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मु हर्त


मु हर्त
ू की असली परिभाषा
1. कार्य हे तु निश्चित किया गया विशिष्ट समय।
2. काल गणना के अनु सार कार्य हे तु निश्चित किया गया समय।

मु हूर्त
हिन्द ू धर्म में मु हर्त
ू एक समय मापन इकाई है । वर्तमान हिन्दी भाषा में इस शब्द को किसी कार्य को आरम्भ करने की
शु भ घड़ी को कहने लगे हैं । एक मु हर्त ू बराबर होता है दो घड़ी के, या लगभग 48 मिनट के. अमृ त/जीव महर्त ू और
ब्रह्म मु हर्त
ू बहुत श्रेष्ठ होते हैं  ; ब्रह्म मु हर्त
ू सूर्योदय से पच्चीस नाड़ियां पूर्व, यानि लगभग दो घं टे पूर्व होत है ।
यह समय योग साधना और ध्यान लगाने के लिये सर्वोत्तम कहा गया है । 
मु हूर्त (Muhurt) Meaning in hindi / मु हूर्त (Muhurt) का हिन्दी अर्थ

1. वह समारोह जिसमें किसी नई फिल्म का चित्रांकन शु रू किया जाता है


2. दिन-रात का तीसवाँ भाग
3. निर्दिष्ट क्षण या समय
4. ऐसा समय या परिस्थिति जिसमें कोई कार्य या उद्दे श्य सहजता से , जल्दी या सु विधा से हो सके
5. फलित ज्योतिष के अनु सार निकाला हुआ वह समय जब कोई शु भ काम किया जाए

 मु हर्त
ू का अर्थ होता है : दो क्षणों के बीच का अं तराल। मु हर्त
ू कोई समय की धारा का अं ग नहीं है । समय का एक क्षण
गया, दस ू रा क्षण आ रहा है , इन दोनों के बीच में जो बड़ी पतली सं करी राह है वही मु हूर्त  है ।

शब्द फिर विकृत हुआ। अब तो लोग कहते हैं , उसका उपयोग ही तभी करना हैं , जब उन्हें यात्रा पर जाना हो,
विवाह करना हो, शादी करनी हो, तो वे कहते हैं , शु भ मु हर्त
ू । उसे वे पं डित जी से पूछने जाते हैं कि शु भ मु हर्त
ू कौन
सा है । ले किन यह शब्द बड़ा अदभु त है ।

शु भ मु हर्त
ू का अर्थ होता है : कोई भी यात्रा शु रू करना, कोई भी यात्रा— वह विवाह की हो, प्रेम की हो, काम-
धं धे की हों, शु रू करने के बाद मन वहाँ रुक जाए, ऐसी दशा में शु रू करना। अनमने मन से शु रू मत करना, अन्यथा
कष्ट पाओगे , भटक जाओगे । अनु कूल मन की अवस्था में करना, शून्य से शु रू करना, तो शु भ ही शु भ होगा, मं गल
ही मं गल होगा। क्योंकि शून्य से जब तु म शु रू करोगे , तो तु म शु रू न करोगे परमात्मा तु म्हारे भीतर शु रू करे गा।

शु भ मु हर्त
ू का अर्थ बड़ा अदभु त है ! उसको ज्योतिषी से पूछने की जरूरत नहीं है । ज्योतिषी से उसका कोई सं बंध
नहीं है । उसका सं बंध अं तर अवस्था से है , अंतर - ध्यान से है । कोई भी काम करने के पहले , इच्छा कामना से न हो,
अत्यं त शांत मौन अवस्था से हो, ध्यान से हो।

थोड़ा सोचो अगर तु म्हारा प्रेम किसी स्त्री से है या किसी पु रुष से है , ध्यान की अवस्था से शु रू हो, तो तु म्हारे
जीवन में ऐसे फू ल लगें गे , तु म्हारा सं ग-साथ ऐसा गहरा होगा, तु म्हारा सं ग-साथ ऐसा हो जाएगा कि दो न बचें गे ,
एक हो जाओगे । कामवासना की उथल-पु थल में तु म्हारी प्रेम की यात्रा शु रू होती है , नरक में बीज पड़ते हैं और
बड़ा नरक उससे निकलता है ।

प्रेम की यात्रा भी ध्यान से शु रू हो तो शु भ मु हर्त


ू में शु रू हुई। किसी से मित्रता मु हर्त
ू में हो, शु भ मु हर्त
ू में हो,
ध्यान के क्षण में हो, तो यह मित्रता टिकेगी, यह पारगामी होगी, यह परलोक तक जाएगी। यह मित्रता टू टेगी
नही। सं सार के झं झावात इसे मिटा न पाएं गे। तूफान आकर इसे और सु दृढ़ कर जाएं गे, क्योंकि इसकी गहराई इतनी
है , इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं , ध्यान से उठी हैं l

मु हर्त
ू बड़ा अनूठा शब्द है । समय के दो क्षणों के बीच में जो समयातीत जरा सी झलक है , वही मु हर्त
ू है । मु हर्त
ू समय
का कोई नाप-जोख नहीं है , समय के बाहर की झलक है । जै से क्षणभर को बादल हट गए हों और तु म्हें चांद दिखाई
पड़ा, फिर बादल इकट् ठे हो गए-ऐसे क्षणभर को तु म्हारे विचार हट गए और तु म स्वयं को दिखाई पड़े , भीतर की
रोशनी अनु भव हुई। उसी रोशनी में पहला कदम उठे तो यात्रा शु भ हुई। वह कोई भी यात्रा हो, उस यात्रा में फिर
दुर्घटनाएं न होंगी। उस यात्रा में दुर्घटनाएं भी होंगी तो भी सौभाग्य सिद्ध होंगी। उस यात्रा में अभिशाप भी
मिलें गे तो आशीर्वाद बन जाएं गे; तु म ठीक-ठीक क्षण में चले । 
मु हर्त
ू विचार
वधू प् रवे श मु ह ू र्त

तीनों उत्तरा रोहिणी हस्त अशिवनी पु ष्य अभिजित मृ गसिरा रे वती चित्रा अनु राधा श्रवण धनिष्ठा मूल मघा और
स्वाति ये सभी नक्षत्र चतु र्थी नवमी और चतु र्दशी ये सभी तिथियां तथा मं गलवार रविवार और बु धवार इन वारों को
छोड कर अन्य सभी नक्षत्र तिथि तथा वार में नववधू का घर मे प्रवे श शु भ होता है ।

रजस् वला स् नान मु हु र्त

ज्ये ष्ठा अनु राधा हस्त रोहिणी स्वाति धनिष्ठा मृ गसिरा और उत्तरा इन नक्षत्रों मे शु भ वार एवं शु भ तिथियों में
रजस्वला स्त्री को स्नान करना शु भ है । वै से तो यह नियम प्रतिमास के लिये शु भ तथापि प्रत्ये क मास रजस्वला
होने वाली स्त्री जातकों को प्रतिपालन सं भव नही हो सकता है ,अत: प्रथम बार रजस्वला होने वाली स्त्री को के
लिये ही इस नियम का पालन करना उचित समझना चाहिये ।

नवां गना भोग मु ह ू र्त

नव वधू के साथ प्रथम सहसवास गर्भाधान के नक्षत्रों ( मृ गशिरा अनु राधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा
् एवं रात्रि के समय करना चाहिये ।
स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा) में चन्द्र शु दधि

गर्भा धान मु ह ू र्त

जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शु भ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०)
तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पु रुष को पु तर् प्राप्ति के लिये अपनी
स्त्री के साथ सं गम करना चाहिये । मृ गशिरा अनु राधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और
शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये ,भूल कर भी
शनिवार मं गलवार गु रुवार को पु तर् प्राप्ति के लिये सं गम नही करना चाहिये ।

पु ं सवन तथा सीमां त मु ह ू र्त

आर्द्रा पु नर्वसु पु ष्य पूर्वाभाद्रपदा उत्तराभाद्रपदा हस्त मृ गशिरा श्रवण रे वती और मूल इन नक्षत्रों में रवि मं गल
तथा गु रु इन वारों में रिक्त तिथि के अतिरिक्त अन्य तिथियों में कन्या मीन धनु तथा स्थिर लगनों में (२,५,८,११)
एवं गर्भाधान से पहले दस ू रे अथवा तीसरे मास में पुं सवन कर्म तथा आठवें मास में सीमान्त कर्म शु भ होता है । रवि
गु रु तथा मं गलवार तथा हस्त मूल पु ष्य श्रवण पु नर्वसु और मृ गशिरा इन नक्षत्रों मे म पुं सवन सं स्कार शु भ भी माना
जाता है ,षष्ठी द्वादसी अष्टमी तिथियां त्याज्य हैं । सीमान्त कर्म दे श काल और परिस्थिति के अनु सार छठे अथवा
आठवें महिने में करना भी शु भ रहता है । पुं सवन के लिये लिखे गये शु भ नक्षत्र ही सीमान्त के लिये शु भ माने जाते
है ।

प् रसूत ा स् नान मु ह ू र्त

हस्त अश्विनी तीनों उत्तरा रोहिणी मृ गशिरा अनु राधा स्वाति और रे वती ये सभी नक्षत्र तथा गु रु रवि और मं गल ये
दिन प्रसूता स्नान के लिये शु भ माने जाते हैं । द्वादसी छठ और अष्टमी तिथियां त्याज्य हैं ।

जातकर्म मु ह ू र्त

बालक का जात कर्म पूर्वोक्त पुं सवन के लिये वर्णित नक्षत्र और तिथियों के अनु सार ही माना जाता है । शु भ दिन
जन्म से ग्यारहवां बारहवां ,मृ दु सं ज्ञक नक्षत्र मृ गशिरा रे वती चित्रा अनु राधा तथा ध्रुव सं ज्ञक नक्षत्र तीनो उत्तरा
और रोहिणी क्षिप्र सं ज्ञक नक्षत्र हस्त अश्विनी पु ष्य और अभिजित तथा चर सं ज्ञक नक्षत्र स्वाति पु नर्वसु श्रवण
धनिष्ठा और शतभिषा शु भ होते हैं ।

नामकरण मु ह ू र्त
पु नर्वसु पु ष्य हस्त चित्रा स्वाति अनु राधा ज्ये ष्ठा मृ गशिरा मूल तीनो उत्तरा तथा धनिष्ठा इन नक्षत्रों में जन्म से
ग्यारहवें बारहवें दिन शु भ योग बु ध सोम रवि तथा गु रु को इन दिनों स्थिर लग्नों में बालक का नामकरण शु भ होता
है ।

कू प और जल पू जन मु ह ू र्त

मूल पु नर्वसु पु ष्य श्रवण मृ गशिरा और हस्त इन नक्षत्रों में तथा शु क्र शनि और मं गलवार इन दिनों के अतिरिक्त
अन्य वारों में प्रसूता को कू प और जल पूजन करना चाहिये ।

अन् न प् र ाशन मु ह ू र्त

तीनो पूर्वा आश्ले षा आर्द्रा शभिषा तथा भरणी इन नक्षत्रों को छोड कर अन्य नक्षत्र शनि तथा मं गल को छोडकर
अन्य वार द्वादसी सप्तमी रिक्ता पर्व तथा नन्दा सं ज्ञक तिथियों को छोडकर अन्य तिथियां मीन वृ ष कन्या तथा
मिथु न लग्न शु क्ल पक्ष शु भ योग तथा शु भ चन्द्रमा में जन्म मास से सम मास छठे अथवा आठवें महिने में बालक
का तथा विषम मास में बालिका का प्रथम वार अन्न प्रासन (अन्न खिलाना) शु भ माना जाता है ।

चू डाकर्म मु ह ू र्त

पु नर्वसु पु ष्य ज्ये ष्ठा मृ गशिरा श्रवण धनिष्ठा हस्त चित्रा स्वाति और रे वती इन नक्षत्रों में शु क्ल पक्ष उत्तरायण में
सूर्य,वृ ष कन्या धनु कुम्भ मकर तथा मिथु न लगनों में शु भ ग्रह के दिन तथा शु भ योग में चूडाकर्म प्रशस्त माना
गया है ।

शिशु नि ष् क् रमण मु ह ू र्त

अनु राधा ज्ये ष्ठा श्रवण धनिष्ठा रोहिणी मृ गशिरा पु नर्वसु पु ष्य हस्त उत्तराषाढा रे वती उत्तराफ़ाल्गु नी तथा
अश्विनी ये नक्षत्र सिं ह कन्या तु ला तथा कुम्भ यह लगन जन्म से तीसरा या चौथा महिना यात्रा के लिये शु भ
तिथियां तथा शनि और मं गल को छोडकर अन्य सभी दिन,यह सब शिशु को पहली बार घर से बाहर निकलने के
लिये शु भ माने गये हैं ।

मु ण् डन मु ह ू र्त

हस्त चित्रा स्वाति श्रवण धनिष्ठा तीनों पूर्वा म्रुगशिरा अश्विनी पु नर्वसु पु ष्य आश्ले षा मूल तथा रे वती ये सभी
नक्षत्र तथा रविवार बु धवार और गु रुवार ये वार प्रथम वार मु ण्डन के लिये शु भ माने गये हैं ।

कर्ण वे ध मु ह ू र्त

श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पु नर्वसु पु ष्य अनु राधा हस्त चित्रा स्वाति तीनों उत्तरा पूर्वाफ़ाल्गु नी रोहिणी मृ गशिरा
मूल रे वती और अश्विनी यह सभी नक्षत्र शु भ ग्रहों के दिन एवं मिथु न कन्या धनु मीन और कुम्भ यह लगन
कर्णवे ध के लिये उत्तम हैं ,चै तर् तथा पौष के महिने एवं दे व-शयन का समय त्याज्य है ।

उपनयन मु ह ू र्त

पूर्वाषाढ अश्विनी हस्त चित्रा स्वाति श्रवण धनिष्ठा शतभिषा ज्ये ष्ठा पूर्वाफ़ाल्गु नी मृ गशिरा पु ष्य रे वती और
तीनो उत्तरा नक्षत्र द्वितीया तृ तीया पं चमी दसमी एकादसी तथा द्वादसी तिथियां ,रवि शु क्र गु रु और सोमवार दिन
शु क्ल पक्ष सिं ह धनु वृ ष कन्या और मिथु न राशियां उत्तरायण में सूर्य के समय में उपनयन यानी यज्ञोपवीत यानी
जने ऊ सं स्कार शु भ होता है । ब्राह्मण को गर्भ के पांचवें अथवा आठवें वर्ष में क्षत्रिय को छठे अथवा ग्यारहवें वर्ष में
वै श्य को आठवें अथवा बारहवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण करना चाहिये । किसी कारण से अगर समय चूक जाये तो
ब्राह्मण को सोलहवें वर्ष में क्षत्रिय को बाइसवें वर्ष में वै श्य को चौबीसवें वर्ष में यज्ञोपवीत धारण कर ले ना चाहिये ।
इन वर्षों के बीत जाने से गायत्री मं तर् को ले ने के अधिकार समाप्त हो जाते हैं । बिना यज्ञोपवीत धारण किये
गायत्री उल्टा प्रभाव दे ने लगता है ।
इन मु हर्तो
ू ं के अलावा विद्यारम्भ मु हर्त
ू ,नया वस्त्र धारण करने का मु हर्त ू नया अन्न ग्रहण करने का मु हर्त ू मकान या
व्यापार स्थान की नीवं रखने का मु हर्त
ू गृ ह प्
र वे श का मु ह र्त
ू दे वप्
र तिष्ठा का मु ह र्त
ू क् रय विक् रय का मु ह र्त
ू ऋण ले ने
और दे ने का मु हर्त
ू गोद ले ने का मु हर्त
ू आदि के बारे में भी जानकारी की जा सकती है ।

आपको भी अपने किसी शु भ समय का मु हर्त


ू जानना है तो अपने जन्म वृ तांत को भे जिये

शु भ मु ह ू र्त
ज्योतिषियों के अनु सार सु खी और खु शहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शु रुआत शु भ मु हर्त
ू में करें और
अशु भ को त्यागें ।

हिन्द ू धर्म में शु भ मु हर्त


ू में कार्य करना बे हद महत्वपूर्ण माना जाता है । केवल विवाह ही क्यों, यहां तो किसी भी शु भ
कार्य की शु रुआत करने से पहले एक मु हर्त
ू निकाला जाता है , ताकि वह कार्य सफल हो सके। बच्चों की शादी से
ले कर बहू के गृ ह प्रवे श तक, घर में आए नन्हें मे हमान के गृ ह प्रवे श से ले कर उसके नामकरण पर शु भ मु हर्त
ू ….

नामकरण, मुं डन तथा विद्यारं भ जै से सं स्कारों के लिए तथा दुकान खोलने , सामान खरीदने -बे चने और ऋण तथा भूमि
के ले न-दे न और नये -पु राने मकान में प्रवे श के साथ यात्रा विचार और अन्य अने क शु भ कार्यों के लिए शु भ नक्षत्रों
के साथ-साथ कुछ तिथियों तथा वारों का सं योग उनकी शु भता सु निश्चित करता है ।किस कार्य के लिए इस सं योग
का स्वरूप क्या और कैसा हो?

विशे ष मु ह ू र्त योग

नामकरण, मुं डन तथा विद्यारं भ जै से सं स्कारों के लिए तथा दुकान खोलने , सामान खरीदने -बे चने और ऋण तथा भूमि
के ले न-दे न और नये -पु राने मकान में प्रवे श के साथ यात्रा विचार और अन्य अने क शु भ कार्यों के लिए शु भ नक्षत्रों
के साथ-साथ कुछ तिथियों तथा वारों का सं योग उनकी शु भता सु निश्चित करता है ।किस कार्य के लिए इस सं योग
का स्वरूप क्या और कैसा हो?

