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पांच तत्व 25 प्रकृ ति के नाम

ये वही पांच तत्व है जिससे मानव का शरीर बना है, इसी को पांच तत्व कहा गया है,
( 1.पृथ्वी, 2.जल, 3. अग्नि, 4.वायु, 5. आकाश, )
इन्ही पांचो तत्व के अलग से 5-5 विकृ ति है, जिन्हें मिलकर 25 विकृ ति होते है।

पृथ्वी तत्व से जल तत्व से अग्नि तत्व से वायु तत्व से आकाश तत्व से


मांस लार भूख बोलना शब्द
हड्डी पसीना प्यास सुनना रस
त्वचा खून आलस्य फै लना गंध
रन्ध वीर्य निंद्रा सिकु ड़ना स्पर्श
नाख़ून मूत्र जंभाई बल लगाना आविर्भाव/DWESH

#तेरी_पाँच_तत्व_की_काया_जिसमे_ब्रह्म_ज्ञान_समाया

🥀जैसा हम सब जानते है की मानव शरीर 5 तत्व से बना हुआ है ये करीब करीब सब


ही जानते है ।

🥀लेकिन एक एक तत्व की पाँच पाँच प्रकृ ति भी है ये हम कम ही जानते है ।

🌺हमारा शरीर तथा ब्रह्माण्ड का निर्माण एक जैसा ही हुआ है और सारा ब्रह्माण्ड हमारे
अपने ही अंदर मौजूद है नादान

🍃सभी तत्व हमारे शरीर में अपने अपने स्थान पर रहते हैं और ये सब अपनी अपनी
प्रकृ ति के साथ हमारे शरीर ही वास करते है। जैसे:-

👉🏻पृथ्वी तत्व~ 👉🏻जल तत्व~🌺 👉🏻अग्नि~🌺 👉🏻वायु तत्व🌺 👉🏻आकाश तत्व🌺

🌺 1🌿 खून 1🌾भूख 1🍃बोलना 1🌿 लज्जा

1🍃हड्डी, 2🌿लार 2🌾प्यास, 2🍃सुनना 2🌿भय

2🍃मांस, 3🌿पसीना 3🌾आलस्य 3🍃सिकु ड़ना 3🌿मोह

3🍃त्वचा, 4🌿मूत्र 4🌾निंद्रा 4🍃फै लना 4🌿राग

4🍃रंध्र, 5🌿वीर्य 5🌾जंभाई 5🍃बल लगाना 5🌿द्वेष

5🍃नाखून
👉🏻इसी के साथ साथ हमारे शारीर में 👉🏻पाँच काम इंद्रियाँ ,

👉🏻पाँच ज्ञानेंद्रियाँ भी होती है

जो इस प्रकार है 👇🏻

👉🏻काम इन्द्रियाँ🌺 👉🏻ज्ञान इन्द्रियाँ🌺

1🌿पैर 🍃आंख

2🌿गुदा 🍃नाक

3🌿लिंग 🍃कान

4🌿मुंह 🍃मुंह

5🌿हाथ 🍃त्वचा

इन सबके साथ साथ इनका भी निवास हमारी काया में होता है इनको को भी जान
लीजिये जो इस प्रकार है

👇🏻

🌹मन🌹बुद्धि 🌹अहंकार 🌹चित्त

🌹और ईश्वर (अलख)

🥀इन सब का ही हमारी मानव काया में निवास रहता है।

🥀इन सबका सही ज्ञान ही हमे हमको सही दिशा दिखा सकता है नादान

🥀अलख आदेश

🥀नाथ जी की फौज करेगी मौज


नमस्कार दोस्तो,आज के इस लेख मे हम बात करने वाले प्रकृ ति के उन पांच तत्वो के
बारे में जो हम सभी के जीवन को संतुलित करते है और हम सभी को जीवन में आगे
बढ़ने के लिए प्रेरित करते है तो चलिए शुरू करते है। ….

ऐसा कहा जाता है कि प्रकृ ति के पांच तत्व हैं जिनमें सब कु छ शामिल है: आकाश
(अंतरिक्ष), अग्नि (अग्नि), जल (जल), पृथ्वी (पृथ्वी)।

हमें जीवन में समस्याओं को समझने के लिए इन पांच तत्वों को समझने की जरूरत है
– चाहे वह हमारे रिश्ते या वित्तीय मुद्दों या शारीरिक मुद्दों या मानसिक मुद्दों या यहां
तक कि हमारे आध्यात्मिक जीवन के बारे में हो।

यदि किसी भी तत्व के बीच किसी प्रकार का असंतुलन है, तो यह इन समस्याओं का


कारण बन सकता है। और इन समस्याओं को हल करने का एकमात्र तरीका तत्वों को
संतुलित करना है।

हम सभी को ये तो पता होता है कि पांच तत्वों का एक समूह होता है जिससे एक


शरीर का निर्माण होता है लेकिन हमको ये नही पता होता है कि पांच तत्वों (पंच
महाभूत या पंच तत्व) को संतुलित करना आपके जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?

अधिक उन्नत योग अभ्यास के लिए पांच तत्वों का ज्ञान एक आवश्यक पूर्व-आवश्यकता
है क्योंकि तत्व उस दुनिया का निर्माण करते हैं जिसमें हम रहते हैं और हमारे शरीर-
मन की संरचना होती है।

सभी योग अभ्यास पांच तत्वों पर काम करते हैं, चाहे हम इसे जानते हों या नहीं।
तत्वों (तत्वों) का ज्ञान भी योग चिकित्सा और आयुर्वेद, पारंपरिक भारतीय चिकित्सा का
आधार है।

तत्वों के साथ सचेत रूप से काम करके , हम सीखते हैं कि स्वास्थ्य कै से प्राप्त किया
जाए और कै से बनाए रखा जाए और उच्च जागरूकता के आधार पर सचेत रूप से एक
लंबे और पूर्ण जीवन का आनंद कै से लिया जाए
आज के इस लेख में आप जानेगे कि किस तरह से आप इन पांच तत्वों को आसानी के
साथ संतुलित कर सकते है,

1)आकाश (अंतरिक्ष)

अंतरिक्ष दो चीजों के बीच कइ गैप को परिभाषित करता है, और यह अप्रतिरोध का


तत्व भी है। इस प्रकार, यह इस बारे में बात करता है कि हमारे शरीर के joints,
रिश्तों, विचारों आदि के बीच किसी प्रकार की जगह कै से बनी रहनी चाहिए।

उदाहरण के लिए, यदि हमारे जोड़ों के बीच किसी प्रकार की जगह कम हो जाती है, तो
हमें जोड़ों में दर्द महसूस होता है। इसी तरह अगर विचारों के बीच में किसी तरह की
जगह कम हो जाए तो यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। रिश्ते
में एक निश्चित स्तर की जगह होनी चाहिए।

2.)वायु (हवा)

हवा अस्थिर गति, ठं डी और शुष्क का प्रतीक है। स्थिरता के लिए किसी भी तत्व को
जीवन में पूरी तरह से प्रवाहित होना चाहिए। यदि हवा तेजी से बहती है, तो यह
शारीरिक रूप से मांसपेशियों की परेशानियों, अस्थिर रिश्ते, मानसिक रूप से चंचल मन
का कारण बन सकती है। और हवा की मात्रा कम होने की स्थिति में, विचारों की कमी,
निम्न रक्तचाप, आलस्य, रिश्ते में प्यार की कमी हो सकती है।

यदि आप किसी व्यवसाय पर विचार कर रहे हैं, तो हवा की कमी के परिणामस्वरूप


उस काम को अच्छे से करने में आपको परेशानी आ सकती है। इसलिए इसका सही से
काम करते रहना बहुत ही जरूरी होता है।

3)अग्नि

आग गर्मी का प्रतीक है जो चीजों को परिपक्व बनाती है, पिघलने और शुद्धिकरण में


सहायता करती है। अग्नि कु छ भी रूपांतरित कर सकती है: यह ठोस को द्रव में, द्रव
को गैस में रूपांतरित कर सकती है।

जब आग का संतुलन होता है, तो यह एक लोहे को और जोड़ों के ऑस्टियोफाइट्स और


रीढ़ की हड्डी को पिघला सकती है। हालांकि, अगर आग की मात्रा बढ़ जाती है, तो यह
सीने में जलन, जलन के साथ, क्रोध, आक्रामकता आदि को बढ़ा सकती है। आग की
कमी होने पर यह भूख, मधुमेह, रचनात्मकता की कमी और यहां तक कि रिश्ते की
अच्छी गर्माहट को भी कम कर सकता है।

4. जल (पानी)

पानी शीतलता का प्रतिनिधित्व करता है। यह किसी भी चीज़ को एक नयी दिशा देने में
मदद करता है और इसमें एकजुट गुण होते हैं। पानी बहुत लचीला होता है और किसी
भी गिलास में डालने पर यह कोई भी रूप ले सकता है।

हालाँकि, पानी की अधिकता शरीर में सूजन पैदा कर सकती है। पानी अनुकू लन क्षमता
और लचीलेपन का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो एक रिश्ते के महत्वपूर्ण हिस्से हैं
क्योंकि एक रिश्ते को समायोजन और सहजता की आवश्यकता होती है।

5. पृथ्वी

पृथ्वी दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करती है। पृथ्वी कठोर, भारी और स्थिर है। यह कु छ पकड़
सकता है और कु छ रोक सकता है। जब पृथ्वी की कमी होती है, तो आपके बाल झड़
सकते हैं, दांत कमजोर हो सकते हैं, हड्डियां भंगुर हो सकती हैं, खून बहना बंद नहीं हो
सकता है, रिश्ते अस्थिर हो सकते हैं।

इसकी अधिकता होने पर पाचन में कठिनाई हो सकती है, शरीर में ट्यूमर बन सकते
हैं। एक स्वस्थ शारीरिक, मानसिक और संबंध जीवन के लिए एक सही संतुलन होना
आवश्यक है।

इन तत्वों के बीच में कु छ इस तरह से संबंध होता है जो कि इनकी प्रकृ ति के बारे में
बताता है तो अब जानते है तत्वों के बीच संबंध-

पांच तत्वों के बीच संबंध

पांच तत्वों में से प्रत्येक का प्रकृ ति के आधार पर अन्य तत्वों के साथ एक निश्चित
संबंध है। ये संबंध प्रकृ ति के नियमों का निर्माण करते हैं। कु छ तत्व शत्रु हैं, इसमें
प्रत्येक दूसरे की अभिव्यक्ति को अवरुद्ध करता है।

उदाहरण के लिए, आग और पानी मौका मिलने पर एक-दूसरे को “नष्ट” कर देंगे। एक


साथ रहने के लिए आग और पानी को अलग करने की जरूरत है.. शरीर में बहुत
अधिक आग सूजन पैदा करेगी, जबकि बहुत अधिक पानी आग को कम कर सकता है
और अपच का कारण बन सकता है।

पांच तत्वों की शरीर में उपस्थिति

ऐसा करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है शरीर में तत्वों के प्राकृ तिक क्रम को
सीखना। आधार पर पृथ्वी और जल हैं, नाभि के नीचे, धड़ के बीच में आग होती है।

जब हम आसन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करते हैं तो इसके बारे में जागरूकता
बनाए रखने से तत्वों में ऊर्जा का उचित वितरण होता है। जैसे-जैसे प्राण शरीर में नीचे
और ऊपर की तरफ जाता रहता है वैसे वैसे ये हमारे शरीर से सभी हिस्सों को जगाता
रहता है और धीरे धीरे हमारे तत्व संतुलन में आते है

पांच तत्वों का महत्व (Importance of Five Elements)

विद्वानों के द्वारा कहा गया है कि इस संसार की संरचना पांच तत्वों के माध्यम से ही


हुई है और इन पांच तत्वों की मदद से ही प्रकृ ति का संतुलन बना रहता है। अगर इन
पांच तत्वों में से किसी भी एक तत्वों का असंतुलन हो जाता है तो सृष्टि पर प्रलय हो
सकता है और हर तरफ से प्रकृ ति को नुकसान हो सकता है और पंचतत्व की मदद से
ही मानव शरीर बना होता है।

अगर हम बात करें आकाश की तो उस के माध्यम से हमको सुनने की शक्ति प्राप्त


होती है। जब घर में शांत माहौल होता है या हमारे आसपास शांत वातावरण होता है तो
हम को सुनने की क्षमता मिलती है और पृथ्वी के माध्यम से हम को सूंघने की शक्ति
मिलती है और अगर हम जल की बात करें तो उस के माध्यम से हमको स्वाद का
अनुभव होता है और जब अग्नि की बात आती है तो हम को स्पर्श करने की शक्ति
मिलती है।

मानव शरीर के अंदर अग्नि और वायु दोनों का ही स्थान होता है और इनके असंतुलन
से शरीर में अनेक तरह के रोग उत्पन्न होने लग जाते हैं और हमारा शरीर बीमारियों
से घिर जाता है। इसलिए आप को संतुलित जीवन जीने के लिए इन सभी तत्व को
संतुलन में रखना जरूरी होता है क्योंकि पंचतत्व ऊर्जा का भंडार होते हैं और इनके
अंदर से ही ऊर्जा निकलती है और हम सभी उस उर्जा के माध्यम से ही अपने जीवन
को बेहतर तरीके से जीते हैं। इसलिए जीवन को संतुलित रखने के लिए पांच तत्वों का
संतुलन में होना बहुत जरूरी होता है .
निष्कर्ष(Conclusion)

आज के इस लेख के अंदर हमने पांच तत्वों के महत्व के बारे में जानने की कोशिश की
है और हमने साथ ही साथ यह जानने की कोशिश की है कि किस तरह से पांच तत्व
हमारे जीवन को संतुलित करते हैं और हमको प्रगतिशील रहने में हमारी मदद करते हैं।

अगर हमारे जीवन में इन पांच तत्वों में से किसी भी एक तत्व की कमी हो जाती है
तो हमारा जीवन जीना असंभव होता है क्योंकि हमारे जीवन की नींव पूरी तरह से इन
पांच तत्वों के ऊपर ही निर्भर करती है और अगर किसी भी तत्वों के बीच में संतुलन
होता है तो उसका असर मनुष्य के जीवन पर बुरी तरह से पड़ता है। इन सभी तत्वों के
बैलेंस से ही हम खुद को अच्छा रख सकते है इसलिए ऊपर दिए हुये पॉइंट्स को अच्छे
से समझे और उनको फॉलो करे,

आशा करते हैं कि आपको किस लेख के माध्यम से आज कु छ नई जानकारी सीखने को


मिली होगी और कु छ महत्वपूर्ण बिंदु को समझने का मौका आपको इस लेख के माध्यम
से जरूर मिला होगा। अगर आपको इस लेख की जानकारी अच्छी लगी तो इसको अपने
दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।

पञ्चभूत
पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं।
आकाश (Space) , वायु (Quark), अग्नि (Energy), जल (Force) तथा पृथ्वी
(Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन
इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा
चाहिए। आत्मा को वैदिक साहित्य में पुरुष कहा जाता है। सांख्य शास्त्र में प्रकृ ति इन्ही
पंचभूतों से बनी मानी गई है।

योगशास्त्र में अन्नमय शरीर भी इन्हीं से बना है। प्राचीन ग्रीक में भी इनमें से चार
तत्वों का उल्लेख मिलता है - आकाश (ईथर) को छोड़कर।
यूनान के अरस्तू और फ़ारस के रसज्ञ जाबिर इब्न हय्यान इसके प्रमुख पंथी माने जाते
हैं। हिंदू विचारधारा के समान यूनानी, जापानी तथा बौद्ध मतों में भी पंचतत्व को
महत्वपूर्ण एवं गूढ अर्थोंवाला माना गया है।

योग में[संपादित करें]


पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष
कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृ ति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में
पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को
प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। यहाँ तत्व के नाम का अर्थ उनके भौतिक रूप
से नहीं है - यानि जल का अर्थ पानी से जुड़ी हर प्रकृ ति या अग्नि का अर्थ आग से
जुड़ी हर प्रकृ ति नहीं है। योगी आपके छोड़े हुए सांस (प्रश्वास) की लंबाई के देख कर
तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व से आप अपने मनोकायिक
(मन और तन) अवस्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता लगाने से आप, योग
द्वारा, अपने कार्य, मनोदशा आदि पर नियंत्रण रख सकते हैं। यौगिक विचारधारा में
इसका प्रयोजन (भविष्य में) अवसरों का सदुपयोग तथा कु प्रभावों से बचने का प्रयास
करना होता है। लेकिन ये यौगिक विधि, ज्योतिष विद्या से इस मामले में भिन्न है के
ग्रह-नक्षत्रों के बदले यहाँ श्वास-प्रश्वास पर आधारित गणना और पूर्वानुमान लगाया
जाता है।
[1]

पृथ्वी एक मात्र देवी का स्वरूप है और सूर्य एकमात्र देव इनको आप आदि शक्ति माँ
सरस्वती (बुध), माँ महालक्ष्मी (शुक्र), माँ अन्नपूर्णा (पृथ्वी) अब आगे माँ वैष्णवी
(मंगल) तथा सूर्य के रूप में महादेव इन चार पिण्डो यानि धरतीयों में नारायण
(जीवात्मा) को पोषित करते हैं।

तत्व का स्वभाव[संपादित करें]

तत्व प्राण ऊर्जा (योग में प्राण का एक विशिष्ट अर्थ होता है) के विशिष्ट रूप बताते हैं।
प्राण इन्ही पाँच तत्वों से मिलकर बना है - ठीक उसी प्रकार जैसे हमारा शरीर और
अन्य कई चीज़। माण्डु क्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद तथा शिव स्वरोदय मानते हैं कि
पंचतत्वों का विकास मन से, मन का प्राण से और प्राण का समाधि (यानि पराचेतना)
से हुआ है।

गुण-प्रकार पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश

प्रकृ ति भारी शीतल ऊष्ण अनिश्चित मिश्रित

वज़न, द्रवता,
गुण गरम, प्रसार गति फै लाव
एकजुटता संकु चन

वर्ण पीला सफ़े द लाल नीला या भूरा काला

आकार चौकौन अर्धचंद्र त्रिभुज षट्कोण बिन्दु


चक्र मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपूर अनाहत विशुद्धि

मंत्र लं वं रं यं हं

तन्मात्रा गंध स्वाद दृश्य स्पर्श शब्द

शरीर में शरीर के सभी क्षुधा, निद्रा, पेशियों का संवेग,


त्वचा, रक्त
कार्य द्रव प्यास संकु चन-आकु चन वासना

शरीर में
जाँघे पैर कं धे नाभि मस्तक
स्थिति

मानसिक मनस,
अहंकार बुद्धि चित्त प्रज्ञा
दशा विवेक

कोश अन्नमय प्राणमय मनोमय विज्ञानमय आनंदमय

प्राणवायु अपान प्राण समान उदान व्यान

ग्रह बुध चंद्र, शुक्र सूर्य, मंगल शनि बृहस्पति

दिशा पूर्व पश्चिम दक्षिण उत्तर मध्य-ऊर्ध्व

तत्व का अन्वेषण[संपादित करें]

जैसा कि उपर कहा गया है, साधक योगी तत्व का पता लगाकर अपने भविष्य का पता
लगा लेते हैं। इससे वे अपनी मनोदशा औक क्रियाकलापों को नियंत्रित कर जीवन को
बेहतर बना सकते हैं। इसकी कई विधियाँ योगी बताते हैं, कु छ चरण इस प्रकार हैं -

1. छायोपासना कर कं ठ प्रदेश पर मन को एकाग्र किया जाता है।


2. फिर उसको साधक अपलक निहारता है और उस पर त्राटक करता है।
3. इसके बाद शरीर को ज़रा भी न हिलाते हुए आकाश में देखता है - फिर
छाया की अनुकृ ति दिखती है।
4. इसकी कु छ आवृत्तियों के बाद षण्मुखी मुद्रा के अभ्यास करने से
चिदाकाश (चित्त का आकाश) में उत्पन्न होने वाले रंग को देखते हैं। ये
जो भी रंग होता है, उस पर उपर दी गई सारणी के हिसाब से तत्व का
पता चलता है। उदाहरणार्थ अगर यह पीला हो तो पृथ्वी तत्व की प्रधानता
मानी जाती है।

ज्योतिष और योग में तत्व[संपादित करें]


ज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को
मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय
कं पन के लक्षण बताते हैं वहीं (स्वर-) योग सिद्धांत के अनुसार ये तत्व एक ख़ास
शारीरिक लक्षण को बताते हैं।

शिव स्वरोदय ग्रंथ मानता है कि श्वास का ग्रहों, सूर्य और चंद्र की गतियों से संबंध
होता है। ग्रंथ स्वर-विहीन (यानि तत्वों के यौगिक महत्व) ज्योतिष विद्या को भी बेकार
मानता है ।
[2]

मन राजा

बहुत पहले मेरे मन में एक प्रश्न आया कि 1 मन = 40 किलो ही क्यों माना गया ?
बाद में इसका उत्तर मिला । दरअसल भारतीयों ने सभी जीवन व्यवहारिक शब्द, वास्तु,
श्रंगार, मानक आदि आदि
इस आधार पर रखे हैं कि
उनसे हमें आत्मा, प्रकृ ति,
सृष्टि, जीव और जीवन के 4
पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम,
मोक्ष के बारे में बारबार
स्मृति होती रहे ।
अतः उत्तर मिला -
पाँच तत्व प्रकृ ति पच्चीसा । दस इन्द्री मन भौ चालीसा ।
महर्षि कपिल के सांख्य दर्शन के अनुसार मूल आत्मा सहित कु ल 25 तत्व मुख्य हैं ।
यद्यपि बाद में अन्य संवेगों को मिलाकर 70 से ऊपर तक तत्व खोज लिये गये । पर
उनका प्रकरण भिन्न है । लेकिन जब बात मुख्य और सामान्य रूप से और प्रकट
व्यवहार में आने वाले तत्वों की हो । तो सिर्फ़ 1 आत्मा सहित ये कु ल 24 बनते हैं ।
आत्मा (पुरुष)
4 अंत:करण - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ।
5 ज्ञानेन्द्रियाँ - नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण ।
5 कर्मेन्द्रियाँ - पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक ।
( पाद - पैर, हस्त - हाथ, उपस्थ - शिश्न, पायु - गुदा, वाक - मुख )
5 तन्मात्रायें - गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द ।
5 महाभूत - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश ।

शाश्वत ( है ) परमात्मा में हुये ‘प्रथम बोध’ और उसके तुरन्त बाद हुये स्वतः स्फ़ू र्त
संकु चन “हुं” से उठी मूलमाया से उत्पन्न इन पाँच महाभूतों में ही समस्त सृष्टि और
समस्त जीव शरीरों की रचना हुयी । इन 5 महाभूतों की 5-5 = 25 प्रकृ तियां भी इनके
साथ ही उत्पन्न हो गयीं ।
आकाश की - काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय ।
वायु की - चलन, बलन, धावन, प्रसारण, संकु चन ।
अग्नि की - क्षुधा, तृषा, आलस्य, निद्रा, मैथुन ।
जल की - लार, रक्त, पसीना, मूत्र, वीर्य ।
पृथ्वी - अस्थि, चर्म, मांस, नाङी, रोम ।
( इनमें आकाश तत्व की प्रकृ तियों को लेकर मतभेद सा हो जाता है । क्योंकि शब्द,
कु शब्द, गुण, व्यापन, आविर्भाव आदि कु छ प्रकृ तियां ऐसी हो सकती हैं । जो आकाश से
संभव है । फ़िर भी सभी मन की मनोवृतियां ही हैं । और विचार करने पर - काम,
क्रोध, लोभ, मोह, भय..ही इनमें मुख्य हैं । )
वायु तत्व से 10 प्रकार की वायु - प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कर्म,
कू करत देवदत्त तथा धनंजय की उत्पत्ति हुयी । जिनमें प्रथम 5 - प्राण, अपान,
समान, उदान, व्यान मुख्य हैं ।
तत्वों के बाद “हं” स्वर से अंतःकरण ( सोऽहं ) उत्पन्न हुआ । तथा तीन गुण - सत,
रज, तम बने ।
इसके बाद बहत्तर नाङियों के साथ फ़िर 5 ज्ञानेन्द्रियाँ अपनी तन्मात्राओं के साथ प्रकट
हुयीं । इसके बाद 5 कर्मेन्द्रियाँ भी उत्पन्न हुयीं ।
इसके बाद सात सूत ( सप्त धातुयें ) - रस, रक्त, माँस, वसा, मज्जा, अस्थि और
शुक्र..भी बने ।

पांच तत्व
22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है, इसलिए हमने सोचा कि प्रकृ ति के पाँच तत्वों के बारे में
बात करना स्वाभाविक होगा। जब हम प्रकृ ति को देखते हैं, तो पाँच तत्व हैं जो संपूर्ण
भौतिक संसार को आधार प्रदान करते हैं - अंतरिक्ष, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी।
आयुर्वेद इन तत्वों को सभी भौतिक अस्तित्व के निर्माण खंड के रूप में पहचानता है।

 हम पृथ्वी से आने वाले खाद्य पदार्थों से अपना पोषण करते हैं, और अंततः
हमारा शरीर उस सांसारिक पदार्थ में लौट आता है जहाँ से वह आया है।

 अग्नि शरीर को ऊष्मा और दीप्तिमान ऊर्जा प्रदान करती है, यह सभी चयापचय
और रासायनिक क्रियाओं में भी मौजूद होती है।

 पानी हमारा जीवन कायम रखने वाला तरल पदार्थ है, जो हमारे कु ल शरीर
द्रव्यमान का 70 प्रतिशत से अधिक बनाता है।

 वायु जैविक क्रियाओं को गति देती है और प्रत्येक कोशिका को ऑक्सीजन प्रदान


करती है।

 अंतरिक्ष अन्य तत्वों को उन तरीकों से बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है


जिनका हमने अभी उल्लेख किया है।

पांच तत्व बताते हैं कि प्राकृ तिक दुनिया के पदार्थ मानव शरीर के साथ सामंजस्यपूर्ण
क्यों हैं। आयुर्वेद में, हम पौधों, जड़ी-बूटियों, खनिजों और पानी का उपयोग करते हैं
क्योंकि ये पदार्थ संरचना और चरित्र में हमारे अंतर्निहित मेकअप के समान होते हैं।

शारीरिक रूप से, पांच तत्व तीन जैव-गतिशील शक्तियों के रूप में कार्य करते हैं,
जिन्हें वात, पित्त और कफ कहा जाता है। अपना दोष निर्धारित करने के तरीके के
विवरण के लिए यहां क्लिक करें ।

पंचतत्व क्या हैं?


यहाँ सदगुरु हमें विस्तार से समझा रहे हैं कि पाँच तत्व या पंचतत्व क्या हैं, और साथ
ही उन्हें शुद्ध करने और उन पर महारत हासिल करने की आसान प्रक्रियायें भी बता रहे
हैं।
सदगुरु : मनुष्यों के व्यक्तिगत शरीर हों या हर तरफ फै ला हुआ ब्रह्मांडीय शरीर, मूल
रूप से ये पाँच तत्वों या पंचतत्व - मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश से ही बने
हुए हैं।

#1 पाँच तत्व

#1.1 पानी

अब तो इस बात के काफी मात्रा में वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं कि पानी में जबर्दस्त
याददाश्त होती है। अगर आप पानी में देखते हुए कोई विचार बनायें तो पानी की
आण्विक संरचना बदल जाती है। पानी को छू ने से भी ये बदल जाती है। तो ये बहुत
महत्वपूर्ण है कि आप पानी से किस तरह संपर्क बनाते हैं।

#1.2 मिट्टी

मिट्टी वो तत्व है जो बाकी के सभी तत्वों के विकसित होने का आधार है और ये हमारी


भौतिकता का भी आधार है। हमारे आसपास के सभी भौतिक पदार्थों में मिट्टी का हिस्सा
तो है ही। मिट्टी का अपने जीवन के आधार पर ही बोध करना और उसे समझना सबसे
अच्छी बात है क्योंकि ज्यादातर लोग सिर्फ अपने शरीर और मन का ही अनुभव कर
पाते हैं। अपने भीतर से, मिट्टी तत्व को जानना और अनुभव में लेना यौगिक प्रक्रिया
का भाग है।

#1.3 वायु

यौगिक परंपराओं में हम हवा को वायु कहते हैं जिसका मतलब है कि ये सिर्फ
नाइट्रोजन, ऑक्सिजन, कार्बन डाई ऑक्साइड और दूसरी गैसों का मिश्रण ही नहीं है
बल्कि ये संचरण (एक से दूसरी जगह जाना या गति) का एक आयाम है। पाँच तत्वों
में से वायु ही हमारी पहुँच में सबसे ज्यादा है। दूसरे तत्वों के मुकाबले, इस तत्व पर
आसानी से महारत पाई जा सकती है। इसीलिये, वायु को आधार बनाकर ही बहुत सारी
यौगिक प्रक्रियायें बनायी गयीं हैं।

#1.4 अग्नि
भारतीय संस्कृ ति में आग तत्व को अग्निदेव के रूप में दिखाया गया है, जो दो मुँह
वाले देवता हैं और हर तरफ फै लने वाली, उग्र रूप धारण करने वाली सवारी पर घूमते
हैं। ये दो मुँह प्रतीकात्मक हैं – वे अग्नि के जीवन देने वाले और जीवन लेने वाले दोनों
ही रूपों को दर्शाते हैं। जब तक हमारे अंदर अग्नि न जल रही हो, तब तक कोई जीवन
नहीं है, पर, अगर हम उसके बारे में सतर्क न रहें, तो अग्नि बहुत जल्दी बेकाबू हो कर
हर चीज़ को खत्म कर सकती है।

#1.5 आकाश

आकाश को बस खाली स्थान समझ लेना सही नहीं है। आकाश ईथर है। वैसे ईथर
कहना भी शत प्रतिशत सही नहीं है, पर ये सबसे नजदीकी अर्थ है। ईथर कोई खाली
स्थान नहीं होता, ये अस्तित्व का एक सूक्ष्म आयाम है। खाली स्थान या रिक्तता यानि
काल या अस्तित्वहीनता, जिसे शिव कहते हैं। शिव यानि "वह जो नहीं है"। लेकिन
आकाश यानि "वह जो है"।

#2 हमें पाँच तत्वों या पंचतत्व का सहयोग क्यों चाहिये?

