श ु के न श ब ल
ढ ला,
जो प डत सुयो य बुलवाई, व धवत श न ह शां त
कराई।
पीपल जल श न दवस चढ़ावत, द प दान दै ब सुख
पावत,
कहत 'राम सु दर' भु दासा, श न सु मरत सुख होत
काशा।।

पाठ श न र दे व को, क ह वमल तैयार।


करत पाठ चालीस दन, हो भवसागर पार।।

।। इ त राम सु दर कृत ी श न चालीस स पूणम्


।।

शनव प र-कवचम् [7]


नीला बरो नीलवपुः क रीट गृध थत ासकरो
धनु मान्।
चतुभुजः सूयसुतः स : सदा ममता याद् वरदः
शा तः।।१ ।।
ा उवाच
ृणु वमृषयः सव श नपीड़ाहरं महत्। कवचं
श नराज य सौरे रदमु मम्।।२।।
कवचं दे वतावासं व प रसं कम्। शनै र ी तकरं
सवसौभा यदायकम्।।३ ।।
ॐ ीशनै रः पातु भालं मे सूयन दनः। ने े
छाया मजः पातु पातु कण यमानुजः।। ४ ।।
नासां वैव वतः पातु मुखं मे भा करः सदा।
न धक ठ मे क ठं भुजौ पातु महाभुजः।।५।।
क धौ पातु श न ैव करौ पातु शुभ दः। व ः पातु
यम ाता कु पा व सत तथा।।६ ।।
ना भ गृहप तः पातु म दः पातु क ट तथा। ऊ
ममाऽ तकः पातु यमो जानायुगं तथा।।७ ।।
पदौ म दग तः पातु सवा पातु प पलः।
अं ोपां ा न सवा ण र ेन् मे सूनय दनः।।८ ।।
इ येतत् कवचं द ं पठे त् सूयसुत य यः। न त य
जायते पीड़ा ीतो भव त सूयजः।। ९ ।।
य-ज म- तीय थो मृ यु थानगतोऽ प वा।
कल थो गतो वाऽ प सु ीत तु सदा श नः।।१०।।
अ म थे सूयसुते ये ज म तीयगे। कवचं पठते
न यं न पीड़ा जायते व चत्।।११।।
इ येतत् कवचं द ं सौरेय मतं पुरा। ादशा-ऽ म-
ज म थ-दोषा शायते सदा। ज मल न थतान दोषान्
सवा ाशयते भुः।।१२।।
।। इ त ी ा डपुराणे -नारदसंवादे
श नव प र-कवचं स पूणम् ।।
श न संबंधी रोग [8]
उ माद नाम का रोग श न क दे न है, जब दमाग म
सोचने वचारने क श न हो जाती है, जो
करता जा रहा होता है, उसे ही करता चला जाता है,
उसे यह पता नह है क वह जो कर रहा है, उससे
उसके साथ प रवार वाल के त बुरा हो रहा है, या
भला हो रहा है, संसार के लोग के त उसके या
कत ह, उसे पता नही होता, सभी को एक लकड़ी
से हांकने वाली बात उसके जीवन म मलती है, वह
या खा रहा है, उसका उसे पता नही है क खाने के
बाद या होगा, जानवर को मारना, मानव वध करने
म नही हचकना, शराब और मांस का लगातार योग
करना, जहां भी रहना आतंक मचाये रहना, जो भी
सगे स ब धी ह, उनको च ता दे ते रहना आ द उ माद
नाम के रोग के ल ण है।
वात रोग का अथ है वायु वाले रोग, जो लोग बना
कुछ अ छा खाये पये फ़ूलते चले जाते है, शरीर म
वायु कु पत हो जाती है, उठना बैठना भर हो जाता
है, श न यह रोग दे कर जातक को एक जगह पटक
दे ता है, यह रोग लगातार स ा, जुआ, लाटरी,
घोड़ादौड़ और अ य तुरंत पैसा बनाने वाले काम को
करने वाले लोग मे अ धक दे खा जाता है। कसी भी
इस तरह के काम करते व ल बी सांस
ख चता है, उस ल बी सांस के अ दर जो हारने या
जीतने क चाहत रखने पर ठं डी वायु होती है वह
शरीर के अ दर ही क जाती है, और अंग के अ दर
