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प्रश्न शास्त्र

प्रश्न शास्त्र का आधार क्या है ? प्रश्न कंु डली बनाने के लिए तिथि, समय और स्थान कौन सा लिया जाना चाहिए और
क्यों? प्रश्न कंु डली के विश्लेषण हे तु किन-किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? प्रश्न विचार हे तु कृष्णमूर्ति पद्धति के
सिद्धांत क्या है और यह पद्धति किस हद तक सक्षम है ?
एक व्यक्ति अपना भाग्य उचित क्रिया प्रयासों कर्मों से बदल सकता है । भाग्य कभी भी निर्धारित नहीं है । हमारे
वर्तमान कर्म ही भाग्य को अच्छे कर्मफल की सीमा में बदल सकते हैं। प्रश्न शास्त्र की आवश्यकता एवं आधार प्रश्न
शास्त्र की आवश्यकता जब महसूस की गयी तब जातक का जन्म समय, जन्म तिथि तथा जन्म स्थान उपलब्ध नहीं
हो पाता था तथा शद्ध
ु कंु डली का अभाव पाया गया ऐसे में सही फल कथन मश्कि
ु ल था। ज्योतिष, वेदांग के छः अंगों
में से एक है जिसमें शिक्षा, कला, निरूक्त, छं द, व्याकरण तथा ज्योतिष है । ज्योतिष में गणित, संहिता तथा होरा तीन
स्कन्ध है । 1. प्रथम स्कंध - गणित- इसमें खगोल विज्ञान और ज्योतिष गणित है । 2. द्वितीय स्कंध - संहिता-इसमें
प्राकृतिक तथा भूकंप, मौसम, अकाल महामारी है । 3. तत
ृ ीय स्कंध - होरा- इसमें जातक की जन्मकालीन फलित
ज्योतिष का वर्णन होता है । बाद में  ज्योतिष को छः स्कन्धों में बांटा गया जो गणित, संहिता, होरा, शकुन, मुहूर्त और
प्रश्न है । 4. चतुर्थ स्कन्ध - इसमें शकुन या पर्वा
ू भास, भविष्य में घटने वाली घटनाओं तथा तथ्यों का प्रभाव का
समावेश है । 5. पंचम स्कन्ध: इसमें मुहूर्त (नक्षत्र, तिथि, वार, योग करण) अनुकूल समय ज्ञान करने के लिए 6. षष्ठ
स्कंध: इसमें प्रश्न, घटना विचार के समय कंु डली से जानकारी ले लेना शामिल है । इस प्रकार प्रश्न शास्त्र छठा स्कंध
है , इसमें घटना की सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है , लेकिन जन्मकंु डली का महत्व भी कम नहीं है । जब
जन्मकंु डली में कोई घटना प्रत्याशित हो और प्रश्न कंु डली में उसकी पुनरावत्ति
ृ होती हो तो घटित होना निश्चित है ।
जन्मकंु डली और प्रश्नकंु डली का आंतरिक संबंध पिछले तथा वर्तमान कर्मों की स्थिति दर्शाता है । जन्मकंु डली पर
ग्रहों का शुभ प्रभाव पिछले जन्म के अच्छे कर्मों की ओर संकेत करता है । जबकि अशुभ प्रभाव बुरे कर्मों को बताता
है । जन्मकंु डली में अच्छी दशा और प्रश्न कंु डली में बुरा समय वर्तमान जीवन में प्रबल अशुभ कर्मों को दर्शाता है ।
यदि जन्मकंु डली में एक अशुभ दशा और प्रश्न कंु डली में अच्छा समय वर्तमान शुभ कार्यों को दर्शाता है । दोनों
कंु डलियों का अच्छा, बुरा समय पूर्व जन्म के अच्छे बरु े कार्यों का संबंध है ।
प्रश्न कंु डली के लिए तिथि, समय स्थान क्या हो ? प्रश्नकंु डली बनाते समय तिथि, समय और स्थान के लिये ठीक
उसी सिद्धांत को अपनाया जाना चाहिए जिस प्रकार किसी जातक की कंु डली बनायी जाती है । जन्मकंु डली किसी भी
दिन, समय और स्थान पर बनायी जाये लेकिन उसके लिये जन्म तिथि, समय और स्थान वही लिया जाता है जो
वास्तविक होता है । इसी प्रकार प्रश्नकंु डली बनाते समय भी प्रश्न का जन्म समय, तिथि और स्थान वही लिये जाने
चाहिये जिस समय जातक के मन में प्रश्न जन्म लेता है । क्योंकि यह वह समय और स्थान होता है जब ग्रह
जातक के मन को प्रश्न के लिये स्पंदित करता है । उसके पश्चात प्रश्नकंु डली बनाने के लिये गणना क्रिया किसी भी
समय की जा सकती है । परं तु प्रश्न का समय और स्थान पहले वाला ही लिया जाना चाहिए, जब प्रश्न ने जन्म
लिया था।
वास्तव में जब जातक विदे श में हो और प्रश्न दिल्ली में पूछ रहा हो तो हमें प्रश्नकंु डली बनाने के लिये वहीं की
तिथि, समय और स्थान लेना चाहिए, जिस प्रकार जन्मकंु डली का विवरण लिया जाता है । कोई व्यक्ति भारत में
किसी और शहर से प्रश्न पत्र द्वारा पूछता है तो भी प्रश्न की तिथि, समय और स्थान जातक को लिखकर भेजनी
चाहिए कि कब प्रश्न उसके दिमाग में आया। और जब जातक साक्षात प्रश्न पूछने आया हो तो प्रश्नकंु डली के लिये
तिथि, समय और स्थान तत्काल का लिया जाना चाहिए।
जहां तक संभव हो, एक बार में सिर्फ एक प्रश्न का ही उत्तर दिया जाना चाहिए। परं तु आपात स्थिति में जब
प्रश्नकर्ता एक से अधिक प्रश्नों का उत्तर जानना चाहे तो निम्नलिखित विधि से एक से अधिक प्रश्नों का उत्तर
दिया जा सकता है ।
 प्रथम प्रश्न लग्न से
 दस
ू रा प्रश्न चंद्रमा से
 तीसरा प्रश्न सूर्य से
 चैथा प्रश्न बह
ृ स्पति से
 पांचवा प्रश्न बुध/शुक्र में से जो बली हो।
 छठा प्रश्न बुध/शुक्र में से जो बलहीन हो।