इन पाँच तत्वों के सहयोग के बिना आप चाहे जितना संघर्ष कर लें, कु छ नहीं होगा।
सिर्फ उनके सहयोग से ही, एकदम मूल पहलुओं से लेकर सबसे ऊँ चे पहलू तक, आपका
जीवन एक संभावना बनता है। इन पाँच तत्वों या पंचतत्व पर हम पूरी तरह महारत पा
सकें , इसके लिये योग में जो मूल साधना है, उसे भूत शुद्धि कहते हैं। दरवाजा वही है।
आप दरवाजे की किस तरफ हैं, ये समय और स्थान के संदर्भ में आपके जीवन की हर
बात को तय करता है। मनुष्य का तंत्र एक दरवाजे की तरह है। हर दरवाजे के दो पहलू
होते हैं - अगर आपको हमेशा बंद दरवाजे मिलते हैं तो आपके लिये दरवाजे का मतलब
वो चीज़ है जो आपको रोकती है। अगर आपको दरवाजे खुले मिलते हैं तो दरवाजा
आपके लिये वह चीज़ है जहाँ से आपके लिये कहीं पहुँचने की संभावना बनती है। दोनों
ही स्थितियों में, दरवाजा वही है।

आप दरवाजे की किस तरफ हैं, ये समय और स्थान के संबंध में आपके जीवन की हर
बात को तय करता है। आप इस शरीर को एक बड़ी संभावना के रूप में देखते हैं या
एक बड़ी बाधा के रूप में, ये इस बात पर निर्भर करता है कि ये पाँच तत्व आपको
कितनी मात्रा में सहयोग दे रहे हैं। ईशा योग में हरेक साधना द्वारा किसी न किसी
तरह से इन पाँच तत्वों को इस तरह संगठित किया जाता है कि आपको व्यक्तिगत
जीव से और ब्रह्मांडीय प्रकृ ति से भी सबसे अच्छा नतीजा मिले क्योंकि ये दोनों इन
पाँच तत्वों के ही खेल हैं।

आपका व्यक्तिगत भौतिक शरीर आपको अंतिम संभावना की ओर ले जाने के लिये


पहला कदम बनता है या कोई बाधा बनता है - ये मूल रूप से इस बात पर निर्भर
करता है कि आप इन पाँच तत्वों को कै से संभालते हैं? आप अभी जो कु छ भी हैं वो
कु छ मिट्टी, पानी, वायु और गर्मी के कारण हैं। यही चीज़ें आपके बगीचे में भी हैं, पर,
बस एक दिव्य स्पर्श की वजह से यही चार चीजें आपको मनुष्य बना देती हैं। अभी
अगर आप इस बारे में जागरूक हो जायें कि पानी, मिट्टी, वायु और अग्नि आपके शरीर
में काम कर रहे हैं तो अचानक ही आप अपना जीवन इतनी आसानी से जीने लगेंगे कि
लोग आपको कोई सुपरमैन समझने लगेंगे। पर हम यहाँ आपके सुपरमैन होने या न
होने की बात नहीं कर रहे।

आपको ये समझाने की बात है कि मनुष्य होना ही अपने आपमें एक बहुत बड़ी बात है।
पर मनुष्य होना कोई बड़ी बात तब बनेगी जब आप अपनी मनुष्यता को और इस
मानव तंत्र को एक संभावना की तरह इस्तेमाल करना सीखेंगे, न कि इसे किसी बाधा
की तरह देखेंगे।

#3 मानव शरीर में पाँच तत्वों या पंचतत्व की संरचना क्या है?

अगर आप रहस्यमयी, गूढ़ आयामों को हासिल करना नहीं चाहते तो आपको इन पाँच
तत्वों में से आकाश तत्व के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है। बाकी के 4 में से, पानी
आपके शरीर का 72% भाग है, मिट्टी 12% है, वायु 6% और अग्नि 4% है। वायु का
प्रबंधन (मैनेजमेंट) करना सबसे आसान है क्योंकि आपके पास साँस है जिसे आप एक
खास तरह से संभाल सकते हैं। अग्नि पर महारत पाने से आपको बहुत कु छ मिल
सके गा पर चूंकि आप गृहस्थ हैं तो आपको अग्नि पर महारत पाने की ज़रूरत नहीं है।
बाकी का 6% आकाश है, जिसकी आपको तब तक चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जब
तक कि आप अस्तित्व के रहस्यमयी, गूढ़ आयामों को हासिल नहीं करना चाहते।
अच्छी तरह से जीने के लिये बाकी के 4 तत्व पर्याप्त हैं। पाँचवा तत्व, आकाश, उनके
लिये महत्वपूर्ण नहीं है जो बस अच्छी तरह जीना चाहते हैं।

#4 पंचभूत मंदिर
भारत वो भूमि है जहाँ प्रकृ ति के पाँच तत्वों के लिये पाँच मंदिर हैं जो भौगोलिक दृष्टि
से भारत के दक्षिणी पठार में स्थित हैं - चार तमिलनाडु में और एक आंध्रप्रदेश में। ये
मंदिर पूजापाठ के लिये नहीं बल्कि साधना के लिये बनाये गये थे। पाँचों तत्वों पर
साधना करने के लिये लोग एक से दूसरे मंदिर जाते थे।

एक मंदिर में वे मिट्टी पर साधना करते थे और फिर पानी पर साधना करने के लिये
दूसरे मंदिर जाते थे। इसी तरह अलग अलग मंदिरों में अलग अलग तत्वों की साधना
होती थी। दुर्भाग्य से अब ये सब नहीं रहा है क्योंकि साधना का वातावरण अब खत्म
हो गया है, ये समझ और ये महारत सामान्य रूप से अब नहीं रही है। पर, ये पाँचों
मंदिर अभी भी हैं और इनमें से कु छ ने अपनी गुणवत्ता को और अपनी जीवंतता को
कायम रखा है जब कि कु छ मंदिर अब इस मामले में कमज़ोर पड़ गये हैं।

#5 तत्वों के देवता

पाँच तत्वों के लिये प्राण प्रतिष्ठापन किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर, मान
लीजिये, हम वायु के लिये देवता बनाना चाहते हैं। तो हम एक ऊर्जा आकर बनायेंगे,
जिसे कोई भी मनुष्य समझ सके , जिसके साथ अपना संबंध जोड़ सके । यौगिक प्रणाली
में हम सामान्य रूप से मानव आकृ ति नहीं बनाते। तो हम वायु के लिये सिर्फ एक
लंब-गोलाकार (एल्लिप्सोइड) आकृ ति बनायेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि ये एक ऐसा
आकार है जो सबसे ज्यादा समय तक चलेगा और जिसके लिये ज्यादा रख रखाव की
ज़रूरत नहीं है।

#6 आदियोगी ने पाँच तत्वों या पंचतत्व के रहस्य को समझाया

15000 से भी ज्यादा वर्षों से पहले आदियोगी पाँच तत्वों या पंचतत्व के बारे में बोले।
उन्होंने अपने पहले 7 शिष्यों को बताया कि ये सारा ब्रह्मांड बस पाँच तत्वों का खेल है
और ये भी कि ये किस अनुपात में हमारे शरीर में काम करते हैं, और अगर आप उन
पर महारत पा लें तो कै से एक तरह से आपको सृष्टि पर भी महारत मिल जाती है!
अगर आपको सृष्टि पर थोड़ी सी भी महारत हासिल हो जाये तो सृष्टि के स्रोत तक
आपकी एकदम सीधी पहुँच बन जाती है। जब इस विज्ञान को बड़े विस्तार से और
अभिव्यक्ति के सभी रूपों में समझाया गया तो वहाँ बैठे शिष्यों के रूप में सप्तऋषि
और साथ ही ये सब देख, सुन रही आदियोगी की पत्नी पार्वती बहुत ही आश्चर्यचकित
हुए और विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे। उन्हें यकीन नहीं हुआ कि सारा अस्तित्व बस
पाँच चीजों के मेल से बना है और उनमें से एक चीज़ कु छ भी नहीं है, यानि सिर्फ चार
चीजों से ही!

#7 आदियोगी ने सृष्टिरचना के स्रोत तक पहुँचने के दो मार्ग बताये

आदियोगी ने सृष्टिरचना की बुद्धिमानी को स्पष्ट करते हुए बताया कि इन चार चीज़ों


से आप वो बना सकते हैं जिसे हम आज ब्रह्मांड कहते हैं। वो हर चीज़ जो भौतिक है,
उसमें ये चार तत्व हैं। ज्यादातर, आप पाँचवे तत्व, आकाश का अनुभव नहीं करते।
अगर मैं आपको ये चार चीजें दूँ तो क्या आप इनसे सांभार भी बना पायेंगे? सांभार
बनाने के लिये भी आपको 25 चीज़ें चाहियें!

वे सात पुरुष इस पर महारत पाने को उत्सुक थे लेकिन वहाँ जो स्त्री थी, पार्वती, उसने
तय किया कि वो खुद को इसके आगे पूर्ण समर्पित कर के उसका ही एक हिस्सा हो
जायेगी।

अगर कोई बस चार चीजों से पूरा ब्रह्मांड बना सकता है तो ये बहुत ही


आश्चर्यजनकप्रखर बुद्धिमानी है। इन तत्वों पर महारत पाने के लिये जरूरी विज्ञान और
तकनीक का जब आदियोगी ने वर्णन किया तो वहाँ मौजूद वे सात शिष्य और पार्वती
भी ये सब सुन रहे थे और आदियोगी द्वारा दिखाये जा रहे प्रयोगों को देख भी रहे थे।
वे सभी मंत्रमुग्ध हो गये। फिर आदियोगी ने कहा या तो आप इन सब चीजों को पूरी
तरह जान सकते हैं और उन पर महारत पा सकते हैं या इस बुद्धिमता के आगे पूर्ण
समर्पण कर सकते हैं जिससे ये आपकी हो जायेगी"। वे सात पुरुष इस पर महारत पाने
को उत्सुक थे लेकिन वहाँ जो स्त्री थी पार्वती उसने तय किया कि वो खुद को इसके
आगे पूर्ण समर्पित करके उसका एक हिस्सा बन जाएंगी।

तो उन सातों को अलग अलग जगहों पर काम करने के लिये भेज दिया गया पर
पार्वती को वहीं रखा गया क्योंकि उन्होंने पूर्ण समर्पण करके उस चीज़ को अपना ही
एक हिस्सा बना लिया था। उन सातों को महर्षि कहा गया जब कि पार्वती देवी हो
गयीं। हम यहाँ इस बारे में बात कर रहे हैं कि कोई अपने आपको किस तरह आगे बढ़ा
सकता है! अगर आप किसी बात की बारीकियों में जायेंगे कि वो किस तरह अभिव्यक्त
हुई है, तो आप लाखों सालों तक जीवित रहें और उनका अध्ययन करते रहें तो भी ये
एक अंतहीन प्रक्रिया होगी। ये उत्साहित करने वाली ज़रूर है पर अंतहीन है। या फिर
आप इस अंतहीन प्रक्रिया को एक तरफ रख दें और उस आयाम का स्पर्श करें जो इन
सब का स्रोत है। अगर आप ये खेल खेलना चाहते हैं तो सृष्टिरचना के तत्वों के साथ
घुलमिल जाईये उनसे जुड़ जाईये।

अगर आप ये खेल खेलना नहीं चाहते आप सिर्फ मुकाबले का परिणाम जीत के रूप में
चाहते हैं - आपको खेल में रुचि नहीं है बस जीत कर आगे जाना चाहते हैं - तो आप
सिर्फ उसे स्पर्श कीजिये जो सृष्टि का स्रोत है। आपको तत्वों के चक्कर में खो जाने की
जरूरत नहीं है। आप खेल को खेलिये या फिर खेल आपके साथ खेलेगा पर अगर आप
खेल नहीं खेलते तो खेल आपको खेल सकता है। परसारे खेल को अलग रखना और बस
सृष्टि के स्रोत पर कें द्रित रहना सबसे आसान चीज़ लगती है। अगर आप खुद को कोई
महत्व नहीं देते आपको खुद से कोई लगाव नहीं है अपने शरीर मन विचारों और अपनी
भावनाओं और सभी चीजों से कोई लगाव नहीं है तो ये स्वाभाविक रूप से हो जायेगा
वरना ये सबसे कठिन बात है। आप जब अपने जीवन के नायक हैं तो क्या अपने
आपको अलग रख देना संभव है आप जब मुख्य भूमिका में हैं तो खुद को एक तरफ
कर देना उसे कोई महत्व न देना आसानी से नहीं होता। पर यही सबसे आसान और
महान तरीका हैनहीं तो आप एक बड़ा अंतहीन खेल खेलते ही रह जायेंगे। पर अगर
आप खेल खेलना ही चाहते हैं तो उसे कु शलता से खेलें। एक बेकार खिलाड़ी को कोई
पसंद नहीं करता।

#8 पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत पाना क्यों महत्वपूर्ण है?

जब आप खेल खेलना ही चुन लेते हैं तो इन तत्वों पर कु छ महारत पाना अहम है, नहीं
तो आप अपने जीवन में एक बेकार खिलाड़ी सिद्ध होंगे। अगर जीवन के किसी भी क्षेत्र
में कोई सफल हुआ है, तो इसका मतलब है कि जाने अनजाने उसने तत्वों पर किसी न
किसी ढंग से कु छ महारत पायी है, वरना किसी भी चीज़ में कोई सफलता नहीं मिल
सकती। हो सकता है कि उसने कहीं और इस पर काम किया हो या अभी और यहीं इस
पर काम कर रहा हो। किसी भी चीज़ पर कु छ महारत पाये बिना जीवन में कोई
सफलता नहीं मिलती।
अगर आप खुद को कोई महत्व नहीं देते, आपको खुद से कोई लगाव नहीं है, अपने
मन, शरीर, विचारों से, अपनी भावनाओं और सभी चीजों से कोई लगाव नहीं है तो ये
स्वाभाविक रूप से हो जायेगा।

अगर आपने कोई गतिविधि करना तय कर लिया है तो मनुष्य के जीवन में सफलता
ही सबसे ज्यादा अहम, सबसे मधुर बात है। कु छ लोग ऐसे हैं, जिन्हें दार्शनिक कहा
जाता है और जो इस तरह की फालतू बातें फै लाते हैं जब वे कहते हैं, "कोई फर्क नहीं
पड़ता कि आप जीतते हैं या हारते हैं - सब ठीक है"। पर जीवन में ऐसी फालतू बात
नहीं होती। जब आप कोई खेल खेलते हैं तो जीतना चाहते हैं। खेल पूरा हो जाने के
बाद, अगर आप हार जाते हैं तो ठीक है पर अगर खेल खेलने से पहले ही आप ऐसा
सोचते हैं कि हारना ठीक है तो आपको पता ही नहीं है कि खेल क्या है? जब आप एक
बार कोई खेल खेलना तय कर लेते हैं - चाहे वो बाज़ार हो या शादी या जीवन या
आध्यात्मिक प्रक्रिया - तो आपको जीतना ही चाहिये। और, कई बार ये खेल दो दलों के
बीच होता है। कभी-कभी आप भूल जाते हैं कि आप तभी जीत सकते हैं जब आपके
साथी भी जीत रहे हों। अगर आप शादीशुदा हैं और ये सोचते हैं कि सिर्फ आपको ही
खेल जीतना है तो आपका जीवनसाथी आपके जीवन को तकलीफों से भर देगा!

#9 भूत शुद्धि : पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत पाने का यौगिक तरीका

भूत शुद्धि जागरूकतापूर्वक जीतने का तरीका है क्योंकि आप जो कु छ भी कर रहे हैं,


उसमें अगर आपको महारत हासिल नहीं है तो आपकी जीत महज संयोगवश होगी।
आपके विरोधी खिलाड़ी बेकार होंगे, तो शायद आप जीत जाएं। उससे कोई फर्क नहीं
पड़ता। चाहे जैसे भी हो, आप अपनी काबिलियत के सबसे बेहतरीन ढंग से, या उससे
भी आगे जाकर खेलिये। हम जब भी हठयोग के लिये निर्देश देते हैं तो कहते हैं, "अपने
आपको उतना खींचिये जितना आप खींच सकते हैं, और उससे भी थोड़ा ज्यादा"! ये
'थोड़ा ज्यादा' ही सबसे अहम पहलू है। उसी में जीवन है। जीतने और हारने में यही
अंतर है - कोई वो 'थोड़ा ज्यादा' कर रहा है और कोई नहीं कर रहा।

हम जब भी हठयोग के लिये निर्देश देते हैं तो कहते हैं, "अपने आपको उतना खींचिये
जितना आप खींच सकते हैं, और उससे भी थोड़ा ज्यादा"!

1970 के दशक में के नी रॉबर्ट्स ने विश्व मोटरसाइकिल विजेता ट्रॉफी लगातार तीन बार
जीती। ये कोई आसान चीज़ नहीं है क्योंकि इस दौड़ में दुनिया की सबसे बेहतरीन
मशीनें इस्तेमाल होती हैं और उनके चालक इस धरती के बहुत ही ऊँ चे दर्जे के होते हैं
जिससे कई बार जीत सेकं ड के सौंवे हिस्से से भी होती है! ये ट्रॉफी जीतने के लिये
आपको उसके पहले, सीज़न में 12 - 15 प्रतियोगितायें जीतनी होती हैं। तो, ऐसा
लगातार तीन बार करना लगभग असंभव है।

जब लोगों ने उससे पूछा, "आपने ये कै से किया"? तो उसने कहा, "मैं नियंत्रण रखते
हुए, नियंत्रण से बाहर चला जाता हूँ"! उसके पास नियंत्रण से बाहर जाने का साहस था
पर बहुत ज्यादा बाहर नहीं जाने की बुद्धिमानी भी थी। आपमें कु छ करने की हिम्मत
तभी होगी, जब आपमें कु छ काबिलियत होगी - वरना ये साहस एक बड़ी विपत्ति बन
सकता है। जब आप इसे सफलतापूर्वक कर लेते हैं, तो लोग आपको साहसी कहेंगे पर
अगर आप गिर जायें तो लोग आपको बेवकू फ ही कहेंगे। ये सीमारेखा बहुत ही पतली है
और उस सीमारेखा तक जाने की, उसे पार करने की आपकी काबिलियत बेहतर से
ज्यादा बेहतर होती चली जाती है, अगर आपको अपने अस्तित्व की मूल बातों पर
महारत हासिल हो तो।

जो लोग इसके लिये कोई साधना करना नहीं चाहते, उनके लिये हम ध्यानलिंग मंदिर
में पंचभूत क्रिया करवाते हैं जिससे कम से कम वे वहाँ होने का फायदा पा सकें । किसी
कर्म-कांड (संस्कार) का यही महत्व है। संस्कार मूल रूप से उन लोगों के लिये है जो
उस प्रक्रिया को खुद नहीं कर सकते। तो, ये एक सार्वजनिक साधना है। जब आप
साधना करते हैं तो वहाँ सिर्फ आप होते हैं पर संस्कार वहाँ मौजूद सभी लोगों के फायदे
के लिये होता है। निश्चित ही साधना की प्रकृ ति ज्यादा बड़ी है पर संस्कार ज्यादा लोगों
के फायदे के लिये होता है।

#10 अगर आप पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत हासिल कर लेते हैं तो क्या होगा?

जब पाँच तत्वों पर कु छ खास हद तक की महारत हासिल हो जाती है, तो अंदरूनी और


बाहरी जैसी कोई चीज़ नहीं रह जाती क्योंकि ये तत्व आपकी सीमाओं की परवाह नहीं
करते। इस बात को सबसे आसान ढंग से ऐसे कहा जा सकता है कि जब आप यहाँ बैठे
हैं और साँस ले रहे हैं और वायु आपकी सीमाओं की परवाह नहीं करती। ये लगातार
अंदर आती है और बाहर जाती है। ये सिर्फ वायु के साथ ही नहीं है, ऐसा हरेक चीज़ के
साथ होता है। खाना, पीना और सारी चीज़ों का बाहर निकलना और अंदर आना
लगातार होता ही रहता है। ऐसे कहा जा सकता है कि जब आप यहाँ बैठे हैं और साँस
ले रहे हैं और वायु आपकी सीमाओं की परवाह नहीं करती। ये सिर्फ वायु के साथ ही
नहीं है, ऐसा हरेक चीज़ के साथ होता है। आपके शरीर की सीमायें सिर्फ आपकी
मानसिक सुविधा के लिये हैं। पाँच तत्वों को उनसे कु छ लेना देना नहीं है और बिना
आपकी अनुमति लिये भी वे आपके अंदर और बाहर लेन देन करते रहते हैं। अगर
तत्वों की प्रकृ ति का अनुभव करने तक आपकी थोड़ी भी पहुँच है, तो आप भी अपने
शरीर की सीमाओं को छोड़ देंगे, या दूसरे शब्दों में, आपकी कोई निजता (प्राइवेसी) नहीं
रहेगी क्योंकि हर चीज़ लगातार आपके अंदर बाहर होती रहेगी।

#11 पाँच तत्वों या पंचतत्व पर महारत कै से पायें?

#11.1 नाग पद्धति

जिन्हें तत्वों पर महारत पानी है, वे खुद को तत्वों के सामने खुला छोड़ देते हैं। पुराने
आध्यात्मिक पंथ जैसे नागा, जैन, गोरखनाथी आदि के साधक साधना के मूल स्तर पर
अपने आपको तत्वों के सामने खुला छोड़ देते थे - क्योंकि वे सारा लेन देन बिना रोक
टोक के होने देना चाहते थे। आजकल दुनिया में निर्वस्त्र (बिना कपड़ों के ) घूमना संभव
नहीं है पर भारत में कु छ पंथों में ये अभी भी होता है। आप उन्हें हज़ारों की संख्या में
नग्नावस्था में चलते देखेंगे और वे सामाजिक नियमों की परवाह नहीं करते। पर आपके
लिये ये संभव नहीं है। प्रश्न : तत्वों के सामने खुद को खुला छोड़ देना क्या इस ढंग से
संभव है कि उनके बारे में ज्यादा जागरूक होने के लिये हम खुले स्थानों, जैसे खेतों,
मैदानों में या समुद्र तट पर बैठें और क्षितिज को, आकाश को, समुद्र को देखते रहें या
खाली स्थानों में कु छ समय गुज़ारें? सदगुरु : इससे मदद मिल सकती है पर लोग
सामान्य रूप से खुले स्थानों पर खुद को ढँक कर, सुरक्षित रखते हैं क्योंकि अलग
अलग जगहों पर लोगों को तापमान, हवाओं और मौसम में काफी फर्क मालूम पड़ता है।
फिर भी, हाँ, ये एक संभावना है पर ज़रूरी नहीं कि ये हो ही। जब आप बाहर बैठते हैं
तो इसका उपयोग कर सकते हैं।

#11.2 ढीले कपड़े पहनें

आप एक आसान सा काम कर सकते हैं। पहनने के लिये ढीले कपड़े लें। उनमें आपका
फिगर शायद अच्छा न दिखे पर तत्वों के स्तर पर देखा जाए, तो आपका कोई आकार
ही नहीं है। तत्वों लगातार लेन-देन करते रहते हैं। इसे करने के लिये, इसके प्रति
जागरूक रहने के लिये ये अहम होगा कि आपके शरीर और कपड़ों के बीच थोड़ा खाली
स्थान हो यानी एकदम चिपके हुए, तंग कपड़े न पहनें। ये एक काम तो आप कर ही
सकते हैं।

#11.3 साँस की ओर ध्यान दें

अगर आप ध्यान दें तो देख सकें गे कि इस साँस के अलावा भी आपके शरीर में
लगातार बहुत सारे लेन देन चल रहे हैं। सभी तरह के लेन-देन पर पर्याप्त ध्यान देने
से आप धीरे धीरे अपने भीतर तत्वों की प्रकृ ति और उनकी संरचना को समझ सकें गे।
तब, एक आयाम को बढ़ाना, या उपयुक्त क्रियाओं के द्वारा अपने तंत्र में आकाश तत्व
को बढ़ाना संभव है। जब आपको बुद्धि से नहीं पर ध्यान देने से मालूम पड़ जाए कि
लेन देन चल रहा है, तो हम इस लेन देन को इस तरह से बदल सकें गे कि वो हमें
फायदा दे।

#11.4 खाने और पानी पर ध्यान दें

पहला काम तो ये है कि आप अपने सबसे ज्यादा स्पष्ट लेन देन की ओर ध्यान दें,
उन्हें संभालें। साँस लेना, खाना, पीना, शरीर का तापमान और बाहरी तापमान ये
एकदम स्पष्ट हैं। इनकी ओर थोड़ा ज्यादा ध्यान दें।

अगर आप अपने खाने, पीने, साँस लेने और हर चीज़ को छू ने की ओर पर्याप्त ध्यान दें
तो आप देखेंगे कि आपका जीवन का अनुभव एक अलग ही स्तर पर पहुँच जायेगा।

मुझे इस बात से हमेशा हैरानी होती है कि लोग कै से अपनी साँस को भी कभी जान
नहीं पाते, जो सबसे ज्यादा स्पष्ट लेन देन है और वो भी शांति से नहीं होता। ये सारे
शरीर को हिलाता है, गति में रखता है। अगर आपको साँस का ही पता न चलता हो तो
उससे ज्यादा सूक्ष्म लेन देन को आप कै से समझ पायेंगे? अगर आप अपने
खाने, पीने, साँस लेने, और हर चीज़ को छू ने की ओर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि
आपका जीवन का अनुभव एक अलग ही स्तर पर पहुँच जायेगा।

ज्यादातर लोग ये आसान सी चीज़ नहीं करते। वे जो कु छ भी खाते या पीते हैं, बस


निगल जाते हैं और बिल्कु ल बिना जागरूकता के साँस लेते हैं। किसी भी चीज़ को छू ते
हुए वे जानते या महसूस ही नहीं करते कि वो क्या है! लोग सोचते हैं कि वे साँस के
प्रति तभी जागरूक हो सकते हैं जब वे कु छ और न करें, सिर्फ साँस ले रहे हों। पर
मनुष्य होने की सबसे सुंदर बात ये है कि हम अपने अंदर बहुत सी जटिल गतिविधियाँ
करते हुए भी उनकी ओर ध्यान दे सकते हैं।

ये वैसा ही है जैसे गाड़ी चलाते समय भी आप दूसरे के साथ बातचीत कर सकते हैं।
एक ही समय पर ध्यान देने के दो स्तर बने रह सकते हैं। आप जो कु छ भी कर रहे
हैं, वो करते हुए भी साँस पर ध्यान दे सकते हैं। आप जो खाना खा रहे हैं या जो पानी
पी रहे हैं, उसकी ओर भी ध्यान दे सकते हैं। आप जो कु छ भी हैं, उसकी तत्वीय
संरचना में ही अस्तित्व की रहस्यमय, गूढ़ प्रकृ ति के अंदर उतरकर, उसके परे के
आयामों को जानने की संभावना गहराई में छु पी हुई है। इसमें बदलाव लाने से आपके
साथ अद्भुत चीजें हो सकती हैं।

