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हम अक्सर सुनते हैं कि ‘ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे ’ या फिर ‘सारा खेल तो ग्रह नक्षत्रों का

है ’… यानी किस्मत को मानने वालों के लिए ग्रह-नक्षत्र बहुत मायने रखते हैं। वैदिक ज्योतिष
शास्त्र तो पूरी तरह ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित है । आखिर ये ग्रह नक्षत्र हैं क्या और कैसे इनसे
जुड़ा है हमारी किस्मत का कनेक्शन।

क्या हैं नक्षत्र

दरअसल हम जब अंतरिक्ष विज्ञान या अंतरिक्ष शास्त्र की बात करते हैं तो चंद्रमा या तमाम ग्रहों
की गति या चाल से बनने वाले समीकरणों की बात होती है । अंतरिक्ष में चंद्रमा की गति और
पथ्
ृ वी के चारों ओर घूमने की या परिक्रमा करने की प्रक्रिया अनवरत चलती है । चंद्रमा पथ्
ृ वी की
पूरी परिक्रमा 27.3 दिनों में करता है और 360 डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के 27
समह
ू ों के बीच से गुजरता है । चंद्रमा और सितारों के समह
ू ों के इसी तालमेल और संयोग को
नक्षत्र कहा जाता है । 

जिन 27 सितारों के समह


ू के बीच से चंद्रमा गज
ु रता है वही अलग अलग 27 नक्षत्र के नाम से
जाने जाते हैं। यानी हमारा पूरा तारामंडल इन्हीं 27 समह
ू ों में बंटा हुआ है । और चंद्रमा का हर
एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है । किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस
नक्षत्र में होगा या सितारों के जिस समह
ू से होकर गज
ु र रहा होगा वही उसका जन्म नक्षत्र माना
जाता है । और यही आपकी किस्मत की चाभी होती है ।

कौन-कौन से हैं 27 नक्षत्र

अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मग


ृ शिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु
नक्षत्र, पष्ु य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पर्वा
ू फाल्गन
ु ी नक्षत्र, उत्तराफाल्गन
ु ी नक्षत्र, हस्त
नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनरु ाधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मल
ू नक्षत्र,
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद
नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रे वती नक्षत्र।
राशियाँ उन बारह बराबर भागों को कहा जाता है जिन पर ज्योतिषी आधारित है । इन बारह तारा
समह
ू को ज्योतिष के हिसाब से महत्वपर्ण
ू माना जाता हैं। ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां बताई
गई हैं। सभी राशियों के लिए अलग-अलग नाम अक्षर निर्धारित किए गए हैं। कंु डली के अनस
ु ार
यदि किसी व्यक्ति का नाम रखा गया है तो उसके नाम का पहला अक्षर जैसा होता है वैसी ही
उसकी राशि मानी जाती है । इन्हीं राशियों पर सभी का भत
ू -भविष्य और वर्तमान निर्भर करता
है । इन राशियों का स्वरूप अलग-अलग होता है । व्यक्ति की राशि के आधार पर ही उसके
स्वभाव का आंकलन किया जाता है । ज्योतिष विद्या में राशि को बहुत ही महत्वपर्ण
ू स्थान दिया
जाता है । ज्योतिष आचार्य हर किसी का भाग्य उसकी राशि और ग्रह के अनुसार बताते है ।
राशिफल द्वारा भविष्य जीवन में होने वाली घटनाओ का अनम
ु ान हम पहले से ही लगा सकते
हैं। राशिफल निकालते समय पंचांग की गणना और सटीक खगोलीय विश्लेषण किया जाता है ।

आपकी राशि आपके नाम का पहला अक्षर

मेष राशि (Aries) चू, चे, चो, ला, ली, ल,ू ले, लो, आ
राशि स्वरूप : में ढा जैसा।
राशि स्वामी : मंगल।

वष
ृ राशि (Taurus) ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो
राशि स्वरूप : बैल जैसा।
राशि स्वामी : शुक्र।

मिथुन राशि (Gemini) का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह


राशि स्वरूप : स्त्री-पुरुष आलिंगनबद्ध।
राशि स्वामी : बुध।

कर्क राशि (Cancer) ही, हू, हे , हो, डा, डी, डू, डे, डो
राशि स्वरूप : केकड़ा।
राशि स्वामी : चंद्रमा।

सिंह राशि (Leo) मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे
राशि स्वरूप : शेर जैसा।
राशि स्वामी : सूर्य।