विशे ष मु ह ू र्त योग

सर्वार्थसिद्धि, अमृ तसिद्धि, गु रुपु ष्यामृ त और रविपु ष्यामृ त योग। यदि सोमवार के दिन रोहिणी, मृ गशिरा, पु ष्य,
अनु राधा तथा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है । शु भ मु हर्तो
ू ं में सर्वश्रेष्ठ मु हर्त
ू माना
जाता है - गु रु-पु ष्य योग। यदि गु रुवार को चन्द्रमा पु ष्य नक्षत्र में हो तो इससे पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है ।
जब चतु र्दशी सोमवार को और पूर्णिमा या अमावस्या मं गलवार को हो तो सिद्धिदायक मु हर्त
ू होता है ।

विशु भ मु ह ू र्त में क् या करें

 गर्भाधान, पुं सवन, जातकर्म-नामकरण, मुं डन, विवाह आदि सं स्कार।


 भवन निर्माण में मकान-दुकान की नींव, द्वार, गृ हप्रवे श, चूल्हा भट् टी आदि का शु भारं भ।
 व्यापार, नौकरी आदि आय प्राप्ति के साधनों का शु भारं भ।
 पवित्रता हे तु किए जाने वाले स्नान।
 यात्रा और तीर्थ आदि जाने के लिए भी शु भ मु हर्तू को दे खा जाता है ।
 स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना।
 वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना आदि।
 मु कद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना आदि।
 किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवे दन-पत्र भरना आदि।

इस समय में ना करें मां ग लिक कार्य

 पं चकों में ये कार्य निषे ध माने गए हैं - श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रप्रद तथा रे वती
नक्षत्रों में पड़ने वाले पं चकों में दक्षिण की यात्रा, मकान निर्माण, मकान छत डालना, पलं ग खरीदना-
बनवाना, लकड़ी और घास का सं गर् ह करना, रस्सी कसना और अन्य मं गल कार्य नहीं करना चाहिए। किसी
का पं चकों में मरण होने से पं चकों की विधिपूर्वक शां ति अवश्य करवानी चाहिए।
 बु धवार और शु क्रवार के दिन पड़ने वाले पु ष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए है । ऐसे में शु भ कार्यों से
बचना चाहिए। जै से विवाह करना, मकान खरीदना, गृ ह प्रवे श आदि। रवि तथा गु रु पु ष्य योग सर्वार्थ
सिद्धिकारक माना गया है ।
 रविवार, मं गलवार, सं क्राति का दिन, वृ दधि ् योग, द्विपु ष्कर योग, त्रिपु ष्कर योग, हस्त नक्षत्र में लिया
गया ऋण कभी नहीं चु काया जाता। अं त: उक्त दिन में ऋण का ले ना-दे ना भी निषे ध माना गया है ।

विवाह के लि ए

रोहिणी, मृ गशिरा, मघा, उत्तराफाल्गु नी, हस्त, स्वाति, अनु राधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद एवं रे वती शु भ
हैं ।

दै निक जीवन में शु भता व सफलता प्राप्ति हे तु नक्षत्रों का उपयोगी एवं व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है । वास्तव
में सभी नक्षत्र सृ जनात्मक, रक्षात्मक एवं विध्वं सात्मक शक्तियों का मूल स्रोत हैं । अतः नक्षत्र ही वह सद्शक्ति
है जो विघ्नों, बाधाओं और दुष्प्रभावों को दरू करके हमारा मार्ग दर्शन करने में सक्षम है ।

मकान खरीदना

बना-बनाया मकान खरीदने के लिए मृ गशिरा, आश्ले षा, मघा, विशाखा, मूल, पु नर्वसु एवं रे वती नक्षत्र उत्तम हैं ।

मु हूर्त
हिन्दू धर्म में मुहूर्त एक समय मापन इकाई है। वर्तमान हिन्दी भाषा में इस शब्द को किसी कार्य को आरम्भ करने की "शुभ घड़ी" को कहने लगे हैं।
एक मुहूर्त लगभग दो घड़ी के या 48 मिनट के बराबर होता है।
अमृत/जीव मुहूर्त और ब्रह्म मुहूर्त बहुत श्रेष्ठ होते हैं ; ब्रह्म मुहूर्त सूर्योदय से पच्चीस नाड़ियां पूर्व, यानि लगभग दो घंटे पूर्व होता है। यह समय योग साधना और
ध्यान लगाने के लिये सर्वोत्तम कहा गया है।
मुहूर्त, ज्तोतिष के छः अंगों (जातक, गोल, निमित्त, प्रश्न, मुहूर्त, गणित) में से एक अंग है।
जातकगोलनिमित्तप्रश्नमुहूर्त्ताख्यगणितनामानि ।
अभिदधतीहषडङ्गानि आचार्या ज्योतिषे महाशास्त्रे ॥ (प्रश्नमार्गः)
शुभ कार्य करने के लिए वांछित समय के गुण-दोष का विचिन्तन मुहूर्त के अन्तर्गत प्रतिपादित है।
सुखदुःखकरं कर्म शुभाशुभमुहूर्त्तजं ।
जन्मान्तरेऽपि तत् कु र्यात् फलं तस्यान्वयोऽपि वा ॥
वार, नक्षत्र, तिथि, करण, नित्ययोग, ग्रह, राशि -- ये मुहूर्त्त-निर्णय के लिए आवश्यक हैं।
मु हूर्तों के नाम
क् रमां
समय मु हर्त
ू गु ण

१ ०६:०० - ०६:४८ रुद्र अशु भ
२ ०६:४८ - ०७:३६ आहि अशु भ
३ ०७:३६ - ०८:२४ मित्र शु भ
४ ०८:२४ - ०९:१२ पितॄ अशु भ
५ ०९:१२ - १०:०० वसु शु भ
६ १०:०० - १०:४८ वाराह शु भ
७ १०:४८ - ११:३६ विश्वे देवा शु भ
शु भ - सोमवार और शु क्रवार को
८ ११:३६ - १२:२४ विधि
छोड़कर
९ १२:२४ - १३:१२ सतमु खी शु भ
१० १३:१२ - १४:०० पु रुहत
ू अशु भ
११ १४:०० - १४:४८ वाहिनी अशु भ
१२ १४:४८ - १५:३६ नक्तनकरा अशु भ
१३ १५:३६ - १६:२४ वरुण शु भ
१४ १६:२४ - १७:१२ अर्यमा शु भ - रविवार को छोड़कर
१५ १७:१२ - १८:०० भग अशु भ
१६ १८:०० - १८:४८ गिरीश अशु भ
१७ १८:४८ - १९:३६ अजपाद अशु भ
अहिर
१८ १९:३६ - २०:२४ शु भ
बु ध्न्य
१९ २०:२४ - २१:१२ पु ष्य शु भ
२० २१:१२ - २२:०० अश्विनी शु भ
२१ २२:०० - २२:४८ यम अशु भ
२२ २२:४८ - २३:३६ अग्नि शु भ
२३:३६ -
२३ विधातॄ शु भ
२४:२४
२४ २४:२४ - ०१:१२ क्ण्ड शु भ
२५ ०१:१२ - ०२:०० अदिति शु भ
२६ ०२:०० - ०२:४८ जीव/अमृ त बहुत शु भ
२७ ०२:४८ - ०३:३६ विष्णु शु भ
२८ ०३:३६ - ०४:२४ यु मिगद्यु ति शु भ
२९ ०४:२४ - ०५:१२ ब्रह्म बहुत शु भ
३० ०५:१२ - ०६:०० समु दर् म् शु भ
तै त्तिरीय ब्राह्मण के अनु सार १५ मु हुर्तों के नाम इस प्रकार गिनाए गये हैं ।
(१) सं ज्ञानं (२) विज्ञानं (३) प्रज्ञानं (४) जानद् (५) अभिजानत्
(६) सं कल्पमानं (७) प्रकल्पमानम् (८) उपकल्पमानम् (९) उपकॢप्तं (१०) कॢप्तम्
(११) श्रेयो (१२) वसीय (१३) आयत् (१४) सं भत ू ं (१५) भूतम् ।
चित्रः केतु ः प्रभानाभान्त् सं भान् ।
ज्योतिष्मं स-् ते जस्वानातपं स-् तपन्न्-अभितपन् ।
रोचनो रोचमानः शोभनः शोभमानः कल्याणः ।
दर्शा दृष्टा दर्शता विष्वरूपा सु र्दर्शना ।
आप्य्-आयमाणाप्यायमानाप्याया सु -नृ तेरा ।
आपूर्यमाणा पूर्यमाणा पूर्यन्ती पूर्णा पौर्णमासी ।
दाता प्रदाताऽनन्दो मोदः प्रमोदः ॥ १०.१.१ ॥
शतपथ ब्राह्मण में एक दिन के पन्द्रहवें भाग (१/१५) को 'मु हर्त
ू ' की
सं ज्ञा दी गयी है ।
जानिये 24 घं टे में होते हैं कितने और कौन से मु हर्त

 किसी भी प्रकार के मं गल कार्य करने के लिए सबसे पहले मु हर्त
ू और चौघड़िया दे खा जाता है । आज कल लोग
शु भघड़ी को मु हर्त
ू कहने लगे हैं । दिन व रात मिलाकर 24 घं टे के समय में , दिन में 15 व रात्रि में 15 मु हर्त
ू मिलाकर
कुल 30 मु हर्त
ू होते हैं अर्थात् एक मु हर्त
ू 48 मिनट (2 घटी) का होता है ।

मु हर्त
ू का नाम   समय प्रारं भ  समय समाप्त
    रुद्र               06.00.        06.48
    आहि            06.48         07.36
    मित्र             07.36          08.24
    पितृ              08.24          09.12
    वसु                09.12         10.00
    वराह            10.00          10.48
    विश्‍वेदेवा       10.48  11.36
    विधि            11.36          12.24
    सप्तमु खी      12.24          13.12
    पु रुहतू            13.12         14.00
    वाहिनी          14.00         14.48
    नक्तनकरा       14.48        15.36
    वरुण             15:36         16:24
    अर्यमा            16:24        17:12
    भग                17:12        18:00
    गिरीश             18:00       18:48
    अजपाद           18:48      19:36
    अहिर बु ध्न्य      19:36       20:24
    पु ष्य                20:24      21:12
    अश्विनी            21:12      22:00
    यम                 22:00      22:48
    अग्नि              22:48       23:36
    विधातॄ             23:36       24:24
    कण्ड              24:24       01:12
    अदिति            01:12        02:00
    जीव/अमृ त.      02:00       02:48
    विष्णु                02:48        03:36
    यु मिगद्यु ति.       03:36      04:24
    ब्रह्म                  04:24      05:12
    समु दर् म             05:12        06:00

मु हर्त
ू सं बंधित ग्रंथ  
〰〰〰〰〰
मु हर्त
ू सं बंधित कई ग्रंथ हैं जो वे द, स्मृ ति आदि धर्मग्रंथों पर आधारित है । ये ग्रंथ है - मु हर्त
ू मार्तण्ड, मु हर्त

गणपति मु हर्त
ू चिं तामणि, मु हर्त
ू पारिजात, धर्म सिं धु, निर्णय सिं धु आदि। शु भ मु हर्त
ू जानते वक्त तिथि, वार, नक्षत्र,
पक्ष, अयन, चौघड़ियां और लग्न आदि का भी ध्यान रखा जाता है ।

कौन-सा 'समय' सर्वश्रेष्ठ होता है


〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
किसी भी कार्य का प्रारं भ करने के लिए शु भ लग्न और मु हर्तू को दे खा जाता है । जानिए वह कौन-सा वार, तिथि,
माह, वर्ष लग्न, मु हर्त
ू आदि शु भ है जिसमें मं गल कार्यों की शु रुआत की जाती है ।

मु हर्त
ू सं बंधित ग्रंथ  
〰〰〰〰〰
मु हर्त
ू सं बंधित कई ग्रंथ हैं जो वे द, स्मृ ति आदि धर्मग्रंथों पर आधारित है । ये ग्रंथ है - मु हर्त
ू मार्तण्ड, मु हर्त

गणपति, मु हर्तू चिं तामणि, मु हर्त
ू पारिजात, धर्म सिं धु, निर्णय सिं धु, मु हर्त
ू प्रकरण आदि।

श्रेष्ठ दिन - दिन और रात में दिन श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ मु हर्त
ू - दिन-रात के 30 मु हर्तो
ू ं में ब्रह्म मु हर्त
ू ही श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ वार - सात वारों में रवि, मं गल और गु रु श्रेष्ठ है ।

चौघड़िया - शु भ चौघड़िया श्रेष्ठ है जिसका स्वामी गु रु है । अमृ त का चं दर् मा और लाभ का बु ध है ।

श्रेष्ठ पक्ष - कृष्ण और शु क्ल पक्षों के दो मास में शु क्ल पक्ष श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ एकादशी - प्रत्ये क वर्ष चौबीस और अधिकमास हो तो 26 एकादशियां होती हैं । शु क्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में
एकादशियों को श्रेष्ठ माना है । उनमें भी इसमें कार्तिक मास की दे व प्रबोधिनी एकादशी श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ माह- मासों में चै तर् , वै शाख, कार्तिक, ज्ये ष्ठ, श्रावण, अश्विनी, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गु न श्रेष्ठ माने गए हैं
उनमें भी चै तर् और कार्तिक सर्वश्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ पं चमी - प्रत्ये क माह में पं चमी आती है उसमें माघ माह के शु क्ल पक्ष की बसं त पं चमी श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ अयन - दक्षिणायन और उत्तरायण मिलाकर एक वर्ष माना गया है । इसमें उत्तरायण श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ सं क्रां ति - सूर्य की 12 सं क्रां तियों में मकर सं क्रां ति ही श्रेष्ठ है ।

श्रेष्ठ ऋ‍तु - छह ऋतु ओं में वसं त और शरद ऋतु ही श्रेष्ठ है ।


श्रेष्ठ नक्षत्र - नक्षत्र 27 होते हैं उनमें कार्तिक मास में पड़ने वाला पु ष्य नक्षत्र श्रेष्ठ है । इसके अलावा
अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, उत्तरा फाल्गु नी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनु राधा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा,
शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रे वती नक्षत्र शु भ माने गए हैं

मूहुर्त का शाब्दिक अर्थ है दो घटी अथवा अड़तालिस मिनट का समय ले किन यथार्थ रूप से मु हर्तू का अभिप्राय
समय के उस क्षण विशे ष से है जो क्षण, ग्रहो की स्थिति विशे ष के प्रभाव के कारण किसी भी कार्य प्रक्रिया अथवा
जीवन के प्रारं भ होने के लिए सं भावनाएं रखता है ।

मूहुर्त कार्य विशे ष के अनु सार अने काने क प्रकार के हो सकते है यह कार्य की प्रकृति के अनु सार निर्धारित होगा जै सी
कार्य की प्रकृति रहे गी के अनु सार के अनु सार साम्य रूप मे मूहुर्त का निर्धारण होगा ।

मूहुर्त निर्धारण के अवयव एवं विचारणीय तथ्य ज्योतिष शास्त्र मे बताए गये है जिसमे पं चाग के पाँचो अं ग तिथि ,
वार , नक्षत्र , योग, करण , के अलावा मास विचार, अयन विचार, जातक विशे ष के अनु सार तारा बल शु दधि ् , जन्म
चन्द्र विचार, सूर्य गोचर, निषे ध काल , विशे ष वर्जित काल , मूहुर्त के लग्न पर विचार, अग्नि वाण, राहु मु ख विचार,
गु रु - शु क्र अस्त विचार , होरा , राहु काल , चौघड़िया , विशे ष योग , पं चक , विभिन्न प्रकार के दोषो पर विचार से
मूहुर्त निर्धारण मे कार्य की प्रकृति के अनु सार किया जाता है ।

मूहुर्त कार्य की प्रकृति के अनुसार विचारणीय रहता है जिस प्रकार का कार्य विशे ष होगा के अनुसार मूहुर्त पर विचार
होगा जो कि विभिन्न संस्कार, विवाह , शिक्षा , आजीविका संबंधी ,गृ ह निर्माण एवं प्रवेश, यात्रा ,पद भार ग्रहण
एवं विभिन्न कार्य प्रकृति के अनुसार हो सकते है ।

अर्थात ऐसा काल या समय जो शु भ क्रियाओं अर्थात शु भ कार्यों के योग्य हो, मु हर्त
ू कहलाता है । इसी को हम शु भ
मु हर्त
ू , उत्तम मु हर्त
ू अथवा शु भ समय भी कहते हैं ।

ज्योतिष के द्वारा काल ज्ञान होता है और प्राचीन काल से सभी शु भ कार्यों के लिए हमारे महान ऋषियों ने शु भ समय
का विचार किया। समय सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि इसका प्रभाव सभी पदार्थों पर पड़ता है चाहे वह
जड़ हो अथवा चे तन, इसलिए हमारे ऋषि-मु नियों ने व्यक्ति के गर्भ से मृ त्यु उपरांत 16 सं स्कारों तथा अन्य सभी
मां गलिक कार्यों के लिए मु हर्त
ू ज्ञान को आवश्यक बताया है ।

ू शास्त्र फलित ज्योतिष का ही एक अं ग है । इसकी सहायता से हिं द ू धर्म के अं तर्गत किसी व्यक्ति के जीवन में
मु हर्त
होने वाले सोलह सं स्कारों जै से कि गर्भाधान, पुं सवन, सीमं तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, मुं डन अथवा
चूड़ाकरण, उपनयन, समावर्तन, विवाह आदि के लिए शु भ समय का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । इसके
अतिरिक्त किसी भी अन्य शु भ कार्य को करने के लिए जै से कि यात्रा के लिए, नया मकान बनाने और उस की नींव
रखने के लिए, गृ ह प्रवे श के लिए, नया वाहन अथवा प्रॉपर्टी खरीदने के लिए, नया व्यापार शु रू करने के लिए,
मु कदमा दाखिल करने के लिए, नौकरी के आवे दन के लिए आदि शु भ कार्यों के लिए शु भ समय ज्ञात करने के लिए
मु हर्त
ू का उपयोग किया जाता है ।

फलित कथन में अने क प्रकार की समस्याओं के निवारण हे तु लघु रूप में गहन विषयों को स्पष्टता प्रदान करने के
लिए महान व्यक्तियों ने मु हर्त ू मार्तं ड, मु हर्त
ू चिं तामणि, मु हर्त
ू चूड़ामणि, मु हर्त
ू माला, मु हर्त
ू गणपति, मु हर्त ू
कल्पद्रुम, मु हर्त
ू सिं धु , मु ह र्त
ू प्
र काश, मु ह र्त
ू दीपक इत्यादि महान ग्
र ं थों की रचना की है जिनके द्वारा मु ह र्त
ू सं बंधित
किसी भी जानकारी को प्राप्त किया जा सकता।

शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य को करने से पहले मु हूर्त क्यों दे खा जाता है ? मु हूर्त का क्या महत्व होता है ?

भारतीय विद्वान रूपी हमारे महात्मा सं त जोगी जनों ने तप किया और तब के प्रभाव से उनको पता चला कि इस
जगत में काल के बस मे सब कुछ है उनके अनु सार कृष्ण पक्ष और शु क्ल पक्ष है 27 नक्षत्रों में 9 राशियां हैं उन्होंने
ही 1 दिन में लगभग 12 मु हर्त ू बताएं हैं कितनी विचित्र बात है एक एकमात्र हिं द ू धर्म मु हर्त
ू की बात करता है और
यह मु हर्त
ू स्वयं सिद्ध होते हैं अच्छे मु हर्त
ू में किया गया कार्य आपको सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच आता है

मु हूर्त क्या होता है और यह कैसे निकलता है /निकाला जाता है ?