सामान्यतया एक प्रश्नकर्ता के विविध प्रश्नों का उत्तर विभिन्न भाव कार्येश और कारक से कर सकते हैं। यदि
दस
ू रा प्रश्नकर्ता भी उसी समय (लग्न के समय) आ जाये तो हमें उस प्रश्न को चंद्र लग्न से विश्लेषित करना
चाहिए। यदि तीसरा प्रश्नकर्ता आता है तो हम उसके सभी प्रश्नों का उत्तर सूर्य लग्न से दे सकते हैं और इसी
तरीके से बह
ृ स्पति, शुक्र और बुध जो बली हो के अनुसार कर सकते हैं।
प्रश्न शास्त्र में विश्लेषण के लिए दृष्टियां तथा योग द्रष्टियां: प्रश्न शास्त्र में ताजिक दृष्टियां भी होती हैं जिनका
विवरण निम्न प्रकार है । 1. प्रत्यक्ष मित्र दृष्टि - 5, 9 2. गुप्त मित्र दृष्टि - 3, 11 3. प्रत्यक्ष शत्रु दृष्टि 1, 7 4. गुप्त
शत्रु दृष्टि 4, 10 5. सम/तटस्थ दृष्टि - 2, 12, 6, 8 ग्रहों की एक-दस
ू रे से 3, 5, 9 तथा 11 स्थानों पर दृष्टियां मित्र
दृष्टियां मानी गयी हैं तथा 1, 4, 7 और 10 स्थानों पर शत्रु दृष्टियां तटस्थ/सम दृष्टियों को दृष्टि नहीं माना गया
है । ग्रहों का दीप्तांश ग्रहों के प्रभाव क्षेत्र को दीप्तांश कहते हैं। इसमें दोनों ग्रहों की एक ही राशि में होना
अनिवार्य नहीं है । इन ग्रहों का एक दस
ू रे से 3, 5, 9, 11 स्थिति में होने पर मित्र तथा 1, 4, 7, 10 होने पर शत्रु