कन्या राशि (Virgo) ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो


आपकी राशि आपके नाम का पहला अक्षर

राशि स्वरूप : कन्या।


राशि स्वामी : बुध।

तल
ु ा राशि (Libra) रा, री, रू, रे , रो, ता, ती, तू, ते
राशि स्वरूप : तराजू जैसा।
राशि स्वामी : शुक्र।

वॄश्चिक राशि (Scorpius) तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू
राशि स्वरूप : बिच्छू जैसा।
राशि स्वामी : मंगल।

धनु राशि (Sagittarius) ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे
राशि स्वरूप : धनुष उठाए हुए।
राशि स्वामी : बह
ृ स्पति।

मकर राशि (Capricornus) भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी
राशि स्वरूप : मगर जैसा।
राशि स्वामी : शनि।

कुम्भ राशि (Aquarius) गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा
राशि स्वरूप : घड़े जैसा।
राशि स्वामी : शनि।

दी, द,ू थ, झ, ञ, दे , दो, चा, ची


मीन राशि (Pisces) राशि स्वरूप : मछली जैसा।
राशि स्वामी : बह
ृ स्पति।

ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि एवं स्थान का परिणाम


कंु डली में सभी ग्रह अपने से सातवें भाव पर दृष्टि रखते हैं। हालाँकि इनमें बह
ृ स्पति ग्रह अपने
से पाँचवें और नौवें भाव पर भी दृष्टि रखता है । जबकि शनि तत
ृ ीय और दसवें भाव पर भी
दृष्टि रखता है । इसके अलावा मंगल चौथे व आठवें भाव को दे खता है । वहीं राहु और केतु
क्रमशः पंचम एवं नवम भाव में पर्ण
ू दृष्टि रखते हैं।
यदि कंु डली में चंद्रमा, बुध और शुक्र जिस स्थान पर होते हैं, उसके परिणामों में वद्धि
ृ करते हैं।
इसी प्रकार बह
ृ स्पति ग्रह जिस स्थान पर बैठता है उस भाव के फलों में कमी करता है , लेकिन
यह जिस भाव पर दृष्टि रखता है उसके परिणामों में वद्धि
ृ करता है । इसके अलावा मंगल ग्रह
जिस भाव में बैठता है और जिस भाव को दे खता है , उन दोनों भावों में इसके नकारात्मक
परिणाम पड़ते हैं। हालाँकि यह अपने घर में अच्छे परिणाम दे ता है ।

ज्योतिष में ग्रह भचक्र में स्थित राशियों के स्वामी होते हैं। परं तु राहु और केतु छाया ग्रह होने
के कारण किसी भी राशि के स्वामी नहीं हैं। इन ग्रहों की नीच और उच्च राशि भी होती है । जैसे
-

ग्रह स्वामित्व राशि उच्च राशि नीच राशि

सर्य
ू सिंह मेष तल
ु ा

चंद्रमा कर्क वष
ृ भ वश्चि
ृ क

मंगल मेष, वश्चि


ृ क मकर कर्क

बध
ु मिथन
ु , कन्या कन्या मीन

गुरु धनु, मीन कर्क मकर

शुक्र वष
ृ भ, तल
ु ा मीन कन्या

शनि मकर, कंु भ तल


ु ा मेष

राहु - मिथुन धनु

केतु - धनु मिथन


धार्मिक दृष्टि से ग्रहों का महत्व


भारत सदियों से दनि
ु या के लिए धर्म और आध्यात्म का केन्द्र रहा है । यहाँ की वैदिक/सनातन
परं परा ने विश्व के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है । यहाँ व्याप्त हिन्द ू संस्कृति में हर
उस सजीव और निर्जीव वस्तु को महत्व दिया गया है जो मानव कल्याण के लिए बनी हो।
उसमें पेड़-पौधो, जीवन-जंतु, जल, ज़मीन और जंगल आदि सब शामिल है । इनके व्यापक महत्व
को समझते हुए वैदिक काल में ऋषि-मुनियों ने इन्हें धर्म से जोड़ दिया और आज इस परं परा के
अनयु ायी इनकी भिन्न-भिन्न प्रकार से पज
ू ा-आराधना करते हैं। ऐसे ही यहाँ ग्रहों को दे वता
स्वरूप मानकर उनकी पज
ू ा की जाती है ।
नवग्रहों में सूर्य ग्रह सूर्य दे वता का स्वरूप माना गया है । जबकि चंद्रमा का संबंध भगवान शिव
से है । वहीं मंगल ग्रह को ब्रह्मा, विष्णु और महे श तीनों का स्वरूप माना गया है । ऐसे ही बुध
और बह
ृ स्पति ग्रह का संबंध क्रमशः भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से है । शुक्र ग्रह को माँ लक्ष्मी
जी से जोड़कर दे खा जाता है । शनि ग्रह शनि दे व के प्रतीक हैं और राहु का संबंध भैरो बाबा से
हैं जबकि केतु का नाता भगवान गणेश जी से जोड़ा जाता है । यहाँ मंदिरों में नवग्रहों की पूजा
की जाती है । दे श में आपको कई जगह शनि दे व के मंदिर मिल जाएंगे।