पांच तत्वों की पवित्रता

प्रवचन दिनांक

15 मई 2000

जगह

वृंदावन

अवसर

ग्रीष्मकालीन पाठ्यक्रम 2000

प्रवचन संग्रह

ग्रीष्मकालीन वर्षा 2000

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यर करना
अंतर्वस्तु
छोटे से छोटे में भी मौजूद है,
बड़े से बड़े में भी मौजूद है,
और, सर्वव्यापी साक्षी के रूप में चमकता हुआ,
अमर आत्मा है।
व्यक्ति में आत्मा के रूप में जाना जाता है,
और ब्रह्मांड में ब्रह्म के रूप में जाना जाता है,
आत्मा ही ब्रह्म है और ब्रह्म ही आत्मा है।
1

प्रेम के प्रतीक!
जिन पांच तत्वों से संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है, वे पांच तत्व मनुष्य में भी
मौजूद हैं। ये पांच तत्व, अर्थात् पृथ्वी (पृथ्वी), जल (जल), अग्नि (अग्नि), वायु (पवन),
और आकाश (ईथर) को हम शब्द (ध्वनि), स्पर्(स्पर् ), रूप की संवेदनाओं के माध्यम से
पहचानते हैं। (दृष्टि या रूप की धारणा), रस (स्वाद) और गंध (गंध)। कृष्ण ने अर्जुन को
पार्थ कहकर संबोधित किया क्योंकि अर्जुन धरती माता का पुत्र था। सचमुच, धरती माता का
पुत्र होने के कारण प्रत्येक मनुष्य को पार्थ कहा जा सकता है।
2

तत्वों की प्रकृति
पहला तत्व पृथ्वी , ध्वनि, स्पर्आदि सभी पांच संवेदनाओं से पहचाना जा सकता है। जिन
पांच तत्वों से प्रकृति बनी है, उनमें से प्रत्येक बहुत शक्तिशाली है। इस प्रकार, पृथ्वी
अंतरिक्ष में [सूर्य के चारों ओर] बहुत तेजी से घूमने और एक धुरी के चारों ओर तेजी
षता
से घूमने की क्षमता रखती है। इसमें विभिन्न गुण और वि षताएँशेएँहैं।
अपनी सतह पर, पृथ्वी कई वस्तुओं और संस्थाओं जैसे पहाड़ों, जंगलों, शहरों, गांवों,
महासागरों, नदियों आदि का समर्थन करती है।
अज्ञानी लोग आचर्य यश्चकरते हैं: "जब पृथ्वी घूमती है, तो ये वस्तुएं क्यों नहीं
र्
खिसकती और चलती हैं?" इस स्पष्ट विरोधाभास का उत्तर इस तथ्य में निहित है कि
पृथ्वी स्वतंत्र नहीं है बल्कि अपने भीतर छिपी दिव्य शक्ति के अधीन है। पहाड़, शहर,
जंगल और बाकी सभी चीजें उस अदृय श्य शक्ति द्वारा दृढ़ और सुरक्षित हैं और पृथ्वी के
तीव्र घूर्णन के बावजूद, उन्हें खिसकने नहीं दिया जाता है। रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों
की रफ्तार. सोचिए अगर पटरियाँ भी ट्रेन की तरह तेज़ चलने लगें तो ट्रेन में
यात्रियों की किस्मत कैसी होगी! पटरियाँ हिलती नहीं हैं क्योंकि उन्हें सुरक्षित कर
दिया गया है।
पृथ्वी की सतह पर पहाड़ों से लेकर महासागरों तक सभी वस्तुएँ अदृय श्य गुरुत्वाकर्षण बल
द्वारा मजबूती से टिकी हुई हैं। यह गुरुत्वाकर्षण ईवर रश्वकी इच्छा का परिणाम है। इस
प्रकार पृथ्वी ईवर रश्वके मास्टर प्लान के सूक्ष्म पहलुओं का एक अच्छा उदाहरण प्रदान
करती है।
चूँकि पृथ्वी दैवीय शक्ति से परिपूर्ण है, यह भगवान के एक अंग के अलावा और कुछ नहीं
है। हमारे शरीर में कई अंग और अंग होते हैं जैसे हाथ, पैर, नाक, आंखें, कान
आदि।
इसी प्रकार, प्रत्येक व्यक्ति समाज या समुदाय का एक अंग है। विभिन्न समुदाय मानव
जाति के विभिन्न अंग हैं, जो प्रकृति या सृष्टि का एक अंग है, जो बदले में ईवर रश्वका
एक अंग है। इसीलिए अक्सर कहा जाता है कि ईवर रश्वसूक्ष्म रूप में संपूर्ण ब्रह्मांड में
व्याप्त है।
पृथ्वी बहुत बड़ी है लेकिन ईवर रश्वजो अनंत और सबसे सूक्ष्म है, अपनी दिव्य शक्ति से
पूरी पृथ्वी को व्याप्त करता है। चूँकि पृथ्वी में गुण हैं, इसलिए यह स्वतंत्र नहीं है।
जब तक गुण मौजूद हैं, कोई स्वतंत्रता की बात नहीं कर सकता। जैसे-जैसे गुण एक-एक
करके कम होते जाते हैं, संबंधित इकाई की सूक्ष्मता और उसकी वि लता लताशा
बढ़ती जाती
है। पृथ्वी में शब्द, स्पर्, रूप, रस और गंध सभी गुण मौजूद हैं। इसलिए यह सीमित है.
इसके अलावा, गुण मिलकर एक बाध्यकारी प्रभाव उत्पन्न करते हैं जो गति लता लता शीको
कठिन बना देता है (उदाहरण के लिए, कोई पहाड़ों को नहीं हिला सकता)।
पंचतत्वों में अगला स्थान जल का है। यह पृथ्वी पर हर जगह मौजूद है, हालाँकि इसकी
उपस्थिति (वि षशे
ष रूप से वाष्प या नमी के रूप में) हमे शदिखाई नहीं देती है या सीधे
तौर पर स्पष्ट नहीं होती है। पृथ्वी की तुलना में जल में गंध का अभाव है; इसलिए
इसमें एक गुण कम है, जो इसे हल्का और गति ललशी दोनों बनाता है - पानी आसानी से बह
सकता है।
तीसरा तत्व अग्नि है। इसमें पृथ्वी की तुलना में दो गुण कम हैं (स्वाद और गंध) और
इसलिए यह ऊर्ध्वाधर सहित सभी दि ओं ओंशामें फै लने में सक्षम है। अग्नि सूक्ष्म रूप में
मनुष्य और यहाँ तक कि जल में भी विद्यमान है। मनुष्यों में इसे जतराग्नि के नाम
से जाना जाता है - यह पाचन की 'अग्नि' का नाम है। पानी में इसे बड़बग्नि के नाम से
जाना जाता है। लकड़ी और पत्थरों में भी अग्नि गुप्त रहती है, यही कारण है कि जब
लकड़ी को लकड़ी से रगड़ा जाता है और पत्थर पर पत्थर मारा जाता है तो चिंगारी
उत्पन्न होती है।
वायु, चौथा तत्व , के केवल दो गुण हैं, ध्वनि और स्पर्।र्श
।वायु हर जगह मौजूद है और जीवन
के लिए सबसे आवयककश्य है।
तत्वों की सूची में अंतिम स्थान आका या ईथर है , जो वास्तव में सर्वव्यापी है; यह
पृथ्वी से बहुत दूर तक फैला हुआ है। इसमें हर जगह फैलने की क्षमता है क्योंकि
इसमें केवल एक ही गुण है, वह है ध्वनि। बहुत से लोग सोचते हैं कि आकाश का अर्थ
आकाश है; यह गलत है। आकाश का अर्थ है ईथर, और यह यहां भी मौजूद है (स्वामी
अपने सामने मेज थपथपाते हैं) और यहां भी (माइक दिखाते हैं)। ध्वनि आकाश की
षताहै, और जहां भी ध्वनि है वहां आकाश मौजूद है। यह कहा जाता है:
एकमात्र वि षताशे
आकाशम् गगनम् सूर्यम्।
इसका अर्थ है कि आकाश अंतरिक्ष की शून्यता है।
सर्वत्र विद्यमान होते हुए भी वह दिखाई नहीं देता।
3

रवऔर प्रकृति के प्रति रद्धा


ईवर
सभी पांच तत्वों से बहुत परे और किसी भी गुण से पूरी तरह रहित, परमात्मा
(सर्वशक्तिमान ईवर रश्व
) है। पूर्णतया निर्गुण होने के कारण, परमात्मा हमारी कल्पना से
कहीं अधिक सूक्ष्म है; और वह अंतरिक्ष और समय से परे भी मौजूद है। वेद कहते
हैं:
सर्वतः पानीपदं तत् सर्वतोक्षि सिरोमुखम्।
उसके हाथ और पैर सृष्टि में हर जगह हैं।
यद्यपि ईवर रश्वहर चीज से परे है, फिर भी वह सभी पांच तत्वों को अपनी दिव्य शक्ति के
उचित पहलुओं के साथ निवे ततशि करता है। वह स्वयं निर्गुण है; लेकिन वह उपयुक्त गुणों
के साथ सभी संस्थाओं में व्याप्त है। इस प्रकार गीता घोषणा करती है:
ममैवांसो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
सृष्टि के सभी प्राणी मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं और मेरे ही अं शके अलावा और कुछ
नहीं हैं।
, उनकी दिव्यता और उनकी सर्वोच्च शक्ति के पहलू हैं। यही
इसलिए, सभी पाँच तत्व ईवर रश्व
कारण है कि हमारे प्राचीन लोग पाँच तत्वों की पूजा करते थे, उन्हें सर्वशक्तिमान
ईवर रश्वका स्वरूप मानते थे। वे पृथ्वी को देवी माँ के रूप में, नदियों को विभिन्न
देवियों के रूप में और तत्वों को विभिन्न देवताओं के रूप में पूजते थे।
भारत के पूर्वजों द्वारा सदैव पृथ्वी को धरती माता के रूप में पूजा जाता रहा है, क्योंकि
यह पृथ्वी ही है जो किसी न किसी रूप में भोजन प्रदान करती है और जीवन को कायम रखती
है। बहुत कृतज्ञतापूर्वक पूर्वजों ने कहा: "हे धरती माता, मैं आपकी दया के कारण
भोजन करने में सक्षम हूं।" पृथ्वी के बिना हमें अन्न नहीं मिल सकता और इसीलिए
पृथ्वी को इतना सम्मान दिया गया और माँ का दर्जा दिया गया। हालाँकि, वैज्ञानिक तत्वों
की पूजा को अंधविवासीसीश्वा
व्यवहार मानते हैं, और जो लोग इस प्रकार पूजा करते हैं वे
मूर्ख हैं। जो लोग तत्वों की पूजा करते हैं वे मूर्ख नहीं हैं, लेकिन जो लोग निंदा
करते हैं वे मूर्ख हैं। इन आलोचकों को सी श्रद्धा के आन्तरिक महत्व का कोई अंदाज़ा
नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिक परावर्तन, प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि के सिद्धांत से पूरी
तरह अनभिज्ञ होने के कारण केवल प्रकृति के भौतिक और निर्जीव पहलुओं से ही
चिंतित हैं। यदि आप मेज से टकराते हैं तो आपके हाथ पर चोट लगती है। क्यों?
प्रतिक्रिया के कारण. आप कार्य करते हैं, और तालिका प्रतिक्रिया करती है! इसमें
कोई आचर्य र्
यश्चनहीं होना चाहिए. परावर्तन, प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि सृष्टि के कामकाज
न करने वाले तीन प्रमुख सिद्धांत बनाते हैं।
का मार्गदर्नर्श
मनुष्य का जन्म धरती से हुआ है और इसलिए ये सिद्धांत उसमें भी अंतर्निहित हैं।
जब आप किसी पहाड़ी के सामने खड़े होकर चिल्लाते हैं तो आपको एक प्रतिध्वनि
मिलती है - वह प्रतिध्वनि है।
री
ईवरीय यश्वसिद्धांत सृष्टि की प्रत्येक इकाई और प्रत्येक प्राणी में सूक्ष्म रूप में गुप्त
है; हालाँकि, इसे पहचानना बहुत कठिन है।
सब कुछ दिव्य है, और कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि यह दिव्य है और वह दिव्य नहीं
है। सूर्य का प्रकाश अस्तित्व में है क्योंकि सूर्य अस्तित्व में है। उसी तरह, हमारे
पास सृष्टि है क्योंकि एक रचयिता है। जरा सोचो:
यदि ब्रह्मांड में पांच तत्वों में इतनी अधिक शक्ति छिपी हुई है, तो निर्माता कितना
अधिक शक्तिशाली होगा!
अग्नि शक्तिशाली है, मन बहुत शक्तिशाली है, इत्यादि। यदि सृष्टि का प्रत्येक घटक इतनी
अधिक शक्ति से संपन्न है, तो क्या यह स्पष्ट नहीं है कि निर्माता असीम रूप से अधिक
शक्तिशाली होगा?
परंतु मनुष्य इस स्पष्ट सत्य को नहीं देख पाता है। लोग बमों से डरते हैं, लेकिन बम
बनाने वाले से नहीं। दरअसल, आम तौर पर उन्हें यह भी पता नहीं होता कि ऐसे घातक
हथियारों का डिज़ाइन और निर्माण कौन करता है। वस्तु डर पैदा करती है लेकिन उस
व्यक्ति को नहीं जिसने उस वस्तु को बनाया है। प्रकृति और ईवर रश्वके साथ भी ऐसा ही है।
मनुष्य प्रकृति की शक्तिशाली शक्तियों से भयभीत है, लेकिन उसे ईवर रश्वका कोई डर नहीं है।
भगवान की सूक्ष्मता
भगवान की महिमा अद्भुत है,
क्योंकि वे तीनों लोकों को पवित्र करते हैं;
हंसिया की तरह, वे सांसारिक बंधन को तोड़ देते हैं;
वे भी नेक साथी हैं,
और उन मंदिरों को पसंद करते हैं
जहां साधु पूजा करते हैं।
ईवर रश्वकी महिमा का पूर्णतया वर्णन करना असंभव है। कोई भी जितनी भी प्र सा
साशंगा सकता
है वह पर्याप्त नहीं होगी। वास्तव में, किसी ऐसी चीज़ का वर्णन करने का प्रयास करना
व्यर्थ है जो अवर्णनीय है।
इसके बजाय, सबसे पहले, व्यक्ति को उन पाठों को समझने का प्रयास करना चाहिए जो
प्रकृति सिखाती है। पृथ्वी पर कितना भारी भार है! कुछ लोग कहते हैं: "स्वामी, मैं
धरती माता पर बोझ नहीं बनना चाहता।
कृपया मुझे मृत्यु प्रदान करें।" क्या आपके मरने से पृथ्वी का बोझ कम हो जाएगा?
आपके मरने से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पृथ्वी द्वारा उठाया गया बोझ तभी कम
होगा जब आप अपना बोझ कम करेंगे। आप पर सच्चा बोझ क्या है? भालू?
इच्छाएँ आपका बोझ हैं! यदि आप इच्छाओं पर रोक लगा देते हैं, तो आप हल्के हो
जाते हैं और ईवर रश्वके करीब आ जाते हैं। इसीलिए स्वामी अक्सर कहते हैं: कम
सामान, अधिक आराम, यात्रा को आनंददायक बनाएं। इसलिए आपको ईमानदारी से
इच्छाओं का बोझ कम करने का प्रयास करना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप
परमेवर रश्वपर बोझ बनना भी बंद कर देंगे। आपके बोझ में वृद्धि का मतलब है भगवान
के लिए अधिक काम! हालाँकि, ईवर रश्वसूक्ष्म है, वह सीधे आपका बोझ नहीं उठाता। इसके
बजाय, वह प्रत्येक व्यक्ति को अपना वजन इस तरह से उठाने के लिए बनाता है कि
व्यक्ति को विवास सश्वाहो जाए कि वास्तव में भगवान ही वजन उठा रहा है! यह ईवर रश्वकी
सूक्ष्मता है. यद्यपि वह पाँच तत्वों में विद्यमान है, फिर भी वह ऐसा प्रकट करता है
मानो तत्व स्वयं ही सब कुछ चला रहे हों।
गोपिकाओं (चरवाहा नौकरानियों) ने भगवान की सूक्ष्मता के बारे में सुंदर ढंग से
गाया है। उन्होंने कहा:
हे कृष्ण! क्या हम आपको कभी जान पाएंगे
एक परमाणु से भी सूक्ष्म और सबसे शक्तिशाली से भी शक्तिशाली,
आप ही वह हैं जो सभी चौरासी लाख प्रजातियों का पालन करते हैं!
हे कृष्ण, क्या हम आपको कभी जान सकते हैं?
4

दिव्यता की गहराई को समझना किसी के लिए भी असंभव है।


5

तत्वों का गहरा महत्व


अरविंद [वह छात्र जिसने भगवान के प्रवचन से पहले बात की थी] ने स्वामी से पांच
तत्वों की प्रकृति समझाने की प्रार्थना की।
इस ब्रह्मांड में पांच तत्वों के अलावा कुछ भी नहीं है, क्योंकि प्रत्येक इकाई केवल
उनसे और केवल उनसे ही बनी है।
ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ तत्व मौजूद न हों; वे सर्वव्यापी हैं. मानव शरीर भी पांच
ष संयोजन है। पंचांग को पंचांग कहा जाता है क्योंकि यह स्वर्गीय
तत्वों का एक वि षशे
पिंडों के बारे में जानकारी देता है, जो सभी पांच तत्वों से बने होते हैं। इसलिए
पाँच तत्वों के अर्थ और पूर्ण महत्व को समझना महत्वपूर्ण है।
पहले ईथर पर विचार करें, जिसका एकमात्र गुण ध्वनि है। हालाँकि असंख्य प्रकार की
ध्वनियाँ संभव हैं, लेकिन मूल ध्वनि AUM ही है। यह ध्वनि ओमकार वह है जिस पर
आपको वास्तव में ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यहां तीन अक्षर हैं - ए (अकरम), यू
(उकारम), और एम (मकरम), जो मिलकर एयूएम में मिल जाते हैं। मनुष्य एयूएम के तीन
घटक प्रतीकों का एक अवतार है। आदि ध्वनि ओंकार आकाश का ही रूप है और मनुष्य को
इसके साथ प्रतिध्वनित होना चाहिए।
इसके बाद आने वाली वायु या पवन/हवा जीवन को कायम रखती है। वायु के बिना जीवन
असंभव है। साँस लेने की प्रक्रिया में साँस लेना और छोड़ना शामिल है, जिसे सोहम
यागया है। SO साँस लेने से और HAM साँस छोड़ने से जुड़ा है। चूँकि
द्वारा दर् यार्शा
हम ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, इसलिए SO जीवनदायी
ऑक्सीजन के साथ जुड़ा हुआ है और HAM दूषित कार्बन डाइऑक्साइड के साथ। श्वास
प्रक्रिया का आंतरिक अर्थ क्या है? बस इतना ही कि हमें जो अच्छा है उसे ग्रहण
करना है और जो बुरा है उसे छोड़ना है। यह वह सबक है जो सोहम सिद्धांत के माध्यम
से तत्व वायु हमें दिन में 21,600 बार बताता है। शरीर भोजन भी ग्रहण करता है और
मल-मूत्र को बाहर निकाल देता है।
ईवर रश्वने हमें अंग-प्रत्यंगों से आ र्वाद
र्
वादशीदिया है ताकि हम जो अच्छा है उसे
स्वीकार कर सकें और जो अवांछनीय है उसे अस्वीकार कर सकें। हालाँकि, इस
बुनियादी सच्चाई को समझने का प्रयास कोई नहीं कर रहा है। भले ही सिद्धांत समझ में
आ गया हो, फिर भी इसके साथ लापरवाही से व्यवहार किया जा रहा है और अक्सर इसे
नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह सही नहीं है; जो कुछ भी हानिकारक है उसका सारांश
अस्वीकृति प्राथमिकता बननी चाहिए।
पेड़ों पर विचार करें. हम शायद ही कभी इस बात की सराहना करते हैं कि वे जीवित
संस्थाएं हैं। वे न केवल जीवित रहते हैं बल्कि हमें बलिदान के बारे में एक
महान और महत्वपूर्ण सबक भी सिखाते हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं (जिसे
हम अस्वीकार करते हैं) और हमारे लाभ के लिए स्वेच्छा से ऑक्सीजन छोड़ देते
लता
हैं। क्या मनुष्य के पास पेड़ों जैसी बुद्धि या संवेदन लता शीहै? मनुष्य के रूप में
जन्म लेने पर भी मनुष्य त्याग और बुराई के बदले भलाई का बदला लेने में वृक्षों से
हीन है। यह काम नहीं करेगा। जिस मनुष्य को इतनी कुशलता, बुद्धि और विविध क्षमताओं
का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उसे निष्ठापूर्वक यज्ञ करना चाहिए। उसे हमे शशुद्ध रहना
चाहिए, जो बुरा है उसे दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिए और केवल जो अच्छा है उसे
स्वीकार करना चाहिए।
आकाश और वायु के बाद अग्नि आती है। यह अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़
षता
को बिना किसी भेदभाव के जलाने की क्षमता रखता है। सख्त निष्पक्षता की यह वि षताशे
ज्ञानाग्नि या ज्ञान की आग का आधार है, जो सभी सांसारिक लगावों को जला देती है।
जतराग्नि, प्राणाग्नि और बदाग्नि सहित अग्नि की विभिन्न अभिव्यक्तियों को समझने का
कोई प्रयास नहीं कर रहा है। मनुष्य में विभिन्न ख़ज़ाने छुपे हुए हैं लेकिन वह
उनसे पूरी तरह से अनभिज्ञ है क्योंकि उसके पास स्वयं के ज्ञान का अभाव है।
6

यह आत्मज्ञान ही सच्चा ज्ञान है और आज इसकी अत्यंत आवश्यकता है।


मनुष्य ने सांसारिक ज्ञान, सांसारिक ज्ञान और भौतिक ज्ञान पर तो महारत हासिल कर
ली है, लेकिन आत्म-ज्ञान के बारे में वह पूरी तरह से अनभिज्ञ है। अपनी शानदार
चमक के साथ, अग्नि आत्मज्ञान के गुणों की घोषणा करता है। शास्त्र कहते हैं:
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
अग्नि हमें सिखाती है कि ज्ञान की अग्नि हमें प्रकाश की ओर ले जाएगी।
पवित्र नाम राम में हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की क्षमता है। राम शब्द
तीन अक्षरों से मिलकर बना है: रा, अ और म। रा अग्नि तत्व का प्रतीक है। A चंद्रमा
का प्रतिनिधित्व करता है, और Ma सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। अग्नि तत्व रा सभी
बुराईयों और पापों को नष्ट कर देता है। चंद्र सिद्धांत ए जुनून को शांत करता है और शांति
लाता है।
जब बुराई नष्ट हो जाती है और शांति कायम होती है तो सूर्य तत्त्व मा तेज प्रदान करता
है। इस प्रकार, राम नाम समग्र रूप से संपूर्ण ज्ञान का प्रतीक है। इसमें बुराई को नष्ट
करने, शांति लाने और तेज प्रदान करने की शक्ति है। यह व ष्ठ ष्
ठशि
द्वारा सम्राट दशरथ के
पहले जन्मे पुत्र को दिए गए नाम का आंतरिक महत्व है। इस प्रकार अग्नि सिद्धांत का
गहरा अर्थ है।
आग के बाद पानी आता है. यह जीवन के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण है; इसमें
जीवन देने वाली शक्ति है. इसीलिए बेहोश हुए व्यक्ति पर पानी छिड़का जाता है। खाने
से पहले ब्रह्मर्पणम का जाप करके भगवान को भोजन अर्पित करें। आपके द्वारा खाए
गए भोजन का क्या होता है?
आपके भीतर कौन मौजूद है जो आपके द्वारा खाए गए भोजन से जीवन शक्ति निकालता है
और इसे शरीर के विभिन्न अंगों में वितरित करता है? वह देवता वैवानरनरश्वाहैं जो
कहते हैं, "हे मनुष्य! यह समझो कि मैं भीतर की वह शक्ति हूं जो पाचन और आत्मसात
करने में सहायता करती है।" यह "अहम् वैवानरनरश्वा
" श्लोक है।
जहाँ तक पृथ्वी की बात है, यह असंख्य तरीकों से हमारी मदद करती है। यह हमारे
द्वारा उपयोग की जाने वाली ईंटों का आधार है और यह उन मकानों के लिए मंच प्रदान
करता है जिन्हें हम बनाते हैं। यह पेड़ों को सहारा देता है और अनाज की आपूर्ति
करता है। और यह हमें आराम करने की जगह देता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह नहीं
देता। इतने सारे उपहार प्रदान करने के बावजूद, यह कुछ भी उम्मीद नहीं करता है।
लेकिन इंसान सबक नहीं सीख रहा है.
7

बाह्य प्रदूषण आंतरिक प्रदूषण का प्रतिबिम्ब है


ऐसा कहा जाता है कि कलियुग मुक्ति का सबसे आसान मार्ग प्रदान करता है। हालाँकि,
मनुष्य उसे मिले सुनहरे अवसर को नज़रअंदाज कर रहा है।
आज मनुष्य (वि"द्ध द्धशुसांसारिक अर्थों में) बहुत चतुर या बुद्धिमान हो गया है।
धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यापक हो गई है और स्कूल हर गली-नुक्कड़ पर पाए जाते हैं। पैसा
कमाने के लाखों तरीके खोजे गए हैं। एक बार एक चालाक व्यक्ति ने अखबारों में
विज्ञापन दिया, जिसमें घोषणा की गई कि वह सिर्फ एक रुपये के भुगतान पर घर से
मच्छरों को खत्म करने का एक निचित तश्चितरीका बताएगा। बहुत से लोग विज्ञापन के
झां से में आ गए और उन्होंने खूब पैसा इकट्ठा किया।
जब इन लोगों ने उनसे वादा किए गए उपाय के बारे में पूछा, तो उन्होंने बस इतना
कहा, "एक पत्थर ले लो और जो भी मच्छर दिखे, उसे कुचल दो, चाहे वह कहीं भी हो!" क्या
यह मच्छरों की समस्या का सार्थक समाधान है? फिर भी, चालबाज बहुत से लोगों को धोखा
देने में सक्षम था। भोले-भाले लोगों को धोखा देने और उनसे पैसे ऐंठने के लिए
इस तरह की कई रणनीतियाँ तैयार की गई हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य ने धन संचय करने और भाग्य संचय करने के कई
तरीकों में महारत हासिल कर ली है। फिर भी, ख़ु शउससे दूर रहती है। क्यों? क्योंकि
उसका आचरण ठीक नहीं है. अच्छे आचरण के लिए सद्गुण सबसे आवयककश्य हैं। एक नेक
इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है. सद्गुणों से रहित पुत्र और सार्थक लक्ष्य विहीन
जीवन का कोई महत्व नहीं है। सद्गुणों के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
सदाचार ही जीवन का वास्तविक आधार होना चाहिए। हालाँकि, आधुनिक मनुष्य में चरित्र
और गुणों का सर्वथा अभाव है। इसमें कोई आचर्य र्यश्चनहीं कि शांति और ख़ु शदोनों ही
उससे दूर हैं। मनुष्य के दुराचार और अनैतिक व्यवहार के कारण वायु, जल, भूमि और
भनी
भोजन सर्वत्र प्रदूषण है। मनुष्य के अ भनीययशो
व्यवहार के कारण पाँचों तत्व बुरी तरह
दूषित हो गये हैं। यदि मनुष्य उचित आचरण करे तो क्या तत्वों का प्रदूषण संभव है?
यह सब अनैतिक भावनाओं और अनुचित व्यवहार के व्यापक प्रसार के कारण है। प्रेम,
लता
करुणा और सहन लता शी
जैसे गुणों की भारी गिरावट आज के व्यापक प्रदूषण के लिए सीधे
तौर पर जिम्मेदार है। वास्तव में, कोई यह भी कह सकता है कि पाँच तत्व मनुष्य से
डरते हैं! भगवान ने जिन पांच तत्वों को बनाया है वे सभी शुद्ध और पवित्र हैं। उनके
साथ कुछ भी गलत नहीं है. यह मनुष्य का कदाचार ही है जिसके कारण ये सभी प्रदूषित हो
द्
धता
गये हैं। भीतर की अ"द्धता शुबाहर के प्रदूषण के रूप में परिलक्षित होती है। यहाँ एक
उदाहरण है।
गंगा नदी का जल शुद्ध है। हालाँकि, यदि आप किसी रंगीन बोतल में गंगाजल भर देंगे
तो वह रंगीन दिखाई देगी। यदि बोतल लाल है तो पानी लाल दिखाई देगा और यदि बोतल
नीली है तो पानी भी नीला दिखाई देगा। रंग कहाँ से आता है? पानी से या बोतल से?
गंगा जल आंतरिक रूप से शुद्ध है; इसलिए रंग बोतल में पानी रखने के कारण होता है।
इंसान एक बोतल की तरह है. बुरे विचार हावी होने पर शरीर बुरे कर्मों में प्रवृत्त हो
जाता है; यदि अच्छे विचार प्रबल हों तो शरीर अच्छे कर्म करता है। शरीर कार्यों के
लिए ज़िम्मेदार नहीं है; विचार ही शरीर को प्रेरित करते हैं। बुरी भावनाएँ, बुरे
विचार और बुरी संगति बुरे कार्यों के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।
आपको इस बुनियादी तथ्य को समझना होगा.
आपको अच्छे विचार रखने चाहिए और चरित्र में शुद्धता का लक्ष्य रखना चाहिए।
पंचतत्वों को ईवर रश्वका उपहार मानकर उनकी पवित्रता की रक्षा करनी चाहिए। इनका उचित
एवं उपयुक्त तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए। आप भजन क्यों गाते हैं? इस अभ्यास
के अर्थ के बारे में गहराई से पूछताछ करें। भजन गायन भगवान के नाम को मधुर
और सुखद तरीके से जपने का अवसर प्रदान करता है। दिव्य नाम से जुड़े कंपन तब
वातावरण में फैल जाते हैं और इसे शुद्ध करते हैं; वर्तमान प्रदूषण नष्ट हो गया है।
इस प्रकार भजन का मूल उद्देय श्य
बुरे को अच्छे में बदलना है।
विद्यार्थियों!
जैसी लौ, वैसा धुआँ।
जैसा धुआं है, वैसा ही बादल है।
जैसा बादल, वैसी ही बारिश।
जैसी बारिश, वैसी फसल.
जैसी फसल, वैसा भोजन.
अत: यदि भोजन को शुद्ध बनाना है तो उसका आरंभ बिंदु अर्थात लौ धुआं ही होना चाहिए।
जब कचरा जलाया जाता है, तो प्रदूषित धुआं भोजन तक पहुंच जाता है। और जब ऐसे भोजन
का सेवन किया जाता है तो बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार दूषित भोजन आजकल
देखे जाने वाले अधिकांश बुरे विचारों और कार्यों के लिए जिम्मेदार है। समुद्री
जल खारा होता है लेकिन जब यह वाष्पित हो जाता है तो वाष्प नमक से मुक्त हो जाता है।
इसके बाद, वाष्प बादल बन जाता है, जिसमें शुद्ध और मीठा पानी भी होता है। जो वर्षा
होती है वह इस शुद्ध जल को धरती पर लाती है। यह भगवान का प्रेम है जो बारिश के रूप
में प्रकट होता है, जिसमें गंगा जैसा पवित्र पानी होता है। इसी तरह, बुद्धि (बुद्धि) को
चमकते सूरज को सभी बुरी भावनाओं को दूर करना चाहिए। अच्छे गुणों का वाष्पीकरण क्या
परिणाम देगा। जब पर्याप्त भाप एकत्रित हो जाती है तो प्रेम की वर्षा होती है। जिस
बादल से वर्षा होती है वह सत्य है। इस प्रकार, सत्य प्रेम की बूंदों का स्रोत है। प्रेम
की बारिश अंततः आपको दैवीय कृपा की फसल देती है। इसलिए, आपके सभी विचार और
कार्य शुद्ध और पवित्र होने चाहिए।
यदि आप निरंतर भगवान का नाम जपेंगे तो प्रदूषित वातावरण अपने आप शुद्ध हो जाएगा।
दैवीय नाम के जाप से उत्पन्न होने वाली दिव्य तरंगें वातावरण में घुलमिल जाती
हैं और हर जगह, बल्कि पूरे विव श्वमें फैल जाती हैं।
दिल्ली से एक रेडियो कार्यक्रम प्रसारित होता है लेकिन एक सेकंड के एक अंश में
आप उसे यहां सुन सकते हैं। कैसे? कंपन के प्रसार के कारण. इसलिए, भजन गायन
से उत्पन्न अच्छी ध्वनियाँ और पवित्र कंपन वातावरण को प्रसारित करेंगे, शुद्ध
करेंगे और अच्छे भोजन के उत्पादन में मदद करेंगे। इसके अलावा, जब आप शुद्ध
हवा में सांस लेते हैं, तो यह बुरे विचारों को दूर रखने में भी मदद करता है।
8