सनातन धर्म में मु हर्त


ू एक समय मापन इकाई है । वर्तमान हिन्दी भाषा में इस शब्द को किसी कार्य को आरम्भ करने
की शु भ घड़ी को कहने लगे हैं ।

एक मु हर्त
ू बराबर होता है दो घड़ी के, या लगभग 48 मिनट के.

तै त्तिरीय ब्राह्मण के अनु सार १५ मु हुर्तों के नाम इस प्रकार गिनाए गये हैं ।

(१) सं ज्ञानं (२) विज्ञानं (३) प्रज्ञानं (४) जानद् (५) अभिजानत्

(६) सं कल्पमानं (७) प्रकल्पमानम् (८) उपकल्पमानम् (९) उपकॢप्तं (१०) कॢप्तम्

(११) श्रेयो (१२) वसीय (१३) आयत् (१४) सं भत


ू ं (१५) भूतम् ।

चित्रः केतु ः प्रभानाभान्त् सं भान् ।

ज्योतिष्मं स-् ते जस्वानातपं स-् तपन्न्-अभितपन् ।


रोचनो रोचमानः शोभनः शोभमानः कल्याणः ।

दर्शा दृष्टा दर्शता विष्वरूपा सु र्दर्शना ।

आप्य्-आयमाणाप्यायमानाप्याया सु -नृ तेरा ।

आपूर्यमाणा पूर्यमाणा पूर्यन्ती पूर्णा पौर्णमासी ।

दाता प्रदाताऽनन्दो मोदः प्रमोदः ॥ १०.१.१ ॥

शतपथ ब्राह्मण में एक दिन के पन्द्रहवें भाग (१/१५) को 'मु हर्त


ू ' की सं ज्ञा दी गयी है ।

ज्योतिष शास्त्र के[2] अनु सार शु भ मु हर्त


ू निकालने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है - तिथि, वार, नक्षत्र,
योग, करण, नवग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिकमास, शु क्र और गु रु अस्त, अशु भ योग, भद्रा, शु भ लग्न, शु भ
योग तथा राहक ू ाल आदि इन्हीं के योग से शु भ मु हर्त
ू निकाला जाता है यथा सर्वार्थसिद्धि योग। यदि सोमवार के
दिन रोहिणी, मृ गशिरा, पु ष्य, अनु राधा तथा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है ।

शु भ मु हर्तो
ू ं में सर्वश्रेष्ठ मु हर्त
ू माना जाता है - गु रु-पु ष्य योग। यदि गु रुवार को चन्द्रमा पु ष्य नक्षत्र में हो तो इससे
पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है । जब चतु र्दशी सोमवार को और पूर्णिमा या अमावस्या मं गलवार को हो तो
सिद्धिदायक मु हर्त ू होता है । इस योग में किया गया कार्य शीघ्र ही पूरा हो जाता है । अर्थात शु भ योगों की गणना
कर उनका उचित समय पर जीवन में इस्ते माल करना ही शु भ मु हर्त ू पर किया गया कार्य कहलाता है । अशु भ मु हर्त ू में
योगों में किया गया कार्य पूर्णत: सिद्ध नहीं होता।

बच्चों का प्रथम बार विद्यालय में नाम लिखवाना बहुत ही महत्वपूर्ण है , क्योंकि दांपत्य जीवन में बच्चों के आगमन
के बाद सभी कार्य बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर ही किए जाते हैं । माता-पिता तो यही कहते हैं कि अगर बच्चे
ने अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया तो मे रा जीवन सफल हो गया।

जब भी किसी विद्यालय में प्रवे श कराते हैं तो प्रवे श/ दाखिले के लिए निर्धारित शु भ मु हर्त
ू / समय के अनु सार ही
प्रवे श कराएं , क्योंकि प्रवे श काल ही बच्चों की पढ़ाई के शु भ और अशु भ परिणाम का निर्धारण करता है ।

मु हूर्त प्रश्नावली  

 English (Transliterated)
मु हूर्त निकालने के मु ख्य नियम क्या हैं ?
् के साथ-
तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण इन्हीं के आधार पर शु भ समय निश्चित किया जाता है । लग्न शु दधि
साथ इन पांचों का शु भ होना परम आवश्यक है । इन सबके आधार पर ही शु भ व शु द्ध मु हर्त
ू निकाला जाता है ।
किन कार्यों का मु हूर्त निकालकर काम करना चाहिए व किनका नहीं?
दै निक व नित्य कर्मों को करने के लिए कोई मु हर्त
ू नहीं निकाला जाता है , परं तु विशिष्ट कर्मों व कार्यों की सफलता
हे तु मु हर्त
ू निकलवाना चाहिए ताकि शु भ घड़ियों का अधिकाधिक लाभ प्राप्त हो सके।
यदि मु हूर्त न निकल रहा हो, तो आवश्यकता में क्या करें ?
यदि आवश्यकता के अनु सार मु हर्त
ू न निकल रहा हो, तो केवल शु भ योग दे खकर और अति आवश्यकता में
अभिजित मु हर्त
ू या गोधू
लि के समय ् कर कार्य कर सकते हैं ।
अथवा केवल लग्न शु दधि
गोधूलि व अभिजित मु हूर्त को इतनी अधिक मान्यता क्यों है ?
गोधूलि व अभिजित मु हर्त
ू में सूर्य केंद्र में स्थित होता है , जो इन मु हर्तो
ू ं की महत्ता को बढ़ाता है ।
किसी वर्ष विवाह गृ हप्रवेश मु हूर्त नहीं होता - ऐसा क्यों होता है ?
विवाह मु हर्त
ू लगभग 15 जनवरी से 15 मार्च, 15 अप्रैल से 15 जु लाई व 15 नवं बर से 15 दिसं बर के बीच ही होते हैं ।
इसमें भी कभी-कभी गु रु और शु क्र अस्त हो जाते हैं । गु रु लगभग 3 सप्ताह एवं शु क्र 2 माह अस्त रहता है । इस
प्रकार जब ये ग्रह अस्त होते हैं लगभग मु हर्त
ू की एक ऋतु बीत जाती है और ऐसा लगता है कि वर्ष में मु हर्त ू ही
नहीं है ।
यदि एक मु हूर्त किसी एक कार्य के लिए शु द्ध हो, तो क्या अन्य कार्यों के लिए शु द्ध नहीं हो सकता?
मु हर्त
ू शास्त्र के अनु सार प्रत्ये क घड़ी का अपना महत्व होता है । फिर कार्य के अनु रूप ही नक्षत्र, तिथि, और वार
का चयन कर मु हर्तू बताया जाता है । इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि एक मु हर्त ू किसी एक कार्य के लिए शु द्ध हो,
तो वह अन्य कार्यों के लिए भी शु द्ध होगा।
् - समय शुदधि
राहुकाल, चैघड़िया, होरा एवं लग्न शुदधि ् की इन चार पद्धतियों में से कौन सी कब अपनानी चाहिए?
प्रतिदिन लगभग 1 घं टा 30 मिनट की अवधि राहुकाल की अवधि मानी गई है । राहु काल में कोई भी शु भ कार्य
प्रारं भ करना या उसके लिए बाहर निकलना मना किया गया है । राहुकाल में प्रारं भ किए गए शु भ कार्य को ग्रहण
लग जाता है । यदि अकस्मात यात्रा करने का मौका आ पड़े , तो उस अवसर के लिए विशे ष रूप से चै घड़िया मु हर्त ू
का उपयोग होता है । इसी प्रकार होरा मु हर्त ू कार्य सिद्धि के लिए पूर्ण फलदायक व अचूक माने जाते हैं , जो दिन
रात के 24 घं टों में घूमकर मनु ष्य को कार्य सिद्धि के लिए अशु भ समय में भी सु समय, सु अवसर प्रदान करते हैं ।
सूर्य का होरा राज से वा के लिए, चं दर् मा का होरा सभी कार्यों के लिए, वाद मु कदमे के लिए मं गल का होरा, ज्ञानार्जन
के लिए बु ध का होरा, प्रवास के लिए शु क्र, विवाह के लिए गु रु व द्रव्य सं गर् ह के लिए शनि का होरा उ Ÿाम
् शु भ भविष्य को दर्शाती है । तीन ज्ये ष्ठ हों, तो क्या विवाह करना
होता है । प्रत्ये क कार्य के लिए लग्न शु दधि
अशु भ है ?: परम्परा के अनु सार तीन ज्ये ष्ठ होने पर विवाह करना शु भ फलदायी नहीं माना जाता। इस योग में
विवाह होने पर वर पक्ष अथवा वधू पक्ष में हानि होने की सं भावना मानी जाती है । ले किन मु हर्त ू शास्त्र में उल्ले ख
नहीं हैं ।
् से दे खें?
किसी कार्य को करने की शु भ तारीख ज्ञात करने के लिए शु भ योग की गणना करें या पंचांग शुदधि
् के द्वारा दिन निर्धारण करना मु हर्त
पं चां ग शु दधि ू शास्त्र के अनु सार श्रेयस्कर माना गया है । यदि समयावधि के
अनु सार शु भ तारीख न बनती हो तो शु भ योगों की गणना कर कार्य करना उचित माना जाता है ।
विवाह काल में यदि सूतक पड़े , तो क्या विवाह करना उचित होगा?
् कर
विवाह काल में यदि सूतक पड़ जाए, तो विवाह करना उचित नहीं माना जाता। ऐसी स्थिति में सूतक शु दधि
ले नी चाहिए। सूतक काल में शास्त्रों के अनु सार पूजा-पाठ व वै दिक अनु ष्ठान वर्जित हैं ।
अबूझ मु हूर्त में विवाह करना उचित है या केवल मु हूर्त की तारीख में ?
अबूझ मु हर्त
ू में विवाह करना उचित है , परं तु मु हर्त
ू की तारीखें विवाह के लिए उपयु क्त हों, तो उनमें विवाह करना
श्रेयस्कर होता है , क्योंकि ये मु हर्त
ू पं चां ग द्व ारा शु द्धीकरण कर निकाले जाते हैं । अबूझ मु हर्त
ू को केवल शु भ
तारीखें न मिलने पर अपनाना चाहिए।
अबूझ मु हूर्त में तारा आदि डू बे हों या अन्य कोई कारण हो, तो भी क्या इनमें विवाह करना शु भ होगा?
अबूझ मु हर्त
ू के समय तारा डू बा हो अथवा अन्य कोई कारण हो, तो इनमें विवाह करना ठीक नहीं है , क्योंकि अबूझ
मु हर्त
ू शु भ मु हर्त
ू से कम फलदायी माना गया है ।
यदि वर व कन्या का मिलान शु भ न हो, तो क्या शु भ मु हूर्त में विवाह कर दोष दूर किया जा सकता है ?
ू में विवाह कर व दोष सं बंधी दान-पूजा करवाकर मिलान दोष दरू तो नहीं, परं तु कम अवश्य किया जा
शु भ मु हर्त
सकता है । शु भ मु हर्त
ू में विवाह करवाने से दोष कुछ अवधि के लिए टल जाता है ।
यदि वास्तु दोष हो, तो क्या शु भ मु हूर्त में प्रवेश कर वास्तु दोष से मु क्ति पाई जा सकती है ?
शु भ मु हर्त
ू में प्रवे श कर वास्तु दोष से मु क्ति तो नहीं पाई जा सकती, परं तु वास्तु दोष कम अवश्य किया जा सकता
है । पूर्ण रूप से वास्तु दोष को तभी दरू किया जा सकता है , जब घर वास्तु आधारित नियमों के अनु सार बनाया गया
हो।

मु हूर्त ज्ञान  
ू ज्ञान वै से तो प्रत्ये क पल अगले पल का सूचक है ले किन व्यवहारिकता की दृष्टि से दे खा जाय तो दै निक कार्यों
मु हर्त
के लिए जै से कार्यालय जाना या घर आना इत्यादि के लिए मु हर्त ू गणना नहीं करनी चाहिए ले किन जो कार्य हम
कभी-कभी करते हैं और जिनका जीवन पर विशे ष प्रभाव पड़ता है उनका मु हर्त ू का ज्ञान करने से कार्य में सफलता
प्राप्त होती है ? और जीवन सु खमय बनता है । वस्तु तः मु हर्त
ू का अर्थ दो घटी अर्थात 48 मिनट होता है । ले किन
मु हर्त
ू का अर्थ है वह क्षण जब ग्रहों की स्थिति हमारे किसी कार्य की सफलता सु निश्चित करती है । मु हर्त
ू निकालने
में सर्वप्रथम हम उस कार्य के लिए सफल समय की गणना करते हैं । तदुपरांत व्यक्ति-विशे ष के लिए उस समय की
शु भता का अवलोकन करते हैं ।
ू में मु खयतः सूर्य एवं चं दर् मा ही भूमिका निभाते हैं । तिथि, वार, नक्षत्र, करण, योग द्वारा पं चां ग शु दधि
मु हर्त ् करके
लग्न शु दधि् द्वारा काल-निर्धारण करते हैं । कहते हैं , किसी व्यक्ति का भाग्य, आयु व सं पत्ति का निर्धारण उसके जन्म
समय पर ही हो जाता है । बालक का जन्म भी उसके जीवन का मु हर्त ू काल ही है जो कि उसके जन्म के उतार-चढ़ाव
को पूर्ण रूप से दर्शाता है । इसी प्रकार किसी भी विशे ष क्रिया का मु हर्त ू उस क्रिया के भविष्य का ज्ञान कराता है ,
जै से शादी किस समय होगी। मु हर्त ू वै वाहिक जीवन का पूर्व ज्ञान कराता है । इसी तरह गृ ह प्रवे श का मु हर्त ू काल
आने वाले समय में उस घर में सु ख शां ति का आभास कराता है ।
यही सिद्धांत मु हर्त
ू की आवश्यकता का मूल है क्योंकि किसी कार्य के शु भाशु भ का ज्ञान मु हर्त
ू द्वारा होता है अतः
सही मु हर्त
ू का चयन करके हम कार्य-विशे ष को अपने अनु कूल बनाने का प्रयास करते हैं । ज्योतिष के मु खयतः तीन
भाग हैं -
1. सिद्धांत
2. सं हिता
3. होरा।
होरा ज्योतिष में जातक की कुंडली के बारे में विवे चन किया जाता है । सिं द्धांत में ग्रह गोचर गणना, काल गणना व
सौर-चं दर् मासों का प्रतिपादन किया जाता है । सं हिता ज्योतिष में मे लापक, मु हर्त ू गणना, ग्रहों के उदयास्त का
विचार और ग्रह विवे चन आदि का समावे श होता है । इस प्रकार मु हर्त ू सं हिता ज्योतिष का एक भाग है । मु हर्त

गणना के लिए नीलकण्ठ के अनु ज, रामदे वज्ञ की कृति मु हर्त
ू चिं तामणि प्रमु ख ग्रंथ है और सर्वप्रथम नीलकण्ठ के
पु त्र श्रीगोविं द ने मु हर्त
ू चिं तामणि पर पीयूषधारा नामक सु पर् सिद्ध व्याखया लिखी।
मु हर्त
ू का निर्णय निम्न प्रकार से किया जाता है -
1. जातक से अभीष्ट कार्य के बारे में तथा सं भावित अवधि के बारे में पूछें कि किस महीना, वार आदि में कार्य करना
चाहते हैं ।
2. उस कार्य के लिए कौन से माह शु द्ध हैं , उनका चयन करें ।
3. यदि विवाह आदि का मु हर्त
ू निकालना है तो सूर्य बल के लिए भी माह का चयन किया जा सकता है ।
् कर ले नी
4. ग्रह बल, शु क्र अथवा गु रु अस्त व होलाष्टक तथा पितृ पक्ष आदि का निर्णय करके मास की शु दधि
चाहिए।
् करनी चाहिए और इस प्रकार शु द्ध दिनों की गणना
5. नक्षत्र, तिथि, वार, योग व करण दे ख कर पं चां ग शु दधि
करनी चाहिए।
6. चं दर् मा की गणना करके चं दर् बल निर्धारित कर लें अर्थात् चं दर् मा यदि जातक के जन्म कालीन चं दर् मा से 4, 8,
12 भाव में हो तो उन तिथियों को छोड़ दे ना चाहिए। इस प्रकार हमें शु द्ध मु हर्त ू की तिथियां प्राप्त हो जायें गी।
7. अब ये तिथियां जातक को बताकर इन तिथियों में से कार्य के लिए किन्हीं दो, तीन तिथियों का चयन कर ले ना
चाहिए।
् करके शु द्ध मु हर्त
8. इन शु द्ध तिथियों में लग्न शु दधि ू काल गणना करनी चाहिए। यदि जातक के पास कार्य के लिए
महीनों का समय नहीं है तो केवल पं चां ग शु दधि् करके लग्न शु दधि
् कर ले नी चाहिए।
यदि इतना भी समय नहीं है तो केवल लग्न शु दधि ् करके और हो सके तो साथ में शु भ होरा या चौघड़िया के आधार
पर मु हर्त
ू निर्धारित करने का विधान है । मु हर्त
ू के बारे में एक और मान्यता है कि कार्यों को करने में जब मन में उत्साह
ू रा लग्न का प्रभाव ग्रहों से अधिक दे खा गया है । अतः यदि लग्न शु दधि
हो तो वह कार्य सिद्ध होता है । दस ् हो तो
वह मु हर्तू अन्य शु भ तिथि से अधिक बलवान माना जाता है । अतः कोई भी कार्य करने के लिए यदि कोई शु भ तिथि
नहीं मिल पा रही हो तो केवल लग्न शु दधि ् करके किसी भी मु हर्त ू की गणना की जा सकती है । मु हर्त ू में अभिजित
मु हर्त
ू का भी विशे ष महत्व माना गया है । अभिजित मु हर्त ू या तो मध्य रात्रि में या मध्य दिवस में 24 मिनट पूर्व से
ले कर 24 मिनट बाद तक रहता है । कहते हैं कि अभिजित मु हर्त ू में किये गये कार्य अवश्य सफल होते हैं । अतः
अभिजित मु हर्त ू को भी समयाभाव में उपयोग में लाया जा सकता है । ज्योतिषाचार्यों के लिए मु हर्त ू की गणना उन्हें
एकमत होने का स्थान प्रदान करती है । फलादे श में अकसर मतभे द रहते हैं व उपायों में उससे भी ज्यादा मतभे द
होते हैं क्योंकि अक्सर उपाय ग्रहों से निर्देशित वस्तु ओं के आधार पर कराये जाते हैं ।
अतः कोई किसी एक वस्तु को धारण करने का निर्दे श दे ता है तो कोई उनके विसर्जन के लिए, कोई उनके मं तर् ों के
उच्चारण की बात करता है तो कोई उन वस्तु ओं के दान की बात करता है । अतः सर्वदा से विभिन्न ज्योतिषियों के
मत अलग-अलग ही प्राप्त होते हैं ले किन मु हर्त
ू गणना का आधार एक होने के कारण एक ही मु हर्त ू सभी विद्वानों
द्वारा बताया जाता है जो कि जनता का ज्योतिष में विश्वास प्रकट करता है । मु हर्त
ू एक ऐसा विषय है जिस पर
ऋषियों ने तो बहुत कुछ लिखा है ले किन उस गणना का क्या आधार है , इस बारे में चर्चा नहीं मिलती। अतः मु हर्त