ग्रहों का स्वभाव
सूर्य ग्रह - वैदिक ज्योतिष में सूर्य को ऊर्जा, पराक्रम, आत्मा, अहं , यश, सम्मान, पिता और
राजा का कारक माना गया है । ज्योतिष के नवग्रह में सूर्य सबसे प्रधान ग्रह है । इसलिए इसे ग्रहों
का राजा भी कहा जाता है । पाश्चात्य ज्योतिष में फलादे श के लिए सूर्य राशि को आधार माना
जाता है । यदि जिस व्यक्ति की कंु डली में सूर्य की स्थिति प्रबल हो अथवा यह शुभ स्थिति में
बैठा हो तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव से
जातक को जीवन में मान-सम्मान और सरकारी नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति होती है । यह
अपने प्रभाव से व्यक्ति के अंदर नेतत्ृ व क्षमता का गुण विकसित करता है । मानव शरीर में
मस्तिष्क के बीचो-बीच सूर्य का स्थान माना गया है ।

चंद्र ग्रह - नवग्रहों में चंद्रमा को मन, माता, धन, यात्रा और जल का कारक माना गया है ।
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा जन्म के समय जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि
कहलाती है । हिन्द ू ज्योतिष में  राशिफल के लिए चंद्र राशि को आधार माना जाता है । यदि जिस
व्यक्ति की जन्म कुण्डली में चंद्रमा शुभ स्थिति में बैठा हो तो उस व्यक्ति को इसके अच्छे
परिणाम प्राप्त होते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है और उसका
मन अच्छे कार्यों में लगता है । जबकि चंद्रमा के कमज़ोर होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव
या डिप्रेशन जैसी समस्याएँ रहती हैं। मनुष्य की कल्पना शक्ति चंद्र ग्रह से ही संचालित होती
है ।

मंगल ग्रह - ज्योतिष विज्ञान में मंगल को शक्ति, पराक्रम, साहस, सेना, क्रोध, उत्तेजना, छोटे
भाई, एवं शस्त्र का कारक माना जाता है । इसके अलावा यह युद्ध, शत्र,ु भमि
ू , अचल संपत्ति,
पुलिस आदि का भी कारक होता है । गरुण पुराण के अनुसार मनुष्य के नेत्रों में मंगल ग्रह का
वास होता है । यदि किसी व्यक्ति का मंगल अच्छा हो तो वह स्वभाव से निडर और साहसी
व्यक्ति होगा और उसे युद्ध में विजय प्राप्त होगी। परं तु यदि किसी जातक की जन्म कंु डली में
मंगल अशभ
ु स्थिति में बैठा हो तो जातक को नकारात्मक परिणाम मिलेंगे। जैसे- व्यक्ति छोटी-
छोटी बातों से क्रोधित होगा तथा वह लड़ाई-झगड़ों में भी शामिल होगा। ज्योतिष में मंगल ग्रह
को क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा गया है । वहीं मंगल दोष के कारण जातकों को वैवाहिक जीवन में
समस्या का सामना करना पड़ता है ।

बुध ग्रह - वैदिक ज्योतिष में बुध को बुद्धि, तर्क , गणित, संचार, चतुरता, मामा और मित्र का
कारक माना गया है । बुध एक तटस्थ ग्रह है । इसलिए यह जिस भी ग्रह की संगति में आता है
उसी के अनुसार जातक को इसके परिणाम प्राप्त होते हैं। यदि कुण्डली मे बुध की स्थिति
कमज़ोर होती है तो जातक को गणित, तर्क शक्ति, बुद्धि और संवाद में समस्या का सामना करना
पड़ता है । जबकि स्थिति मजबत ू होने पर जातक को उपरोक्त क्षेत्र में बहुत अच्छे परिणाम दे खने
को मिलते हैं। बुध ग्रह मनुष्य के हृदय में बसता है । ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह का प्रिय रं ग
हरा है ।