रवका प्रेम सर्वव्यापी है


ईवर
प्रेम के प्रतीक! आप सभी को प्रेम से रहना चाहिए। यदि हर कोई ऐसा करे तो पूरी दुनिया
प्रेम में डूब जाएगी। स्वामी इस कथन का जीता जागता प्रमाण हैं। स्वामी सदैव प्रेम
के प्रतीक हैं और उनमें क्रोध का लेशमात्र भी अंश नहीं है। कभी-कभी स्वामी
"फुफकारते" प्रतीत हो सकते हैं लेकिन यह भी स्वामी के प्रेम से उत्पन्न होता है!
कभी-कभी बारिश होने पर ओले भी गिर जाते हैं। बर्फ के टुकड़े कठोर हो सकते हैं,
लेकिन वे भी पानी से बने होते हैं। उसी तरह स्वामी की फटकार भी प्रेम की अनवरत
वर्षा का एक हिस्सा है। यह कभी न भूलें कि यदि स्वामी आपको डांटते भी हैं तो यह
उनके प्रेम का ही एक हिस्सा है और यह आपके भले के लिए है। स्वामी ऊपर से पाँव
तक प्रेम के अलावा और कुछ नहीं है। हमे शऐसा ही होता है. प्रेम के सिद्धांत का
पालन करें. पाँचों तत्वों को प्रेम से ओत-प्रोत देखिये। सदैव अपना कर्तव्य निभाओ
और पवित्र कार्य करो। आपका आध्यात्मिक विकास आपकी अपनी जिम्मेदारी है।
9

उद्धरेध आत्मान आत्मानम्।


न को समझने के लिए आपका
स्वयं के उत्थान के लिए कार्य करना होगा। आध्यात्मिक दर्नर्श
दृष्टिकोण यही होना चाहिए।
वेदों में मूल शब्द विद के अनेक उल्लेख मिलते हैं। यह मूल शब्द सीखने के सभी रूपों
में सामान्य है। वेद सभी सत्यों के व्यापक समेकन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसा
कि प्राचीन ऋषियों ने माना और जैसा कि उन्होंने अभ्यास किया। वेद उन लोगों को
आनंद और खु शप्रदान करते हैं जो उनमें निहित शिक्षाओं का पालन करते हैं। वेदों
में रत्ती भर भी कोई बुरी बात नहीं है। यदि उनकी शिक्षाओं का पालन किया जाए तो केवल
अच्छा ही होता है।
ईवर रश्वहर जगह है, भले ही वह सीधे आंखों से दिखाई न दे। भगवान हवा में भी मौजूद
हैं, लेकिन आप उन्हें वहां नहीं देख सकते।
सिरप मीठा है; क्यों? क्योंकि इसमें शुगर होती है. क्या आप चाशनी में चीनी देख सकते
हैं? नहीं, सिर्फ इसलिए कि आप इसे देख नहीं सकते, क्या आप इस तथ्य से इनकार कर
सकते हैं कि चाशनी में चीनी है? ऐसा करना बेवकूफी होगी. फिर तुम्हें कैसे पता चला
कि चाशनी में चीनी है?
अनुभव के माध्यम से. जिस प्रकार चीनी शरबत की मिठास का आधार है, उसी प्रकार ईवर रश्व
प्रेम का आधार है, जो सर्वव्यापी है। ईवर रश्वसर्वव्यापी है और उसकी उपस्थिति अमृतमय
है। यदि आपका हृदय प्रेम से भरा है, तो आप हर जगह उनकी अमृतमय उपस्थिति और
मिठास का अनुभव करेंगे। जीवन आपके लिए हमे शमधुर रहेगा और आप उस मिठास को
हमे शदूसरों के साथ साझा कर पाएंगे।
बच्चा माँ का दूध पीता है और उसे मीठा लगता है। क्या माँ ने दूध में चीनी मिलाई थी?
नहीं; माँ का दूध स्वभावतः मीठा होता है; भगवान ने इसे इसी तरह बनाया है। उसी
प्रकार, भगवान का प्रेम मधुर है और हर जगह मौजूद है। यह आप पर निर्भर है कि आप
उस मिठास को निकालें और उसका आनंद लें, जैसे एक बच्चा अपनी मां से दूध चूसता
है और जैसे मधुमक्खियां फूलों से शहद चूसती हैं। क्या फूल मधुमक्खियों को
आमंत्रित करते हैं? नहीं, मधुमक्खियाँ अनायास ही फूलों के पास चली जाती हैं। उसी
प्रकार तुम्हें भी श्रेष्ठ आत्माओं की खोज करनी चाहिए और उनसे अच्छी बातें ग्रहण
करनी चाहिए।
सत्संगत्वे निःसंगत्वम्, निःसंगत्वे निर्मोहत्वम्,
निर्मोहत्वे निःसंगत्वम्, निःसंगत्वे जीवन्मुक्तिः।
त्यज दुर्जन संसारम्, भज साधुसमागमम्, कुरु पुण्यमहोरात्रम्।
बुरी संगत छोड़ो और अच्छी संगति करो। दिन-ब-दिन अच्छा करो।
यही मानव जीवन को पवित्र करने का मार्ग है। हालाँकि सही मार्ग पर चलने के लिए
असंख्य अवसर मौजूद हैं, लोग उन सभी को गँवा देते हैं और इसके बजाय अपना समय
बर्बाद करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग बुरी संगति खोजने में आनंद लेते हैं,
भले ही इसके लिए उन्हें भुगतान करना पड़े।
बुरे विचार और संगति की तलाश में क्यों जाना पड़ता है? इसके बजाय, आपको वह वस्तु
क्यों नहीं मिलती जो आपको मुफ़्त और बिना किसी शुल्क के दी जाती है? अच्छे को
अस्वीकार करना और केवल बुरे को स्वीकार करना एक गंभीर गलती है। केवल एक मूर्ख
जो बुरे और अच्छे के बीच अंतर करने में असमर्थ है, वह इस तरह से व्यवहार
करेगा।
10

सृष्टि उत्तम है
प्रेम के प्रतीक! तुम्हें सदैव प्रेम में रहना चाहिए। प्यार का कोई रूप नहीं होता.
इसकी कोई इच्छा नहीं है. यह न तो ब्याज मांगता है और न ही ब्याज देता है। यह खरीद-
बिक्री या किसी अन्य प्रकार के व्यापारिक लेनदेन में शामिल नहीं होता है। प्रेम
अपने आप में प्रेम के रूप में खड़ा है, और केवल प्रेम से ही इसे सुरक्षित किया
जा सकता है। इसलिए, आप जो प्रेम के स्वरूप हैं, आपको अन्य सभी को भी प्रेम के
स्वरूप के रूप में देखना चाहिए। मनुष्य पांच तत्वों से बना है, जिनमें से प्रत्येक
मूल रूप से दिव्य है। वे सभी पवित्र हैं और उनमें कुछ भी बुरा नहीं है। यदि आज वे
प्रदूषित हैं तो उस दूषित कृत्य के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है।
तीहै।
एक कहानी है जो इस बात को दर् तीर्शा
न के लिए गये। भगवान ने मुस्कुराते हुए पूछा, "नारद,
एक बार नारद भगवान विष्णु के दर्नर्श
तुम कहाँ से आ रहे हो?"
ऋषि ने उत्तर दिया, "स्वामी, मेरे पास न तो घर है और न ही परिवार। मैं हर समय
घूमता रहता हूं। मैं लगातार आपकी स्तुति गाते हुए तीनों लोकों में घूमता रहता हूं।"
विष्णु ने कहा, "क्या ऐसा है? बहुत अच्छा। अब बताओ; क्या तुम मेरी सृष्टि के रहस्य को
समझ गए हो?" नारद ने उत्तर दिया, "भगवान, क्या आप सुझाव दे रहे हैं कि मैं ऐसा
नहीं करता? बेशक मैं इसे समझ गया हूँ।"
विष्णु ने फिर आगे कहा, "तब तो आपने यह मान लिया होगा कि मेरी रचना में कुछ भी
बुरा नहीं है। क्या आपने कभी कुछ बुरा देखा है?"
नारद ने कुछ देर सोचा और उत्तर दिया, "भगवान, मुझे क्षमा करें लेकिन मैंने एक
चीज़ देखी है जो बुरी है।"
विष्णु ने कहा, "क्या! मेरी रचना में कुछ बुरा है? असंभव! सृष्टि में कुछ भी बुरा नहीं
है।" नारद ने झिझकते हुए कहा, "भगवान्, एक बात है जो ख़राब है।" विष्णु ने फिर पूछा,
"यह क्या है?"
नारद फुसफुसाए, "यह मल है। यह बिल्कुल गंदा है और कोई भी इसके पास नहीं जा सकता।
आपने ऐसी चीज़ क्यों बनाई?" विष्णु ने कहा, "नारद, तुम गलत हो। जाओ और उस मल से
पूछो कि इसे किसने बनाया?" नारद ने विरोध किया और प्रतिवाद किया कि वे उस गंदी
बात के पास नहीं जा सकते। लेकिन विष्णु दृढ़ थे और उन्होंने नारद को
नु
सारशा
निर्दे नुसार करने का आदेश दिया। भगवान की आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती,
और अनिच्छा से नारद अप ष्टष्
टशि
पदार्थ की ओर चले गए।
जब वह निकट आ रहा था, तब भी मल ने कहा, "रुको! मेरे पास मत आओ। दूर रहो।" नारद
यचकितश्चहो गए और क्रोधित होकर बोले, "क्या? मुझ जैसे पवित्र
र्
पूरी तरह से आचर्यचकित
व्यक्ति को दूर रहने के लिए कहने पर तुम्हें आपत्ति हो रही है?" मल ने उत्तर दिया,
"कल इस समय, मैं भी पवित्र था। मैं स्वादिष्ट व्यंजनों के रूप में अच्छा भोजन था जो
भगवान को अर्पित करने योग्य था। फिर मैं एक इंसान के संपर्क में आया और मेरे
साथ ऐसा हुआ!" एक बार बुरा बहुत हो गया, मुझे दोबारा तुम्हारा साथ नहीं चाहिए!” इस
प्रकार बुराई का जन्म बुरी संगति से होता है। इस बुनियादी तथ्य को आजकल ठीक से
समझा और सराहा नहीं जाता।
एक बार एक आदमी था जिसका इकलौता बेटा एक दिन बिच्छू द्वारा डंक मार दिया गया था।
लड़का दर्द से जोर-जोर से चिल्लाया और पीड़ित पिता मदद के लिए डॉक्टर के पास
भागा। उसने डॉक्टर से कहा, "सर, मेरे बेटे को बिच्छू ने काट लिया है और वह बुरी
तरह रो रहा है। कृपया कोई दर्द निवारक दवा दीजिए।" डॉक्टर ने एक मरहम देकर कहा,
“इसे उस स्थान पर लगाओ जहाँ बिच्छू ने काटा है।” वह आदमी घर वापस भागा और
अपने बेटे से पूछा, "बिच्छू ने तुम्हें कहाँ डंक मारा?" लड़के ने कमरे के एक
कोने की ओर इ रारा करते हुए कहा, "वहाँ पर।"
शा
मूर्ख पिता ने फिर कोने पर मरहम लगाया!
आजकल अधिकांश आध्यात्मिक जिज्ञासु इसी मूर्खतापूर्ण आचरण का व्यवहार करते हैं।
आपको सावधानी से बुराई के स्रोत या उत्पत्ति की पहचान करनी होगी और फिर उचित
उपचारात्मक कार्रवाई करनी होगी। दूसरों को दोष मत दो. दोष आपमें है, आपकी भोलापन,
आपकी संवेदन लतालता शी
और बुरे रास्ते पर चलने की आपकी इच्छा और उत्सुकता में है।
इसलिए दूसरों पर आपको खराब करने का आरोप लगाने के बजाय अपनी भावनाओं,
विचारों और कार्यों को सही करने पर ध्यान केंद्रित करें। पाँच तत्वों और पाँच जीवन
सिद्धांतों (पंच प्राणों) के आध्यात्मिक आधार को समझें। इनकी उचित समझ ही आपको
सही मार्ग दिखाएगी और आपके दुखों को दूर करेगी। पांच तत्व सबसे कीमती और पवित्र
हैं, और इनका उपयोग करने के साथ-साथ श्रद्धापूर्वक अनुभव भी किया जाना चाहिए।
प्रेम के प्रतीक! सृष्टि में कुछ भी बुरा नहीं है. यदि कुछ बातें ऐसी प्रतीत होती हैं तो
यह पूर्णतः दोषपूर्ण दृष्टि के कारण है। भीतर छिपी हुई बुरी भावनाएँ यह धारणा पैदा
करती हैं कि कुछ चीज़ें बुरी हैं। इसलिए पवित्र और प्रेमपूर्ण भावनाओं का विकास
करना ज़रूरी है। सदैव भगवान के विचार में डूबे रहो और निरंतर उनके नाम का जाप
करो। सदैव ईवरीय रीयश्वअनुभूति से ओत-प्रोत रहें। यदि कर्तव्यनिष्ठा से पालन किया जाए,
तो ऐसी प्रथाओं का आपके भीतर के सभी संदूषण को दूर करने की गारंटी है। कभी भी बुरे
कार्यों में लिप्त न हों, कभी दूसरों की आलोचना न करें, दूसरों को दोष न दें, या दूसरों
पर आरोप न लगाएं।
बुरे विचार वायु को प्रदूषित करते हैं और दूसरों को भी संक्रमित करते हैं; इसी तरह
से बुरी तरंगें फैलती हैं। इसलिए ईमानदारी से बुरी संगति और बुरे व्यवहार से
बचें। बुरी नज़र न रखें; वे नुकसान पहुंचाएंगे.
कीचक ने कामुक दृष्टि से मनोरंजन किया और इसके लिए उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी;
भीम ने उसे कुचल दिया था। बुरी सलाह पर कभी ध्यान न दें. कैका ने मंथरा के ऐसे वचन
सुने और बाद में उसका क्या हुआ?
कैका के बारे में कोई भी कभी भी सुखद तरीके से नहीं सोचता। उसने इतनी बदनामी
हासिल की कि किसी भी लड़की का नाम कैका नहीं रखा गया! बुरी सलाह ने दुर्योधन और
सनशा
दु सन को भी बर्बाद कर दिया। उन्होंने लगातार महान पांडवों के साथ दुर्व्यवहार किया
और अंत में उन्हें विनाश का सामना करना पड़ा। इसलिए कभी भी बुरी बातें नहीं सुननी
चाहिए.
11

समभाव और त्याग की भावना विकसित करें


स्वामी छात्रों को एक अहम सलाह देना चाहते हैं. लोग आपको तरह-तरह की बातें बता
सकते हैं जिनसे आपको दुख होता है। उन्हें भूल जाओ और उन्हें दूसरों के सामने न
दोहराओ। यदि उन्होंने आपको कष्ट पहुंचाया तो वे दूसरों को भी ऐसा ही करेंगे। फिर
दोहराना क्यों? मान लीजिए कि कोई आप पर किसी ऐसे काम का आरोप लगाता है जो आपने
नहीं किया है। आपको दुख होता है. अब अगर तुम यह बात अपने माता-पिता को बताओगी तो
उन्हें भी दुख होगा।
इसलिए दूसरों की बुरी और अनुचित टिप्पणियों को नजरअंदाज करना सीखें।
कभी-कभी, कोई दूसरों की बातें सुनने से खुद को रोक नहीं पाता है, लेकिन इसे दर्ज न
होने दें। बस इसे बीत जाने दो और इसके बारे में भूल जाओ। हमे शबुरे विचारों,
बुरी नज़रों, बुरी भावनाओं और बुरे कार्यों से बचें। इसके बजाय, हमे शपवित्र रहो
और केवल अच्छा करो।
क्या आप जानते हैं भगवान ने आपको आँखें क्यों दी हैं? क्या यह उन्हें हर चीज़
और किसी भी चीज़ पर दावत देने के लिए है? नहीं! भगवान ने दृष्टि का उपहार इसलिए
न कर सकें और उनकी सुंदरता को देखकर आनंदित महसूस
दिया है ताकि आप उनके दर्नर्श
कर सकें। आँखें पवित्र हैं; उनका उपयोग केवल पवित्र उद्देयोंश्यों
के लिए ही किया
जाना चाहिए।
सभी पांच तत्व और वास्तव में संपूर्ण सृष्टि पवित्र है। आप सृष्टि का एक हिस्सा हैं, जो
ईवर रश्वका एक अंग है। अतः आप भी पवित्र हैं। सृष्टि में प्रत्येक चीज़ परमात्मा का
एक पहलू है।
उस भावना और जागरूकता को विकसित करें। तब तुम्हें अवय श्य ही ईवर रश्वका अनुभव होगा।
सृष्टि में कुछ भी बुरा नहीं है. नारद को लगा कि मल ख़राब है. अगर मल हमे शशरीर के
अंदर ही पड़ा रहे तो क्या यह शरीर के लिए अच्छा होगा? स्पष्टः नहीं। इसीलिए भगवान
ने इसके निष्कासन की व्यवस्था की है - यह आपके अपने भले के लिए है। ईवर रश्वजो
कुछ भी करता है वह अच्छे और भले के लिए ही करता है।
सृष्टि की हर चीज़ को अच्छा मानिए। दुख और दर्द भी अच्छे हैं! यदि आपको दर्द या
पीड़ा का अनुभव होता है, तो अपने आप से कहें: "यह मेरे लिए अच्छा है, यह मेरे
लिए अच्छा है, ...." प्र सा
साशंऔर आलोचना को एक जैसा समझें, और भले ही लोग आपको
सितशंयोग है, और त्याग अनु सित
गाली दें तो भी शांत रहें। यह अनु सित सितशंमार्ग है। समता से
बढ़कर कोई योग नहीं है और त्याग से बढ़कर कोई मार्ग नहीं है। शुद्धता और पवित्रता
प्राप्त करने का यह सबसे अच्छा तरीका है।
पांच तत्वों के अर्थ की गहराई से जांच करें और महसूस करें कि आप स्वयं उनसे
बने हैं। तत्वों की उचित रीति से पूजा और आदर करने का हर संभव प्रयास करें।
आपकी सांसों से हमे शभगवान के नाम का जाप गूंजना चाहिए। सदैव उनकी महिमा गाते
रहो।
भगवान ने भजन गाकर प्रवचन का समापन किया: हरि भजन बिना सुख शांति नहीं।

त्रिगुण और पंचभूत

प्रवचन दिनांक

28 मई 1990

जगह

वृंदावन

अवसर

ग्रीष्मकालीन पाठ्यक्रम 1990

प्रवचन संग्रह

श्री सत्य साईं प्रवचन, खंड 23 (1990)


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अंतर्वस्तु

विद्यार्थियों! दिव्य प्रेम के प्रतीक! ब्रह्मांड में सब कुछ ब्रह्म है. "दिव्यता सूर्य की
किरणों में चमकती है। यह दिव्यता ही है जो मनुष्य को उसकी आंखों के माध्यम से
लता
दुनिया की वि लता शा
और महिमा दिखाती है। चंद्रमा की सफेदी और शीतलता जो मनुष्यों को
शांति प्रदान करती है, वह परमात्मा से प्राप्त होती है। ब्रह्मांड , जो समय की त्रिगुण
प्रकृति पर आधारित है और जो त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेवर रश्व) द्वारा कायम है,
तीन गुणों - सत्व, रजस, तमस के रूप में दिव्य द्वारा व्याप्त है।" (यह उस संस्कृत श्लोक
का अर्थ था जिसके साथ भगवान ने अपना प्रवचन शुरू किया था)। प्रकृति अद्भुत चित्र
प्रस्तुत करती है। इसे कोई भी पूरी तरह समझ नहीं सकता. चाहे आ र्वाद र्
वादशी
हो या शोक, खु श
हो या दुःख, लाभ हो या हानि, यह प्रकृति से आता है। प्रकृति सभी प्राणियों की नियति की
अध्यक्षता करती है। यह प्रकृति तीन गुणों से युक्त है। त्रिदेव तीन गुणों का
प्रतिनिधित्व करते हैं। तीन गुण सृजन, पालन और विघटन की प्रक्रियाओं के लिए भी
जिम्मेदार हैं - सृष्टि, स्थिति और लय। संसार के सभी विविध अनुभव तीन गुणों से
उत्पन्न होते हैं।
मनुष्य को दीर्घ (लंबे) जीवन की नहीं, बल्कि दिव्य (दिव्य) जीवन की आकांक्षा करनी
चाहिए। ब्रह्मांड में, जो ईवर रश्वसे व्याप्त है, मनुष्य को मुख्य रूप से अपने जीवन को
दिव्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।
1

सृष्टिकर्ता के स्वभाव की खोज करें


सृष्टि का रहस्य केवल रचयिता ही जानता है। अन्य लोग इसे समझने की आ शनहीं कर
सकते। वैज्ञानिक सृष्टि के रहस्यों को खंगालने में लगे हुए हैं। लेकिन कोई भी
प्रकृति के रहस्य की गहराइयों में नहीं उतर सकता। वैज्ञानिक जांच में, आज की खोज
कल के निष्कर्षों से आगे निकल जाती है। वह फिर अपनी बारी में पुराना हो जाता है।
निरंतर परिवर्तन सृष्टि के स्वभाव में है। यह स्थायी या अपरिवर्तनीय नहीं है.
सृष्टिकर्ता ही एकमात्र शाश्वत अपरिवर्तनीय इकाई है। आध्यात्मिक मार्ग का उद्देय श्य
सृष्टिकर्ता की प्रकृति की खोज करना और इस प्रकार सृष्टि की प्रकृति को समझना है।
सजीव और निर्जीव वस्तुओं से युक्त संपूर्ण ब्रह्मांड तीन गुणों पर आधारित है। मनुष्य
को उस सिद्धांत को समझने का प्रयास करना चाहिए जो तीन गुणों से परे है। ईवर रश्व
आत्मा का अवतार है। जब सत्यम, ज्ञानम, अनंतम, ब्रह्म, आत्मा या "भगवान" जैसे शब्दों
का उपयोग किया जाता है, तो वे सभी केवल एक इकाई को संदर्भित करते हैं। शुरुआत
में, पंच भूत (पांच तत्व - अंतरिक्ष, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) आत्मा से निकले।
षताएँसमाहित हैं। पांच तत्वों से पंचीकृतम् (संलयन की
पाँच तत्वों में पाँच वि षताएँशे
प्रक्रिया) शुरू हुई। इस संलयन से तीन गुण उत्पन्न हुए। ब्रह्माण्ड तीन गुणों का दृय श्य
रूप
है।
2
तत्व और गुण
ब्रह्मांड तीन गुणों से व्याप्त है: सत्व, रजस और तमस। सत्व गुण की प्रकृति को ठीक से
समझना होगा। मनुष्य में अंतःकरण (आंतरिक उपकरण) पांच तत्वों में पाए जाने वाले
सात्विक गुण का प्रतिनिधित्व करता है। सात्विक गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले
तत्वों में आकाश (अंतरिक्ष या ईथर) की प्रधानता है। आकाश से जो शुद्ध सत्व (शुद्ध सत्व)
के नाम से जाना जाता है, वह निकला। यह मानव रूप का वर्णन करता है। आकाश श्रवण के
अंग - कान के उद्भव का भी कारण बनता है। दूसरा तत्व है वायु. त्वचा वायु द्वारा प्रस्तुत
सिद्धांत का उत्पाद है। आँख अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला अंग है। चौथे
तत्व जल का वैयक्तिक पहलू जीभ है। नाक पांचवें तत्व, पृथ्वी (पृथ्वी) के व्यक्तिगत
पहलू का प्रतिनिधित्व करती है। ये पांच तत्व शब्द (ध्वनि), स्पर्(स्पर्
), रूप (दृष्टि), रस
(स्वाद) और गंध (गंध) की पांच क्षमताओं के लिए जिम्मेदार हैं। चूंकि इनमें से
प्रत्येक क्षमता एक वि षशेष तत्व से उत्पन्न हुई है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में पांच
क्षमताएं अलग-अलग हैं।
आकाश (अंतरिक्ष) का प्रतिनिधित्व ध्वनि द्वारा किया जाता है और संबंधित इंद्रिय कान
है। कान केवल सुन सकते हैं और कोई अन्य कार्य नहीं कर सकते। इसी प्रकार त्वचा
केवल वायु से जुड़े स्पर्(स्पर्) की अनुभूति कर सकती है। आंख (जो अग्नि से जुड़ा
अंग है) केवल देख सकती है और कुछ नहीं कर सकती। जीभ (तत्व, जल का प्रतिनिधित्व)
केवल स्वाद ले सकती है। नाक केवल सूंघ सकती है, लेकिन स्वाद नहीं ले सकती।
3