दृष्टि में दीप्तांश सीमा में होने पर माने जाते हैं प्रत्येक ग्रह की दीप्तांश इस प्रकार है । योग: लग्नेश की अन्य
ग्रह के साथ ताजिक दृष्टि तीन प्रकार की होती है । इशराफ, इत्थसाल और पूर्ण इत्थसाल। इशराफ: यह पिछली
घटना को सूचित करता है कि कुछ ना कुछ घटित हो चुका है । चंद्रमा का कार्येश के साथ इशराफ हो तब
व्यक्ति मन में कुछ निश्चित कर ज्योतिषी के पास आता है । इत्थसाल: यह भविष्य की ओर तथा पूर्ण इत्थसाल
वर्तमान को दर्शाता है । इकबाल योग: जब सभी ग्रह केंद्र तथा पणफर भावों में हो तो इकबाल योग बनता है । यह
योग शभ
ु परिणाम दे ता है । इसका प्रयोग जन्म कंु डली, वर्ष कंु डली तथा प्रश्न कंु डली में समान रूप से किया जा
सकता है । प्रश्न कंु डली में 8 भाव में कोई भी ग्रह कार्य सिद्धि में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन्दव
ु ार योग: जब सभी
ग्रह आपोक्लिम भावों (3, 6, 9, 12) में स्थित हो तो यह योग बनता है । ऐसा योग प्रतिकूल परिणाम दे ता है
लेकिन 9 वें भाव में ग्रह शभ
ु फल प्रदान करता है । इत्थसाल योग: जब शीघ्र गति ग्रह, मंद गति ग्रह के पीछे हो
तथा दोनों ग्रहों यानि कि लग्नेश और कार्येश में परस्पर ताजिक दृष्टि हो तथा दोनों ग्रह अपने दीप्तांश सीमा
की औसत में हो जैसे सूर्य के दीप्तांश 150 और मंगल के 80 हैं। इन दोनों की औसत 15$8 »1105’ है ये दोनों
ग्रह अन्य शर्तों को पूरा करने पर एक दस
ू रे से 1105’ के भीतर है अतः इत्थसाल योग बनता है । यह भविष्य में
घटित होने वाली घटना को सूचित करता है । लग्नेश तथा अष्टमेश बीच इत्थसाल विपत्तियों बाधाओं को दर्शाता
है । इशराफ योग: इसक निर्माण तब होता है जब शीघ्र गति ग्रह मंद गति ग्रह से 10 से आगे हो, दोनों की परस्पर
दृष्टि हो, दोनों ग्रह अपने दीप्तांश सीमा की औसत में हो। यह योग पिछली घटनाओं को दर्शाता है , यह प्रतिकूल
योग है । नक्त योग: जब लग्नेश और कार्येश के बीच कोई परस्पर दृष्टि न हो और ये दोनों एक तीसरे ग्रह से
संयक्
ु त हो तथा औसत दीप्तांश सीमा में हो, यहां तीसरा ग्रह तीव्र गति का होना चाहिए। रद्द योग: इसमें लग्नेश
और कार्येश का इत्थसाल हो इनमें से कोई एक वक्री, अस्त, नीच का 6, 8, 12 भाव में हो तो घटना का संबंध
दर्शाता है । प्रश्न कंु डली में विभिन्न भाव से भूत, वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान इस प्रकार किया जाता है । भाव
1, 2, 3, 4 वर्तमान का ज्ञान 5, 6, 7, 8 भविष्य का ज्ञान 9, 10, 11, 12 भूत का ज्ञान प्रश्न कंु डली का परीक्षण करते
समय निम्न बिंदओ
ु ं को दृष्टिगत रखा जाना चाहिए: लग्न में उदित राशियों के अनुसार शीर्षोदय राशि - 3, 5, 6,
7, 8, 11 फल - कार्य सिद्धि के लिए शुभ पष्ृ ठोदय राशि - 1, 2, 4, 9, 10 फल - समस्याएं, बाधाएं, असफलता उभयोदय
राशि - 12 फल - मध्यम फल, प्रयासों से सफलता प्रश्न में उदित चर लग्न वर्तमान स्थिति में परिवर्तन दर्शाती है ।
जैसे यात्रा के होने, बीमारी के ठीक होने की स्थिति बताती है । चर लग्न पर शुभ ग्रहों की दृष्टि से परिवर्तन
निश्चित होता है । अशभ
ु ग्रहों की दृष्टि होने पर मात्र आशा ही होती है , पर्ण
ू होना यह निश्चित नहीं होता। प्रश्न
में स्थिर लग्न किसी भी परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं बताती जैसे - रोगी है तो ठीक नहीं होगा, यात्रा नहीं
होगी इत्यादि। Û प्रश्न में उदित लग्न द्विस्वभाव राशि हो तो कार्य में दे री तथा कठिनाइयां बताती है साथ ही
इसके अंश 0-15’ हो तो स्थिति स्थिर होती है यदि लग्न 150-300 के बीच हो तब इसे चर लग्न के निकटतम
समझा जाये और उसके अनुसार परिणाम दे गा। द्विस्वभाव लग्न दोनों ही स्थिति में दे री एवं प्रयासों के बाद
सफलता दर्शाती है बशर्ते की विश्लेषण में कार्य सिद्धि लगती हो। स्थिर कार्य में स्थिर लग्न सदै व शुभ होती है ।
जैसे व्यवसाय नौकरी, मकान खरीदना आदि। प्रश्न के लिए लग्न में शुभ ग्रह अच्छा होता है तथा लग्न को बल
प्रदान करता है , जबकि अशुभ ग्रह प्रश्न के लिए अच्छा नहीं होता। लग्न में एक अशुभ ग्रह विवाद, झगड़ा,
न्यायिक मामले में अच्छा माना जाता है । प्रश्न कंु डली में प्रश्नकर्ता लग्न होता है तथा सप्तम भाव विपक्ष का
होता है । लग्न में बैठा ग्रह सप्तम भाव को तथा सप्तम भाव में बैठा ग्रह लग्न को शुभ बना दे ता है । लग्नेश
तथा कार्येश का संबंध होना अति आवश्यक लग्नेश लग्न का राशि स्वामी तथा कार्येश संबंधित भाव का स्वामी,
जिस भाव से संबंधित प्रश्न है , इनकी दृष्टि या यति
ु भाव फल दे ने में अनक
ु ू ल मानी जाती है । - लग्नेश और
कार्येश, लग्न में स्थित हो। - लग्नेश और कार्येश कार्य भाव में स्थित हो। - लग्नेश और कार्येश में परिवर्तन हो। -
लग्नेश लग्न को तथा कार्येश कार्य भाव को दे खे। - कार्येश लग्न में स्थित होकर लग्नेश को दे खता हो। - लग्नेश
कार्य भाव में स्थित होकर कार्येश को दे खता हो। - लग्नेश कार्य भाव को और कार्येश लग्न पर दृष्टि रखता हो।
- लग्नेश कार्येश को तथा कार्येश लग्नेश को परस्पर दृष्टि में हो। - चंद्रमा की लग्नेश, कार्येश से युति हो। -
लग्नेश तथा कार्येश एक दस
ू रे के निकटस्थ ताजिक दृष्टि में हो। प्रश्न की सफलता - प्रश्नकर्ता की इच्छाओं की
सामान्य जानकारी हो। - बली भाव की स्थिति दे खें। - लग्न में शीर्षोदय राशि हो। - लग्न, लग्नेश, चंद्रमा बली हो
तथा शुभ भावों में हो। - लग्न, लग्नेश शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट हो। - केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रह हो अशुभ ग्रह अन्य
भाव में हो तथा 8 वां तथा 12 वां भाव ग्रह रहित हो। - अशभ
ु ग्रह 3, 6, 11 भाव में शभ
ु होते हैं। - भाव, भावेश
तथा कारक को शुभ होना चाहिए। - लग्नेश तथा कार्येश शुभ कर्तरी हो। - शुभ ग्रह 3, 5, 7, 11 में अच्छा परिणाम
दे ते हैं। - शुभ ग्रह मिथुन, कन्या, तुला, कंु भ राशि में होना शुभ । - छठे भाव में शुभ ग्रह शुभ होते हैं। - उच्च,
स्वक्षेत्री या मूल त्रिकोण राशि में ग्रह उस भाव के शुभ फल दे ने में सक्षम होता है । - नौकरी व्यवसाय के लिए
दशम/ सप्तम में शुभ ग्रह अच्छा होता है । इन शुभ ग्रहों की दृष्टि भी अच्छी होती है । 1, 2, 5 भाव में शुभ ग्रह,
सम्मान और समद्धि
ृ दायक है । प्रश्न की असफलता - पष्ृ ठोदय लग्न को अशभ
ु ग्रह दे खे तो अशभ
ु - लग्न लग्नेश
तथा चंद्रमा बलहीन हो तो अशुभ - 6, 8, 12 भाव में लग्नेश प्रश्न की असफलता दर्शाता है । 6, 8, 12 भाव के
स्वामी लग्न में हो तब भी असफलता। - भाव का स्वामी 6, 8, 12 स्थान पर अपने से चला जाये तो भी अशुभ। -
चंद्रमा स्थित राशि स्वामी 6, 8, 12 में हो तो भी अशभ
ु । - झगड़े न्यायालयों के मामलों को छोड़कर अन्य मामलों
में लग्न में क्रूर ग्रह शुभ नहीं। - लग्न से तथा संबंधित भाव से केंद्र त्रिकोण में अशुभ ग्रहों की स्थिति उस भाव
के कारकत्व को नष्ट करती है । 8 वें तथा 12 वें भाव पर अशुभ प्रभाव व दृष्टि प्रश्न के लिए प्रतिकूल है । - लग्न,
लग्नेश, कार्य भाव, कार्येश पाप कर्तरी हो तो असफलता। - नीच, अस्त, शत्रक्ष
ु ेत्री ग्रह उस भाव का कारकत्व खत्म
करता है । - ग्रह युद्ध के पराजित ग्रह प्रतिकूल परिणाम दे ते हैं। - सप्तम भाव का उच्च, मूल त्रिकोण अथवा
स्वराशि का ग्रह यदि कम अंश का या कमजोर हो तो शभ
ु परिणाम नहीं दे पाता। - लग्न में चंद्रमा शभ
ु नहीं। -
जन्म लग्न से अष्टम लग्न, प्रश्न लग्न हो तो अशुभ, इसी प्रकार जन्म के चंद्र से प्रश्न चंद्र अष्टम अशुभ होता
है । - लग्नेश कार्येश का संबंध न होना, प्रश्न की असफलता है । - लग्न, लग्नेश तथा कार्येश पर वक्री ग्रह की दृष्टि
अशभ
ु होती है । - वक्री ग्रह जिस भाव में स्थित है उसके कारकत्व को नष्ट करता है । वक्री ग्रह: जब वक्री ग्रह
शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ ग्रह हो तो कार्य की पन
ु रावत्ति
ृ दे ती है , जो प्रश्न के लिए शुभ है । जब वक्री ग्रह
शुभ भाव का स्वामी होकर अशुभ ग्रह हो तो कार्य की पन
ु रावत्ति
ृ दे ती है । बाधाएं तनाव दे कर शुभ है । जब वक्री
ग्रह 6, 8, 12 भाव का स्वामी होकर शुभ ग्रह हो तो प्रश्न की अनुकूलता समस्या और बाधाओं के कारण संदिग्ध
है । जब वक्री ग्रह 6, 8, 12 भाव का स्वामी होकर अशभ
ु ग्रह हो तो तनाव, बाधाएं कार्य में असफलता दे ते हैं। कार्य
भाव का विश्लेषण लग्न मानकर भी करना चाहिए। विश्लेषण के सिद्धांत लग्नेश तथा कार्येश को संबंध बनाने
वाले ग्रह का विश्लेषण में विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए साथ ही कंु डली में बनने वाले ताजिक योगों, उनकी
दृष्टि, वक्री ग्रह, नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्री तथा 6, 8, 12 भाव के स्वामी ग्रहों, राहु तथा केतु ग्रह के निकटतम अंशों की
युति दृष्टि भी फलकथन। प्रश्न कंु डली विश्लेषण में महत्वपूर्ण है जिसका वर्णन ऊपर अंकित किया जा चुका है ।
चंद्रमा का महत्वपूर्ण स्थान है जो एक प्रश्न की मूर्ति की ओर एक मानसिक अभिरूचि तथा इच्छा को सूचित
करता है । यदि लग्नेश तथा कार्येश के बीच चंद्रमा का दृष्टि या युक्ति संबंध हो तो सकारात्मक परिणाम सामने
आते हैं। इन तीनों का संगम त्रिवेणी का उदगम स्थल बन जाता है । कृष्णमूर्ति पद्धति कृष्णमूर्ति पद्धति के
अंतर्गत आरूढ़ निश्चित करने के लिए प्रश्नकर्ता से 1 से 249 के बीच की कोई संख्या पछ
ू कर आरूढ़ राशि
सुनिश्चित की जाती है । इसकी सुविधा के लिए कृष्णमूर्ति जी द्वारा एक सारणी तैयार की गयी है । जिसमें राशि
स्वामी, नक्षत्र स्वामी तथा उप स्वामी को 12 राशियों को 249 भागों में विभक्त किया गया है । प्रश्न विचार हे तु
कृष्णमर्ति
ू पद्धति के कुछ मल
ु भत
ू सिद्धांत निम्नांकित हैं। प्रत्येक नक्षत्र के विंशोत्तरी दशा के अनप
ु ात में नौ भाग
किये गये हैं जिन्हें सब अथवा उप-नक्षत्र कहा जाता है । अधिक सूक्ष्म अध्ययन करने हे तु इन उप-नक्षत्रों के भी
नौ-नौ भाग किये जाते हैं। इन्हें सब -सब अथवा उप-उप नक्षत्र कहा जाता है । उप-उप-नक्षत्र का उपयोग विशेषकर
युगल जातकों की कंु डलियों के अध्ययन में किया जाता है । भारतीय भाव मध्य पद्धति के विपरीत कृष्णमूर्ति
भाव प्रारं भ पद्धति प्रतिपादित करते हैं। भाव साधन करने हे तु इन्होंने पाश्चात्य पद्धति को स्वीकार करते हुए
‘राफेल्स टे बल आॅफ हाउसेस’’ के उपयोग पर बल दिया है । प्रश्न के स्वरूप के आधार पर किन भावों का
अध्ययन किया जाना चाहिए? इस विषयक निश्चित मत स्पष्ट कर दिया गया है । उदाहरणार्थ-वैवाहिक प्रश्नों के
लिए द्वितीय, सप्तम तथा एकादश माता के लिए चतुर्थ एवं पिता के लिए नवम तथा दशम भावों का अध्ययन
किया जाता है । उप-नक्षत्र स्वामी कंु डली के आधार पर प्राप्त होने वाले फल दर्शाता है । भावस्थ तथा भावेश ग्रह
फल प्राप्ति के मार्गों का संकेत दे ते हैं। उप-उप नक्षत्र स्वामी के सहयोग से ज्ञात होता है कि कोई घटना घटित
होगी या नहीं। इस पद्धति में निश्चित अयनांशों का उपयोग करने की सलाह दी जाती है । अयनांशों की वार्षिक
गति 50.2388475 विकला मानी गई है । यथासंभव कृष्णमूर्ति अयनांशों का ही उपयोग करना श्रेयस्कर होता है ।
किसी भी ग्रह को पूर्णतः शुभ अथवा पूर्णतः अशुभ नहीं माना गया है । सभी ग्रह दोनों ही प्रकार के प्रभाव
उत्पन्न कर सकते हैं। समय निर्धारण के लिए सर्य
ू , चंद्र तथा दशा-अंतर्दशा स्वामियों के गोचर भ्रमण का
अध्ययन किया जाता है । कृष्णमूर्ति ग्रहयोगों तथा ग्रहदृष्टियोगों को मान्यता दे ते हैं। इसमें उच्च ग्रह, स्वक्षेत्र ग्रह,
मूल त्रिकोण ग्रह, मित्र क्षेत्र, शत्रु क्षेत्र, नीच ग्रह आदि बातों की अपेक्षा उप-नक्षत्र स्वामी को अधिक महत्व दिया
गया है । कंु डली के किसी भी भाव में स्थित वक्री ग्रह को अशभ
ु नहीं माना गया है । इनका मानना है कि कंु डली
में स्थित वक्री ग्रह नपुंसक अथवा बलहीन हो जाता है । इसी प्रकार वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित ग्रह भी वांछित
परिणाम तब तक नहीं दे ते, जब तक वक्री ग्रह मार्गी नहीं हो जाता। कृष्णमूर्ति पद्धति को आधुनिक प्रश्न ज्योतिष
के लिए एक वरदान के रूप में दे खा जा सकता है । इस पद्धति की उपरोक्तानुसार अपनी नियमावली है तथा
अपने सिद्धांत हैं। उनका ज्ञान हो जाने के बाद यह पद्धति स्वतः स्पष्ट हो जाती है । दस
ू रे शब्दों में उनके नियम
तथा सिद्धांत का ज्ञान हो जाने के पश्चात ् यह एक सरल एवं सग
ु म्य पद्धति है । इनके नियमों का पालन करते
हुए तथा इनके सिद्धांतों पर चलते हुए घटित तथा निकट घट रही घटनाओं का विश्लेषण करने हे तु या फिर
किसी भी प्रकार के प्रश्न विचार हे तु यह पद्धति लगभग पूर्णतः सक्षम है ा में निपुणता/प्रवीणता हे तु निम्न
सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 1. जन्म लग्न, चंद्र लग्न और गरु
ु लग्न से भी यदि पंचमेश बध
ु , बह
ृ स्पति, शक्र