बह
ृ स्पति ग्रह - ज्योतिष में बह
ृ स्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है । गुरु को शिक्षा,
अध्यापक, धर्म, बड़े भाई, दान, परोपकार, संतान आदि का कारक माना जाता है । जिस व्यक्ति
की कंु डली में गुरु की स्थिति मजबूत हो तो वह व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी होता है । इसके
अलावा उस व्यक्ति का स्वभाव धार्मिक होता है और उसे जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती
है । वहीं यदि बहृ स्पति कंु डली में कमज़ोर हो तो उपरोक्त चीज़ों में इसका नकारात्मक असर
पड़ता है । बहृ स्पति ग्रह को पीला रं ग प्रिय है ।

शक्र
ु ग्रह - शक्र
ु एक चमकीला ग्रह है । यह विवाह, प्रेम, सौन्दर्य, रोमांस, काम वासना,
विलासिता, भौतिक सख
ु -सवि
ु धा, पति-पत्नी, संगीत, कला, फ़ैशन, डिज़ाइन आदि का कारक होता
है । विशेष रूप से परु
ु षों की कंु डली में शक्र
ु को वीर्य का कारक माना गया है । यदि किसी जातक
की कंु डली में शुक्र की स्थिति मजबत
ू हो तो जातक को जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-
सवि
ु धाओं का लाभ प्राप्त होता है । यदि व्यक्ति विवाहित है तो उसका वैवाहिक जीवन सुखी
व्यतीत होता है । वहीं यदि शुक्र कंु डली में कमज़ोर हो तो जातक को उपरोक्त क्षेत्र में अशुभ
परिणाम दे खने को मिलते हैं। शुक्र के लिए गल
ु ाबी रं ग शुभ होता है ।
शनि ग्रह - शनि पापी ग्रह है और इसकी चाल सबसे धीमी है । अतः सभी ग्रहों में से इसके
गोचर की अवधि बड़ी होती है । शनि गोचर के दौरान एक राशि में क़रीब दो से ढ़ाई वर्ष तक
रहता है । इसलिए व्यक्ति को इसके परिणाम दे र से प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में शनि को आयु,
दख
ु , रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक
माना जाता है । यदि किसी जातक की कंु डली शनि दोष हो तो उसे उपरोक्त क्षेत्र में हानि का
सामना करना पड़ता है । ज्योतिष में शनि का बहुत बड़ा प्रभाव होता है । व्यक्ति के शरीर में
नाभि का स्थान शनि का होता है । शनि के लिए काले रं ग के वस्त्र धारण किए जाते हैं।
राहु ग्रह - राहु एक छाया ग्रह है । ज्योतिष में राहु कठोर वाणी, जुआ, यात्राएँ, चोरी, दष्ु टता,
त्वचा के रोग, धार्मिक यात्राएँ आदि का कारक होता है । यदि जिस व्यक्ति की कंु डली राहु अशभ ु
स्थान पर बैठा हो तो उसकी कंु डली में राहु दोष पैदा होता है और उसे कई क्षेत्रों समस्याओं का
सामना करना पड़ता है । इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक
कष्टों का सामना करना पड़ता है । अपने स्वभाव के कारण ही राहु को ज्योतिष में एक पापी ग्रह
माना गया है । राहु का स्थान मानव मख
ु में होता है । राहु-केतु दोनों का सर्य
ू और चंद्रमा से बैर
है और इस बैर के कारण ही ये दोनों सर्य
ू और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं।
केतु ग्रह - राहु के समान केतु भी पापी ग्रह है । ज्योतिष में इसे किसी भी राशि का स्वामित्व
प्राप्त नहीं है । वैदिक ज्योतिष के अनुसार केतु को तंत्र-मंत्र, मोक्ष, जाद,ू टोना, घाव, ज्वर और
पीड़ा का कारक माना गया है । यदि व्यक्ति की जन्मपत्रिका में केतु अशुभ स्थान पर बैठा हो तो
जातक को विभिन्न क्षेत्रों हानि का सामना करना पड़ता है । जबकि केतु यदि कंु डली प्रबल हो तो
यह व्यक्ति को सांसारिक दनि
ु या से दरू ले जाता है । इसके प्रभाव से व्यक्ति गूढ़ विज्ञान में
अधिक रुचि लेता है । मानव शरीर में केतु का स्थान व्यक्ति के कण्ठ से लेकर हृदय तक होता
है । राहु-केतु दोनों के प्रभाव से व्यक्ति की कंु डली में  काल सर्प दोष बनता है ।