वै ज्ञानिक न होकर केवल हमारी आस्था रूप में रह गया है ।
जै से हम शादी के मु हर्त
ू की गणना करते हैं और कोई शु भ तारीख निकालते हैं तो हमें नहीं पता होता कि यदि हम उस
काल में शादी करें तो क्या लाभ होगा और नहीं करें तो क्या हानि होगी। ले किन अने काने क ज्योतिषियों ने मु हर्त
ू की
शु भता का अहसास किया है व बिना मु हर्त
ू के कार्य करने पर निष्फलता दे खी है । अतः मु हर्त
ू का उपयोग करके जीवन
में उपयोग कर जीवन को अधिक सु खमय बनाने का प्रयास हमें अवश्य करना चाहिए।

मु हूर्त क्या है इसकी उपयोगिता  


मु हर्त
ू : क्या है इसकी उपयोगिता पं . किशोर घिल्डियाल एक पौराणिक कथा के अनु सार माना जाता है कि पांच
पांडवों में सहदे व मु हर्तू शास्त्र के ज्ञाता थे । महाभारत के यु द्ध से पहले स्वयं दुर्योधन महाराज धृ तराष्ट् र के कहने पर
यु द्ध में कौरवों की विजय हे तु शु भ मु हर्त ू निकलवाने सहदे व के पास गए और सहदे व ने उन्हें शु भ मु हर्त ू बताया। इस
बात का पता जब भगवान कृष्ण को चला तब उन्होंने इस मु हर्त ू को टालने हे तु व पां डवों की विजय क े मु हर्त
ू हे तु
अर्जुन को मोह से मु क्त करने के लिए उपदे श दिया था। इन सारे तथ्यों का उल्ले ख श्रीमद्भगवत गीता में मिलता
है । अथर्ववे द में शु भ मु हर्त
ू में कार्य आरं भ करने का निर्दे श है ताकि मानव जीवन के सभी पक्षों पर शु भता का
अधिकाधिक प्रभाव पड़ सके। आचार्य वराहमिहिर भी इसकी अनु शंसा करते हैं । मु हर्त ू के सं दर्भ में रामचरितमानस
में एक स्थान पर उल्ले ख है कि यु द्ध के पश्चात् जब रावण मरणासन्न अवस्था में था तब श्रीराम ने लक्ष्मण को उससे
तिथि व मु हर्त ू ज्ञान की शिक्षा ले ने भे जा था। इस कथा से भी मु हर्त ू अर्थात शु भ पल के महत्व का पता चलता है ।
मु हर्तू का विचार आदि काल से ही होता आया है । हमारे शास्त्रों में भी ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं जनसे इस तथ्य
का पता चलता है । श्रीकृष्ण का कंस के वध हे तु उचित समय की प्रतीक्षा करना आदि इस तथ्य को पु ष्ट करते हैं ।
आज के इस वै ज्ञानिक यु ग में भी वै ज्ञानिक किसी परीक्षण हे तु उचित समय का इं तजार करते हैं । राजने ता चु नाव के
समय नामांकन के लिए मु हर्त ू निकलवाते हैं । इन सारे तथ्यों से मु हर्त ू की उपयोगिता का पता चलता है । यहां एक
तथ्य स्पष्ट कर दे ना उचित है कि लग्न की शु दधि ् अति महत्वपूर्ण और आवश्यक है । इससे कार्य की सफलता की
सं भावना 1000 गु णा बढ़ जाती है । मु हर्त ू विचार में तिथियों, नक्षत्रों, वारों आदि के फलों का मात्रावार विवरण
सारणी में प्रस्तु त है । अक्सर प्रश्न पूछा जाता है कि क्या शु भ मु हर्त में कार्यारं भ कर भाग्य बदला जा सकता है ?
यहां यह स्पष्ट कर दे ना आवश्यक है कि ऐसा सं भव नहीं है । हम जानते हैं कि गु रु वशिष्ठ ने भगवान राम के
राजतिलक के लिए शु भ मु हर्त ू का चयन किया था, किंतु उनका राजतिलक नहीं हो पाया। तात्पर्य यह कि मनु ष्य सिर्फ
कर्म कर सकता है । सही समय पर कर्म करना या होना भी भाग्य की ही बात है । कार्य आरं भ हे तु मु हर्त ू विश्ले षण
आवश्यक जरूर है परं तु इसी पर निर्भर रहना गलत है । यदि किसी व्यक्ति को शल्य चिकित्सा करानी पड़े तो वह
मु हर्त ू का इं तजार नहीं करे गा क्योंकि मु हर्तू से ज्यादा उसे अपनी जान व धन इत्यादि की चिं ताएं लगी रहें गी। परं तु
मु हर्त ू के अनु सार कार्य करने से हानि की सं भावना को तो कम किया ही जा सकता है ।
आइये जाने शु भ मु हूर्त की प्रासंगिकता, आवश्यकता एवं उपयोगिता—

—ज्योतिषाचार्य  एवं वास्तु विशे षज्ञ प. दयानंद शास्त्री( मोब.-09024390067) के अनुसार समय और ग्रहों का
शु भाशु भ प्रभाव जड़ और चे तन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है । वही समय छः ऋतु ओं के रूप में सामने आता
है । प्राकृतिक उत्पातों का भी उन्हीं ग्रहों, नक्षत्रों से बहुत गहरा संबंध है । आवश्यकता है उनके शु भाशु भ प्रभाव
के लिए उनके विभिन्न योग संयोग आदि को जानने की। अथर्व वे द जैसे हमारे आदि ग्रंथों में भी शु भ काल के बारे
में अने क निर्देश प्राप्त होते हैं जो जीवन के समस्त पक्षों की शु भता सु निश्चित करते हैं । ”वर्ष मासो दिनं लग्नं
मु हूर्त श्चे ति पञ्चकम्। कालस्यांगानि मुखयानि प्रबलान्यु त्तरोतरम्॥ लग्नं दिनभवं हन्ति मु हूर्त ः सर्वदूषणम्। तस्मात्
शुदधि् मु हूर्त स्य सर्व कार्येषु शस्यते ॥” ”वर्ष का दोष श्रेष्ठ मास हर ले ता है , मास का दोष श्रेष्ठ दिन हरता है , दिन
का दोष श्रे ष्ठ लग्न व लग्न का दोष श्रेष्ठ मु हूर्त हर ले ता है , अर्थात मु हूर्त श्रेष्ठ होने पर वर्ष, मास, दिन व लग्न
के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं ।” इस संसार में समय के अनु रूप प्रयत्न करने पर ही सफलता प्राप्त होती है
और समय अनु कूल और शु भ होने पर सफलता शत-प्रतिशत प्राप्त होती है जबकि समय प्रतिकू ल और अशु भ होने
से सफलता प्राप्त होना असंभव होता है ।  कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारं भ करने में मु हूर्त दे खा जाता है ,
जिससे मन को बड़ा सु कून मिलता है । हम कोई भी बंगला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हे तु कोई
सुदं र और भव्य इमारत बनाएं तो सर्वप्रथम हमें ‘मु हूर्त ’ को प्राथमिकता दे नी होगी। शु भ तिथि, वार, माह व
नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारं भ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक व
शारीरिक फायदे मिलते हैं वरन उस परिवार के सदस्यों में सु ख-शां ति व स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है । यहां शु भ
वार, शु भ महीना, शु भ तिथि, शु भ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से दे खे जाने चाहिए ताकि निर्विघ्न,
कोई भी कार्य सं पादित हो सके। 
अगर आप भी इसी महीने (जून,2012 में )अपने घर में शु भ काम करवाने जा रहे हैं , तो हो सकता है आपको पं डित जी
न मिले । या फिर वह आपसे दोगु नी फीस की डिमांड करें । दरअसल, हिं द ू धर्म के अनु सार, 30 जून को तारा डू ब रहा
है । इसके बाद कोई भी शु भ काम नहीं होता है । ऐसे में लोग इन दिनों जल्दी से जल्दी अपने काम निपटाने में लगे
हुए हैं । चाहे घर का मु हर्त
ू हो, नई गाड़ी खरीदनी हो या फिर लड़की दे खने जाना हो। तारा करीब एक महीने के लिए
हर साल डू बता है ।एक महीने तक नहीं होंगे शु भ कार्य —-
पं डितों का मानना है कि तारा डू बते के साथ ही दे वता एक महीने के लिए गहरी नींद में सो जाते हैं । जो नवं बर में दे व
उठनी एकादशी के बाद ही जागते हैं । इस दौरान एक माह तक कोई भी शु भ कार्य नहीं होता। ऐसे में इन दिनों
पं डितों की शहर में जबर्दस्त डिमांड चल रही है । पं डितों के अनु सार, सबसे अधिक घर के मु हर्त
ू ओर नई गाडि़यों के
पूजन के लिए लोग बु ला रहे हैं । घरों के अलावा नई दुकानों व नए कारोबार के लिए भी डिमांड हो रही है । कई
पं डित तो पूजा के लिए दिल्ली तक जा रहे हैं । मान्यता है कि जब तारा डू बता हैं तो उस दौरान शादी, सोना
खरीदना, रिश्ता तय करना, नया कारोबार करना और घर बनवाने जै से शु भ काम नहीं होते हैं । घं टेश्वर मं दिर के
मै नेजर सु भाष शर्मा का कहना है कि 30 जून से तारा डू ब रहा है । ऐसे में अधिकां श लोग अभी अपने जरूरी काम
करवा रहे हैं । उन्होंने बताया कि हमारे पं डित जी भी दिन में चार से पांच जगहों पर शु भ कार्य के लिए जा रहे हैं ।
एक ही दिन में कई घरों से बुलावा —-
इसी तरह महालक्ष्मी गार्डन के पंडित जी विशंभर शर्मा का कहना है  कि इन दिनों लोग नए घर , नए कारोबारऔर न
ई दुकान के मु हूर्त  के लिए अधिक बुला रहे  हैं । कई लोग तो मन मांगी दक्षिणा दे कर बुलाते  हैं  ले किन एकदिन में  सब
के यहां पूजा के लिए नहीं जाया जा सकता। पूजा में  समय लगता है  , इसलिए कई लोगों को मायूसहोना पड़ रहा है
। 

शु भ मु हर्त
ू : जानिए घर में कब करवाएं वास्तु शां ति के लिए पूजा—-
कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारं भ करने में मु हर्त
ू दे खा जाता है , जिससे मन को बड़ा सु कून मिलता है . हम
कोई भी बं गला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हे तु कोई सुं दर और भव्य इमारत बनाएं तो सर्वप्रथम
हमें Þ मु हर्त
ू Þ को प्राथमिकता दे नी होगी. 
शु भ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारं भ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक,
सामाजिक, मानसिक व शारीरिक फायदे मिलते हैं ..वरन उस परिवार के सदस्यों में सुख-शांति व स्वास्थ्य की प्राप्ति
भी होती है .यहां शु भ वार, शु भ महीना, शु भ तिथि, शु भ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से दे खे जाने
चाहिए ताकि निर्विघ्न, कोई भी कार्य संपादित हो सके. नए घर में प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक
कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और घर शु भ
प्रभाव  दे ने लगता है । इससे जीवन में खुशी व सुख-समृ दधि ् आती है । वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित
वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदे व की पूजा व अग्रजों का सम्मान करके व ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृ ह प्रवेश करना
चाहिए।  जब आप घर का निर्माण पूर्ण कर ले तो प्रवेश के समय वास्तु शांति की वै दिक प्रक्रिया अवश्य करनी
चहिये और फिर उसके बाद 5 ब्रह्मण,9 कन्या और तीन वृ द्ध को आमंत्रित कर उनका स्वागत सत्कार करे | नवीन
भवन में तुलसी का पौधा स्थापित करना शु भ होता है । बिना द्वार व छत रहित, वास्तु शांति के बिना व ब्राह्मण
भोजन कराए बिना गृ ह प्रवेश पूर्ण त: वर्जित माना गया है । शु भ मु हूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान
करते हुए और मंगल वाध्य यंतर् ो शंख आदि की मंगल ध्वनि तथा वे ड मंतर् ो के उच्चारण के साथ प्रवेश करना
चहिये | आप को सभी कष्टों से मु क्ति मिले गी | नया घर बनाने के पश्चात जब उसमें रहने हे तु प्रवेश किया जाता है
तो उसे नूतन गृ ह प्रवेश कहते हैं । नूतन गृ ह प्रवेश करते समय शु भ नक्षत्र, वार, तिथि और लग्न का विशे ष ध्यान
रखना चाहिए और ऐसे समय में जातक सकुटु म्ब वास्तु शांति की प्रक्रिया योग्य ब्राह्मणों द्वारा संपन्न करवाए  तो
उसे सम्पूर्ण लाभ मिलता है  |
गृ ह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शु भ होता है । इसके लिए शु भ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं —-शु भ
नक्षत्र- अश्विनी, पु नर्वसु , पु ष्य, हस्त,  उत्तराफाल्गु नी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रे वती, श्रवण,
धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनु राधा एवं मघा।अन्य विचार- चं दर् बल, लग्न शु दधि ् एवं भद्रादि का विचार कर ले ना
चाहिए।

शु भ वार : सोमवार, बु धवार, बृ हस्पतिवार (गु रुवार), शु क्रवार तथा शनिचर (शनिवार) सर्वाधिक शु भ दिन माने गए
हैं । मंगलवार एवं रविवार को कभी भी भूमिपूजन, गृ ह निर्माण की शु रुआत, शिलान्यास या गृ ह प्रवेश नहीं करना
चाहिए। शु भ माह : दे शी या भारतीय पद्धति के अनु सार फाल्गु न, वै शाख एवं श्रावण महीना गृ ह निर्माण हे तु
भूमिपूजन तथा शिलान्यास के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने हैं , जबकि माघ, ज्ये ष्ठ, भाद्रपद एवं मार्गशीर्ष महीने मध्यम
श्रेणी के हैं । यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि चै तर् , आषाढ़, आश्विन तथा कार्तिक मास में उपरोक्त शु भ कार्य
की शु रुआत कदापि न करें । इन महीनों में गृ ह निर्माण प्रारं भ करने से धन, पशु एवं परिवार के सदस्यों की आयु पर
असर गिरता है । शु भ तिथि :— गृ ह निर्माण हे तु सर्वाधिक शु भ तिथिया ये हैं : शु क्लपक्ष की द्वितीया, तृ तीया,
पं चमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी तिथियां , ये तिथियां सबसे ज्यादा प्रशस्त तथा
प्रचलित बताई गई हैं , जबकि अष्टमी तिथि मध्यम मानी गई है ।

प्रत्ये क महीने में तीनों रिक्ता अशु भ होती हैं । ये रिक्ता तिथियां निम्न हैं - चतु र्थी, नवमी एवं चौदस या चतुर्दशी।
रिक्ता से आशय रिक्त से है , जिसे बोलचाल की भाषा में खालीपन या सूनापन लिए हुए रिक्त (खाली) तिथियां
कहते हैं । अतः इन उक्त तीनों तिथियों में गृ ह निर्माणनिषे ध है । 
शु भ लग्न- वृ ष, सिंह, वृ श्चिक व कुंभ राशि का लग्न उत्तम है । मिथु न, कन्या, धनु व मीन राशि का लग्न मध्यम है ।
लग्नेश बली, केंद्र-त्रिकोण में शु भ ग्रह और 3, 6, 10 व 11 वें भाव में पाप ग्रह होने चाहिए।
शु भ नक्षत्र : —-किसी भी शु भ महीने के रोहिणी, पु ष्य, अश्ले षा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा
भाद्रपदा, स्वाति, हस्तचित्रा, रे वती, शतभिषा, धनिष्ठा सर्वाधिक उत्तम एवं पवित्र नक्षत्र हैं । गृ ह निर्माण या कोई
भी शु भ कार्य इन नक्षत्रों में करना हितकर है । बाकी सभी नक्षत्र सामान्य नक्षत्रों की श्रेणी में आ जाते हैं । 
सात ‘स’ और शु भता —–
शास्त्रानुसार (स) अथवा (श) वर्ण से शु रू होने वाले सात शु भ लक्षणों में गृ हारं भ निर्मित करने से धन-धान्य व अपूर्व
् होती है व पारिवारिक सदस्यों का बौद्धिक, मानसिक व सामाजिक विकास होता है ।
सुख-वै भव की निरं तर वृ दधि
सप्त साकार का यह योग है , स्वाति नक्षत्र, शनिवार का दिन, शु क्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शु भ योग, सिंह लग्न एवं
श्रावण माह। अतः गृ ह निर्माण या कोई भी कार्य के शु भारं भ में मु हर्त ू पर विचार कर उसे क्रियान्वित करना
अत्यावश्यक हें ..नया घर बनवाते समय सभी की इच्छा होती है कि नया घर उसके लिए सुख-समृ दधि ् व खु शियां
ले कर आए। इसके लिए जरूरी है कि गृ ह प्रवेश सदै व मु हूर्त जान कर करें । शु भ मु हूर्त में गृ ह प्रवेश शु भ फल दे ता
है । विशे ष- गृ ह प्रवेश करते समय वास्तु पु रुष का पूजन नहीं किया हो तो सविधि गृ ह प्रवेश करते समय वास्तु
शांति के लिए यज्ञादि करके एवं ब्राह्मणों, मित्रों व परिजनों को भोज दे ना चाहिए। नवीन भवन में तुलसी का पौधा
स्थापित करना शु भ होता है । बिना द्वार व छत रहित, वास्तु शांति के बिना व ब्राह्मण भोजन कराए बिना गृ ह प्रवेश
पूर्ण त: वर्जित माना गया है । शु भ मु हूर्त में सपरिवार व परिजनों के साथ मंगलगान करते हुए शंख, बैं ड व मंगल ध्वनि
करते हुए गृ ह प्रवेश करना चाहिए।