अन्तःकरण की भूमिका
जबकि प्रत्येक इंद्रिय अंग कार्यात्मक रूप से अपनी वि ष्ट ष्टशिभूमिका तक सीमित है,
अंतःकरण (आंतरिक यंत्र) सभी पांच अंगों के कार्यों को जोड़ता है। यह अकेले ही
पांच ज्ञानेंद्रियों (पांच इंद्रियों) की सभी धारणाओं का अनुभव करने की क्षमता
रखता है। क्या ये ज्ञानेन्द्रियाँ बाह्य रूप से कार्य कर रही हैं या आंतरिक रूप से?
इसका उत्तर यह है कि वे दोहरी भूमिका निभाते हैं (आंतरिक और बाह्य दोनों)। यदि
भौतिक अंग, कान, मौजूद है, लेकिन यदि सुनने की क्षमता अनुपस्थित है, तो कान कोई
नहीं रखता है। यदि सुनने की क्षमता (ज्ञानेंद्रिय) मौजूद है, लेकिन कान
उद्देय श्य
नहीं है (बाहरी दुनिया से ध्वनि प्राप्त करने के लिए), तो यह क्षमता किसी काम की नहीं
है। ज्ञानेंद्रिय (इंद्रियों की आंतरिक क्षमताओं से संबंधित इंद्रिय अंग) और
कर्मेंद्रिय (क्रिया के अंग) का संयुक्त संचालन मानव व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
यहां आपके पास लाउडस्पीकर है. बिना माइक के लाउडस्पीकर का कोई मतलब नहीं है.
लाउडस्पीकर के बिना माइक का कोई मतलब नहीं है। दोनों की मौजूदगी ही अंदर कही गई
बात को बाहर प्रसारित करने में सक्षम बनाती है।
इंद्रियों की पांच क्षमताएं (ध्वनि, स्पर्
, दृष्टि, स्वाद और गंध) पांच तत्वों की सात्विक
अभिव्यक्ति हैं। उनके रजो गुण में पांच तत्व प्राण (जीवन शक्ति) को जन्म देते हैं।
जबकि पांच तत्वों का उनके सात्विक गुण में संयुक्त संचालन अंतःकरण (मनुष्य में
आंतरिक उपकरण) में देखा जाता है, उनके राजस गुण में पांच तत्वों का सामूहिक
कामकाज खुद को प्राण (जीवन-शक्ति) के रूप में व्यक्त करता है। पांच तत्वों में से,
उनके राजसिक गुण की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति में, आकाश (अंतरिक्ष) का प्रतिनिधित्व
वाक् (भाषण के संकाय) द्वारा किया जाता है। वायु की अभिव्यक्ति हाथ में होती है।
अग्नि अपने व्यक्तिगत रजोगुण में पैर के रूप में अभिव्यक्ति पाती है। चौथे और
पांचवें तत्व (जल और पृथ्वी) शरीर में मलमूत्र अंगों में राजसिक अभिव्यक्ति पाते
हैं। आपको तत्वों की इस स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर अवय श्य ध्यान देना चाहिए।
अपने सात्विक पहलू में, आकाश (अंतरिक्ष) खुद को कान के रूप में व्यक्त करता है।
लेकिन वही आकाश, अपने राजसिक पहलू में, वाक् के रूप में प्रकट होता है। इससे
अंदाजा लगाया जा सकता है कि अकासा के दो बच्चे हैं; कान सत्व का प्रतिनिधित्व
करता है और वाक् रजस का प्रतिनिधित्व करता है। कान, जो अकासा का पहला बच्चा है,
बाहर से आने वाली आवाज़ों को ग्रहण करता है। दूसरा बच्चा वाक् अंदर से बोले गए
शब्द के माध्यम से प्रतिक्रिया देता है।
4

सात्विक को ग्रहण करो और राजसिक को अस्वीकार करो


त्वचा अपने सात्विक पहलू में वायु की पहली संतान है। राजसिक पहलू में दूसरा बच्चा
हाथ है। त्वचा शरीर पर रेंगने वाली चींटी को पहचान लेती है। तुरंत हाथ उसे हटाने
की को क्तिशश
करता है.
इन उदाहरणों से पता चलेगा कि सात्विक गुण बाहर से संस्कार प्राप्त करने में निहित
है। राजसिक गुण उन्हें बाहर निकालने में निहित है। आज विव श्वमें जो हो रहा है वह
ठीक इसके विपरीत है। जो राजसिक है उसे लिया जा रहा है और जो सात्विक है उसे
अस्वीकार किया जा रहा है। सृष्टि की प्राकृतिक योजना में, जो प्राप्त किया जाना चाहिए
वह सात्विक है और जो अस्वीकार किया जाना चाहिए वह सब राजसिक है। प्रकृति का
प्रधान गुण सत्व है। प्रकृति को "स्त्री" कहा जाता है, जो सा, त और र तीन अक्षरों से
बनी है। इस शब्द का महत्व यह है: सबसे पहले, "सा" का अर्थ है कि आपको सत्व को
ग्रहण करना होगा। दूसरे, "ता" का तात्पर्य समर्पण, नम्रता और शील जैसे कुछ तमोगुण
गुणों को विकसित करना है। रजोगुण का प्रतिनिधित्व करने वाले "रा" का अर्थ है कि
जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब कुछ कठोर दृढ़ संकल्प लेने होंगे। राजसिक गुण
सबसे बाद में आता है और इसका मतलब है कि राजसिक कार्यों को अपरिहार्य होने पर
अंतिम उपाय के रूप में करना पड़ता है।
लौकिक प्रक्रिया में, सात्विक गुण ("सा" कारा) सबसे पहले आता है। इसलिए प्रत्येक
मनुष्य का कर्तव्य है कि वह विचारों, कार्यों और व्यवहारों में हर दृष्टि से सात्विक गुण
विकसित करे।
5

तत्वों का पंचीकरणम्
तमोगुण पांच तत्वों का मिरणणश्रलाता है। इस मिरणणश्रमें पांचों तत्व अपनी पूरी ताकत से
मौजूद नहीं होते हैं। पांचों को एक साथ इस तरह से जोड़ा गया है (पंचीकृतम्) जिसे
अत्यधिक जटिल प्रक्रिया को आसानी से समझने के लिए निम्नलिखित उदाहरण से
याजा सकता है। 'मान लीजिए कि पांच तत्व पांच व्यक्तियों के रूप में एक साथ
दर् यार्शा
आते हैं, जिनमें से प्रत्येक के पास एक रुपये का परिवर्तन होता है। अकासा आधा
रुपया अपने पास रखता है और अन्य चार तत्वों में से प्रत्येक को एक-एक रुपये का
आठवां हिस्सा वितरित करता है। दूसरा तत्व वायु भी इसी प्रकार अपने लिए आधा रुपया
रखता है, अग्नि (अग्नि), जल और पृथ्वी (पृथ्वी) भी यही प्रक्रिया अपनाते हैं। परिणाम
में, प्रत्येक के पास एक रुपया है, लेकिन इसकी संरचना उनके संबंधित प्रकृति के
हिस्सों के तत्वों के बीच आदान-प्रदान से प्रभावित होती है। मूलतः प्रत्येक तत्व
अपने आप में पूर्ण था। मिरणणश्रकी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप प्रत्येक "रुपये" में
सभी पाँच तत्वों की उपस्थिति हो गई है। मनुष्य के संबंध में, पंचिकृत की प्रक्रिया
मनुष्य को पांच तत्वों का मिरणणश्रबनाती है और गुणों में विविधता पैदा करती है। इन्हें
आध्यात्मिक भाषा में षोडस कला (सोलह पहलुओं) के रूप में वर्णित किया गया है। ये
सोलह पहलू क्या हैं? वे पांच ज्ञानेंद्रियां (धारणा के अंग), पांच कर्मेंद्रियां
(क्रिया के अंग), पांच तत्व और मन हैं। प्रत्येक व्यक्ति में ये सोलह घटक होते
हैं, हालाँकि सोलह कलाओं का श्रेय केवल ईवर रश्वको दिया जाता है। मनुष्य को अपनी
दिव्यता का एहसास करना होगा।
6

भक्त और देवी लक्ष्मी


री
ईवरीय यश्वमार्ग आसानी से समझ में नहीं आते। ब्रह्मांड में सभी के कल्याण की
कामना करते हुए, भगवान असंख्य तरीकों का उपयोग करते हैं। इसे धन की चाह रखने
वाले एक भक्त की कहानी से समझा जा सकता है, जिसने धन की देवी, लक्ष्मी से वरदान
पाने के लिए कठोर तपस्या की। मनुष्य भौतिक संपदा प्राप्त करने के लिए किसी भी
परीक्षा से गुजरने को तैयार है, लेकिन ईवर रश्वको प्राप्त करने के लिए कोई परे नीनी शा
नहीं उठाएगा। लक्ष्मी भक्त के सामने प्रकट हुईं और उससे पूछा कि वह क्या चाहता है।
उन्होंने उत्तर दिया कि वे स्वयं लक्ष्मी चाहते हैं। वह सहमत हो गई और कहा कि खुद
को सभी आभूषणों से सजाकर, वह उसका पीछा करेगी, और उसे आगे जाने के लिए कहा।
उसने कहा कि वह उसके घर आएगी और अपने सारे गहने उसे सौंप देगी। हालाँकि,
उन्होंने एक शर्त लगाई, "आपको आगे बढ़ना होगा और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना
होगा। यदि आप पीछे मुड़कर देखेंगे, तो मैं उसी स्थान पर रहूंगी।" खु शसे भरकर
भक्त अपने घर की ओर आगे बढ़ गया। जब वह पीछे चल रही थी तो देवी के आभूषण
विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ निकाल रहे थे। यह जानने की अपनी जिज्ञासा को रोक पाने
में असमर्थ कि उसने कौन से गहने पहने थे, वह उसे देखने के लिए पीछे मुड़ा।
वह अपने घर पहुंचने तक अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं सका। जैसे ही उसने पीछे
मुड़कर देखा, लक्ष्मी वहीं रुक गई और उसका पीछा नहीं किया। ऐसा तब होता है जब कोई
अपनी इच्छा पर लगाम नहीं लगा पाता। यद्यपि भक्त को दैवीय कृपा प्राप्त हो गई, फिर भी
वह उससे लाभान्वित नहीं हो सका। इसका मतलब यह है कि भले ही आपको प्रचुर मात्रा
में दैवीय कृपा प्राप्त हो, आपको उससे लाभ उठाने की क्षमता हासिल करनी होगी। इस
क्षमता को प्राप्त करने के लिए, आपको ईवरीय रीयश्वआदे शका स्पष्ट रूप से पालन करना
होगा। यदि भक्त ने लक्ष्मी की शर्तों का पालन किया होता, तो उसे उनके अनुग्रह से लाभ
होता। उसकी शर्तों का पालन करने में असफल होने पर, उसे जो पेशकश की गई थी उसे
गंवाना पड़ा।
7

रवके अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण


ईवर
दुनिया में हालात कुछ ऐसे ही हैं. संसार तीन गुणों - सत्व, रजस और तमस - की शक्ति से
व्याप्त है। यहां तक कि संसार के बारे में हमारी दृष्टि भी तीन गुणों से प्रभावित होती
है। अपनी आंख की जांच करें. आँख का बाहरी किनारा लाल है, जो रजो गुण का
प्रतिनिधित्व करता है। उसके बाद, आपके पास सफ़ेद क्षेत्र है, जो सत्व का
प्रतिनिधित्व करता है। केंद्र में काला वृत्त है, जो तमोगुण का प्रतिनिधित्व करता है।
अत: हमारी दृष्टि भी तीन रंगों, लाल, सफेद और काले से दूषित हो जाती है। जब आप
प्रन श्नपूछते हैं, "ईवर रश्वकहाँ है?" इसका जवाब प्रकृति ने ही दिया है. पृथ्वी का अपने
चारों ओर 1000 मील प्रति घंटे की गति से घूमना रात और दिन की घटना का कारण बनता
है। 66,000 मील प्रति घंटे की गति से सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा विभिन्न
मौसमों, वर्षा और खाद्य फसलों की खेती के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार पृथ्वी की
दैवीय रूप से निर्धारित गतियाँ जीवित प्राणियों को अपना भोजन प्राप्त करने में
सक्षम बनाती हैं। यह ईवर रश्वके अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वेद घोषणा करता है
कि मूर्ख व्यक्ति ईवर रश्वके कृत्यों को देखते हुए भी कहता है कि उसने ईवर रश्वको नहीं
देखा है। उसे इस बात का एहसास नहीं है कि प्रकृति ईवर रश्वका वस्त्र है। प्रकृति के
पालन से क्या सीख मिलती है? यह क्रियासीलता है, कर्तव्य पालन में उत्कृष्टता। यह
इसलिए है क्योंकि प्रकृति लगातार अपना कर्तव्य निभाती है जिससे दुनिया इतने सारे
पवित्र लाभ प्राप्त करने में सक्षम है। सृष्टि का रहस्य और रहस्य अपने कर्तव्य को
निष्ठा और ईमानदारी से सम्यक पालन में निहित है। कामुक सुख की मृगतृष्णा की खोज में
मनुष्य गलत रास्ते पर जा रहा है। इसे काम पर जाने वाले या व्यवसाय करने वाले
लीमें देखा जा सकता है। कड़ी मेहनत के दिन की कल्पना करने के
लोगों की जीवन'लीशै
बाद, वे क्लबों में जाते हैं, जहाँ वे शराब के गुलाम बन जाते हैं और अंततः खुद को
बर्बाद कर लेते हैं।
जनता की सेवा करके ही वास्तविक सुख प्राप्त किया जा सकता है। गरीबों और असहायों
की मदद के लिए आगे बढ़ें। ऐसी सेवा से आपको शक्ति भी मिलेगी और शांति भी। आपकी
अंतरात्मा को भी संतुष्टि महसूस होगी. अफ़सोस की बात है कि न तो अमीर और न ही
सकशा
प्र सक ऐसी सेवा करने के इच्छुक हैं।
8

"द्ध प्रेम से कुछ भी हासिल किया जा सकता है


यह और भी आवयककश्य है कि विद्यार्थियों के सामने कुछ आदर्हों और वे निःस्वार्थ भाव
से समाज की सेवा करने के लिए तत्पर रहें। आपको यह एहसास होना चाहिए कि आप
समाज का एक हिस्सा हैं और आपका कल्याण समग्र रूप से समाज की भलाई से जुड़ा है।
विद्यार्थियों! आप चाहे जो भी साधना करें, आपकी प्राथमिक चिंता ईवर रश्वके प्रति
प्रेम विकसित करना होना चाहिए। जब आपमें वह शुद्ध प्रेम विकसित हो जाता है, तो आप
कुछ भी हासिल कर सकते हैं। इस संदर्भ में, हनुमान ने विभीषण को जो सलाह दी थी, जब
विभीषण ने अफसोस जताया था कि यद्यपि वह राम का नाम जप रहा था, लेकिन उसे राम के
न का लाभ नहीं मिला, जो प्रासंगिक है। हनुमान ने विभीषण से कहा कि केवल नाम
दर्नर्श
जपना ही पर्याप्त नहीं है। व्यक्ति को स्वयं को ईवर रश्वकी सेवा में लगाना चाहिए।
हनुमान ने घोषणा की कि राम के नाम का ध्यान करते हुए, वह भगवान की निरंतर सेवा में
भी लगे हुए थे। इस तरह उसने राम की कृपा अर्जित की थी और वह उनके निकट और प्रिय
बन गया था। हनुमान ने घोषणा की, "मैं धर्मग्रंथों से अनभिज्ञ हूं, लेकिन मैंने
अपना जीवन राम की सेवा में समर्पित कर दिया है।"
यदि मनुष्य को उसकी वास्तविक कीमत पर महत्व दिया जाए, और शरीर में बंद एक दिव्य
चिंगारी के रूप में माना जाए, तो, वह उपलब्धि की नई ऊंचाइयों तक पहुंच जाएगा और
कता
जीवन की सभी आवयकताओं ओंश्य
का प्रचुर मात्रा में उत्पादन करेगा। वह हड़पेगा या धोखा
नहीं देगा; वह एक अच्छा कार्यकर्ता, एक शुद्ध व्यक्ति और एक ईमानदार साधक होगा। वह
आंतरिक दृष्टि विकसित करेगा और महसूस करेगा कि वह शरीर या इंद्रियाँ या मन या बुद्धि
नहीं है। वह प्रेम और आत्मविवास सश्वा
से भरपूर होगा।
- श्री सत्य साईं बाबा

पंचमहाभूतों का विश्लेषण

 by Gurukripa
सम्पूर्ण जगत है क्षेत्र और उसको जानने वाला है क्षेत्रज्ञ

साख्य शास्त्र के अनुसार प्रकृ ति से तीन गुणों का विकास होता हैः सत्वगुण (ज्ञानशक्ति),
रजोगुण (क्रियाशक्ति) और तमोगुण (स्थायित्वशक्ति) । प्रकृ ति मूल कारण है, वह किसी का
कार्य नहीं है । उसमें त्रिगुण साम्यावस्था में रहते हैं । प्रकृ ति में क्षोभ होने पर उससे महत्-
तत्त्व (समष्टि बुद्धि) होता है, महत्-तत्तव से अहंकार और अहंकार से पंचभूत । इस प्रकार
महत्-तत्त्व और अहंकार कार्य भी है और कारण भी हैं । पंचभूत प्रकृ ति के अंतिम कार्य हैं
अतः वे किसी के कारण नहीं हैं । इन्द्रियाँ, शरीरादि पंचभूतों के कार्य नहीं हैं बल्कि विकार हैं ।
प्रकृ ति के हर कार्य-स्तर पर गुणों का विकास होता है । हर कार्य सत्त्वगुणी, रजोगुणी,
तमोगुणी – तीन-तीन विभागों में बँट जाता है । यह प्रक्रिया वेदांत में भी स्वीकार्य है ।

अब हम विवेक की स्पष्टता के लिए क्षेत्र के इन 31 तत्त्वों पर थोड़ा-थोड़ा विचार करते हैं ।

1. पंचमहाभूत और उनका विस्तार

प्रकृ ति के अंतिम कार्य पंचमहाभूत हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश । नाम-रूप
आकारयुक्त जितने भी पदार्थ या वस्तुएँ हैं वे सब इन्हीं के विकार हैं । वृक्ष, पशु, पक्षी, कीट-
पतंग, मनुष्य, नदी, पर्वत आदि सब वस्तुएँ इन्हीं पंचमहाभूतों से बनती हैं और उपादान
(उपादान यानि वह सामग्री जिससे कोई वस्तु तैयार होती है, जैसे घड़े का उपादान मिटटी है)
रूप से ये सब वस्तुओं में व्यापक है ।

पृथ्वी आदि वस्तुरूप जो हमारी इन्द्रियों से जानी जाती है और जो पृथ्वी आदि पंचभूत तत्त्व
है, उनमें अंतर है । वस्तुओं में ये पाँचों तत्त्व मिले रहते हैं । तकनीकी भाषा में बोलें तो
वस्तुओं में पंचमहाभूत पंचीकृ त (एक विशिष्ट प्रक्रिया से मिश्रित) हैं किं तु जो तत्त्व हैं वे
अपंचीकृ त रूप में हैं । उनको ‘तन्मात्र’ अर्थात् ‘सिर्फ वही’ भी कहते हैं । इनका अनुभव जिन
रूपों में किया जाता है उनको ‘पंचतन्मात्र’ कहते हैं । आकाश का तन्मात्र ‘शब्द’ है, वायु का
तन्मात्र ‘स्पर्श’ है, अग्नि का तन्मात्र ‘रूप’ है, जल का तन्मात्र ‘रस’ है और पृथ्वी का तन्मात्र
‘गंध’ है ।

ये पंचतन्मात्र तीन स्थानों में दिख पड़ते हैं – विषय में, इन्द्रियों में और मन में । विषय में
उनका जो रूप है वह ‘अधिभूत’ कहलाता है और इन्द्रिय एवं मन में जो रूप है वह ‘अध्यात्म’
कहलाता है । इसके अतिरिक्त एक रूप इनका और भी मानना पड़ता है और वह है अधिदैव ।
‘अधिदैव’ एक ओर तो अधिभूत और अध्यात्म के संयोग में हेतु बनता है और दूसरी ओर
अध्यात्म को अधिभूत में व्यवस्थित (दृढ़ता से स्थित) करता है । प्रत्येक तन्मात्र के ये तीन
रूप तीन गुणों के कारण हुए हैं- सत्त्वगुण से अध्यात्म, रजोगुण से अधिदैव और तमोगुण से
अधिभूत ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2020, पृष्ठ संख्या 25 अंक 325

(पिछले अंक में हमने तन्मात्र व उनके दिखने के तीनों स्थानों (विषय, इन्द्रिय और मन) के
बारे में एवं उनके अधिभूत, अध्यात्म एवं अधिदैव रूप के बारे में जाना । इस अंक में उसी
विषय को स्पष्टता को आगे उदाहरण के साथ समझेंगे-)

उदाहरणार्थः अग्नि या तेज के तन्मात्र ‘रूप’ को लें । इसका अधिभूत रूप है विषय-वस्तु का
रंग और आकार, इसका अध्यात्म रूप ‘चक्षु’ है और अधिदैव रूप ‘सूर्य’ है । इसी प्रकार प्रत्येक
तन्मात्र के तीन-तीन रूप हैं । अध्यात्म, अधिदैव और अधिभूत के इस तरह पाँच ‘त्रिक’ बनते
हैं । प्रत्येक त्रिक को त्रिपुटी कहते हैं । ज्ञानेन्द्रियों की इन त्रिपुटियों को सारणी में प्रदर्शित
किया गया है ।

ज्ञानेन्द्रियों की त्रिपुटी
पंचभू तन्मा
अधिभूत अध्यात्मअधिदैव
त त्र
आकाश शब्द शब्द विषय श्रोत्रेन्द्रिय दिशा
त् व गि न् द्
वायु स्पर्श स्पर्श विषय वायुदेव
रिय
च क्षु रि न्
अग्नि रूप रूप विषय सूर्यदेव
द्रिय
जल रस रस विषय रसनेन्द्रिय वरूणदेव
गंध घ्रा णे न् अविनीनी श्वि
पृथ्वी गंध
विषय द्रिय कु मार
वैज्ञानिक लोग पदार्थ की छानबीन करके तत्त्व का निश्चय करते हैं । यह आधिभौतिक
प्रणाली है । प्राचीन भारतीय प्रणाली यह है कि हम अपने अनुभव की छानबीन करके तत्त्व
का निश्चय करते हैं । यह आध्यात्मिक प्रणाली है ।

ज्ञानेन्द्रिय किनसे बनी हैं ?

ज्ञानेन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों में प्रमाण हैं । श्रोत्र से के वल शब्द ही ज्ञात होता है और शब्द
किसी अन्य इन्द्रिय से ज्ञात नहीं हो सकता । अतः शब्द के विषय में के वल श्रोत्र ही प्रमाण है
। यह इसलिए है कि श्रोत्र के वल आकाश का तन्मात्र ही है । इसी प्रकार प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय में
एक-एक तत्त्व का तन्मात्र ही है । इसी बात को यों कहते हैं कि ज्ञानेन्द्रियाँ अपंचीकृ त
महाभूतों से बनी हैं ।

पंचीकरण क्या है ?
एक गुलाब का फू ल । उसमें पाँचों तत्त्व उपस्थित हैं किं तु नेत्र के वल उसका रूप देखते हैं,
त्वचा उसकी कोमलता जानती है, रसना उसका स्वाद बताती है, नाक उसकी गंध बताती है
और कान उसका चट-चट शब्द बताते हैं । यद्यपि एक-एक भूत से बनी ज्ञानेन्द्रियाँ फू ल के
एक-एक गुण का ही प्रकाश करती हैं तथापि फू ल में पाँचों भूत हैं और उन सब ज्ञानों का
समन्वित रूप फू ल का ज्ञान है । यह ज्ञान का अंतःकरण से होता है । इसलिए फू ल में और
मन में दोनों में पंचभूत हैं । फू ल में पंचीकृ त रूप में हैं और मन में अपंचीकृ त रूप में ।

फू ल की तरह सारे पदार्थ पंचभूतों की रचना हैं । पाँचों भूतों के परस्पर मिलने की प्रक्रिया को
पंचीकरण कहते हैं । जिस पदार्थ में जिस भूत की प्रधानता रहती है उसमें उस तत्त्व का 50
% भाग रहता है । शेष 50 % में बचे हुए चार तत्त्वों का बराबर-बराबर संयोग रहता है ।
मिलने की यह प्रक्रिया ‘पंचीकरण’ कहलाती है । उदाहरणार्थ – मिट्टी में आधा भाग पृथ्वी का
है और शेष आधे भाग में जल, तेज, वायु और आकाश बराबर-बराबर भाग में मिले हुए हैं ।

हमारा स्थूल शरीर भी पंचीकृ त महाभूतों का विकार है । ज्ञानेन्द्रियाँ और मन (अंतःकरण-


चतुष्टय) अपंचीकृ त महाभूतों से बने हैं ।

मन पाँचों तन्मात्रों को ग्रहण करता है । ज्ञानेन्द्रियों से विशेष बात मन की यह है कि


ज्ञानेन्द्रियाँ तो के वल अपने-अपने विषय का और वह भी विद्यमान विषय का प्रकाश करती
हैं जब मन पाँचों विषयों का भूत-भविष्य-वर्तमान के विषयों का प्रकाश करता है । मन में
स्मृति (चित्त) और कल्पना (बुद्धि) विशेष है । इस पर भी मन से एक समय में एक विषय का
ही ग्रहण होता है । अतः मन अपंचीकृ त महाभूतों का संघात (समूह) है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2020, पृष्ठ संख्या 22, 25 अंक 326

पंचमहाभूतों के तन्मात्रों की रचना व उनके कार्य

पंचमहाभूतों के सात्त्विक तन्मात्र से मन और ज्ञानेन्द्रियाँ बनती हैं, राजस तन्मात्र से


कर्मेन्द्रियाँ बनती हैं तथा तामस तन्मात्र से विषय और बाह्य पदार्थ बनते हैं ।

मन चार प्रसिद्ध हैं- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार । इसी को अंतःकरण चतुष्टय कहते हैं ।

ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं– श्रोत्र (कान) त्वक् (त्वचा), चक्षु (नेत्र), रसना (जिह्वा) और घ्राण
(नासिका) ।

कर्मेन्द्रियाँ पाँच हैं– वाक्, पाणि (हाथ), पाद (पैर), उपस्थ (जननेन्द्रिय) और पायु (गुदा) ।

प्राण दस हैं- इनमें पाँच मुख्य प्राण हैं – प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान । पाँच उपप्राण
हैं – नाग, कू र्म, कृ कल, देवदत्त और धनंजय ।
आकाश से राजस तन्मात्र से ‘वाक्’ कर्मेन्द्रिय बनती है, जिससे शब्द बोलते हैं और ‘व्यान’
नामक प्राण बनता है जो शरीर के सब अंगों में रहकर संधियों की क्रिया की व्यवस्था करता है
। वायु के राजस तन्मात्र से ‘पाणि (हाथ) इन्द्रिय बनती है, जिससे आदान-प्रदानरूप कर्म होता
है और समान नामक प्राण बनता है जिसका स्थान नाभि-प्रदेश है । इसी प्रकार तेज के राजस
तन्मात्र से ‘पाद’ (पैर) कर्मेन्द्रिय बनती है, जिससे गमनागमनरूप कर्म होता है तथा उदानवायु
का निर्माण होता है जो हृदय से ऊपर के भाग में विचरण करता है । जल के राजस तन्मात्र से
‘जननेन्द्रिय’ और प्राण की रचना होती है । जननेन्द्रिय से मूत्र-त्याग एवं सन्तानोत्पत्तिरूप
कर्म होता है और प्राण हृदय-प्रदेश में रहता है । पृथ्वी के राजस तन्मात्र से ‘गुदा’ कर्मेन्द्रिय
बनती है, जिससे मल-त्याग और वायु-निष्कासनरूप कर्म होता है तथा अपानवायु का निर्माण
होता है, जिसके कार्य का स्थान गुदा है । शरीर में इन सबके गुण धर्म प्रत्यक्ष हैं ।

पंचभूतों के राजस तन्मात्रों से बनी कर्मेन्द्रियाँ, प्राण आदि से संबंधित सारणी


पंचभू कर्मेन् प्राण का कार्य-
प्राण
त द्रिय स्थल
व्या
आकाश वाक् सभी अंग

वायु हाथ समान नाभि-प्रदेश
तेज पैर उदान हृदय से ऊप र का भाग
जननेन्
जल प्राण हृदय-प्रदेश
द्रिय
अपा
पृथ्वी गुदा गुदा