भरती रहती है। अ न तक काम करने वाल और
अनाचार काम करने वाल के त भी इस तरह के
ल ण दे खे गये है।
भग दर रोग गुदे म घाव या न जाने वाले फ़ोडे के प
म होता है। अ धक च ता करने से यह रोग अ धक
मा ा म होता दे खा गया है। च ता करने से जो भी
खाया जाता है, वह आंत म जमा होता रहता है,
पचता नही है, और च ता करने से उवासी लगातार
छोडने से शरीर म पानी क मा ा कम हो जाती है,
मल गांठ के प मे आमाशय से बाहर कडा होकर
गुदा माग से जब बाहर नकलता है तो लौह प ड क
भां त गुदा के छे द क मुलायम द वाल को फ़ाडता
आ नकलता है, लगातार मल का इसी तरह से
नकलने पर पहले से पैदा ए घाव ठ क नही हो पाते
ह, और इतना अ धक सं मण हो जाता है, क कसी
कार क ए ट बाय टक काम नही कर पाती है।
ग ठया रोग श न क ही दे न है। शीलन भरे थान का
नवास, चोरी और डकैती आ द करने वाले लोग
अ धकतर इसी तरह का थान चुनते है, च ता के
कारण एका त ब द जगह पर पडे रहना, अनै तक
प से संभोग करना, कृ म प से हवा म अपने
वीय को ख लत करना, ह त मैथुन, गुदा मैथुन,
कृ म साधनो से उंगली और लकडी, ला टक,
आ द से यौ न को लगातार खुजलाते रहना, शरीर म
जतने भी जोड ह, रज या वीय ख लत होने के समय
वे भयंकर प से उ े जत हो जाते ह। और हवा को
अपने अ दर सोख कर जोड के अ दर मैद नामक
त व को ख म कर दे ते ह, ह ी के अ दर जो सबल
त व होता है, जसे शरीर का तेज भी कहते ह, धीरे
धीरे ख म हो जाता है, और जातक के जोड के
अ दर सूजन पैदा होने के बाद जातक को उठने बैठने
और रोज के काम को करने म भयंकर परेशानी
उठानी पडती है, इस रोग को दे कर श न जातक को
अपने ारा कये गये अ धक वासना के प रणाम
क सजा को भुगतवाता है।
नायु रोग के कारण शरीर क नश पूरी तरह से अपना
काम नही कर पाती ह, गले के पीछे से दा हनी तरफ़
से दमाग को लगातार धोने के लये शरीर पानी
भेजता है, और बाय तरफ़ से वह ग दा पानी शरीर के
अ दर साफ़ होने के लये जाता है, इस दमागी सफ़ाई
वाले पानी के अ दर अवरोध होने के कारण दमाग
क ग दगी साफ़ नही हो पाती है, और जैसा
दमागी पानी है, उसी तरह से अपने मन को सोचने मे
लगा लेता है, इस कारण से जातक म दमागी बलता
आ जाती है, वह आंख के अ दर कमजोरी महसूस
करता है, सर क पीडा, कसी भी बात का वचार
करते ही मूछा आजाना मग , ह ट रया, उ ेजना,
भूत का खेलने लग जाना आ द इसी कारण से ही
पैदा होता है। इस रोग का कारक भी श न है, अगर
लगातार श न के बीज मं का जाप जातक से
करवाया जाय, और उडद जो श न का अनाज है, क
दाल का योग करवाया जाय, रोट मे चने का योग
कया जाय, लोहे के बतन म खाना खाया जाये, तो
इस रोग से मु मल जाती है।
इन रोग के अलावा पेट के रोग, जंघा के रोग,
ट बी, कसर आ द रोग भी श न क दे न है।
श न क साडेसाती म शरीर से पसीने क बदबू आने
लगती है। इस वजह से लोग र भागते है।

श न यं वधान [9]