के साथ बैठे हों (केंद्र-त्रिकोण-एकादश) तो जातक बड़ा विद्वान होता है । 2. रवि से वेदान्त 3. चंद्र से वैद्यक, काव्य-
कुशलता, धार्मिक विचार और अध्यात्म विद्या। 4. मंगल से न्याय एवं गणित 5. बुध से विद्याध्ययन और
विद्याग्रहण की शक्ति, वैद्यक। 6. वह
ृ स्पति से विद्या-विकास, वेद, वेदान्त, व्याकरण और ज्योतिष। 7. शुक्र से
प्रभाव, प्रभावशाली व्याख्यान शक्ति एवं साहित्य, गायन विद्या। 8. शनि से ज्ञान, अंग्रेजी तथा विदे शी भाषा। 9.
शनि और राहु अंतर्राष्ट्रीय (अन्यदे शीय) विद्या। 10. बुध तथा शुक्र से विद्वता, पांडित्य, उहापोह तथा कल्पना
शक्ति। ा में निपण
ु ता/प्रवीणता हे तु निम्न सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 1. जन्म लग्न, चंद्र लग्न और गुरु
लग्न से भी यदि पंचमेश बध
ु , बह
ृ स्पति, शक्र
ु के साथ बैठे हों (केंद्र-त्रिकोण-एकादश) तो जातक बड़ा विद्वान होता
है । 2. रवि से वेदान्त 3. चंद्र से वैद्यक, काव्य-कुशलता, धार्मिक विचार और अध्यात्म विद्या। 4. मंगल से न्याय
एवं गणित 5. बुध से विद्याध्ययन और विद्याग्रहण की शक्ति, वैद्यक। 6. वह
ृ स्पति से विद्या-विकास, वेद,
वेदान्त, व्याकरण और ज्योतिष। 7. शुक्र से प्रभाव, प्रभावशाली व्याख्यान शक्ति एवं साहित्य, गायन विद्या। 8.
शनि से ज्ञान, अंग्रेजी तथा विदे शी भाषा। 9. शनि और राहु अंतर्राष्ट्रीय (अन्यदे शीय) विद्या। 10. बुध तथा शुक्र से
विद्वता, पांडित्य, उहापोह तथा कल्पना शक्ति। जन्म लग्न, चंद्र लग्न और बध ु लग्न से भी यदि बध ु दशम भाव
से संबंधित हो जो जातक बहुत बड़ा व्यवसायी होता है । 2. जन्म लग्न, चंद्र लग्न और रवि लग्न से भी यदि रवि
दशम भाव से संबंधित हो तो जातक बहुत बड़ा अधिकारी होता है । 3. जन्म लग्न, चंद्र लग्न और गरु ु लग्न से
भी यदि गरु
ु दशम भाव से संबंधित हो तो जातक बहुत बड़ा राजनेता होता है । जन्म लग्न, चंद्र लग्न और शक्र