आयुर्वेद का त्रिगुण सिद्धांत

परिचय

आयुर्वेद में जन्मजात गुणों को त्रिगुण नामक तीन अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृ त किया गया है। आयुर्वेद का
त्रिगुण सिद्धांत तत्वमीमांसा का विषय है। तीन जैविक हास्य अर्थात; वात, पित्त और कफ मानव शरीर के
अभिन्न अंग हैं। त्रिगुण (सत्व, रजस और तमस) मन के अभिन्न अंग हैं। सत्व, रजस और तमस को मनसा
दोष (मानसिक संविधान) के रूप में जाना जाता है। संक्षेप में, त्रिगुण को आयुर्वेदिक मन प्रकार के रूप में जाना
जाता है।

त्रिगुण सिद्धांत का दायरा के वल ऊर्जा तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह भौतिकवाद पर भी लागू होता है। इसके
अलावा, स्वस्थ और रोगग्रस्त अवस्था में किसी व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक विशेषताएं किसी एक या
दूसरे त्रिगुण की प्रबलता से निर्धारित होती हैं।
त्रिगुण और जीवन की उत्पत्ति

आयुर्वेदिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण के अनुसार, जीवन के निर्माण खंड सृष्टि की शुरुआत को उचित ठहराते हुए
सर्वव्यापी थे। जीवन की उत्पत्ति के वल कु छ अरब वर्ष पहले ही संभव हो पाई थी, इस तथ्य के बावजूद कि
बिल्डिंग ब्लॉक्स की उत्पत्ति अनादि काल से हुई थी।

यह प्रस्तावित किया गया है कि सत्व, रजस और तमस (त्रिगुण) आदिम पृथ्वी पर मौजूद थे जो आदिम पृथ्वी
पर प्रचलित भौतिक गुणों का प्रतिनिधित्व करते थे। सत्त्व सृजन के लिए ऊर्जा आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व
करता है। रजस कण की गति को दर्शाता है और तमस एक अक्रिय पदार्थ है जो नए रूपों में परिवर्तित होने की
क्षमता रखता है। तमस सत्व और रजस के निरंतर प्रभाव में कार्य करता है।

त्रिगुण और त्रिदोष के बीच संबंध

पंच महाभूत तीन जैविक गुणों (त्रिदोष) के साथ-साथ त्रिगुण (सत्व, रजस और तम) के निर्माण खंड हैं। मनुष्य
में कोई न कोई दोष और गुण अके ले या संयुक्त रूप से प्रभावी होते हैं। पंच महाभूतों, त्रिदोषों और त्रिगुणों के
बिना इस ब्रह्मांड की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि ये जीवन की स्थिरता के लिए आवश्यक पैरामीटर हैं।
त्रिगुण और त्रिदोष आंतरिक रूप से एक दूसरे से संबंधित हैं क्योंकि वे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक
एकीकृ त व्यक्तित्व संरचना के लिए जिम्मेदार हैं।

त्रिगुण और पंच महाभूत

पंच भूतों की संरचना का त्रिगुणात्मक वर्णन विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में गुणों की दार्शनिक अवधारणा का
व्यावहारिक पहलू है। सुश्रुत के अनुसार, महाभूतों का गठन त्रिगुणों से होता है। आकाश में सत्व, वायु में रजस,
अग्नि में सत्व-रज, जल में सत्व-तमस और पृथ्वी में तमस प्रधान है। चरक के अनुसार, वात आकाश और वायु
का, पित्त अग्नि और जल का, और कफ दोष जल और पृथ्वी का एक संयोजन है। इसके आधार पर कोई यह
अनुमान लगा सकता है कि उनमें से प्रत्येक में कौन से गुण प्रबल हैं।

1. वात सत्व और रजस गुणों का एक संयोजन है , लेकिन इसे मुख्य रूप से रजस कहा जाता है।
2. कहा जाता है कि पित्त प्रकृ ति में अधिक सत्व है , हालांकि इसमें रजस और तमस का तत्व होता है।
3. कहा जाता है कि कफ प्रकृ ति में अधिक रजस होता है , हालांकि इसमें सत्व का तत्व होता है।

इस प्रकार कोई भी व्यक्ति एक या दूसरे पंच महाभूतों के सापेक्ष प्रभुत्व के कारण उनके द्वारा प्रदर्शित गुणों के
संबंध में दोषों को समझ सकता है, जिनसे वे बने हैं।

व्यक्तित्व के संबंध में त्रिगुण

त्रिगुण सिद्धांत व्यक्तित्व को मानव व्यवहार प्रयास के एक आयाम के रूप में समझने के लिए मंच प्रदान करता
है। ढु ल्ला ने अपने शोध लेख "भारतीय दर्शन और व्यक्तित्व के लिए एक नया दृष्टिकोण - एक अध्ययन"
शीर्षक से त्रिगुण की गतिशीलता की व्याख्या की है। ढु ल्ला के अनुसार, किसी व्यक्ति को विरासत में मिले गुण
शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों के कारण बदल सकते हैं और किसी व्यक्ति का व्यवहार उस
समय काम कर रहे व्यक्तित्व से निर्धारित होता है।
त्रिगुण के लक्षण

1. सत्त्वगुण सकारात्मक दृष्टिकोण, खुशी, हल्कापन, आध्यात्मिक संबंध और चेतना से स्पष्ट होता है। सात्विक
अवस्था को रोगमुक्त शरीर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सत्व इंद्रियों को उत्तेजित करता है और
बुद्धि और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है।
2. राजस गुण को त्रिगुणों के बीच सक्रिय माना जाता है और इसकी विशेषता उत्तेजना और गति है। जुनून और
उपलब्धि की इच्छा रजस गुण का परिणाम है।
3. तमस गुण के दो शक्तिशाली लक्षण हैं अर्थात प्रतिरोध और भारीपन। यह मन में नकारात्मक विचारों को
उत्तेजित करता है और सुस्ती, नींद और उदासीनता उत्पन्न करता है।

निष्कर्ष

त्रिगुण मन की आवश्यक ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व आनुवंशिक रूप से निर्धारित
होता है और त्रिगुण के डोमेन पर निर्भर होता है। आयुर्वेद में भोजन को सात्विक, राजस और तमसा बताया गया
है। निष्कर्षतः, गुण प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्तर को प्रभावित करते हैं।

त्रिगुण - प्रकृ ति के तीन गुण


अपडेट किया गया: 14 मार्च, 2021

इस ब्र ह्मां ड में सब कु छ परिवर्तन के अधीन है । जैसा कि प्रसिद्ध कहावत हैकि कु छ भी स्थिर नहीं है । परिवर्तन की
इस स्थिति को डायनामिज्म या भौतिक के अनुसार गति की स्थिति के रूप में जाना जाता है । हमारेप्राचीन ऋषि इस
सिद्धांत को अच्छी तरह से जानते थे ।प्राचीन हिं दू दर्शन के अनुसार, संपूर्ण सृष्टि पुरुष औ र प्राकृ त की
अभिव्यक्ति है । पुरुषार्थ से रेलवे स्पष्ट, निर्मलता से है । पुरुषार्थ ए क अणु तत्व और वास्तविक सत्य है । यह
आत्मा या जीव का भी मूल रूप हैजो हर जीवित जीव के दिल में रहता है । प्राकृ त में मिथ्या ब्रह्माण्ड ऊर्जा या
माया हैजो हर पल बदल रही है । इस ब्रह्माण्ड में सब कु छ इस ब्रह्माण्ड की ऊर्जा के प्रभाव में है । इसका मुख्य
लक्ष्य पार करना और वास्तविक वास्तविकता को देखना है । प्राकृ त को 5 मुख्य तत्वों में विभाजित किया जा
सकता हैजो प्रत्येक सृष्टि के जीवित या निर्जीव का आधार बनते हैं । इन 5 तत्वों को पंचभूत (पृथ्वी, वायु,
अग्नि, जल और अंतरिक्ष) के रूप में जाना जाता है । पंचभूत को आगे तीन रहस्योद्घाटन के तहत स्थापित किया
जा सकता है । इन तीन मिश्रणों को गुण या त्रिगुण के रूप में जाना जाता है । ब्रह्मांड की हर चीज़ और प्राकृ त
या माया के प्रभाव में ये त्रि गुण या लक्षण अलग-अलग अनुपात में काम करते हैं । ये तीनों एक साथ काम
करते हैं और पूरी तरह से खुद से मौजूद नहीं होसकते। इन गोलियों की जागृति, स्वप्न और नींद की अवस्था
जैसे स्वयं की विभिन्न अवस्थाओं से तुलना की जा सकती है । प्रत्येक जीवित प्राणी, प्रत्येक वस्तु और भोजन
को एक साथ इन तीनों में शामिल किया जा सकता है । हिं दू ध र्म में इन त्रिमूर्तियों को हिं दू त्रिमूर्ति के रूप में
जाना जाता हैजिसमें तीन सबसे महत्वपूर्ण देवताओं को जोड़ा गया है । भागवत गीता में इन विधाओं का
बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है । आइए हम उन्हें विस्तार से समझते हैं

सत्त्व या सात्विक गुण - सत्त्व या सात्त्विक गुण को विधि के रूप में जाना जाता है । यह एक शांत और स्पष्ट
मस्तिष्क की स्थिति है
। यह शांति और सकारात्मकता की स्थिति भी है । इस सुविधा के तहत काम करने वाले लोगों
के जीवन पर बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण है । वे बहुत निस्वार्थ हैं और बदले में किसी भी पुरस्कार की
अपेक्षा के बिना कार्य करते हैं । वे प्रकृ ति से आध्यात्मिक और अहिंसा भी हैं । वे सत्य के साधक हैं और हर
चीज़ में अच्छे हैं । भगवान विष्णु इस गुण के साथ जुड़े हुए हैं क्योंकि वे समुदाय के संरक्षक हैं
। जमीन के
ऊपर उगने वाला कोई भी शाकाहारी भोजन सात्विक श्रेणी में उपलब्ध है । अंतरिक्ष का तत्व सत्व से बना है ।
राजस या राजसिक गुलाल - राजस को जुनून या क्रिया के रूप में जाना जाता है । यह उसका लक्षण हैजो
लालची और लालची के व भूत भूतशी
होता है । इस विधा से अभिनय करने वाले लोग इच्छा-अभिलाषा करते हैं
और पुरस्कार प्राप्त करने के लिए काम करते हैं । ये महत्वाकांक्षी लोग हैं
जो बहुत सारे भौतिक व्यवसाय पर कब्ज़ा
करना चाहते हैं । वे समाज में धन, संप्रदाय और स्थिति से प्रेरित हैं
और गलत व्यवसायों को अपनाकर अपने
लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। मानसिक रूप से वे भ्रम, आक्रामकता और कमज़ोरी की स्थिति में हैं। भगवान
ब्रह्मा इस गुण से जुड़े हुए हैं । बहुत सारे समूह या खाद्य पदार्थ राजसिक भोजन के अंतर्गत आते हैं । वायु
और अग्नि का तत्व रजस नष्ट होगया है ।

तामस या तामसिक - इसे अज्ञानता और गैर-गतिविधि या जड़ता के रूप में जाना जाता है । इस
अवस्था में शरीर में नींद और सुस्ती का प्रभाव होता है । इस राज्य के अंतर्गत काम करने वाले लोग स्वभाव से
बहुत चंचल और नकारात्मक होतेहैं । वे उन लोगों को अधिक पसंद करते हैं जो सिर्फ खाना, सोना और संभोग
करना चाहते हैं । बहुत पवित्र जीवन को प्राप्त करने और जीने के लिए उनका कोई लक्ष्य नहीं है । लंबे
समय तक इस दवा के तहत काम करना अवसाद में लाया जाता है , यह अंततः विनाश की ओ र ले जाता है ।
कु ल मिलाकर यह सभी नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत हैजिसे हम अपने अंदर ले जाते हैं । मांस, शराब या
प्रसंस्कृ त खाद्य पदार्थ इस श्रेणी में आते हैं , वे तामसिक
। भगवान शिव ब्रह्मांड के विनाश के साथ जुड़े हुए हैं
गुलाल के साथ भी जुड़े हुए हैं । पृथ्वी और जल का तत्व तमस से खो गया है ।

त्रिगुण हमेशसहअस्तित्व करते हैं और पूरी तरह से खुद से काम नहीं कर सकते। प्रत्येक व्यक्ति या वस्तु में, इन
गुनाहों पर एक कब्ज़ा हैऔर इसका प्रतिशत अधिक हैजबकि अन्य दो अधिक निष्क्रिय हैं और इनका
नियंत्रण सीमित है । इन त्रिमूर्ति का अनुपात अलग-अलग आंतरिक और लोचदार के अनुसार बदलता
रहता है। उदाहरण के लिए, सात्विक जीवन का अभ्यास करने वाला व्यक्ति सक्रिय होगा। वह सात्विक भोजन
ग्रहण और ध्यान और अन्य आध्यात्मिक अध्ययन का अभ्यास करता है । वह कर्मचारियों की मदद करना
चाहेगा और बिना किसी उल्टे मकसद के निस्वार्थ भाव से काम करना चाहेगा। हालाँ कि, अगर वही
व्यक्ति अब मांस खाना शुरू कर देता हैया शराब का सेवन करने लगता है , तो हमें
उसके दृष्टिकोण में भारी
बदलाव देखने को मिलेंगे। वह अब उग्र होगया और ऋणात्मक ऋणात्मक दिवालियापन में डू ब गया। यही
व्यक्ति अब तमस गुलाल के तहत काम कर रहा है । हमारेऋषियों और पवित्र शास्त्रों के अनुसार, मोक्ष या मुक्ति
की स्थिति एक ऐसी स्थिति हैजहां कोई भी तीन गुणों से परे होता है । यह कोटा आनंद की स्थिति हैऔर हमारा
अंतिम लक्ष्य है । यहां तक कि हमारेहिं दू देवी-देवता भी इन उद्देयोंश्योंसे जुड़े हुए हैं
। दैवी शक्तियाँ या आदि
, हालाँ
शक्तियाँ, इन त्रिगुणों से परे हैं कि, उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ त्रिगुणों से जुड़ी हुई हैं । नवरात्रि
के त्योहार के दौरान, पहले तीन दिन हम दुर्गा की पूजा करते हैं , जो हमेंहमारेतामसिक उत्सव में शामिल होनेमें मदद
करते हैं
। अगले तीन दिन लक्ष्मी को समर्पित होतेहैं जो हमारीराजसिक ऊर्जा को विकसित करने में मदद करते हैं
और पिछले तीन दिन सरस्वती को समर्पित होतेहैं जो हमारीसात्विक ऊर्जा को विकसित करने में मदद करते हैं ।
अंग्रेजी में इस ब्रह्मांड में सब कु छ परिवर्तन के अधीन है । जैसा कि प्रसिद्ध कहावत हैकि परिवर्तन ही
एकमात्र स्थिर चीज़ है । परिवर्तन की इस अवस्था को भौतिकी के अनुसार गति लता लता शी
या गति की अवस्था
के नाम से जाना जाता है । हमारेप्राचीन ऋषि-मुनि इस अवधारणा को भली-भांति जानते थे ।प्राचीन हिं दू दर्शन
के अनुसार संपूर्ण सृष्टि पुरुष और प्रकृ ति की अभिव्यक्ति है । पुरुष का तात्पर्य स्पष्ट चेतना और शांति से है ।
पुरुष एक अपरिवर्तनीय तत्व और वास्तविक सत्य है । यह आत्मा या जीव को भी संदर्भित करता हैजो प्रत्येक
जीवित प्राणी के हृदय में निवास करता है । प्रकृ ति का तात्पर्य झू ठी मायावी ऊर्जा या माया से हैजो हर पल बदल
रही है। इस ब्रह्मांड में सब कु छ इस मायावी ऊर्जा के प्रभाव में है । मुख्य लक्ष्य इससे परे जाना और
वास्तविक वास्तविकता से अवगत होनाहै । प्रकृ ति को 5 मुख्य तत्वों में विभाजित किया जा सकता हैजो प्रत्येक
सजीव या निर्जीव सृष्टि का आधार बनते हैं । इन 5 तत्वों को पंचभूत (पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और
अंतरिक्ष) के रूप में जाना जाता है । पंचभूत को आगे तीन लक्षणों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता
है। इन तीन लक्षणों को गुण या त्रिगुण के नाम से जाना जाता है । इसलिए ब्रह्मांड में और प्रकृ ति या माया
के प्रभाव में मौजूद हर चीज में ये तीन गुण या लक्षण अलग-अलग अनुपात में काम करते हैं । ये तीनों एक
साथ काम करते हैं और अपने आप में पूरी तरह से अस्तित्व में नहीं रह सकते। इन लक्षणों की तुलना
चेतना की विभिन्न अवस्थाओं जैसे जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था से भी की जा सकती है । प्रत्येक
जीवित प्राणी, प्रत्येक गतिविधि और भोजन को भी इन तीन में वर्गीकृत किया जा सकता है । हिं दू धर्म में इन
तीन गुणों को तीन सबसे महत्वपूर्ण देवताओं से जोड़ा गया हैजिन्हें हिं दू त्रिमूर्ति के रूप में जाना जाता है ।
भागवत गीता में इन विधाओं का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है । आइये इन्हें विस्तार से समझते हैं

सत्व या सात्विक गुण - सत्व या सात्विक गुण को अच्छाई के गुण के रूप में जाना जाता है। यह शांत और स्पष्ट मन
की स्थिति है
। यह शांति और सकारात्मकता की स्थिति भी है षताके तहत काम करने वाले लोगों का
। इस वि षताशे
जीवन के प्रति बहुत सकारात्मक दृष्टिकोण होता है
। वे बहुत निस्वार्थ होतेहैं और बदले में किसी पुरस्कार की
आशा किए बिना कार्य करते हैं। वे स्वभाव से आध्यात्मिक और अहिंसक भी हैं । वे सत्य के खोजी हैं और हर
चीज़ में अच्छाई ढूं ढते हैं । भगवान विष्णु इस गुण से जुड़े हैं क्योंकि वे ब्रह्मांड के संरक्षक हैं
। जमीन
के ऊपर उगने वाला कोई भी शाकाहारी भोजन सात्विक श्रेणी में आता है । आकाश तत्व सत्व से जुड़ा है ।

राजस या राजसिक गुण - राजस को जुनून या क्रिया के तरीके के रूप में जाना जाता है । यह वह गुण हैजो
इच्छाओं और लालच के व भूत भूतशीहोकर कार्य करता है। इस विधा से कार्य करने वाले लोग इच्छा-प्रेरित होतेहैं
और पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं
। ये महत्वाकांक्षी लोग हैं
जो हावीहोनाचाहते हैं और ढेर सारी
भौतिक संपत्ति हासिल करना चाहते हैं । वे धन, प्रसिद्धि और समाज में प्रतिष्ठा से प्रेरित होतेहैं
और गलत कार्यों को
अपनाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । मानसिक रूप से वे भ्रम, आक्रामकता और बेचैनी की स्थिति
में रहते हैं
। भगवान ब्रह्मा इस गुण से जुड़े हुए हैं । बहुत मसालेदार या नमकीन खाद्य पदार्थ राजसिक भोजन
के अंतर्गत आते हैं । वायु और अग्नि का तत्व रजस से जुड़ा है ।

तमस या तामसिक - इसे अज्ञान और अकर्मण्यता या जड़ता की अवस्था के रूप में जाना जाता है । इस
अवस्था में शरीर नींद और सुस्ती से प्रभावित होता है
। इस अवस्था के अंतर्गत कार्य करने वाले लोग स्वभाव से
बहुत आलसी और नकारात्मक होतेहैं । वे उन जानवरों की तरह हैं जो सिर्फ खाना, सोना और संभोग करना
चाहते हैं । उनके पास हासिल करने के लिए कोई लक्ष्य नहीं होता और वे बहुत स्वार्थी जीवन जीते हैं ।
चूंकि लंबे समय तक इस गुण के तहत काम करना अवसाद लाता है , अंततः विनाश की ओर ले जाता है ।
कु ल मिलाकर यह गुण हमारेभीतर मौजूद सभी नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है । मांस, शराब या प्रसंस्कृ त जैसे
खाद्य पदार्थ इस श्रेणी में आते हैं , इसलिए वे तामसिक
। चूंकि भगवान शिव ब्रह्मांड के विनाश से जुड़े हैं
गुण से भी जुड़े हैं । पृथ्वी और जल का तत्व तमस से जुड़ा है ।

त्रिगुण हमेशसह-अस्तित्व में रहता हैऔर पूरी तरह से अपने आप काम नहीं कर सकता। प्रत्येक व्यक्ति या
वस्तु में, इनमें से एक गुण हावीहोता हैऔर उसका प्रतिशत अधिक होता हैजबकि अन्य दो अधिक निष्क्रिय
होतेहैंऔर उनका नियंत्रण सीमित होता है । इन तीनों का अनुपात विभिन्न आंतरिक एवं बाह्य पहलुओं के
अनुसार बदलता रहता है । उदाहरण के लिए, सात्विक जीवन जीने वाला व्यक्ति सक्रिय होगा। वह सात्विक
भोजन करते थे और ध्यान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों का अभ्यास करते थे ।वह दूसरों की मदद
करेगा और बिना किसी गुप्त उद्देय श्य के निस्वार्थ भाव से कार्य करेगा। हालाँ
कि, यदि वही व्यक्ति अब मांस
खाना या शराब का सेवन करना शुरू कर दे तो हम उसके दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव देखेंगे। वह अब अधिक
आलसी होगया हैऔर नकारात्मक गतिविधियों में लिप्त होगया है । यही व्यक्ति अब तमस गुण के अधीन
कार्य कर रहा है
। हमारेऋषियों और पवित्र ग्रंथों के अनुसार, मोक्ष या मुक्ति एक ऐसी अवस्था हैजहां
व्यक्ति इन तीन गुणों से परे चला जाता है । यह अनंत आनंद की स्थिति हैऔर हमाराअंतिम लक्ष्य है ।
यहां तक कि हमारेहिं दू देवी-देवता भी इन गुणों से जुड़े हुए हैं ,
। दिव्य स्त्री या आदि शक्ति इन तीन गुणों से परे है
हालाँ
कि, उसकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ त्रिगुण से जुड़ी हुई हैं । नवरात्रि के त्योहार के दौरान, पहले तीन
दिन हम दुर्गा की पूजा करते हैंजो हमारेतामसिक गुणों को संतुलित करने में हमारीमदद करती हैं । अगले तीन दिन
लक्ष्मी को समर्पित हैं जो हमारीराजसिक ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करती हैं और अंतिम तीन दिन सरस्वती
को समर्पित हैं जो हमारेअंदर सात्विक ऊर्जा को संतुलित करती हैं ।
"सृष्टि के तीन सूक्ष्म मूलभूत तत्त्व:" सत्व, रज एवम् तम !!!
सृष्टि की रचना मूल त्रिगुणों से हुई है , सत्त्व, रज एवं तम । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव, स्थूल-सूक्ष्म
वस्तुओं में विद्यमान होतेहैं । इससे प्रत्येक वस्तु का व्यवहार भी प्रभावित होता है। मनुष्य में इनका अनुपात
के वल साधना से हीपरिवर्तित किया जा सकता है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, सृष्टि स्थूल कणों से बनी है– इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, मेसन्स, ग्लुओन्स
एवं क्वार्क्स परंतु आध्यात्मिक स्तर पर, सृष्टि उनसे भी अधिक मूल तत्त्वों से बनी है। इन मूल तत्त्वों को सूक्ष्म
तत्त्व अर्थात त्रिगुण कहते हैं – सत्त्व, रज और तम । त्रिगुण शब्द में, त्रि अर्थात तीन, तथा गुण अर्थात
सूक्ष्म घटक ।
हम इन तत्त्वों को सूक्ष्म इसलिए कहते हैं क्योंकि ये अदृय श्य , स्थूल नहीं हैतथा किसी आधुनिक सूक्ष्मदर्शी यंत्र
हैं
से भी नहीं दिखाई देते । भविष्य में तकनीकी रूप से प्रगत यंत्र भी इन तत्त्वों को मापन नहीं कर पाएंगे ।
त्रिगुण के वल छ ठ वीं ज्ञानेंद्रिय क्षमता द्वारा हीअनुभव किए जा सकते हैं ।
'सत्त्व गुण' त्रिगुणों में, सबसे सूक्ष्म तथा अमूर्त है। सत्त्व गुण दैवी तत्त्व के सबसे निकट है। इसलिए सत्त्व
प्रधान व्यक्ति के लक्षण हैं – प्रसन्नता, संतुष्टि, धैर्य, क्षमा करने की क्षमता, अध्यात्म के प्रति झुकाव इत्यादि ।

'तम गुण' त्रिगुणों में सबसे कनिष्ठ है। तम प्रधान व्यक्ति, आलसी, लोभी, सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है

'रजो गुण' सत्त्व तथा तम को उर्जा प्रदान करता हैतथा कर्म करवाता है। व्यक्ति यदि सात्त्विक हो, तो सत्त्व प्रधान
कर्म को उर्जा प्रदान करता हैतथा यदि तामसिक होतो तम प्रधान कर्म को उर्जा प्रदान करता है।
"त्रिगुण और पंचमहाभूत:"
पंचमहाभूत भी त्रिगुणों से बने हैं । पंचमहाभूत – पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश है। पंचमहाभूत अदृय श्य हैं
तथा स्थूल रूप में हमें दृश्यमान होनेवालेघटकों से भी सूक्ष्म हैं । उदाहरण, जल का निर्माण सूक्ष्म आपतत्त्व से हुआ है,
जिससे नदी तथा समुद्र बनते हैं । संक्षिप्त में पंचमहाभूत ब्रह्मांड के निर्माण में आधारभूत घटक हैं
। परंतु वे
भी त्रिगुणों से बने हैं ।
मनुष्य अधिकांश पृथ्वीतत्त्व तथा जलतत्त्व से बना है। जब किसी व्यक्ति की अध्यात्मिक उन्नति होती है ,
वह उच्चतर स्तर पर कार्य करने लगता है , जैसे तेजतत्त्व । इस स्तर के आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति से
वि ष्ट ष्
टशिरूप का तेज प्रक्षेपित होता प्रतीत होता है। जब ऐसा होता है , उस जीव की मूलभूत इच्छाएं भी अल्प होती
जाती हैं , जैसे अन्न तथा नींद । इसके अतिरिक्त, बोधगम्यता तथा कार्य करने की क्षमता संख्यात्मक तथा
गुणात्मक रूप से प्रचंड मात्रा में बढ जाती है।
"त्रिगुण और प्राकृ तिक आपदाएं:"
यदि पृथ्वी पर रज-तम बढता है , तो इसका रूपांतर युद्ध, आतंकी गतिविधियों तथा प्राकृ तिक आपदाओं आदि की
वृद्धि में होता है। रज-तम की मात्रा बढने पर, पंचतत्त्व असंतुलित होजाते हैं , जिसका रूपांतर महाविपत्ति में तथा
प्राकृ तिक आपदाओं में होता है।