श न यं
श न यं को स करके घर म था पत करने से हर
कार का श न दोष र होने लगता है और साथ ही श न
दे व क कृपा भी ा त होने लगती है। कु भ और मकर
राशी के वामी गृह श न दे व है और वे अपनी राशी म
थोड़े कमजोर होते है इस लए कु भ और मकर राशी के
जातक को स श न यं घर म था पत कर उसक
पूजा अव य करनी चा हए। जस जातक क कुंडली म
ल न म श न है उ ह भी श न यं ारा श न आराधना
करनी चा हए। जो जातक श न क साढ़े साती और
ढईया से परेशान है उ ह भी स श न यं ारा लाभ
अव य ा त होता है। इन सबके अ त र जीवन म जब
हर तरफ से ःख और पीड़ाएं आने लग तो ऐसे म श न
आराधना करने से लाभ अव य मलता है।

श न संबंधी व तुएँ
नीलम, नी लमा, नीलम ण, जामु नया, नीला कटे ला,
आ द श न के र न और उपर न ह। अ छा र न श नवार
को पु य न म धारण करना चा हये.इन र न मे कसी
भी र न को धारण करते ही चालीस तशत तक फ़ायदा
मल जाता है। [10]

श न क जुड़ी बू टयां

ब छू बूट क जड़ या शमी जसे छ करा भी कहते है


क जड़ श नवार को पु य न म काले धागे म पु ष
और ी दोनो ही दा हने हाथ क भुजा म बांधने से श न
के कु भाव म कमी आना शु हो जाता है।

श न स ब धी ापार और नौकरी
काले रंग क व तुय, लोहा, ऊन, तेल, गैस, कोयला,
काबन से बनी व तुय, चमडा, मशीन के पाट् स, पे ोल,
प थर, तल और रंग का ापार श न से जुडे जातक
को फ़ायदा दे ने वाला होता है। चपरासी क नौकरी,
ाइवर, समाज क याण क नौकरी नगर पा लका वाले
काम, जज, वक ल, राज त आ द वाले पद श न क
नौकरी मे आते ह।

श न स ब धी दान पु य

पु य, अनुराधा, और उ राभा पद न के समय म


श न पीडा के न म वयं के वजन के बराबर के चने,
काले कपडे, जामुन के फ़ल, काले उड़द, काली गाय,
गोमेध, काले जूत,े तल, भस, लोहा, तेल, नीलम, कुलथी,
काले फ़ूल, क तूरी सोना आ द दान क व तु श न के
न म दान क जाती ह।
श न स ब धी व तु क दानोपचार
वध

जो जातक श न से स ब धत दान करना चाहता हो वह


उपरो लखे न को भली भां त दे ख कर, और
समझ कर अथवा कसी समझदार यो तषी से पूंछ कर
ही दान को करे.श न वाले न श के दन कसी यो य
ाहमण को अपने घर पर बुलाये.चरण पखारकर आसन
दे , और सु च पूण भोजन करावे, और भोजन के बाद
जैसी भी ा हो द णा दे . फ़र ाहमण के दा हने
हाथ म मौली (कलावा) बांधे, तलक लगावे. जसे दान
दे ना है, वह अपने हाथ म दान दे ने वाली व तुय लेव,े जैसे
अनाज का दान करना है, तो कुछ दाने उस अनाज के
हाथ म लेकर कुछ चावल, फ़ूल, मु ा लेकर ाहमण से
संक प पढावे, और कहे क श न ह क पीडा के
नवाणाथ ह कृपा पूण पेण ा तयथम अहम तुला
दानम ाहमण का नाम ले और गो का नाम बुलवाये,
अनाज या दान साम ी के ऊपर अपना हाथ तीन बार
घुमाकर अथवा अपने ऊपर तीन बार घुमाकर ाहमण
का हाथ दान साम ी के ऊपर रखवाकर ाहमण के हाथ
म सम त साम ी छोड दे नी चा हये.इसके बाद ाहमण
को द णा सादर वदा करे.जब ह चार तरफ़ से
जातक को घेर ले, कोई उपाय न सूझ,े कोई मदद करने
के लये सामने न आये, मं जाप करने क इ छाय भी
समा त हो गय ह , तो उस समय दान करने से राहत
मलनी आर भ हो जाती है। सबसे बडा लाभ यह होता
है, क जातक के अ दर भगवान भ क भावना का
उदय होना चालू हो जाता है और वह मं आ द का जाप
चालू कर दे ता है। जो भी ह तकूल होते ह वे अनुकूल
होने लगते ह। जातक क थ त म सुधार चालू हो जाता
है। और फ़र से नया जीवन जीने क चाहत पनपने
लगती है। और जो श यां चली गय होती ह वे वापस
आकर सहायता करने लगती है।