यहाँ आपने विस्तार से ज्योतिष में ग्रहों के महत्व को समझा है । इसलिए आप यह जान गए
होंगे कि हमारे जीवन में नवग्रहों का कितना व्यापक महत्व है । ग्रह हमारे जीवन के हर एक क्षेत्र
को कैसे परिभाषित करते हैं। अर्थात यह कहा जा सकता है कि जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों के
प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता है ।

ज्योतिष में ग्रहों का महत्व


वैदिक परं परा में व्यक्ति का नाम उसकी राशि के अनुरूप रखा जाता है । जबकि राशि की
जानकारी जातक की जन्म कंु डली से प्राप्त होती है और जन्म कंु डली से ग्रह तथा नक्षत्र की
स्थिति का पता चलता है । इसलिए हिन्द ू ज्योतिष के मुताबिक ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन
पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है । इसे उस व्यक्ति की जन्म कुण्डली से भली प्रकार से समझा जा
सकता है । ज्योतिष में नवग्रह कंु डली के 12 भावों के कारक होते हैं। इसे आप निम्न तालिका
की सहायता से अच्छे से समझ सकते हैं -

ग्रह भाव कारकत्व

सूर्य प्रथम, नवम, दशम


चंद्रमा चतर्थ

मंगल तत
ृ ीय, षष्टम

बुध चतुर्थ, दशम

बहृ स्पति द्वितीय, पंचम, नवम, दशम, एकादश

शुक्र सप्तम, द्वादश

शनि षष्टम, अष्टम, दशम

पंडित रूप चंद्र जोशी ने लाल किताब को निम्लिखित पांच भागों में विभाजित किया है :-

 लाल किताब के फरमान : लाल किताब के इस प्रथम भाग को साल 1939 में प्रकाशित
किया गया था।
 लाल किताब के अरमान : इस किताब के द्वितीय भाग को 1940 में प्रकाशित किया
गया।
 लाल किताब (गुटका) : साल 1941 में लाल किताब के इस तीसरे भाग का प्रकाशन हुआ
था।
 लाल किताब : इस किताब के चौथे भाग को 1942 में प्रकाशित किया गया था।
 लाल किताब : लाल किताब के पांचवें और आखिरी संस्करण को साल 1952 में प्रकाशित
किया गया।
 1.पहले भाव में सूर्य उच्च और शनि नीच का होता है ।
 2.दस
ू रे भाव में चन्द्र उच्च का होता है लेकिन यहां किसी ग्रह का उच्च-नीच का भेद
नहीं।
 3.तीसरे भाव में राहु उच्च और केतु नीच का माना गया है ।
 4.चौथे भाव में गरु
ु उच्च का और मंगल नीच माना गया।
 5.पांचवें भाव में सभी ग्रहों का प्रभाव बराबर का रहता है , न कोई उच्चा का और न ही
कोई नीच का होता है ।
 6.छठे भाव में बध
ु को उच्च का और शक्र
ु एवं केतु को नीच का माना गया।
 7.सातवें भाव में शनि व राहु उच्च और सूर्य नीच का माना गया है ।
 8.आठवें भाव में मंगल उच्च का और चन्द्र नीच का माना गया है ।
 9.नवें भाव में केतु उच्च का और राहु नीच का माना गया है ।
 10.दसवें भाव में मंगल उच्च का और गरु ु नीच का माना गया है ।
 11.ग्यारहवें भाव में भी कोई उच्च और नीच का नहीं होता है ।
 12.बारहवें भाव में शक्र
ु व केतु उच्च के और बध
ु व राहु नीच माने गए हैं।
 पक्के घर का उपचार नहीं होता:-
 उपर उच्च और नीच के बारे में बताया गया है । यह तो सभी जानते हैं कि उच्च ग्रहों के
उपाय करने की जरूरत नहीं, लेकिन नीच के ग्रहों का उपाय करना चाहिए। हालांकि इसमें
भी यह जानना जरूरी है कि कोई ग्रह अपने भाव में बैठकर नीच का तो नहीं है । कोई
ग्रह अपने पक्के घर या भाव में तो नहीं बैठा है ।