समय के इस शु भाशु भ प्रभाव को हम सभी मानते हैं । प्रत्ये क आवश्यक, मांगलिक और महत्वपूर्ण कार्यों के लिए
शु भाशु भ समय का विचार करके अनु कूल समय का चुनाव करने की पद्धति को ही मु हूर्त - विचार के लिए प्रयोग में
लाया जाता है । हमारे भारतवर्ष में जन्म से ले कर मरणोपरांत तक किए जाने वाले सोलह संस्कारों में प्रत्ये क कार्य
करने हे तु मु हूर्तों का सहारा लिया जाता है तथा मु हूर्तों का जन-व्यवहार से नजदीक का संबंध है । अधिकांशतः सभी
व्यक्ति अने क व्यवहारिक कार्यों को मु हूर्त के अनुसार ही संपन्न करते हैं । मु हूर्त विचार की इस परंपरा को केवल हिंदु
ही नहीं अपितु प्रत्ये क समुदाय के व्यक्ति जैसे मुसलमान, पारसी, जै न, सिक्ख इत्यादि सभी समय के शु भाशु भ
प्रभाव को पहचानने के लिए इस बेजोड़ पद्धति द्वारा मु हूर्त का विचार करते हैं । भारतीय ऋषि-मु नियों के द्वारा समय
को वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मु हूर्त रूपी पांच भागों में वितरित किया गया है । उपरोक्त श्लोकानुसार सिद्धांत को
मानकर विशे ष कार्य को सुचारू रूप से करने हे तु शु भ समय के निर्णय की परंपरा का श्रीगणेश हुआ। इसी कारण,
तिथि, वार, ,नक्षत्र, योग, करण, चंदमास, सूर्यमास, अयन, ग्रहों का उदयास्त विचार, सूर्य-चंद ्र ग्रहण एवं दै निक
लग्न के आधार पर कार्य-विशे ष हे तु शु भ मु हूर्त का चयन किया जाता है । समय और ग्रहों का शु भाशु भ प्रभाव जड़
और चे तन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है । भूमण्डल (पृ थ्वी) का प्रबंधकीय कार्य समय के अनु रूप होता रहता
है । यहां काल (समय) का प्रभाव छः ऋतु ओं के रूप में दिखाई दे ता है । 
वायु मडल पर प्रकृति और समय- चक् रानुसार पड़ने वाले अलग-अलग प्रभावों के कारण ओले गिरते हैं , बिजली
चमकती है , भूकंप आते हैं , वज्रपात होता है , हवा के प्रकोप से चक् रवात आते हैं , आकाश में उल्कापात और अति-
वृ ष्टि से जन-धन की हानि होती है । इन सब प्राकृतिक उत्पातों का ग्रह नक्षत्रों से बहुत गहरा संबंध है । मुखयतः
ं ल व भूवासियों पर पड़ता है । कृष्ण पक्ष और शु क्ल पक्ष के
सूर्यादि ग्रहों एवं नक्षत्रों का शु भाशु भ प्रभाव भूमड
उजाले और अंधेरे का प्रभाव वस्तु -विशे ष, जड़-चे तन सभी पर पड़ता है । समय के इसी शु भ-अशु भ प्रभाव से बचने
के लिए शु भ मु हूर्तों के आधार पर कार्य करने का प्रचलन प्रारं भ हुआ। हम सभी अपनी जीवन-यात्रा में अने काने क
उत्तरादायित्वों को समय के क् रमानुसार निर्वह्न करते हैं । इन समस्त उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए शु भ समय का
निर्धारण करने की आवश्यकता पड़ती है । एक पौराणिक आखयान के अनुसार यह माना गया है , कि पाण्डवों में
सहदे व मु हूर्त -शास्त्र के मर्मज्ञ थे । महाभारत यु द्ध के पूर्व महाराज धृ तराष्ट्र के कहने पर स्वयं दुर्योधन रणभूमि में
कौरवों की विजय हे तु शु भ मु हूर्त निकलवाने के लिए सहदे व के पास गये थे और सहदे व ने उन्हें यु द्ध विजय का शु भ-
मु हूर्त बताया था। जब इस बात का पता भगवान श्रीकृष्ण को चला तो उन्होंने इस मु हूर्त को टालने के लिए व
पांडवों की विजय का शु भ- मु हूर्त लाने हे तु अर्जुन को मोह मु क्त करने के लिए उपदे श दिया था। मु हूर्त के संबंध में
श्रीरामचरित मानस में भी उल्लेख प्राप्त होता है , कि यु द्ध के पश्चात जब रावण मरणासन्न हालत में था तब
भगवान श्रीरामचंद ्र ने लक्ष्मण को उससे तिथि, मु हूर्तों व काल का ज्ञान प्राप्त करने हे तु उसके पास भे जा था। इस
आखयान से भी मु हूर्त अर्थात शु भ क्षणों के महत्व का पता चलता है । अथर्ववे द में शु भ काल में कार्य प्रारं भ करने के
निर्देश प्राप्त होते हैं , ताकि मानव जीवन के समस्त पक्षों पर शु भता का अधिक से अधिक प्रभाव पड़ सके। हमारे
पुराणों, शास्त्रों में अने कों ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं , जिनसे इन तथ्यों का ज्ञान होता है । कं स के वध हे तु भगवान
श्रीकृष्ण द्वारा उचित समय की प्रतीक्षा करना इन तथ्यों की पु ष्टि करता है । 
आज के इस विज्ञान के समय में वै ज्ञानिक गण भी किसी प्रयोग को संपन्न करने हे तु उचित समय की प्रतीक्षा करते
हैं । राजने ता, मंतर् ीगण भी निर्वाचन के समय नामांकन हे तु, शपथ ग्रहण हे तु शु भ मु हूर्त का आश्रय ले ते हैं । आचार्य
वराहमिहिर भी इस मु हूर्त विचार की अनुशस ं ा करते हुए कहते हैं , कि इस एक क्षण की अपने आप में कितनी महत्ता है
और यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो कितना अधिक अनु कूल परिणाम प्राप्त हो सकता है । अब प्रश्न
उठता है , कि क्या शु भ मु हूर्त में कार्य प्रारं भ करके भाग्य बदला जा सकता है ? यहां यह बता दे ना आवश्यक है , कि
ऐसा संभव नहीं है । हम जानते ही हैं , कि भगवान श्रीराम के राजतिलक हे तु प्रकाण्ड विद्वान गु रु दे व वशिष्ठ जी ने
शु भ मु हूर्त का चयन किया था परं तु उनका राजतिलक नहीं हो पाया था। अर्थात मानव द्वारा सिर्फ कर्म ही किया जा
सकता है । ठीक समय पर कार्य का होना या न होना भी भाग्य की बात होती है । किसी कार्य को प्रारं भ करने हे तु
मु हूर्त विश्ले षण आवश्यक जरूर है । इस पर निर्भर रहना गलत है । परं तु शु भ मु हूर्त के अनुसार कार्य करने से हानि की
संभावना को कम किया जा सकता है । जीवन को सुखमय बनाने के लिए अधिकांशतः हर सनातन धर्मालम्बी धार्मिक
अनु ष्ठान, त्यौहार, समस्त संस्कार, गृ हारं भ, गृ ह प्रवेश, यात्रा, व्यापारिक कार्य इत्यादि के साथ-साथ अपना शु भ
कार्य मु हूर्त के अनुसार करता है । इस प्रकार जीवन को सुखमय बनाना मु हूर्त का अभिप्राय है …
मु हूर्त बोध में भद्रा विचार—
मु हूर्त निकालने में वार, आदि के अतिरिक्त करण का अपना महत्व है । विष्टि नामक करण का ही दूसरा नाम भद्रा है
जो सब प्रकार के शु भ कार्यों में त्याज्य मानी गयी है । ले किन कुछ स्थितियों में भद्रा शु भ भी होती है ले किन कब
और कैसे , जानिए इस लेख से । पंचांग के पांच अंगों में - तिथि, बार, नक्षत्र, योग एवं करण के द्वारा अने काने क
शु भाशु भ मु हूर्तों का निर्धारण किया जाता है । जिन-जिन तिथियों में जिस स्थिति में ‘विष्टि करण’ रहता है , उसे
भद्राकाल कहा जाता है । मु हूर्त विचार में भद्रा को अशु भ योग माना गया है , जिसमें सभी शु भ कार्यों को संपादित
करना पूर्ण तया वर्जित है । भद्रा पंचांग के पांच अंगों में से एक अंग-‘करण’ पर आधारित है यह एक अशु भ योग है ।
भद्रा (विष्टि करण) में अग्नि लगाना, किसी को दण्ड दे ना इत्यादि समस्त दु ष्ट कर्म तो किये जा सकते हैं किं तु
किसी भी मांगलिक कार्य के लिए भद्रा सर्वथा त्याज्य है । भद्रा के समय यदि चंद ्र 4, 5, 11, 12 राशियों में रहता है
तो भद्रा मृ त्यु लोक में मानी जाती है । यदि चंद ्र 1, 2, 3, 8 राशियों में हो तो भद्रा स्वर्ग लोक में और 6, 7, 9, 10
राशि में हो तो भद्रा पाताल लोक में मानी जाती है । यदि भद्रा मृ त्यु लोक में हो अर्थात् भद्रा के समय चंद ्र यदि
कर्क , सिंह, कुंभ तथा मीन राशियों में गोचर करे तो यह काल विशे ष अशु भ माना जाता है । एक पौराणिक कथा के
अनुसार ‘भद्रा’ भगवान सूर्य नारायण की कन्या है । यह भगवान सूर्य की पत्नी छाया से उत्पन्न है तथा शनि दे व की
सगी बहन है । वह काले वर्ण, लंबे केश तथा बड़े -बड़े दांतों वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है । जन्म ले ते ही
भद्रा यज्ञों में विघ्न, बाधा पहुच ं ाने लगी और उत्सवों तथा मंगल-यात्रा आदि में उपद्रव करने लगी तथा संपर्ण ू
जगत् को पीड़ा पहुच ं ाने लगी। उसके उच्छं ्रखल स्वभाव को दे ख सूर्य दे व को उसके विवाह के बारे में चिंता होने
लगी और वे सोचने लगे कि इस स्वे च्छा चारिणी, दु ष्टा, कुरुपा कन्या का विवाह किसके साथ किया जाय। सूर्य दे व
ने जिस-जिस दे वता, असुर, किन्नर आदि से भद्रा के विवाह का प्रस्ताव रखा, सभी ने उनके प्रस्ताव को मानने से
इनकार कर दिया। यहां तक कि भद्रा ने सूर्य दे व द्वारा बनवाये गये अपने विवाह मण्डप, तोरण आदि सब को
उखाड़कर फेंक दिया तथा सभी लोगों को और भी अधिक कष्ट दे ने लगी। उसी समय प्रजा के दु ःख को दे खकर
ब्रह्मा जी सूर्य दे व के पास आये । सूर्य नारायण से अपनी कन्या को सन्मार्ग पर लाने के लिए ब्रह्मा जी से उचित
परामर्श दे ने को कहा। तब ब्रह्मा जी ने विष्टि को बुलाकर कहा- ‘भद्रे , बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में
तुम निवास करो और जो व्यक्ति यात्रा, गृ ह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य तु म्हारे समय में करे , उन्हीं में तुम
विघ्न करो, जो तु म्हारा आदर न करे , उनका कार्य तुम ध्वस्त कर दे ना।’ इस प्रकार विष्टि को उपदे श दे कर ब्रह्मा जी
अपने धाम को चले गये । इधर विष्टि भी दे वता, दै त्य तथा मनु ष्य सब प्राणियों को कष्ट दे ती हुई घूमने लगी। इस
प्रकार भद्रा की उत्पत्ति हुई। वह अति दु ष्ट प्रकृति की है इसलिए मांगलिक कार्यों में उसका अवश्य ही त्याग
करना चाहिए। भद्रा मुख और पूछ ं - भद्रा पांच घड़ी मुख में , दो घड़ी (भद्रावास) कण्ठ में , ग्यारह घड़ी हृदय में ,
चार घड़ी पु च्छ में स्थित रहती है । जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है , कण्ठ में धन का नाश, हृदय
में प्राण का नाश, नाभि में कलह, कटि में अर्थनाश किं तु पु च्छ में निश्चित रूप से विजय एवं कार्य सिद्धि होती है ।
विष्टि करण को चार भागों में विभाजित करके भद्रा मुख और पूछ ं इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है - शु क्ल पक्ष
की चतु र्थी, अष्टमी, एकादशी एवं पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की- चतुर्दशी, दशमी, एकादशी एवं सप्तमी तिथियों को
क् रमशः विष्टि करण के प्रथम भाग की पांच घटियां (2 घंटे तक), द्वितीय भाग की 5 घटी, तृ तीय भाग की प्रथम
पांच घटी तथा विष्टि करण के चतु र्थ भाग की प्रथम पांच घटियों तक भद्रा का वास मुख में रहता है । इसी प्रकार
शु क्ल पक्ष की चतु र्थी, अष्टमी एकादशी एवं पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी, दशमी, सप्तमी एवं एकादशी को
क् रमशः विष्टि करण के चतु र्थ भाग की अंतिम तीन घड़ियों में , विष्टि करण के प्रथम भाग की अंतिम तीन घड़ियों
में , विष्टि करण के द्वितीय भाग की अंतिम तीन घड़ियों में तथा विष्टि करण के तृ तीय भाग की अंतिम तीन घटियों
में अर्थात् 1 घंटा 12 मिनट तक भद्रा का वास पु च्छ में रहता है । भद्रा के बारह नाम हैं जो इस प्रकार हैं - धन्या
दधिमुखी भद्रा महामारी खरानना कालरात्रि महारुद्रा विष्टि कुलपु त्रिका भैरवी महाकाली असुर क्षय करी। जो
व्यक्ति इन बारह नामों का प्रातः स्मरण करता है उसे किसी भी व्याधि का भय नहीं होता और उसके सभी ग्रह
अनु कूल हो जाते हैं । उसके कार्यों में कोई विघ्न नहीं होता। यु द्ध तथा राजकुल में वह विजय प्राप्त करता है , जो
विधि पूर्वक विष्टि का पूजन करता है , निःसंदेह उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । भद्रा के व्रत की विधि : जिस
दिन भद्रा हो, उस दिन उपवास करना चाहिए। यदि रात्रि के समय भद्रा हो तो दो दिन तक उपवास करना चाहिए।
(एक भु क्त) व्रत करें तो अधिक उपयु क्त होगा। स्त्री अथवा पु रुष व्रत करें तो अधिक उपयु क्त होगा। स्त्री
अथवा पु रुष व्रत के दिन सर्वोषधि यु क्त जल से स्नान करें अथवा नदी पर जाकर विधि पूर्वक स्नान करें । दे वता
तथा पितरों का तर्पण एवं पूजन कर कुशा की भद्रा की मूर्ति बनायें और गंध, पु ष्प, धूप, दीप, नै वेद्य आदि से उसकी
पूजा करें । भद्रा के बारह नामों से 108 बार हवन करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भी तिल मिश्रित
भोजन ग्रहण करें । फिर पूजन के अंत में इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए। ”छाया सूर्यसु ते दे वि विष्टिरिष्टार्थ
दायिनी। पूजितासि यथाशक्त्या भद्रे भद्रप्रदा भव॥ (उत्तर प. 117/39) इस प्रकार सत्रह भद्रा-व्रत कर अंत में
उद्यापन करें । लोहे की पीठ पर भद्रा की मूर्ति स्थापित कर, काला वस्त्र अर्पित कर गन्ध, पु ष्प आदि से पूजन कर
प्रार्थना करें । लोहा, बैल, तिल, बछड़ा सहित काली गाय, काला कं बल और यथाशक्ति दक्षिणा के साथ वह मूर्ति
ब्राह्मण को दान कर दें अथवा विसर्जन कर दें । इस प्रकार जो भी व्यक्ति भद्रा व्रत एवं तदंतर विधि पूर्वक
व्रतोद्यापन करता है उसके किसी भी कार्य में विघ्न नहीं पड़ता तथा उसे प्रेत, ग्रह, भूत, पिशाच, डाकिनी,
शाकिनी, यक्ष, गंधर्व, राक्षस आदि किसी प्रकार का कष्ट नहीं दे ते । उसका अपने प्रिय से वियोग नहीं होता और
अंत में उसे सूर्य लोक की प्राप्ति होती है ।
मु हूर्त का महत्व—-
आस्थावान भारतीय समाज तथा ज्योतिष शास्त्र में मु हूर्त का अत्यधिक महत्व है । यहां तक कि लोक संस्कृति में
भी परंपरा से सदा मु हूर्त के अनुसार ही किसी काम को करना शु भ माना गया है । हमारे सभी शास्त्रों में उसका
उल्लेख मिलता है । भारतीय लोक संस्कृति में मु हूर्त तथा शु भ शकुनों का प्रतिपालन किया जाता है । ज्योतिष के
अनुसार मु हूर्तों में पंचांग के सभी अंगों का आकलन करके, तिथि-वार-नक्षत्र-योग तथा शु भ लग्नों का सम्बल तथा
साक्षी के अनुसार उनके सामंजस्य से बनने वाले मु हूर्तों का निर्णय किया जाता है । किस वार, तिथि में कौन सा नक्षत्र
किस काम के लिए अनु कूल या प्रतिकू ल माना गया है , इस विषय में भारतीय ऋषियों ने अने कों महाग्रंथों का
निर्माण किया है जिनमें मु हूर्त मार्तण्ड, मु हूर्त गणपति मु हूर्त चिंतामणि, मु हूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि
अने क ग्रंथ प्रचलित तथा सार्थक हैं । जन्म से ले कर मृ त्यु पर्यंत तथा भारत का धर्म समाज मु हूर्तों का प्रतिपालन
करता है । भारतीय संस्कृति व समाज में जीवन का दूसरा नाम ही ‘मु हूर्त ’ है । भारतीय जीवन की नैसर्गिक व्यवस्था
में भी मु हूर्त की शु भता तथा अशु भता का आकलन करके उसकी अशु भता को शु भता में परिवर्तन करने के प्रयोग भी
किये जाते हैं । महिलाओं के जीवन में रजो दर्शन परमात्मा प्रदत्त तन-धर्म के रूप में कभी भी हो सकता है किं तु
उसकी शु भता के लिए रजोदर्शन स्नान की व्यवस्था, मु हूर्त प्रकरण में इस प्रकार दी गयी है - सोम, बु ध, गु रु तथा
शु क्रवार, अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, पु ष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण,
धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रे वती नक्षत्र शु भ माने गये हैं । मासों में वैशाख, ज्ये ष्ठ, श्रवण, अश्विनी,
मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन श्रेष्ठ माने गये हैं । शु क्ल पक्ष को श्रेष्ठ माना गया है , दिन का समय श्रेष्ठ है । इसी
प्रकार- गर्भाधान, पुस ं वन, सीमन्त, सूतिका स्नान, जातकर्म-नामकरण, मूल नक्षत्र, नामकरण शांति, जल पूजा,
निष्क् रमण, अन्नप्राशन, कर्णवे धन, चूड़ाकरण, मुड ं न, विद्यारं भ यज्ञोपवीत, विवाह तथा द्विरागंमनादि मु हूर्त अति
अनिवार्य रूप में भारतीय हिंद ू समाज मानता है । इसके अतिरिक्त भवन निर्माण में , भी नींव, द्वार गृ ह प्रवेश, चूल्हा
भट्टी के मु हूर्त , नक्षत्र, वार, तिथि तथा शु भ योगों की साक्षी से संपन्न किये जाते हैं विपरीत दिन, तिथि नक्षत्रों
अथवा योगों में किये कार्यों का शु भारं भ श्रेष्ठ नहीं होता उनके अशु भ परिणामों के कारण सर्वथा बर्बादी दे खी गयी
है । भरणी नक्षत्र के कुयोगों के लिए तो लोक भाषा में ही कहा गया है - ”जन्मे सो जीवै नहीं, बसै सो ऊजड़ होय।
नारी पहरे चूड़ला, निश्चय विधवा होय॥” सर्व साधारण में प्रचलित इस दोहे से मु हूर्त की महत्ता स्वयं प्रकट हो
रही है कि मु हूर्त की जानकारी और उसका पालन जीवन के लिए अवश्यम्यावी है । पंचक रूपी पांच नक्षत्रों का नाम
सुनते ही हर व्यक्ति कं पायमान हो जाता है । पंचकों के पांच-श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा
भाद्रप्रद तथा रे वती नक्षत्रों में , होने वाले शु भ- अशु भ कार्य को पांच गु णा करने की शक्ति है अतः पंचकों में नहीं