लग्न से भी यदि शुक्र दशम भाव से संबंधित हो तो जातक बहुत बड़ा साहित्यकार होता है । 5. जन्म लग्न, चंद्र
लग्न और शनि लग्न से भी यदि शनि दशम भाव से संबंधित हो जो जातक बहुत बड़ा सेवक होता है । 6. जन्म
लग्न, चंद्र लग्न और मंगल लग्न से भी यदि मंगल दशम भाव से संबंधित हो तो जातक बहुत बड़ा सेनाधिपति
होता है । 7. जन्म लग्न, चंद्र लग्न और पुनः चंद्र लग्न से भी यदि चंद्र दशम भाव से संबंधित हो तो जातक
बहुत बड़ा कलाकार होता है । स) शासकीय सेवा हे तु निम्न सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 1. दशम भाव से
शासकीय अशासकीय सेवा, उद्योग-धंधा, व्यापार-व्यवसाय आदि का स्वरूप ज्ञात किया जा सकता है । 2. द्वितीय
षष्ठ एवं दशम भाव से सेवा प्राप्त होने अथवा व्यवसाय प्रारं भ होने का संभावित समय ज्ञात किया जा सकता
है । 3. दशम भाव का तत
ृ ीय, पंचम अथवा नवम भाव से संबंध बनता हो तो व्यवसाय/सेवा में परिवर्तन की
संभावनाएं बढ़ जाती है । 4. सेवा मुक्ति समय हे तु प्रथम, पंचम तथा नवम भाव की ओर ध्यान केन्द्रित किया
जाता है । प्रथम, पंचम तथा नवम क्रमशः द्वितीय, षष्ठ तथा दशम भाव के व्यय भाव होते हैं। 5. दशम भाव से
बुध का संबंध और बुध की महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा भी व्यवसाय प्रारं भ/ सेवा प्राप्ति में सहायक होता
है । (द) राजनैतिक सफलता हे तु निम्न सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 1. तत
ृ ीय एकादश संबंध अधिकृत
उम्मीदवारी के लिए किसी राजनैतिक संस्था से टिकिट उपलब्ध करा सकती है । 2. चतर्थ
ु भाव से चन
ु ाव स्पद्र्धा
में यश प्राप्त हो सकता है । 3. षष्ठ भाव विजय की संभावना में वद्धि
ृ करता है । 4. षष्ठ, दशम और एकादश से
अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं। 5. लग्न-एकादश संबंध से सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है । (स) विवाह
विषयक प्रश्नोत्तर हे तु निम्न सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। 1. विवाह का कारक-स्त्रियों के लिए गरु
ु और
पुरुषों के लिए शुक्र होता है । 2. तुला राशि वैवाहिक संबंध स्थापित करने और वश्चि
ृ क राशि वैवाहिक मेल-मिलाप
हे तु कारक माना जाता है । 3. सप्तमेश या विवाह का कारक षष्ठ, अष्ट या द्वादश भाव में हो तो मतभेद,
पथ
ृ कत्व तथा तलाक होता है । 4. सप्तमेश बुध हो, सप्तमेश द्विस्वभावी हो या द्विस्वभावी राशि में स्थित हो तो
बहु विवाह योग होता है । 5. गुरु/शुक्र, सप्तमेश, द्वितीयेश, नवमेश अथवा दशमेश की सप्तम में स्थिति, दृष्टि तथा
यति
ु की दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा में विवाह हो सकता है । माता-पिता संबंधी प्रश्नोत्तर हे तु निम्न सिद्धांतों का
पालन करना चाहिए। 1. चंद्र की केंद्र में स्थिति गांव/मुहल्ले में ही अपने स्थान पर स्थिर है । 2. चंद्र की केंद्र से
बाहर स्थिति में व्यक्ति का अपने घर/गांव/मुहल्ले में होना असंभावित। 3. अन्य स्थान स्थित चंद्र के केंद्र में
प्रवेश, अन्य राशि में स्थित चंद्र के चर राशि में प्रवेश का समय क्रमशः लौट आने की संभावना, लौट आने के
लिए अपने गंतव्य की और खाना हो चुका होगा कि संभावना व्यक्त करता है । 1. चतुर्थ स्थान तथा चतुर्थेश से
माता का विचार होता है । 2. नवम/दशम स्थान तथा नवमेश/दशमेश से पिता का विचार होता है । 3. दिन में
जन्म हो तो शुक्र से और रात्रि में जन्म हो तो चंद्र से माता का विचार होता है । 4. दिन में जन्म हो तो रवि से
और रात्रि में जन्म हो तो शनि से पिता का विचार होता है ।