 जैसे सूर्य का पक्का घर पहला, चन्द्र का चौथा, मंगल का तीसरा एवं आठवां और बुध
एवं शक्र
ु का सातवां घर पक्का घर है । इसी तरह गुरु के चार पक्के घर होते हैं- दस
ू रा,
पांचवां, नौवां और बारहवां। शनि के दो पक्के घर हैं- आठवां और दसवां। राहु का पक्का
घर बारहवां और केतु का छठा घर पक्का माना जाता है । कहते हैं कि इनके उपाय करने
से पहले किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से अपनी कंु डली की जांच करा लेना चाहिए।

 सोए हुए भाव या ग्रह को जगाना होता है :-
 ग्रहों के उपाय इसलिए किए जाते हैं कि जीवन में सख
ु , शांति, समद्धि
ृ और सफलता
मिले। इसीलिए नीच ग्रहों का उपाय किया जाता है लेकिन इसके अलावा भी ऐसे ग्रह होते
हैं जो कि अच्छे होकर भी सोए होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुछ भाव या घर में ग्रह
नहीं होते हैं। इसका मतलब यह कि वह भाव और उसका ग्रह सोया हुआ है । ऐसे में जो
भाव या ग्रह सोए होते हैं अर्थात जिनका हमारे जीवन में कोई अच्छा या बरु ा प्रभाव नहीं
होता है उसको पज
ू ा या उपचार द्वारा जगाया जाता हैं। इसलिए जगाते हैं ताकि उसका
हमें कोई लाभ मिले।

 लाल किताब का विशेषज्ञ सोए हुए ग्रहों की दृष्टि दे खकर उन्हें जगाने के उपचार बताते
हैं। कौनसे भाव को किस ग्रह के द्वारा जगाया जाता इसे जानने से पहले यह जानना
जरूरी होता है कि उसे दे खे जाने वाले भाव के अन्दर कौनसा ग्रह स्थापित है । हो सकता
है कि किसी ग्रह को जगाने पर अनर्थ भी हो जाए। इसलिए हमेशा भाव को सही रूप से
समझ कर ही जगाना चाहिए।


 ग्रह स्वामी या मालिक ग्रह
 जैसे मेष और वश्चि
ृ क राशि का स्वामी ग्रह मंगल है । उसी तरह लाल किताब के अनुसार
पहले भाव के लिए मंगल, दस
ू रे भाव के लिए चन्द्रमा, तीसरे भाव के लिए बुध, चौथे
भाव के लिए चन्द्रमा, पांचवें भाव के लिए सूर्य, छठे भाव के लिए राहु, सातवें भाव के
लिए शुक्र, आठवें भाव के लिए चन्द्रमा, नवें भाव के लिए गुरु, दसवें भाव के लिए शनि,
ग्यारहवें भाव के लिए गुरु और बारहवें भाव के लिए केतु की पूजा पाठ और उपचार आदि
करने चाहिए।

 जैसे गुरु दसवें भाव में नीच का हो रहा है तो शनि का उपाय करना होगा। दस
ू रा यह कि
अपने घर से पज
ू ाघर हटा दे ना चाहिए। इसी प्रकार अन्य भावों पर यह नियम लागू होता
है । मतलब यह कि यदि गुरु महोदय शनि के घर में बैठे हैं तो उनको शनि ही ठीक कर
सकते हैं। हालांकि इसके लिए और भी तरीके के उपाय करना होते हैं, क्योंकि कंु डली में
यह भी दे खा होगा कि कौनसा ग्रह किधर दे ख रहा है और उसकी दसवें भाव पर कैसी
दृष्टि है । क्योंकि यदि गुरु का साथी ग्रह गुरु की मदद कर रहा है तो फिर उपचार बदल
जाएगा। तो यह थी ग्रहों और भावों के उपचार के नियम।

 उपचार का अर्थ यहां उपाय से। कुछ लोग इसे टोटके कहते हैं जो कि गलत है । हालांकि
यहां यह स्पष्ट कर दे ना जरूरी है कि टोने किसी बरु े कार्य या स्वार्थ की पर्ति
ू हे तु होते हैं
जिनका तंत्र से संबंध होता है और टोटके किसी अच्छे कार्य या ग्रहों के उपचार होतु होते
हैं। यहां प्रचलन से लाल किताब के टोटके कहा जाने लगा है जिसमें ग्रहों के उपचार के
बारे में ही जानकारी होती है और किसी अन्य के बारे में नहीं।

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