आइए देखें कि पंचमहाभूत क्या है और


आयुर्वेद इस पर इतना जोर क्यों देता है ।
भारतीय दार्शनिकों के अनुसार, इस ब्रह्मांड में प्रत्येक वस्तु पांच आद्य तत्वों ( पंचमहाभूत ) से बनी
है।
1) आकाश (ईथर)
2) वायु (वायु)
3) अग्नि (अग्नि)
4) जल (जल)
5) पृथ्वी (पृथ्वी)
ब्रह्मांड के निर्माण से पहले ये सभी भूत (तत्व) निष्क्रिय अवस्था में थे, लेकिन गुण की अंतर्निहित
गुणवत्ता ( सत्व , रजस और तमस जैसी सार्वभौमिक ऊर्जा ) की शुरुआत के कारण इन भूतों
ने सृष्टि की प्रक्रिया शुरू की। यद्यपि सभी बी हु त त्रिगुण (अंतर्निहित ऊर्जा) द्वारा गले लगाए गए
हैं , उनमें से प्रत्येक में किसी एक गुण (सार्वभौमिक ऊर्जा) की प्रधानता और न्यूनता है।
हमारा क्या मतलब है जब हम कहते हैं कि ब्रह्मांड में सभी पदार्थ पंचमहाभूत से बने हैं ?! इसका
मतलब है कि पृथ्वी इसका आधार है और जल इसका मूल है। आकाश (ईथर), वायु (वायु)
और तेज (अग्नि) इसके अन्य सहायक भाग हैं (चित्र देखें!)।
पृथ्वी और अन्य महाभूतों का अविभाज्य संबंध ही पदार्थ की उत्पत्ति के साथ-साथ उनमें
विशिष्टताओं और भिन्नताओं का भी कारण बनता है।
इस प्रकार इन पांचों तत्वों के अविभाज्य संयोजन से ही समस्त औषधियों एवं आहार का निर्माण
होता है।
इन सभी महाभूतों के अपने-अपने गुण हैं जो विशेष गुण (विशिष्ट गुण), भौतिक गुण (भौतिक गुण)
और सत्व गुण (चेतना) के संदर्भ में हैं ।
पंचमहाभूत और त्रिदोष
त्रिदोष : हमारे शरीर की तीन मूलभूत जैव ऊर्जाएं शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर कार्य करने के
लिए जिम्मेदार हैं। ये तीन दोष हैं वात , पित्त और कफ ।
~ वात दोष में वायु (वायु) और आकाश (ईथर) की प्रधानता है
~ पित्त दोष में अग्नि की प्रधानता होती है
~ कफ दोष में जल (जल) और पृथ्वी (पृथ्वी) की प्रधानता होती है
अब यदि हम त्रिदोष के गुणों और उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों को देखें , तो प्रत्येक दोष
में पंचमहाभूत की प्रधानता के ज्ञान को समझना हमारे लिए आसान हो जाता है ।
उदाहरण के लिए, पित्त दोष में अग्नि महाभूत की प्रधानता होती है और यह चयापचय और जैव
रासायनिक प्रक्रिया का कार्य करता है जो गर्मी और ऊर्जा उत्पन्न करता है । यह मुख्य रूप से हमारी
पाचन अग्नि के नियमन के लिए जिम्मेदार है। यह बीमारी के मूल कारणों को समझने और उनका
इलाज करने में महत्वपूर्ण है।
अब क्या आप त्रिदोष में पंचमहाभूत का महत्व प्राप्त कर सकते हैं ?!
पंचमहाभूत और त्रिगुण
त्रिगुण : अंतर्निहित ऊर्जा या प्रवृत्ति जिसके साथ प्रकृ ति (किसी व्यक्ति का मूल संविधान) का
निर्माण होता है और जिसके साथ मानव मन कार्य करता है
~ आकाश महाभूत (ईथर) सत्व गुण (चेतना) प्रधान है ~ वायु महाभूत (वायु ) रज गुण (गतिज
ऊर्जा) प्रधान है ~ अग्नि महाभूत (अग्नि) सत्व (चेतना) और रज गुण (गतिज ऊर्जा) प्रधान
है ~ जल महाभूत (जल) सत्व (चेतना) और त मा गुण (जड़ता) प्रधान है ~ पृथ्वी महाभूत
(पृथ्वी) तम गुण (जड़ता) प्रधान है
जब आप पैदा होते हैं, तो आपका मूल संविधान आपकी प्रकृ ति होता है । जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं,
आपको अनुभव के माध्यम से दुनिया द्वारा आकार और ढाला जाता है , आपकी आधारभूत
संरचना विकृ ति में बदल जाती है । आयुर्वेद का लक्ष्य आपकी प्रकृ ति को वापस पाना है , कि आप
मूल रूप से दुनिया में कै से पैदा हुए थे। मूल समझ यह है कि अंतर्निहित ऊर्जा ( त्रिगुण ) जिसने
आपको बनाया है , संरचनात्मक रूप से सभी पंचमहाभूतों के तत्वों की अलग-अलग मात्रा के साथ
तैयार की गई है ।
आयुर्वेद में पंचमहाभूत का महत्व
चूँकि ब्रह्माण्ड की हर चीज़ पंचमहाभूत से बनी है , इसका मतलब है कि मानव शरीर और सभी द्रव्य
(औषधियाँ) भी पंचमहाभूत से बने हैं । उपचार में इस ज्ञान का बहुत महत्व है।
किसी व्यक्ति की प्रकृ ति या गठन उस व्यक्ति में प्रबल महाभूत पर निर्भर करता है। किसी
भी द्रव्य के गुण उसके घटक महाभूत पर निर्भर करते हैं । किसी रोग को उत्पन्न करने वाले दोष में
प्रमुख महाभूत का ज्ञान उसके निदान और उपचार में आवश्यक है।
पंचमहाभूत, 5 बड़े तत्वों का सामंजस्य , यह समझने में आवश्यक है कि हमें आयुर्वेद का अभ्यास
कै से करना चाहिए और मूल अवधारणाओं, अनुशासन और आयुर्वेदिक जीवन शैली को रेखांकित
करना चाहिए।
कु छ परिभाषाएँ:
भूत - वह जो अस्तित्व में है लेकिन किसी चीज़ से निर्मित नहीं है।
यह नित्य (शाश्वत), सूक्ष्म (सूक्ष्म), इंद्रियायिता (अगोचर)
द्रव्य- औषधियां और औषधि
गुण- सार्वभौमिक ऊर्जाएं जैसे सत्व , रजस और तमस
महाभूत- स्थूलता प्राप्त करने के बाद भूत प्रकृ ति- व्यक्ति का
मूल संविधान
त्रिदोष- तीन मौलिक जीव हमारे शरीर की ऊर्जाएँ शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर कार्य करने के
लिए ज़िम्मेदार हैं। ये तीन दोष हैं वात , पित्त और कफ ।
त्रिगुण : अंतर्निहित ऊर्जा या प्रवृत्ति जिसके साथ प्रकृ ति का निर्माण होता है और जिसके साथ
मानव मन कार्य करता है
पंचमहाभूत - 5 बड़े तत्व, ब्रह्मांड की संरचनात्मक इकाई का गठन
संदर्भ:
1. गायत्री देवी द्वारा पदारथविज्ञान
2. चितरंजन दास द्वारा क्रिया शरीरा
3. पंचमहाभूत - ऐथीन हीलिंग द्वारा अवधारणा और व्याख्या (वीडियो)
4. आयुर्वेद की पाठ्यपुस्तक: वसंत लाड द्वारा मौलिक सिद्धांत

पंच महाभूत
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पंचमहाभूत शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है: 'पंच', 'मह' और 'भूत'। 'पंच' का अर्थ है पांच, 'महा' का अर्थ है
महान और 'भूत' का अर्थ है जो अस्तित्व में है। ब्रह्मांड में सभी जीवित और निर्जीव वस्तुएं पंचमहाभूत से बनी
हैं।[च.सा. सूत्र स्थान 26/10]। इसलिए, पंचमहाभूत मानव सहित ब्रह्मांड के निर्माण के लिए जिम्मेदार पांच
मूलभूत तत्व हैं। प्रत्येक व्यक्ति का एक अद्वितीय पंचभौतिक संविधान होता है। यह संविधान स्वास्थ्य में
संतुलन की स्थिति में रहता है और किसी भी असंतुलन के परिणामस्वरूप बीमारी होती है। स्वास्थ्य सेवा
प्रदाता के लिए पंचभौतिक असंतुलन की पहचान करना महत्वपूर्ण है और उसके पास संतुलन बहाल करने की
क्षमता होनी चाहिए।

योगदानकर्ताओं

अनुभाग/अध्याय/विषय शरीरा / पचमहाभूत

लेखक अनीश ईजी, देवले वाईएस

द्वारा समीक्षित बशिष्ठ जी.

जुड़ाव चरक सं हि ताअनुसंधान, प्र क्षण


क्षणशि
औ र विकास

केंद्र , आईपीजीटी और आरए, जामनगर

पत्राचार ईमेल: ड्राईयोगेडेओल@gmail.com,

carakasamhita@gmail.com

प्रकाशक चरक संहिता अनुसंधान, प्र क्षण


क्षणशि
और विकास

केंद्र , आईटीआरए, जामनगर, भारत

प्रथम प्रकाशन की 25 मार्च 2020

तिथि:

डीओआई 10.47468/CSNE.2020.e01.s09.006

अंतर्वस्तु
 1 व्युत्पत्ति एवं व्युत्पत्ति

 2 पांच मूलभूत तत्व

 3 पंचमहाभूत का महत्व

o 3.1 पंचमहाभूत का विकास

o 3.2 इंसान से रिश्ता

o 3.3 पंचमहाभूत के गुण

o 3.4 पंचमहाभूत के लक्षण

o 3.5 भ्रूणजनन में पंचमहाभूत का प्रभाव

o 3.6 पाचन और चयापचय में भूताग्नि की भूमिका

o 3.7 दोष की मौलिक संरचना

o 3.8 पंचमहाभूत प्रबलता के आधार पर मर्म (महत्वपूर्ण बिंदुओं) का वर्गीकरण

o 3.9 स्वाद (रस) और इसकी पंचमहाभूत प्रधानता

 4 चिकित्सा विज्ञान में पंचमहाभूत का अनुप्रयोग

o 4.1 शोधन चिकित्सा में

o 4.2 शांति चिकित्सा में (शमन चिकित्सा)

o 4.3 निदानात्मक विचारों में पंचमहाभूत का अनुप्रयोग

o 4.4 रोग प्रबंधन में पंचमहाभूत का उपयोग

 5 वर्तमान शोध

o 5.1 पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी और जैविक प्रक्रियाएं

o 5.2 ब्रह्मांड के निर्माण में पंचमहाभूत की भूमिका

 6 थीसिस की सूची

 7 अधिक जानकारी

o 7.1 संबंधित आलेख

o 7.2 संदर्भ की सूची

 8 संदर्भ
व्युत्पत्ति एवं व्युत्पत्ति
'भूत' शब्द "भू" धातु (संस्कृ त मूल) और "क्त" प्रत्यय (प्रत्यय) से बना है। इसका अर्थ है ब्रह्मांड में
अस्तित्व। [1] जो बाह्य ज्ञानेन्द्रियों से अनुभव किया जा सके उसे भूत कहते हैं। [2]

पांच मूलभूत तत्व


पांच मूलभूत तत्व हैं [च.सा. शरीरा स्थान 1/27]

1. आकाश महाभूत
2. वायु महाभूत
3. अग्नि महाभूत
4. जल महाभूत
5. पृथ्वी महाभूत

इनमें से प्रत्येक तत्व में अंतर्निहित भौतिक गुण होते हैं।

पंचमहाभूत का महत्व
 सृष्टि की रचना में पंचमहाभूत महत्वपूर्ण कारक हैं। वे तेजस (सत्व प्रधान) और भूतादि (तमस प्रधान)
अहंकार के मिलन से विकसित होते हैं। निम्नलिखित चित्र ब्रह्माण्ड के उद्भव और विकास को दर्शाता है।
छवि 1: विकास प्रक्रिया

पंचमहाभूत का विकास

महाभूतों का विकास ब्रह्मांड के इन विशिष्ट मूलभूत घटकों के प्रभुत्व से हुआ है।

 आकाश : सत्त्व प्रधान


 वायु : रजस प्रधान
 अग्नि : सत्व और राजस प्रधान
 आप : सत्त्व और तमस प्रधान
 पृथ्वी : तमस प्रधान

इंसान से रिश्ता

पंचमहाभूत और चेतना के एकीकरण से पुरुष समग्र मानव का निर्माण होता है । [च.सा. शरीरा स्थान 1/16]
पंचमहाभूत के गुण

प्रत्येक महाभूत में इंद्रिय अंगों से संबंधित प्रमुख अंतर्निहित कार्य होते हैं। जैसा कि नीचे दिया गया है, अन्य
महाभूतों के सूक्ष्म तत्वों को जोड़ने के कारण महाभूत अन्य उन्नत इंद्रियों का अनुभव कर सकता है।
[च.सा. शरीरा स्थान 1/26-28]

पंचत प्रमुख अंतर्निहित मौलिक संरचना के कारण अतिरिक्त सामान्य


त्व कार्य कार्य

आकाश ध्वनि(शब्द) -

वायु स्पर्श (स्पर्श) ध्वनि(शब्द)

अग्नि दृष्टि(रूप) ध्वनि (शब्द), स्पर्श (स्पर्श)

जला स्वाद (रस) ध्वनि (शब्द), स्पर्श (स्पर्श), दृष्टि (रूप)

पृथ्वी गंध (गन्ध) ध्वनि (शब्द), स्पर्श (स्पर्श), दृष्टि (रूप), स्वाद (रस)

महाभूत संबंधित इंद्रियों को उनके संवेदी कार्य करने के लिए निवास प्रदान करते हैं।[चा.सा. सूत्र स्थान .8/14].
ये ज्ञानेन्द्रियाँ ब्रह्माण्ड में पंचभौतिक पदार्थ को जानने के उपकरण हैं। [3]

पंचमहाभूत के लक्षण

प्रत्येक महाभूत का मूल्यांकन निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है

पंचत
वि षताएँ
त्व

मुक्त प्रवाह/अप्रतिघटता
आकाश
(अप्रतिघटता)

वायु लता
गति लता (चलत्व)
शी

अग्नि ताप (उष्णत्व)

जला तरलता (द्रवत्व)

पृथ्वी खुरदरापन (खरत्वा)


किसी भी तत्व की मौलिक संरचना का आकलन करने के लिए उपरोक्त मानदंड लागू किए जाते हैं। शरीर में
इन विशेषताओं के बढ़ने या घटने के संके तों को देखा जाता है और निदान और उपचार में लागू किया जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि खुरदरापन बढ़ा हुआ है, तो पृथ्वी महाभूत में वृद्धि ज्ञात होती है।

भ्रूणजनन में पंचमहाभूत का प्रभाव

भ्रूणजनन के दौरान महाभूत बुनियादी कार्य करते हैं। भ्रूण (गर्भ) के निर्माण के बाद, वायु कोशिका
विभाजन/गुणन (विभजन) का कार्य करती है; अग्नि चयापचय (पचना) का कार्य करती है; जाला नमी या तरल
पदार्थ (क्लेडाना) का कार्य करता है; पृथ्वी सघनता या द्रव्यमान के निर्माण (संहनन) का कार्य करता है; और
आकाश आकार को बढ़ाने (विवर्धन) का कार्य करता है। यदि इन कार्यों को सामान्य अनुपात में किया जाए तो
शरीर की सामान्य संरचना (शरीरा) बनती है [सु.सा.शा.5/3]। गर्भावस्था के तीसरे महीने में शरीर के
निम्नलिखित घटकों का निर्माण होता है और महाभूत से संबंधित कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।[च.सा. शरीरा
स्थान .04/12]

पंचत
रीर के घटक एवंकार्य
त्व

आकाश ध्वनि, श्रवण संवेदना, हल्कापन, सुंदरता और स्थान

स्पर्शनीयता, स्पर्श की अनुभूति, खुरदरापन, आवेग, शरीर के ऊतकों की संरचना और शरीर और दोष की गतिविधियों
वायु
को बनाए रखना

अग्नि नीय रूप, दृष्टि, तेज, पाचन और ताप


दर्नीयर्श

जला स्वाद, स्वाद की अनुभूति, शीतलता, कोमलता, अस्पष्टता और नमी

पृथ्वी गंध, गंध की अनुभूति, भारीपन, स्थिरता और भौतिक रूप

पाचन और चयापचय में भूताग्नि की भूमिका

पाचन और चयापचय की प्रक्रिया में, भोजन अग्नि की क्रिया के तीन स्तरों से होकर गुजरता है । स्थूल पाचन
के लिए सबसे पहले इस पर जठराग्नि का प्रभाव पड़ता है। तब उस पर भूताग्नि क्रिया होती है। इस स्तर
पर प्रत्येक महाभूत का अग्नि घटक भोजन के अपने संबंधित घटक की चयनात्मक पाचन प्रक्रिया को अंजाम
देता है। पार्थिव अग्नि ग्रहण किए गए भोजन के पृथ्वी घटक को पचाती और चयापचय करती है। इसके अलावा
शरीर के घटकों का निर्माण धातुग्नि की चयनात्मक प्रक्रिया द्वारा होता है । [च.सा. चिकित्सा स्थान 15/12-
14] शरीर पंचमहाभूत से बना है और भोजन भी। जब भोजन ग्रहण किया जाता है, तो संबंधित महाभूत और
शारीरिक घटक बढ़ जाते हैं [सु.सा.सु.46/526]।
दोष की मौलिक संरचना

दोषों का गठन विशिष्ट महाभूतों द्वारा किया जाता है [AS.Su.20/2] जैसा कि नीचे दिया गया है:

पंचमहाभूत
दोष
संविधान

वात वायु , आकाश

पित्
अग्नि

कफ जाला , पृथ्वी

इस रचना के आधार पर, महाभूत मनुष्य के मूल संविधान ( प्रकृ ति ) को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं। [च.सा. विमान स्थान 8/95] यह सिद्धांत चिकित्सा विज्ञान में लागू होता है। शरीर में वात दोष कम
होने पर , वायु और आकाश महाभूत को बढ़ाने वाला आहार निर्धारित किया जाता है। तदनुसार, संबंधित दोष
को बढ़ाने वाले आहार निर्धारित किए जाते हैं।

पंचमहाभूत प्रबलता के आधार पर मर्म (महत्वपूर्ण बिंदुओं) का वर्गीकरण

शरीर में मर्म या महत्वपूर्ण बिंदुओं/अंगों को शरीर पर उनके हानिकारक प्रभाव के आधार पर पांच श्रेणियों में
वर्गीकृ त किया गया है । हानिकारक प्रभाव उनकी महाभूत की मौलिक संरचना [सु.सा.शा.] पर निर्भर करता है।
6/16] नीचे के अनुसार।

पंचमहाभूत
मर्म का प्रकार
संविधान

सद्यप्राणहार (जिससे तत्काल मृत्यु हो) अग्नि

कालान्तरप्राणहार (जो कु छ समय के बाद मृत्यु का कारण बनता है) जल , अग्नि

विशल्याघ्न (वह जो विदे शशरीर को हटाकर मृत्यु का कारण


वायु
बनता है)

वैकल्यकारा (जो विकलांगता या विकृति का कारण बनता है) जला

रुजकारा (वह जिससे पीड़ा हो) अग्नि , वायु

इस प्रकार, महाभूत का प्रभाव प्राण शक्ति पर पड़ता है।


स्वाद (रस) और इसकी पंचमहाभूत प्रधानता

पंचमहाभूत संरचना किसी पदार्थ का विशिष्ट स्वाद निर्धारित करती है। तदनुसार रस या स्वाद प्रासंगिक
जैविक गतिविधियाँ और प्रभाव करते हैं [सु.सा.सु 42/03], [चा.सा. सूत्र स्थान 26/40]। इनका प्रयोग
चिकित्सीय प्रयोजन के लिए किया जाता है।

रासा पंचतत्व दोष पर रीरिक प्रभाव

मीठा (मधुरा) पृथ्वी , जला वात, पित्त की शांति

पृथ्वी , अग्
खट्टा (आंवला) वात की शांति
नि

नमकीन
जल , अग्नि वात की शांति
(लावना)

मसालेदार
वायु , अग्नि कफ की शांति
(काटू)

कड़वा (तिक्ता) वायु , आकाश कफ, पित्त की शांति

कषाय (कषाय) पृथ्वी , वायु कफ, पित्त की शांति

चिकित्सा विज्ञान में पंचमहाभूत का अनुप्रयोग


ऊपर उल्लिखित चिकित्सीय उपयोगों के अलावा, विशिष्ट महाभूत की प्रधानता वाली औषधियों को चिकित्सीय
प्रक्रियाओं में प्रशासित किया जाता है। यह महाभूत के प्रासंगिक गुणों और प्रभाव से मेल खाता
है [सु.सा.सु.41/6-9]।

शुद्धि चिकित्सा ( शोधन चिकित्सा ) में

भूता
इलाज
प्रधानता

वमन ( वमन ) अग्नि और


औषधि वायु

पृथ्वी और ज
विरेचन औषधि _
ला
शांति चिकित्सा में ( शमन चिकित्सा )

भूता
इलाज
प्रधानता

शमन औषधि आकाश

कब्जनाशक (ग्राही) औषधि वायु

पाचन शक्तिवर्धक (दीपना)


अग्नि
औषधि

वायु और अग्
स्कार्फियिंग (लेखना) औषधि
नि

पृथ्वी और ज
पौष्टिक (बृह्मण) औषधि
ला

निदानात्मक विचारों में पंचमहाभूत का अनुप्रयोग

पंचमहाभूत की विशेषताओं को निदान में निम्नानुसार लागू किया जाता है:

पंचत
निदान बिंदु
त्व

खोखली गुहाओं में शरीर के घटकों का मुक्त प्रवाह, शरीर के अंदर विभिन्न ध्वनियाँ
आकाश
उत्पन्न होना

वायु विभिन्न संचालन और संचरण गतिविधियाँ, परिवहन प्रक्रियाएँ

अग्नि पाचन, परिवर्तन और चयापचय प्रक्रियाएं, गर्मी उत्पादन

एएपी द्रव संतुलन, नमी और शीतलता बनाए रखना

पृथ्वी शरीर का द्रव्यमान, गंध

महाभूत के अनुपात का आकलन करने के लिए शारीरिक कार्यों में असामान्यताओं को देखा जाता है।
रोग प्रबंधन में पंचमहाभूत का उपयोग

पंचमहाभूत सिद्धांत का प्रयोग रोगों के प्रबंधन में किया जाता है। रोग के मूल प्रेरक कारकों और रोगजनन की
पंचभौतिक संरचना देखी जाती है। फिर शरीर में संतुलन बहाल करने के लिए विपरीत पंचभौतिक संविधान
वाली दवाएं दी जाती हैं।

उदाहरण के लिए, ज्वरा में , अपाच्य भोजन ( अमा ) पोषक द्रव्य (रस धातु) को ख़राब कर देता है। पाचन और
चयापचय धीमा हो जाता है। इस प्रकार, पृथ्वी और जल महाभूत बढ़ जाते हैं और रोग की स्थिति पैदा करते हैं।
ज्वर के उपचार में लंघना, स्वेदन, पचना और कड़वे स्वाद (तिक्त) वाली दवाएं शामिल हैं। उपचार
में अग्नि , वायु और आकाश का प्रभुत्व है। एक ही महाभूत की प्रधानता वाली साइपरस रोटंडस (मुस्ता),
जिंजिबर ऑफिसिनेल (शुंथि) जैसी जड़ी-बूटियों को प्रबंधन में प्रशासित किया जाता है। इसे कई अन्य
बीमारियों में भी लगाया जा सकता है। [4] इस प्रकार रोगों के निदान एवं उपचार में पंचमहाभूत सिद्धांत महत्वपूर्ण
है।

वर्तमान ध
पंचमहाभूत की वर्तमान समझ को दो भागों में वर्गीकृ त किया जा सकता है:

1. पंचमहाभूत जैविक प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं


2. ब्रह्मांड के निर्माण में शामिल पंचमहाभूत यानी तन्मात्रा के सूक्ष्म रूप

पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी और जैविक प्रक्रियाएं

आधुनिक भौतिक विज्ञानी, डॉ. जॉन हेगेलिन ने बताया कि क्वांटम भौतिकी सृष्टि में सब कु छ बुनियादी 'बल'
और पदार्थ क्षेत्रों से प्राप्त करती है। ये क्षेत्र पाँच मौलिक स्पिन प्रकारों में से एक हैं - कण भौतिकी में सबसे
बुनियादी अवधारणा। उन्होंने पंचमहाभूत को आधुनिक भौतिकी के पांच स्पिन प्रकारों के साथ सहसंबंधित
किया। आगे बढ़ते हुए, संबंधित सुपरफ़ील्ड के साथ दोष के संबंध की संभावना की पुष्टि नीचे दी गई तालिका में
दिखाई गई है:

पंचमहाभू सुपर सुपर


पांच स्पिन प्रकार दोष दोष
त फील्ड फील्ड

स्पिन 2 = ग्रेविटॉन वा गुरुत्वाकर्


आकाश
(गुरुत्वाकर्षण) त षण

वा गुरुत्वाकर्
वायु स्पिन 3/2 = ग्रेविटिनो
त षण

स्पिन 1 = बल क्षेत्र (विद्युत पि


तेजस गेज
चुंबकत्व) त्त

जला स्पिन 1/2-= पदार्थ क्षेत्र पि गेज कफ मामला


त्त

पृथ्वी स्पिन 0 = हिग्स फ़ील्ड कफ मामला

यह सादृश्य स्वास्थ्य की वर्तमान समझ में सहायक है। महाभूत शरीर के घटकों जैसे आकाश (शरीर में स्थान,
चैनल) में भी मौजूद हैं; वायु (शरीर में वायु, गैसीय आदान-प्रदान, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड आदि,
श्वास); अग्नि (रासायनिक प्रतिक्रियाएं, एंजाइमेटिक गतिविधि, पाचन); जल (पानी, तरल पदार्थ, आयनिक
घटक); और पृथ्वी (पृथ्वी, ठोस संरचनाएँ)। [5] शरीर के घटक जैसे दोष, धातु, मल, अग्नि आदि पंचमहाभूत के
जैविक व्युत्पन्न के अलावा और कु छ नहीं हैं और इससे अलग कु छ भी नहीं है। [6] इसलिए पंचमहाभूत
अत्यधिक महत्वपूर्ण कारक हैं जो जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

ब्रह्मांड के निर्माण में पंचमहाभूत की भूमिका

जैसा कि ऊपर बताया गया है, क्वांटम यांत्रिकी में पांच स्पिनों के साथ सहसंबंध के अलावा, पंचमहाभूत ब्रह्मांड
के निर्माण में महत्वपूर्ण लिंक हैं। विज्ञान के अनुसार, ब्रह्मांड अव्यक्त (अव्यक्त) से ब्रह्मांडीय बुद्धि ( महत )
और अहंकार ( अहंकार ) के माध्यम से विकसित हुआ है। फिर रजस प्रधान तैजस और तमस प्रधान भूतादि
अहंकार से पंचतन्मात्रा (पंचमहाभूत के सूक्ष्म रूप) विकसित होते हैं। पंचतन्मात्राएँ ज्ञान की महत्वपूर्ण कड़ियाँ
हैं जो वैज्ञानिकों को इस बात की अधिक विस्तृत और मात्रात्मक समझ प्रदान करती हैं कि चेतना किस प्रकार
पदार्थ को जन्म देती है । [7] इस संबंध में, ब्रह्मांड में परिवर्तन प्रक्रिया ऊर्जा का प्रवाह बन जाती है।

थीसिस की सूची
आईपीजीटी एवं आर.ए. जामनगर:

1. राव टी. श्रीनिवास (1970)। पंचभूतिक गुण (गुरु और लघु के लिए एक अध्ययन)।
2. उपेन्द्र डी. दीक्षित (1995)। पंचमहाभूत की अवधारणा एवं चिकित्सा में इसकी उपयोगिता।
3. डॉ. बिष्णुप्रिया मोहंती (2004 पीएच.डी.) पंचमहाभूत का बायोट्रांसफॉर्मेशन और कोशिका क्षति के
संदर्भ में इसकी व्याख्या।
4. नलगेदिलीप एच (2004)। संस्कार का एक अध्ययन और द्रव्य की पंच-भूतिक संरचना के परिवर्तन में
इसकी भूमिका।
5. गौतम खांडेपारकर (2007)। संतर्पणोत्थाप्रमेह और इसके प्रबंधन के संबंध में "भूतेभ्योहि
परम्यस्मात्नास्तचिन्तचिकित्सिते" का आलोचनात्मक अध्ययन।
6. अनुरुचिजादौन (2012)। द्रव्यों के पंचभौतिक अरबधाता की अवधारणा (महाभूतों का संयोजन और
विन्यास) और समान और विचित्रप्रत्ययारब्धता का व्यावहारिक पहलू।
7. हर्षल एस साबले (2013)। पंचविधावत की अवधारणा को उनके पंचभौतिक संयोजन और विन्यास के
संबंध में लागू किया गया।
8. कमलामूंड (2018)। पृथ्वी महाभूत के मूल्यांकन के लिए वस्तुनिष्ठ पैरामीटर विकसित करने के लिए
पंचमहाभूत सिद्धांत पर एक अध्ययन

आयुर्वेद संकाय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी:


1. द्विवेदी एलडी (1969-एमडी और 1975-पीएचडी)। पंचमहाभूतों की अवधारणा का एक अध्ययन
2. श्रीवास्तव एल.पी. (1988)। सांख्य, योग और आयुर्वेद के आलोक में पंचमहाभूतों की अवधारणा।

शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय नागपुर:

1. बावीसाकर गीता (1989)। शरीर में पंचमहाभूतों की व्याप्ति।


2. मन एस. (2000) विभिन्न पंचमहाभूत संगठनात्मक द्रव्यों का प्राण शरीर वृद्धि पर तुलानात्मक
अध्ययन

पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं, ये तीनों ही विषय विज्ञान और दर्शन में विभिन्न स्तरों पर
हैं, लेकिन इनके बीच गहरा संबंध हो सकता है।

1. पंचमहाभूत:
o पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) वेदांत और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण रूप से उदाहृत होते
हैं
। इन्हें सृष्टि के आधार तत्व के रूप में देखा जाता हैऔर मानव शरीर के स्वास्थ्य में इनका
संतुलन महत्वपूर्ण माना जाता है