करने वाले मु हूर्त अथवा कार्य इस प्रकार माने गये हैं - दक्षिण की यात्रा, भवन निर्माण, तृ ण तथा काष्ट का संगर् ह,
चारपाई का बनाना या उसकी दावण-रस्सी का कसना, पलंग खरीदना व बनवाना तथा मकान पर छत डालना।
् की क्षमता होती है लोक प्रसिद्ध विवाह या शु भ
पंचकों में अन्य शु भ कार्य किये जाते हैं तो उनमें पांच गु णा वृ दधि
मु हूर्त बसंत पंचमी तथा फुलेरादूज पंचकों में ही पड़ते हैं जो शु भ माने गये हैं किसी का पंचकों में मरण होने से पंचकों
की विधिपूर्वक शांति अवश्य करवानी चाहिए। इसी प्रकार सोलह संस्कारों के अतिरिक्त नव उद्योग, व्यापार,
विवाह, कोई भी नवीन कार्य, यात्रा आदि के लिए शु भ नक्षत्रों का चयन किया जाता है अतः उनकी साक्षी से किये
गये कार्य सर्वथा सफल होते हैं । बहुत से लोग, जनपद के ज्योतिषी, सकलजन तथा पत्रकार भी, पु ष्य नक्षत्र को
सर्वश्रे ष्ठ तथा शु भ मानते हैं । वे बिना सोचे समझे पु ष्य नक्षत्र में कार्य संपन्नता को महत्व दे दे ते हैं । किं तु पु ष्य
नक्षत्र भी अशु भ योगों से ग्रसित तथा अभिशापित है । पु ष्य नक्षत्र शु क्रवार का दिन उत्पात दे ने वाला होता है ।
शु क्रवार को इस नक्षत्र में किया गया मु हूर्त सर्वथा असफल ही नहीं, उत्पातकारी भी होता है । यह अने क बार का
अनु भव है । एक बार हमारे विशे ष संपर्की व्यापारी ने जोधपुर से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र में दिये गये शु क्र-
पु ष्य के योग में , मना करते हुए भी अपनी ज्वेलरी शॉप का मु हूर्त करवा लिया जिसमें अने क उपाय करने तथा अने क
बार पुनः पुनः पूजा मु हूर्त करने पर भी भीषण घाटा हुआ वह प्रतिष्ठान सफल नहीं हुआ। अंत में उसको सर्वथा बंद
करना पड़ा। इसी प्रकार किसी विद्वान ने एक मकान का गृ ह प्रवेश मु हूर्त शु क्रवार के दिन पु ष्य नक्षत्र में निकाल
दिया। कार्यारं भ करते ही भवन बनाने वाला ठे केदार ऊपर की मंजिल से चौक में गिर गया। तत्काल मृ त्यु को प्राप्त
हो गया। अतः पु ष्य नक्षत्र में शु क्रवार के दिन का तो सर्वथा त्याग करना ही उचित है । बु धवार को भी पु ष्य नक्षत्र
नपुस ं क होता है । अतः इस योग को भी टालना चाहिए, इसमें किया गया मु हूर्त भी विवशता में असफलता दे ता है ।
पु ष्य नक्षत्र शु क्र तथा बु ध के अतिरिक्त सामान्यतया श्रेष्ठ होता है । रवि तथा गु रु पु ष्य योग सर्वार्थ
सिद्धिकारक माना गया है । इसके अतिरिक्त विशे ष ध्यान दे ने योग्य बात यह है कि विवाह में पु ष्य नक्षत्र सर्वथा
अमान्य तथा अभिशापित है । अतः पु ष्य नक्षत्र में विवाह कभी नहीं करना चाहिए। मु हूर्त प्रकरण में ऋण का लेना
दे ना भी निषे ध माना गया है , रविवार, मंगलवार, संक्राति का दिन, वृ दधि ् योग, द्विपु ष्कर योग, त्रिपु ष्कर योग,
हस्त नक्षत्र में लिया गया ऋण कभी नहीं चु काया जाता। ऐसी स्थिति में श्रीगणेश ऋण हरण-स्तोत्र का पाठ
तथा- ”ऊँ गौं गणेशं ऋण छिन्दीवरे ण्यं हँु नमः फट् ।” का नित्य नियम से जप करना चाहिए। मानव के जीवन में
जन्म से ले कर जीवन पर्यन्त मु हूर्तों का विशे ष महत्व है अतः यात्रा के लिए पग उठाने से ले कर मरण पर्यन्त तक-
धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष की कामना में मु हूर्त प्रकरण चलता रहता है और मु हूर्त की साक्षी से किया गया शु भारं भ सर्वथा
शु भता तथा सफलता प्रदान करता है ।
सफलता की गारंटी ”शु भ मु हूर्त ” पाना मु श्किल नहीं है —–
ग्रहों की गति के अनुसार विभिन्न ग्रहों व नक्षत्रों के नये नये योग बनते बिगडते रहते हैं । अच्छे योगों की गणना
कर उनका उचित समय पर जीवन में इस्ते माल करना ही शु भ मु हूर्त पर कार्य संपन्न करना कहलाता है । अशु भ योगों
में किया गया कार्य पूर्ण तः सिद्ध नहीं होता। मु हूर्त शास्त्र के कुछ सरल नियमों का उल्लेख यहां किया गया है जो
विभिन्न कार्यों में सफलता में सहायक हो सकता है । वै दिक ज्योतिष शास्त्र का प्रमुख स्तंभ है – मु हूर्त विचार।
दै निक जीवन के विभिन्न कार्यों के शु रू करने के शु भ व अशु भ समय को मु हूर्त का नाम दिया गया है । यह ज्योतिष में
लग्न कुंडली की तरह ही महत्वपूर्ण है जो भाग्य का क्षणिक पल भी कहलाता है । अच्छा मु हूर्त कार्य की सफलता
दे कर हमारे भाग्य को भी प्रभावित करता है और यदि अच्छा मु हूर्त हमारा भाग्य नहीं बदल सकता तो कार्य की
सफलता के पथ को सु गम तो बना सकता है । भविष्य बदले या न बदले परं तु जीवन के प्रमुख कार्य यदि शु भ मु हूर्त
में किये जायें तो व्यक्ति का जीवन आनंददायक और खुशहाल बन जाता है । मु हूर्त की गणना उन लोगों के लिये भी
लाभदायक हैं जो अपना जन्म-विवरण नहीं जानते । ऐसे लोग शु भ मु हूर्त की मदद से अपने प्रत्ये क कार्य में सफल
होते दे खे गये हैं । दिन में 15 व रात के 15 मु हूर्त मिलाकर कुल 30 मु हूर्त होते हैं । शु भ मु हूर्त निकालने के लिये निम्न
बातो का ध्यान रखा जाता है – नवग्रह स्थिति, नक्षत्र, वार, तिथि, मल मास, अधिक मास, शकु ्र व गरूु अस्त,
अशभ्ु ा योग, भद्रा, शु भ लग्न, शु भ योग, राहू काल। शु भ मु हूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मु हूर्त है – गु रु-पु ष्य। यदि
गु रूवार को चंद ्रमा पु ष्य नक्षत्र में हो तो इससे पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है । जब चतु र्दशी, सोमवार को और
पूर्णिमा या अमावस्या मंगलवार को हो तो सिद्धि दायक मु हूर्त होता है । दै निक जीवन के निम्न कार्यों के लिये सरल
शु भ मु हूर्त का विचार निम्न प्रकार से किया जाना चाहिये :- 1 बच्चे का नामकरण करना :- इस कार्य के लिये 2, 3, 7,
10, 11 व 13 वीं तिथियां शु भ रहती हैं । सोमवार, बु ध् ावार, गु रूवार व शु क्रवार के दिन बच्चे का नामकरण किया
जाना चाहिये । शु भ नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, पुनर्वसु , पु ष्य, उत्तरा, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा,
श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा व रे वती हैं । 2. विद्याध्ययन :- बच्चे का किसी विद्यालय में प्रवेश दे वशयन तिथियों में
नहीं करना चाहिये । शु भ तिथियां 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्णिमा हैं । शु भ वार सोमवार, बु धवार, गु रूवार व
शु क्रवार हैं । शु भ नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, पुर्नवसु , पु ष्य, उतरा, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण,
धनिष्ठा, शतभिषा हैं । 3. सरकारी नौकरी शु रू करना :- शु भ मु हूर्त में सरकारी नौकरी शु रू करने से बाधायें कम आती
हैं व आत्मसंतुष्टि अधिक रहती है । इसके लिये नौकरी के पहले दिन का नक्षत्र हस्त, अश्विनी, पु ष्य, अभिजीत,
मृ गशिरा, रे वती, चित्रा या अनुराधा होना चाहिये । तिथियों में चतु र्थी, नवमी व चर्तुदशी को छोडकर कोई भी तिथि
हो सकती है । सोमवार, बु धवार, गु रूवार या शु क्रवार को सरकारी नौकरी शु रू करनी चाहिये । मु हूर्त कुंडली में गु रू
सातवें भाव में हो, शनि छटे भाव में , सूर्य या मंगल तीसरे , दसवें या एकादश भाव में हो तो शु भ रहता है । जन्म
राशि से 4, 8 या 12 वें भाव के चंद ्रमा से बचना चाहिये । 4. नया व्यापार आरम्भ करना :- रिक्ता तिथि में नहीं करना
चाहिये । एग्रीमें ट कभी भी रविवार, मंगलवार या शनिवार को नहीं करना चाहिये । तिथि का क्षय भी नहीं होना
चाहिये । 5. नयी दुकान खोलना :- सफलतापूर्वक दुकान चलाने के लिये दुकान को शु भ मु हूर्त में खोलना अनिवार्य है ।
शु भ मु हूर्त हे तु तीनो उतरा नक्षत्र, रोहिणी, मृ गशिरा, चित्रा, अनुराधा, रे वती में ही दुकान का उद्घाटन करना
चाहिये । चंद ्रमा व शु क्र के लग्न में दुकान खोलना शु भ रहता है । 2, 10 व 11 वें भाव में शु भ ग्रह होने चाहियें ।
रिक्ता तिथियों के अतिरिक्त सभी तिथियां दुकान खोलने के लिये श्ुाभ रहती हैं । मंगलवार के अतिरिक्त किसी
भी वार को दुकान खोली जा सकती है । जातक की जन्म राशि से 4, 8 या 12 वें भाव में चंद ्रमा भ्रमण नहीं कर रहा
होना चाहिये । 6. बच्चा गोद लेना :- विवाह के बाद हर पति-पत्नि को संतान प्राप्त करने की इच्छा होती है । यदि
किन्हीं कारण् ाों से दंपति को यह सुख नहीं मिल पाता तो वे किसी बच्चे को गोद लेने जैसे पु ण्य कार्य की सोचते हैं ।
ऐसे बच्चे भी दंपति के लिये सुख दायक सिद्ध हो तो इसके लिये बच्चे को शु भ मु हूर्त में ही गोद लेना चाहिये । इसके
लिये उस समय का नक्षत्र, वार, तिथि और लग्न दे खना चाहिये । पु ष्य, अनुराधा व पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बच्चा
गोद लिया जाना चाहिये । तिथियों में प्रतिपदा, द्वितीया, तृ तीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी व त्रयोदशी
तिथि होनी चाहिये । रविवार, मंगलवार, गु रूवार व शु क्रवार के दिन बच्चा गोद लेना शु भ माना गया है । मु हूर्त
कुंडली के पांचवे , नवें व दसवें भाव में शु भ ग्रह हों तथा ये भाव बलवान हों तो बच्चा गोद लेने का समय शु भ होता
है । 7. वाहन खरीदना :- स्कू टर, कारादि क् रय करने के लिये शु भ तिथियां 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्ण् ि
ामा है । शु भ वार सोमवार, बु धवार, गु रूवार व शु क्रवार हैं । शु भ नक्षत्र अश्विनी, मृ गशिरा, पुनर्वसु , पु ष्य, तीनो
उतरा, तीनो पूर्वा , हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, धनिष्ठा, रे वती हैं । 8. ऋण लेना :- बु धवार को किसी तरह का ऋण
नहीं दे ना चाहिये । मंगलवार को किसी से ऋण नहीं लेना चाहिये । 9. मु कदमा दायर करना :- न्यायालय से अपने हक
में न्याय पाने के लिये मु हूर्त के कुछ नियमों को ध्यान में रखना चाहिये । इसके लिये शु भ नक्षत्र इस प्रकार से हैं –
स्वाती, भरणी, आश्ले षा, धनिष्ठा, रे वती, हस्त, पुनर्वसु , अनुराधा, तीनो उत्तरा। इन नक्षत्रों के दिनों में मु कदमा
दायर करना चाहिये । तिथियों में प्रतिपदा, तृ तीया, पंचमी, सप्तमी, नवमी, एकादशी, त्रयोदशी या पूर्णिमा होनी
चाहिये । वार में सोमवार, गु रूवार या शनिवार शु भ रहते हैं । 10. नींव खोदना :- शिलान्यास करने के लिये शु भ
तिथियां 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 व पूर्णिमा है । शु भ वार सोमवार, बु धवार, गु रूवार, शु क्रवार व शनिवार हैं ।
शु भ नक्षत्र रोहिणी, मृ गशिरा, पु ष्य, तीनो उतरा, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, धनिष्ठा, शतभिषा, रे वती हैं । 11.
नये गृ ह प्रवेश :- नवनिर्मित घर में प्रवेश के लिये शु भ तिथियां 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 व पूर्णिमा है । शु भ वार
सोमवार, बु धवार, शु क्रवार व शनिवार हैं । शु भ नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, पु ष्य, तीनो उतरा, हस्त, चित्रा,
स्वाति, अनुराधा, धनिष्ठा, रे वती हैं । कुछ विशे ष मु हूर्त :- उपरोक्त लिखे कार्य-विशे ष मु हूर्तों के अतिरिक्त निम्न दो
प्रकार के मु हूर्त कुछ अधिक ही विशे ष कहलाते हैं जिनमें शु भ नक्षत्र, तिथि या वार नहीं दे खा जाता। इन विशे ष
मु हूर्तों में किये गये कार्य अक्सर सफल ही रहते हैं – 1. अभिजित मु हूर्त – ज्योतिष में अभिजित को 28 वां नक्षत्र
माना गया है । इसके स्वामी ब्रम्हा व राशि मकर हैं । दिन के अष्टम मु हूर्त को अभिजित मु हूर्त कहते हैं । इसका
समय मध्याह्न से 24 मिनट पूर्व तथा मध्याह्न के 24 मिनट बाद तक माना गया है । अतः प्रत्ये क दिन स्थानीय समय
के लगभग 11:36 से 12:24 तक के समय को विजय या अभिजित मु हूर्त कहते हैं । इसमें किये गये सभी कार्य सफल
सिद्ध होते हैं । ऐसे में लग्न शुदधि् भी दे खने की आवश्यकता नहीं होती। यह विशे ष काल सभी दोषों को नष्ट कर
दे ता है । अभिजित नक्षत्र में जिस बालक का जन्म होता है , उसका राजा योग होता है , व्यापार में उसे हमेशा लाभ
रहता है । 2. अबूझ मु हूर्त – कुछ तिथियां ऐसी होती हैं जो शु भ मु हूर्त की तरह से काम करती हैं । इस दिन कोई भी
शु भ कार्य बिना मु हूर्त निकलवाये किया जा सकता है । ऐसी कुछ तिथियां हैं – अक्षय तृ तीया, नवीन संवत, फुलेरा
दूज, दशहरा, राम नवमी, भड्डली नवमी, शीतला अष्टमी, बैशाखी। मु हूर्त शास्त्र के कुछ सरल नियम जो शु भ
मु हूर्त को निकलवाने जैसे चक्करों से बचना चाहते हैं । ऐसे व्यक्तियों के लिये ही नीचे कुछ सरल से नियम दिये जा
रहे हैं जो विभिन्न कार्यो में सफलता दायक सिद्ध हो सकते हैं :- यात्रा के लिये रिक्ता तिथि को यात्रा नहीं करनी
चाहिये । 4, 9, 14 रिक्ता तिथियां होती हैं । यदि गोचर में वार स्वामी वक् री हो तो भी यात्रा निषे ध है । यदि वक् री
ग्रह यात्रा लग्न से केंद्र में हो तो भी यात्रा अशु भ रहती है । विद्याध्ययन मु हूर्त में द्विस्वभाव लग्न होने पर
उसकी प्राप्ति, स्थिर लग्न में मूर्खता व चर लग्न में भ्रांति होती है । विवाह के लिये 1,2,3,8,10,11 राशियों में सूर्य
का गोचर शु भ रहता है । विवाह समय की कुंडली में सप्तम स्थान में कोई ग्रह न हो तो शु भ रहता है । विवाह मु हूर्त
की कुंडली में चंद ्रमा का 8 वां व 12 वां होना अशु भ रहता है । वक् री गु रू का 28 दिन का समय विवाह हे तु अशु भ
होता है । अमावस्या का दिन विवाह के लिये ठीक नहीं है । ज्ये ष्ठ संतान का ज्ये ष्ठ मास में विवाह अशु भ होता है ।
कन्या विवाह के लिये गु रू का गोचर 4,8,12 भाव से अशु भ माना गया है । जन्म राशि, जन्म नक्षत्र का मु हूर्त कन्या
के विवाह हे तु शु भ माना गया है । कृष्ण पक्ष की 5 वीं व 10 वीं तिथियां तथा शु क्लपक्ष की 7 वीं व 13 वीं तिथियां
विवाह हे तु शु भ हैं । सोम, बु ध व शु क्रवार विवाह हे तु शु भ रहते हैं । गर्भाधान के लिये बु धवार व शनिवार शु भ नहीं
माने जाते क्योंकि ये दोनो दिन नपुस ं क माने गये हैं । अपने जन्म नक्षत्र, जन्म तिथि, जन्म माह, ग्रहण दिन, श्राद्ध
दिनों में गर्भाधान का फल अशु भ होता है । गृ हारं भ के समय सूर्य, चंद ्र, गु रू व शु क्र ग्रह नीच के नहीं होने चाहियें ।
गृ ह प्रवेश मिथु न, धनु व मीन का सूर्य होने पर नहीं करना चाहिये । शु क्ल पक्ष में गृ हारं भ मंगलकारी व कृष्ण पक्ष में
अशु भ रहता है । शनिवार को नींव या गृ हारं भ अति उतम रहता है । मंगल व रविवार को निर्माण कार्य शु रू नहीं करना
चाहिये तथा नवीन गृ ह प्रवेश भी नहीं करना चाहिये । निर्माण कार्य का लग्न स्थिर या द्विस्वभाव होना चाहिये ।
मु कदमा मंगलवार को दायर नहीं करना चाहिये । शनिवार को दायर किया गया मु कदमा लंबा खिांचता है । दे व
प्रतिष्ठा के लिये चै तर् , फाल्गुन, बैशाख, ज्ये ष्ठ व माघ मास शु भ होते हैं । श्रावण मास में शिव की, आश्विन में
दे वी की, मार्गशीर्ष में विष्णु की प्रतिष्ठा करना शु भ है । प्रतिष्ठा में सोम, बु ध, गु रू व शु क्रवार शु भ माने गये हैं ।
जिस दे व की जो तिथि हो, उस दिन उस दे व की स्थापना शु भ रहती है । यु ग तिथियां – सतयु ग, त्रेतायु ग, द्वापरयु ग
व कलियु ग जिन तिथियों का े पा्र रभ्ं ा हयु ,े उन तिथिया ें का े शभ्ु ा कार्य नहीं करने चाहियें । ये इस
प्रकार से हैं :- सतयु ग – कार्तिक शु क्लपक्ष की नवमी त्रेतायु ग – बैशाख शु क्लपक्ष की तृ तीया द्वापरयु ग – माघ
कृष्णपक्ष की अमावस्या कलियु ग – श्रावण कृष्णपक्ष की त्रयोदशी उपाय – यदि उचित मु हूर्त या शु भ योग नहीं
मिल रहा हो तो निम्न उपाय कर के कार्य किया जा सकता है :- यदि तारीख तय है तो केवल उस दिन की लग्न
शुदधि् करके सब अशु भ योगों का नाश किया जा सकता है । शु भ मु हूर्त न होने पर शु भ होरा/ चौघडिया का चयन कर
शु भ फल प्राप्त किया जा सकता है । विवाह का उचित मु हूर्त न मिलने पर अभिजित मु हूर्त में विवाह किया जा
सकता है । कार्य का प्रारं भ उसी नक्षत्र में किया जाये जिसका स्वामी ग्रह उच्च, स्व या मित्र राशिगत हो। ऐसा
समय चुनना चाहिये जब जातक की अंतर्दशा का स्वामी ग्रह महादशा स्वामी से षडाष्टक या द्वादश न हो। गोचरीय
चंद ्रमा यदि वक् री ग्रह के नक्षत्र से गोचर कर रहे हों तो वक् री ग्रह का दानादि कर लेना चाहिये । शनि-चंद ्र की
यु ति होने पर शनि शांति करवा लेनी चाहिये । यदि कोई कार्य चल रहा हो और मध्य में राहू काल आ जाये तो कार्य
रोकने की आवश्यकता नहीं है ।