प्रश्न कंु डली के आधार पर कार्य की सफलता एवं असफलता


प्रश्न कंु डली के आधार पर कार्य की सफलता एवं असफलता का विचार यदि प्रश्न लग्न में शभ
ु ग्रह स्थित हो, लग्न बली हो अथवा प्रश्न लग्न शभ
ु ग्रहों के वर्गों में
पड़ता हो अथवा प्रश्न लग्न में शीर्षोदय राशि हो तो इच्छित कार्य की सिद्धि होती है । यदि प्रश्न लग्न पापयुक्त और पष्ृ ठोदय राशि में हो तो कार्य में सफलता नहीं
मिलती है । यदि प्रश्न लग्न में उभयोदय राशि हो तो कार्य में कठिनाई के बाद सफलता मिलती है । यदि लग्न को लग्नेश और चंद्र दोनों ही दे खते हों तो कार्य पूर्ण
रूप से सिद्ध होता है । यदि उदित प्रश्न लग्न के भाव 1, 4, 5, 7, 9 या 10 में शुभ ग्रह स्थित हो और कोई अशुभ ग्रह नहीं हो तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है ।
प्रश्न कंु डली से कार्य के पूर्ण होने में लगने वाले समय का विचार प्रश्न लग्न और चंद्र के बीच में जितने राशि के अंक आते हैं, उतने दिन कार्य को पूरा करने में
लगते हैं। प्रश्न लग्न के नवांश लग्न का अंक अर्थात ् राशि तथा नवांश लग्नेश की राशि का अंक दे खते ही जो अंक, राशि के होंगे, उनके स्वामी होंगे, वे ही दिन-माह
बताएंगे। ग्रहों के अनस
ु ार समय निर्धारण सर्य
ू - अयन ( 6 माह) चंद्र - मिनट मंगल - दिन बुध - एक ऋतु गुरु - माह शुक्र - पक्ष (15 दिन) शनि - वर्ण कार्य की
सफलता का प्रतिशत यदि प्रश्न कंु डली के लग्न पर किसी शभ
ु ग्रह की दृष्टि हो तो कार्य में 25 प्रतिशत सफलता मिलती है । यदि प्रश्न लग्न पर लग्नेश की दृष्टि हो
अर्थात ् प्रश्न लग्न अपने स्वामी से दृष्ट हो तो 50 प्रतिशत सफलता मिलती है । यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी तथा किसी एक शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो 75 प्रतिशत
सफलता मिलती है । यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी और किन्हीं दो शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो 85 प्रतिशत सफलता मिलती है । यदि प्रश्न लग्न अपने स्वामी के
अतिरिक्त गुरु, शक्र
ु , बुध तथा चंद्र अर्थात ् सभी शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो 100 प्रतिशत सफलता मिलती है । चोरी और गायब सामान का प्रश्न हल करने की विधि
लग्न से प्रश्नकर्ता का, चंद्र से खोए हुए सामान का, चतुर्थ भाव से खोए सामान और उसकी पुनः प्राप्ति का, सप्तम भाव से चोर का, अष्टम भाव से चोर द्वारा जमा
धन का तथा दशम भाव से पुलिस या सरकार का विचार किया जाता है । चोरी हुए सामान मिलने के योग लग्नेश सप्तम में और सप्तमेश लग्न में हो। लग्नेश और
सप्तमेश का सप्तम स्थान में इत्थशाल हो। लग्नेश और दशमेश का इत्थशाल हो। तत ृ ीयेश या नवमेश का सप्तमेश से इत्थशाल हो। चंद्र जिस राशि में स्थित हो
उसका स्वामी चंद्र को पूर्ण मित्र दृष्टि से दे ख रहा हो। धनेश और अष्टमेश का केंद्र में इत्थशाल हो या ये दोनों लग्नेश और दशमेश से दृष्ट या युक्त हों। लग्नेश
और सप्तमेश लग्न, धन या लाभ स्थान में हांे। लग्नेश और दशमेश पापग्रहों से दृष्ट या युक्त हों। द्वितीयेश और अष्टमेश पर चतुर्थेश की दृष्टि हो। लग्नेश और
दशमेश का इत्थशाल या मथ
ु शिल योग हो। धनेश और चंद्र में इत्थशाल हो। चंद्र का लग्नेश के साथ इत्थशाल हो। बुध और चंद्र केंद्र स्थान में एक-दस
ू रे को दे खते
हों। लग्न और चंद्र को शभ
ु ग्रह दे खते हों। सूर्य और चंद्र दोनों लग्न को दे खते हों। शुभ ग्रहों का चंद्र से इत्थशाल हो और चंद्र लग्न या धन स्थान में हो। अष्टमेश
अष्टम या सप्तम स्थान में हो। सप्तमेश और सर्य
ू चंद्र के साथ अस्त हों। तत
ृ ीय स्थान में पापग्रह और पंचम स्थान में शुभ ग्रह हों तो चोर स्वयं धन वापिस कर
दे ता है । तल
ु ा, वष
ृ या कंु भ लग्न में चोरी का सामान अ व श ् य िम ल त ा जाता है । ल ग ् न े श ् ा एकादशेश और बली चंद्र शुभ माह में इत्थशाल में हो।
चंद्र राशीश पर चंद्र की दृष्टि हो। भाव 4, 7, 8 या 10 में स्थित चंद्र या बह
ृ स्पति किसी घर का स्वामी हो, उसका लग्न या लग्नेश से संबंध हो या ऊपर वर्णित किसी
भाव में वह अकेले ही स्थित हो। सप्तमेश और चंद्र अस्त हों। लग्नेश और द्वितीयेश में इत्थशाल न हो तो खोयी वस्तु की खबर तो मिलती, किं तु वस्तु वापस नहीं
मिलती।