श न ह के ारा परेशान करने का


कारण

दमाग मे कई बार वचार आते ह क श न के पास


केवल परेशान करने के ही काम ह, या श न दे व के और
कोई काम नही ह जो जातक को बना कसी बात के
चलती ई ज दगी म परेशानी दे दे ते ह, या श न से
केवल हमी से श ुता है, जो कतने ही उ टे सीधे काम
करते ह, और दन रात गलत काम म लगे रहते ह, वे
हमसे सुखी होते ह, आ खर इन सबका कारण या है।
इन सब ा तय के उ र ा त करने के त जब
समा जक, धा मक, राजनै तक, आ थक, और समाज से
जुडे सभी कार के थ को खोजा तो जो मला वह
आ यच कत कर दे ने वाला त य था। आज के ही नही
पुराने जमाने से ही दे खा और सुना गया है जो भी
इ तहास मलता है उसके अनुसार जीव को संसार म
अपने ारा ही मो के लये भेजा जाता है। कृ त का
काम संतुलन करना है, संतुलन म जब बाधा आती है, तो
वही संतुलन ही परेशानी का कारण बन जाता है।
लगातार आबाद के बढने से और जी वका के साधन
का अभाव पैदा होने से येक मानव लगातार भागता
जा रहा है, भागने के लये पहले पैदल व था थी, मगर
जस कार से भागम भाग जीवन म त पधा बढ
व ान क उ त के कारण तेज दौडने वाले साधन का
व तार आ, जो री पहले साल म तय क जाती थी,
वह अब मनट म तय होने लगी, यह सब केवल भौ तक
सुख के त ही हो रहा है, जसे दे खो अपने भौ तक
सुख के लये भागता जा रहा है। कसी को कसी कार
से सरे क च ता नही है, केवल अपना वाथ स
करने के लये कसी कार से कोई यह नही दे ख रहा है
क उसके ारा कये जाने वाले कसी भी काम के ारा
कसी का अ हत भी हो सकता है, स द य प रवार के
सद य को नही दे ख रहे ह, प रवार प रवार को नही
दे ख रहे ह, गांव गांवो को नही दे ख रहे ह, शहर शहर को
नही दे ख रहे ह, ा त ा त को नही दे ख रहे ह, दे श
दे श को नही दे ख रहा है, अ तरा ीय भाग भाग के
चलते केवल अपना ही वाथ दे खा और सुना जा रहा है।
इस भागमभाग के चलते मान सक शा त का पता नही
है क वह कस कौने म बैठ कर सस कयां ले रही है,
जब क सबको पता है क भौ तकता के लये जस
भागमभाग म मनु य शा मल है वह केवल क को ही
दे ने वाली है। जस हवाई जहाज को खरीदने के लये
सारा जीवन लगा दया, वही हवाई जहाज एक दन पूरे
प रवार को साथ लेकर आसमान से नीचे टपक पडेगा,
और जस प रवार को अपनी पी ढय दर पी ढय वंश
चलाना था, वह णक भौ तकता के कारण समा त हो
जायेगा.रहीमदास जी ने ब त पहले ही लख दया था
क -गो धन, गज धन बा ज धन, और रतन धन खान,
जब आवे संतोष धन, सब धन धू र समान.तो जस
संतोष क ा त हमे करनी है, वह हमसे कोस र है।
जस अ त र क या ा के लये आज कर डो अरब
खच कये जा रहे ह, उस अंत र क या ा हमारे ऋ ष
मु न समा ध अव था मे जाकर पूरी कर लया करते थे,
अभी ताजा उदाहरण है क अमे रका ने अपने मंगल
अ भयान के लये जो यान भेजा था, उसने जो त वीर
मंगल ह से धरती पर भेज , उनमे एक त वीर को दे ख
कर अमे रक अंत र वभाग नासा के वै ा नक भी
सकते म आ गये थे। वह त वीर हमारे भारत म पूजी
जाने वाली मंगल मू त हनुमानजी के चेहरे से मलती थी,
उस त वीर म साफ़ दखाई दे रहा था क उस चेहरे के
आस पास लाल रंग क म फ़ैली पडी है। जब क हम
लोग जब से याद स भाले ह, तभी से कहते और सुनते
आ रहे ह, लाल दे ह लाली लसे और ध र लाल लंगरू , ब