नूतन गृ ह प्रवे श के लिये वास्तु पूजा का विधान—-


घर के मध्यभाग में तन्दुल यानी चावल पर पूर्व से पश्चिम की तरफ़ एक एक हाथ लम्बी दस रे खायें खींचे,फ़िर उत्तर
से दक्षिण की भी उतनी ही लम्बी चौडी रे खायें खींचे,इस प्रकार उसमे बराबर के ८१ पद बन जायें गे ,उनके अन्दर आगे
बताये जाने वाले ४५ दे वताओं का यथोक्त स्थान में नामोल्लेख करें ,बत्तीस दे वता बाहर वाली प्राचीर और तेरह
दे वता भीतर पूजनीय होते हैं । उनके लिये सारणी को इस प्रकार से बना ले वें:

शिखी पर्जन्य जयन्त इन्द्र सूर्य सत्य भृ श आकाश वायु

दिति आप जयन्त इन्द्र सूर्य सत्य भृ श सावित्र पूषा

अदिति अदिति आपवत्स अर्यमा अर्यमा अर्यमा सविता वितथ वितथ

सर्प सर्प पृ थ्वीधर विवस्वान गृ हक्षत गृ हक्षत

सोम सोम पृ थ्वीधर ब्रह्मा विवस्वान यम यम

भल्लाटक भल्लाटक पृ थ्वीधर विवस्वान गन्धर्व गन्धर्व


मु ख्य मु ख्य राज्यक्षमा मित्र मित्र मित्र विवु धिप भृं ग भृं ग

अहि रुद्र शे ष असु र वरुण पु ष्पदन्त सु गर् ीव जय मृ ग

रोग राज्यक्षमा शे ष असु र वरुण पु ष्पदन्त सु गर् ीव दौवारिक पितर


इस प्रकार से ४५ दे वताओं को स्थापित कर लेना चाहिये ,और यही ४५ दे वता पूजनीय होते है ,आप,आपवर्स पर्जन्य
अग्नि और दिति यह पांच दे वता एक पद होते है ,और यह ईशान में पूजनीय होते है ,उसी प्रकार से अन्य कोणों में भी
पांच पांच दे वता भी एक पद के भागी है ,अन्य झो बाह्य पंक्ति के बीस दे वता है ,वे सब द्विपद के भागी है ,तथा ब्रह्मा
सी पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशामें जो अर्यमा विवस्वान मित्र और पृ थ्वीधर ये चार दे वता है ,वे त्रिपद के
भागी है ,अत: वास्तु की जानकारी रखने वाले लोग ब्रह्माजी सहित इन एक पद,द्विपद और त्रिपद दे वताओं का
वास्तु मन्त्रों से दूर्वा,दही,अक्षत,फ़ू ल,चन्दन धूप दीप और नै वैद्य आदि से विधिवत पूजन करें ,अथवा ब्राह्ममंतर् से
आवहनादि षोडस या पन्च उपचारों द्वारा उन्हे दो सफ़ेद वस्त्र समर्पित करें ,नै वैद्य में तीन प्रकार के भक्ष्य,भोज्य,और
ले ह्य अन्न मांगलिक गीत और वाद्य के साथ अर्पण करे ,अन्त में ताम्बूल अर्पण करके वास्तु पु रुष की इस प्रकार से
प्रार्थना करे - “वास्तु पुरुष नमस्ते ऽस्तु भूशय्या निरत प्रभो,मदगृ हं धनधान्यादिसमृ द्धं कुरु सर्वदा”, भूमि शय्या पर
शयन करने वाले वास्तु पुरुष ! आपको मेरा नमस्कार है । प्रभो ! आप मेरे घरको धन धान्य आदि से सम्पन्न कीजिये ।

इस प्रकार प्रार्थना करके दे वताओं के समक्ष पूजा कराने वाले पुरोहित को यथाशक्ति दक्षिणा दे तथा अपनी शक्ति
के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हे भी दक्षिणा दे ,जो मनु ष्य सावधान होकर गृ हारम्भ में या गृ हप्रवेश के
समय इस विधि से वास्तु पज ू ा करता है ,वह आरोग्य पु तर् धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है ,जो मनु ष्य वास्तु
पूजा न करके नये घर में प्रवेश करता है ,वह नाना प्रकार के रोगों,क्लेश,और संकटों से जूझता रहता है ।

जिन मकानों में किवाड नही लगाये गये हो,जिनके ऊपर छाया नही की गयी हो,जिस मकान के अन्दर अपनी परम्परा
के अनुसार पूजा और वास्तु कर्म नही किये गये हो,उस घर में प्रवेश करने का अर्थ नरक मे प्रवेश करना होता है ॥
नारद पुराण ज्योति.स्कन्ध श्लोक -५९६ से ६१९॥

मु हर्त

मु हर्तू का मतलब है किसी शु भ और मां गलिक कार्य को शु रू करने के लिए एक निश्चित समय व तिथि का निर्धारण
करना। अगर हम सरल शब्दों में इसे परिभाषित करें तो, किसी भी कार्य विशे ष के लिए पं चां ग के माध्यम से निश्चित
की गई समयावधि को ‘मु हर्त ू ’ कहा जाता है । हिन्द ू धर्म और वै दिक ज्योतिष में बिना मु हर्त
ू के किसी भी शु भ कार्य की
कल्पना नहीं की जा सकती है । ज्योतिष शास्त्र के अनु सार हर शु भ कार्य को आरं भ करने का एक निश्चित समय
होता है । ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय विशे ष में ग्रह और नक्षत्र के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा का सं चार
होता है , अतः इस समय में किये गये निर्विघ्न रूप से सं पन्न और सफल होते हैं । हिं द ू धर्म में विवाह, गृ ह प्रवे श,
मुं डन, अन्नप्राशन और कर्णवे ध सं स्कार समे त कई मां गलिक कार्य शु भ मु हर्त
ू में ही किये जाते हैं ।

मु हर्त
ू का महत्व और उपयोगिता
प्राचीन काल से ही हिं द ू धर्म में मु हर्त
ू को महत्व दिया जाता रहा है । मु हर्त
ू को ले कर किए गए कई अध्ययनों में यह
बात सामने आई है कि, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना करके ही मु हर्त ू का निर्धारण किया जाता है । इसके
अलावा हर महत्वपूर्ण और शु भ कार्य के दौरान यज्ञ और हवन करने की परं परा है । ऐसी मान्यता है कि यज्ञ व हवन से
उठने वाला धु आं वातावरण को शु द्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का सं चार होता है । हिन्द ू समाज में लोग आज
भी मां गलिक कार्यों के सफलतापूर्वक सं पन्न होने की कामना के लिए शु भ घड़ी का इं तज़ार करते हैं ।

मु हर्त
ू को ले कर अलग-अलग तर्क और धारणाओं के बीच, हमें चाहिए कि हम स्वयं जीवन में इसकी प्रासं गिकता
और महत्व का अवलोकन करें । मु हर्तू की आवश्यकता क्यों होती है ? दरअसल मु हर्तू एक विचार है , जो इस धारणा
का प्रतीक है कि एक तय समय और तिथि पर शु रू होने वाला कार्य शु भ व मं गलकारी होगा और जीवन में खु शहाली
ले कर आएगा। ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है । क्योंकि
विभिन्न ग्रहों की चाल के फलस्वरूप जीवन में परिवर्तन आते हैं । ये बदलाव हमें अच्छे और बु रे समय का आभास
कराते हैं । इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम वार, तिथि और नक्षत्र आदि की गणना करके कोई कार्य आरं भ
करें , जो शु भ फल दे ने वाला साबित हो।

कैसे जानें शु भ मु हर्त


ू के बारे में ?
मु हर्त
ू के बारे में जानने का एकमात्र साधन है पं चां ग। वै दिक ज्योतिष में पं चां ग का बड़ा महत्व होता है । पं चां ग के 5
अं ग; वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण की गणना के आधार पर मु हर्त ू निकाला जाता है । इनमें तिथियों को पांच
भागों में बांटा गया है । नं दा, भद्रा, जया, रिक्ता, और पूर्णा तिथि है । उसी प्रकार पक्ष भी दो भागों में विभक्त है ;
शु क्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। वहीं नक्षत्र 27 प्रकार के होते हैं । एक दिन में 30 मु हर्त
ू होते हैं । इनमें सबसे पहले मु हर्त

का नाम रुद्र है जो प्रात:काल 6 बजे से शु रू होता है । इसके बाद क् रमश: हर 48 मिनट के अतं राल पर आहि,
मित्र, पितृ , वसु , वराह, विश्वे दवा, विधि आदि होते हैं । इसके अलावा चं दर् मा और सूर्य के निरायण और अक्षां श को
27 भागों में बांटकर योग की गणना की जाती है ।

नामकरण संस्कार- सं क्रां ति के दिन और भद्रा को छोड़कर 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियों में , जन्मकाल से
ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बु धवार अथवा शु क्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृ गशिरा, हस्त,
चित्रा, अनु राधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पु ष्य, स्वाति, पु नर्वसु , श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमें से किसी नक्षत्र
में चं दर् मा हो, तब बच्चे का नामकरण करना चाहिए।

मु ण्डन संस्कार- जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष में , चै तर् को छोड़कर उत्तरायण सूर्य
में , सोमवार, बु धवार, बृ हस्पतिवार अथवा शु क्रवार को ज्ये ष्ठा, मृ गशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा,
शतभिषा, पु नर्वसु , अश्विनी, अभिजित व पु ष्य नक्षत्रों में , 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियों में बच्चे का मुं डन सं स्कार
करना चाहिए।

विद्या आरं भ संस्कार- उत्तरायण में (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बु ध, बृ हस्पतिवार, शु क्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6,
10, 11, 12 तिथियों में पु नर्वसु , हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल,
पूष्य, अनु राधा, आश्ले षा, रे वती, अश्विनी नक्षत्रों में विद्या प्रारं भ करना शु भ होता है ।

मकान खरीदने के लिए- बना हुआ मकान खरीदने के लिए मृ गशिरा, अश्ले षा, मघा, विशाखा, मूल, पु नर्वसु एवं रे वती
नक्षत्र उत्तम हैं ।

पैसों के लेन-दे न के लिए- मं गलवार, सं क्रां ति दिन, हस्त नक्षत्र वाले दिन रविवार को ऋण ले ने पर ऋण से कभी
मु क्ति नहीं मिलती। मं गलवार को ऋण वापस करना अच्छा है । बु धवार को धन नहीं दे ना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी,
आर्द्रा, आश्ले षा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्ये ष्ठा, मूल नक्षत्रों में , भद्रा, अमावस्या में गया धन, फिर वापस नहीं
मिलता बल्कि विवाद बढ़ जाता है ।

ध्यान रखें : रोजमर्रा के कार्यों को करने के लिए कोई मु हर्त


ू नहीं निकाला जाता है , ले किन विशे ष कर्म व कार्यों की
सफलता हे तु मु हर्त
ू निकलवाना चाहिए ताकि शु भ घड़ियों का लाभ मिल सके।

विशे ष अवसरों पर शु भ मु हर्त ू का महत्व


शु भ मु हर्त
ू किसी भी मां गलिक कार्य को शु रू करने का वह शु भ समय होता है जिसमें सभी ग्रह और नक्षत्र उत्तम
परिणाम दे ने वाले होते हैं । हमारे जीवन में कई शु भ और मां गलिक अवसर आते हैं । इन अवसरों पर हमारी कोशिश
रहती है कि ये अवसर और भी भव्य व बिना किसी रुकावट के शां तिपूर्वक सं पन्न हों। ऐसे में हम इन कार्यों की
शु रुआत से पूर्व शु भ मु हर्त
ू के लिए ज्योतिषी की सलाह ले ते हैं । ले किन विवाह ,मुं डन और गृ ह प्रवे श समे त जै से
खास समारोह पर मु हर्त ू का महत्व और भी बढ़ जाता है । विवाह जीवन भर साथ निभाने का एक अहम बं धन है
इसलिए इस अवसर को शु भ बनाने के लिए हर परिवार शु भ घड़ी का इं तज़ार करता है ताकि उनके बच्चों के जीवन में
सदै व खु शहाली बनी रहे । इसके अलावा कई अवसर जै से गृ ह प्रवे श, प्रॉपर्टी और वाहन खरीदी जै से कई कामों में
भी शु भ मु हर्त
ू दे खने की परं परा है ।

मु हर्त
ू से सं बंधित सावधानियां
शु भ मु हर्त
ू में किये गये कार्य सफलतापूर्वक सं पन्न होते हैं ले किन अगर मु हर्त
ू को ले कर कोई चूक हो जाती है तो
परिणाम इसके विपरीत भी आ सकते हैं । इसलिए जरूरी है कि सही मु हर्त ू का चयन किया जाये । आजकल कई टीवी,
इं टरने ट और समाचार पत्र में कई तीज, त्यौहार और व्रत से जु ड़े मु हर्तू का उल्ले ख होता है ले किन फिर भी भ्रम की
स्थिति से बचने के लिए एक बार ज्योतिषी से ज़रूर सं पर्क करें । खासकर विवाह, मुं डन और गृ ह प्रवे श आदि कार्यों
के लिए बिना ज्योतिषी की सलाह के आगे नहीं बढ़ें । क्योंकि शु भ मु हर्तू पर शु रू किया गया हर कार्य जीवन में
सफलता, सु ख-समृ दधि ् और खु शहाली ले कर आता है ।
मु हूर्त  ( सं स्कृत : मुहूर्त ) हिं द ू कैलें डर में निमे श, काठ और कला [1] के साथ समय के लिए माप की एक हिं द ू इकाई है  ।
में  ब्राह्मण , मु हर्त
ू  एक दिन के 1/30, या 48 मिनट की अवधि: समय का एक प्रभाग को दर्शाता है । [२] ब्राह्मणों में
"क्षण" का भाव भी सामान्य है । [3] में  ऋग्वे द  [4] हम केवल भावना "पल" पाते हैं । [५]
इसके अलावा प्रत्ये क मु हर्त
ू को आगे ३० कला में विभाजित किया गया है , यानी भारतीय मिनट (१ कला = १.६
पश्चिमी मिनट या ९६ पश्चिमी से कंड बनाते हुए)। प्रत्ये क कला को आगे ३० काष्ठ अर्थात भारतीय से कंडों में
विभाजित किया गया है (१ काष्ठ ३.२ पश्चिमी से कंड बनाते हुए)।