2. क्वांटम यांत्रिकी:
o क्वांटम यांत्रिकी एक विज्ञान शाखा है जो अणु, रासायनिक प्रक्रियाएं, और ऊर्जा स्तरों की
गणना करने के लिए इंजनियरिंग और गणित का उपयोग करती है । यह बताती हैकि अणु
और ऊर्जा स्तरों का संबंध कै से होता हैऔर क्वांटम यांत्रिकी में विभिन्न प्रक्रियाएं कै से कार्य करती
हैं

3. जैविक प्रक्रियाएं:
o जैविक प्रक्रियाएं जीवन के स्वाभाविक प्रवाह को समझने का क्षेत्र हैं
और बायोलॉजी और
जैवविज्ञान के अंतर्गत आती हैं । इसमें जन्म, विकास, मृत्यु, ऊर्जा प्रवाह, और ऊर्जा
संरचना जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं
जो जीवों के जीवन को संचालित करती हैं ।

संबंध:

 , जिसमें इन्हें स्थूल रूप


क्वांटम यांत्रिकी में, अणु और ऊर्जा स्तरों की गणना विचार की जाती है
से अनुपस्थित या सूक्ष्म रूप में आकलन किया जा सकता है
। यह विज्ञानिक दृष्टिकोण से परमाणु और
पंचमहाभूत के बीच संबंध को समझने में मदद कर सकता है

सार्थक तौर पर, यह तीनों हीक्षेत्र अपने-अपने तरीके से विज्ञान और दर्शन के माध्यम से जीवन और सृष्टि
के असली स्वरूप को समझने की

पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं

प्रस्तावना:

प्राचीन समय से हीमानव ने आसपास की प्राकृ तिक रचनाओं और उनके कारगर प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है ।
ब्रह्मांड की रचना और उसमें घटित होनेवाली घटनाओं को समझने का प्रयास विज्ञान और धार्मिक
दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण अंश रहा है
। इस दिशा में, पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं तीन प्रमुख
क्षेत्र हैं
जो हमें
ब्रह्मांडिक और जीवन की स्वरूप समझने में सहायक हैं ।

पंचमहाभूत:

पंचमहाभूत वह प्राकृ तिक तत्व हैं


जो हमारे
ब्रह्मांड की सृष्टि का मौलिक अंग हैं
। ये प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु,
और आकाश हैं । इन महाभूतों का संयोजन और संतुलन हीसृष्टि को समर्थन करता है

1. पृथ्वी (Earth): पृथ्वी भौतिक रूप से स्थूलता और दृढ़ता का प्रतीक है
। इसमें हमें वन्यज, खनिज, और
अन्य प्राकृ तिक संसाधन मिलते हैं जो जीवन का समर्थन करते हैं ।
2. जल (Water): जल सभी जीवों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । यह सभी प्राणियों के जीवन का अभिन्न
हिस्सा हैऔर इसका संभावनाओं से भरा होनाहमारे ब्रह्मांड के लिए आवश्यक है ।
3. अग्नि (Fire): अग्नि ऊर्जा का प्रतीक हैऔर इसका उपयोग रोजमर्रा की जीवन अग्निकरण की
प्रक्रियाओं में किया जाता है

4. वायु (Air): वायु सभी जीवों के लिए सांजीवनी हैऔर यह ब्रह्मांड में ऊर्जा को प्रसारित करने में मदद
करता है ।
5. आका (Space): आकाश अद्भुत रहस्यमय भूत हैजो ब्रह्मांड को व्याप्त करता हैऔर उसमें सम्पूर्ण
सृष्टि को संजीवनी शक्ति प्रदान करता है

क्वांटम यांत्रिकी:

क्वांटम यांत्रिकी विज्ञान ब्रह्मांड के सूक्ष्म स्तर की रचनाओं और ऊर्जा के संबंध में अद्वितीय और रहस्यमय
ज्ञान प्रदान करती है
। इसमें अद्वितीय तत्वों के साथ ऊर्जा के अद्भूत रूपों का अध्ययन हैजो हमारे
सामान्य भौतिक नियमों से बाहर हैं।

1. क्वांटम प्रकार: क्वांटम यांत्रिकी में, ऊर्जा का स्तर क्वांटम होता है


, जिससे अद्भूत गुण, जैसे
कि सुपरपोजीशन और एंटैंगलमेंट, उत्पन्न होतेहैं ।
2. क्वांटम सुपरपोजीन: क्वांटम सुपरपोजीशन विद्युत चुम्बकीय तथा क्वांटम बिजली के क्षेत्र में अद्वितीय
गुण हैजो हमें
भौतिक यांत्रिकी से बाहर ले जाता है ।
3. क्वांटम एंटैंगलमेंट: यह गुण कई क्वांटम कणों के बीच एक समर्थित स्थिति की अनुपस्थिति का
अर्थ हैऔर इससे एक कण की स्थिति किसी दूसरे कण की स्थिति के साथ सीधे रूप से संबंधित होसकती है ।

जैविक प्रक्रियाएं:

जैविक प्रक्रियाएं जीवों की स्वाभाविक और सामाजिक परिवर्तन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करती हैं
। इन प्रक्रियाओं में
पंचमहाभूतों का सहयोग होता हैजिससे जीवन संजीवनी बना रहता है।

1. वाससवावा
-ग्रहण प्रक्रिया: वायु तत्व का सार्थक योगदान श्वास-ग्रहण प्रक्रिया में होता है
, जिससे हम प्राणी
होतेहैं।
2. जल-संलेषण प्रक्रिया: जल महत्वपूर्ण तत्व हैजो हर जीव के शरीर में विभिन्न प्रक्रियाओं का हिस्सा है ,
जैसे कि पाचन, रक्त परिसंचरण, और ऊर्जा उत्पन्न करना।
3. अग्नि- धन प्रक्रिया: अग्नि तत्व का उपयोग अन्न को प्रक्रियाशील रूप से खाद्य पदार्थ में बदलने
, जो जीवों के शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है
के लिए होता है ।

समाप्ति:

इस निबंध में हमनेपंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाओं के तीनों क्षेत्रों को समझाया हैऔर देखा है
कि इन सभी घटकों का एक गहरा संबंध हैजो ब्रह्मांड और जीवन को संजीवनी ऊर्जा से पूरित बनाए रखता
है
। यह सभी घटक एक-दूसरे के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए मिलकर कार्य करते हैं और सृष्टि को सहज, समर्थ,
और सुरक्षित बनाए रखते हैं

Title: पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं: ब्रह्मांड की सृष्टि और विकास के तत्व

प्रस्तावना:

ब्रह्मांड का अद्वितीय रहस्य और उसके अनगिनत तत्वों के अध्ययन में हमें पंचमहाभूत, क्वांटम
यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाओं के महत्व का अनुभव होता है । यह तीनों प्रमुख तत्व हमारे ब्रह्मांड के सृष्टि,
संरचना, और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
। इस निबंध में, हम पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और
जैविक प्रक्रियाओं के बारे में विस्तृत अध्ययन करेंगे और उनका अद्भुत संयोग और एक दूसरे के साथ संबंध को
सम झें गे ।

पंचमहाभूत:
पंचमहाभूत, या पांच तत्व, हमारे ब्रह्मांड के मौलिक तत्व हैं जो हमारेवातावरण की संरचना और कार्यों के लिए
अत्यंत महत्वपूर्ण हैं
। ये प्रकृ ति के प्रमुख तत्व हैं
जो हमें
प्रत्येक वस्तु के रूप, गुण, और कार्यों को समझने में मदद
करते हैं
। इन पंचमहाभूतों का संयोग हमें धरती, जल, आग, वायु, और आकाश की सृष्टि को समझने में मदद करता है ।

1. पृथ्वी (भूमि):
o पृथ्वी या भूमि पंचमहाभूत का एक महत्वपूर्ण तत्व है जो हमारीआधारभूत जीवन समर्थन प्रदान करता
है । यह तत्व हमें अभिव्यक्ति, स्थिरता, और संबल प्रदान करता है ।
2. जल (पानी):
o जल, या पानी, जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । यह संरक्षण, ऊर्जा, और प्राण का स्रोत हैऔर
प्राकृ तिक प्रक्रियाओं के लिए अनिवार्य है ।
3. अग्नि (ज्योति):
o अग्नि, या ज्योति, ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और विभिन्न प्रकार की प्राकृ तिक प्रक्रियाओं को
संचालित करता है । यह तत्व प्रकार, उष्मा, और प्रकाश का स्रोत है ।
4. वायु (हवा):
o वायु, या हवा, जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है और प्राणीयों के लिए श्वास लेने का स्रोत है

यह तत्व गति, ऊर्जा, और प्रवाह को संचालित करता है ।
5. आकाश (अंतरिक्ष):
o आकाश या अंतरिक्ष हमारे ब्रह्मांड की अद्वितीयता का प्रतीक हैऔर इसमें सभी अन्य
पंचमहाभूतों का संयोग होता है । यह सभी वस्तुओं को समाहित करता हैऔर ब्रह्मांड की सम्पूर्णता
का प्रतीक है ।

क्वांटम यांत्रिकी:

क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी का एक उप खा खाशा


हैजो अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर तत्वों के व्यवहार का अध्ययन
करती है । इसके अध्ययन से हमें ब्रह्मांड के निर्माण और संरचना के रहस्यमयी पहलुओं को समझने का
अद्वितीय दृष्टिकोण मिलता है

1. क्वांटम सुपरपोजिन:
o क्वांटम यांत्रिकी के अनुसार, किसी तत्व की स्थिति का निर्धारण उसकी देख पर निर्भर करता
है। एक तत्व का समय-स्थान देख या नहीं देख कर सकता है , और एक हीसमय पर कई स्थानों पर
होसकता है ।
2. क्वांटम अंगुलीय संज्ञान:
o इसके अनुसार, किसी एक तत्व का स्थिति या गति का मापन करने पर दूसरे तत्व का स्थिति या
, भले हीवे दूर हों
गति प्रभावित होता है ।
3. क्वांटम इंटरफेरेन्स:
o क्वांटम इंटरफेरेन्स के अनुसार, एक हीसमय पर एक तत्व कई स्थानों पर होसकता है और
इसका एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने की क्षमता होती है

जैविक प्रक्रियाएं:

जैविक प्रक्रियाएं जीवों में होनेवाली प्रक्रियाओं को आवश्यकतानुसार संचालित करती हैं और प्राकृ तिक प्रक्रियाओं का
संचालन करती हैं । ये प्रक्रियाएं पंचमहाभूतों के संयोग से उत्पन्न होती हैं
और जीवों के विकास, प्रजनन, और उनकी
संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।

1. वसन
सन
ववप्रक्रिया:

, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती हैऔर शरीर
o जीवों की श्वसन प्रक्रिया वायु तत्व के संयोग से होती है
के कार्यों को संचालित करने में मदद करती है

2. जल संरचना:
o जल संरचना में पानी तत्व का संयोग होता है जो जीवों की रक्त संरचना, पाचन, और अन्य शारीरिक
प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाता है ।
3. आग सेंसन:
o जीवों में आग सेंसन का अभ्यास आत्मा तत्व के संयोग से होता है , जिससे उन्हें अगर जोखा
जाए, तो उत्तेजना होती है ।
4. आकाश संबंध:
o , जो उन्हें जीवन,
जीवों की आत्मा तत्व का अंतर्निहित संबंध उनके आत्मा से होता है
सच्चाई, और सामंजस्य की भावना देता है

इस प्रकार, पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं हमारे


ब्रह्मांड में होनेवाली अद्वितीय प्रक्रियाओं
को समझने में मदद करती हैं और हमेंयह जानने में मदद करती हैं कि हमाराब्रह्मांड कै से बना हैऔर इसमें कै से
विकसित होरहा है ।

Title: The Interplay of the Five Elements, Quantum Mechanics, and Biological Processes

I. Introduction

A. Definition and Significance of the Five Elements: - The concept of "Panchmahabhoot" or the five
elements is deeply rooted in ancient Indian philosophy, particularly in Ayurveda and other Vedic
traditions. These elements—Prithvi (Earth), Jal (Water), Agni (Fire), Vayu (Air), and Akash (Ether or
Space)—are considered the building blocks of the material world.

B. Overview of Quantum Mechanics: - Quantum mechanics is a branch of physics that studies the
behavior of particles at the atomic and subatomic levels. Key principles include wave-particle duality,
the uncertainty principle, and quantum entanglement.

C. Introduction to Biological Processes: - Biological processes encompass the activities that occur
within living organisms, such as cellular respiration, photosynthesis, and DNA replication. These
processes are fundamental to life and are intricately linked to energy transfer.

D. Importance of Understanding Their Interplay: - Exploring the interplay between the five
elements, quantum mechanics, and biological processes is essential for a comprehensive understanding
of the universe. This interdisciplinary approach can offer insights into the nature of reality,
consciousness, and the interconnectedness of various phenomena.

II. The Five Elements (पंचमहाभूत)

A. Explanation of Each Element: - Prithvi (Earth): Represents the solid state of matter and is
associated with stability and structure. - Jal (Water): Signifies the liquid state and embodies qualities
of adaptability and flow. - Agni (Fire): Represents energy and transformation, associated with heat
and change. - Vayu (Air): Symbolizes the gaseous state, representing movement and changeability. -
Akash (Ether or Space): Represents the void or space, providing the canvas for the other elements.

B. Traditional and Modern Perspectives: - While ancient traditions view these elements through a
holistic and spiritual lens, modern science interprets them in terms of atomic and molecular structures.

C. Role of the Five Elements in Ancient Philosophies and Cultures: - Various cultures and
philosophies, including Ayurveda, yoga, and Chinese philosophy, have integrated the concept of the
five elements into their understanding of health, spirituality, and the natural world.

III. Quantum Mechanics (क्वांटम यांत्रिकी)

A. Overview of Quantum Mechanics Principles: - Wave-Particle Duality: Particles exhibit both


wave-like and particle-like behaviors. - Uncertainty Principle: Imposes limits on the precision with
which certain pairs of properties can be known simultaneously. - Quantum Entanglement: Particles
become entangled, and the state of one particle instantaneously influences the state of the other.
B. Quantum Mechanics and Its Implications: - Quantum mechanics challenges classical notions of
determinism, introducing probabilistic outcomes and non-locality. - Applications in technology include
quantum computing, quantum cryptography, and advancements in materials science.

C. Modern Applications in Technology and Science: - Quantum mechanics has led to technological
breakthroughs such as MRI machines, lasers, and transistors, revolutionizing various fields.

IV. Biological Processes (जैविक प्रक्रियाएं)

A. Introduction to Biological Systems and Processes: - Living organisms carry out various
processes to maintain life functions and perpetuate their species.

B. Key Biological Processes: - Cellular Respiration: The process by which cells produce energy
from glucose. - Photosynthesis: The process by which plants convert light energy into chemical
energy. - DNA Replication and Protein Synthesis: Fundamental processes for the transmission of
genetic information and protein production.

C. Relationship Between Biological Processes and Energy Transfer: - Energy transfer is


fundamental to biological processes and is essential for the survival and functioning of living
organisms.

V. The Interplay of the Five Elements, Quantum Mechanics, and Biological Processes

A. Connections Between the Five Elements and Quantum Mechanics: - Atomic Structure and
Elemental Composition: The elements' characteristics are reflected in atomic structures and
compositions. - Energy Exchange and Quantum Phenomena: Quantum phenomena influence
energy exchange, potentially linking the ancient concept of energies in the elements to quantum
principles.

B. Influence of Quantum Mechanics on Biological Processes: - Quantum Effects in Biological


Systems: Some propose that quantum effects play a role in biological phenomena, challenging
traditional views of biological processes. - Quantum Biology and Implications for Understanding
Life: The emerging field of quantum biology explores the quantum aspects of biological processes and
their significance in the origin and sustenance of life.

C. Conceptual Parallels Between Ancient Philosophies and Modern Scientific Theories: - The
interconnectedness, dynamic nature, and transformative properties attributed to the elements in ancient
philosophies find parallels in quantum principles and the adaptability and transformative capabilities
seen in biological processes.

VI. Applications and Implications

A. Technological Advancements: - The understanding of quantum mechanics has led to the


development of cutting-edge technologies with applications in computing, communication, and
materials science.

B. Insights for Holistic Approaches in Science and Medicine: - Integrating knowledge from ancient
philosophies, quantum mechanics, and biological sciences can contribute to holistic approaches in
medicine and well-being.

C. Philosophical Implications for Our Understanding of Existence and Consciousness: - The


interplay between these domains raises profound questions about the nature of reality, consciousness,
and the interconnectedness of all existence.

VII. Conclusion
A. Recap of the Significance: - Summarize the key findings and connections between the five
elements, quantum mechanics, and biological processes.

B. Final Thoughts on Integration: - Emphasize the importance of integrating ancient wisdom with
modern scientific discoveries for a more comprehensive understanding of the universe.

C. Suggestions for Future Research and Exploration: - Encourage further research into the
interdisciplinary connections explored in the essay, suggesting potential avenues for future exploration
and collaboration.

VIII. References

 Cite the sources used in the essay to provide credibility and enable further exploration by
interested readers.
 I. परिचय
 A. पंचमहाभूत की परिभाषा और महत्व: - "पंचमहाभूत" या पाँच तत्वों का अवधारणा भारतीय
दर्शनिक परंपराओं में गहराई से स्थापित है , वि षकरशे
षकर आयुर्वेद और अन्य वैदिक परंपराओं में। ये तत्व -
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश - सामग्री की रचना के घटक माने जाते हैं ।
 B. क्वांटम यांत्रिकी का सारां: - क्वांटम यांत्रिकी एक भौतिकी शाखा हैजो परमाणु और
उपपरमाणु स्तर पर कणों के व्यवहार का अध्ययन करती है । मुख्य सिद्धांतों में तार-कण द्वैत,
अनिचितता तता श्चि
सिद्धांत, और क्वांटम संबंधन शामिल हैं

 C. जैविक प्रक्रियाओं का परिचय: - जैविक प्रक्रियाएं जीवित प्राणियों में होनेवाली गतिविधियों को
समाहित करती हैं , जैसे कि कोशिका श्वसन, प्रकाश संश्लेषण, और डीएनए रिप्लिके शन। ये प्रक्रियाएं जीवन के
लिए महत्वपूर्ण हैं और विभिन्न क्रियाओं के साथ जड़े हुएहैं ।
 D. उनके संबंधों को समझने का महत्व: - पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाओं
के बीच के संबंधों का अन्वेषण विव श्वके समग्र समझ के लिए आवश्यक है । इस अन्तर्विष्टा दृष्टिकोण से
हम वास्तविकता, चेतना की प्रकृ ति, और विभिन्न प्रभावों के बारे में अंतर्निहित प्रश्नों को सुलझा सकते
हैं।
 II. पंचमहाभूत (पंचतत्वों)
 A. प्रत्येक तत्व का विवरण: - पृथ्वी (Earth): पदार्थ की स्थिर स्थिति को प्रतिष्ठित करती हैऔर
संरचना और स्थिति से जुड़ी है । - जल (Water): द्रव स्थिति को प्रतिष्ठित करती हैऔर अनुकूलता और
प्रवाह की गुणधर्मिता के साथ सम्बद्ध है । - अग्नि (Fire): ऊर्जा और परिवर्तन को प्रतिष्ठित करती है , जो
उष्मा और परिवर्तन के साथ संबंधित है । - वायु (Air): गैसीय स्थिति को प्रतिष्ठित करती है , जो गति और
परिवर्तन की गुणधर्मिता को प्रतिष्ठित करती है । - आकाश (Ether या Space): शून्य या अंतरिक्ष को
प्रतिष्ठित करती है , अन्य तत्वों के लिए चित्र प्रदान करती है ।
 B. पारंपरिक और आधुनिक परिप्रेक्ष्य: - हालां कि प्राचीन परंपराएं इन तत्वों को एक पूर्ण और
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखती हैं , आधुनिक विज्ञान उन्हें परमाणु और आणविक संरचनाओं की दृष्टि से
व्याख्या करता है ।
 C. पंचतत्वों के भौतिक दर्न शन और सांगणिक परंपराओं में भूमिका: - विभिन्न सांस्कृ तिक
र्
और दार्शनिक परंपराएं, जैसे कि आयुर्वेद, योग, और चीनी दर्शन, ने इन तत्वों की सेहत, आध्यात्मिकता,
और प्राकृ तिक विव श्वके समझ में इन्गीत किया है ।
 III. क्वांटम यांत्रिकी (क्वांटम मैकेनिक्स)
 A. क्वांटम मैकेनिक्स सिद्धांतों का सारां: - तार-कण द्वैत: कण वैव-पार्टिकल द्वैत का प्रदर्शन
करते हैं । - अनिचितता तता
चि चि
सिद्धांत: कु छ गुणों के समय समय पर जाने की सीमा लगाता है । - क्वांटम
संबंधन: कणों का संबंधन होजाता है , और एक कण की स्थिति को दूसरे कण की स्थिति पर तत्परता से
प्रभावित करता है ।
 B. क्वांटम मैकेनिक्स और इसके परिणाम: - क्वांटम मैके निक्स ने निचितता तताश्चि
के क्लासिकीय
अनुसार आगे बढ़कर, पर्यावरण और सामग्रियों के क्षेत्र में अग्रणी बदलावों के साथ निर्धारण की नींव
रखी है ।
 C. तकनीकी और विज्ञान में आधुनिक अनुप्रयोग: - क्वांटम मैके निक्स ने एमआरआई मशीन,
लेजर, और ट्रां जि स् टर्स जैसी प्रौद्योगिकियों की खोज में आधुनिकता लाई है , जिससे विभिन्न क्षेत्रों
में क्रांति हुई है

 IV. जैविक प्रक्रियाएं (जैविक प्रक्रियाएं)
 A. जीविक प्रणालियों और प्रक्रियाओं का परिचय: - जीवित प्राणियों के भीतर होनेवाली
विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन करें, जैसे कि सेल्यूलर श्वसन, प्रकाश संश्लेषण, और डीएनए रिप्लिके शन।
 B. मुख्य जैविक प्रक्रियाएं: - सेल्यूलर वसन सन वव
व : कोशिकाएँ ग्लूकोज से ऊर्जा उत्पन्न करती हैं ।
- प्रका संलेषण: पौधों ने प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में परिणामित करने की प्रक्रिया है । - डीएनए
रिप्लिकेन: जीवित प्राणियों में डीएनए की नकल होती है , जिससे नई कोशिकाएं बनती हैं ।
 C. जैविक प्रक्रियाओं का और भी अध्ययन: - जैविक प्रक्रियाओं ने चिकित्सा, जैव
इंजीनियरिंग, और जैव विज्ञान में कई नई दिशाएँ खोली हैं , जो सामग्रियों के साथ जड़े हुएजीवों
की समझ में मदद करती हैं ।
 V. पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाओं के संबंधों का अन्वेषण
 A. आत्मा, चेतना, और ब्रह्म: - विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराएं चेतना, आत्मा, और ब्रह्म
के संबंधों को अपने सिद्धांतों में समाहित करती हैं, जिन्हें अद्वैत वेदांता में "एकत्व" के रूप में
व्याख्या किया गया है ।
 B. संरचना और ऊर्जा के संबंध: - पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं वस्त्र
और ऊर्जा के विभिन्न रूपों के संबंधों को स्पष्ट करती हैं , जैसे कि बीजों से पौधों का विकास और
ऊर्जा स्तरों का परिचय।
 C. समान्य सिद्धांत: - कई धार्मिक और दार्शनिक परंपराएं सामंजस्य और सामंजस्य के सिद्धांतों को
अपनाती हैं , जो सृष्टि, स्थिति, और प्रलय की चक्रवृद्धि के साथ संबंधित हैं ।
 VI. संगति और आगे की अनुसंधान की दि एँ
 A. तत्वों के और भी गहरे अध्ययन की आवश्यकता: - तत्वों के संबंधों, उनके व्यापक असरों,
और उनके संबंधों को और वि षज्ञताशे षज् ञताके साथ अध्ययन करने की आवश्यकता हैताकि हम सामग्रियों,
ऊर्जा, और जीवन की प्रक्रियाओं को और बेहतर से समझ सकें।
 B. पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन: - पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं
अपने पर्यावरण में कै से एक दूसरे के साथ संबंधित हैं , इसका अध्ययन हमें वि षशे ष रूप से प्रदूषण, ऊर्जा
संरक्षण, और प्राकृ तिक संसाधनों के प्रबंधन की दिशा में मदद करेगा।
 C. धार्मिक और दार्निक शनि
र् क परंपराओं का अध्ययन: - विभिन्न सामाजिक सांस्कृ तिकों में तत्वों के
संबंधों की समीक्षा और अध्ययन से हम विभिन्न दृष्टिकोणों और सिद्धांतों को समझ सकते हैं , जो व्यक्ति
और समाज के सृष्टि और उसके उद्दीपन को विकसित कर सकते हैं ।
 समापन
 इस अनुसंधान के माध्यम से, हमनेदेखा हैकि पंचमहाभूत, क्वांटम यांत्रिकी, और जैविक प्रक्रियाएं एक-
दूसरे से कै से संबंधित हैंऔर इनके माध्यम से हम जगत के रहस्यमयी स्वरूप को समझ सकते हैं । यह
अनुसंधान न के वल विज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण है , बल्कि यह धार्मिक, दार्शनिक, और सांस्कृ तिक
सीधियों को भी जोड़ता है । इससे हम अपने स्वयं को, अपने पर्यावरण को, और ब्रह्मांड को बेहतर
से समझ सकते हैं और इस प्रकार एक समृद्धि और समर्थन की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं ।

The interplay between the five elements, quantum mechanics, and biological processes forms a
fascinating nexus in our understanding of the universe and life itself. Let's delve into each of these
components and explore how they intersect and influence each other:

1. The Five Elements (Panchamahabhutas): The concept of the five elements—earth, water,
fire, air, and ether—has ancient roots in various philosophical and spiritual traditions, including
Hinduism and Ayurveda. These elements are believed to form the foundation of all material
existence. Each element has its unique properties and qualities:
o Earth (Prithvi): Represents solidity, stability, and the material realm.
o Water (Jal): Signifies fluidity, adaptability, and the essence of life.
o Fire (Agni): Symbolizes transformation, energy, and illumination.
o Air (Vayu): Represents movement, freedom, and the breath of life.
o Ether (Akasha): Signifies space, expansiveness, and the substrate of all existence.
2. Quantum Mechanics: Quantum mechanics is a fundamental theory in physics that describes
the behavior of matter and energy at the smallest scales, such as atoms and subatomic particles.
It revolutionized our understanding of nature by introducing concepts like wave-particle
duality, uncertainty principle, and quantum entanglement. Some key aspects of quantum
mechanics include:
o Wave-Particle Duality: Particles such as electrons exhibit both particle-like and wave-
like properties.
o Superposition: Particles can exist in multiple states simultaneously until measured or
observed.
o Entanglement: Particles can become correlated in such a way that the state of one
particle instantaneously affects the state of another, even if they are separated by large
distances.
3. Biological Processes: Biological processes refer to the myriad of activities occurring within
living organisms, from cellular metabolism to complex behaviors. These processes are
governed by biochemical reactions, genetic information, and environmental factors. Some key
biological processes include:
o Cellular Respiration: The process by which cells generate energy from nutrients and
oxygen, producing carbon dioxide and water as byproducts.
o DNA Replication: The copying of DNA molecules during cell division, ensuring
genetic continuity and inheritance.
o Photosynthesis: The biochemical process in plants and some microorganisms that
converts light energy into chemical energy, producing oxygen and carbohydrates.

The Interconnection: The interplay between the five elements, quantum mechanics, and biological
processes is intricate and multifaceted. Here's how they intersect:

 Subatomic Realm: At the quantum level, the behavior of particles and energy fields governs
the properties and interactions of matter, including the elements and molecules involved in
biological processes.
 Energy Exchange: Quantum phenomena, such as energy transfer and molecular interactions,
underlie many biological processes, including enzyme reactions, cellular signaling, and
neurotransmission.
 Consciousness and Awareness: Some philosophical and spiritual traditions posit a connection
between consciousness, the subtle elements, and quantum phenomena, suggesting that
consciousness plays a fundamental role in shaping reality.
 Emergent Properties: Biological systems exhibit emergent properties arising from the
collective interactions of their molecular components, which may be influenced by quantum
effects and elemental dynamics.
 Environmental Influence: The interplay between the elements, quantum phenomena, and
biological processes is further shaped by environmental factors such as temperature, pressure,
and electromagnetic fields.

Conclusion: In conclusion, the interplay of the five elements, quantum mechanics, and biological
processes offers a rich tapestry for exploration and understanding. While each domain has its unique
principles and dynamics, they are deeply interconnected, shaping the fabric of our universe and the
essence of life itself. Further research and interdisciplinary collaboration hold the key to unraveling the
mysteries of this profound interrelationship and its implications for science, philosophy, and human
experience.

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