दे ह दानव दलन, जय जय क प सूर.आप भी नासा क
बेब साइट फ़ेस आफ़ द मास को दे ख कर व ास कर
सकते ह, या फ़ेस आफ़ मास को गूगल सच से खोज
सकते ह। मै आपको बता रहा था क श न अपने को
परेशानी य दे ता है, श न हम तप करना सखाता है, या
तो अपने आप तप करना चालू कर दो या श न
जबरद ती तप करवा लेगा, जब पास म कुछ होगा ही
नह , तो अपने आप भूखे रहना सीख जाओगे, जब
दमाग म लाख च ताय वेश कर जायगी, तो अपने
आप ही भूख यास का पता नही चलेगा.तप करने से ही
ान, व ान का बोध ा त होता है। तप करने का
मतलब कतई सं यासी क तरह से समा ध लगाकर बैठने
से नही है, तप का मतलब है जो भी है उसका मान सक
प से लगातार एक ही कारण को कता मानकर मनन
करना.और उसी काय पर अपना यास जारी
रखना.श न ही जगत का जज है, वह कसी भी ग ती
क सजा अव य दे ता है, उसके पास कोई माफ़ नाम क
चीज नही है, जब पेड बबूल का बोया है तो बबूल के
कांटे ही मलगे आम नही मलगे, धोखे से भी अगर चीट
पैर के नीचे दब कर मर गई है, तो चीट क मौत क
सजा तो ज र मलेगी, चाहे वह हो कसी भी प
म.जातक जब जब ोध, लोभ, मोह, के वशीभूत होकर
अपना ाकृ तक संतुलन बगाड लेता है, और जानते ए
भी क अ याचार, अनाचार, पापाचार, और भचार
क सजा ब त क दायी है, फ़र भी अनी त वाले काम
करता है तो रज ट तो उसे पहले से ही पता होते ह,
ले कन संसार क नजर से तो बच भी जाता है, ले कन
उस संसार के यायाधीश श न क नजर से तो बचना
भगवान शंकर के बस क बात नह थी तो एक तु छ
मनु य क या बसात है। तो जो काम यह समझ कर
कये जाते ह क मुझे कौन दे ख रहा है, और गलत काम
करने के बाद वह कुछ समय के लये खुशी होता है,
अहंकार के वशीभूत होकर वह मान लेता है, मै ही सव व
ँ, और ई र को नकारकर खुद को ही सव नय ता मन
लेता है, उसक यह याय का दे वता श न ब त बुरी ग त
करता है। जो शा क मा यता को नकारता आ,
मयादा का उलंघन करता आ, जो केवल अपनी ही
चलाता है, तो उसे समझ लेना चा हये, क वह दं ड का
भागी अव य है। श नदे व क ब त ही सू म है,
कम के फ़ल का दाता है, तथा परमा मा क आ ा से
जसने जो काम कया है, उसका यथावत भुगतान करना
ही उस दे वता का काम है। जब तक कये गये अ छे या
बुरे कम का भुगतान नही हो जाता, श न उसका पीछा
नह छोडता है। भगवान श न दे व परम पता आन द
क द ी कृ ण च द के परम भ ह, और ी कृ ण
भगवान क आ ा से ही ाणी मा केर कम का भुगतान
नरंतर करते ह। यथा-श न राखै संसार म हर ाणी क
खैर। ना का से दो ती और ना का से बैर ॥

स दभ
1. ी श नदे व का श न अमाव या पर पूजन व ध ।
श नधाम। अ भगमन त थ: ३० सतंबर २०१२
2. श नधाम । भगवान श न का उ व
3. "श न मं " . m-hindi.webdunia.com.
अ भगमन त थ 3 May 2019.
4. "श न अ ो रशतनामावली" .
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4 मई 2019.

बाहरी क ड़याँ
श न दे व् प रचय
श न दे व् का ज म

इ ह भी दे ख
शन
श नवार त कथा

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=श न_( यो तष)&oldid=4179861" से लया गया

Last edited 3 days ago by Hellllllllllh…

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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