शब्द-साधन

इस शब्द के लिए "सं धि विदछे द" इस प्रकार है : यह मु हर्त


ू को दो भागों में तोड़ता है , "मु हू" (पल / तत्काल) और
"एता" (आदे श)। ऋग्वे द III.33.5 के ले खक ने तदनु सार इस वर्णनात्मक शब्द की रचना की है । ता ऋतु ओं के
प्राकृतिक, वार्षिक क् रम को सं दर्भित करता है , इसलिए मु हर्त
ू शब्द इन के दै निक प्रतिबिं ब को सं दर्भित करता है ।
इसके अलावा, cf., शतपथ ब्राह्मण X.4.2.18, नीचे के रूप में ।

वै दिक काल में उपयोग

यह शब्द ऋग्वे द के रूप में जल्दी प्रकट होता है , जहां , मोनियर विलियम्स के अनु सार, इसका अर्थ "एक क्षण"
है , [६] ले किन बाद के कार्यों में प्राप्त सटीक आवधिकता के किसी भी विनिर्दे श का सबूत नहीं है , जै से कि शतपथ-
ब्राह्मण , "द वन हं ड्रेड पाथ रिडल" या तै त्तिरीय-ब्राह्मण , "द पार्ट्रिज रिडल"। [7]
पं . विजय श्रीकृष्ण जकातदार दो विशिष्ट g वे द अं शों की ओर इशारा करते हैं जो शब्द, III.33.5, और III.53.8 को
नियोजित करते हैं : [8]
रमध्वं मे वचसे सौम्याय रतावरीरूप मु हुर्तमे वैः | पर सिन्धु मछा बरहती वॉस्यु व्वे कुशिकस्य सूनुः ||
"मे रे अनु कूल बोली विश्राम पर थोड़ा रुको , पवित्र लोगों, अपनी यात्रा में एक पल । भजन के साथ आपके पक्ष
की याचना करते हुए कुसिका के बे टे ने नदी को बु लाया है ।" (ट् रांस। राल्फ टीएच ग्रिफ़िथ [9] ) 
और
रूपं -रूपमं माघवा बोभवीति मायाः कर्ण्वानस्तनवं परि स्वम | तर्यद दिवः परि मु हर्त
ू मागात सवै रमनत्रैरे न्र्तुपा रतावा
||
"माघवन अपने शरीर में जादुई परिवर्तनों को प्रभावित करते हुए, हर आकार को आनं द में पहनता है , पवित्र,
मौसम के बाहर पीने वाला, एक पल में  , एक पल में  , उचित प्रार्थना के माध्यम से , स्वर्ग से ।" (उपरोक्त। [10] )
तै त्तिरीय-ब्राह्मण में 15 मु हर्तो
ू ं के नामों का उल्ले ख इस प्रकार है :
(१) यु क्ति: (२) विज्ञानं (३) प्रज्ञानां (४) जनद (५) अभिजनत | 
(६) सं कल्पपमानं (७) प्रकल्पमानम (८) उपकल्पनाम (९) उपाप्तम् (१०) कुप्तम | 
(११) ऑरे यो (१२) वसु य (१३) आयत (१४) सं भत ू : (१५) भूतम | 
सिट् रं केतुं प्रबं धनभं त प्रबं धन | 
ज्योतिष्मं -ते जस्वनातपं -तपन-अभितापन | 
रोकानो रोकमानं शोभनं शोभमानं कल्याण: | 
दर्शन दी दर्शन विश्वरूपा सु रदर्शन | 
आप्य-अयामाणापयामानापया सु -निते रा | 
अपर्यमना प्रियमण् प्रियं ति पूर्णा पौरमासी | 
दाता प्रदतानन्दो मोड: प्रमोद: || III.10.1.1 ||
शतपथ ब्राह्मण एक मु हर्त
ू को दिन के १/१५वें भाग के रूप में वर्णित करता है :
अत्त यक्कातु र्विशतिमत्मानो'कुरुता | ताशमाक-चतु र-विशति-अर्ध-मासां सां -वत्सरां स एतै ś-चतु र-विष्ट्या त्रिश-
शद-इशाकैर-आत्माबीर-न व्यबशवत-स पं च-दशनाहनो रूपापाद- मु हु त्राश्यन्ते तस्मान-मु हर्त ू अत्त यत-कुद्रां
सं ता इमां -लोकान-अपिरयन्ति तस्माल-लोकम-प्राणां || (एक्स.4.2.18)
saṃvatsarásya मु हर्तू  yāvanto muhūrtās tāvanti páñcadaśa kŕ̥ ̄ tvaḥ kṣiprāṇi yāvanti kṣiprāṇi tāvanti
páñcadaśa kŕ̥ tva etárhīṇi yāvanty etárhīṇi tāvanti páñcadaśa kŕ̥ ̄ tva idānīni yāvantīdānīni tāvantaḥ
̄
páñcadaśa kŕ̥ ̄ tvaḥ प्राण yāvantaḥ Pranas tāvanto 'na yāvanto' NAS tāvanto nimeṣā yāvanto nimeṣās
tāvanto lomagartā yāvanto lomagartās tāvanti svedāyanāni yāvanti svedāyanāni tāvanta Ete Stoka
varṣanti / / बारहवीं.३.२.५बी
मनु स्मृ ति में कहा गया है कि १८ निमे ष (आं खों की झिलमिलाहट) १ काठ हैं , ३० काठ १ काल हैं , ३० काल एक मु हर्त

हैं , और ३० मु हर्त
ू एक दिन और रात हैं ।

अनुष्ठान महत्व

किसी विशे ष मु हर्त ू की गु णवत्ता के आधार पर महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों जै सी गतिविधियों को करना या उनसे
बचना हिं द ू धर्म में एक आम बात है । [११] अनु ष्ठान और अन्य समारोह करते समय वै दिक शास्त्रों द्वारा एक या
अधिक मु हर्तो ू ं की सिफारिश की जाती है । [११] यह वै दिक-हिं द ू विवाह समारोह के लिए सबसे शु भ क्षण की गणना के
लिए वर्तमान दक्षिण एशिया में "मु हर्त ू " का उपयोग करने के तरीके से प्रदर्शित होता है । ज्योतिषियों को अक्सर
शादी के लिए एक पल की गणना करने के लिए काम पर रखा जाता है ताकि किसी भी सं भावित दै वीय स्रोत की
समस्याओं को टाला जा सके। जकातदार आधु निक जीवन की लगातार बढ़ती जटिलता को समायोजित करने के
लिए ऐसी घटनाओं की गणना के लिए पारं परिक दृष्टिकोण के सं बंध में समकालीन स्वभाव में बदलाव का सु झाव
दे ते हैं । [८] हिं द ू धर्म में विवाह सं स्कारों में मु हर्त
ू की समान उपयोगिता है । [12]
एक अन्य उदाहरण तथाकथित ब्रह्म मु हर्त ू है , जो सूर्योदय से लगभग डे ढ़ घं टे पहले का है । यह विशे ष समय, जो
कि वर्णा विषु व के दौरान नक्षत्रों से जु ड़ा होता है , योग के अभ्यास के लिए शु भ माना जाता है । [11] वहाँ भी के
मामले है  samayik , जिसके लिए दीक्षा सं स्कार का हिस्सा है  Svetambar mendicants या जो बढ़ ध्यान जागरूकता
की एक सतत राज्य को आगे बढ़ाने । वे ले  samayik, सं क्षिप्त अवधि के, अधिमानतः एक या दो शु भ मानने , जहां
एक muhūrt चालीस मिनट का गठन के लिए ले जाया जीवन के लिए एक व्रत। [13]

वार्षिक अंशांकन

ू ं की पारं परिक रूप से गणना [ उद्धरण वां छित ] ०६:०० बजे प्रातः काल के विषु व पर सूर्योदय मानकर की जाती है , जो
मु हर्तो
कि वै दिक नव वर्ष है । [ उद्धरण वां छित ] सभी नक्षत्र आं चल को पार नहीं करते हैं , इसलिए यह हर मामले में स्पष्ट नहीं है
कि कौन सा नक्षत्र मु हर्त ू की अध्यक्षता करता है । फिर भी यह स्पष्ट है कि सहसं बंधी नक्षत्रों की एक या अधिक
प्रमु ख विशे षताएं , जिनसे बाद के मु हर्त ू अपने -अपने नाम ले ते हैं , ध्रुवीय अक्ष से खींचे गए उसी के आकाशीय
दे शांतर के भीतर आते हैं ।

महत्व

परं परागत रूप से , हिं दुओं के बीच किसी विशे ष मु हर्त


ू की गु णवत्ता के आधार पर धार्मिक समारोहों आदि जै से
महत्वपूर्ण कार्यों को शु रू करने या शु रू करने से बचने के लिए यह आम बात है । वै दिक शास्त्रों भी आम तौर पर
रस्में और प्रथाओं प्रदर्शन करने के लिए एक या अधिक Muhūrtas सलाह दे ते हैं । इस अभ्यास का सबसे व्यापक
रूप से ज्ञात उदाहरण:

 ब्रह्म मु हर्त
ू  , सूर्योदय से लगभग डे ढ़ घं टे पहले या अधिक सटीक रूप से 1 घं टा 36 मिनट है । यानी ९६
मिनट = २ मु हर्त ू या ४ घण्का, योग के सभी अभ्यासों में सिफारिश की जाती है जिसे पारं परिक रूप से  ध्यान
के लिए सबसे उपयु क्त माना जाता है । [१४] हालां कि, विशिष्ट नक्षत्रों के नामों के जु ड़ाव से यह स्पष्ट है कि
वर्तमान ब्रह्म-मु हर्तू वर्णाल विषु व के दौरान सु बह ६:०० बजे से ठीक पहले शु रू होता है । वर्तमान में , जीव-
अमृ त और विष्णु में सूर्योदय से पहले दो गोधूलि मु हर्त ू शामिल हैं ।

मु हर्त
ू क्या है ? मु हर्त
ू के प्रकार एं व महत्व (What is Muhurta in Hindi? Types and Significance of Muhurta in
Hindi)
समय एक महत्वपूर्ण अवधारणा है , जिसकी व्याख्या विभिन्न सं स्कृतियों और परं पराओं में जु ड़ी हुई है । वै दिक यु ग
से , लोगों ने समय की धारणा को जोड़ा है । भारत में प्राचीन दिनों में , लोगों ने माप का उपयोग करके समय की
गणना की जो प्रचलित पश्चिमी मानदं डों से भिन्न थी। मु हर्त ू 48 पश्चिमी मिनटों या 30 कलाओं की अवधि को
दर्शाता है । तो आइये जानते है , मु हर्त
ू क्या है ?

एक दिन और रात में 30 मु हर्त


ू 24 पश्चिमी घं टों के बराबर है । प्राचीन शास्त्रों के अनु सार, मु हर्त
ू या तो शु भ,
तटस्थ या अशु भ हो सकते हैं । कोई भी कार्य करते समय चाहे वह पूजा हो या कोई नया व्यवसाय शु रू करना, चु ने
हुए मु हर्त
ू की गु णवत्ता पर विचार करना आवश्यक है । जब हम अनु कूल मु हर्त ू में अपना कर्तव्य निभाते हैं , तो
परिणाम बहुत बे हतर और अधिक सकारात्मक होंगे ।

ू एक सं स्कृत शब्द है जो दो अन्य शब्दों से बना है - मु हू और रता मु हू का अर्थ है तत्काल या क्षण, और रता एक
मु हर्त
आदे श को सं दर्भित करता है । ऋग्वे द में , रता का तात्पर्य विभिन्न ऋतु ओं के वार्षिक क् रम से है । ऋग्वे द में मु हर्त
ू की
विस्तृ त व्याख्या है । एक मु हर्त
ू 30 कला या 48 मिनट का होता है । प्रत्ये क काल 30 कश्त के बराबर होता है , जो कि
1.6 मिनट के बराबर होता है ।

ऋग्वे द के अलावा शतपथ ब्राह्मण और तै त्तिरीय ब्राह्मण में मु हर्त ू का उल्ले ख मिलता है । ब्राह्मणों के अनु सार,
मु हर्त
ू समय का एक विभाजन है , जो या तो एक दिन का तीसवां भाग या 48 मिनट का होता है । तै त्तिरीय ब्राह्मण में
पन्द्रह मु हर्तो
ू ं का वर्णन मिलता है । इनमें विज्ञानं म, सं ज्ञानम, जनाद, सबिजनत, सं कल्पमनम, प्रकल्पनम आदि
शामिल हैं । मनु स्मृ ति में , एक कस्त को 18 निमिसा कहा जाता है । निमिष का अर्थ है आं खों का झपकना।

मु हूर्त के प्रकार (Types of Muhurtas in Hindi) :


पूजा में मु हर्त
ू के महत्व से निपटने से पहले , एक दिन में विभिन्न मु हर्तो
ू ं को दे खना आवश्यक है । उनमे शामिल है :

1. चौघड़िया मु हूर्त  - नया काम शु रू करने के लिए यह सबसे उपयु क्त समय है । यह कई भारतीय राज्यों में एक प्रथा
है । यहां प्रत्ये क काल को चौघड़िया कहा जाता है , जो डे ढ़ घं टे या 3.75 घाट के बराबर होता है । यहाँ शु भ मु हर्त ू
शु भ, लाभ और अमृ त हैं । अशु भ मु हर्त ू रोग, काल और उदवे ग हैं ।
2. ब्रह्म मु हूर्त  - यह सूर्योदय से डे ढ़ घं टे पहले का होता है । आयु र्वे द के अनु सार हमारे शरीर में तीन दोष होते हैं । वे वात
(वायु और आकाश), पित्त (अग्नि और जल), और कफ (पृ थ्वी और जल) हैं । 24 घं टों के भीतर, इन दोषों की अलग-
अलग अवधि होती है । 2 AM से 6 AM के बीच का समय वह समय होता है जब वात सक्रिय होता है और इसमें
ब्रह्म मु हर्त
ू पड़ता है । इसलिए ब्रह्म मु हर्त ू में ध्यान या योग करना अत्यं त लाभकारी होता है ।
3. अभिजीत मु हूर्त  - निवे श करने और बै ठकें आयोजित करने के लिए भी यह दिन का सबसे अच्छा समय है । अभिजीत
मु हर्त
ू के दौरान जब हम इन कार्यों में सं लग्न होंगे , तो परिणाम सकारात्मक होंगे ।
4. राहु काल - यह एक अशु भ समय है और किसी भी व्यावसायिक ले नदे न के सं चालन के लिए उपयु क्त नहीं है । राहु
काल के दौरान भक्त पवित्र कर्म या पूजा करने से रोकते हैं । हालाँ कि, राहु काल में आप जो कार्य पहले से कर रहे
थे , उसे जारी रखने में कोई समस्या नहीं है ।
5. शु भ होरा - यह एक दिन में शु भ मु हर्त ू को दर्शाता है । यह प्रार्थना, अनु ष्ठान और विवाह समारोहों को दे ने के लिए
सबसे उपयु क्त है । चूंकि शादियों की नई शु रुआत होती है , इसलिए लोग इसे करने से पहले शु भ मु हर्त ू चु नते हैं ।
ये दिन के कुछ मु हर्त ू हैं । शु भ मु हर्त
ू के अनु सार अपने दिन की योजना बनाना हमे शा बे हतर होता है । जब हम पूजा
करते हैं , तो शु भ मु हर्त
ू में ऐसा करना फायदे मंद होता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि यह परिणामों में वृ दधि ् करे गा और
साथ ही दै वीय शक्ति के साथ हमारे सं बंध को बे हतर करे गा।

पूजा में मु हूर्त का महत्व (Significance of Muhurta in a Puja in Hindi) :


हिं द ू धर्म में , भक्त अनु ष्ठान, प्रार्थना, समारोह और पूजा करने के लिए एक शु भ समय चु नते हैं । ज्योतिषीय
मान्यताओं के अनु सार, शु भ मु हर्त ू में किए जाने पर किसी कार्य के सफल होने की सं भावना बढ़ जाती है । इसी तरह,
जब हम किसी अनु कूल मु हर्त ू में पूजा करते हैं तो आप उसमें भाग ले ने के लाभों को ग्रहण कर सकते हैं ।

 प्राचीन वै दिक दिनों में लोग यज्ञ करने के लिए मु हर्त


ू को चु नते थे ।
 जिन लोगों की जन्म कुंडली नहीं है या वे दोष से पीड़ित हैं , उन्हें पूजा करते समय मु हर्त
ू दे खना चाहिए।
 शु भ मु हर्त
ू के दौरान पूजा में भाग ले ने से बु री शक्तियों और नकारात्मक जीवन शक्ति से बचा जा सकता है ।
 ू , जो अनु कूल है , हमारे शरीर में ऊर्जा प्रवाह के असं तुलन को दरू करने में मदद कर
ज्योतिष के अनु सार, एक मु हर्त
सकता है ।

 यह हमें बे हतर निर्णय ले ने में मदद करता है और हमें आत्मविश्वास भी प्रदान करता है ।

ये शु भ समय के दौरान पूजा करने या उसमें भाग ले ने से जु ड़े कुछ महत्व हैं । हमे शा ध्यान दें कि मं दिरों में पूजा मु हर्त

के आधार पर की जाती है । मु हर्त
ू में ग्
र हों की स्थिति उल्ले खनीय होती है । उनकी व्यवस्था उन कार्यों में सकारात्मक
परिणाम प्राप्त करने में सहायता करती है जो कोई प्रयास कर रहा हो सकता है । ज्योतिष में , मु हर्त ू की बे हतर
समझ हासिल करने के लिए लग्न और नक्षत्र के साथ सप्ताह के दिनों के सं योजन पर विचार करना आवश्यक है ।
किसी कार्य में सं लग्न होना सबसे अच्छा है :

• जब हमारी कुंडली के अष्टम भाव में कोई ग्रह न हो


• जब लग्न शु भ ग्रह पर हो
• जब लग्न पाप करतारी और चं दर् मा के साथ न हो
• जब यह अमावस्या का दिन न हो
• जब यह चं दर् मास के चौथे , नौवें या चौदहवें दिन हो
• जब ग्रह त्रिखा या केंद्र भाव में हो
• जब यह रिक्त तिथि में न हो

ज्योतिष के अनु सार शु भ मु हर्त


ू खोजने के ये कुछ पहलू हैं । वे एक नया व्यवसाय शु रू करने , शादी, गृ ह प्रवे श, पूजा
और अन्य नए उपक् रमों जै से समारोहों का आयोजन करने के लिए सबसे उपयु क्त हैं । यह आपके द्वारा किए जा रहे
कार्य में सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने की सं भावना को बढ़ाता है ।

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