सिंह, कन्या, तल
ु ा, वश्चि
ृ क और कंु भ =  शीर्षोदय।

मेष, वष
ृ , कर्क , धनु और मकर  =   पष्ृ ठोदय।

मिथुन और मीन  =  उभयोदय

प्रश्न कुण्डली
प्रश्न शास्त्र ज्योतिष की वह अभिन्न विधा है , जिसकी सिद्धि के पश्चात एक ज्योतिर्विद किसी जातक के मन में उठ
रहे प्रश्नों को तथा प्रश्न संबंधी समाधान को सरलता पर्व
ू क ज्ञात कर सकता है ।
प्रश्न शास्त्र के अंतर्गत प्रश्न क्या है , मुष्टिगत वस्तु का रं ग क्या है , घर से बाहर गए व्यक्ति का आगमन कब होगा,
मुकद्दमे में जीत होगी या हार, शत्रु कब पैदा होंगे, व्यापार में लाभ-हानि, अन्न के भावों में उतार-चढ़ाव, चोरी हुई वस्तु
की जानकारी, चोर स्त्री है या पुरुष, चोर घर का है या बाहर का, चोर का स्वरुप आदि विषयों पर प्राचीन ज्योतिर्विदों
ने कई योगायोग बताये हैं। जातक के मन में चल रहे विचार-रूपी प्रश्न को प्रश्न कंु डली द्वारा ज्ञात करने की विद्या
मूक प्रश्न कहलाती है ।
‘मूक’ का अर्थ होता है शांत अथवा छुपा हुआ। मूक प्रश्न सिद्धि एक ज्योतिषी में किसी जातक के मन में उठे प्रश्नों
को प्रश्न कंु डली द्वारा ज्ञात करने हे तु अध्ययन के अतिरिक्त, आचरण एवं नियमों का समन्वय होना भी आवश्यक
है ।
ज्योतिषी को दे वज्ञ भी कहा जाता है क्योंकि ज्योतिषी दे वों की परिस्थिति को भी ज्योतिष गणना द्वारा ज्ञात कर
लेने की क्षमता रखता है । ज्योतिषी को आस्तिक, सत्यवादी, समदृष्टा तथा विनम्र होना चाहिए। प्रातः सूर्योदय से पूर्व
निद्रा का त्याग कर भूमि पूजा करके (भूमि भी एक ग्रह है ), शौचकार्यों से निवत्ृ त होकर गायत्री मंत्र का जाप कर,
इष्टदे व का स्मरण आदि करके प्रश्न कंु डली बना कर पहले ये दे खना चाहिए कि आज कितने जातक मेरे पास आएंगे
अथवा कितने जातकों से मिलना होगा। इस प्रकार अभ्यास करने से मूक प्रश्न का फलित करना अधिक सरल हो
जाता है ।
प्रश्न कंु डली द्वारा प्रश्न ज्ञान: यह सर्वविदित है कि जन्म कुण्डली की तरह ही प्रश्न कंु डली भी प्रश्नकर्ता के फोन
करने अथवा वार्तालाप करने के समय या मिलने के संपर्क करने के समय, जो राशि पर्वी
ू क्षितिज पर उदित हो रही
होती है उसे प्रश्न लग्न मान लिया जाता है । उस समय की ग्रह स्थिति को जन्म कंु डली की तरह मानकर कंु डली के
विभिन्न भावों में रखकर प्रश्न कंु डली का निर्माण किया जाता है ।
प्रश्न कंु डली में प्रश्न लग्न, प्रश्न लग्नेश एवं चंद्रमा की स्थिति सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है । पूर्व ज्योतिर्विदों के
अनस
ु ार प्रश्नों की संख्या एक से अधिक होने की स्थिति में :
1. पहले प्रश्न का लग्न से,
2. दस
ू रे प्रश्न का चंद्रमा स्थित भाव और
3. तीसरे प्रश्न का विचार सूर्य स्थित भाव को लग्न मान कर करना चाहिए।
4. चतुर्थ प्रश्न का विचार बह
ृ स्पति स्थित भाव को लग्न मान कर करना चाहिए। यदि बह
ृ स्पति अस्त या नीच
राशिस्थ हो तो उस भाव को लग्न न मान कर जिस भाव में कोई ग्रह वक्री अवस्था में हो उस भाव को
लग्न मान कर चतुर्थ प्रश्न का विचार करना चाहिए। अगर एक से अधिक ग्रह वक्री हों तो उनमें से
सर्वाधिक बली ग्रह के स्थित भाव को लग्न मानकर चैथे प्रश्न का विचार करना चाहिए।
5. इसी प्रकार पांचवें प्रश्न हे तु बध
ु , शक्र
ु तथा मंगल में से जो ग्रह बली होकर जिस भाव में स्थित है उस भाव
को लग्न मानकर फलित करना चाहिए।

प्रश्न कंु डली में


1. चंद्रमा का लग्नेश से जितने भावों का अंतर होगा उस संख्या वाले भाव के संबंध में प्रश्न होना चाहिए।
उदाहरणार्थ वष
ृ भ लग्न में लग्नेश शुक्र सप्तम भाव में वश्चि
ृ क राशि में स्थित हैं और चंद्रमा मकर राशिगत
हो कर दशम भाव में स्थित हैं। अतः लग्नेश शुक्र से चंद्रमा चार भाव की दरू ी पर हैं। अतः प्रश्न कंु डली के
चैथे भाव माता, भमि
ू , संपत्ति आदि से सम्बंधित हो सकता है ।
2. लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव से सम्बंधित प्रश्न होना चाहिए।
3. प्रश्न लग्न में मेष, सिंह तथा वश्चि
ृ क राशि में अग्निकारक ग्रह सूर्य अथवा मंगल स्थित हों तो प्रश्न किसी
धातु से सम्बंधित हो सकता है । यदि लग्न पर सर्य
ू अथवा मंगल की दृष्टि हो तो प्रश्न धातु संबंधी हो
सकता है ।

वर्तमान ज्योतिष में प्रश्न धातु, जीव, मूल आदि तक ही सीमित नहीं रहे हैं अपितु विवाह, नौकरी, स्थान परिवर्तन, रोग,
सट्टा-लॉटरी आदि कई प्रकार के प्रश्न जातक के मन में हो सकते हैं। अतः अनुसन्धान के अनुसार कुछ फलीभूत
योग इस प्रकार हैं:
1. प्रश्न लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव से सम्बंधित प्रश्न होना चाहिए।
2. प्रश्न लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव का स्वामी लग्नेश को दे खे तो जातक स्वयं के बारे में प्रश्न लेकर
आता है ।
3. लग्नेश तथा चंद्रमा में से जो ग्रह बली, स्वगह
ृ ी, उच्च या मूलत्रिकोणस्थ होकर जिस भाव में स्थित हो उस
भाव से संबंधित प्रश्न हो सकता है ।
4. शुक्र का संबन्ध चंद्र अथवा मंगल के साथ हो तो प्रेम-विवाह या प्रेम संबंधों के सम्बन्ध में प्रश्न होना
चाहिये।
5. छठे भाव का सम्बन्ध द्वितीय अथवा दशम भाव से हो तो प्रश्न नौकरी के संबंध में है , यदि द्वितीयेश,
दशमेश का सम्बन्ध सप्तम या एकादश भाव से हो रहा हो तो प्रश्न व्यवसाय के बारे में होना चाहिए।
6. यदि दशम भाव पर सूर्य अथवा गुरु की दृष्टि हो तो प्रश्न सरकारी नौकरी से सम्बंधित होना चाहिए। Û छठे
भाव में नीच राशिस्थ चंद्रमा हो तो प्रश्न चोट अथवा किसी बीमारी के संबंध में होना चाहिए।
7. द्वादशेश, नवमेश एवं तत
ृ ीयेश का संबंध लग्नेश के साथ हो तो विदे श यात्रा का प्रश्न हो सकता है ।
8. लग्नेश अस्त हो तथा कोई पाप ग्रह अष्टमेश होकर, चंद्रमा को दे खे तो गंभीर बीमारी या जीवन मत्ृ यु का
प्रश्न हो सकता है ।
9. कंु डली के छठे भाव में किसी ग्रह का परिवर्तन योग हो तो खोने या चोरी होने का प्रश्न होना चाहिए।

उदाहरणार्थ: प्रस्तुत प्रश्न कंु डली में जातिका ने रात्रि में फोन द्वारा प्रश्न बनाने को कहा। प्रश्न समय- 20 बजकर
22 मिनट दिनांक: 18-3-2017 स्थान: गाजियाबाद

केस 1: प्रश्न लग्न में कन्या राशि है एवं लग्नेश बध


ु सर्य
ू के साथ सप्तम भाव में है । नवम भाव को दक्षिण
भारत में पिता का भाव माना जाता है । नवमेश शुक्र लग्नेश बुध एवं सूर्य के साथ युति करके सप्तम भाव से
लग्न को दे ख रहे रहें हैं। सूर्य पिता का कारक है । अतः प्रश्नकर्ता ने संभवतया अपने पिता के लिए प्रश्न किया
हो। लग्नेश के बाद हम चंद्र को दे खते हैं। चंद्र एकादशेश है एवं नीच राशि का होकर अष्टम से अष्टम (तत
ृ ीय)
भाव में अष्टमेश मंगल से दृष्ट है । अतः जातिका के पिता को किसी मत्ृ यु तुल्य कष्ट का अनुमान होता है ।
मंगल पर चंद्र की दृष्टि अस्पताल संबंधी प्रश्न की भी संभावना बना रही है । लग्न में गरु
ु वक्री है तथा षष्ठे श
शनि दशम भाव, षष्ठ भाव को एवं लग्न को दे ख रहा है । अतः प्रश्न पिता की बीमारी से संबंधित हो सकता है ।
इस तरह जातिका ने अपने पिता की बीमारी से संबंधित प्रश्न किया होगा जो कदाचित अस्पताल में हो। यह
बात जातिका के अगले कॉल से प्रमाणित भी हो गयी। जातिका के पिता किडनी की समस्या के चलते अस्पताल
में प्ब्न ् में भर्ती थे और जातिका ने उनके स्वास्थ्य संबंधी प्रश्न किया था। लग्न में गुरु का होना आयुष्य के
लिए शुभ है साथ ही लग्नेश भी बली है और लग्न वर्गोत्तम है इस वजह से जातक की आयु पर प्रभाव नहीं
होगा, यद्यपि मत्ृ युतुल्य कष्ट अवश्य होगा परं तु लग्न अस्त है एवं लग्नेश बुध नवमेश शुक्र के साथ नवांश में
अष्टम से अष्टम यानि तत
ृ ीय भावस्थ है जो आयुष्य हे तु चिंता का विषय है ।
उदाहरण 2 प्रश्न समय - 10:45 सब
ु ह दिनांक: 2-3-2017 स्थान: दिल्ली

प्रस्तत
ु उदाहरण में जातक ने फोन करके शंका तथा समाधान हे तु प्रश्न कंु डली बनाने को कहा। प्रश्न लग्न में
लग्नेश शुक्र षष्ठे श भी है एवं उच्च का होकर एकादश भाव में अष्टमेश तथा एकादशेश गुरु से दृष्ट है । अतः
प्रश्न प्रश्नकर्ता के भाई-बहनों से सम्बंधित हो सकता है एवं लग्नेश, अष्टमेश का समसप्तक होना जीवन मत्ृ यु
अथवा बीमारी से सम्बंधित प्रश्न की संभावना बनाता है । चंद्र द्वादशेश मंगल के साथ द्वादश भावस्थ है जो
अस्पताल में अर्थ व्यय की संभावना भी दर्शाता है । बह
ृ स्पति अष्टमेश है एवं नवमांश में कन्या राशिस्थ हो कर
अष्टम भाव में है । इस तरह जातक के किसी भाई अथवा बहन से सम्बंधित प्रश्न हो सकता है जो अस्पताल में
किसी रोग के कारण भर्ती है । इसकी पुष्टि जातक से अगले संपर्क में हो गयी। जातक की भतीजी अस्पताल में
किडनी की समस्या से जूझ रही थी और जातिका से ये कष्ट कब समाप्त होगा ये जानने के लिए संपर्क किया
था। इस प्रकार यदि जातक के मन में उठने वाले प्रश्न को बिना जातक के बोले ही प्रश्न कंु डली बना कर प्रस्तुत
कर दिया जाये तो निस्संदेह वह अचंभित हो जायेगा । यह कला एक ज्योतिषी के प्रति जातक के मन में निष्ठा
तथा श्रद्धा उत्पन्न करती है , जिसके फलस्वरूप ज्योतिषी द्वारा बताये गए उपाय को जातक लग्न एवं श्रद्धापर्व
ू क
निभाता है और जातक अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है ।

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